Brihat Parasara Hora Sastra with English Translation Girish Chand Sharma Volume 2


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Brihat Parasara Hora Sastra with English Translation Girish Chand Sharma Volume 2

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लग्नेशात्‌ केन्द्रकोणस्थे राहौ लग्नं विना स्थिते । अष्टोत्तरी दशा विप्र ! विज्ञेया रौद्रभादितः।।१७ ।। चतुष्कं त्रितयं तस्मात्‌ चतुष्क त्रितयं पुनः। एवं स्वजन्मभं यावद्‌ विगणय्य यथाक्रमम्‌ । ।१८ |।

सूर्यश्चन्द्रः कुजः सौम्यः शनिर्जीवस्तमो भृगुः । एते दशाधिपा विप्र ! ज्ञेयाः केतुं विना ग्रहाः ।।१९।। रसाः पन्वेन्दवो नागाः सप्तचन्द्राश्च सेन्दवः | गोऽन्नाः सूर्याः कनेत्राश्च रव्यादीनां दशासमाः । ।२०। 17-20; ॥21181151। 08725818 580, 0 2781711101 1 दशी € 0601110 10116 ^5661087 (॥ 2002) 15 [0516610 20 ^\01016 (1९611018) 01 8 1016 (111९018) 11 106 1७ ज ^\ऽ८लातवां (1 24038 1010), 50116 1676065 8000 ^ 2 0258 5४ अनला). 1076 ^\501†2॥ 0858 ©01701167665 ४10 11€ 9५0 0858 00५6119 0011 210॥64 06100 0010 116 117 06 110112160 0#/ 4 800 1161 41४14600# 15. 115 ०064061 25006 ७५566 25 8001581 86 ज ॥1 68160181701116 । 1

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रात्रौ लग्नाश्रिताद्राशेर्दिने लग्नेष्वराश्रितात्‌।

सन्ध्यायां वित्तभावस्थान्नेया चक्रदशा वुधैः । ।५०।। दशा वर्षाणि राशीनामेकैकस्य दशामितिः। क्रमाच्चक्रस्थितानान्व विज्ञातव्या द्विजोत्तम । | ।५१।। 50-51 : 10 116 €४6€्ीं ज 0) 12/47 01266 ॥ 1/6 107, 116

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सूर्यस्याऽन्तर्गते चन्द्रे लग्नात्केन्द्रत्रिकोणगे । विवाहं शुभकार्यं च नघान्यसमृद्धिकृत्‌ । ।४ । ।

गृहक्षेत्राभिवुद्धि च पशुवादनसम्पदाम्‌ । तुगेवा स्वर्षगे वाऽपि दारसौख्यं धनागमम्‌ ।।५।।

पुत्रलाभसुखं चैव सौख्यं राजसमागमम्‌ । महाराजप्रसादेन दृष्टसिद्धिसुखावषहम्‌ । ।६।। 4-6 : ॥0 106 [11 1#2120858 9 116 900 +) 1/6 ५06) 41216858, + 1116 1100 [ऽ 00516 ॥ 1116 ^566ण्धी, ^10165 अ 11)65, {16 ("11206 01 0116 20519010८5 17605 ५४॥ 181९6 01866 200 006 065 8106 1110८0# #68॥ 200 009 00001 ॥ (2110

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दायेशादथ रिष्फस्थे रन्ते वा बलवर्जिते । ।२७।। बन्धनं स्थाननाशश्च कारागृहनिवेशनम्‌ । चौराहित्रणभीतिश्च

दारपत्रादिवर्नम्‌ ।।२८।।

चतुष्पाज्जीवनाशश्च गृहकषेत्रादिनाशनम्‌ । गुल्मक्षयादिरोगश्च हयतिसारादिषीडनमु । ।२९।। 27-29 . {16 01866767 9 021५ 11116 811 07116 12110५56 107 {116 ५2080258 0/५ ५५।॥ 6५56 [11015077767, 1201561, (076, {6ी, 68 10) 57120९6, ॥1[५7 &6., 001 1116 11५6

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द्विसप्तस्ये तथा रादौ त्त्स्थानाधिपसंयुतते । उपमृत्युभयं चैव सर्पभीतिश्च सम्भवेत्‌ । ।३०।। दुर्गाजपं च कुर्वीत्‌ छागदानं समाचरेत्‌ ।

कृष्णां गांदद्याच्छन्तिमाप्नोत्यसंशयम्‌ महिषीं । ।३१।। 30-31 :102/\५15 0059166 "1111116 100५5 1116 7/0 1/6 210 11056, {11616 \५॥ 06 1116 00551011) 9 2॥ 6वा।# ५6बा#), ५401061 {जा 518॥480)016 ४/॥ |8010 80641818 5८000 19 {15 ¶कती.. 6991016 : 23 092 : 0816 9 0111 18.5.1966; 776 ग 011 9.00 115. 17) 1211५५6 28°-43' (१५); [ 0141006 ,77°-50"(£) 6818008 0858 8! 0110 : ॥८211016 : 30 ||.॥

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करकटे सुखमाप्नोति सिंहे भूपालतो भयम्‌। कन्यायां बन्धुतः सौख्यं तुलभे कीर्तिमाप्नुयात्‌ । \९ । ।

वृश्चिके च पितुः कष्टं चापे ज्ञानधनागमः । मकरे त्वयशो लोके कुम्भे वाणिज्यतः क्षतिः । ।१०।। मीने सुखमवाप्नोति ककि फलमीदृशम्‌ । ।१०⁄2 । । 9-102: १6७५७ त (€ 08535 ° ©शौोत्ल #)92: 11116 0858 0187661 ⁄1198 - 210 > 18/0011655 11116 0858 2 60-68/ । 1/6 1५110, ॥1 1116 0852 9 ४196 -ल्जाणि णा) णिठौ1615, 10 {16 0898 ज 11078 - वौविताि6ीिं 9 976 31716, ॥1 1116 0898 ७6011010 - 0151655 10 ग1167, ॥) 16 0858 ॐ ऽ201181145 - 11676856 ॥ ०५16606 2010 "6811, 1016 0258 9 ८वल्ज7-49160०८16 1१ 0५०16, 10 {16 0268 0 ^व4४21७5 - 055 ॥1 00511658, 10 {16 0858 0 0156065 व व76 01 12001655. 11696 216 1116 65415 9 1/6 ^\1158-5015

116 ©82166 ^1158.

वृश्चिके कलहः पीडा तुलभे सुखसम्पदः । ।११।। कन्यायां धनधान्यानि कके पशुगणाद्‌ भयम्‌ ।

सिंहे सुखं च दुःखं च मिथुने शत्रुवर्धनम्‌।।१२।। वृषे च सुखसम्पत्तिः मेषे कष्टमवाप्नुयात्‌ । मीने तुदीर्धयात्रा स्वात्‌ तिहांशे फलमीदुशम्‌ । ।१३।। 11-13: 0694105 छ †€ 02585 ° 160 ^ा)58; 1) 1116 0858 2 §60100 ^158 - 4८816। 210 0517695, 11116 08458 ॐ | 1018 - ल्भाीर्णि5ऽ, ॥1 1/6 0858 9 ऽ वा८5 - 08215, 11 {106

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501

कुम्भभे धनलाभः स्यान्मकरेऽपि धनागमः । चापे भ्रातुजनात्‌ सौख्यं मेषे मातुसुखं वदेत्‌ । ।१४ ।।

वृषभे पुत्रसौख्यं च मिथुने शत्रुतो भयम्‌ । कर्के दारजनैः प्रीतिः सिंहे व्याधिविवर्धनम्‌ । ।१५।। कन्यायां चसुतोत्पत्तिः कन्यांशे फलमीदृशम्‌ । ।१५12। । 14-152 06७15 {06 02525 9 ४140 788; 1) {€ 0858 94५2005 ^‰1158 - 9210 9 \/68॥1, ॥ 116 0858 © ्ूणोत्ना-च८्ननी0) 9५680), 10106 02549 5241 20705-01685५76 जी) 0700615, 1016 0898 01 ^4165-र्बर्ति0) ग 70061, 1 116 0258 ग 18005 - 18001655 107) 0101811, 11106 0858 9 उना॥॥ - ५270469 11 106 न1ला1॥65., 11106 0258 9021067 - 07101655 01५40716) 0145, ॥) 106 058 ॐ । 60 - 3006/3100 9 05656, ॥0 € 0458 ° „190 0111 9 8 0016. 11656 26 116 (65045 अ 1116 02525 त /190-647158.

तुलभे धनसम्पत्तिर्वृर्चिके भ्रातृतः सुखम्‌ । ।१६।। पितृवर्गसुखं चापे मातुकष्टं मृगे वदेत्‌ ।

कुम्भे वाणिज्यतो लाभं मीने च सुखसम्पदम्‌ । ।१७। ॥ वृश्चिके च स्याः पीडा तुले च जलतो भयम्‌ । कन्यायां समुखसम्पत्तिस्तुलांशे फलमीदुशम्‌ । ।१८।। 16-18: १6७५७ 01106 08588 0 [1018 ^)58; 1) {€ 0858 अ 1 018 ^\1158 - 9210 9 6801 26 00४, ॥ 116 02580560 01625016 01065, 11106 085वर्ग 5201111145-

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कर्कभे धनहानिः स्यात्‌ सिंहे भूपालतो भयम्‌ । मिथुने भूमिलाभश्च वृषभे धनसम्पदः । ।१९।।

502

13४2115-51015, ॥६२1३०18५8 0958

मेषे तु रक्तजा पीडा मीने च सुखमादिशेत्‌ ।

कुम्भे वाणिज्यतो लाभो मकरे च धनक्षतिः ।।२०।। चापेसुखसम्पत्तिर्वृ च श्चिकांशे फलंत्विदम्‌ |(२०2 । । 19-201⁄2: १6७५५४७ > € 02585 9 5601010 1058; 1) {16 0858 0 © काथ 1198 - 1055 9 ५68, 1) 1/6 0858

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मेषे च धनलाभः स्यात्‌ वृषे भूमिविवर्द्धनम्‌।।२१।।

मिथुने सर्वसिद्धिः स्यात्‌ कर्कभे सुखसम्पदः । सहि सर्वसुखोत्पत्तिः कन्यायां कलहागमः । ।२२।। तुले वाणिज्यतो लाभो वृश्चिके रोगजं भयम्‌ । चापे पुत्रसुखं वाच्यं धनरंशे फलं त्विदम्‌ । {२३।। 21-23: 86७05 01116 0585 01 §व्ताधगाप§ 058:

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मकरे पुत्रलाभः स्यात्‌ कुम्भे धनविवर्धनम्‌ । मीने कल्याणमाप्नोति वुर्चिके पशुतो भयम्‌ | ।२४।। तुलभे त्वर्थलाभः स्यात्‌ कन्यायां शत्रुतो भयम्‌ । कर्कटे धियमाप्नोति सिंहे शत्रु जनाद्‌ भयम्‌ । ।२५।। मिथुने विषतो भीतिमुगांशे फलमीदुशम्‌ । २५2 । ।

9

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503

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वृषभे धनसम्पत्तिर्मेषे नेत्रजो भयम्‌ । ।२६।। मीनभे दीर्घयात्रा स्यात्‌ कुम्भे धनविवर्धनम्‌ । मकरे सर्वसिद्धिः स्याच्चापे ज्ञानविवर्धनम्‌ । ।२७।।

मेषे सौख्यविनाशः स्यात्‌ वृषभे मरणं भवेत्‌ । मिथुने सुखसम्पत्तिः कुम्भांशे फलमीदृशम्‌ । ।२८।। 26-28: 065५1१5 01 € 08585 01 ॥^0५211४5 1958. 1) {16 0858 9 1 80115 ^‰1)58 - 2006100 9 6810, ॥1 106 [0858 ॐ ^165 - 6#/© 0156256, ॥0 106 0258 9 7156065 - [०८५1610 8 01518111 01868, 10 {116 058 अ ^५८ २01८5 - 20618110 न #6व४्, 1) 106 0858 9 02011001 - 5060655 ॥ 8॥ 201141165 (25), 1) 116 0858 320॥131105 - 11016856 111400\/16006 (68105) - 11116 0858 0 ⁄/165 517 त (005, 10 106 0858 ग 1 वाऽ - 06, 1 {116 085 06) - 1016256 0 0070115 206 गणा (0090611). 11656 2/6 106 (6515 9 106 08585 र ^\4८५211५5 1788.

कर्कटे धनवृद्धिः स्यात्‌ सिंहे राजाश्चयं वदेत्‌। कन्यायां धनघान्यानि तुते वाणिज्यतो धनम्‌ । ।२९।।

वृश्चिके ज्वरजा पीडा चापे ज्ञानसुखोदयः | मकरे स्त्रीविरोधः स्यात्‌कुम्भे च जलतो भयम्‌ । ।३०।।

मीने तु सर्वसौभाग्यं मीनांशे फलमीदुशम्‌ । दशाद्ंशक्रमेणैव ज्ञात्वा सर्वफलं वदेत्‌ । }३१।।

0858

29-31: 26७५5 0 {16 058 9 5685 1058; 10 1/6 0858 ° ©8766॥ ^1158 - 3001 9 6800, ॥1 106 1 60 - 60001116 1९410, 1111116 08580 1006-0 9) 9४6 बी॥

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0 06665 158.

क्रूरग्रहदशाकाले शान्ति कुर्याद विधानतः । ततः शुभमवाप्नोति तदशायां न संशयः । ।३२।। 32: 04100 116 02585 0116 7816 0180665, ॥ णिजि 09000 01285 15 अणिी)6601) ०6501066 1610005 7165, 11616505

४५)॥, (1700910160)/ 06 9006.

अथाष्टकवर्गाध्यायः । ।६८ । | 0291668

0511५426 भगवान्‌ ! भवताऽऽख्यातं ग्रहभावादिजं फलम्‌ ।

बहूनामृषिवर्याणामाचार्याणां च सम्मतम्‌ । ।१।। संकारात्‌ तत्फलानां च ग्रहाणां गतिसंकरात्‌ ।

इत्थमेवेति नो स्वै ज्ञात्वा वक्तुमलं नराः । ।२।। कलौ पापरतानां च मन्दा बुद्धिर्यतो नृणाम्‌ । अतोऽल्पुद्धिगम्यं यत्‌ शास्त्रमेतद्‌ वदस्व मे। ।३।। तत्तत्कालग्रहस्थित्या मानवानां परिस्फुटम्‌ । सुखदुःखपरिक्ानमायुषो निर्णयं तथा।।४।। 1-4: #21116/8 586 - 0 (0/0 ।०८ 8/6 5166 (81160 106 9्6५§ 9 01265 (गर्े) 2116 1100565 (भर्वो) 2061 (€ 61119 10 कभा 52065 (ऋषि) 2110 16807160 06660105 (आचार्या), 0५1 ॥ 0801001 11४ 06 ~460 ५1616 {11656 8161116 0)# 00166 00951016 65015 ॥ ५6५४. {06 (जानता न्तिऽ 6205660 0#/106 तिल वाऽन) 10४नाानी5 0116 0182065. 10116211/002.116 11011120 06105 #/1 06607116 ५७॥ 0119 10 106॥ १6५06766 1 517५ ५6605 216, 11616016, 06 00191061816 तं 6490070 8 55167) > 51५0) (सास्त्र) 0171116 06505 \५)0 #/०॥0 06 12५14 ।0\/ 06669105 200 1110001 \10॥ 1069 ००५6 981 8 069

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साधु पृष्टं त्वया ब्रह्मन्‌ ! कथयामि तवाग्रतः । लोकयात्रापरिज्ञानमायुषो निर्णवं तथा । ।५।। संकरस्याविरोधल्व शास्त्रस्यापि प्रयोजनम्‌ । जनानामुपकारार्थं सावधानमनाः शुणु ।।६।। 5-6: 81121151 0825818 520 - 0 81201110 । 0८ ३५6 00560 8 &0५ 0८65100. ॥०५४ । ऽनरजि†ौ 0606 #०८४ ३ 50891738 (5#/5{ना) 01 01100165) ५106 \#/॥ 17046816 106 65115 (6121100 10106 ॥ 1116 181५6 85 \#*6॥ 25 06ना116 015 01046५1४, 2160 106 650॥5 ५ 115 5125189 ५५॥ 01676 ल्जावरवलं 70 19069 116 6505 070००५7060 € 167 24 ५ (लाली 016 10 2.

लग्नादिव्ययपर्यन्तं भावाः संज्ञानुरूपतः ।

फलदाः शुभसंदृष्टा युक्ता वा शोभना मताः । ।७।। ते तूच्वादिभगैः खेटैर्नं चास्तारिभनीचगैः। पापेर्दुष्टयुता भावाः कल्याणेतरदायकाः । ।८। ।

तैरतारिभनीचस्थेर्न च मित्रस्वभोच्चगैः। एवं सामान्यतः प्रोक्तं होराशास्त्र्सूरिभिः । ।९ |। मयतत्‌ सकलं प्रोर्व॑तं पूर्वाचार्यानुवर्तिना ।

आयुश्च लोकयात्रां च शास्त्रस्यास्यते प्रयोजनम्‌ । ।१०।। निश्चेतुं तनन शक्नोति वसिष्ठौ वा बृहस्पतिः । किं पुनर्मनुजास्तत्र विशेषात्तु कलौ युगे । ।११।। 7-11 : 9210 †0ा१ 106 ^566108॥11 (19 10056) 90 106 121 0८56, 1110656 {५61५6 110८565 26 005565560 0 0 2506060 0\/ 1/6 0606 0182165, {16 ५८॥ 9१५6 ३७५।०।८।०५५ 65115 25006010 {176 50716015. 11656 (6515 816 1181160 01 र 516)

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511

(करणप्रद) {0 16

भाग्यस्वयोश्च षड्‌ वेश्ममृतिष्टोरासु पञ्च च ।

मानदुश्चिक्ययोरेकः सुते वेदा अरिच्त्रियोः । ।२३।। त्रयो व्ययेष्टावाये च शून्यं शीतकरस्य तु ।

होरार्कारार्किभूगवोंऽगन्नाकेन्द्रार्किभार्गवाः । ।२४। । जीवोऽककर्किन्दुलग्नारा होरेन्दु-गुरु-भास्कराः । सितज्ञार्याः कुजतनुमन्दास्ते सितशीतगू । ।२५।। होरार्कारार्किविज्जीवाः शनिः खंसकलाः क्रमात्‌ । 23-2512: ऽ 0181615101116 9111 2061116 210 110056510111116 1000 ४४॥ 06 60110119 0116005 (करणप्रद); 1४6 01811915 ॥) 1106 4), 106 81) 3010 1116 151 1100565; ०16 0120161 1110) वात 1/6 5610८568; णि 012/1615 ॥ {6 511 10056; 166 0120165 0 {16 611 206 1/6 711 10565; 2॥ 1/6 01265 1 116 12) ॥0०८56 876 00 0 ॥1106 1110 1056 ४५॥ 60111016 81105. 11116 19110८56 016 ^57 3168५202 91/16 1४001 ४५।॥ 08५6 1/6 ^ऽ८्लातव, (16 5001, ४ दा5, ऽवा वातं ४८61८05 (1५४6 01765); 1 {116 210 10056, 1116 ^566ातधवाा , 6160, 16 540, 1061४600), ऽणो 206 (6005 (ऽ) 0180165); 10 #6 उत 70056, च्ल (76 वान); # {16 41#) 00५56, 106 5८0, ऽका), 1/6 000, 1/6 ^56नातदां 200 1४485 (1\/6 01205); 11 {6 51) 10056, {16 ^5(6ातदा†, 116 मन्ना, चथ 2016 {16 97 (0८! 0121615); 10 1116 61 1056, ४61८5, 61607 804 ५८लि (1166 0बालं$); 1 116 7/1 ।10४056, 1815,1116 ^\50600 ती 214 58111 (11166 शा&ऽ);

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(करणप्रद) 10 16

व्ययवेश्मसुतस्त्रीषु षट्‌ सप्त॒ धनधर्मयोः । ।२६।। होरामूत्यवोः शरा वेदा विक्रमे ले त्रयः क्षते। द्रौ भवे शून्यमेव स्यात्‌ करणं भूमिजस्य तु । {२७।। कुजस्यारकेन्दुविज्जीवसिता लग्नशनी च तु, सितारगुक्मन्दाः स्युर्धर्मोक्तिषु॒कुजं विना । ।२८।।

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513

चन्द्रारगुदशुक्रार्किलग्नानि कुजभास्करी। जञेन्दर्कसितलग्नार्या एषु ॑शुक्रं विना ततः । ।२९।।

विना शनिं सप्त धर्मे सितेन्दुजञा वियत्ततः। जर्क्दजञेन्दुलग्नाराः करणं प्रोच्यते क्रमात्‌ । ।३०।।

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वुधास्यरकेन्दुगुरवो गु्सूर्यबुघाः क्रमात्‌ । -लग्नार्कारार्किचन्द्रार्या ज्ञार्कार्या हिबुधस्य तु। ।३२।।

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जीवारेन्दारकिलग्नानि शुक्रमन्नघरासुताः।

जेन्दुलग्नार्कशुक्रर्या जार्कौ जीवेन्दुलग्नकाः | ।३३।। र्कर्यशुक्राः शून्यं च होरेन्ारार्किभार्गवाः । ३३2 । ।

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गुणयेद्‌ योगपिष्डं वा तद्राशिफलसंख्यया । अर्कोदुधतावशेषर्षं यदा गच्छति भानुजः । ।१०।।

ततुत्रिकोणर्षकं वापि पितुकष्टं तदा वदेत्‌ । रिष्टप्रददशायां तु मरणं कष्टमन्यदा । ।११।। 10-11: 106 066

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दशावदिह भावानां कृत्वा खंडत्रयं बुधः । पश्येत्‌ पापसमाक्टं खंडे कष्टकरं वदेत्‌ । ।९ ।।

सौम्यैर्युक्तं शुभं ब्रूयान्मिथैर्मिश्रफलं यथा। क्रमाद्‌ बाल्याद्यवस्वासु खंहत्रयफलं वदेत्‌ । ।१०।। 9-10:1 ॥.61/16 65415 01116 08585, 11665015 0116 00565

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रेखाभिः सप्तभिर्युक्ते मासे मृत्युभयं नृणाम्‌ । सुवर्णं विंशतिपलं दथात्‌ द्रौ तिलपर्वतौ । }९९।। रेखाभिरष्टभिर्युक्ते मासे मृत्युवशो नरः। असतृफलविनाशाय दद्यात्‌ करपूरजां तुलाम्‌ । ।१२।।

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रेखाभिर्मवभियुक्ते मासे सर्पभयं वदेत्‌ । अश्वैश्चतुर्भिः संयुक्तं रथं दयाच्छुभाप्तये । ।१३।।

रेखाभिर्दशभिर्युक्ते मासे शस्त्रभयं तथा। दद्याच्छुभफलावाप्त्ये कवचं वज्संयुतम्‌ । ।१४।।

अभिशापमयं यत्र रेखा दद्रसमा दिज !। दिक्पलस्वर्णधटितां प्रदद्यात्‌ प्रतिमां विधोः । ।१५।।

युक्ते द्वादशरेखाभिर्जले मृत्युभयं वदेत्‌ । सशस्यभूमिं विप्राय दत्वा शुभफलं भवेत्‌ । ।१६।। विश्वप्रमितरेलाभिर्व्याधरान्मृत्युभयं तथा विष्णोर्हिरण्यगर्भस्य दानं कुर्याच्छुभाप्तये । ।१७ ।। शक्रप्रमितरेखलाभिर्युक्ते मासे मूतेर्भयम्‌। वराहप्रतिमां दद्यात्‌ कनकेन विनिर्मिताम्‌ । ।१८।।

तिथिभिश्चव नृपाद्‌ भीतिर्दशात्‌ तत्र गजं द्विज !। रिष्टं षोहणभिर्दद्यात्‌ मूर्ति कल्पतरोस्तथा । ।१९ ।।

सप्तेन्दुभिर्व्याधिभयं दद्यात्‌ धेनुं गुढं तथा। कलहोऽष्टेन्दुभिर्दथाद्‌ रत्नगोभूहिरेण्यकम्‌ । ।२०।। उकेन्दुभिः प्रवासः स्याच्छान्ति कुर्याद्‌ विधानतः | विंशत्या बुद्धिनाशः स्याद्‌ गणेशं तत्र पूजयेत्‌ । ।२१।। -रोगपीटैकविंशत्या दद्याद्‌ धान्यस्य पर्वतम्‌ ।

यमारिवभिर्वन्धुपीडा दचयादादर्शकं द्विज ! | ।२२।। त्रयोविंशतिसंयुक्ते मासे क्लेशमवाप्नुयात्‌ । सौवर्णो प्रतिमां दथाद्रवेः सप्तपतैर्बुघः । ।२३।।

वेदारिवभिर्बन्धु्ीनो दद्याद्‌ गोदशकं नुषः । सर्वरोगविनाशार्थ जपहोमादिकं चरेत्‌ । ।२४।। धीहानिः पञ्चविंशत्या पुज्या वागीश्वरी तदा । षरटरविशत्याऽर्थष्टानिः स्यात्‌स्वर्णं दद्याद्‌विचक्षणः । ।२५।। तथा च सप्तविंशत्या श्रीसुक्तं तत्र॒ संजयेत्‌। अष्टविंशतिसंयुक्ते मामे हानिश्च सर्वथा । ।२६।। सूर्यहटोमश्च विधिना कर्तव्यः शुभकांक्षिभिः । एकोनत्रिशता चापि चिन्ताव्याकुतितो भवेत्‌ । ।२७।।

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585

चुतवस्त्रसुवर्णानि तत्र॒ दद्यात्‌ विचक्षणः ।

त्रिशता पूर्णधान्याप्तिरिति जातकनिर्णयः । ।२८।। 11-28: ऽ211\02/8 ^\51121९8५/2108, 1 60118115 7 0171655 1187 71646185, 11676 ५॥ 06 वाज तल्ली अ 1/6 0 की५€ 11116 58116 71011

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285 :

जपरैरत्र संस्कारविशेषः कथितो यथा।।३।।

स्वोच्चभे ते विगुणिताः स्वत्रिकोणे द्िसंगुणाः ।

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591

स्वभे त्रिघ्ना द्विसंभक्ता उधिमित्रगहे तथा ।।४।। वेदना रामसंभक्ता मित्रभे षद्गुणास्ततः । पञ्चभक्तास्तथा शत्रुगृहे चेद्‌ दलिताः कराः । ।५।। अधिशतुगृहे द्विघ्नाः पञ्चभक्ताः समे समाः। शनि-शुक्रौ विना ताराग्रहा अस्ते गता यदि।।६।। विरश्मयो भवन्त्येवं ज्ञेयाः स्पष्टकरा द्विज !। रश्मियोगवशादेवं फलं वाच्यं विचक्षणैः । ।७ ।। 3-7: 0 «1018 ! 50716 अ 1/6 ०061 ^61181#85 [8५6 17068166 1८111716 (नी7ल्ा1675 ०५७ 16 तनना १6५ 70111061 1/6 125. 1 2 01206 ।ऽ 00560 ॥0 15 590 ग 69812101, {16 0611660 0१067 0 1116 (8/5 2/6 1160166. 1 ॥ 15 10 {16 ५0०18 11.018 500, 106 तल्ला (2/5 8/6 10 06 ५०८०16५. ॥1 0856 जा एला 105 ०५४) 5100, 116 तलनला1166 ताएक 15 (0110166 ०/3 200 1161) 0१५1666 0# 12. 1 8 01819 [ऽ 10 106 ^#त07085 (06 1670) 51010, 106 06161171160 (8/5 06 171011101160 9# 4 30 € ५।५८५९५ 0# 3. 1 16 6५४6 ज {676४ 590, 1116 (ध्ननलाा1)6त (8/5 06 (णत 9४ 6 200 (6) 6५666 9४ 5. ॥1 6856 9 01216

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एकादि पज्चपर्यन्तं रशिमिसंख्या

भवेद्यदि।

दरिद्रा दुःखसंतप्ता जपि जाताः कुलोत्तमे । ।८।। 8 : 111/0610181 1010617 अ (2/5 2/6 1017) 110 5, 116 0५४९ ४५॥ 206 00५४ 200156४ 6५60 11009) {115 0110 06 ॥ 8 10016 जा)॥४.

परतो दशकं यावत्‌ निर्धना भारवाहकाः। स्त्रीपुत्रगृहहीनाश्च जायन्ते मनुजा भुवि | ।९।। 9 : 1116 102| 7761061 9 (2#5 2/6 061५4661 6 2016 11, 116 ३11५९ ४५॥॥ 06 0001, 026 81161 (000॥6 ©.) 206 ४1106 भनीौणलां ५1, 6101016) 86 10056.

'एकादशस्वल्पपुत्राः स्वल्पवित्ताश्व मानवाः ।

्ादशस्वल्पवित्ताश्च धूर्ता मूर्खाश्च निर्बलाः । ।१०।। चौर्यकर्मरता नित्यं चेत्‌ त्रयोदश रश्मयः।

चतुर्दशसु धर्मात्मा कुटुम्बानां च पोषकाः । ।११।। कूलो चितक्रियासक्तो धनविद्यासमन्वितः । रश्मिभिः पञ्चदशभिः सर्वविद्यागुणान्वितः । ।१२।। स्ववंशमुखल्यो धनवानित्याह भगवान्‌ विधिः । परतश्च कुलेशाना बहुभुत्या कुटुम्बिनः । ।१३।। कीर्तिमन्तो जनैः पूर्णाः सर्वे चसुखिनः कमात्‌ । 6)

10-1312 : 1 {06 {098| 0006 ज (2/5 216 11, 1616 ५४1 06 ज ©/01त॥6&) 200 ५620. ##7 1116 198 (8/5 06709 12 - ॥1116

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४५110 14 102 8)/5 - 00155 361 1130 1165 810 761010५5, 00५४5 106 शि## 1120105, ५५680119 216 16 व7न्व; +|) 10121 15 2/5 - 19) 60000) 200 4१४2165, 0686 9 106 वित), 1/0§ ऽ +भ | 8181018 185 अंगं ल्त; 1) 16 (2/5 - 11051 0012016 ॥ {16 900४; ४"

17 18)/5 - ४५ [18५6 ॥737४ ऽ6४वा75; ४11 18 8/5 - 1005; ४) 20 (2/5 - ४५ [8/6 ॥180# ©0-001115.

पञ्चाशज्जनपालश्चेदेकर्विशति-रश्मयः । ।१४।। दानशीलः कृपायुक्तो द्वाविंशतिसुरश्मिषु । सुखयुक्‌ सौम्यशीलष्वेत्‌ त्रयोविंशतिरर्मयः । ।१५।। 14-15 : 11116 {021 (2)/5 2/6 21, 106 721५6 ५५॥ 17181 50 06505. 116 1012112/5 0610 22, 116 ५५066187 2016 27606 6्८नना. ‰/1111 {16 1०8| 8/5 9 23, ॥6 ४५1 ०6 (नीत्त, 1200 800 604 पाल्ध.

जात्रिशत्‌ परतः श्रीमान्‌ सर्वसतत्वसमन्वितः । -राजप्रियश्च तेजस्वी जनैश्च बहुभिर्वृतः । ।१६।। 16 : #4/1111 1116 1018118/5 06/06 23 80 ध9० 30 (07 2410 30)1161)811५/6 ४४1 06 \/6ब॥11#/, 00४9४५1 ॥ 81165066, ४४1॥ 12५6108

वि५०ा 10016 800 518/5 द051 7 ती 20065 0.6.060 8277005 0659012, 16 ४५॥ 2।५2/5 06 ०10०५60 0) 05 वताश).

त ऊर्ध्वं तु सामन्तश्चत्वारिंशत्‌ करावधि । जनानां शतमारभ्य

सहल्रावधिपोषकः । ।१७।।

17 : ४४11 1116 पधीए6ा 9 1021 12/5, 06/66 31 810 40, 116 ४५।॥ 111218॥) 10 10 1000 05005 810 ५४1 06 [620 0 83 586.

अत ऊर्घवन्तु भूपालः पंचाशत्‌ किरणावधि। ततं उर्ध्वकरैर्विप्र ! चक्रवती नृपो भवेत्‌ । ।१८।। 18 : \#11 106 7071061 र 10811895, 06४४660 41 ३06 50, 16

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अथ प्रत्रज्यायोगाध्यायः । ।८९।। 080161-81

%#00^5 ८ ^(91५40 ^5-€ 11191 जथ विप्र ! प्रवक्ष्यामि योगं प्र्रज्यकाभिधम्‌। प्रव्रजन्ति जना येन॒ सम्प्रदायान्तरं गृहात्‌ ।।१।। 1: #121181511 0812588 520 - 0 उञ) । ॥५०५ । ##॥ ९५००५१५ 106 0085 #160 ५॥ 62056 2566667 (ति व+) 200 0109 „10/16 0€5005 "6601456 11052170) 115 06 300 2000 50116 016 1610005 16165 (01500716).

चतुरादिभिरेकस्थैः प्रव्रज्या बलिभिः समाः। -रव्यादिभिस्तपस्वी च कपाली रक्तवस्व्रभृत्‌।।२।। एकदण्डी यतिष्चक्र्षरो निर््रन्थिकः क्रमात्‌। ज्ञेया वीर्याधिकस्यैव सबलेषु बहुष्वपि । ।३।। 2-3: 1 006 0056 (री तौ05 001 0180615 ५५।/ 51019, † ५५॥ 016 {56 10 8 ०08 \/1116 ५५॥ 68056 8506667 (30806007 6 ज

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35

मोक्ष स्मान्‌ -

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#॥ 076 507, ॥ \४॥ तं {गा गि 2/12]/2 ४०02.

सूर्येणाऽस्तं गतास्ते चेदपि वीर्यसमन्विताः । अदीक्ितास्तदा ज्ञेया जनास्तद्गतभक्तयः । ।४ । । 4: ^\ ५#/6३५ 018\/12|/8 (048 : 1/6 0121615 नि7170 106 008

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जस्तंगता निर्बलाश्चेत्‌ सबलश्च रविर्यदा । तदा रविभवा ज्ञेया प्रव्रज्या द्विजसत्तम !। ।५।। 5: 16 (20५61५1 गिके 8|/8 0९५51१0 01265 6 ५6॥< 20 26096 6०10051, 1116 501106607651116 ऽक16वठ 016 09/)/2 १048 80 54011 1५९ 107 8356616 (त्प्स्वी) 01/16 106 0671060 0#/ {16 5५0.

जन्मभेशोऽन्यखेटै रचेदुष्टः शनिमीक्षते । तयोर्बलवशात्तत्र प्रत्रज्यामाप्नुयान्नरः । ।६।। 6: 006 012४12/8 0485 : {176 0500500 9 16 (0० 1 16661५65 0 25060 {णा 207# 01216 0५१, 7८, 290€८§ ऽ गधा), 1116 0 1\/6 96 11566 (दीक्षा) 110 61091005 16765 51011060 0 1/6 0396 ४110 15 5107061 061५4661 {406 1५0 जना).

निर्बलो जन्मभेशश्चेतत्‌ केवलेनार्फिणेक्षितः। तदा शनिभवामेव प्रव्रज्यां प्राप्नुयाज्जनः । ७ । । 7: [1/6 0500501 म {6 © (0५ 01116 590 66 {6 001 15 05160) 15 ५6॥< 2010 15 01४ 2506060 0४ ऽवां५८।॥), 1116 ॥र।५९ ४५॥ 6108206 116 16101005 1665 (न्लन्‌ण) 0५।) 5071060 0/ ऽब.

शनिदुक्काणसंस्थे च शनिभौमनवांशके । शनिदुष्टे विधौ जेया प्रव्रज्या शनिसम्भवा।।८।। ` 8: 111/€ 4000) 06 ॥ 1/6 06446208 ज ऽ वा 21 2150 1116 1६५2158 > 9171 01 4815 810 85106660 0 ऽ 91011, 106 71५४6 ५४1 0€ 80 2506 9 1/6 {/06 9011060 0) ऽग.

कुजादिषु जयी शुक्रः सौम्यगो याम्यगोऽपि वा । जयी सौम्यगतश्चान्यः परस्परयुतौ भवेत्‌ ।।९ ।।

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भ्रत्रज्याकारकः

खेटो यद्यन्येन पराजितः।

तदा लब्ध्वा पखिज्यां परित्यजति तां पुनः । ।१०।। 10; 048 0000510 256लौलंा : 116 01206 6805110 25661091) 1 065 06666 ॥ 2 0126180 ५४३, 1116 11811५6 ५5680 16 161910८5 (न्तन 1619660 10 € 0666 01906.

बहवो जन्मकाले चेतु भ्रव्रज्याकारका ग्रहाः।

बलतुल्यास्तदा तत्र प्रव्रज्या कतमा भवेत्‌ । ।११।। 11: 18176 6040/66 - 0 धनौती 1[106 076 ग 0), {€& 26 ॥्राठा)# 0121615 ५0 276 ॥1 8 0050100 ० 0805110 8280611

0151), ५116 [0120615 25061616) 50010 06 00050966.

बहवो बलिनश्चेत्‌ स्युः प्रत्रज्याकारका ग्रहाः । तदा प्राप्नोति सर्वेषां तेषां प्रव्रज्यकां श्रुवम्‌ । ।१२।। 12: 5806 0825818 16060 - ॥1 116 €४6ां अ 77809 0187615 0611119 9010, 1/6 560) ज 256नलिा ज 8॥ 16 0120165 510५५ ८7000060, 06 60050650.

तत्तदुग्रहदशाकाले प्रव्रज्यां याति तद्भवाम्‌।

त्यक्त्वा गृ्ठीतपूर्वा तामन्यां प्राप्नोति मानवः । ।१३।। 13: 1016 €४6्ां ज ¶िता7# 0187615 06607010 अलवण णि 25061019 210 1/6 09079 गा1017051 691 ४110 085 106 151 0958, वां 0120161 ५५॥ 62056 25666971. #4/1/ 106 ल्वा) 106 0268 01/16 ०/6 01976, 1/6 अन्ठनु9 ज 386लीा1 जीवं कीन ४101266 ०५6, 0568010106 06५1005 016. 11/16 58116 11811161, 2566161

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दुष्टेष्विन्दिज्यलग्नेषु शनिना नवमे गुरः | राजयोगेऽत्र जातोऽसौ तीर्थकुन्नाऽत्र संशयः । ।१४।। 14: तौलि शिवण ग) ४०0३ : 1 ऽब) 25065 ५७006, 106 1001 2016 1116 ^56611017 20 ू00& 15 0051660 11106 9† 10056, ॥ ४४॥ 68056 82566165). ॥0 1/6 01656106 ज 012«18|/8 ०08, 11066 6001515 08} ०48, 116 १५6 15016 ज 0666079 8 ॥५09, ५५॥ (1106112106®श67060 1/6 [256४1005 60070115 ० 116 0211208. 116 (62500 06170 1121 1911४, 116 (221९8 901 5५0 11205 त ७ [5 ४९671४5 भौम ऽ ॥ 116 500 9 0७ना#ओ0ा

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1/8 ०७०४०४५ 62500 \##25 1/6 85066 भं 116 510 ०५81 1/6 ऽ. 1118 17189ए81766 08616 नाशं ५८6 10 {6 विलं #डं ऽवा 15 116 [गध ण 106 12) [0८५५6 ##†0}) 15 61) (0056 9 0156256) 107 1/6 71} (0४५56 ज ॥1॥50800) 876 ##116) 6४81 ॐ#6077661101 0614#867106 56676दीं (००५४) 206 {16 6) [0८56 5 {017660, 116 00५४ 60718615 50115 0156858. 80)

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लग्नेन्दू समभे यस्याः सा नारी प्रकृतिस्थितां।

कन्योचितगुणोपेता सुशीला शुभलक्षणा । ।५।। शुभेक्षितौ सुरूपा च सदा देहसुखान्विता । 5-51⁄2: 1116 90001116 ^566नीत वीं 20116 50111 #/1160116 11001115 05160, 816 6४61) 51015, ¶# व *०)त) ५५ 06 6010166 ४ 116 7006 6218661151165 276 ५५ 8/6 106 लि1705) 4081065.

9/6 ४४॥ 06 510171115651५6 80 005565566 +^ 2८500105 बी100165. 91000 1676 06 8290665 ज 116 0611 0191165, 516 ५/1 06 6,८066५॥100/ 06ब४†५। >710 ५५॥ [8५6 50५10 [681 200 006

0071005. 4०१७७ : {16 02121915 9 6५90 200 000 505 5 41619 1765. ४680 [ऽ 850 ॥(70५0 85 5010898 ##1110| 5 50०७७ 10 62110655, 561610४, 5168106, {1270८1॥09, 209[91610050655, 0624111५,

व व्ा४8 96. 1 गीौन ##0105, 10656 १८४2।९2।16 11018 (नार 2७6 ४11) 1/6 नौ वावन॑नाञ165 9 16 ४0०0. 0008019, भौ) 16 6४0८0 01/06 हवी, 1/6 #00 50072४2 ५४०८।५।2५6 0660 0010660 25 20 @ध0७5७10 10 1/6 (000. 1761016, ©0ौ) {6 6५७) (बम)5100 20 1/6 (000 216 00016060

##† श॥1व्07, 8561005, 16106111655 &10. 45 ठ पएशी© ग

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617४5 ७०८५१५९४ 15 #16 (८३/३९ 07 0880४. ॥ 15 526 ॥ 16 06५2 ॥6612| व "शुको शुभ बल दम -राज्योमभरपप्रिय" 1112 15, 1) 8 16171216 211५1) # ४67४5 [ऽ 70986 ॥ ॐ) 6५४60 50 206 16 &ऽ66ो6वां ऽ (नीम 0660080 0 2576660 9४ ¶6 1816 51475, 1/2 +४0 पी 3 ५५ 0055655

0917), 0011990580 260 0८18 18४16 216 ५४॥ 21590 06 26001166 ४) 0616918 #/0718)150 4021165. ॥ 106 5)

ज 116 ५06)

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0 ॐ €५७ी 5190 300 [ऽ पशश ज 1781० 296 206 2150 ०००५१6५ 0#/ 1116 1721616 एडा95, 56) 91216 40211165 ५॥ 9७1 71015 00007680. 3206 (४2111850 ४/2/8 ॥ 115 16 2}56 185 1111166 1115 85060 1) 9110168 ##†0) {छौ 85 (7081 ; "उदयहिमिषरौ हौ बुग्मगी सीम्यहुष्टी

सुकनयपति भूासंपु्कृठ लीला(” ॥ 18205 102 ॥ 8 #07)80*5 10056016 {2५९ 001} ^506{6 द

68 ०285802 ।103 53908

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"कमेव लगनशशिनो प्रकृतिस्विता स्त्री

सच्छील भूषणयुता शुभदृष्टयोद|" ॥ 5285 वां ॥ 106 ^ऽ८्नोठशं 206 16 00

00

25 1) 16

8४817 51075, #ौ ता #072) ४ 068/ श)17176 02108. 10 016। ५४०।५5, ऽ८५ौ ४071510 \/॥ [2/6 010५110 1८518 806 ५४1 0055855 51071951\8, 0105010 206 17706 (00145. ॥ 1/656 45690215 816 2506066 0# 16 ३050610४§

065, 1#)त #*0708 #४॥॥ })2५6 तल्ली 06724100 206 26010 @श्चखीं 00065 270 नीवे675. ऽ28५४३॥ 60012105 1/6 1010109

50108

॥ 105 ल्कः

"रक्तिस्वा लगनेन्द्रः समभे सच्छीलदपादया | भवणगुभैस्येता शुभवीकितियो श्रचयुवतिः रवाह ।|" ॥ 525 †02ां ॥ 1/6 &ऽ6शातगा

800 116 000

06 ॥ 1/6 €५४€]

5100 10 2 भ%तीतया'ऽ 01.79, ¶ दां #0फ2ा #॥ 06 अ 10 [9 ॥४0ब10, 0681 210 ५४।॥ 0055655 8 0165 वा 08५९. 10656 ^960910 गऽ 216 2906060 09 †8 0616

01201685, 5४७ \#007)80 ५॥[ [2\/6 (010 0०62५1५

12॥ 21५ (१0५60 (शी 781४ १४९॥6७. 0 100] 9 06 दध# 276 681५४66 ॥ 26600206 10 106 06७ नाि0०)5

80001060 0४ 16 52085, 01 16 000 2060 0612४101 ० ३ #छी१8), 8) बिएिणिं2ौ6 [01056006 त ३ #0ौौक&षी 15 ८७66 0५81 0656. ६2431011 : 105 02

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17-2-1964; 11718 9 04), 20-59 ॥15

670

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(191); [-211५06, 23°-09 (1४); [0741८५06

79°-57"(£}.

10 1115 [0050006, 1/6 ^568600801 15 0 1४५० 500 #⁄11€ 106 10011 15 10 1/6 75665 500 (56800801 ० 1/6 000} 800 6068 001 2/8 ग €\/€0 51005. 1116 { {€ श्वि :

स्त्रीणां करतलं रक्तं मध्योन्नतमरन्धरकम्‌ । भदुलं चात्परेखाढ्धं जेयं सर्वसुखप्रदम्‌ । ।४२।।

विध्वा बहुरेखेण रेखाष्ीनेन निर्धना।

भिक्षुका च शिरोक्येन नारी करतलेन हि । ।४३।। 42-43: ^ #“0112॥ {1\/1 0311115 ४/1) 0111९51 15176, 1215660 ॥1 116 11160016, 500४1010 भणित) 06144660 04761 ५016 [79 1/6 17065, 0९166 *¶0 5681 165, 01 ##011181॥1 2५५३5 61105 12001655 800 6079015. ^ ४0120 82/10 087 ४111 0नी1/ 01165 215 ५66५1000 200 8 0 + ॥16 16205 10 00४. 810 2

0411 \1| ५151016 ५6115 (71865 8 \##+न18॥ 811# €

5

:

रक्तवर्णां नखास्तुंगा सशिखाश्च शुभप्रदाः । निम्ना विवर्णा पीता वापुषिता दुःखदायकाः । ।५५।।

सिव

225818 11018 52508

707

55: ।५३॥5 01106 17065 0617 16050 11 60104 2660 206 0011160 216 0100105. 06065560, ८0141655, 0216 01 ५11 \#1116 90015 8/€ ©006106166 25 ॥1401501010015.

@02/8616119165 1 {€ ९8० :

अन्तर्निमग्नवंशास्थि पृष्ठं स्यान्मांसतं शुभम्‌ । स-शिरं रोमयुक्तं वा वक्र चाऽशुभदायकम्‌ । ।५६।। 56: ^\\/01718॥ [12110 0९6९४166 00165 21609 ४151016, *6॥

8112060 8010 160 \10) 1660 ऽ 00105

वां 3 084 ४0 ४151016

\/6॥5, [1210 16 0001८66 16 00506160 1)2७50161005. @02/26161191165 1 {0€ १6८ :

स्त्रीणांकण्ठस्तिरेखांकस्त्वव्यक्तास्थिश्च वर्तुलः । मांसलो मृदुलश्चैव प्रशस्तफलदायकः । ।५७।। स्थूलग्रीवः च विधवा वक्रग्रीवा च किंकरी। बन्ध्या च चिपिटग्रीवा लचुग्रीवा च निःसुता। ।५८ ।। 57-58: [1/6 66६ 01 8 \#/01180 00178115 11166 [165 (5105) 200 00066 216 00 ५151016, 10८00151, \6॥ 07760 अतं 0616896 5 2001661301४ 0671631. ^ 11165 0666660 #/011280 21181 ४८६0५५11000; 8 \//011120 ४५॥ ५76५6) 066|‹ 06600165 71810; 2 ४४०12 ५५10 {सं 76 ५/1 06 081€) 310 ५111 50011 06६ (6181715 61101685.

@02/846161191165 त 10€ 7116

:

श्रेष्ठा कृकाटिका ऋज्वी समांसा च समुन्नता ।

शुष्काशिरालारोमाढधा विशाला कुटिलाऽशुभा । ।५९ ।। 59: 11/10 0610 9181, ५॥४ ५€५८९।०७०6५ 2070 #/6॥ 18566 {§ 00115106160 {06 0651. ऽकदतणा)४, 500४0170 ४6115, 181, 1070 27 106५6 {#06€ अ {110 {ऽ ०0५60 10 06 119050161005.

2708

0815 ग ४४०ीक)'5 800#

09619165

9 110€ (0) :

अद्णं मृदुलं पुष्टं प्रशस्तं चिबुकं स्त्रियाः । आयतं रोमशं स्थूलं द्िधाभक्तमशोभनम्‌ | ।६० । । 60: {116 लौ) न 2 #/01)811, 115 01160051 0601001, 46466 वात ४४९ 1011660 (§ 2011112016 200 ॥ 106 नौर ऽ 0080, 1131, 1161९, 9011110 1/06 1§ 0015106/66 ॥12050161045.

0241७65

त 10€ ©066॥65 :

कपोलावुन्नतौ स्वरीणां पीनौ वृत्तौ शुभप्रदौ । रोमशो परषौ निम्नौ निर्मासौ चाऽशुभप्रदौ । ।६१।। 61: 1 2 #/0111280) 15 [8५174 (1196५, 165४ 200 0५76 6066465 ४५ 0/6 112/0{010655. 1181४, 020 8070 00तल 00016060 6066165 01811165 11112/0011655.

91206965

9 106 श्लौ :

स्त्रीणां मुखं समं पृष्ठं वर्तुलं च सुगन्धिम्‌ । सुलिग्धं च मनोहारि सुख-सौभाग्यसूचकम्‌ । ।६२ ।। 62: ^11010761116 0081001 51118॥, ५४6 70075160, 10040051, ला1170 12018066, 6ौशा॥070 200 9/6, 66865 (गी०15 अत

0००५ ॥५५।९.

@1181826161191165 ° {16 [105 :

वर्तुलः पाटलः स्निग्धा रेखाभूषित्तमध्यभूः । मनोहरोऽधघरो यस्याः सा भवेद्‌ राजवल्लभा । ।६३।।

निर्मासः स्फुटितो लम्बो रूक्षो वा श्यामवर्णकः ।

स्थूलोऽघरश्च नारीणां वैधव्यक्तेशसूचकः । ।६४।। 63-64: ^ \#⁄011120 \/[10 [85 (0५५७ | 35 10/10, ॐ 1451 1516, 010585४, [82/10 08017 ॥016 11106 11104016 800 6न्वां 100५५70, 506 ४५ 06 8 0४661. (1 15 +(7110प (70८ 1650, 06166, 1010151, 01,

सिता ०2४85218 11078 58508

709

1111616 206 0811९ 60166, {19 (0 16162165 #100\//1000 806 71156765.

रक्तोत्पतनिभः लिग्ध उत्तरोष्टो मृगीदृशाम्‌ । किज्विन्मध्यौन्नतोऽरोमा सुखसौभाग्यदो भवेत्‌ । ।६५।। 65: 11116 {0061 || 15 6405110 00०10५1 ५८10 11606 5112110 10145, 1510015 210 51100100, 0५८ 8 16 0 निछ50ा 1 116 71006, 18211655, ॥ ५८॥ 71801661 6गौणि§ 200 0०00।५५।९८.

@121201€61965 अ {€ न्लौ :

सिनिग्धा दुग्धनिभाः स्त्रीणांदात्रिशद्दशनाः शुभाः । अधस्तादुपरिष्टाच्च समाः स्तोकसमुन्नताः । ।६६।। अधस्तादधिकाः पीताः श्यामा दीर्घा द्विपङ्क्तयः । विकटा विरलाश्चापि दशना न शुभाः स्मृताः । ।६७।। 66-67: ॥ {6 €€#) ज 8 #0ा18॥ 816 1058, 18५1710 111॥९/ 1516, 0132111 1117706, 510111४ 1821566 01 €८©0, ॥ #५॥ 06 00011005. [1116 (0५6 {66# 26 11016 ॥0 0411061, 0216, ७३6५5), 1000, ॥0 02

0 {५५/0०5§, ७06 ॥18150101045.

300 6126166, 0५67" 5080666 216 0015{06180

@18/80619165 न "€ 71076५6 :

शोणा मुदरी शुभा जिह स्व्रीणामतुलभोगदा । दुःखदा मध्यसंकीर्णा पुरोभागेऽतिविस्तरा । ।६८।। सित्तया मरणं तोये श्यामया कलष्प्रिया । मांसलया धनैर्हीना लम्बयाऽभष्यमकषिणी | ।६९।। प्रमादसहिता नारी जिया च विशालया। 68-692: ॥ 3 #/01118॥1 1125 {07006 ॐ 1600511 10 60101 ॐत 50, ¶ ४५1 71871851 2४501610057655 2010 1616061 8 0/6 6भ0ि5. 1 [5 06076556010 1116 7१606 800 50168060 21106 01 0011010), ॥ ५५॥ 2456 01911655. {000५6 09110 01 ४1116 0010८01 ४५॥ (7460 ग€ तलकर 0214151 ©00५। ५५1 61766 ५416; 8 117६ 1070८४6 ५1 0100468 0061४; ४071 ५11 ।071015111000५6 ५५106 81 00111*01005. ^ 01026

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{01406 1100365 [नौव 8110 ©416165516855.

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ण्विर्गं€ :

सुसििग्धं पाटलं स्त्रीणां कोमलं तालुशोभनम्‌ । ।७०।।

श्वेते तालुनि वैव्यं पीते प्रव्रजिता भवेत्‌ । कृष्णे सन्ततिहीना स्याद्‌ रूक्ने भूरिकुटुम्बिनी । ।७१।। 70-71: 1 2 \#+0178॥ 185 \५6॥ 5111001), (011९151 ॥1 60100, ऽगी 081216, † ५४1 06 000110८5. ^ \"116 [81216 0670165 ५00५/17006; 8 0816 0831216 11003165 3506661; 201201९51001001600बवां6 71971855 02116111655; 8 ५1 [81816 [5 1116 10168116 ॐ 8 1996 {311)॥#.

लौीवाठनला165 र [80 ्ौ

लिः;

अलक्षितरदं स्त्रीणां किञ्चितुपुल्लकपोलकम्‌ ।

स्मितं शुभप्रदं ज्ेयमन्यथा त्वशुभप्रदम्‌ । ।७२।। 72: ^ 12441161 ग 8 #0181 ५४11) ५065 10 500५४ 0616617 2110 1161 611661९5 25 5660 0610 1110}# 111 36५, 5/6 \५॥ 06 00010८5 01161156 ¶ \४1॥ 06 112050101005.

@ौवावललन165 ग 117€ 056

:

समवृत्तपुटा नासा तधुच्छिद्रा शुभप्रदा। स्थूलाम्रा मध्यनिम्ना वान प्रशस्ता मृगीदुशाम्‌ । ।७३।। रक्ताग्राऽकुन्चिताग्रा वा नासा वैध्व्यकारिणी। दासी साचिपिटा यस्या स्वा दीर्घा कलहप्रिया । ।७४।। 73-74: 1 8 \#01718॥ [85 6\/61|४ 0८10 00156 ४11 5118॥ 1051115, † 15 6005106160 00010५5. 10116 6४67 91056 06119 {0९

॥ 15 10 00110) 210 ॥116016 08 15 18, ॥ 15 101 2त01112016. 1 106 {छा 070 9 16 0056 15 (60५6151 ॥ 600५१ भ 81111९61, ॥ ॥10/0865 ५५०५५0०५. 1 7056 0619 18, 56 ५४॥ ५०९

35 11210 8110 11056 [12/2/06115 {0 06 {00 5118॥ 0100 1010, 506 #॥ 06

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शुभे विलोचने स्त्रीणां रक्तान्ते कुष्णतारके । मोक्षीरवर्णे विशदे सुलिग्घे कृष्णपक््मणी । ।७५.।।

उन्नताक्षी न दीर्घायुर्वृत्ताक्षी कुलटा भवेत्‌ । रमणी मधुर्पिगाक्षी सुखसौभाग्यभागिनी । ।७६।। पुंश्चली वामकाणाक्षी वन्ध्या दक्षिणकाणिका। पारावताक्षी दुःशीला गजाक्षी नैव शोभना । ।७७।। 75-77: [16 ©/65 अ ३५५0772 86600151 115 00111615 #/1111 (0126॥ 010॥5, 6/6 02॥5 216 ५४11116 ॥.6 00/15 1111९, 1010151 200 5111001 6/6 1251165, ॥ ५४।। 06 20500005. 4 \/017180 \/11 12560 6४/65 ५५।॥ [8\/6 50 18 200 ५11 (070 6#/65 ५/1 1101026 10056 1101215. {10116 (९110 (60050 - 00447 60100165 4106 00५-।५6।९ 82010 1180011658. ^ 07121 0611 0101

10) 16 | 6/6 \५॥। [2५6 080 60060 870 06109 01716 णि) 16 10111 6/6 ५४॥ 06 82 02116) \#/01181. ^ \/0118॥ ५#†† 00601) ॥॥