Hamare Avatar evam Devi Devata

  • 0 0 0
  • Like this paper and download? You can publish your own PDF file online for free in a few minutes! Sign Up
File loading please wait...
Citation preview

हमारे अवतार एवं देवी-देवता लेखकश्री सदु र्शन ससहं जी ‘चक्र’ [इस पुस्तक को या इसके सकसी अंर् को प्रकासर्त करने, उद्धृत करने अथवा सकसी भी भाषामें अनूसदत करने का असधकार सबको है।]

प्रकार्क: श्रीकृष्ण-जन्मस्थान सेवासंघ मथुरा-२८१००९ (उ.प्र)

प्रकार्क: श्रीकृष्ण-जन्मस्थान- सेवासंघ मथुरा-२८१००९ (उ.प्र) प्रकार्न-सतसथ: अक्षय तृतीया, सव.सं. २०३४ सदनांक २१ अप्रैल, १९७७ प्रथम सस्ं करण, ५००० प्रसतयााँ मुद्रक: राधा प्रेस, गान्धीनगर, सदल्ली-११००३१

HAMARE AVTAR AVAM DEVI DEVTA: -Sudarshan Singh ‘Chakra’ मूल्य- एक रुपया पचास पैसा

2

अनुक्रमसणका

पंच आराध्य............................................................... 4 गणेर् ........................................................................ 5 सूयश ......................................................................... 11 र्सि ....................................................................... 18 सर्व........................................................................ 28 सवष्णु ...................................................................... 39 सिदेव ...................................................................... 88 लोकपाल ................................................................ 89 सदक्पाल .................................................................. 91 अष्टवसु ................................................................... 97 मातृकायें ................................................................. 98 योसगनी ................................................................... 99 हनुमान .................................................................. 107 पररसर्ष्ट ................................................................. 108

3

हमारे अवतार एवं देवी-देवता पंच आराध्य वैददक-पौरादणक धर्म जो श्रदु त-स्र्दृ तपर ाऄवलदबित है र्ल ू सनातन धर्म है। ाआसर्ें परर्ब्रह्मकी पााँच रूपोंर्ें ाईपासना होती है। परर्ात्र्ा एक ही है; दकन्तु रुदच तथा ाऄदधकार-भेदसे ाईसके प्रर्ख ु पााँच रूप र्ाने गये हैं। ाआनर्ें से दकसी एक रूपर्ें दनष्ठा रखकर ाईसकी ाईपासना की जाती है। वही रूप ाअराधकके दलए परर्ात्र्ाका परर् सवमश्रेष्ठ रूप है। ाआस प्रकार स्र्ातम धर्म पञ्चदेवोपासक कहा जाता है। ाआसर्ें ाअराध्यके पााँच रूप हैं- १. गणेश, २. सयू म, ३. र्हाशदि, ४.दशव ५. नारायण । ाआनके कारण स्र्ातम धर्म र्ें पाच ू हैंां सबप्रदाय र्ल १. गाणपत्य २. सौर, ३. शाि, ४. शैव, ५. वैष्णव । ाआन सबप्रदायोंर्ें भेदोपभेद िढ़ते गये हैं।

4

गणेर् गाणपत्य सबप्रदाय जो गणेशजीको परर्ात्र्ा र्ानकर ाईनकी ाईपासना करता है, देश र्ें ाऄल्पसांख्यार्ें रह गया है। ाआस सबप्रदायका प्रधान पीठ र्हाराष्रर्ें र्ोरे श्वर क्षेत्र-र्ोरे गावां है। परर्ब्रह्म परर्ात्र्ा ाऄनादद-ाऄनन्त होता है। ाईसका न जन्र् है, न र्त्ृ यु । ाईसका सांसारर्ें सर्य-सर्यपर ाअदवभामव-दतरोभाव होता है। गाणपत्य सबप्रदायके ाऄनसु ार गणेशजी परर्ब्रह्म, दनदखललोक-र्हेश्वर हैं । ाईनकी ाअदवभामव-कथा दनबन हैाईर्ा-र्हेश्वर पत्रु प्रादिके दलए गणेशजीकी ाअराधना र्ें ाईन ददनों लगे थे, क्योंदक ाईनके ज्येष्ठ पत्रु स्वादर् कादतमक देवसेनापदत होकर स्वगम रहने लगे थे । वैसे भी ाईनकी कृदिकाएाँ ाऄपना र्ातत्ृ व प्रगट करती थीं। एक ददन जि दशव-पावमती एकान्त क्रीडार्ें थे, एक वद्ध ृ ब्राह्मणने द्रार पर से 'दभक्षाां देदह' की पक ु ार की । पावमती दभक्षा देने ाअयी तो ब्राह्मण ाऄदृश्य हो गया। ाईर्ाने भगवान दशवको पक ु ारा । शङ्करजीने ाअकर ितलाया दक वे गणेश ही कृपा करके ाअये थे। दोनों लौटे तो ाईनकी शय्यापर एक ददव्य ाऄरुण वणम दशशु दकलक रहा था। गणेशजी ाआस प्रकार ाईनके पत्रु रूपर्ें प्रगट हुए थे। गणेशजीके ाअदवभामवकी दसू री कथा यह है5

श्रीपावमतीजीको ाईनकी सेदवका ाईिटन लगा रही थी। जो ाईिटन शरीरसे छूटा ाईसको लेकर ाईर्ाने एक र्दू तम िना दी और कुतहू लवश ाईसे सजीव कर ददया । ाईस सजीव िालकने तत्काल प्रणार् करके पछ ू ा-'र्ाता, र्ैं क्या सेवा करूां?' 'तर्ु र्ेरे द्रारपर रहो। दकसीको र्ेरी ाअज्ञाके दिना भीतर र्त ाअने देना।' पावमतीने ाअज्ञा दे दी। डांडा लेकर िालक द्रारपर खडा हो गया। भगवान दशव ाऄन्त:परु र्ें जाने लगे तो ाईसने रोक ददया। शांकरजीने गणोंको ाअज्ञा दी दक ाईसे द्रारसे हटा दें, दकन्तु सभी गण ाईस िालककी लाठीकी र्ारसे हाथ-पैर-दसर तडु वाकर भाग खडे हुए । देवता सहायता करने ाअये, दकन्तु ाईस र्हाशदि के ाऄगां से ाईत्पन्न िालकके सार्ने वे भी दटक नहीं सके । ाऄन्त र्ें शक ां रजीने क्रोधर्ें ाअकर ाऄपने दत्रशल ू से ाईसका र्स्तक काट ददया और ाऄन्ताःपरु र्ें गये। 'ाअपको दकसीने रोका नहीं?' पावमतीने पछ ू ा। 'रोक रहा था वह तबु हारा र्ख ू म द्रारपाल ।' दशवने कहा-‘दछन्न र्स्तक पडा है ।’ 'र्ेरा पत्रु र्ार ददया गया?' ाईर्ा दौड द्रारकी ओर और वह शव देखते ही तो वे र्हाकाली हो गयीं। ाईन्होंने हुक ां ारकी और खड्ग ाईठाया। िडी कदठनााइसे स्तदु त करके देवता ाईन्हें शान्त ति कर सके , जि शांकरजी के कहनेसे ाईसी सर्य ाईत्पन्न एक 6

गजदशशक ु ा र्स्तक लाकर ाईसके धडपर लगाकर िालक जीदवत कर ददया गया और दशवने ाईसे ाऄपने सर्स्त गणोंका ाऄधीश्वर िना ददया । गजर्ख ु गणपदत हुए। एक दववादर्ें स्वादर्कादतमक (कल्पभेदसे परशरु ार्जी) से यद्ध ु र्ें गणेशजीका एक दााँत जो िाहर दनकला था, टूट गया । तिसे वे एकदन्त हो गये । प्रथर् पज्ू य कौन हो?-देवताओर्ां ें यह दववाद ाईत्पन्न हुाअ। ब्रह्माजीने दनणमय ददया-'जो पथ्ृ वीकी प्रददक्षणा करके प्रथर् यहााँ ाअ जाय ।' सि देवता ाऄपने वाहनोंपर चढ़कर दौडे; दकन्तु लबिोदर, स्थल ू काय, र्ोदक-दप्रय गणेशजी क्या करते? ाईनका वाहन तो र्षू क (चहू ा) है । ाईनको दखन्न देखकर देवदषम नारदने ाईपाय ितला ददया । भदू र्पर 'रार्' दलखकर ाईसकी ाआक्कीस प्रददक्षणा करके वे ब्रह्माजीके सर्ीप चले गये । सदृ िकतामने ाईन्हें दनदखल ब्रह्माण्डोंकी २१ प्रददक्षणा करनेवाला र्ान दलया। वे प्रथर् पज्ू य घोदषत दकये गये। ाआस सबिन्धर्ें दसू री कथा भी हैस्वादर् कादतमक और गणेशजी र्ें दववाद ाईठा दक पदहले दववाह दकसका हो । शांकरजीने दनणमय ददया दक जो पदहले पथ्ृ वीप्रददक्षणा करके ाअ जाए । नारदजीकी सबर्दतसे गणेशजीने र्ाता-दपता को भदू र् एवां परर्ेश्वर रूप र्ानकर ाईर्ा-र्हेश्वरकी 7

सात प्रददक्षणा करली । वे दवजयी र्ाने गये । ाऊदद्ध और दसदद्धसे ाईनका दववाह हो गया। गण ाऄथामत् दशवगण-भतू , प्रेत, दपशाच, डादकनी, यदक्षणी, भैरव दद-सदृ िके सर्स्त दवनाशक ाअदधदैदवक तत्व, ाआन सिके स्वार्ी, प्रधान नायक होने से ये गणेश हैं । ाआनकी प्रथर् पजू ा दकये दिना कोाइ कायम दनदवमघ्न पणू म नहीं होता। देवता और दैत्य दर्लकर सर्द्रु -र्न्थन करनेको ाईद्दत हुए, दकन्तु ाईन्होंने कायामरबभर्ें गणेशजीका पजू न नहीं दकया । सभी देवता देखते रह गये, र्न्दराचल सर्द्रु र्ें डूिने लगा । भगवान नारायणने ति गणेशजीका पजू न करवाया और स्वयां कच्छप रूप लेकर र्न्दराचलको पीठपर धारण दकया। परु ाणों र्ें गणेशजीकी दो जन्र्-कथाएाँ और हैं । १. दशव-पावमतीके कोाइ सन्तान नहीं थी। भगवान दवष्णक ु ी ाअराधना करनेपर ाईन्होंने पत्रु होने का वरदान ददया । पत्रु होनेपर सि देवता कै लास गये और पत्रु को देखने तथा ाअशीवामद देने लगे । शदनश्चर द्रार के िाहर खडे रहे । शक ां रजीने ाईन्हें हठ करके भीतर भेजा । वहााँ वे दसर नीचे दकये खडे रहे। पावमतीजीको ाईन्होंने िता ददया-'र्झु े ह्लीका शाप है दक दजसे देखगाँू ा, वह भस्र् हो जायगा।' भवानीने शादनकी िात हसां ी र्ें ाईडादी और ाऄपने पत्रु को देखने का हठ दकया। शदनकी दृदि पडते ही िालकका र्स्तक ाईड गया । भगवान दवष्णसु े प्राथमनाकी गयी। वे एक नवजात गज8

दशशक ु ा दसर लेकर ाअये। ाईसे जोडकर िालकको जीदवत दकया । २. दसदां रू नार्क दैत्यने ाऄिर् र्ासर्ें ही पावमतीके गभम र्ें प्रवेश करके गभमस्थ िालकका दसर नि कर ददया, दकन्तु िालक र्रा नहीं । वह दिना र्स्तक ाईत्पन्न हुाअ। नारदजीने ाईत्पन्न होनेपर प्राथमनाकी-'ाअप सर्थम है, ाअपके दसर होना चादहए।' ाईत्पन्न िालकने गजासरु को र्ारकर ाईसका र्स्तक ाऄपने धडपर स्वयां जोड दलया । तन्त्रशाह्लर्ें गणेशके ५१ रूपोंका ाईल्लेख है१. दवघ्नेश, २. दवघ्नराज, ३. दवनायक, ४. दशवोिर्, ५. दवघ्नरुत, ६. दवघ्नहताम, ७. गण, ८.एकदन्त, ९. ाऄदन्त, १०.गजव्रक, ११. दनरञ्जन, १२. कपदी, १३. दीघमदजह्ऱ, १४. शक ां ु कणम, १५. वषृ भध्वज, १६. गणनायक, १७. गजेन्द्र, १८. सयू मकणम, १९. दत्रलोचन, २०. लबिोदर, २१. र्हानन्दा, २२. र्तृ र्दू तम, २३. सदादशव, २४. ाअर्ोद, २५. दर्ु मख ु , २६. सर्ु ख ु , २७. प्रर्ोदक, २८. एकपाद, २९. दद्रदजह्ऱ, ३०. परु वीर, ३१. षड्र्ख ु , ३२. वरद, ३३. वार्देव, ३४. वक्रतण्ु ड, ३५. दहरण्डक, ३६. सेनानी, ३७.ग्रार्णी, ३८. र्ि, ३९. दवर्ि, ४०. र्िवाहक, ४१. जटी, ४२. र्ण्ु डी, ४३. खड्गी, ४४. वरे ण्य, ४५.वषृ के तन , ४६. भक्षदप्रय, ४७.गणेश, ४८. र्ेघनाद, ४९. व्यापी, ५०, गणेश्वर, ५१. ाईदच्छि 9

ाआनकी शदियों के नार् क्रर्श: ये हैं-१. ही, २. श्री, ३. पदु ि, ४. शादन्त, ५. स्वदत, ६. सरस्वती, ७. स्वाहा, ८. र्ेधा, ९. कादन्त, १०. कादर्नी, ११. र्ोदहनी, १२. नटी, १३. पावमती, १४. ज्वदलनी, १५. नन्दा, १६. सषु र्ा, १७. कार्रूदपणी, १८. ाईर्ा, १९. तेजोवती, २०. सत्या, २१. दवघ्नेदशनी, २२. सरू ु दपणी, २३. कार्दा,२४. र्ददजहा, २५. भदू त, २६. भौदतका, २७. दसटा, २८. रर्ा, २९. र्दहषी, ३०. शांदृ गणी, ३१. दवकणमपा, ३२. भक ृ ु टी, ३३.दीघमघोणा, ३४. धनधु मरा, ३५. यादर्नी, ३६. रादत्र, ३७. कार्न्धा, ३८, शदशप्रभा, ३९. लोलाक्षी ४०, चांचला, ४१. दीदि, ४२. सभु गा, ४३. दभु गम ा, ४४. दशवा, ४५. भगाम, ४६. भदगनी, ४७. शभु दा, ४८. कालरादत्र, ४९. कादलक, ५०. लज्जा, ५१. दपशादचनी । ध्यान-गणेशजी लबिोदर, गजर्ख ु , एकदन्त, चतभु जमु , दत्रलोन, शदशशेखर, खवमतन,ु छोटे चरण, दसन्दरू ारूण हैं। ाआनके हाथों र्ें कर्ल, ाऄक ां ु श, पाश और िीजपरू (वडानीिू) है । सपोंका ाअभषू ण धारण -करते हैं। कहते हैं दक व्यासजीकी प्राथमनापर र्हाभारतका लेखन कायम गणेशजीने दकया है । व्यासजी श्लोक िोलते गये और गणेशजी दलखते गये। िदु द्धके देवता, दवघ्नोंके नाशक, योगर्ें र्ल ू ाधार चक्रके ाऄदधदेवता गणेशजी हैं। ाआनका दवशद चररत गणेश-परु ाण र्ें है । 10

सूयश सौर सबप्रदायका भारत र्ें ाईच्छे द प्राय हो गया है। सन्ध्यार्ें सयू म को ाऄघ्यम देना एक िात है; दकन्तु गायत्री र्न्त्रके द्रारा दजस 'भभू वमु ाः स्वाः’ के प्रकाशककी स्तदु तकी गयी है, वह तो तेजोर्य सदवता परर्ात्र्ा है । ाईस सदवता देवताकी परर्ब्रह्मा रूपर्ें ाईपासना करने वाला सबप्रदाय रहा नहीं है। सौर सबप्रदाय का र्ख्ु यपीठ स्थान ाईडीसार्ें कोणाकम था; दकन्तु ाऄि तो वहााँ का सयू म-र्दन्दर भग्न है और यहााँ र्दू तम नहीं है । हिडा िाल्टेयर लााआनपर दशकाकुलर्् रोड स्टेशनसे कुछ र्ील दरू ाअरसादवल्लीर्ें सयू म र्दन्दर है और वहााँ कुछ सयू ोपासक हैं। सयू मपरु ाणर्ें सयू मका र्ाहात्बय एवां ाईनकी कथाऐ ां ाअती है। वैसे वेदों र्ें सयू मस्तवन है । जैसे'सहस्ररस्मिः र्तधावतशमानिः प्राणिः प्रजानामुदयत्येष सयू श:' ाऄदददतके पत्रु रूपर्ें भगवान सयू मने द्रादश रूप होकर ाऄवतार दलया । ाआसदलए ाईनका एक नार् ाअददत्य पडा। द्रादश ाअददत्योंके नार् हैं-१. दववस्वान, २. ाऄयमर्ा, ३. पषू ा, ४, त्विा, ५. सदवता, ६. भग, ७. धाता, ८. दवधाता, ९. वरुण, १०. दर्त्र, ११. शक १२. ाईरुक्रर् । अवतार कथा- प्रजापदत कश्यपकी पत्नी ाऄदददतने पत्रु कार्नासे देवताओकां े दनदर्ि ब्रह्मौदन पाक दकया। देवताओनां े 11

ाईन्हें ाईदच्छि दे ददया। ाआससे ाईनके चार पत्रु हुए । दसू री िार ाऄदददतने दिर पाक िनाया और ाऄपने दलए प्रथर् रख कर ति देवताओकां ो ददया। ाआससे एक ाऄपक्व ाऄण्ड ाईत्पन्न हुाअ। ाआस र्तृ प्राय ाऄण्डसे ४ पत्रु हुए । वे र्ातमण्ड कहलाये। तीसरी िार ाऄदददतने के वल ाऄपने दलए पाक िनाया। ाआससे ाईन्हें दववस्वान तथा तीन पत्रु और हुए । ाऄदददतने ाऄपने सातपत्रु देवताओकां ो दे ददये थे- वे १.ाऄयमर्ा, २. पषू ा, ३. भग, ४. त्विा, ५. धाता, ६. दवधाता और ७. वरुण तो देवता हैं ही। शक्र और ाऄरुक्रर्(वार्न) भी देवलोक चले गये । के वल दववस्वान, सदवता और दर्त्र (र्ातमण्ड) ाईनके पास रहे। ज्योदतषके र्तसे सयू म लादलर्ा दलये श्यार् वणम, पवू म ददशा तथा दसहां रादशके स्वार्ी, क्षदत्रय, चतष्ु कोणाकृदत, र्ध्याह्न प्रिल, वद्ध ृ , दतिरसदप्रय और रणचारी है। परर्ात्र्रूपसे सयू म की ाईत्पदि (ाअदवभामव) कथा दसू री हैसदृ िके ाअददर्ें ब्रह्माके तपके िलस्वरूप परर् तेज प्रकट हुाअ। वह प्रणव स्वरूप है। ाअदद होनेसे ाईसे ाअददत्य कहते हैं । वही परर्ात्र्ा सयू म हैं। वहीं वेदोंके र्ल ू हैं। ाईस परर् तेजके ाअदवभामवसे सि ाऄधाः-ाउध्वम लोक सतां ि हो ाईठे ति ब्रह्माने सदृ ि के नि होने की ाअशांकासे सयू म भगवानकी स्तदु त की । ति भगवान सयू मने ाऄपना तेज सीदर्त कर दलया। 12

ाऄदददतने पत्रु -प्रादिकी कार्नासे तथा यद्ध ु र्ें दैत्योंसे परादजत ाऄपने पत्रु देवताओकां ी र्गां ल-कार्नासे सयू मकी ाअराधना की। सयू म भगवानने ाईन्हें ाईनके पत्रु रूप र्ें ाऄवतीणम होने का वरदान ददया। ाआसके िलस्वरूप सयू मका सोधबु न नार्क ाऄश ां ाऄदददतके गभमर्ें ाअया । ाईन ददनों देवर्ाता ाऄदददत कृच्छ चान्द्रायणादद ाऄनेकों व्रत करती थीं। ाईनके पदत प्रजापदत कश्यपने ाईन्हें रोका ‘तर्ु व्रत करके ाऄपने गभामण्डको र्ार दोगी।' ाऄदददतने कहा-'र्ैं ाआसे र्ारूाँगी नहीं । र्ेरा गभामण्ड दवपक्षकी र्त्ृ यक ु ा कारण होगा।’ यह कहकर ाऄदददतने ाईसी सर्य गभामण्डका त्याग कर ददया । ाईस तेजोदीि ाऄण्डसे ाऄरुणवणम भगवान सयू म प्रकट हुए। र्हदषम कश्यपने ाऄदददतसे कहा था-'तर्ु ाआस ाऄडां को र्ारोगी' ाआस कारण ाईस ाऄडां से ाईत्पन्न सयू मका नार् र्ातमण्ड पडा। दवश्वकर्ाम स्वयां सयू म के सर्ीप गये और ाऄपनी पत्रु ी सज्ञां ाका ाईन्होंने सयू मसे दववाह कर ददया। सज्ञां ाके प्रथर् पत्रु वैवस्वत र्नु हुए। लेदकन सज्ञां ा सयू मका तेज सहन नहीं कर पाती थी । वह सयू मके सर्ीप ाअते ही नेत्र िन्द कर लेती थी। ाआससे सयू मने कहा-'तर्ु र्झु े देखकर नेत्र िन्दकर लेती हो, ाआससे तबु हें ऐसा पत्रु होगा जो ाऄन्धकार पणू म लोकोंका स्वार्ी होगा।'

13

भयवश सज्ञां ाने नेत्र खोल दलये ; दकन्तु तेज न सह सकनेके कारण ाईसके नेत्र चचां ल हो गये। ाआससे सयू मने कहा-'तबु हारे नेत्र चच ां ल हैं, ाऄताः तबु हें चञ्चल स्वभावा नदी रूपा पत्रु ी होगी।' ाआसके कारण सांज्ञाके दसू रे पत्रु यर् तथा पत्रु ी यर्नु ा हुाइ । पदतके क्रोधसे डरकर सांज्ञाने ाऄपनी छाया दनदर्मतकी और ाईससे कहा-'पदतकी सेवा करना और र्ेरा जाना गिु रखना।' 'जि तक शापका भय न होगा, र्ैं ाअपकी िात गिु रखगाँू ी।' छायाने वचन ददया। सांज्ञा दपताके घर चली गयी। छायासे भी सयू म भगवानके तीन सन्तान हुाइ। १. सावदणम र्न,ु २. शनैश्चर, ३. तपती नार्क कन्या । छायाका व्यवहार सांज्ञाके िच्चोंके प्रदत स्नेहका नहीं था। ाईसके दवषय व्यवहारसे क्रोधर्ें ाअकर यर्ने एक िार ाईसे र्ारनेको पैर ाईठाया; दकन्तु क्रोध रोक दलया। छायाने शाप दे ददया- 'तू र्ाताको र्ारनेको पैर ाईठाता है ! तेरे पैर दगर जायाँगे !' यर्ने सयू म से यह िात कही । वैवस्वतने भी कहा 'र्झु े वे र्ाता नहीं लगतीं। हर् तीनों भााइ-िदहनोंसे ाईनका व्यवहार िहुत रुक्ष है।' सयू मने यर्को कहा- 'तबु हारे पैरका र्ासां लेकर कृदर् भदू र्पर जन्र् लेंगे । र्ाताका शाप दर्थ्या नहीं होगा।' छायासे ाईन्होंने पछ ू ा-'तू कौन है?' छायाने पदहले तो नहीं ितलाया; दकन्तु सयू म भगवान जि ाईसे शाप देनको ाईद्यत हुए ति 14

ाईसने ाऄपना पररचय दे ददया और सज्ञां ाके दपताके घर जाने की िात ितला दी। सज्ञां ा दपताके घर चली गयी थी; दकन्तु दवश्वकर्ामने ाईससे कहा-'िेटी, कन्याको दपताके घर ाऄदधक नहीं रहना चादहए।' ाआससे सांज्ञा वहााँसे भदू र्पर ाअयी और कुरुक्षेत्र र्ें घोडीका रूप रखकर ाआस ाईद्देश्यसे तप करने लगी दक सयू म भगवानका तेज ाईसके दलए सह्य िन जाय । सयू म दवश्वकर्ामके सर्ीप गये तो वहााँ सांज्ञा दर्ली नहीं। ाऄत: ध्यानके द्रारा ाईन्होंने सांज्ञाकी दस्थदत जानली । ाईसके तप को देखकर दयाद्रम होकर दवश्वकर्ामसे कहा'ाअप र्ेरे तेजको कर् कर दीदजये ।’ भगवान सयू मकी ाअज्ञासे भदू र्पर ाईन्हें चाकपर चढ़ाकर शाकद्रीपर्ें दवश्वकर्ाम ाईनका तक्षण करने लगे। ाआससे सर्स्त दत्रभवु न डावााँ-डोल हो ाईठा। दवश्वकर्ामने सयू मके तेजसे दवष्णक ु ा चक्र, दशवका दत्रशल ू , यर्का दण्ड, कादतमकेयकी शदि ाअदद देवताओकां े दवदशि ाअयधु िनाये । ाआस प्रकार तक्षणसे सयू म का तेज घट गया। तेज तक्षणके पश्चात् सयू मदवे घोडेका रूप रखकर ाईिर कुरुर्ें घोडीके रूपर्ें तप करती सज्ञां ाके सर्ीप गये । वहााँ दोनोंके दर्लनसे देव-वैद्य ाऄदश्वनी कुर्ार,यगु ल तथा खड्ग, कवच, वाण और तरकश धारी रे वन्त ाईत्पन्न हुए। भगवान सयू मने दिर ाऄपना स्वरूप प्रगट दकया । वह रूप देखकर सांज्ञा प्रसन्न हो गयी। 15

ाअदश्वनी कुर्ार देव-वैद्य हुए। रे वन्त गह्य ु कोंके ाऄदधपदत हुए । ाईपासनाके दलए दवदभन्न र्हीनों र्ें सयू मके दवदभन्न नार् तथा ाईनके व्यहू का वणमन है१. चैत्रर्ें- सयू म धाता-स्तोता, ाऊदष पल ु स्त्य, गन्धवम तबु िरू, ाऄप्सरा कृतस्थली (सबर्ख ु नत्ृ य करने वाली) रथको पीछे से ठे लने वाला ाऄसरु हेदत, रथको िााँधने वाला नाग वासक ु ी, सारदथ रथकृत।् २. िैशाख र्ें -सयू म ाऄयमर्ा, ाऊदष पल ु ह, गन्धवम नारद, ाऄप्सरा पांदु जक स्थली, ाऄसरु प्रहेदत, नाग कच्छनीर, सारदथ ाऄथौजा। ३.ज्येष्ठर्ें-सयू म दर्त्र, ाऊदष ाऄदत्र, गन्धवम हहा, ाऄप्सरा र्ेनका, ाऄसरु पौरुषेय, नाग तक्षक, सारदथ रथस्वन । ४. ाऄषाढर्ें- सयू म वरुण, ाऊदष वदशष्ठ, गन्धवम हुहू, ाऄप्सरा रबभा, ाऄसरु शक ु , नाग सहजन्य, सारदथ दचत्रस्वन । ५. श्रावणर्ें- सयू म ाआन्द्र, ाऊदष ाऄदां गरा, गन्धवम दवश्वावस,ु ाऄप्सरा प्रबलोचा, ाऄसरु वयम, नाग एलापत्र, सारदथ श्रोता। ६. भाद्रपदर्ें-सयू म दववस्वान, ाऊदष भगृ ,ु गन्धवम ाईग्रसेन, ाऄप्सरा ाऄनबु लोचा, ाऄसरु व्याग्र, नाग शङ्खपाल, सारदथ ाअसारण । ७. ाअदश्वनर्ें सयू म पषू ा, ाऊदष गौतर्, गन्धवम सषु ेण, ाऄसरु िात, ाऄप्सरा धतृ ाची, नाग धनञ्जय, सारदथ सरुु दच। 16

८. कादतमकर्ें- सयू म ाऊत,ु ाऊदष भरद्राज, गन्धवम पजमन्य, ाऄप्सरा वचाम, ाऄसरु सेनदजत, नाग ऐरावत, सारदथ दवश्व। ९. र्ागमशीषमर्ें- सयू म ाऄश ां ,ु ाऊदष कश्यप, गन्धवम ाऊतसेन, ाऄप्सरा ाईवमशी, नाग र्हाशख ां , ाऄसरु दवधच्ु छत्र,ु सारदथ ताक्ष्यां । १०. पौषर्ें- सयू म भग, ाऊदष स्िूजाम, गन्धवम ाऄररिनेदर्, ाऄप्सरा पवू मदचदि, ाऄसरु ाउणम, नाग ककोटक, सारदथ ाअय।ु ११. र्ाघर्ें- सयू म त्विा, ाऊदष जर्ददग्न, गन्धवम शतदजत,् ाऄप्सरा दतलोिर्ा, ाऄसरु ब्रह्मापेत, नाग कबिल, सारदथ धतृ राष्र। १२. िाल्गनु र्ें-सयू म दवष्ण,ु ाऊदष दवश्वादर्त्र, गन्धवम सत्यदजत,् ाऄसरु र्रवापेत, नाग ाऄश्वतर, ाऄप्सरा रबभा, सारदथ सयू मवचाम। यह भगवान सयू मकी दवभदू त है। ाआसका स्र्रण करनेसे पापक्षय होता है।

17

र्सि जगतका र्ल ू ाअद्या र्हाशदि हैं । ब्रह्मा, दवष्ण,ु दशव तथा सभी देवता ाईनके ाऄश ां से ही ाईत्पन्न होते हैं । वे दनदखल-लोकर्हेश्वरी दत्रपरु ा परर्ेश्वरी हैं। यह दनष्ठा शाि सबप्रदायकी है । शाि-सबप्रदाय देश र्ें िहुत व्यापक है । शदि पीठ भी िहुत ाऄदधक हैं। शदिके सादत्वक, राजस, तार्स भेदसे शािोपासनार्ें भी ददक्षणाचार, वीराचार और वार्ाचार-ये तीन पथृ क-पथृ क सबप्रदाय ही चले । ाआनर्ें से वीराचारी और वार्ाचारी ाऄपनेको गिु रखते हैं, क्योंदक ाईनकी ाईपासना पद्धदत लोकर्ें ाऄदप्रय है और काननू के भी िहुत कुछ प्रदतकूल पडती है। वीराचारकी नरिदल तो सर्ाि प्राय है। ाअद्या-र्हाशदिके तीन रूप सदृ ि, दस्थदत, प्रलयके दलए हैं। सदृ िके दलए र्हासरस्वती रूप, दस्थदतके दलए र्हालक्ष्र्ी रूप और प्रलयके दलए र्हाकाली रूप । स्र्रण रखना चादहए दक ये रूप ब्रह्मा, दवष्ण,ु दशवकी शदि सरस्वती, लक्ष्र्ी तथा कालीसे दभन्न हैं । दगु ाम सिशतीर्ें ाआन तीनों रूपोंका ध्यान है। महासरस्वती-ये ाऄि भजु ा दसहां -वादहनी हैं। महालक्ष्मी-ये दसांह-वादहनी ाऄिादश भजु ा हैं। महाकाली-ाआनके दस र्ख ु तथा दस ही चरण हैं। र्हाशदिके दस र्हादवद्या रूप और नौ दगु ाम रूप र्ाने जाते हैं। ाआनके र्हादवद्या रूप हैं18

१. काली, २. तारा, ३. षोडशी, ४. भवु नेश्वरी, ५. भैरवी, ६दछन्नर्स्ता, ७. धर्ू ावती, ८. िगला, ९. र्ातङ्गी, १०. कर्ला। नवदुगाश हैं-१ शैलपत्रु ी, २. ब्रह्मचाररणी, ३. चन्द्रघण्टा, ४. कुष्र्ाण्डा, ५. स्कन्दर्ाता, ६. कात्यायनी, ७. कालरादत्र, ८. र्हागौरी, ९. दसदद्धदात्री । काली, नीला, र्हादगु ाम, त्वररता, दछन्नर्स्ता, वागवाददनी, ाऄन्नपणू ाम, प्रत्यङ्दगरा, कार्ाख्या, वासली, िाला, र्ातङ्गी और शैलवादसनीको भी तन्त्रोंर्ें र्हादवद्या कहा है। तन्त्रोंके ाऄनसु ार दशावतार र्हादवद्या ही धारण करती हैं। ाईनका क्रर् यह है- १. काली-कृष्ण, २.ताररणी-रार्, ३. नीलाकूर्म, ४. धर्ू ावती-र्त्स्य, ५. दछन्नर्स्ता-नदृ सांह, ६. भैरवीवाराह. ७. दत्रपरु ा- परशरु ार्, ८. भवु नेश्वरी-वार्न, ९. कर्लािद्ध ु , १०. दगु ाम-कदल्क रूपर्ें ाऄवतार लेती हैं। शदि-परर्-देवता सदृ ि, दस्थदत, प्रलयके दलए सादत्वक राजस, तार्स रूप लेती है। ाईसर्ें ब्रह्म-सदां स्थता श्वेत-वणाम सादत्वकी, रिवणाम राजसी और कृष्णवणाम तार्सी है। दवन्दु दशव और िीज शदि है। ाआन दोनोंके योगसे नाद होता है । ाआस नादसे दत्रशदि ाईत्पन्न होती है। यह ाआच्छाशदि, दक्रयाशदि और ज्ञानशदि रूपा है।

19

शादिके सदृ ि र्ें नौ रूप हैं-१. वैष्णवी, २. ब्रह्माणी, ३. रौद्री, ४. र्ाहेश्वरी, ५. नारदसांही, ६. वाराही, ७. ाआन्द्राणी, ८. कादतमकी, ६. सवमर्गां ला (भैरवी) । दवष्णश ु दि ५० हैं-१. कीदतम, २. कादन्त, ३. तदु ि, ४. पदु ि, ५. धदृ त, ६. शादन्त. ७. दक्रया, ८. दया, ९. र्ेघा, १०. श्रद्धा, ११. लज्जा, १२. लक्ष्र्ी, १३. सरस्वती, १४. प्रीदत, १५. रीदत, १६. रर्ा, १७. जया, १८. दगु ाम, १९. प्रभा, २०. सत्या, २१. चण्डा, २२. वाणी, २३. दवलादसनी, २४. दवरजा, २५. दवजया, २६. दवश्वा, २७. दवनदा, २८, सनु दा, २९. स्र्दृ त, ३०. ाऊदद्ध, ३१. सर्दद्ध, ३२. शदु द्ध, ३३. भदि, ३४. र्दु ि, ३५. र्दन, ३६. क्षर्ा, ३७. रर्ा, ३८. ाईर्ा, ३९. क्लेददनी, ४०. दक्लन्ना, ४१. वसधु ा, ४२. सक्ष्ू र्ा, ४३. सन्ध्या , ४४. प्रज्ञा, ४५. दनशा, ४६. ाऄर्ोधा, ४७. दवद्यतु ा, ४८. परा, ४९. परायणा, ५०. परर्ा । वैष्णवाचायम भगवानकी र्ख्ु य तीन शादियााँ र्ानते हैं। ये तीनो स्वरूप भतू ा हैं- १. सदां वत, २. सदां धनी, ३. हलाददनी। दशवकी भी ५० शदियााँ हैं । ाआन्हें रुद्र शदि कहते हैं-१. गणु ोदगी, २. दवरजा, ३. शाल्र्ली, ४. लोलाक्षी, ५. वतमल ु ाक्षी, ६. दीघम धोणा, ७. सदु ीघमर्ख ु ा, ८. गोर्ख ु ी, ९. दीघमदजह्ऱा, १०. कुण्डोदरी, ११. ाउध्वमकेशी, १२. दवकृत-र्ख ु ी, १३. ज्वालार्ख ु ी, १४. ाईल्िार्ख ु ी, १५. सश्रु ीर्ख ु ी, १६. दवधार्ख ु ी, १७. र्हाकाली, १८. सरस्वती, १९ गौरी, २०. लबिोदरी, 20

२१.द्रादवणी, २२ नागरी, २३. खेचरी, २४. र्ञ्जरी, २५. रूदपणी, २६. दचत्रणी, २७. काकोदरी, २८. पतू ना, २९. भद्रकाली ३०, योगनी, ३१. शदां खनी, ३२. गजमनी, ३३. कुदजजनी, ३४. कपाददमनी ३५. जया, ३६. रे वती, ३७. र्ाधवी, ३८. वारुणी, ३९. वाषमवी, ४०, कालरादत्र, ४१. व्रजा, ४२. सर्ु ख ु श्वे री, ४३. लक्ष्र्ी, ४४. सती, ४५. पावमती, ४६. कोटरा, ४७. ज्येष्ठा, ४८. चार्ण्ु डा, ४९. दपशादचनी, ५०. भद्रा, ाअददर्ें एकर्ात्र शदि ही थीं । ब्रह्माण्डकी सदृ ि करके वे कार्कला और श्रगांृ ारकला नार्से दवख्यात हुाइ । कथा है१. सदृ िर्ें ब्रह्मा और दवष्णनु े ाऄपनी ाऄपनी शदि ग्रहण करली; दकन्तु र्हेश्वर तपर्ें लगे रहे । ाईनके गहृ स्थ हुए दिना सदृ िरचना नहीं हो सकती थी। लेदकन वे दजसकी ओर ाअकदषमत हों, ऐसी कोाइ ह्ली थी ही नहीं। ब्रह्माने ाअददशदि की स्तदु तकी और दक्षको भी ाईनकी ाअराधनाके दलए प्रेररत दकया। सहस्रों वषमके तपके पश्चात् वे र्हाशदि प्रसन्न हुाइ। ाईन्होंने दक्षकी पत्रु ी होकर ाईत्पन्न होना स्वीकार दकया। दक्ष कन्या सतीके रूप र्ें वे ाईत्पन्न हुाइ। सतीका दशवसे दववाह हो गया। दक्षने यज्ञर्ें दशवको कपाली होने के कारण भाग नहीं ददया, ाऄताः सतीने दपताके यज्ञर्ें देह त्याग ददया । सतीके दवयोगर्ें ाईनका शरीर कन्धेपर डालकर दशव लोकों र्ें घर्ू ने लगे । ति ब्रह्मा, दवष्णु और शदनने सतीके ाईस देहको खण्ड खण्ड करके 21

दगरा ददया । जहााँ जहााँ सतीके दचन्र्य देहका खण्ड दगरा, वहााँ वहााँ पण्ु यतीथम र्हापीठ हो गया। वहााँ वहााँ दशव भी एक एक रूपसे दस्थत हुए। सतीने दहर्ालयकी पत्नी र्ेनकाके द्रारा जन्र् दलया। वसन्तर्ें नवर्ी (चैत्र शक्ु ल ९) को ाईनका जन्र् हुाअ। दपताने ाईनका नार् काली रखा । पवमत पत्रु ी होनेसे वे पावमती कही जाती हैं। नारदजीके कहने से पावमतीने दशवको पदत रूप र्ें प्राि करनेके दलए तप दकया । ाऄन्तताः शांकरजीने पावमतीका पादणग्रहण दकया। कै लाशपर दशवने एक ददन पावमतीके श्यार् वणमका ाईपहास दकया। ाआससे रूठकर कुछ ददन वे गिु रहीं। दिर वे दहर्ालय के र्हाकौषी-प्रपात-दशखरपर तप करके गौर वणाम हो गयीं। २. र्दहषासरु ने तप करके वरदान पाया था दक कोाइ परुु ष ाईसे र्ार नहीं सके गा । ाईसने देवताओकां ो परादजत कर ददया । देवता ब्रह्माके सर्ीप गये । भगवान दवष्णु तथा दशव भी एकत्र हुए । ाऄन्तर्ें सि देवताओकां े शरीरसे ाईनकी शदि ज्योदत के रूपर्ें दनकली। वह ज्योदत नारी र्दू तम िन गयी। वही भगवती र्हालक्ष्र्ी है। वे ाऄिादशभजु ा हैं। दकस देवताके तेजसे ाईनका कौनसा ाऄगां िना यह वणमन दवस्तारसे देवी भागवतर्ें है। कहीं कहीं र्दहषर्दमनीको दशभजु ा और कहीं कल्पभेदसे सहह्ल भजु ा भी कहा है। ाअदद सदृ िर्ें ाऄिादश भजु ा ाईग्रचण्डी, दद्रतीय कल्पर्ें षोडश 22

भजु ा भद्रकाली तथा वतमर्ान कल्पर्ें दशभजु ा दगु ाम रूपर्ें देवीने र्दहषासरु को र्ारा। ाआन तीनों रूपोंकी ाईपासनार्ें देवी के पादतलसे लगे र्दहषकी र्दू तम होती है। देवीने र्दहषासरु को यह वरदान ददया है। ३. रुरुका पत्रु ाऄसरु दगु म तप करके ाऄजेय हो गया था। देवताओकां ी प्राथमनासे र्हेश्वरने देवीको ाईसका वध करने भेजा। देवीने कालरादत्रको दैत्यको पकडने भेज दपया । ाऄसरु कालरादत्रपर र्ोदहत होकर ाईन्हें पकडने के ाईद्योगर्ें लगा; दकन्तु कालरादत्रने ाईसके ाऄनचु रोंको भस्र् कर ददया । वे देवीके सर्ीप ाअ गयीं । ाऄसरु दगु म सानचु र पीछा करता दवन्ध्य पवमतपर ाईन सहह्लभजु ा र्हाशदिके सर्ीप ाअया और ाईनसे यद्ध ु र्ें र्ारा गया। दगु मको र्ारने के कारण वे दगु ाम हैं। ४. शबु भ-दनशबु भ दैत्यसे पीदडत देवता र्हाशदिका स्तवन कर रहे थे। पावमतीने पछ ू ा-'ये दकसका स्तवन करते हैं ?' पावमतीके शरीरसे दनकलकर देवीने ही ाईिर ददया ‘ये र्ेरा स्तवनकर रहे हैं ।’ पावमतीके देह रूपी कोषसे प्रगट होने के कारण वे कौषीतकी कही गयीं । ाईनके दनकल जाने पर पावमती काली हो गयी । ाईन र्हाशदि कौषीतकी-र्हासरस्वतीने चण्ड-र्ण्ु ड नार्क सेनापदतयों के साथ शबु भ-दनशबु भका वध दकया । ाआस यद्ध ु र्ें सभी देवताओकां ी शदियााँ जो ाईन ाईन देवताओकां े ही रूप, 23

ाअयधु , वाहन यि ु थी देवीके साथ यद्ध ु भदू र्र्ें ाईतरी । देवीके शरीरसे चार्ण्ु डा प्रगट-हुाइ, दजन्होंने रििीजका रिचाट दलया। पीछे सि देव-शदियााँ देवीके हो शरीरर्ें लीन हो गयीं। ५. भ्रर्राबिा शाकबभरी-देवीका यह रूप ाऄपने शरीरसे कोदट कोदट भ्रर्र ाईत्पन्न करके ाऄसरु ोंका नाश करने के दलए प्रगट हुाअ। ाऄकाल-ग्रस्त सांसारके प्रादणयोंको ाऄपने शरीरसे शाक-िलादद प्रगट करके देवीने र्रनेसे िचाया। नवदुगाश-१. शैलपत्रु ी-ये चन्द्र-शेखरा, दद्रभजु ा, वषृ ारुढा दत्रशल ू -धरा हैं। दसू रे करर्ें ाऄभयर्द्रु ा है। गौरवणाम हैं। २. ब्रह्मचाररणी-ये दद्रभजु ा, र्ाला तथा कर्ण्डलु हस्ता है । गौरवणाम है। ३. चन्द्रघण्टा-ये व्याघ्रा रूढ़ा, दशभजु ा, दत्रशल ू गदा - खड्ग - धनषु - वाण - कर्ण्डलु - र्ाला - कर्ल वर-ाऄभयर्द्रु ा करा, रिाबिरा हैं । गौरवणाम हैं । ४-कूष्र्ाण्डा-व्याघ्रारुढ़ा, ाऄिभजु ा, चक्र-गदा-र्ालाकलश- कर्ल - वाण - धनषु - कर्ण्डलु -हस्ता, पाटलवह्ला, गौरवणाम हैं। ५. स्कन्दर्ाता-दसहां ारूढ़ा, चतभु जमु ा, दो करोंर्ें कर्ल तथा दोकर गोदर्ें षडर्ख ु स्वादर्कादतमकपर हैं। गौरवणाम हैं। ६. कात्यायनी-दसांहारूढा, चतभु जमु ा, वर-ाऄभय-पद्म-खड्गहस्ता, पाटलाबिरा गौरवणाम हैं। 24

७. कालरादत्र-ाईन्र्ि ु के शा, गदमभारूढा, ाऄदस्थर्ाला, काली, दत्रनयना, चतभु जमु ा, खड्ग-कांकाल-वर-ाऄभयकरा हैं ८. र्हागौरी-श्वेतवषृ ारूढा, श्वेताबिरधरा, र्हागौरवणाम, चतभु जमु ा, शल ू -डर्रू-वर-ाऄभय-करा हैं। ९. दसद्धदात्री-पद्मासना, रिाबिरा, चतभु जमु ा, शख ां चक्रगदा-पद्म-हस्ता, दसद्ध-गन्धवम-यक्ष-र्दु न-सरु -ाऄसरु र्ानव सेदवता हैं। दसमहासवद्या-१. काली-शवारूढा, चन्द्र-शेखरा, दत्रनयना, र्ण्ु डर्ादलनी, र्ि ु के शा, चतभु जमु ा, खड्ग-र्ण्ु ड-वराऄभय-करा, ददगबिरा दजह्ऱा दनकाले हैं । ाआनके परुु ष र्हाकाल हैं। र्ध्यरादत्रसे सयू ोदय तक ाआनका काल है। २. तारा-प्रत्यालीढ़ा (शवारूढ़ा) काली, दत्रनयना, र्ि ु के शा, चर्ामबिरा, चन्द्रशेखरा, र्ण्ु डर्ादलनी, खड्ग-कतमरी-नील पदर्खप्पर-करा चतभु जमु ा हैं। ाआनके परुु ष ाऄक्षोभ्य हैं । प्राताःसे ताराका काल है। ३. षोडशी-िालसयू मके सर्ान कादन्त, दत्रलोचना, चतभु जमु ा, पाश-ाऄक ु ां ु श-धनषु -वाण-हस्ता, पद्मासना हैं। ाआनके परुु ष पञ्चर्ख दशव हैं। । ४. भवु नेश्वरी-प्रभातकालीन सयू म जैसी कादन्त, चन्द्रशेखरा, पिु वक्षा, दत्रनेत्रा, दस्र्तर्ख ु ी, वर-ाऄभय पाश-ाऄक ां ु श-करा हैं । ाआनके परुु ष त्र्यबिक हैं। 25

५. दछन्नर्स्ता-गौरवणाम, नग्ना, र्ण्ु डर्ादलनी, वार्हस्तर्ें ाऄपना ही र्स्तक, दादहनेर्े खड्ग, भयक ां रा, रिपादयनी हैं । ाआनके परुु ष किन्ध दशव हैं। ६. दत्रपरु -भैरवी-सहस्रसयू मकादन्त, रिवह्ला, र्ण्ु ड-र्ादलनी, रिदलि पयोधरा, चतभु जमु ा, र्ाला-पस्ु तक-वर-ाऄभय-करा, दत्रनेत्रा, चन्द्रशेखरा, कर्लासना हैं । ाआनके परुु ष कालभैरव हैं। ७. धर्ू ावती-दववणाम, चञ्चला, र्दलन श्वेतवह्ला, दीघम देहा, र्ि ु के शा, ाअभरणहीना, रूक्षा, दवरलदन्ता, काकध्वज-रथारूढा, लटके वक्ष, शपू म-हस्ता, दद्रभजु ा रूक्ष नेत्रा, दवधवा हैं । दसू रे हाथर्ें तजमनर्द्रु ा है। ८. िगला-ाऄर्तृ सागरके र्ध्य र्दण-र्ण्डपर्ें रत्न वेदीपर दवराजर्ान, कनकवणाम, पीताबिरा, ाअभरण भदू षता, र्द्गु र तथा शत्रक ु ी दजह्ऱा पकडे, दद्रभजु ा है। ाआनके परुु ष एकर्ख ु र्हारुद्र हैं। ९. र्ातङ्गी-श्यार्ाङ्गी, शदशशेखरा, दत्रनयना, रत्नासन दस्थता, चतभु जमु ा, तलवार-खेटक-पाश-ाऄक ां ु श हस्ता है । ाआनके परुु ष र्तङ्ग दशव है। १०. कर्ला-स्वणम कादन्त, पद्मासना, दो हाथोंर्ें कर्ल, दो र्ें वर-ाऄभय र्द्रु ा है । चार गज स्वणमघट साँडू ोंर्ें दलये ाऄर्तृ से स्नान करा रहे हैं । ाआनके परुु ष सदादशव हैं । शदि के ाआन रूपोंके ाऄदतररि भी ाऄसांख्य रूप हैं। जो ाअद्या जगत्कारण हैं, ाईनके ाऄनन्त नार् और ाऄनन्त रूप हैं । 26

सर्य सर्यपर ाऄसरु -दवनाश एवां भि-रक्षणके दलए ाईन्होंने ाऄवतार धारण दकया है । ाईनके दवस्ततृ चररत देवी भागवत, र्ाकम ण्डेय परु ाण तथा दवदभन्न तन्त्रोंर्ें पाये जाते हैं। कथा ऐसी भी दर्लती है दक रावणपर दवजय पाने के दलए श्रीरार्ने देवीकी ाअराधना की। वे दस सहह्ल नील कर्लोंसे ाऄचमना कर रहे थे । परीक्षाके दलए एक पष्ु प देवीने दतरोदहत कर ददया । ति श्रीरार् ाऄपने नेत्र-कर्ल ही वाणाग्रसे दनकालने लगे । देवीने प्रत्यक्ष होकर ाईन्हें रोक ददया। र्हाभारत-यद्ध ु के प्रारबभर्ें श्रीकृष्णके ाअदेशसे ाऄजमनु ने दगु ामकी स्तदु त की है। शदिका र्ाहात्बय तथा कथाएाँ वेदोंसे लेकर सभी परु ाण, ाईपपरु ाण, र्हाभारतादद ग्रन्थोंर्ें है। दवदभन्न नार्ों एवां दवदभन्न रूपोंर्ें वे एक र्हाशदि ही ाअरादधत होती हैं।

27

सर्व जगत्के र्ल ू कारण भगवान दशव हैं। यह शैव सबप्रदायकी दनष्ठा है। दशव र्हेश्वर हैं। वे प्रणव-स्वरूप नाद-दवन्दसु े परे हैं । वे ही सदृ ि, दस्थदत, प्रलयके दलए ब्रह्मा, दवष्णु तथा रुद्र रूप धारण करते हैं। परात्पर परर्तत्त्व सदादशवका दनत्यधार् दशवलोक है। धरापर या देवलोकर्ें जो कै लास है, वह तो ाईस दनत्यधार्का प्रतीक है। सदादशव तो सवमकारण-कारण हैं। प्रत्येक ब्रह्माण्डर्ें जो ाईनका एक दशव-प्रलयङ्कर रूप है, वह तो वैसे ही ाईनका रूप है, जैसे ब्रह्मा और दवष्णु रूप भी ाईनका ही है। सदादशवका ाअराध्य रूप दद्रदवध है। एक पञ्चर्ख ु और दसू रा एक र्ख ु । ाईनका वणम कपरू -गौर है। पञ्चर्ख ु रूपर्ें वे दशभजु हैं और एक र्ख ु रूपर्ें चतभु जमु । ाईनके सि र्ख ु दत्रलोचन, चन्द्रशेखर हैं। नीलकण्ठ हैं और सपोंका ाअभषू ण पदहनते है। दत्रशल ू , दपनाक, डर्रु ाईनके र्ख्ु य ाअयधु हैं। वषृ भ जो धर्मका ाऄदधदेवता है, दशवका वाहन है। ध्वजापर वषृ भका ही दचह्न भगवान शांकर रखते हैं। र्ख्ु यत: वे चर्ामबिर 28

धारण करते हैं। र्गृ चर्म, व्याघ्र चर्म और गजचर्म तीनोंके वणमन दर्लते हैं। शैव सबप्रदायोंके भी काइ भेद हैं । ाआनर्ें कश्र्ीरका शैवसबप्रदाय, पाशपु त शैव सबप्रदाय, दलांगायत सबप्रदाय ाअदद हैं। ाआन सबप्रदायोंके दशमन, र्न्त्र, ाअराध्य-रूप, ाअचारादद पथृ क पथृ क हैं। ाआस ाईपासना एवां दनष्ठा भेदके कारण भगवान दशवके ाऄनेक ाअराध्य-रूप तथा नार् र्ाने जाते हैं। देशर्ें द्रादश ज्योदतदलङ्ग र्ख्ु य शैव पीठ हैं । ाऄिोिरशत ददव्य शैव क्षेत्र र्ाने जाते हैं । ददक्षणर्ें तथा कश्र्ीर र्ें ाऄनेक दशवाचायम हुए हैं । पााँच शैवाचायोंको भगवान दशवका ाऄवतार र्ाना जाता है। दशवोपासना वैददक है। वेदोंसे लेकर ाऄि तकके सादहत्यर्ें है। प्रायाः परू ी पथ्ृ वीर्ें दशवोपासनाके प्राचीन दचह्न पाये जाते हैं। कथाएाँ १. परर्ब्रह्म परर्परुु षने सदृ िकी क्रीडाके दलए नारायणको तथा ब्रह्माको ाऄपने ाऄश ां से ाईत्पन्न दकया। ाईत्पन्न होनेके पश्चात् ब्रह्मा और दवष्णर्ु ें दववाद दछड गया दक दोनों र्ें श्रेष्ठ कौन है । ाईसी सर्य ाईनके सबर्ख ु एक ज्योदतर्मय दलांग प्रगट हुाअ। वह ाऄनादद ाऄनन्त ज्योदतस्तबभाकार था। 'जो ाआसके छोरका पता लगाकर पदहले ाअ जाय वह श्रेष्ठ र्ाना जाय ।' यह दनणमय दोनोंने परस्पर कर दलया। ब्रह्मा ाउपरकी 29

ओर तथा दवष्णु नीचेकी ओर चले। ाऄन्तत: िहुत श्रर् करके थककर दोनों लौटे। ब्रह्माने के तकी पष्ु प और गौको झठू े साक्षी िनाया। लौटकर िोले-'र्ैं ाआसके ाउपरी छोर तक पहुचाँ गया था।' दवष्णनु े कहा-‘र्झु े कोाइ छोर नहीं दर्ला।’ ाईसी सर्य ाईस दलांगसे भगवान दशव प्रगट हुए। ाईन्होंने दवष्णक ु ी प्रशांसाकी। झठू िोलनेके कारण ब्रह्मा को कह ददया'लोकर्ें तबु हारी पजू ा नहीं होगी।' दर्थ्या साक्षी देनेके कारण के तकी पष्ु प दशव पजू ार्ें वदजमत हो गया और गौका र्ख ु सदाको ाऄपदवत्र हो गया। २. वह परर्परुु ष ाऄनादद दलांग है। प्रकृदत परुु ष ाईभयात्र्क दचह्न रूपर्ें-प्रतीकात्र्क पजू न ाईसका दलांग पजू न है। यह ठीक ऐसा ही है, जैसे दवष्ण-ु पजू नके दलए शालग्रार् पजू न । साकार प्रदतर्ाकी ाऄपेक्षा दलांग या शालग्रार् पजू न दवदशि है; क्योंदक यह साकार दनराकार ाईभयात्र्क रूपका प्रतीक है। ३. भगवान दशव कपाली हैं। सदृ िकी ाअददर्ें वे तो पञ्चर्ख ु थे ही, ब्रह्मा भी पञ्चर्ख ु थे । ब्रह्माका एक र्ख ु शक ां रजीको ाऄहक ां ारवश ाऄपशजद कहने लगा तो दशवने नखाग्रसे ाईस र्स्तकको काट ददया । ब्रह्मा चतर्ु मख ु हो गये। ब्रह्माका वह दछन्न कपाल दशवकी हथेली र्ें दचपक गया। ाआससे ाईनका नार् कपाली पडा। ाऄन्तर्ें भगवान दवष्णु के ाईपदेशसे शांकरजीने 30

वाराणसी र्ें स्नान दकया तो वह हाथर्ें सटा कपाल छूटकर दगर पडा। ४. दक्ष कन्या सतीने दपताके यज्ञर्ें ाआसदलए देह त्याग ददया दक दपताने भगवान दशवको यज्ञर्ें भाग नहीं ददया था। पदतका यह ाऄपर्ान सतीको ाऄसह्य था । सतीके देह त्यागका सर्ाचार दर्लनेपर दशवने वीरभद्र को भेजकर दक्षको र्रवा ददया । दशव गणोंने यज्ञ ध्वांस कर ददया। ५. सतीने दहर्वानके घर जन्र् दलया। वे भगवान दशवको पदत रूप र्ें पाने के दलए तप करने लगी । दसू री ओर तारकासरु ने देवताओकां ो परादजत कर ददया था। वह तपसे ऐसा हो गया था दक के वल दशव-पत्रु ही ाईसे र्ार सकता था। शांकरजी सतीकी र्त्ृ यक ुे पाश्चात् सर्ादध लगाये िैठे थे। देवताओनां े र्दनको भेजा दक दशवके र्नको क्षजु ध करे । ाआस प्रकारका प्रयत्न र्दनने दकया तो शक ां रजीने ततृ ीय नेत्रकी ज्वालार्ें ाईसे भस्र् कर ददया । ाआससे वे र्दनारर कहे गये । ब्रह्माके ाऄनरु ोधसे और पावमतीके तपसे प्रसन्न होकर ाईन्होंने ाईनका पादणग्रहण दकया। ाआससे स्कन्द ाईत्पन्न हुए। ाईन्होंने तारकासरु को र्ारा। ६. देवता, ाऄसरु ाऄर्तृ प्रादिके दलए क्षीर सागर का र्न्थन करने लगे तो ाईससे पहले हलाहल दवष दनकला । वह दत्रलोकदाहक दवष प्रजापदतगणकी प्राथमनापर दशवने पीकर कण्ठर्ें रख 31

दलया । ाआससे ाईनका कण्ठ नीला पड गया। ाआसीदलए ाईनको नीलकण्ठ कहते हैं। ७. दानवपदत र्यने स्वणम, रौप्य और लोहके तीन नगर िनाये । ये नगर जल, स्थल, ाऄकाशर्ें ाआच्छाके ाऄनसु ार घर्ु ाये जा सकते थे। सहह्ल वषमपर एकिार वे एकत्र होते थे और ाईसी सर्य ाईन्हें नि करना सबभव था । र्यके तीन पत्रु ाआन नगरोंके स्वार्ी हुए । दैत्य दानवों के साथ वे ाईनर्ें रहने लगे । वे चाहे दजस ाअश्रर् या जनपदपर नगर ाईतारकर ाईसे नि कर देते थे । ाआस प्रकार पथ्ृ वी तथा स्वगम र्ें भी दत्रपरु का ाईपद्रव ाअये ददन होने लगा। देवताओ ां की प्राथमनापर शांकरजीने देवर्य रथ, धनषु , िाणादद प्रस्ततु दकया और जि ये नगर परस्पर दर्ले, ाऄपने वाण से ाईन्हें भस्र् कर ददया। ाआससे वे दत्रपरु ारर कहे जाते हैं। ८. भगवान शक ां रके नत्ृ यके सर्य ाईनके डर्रूकी ध्वदनसे सि ाऄक्षर ाईत्पन्न हुए हैं । वे ही ाअदद परुु ष नत्ृ यादद सर्स्त कलाओ,ां सबपणू म दवद्याओ,ां ाऄस्त-शह्ल ज्ञान, र्न्त्र दवद्या ाअददके परर्गरुु हैं। ाईनके पाशपु त ाऄह्लको ाऄर्ोघ कहा जाता है। ९. राजा भागीरथने कदपलकी क्रोधादगनासे भस्र् हुए ाऄपने पवू मज सगरके पत्रु ोंके ाईद्धारके दलए गगां ाजीको पथ्ृ वीपर लाना चाहा । कठोर तपके पश्चात गांगा सन्तिु हुाइ तो प्रश्न ाअया दक ाईनका वेग कौन धारण करे गा? भगीरथ के तपसे तिु शांकरजीने 32

गगां ाको जटाओर्ां ें धारण कर दलया। ाआससे ाईनका नार् गगां ाधर पडा । १०. भगवान शक ां रने जालन्धर, ाऄन्धक, दारुक ाअदद िहुतसे लोक सन्तापक ाऄसरु ों का वध दकया है।1 भगवान नारायणने, श्रीरार्ने तथा श्रीकृष्णने दशवोपासनाकी है । ाऄजमनु ने पाशपु ताह्ल प्रादिके दलए तप दकया । दकरात वेशर्ें पधारकर दशवने ाईनकी शदि परीक्षा ली और ाईन्हें पाशपु ताह्ल ददया। रावण, वाणासरु ाअदद ाऄनेकों ाऄसरु ोंने भगवान दशवकी ाअराधनाकी है । ाईन ाअशतु ोषसे ाऄत्यन्त दल ु मभ वरदान पाये हैं। ाऄनन्त र्दू तम दशवके िहुतसे रूपोंका वणमन तन्त्रोंर्ें है। ाईनर्ें से कुछ र्ख्ु य रूपोंका ाईल्लेख यहााँ दकया जारहा है। १. सदादशव-पञ्चर्ख ु , प्रत्येक र्ख ु दत्रनयन, सिपर चन्द्रर्ा, ये र्ख ु क्रर्शाः श्वेत, पीत, र्ेघवणम, रि तथा र्ौदिकवणम हैं । दसभजु ा हैं, दजनर्ें शल ू , टााँकी, कृपाण,वज्र, खप्पर, सपम, घण्टा, ाऄक ां ु श, पाश तथा वरद र्द्रु ा है। शरीर ाईज्वलवणम है । पद्मासनासीन है।

ाआन सिके दलए लेखकका ाऄन्य दशव चररत' देखना चादहए। 1

33

२.ाइशान- चतभु जमु , शदि-ाआर्रू-ाऄभय-वरर्द्रु ा हस्त, शभ्रु वणम, दत्रलोचन, शदशशेखर, ाइशान ददशार्ें ध्येय हैं। पञ्चर्ख ु दशवका ाइशान र्ख ु भी है। ३. तत्परुु ष-दवद्यज्ु ज्वलवणम, परश-ु र्णृ -वर-ाऄभय र्द्रु ा यि ु चतभु जमु , चतर्ु मख ु , दत्रनेत्र, चन्द्रशेखर हैं । ये पवू म ददशार्ें ध्येय हैं । पञ्चर्ख ु दशवके पवू मर्ख ु का नार् भी तत्परुु ष है। ४. ाऄघोर-ये ाऄिभजु , चतर्ु मख ु , भयांकर दतां , ाऄञ्जन कृष्ण भयावह रूप हैं। हाथों र्ें रुद्राक्षर्ाला, वेद, दत्रशल ू , डर्रू, खङ्ग, सींग, खप्पर, ाऄभयर्द्रु ा है । ये ददक्षण ददशार्ें ध्येय हैं। ददक्षणर्ख ु का नार् भी ाऄघोर है। ५. वार्देव-कांु कुर्वणम, चतर्ु ख मु , दत्रलोचन, सौबयवणम, दस्र्तवदन, वर-ाऄभय-रुद्राक्षवलय-कुठार हस्त चतभु जमु हैं। ाआनका दचन्तन ाईिरर्ें होता है। ाईिरर्ख ु का यही नार् है। ६. सद्योजात-कपमरू गौर, दत्रलोचन, चतर्ु मख ु , हररणरुद्राक्षर्ाला-वर-ाऄभयर्द्रु ायतु चतभु जमु , िालेन्दु र्क ु ु ट, पदश्चर् र्ें ध्येय हैं । पदश्चर् ददशाके र्ख ु का यही नार् है। ७. हरगौरी-दसन्दरू वणम, र्दण र्क ु ु ट, चन्द्रर्ौदल, दत्रनयन, दस्र्तर्ख ु , ददव्याभरण भदू षत, ाऄिभजु , वार् ाईरु पर हाथर्ें कर्ल दलये िैठी पावमती । ८. र्त्ृ यञ्ु जय -सयू म - चन्द्र - ाऄदग्न रूप दत्रलोचन, दस्र्तर्ख ु , एकपर - दिछे - एक दो कर्लोंपर दस्थत, कपमरू गौर, ाऄभयर्द्रु ा 34

पाश - र्गृ - ाऄक्षसत्रू यतु चतभु जमु , ाअभरण भदू षत, चन्द्रर्ौदल, चन्द्रर्ासे झरती ाऄर्तृ धारासे स्नात। ९. र्हेश-दहर्शैल गौर, चन्द्रर्ौदल, दत्रनयन, वीरासनासीन, ाऄभयर्द्रु ा र्गृ तथा गोदर्ें पडे दो कर-चतभु जमु , प्रसन्न र्ख ु , सपामभरण, र्दु नयोंसे दघरे िैठे हैं। १०. ददक्षणा र्दू तम-स्िदटक वणम, चन्द्रशेखर, दत्रनेत्र ाऄर्तृ कलश, ज्ञानर्द्रु ा-दवद्यार्द्रु ा-दत्रशल ू -सपमयतु -चतभु जमु । यह भगवान दशवका ाअचायम रूप है। ११. नीलकण्ठ-िालसयू ामरुण, जटाजटू र्ें चन्द्रर्ा, ाऄदहभषू ण, जपर्ाला - दत्रशल ू - खप्पर - खट्वाङ्गयतु चतभु जमु , दत्रनेत्रयतु पञ्चर्ख ु , व्याघ्राबिर धर, पद्मपर दवराजर्ान । १२. ाऄधमनारीश्वर-दत्रनेत्र, नीलकर्ल कादन्त, पाश-शल ू कपाल-रिकर्ल-कर चतभु जमु , शदशशेखर, ददक्षण भाग परुु ष, वार्भाग गौरी रूप । १३. पशपु दत-र्ध्याह्राकम कादन्त, चन्द्रर्ौदल, भयक ां र ाऄट्टहास करते, दत्रनेत्र, ाऄदहभषू ण, दवखरी जटाएाँ, कर्ल दत्रशल ू तलवार-शदियतु चतभु जमु , भयक ु हैं। ां र दन्त, चतर्ु मख १४. नीलग्रीव-िालसयू ामरुण, दत्रनयन लाल र्ाला, लाल चन्दन, दस्र्तर्ख ु , वरर्द्रु ा-ाऄभयर्द्रु ा-खप्पर दत्रशल ू यतु चतभु जमु , चन्द्रशेखर, नीलकण्ठ हैं। 35

१५. नील लोदहत-नील पवमत सर्ान, चन्द्रर्ौदल, र्ण्ु डर्ाली ददगबिर, पीली जटाएाँ, डर्स-सींग-सङ्ग पाश-ाऄभय-नाग-घटां ाखप्पर-कलश, कर्लयतु दशभजु , भयांकर दाांत, सपामभरण, दत्रलोचन, र्दणर्य नपू रु दकांदकणी धर हैं। १६. चण्डेश्वर–रि वणम, दत्रनेत्र, लालवह्ल, टाांकी, दत्रशल ू , स्िदटक ाऄक्षर्ाला, कर्ण्डलयु तु चतभु जमु , चन्द्रशेखर हैं। रुद्र - १. ब्रह्माजीने सदृ ि कर्मर्ें लगने पर प्रथर् सनकादद कुर्ारोंको ाईत्पन्न करके ाईनसे प्रजासदृ ि करनेको कहा । कुर्ारोंने दपताकी ाअज्ञा स्वीकार नहीं की । ाआससे ब्रह्माको क्रोध ाअया । ाऄपना क्रोध वे रोकने लगे, तभी ाईनके भ्रू र्ध्यसे एक दत्रनेत्र दशशु ाईत्पन्न हुाअ। यह ाईत्पन्न होते ही रोया, ाऄत: ाआनका नार् रुद्र पडा। 'तर्ु क्यों रोते हो?' ब्रह्माने पछ ू ा। 'र्ेरा नार् और रहने का स्थान ितलााआए !' रुद्रने सदृ ि-कतामसे कहा । ब्रह्माने नार्करण दकया-र्न्य,ु र्न,ु ाऊतध्वज, ाईग्ररे ता, दशव, भव, काल, र्दहनस, वार्र्देव, घतृ व्रत और रुद्र । दनवास स्थान ितलाये- ाआदन्द्रयााँ, प्राण, रृदय, ाअकाश, वाय,ु ाऄदग्न, जल, पथ्ृ वी, तपस्या, चन्द्र तथा सयू म । 36

ये पदत्नयााँ दीं- धी, धदृ त, ाईशना, दनयदु त, सदपम, ाआला, ाऄदबिका, ाईर्ा, ाआरावती, सधु ा और दीक्षा । ये रुद्र ११ हैं- १. ाऄज, २. एकपाद, ३. ाऄदहिमध्ु न ४. कृदिवास, ५. ाऄपरादजत, ६. त्र्यबिक, ७. र्हेश्वर ८. वषृ ाकदप, ९. शबभ,ु १०. कपदी, ११. नीललोदहत (ाइश्वर) । दशवकी प्रकृदत एवां र्दू तम-भेद ही रुद्र हैं। ाआन्होंने ब्रह्माकी 'सदृ ि करो' ाआस ाअज्ञासे भैरव, दपशाच, भतू , वैताल, योदगनी ाअददकी सदृ ि की । यह देखकर ब्रह्माने र्ना दकया'ऐसी जगत्सांहारक सदृ िको िन्द करो ! तप करो।' तिसे भगवान रुद्र तपर्ें दस्थत हो गये। दशवका ाऄथम है-कल्याण और वे प्रलयङ्कर हैं । रुद्र हैंरुलाने वाले हैं। सदृ ि और प्रलय ाऄथामत् ब्रह्मा और दशवकी दक्रया साथ साथ चल रही है। एक कण िनता है तो दसू रा र्रता है । शरीरर्ें और ससां ारर्ें भी दनर्ामण और दवनाश साथ साथ हो रहा है। ाआसर्ें दनर्ामण दशव नहीं है। दवनाशका देवता दशव है । वह ाऄशभु को, ाऄर्गां लको,रुग्ण और जीणमको दर्टाता रहता है । सहां ार और र्त्ृ यु र्ें दशवका- र्गां लका हाथ है। ाआसर्ें जगतका दहत है। वेदोंर्ें रुद्र नार्से ही दशवका वणमन है । रुद्री ाऄिाध्यायी ाईन्हींकी स्तदु त है। वे सवमरूप, सवमनार्ा, सवामत्र्क परर्ात्र्ा है। 37

दशव ज्ञानदाता, र्दु िदाता, ाअशतु ोष, र्त्ृ यञ्ु जय हैं । पथ्ृ वीर्ें कै लाश और वाराणसी ाईनके दनत्यधार् हैं। दवरिों, योदगयों एवां परर्ाथमके दजज्ञासओ ु कां े वे परर्ाराध्य, परर्गरुु हैं।

38

सवष्णु दवष्णु भगवान दवष्णु ाऄथवा ाईनसे सबिदन्धत ाऄवतारके ाईपासक वैष्णव कहे जाते हैं। वैष्णवों र्ें र्ख्ु य ४ सबप्रदाय हैं । १. श्री सबप्रदाय-ाआसर्ें ाअदद गरुु लक्ष्र्ीजी हैं। ाआसर्ें दो सबप्रदाय है- श्रीरार्ानजु सबप्रदाय और श्रीरार्ानन्द सबप्रदाय ।२. दशव सबप्रदाय ाआसर्ें ाअदद गरुु भगवान दशव हैं। ाआस सबप्रदायके ाअद्याचायम श्रीदवष्णु स्वार्ी है। ाआस के पाश्चात् श्रीवल्लभाचायमका सबप्रदाय भी ाआसी र्ें है। ३. हसां सबप्रदाय- ाआसके ाअद्याचायम भगवान हसां हैं । श्रीदनबिाकामचायमका सबप्रदाय ाआसर्ें है। ४. शेष सबप्रदाय-ाआसके ाअदद ाअचायम सङ्कषमण हैं । र्ध्वाचायमका सबप्रदाय तथा र्ध्वगौडेश्वर (श्रीचैतन्य र्हाप्रभक ु ा) सबप्रदाय ाआसर्ें है । ाआनके ाऄदतररि श्रीदहत हररवश ां जीका श्रीराधावल्लभ सबप्रदाय और स्वार्ी हररदासजीका सबप्रदाय भी वैष्णव ही है। परर्तत्त्व दत्रपाद-् दवभतू ेश्वरके नार्के सबिन्ध र्ें वैष्णव सबप्रदायोंर्ें दनष्ठाके कारण भेद है। वे श्रीनारायण है, यह श्रीरार्ानजु सबप्रदायका र्त है । ाईनका दनत्य धार् पर-िैकुण्ठ है। ाईनके ही ाऄश ां से प्रत्येक ब्रह्माण्डके ब्रह्मा, दवष्ण,ु र्हेश ाईत्पन्न होते हैं। वे पर-वैकुण्ठादध नाथ चतभु जमु , पीताबिर धारी, गदा-पद्मचक्र-शांख कर हैं। ाईनकी पराशदि श्रीलक्ष्र्ी हैं । वे कौस्तभु कण्ठ, श्रीवत्स लाांछन धारी प्रभु ही परर्ाराध्य एवां र्दु ि दाता हैं। 39

कोदट कोदट ब्रह्माण्डोंकी सदृ ि के दलए वे ही परर्परुु ष कारण वाररर्ें शेष शय्यापर शयन करते हैं । ाआस गभोंदशायी रूपर्ें वे ाऄिभजु हैं । ाईन्हें भर्ू ापरुु ष कहते हैं। एक एक ब्रह्माण्ड र्ें वे ही क्षीरसागरशायी चतभु जमु दवष्णु होते हैं । वही रर्ा-िैकुण्ठ दिहारी हैं। श्वेत दीपर्ें वहीं शक्ु लाबिर धारी, शदशवणम चतभु जमु नारायण हैं। क्षीर-सागरशायी दवष्णु की नादभकर्लसे ब्रह्मा ाईत्पन्न होते हैं । ब्रह्माके भर्ू ध्यसे रुद्र ाईत्पन्न होते हैं। भगवान नारायण ही सदृ ि, दस्थदत, प्रलयके दलए ब्रह्मा, दवष्ण,ु दशव-रूप धारण करते हैं। वहीं सयू मके ाऄदधदेवता नारायण हैं। भिोंकी रक्षा तथा ाऄसरु ोंका सांहार करके धर्मकी स्थापनाके दलए भगवान दवष्णु ही यगु -यगु र्ें ाऄवतार धारण करते हैं। सबपणू म सदृ ि ाईन्हीं दवराट् परुु ष ाऄवयवोंर्ें दस्थत है। भगवान दवष्णु के दस र्ख्ु य ाऄवतार र्ाने जाते हैं। वैसे ाऄवतार २४ हैं। ाईन ाऄनन्त रूपके सर्स्त ाऄश ां -कलावतारोंकी तो सख्ां या ही नहीं है। श्रीरार्के ाईपासकोंके र्तर्ें परर्धार् साके त है। ये दत्रपाद् दवभदू तके ाऄधीश्वर साके त-दिहारी ही परर् प्रभु सवमलोक र्हेश्वर हैं । ाईनकी स्वरूप-भतू ा दनत्य शदि श्रीसीताजी हैं। ब्रह्मा, दवष्ण,ु र्हेश ाईनके ाऄांशभतू हैं। सदृ िर्ें प्रायाः दवष्णु भगवानका ही 40

ाऄवतार होता है; दकन्तु एक कल्पर्ें एक िार वे परात्पर प्रभु स्वयां भी त्रेतार्ें धराधार् पर पधारते हैं। श्रीकृष्णोपासकोंके र्तर्ें परर्धार् गोलोक है। सवमलोकर्हेश्वर श्रीव्रजराज-तनय श्रीकृष्ण हैं। ाईनकी दनत्यशदि श्रीराधा हैं । वे कल्पर्ें एक िार कभी स्वेच्छा से द्रापरान्तर्ें पथ्ृ वीपर पधारते हैं। ाईनकी व्रजलीला ही र्ख्ु यलीला है। द्राररका, र्थरु ा, कुरुक्षेत्रकी लीला तो गौण लीला है। सभी ाऄवतार दवष्णु भगवानके ही प्रायाः होते हैं। ब्रह्मा, दवष्ण,ु र्हेश श्रीकृष्णाांशसे ही ाईत्पन होते हैं । ाआस प्रकार वैष्णवोंर्ें दनष्ठा-भेदसे वैकुण्ठ, साके त एवां गोलोकको परर्धार् र्ाना जाता है। लेदकन काइ िातोंर्ें ये सबप्रदाय एक हैं१. सि ाऄपनेको वैष्णव कहते हैं । २. सि शालग्रार्की पजू ा करते हैं । ३. सि तल ु सी-दल डालकर ाअराध्य को नैवेद्य ाऄदपमत करते हैं। ४. सि ाऄपने ाअराध्यको श्रीवत्स-वक्षा तथा कौस्तभु कांठ र्ानते हैं। अवतार - ाआनर्ें से दशावतार हैं-१. र्त्स्य, २. कच्छप, ३. वाराह, ४. नदृ सांह, ५. वार्न, ६. परशरु ार्, ७. श्रीरार्, ८. श्रीकृष्ण, ९. िद्ध ु , १०. कदल्क । चौिीस ाऄवतारोंकी गणनार्ें ये चौदह और सदबर्दलत होते हैं- १. सनकादद कुर्ार एवां नारद, २. हसां , ३. नर-नारायण, ४. 41

यज्ञ, ५. हरर (गजेन्द्र रक्षक) ६. हयशीषम, ७. धन्वन्तरर, ८. र्ोदहनी, ९. ध्रवु के दलए, १०. पथृ ,ु ११. ाऊषभ, १२. दि, १३. कदपल और १४. व्यास । ाआनर्ें से सनक, सनातन, सनन्दन और सनत्कुर्ार तथा नारद ये पााँच ब्रह्माके पत्रु होनेसे एक ाऄवतार दगने जाते हैं । ाआस प्रकार चौिीस ाऄवतार होते हैं। वैसे सांख्या २५ हैं । ाऄनेकों लोगोंको भ्रर् है दक र्त्स्य, कच्छप, वाराहादद ाऄवतारका क्रर् है। लेदकन प्रथर्ावतार र्त्स्यावतार नहीं है । यह तो चाक्षषु कल्पके ाऄन्त र्ें हुाअ है। ाआसी प्रकार कच्छपावतार वाराह तथा नदृ सांहसे िहुत पीछे सर्द्रु -र्न्थनके सर्य हुाअ है। यहााँ हर् काल-क्रर्से ाऄवतारोंका सांदक्षि पररचय दे रहे हैं। १. सनकासद कुमार- सदृ िकी ाअददर्ें ब्रह्माने ाऄपने र्नसे चार कुर्ारोंको ाईत्पन्न दकया । ाआनके नार् हैं सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुर्ार । स्रिाने ाअज्ञा दी 'सदृ ि करो !' ाआन चारोंने यह ाअज्ञा स्वीकार नहीं की। ये सदा पााँच वषमके िालककी ाऄवस्थाके ही िने रहते हैं। दनत्य ददगबिर और ज्ञानचचाम र्ें लीन रहते हैं। एक िार ये कुर्ार िैकुण्ठनाथके दशमनाथम ाईनके धार् गए । जय-दवजय नार्क श्रीहररके द्रारपालोंने ाआन्हें िालक सर्झकर रोका तो ाआन्होंने ाईन दोनों को तीन जन्र् तक ाऄसरु योदनर्ें जन्र् लेनेका शाप दे ददया। ाआससे वे दहरण्याक्ष-दहरण्यकदशप,ु रावण42

कुबभकणम तथा दशशपु ाल-दन्तवक्र हुए । तीनों जन्र्ोंर्ें भगवानने ाऄवतार लेकर ाईन्हें र्ारा । एक कथा है दक एकिार सार्ने से ाअते ाईर्ा र्हेश्वरको सनकाददने प्रणार् नहीं दकया । तो पावमतीने ाआन लोगोंको ाउाँट हो जानेका शाप दे ददया। एक वषम पश्चात् ाईर्ा-र्हेश्वर दिर ाआनके पास गए। ये चारों ाउाँटके रूपर्ें वक्ष ृ के नीचे ाअनन्दसे िैठे थे। पावमतीने पछ ू ा-'क्या हाल है’ ये िोले-'र्ाता' ाअपने िडी कृपा की । स्नान-शौच का भी झगडा छूट गया। दसर ाईठाकर वक्ष ृ के पिे खा दलए और चाहे जहााँ िैठ गए ।' पावमतीजीको ाऄपना शाप देना व्यथम जान पडा । ाईन्होंने ाआनको शाप-र्ि ु कर ददया । नारदजीको ाआन्होंने प्रथर् भागवत-सिाह सनु ाया है। भगवान शेषके र्ख ु से ये प्रायाः भगवत्कथा सनु ते रहते हैं और दनरन्तर 'हरर शरणर्'् का जप करते रहते हैं। नारद-ाआस शजदका ाऄथम है-ज्ञानदाता । देवदषम नारद ब्रह्माजीके र्ानसपत्रु हैं। ये दनत्य पररव्राजक है। दक्षके पत्रु ों को ाआन्होंने ज्ञानका ाईपदेश करके दवरि िना ददया। ाआससे दक्षने ाआन्हें शाप ददया दक ये एक स्थान पर रुके नहीं रह सकें गे। ाआससे ये दनरन्तर पयमटन करते हैं । दत्रलोकीर्ें सवमत्र ाआनकी ाऄिाध गदत है । देवता और ाऄसरु दोनों ही देवदषम नारदका सबर्ान करते हैं । 43

देवदषम प्रह्राद तथा ध्रवु के गरुु हैं। पावमतीजी भी ाआनको ही गरुु र्ानती हैं। भदिशाह्लके तो ये प्रधान ाअचायम हैं। ाआनका भदि दशमन तथा पाञ्चरात्र सदां हता प्रदसद्ध है। गायन, ज्योदतष ाअदद ाऄनेक दवषयोंके ये ज्ञाता हैं। एक कल्पर्ें नारदजी गन्धवम थे । ब्रह्माजीकी सभार्ें दह्लयोंसे दघरे चले गए, ाऄताः ब्रह्माने ाआन्हें शद्रू होने का शाप ददया । ये दासीपत्रु होकर ाईत्पन्न हुए । ाआनकी र्ाता एक ब्राह्मणकी दासी थी । ाईस ब्राह्मणके यहााँ कुछ सांत चातर्ु ामस्य करने रुके तो नारदने ाईनकी भरपरू सेवा की । र्हात्र्ाओकां ी कृपासे ाआन्हें भदि, वैराग्य तथा भगवन् र्न्त्र दर्ला । ाआनके शैशवर्ें ही सपम काटनेसे र्ाता र्र गयी तो ये दवरि होकर वनर्ें चले गए। वहााँ ाआन्हें रृदय र्ें भगवद्धशमन हुाअ। ाईस शरीरर्ें परू ा जीवन भगवत्स्र्रण कीतमन करके व्यतीत दकया । देह छूटनेपर नवीन सदृ िर्ें ब्राह्माके र्ानसपत्रु रूपर्ें ाईत्पन्न हुए। भगवान नारायणने ाआन्हें वीणा दे दी है। सरु -ाऄसरु जहााँ जो भी दर्ले, दजस तरह भी वह शीघ्र भगवत्प्रादि कर सके , वैसा र्ागम ाईसे नारदजी सझु ा देते हैं। भगवान तथा भगवद-् भिों का यश िहें, ाआसके दलए ाऄनेक िार ये झगडे खडे कर देते हैं। कांसको ाआन्होंने दशश-ु हत्याके दलए प्रेररतकर ददया । ाऄनेक ाऄवसरोंपर भगवान श्रीकृष्णको भी ाआन्होंने ाईलझनर्ें 44

डाला, दकन्तु सदा जीवको शीघ्र भगवत्प्रादि ाऄथवा भदिकी र्दहर्ा प्रकट करना ही ाआनका लक्ष्य रहता है। २.हंस-सनकादद कुर्ार एक िार ब्रह्माके सर्ीप गए। और ाईन्होंने सदृ िकतामसे तत्वज्ञान सबिन्धी प्रश्न दकया। ब्रह्माजी ाईस सर्य सदृ िकर्मर्ें व्यस्त थे, ाऄताः प्रश्नका ाईिर ाईन्हें नहीं सझू ा। ति ध्यान करने पर साक्षात् नारायण हसां के रूपर्ें ब्रह्मलोकर्ें प्रगट हुए और ाईन्होंने सनकादद कुर्ारोंको तत्वज्ञानका ाईपदेश दकया। ३. वाराह- ब्रह्माजी देवता, दपतरादद ददव्य लोकके प्रादणयोंकी सदृ ि करने र्ें लगे थे। ाईसी सर्य पथ्ृ वी जलर्ें डूि गयी। स्वायबभवु र्नक ु ो ाईत्पन्न करके ब्रह्माने ाईन्हें सदृ ि करने को कहा तो ाईन ाअदद र्ननु े पछ ू ा 'र्ेरी सन्तान कहााँ रहेगी?’ ाऄि ब्रह्माजीका ध्यान गया दक पथ्ृ वी तो जलर्ें डूि गयी है। ाईन्होंने भगवान नारायणका ध्यान दकया। सहसा ब्रह्माको छींक ाअयी और ाईनकी नादसकासे नन्हासा वाराह दशशु दनकला । क्षणोंर्ें हो वह वाराह दवशाल काय हो गया। भगवान वाराहने सर्द्रु र्ें डूिी पथ्ृ वीको ाऄपनी दाढ़ पर ाईठाया और लाकर जलके ाउपर स्थादपत दकया। ाआसी सर्य ाअदददैत्य दहरण्याक्ष दददग्वजय करता घर्ू रहा था। देवदषम नारदसे पता पाकर वह भगवान वाराहसे यद्ध ु करने ाअया और द्रन्द्र यद्ध ु र्ें वाराहने ाईसे र्ारा। 45

४-नर-नारायण- प्रजापदत धर्मकी पत्नी र्दू तम देवीसे भगवानने नर-नारायण रूपर्ें ाऄवतार ग्रहण दकया । ये ाईत्पन्न होकर िदररकाश्रर्र्ें तप करने चले ाअये। ाआनके जन्र्की एक कथा और है-भगवान दशवने शरभ रूप धारण करके दन्ताघातसे नदृ सांह को दो खण्डकर ददया। ाईनके शरीरका र्नष्ु याकार भाग नर और दसांहाकार भाग नारायण हो गया। ये दोनों र्हातपस्वी हुए । प्रलयके सर्य ाआनको श्रीसिदषयोंके साथ नौकार्ें िैठकर र्त्स्य भगवानने ाआनकी रक्षाकी । नवीन सदृ ि र्ें भी ये दहर्ालयपर तप ही करने र्ें लगे रहे। तपर्ें लगे नर-नारायणको देखकर देवराज ाआन्द्रको शांका हुाइ दक ये र्ेरा पद न छीन लें। ाऄत: कार् तथा ाऄप्सराओकां ो तपस्या र्ें दवघ्न करने के दलए भेजा गया। नर-नारायणाश्रर्र्ें जाकर ाऄप्सराओकां ी सि चेिा तथा कार्के पञ्चिाण व्यथम हो गये । ाआससे कार् तथा ाऄप्सराओकां ो िडा भय लगा। ाआसी सर्य नारायणने शतश: ददव्य सन्ु दररयााँ प्रगट कीं और कार्से िोले-'तर्ु लोग डरो र्त! ये नाररयाां भी ाऄप्सराएाँ ही है। ाआससे कोाइ एक तर्ु लोग साथ ले जाओ। देवराजको ाईसे र्ेरी ओरसे भेंट दे देना।' वे सि स्वगीय ाऄप्सराओसां े िहुत ाऄदधक सन्ु दर थीं। ाईनर्ें से ाईवमशीको साथ लेकर कार् ाऄपने दल के साथ लौट गया। ाईसने देवराजको नारायणका पराक्रर् सनु ा ददया। 46

र्दन तो ाईवमशीको लेकर चला गया ; दकन्तु जो ाऄप्सराएाँ नारायणने ाईत्पन्न की थीं, वे ाईन्हें ाऄपनेको स्वीकार करने का ाअग्रह करने लगीं । ाऄन्त र्ें नारायणने श्रीकृष्णावतारर्ें ाईन्हें स्वीकार करने का ाअश्वासन ददया। । देवदषम नारदको नारायणने ज्ञानोपदेश दकया है। ाऄन्य भी ाऄनेक ाऊदषयोंके ये ाईपदेिा हैं। ५. कसपल- प्रजापदत कदमर् ाऊदषकी पत्नी स्वायबभवु र्नक ु ी कन्या देवहूदतसे नौ कन्या सन्तान हुाइ। सिसे छोटी सन्तदतसे दशर् पत्रु के रूपर्ें भगवान कदपलने ाऄवतार धारण दकया। र्हदषम कदमर् दवरि होकर, कदपल भगवानसे ाऄनर्ु दत लेकर तपस्या करने वनर्ें चले गये। र्ाता देवहुदतको कदपलने तत्त्वज्ञानका ाईपदेश दकया। र्ाताकी ाऄनर्ु दत लेकर वे भारतके ाअग्नेय कोणपर गगां ासागर स्थानपर ाअये । वहााँ सर्द्रु ने ाईन्हें स्थान ददया । ाईस स्थानपर रहते वे तप करने लगे । ाअसरु र ाऊदषको ाईन्होंने साख्ां य शाह्लका ाईपदेश दकया। राजा सगर के ाऄश्वर्ेध यज्ञका ाऄश्व ाआन्द्रने हरण करके भदू र्के नीचे कदपलाश्रर्र्ें दछपा ददया । सगरके साठ सहस्र पत्रु ोंने पथ्ृ वी ढूांढ ली; दकन्तु ाऄश्व नहीं दर्ला। ति वे भदू र् खोदने लगे । भदू र् खोदते हुए जि वे कदपलाश्रर् पहुचां े तो ाईन्हें वहााँ ाऄपने दपताका 47

ाऄश्व ददखलायी पडा । ाईन्होंने सर्ादधर्ें दस्थत कदपलजीको ही ाऄश्वहताम सर्झा और ाऄह्ल-शह्ल लेकर र्ारने दौड पडे । ाआससे कदपलने नेत्र खोले । ाईनकी रोष-दृदिसे सगर के साठ सहस्र पत्रु भस्र् हो गए। राजा सगरने पीछे ाऄपने पौत्र ाऄश ां र्ु ानको ाऄश्वकी खोजर्ें भेजा। ाऄश ां र्ु ानने कदपलाश्रर् पहुचाँ कर र्हदषम कदपलकी स्तदु त की । कदपलने ाईन्हें ाऄश्व ले जाने को कहा और ितलाया- 'ये भस्र् हुए राजपत्रु गांगाजलके स्पशमसे सद्गदत पावेंगे।' ाऄश ां र्ु ानके पौत्र भगीरथ तप करके गांगाको लाने र्ें सिल हुए और गांगाजलके स्पशमसे सगर-पत्रु ोंका ाईद्धार हुाअ । वह स्थान जो कदपलाश्रर् था, गाांगा-सागर िन गया । ६.ध्रुवके सलए अवतार-स्वयबभवु र्नु के पत्रु र्हाराज ाईिानपादके दो पदत्नयों थीं। ाईनर्ें से िडी रानी सर्ु दतके पत्रु ध्रवु थे । लेदकन राजाका प्रेर् छोटी रानी सरुु दचसे था । ाईन्होंने िडी रानीकी ाईपेक्षा कर रखी थी। एक ददन िालक ध्रवु दपताकी गोद र्ें सौतेले भााइ ाईिर्को िैठे देखकर स्वयां भी िैठने लगे। दवर्ाता सरुु दचने ाईन्हें डााँट ददया'नरे शकी गोद और दसहां ासन र्ेरे पत्रु का है । तझु े वहााँ िैठना है तो र्ेरी कोखसे तप करके जन्र् ले ।’ ध्रवु ाआस ाऄपर्ानसे रोते हुए र्ाताके पास गाए । र्ाताने भी ाईन्हें तप करने का ही ाईपदेश दकया । ाऄत: पााँच वषमकी ाऄवस्थार्ें 48

ही वे घरसे दनकल पडे। र्ागमर्ें देवदषम नारद दर्ले । ाईन्होंने ध्रवु को र्न्त्र ददया । ाईपासना पद्धदत ितलायी और र्धवु नर्ें यर्नु ा तटपर जाकर तप करनेको कहा। ध्रवु ने िहुत कठोर तपस्या की । छठवें र्हीने तो एक पैरसे खडे होकर ाईन्होंने श्वास लेना भी िन्द कर ददया। ाऄन्तर्ें भगवानने प्रगट होकर ाईन्हें दशमन ददया और वरदान ददया दक वे ध्रवु लोकके ाऄधीश्वर, होंगे । सि ग्रह-नक्षत्र ाईनकी प्रददक्षणा करें गे । तपोवनसे लौटनेपर ध्रवु ही दपताके ाईिरादधकारी हुए । ाऄन्त र्ें भगवानके भेजे दवर्ानपर िैठकर वे सशरीर ध्रवु लोक चले गए। ७. दत्त- र्हदषम ाऄदत्र पत्रु -प्रादिके दलए तप कर रहे थे । वे जगत् के स्वार्ीको प्रसन्न करना चाहते थे । ब्रह्मा, दवष्णु और दशव तीनोंने एक साथ ाईन्हें दशमन ददया । और ाऄपने-ाऄपने ाऄश ां से पत्रु होने का वरदान ददया। ब्रह्माजीके ाऄश ुे ां से चद्रर्ा, दवष्णक ाऄश ां से दि और दशवके ाऄश ां से दवु ामसा हुए । ऐसी भी कथा है दक र्हासती ाऄनसु यू ाजीके पदतव्रत की प्रशसां ा सनु कर ाईर्ा, रर्ा, ब्रह्माणी तीनोंने ही ाऄपने ाऄपने पदतयोंसे ाऄनसु यू ाकी परीक्षा लेने का ाअग्रह दकया। तीनों ब्राह्मण वेशर्ें ाऄनसु यू ाजीके यहााँ गए । ाईन्होंने कहा-'हर् भोजन ति करें गे, जि ाअप वह्लहीन होकर परसें।' 49

ाऄनसु यू ाने ाऄपने तपोिलसे ाईन्हें पदहचान दलया। तीनोंको ाऄपने पादतव्रत िलसे दशशु िना ददया। पीछे - ाईर्ा, रर्ा, ब्रह्माणी ाऄपने पदतयों को दढ़ाँू ती पहुचाँ ी तो तीनों ाऄदत्र-ाअश्रर्र्ें दशशु रूपर्ें दर्ले । िहुत प्राथमना करनेपर ाऄनसु यू ाने ाईन्हें पवू म रूपर्ें कर ददया । तभी दत्रदेवोंने ाऄपने ाऄपने ाऄश ां से ाईनका पत्रु होना स्वीकार दकया । भगवान दिात्रेय र्ातगृ भमसे सात ही ददन र्ें िाहर ाअ गए थे। िचपनर्ें ही दवरि होकर योगाभ्यासर्ें लग गए थे । वे योदगयोंके परर् गरुु हैं । कीदतमवीयम सहस्राजमनु ने गरुु दिकी सेवा करके ही ाऄपार शदि तथा सहस्र भजु ाएाँ प्राि की थीं। ाऄलकम को तथा ाऄन्य ाऄनेकों नरे शोंको दिने योगका ाईपदेश दकया था। ाऄनेक िार ाअपदिर्ें देवताओकां ी रक्षा दिने की है और ाऄसरु ोंके औधत्यको शान्त दकया है । गरुु दि परर्हसां वदृ िर्ें रहते हैं । ाऄनेक योग-र्ागोके वे प्रवतमक हैं। नाथ सबप्रदायके तो वे ाअददगरुु र्ाने जाते हैं। ८. पृथु- र्हाराज ाऄगां का पत्रु िेन िहुत ही ाऄधर्ी था । राजा होनेपर ाईसने यज्ञ, देव पजू नादद सि िन्द करवा ददए। जि सर्झानेपर भी वह नहीं र्ाना तो ाऊदषयोंने ाईसे ाऄपनी हुक ाँ ारसे ही र्ार ददया। शासक रदहत देशर्ें दस्यु िढ़ने लगे। यह देखकर 50

ाऊदषयोंने के िेन शरीरका र्थां न दकया । ाईसकी दादहनी भजु ाके र्न्थनसे पथृ ु प्रगट हुए। वेनके ाऄत्याचारसे देश र्ें ाऄकाल पड गया था। वनस्पदत तथा औषदधयोंके िीज नि हो गए थे। पथृ नु े पथ्ृ वी का दोहन दकया। वत्स तथा पात्र-भेदसे देवता, ाऄसरु , र्नष्ु यादद सिने पथृ ु द्रारा भादवत पथ्ृ वीसे ाऄपने ाईपयि ु ाअहार प्राि दकया। पथ्ृ वीके दवषर् भागोंको पथृ नु े सर् दकया, दजससे वषामका जल सर्द्रु र्ें न िह जाय। ाईन्होंने ही पदहले पदहले स्थायी नगर एवां ग्रार्के रूपर्ें लोगोंको िसाया तथा कृदषकी प्रथा चलायी । ाआस प्रकार राज्य की रूप-रे खा दनदश्चत करने के कारण पथृ क ु ो ाअदद राजा कहा जाता है। पथृ नु े ९९ ाऄश्वर्ेघ यज्ञ दकए। सौवें ाऄश्वर्ेध यज्ञर्ें ाईनका यज्ञीय ाऄश्व ाआन्द्रने वेश िदलकर काइ िार चरु ाया और हर िार र्हदषम ाऄदत्रकी सहायतासे पथृ पु त्रु ाऄश्वको ले ाअया । ाऄन्तर्ें जि पथृ ु ाआन्द्र को र्ारने के दलए ाईद्यत हुए तो ब्रह्माने ाईन्हें रोक ददया । ब्रह्माके कहने से पथृ नु े वह यज्ञ ाऄपणू म छोड ददया। ाऄन्तर्ें भगवान दवष्णु ाआन्द्रको साथ लेकर ाअए। ाईन्होंने पथृ ु और ाआन्द्रकी र्ैत्री करादी । दीघम काल तक शासन करके पथृ नु े िनर्ें जाकर योगके द्रारा देह त्यागा । पथृ नु े धररत्री को ाऄपनी पत्रु ी र्ान दलया था ाआसदलए धराका नार् पथ्ृ वी पडा। 51

९-नृससंह- दैत्यराज दहरण्यकदशपु ाऄपने भााइ दहरण्याक्षके वाराह द्रारा र्ारे जानेसे िहुत दाःु खी हुाअ । ाईसने ाऄत्यन्त कठोर एवां दीघमकालीन तप करके ब्रह्माजीसे वरदान प्राि दकया दक वह ाऄह्ल-शह्लसे नहीं र्रे गा । न ददनर्ें र्रे गा-न रादत्रर्ें, न घर र्ें र्रे गा न िाहर, न र्नष्ु य-देवताददसे र्ारा जायगा-न पशक ु े द्रारा। वरदान प्राि करके ाईसने स्वगमपर ाऄदधकार कर दलया । ाऄके ले ही सि लोकपालोंका कायम करने लगा और सि देवतादपतरोंका हव्य-कव्य स्वयां ग्रहण करने लगा । सि देवी-भौदतक शदियााँ ाईसके वशर्ें हो गयी। जि दहरण्यकदशपु तपस्यार्ें लगा था, ति ाईसकी गभमवती पत्नी कपाधक ू ो देवदषम नारदने ाऄपने ाअश्रर् र्ें शरण दी । वहााँ देवदषम ाईसे भगवानका गणु -र्दहर्ा सनु ाते रहे । ाआसका प्रभाव गभमस्थ िालकपर पडा । वह िालक प्रह्राद जन्र्से भगवद-् भि हुाअ। दहरण्यकदशपु दवष्णक ु ा शत्रु हो गया । ाऄपने पत्रु की भगवद-् भदि ाईसे ाऄसह्य थी। ाईसने प्रह्रादको दैत्य कुलोदचत दशक्षा देनेकी व्यवस्था की । ाआसर्ें ाऄसिल होकर प्रह्रादको र्ारनेके ाऄनेकों ाईपाय दकये । दवष, ाईपवास, पवमतसे दगराना, ाऄदग्नर्ें जलाना, सर्द्रु र्ें डुिाना ाऄदद सि ाईपाय व्यथम हो गये। प्रह्राद सिसे िचते गये। ाऄतां र्ें स्वयां दहरण्यकदशपु ाईन्हें र्ारनेको ाईद्यत हुाअ। 52

ाआसी सर्य पत्थरका खबभा िाडकर भगवान नदृ सहां प्रगट हुए। ाईन्होंने सन्ध्याके सर्य, द्रारकी चौखटपर दहरण्यकदशपक ु ो ाऄपनी जघां ापर पटककर नखसे ाईसका पेट िाड ददया। दहरण्यकदशपक ु ो र्ारकर भगवानने प्रह्रादको दैत्यकुलका ाऄदधपदत िनाया। एक कथा ऐसी दर्लती है दक दहरण्यकदशपक ु े र्रने पर भगवान नदृ सांह स्वयां ाईसके दसांहासनपर दवराजर्ान हुए। वे स्वगामददका ाईपभोग करने लगे । देवताओकां ो ाईनका स्थान दिर भी प्राि नहीं हुाअ । दाःु खी देवता ब्रह्माजीके सर्ीप गए । ब्रह्माजी सिको लेकर कै लास गये। ाईनकी प्राथमनासे शांकरजीने जाकर नदृ सांहको सर्झाया- ‘ाअपका ाऄवतार-कायम पणू म हो चक ु ा । ाऄि ाअप ाऄपने ाआस रूपको ाईपसरृां त करलें ।’ नदृ सांहने कहा-'र्ेरा तो ाआस देहसे र्ोह हो गया है। ाअप ही ाआसके ाऄन्त की व्यवस्था करें ।' भगवान दशवने ति शरभका रूप धारण दकया। वे नदृ सांहको ाऄपने पजोंर्ें दिाकर ाईड गए और थोडे यद्ध ु के पश्चात् ाईस नदृ सहां देहके ाईन्होंने टुकडे कर ददये। १०. कच्छप- देवराज ाआन्द्र ऐरावतपर िैठकर कहीं जा रहे थे। र्ागमर्ें र्हदषम दवु ामसा दर्ले । ाईन्होंने ाऄपने कांठकी र्ाला ाआन्द्रको प्रसाद रूपर्ें दी । ाआन्द्रने र्ाला ऐरावतके र्स्तकपर रखी तो हाथीने ाईसे ाईठाकर भदू र् पर डाला और ाईसपर पैर रख ददया। 53

ाऄपने प्रसादका ाऄपर्ान देखकर दवु ामसाने शाप दे ददया । 'तर्ु सि श्रीहीन हो जाओ ।’ देवता ाऊदष शापसे तेजोहीन हो गये। यह सर्ाचार पाकर दैत्योंने स्वगमपर ाअक्रर्ण करके ाऄदधकार कर दलया । देवता दनवामदसत हो गये। परादजत श्रीहीन देवता ब्रह्माको लेकर भगवान दवष्णक ु ी शरण गये । ाईन लीलार्यने ाअदेश ददया 'ाऄसरु ोंसे सदन्ध करो और ाईनको साथ लेकर क्षीरसागरर्ें सि औषदधयााँ डालकर र्न्दराचलको र्थानी तथा वासक ु ी नागको रस्सी िनाकर सर्द्रु र्न्थन करके ाऄर्तृ ाईत्पन्न करो । ाईसे पीकर तर्ु लोग ाऄर्र हो जाओगे ।' ाआन्द्र दैत्यराज िदलके सर्ीप गये । ाईन्होंने सर्द्रु र्थां नका प्रस्ताव दकया । ाऄर्तृ के लोभसे दैत्य ाईद्यत हो गये । देवतादैत्योंने र्न्दराचलको ाईखाड तो दलया, दकन्तु ढोकर ला नहीं सके । ति भगावानने स्वयां पवमतको गरुडकी पीठपर रखा और ाईसे सर्द्रु तटपर ले ाअए । देवता-दैत्य र्न्दराचलको क्षीर-सागरर्ें डालने लगे। वह भारी पवमत रुके कै से? वह सर्द्रु र्ें डूिने लगा । ति भगवान दवष्णनु े दवशाल कच्छपका रूप लेकर पवमतको ाऄपनी पीठपर धारण दकया। 54

११. धन्वन्तरर- देवता तथा ाऄसरु ोंके सदबर्दलत प्रयत्नसे सर्द्रु -र्न्थन होने लगा । पदहले ाईससे हलाहल दवष दनकला। प्रजापदतयोंकी प्रथमनापर ाईसे भगवान शक ां रने पीकर कण्ठर्ें धारण कर दलया । ाआसके िाद सर्द्रु से ग्यारह पदाथम और दनकले१. कार्धेनु गौ, २. लक्ष्र्ीजी, ३. ाईच्चे:श्रवा ाऄश्व ४. ऐरावत, ५. ाऄप्सराएाँ, ६. वारुणी ७. कौस्तभु र्दण ८.शांख, ९. कल्पवक्ष ृ , १०. चन्द्रर्ा ११. के ला । ाआन सिके ाऄन्तर्ें एक श्यार्वणम, कर्ललोचन, चतभु जमु परुु ष सर्द्रु सें हाथोंर्ें ाऄर्तृ कलश दलये प्रगट हुाअ। ये ाअयवु ेदके प्रवतमक भगवान धन्वन्तरर थे । भगवान धन्वन्तररका दनवास स्वगमर्ें था। एक िार रोगोंसे पीदडत प्रादणयोंको देखकर ाआन्द्रने ाआनसे पथ्ृ वीपर ाऄवतीणम होनेकी प्राथमनाकी । कादशराजने पत्रु प्रादिके दलए तप भी दकया था । ाऄताः ये ाईनके पत्रु रूपसे ाईत्पन्न हुए। यहााँ ाआनका नार् ददवोदास पडा । कठोर तप करके सदृ िकताम ब्रह्माजीको ाआन्होंने प्रसन्न दकया। ब्रह्माने ाऄपनी सदृ िके पदाथोंका गणु -धर्म, ाआन्हें, ितलाया । ति ाआन्होंने ाअयवु ेद शाह्लका प्रणयन दकया । १२. मोहनी- सर्द्रु -र्न्थनके सर्य जि धन्वन्तरर ाऄर्तृ कलश दलए प्रगट हुए तो दैत्योंने ाईनके हाथसे वह कलश छीन 55

दलया । देवता तो हताश हो ही गए, दैत्योंर्ें भी कलह प्रारबभ हो गया दक ाऄर्तृ पदहले कौन पीवे और दकतना पीवे । ाआसी सर्य भगवान दवष्णु र्ोदहनी रूप धारण करके प्रगट हुए। ाईनका ाऄकल्पनीय सौन्दयम देखकर दैत्य र्ोदहत हो गए। ाईन्होंने र्ोदहनीसे कहा-'ाअप यह ाऄर्तृ हर् दैत्य-देवताओर्ां ें दवतररत करदें । हाँसकर र्ोदहनी िोलीं- 'र्ैं ाईदचत-ाऄनदु चत जैसे भी ाआसे दवतररत करूाँ, ाअप सि िीचर्ें िाधा न दें तो र्ैं यह कायम करूाँगी ।' ाऄसरु ोंने यह िात स्वीकार करली । र्ोदहनीने देव-दैत्य दोनोंकों पथृ क-पथृ क पांदिर्ें िैठाया । वे दैत्य-पांदिके सर्ीप चल रही थीं; दकन्तु ाऄर्तृ देवताओकां ों दपला रही थीं। देवताओकां ी पदां िके ाऄतां र्ें राहु जा िैठा। वह ाऄर्तृ पीने लगा तो सयू म-चन्द्रने सक ां े त दकया दक यह देवता नहीं है। भगवान दवष्णु ाऄपने परुु ष रूपर्ें प्रगट हो गए । ाईन्होंने राहुका दसर चक्र से काट ददया; ाऄर्तृ पीनेसे वह ाऄर्र हो गया था । दसर राहु और धड के तु हुाअ । भगवान दशवको जि दवष्णु भगवानके र्ोदहनी रूप धारणका पता चला तो वे पावमतीके साथ वैकांु ठ गये । ाईन्होंने दवष्णु भगवानसे ाईनका नारी रूप देखनेकी ाआच्छा प्रगट की । ाईनकी िात स्वीकार करके भगवान दवष्णु ाऄतां दहमत हो गए । 56

थोडी ही देरर्ें एक ाऄपवू म नारी प्रगट हुाइ। वह गेंद ाईछाल रही थी। ाईसका सौन्दयम देखकर शक ां रजीको तनकी भी सदु ध नहीं रही । वे र्ोदहनीको देख ही रहे थे दक वायक ु े झोंके से ाईसकी साडी ाईड गयी । वह्लहीन होकर वह वक्ष ृ ोंके पीछे दछपने दौडी । शांकरजी िेसधु हुए र्ोदहनीकी ओर दौडे, ाईन्होंने ाईसे एक िार दोनों भजु ाओर्ां ें पकड भी दलया; दकांतु ाऄपनेको छुडाकर वह भागती रही । दशव ाईसके पीछे दौडते रहे । ाऄनेक पवमतों, ाअश्रर्ोंर्ें वे दौडते गए । ाऄन्तर्ें रे तस्खलन होनेपर ाईन्हें सावधानी हुाइ। भगवान दवष्णु भी परुु ष रूप धारण करके प्रगट हो गये । दशवने र्ोदहनीका स्पशम दकया था, ाआससे र्ोदहनीको ाईसी सर्य एक पत्रु हुाअ । ाआस पत्रु का दादहना भाग दशवके सर्ान और िायााँ ाअधा शरीर दवष्णक ु े सर्ान होनेसे ाआसको हररहर कहा गया । ददक्षण भारतर्ें हररहरके र्दन्दर काइ स्थानोंर्ें हैं । १३- वामन- ाऄर्तृ पीकर देवता ाऄर्र हो गए थे । ाईन्होंने यद्ध ु र्ें ाऄसरु ोंको परादजत कर ददया । ाआन्द्रने वज्रसे दैत्यराज िदलको र्ार ही ददया । दैत्योंका ाईन्र्ल ू न करनेसे देवदषम नारदने देवताओकां ो रोक ददया। यद्ध ु र्ें िचे दैत्य िदलका तथा ाऄन्य सिका शव तथा ाऄगां लेकर ाऄस्ताचलपर चले गये । वहााँ देत्यगरुु शक्र ु ाचायमने यद्ध ु र्ें र्ारे गये सभी दैत्योंको सांजीवनी दवद्याके द्रारा जीदवत कर ददया । 57

जीदवत होकर िदल सच्ची श्रद्धासे शक्र ु ाचायमकी सेवा करने लगे। ाआसपर प्रसन्न होकर ाअचायमने ाईनसे यज्ञ कराया । यज्ञादग्नसे िदलके दलए ददव्य रथ, धनषु , त्रोण, कवच दनकले । ाईनसे ससु ज्ज होकर दैत्यसेनाको साथ दलये िदलने ाऄर्रावतीपर चढ़ायी कर दी। दैत्योंके तेजको देखकर ाआन्द्र डर गये। देवगरुु वहृ स्पदतकी सलाहसे देवताओनां े स्वगम छोड ददया ओर जहाां तहााँ भाग गए । स्वगमपर िदलका ाऄदधकार हो गया। देवर्ाता ाऄदददत ाऄपने पत्रु ोंके दनवामसनसे िहुत द:ु खी हुाइ। ाईन्होंने ाऄपने पदत र्हदषम कश्यपको प्रसन्न दकया । र्हदषमके ाअदेशके ाऄनसु ार पयोव्रत करके ाईन्होंने श्रीहररकी ाअराधना की । भगवानने ाईन्हें दशमन ददया और ाईनके पत्रु रूपर्ें ाऄवतोणम होनेका वरदान ददया । भगवान ाऄदददतके पत्रु रूपर्ें ाऄवतीणम तो ाऄपने चतभु जमु रूपसे ही हुए; दकन्तु तत्काल ाईन्होंने वार्न रूप धारण कर दलया । र्हदषम कश्यपने ाईनका यज्ञोपवीत सस्ां कार कराया । दैत्यराज िदलने स्वगमपर ाऄदधकार कर दलया तो दैत्यगरुु शक्र ु ाचायम ने ाईन्हें सौ ाऄश्वर्ेध यज्ञ करनेका ाअदेश ददया; क्योंदक ाआद्रां का पद वैधादनक रूपसे सौ ाऄश्वर्ेध-यज्ञ करनेवालेका स्वत्व है । िलसे पानेपर वह दछन जा सकता है। नर्मदाके ददक्षण तटपर िदलकी यज्ञशाला िनी । ाईन्होंने ९९ यज्ञ दनदवमघ्न पणू म दकए । 58

िदलका ाऄदन्तर् यज्ञ चल रहा था ति ब्रह्मचारी वेशर्ें वार्न भगवान ाईनकी यज्ञशालार्ें पहुचाँ े । ाईनका तेज ाऄपवू म था। िदल तथा सभी ाऊदषयोंने ाईनका पजू न सत्कार दकया । िदलने ाईनसे ाऄभीि वस्तु र्ााँग लेनेकी प्राथमना की । वार्नने कहा- ‚र्झु े ाऄपने पदोंसे तीन पद भदू र्की ाआच्छा है ।‛ िदल हाँसे। ाईन्होंने वार्नसे यथेि भदू र् र्ााँगनेको कहा । वार्नने कह ददया-‚र्ैं तीन पदसे ही सन्तिु हू।ाँ ाऄदधकका लोभ र्झु े नहीं है ।‛ जि भदू र्दानका िदल सांकल्प करने लगे तो ाअचायम शक्र ु ने रोका । सदू चत दकया दक ये र्ायावी दवष्णु हैं । दकन्तु र्हार्नस्वी िदलने देनेकी िात कहकर ाऄस्वीकार करना ाईदचत नहीं र्ाना । भदू र्दानका सक ां ल्प होते ही वार्न भगवानने दवराट रूप धारण कर दलया । ाईन्होंने एक पदर्ें परू ी पथ्ृ वी र्ाप ली। दसू रा पद ब्रह्मलोकसे ाउपर जा पहुचाँ ा। ाईस ाउपर ाईठे पद नखसे ब्रह्माण्डावरण थोडा टूट गया। ाआससे वाह्मजलधारा चरणपर होती ब्रह्माण्ड र्ें ाअयी। ब्रह्माने ाईस पद का प्रक्षालन दकया । दवराट प्रभक ु ा वही पादोदक सरु सरर िना । िदलके ाऄनचु र दैत्य वार्नको र्ारने ाईठे तो दवष्णु पाषमदों ने ाईन्हें र्ार कर खदेड ददया । िदलको भगवानने वरुणपाशर्ें िााँध दलया और िाले-‘तनू े तीन पद भदू र् दी है । िता, तीसरा पद कहााँ रख?ाँू ' 59

दिना हतप्रभ हुए िदलने कहा-"सबपदिकी ाऄपेक्षा सबपदि का स्वार्ी िडा होता है । ाअप ाऄपना तीसरा पद र्ेरे र्स्तकपर रखें ।" भगवानने तीसरा पद िदलके र्स्तकपर रखकर ाईन दैत्यराजके सांकल्पको सत्य कर ददया । ब्रह्माने प्राथमना की-"ाआतने र्हान दाताको िन्धन नहीं दर्लना चादहए ।" भगवान िोले-"र्ैं तो ाआसपर कृपा करने ाअया हूाँ ।" ाईन्होंने िादल को ाऄपने पररवार एवां पररकरोंके साथ सतु ल जानेकी ाअज्ञा देते हुए कहा-"वहााँ र्ैं गदा दलये सदा तबु हारे द्रारपर ाईपदस्थत रहूगां ा । तबु हारी ाअज्ञा न र्ानने वाले दैत्योंको र्ेरा चक्र र्ार देगा । र्ैं तबु हारी सि ओरसे रक्षा करूाँगा और ाअगार्ी सावदणम र्न्वन्तरर्ें र्ैं स्वयां तर्ु को ाआन्द्र िनााउाँगा ।" भगवानकी ाअज्ञासे िदल दैत्यों के साथ सतु ल लोक चले गए । ब्रह्माजीने वार्न भगवानका ाईपेन्द्र पदपर ाऄदभषेक दकया । रावण जि दददग्वजय करता हुाअ सतु ल पहुचाँ ा भगवान वार्नने ाईसे ाऄपने चरणसे गेंदकी भााँदत काइ सहस्र योजन दरू िें क ददया था । १४. ऋषभ देव- र्हाराज नादभके कोाइ पत्रु नहीं था । ाईन्होंने ाऊदषयों के साथ भगवान नारायणकी ाअराधना की । यज्ञर्ें जि भगवान प्रगट हुए तो ाऊदषयोंने ाईनकी स्तदु त कर के राजाके 60

ाईनके जैसा ही पत्रु हो, यह वरदान र्ागां ा । ाऄपने जैसा दसू रा भगवान कहााँसे लाते । ाईन्होंने स्वयां नादभका पत्रु होना स्वीकार दकया । भगवानने र्हाराज नादभके पत्रु रूपर्ें ाऄवतार ग्रहण दकया । यहााँ ाईनका नार् ाऊषभ पडा । एक िार ाआन्द्रने देशर्ें वषाम िन्द कर दी तो ाऊषभदेव भगवानने ाऄपने योगिलसे वदृ िकी । ाआस पराजयसे लदज्जत ाआन्द्रने ाऄपनी पत्रु ी जयन्तीका दववाह ाऊषभदेवजीसे कर ददया । र्हाराज नादभके तपोवन जानेपर ाऊषभदेवजी ाऄयोध्या नरे श हुए । ाईनके सौ पत्रु हुए । ाआनर्ें से नौ र्हायोगेश्वर हुए । नौ देश के नौ खण्डोंके शासक हुए । ८१ दवशद्ध ु कर्म करके ब्राह्मण हो गए । ज्येष्ठ पत्रु भरत ाआस देशके सम्राट हुए । ाईनके कारण ही देशका नार् भारतवषम हुाअ । ाईससे पवू म देशका नार् ाऄजनाभवषम था । लोग भ्रर्से ही भारतवषम नार्का कारण शकुन्तलाके पत्रु भरतको र्ानते हैं । भरतको सम्राट पद देकर भगवान ाऊषभदेव दवरि होकर ददक्षण भारतके वनों र्ें ाऄवधतू वेशर्ें घर्ू ने लगे । ाईन्होंने ाऄनेक प्रकारकी योगचयाम ाऄपनाकर लोकर्ें ाईनका ाअदशम ाईपदस्थत दकया । जैन सबप्रदायका ाअरबभ ाऊषभदेवजीसे र्ाना जाता है । जैन ाआनको ाअददनाथ-प्रथर् तीथंकर कहते हैं । 61

१५. यज्ञ- प्रथर् स्वायबभवु र्नु दीघमकाल तक शासन करके ाऄन्त र्ें दवरि होकर पत्नीके साथ वनर्ें जाकर तप करने लगे । ाईस सर्य भख ू े राक्षस र्नक ु ो खानेके दलए दौडे । भगवान ने यज्ञ रूपर्ें ाऄवतार धारण करके ाईन राक्षसोंको र्ारा । १६. हरर- चतथु म तार्स नार्क र्न्वन्तरर्ें हररर्ेधा ाऊदषकी पत्नी हररणीसे भगवानने ाऄवतार दलया । ाआनका नार् यहााँ हरर पडा । ाआन्होंने गजेन्द्रका ाईद्धार दकया था । कथा ाआस प्रकार हैक्षीर सागरके र्ध्य दत्रकूट पवमतपर वनके र्ध्य र्ें दवशाल सरोवर था । एक ददन हादथयोंका दल ाईसर्ें जल-पीकर जलक्रीडा करने लगा तो दलके यथू पदतको र्गरने पकड दलया । ग्राह जल र्ें खींचता था और गजेन्द्र िाहर दनकलना चाहता था । साथके हादथयों की सहायता भी कार् नहीं ाअयी । ग्राह और गजेन्द्र का यह सघां षम िहुत ददन चला । ाऄन्तर्ें गजेन्द्र दशदथल पडने लगा । वह डूिनेके सर्ीप पहुचाँ गया । पवू म जन्र्र्ें गजेन्द्र राजा ाआन्द्रद्यबु न था । वह ाईपासनार्ें लगा था दक र्हदषम ाऄगस्त्य वहााँ ाअ गए । राजाने ाईठकर प्रणार् नहीं दकया, ाआससे ाऊदषने गजयोदनर्ें जन्र् लेनेका शाप दे ददया । डूिनेका भय होनेपर गजेन्द्रको पवू मजन्र्की भदिके कारण भगवानका स्र्रण हुाअ । ाईन्होंने एक कर्ल पष्ु प सांडू र्ें तोडा और भगवानको पक ु ारा । 62

गजेन्द्रकी पक ु ारपर गरुडपर चढ़कर श्रीहरर तरु न्त ाअए और ाईन्होंने ाऄपने चक्रसे ग्राहका र्स्तक काट ददया । सडांू पकडकर गजेन्द्रको जलसे िाहर दनकाल ददया । भगवानके स्पशमसे गजेन्द्रको ददव्य भगवत्पाषमद शरीर प्राि हो गया । १७. मत्स्य- चाक्षषु र्न्वर्न्तरके ाऄन्तर्ें द्रदवड देशके नरे श सत्यव्रत एक ददन कृतर्ाला नदी र्ें स्नान करके तपमण कर रहे थे । सहसा ाईनकी ाऄञ्जदलर्ें एक सनु हली छोटी र्छली ाअयी । राजाने ाईसे नदीके जल र्ें डाल ददया । ाआसपर र्ानव भाषार्ें वह र्छली िोली-"राजन! र्ैं तो ाअपकी शरणर्ें ाअयी हूाँ । नदी र्ें िडे जल जीव र्झु े खा लेंगे । ाऄताः र्झु े यहााँ र्त छोदडए ।" राजाने र्छलीको ाईठाकर कर्ण्डलर्ु ें डाल दलया; दकन्तु ाऄपनी कुदटयापर पहुचां े तो वह र्छली ाआतनी िडी हो गयी थी दक कर्ण्डलु र्ें दहल नहीं सकती थी । राजाने ाईसे एक नादां र्ें डाला । लेदकन वह र्छली तो ाऄकल्पनीय शीघ्रतासे िढ़ रही थी । नादां से कांु डर्ें, कांु डसे सरोवर र्ें और वहााँसे ाईसी नदी र्ें डाला गया । जि नदी भी ाईसके शरीरसे भर गयी तो राजाने ाईसे सर्द्रु र्ें डलवाया । वह र्हार्त्स्य िोला-"राजन् ! सर्द्रु र्ें र्झु े र्गर खा जायगे । ाअप र्झु शरणागतका त्याग क्यों कर रहे हैं?" ाऄि राजा सत्यव्रत चौंके । ाईन्होंने कहा-"ाअप जैसा पराक्रर्ी और शीघ्र िढ़ने वाला जलचर कभी दकसीने न देखा है, 63

न सनु ा है । ाऄवश्य ाअप र्ायापदत श्रीहरर है । कृपा करके यह ितलायें दक ाअपने यह रूप क्यों ग्रहण दकया है और ाऄपने वचनोंसे र्झु े क्यों भ्रर्र्ें डालने का प्रयत्न कर रहे हैं?" र्हार्त्स्यने ाईिर ददया-"तर्ु ठीक कहते हो । र्ैं तर्ु पर कृपा करने के दलए तबु हारे सार्ने ाअया हूां । ाअजसे सातवें ददन सर्द्रु सबपणू म पथ्ृ वीको पवमतोंके साथ डुिा देगा । सयू म-चन्द्रादद भी नहीं रहेंगे । तर्ु ाऄभीसे सर्स्त प्रादणयों के जोडे एक-एक, औषदध, और िलाददके िीज एकत्र करलो । सातवें ददन सर्द्रु िढ़ने पर एक र्हानौका यहााँ स्वयां ाअवेगी । नागराज वासक ु ी तथा सिदषम ाईसर्ें होंगे । तर्ु प्रादण, एवां िलौषदध िीज ाईस नौकार्ें रखकर स्वयां भी िैठ जाना । र्ैं एक शांगृ धारी होकर ाअाउाँगा । वासक ु ी नागके द्रारा नौका र्ेरे सींगर्ें िााँध देना । ाईस नौकाको लेकर प्रलयकाल पयमन्त र्ैं प्रलय सर्द्रु र्ें घर्ू ता रहूगाँ ा ।' राजा ाअज्ञा-पालनर्ें लग गये । वह र्त्स्य ाईस सर्य सर्द्रु र्ें चले गये । सातवें ददन सर्द्रु िढ़ा । नौका ाअ गयी । सि िीज रखकर राजा सिदषयोंके साथ नौकार्ें िैठे । ाईसी सर्य भगवान र्त्स्य एक पवमताकार शगांृ धारी रूपर्ें ाईपदस्थत हुए । वासक ु ी नागके द्रारा नौका ाईनके सींगर्ें िाधां दी गयी । प्रलय सर्द्रु र्ें के वल र्त्स्य भागवानकी देह-कादन्तका ही प्रकाश था । ाईस सर्य राजा सत्यव्रतके पछ ू नेपर भगवान र्त्स्यने राजाको सबपणू म र्त्स्य-परु ाणका ाईपदेश दकया । प्रलय काल 64

सर्ाि होनेपर सर्स्त िीजोंको प्रलय-सर्द्रु से दनकली भदू र्पर राजाने स्थादपत दकया । यही राजा सत्यव्रत वतमर्ान र्न्वन्तर र्ें सयू म के पत्रु वैवस्वत र्नु हुए । १८. हयर्ीषश- प्रलयके सर्य ब्रह्माका ददन सर्ाि हो रहा था । ये रादत्रर्ें नींद लेने लगे तो ाईनके सर्ीप दस्थत दैत्य हयग्रीवने वेदोंका हरण कर दलया और प्रलय सर्द्रु र्ें दछप गया । सदृ िकाल ाअनेपर भगवान र्त्स्य ने राजा सत्यव्रतको सर्द्रु से दनकली भदू र्पर ाईतार ददया । ाआसके पश्चात् ाईन्होंने हयशीषम रूप धारण दकया और सर्द्रु र्ें दछपे ाऄसरु हयग्रीवको र्ारा । ब्रह्माजीने सदृ िके प्रारबभर्ें जागनेपर वेदोंकी प्रादि के दलए भगवानकी स्तदु त की और यज्ञ करने लगे । ाईस यज्ञ र्ें दनदखल वेदर्य वपु धारण दकये भगवान हयशीषम प्रगट हुए । ाईनके श्वाससे सबपणू म वेद प्रगट हुए । ब्रह्माने भगवान हयशीषमके श्वाससे ाईद्भूत वेदोंका धारण दकया । ाआसीसे 'र्स्य दनाःश्वदसतां वेदााः' कहा जाता है । १९. परर्ुराम-र्हदषम यर्ददग्नके कदनष्ठ पत्रु रूपर्ें भगवानने ाऄवतार ग्रहण दकया । ाआनका नार् रार् था । परशु ाआनका दवशेष ाऄह्ल था, ाआसदलये ाआन्हें परशरु ार् कहा जाता है । र्हदषम यर्ददग्नकी ाअज्ञासे ाईनकी पत्नी रे णक ु ा नदीसे जल लाने गयी । वहााँ गन्धवमराज दचत्ररथ ाऄपनी दह्लयोंके साथ जलदवहार कर रहे थे । ाऊदषपत्नीके र्नर्ें दवकार ाअया । वे ाईस 65

क्रीडाको देखने र्ें लगी तो देरर्ें जल लेकर लौटीं । ाऊदषने पत्नीकी र्ानदसक च्यदु तको सर्झ दलया । ाईन्होंने पत्रु ोंको ाअज्ञा दी-'ाआसे र्ारदो !’ दकसी पत्रु ने ाअज्ञापालन नहीं दकया; दकन्तु परशरु ार्जीने दपताकी ाअज्ञासे र्ाता तथा भााआयोंको भी र्ार ददया । ाआससे प्रसन्न होकर दपताने जि वरदान र्ाांगने को कहा तो सिके जीदवत हो जानेका वरदान र्ाांगकर सिको जीवन दे ददया । एक िार दैत्यराज सहस्राजमनु सेना सदहत यर्ददग्न ाऊदषका ाऄदतदथ हुाअ । कार्धेनक ु े प्रभावसे ाऊदषने सबपणू म सेनाका भव्य ाअदतथ्य-सत्कार दकया। यह चर्त्कार देखकर ाऄजमनु ने ाऊदषसे वह गौ र्ाांगी । ाऊदषके ाऄस्वीकार करनेपर िलपवू मक गौको छीन ले गया । ाईस सर्य परशरु ार् ाअश्रर्र्ें नहीं थे । लौटनेपर ाऄि ाईन्होंने ाऄजमनु का ाऄपकर्म सनु ा तो परशु लेकर र्ादहष्र्ती परु ी पर चढ़ गये । यद्ध ु र्ें ाऄके ले परशरु ार्ने सहस्राजमनु तथा ाईसकी सेनाको र्ार ददया और दपताकी गौ लौटा लाये । सहस्राजमनु के पत्रु यद्ध ु से भाग गए थे । एक ददन जि परशरु ार् वनर्ें गये थे, वे सि ाअये और सर्ादधर्ें िैठे र्हदषम यर्ददग्नका दसर काट ले गये । लौटनेपर परशरु ार् को िडा क्रोध ाअया । वे एक ओरसे क्षदत्रयर्ात्रका सांहार करने र्ें जटु गए । 66

गभमस्थ िालक और कुछ दछपे-दछपाये क्षदत्रय िचे । शेष सिको र्ारकर परशरु ार्जीने यज्ञ दकया और भदू र् ाऊदषयों को दे दी । ाऊदष राज्य-शासन तो करते नहीं । ाईन्होंने दिर क्षदत्रयों को राज्य ददया । परशरु ार् दिर क्षदत्रयोंका वध करने लगे । ाआस प्रकार ाआक्कीस िार परशरु ार्ने क्षदत्रय-सांहार दकया । कुरुक्षेत्रर्ें यज्ञ करके दपताका र्स्तक ाईनके शरीरसे लगाकर ाईन्हें जीदवत कर ददया और सिदषम र्ांडल र्ें स्थान ददलाया । ाआक्कीसवीं िार पथ्ृ वीको दनाःक्षदत्रय करके जि परशरु ार्जीने भदू र् र्हदषम कश्यपको दी तो कश्यपने कहा-"ाऄि तर्ु र्ेरी भदू र्पर कभी रादत्र र्त व्यतीत करना ।" ाआससे परशरु ार्जी ददक्षण-भारतर्ें पदश्चर् सर्द्रु तट पर गये और सर्द्रु से ाईन्होंने भदू र् प्राि की । पदश्चर् सर्द्रु तटीय भदू र् परशरु ार्जी द्रारा सर्द्रु से दनकाली है । वे वहीं रहकर तप करने लगे । द्रापरर्ें भीष्र् दपतार्हको परशरु ार्ने ाऄह्ल-दशक्षा दी; दकन्तु जि ाआन ाऄह्ल-गरुु की ाअज्ञापर भी भीष्र्ने कादशराज की पत्रु ी ाऄबिासे दववाह करना स्वीकार नहीं दकया तो परशरु ार्ने धनषु ाईठाया । गरुु -दशष्य दोनों ाऄजेय थे । लगातार काइ ददन यद्ध ु हुाअ । ाऄन्त र्ें ाऊदषयों ने परशरु ार्जीको सर्झाकर शान्त दकया । ाईसी सर्य परशरु ार्ने क्षदत्रयको ाऄह्ल दशक्षा न देने का प्रण दकया । 67

कणमने ाऄपने को ब्राह्मण ितलाकर परशरु ार्जीसे ाऄह्ल दशक्षा प्राि की । एक ददन कणमकी जघां ापर र्स्तक रखकर परशरु ार् सोये थे । एक कीडा कणम की जघां ाका र्ासां काटने लगा । कणम दस्थर िैठा रहा । जागकर परशरु ार्ने पछ ू ा- 'तू कौन है? ाआतना धैयम ब्राह्मणर्ें सबभव नहीं ।' कणमके सत्य प्रगट कर देनेपर ाआन्होंने कहा-'ये ाऄह्ल प्राण सांकट ाअनेपर तबु हें दवस्र्तृ हो जायाँगे ।' भगवान परशरु ार् ाऄर्र हैं । कदल्क ाऄवतार होनेपर वे भगवान कदल्कको ाऄह्ल-दशक्षा देंगे और ाअगे र्न्वतरर्ें सिदषमर्ें होंगे । २०-श्रीराम- र्यामदा परुु षोिर् श्रीरार् का चररत लोकप्रदसद्ध है ।2 रघक ु ु ल र्ें चक्रवती र्हाराज दशरथ के पत्रु ेदि यज्ञ करनेपर ाईनकी ज्येष्ठा रानी कौशल्यासे श्रीरार्, र्ध्यर्ा रानी सदु र्त्रासे लक्ष्र्ण और शत्रघ्ु न तथा छोटी रानी कै के यीसे भरतका प्रादभु ामव हुाअ । र्हदषम दवश्वादर्त्र यज्ञ-रक्षाथम श्रीरार्, लक्ष्र्णको र्हाराजसे र्ागां ले गए । ाआस यात्रार्ें ताडका-सिु ाहुको श्रीरार्ने र्ार ददया । र्ारीचको सौ योजन दरू सर्द्रु तट पर िें क ददया । यज्ञ-रक्षा करके सबपणू म श्रीरार्-चररत लेखककी पस्ु तक 'रार्-चररत' एवां ‘शत्रघ्ु नकुर्ारकी ाअत्र्कथा’ र्ें है । 2

68

ाऊदषके साथ दर्दथला जाते हुए शापवश दशला हुाइ गौतर्-पत्नी ाऄहल्याका ाईद्धार दकया और जनकपरु र्ें दशव-धनषु भगां करके र्हाराज जनककी ाऄयोदनजा कन्या सीतासे दववाह दकया । शेष तीनों भााआयों का दववाह भी जनकपरु र्ें ही हुाअ । र्हाराज दशरथ श्रीरार्को यवु राजपद देने को ाईद्यत हुए तो छोटी रानी कै के यीने ाऄपने पत्रु भरतके दलए राज्य तथा श्रीरार्के दलए चौदह वषम का वनवास र्ााँगा । श्रीरार्के साथ सीता तथा लक्ष्र्ण भी वनर्ें गए । र्हाराज दशरथने रार्-दवयोगर्ें शरीर छोड ददया । यह सि ति हुाअ, जि भरत नदनहाल र्ें थे । लौटकर ाईन्होंने दपताकी ाऄन्त्येदि की । श्रीरार्को लौटाने वनर्ें गए, दकन्तु जि रार् नहीं लौटे तो ाईनकी पादक ु ा ले ाअए । ाऄयोध्याके दसहां ासनपर पादक ु ा रखकर वे तपस्वी िनकर रहने लगे । वनर्ें ाऊदषयोंसे दर्लते, किन्धाददका वध करते श्रीरार् पञ्चवटी पहुचां े । यहााँ रावणकी िदहन शपू मणखा दर्ली । ाईसका दववाह-प्रस्ताव न श्रीरार्, स्वीकार कर सकते थे, न लक्ष्र्ण । वह श्रीजानकीको खाने दौडी तो लक्ष्र्णने ाईसके नाक-कान काट दलये । ाईसकी सहायता करने ाअकर खर-दषू ण तथा दत्रदशरा चौदह सहस्र राक्षसी सेनाके साथ श्रीरार्की वाणादग्नर्ें भस्र् हो गए । 69

शपू मणखा लांका पहुचाँ ी । ाईसके द्रारा ाईिेदजत दकए जानेपर रावण र्ारीचके साथ पचां वटी ाअया । र्ायार्गृ िनकर र्ारीच श्रीरार्को दरू ले गया । सीताने जि लक्ष्र्णको िडे भााइकी खोजर्ें हठ करके भेज ददया ति रावण सीताजी को हरण करके लांका ले गया । वहााँ ाईसने ाईन्हें ाऄशोक वादटकार्ें रख ददया । श्रीरार् लौटे । जानकीको न पाकर शोकदवह्ऱल ढूाँढते वनर्ें चले । रावण द्रारा ाअहत जटायक ु ो सद्गदत देकर, शिरीसे दर्लकर पबपासरोवरके सर्ीप पहुचाँ े । यहााँ सग्रु ीवके भेजे हनर्ु ानजी दर्ले । ाईन्होंने श्रीरार्की सग्रु ीवसे दर्त्रता करायी । श्रीरार्ने िादलको र्ारकर सग्रु ीवको दकदष्कन्धाका राज्य ददया । सग्रु ीवके भेजे वानर सीताकी खोज र्ें दनकले । ाऄन्तताः हनर्ु ानजी लांकार्ें सीताजीको देखकर, लांका जलाकर लौट ाअए । सर्ाचार पाकर श्रीरार्ने वानर-रीछ सेना लेकर लांकापर चढ़ााइ की । सर्द्रु पर नल-नीलके द्रारा सेतु िाँधवाया और यद्ध ु र्ें पत्रु , भााइ कुबभकणमके साथ रावणको र्ारकर लांकाका राज्य ाईसके छोटे भााइ शरणागत दवभीषणको दे ददया । पष्ु पकपर िैठकर ाऄयोध्या लौट ाअए और वहाां ाईनका राज्यादभषेक हुाअ । श्रीरार्ने एक ददन गिु चरके र्ख ु से सनु ा दक कोाइ रजक ाऄपनी पत्नी को, जो रादत्रर्ें दकसी सबिन्धीके घर रह गाइ थी, डााँटता हाअ कह रहा था- 'लांकार्ें रही सीताको श्रीरार्ने घरर्ें रख दलया, दकन्तु र्ैं ऐसा नहीं करूाँगा दक तझु े घरर्ें रखलाँू ।' 70

शासकका कतमव्य िडा दनष्ठुर है । ाऄपने दकसी ाअचरणसे प्रजाका ाअदशम न दिगडे ाआसीदलए श्रीरार्ने जानकीको वनर्ें भेज ददया । वे गभमवती दनवामदसत हुाइ ां । वनर्ें र्हदषम वाल्र्ीदकके ाअश्रर्र्ें वे रहीं । वहााँ ाईनके लव-कुश ये दो पत्रु हुए । ाऊदष-र्दु नयों की प्राथमनापर र्धक ु े पत्रु लवण राक्षस को श्रीरार्ने शत्रघ्ु नको भेजकर र्रवाया । वे स्वयां यज्ञ करने र्ें लग गए । यज्ञर्ें पत्नीके स्थानपर स्वणमकी श्रीजानकी की र्दू तम िनवाकर ाईन्होंने रखी । श्रीरार्के ाऄश्वर्ेधीय यज्ञका ाऄश्व छूटा । वह दददग्वजय करता वाल्र्ीदक ाअश्रर् पहुचाँ ा तो लव-कुशने ाईसे िााँध दलया । ाआससे यद्ध ु हुाअ । ाऄयोध्याकी सेना तथा शत्रघ्ु न, लक्ष्र्ण एवां भरत भी लव-कुशके हाथों परादजत हुए । श्रीरार्को जाना पडा; दकन्तु ाईन्होंने यद्ध ु नहीं दकया । र्हदषम वाल्र्ीदकने ाऄन्त र्ें लवकुशका पररचय कराया । र्हदषम श्रीजानकी तथा लव-कुशको लेकर यज्ञभदू र्र्ें ाअए । श्रीरार्ने सर्स्त प्रजा एवां र्दु नयोंके सबर्ख ु सीताजीको शपथ लेने को कहा । ाईन्होंने शपथ ली- 'यदद र्ैं र्न-वाणी और शरीरसे के वल श्रीरघनु ाथकी होाउाँ तो पथ्ृ वी देवी र्झु े ाऄपने भीतर स्थान दे ।’ सहसा पथ्ृ वी िटी और भदू र्तनया श्रीवैदहे ी ाईसर्ें प्रदवि हो गयीं । श्रीरघनु ाथजीने ाऄपने तथा भााआयोंके पत्रु ोंर्ें राज्यका दवभाजन दकया । ाऄन्तर्ें वे सर्स्त ाऄयोध्या जनोंके साथ ाऄपने 71

ददव्यधार् साके त चले गए । श्रीरार्का दजन्हें भी दशमन एवां सबपकम दर्ला था, वे पश-ु पक्षी, कीट-पतगां तक र्दु नदल ु मभ ददव्यधार्को प्राि हुए । यह ाऄत्यन्त सदां क्षि श्रीरार्का चररत है । २१- व्यास- परू ा नार् है श्रीकृष्ण द्रैपायन । वेदोंका व्यास ाऄथामत् दवभाजन करने के कारण वेदव्यास ाऄथवा व्यास नार् पड गया । र्हदषम पराशर नौकासे गांगा पारकर रहे थे । र्त्स्यगन्धा नार्क के वट-पत्रु ी, दजसका एक नार् सत्यवती था, नौका खे रही थी । र्हदषमके र्न र्ें ाईसके प्रदत दवकार ाअया। गांगाके द्रीपर्ें ाईसके साथ पराशर ाऊदषके दर्लनसे व्यासजी ाईत्पन्न हुए । दीपर्ें ाईत्पन्न होनेसे वे द्रैपायन कहे गए और श्यार्वणम होनेसे ाईनका नार् कृष्ण पडा । व्यासजीने िद्रीनाथसे ाउपर शबयप्रासर्ें ाऄपना ाअश्रर् िनाया । लोग सबपणू म वेद नहीं स्र्रण रख सकते, ाआसदलए यज्ञीय सदु वधाको दृदिर्ें रखकर एक ही वेदके ाऊक्, यजाःु , सार् तथा ाऄथवम - ये चार दवभाग ाईन्होंने कर ददए । व्यासजी भगवान के ाऄवतार हैं । ाईन्होंने ाईपासनाको दवदभन्न दनष्ठाओकां ी पदु िके दलए ाऄठारह परु ाण तथा ह्ली-शद्रू सिको धर्मका सबपणू म ज्ञान हो, ाआसके दलए र्हाभारतकी रचना की । श्रदु तका परर् तात्पयम स्पि करने के दलए ब्रह्मसत्रू िनाए । 72

सत्यवती (र्त्स्यगन्धा) का दववाह र्हाराज शान्तनसु े हुाअ । ाआस दववाहसे दो पत्रु हुए । दचत्रागां द एवां दवदचत्रवीयम । दचत्रागां द गन्धवोसे यद्ध ु र्ें र्ारे गए । दवदचत्रवीयमका दववाह कादशराजको दो पदु त्रयों ाऄदबिका तथा ाऄबिादलकासे हुाअ; दकन्तु दवदचत्रवीयम सन्तान होने से पवू म ही र्र गए । र्ाता सत्यवती की ाअज्ञासे दवदचत्र वीयमकी दोनों पदत्नयोंसे धतृ राष्र तथा पाण्डुको और ाईनकी एक दासीसे दवदरु को व्यासजीने ाईत्पन्न दकया था । व्यासजीके ाऄपने पत्रु शक ु देवजी हुए । ये र्ाताके गभम र्ें सोलह वषम रहे । ाईत्पन्न होते ही दवरि होकर वनर्ें चले गए । पीछे ाआन्हींको व्यासजीने श्रीर्द्भागवत पढ़ाया । व्यास और शक ु ये दोनों ाऄर्र र्ाने जाते हैं । २२-श्रीकृष्ण- भगवान श्रीरार् के सर्ान श्रीकृष्णा भी पणू ामवतार हैं । यह ाऄवतार भी कल्पर्ें के वल एक िार होता है । ाआसी दपछले द्रापरके ाऄन्तर्ें ाअजसे पााँच हजार दो सौ वषम पवू मके लगभग श्रीकृष्णावतार हुाअ था । श्रीरार्ावतार जैसे चतव्ु यमहू ात्र्क है, ाईसर्ें श्रीरार् परात्पर पणू ब्रम ह्म हैं तथा भरत, लक्ष्र्ण, शत्रघ्ु न व्यहू रूप हैं, ाईसी प्रकार श्रीकृष्णावतार भी चतव्ु यमहू रूप है । श्रीकृष्ण परात्पर पणू ब्रम ह्म हैं । सक ां षमण, प्रद्यबु न और ाऄदनरुद्ध व्यहू हैं । र्थरु ा नरे श ाईग्रसेनका पत्रु कांस ाऄपनी सिसे छोटी चचेरी िदहन देवकीका दववाह वसदु वे जीसे करके वर-वधू को रथर्ें 73

िैठाकर ाईनके घर छोडने जारहा था । र्ागमर्ें ाअकाश-वाणी हुाइ'कांस'! ाआसका ाऄिर् गभम तेरा वध करे गा ।' कांस वहीं देवकी को! र्ारनेको ाईद्यत हो गया; दकन्तु वसदु वे जीने यह वचन देकर ाईसे र्नाया दक-‘ाआसकी सन्तानोंको ाईत्पन्न होते ही तबु हें दे दगांू ा ।' प्रथर् सन्तानको कांस छोड रहा था; दकन्तु देवदषम नारदके सर्झानेसे ाईसने ाईसे र्ार ददया । दपता ाईग्रसेन को िन्दी करके स्वयां राजा िन गया और वसदु वे -देवकीको भी ाईसने कारागारर्ें डाल ददया । देवकीके छ: पत्रु कांसने जन्र्ते ही र्ार ददए । सातवें सांकषमणिलरार् ाअए । भगवानकी ाअज्ञासे योगर्ायाने ाईन्हें नन्दगहृ र्ें ाअश्रय लेकर रहने वाली वसदु वे -पत्नी रोदहणीके ाईदरर्ें पहुचाँ ा ददया । ाऄिर् सन्तानके रूप र्ें श्रीकृष्णावतार हुाअ । वसदु वे जी रादत्रर्ें ही ाईन्हें गोकुल र्ें नन्द-पत्नी यशोदाकी गोदर्ें छोड ाअए और ाईनकी सद्योजात कन्या ले ाअए । कांस ाईस कन्याको र्ारने लगा तो वह ाईसके हाथ से छूटकर ाअकाशर्ें चली गाइ । वहााँ ाईसने ाऄिभजु ा रूपर्ें दशमन ददया । िलरार् और श्रीकृष्ण गोकुल नन्दभवनर्ें िढ़ने लगे । कांसके भेजे ाऄसरु ोंर्ें पतू ना, शकटासरु , तणृ ावतम, व्योर्ासरु वत्सासरु , 74

िकासरु , ाऄघासरु , ाऄररिासरु तथा के शी श्रीकृष्णके हाथों र्ारे गए । प्रलबिासरु , धेनक ु ासरु का वध िलरार्जीके हाथों हुाअ । श्रीकृष्णने जि र्ाता द्रारा ाउखलर्ें िााँधे जानेपर यर्लाजमनु को दगरा ददया तो ाईत्पातकी ाअशक ां ासे ब्रजके गोप नन्दजीके साथ गोकुल छोडकर नन्दगााँव जा िसे । िहुतसे ाऄसरु वहीं र्ारे गए थे । श्रीकृष्णने कादलय-नागके ह्रदर्ें प्रवेश करके नागके र्स्तकपर नत्ृ य दकया और ाईसे यर्नु ासे दनकालकर सर्द्रु र्ें भेज ददया । दावादग्नसे दघरे गोपोंको ाईन्होंने ाऄदग्न पान करके िचाया । ाआन्द्र-पजू ा रोककर गोवधमन-पजू न गोपोंसे कराया और जि रुि होकर ाआन्द्र ब्रजको िहा देनेके दलए प्रलय-वदृ ि करने लगे तो एक हाथपर सात ददन गोवधमन ाईठाए रखकर ाईन्होंने ब्रजकी रक्षा की । ब्रजर्ें श्रीकृष्णने ाऄनेक चररत दकये । ाईनके र्जां ल ु सरस चररत भिोंके सवमस्व हैं।3* ाऄन्तर्ें कांसने ाऄक्रूरको भेजकर श्रीकृष्ण-िलरार्को धनषु -यज्ञके िहाने र्रवा डालने के दलए र्थरु ा िल ु वाया । कांसका सि षड्यन्त्र व्यथम हुाअ । नगर-प्रवेशके सर्य ही श्रीकृष्णने ाईसके धोिी को र्ार ददया और ाईसका पज्ू य धनषु तोड डाला । दसू रे ददन रांगशालाके द्रारपर दोनों भााआयोंने कुिलयापीड हाथीको यर्लोक भेज ददया । ाऄखाडे र्ें कांसके 3

लेखकका 'श्रीकृष्ण-चररत' देखना चादहए । 75

पहलवान चाणरू , र्दु िक, शल-तोशलादद र्ारे गए और श्रीकृष्णने कांसको भी र्ार ददया । जेल से दनकालकर ाईग्रसेनजीको श्रीकृष्णने दसांहासनपर िैठाया । दिर दोनों भााइ ाईज्जैन सान्दीपदन ाऊदषके यहााँ पढ़ने गए । गरुु -ददक्षणार्ें ाईनका र्तृ -पत्रु यर्लोकसे लाकर ाईन्हें देकर ति लौटे । कांसका श्वसरु र्गधराज जरासन्ध दार्ादके र्ारे जानेसे क्रोधर्ें भरकर र्थरु ापर िार-िार ाअक्रर्ण करने लगा । सत्रह िार ाईसे परादजत करके श्रीकृष्णने छोड ददया । ाऄठारहवें ाअक्रर्णके सर्य कालयवन भी चढ़ ाअया । ाईसे तो श्रीकृष्णने यदु िपवू मक र्चु क ु ु न्दके द्रारा भस्र् करा ददया और सर्द्रु के र्ध्य भव्य द्राररका नगरी दनर्ामण कराकर वहााँ सर्स्त यदवु दां शयोंको लेकर रहने लगे । द्राररकार्ें रहते हुए श्रीकृष्णने ाअठ र्ख्ु य दववाह दकए । भौर्ासरु को र्ार कर ाईसके द्रारा िन्दी िनायी गयी सोलह सहस्र एक सौ राज कन्याओकां ो ाईन्होंने र्ि ु दकया तो ाईन सभीने भी ाआनका ही वरण दकया । पाण्डवोंको हदस्तनापरु जाकर श्रीकृष्णने ाअश्वासन ददया । ाऄजमनु के द्रारा खाण्डववन जलवाकर यदु धदष्ठरके दलए र्यदानवसे राजसभा िनवायी । राजसयू यज्ञ कराकर यदु धदष्ठरको ाईन्होंने 76

सम्राट् पद ददया । ाईसी सर्ारोहर्ें गाली िकने वाले दशशपु ाल को ाईन्होंने ाऄपने चक्र सदु शमनसे र्ार ददया । द्राररकापर ाअक्रर्ण करने जाकर शाल्व, दन्तवक्रदद भी श्रीकृष्णके हाथों र्ारे गए । पौण्रकने तो स्वयां ाईन्हें यद्ध ु की चनु ौती दी और र्ारा गया । िलरार्जीने ाईपद्रवी वानर दद्रदवदका वध दकया । श्रीकृष्णके पौत्र ाऄदनरुद्धको वाणासरु की पत्रु ी ाईषाने हरण करवा दलया था । वहााँ वाणासरु से यद्ध ु करने जाकर शांकरजीसे भी यद्ध ु करना पडा और ाईन्हें भी यद्ध ु र्ें श्रीकृष्णने सन्तिु कर ददया । पाण्डव द्यतू - क्रीडार्ें दयु ोधन द्रारा छलसे हरा ददए गए । हारी द्रोपदीको जि दाःु शासन भरी सभार्ें नग्न करने लगा तो वह्लावतार लेकर श्रीकृष्णने ाईसकी लज्जा िचायी । वनर्ें दयु ोधनके भेजे दवु ामसाजीको भी श्रीकृष्णाने एक शाकपत्र र्ात्र खाकर तिृ कर ददया । वनवासकी ाऄवदध पणू म होनेपर श्रीकृष्ण पाण्डवों के दतू िनकर हदस्तनापरु गए; दकन्तु सदन्धका प्रयत्न सिल नहीं हुाअ । र्हाभारत यद्ध ु र्ें वे ाऄजमनु के सारदथ िने । पदहले ददन यद्ध ु -भदू र् र्ें ाऄजमनु को ाईन्होंने गीताका ाईपदेश ददया । यद्ध ु र्ें श्रीकृष्णने सर्य-सर्यपर पाण्डवोंकी रक्षा की । ाईनके सांरक्षणके कारण पाण्डव दवजयी हुए । यद्ध ु ान्तर्ें ाऄश्वत्थार्ाके 77

ब्रह्माह्लके प्रभावसे पाण्डव-पत्रु वधू ाईिराके गभमसे र्तृ ाईत्पन्न िालक परीदक्षतको ाईन्होंने ाऄपने सक ां ल्पसे जीदवत कर ददया । द्राररका लौटकर ब्राह्मणके र्तृ पत्रु ोंको ाऄजमनु के साथ कारणाणमवशायी भर्ू ापरुु षके सर्ीप जाकर लौटा लाए । हदस्तनापरु जाकर राजा यदु धदष्ठरसे तीन ाऄश्वर्ेध यज्ञ ाईन्होंने करवाए । ाऄन्त र्ें ाऊदषयोंने यादवकुर्ारोंकी ाईद्दण्डतासे क्रोधर्ें ाअकर यदवु ांश-दवनाशका शाप दे ददया । श्रीकृष्णने ाईद्धव तथा र्ैत्रेय ाऊदषको तत्व-ज्ञानका ाईपदेश दकया । यदवु ांशी द्राररकासे प्रभास क्षेत्र गए । वहााँ र्द्यपान करके ऐसे र्तवाले हुए दक परस्पर यद्ध ु करके र्र गए । िलरार्जीने योगके द्रारा देहत्याग दकया । जरा नार्क व्याधने भ्रर्से श्रीकृष्णके चरणोंर्ें वाण र्ार ददया । ाआसे दनदर्ि िनाकर वे भी ाऄपने दनत्यधार् चले गये । श्रीकृष्णके दनजभवनको छोडकर द्राररका सातवें ददन ही सर्द्रु र्ें डूि गयी । श्रीकृष्ण-चररत ाऄत्यन्त घटना िहुल है । ाईसर्ें सभी घटनाओकां ा ाईल्लेखर्ात्र भी कदठन है । प्रत्येक घटना ाऄपने ाअपर्ें र्हत्वपणू म है और ाईसका ाअध्यादत्र्क तात्पयम भी है । श्रीकृष्णके जीवनर्ें र्ानव-जीवनको प्रत्येक ददशाकी पणू तम ा प्रकट हुयी है । ाआसीदलए ाईनको लीलावतार कहा जाता है । ाईनका 78

गीता-ज्ञान तथा ाईनका चररत दोनों ही र्ानव के दलए शाश्वत र्दु िपथ हैं । भिोंका सबप्रदाय ऐसा र्ानता है दक श्रीकृष्णका पणू ामवतार तथा दवष्णक ु ा ाऄश ां ावतार दोनों एक साथ हुए। ब्रजलीला तक पणू ामवतारर्ें ही ाऄश ां ावतार एक होकर रहा । ब्रजसे र्थरु ा ाअने र्ें पणू ामवतार ाऄदृश्य हो गया और र्थरु ा, द्राररका, हदस्तनापरु के चररत ाऄश ां ावतारके ही चररत हैं । २३-बुद्ध- ाआस ाऄवतारके सबिन्धर्ें र्तभेद हैं । परु ाणोंके ाऄनसु ार कीकट देशर्ें ाऄजदनके पत्रु रूपर्ें िद्ध ु ने ाऄवतार दलया । यह ाऄवतार ाऄसरु ोंको र्ोहर्ें डालकर धर्म-दवर्ख ु करनेके दलए हुाअ । िात यह थी दक ाऄसरु यज्ञ करते थे तथा धर्मके िहुत-से दनयर्ोंका पालन करते थे । धर्ामचरण तथा यज्ञसे ाईनकी शदि िढ़ रही थी । वे ाऄजेय हो गए थे । दसू री और वे देवताओकां ा स्वत्व हरण दकए िैठे थे और सार्ान्य ाऊदष-र्दु नयोंको तप-यज्ञ करने नहीं देते थे । भगवान दवष्णनु े िद्ध ु रूपसे ाऄवतार धारण करके ाऄसरु ोंको यज्ञ तथा शौचाचारर्ें दहसां ा है, यह सर्झाया । र्ोहवश वे ाआसे र्ानकर यज्ञ तथा धर्म छोड िैठे । ति देवताओनां े यद्ध ु र्ें ाईनका वध दकया । 79

र्हाकदव जयदेवने गौतर्िद्ध ु को ही िौद्धावतार र्ाना है और तिसे िद्ध ु ावतारके रूपर्ें गौतर्िद्ध ु ही लोकर्ें प्रख्यात हैं । ाआन तथागतका चररत लोक-दवख्यात है । वे कदपलवस्तु नरे श शद्ध ु ोदनके पत्रु थे । शाक्य क्षदत्रयकुलर्ें ाईत्पन्न हुए थे । िचपनका नार् दसद्धाथम था । यवु ावस्थार्ें ही रोगी, वद्ध ृ तथा शव देखकर ाईन्हें वैराग्य हो गया । पत्रु राहुलको दशशु ही छोडकर वे एक रादत्र पत्नी यशोधराके कक्षसे दनकले तो वनर्ें चले गए । स्वयां वह्लाभरण ाईतार ददए और के श काट ददए । दीघम ाईपवासके पश्चात् लगा दक शरीर के साथ िहुत िल प्रयोग ाईदचत नहीं है । िद्ध ु ने सजु ाता द्रारा दी गाइ खीर ग्रहण करके िोदधवक्ष ृ के नीचे ध्यान लगाया । र्ारकी सि सेना िाधा देने र्ें दविल रही । िोधका ाईदय हुाअ । गौतर् िद्ध ु होकर वहााँसे ाईठे । सारनाथसे ाईन्होंने ाऄपना धर्ोपदेश प्रारबभ दकया । दीघमकाल तक वे जीदवत रहे । ाईनके सर्य र्ें ही िहुत प्रख्यात व्यदि दभक्षसु ांघ र्ें ाअ चक ु े थे । ाऄनेक स्थानोंपर िद्ध ु -दवहार िन गए थे । ाऄन्तर्ें कुशीनगर स्थानपर रुग्णावस्थार्ें िद्ध ु का शरीर छूटा । ाईनके पश्चात् िौद्धधर्मका और भी ाऄदधक प्रचार -हुाअ । सम्राट ाऄशोकके सर्य र्ें िौद्धधर्मका सन्देश भारतसे िाहर पहुचाँ ा और धीरे -धीरे चीन, जापान तथा सबपणू म ददक्षण-पवू म एदशया िौद्ध हो गया । 80

यहााँ एक िात स्र्रण रखने योग्य है । वैददक धर्मने गौतर्िद्ध ु को ाऄवतार स्वीकार कर दलया; दकन्तु ाईनके र्तको र्ान्यता नहीं दी । यह सनातन धर्मकी ाऄद्भुत दवशेषता है दक ाईसकी र्ान्यता है-'व्यदि ाऄपने साधन भजनसे र्हापरुु ष हो सकता है और र्हापरुु ष लोकपज्ू य है । ाईसकी पजू ा ाऄवश्य होनी चादहए । लेदकन ाईसकी िात-स्वयां भगवानकी िात भी शाह्लके प्रदतकूल हो तो ाईसे र्ानना नहीं चादहए । पज्ू यकी पजू ा करो । ाईसे सबर्ान दो; दकन्तु ाअचरण शाह्लादेशके ाऄनसु ार ही करो ।' २४-कसल्क- यह ाऄवतार कदलयगु के ाऄन्त र्ें होगा । सबभल (र्रु ादािाद दजला-ाईिरप्रदेश) र्ें दवष्णयु श नार्क ब्राह्मण के पत्रु रूपर्ें भगवानका यह ाऄवतार होगा । वे परशरु ार्जीसे ाऄह्ल-दशक्षा प्राि करें गे । देवताओ ां द्रारा ददए गए ाऄश्वपर ाअरूढ़ होकर पथ्ृ वीके दस्यप्रु ाय शासकोंका वध करें गे । भगवान कदल्कके द्रारा शदि सबपन्न लोकोत्पीडक पादपष्ठ र्ारे जायाँगे और साधारण लोगोंके र्न स्वयां पदवत्र हो जायगे । ससां ारका वातावरण सवमथा शद्ध ु सत्त्वगणु ी हो जायगा । स्वगमका राज्य वतमर्ान परु न्दर ाआन्द्रसे छीनकर भगवान िदलको दे देंगे । ाआस सर्य जो ाऄर्र ाऊदष-र्दु न ाऄदृश्य रहकर तपर्ें लगे हैं, वे सर्ाज र्ें ाअ जायाँगे और सर्ाजका र्ागम-दशमन करें गे । सयू म एवां चन्द्र वांशके जो नरे श तपर्ें दनरत ाऄदृश्य कलाप 81

ग्रार्र्ें हैं- वे सयू मवश ां ी र्हाराज र्रु और चन्द्रवश ां के र्हाराज देवादप प्रजाका पालन एवां दनयर्न करने ाअ जायेंगे ।' यहााँ स्र्रण रखना है दक कदल्क ाऄवतार कदलयगु के ाऄन्तर्ें होगा । सबभलर्ें होगा । दवष्णयु श ब्राह्मणके यहााँ होगा । ाआतनी िातें सदु नदश्चत हैं । कदलयगु की ाअयु ४,३२,००,००,००० वषम है । ाआसर्ें-से ाआस सर्य दवक्रर् सबित् २०३३ र्ें ५०७७ वषम व्यतीत हुए हैं । ाआसका ाऄथम हैं दक कदल्क ाऄवतार होनेर्ें ाऄभी भी ४,३१,९९,९४,९२३ वषम शेष हैं । नारायण कथा- ाआन ाऄवतार कथाओकां े ाऄदतररि भगवान नारायणकी भी कुछ कथाएाँ हैं १-परात्पर परर्परुु ष श्रीनारायणने जि सदृ िकी ाआच्छा की ति ाईनके शरीरसे िहुत ाऄदधक जल प्रगट हुाअ । परुु ष-नरके शरीरसे ाईत्पन्न होनेके कारण ाआस जलको नार कहते हैं । यही सदृ िको गभोदक है । भगवान ाआस जल र्ें प्रवेश करके शेषशय्यापर सो गए । ाआस, नारर्ें शयनके कारण ाईनका नार् नारायण हुाअ । ाईन्हीं गभोदशायी नारायणकी नादभसे कर्ल ाईत्पन्न हुाअ । ाईस कर्लसे चतर्ु मख ु ब्रह्मा रूपर्ें वही परर्परुु ष ाऄपने ाऄश ां से प्रगट हुए । २-ाईस प्रलय सागरर्ें दो ाऄसरु र्धु और कै टभ भगवानके कणम-र्लसे ाईत्पन्न हुए । वे दोनों ब्रह्माको र्ारने के दलए ाईद्यत हुए 82

तो ब्रह्माजी योग-दनद्राकी स्तदु त की, दजससे नारायण भगवान जागतृ हुए । जागतृ होकर भगवान नारायणने दीघमकाल तक ाईन ाऄसरु ोंसे यद्ध ु दकया । ाऄन्तर्ें र्ाया र्ोदहत ाऄसरु ोंने भगवानसे कहा,-'तर्ु ाऄके ले हर् दोनोंसे ाआतने सर्यसे यद्ध ु कर रहे हो । तबु हारे ाआस शौयमसे हर् प्रसन्न हैं । हर्से वरदान र्ाांग लो ।' भगवान नारायण हसां कर िोले- 'ाऄच्छी िात । तर्ु दोनों र्ेरे हाथसे र्ारे जाओ ।' ाऄसरु ोंने कहा–'सख ू े स्थानपर हर्ें र्ार दो ।' ाईस सर्य सख ू ा स्थान तो था नहीं । भगवानने ाऄपनी जांघापर ाईन्हें दगराकर चक्रसे ाईनका वध दकया । ाईन ाऄसरु ोंके र्ेदसे पथ्ृ वी िनी । ाआसीदलए पथ्ृ वीका एक नार् र्ेददनी है । र्ध-ु कै टभको र्ारने के कारण दवष्णु भगवान का नार् र्धसु दू न तथा कै टभारर पडा । ३-एक सर्य परात्पर नारायणने दकसी कल्पर्ें जि सदृ ि की ाआच्छा की तो ाईनके शरीरसे दवराट् परुु ष चतभु जमु दवष्णु ाईत्पन्न हुए । दिर नारायणने ाऄपने देहस्थ वायक ु ो त्यागा, ाईससे शख ां की ाईत्पदि हुाइ । वह शख ां तथा चक्र, खड्ग, गदा, वनर्ाला, श्रीवत्स, कौतभु एवां गरुड नारायण ने दवष्णक ु ो प्रदान दकए । ४-भगवान दशव देवताओकां े ाईत्पीडक ाऄसरु जालन्धरसे यद्ध ु कर रहे थे । जालन्धरकी पत्नी वन्ृ दा पदतव्रता थी । ाईसके 83

पादतव्रतके प्रभावसे जालन्धर यद्ध ु र्ें र्ारा नहीं जाता था; क्योंदक वन्ृ दा पदतके जीवनकी कार्ना करती दस्थत थी । दकसीका धर्म जि ाऄधभमर्का सहायक िने जाय ति वह भी ाऄधर्म हो जाता है। वन्ृ दाका धर्म लोक-भयानक हो गया था । भगवान दवष्णु जालन्धरका रूप िनाकर वन्ृ दाके सर्ीप गए । पदत यद्ध ु र्ें दवजयी होकर लौटा है, यह सर्झकर वन्ृ दाने ाअदलांगन दकया । ाआस प्रकार ाईसका पादतव्रत नि होते ही यद्ध ु र्ें जालन्धर र्ारा गया । जालन्धरका र्स्तक वन्ृ दाके सबर्ख ु दगरा। ाईसे छलका पता लगा तो ाईसने शाप ददया-‘तर्ु ने जडके सर्ान एक नारीका धर्म नष्ठ दकया, ाऄताः पत्थर िनो ।’ भगवान दवष्णु िोले-‘तर्ु जडके सर्ान एक धर्म द्रोहीका कुशल चाह रही थीं, ाऄताः वनस्पदत िनो ।’ वन्ृ दाने भगवानकी स्तदु त की । भगवानने प्रसन्न होकर कहा‘र्ैं शालग्रार् िनाँगू ा और तर्ु तल ु सी िनोगी । तबु हारे दिना र्ेरी पजू ा पणू म नहीं होगी । तबु हारा धर्ामचरण र्झु े दप्रय है। तर्ु सदा र्ेरी दप्रया रहोगी ।’ तिसे तल ु सी श्रीहररकी दप्रया हैं। तल ु सीदल डालकर ही भगवानको भोग लगाया जाता है। ५-भगवान दशवने शकुदनके पत्रु वक ृ ासरु के तपसे प्रसनन् होकर ाईससे वरदान र्ााँगनेको कहा तो ाईसने र्ााँगा- ‘दजसके दजसके दसरपर हाथ रख,ाँू वह भस्र् हो जाय।’ 84

शक ां रजीने जैसे ही 'एवर्स्त'ु कहा, वह दिु ाऄसरु पावमतीका हरण करनेकी ाआच्छासे दशवके र्रतकपर ही हाथ रखने दौडा। भोले िािा भागे। ाऄसरु ाईनके पीछे पड गया । ाऄतां र्ें शक ां रजी वैकुण्ठ पहुचाँ े । भगवान दवष्णु तत्काल ब्रह्मचारी रूप रखकर ाऄसरु को र्ागमर्ें दर्ले और िोले-‘ाऄसरु श्रेष्ठ ! ाअप ाआस प्रकार क्यों दोड रहे हैं?’ वकासरु वह र्धरु वाणी सनु कर रुका । ाईसने ाऄपने वरदानकी िात ितलााइ । ब्रह्मचारी हाँसे-‘ओह! ाअप जैसा िदु द्धर्ान श्र्शानवासी, भतू सहचर, पागल दशवकी िातपर दवश्वास कै से करता है? ाअप ाऄपने दसरपर हाथ रखकर तो देखें ।’ ाऄसरु ने ाऄपने दसरपर हाथ रखा और तरु न्त भस्र् हो गया । शक ां रजीका सक ां ट दरू हुाअ । ६-एक िार र्दु नयोंर्ें दववाद दछडा दक दत्रदेवोंर्ें श्रेष्ठ कौन है? परीक्षाका भार र्हदषम भगृ पु र ददया गया । वे ब्रह्मलोक गए; दकन्तु ाऄपने दपता ब्रह्माजीको ाईन्होंने प्रणार् नहीं दकया । ाआससे सदृ िकतामको क्रोध ाअया, पर वे िोले कुछ नहीं । भगृ ु भी चपु चाप लौट पडे । र्हदषम भगृ ु कै लास पहुचाँ े तो शक ां रजी ाईनसे दर्लने ाअगे िढ़े। ब्रह्माके नेत्रसे ाईत्पन्न होनेके कारण रुद्र भगृ क ु े भााइ हैं । र्हदषम भगृ नु े कहा- ‘दरू रहो! र्झु े छुओ र्त! र्ैं र्ण्ु डर्ाली, श्र्शानवासीका स्पशम नहीं कर सकता।’ 85

रुद्रको ाआस ाऄपर्ानसे ाआतना क्रोध ाअया दक ाईन्होंने भगृ ु को र्ारनेके दलये दत्रशल ू ाईठा दलया; दकन्तु पावमतीजीने प्राथमना करके ाईन्हें शान्त कर ददया । भगृ जु ी ाऄन्तर्ें क्षीर सागर पहुचाँ े । ाईन्होंने शेषशायी श्रीहररके वक्षस्थलपर पहुचाँ ते ही पाद-प्रहार दकया । दवष्णभु गवानने झटपट ाईठकर ाईनके चरण दिाते हुए कहा'र्हदषम! र्ेरा वक्षस्थल िहुत कठोर है और ाअपके चरण िहुत कोर्ल हैं । ाआन चरणों र्ें चोट लगी होगी । र्ैं तो ाअपके चरण स्पशमसे पदवत्र हुाअ । ाऄि र्ेरे वक्षस्थलपर ाअपका चरणदचह्न सदा दवराजर्ान रहेगा ।’ भगवान दवष्णक ु े वक्षपर तिसे दादहने भगृ पु दका दचह्न है । ाईसे भगृ ल ु ता कहते हैं । र्हदषम भगृ ु लौट ाअए । ाईनकी िात सनु कर ाऊदषयोंने दनश्चय दकया दक दजसर्ें रोष, ाऄहक ां ार नहीं है, जो सदहष्णु और वत्सल है, वही सिसे र्हान है । ७-जि जि भभू ार िढ़ता है ाऄथवा देवताओपां र सक ां ट ाअता है, ाईनका पररत्राण भगवान दवष्णु ही करते हैं । ाऄसरु -सहां ार, देव एवां भि पररत्राणकी कथायें िहुत ाऄदधक है । ाऄिर्दू तम-भगवान दवष्णक ु ो ाअठर्दू तम र्ानी जाती हैं । ाईनके नार् हैं- १-ाईग्र २-र्हादवष्णु ३-ज्वलन्त ४-सबप्रतापन ५-नदृ सांह ६-भीषण ७-भीर् ८-र्त्ृ यञ्ु जय । 86

नारायणकी एक चतभु जमु ; एक ाऄिभजु और एक दद्रभजु र्दू तम है । र्हालक्ष्र्ी और सरस्वती चतभु जमु नारायणकी पत्नी हैं । श्रीदेवी और भदू वे ी ाऄिभजु नारायण (कहीं चतभु जमु की भी) पत्नी हैं । दद्रभजु नारायणकी पत्नी गगां ा और वन्ृ दा (तल ु सी) है ।

87

सिदेव ाऄि तक भगवानके ाअराध्य पञ्चदेव रूपोंका वणमन हुाअ है । सदृ िकी ाईत्पदि, सहां ार तथा पालनके दलए एक ही भगवान तीन रूप लेते हैं । १-ब्रह्मा, २-रुद्र, ३-दवष्णु । ाआनर्ेंसे दशव और दवष्णक ु ा वणमन ाअ चक ु ा है । ब्रह्मा- ये सदृ िकताम हैं । चतर्ु मख ु हैं । पदहले पांचर्ख ु थे; दकन्तु एक र्ख ु दशवने काट ददया । ाआनके लोकको ब्रह्मलोक कहते हैं । ाअराधनाका र्ख्ु य लक्ष्य र्ोक्ष है और र्ोक्ष दशव या दवष्णक ु े द्रारा प्राि होता है । ाऄत: चतथु मपरुु षाथम र्ोक्षकी ाअकाांक्षा रखनेवाले ब्रह्माकी ाईपासना नहीं करते । सदृ ि-कतामकी ाईपासना ाऄसरु प्राय: करते थे । दहरण्यकदशप,ु रावण ाअददने ब्रह्माजी की ही ाईपासना करके ाईनसे वरदान प्राि दकया । दसू रे भी ाऄनेकों ाऄसरु ोंने ब्रह्माकी ाअराधना की है । जि भी देवताओपां र सांकट ाअता है, वे पदहले ब्रह्माजी के सर्ीप ही पक ु ार करते हैं । लोक-दपतार्हको ही ाईनके िच्चे पक ु ारते हैं । भारग्रस्ता भदू र् भी गौरूप धारणकर ब्रह्मलोक ही ाऄपनी व्यथा सनु ाने जाती है । ब्रह्माजी कै लास या क्षीरसागरके तटपर कहााँ जायेंगे। दशव, शदि या दवष्ण-ु दकसकी शरण लेंगे ाईस सक ां टको दरू करनेके दलए, यह दनणमय ाईन्हें ही करना होता है । 88

लोकपाल प्रत्येक लोकका एक स्वार्ी लोकपाल कहा जाता है । ये पााँच है-१-ाआन्द्र २-वरुण ३-कुिेर ४-यर् ५-ाऄयमर्ा । १-इन्द्र -ये स्वगमके ाऄदधपदत है । देवताओकां े राजा हैं । वषामके ाऄदधपदत र्ाने जाते हैं ।सौ ाऄश्वर्ेध यज्ञ करने वाला प्रतापी नरे श जन्र्ान्तरर्ें ाआन्द्र होता है । ाआसीदलये ाआन्द्रको शतक्रतु या शक्र कहते है । ाआनका प्रधान ाऄह्ल वज्र है । ऐरावत हाथी ाआनका र्ख्ु य वाहन है । २-वरुण-ये जलादधपदत है । ाआनका एक नार् प्रचेता है । ाआनके लोकको वरुणलोक कहा जाता है और वह सर्द्रु गभमर्ें सक्ष्ू र् लोक है । ाआनका प्रधान ाऄह्ल पाश है । ये र्कर वाहन है । ३-कुबेर- ये धनाध्यक्ष हैं । जहााँ कहीं भी धन है, ाईसके ये स्वार्ी हैं । ाआनके नगरका नार् ाऄलकापरु ी है । ये यक्षोंके स्वार्ी है । एकिार भगवती ाईर्ापर ाआनकी ददु ि गाइ तो एक नेत्र जाता रहा और दसू रा पीला हो गया । ाऄताः ये एकाक्ष दपगां ली कहे जाते है । ाआनके शरीर पर कूिड है । कुिेरका र्ख्ु य ाऄह्ल गदा है । ाआन्हें नरवाहन कहा जाता है ाऄथामत् ये पालाकी पर िैठ कर चलते हैं । ४-यम- ये सयू म-पत्रु यर्लोक (नरकोंके ) स्वार्ी है । ाआनके र्ख्ु य रूप दो हैं-धर्मराज और यर्राज । र्रकर प्राणी प्रायाः ाआनके सार्ने जाता है । यहीं ाईसके कर्ोका दनणमय करके ाईसे दवदभन्न 89

लोकों र्ें भेजते हैं । धर्ामत्र्ाओकां ो ये धर्मराजके सौबयरूप र्ें दर्लते हैं और पादपयों को यर्राजके भयानक रूपर्ें। वैसे ये परर् भि एवां भागवताचायम है । यर्राज कृष्ण वणम हैं । ाआनका र्ख्ु य ाअयधु कालदण्ड है । ये भैंसे पर दवराजर्ान होते हैं । ५-अयशमा- र्ख्ु य लोक चार ही हैं और चार लोकपालोंकी िात ही प्रायाः दर्लती है । पााँचवााँ लोक दपतल ृ ोक है । ाआसके दनयन्ता और दपतरों को ाईनका भाग श्राध्दादद पहुचां ाने वाले देवता ाऄयमर्ा है । सचिगुप्त- यहीं यर्राजके ाआन सहायकका वणमन कर देना भी ाईपयि ु है । ये ब्रह्माजी के र्ानस पत्रु है । लेखनी और दवात दलये हुए ही ाईत्पन्न हुए थे । ब्रह्माजीने ाआन्हें यर्राजके सर्ीप दनयि ु कर ददया । ाआनका कार् र्नष्ु यों के कर्ों का दववरण रखना तथा दनणमय के सर्य ाईन्हें यर्राजके सबर्ख ु ाईपदस्थत करना है । यर्राज के पास यर्दतू रहते हैं । स्वगम र्ें देवता, गन्धवम, ाऄस्परायें, दकन्नर रहते हैं । कुिेर के सेवक यक्ष हैं । वरुण के सेवक ाऄसरु दवशेष हैं । दपतल ृ ोकर्ें सेवक नहीं है । ***

90

सदक्पाल ददशायें दस हैं-१. पवू ,म २. ाअग्नेय, ३. ददक्षण, ४. नैाऊत्य, ५. पदश्चर्, ६. वायव्य, ७. ाईिर, ८. ाइशान, ९. ाउध्वम १०. ाऄध: । ाआन ददशाओकां े स्वार्ी ददक्पाल कहे जाते हैं । ये भी दस हैं ।

१-पूवशके-ाआन्द्र । ाआनका वणमन लोकपालर्ें ाअ गया है । ये सहस्राक्ष हैं । ये दनदिग्री (एकािका) के एककल्पर्ें पत्रु हैं । र्ाताके गभम र्ें सहस्रर्ास रहकर ाईत्पन्न हुए । ाआस कल्पर्ें ाआन्द्र र्हदषम कश्यपसे ाऄदददतर्ें ाईत्पन्न हुए हैं । दानव श्रेष्ठ पल ु ोर्ाकी पत्रु ी शची ाआन्द्रकी पत्नी हैं । पदहले यगु र्ें ाआन्द्रने पवमतोंके पक्ष काटे हैं । वत्रृ ासरु का, नर्दु चका ाआस प्रकार िहुतसे ाऄसरु ोंका वध दकया है । प्रत्येक र्न्वन्तरके ाआन्द्र पथृ क पथृ क होते हैं । २-आग्नेय कोण- पवू म-ददक्षणके देवता ाऄदग्न हैं । ये धर्मकी पत्नी वससु े ाईत्पन्न हुए हैं । ाऄदग्न तीन पैर, सात हाथ, दो र्ख ु वाले हैं । ाआनका शरीर स्थल ू है । लबिोदर हैं । रिवणम हैं । ाआनके के श दपगां ल हैं । शदि और रुद्राक्ष र्ालाधारी है।ाआनकी सवारी िकरा है। प्राचीनकाल र्ें पथ्ृ वीके सभी देशों र्ें ाऄदग्नकी पजू ा होती थी । पारसी ाऄदग्नपजू क हैं । ाऄदग्नके २८ रूप र्ाने जाते हैं और प्रत्येक कर्मर्ें ाईन-ाईन दवशेष रूपोंसे ाऄदग्नका ाअवाहन होता है 91

१. गहृ -प्रवेशर्ें पावक, २. गभामधानर्ें र्ारुत, ३. पसांु वनर्ें चन्द्रर्स, ४. शगांृ ार कर्मर्ें शोभन, ५. सीर्न्तनर्ें र्ङ्गल, ६. जातीयकर्ोंर्ें प्रगल्भ, ७. नार्करणर्ें पादथमव, ८. ाऄन्नप्राशनर्ें शदु च, ९. चडू ाकरणर्ें सत्य, १०. व्रतर्ें सर्द्भ ु व, ११. गोदानर्ें सयू म, १२. सर्ावतमनर्ें ाऄदग्न, १३. सर्ापन कर्मर्ें वैश्वानर, १४. दववाहर्ें योजक, १५. चतथु ी हवनर्ें दशखी, १६.धदृ त हवनर्ें ाऄदग्नसोर्, १७. प्रायदश्चतर्ें दवघ्र, १८. वषृ ोत्सगमर्ें साहस, १९. लक्षहवनर्ें वदह्न. २०. कोदट हवनर्ें हुताशन, २१. पणू ामहुदतर्ें भडृ , २२. शादन्तकर्मर्ें वरद, २३. पौदिक कर्मर्ें वलद, २४. ाऄदभचारर्ें क्रोध, २५. वशीकरणर्ें शर्न, २६. वरदानर्ें ाऄदतदषू क, २७. ाईदरर्ें जठर, २८. दचतार्ें क्रव्याद । ३-दसक्षण-ददशाके देवता यर् हैं । ाआनके चौदह नार् हैं । ाआन चौदह नार्ोंसे ाआनका तपमण होता है१. यर् २.धर्मराज, ३. र्त्ृ य,ु ४. ाऄन्तक, ५. वैवस्वत, ६. काल, ७. सवमभतू क्षय, ८. औडुबिर, ९. दघ्न, १०. नील, ११. परर्ेष्ठी, १२. वक ृ ोदर, १३. दचत्र, १४. दचत्रगिु । पण्ु यात्र्ाके सबर्ख ु यर् चतिु ामहु, श्यार्वणम, भगवान दवष्णक ु े सर्ान गरुडवाहन, शांख-चक्र-गदा-पद्मधारी रूप प्रगट करते हैं । 92

पापीके सबर्ख ु यर् ाऄदत प्रलबिकार्, र्दहष वाहन, ध्रर्ू वणम, ज्वालासे रोर्, कराल दतां ावली, िडे-िडे नख, चर्ामबिर, दण्डधर रूप प्रकट करते हैं । ाआनकी परु ीको वैवस्वत परु ी भी कहते हैं । ४-नैॠत्य- (ददक्षण-पदश्चर्) कोणके देवता दनाऊदत हैं । ये नरवाहन हैं । र्नष्ु यके कन्धेपर िैठकर चलते हैं । ५-पसिम- ददशाके देवता वरुण हैं । ये जलाधीश हैं । प्रजापदत कश्यपके ाऄदददतसे ाईत्पन्न हुए हैं । ये दद्रभजु , हसां वाहन, ाऄभयर्द्रु तथा नागपाशधारी हैं । ये राजाओकां े भी दण्डदाता परर् सम्राट र्ाने जाते हैं । ६- वायव्य- (पदश्चर्-ाईिर) कोणके देवता वायु र्रुत र्ाने जाते हैं । ाआनकी ाईत्पदि कथा ाआस प्रकार हैदहरण्याक्षको भगवान वाराह और दहरण्यकदशपक ु ो भगवान नदृ सांहने जि र्ार ददया तो पत्रु हीना दददत िहुत दाःु खी हुाइ । ाईन्होंने सेवा करके ाऄपने पदत र्हदषम कश्यपको सन्तिु दकया। कश्यपजीने जि वरदान र्ागां नेको कहा तो दददतने-'ाआन्द्रको र्ारनेवाला पत्रु हो’ ऐसा वरदान र्ागां ा । र्हदषम कश्यपने एक वषम भरका ाऄनष्ठु ान ितलाकर कह ददया-'ाआसका परू ा पालन होगा तो ाआन्द्रहन्ता पत्रु होगा । व्रत र्ें त्रदु ट हुाइ तो पत्रु देव-िान्धव हो जायगा ।' 93

दददत सावधानी पवू मक ाईस ाऄनष्ठु ानसे श्रीहररकी ाअराधना करने लगीं । ाईनके ाऄनष्ठु ानका सर्ाचार पाकर ाआन्द्र को िहुत दचन्ता हुाइ। वे दपताके ाअश्रर् र्ें ाअकर दवर्ाता दददतकी सेवा करने लगे । वस्ततु ाः वे ाऄवसर देख रहे थे दक दददतसे कहीं व्रत र्ें प्रर्ाद हो तो वे ाईसका गभम नि कर दें । वषम परू ा होने र्ें कुछ ही ददन शेष थे दक एक ददन सन्ध्याकालर्ें व्रतसे थकी दददत जठू े र्ख ु लेट गाइ तो ाईन्हें नींद ाअ गाइ । ाआस ाऄशदु द्धसे ाआन्द्र को ाऄवसर दर्ल गया । दददत के गभम र्ें प्रवेश करके ाईन्होंने वज्रसे गभमके सात टुकडे कर ददए । ाआतने पर भी जि गभम र्रा नहीं तो एकके सात टुकडे ाईन्होंने और कर ददये । वे ४९ िालक हो गए । ाईन िालकोंने कहा-'भााइ ाआन्द्र! हर्ें र्त र्ारो। हर् तो तबु हारे ाऄनजु हैं ।’ ाआन्द्र िोले-'रोओ र्त! र्ैं ाऄि तबु हें नहीं र्ारूाँगा। तर्ु लोग र्ेरे भााइ हो ।' ाईन िालकों के साथ ाआन्द्र गभम से िाहर ाअ गए । जागनेपर दददतने ाऄपने ४९ पत्रु देखें तो ाआन्द्रसे िोली-‘िेटा ! र्ैंने तो ाऄदददत-पत्रु ों के दलये भयावह एक पत्रु पानेके दलये ाऄनष्ठु ान दकया था, ये ४९ कै से हो गए? सच सच ितलाओ ।’ ाआन्द्रने ाऄपना कर्म सच-सच ितलाकर क्षर्ा र्ाांगी 'र्ाता! र्ैं स्वाथी हैं । ाअप र्झु े क्षर्ा करें । ाअपके पत्रु जीदवत हैं, यह 94

भगवानकी ाईपासनाका प्रभाव है । ाऄि ये देवता होकर र्ेरे साथ रहेंगे ।' दददत िोलीं-'तर्ु जि र्ेरे गभम र्ें प्रदवि हो चक ु े हो तो र्ेरे ही पत्रु हो । ाऄपने ाआन भााआयोंपर स्नेह रखना।’ दददतके पत्रु ोंको ाआन्द्रने 'र्ा रुद' कहा था, ाआससे ाईनका नार् र्रुत पडा और ाआन्द्रकी कृपासे वे देवता िन गये । शरीरके भीतर १.प्राण, २. ाऄपान, ३. ाईदान, ४.व्यान, ५. सर्ान, रूपसे पााँच साधारण और ६. नाग, ७. कूर्, ८. कृकल, ९. देवदि, १०. धनञ्जय, रूपसे पााँच सक्ष्ू र् वायक ु ा दनवास है । वाह्य ाऄन्तररक्ष र्ें १. ाअवह, २. प्रवह ३. ाईद्धह, ४. सांवह, ५. सिु ह, ६. पररवह, ७. परािह, ८. ाऄदतवह, ये ८ रूप हैं । ाआन १८ रूपोंके ाऄदतररि शेष र्रुद्गण हैं १. श्वसन, २. स्पशमन, ३. र्ातररश्वा, ४. सदागदत, ५. पषृ दश्व, ६. गन्धवह, ७. स्वकबपन ८. ाऄदनल, ९. ाअशगु , १०. सर्ीर, ११. र्रुत,् १२. वात, १३. पवन, १४. पवर्ान, १५. प्रभञ्जन १६. नभस्वान, १७. ाऄजगत् प्राण १८. खश्वास १६. वाह, २०.धदू लध्वज २१. िदणदप्रय, २२, नभप्रात, २३. ाऄक्षदत, २४. कबपलक्षर्ा, २५. शसीदन, २६. ाअवक, २७-हरर, २८. सख ु ाश, २९. र्गृ वाहन, ३० प्रकबपन ३१. दवहग ।

95

७-उत्तर-ददशाके देवता कुिेर हैं । र्हार्दु न दवश्रवाके पत्रु तथा रावणके िडे भााइ हैं । ाआनकी र्ाता र्हदषम भरद्राजकी पत्रु ी ाआलदवला हैं । ब्रह्माजीके वरदानके प्रभावसे ये धनाधीश हुए । ८-ईर्ान-(ाईिर-पवू म) कोणके स्वार्ी ाइश-दशव हैं । ९-ऊध्वश- (ाउपरी) ददशाके स्वार्ी ब्रह्माजी हैं । १०-अधिः- (नीचेके भाग) के स्वार्ी ाऄनन्त-शेष हैं । ये भगवान की ही दद्रतीय र्दू तम हैं । ाआनको सांकषमण तथा ाऄनन्त कहा जाता है । ाआनका रांग श्वेत है । एक सहह्ल िण हैं । प्रलयके सर्य जि भगवान दवष्णु शेषशय्यापर शयन करते हैं ति शेषजी ाऄपने एक िणसे भगवानकी नादभकर्लको ढके रहते हैं । एकसे भगवानके र्स्तक तथा एकसे ाईनके चरणोंपर छाया रखते हैं । एक िणसे भगवानको पख ां ा करते हैं । ाऄन्य िणोंर्ें भगवानके ाअयधु शक ां , चक्र, गदा, पद्म, धनषु , खड्ग, तणू ीर धारण दकए रहते हैं । ाईस सर्य गरुड भी शेषके एक िणके नीचे िैठे रहते हैं । प्रलयके सर्य सक ु से ज्वाला दनकलती है और ां षमणके र्ख वह दत्रलोकीको भस्र् कर देती है । एकादश रुद्र भी ाईन्हींसे प्रगट होते हैं ।

96

अष्टवसु ये देवताओकां े गण हैं । ाआसर्ें हैं-१. धर, २.ध्रवु , ३. सोर्, ४. दवष्ण,ु ५. ाऄदनल, ६. ाऄनल, ७. प्रत्यषू , ८. प्रभास । ये ाऄदददतके पत्रु हैं । ाआनके दसू रे नार्ान्तर भी दर्लते हैं- १. द्रोण, २. प्राण, ३. ध्रवु , ४. ाऄकम , ५. ाऄदग्न, ६. दोष, ७. वास्त,ु ८. दवभावसु । एक िार ये ाअठों वसु ाऄपनी पदत्नयों के साथ घर्ू ते हुए पथ्ृ वीपर वदशष्ठाश्रर् पहुचां े । र्हदषम वदशष्ठ थे नहीं । ाईनकी गौ नदन्दनीका हरण एक वसनु े ाऄपनी पत्नीकी प्रेरणासे दकया । वे पत्नीकी सखीको वह गौ देना चाहते थे । लौटकर र्हदषम वदशष्ठने वसओ ु कां ो र्नष्ु य योदनर्ें जन्र् लेनेका शाप ददया । वसओ ु कां ी प्राथमनापर ाईन्होंने शापकी ाऄवदध एक वषम करदी । के वल गौहताम वसक ु ो र्नष्ु य िनकर दीघम काल रहना था । वसओ ु कां ी प्राथमनापर गगां ाजी र्ानवी िनीं । ाईन्होंने राजदषम शान्तनसु े ८ पत्रु ाईत्पन्न दकए । ये ाअठ वसु थे । प्रत्येक पत्रु को ाईत्पन्न होते ही वे गगां ाकी धारार्ें डाल देती थीं । राजा शान्तनक ुे कहने पर ाऄदन्तर् पत्रु ाईन्होंने राजाको दे ददया । ये भीष्र् दपतार्ह थे ।

97

मातृकायें ये शदि के दवदभन्न रूप हैं । ाआनकी र्ख्ु य सख्ां या १६ है- १. गौरी, २. पद्मा, ३. शदु च, ४. र्ेधा, ५. सादवत्री, ६. दवजया, ७. जया, ८. देवसेना, ९. स्वधा, १०. स्वाहा, ११. शादन्त, १२. पदु ि, १३.घदृ त, १४. तदु ि, १५. ाआला, १६. ाऄदबिका । अष्ट मातृकाकी गणनामें है- १. ब्राह्मी, २. र्ाहेश्वरी ३. ऐन्द्री, ४. वाराही, ५.वैष्णवी, ६.कौर्ारी, ७. चार्ण्ु ड, ८. चदचमका । सप्तमातृका- १. ब्राह्मी, २. वैष्णवी ३. ऐन्द्री, ४. रौद्री ५. वाराही, ६. कौिेरी, ७. कौर्ारी । नवमातृका-१. ब्रह्माणी, २. वैष्णवी, ३.रौद्री, ४. वाराही, ५. नारदसदां हका, ६. कौर्ारी, ७. र्ाहेन्द्री ८. चार्ण्ु डा ९. चदण्डका । ये र्ातक ृ ाएाँ दजनके नार्की है, ाईनके ही ाऄश ां से ाईत्पन्न हुाइ है । वैष्णवोंमें पूज्यमातृकागण- १. भागवती, २.पौणमर्ासी, ३.पद्मा, ४. ाऄन्तरांदगका, ५. गगां ा, ६. कादलन्दी, ७. गोपी, ८.वन्ृ दा, ९. गायत्री, १०. तल ु सी, ११.गौ, १२. वैष्णवी, १३. यशोदा, १४. देवहूदत १५. रोदहणी १६. सती, १७. द्रौपदी, १८. कुन्ती, १९. रुदक्र्णी २०. सत्यभार्ा, २१. जाबिवती २२. सत्या, २३. दर्त्रदवन्दा, २४. लक्ष्र्णा, २५ भद्रा । 98

योसगनी ाआनकी सख्ां या ६४ र्ानी गाइ है । ाआनके नार् हैं- १. नारायणी, २. गौरी, ३. शाकबभरी ४. भीर्ा, ५. रि ददन्तका, ६. श्रार्री, ७. पावमती, ८. दगु ाम, ९. कात्यायनी, १०. र्हादेवी, ११. चन्द्र घण्टा, १२. र्हादवद्या, १३. र्हातपा, १४. सादवत्री, १५. ब्रह्म वाददनी, १६. भद्रकाली, १७. दवशालाक्षी, १८. रुद्राणी, १९. कृष्ण दपगां ला, २०. ाऄदग्न ज्वाला, २१. रौद्रर्ख ु ी, २२. काल रादत्र, २३. तपदस्वनी, २४. र्ेधस्वना २५. सहस्राक्षी, २६. दवष्णु र्ाया, २७. जलोदरी, २८. र्होदरी, २९. र्ि ु के शी, ३०, घोर रूपा, ३१. र्हािला, ३२. श्रदु त, ३३. स्र्दृ त, ३४. धदृ त, ३५. तदु ि, ३६. पदु ि, ३७. र्ेधा, ३८. दवद्या, ३९. लक्ष्र्ी, ४०. सरस्वती, ४१. ाऄपणाम, ४२. ाऄदबिका, ४३. योदगनी, ४४.द्रादकनी ४५. शादकनी, ४६. हाररणी, ४७. हादकनी, ४८. लादकनी, ४९. दत्रदशेश्वरी, ५०. र्हाषष्ठी, ५१. सवमर्ांगला, ५२. लज्जा, ५३. कौदशकी, ५४. ब्रह्माणी, ५५. र्ाहेश्वरी, ५६. कौर्ारी, ५७. वैष्णवी, ५८. ऐन्द्री, ५९. नारदसहां ी, ६०. वाराही, ६१. चार्ण्ु डा, ६२. दशवदतू ी, ६३. दवष्णु दप्रया, ६४. र्ातक ृ ा। ाआन चौंसठ योदगदनयों के नार् कादलका परु ाणर्ें, दभन्न रूपसे हैं- १. ब्रह्माणी, २. चदण्डका, ३. रौद्री, ४. ाआन्द्राणी, ५. कौर्ारी, ६. वैष्णवी, ७. दगु ाम, ८. नारदसहां ी, ९. कादलका, १०. चार्ण्ु डा, ११. दशवदतू ी, १२. वाराही, १३. कौदशकी, १४. र्ाहेश्वरी, १५. 99

शाङ्करी, १६. जयन्ती, १७. सवमर्गां ला, १८. काली, १९. कपादलनी, २०. र्ेघा, २१. दशवा, २२. शाकबभरी, २३. भीर्ा, २४. शान्ता, २५. भ्रार्री, २६. रुद्राणी, २७. ाऄदबिका, २८. क्षर्ा, २९. धात्री, ३०. स्वाहा, ३१. स्वधा, ३२. ाऄपणाम, ३३. र्होदरी, ३४. घोर रूपा, ३५. र्हाकाली, ३६. भद्रकाली, ३७. भयांकरी, ३८. क्षेर्करी, ३९. ाईग्र चण्डा, ४०. चण्डोग्रा, ४१. चण्डनादयका, ४२. चण्डा, ४३. चण्डवती, ४४. चण्डी, ४५. र्हार्ोहा, ४६. दप्रयङ्करी, ४७. िल दवकाररणी, ४८, िल प्रर्दथनी, ४९. र्नोन्र्दथनी, ५०. सवमभतू दादयनी, ५१. ाईर्ा, ५२. परू तारा, ५३. र्हादनद्रा, ५४. दवजया, ५५. जया, ५६. शैलपत्रु ी, ५७. चन्द्रघण्टा, ५८. स्कन्दर्ाता, ५९. काल रादत्र, ६०. चदण्डका (र्ातगां ी),६१. कुष्र्ाण्डा, ६२. कात्यायनी ६३. र्हागौरी, ६४. िगला । स्पि है दक र्हाशदिके रूप प्रायाः सभी योदगनी की गणनार्ें ाअ गए हैं । ज्योदतषर्ें दतदथ-दवशेषर्ें दकस ददशार्ें कौनसी योदगनी रहती हैं, ाआसका वणमन है पवू मर्-ें प्रदतपदा एवां नवर्ीको-ब्रह्माणी योसगनी ाईिरर्ें-दद्रतीया एवां दशर्ीको-माहेश्वरी ाऄदग्नकोण-ततृ ीया एवां एकादशीको-कौमारी नैाऊत्यकोणर्ें- चतथु ी एवां द्रादशीको-नारायणी 100

ददक्षण र्ें-पञ्चर्ी एवां त्रयोदशीको-वाराही पदश्चर्र्ें- षष्ठी एवां चतदु श म ीको-इन्द्राणी वायक ु ोणर्ें-सिर्ी एवां पदू णमर्ाको-चामुण्डा ाइशानकोणर्ें-ाऄिर्ी एवां ाऄर्ावस्याको- महालक्ष्मी

उपसवद्या ाआनको कहीं योदगणी और कहीं यदक्षणी भी कहा गया है । ाआनकी साधना-पजू ा ाऄथम एवां कार् के दलए ही की जाती है । ाआनकी सांख्या कहीं १६ और कहीं ६४ वदणमत है । ाआनर्ें भी र्ख्ु य ाअठ हैं । १. र्नोहरा, २.वार्ा, ३. कार्ेश्वरी, ४. रदत-सन्ु दरी, ५. पद्मयोदगनी, ६. नदटनी, ७. र्ैथनु -दप्रया, ८. रिददन्तका ाअदद । ग्रह दहन्दू धर्मशाह्ल र्ें पजू नीय ग्रह ९ र्ाने गए हैं । १-सूयश-रि वणम, सिाश्व रथारुढ । २-चन्द्र-र्ि ु ा सर्ान वणम । ये र्गृ ोंके रथपर िैठते हैं । र्हदषम ाऄदत्रके पत्रु हैं । ३-मंगल-र्ांगू के सर्ान लाल । ये भदू र्-पत्रु हैं । ४- बुध-हररत वणम । ये चन्द्र-पत्रु हैं । ५-गुरु- (िहृ स्पदत)-पीत वणम । देवताओकां े गरुु हैं । 101

६-र्ुक्र-श्वेत वणम । ये दैत्य गरुु हैं । ७-र्सन-श्यार् वणम । ये सयू म पत्रु हैं । ८-राहु-र्स्तक र्ात्र, कृष्ण वणम, ाऄसरु । ९-के तु-किन्ध र्ात्र(धड) कृष्ण वणम, ाऄसरु । राहु और के तु छाया ग्रह र्ाने जाते हैं । स्र्रण रखना चादहए दक पजू ा स्थल ू दपण्डकी नहीं होती । ाईस दपण्डके ाऄदधष्ठाता देवताकी होती है । भैरव ये दशवके गण दवशेष हैं । भैरव गणकी ाईत्पदि कथा ाआस प्रकार हैाऄन्धकासरु के साथ जि भगवान शक ां र सग्रां ार् करने लगे तो ाऄसरु ने दशवके र्स्तकपर, पदाघात दकया । ाआससे र्स्तकसे जो रि-धारा प्रवादहत हुाइ ाईससे भैरव गणों ाईत्पदि हुाइ । ाआसर्ें पााँच र्ख्ु य हैं १-सवद्याराज- रिकी पवू म धारासे ाईत्पन्न, ाऄदग्न वणम, चन्द्रहार, गलगण्ड यक्ु ि । २-कामराज-ददक्षण की रि धारासे ाईत्पन्न, ाऄञ्जन कृष्ण, प्रेत र्दण्डत । ३-नागराज-पदश्चर् रि धारासे ाईत्पन्न । ाऄतसीकुसर्ु नील वणम, पत्र भदू षत । 102

४-लसबबतराज-रिकी सर्स्त धारासे ाईत्पन्न । ाऄञ्जन कृष्ण । ५-र्ूलधारी-कृष्ण वणम, रिकी ाईिर धारासे ाईत्पन्न । शारदीय दगु ाम पजू ार्ें ाअठ भैरवोंकी पजू ा होती है । ाईनके नार् हैं-१. र्हाभैरव, २. सांहार भैरव, ३. ाऄदसताङ्ग भैरव, ४. रुरु भैरव, ५. काल भैरव ६. क्रोध भैरव, ७. कपाल भैरव, ८. रुद्र भैरव । ाआनके ाऄदतररि-१. चण्ड भैरव, २. ाईन्र्ि भैरव, ३. भीषण भैरवके नार् दर्लते हैं । १. नन्दी, २.भगांृ ी, ३. र्हाकाल, ४. िैताल और ५.वीर भद्र दशवगणोंके ाऄदधपदत भैरव हैं । करवीर परु नरे श चन्द्रशेखरकी रानी तारावतीके गभमसे एक पत्रु हुाअ । यह पदहले भगांृ ी था । पीछे वानर र्ख ु होकर दशवगण भैरव हुाअ । भैरवी ये र्हादवद्याके ही भेद हैं । ाआनके नार् हैं १. चार्ण्ु डा, २. चदचमका, ३. चर्मर्ण्ु डा, ४. र्ाजामर कदणका, ५. कणामर्ोदट, ६. र्हागन्धा, ७. ाईग्र भैरवी, ८. कपादलनी । ाऄन्यत्र ाआनके नार् ाआस प्रकार दर्लते हैं-१.दत्रपरु भैरवी, २. सबपत्प्रदा भैरवी, ३. कौलेश भैरवी, ४. सकल दसदद्धदा भैरवी, ५. 103

भयदवध्वांदसनी भैरवी, ६. चैतन्य भैरवी, ७. कार्ेश्वरी भैरवी ८.षट्कुटा भैरवी ९. दनत्या भैरवी १०. रुद्र भैरवी, ११. दत्रपरु िाला भैरवी, १२. नवकूटा भैरवी, १३. ाऄन्नपणू ाम भैरवी, १४. भवु नेश्वरी भैरवी । ाआन सिके पथृ क-पथृ क रूप, वाहन, र्न्त्र ाअदद हैं । उपदेवता ाआनर्ें गन्धवम, दकन्नर, यक्ष, ाऄप्सरायें तथा दसद्धगण हैं । प्रेत वगश प्रेत, दपशाच, भतू , दवनायक, िैताल, ब्रह्म राक्षस, कूष्र्ाण्ड ाअदद ाआनका वगम है । पतू ना, कोटरा, रे वती, दपशादचनी ाअदद भी ाआसी वगम र्ें हैं । ये सि दशव-गण हैं । स्वासम कासतशक (सुब्रह्मण्य) भगवान शक ु , र्यरू वाहन, ां रके ज्येष्ठ पत्रु , षड् र्ख देवसेनापदत हैं । र्गु ाम भी ाआनका एक वाहन है । भगवती ाईर्ाके साथ भगवान दशव एकान्त दवहार कर रहे थे । ाईस सर्य ाऄदग्न देव र्र्गु ेका रूप लेकर ाअए । ाआससे दशवका वीयम िाहर ही पात हुाअ । ाईसे ाऄदग्नर्ें स्थादपत दकया गया । 104

ाऄदग्न ाईसे सहन नहीं कर सके तो गगां ार्ें डाल ददया । गगां ाके दलये भी यह ाऄसह्य हुाअ तो ाईन्होंने सरकण्डोंके झरु र्टु र्ें डाल ददया । वहााँ वह ाऄदर्त तेजस्वी दशशरू ृ ाओनां े दधू ु पसे प्रगट हुाअ । र्ातक दपलाकर ाईसे ाऄपना पोष्य पत्रु िनाया । ये देवताओकां े सेनापदत हुए । ाआन्होंने यद्ध ु र्ें तारकासरु र्ारा । गणेशजीसे ाआनका यह दववाद हुाअ दक प्रथर् दववाह दकसका हो । पथ्ृ वी-प्रददक्षणाकी प्रदतद्रदन्दतार्ें यदु िपवू मक गणेशजी जीत गए । ाईनका दववाह प्रथर् हो गया । ाआससे र्ाता-दपता ाईर्ा-र्हेश्वरसे रूठकर स्वादर् कादतमक कै लाशको छोडकर ददक्षण-भारत चले गए । 'र्ैं दपताकी भाषाका भी ाईपयोग नहीं करूांगा ।' यह दनश्चय करके स्वादर् कादतमकने तदर्ल भाषा और ाईसकी दलदपका ाअदवभामव दकया । र्ास्ता ददक्षण भारत र्ें िहुत पदू जत शास्ता देवता भैरवके ही एक रूप है । र्ीतला देशर्ें ाआनके र्दन्दर िहुत है । ये चेचक र्हार्ारीकी ाऄदधदेवी हैं । 105

हररहर र्ोदहनी ाऄवतारके सर्य जि शक ां रजी र्ोदहनीपर र्ग्ु ध होकर ाईसके पीछे दौडे तो र्ोदहनीके ाअदलांगनसे एक पत्रु ाईत्पन्न हुाअ । ाआसका ददक्षणाङ्ग दशवके सर्ान तथा वार्ाङ्ग दवष्णु के सर्ान हुाअ ।

106

हनुमान र्ोदहनीके पीछे दौडते भगवान दशवका जो रे तस्खलन हुाअ, ाईसका एक ाऄश ां वायनु े ाईडाकर वानर श्रेष्ठ के शरीको पत्नी ाऄञ्जनाके ाईदरर्ें कणम र्ागमसे पहुचाँ ा ददया । ाआससे हनर्ु ानजीकी ाईत्पदि हुाइ । दशव के ाऄश ां से ाईत्पन्न होने के कारण वे शांकरसतु हैं । पवनपत्रु हैं, क्योंदक पवनने ाईस रे तस् का ाअधान दकया । के शरी के क्षेत्रज होनेसे के शरी-कुर्ार हैं । ाईत्पन्न होते ही सयू म-दवबिको िल सर्झकर खाने के दलए ाअकाशर्ें झपटे । वह ाऄर्ावस्या का सयू म-ग्रहणका सर्य था । राहुने ाआन्हें सयू मको दनगलते देखा तो देवराज ाआन्द्रसे पक ु ार की । ाआन्द्र राहुकी सहायता करने ाअए तो ये ऐरावतको ही पकडने दौड पडे ।वज्र प्रहारसे ाआन्द्रने ाआन्हें र्दू छम त कर ददया। वज्रसे ाआनकी ठोडी थोडी टूट गाइ, ाआससे ाआनका नार् हनर्ु ान पडा । पत्रु को र्दू छम त देखकर वायु देवने रुि होकर ाऄपनी गदत रोक दी । ाआस सक ां ट से देवता ति छूटे जि सिने हनर्ु ानको ाऄपने तेज एवां ाऄह्लसे ाऄभय होनेका वरदान ददया । हनर्ु ानजीने सयू मलोक जाकर सयू मसे ही दवद्याध्ययन दकया और लौटकर वानरराज सग्रु ीवके र्न्त्री हो गए । सग्रु ीवसे श्रीरार्की र्ैत्री हनर्ु ानने ही करााइ । लांका जाकर ये सीताजीका सर्ाचार तो लाए ही लांकाको जला भी ाअए । रार्रावण यद्ध ु र्ें ाआनका प्रधान पराक्रर् प्रगट हुाअ । 107

लांका-दवजयके पश्चात् श्रीरार् ाऄयोध्या ाअए तो हनर्ु ानजी ाईनकी सेवार्ें रहने लगे; दकन्तु श्रीरार्के साके त जाते सर्य ये नहीं गए । ाआन्होंने कहा-'जि तक ससां ारर्ें रार्-कथा रहेगी, र्ैं यहीं रहूगाँ ा ।' त्रेतार्ें ये भीर्सेनको दर्ले थे । र्हाभारत यद्ध ु र्ें ाऄजमनु की ध्वजापर िैठे रहते थे; क्योंदक श्रीकृष्णने ाऄजमनु से ाआनकी दर्त्रता करा दी थी । हनर्ु ानजी ाऄर्र हैं । जहााँ जहााँ रार्-कथा होती है, ये ाऄदृश्य रूपसे ाईपदस्थत होकर श्रवण करते हैं । हनर्ु ानके दो रूप र्ख्ु य हैं-एक लाल वणमका और दसू रा कनक भधू राकार शरीर । वैसे ाईपासनार्ें ाआनके सौबय, ाईग्र, प्रचण्ड ाअदद ाऄनेक रूपोंका ध्यान वदणमत है । पररसर्ष्ट -प्रत्येक गहृ का एक गहृ देवता होता है । -प्रत्येक ग्रार् या नगरका एक क्षेत्रपाल देवता, एक ग्रार् नाग तथा एक ग्रार् कादलका होती हैं । -प्रत्येक सर्य, ददन, र्ास, पक्ष, वषम के ाऄदधदेवता हैं । -प्रत्येक कर्मका एक कर्म-देवता होता है । -प्रत्येक कुल का कुल देवता होता है । 108

-ाआन सिके ाऄदतररि दवशेष शदि-सबपन्न दसद्ध-परुु ष, योगी, सती तथा प्रेतादद भी देवता रूपर्ें पजू े जाते हैं । कुछ ाऄवतार र्ाने जाते हैं और ाईनकी पजू ा होती है । जैसे-खण्डोिा (र्हाराष्रर्ें) । करणीदेवी (राजस्थानर्ें) । - कुछ सर्ादधयााँ, स्र्ारक पजू े जाते हैं । ****

109

श्रीकृष्ण-सन्देर् [आध्यासत्मक माससक पि] श्रीकृष्ण-सन्देशका वषम जनवरीसे प्रारबभ होता है । श्रीकृष्णसन्देश प्रदतर्ास ८० पष्ठृ पाठ्य सार्ग्री देता है । ाअप श्रीसदु शमन दसांह 'चक्र' की सशि लेखन शैलीसे ाआस पस्ु तकके द्रारा पररदचत हो गये हैं । श्रीकृष्ण-सन्देश र्ें श्री 'चक्र' द्रारा दलदखत श्रीकृष्णचररत प्रदत ाऄङ्क ३२ पष्ठृ और ाईन्हीं द्रारा दलदखत 'श्रीरार्चररत' प्रदत ाऄङ्क ३२ पष्ठृ जा रहा है ।

वासषशक र्ुल्क- १० रुपया । आजीवन र्ुल्क- १५१ रुपया । सबभव हो तो ाअजीवन ग्राहक िनें । व्यवस्थापकश्रीकृष्ण-सन्देर् श्रीकृष्ण जन्र्स्थान सेवासघां र्थरु ा-२८१००१

110