Mahabharata: 6 Vol. Set (Hindi) [1-6]

महाभारत भारतीय संस्कृतिका, आर्य सनातन-धर्मका अद्द्भुत महाग्रन्थ है। महाभारत को पंचम वेद भी कहा जाता है। इस महाग्रन्थमें

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Table of contents :
Mahabharata: Bhag: 1
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नम्र निवेदन
विषय-सूची
चित्र-सूची
1. आदिपर्व
अनुक्रमणिकापर्व
१- ग्रन्थका उपक्रम, ग्रन्थमें कहे हुए अधिकांश विषयोंकी संक्षिप्त सूची तथा इसके पाठकी महिमा
पर्वसंग्रहपर्व
२- समन्तपंचकक्षेत्रका वर्णन, अक्षौहिणी सेनाका प्रमाण, महाभारतमें वर्णित पर्वों और उनके संक्षिप्त विषयोंका संग्रह तथा महाभारतके श्रवण एवं पठनका फल
पौष्यपर्व
३- जनमेजयको सरमाका शाप, जनमेजयद्वारा सोमश्रवाका पुरोहितके पदपर वरण, आरुणि, उपमन्यु, वेद और उत्तंककी गुरुभक्ति तथा उत्तंकका सर्पयज्ञके लिये जनमेजयको प्रोत्साहन देना
पौलोमपर्व
४- कथा-प्रवेश
५- भृगुके आश्रमपर पुलोमा दानवका आगमन और उसकी अग्निदेवके साथ बातचीत
६- महर्षि च्यवनका जन्म, उनके तेजसे पुलोमा राक्षसका भस्म होना तथा भृगुका अग्निदेवको शाप देना
७- शापसे कुपित हुए अग्निदेवका अदृश्य होना और ब्रह्माजीका उनके शापको संकुचित करके उन्हें प्रसन्न करना
८- प्रमद्वराका जन्म, रुरुके साथ उसका वाग्दान तथा विवाहके पहले ही साँपके काटनेसे प्रमद्वराकी मृत्यु
९- रुरुकी आधी आयुसे प्रमद्वराका जीवित होना, रुरुके साथ उसका विवाह, रुरुका सर्पोंको मारनेका निश्चय तथा रुरु-डुण्डुभ-संवाद
१०- रुरु मुनि और डुण्डुभका संवाद
११- डुण्डुभकी आत्मकथा तथा उसके द्वारा रुरुको अहिंसाका उपदेश
१२- जनमेजयके सर्पसत्रके विषयमें रुरुकी जिज्ञासा और पिताद्वारा उसकी पूर्ति
आस्तीकपर्व
१३- जरत्कारुका अपने पितरोंके अनुरोधसे विवाहके लिये उद्यत होना
१४- जरत्कारुद्वारा वासुकिकी बहिनका पाणिग्रहण
१५- आस्तीकका जन्म तथा मातृशापसे सर्पसत्रमें नष्ट होनेवाले नागवंशकी उनके द्वारा रक्षा
१६- कद्रू और विनताको कश्यपजीके वरदानसे अभीष्ट पुत्रोंकी प्राप्ति
१७- मेरुपर्वतपर अमृतके लिये विचार करनेवाले देवताओंको भगवान् नारायणका समुद्र-मन्थनके लिये आदेश
१८- देवताओं और दैत्योंद्वारा अमृतके लिये समुद्रका मन्थन, अनेक रत्नोंके साथ अमृतकी उत्पत्ति और भगवान्‌का मोहिनीरूप धारण करके दैत्योंके हाथसे अमृत ले लेना
१९- देवताओंका अमृतपान, देवासुरसंग्राम तथा देवताओंकी विजय
२०- कद्रू और विनताकी होड़, कद्रूद्वारा अपने पुत्रोंको शाप एवं ब्रह्माजीद्वारा उसका अनुमोदन
२१- समुद्रका विस्तारसे वर्णन
२२- नागोंद्वारा उच्चैःश्रवाकी पूँछको काली बनाना; कद्रू और विनताका समुद्रको देखते हुए आगे बढ़ना
२३- पराजित विनताका कद्रूकी दासी होना, गरुडकी उत्पत्ति तथा देवताओंद्वारा उनकी स्तुति
२४- गरुडके द्वारा अपने तेज और शरीरका संकोच तथा सूर्यके क्रोधजनित तीव्र तेजकी शान्तिके लिये अरुणका उनके रथपर स्थित होना
२५- सूर्यके तापसे मूर्च्छित हुए सर्पोंकी रक्षाके लिये कद्रूद्वारा इन्द्रदेवकी स्तुति
२६- इन्द्रद्वारा की हुई वर्षासे सर्पोंकी प्रसन्नता
२७- रामणीयक द्वीपके मनोरम वनका वर्णन तथा गरुडका दास्यभावसे छूटनेके लिये सर्पोंसे उपाय पूछना
२८- गरुडका अमृतके लिये जाना और अपनी माताकी आज्ञाके अनुसार निषादोंका भक्षण करना
२९- कश्यपजीका गरुडको हाथी और कछुएके पूर्वजन्मकी कथा सुनाना, गरुडका उन दोनोंको पकड़कर एक दिव्य वटवृक्षकी शाखापर ले जाना और उस शाखाका टूटना
३०- गरुडका कश्यपजीसे मिलना, उनकी प्रार्थनासे वालखिल्य ऋषियोंका शाखा छोड़कर तपके लिये प्रस्थान और गरुडका निर्जन पर्वतपर उस शाखाको छोड़ना
३१- इन्द्रके द्वारा वालखिल्योंका अपमान और उनकी तपस्याके प्रभावसे अरुण एवं गरुडकी उत्पत्ति
३२- गरुडका देवताओंके साथ युद्ध और देवताओंकी पराजय
३३- गरुडका अमृत लेकर लौटना, मार्गमें भगवान् विष्णुसे वर पाना एवं उनपर इन्द्रके द्वारा वज्र-प्रहार
३४- इन्द्र और गरुडकी मित्रता, गरुडका अमृत लेकर नागोंके पास आना और विनताको दासीभावसे छुड़ाना तथा इन्द्रद्वारा अमृतका अपहरण
३५- मुख्य-मुख्य नागोंके नाम
३६- शेषनागकी तपस्या, ब्रह्माजीसे वर-प्राप्ति तथा पृथ्वीको सिरपर धारण करना
३७- माताके शापसे बचनेके लिये वासुकि आदि नागोंका परस्पर परामर्श
३८- वासुकिकी बहिन जरत्कारुका जरत्कारु मुनिके साथ विवाह करनेका निश्चय
३९- ब्रह्माजीकी आज्ञासे वासुकिका जरत्कारु मुनिके साथ अपनी बहिनको ब्याहनेके लिये प्रयत्नशील होना
४०- जरत्कारुकी तपस्या, राजा परीक्षित्‌का उपाख्यान तथा राजाद्वारा मुनिके कंधेपर मृतक साँप रखनेके कारण दुःखी हुए कृशका शृंगीको उत्तेजित करना
४१- शृंगी ऋषिका राजा परीक्षित्‌को शाप देना और शमीकका अपने पुत्रको शान्त करते हुए शापको अनुचित बताना
४२- शमीकका अपने पुत्रको समझाना और गौरमुखको राजा परीक्षित्‌के पास भेजना, राजाद्वारा आत्मरक्षाकी व्यवस्था तथा तक्षक नाग और काश्यपकी बातचीत
४३- तक्षकका धन देकर काश्यपको लौटा देना और छलसे राजा परीक्षित्‌के समीप पहुँचकर उन्हें डँसना
४४- जनमेजयका राज्याभिषेक और विवाह
४५- जरत्कारुको अपने पितरोंका दर्शन और उनसे वार्तालाप
४६- जरत्कारुका शर्तके साथ विवाहके लिये उद्यत होना और नागराज वासुकिका जरत्कारु नामकी कन्याको लेकर आना
४७- जरत्कारु मुनिका नागकन्याके साथ विवाह, नागकन्या जरत्कारुद्वारा पतिसेवा तथा पतिका उसे त्यागकर तपस्याके लिये गमन
४८- वासुकि नागकी चिन्ता, बहिनद्वारा उसका निवारण तथा आस्तीकका जन्म एवं विद्याध्ययन
४९- राजा परीक्षित्‌के धर्ममय आचार तथा उत्तम गुणोंका वर्णन, राजाका शिकारके लिये जाना और उनके द्वारा शमीक मुनिका तिरस्कार
५०- शृंगी ऋषिका परीक्षित्‌को शाप, तक्षकका काश्यपको लौटाकर छलसे परीक्षित्‌को डँसना और पिताकी मृत्युका वृत्तान्त सुनकर जनमेजयकी तक्षकसे बदला लेनेकी प्रतिज्ञा
५१- जनमेजयके सर्पयज्ञका उपक्रम
५२- सर्पसत्रका आरम्भ और उसमें सर्पोंका विनाश
५३- सर्पयज्ञके ऋत्विजोंकी नामावली, सर्पोंका भयंकर विनाश, तक्षकका इन्द्रकी शरणमें जाना तथा वासुकिका अपनी बहिनसे आस्तीकको यज्ञमें भेजनेके लिये कहना
५४- माताकी आज्ञासे मामाको सान्त्वना देकर आस्तीकका सर्पयज्ञमें जाना
५५- आस्तीकके द्वारा यजमान, यज्ञ, ऋत्विज्, सदस्यगण और अग्निदेवकी स्तुति-प्रशंसा
५६- राजाका आस्तीकको वर देनेके लिये तैयार होना, तक्षक नागकी व्याकुलता तथा आस्तीकका वर माँगना
५७- सर्पयज्ञमें दग्ध हुए प्रधान-प्रधान सर्पोंके नाम
५८- यज्ञकी समाप्ति एवं आस्तीकका सर्पोंसे वर प्राप्त करना
अंशावतरणपर्व
५९- महाभारतका उपक्रम
६०- जनमेजयके यज्ञमें व्यासजीका आगमन, सत्कार तथा राजाकी प्रार्थनासे व्यासजीका वैशम्पायनजीसे महाभारत-कथा सुनानेके लिये कहना
६१- कौरव-पाण्डवोंमें फूट और युद्ध होनेके वृत्तान्तका सूत्ररूपमें निर्देश
६२- महाभारतकी महत्ता
६३- राजा उपरिचरका चरित्र तथा सत्यवती, व्यासादि प्रमुख पात्रोंकी संक्षिप्त जन्मकथा
६४- ब्राह्मणोंद्वारा क्षत्रियवंशकी उत्पत्ति और वृद्धि तथा उस समयके धार्मिक राज्यका वर्णन; असुरोंका जन्म और उनके भारसे पीड़ित पृथ्वीका ब्रह्माजीकी शरणमें जाना तथा ब्रह्माजीका देवताओंको अपने अंशसे पृथ्वीपर जन्म लेनेका आदेश
सम्भवपर्व
६५- मरीचि आदि महर्षियों तथा अदिति आदि दक्षकन्याओंके वंशका विवरण
६६- महर्षियों तथा कश्यप-पत्नियोंकी संतान-परम्पराका वर्णन
६७- देवता और दैत्य आदिके अंशावतारोंका दिग्दर्शन
६८- राजा दुष्यन्तकी अद्भुत शक्ति तथा राज्यशासनकी क्षमताका वर्णन
६९- दुष्यन्तका शिकारके लिये वनमें जाना और विविध हिंसक वन-जन्तुओंका वध करना
७०- तपोवन और कण्वके आश्रमका वर्णन तथा राजा दुष्यन्तका उस आश्रममें प्रवेश
७१- राजा दुष्यन्तका शकुन्तलाके साथ वार्तालाप, शकुन्तलाके द्वारा अपने जन्मका कारण बतलाना तथा उसी प्रसंगमें विश्वामित्रकी तपस्यासे इन्द्रका चिन्तित होकर मेनकाको मुनिका तपोभंग करनेके लिये भेजना
७२- मेनका-विश्वामित्र-मिलन, कन्याकी उत्पत्ति, शकुन्त पक्षियोंके द्वारा उसकी रक्षा और कण्वका उसे अपने आश्रमपर लाकर शकुन्तला नाम रखकर पालन करना
७३- शकुन्तला और दुष्यन्तका गान्धर्व विवाह और महर्षि कण्वके द्वारा उसका अनुमोदन
७४- शकुन्तलाके पुत्रका जन्म, उसकी अद्भुत शक्ति, पुत्रसहित शकुन्तलाका दुष्यन्तके यहाँ जाना, दुष्यन्त-शकुन्तला-संवाद, आकाशवाणीद्वारा शकुन्तलाकी शुद्धिका समर्थन और भरतका राज्याभिषेक
७५- दक्ष, वैवस्वत मनु तथा उनके पुत्रोंकी उत्पत्ति; पुरूरवा, नहुष और ययातिके चरित्रोंका संक्षेपसे वर्णन
७६- कचका शिष्यभावसे शुक्राचार्य और देवयानीकी सेवामें संलग्न होना और अनेक कष्ट सहनेके पश्चात् मृतसंजीवनी विद्या प्राप्त करना
७७- देवयानीका कचसे पाणिग्रहणके लिये अनुरोध, कचकी अस्वीकृति तथा दोनोंका एक-दूसरेको शाप देना
७८- देवयानी और शर्मिष्ठाका कलह, शर्मिष्ठाद्वारा कुएँमें गिरायी गयी देवयानीको ययातिका निकालना और देवयानीका शुक्राचार्यजीके साथ वार्तालाप
७९- शुक्राचार्यद्वारा देवयानीको समझाना और देवयानीका असंतोष
८०- शुक्राचार्यका वृषपर्वाको फटकारना तथा उसे छोड़कर जानेके लिये उद्यत होना और वृषपर्वाके आदेशसे शर्मिष्ठाका देवयानीकी दासी बनकर शुक्राचार्य तथा देवयानीको संतुष्ट करना
८१- सखियोंसहित देवयानी और शर्मिष्ठाका वन-विहार, राजा ययातिका आगमन, देवयानीकी उनके साथ बातचीत तथा विवाह
८२- ययातिसे देवयानीको पुत्र-प्राप्ति; ययाति और शर्मिष्ठाका एकान्त मिलन और उनसे एक पुत्रका जन्म
८३- देवयानी और शर्मिष्ठाका संवाद, ययातिसे शर्मिष्ठाके पुत्र होनेकी बात जानकर देवयानीका रूठकर पिताके पास जाना, शुक्राचार्यका ययातिको बूढ़े होनेका शाप देना
८४- ययातिका अपने पुत्र यदु, तुर्वसु, द्रुह्यु और अनुसे अपनी युवावस्था देकर वृद्धावस्था लेनेके लिये आग्रह और उनके अस्वीकार करनेपर उन्हें शाप देना, फिर अपने पुत्र पूरुको जरावस्था देकर उनकी युवावस्था लेना तथा उन्हें वर प्रदान करना
८५- राजा ययातिका विषय सेवन और वैराग्य तथा पूरुका राज्याभिषेक करके वनमें जाना
८६- वनमें राजा ययातिकी तपस्या और उन्हें स्वर्गलोककी प्राप्ति
८७- इन्द्रके पूछनेपर ययातिका अपने पुत्र पूरुको दिये हुए उपदेशकी चर्चा करना
८८- ययातिका स्वर्गसे पतन और अष्टकका उनसे प्रश्न करना
८९- ययाति और अष्टकका संवाद
९०- अष्टक और ययातिका संवाद
९१- ययाति और अष्टकका आश्रमधर्मसम्बन्धी संवाद
९२- अष्टक-ययाति-संवाद और ययातिद्वारा दूसरोंके दिये हुए पुण्यदानको अस्वीकार करना
९३- राजा ययातिका वसुमान् और शिबिके प्रतिग्रहको अस्वीकार करना तथा अष्टक आदि चारों राजाओंके साथ स्वर्गमें जाना
९४- पूरुवंशका वर्णन
९५- दक्ष प्रजापतिसे लेकर पूरुवंश, भरतवंश एवं पाण्डुवंशकी परम्पराका वर्णन
९६- महाभिषको ब्रह्माजीका शाप तथा शापग्रस्त वसुओंके साथ गंगाकी बातचीत
९७- राजा प्रतीपका गंगाको पुत्रवधूके रूपमें स्वीकार करना और शान्तनुका जन्म, राज्याभिषेक तथा गंगासे मिलना
९८- शान्तनु और गंगाका कुछ शर्तोंके साथ सम्बन्ध, वसुओंका जन्म और शापसे उद्धार तथा भीष्मकी उत्पत्ति
९९- महर्षि वसिष्ठद्वारा वसुओंको शाप प्राप्त होनेकी कथा
१००- शान्तनुके रूप, गुण और सदाचारकी प्रशंसा, गंगाजीके द्वारा सुशिक्षित पुत्रकी प्राप्ति तथा देवव्रतकी भीष्म-प्रतिज्ञा
१०१- सत्यवतीके गर्भसे चित्रांगद और विचित्रवीर्यकी उत्पत्ति, शान्तनु और चित्रांगदका निधन तथा विचित्रवीर्यका राज्याभिषेक
१०२- भीष्मके द्वारा स्वयंवरसे काशिराजकी कन्याओंका हरण, युद्धमें सब राजाओं तथा शाल्वकी पराजय, अम्बिका और अम्बालिकाके साथ विचित्रवीर्यका विवाह तथा निधन
१०३- सत्यवतीका भीष्मसे राज्यग्रहण और संतानोत्पादनके लिये आग्रह तथा भीष्मके द्वारा अपनी प्रतिज्ञा बतलाते हुए उसकी अस्वीकृति
१०४- भीष्मकी सम्मतिसे सत्यवतीद्वारा व्यासका आवाहन और व्यासजीका माताकी आज्ञासे कुरुवंशकी वृद्धिके लिये विचित्रवीर्यकी पत्नियोंके गर्भसे संतानोत्पादन करनेकी स्वीकृति देना
१०५- व्यासजीके द्वारा विचित्रवीर्यके क्षेत्रसे धृतराष्ट्र, पाण्डु और विदुरकी उत्पत्ति
१०६- महर्षि माण्डव्यका शूलीपर चढ़ाया जाना
१०७- माण्डव्यका धर्मराजको शाप देना
१०८- धृतराष्ट्र आदिके जन्म तथा भीष्मजीके धर्मपूर्ण शासनसे कुरुदेशकी सर्वांगीण उन्नतिका दिग्दर्शन
१०९- राजा धृतराष्ट्रका विवाह
११०- कुन्तीको दुर्वासासे मन्त्रकी प्राप्ति, सूर्यदेवका आवाहन तथा उनके संयोगसे कर्णका जन्म एवं कर्णके द्वारा इन्द्रको कवच और कुण्डलोंका दान
१११- कुन्तीद्वारा स्वयंवरमें पाण्डुका वरण और उनके साथ विवाह
११२- माद्रीके साथ पाण्डुका विवाह तथा राजा पाण्डुकी दिग्विजय
११३- राजा पाण्डुका पत्नियोंसहित वनमें निवास तथा विदुरका विवाह
११४- धृतराष्ट्रके गान्धारीसे एक सौ पुत्र तथा एक कन्याकी तथा सेवा करनेवाली वैश्यजातीय युवतीसे युयुत्सु नामक एक पुत्रकी उत्पत्ति
११५- दुःशलाके जन्मकी कथा
११६- धृतराष्ट्रके सौ पुत्रोंकी नामावली
११७- राजा पाण्डुके द्वारा मृगरूपधारी मुनिका वध तथा उनसे शापकी प्राप्ति
११८- पाण्डुका अनुताप, संन्यास लेनेका निश्चय तथा पत्नियोंके अनुरोधसे वानप्रस्थ-आश्रममें प्रवेश
११९- पाण्डुका कुन्तीको पुत्र-प्राप्तिके लिये प्रयत्न करनेका आदेश
१२०- कुन्तीका पाण्डुको व्युषिताश्वके मृत शरीरसे उसकी पतिव्रता पत्नी भद्राके द्वारा पुत्र-प्राप्तिका कथन
१२१- पाण्डुका कुन्तीको समझाना और कुन्तीका पतिकी आज्ञासे पुत्रोत्पत्तिके लिये धर्मदेवताका आवाहन करनेके लिये उद्यत होना
१२२- युधिष्ठिर, भीम और अर्जुनकी उत्पत्ति
१२३- नकुल और सहदेवकी उत्पत्ति तथा पाण्डु-पुत्रोंके नामकरण-संस्कार
१२४- राजा पाण्डुकी मृत्यु और माद्रीका उनके साथ चितारोहण
१२५- ऋषियोंका कुन्ती और पाण्डवोंको लेकर हस्तिनापुर जाना और उन्हें भीष्म आदिके हाथों सौंपना
१२६- पाण्डु और माद्रीकी अस्थियोंका दाह-संस्कार तथा भाई बन्धुओंद्वारा उनके लिये जलांजलिदान
१२७- पाण्डवों तथा धृतराष्ट्रपुत्रोंकी बालक्रीड़ा, दुर्योधनका भीमसेनको विष खिलाना तथा गंगामें ढकेलना और भीमका नागलोकमें पहुँचकर आठ कुण्डोंके दिव्य रसका पान करना
१२८- भीमसेनके न आनेसे कुन्ती आदिकी चिन्ता, नागलोकसे भीमसेनका आगमन तथा उनके प्रति दुर्योधनकी कुचेष्टा
१२९- कृपाचार्य, द्रोण और अश्वत्थामाकी उत्पत्ति तथा द्रोणको परशुरामजीसे अस्त्र-शस्त्रकी प्राप्तिकी कथा
१३०- द्रोणका द्रुपदसे तिरस्कृत हो हस्तिनापुरमें आना, राजकुमारोंसे उनकी भेंट, उनकी बीटा और अँगूठीको कुएँमेंसे निकालना एवं भीष्मका उन्हें अपने यहाँ सम्मानपूर्वक रखना
१३१- द्रोणाचार्यद्वारा राजकुमारोंकी शिक्षा, एकलव्यकी गुरुभक्ति तथा आचार्यद्वारा शिष्योंकी परीक्षा
१३२- अर्जुनके द्वारा लक्ष्यवेध, द्रोणका ग्राहसे छुटकारा और अर्जुनको ब्रह्मशिर नामक अस्त्रकी प्राप्ति
१३३- राजकुमारोंका रंगभूमिमें अस्त्र-कौशल दिखाना
१३४- भीमसेन, दुर्योधन तथा अर्जुनके द्वारा अस्त्र-कौशलका प्रदर्शन
१३५- कर्णका रंगभूमिमें प्रवेश तथा राज्याभिषेक
१३६- भीमसेनके द्वारा कर्णका तिरस्कार और दुर्योधनद्वारा उसका सम्मान
१३७- द्रोणका शिष्योंद्वारा द्रुपदपर आक्रमण करवाना, अर्जुनका द्रुपदको बंदी बनाकर लाना और द्रोणद्वारा द्रुपदको आधा राज्य देकर मुक्त कर देना
१३८- युधिष्ठिरका युवराजपदपर अभिषेक, पाण्डवोंके शौर्य, कीर्ति और बलके विस्तारसे धृतराष्ट्रको चिन्ता
१३९- कणिकका धृतराष्ट्रको कूटनीतिका उपदेश
जतुगृहपर्व
१४०- पाण्डवोंके प्रति पुरवासियोंका अनुराग देखकर दुर्योधनकी चिन्ता
१४१- दुर्योधनका धृतराष्ट्रसे पाण्डवोंको वारणावत भेज देनेका प्रस्ताव
१४२- धृतराष्ट्रके आदेशसे पाण्डवोंकी वारणावत-यात्रा
१४३- दुर्योधनके आदेशसे पुरोचनका वारणावत नगरमें लाक्षागृह बनाना
१४४- पाण्डवोंकी वारणावत-यात्रा तथा उनको विदुरका गुप्त उपदेश
१४५- वारणावतमें पाण्डवोंका स्वागत, पुरोचनका सत्कारपूर्वक उन्हें ठहराना, लाक्षागृहमें निवासकी व्यवस्था और युधिष्ठिर एवं भीमसेनकी बातचीत
१४६- विदुरके भेजे हुए खनकद्वारा लाक्षागृहमें सुरंगका निर्माण
१४७- लाक्षागृहका दाह और पाण्डवोंका सुरंगके रास्ते निकल जाना
१४८- विदुरजीके भेजे हुए नाविकका पाण्डवोंको गंगाजीके पार उतारना
१४९- धृतराष्ट्र आदिके द्वारा पाण्डवोंके लिये शोकप्रकाश एवं जलांजलिदान तथा पाण्डवोंका वनमें प्रवेश
१५०- माता कुन्तीके लिये भीमसेनका जल ले आना, माता और भाइयोंको भूमिपर सोये देखकर भीमका विषाद एवं दुर्योधनके प्रति उनका क्रोध
हिडिम्बवधपर्व
१५१- हिडिम्बके भेजनेसे हिडिम्बा राक्षसीका पाण्डवोंके पास आना और भीमसेनसे उसका वार्तालाप
१५२- हिडिम्बका आना, हिडिम्बाका उससे भयभीत होना और भीम तथा हिडिम्बासुरका युद्ध
१५३- हिडिम्बाका कुन्ती आदिसे अपना मनोभाव प्रकट करना तथा भीमसेनके द्वारा हिडिम्बा-सुरका वध
१५४- युधिष्ठिरका भीमसेनको हिडिम्बाके वधसे रोकना, हिडिम्बाकी भीमसेनके लिये प्रार्थना, भीमसेन और हिडिम्बाका मिलन तथा घटोत्कचकी उत्पत्ति
१५५- पाण्डवोंको व्यासजीका दर्शन और उनका एकचक्रा नगरीमें प्रवेश
बकवधपर्व
१५६- ब्राह्मणपरिवारका कष्ट दूर करनेके लिये कुन्तीकी भीमसेनसे बातचीत तथा ब्राह्मणके चिन्तापूर्ण उद्‌गार
१५७- ब्राह्मणीका स्वयं मरनेके लिये उद्यत होकर पतिसे जीवित रहनेके लिये अनुरोध करना
१५८- ब्राह्मण-कन्याके त्याग और विवेकपूर्ण वचन तथा कुन्तीका उन सबके पास जाना
१५९- कुन्तीके पूछनेपर ब्राह्मणका उनसे अपने दुःखका कारण बताना
१६०- कुन्ती और ब्राह्मणकी बातचीत
१६१- भीमसेनको राक्षसके पास भेजनेके विषयमें युधिष्ठिर और कुन्तीकी बातचीत
१६२- भीमसेनका भोजन-सामग्री लेकर बकासुरके पास जाना और स्वयं भोजन करना तथा युद्ध करके उसे मार गिराना
१६३- बकासुरके वधसे राक्षसोंका भयभीत होकर पलायन और नगरनिवासियोंकी प्रसन्नता
चैत्ररथपर्व
१६४- पाण्डवोंका एक ब्राह्मणसे विचित्र कथाएँ सुनना
१६५- द्रोणके द्वारा द्रुपदके अपमानित होनेका वृत्तान्त
१६६- द्रुपदके यज्ञसे धृष्टद्युम्न और द्रौपदीकी उत्पत्ति
१६७- कुन्तीकी अपने पुत्रोंसे पूछकर पंचालदेशमें जानेकी तैयारी
१६८- व्यासजीका पाण्डवोंको द्रौपदीके पूर्वजन्मका वृत्तान्त सुनाना
१६९- पाण्डवोंकी पंचाल-यात्रा और अर्जुनके द्वारा चित्ररथ गन्धर्वकी पराजय एवं उन दोनोंकी मित्रता
१७०- सूर्यकन्या तपतीको देखकर राजा संवरणका मोहित होना
१७१- तपती और संवरणकी बातचीत
१७२- वसिष्ठजीकी सहायतासे राजा संवरणको तपतीकी प्राप्ति
१७३- गन्धर्वका वसिष्ठजीकी महत्ता बताते हुए किसी श्रेष्ठ ब्राह्मणको पुरोहित बनानेके लिये आग्रह करना
१७४- वसिष्ठजीके अद्भुत क्षमा-बलके आगे विश्वामित्रजीका पराभव
१७५- शक्तिके शापसे कल्माषपादका राक्षस होना, विश्वामित्रकी प्रेरणासे राक्षसद्वारा वसिष्ठके पुत्रोंका भक्षण और वसिष्ठका शोक
१७६- कल्माषपादका शापसे उद्धार और वसिष्ठजीके द्वारा उन्हें अश्मक नामक पुत्रकी प्राप्ति
१७७- शक्तिपुत्र पराशरका जन्म और पिताकी मृत्युका हाल सुनकर कुपित हुए पराशरको शान्त करनेके लिये वसिष्ठजीका उन्हें और्वोपाख्यान सुनाना
१७८- पितरोंद्वारा और्कके क्रोधका निवारण
१७९- और्व और पितरोंकी बातचीत तथा और्वका अपनी क्रोधाग्निको बडवानलरूपसे समुद्रमें त्यागना
१८०- पुलस्त्य आदि महर्षियोंके समझानेसे पराशरजीके द्वारा राक्षससत्रकी समाप्ति
१८१- राजा कल्माषपादको ब्राह्मणी आंगिरसीका शाप
१८२- पाण्डवोंका धौम्यको अपना पुरोहित बनाना
स्वयंवरपर्व
१८३- पाण्डवोंकी पंचालयात्रा और मार्गमें ब्राह्मणोंसे बातचीत
१८४- पाण्डवोंका द्रुपदकी राजधानीमें जाकर कुम्हारके यहाँ रहना, स्वयंवरसभाका वर्णन तथा धृष्टद्युम्नकी घोषणा
१८५- धृष्टद्युम्नका द्रौपदीको स्वयंवरमें आये हुए राजाओंका परिचय देना
१८६- राजाओंका लक्ष्यवेधके लिये उद्योग और असफल होना
१८७- अर्जुनका लक्ष्यवेध करके द्रौपदीको प्राप्त करना
१८८- द्रुपदको मारनेके लिये उद्यत हुए राजाओंका सामना करनेके लिये भीम और अर्जुनका उद्यत होना और उनके विषयमें भगवान् श्रीकृष्णका बलरामजीसे वार्तालाप
१८९- अर्जुन और भीमसेनके द्वारा कर्ण तथा शल्यकी पराजय और द्रौपदीसहित भीम-अर्जुनका अपने डेरेपर जाना
१९०- कुन्ती, अर्जुन और युधिष्ठिरकी बातचीत, पाँचों पाण्डवोंका द्रौपदीके साथ विवाहका विचार तथा बलराम और श्रीकृष्णकी पाण्डवोंसे भेंट
१९१- धृष्टद्युम्नका गुप्तरूपसे वहाँका सब हाल देखकर राजा द्रुपदके पास आना तथा द्रौपदीके विषयमें द्रुपदका प्रश्न
वैवाहिकपर्व
११२- धृष्टद्युम्नके द्वारा द्रौपदी तथा पाण्डवोंका हाल सुनकर राजा द्रुपदका उनके पास पुरोहितको भेजना तथा पुरोहित और युधिष्ठिरकी बातचीत
१९३- पाण्डवों और कुन्तीका द्रुपदके घरमें जाकर सम्मानित होना और राजा द्रुपदद्वारा पाण्डवोंके शील-स्वभावकी परीक्षा
१९४- द्रुपद और युधिष्ठिरकी बातचीत तथा व्यासजीका आगमन
१९५- व्यासजीके सामने द्रौपदीका पाँच पुरुषोंसे विवाह होनेके विषयमें द्रुपद, धृष्टद्युम्न और युधिष्ठिरका अपने-अपने विचार व्यक्त करना
१९६- व्यासजीका द्रुपदको पाण्डवों तथा द्रौपदीके पूर्वजन्मकी कथा सुनाकर दिव्य दृष्टि देना और द्रुपदका उनके दिव्य रूपोंकी झाँकी करना
१९७- द्रौपदीका पाँचों पाण्डवोंके साथ विवाह
१९८- कुन्तीका द्रौपदीको उपदेश और आशीर्वाद तथा भगवान् श्रीकृष्णका पाण्डवोंके लिये उपहार भेजना
विदुरागमनराज्यलम्भपर्व
१९९- पाण्डवोंके विवाहसे दुर्योधन आदिकी चिन्ता, धृतराष्ट्रका पाण्डवोंके प्रति प्रेमका दिखावा और दुर्योधनकी कुमन्त्रणा
२००- धृतराष्ट्र और दुर्योधनकी बातचीत, शत्रुओंको वशमें करनेके उपाय
२०१- पाण्डवोंको पराक्रमसे दबानेके लिये कर्णकी सम्मति
२०२- भीष्मकी दुर्योधनसे पाण्डवोंको आधा राज्य देनेकी सलाह
२०३- द्रोणाचार्यकी पाण्डवोंको उपहार भेजने और बुलानेकी सम्मति तथा कर्णके द्वारा उनकी सम्मतिका विरोध करनेपर द्रोणाचार्यकी फटकार
२०४- विदुरजीकी सम्मति—द्रोण और भीष्मके वचनोंका ही समर्थन
२०५- धृतराष्ट्रकी आज्ञासे विदुरका द्रुपदके यहाँ जाना और पाण्डवोंको हस्तिनापुर भेजनेका प्रस्ताव करना
२०६- पाण्डवोंका हस्तिनापुरमें आना और आधा राज्य पाकर इन्द्रप्रस्थ नगरका निर्माण करना एवं भगवान् श्रीकृष्ण और बलरामजीका द्वारकाके लिये प्रस्थान
२०७- पाण्डवोंके यहाँ नारदजीका आगमन और उनमें फूट न हो, इसके लिये कुछ नियम बनानेके लिये प्रेरणा करके सुन्द और उपसुन्दकी कथाको प्रस्तावित करना
२०८- सुन्द-उपसुन्दकी तपस्या, ब्रह्माजीके द्वारा उन्हें वर प्राप्त होना और दैत्योंके यहाँ आनन्दोत्सव
२०९- सुन्द और उपसुन्दद्वारा क्रूरतापूर्ण कर्मोंसे त्रिलोकीपर विजय प्राप्त करना
२१०- तिलोत्तमाकी उत्पत्ति, उसके रूपका आकर्षण तथा सुन्दोपसुन्दको मोहित करनेके लिये उसका प्रस्थान
२११- तिलोत्तमापर मोहित होकर सुन्द-उपसुन्दका आपसमें लड़ना और मारा जाना एवं तिलोत्तमाको ब्रह्माजीद्वारा वरप्राप्ति तथा पाण्डवोंका द्रौपदीके विषयमें नियम-निर्धारण
अर्जुनवनवासपर्व
२१२- अर्जुनके द्वारा ब्राह्मणके गोधनकी रक्षाके लिये नियमभंग और वनकी ओर प्रस्थान
२१३- अर्जुनका गंगाद्वारमें ठहरना और वहाँ उनका उलूपीके साथ मिलन
२१४- अर्जुनका पूर्वदिशाके तीर्थोंमें भ्रमण करते हुए मणिपूरमें जाकर चित्रांगदाका पाणिग्रहण करके उसके गर्भसे एक पुत्र उत्पन्न करना
२१५- अर्जुनके द्वारा वर्गा अप्सराका ग्राहयोनिसे उद्धार तथा वर्गाकी आत्मकथाका आरम्भ
२१६- वर्गाकी प्रार्थनासे अर्जुनका शेष चारों अप्सराओंको भी शापमुक्त करके मणिपूर जाना और चित्रांगदासे मिलकर गोकर्णतीर्थको प्रस्थान करना
२१७- अर्जुनका प्रभासतीर्थमें श्रीकृष्णसे मिलना और उन्हींके साथ उनका रैवतक पर्वत एवं द्वारकापुरीमें आना
सुभद्राहरणपर्व
२१८- रैवतक पर्वतके उत्सवमें अर्जुनका सुभद्रापर आसक्त होना और श्रीकृष्ण तथा युधिष्ठिरकी अनुमतिसे उसे हर ले जानेका निश्चय करना
२१९- यादवोंकी युद्धके लिये तैयारी और अर्जुनके प्रति बलरामजीके क्रोधपूर्ण उद्‌गार
हरणाहरणपर्व
२२०- द्वारकामें अर्जुन और सुभद्राका विवाह, अर्जुनके इन्द्रप्रस्थ पहुँचनेपर श्रीकृष्ण आदिका दहेज लेकर वहाँ जाना, द्रौपदीके पुत्र एवं अभिमन्युके जन्म, संस्कार और शिक्षा
खाण्डवदाहपर्व
२२१- युधिष्ठिरके राज्यकी विशेषता, कृष्ण और अर्जुनका खाण्डववनमें जाना तथा उन दोनोंके पास ब्राह्मणवेषधारी अग्निदेवका आगमन
२२२- अग्निदेवका खाण्डववनको जलानेके लिये श्रीकृष्ण और अर्जुनसे सहायताकी याचना करना, अग्निदेव उस वनको क्यों जलाना चाहते थे, इसे बतानेके प्रसंगमें राजा श्वेतकिकी कथा
२२३- अर्जुनका अग्निकी प्रार्थना स्वीकार करके उनसे दिव्य धनुष एवं रथ आदि माँगना
२२४- अग्निदेवका अर्जुन और श्रीकृष्णको दिव्य धनुष, अक्षय तरकस, दिव्य रथ और चक्र आदि प्रदान करना तथा उन दोनोंकी सहायतासे खाण्डववनको जलाना
२२५- खाण्डववनमें जलते हुए प्राणियोंकी दुर्दशा और इन्द्रके द्वारा जल बरसाकर आग बुझानेकी चेष्टा
२२६- देवताओं आदिके साथ श्रीकृष्ण और अर्जुनका युद्ध
मयदर्शनपर्व
२२७- देवताओंकी पराजय, खाण्डववनका विनाश और मयासुरकी रक्षा
२२८- शार्ङ्गकोपाख्यान—मन्दपाल मुनिके द्वारा जरिता-शार्ङ्गिकासे पुत्रोंकी उत्पत्ति और उन्हें बचानेके लिये मुनिका अग्निदेवकी स्तुति करना
२२९- जरिताका अपने बच्चोंकी रक्षाके लिये चिन्तित होकर विलाप करना
२३०- जरिता और उसके बच्चोंका संवाद
२३१- शार्ङ्गकोंके स्तवनसे प्रसन्न होकर अग्निदेवका उन्हें अभय देना
२३२- मन्दपालका अपने बाल-बच्चोंसे मिलना
२३३- इन्द्रदेवका श्रीकृष्ण और अर्जुनको वरदान तथा श्रीकृष्ण, अर्जुन और मयासुरका अग्निसे विदा लेकर एक साथ यमुनातटपर बैठना
2. सभापर्व
सभाक्रियापर्व
१- भगवान् श्रीकृष्णकी आज्ञाके अनुसार मयासुरद्वारा सभाभवन बनानेकी तैयारी
२- श्रीकृष्णकी द्वारकायात्रा
३- मयासुरका भीमसेन और अर्जुनको गदा और शंख लाकर देना तथा उसके द्वारा अद्भुत सभाका निर्माण
४- मयद्वारा निर्मित सभाभवनमें धर्मराज युधिष्ठिरका प्रवेश तथा सभामें स्थित महर्षियों और राजाओं आदिका वर्णन
लोकपालसभाख्यानपर्व
५- नारदजीका युधिष्ठिरकी सभामें आगमन और प्रश्नके रूपमें युधिष्ठिरको शिक्षा देना
६- युधिष्ठिरकी दिव्य सभाओंके विषयमें जिज्ञासा
७- इन्द्रसभाका वर्णन
८- यमराजकी सभाका वर्णन
९- वरुणकी सभाका वर्णन
१०- कुबेरकी सभाका वर्णन
११- ब्रह्माजीकी सभाका वर्णन
१२- राजा हरिश्चन्द्रका माहात्म्य तथा युधिष्ठिरके प्रति राजा पाण्डुका संदेश
राजसूयारम्भपर्व
१३- युधिष्ठिरका राजसूयविषयक संकल्प और उसके विषयमें भाइयों, मन्त्रियों, मुनियों तथा श्रीकृष्णसे सलाह लेना
१४- श्रीकृष्णकी राजसूययज्ञके लिये सम्मति
१५- जरासंधके विषयमें राजा युधिष्ठिर, भीम और श्रीकृष्णकी बातचीत
१६- जरासंधको जीतनेके विषयमें युधिष्ठिरके उत्साहहीन होनेपर अर्जुनका उत्साहपूर्ण उद्‌गार
१७- श्रीकृष्णके द्वारा अर्जुनकी बातका अनुमोदन तथा युधिष्ठिरको जरासंधकी उत्पत्तिका प्रसंग सुनाना
१८- जरा राक्षसीका अपना परिचय देना और उसीके नामपर बालकका नामकरण होना
१९- चण्डकौशिक मुनिके द्वारा जरासंधका भविष्यकथन तथा पिताके द्वारा उसका राज्याभिषेक करके वनमें जाना
जरासंधवधपर्व
२०- युधिष्ठिरके अनुमोदन करनेपर श्रीकृष्ण, अर्जुन और भीमसेनकी मगध-यात्रा
२१- श्रीकृष्णद्वारा मगधकी राजधानीकी प्रशंसा, चैत्यक पर्वतशिखर और नगाड़ोंको तोड़-फोड़कर तीनोंका नगर एवं राज-भवनमें प्रवेश तथा श्रीकृष्ण और जरासंधका संवाद
२२- जरासंध और श्रीकृष्णका संवाद तथा जरासंधकी युद्धके लिये तैयारी एवं जरासंधका श्रीकृष्णके साथ वैर होनेके कारणका वर्णन
२३- जरासंधका भीमसेनके साथ युद्ध करनेका निश्चय, भीम और जरासंधका भयानक युद्ध तथा जरासंधकी थकावट
२४- भीमके द्वारा जरासंधका वध, बंदी राजाओंकी मुक्ति, श्रीकृष्ण आदिका भेंट लेकर इन्द्रप्रस्थमें आना और वहाँसे श्रीकृष्णका द्वारका जाना
दिग्विजयपर्व
२५- अर्जुन आदि चारों भाइयोंकी दिग्विजयके लिये यात्रा
२६- अर्जुनके द्वारा अनेक देशों, राजाओं तथा भगदत्तकी पराजय
२७- अर्जुनका अनेक पर्वतीय देशोंपर विजय पाना
२८- किम्पुरुष, हाटक तथा उत्तरकुरुपर विजय प्राप्त करके अर्जुनका इन्द्रप्रस्थ लौटना
२९- भीमसेनका पूर्व दिशाको जीतनेके लिये प्रस्थान और विभिन्न देशोंपर विजय पाना
३०- भीमका पूर्व दिशाके अनेक देशों तथा राजाओंको जीतकर भारी धन-सम्पत्तिके साथ इन्द्रप्रस्थमें लौटना
३१- सहदेवके द्वारा दक्षिण दिशाकी विजय
३२- नकुलके द्वारा पश्चिम दिशाकी विजय
राजसूयपर्व
३३- युधिष्ठिरके शासनकी विशेषता, श्रीकृष्णकी आज्ञासे युधिष्ठिरका राजसूययज्ञकी दीक्षा लेना तथा राजाओं, ब्राह्मणों एवं सगे-सम्बन्धियोंको बुलानेके लिये निमन्त्रण भेजना
३४- युधिष्ठिरके यज्ञमें सब देशके राजाओं, कौरवों तथा यादवोंका आगमन और उन सबके भोजन-विश्राम आदिकी सुव्यवस्था
३५- राजसूययज्ञका वर्णन
अर्घाभिहरणपर्व
३६- राजसूययज्ञमें ब्राह्मणों तथा राजाओंका समागम, श्रीनारदजीके द्वारा श्रीकृष्ण-महिमाका वर्णन और भीष्मजीकी अनुमतिसे श्रीकृष्णकी अग्रपूजा
३७- शिशुपालके आक्षेपपूर्ण वचन
३८- युधिष्ठिरका शिशुपालको समझाना और भीष्मजीका उसके आक्षेपोंका उत्तर देना
३९- सहदेवकी राजाओंको चुनौती तथा क्षुब्ध हुए शिशुपाल आदि नरेशोंका युद्धके लिये उद्यत होना
शिशुपालवधपर्व
४०- युधिष्ठिरकी चिन्ता और भीष्मजीका उन्हें सान्त्वना देना
४१- शिशुपालद्वारा भीष्मकी निन्दा
४२- शिशुपालकी बातोंपर भीमसेनका क्रोध और भीष्मजीका उन्हें शान्त करना
४३- भीष्मजीके द्वारा शिशुपालके जन्मके वृत्तान्तका वर्णन
४४- भीष्मकी बातोंसे चिढ़े हुए शिशुपालका उन्हें फटकारना तथा भीष्मका श्रीकृष्णसे युद्ध करनेके लिये समस्त राजाओंको चुनौती देना
४५- श्रीकृष्णके द्वारा शिशुपालका वध, राजसूययज्ञकी समाप्ति तथा सभी ब्राह्मणों, राजाओं और श्रीकृष्णका स्वदेशगमन
द्यूतपर्व
४६- व्यासजीकी भविष्यवाणीसे युधिष्ठिरकी चिन्ता और समत्वपूर्ण बर्ताव करनेकी प्रतिज्ञा
४७- दुर्योधनका मयनिर्मित सभाभवनको देखना और पग-पगपर भ्रमके कारण उपहासका पात्र बनना तथा युधिष्ठिरके वैभवको देखकर उसका चिन्तित होना
४८- पाण्डवोंपर विजय प्राप्त करनेके लिये शकुनि और दुर्योधनकी बातचीत
४९- धृतराष्ट्रके पूछनेपर दुर्योधनका अपनी चिन्ता बताना और द्यूतके लिये धृतराष्ट्रसे अनुरोध करना एवं धृतराष्ट्रका विदुरको इन्द्रप्रस्थ जानेका आदेश
५०- दुर्योधनका धृतराष्ट्रको अपने दुःख और चिन्ताका कारण बताना
५१- युधिष्ठिरको भेंटमें मिली हुई वस्तुओंका दुर्योधनद्वारा वर्णन
५२- युधिष्ठिरको भेंटमें मिली हुई वस्तुओंका दुर्योधनद्वारा वर्णन
५३- दुर्योधनद्वारा युधिष्ठिरके अभिषेकका वर्णन
५४- धृतराष्ट्रका दुर्योधनको समझाना
५५- दुर्योधनका धृतराष्ट्रको उकसाना
५६- धृतराष्ट्र और दुर्योधनकी बातचीत, द्यूतक्रीड़ाके लिये सभानिर्माण और धृतराष्ट्रका युधिष्ठिरको बुलानेके लिये विदुरको आज्ञा देना
५७- विदुर और धृतराष्ट्रकी बातचीत
५८- विदुर और युधिष्ठिरकी बातचीत तथा युधिष्ठिरका हस्तिनापुरमें जाकर सबसे मिलना
५९- जूएके अनौचित्यके सम्बन्धमें युधिष्ठिर और शकुनिका संवाद
६०- द्यूतक्रीड़ाका आरम्भ
६१- जूएमें शकुनिके छलसे प्रत्येक दाँवपर युधिष्ठिरकी हार
६२- धृतराष्ट्रको विदुरकी चेतावनी
६३- विदुरजीके द्वारा जूएका घोर विरोध
६४- दुर्योधनका विदुरको फटकारना और विदुरका उसे चेतावनी देना
६५- युधिष्ठिरका धन, राज्य, भाइयों तथा द्रौपदी-सहित अपनेको भी हारना
६६- विदुरका दुर्योधनको फटकारना
६७- प्रातिकामीके बुलानेसे न आनेपर दुःशासनका सभामें द्रौपदीको केश पकड़कर घसीटकर लाना एवं सभासदोंसे द्रौपदीका प्रश्न
६८- भीमसेनका क्रोध एवं अर्जुनका उन्हें शान्त करना, विकर्णकी धर्मसंगत बातका कर्णके द्वारा विरोध, द्रौपदीका चीरहरण एवं भगवान्‌द्वारा उसकी लज्जारक्षा तथा विदुरके द्वारा प्रह्लादका उदाहरण देकर सभासदोंको विरोधके लिये प्रेरित करना
६९- द्रौपदीका चेतावनीयुक्त विलाप एवं भीष्मका वचन
७०- दुर्योधनके छल-कपटयुक्त वचन और भीमसेनका रोषपूर्ण उद्‌गार
७१- कर्ण और दुर्योधनके वचन, भीमसेनकी प्रतिज्ञा, विदुरकी चेतावनी और द्रौपदीको धृतराष्ट्रसे वरप्राप्ति
७२- शत्रुओंको मारनेके लिये उद्यत हुए भीमको युधिष्ठिरका शान्त करना
७३- धृतराष्ट्रका युधिष्ठिरको सारा धन लौटाकर एवं समझा-बुझाकर इन्द्रप्रस्थ जानेका आदेश देना
अनुद्यूतपर्व
७४- दुर्योधनका धृतराष्ट्रसे अर्जुनकी वीरता बतलाकर पुनः द्यूतक्रीड़ाके लिये पाण्डवोंको बुलानेका अनुरोध और उनकी स्वीकृति
७५- गान्धारीकी धृतराष्ट्रको चेतावनी और धृतराष्ट्रका अस्वीकार करना
७६- सबके मना करनेपर भी धृतराष्ट्रकी आज्ञासे युधिष्ठिरका पुनः जूआ खेलना और हारना
७७- दुःशासनद्वारा पाण्डवोंका उपहास एवं भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेवकी शत्रुओंको मारनेके लिये भीषण प्रतिज्ञा
७८- युधिष्ठिरका धृतराष्ट्र आदिसे विदा लेना, विदुरका कुन्तीको अपने यहाँ रखनेका प्रस्ताव और पाण्डवोंको धर्मपूर्वक रहनेका उपदेश देना
७९- द्रौपदीका कुन्तीसे विदा लेना तथा कुन्तीका विलाप एवं नगरके नर-नारियोंका शोकातुर होना
८०- वनगमनके समय पाण्डवोंकी चेष्टा और प्रजाजनोंकी शोकातुरताके विषयमें धृतराष्ट्र तथा विदुरका संवाद और शरणागत कौरवोंको द्रोणाचार्यका आश्वासन
८१- धृतराष्ट्रकी चिन्ता और उनका संजयके साथ वार्तालाप
निवेदन
महाभारत-सार
Mahabharata: Bhag: 2
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विषय-सूची
चित्र-सूची
3. वनपर्व
अरण्यपर्व
१- पाण्डवोंका वनगमन, पुरवासियोंद्वारा उनका अनुगमन और युधिष्ठिरके अनुरोध करनेपर उनमेंसे बहुतोंका लौटना तथा पाण्डवोंका प्रमाणकोटितीर्थमें रात्रिवास
२- धनके दोष, अतिथि-सत्कारकी महत्ता तथा कल्याणके उपायोंके विषयमें धर्मराज युधिष्ठिरसे ब्राह्मणों तथा शौनकजीकी बातचीत
३- युधिष्ठिरके द्वारा अन्नके लिये भगवान् सूर्यकी उपासना और उनसे अक्षयपात्रकी प्राप्ति
४- विदुरजीका धृतराष्ट्रको हितकी सलाह देना और धृतराष्ट्रका रुष्ट होकर महलमें चला जाना
५- पाण्डवोंका काम्यकवनमें प्रवेश और विदुरजीका वहाँ जाकर उनसे मिलना और बातचीत करना
६- धृतराष्ट्रका संजयको भेजकर विदुरको वनसे बुलवाना और उनसे क्षमा-प्रार्थना
७- दुर्योधन, दुःशासन, शकुनि और कर्णकी सलाह, पाण्डवोंका वध करनेके लिये उनका वनमें जानेकी तैयारी तथा व्यासजीका आकर उनको रोकना
८- व्यासजीका धृतराष्ट्रसे दुर्योधनके अन्यायको रोकनेके लिये अनुरोध
९- व्यासजीके द्वारा सुरभि और इन्द्रके उपाख्यानका वर्णन तथा उनका पाण्डवोंके प्रति दया दिखलाना
१०- व्यासजीका जाना, मैत्रेयजीका धृतराष्ट्र और दुर्योधनसे पाण्डवोंके प्रति सद्भावका अनुरोध तथा दुर्योधनके अशिष्ट व्यवहारसे रुष्ट होकर उसे शाप देना
किर्मीरवधपर्व
११- भीमसेनके द्वारा किर्मीरके वधकी कथा
अर्जुनाभिगमनपर्व
१२- अर्जुन और द्रौपदीके द्वारा भगवान् श्रीकृष्णकी स्तुति, द्रौपदीका भगवान् श्रीकृष्णसे अपने प्रति किये गये अपमान और दुःखका वर्णन और भगवान् श्रीकृष्ण, अर्जुन एवं धृष्टद्युम्नका उसे आश्वासन देना
१३- श्रीकृष्णका जूएके दोष बताते हुए पाण्डवोंपर आयी हुई विपत्तिमें अपनी अनुपस्थितिको कारण मानना
१४- द्यूतके समय न पहुँचनेमें श्रीकृष्णके द्वारा शाल्वके साथ युद्ध करने और सौभविमानसहित उसे नष्ट करनेका संक्षिप्त वर्णन
१५- सौभनाशकी विस्तृत कथाके प्रसंगमें द्वारकामें युद्धसम्बन्धी रक्षात्मक तैयारियोंका वर्णन
१६- शाल्वकी विशाल सेनाके आक्रमणका यादव-सेनाद्वारा प्रतिरोध, साम्बद्वारा क्षेमवृद्धिकी पराजय, वेगवान्‌का वध तथा चारुदेष्णद्वारा विविन्ध्यदैत्यका वध एवं प्रद्युम्नद्वारा सेनाको आश्वासन
१७- प्रद्युम्न और शाल्वका घोर युद्ध
१८- मूर्च्छावस्थामें सारथिके द्वारा रणभूमिसे बाहर लाये जानेपर प्रद्युम्नका अनुताप और इसके लिये सारथिको उपालम्भ देना
१९- प्रद्युम्नके द्वारा शाल्वकी पराजय
२०- श्रीकृष्ण और शाल्वका भीषण युद्ध
२१- श्रीकृष्णका शाल्वकी मायासे मोहित होकर पुनः सजग होना
२२- शाल्ववधोपाख्यानकी समाप्ति और युधिष्ठिरकी आज्ञा लेकर श्रीकृष्ण, धृष्टद्युम्न तथा अन्य सब राजाओंका अपने-अपने नगरको प्रस्थान
२३- पाण्डवोंका द्वैतवनमें जानेके लिये उद्यत होना और प्रजावर्गकी व्याकुलता
२४- पाण्डवोंका द्वैतवनमें जाना
२५- महर्षि मार्कण्डेयका पाण्डवोंको धर्मका आदेश देकर उत्तर दिशाकी ओर प्रस्थान
२६- दल्भपुत्र बकका युधिष्ठिरको ब्राह्मणोंका महत्त्व बतलाना
२७- द्रौपदीका युधिष्ठिरसे उनके शत्रुविषयक क्रोधको उभाड़नेके लिये संतापपूर्ण वचन
२८- द्रौपदीद्वारा प्रह्लाद-बलि-संवादका वर्णन—तेज और क्षमाके अवसर
२९- युधिष्ठिरके द्वारा क्रोधकी निन्दा और क्षमा-भावकी विशेष प्रशंसा
३०- दुःखसे मोहित द्रौपदीका युधिष्ठिरकी बुद्धि, धर्म एवं ईश्वरके न्यायपर आक्षेप
३१- युधिष्ठिरद्वारा द्रौपदीके आक्षेपका समाधान तथा ईश्वर, धर्म और महापुरुषोंके आदरसे लाभ और अनादरसे हानि
३२- द्रौपदीका पुरुषार्थको प्रधान मानकर पुरुषार्थ करनेके लिये जोर देना
३३- भीमसेनका पुरुषार्थकी प्रशंसा करना और युधिष्ठिरको उत्तेजित करते हुए क्षत्रिय-धर्मके अनुसार युद्ध छेड़नेका अनुरोध
३४- धर्म और नीतिकी बात कहते हुए युधिष्ठिरकी अपनी प्रतिज्ञाके पालनरूप धर्मपर ही डटे रहनेकी घोषणा
३५- दुःखित भीमसेनका युधिष्ठिरको युद्धके लिये उत्साहित करना
३६- युधिष्ठिरका भीमसेनको समझाना, व्यासजीका आगमन और युधिष्ठिरको प्रतिस्मृतिविद्याप्रदान तथा पाण्डवोंका पुनः काम्यकवनगमन
३७- अर्जुनका सब भाई आदिसे मिलकर इन्द्रकील पर्वतपर जाना एवं इन्द्रका दर्शन करना
कैरातपर्व
३८- अर्जुनकी उग्र तपस्या और उसके विषयमें ऋषियोंका भगवान् शंकरके साथ वार्तालाप
३९- भगवान् शंकर और अर्जुनका युद्ध, अर्जुनपर उनका प्रसन्न होना एवं अर्जुनके द्वारा भगवान् शंकरकी स्तुति
४०- भगवान् शंकरका अर्जुनको वरदान देकर अपने धामको प्रस्थान
४१- अर्जुनके पास दिक्पालोंका आगमन एवं उन्हें दिव्यास्त्र-प्रदान तथा इन्द्रका उन्हें स्वर्गमें चलनेका आदेश देना
इन्द्रलोकाभिगमनपर्व
४२- अर्जुनका हिमालयसे विदा होकर मातलिके साथ स्वर्गलोकको प्रस्थान
४३- अर्जुनद्वारा देवराज इन्द्रका दर्शन तथा इन्द्रसभामें उनका स्वागत
४४- अर्जुनको अस्त्र और संगीतकी शिक्षा
४५- चित्रसेन और उर्वशीका वार्तालाप
४६- उर्वशीका कामपीड़ित होकर अर्जुनके पास जाना और उनके अस्वीकार करनेपर उन्हें शाप देकर लौट आना
४७- लोमश मुनिका स्वर्गमें इन्द्र और अर्जुनसे मिलकर उनका संदेश ले काम्यकवनमें आना
४८- दुःखित धृतराष्ट्रका संजयके सम्मुख अपने पुत्रोंके लिये चिन्ता करना
४९- संजयके द्वारा धृतराष्ट्रकी बातोंका अनुमोदन और धृतराष्ट्रका संताप
५०- वनमें पाण्डवोंका आहार
५१- संजयका धृतराष्ट्रके प्रति श्रीकृष्णादिके द्वारा की हुई दुर्योधनादिके वधकी प्रतिज्ञाका वृत्तान्त सुनाना
नलोपाख्यानपर्व
५२- भीमसेन-युधिष्ठिर-संवाद, बृहदश्वका आगमन तथा युधिष्ठिरके पूछनेपर बृहदश्वके द्वारा नलोपाख्यानकी प्रस्तावना
५३- नल-दमयन्तीके गुणोंका वर्णन, उनका परस्पर अनुराग और हंसका दमयन्ती और नलको एक-दूसरेके संदेश सुनाना
५४- स्वर्गमें नारद और इन्द्रकी बातचीत, दमयन्तीके स्वयंवरके लिये राजाओं तथा लोकपालोंका प्रस्थान
५५- नलका दूत बनकर राजमहलमें जाना और दमयन्तीको देवताओंका संदेश सुनाना
५६- नलका दमयन्तीसे वार्तालाप करना और लौटकर देवताओंको उसका सन्देश सुनाना
५७- स्वयंवरमें दमयन्तीद्वारा नलका वरण, देवताओंका नलको वर देना, देवताओं और राजाओंका प्रस्थान, नल-दमयन्तीका विवाह एवं नलका यज्ञानुष्ठान और संतानोत्पादन
५८- देवताओंके द्वारा नलके गुणोंका गान और उनके निषेध करनेपर भी नलके विरुद्ध कलियुगका कोप
५९- नलमें कलियुगका प्रवेश एवं नल और पुष्करकी द्यूतक्रीडा, प्रजा और दमयन्तीके निवारण करनेपर भी राजाका द्यूतसे निवृत्त नहीं होना
६०- दुःखित दमयन्तीका वार्ष्णेयके द्वारा कुमार-कुमारीको कुण्डिनपुर भेजना
६१- नलका जूएमें हारकर दमयन्तीके साथ वनको जाना और पक्षियोंद्वारा आपद्ग्रस्त नलके वस्त्रका अपहरण
६२- राजा नलकी चिन्ता और दमयन्तीको अकेली सोती छोड़कर उनका अन्यत्र प्रस्थान
६३- दमयन्तीका विलाप तथा अजगर एवं व्याधसे उसके प्राण एवं सतीत्वकी रक्षा तथा दमयन्तीके पातिव्रत्यधर्मके प्रभावसे व्याधका विनाश
६४- दमयन्तीका विलाप और प्रलाप, तपस्वियोंद्वारा दमयन्तीको आश्वासन तथा उसकी व्यापारियों-के दलसे भेंट
६५- जंगली हाथियोंद्वारा व्यापारियोंके दलका सर्वनाश तथा दुःखित दमयन्तीका चेदिराजके भवनमें सुखपूर्वक निवास
६६- राजा नलके द्वारा दावानलसे कर्कोटक नागकी रक्षा तथा नागद्वारा नलको आश्वासन
६७- राजा नलका ऋतुपर्णके यहाँ अश्वाध्यक्षके पदपर नियुक्त होना और वहाँ दमयन्तीके लिये निरन्तर चिन्तित रहना तथा उनकी जीवलसे बातचीत
६८- विदर्भराजका नल-दमयन्तीकी खोजके लिये ब्राह्मणोंको भेजना, सुदेव ब्राह्मणका चेदिराजके भवनमें जाकर मन-ही-मन दमयन्तीके गुणोंका चिन्तन और उससे भेंट करना
६९- दमयन्तीका अपने पिताके यहाँ जाना और वहाँसे नलको ढूँढ़नेके लिये अपना संदेश देकर ब्राह्मणोंको भेजना
७०- पर्णादका दमयन्तीसे बाहुकरूपधारी नलका समाचार बताना और दमयन्तीका ऋतुपर्णके यहाँ सुदेव नामक ब्राह्मणको स्वयंवरका संदेश देकर भेजना
७१- राजा ऋतुपर्णका विदर्भदेशको प्रस्थान, राजा नलके विषयमें वार्ष्णेयका विचार और बाहुककी अद्भुत अश्वसंचालन-कलासे वार्ष्णेय और ऋतुपर्णका प्रभावित होना
७२- ऋतुपर्णके उत्तरीय वस्त्र गिरने और बहेड़ेके वृक्षके फलोंको गिननेके विषयमें नलके साथ ऋतुपर्णकी बातचीत, ऋतुपर्णसे नलको द्यूत-विद्याके रहस्यकी प्राप्ति और उनके शरीरसे कलियुगका निकलना
७३- ऋतुपर्णका कुण्डिनपुरमें प्रवेश, दमयन्तीका विचार तथा भीमके द्वारा ऋतुपर्णका स्वागत
७४- बाहुक-केशिनी-संवाद
७५- दमयन्तीके आदेशसे केशिनीद्वारा बाहुककी परीक्षा तथा बाहुकका अपने लड़के-लड़कियोंको देखकर उनसे प्रेम करना
७६- दमयन्ती और बाहुककी बातचीत, नलका प्राकट्य और नल-दमयन्ती-मिलन
७७- नलके प्रकट होनेपर विदर्भनगरमें महान् उत्सवका आयोजन, ऋतुपर्णके साथ नलका वार्तालाप और ऋतुपर्णका नलसे अश्वविद्या सीखकर अयोध्या जाना
७८- राजा नलका पुष्करको जुएमें हराना और उसको राजधानीमें भेजकर अपने नगरमें प्रवेश करना
७९- राजा नलके आख्यानके कीर्तनका महत्त्व, बृहदश्व मुनिका युधिष्ठिरको आश्वासन देना तथा द्यूतविद्या और अश्वविद्याका रहस्य बताकर जाना
तीर्थयात्रापर्व
८०- अर्जुनके लिये द्रौपदीसहित पाण्डवोंकी चिन्ता
८१- युधिष्ठिरके पास देवर्षि नारदका आगमन और तीर्थयात्राके फलके सम्बन्धमें पूछनेपर नारदजी-द्वारा भीष्म-पुलस्त्य-संवादकी प्रस्तावना
८२- भीष्मजीके पूछनेपर पुलस्त्यजीका उन्हें विभिन्न तीर्थोंकी यात्राका माहात्म्य बताना
८३- कुरुक्षेत्रकी सीमामें स्थित अनेक तीर्थोंकी महत्ताका वर्णन
८४- नाना प्रकारके तीर्थोंकी महिमा
८५- गंगासागर, अयोध्या, चित्रकूट, प्रयाग आदि विभिन्न तीर्थोंकी महिमाका वर्णन और गंगाका माहात्म्य
८६- युधिष्ठिरका धौम्य मुनिसे पुण्य तपोवन, आश्रम एवं नदी आदिके विषयमें पूछना
८७- धौम्यद्वारा पूर्वदिशाके तीर्थोंका वर्णन
८८- धौम्यमुनिके द्वारा दक्षिणदिशावर्ती तीर्थोंका वर्णन
८९- धौम्यद्वारा पश्चिम दिशाके तीर्थोंका वर्णन
९०- धौम्यद्वारा उत्तर दिशाके तीर्थोंका वर्णन
९१- महर्षि लोमशका आगमन और युधिष्ठिरसे अर्जुनके पाशुपत आदि दिव्यास्त्रोंकी प्राप्तिका वर्णन तथा इन्द्रका संदेश सुनाना
९२- महर्षि लोमशके मुखसे इन्द्र और अर्जुनका संदेश सुनकर युधिष्ठिरका प्रसन्न होना और तीर्थयात्राके लिये उद्यत हो अपने अधिक साथियोंको विदा करना
९३- ऋषियोंको नमस्कार करके पाण्डवोंका तीर्थ-यात्राके लिये विदा होना
९४- देवताओं और धर्मात्मा राजाओंका उदाहरण देकर महर्षि लोमशका युधिष्ठिरको अधर्मसे हानि बताना और तीर्थयात्राजनित पुण्यकी महिमाका वर्णन करते हुए आश्वासन देना
९५- पाण्डवोंका नैमिषारण्य आदि तीर्थोंमें जाकर प्रयाग तथा गयातीर्थमें जाना और गय राजाके महान् यज्ञोंकी महिमा सुनना
९६- इल्वल और वातापिका वर्णन, महर्षि अगस्त्यका पितरोंके उद्धारके लिये विवाह करनेका विचार तथा विदर्भराजका महर्षि अगस्त्यसे एक कन्या पाना
९७- महर्षि अगस्त्यका लोपामुद्रासे विवाह, गंगाद्वारमें तपस्या एवं पत्नीकी इच्छासे धनसंग्रहके लिये प्रस्थान
९८- धन प्राप्त करनेके लिये अगस्त्यका श्रुतर्वा, ब्रध्नश्व और त्रसदस्यु आदिके पास जाना
९९- अगस्त्यजीका इल्वलके यहाँ धनके लिये जाना, वातापि तथा इल्वलका वध, लोपामुद्राको पुत्रकी प्राप्ति तथा श्रीरामके द्वारा हरे हुए तेजकी परशुरामजीको तीर्थस्नानद्वारा पुनः प्राप्ति
१००- वृत्रासुरसे त्रस्त देवताओंको महर्षि दधीचका अस्थिदान एवं वज्रका निर्माण
१०१- वृत्रासुरका वध और असुरोंकी भयंकर मन्त्रणा
१०२- कालेयोंद्वारा तपस्वियों, मुनियों और ब्रह्मचारियों आदिका संहार तथा देवताओंद्वारा भगवान् विष्णुकी स्तुति
१०३- भगवान् विष्णुके आदेशसे देवताओंका महर्षि अगस्त्यके आश्रमपर जाकर उनकी स्तुति करना
१०४- अगस्त्यजीका विन्ध्यपर्वतको बढ़नेसे रोकना और देवताओंके साथ सागर-तटपर जाना
१०५- अगस्त्यजीके द्वारा समुद्रपान और देवताओंका कालेय दैत्योंका वध करके ब्रह्माजीसे समुद्रको पुनः भरनेका उपाय पूछना
१०६- राजा सगरका सन्तानके लिये तपस्या करना और शिवजीके द्वारा वरदान पाना
१०७- सगरके पुत्रोंकी उत्पत्ति, साठ हजार सगरपुत्रोंका कपिलकी क्रोधाग्निसे भस्म होना, असमंजसका परित्याग, अंशुमान्‌के प्रयत्नसे सगरके यज्ञकी पूर्ति, अंशुमान्‌से दिलीपको और दिलीपसे भगीरथको राज्यकी प्राप्ति
१०८- भगीरथका हिमालयपर तपस्याद्वारा गंगा और महादेवजीको प्रसन्न करके उनसे वर प्राप्त करना
१०९- पृथ्वीपर गंगाजीके उतरने और समुद्रको जलसे भरनेका विवरण तथा सगरपुत्रोंका उद्धार
११०- नन्दा तथा कौशिकीका माहात्म्य, ऋष्यशृंग मुनिका उपाख्यान और उनको अपने राज्यमें लानेके लिये राजा लोमपादका प्रयत्न
१११- वेश्याका ऋष्यशृंगको लुभाना और विभाण्डक मुनिका आश्रमपर आकर अपने पुत्रकी चिन्ताका कारण पूछना
११२- ऋष्यशृंगका पिताको अपनी चिन्ताका कारण बताते हुए ब्रह्मचारीरूपधारी वेश्याके स्वरूप और आचरणका वर्णन
११३- ऋष्यशृंगका अंगराज लोमपादके यहाँ जाना, राजाका उन्हें अपनी कन्या देना, राजाद्वारा विभाण्डक मुनिका सत्कार तथा उनपर मुनिका प्रसन्न होना
११४- युधिष्ठिरका कौशिकी, गंगासागर एवं वैतरणी नदी होते हुए महेन्द्रपर्वतपर गमन
११५- अकृतव्रणके द्वारा युधिष्ठिरसे परशुरामजीके उपाख्यानके प्रसंगमें ऋचीक मुनिका गाधि-कन्याके साथ विवाह और भृगुऋषिकी कृपासे जमदग्निकी उत्पत्तिका वर्णन
११६- पिताकी आज्ञासे परशुरामजीका अपनी माताका मस्तक काटना और उन्हींके वरदानसे पुनः जिलाना, परशुरामजीद्वारा कार्तवीर्य-अर्जुनका वध और उसके पुत्रोंद्वारा जमदग्नि मुनिकी हत्या
११७- परशुरामजीका पिताके लिये विलाप और पृथ्वीको इक्कीस बार निःक्षत्रिय करना एवं महाराज युधिष्ठिरके द्वारा परशुरामजीका पूजन
११८- युधिष्ठिरका विभिन्न तीर्थोंमें होते हुए प्रभासक्षेत्रमें पहुँचकर तपस्यामें प्रवृत्त होना और यादवोंका पाण्डवोंसे मिलना
११९- प्रभासतीर्थमें बलरामजीके पाण्डवोंके प्रति सहानुभूतिसूचक दुःखपूर्ण उद्‌गार
१२०- सात्यकिके शौर्यपूर्ण उद्‌गार तथा युधिष्ठिरद्वारा श्रीकृष्णके वचनोंका अनुमोदन एवं पाण्डवोंका पयोष्णी नदीके तटपर निवास
१२१- राजा गयके यज्ञकी प्रशंसा, पयोष्णी, वैदूर्य पर्वत और नर्मदाके माहात्म्य तथा च्यवन-सुकन्याके चरित्रका आरम्भ
१२२- महर्षि च्यवनको सुकन्याकी प्राप्ति
१२३- अश्विनीकुमारोंकी कृपासे महर्षि च्यवनको सुन्दर रूप और युवावस्थाकी प्राप्ति
१२४- शर्यातिके यज्ञमें च्यवनका इन्द्रपर कोप करके वज्रको स्तम्भित करना और उसे मारनेके लिये मदासुरको उत्पन्न करना
१२५- अश्विनीकुमारोंका यज्ञमें भाग स्वीकार कर लेनेपर इन्द्रका संकटमुक्त होना तथा लोमशजीके द्वारा अन्यान्य तीर्थोंके महत्त्वका वर्णन
१२६- राजा मान्धाताकी उत्पत्ति और संक्षिप्त चरित्र
१२७- सोमक और जन्तुका उपाख्यान
१२८- सोमकको सौ पुत्रोंकी प्राप्ति तथा सोमक और पुरोहितका समानरूपसे नरक और पुण्यलोकोंका उपभोग करना
१२९- कुरुक्षेत्रके द्वारभूत प्लक्षप्रस्रवण नामक यमुना-तीर्थ एवं सरस्वतीतीर्थकी महिमा
१३०- विभिन्न तीर्थोंकी महिमा और राजा उशीनरकी कथाका आरम्भ
१३१- राजा उशीनरद्वारा बाजको अपने शरीरका मांस देकर शरणमें आये हुए कबूतरके प्राणोंकी रक्षा करना
१३२- अष्टावक्रके जन्मका वृत्तान्त और उनका राजा जनकके दरबारमें जाना
१३३- अष्टावक्रका द्वारपाल तथा राजा जनकसे वार्तालाप
१३४- बन्दी और अष्टावक्रका शास्त्रार्थ, बन्दीकी पराजय तथा समंगामें स्नानसे अष्टावक्रके अंगोंका सीधा होना
१३५- कर्दमिलक्षेत्र आदि तीर्थोंकी महिमा, रैभ्य एवं भरद्वाजपुत्र यवक्रीत मुनिकी कथा तथा ऋषियोंका अनिष्ट करनेके कारण मेधावीकी मृत्यु
१३६- यवक्रीतका रैभ्यमुनिकी पुत्रवधूके साथ व्यभिचार और रैभ्यमुनिके क्रोधसे उत्पन्न राक्षसके द्वारा उसकी मृत्यु
१३७- भरद्वाजका पुत्रशोकसे विलाप करना, रैभ्यमुनिको शाप देना एवं स्वयं अग्निमें प्रवेश करना
१३८- अर्वावसुकी तपस्याके प्रभावसे परावसुका ब्रह्महत्यासे मुक्त होना और रैभ्य, भरद्वाज तथा यवक्रीत आदिका पुनर्जीवित होना
१३९- पाण्डवोंकी उत्तराखण्ड-यात्रा और लोमशजी-द्वारा उसकी दुर्गमताका कथन
१४०- भीमसेनका उत्साह तथा पाण्डवोंका कुलिन्दराज सुबाहुके राज्यमें होते हुए गन्धमादन और हिमालय पर्वतको प्रस्थान
१४१- युधिष्ठिरका भीमसेनसे अर्जुनको न देखनेके कारण मानसिक चिन्ता प्रकट करना एवं उनके गुणोंका स्मरण करते हुए गन्धमादन पर्वतपर जानेका दृढ़ निश्चय करना
१४२- पाण्डवोंद्वारा गंगाजीकी वन्दना, लोमशजीका नरकासुरके वध और भगवान् वाराहद्वारा वसुधाके उद्धारकी कथा कहना
१४३- गन्धमादनकी यात्राके समय पाण्डवोंका आँधी-पानीसे सामना
१४४- द्रौपदीकी मूर्छा, पाण्डवोंके उपचारसे उसका सचेत होना तथा भीमसेनके स्मरण करनेपर घटोत्कचका आगमन
१४५- घटोत्कच और उसके साथियोंकी सहायतासे पाण्डवोंका गन्धमादन पर्वत एवं बदरिकाश्रममें प्रवेश तथा बदरीवृक्ष, नर-नारायणाश्रम और गंगाका वर्णन
१४६- भीमसेनका सौगन्धिक कमल लानेके लिये जाना और कदलीवनमें उनकी हनुमान्‌जीसे भेंट
१४७- श्रीहनुमान् और भीमसेनका संवाद
१४८- हनुमान्‌जीका भीमसेनको संक्षेपसे श्रीरामका चरित्र सुनाना
१४९- हनुमान्‌जीके द्वारा चारों युगोंके धर्मोंका वर्णन
१५०- श्रीहनुमान्‌जीके द्वारा भीमसेनको अपने विशाल रूपका प्रदर्शन और चारों वर्णोंके धर्मोंका प्रतिपादन
१५१- श्रीहनुमान्‌जीका भीमसेनको आश्वासन और विदा देकर अन्तर्धान होना
१५२- भीमसेनका सौगन्धिक वनमें पहुँचना
१५३- क्रोधवश नामक राक्षसोंका भीमसेनसे सरोवरके निकट आनेका कारण पूछना
१५४- भीमसेनके द्वारा क्रोधवश नामक राक्षसोंकी पराजय और द्रौपदीके लिये सौगन्धिक कमलोंका संग्रह करना
१५५- भयंकर उत्पात देखकर युधिष्ठिर आदिकी चिन्ता और सबका गन्धमादनपर्वतपर सौगन्धिकवनमें भीमसेनके पास पहुँचना
१५६- पाण्डवोंका आकाशवाणीके आदेशसे पुनः नर-नारायणाश्रममें लौटना
जटासुरवधपर्व
१५७- जटासुरके द्वारा द्रौपदीसहित युधिष्ठिर, नकुल, सहदेवका हरण तथा भीमसेनद्वारा जटासुर-का वध
यक्षयुद्धपर्व
१५८- नर-नारायण-आश्रमसे वृषपर्वाके यहाँ होते हुए राजर्षि आर्ष्टिषेणके आश्रमपर जाना
१५९- प्रश्नके रूपमें आर्ष्टिषेणका युधिष्ठिरके प्रति उपदेश
१६०- पाण्डवोंका आर्ष्टिषेणके आश्रमपर निवास, द्रौपदीके अनुरोधसे भीमसेनका पर्वतके शिखरपर जाना और यक्षों तथा राक्षसोंसे युद्ध करके मणिमान्‌का वध करना
१६१- कुबेरका गन्धमादन पर्वतपर आगमन और युधिष्ठिरसे उनकी भेंट
१६२- कुबेरका युधिष्ठिर आदिको उपदेश और सान्त्वना देकर अपने भवनको प्रस्थान
१६३- धौम्यका युधिष्ठिरको मेरु पर्वत तथा उसके शिखरोंपर स्थित ब्रह्मा, विष्णु आदिके स्थानोंका लक्ष्य कराना और सूर्य-चन्द्रमाकी गति एवं प्रभावका वर्णन
१६४- पाण्डवोंकी अर्जुनके लिये उत्कण्ठा और अर्जुनका आगमन
निवातकवचयुद्धपर्व
१६५- अर्जुनका गन्धमादन पर्वतपर आकर अपने भाइयोंसे मिलना
१६६- इन्द्रका पाण्डवोंके पास आना और युधिष्ठिरको सान्त्वना देकर स्वर्गको लौटना
१६७- अर्जुनके द्वारा अपनी तपस्या-यात्राके वृत्तान्तका वर्णन, भगवान् शिवके साथ संग्राम और पाशुपतास्त्र-प्राप्तिकी कथा
१६८- अर्जुनद्वारा स्वर्गलोकमें अपनी अस्त्रशिक्षा और निवातकवच दानवोंके साथ युद्धकी तैयारीका कथन
१६९- अर्जुनका पातालमें प्रवेश और निवातकवचोंके साथ युद्धारम्भ
१७०- अर्जुन और निवातकवचोंका युद्ध
१७१- दानवोंके मायामय युद्धका वर्णन
१७२- निवातकवचोंका संहार
१७३- अर्जुनद्वारा हिरण्यपुरवासी पौलोम तथा कालकेयोंका वध और इन्द्रद्वारा अर्जुनका अभिनन्दन
१७४- अर्जुनके मुखसे यात्राका वृत्तान्त सुनकर युधिष्ठिरद्वारा उनका अभिनन्दन और दिव्यास्त्र-दर्शनकी इच्छा प्रकट करना
१७५- नारद आदिका अर्जुनको दिव्यास्त्रोंके प्रदर्शनसे रोकना
आजगरपर्व
१७६- भीमसनेकी युधिष्ठिरसे बातचीत और पाण्डवोंका गन्धमादनसे प्रस्थान
१७७- पाण्डवोंका गन्धमादनसे बदरिकाश्रम, सुबाहुनगर और विशाखयूप वनमें होते हुए सरस्वती-तटवर्ती द्वैतवनमें प्रवेश
१७८- महाबली भीमसेनका हिंसक पशुओंको मारना और अजगरद्वारा पकड़ा जाना
१७९- भीमसेन और सर्परूपधारी नहुषकी बातचीत, भीमसेनकी चिन्ता तथा युधिष्ठिरद्वारा भीमकी खोज
१८०- युधिष्ठिरका भीमसेनके पास पहुँचना और सर्परूपधारी नहुषके प्रश्नोंका उत्तर देना
१८१- युधिष्ठिरद्वारा अपने प्रश्नोंका उचित उत्तर पाकर संतुष्ट हुए सर्परूपधारी नहुषका भीमसेनको छोड़ देना तथा युधिष्ठिरके साथ वार्तालाप करनेके प्रभावसे सर्पयोनिसे मुक्त होकर स्वर्ग जाना
मार्कण्डेयसमास्यापर्व
१८२- वर्षा और शरद्-ऋतुका वर्णन एवं युधिष्ठिर आदिका पुनः द्वैतवनसे काम्यकवनमें प्रवेश
१८३- काम्यकवनमें पाण्डवोंके पास भगवान् श्रीकृष्ण, मुनिवर मार्ण्कण्डेय तथा नारदजीका आगमन एवं युधिष्ठिरके पूछनेपर मार्कण्डेयजीके द्वारा कर्मफल-भोगका विवेचन
१८४- तपस्वी तथा स्वधर्मपरायण ब्राह्मणोंका माहात्म्य
१८५- ब्राह्मणकी महिमाके विषयमें अत्रिमुनि तथा राजा पृथुकी प्रशंसा
१८६- तार्क्ष्यमुनि और सरस्वतीका संवाद
१८७- वैवस्वत मनुका चरित्र तथा मत्स्यावतारकी कथा
१८८- चारों युगोंकी वर्ष-संख्या एवं कलियुगके प्रभावका वर्णन, प्रलयकालका दृश्य और मार्कण्डेयजीको बालमुकुन्दजीके दर्शन, मार्कण्डेयजीका भगवान्‌के उदरमें प्रवेश कर ब्रह्माण्डदर्शन करना और फिर बाहर निकलकर उनसे वार्तालाप करना
१८९- भगवान् बालमुकुन्दका मार्कण्डेयको अपने स्वरूपका परिचय देना तथा मार्कण्डेयद्वारा श्रीकृष्णकी महिमाका प्रतिपादन और पाण्डवोंका श्रीकृष्णकी शरणमें जाना
१९०- युगान्तकालिक कलियुगके समयके बर्तावका तथा कल्कि-अवतारका वर्णन
१९१- भगवान् कल्किके द्वारा सत्ययुगकी स्थापना और मार्कण्डेयजीका युधिष्ठिरके लिये धर्मोपदेश
१९२- इक्ष्वाकुवंशी परीक्षित्‌का मण्डूकराजकी कन्यासे विवाह, शल और दलके चरित्र तथा वामदेव मुनिकी महत्ता
१९३- इन्द्र और बक मुनिका संवाद
१९४- क्षत्रिय राजाओंका महत्त्व—सुहोत्र और शिबिकी प्रशंसा
१९५- राजा ययातिद्वारा ब्राह्मणको सहस्र गौओंका दान
१९६- सेदुक और वृषदर्भका चरित्र
१९७- इन्द्र और अग्निद्वारा राजा शिबिकी परीक्षा
१९८- देवर्षि नारदद्वारा शिबिकी महत्ताका प्रतिपादन
१९९- राजा इन्द्रद्युम्न तथा अन्य चिरजीवी प्राणियोंकी कथा
२००- निन्दित दान, निन्दित जन्म, योग्य दानपात्र, श्राद्धमें ग्राह्य और अग्राह्य ब्राह्मण, दानपात्रके लक्षण, अतिथि-सत्कार, विविध दानोंका महत्त्व, वाणीकी शुद्धि, गायत्री-जप, चित्त-शुद्धि तथा इन्द्रिय-निग्रह आदि विविध विषयोंका वर्णन
२०१- उत्तंककी तपस्यासे प्रसन्न होकर भगवान्‌का उन्हें वरदान देना तथा इक्ष्वाकुवंशी राजा कुवलाश्वका धुन्धुमार नाम पड़नेका कारण बताना
२०२- उत्तंकका राजा बृहदश्वसे धुन्धुका वध करनेके लिये आग्रह
२०३- ब्रह्माजीकी उत्पत्ति और भगवान् विष्णुके द्वारा मधु-कैटभका वध
२०४- धुन्धुकी तपस्या और वरप्राप्ति, कुवलाश्वद्वारा धुन्धुका वध और देवताओंका कुवलाश्वको वर देना
२०५- पतिव्रता स्त्री तथा पिता-माताकी सेवाका माहात्म्य
२०६- कौशिक ब्राह्मण और पतिव्रताके उपाख्यानके अन्तर्गत ब्राह्मणोंके धर्मका वर्णन
२०७- कौशिकका धर्मव्याधके पास जाना, धर्मव्याधके द्वारा पतिव्रतासे प्रेषित जान लेनेपर कौशिकको आश्चर्य होना, धर्मव्याधके द्वारा वर्णधर्मका वर्णन, जनकराज्यकी प्रशंसा और शिष्टाचारका वर्णन
२०८- धर्मव्याधद्वारा हिंसा और अहिंसाका विवेचन
२०९- धर्मकी सूक्ष्मता, शुभाशुभ कर्म और उनके फल तथा ब्रह्मकी प्राप्तिके उपायोंका वर्णन
२१०- विषयसेवनसे हानि, सत्संगसे लाभ और ब्राह्मी विद्याका वर्णन
२११- पंचमहाभूतोंके गुणोंका और इन्द्रियनिग्रहका वर्णन
२१२- तीनों गुणोंके स्वरूप और फलका वर्णन
२१३- प्राणवायुकी स्थितिका वर्णन तथा परमात्म-साक्षात्कारके उपाय
२१४- माता-पिताकी सेवाका दिग्दर्शन
२१५- धर्मव्याधका कौशिक ब्राह्मणको माता-पिताकी सेवाका उपदेश देकर अपने पूर्वजन्मकी कथा कहते हुए व्याध होनेका कारण बताना
२१६- कौशिक-धर्मव्याध-संवादका उपसंहार तथा कौशिकका अपने घरको प्रस्थान
२१७- अग्निका अंगिराको अपना प्रथम पुत्र स्वीकार करना तथा अंगिरासे बृहस्पतिकी उत्पत्ति
२१८- अंगिराकी संततिका वर्णन
२१९- बृहस्पतिकी संततिका वर्णन
२२०- पांचजन्य अग्निकी उत्पत्ति तथा उसकी संततिका वर्णन
२२१- अग्निस्वरूप तप और भानु (मनुकी) संततिका वर्णन
२२२- सह नामक अग्निका जलमें प्रवेश और अथर्वा अंगिराद्वारा पुनः उनका प्राकट्य
२२३- इन्द्रके द्वारा केशीके हाथसे देवसेनाका उद्धार
२२४- इन्द्रका देवसेनाके साथ ब्रह्माजीके पास तथा ब्रह्मर्षियोंके आश्रमपर जाना, अग्निका मोह और वनगमन
२२५- स्वाहाका मुनिपत्नियोंके रूपोंमें अग्निके साथ समागम, स्कन्दकी उत्पत्ति तथा उनके द्वारा क्रौंच आदि पर्वतोंका विदारण
२२६- विश्वामित्रका स्कन्दके जातकर्मादि तेरह संस्कार करना और विश्वामित्रके समझानेपर भी ऋषियोंका अपनी पत्नियोंको स्वीकार न करना तथा अग्निदेव आदिके द्वारा बालक स्कन्दकी रक्षा करना
२२७- पराजित होकर शरणमें आये हुए इन्द्रसहित देवताओंको स्कन्दका अभयदान
२२८- स्कन्दके पार्षदोंका वर्णन
२२९- स्कन्दका इन्द्रके साथ वार्तालाप, देवसेनापतिके पदपर अभिषेक तथा देवसेनाके साथ उनका विवाह
२३०- कृत्तिकाओंको नक्षत्रमण्डलमें स्थानकी प्राप्ति तथा मनुष्योंको कष्ट देनेवाले विविध ग्रहोंका वर्णन
२३१- स्कन्दद्वारा स्वाहादेवीका सत्कार, रुद्रदेवके साथ स्कन्द और देवताओंकी भद्रवट-यात्रा, देवासुर-संग्राम, महिषासुर-वध तथा स्कन्दकी प्रशंसा
२३२- कार्तिकेयके प्रसिद्ध नामोंका वर्णन तथा उनका स्तवन
द्रौपदीसत्यभामासंवादपर्व
२३३- द्रौपदीका सत्यभामाको सती स्त्रीके कर्तव्यकी शिक्षा देना
२३४- पतिदेवको अनुकूल करनेका उपाय—पतिकी अनन्यभावसे सेवा
२३५- सत्यभामाका द्रौपदीको आश्वासन देकर श्रीकृष्णके साथ द्वारकाको प्रस्थान
घोषयात्रापर्व
२३६- पाण्डवोंका समाचार सुनकर धृतराष्ट्रका खेद और चिन्तापूर्ण उद्‌गार
२३७- शकुनि और कर्णका दुर्योधनकी प्रशंसा करते हुए उसे वनमें पाण्डवोंके पास चलनेके लिये उभाड़ना
२३८- दुर्योधनके द्वारा कर्ण और शकुनिकी मन्त्रणा स्वीकार करना तथा कर्ण आदिका घोषयात्राको निमित्त बनाकर द्वैतवनमें जानेके लिये धृतराष्ट्रसे आज्ञा लेने जाना
२३९- कर्ण आदिके द्वारा द्वैतवनमें जानेका प्रस्ताव, राजा धृतराष्ट्रकी अस्वीकृति, शकुनिका समझाना, धृतराष्ट्रका अनुमति देना तथा दुर्योधनका प्रस्थान
२४०- दुर्योधनका सेनासहित वनमें जाकर गौओंकी देखभाल करना और उसके सैनिकों एवं गन्धर्वोंमें परस्पर कटु संवाद
२४१- कौरवोंका गन्धर्वोंके साथ युद्ध और कर्णकी पराजय
२४२- गन्धर्वोंद्वारा दुर्योधन आदिकी पराजय और उनका अपहरण
२४३- युधिष्ठिरका भीमसेनको गन्धर्वोंके हाथसे कौरवोंको छुड़ानेका आदेश और इसके लिये अर्जुनकी प्रतिज्ञा
२४४- पाण्डवोंका गन्धर्वोंके साथ युद्ध
२४५- पाण्डवोंके द्वारा गन्धर्वोंकी पराजय
२४६- चित्रसेन, अर्जुन तथा युधिष्ठिरका संवाद और दुर्योधनका छुटकारा
२४७- सेनासहित दुर्योधनका मार्गमें ठहरना और कर्णके द्वारा उसका अभिनन्दन
२४८- दुर्योधनका कर्णको अपनी पराजयका समाचार बताना
२४९- दुर्योधनका कर्णसे अपनी ग्लानिका वर्णन करते हुए आमरण अनशनका निश्चय, दुःशासनको राजा बननेका आदेश, दुःशासनका दुःख और कर्णका दुर्योधनको समझाना
२५०- कर्णके समझानेपर भी दुर्योधनका आमरण अनशन करनेका ही निश्चय
२५१- शकुनिके समझानेपर भी दुर्योधनको प्रायोप-वेशनसे विचलित होते न देखकर दैत्योंका कृत्याद्वारा उसे रसातलमें बुलाना
२५२- दानवोंका दुर्योधनको समझाना और कर्णके अनुरोध करनेपर दुर्योधनका अनशन त्याग करके हस्तिनापुरको प्रस्थान
२५३- भीष्मका कर्णकी निन्दा करते हुए दुर्योधनको पाण्डवोंसे संधि करनेका परामर्श देना, कर्णके क्षोभपूर्ण वचन और दिग्विजयके लिये प्रस्थान
२५४- कर्णके द्वारा सारी पृथ्वीपर दिग्विजय और हस्तिनापुरमें उसका सत्कार
२५५- कर्ण और पुरोहितकी सलाहसे दुर्योधनकी वैष्णवयज्ञके लिये तैयारी
२५६- दुर्योधनके यज्ञका आरम्भ एवं समाप्ति
२५७- दुर्योधनके यज्ञके विषयमें लोगोंका मत, कर्णद्वारा अर्जुनके वधकी प्रतिज्ञा, युधिष्ठिरकी चिन्ता तथा दुर्योधनकी शासननीति
मृगस्वप्नोद्भवपर्व
२५८- पाण्डवोंका काम्यकवनमें गमन
व्रीहिद्रौणिकपर्व
२५९- युधिष्ठिरकी चिन्ता, व्यासजीका पाण्डवोंके पास आगमन और दानकी महत्ताका प्रतिपादन
२६०- दुर्वासाद्वारा महर्षि मुद्गलके दानधर्म एवं धैर्यकी परीक्षा तथा मुद्गलका देवदूतसे कुछ प्रश्न करना
२६१- देवदूतद्वारा स्वर्गलोकके गुण-दोषोंका तथा दोषरहित विष्णुधामका वर्णन सुनकर मुद्‌गलका देवदूतको लौटा देना एवं व्यासजीका युधिष्ठिरको समझाकर अपने आश्रमको लौट जाना
द्रौपदीहरणपर्व
२६२- दुर्योधनका महर्षि दुर्वासाको आतिथ्यसत्कारसे संतुष्ट करके उन्हें युधिष्ठिरके पास भेजकर प्रसन्न होना
२६३- दुर्वासाका पाण्डवोंके आश्रमपर असमयमें आतिथ्यके लिये जाना, द्रौपदीके द्वारा स्मरण किये जानेपर भगवान्‌का प्रकट होना तथा पाण्डवोंको दुर्वासाके भयसे मुक्त करना और उनको आश्वासन देकर द्वारका जाना
२६४- जयद्रथका द्रौपदीको देखकर मोहित होना और उसके पास कोटिकास्यको भेजना
२६५- कोटिकास्यका द्रौपदीसे जयद्रथ और उसके साथियोंका परिचय देते हुए उसका भी परिचय पूछना
२६६- द्रौपदीका कोटिकास्यको उत्तर
२६७- जयद्रथ और द्रौपदीका संवाद
२६८- द्रौपदीका जयद्रथको फटकारना और जयद्रथ-द्वारा उसका अपहरण
२६९- पाण्डवोंका आश्रमपर लौटना और धात्रेयिकासे द्रौपदीहरणका वृत्तान्त जानकर जयद्रथका पीछा करना
२७०- द्रौपदीद्वारा जयद्रथके सामने पाण्डवोंके पराक्रमका वर्णन
२७१- पाण्डवोंद्वारा जयद्रथकी सेनाका संहार, जयद्रथका पलायन, द्रौपदी तथा नकुल-सहदेवके साथ युधिष्ठिरका आश्रमपर लौटना तथा भीम और अर्जुनका वनमें जयद्रथका पीछा करना
जयद्रथविमोक्षणपर्व
२७२- भीमद्वारा बंदी होकर जयद्रथका युधिष्ठिरके सामने उपस्थित होना, उनकी आज्ञासे छूटकर उसका गंगाद्वारमें तप करके भगवान् शिवसे वरदान पाना तथा भगवान् शिवद्वारा अर्जुनके सहायक भगवान् श्रीकृष्णकी महिमाका वर्णन
रामोपाख्यानपर्व
२७३- अपनी दुरवस्थासे दुःखी हुए युधिष्ठिरका मार्कण्डेय मुनिसे प्रश्न करना
२७४- श्रीराम आदिका जन्म तथा कुबेरकी उत्पत्ति और उन्हें ऐश्वर्यकी प्राप्ति
२७५- रावण, कुम्भकर्ण, विभीषण, खर और शूर्पणखाकी उत्पत्ति, तपस्या और वर-प्राप्ति तथा कुबेरका रावणको शाप देना
२७६- देवताओंका ब्रह्माजीके पास जाकर रावणके अत्याचारसे बचानेके लिये प्रार्थना करना तथा ब्रह्माजीकी आज्ञासे देवताओंका रीछ और वानरयोनिमें संतान उत्पन्न करना एवं दुन्दुभी गन्धर्वीका मन्थरा बनकर आना
२७७- श्रीरामके राज्याभिषेककी तैयारी, रामवनगमन, भरतकी चित्रकूटयात्रा, रामके द्वारा खर-दूषण आदि राक्षसोंका नाश तथा रावणका मारीचके पास जाना
२७८- मृगरूपधारी मारीचका वध तथा सीताका अपहरण
२७९- रावणद्वारा जटायुका वध, श्रीरामद्वारा उसका अन्त्येष्टि-संस्कार, कबन्धका वध तथा उसके दिव्यस्वरूपसे वार्तालाप
२८०- राम और सुग्रीवकी मित्रता, वाली और सुग्रीवका युद्ध, श्रीरामके द्वारा वालीका वध तथा लंकाकी अशोकवाटिकामें राक्षसियोंद्वारा डरायी हुई सीताको त्रिजटाका आश्वासन
२८१- रावण और सीताका संवाद
२८२- श्रीरामका सुग्रीवपर कोप, सुग्रीवका सीताकी खोजमें वानरोंको भेजना तथा श्रीहनुमान्‌जीका लौटकर अपनी लंकायात्राका वृत्तान्त निवेदन करना
२८३- वानर-सेनाका संगठन, सेतुका निर्माण, विभीषणका अभिषेक और लंकाकी सीमामें सेनाका प्रवेश तथा अंगदको रावणके पास दूत बनाकर भेजना
२८४- अंगदका रावणके पास जाकर रामका संदेश सुनाकर लौटना तथा राक्षसों और वानरोंका घोर संग्राम
२८५- श्रीराम और रावणकी सेनाओंका द्वन्द्वयुद्ध
२८६- प्रहस्त और धूम्राक्षके वधसे दुःखी हुए रावणका कुम्भकर्णको जगाना और उसे युद्धमें भेजना
२८७- कुम्भकर्ण, वज्रवेग और प्रमाथीका वध
२८८- इन्द्रजित्‌का मायामय युद्ध तथा श्रीराम और लक्ष्मणकी मूर्च्छा
२८९- श्रीराम-लक्ष्मणका सचेत होकर कुबेरके भेजे हुए अभिमन्त्रित जलसे प्रमुख वानरोंसहित अपने नेत्र धोना, लक्ष्मणद्वारा इन्द्रजितका वध एवं सीताको मारनेके लिये उद्यत हुए रावणका अविन्ध्यके द्वारा निवारण करना
२९०- राम और रावणका युद्ध तथा रावणका वध
२९१- श्रीरामका सीताके प्रति संदेह, देवताओंद्वारा सीताकी शुद्धिका समर्थन, श्रीरामका दल-बलसहित लंकासे प्रस्थान एवं किष्किन्धा होते हुए अयोध्यामें पहुँचकर भरतसे मिलना तथा राज्यपर अभिषिक्त होना
२९२- मार्कण्डेयजीके द्वारा राजा युधिष्ठिरको आश्वासन
पतिव्रतामाहात्म्यपर्व
२९३- राजा अश्वपतिको देवी सावित्रीके वरदानसे सावित्री नामक कन्याकी प्राप्ति तथा सावित्रीका पतिवरणके लिये विभिन्न देशोंमें भ्रमण
२९४- सावित्रीका सत्यवान्‌के साथ विवाह करनेका दृढ़ निश्चय
२९५- सत्यवान् और सावित्रीका विवाह तथा सावित्रीका अपनी सेवाओंद्वारा सबको संतुष्ट करना
२९६- सावित्रीकी व्रतचर्या तथा सास-ससुर और पतिकी आज्ञा लेकर सत्यवान्‌के साथ उसका वनमें जाना
२९७- सावित्री और यमका संवाद, यमराजका संतुष्ट होकर सावित्रीको अनेक वरदान देते हुए मरे हुए सत्यवान्‌को भी जीवित कर देना तथा सत्यवान् और सावित्रीका वार्तालाप एवं आश्रमकी ओर प्रस्थान
२९८- पत्नीसहित राजा द्युमत्सेनकी सत्यवान्‌के लिये चिन्ता, ऋषियोंका उन्हें आश्वासन देना, सावित्री और सत्यवान्‌का आगमन तथा सावित्रीद्वारा विलम्बसे आनेके कारणपर प्रकाश डालते हुए वर-प्राप्तिका विवरण बताना
२९९- शाल्वदेशकी प्रजाके अनुरोधसे महाराज द्युमत्सेनका राज्याभिषेक कराना तथा सावित्रीको सौ पुत्रों और सौ भाइयोंकी प्राप्ति
कुण्डलाहरणपर्व
३००- सूर्यका स्वप्नमें कर्णको दर्शन देकर उसे इन्द्रको कुण्डल और कवच न देनेके लिये सचेत करना तथा कर्णका आग्रहपूर्वक कुण्डल और कवच देनेका ही निश्चय रखना
३०१- सूर्यका कर्णको समझाते हुए उसे इन्द्रको कुण्डल न देनेका आदेश देना
३०२- सूर्य-कर्ण-संवाद, सूर्यकी आज्ञाके अनुसार कर्णका इन्द्रसे शक्ति लेकर ही उन्हें कुण्डल और कवच देनेका निश्चय
३०३- कुन्तिभोजके यहाँ ब्रह्मर्षि दुर्वासाका आगमन तथा राजाका उनकी सेवाके लिये पृथाको आवश्यक उपदेश देना
३०४- कुन्तीका पितासे वार्तालाप और ब्राह्मणकी परिचर्या
३०५- कुन्तीकी सेवासे संतुष्ट होकर तपस्वी ब्राह्मणका उसको मन्त्रका उपदेश देना
३०६- कुन्तीके द्वारा सूर्यदेवताका आवाहन तथा कुन्ती-सूर्य-संवाद
३०७- सूर्यद्वारा कुन्तीके उदरमें गर्भस्थापन
३०८- कर्णका जन्म, कुन्तीका उसे पिटारीमें रखकर जलमें बहा देना और विलाप करना
३०९- अधिरथ सूत तथा उसकी पत्नी राधाको बालक कर्णकी प्राप्ति, राधाके द्वारा उसका पालन, हस्तिनापुरमें उसकी शिक्षा-दीक्षा तथा कर्णके पास इन्द्रका आगमन
३१०- इन्द्रका कर्णको अमोघ शक्ति देकर बदलेमें उसके कवच-कुण्डल लेना
आरणेयपर्व
३११- ब्राह्मणकी अरणि एवं मन्थन-काष्ठका पता लगानेके लिये पाण्डवोंका मृगके पीछे दौड़ना और दुःखी होना
३१२- पानी लानेके लिये गये हुए नकुल आदि चार भाइयोंका सरोवरके तटपर अचेत होकर गिरना
३१३- यक्ष और युधिष्ठिरका प्रश्नोत्तर तथा युधिष्ठिरके उत्तरसे संतुष्ट हुए यक्षका चारों भाइयोंके जीवित होनेका वरदान देना
३१४- यक्षका चारों भाइयोंको जिलाकर धर्मके रूपमें प्रकट हो युधिष्ठिरको वरदान देना
३१५- अज्ञातवासके लिये अनुमति लेते समय शोका-कुल हुए युधिष्ठिरको महर्षि धौम्यका समझाना, भीमसेनका उत्साह देना तथा आश्रमसे दूर जाकर पाण्डवोंका परस्पर परामर्शके लिये बैठना
३१६- वनपर्व-श्रवण-महिमा
4. विराटपर्व
पाण्डवप्रवेशपर्व
१- विराटनगरमें अज्ञातवास करनेके लिये पाण्डवोंकी गुप्त मन्त्रणा तथा युधिष्ठिरके द्वारा अपने भावी कार्यक्रमका दिग्दर्शन
२- भीमसेन और अर्जुनद्वारा विराटनगरमें किये जानेवाले अपने अनुकूल कार्योंका निर्देश
३- नकुल, सहदेव तथा द्रौपदीद्वारा अपने-अपने भावी कर्तव्योंका दिग्दर्शन
४- धौम्यका पाण्डवोंको राजाके यहाँ रहनेका ढंग बताना और सबका अपने-अपने अभीष्ट स्थानोंको जाना
५- पाण्डवोंका विराटनगरके समीप पहुँचकर श्मशानमें एक शमीवृक्षपर अपने अस्त्र-शस्त्र रखना
६- युधिष्ठिरद्वारा दुर्गादेवीकी स्तुति और देवीका प्रत्यक्ष प्रकट होकर उन्हें वर देना
७- युधिष्ठिरका राजसभामें जाकर विराटसे मिलना और वहाँ आदरपूर्वक निवास पाना
८- भीमसेनका राजा विराटकी सभामें प्रवेश और राजाके द्वारा आश्वासन पान
९- द्रौपदीका सैरन्ध्रीके वेशमें विराटके रनिवासमें जाकर रानी सुदेष्णासे वार्तालाप करना और वहाँ निवास पाना
१०- सहदेवका राजा विराटके साथ वार्तालाप और गौओंकी देखभालके लिये उनकी नियुक्ति
११- अर्जुनका राजा विराटसे मिलना और राजाके द्वारा कन्याओंको नृत्य आदिकी शिक्षा देनेके लिये उनको नियुक्त करना
१२- नकुलका विराटके अश्वोंकी देख-रेखमें नियुक्त होना
समयपालनपर्व
१३- भीमसेनके द्वारा जीमूत नामक विश्वविख्यात मल्लका वध
कीचकवधपर्व
१४- कीचकका द्रौपदीपर आसक्त हो उससे प्रणय-याचना करना और द्रौपदीका उसे फटकारना
१५- रानी सुदेष्णाका द्रौपदीको कीचकके घर भेजना
१६- कीचकद्वारा द्रौपदीका अपमान
१७- द्रौपदीका भीमसेनके समीप जाना
१८- द्रौपदीका भीमसेनके प्रति अपने दुःखके उद्‌गार प्रकट करना
१९- पाण्डवोंके दुःखसे दुःखित द्रौपदीका भीमसेनके सम्मुख विलाप
२०- द्रौपदीद्वारा भीमसेनसे अपना दुःख निवेदन करना
२१- भीमसेन और द्रौपदीका संवाद
२२- कीचक और भीमसेनका युद्ध तथा कीचक-वध
२३- उपकीचकोंका सैरन्ध्रीको बाँधकर श्मशान-भूमिमें ले जाना और भीमसेनका उन सबको मारकर सैरन्ध्रीको छुड़ाना
२४- द्रौपदीका राजमहलमें लौटकर आना और बृहन्नला एवं सुदेष्णासे उसकी बातचीत
गोहरणपर्व
२५- दुर्योधनके पास उसके गुप्तचरोंका आना और उनका पाण्डवोंके विषयमें कुछ पता न लगा, यह बताकर कीचकवधका वृत्तान्त सुनाना
२६- दुर्योधनका सभासदोंसे पाण्डवोंका पता लगानेके लिये परामर्श तथा इस विषयमें कर्ण और दुःशासनकी सम्मति
२७- आचार्य द्रोणकी सम्मति
२८- युधिष्ठिरकी महिमा कहते हुए भीष्मकी पाण्डवोंके अन्वेषणके विषयमें सम्मति
२९- कृपाचार्यकी सम्मति और दुर्योधनका निश्चय
३०- सुशर्माके प्रस्तावके अनुसार त्रिगर्तों और कौरवोंका मत्स्यदेशपर धावा
३१- चारों पाण्डवोंसहित राजा विराटकी सेनाका युद्धके लिये प्रस्थान
३२- मत्स्य तथा त्रिगर्तदेशीय सेनाओंका परस्पर युद्ध
३३- सुशर्माका विराटको पकड़कर ले जाना, पाण्डवोंके प्रयत्नसे उनका छुटकारा, भीमद्वारा सुशर्माका निग्रह और युधिष्ठिरका अनुग्रह करके उसे छोड़ देना
३४- राजा विराटद्वारा पाण्डवोंका सम्मान, युधिष्ठिरद्वारा राजाका अभिनन्दन तथा विराटनगरमें राजाकी विजयघोषणा
३५- कौरवोंद्वारा उत्तर दिशाकी ओरसे आकर विराटकी गौओंका अपहरण और गोपाध्यक्षका उत्तरकुमारको युद्धके लिये उत्साह दिलाना
३६- उत्तरका अपने लिये सारथि ढूँढ़नेका प्रस्ताव, अर्जुनकी सम्मतिसे द्रौपदीका बृहन्नलाको सारथि बनानेके लिये सुझाव देना
३७- बृहन्नलाको सारथि बनाकर राजकुमार उत्तरका रणभूमिकी ओर प्रस्थान
३८- उत्तरकुमारका भय और अर्जुनका उसे आश्वासन देकर रथपर चढ़ाना
३१- द्रोणाचार्यद्वारा अर्जुनके अलौकिक पराक्रमकी प्रशंसा
४०- अर्जुनका उत्तरको शमीवृक्षसे अस्त्र उतारनेके लिये आदेश
४१- उत्तरका अर्जुनके आदेशके अनुसार शमीवृक्षसे पाण्डवोंके दिव्य धनुष आदि उतारना
४२- उत्तरका बृहन्नलासे पाण्डवोंके अस्त्र-शस्त्रोंके विषयमें प्रश्न करना
४३- बृहन्नलाद्वारा उत्तरको पाण्डवोंके आयुधोंका परिचय कराना
४४- अर्जुनका उत्तरकुमारसे अपना और अपने भाइयोंका यथार्थ परिचय देना
४५- अर्जुनद्वारा युद्धकी तैयारी, अस्त्र-शस्त्रोंका स्मरण, उनसे वार्तालाप तथा उत्तरके भयका निवारण
४६- उत्तरके रथपर अर्जुनको ध्वजकी प्राप्ति, अर्जुनका शंखनाद और द्रोणाचार्यका कौरवोंसे उत्पातसूचक अपशकुनोंका वर्णन
४७- दुर्योधनके द्वारा युद्धका निश्चय तथा कर्णकी उक्ति
४८- कर्णकी आत्मप्रशंसापूर्ण अहंकारोक्ति
४१- कृपाचार्यका कर्णको फटकारते हुए युद्धके विषयमें अपना विचार बताना
५०- अश्वत्थामाके उद्‌गार
५१- भीष्मजीके द्वारा सेनामें शान्ति और एकता बनाये रखनेकी चेष्टा तथा द्रोणाचार्यके द्वारा दुर्योधनकी रक्षाके लिये प्रयत्न
५२- पितामह भीष्मकी सम्मति
५३- अर्जुनका दुर्योधनकी सेनापर आक्रमण करके गौओंको लौटा लेना
५४- अर्जुनका कर्णपर आक्रमण, विकर्णकी पराजय, शत्रुंतप और संग्रामजित्‌का वध, कर्ण और अर्जुनका युद्ध तथा कर्णका पलायन
५५- अर्जुनद्वारा कौरवसेनाका संहार और उत्तरका उनके रथको कृपाचार्यके पास ले जाना
५६- अर्जुन और कृपाचार्यका युद्ध देखनेके लिये देवताओंका आकाशमें विमानोंपर आगमन
५७- कृपाचार्य और अर्जुनका युद्ध तथा कौरवपक्षके सैनिकोंद्वारा कृपाचार्यको हटा ले जाना
५८- अर्जुनका द्रोणाचार्यके साथ युद्ध और आचार्यका पलायन
५९- अश्वत्थामाके साथ अर्जुनका युद्ध
६०- अर्जुन और कर्णका संवाद तथा कर्णका अर्जुनसे हारकर भागना
६१- अर्जुनका उत्तरकुमारको आस्थासन तथा अर्जुनसे दुःशासन आदिकी पराजय
६२- अर्जुनका सब योद्धाओं और महारथियोंके साथ युद्ध
६३- अर्जुनपर समस्त कौरवपक्षीय महारथियोंका आक्रमण और सबका युद्धभूमिसे पीठ दिखाकर भागना
६४- अर्जुन और भीष्मका अद्भुत युद्ध तथा मूर्छित भीष्मका सारथिद्वारा रणभूमिसे हटाया जाना
६५- अर्जुन और दुर्योधनका युद्ध, विकर्ण आदि योद्धाओं-सहित दुर्योधनका युद्धके मैदानसे भागना
६६- अर्जुनके द्वारा समस्त कौरवदलकी पराजय तथा कौरवोंका स्वदेशको प्रस्थान
६७- विजयी अर्जुन और उत्तरका राजधानीकी ओर प्रस्थान
६८- राजा विराटकी उत्तरके विषयमें चिन्ता, विजयी उत्तरका नगरमें प्रवेश, प्रजाओंद्वारा उनका स्वागत, विराटद्वारा युधिष्ठिरका तिरस्कार और क्षमा-प्रार्थना एवं उत्तरसे युद्धका समाचार पूछना
६९- राजा विराट और उत्तरकी विजयके विषयमें बातचीत
वैवाहिकपर्व
७०- अर्जुनका राजा विराटको महाराज युधिष्ठिरका परिचय देना
७१- विराटको अन्य पाण्डवोंका भी परिचय प्राप्त होना तथा विराटके द्वारा युधिष्ठिरको राज्य समर्पण करके अर्जुनके साथ उत्तराके विवाहका प्रस्ताव करना
७२- अर्जुनका अपनी पुत्रवधूके रूपमें उत्तराको ग्रहण करना एवं अभिमन्यु और उत्तराका विवाह
Mahabharata: Bhag: 3
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विषय-सूची
चित्र-सूची
5. उद्योगपर्व
सेनोद्योगपर्व
१- राजा विराटकी सभामें भगवान् श्रीकृष्णका भाषण
२- बलरामजीका भाषण
३- सात्यकिके वीरोचित उद्‌गार
४- राजा द्रुपदकी सम्मति
५- भगवान् श्रीकृष्णका द्वारकागमन, विराट और द्रुपदके संदेशसे राजाओंका पाण्डवपक्षकी ओरसे युद्धके लिये आगमन
६- द्रुपदका पुरोहितको दौत्यकर्मके लिये अनुमति देना तथा पुरोहितका हस्तिनापुरको प्रस्थान
७- श्रीकृष्णका दुर्योधन तथा अर्जुन दोनोंको सहायता देना
८- शल्यका दुर्योधनके सत्कारसे प्रसन्न हो उसे वर देना और युधिष्ठिरसे मिलकर उन्हें आश्वासन देना
९- इन्द्रके द्वारा त्रिशिराका वध, वृत्रासुरकी उत्पत्ति, उसके साथ इन्द्रका युद्ध तथा देवताओंकी पराजय
१०- इन्द्रसहित देवताओंका भगवान् विष्णुकी शरणमें जाना और इन्द्रका उनके आज्ञानुसार वृत्रासुरसे संधि करके अवसर पाकर उसे मारना एवं ब्रह्महत्याके भयसे जलमें छिपना
११- देवताओं तथा ऋषियोंके अनुरोधसे राजा नहुषका इन्द्रके पदपर अभिषिक्त होना एवं काम-भोगमें आसक्त होना और चिन्तामें पड़ी हुई इन्द्राणीको बृहस्पतिका आश्वासन
१२- देवता-नहुष-संवाद, बृहस्पतिके द्वारा इन्द्राणीकी रक्षा तथा इन्द्राणीका नहुषके पास कुछ समयकी अवधि माँगनेके लिये जाना
१३- नहुषका इन्द्राणीको कुछ कालकी अवधि देना, इन्द्रका ब्रह्महत्यासे उद्धार तथा शचीद्वारा रात्रिदेवीकी उपासना
१४- उपश्रुति देवीकी सहायतासे इन्द्राणीकी इन्द्रसे भेंट
१५- इन्द्रकी आज्ञासे इन्द्राणीके अनुरोधपर नहुषका ऋषियोंको अपना वाहन बनाना तथा बृहस्पति और अग्निका संवाद
१६- बृहस्पतिद्वारा अग्नि और इन्द्रका स्तवन तथा बृहस्पति एवं लोकपालोंकी इन्द्रसे बातचीत
१७- अगस्त्यजीका इन्द्रसे नहुषके पतनका वृत्तान्त बताना
१८- इन्द्रका स्वर्गमें जाकर अपने राज्यका पालन करना, शल्यका युधिष्ठिरको आश्वासन देना और उनसे विदा लेकर दुर्योधनके यहाँ जाना
१९- युधिष्ठिर और दुर्योधनके यहाँ सहायताके लिये आयी हुई सेनाओंका संक्षिप्त विवरण
संजययानपर्व
२०- द्रुपदके पुरोहितका कौरवसभामें भाषण
२१- भीष्मके द्वारा द्रुपदके पुरोहितकी बातका समर्थन करते हुए अर्जुनकी प्रशंसा करना, इसके विरुद्ध कर्णके आक्षेपपूर्ण वचन तथा धृतराष्ट्रद्वारा भीष्मकी बातका समर्थन करते हुए दूतको सम्मानित करके विदा करना
२२- धृतराष्ट्रका संजयसे पाण्डवोंके प्रभाव और प्रतिभाका वर्णन करते हुए उसे संदेश देकर पाण्डवोंके पास भेजना
२३- संजयका युधिष्ठिरसे मिलकर उनकी कुशल पूछना एवं युधिष्ठिरका संजयसे कौरवपक्षका कुशल-समाचार पूछते हुए उससे सारगर्भित प्रश्न करना
२४- संजयका युधिष्ठिरको उनके प्रश्नोंका उत्तर देते हुए उन्हें राजा धृतराष्ट्रका संदेश सुनानेकी प्रतिज्ञा करना
२५- संजयका युधिष्ठिरको धृतराष्ट्रका संदेश सुनाना एवं अपनी ओरसे भी शान्तिके लिये प्रार्थना करना
२६- युधिष्ठिरका संजयको इन्द्रप्रस्थ लौटानेसे ही शान्ति होना सम्भव बतलाना
२७- संजयका युधिष्ठिरको युद्धमें दोषकी सम्भावना बतलाकर उन्हें युद्धसे उपरत करनेका प्रयत्न करना
२८- संजयको युधिष्ठिरका उत्तर
२९- संजयकी बातोंका प्रत्युत्तर देते हुए श्रीकृष्णका उसे धृतराष्ट्रके लिये चेतावनी देना
३०- संजयकी विदाई तथा युधिष्ठिरका संदेश
३१- युधिष्ठिरका मुख्य-मुख्य कुरुवंशियोंके प्रति संदेश
३२- अर्जुनद्वारा कौरवोंके लिये संदेश देना, संजयका हस्तिनापुर जा धृतराष्ट्रसे मिलकर उन्हें युधिष्ठिरका कुशल-समाचार कहकर धृतराष्ट्रके कार्यकी निन्दा करना
प्रजागरपर्व
३३- धृतराष्ट्र-विदुर-संवाद
३४- धृतराष्ट्रके प्रति विदुरजीके नीतियुक्त वचन
३५- विदुरके द्वारा केशिनीके लिये सुधन्वाके साथ विरोचनके विवादका वर्णन करते हुए धृतराष्ट्रको धर्मोपदेश
३६- दत्तात्रेय और साध्य देवताओंके संवादका उल्लेख करके महाकुलीन लोगोंका बतलाते हुए विदुरका धृतराष्ट्रको लक्षण समझाना
३७- धृतराष्ट्रके प्रति विदुरजीका हितोपदेश
३८- विदुरजीका नीतियुक्त उपदेश
३९- धृतराष्ट्रके प्रति विदुरजीका नीतियुक्त उपदेश
४०- धर्मकी महत्ताका प्रतिपादन तथा ब्राह्मण आदि चारों वर्णोंके धर्मका संक्षिप्त वर्णन
सनत्सुजातपर्व
४१- विदुरजीके द्वारा स्मरण करनेपर आये हुए सनत्सुजात ऋषिसे धृतराष्ट्रको उपदेश देनेके लिये उनकी प्रार्थना
४२- सनत्सुजातजीके द्वारा धृतराष्ट्रके विविध प्रश्नोंका उत्तर
४३- ब्रह्मज्ञानमें उपयोगी मौन, तप, त्याग, अप्रमाद एवं दम आदिके लक्षण तथा मदादि दोषोंका निरूपण
४४- ब्रह्मचर्य तथा ब्रह्मका निरूपण
४५- गुण-दोषोंके लक्षणोंका वर्णन और ब्रह्मविद्याका प्रतिपादन
४६- परमात्माके स्वरूपका वर्णन और योगीजनोंके द्वारा उनके साक्षात्कारका प्रतिपादन
यानसंधिपर्व
४७- पाण्डवोंके यहाँसे लौटे हुए संजयका कौरव-सभामें आगमन
४८- संजयका कौरवसभामें अर्जुनका संदेश सुनाना
४९- भीष्मका दुर्योधनको संधिके लिये समझाते हुए श्रीकृष्ण और अर्जुनकी महिमा बताना एवं कर्णपर आक्षेप करना, कर्णकी आत्मप्रशंसा, भीष्मके द्वारा उसका पुनः उपहास एवं द्रोणाचार्यद्वारा भीष्मजीके कथनका अनुमोदन
५०- संजयद्वारा युधिष्ठिरके प्रधान सहायकोंका वर्णन
५१- भीमसेनके पराक्रमसे डरे हुए धृतराष्ट्रका विलाप
५२- धृतराष्ट्रद्वारा अर्जुनसे प्राप्त होनेवाले भयका वर्णन
५३- कौरवसभामें धृतराष्ट्रका युद्धसे भय दिखाकर शान्तिके लिये प्रस्ताव करना
५४- संजयका धृतराष्ट्रको उनके दोष बताते हुए दुर्योधनपर शासन करनेकी सलाह देना
५५- धृतराष्ट्रको धैर्य देते हुए दुर्योधनद्वारा अपने उत्कर्ष और पाण्डवोंके अपकर्षका वर्णन
५६- संजयद्वारा अर्जुनके ध्वज एवं अश्वोंका तथा युधिष्ठिर आदिके घोड़ोंका वर्णन
५७- संजयद्वारा पाण्डवोंकी युद्धविषयक तैयारीका वर्णन, धृतराष्ट्रका विलाप, दुर्योधनद्वारा अपनी प्रबलताका प्रतिपादन, धृतराष्ट्रका उसपर अविश्वास तथा संजयद्वारा धृष्टद्युम्नकी शक्ति एवं संदेशका कथन
५८- धृतराष्ट्रका दुर्योधनको संधिके लिये समझाना, दुर्योधनका अहंकारपूर्वक पाण्डवोंसे युद्ध करनेका ही निश्चय तथा धृतराष्ट्रका अन्य योद्धाओंको युद्धसे भय दिखाना
५९- संजयका धृतराष्ट्रके पूछनेपर उन्हें श्रीकृष्ण और अर्जुनके अन्तःपुरमें कहे हुए संदेश सुनाना
६०- धृतराष्ट्रके द्वारा कौरव-पाण्डवोंकी शक्तिका तुलनात्मक वर्णन
६१- दुर्योधनद्वारा आत्मप्रशंसा
६२- कर्णकी आत्मप्रशंसा, भीष्मके द्वारा उसपर आक्षेप, कर्णका सभा त्यागकर जाना और भीष्मका उसके प्रति पुनः आक्षेपयुक्त वचन कहना
६३- दुर्योधनद्वारा अपने पक्षकी प्रबलताका वर्णन करना और विदुरका दमकी महिमा बताना
६४- विदुरका कौटुम्बिक कलहसे हानि बताते हुए धृतराष्ट्रको संधिकी सलाह देना
६५- धृतराष्ट्रका दुर्योधनको समझाना
६६- संजयका धृतराष्ट्रको अर्जुनका संदेश सुनाना
६७- धृतराष्ट्रके पास व्यास और गान्धारीका आगमन तथा व्यासजीका संजयको श्रीकृष्ण और अर्जुनके सम्बन्धमें कुछ कहनेका आदेश
६८- संजयका धृतराष्ट्रको भगवान् श्रीकृष्णकी महिमा बतलाना
६९- संजयका धृतराष्ट्रको श्रीकृष्ण-प्राप्ति एवं तत्त्वज्ञानका साधन बताना
७०- भगवान् श्रीकृष्णके विभिन्न नामोंकी व्युत्पत्तियोंका कथन
७१- धृतराष्ट्रके द्वारा भगवद्‌गुणगान
भगवद्यानपर्व
७२- युधिष्ठिरका श्रीकृष्णसे अपना अभिप्राय निवेदन करना, श्रीकृष्णका शान्तिदूत बनकर कौरव-सभामें जानेके लिये उद्यत होना और इस विषयमें उन दोनोंका वार्तालाप
७३- श्रीकृष्णका युधिष्ठिरको युद्धके लिये प्रोत्साहन देना
७४- भीमसेनका शान्तिविषयक प्रस्ताव
७५- श्रीकृष्णका भीमसेनको उत्तेजित करना
७६- भीमसेनका उत्तर
७७- श्रीकृष्णका भीमसेनको आश्वासन देना
७८- अर्जुनका कथन
७९- श्रीकृष्णका अर्जुनको उत्तर देना
८०- नकुलका निवेदन
८१- युद्धके लिये सहदेव तथा सात्यकिकी सम्मति और समस्त योद्धाओंका समर्थन
८२- द्रौपदीका श्रीकृष्णसे अपना दुःख सुनाना और श्रीकृष्णका उसे आश्वासन देना
८३- श्रीकृष्णका हस्तिनापुरको प्रस्थान, युधिष्ठिरका माता कुन्ती एवं कौरवोंके लिये संदेश तथा श्रीकृष्णको मार्गमें दिव्य महर्षियोंका दर्शन
८४- मार्गके शुभाशुभ शकुनोंका वर्णन तथा मार्गमें लोगोंद्वारा सत्कार पाते हुए श्रीकृष्णका वृकस्थल पहुँचकर वहाँ विश्राम करना
८५- दुर्योधनका धृतराष्ट्र आदिकी अनुमतिसे श्रीकृष्णके स्वागत-सत्कारके लिये मार्गमें विश्रामस्थान बनवाना
८६- धृतराष्ट्रका भगवान् श्रीकृष्णकी अगवानी करके उन्हें भेंट देने एवं दुःशासनके महलमें ठहरानेका विचार प्रकट करना
८७- विदुरका धृतराष्ट्रको श्रीकृष्णकी आज्ञाका पालन करनेके लिये समझाना
८८- दुर्योधनका श्रीकृष्णके विषयमें अपने विचार कहना एवं उसकी कुमन्त्रणासे कुपित हो भीष्मजीका सभासे उठ जाना
८९- श्रीकृष्णका स्वागत, धृतराष्ट्र तथा विदुरके घरोंपर उनका आतिथ्य
९०- श्रीकृष्णका कुन्तीके समीप जाना एवं युधिष्ठिरका कुशल-समाचार पूछकर अपने दुःखोंका स्मरण करके विलाप करती हुई कुन्तीको आश्वासन देना
९१- श्रीकृष्णका दुर्योधनके घर जाना एवं उसके निमन्त्रणको अस्वीकार करके विदुरजीके घरपर भोजन करना
९२- विदुरजीका धृतराष्ट्रपुत्रोंकी दुर्भावना बताकर श्रीकृष्णको उनके कौरवसभामें जानेका अनौचित्य बतलाना
९३- श्रीकृष्णका कौरव-पाण्डवोंमें संधिस्थापनके प्रयत्नका औचित्य बताना
९४- दुर्योधन एवं शकुनिके द्वारा बुलाये जानेपर भगवान् श्रीकृष्णका रथपर बैठकर प्रस्थान एवं कौरवसभामें प्रवेश और स्वागतके पश्चात् आसनग्रहण
९५- कौरवसभामें श्रीकृष्णका प्रभावशाली भाषण
९६- परशुरामजीका दम्भोद्भवकी कथाद्वारा नर-नारायणस्वरूप अर्जुन और श्रीकृष्णका महत्त्व वर्णन करना
९७- कण्व मुनिका दुर्योधनको संधिके लिये समझाते हुए मातलिका उपाख्यान आरम्भ करना
९८- मातलिका अपनी पुत्रीके लिये वर खोजनेके निमित्त नारदजीके साथ वरुणलोकमें भ्रमण करते हुए अनेक आश्चर्यजनक वस्तुएँ देखना
९९- नारदजीके द्वारा पाताललोकका प्रदर्शन
१००- हिरण्यपुरका दिग्दर्शन और वर्णन
१०१- गरुड़लोक तथा गरुड़की संतानोंका वर्णन
१०२- सुरभि और उसकी संतानोंके साथ रसातलके सुखका वर्णन
१०३- नागलोकके नागोंका वर्णन और मातलिका नागकुमार सुमुखके साथ अपनी कन्याको ब्याहनेका निश्चय
१०४- नारदजीका नागराज आर्यकके सम्मुख सुमुखके साथ मातलिकी कन्याके विवाहका प्रस्ताव एवं मातलिका नारदजी, सुमुख एवं आर्यकके साथ इन्द्रके पास आकर उनके द्वारा सुमुखको दीर्घायु प्रदान कराना तथा सुमुख-गुणकेशी-विवाह
१०५- भगवान् विष्णुके द्वारा गरुड़का गर्वभंजन तथा दुर्योधनद्वारा कण्वमुनिके उपदेशकी अवहेलना
१०६- नारदजीका दुर्योधनको समझाते हुए धर्मराजके द्वारा विश्वामित्रजीकी परीक्षा तथा गालवके विश्वामित्रसे गुरुदक्षिणा माँगनेके लिये हठका वर्णन
१०७- गालवकी चिन्ता और गरुड़का आकर उन्हें आश्वासन देना
१०८- गरुड़का गालवसे पूर्व दिशाका वर्णन करना
१०९- दक्षिण दिशाका वर्णन
११०- पश्चिम दिशाका वर्णन
१११- उत्तर दिशाका वर्णन
११२- गरुड़की पीठपर बैठकर पूर्व दिशाकी ओर जाते हुए गालवका उनके वेगसे व्याकुल होना
११३- ऋषभ पर्वतके शिखरपर महर्षि गालव और गरुड़की तपस्विनी शाण्डिलीसे भेंट तथा गरुड़ और गालवका गुरुदक्षिणा चुकानेके विषयमें परस्पर विचार
११४- गरुड़ और गालवका राजा ययातिके यहाँ जाकर गुरुको देनेके लिये श्यामकर्ण घोड़ोंकी याचना करना
११५- राजा ययातिका गालवको अपनी कन्या देना और गालवका उसे लेकर अयोध्यानरेशके यहाँ जाना
११६- हर्यश्वका दो सौ श्यामकर्ण घोड़े देकर ययाति-कन्याके गर्भसे वसुमना नामक पुत्र उत्पन्न करना और गालवका इस कन्याके साथ वहाँसे प्रस्थान
११७- दिवोदासका ययातिकन्या माधवीके गर्भसे प्रतर्दन नामक पुत्र उत्पन्न करना
११८- उशीनरका ययातिकन्या माधवीके गर्भसे शिबि नामक पुत्र उत्पन्न करना, गालवका उस कन्याको साथ लेकर जाना और मार्गमें गरुड़का दर्शन करना
११९- गालवका छः सौ घोड़ोंके साथ माधवीको विश्वामित्रजीकी सेवामें देना और उनके द्वारा उसके गर्भसे अष्टक नामक पुत्रकी उत्पत्ति होनेके बाद उस कन्याको ययातिके यहाँ लौटा देना
१२०- माधवीका वनमें जाकर तप करना तथा ययातिका स्वर्गमें जाकर सुखभोगके पश्चात् मोहवश तेजोहीन होना
१२१- ययातिका स्वर्गलोकसे पतन और उनके दौहित्रों, पुत्री तथा गालव मुनिका उन्हें पुनः स्वर्गलोकमें पहुँचानेके लिये अपना-अपना पुण्य देनेके लिये उद्यत होना
१२२- सत्संग एवं दौहित्रोंके पुण्यदानसे ययातिका पुनः स्वर्गारोहण
१२३- स्वर्गलोकमें ययातिका स्वागत, ययातिके पूछनेपर ब्रह्माजीका अभिमानको ही पतनका कारण बताना तथा नारदजीका दुर्योधनको समझाना
१२४- धृतराष्ट्रके अनुरोधसे भगवान् श्रीकृष्णका दुर्योधनको समझाना
१२५- भीष्म, द्रोण, विदुर और धृतराष्ट्रका दुर्योधनको समझाना
१२६- भीष्म और द्रोणका दुर्योधनको पुनः समझाना
१२७- श्रीकृष्णको दुर्योधनका उत्तर, उसका पाण्डवोंको राज्य न देनेका निश्चय
१२८- श्रीकृष्णका दुर्योधनको फटकारना और उसे कुपित होकर सभासे जाते देख उसे कैद करनेकी सलाह देना
१२९- धृतराष्ट्रका गान्धारीको बुलाना और उसका दुर्योधनको समझाना
१३०- दुर्योधनके षड्‌यन्त्रका सात्यकिद्वारा भंडाफोड़, श्रीकृष्णकी सिंहगर्जना तथा धृतराष्ट्र और विदुरका दुर्योधनको पुनः समझाना
१३१- भगवान् श्रीकृष्णका विश्वरूप दर्शन कराकर कौरवसभासे प्रस्थान
१३२- श्रीकृष्णके पूछनेपर कुन्तीका उन्हें पाण्डवोंसे कहनेके लिये संदेश देना
१३३- कुन्तीके द्वारा विदुलोपाख्यानका आरम्भ, विदुलाका रणभूमिसे भागकर आये हुए अपने पुत्रको कड़ी फटकार देकर पुनः युद्धके लिये उत्साहित करना
१३४- विदुलाका अपने पुत्रको युद्धके लिये उत्साहित करना
१३५- विदुला और उसके पुत्रका संवाद—विदुलाके द्वारा कार्यमें सफलता प्राप्त करने तथा शत्रुवशीकरणके उपायोंका निर्देश
१३६- विदुलाके उपदेशसे उसके पुत्रका युद्धके लिये उद्यत होना
१३७- कुन्तीका पाण्डवोंके लिये संदेश देना और श्रीकृष्णका उनसे विदा लेकर उपप्लव्य नगरमें जाना
१३८- भीष्म और द्रोणका दुर्योधनको समझाना
१३९- भीष्मसे वार्तालाप आरम्भ करके द्रोणाचार्यका दुर्योधनको पुनः संधिके लिये समझाना
१४०- भगवान् श्रीकृष्णका कर्णको पाण्डवपक्षमें आ जानेके लिये समझाना
१४१- कर्णका दुर्योधनके पक्षमें रहनेके निश्चित विचारका प्रतिपादन करते हुए समरयज्ञके रूपकका वर्णन करना
१४२- भगवान् श्रीकृष्णका कर्णसे पाण्डवपक्षकी निश्चित विजयका प्रतिपादन
१४३- कर्णके द्वारा पाण्डवोंकी विजय और कौरवोंकी पराजय सूचित करनेवाले लक्षणों एवं अपने स्वप्नका वर्णन
१४४- विदुरकी बात सुनकर युद्धके भावी दुष्परिणामसे व्यथित हुई कुन्तीका बहुत सोच-विचारके बाद कर्णके पास जाना
१४५- कुन्तीका कर्णको अपना प्रथम पुत्र बताकर उससे पाण्डवपक्षमें मिल जानेका अनुरोध
१४६- कर्णका कुन्तीको उत्तर तथा अर्जुनको छोड़कर शेष चारों पाण्डवोंको न मारनेकी प्रतिज्ञा
१४७- युधिष्ठिरके पूछनेपर श्रीकृष्णका कौरवसभामें व्यक्त किये हुए भीष्मजीके वचन सुनाना
१४८- द्रोणाचार्य, विदुर तथा गान्धारीके बुद्धियुक्त एवं महत्त्वपूर्ण वचनोंका भगवान् श्रीकृष्णके द्वारा कथन
१४९- दुर्योधनके प्रति धृतराष्ट्रके युक्तिसंगत वचन—पाण्डवोंको आधा राजा देनेके लिये आदेश
१५०- श्रीकृष्णका कौरवोंके प्रति साम, दान और भेदनीतिके प्रयोगकी असफलता बताकर दण्डके प्रयोगपर जोर देना
सैन्यनिर्याणपर्व
१५१- पाण्डवपक्षके सेनापतिका चुनाव तथा पाण्डव-सेनाका कुरुक्षेत्रमें प्रवेश
१५२- कुरुक्षेत्रमें पाण्डव-सेनाका पड़ाव तथा शिविर-निर्माण
१५३- दुर्योधनका सेनाको सुसज्जित होने और शिविर-निर्माण करनेके लिये आज्ञा देना तथा सैनिकोंकी रणयात्राके लिये तैयारी
१५४- युधिष्ठिरका भगवान् श्रीकृष्णसे अपने समयोचित कर्तव्यके विषयमें पूछना, भगवान्‌का युद्धको ही कर्तव्य बताना तथा इस विषयमें युधिष्ठिरका संताप और अर्जुनद्वारा श्रीकृष्णके वचनोंका समर्थन
१५५- दुर्योधनके द्वारा सेनाओंका विभाजन और पृथक्-पृथक् अक्षौहिणियोंके सेनापतियोंका अभिषेक
१५६- दुर्योधनके द्वारा भीष्मजीका प्रधान सेनापतिके पदपर अभिषेक और कुरुक्षेत्रमें पहुँचकर शिविर-निर्माण
१५७- युधिष्ठिरके द्वारा अपने सेनापतियोंका अभिषेक, यदुवंशियोंसहित बलरामजीका आगमन तथा पाण्डवोंसे विदा लेकर उनका तीर्थयात्राके लिये प्रस्थान
१५८- रुक्मीका सहायता देनेके लिये आना; परंतु पाण्डव और कौरव दोनों पक्षोंके द्वारा कोरा उत्तर पाकर लौट जाना
१५९- धृतराष्ट्र और संजयका संवाद
उलूकदूतागमनपर्व
१६०- दुर्योधनका उलूकको दूत बनाकर पाण्डवोंके पास भेजना और उनसे कहनेके लिये संदेश देना
१६१- पाण्डवोंके शिविरमें पहुँचकर उलूकका भरी सभामें दुर्योधनका संदेश सुनाना
१६२- पाण्डवपक्षकी ओरसे दुर्योधनको उसके संदेशका उत्तर
१६३- पाँचों पाण्डवों, विराट, द्रुपद, शिखण्डी और धृष्टद्युम्नका संदेश लेकर उलूकका लौटना और उलूककी बात सुनकर दुर्योधनका सेनाको युद्धके लिये तैयार होनेका आदेश देना
१६४- पाण्डव-सेनाका युद्धके मैदानमें जाना और धृष्टद्युम्नके द्वारा योद्धाओंकी अपने-अपने योग्य विपक्षियोंके साथ युद्ध करनेके लिये नियुक्ति
रथातिरथसंख्यानपर्व
१६५- दुर्योधनके पूछनेपर भीष्मका कौरवपक्षके रथियों और अतिरथियोंका परिचय देना
१६६- कौरवपक्षके रथियोंका परिचय
१६७- कौरवपक्षके रथी, महारथी और अतिरथियोंका वर्णन
१६८- कौरवपक्षके रथियों और अतिरथियोंका वर्णन, कर्ण और भीष्मका रोषपूर्वक संवाद तथा दुर्योधनद्वारा उसका निवारण
१६९- पाण्डवपक्षके रथी आदिका एवं उनकी महिमाका वर्णन
१७०- पाण्डवपक्षके रथियों और महारथियोंका वर्णन तथा विराट और द्रुपदकी प्रशंसा
१७१- पाण्डवपक्षके रथी, महारथी एवं अतिरथी आदिका वर्णन
१७२- भीष्मका पाण्डवपक्षके अतिरथी वीरोंका वर्णन करते हुए शिखण्डी और पाण्डवोंका वध न करनेका कथन
अम्बोपाख्यानपर्व
१७३- अम्बोपाख्यानका आरम्भ—भीष्मजीके द्वारा काशिराजकी कन्याओंका अपहरण
१७४- अम्बाका शाल्वराजके प्रति अपना अनुराग प्रकट करके उनके पास जानेके लिये भीष्मसे आज्ञा माँगना
१७५- अम्बाका शाल्वके यहाँ जाना और उससे परित्यक्त होकर तापसोंके आश्रममें आना, वहाँ शैखावत्य और अम्बाका संवाद
१७६- तापसोंके आश्रममें राजर्षि होत्रवाहन और अकृतव्रणका आगमन तथा उनसे अम्बाकी बातचीत
१७७- अकृतव्रण और परशुरामजीकी अम्बासे बातचीत
१७८- अम्बा और परशुरामजीका संवाद, अकृतव्रणकी सलाह, परशुराम और भीष्मकी रोषपूर्ण बातचीत तथा उन दोनोंका युद्धके लिये कुरुक्षेत्रमें उतरना
१७९- संकल्पनिर्मित रथपर आरूढ़ परशुरामजीके साथ भीष्मका युद्ध प्रारम्भ करना
१८०- भीष्म और परशुरामका घोर युद्ध
१८१- भीष्म और परशुरामका युद्ध
१८२- भीष्म और परशुरामका युद्ध
१८३- भीष्मको अष्टवसुओंसे प्रस्वापनास्त्रकी प्राप्ति
१८४- भीष्म तथा परशुरामजीका एक-दूसरेपर शक्ति और ब्रह्मास्त्रका प्रयोग
१८५- देवताओंके मना करनेसे भीष्मका प्रस्वापनास्त्रको प्रयोगमें न लाना तथा पितर, देवता और गंगाके आग्रहसे भीष्म और परशुरामके युद्धकी समाप्ति
१८६- अम्बाकी कठोर तपस्या
१८७- अम्बाका द्वितीय जन्ममें पुनः तप करना और महादेवजीसे अभीष्ट वरकी प्राप्ति तथा उसका चिताकी आगमें प्रवेश
१८८- अम्बाका राजा द्रुपदके यहाँ कन्याके रूपमें जन्म, राजा तथा रानीका उसे पुत्ररूपमें प्रसिद्ध करके उसका नाम शिखण्डी रखना
१८९- शिखण्डीका विवाह तथा उसके स्त्री होनेका समाचार पाकर उसके श्वशुर दशार्णराजका महान् कोप
१९०- हिरण्यवर्माके आक्रमणके भयसे घबराये हुए द्रुपदका अपनी महारानीसे संकटनिवारणका उपाय पूछना
१९१- द्रुपदपत्नीका उत्तर, द्रुपदके द्वारा नगररक्षाकी व्यवस्था और देवाराधन तथा शिखण्डिनीका वनमें जाकर स्थूणाकर्ण नामक यक्षसे अपने दुःखनिवारणके लिये प्रार्थना करना
१९२- शिखण्डीको पुरुषत्वकी प्राप्ति, द्रुपद और हिरण्यवर्माकी प्रसन्नता, स्थूणाकर्णको कुबेरका शाप तथा भीष्मका शिखण्डीको न मारनेका निश्चय
१९३- दुर्योधनके पूछनेपर भीष्म आदिके द्वारा अपनी-अपनी शक्तिका वर्णन
१९४- अर्जुनके द्वारा अपनी, अपने सहायकोंकी तथा युधिष्ठिरकी भी शक्तिका परिचय देना
१९५- कौरव-सेनाका रणके लिये प्रस्थान
१९६- पाण्डव-सेनाका युद्धके लिये प्रस्थान
6. भीष्मपर्व
जम्बूखण्डविनिर्माणपर्व
१- कुरुक्षेत्रमें उभय पक्षके सैनिकोंकी स्थिति तथा युद्धके नियमोंका निर्माण
२- वेदव्यासजीके द्वारा संजयको दिव्य दृष्टिका दान तथा भयसूचक उत्पातोंका वर्णन
३- व्यासजीके द्वारा अमंगलसूचक उत्पातों तथा विजयसूचक लक्षणोंका वर्णन
४- धृतराष्ट्रके पूछनेपर संजयके द्वारा भूमिके महत्त्वका वर्णन
५- पंचमहाभूतों तथा सुदर्शनद्वीपका संक्षिप्त वर्णन
६- सुदर्शनके वर्ष, पर्वत, मेरुगिरि, गंगानदी तथा शशाकृतिका वर्णन
७- उत्तर कुरु, भद्राश्ववर्ष तथा माल्यवान्‌का वर्णन
८- रमणक, हिरण्यक, शृंगवान् पर्वत तथा ऐरावतवर्षका वर्णन
९- भारतवर्षकी नदियों, देशों तथा जनपदोंके नाम और भूमिका महत्त्व
१०- भारतवर्षमें युगोंके अनुसार मनुष्योंकी आयु तथा गुणोंका निरूपण
भूमिपर्व
११- शाकद्वीपका वर्णन
१२- कुश, क्रौंच और पुष्कर आदि द्वीपोंका तथा राहु, सूर्य एवं चन्द्रमाके प्रमाणका वर्णन
श्रीमद्भगवद्‌गीतापर्व
१३- संजयका युद्धभूमिसे लौटकर धृतराष्ट्रको भीष्मकी मृत्युका समाचार सुनाना
१४- धृतराष्ट्रका विलाप करते हुए भीष्मजीके मारे जानेकी घटनाको विस्तारपूर्वक जाननेके लिये संजयसे प्रश्न करना
१५- संजयका युद्धके वृत्तान्तका वर्णन आरम्भ करना—दुर्योधनका दुःशासनको भीष्मकी रक्षाके लिये समुचित व्यवस्था करनेका आदेश
१६- दुर्योधनकी सेनाका वर्णन
१७- कौरवमहारथियोंका युद्धके लिये आगे बढ़ना तथा उनके व्यूह, वाहन और ध्वज आदिका वर्णन
१८- कौरव-सेनाका कोलाहल तथा भीष्मके रक्षकोंका वर्णन
१९- व्यूह-निर्माणके विषयमें युधिष्ठिर और अर्जुनकी बातचीत, अर्जुनद्वारा वज्रव्यूहकी रचना, भीमसेनकी अध्यक्षतामें सेनाका आगे बढ़ना
२०- दोनों सेनाओंकी स्थिति तथा कौरव-सेनाका अभियान
२१- कौरव-सेनाको देखकर युधिष्ठिरका विषाद करना और ‘श्रीकृष्णकी कृपासे ही विजय होती है’ यह कहकर अर्जुनका उन्हें आश्वासन देना
२२- युधिष्ठिरकी रणयात्रा, अर्जुन और भीमसेनकी प्रशंसा तथा श्रीकृष्णका अर्जुनसे कौरव-सेनाको मारनेके लिये कहना
२३- अर्जुनके द्वारा दुर्गादेवीकी स्तुति, वरप्राप्ति और अर्जुनकृत दुर्गास्तवनके पाठकी महिमा
२४- सैनिकोंके हर्ष और उत्साहके विषयमें धृतराष्ट्र और संजयका संवाद
२५- (श्रीमद्भगवद्‌गीतायां प्रथमोऽध्यायः) दोनों सेनाओंके प्रधान-प्रधान वीरों एवं शंख-ध्वनिका वर्णन तथा स्वजनवधके पापसे भयभीत हुए अर्जुनका विषाद
२६- (श्रीमद्भगवद्‌गीतायां द्वितीयोऽध्यायः) अर्जुनको युद्धके लिये उत्साहित करते हुए भगवान्‌के द्वारा नित्यानित्य वस्तुके विवेचनपूर्वक सांख्ययोग, कर्मयोग एवं स्थितप्रज्ञकी स्थिति और महिमाका प्रतिपादन
२७- (श्रीमद्भगवद्‌गीतायां तृतीयोऽध्यायः) ज्ञानयोग और कर्मयोग आदि समस्त साधनोंके अनुसार कर्तव्यकर्म करनेकी आवश्यकताका प्रतिपादन एवं स्वधर्मपालनकी महिमा तथा कामनिरोधके उपायका वर्णन
२८- (श्रीमद्भगवद्‌गीतायां चतुर्थोऽध्यायः) सगुण भगवान्‌के प्रभाव, निष्काम कर्मयोग तथा योगी महात्मा पुरुषोंके आचरण और उनकी महिमाका वर्णन करते हुए विविध यज्ञों एवं ज्ञानकी महिमाका वर्णन
२९- (श्रीमद्भगवद्‌गीतायां पञ्चमोऽध्यायः) सांख्ययोग, निष्काम कर्मयोग, ज्ञानयोग एवं भक्तिसहित ध्यानयोगका वर्णन
३०- (श्रीमद्भगवद्‌गीतायां षष्ठोऽध्यायः) निष्काम कर्मयोगका प्रतिपादन करते हुए आत्मोद्धारके लिये प्रेरणा तथा मनोनिग्रहपूर्वक ध्यानयोग एवं योगभ्रष्टकी गतिका वर्णन
३१- (श्रीमद्भगवद्‌गीतायां सप्तमोऽध्यायः) ज्ञान-विज्ञान, भगवान्‌की व्यापकता, अन्य देवताओंकी उपासना एवं भगवान्‌को प्रभावसहित न जाननेवालोंकी निन्दा और जाननेवालोंकी महिमाका कथन
३२- (श्रीमद्भगवद्‌गीतायामष्टमोऽध्यायः) ब्रह्म, अध्यात्म और कर्मादिके विषयमें अर्जुनके सात प्रश्न और उनका उत्तर एवं भक्तियोग तथा शुक्ल और कृष्ण मार्गोंका प्रतिपादन
३३- (श्रीमद्भगवद्‌गीतायां नवमोऽध्यायः) ज्ञान-विज्ञान और जगत्‌की उत्पत्तिका, आसुरी और दैवी सम्पदावालोंका, प्रभावसहित भगवान्‌के स्वरूपका, सकाम-निष्काम उपासनाका एवं भगवद्भक्तिकी महिमाका वर्णन
३४- (श्रीमद्भगवद्‌गीतायां दशमोऽध्यायः) भगवान्‌की विभूति और योगशक्तिका तथा प्रभावसहित भक्तियोगका कथन, अर्जुनके पूछनेपर भगवान्‌द्वारा अपनी विभूतियोंका और योगशक्तिका पुनः वर्णन
३५- (श्रीमद्भगवद्‌गीतायामेकादशोऽध्यायः) विश्वरूपका दर्शन करानेके लिये अर्जुनकी प्रार्थना, भगवान् और संजयद्वारा विश्वरूपका वर्णन, अर्जुनद्वारा भगवान्‌के विश्वरूपका देखा जाना, भयभीत हुए अर्जुनद्वारा भगवान्‌की स्तुति-प्रार्थना, भगवान्‌द्वारा विश्वरूप और चतुर्भुज-रूपके दर्शनकी महिमा और केवल अनन्यभक्तिसे ही भगवान्‌की प्राप्तिका कथन
३६- (श्रीमद्भगवद्‌गीतायां द्वादशोऽध्यायः) साकार और निराकारके उपासकोंकी उत्तमताका निर्णय तथा भगवत्प्राप्तिके उपायका एवं भगवत्प्राप्तिवाले पुरुषोंके लक्षणोंका वर्णन
३७- (श्रीमद्भगवद्‌गीतायां त्रयोदशोऽध्यायः) ज्ञानसहित क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ और प्रकृति-पुरुषका वर्णन
३८- (श्रीमद्भगवद्‌गीतायां चतुर्दशोऽध्यायः) ज्ञानकी महिमा और प्रकृति-पुरुषसे जगत्‌की उत्पत्तिका, सत्त्व, रज, तम—तीनों गुणोंका, भगवत्प्राप्तिके उपायका एवं गुणातीत पुरुषके लक्षणोंका वर्णन
३९- (श्रीमद्भगवद्‌गीतायां पञ्चदशोऽध्यायः) संसारवृक्षका, भगवत्प्राप्तिके उपायका, जीवात्माका, प्रभावसहित परमेश्वरके स्वरूपका एवं क्षर, अक्षर और पुरुषोत्तमके तत्त्वका वर्णन
४०- (श्रीमद्भगवद्‌गीतायां षोडशोऽध्यायः) फलसहित दैवी और आसुरी सम्पदाका वर्णन तथा शास्त्रविपरीत आचरणोंको त्यागने और शास्त्रके अनुकूल आचरण करनेके लिये प्रेरणा
४१- (श्रीमद्भगवद्‌गीतायां सप्तदशोऽध्यायः) श्रद्धाका और शास्त्रविपरीत घोर तप करनेवालोंका वर्णन, आहार, यज्ञ, तप और दानके पृथक्-पृथक् भेद तथा ॐ, तत्, सत्‌के प्रयोगकी व्याख्या
४२- (श्रीमद्भगवद्‌गीतायामष्टादशोऽध्यायः) त्यागका, सांख्यसिद्धान्तका, फलसहित वर्ण-धर्मका, उपासनासहित ज्ञाननिष्ठाका, भक्तिसहित निष्काम कर्मयोगका एवं गीताके माहात्म्यका वर्णन
भीष्मवधपर्व
४३- गीताका माहात्म्य तथा युधिष्ठिरका भीष्म, द्रोण कृप और शल्यसे अनुमति लेकर युद्धके लिये तैयार होना
४४- कौरव-पाण्डवोंके प्रथम दिनके युद्धका आरम्भ
४५- उभयपक्षके सैनिकोंका द्वन्द्व-युद्ध
४६- कौरव-पाण्डव-सेनाका घमासान युद्ध
४७- भीष्मके साथ अभिमन्युका भयंकर युद्ध, शल्यके द्वारा उत्तरकुमारका वध और श्वेतका पराक्रम
४८- श्वेतका महाभयंकर पराक्रम और भीष्मके द्वारा उसका वध
४९- शंखका युद्ध, भीष्मका प्रचण्ड पराक्रम तथा प्रथम दिनके युद्धकी समाप्ति
५०- युधिष्ठिरकी चिन्ता, भगवान् श्रीकृष्णद्वारा आश्वासन, धृष्टद्युम्नका उत्साह तथा द्वितीय दिनके युद्धके लिये क्रौंचारुणव्यूहका निर्माण
५१- कौरव-सेनाकी व्यूह-रचना तथा दोनों दलोंमें शंखध्वनि और सिंहनाद
५२- भीष्म और अर्जुनका युद्ध
५३- धृष्टद्युम्न तथा द्रोणाचार्यका युद्ध
५४- भीमसेनका कलिंगों और निषादोंसे युद्ध, भीमसेनके द्वारा शक्रदेव, भानुमान् और केतुमान्‌का वध तथा उनके बहुत-से सैनिकोंका संहार
५५- अभिमन्यु और अर्जुनका पराक्रम तथा दूसरे दिनके युद्धकी समाप्ति
५६- तीसरे दिन—कौरव-पाण्डवोंकी व्यूह-रचना तथा युद्धका आरम्भ
५७- उभयपक्षकी सेनाओंका घमासान युद्ध
५८- पाण्डव-वीरोंका पराक्रम, कौरव-सेनामें भगदड़ तथा दुर्योधन और भीष्मका संवाद
५९- भीष्मका पराक्रम, श्रीकृष्णका भीष्मको मारनेके लिये उद्यत होना, अर्जुनकी प्रतिज्ञा और उनके द्वारा कौरव-सेनाकी पराजय, तृतीय दिवसके युद्धकी समाप्ति
६०- चौथे दिन—दोनों सेनाओंका व्यूह-निर्माण तथा भीष्म और अर्जुनका द्वैरथ-युद्ध
६१- अभिमन्युका पराक्रम और धृष्टद्युम्नद्वारा शलके पुत्रका वध
६२- धृष्टद्युम्न और शल्य आदि दोनों पक्षके वीरोंका युद्ध तथा भीमसेनके द्वारा गजसेनाका संहार
६३- युद्धस्थलमें प्रचण्ड पराक्रमकारी भीमसेनका भीष्मके साथ युद्ध तथा सात्यकि और भूरिश्रवाकी मुठभेड़
६४- भीमसेन और घटोत्कचका पराक्रम, कौरवोंकी पराजय तथा चौथे दिनके युद्धकी समाप्ति
६५- धृतराष्ट्र-संजय-संवादके प्रसंगमें दुर्योधनके द्वारा पाण्डवोंकी विजयका कारण पूछनेपर भीष्मका ब्रह्माजीके द्वारा की हुई भगवत्-स्तुतिका कथन
६६- नारायणावतार श्रीकृष्ण एवं नरावतार अर्जुनकी महिमाका प्रतिपादन
६७- भगवान् श्रीकृष्णकी महिमा
६८- ब्रह्मभूतस्तोत्र तथा श्रीकृष्ण और अर्जुनकी महत्ता
६९- कौरवोंद्वारा मकरव्यूह तथा पाण्डवोंद्वारा श्येन-व्यूहका निर्माण एवं पाँचवें दिनके युद्धका आरम्भ
७०- भीष्म और भीमसेनका घमासान युद्ध
७१- भीष्म, अर्जुन आदि योद्धाओंका घमासान युद्ध
७२- दोनों सेनाओंका परस्पर घोर युद्ध
७३- विराट-भीष्म, अश्वत्थामा-अर्जुन, दुर्योधन-भीमसेन तथा अभिमन्यु और लक्ष्मणके द्वन्द्व-युद्ध
७४- सात्यकि और भूरिश्रवाका युद्ध, भूरिश्रवाद्वारा सात्यकिके दस पुत्रोंका वध, अर्जुनका पराक्रम तथा पाँचवें दिनके युद्धका उपसंहार
७५- छठे दिनके युद्धका आरम्भ, पाण्डव तथा कौरव-सेनाका क्रमशः मकरव्यूह एवं क्रौंचव्यूह बनाकर युद्धमें प्रवृत्त होना
७६- धृतराष्ट्रकी चिन्ता
७७- भीमसेन, धृष्टद्युम्न तथा द्रोणाचार्यका पराक्रम
७८- उभय पक्षकी सेनाओंका संकुलयुद्ध
७९- भीमसेनके द्वारा दुर्योधनकी पराजय, अभिमन्यु और द्रौपदीपुत्रोंका धृतराष्ट्रपुत्रोंके साथ युद्ध तथा छठें दिनके युद्धकी समाप्ति
८०- भीष्मद्वारा दुर्योधनको आश्वासन तथा सातवें दिनके युद्धके लिये कौरव-सेनाका प्रस्थान
८१- सातवें दिनके युद्धमें कौरव-पाण्डव-सेनाओंका मण्डल और वज्रव्यूह बनाकर भीषण संघर्ष
८२- श्रीकृष्ण और अर्जुनसे डरकर कौरव-सेनामें भगदड़, द्रोणाचार्य और विराटका युद्ध, विराट-पुत्र शंखका वध, शिखण्डी और अश्वत्थामाका युद्ध, सात्यकिके द्वारा अलम्बुषकी पराजय, धृष्टद्युम्नके द्वारा दुर्योधनकी हार तथा भीमसेन और कृतवर्माका युद्ध
८३- इरावान्‌के द्वारा विन्द और अनुविन्दकी पराजय, भगदत्तसे घटोत्कचका हारना तथा मद्रराजपर नकुल और सहदेवकी विजय
८४- युधिष्ठिरसे राजा श्रुतायुका पराजित होना, युद्धमें चेकितान और कृपाचार्यका मूर्छित होना, भूरिश्रवासे धृष्टकेतुका और अभिमन्युसे चित्रसेन आदिका पराजित होना एवं सुशर्मा आदिसे अर्जुनका युद्धारम्भ
८५- अर्जुनका पराक्रम, पाण्डवोंका भीष्मपर आक्रमण, युधिष्ठिरका शिखण्डीको उपालम्भ और भीमका पुरुषार्थ
८६- भीष्म और युधिष्ठिरका युद्ध, धृष्टद्युम्न और सात्यकिके साथ विन्द और अनुविन्दका संग्राम, द्रोण आदिका पराक्रम और सातवें दिनके युद्धकी समाप्ति
८७- आठवें दिन व्यूहबद्ध कौरव-पाण्डव-सेनाओंकी रणयात्रा और उनका परस्पर घमासान युद्ध
८८- भीष्मका पराक्रम, भीमसेनके द्वारा धृतराष्ट्रके आठ पुत्रोंका वध तथा दुर्योधन और भीष्मकी युद्धविषयक बातचीत
८९- कौरव-पाण्डव-सेनाका घमासान युद्ध और भयानक जनसंहार
९०- इरावान्‌के द्वारा शकुनिके भाइयोंका तथा राक्षस अलम्बुषके द्वारा इरावान्‌का वध
९१- घटोत्कच और दुर्योधनका भयानक युद्ध
९२- घटोत्कचका दुर्योधन एवं द्रोण आदि प्रमुख वीरोंके साथ भयंकर युद्ध
९३- घटोत्कचकी रक्षाके लिये आये हुए भीम आदि शूरवीरोंके साथ कौरवोंका युद्ध और उनका पलायन
९४- दुर्योधन और भीमसेनका एवं अश्वत्थामा और राजा नीलका युद्ध तथा घटोत्कचकी मायासे मोहित होकर कौरव-सेनाका पलायन
९५- दुर्योधनके अनुरोध और भीष्मजीकी आज्ञासे भगदत्तका घटोत्कच, भीमसेन और पाण्डव-सेनाके साथ घोर युद्ध
९६- इरावान्‌के वधसे अर्जुनका दुःखपूर्ण उद्‌गार, भीमसेनके द्वारा धृतराष्ट्रके नौ पुत्रोंका वध, अभिमन्यु और अम्बष्ठका युद्ध, युद्धकी भयानक स्थितिका वर्णन तथा आठवें दिनके युद्धका उपसंहार
९७- दुर्योधनका अपने मन्त्रियोंसे सलाह करके भीष्मसे पाण्डवोंको मारने अथवा कर्णको युद्धके लिये आज्ञा देनेका अनुरोध करना
९८- भीष्मका दुर्योधनको अर्जुनका पराक्रम बताना और भयंकर युद्धके लिये प्रतिज्ञा करना तथा प्रातःकाल दुर्योधनके द्वारा भीष्मकी रक्षाकी व्यवस्था
९९- नवें दिनके युद्धके लिये उभयपक्षकी सेनाओंकी व्यूह-रचना और उनके घमासान युद्धका आरम्भ तथा विनाशसूचक उत्पातोंका वर्णन
१००- द्रौपदीके पाँचों पुत्रों और अभिमन्युका राक्षस अलम्बुषके साथ घोर युद्ध एवं अभिमन्युके द्वारा नष्ट होती हुई कौरव-सेनाका युद्धभूमिसे पलायन
१०१- अभिमन्युके द्वारा अलम्बुषकी पराजय, अर्जुनके साथ भीष्मका तथा कृपाचार्य, अश्वत्थामा और द्रोणाचार्यके साथ सात्यकिका युद्ध
१०२- द्रोणाचार्य और सुशर्माके साथ अर्जुनका युद्ध तथा भीमसेनके द्वारा गजसेनाका संहार
१०३- उभय पक्षकी सेनाओंका घमासान युद्ध और रक्तमयी रणनदीका वर्णन
१०४- अर्जुनके द्वारा त्रिगर्तोंकी पराजय, कौरव-पाण्डव सैनिकोंका घोर युद्ध, अभिमन्युसे चित्रसेनकी, द्रोणसे द्रुपदकी और भीमसेनसे बाह्लीककी पराजय तथा सात्यकि और भीष्मका युद्ध
१०५- दुर्योधनका दुःशासनको भीष्मकी रक्षाके लिये आदेश, युधिष्ठिर और नकुल-सहदेवके द्वारा शकुनिकी घुड़सवार-सेनाकी पराजय तथा शल्यके साथ उन सबका युद्ध
१०६- भीष्मके द्वारा पराजित पाण्डव-सेनाका पलायन और भीष्मको मारनेके लिये उद्यत हुए श्रीकृष्णको अर्जुनका रोकना
१०७- नवें दिनके युद्धकी समाप्ति, रातमें पाण्डवोंकी गुप्त मन्त्रणा तथा श्रीकृष्णसहित पाण्डवोंका भीष्मसे मिलकर उनके वधका उपाय जानना
१०८- दसवें दिन उभयपक्षकी सेनाका रणके लिये प्रस्थान तथा भीष्म और शिखण्डीका समागम एवं अर्जुनका शिखण्डीको भीष्मका वध करनेके लिये उत्साहित करना
१०९- भीष्म और दुर्योधनका संवाद तथा भीष्मके द्वारा लाखों सैनिकोंका संहार
११०- अर्जुनके प्रोत्साहनसे शिखण्डीका भीष्मपर आक्रमण और दोनों सेनाओंके प्रमुख वीरोंका परस्पर युद्ध तथा दुःशासनका अर्जुनके साथ घोर युद्ध
१११- कौरव-पाण्डवपक्षके प्रमुख महारथियोंके द्वन्द्व-युद्धका वर्णन
११२- द्रोणाचार्यका अश्वत्थामाको अशुभ शकुनोंकी सूचना देते हुए उसे भीष्मकी रक्षाके लिये धृष्टद्युम्नसे युद्ध करनेका आदेश देना
११३- कौरवपक्षके दस प्रमुख महारथियोंके साथ अकेले घोर युद्ध करते हुए भीमसेनका अद्भुत पराक्रम
११४- कौरवपक्षके प्रमुख महारथियोंके साथ युद्धमें भीमसेन और अर्जुनका अद्भुत पुरुषार्थ
११५- भीष्मके आदेशसे युधिष्ठिरका उनपर आक्रमण तथा कौरव-पाण्डव सैनिकोंका भीषण युद्ध
११६- कौरव-पाण्डव महारथियोंके द्वन्द्व-युद्धका वर्णन तथा भीष्मका पराक्रम
११७- उभय पक्षकी सेनाओंका युद्ध, दुःशासनका पराक्रम तथा अर्जुनके द्वारा भीष्मका मूर्च्छित होना
११८- भीष्मका अद्भुत पराक्रम करते हुए पाण्डव-सेनाका भीषण संहार
११९- कौरवपक्षके प्रमुख महारथियोंद्वारा सुरक्षित होनेपर भी अर्जुनका भीष्मको रथसे गिराना, शरशय्यापर स्थित भीष्मके समीप हंसरूपधारी ऋषियोंका आगमन एवं उनके कथनसे भीष्मका उत्तरायणकी प्रतीक्षा करते हुए प्राण धारण करना
१२०- भीष्मजीकी महत्ता तथा अर्जुनके द्वारा भीष्मको तकिया देना एवं उभय पक्षकी सेनाओंका अपने शिविरमें जाना और श्रीकृष्ण-युधिष्ठिर-संवाद
१२१- अर्जुनका दिव्य जल प्रकट करके भीष्मजीकी प्यास बुझाना तथा भीष्मजीका अर्जुनकी प्रशंसा करते हुए दुर्योधनको संधिके लिये समझाना
१२२- भीष्म और कर्णका रहस्यमय संवाद
Mahabharata: Bhag: 4
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श्रीकृष्णकी शरण
विषय-सूची
चित्र-सूची
7. द्रोणपर्व
द्रोणाभिषेकपर्व
१- भीष्मजीके धराशायी होनेसे कौरवोंका शोक तथा उनके द्वारा कर्णका स्मरण
२- कर्णकी रणयात्रा
३- भीष्मजीके प्रति कर्णका कथन
४- भीष्मजीका कर्णको प्रोत्साहन देकर युद्धके लिये भेजना तथा कर्णके आगमनसे कौरवोंका हर्षोल्लास
५- कर्णका दुर्योधनके समक्ष सेनापति-पदके लिये द्रोणाचार्यका नाम प्रस्तावित करना
६- दुर्योधनका द्रोणाचार्यसे सेनापति होनेके लिये प्रार्थना करना
७- द्रोणाचार्यका सेनापतिके पदपर अभिषेक, कौरव-पाण्डव-सेनाओंका युद्ध और द्रोणका पराक्रम
८- द्रोणाचार्यके पराक्रम और वधका संक्षिप्त समाचार
९- द्रोणाचार्यकी मृत्युका समाचार सुनकर धृतराष्ट्रका शोक करना
१०- राजा धृतराष्ट्रका शोकसे व्याकुल होना और संजयसे युद्धविषयक प्रश्न
११- धृतराष्ट्रका भगवान् श्रीकृष्णकी संक्षिप्त लीलाओंका वर्णन करते हुए श्रीकृष्ण और अर्जुनकी महिमा बताना
१२- दुर्योधनका वर माँगना और द्रोणाचार्यका युधिष्ठिरको अर्जुनकी अनुपस्थितिमें जीवित पकड़ लानेकी प्रतिज्ञा करना
१३- अर्जुनका युधिष्ठिरको आश्वासन देना तथा युद्धमें द्रोणाचार्यका पराक्रम
१४- द्रोणका पराक्रम, कौरव-पाण्डववीरोंका द्वन्द्वयुद्ध, रणनदीका वर्णन तथा अभिमन्युकी वीरता
१५- शल्यके साथ भीमसेनका युद्ध तथा शल्यकी पराजय
१६- वृषसेनका पराक्रम, कौरव-पाण्डववीरोंका तुमुल युद्ध, द्रोणाचार्यके द्वारा पाण्डवपक्षके अनेक वीरोंका वध तथा अर्जुनकी विजय
संशप्तकवधपर्व
१७- सुशर्मा आदि संशप्तकवीरोंकी प्रतिज्ञा तथा अर्जुनका युद्धके लिये उनके निकट जाना
१८- संशप्तक-सेनाओंके साथ अर्जुनका युद्ध और सुधन्वाका वध
१९- संशप्तकगणोंके साथ अर्जुनका घोर युद्ध
२०- द्रोणाचार्यके द्वारा गरुड़व्यूहका निर्माण, युधिष्ठिरका भय, धृष्टद्युम्नका आश्वासन, धृष्टद्युम्न और दुर्मुखका युद्ध तथा संकुल युद्धमें गजसेनाका संहार
२१- द्रोणाचार्यके द्वारा सत्यजित्, शतानीक, दृढसेन, क्षेम, वसुदान तथा पांचालराजकुमार आदिका वध और पाण्डव-सेनाकी पराजय
२२- द्रोणके युद्धके विषयमें दुर्योधन और कर्णका संवाद
२३- पाण्डव-सेनाके महारथियोंके रथ, घोड़े, ध्वज तथा धनुषोंका विवरण
२४- धृतराष्ट्रका अपना खेद प्रकाशित करते हुए युद्धके समाचार पूछना
२५- कौरव-पाण्डव-सैनिकोंके द्वन्द्व-युद्ध
२६- भीमसेनका भगदत्तके हाथीके साथ युद्ध, हाथी और भगदत्तका भयानक पराक्रम
२७- अर्जुनका संशप्तक-सेनाके साथ भयंकर युद्ध और उसके अधिकांश भागका वध
२८- संशप्तकोंका संहार करके अर्जुनका कौरव-सेनापर आक्रमण तथा भगदत्त और उनके हाथीका पराक्रम
२९- अर्जुन और भगदत्तका युद्ध, श्रीकृष्णद्वारा भगदत्तके वैष्णवास्त्रसे अर्जुनकी रक्षा तथा अर्जुनद्वारा हाथीसहित भगदत्तका वध
३०- अर्जुनके द्वारा वृषक और अचलका वध, शकुनिकी माया और उसकी पराजय तथा कौरव-सेनाका पलायन
३१- कौरव-पाण्डव-सेनाओंका घमासान युद्ध तथा अश्वत्थामाके द्वारा राजा नीलका वध
३२- कौरव-पाण्डव-सेनाओंका घमासान युद्ध, भीमसेनका कौरव महारथियोंके साथ संग्राम, भयंकर संहार, पाण्डवोंका द्रोणाचार्यपर आक्रमण, अर्जुन और कर्णका युद्ध, कर्णके भाइयोंका वध तथा कर्ण और सात्यकिका संग्राम
अभिमन्युवधपर्व
३३- दुर्योधनका उपालम्भ, द्रोणाचार्यकी प्रतिज्ञा और अभिमन्युवधके वृत्तान्तका संक्षेपसे वर्णन
३४- संजयके द्वारा अभिमन्युकी प्रशंसा, द्रोणाचार्यद्वारा चक्रव्यूहका निर्माण
३५- युधिष्ठिर और अभिमन्युका संवाद तथा व्यूहभेदनके लिये अभिमन्युकी प्रतिज्ञा
३६- अभिमन्युका उत्साह तथा उसके द्वारा कौरवोंकी चतुरंगिणी सेनाका संहार
३७- अभिमन्युका पराक्रम, उसके द्वारा अश्मक-पुत्रका वध, शल्यका मूर्च्छित होना और कौरव-सेनाका पलायन
३८- अभिमन्युके द्वारा शल्यके भाईका वध तथा द्रोणाचार्यकी रथसेनाका पलायन
३९- द्रोणाचार्यके द्वारा अभिमन्युके पराक्रमकी प्रशंसा तथा दुर्योधनके आदेशसे दुःशासनका अभिमन्युके साथ युद्ध आरम्भ करना
४०- अभिमन्युके द्वारा दुःशासन और कर्णकी पराजय
४१- अभिमन्युके द्वारा कर्णके भाईका वध तथा कौरव-सेनाका संहार और पलायन
४२- अभिमन्युके पीछे जानेवाले पाण्डवोंको जयद्रथका वरके प्रभावसे रोक देना
४३- पाण्डवोंके साथ जयद्रथका युद्ध और व्यूहद्वारको रोक रखना
४४- अभिमन्युका पराक्रम और उसके द्वारा वसातीय आदि अनेक योद्धाओंका वध
४५- अभिमन्युके द्वारा सत्यश्रवा, क्षत्रियसमूह, रुक्मरथ तथा उसके मित्रगणों और सैकड़ों राजकुमारोंका वध और दुर्योधनकी पराजय
४६- अभिमन्युके द्वारा लक्ष्मण तथा क्राथपुत्रका वध और सेनासहित छः महारथियोंका पलायन
४७- अभिमन्युका पराक्रम, छः महारथियोंके साथ घोर युद्ध और उसके द्वारा वृन्दारक तथा दस हजार अन्य राजाओंके सहित कोसलनरेश बृहद्‌बलका वध
४८- अभिमन्युद्वारा अश्वकेतु, भोज और कर्णके मन्त्री आदिका वध एवं छः महारथियोंके साथ घोर युद्ध और उन महारथियोंद्वारा अभिमन्युके धनुष, रथ, ढाल और तलवारका नाश
४९- अभिमन्युका कालिकेय, वसाति और कैकय रथियोंको मार डालना एवं छः महारथियोंके सहयोगसे अभिमन्युका वध और भागती हुई अपनी सेनाको युधिष्ठिरका आश्वासन देना
५०- तीसरे (तेरहवें) दिनके युद्धकी समाप्तिपर सेनाका शिविरको प्रस्थान एवं रणभूमिका वर्णन
५१- युधिष्ठिरका विलाप
५२- विलाप करते हुए युधिष्ठिरके पास व्यासजीका आगमन और अकम्पन-नारद-संवादकी प्रस्तावना करते हुए मृत्युकी उत्पत्तिका प्रसंग आरम्भ करना
५३- शंकर और ब्रह्माका संवाद, मृत्युकी उत्पत्ति तथा उसे समस्त प्रजाके संहारका कार्य सौंपा जाना
५४- मृत्युकी घोर तपस्या, ब्रह्माजीके द्वारा उसे वरकी प्राप्ति तथा नारद-अकम्पन-संवादका उपसंहार
५५- षोडशराजकीयोपाख्यानका आरम्भ, नारदजीकी कृपासे राजा सृंजयको पुत्रकी प्राप्ति, दस्युओंद्वारा उसका वध तथा पुत्रशोकसंतप्त सृंजयको नारदजीका मरुत्तका चरित्र सुनाना
५६- राजा सुहोत्रकी दानशीलता
५७- राजा पौरवके अद्‌भुत दानका वृत्तान्त
५८- राजा शिबिके यज्ञ और दानकी महत्ता
५९- भगवान् श्रीरामका चरित्र
६०- राजा भगीरथका चरित्र
६१- राजा दिलीपका उत्कर्ष
६२- राजा मान्धाताकी महत्ता
६३- राजा ययातिका उपाख्यान
६४- राजा अम्बरीषका चरित्र
६५- राजा शशबिन्दुका चरित्र
६६- राजा गयका चरित्र
६७- राजा रन्तिदेवकी महत्ता
६८- राजा भरतका चरित्र
६९- राजा पृथुका चरित्र
७०- परशुरामजीका चरित्र
७१- नारदजीका सृंजयके पुत्रको जीवित करना और व्यासजीका युधिष्ठिरको समझाकर अन्तर्धान होना
प्रतिज्ञापर्व
७२- अभिमन्युकी मृत्युके कारण अर्जुनका विषाद और क्रोध
७३- युधिष्ठिरके मुखसे अभिमन्युवधका वृत्तान्त सुनकर अर्जुनकी जयद्रथको मारनेके लिये शपथपूर्ण प्रतिज्ञा
७४- जयद्रथका भय तथा दुर्योधन और द्रोणाचार्यका उसे आश्वासन देना
७५- श्रीकृष्णका अर्जुनको कौरवोंके जयद्रथकी रक्षाविषयक उद्योगका समाचार बताना
७६- अर्जुनके वीरोचित वचन
७७- नाना प्रकारके अशुभसूचक उत्पात, कौरव-सेनामें भय और श्रीकृष्णका अपनी बहिन सुभद्राको आश्वासन देना
७८- सुभद्राका विलाप और श्रीकृष्णका सबको आश्वासन
७९- श्रीकृष्णका अर्जुनकी विजयके लिये रात्रिमें भगवान् शिवका पूजन करवाना, जागते हुए पाण्डव-सैनिकोंकी अर्जुनके लिये शुभाशंसा तथा अर्जुनकी सफलताके लिये श्रीकृष्णके दारुकके प्रति उत्साहभरे वचन
८०- अर्जुनका स्वप्नमें भगवान् श्रीकृष्णके साथ शिवजीके समीप जाना और उनकी स्तुति करना
८१- अर्जुनको स्वप्नमें ही पुनः पाशुपतास्त्रकी प्राप्ति
८२- युधिष्ठिरका प्रातःकाल उठकर स्नान और नित्यकर्म आदिसे निवृत्त हो ब्राह्मणोंको दान देना, वस्त्राभूषणोंसे विभूषित हो सिंहासनपर बैठना और वहाँ पधारे हुए भगवान् श्रीकृष्णका पूजन करना
८३- अर्जुनकी प्रतिज्ञाको सफल बनानेके लिये युधिष्ठिरकी श्रीकृष्णसे प्रार्थना और श्रीकृष्णका उन्हें आश्वासन देना
८४- युधिष्ठिरका अर्जुनको आशीर्वाद, अर्जुनका स्वप्न सुनकर समस्त सुहृदोंकी प्रसन्नता, सात्यकि और श्रीकृष्णके साथ रथपर बैठकर अर्जुनकी रणयात्रा तथा अर्जुनके कहनेसे सात्यकिका युधिष्ठिरकी रक्षाके लिये जाना
जयद्रथवधपर्व
८५- धृतराष्ट्रका विलाप
८६- संजयका धृतराष्ट्रको उपालम्भ
८७- कौरव-सैनिकोंका उत्साह तथा आचार्य द्रोणके द्वारा चक्रशकटव्यूहका निर्माण
८८- कौरव-सेनाके लिये अपशकुन, दुर्मर्षणका अर्जुनसे लड़नेका उत्साह तथा अर्जुनका रणभूमिमें प्रवेश एवं शंखनाद
८९- अर्जुनके द्वारा दुर्मर्षणकी गजसेनाका संहार और समस्त सैनिकोंका पलायन
९०- अर्जुनके बाणोंसे हताहत होकर सेनासहित दुःशासनका पलायन
९१- अर्जुन और द्रोणाचार्यका वार्तालाप तथा युद्ध एवं द्रोणाचार्यको छोड़कर आगे बढ़े हुए अर्जुनका कौरव-सैनिकोंद्वारा प्रतिरोध
९२- अर्जुनका द्रोणाचार्य और कृतवर्माके साथ युद्ध करते हुए कौरव-सेनामें प्रवेश तथा श्रुतायुधका अपनी गदासे और सुदक्षिणका अर्जुनद्वारा वध
९३- अर्जुनद्वारा श्रुतायु, अच्युतायु, नियतायु, दीर्घायु, म्लेच्छ-सैनिक और अम्बष्ठ आदिका वध
९४- दुर्योधनका उपालम्भ सुनकर द्रोणाचार्यका उसके शरीरमें दिव्य कवच बाँधकर उसीको अर्जुनके साथ युद्धके लिये भेजना
९५- द्रोण और धृष्टद्युम्नका भीषण संग्राम तथा उभय पक्षके प्रमुख वीरोंका परस्पर संकुल युद्ध
९६- दोनों पक्षोंके प्रधान वीरोंका द्वन्द्व-युद्ध
९७- द्रोणाचार्य और धृष्टद्युम्नका युद्ध तथा सात्यकिद्वारा धृष्टद्युम्नकी रक्षा
९८- द्रोणाचार्य और सात्यकिका अद्‌भुत युद्ध
९९- अर्जुनके द्वारा तीव्र गतिसे कौरव-सेनामें प्रवेश, विन्द और अनुविन्दका वध तथा अद्‌भुत जलाशयका निर्माण
१००- श्रीकृष्णके द्वारा अश्वपरिचर्या तथा खा-पीकर हृष्ट-पुष्ट हुए अश्वोंद्वारा अर्जुनका पुनः शत्रुसेनापर आक्रमण करते हुए जयद्रथकी ओर बढ़ना
१०१- श्रीकृष्ण और अर्जुनको आगे बढ़ा देख कौरव-सैनिकोंकी निराशा तथा दुर्योधनका युद्धके लिये आना
१०२- श्रीकृष्णका अर्जुनकी प्रशंसापूर्वक उसे प्रोत्साहन देना, अर्जुन और दुर्योधनका एक-दूसरेके सम्मुख आना, कौरव-सैनिकोंका भय तथा दुर्योधनका अर्जुनको ललकारना
१०३- दुर्योधन और अर्जुनका युद्ध तथा दुर्योधनकी पराजय
१०४- अर्जुनका कौरव महाराथियोंके साथ घोर युद्ध
१०५- अर्जुन तथा कौरव महारथियोंके ध्वजोंका वर्णन और नौ महारथियोंके साथ अकेले अर्जुनका युद्ध
१०६- द्रोण और उनकी सेनाके साथ पाण्डव-सेनाका द्वन्द्व-युद्ध तथा द्रोणाचार्यके साथ युद्ध करते समय रथ-भंग हो जानेपर युधिष्ठिरका पलायन
१०७- कौरव-सेनाके क्षेमधूर्ति, वीरधन्वा, निरमित्र तथा व्याघ्रदत्तका वध और दुर्मुख एवं विकर्णकी पराजय
१०८- द्रौपदीपुत्रोंके द्वारा सोमदत्तकुमार शलका वध तथा भीमसेनके द्वारा अलम्बुषकी पराजय
१०९- घटोत्कचद्वारा अलम्बुषका वध और पाण्डव-सेनामें हर्ष-ध्वनि
११०- द्रोणाचार्य और सात्यकिका युद्ध तथा युधिष्ठिरका सात्यकिकी प्रशंसा करते हुए उसे अर्जुनकी सहायताके लिये कौरव-सेनामें प्रवेश करनेका आदेश
१११- सात्यकि और युधिष्ठिरका संवाद
११२- सात्यकिकी अर्जुनके पास जानेकी तैयारी और सम्मानपूर्वक विदा होकर उनका प्रस्थान तथा साथ आते हुए भीमको युधिष्ठिरकी रक्षाके लिये लौटा देना
११३- सात्यकिका द्रोण और कृतवर्माके साथ युद्ध करते हुए काम्बोजोंकी सेनाके पास पहुँचना
११४- धृतराष्ट्रका विषादयुक्त वचन, संजयका धृतराष्ट्रको ही दोषी बताना, कृतवर्माका भीमसेन और शिखण्डीके साथ युद्ध तथा पाण्डव-सेनाकी पराजय
११५- सात्यकिके द्वारा कृतवर्माकी पराजय, त्रिगर्तोंकी गजसेनाका संहार और जलसंधका वध
११६- सात्यकिका पराक्रम तथा दुर्योधन और कृतवर्माकी पुनः पराजय
११७- सात्यकि और द्रोणाचार्यका युद्ध, द्रोणकी पराजय तथा कौरव-सेनाका पलायन
११८- सात्यकिद्वारा सुदर्शनका वध
११९- सात्यकि और उनके सारथिका संवाद तथा सात्यकिद्वारा काम्बोजों और यवन आदिकी सेनाकी पराजय
१२०- सात्यकिद्वारा दुर्योधनकी सेनाका संहार तथा भाइयोंसहित दुर्योधनका पलायन
१२१- सात्यकिके द्वारा पाषाणयोधी म्लेच्छोंकी सेनाका संहार और दुःशासनका सेनासहित पलायन
१२२- द्रोणाचार्यका दुःशासनको फटकारना और द्रोणाचार्यके द्वारा वीरकेतु आदि पांचालोंका वध एवं उनका धृष्टद्युम्नके साथ घोर युद्ध, द्रोणाचार्यका मूर्च्छित होना, धृष्टद्युम्नका पलायन, आचार्यकी विजय
१२३- सात्यकिका घोर युद्ध और दुःशासनकी पराजय
१२४- कौरव-पाण्डव-सेनाका घोर युद्ध तथा पाण्डवोंके साथ दुर्योधनका संग्राम
१२५- द्रोणाचार्यके द्वारा बृहत्क्षत्र, धृष्टकेतु, जरासंधपुत्र सहदेव तथा धृष्टद्युम्नकुमार क्षत्रधर्माका वध और चेकितानकी पराजय
१२६- युधिष्ठिरका चिन्तित होकर भीमसेनको अर्जुन और सात्यकिका पता लगानेके लिये भेजना
१२७- भीमसेनका कौरवसेनामें प्रवेश, द्रोणाचार्यके सारथिसहित रथका चूर्ण कर देना तथा उनके द्वारा धृतराष्ट्रके ग्यारह पुत्रोंका वध, अवशिष्ट पुत्रोंसहित सेनाका पलायन
१२८- भीमसेनका द्रोणाचार्य और अन्य कौरव-योद्धाओंको पराजित करते हुए द्रोणाचार्यके रथको आठ बार फेंक देना तथा श्रीकृष्ण और अर्जुनके समीप पहुँचकर गर्जना करना तथा युधिष्ठिरका प्रसन्न होकर अनेक प्रकारकी बातें सोचना
१२९- भीमसेन और कर्णका युद्ध तथा कर्णकी पराजय
१३०- दुर्योधनका द्रोणाचार्यको उपालम्भ देना, द्रोणाचार्यका उसे द्यूतका परिणाम दिखाकर युद्धके लिये वापस भेजना और उसके साथ युधामन्यु तथा उत्तमौजाका युद्ध
१३१- भीमसेनके द्वारा कर्णकी पराजय
१३२- भीमसेन और कर्णका घोर युद्ध
१३३- भीमसेन और कर्णका युद्ध, कर्णके सारथि-सहित रथका विनाश तथा धृतराष्ट्रपुत्र दुर्जयका वध
१३४- भीमसेन और कर्णका युद्ध, धृतराष्ट्रपुत्र दुर्मुखका वध तथा कर्णका पलायन
१३५- धृतराष्ट्रका खेदपूर्वक भीमसेनके बलका वर्णन और अपने पुत्रोंकी निन्दा करना तथा भीमके द्वारा दुर्मर्षण आदि धृतराष्ट्रके पाँच पुत्रोंका वध
१३६- भीमसेन और कर्णका युद्ध, कर्णका पलायन, धृतराष्ट्रके सात पुत्रोंका वध तथा भीमका पराक्रम
१३७- भीमसेन और कर्णका युद्ध तथा दुर्योधनके सात भाइयोंका वध
१३८- भीमसेन और कर्णका भयंकर युद्ध
१३९- भीमसेन और कर्णका भयंकर युद्ध, पहले भीमकी और पीछे कर्णकी विजय, उसके बाद अर्जुनके बाणोंसे व्यथित होकर कर्ण और अश्वत्थामाका पलायन
१४०- सात्यकिद्वारा राजा अलम्बुषका और दुःशासनके घोड़ोंका वध
१४१- सात्यकिका अद्‌भुत पराक्रम, श्रीकृष्णका अर्जुनको सात्यकिके आगमनकी सूचना देना और अर्जुनकी चिन्ता
१४२- भूरिश्रवा और सात्यकिका रोषपूर्वक सम्भाषण और युद्ध तथा सात्यकिका सिर काटनेके लिये उद्यत हुए भूरिश्रवाकी भुजाका अर्जुनद्वारा उच्छेद
१४३- भूरिश्रवाका अर्जुनको उपालम्भ देना, अर्जुनका उत्तर और आमरण अनशनके लिये बैठे हुए भूरिश्रवाका सात्यकिके द्वारा वध
१४४- सात्यकिके भूरिश्रवाद्वारा अपमानित होनेका कारण तथा वृष्णिवंशी वीरोंकी प्रशंसा
१४५- अर्जुनका जयद्रथपर आक्रमण, कर्ण और दुर्योधनकी बातचीत, कर्णके साथ अर्जुनका युद्ध और कर्णकी पराजय तथा सब योद्धाओंके साथ अर्जुनका घोर युद्ध
१४६- अर्जुनका अद्‌भुत पराक्रम और सिन्धुराज जयद्रथका वध
१४७- अर्जुनके बाणोंसे कृपाचार्यका मूर्च्छित होना, अर्जुनका खेद तथा कर्ण और सात्यकिका युद्ध एवं कर्णकी पराजय
१४८- अर्जुनका कर्णको फटकारना और वृषसेनके वधकी प्रतिज्ञा करना, श्रीकृष्णका अर्जुनको बधाई देकर उन्हें रणभूमिका भयानक दृश्य दिखाते हुए युधिष्ठिरके पास ले जाना
१४९- श्रीकृष्णका युधिष्ठिरसे विजयका समाचार सुनाना और युधिष्ठिरद्वारा श्रीकृष्णकी स्तुति तथा अर्जुन, भीम एवं सात्यकिका अभिनन्दन
१५०- व्याकुल हुए दुर्योधनका खेद प्रकट करते हुए द्रोणाचार्यको उपालम्भ देना
१५१- द्रोणाचार्यका दुर्योधनको उत्तर और युद्धके लिये प्रस्थान
१५२- दुर्योधन और कर्णकी बातचीत तथा पुनः युद्धका आरम्भ
घटोत्कचवधपर्व
१५३- कौरव-पाण्डव-सेनाका युद्ध, दुर्योधन और युधिष्ठिरका संग्राम तथा दुर्योधनकी पराजय
१५४- रात्रियुद्धमें पाण्डव-सैनिकोंका द्रोणाचार्यपर आक्रमण और द्रोणाचार्यद्वारा उनका संहार
१५५- द्रोणाचार्यद्वारा शिबिका वध तथा भीमसेनद्वारा घुस्से और थप्पड़से कलिंगराजकुमारका एवं ध्रुव, जयरात तथा धृतराष्ट्रपुत्र दुष्कर्ण और दुर्मदका वध
१५६- सोमदत्त और सात्यकिका युद्ध, सोमदत्तकी पराजय, घटोत्कच और अश्वत्थामाका युद्ध और अश्वत्थामाद्वारा घटोत्कचके पुत्रका, एक अक्षौहिणी राक्षस-सेनाका तथा द्रुपदपुत्रोंका वध एवं पाण्डव-सेनाकी पराजय
१५७- सोमदत्तकी मूर्च्छा, भीमके द्वारा बाह्लीकका वध, धृतराष्ट्रके दस पुत्रों और शकुनिके सात रथियों एवं पाँच भाइयोंका संहार तथा द्रोणाचार्य और युधिष्ठिरके युद्धमें युधिष्ठिरकी विजय
१५८- दुर्योधन और कर्णकी बातचीत, कृपाचार्यद्वारा कर्णको फटकारना तथा कर्णद्वारा कृपाचार्यका अपमान
१५९- अश्वत्थामाका कर्णको मारनेके लिये उद्यत होना, दुर्योधनका उसे मनाना, पाण्डवों और पांचालोंका कर्णपर आक्रमण, कर्णका पराक्रम, अर्जुनके द्वारा कर्णकी पराजय तथा दुर्योधनका अश्वत्थामासे पांचालोंके वधके लिये अनुरोध
१६०- अश्वत्थामाका दुर्योधनको उपालम्भपूर्ण आश्वासन देकर पांचालोंके साथ युद्ध करते हुए धृष्टद्युम्नके रथसहित सारथिको नष्ट करके उसकी सेनाको भगाकर अद्‌भुत पराक्रम दिखाना
१६१- भीमसेन और अर्जुनका आक्रमण और कौरव-सेनाका पलायन
१६२- सात्यकिद्वारा सोमदत्तका वध, द्रोणाचार्य और युधिष्ठिरका युद्ध तथा भगवान् श्रीकृष्णका युधिष्ठिरको द्रोणाचार्यसे दूर रहनेका आदेश
१६३- कौरवों और पाण्डवोंकी सेनाओंमें प्रदीपों (मशालों)-का प्रकाश
१६४- दोनों सेनाओंका घमासान युद्ध और दुर्योधनका द्रोणाचार्यकी रक्षाके लिये सैनिकोंको आदेश
१६५- दोनों सेनाओंका युद्ध और कृतवर्माद्वारा युधिष्ठिरकी पराजय
१६६- सात्यकिके द्वारा भूरिका वध, घटोत्कच और अश्वत्थामाका घोर युद्ध तथा भीमके साथ दुर्योधनका युद्ध एवं दुर्योधनका पलायन
१६७- कर्णके द्वारा सहदेवकी पराजय, शल्यके द्वारा विराटके भाई शतानीकका वध और विराटकी पराजय तथा अर्जुनसे पराजित होकर अलम्बुषका पलायन
१६८- शतानीकके द्वारा चित्रसेनकी और वृषसेनके द्वारा द्रुपदकी पराजय तथा प्रतिविन्ध्य एवं दुःशासनका युद्ध
१६९- नकुलके द्वारा शकुनिकी पराजय तथा शिखण्डी और कृपाचार्यका घोर युद्ध
१७०- धृष्टद्युम्न और द्रोणाचार्यका युद्ध, धृष्टद्युम्नद्वारा द्रुमसेनका वध, सात्यकि और कर्णका युद्ध, कर्णकी दुर्योधनको सलाह तथा शकुनिका पाण्डव-सेनापर आक्रमण
१७१- सात्यकिसे दुर्योधनकी, अर्जुनसे शकुनि और उलूककी तथा धृष्टद्युम्नसे कौरव-सेनाकी पराजय
१७२- दुर्योधनके उपालम्भसे द्रोणाचार्य और कर्णका घोर युद्ध, पाण्डव-सेनाका पलायन, भीमसेनका सेनाको लौटाकर लाना और अर्जुनसहित भीमसेनका कौरवोंपर आक्रमण करना
१७३- कर्णद्वारा धृष्टद्युम्न एवं पांचालोंकी पराजय, युधिष्ठिरकी घबराहट तथा श्रीकृष्ण और अर्जुनका घटोत्कचको प्रोत्साहन देकर कर्णके साथ युद्धके लिये भेजना
१७४- घटोत्कच और जटासुरके पुत्र अलम्बुषका घोर युद्ध तथा अलम्बुषका वध
१७५- घटोत्कच और उसके रथ आदिके स्वरूपका वर्णन तथा कर्ण और घटोत्कचका घोर संग्राम
१७६- अलायुधका युद्धस्थलमें प्रवेश तथा उसके स्वरूप और रथ आदिका वर्णन
१७७- भीमसेन और अलायुधका घोर युद्ध
१७८- दोनों सेनाओंमें परस्पर घोर युद्ध और घटोत्कचके द्वारा अलायुधका वध एवं दुर्योधनका पश्चात्ताप
१७९- घटोत्कचका घोर युद्ध तथा कर्णके द्वारा चलायी हुई इन्द्रप्रदत्त शक्तिसे उसका वध
१८०- घटोत्कचके वधसे पाण्डवोंका शोक तथा श्रीकृष्णकी प्रसन्नता और उसका कारण
१८१- भगवान् श्रीकृष्णका अर्जुनको जरासंध आदि धर्मद्रोहियोंके वध करनेका कारण बताना
१८२- कर्णने अर्जुनपर शक्ति क्यों नहीं छोड़ी, इसके उत्तरमें संजयका धृतराष्ट्रसे और श्रीकृष्णका सात्यकिसे रहस्ययुक्त कथन
१८३- धृतराष्ट्रका पश्चात्ताप, संजयका उत्तर एवं राजा युधिष्ठिरका शोक और भगवान् श्रीकृष्ण तथा महर्षि व्यासद्वारा उसका निवारण
द्रोणवधपर्व
१८४- निद्रासे व्याकुल हुए उभयपक्षके सैनिकोंका अर्जुनके कहनेसे सो जाना और चन्द्रोदयके बाद पुनः उठकर युद्धमें लग जाना
१८५- दुर्योधनका उपालम्भ और द्रोणाचार्यका व्यंगपूर्ण उत्तर
१८६- पाण्डववीरोंका द्रोणाचार्यपर आक्रमण, द्रुपदके पौत्रों तथा द्रुपद एवं विराट आदिका वध, धृष्टद्युम्नकी प्रतिज्ञा और दोनों दलोंमें घमासान युद्ध
१८७- युद्धस्थलकी भीषण अवस्थाका वर्णन और नकुलके द्वारा दुर्योधनकी पराजय
१८८- दुःशासन और सहदेवका, कर्ण और भीमसेनका तथा द्रोणाचार्य और अर्जुनका घोर युद्ध
१८९- धृष्टद्युम्नका दुःशासनको हराकर द्रोणाचार्यपर आक्रमण, नकुल-सहदेवद्वारा उनकी रक्षा, दुर्योधन तथा सात्यकिका संवाद तथा युद्ध, कर्ण और भीमसेनका संग्राम और अर्जुनका कौरवोंपर आक्रमण
१९०- द्रोणाचार्यका घोर कर्म, ऋषियोंका द्रोणको अस्त्र त्यागनेका आदेश तथा अश्वत्थामाकी मृत्यु सुनकर द्रोणका जीवनसे निराश होना
१९१- द्रोणाचार्य और धृष्टद्युम्नका युद्ध तथा सात्यकिकी शूरवीरता और प्रशंसा
१९२- उभयपक्षके श्रेष्ठ महारथियोंका परस्पर युद्ध, धृष्टद्युम्नका आक्रमण, द्रोणाचार्यका अस्त्र त्यागकर योगधारणाके द्वारा ब्रह्मलोक-गमन और धृष्टद्युम्नद्वारा उनके मस्तकका उच्छेद
नारायणास्त्रमोक्षपर्व
१९३- कौरव-सैनिकों तथा सेनापतियोंका भागना, अश्वत्थामाके पूछनेपर कृपाचार्यका उसे द्रोणवधका वृत्तान्त सुनाना
१९४- धृतराष्ट्रका प्रश्न
१९५- अश्वत्थामाके क्रोधपूर्ण उद्‌गार और उसके द्वारा नारायणास्त्रका प्राकट्‌य
१९६- कौरव-सेनाका सिंहनाद सुनकर युधिष्ठिरका अर्जुनसे कारण पूछना और अर्जुनके द्वारा अश्वत्थामाके क्रोध एवं गुरुहत्याके भीषण परिणामका वर्णन
१९७- भीमसेनके वीरोचित उद्‌गार और धृष्टघुम्नके द्वारा अपने कृत्यका समर्थन
१९८- सात्यकि और धृष्टद्युम्नका परस्पर क्रोधपूर्वक वाग्बाणोंसे लड़ना तथा भीमसेन, सहदेव और श्रीकृष्ण एवं युधिष्ठिरके प्रयत्नसे उनका निवारण
१९९- अश्वत्थामाके द्वारा नारायणास्त्रका प्रयोग, राजा युधिष्ठिरका खेद, भगवान् श्रीकृष्णके बताये हुए उपायसे सैनिकोंकी रक्षा, भीमसेनका वीरोचित उद्‌गार और उनपर उस अस्त्रका प्रबल आक्रमण
२००- श्रीकृष्णका भीमसेनको रथसे उतारकर नारायणास्त्रको शान्त करना, अश्वत्थामाका उसके पुनः प्रयोगमें अपनी असमर्थता बताना तथा अश्वत्थामाद्वारा धृष्टद्युम्नकी पराजय, सात्यकिका दुर्योधन, कृपाचार्य, कृतवर्मा, कर्ण और वृषसेन—इन छः महारथियोंको भगा देना फिर अश्वत्थामाद्वारा मालव, पौरव और चेदिदेशके युवराजका वध एवं भीम और अश्वत्थामाका घोर युद्ध तथा पाण्डव-सेनाका पलायन
२०१- अश्वत्थामाके द्वारा आग्नेयास्त्रके प्रयोगसे एक अक्षौहिणी पाण्डव-सेनाका संहार, श्रीकृष्ण और अर्जुनपर उस अस्त्रका प्रभाव न होनेसे चिन्तित हुए अश्वत्थामाको व्यासजीका शिव और श्रीकृष्णकी महिमा बताना
२०२- व्यासजीका अर्जुनसे भगवान् शिवकी महिमा बताना तथा द्रोणपर्वके पाठ और श्रवणका फल
8. कर्णपर्व
१- कर्णवधका संक्षिप्त वृत्तान्त सुनकर जनमेजयका वैशम्पायनजीसे उसे विस्तारपूर्वक कहनेका अनुरोध
२- धृतराष्ट्र और संजयका संवाद
३- दुर्योधनके द्वारा सेनाको आश्वासन देना तथा सेनापति कर्णके युद्ध और वधका संक्षिप्त वृत्तान्त
४- धृतराष्ट्रका शोक और समस्त स्त्रियोंकी व्याकुलता
५- संजयका धृतराष्ट्रको कौरवपक्षके मारे गये प्रमुख वीरोंका परिचय देना
६- कौरवोंद्वारा मारे गये प्रधान-प्रधान पाण्डव-पक्षके वीरोंका परिचय
७- कौरवपक्षके जीवित योद्धाओंका वर्णन और धृतराष्ट्रकी मूर्च्छा
८- धृतराष्ट्रका विलाप
९- धृतराष्ट्रका संजयसे विलाप करते हुए कर्णवधका विस्तारपूर्वक वृत्तान्त पूछना
१०- कर्णको सेनापति बनानेके लिये अश्वत्थामाका प्रस्ताव और सेनापतिके पदपर उसका अभिषेक
११- कर्णके सेनापतित्वमें कौरव-सेनाका युद्धके लिये प्रस्थान और मकरव्यूहका निर्माण तथा पाण्डव-सेनाके अर्धचन्द्राकार व्यूहकी रचना और युद्धका आरम्भ
१२- दोनों सेनाओंका घोर युद्ध और भीमसेनके द्वारा क्षेमधूर्तिका वध
१३- दोनों सेनाओंका परस्पर घोर युद्ध तथा सात्यकिके द्वारा विन्द और अनुविन्दका वध
१४- द्रौपदीपुत्र श्रुतकर्मा और प्रतिविन्ध्यद्वारा क्रमशः चित्रसेन एवं चित्रका वध, कौरव-सेनाका पलायन तथा अश्वत्थामाका भीमसेनपर आक्रमण
१५- अश्वत्थामा और भीमसेनका अद्‌भुत युद्ध तथा दोनोंका मूर्च्छित हो जाना
१६- अर्जुनका संशप्तकों तथा अश्वत्थामाके साथ अद्‌भुत युद्ध
१७- अर्जुनके द्वारा अश्वत्थामाकी पराजय
१८- अर्जुनके द्वारा हाथियोंसहित दण्डधार और दण्ड आदिका वध तथा उनकी सेनाका पलायन
१९- अर्जुनके द्वारा संशप्तक-सेनाका संहार, श्रीकृष्णका अर्जुनको युद्धस्थलका दृश्य दिखाते हुए उनके पराक्रमकी प्रशंसा करना तथा पाण्ड्‌यनरेशका कौरव-सेनाके साथ युद्धारम्भ
२०- अश्वत्थामाके द्वारा पाण्ड्‌यनरेशका वध
२१- कौरव-पाण्डव-दलोंका भयंकर घमासान युद्ध
२२- पाण्डव-सेनापर भयानक गजसेनाका आक्रमण, पाण्डवोंद्वारा पुण्ड्रकी पराजय तथा बंगराज और अंगराजका वध, गजसेनाका विनाश और पलायन
२३- सहदेवके द्वारा दुःशासनकी पराजय
२४- नकुल और कर्णका घोर युद्ध तथा कर्णके द्वारा नकुलकी पराजय और पांचालसेनाका संहार
२५- युयुत्सु और उलूकका युद्ध, युयुत्सुका पलायन, शतानीक और धृतराष्ट्रपुत्र श्रुतकर्माका तथा सुतसोम और शकुनिका घोर युद्ध एवं शकुनिद्वारा पाण्डव-सेनाका विनाश
२६- कृपाचार्यसे धृष्टद्युम्नका भय तथा कृतवर्माके द्वारा शिखण्डीकी पराजय
२७- अर्जुनद्वारा राजा श्रुतंजय, सौश्रुति, चन्द्रदेव और सत्यसेन आदि महारथियोंका वध एवं संशप्तक-सेनाका संहार
२८- युधिष्ठिर और दुर्योधनका युद्ध, दुर्योधनकी पराजय तथा उभयपक्षकी सेनाओंका अमर्यादित भयंकर संग्राम
२९- युधिष्ठिरके द्वारा दुर्योधनकी पराजय
३०- सात्यकि और कर्णका युद्ध तथा अर्जुनके द्वारा कौरव-सेनाका संहार और पाण्डवोंकी विजय
३१- रात्रिमें कौरवोंकी मन्त्रणा, धृतराष्ट्रके द्वारा दैवकी प्रबलताका प्रतिपादन, संजयद्वारा धृतराष्ट्रपर दोषारोप तथा कर्ण और दुर्योधनकी बातचीत
३२- दुर्योधनकी शल्यसे कर्णका सारथि बननेके लिये प्रार्थना और शल्यका इस विषयमें घोर विरोध करना, पुनः श्रीकृष्णके समान अपनी प्रशंसा सुनकर उसे स्वीकार कर लेना
३३- दुर्योधनका शल्यसे त्रिपुरोंकी उत्पत्तिका वर्णन, त्रिपुरोंसे भयभीत इन्द्र आदि देवताओंका ब्रह्माजीके साथ भगवान् शंकरके पास जाकर उनकी स्तुति करना
३४- दुर्योधनका शल्यको शिवके विचित्र रथका विवरण सुनाना और शिवजीद्वारा त्रिपुर-वधका उपाख्यान सुनाना एवं परशुरामजीके द्वारा कर्णको दिव्य अस्त्र मिलनेकी बात कहना
३५- शल्य और दुर्योधनका वार्तालाप, कर्णका सारथि होनेके लिये शल्यकी स्वीकृति
३६- कर्णका युद्धके लिये प्रस्थान और शल्यसे उसकी बातचीत
३७- कौरव-सेनामें अपशकुन, कर्णकी आत्मप्रशंसा, शल्यके द्वारा उसका उपहास और अर्जुनके बल-पराक्रमका वर्णन
३८- कर्णके द्वारा श्रीकृष्ण और अर्जुनका पता बतानेवालेको नाना प्रकारकी भोगसामग्री और इच्छानुसार धन देनेकी घोषणा
३९- शल्यका कर्णके प्रति अत्यन्त आक्षेपपूर्ण वचन कहना
४०- कर्णका शल्यको फटकारते हुए मद्रदेशके निवासियोंकी निन्दा करना एवं उसे मार डालनेकी धमकी देना
४१- राजा शल्यका कर्णको एक हंस और कौएका उपाख्यान सुनाकर उसे श्रीकृष्ण और अर्जुनकी प्रशंसा करते हुए उनकी शरणमें जानेकी सलाह देना
४२- कर्णका श्रीकृष्ण और अर्जुनके प्रभावको स्वीकार करते हुए अभिमानपूर्वक शल्यको फटकारना और उनसे अपनेको परशुरामजीद्वारा और ब्राह्मणद्वारा प्राप्त हुए शापोंकी कथा सुनाना
४३- कर्णका आत्मप्रशंसापूर्वक शल्यको फटकारना
४४- कर्णके द्वारा मद्र आदि बाहीक देशवासियों-की निन्दा
४५- कर्णका मद्र आदि बाहीक-निवासियोंके दोष बताना, शल्यका उत्तर देना और दुर्योधनका दोनोंको शान्त करना
४६- कौरव-सेनाकी व्यूह-रचना, युधिष्ठिरके आदेशसे अर्जुनका आक्रमण, शल्यके द्वारा पाण्डव-सेनाके प्रमुख वीरोंका वर्णन तथा अर्जुनकी प्रशंसा
४७- कौरवों और पाण्डवोंकी सेनाओंका भयंकर युद्ध तथा अर्जुन और कर्णका पराक्रम
४८- कर्णके द्वारा बहुत-से योद्धाओंसहित पाण्डव-सेनाका संहार, भीमसेनके द्वारा कर्णपुत्र भानुसेनका वध, नकुल और सात्यकिके साथ वृषसेनका युद्ध तथा कर्णका राजा युधिष्ठिरपर आक्रमण
४९- कर्ण और युधिष्ठिरका संग्राम, कर्णकी मूर्च्छा, कर्णद्वारा युधिष्ठिरकी पराजय और तिरस्कार तथा पाण्डवोंके हजारों योद्धाओंका वध और रक्त-नदीका वर्णन तथा पाण्डव-महारथियोंद्वारा कौरव-सेनाका विध्वंस और उसका पलायन
५०- कर्ण और भीमसेनका युद्ध तथा कर्णका पलायन
५१- भीमसेनके द्वारा धृतराष्ट्रके छः पुत्रोंका वध, भीम और कर्णका युद्ध, भीमके द्वारा गजसेना, रथसेना और घुड़सवारोंका संहार तथा उभयपक्षकी सेनाओंका घोर युद्ध
५२- दोनों सेनाओंका घोर युद्ध और कौरव-सेनाका व्यथित होना
५३- अर्जुनद्वारा दस हजार संशप्तक योद्धाओं और उनकी सेनाका संहार
५४- कृपाचार्यके द्वारा शिखण्डीकी पराजय और सुकेतुका वध तथा धृष्टद्युम्नके द्वारा कृतवर्माका परास्त होना
५५- अश्वत्थामाका घोर युद्ध, सात्यकिके सारथिका वध एवं युधिष्ठिरका अश्वत्थामाको छोड़कर दूसरी ओर चले जाना
५६- नकुल-सहदेवके साथ दुर्योधनका युद्ध, धृष्टद्युम्नसे दुर्योधनकी पराजय, कर्णद्वारा पांचाल-सेनासहित योद्धाओंका संहार, भीमसेनद्वारा कौरव योद्धाओंका सेनासहित विनाश, अर्जुनद्वारा संशप्तकोंका वध तथा अश्वत्थामाका अर्जुनके साथ घोर युद्ध करके पराजित होना
५७- दुर्योधनका सैनिकोंको प्रोत्साहन देना और अश्वत्थामाकी प्रतिज्ञा
५८- अर्जुनका श्रीकृष्णसे युधिष्ठिरके पास चलनेका आग्रह तथा श्रीकृष्णका उन्हें युद्धभूमि दिखाते और वहाँका समाचार बताते हुए रथको आगे बढ़ाना
५९- धृष्टद्युम्न और कर्णका युद्ध, अश्वत्थामाका धृष्टद्युम्नपर आक्रमण तथा अर्जुनके द्वारा धृष्टद्युम्नकी रक्षा और अश्वत्थामाकी पराजय
६०- श्रीकृष्णका अर्जुनसे दुर्योधन और कर्णके पराक्रमका वर्णन करके कर्णको मारनेके लिये अर्जुनको उत्साहित करना तथा भीमसेनके दुष्कर पराक्रमका वर्णन करना
६१- कर्णद्वारा शिखण्डीकी पराजय, धृष्टद्युम्न और दुःशासनका तथा वृषसेन और नकुलका युद्ध, सहदेवद्वारा उलूककी तथा सात्यकिद्वारा शकुनिकी पराजय, कृपाचार्यद्वारा युधामन्युकी एवं कृतवर्माद्वारा उत्तमौजाकी पराजय तथा भीमसेनद्वारा दुर्योधनकी पराजय, गजसेनाका संहार और पलायन
६२- युधिष्ठिरपर कौरव-सैनिकोंका आक्रमण
६३- कर्णद्वारा नकुल-सहदेवसहित युधिष्ठिरकी पराजय एवं पीड़ित होकर युधिष्ठिरका अपनी छावनीमें जाकर विश्राम करना
६४- अर्जुनद्वारा अश्वत्थामाकी पराजय, कौरव-सेनामें भगदड़ एवं दुर्योधनसे प्रेरित कर्णद्वारा भार्गवास्त्रसे पांचालोंका संहार
६५- भीमसेनको युद्धका भार सौंपकर श्रीकृष्ण और अर्जुनका युधिष्ठिरके पास जाना
६६- युधिष्ठिरका अर्जुनसे भ्रमवश कर्णके मारे जानेका वृत्तान्त पूछना
६७- अर्जुनका युधिष्ठिरसे अबतक कर्णको न मार सकनेका कारण बताते हुए उसे मारनेके लिये प्रतिज्ञा करना
६८- युधिष्ठिरका अर्जुनके प्रति अपमानजनक क्रोधपूर्ण वचन
६९- युधिष्ठिरका वध करनेके लिये उद्यत हुए अर्जुनको भगवान् श्रीकृष्णका बलाकव्याध और कौशिक मुनिकी कथा सुनाते हुए धर्मका तत्त्व बताकर समझाना
७०- भगवान् श्रीकृष्णका अर्जुनको प्रतिज्ञा-भंग, भ्रातृवध तथा आत्मघातसे बचाना और युधिष्ठिरको सान्त्वना देकर संतुष्ट करना
७१- अर्जुनसे भगवान् श्रीकृष्णका उपदेश, अर्जुन और युधिष्ठिरका प्रसन्नतापूर्वक मिलन एवं अर्जुनद्वारा कर्णवधकी प्रतिज्ञा, युधिष्ठिरका आशीर्वाद
७२- श्रीकृष्ण और अर्जुनकी रणयात्रा, मार्गमें शुभ शकुन तथा श्रीकृष्णका अर्जुनको प्रोत्साहन देना
७३- भीष्म और द्रोणके पराक्रमका वर्णन करते हुए अर्जुनके बलकी प्रशंसा करके श्रीकृष्णका कर्ण और दुर्योधनके अन्यायकी याद दिलाकर अर्जुनको कर्णवधके लिये उत्तेजित करना
७४- अर्जुनके वीरोचित उद्‌गार
७५- दोनों पक्षोंकी सेनाओंमें द्वन्द्वयुद्ध तथा सुषेणका वध
७६- भीमसेनका अपने सारथि विशोकसे संवाद
७७- अर्जुन और भीमसेनके द्वारा कौरव-सेनाका संहार तथा भीमसेनसे शकुनिकी पराजय एवं दुर्योधनादि धृतराष्ट्रपुत्रोंका सेनासहित भागकर कर्णका आश्रय लेना
७८- कर्णके द्वारा पाण्डव-सेनाका संहार और पलायन
७९- अर्जुनका कौरव-सेनाको विनाश करके खूनकी नदी बहा देना और अपना रथ कर्णके पास ले चलनेके लिये भगवान् श्रीकृष्णसे कहना तथा श्रीकृष्ण और अर्जुनको आते देख शल्य और कर्णकी बातचीत तथा अर्जुनद्वारा कौरव-सेनाका विध्वंस
८०- अर्जुनका कौरव-सेनाको नष्ट करके आगे बढ़ना
८१- अर्जुन और भीमसेनके द्वारा कौरववीरोंका संहार तथा कर्णका पराक्रम
८२- सात्यकिके द्वारा कर्णपुत्र प्रसेनका वध, कर्णका पराक्रम और दुःशासन एवं भीमसेनका युद्ध
८३- भीमद्वारा दुःशासनका रक्तपान और उसका वध, युधामन्युद्वारा चित्रसेनका वध तथा भीमका हर्षोद्‌गार
८४- धृतराष्ट्रके दस पुत्रोंका वध, कर्णका भय और शल्यका समझाना तथा नकुल और वृषसेनका युद्ध
८५- कौरववीरोंद्वारा कुलिन्दराजके पुत्रों और हाथियोंका संहार तथा अर्जुनद्वारा वृषसेनका वध
८६- कर्णके साथ युद्ध करनेके विषयमें श्रीकृष्ण और अर्जुनकी बातचीत तथा अर्जुनका कर्णके सामने उपस्थित होना
८७- कर्ण और अर्जुनका द्वैरथयुद्धमें समागम, उनकी जय-पराजयके सम्बन्धमें सब प्राणियोंका संशय, ब्रह्मा और महादेवजीद्वारा अर्जुनकी विजय-घोषणा तथा कर्णकी शल्यसे और अर्जुनकी श्रीकृष्णसे वार्ता
८८- अर्जुनद्वारा कौरव-सेनाका संहार, अश्वत्थामाका दुर्योधनसे संधिके लिये प्रस्ताव और दुर्योधनद्वारा उसकी अस्वीकृति
८९- कर्ण और अर्जुनका भयंकर युद्ध और कौरववीरोंका पलायन
९०- अर्जुन और कर्णका घोर युद्ध, भगवान् श्रीकृष्णके द्वारा अर्जुनकी सर्पमुख बाणसे रक्षा तथा कर्णका अपना पहिया पृथ्वीमें फँस जानेपर अर्जुनसे बाण न चलानेके लिये अनुरोध करना
९१- भगवान् श्रीकृष्णका कर्णको चेतावनी देना और कर्णका वध
९२- कौरवोंका शोक, भीम आदि पाण्डवोंका हर्ष, कौरव-सेनाका पलायन और दुःखित शल्यका दुर्योधनको सान्त्वना देना
९३- भीमसेनद्वारा पचीस हजार पैदल सैनिकोंका वध, अर्जुनद्वारा रथसेनाका विध्वंस, कौरव-सेनाका पलायन और दुर्योधनका उसे रोकनेके लिये विफल प्रयास
९४- शल्यके द्वारा रणभूमिका दिग्दर्शन, कौरव-सेनाका पलायन और श्रीकृष्ण तथा अर्जुनका शिविरकी ओर गमन
९५- कौरव-सेनाका शिबिरकी ओर पलायन और शिबिरोंमें प्रवेश
९६- युधिष्ठिरका रणभूमिमें कर्णको मारा गया देखकर प्रसन्न हो श्रीकृष्ण और अर्जुनकी प्रशंसा करना, धृतराष्ट्रका शोकमग्न होना तथा कर्णपर्वके श्रवणकी महिमा
9. शल्यपर्व
१- संजयके मुखसे शल्य और दुर्योधनके वधका वृत्तान्त सुनकर राजा धृतराष्ट्रका मूर्च्छित होना और सचेत होनेपर उन्हें विदुरका आश्वासन देना
२- राजा धृतराष्ट्रका विलाप करना और संजयसे युद्धका वृत्तान्त पूछना
३- कर्णके मारे जानेपर पाण्डवोंके भयसे कौरवसेनाका पलायन, सामना करनेवाले पचीस हजार पैदलोंका भीमसेनद्वारा वध तथा दुर्योधनका अपने सैनिकोंको समझा-बुझाकर पुनः पाण्डवोंके साथ युद्धमें लगाना
४- कृपाचार्यका दुर्योधनको संधिके लिये समझाना
५- दुर्योधनका कृपाचार्यको उत्तर देते हुए संधि स्वीकार न करके युद्धका ही निश्चय करना
६- दुर्योधनके पूछनेपर अश्वत्थामाका शल्यको सेनापति बनानेके लिये प्रस्ताव, दुर्योधनका शल्यसे अनुरोध और शल्यद्वारा उसकी स्वीकृति
७- राजा शल्यके वीरोचित उद्‌गार तथा श्रीकृष्णका युधिष्ठिरको शल्यवधके लिये उत्साहित करना
८- उभयपक्षकी सेनाओंका समरांगणमें उपस्थित होना एवं बची हुई दोनों सेनाओंकी संख्याका वर्णन
९- उभय पक्षकी सेनाओंका घमासान युद्ध और कौरव-सेनाका पलायन
१०- नकुलद्वारा कर्णके तीन पुत्रोंका वध तथा उभय पक्षकी सेनाओंका भयानक युद्ध
११- शल्यका पराक्रम, कौरव-पाण्डव-योद्धाओंके द्वन्द्वयुद्ध तथा भीमसेनके द्वारा शल्यकी पराजय
१२- भीमसेन और शल्यका भयानक गदायुद्ध तथा युधिष्ठिरके साथ शल्यका युद्ध, दुर्योधनद्वारा चेकितानका और युधिष्ठिरद्वारा चन्द्रसेन एवं द्रुमसेनका वध, पुनः युधिष्ठिर और माद्रीपुत्रोंके साथ शल्यका युद्ध
१३- मद्रराज शल्यका अद्‌भुत पराक्रम
१४- अर्जुन और अश्वत्थामाका युद्ध तथा पांचाल वीर सुरथका वध
१५- दुर्योधन और धृष्टद्युम्नका एवं अर्जुन और अश्वत्थामाका तथा शल्यके साथ नकुल और सात्यकि आदिका घोर संग्राम
१६- पाण्डव-सैनिकों और कौरव-सैनिकोंका द्वन्द्व-युद्ध, भीमसेनद्वारा दुर्योधनकी तथा युधिष्ठिरद्वारा शल्यकी पराजय
१७- भीमसेनद्वारा राजा शल्यके घोड़े और सारथिका तथा युधिष्ठिरद्वारा राजा शल्य और उनके भाईका वध एवं कृतवर्माकी पराजय
१८- मद्रराजके अनुचरोंका वध और कौरव-सेनाका पलायन
१९- पाण्डव-सैनिकोंका आपसमें बातचीत करते हुए पाण्डवोंकी प्रशंसा और धृतराष्ट्रकी निन्दा करना तथा कौरव-सेनाका पलायन, भीमद्वारा इक्कीस हजार पैदलोंका संहार और दुर्योधनका अपनी सेनाको उत्साहित करना
२०- धृष्टद्युम्नद्वारा राजा शाल्वके हाथीका और सात्यकिद्वारा राजा शाल्वका वध
२१- सात्यकिद्वारा क्षेमधूर्तिका वध, कृतवर्माका युद्ध और उसकी पराजय एवं कौरव-सेनाका पलायन
२२- दुर्योधनका पराक्रम और उभयपक्षकी सेनाओंका घोर संग्राम
२३- कौरवपक्षके सात सौ रथियोंका वध, उभय-पक्षकी सेनाओंका मर्यादाशून्य घोर संग्राम तथा शकुनिका कूट युद्ध और उसकी पराजय
२४- श्रीकृष्णके सम्मुख अर्जुनद्वारा दुर्योधनके दुराग्रहकी निन्दा और रथियोंकी सेनाका संहार
२५- अर्जुन और भीमसेनद्वारा कौरवोंकी रथसेना एवं गजसेनाका संहार, अश्वत्थामा आदिके द्वारा दुर्योधनकी खोज, कौरव-सेनाका पलायन तथा सात्यकिद्वारा संजयका पकड़ा जाना
२६- भीमसेनके द्वारा धृतराष्ट्रके ग्यारह पुत्रोंका और बहुत-सी चतुरंगिणी सेनाका वध
२७- श्रीकृष्ण और अर्जुनकी बातचीत, अर्जुनद्वारा सत्यकर्मा, सत्येषु तथा पैंतालीस पुत्रों और सेनासहित सुशर्माका वध तथा भीमके द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र सुदर्शनका अन्त
२८- सहदेवके द्वारा उलूक और शकुनिका वध एवं बची हुई सेनासहित दुर्योधनका पलायन
(ह्रदप्रवेशपर्व)
२९- बची हुई समस्त कौरव-सेनाका वध, संजयका कैदसे छूटना, दुर्योधनका सरोवरमें प्रवेश तथा युयुत्सुका राजमहिलाओंके साथ हस्तिनापुरमें जाना
(गदापर्व)
३०- अश्वत्थामा, कृतवर्मा और कृपाचार्यका सरोवरपर जाकर दुर्योधनसे युद्ध करनेके विषयमें बातचीत करना, व्याधोंसे दुर्योधनका पता पाकर युधिष्ठिरका सेनासहित सरोवरपर जाना और कृपाचार्य आदिका दूर हट जाना
३१- पाण्डवोंका द्वैपायनसरोवरपर जाना, वहाँ युधिष्ठिर और श्रीकृष्णकी बातचीत तथा तालाबमें छिपे हुए दुर्योधनके साथ युधिष्ठिरका संवाद
३२- युधिष्ठिरके कहनेसे दुर्योधनका तालाबसे बाहर होकर किसी एक पाण्डवके साथ गदायुद्धके लिये तैयार होना
३३- श्रीकृष्णका युधिष्ठिरको फटकारना, भीमसेनकी प्रशंसा तथा भीम और दुर्योधनमें वाग्युद्ध
३४- बलरामजीका आगमन और स्वागत तथा भीमसेन और दुर्योधनके युद्धका आरम्भ
३५- बलदेवजीकी तीर्थयात्रा तथा प्रभास-क्षेत्रके प्रभावका वर्णनके प्रसंगमें चन्द्रमाके शापमोचनकी कथा
३६- उदपानतीर्थकी उत्पत्तिकी तथा त्रित मुनिके कूपमें गिरने, वहाँ यज्ञ करने और अपने भाइयोंको शाप देनेकी कथा
३७- विनशन, सुभूमिक, गन्धर्व, गर्गस्रोत, शंख, द्वैतवन तथा नैमिषेय आदि तीर्थोंमें होते हुए बलभद्रजीका सप्त सारस्वततीर्थमें प्रवेश
३८- सप्तसारस्वततीर्थकी उत्पत्ति, महिमा और मंकणक मुनिका चरित्र
३९- औशनस एवं कपालमोचनतीर्थकी माहात्म्य-कथा तथा रुषंगुके आश्रम पृथूदकतीर्थकी महिमा
४०- आर्ष्टिषेण एवं विश्वामित्रकी तपस्या तथा वरप्राप्ति
४१- अवाकीर्ण और यायात तीर्थकी महिमाके प्रसंगमें दाल्भ्यकी कथा और ययातिके यज्ञका वर्णन
४२- वसिष्ठापवाहतीर्थकी उत्पत्तिके प्रसंगमें विश्वामित्रका क्रोध और वसिष्ठजीकी सहनशीलता
४३- ऋषियोंके प्रयत्नसे सरस्वतीके शापकी निवृत्ति, जलकी शुद्धि तथा अरुणासंगममें स्नान करनेसे राक्षसों और इन्द्रका संकटमोचन
४४- कुमार कार्तिकेयका प्राकट्‌य और उनके अभिषेककी तैयारी
४५- स्कन्दका अभिषेक और उनके महापार्षदोंके नाम, रूप आदिका वर्णन
४६- मातृकाओंका परिचय तथा स्कन्ददेवकी रणयात्रा और उनके द्वारा तारकासुर, महिषासुर आदि दैत्योंका सेनासहित संहार
४७- वरुणका अभिषेक तथा अग्नितीर्थ, ब्रह्मयोनि और कुबेरतीर्थकी उत्पत्तिका प्रसंग
४८- बदरपाचनतीर्थकी महिमाके प्रसंगमें श्रुतावती और अरुन्धतीके तपकी कथा
४९- इन्द्रतीर्थ, रामतीर्थ, यमुनातीर्थ और आदित्यतीर्थकी महिमा
५०- आदित्यतीर्थकी महिमाके प्रसंगमें असित देवल तथा जैगीषव्य मुनिका चरित्र
५१- सारस्वततीर्थकी महिमाके प्रसंगमें दधीच ऋषि और सारस्वत मुनिके चरित्रका वर्णन
५२- वृद्ध कन्याका चरित्र, शृंगवान्‌के साथ उसका विवाह और स्वर्गगमन तथा उस तीर्थका माहात्म्य
५३- ऋषियोंद्वारा कुरुक्षेत्रकी सीमा और महिमाका वर्णन
५४- प्लक्षप्रस्रवण आदि तीर्थों तथा सरस्वतीकी महिमा एवं नारदजीसे कौरवोंके विनाश और भीम तथा दुर्योधनके युद्धका समाचार सुनकर बलरामजीका उसे देखनेके लिये जाना
५५- बलरामजीकी सलाहसे सबका कुरुक्षेत्रके समन्तपंचकतीर्थमें जाना और वहाँ भीम तथा दुर्योधनमें गदायुद्धकी तैयारी
५६- दुर्योधनके लिये अपशकुन, भीमसेनका उत्साह तथा भीम और दुर्योधनमें वाग्युद्धके पश्चात् गदायुद्धका आरम्भ
५७- भीमसेन और दुर्योधनका गदायुद्ध
५८- श्रीकृष्ण और अर्जुनकी बातचीत तथा अर्जुनके संकेतके अनुसार भीमसेनका गदासे दुर्योधनकी जाँघें तोड़कर उसे धराशायी करना एवं भीषण उत्पातोंका प्रकट होना
५९- भीमसेनके द्वारा दुर्योधनका तिरस्कार, युधिष्ठिरका भीमसेनको समझाकर अन्यायसे रोकना और दुर्योधनको सान्त्वना देते हुए खेद प्रकट करना
६०- क्रोधमें भरे हुए बलरामको श्रीकृष्णका समझाना और युधिष्ठिरके साथ श्रीकृष्णकी तथा भीमसेनकी बातचीत
६१- पाण्डव-सैनिकोंद्वारा भीमकी स्तुति, श्रीकृष्णका दुर्योधनपर आक्षेप, दुर्योधनका उत्तर तथा श्रीकृष्णके द्वारा पाण्डवोंका समाधान एवं शंखध्वनि
६२- पाण्डवोंका कौरव शिबिरमें पहुँचना, अर्जुनके रथका दग्ध होना और पाण्डवोंका भगवान् श्रीकृष्णको हस्तिनापुर भेजना
६३- युधिष्ठिरकी प्रेरणासे श्रीकृष्णका हस्तिनापुरमें जाकर धृतराष्ट्र और गान्धारीको आश्वासन दे पुनः पाण्डवोंके पास लौट आना
६४- दुर्योधनका संजयके सम्मुख विलाप और वाहकोंद्वारा अपने साथियोंको संदेश भेजना
६५- दुर्योधनकी दशा देखकर अश्वत्थामाका विषाद, प्रतिज्ञा और सेनापतिके पदपर अभिषेक
10. सौप्तिकपर्व
१- तीनों महारथियोंका एक वनमें विश्राम, कौओंपर उल्लूका आक्रमण देख अश्वत्थामाके मनमें क्रूर संकल्पका उदय तथा अपने दोनों साथियोंसे उसका सलाह पूछना
२- कृपाचार्यका अश्वत्थामाको दैवकी प्रबलता बताते हुए कर्तव्यके विषयमें सत्पुरुषोंसे सलाह लेनेकी प्रेरणा देना
३- अश्वत्थामाका कृपाचार्य और कृतवर्माको उत्तर देते हुए उन्हें अपना क्रूरतापूर्ण निश्चय बताना
४- कृपाचार्यका कल प्रातःकाल युद्ध करनेकी सलाह देना और अश्वत्थामाका इसी रात्रिमें सोते हुओंको मारनेका आग्रह प्रकट करना
५- अश्वत्थामा और कृपाचार्यका संवाद तथा तीनोंका पाण्डवोंके शिविरकी ओर प्रस्थान
६- अश्वत्थामाका शिविर-द्वारपर एक अद्‌भुत पुरुषको देखकर उसपर अस्त्रोंका प्रहार करना और अस्त्रोंके अभावमें चिन्तित हो भगवान् शिवकी शरणमें जाना
७- अश्वत्थामाद्वारा शिवकी स्तुति, उसके सामने एक अग्निवेदी तथा भूतगणोंका प्राकट्य और उसका आत्मसमर्पण करके भगवान् शिवसे खड्‌ग प्राप्त करना
८- अश्वत्थामाके द्वारा रात्रिमें सोये हुए पांचाल आदि समस्त वीरोंका संहार तथा फाटकसे निकलकर भागते हुए योद्धाओंका कृतवर्मा और कृपाचार्यद्वारा वध
९- दुर्योधनकी दशा देखकर कृपाचार्य और अश्वत्थामाका विलाप तथा उनके मुखसे पांचालोंके वधका वृत्तान्त जानकर दुर्योधनका प्रसन्न होकर प्राणत्याग करना
(ऐषीकपर्व)
१०- धृष्टद्युम्नके सारथिके मुखसे पुत्रों और पांचालोंके वधका वृत्तान्त सुनकर युधिष्ठिरका विलाप, द्रौपदीको बुलानेके लिये नकुलको भेजना, सुहृदोंके साथ शिविरमें जाना तथा मारे हुए पुत्रादिको देखकर भाईसहित शोकातुर होना
११- युधिष्ठिरका शोकमें व्याकुल होना, द्रौपदीका विलाप तथा द्रोणकुमारके वधके लिये आग्रह, भीमसेनका अश्वत्थामाको मारनेके लिये प्रस्थान
१२- श्रीकृष्णका अश्वत्थामाकी चपलता एवं क्रूरताके प्रसंगमें सुदर्शनचक्र माँगनेकी बात सुनाते हुए उससे भीमसेनकी रक्षाके लिये प्रयत्न करनेका आदेश देना
१३- श्रीकृष्ण, अर्जुन और युधिष्ठिरका भीमसेनके पीछे जाना, भीमका गंगातटपर पहुँचकर अश्वत्थामाको ललकारना और अश्वत्थामाके द्वारा ब्रह्मास्त्रका प्रयोग
१४- अश्वत्थामाके अस्त्रका निवारण करनेके लिये अर्जुनके द्वारा ब्रह्मास्त्रका प्रयोग एवं वेदव्यासजी और देवर्षि नारदका प्रकट होना
१५- वेदव्यासजीकी आज्ञासे अर्जुनके द्वारा अपने अस्त्रका उपसंहार तथा अश्वत्थामाका अपनी मणि देकर पाण्डवोंके गर्भोंपर दिव्यास्त्र छोड़ना
१६- श्रीकृष्णसे शाप पाकर अश्वत्थामाका वनको प्रस्थान तथा पाण्डवोंका मणि देकर द्रौपदीको शान्त करना
१७- अपने समस्त पुत्रों और सैनिकोंके मारे जानेके विषयमें युधिष्ठिरका श्रीकृष्णसे पूछना और उत्तरमें श्रीकृष्णके द्वारा महादेवजीकी महिमाका प्रतिपादन
१८- महादेवजीके कोपसे देवता, यज्ञ और जगत्‌की दुरवस्था तथा उनके प्रसादसे सबका स्वस्थ होना
11. स्त्रीपर्व
जलप्रदानिकपर्व
१- धृतराष्ट्रका विलाप और संजयका उनको सान्त्वना देना
२- विदुरजीका राजा धृतराष्ट्रको समझाकर उनको शोकका त्याग करनेके लिये कहना
३- विदुरजीका शरीरकी अनित्यता बताते हुए धृतराष्ट्रको शोक त्यागनेके लिये कहना
४- दुःखमय संसारके गहन स्वरूपका वर्णन और उससे छूटनेका उपाय
५- गहन वनके दृष्टान्तसे संसारके भयंकर स्वरूपका वर्णन
६- संसाररूपी वनके रूपकका स्पष्टीकरण
७- संसारचक्रका वर्णन और रथके रूपकसे संयम और ज्ञान आदिको मुक्तिका उपाय बताना
८- व्यासजीका संहारको अवश्यम्भावी बताकर धृतराष्ट्रको समझाना
९- धृतराष्ट्रका शोकातुर हो जाना और विदुरजीका उन्हें पुनः शोकनिवारणके लिये उपदेश
१०- स्त्रियों और प्रजाके लोगोंके सहित राजा धृतराष्ट्रका रणभूमिमें जानेके लिये नगरसे बाहर निकलना
११- राजा धृतराष्ट्रसे कृपाचार्य, अश्वत्थामा और कृतवर्माकी भेंट और कृपाचार्यका कौरव-पाण्डवोंकी सेनाके विनाशकी सूचना देना
१२- पाण्डवोंका धृतराष्ट्रसे मिलना, धृतराष्ट्रके द्वारा भीमकी लोहमयी प्रतिमाका भंग होना और शोक करनेपर श्रीकृष्णका उन्हें समझाना
१३- श्रीकृष्णका धृतराष्ट्रको फटकारकर उनका क्रोध शान्त करना और धृतराष्ट्रका पाण्डवोंको हृदयसे लगना
१४- पाण्डवोंको शाप देनेके लिये उद्यत हुई गान्धारीको व्यासजीका समझाना
१५- भीमसेनका गान्धारीको अपनी सफाई देते हुए उनसे क्षमा माँगना, युधिष्ठिरका अपना अपराध स्वीकार करना, गान्धारीके दृष्टिपातसे युधिष्ठिरके पैरोंके नखोंका काला पड़ जाना, अर्जुनका भयभीत होकर श्रीकृष्णके पीछे छिप जाना, पाण्डवोंका अपनी मातासे मिलना, द्रौपदीका विलाप, कुन्तीका आश्वासन तथा गान्धारीका उन दोनोंको धीरज बँधाना
स्त्रीविलापपर्व
१६- वेदव्यासजीके वरदानसे दिव्य दृष्टिसम्पन्न हुई गान्धारीका युद्धस्थलमें मारे गये योद्धाओं तथा रोती हुई बहुओंको देखकर श्रीकृष्णके सम्मुख विलाप
१७- दुर्योधन तथा उसके पास रोती हुई पुत्रवधूको देखकर गान्धारीका श्रीकृष्णके सम्मुख विलाप
१८- अपने अन्य पुत्रों तथा दुःशासनको देखकर गान्धारीका श्रीकृष्णके सम्मुख विलाप
१९- विकर्ण, दुर्मुख, चित्रसेन, विविंशति तथा दुःसहको देखकर गान्धारीका श्रीकृष्णके सम्मुख विलाप
२०- गान्धारीद्वारा श्रीकृष्णके प्रति उत्तरा और विराटकुलकी स्त्रियोंके शोक एवं विलापका वर्णन
२१- गान्धारीके द्वारा कर्णको देखकर उसके शौर्य तथा उसकी स्त्रीके विलापका श्रीकृष्णके सम्मुख वर्णन
२२- अपनी-अपनी स्त्रियोंसे घिरे हुए अवन्ती-नरेश और जयद्रथको देखकर तथा दुःशलापर दृष्टिपात करके गान्धारीका श्रीकृष्णके सम्मुख विलाप
२३- शल्य, भगदत्त, भीष्म और द्रोणको देखकर श्रीकृष्णके सम्मुख गान्धारीका विलाप
२४- भूरिश्रवाके पास उसकी पत्नियोंका विलाप, उन सबको तथा शकुनिको देखकर गान्धारीका श्रीकृष्णके सम्मुख शोकोद्‌गार
२५- अन्यान्य वीरोंको मरा हुआ देखकर गान्धारीका शोकातुर होकर विलाप करना और क्रोधपूर्वक श्रीकृष्णको यदुवंशविनाशविषयक शाप देना
श्राद्धपर्व
२६- प्राप्त अनुस्मृतिविद्या और दिव्य दृष्टिके प्रभावसे युधिष्ठिरका महाभारतयुद्धमें मारे गये लोगोंकी संख्या और गतिका वर्णन तथा युधिष्ठिरकी आज्ञासे सबका दाह-संस्कार
२७- सभी स्त्री-पुरुषोंका अपने मरे हुए सम्बन्धियोंको जलांजलि देना, कुन्तीका अपने गर्भसे कर्णके जन्म होनेका रहस्य प्रकट करना तथा युधिष्ठिरका कर्णके लिये शोक प्रकट करते हुए उनका प्रेतकृत्य सम्पन्न करना और स्त्रियोंके मनमें रहस्यकी बात न छिपनेका शाप देना
Mahabharata: Bhag: 5
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विषय-सूची
चित्र-सूची
12. शान्तिपर्व
राजधर्मानुशासनपर्व
१- युधिष्ठिरके पास नारद आदि महर्षियोंका आगमन और युधिष्ठिरका कर्णके साथ अपना सम्बन्ध बताते हुए कर्णको शाप मिलनेका वृत्तान्त पूछना
२- नारदजीका कर्णको शाप प्राप्त होनेका प्रसंग सुनाना
३- कर्णको ब्रह्मास्त्रकी प्राप्ति और परशुरामजीका शाप
४- कर्णकी सहायतासे समागत राजाओंको पराजित करके दुर्योधनद्वारा स्वयंवरसे कलिंगराजकी कन्याका अपहरण
५- कर्णके बल और पराक्रमका वर्णन, उसके द्वारा जरासंधकी पराजय और जरासंधका कर्णको अंगदेशमें मालिनी नगरीका राज्य प्रदान करना
६- युधिष्ठिरकी चिन्ता, कुन्तीका उन्हें समझाना और स्त्रियोंको युधिष्ठिरका शाप
७- युधिष्ठिरका अर्जुनसे आन्तरिक खेद प्रकट करते हुए अपने लिये राज्य छोड़कर वनमें चले जानेका प्रस्ताव करना
८- अर्जुनका युधिष्ठिरके मतका निराकरण करते हुए उन्हें धनकी महत्ता बताना और राजधर्मके पालनके लिये जोर देते हुए यज्ञानुष्ठानके लिये प्रेरित करना
९- युधिष्ठिरका वानप्रस्थ एवं संन्यासीके अनुसार जीवन व्यतीत करनेका निश्चय
१०- भीमसेनका राजाके लिये संन्यासका विरोध करते हुए अपने कर्तव्यके ही पालनपर जोर देना
११- अर्जुनका पक्षिरूपधारी इन्द्र और ऋषि-बालकोंके संवादका उल्लेखपूर्वक गृहस्थ-धर्मके पालनपर जोर देना
१२- नकुलका गृहस्थ-धर्मकी प्रशंसा करते हुए राजा युधिष्ठिरको समझाना
१३- सहदेवका युधिष्ठिरको ममता और आसक्तिसे रहित होकर राज्य करनेकी सलाह देना
१४- द्रौपदीका युधिष्ठिरको राजदण्डधारणपूर्वक पृथ्वीका शासन करनेके लिये प्रेरित करना
१५- अर्जुनके द्वारा राजदण्डकी महत्ताका वर्णन
१६- भीमसेनका राजाको भुक्त दुःखोंकी स्मृति कराते हुए मोह छोड़कर मनको काबूमें करके राज्यशासन और यज्ञके लिये प्रेरित करना
१७- युधिष्ठिरद्वारा भीमकी बातका विरोध करते हुए मुनिवृत्तिकी और ज्ञानी महात्माओंकी प्रशंसा
१८- अर्जुनका राजा जनक और उनकी रानीका दृष्टान्त देते हुए युधिष्ठिरको संन्यास ग्रहण करनेसे रोकना
१९- युधिष्ठिरद्वारा अपने मतकी यथार्थताका प्रतिपादन
२०- मुनिवर देवस्थानका राजा युधिष्ठिरको यज्ञानुष्ठानके लिये प्रेरित करना
२१- देवस्थान मुनिके द्वारा युधिष्ठिरके प्रति उत्तम धर्मका और यज्ञादि करनेका उपदेश
२२- क्षत्रियधर्मकी प्रशंसा करते हुए अर्जुनका पुनः राजा युधिष्ठिरको समझाना
२३- व्यासजीका शंख और लिखितकी कथा सुनाते हुए राजा सुद्युम्नके दण्डधर्मपालनका महत्त्व सुनाकर युधिष्ठिरको राजधर्ममें ही दृढ़ रहनेकी आज्ञा देना
२४- व्यासजीका युधिष्ठिरको राजा हयग्रीवका चरित्र सुनाकर उन्हें राजोचित कर्तव्यका पालन करनेके लिये जोर देना
२५- सेनजित्‌के उपदेशयुक्त उद्‌गारोंका उल्लेख करके व्यासजीका युधिष्ठिरको समझाना
२६- युधिष्ठिरके द्वारा धनके त्यागकी ही महत्ताका प्रतिपादन
२७- युधिष्ठिरको शोकवश शरीर त्याग देनेके लिये उद्यत देख व्यासजीका उन्हें उससे निवारण करके समझाना
२८- अश्मा ऋषि और जनकके संवादद्वारा प्रारब्धकी प्रबलता बतलाते हुए व्यासजीका युधिष्ठिरको समझाना
२९- श्रीकृष्णके द्वारा नारद-सृंजय-संवादके रूपमें सोलह राजाओंका उपाख्यान संक्षेपमें सुनाकर युधिष्ठिरके शोकनिवारणका प्रयत्न
३०- महर्षि नारद और पर्वतका उपाख्यान
३१- सुवर्णष्ठीवीके जन्म, मृत्यु और पुनर्जीवनका वृत्तान्त
३२- व्यासजीका अनेक युक्तियोंसे राजा युधिष्ठिरको समझाना
३३- व्यासजीका युधिष्ठिरको समझाते हुए कालकी प्रबलता बताकर देवासुरसंग्रामके उदाहरणसे धर्मद्रोहियोंके दमनका औचित्य सिद्ध करना और प्रायश्चित्त करनेकी आवश्यकता बताना
३४- जिन कर्मोंके करने और न करनेसे कर्ता प्रायश्चित्तका भागी होता और नहीं होता उनका विवेचन
३५- पापकर्मके प्रायश्चित्तोंका वर्णन
३६- स्वायम्भुव मनुके कथनानुसार धर्मका स्वरूप, पापसे शुद्धिके लिये प्रायश्चित्त, अभक्ष्य वस्तुओंका वर्णन तथा दानके अधिकारी एवं अनधिकारीका विवेचन
३७- व्यासजी तथा भगवान् श्रीकृष्णकी आज्ञासे महाराज युधिष्ठिरका नगरमें प्रवेश
३८- नगर-प्रवेशके समय पुरवासियों तथा ब्राह्मणोंद्वारा राजा युधिष्ठिरका सत्कार और उनपर आक्षेप करनेवाले चार्वाकका ब्राह्मणोंद्वारा वध
३९- चार्वाकको प्राप्त हुए वर आदिका श्रीकृष्ण-द्वारा वर्णन
४०- युधिष्ठिरका राज्याभिषेक
४१- राजा युधिष्ठिरका धृतराष्ट्रके अधीन रहकर राज्यकी व्यवस्थाके लिये भाइयों तथा अन्य लोगोंको विभिन्न कार्योंपर नियुक्त करना
४२- राजा युधिष्ठिर तथा धृतराष्ट्रका युद्धमें मारे गये सगे-सम्बन्धियों तथा अन्य राजाओंके लिये श्राद्धकर्म करना
४३- युधिष्ठिरद्वारा भगवान् श्रीकृष्णकी स्तुति
४४- महाराज युधिष्ठिरके दिये हुए विभिन्न भवनोंमें भीमसेन आदि सब भाइयोंका प्रवेश और विश्राम
४५- युधिष्ठिरके द्वारा ब्राह्मणों तथा आश्रितोंका सत्कार एवं दान और श्रीकृष्णके पास जाकर उनकी स्तुति करते हुए कृतज्ञता-प्रकाशन
४६- युधिष्ठिर और श्रीकृष्णका संवाद, श्रीकृष्ण-द्वारा भीष्मकी प्रशंसा और युधिष्ठिरको उनके पास चलनेका आदेश
४७- भीष्मद्वारा भगवान् श्रीकृष्णकी स्तुति—भीष्मस्तवराज
४८- परशुरामजीद्वारा होनेवाले क्षत्रियसंहारके विषयमें राजा युधिष्ठिरका प्रश्न
४९- परशुरामजीके उपाख्यानमें क्षत्रियोंके विनाश और पुनः उत्पन्न होनेकी कथा
५०- श्रीकृष्णद्वारा भीष्मजीके गुण-प्रभावका सविस्तर वर्णन
५१- भीष्मके द्वारा श्रीकृष्णकी स्तुति तथा श्रीकृष्णका भीष्मकी प्रशंसा करते हुए उन्हें युधिष्ठिरके लिये धर्मोपदेश करनेका आदेश
५२- भीष्मका अपनी असमर्थता प्रकट करना, भगवान्‌का उन्हें वर देना तथा ऋषियों एवं पाण्डवोंका दूसरे दिन आनेका संकेत करके वहाँसे विदा होकर अपने-अपने स्थानोंको जाना
५३- भगवान् श्रीकृष्णकी प्रातश्चर्या, सात्यकिद्वारा उनका संदेश पाकर भाइयोंसहित युधिष्ठिरका उन्हींके साथ कुरुक्षेत्रमें पधारना
५४- भगवान् श्रीकृष्ण और भीष्मजीकी बातचीत
५५- भीष्मका युधिष्ठिरके गुणकथनपूर्वक उनको प्रश्न करनेका आदेश देना, श्रीकृष्णका उनके लज्जित और भयभीत होनेका कारण बताना और भीष्मका आश्वासन पाकर युधिष्ठिरका उनके समीप जाना
५६- युधिष्ठिरके पूछनेपर भीष्मके द्वारा राजधर्मका वर्णन, राजाके लिये पुरुषार्थ और सत्यकी आवश्यकता, ब्राह्मणोंकी अदण्डनीयता तथा राजाकी परिहासशीलता और मृदुतासे प्रकट होनेवाले दोष
५७- राजाके धर्मानुकूल नीतिपूर्ण बर्तावका वर्णन
५८- भीष्मद्वारा राज्यरक्षाके साधनोंका वर्णन तथा संध्याके समय युधिष्ठिर आदिका विदा होना और रास्तेमें स्नान-संध्यादि नित्यकर्मसे निवृत्त होकर हस्तिनापुरमें प्रवेश
५९- ब्रह्माजीके नीतिशास्त्रका तथा राजा पृथुके चरित्रका वर्णन
६०- वर्ण-धर्मका वर्णन
६१- आश्रम-धर्मका वर्णन
६२- ब्राह्मणधर्म और कर्तव्यपालनका महत्त्व
६३- वर्णाश्रमधर्मका वर्णन तथा राजधर्मकी श्रेष्ठता
६४- राजधर्मकी श्रेष्ठताका वर्णन और इस विषयमें इन्द्ररूपधारी विष्णु और मान्धाताका संवाद
६५- इन्द्ररूपधारी विष्णु और मान्धाताका संवाद
६६- राजधर्मके पालनसे चारों आश्रमोंके धर्मका फल मिलनेका कथन
६७- राष्ट्रकी रक्षा और उन्नतिके लिये राजाकी आवश्यकताका प्रतिपादन
६८- वसुमना और बृहस्पतिके संवादमें राजाके न होनेसे प्रजाकी हानि और होनेसे लाभका वर्णन
६९- राजाके प्रधान कर्तव्योंका तथा दण्डनीतिके द्वारा युगोंके निर्माणका वर्णन
७०- राजाको इहलोक और परलोकमें सुखकी प्राप्ति करानेवाले छत्तीस गुणोंका वर्णन
७१- धर्मपूर्वक प्रजाका पालन ही राजाका महान् धर्म है, इसका प्रतिपादन
७२- राजाके लिये सदाचारी विद्वान् पुरोहितकी आवश्यकता तथा प्रजापालनका महत्त्व
७३- विद्वान् सदाचारी पुरोहितकी आवश्यकता तथा ब्राह्मण और क्षत्रियमें मेल रहनेसे लाभ-विषयक राजा पुरूरवाका उपाख्यान
७४- ब्राह्मण और क्षत्रियके मेलसे लाभका प्रतिपादन करनेवाला मुचुकुन्दका उपाख्यान
७५- राजाके कर्तव्यका वर्णन, युधिष्ठिरका राज्यसे विरक्त होना एवं भीष्मजीका पुनः राज्यकी महिमा सुनाना
७६- उत्तम-अधम ब्राह्मणोंके साथ राजाका बर्ताव
७७- केकयराज तथा राक्षसका उपाख्यान और केकयराज्यकी श्रेष्ठताका विस्तृत वर्णन
७८- आपत्तिकालमें ब्राह्मणके लिये वैश्यवृत्तिसे निर्वाह करनेकी छूट तथा लुटेरोंसे अपनी और दूसरोंकी रक्षा करनेके लिये सभी जातियोंको शस्त्र धारण करनेका अधिकार एवं रक्षकको सम्मानका पात्र स्वीकार करना
७९- ऋत्विजोंके लक्षण, यज्ञ और दक्षिणाका महत्त्व तथा तपकी श्रेष्ठता
८०- राजाके लिये मित्र और अमित्रकी पहचान तथा उन सबके साथ नीतिपूर्ण बर्तावका और मन्त्रीके लक्षणोंका वर्णन
८१- कुटुम्बीजनोंमें दलबंदी होनेपर उस कुलके प्रधान पुरुषको क्या करना चाहिये? इसके विषयमें श्रीकृष्ण और नारदजीका संवाद
८२- मन्त्रियोंकी परीक्षाके विषयमें तथा राजा और राजकीय मनुष्योंसे सतर्क रहनेके विषयमें कालकवृक्षीय मुनिका उपाख्यान
८३- सभासद् आदिके लक्षण, गुप्त सलाह सुननेके अधिकारी और अनधिकारी तथा गुप्त-मन्त्रणाकी विधि एवं स्थानका निर्देश
८४- इन्द्र और बृहस्पतिके संवादमें सान्त्वनापूर्ण मधुर वचन बोलनेका महत्त्व
८५- राजाकी व्यावहारिक नीति, मन्त्रिमण्डलका संघटन, दण्डका औचित्य तथा दूत, द्वारपाल, शिरोरक्षक, मन्त्री और सेनापतिके गुण
८६- राजाके निवासयोग्य नगर एवं दुर्गका वर्णन, उसके लिये प्रजापालनसम्बन्धी व्यवहार तथा तपस्वीजनोंके समादरका निर्देश
८७- राष्ट्रकी रक्षा तथा वृद्धिके उपाय
८८- प्रजासे कर लेने तथा कोश-संग्रह करनेका प्रकार
८९- राजाके कर्तव्यका वर्णन
९०- उतथ्यका मान्धाताको उपदेश—राजाके लिये धर्मपालनकी आवश्यकता
९१- उतथ्यके उपदेशमें धर्माचरणका महत्त्व और राजाके धर्मका वर्णन
९२- राजाके धर्मपूर्वक आचारके विषयमें वामदेवजीका वसुमनाको उपदेश
९३- वामदेवजीके द्वारा राजोचित बर्तावका वर्णन
९४- वामदेवके उपदेशमें राजा और राज्यके लिये हितकर बर्ताव
९५- विजयाभिलाषी राजाके धर्मानुकूल बर्ताव तथा युद्धनीतिका वर्णन
९६- राजाके छलरहित धर्मयुक्त बर्तावकी प्रशंसा
९७- शूरवीर क्षत्रियोंके कर्तव्यका तथा उनकी आत्मशुद्धि और सद्‌गतिका वर्णन
९८- इन्द्र और अम्बरीषके संवादमें नदी और यज्ञके रूपकोंका वर्णन तथा समरभूमिमें जूझते हुए मारे जानेवाले शूरवीरोंको उत्तम लोकोंकी प्राप्तिका कथन
९९- शूरवीरोंको स्वर्ग और कायरोंको नरककी प्राप्तिके विषयमें मिथिलेश्वर जनकका इतिहास
१००- सैन्यसंचालनकी रीति-नीतिका वर्णन
१०१- भिन्न-भिन्न देशके योद्धाओंके स्वभाव, रूप, बल, आचरण और लक्षणोंका वर्णन
१०२- विजयसूचक शुभाशुभ लक्षणोंका तथा उत्साही और बलवान् सैनिकोंका वर्णन एवं राजाको युद्धसम्बन्धी नीतिका निर्देश
१०३- शत्रुको वशमें करनेके लिये राजाको किस नीतिसे काम लेना चाहिये और दुष्टोंको कैसे पहचानना चाहिये—इसके विषयमें इन्द्र और बृहस्पतिका संवाद
१०४- राज्य, खजाना और सेना आदिसे वंचित हुए असहाय क्षेमदर्शी राजाके प्रति कालक-वृक्षीय मुनिका वैराग्यपूर्ण उपदेश
१०५- कालकवृक्षीय मुनिके द्वारा गये हुए राज्यकी प्राप्तिके लिये विभिन्न उपायोंका वर्णन
१०६- कालकवृक्षीय मुनिका विदेहराज तथा कोसलराजकुमारमें मेल कराना और विदेहराजका कोसलराजको अपना जामाता बना लेना
१०७- गणतन्त्र राज्यका वर्णन और उसकी नीति
१०८- माता-पिता तथा गुरुकी सेवाका महत्त्व
१०९- सत्य-असत्यका विवेचन, धर्मका लक्षण तथा व्यावहारिक नीतिका वर्णन
११०- सदाचार और ईश्वरभक्ति आदिको दुःखोंसे छूटनेका उपाय बताना
१११- मनुष्यके स्वभावकी पहचान बतानेवाली बाघ और सियारकी कथा
११२- एक तपस्वी ऊँटके आलस्यका कुपरिणाम और राजाका कर्तव्य
११३- शक्तिशाली शत्रुके सामने बेंतकी भाँति नतमस्तक होनेका उपदेश—सरिताओं और समुद्रका संवाद
११४- दुष्ट मनुष्यद्वारा की हुई निन्दाको सह लेनेसे लाभ
११५- राजा तथा राजसेवकोंके आवश्यक गुण
११६- सज्जनोंके चरित्रके विषयमें दृष्टान्तरूपसे एक महर्षि और कुत्तेकी कथा
११७- कुत्तेका शरभकी योनिमें जाकर महर्षिके शापसे पुनः कुत्ता हो जाना
११८- राजाके सेवक, सचिव तथा सेनापति आदि और राजाके उत्तम गुणोंका वर्णन एवं उनसे लाभ
११९- सेवकोंको उनके योग्य स्थानपर नियुक्त करने, कुलीन और सत्पुरुषोंका संग्रह करने, कोष बढ़ाने तथा सबकी देखभाल करनेके लिये राजाको प्रेरणा
१२०- राजधर्मका साररूपमें वर्णन
१२१- दण्डके स्वरूप, नाम, लक्षण, प्रभाव और प्रयोगका वर्णन
१२२- दण्डकी उत्पत्ति तथा उसके क्षत्रियोंके हाथमें आनेकी परम्पराका वर्णन
१२३- त्रिवर्गका विचार तथा पापके कारण पदच्युत हुए राजाके पुनरुत्थानके विषयमें आंगरिष्ठ और कामन्दकका संवाद
१२४- इन्द्र और प्रह्लादकी कथा—शीलका प्रभाव, शीलके अभावमें धर्म, सत्य, सदाचार, बल और लक्ष्मीके न रहनेका वर्णन
१२५- युधिष्ठिरका आशाविषयक प्रश्न—उत्तरमें राजा सुमित्र और ऋषभ नामक ऋषिके इतिहासका आरम्भ, उसमें राजा सुमित्रका एक मृगके पीछे दौड़ना
१२६- राजा सुमित्रका मृगकी खोज करते हुए तपस्वी मुनियोंके आश्रमपर पहुँचना और उनसे आशाके विषयमें प्रश्न करना
१२७- ऋषभका राजा सुमित्रको वीरद्युम्न और तनु मुनिका वृत्तान्त सुनाना
१२८- तनु मुनिका राजा वीरद्युम्नको आशाके स्वरूपका परिचय देना और ऋषभके उपदेशसे सुमित्रका आशाको त्याग देना
१२९- यम और गौतमका संवाद
१३०- आपत्तिके समय राजाका धर्म
आपद्धर्मपर्व
१३१- आपत्तिग्रस्त राजाके कर्तव्यका वर्णन
१३२- ब्राह्मणों और श्रेष्ठ राजाओंके धर्मका वर्णन तथा धर्मकी गतिको सूक्ष्म बताना
१३३- राजाके लिये कोशसंग्रहकी आवश्यकता, मर्यादाकी स्थापना और अमर्यादित दस्युवृत्तिकी निन्दा
१३४- बलकी महत्ता और पापसे छूटनेका प्रायश्चित्त
१३५- मर्यादाका पालन करने-करानेवाले कायव्य नामक दस्युकी सद्‌गतिका वर्णन
१३६- राजा किसका धन ले और किसका न ले तथा किसके साथ कैसा बर्ताव करे—इसका विचार
१३७- आनेवाले संकटसे सावधान रहनेके लिये दूरदर्शी, तत्कालज्ञ और दीर्घसूत्री—इन तीन मत्स्योंका दृष्टान्त
१३८- शत्रुओंसे घिरे हुए राजाके कर्तव्यके विषयमें बिडाल और चूहेका आख्यान
१३९- शत्रुसे सदा सावधान रहनेके विषयमें राजा ब्रह्मदत्त और पूजनी चिड़ियाका संवाद
१४०- भारद्वाज कणिकका सौराष्ट्रदेशके राजाको कूटनीतिका उपदेश
१४१- ‘ब्राह्मण भयंकर संकटकालमें किस तरह जीवन-निर्वाह करे’ इस विषयमें विश्वामित्र मुनि और चाण्डालका संवाद
१४२- आपत्कालमें राजाके धर्मका निश्चय तथा उत्तम ब्राह्मणोंके सेवनका आदेश
१४३- शरणागतकी रक्षा करनेके विषयमें एक बहेलिये और कपोत-कपोतीका प्रसंग, सर्दीसे पीड़ित हुए बहेलियेका एक वृक्षके नीचे जाकर सोना
१४४- कबूतरद्वारा अपनी भार्याका गुणगान तथा पतिव्रता स्त्रीकी प्रशंसा
१४५- कबूतरीका कबूतरसे शरणागत व्याधकी सेवाके लिये प्रार्थना
१४६- कबूतरके द्वारा अतिथि-सत्कार और अपने शरीरका बहेलियेके लिये परित्याग
१४७- बहेलियेका वैराग्य
१४८- कबूतरीका विलाप और अग्निमें प्रवेश तथा उन दोनोंको स्वर्गलोककी प्राप्ति
१४९- बहेलियेको स्वर्गलोककी प्राप्ति
१५०- इन्द्रोत मुनिका राजा जनमेजयको फटकारना
१५१- ब्रह्महत्याके अपराधी जनमेजयका इन्द्रोत मुनिकी शरणमें जाना और इन्द्रोत मुनिका उससे ब्राह्मणद्रोह न करनेकी प्रतिज्ञा कराकर उसे शरण देना
१५२- इन्द्रोतका जनमेजयको धर्मोपदेश करके उनसे अश्वमेधयज्ञका अनुष्ठान कराना तथा निष्पाप राजाका पुनः अपने राज्यमें प्रवेश
१५३- मृतककी पुनर्जीवन-प्राप्तिके विषयमें एक ब्राह्मण बालकके जीवित होनेकी कथा; उसमें गीध और सियारकी बुद्धिमता
१५४- नारदजीका सेमल-वृक्षसे प्रशंसापूर्वक प्रश्न
१५५- नारदजीका सेमल-वृक्षको उसका अहंकार देखकर फटकारना
१५६- नारदजीकी बात सुनकर वायुका सेमलको धमकाना और सेमलका वायुको तिरस्कृत करके विचारमग्न होना
१५७- सेमलका हार स्वीकार करना तथा बलवान्‌के साथ वैर न करनेका उपदेश
१५८- समस्त अनर्थोंका कारण लोभको बताकर उससे होनेवाले विभिन्न पापोंका वर्णन तथा श्रेष्ठ महापुरुषोंके लक्षण
१५९- अज्ञान और लोभको एक दूसरेका कारण बताकर दोनोंकी एकता करना और दोनोंको ही समस्त दोषोंका कारण सिद्ध करना
१६०- मन और इन्द्रियोंके संयमरूप दमका माहात्म्य
१६१- तपकी महिमा
१६२- सत्यके लक्षण, स्वरूप और महिमाका वर्णन
१६३- काम, क्रोध आदि तेरह दोषोंका निरूपण और उनके नाशका उपाय
१६४- नृशंस अर्थात् अत्यन्त नीच पुरुषके लक्षण
१६५- नाना प्रकारके पापों और उनके प्रायश्चित्तोंका वर्णन
१६६- खड्गकी उत्पत्ति और प्राप्तिकी परम्पराकी महिमाका वर्णन
१६७- धर्म, अर्थ और कामके विषयमें विदुर तथा पाण्डवोंके पृथक्-पृथक् विचार तथा अन्तमें युधिष्ठिरका निर्णय
१६८- मित्र बनाने एवं न बनाने योग्य पुरुषोंके लक्षण तथा कृतघ्न गौतमकी कथाका आरम्भ
१६९- गौतमका समुद्रकी ओर प्रस्थान और संध्याके समय एक दिव्य बकपक्षीके घरपर अतिथि होना
१७०- गौतमका राजधर्माद्वारा आतिथ्य-सत्कार और उसका राक्षसराज विरूपाक्षके भवनमें प्रवेश
१७१- गौतमका राक्षसराजके यहाँसे सुवर्णराशि लेकर लौटना और अपने मित्र बकके वधका घृणित विचार मनमें लाना
१७२- कृतघ्न गौतमद्वारा मित्र राजधर्माका वध तथा राक्षसोंद्वारा उसकी हत्या और कृतघ्नके मांसको अभक्ष्य बताना
१७३- राजधर्मा और गौतमका पुनः जीवित होना
मोक्षधर्मपर्व
१७४- शोकाकुल चित्तकी शान्तिके लिये राजा सेनजित् और ब्राह्मणके संवादका वर्णन
१७५- अपने कल्याणकी इच्छा रखनेवाले पुरुषका क्या कर्तव्य है, इस विषयमें पिताके प्रति पुत्रद्वारा ज्ञानका उपदेश
१७६- त्यागकी महिमाके विषयमें शम्पाक ब्राह्मणका उपदेश
१७७- मंकिगीता—धनकी तृष्णासे दुःख और उसकी कामनाके त्यागसे परम सुखकी प्राप्ति
१७८- जनककी उक्ति तथा राजा नहुषके प्रश्नोंके उत्तरमें बोध्यगीता
१७९- प्रह्लाद और अवधूतका संवाद—अजगर-वृत्तिकी प्रशंसा
१८०- सद्‌बुद्धिका आश्रय लेकर आत्महत्यादि पापकर्मसे निवृत्त होनेके सम्बन्धमें काश्यप ब्राह्मण और इन्द्रका संवाद
१८१- शुभाशुभ कर्मोंका परिणाम कर्ताको अवश्य भोगना पड़ता है, इसका प्रतिपादन
१८२- भरद्वाज और भृगुके संवादमें जगत्‌की उत्पत्तिका और विभिन्न तत्त्वोंका वर्णन
१८३- आकाशसे अन्य चार स्थूल भूतोंकी उत्पत्तिका वर्णन
१८४- पंचमहाभूतोंके गुणोंका विस्तारपूर्वक वर्णन
१८५- शरीरके भीतर जठरानल तथा प्राण-अपान आदि वायुओंकी स्थिति आदिका वर्णन
१८६- जीवकी सत्तापर नाना प्रकारकी युक्तियोंसे शंका उपस्थित करना
१८७- जीवकी सत्ता तथा नित्यताको मुक्तियोंसे सिद्ध करना
१८८- वर्णविभागपूर्वक मनुष्योंकी और समस्त प्राणियोंकी उत्पत्तिका वर्णन
१८९- चारों वर्णोंके अलग-अलग कर्मोंका और सदाचारका वर्णन तथा वैराग्यसे परब्रह्मकी प्राप्ति
१९०- सत्यकी महिमा, असत्यके दोष तथा लोक और परलोकके सुख-दुःखका विवेचन
१९१- ब्रह्मचर्य और गार्हस्थ्य आश्रमोंके धर्मका वर्णन
१९२- वानप्रस्थ और संन्यास धर्मोंका वर्णन तथा हिमालयके उत्तर पार्श्वमें स्थित उत्कृष्ट लोककी विलक्षणता एवं महत्ताका प्रतिपादन, भृगु-भरद्वाज-संवादका उपसंहार
१९३- शिष्टाचारका फलसहित वर्णन, पापको छिपानेसे हानि और धर्मकी प्रशंसा
१९४- अध्यात्मज्ञानका निरूपण
१९५- ध्यानयोगका वर्णन
१९६- जपयज्ञके विषयमें युधिष्ठिरका प्रश्न, उसके उत्तरमें जप और ध्यानकी महिमा और उसका फल
१९७- जापकमें दोष आनेके कारण उसे नरककी प्राप्ति
१९८- परमधामके अधिकारी जापकके लिये देवलोक भी नरकतुल्य हैं—इसका प्रतिपादन
१९९- जापकको सावित्रीका वरदान, उसके पास धर्म, यम और काल आदिका आगमन, राजा इक्ष्वाकु और जापक ब्राह्मणका संवाद, सत्यकी महिमा तथा जापककी परमगतिका वर्णन
२००- जापक ब्राह्मण और राजा इक्ष्वाकुकी उत्तम गतिका वर्णन तथा जापकको मिलनेवाले फलकी उत्कृष्टता
२०१- बृहस्पतिके प्रश्नके उत्तरमें मनुद्वारा कामनाओंके त्यागकी एवं ज्ञानकी प्रशंसा तथा परमात्मतत्त्वका निरूपण
२०२- आत्मतत्त्वका और बुद्धि आदि प्राकृत पदार्थोंका विवेचन तथा उसके साक्षात्कारका उपाय
२०३- शरीर, इन्द्रिय और मन-बुद्धिसे अतिरिक्त आत्माकी नित्य सत्ताका प्रतिपादन
२०४- आत्मा एवं परमात्माके साक्षात्कारका उपाय तथा महत्त्व
२०५- परब्रह्मकी प्राप्तिका उपाय
२०६- परमात्मतत्त्वका निरूपण—मनु-बृहस्पतिसंवादकी समाप्ति
२०७- श्रीकृष्णसे सम्पूर्ण भूतोंकी उत्पत्तिका तथा उनकी महिमाका कथन
२०८- ब्रह्माके पुत्र मरीचि आदि प्रजापतियोंके वंशका तथा प्रत्येक दिशामें निवास करनेवाले महर्षियोंका वर्णन
२०९- भगवान् विष्णुका वराहरूपमें प्रकट होकर देवताओंकी रक्षा और दानवोंका विनाश कर देना तथा नारदको अनुस्मृतिस्तोत्रका उपदेश और नारदद्वारा भगवान्‌की स्तुति
२१०- गुरु-शिष्यके संवादका उल्लेख करते हुए श्रीकृष्ण-सम्बन्धी अध्यात्मतत्त्वका वर्णन
२११- संसारचक्र और जीवात्माकी स्थितिका वर्णन
२१२- निषिद्ध आचरणके त्याग, सत्त्व, रज और तमके कार्य एवं परिणामका तथा सत्त्वगुणके सेवनका उपदेश
२१३- जीवोत्पत्तिका वर्णन करते हुए दोषों और बन्धनोंसे मुक्त होनेके लिये विषयासक्तिके त्यागका उपदेश
२१४- ब्रह्मचर्य तथा वैराग्यसे मुक्ति
२१५- आसक्ति छोड़कर सनातन ब्रह्मकी प्राप्तिके लिये प्रयत्न करनेका उपदेश
२१६- स्वप्न और सुपुप्ति-अवस्थामें मनकी स्थिति तथा गुणातीत ब्रह्मकी प्राप्तिका उपाय
२१७- सच्चिदानन्दघन परमात्मा, दृश्यवर्ग, प्रकृति और पुरुष (जीवात्मा) उन चारोंके ज्ञानसे मुक्तिका कथन तथा परमात्मप्राप्तिके अन्य साधनोंका भी वर्णन
२१८- राजा जनकके दरबारमें पंचशिखका आगमन और उनके द्वारा नास्तिक मतोंके निराकरणपूर्वक शरीरसे भिन्न आत्माकी नित्य सत्ताका प्रतिपादन
२१९- पंचशिखके द्वारा मोक्ष-तत्त्वका विवेचन एवं भगवान् विष्णुद्वारा मिथिलानरेश जनकवंशी जनदेवकी परीक्षा और उनके लिये वरप्रदान
२२०- श्वेतकेतु और सुवर्चलाका विवाह, दोनों पति-पत्नीका अध्यात्मविषयक संवाद तथा गार्हस्थ्य-धर्मका पालन करते हुए ही उनका परमात्माको प्राप्त होना एवं दमकी महिमाका वर्णन
२२१- व्रत, तप, उपवास, ब्रह्मचर्य तथा अतिथिसेवा आदिका विवेचन तथा यज्ञशिष्ट अन्नका भोजन करनेवालेको परम उत्तम गतिकी प्राप्तिका कथन
२२२- सनत्कुमारजीका ऋषियोंको भगवत्स्वरूपका उपदेश देना
२२३- इन्द्र और बलिका संवाद—इन्द्रके आक्षेप-युक्त वचनोंका बलिके द्वारा कठोर प्रत्युत्तर
२२४- बलि और इन्द्रका संवाद, बलिके द्वारा कालकी प्रबलताका प्रतिपादन करते हुए इन्द्रको फटकारना
२२५- इन्द्र और लक्ष्मीका संवाद, बलिको त्यागकर आयी हुई लक्ष्मीकी इन्द्रके द्वारा प्रतिष्ठा
२२६- इन्द्र और नमुचिका संवाद
२२७- इन्द्र और बलिका संवाद—काल और प्रारब्धकी महिमाका वर्णन
२२८- दैत्योंको त्यागकर इन्द्रके पास लक्ष्मीदेवीका आना तथा किन सद्‌गुणोंके होनेपर लक्ष्मी आती हैं और किन दुर्गुणोंके होनेपर वे त्यागकर चली जाती हैं, इस बातको विस्तारपूर्वक बताना
२२९- जैगीषव्यका असित-देवलको समत्वबुद्धिका उपदेश
२३०- श्रीकृष्ण और उग्रसेनका संवाद—नारदजीकी लोकप्रियताके हेतुभूत गुणोंका वर्णन
२३१- शुकदेवजीका प्रश्न और व्यासजीका उनके प्रश्नोंका उत्तर देते हुए कालका स्वरूप बताना
२३२- व्यासजीका शुकदेवको सृष्टिके उत्पत्ति-क्रम तथा युगधर्मोंका उपदेश
२३३- ब्राह्मप्रलय एवं महाप्रलयका वर्णन
२३४- ब्राह्मणोंका कर्तव्य और उन्हें दान देनेकी महिमाका वर्णन
२३५- ब्राह्मणके कर्तव्यका प्रतिपादन करते हुए कालरूप नदको पार करनेका उपाय बतलाना
२३६- ध्यानके सहायक योग, उनके फल और सात प्रकारकी धारणाओंका वर्णन तथा सांख्य एवं योगके अनुसार ज्ञानद्वारा मोक्षकी प्राप्ति
२३७- सृष्टिके समस्त कार्योंमें बुद्धिकी प्रधानता और प्राणियोंकी श्रेष्ठताके तारतम्यका वर्णन
२३८- नाना प्रकारके भूतोंकी समीक्षापूर्वक कर्मतत्त्वका विवेचन, युगधर्मका वर्णन एवं कालका महत्त्व
२३९- ज्ञानका साधन और उसकी महिमा
२४०- योगसे परमात्माकी प्राप्तिका वर्णन
२४१- कर्म और ज्ञानका अन्तर तथा ब्रह्म-प्राप्तिके उपायका वर्णन
२४२- आश्रमधर्मकी प्रस्तावना करते हुए ब्रह्मचर्य-आश्रमका वर्णन
२४३- ब्राह्मणोंके उपलक्षणसे गार्हस्थ्य-धर्मका वर्णन
२४४- वानप्रस्थ और संन्यास-आश्रमके धर्म और महिमाका वर्णन
२४५- संन्यासीके आचरण और ज्ञानवान् संन्यासीकी प्रशंसा
२४६- परमात्माकी श्रेष्ठता, उसके दर्शनका उपाय तथा इस ज्ञानमय उपदेशके पात्रका निर्णय
२४७- महाभूतादि तत्त्वोंका विवेचन
२४८- बुद्धिकी श्रेष्ठता और प्रकृति-पुरुष-विवेक
२४९- ज्ञानके साधन तथा ज्ञानीके लक्षण और महिमा
२५०- परमात्माकी प्राप्तिका साधन, संसार-नदीका वर्णन और ज्ञानसे ब्रह्मकी प्राप्ति
२५१- ब्रह्मवेत्ता ब्राह्मणके लक्षण और परब्रह्मकी प्राप्तिका उपाय
२५२- शरीरमें पंचभूतोंके कार्य और गुणोंकी पहचान
२५३- स्थूल, सूक्ष्म और कारण-शरीरसे भिन्न जीवात्माका और परमात्माका योगके द्वारा साक्षात्कार करनेका प्रकार
२५४- कामरूपी अद्‌भुत वृक्षका तथा उसे काटकर मुक्ति प्राप्त करनेके उपायका और शरीररूपी नगरका वर्णन
२५५- पंचभूतोंके तथा मन और बुद्धिके गुणोंका विस्तृत वर्णन
२५६- युधिष्ठिरका मृत्युविषयक प्रश्न, नारदजीका राजा अकम्पनसे मृत्युकी उत्पत्तिका प्रसंग सुनाते हुए ब्रह्माजीकी रोषाग्निसे प्रजाके दग्ध होनेका वर्णन
२५७- महादेवजीकी प्रार्थनासे ब्रह्माजीके द्वारा अपनी रोषाग्निका उपसंहार तथा मृत्युकी उत्पत्ति
२५८- मृत्युकी घोर तपस्या और प्रजापतिकी आज्ञासे उसका प्राणियोंके संहारका कार्य स्वीकार करना
२५९- धर्माधर्मके स्वरूपका निर्णय
२६०- युधिष्ठिरका धर्मकी प्रामाणिकतापर संदेह उपस्थित करना
२६१- जाजलिकी घोर तपस्या, सिरपर जटाओंमें पक्षियोंके घोंसला बनानेसे उनका अभिमान और आकाशवाणीकी प्रेरणासे उनका तुलाधार वैश्यके पास जाना
२६२- जाजलि और तुलाधारका धर्मके विषयमें संवाद
२६३- जाजलिको तुलाधारका आत्मयज्ञविषयक धर्मका उपदेश
२६४- जाजलिको पक्षियोंका उपदेश
२६५- राजा विचख्नुके द्वारा अहिंसा-धर्मकी प्रशंसा
२६६- महर्षि गौतम और चिरकारीका उपाख्यान-दीर्घकालतक सोच-विचारकर कार्य करनेकी प्रशंसा
२६७- द्युमत्सेन और सत्यवान्‌का संवाद—अहिंसा-पूर्वक राज्यशासनकी श्रेष्ठताका कथन
२६८- स्यूमरश्मि और कपिलका संवाद—स्यूमरश्मिके द्वारा यज्ञकी अवश्यकर्तव्यताका निरूपण
२६९- प्रवृत्ति एवं निवृत्तिमार्गके विषयमें स्यूमरश्मि-कपिल संवाद
२७०- स्यूमरश्मि-कपिल-संवाद—चारों आश्रमोंमें उत्तम साधनोंके द्वारा ब्रह्मकी प्राप्तिका कथन
२७१- धन और काम-भोगोंकी अपेक्षा धर्म और तपस्याका उत्कर्ष सूचित करनेवाली ब्राह्मण और कुण्डधार मेघकी कथा
२७२- यज्ञमें हिंसाकी निन्दा और अहिंसाकी प्रशंसा
२७३- धर्म, अधर्म, वैराग्य और मोक्षके विषयमें युधिष्ठिरके चार प्रश्न और उनका उत्तर
२७४- मोक्षके साधनका वर्णन
२७५- जीवात्माके देहाभिमानसे मुक्त होनेके विषयमें नारद और असितदेवलका संवाद
२७६- तृष्णाके परित्यागके विषयमें माण्डव्य मुनि और जनकका संवाद
२७७- शरीर और संसारकी अनित्यता तथा आत्म-कल्याणकी इच्छा रखनेवाले पुरुषके कर्तव्यका निर्देश—पिता-पुत्रका संवाद
२७८- हारीत मुनिके द्वारा प्रतिपादित संन्यासीके स्वभाव, आचरण और धर्मोंका वर्णन
२७९- ब्रह्मकी प्राप्तिका उपाय तथा उस विषयमें वृत्र-शुक्र-संवादका आरम्भ
२८०- वृत्रासुरको सनत्कुमारका अध्यात्मविषयक उपदेश देना और उसकी परमगति तथा भीष्मद्वारा युधिष्ठिरकी शंकाका निवारण
२८१- इन्द्र और वृत्रासुरके युद्धका वर्णन
२८२- वृत्रासुरका वध और उससे प्रकट हुई ब्रह्महत्याका ब्रह्माजीके द्वारा चार स्थानोंमें विभाजन
२८३- शिवजीद्वारा दक्षयज्ञका भंग और उनके क्रोधसे ज्वरकी उत्पत्ति तथा उसके विविध रूप
२८४- पार्वतीके रोष एवं खेदका निवारण करनेके लिये भगवान् शिवके द्वारा दक्षयज्ञका विध्वंस, दक्षद्वारा किये हुए शिवसहस्रनाम-स्तोत्रसे संतुष्ट होकर महादेवजीका उन्हें वरदान देना तथा इस स्तोत्रकी महिमा
२८५- अध्यात्मज्ञानका और उसके फलका वर्णन
२८६- समंगके द्वारा नारदजीसे अपनी शोकहीन स्थितिका वर्णन
२८७- नारदजीका गालव मुनिको श्रेयका उपदेश
२८८- अरिष्टनेमिका राजा सगरको वैराग्योत्पादक मोक्षविषयक उपदेश
२८९- भृगुपुत्र उशनाका चरित्र और उन्हें शुक्र नामकी प्राप्ति
२९०- पराशरगीताका आरम्भ—पराशर मुनिका राजा जनकको कल्याणकी प्राप्तिके साधनका उपदेश
२९१- पराशरगीता—कर्मफलकी अनिवार्यता तथा पुण्यकर्मसे लाभ
२९२- पराशरगीता-धर्मोपार्जित धनकी श्रेष्ठता, अतिथि-सत्कारका महत्त्व, पाँच प्रकारके ऋणोंसे छूटनेकी विधि, भगवत्स्तवनकी महिमा एवं सदाचार तथा गुरुजनोंकी सेवासे महान् लाभ
२९३- पराशरगीता—शूद्रके लिये सेवावृत्तिकी प्रधानता, सत्संगकी महिमा और चारों वर्णोंके धर्मपालनका महत्त्व
२९४- पराशरगीता—ब्राह्मण और शूद्रकी जीविका, निन्दनीय कर्मोंके त्यागकी आज्ञा, मनुष्योंमें आसुरभावकी उत्पत्ति और भगवान् शिवके द्वारा उसका निवारण तथा स्वधर्मके अनुसार कर्तव्य-पालनका आदेश
२९५- पराशरगीता—विषयासक्त मनुष्यका पतन, तपोबलकी श्रेष्ठता तथा दृढ़तापूर्वक स्वधर्मपालनका आदेश
२९६- पराशरगीता—वर्णविशेषकी उत्पत्तिका रहस्य, तपोबलसे उत्कृष्ट वर्णकी प्राप्ति, विभिन्न वर्णोंके विशेष और सामान्य धर्म, सत्कर्मकी श्रेष्ठता तथा हिंसारहित धर्मका वर्णन
२९७- पराशरगीता—नाना प्रकारके धर्म और कर्तव्योंका उपदेश
२९८- पराशरगीताका उपसंहार—राजा जनकके विविध प्रश्नोंका उत्तर
२९९- हंसगीता—हंसरूपधारी ब्रह्माका साध्यगणोंको उपदेश
३००- सांख्य और योगका अन्तर बतलाते हुए योगमार्गके स्वरूप, साधन, फल और प्रभावका वर्णन
३०१- सांख्ययोगके अनुसार साधन और उसके फलका वर्णन
३०२- वसिष्ठ और करालजनकका संवाद—क्षर और अक्षरतत्त्वका निरूपण और इनके ज्ञानसे मुक्ति
३०३- प्रकृति संसर्गके कारण जीवका अपनेको नाना प्रकारके कर्मोंका कर्ता और भोक्ता मानना एवं नाना योनियोंमें बारंबार जन्म ग्रहण करना
३०४- प्रकृतिके संसर्गदोषसे जीवका पतन
३०५- क्षर-अक्षर एवं प्रकृति-पुरुषके विषयमें राजा जनककी शंका और उसका वसिष्ठजीद्वारा उत्तर
३०६- योग और सांख्यके स्वरूपका वर्णन तथा आत्मज्ञानसे मुक्ति
३०७- विद्या-अविद्या, अक्षर और क्षर तथा प्रकृति और पुरुषके स्वरूपका एवं विवेकीके उद्गारका वर्णन
३०८- क्षर-अक्षर और परमात्मतत्त्वका वर्णन, जीवके नानात्व और एकत्वका दृष्टान्त, उपदेशके अधिकारी और अनधिकारी तथा इस ज्ञानकी परम्पराको बताते हुए वसिष्ठ-करालजनक-संवादका उपसंहार
३०९- जनकवंशी वसुमान्‌को एक मुनिका धर्म-विषयक उपदेश
३१०- याज्ञवल्क्यका राजा जनकको उपदेश—सांख्यमतके अनुसार चौबीस तत्त्वों और नौ प्रकारके सर्गोंका निरूपण
३११- अव्यक्त, महत्तत्त्व, अहंकार, मन और विषयोंकी कालसंख्याका एवं सृष्टिका वर्णन तथा इन्द्रियोंमें मनकी प्रधानताका प्रतिपादन
३१२- संहारक्रमका वर्णन
३१३- अध्यात्म, अधिभूत और अधिदैवतका वर्णन तथा सात्त्विक, राजस और तामस भावोंके लक्षण
३१४- सात्त्विक, राजस और तामस प्रकृतिके मनुष्योंकी गतिका वर्णन तथा राजा जनकके प्रश्न
३१५- प्रकृति-पुरुषका विवेक और उसका फल
३१६- योगका वर्णन और उसके साधनसे परब्रह्म परमात्माकी प्राप्ति
३१७- विभिन्न अंगोंसे प्राणोंके उत्क्रमणका फल तथा मृत्युसूचक लक्षणोंका वर्णन और मृत्युको जीतनेका उपाय
३१८- याज्ञवल्क्यद्वारा अपनेको सूर्यसे वेदज्ञानकी प्राप्तिका प्रसंग सुनाना, विश्वावसुको जीवात्मा और परमात्माकी एकताके ज्ञानका उपदेश देकर उसका फल मुक्ति बताना तथा जनकको उपदेश देकर विदा होना
३१९- जरा-मृत्युका उल्लंघन करनेके विषयमें पंचशिख और राजा जनकका संवाद
३२०- राजा जनककी परीक्षा करनेके लिये आयी हुई सुलभाका उनके शरीरमें प्रवेश करना, राजा जनकका उसपर दोषारोपण करना एवं सुलभाका युक्तियोंद्वारा निराकरण करते हुए राजा जनकको अज्ञानी बताना
३२१- व्यासजीका अपने पुत्र शुकदेवको वैराग्य और धर्मपूर्ण उपदेश देते हुए सावधान करना
३२२- शुभाशुभ कर्मोंका परिणाम कर्ताको अवश्य भोगना पड़ता है, इसका प्रतिपादन
३२३- व्यासजीकी पुत्रप्राप्तिके लिये तपस्या और भगवान् शंकरसे वरप्राप्ति
३२४- शुकदेवजीकी उत्पत्ति और उनके यज्ञोपवीत, वेदाध्ययन एवं समावर्तन-संस्कारका वृत्तान्त
३२५- पिताकी आज्ञासे शुकदेवजीका मिथिलामें जाना और वहाँ उनका द्वारपाल, मन्त्री और युवती स्त्रियोंके द्वारा सत्कृत होनेके उपरान्त ध्यानमें स्थित हो जाना
३२६- राजा जनकके द्वारा शुकदेवजीका पूजन तथा उनके प्रश्नका समाधान करते हुए ब्रह्मचर्याश्रममें परमात्माकी प्राप्ति होनेके बाद अन्य तीनों आश्रमोंकी अनावश्यकताका प्रतिपादन करना तथा मुक्त पुरुषके लक्षणोंका वर्णन
३२७- शुकदेवजीका पिताके पास लौट आना तथा व्यासजीका अपने शिष्योंको स्वाध्यायकी विधि बताना
३२८- शिष्योंके जानेके बाद व्यासजीके पास नारदजीका आगमन और व्यासजीको वेदपाठके लिये प्रेरित करना तथा व्यासजीका शुकदेवको अनध्यायका कारण बताते हुए ‘प्रवह’ आदि सात वायुओंका परिचय देना
३२९- शुकदेवजीको नारदजीका वैराग्य और ज्ञानका उपदेश
३३०- शुकदेवका नारदजीका सदाचार और अध्यात्मविषयक उपदेश
३३१- नारदजीका शुकदेवको कर्मफल-प्राप्तिमें परतन्त्रताविषयक उपदेश तथा शुकदेवजीका सूर्यलोकमें जानेका निश्चय
३३२- शुकदेवजीकी ऊर्ध्वगतिका वर्णन
३३३- शुकदेवजीकी परमपद-प्राप्ति तथा पुत्र-शोकसे व्याकुल व्यासजीको महादेवजीका आश्वासन देना
३३४- बदरिकाश्रममें नारदजीके पूछनेपर भगवान् नारायणका परमदेव परमात्माको ही सर्वश्रेष्ठ पूजनीय बताना
३३५- नारदजीका श्वेतद्वीपदर्शन, वहाँके निवासियोंके स्वरूपका वर्णन, राजा उपरिचरका चरित्र तथा पांचरात्रकी उत्पत्तिका प्रसंग
३३६- राजा उपरिचरके यज्ञमें भगवान्‌पर बृहस्पतिका क्रोधित होना, एकत आदि मुनियोंका बृहस्पतिसे श्वेतद्वीप एवं भगवान्‌की महिमाका वर्णन करके उनको शान्त करना
३३७- यज्ञमें आहुतिके लिये अजका अर्थ अन्न है, बकरा नहीं—इस बातको जानते हुए भी पक्षपात करनेके कारण राजा उपरिचरके अधःपतनकी और भगवत्कृपासे उनके पुनरुत्थानकी कथा
३३८- नारदजीका दो सौ नामोंद्वारा भगवान्‌की स्तुति करना
३३९- श्वेतद्वीपमें नारदजीको भगवान्‌का दर्शन, भगवान्‌का वासुदेव-संकर्षण आदि अपने व्यूहस्वरूपोंका परिचय कराना और भविष्यमें होनेवाले अवतारोंके कार्योंकी सूचना देना और इस कथाके श्रवण-पठनका माहात्म्य
३४०- व्यासजीका अपने शिष्योंको भगवान्‌द्वारा ब्रह्मादि देवताओंसे कहे हुए प्रवृत्ति और निवृत्तिरूप धर्मके उपदेशका रहस्य बताना
३४१- भगवान् श्रीकृष्णका अर्जुनको अपने प्रभावका वर्णन करते हुए अपने नामोंकी व्युत्पत्ति एवं माहात्म्य बताना
३४२- सृष्टिकी प्रारम्भिक अवस्थाका वर्णन, ब्राह्मणोंकी महिमा बतानेवाली अनेक प्रकारकी संक्षिप्त कथाओंका उल्लेख, भगवन्नामोंके हेतु तथा रुद्रके साथ होनेवाले युद्धमें नारायणकी विजय
३४३- जनमेजयका प्रश्न, देवर्षि नारदका श्वेतद्वीपसे लौटकर नर-नारायणके पास जाना और उनके पूछनेपर उनसे वहाँके महत्त्वपूर्ण दृश्यका वर्णन करना
३४४- नर-नारायणका नारदजीकी प्रशंसा करते हुए उन्हें भगवान् वासुदेवका माहात्म्य बतलाना
३४५- भगवान् वराहके द्वारा पितरोंके पूजनकी मर्यादाका स्थापित होना
३४६- नारायणकी महिमासम्बन्धी उपाख्यानका उपसंहार
३४७- हयग्रीव-अवतारकी कथा, वेदोंका उद्धार, मधुकैटभका वध तथा नारायणकी महिमाका वर्णन
३४८- सात्वत-धर्मकी उपदेश-परम्परा तथा भगवान्‌के प्रति ऐकान्तिक भावकी महिमा
३४९- व्यासजीका सृष्टिके प्रारम्भमें भगवान् नारायणके अंशसे सरस्वतीपुत्र अपान्तरतमाके रूपमें जन्म होनेकी और उनके प्रभावकी कथा
३५०- वैजयन्त पर्वतपर ब्रह्मा और रुद्रका मिलन एवं ब्रह्माजीद्वारा परम पुरुष नारायणकी महिमाका वर्णन
३५१- ब्रह्मा और रुद्रके संवादमें नारायणकी महिमाका विशेषरूपसे वर्णन
३५२- नारदके द्वारा इन्द्रको उञ्छवृत्तिवाले ब्राह्मणकी कथा सुनानेका उपक्रम
३५३- महापद्मपुरमें एक श्रेष्ठ ब्राह्मणके सदाचारका वर्णन और उसके घरपर अतिथिका आगमन
३५४- अतिथिद्वारा स्वर्गके विभिन्न मार्गोंका कथन
३५५- अतिथिद्वारा नागराज पद्मनाभके सदाचार और सद्‌गुणोंका वर्णन तथा ब्राह्मणको उसके पास जानेके लिये प्रेरणा
३५६- अतिथिके वचनोंसे संतुष्ट होकर ब्राह्मणका उसके कथनानुसार नागराजके घरकी ओर प्रस्थान
३५७- नागपत्नीके द्वारा ब्राह्मणका सत्कार और वार्तालापके बाद ब्राह्मणके द्वारा नागराजके आगमनकी प्रतीक्षा
३५८- नागराजके दर्शनके लिये ब्राह्मणकी तपस्या तथा नागराजके परिवारवालोंका भोजनके लिये ब्राह्मणसे आग्रह करना
३५९- नागराजका घर लौटना, पत्नीके साथ उनकी धर्मविषयक बातचीत तथा पत्नीका उनसे ब्राह्मणको दर्शन देनेके लिये अनुरोध
३६०- पत्नीके धर्मयुक्त वचनोंसे नागराजके अभिमान एवं रोषका नाश और उनका ब्राह्मणको दर्शन देनेके लिये उद्यत होना
३६१- नागराज और ब्राह्मणका परस्पर मिलन तथा बातचीत
३६२- नागराजका ब्राह्मणके पूछनेपर सूर्यमण्डलकी आश्चर्यजनक घटनाओंको सुनाना
३६३- उञ्छ एवं शिलवृत्तिसे सिद्ध हुए पुरुषकी दिव्य गति
३६४- ब्राह्मणका नागराजसे बातचीत करके और उञ्छव्रतके पालनका निश्चय करके अपने घरको जानेके लिये नागराजसे विदा माँगना
३६५- नागराजसे विदा ले ब्राह्मणका च्यवनमुनिसे उञ्छवृत्तिकी दीक्षा लेकर साधनपरायण होना और इस कथाकी परम्पराका वर्णन
Mahabharata: Bhag: 6
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चित्र-सूची
13. अनुशासनपर्व
दान-धर्म-पर्व
१- युधिष्ठिरको सान्त्वना देनेके लिये भीष्मजीके द्वारा गौतमी ब्राह्मणी, व्याध, सर्प, मृत्यु और कालके संवादका वर्णन
२- प्रजापति मनुके वंशका वर्णन, अग्निपुत्र सुदर्शनका अतिथि-सत्काररूपीधर्मके पालनसे मृत्युपर विजय पाना
३- विश्वामित्रको ब्राह्मणत्वकी प्राप्ति कैसे हुई—इस विषयमें युधिष्ठिरका प्रश्न
४- आजमीढके वंशका वर्णन तथा विश्वामित्रके जन्मकी कथा और उनके पुत्रोंके नाम
५- स्वामिभक्त एवं दयालु पुरुषकी श्रेष्ठता बतानेके लिये इन्द्र और तोतेके संवादका उल्लेख
६- दैवकी अपेक्षा पुरुषार्थकी श्रेष्ठताका वर्णन
७- कर्मोंके फलका वर्णन
८- श्रेष्ठ ब्राह्मणोंकी महिमा
९- ब्राह्मणोंको देनेकी प्रतिज्ञा करके न देने तथा उसके धनका अपहरण करनेसे दोषकी प्राप्तिके विषयमें सियार और वानरके संवादका उल्लेख एवं ब्राह्मणोंको दान देनेकी महिमा
१०- अनधिकारीको उपदेश देनेसे हानिके विषयमें एक शूद्र और तपस्वी ब्राह्मणकी कथा
११- लक्ष्मीके निवास करने और न करने योग्य पुरुष, स्त्री और स्थानोंका वर्णन
१२- कृतघ्नकी गति और प्रायश्चित्तका वर्णन तथा स्त्री-पुरुषके संयोगमें स्त्रीको ही अधिक सुख होनेके सम्बन्धमें भंगास्वनका उपाख्यान
१३- शरीर, वाणी और मनसे होनेवाले पापोंके परित्यागका उपदेश
१४- भीष्मजीकी आज्ञासे भगवान् श्रीकृष्णका युधिष्ठिरसे महादेवजीके माहात्म्यकी कथामें उपमन्युद्वारा महादेवजीकी स्तुति-प्रार्थना, उनके दर्शन और वरदान पानेका तथा अपनेको दर्शन प्राप्त होनेका कथन
१५- शिव और पार्वतीका श्रीकृष्णको वरदान और उपमन्युके द्वारा महादेवजीकी महिमा
१६- उपमन्यु-श्रीकृष्ण-संवाद—महात्मा तण्डिद्वारा की गयी महादेवजीकी स्तुति, प्रार्थना और उसका फल
१७- शिवसहस्रनामस्तोत्र और उसके पाठका फल
१८- शिवसहस्रनामके पाठकी महिमा तथा ऋषियोंका भगवान् शंकरकी कृपासे अभीष्ट सिद्धि होनेके विषयमें अपना-अपना अनुभव सुनाना और श्रीकृष्णके द्वारा भगवान् शिवजीकी महिमाका वर्णन
१९- अष्टावक्र मुनिका वदान्य ऋषिके कहनेसे उत्तर दिशाकी ओर प्रस्थान, मार्गमें कुबेरके द्वारा उनका स्वागत तथा स्त्रीरूपधारिणी उत्तरदिशाके साथ उनका संवाद
२०- अष्टावक्र और उत्तर दिशाका संवाद
२१- अष्टावक्र और उत्तरदिशाका संवाद, अष्टावक्रका अपने घर लौटकर वदान्य ऋषिकी कन्याके साथ विवाह करना
२२- युधिष्ठिरके विविध धर्मयुक्त प्रश्नोंका उत्तर तथा श्राद्ध और दानके उत्तम पात्रोंका लक्षण
२३- देवता और पितरोंके कार्यमें निमन्त्रण देनेयोग्य पात्रों तथा नरकगामी और स्वर्गगामी मनुष्योंके लक्षणोंका वर्णन
२४- ब्रह्महत्याके समान पापोंका निरूपण
२५- विभिन्न तीर्थोंके माहात्म्यका वर्णन
२६- श्रीगंगाजीके माहात्म्यका वर्णन
२७- ब्राह्मणत्वके लिये तपस्या करनेवाले मतंगकी इन्द्रसे बातचीत
२८- ब्राह्मणत्व प्राप्त करनेका आग्रह छोड़कर दूसरा वर माँगनेके लिये इन्द्रका मतंगको समझाना
२९- मतंगकी तपस्या और इन्द्रका उसे वरदान देना
३०- वीतहव्यके पुत्रोंसे काशी-नरेशोंका घोर युद्ध, प्रतर्दनद्वारा उनका वध और राजा वीतहव्यको भृगुके कथनसे ब्राह्मणत्व प्राप्त होनेकी कथा
३१- नारदजीके द्वारा पूजनीय पुरुषोंके लक्षण तथा उनके आदर-सत्कार और पूजनसे प्राप्त होनेवाले लाभका वर्णन
३२- राजर्षि वृषदर्भ (या उशीनर)-के द्वारा शरणागत कपोतकी रक्षा तथा उस पुण्यके प्रभावसे अक्षयलोककी प्राप्ति
३३- ब्राह्मणके महत्त्वका वर्णन
३४- श्रेष्ठ ब्राह्मणोंकी प्रशंसा
३५- ब्रह्माजीके द्वारा ब्राह्मणोंकी महत्ताका वर्णन
३६- ब्राह्मणकी प्रशंसाके विषयमें इन्द्र और शम्बरासुरका संवाद
३७- दान-पात्रकी परीक्षा
३८- पंचचूड़ा अप्सराका नारदजीसे स्त्रियोंके दोषोंका वर्णन करना
३९- स्त्रियोंकी रक्षाके विषयमें युधिष्ठिरका प्रश्न
४०- भृगुवंशी विपुलके द्वारा योगबलसे गुरुपत्नीके शरीरमें प्रवेश करके उसकी रक्षा करना
४१- विपुलका देवराज इन्द्रसे गुरुपत्नीको बचाना और गुरुसे वरदान प्राप्त करना
४२- विपुलका गुरुकी आज्ञासे दिव्य पुष्प लाकर उन्हें देना और अपने द्वारा किये गये दुष्कर्मका स्मरण करना
४३- देवशर्माका विपुलको निर्दोष बताकर समझाना और भीष्मका युधिष्ठिरको स्त्रियोंकी रक्षाके लिये आदेश देना
४४- कन्या-विवाहके सम्बन्धमें पात्रविषयक विभिन्न विचार
४५- कन्याके विवाहका तथा कन्या और दौहित्र आदिके उत्तराधिकारका विचार
४६- स्त्रियोंके वस्त्राभूषणोंसे सत्कार करनेकी आवश्यकताका प्रतिपादन
४७- ब्राह्मण आदि वर्णोंकी दायभाग-विधिका वर्णन
४८- वर्णसंकर संतानोंकी उत्पत्तिका विस्तारसे वर्णन
४९- नाना प्रकारके पुत्रोंका वर्णन
५०- गौओंकी महिमाके प्रसंगमें च्यवन मुनिके उपाख्यानका आरम्भ, मुनिका मत्स्योंके साथ जालमें फँसकर जलसे बाहर आना
५१- राजा नहुषका एक गौके मोलपर च्यवन मुनिको खरीदना, मुनिके द्वारा गौओंका माहात्म्य-कथन तथा मत्स्यों और मल्लाहोंकी सद्‌गति
५२- राजा कुशिक और उनकी रानीके द्वारा महर्षि च्यवनकी सेवा
५३- च्यवन मुनिके द्वारा राजा-रानीके धैर्यकी परीक्षा और उनकी सेवासे प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद देना
५४- महर्षि च्यवनके प्रभावसे राजा कुशिक और उनकी रानीको अनेक आश्चर्यमय दृश्योंका दर्शन एवं च्यवन मुनिका प्रसन्न होकर राजाको वर माँगनेके लिये कहना
५५- च्यवनका कुशिकके पूछनेपर उनके घरमें अपने निवासका कारण बताना और उन्हें वरदान देना
५६- च्यवन ऋषिका भृगुवंशी और कुशिक-वंशियोंके सम्बन्धका कारण बताकर तीर्थयात्राके लिये प्रस्थान
५७- विविध प्रकारके तप और दानोंका फल
५८- जलाशय बनानेका तथा बगीचे लगानेका फल
५९- भीष्मद्वारा उत्तम दान तथा उत्तम ब्राह्मणोंकी प्रशंसा करते हुए उनके सत्कारका उपदेश
६०- श्रेष्ठ अयाचक, धर्मात्मा, निर्धन एवं गुणवान्‌को दान देनेका विशेष फल
६१- राजाके लिये यज्ञ, दान और ब्राह्मण आदि प्रजाकी रक्षाका उपदेश
६२- सब दानोंसे बढ़कर भूमिदानका महत्त्व तथा उसीके विषयमें इन्द्र और बृहस्पतिका सवाद
६३- अन्नदानका विशेष माहात्म्य
६४- विभिन्न नक्षत्रोंके योगमें भिन्न-भिन्न वस्तुओंके दानका माहात्म्य
६५- सुवर्ण और जल आदि विभिन्न वस्तुओंके दानकी महिमा
६६- जूता, शकट, तिल, भूमि, गौ और अन्नके दानका माहात्म्य
६७- अन्न और जलके दानकी महिमा
६८- तिल, जल, दीप तथा रत्न आदिके दानका माहात्म्य—धर्मराज और ब्राह्मणका संवाद
६९- गोदानकी महिमा तथा गौओं और ब्राह्मणोंकी रक्षासे पुण्यकी प्राप्ति
७०- ब्राह्मणके धनका अपहरण करनेसे होनेवाली हानिके विषयमें दृष्टान्तके रूपमें राजा नृगका उपाख्यान
७१- पिताके शापसे नाचिकेतका यमराजके पास जाना और यमराजका नाचिकेतको गोदानकी महिमा बताना
७२- गौओंके लोक और गोदानविषयक युधिष्ठिर और इन्द्रके प्रश्न
७३- ब्रह्माजीका इन्द्रसे गोलोक और गोदानकी महिमा बताना
७४- दूसरोंकी गायको चुराकर देने या बेचनेसे दोष, गोहत्याके भयंकर परिणाम तथा गोदान एवं सुवर्ण-दीक्षणाका माहात्म्य
७५- व्रत, नियम, दम, सत्य, ब्रह्मचर्य, माता-पिता, गुरु आदिके सेवाकी महत्ता
७६- गोदानकी विधि, गौओंसे प्रार्थना, गौओंके निष्क्रय और गोदान करनेवाले नरेशोंके नाम
७७- कपिला गौओंकी उत्पत्ति और महिमाका वर्णन
७८- वसिष्ठका सौदासको गोदानकी विधि एवं महिमा बताना
७९- गौओंको तपस्याद्वारा अभीष्ट वरकी प्राप्ति तथा उनके दानकी महिमा, विभिन्न प्रकारके गौओंके दानसे विभिन्न उत्तम लोकोंमें गमनका कथन
८०- गौओं तथा गोदानकी महिमा
८१- गौओंका माहात्म्य तथा व्यासजीके द्वारा शुकदेवसे गौओंकी, गोलोककी और गोदानकी महत्ताका वर्णन
८२- लक्ष्मी और गौओंका संवाद तथा लक्ष्मीकी प्रार्थनापर गौओंके द्वारा गोबर और गोमूत्रमें लक्ष्मीको निवासके लिये स्थान दिया जाना
८३- ब्रह्माजीका इन्द्रसे गोलोक और गौओंका उत्कर्ष बताना और गौओंको वरदान देना
८४- भीष्मजीका अपने पिता शान्तनुके हाथमें पिण्ड न देकर कुशपर देना, सुवर्णकी उत्पत्ति और उसके दानकी महिमाके सम्बन्धमें वसिष्ठ और परशुरामका संवाद, पार्वतीका देवताओंको शाप, तारकासुरसे डरे हुए देवताओंका ब्रह्माजीकी शरणमें जाना
८५- ब्रह्माजीका देवताओंको आश्वासन, अग्निकी खोज, अग्निके द्वारा स्थापित किये हुए शिवके तेजसे संतप्त हो गंगाका उसे मेरुपर्वतपर छोड़ना, कार्तिकेय और सुवर्णकी उत्पत्ति, वरुणरूपधारी महादेवजीके यज्ञमें अग्निसे ही प्रजापतियों और सुवर्णका प्रादुर्भाव, कार्तिकेयद्वारा तारकासुरका वध
८६- कार्तिकेयकी उत्पत्ति, पालन-पोषण और उनका देवसेनापति-पदपर अभिषेक, उनके द्वारा तारकासुरका वध
८७- विविध तिथियोंमें श्राद्ध करनेका फल
८८- श्राद्धमें पितरोंके तृप्तिविषयका वर्णन
८१- विभिन्न नक्षत्रोंमें श्राद्ध करनेका फल
९०- श्राद्धमें ब्राह्मणोंकी परीक्षा, पंक्तिदूषक और पंक्तिपावन ब्राह्मणोंका वर्णन, श्राद्धमें लाख मूर्ख ब्राह्मणोंको भोजन करानेकी अपेक्षा एक वेदवेत्ताको भोजन करानेकी श्रेष्ठताका कथन
९१- शोकातुर निमिका पुत्रके निमित्त पिण्डदान तथा श्राद्धके विषयमें निमिका महर्षि अत्रिका उपदेश, विश्वेदेवोंके नाम एवं श्राद्धमें त्याज्य वस्तुओंका वर्णन
९२- पितर और देवताओंका श्राद्धान्नसे अजीर्ण होकर ब्रह्माजीके पास जाना और अग्निके द्वारा अजीर्णका निवारण, श्राद्धसे तृप्त हुए पितरोंका आशीर्वाद
९३- गृहस्थके धर्मोंका रहस्य, प्रतिग्रहके दोष बतानेके लिये वृषादर्भि और सप्तर्षियोंकी कथा, भिक्षुरूपधारी इन्द्रके द्वारा कृत्याका वध करके सप्तर्षियोंकी रक्षा तथा कमलोंकी चोरीके विषयमें शपथ खानेके बहानेसे धर्मपालनका संकेत
९४- ब्रह्मसर तीर्थमें अगस्त्यजीके कमलोंकी चोरी होनेपर ब्रह्मर्षियों और राजर्षियोंकी धर्मोपदेशपूर्ण शपथ तथा धर्मज्ञानके उद्देश्यसे चुराये हुए कमलोंका वापस देना
९५- छत्र और उपानहकी उत्पत्ति एवं दानविषयक युधिष्ठिरका प्रश्न तथा सूर्यकी प्रचण्ड धूपसे रेणुकाका मस्तक और पैरोंके संतप्त होनेपर जमदग्निका सूर्यपर कुपित होना और विप्ररूपधारी सूर्यपर वार्तालाप
९६- छत्र और उपानहकी उत्पत्ति एवं दानकी प्रशंसा
९७- गृहस्थधर्म, पंचयज्ञ-कर्मके विषयमें पृथ्वीदेवी और भगवान् श्रीकृष्णका संवाद
९८- तपस्वी सुवर्ण और मनुका संवाद—पुष्प, धूप, दीप और उपहारके दानका माहात्म्य
९९- नहुषका ऋषियोंपर अत्याचार तथा उसके प्रतीकारके लिये महर्षि भृगु और अगस्त्यकी बातचीत
१००- नहुषका पतन, शतक्रतुका इन्द्रपदपर पुनः अभिषेक तथा दीपदानकी महिमा
१०१- ब्राह्मणोंके धनका अपहरण करनेसे प्राप्त होनेवाले दोषके विषयमें क्षत्रिय और चाण्डालका संवाद तथा ब्रह्मस्वकी रक्षामें प्राणोत्सर्ग करनेसे चाण्डालको मोक्षकी प्राप्ति
१०२- भिन्न-भिन्न कर्मोंके अनुसार भिन्न-भिन्न लोकोंकी प्राप्ति बतानेके लिये धृतराष्ट्र-रूपधारी इन्द्र और गौतम ब्राह्मणके संवादका उल्लेख
१०३- ब्रह्माजी और भगीरथका संवाद, यज्ञ, तप, दान आदिसे भी अनशन-व्रतकी विशेष महिमा
१०४- आयुकी वृद्धि और क्षय करनेवाले शुभाशुभ कर्मोंके वर्णनसे गृहस्थाश्रमके कर्तव्योंका विस्तारपूर्वक निरूपण
१०५- बड़े और छोटे भाईके पारस्परिक बर्ताव तथा माता-पिता, आचार्य आदि गुरुजनोंके गौरवका वर्णन
१०६- मास, पक्ष एवं तिथिसम्बन्धी विभिन्न व्रतोपवासके फलका वर्णन
१०७- दरिद्रोंके लिये यज्ञतुल्य फल देनेवाले उपवास-व्रत और उसके फलका विस्तारपूर्वक वर्णन
१०८- मानस तथा पार्थिव तीर्थकी महत्ता
१०९- प्रत्येक मासकी द्वादशी तिथिको उपवास और भगवान् विष्णुकी पूजा करनेका विशेष माहात्म्य
११०- रूप-सौन्दर्य और लोकप्रियताकी प्राप्तिके लिये मार्गशीर्षमासमें चन्द्र-व्रत करनेका प्रतिपादन
१११- बृहस्पतिका युधिष्ठिरसे प्राणियोंके जन्मके प्रकारका और नानाविध पापोंके फलस्वरूप नरकादिकी प्राप्ति एवं तिर्यग्योनियोंमें जन्म लेनेका वर्णन
११२- पापसे छूटनेके उपाय तथा अन्न-दानकी विशेष महिमा
११३- बृहस्पतिजीका युधिष्ठिरको अहिंसा एवं धर्मकी महिमा बताकर स्वर्गलोकको प्रस्थान
११४- हिंसा और मांसभक्षणकी घोर निन्दा
११५- मद्य और मांसके भक्षणमें महान् दोष, उनके त्यागकी महिमा एवं त्यागमें परम लाभका प्रतिपादन
११६- मांस न खानेसे लाभ और अहिंसाधर्मकी प्रशंसा
११७- शुभ कर्मसे एक कीड़ेको पूर्व-जन्मकी स्मृति होना और कीट-योनिमें भी मृत्युका भय एवं सुखकी अनुभूति बताकर कीड़ेका अपने कल्याणका उपाय पूछना
११८- कीड़ेका क्रमशः क्षत्रिययोनिमें जन्म लेकर व्यासजीका दर्शन करना और व्यासजीका उसे ब्राह्मण होने तथा स्वर्गसुख और अक्षय सुखकी प्राप्ति होनेका वरदान देना
११९- कीड़ेका ब्राह्मणयोनिमें जन्म लेकर, ब्रह्मलोकमें जाकर सनातन ब्रह्मको प्राप्त करना
१२०- व्यास और मैत्रेयका संवाद—दानकी प्रशंसा और कर्मका रहस्य
१२१- व्यास-मैत्रेय-संवाद—विद्वान् एवं सदाचारी ब्राह्मणको अन्नदानकी प्रशंसा
१२२- व्यास-मैत्रेय-संवाद—तपकी प्रशंसा तथा गृहस्थके उत्तम कर्तव्यका निर्देश
१२३- शाण्डिली और सुमनाका संवाद—पतिव्रता स्त्रियोंके कर्तव्यका वर्णन
१२४- नारदका पुण्डरीकको भगवान् नारायणकी आराधनाका उपदेश तथा उन्हें भगवद्धामकी प्राप्ति, सामगुणकी प्रशंसा, ब्राह्मणका राक्षसके सफेद और दुर्बल होनेका कारण बताना
१२५- श्राद्धके विषयमें देवदूत और पितरोंका, पापोंसे छूटनेके विषयमें महर्षि विद्युत्प्रभ और इन्द्रका, धर्मके विषयमें इन्द्र और बृहस्पतिका तथा वृषोत्सर्ग आदिके विषयमें देवताओं, ऋषियों और पितरोंका संवाद
१२६- विष्णु, बलदेव, देवगण, धर्म, अग्नि, विश्वामित्र, गोसमुदाय और ब्रह्माजीके द्वारा धर्मके गूढ़ रहस्यका वर्णन
१२७- अग्नि, लक्ष्मी, अंगिरा, गार्ग्य, धौम्य तथा जमदग्निके द्वारा धर्मके रहस्यका वर्णन
१२८- वायुके द्वारा धर्माधर्मके रहस्यका वर्णन
१२९- लोमशद्वारा धर्मके रहस्यका वर्णन
१३०- अरुन्धती, धर्मराज और चित्रगुप्तद्वारा धर्मसम्बन्धी रहस्यका वर्णन
१३१- प्रमथगणोंके द्वारा धर्माधर्मसम्बन्धी रहस्यका कथन
१३२- दिग्गजोंका धर्मसम्बन्धी रहस्य एवं प्रभाव
१३३- महादेवजीका धर्मसम्बन्धी रहस्य
१३४- स्कन्ददेवका धर्मसम्बन्धी रहस्य तथा भगवान् विष्णु और भीष्मजीके द्वारा माहात्म्यका वर्णन
१३५- जिनका अन्न ग्रहण करने योग्य है और जिनका ग्रहण करने योग्य नहीं है, उन मनुष्योंका वर्णन
१३६- दान लेने और अनुचित भोजन करनेका प्रायश्चित्त
१३७- दानसे स्वर्गलोकमें जानेवाले राजाओंका वर्णन
१३८- पाँच प्रकारके दानोंका वर्णन
१३९- तपस्वी श्रीकृष्णके पास ऋषियोंका आना, उनका प्रभाव देखना और उनसे वार्तालाप करना
१४०- नारदजीके द्वारा हिमालय पर्वतपर भूतगणोंके सहित शिवजीकी शोभाका विस्तृत वर्णन, पार्वतीका आगमन, शिवजीकी दोनों आँखोंको अपने हाथोंसे बंद करना और तीसरे नेत्रका प्रकट होना, हिमालयका भस्म होना और पुनः प्राकृत अवस्थामें हो जाना तथा शिव-पार्वतीके धर्मविषयक संवादकी उत्थापना
१४१- शिव-पार्वतीका धर्मविषयक संवाद—वर्णाश्रमधर्मसम्बन्धी आचार एवं प्रवृत्ति-निवृत्तिरूप धर्मका निरूपण
१४२- उमा-महेश्वर-संवाद, वानप्रस्थ धर्म तथा उसके पालनकी विधि और महिमा
१४३- ब्राह्मणादि वर्णोंकी प्राप्तिमें मनुष्यके शुभाशुभ कर्मोंकी प्रधानताका प्रतिपादन
१४४- बन्धन-मुक्ति, स्वर्ग, नरक एवं दीर्घायु और अल्पायु प्रदान करनेवाले शरीर, वाणी और मनद्वारा किये जानेवाले शुभाशुभ कर्मोंका वर्णन
१४५- स्वर्ग और नरक तथा उत्तम और अधम कुलमें जन्मकी प्राप्ति करानेवाले कर्मोंका वर्णन
१. राजधर्मका वर्णन
२. योद्धाओंके धर्मका वर्णन तथा रणयज्ञमें प्राणोत्सर्गकी महिमा
३. संक्षेपसे राजधर्मका वर्णन
४. अहिंसाकी और इन्द्रिय-संयमकी प्रशंसा तथा दैवकी प्रधानता
५. त्रिवर्गका निरूपण तथा कल्याणकारी आचार-व्यवहारका वर्णन
६. विविध प्रकारके कर्मफलोंका वर्णन
७. अन्धत्व और पंगुत्व आदि नाना प्रकारके दोषों और रोगोंके कारणभूत दुष्कर्मोंका वर्णन
८. उमा-महेश्वर-संवादमें कितने ही महत्त्वपूर्ण विषयोंका विवेचन
९. प्राणियोंके चार भेदोंका निरूपण, पूर्वजन्मकी स्मृतिका रहस्य, मरकर फिर लौटनेमें कारण स्वप्नदर्शन, दैव और पुरुषार्थ तथा पुनर्जन्मका विवेचन
१०. यमलोक तथा वहाँके मार्गोंका वर्णन, पापियोंकी नरकयातनाओं तथा कर्मानुसार विभिन्न योनियोंमें उनके जन्मका उल्लेख
११. शुभाशुभ मानस आदि तीन प्रकारके कर्मोंका स्वरूप और उनके फलका एवं मद्यसेवनके दोषोंका वर्णन, आहार-शुद्धि, मांस-भक्षणसे दोष, मांस न खानेसे लाभ, जीवदयाके महत्त्व, गुरुपूजाकी विधि, उपवास-विधि, ब्रह्मचर्य पालन, तीर्थचर्चा, सर्वसाधारण द्रव्यके दानसे पुण्य, अन्न, सुवर्ण, गौ, भूमि, कन्या और विद्यादानका माहात्म्य, पुण्यतम देशकाल, दिये हुए दान और धर्मकी निष्फलता, विविध प्रकारके दान, लौकिक-वैदिक यज्ञ तथा देवताओंकी पूजाका निरूपण
१२. श्राद्ध विधान आदिका वर्णन, दानकी त्रिविधतासे उसके फलकी भी त्रिविधताका उल्लेख, दानके पाँच फल, नाना प्रकारके धर्म और उनके फलोंका प्रतिपादन
१३. प्राणियोंकी शुभ और अशुभ गतिका निश्चय करानेवाले लक्षणोंका वर्णन, मृत्युके दो भेद और यत्नसाध्य-मृत्युके चार भेदोंका कथन, कर्तव्य पालनपूर्वक शरीर त्यागका महान् फल और काम, क्रोध आदिद्वारा देह त्याग करनेसे नरककी प्राप्ति
१४. मोक्षधर्मकी श्रेष्ठताका प्रतिपादन, मोक्ष साधक ज्ञानकी प्राप्तिका उपाय और मोक्षकी प्राप्तिमें वैराग्यकी प्रधानता
१५. सांख्यज्ञानका प्रतिपादन करते हुए अव्यक्तादि चौबीस तत्त्वोंकी उत्पत्ति आदिका वर्णन
१६. योगधर्मका प्रतिपादनपूर्वक उसके फलका वर्णन
१७. पाशुपत योगका वर्णन तथा शिवलिंग-पूजनका माहात्म्य
१४६- पार्वतीजीके द्वारा स्त्री-धर्मका वर्णन
१४७- वंशपरम्पराका कथन और भगवान् श्रीकृष्णके माहात्म्यका वर्णन
१४८- भगवान् श्रीकृष्णकी महिमाका वर्णन और भीष्मजीका युधिष्ठिरको राज्य करनेके लिये आदेश देना
१४९- श्रीविष्णुसहस्रनामस्तोत्रम्
१५०- जपनेयोग्य मन्त्र और सबेरे-शाम कीर्तन करनेयोग्य देवता, ऋषियों और राजाओंके मंगलमय नामोंका कीर्तन-माहात्म्य तथा गायत्री-जपका फल
१५१- ब्राह्मणोंकी महिमाका वर्णन
१५२- कार्तवीर्य अर्जुनको दत्तात्रेयजीसे चार वरदान प्राप्त होनेका एवं उनमें अभिमानकी उत्पत्तिका वर्णन तथा ब्राह्मणोंकी महिमाके विषयमें कार्तवीर्य अर्जुन और वायुदेवताके संवादका उल्लेख
१५३- वायुद्वारा उदाहरणसहित ब्राह्मणोंकी महत्ताका वर्णन
१५४- ब्राह्मणशिरोमणि उतथ्यके प्रभावका वर्णन
१५५- ब्रह्मर्षि अगस्त्य और वसिष्ठके प्रभावका वर्णन
१५६- अत्रि और च्यवन ऋषिके प्रभावका वर्णन
१५७- कप नामक दानवोंके द्वारा स्वर्गलोकपर अधिकार जमा लेनेपर ब्राह्मणोंका कपोंको भस्म कर देना, वायुदेव और कार्तवीर्य अर्जुनके संवादका उपसंहार
१५८- भीष्मजीके द्वारा भगवान् श्रीकृष्णकी महिमाका वर्णन
१५९- श्रीकृष्णका प्रद्युम्नको ब्राह्मणोंकी महिमा बताते हुए दुर्वासाके चरित्रका वर्णन करना और यह सारा प्रसंग युधिष्ठिरको सुनाना
१६०- श्रीकृष्णद्वारा भगवान् शंकरके माहात्म्यका वर्णन
१६१- भगवान् शंकरके माहात्म्यका वर्णन
१६२- धर्मके विषयमें आगम-प्रमाणकी श्रेष्ठता, धर्माधर्मके फल, साधु-असाधुके लक्षण तथा शिष्टाचारका निरूपण
१६३- युधिष्ठिरका विद्या, बल और बुद्धिकी अपेक्षा भाग्यकी प्रधानता बताना और भीष्मजीद्वारा उसका उत्तर
१६४- भीष्मका शुभाशुभ कर्मोंको ही सुख-दुःखकी प्राप्तिमें कारण बताते हुए धर्मके अनुष्ठानपर जोर देना
१६५- नित्य स्मरणीय देवता, नदी, पर्वत, ऋषि और राजाओंके नाम-कीर्तनका माहात्म्य
१६६- भीष्मकी अनुमति पाकर युधिष्ठिरका सपरिवार हस्तिनापुरको प्रस्थान
भीष्मस्वर्गारोहणपर्व
१६७- भीष्मके अन्त्येष्टि-संस्कारकी सामग्री लेकर युधिष्ठिर आदिका उनके पास जाना और भीष्मका श्रीकृष्ण आदिसे देह-त्यागकी अनुमति लेते हुए धृतराष्ट्र और युधिष्ठिरको कर्तव्यका उपदेश देना
१६८- भीष्मजीका प्राणत्याग, धृतराष्ट्र आदिके द्वारा उनका दाह-संस्कार, कौरवोंका गंगाके जलसे भीष्मको जलांजलि देना, गंगाजीका प्रकट होकर पुत्रके लिये शोक करना और श्रीकृष्णका उन्हें समझाना
14. आश्वमेधिकपर्व
अश्वमेधपर्व
१- युधिष्ठिरका शोकमग्न होकर गिरना और धृतराष्ट्रका उन्हें समझाना
२- श्रीकृष्ण और व्यासजीका युधिष्ठिरको समझाना
३- व्यासजीका युधिष्ठिरको अश्वमेध यज्ञके लिये धनकी प्राप्तिका उपाय बताते हुए संवर्त और मरुत्तका प्रसंग उपस्थित करना
४- मरुत्तके पूर्वजोंका परिचय देते हुए व्यासजीके द्वारा उनके गुण, प्रभाव एवं यज्ञका दिग्दर्शन
५- इन्द्रकी प्रेरणासे बृहस्पतिजीका मनुष्यको यज्ञ न करानेकी प्रतिज्ञा करना
६- नारदजीकी आज्ञासे मरुत्तका उनकी बतायी हुई युक्तिके अनुसार संवर्तसे भेंट करना
७- संवर्त और मरुत्तकी बातचीत, मरुत्तके विशेष आग्रहपर संवर्तका यज्ञ करानेकी स्वीकृति देना
८- संवर्तका मरुत्तको सुवर्णकी प्राप्तिके लिये महादेवजीकी नाममयी स्तुतिका उपदेश और धनकी प्राप्ति तथा मरुत्तकी सम्पत्तिसे बृहस्पतिका चिन्तित होना
९- बृहस्पतिका इन्द्रसे अपनी चिन्ताका कारण बताना, इन्द्रकी आज्ञासे अग्निदेवका मरुत्तके पास उनका संदेश लेकर जाना और संवर्तके भयसे पुनः लौटकर इन्द्रसे ब्रह्मबलकी श्रेष्ठता बताना
१०- इन्द्रका गन्धर्वराजको भेजकर मरुत्तको भय दिखाना और संवर्तका मन्त्र-बलसे इन्द्रसहित सब देवताओंको बुलाकर मरुत्तका यज्ञ पूर्ण करना
११- श्रीकृष्णका युधिष्ठिरको इन्द्रद्वारा शरीरस्थ वृत्रासुरका संहार करनेका इतिहास सुनाकर समझाना
१२- भगवान् श्रीकृष्णका युधिष्ठिरको मनपर विजय करनेके लिये आदेश
१३- श्रीकृष्णद्वारा ममताके त्यागका महत्त्व, काम-गीताका उल्लेख और युधिष्ठिरको यज्ञके लिये प्रेरणा करना
१४- ऋषियोंका अन्तर्धान होना, भीष्म आदिका श्राद्ध करके युधिष्ठिर आदिका हस्तिनापुरमें जाना तथा युधिष्ठिरके धर्म-राज्यका वर्णन
१५- भगवान् श्रीकृष्णका अर्जुनसे द्वारका जानेका प्रस्ताव करना
अनुगीतापर्व
१६- अर्जुनका श्रीकृष्णसे गीताका विषय पूछना और श्रीकृष्णका अर्जुनसे सिद्ध, महर्षि एवं काश्यपका संवाद सुनाना
१७- काश्यपके प्रश्नोंके उत्तरमें सिद्ध महात्माद्वारा जीवकी विविध गतियोंका वर्णन
१८- जीवके गर्भ-प्रवेश, आचार-धर्म, कर्म-फलकी अनिवार्यता तथा संसारसे तरनेके उपायका वर्णन
१९- गुरु-शिष्यके संवादमें मोक्षप्राप्तिके उपायका वर्णन
२०- ब्राह्मणगीता—एक ब्राह्मणका अपनी पत्नीसे ज्ञानयज्ञका उपदेश करना
२१- दस होताओंसे सम्पन्न होनेवाले यज्ञका वर्णन तथा मन और वाणीकी श्रेष्ठताका प्रतिपादन
२२- मन-बुद्धि और इन्द्रियरूप सप्त होताओंका, यज्ञ तथा मन-इन्द्रिय-संवादका वर्णन
२३- प्राण, अपान आदिका संवाद और ब्रह्माजीका सबकी श्रेष्ठता बतलाना
२४- देवर्षि नारद और देवमतका संवाद एवं उदानके उत्कृष्ट रूपका वर्णन
२५- चातुर्होम यज्ञका वर्णन
२६- अन्तर्यामीकी प्रधानता
२७- अध्यात्मविषयक महान् वनका वर्णन
२८- ज्ञानी पुरुषकी स्थिति तथा अध्वर्यु और यतिका संवाद
२९- परशुरामजीके द्वारा क्षत्रिय-कुलका संहार
३०- अलर्कके ध्यान-योगका उदाहरण देकर पितामहोंका परशुरामजीको समझाना और परशुरामजीका तपस्याके द्वारा सिद्धि प्राप्त करना
३१- राजा अम्बरीषकी गायी हुई आध्यात्मिक स्वराज्यविषयक गाथा
३२- ब्राह्मण-रूपधारी धर्म और जनकका ममत्वत्याग विषयक संवाद
३३- ब्राह्मणका पत्नीके प्रति अपने ज्ञाननिष्ठ स्वरूपका परिचय देना
३४- भगवान् श्रीकृष्णके द्वारा ब्राह्मण, ब्राह्मणी और क्षेत्रज्ञका रहस्य बतलाते हुए ब्राह्मण-गीताका उपसंहार
३५- श्रीकृष्णके द्वारा अर्जुनसे मोक्ष-धर्मका वर्णन—गुरु और शिष्यके संवादमें ब्रह्मा और महर्षियोंके प्रश्नोत्तर
३६- ब्रह्माजीके द्वारा तमोगुणका, उसके कार्यका और फलका वर्णन
३७- रजोगुणके कार्यका वर्णन और उसके जाननेका फल
३८- सत्त्वगुणके कार्यका वर्णन और उसके जाननेका फल
३९- सत्त्व आदि गुणोंका और प्रकृतिके नामोंका वर्णन
४०- महत्तत्त्वके नाम और परमात्मतत्त्वको जाननेकी महिमा
४१- अहंकारकी उत्पत्ति और उसके स्वरूपका वर्णन
४२- अहंकारसे पंच महाभूतों और इन्द्रियोंकी सृष्टि, अध्यात्म, अधिभूत और अधिदैवतका वर्णन तथा निवृत्तिमार्गका उपदेश
४३- चराचर प्राणियोंके अधिपतियोंका, धर्म आदिके लक्षणोंका और विषयोंकी अनुभूतिके साधनोंका वर्णन तथा क्षेत्रज्ञकी विलक्षणता
४४- सब पदार्थोंके आदि-अन्तका और ज्ञानकी नित्यताका वर्णन
४५- देहरूपी कालचक्रका तथा गृहस्थ और ब्राह्मणके धर्मका कथन
४६- ब्रह्मचारी, वानप्रस्थी और संन्यासीके धर्मका वर्णन
४७- मुक्तिके साधनोंका, देहरूपी वृक्षका तथा ज्ञान-खड्गसे उसे काटनेका वर्णन
४८- आत्मा और परमात्माके स्वरूपका विवेचन
४९- धर्मका निर्णय जाननेके लिये ऋषियोंका प्रश्न
५०- सत्त्व और पुरुषकी भिन्नता, बुद्धिमान्‌की प्रशंसा, पंचभूतोंके गुणोंका विस्तार और परमात्माकी श्रेष्ठताका वर्णन
५१- तपस्याका प्रभाव, आत्माका स्वरूप और उसके ज्ञानकी महिमा तथा अनुगीताका उपसंहार
५२- श्रीकृष्णका अर्जुनके साथ हस्तिनापुर जाना और वहाँ सबसे मिलकर युधिष्ठिरकी आज्ञा ले सुभद्राके साथ द्वारकाको प्रस्थान करना
५३- मार्गमें श्रीकृष्णसे कौरवोंके विनाशकी बात सुनकर उत्तंकमुनिका कुपित होना और श्रीकृष्णका उन्हें शान्त करना
५४- भगवान् श्रीकृष्णका उत्तंकसे अध्यात्मतत्त्वका वर्णन करना तथा दुर्योधनके अपराधको कौरवोंके विनाशका कारण बतलाना
५५- श्रीकृष्णका उत्तंक मुनिको विश्वरूपका दर्शन कराना और मरुदेशमें जल प्राप्त होनेका वरदान देना
५६- उत्तंककी गुरुभक्तिका वर्णन, गुरुपुत्रीके साथ उत्तंकका विवाह, गुरुपत्नीकी आज्ञासे दिव्यकुण्डल लानेके लिये उत्तंकका राजा सौदासके पास जाना
५७- उत्तंकका सौदाससे उनकी रानीके कुण्डल माँगना और सौदासके कहनेसे रानी मदयन्तीके पास जाना
५८- कुण्डल लेकर उत्तंकका लौटना, मार्गमें उन कुण्डलोंका अपहरण होना तथा इन्द्र और अग्निदेवकी कृपासे फिर उन्हें पाकर गुरुपत्नीको देना
५९- भगवान् श्रीकृष्णका द्वारकामें जाकर रैवतक पर्वतपर महोत्सवमें सम्मिलित होना और सबसे मिलना
६०- वसुदेवजीके पूछनेपर श्रीकृष्णका उन्हें महाभारत-युद्धका वृत्तान्त संक्षेपसे सुनाना
६१- श्रीकृष्णका सुभद्राके कहनेसे वसुदेवजीको अभिमन्युवधका वृत्तान्त सुनाना
६२- वसुदेव आदि यादवोंका अभिमन्युके निमित्त श्राद्ध करना तथा व्यासजीका उत्तरा और अर्जुनको समझाकर युधिष्ठिरको अश्वमेधयज्ञ करनेकी आज्ञा देना
६३- युधिष्ठिरका अपने भाइयोंके साथ परामर्श करके सबको साथ ले धन ले आनेके लिये प्रस्थान करना
६४- पाण्डवोंका हिमालयपर पहुँचकर वहाँ पड़ाव डालना और रातमें उपवासपूर्वक निवास करना
६५- ब्राह्मणोंकी आज्ञासे भगवान् शिव और उनके पार्षद आदिकी पूजा करके युधिष्ठिरका उस धनराशिको खुदवाकर अपने साथ ले जाना
६६- श्रीकृष्णका हस्तिनापुरमें आगमन और उत्तराके मृत बालकको जिलानेके लिये कुन्तीकी उनसे प्रार्थना
६७- परीक्षित्‌को जिलानेके लिये सुभद्राकी श्रीकृष्णसे प्रार्थना
६८- श्रीकृष्णका प्रसूतिकागृहमें प्रवेश, उत्तराका विलाप और अपने पुत्रको जीवित करनेके लिये प्रार्थना
६९- उत्तराका विलाप और भगवान् श्रीकृष्णका उसके मृत बालकको जीवन-दान देना
७०- श्रीकृष्णद्वारा राजा परीक्षित्‌का नामकरण तथा पाण्डवोंका हस्तिनापुरके समीप आगमन
७१- भगवान् श्रीकृष्ण और उनके साथियोंद्वारा पाण्डवोंका स्वागत, पाण्डवोंका नगरमें आकर सबसे मिलना और व्यासजी तथा श्रीकृष्णका युधिष्ठिरको यज्ञके लिये आज्ञा देना
७२- व्यासजीकी आज्ञासे अश्वकी रक्षाके लिये अर्जुनकी, राज्य और नगरकी रक्षाके लिये भीमसेन और नकुलकी तथा कुटुम्ब-पालनके लिये सहदेवकी नियुक्ति
७३- सेनासहित अर्जुनके द्वारा अश्वका अनुसरण
७४- अर्जुनके द्वारा त्रिगर्तोंकी पराजय
७५- अर्जुनका प्राग्ज्योतिषपुरके राजा वज्रदत्तके साथ युद्ध
७६- अर्जुनके द्वारा वज्रदत्तकी पराजय
७७- अर्जुनका सैन्धवोंके साथ युद्ध
७८- अर्जुनका सैन्धवोंके साथ युद्ध और दुःशलाके अनुरोधसे उसकी समाप्ति
७९- अर्जुन और बभ्रुवाहनका युद्ध एवं अर्जुनकी मृत्यु
८०- चित्रांगदाका विलाप, मूर्च्छासे जगनेपर बभ्रुवाहनका शोकोद्‌गार और उलूपीके प्रयत्नसे संजीवनीमणिके द्वारा अर्जुनका पुनः जीवित होना
८१- उलूपीका अर्जुनके पूछनेपर अपने आगमनका कारण एवं अर्जुनकी पराजयका रहस्य बताना, पुत्र और पत्नीसे विदा लेकर पार्थका पुनः अश्वके पीछे जाना
८२- मगधराज मेघसन्धिकी पराजय
८३- दक्षिण और पश्चिम समुद्रके तटवर्ती देशोंमें होते हुए अश्वका द्वारका, पंचनद एवं गान्धार देशमें प्रवेश
८४- शकुनिपुत्रकी पराजय
८५- यज्ञभूमिकी तैयारी, नाना देशोंसे आये हुए राजाओंका यज्ञकी सजावट और आयोजन देखना
८६- राजा युधिष्ठिरका भीमसेनको राजाओंकी पूजा करनेका आदेश और श्रीकृष्णका युधिष्ठिरसे अर्जुनका संदेश कहना
८७- अर्जुनके विषयमें श्रीकृष्ण और युधिष्ठिरकी बातचीत, अर्जुनका हस्तिनापुरमें जाना तथा उलूपी और चित्रांगदाके साथ बभ्रुवाहनका आगमन
८८- उलूपी और चित्रांगदाके सहित बभ्रुवाहनका रत्न-आभूषण आदिसे सत्कार तथा अश्वमेधयज्ञका आरम्भ
८९- युधिष्ठिरका ब्राह्मणोंको दक्षिणा देना और राजाओंको भेंट देकर विदा करना
९०- युधिष्ठिरके यज्ञमें एक नेवलेका उञ्छ-वृत्तिधारी ब्राह्मणके द्वारा किये गये सेरभर सत्तूदानकी महिमा उस अश्वमेधयज्ञसे भी बढ़कर बतलाना
९१- हिंसामिश्रित यज्ञ और धर्मकी निन्दा
९२- महर्षि अगस्त्यके यज्ञकी कथा
वैष्णवधर्मपर्व
१- युधिष्ठिरका वैष्णवधर्मविषयक प्रश्न और भगवान् श्रीकृष्णके द्वारा धर्मका तथा अपनी महिमाका वर्णन
२- चारों वर्णोंके कर्म और उनके फलोंका वर्णन तथा धर्मकी वृद्धि और पापके क्षय होनेका उपाय
३- व्यर्थ जन्म, दान और जीवनका वर्णन, सात्त्विक दानोंका लक्षण, दानका योग्य पात्र और ब्राह्मणकी महिमा
४- बीज और योनिकी शुद्धि तथा गायत्री-जपकी और ब्राह्मणोंकी महिमाका और उनके तिरस्कारके भयानक फलका वर्णन
५- यमलोकके मार्गका कष्ट और उससे बचनेके उपाय
६- जल-दान, अन्न-दान और अतिथि-सत्कारका माहात्म्य
७- भूमिदान, तिलदान और उत्तम ब्राह्मणकी महिमा
८- अनेक प्रकारके दानोंकी महिमा
९- पंचमहायज्ञ, विधिवत् स्नान और उसके अंगभूत कर्म, भगवान्‌के प्रिय पुष्प तथा भगवद्‌भक्तोंका वर्णन
१०- कपिला गौका तथा उसके दानका माहात्म्य और कपिला गौके दस भेद
११- कपिला गौमें देवताओंके निवासस्थानका तथा उसके माहात्म्यका, अयोग्य ब्राह्मणका, नरकमें ले जानेवाले पापोंका तथा स्वर्गमें ले जानेवाले पुण्योंका वर्णन
१२- ब्रह्महत्याके समान पापका, अन्नदानकी प्रशंसाका, जिनका अन्न वर्जनीय है, उन पापियोंका, दानके फलका और धर्मकी प्रशंसाका वर्णन
१३- धर्म और शौचके लक्षण, संन्यासी और अतिथिके सत्कारके उपदेश, शिष्टाचार, दानपात्र ब्राह्मण तथा अन्नदानकी प्रशंसा
१४- भोजनकी विधि, गौओंको घास डालनेका विधान और तिलका माहात्म्य तथा ब्राह्मणके लिये तिल और गन्ना पेरनेका निषेध
१५- आपद्धर्म, श्रेष्ठ और निन्द्य ब्राह्मण, श्राद्धका उत्तमकाल और मानव-धर्म-सारका वर्णन
१६- अग्निके स्वरूपमें अग्निहोत्रकी विधि तथा उसके माहात्म्यका वर्णन
१७- चान्द्रायणव्रतकी विधि, प्रायश्चित्तरूपमें उसके करनेका विधान तथा महिमाका वर्णन
१८- सर्वहितकारी धर्मका वर्णन, द्वादशीव्रतका माहात्म्य तथा युधिष्ठिरके द्वारा भगवान्‌की स्तुति
१९- विषुवयोग और ग्रहण आदिमें दानकी महिमा, पीपलका महत्त्व, तीर्थभूत गुणोंकी प्रशंसा और उत्तम प्रायश्चित्त
२०- उत्तम और अधम ब्राह्मणोंके लक्षण, भक्त, गौ और पीपलकी महिमा
२१- भगवान्‌के उपदेशका उपसंहार और द्वारकागमन
15. आश्रमवासिकपर्व
आश्रमवासपर्व
१- भाइयोंसहित युधिष्ठिर तथा कुन्ती आदि देवियोंके द्वारा धृतराष्ट्र और गान्धारीकी सेवा
२- पाण्डवोंका धृतराष्ट्र और गान्धारीके अनुकूल बर्ताव
३- राजा धृतराष्ट्रका गान्धारीके साथ वनमें जानेके लिये उद्योग एवं युधिष्ठिरसे अनुमति देनेके लिये अनुरोध तथा युधिष्ठिरसे और कुन्ती आदिका दुःखी होना
४- व्यासजीके समझानेसे युधिष्ठिरका धृतराष्ट्रको वनमें जानेके लिये अनुमति देना
५- धृतराष्ट्रके द्वारा युधिष्ठिरको राजनीतिका उपदेश
६- धृतराष्ट्रद्वारा राजनीतिका उपदेश
७- युधिष्ठिरको धृतराष्ट्रके द्वारा राजनीतिका उपदेश
८- धृतराष्ट्रका कुरुजांगल देशकी प्रजासे वनमें जानेके लिये आज्ञा माँगना
९- प्रजाजनोंसे धृतराष्ट्रकी क्षमा-प्रार्थना
१०- प्रजाकी ओरसे साम्बनामक ब्राह्मणका धृतराष्ट्रको सान्त्वनापूर्ण उत्तर देना
११- धृतराष्ट्रका विदुरके द्वारा युधिष्ठिरसे श्राद्धके लिये धन माँगना, अर्जुनकी सहमति और भीमसेनका विरोध
१२- अर्जुनका भीमको समझाना और युधिष्ठिरका धृतराष्ट्रको यथेष्ट धन देनेकी स्वीकृति प्रदान करना
१३- विदुरका धृतराष्ट्रको युधिष्ठिरका उदारतापूर्ण उत्तर सुनाना
१४- राजा धृतराष्ट्रके द्वारा मृत व्यक्तियोंके लिये श्राद्ध एवं विशाल दान-यज्ञका अनुष्ठान
१५- गान्धारीसहित धृतराष्ट्रका वनको प्रस्थान
१६- धृतराष्ट्रका पुरवासियोंको लौटाना और पाण्डवोंके अनुरोध करनेपर भी कुन्तीका वनमें जानेसे न रुकना
१७- कुन्तीका पाण्डवोंको उनके अनुरोधका उत्तर
१८- पाण्डवोंका स्त्रियोंसहित निराश लौटना, कुन्तीसहित गान्धारी और धृतराष्ट्र आदिका मार्गमें गंगा-तटपर निवास करना
१९- धृतराष्ट्र आदिका गंगातटपर निवास करके वहाँसे कुरुक्षेत्रमें जाना और शतयूपके आश्रमपर निवास करना
२०- नारदजीका प्राचीन राजर्षियोंकी तपः सिद्धिका दृष्टान्त देकर धृतराष्ट्रकी तपस्याविषयक श्रद्धाको बढ़ाना तथा शतयूपके पूछनेपर धृतराष्ट्रको मिलनेवाली गतिका भी वर्णन करना
२१- धृतराष्ट्र आदिके लिये पाण्डवों तथा पुरवासियोंकी चिन्ता
२२- माताके लिये पाण्डवोंकी चिन्ता, युधिष्ठिरकी वनमें जानेकी इच्छा, सहदेव और द्रौपदीका साथ जानेका उत्साह तथा रनिवास और सेनासहित युधिष्ठिरका वनको प्रस्थान
२३- सेनासहित पाण्डवोंकी यात्रा और उनका कुरुक्षेत्रमें पहुँचना
२४- पाण्डवों तथा पुरवासियोंका कुन्ती, गान्धारी और धृतराष्ट्रके दर्शन करना
२५- संजयका ऋषियोंसे पाण्डवों, उनकी पत्नियों तथा अन्यान्य स्त्रियोंका परिचय देना
२६- धृतराष्ट्र और युधिष्ठिरकी बातचीत तथा विदुरजीका युधिष्ठिरके शरीरमें प्रवेश
२७- युधिष्ठिर आदिका ऋषियोंके आश्रम देखना, कलश आदि बाँटना और धृतराष्ट्रके पास आकर बैठना, उन सबके पास अन्यान्य ऋषियोंसहित महर्षि व्यासका आगमन
२८- महर्षि व्यासका धृतराष्ट्रसे कुशल पूछते हुए विदुर और युधिष्ठिरकी धर्मरूपताका प्रतिपादन करना और उनसे अभीष्ट वस्तु माँगनेके लिये कहना
पुत्रदर्शनपर्व
२९- धृतराष्ट्रका मृत बान्धवोंके शोकसे दुःखी होना तथा गान्धारी और कुन्तीका व्यासजीसे अपने मरे हुए पुत्रोंके दर्शन करनेका अनुरोध
३०- कुन्तीका कर्णके जन्मका गुप्त रहस्य बताना और व्यासजीका उन्हें सान्त्वना देना
३१- व्यासजीके द्वारा धृतराष्ट्र आदिके पूर्वजन्मका परिचय तथा उनके कहनेसे सब लोगोंका गंगा-तटपर जाना
३२- व्यासजीके प्रभावसे कुरुक्षेत्रके युद्धमें मारे गये कौरव-पाण्डववीरोंका गंगाजीके जलसे प्रकट होना
३३- परलोकसे आये हुए व्यक्तियोंका परस्पर राग-द्वेषसे रहित होकर मिलना और रात बीतनेपर अदृश्य हो जाना, व्यासजीकी आज्ञासे विधवा क्षत्राणियोंका गंगाजीमें गोता लगाकर अपने-अपने पतिके लोकको प्राप्त करना तथा इस पर्वके श्रवणकी महिमा
३४- मरे हुए पुरुषोंका अपने पूर्व शरीरसे ही यहाँ पुनः दर्शन देना कैसे सम्भव है, जनमेजयकी इस शंकाका वैशम्पायनद्वारा समाधान
३५- व्यासजीकी कृपासे जनमेजयको अपने पिताका दर्शन प्राप्त होना
३६- व्यासजीकी आज्ञासे धृतराष्ट्र आदिका पाण्डवोंको विदा करना और पाण्डवोंका सदलबल हस्तिनापुरमें आना
नारदागमनपर्व
३७- नारदजीसे धृतराष्ट्र आदिके दावानलमें दग्ध हो जानेका हाल जानकर युधिष्ठिर आदिका शोक करना
३८- नारदजीके सम्मुख युधिष्ठिरका धृतराष्ट्र आदिके लौकिक अग्निमें दग्ध हो जानेका वर्णन करते हुए विलाप और अन्य पाण्डवोंका भी रोदन
३९- राजा युधिष्ठिरद्वारा धृतराष्ट्र, गान्धारी और कुन्ती—इन तीनोंकी हड्डियोंको गंगामें प्रवाहित कराना तथा श्राद्धकर्म करना
16. मौसलपर्व
१- युधिष्ठिरका अपशकुन देखना, यादवोंके विनाशका समाचार सुनना, द्वारकामें ऋषियोंके शापवश साम्बके पेटसे मूसलकी उत्पत्ति तथा मदिराके निषेधकी कठोर आज्ञा
२- द्वारकामें भयंकर उत्पात देखकर भगवान् श्रीकृष्णका यदुवंशियोंको तीर्थयात्राके लिये आदेश देना
३- कृतवर्मा आदि समस्त यादवोंका परस्पर संहार
४- दारुकका अर्जुनको सूचना देनेके लिये हस्तिनापुर जाना, बभ्रुका देहावसान एवं बलराम और श्रीकृष्णका परमधाम-गमन
५- अर्जुनका द्वारकामें आना और द्वारका तथा श्रीकृष्ण-पत्नियोंकी दशा देखकर दुःखी होना
६- द्वारकामें अर्जुन और वसुदेवजीकी बातचीत
७- वसुदेवजी तथा मौसलयुद्धमें मरे हुए यादवोंका अन्त्येष्टि-संस्कार करके अर्जुनका द्वारकावासी स्त्री-पुरुषोंको अपने साथ ले जाना, समुद्रका द्वारकाको डूबो देना और मार्गमें अर्जुनपर डाकुओंका आक्रमण, अवशिष्ट यादवोंको अपनी राजधानीमें बसा देना
८- अर्जुन और व्यासजीकी बातचीत
17. महाप्रस्थानिकपर्व
१- वृष्णिवंशियोंका श्राद्ध करके प्रजाजनोंकी अनुमति ले द्रौपदीसहित पाण्डवोंका महाप्रस्थान
२- मार्गमें द्रौपदी, सहदेव, नकुल, अर्जुन, और भीमसेनका गिरना तथा युधिष्ठिरद्वारा प्रत्येकके गिरनेका कारण बताया जाना
३- युधिष्ठिर इन्द्र और धर्म आदिके साथ वार्तालाप, युधिष्ठिरका अपने धर्ममें दृढ़ रहना तथा सदेह स्वर्गमें जाना
18. स्वर्गारोहणपर्व
१- स्वर्गमें नारद और युधिष्ठिरकी बातचीत
२- देवदूतका युधिष्ठिरको नरकका दर्शन कराना तथा भाइयोंका करुणक्रन्दन सुनकर उनका वहीं रहनेका निश्चय करना
३- इन्द्र और धर्मका युधिष्ठिरको सान्त्वना देना तथा युधिष्ठिरका शरीर त्यागकर दिव्य लोकको जाना
४- युधिष्ठिरका दिव्यलोकमें श्रीकृष्ण, अर्जुन आदिका दर्शन करना
५- भीष्म आदि वीरोंका अपने-अपने मूलस्वरूपमें मिलना और महाभारतका उपसंहार तथा माहात्म्य
१- महाभारत श्रवणविधि
२- महाभारत-माहात्म्य
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Mahabharata: 6 Vol. Set (Hindi) [1-6]

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3 2 ।।

ीह रः ।।

ीम मह ष वेद ास णीत

महाभारत ( थम ख ड)

[ आ दपव और सभापव] ( स च , सरल हद -अनुवाद)

वमेव माता च पता वमेव वमेव ब धु सखा वमेव । वमेव व ा वणं वमेव वमेव सव मम दे वदे व ।।

सं० २०७२ कुल मु ण

स हवाँ पुनमु ण

३,५००

८६,७००

काशक—

गीता ेस, गोरखपुर—२७३००५

(गो ब दभवन-कायालय, कोलकाता का सं थान) फोन : (०५५१) २३३४७२१, २३३१२५०; फै स : (०५५१) २३३६९९७

web : gitapress. org e-mail : booksales@gitapress. org गीता ेस काशन gitapressbookshop. in से online खरीद।

।। ॐ ीपरमा मने नमः ।।



नवेदन

महाभारत आय-सं कृ त तथा भारतीय सनातनधमका एक महान् थ तथा अमू य र न का अपार भ डार है। भगवान् वेद ास वयं कहते ह क ‘इस महाभारतम मने वेद के रह य और व तार, उप नषद के स पूण सार, इ तहासपुराण के उ मेष और नमेष, चातुव यके वधान, पुराण के आशय, ह-न -तारा आ दके प रमाण, याय, श ा, च क सा, दान, पाशुपत (अ तयामीक म हमा), तीथ, पु य दे श , न दय , पवत , वन तथा समु का भी वणन कया गया है। अतएव महाभारत महाका है, गूढ़ाथमय ान- व ान-शा है, धम थ है, राजनी तक दशन है, कमयोग-दशन है, भ -शा है, अ या म-शा है, आयजा तका इ तहास है और सवाथसाधक तथा सवशा सं ह है। सबसे अ धक मह वक बात तो यह है क इसम एक, अ तीय, सव , सवश मान्, सवलोकमहे र, परमयोगे र, अ च यान त गुणगणस प , सृ - थ तलयकारी, वच लीला वहारी, भ -भ मान्, भ -सव व, नखलरसामृत स धु, अन त ेमाधार, ेमघन व ह, स चदान दघन, वासुदेव भगवान् ीकृ णके गुण-गौरवका मधुर गान है। इसक म हमा अपार है। औप नषद ऋ षने भी इ तहास-पुराणको पंचम वेद बताकर महाभारतक सव प र मह ा वीकार क है। इस महाभारतके ह द म कई अनुवाद इससे पहले का शत हो चुके ह, पर तु इस समय मूल सं कृत तथा ह द -अनुवादस हत स पूण थ शायद उपलध नह है। इसे गीता ेसने संवत् १९९९ म का शत कया था, क तु प र थ त एवं साधन के अभावम पाठक क सेवाम नह दया जा सका। भगव कृपासे इसे पुनमु त करनेका सुअवसर अब ा त आ है। इस महाभारतम मु यतः नीलक ठ के अनुसार पाठ लया गया है। साथ ही दा णा य पाठक े उपयोगी अंश को स म लत कया गया है और इसीके अनुसार बीच-बीचम उसके ोक अथस हत दे दये गये ह पर उन ोक क ोक-सं या न तो मूलम द गयी है, न अथम ही। अ यायके अ तम दा णा य पाठक े ोक क सं या अलग बताकर उ अ यायक पूण ोक-सं या बता द गयी है और इसी कार पवके अ तम लये ए दा णा य अ धक पाठक े ोक क सं या अलगअलग बताकर उस पवक पूण ोक-सं या भी दे द गयी है। इसके अ त र महाभारतके पूव का शत अ या य सं करण तथा पूनाके सं करणसे भी पाठनणयम सहायता ली गयी है और अ छा तीत होनेपर उनके मूलपाठ या पाठा तरको भी हण कया गया है। इस सं करणम कुल ोक-सं या १००२१७ ै







है। इसम उ र भारतीय पाठक ८६६००, दा णा य पाठक ६५८४ तथा ‘उवाच’ क सं या ७०३२ है। इस वशाल थके ह द -अनुवादका ायः सारा काय गीता ेसके स तथा स ह त भाषा तरकार सं कृत- ह द दोन भाषाक े सफल लेखक तथा क व, परम व ान् प डत वर ीरामनारायणद जी शा ी महोदयने कया है। इसीसे अनुवादक भाषा सरल होनेके साथ ही इतनी सुमधुर हो सक है। दाश नक वयोवृ व ान् डॉ० ीभगवानदासजीने इस अनुवादक भू र-भू र शंसा क थी। आ दपव तथा कुछ अ य पवके कुछ अनुवादको हमारे परम आदरणीय व ान् वामीजी ीअख डान दजी महाराजने भी कृपापूवक दे खा है; इसके लये हम उनके कृत ह। इसके अ त र , पाठ नणय तथा अनुवाद दे खनेका सारा काय हमारे परम ेय ीजयदयालजी गोय दकाने समय-समयपर वामीजी ीरामसुखदासजी, ीह रकृ णदासजी गोय दका, ीघन यामदासजी जालान, ीवासुदेवजी काबरा आ दको साथ रखकर कया है। ीगोय दकाजी तथा इन महानुभाव ने इतनी लगनके साथ ब त ल बा समय नय मत पसे दे कर काम न कया होता तो इस वशाल थका काशन होना स भव नह था। इस कार भगव कृपासे यह महान् काय ६ ख ड म पूरा आ है। आशा है, भारतीय जनता इससे लाभ उठाकर धा मक जीवनयापन एवं अपने जीवनको सफल बनानेम स म होगी। वनीत—

काशक

।।

ीह रः ।।

(आ दपव) अ याय

वषय

( अनु म णकापव) १-

थका उप म, पाठक म हमा

थम कहे ए अ धकांश वषय क सं

त सूची तथा इसके

( पवसं हपव) २- सम तपंचक े का वणन, अ ौ हणी सेनाका माण, महाभारतम व णत पव और उनके सं त वषय का सं ह तथा महाभारतके वण एवं पठनका फल

( पौ यपव) ३- जनमेजयको सरमाका शाप, जनमेजय ारा सोम वाका पुरो हतके पदपर वरण, आ ण, उपम यु, वेद और उ ंकक गु भ तथा उ ंकका सपय के लये जनमेजयको ो साहन दे ना

( पौलोमपव) ४- कथा- वेश ५- भृगक ु े आ मपर पुलोमा दानवका आगमन और उसक अ नदे वके साथ बातचीत ६- मह ष यवनका ज म, उनके तेजसे पुलोमा रा सका भ म होना तथा भृगक ु ा अ नदे वको शाप दे ना ७- शापसे कु पत ए अ नदे वका अ य होना और ाजीका उनके शापको संकु चत करके उ ह स करना ८- म राका ज म, के साथ उसका वा दान तथा ववाहके पहले ही साँपके काटनेसे म राक मृ यु ९क आधी आयुसे म राका जी वत होना, के साथ उसका ववाह, का सप को मारनेका न य तथा -डु डु भ-संवाद १०मु न और डु डु भका संवाद ११- डु डु भक आ मकथा तथा उसके ारा को अ हसाका उपदे श १२- जनमेजयके सपस के वषयम क ज ासा और पता ारा उसक पू त



( आ तीकपव) े











१३- जर का का अपने पतर के अनुरोधसे ववाहके लये उ त होना १४- जर का ारा वासु कक ब हनका पा ण हण १५- आ तीकका ज म तथा मातृशापसे सपस म न होनेवाले नागवंशक उनके ारा र ा १६- क ू और वनताको क यपजीके वरदानसे अभी पु क ा त १७- मे पवतपर अमृतके लये वचार करनेवाले दे वता को भगवान् नारायणका समु -म थनके लये आदे श १८- दे वता और दै य ारा अमृतके लये समु का म थन, अनेक र न के साथ अमृतक उ प और भगवान्का मो हनी प धारण करके दै य के हाथसे अमृत ले लेना १९- दे वता का अमृतपान, दे वासुरसं ाम तथा दे वता क वजय २०- क ू और वनताक होड़, क ू ारा अपने पु को शाप एवं ाजी ारा उसका अनुमोदन २१- समु का व तारसे वणन २२- नाग ारा उ चैः वाक पूँछको काली बनाना; क ू और वनताका समु को दे खते ए आगे बढ़ना २३- परा जत वनताका क क ू दासी होना, ग डक उ प तथा दे वता ारा उनक तु त २४- ग डके ारा अपने तेज और शरीरका संकोच तथा सूयके ोधज नत ती तेजक शा तके लये अ णका उनके रथपर थत होना २५- सूयके तापसे मू छत ए सप क र ाके लये क ू ारा इ दे वक तु त २६- इ ारा क ई वषासे सप क स ता २७- रामणीयक पके मनोरम वनका वणन तथा ग डका दा यभावसे छू टनेके लये सप से उपाय पूछना २८- ग डका अमृतके लये जाना और अपनी माताक आ ाके अनुसार नषाद का भ ण करना २९- क यपजीका ग डको हाथी और कछु एके पूवज मक कथा सुनाना, ग डका उन दोन को पकड़कर एक द वटवृ क शाखापर ले जाना और उस शाखाका टू टना ३०- ग डका क यपजीसे मलना, उनक ाथनासे वालख य ऋ षय का शाखा छोड़कर तपके लये थान और ग डका नजन पवतपर उस शाखाको छोड़ना ३१- इ के ारा वालख य का अपमान और उनक तप याके भावसे अ ण एवं ग डक उ प ३२- ग डका दे वता के साथ यु और दे वता क पराजय ३३- ग डका अमृत लेकर लौटना, मागम भगवान् व णुसे वर पाना एवं उनपर इ के ारा व- हार औ े े औ

३४- इ और ग डक म ता, ग डका अमृत लेकर नाग के पास आना और वनताको दासीभावसे छु ड़ाना तथा इ ारा अमृतका अपहरण ३५- मु य-मु य नाग के नाम ३६- शेषनागक तप या, ाजीसे वर- ा त तथा पृ वीको सरपर धारण करना ३७- माताके शापसे बचनेके लये वासु क आ द नाग का पर पर परामश ३८- वासु कक ब हन जर का का जर का मु नके साथ ववाह करनेका न य ३९ाजीक आ ासे वासु कका जर का मु नके साथ अपनी ब हनको याहनेके लये य नशील होना ४०- जर का क तप या, राजा परी त्का उपा यान तथा राजा ारा मु नके कंधेपर मृतक साँप रखनेके कारण ःखी ए कृशका शृंगीको उ े जत करना ४१- शृंगी ऋ षका राजा परी त्को शाप दे ना और शमीकका अपने पु को शा त करते ए शापको अनु चत बताना ४२- शमीकका अपने पु को समझाना और गौरमुखको राजा परी त्के पास भेजना, राजा ारा आ मर ाक व था तथा त क नाग और का यपक बातचीत ४३- त कका धन दे कर का यपको लौटा दे ना और छलसे राजा परी त्के समीप प ँचकर उ ह डँसना ४४- जनमेजयका रा या भषेक और ववाह ४५- जर का को अपने पतर का दशन और उनसे वातालाप ४६- जर का का शतके साथ ववाहके लये उ त होना और नागराज वासु कका जर का नामक क याको लेकर आना ४७- जर का मु नका नागक याके साथ ववाह, नागक या जर का ारा प तसेवा तथा प तका उसे यागकर तप याके लये गमन ४८- वासु क नागक च ता, ब हन ारा उसका नवारण तथा आ तीकका ज म एवं व ा ययन ४९- राजा परी त्के धममय आचार तथा उ म गुण का वणन, राजाका शकारके लये जाना और उनके ारा शमीक मु नका तर कार ५०- शृंगी ऋ षका परी त्को शाप, त कका का यपको लौटाकर छलसे परी त्को डँसना और पताक मृ युका वृ ा त सुनकर जनमेजयक त कसे बदला लेनेक त ा ५१- जनमेजयके सपय का उप म ५२- सपस का आर भ और उसम सप का वनाश ५३- सपय के ऋ वज क नामावली, सप का भयंकर वनाश, त कका इ क शरणम जाना तथा वासु कका अपनी ब हनसे आ तीकको य म भेजनेके लये कहना ५४- माताक आ ासे मामाको सा वना दे कर आ तीकका सपय म जाना ी







५५- आ तीकके ारा यजमान, य , ऋ वज्, सद यगण और अ नदे वक तु तशंसा ५६- राजाका आ तीकको वर दे नेके लये तैयार होना, त क नागक ाकुलता तथा आ तीकका वर माँगना ५७- सपय म द ध ए धान- धान सप के नाम ५८- य क समा त एवं आ तीकका सप से वर ा त करना

( अंशावतरणपव) ५९- महाभारतका उप म ६०- जनमेजयके य म ासजीका आगमन, स कार तथा राजाक ाथनासे ासजीका वैश पायनजीसे महाभारत-कथा सुनानेके लये कहना ६१- कौरव-पा डव म फूट और यु होनेके वृ ा तका सू पम नदश ६२- महाभारतक मह ा ६३- राजा उप रचरका च र तथा स यवती, ासा द मुख पा क सं त ज मकथा ६४- ा ण ारा यवंशक उ प और वृ तथा उस समयके धामक रा यका वणन; असुर का ज म और उनके भारसे पी ड़त पृ वीका ाजीक शरणम जाना तथा ाजीका दे वता को अपने अंशसे पृ वीपर ज म लेनेका आदे श

( स भवपव) ६५६६६७६८६९-

मरी च आ द मह षय तथा अ द त आ द द क या के वंशका ववरण मह षय तथा क यप-प नय क संतान-पर पराका वणन दे वता और दै य आ दके अंशावतार का द दशन राजा य तक अ त श तथा रा यशासनक मताका वणन य तका शकारके लये वनम जाना और व वध हसक वन-ज तु का वध करना ७०- तपोवन और क वके आ मका वणन तथा राजा य तका उस आ मम वेश ७१- राजा य तका शकु तलाके साथ वातालाप, शकु तलाके ारा अपने ज मका कारण बतलाना तथा उसी संगम व ा म क तप यासे इ का च तत होकर मेनकाको मु नका तपोभंग करनेके लये भेजना ७२- मेनका- व ा म - मलन, क याक उ प , शकु त प य के ारा उसक र ा और क वका उसे अपने आ मपर लाकर शकु तला नाम रखकर पालन करना ७३- शकु तला और य तका गा धव ववाह और मह ष क वके ारा उसका अनुमोदन ७४- शकु तलाके पु का ज म, उसक अ त श , पु स हत शकु तलाका य तके यहाँ जाना, य त-शकु तला-संवाद, आकाशवाणी ारा शकु तलाक शु का औ



समथन और भरतका रा या भषेक ७५- द , वैव वत मनु तथा उनके पु क उ प ; पु रवा, न ष और यया तके च र का सं ेपसे वणन ७६- कचका श यभावसे शु ाचाय और दे वयानीक सेवाम संल न होना और अनेक क सहनेके प ात् मृतसंजीवनी व ा ा त करना ७७- दे वयानीका कचसे पा ण हणके लये अनुरोध, कचक अ वीकृ त तथा दोन का एक- सरेको शाप दे ना ७८- दे वयानी और शम ाका कलह, शम ा ारा कुएँम गरायी गयी दे वयानीको यया तका नकालना और दे वयानीका शु ाचायजीके साथ वातालाप ७९- शु ाचाय ारा दे वयानीको समझाना और दे वयानीका असंतोष ८०- शु ाचायका वृषपवाको फटकारना तथा उसे छोड़कर जानेके लये उ त होना और वृषपवाके आदे शसे शम ाका दे वयानीक दासी बनकर शु ाचाय तथा दे वयानीको संतु करना ८१- सखय स हत दे वयानी और शम ाका वन- वहार, राजा यया तका आगमन, दे वयानीक उनके साथ बातचीत तथा ववाह ८२- यया तसे दे वयानीको पु - ा त; यया त और शम ाका एका त मलन और उनसे एक पु का ज म ८३- दे वयानी और शम ाका संवाद, यया तसे शम ाके पु होनेक बात जानकर दे वयानीका ठकर पताके पास जाना, शु ाचायका यया तको बूढ़े होनेका शाप दे ना ८४- यया तका अपने पु य , तुवसु, और अनुसे अपनी युवाव था दे कर वृ ाव था लेनेके लये आ ह और उनके अ वीकार करनेपर उ ह शाप दे ना, फर अपने पु पू को जराव था दे कर उनक युवाव था लेना तथा उ ह वर दान करना ८५- राजा यया तका वषय सेवन और वैरा य तथा पू का रा या भषेक करके वनम जाना ८६- वनम राजा यया तक तप या और उ ह वगलोकक ा त ८७- इ के पूछनेपर यया तका अपने पु पू को दये ए उपदे शक चचा करना ८८- यया तका वगसे पतन और अ कका उनसे करना ८९- यया त और अ कका संवाद ९०- अ क और यया तका संवाद ९१- यया त और अ कका आ मधमस ब धी संवाद ९२- अ क-यया त-संवाद और यया त ारा सर के दये ए पु यदानको अ वीकार करना ९३- राजा यया तका वसुमान् और श बके त हको अ वीकार करना तथा अ क आ द चार राजा के साथ वगम जाना ९४- पू वंशका वणन े े

९५- द जाप तसे लेकर पू वंश, भरतवंश एवं पा डु वंशक पर पराका वणन ९६- महा भषको ाजीका शाप तथा शाप त वसु के साथ गंगाक बातचीत ९७- राजा तीपका गंगाको पु वधूके पम वीकार करना और शा तनुका ज म, रा या भषेक तथा गंगासे मलना ९८- शा तनु और गंगाका कुछ शत के साथ स ब ध, वसु का ज म और शापसे उ ार तथा भी मक उ प ९९- मह ष व स ारा वसु को शाप ा त होनेक कथा १००- शा तनुके प, गुण और सदाचारक शंसा, गंगाजीके ारा सु श त पु क ा त तथा दे व तक भी म- त ा १०१- स यवतीके गभसे च ांगद और व च वीयक उ प , शा तनु और च ांगदका नधन तथा व च वीयका रा या भषेक १०२- भी मके ारा वयंवरसे का शराजक क या का हरण, यु म सब राजा तथा शा वक पराजय, अ बका और अ बा लकाके साथ व च वीयका ववाह तथा नधन १०३- स यवतीका भी मसे रा य हण और संतानो पादनके लये आ ह तथा भी मके ारा अपनी त ा बतलाते ए उसक अ वीकृ त १०४- भी मक स म तसे स यवती ारा ासका आवाहन और ासजीका माताक आ ासे कु वंशक वृ के लये व च वीयक प नय के गभसे संतानो पादन करनेक वीकृ त दे ना १०५ासजीके ारा व च वीयके े से धृतरा, पा ड ु और व रक उ प १०६- मह ष मा ड का शूलीपर चढ़ाया जाना १०७- मा ड का धमराजको शाप दे ना १०८- धृतरा आ दके ज म तथा भी मजीके धमपूण शासनसे कु दे शक सवागीण उ तका द दशन १०९- राजा धृतराका ववाह ११०- कु तीको वासासे म क ा त, सूयदे वका आवाहन तथा उनके संयोगसे कणका ज म एवं कणके ारा इ को कवच और कु डल का दान १११- कु ती ारा वयंवरम पा डु का वरण और उनके साथ ववाह ११२- मा के साथ पा डु का ववाह तथा राजा पा डु क द वजय ११३- राजा पा डु का प नय स हत वनम नवास तथा व रका ववाह ११४- धृतराक े गा धारीसे एक सौ पु तथा एक क याक तथा सेवा करनेवाली वै यजातीय युवतीसे युयु सु नामक एक पु क उ प ११५- ःशलाके ज मक कथा ११६- धृतराक े सौ पु क नामावली ११७- राजा पा डु के ारा मृग पधारी मु नका वध तथा उनसे शापक ा त े े







११८- पा डु का अनुताप, सं यास लेनेका न य तथा प नय के अनुरोधसे वान थआ मम वेश ११९- पा डु का कु तीको पु - ा तके लये य न करनेका आदे श १२०- कु तीका पा डु को ु षता के मृत शरीरसे उसक प त ता प नी भ ाके ारा पु - ा तका कथन १२१- पा डु का कु तीको समझाना और कु तीका प तक आ ासे पु ो प के लये धमदे वताका आवाहन करनेके लये उ त होना १२२- यु ध र, भीम और अजुनक उ प १२३- नकुल और सहदे वक उ प तथा पा डु -पु के नामकरण-सं कार १२४- राजा पा डु क मृ यु और मा का उनके साथ चतारोहण १२५- ऋ षय का कु ती और पा डव को लेकर ह तनापुर जाना और उ ह भी म आ दके हाथ स पना १२६- पा डु और मा क अ थय का दाह-सं कार तथा भाई ब धु ारा उनके लये जलांज लदान १२७- पा डव तथा धृतरापु क बाल ड़ा, य धनका भीमसेनको वष खलाना तथा गंगाम ढकेलना और भीमका नागलोकम प ँचकर आठ कु ड के द रसका पान करना १२८- भीमसेनके न आनेसे कु ती आ दक च ता, नागलोकसे भीमसेनका आगमन तथा उनके त य धनक कुचे ा १२९- कृपाचाय, ोण और अ थामाक उ प तथा ोणको परशुरामजीसे अ श क ा तक कथा १३०- ोणका पदसे तर कृत हो ह तनापुरम आना, राजकुमार से उनक भट, उनक बीटा और अँगठ ू को कुएँमसे नकालना एवं भी मका उ ह अपने यहाँ स मानपूवक रखना १३१- ोणाचाय ारा राजकुमार क श ा, एकल क गु भ तथा आचाय ारा श य क परी ा १३२- अजुनके ारा ल यवेध, ोणका ाहसे छु टकारा और अजुनको शर नामक अ क ा त १३३- राजकुमार का रंगभू मम अ -कौशल दखाना १३४- भीमसेन, य धन तथा अजुनके ारा अ -कौशलका दशन १३५- कणका रंगभू मम वेश तथा रा या भषेक १३६- भीमसेनके ारा कणका तर कार और य धन ारा उसका स मान १३७- ोणका श य ारा पदपर आ मण करवाना, अजुनका पदको बंद बनाकर लाना और ोण ारा पदको आधा रा य दे कर मु कर दे ना १३८- यु ध रका युवराजपदपर अ भषेक, पा डव के शौय, क त और बलके व तारसे धृतराको च ता ो ी े

१३९- क णकका धृतराको क ू टनी तका उपदे श

( जतुगृहपव) १४०- पा डव के त पुरवा सय का अनुराग दे खकर य धनक च ता १४१- य धनका धृतरासे पा डव को वारणावत भेज द े नेका ताव १४२- धृतराक े आदे शसे पा डव क वारणावत-या ा १४३- य धनके आदे शसे पुरोचनका वारणावत नगरम ला ागृह बनाना १४४- पा डव क वारणावत-या ा तथा उनको व रका गु त उपदे श १४५- वारणावतम पा डव का वागत, पुरोचनका स कारपूवक उ ह ठहराना, ला ागृहम नवासक व था और यु ध र एवं भीमसेनक बातचीत १४६- व रके भेजे ए खनक ारा ला ागृहम सुरंगका नमाण १४७- ला ागृहका दाह और पा डव का सुरंगके रा ते नकल जाना १४८- व रजीके भेजे ए ना वकका पा डव को गंगाजीके पार उतारना १४९- धृतरा आ दके ारा पा डव के लये शोक काश एवं जलांज लदान तथा पा डव का वनम वेश १५०- माता कु तीके लये भीमसेनका जल ले आना, माता और भाइय को भू मपर सोये दे खकर भीमका वषाद एवं य धनके त उनका ोध

( ह ड बवधपव) १५१- ह ड बके भेजनेसे ह ड बा रा सीका पा डव के पास आना और भीमसेनसे उसका वातालाप १५२- ह ड बका आना, ह ड बाका उससे भयभीत होना और भीम तथा ह ड बासुरका यु १५३- ह ड बाका कु ती आ दसे अपना मनोभाव कट करना तथा भीमसेनके ारा ह ड बा-सुरका वध १५४- यु ध रका भीमसेनको ह ड बाके वधसे रोकना, ह ड बाक भीमसेनके लये ाथना, भीमसेन और ह ड बाका मलन तथा घटो कचक उ प १५५- पा डव को ासजीका दशन और उनका एकच ा नगरीम वेश

( बकवधपव) १५६-

ा णप रवारका क र करनेके लये कु तीक भीमसेनसे बातचीत तथा ा णके च तापूण उद्गार १५७- ा णीका वयं मरनेके लये उ त होकर प तसे जी वत रहनेके लये अनुरोध करना १५८- ा ण-क याके याग और ववेकपूण वचन तथा कु तीका उन सबके पास जाना ी े







१५९- कु तीके पूछनेपर ा णका उनसे अपने ःखका कारण बताना १६०- कु ती और ा णक बातचीत १६१- भीमसेनको रा सके पास भेजनेके वषयम यु ध र और कु तीक बातचीत १६२- भीमसेनका भोजन-साम ी लेकर बकासुरके पास जाना और वयं भोजन करना तथा यु करके उसे मार गराना १६३- बकासुरके वधसे रा स का भयभीत होकर पलायन और नगर नवा सय क स ता

( चै रथपव) १६४- पा डव का एक ा णसे व च कथाएँ सुनना १६५- ोणके ारा पदके अपमा नत होनेका वृ ा त १६६- पदके य से धृ ु न और ौपद क उ प १६७- कु तीक अपने पु से पूछकर पंचालदे शम जानेक तैयारी १६८ासजीका पा डव को ौपद के पूवज मका वृ ा त सुनाना १६९- पा डव क पंचाल-या ा और अजुनके ारा च रथ ग धवक पराजय एवं उन दोन क म ता १७०- सूयक या तपतीको दे खकर राजा संवरणका मो हत होना १७१- तपती और संवरणक बातचीत १७२- व स जीक सहायतासे राजा संवरणको तपतीक ा त १७३- ग धवका व स जीक मह ा बताते ए कसी े ा णको पुरो हत बनानेके लये आ ह करना १७४- व स जीके अ त मा-बलके आगे व ा म जीका पराभव १७५- श के शापसे क माषपादका रा स होना, व ा म क ेरणासे रा स ारा व स के पु का भ ण और व स का शोक १७६- क माषपादका शापसे उ ार और व स जीके ारा उ ह अ मक नामक पु क ा त १७७- श पु पराशरका ज म और पताक मृ युका हाल सुनकर कु पत ए पराशरको शा त करनेके लये व स जीका उ ह औव पा यान सुनाना १७८- पतर ारा औकके ोधका नवारण १७९- औव और पतर क बातचीत तथा औवका अपनी ोधा नको बडवानल पसे समु म यागना १८०- पुल य आ द मह षय के समझानेसे पराशरजीके ारा रा सस क समा त १८१- राजा क माषपादको ा णी आं गरसीका शाप १८२- पा डव का धौ यको अपना पुरो हत बनाना

( वयंवरपव) औ





१८३- पा डव क पंचालया ा और मागम ा ण से बातचीत १८४- पा डव का पदक राजधानीम जाकर कु हारके यहाँ रहना, वयंवरसभाका वणन तथा धृ ु नक घोषणा १८५- धृ ु नका ौपद को वयंवरम आये ए राजा का प रचय दे ना १८६- राजा का ल यवेधके लये उ ोग और असफल होना १८७- अजुनका ल यवेध करके ौपद को ा त करना १८८- पदको मारनेके लये उ त ए राजा का सामना करनेके लये भीम और अजुनका उ त होना और उनके वषयम भगवान् ीकृ णका बलरामजीसे वातालाप १८९- अजुन और भीमसेनके ारा कण तथा श यक पराजय और ौपद स हत भीमअजुनका अपने डेरेपर जाना १९०- कु ती, अजुन और यु ध रक बातचीत, पाँच पा डव का ौपद के साथ ववाहका वचार तथा बलराम और ीकृ णक पा डव से भट १९१- धृ ु नका गु त पसे वहाँका सब हाल दे खकर राजा पदके पास आना तथा ौपद के वषयम पदका

( वैवा हकपव) ११२- धृ ु नके ारा ौपद तथा पा डव का हाल सुनकर राजा पदका उनके पास पुरो हतको भेजना तथा पुरो हत और यु ध रक बातचीत १९३- पा डव और कु तीका पदके घरम जाकर स मा नत होना और राजा पद ारा पा डव के शील- वभावक परी ा १९४- पद और यु ध रक बातचीत तथा ासजीका आगमन १९५ासजीके सामने ौपद का पाँच पु ष से ववाह होनेके वषयम पद, धृ ु न और यु ध रका अपने-अपने वचार करना १९६ासजीका पदको पा डव तथा ौपद के पूवज मक कथा सुनाकर द दे ना और पदका उनके द प क झाँक करना १९७- ौपद का पाँच पा डव के साथ ववाह १९८- कु तीका ौपद को उपदे श और आशीवाद तथा भगवान् ीकृ णका पा डव के लये उपहार भेजना

( व रागमनरा यल भपव) १९९- पा डव के ववाहसे य धन आ दक च ता, धृतराका पा डव के दखावा और य धनक कुम णा २००- धृतरा और य धनक बातचीत, श ु को वशम करनेक े उपाय २०१- पा डव को परा मसे दबानेके लये कणक स म त २०२- भी मक य धनसे पा डव को आधा रा य दे नेक सलाह ो





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२०३- ोणाचायक पा डव को उपहार भेजने और बुलानेक स म त तथा कणके ारा उनक स म तका वरोध करनेपर ोणाचायक फटकार २०४- व रजीक स म त— ोण और भी मके वचन का ही समथन २०५- धृतराक आ ासे व रका पदके यहाँ जाना और पा डव को ह तनापुर भेजनेका ताव करना २०६- पा डव का ह तनापुरम आना और आधा रा य पाकर इ थ नगरका नमाण करना एवं भगवान् ीकृ ण और बलरामजीका ारकाके लये थान २०७- पा डव के यहाँ नारदजीका आगमन और उनम फूट न हो, इसके लये कुछ नयम बनानेके लये ेरणा करके सु द और उपसु दक कथाको ता वत करना २०८- सु द-उपसु दक तप या, ाजीके ारा उ ह वर ा त होना और दै य के यहाँ आन दो सव २०९- सु द और उपसु द ारा ू रतापूण कम से लोक पर वजय ा त करना २१०- तलो माक उ प , उसके पका आकषण तथा सु दोपसु दको मो हत करनेके लये उसका थान २११- तलो मापर मो हत होकर सु द-उपसु दका आपसम लड़ना और मारा जाना एवं तलो माको ाजी ारा वर ा त तथा पा डव का ौपद के वषयम नयमनधारण

( अजुनवनवासपव) २१२- अजुनके ारा ा णके गोधनक र ाके लये नयमभंग और वनक ओर थान २१३- अजुनका गंगा ारम ठहरना और वहाँ उनका उलूपीके साथ मलन २१४- अजुनका पूव दशाके तीथ म मण करते ए म णपूरम जाकर च ांगदाका पा ण हण करके उसके गभसे एक पु उ प करना २१५- अजुनके ारा वगा अ सराका ाहयो नसे उ ार तथा वगाक आ मकथाका आर भ २१६- वगाक ाथनासे अजुनका शेष चार अ सरा को भी शापमु करके म णपूर जाना और च ांगदासे मलकर गोकणतीथको थान करना २१७- अजुनका भासतीथम ीकृ णसे मलना और उ ह के साथ उनका रैवतक पवत एवं ारकापुरीम आना

( सुभ ाहरणपव) २१८- रैवतक पवतके उ सवम अजुनका सुभ ापर आस होना और ीकृ ण तथा यु ध रक अनुम तसे उसे हर ले जानेका न य करना २१९- यादव क यु के लये तैयारी और अजुनके त बलरामजीके ोधपूण उद्गार

(

)

( हरणाहरणपव) २२०- ारकाम अजुन और सुभ ाका ववाह, अजुनके इ थ प च ँ नेपर ीकृ ण आ दका दहेज लेकर वहाँ जाना, ौपद के पु एवं अ भम युके ज म, सं कार और श ा

( खा डवदाहपव) २२१- यु ध रके रा यक वशेषता, कृ ण और अजुनका खा डववनम जाना तथा उन दोन के पास ा णवेषधारी अ नदे वका आगमन २२२- अ नदे वका खा डववनको जलानेके लये ीकृ ण और अजुनसे सहायताक याचना करना, अ नदे व उस वनको य जलाना चाहते थे, इसे बतानेके संगम राजा ेत कक कथा २२३- अजुनका अ नक ाथना वीकार करके उनसे द धनुष एवं रथ आ द माँगना २२४- अ नदे वका अजुन और ीकृ णको द धनुष, अ य तरकस, द रथ और च आ द दान करना तथा उन दोन क सहायतासे खा डववनको जलाना २२५- खा डववनम जलते ए ा णय क दशा और इ के ारा जल बरसाकर आग बुझानेक चे ा २२६- दे वता आ दके साथ ीकृ ण और अजुनका यु

( मयदशनपव) २२७- दे वता क पराजय, खा डववनका वनाश और मयासुरक र ा २२८- शा कोपा यान—म दपाल मु नके ारा ज रता-शाकासे पु क उ प और उ ह बचानेके लये मु नका अ नदे वक तु त करना २२९- ज रताका अपने ब च क र ाके लये च तत होकर वलाप करना २३०- ज रता और उसके ब च का संवाद २३१- शा क के तवनसे स होकर अ नदे वका उ ह अभय दे ना २३२- म दपालका अपने बाल-ब च से मलना २३३- इ दे वका ीकृ ण और अजुनको वरदान तथा ीकृ ण, अजुन और मयासुरका अ नसे वदा लेकर एक साथ यमुनातटपर बैठना

( आ दपव स पूण)

(

सभापव )

( सभा

यापव)

१- भगवान् ीकृ णक आ ाके अनुसार मयासुर ारा सभाभवन बनानेक तैयारी २- ीकृ णक ारकाया ा ३- मयासुरका भीमसेन और अजुनको गदा और शंख लाकर दे ना तथा उसके ारा अ त सभाका नमाण ४- मय ारा नमत सभाभवनम धमराज यु ध रका वेश तथा सभाम थत मह षय और राजा आ दका वणन

( लोकपालसभा यानपव) ५६७८९१०१११२-

नारदजीका यु ध रक सभाम आगमन और के पम यु ध रको श ा दे ना यु ध रक द सभा के वषयम ज ासा इ सभाका वणन यमराजक सभाका वणन व णक सभाका वणन कुबेरक सभाका वणन ाजीक सभाका वणन राजा ह र का माहा य तथा यु ध रके त राजा पा डु का संदेश

( राजसूयार भपव) १३- यु ध रका राजसूय वषयक संक प और उसके वषयम भाइय , म य , मु नय तथा ीकृ णसे सलाह लेना १४- ीकृ णक राजसूयय के लये स म त १५- जरासंधके वषयम राजा यु ध र, भीम और ीकृ णक बातचीत १६- जरासंधको जीतनेके वषयम यु ध रके उ साहहीन होनेपर अजुनका उ साहपूण उद्गार १७- ीकृ णके ारा अजुनक बातका अनुमोदन तथा यु ध रको जरासंधक उ प का संग सुनाना १८- जरा रा सीका अपना प रचय दे ना और उसीके नामपर बालकका नामकरण होना १९- च डकौ शक मु नके ारा जरासंधका भ व यकथन तथा पताके ारा उसका रा या भषेक करके वनम जाना

( जरासंधवधपव) २०- यु ध रके अनुमोदन करनेपर ीकृ ण, अजुन और भीमसेनक मगध-या ा ी









२१-

ीकृ ण ारा मगधक राजधानीक शंसा, चै यक पवत शखर और नगाड़ को तोड़-फोड़कर तीन का नगर एवं राज-भवनम वेश तथा ीकृ ण और जरासंधका संवाद २२- जरासंध और ीकृ णका संवाद तथा जरासंधक यु के लये तैयारी एवं जरासंधका ीकृ णके साथ वैर होनेके कारणका वणन २३- जरासंधका भीमसेनके साथ यु करनेका न य, भीम और जरासंधका भयानक यु तथा जरासंधक थकावट २४- भीमके ारा जरासंधका वध, बंद राजा क मु , ीकृ ण आ दका भट लेकर इ थम आना और वहाँसे ीकृ णका ारका जाना

( द वजयपव) २५२६२७२८२९३०-

अजुन आ द चार भाइय क द वजयके लये या ा अजुनके ारा अनेक दे श , राजा तथा भगद क पराजय अजुनका अनेक पवतीय दे श पर वजय पाना क पु ष, हाटक तथा उ रकु पर वजय ा त करके अजुनका इ थ लौटना भीमसेनका पूव दशाको जीतनेके लये थान और व भ दे श पर वजय पाना भीमका पूव दशाके अनेक दे श तथा राजा को जीतकर भारी धन-स प के साथ इ थम लौटना ३१- सहदे वके ारा द ण दशाक वजय ३२- नकुलके ारा प म दशाक वजय

( राजसूयपव) ३३- यु ध रके शासनक वशेषता, ीकृ णक आ ासे यु ध रका राजसूयय क द ा लेना तथा राजा , ा ण एवं सगे-स ब धय को बुलानेके लये नम ण भेजना ३४- यु ध रके य म सब दे शके राजा , कौरव तथा यादव का आगमन और उन सबके भोजन- व ाम आ दक सु व था ३५- राजसूयय का वणन

( अघा भहरणपव) ३६- राजसूयय म ा ण तथा राजा का समागम, ीनारदजीके ारा ीकृ णम हमाका वणन और भी मजीक अनुम तसे ीकृ णक अ पूजा ३७- शशुपालके आ ेपपूण वचन ३८- यु ध रका शशुपालको समझाना और भी मजीका उसके आ ेप का उ र दे ना ३९- सहदे वक राजा को चुनौती तथा ु ध ए शशुपाल आ द नरेश का यु के लये उ त होना

(

)

( शशुपालवधपव) ४०४१४२४३४४-

यु ध रक च ता और भी मजीका उ ह सा वना दे ना शशुपाल ारा भी मक न दा शशुपालक बात पर भीमसेनका ोध और भी मजीका उ ह शा त करना भी मजीके ारा शशुपालके ज मके वृ ा तका वणन भी मक बात से चढ़े ए शशुपालका उ ह फटकारना तथा भी मका ीकृ णसे यु करनेके लये सम त राजा को चुनौती दे ना ४५- ीकृ णके ारा शशुपालका वध, राजसूयय क समा त तथा सभी ा ण , राजा और ीकृ णका वदे शगमन

(

ूतपव)

४६-

ासजीक भ व यवाणीसे यु ध रक च ता और सम वपूण बताव करनेक त ा ४७- य धनका मय नमत सभाभवनको दे खना और पग-पगपर मके कारण उपहासका पा बनना तथा यु ध रके वैभवको दे खकर उसका च तत होना ४८- पा डव पर वजय ा त करनेके लये शकु न और य धनक बातचीत ४९- धृतराक े पूछनेपर य धनका अपनी च ता बताना और ूतके लये धृतरासे अनुरोध करना एवं धृतराका व रको इ थ जानेका आदे श ५०- य धनका धृतराको अपने ःख और च ताका कारण बताना ५१- यु ध रको भटम मली ई व तु का य धन ारा वणन ५२- यु ध रको भटम मली ई व तु का य धन ारा वणन ५३- य धन ारा यु ध रके अ भषेकका वणन ५४- धृतराका य धनको समझाना ५५- य धनका धृतराको उकसाना ५६- धृतरा और य धनक बातचीत, ूत ड़ाके लये सभा नमाण और धृतराका यु ध रको बुलानेके लये व रको आ ा दे ना ५७- व र और धृतराक बातचीत ५८- व र और यु ध रक बातचीत तथा यु ध रका ह तनापुरम जाकर सबसे मलना ५९- जूएके अनौ च यके स ब धम यु ध र और शकु नका संवाद ६०- ूत ड़ाका आर भ ६१- जूएम शकु नके छलसे येक दाँवपर यु ध रक हार ६२- धृतराको व रक चेतावनी ६३- व रजीके ारा जूएका घोर वरोध ६४- य धनका व रको फटकारना और व रका उसे चेतावनी दे ना ौ

े ो ी

६५- यु ध रका धन, रा य, भाइय तथा ौपद -स हत अपनेको भी हारना ६६- व रका य धनको फटकारना ६७- ा तकामीके बुलानेसे न आनेपर ःशासनका सभाम ौपद को केश पकड़कर घसीटकर लाना एवं सभासद से ौपद का ६८- भीमसेनका ोध एवं अजुनका उ ह शा त करना, वकणक धमसंगत बातका कणके ारा वरोध, ौपद का चीरहरण एवं भगवान् ारा उसक ल जार ा तथा व रके ारा ादका उदाहरण दे कर सभासद को वरोधके लये े रत करना ६९- ौपद का चेतावनीयु वलाप एवं भी मका वचन ७०- य धनके छल-कपटयु वचन और भीमसेनका रोषपूण उद्गार ७१- कण और य धनके वचन, भीमसेनक त ा, व रक चेतावनी और ौपद को धृतरासे वर ा त ७२- श ु को मारनेके लये उ त ए भीमको यु ध रका शा त करना ७३- धृतराका यु ध रको सारा धन लौटाकर एवं समझा-बुझाकर इ थ जानेका आदे श दे ना

( अनु ूतपव) ७४-

य धनका धृतरा से अजुनक वीरता बतलाकर पुनः ूत ड़ाके लये पा डव को बुलानेका अनुरोध और उनक वीकृ त ७५- गा धारीक धृतराको चेतावनी और धृतराका अ वीकार करना ७६- सबके मना करनेपर भी धृतराक आ ासे यु ध रका पुनः जूआ खेलना और हारना ७७- ःशासन ारा पा डव का उपहास एवं भीम, अजुन, नकुल और सहदे वक श ु को मारनेके लये भीषण त ा ७८- यु ध रका धृतरा आ दसे वदा लेना, व रका कु तीको अपने यहाँ रखनेका ताव और पा डव को धमपूवक रहनेका उपदे श दे ना ७९- ौपद का कु तीसे वदा लेना तथा कु तीका वलाप एवं नगरके नर-ना रय का शोकातुर होना ८०- वनगमनके समय पा डव क चे ा और जाजन क शोकातुरताके वषयम धृतरा तथा व रका संवाद और शरणागत कौरव को ोणाचायका आ ासन ८१- धृतराक च ता और उनका संजयके साथ वातालाप

( सभापव स पूण)

च -सूची ( सादा) १२३४५६७८९१०१११२१३१४१५१६१७१८१९२०२१२२२३२४२५२६२७२८२९३०३१३२-



वाजीके ारा महाभारतक कथा के दशनसे सहपाद ऋ षक सपयो नसे मु भगवान् व णुने च से रा का सर काट दया ाजीने शेषजीको वरदान तथा पृ वी धारण करनेक आ ा द आ तीकने त कको अ नकु डम गरनेसे रोक दया शु ाचाय और कच यया तका पतन दे व त (भी म)-क भीषण त ा धमराज और अणीमा ड अणीमा ड ऋ ष शूलीपर शतशृंग पवतपर पा डु का तप बालक भीमके शरीरक चोटसे च ान टू ट गयी सुरंग ारा मातास हत पा डव का ला ागृहसे नकलना भीम अपने चार भाइय को तथा माताको उठाकर ले चले ह ड ब-वध भीमसेन और घटो कच पा डव क ासजीसे भट धृ ु नक घोषणा कु ती ारा ा ण-द प तको सा वना बकासुरपर भीमका हार व ा म क सेनापर न दनीका कोप पा डव, पद और ासजीम बातचीत ासजी ारा पा डव के पूवज मके वृ ा तका वणन सु द और उपसु दका अ याचार तलो माके लये सु द और उपसु दका यु सुभ ाका कु ती और ौपद क सेवाम उप थत होना ीकृ ण और अजुनका दे वता से यु अजुन और ीकृ णको इ का वरदान पा डव ारा दे व ष नारदका पूजन जरासंधके भवनम ीकृ ण, भीमसेन और अजुन भीमसेन और जरासंधका यु भी मका यु ध रको ीकृ णक म हमा बताना े





३३३४३५३६३७३८३९४०-

शशुपालका यु के लये उ ोग भू मका भगवान्को अ द तके कु डल दे ना शशुपालके वधके लये भगवान्का हाथम च य धनका थलके मसे जलम गरना ूत- डाम यु ध रसे पराजय ःशासनका ौपद के केश पकड़कर ख चना ौपद -चीर-हरण गा धारीका धृतराको समझाना

हण करना

।। ीह रः ।। * ीगणेशाय नमः * ।। ीवेद ासाय नमः ।।

ीमहाभारतम् आ दपव अनु म णकापव थमोऽ यायः थका उप म, थम कहे ए अ धकांश वषय क सं त सूची तथा इसके पाठ क म हमा नारायणं नम कृ य नरं चैव नरो मम् । दे व सर वत ासं ततो जयमुद रयेत् ।। ‘बद रका म नवासी स ऋ ष ीनारायण तथा ीनर (अ तयामी नारायण व प भगवान् ीकृ ण, उनके न यसखा नर व प नर े अजुन), उनक लीला कट करनेवाली भगवती सर वती और उसके व ा मह ष वेद ासको नम कार कर (आसुरी स प य का नाश करके अ तःकरणपर दै वी स प य को वजय ा त करानेवाले) जय१ (महाभारत एवं अ य इ तहास-पुराणा द)-का पाठ करना चा हये।’२ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय। ॐ नमः पतामहाय। ॐ नमः जाप त यः। ॐ नमः कृ ण ै पायनाय। ॐ नमः सव व न वनायके यः। ॐकार व प भगवान् वासुदेवको नम कार है। ॐकार व प भगवान् पतामहको नम कार है। ॐकार व प जाप तय को नम कार है। ॐकार व प ीकृ ण ै पायनको नम कार है। ॐकार व प सव- व न वनाशक वनायक को नम कार है। लोमहषणपु उ वाः सौ तः पौरा णको नै मषार ये शौनक य कुलपते ादशवा षके स े ।। १ ।। सुखासीनान यग छद् ष न् सं शत तान् । वनयावनतो भू वा कदा चत् सूतन दनः ।। २ ।।

एक समयक बात है, नै मषार यम३ कुलप त४ मह ष शौनकके बारह वष तक चालू रहनेवाले स म५ जब उ म एवं कठोर चया द त का पालन करनेवाले षगण अवकाशके समय सुखपूवक बैठे थे, सूतकुलको आन दत करनेवाले लोमहषणपु उ वा सौ त वयं कौतूहलवश उन षय के समीप बड़े वनीतभावसे आये। वे पुराण के व ान् और कथावाचक थे ।। १-२ ।। तमा ममनु ा तं नै मषार यवा सनाम् । च ाः ोतुं कथा त प रव ु तप वनः ।। ३ ।। उस समय नै मषार यवा सय के आ मम पधारे ए उन उ वाजीको, उनसे च व च कथाएँ सुननेके लये, सब तप वय ने वह घेर लया ।। ३ ।। अ भवा मुन तां तु सवानेव कृता लः । अपृ छत् स तपोवृ स ैवा भपू जतः ।। ४ ।। उ वाजीने पहले हाथ जोड़कर उन सभी मु नय को अ भवादन कया और ‘आपलोग क तप या सुखपूवक बढ़ रही है न?’ इस कार कुशलकया। उन स पु ष ने भी उ वाजीका भलीभाँ त वागत-स कार कया ।। ४ ।। अथ तेषूप व ेषु सव वेव तप वषु । न द मासनं भेजे वनया लौमहष णः ।। ५ ।। इसके अन तर जब वे सभी तप वी अपने-अपने आसनपर वराजमान हो गये, तब लोमहषणपु उ वाजीने भी उनके बताये ए आसनको वनयपूवक हण कया ।। सुखासीनं तत तं तु व ा तमुपल य च । अथापृ छ ष त क त् तावयन् कथाः ।। ६ ।। त प ात् यह दे खकर क उ वाजी थकावटसे र हत होकर आरामसे बैठे ए ह, कसी मह षने बातचीतका संग उप थत करते ए यह पूछा— ।। ६ ।। कुत आग यते सौते व चायं व त वया । कालः कमलप ा शंसैतत् पृ छतो मम ।। ७ ।। कमलनयन सूतकुमार! आपका शुभागमन कहाँसे हो रहा है? अबतक आपने कहाँ आन दपूवक समय बताया है? मेरे इस का उ र द जये ।। ७ ।। एवं पृ ोऽ वीत् स यग् यथाव लौमहष णः । वा यं वचनस प तेषां च च रता यम् ।। ८ ।। त मन् सद स व तीण मुनीनां भा वता मनाम् । उ वाजी एक कुशल व ा थे। इस कार कये जानेपर वे शु अ तःकरणवाले मु नय क उस वशाल सभाम ऋ षय तथा राजा से स ब ध रखनेवाली उ म एवं यथाथ कथा कहने लगे ।। ८ ।। सौ त वाच जनमेजय य राजषः सपस े महा मनः ।। ९ ।। ी े



समीपे पा थवे य स यक् पा र त य च । कृ ण ै पायन ो ाः सुपु या व वधाः कथाः ।। १० ।। क थता ा प व धवद् या वैश पायनेन वै । ु वाहं ता व च ाथा महाभारतसं ताः ।। ११ ।। उ वाजीने कहा—मह षयो! च वत साट ् महा मा राज ष परी त्-न दन जनमेजयके सपय म उ ह के पास वैश पायनने ीकृ ण ै पायन ासजीके ारा नमत परम पु यमयी च - व च अथसे यु महाभारतक जो व वध कथाएँ व धपूवक कही ह, उ ह सुनकर म आ रहा ँ ।। ९—११ ।। ब न स प र य तीथा यायतना न च । सम तप चकं नाम पु यं ज नषे वतम् ।। १२ ।। गतवान म तं दे शं यु ं य ाभवत् पुरा । कु णां पा डवानां च सवषां च मही ताम् ।। १३ ।। म ब त-से तीथ एवं धाम क या ा करता आ ा ण के ारा से वत उस परम पु यमय सम तपंचक े कु े दे शम गया, जहाँ पहले कौरव-पा डव एवं अ य सब राजा का यु आ था ।। १२-१३ ।। द ुरागत त मात् समीपं भवता मह । आयु म तः सव एव भूता ह मे मताः । अ मन् य े महाभागाः सूयपावकवचसः ।। १४ ।। वह से आपलोग के दशनक इ छा लेकर म यहाँ आपके पास आया ँ। मेरी यह मा यता है क आप सभी द घायु एवं व प ह। ा णो! इस य म स म लत आप सभी महा मा बड़े भा यशाली तथा सूय और अ नके समान तेज वी ह ।। १४ ।। कृता भषेकाः शुचयः कृतज या ता नयः । भव त आसने व था वी म कमहं जाः ।। १५ ।। पुराणसं हताः पु याः कथा धमाथसं ताः । इ त वृ ं नरे ाणामृषीणां च महा मनाम् ।। १६ ।। इस समय आप सभी नान, सं या-व दन, जप और अ नहो आ द करके शु हो अपने-अपने आसनपर व थ च से वराजमान ह। आ ा क जये, म आपलोग को या सुनाऊँ? या म आपलोग को धम और अथके गूढ़ रह यसे यु , अ तःकरणको शु करनेवाली भ - भ पुराण क कथा सुनाऊँ अथवा उदारच रत महानुभाव ऋ षय एवं साट क े प व इ तहास? ।। १५-१६ ।। ऋषय ऊचुः ै पायनेन यत् ो ं पुराणं परम षणा । सुरै ष भ ैव ु वा यद भपू जतम् ।। १७ ।। त या यानव र य व च पदपवणः । सू माथ याययु य वेदाथभू षत य च ।। १८ ।। े

भारत ये तहास य पु यां थाथसंयुताम् । सं कारोपगतां ा नानाशा ोपबृं हताम् ।। १९ ।। जनमेजय य यां रा ो वैश पायन उ वान् । यथावत् स ऋ ष तु ा स े ै पायना या ।। २० ।। वेदै तु भः संयु ां ास या तकमणः । सं हतां ोतु म छामः पु यां पापभयापहाम् ।। २१ ।। ऋ षय ने कहा—उ वाजी! परम ष ीकृ ण- ै पायनने जस ाचीन इ तहास प पुराणका वणन कया है और दे वता तथा ऋ षय ने अपने-अपने लोकम वण करके जसक भू र-भू र शंसा क है, जो आ यान म सव े है, जसका एक-एक पद, वा य एवं पव व च श द व यास और रमणीय अथसे प रपूण है, जसम आ मा-परमा माके सू म व पका नणय एवं उनके अनुभवके लये अनुकूल यु याँ भरी ई ह और जो स पूण वेद के ता पयानुकूल अथसे अलंकृत है, उस भारत-इ तहासक परम पु यमयी, थके गु त भाव को प करनेवाली, पद -वा य क ु प से यु , सब शा के अ भ ायके अनुकूल और उनसे सम थत जो अद्भुतकमा ासक सं हता है, उसे हम सुनना चाहते ह। अव य ही वह चार वेद के अथ से भरी ई तथा पु य व पा है। पाप और भयका नाश करनेवाली है। भगवान् वेद ासक आ ासे राजा जनमेजयके य म स ऋ ष वैश पायनने आन दम भरकर भलीभाँ त इसका न पण कया है ।। १७— २१ ।। सौ त वाच आ ं पु षमीशानं पु तं पु ु तम् । ऋतमेका रं ा ं सनातनम् ।। २२ ।। अस च सदस चैव यद् व ं सदस परम् । परावराणां ारं पुराणं परम यम् ।। २३ ।। म यं म लं व णुं वरे यमनघं शु चम् । नम कृ य षीकेशं चराचरगु ं ह रम् ।। २४ ।। महषः पू जत येह सवलोकैमहा मनः । व या म मतं पु यं ास या तकमणः ।। २५ ।। उ वाजीने कहा—जो सबका आ द कारण, अ तयामी और नय ता है, य म जसका आवाहन और जसके उद्दे यसे हवन कया जाता है, जसक अनेक पु ष ारा अनेक नाम से तु त क गयी है, जो ऋत (स य व प), एका र ( णव एवं एकमा अ वनाशी और सव ापी परमा मा), ा (साकार- नराकार)- व प एवं सनातन है, असत्-सत् एवं उभय पसे जो वयं वराजमान है; फर भी जसका वा त वक व प सत्-असत् दोन से वल ण है, यह व जससे अ भ है, जो स पूण परावर ( थूलसू म) जगत्का ा, पुराणपु ष, सव कृ परमे र एवं वृ - य आ द वकार से र हत है, जसे पाप कभी छू नह सकता, जो सहज शु है, वह ही मंगलकारी एवं मंगलमय ै

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व णु है। उ ह चराचरगु षीकेश (मन-इ य के ेरक) ीह रको नम कार करके सवलोकपू जत अद्भुतकमा महा मा मह ष ासदे वके इस अ तःकरणशोधक मतका म वणन क ँ गा ।। २२—२५ ।। आच युः कवयः के चत् स याच ते परे । आ या य त तथैवा ये इ तहास ममं भु व ।। २६ ।। पृ वीपर इस इ तहासका अनेक क वय ने वणन कया है और इस समय भी ब त-से वणन करते ह। इसी कार अ य क व आगे भी इसका वणन करते रहगे ।। २६ ।। इदं तु षु लोकेषु मह ानं त तम् । व तरै समासै धायते यद् जा त भः ।। २७ ।। इस महाभारतक तीन लोक म एक महान् ानके पम त ा है। ा णा द जा त सं ेप और व तार दोन ही प म अ ययन और अ यापनक पर पराके ारा इसे अपने दयम धारण करते ह ।। २७ ।। अलंकृतं शुभैः श दै ः समयै द मानुषैः । छ दोवृ ै व वधैर वतं व षां यम् ।। २८ ।। यह शुभ (ल लत एवं मंगलमय) श द व याससे अलंकृत है तथा वै दक-लौ कक या सं कृत- ाकृत संकेत से सुशो भत है। अनु ु प्, इ वा आ द नाना कारके छ द भी इसम यु ए ह; अतः यह थ व ान को ब त ही य है ।। २८ ।। (पु ये हमवतः पाद े म ये ग रगुहालये । वशो य दे हं धमा मा दभसं तरमा तः ।। शु चः स नयमो ासः शा ता मा तप स थतः । भारत ये तहास य धमणा वी य तां ग तम् ।। व य योगं ानेन सोऽप यत् सवम ततः ।) हमालयक प व तलहट म पवतीय गुफाके भीतर धमा मा ासजी नाना दसे शरीर-शु करके प व हो कुशका आसन बछाकर बैठे थे। उस समय नयमपालनपूवक शा त च हो वे तप याम संल न थे। यानयोगम थत हो उ ह ने धमपूवक महाभारतइ तहासके व पका वचार करके ान ारा आ दसे अ ततक सब कुछ य क भाँ त दे खा (और इस थका नमाण कया)। न भेऽ मन् नरालोके सवत तमसावृते । बृहद डमभूदेकं जानां बीजम यम् ।। २९ ।। सृ के ार भम जब यहाँ व तु वशेष या नाम प आ दका भान नह होता था, काशका कह नाम नह था, सव अ धकार-ही-अ धकार छा रहा था, उस समय एक ब त बड़ा अ ड कट आ, जो स पूण जा का अ वनाशी बीज था ।। २९ ।। युग यादौ न म ं त महद् द ं च ते । य मन् सं ूयते स यं यो त सनातनम् ।। ३० ।। क पके आ दम उसी महान् एवं द अ डको चार कारके ा णसमुदायका कारण कहा जाता है। जसम स य व प यो तमय सनातन अ तयामी पसे व

आ है, ऐसा ु त वणन करती है१ ।। ३० ।। अ तं चा य च यं च सव समतां गतम् । अ ं कारणं सू मं य त् सदसदा मकम् ।। ३१ ।। वह अद्भुत, अ च य, सव समान पसे ा त, अ , सू म, कारण व प एवं अ नवचनीय है और जो कुछ सत्-असत् पम उपल ध होता है, सब वही है ।। ३१ ।। य मात् पतामहो ज े भुरेकः जाप तः । ा सुरगु ः थाणुमनुः कः परमे थ ।। ३२ ।। ाचेतस तथा द ो द पु ा स त वै । ततः जानां पतयः ाभव ेक वश तः ।। ३३ ।। उस अ डसे ही थम दे हधारी, जापालक भु, दे वगु पतामह ा तथा , मनु, जाप त, परमे ी, चेता के पु , द तथा द के सात पु ( ोध, तम, दम, व त, अं गरा, कदम और अ ) कट ए। त प ात् इ क स जाप त (मरी च आ द सात ऋ ष और चौदह मनु)२ पैदा ए ।। ३२-३३ ।। पु ष ा मेया मा यं सव ऋषयो व ः । व ेदेवा तथा द या वसवोऽथा नाव प ।। ३४ ।। ज ह म य-कूम आ द अवतार के पम सभी ऋ ष-मु न जानते ह, वे अ मेया मा व णु प पु ष और उनक वभू त प व ेदेव, आ द य, वसु एवं अ नीकुमार आ द भी मशः कट ए ह ।। ३४ ।। य ाः सा याः पशाचा गु काः पतर तथा । ततः सूता व ांसः श ा षस माः ।। ३५ ।। तदन तर य , सा य, पशाच, गु क और पतर एवं त व ानी सदाचारपरायण साधु शरोम ण षगण कट ए ।। ३५ ।। राजषय बहवः सव समु दता गुणैः । आपो ौः पृ थवी वायुर त र ं दश तथा ।। ३६ ।। इसी कार ब त-से राज षय का ा भाव आ है, जो सब-के-सब शौया द सद्गुण से स प थे। मशः उसी ा डसे जल, ुलोक, पृ वी, वायु, अ त र और दशाएँ भी कट ई ह ।। ३६ ।। संव सरतवो मासाः प ाहोरा यः मात् । य चा यद प तत् सव स भूतं लोकसा कम् ।। ३७ ।। संव सर, ऋतु, मास, प , दन तथा रा का ाक भी मशः उसीसे आ है। इसके सवा और भी जो कुछ लोकम दे खा या सुना जाता है, वह सब उसी अ डसे उ प आ है ।। ३७ ।। य ददं यते क चद् भूतं थावरज मम् । पुनः सं यते सव जगत् ा ते युग ये ।। ३८ ।। ो











यह जो कुछ भी थावर-जंगम जगत् गोचर होता है, वह सब लयकाल आनेपर अपने कारणम वलीन हो जाता है ।। ३८ ।। यथतावृतु ल ा न नाना पा ण पयये । य ते ता न ता येव तथा भावा युगा दषु ।। ३९ ।। जैसे ऋतुके आनेपर उसके फल-पु प आ द नाना कारके च कट होते ह और ऋतु बीत जानेपर वे सब समा त हो जाते ह उसी कार क पका आर भ होनेपर पूववत् वे-वे पदाथ गोचर होने लगते ह और क पके अ तम उनका लय हो जाता है ।। ३९ ।। एवमेतदना तं भूतसंहारकारकम् । अना द नधनं लोके च ं स प रवतते ।। ४० ।। इस कार यह अना द और अन त काल-च लोकम वाह पसे न य घूमता रहता है। इसीम ा णय क उ प और संहार आ करते ह। इसका कभी उ व और वनाश नह होता ।। ४० ।। य ंश सह ा ण य ंश छता न च । य ंश च दे वानां सृ ः सं ेपल णा ।। ४१ ।। दे वता क सृ सं ेपसे ततीस हजार, ततीस सौ और ततीस ल त होती है ।। ४१ ।। दवःपु ो बृह ानु ुरा मा वभावसुः । स वता स ऋचीकोऽक भानुराशावहो र वः ।। ४२ ।। पुरा वव वतः सव म तेषां तथावरः । दे व ाट् तनय त य सुभा ड त ततः मृतः ।। ४३ ।। पूवकालम दवःपु , बृहत्, भानु, च ु, आ मा, वभावसु, स वता, ऋचीक, अक, भानु, आशावह तथा र व—ये सब श द वव वान्के बोधक माने गये ह, इन सबम जो अ तम ‘र व’ ह वे ‘म ’ (मही—पृ वीम गभ थापन करनेवाले एवं पू य) माने गये ह। इनके तनय दे व ाट् ह और दे व ाट् के तनय सु ाट् माने गये ह ।। ४२-४३ ।। सु ाज तु यः पु ाः जाव तो ब ुताः । दश यो तः शत यो तः सह यो तरेव च ।। ४४ ।। सु ाट् के तीन पु ए, वे सब-के-सब संतानवान् और ब ुत (अनेक शा के) ाता ह। उनके नाम इस कार ह—दश यो त, शत यो त तथा सह यो त ।। ४४ ।। दशपु सह ा ण दश योतेमहा मनः । ततो दशगुणा ा ये शत योते रहा मजाः ।। ४५ ।। महा मा दश यो तके दस हजार पु ए। उनसे भी दस गुने अथात् एक लाख पु यहाँ शत यो तके ए ।। ४५ ।। भूय ततो दशगुणाः सह यो तषः सुताः । ते योऽयं कु वंश य नां भरत य च ।। ४६ ।। ययाती वाकुवंश राजष णां च सवशः । स भूता बहवो वंशा भूतसगाः सु व तराः ।। ४७ ।। े ी े ो े े

फर उनसे भी दस गुने अथात् दस लाख पु सह यो तके ए। उ ह से यह कु वंश, य वंश, भरतवंश, यया त और इ वाकुके वंश तथा अ य राज षय के सब वंश चले। ा णय क सृ पर परा और ब त-से वंश भी इ ह से कट हो व तारको ा त ए ह ।। ४६-४७ ।। भूत थाना न सवा ण रह यं वधं च यत् । वेदा योगः स व ानो धम ऽथः काम एव च ।। ४८ ।। धमकामाथयु ा न शा ा ण व वधा न च । लोकया ा वधानं च सव तद् वानृ षः ।। ४९ ।। भगवान् वेद ासने, अपनी ान से स पूण ा णय के नवास थान, धम, अथ और कामके भेदसे वध रह य, कम पासना ान प वेद, व ानस हत योग, धम, अथ एवं काम, इन धम, काम और अथ प तीन पु षाथ के तपादन करनेवाले व वध शा , लोक वहारक स के लये आयुवद, धनुवद, थाप यवेद, गा धववेद आ द लौ कक शा सब उ ह दश यो त आ दसे ए ह—इस त वको और उनके व पको भलीभाँ त अनुभव कया ।। ४८-४९ ।। इ तहासाः सवैया या व वधाः ुतयोऽ प च । इह सवमनु ा तमु ं थ य ल णम् ।। ५० ।। उ ह ने ही इस महाभारत थम, ा याके साथ उस सब इ तहासका तथा व वध कारक ु तय के रह य आ दका पूण पसे न पण कया है और इस पूणताको ही इस थका ल ण बताया गया है ।। ५० ।। व तीयत मह ानमृ षः सं य चा वीत् । इ ं ह व षां लोके समास ासधारणम् ।। ५१ ।। मह षने इस महान् ानका सं ेप और व तार दोन ही कारसे वणन कया है; य क संसारम व ान् पु ष सं ेप और व तार दोन ही री तय को पसंद करते ह ।। ५१ ।। म वा द भारतं के चदा तीका द तथा परे । तथोप रचरा ये व ाः स यगधीयते ।। ५२ ।। कोई-कोई इस थका आर भ ‘नारायणं नम कृ य’-से मानते ह और कोई-कोई आ तीकपवसे। सरे व ान् ा ण उप रचर वसुक कथासे इसका व धपूवक पाठ ार भ करते ह ।। ५२ ।। व वधं सं हता ानं द पय त मनी षणः । ा यातुं कुशलाः के चद् थान् धार यतुं परे ।। ५३ ।। व ान् पु ष इस भारतसं हताके ानको व वध कारसे का शत करते ह। कोईकोई थक ा या करके समझानेम कुशल होते ह तो सरे व ान् अपनी ती ण मेधाश के ारा इन थ को धारण करते ह ।। ५३ ।। तपसा चयण य वेदं सनातनम् । इ तहास ममं च े पु यं स यवतीसुतः ।। ५४ ।। ी े ी े े

स यवतीन दन भगवान् ासने अपनी तप या एवं चयक श से सनातन वेदका व तार करके इस लोकपावन प व इ तहासका नमाण कया है ।। ५४ ।। पराशरा मजो व ान् षः सं शत तः । तदा यानव र ं स कृ वा ै पायनः भुः ।। ५५ ।। कथम यापयानीह श या य व च तयत् । त य त च ततं ा वा ऋषे पायन य च ।। ५६ ।। त ाजगाम भगवान् ा लोकगु ः वयम् । ी यथ त य चैवषल कानां हतका यया ।। ५७ ।। श त तधारी, न हानु ह-समथ, सव पराशरन दन ष ीकृ ण ै पायन इस इ तहास शरोम ण महाभारतक रचना करके यह वचार करने लगे क अब श य को इस थका अ ययन कैसे कराऊँ? जनताम इसका चार कैसे हो? ै पायन ऋ षका यह वचार जानकर लोकगु भगवान् ा उन महा माक स ता तथा लोकक याणक कामनासे वयं ही ासजीके आ मपर पधारे ।। ५५—५७ ।। तं ् वा व मतो भू वा ा लः णतः थतः । आसनं क पयामास सवमु नगणैवृतः ।। ५८ ।। ासजी ाजीको दे खकर आ यच कत रह गये। उ ह ने हाथ जोड़कर णाम कया और खड़े रहे। फर सावधान होकर सब ऋ ष-मु नय के साथ उ ह ने ाजीके लये आसनक व था क ।। ५८ ।। हर यगभमासीनं त मं तु परमासने । प रवृ यासना याशे वासवेयः थतोऽभवत् ।। ५९ ।। जब उस े आसनपर ाजी वराज गये, तब ासजीने उनक प र मा क और ाजीके आसनके समीप ही वनयपूवक खड़े हो गये ।। ५९ ।। अनु ातोऽथ कृ ण तु णा परमे ना । नषसादासना याशे ीयमाणः शु च मतः ।। ६० ।। परमे ी ाजीक आ ासे वे उनके आसनके पास ही बैठ गये। उस समय ासजीके दयम आन दका समु उमड़ रहा था और मुखपर म द-म द प व मुसकान लहरा रही थी ।। ६० ।। उवाच स महातेजा ाणं परमे नम् । कृतं मयेदं भगवन् का ं परमपू जतम् ।। ६१ ।। परम तेज वी ासजीने परमे ी ाजीसे नवेदन कया—‘भगवन्! मने यह स पूण लोक से अ य त पू जत एक महाका क रचना क है’ ।। ६१ ।। न् वेदरह यं च य चा यत् था पतं मया । सा ोप नषदां चैव वेदानां व तर या ।। ६२ ।। न्! मने इस महाका म स पूण वेद का गु ततम रह य तथा अ य सब शा का सार-सार संक लत करके था पत कर दया है। केवल वेद का ही नह , उनके अंग एवं उप नषद का भी इसम व तारसे न पण कया है ।। ६२ ।। े

इ तहासपुराणानामु मेषं न मतं च यत् । भूतं भ ं भ व यं च वधं कालसं तम् ।। ६३ ।। इस थम इ तहास और पुराण का म थन करके उनका श त प कट कया गया है। भूत, वतमान और भ व यकालक इन तीन सं ा का भी वणन आ है ।। ६३ ।। जरामृ युभय ा धभावाभाव व न यः । व वध य च धम य ा माणां च ल णम् ।। ६४ ।। इस थम बुढ़ापा, मृ यु, भय, रोग और पदाथ के स य व और म या वका वशेष पसे न य कया गया है तथा अ धकारी-भेदसे भ - भ कारके धम एवं आ म का भी ल ण बताया गया है ।। ६४ ।। चातुव य वधानं च पुराणानां च कृ नशः । तपसो चय य पृ थ ा सूययोः ।। ६५ ।। हन ताराणां माणं च युगैः सह । ऋचो यजूं ष सामा न वेदा या मं तथैव च ।। ६६ ।। ा ण, य, वै य और शू —इन चार वण के कत का वधान, पुराण का स पूण मूलत व भी कट आ है। तप या एवं चयके व प, अनु ान एवं फल का ववरण, पृ वी, च मा, सूय, ह, न , तारा, स ययुग, ेता, ापर, क लयुग—इन सबके प रमाण और माण, ऋ वेद, यजुवद, सामवेद और इनके आ या मक अ भ ाय और अ या मशा का इस थम व तारसे वणन कया गया है ।। ६५-६६ ।। याय श ा च क सा च दानं पाशुपतं तथा । हेतुनैव समं ज म द मानुषसं तम् ।। ६७ ।। याय, श ा, च क सा, दान तथा पाशुपत (अ तयामीक म हमा)-का भी इसम वशद न पण है। साथ ही यह भी बतलाया गया है क दे वता, मनु य आ द भ - भ यो नय म ज मका कारण या है? ।। ६७ ।। तीथानां चैव पु यानां दे शानां चैव क तनम् । नद नां पवतानां च वनानां सागर य च ।। ६८ ।। लोकपावन तीथ , दे श , न दय , पवत , वन और समु का भी इसम वणन कया गया है ।। ६८ ।। पुराणां चैव द ानां क पानां यु कौशलम् । वा यजा त वशेषा लोकया ा म यः ।। ६९ ।। य चा प सवगं व तु त चैव तपा दतम् । परं न लेखकः क दे त य भु व व ते ।। ७० ।। द नगर एवं ग के नमाणका कौशल तथा यु क नपुणताका भी वणन है। भ भ भाषा और जा तय क जो वशेषताएँ ह, लोक वहारक स के लये जो कुछ आव यक है तथा और भी जतने लोकोपयोगी पदाथ हो सकते ह, उन सबका इसम तपादन कया गया है; परंतु मुझे इस बातक च ता है क पृ वीम इस थको लख सके ऐसा कोई नह है’ ।। ६९-७० ।। ो

ोवाच तपो व श ाद प वै व श ा मु नसंचयात् । म ये े तरं वां वै रह य ानवेदनात् ।। ७१ ।। ाजीने कहा— ासजी! संसारम व श तप या और व श कुलके कारण जतने भी े ऋ ष-मु न ह, उनम म तु ह सव े समझता ँ; य क तुम जगत्, जीव और ई र-त वका जो ान है, उसके ाता हो ।। ७१ ।। ज म भृ त स यां ते वे गां वा दनीम् । वया च का म यु ं त मात् का ं भ व य त ।। ७२ ।। म जानता ँ क आजीवन तु हारी वा दनी वाणी स य भाषण करती रही है और तुमने अपनी रचनाको का कहा है, इस लये अब यह का के नामसे ही स होगी ।। ७२ ।। अ य का य कवयो न समथा वशेषणे । वशेषणे गृह थ य शेषा य इवा माः ।। ७३ ।। का य लेखनाथाय गणेशः मयतां मुने । संसारके बड़े-से-बड़े क व भी इस का से बढ़कर कोई रचना नह कर सकगे। ठ क वैसे ही, जैसे चय, वान थ और सं यास तीन आ म अपनी वशेषता ारा गृह था मसे आगे नह बढ़ सकते। मु नवर! अपने का को लखवानेके लये तुम गणेशजीका मरण करो ।। ७३ ।। सौ त वाच एवमाभा य तं ा जगाम वं नवेशनम् ।। ७४ ।। उ वाजी कहते ह—महा माओ! ाजी ासजीसे इस कार स भाषण करके अपने धाम लोकम चले गये ।। ७४ ।। ततः स मार हेर बं ासः स यवतीसुतः । मृतमा ो गणेशानो भ च ततपूरकः ।। ७५ ।। त ाजगाम व नेशो वेद ासो यतः थतः । पू जत ोप व ासेनो तदाऽनघ ।। ७६ ।। न पाप शौनक! तदन तर स यवतीन दन ासजीने भगवान् गणेशका मरण कया और मरण करते ही भ वांछाक पत व ने र ीगणेशजी महाराज वहाँ आये, जहाँ ासजी व मान थे। ासजीने गणेशजीका बड़े आदर और ेमसे वागत-स कार कया और वे जब बैठ गये, तब उनसे कहा— ।। ७५-७६ ।। लेखको भारत या य भव वं गणनायक । मयैव ो यमान य मनसा क पत य च ।। ७७ ।। ‘गणनायक! आप मेरे ारा नमत इस महाभारत- थके लेखक बन जाइये; म बोलकर लखाता जाऊँगा। मने मन-ही-मन इसक रचना कर ली है’ ।। ७७ ।। ु वैतत् ाह व नेशो य द मे लेखनी णम् । ो े े ो

लखतो नाव त ेत तदा यां लेखको हम् ।। ७८ ।। यह सुनकर व नराज ीगणेशजीने कहा—‘ ासजी! य द लखते समय णभरके लये भी मेरी लेखनी न के तो म इस थका लेखक बन सकता ँ’ ।। ७८ ।। ासोऽ युवाच तं दे वमबुद ् वा मा लख व चत् । ओ म यु वा गणेशोऽ प बभूव कल लेखकः ।। ७९ ।। ासजीने भी गणेशजीसे कहा—‘ बना समझे कसी भी संगम एक अ र भी न लखयेगा।’ गणेशजीने ‘ॐ’ कहकर वीकार कया और लेखक बन गये ।। ७९ ।। थ थं तदा च े मु नगूढं कुतूहलात् । य मन् त या ाह मु न पायन वदम् ।। ८० ।। तब ासजी भी कुतूहलवश थम गाँठ लगाने लगे। वे ऐसे-ऐसे ोक बोल दे ते जनका अथ बाहरसे सरा मालूम पड़ता और भीतर कुछ और होता। इसके स ब धम त ापूवक ीकृ ण ै पायन मु नने यह बात कही है— ।। ८० ।। अ ौ ोकसह ा ण अ ौ ोकशता न च । अहं वे शुको वे संजयो वे वा न वा ।। ८१ ।। इस थम ८,८०० (आठ हजार आठ सौ) ोक ऐसे ह, जनका अथ म समझता ँ, शुकदे व समझते ह और संजय समझते ह या नह , इसम संदेह है ।। ८१ ।। त छ् लोककूटम ा प थतं सु ढं मुने । भे ुं न श यतेऽथ य गूढ वात् त य च ।। ८२ ।। मु नवर! वे कूट ोक इतने गुँथे ए और ग भीराथक ह क आज भी उनका रह यभेदन नह कया जा सकता; य क उनका अथ भी गूढ़ है और श द भी योगवृ और ढवृ आ द रचनावै चयक े कारण ग भीर ह ।। ८२ ।। सव ोऽ प गणेशो यत् णमा ते वचारयन् । ताव चकार ासोऽ प ोकान यान् बन प ।। ८३ ।। वयं सव गणेशजी भी उन ोक का वचार करते समय णभरके लये ठहर जाते थे। इतने समयम ासजी भी और ब त-से ोक क रचना कर लेते थे ।। ८३ ।। अ ान त मरा ध य लोक य तु वचे तः । ाना नशलाका भन ो मीलनकारकम् ।। ८४ ।। धमाथकाममो ाथः समास ासक तनैः । तथा भारतसूयण नृणां व नहतं तमः ।। ८५ ।। संसारी जीव अ ाना धकारसे अंधे होकर छटपटा रहे ह। यह महाभारत ानांजनक शलाका लगाकर उनक आँख खोल दे ता है। वह शलाका या है? धम, अथ, काम और मो प पु षाथ का सं ेप और व तारसे वणन। यह न केवल अ ानक रत धी र करता, युत सूयके समान उ दत होकर मनु य क आँखके सामनेका स पूण अ धकार ही न कर दे ता है ।। ८४-८५ ।। पुराणपूणच े ण ु त यो नाः का शताः । नृबु कैरवाणां च कृतमेतत् काशनम् ।। ८६ ।। े ै े ँ ी ी ैऔ

यह भारत-पुराण पूण च माके समान है, जससे ु तय क चाँदनी छटकती है और मनु य क बु पी कुमु दनी सदाके लये खल जाती है ।। ८६ ।। इ तहास द पेन मोहावरणघा तना । लोकगभगृहं कृ नं यथावत् स का शतम् ।। ८७ ।। यह भारत-इ तहास एक जा व यमान द पक है। यह मोहका अ धकार मटाकर लोग के अ तःकरण- प स पूण अ तरंग गृहको भलीभाँ त ानालोकसे का शत कर दे ता है ।। ८७ ।। सं हा यायबीजो वै पौलोमा तीकमूलवान् । स भव क ध व तारः सभार य वटङ् कवान् ।। ८८ ।। महाभारत-वृ का बीज है सं हा याय और जड़ है पौलोम एवं आ तीकपव। स भवपव इसके क धका व तार है और सभा तथा अर यपव प य के रहनेयो य कोटर ह ।। ८८ ।। अरणीपव पाो वराटो ोगसारवान् । भी मपवमहाशाखो ोणपवपलाशवान् ।। ८९ ।। अरणीपव इस वृ का थ थल है। वराट और उ ोगपव इसका सारभाग है। भी मपव इसक बड़ी शाखा है और ोणपव इसके प े ह ।। ८९ ।। कणपव सतैः पु पैः श यपवसुग ध भः । ीपवषीक व ामः शा तपवमहाफलः ।। ९० ।। कणपव इसके ेत पु प ह और श यपव सुग ध। ीपव और ऐषीकपव इसक छाया है तथा शा तपव इसका महान् फल है ।। ९० ।। अ मेधामृतरस वा म थानसं यः । मौसलः ु तसं ेपः श ज नषे वतः ।। ९१ ।। अ मेधपव इसका अमृतमय रस है और आ म-वा सकपव आ य लेकर बैठनेका थान। मौसलपव ु त- पा ऊँची-ऊँची शाखा का अ तम भाग है तथा सदाचार एवं व ासे स प जा त इसका सेवन करते ह ।। ९१ ।। सवषां क वमु यानामुपजी ो भ व य त । पज य इव भूतानाम यो भारत मः ।। ९२ ।। संसारम जतने भी े क व ह गे उनके का के लये यह मूल आ य होगा। जैसे मेघ स पूण ा णय के लये जीवनदाता है, वैसे ही यह अ य भारत-वृ है ।। ९२ ।। सौ त वाच त य वृ य व या म श पु पफलोदयम् । वा मे यरसोपेतम छे ममरैर प ।। ९३ ।। उ वाजी कहते ह—यह भारत एक वृ है। इसके वा , प व , सरस एवं अ वनाशी पु प तथा फल ह—धम और मो । उ ह दे वता भी इस वृ से अलग नह कर सकते; अब म उ ह का वणन क ँ गा ।। ९३ ।। ो





मातु नयोगाद् धमा मा गा े य य च धीमतः । े े व च वीय य कृ ण ै पायनः पुरा ।। ९४ ।। ीन नी नव कौर ान् जनयामास वीयवान् । उ पा धृतरा ं च पा डु ं व रमेव च ।। ९५ ।। पहलेक बात है—श शाली, धमा मा ीकृ ण ै पायन ( ास)-ने अपनी माता स यवती और परम ानी गंगापु भी म पतामहक आ ासे व च वीयक प नी अ बका आ दके गभसे तीन अ नय के समान तेज वी तीन कु वंशी पु उ प कये, जनके नाम ह—धृतरा, पा ड ु और व र ।। ९४-९५ ।। जगाम तपसे धीमान् पुनरेवा मं त । तेषु जातेषु वृ े षु गतेषु परमां ग तम् ।। ९६ ।। अ वीद् भारतं लोके मानुषेऽ मन् महानृ षः । जनमेजयेन पृ ः सन् ा णै सह शः ।। ९७ ।। शशास श यमासीनं वैश पायनम तके । ससद यैः सहासीनः ावयामास भारतम् ।। ९८ ।। कमा तरेषु य य चो मानः पुनः पुनः । इन तीन पु को ज म दे कर परम ानी ासजी फर अपने आ मपर चले गये। जब वे तीन पु वृ हो परम ग तको ा त ए, तब मह ष ासजीने इस मनु यलोकम महाभारतका वचन कया। जनमेजय और हजार ा ण के करनेपर ासजीने पास ही बैठे अपने श य वैश पायनको आ ा द क तुम इन लोग को महाभारत सुनाओ। वैश पायन या क सद य के साथ ही बैठे थे, अतः जब य कमम बीच-बीचम अवकाश मलता, तब यजमान आ दके बार-बार आ ह करनेपर वे उ ह महाभारत सुनाया करते थे ।। ९६-९८ ।। व तरं कु वंश य गा धाया धमशीलताम् ।। ९९ ।। ुः ां धृ त कृ याः स यग् ै पायनोऽ वीत् । वासुदेव य माहा यं पा डवानां च स यताम् ।। १०० ।। वृ ं धातरा ाणामु वान् भगवानृ षः । इदं शतसह ं तु लोकानां पु यकमणाम् ।। १०१ ।। उपा यानैः सह ेयमा ं भारतमु मम् । इस महाभारत- थम ासजीने कु वंशके व तार, गा धारीक धमशीलता, व रक उ म ा और कु तीदे वीके धैयका भलीभाँ त वणन कया है। मह ष भगवान् ासने इसम वसुदेवन दन ीकृ णके माहा य, पा डव क स यपरायणता तथा धृतरापु य धन आ दके वहार का प उ लेख कया है। पु यकमा मानव के उपा यान स हत एक लाख ोक के इस उ म थको आ भारत (महाभारत) जानना चा हये ।। ९९—१०१ ।। चतु वश तसाह च े भारतसं हताम् ।। १०२ ।। ै







उपा यानै वना तावद् भारतं ो यते बुधैः । ततोऽ यधशतं भूयः सं ेपं कृतवानृ षः ।। १०३ ।। अनु म णका यायं वृ ा तं सवपवणाम् । इदं ै पायनः पूव पु म यापय छु कम् ।। १०४ ।। तदन तर ासजीने उपा यानभागको छोड़कर चौबीस हजार ोक क भारतसं हता बनायी; जसे व ान् पु ष भारत कहते ह। इसके प ात् मह षने पुनः पवस हत थम व णत वृ ा त क अनु म णका (सूची)-का एक सं त अ याय बनाया, जसम केवल डेढ़ सौ ोक ह। ासजीने सबसे पहले अपने पु शुकदे वजीको इस महाभारत- थका अ ययन कराया ।। १०२—१०४ ।। ततोऽ ये योऽनु पे यः श ये यः ददौ वभुः । ष शतसह ा ण चकारा यां स सं हताम् ।। १०५ ।। तदन तर उ ह ने सरे- सरे सुयो य (अ धकारी एवं अनुगत) श य को इसका उपदे श दया। त प ात् भगवान् ासने साठ लाख ोक क एक सरी सं हता बनायी ।। १०५ ।। श छतसह ं च दे वलोके त तम् । पये प चदश ो ं ग धवषु चतुदश ।। १०६ ।। उसके तीस लाख ोक दे वलोकम समा त हो रहे ह, पतृलोकम पं ह लाख तथा ग धवलोकम चौदह लाख ोक का पाठ होता है ।। १०६ ।। एकं शतसह ं तु मानुषेषु त तम् । नारदोऽ ावयद् दे वान सतो दे वलः पतॄन् ।। १०७ ।। इस मनु यलोकम एक लाख ोक का आ भारत (महाभारत) त त है। दे व ष नारदने दे वता को और अ सत-दे वलने पतर को इसका वण कराया है ।। १०७ ।। ग धवय र ां स ावयामास वै शुकः । अ मं तु मानुषे लोके वैश पायन उ वान् ।। १०८ ।। श यो ास य धमा मा सववेद वदां वरः । एकं शतसह ं तु मयो ं वै नबोधत ।। १०९ ।। शुकदे वजीने ग धव, य तथा रा स को महाभारतक कथा सुनायी है; परंतु इस मनु यलोकम स पूण वेदवे ा के शरोम ण ास- श य धमा मा वैश पायनजीने इसका वचन कया है। मु नवरो! वही एक लाख ोक का महाभारत आपलोग मुझसे वण क जये ।। १०८-१०९ ।। य धनो म युमयो महा मः क धः कणः शकु न त य शाखाः । ःशासनः पु पफले समृ े मूलं राजा धृतरा ोऽमनीषी ।। ११० ।। ो







य धन ोधमय वशाल वृ के समान है। कण क ध, शकु न शाखा और ःशासन समृ फल-पु प है। अ ानी राजा धृतरा ही इसक े मूल ह* ।। ११० ।। यु ध रो धममयो महा मः क धोऽजुनो भीमसेनोऽ य शाखाः । मा सुतौ पु पफले समृ े मूलं कृ णो च ा णा ।। १११ ।। यु ध र धममय वशाल वृ ह। अजुन क ध, भीमसेन शाखा और मा न दन इसके फल-पु प ह। ीकृ ण, वेद और ा ण ही इस वृ के मूल (जड़) ह* ।। १११ ।। पा डु ज वा बन् द े शान् बु या व मणेन च । अर ये मृगयाशीलो यवस मु न भः सह ।। ११२ ।। महाराज पा डु अपनी बु और परा मसे अनेक दे श पर वजय पाकर ( हसक) मृग को मारनेके वभाववाले होनेके कारण ऋ ष-मु नय के साथ वनम ही नवास करते थे ।। ११२ ।। मृग वाय नधनात् कृ ां ाप स आपदम् । ज म भृ त पाथानां त ाचार व ध मः ।। ११३ ।। एक दन उ ह ने मृग पधारी मह षको मैथुनकालम मार डाला। इससे वे बड़े भारी संकटम पड़ गये (ऋ षने यह शाप दे दया क ी-सहवास करनेपर तु हारी मृ यु हो जायगी), यह संकट होते ए भी यु ध र आ द पा डव के ज मसे लेकर जातकम आ द सब सं कार वनम ही ए और वह उ ह शील एवं सदाचारक र ाका उपदे श आ ।। ११३ ।। मा ोर युपप धम प नषदं त । धम य वायोः श य दे वयो तथा नोः ।। ११४ ।। (पूव शाप होनेपर भी संतान होनेका कारण यह था क) कुल-धमक र ाके लये वासा ारा ा त ई व ाका आ य लेनेके कारण पा डव क दोन माता कु ती और मा के समीप मशः धम, वायु, इ तथा दोन अ नीकुमार—इन दे वता का आगमन स भव हो सका (इ ह क कृपासे यु ध र, भीमसेन, अजुन एवं नकुल-सहदे वक उ प ई) ।। ११४ ।। (ततो धम प नषदः ु वा भतुः या पृथा । धमा नले ान् तु त भजुहाव सुतवा छया । त ोप नष मा चा नावाजुहाव च ।) तापसैः सह संवृ ा मातृ यां प रर ताः । मे यार येषु पु येषु महतामा मेषु च ।। ११५ ।। प त या कु तीने प तके मुखसे धम-रह यक बात सुनकर पु पानेक इ छासे म जपपूवक तु त ारा धम, वायु और इ दे वताका आवाहन कया। कु तीके उपदे श दे नेपर मा भी उस म - व ाको जान गयी और उसने संतानके लये दोन अ नीकुमार का समृ











आवाहन कया। इस कार इन पाँच दे वता से पा डव क उ प ई। पाँच पा डव अपनी दोन माता ारा ही पाले-पोसे गये। वे वन म और महा मा के परम पु य आ म म ही तप वी लोग के साथ दनो दन बढ़ने लगे ।। ११५ ।। ऋ ष भय दाऽऽनीता धातरा ान् त वयम् । शशव ा भ पा ज टला चा रणः ।। ११६ ।। (पा डु क मृ यु होनेके प ात्) बड़े-बड़े ऋ ष-मु न वयं ही पा डव को लेकर धृतरा एवं उनके पु के पास आये। उस समय पा डव न हे-न हे शशुके पम बड़े ही सु दर लगते थे। वे सरपर जटा धारण कये चारीके वेशम थे ।। ११६ ।। पु ा ातर ेमे श या सु द वः । पा डवा एत इ यु वा मुनयोऽ त हता ततः ।। ११७ ।। ऋ षय ने वहाँ जाकर धृतरा एवं उनके पु से कहा—‘ये तु हारे पु , भाई, श य और सु द् ह। ये सभी महाराज पा डु के ही पु ह।’ इतना कहकर वे मु न वहाँसे अ तधान हो गये ।। ११७ ।। तां तै नवे दतान् ् वा पा डवान् कौरवा तदा । श ा वणाः पौरा ये ते हषा चु ु शुभृशम् ।। ११८ ।। ऋ षय ारा लाये ए उन पा डव को दे खकर सभी कौरव और नगर नवासी, श तथा वणा मी हषसे भरकर अ य त कोलाहल करने लगे ।। ११८ ।। आ ः के च त यैते त यैत इ त चापरे । यदा चरमृतः पा डु ः कथं त ये त चापरे ।। ११९ ।। कोई कहते, ‘ये पा डु के पु नह ह।’ सरे कहते, ‘अजी! ये उ ह के ह।’ कुछ लोग कहते, ‘जब पा डु को मरे इतने दन हो गये, तब ये उनके पु कैसे हो सकते ह?’ ।। वागतं सवथा द ा पा डोः प याम संत तम् । उ यतां वागत म त वाचोऽ ूय त सवशः ।। १२० ।। फर सब लोग कहने लगे, ‘हम तो सवथा इनका वागत करते ह। हमारे लये बड़े सौभा यक बात है क आज हम महाराज पा डु क संतानको अपनी आँख से दे ख रहे ह।’ फर तो सब ओरसे वागत बोलनेवाल क ही बात सुनायी दे ने लग ।। १२० ।। त म ुपरते श दे दशः सवा ननादयन् । अ त हतानां भूतानां नः वन तुमुलोऽभवत् ।। १२१ ।। दशक का वह तुमुल श द ब द होनेपर स पूण दशा को त व नत करती ई अ य भूत —दे वता क यह स म लत आवाज (आकाशवाणी) गूँज उठ —‘ये पा डव ही ह’ ।। १२१ ।। पु पवृ ः शुभा ग धाः शङ् ख भ नः वनाः । आसन् वेशे पाथानां तद त मवाभवत् ।। १२२ ।। जस समय पा डव ने नगरम वेश कया, उसी समय फूल क वषा होने लगी, सब ओर सुग ध छा गयी तथा शंख और भय के मांग लक श द सुनायी दे ने लगे। यह एक अद्भुत चम कारक -सी बात ई ।। १२२ ।। ी ै ौ

त ी या चैव सवषां पौराणां हषस भवः । श द आसी महां त दवः पृ क तवधनः ।। १२३ ।। सभी नाग रक पा डव के ेमसे आन दम भरकर ऊँचे वरसे अ भन दन- व न करने लगे। उनका वह महान् श द वगलोकतक गूँज उठा जो पा डव क क त बढ़ानेवाला था ।। १२३ ।। तेऽधी य नखलान् वेदा छा ा ण व वधा न च । यवसन् पा डवा त पू जता अकुतोभयाः ।। १२४ ।। वे स पूण वेद एवं व वध शा का अ ययन करके वह नवास करने लगे। सभी उनका आदर करते थे और उ ह कसीसे भय नह था ।। १२४ ।। यु ध र य शौचेन ीताः कृतयोऽभवन् । धृ या च भीमसेन य व मेणाजुन य च ।। १२५ ।। गु शु ूषया ा या यमयो वनयेन च । तुतोष लोकः सकल तेषां शौयगुणेन च ।। १२६ ।। राक स पूण जा यु ध रके शौचाचार, भीमसेनक धृ त, अजुनके व म तथा नकुल-सहदे वक गु शु ूषा, माशीलता और वनयसे ब त ही स होती थी। सब लोग पा डव के शौयगुणसे संतोषका अनुभव करते थे* ।। समवाये ततो रा ां क यां भतृ वयंवराम् । ा तवानजुनः कृ णां कृ वा कम सु करम् ।। १२७ ।। तदन तर कुछ कालके प ात् राजा के समुदायम अजुनने अ य त कर परा म करके वयं ही प त चुननेवाली पदक या कृ णाको ा त कया ।। १२७ ।। ततः भृ त लोकेऽ मन् पू यः सवधनु मताम् । आ द य इव े यः समरे व प चाभवत् ।। १२८ ।। तभीसे वे इस लोकम स पूण धनुधा रय के पूजनीय (आदरणीय) हो गये और समरांगणम च ड मात डक भाँ त तापी अजुनक ओर कसीके लये आँख उठाकर दे खना भी क ठन हो गया ।। १२८ ।। स सवान् पा थवाञ् ज वा सवा महतो गणान् । आजहाराजुनो रा ो राजसूयं महा तुम् ।। १२९ ।। उ ह ने पृथक्-पृथक् तथा महान् संघ बनाकर आये ए सब राजा को जीतकर महाराज यु ध रके राजसूय नामक महाय को स प कराया ।। १२९ ।। अ वान् द णावां सवः समु दतो गुणैः । यु ध रेण स ा तो राजसूयो महा तुः ।। १३० ।। सुनयाद् वासुदेव य भीमाजुनबलेन च । घात य वा जरास धं चै ं च बलग वतम् ।। १३१ ।। भगवान् ीकृ णक सु दर नी त और भीमसेन तथा अजुनक श से बलके घम डम चूर रहनेवाले जरास ध और चे दराज शशुपालको मरवाकर धमराज यु ध रने महाय

राजसूयका स पादन कया। वह य सभी उ म* गुण से स प था। उसम चुर अ और पया त द णाका वतरण कया गया था ।। १३०-१३१ ।। य धनं समाग छ हणा न तत ततः । म णका चनर ना न गोह य धना न च ।। १३२ ।। व च ा ण च वासां स ावारावरणा न च । क बला जनर ना न राङ् कवा तरणा न च ।। १३३ ।। उस समय इधर-उधर व भ दे श तथा नृप तय के यहाँसे म ण, सुवण, र न, गाय, हाथी, घोड़े, धन-स प , व च व , त बू, कनात, परदे , उ म क बल, े मृगचम तथा रंकुनामक मृगके बाल से बने ए कोमल बछौने आ द जो उपहारक ब मू य व तुएँ आत , वे य धनके हाथम द जात —उसीक दे ख-रेखम रखी जाती थ ।। १३२-१३३ ।। समृ ां तां तथा ् वा पा डवानां तदा यम् । ई यासमु थः सुमहां त य म युरजायत ।। १३४ ।। उस समय पा डव क वह बढ़ -चढ़ समृ -स प दे खकर य धनके मनम ई याज नत महान् रोष एवं ःखका उदय आ ।। १३४ ।। वमान तमां त मयेन सुकृतां सभाम् । पा डवानामुप तां स ् वा पयत यत ।। १३५ ।। उस अवसरपर मयदानवने पा डव को एक सभाभवन भटम दया था, जसक परेखा वमानके समान थी। वह भवन उसके श पकौशलका एक अ छा नमूना था। उसे दे खकर य धनको और अ धक संताप आ ।। १३५ ।। त ावह सत ासीत् क द व स मात् । य ं वासुदेव य भीमेनान भजातवत् ।। १३६ ।। उसी सभाभवनम जब स म (जलम थल और थलम जलका म) होनेके कारण य धनके पाँव फसलने-से लगे, तब भगवान् ीकृ णके सामने ही भीमसेनने उसे गँवारसा स करते ए उसक हँसी उड़ायी थी ।। १३६ ।। स भोगान् व वधान् भु न् र ना न व वधा न च । क थतो धृतरा य ववण ह रणः कृशः ।। १३७ ।। य धन नाना कारके भोग तथा भाँ त-भाँ तके र न का उपयोग करते रहनेपर भी दनो दन बला रहने लगा। उसका रंग फ का पड़ गया। इसक सूचना कमचा रय ने महाराज धृतराको द ।। १३७ ।। अ वजानात् ततो ूतं धृतरा ः सुत यः । त छ वा वासुदेव य कोपः समभव महान् ।। १३८ ।। धृतरा अपने उस पु के त अ धक आस थे, अतः उसक इ छा जानकर उ ह ने उसे पा डव के साथ जूआ खेलनेक आ ा दे द । जब भगवान् ीकृ णने यह समाचार सुना, तब उ ह धृतरापर बड़ा ोध आया ।। १३८ ।। ना त ीतमना ासीद् ववादां ा वमोदत । ो



ूताद ननयान् घोरान् व वधां ा युपै त ।। १३९ ।। य प उनके मनम कलहक स भावनाके कारण कुछ वशेष स ता नह ई, तथा प उ ह ने (मौन रहकर) इन ववाद का अनुमोदन ही कया और भ - भ कारके भयंकर अ याय, ूत आ दको दे खकर भी उनक उपे ा कर द ।। १३९ ।। नर य व रं भी मं ोणं शार तं कृपम् । व हे तुमुले त मन् दहन् ं पर परम् ।। १४० ।। (इस अनुमोदन या उपे ाका कारण यह था क वे धमनाशक राजा का संहार चाहते थे। अतः उ ह व ास था क) इस व हज नत महान् यु म व र, भी म, ोणाचाय तथा कृपाचायक अवहेलना करके सभी य एक- सरेको अपनी ोधा नम भ म कर डालगे ।। १४० ।। जय सु पा डु पु ेषु ु वा सुमहद यम् । य धनमतं ा वा कण य शकुने तथा ।। १४१ ।। धृतरा रं या वा संजयं वा यम वीत् । शृणु संजय सव मे न चासू यतुमह स ।। १४२ ।। ुतवान स मेधावी बु मान् ा स मतः । न व हे मम म तन च ीये कुल ये ।। १४३ ।। जब यु म पा डव क जीत होती गयी, तब यह अ य त अ य समाचार सुनकर तथा य धन, कण और शकु नके रा हपूण न त वचार जानकर धृतरा ब त दे रतक च ताम पड़े रहे। फर उ ह ने संजयसे कहा—‘संजय! मेरी सब बात सुन लो। फर इस यु या वनाशके लये मुझे दोष न दे सकोगे। तुम व ान्, मेधावी, बु मान् और प डतके लये भी आदरणीय हो। इस यु म मेरी स म त बलकुल नह थी और यह जो हमारे कुलका वनाश हो गया है, इससे मुझे त नक भी स ता नह ई है ।। १४१— १४३ ।। न मे वशेषः पु ेषु वेषु पा डु सुतेषु वा । वृ ं माम यसूय त पु ा म युपरायणाः ।। १४४ ।। मेरे लये अपने पु और पा डव म कोई भेद नह था। कतु या क ँ ? मेरे पु ोधके वशीभूत हो मुझपर ही दोषारोपण करते थे और मेरी बात नह मानते थे ।। १४४ ।। अहं वच ुः काप यात् पु ी या सहा म तत् । मु तं चानुमु ा म य धनमचेतनम् ।। १४५ ।। म अंधा ँ, अतः कुछ द नताके कारण और कुछ पु के त अ धक आस होनेसे भी वह सब अ याय सहता आ रहा ँ। म दबु य धन जब मोहवश ःखी होता था, तब म भी उसके साथ ःखी हो जाता था ।। १४५ ।। राजसूये यं ् वा पा डव य महौजसः । त चावहसनं ा य सभारोहणदशने ।। १४६ ।। अमषणः वयं जेतुमश ः पा डवान् रणे । न साह स ा तुं सु यं योऽ प सन् ।। १४७ ।।

गा धारराजस हत छ ूतमम यत् । त यद् यद् यथा ातं मया संजय त छृ णु ।। १४८ ।। राजसूय-य म महापरा मी पा डु पु यु ध रक सव प र समृ -स प दे खकर तथा सभाभवनक सी ढ़य पर चढ़ते और उस भवनको दे खते समय भीमसेनके ारा उपहास पाकर य धन भारी अमषम भर गया था। यु म पा डव को हरानेक श तो उसम थी नह ; अतः य होते ए भी वह यु के लये उ साह नह दखा सका। परंतु पा डव क उस उ म स प को ह थयानेके लये उसने गा धारराज शकु नको साथ लेकर कपटपूण ूत खेलनेका ही न य कया। संजय! इस कार जूआ खेलनेका न य हो जानेपर उसके पहले और पीछे जो-जो घटनाएँ घ टत ई ह उन सबका वचार करते ए मने समय-समयपर वजयक आशाके वपरीत जो-जो अनुभव कया है उसे कहता ँ, सुनो— ।। १४६-१४८ ।। ु वा तु मम वा या न बु यु ा न त वतः । ततो ा य स मां सौते ाच ुष म युत ।। १४९ ।। सूतन दन! मेरे उन बु म ापूण वचन को सुनकर तुम ठ क-ठ क समझ लोगे क म कतना ाच ु ँ ।। १४९ ।। यदा ौषं धनुराय य च ं व ं ल यं पा ततं वै पृ थ ाम् । कृ णां तां े तां सवरा ां तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। १५० ।। संजय! जब मने सुना क अजुनने धनुषपर बाण चढ़ाकर अद्भुत ल य बेध दया और उसे धरतीपर गरा दया। साथ ही सब राजा के सामने, जब क वे टु कुर-टु कुर दे खते ही रह गये, बलपूवक ौपद को ले आया, तभी मने वजयक आशा छोड़ द थी ।। १५० ।। यदा ौषं ारकायां सुभ ां स ोढां माधवीमजुनेन । इ थं वृ णवीरौ च यातौ तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। १५१ ।। संजय! जब मने सुना क अजुनने ारकाम मधुवंशक राजकुमारी (और ीकृ णक ब हन) सुभ ाको बलपूवक हरण कर लया और ीकृ ण एवं बलराम (इस घटनाका वरोध न कर) दहेज लेकर इ थम आये, तभी समझ लया था क मेरी वजय नह हो सकती ।। १५१ ।। यदा ौषं दे वराजं व ं शरै द ैवा रतं चाजुनेन । अ नं तथा त पतं खा डवे च तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। १५२ ।। जब मने सुना क खा डवदाहके समय दे वराज इ तो वषा करके आग बुझाना चाहते थे और अजुनने उसे अपने द बाण से रोक दया तथा अ नदे वको तृ त कया, संजय! ी े े ी ो ी

तभी मने समझ लया क अब मेरी वजय नह हो सकती ।। १५२ ।। यदा ौषं जातुषाद् वे मन तान् मु ान् पाथान् प च कु या समेतान् । यु ं चैषां व रं वाथ स ौ तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। १५३ ।। जब मने सुना क ला ाभवनसे अपनी मातास हत पाँच पा डव बच गये ह और वयं व र उनक वाथ स के य नम त पर ह, संजय! तभी मने वजयक आशा छोड़ द थी ।। १५३ ।। यदा ौषं ौपद र म ये ल यं भ वा न जतामजुनेन । शूरान् प चालान् पा डवेयां यु ांतदा नाशंसे वजयाय संजय ।। १५४ ।। जब मने सुना क रंगभू मम ल यवेध करके अजुनने ौपद ा त कर ली है और पांचाल वीर तथा पा डव वीर पर पर स ब हो गये ह, संजय! उसी समय मने वजयक आशा छोड़ द ।। १५४ ।। यदा ौषं मागधानां व र ं जरास धं म ये वल तम् । दो या हतं भीमसेनेन ग वा तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। १५५ ।। जब मने सुना क मगधराज- शरोम ण, यजा तके जा व यमान र न जरास धको भीमसेनने उसक राजधानीम जाकर बना अ -श के हाथ से ही चीर दया। संजय! मेरी जीतक आशा तो तभी टू ट गयी ।। १५५ ।। यदा ौषं द वजये पा ड ु पु ैवशीकृतान् भू मपालान् स । महा तुं राजसूयं कृतं च तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। १५६ ।। जब मने सुना क द वजयके समय पा डव ने बलपूवक बड़े-बड़े भू मप तय को अपने अधीन कर लया और महाय राजसूय स प कर दया। संजय! तभी मने समझ लया क मेरी वजयक कोई आशा नह है ।। १५६ ।। यदा ौषं ौपद म ुक ठ सभां नीतां ःखतामेकव ाम् । रज वलां नाथवतीमनाथवत् तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। १५७ ।। संजय! जब मने सुना क ःखता ौपद रज वलाव थाम आँख म आँसू भरे केवल एक व पहने वीर प तय के रहते ए भी अनाथके समान भरी सभाम घसीटकर लायी गयी है, तभी मने समझ लया था क अब मेरी वजय नह हो सकती ।। १५७ ।। ौ

यदा ौषं वाससां त रा श समा पत् कतवो म दबु ः । ःशासनो गतवान् नैव चा तं तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। १५८ ।। जब मने सुना क धूत एवं म दबु ःशासनने ौपद का व ख चा और वहाँ व का इतना ढे र लग गया क वह उसका पार न पा सका; संजय! तभीसे मुझे वजयक आशा नह रही ।। १५८ ।। यदा ौषं तरा यं यु ध रं परा जतं सौबलेना व याम् । अ वागतं ातृ भर मेयैतदा नाशंसे वजयाय संजय ।। १५९ ।। संजय! जब मने सुना क धमराज यु ध रको जूएम शकु नने हरा दया और उनका रा य छ न लया, फर भी उनके अतुल बलशाली धीर ग भीर भाइय ने यु ध रका अनुगमन ही कया, तभी मने वजयक आशा छोड़ द ।। १५९ ।। यदा ौषं व वधा त चे ा धमा मनां थतानां वनाय । ये ी या ल यतां पा डवानां तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। १६० ।। जब मने सुना क वनम जाते समय धमा मा पा डव धमराज यु ध रके ेमवश ःख पा रहे थे और अपने दयका भाव का शत करनेके लये व वध कारक चे ाएँ कर रहे थे; संजय! तभी मेरी वजयक आशा न हो गयी ।। १६० ।। यदा ौषं नातकानां सह ैर वागतं धमराजं वन थम् । भ ाभुजां ा णानां महा मनां तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। १६१ ।। जब मने सुना क हजार नातक वनवासी यु ध रके साथ रह रहे ह और वे तथा सरे महा मा एवं ा ण उनसे भ ा ा त करते ह। संजय! तभी म वजयके स ब धम नराश हो गया ।। १६१ ।। यदा ौषमजुनं दे वदे वं करात पं य बकं तो य यु े । अवा तव तं पाशुपतं महा ं तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। १६२ ।। संजय! जब मने सुना क करातवेषधारी दे वदे व लोचन महादे वको यु म संतु करके अजुनने पाशुपत नामक महान् अ ा त कर लया है, तभी मेरी आशा नराशाम प रणत हो गयी ।। १६२ ।। (यदा ौषं वनवासे तु पाथान् ै

समागतान् मह ष भः पुराणैः । उपा यमानान् सगणैजातस यान् तदा नाशंसे वजयाय संजय ।।) यदा ौषं दव थं धन यं श ात् सा ाद् द म ं यथावत् । अधीयानं शं सतं स यस धं तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। १६३ ।। जब मने सुना क वनवासम भी कु तीपु के पास पुरातन मह षगण पधारते और उनसे मलते ह। उनके साथ उठते-बैठते और नवास करते ह तथा सेवक-स ब धय स हत पा डव के त उनका मै ीभाव हो गया है। संजय! तभीसे मुझे अपने प क वजयका व ास नह रह गया था। जब मने सुना क स यसंध धनंजय अजुन वगम गये ए ह और वहाँ सा ात् इ से द अ -श क व धपूवक श ा ा त कर रहे ह और वहाँ उनके पौ ष एवं चय आ दक शंसा हो रही है, संजय! तभीसे मेरी यु म वजयक आशा जाती रही ।। १६३ ।। यदा ौषं कालकेया तत ते पौलोमानो वरदाना च ताः । दे वैरजेया न जता ाजुनेन तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। १६४ ।। जबसे मने सुना क वरदानके भावसे घमंडके नशेम चूर कालकेय तथा पौलोम नामके असुर को, ज ह बड़े-बड़े दे वता भी नह जीत सकते थे, अजुनने बात-क -बातम परा जत कर दया, तभीसे संजय! मने वजयक आशा कभी नह क ।। १६४ ।। यदा ौषमसुराणां वधाथ करी टनं या तम म कशनम् । कृताथ चा यागतं श लोकात् तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। १६५ ।। मने जब सुना क श ु का संहार करनेवाले करीट अजुन असुर का वध करनेके लये गये थे और इ लोकसे अपना काम पूरा करके लौट आये ह, संजय! तभी मने समझ लया—अब मेरी जीतक कोई आशा नह ।। १६५ ।। (यदा ौषं तीथया ा वृ ं पा डोः सुतं स हतं लोमशेन । त माद ौषीदजुन याथलाभं तदा नाशंसे वजयाय संजय ।।) यदा ौषं वै वणेन साध समागतं भीमम यां पाथान् । त मन् दे शे मानुषाणामग ये तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। १६६ ।। े ो ी े ी े

जब मने सुना क पा डु न दन यु ध र मह ष लोमशजीके साथ तीथया ा कर रहे ह और लोमशजीके मुखसे ही उ ह ने यह भी सुना है क वगम अजुनको अभी व तु ( द ा )-क ा त हो गयी है, संजय! तभीसे मने वजयक आशा ही छोड़ द । जब मने सुना क भीमसेन तथा सरे भाई उस दे शम जाकर, जहाँ मनु य क ग त नह है, कुबेरके साथ मेल- मलाप कर आये, संजय! तभी मने वजयक आशा छोड़ द थी ।। १६६ ।। यदा ौषं घोषया ागतानां ब धं ग धवम णं चाजुनेन । वेषां सुतानां कणबु ौ रतानां तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। १६७ ।। जब मने सुना क कणक बु पर व ास करके चलनेवाले मेरे पु घोषया ाके न म गये और ग धव के हाथ ब द बन गये और अजुनने उ ह उनके हाथसे छु ड़ाया। संजय! तभीसे मने वजयक आशा छोड़ द ।। १६७ ।। यदा ौषं य पेण धम समागतं धमराजेन सूत । ान् कां द ् व ुवाणं च स यक् तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। १६८ ।। सूत संजय! जब मने सुना क धमराज य का प धारण करके यु ध रसे मले और यु ध रने उनके ारा कये गये गूढ़ का ठ क-ठ क समाधान कर दया, तभी वजयके स ब धम मेरी आशा टू ट गयी ।। १६८ ।। यदा ौषं न व मामका तान् छ पान् वसतः पा डवेयान् । वराटरा े सह कृ णया च तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। १६९ ।। संजय! वराटक राजधानीम गु त पसे ौपद के साथ पाँच पा डव नवास कर रहे थे, परंतु मेरे पु और उनके सहायक इस बातका पता नह लगा सके; जब मने यह बात सुनी, मुझे यह न य हो गया क मेरी वजय स भव नह है ।। १६९ ।। (यदा ौषं क चकानां व र ं नषू दतं ातृशतेन साधम् । ौप थ भीमसेनेन सं ये तदा नाशंसे वजयाय संजय ।।) यदा ौषं मामकानां व र ान् धन येनैकरथेन भ नान् । वराटरा े वसता महा मना तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। १७० ।। संजय! जब मने सुना क भीमसेनने ौपद के त कये ए अपराधका बदला लेनेके लये क चक के सव े वीरको उसके सौ भाइय स हत यु म मार डाला था, तभीसे मुझे ी ी े ी

वजयक बलकुल आशा नह रह गयी थी। संजय! जब मने सुना क वराटक राजधानीम रहते समय महा मा धनंजयने एकमा रथक सहायतासे हमारे सभी े महार थय को (जो गो-हरणके लये पूण तैयारीके साथ वहाँ गये थे) मार भगाया, तभीसे मुझे वजयक आशा नह रही ।। १७० ।। यदा ौषं स कृतां म यरा ा सुतां द ामु रामजुनाय । तां चाजुनः यगृ ात् सुताथ तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। १७१ ।। जस दन मने यह बात सुनी क म यराज वराटने अपनी य एवं स मा नत पु ी उ राको अजुनके हाथ अ पत कर दया, परंतु अजुनने अपने लये नह , अपने पु के लये उसे वीकार कया, संजय! उसी दनसे म वजयक आशा नह करता था ।। १७१ ।। यदा ौषं न जत याधन य ा जत य वजनात् युत य । अ ौ हणीः स त यु ध र य तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। १७२ ।। संजय! यु ध र जूएम परा जत ह, नधन ह, घरसे नकाले ए ह और अपने सगेस ब धय से बछु ड़े ए ह। फर भी जब मने सुना क उनके पास सात अ ौ हणी सेना एक हो चुक है, तभी वजयके लये मेरे मनम जो आशा थी, उसपर पानी फर गया ।। १७२ ।। यदा ौषं माधवं वासुदेवं सवा मना पा डवाथ न व म् । य येमां गां व ममेकमा तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। १७३ ।। (वामनावतारके समय) यह स पूण पृ वी जनके एक डगम ही आ गयी बतायी जाती है, वे ल मीप त भगवान् ीकृ ण पूरे दयसे पा डव क काय स के लये त पर ह, जब यह बात मने सुनी, संजय! तभीसे मुझे वजयक आशा नह रही ।। १७३ ।। यदा ौषं नरनारायणौ तौ कृ णाजुनौ वदतो नारद य । अहं ा लोके च स यक् तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। १७४ ।। जब दे व ष नारदके मुखसे मने यह बात सुनी क ीकृ ण और अजुन सा ात् नर और नारायण ह और इ ह मने लोकम भलीभाँ त दे खा है, तभीसे मने वजयक आशा छोड़ द ।। १७४ ।। यदा ौषं लोक हताय कृ णं शमा थनमुपयातं कु णाम् । शमं कुवाणमकृताथ च यातं े

तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। १७५ ।। संजय! जब मने सुना क वयं भगवान् ीकृ ण लोकक याणके लये शा तक इ छासे आये ए ह और कौरव-पा डव म शा त-स ध करवाना चाहते ह, परंतु वे अपने यासम असफल होकर लौट गये, तभीसे मुझे वजयक आशा नह रही ।। १७५ ।। यदा ौषं कण य धना यां बु कृ तां न हे केशव य । तं चा मानं ब धा दशयानं तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। १७६ ।। संजय! जब मने सुना क कण और य धन दोन ने यह सलाह क है क ीकृ णको कैद कर लया जाय और ीकृ णने अपने-आपको अनेक प म वराट् या अखल व के पम दखा दया, तभीसे मने वजयाशा याग द थी ।। १७६ ।।

नम कार

अवतारके लये ाथना

सह-बाघ म बालक भरत

कुमार भीमसेनका साँप पर कोप

एकल क गु -द

णा

ौपद - वयंवर

भास े म

ीकृ ण और अजुनका मलन

कृपा सधु भगवान्

ीकृ ण

यदा ौषं वासुदेवे याते रथ यैकाम त त मानाम् । आता पृथां सा वतां केशवेन तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। १७७ ।। जब मने सुना—यहाँसे ीकृ णके लौटते समय अकेली कु ती उनके रथके सामने आकर खड़ी हो गयी और अपने दयक आ त-वेदना कट करने लगी, तब ीकृ णने उसे भलीभाँ त सा वना द । संजय! तभीसे मने वजयक आशा छोड़ द ।। १७७ ।। यदा ौषं म णं वासुदेवं तथा भी मं शा तनवं च तेषाम् । भार ाजं चा शषोऽनु ुवाणं तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। १७८ ।। संजय! जब मने सुना क ीकृ ण पा डव के म ी ह और शा तनुन दन भी म तथा भार ाज ोणाचाय उ ह आशीवाद दे रहे ह, तब मुझे वजया तक क चत् भी आशा नह रही ।। १७८ ।। यदा ौषं कण उवाच भी मं नाहं यो ये यु यमाने वयी त । ह वा सेनामपच ाम चा प तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। १७९ ।। जब कणने भी मसे यह बात कह द क ‘जबतक तुम यु करते रहोगे तबतक म पा डव से नह लडँगा’, इतना ही नह —वह सेनाको छोड़कर हट गया, संजय! तभीसे मेरे मनम वजयके लये कुछ भी आशा नह रह गयी ।। १७९ ।। यदा ौषं वासुदेवाजुनौ तौ तथा धनुगा डीवम मेयम् । ी यु वीया ण समागता न तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। १८० ।। संजय! जब मने सुना क भगवान् ीकृ ण, वीरवर अजुन और अतु लत श शाली गा डीव धनुष—ये तीन भयंकर भावशाली श याँ इक हो गयी ह, तभी मने वजयक आशा छोड़ द ।। १८० ।। यदा ौषं क मलेना भप े रथोप थे सीदमानेऽजुने वै । कृ णं लोकान् दशयानं शरीरे तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। १८१ ।। संजय! जब मने सुना क रथके पछले भागम थत मोह त अजुन अ य त ःखी हो रहे थे और ीकृ णने अपने शरीरम उ ह सब लोक का दशन ी े े े ी ो ी

करा दया, तभी मेरे मनसे वजयक सारी आशा समा त हो गयी ।। १८१ ।। यदा ौषं भी मम म कशनं न न तमाजावयुतं रथानाम् । नैषां क द् व यते यात पतदा नाशंसे वजयाय संजय ।। १८२ ।। जब मने सुना क श ुघाती भी म रणांगणम त दन दस हजार र थय का संहार कर रहे ह, परंतु पा डव का कोई स यो ा नह मारा जा रहा है, संजय! तभी मने वजयक आशा छोड़ द ।। १८२ ।। यदा ौषं चापगेयेन सं ये वयं मृ युं व हतं धा मकेण । त चाकाषुः पा डवेयाः ातदा नाशंसे वजयाय संजय ।। १८३ ।। जब मने सुना क परम धामक गंगान दन भी मने यु भू मम पा डव को अपनी मृ युका उपाय वयं बता दया और पा डव ने स होकर उनक उस आ ाका पालन कया। संजय! तभी मुझे वजयक आशा नह रही ।। १८३ ।। यदा ौषं भी मम य तशूरं हतं पाथनाहवे व धृ यम् । शख डनं पुरतः थाप य वा तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। १८४ ।। जब मने सुना क अजुनने सामने शख डीको खड़ा करके उसक ओटसे सवथा अजेय अ य त शूर भी म पतामहको यु भू मम गरा दया। संजय! तभी मेरी वजयक आशा समा त हो गयी ।। १८४ ।। यदा ौषं शरत पे शयानं वृ ं वीरं सा दतं च पुङ्खैः । भी मं कृ वा सोमकान पशेषांतदा नाशंसे वजयाय संजय ।। १८५ ।। जब मने सुना क हमारे वृ वीर भी म पतामह अ धकांश सोमकवंशी यो ा का वध करके अजुनके बाण से त- व त शरीर हो शरशयापर शयन कर रहे ह, संजय! तभी मने समझ लया अब मेरी वजय नह हो सकती ।। १८५ ।। यदा ौषं शा तनवे शयाने पानीयाथ चो दतेनाजुनेन । भूम भ वा त पतं त भी मं तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। १८६ ।। संजय! जब मने सुना क शा तनुन दन भी म पतामहने शरशयापर सोते समय अजुनको संकेत कया और उ ह ने बाणसे धरतीका भेदन करके उनक े

यास बुझा द , तब मने वजयक आशा याग द ।। १८६ ।। यदा वायु सूय च यु ौ कौ तेयानामनुलोमा जयाय । न यं चा मा ापदा भीषय त तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। १८७ ।। जब वायु अनुकूल बहकर और च मा-सूय लाभ थानम संयु होकर पा डव क वजयक सूचना दे रहे ह और कु े आ द भयंकर ाणी त दन हमलोग को डरा रहे ह। संजय! तब मने वजयके स ब धम अपनी आशा छोड़ द ।। १८७ ।। यदा ोणो व वधान मागान् नदशयन् समरे च योधी । न पा डवा े तरान् नह त तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। १८८ ।। संजय! हमारे आचाय ोण बेजोड़ यो ा थे और उ ह ने रणांगणम अपने अ -श के अनेक व वध कौशल दखलाये, परंतु जब मने सुना क वे वीरशरोम ण पा डव मसे कसी एकका भी वध नह कर रहे ह, तब मने वजयक आशा याग द ।। १८८ ।। यदा ौषं चा मद यान् महारथान् व थतानजुन या तकाय । संश तकान् नहतानजुनेन तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। १८९ ।। संजय! मेरी वजयक आशा तो तभी नह रही जब मने सुना क मेरे जो महारथी वीर संश तक यो ा अजुनके वधके लये मोचपर डटे ए थे, उ ह अकेले ही अजुनने मौतके घाट उतार दया ।। १८९ ।। यदा ौषं ूहमभे म यैभार ाजेना श ेण गु तम् । भ वा सौभ ं वीरमेकं व ं तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। १९० ।। संजय! वयं भार ाज ोणाचाय अपने हाथम श उठाकर उस च ूहक र ा कर रहे थे, जसको कोई सरा तोड़ ही नह सकता था, परंतु सुभ ान दन वीर अ भम यु अकेला ही छ - भ करके उसम घुस गया, जब यह बात मेरे कान तक प ँची, तभी मेरी वजयक आशा लु त हो गयी ।। १९० ।। यदा भम युं प रवाय बालं सव ह वा पा बभूवुः । महारथाः पाथमश नुव ते

तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। १९१ ।। संजय! मेरे बड़े-बड़े महारथी वीरवर अजुनके सामने तो टक न सके और सबने मलकर बालक अ भम युको घेर लया और उसको मारकर ह षत होने लगे, जब यह बात मुझतक प ँची, तभीसे मने वजयक आशा याग द ।। १९१ ।। यदा ौषम भम युं नह य हषा मूढान् ोशतो धातरा ान् । ोधा ं सै धवे चाजुनेन तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। १९२ ।। जब मने सुना क मेरे मूढ़ पु अपने ही वंशके होनहार बालक अ भम युक ह या करके हषपूण कोलाहल कर रहे ह और अजुनने ोधवश जय थको मारनेक भीषण त ा क है, संजय! तभी मने वजयक आशा छोड़ द ।। १९२ ।। यदा ौषं सै धवाथ त ां त ातां त धायाजुनेन । स यां तीणा श ुम ये च तेन तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। १९३ ।। जब मने सुना क अजुनने जय थको मार डालनेक जो ढ़ त ा क थी, उसने वह श ु से भरी रणभू मम स य एवं पूण करके दखा द । संजय! तभीसे मुझे वजयक स भावना नह रह गयी ।। १९३ ।। यदा ौषं ा तहये धन ये मु वा हयान् पाय य वोपवृ ान् । पुनयु वा वासुदेवं यातं तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। १९४ ।। यु भू मम धनय अजुनके घोड़े अ य त ा त और याससे ाकुल हो रहे थे। वयं ीकृ णने उ ह रथसे खोलकर पानी पलाया। फरसे रथके नकट लाकर उ ह जोत दया और अजुनस हत वे सकुशल लौट गये। जब मने यह बात सुनी, संजय! तभी मेरी वजयक आशा समा त हो गयी ।। १९४ ।। यदा ौषं वाहने व मेषु रथोप थे त ता पा डवेन । सवान् योधान् वा रतानजुनेन तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। १९५ ।। जब सं ामभू मम रथके घोड़े अपना काम करनेम असमथ हो गये, तब रथके समीप ही खड़े होकर पा डववीर अजुनने अकेले ही सब यो ा का सामना कया और उ ह रोक दया। मने जस समय यह बात सुनी, संजय! उसी समय मने वजयक आशा छोड़ द ।। १९५ ।। ौ ै

यदा ौषं नागबलैः सु ःसहं ोणानीकं युयुधानं मय । यातं वा णयं य तौ कृ णपाथ तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। १९६ ।। जब मने सुना क वृ णवंशावतंस युयुधान—सा य कने अकेले ही ोणाचायक उस सेनाको, जसका सामना हा थय क सेना भी नह कर सकती थी, ततर- बतर और तहस-नहस कर दया तथा ीकृ ण और अजुनके पास प ँच गये। संजय! तभीसे मेरे लये वजयक आशा अस भव हो गयी ।। १९६ ।। यदा ौषं कणमासा मु ं वधाद् भीमं कु स य वा वचो भः । धनु को ाऽऽतु कणन वीरं तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। १९७ ।। संजय! जब मने सुना क वीर भीमसेन कणके पंजेम फँस गये थे, परंतु कणने तर कारपूवक झड़ककर और धनुषक नोक चुभाकर ही छोड़ दया तथा भीमसेन मृ युके मुखसे बच नकले। संजय! तभी मेरी वजयक आशापर पानी फर गया ।। १९७ ।। यदा ोणः कृतवमा कृप कण ौ णम राज शूरः । अमषयन् सै धवं व यमानं तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। १९८ ।। जब मने सुना क ोणाचाय, कृतवमा, कृपाचाय, कण और अ थामा तथा वीर श यने भी स धुराज जय थका वध सह लया, तीकार नह कया। संजय! तभी मने वजयक आशा छोड़ द ।। १९८ ।। यदा ौषं दे वराजेन द ां द ां श ं सतां माधवेन । घटो कचे रा से घोर पे तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। १९९ ।। संजय! दे वराज इ ने कणको कवचके बदले एक द श दे रखी थी और उसने उसे अजुनपर यु करनेके लये रख छोड़ा था; परंतु मायाप त ीकृ णने भयंकर रा स घटो कचपर छु ड़वाकर उससे भी वं चत करवा दया। जस समय यह बात मने सुनी, उसी समय मेरी वजयक आशा टू ट गयी ।। १९९ ।। यदा ौषं कणघटो कचा यां यु े मु ां सूतपु ेण श म् । यया व यः समरे स साची े

तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। २०० ।। जब मने सुना क कण और घटो कचके यु म कणने वह श घटो कचपर चला द , जससे रणांगणम अजुनका वध कया जा सकता था। संजय! तब मने वजयक आशा छोड़ द ।। २०० ।। यदा ौषं ोणमाचायमेकं धृ ु नेना य त य धमम् । रथोप थे ायगतं वश तं तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। २०१ ।। संजय! जब मने सुना क आचाय ोण पु क मृ युके शोकसे श ा द छोड़कर आमरण अनशन करनेके न यसे अकेले रथके पास बैठे थे और धृ ु नने धमयु क मयादाका उ लंघन करके उ ह मार डाला, तभी मने वजयक आशा छोड़ द थी ।। २०१ ।। यदा ौषं ौ णना ै रथ थं मा सुतं नकुलं लोकम ये । समं यु े म डले य र तं तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। २०२ ।। जब मने सुना क अ थामा-जैसे वीरके साथ बड़े-बड़े वीर के सामने ही मा न दन नकुल अकेले ही अ छ तरह यु कर रहे ह। संजय! तब मुझे जीतक आशा न रही ।। २०२ ।। यदा ोणे नहते ोणपु ो नारायणं द म ं वकुवन् । नैषाम तं गतवान् पा डवानां तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। २०३ ।। जब ोणाचायक ह याके अन तर अ थामाने द नारायणा का योग कया; परंतु उससे वह पा डव का अ त नह कर सका। संजय! तभी मेरी वजयक आशा समा त हो गयी ।। २०३ ।। यदा ौषं भीमसेनेन पीतं र ं ातुयु ध ःशासन य । नवा रतं ना यतमेन भीमं तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। २०४ ।। जब मने सुना क रणभू मम भीमसेनने अपने भाई ःशासनका र पान कया, परंतु वहाँ उप थत स पु ष मसे कसी एकने भी नवारण नह कया। संजय! तभीसे मुझे वजयक आशा बलकुल नह रह गयी ।। २०४ ।। यदा ौषं कणम य तशूरं हतं पाथनाहवे व धृ यम् । त मन् ातॄणां व हे दे वगु े े

ॄ तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। २०५ ।। संजय! वह भाईका भाईसे यु दे वता क गु त ेरणासे हो रहा था। जब मने सुना क भ - भ यु भू मय म कभी परा जत न होनेवाले अ य त शूर शरोम ण कणको पृथापु अजुनने मार डाला, तब मेरी वजयक आशा न हो गयी ।। २०५ ।। यदा ौषं ोणपु ं च शूरं ःशासनं कृतवमाणमु म् । यु ध रं धमराजं जय तं तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। २०६ ।। जब मने सुना क धमराज यु ध र ोणपु अ थामा, शूरवीर ःशासन एवं उ यो ा कृतवमाको भी यु म जीत रहे ह, संजय! तभीसे मुझे वजयक आशा नह रह गयी ।। २०६ ।। यदा ौषं नहतं म राजं रणे शूरं धमराजेन सूत । सदा सं ामे पधते य तु कृ णं तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। २०७ ।। संजय! जब मने सुना क रणभू मम धमराज यु ध रने शूर शरोम ण म राज श यको मार डाला, जो सवदा यु म घोड़े हाँकनेके स ब धम ीकृ णक होड़ करनेपर उता रहता था, तभीसे म वजयक आशा नह करता था ।। २०७ ।। यदा ौषं कलह ूतमूलं मायाबलं सौबलं पा डवेन । हतं सं ामे सहदे वेन पापं तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। २०८ ।। जब मने सुना क कलहकारी ूतके मूल कारण, केवल छल-कपटके बलसे बली पापी शकु नको पा डु न दन सहदे वने रणभू मम यमराजके हवाले कर दया, संजय! तभी मेरी वजयक आशा समा त हो गयी ।। २०८ ।। यदा ौषं ा तमेकं शयानं दं ग वा त भ य वा तद भः । य धनं वरथं भ नश तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। २०९ ।। जब य धनका रथ छ - भ हो गया, श ीण हो गयी और वह थक गया, तब सरोवरपर जाकर वहाँका जल त भत करके उसम अकेला ही सो गया। संजय! जब मने यह संवाद सुना, तब मेरी वजयक आशा भी चली गयी ।। २०९ ।। यदा ौषं पा डवां त मानान् े े े

ग वा दे वासुदेवेन साधम् । अमषणं धषयतः सुतं मे तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। २१० ।। जब मने सुना क उसी सरोवरके तटपर ीकृ णके साथ पा डव जाकर खड़े ह और मेरे पु को अस वचन कहकर नीचा दखा रहे ह, तभी संजय! मने वजयक आशा सवथा याग द ।। २१० ।। यदा ौषं व वधां मागान् गदायु े म डलश र तम् । मयाहतं वासुद े व य बु या तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। २११ ।। संजय! जब मने सुना क गदायु म मेरा पु बड़ी नपुणतासे पतरे बदलकर रणकौशल कट कर रहा है और ीकृ णक सलाहसे भीमसेनने गदायु क मयादाके वपरीत जाँघम गदाका हार करके उसे मार डाला, तब तो संजय! मेरे मनम वजयक आशा रह ही नह गयी ।। २११ ।। यदा ौषं ोणपु ा द भ तैहतान् प चालान् ौपदे यां सु तान् । कृतं बीभ समयश यं च कम तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। २१२ ।। संजय! जब मने सुना क अ थामा आ द ने सोते ए पा चाल नरप तय और ौपद के होनहार पु को मारकर अ य त बीभ स और वंशके यशको कलं कत करनेवाला काम कया है, तब तो मुझे वजयक आशा रही ही नह ।। २१२ ।। यदा ौषं भीमसेनानुयातेना था ना परमा ं यु म् । ु े नैषीकमवधीद् येन गभ तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। २१३ ।। संजय! जब मने सुना क भीमसेनके पीछा करनेपर अ थामाने ोधपूवक स कके बाणपर ा का योग कर दया, जससे क पा डव का गभ थ वंशधर भी न हो जाय, तभी मेरे मनम वजयक आशा नह रही ।। २१३ ।। यदा ौषं शरोऽजुनेन व ती यु वा म ेण शा तम् । अ था ना म णर नं च द ं तदा नाशंसे वजयाय संजय ।। २१४ ।। जब मने सुना क अ थामाके ारा यु शर अ को अजुनने ‘ व त’, ‘ व त’ कहकर अपने अ से शा त कर दया और अ थामाको ी े ी े ी

अपना म णर न भी दे ना पड़ा। संजय! उसी समय मुझे जीतक आशा नह रही ।। २१४ ।। यदा ौषं ोणपु ेण गभ वैरा ा वै पा यमाने महा ैः । ै पायनः केशवो ोणपु ं पर परेणा भशापैः शशाप ।। २१५ ।। शो या गा धारी पु पौ ै वहीना तथा ब धु भः पतृ भ ातृ भ । कृतं काय करं पा डवेयैः ा तं रा यमसप नं पुन तैः ।। २१६ ।। जब मने सुना क अ थामा अपने महान् अ का योग करके उ राका गभ गरानेक चे ा कर रहा है तथा ीकृ ण ै पायन ास और वयं भगवान् ीकृ णने पर पर वचार करके उसे शाप से अ भश त कर दया है (तभी मेरी वजयक आशा सदाके लये समा त हो गयी)। इस समय गा धारीक दशा शोचनीय हो गयी है; य क उसके पु -पौ , पता तथा भाई-ब धु मसे कोई नह रहा। पा डव ने कर काय कर डाला। उ ह ने फरसे अपना अक टक रा य ा त कर लया ।। २१५-२१६ ।। क ं यु े दश शेषाः ुता मे योऽ माकं पा डवानां च स त । यूना वश तराहता ौ हणीनां त मन् सं ामे भैरवे याणाम् ।। २१७ ।। हाय-हाय! कतने क क बात है, मने सुना है क इस भयंकर यु म केवल दस बचे ह; मेरे प के तीन—कृपाचाय, अ थामा और कृतवमा तथा पा डवप के सात— ीकृ ण, सा य क और पाँच पा डव। य के इस भीषण सं ामम अठारह अ ौ हणी सेनाएँ न हो गय ।। २१७ ।। तम वतीव व तीण मोह आ वशतीव माम् । सं ां नोपलभे सूत मनो व लतीव मे ।। २१८ ।। सारथे! यह सब सुनकर मेरी आँख के सामने घना अ धकार छाया आ है। मेरे दयम मोहका आवेश-सा होता जा रहा है। म चेतना-शू य हो रहा ँ। मेरा मन व ल-सा हो रहा है ।। २१८ ।।

सौ त वाच इ यु वा धृतरा ोऽथ वल य ब ःखतः । मू छतः पुनरा तः संजयं वा यम वीत् ।। २१९ ।। उ वाजी कहते ह—धृतराने ऐसा कहकर ब त वलाप कया और अ य त ःखके कारण वे मू छत हो गये। फर होशम आकर कहने े

लगे ।। २१९ ।।

धृतरा उवाच संजयैवं गते ाणां य ु म छा म मा चरम् । तोकं प न प या म फलं जी वतधारणे ।। २२० ।। धृतरा ने कहा—संजय! यु का यह प रणाम नकलनेपर अब म अ वल ब अपने ाण छोड़ना चाहता ँ। अब जीवन-धारण करनेका कुछ भी फल मुझे दखलायी नह दे ता ।। २२० ।। सौ त वाच तं तथावा दनं द नं वलप तं महीप तम् । नः स तं यथा नागं मु मानं पुनः पुनः ।। २२१ ।। गाव ग ण रदं धीमान् महाथ वा यम वीत् । उ वाजी कहते ह—जब राजा धृतरा द नतापूवक वलाप करते ए ऐसा कह रहे थे और नागके समान ल बी साँस ले रहे थे तथा बार-बार मू छत होते जा रहे थे, तब बु मान् संजयने यह सारग भत वचन कया ।। २२१ ।। संजय उवाच ुतवान स वै राजन् महो साहान् महाबलान् ।। २२२ ।। ै पायन य वदतो नारद य च धीमतः । संजयने कहा—महाराज! आपने परम ानी दे व ष नारद एवं मह ष ासके मुखसे महान् उ साहसे यु एवं परम परा मी नृप तय का च र वण कया है ।। २२२ ।। मह सु राजवंशेषु गुणैः समु दतेषु च ।। २२३ ।। जातान् द ा व षः श तमतेजसः । धमण पृ थव ज वा य ै र ् वा तद णैः ।। २२४ ।। अ मँ लोके यशः ा य ततः कालवशं गतान् । शै यं महारथं वीरं सृ यं जयतां वरम् ।। २२५ ।। सुहो ं र तदे वं च का ीव तमथौ शजम् । बा कं दमनं चै ं शया तम जतं नलम् ।। २२६ ।। व ा म म म नम बरीषं महाबलम् । म ं मनु म वाकुं गयं भरतमेव च ।। २२७ ।। रामं दाशर थ चैव शश ब ं भगीरथम् । कृतवीय महाभागं तथैव जनमेजयम् ।। २२८ ।। यया त शुभकमाणं दे वैय या जतः वयम् । चै ययूपाङ् कता भू मय येयं सवनाकरा ।। २२९ ।। े

इ त रा ां चतु वश ारदे न सुर षणा । पु शोका भत ताय पुरा ै याय क ततम् ।। २३० ।। आपने ऐसे-ऐसे राजा के च र सुने ह जो सवसद्गुणस प महान् राजवंश म उ प , द अ -श के पारदश एवं दे वराज इ के समान भावशाली थे। ज ह ने धमयु से पृ वीपर वजय ा त क , बड़ी-बड़ी द णावाले य कये, इस लोकम उ वल यश ा त कया और फर कालके गालम समा गये। इनमसे महारथी शै य, वजयी वीर म े सृंजय, सुहो , र तदे व, का ीवान्, औ शज, बा क, दमन, चै , शया त, अपरा जत नल, श ुघाती व ा म , महाबली अ बरीष, म , मनु, इ वाकु, गय, भरत दशरथन दन ीराम, शश ब , भगीरथ, महाभा यशाली कृतवीय, जनमेजय और वे शुभकमा यया त, जनका य दे वता ने वयं करवाया था, ज ह ने अपनी राभू मको य क खान बना दया था और सारी पृ वी य -स ब धी यूप (खंभ )-से अं कत कर द थी—इन चौबीस राजा का वणन पूवकालम दे व ष नारदने पु शोकसे अ य त संत त महाराज ै यका ःख र करनेके लये कया था ।। २२३—२३० ।। ते य ा ये गताः पूव राजानो बलव राः । महारथा महा मानः सवः समु दता गुणैः ।। २३१ ।। पू ः कु य ः शूरो व वग ो महा ु तः । अणुहो युवना ककु थो व मी रघुः ।। २३२ ।। वजयो वी तहो ोऽ ो भवः ेतो बृहद्गु ः । उशीनरः शतरथः कङ् को ल हो मः ।। २३३ ।। द भो वः परो वेनः सगरः संकृ त न मः । अजेयः परशुः पु ः श भुद वावृधोऽनघः ।। २३४ ।। दे वा यः सु तमः सु तीको बृह थः । महो साहो वनीता मा सु तुनषधो नलः ।। २३५ ।। स य तः शा तभयः सु म ः सुबलः भुः । जानुजङ् घोऽनर योऽकः यभृ यः शु च तः ।। २३६ ।। बलब धु नरामदः केतुशृ ो बृहलः । धृ केतुबृह केतुद तके तु नरामयः ।। २३७ ।। अवी चपलो धूतः कृतब धु ढे षु धः । महापुराणस भा ः य ः परहा ु तः ।। २३८ ।। एते चा ये च राजानः शतशोऽथ सह शः । ूय ते शतश ा ये सं याता ैव पशः ।। २३९ ।। ह वा सु वपुलान् भोगान् बु म तो महाबलाः । राजानो नधनं ा ता तव पु ा इव भो ।। २४० ।। े



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महाराज! पछले युगम इन राजा के अ त र सरे और ब त-से महारथी, महा मा, शौय-वीय आ द सद्गुण से स प , परम परा मी राजा हो गये ह। जैसे—पू , कु , य , शूर, महातेज वी व वग , अणुह, युवना , ककु थ, परा मी रघु, वजय, वी तहो , अंग, भव, ेत, बृहद्गु , उशीनर, शतरथ, कंक, ल ह, म, द भो व, पर, वेन, सगर, संकृ त, न म, अजेय, परशु, पु , श भु, न पाप दे वावृध, दे वा य, सु तम, सु तीक, बृह थ, महान् उ साही और महा वनयी सु तु, नषधराज नल, स य त, शा तभय, सु म , सुबल, भु, जानुजंघ, अनर य, अक, यभृ य, शु च त, बलब धु, नरामद, केतुशृंग, बृहल, धृ केतु, बृह केतु, द तकेतु, नरामय, अवी त्, चपल, धूत, कृतब धु, ढे षु ध, महापुराण म स मा नत यंग, परहा और ु त —ये और इनके अ त र सरे सैकड़ तथा हजार राजा सुने जाते ह, जनका सैकड़ बार वणन कया गया है और इनके सवा सरे भी, जनक सं या प म कही गयी है, बड़े बु मान् और श शाली थे। महाराज! कतु वे अपने वपुल भोग-वैभवको छोड़कर वैसे ही मर गये, जैसे आपके पु क मृ यु ई है ।। २३१—२४० ।। येषां द ा न कमा ण व म याग एव च । माहा यम प चा त यं स यं शौचं दयाजवम् ।। २४१ ।। व ः कयते लोक े पुराणे क वस मैः । सव गुणस प ा ते चा प नधनं गताः ।। २४२ ।। जनके द कम, परा म, याग, माहा य, आ तकता, स य, प व ता, दया और सरलता आ द सद्गुण का वणन बड़े-बड़े व ान् एवं े तम क व ाचीन थ म तथा लोकम भी करते रहते ह, वे सम त स प और सद्गुण से स प महापु ष भी मृ युको ा त हो गये ।। २४१-२४२ ।। तव पु ा रा मानः त ता ैव म युना । लुधा वृ भू य ा न ता छो चतुमह स ।। २४३ ।। आपके पु य धन आ द तो रा मा, ोधसे जले-भुने, लोभी एवं अ य त राचारी थे। उनक मृ युपर आपको शोक नह करना चा हये ।। २४३ ।। ुतवान स मेधावी बु मान् ा स मतः । येषां शा ानुगा बु न ते मु त भारत ।। २४४ ।। आपने गु जन से सत्-शा का वण कया है। आपक धारणाश ती है, आप बु मान् ह और ानवान् पु ष आपका आदर करते ह। भरतवंश शरोमणे! जनक बु शा के अनुसार सोचती है, वे कभी शोकमोहसे मो हत नह होते ।। २४४ ।। न हानु हौ चा प व दतौ ते नरा धप । ना य तमेवानुवृ ः काया ते पु र णे ।। २४५ ।। े









महाराज! आपने पा डव के साथ नदयता और अपने पु के त प पातका जो बताव कया है, वह आपको व दत ही है। इस लये अब पु के जीवनके लये आपको अ य त ाकुल नह होना चा हये ।। २४५ ।। भ वत ं तथा त च नानुशो चतुमह स । दै वं ा वशेषेण को नव ततुमह त ।। २४६ ।। होनहार ही ऐसी थी, इसके लये आपको शोक नह करना चा हये। भला, इस सृ म ऐसा कौन-सा पु ष है, जो अपनी बु क वशेषतासे होनहार मटा सके ।। २४६ ।। वधातृ व हतं माग न क द तवतते । कालमूल मदं सव भावाभावौ सुखासुखे ।। २४७ ।। अपने कम का फल अव य ही भोगना पड़ता है—यह वधाताका वधान है। इसको कोई टाल नह सकता। ज म-मृ यु और सुख- ःख सबका मूल कारण काल ही है ।। २४७ ।। कालः सृज त भूता न कालः संहरते जाः । संहर तं जाः कालं कालः शमयते पुनः ।। २४८ ।। काल ही ा णय क सृ करता है और काल ही सम त जाका संहार करता है। फर जाका संहार करनेवाले उस कालको महाकाल व प परमा मा ही शा त करता है ।। २४८ ।। कालो ह कु ते भावान् सवलोके शुभाशुभान् । कालः सं पते सवाः जा वसृजते पुनः ।। २४९ ।। स पूण लोक म यह काल ही शुभ-अशुभ सब पदाथ का कता है। काल ही स पूण जाका संहार करता है और वही पुनः सबक सृ भी करता है ।। २४९ ।। कालः सु तेषु जाग त कालो ह र त मः । कालः सवषु भूतेषु चर य वधृतः समः ।। २५० ।। अतीतानागता भावा ये च वत त सा तम् । तान् काल न मतान् बुद ् वा न सं ां हातुमह स ।। २५१ ।। जब सुषु त-अव थाम सब इ याँ और मनोवृ तयाँ लीन हो जाती ह, तब भी यह काल जागता रहता है। कालक ग तका कोई उ लंघन नह कर सकता। वह स पूण ा णय म समान पसे बेरोक-टोक अपनी या करता रहता है। इस सृ म जतने पदाथ हो चुके, भ व यम ह गे और इस समय वतमान ह, वे सब कालक रचना ह; ऐसा समझकर आपको अपने ववेकका प र याग नह करना चा हये ।। २५०-२५१ ।। सौ त वाच इ येवं पु शोकत धृतरा ं जने रम् । ो



आ ा य व थमकरोत् सूतो गाव ग ण तदा ।। २५२ ।। अ ोप नषदं पु यां कृ ण ै पायनोऽ वीत् । व ः कयते लोक े पुराणे क वस मैः ।। २५३ ।। उ वाजी कहते ह—सूतवंशी संजयने यह सब कहकर पु शोकसे ाकुल नरप त धृतराको समझाया-बुझाया और उ ह व थ कया। इसी इ तहासके आधारपर ीकृ ण ै पायनने इस परम पु यमयी उप नषद्- प महाभारतका (शोकातुर ा णय का शोक नाश करनेके लये) न पण कया। व जन लोकम और े तम क व पुराण म सदासे इसीका वणन करते आये ह ।। २५२-२५३ ।। भारता ययनं पु यम प पादमधीयतः । धान य पूय ते सवपापा यशेषतः ।। २५४ ।। महाभारतका अ ययन अ तःकरणको शु करनेवाला है। जो कोई ाके साथ इसके कसी एक ोकके एक पादका भी अ ययन करता है, उसके सब पाप स पूण पसे मट जाते ह ।। २५४ ।। दे वा दे वषयो तथा षयोऽमलाः । क य ते शुभकमाण तथा य ा महोरगाः ।। २५५ ।। इस थर नम शुभ कम करनेवाले दे वता, दे व ष, नमल ष, य और महानाग का वणन कया गया है ।। २५५ ।। भगवान् वासुदेव क यतेऽ सनातनः । स ह स यमृतं चैव प व ं पु यमेव च ।। २५६ ।। इस थके मु य वषय ह वयं सनातन पर व प वासुदेव भगवान् ीकृ ण। उ ह का इसम संक तन कया गया है। वे ही स य, ऋत, प व एवं पु य ह ।। २५६ ।। शा तं परमं ुवं यो तः सनातनम् । य य द ा न कमा ण कथय त मनी षणः ।। २५७ ।। वे ही शा त पर ह और वे ही अ वनाशी सनातन यो त ह। मनीषी पु ष उ ह क द लीला का संक तन कया करते ह ।। २५७ ।। अस च सदस चैव य माद् व ं वतते । संत त वृ ज ममृ युपुनभवाः ।। २५८ ।। उ ह से असत्, सत् तथा सदसत्—उभय प स पूण व उ प होता है। उ ह से संत त ( जा), वृ (क -कम), ज म-मृ यु तथा पुनज म होते ह ।। २५८ ।। अ या मं ूयते य च प चभूतगुणा मकम् । अ ा द परं य च स एव प रगीयते ।। २५९ ।। इस महाभारतम जीवा माका व प भी बतलाया गया है एवं जो स वरज-तम—इन तीन गुण के काय प पाँच महाभूत ह, उनका तथा जो अ े ी ी ँ

कृ त आ दके मूल कारण परम परमा मा ह, उनका भी भलीभाँ त न पण कया गया है ।। २५९ ।। य द् य तवरा मु ा यानयोगबला वताः । त ब ब मवादश प य या म यव थतम् ।। २६० ।। यानयोगक श से स प जीव मु य तवर, दपणम त ब बके समान अपने दयम अव थत उ ह परमा माका अनुभव करते ह ।। २६० ।। धानः सदा यु ः सदा धमपरायणः । आसेव मम यायं नरः पापात् मु यते ।। २६१ ।। जो धमपरायण पु ष ाके साथ सवदा सावधान रहकर त दन इस अ यायका सेवन करता है, वह पाप-तापसे मु हो जाता है ।। २६१ ।। अनु म णका यायं भारत येममा दतः । आ तकः सततं शृ वन् न कृ े ववसीद त ।। २६२ ।। जो आ तक पु ष महाभारतके इस अनु म णका-अ यायको आ दसे अ ततक त दन वण करता है, वह संकटकालम भी ःखसे अ भभूत नह होता ।। २६२ ।। उभे सं ये जपन् क चत् स ो मु येत क बषात् । अनु म या यावत् याद ा राया च सं चतम् ।। २६३ ।। जो इस अनु म णका-अ यायका कुछ अंश भी ातः-सायं अथवा म या म जपता है, वह दन अथवा रा के समय सं चत स पूण पापरा शसे त काल मु हो जाता है ।। २६३ ।। भारत य वपु तत् स यं चामृतमेव च । नवनीतं यथा द नो पदां ा णो यथा ।। २६४ ।। आर यकं च वेदे य ओष ध योऽमृतं यथा । दानामुद धः े ो गौव र ा चतु पदाम् ।। २६५ ।। यथैतानी तहासानां तथा भारतमु यते । य ैनं ावये ा े ा णान् पादम ततः ।। २६६ ।। अ यम पानं वै पतॄं त योप त ते । यह अ याय महाभारतका मूल शरीर है। यह स य एवं अमृत है। जैसे दहीम नवनीत, मनु य म ा ण, वेद म उप नषद्, ओष धय म अमृत, सरोवर म समु और चौपाय म गाय सबसे े है, वैसे ही उ ह के समान इ तहास म यह महाभारत भी है। जो ा म भोजन करनेवाले ा ण को अ तम इस अ यायका एक चौथाई भाग अथवा ोकका एक चरण भी सुनाता है, उसके पतर को अ य अ -पानक ा त होती है ।। २६४-२६६ ।। इ तहासपुराणा यां वेदं समुपबृंहयेत् ।। २६७ ।। बभे य प ुताद् वेदो मामयं ह र य त । े



का ण वेद ममं व ा ाव य वाथमुते ।। २६८ ।। इ तहास और पुराण क सहायतासे ही वेद के अथका व तार एवं समथन करना चा हये। जो इ तहास एवं पुराण से अन भ है, उससे वेद डरते रहते ह क कह यह मुझपर हार कर दे गा। जो व ान् ीकृ ण ै पायन ारा कहे ए इस वेदका सर को वण कराते ह, उ ह मनोवां छत अथक ा त होती है ।। २६७-२६८ ।। ूणह या दकं चा प पापं ज ादसंशयम् । य इमं शु चर यायं पठ े त् पव ण पव ण ।। २६९ ।। अधीतं भारतं तेन कृ नं या द त मे म तः । य ैनं शृणुया यमाष ासम वतः ।। २७० ।। स द घमायुः क त च वग त चा ुया रः । एकत तुरो वेदान् भारतं चैतदे कतः ।। २७१ ।। पुरा कल सुरैः सवः समे य तुलया धृतम् । चतु यः सरह ये यो वेदे यो धकं यदा ।। २७२ ।। तदा भृ त लोकेऽ मन् महाभारतमु यते । मह वे च गु वे च यमाणं यतोऽ धकम् ।। २७३ ।। और इससे ूणह या आ द पाप का भी नाश हो जाता है, इसम संदेह नह है। जो प व होकर येक पवपर इस अ यायका पाठ करता है, उसे स पूण महाभारतके अ ययनका फल मलता है, ऐसा मेरा न य है। जो पु ष ाके साथ त दन इस मह ष ास णीत थर नका वण करता है, उसे द घ आयु, क त और वगक ा त होती है। ाचीन कालम सब दे वता ने इक े होकर तराजूके एक पलड़ेपर चार वेद को और सरेपर महाभारतको रखा। परंतु जब यह रह यस हत चार वेद क अपे ा अ धक भारी नकला, तभीसे संसारम यह महाभारतके नामसे कहा जाने लगा। स यके तराजूपर तौलनेसे यह थ मह व, गौरव अथवा ग भीरताम वेद से भी अ धक स आ है ।। २६९ —२७३ ।। मह वाद् भारव वा च महाभारतमु यते । न म य यो वेद सवपापैः मु यते ।। २७४ ।। अतएव मह ा, भार अथवा ग भीरताक वशेषतासे ही इसको महाभारत कहते ह। जो इस थके नवचनको जान लेता है, वह सब पाप से छू ट जाता है ।। २७४ ।। तपो न क कोऽ ययनं न क कः वाभा वको वेद व धन क कः । स व ाहरणं न क कता येव भावोपहता न क कः ।। २७५ ।। ै







तप या नमल है, शा का अ ययन भी नमल है, वणा मके अनुसार वाभा वक वेदो व ध भी नमल है और क पूवक उपाजन कया आ धन भी नमल है, कतु वे ही सब वपरीत भावसे कये जानेपर पापमय ह अथात् सरेके अ न के लये कया आ तप, शा ा ययन और वेदो वाभा वक कम तथा लेशपूवक उपाजत धन भी पापयु हो जाता है। (ता पय यह क इस थर नम भावशु पर वशेष जोर दया गया है; इस लये महाभारतथका अ ययन करते समय भी भाव शु रखना चा हये) ।। २७५ ।। इत

ीम महाभारते आ दपव ण अनु म णकापव ण थमोऽ यायः ।। १ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत अनु म णकापवम पहला अ याय पूरा आ ।। १ ।। [दा णा य अ धक पाठक े ७ ोक मलाकर कुल २८२ ोक ह]

।। अनु म णकापव स पूण ।। १. जय श दका अथ महाभारत नामक इ तहास ही है। आगे चलकर कहा है—‘जयो नामे तहासोऽयम्’ इ या द। अथवा अठारह पुराण, वा मी करामायण आ द सभी आष- थ क सं ा ‘जय’ है। २. मंगलाचरणका ोक दे खनेपर ऐसा जान पड़ता है क यहाँ नारायण श दका अथ है भगवान् ीकृ ण और नरो म नरका अथ है नरर न अजुन। महाभारतम ायः सव इ ह दोन का नर-नारायणके अवतारके पम उ लेख आ है। इससे मंगलाचरणम थके इन दोन धान पा तथा भगवान्के मू तयुगलको णाम करना मंगलाचरणको नम कारा मक होनेके साथ ही व तु नदशा मक भी बना दे ता है। इस लये अनुवादम ीकृ ण और अजुनका ही उ लेख कया गया है। ३. नै मषार य नामक ा या वाराहपुराणम इस कार मलती है— एवं कृ वा ततो दे वो मु न गौरमुखं तदा। उवाच न मषेणेदं नहतं दानवं बलम् ।। अर येऽ मं तत वेत ै मषार यसं तम् । ऐसा करके भगवान्ने उस समय गौरमुख मु नसे कहा—‘मने न मषमा म इस अर य (वन)-के भीतर इस दानव-सेनाका संहार कया है; अतः यह वन नै मषार यके नामसे स होगा।’ ४. जो व ान् ा ण अकेला ही दस सह ज ासु य का अ -दाना दके ारा भरण-पोषण करता है, उसे कुलप त कहते ह। ५. जो काय अनेक य के सहयोगसे कया गया हो और जसम ब त को ान, सदाचार आ दक श ा तथा अ -व ा द व तुएँ द जाती ह , जो ब त के लये तृ तकारक एवं उपयोगी हो, उसे ‘स ’ कहते ह। १. ‘तत् सृ ् वा तदे वानु ा वशत्’ (तै रीय उप नषद्)। ने अ ड एवं प डक रचना करके मानो वयं ही उसम वेश कया है। २. ऋषयः स त पूव ये मनव चतुदश । एते जानां पतय ए भः क पः समा यते ।। (नीलक ठ म ा डपुराणका वचन) * यह और इसके बादका ोक महाभारतके ता पयके सूचक ह। य धन ोध है। यहाँ ोध श दसे े ष-असूया आ द गुण भी समझ लेने चा हये। कण, शकु न, ःशासन आ द उससे एकताको ा त ह, उसीके व प ह। इन सबका मूल है राजा धृतरा। यह अ ानी अपने मनको वशम करनेम असमथ है। इसीने पु क आस से अंधे होकर य धनको अवसर दया, जससे उसक जड़ मजबूत हो गयी। य द ो









यह य धनको वशम कर लेता अथवा बचपनम ही व र आ दक बात मानकर इसका याग कर दे ता तो वष-दान, ला ागृहदाह, ौपद -केशाकषण आ द कम का अवसर ही नह आता और कुल य न होता। इस संगसे यह भाव सू चत कया गया है क यह जो म यु ( य धन)- प वृ है, इसका ढ़ अ ान ही मूल है, ोध-लोभा द क ध ह, हसा-चोरी आ द शाखाएँ ह और ब धन-नरका द इसके फलपु प ह। पु षाथकामी पु षको मूला ानका उ छे द करके पहले ही इस ( ोध प) वृ को न कर दे ना चा हये। * यु ध र धम ह। इसका अ भ ाय यह है क वे शम, दम, स य, अ हसा आ द प धमक मू त ह।

अजुन-भीम आ दको धमक शाखा बतलानेका अ भ ाय यह है क वे सब यु ध रके ही व प ह, उनसे अ भ ह। शु स वमय ान व ह ीकृ ण प परमा मा ही उसके मूल ह। उनके ढ़ ानसे ही धमक न व मजबूत होती है। ु त भगवतीने कहा है क ‘हे गाग ! इस अ वनाशी परमा माको जाने बना इस लोकम जो हजार वषपय त य करता है, दान दे ता है, तप या करता है, उन सबका फल नाशवान् ही होता है।’ ानका मूल है अथात् वेद। वेदसे ही परमधम योग और अपरधम य -यागा दका ान होता है। यह न त स ा त है क धमका मूल केवल श द माण ही है। वेदके भी मूल ा ण ह; य क वे ही वेद-स दायके वतक ह। इस कार उपदे शकके पम ा ण, माणके पम वेद और अनु ाहकके पम परमा मा धमका मूल है। इससे यह बात स ई है क वेद और ा णका भ अ धकारी पु ष भगवदाराधनके बलसे योगा द प धममय वृ का स पादन करे। उस वृ के अ हसा-स य आ द तने ह। धारण- यान आ द शाखाएँ ह और त व-सा ा कार ही उसका फल है। इस धममय वृ के समा यसे ही पु षाथक स होती है, अ यथा नह । * शा ो आचारका प र याग न करना, सदाचारी स पु ष का संग करना और सदाचारम ढ़तासे थत रहना—इसको ‘शौच’ कहते ह। अपनी इ छाके अनुकूल और तकूल पदाथ क ा त होनेपर च म वकार न होना ही ‘धृ त’ है। सबसे बढ़कर साम यका होना ही ‘ व म’ है। सद्वृ क अनुवृ ही ‘शु ूषा’ है। (सदाचारपरायण गु जन का अनुसरण गु शु ूषा है।) कसीके ारा अपराध बन जानेपर भी उसके त अपने च म ोध आ द वकार का न होना ही ‘ माशीलता’ है। जते यता अथवा अनु त रहना ही ‘ वनय’ है। बलवान् श ुको भी परा जत कर दे नेका अ यवसाय ‘शौय’ है। इनके सं ाहक ोक इस कार ह— आचाराप रहार संसग ा य न दतैः । आचारे च व थानं शौच म य भधीयते ।। इ ा न ाथस प ौ च या वकृ तधृ तः । सवा तशयसाम य व मं प रच ते ।। वृ ानुवृ ः शु ूषा ा तराग य व या । जते य वं वनयोऽथवानु तशीलता ।। शौयम यवसायः याद् ब लनोऽ प पराभवे ।। * आचाय, ा, ऋ वक्, सद य, यजमान, यजमानप नी, धन-स प , ा-उ साह, व धवधानका स यक् पालन एवं सद्बु

आ द य क उ म गुणसाम ीके अ तगत ह।

(प वसं हपव) तीयोऽ यायः सम तपंचक े का वणन, अ ौ हणी सेनाका माण, महाभारतम व णत पव और उनके सं त वषय का सं ह तथा महाभारतके वण एवं पठ नका फल ऋषय ऊचुः सम तप चक म त य ं सूतन दन । एतत् सव यथात वं ोतु म छामहे वयम् ।। १ ।। ऋ ष बोले—सूतन दन! आपने अपने वचनके ार भम जो सम तपंचक (कु े )क चचा क थी, अब हम उस दे श (तथा वहाँ ए यु )-के स ब धम पूण पसे सब कुछ यथावत् सुनना चाहते ह ।। १ ।। सौ त वाच शृणु वं मम भो व ा ुवत कथाः शुभाः । सम तप चका यं च ोतुमहथ स माः ।। २ ।। उ वाजीने कहा—साधु शरोम ण व गण! अब म क याणदा यनी शुभ कथाएँ कह रहा ँ; उसे आपलोग सावधान च से सु नये और इसी संगम सम तपंचक े का वणन भी सुन ली जये ।। २ ।। ेता ापरयोः स धौ रामः श भृतां वरः । असकृत् पा थवं ं जघानामषचो दतः ।। ३ ।। ेता और ापरक स धके समय श धा रय म े परशुरामजीने य के त ोधसे े रत होकर अनेक बार य राजा का संहार कया ।। ३ ।। स सव मु सा ववीयणानल ु तः । सम तप चके प च चकार रौ धरान् दान् ।। ४ ।। अ नके समान तेज वी परशुरामजीने अपने परा मसे स पूण यवंशका संहार करके सम तपंचक े म र के पाँच सरोवर बना दये ।। ४ ।। स तेषु धरा भःसु दे षु ोधमू छतः । पतॄन् संतपयामास धरेणे त नः ुतम् ।। ५ ।। ोधसे आ व होकर परशुरामजीने उन र प जलसे भरे ए सरोवर म र ा लक े ारा अपने पतर का तपण कया, यह बात हमने सुनी है ।। ५ ।। ो





अथच कादयोऽ ये य पतरो रामम ुवन् । राम राम महाभाग ीताः म तव भागव ।। ६ ।। अनया पतृभ या च व मेण तव भो । वरं वृणी व भ ं ते य म छ स महा ुते ।। ७ ।। तदन तर, ऋचीक आ द पतृगण परशुरामजीके पास आकर बोले—‘महाभाग राम! साम यशाली भृगव ु ंशभूषण परशुराम!! तु हारी इस पतृभ और परा मसे हम ब त ही स ह। महा तापी परशुराम! तु हारा क याण हो। तु ह जस वरक इ छा हो हमसे माँग लो’ ।। ६-७ ।। राम उवाच य द मे पतरः ीता य नु ा ता म य । य च रोषा भभूतेन मु सा दतं मया ।। ८ ।। अत पापा मु येऽहमेष मे ा थतो वरः । दा तीथभूता मे भवेयुभु व व ुताः ।। ९ ।। परशुरामजीने कहा—य द आप सब हमारे पतर मुझपर स ह और मुझे अपने अनु हका पा समझते ह तो मने जो ोधवश यवंशका व वंस कया है, इस कुकमके पापसे म मु हो जाऊँ और ये मेरे बनाये ए सरोवर पृ वीम स तीथ हो जायँ। यही वर म आपलोग से चाहता ँ ।। ८-९ ।। एवं भ व यती येवं पतर तमथा ुवन् । तं म वे त न ष षधु ततः स वरराम ह ।। १० ।। तदन तर ‘ऐसा ही होगा’ यह कहकर पतर ने वरदान दया। साथ ही ‘अब बचे-खुचे यवंशको मा कर दो’—ऐसा कहकर उ ह य के संहारसे भी रोक दया। इसके प ात् परशुरामजी शा त हो गये ।। १० ।। तेषां समीपे यो दे शो दानां धरा भसाम् । सम तप चक म त पु यं तत् प रक ततम् ।। ११ ।। उन र से भरे सरोवर के पास जो दे श है उसे ही सम तपंचक कहते ह। यह े ब त ही पु य द है ।। ११ ।। येन ल े न यो दे शो यु ः समुपल यते । तेनैव ना ना तं दे शं वा यमा मनी षणः ।। १२ ।। जस च से जो दे श यु होता है और जससे जसक पहचान होती है, व ान का कहना है क उस दे शका वही नाम रखना चा हये ।। १२ ।। अ तरे चैव स ा ते क ल ापरयोरभूत् । सम तप चके यु ं कु पा डवसेनयोः ।। १३ ।। जब क लयुग और ापरक स धका समय आया, तब उसी सम तपंचक े म कौरव और पा डव क सेना का पर पर भीषण यु आ ।। १३ ।। त मन् परमध म े दे शे भूदोषव जते । ौ



अ ादश समाज मुर ौ ह यो युयु सया ।। १४ ।। भू मस ब धी दोष से१ र हत उस परम धामक दे शम यु करनेक इ छासे अठारह अ ौ हणी सेनाएँ इक ई थ ।। १४ ।। समे य तं जा ता त ैव नधनं गताः । एत ामा भ नवृ ं त य दे श य वै जाः ।। १५ ।। ा णो! वे सब सेनाएँ वहाँ इक और वह न हो गय । जवरो! इसीसे उस दे शका नाम सम तपंचक२ पड़ गया ।। १५ ।। पु य रमणीय स दे शो वः क ततः । तदे तत् क थतं सव मया ा णस माः । यथा दे शः स व यात षु लोकेषु सु ताः ।। १६ ।। वह दे श अ य त पु यमय एवं रमणीय कहा गया है। उ म तका पालन करनेवाले े ा णो! तीन लोक म जस कार उस दे शक स ई थी, वह सब मने आपलोग से कह दया ।। १६ ।। ऋषय ऊचुः अ ौ ह य इ त ो ं य वया सूतन दन । एत द छामहे ोतुं सवमेव यथातथम् ।। १७ ।। ऋ षय ने पूछा—सूतन दन! अभी-अभी आपने जो अ ौ हणी श दका उ चारण कया है, इसके स ब धम हमलोग सारी बात यथाथ पसे सुनना चाहते ह ।। १७ ।। अ ौ ह याः परीमाणं नरा रथद तनाम् । यथाव चैव नो ू ह सव ह व दतं तव ।। १८ ।। अ ौ हणी सेनाम कतने पैदल, घोड़े, रथ और हाथी होते ह? इसका हम यथाथ वणन सुनाइये; य क आपको सब कुछ ात है ।। १८ ।। सौ त वाच एको रथो गज ैको नराः प च पदातयः । य तुरगा त ैः प र य भधीयते ।। १९ ।। उ वाजीने कहा—एक रथ, एक हाथी, पाँच पैदल सै नक और तीन घोड़े—बस, इ ह को सेनाके मम व ान ने ‘प ’ कहा है ।। १९ ।। प तु गुणामेतामा ः सेनामुखं बुधाः । ी ण सेनामुखा येको गु म इ य भधीयते ।। २० ।। इसी प क तगुनी सं याको व ान् पु ष ‘सेनामुख’ कहते ह। तीन ‘सेनामुख ’ को एक ‘गु म’ कहा जाता है ।। २० ।। यो गु मा गणो नाम वा हनी तु गणा यः । मृता त तु वा ह यः पृतने त वच णैः ।। २१ ।। ी













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तीन गु मका एक ‘गण’ होता है, तीन गणक एक ‘वा हनी’ होती है और तीन वा ह नय को सेनाका रह य जाननेवाले व ान ने ‘पृतना’ कहा है ।। २१ ।। चमू तु पृतना त त ब वनी कनी । अनी कन दशगुणां ा र ौ हण बुधाः ।। २२ ।। तीन पृतनाक एक ‘चमू’, तीन चमूक एक ‘अनी कनी’ और दस अनी कनीक एक ‘अ ौ हणी’ होती है। यह व ान का कथन है ।। २२ ।। अ ौ ह याः सं याता रथानां जस माः । सं या ग णतत व ैः सह ा येक वश तः ।। २३ ।। शता युप र चैवा ौ तथा भूय स त तः । गजानां च परीमाणमेतदे व व न दशेत् ।। २४ ।। े ा णो! ग णतके त व व ान ने एक अ ौ हणी सेनाम रथ क सं या इ क स हजार आठ सौ स र (२१,८७०) बतलायी है। हा थय क सं या भी इतनी ही कहनी चा हये ।। २३-२४ ।। ेयं शतसह ं तु सह ा ण नवैव तु । नराणाम प प चाश छता न ी ण चानघाः ।। २५ ।। न पाप ा णो! एक अ ौ हणीम पैदल मनु य क सं या एक लाख नौ हजार तीन सौ पचास (१,०९,३५०) जाननी चा हये ।। २५ ।। प चष सह ा ण तथा ानां शता न च । दशो रा ण षट् ा यथाव दह सं यया ।। २६ ।। एक अ ौ हणी सेनाम, घोड़ क ठ क-ठ क सं या पसठ हजार छः सौ दस (६५,६१०) कही गयी है ।। २६ ।। एताम ौ हण ा ः सं यात व वदो जनाः । यां वः क थतवान म व तरेण तपोधनाः ।। २७ ।। तपोधनो! सं याका त व जाननेवाले व ान ने इसीको अ ौ हणी कहा है, जसे मने आपलोग को व तारपूवक बताया है ।। २७ ।। एतया सं यया ासन् कु पा डवसेनयोः । अ ौ ह यो ज े ाः प डता ादशैव तु ।। २८ ।। े ा णो! इसी गणनाके अनुसार कौरव-पा डव दोन सेना क सं या अठारह अ ौ हणी थी ।। २८ ।। समेता त वै दे शे त ैव नधनं गताः । कौरवान् कारणं कृ वा कालेना तकमणा ।। २९ ।। अद्भुत कम करनेवाले कालक ेरणासे सम तपंचक े म कौरव को न म बनाकर इतनी सेनाएँ इक और वह नाशको ा त हो गय ।। २९ ।। अहा न युयुधे भी मो दशैव परमा वत् । अहा न प च ोण तु रर कु वा हनीम् ।। ३० ।। े





अ -श के सव प र मम भी म पतामहने दस दन तक यु कया, आचाय ोणने पाँच दन तक कौरव-सेनाक र ा क ।। ३० ।। अहनी युयुधे े तु कणः परबलादनः । श योऽध दवसं चैव गदायु मतः परम् ।। ३१ ।। श ुसेनाको पी ड़त करनेवाले वीरवर कणने दो दन यु कया और श यने आधे दनतक। इसके प ात् ( य धन और भीमसेनका पर पर) गदायु आधे दनतक होता रहा ।। ३१ ।। त यैव दवस या ते ौ णहा द यगौतमाः । सु तं न श व तं ज नुय ध रं बलम् ।। ३२ ।। अठारहवाँ दन बीत जानेपर रा के समय अ थामा, कृतवमा और कृपाचायने नःशंक सोते ए यु ध रके सै नक को मार डाला ।। ३२ ।। य ु शौनक स े ते भारता यानमु मम् । जनमेजय य तत् स े ास श येण धीमता ।। ३३ ।। क थतं व तराथ च यशो वीय मही ताम् । पौ यं त च पौलोममा तीकं चा दतः मृतम् ।। ३४ ।। शौनकजी! आपके इस स संग-स म म यह जो उ म इ तहास महाभारत सुना रहा ँ, यही जनमेजयके सपय म ासजीके बु मान् श य वैश पायनजीके ारा भी वणन कया गया था। उ ह ने बड़े-बड़े नरप तय के यश और परा मका व तारपूवक वणन करनेके लये ार भम पौ य, पौलोम और आ तीक—इन तीन पव का मरण कया है ।। ३३-३४ ।। व च ाथपदा यानमनेकसमया वतम् । तप ं नरैः ा ैवरा य मव मो भः ।। ३५ ।। जैसे मो चाहनेवाले पु ष पर-वैरा यक शरण हण करते ह, वैसे ही ावान् मनु य अलौ कक अथ, व च पद, अद्भुत आ यान और भाँ त-भाँ तक पर पर वल ण मयादा से यु इस महाभारतका आ य हण करते ह ।। ३५ ।। आ मेव वे दत ेषु ये वव ह जी वतम् । इ तहासः धानाथः े ः सवागमे वयम् ।। ३६ ।। जैसे जाननेयो य पदाथ म आ मा, य पदाथ म अपना जीवन सव े है, वैसे ही स पूण शा म पर परमा माक ा त प योजनको पूण करनेवाला यह इ तहास े है ।। ३६ ।। अना येदमा यानं कथा भु व न व ते । आहारमनपा य शरीर येव धारणम् ।। ३७ ।। जैसे भोजन कये बना शरीर- नवाह स भव नह है, वैसे ही इस इ तहासका आ य लये बना पृ वीपर कोई कथा नह है ।। ३७ ।। तदे तद् भारतं नाम क व भ तूपजी ते । उदय े सु भभृ यैर भजात इवे रः ।। ३८ ।। ै े ी े े ी े े ी औ

जैसे अपनी उ त चाहनेवाले मह वाकां ी सेवक अपने कुलीन और स ावस प वामीक सेवा करते ह, इसी कार संसारके े क व इस महाभारतक सेवा करके ही अपने का क रचना करते ह ।। ३८ ।। इ तहासो मे य म पता बु मा । वर नयोः कृ ना लोकवेदा येव वाक् ।। ३९ ।। जैसे लौ कक और वै दक सब कारके ानको का शत करनेवाली स पूण वाणी वर एवं ंजन म समायी रहती है, वैसे ही (लोक, परलोक एवं परमाथस ब धी) स पूण उ म व ा-बु इस े इ तहासम भरी ई है ।। ३९ ।। त य ा भप य व च पदपवणः । सू माथ याययु य वेदाथभू षत य च ।। ४० ।। भारत ये तहास य ूयतां पवसं हः । पवानु मणी पूव तीयः पवसं हः ।। ४१ ।। यह महाभारत इ तहास ानका भ डार है। इसम सू म-से-सू म पदाथ और उनका अनुभव करानेवाली यु याँ भरी ई ह। इसका एक-एक पद और पव आ यजनक है तथा यह वेद के धममय अथसे अलंकृत है। अब इसके पव क सं ह-सूची सु नये। पहले अ यायम पवानु मणी है और सरेम पवसं ह ।। ४०-४१ ।। पौ यं पौलोममा तीकमा दरंशावतारणम् । ततः स भवपव म तं रोमहषणम् ।। ४२ ।। इसके प ात् पौ य, पौलोम, आ तीक और आ दअंशावतरण पव ह। तदन तर स भवपवका वणन है, जो अ य त अद्भुत और रोमांचकारी है ।। ४२ ।। दाहो जतुगृह या है ड बं पव चो यते । ततो बकवधः पव पव चै रथं ततः ।। ४३ ।। इसके प ात् जतुगह ृ (ला ाभवन) दाहपव है। तदन तर ह ड बवधपव है, फर बकवध और उसके बाद चै रथपव है ।। ४३ ।। ततः वयंवरो दे ाः पा चा याः पव चो यते । ा धमण न ज य ततो वैवा हकं मृतम् ।। ४४ ।। उसके बाद पांचालराजकुमारी दे वी ौपद के वयंवरपवका तथा यधमसे सब राजा पर वजय- ा तपूवक वैवा हकपवका वणन है ।। ४४ ।। व रागमनं पव रा यल भ तथैव च । अजुन य वने वासः सुभ ाहरणं ततः ।। ४५ ।। व रागमन, रा यल भपव, त प ात् अजुन-वनवासपव और फर सुभ ाहरणपव है ।। ४५ ।। सुभ ाहरणा व ेया हरणहा रका । ततः खा डवदाहा यं त ैव मयदशनम् ।। ४६ ।। सुभ ाहरणके बाद हरणाहरणपव है, पुनः खा डवदाह-पव है, उसीम मयदानवके दशनक कथा है ।। ४६ ।। ो

सभापव ततः ो ं म पव ततः परम् । जरास धवधः पव पव द वजयं तथा ।। ४७ ।। इसके बाद मशः सभापव, म पव, जरास ध-वधपव और द वजयपवका वचन है ।। ४७ ।। पव द वजया व राजसू यकमु यते । तत ाघा भहरणं शशुपालवध ततः ।। ४८ ।। तदन तर राजसूय, अघा भहरण और शशुपाल-वधपव कहे गये ह ।। ४८ ।। ूतपव ततः ो मनु ूतमतः परम् । तत आर यकं पव कम रवध एव च ।। ४९ ।। इसके बाद मशः ूत एवं अनु ूतपव ह। त प ात् वनया ापव तथा कम रवधपव है ।। ४९ ।। अजुन या भगमनं पव ेयमतः परम् । ई राजुनयोयु ं पव कैरातसं तम् ।। ५० ।। इसके बाद अजुना भगमनपव जानना चा हये और फर कैरातपव आता है, जसम सव र भगवान् शव तथा अजुनके यु का वणन है ।। ५० ।। इ लोका भगमनं पव ेयमतः परम् । नलोपा यानम प च धा मकं क णोदयम् ।। ५१ ।। त प ात् इ लोका भगमनपव है, फर धामक तथा क णो पादक नलोपा यानपव है ।। ५१ ।। तीथया ा ततः पव कु राज य धीमतः । जटासुरवधः पव य यु मतः परम् ।। ५२ ।। तदन तर बु मान् कु राजका तीथया ापव, जटासुरवधपव और उसके बाद य यु पव है ।। ५२ ।। नवातकवचैयु ं पव चाजगरं ततः । माक डेयसमा या च पवान तरमु यते ।। ५३ ।। इसके प ात् नवातकवचयु , आजगर और माक डेयसमा यापव मशः कहे गये ह ।। ५३ ।। संवाद ततः पव ौपद स यभामयोः । घोषया ा ततः पव मृग व ो वं ततः ।। ५४ ।। ी ह ौ णकमा यानमै ु नं तथैव च । ौपद हरणं पव जय थ वमो णम् ।। ५५ ।। इसके बाद आता है ौपद और स यभामाके संवादका पव, इसके अन तर घोषया ापव है, उसीम मृग व ो व और ी ह ौ णक उपा यान है। तदन तर इ ु नका आ यान और उसके बाद ौपद हरणपव है। उसीम जय थ वमो णपव है ।। ५४-५५ ।। प त ताया माहा यं सा वया ैवम तम् । रामोपा यानम ैव पव ेयमतः परम् ।। ५६ ।। े ी े ै ी

इसके बाद प त ता सा व ीके पा त यका अद्भुत माहा य है। फर इसी थानपर रामोपा यानपव जानना चा हये ।। ५६ ।। कु डलाहरणं पव ततः पर महो यते । आरणेयं ततः पव वैराटं तदन तरम् । पा डवानां वेश समय य च पालनम् ।। ५७ ।। इसके बाद मशः कु डलाहरण और आरणेय-पव कहे गये ह। तदन तर वराटपवका आर भ होता है, जसम पा डव के नगर वेश और समयपालन-स ब धीपव ह ।। ५७ ।। क चकानां वधः पव पव गो हणं ततः । अ भम यो वैरा ाः पव वैवा हकं मृतम् ।। ५८ ।। इसके बाद क चकवधपव, गो हण (गोहरण)-पव तथा अ भम यु और उ राके ववाहका पव है ।। ५८ ।। उ ोगपव व ेयमत ऊ व महा तम् । ततः संजययाना यं पव ेयमतः परम् ।। ५९ ।। जागरं तथा पव धृतरा य च तया । पव सान सुजातं वै गु म या मदशनम् ।। ६० ।। इसके प ात् परम अद्भुत उ ोगपव समझना चा हये। इसीम संजययानपव कहा गया है। तदन तर च ताके कारण धृतराक े रातभर जागनेसे स ब ध रखनेवाला जागरपव समझना चा हये। त प ात् वह स सन सुजातपव है, जसम अ य त गोपनीय अ या मदशनका समावेश आ है ।। ५९-६० ।। यानस ध ततः पव भगव ानमेव च । मातलीयमुपा यानं च रतं गालव य च ।। ६१ ।। सा व ं वामदे ं च वै योपा यानमेव च । जामद यमुपा यानं पव षोडशरा जकम् ।। ६२ ।। इसके प ात् यानस ध तथा भगवद्यानपव है, इसीम मात लका उपा यान, गालवच रत, सा व , वामदे व तथा वै य-उपा यान, जामद य और षोडशरा जक-उपा यान आते ह ।। ६१-६२ ।। सभा वेशः कृ ण य व लापु शासनम् । उ ोगः सै य नयाणं व ोपा यानमेव च ।। ६३ ।। फर ीकृ णका सभा वेश, व लाका अपने पु के त उपदे श, यु का उ ोग, सै य नयाण तथा व ोपा यान—इनका मशः उ लेख आ है ।। ६३ ।। ेयं ववादपवा कण या प महा मनः । नयाणं च ततः पव कु पा डवसेनयोः ।। ६४ ।। इसी संगम महा मा कणका ववादपव है। तदन तर कौरव एवं पा डव-सेनाका नयाणपव है ।। ६४ ।। रथा तरथसं या च पव ं तदन तरम् । उलूक तागमनं पवामष ववधनम् ।। ६५ ।। औ े ो े

त प ात् रथा तरथसं यापव और उसके बाद ोधक आग व लत करनेवाला उलूक तागमनपव है ।। ६५ ।। अ बोपा यानम ैव पव ेयमतः परम् । भी मा भषेचनं पव तत ा तमु यते ।। ६६ ।। इसके बाद ही अ बोपा यानपव है। त प ात् अद्भुत भी मा भषेचनपव कहा गया है ।। ६६ ।। ज बूख ड व नमाणं पव ं तदन तरम् । भू मपव ततः ो ं प व तारक तनम् ।। ६७ ।। इसके आगे ज बूख ड व नमाणपव है। तदन तर भू मपव कहा गया है, जसम प के व तारका क तन कया गया है ।। ६७ ।। पव ं भगव ता पव भी मवध ततः । ोणा भषेचनं पव संश तकवध ततः ।। ६८ ।। इसके बाद मशः भगवद्गीता, भी मवध, ोणा भषेक तथा संश तकवधपव ह ।। ६८ ।। अ भम युवधः पव त ापव चो यते । जय थवधः पव घटो कचवध ततः ।। ६९ ।। इसके बाद अ भम युवधपव, त ापव, जय थवधपव और घटो कचवधपव ह ।। ६९ ।। ततो ोणवधः पव व ेयं लोमहषणम् । मो ो नारायणा य पवान तरमु यते ।। ७० ।। फर र गटे खड़े कर दे नेवाला ोणवधपव जानना चा हये। तदन तर नारायणा मो पव कहा गया है ।। ७० ।। कणपव ततो ेयं श यपव ततः परम् । द वेशनं पव गदायु मतः परम् ।। ७१ ।। फर कणपव और उसके बाद श यपव है। इसी पवम द वेश और गदायु पव भी ह ।। ७१ ।। सार वतं ततः पव तीथवंशानुक तनम् । अत ऊ व सुबीभ सं पव सौ तकमु यते ।। ७२ ।। तदन तर सार वतपव है, जसम तीथ और वंश का वणन कया गया है। इसके बाद है अ य त बीभ स सौ तकपव ।। ७२ ।। ऐषीक ं पव चो मत ऊ व सुदा णम् । जल दा नकं पव ी वलाप ततः परम् ।। ७३ ।। इसके बाद अ य त दा ण ऐषीकपवक कथा है। फर जल दा नक और ी वलापपव आते ह ।। ७३ ।। ा पव ततो ेयं कु णामौ वदे हकम् । चावाक न हः पव र सो पणः ।। ७४ ।। ै ौ े ै े

त प ात् ा पव है, जसम मृत कौरव क अ ये याका वणन है। उसके बाद ा ण-वेषधारी रा स चावाकके न हका पव है ।। ७४ ।। आ भषेच नकं पव धमराज य धीमतः । वभागो गृहाणां च पव ं तदन तरम् ।। ७५ ।। तदन तर धमबु स प धमराज यु ध रके अ भषेकका पव है तथा इसके प ात् गृह वभागपव है ।। ७५ ।। शा तपव ततो य राजधमानुशासनम् । आप म पव ं मो धम ततः परम् ।। ७६ ।। इसके बाद शा तपव ार भ होता है; जसम राजधमानुशासन, आप म और मो धमपव ह ।। ७६ ।। शुक ा भगमनं ानुशासनम् । ा भाव वासः संवाद ैव मायया ।। ७७ ।। फर शुक ा भगमन, ानुशासन, वासाका ा भाव और मायासंवादपव ह ।। ७७ ।। ततः पव प र ेयमानुशास नकं परम् । वगारोह णकं चैव ततो भी म य धीमतः ।। ७८ ।। इसके बाद धमाधमका अनुशासन करनेवाला आनुशास नकपव है, तदन तर बु मान् भी मजीका वगारोहणपव है ।। ७८ ।। ततोऽऽ मे धकं पव सवपाप णाशनम् । अनुगीता ततः पव ेयम या मवाचकम् ।। ७९ ।। अब आता है आ मे धकपव, जो स पूण पाप का नाशक है। उसीम अनुगीतापव है, जसम अ या म ानका सु दर न पण आ है ।। ७९ ।। पव चा मवासा यं पु दशनमेव च । नारदागमनं पव ततः पर महो यते ।। ८० ।। इसके बाद आ मवा सक, पु दशन और तदन तर नारदागमनपव कहे गये ह ।। ८० ।। मौसलं पव चो ं ततो घोरं सुदा णम् । महा था नकं पव वगारोह णकं ततः ।। ८१ ।। इसके बाद है अ य त भयानक एवं दा ण मौसलपव। त प ात् महा थानपव और वगारोहण-पव आते ह ।। ८१ ।। ह रवंश ततः पव पुराणं खलसं तम् । व णुपव शशो या व णोः कंसवध तथा ।। ८२ ।। इसके बाद ह रवंशपव है, जसे खल (प र श ) पुराण भी कहते ह, इसम व णुपव, ीकृ णक बाललीला एवं कंसवधका वणन है ।। ८२ ।। भ व यपव चा यु ं खले वेवा तं महत् । एतत् पवशतं पूण ासेनो ं महा मना ।। ८३ ।। ी ै ो ै

इस खलपवम भ व यपव भी कहा गया है, जो महान् अद्भुत है। महा मा ी ासजीने इस कार पूरे सौ पव क रचना क है ।। ८३ ।। यथावत् सूरपु ेण लौमहष णना ततः । उ ा न नै मषार ये पवा य ादशैव तु ।। ८४ ।। सूतवंश शरोम ण लोमहषणके पु उ वाजीने ासजीक रचना पूण हो जानेपर नै मषार य े म इ ह सौ पव को अठारह पव के पम सु व थत करके ऋ षय के सामने कहा ।। ८४ ।। समासो भारत यायम ो ः पवसं हः । पौ यं पौलोममा तीकमा दरंशावतारणम् ।। ८५ ।। स भवो जतुवे मा यं ह ड बबकयोवधः । तथा चै रथं दे ाः पा चा या वयंवरः ।। ८६ ।। ा धमण न ज य ततो वैवा हकं मृतम् । व रागमनं चैव रा यल भ तथैव च ।। ८७ ।। वनवासोऽजुन या प सुभ ाहरणं ततः । हरणाहरणं चैव दहनं खा डव य च ।। ८८ ।। मय य दशनं चैव आ दपव ण कयते । इस कार यहाँ सं ेपसे महाभारतके पव का सं ह बताया गया है। पौ य, पौलोम, आ तीक, आ दअंशावतरण, स भव, ला ागृह, ह ड बवध, बकवध, चै रथ, दे वी ौपद का वयंवर, यधमसे राजा पर वजय ा तपूवक वैवा हक व ध, व रागमन, रा यल भ, अजुनका वनवास, सुभ ाका हरण, हरणाहरण, खा डवदाह तथा मयदानवसे मलनेका संग—यहाँतकक कथा आ दपवम कही गयी है ।। ८५-८८ ।। पौ ये पव ण माहा यमु ङ् क योपव णतम् ।। ८९ ।। पौलोमे भृगुवंश य व तारः प रक ततः । आ तीके सवनागानां ग ड य च स भवः ।। ९० ।। पौ यपवम उ ंकके माहा यका वणन है। पौलोमपवम भृगव ु ंशके व तारका वणन है। आ तीकपवम सब नाग तथा ग ड़क उ प क कथा है ।। ८९-९० ।। ीरोदमथनं चैव ज मो चैः वस तथा । यजतः सपस ेण रा ः पारी त य च ।। ९१ ।। कथेयम भ नवृ ा भरतानां महा मनाम् । व वधाः स भवा रा ामु ाः स भवपव ण ।। ९२ ।। अ येषां चैव शूराणामृषे पायन य च । अंशावतरणं चा दे वानां प रक ततम् ।। ९३ ।। इसी पवम ीरसागरके म थन और उ चैः वा घोड़ेके ज मक भी कथा है। परी त्न दन राजा जनमेजयके सपय म इन भरतवंशी महा मा राजा क कथा कही गयी है। स भवपवम राजा के भ - भ कारके ज मस ब धी वृ ा त का वणन है। ी

















इसीम सरे शूरवीर तथा मह ष ै पायनके ज मक कथा भी है। यह दे वता के अंशावतरणक कथा कही गयी है ।। ९१—९३ ।। दै यानां दानवानां च य ाणां च महौजसाम् । नागानामथ सपाणां ग धवाणां पत णाम् ।। ९४ ।। अ येषां चैव भूतानां व वधानां समु वः । महषरा मपदे क व य च तप वनः ।। ९५ ।। शकु तलायां य ताद् भरत ा प ज वान् । य य लोकेषु ना नेदं थतं भारतं कुलम् ।। ९६ ।। इसी पवम अ य त भावशाली दै य, दानव, य , नाग, सप, ग धव और प य तथा अ य व वध कारके ा णय क उ प का वणन है। परम तप वी मह ष क वके आ मम य तके ारा शकु तलाके गभसे भरतके ज मक कथा भी इसीम है। उ ह महा मा भरतके नामसे यह भरतवंश संसारम स आ है ।। ९४—९६ ।। वसूनां पुन प भागीरयां महा मनाम् । शा तनोव म न पुन तेषां चारोहणं द व ।। ९७ ।। इसके बाद महाराज शा तनुके गृहम भागीरथी गंगाके गभसे महा मा वसु क उ प एवं फरसे उनके वगम जानेका वणन कया गया है ।। ९७ ।। तेज ऽशानां च स पातो भी म या य स भवः । रा या वतनं त य चय ते थ तः ।। ९८ ।। त ापालनं चैव र ा च ा द य च । हते च ा दे चैव र ा ातुयवीयसः ।। ९९ ।। व च वीय य तथा रा ये स तपादनम् । धम य नृषु स भू तरणीमा ड शापजा ।। १०० ।। कृ ण ै पायना चैव सू तवरदानजा । धृतरा य पा डो पा डवानां च स भवः ।। १०१ ।। इसी पवम वसु के तेजके अंशभूत भी मके ज मक कथा भी है। उनक रा यभोगसे नवृ , आजीवन चय तम थत रहनेक त ा, त ापालन, च ांगदक र ा और च ांगदक मृ यु हो जानेपर छोटे भाई व च वीयक र ा, उ ह रा य-समपण, अणीमा ड के शापसे भगवान् धमक व रके पम मनु य म उ प , ीकृ ण ै पायनके वरदानके कारण धृतरा एवं पा डु का ज म और इसी संगम पा डव क उ प -कथा भी है ।। ९८—१०१ ।। वारणावतया ायां म ो य धन य च । कूट य धातरा ेण ेषणं पा डवान् त ।। १०२ ।। हतोपदे श प थ धमराज य धीमतः । व रेण कृतो य हताथ ले छभाषया ।। १०३ ।। ला ागृहदाहपवम पा डव क वारणावत-या ाके संगम य धनके गु त षड् य का वणन है। उसका पा डव के पास कूटनी त पुरोचनको भेजनेका भी संग है। मागम ी े े े े े ो ो े ी

व रजीने बु मान् यु ध रके हतके लये ले छभाषाम जो हतोपदे श कया, उसका भी वणन है ।। १०२-१०३ ।। व र य च वा येन सुर ोप म या । नषा ाः प चपु ायाः सु ताया जतुवे म न ।। १०४ ।। पुरोचन य चा ैव दहनं स क ततम् । पा डवानां वने घोरे ह ड बाया दशनम् ।। १०५ ।। त ैव च ह ड ब य वधो भीमा महाबलात् । घटो कच य चो प र ैव प रक तता ।। १०६ ।। फर व रक बात मानकर सुरंग खुदवानेका काय आर भ कया गया। उसी ला ागृहम अपने पाँच पु के साथ सोती ई एक भीलनी और पुरोचन भी जल मरे—यह सब कथा कही गयी है। ह ड बवधपवम घोर वनके मागसे या ा करते समय पा डव को ह ड बाके दशन, महाबली भीमसेनके ारा ह ड बासुरके वध तथा घटो कचके ज मक कथा कही गयी है ।। १०४—१०६ ।। महषदशनं चैव ास या मततेजसः । तदा यैकच ायां ा ण य नवेशने ।। १०७ ।। अ ातचयया वासो य तेषां क ततः । बक य नधनं चैव नागराणां च व मयः ।। १०८ ।। अ मततेज वी मह ष ासका पा डव से मलना और उनक आ ासे एकच ा नगरीम ा णके घर पा डव के गु त नवासका वणन है। वह रहते समय उ ह ने बकासुरका वध कया, जससे नाग रक को बड़ा भारी आ य आ ।। १०७-१०८ ।। स भव ैव कृ णाया धृ ु न य चैव ह । ा णात् समुप ु य ासवा य चो दताः ।। १०९ ।। ौपद ाथय त ते वयंवर द या । प चालान भतो ज मुय कौतूहला वताः ।। ११० ।। इसके अन तर कृ णा ( ौपद ) और उसके भाई धृ ु नक उ प का वणन है। जब पा डव को ा णके मुखसे यह संवाद मला, तब वे मह ष ासक आ ासे ौपद क ा तके लये कौतूहलपूण च से वयंवर दे खने पांचालदे शक ओर चल पड़े ।। १०९-११० ।। अ ारपण न ज य ग ाकूलेऽजुन तदा । स यं कृ वा तत तेन त मादे व च शु ुवे ।। १११ ।। ताप यमथ वा स मौव चा यानमु मम् । ातृ भः स हतः सवः प चालान भतो ययौ ।। ११२ ।। पा चालनगरे चा प ल यं भ वा धनंजयः । ौपद लधवान म ये सवमही ताम् ।। ११३ ।। भीमसेनाजुनौ य संरधान् पृ थवीपतीन् । श यकण च तरसा जतव तौ महामृधे ।। ११४ ।। ै े े ो ी े ी

चै रथपवम गंगाके तटपर अजुनने अंगारपण ग धवको जीतकर उससे म ता कर ली और उसीके मुखसे तपती, व स और औवके उ म आ यान सुने। फर अजुनने वहाँसे अपने सभी भाइय के साथ पांचालक ओर या ा क । तदन तर अजुनने पांचालनगरके बड़े-बड़े राजा से भरी सभाम ल यवेध करके ौपद को ा त कया—यह कथा भी इसी पवम है। वह भीमसेन और अजुनने रणांगणम यु के लये संन ोधा ध राजा को तथा श य और कणको भी अपने परा मसे परा जत कर दया ।। १११—११४ ।। ् वा तयो त यम मेयममानुषम् । शङ् कमानौ पा डवां तान् रामकृ णौ महामती ।। ११५ ।। ज मतु तैः समाग तुं शालां भागववे म न । प चानामेकप नी वे वमश पद य च ।। ११६ ।। महाम त बलराम एवं भगवान् ीकृ णने जब भीमसेन एवं अजुनके अप र मत और अ तमानुष बल-वीयको दे खा, तब उ ह यह शंका ई क कह ये पा डव तो नह ह। फर वे दोन उनसे मलनेके लये कु हारके घर आये। इसके प ात् पदने ‘पाँच पा डव क एक ही प नी कैसे हो सकती है’—इस स ब धम वचार- वमश कया ।। ११५-११६ ।। प चे ाणामुपा यानम ैवा तमु यते । ौप ा दे व व हतो ववाह ा यमानुषः ।। ११७ ।। इसी वैवा हकपवम पाँच इ का अद्भुत उपा यान और ौपद के दे व व हत तथा मनु य-पर पराके वपरीत ववाहका वणन आ है ।। ११७ ।। ु धृतरा ेण ेषणं पा डवान् त । व र य च स ा तदशनं केशव य च ।। ११८ ।। इसके बाद धृतराने पा डव के पास व रजीको भेजा है, व रजी पा डव से मले ह तथा उ ह ीकृ णका दशन आ है ।। ११८ ।। खा डव थवास तथा रा याधसजनम् । नारद या या चैव ौप ाः समय या ।। ११९ ।। इसके प ात् धृतराका पा डव को आधा रा य दे ना, इ थम पा डव का नवास करना एवं नारदजीक आ ासे ौपद के पास आने-जानेके स ब धम समय- नधारण आ द वषय का वणन है ।। ११९ ।। सु दोपसु दयो त दा यानं प रक ततम् । अन तरं च ौप ा सहासीनं यु ध रम् ।। १२० ।। अनु व य व ाथ फा गुनो गृ चायुधम् । मो य वा गृहं ग वा व ाथ कृत न यः ।। १२१ ।। समयं पालयन् वीरो वनं य जगाम ह । पाथ य वनवासे च उलू या प थ संगमः ।। १२२ ।। इसी संगम सु द और उपसु दके उपा यानका भी वणन है। तदन तर एक दन धमराज यु ध र ौपद के साथ बैठे ए थे। अजुनने ा णके लये नयम तोड़कर वहाँ वेश कया और अपने आयुध लेकर ा णक व तु उसे ा त करा द और ढ़ न य े ी े े े े े ी ी ी

करके वीरताके साथ मयादापालनके लये वनम चले गये। इसी संगम यह कथा भी कही गयी है क वनवासके अवसरपर मागम ही अजुन और उलूपीका मेल- मलाप हो गया ।। १२०-१२२ ।। पु यतीथानुसंयानं ब ुवाहनज म च । त ैव मो यामास प च सोऽ सरसः शुभाः ।। १२३ ।। शापाद् ाह वमाप ा ा ण य तप वनः । भासतीथ पाथन कृ ण य च समागमः ।। १२४ ।। इसके बाद अजुनने प व तीथ क या ा क है। इसी समय च ांगदाके गभसे ब ुवाहनका ज म आ है और इसी या ाम उ ह ने पाँच शुभ अ सरा को मु दान कया, जो एक तप वी ा णके शापसे ाह हो गयी थ । फर भासतीथम ीकृ ण और अजुनके मलनका वणन है ।। १२३-१२४ ।। ारकायां सुभ ा च कामयानेन का मनी । वासुदेव यानुमते ा ता चैव करी टना ।। १२५ ।। त प ात् यह बताया गया है क ारकाम सुभ ा और अजुन पर पर एक- सरेपर आस हो गये, उसके बाद ीकृ णक अनुम तसे अजुनने सुभ ाको हर लया ।। १२५ ।। गृही वा हरणं ा ते कृ णे दे व कन दने । अ भम योः सुभ ायां ज म चो मतेजसः ।। १२६ ।। तदन तर दे वक न दन भगवान् ीकृ णके दहेज लेकर पा डव के पास प ँचनेक और सुभ ाके गभसे परम तेज वी वीर बालक अ भम युके ज मक कथा है ।। १२६ ।। ौप ा तनयानां च स भवोऽनु क ततः । वहाराथ च गतयोः कृ णयोयमुनामनु ।। १२७ ।। स ा त धनुषोः खा डव य च दाहनम् । मय य मो ो वलनाद् भुज य च मो णम् ।। १२८ ।। इसके प ात् ौपद के पु क उ प क कथा है। तदन तर जब ीकृ ण और अजुन यमुनाजीके तटपर वहार करनेके लये गये ए थे, तब उ ह जस कार च और धनुषक ा त ई, उसका वणन है। साथ ही खा डववनके दाह, मयदानवके छु टकारे और अ नका डसे सपके सवथा बच जानेका वणन आ है ।। १२७-१२८ ।। महषम दपाल य शा या तनयस भवः । इ येतदा दपव ं थमं ब व तरम् ।। १२९ ।। इसके बाद मह ष म दपालका शा प ीके गभसे पु उ प करनेक कथा है। इस कार इस अ य त व तृत आ दपवका सबसे थम न पण आ है ।। १२९ ।। अ यायानां शते े तु सं याते परम षणा । स त वश तर याया ासेनो मतेजसा ।। १३० ।। परम ष एवं परम तेज वी मह ष ासने इस पवम दो सौ स ाईस (२२७) अ याय क रचना क है ।। १३० ।। अ ौ ोकसह ा ण अ ौ ोकशता न च । ो ी ो

ोका चतुराशी तमु ननो ा महा मना ।। १३१ ।। महा मा ास मु नने इन दो सौ स ाईस (२२७) अ याय म आठ हजार आठ सौ चौरासी (८,८८४) ोक कहे ह ।। १३१ ।। तीयं तु सभापव ब वृ ा तमु यते । सभा या पा डवानां कङ् कराणां च दशनम् ।। १३२ ।। लोकपालसभा यानं नारदाद् दे वद शनः । राजसूय य चार भो जरास धवध तथा ।। १३३ ।। ग र जे न ानां रा ां कृ णेन मो णम् । तथा द वजयोऽ ैव पा डवानां क ततः ।। १३४ ।। सरा सभापव है। इसम ब त-से वृ ा त का वणन है। पा डव का सभा नमाण, ककर नामक रा स का द खना, दे व ष नारद ारा लोकपाल क सभाका वणन, राजसूयय का आर भ एवं जरास धवध, ग र जम बंद राजा का ीकृ णके ारा छु ड़ाया जाना और पा डव क द वजयका भी इसी सभापवम वणन कया गया है ।। १३२—१३४ ।। रा ामागमनं चैव साहणानां महा तौ । राजसूयेऽघसंवादे शशुपालवध तथा ।। १३५ ।। राजसूय महाय म उपहार ले-लेकर राजा के आगमन तथा पहले कसक पूजा हो इस वषयको लेकर छड़े ए ववादम शशुपालके वधका संग भी इसी सभापवम आया है ।। १३५ ।। य े वभू त तां ् वा ःखामषा वत य च । य धन यावहासो भीमेन च सभातले ।। १३६ ।। य म पा डव का यह वैभव दे खकर य धन ःख और ई यासे मन-ही-मनम जलने लगा। इसी संगम सभाभवनके सामने समतल भू मपर भीमसेनने उसका उपहास कया ।। १३६ ।। य ा य म यु द्भूतो येन ूतमकारयत् । य धमसुतं ूते शकु नः कतवोऽजयत् ।। १३७ ।। उसी उपहासके कारण य धनके दयम ोधा न जल उठ । जसके कारण उसने जूएके खेलका षड् य रचा। इसी जूएम कपट शकु नने धमपु यु ध रको जीत लया ।। १३७ ।। य ूताणवे म नां ौपद नौ रवाणवात् । धृतरा ो महा ा ः नुषां परम ःखताम् ।। १३८ ।। तारयामास तां तीणान् ा वा य धनो नृपः । पुनरेव ततो ूते समा यत पा डवान् ।। १३९ ।। जैसे समु म डू बी ई नौकाको कोई फरसे नकाल ले, वैसे ही ूतके समु म डू बी ई परम ःखनी पु वधू ौपद को परम बु मान् धृतराने नकाल लया। जब राजा ो









य धनको जूएक वप से पा डव के बच जानेका समाचार मला, तब उसने पुनः उ ह ( पतासे आ ह करके) जूएके लये बुलवाया ।। १३८-१३९ ।। ज वा स वनवासाय ेषयामास तां ततः । एतत् सव सभापव समा यातं महा मना ।। १४० ।। य धनने उ ह जूएम जीतकर वनवासके लये भेज दया। मह ष ासने सभापवम यही सब कथा कही है ।। १४० ।। अ यायाः स त त या तथा चा ौ सं यया । ोकानां े सह े तु प च ोकशता न च ।। १४१ ।। ोका ैकादश ेयाः पव य मन् जो माः । अतः परं तृतीयं तु ेयमार यकं महत् ।। १४२ ।। े ा णो! इस पवम अ याय क सं या अठह र (७८) है और ोक क सं या दो हजार पाँच सौ यारह (२,५११) बतायी गयी है। इसके प ात् मह वपूण वनपवका आर भ होता है ।। १४१-१४२ ।। वनवासं यातेषु पा डवेषु महा मसु । पौरानुगमनं चैव धमपु य धीमतः ।। १४३ ।। जस समय महा मा पा डव वनवासके लये या ा कर रहे थे, उस समय ब त-से पुरवासी लोग बु मान् धमराज यु ध रके पीछे -पीछे चलने लगे ।। १४३ ।। अ ौषधीनां च कृते पा डवेन महा मना । जानां भरणाथ च कृतमाराधनं रवेः ।। १४४ ।। महा मा यु ध रने पहले अनुयायी ा ण के भरण-पोषणके लये अ और ओष धयाँ ा त करनेके उ े यसे सूयभगवान्क आराधना क ।। १४४ ।। धौ योपदे शात् त मांशु सादाद स भवः । हतं च ुवतः ुः प र यागोऽ बकासुतात् ।। १४५ ।। य य पा डु पु ाणां समीपगमनं तथा । पुनरागमनं चैव धृतरा य शासनात् ।। १४६ ।। कण ो साहना चैव धातरा य मतेः । वन थान् पा डवान् ह तुं म य धन य च ।। १४७ ।। मह ष धौ यके उपदे शसे उ ह सूयभगवान्क कृपा ा त ई और अ य अ का पा मला। उधर व रजी धृतराको हतकारी उपदे श कर रहे थे, परंतु धृतराने उनका प र याग कर दया। धृतराक े प र यागपर व रजी पा डव के पास चले गये और फर धृतराका आदे श ा त होनेपर उनके पास लौट आये। धृतरान दन म त य धनने कणके ो साहनसे वनवासी पा डव को मार डालनेका वचार कया ।। १४५—१४७ ।। तं भावं व ाय ास यागमनं तम् । नयाण तषेध सुर या यानमेव च ।। १४८ ।। य धनके इस षत भावको जानकर मह ष ास झटपट वहाँ आ प ँचे और उ ह ने य धनक या ाका नषेध कर दया। इसी संगम सुर भका आ यान भी है ।। १४८ ।। ै े ै

मै ेयागमनं चा रा ैवानुशासनम् । शापो सग तेनैव रा ो य धन य च ।। १४९ ।। मै ेय ऋ षने आकर राजा धृतराको उपदे श कया और उ ह ने ही राजा य धनको शाप दे दया ।। १४९ ।। कम र य वध ा भीमसेनेन संयुगे । वृ णीनामागम ा प चालानां च सवशः ।। १५० ।। इसी पवम यह कथा है क यु म भीमसेनने कम रको मार डाला। पा डव के पास वृ णवंशी और पांचाल आये। पा डव ने उन सबके साथ वातालाप कया ।। १५० ।। ु वा शकु नना ूते नकृ या न जतां तान् । ु यानु शमनं हरे ैव करी टना ।। १५१ ।। जब ीकृ णने यह सुना क शकु नने जूएम पा डव को कपटसे हरा दया है, तब वे अ य त ो धत ए; परंतु अजुनने हाथ जोड़कर उ ह शा त कया ।। १५१ ।। प रदे वनं च पा चा या वासुदेव य सं नधौ । आ ासनं च कृ णेन ःखातायाः क ततम् ।। १५२ ।। ौपद ीकृ णके पास ब त रोयी-कलपी। ीकृ णने ःखात ौपद को आ ासन दया। यह सब कथा वनपवम है ।। १५२ ।। तथा सौभवधा यानम ैवो ं मह षणा । सुभ ायाः सपु ायाः कृ णेन ारकां पुरीम् ।। १५३ ।। नयनं ौपदे यानां धृ ु नेन चैव ह । वेशः पा डवेयानां र ये ै तवने ततः ।। १५४ ।। इसी पवम मह ष ासने सौभवधक कथा कही है। ीकृ ण सुभ ाको पु स हत ारकाम ले गये। धृ ु न ौपद के पु को अपने साथ लवा ले गये। तदन तर पा डव ने परम रमणीय ै तवनम वेश कया ।। १५३-१५४ ।। धमराज य चा ैव संवादः कृ णया सह । संवाद तथा रा ा भीम या प क ततः ।। १५५ ।। इसी पवम यु ध र एवं ौपद का संवाद तथा यु ध र और भीमसेनके संवादका भलीभाँ त वणन कया गया है ।। १५५ ।। समीपं पा डु पु ाणां ास यागमनं तथा । त मृ याथ व ाया दानं रा ो मह षणा ।। १५६ ।। मह ष ास पा डव के पास आये और उ ह ने राजा यु ध रको त मृ त नामक म व ाका उपदे श दया ।। १५६ ।। गमनं का यके चा प ासे तगते ततः । अ हेतो ववास पाथ या मततेजसः ।। १५७ ।। ासजीके चले जानेपर पा डव ने का यकवनक या ा क । इसके बाद अ मततेज वी अजुन अ ा त करनेके लये अपने भाइय से अलग चले गये ।। १५७ ।। महादे वेन यु ं च करातवपुषा सह । ो ै

दशनं लोकपालानाम ा त तथैव च ।। १५८ ।। वह करातवेशधारी महादे वजीके साथ अजुनका यु आ, लोकपाल के दशन ए और अ क ा त ई ।। १५८ ।। महे लोकगमनम ाथ च करी टनः । य च ता समु प ा धृतरा य भूयसी ।। १५९ ।। इसके बाद अजुन अ के लये इ लोकम गये यह सुनकर धृतराको बड़ी च ता ई ।। १५९ ।। दशनं बृहद य महषभा वता मनः । यु ध र य चात य सनं प रदे वनम् ।। १६० ।। इसके बाद धमराज यु ध रको शु दय मह ष बृहद का दशन आ। यु ध रने आत होकर उ ह अपनी ःखगाथा सुनायी और वलाप कया ।। १६० ।। नलोपा यानम ैव ध म ं क णोदयम् । दमय याः थ तय नल य च रतं तथा ।। १६१ ।। इसी संगम नलोपा यान आता है, जसम धम न ाका अनुपम आदश है और जसे पढ़-सुनकर दयम क णाक धारा बहने लगती है। दमय तीका ढ़ धैय और नलका च र यह पढ़नेको मलते ह ।। १६१ ।। तथा दय ा त त मादे व मह षतः । लोमश यागम त वगात् पा डु सुतान् त ।। १६२ ।। वनवासगतानां च पा डवानां महा मनाम् । वग वृ रा याता लोमशेनाजुन य वै ।। १६३ ।। उ ह मह षसे पा डव को अ दय (जूएके रह य)-क ा त ई। यह वगसे मह ष लोमश पा डव के पास पधारे। लोमशने ही वनवासी महा मा पा डव को यह बात बतलायी क अजुन वगम कस कार अ - व ा सीख रहे ह ।। १६२-१६३ ।। संदेशादजुन या तीथा भगमन या । तीथानां च फल ा तः पु य वं चा प क ततम् ।। १६४ ।। इसी पवम अजुनका संदेश पाकर पा डव ने तीथया ा क । उ ह तीथया ाका फल ा त आ और कौन तीथ कतने पु य द होते ह—इस बातका वणन आ है ।। १६४ ।। पुल यतीथया ा च नारदे न मह षणा । तीथया ा च त ैव पा डवानां महा मनाम् ।। १६५ ।। कण य प रमो ोऽ कु डला यां पुर दरात् । तथा य वभू त गय या क तता ।। १६६ ।। इसके बाद मह ष नारदने पुल यतीथक या ा करनेक ेरणा द और महा मा पा डव ने वहाँक या ा क । यह इ के ारा कणको कु डल से वं चत करनेका तथा राजा गयके य वैभवका वणन कया गया है ।। १६५-१६६ ।। आग यम प चा यानं य वाता पभ णम् । लोपामु ा भगमनमप याथमृषे तथा ।। १६७ ।। े ै े े े

इसके बाद अग य-च र है, जसम उनके वाता पभ ण तथा संतानके लये लोपामु ाके साथ समागमका वणन है ।। १६७ ।। ऋ यशृ य च रतं कौमार चा रणः । जामद य य राम य च रतं भू रतेजसः ।। १६८ ।। इसके प ात् कौमार चारी ऋ यशृंगका च र है। फर परम तेज वी जमद नन दन परशुरामका च र है ।। १६८ ।। कातवीयवधो य हैहयानां च व यते । भासतीथ पा डू नां वृ ण भ समागमः ।। १६९ ।। इसी च र म कातवीय अजुन तथा हैहयवंशी राजा के वधका वणन कया गया है। भासतीथम पा डव एवं यादव के मलनेक कथा भी इसीम है ।। १६९ ।। सीक यम प चा यानं यवनो य भागवः । शया तय े नास यौ कृतवान् सोमपी तनौ ।। १७० ।। इसके बाद सुक याका उपा यान है। इसीम यह कथा है क भृगन ु दन यवनने शया तके य म अ नीकुमार को सोमपानका अ धकारी बना दया ।। १७० ।। ता यां च य स मु नय वनं तपा दतः । मा धातु ा युपा यानं रा ोऽ ैव क ततम् ।। १७१ ।। उ ह दोन ने यवन मु नको बूढ़ेसे जवान बना दया। राजा मा धाताक कथा भी इसी पवम कही गयी है ।। १७१ ।। ज तूपा यानम ैव य पु ेण सोमकः । पु ाथमयजद् राजा लेभे पु शतं च सः ।। १७२ ।। यह ज तूपा यान है। इसम राजा सोमकने ब त-से पु ा त करनेके लये एक पु से यजन कया और उसके फल व प सौ पु ा त कये ।। १७२ ।। ततः येनकपोतीयमुपा यानमनु मम् । इ ा नी य धम य ज ासाथ श ब नृपम् ।। १७३ ।। इसके बाद येन (बाज) और कपोत (कबूतर)-का सव म उपा यान है। इसम इ और अ न राजा श बके धमक परी ा लेनेके लये आये ह ।। १७३ ।। अ ाव यम ैव ववादो य ब दना । अ ाव य व षजनक या वरेऽभवत् ।। १७४ ।। नैया यकानां मु येन व ण या मजेन च । परा जतो य ब द ववादे न महा मना ।। १७५ ।। व ज य सागरं ा तं पतरं लधवानृ षः । यव त य चा यानं रै य य च महा मनः । ग धमादनया ा च वासो नारायणा मे ।। १७६ ।। इसी पवम अ ाव का च र भी है। जसम ब द के साथ जनकके य म ष अ ाव के शा ाथका वणन है। वह ब द व णका पु था और नैया यक म धान था। उसे महा मा अ ाव ने वाद- ववादम परा जत कर दया। मह ष अ ाव ने ब द को े े ो े औ

हराकर समु म डाले ए अपने पताको ा त कर लया। इसके बाद यव त और महा मा रै यका उपा यान है। तदन तर पा डव क ग धमादनया ा और नारायणा मम नवासका वणन है ।। १७४—१७६ ।। नयु ो भीमसेन ौप ा ग धमादने । जन् प थ महाबा वान् पवना मजम् ।। १७७ ।। कदलीख डम य थं हनूम तं महाबलम् । य सौग धकाथऽसौ न लन तामधषयत् ।। १७८ ।। ौपद ने सौग धक कमल लानेके लये भीमसेनको ग धमादन पवतपर भेजा। या ा करते समय महाबा भीमसेनने मागम कदलीवनम महाबली पवनन दन ीहनुमान्जीका दशन कया। यह सौग धक कमलके लये भीमसेनने सरोवरम घुसकर उसे मथ डाला ।। १७७-१७८ ।। य ा य यु मभवत् सुमहद् रा सैः सह । य ै ैव महावीयम णम मुखै तथा ।। १७९ ।। वह भीमसेनका रा स एवं महाश शाली म णमान् आ द य के साथ घमासान यु आ ।। १७९ ।। जटासुर य च वधो रा स य वृकोदरात् । वृषपवण राजष ततोऽ भगमनं मृतम् ।। १८० ।। आ षेणा मे चैषां गमनं वास एव च । ो साहनं च पा चा या भीम या महा मनः ।। १८१ ।। कैलासारोहणं ो ं य य ैबलो कटै ः । यु मासी महाघोरं म णम मुखैः सह ।। १८२ ।। त प ात् भीमसेनके ारा जटासुर रा सका वध आ। फर पा डव मशः राज ष वृषपवा और आ षेणके आ मपर गये और वह रहने लगे। यह ौपद महा मा भीमसेनको ो सा हत करती रही। भीमसेन कैलासपवतपर चढ़ गये। यह अपनी श के नशेम चूर म णमान् आ द य के साथ उनका अ य त घोर यु आ ।। १८०-१८२ ।। समागम पा डू नां य वै वणेन च । समागम ाजुन य त ैव ातृ भः सह ।। १८३ ।। यह पा डव का कुबेरके साथ समागम आ। इसी थानपर अजुन आकर अपने भाइय से मले ।। १८३ ।। अवा य द ा य ा ण गुवथ स सा चना । नवातकवचैयु ं हर यपुरवा स भः ।। १८४ ।। इधर स साची अजुनने अपने बड़े भाईके लये द अ ा त कर लये और हर यपुरवासी नवातकवच दानव के साथ उनका घोर यु आ ।। १८४ ।। नवातकवचैघ रैदानवैः सुरश ु भः । पौलोमैः कालकेयै य यु ं करी टनः ।। १८५ ।। वध ैषां समा यात रा तेनैव धीमता । ो ौ

अ संदशनार भो धमराज य सं नधौ ।। १८६ ।। वहाँ दे वता के श ु भयंकर दानव नवातकवच, पौलोम और कालकेय के साथ अजुनने जैसा यु कया और जस कार उन सबका वध आ था, वह सब बु मान् अजुनने वयं राजा यु ध रको सुनाया। इसके बाद अजुनने धमराज यु ध रके पास अपने अ -श का दशन करना चाहा ।। १८५-१८६ ।। पाथ य तषेध नारदे न सुर षणा । अवरोहणं पुन ैव पा डू नां ग धमादनात् ।। १८७ ।। इसी समय दे व ष नारदने आकर अजुनको अ - दशनसे रोक दया। अब पा डव ग धमादन पवतसे नीचे उतरने लगे ।। १८७ ।। भीम य हणं चा पवताभोगव मणा । भुजगे े ण ब लना त मन् सुगहने वने ।। १८८ ।। फर एक बीहड़ वनम पवतके समान वशाल शरीरधारी बलवान् अजगरने भीमसेनको पकड़ लया ।। १८८ ।। अमो यद् य चैनं ानु वा यु ध रः । का यकागमनं चैव पुन तेषां महा मनाम् ।। १८९ ।। धमराज यु ध रने अजगर-वेशधारी न षके का उ र दे कर भीमसेनको छु ड़ा लया। इसके बाद महानुभाव पा डव पुनः का यकवनम आये ।। १८९ ।। त थां पुन ु ं पा डवान् पु षषभान् । वासुदेव यागमनम ैव प रक ततम् ।। १९० ।। जब नरपुंगव पा डव का यकवनम नवास करने लगे, तब उनसे मलनेके लये वसुदेवन दन ीकृ ण उनके पास आये—यह कथा इसी संगम कही गयी है ।। १९० ।। माक डेयसमा यायामुपा याना न सवशः । पृथोव य य य ो मा यानं परम षणा ।। १९१ ।। पा डव का महामु न माक डेयके साथ समागम आ। वहाँ मह षने ब त-से उपा यान सुनाये। उनम वेनपु पृथुका भी उपा यान है ।। १९१ ।। संवाद सर व या ता यषः सुमहा मनः । म योपा यानम ैव ो यते तदन तरम् ।। १९२ ।। इसी संगम स महा मा मह ष ता य और सर वतीका संवाद है। तदन तर म योपा यान भी कहा गया है ।। १९२ ।। माक डेयसमा या च पुराणं प रक यते । ऐ ु नमुपा यानं धौ धुमारं तथैव च ।। १९३ ।। इसी माक डेय-समागमम पुराण क अनेक कथाएँ, राजा इ ु नका उपा यान तथा धु धुमारक कथा भी है ।। १९३ ।। प त ताया ा यानं तथैवा रसं मृतम् । ौप ाः क तत ा संवादः स यभामया ।। १९४ ।। औ











प त ताका और आं गरसका उपा यान भी इसी संगम है। ौपद का स यभामाके साथ संवाद भी इसीम है ।। १९४ ।। पुन तवनं चैव पा डवाः समुपागताः । घोषया ा च ग धवय ब ः सुयोधनः ।। १९५ ।। तदन तर धमा मा पा डव पुनः ै तवनम आये। कौरव ने घोषया ा क और ग धव ने य धनको ब द बना लया ।। १९५ ।। यमाण तु म दा मा मो तोऽसौ करी टना । धमराज य चा ैव मृग व नदशनम् ।। १९६ ।।

वे म दम त य धनको कैद करके लये जा रहे थे क अजुनने यु करके उसे छु ड़ा लया। इसके बाद धमराज यु ध रको व म ह रणके दशन ए ।। १९६ ।। का यके कानन े े पुनगमनमु यते । ी ह ौ णकमा यानम ैव ब व तरम् ।। १९७ ।। इसके प ात् पा डवगण का यक नामक े वनम फरसे गये। इसी संगम अ य त व तारके साथ ी ह ौ णक उपा यान भी कहा गया है ।। १९७ ।। वाससोऽ युपा यानम ैव प रक ततम् । जय थेनापहारो ौप ा ा मा तरात् ।। १९८ ।। इसीम वासाजीका उपा यान और जय थके ारा आ मसे ौपद के हरणक कथा भी कही गयी है ।। १९८ ।। य ैनम वयाद् भीमो वायुवेगसमो जवे । च े चैनं प च शखं य भीमो महाबलः ।। १९९ ।। उस समय महाबली भयंकर भीमसेनने वायुवेगसे दौड़कर उसका पीछा कया था तथा जय थके सरके सारे बाल मूँड़कर उसम पाँच चो टयाँ रख द थ ।। १९९ ।। रामायणमुपा यानम ैव ब व तरम् । य रामेण व य नहतो रावणो यु ध ।। २०० ।। वनपवम बड़े ही व तारके साथ रामायणका उपा यान है, जसम भगवान् ीरामच जीने यु भू मम अपने परा मसे रावणका वध कया है ।। २०० ।। सा वया ा युपा यानम ैव प रक ततम् । कण य प रमो ोऽ कु डला यां पुर दरात् ।। २०१ ।। इसके बाद ही सा व ीका उपा यान और इ के ारा कणको कु डल से वं चत कर दे नेक कथा है ।। २०१ ।। य ा यश तु ोऽसावदादे कवधाय च । आरणेयमुपा यानं य धम ऽ वशात् सुतम् ।। २०२ ।। इसी संगम इ ने स होकर कणको एक श द थी, जससे कोई भी एक वीर मारा जा सकता था। इसके बाद है आरणेय उपा यान, जसम धमराजने अपने पु यु ध रको श ा द है ।। २०२ ।। ज मुलधवरा य पा डवाः प मां दशम् । एतदार यकं पव तृतीयं प रक ततम् ।। २०३ ।। अ ा यायशते े तु सं यया प रक तते । एकोनस त त ैव तथा यायाः क तताः ।। २०४ ।। और उनसे वरदान ा तकर पा डव ने प म दशाक या ा क । यह तीसरे वनपवक सूची कही गयी। इस पवम गनकर दो सौ उनह र (२६९) अ याय कहे गये ह ।। २०३-२०४ ।। एकादशसह ा ण ोकानां षट् शता न च । चतुःष तथा ोकाः पव य मन् क तताः ।। २०५ ।। ौ ( ) ो

यारह हजार छः सौ च सठ (११,६६४) ोक इस पवम ह ।। २०५ ।। अतः परं नबोधेदं वैराटं पव व तरम् । वराटनगरे ग वा मशाने वपुलां शमीम् ।। २०६ ।। ् वा सं नदधु त पा डवा ायुधा युत । य व य नगरं छना यवसं तु ते ।। २०७ ।। इसके बाद वराटपवक व तृत सूची सुनो। पा डव ने वराटनगरम जाकर मशानके पास एक वशाल शमीका वृ दे खा। उसीपर उ ह ने अपने सारे अ -श रख दये। तदन तर उ ह ने नगरम वेश कया और छ वेशम वहाँ नवास करने लगे ।। २०६-२०७ ।। पा चाल ाथयान य कामोपहतचेतसः । ा मनो वधो य क चक य वृकोदरात् ।। २०८ ।। क चक वभावसे ही था। ौपद को दे खते ही उसका मन कामबाणसे घायल हो गया। वह ौपद के पीछे पड़ गया। इसी अपराधसे भीमसेनने उसे मार डाला। यह कथा इसी पवम है ।। २०८ ।। पा डवा वेषणाथ च रा ो य धन य च । चाराः था पता ा नपुणाः सवतो दशम् ।। २०९ ।। राजा य धनने पा डव का पता चलानेके लये ब त-से नपुण गु तचर सब ओर भेजे ।। २०९ ।। न च वृ तैलधा पा डवानां महा मनाम् । गो ह वराट य गतः थमं कृतः ।। २१० ।। परंतु उ ह महा मा पा डव क ग त व धका कोई हालचाल न मला। इ ह दन गत ने राजा वराटक गौ का थम बार अपहरण कर लया ।। २१० ।। य ा य यु ं सुमहत् तैरासी लोमहषणम् । यमाण य ासौ भीमसेनेन मो तः ।। २११ ।। राजा वराटने गत के साथ र गटे खड़े कर दे नेवाला घमासान यु कया। गत वराटको पकड़कर लये जा रहे थे; कतु भीमसेनने उ ह छु ड़ा लया ।। २११ ।। गोधनं च वराट य मो तं य पा डवैः । अन तरं च कु भ त य गो हणं कृतम् ।। २१२ ।। साथ ही पा डव ने उनके गोधनको भी गत से छु ड़ा लया। इसके बाद ही कौरव ने वराटनगरपर चढ़ाई करके उनक (उ र दशाक ) गाय को लूटना ार भ कर दया ।। २१२ ।। सम ता य पाथन न जताः कुरवो यु ध । या तं गोधनं च व मेण करी टना ।। २१३ ।। इसी अवसरपर करीटधारी अजुनने अपना परा म कट करके सं ामभू मम स पूण कौरव को परा जत कर दया और वराटके गोधनको लौटा लया ।। २१३ ।। वराटे नो रा द ा नुषा य करी टनः । ौ

अ भम युं समु य सौभ म रघा तनम् ।। २१४ ।। (पा डव के पहचाने जानेपर) राजा वराटने अपनी पु ी उ रा श ुघाती सुभ ान दन अ भम युसे ववाह करनेके लये पु वधूके पम अजुनको दे द ।। २१४ ।। चतुथमेतद् वपुलं वैराटं पव व णतम् । अ ा प प रसं याता अ यायाः परम षणा ।। २१५ ।। स तष रथो पूणा ोकानाम प मे शृणु । ोकानां े सह े तु ोकाः प चाशदे व तु ।। २१६ ।। उ ा न वेद व षा पव य मन् मह षणा । उ ोगपव व ेयं प चमं शृ वतः परम् ।। २१७ ।। इस कार इस चौथे वराटपवक सूचीका व तारपूवक वणन कया गया। परम ष ासजी महाराजने इस पवम गनकर सड़सठ (६७) अ याय रखे ह। अब तुम मुझसे ोक क सं या सुनो। इस पवम दो हजार पचास (२,०५०) ोक वेदवे ा मह ष वेद ासने कहे ह। इसके बाद पाँचवाँ उ ोगपव समझना चा हये। अब तुम उसक वषयसूची सुनो ।। २१५—२१७ ।। उप ल े न व ेषु पा डवेषु जगीषया । य धनोऽजुन ैव वासुदेवमुप थतौ ।। २१८ ।। जब पा डव उप ल नगरम रहने लगे, तब य धन और अजुन वजयक आकां ासे भगवान् ीकृ णके पास उप थत ए ।। २१८ ।। साहा यम मन् समरे भवान् नौ कतुमह त । इ यु े वचने कृ णो य ोवाच महाम तः ।। २१९ ।। दोन ने ही भगवान् ीकृ णसे ाथना क क ‘आप इस यु म हमारी सहायता क जये।’ इसपर महामना ीकृ णने कहा— ।। २१९ ।। अयु यमानमा मानं म णं पु षषभौ । अ ौ हण वा सै य य क य क वा ददा यहम् ।। २२० ।। ‘ य धन और अजुन! तुम दोन ही े पु ष हो। म वयं यु न करके एकका म ी बन जाऊँगा और सरेको एक अ ौ हणी सेना दे ँ गा। अब तु ह दोन न य करो क कसे या ँ ?’ ।। २२० ।। व े य धनः सै यं म दा मा य म तः । अयु यमानं स चवं व े कृ णं धन यः ।। २२१ ।। अपने वाथके स ब धम अनजान एवं खोट बु वाले य धनने एक अ ौ हणी सेना माँग ली और अजुनने यह माँग क क ‘ ीकृ ण यु भले ही न कर, परंतु मेरे म ी बन जायँ’ ।। २२१ ।। म राजं च राजानमाया तं पा डवान् त । उपहारैव च य वा व म येव सुयोधनः ।। २२२ ।। वरदं तं वरं व े साहा यं यतां मम । श य त मै त ु य जगामो य पा डवान् ।। २२३ ।। े

शा तपूव चाकथयद् य े वजयं नृपः । पुरो हत ेषणं च पा डवैः कौरवान् त ।। २२४ ।। म दे शके अ धप त राजा श य पा डव क ओरसे यु करने आ रहे थे, परंतु य धनने मागम ही उपहार से धोखेम डालकर उ ह स कर लया और उन वरदायक नरेशसे यह वर माँगा क ‘मेरी सहायता क जये।’ श यने य धनसे सहायताक त ा कर ली। इसके बाद वे पा डव के पास गये और बड़ी शा तके साथ सब कुछ समझाबुझाकर सब बात कह द । राजाने इसी संगम इ क वजयक कथा भी सुनायी। पा डव ने अपने पुरो हतको कौरव के पास भेजा ।। २२२—२२४ ।। वै च वीय य वचः समादाय पुरोधसः । तथे वजयं चा प यानं चैव पुरोधसः ।। २२५ ।। संजयं ेषयामास शमाथ पा डवान् त । य तं महाराजो धृतरा ः तापवान् ।। २२६ ।। धृतराने पा डव के पुरो हतके इ वजय वषयक वचनको सादर वण करते ए उनके आगमनके औ च यको वीकार कया। त प ात् परम तापी महाराज धृतराने भी शा तक इ छासे तके पम संजयको पा डव के पास भेजा ।। २२५-२२६ ।। ु वा च पा डवान् य वासुदेवपुरोगमान् । जागरः स ज े धृतरा य च तया ।। २२७ ।। व रो य वा या न व च ा ण हता न च । ावयामास राजानं धृतरा ं मनी षणम् ।। २२८ ।। जब धृतराने सुना क पा डव ने ीकृ णको अपना नेता चुन लया है और वे उ ह आगे करके यु के लये थान कर रहे ह, तब च ताके कारण उनक न द भाग गयी—वे रातभर जागते रह गये। उस समय महा मा व रने मनीषी राजा धृतराको व वध कारसे अ य त आ यजनक नी तका उपदे श कया है (वही व रनी तके नामसे स है) ।। २२७-२२८ ।। तथा सन सुजातेन य ा या ममनु मम् । मन तापा वतो राजा ा वतः शोकलालसः ।। २२९ ।। उसी समय मह ष सन सुजातने ख च एवं शोक व ल राजा धृतराको सव म अ या मशा का वण कराया ।। २२९ ।। भाते राजस मतौ संजयो य वा वभोः । ऐका यं वासुदेव य ो वानजुन य च ।। २३० ।। ातःकाल राजसभाम संजयने राजा धृतरासे ीकृ ण और अजुनके ऐका य अथवा म ताका भलीभाँ त वणन कया ।। २३० ।। य कृ णो दयाप ः सं ध म छन् महाम तः । वयमागा छमं कतु नगरं नागसा यम् ।। २३१ ।। इसी संगम यह कथा भी है क परम दयालु सव भगवान् ीकृ ण दया-भावसे यु हो शा त- थापनके लये स ध करानेके उ े यसे वयं ह तनापुर नामक नगरम े

पधारे ।। २३१ ।। या यानं च कृ ण य रा ा य धनेन वै । शमाथ याचमान य प यो भयो हतम् ।। २३२ ।। य प भगवान् ीकृ ण दोन ही प का हत चाहते थे और शा तके लये ाथना कर रहे थे, परंतु राजा य धनने उनका वरोध कर दया ।। २३२ ।। द भो व य चा यानम ैव प रक ततम् । वरा वेषणम ैव मातले महा मनः ।। २३३ ।। इसी पवम द भो वक कथा कही गयी है और साथ ही महा मा मात लका अपनी क याके लये वर ढूँ ढ़नेका संग भी है ।। २३३ ।। महष ा प च रतं क थतं गालव य वै । व लाया पु य ो ं चा यनुशासनम् ।। २३४ ।। इसके बाद मह ष गालवके च र का वणन है। साथ ही व लाने अपने पु को जो श ा द है, वह भी कही गयी है ।। २३४ ।। कण य धनाद नां ं व ाय म तम् । योगे र वं कृ णेन य रा ां द शतम् ।। २३५ ।। भगवान् ीकृ णने कण और य धन आ दक षत म णाको जानकर राजा क भरी सभाम अपने योगै यका दशन कया ।। २३५ ।। रथमारो य कृ णेन य कण ऽनुम तः । उपायपूव शौट यात् या यात तेन सः ।। २३६ ।। भगवान् ीकृ णने कणको अपने रथपर बैठाकर उसे (पा डव के प म आनेके लये) अनेक यु य से ब त समझाया-बुझाया, परंतु कणने अहंकारवश उनक बात अ वीकार कर द ।। २३६ ।। आग य तनपुरा प ल म र दमः । पा डवानां यथावृ ं सवमा यातवान् ह रः ।। २३७ ।। श ुसूदन ीकृ णने ह तनापुरसे उप ल नगर आकर जैसा कुछ वहाँ आ था, सब पा डव को कह सुनाया ।। २३७ ।। ते त य वचनं ु वा म य वा च य तम् । सां ा मकं ततः सव स जं च ु ः परंतपाः ।। २३८ ।। श ुघाती पा डव उनके वचन सुनकर और या करनेम हमारा हत है—यह परामश करके यु -स ब धी सब साम ी जुटानेम लग गये ।। २३८ ।। ततो यु ाय नयाता नरा रथद तनः । नगरा ा तनपुराद् बलसं यानमेव च ।। २३९ ।। इसके प ात् ह तनापुर नामक नगरसे यु के लये मनु य, घोड़े, रथ और हा थय क चतुरं गणी सेनाने कूच कया। इसी संगम सेनाक गनती क गयी है ।। २३९ ।। य रा ा लूक य ेषणं पा डवान् त । ोभा व न महायु े दौ येन कृतवान् भुः ।। २४० ।। ै ी े े े ो े े

फर यह कहा गया है क श शाली राजा य धनने सरे दन ातःकालसे होनेवाले महायु के स ब धम उलूकको त बनाकर पा डव के पास भेजा ।। २४० ।। रथा तरथसं यानम बोपा यानमेव च । एतत् सुब वृ ा तं प चमं पव भारते ।। २४१ ।। इसके अन तर इस पवम रथी, अ तरथी आ दके व पका वणन तथा अ बाका उपा यान आता है। इस कार महाभारतम उ ोगपव पाँचवाँ पव है और इसम ब त-से सु दर-सु दर वृ ा त ह ।। २४१ ।। उ ोगपव न द ं सं ध व ह म तम् । अ यायानां शतं ो ं षडशी तमह षणा ।। २४२ ।। ोकानां षट् सह ा ण ताव येव शता न च । ोका नव तः ो ा तथैवा ौ महा मना ।। २४३ ।। ासेनोदारम तना पव य मं तपोधनाः । इस उ ोगपवम ीकृ णके ारा स ध-संदेश और उलूकके व ह-संदेशका मह वपूण वणन आ है। तपोधन मह षयो! वशालबु मह ष ासने इस पवम एक सौ छयासी (१८६) अ याय रखे ह और ोक क सं या छः हजार छः सौ अट् ठानबे (६,६९८) बतायी है ।। २४२-२४३ ।। अतः परं व च ाथ भी मपव च ते ।। २४४ ।। ज बूख ड व नमाणं य ो ं संजयेन ह । य यौ ध रं सै यं वषादमगमत् परम् ।। २४५ ।। य यु मभूद ् घोरं दशाहा न सुदा णम् । क मलं य पाथ य वासुदेवो महाम तः ।। २४६ ।। मोहजं नाशयामास हेतु भम द श भः । समी याधो जः ं यु ध र हते रतः ।। २४७ ।। रथादा लु य वेगेन वयं कृ ण उदारधीः । तोदपा णराधावद् भी मं ह तु पेतभीः ।। २४८ ।। इसके बाद व च अथ से भरे भी मपवक वषय-सूची कही जाती है, जसम संजयने ज बू पक रचनास ब धी कथा कही है। इस पवम दस दन तक अ य त भयंकर घोर यु होनेका वणन आता है, जसम धमराज यु ध रक सेनाके अ य त ःखी होनेक कथा है। इसी यु के ार भम महातेज वी भगवान् वासुदेवने मो त वका ान करानेवाली यु य ारा अजुनके मोहज नत शोक-संतापका नाश कया था (जो क भगवद्गीताके नामसे स है)। इसी पवम यह कथा भी है क यु ध रके हतम संल न रहनेवाले नभय, उदारबु , अधो ज, भ व सल भगवान् ीकृ ण अजुनक श थलता दे ख शी ही हाथम चाबुक लेकर भी मको मारनेके लये वयं रथसे कूद पड़े और बड़े वेगसे दौड़े ।। २४४—२४८ ।। वा य तोदा भहतो य कृ णेन पा डवः । ी



गा डीवध वा समरे सवश भृतां वरः ।। २४९ ।। साथ ही सब श धा रय म े गा डीवध वा अजुनको यु भू मम भगवान् ीकृ णने ं य-वा यके चाबुकसे मामक चोट प ँचायी ।। २४९ ।। शख डनं पुर कृ य य पाथ महाधनुः । व न नन् न शतैबाणै रथाद् भी ममपातयत् ।। २५० ।। तब महाधनुधर अजुनने शख डीको सामने करके तीखे बाण से घायल करते ए भी म पतामहको रथसे गरा दया ।। २५० ।। शरत पगत ैव भी मो य बभूव ह । ष मेतत् समा यातं भारते पव व तृतम् ।। २५१ ।। जब क भी म पतामह शरशयापर शयन करने लगे। महाभारतम यह छठा पव व तारपूवक कहा गया है ।। २५१ ।। अ यायानां शतं ो ं तथा स तदशापरे । प च ोकसह ा ण सं यया ौ शता न च ।। २५२ ।। ोका चतुराशी तर मन् पव ण क तताः । ासेन वेद व षा सं याता भी मपव ण ।। २५३ ।। वेदके मम व ान् ीकृ ण ै पायन ासने इस भी मपवम एक सौ स ह (११७) अ याय रखे ह। ोक क सं या पाँच हजार आठ सौ चौरासी (५,८८४) कही गयी है ।। २५२-२५३ ।। ोणपव तत ं ब वृ ा तमु यते । सैनाप येऽ भ ष ोऽथ य ाचायः तापवान् ।। २५४ ।। तदन तर अनेक वृ ा त से पूण अद्भुत ोणपवक कथा आर भ होती है, जसम परम तापी आचाय ोणके सेनाप तपदपर अ भ ष होनेका वणन है ।। २५४ ।। य धन य ी यथ तज े महा वत् । हणं धमराज य पा डु पु य धीमतः ।। २५५ ।। वह यह भी कहा गया है क अ व ाके परमाचाय ोणने य धनको स करनेके लये बु मान् धमराज यु ध रको पकड़नेक त ा कर ली ।। २५५ ।। य संश तकाः पाथमप न यू रणा जरात् । भगद ो महाराजो य श समो यु ध ।। २५६ ।। सु तीकेन नागेन स ह शा तः करी टना । इसी पवम यह बताया गया है क संश तक यो ा अजुनको रणांगणसे र हटा ले गये। वह यह कथा भी आयी है क ऐरावतवंशीय सु तीक नामक हाथीके साथ महाराज भगद भी, जो यु म इ के समान थे, करीटधारी अजुनके ारा मौतके घाट उतार दये गये ।। २५६ ।। य ा भम युं बहवो ज नुरेकं महारथाः ।। २५७ ।। जय थमुखा बालं शूरम ा तयौवनम् । ी















इसी पवम यह भी कहा गया है क शूरवीर बालक अ भम युको, जो अभी जवान भी नह आ था और अकेला था, जय थ आ द ब त-से व व यात महार थय ने मार डाला ।। २५७ ।। हतेऽ भम यौ ु े न य पाथन संयुगे ।। २५८ ।। अ ौ हणीः स त ह वा हतो राजा जय थः । अ भम युके वधसे कु पत होकर अजुनने रणभू मम सात अ ौ हणी सेना का संहार करके राजा जय थको भी मार डाला ।। २५८ ।। य भीमो महाबा ः सा य क महारथः ।। २५९ ।। अ वेषणाथ पाथ य यु ध रनृपा या । व ौ भारत सेनाम धृ यां सुरैर प ।। २६० ।। उसी अवसरपर महाबा भीमसेन और महारथी सा य क धमराज यु ध रक आ ासे अजुनको ढूँ ढ़नेके लये कौरव क उस सेनाम घुस गये, जसक मोचब द बड़े-बड़े दे वता भी नह तोड़ सकते थे ।। २५९-२६० ।। संश तकावशेषं च कृतं नःशेषमाहवे । संश तकानां वीराणां को ो नव महा मनाम् ।। २६१ ।। करी टना भ न य ा पता यमसादनम् । धृतरा य पु ा तथा पाषाणयो धनः ।। २६२ ।। नारायणा गोपालाः समरे च यो धनः । अल बुषः ुतायु जलस ध वीयवान् ।। २६३ ।। सौमद वराट पद महारथः । घटो कचादय ा ये नहता ोणपव ण ।। २६४ ।। अजुनने संश तक मसे जो बच रहे थे, उ ह भी यु भू मम नःशेष कर दया। महामना संश तक वीर क सं या नौ करोड़ थी; परंतु करीटधारी अजुनने आ मण करके अकेले ही उन सबको यमलोक भेज दया। धृतरापु , बड़े-बड़े पाषाणख ड लेकर यु करनेवाले ले छ-सै नक, समरांगणम यु के व च कला-कौशलका प रचय दे नेवाले नारायण नामक गोप, अल बुष, ुतायु, परा मी जलस ध, भू र वा, वराट, महारथी पद तथा घटो कच आ द जो बड़े-बड़े वीर मारे गये ह, वह संग भी इसी पवम है ।। २६१ —२६४ ।। अ थामा प चा ैव ोणे यु ध नपा तते । अ ं ा कारो ं नारायणमम षतः ।। २६५ ।। इसी पवम यह बात भी आयी है क यु म जब पता ोणाचाय मार गराये गये, तब अ थामाने भी श ु के त अमषम भरकर ‘नारायण’ नामक भयानक अ को कट कया था ।। २६५ ।। आ नेयं क यते य माहा यमु मम् । ास य चा यागमनं माहा यं कृ णपाथयोः ।। २६६ ।। ी







इसीम आ नेया तथा भगवान् के उ म माहा यका वणन कया गया है। ासजीके आगमन तथा ीकृ ण और अजुनके माहा यक कथा भी इसीम है ।। २६६ ।। स तमं भारते पव महदे त दा तम् । य ते पृ थवीपालाः ायशो नधनं गताः ।। २६७ ।। ोणपव ण ये शूरा न द ाः पु षषभाः । अ ा यायशतं ो ं तथा याया स त तः ।। २६८ ।। अ ौ ोकसह ा ण तथा नव शता न च । ोका नव तथैवा सं याता त वद शना ।। २६९ ।। पाराशयण मु नना सं च य ोणपव ण । महाभारतम यह सातवाँ महान् पव बताया गया है। कौरव-पा डवयु म जो नर े नरेश शूरवीर बताये गये ह, उनमसे अ धकांशके मारे जानेका संग इस ोणपवम ही आया है। त वदश पराशरन दन मु नवर ासने भलीभाँ त सोच- वचारकर ोणपवम एक सौ स र (१७०) अ याय और आठ हजार नौ सौ नौ (८,९०९) ोक क रचना एवं गणना क है ।। २६७—२६९ ।। अतः परं कणपव ो यते परमा तम् ।। २७० ।। सारये व नयोग म राज य धीमतः । आ यातं य पौराणं पुर य नपातनम् ।। २७१ ।। इसके बाद अ य त अद्भुत कणपवका प रचय दया गया है। इसीम परम बु मान् म राज श यको कणके सार थ बनानेका संग है, फर पुरके संहारक पुराण स कथा आयी है ।। २७०-२७१ ।। यागे प ष ा संवादः कणश ययोः । हंसकाक यमा यानं त ैवा ेपसं हतम् ।। २७२ ।। यु के लये जाते समय कण और श यम जो कठोर संवाद आ है, उसका वणन भी इसी पवम है। तदन तर हंस और कौएका आ ेपपूण उपा यान है ।। २७२ ।। वधः पा य च तथा अ था ना महा मना । द डसेन य च ततो द ड य च वध तथा ।। २७३ ।। उसके बाद महा मा अ थामाके ारा राजा पा क े वधक कथा है। फर द डसेन और द डके वधका संग है ।। २७३ ।। ै रथे य कणन धमराजो यु ध रः । संशयं ग मतो यु े मषतां सवध वनाम् ।। २७४ ।। इसी पवम कणके साथ यु ध रके ै रथ ( ) यु का वणन है, जसम कणने सब धनुधर वीर के दे खते-दे खते धमराज यु ध रके ाण को संकटम डाल दया था ।। २७४ ।। अ यो यं त च ोधो यु ध र करी टनोः । य ैवानुनयः ो ो माधवेनाजुन य ह ।। २७५ ।। औ



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त प ात् यु ध र और अजुनके एक- सरेके त ोधयु उद्गार ह, जहाँ भगवान् ीकृ णने अजुनको समझा-बुझाकर शा त कया है ।। २७५ ।। त ापूवकं चा प व ो ःशासन य च । भ वा वृकोदरो र ं पीतवान् य संयुगे ।। २७६ ।। इसी पवम यह बात भी आयी है क भीमसेनने पहलेक क ई त ाके अनुसार ःशासनका व ः थल वद ण करके र पीया था ।। २७६ ।। ै रथे य पाथन हतः कण महारथः । अ मं पव न द मेतद् भारत च तकैः ।। २७७ ।। तदन तर यु म अजुनने महारथी कणको जो मार गराया, वह संग भी कणपवम ही है। महाभारतका वचार करनेवाले व ान ने इस कणपवको आठवाँ पव कहा है ।। २७७ ।। एकोनस त तः ो ा अ यायाः कणपव ण । च वायव सह ा ण नव ोकशता न च ।। २७८ ।। चतुःष तथा ोकाः पव य मन् क तताः । कणपवम उनह र (६९) अ याय कहे गये ह और चार हजार नौ सौ च सठ (४,९६४) ोक का पाठ इस पवम कया गया है ।। २७८ ।। अतः परं व च ाथ श यपव क ततम् ।। २७९ ।। त प ात् व च अथयु वषय से भरा आ श यपव कहा गया है ।। २७९ ।। हत वीरे सै ये तु नेता म े रोऽभवत् । य कौमारमा यानम भषेक य कम च ।। २८० ।। इसीम यह कथा आयी है क जब कौरवसेनाके सभी मुख वीर मार दये गये, तब म राज श य सेनाप त ए। वह कुमार का तकेयका उपा यान और अ भषेककम कहा गया है ।। २८० ।। वृ ा न रथयु ा न क य ते य भागशः । वनाशः कु मु यानां श यपव ण क यते ।। २८१ ।। श य य नधनं चा धमराजा महा मनः । शकुने वधोऽ ैव सहदे वेन संयुगे ।। २८२ ।। साथ ही वहाँ र थय के यु का भी वभागपूवक वणन कया गया है। श यपवम ही कु कुलके मुख वीर के वनाशका तथा महा मा धमराज ारा श यके वधका वणन कया गया है। इसीम सहदे वके ारा यु म शकु नके मारे जानेका संग है ।। २८१-२८२ ।। सै ये च हतभू य े क च छ े सुयोधनः । दं व य य ासौ सं त यापो व थतः ।। २८३ ।। जब अ धक-से-अ धक कौरवसेना न हो गयी और थोड़ी-सी बच रही, तब य धन सरोवरम वेश करके पानीको त भत कर वह व ामके लये बैठ गया ।। २८३ ।। वृ त चा याता य भीम य लुधक ै ः । े







े यु ै वचो भ धमराज य धीमतः ।। २८४ ।। प दात् समु थतो य धातरा ोऽ यमषणः । भीमेन गदया यु ं य ासी कृतवान् सह ।। २८५ ।। कतु ाध ने भीमसेनसे य धनक यह चे ा बतला द । तब बु मान् धमराजके आ ेपयु वचन से अ य त अमषम भरकर धृतरापु य धन सरोवरसे बाहर नकला और उसने भीमसेनके साथ गदायु कया। ये सब संग श यपवम ही ह ।। २८४-२८५ ।। समवाये च यु य राम यागमनं मृतम् । सर व या तीथानां पु यता प रक तता ।। २८६ ।। गदायु ं च तुमुलम ैव प रक ततम् । उसीम यु के समय बलरामजीके आगमनक बात कही गयी है। इसी संगम सर वतीतटवत तीथ के पावन माहा यका प रचय दया गया है। श यपवम ही भयंकर गदायु का वणन कया गया है ।। २८६ ।। य धन य रा ोऽथ य भीमेन संयुगे ।। २८७ ।। ऊ भरनी स ाजौ गदया भीमवेगया । नवमं पव न द मेतद तमथवत् ।। २८८ ।। जसम यु करते समय भीमसेनने हठपूवक (यु के नयमको भंग करके) अपनी भयानक वेग-शा लनी गदासे राजा य धनक दोन जाँघ तोड़ डाल , यह अद्भुत अथसे यु नवाँ पव बताया गया है ।। २८७-२८८ ।। एकोनष र यायाः पव य क तताः । सं याता ब वृ ा ताः ोकसं या कयते ।। २८९ ।। इस पवम उनसठ (५९) अ याय कहे गये ह, जसम ब त-से वृ ा त का वणन आया है। अब इसक ोक-सं या कही जाती है ।। २८९ ।। ी ण ोकसह ा ण े शते वश त तथा । मु नना स णीता न कौरवाणां यशोभृता ।। २९० ।। कौरव-पा डव के यशका पोषण करनेवाले मु नवर ासने इस पवम तीन हजार दो सौ बीस (३,२२०) ोक क रचना क है ।। २९० ।। अतः परं व या म सौ तकं पव दा णम् । भ नो ं य राजानं य धनममषणम् ।। २९१ ।। अपयातेषु पाथषु य तेऽ याययू रथाः । कृतवमा कृपो ौ णः साया े धरो तम् ।। २९२ ।। इसके प ात् म अ य त दा ण सौ तकपवक सूची बता रहा ँ, जसम पा डव के चले जानेपर अ य त अमषम भरे ए टू ट जाँघवाले राजा य धनके पास, जो खूनसे लथपथ आ पड़ा था, सायंकालके समय कृतवमा, कृपाचाय और अ थामा—ये तीन महारथी आये ।। २९१-२९२ ।। समे य द शुभूमौ प ततं रणमूध न । े

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तज े ढ ोधो ौ णय महारथः ।। २९३ ।। अह वा सवप चालान् धृ ु नपुरोगमान् । पा डवां सहामा यान् न वमो या म दं शनम् ।। २९४ ।। नकट आकर उ ह ने दे खा, राजा य धन यु के मुहानेपर इस दशाम पड़ा था। यह दे खकर महारथी अ थामाको बड़ा ोध आ और उसने त ा क क ‘म धृ ु न आ द स पूण पांचाल और म य स हत सम त पा डव का वध कये बना अपना कवच नह उता ँ गा’ ।। २९३-२९४ ।। य ैवमु वा राजानमप य यो रथाः । सूया तमनवेलायामासे ते महद् बनम् ।। २९५ ।। सौ तकपवम राजा य धनसे ऐसी बात कहकर वे तीन महारथी वहाँसे चले गये और सूया त होते-होते एक ब त बड़े वनम जा प ँचे ।। २९५ ।। य ोध याथ महतो य ाध ताद् व थताः । ततः काकान् बन् रा ौ ् वोलूकेन ह सतान् ।। २९६ ।। ौ णः ोधसमा व ः पतुवधमनु मरन् । प चालानां सु तानां वधं त मनो दधे ।। २९७ ।। वहाँ तीन एक ब त बड़े बरगदके नीचे व ामके लये बैठे। तदन तर वहाँ एक उ लूने आकर रातम ब त-से कौ को मार डाला। यह दे खकर ोधम भरे अ थामाने अपने पताके अ यायपूवक मारे जानेक घटनाको मरण करके सोते समय ही पांचाल के वधका न य कर लया ।। २९६-२९७ ।। ग वा च श वर ा र शं त रा सम् । घोर पमप यत् स दवमावृ य ध तम् ।। २९८ ।। त प ात् पा डव के श वरके ारपर प ँचकर उसने दे खा, एक बड़ा भयंकर रा स, जसक ओर दे खना अ य त क ठन है, वहाँ खड़ा है। उसने पृ वीसे लेकर आकाशतकके दे शको घेर रखा था ।। २९८ ।। तेन ाघातम ाणां यमाणमवे य च । ौ णय व पा ं मारा य स वरः ।। २९९ ।। अ थामा जतने भी अ चलाता, उन सबको वह रा स न कर दे ता था। यह दे खकर ोणकुमारने तुरंत ही भयंकर ने वाले भगवान् क आराधना करके उ ह स कया ।। २९९ ।। सु तान् न श व तान् धृ ु नपुरोगमान् । प चालान् सपरीवारान् ौपदे यां सवशः ।। ३०० ।। कृतवमणा च स हतः कृपेण च नज नवान् । य ामु य त ते पाथाः प च कृ णबला यात् ।। ३०१ ।। सा य क महे वासः शेषा नधनं गताः । प चालानां सु तानां य ोणसुताद् वधः ।। ३०२ ।। धृ ु न य सूतेन पा डवेषु नवे दतः । ौ ो

ौपद पु शोकाता पतृ ातृवधा दता ।। ३०३ ।। त प ात् अ थामाने रातम नःशंक सोये ए धृ ु न आ द पांचाल तथा ौपद पु को कृतवमा और कृपाचायक सहायतासे प रजन स हत मार डाला। भगवान् ीकृ णक श का आ य लेनेसे केवल पाँच पा डव और महान् धनुधर सा य क बच गये, शेष सभी वीर मारे गये। यह सब संग सौ तकपवम व णत है। वह यह भी कहा गया है क धृ ु नके सार थने जब पा डव को यह सू चत कया क ोणपु ने सोये ए पांचाल का वध कर डाला है, तब ौपद पु शोकसे पी ड़त तथा पता और भाईक ह यासे थत हो उठ ।। ३००—३०३ ।। कृतानशनसंक पा य भतॄनुपा वशत् । ौपद वचनाद् य भीमो भीमपरा मः ।। ३०४ ।। यं त या क षन् वै गदामादाय वीयवान् । अ वधावत् सुसं ु ो भार ाजं गुरोः सुतम् ।। ३०५ ।। वह प तय को अ थामासे इसका बदला लेनेके लये उ े जत करती ई आमरण अनशनका संक प ले अ -जल छोड़कर बैठ गयी। ौपद के कहनेसे भयंकर परा मी महाबली भीमसेन उसका य करनेक इ छासे हाथम गदा ले अ य त ोधम भरकर गु पु अ थामाके पीछे दौड़े ।। ३०४-३०५ ।। भीमसेनभयाद् य दै वेना भ चो दतः । अपा डवाये त षा ौ णर मवासृजत् ।। ३०६ ।। तब भीमसेनके भयसे घबराकर दै वक ेरणासे पा डव के वनाशके लये अ थामाने रोषपूवक द ा का योग कया ।। ३०६ ।। मैव म य वीत् कृ णः शमयं त य तद् वचः । य ा म ेण च त छमयामास फा गुनः ।। ३०७ ।। कतु भगवान् ीकृ णने अ थामाके रोषपूण वचनको शा त करते ए कहा —‘मैवम्—‘पा ’ डव का वनाश न हो।’ साथ ही अजुनने अपने द ा ारा उसके अ को शा त कर दया ।। ३०७ ।। ौणे ोहबु वं वी य पापा मन तदा । ौ ण ै पायनाद नां शापा ा यो यका रताः ।। ३०८ ।। उस समय पापा मा ोणपु के ोहपूण वचारको दे खकर ै पायन ास एवं ीकृ णने अ थामाको और अ थामाने उ ह शाप दया। इस कार दोन ओरसे एकसरेको शाप दान कया गया ।। ३०८ ।। म ण तथा समादाय ोणपु ा महारथात् । पा डवाः द ा ौप ै जतका शनः ।। ३०९ ।। महारथी अ थामासे म ण छ नकर वजयसे सुशो भत होनेवाले पा डव ने स तापूवक ौपद को दे द ।। ३०९ ।। एतद् वै दशामं पव सौ तकं समुदा तम् । अ ादशा म यायाः पव यु ा महा मना ।। ३१० ।। े ौ ँ ै े

इन सब वृ ा त से यु सौ तकपव दसवाँ कहा गया है। महा मा ासने इसम अठारह (१८) अ याय कहे ह ।। ३१० ।। ोकानां क थता य शता य ौ सं यया । ोका स त तः ो ा मु नना वा दना ।। ३११ ।। इसी कार उन वाद मु नने इस पवम ोक क सं या आठ सौ स र (८७०) बतायी है ।। ३११ ।। सौ तकैषीके स ब े पव यु मतेजसा । अत ऊ व मदं ा ः ीपव क णोदयम् ।। ३१२ ।। उ म तेज वी ासजीने इस पवम सौ तक और ऐषीक दोन क कथाएँ स ब कर द ह। इसके बाद व ान ने ीपव कहा है, जो क णरसक धारा बहानेवाला है ।। ३१२ ।। पु शोका भसंत तः ाच ुनरा धपः । कृ णोपनीतां य ासावायस तमां ढाम् ।। ३१३ ।। भीमसेन ोहबु धृतरा ो बभ ह। तथा शोका भत त य धृतरा य धीमतः ।। ३१४ ।। संसारगहनं बु या हेतु भम दशनैः । व रेण च य ा य रा आ ासनं कृतम् ।। ३१५ ।। ाच ु राजा धृतराने पु शोकसे संत त हो भीमसेनके त ोहबु कर ली और ीकृ ण ारा अपने समीप लायी ई लोहेक मजबूत तमाको भीमसेन समझकर भुजा म भर लया तथा उसे दबाकर टू क-टू क कर डाला। उस समय पु शोकसे पी ड़त बु मान् राजा धृतराको व रजीने मो का सा ा कार करानेवाली यु य तथा ववेकपूण बु के ारा संसारक ःख पताका तपादन करते ए भलीभाँ त समझाबुझाकर शा त कया ।। ३१३—३१५ ।। धृतरा य चा ैव कौरवायोधनं तथा । सा तःपुर य गमनं शोकात य क ततम् ।। ३१६ ।। इसी पवम शोकाकुल धृतराका अ तःपुरक य के साथ कौरव के यु थानम जानेका वणन है ।। ३१६ ।। वलापो वीरप नीनां य ा तक णः मृतः । ोधावेशः मोह गा धारीधृतरा योः ।। ३१७ ।। वह वीरप नय के अ य त क णापूण वलापका कथन है। वह गा धारी और धृतराक े ोधावेश तथा मू छत होनेका उ लेख है ।। ३१७ ।। य तान् याः शूरान् सं ामे व नव तनः । पु ान् ातॄन् पतॄं ैव द शु नहतान् रणे ।। ३१८ ।। उस समय उन ा णय ने यु म पीठ न दखानेवाले अपने शूरवीर पु , भाइय और पता को रणभू मम मरा आ दे खा ।। ३१८ ।। पु पौ वधाताया तथा ैव क तता । े ो ो

गा धाया ा प कृ णेन ोधोपशमन या ।। ३१९ ।। पु और पौ के वधसे पी ड़त गा धारीके पास आकर भगवान् ीकृ णने उनके ोधको शा त कया। इस संगका भी इसी पवम वणन कया गया है ।। ३१९ ।। य राजा महा ा ः सवधमभृतां वरः । रा ां ता न शरीरा ण दाहयामास शा तः ।। ३२० ।। वह यह भी कहा गया है क परम बु मान् और स पूण धमा मा म े राजा यु ध रने वहाँ मारे गये सम त राजा के शरीर का शा व धसे दाह-सं कार कया और कराया ।। ३२० ।। तोयकम ण चारधे रा ामुदकदा नक े । गूढो प य चा यानं कण य पृथयाऽऽ मनः ।। ३२१ ।। सुत यैत दह ो ं ासेन परम षणा । एतदे कादशं पव शोकवै ल कारणम् ।। ३२२ ।। णीतं स जनमनोवै ल ा ु वतकम् । स त वश तर यायाः पव य मन् क तताः ।। ३२३ ।। ोकस तशती चा प प चस त तसंयुता । सं यया भारता यानमु ं ासेन धीमता ।। ३२४ ।। तदन तर राजा को जलांज लदानके संगम उन सबके लये तपणका आर भ होते ही कु ती ारा गु त पसे उ प ए अपने पु कणका गूढ़ वृ ा त कट कया गया, यह संग आता है। मह ष ासने ये सब बात ीपवम कही ह। शोक और वकलताका संचार करनेवाला यह यारहवाँ पव े पु ष के च को भी व ल करके उनके ने से आँसूक धारा वा हत करा दे ता है। इस पवम स ाईस (२७) अ याय कहे गये ह। इसके ोक क सं या सात सौ पचह र (७७५) कही गयी है। इस कार परम बु मान् ासजीने महाभारतका यह उपा यान कहा है ।। ३२१—३२४ ।। अतः परं शा तपव ादशं बु वधनम् । य नवदमाप ो धमराजो यु ध रः ।। ३२५ ।। घात य वा पतॄन् ातॄन् पु ान् स ब धमातुलान् । शा तपव ण धमा ा याताः शारत पकाः ।। ३२६ ।। ीपवके प ात् बारहवाँ पव शा तपवके नामसे व यात है। यह बु और ववेकको बढ़ानेवाला है। इस पवम यह कहा गया है क अपने पतृतु य गु जन , भाइय , पु , सगेस ब धी एवं मामा आ दको मरवाकर राजा यु ध रके मनम बड़ा नवद ( ःख एवं वैरा य) आ। शा तपवम बाणशयापर शयन करनेवाले भी मजीके ारा उपदे श कये ए धम का वणन है ।। ३२५-३२६ ।। राज भव दत ा ते स य ानबुभु सु भः । आप मा त ैव कालहेतु द शनः ।। ३२७ ।। यान् बुद ् वा पु षः स यक् सव वमवा ुयात् । मो धमा क थता व च ा ब व तराः ।। ३२८ ।। े े ो ी ँ े ी

उ म ानक इ छा रखनेवाले राजा को उ ह भलीभाँ त जानना चा हये। उसी पवम काल और कारणक अपे ा रखनेवाले दे श और कालके अनुसार वहारम लानेयो य आप म का भी न पण कया गया है, ज ह अ छ तरह जान लेनेपर मनु य सव हो जाता है। शा तपवम व वध एवं अद्भुत मो -धम का भी बड़े व तारके साथ तपादन कया गया है ।। ३२७-३२८ ।। ादशं पव न द मेतत् ा जन यम् । अ पव ण व ेयम यायानां शत यम् ।। ३२९ ।। श चैव तथा याया नव चैव तपोधनाः । चतुदश सह ा ण तथा स त शता न च ।। ३३० ।। स त ोका तथैवा प च वश तसं यया । अत ऊ व च व ेयमनुशासनमु मम् ।। ३३१ ।। इस कार यह बारहवाँ पव कहा गया है, जो ानीजन को अ य त य है। इस पवम तीन सौ उ तालीस (३३९) अ याय ह और तपोधनो! इसक ोक-सं या चौदह हजार सात सौ ब ीस (१४,७३२) है। इसके बाद उ म अनुशासनपव है, यह जानना चा हये ।। ३२९—३३१ ।। य कृ तमाप ः ु वा धम व न यम् । भी माद् भागीरथीपु ात् कु राजो यु ध रः ।। ३३२ ।। जसम कु राज यु ध र गंगान दन भी मजीसे धमका न त स ा त सुनकर कृ त थ ए, यह बात कही गयी है ।। ३३२ ।। वहारोऽ का यन धमाथ यः क ततः । व वधानां च दानानां फलयोगाः क तताः ।। ३३३ ।। इसम धम और अथसे स ब ध रखनेवाले हतकारी आचार- वहारका न पण कया गया है। साथ ही नाना कारके दान के फल भी कहे गये ह ।। ३३३ ।। तथा पा वशेषा दानानां च परो व धः । आचार व धयोग स य य च परा ग तः ।। ३३४ ।। महाभा यं गवां चैव ा णानां तथैव च । रह यं चैव धमाणां दे शकालोपसं हतम् ।। ३३५ ।। एतत् सुब वृ ा तमु मं चानुशासनम् । भी म या ैव स ा तः वग य प रक तता ।। ३३६ ।। दानके वशेष पा , दानक उ म व ध, आचार और उसका वधान, स यभाषणक पराका ा, गौ और ा ण का माहा य, धम का रह य तथा दे श और काल (तीथ और पव)-क म हमा—ये सब अनेक वृ ा त जसम व णत ह, वह उ म अनुशासन-पव है। इसीम भी मको वगक ा त कही गयी है ।। ३३४—३३६ ।। एतत् योदशं पव धम न यकारकम् । अ यायानां शतं व षट् च वारशद े व तु ।। ३३७ ।। े



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धमका नणय करनेवाला यह पव तेरहवाँ है। इसम एक सौ छयालीस (१४६) अ याय ह ।। ३३७ ।। ोकानां तु सह ा ण ो ा य ौ सं यया । ततोऽ मे धकं नाम पव ो ं चतुदशम् ।। ३३८ ।। और पूरे आठ हजार (८,०००) ोक कहे गये ह। तदन तर चौदहव आ मे धक नामक पवक कथा है ।। ३३८ ।। तत् संवतम ीयं य ा यानमनु मम् । सुवणकोषस ा तज म चो ं परी तः ।। ३३९ ।। जसम परम उ म योगी संवत तथा राजा म का उपा यान है। यु ध रको सुवणके खजानेक ा त और परी त्के ज मका वणन है ।। ३३९ ।। द ध या ा नना पूव कृ णात् संजीवनं पुनः । चयायां हयमु सृ ं पा डव यानुग छतः ।। ३४० ।। त त च यु ा न राजपु ैरमषणैः । च ा दायाः पु ेण पु काया धनंजयः ।। ३४१ ।। सं ामे ब ुवाहेण संशयं चा द शतः । अ मेधे महाय े नकुला यानमेव च ।। ३४२ ।। इ या मे धकं पव ो मेत महा तम् । अ यायानां शतं चैव योऽ याया क तताः ।। ३४३ ।। ी ण ोकसह ा ण ताव येव शता न च । वश त तथा ोकाः सं याता त वद शना ।। ३४४ ।। पहले अ थामाके अ क अ नसे द ध ए बालक परी त्का पुनः ीकृ णके अनु हसे जी वत होना कहा गया है। स पूण रा म घूमनेके लये छोड़े गये अ मेधस ब धी अ के पीछे पा डु न दन अजुनके जाने और उन-उन दे श म कु पत राजकुमार के साथ उनके यु करनेका वणन है। पु काधमके अनुसार उ प ए च ांगदाकुमार ब ुवाहनने यु म अजुनको ाणसंकटक थ तम डाल दया था; यह कथा भी अ मेधपवम ही आयी है। वह अ मेध-महाय म नकुलोपा यान आया है। इस कार यह परम अ त आ मे धकपव कहा गया है। इसम एक सौ तीन अ याय पढ़े गये ह। त वदश ासजीने इस पवम तीन हजार तीन सौ बीस (३, ३२०) ोक क रचना क है ।। ३४०—३४४ ।। तत वा मवासा यं पव प चदशं मृतम् । य रा यं समु सृ य गा धाया स हतो नृपः ।। ३४५ ।। धृतरा ोऽऽ मपदं व र जगाम ह । यं ् वा थतं सा वी पृथा यनुययौ तदा ।। ३४६ ।। पु रा यं प र य य गु शु ूषणे रता । ै



तदन तर आ मवा सक नामक पं हव पवका वणन है। जसम गा धारीस हत राजा धृतरा और व रके रा य छोड़कर वनके आ मम जानेका उ लेख आ है। उस समय धृतराको थान करते दे ख सती सा वी कु ती भी गु जन क सेवाम अनुर हो अपने पु का रा य छोड़कर उ ह के पीछे -पीछे चली गय ।। ३४५-३४६ ।। य राजा हतान् पु ान् पौ ान यां पा थवान् ।। ३४७ ।। लोका तरगतान् वीरानप यत् पुनरागतान् । ऋषेः सादात् कृ ण य ् वा यमनु मम् ।। ३४८ ।। य वा शोकं सदार स पर मकां गतः । य धम समा य व रः सुग त गतः ।। ३४९ ।। संजय सहामा यो व ान् गाव ग णवशी । ददश नारदं य धमराजो यु ध रः ।। ३५० ।। जहाँ राजा धृतराने यु म मरकर परलोकम गये ए अपने वीर पु , पौ तथा अ या य राजा को भी पुनः अपने पास आया आ दे खा। मह ष ासजीके सादसे यह उ म आ य दे खकर गा धारीस हत धृतराने शोक याग दया और उ म स ात कर ली। इसी पवम यह बात भी आयी है क व रजीने धमका आ य लेकर उ म ग त ा त क । साथ ही म य स हत जते य व ान् गव गणपु संजयने भी उ म पद ा त कर लया। इसी पवम यह बात भी आयी है क धमराज यु ध रको नारदजीका दशन आ ।। ३४७—३५० ।। नारदा चैव शु ाव वृ णीनां कदनं महत् । एतदा मवासा यं पव ं महद तम् ।। ३५१ ।। नारदजीसे ही उ ह ने य वं शय के महान् संहारका समाचार सुना। यह अ य त अद्भुत आ मवा सकपव कहा गया है ।। ३५१ ।। च वारशद यायाः पवतद भसं यया । सह मेकं ोकानां प च ोकशता न च ।। ३५२ ।। षडेव च तथा ोकाः सं याता त वद शना । अतः परं नबोधेदं मौसलं पव दा णम् ।। ३५३ ।। इस पवम अ याय क सं या बयालीस (४२) है। त वदश ासजीने इसम एक हजार पाँच सौ छः (१,५०६) ोक रखे ह। इसके बाद मौसलपवक सूची सुनो—यह पव अ य त दा ण है ।। ३५२-३५३ ।। य ते पु ष ा ाः श पशहता यु ध । द ड व न प ाः समीपे लवणा भसः ।। ३५४ ।। इसीम यह बात आयी है क वे े य वंशी वीर ारसमु के तटपर आपसके यु म अ -श के पशमा से मारे गये। ा ण के शापने उ ह पहले ही पीस डाला था ।। ३५४ ।। आपाने पानक लता दै वेना भ चो दताः । ै



एरका प भव ै नज नु रतरेतरम् ।। ३५५ ।। उन सबने मधुपानके थानम जाकर खूब पीया और नशेसे होश-हवास खो बैठे। फर दै वसे े रत हो पर पर संघष करके उ ह ने एरका पी वसे एक- सरेको मार डाला ।। ३५५ ।। य सव यं कृ वा तावुभौ रामकेशवौ । ना तच ामतुः कालं ा तं सवहरं महत् ।। ३५६ ।। वह सबका संहार करके बलराम और ीकृ ण दोन भाइय ने समथ होते ए भी अपने ऊपर आये ए सवसंहारकारी महान् कालका उ लंघन नह कया (मह षय क वाणी स य करनेके लये कालका आदे श वे छासे अंगीकार कर लया) ।। ३५६ ।। य ाजुनो ारवतीमे य वृ ण वनाकृताम् । ् वा वषादमगमत् परां चा त नरषभः ।। ३५७ ।। वह यह संग भी है क नर े अजुन ारकाम आये और उसे वृ णवं शय से सूनी दे खकर वषादम डू ब गये। उस समय उनके मनम बड़ी पीड़ा ई ।। ३५७ ।। स सं कृ य नर े ं मातुलं शौ रमा मनः । ददश य वीराणामापाने वैशसं महत् ।। ३५८ ।। उ ह ने अपने मामा नर े वसुदेवजीका दाहसं कार करके आपान थानम जाकर य वंशी वीर के वकट वनाशका रोमांचकारी य दे खा ।। ३५८ ।। शरीरं वासुदेव य राम य च महा मनः । सं कारं ल भयामास वृ णीनां च धानतः ।। ३५९ ।। वहाँसे भगवान् ीकृ ण, महा मा बलराम तथा धान- धान वृ णवंशी वीर के शरीर को लेकर उ ह ने उनका सं कार स प कया ।। ३५९ ।। स वृ बालमादाय ारव या ततो जनम् । ददशाप द क ायां गा डीव य पराभवम् ।। ३६० ।। तदन तर अजुनने ारकाके बालक, वृ तथा य को साथ ले वहाँसे थान कया; परंतु उस ःखदा यनी वप म उ ह ने अपने गा डीव धनुषक अभूतपूव पराजय दे खी ।। ३६० ।। सवषां चैव द ानाम ाणाम स ताम् । नाशं वृ णकल ाणां भावाणाम न यताम् ।। ३६१ ।। ् वा नवदमाप ो ासवा य चो दतः । धमराजं समासा सं यासं समरोचयत् ।। ३६२ ।। उनके सभी द ा उस समय अ स -से होकर व मृत हो गये। वृ णकुलक य का दे खते-दे खते अपहरण हो जाना और अपने भाव का थर न रहना—यह सब दे खकर अजुनको बड़ा नवद ( ःख) आ। फर उ ह ने ासजीके वचन से े रत हो धमराज यु ध रसे मलकर सं यासम अ भ च दखायी ।। ३६१-३६२ ।। इ येत मौसलं पव षोडशं प रक ततम् । अ याया ौ समा याताः ोकानां च शत यम् ।। ३६३ ।। ो ै

ोकानां वश त ैव सं याता त वद शना । महा था नकं त मा व स तदशं मृतम् ।। ३६४ ।। इस कार यह सोलहवाँ मौसलपव कहा गया है। इसम त व ानी ासने गनकर आठ (८) अ याय और तीन सौ बीस (३२०) ोक कहे ह। इसके प ात् स हवाँ महा था नकपव कहा गया है ।। ३६३—३६४ ।। य रा यं प र य य पा डवाः पु षषभाः । ौप ा स हता दे ा महा थानमा थताः ।। ३६५ ।। जसम नर े पा डव अपना रा य छोड़कर ौपद के साथ महा थानके* पथपर आ गये ।। ३६५ ।। य तेऽ नं द शरे लौ ह यं ा य सागरम् । य ा नना चो दत पाथ त मै महा मने ।। ३६६ ।। ददौ स पू य तद् द ं गा डीवं धनु मम् । य ातॄन् नप ततान् ौपद च यु ध रः ।। ३६७ ।। ् वा ह वा जगामैव सवाननवलोकयन् । एतत् स तदशं पव महा था नकं मृतम् ।। ३६८ ।। उस या ाम उ ह ने लाल सागरके पास प ँचकर सा ात् अ नदे वको दे खा और उ ह क ेरणासे पाथने उन महा माको आदरपूवक अपना उ म एवं द गा डीव धनुष अपण कर दया। उसी पवम यह भी कहा गया है क राजा यु ध रने मागम गरे ए अपने भाइय और ौपद को दे खकर भी उनक या दशा ई यह जाननेके लये पीछे क ओर फरकर नह दे खा और उन सबको छोड़कर आगे बढ़ गये। यह स हवाँ महा था नकपव कहा गया है ।। ३६६-३६८ ।। य ा याया यः ो ाः ोकानां च शत यम् । वश त तथा ोकाः सं याता त वद शना ।। ३६९ ।। इसम त व ानी ासजीने तीन (३) अ याय और एक सौ तेईस (१२३) ोक गनकर कहे ह ।। ३६९ ।। वगपव ततो ेयं द ं यत् तदमानुषम् । ा तं दै वरथं वगा े वान् य धमराट् ।। ३७० ।। आरोढुं सुमहा ा आनृशं या छु ना वना । ताम या वचलां ा वा थ त धम महा मनः ।। ३७१ ।। पं य तत् य वा धमणासौ सम वतः । वग ा तः स च तथा यातना वपुला भृशम् ।। ३७२ ।। दे व तेन नरकं य ाजेन द शतम् । शु ाव य धमा मा ातॄणां क णा गरः ।। ३७३ ।। नदे शे वतमानानां दे शे त ैव वतताम् । अनुद शत धमण दे वराजेन पा डवः ।। ३७४ ।। ो













तदन तर वगारोहणपव जानना चा हये। जो द वृ ा त से यु और अलौ कक है। उसम यह वणन आया है क वगसे यु ध रको लेनेके लये एक द रथ आया, कतु महा ानी धमराज यु ध रने दयावश अपने साथ आये ए कु ेको छोड़कर अकेले उसपर चढ़ना वीकार नह कया। महा मा यु ध रक धमम इस कार अ वचल थ त जानकर कु ेने अपने मायामय व पको याग दया और अब वह सा ात् धमके पम थत हो गया। धमके साथ यु ध र वगम गये। वहाँ दे व तने ाजसे उ ह नरकक वपुल यातना का दशन कराया। वह धमा मा यु ध रने अपने भाइय क क णाजनक पुकार सुनी थी। वे सब वह नरक दे शम यमराजक आ ाके अधीन रहकर यातना भोगते थे। त प ात् धमराज तथा दे वराजने पा डु न दन यु ध रको वा तवम उनके भाइय को जो सद्ग त ा त ई थी, उसका दशन कराया ।। ३७०—३७४ ।। आ लु याकाशग ायां दे हं य वा स मानुषम् । वधम न जतं थानं वग ा य स धमराट् ।। ३७५ ।। मुमुदे पू जतः सवः से ै ः सुरगणैः सह । एतद ादशं पव ो ं ासेन धीमता ।। ३७६ ।। इसके बाद धमराजने आकाशगंगाम गोता लगाकर मानवशरीरको याग दया और वगलोकम अपने धमसे उपाजत उ म थान पाकर वे इ ा द दे वता के साथ उनसे स मा नत हो आन दपूवक रहने लगे। इस कार बु मान् ासजीने यह अठारहवाँ पव कहा है ।। ३७५-३७६ ।। अ यायाः प च सं याताः पव य मन् महा मना । ोकानां े शते चैव सं याते तपोधनाः ।। ३७७ ।। नव ोका तथैवा ये सं याताः परम षणा । अ ादशैवमेता न पवा यु ा यशेषतः ।। ३७८ ।। तपोधनो! परम ऋ ष महा मा ासजीने इस पवम गने- गनाये पाँच (५) अ याय और दो सौ नौ (२०९) ोक कहे ह। इस कार ये कुल मलाकर अठारह पव कहे गये ह ।। ३७७-३७८ ।। खलेषु ह रवंश भ व यं च क ततम् । दश ोकसह ा ण वश छ् लोकशता न च ।। ३७९ ।। खलेषु ह रवंशे च सं याता न मह षणा । एतत् सव समा यातं भारते पवसं हः ।। ३८० ।। खलपव म ह रवंश तथा भ व यका वणन कया गया है। ह रवंशके खलपव म मह ष ासने गणनापूवक बारह हजार (१२,०००) ोक रखे ह। इस कार महाभारतम यह सब पव का सं ह बताया गया है ।। ३७९-३८० ।। अ ादश समाज मुर ौ ह यो युयु सया । त महादा णं यु महा य ादशाभवत् ।। ३८१ ।। कु े म यु क इ छासे अठारह अ ौ हणी सेनाएँ एक ई थ और वह महाभयंकर यु अठारह दन तक चलता रहा ।। ३८१ ।। ो ो े ो ो

यो व ा चतुरो वेदान् सा ोप नषदो जः । न चा यान मदं व ा ैव स याद् वच णः ।। ३८२ ।। जो ज अंग और उप नषद स हत चार वेद को जानता है, परंतु इस महाभारतइ तहासको नह जानता, वह व श व ान् नह है ।। ३८२ ।। अथशा मदं ो ं धमशा मदं महत् । कामशा मदं ो ं ासेना मतबु ना ।। ३८३ ।। असीम बु वाले महा मा ासने यह अथशा कहा है। यह महान् धमशा भी है, इसे कामशा भी कहा गया है (और मो शा तो यह है ही) ।। ३८३ ।। ु वा वदमुपा यानं ा म य रोचते । पुं को कल तं ु वा ा वाङ् य वा गव ।। ३८४ ।। इस उपा यानको सुन लेनेपर और कुछ सुनना अ छा नह लगता। भला को कलका कलरव सुनकर कौ क कठोर ‘काँय-काँय’ कसे पसंद आयेगी? ।। ३८४ ।। इ तहासो माद मा जाय ते क वबु यः । प च य इव भूते यो लोकसं वधय यः ।। ३८५ ।। जैसे पाँच भूत से वध (आ या मक, आ धदै वक और आ धभौ तक) लोकसृ याँ कट होती ह, उसी कार इस उ म इ तहाससे क वय को का रचना वषयक बु याँ ा त होती ह ।। ३८५ ।। अ या यान य वषये पुराणं वतते जाः । अ त र य वषये जा इव चतु वधाः ।। ३८६ ।। जवरो! इस महाभारत-इ तहासके भीतर ही अठारह पुराण थत ह, ठ क उसी तरह, जैसे आकाशम ही चार कारक जा (जरायुज, वेदज, अ डज और उ ज) व मान ह ।। ३८६ ।। यागुणानां सवषा मदमा यानमा यः । इ याणां सम तानां च ा इव मनः याः ।। ३८७ ।। जैसे व च मान सक याएँ ही सम त इ य क चे ा का आधार ह उसी कार स पूण लौ कक-वै दक कम के उ कृ फल-साधन का यह आ यान ही आधार है ।। ३८७ ।। अना यैतदा यानं कथा भु व न व ते । आहारमनपा य शरीर येव धारणम् ।। ३८८ ।। जैसे भोजन कये बना शरीर नह रह सकता, वैसे ही इस पृ वीपर कोई भी ऐसी कथा नह है जो इस महाभारतका आ य लये बना कट ई हो ।। ३८८ ।। इदं क ववरैः सवरा यानमुपजी ते । उदय े सु भभृ यैर भजात इवे रः ।। ३८९ ।। अ य का य कवयो न समथा वशेषणे । साधो रव गृह थ य शेषा य इवा माः ।। ३९० ।। ी े

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सभी े क व इस महाभारतक कथाका आ य लेते ह और लगे। ठ क वैसे ही, जैसे उ त चाहनेवाले सेवक े वामीका सहारा लेते ह। जैसे शेष तीन आ म उ म गृह थ आ मसे बढ़कर नह हो सकते, उसी कार संसारके क व इस महाभारत का से बढ़कर का -रचना करनेम समथ नह हो सकते ।। ३८९-३९० ।। धम म तभवतु वः सततो थतानां स ेक एव परलोकगत य ब धुः । अथाः य नपुणैर प से माना नैवा तभावमुपया त न च थर वम् ।। ३९१ ।। तप वी मह षयो! (तथा महाभारतके पाठको!) आप सब लोग सदा सांसा रक आस य से ऊँचे उठ और आपका मन सदा धमम लगा रहे; य क परलोकम गये ए जीवका ब धु या सहायक एकमा धम ही है। चतुर मनु य भी धन और य का सेवन तो करते ह, कतु वे उनक े तापर व ास नह करते और न उ ह थर ही मानते ह ।। ३९१ ।। ै पायनो पुट नःसृतम मेयं पु यं प व मथ पापहरं शवं च । यो भारतं सम धग छ त वा यमानं क त य पु करजलैर भषेचनेन ।। ३९२ ।। जो ासजीके मुखसे नकले ए इस अ मेय (अतुलनीय) पु यदायक, प व , पापहारी और क याणमय महाभारतको सर के मुखसे सुनता है, उसे पु करतीथके जलम गोता लगानेक या आव यकता है? ।। ३९२ ।। यद ा कु ते पापं ा ण व यै रन् । महाभारतमा याय सं यां मु य त प माम् ।। ३९३ ।। ा ण दनम अपनी इ य ारा जो पाप करता है, उससे सायंकाल महाभारतका पाठ करके मु हो जाता है ।। ३९३ ।। यद् रा ौ कु ते पापं कमणा मनसा गरा । महाभारतमा याय पूवा सं यां मु यते ।। ३९४ ।। इसी कार वह मन, वाणी और या ारा रातम जो पाप करता है, उससे ातःकाल महाभारतका पाठ करके छू ट जाता है ।। ३९४ ।। यो गोशतं कनकशृ मयं ददा त व ाय वेद व षे च ब ुताय । पु यां च भारतकथां शृणुया च न यं तु यं फलं भव त त य च त य चैव ।। ३९५ ।। जो गौ के स गम सोना मढ़ाकर वेदवे ा एवं ब ा णको त दन सौ गौएँ दान दे ता है और जो केवल महाभारत-कथाका वणमा करता है, इन दोन मसे येकको बराबर ही फल मलता है ।। ३९५ ।। आ यानं त ददमनु मं महाथ े े

व ेयं मह दह पवसं हेण । ु वादौ भव त नृणां सुखावगाहं व तीण लवणजलं यथा लवेन ।। ३९६ ।। यह महान् अथसे भरा आ परम उ म महाभारत-आ यान यहाँ पवसं हा यायके ारा समझना चा हये। इस अ यायको पहले सुन लेनेपर मनु य के लये महाभारत-जैसे महासमु म वेश करना उसी कार सुगम हो जाता है जैसे जहाजक सहायतासे अन त जल-रा शवाले समु म वेश सहज हो जाता है ।। ३९६ ।। इ त ीमहाभारते आ दपव ण पवसं हपव ण तीयोऽ यायः ।। २ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत पवसं हपवम सरा अ याय पूरा आ ।। २ ।।

१. अ धक नीचा-ऊँचा होना, काँटेदार वृ से ा तहोना तथा कंकड़-प थर क अ धकताका होना आ द भू मस ब धी दोष माने गये ह। २. सम त नामक े म पाँच कु ड या सरोवर होनेसे उस े और उसके समीपवत दे शका भी सम तपंचक नाम आ। परंतु उसका सम त नाम य पड़ा, इसका कारण इस ोकम बता रहे ह—‘समेतानाम् अ तो य मन् स सम तः’—समागत सेना का अ त आ हो जस थानपर, उसे सम त कहते ह। इसी ु प के अनुसार वह े सम त कहलाता है। * घर छोड़कर नराहार रहते ए, वे छासे मृ युका वरण करनेके लये नकल जाना और व भ दशा म मण करते ए अ तम उ र दशा— हमालयक ओर जाना—महा थान कहलाता है—पा डव ने ऐसा ही कया।

(प ौ यपव) तृतीयोऽ यायः जनमेजयको सरमाका शाप, जनमेजय ारा सोम वाका पुरो हतके पदपर वरण, आ ण, उपम यु, वेद और उ ंकक गु भ तथा उ ंकका सपय के लये जनमेजयको ो साहन दे ना सौ त वाच जनमेजयः पारी तः सह ातृ भः कु े े द घस मुपा ते । त य ातर यः ुतसेन उ सेनो भीमसेन इ त । तेषु त स मुपासीने वाग छत् सारमेयः ।। १ ।। उ वाजी कहते ह—परी त्के पु जनमेजय अपने भाइय के साथ कु े म द घकालतक चलनेवाले य का अनु ान करते थे। उनके तीन भाई थे— ुतसेन, उ सेन और भीमसेन। वे तीन उस य म बैठे थे। इतनेम ही दे वता क कु तया सरमाका पु सारमेय वहाँ आया ।। १ ।। स जनमेजय य ातृ भर भहतो रो यमाणो मातुः समीपमुपाग छत् ।। २ ।। जनमेजयके भाइय ने उस कु ेको मारा। तब वह रोता आ अपनी माँके पास गया ।। २ ।। तं माता रो यमाणमुवाच । क रो द ष केना य भहत इ त ।। ३ ।। बार-बार रोते ए अपने उस पु से माताने पूछा—‘बेटा! य रोता है? कसने तुझे मारा है?’ ।। ३ ।। स एवमु ो मातरं युवाच जनमेजय य ातृ भर भहतोऽ मी त ।। ४ ।। माताके इस कार पूछनेपर उसने उ र दया—‘माँ! मुझे जनमेजयके भाइय ने मारा है’ ।। ४ ।। तं माता युवाच ं वया त ापरा ं येना य भहत इ त ।। ५ ।। तब माता उससे बोली—‘बेटा! अव य ही तूने उनका कोई कट पम अपराध कया होगा, जसके कारण उ ह ने तुझे मारा है’ ।। ५ ।। स तां पुन वाच नापरा या म क च ावे े हव ष नाव लह इ त ।। ६ ।। तब उसने मातासे पुनः इस कार कहा—‘मने कोई अपराध नह कया है। न तो उनके ह व यक ओर दे खा और न उसे चाटा ही है’ ।। ६ ।। े

त छ वा त य माता सरमा पु ःखाता तत् स मुपाग छद् य स जनमेजयः सह ातृ भदघ-स मुपा ते ।। ७ ।। यह सुनकर पु के ःखसे ःखी ई उसक माता सरमा उस स म आयी, जहाँ जनमेजय अपने भाइय के साथ द घकालीन स का अनु ान कर रहे थे ।। ७ ।। स तया ु या त ो ोऽयं मे पु ो न क चदपरा य त नावे ते हव ष नावले ढ कमथम भहत इ त ।। ८ ।। वहाँ ोधम भरी ई सरमाने जनमेजयसे कहा—‘मेरे इस पु ने तु हारा कोई अपराध नह कया था, न तो इसने ह व यक ओर दे खा और न उसे चाटा ही था, तब तुमने इसे य मारा?’ ।। ८ ।। न क च व त ते सा तानुवाच य मादयम भहतोऽनपकारी त माद ं वां भयमाग म यती त ।। ९ ।। कतु जनमेजय और उनके भाइय ने इसका कुछ भी उ र नह दया। तब सरमाने उनसे कहा, ‘मेरा पु नरपराध था, तो भी तुमने इसे मारा है; अतः तु हारे ऊपर अक मात् ऐसा भय उप थत होगा, जसक पहलेसे कोई स भावना न रही हो’ ।। ९ ।। जनमेजय एवमु ो दे वशु या सरमया भृशं स ा तो वष ण ासीत् ।। १० ।। दे वता क कु तया सरमाके इस कार शाप दे नेपर जनमेजयको बड़ी घबराहट ई और वे ब त ःखी हो गये ।। १० ।। स त मन् स े समा ते हा तनपुरं ये य पुरो हतमनु पम व छमानः परं य नमकरोद् यो मे पापकृ यां शमये द त ।। ११ ।। उस स के समा त होनेपर वे ह तनापुरम आये और अपनेयो य पुरो हतक खोज करते ए इसके लये बड़ा य न करने लगे। पुरो हतके ढूँ ढ़नेका उ े य यह था क वह मेरी इस शाप प पापकृ याको (जो बल, आयु और ाणका नाश करनेवाली है) शा त कर दे ।। ११ ।। स कदा च मृगयां गतः पारी तो जनमेजयः क मं त् व वषय आ ममप यत् ।। १२ ।। एक दन परी त्पु जनमेजय शकार खेलनेके लये वनम गये। वहाँ उ ह ने एक आ म दे खा, जो उ ह के रा यके कसी दे शम व मान था ।। १२ ।। त क षरासांच े ुत वा नाम । त य तप य भरतः पु आ ते सोम वा नाम ।। १३ ।। उस आ मम ुत वा नामसे स एक ऋ ष रहते थे। उनके पु का नाम था सोम वा। सोम वा सदा तप याम ही लगे रहते थे ।। १३ ।। त य तं पु म भग य जनमेजयः पारी तः पौरो ह याय व े ।। १४ ।। परी त्कुमार जनमेजयने मह ष ुत वाके पास जाकर उनके पु सोम वाका पुरो हतपदके लये वरण कया ।। १४ ।। स नम कृ य तमृ षमुवाच भगव यं तव पु ो मम पुरो हतोऽ व त ।। १५ ।। े















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राजाने पहले मह षको नम कार करके कहा—‘भगवन्! आपके ये पु सोम वा मेरे पुरो हत ह ’ ।। १५ ।। स एवमु ः युवाच जनमेजयं भो जनमेजय पु ोऽयं मम स या जातो महातप वी वा याय-स प ो म पोवीयस भृतो म छु ं पीतव या त याः कु ौ जातः ।। १६ ।। उनके ऐसा कहनेपर ुत वाने जनमेजयको इस कार उ र दया—‘महाराज जनमेजय! मेरा यह पु सोम वा स पणीके गभसे पैदा आ है। यह बड़ा तप वी और वा यायशील है। मेरे तपोबलसे इसका भरण-पोषण आ है। एक समय एक स पणीने मेरा वीयपान कर लया था, अतः उसीके पेटसे इसका ज म आ है ।। १६ ।। समथ ऽयं भवतः सवाः पापकृ याः शम यतु-म तरेण महादे वकृ याम् ।। १७ ।। यह तु हारी स पूण पापकृ या (शापज नत उप व )-का नवारण करनेम समथ है। केवल भगवान् शंकरक कृ याको यह नह टाल सकता ।। १७ ।। अ य वेकमुपांशु तं यदे नं क द् ा णः कं चदथम भयाचेत् तं त मै द ादयं य ेत सहसे ततो नय वैन म त ।। १८ ।। कतु इसका एक गु त नयम है। य द कोई ा ण इसके पास आकर इससे कसी व तुक याचना करेगा तो यह उसे उसक अभी व तु अव य दे गा। य द तुम उदारतापूवक इसके इस वहारको सहन कर सको अथवा इसक इ छापू तका उ साह दखा सको तो इसे ले जाओ’ ।। १८ ।। तेनैवमु ो जनमेजय तं युवाच भगवं तत् तथा भ व यती त ।। १९ ।। ुत वाके ऐसा कहनेपर जनमेजयने उ र दया—‘भगवन्! सब कुछ उनक चके अनुसार ही होगा’ ।। १९ ।। स तं पुरो हतमुपादायोपावृ ो ातॄनुवाच मयायं वृत उपा यायो यदयं ूयात् तत् कायम वचारय भव र त । तेनैवमु ा ातर त य तथा च ु ः । स तथा ातॄन् सं द य त शलां य भ त थे तं च दे शं वशे थापयामास ।। २० ।। फर वे सोम वा पुरो हतको साथ लेकर लौटे और अपने भाइय से बोले—‘इ ह मने अपना उपा याय (पुरो हत) बनाया है। ये जो कुछ भी कह, उसे तु ह बना कसी सोचवचारके पालन करना चा हये।’ जनमेजयके ऐसा कहनेपर उनके तीन भाई पुरो हतक येक आ ाका ठ क-ठ क पालन करने लगे। इधर राजा जनमेजय अपने भाइय को पूव आदे श दे कर वयं त शला जीतनेके लये चले गये और उस दे शको अपने अ धकारम कर लया ।। २० ।। एत म तरे क षध यो नामायोद त य श या यो बभूवु पम युरा णवद े त ।। २१ ।। (गु क आ ाका कस कार पालन करना चा हये, इस वषयम आगेका संग कहा जाता है—) इ ह दन आयोदधौ य नामसे स एक मह ष थे। उनके तीन श य ए— उपम यु, आ ण पांचाल तथा वेद ।। २१ ।। स एकं श यमा ण पा चा यं ेषयामास ग छ केदारख डं बधाने त ।। २२ ।। े े े ी ो े े औ

एक दन उपा यायने अपने एक श य पांचालदे शवासी आ णको खेतपर भेजा और कहा—‘व स! जाओ, या रय क टू ट ई मेड़ बाँध दो’ ।। २२ ।। स उपा यायेन सं द आ णः पा चा य त ग वा तत् केदारख डं ब ं नाशकत् । स ल यमानोऽप य पायं भव वेवं क र या म ।। २३ ।। उपा यायके इस कार आदे श दे नेपर पांचालदे शवासी आ ण वहाँ जाकर उस धानक यारीक मेड़ बाँधने लगा; परंतु बाँध न सका। मेड़ बाँधनेके य नम ही प र म करते-करते उसे एक उपाय सूझ गया और वह मन-ही-मन बोल उठा—‘अ छा; ऐसा ही क ँ ’ ।। २३ ।। स त सं ववेश केदारख डे शयाने च तथा त मं त दकं त थौ ।। २४ ।। वह यारीक टू ट ई मेड़क जगह वयं ही लेट गया। उसके लेट जानेपर वहाँका बहता आ जल क गया ।। २४ ।। ततः कदा च पा याय आयोदो धौ यः श यानपृ छत् व आ णः पा चा यो गत इ त ।। २५ ।। फर कुछ कालके प ात् उपा याय आयोदधौ यने अपने श य से पूछा —‘पांचाल नवासी आ ण कहाँ चला गया?’ ।। २५ ।। ते तं यूचुभगवं वयैव े षतो ग छ केदारख डं बधाने त । स एवमु ता छ यान् युवाच त मात् त सव ग छामो य स गत इ त ।। २६ ।। श य ने उ र दया—‘भगवन्! आपहीने तो उसे यह कहकर भेजा था क ‘जाओ, यारीक टू ट ई मेड़ बाँध दो।’ श य के ऐसा कहनेपर उपा यायने उनसे कहा—‘तो चलो, हम सब लोग वह चल, जहाँ आ ण गया है’ ।। २६ ।। स त ग वा त या ानाय श दं चकार । भो आ णे पा चा य वा स व सैही त ।। २७ ।। वहाँ जाकर उपा यायने उसे आनेके लये आवाज द —‘पांचाल नवासी आ ण! कहाँ हो व स! यहाँ आओ’ ।। २७ ।। स त छ वा आ ण पा यायवा यं त मात् केदारख डात् सहसो थाय तमुपा यायमुपत थे ।। २८ ।। उपा यायका यह वचन सुनकर आ ण पांचाल सहसा उस यारीक मेड़से उठा और उपा यायके समीप आकर खड़ा हो गया ।। २८ ।। ोवाच चैनमयम य केदारख डे नःसरमाणमुदकमवारणीयं संरो ं सं व ो भगव छ दं ु वैव सहसा वदाय केदारख डं भव तमुप थतः ।। २९ ।। फर उनसे वनयपूवक बोला—‘भगवन्! म यह ँ, यारीक टू ट ई मेड़से नकलते ए अ नवाय जलको रोकनेके लये वयं ही यहाँ लेट गया था। इस समय आपक आवाज सुनते ही सहसा उस मेड़को वद ण करके आपके पास आ खड़ा आ ।। २९ ।। तद भवादये भगव तमा ापयतु भवान् कमथ करवाणी त ।। ३० ।। ‘म आपके चरण म णाम करता ँ, आप आ ा द जये, म कौन-सा काय क ँ ?’ ।। ३० ।। े

स एवमु उपा यायः युवाच य माद् भवान् केदारख डं वदाय थत त मा ालक एव ना ना भवान् भ व यती युपा यायेनानुगृहीतः ।। ३१ ।। आ णके ऐसा कहनेपर उपा यायने उ र दया—‘तुम यारीके मेड़को वद ण करके उठे हो, अतः इस उ लनकमके कारण उ ालक नामसे ही स होओगे।’ ऐसा कहकर उपा यायने आ णको अनुगह ृ ीत कया ।। ३१ ।। य मा च वया म चनमनु तं त मा े योऽवा य स । सव च ते वेदाः तभा य त सवा ण च धमशा ाणी त ।। ३२ ।। साथ ही यह भी कहा क, ‘तुमने मेरी आ ाका पालन कया है, इस लये तुम क याणके भागी होओगे। स पूण वेद और सम त धमशा तु हारी बु म वयं का शत हो जायँगे’ ।। ३२ ।। स एवमु उपा यायेने ं दे शं जगाम । अथापरः श य त यैवायोद य धौ य योपम युनाम ।। ३३ ।। उपा यायके इस कार आशीवाद दे नेपर आ ण कृतकृ य हो अपने अभी दे शको चला गया। उ ह आयोदधौ य उपा यायका उपम यु नामक सरा श य था ।। ३३ ।। तं चोपा यायः ेषयामास व सोपम यो गा र वे त ।। ३४ ।। उसे उपा यायने आदे श दया—‘व स उपम यु! तुम गौ क र ा करो’ ।। ३४ ।। स उपा यायवचनादर द् गाः; स चाह न गा र वा दवस ये गु गृहमाग योपा याय या तः थ वा नम े ।। ३५ ।। उपा यायक आ ासे उपम यु गौ क र ा करने लगा। वह दनभर गौ क र ाम रहकर सं याके समय गु जीके घरपर आता और उनके सामने खड़ा हो नम कार करता ।। ३५ ।। तमुपा यायः पीवानमप य वाच चैनं व सोपम यो केन वृ क पय स पीवान स ढ म त ।। ३६ ।। उपा यायने दे खा उपम यु खूब मोटा-ताजा हो रहा है, तब उ ह ने पूछा—‘बेटा उपम यु! तुम कैसे जी वका चलाते हो, जससे इतने अ धक -पु हो रहे हो?’ ।। ३६ ।। स उपा यायं युवाच भो भै यैण वृ क पयामी त ।। ३७ ।। उसने उपा यायसे कहा—‘गु दे व! म भ ासे जीवन- नवाह करता ँ’ ।। ३७ ।। तमुपा यायः युवाच म य नवे भै यं नोपयो म त । स तथे यु वा भै यं च र वोपा यायाय यवेदयत् ।। ३८ ।। यह सुनकर उपा याय उपम युसे बोले—‘मुझे अपण कये बना तु ह भ ाका अ अपने उपयोगम नह लाना चा हये।’ उपम युने ‘ब त अ छा’ कहकर उनक आ ा वीकार कर ली। अब वह भ ा लाकर उपा यायको अपण करने लगा ।। ३८ ।। स त मा पा यायः सवमेव भै यमगृ ात् । स तथे यु वा पुनरर द् गाः । अह न र वा नशामुखे गु कुलमाग य गुरोर तः थ वा नम े ।। ३९ ।। े





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उपा याय उपम युसे सारी भ ा ले लेते थे। उपम यु ‘तथा तु’ कहकर पुनः पूववत् गौ क र ा करता रहा। वह दनभर गौ क र ाम रहता और (सं याके समय) पुनः गु के घरपर आकर गु के सामने खड़ा हो नम कार करता था ।। ३९ ।। तमुपा याय तथा प पीवानमेव ् वोवाच व सोपम यो सवमशेषत ते भै यं गृ ा म केनेदान वृ क पयसी त ।। ४० ।। उस दशाम भी उपम युको पूववत् -पु ही दे खकर उपा यायने पूछा—‘बेटा उपम यु! तु हारी सारी भ ा तो म ले लेता ँ, फर तुम इस समय कैसे जीवन- नवाह करते हो?’ ।। ४० ।। स एवमु उपा यायं युवाच भगवते नवे पूवमपरं चरा म तेन वृ क पयामी त ।। ४१ ।। उपा यायके ऐसा कहनेपर उपम युने उ ह उ र दया—‘भगवन्! पहलेक लायी ई भ ा आपको अ पत करके अपने लये सरी भ ा लाता ँ और उसीसे अपनी जी वका चलाता ँ’ ।। ४१ ।। तमुपा यायः युवाच नैषा या या गु वृ र येषाम प भै योपजी वनां वृ युपरोधं करो ष इ येवं वतमानो लुधोऽसी त ।। ४२ ।। यह सुनकर उपा यायने कहा—‘यह याययु एवं े वृ नह है। तुम ऐसा करके सरे भ ाजीवी लोग क जी वकाम बाधा डालते हो; अतः लोभी हो (तु ह बारा भ ा नह लानी चा हये)’ ।। ४२ ।। स तथे यु वा गा अर त् । र वा च पुन पा यायगृहमाग योपा याय या तः थ वा नम े ।। ४३ ।। उसने ‘तथा तु’ कहकर गु क आ ा मान ली और पूववत् गौ क र ा करने लगा। एक दन गाय चराकर वह फर (सायंकालको) उपा यायके घर आया और उनके सामने खड़े होकर उसने नम कार कया ।। ४३ ।। तमुपा याय तथा प पीवानमेव ् वा पुन वाच व सोपम यो अहं ते सव भै यं गृ ा म न चा य चर स पीवान स भृशं केन वृ क पयसी त ।। ४४ ।। उपा यायने उसे फर भी मोटा-ताजा ही दे खकर पूछा—‘बेटा उपम यु! म तु हारी सारी भ ा ले लेता ँ और अब तुम बारा भ ा नह माँगते, फर भी ब त मोटे हो। आजकल कैसे खाना-पीना चलाते हो?’ ।। ४४ ।। स एवमु तमुपा यायं युवाच भो एतासां गवां पयसा वृ क पयामी त । तमुवाचोपा यायो नैत या यं पय उपयो ुं भवतो मया ना यनु ात म त ।। ४५ ।। इस कार पूछनेपर उपम युने उपा यायको उ र दया—‘भगवन्! म इन गौ के धसे जीवन- नवाह करता ँ।’ (यह सुनकर) उपा यायने उससे कहा—‘मने तु ह ध पीनेक आ ा नह द है, अतः इन गौ के धका उपयोग करना तु हारे लये अनु चत है’ ।। ४५ ।। स तथे त त ाय गा र वा पुन पा यायगृहमे य गुरोर तः थ वा नम े ।। ४६ ।। े ‘ ’ ी े ी ी औ

उपम युने ‘ब त अ छा’ कहकर ध न पीनेक भी त ा कर ली और पूववत् गोपालन करता रहा। एक दन गोचारणके प ात् वह पुनः उपा यायके घर आया और उनके सामने खड़े होकर उसने नम कार कया ।। ४६ ।। तमुपा यायः पीवानमेव ् वोवाच व सोपम यो भै यं नाा स न चा य चर स पयो न पब स पीवान स भृशं केनेदान वृ क पयसी त ।। ४७ ।। उपा यायने अब भी उसे -पु ही दे खकर पूछा—‘बेटा उपम यु! तुम भ ाका अ नह खाते, बारा भ ा भी नह माँगते और गौ का ध भी नह पीते; फर भी ब त मोटे हो। इस समय कैसे नवाह करते हो?’ ।। ४७ ।। स एवमु उपा यायं युवाच भोः फेनं पबा म य ममे व सा मातॄणां तनात् पब त उद् गर त ।। ४८ ।। इस कार पूछनेपर उसने उपा यायको उ र दया—‘भगवन्! ये बछड़े अपनी माता के तन का ध पीते समय जो फेन उगल दे ते ह, उसीको पी लेता ँ’ ।। ४८ ।। तमुपा यायः युवाच—एते वदनुक पया गुणव तो व साः भूततरं फेनमुद ् गर त । तदे षाम प व सानां वृ युपरोधं करो येवं वतमानः । फेनम प भवान् न पातुमहती त । स तथे त त ु य पुनरर द् गाः ।। ४९ ।। यह सुनकर उपा यायने कहा—‘ये बछड़े उ म गुण से यु ह, अतः तुमपर दया करके ब त-सा फेन उगल दे ते ह गे। इस लये तुम फेन पीकर तो इन सभी बछड़ क जी वकाम बाधा उप थत करते हो, अतः आजसे फेन भी न पया करो।’ उपम युने ‘ब त अ छा’ कहकर उसे न पीनेक त ा कर ली और पूववत् गौ क र ा करने लगा ।। ४९ ।। तथा त ष ो भै यं नाा त न चा य चर त पयो न पब त फेनं नोपयुङ् े । स कदा चदर ये ुधात ऽकप ा यभ यत् ।। ५० ।। इस कार मना करनेपर उपम यु न तो भ ाका अ खाता, न बारा भ ा लाता, न गौ का ध पीता और न बछड़ के फेनको ही उपयोगम लाता था (अब वह भूखा रहने लगा)। एक दन वनम भूखसे पी ड़त होकर उसने आकके प े चबा लये ।। ५० ।। स तैरकप ैभ तैः ार त कटु ै ती ण वपाकै ु युपहतोऽ धो बभूव । ततः सोऽ धोऽ प चङ् यमाणः कूपे पपात ।। ५१ ।। आकके प े खारे, तीखे, कड़वे और खे होते ह। उनका प रणाम ती ण होता है (पाचनकालम वे पेटके अंदर आगक वाला-सी उठा दे ते ह); अतः उनको खानेसे उपम युक आँख क यो त न हो गयी। वह अ धा हो गया। अ धा होनेपर भी वह इधरउधर घूमता रहा; अतः कुएँम गर पड़ा ।। ५१ ।। अथ त म नाग छ त सूय चा ताचलावल ब न उपा यायः श यानवोचत्— नाया युपम यु त ऊचुवनं गतो गा र तु म त ।। ५२ ।। तदन तर जब सूयदे व अ ताचलक चोट पर प ँच गये, तब भी उपम यु गु के घरपर नह आया, तो उपा यायने श य से पूछा—‘उपम यु य नह आया?’ वे बोले—‘वह तो गाय चरानेके लये वनम गया था’ ।। ५२ ।। ो ो ो

तानाह उपा यायो मयोपम युः सवतः त ष ः स नयतं कु पत ततो नाग छ त चरं ततोऽ वे य इ येवमु वा श यैः साधमर यं ग वा त या ानाय श दं चकार भो उपम यो वा स व सैही त ।। ५३ ।। तब उपा यायने कहा—‘मने उपम युक जी वकाके सभी माग बंद कर दये ह, अतः न य ही वह ठ गया है; इसी लये इतनी दे र हो जानेपर भी वह नह आया, अतः हम चलकर उसे खोजना चा हये।’ ऐसा कहकर श य के साथ वनम जाकर उपा यायने उसे बुलानेके लये आवाज द —‘ओ उपम यु! कहाँ हो बेटा! चले आओ’ ।। ५३ ।। स उपा यायवचनं ु वा युवाचो चैरयम मन् कूपे प ततोऽह म त तमुपा यायः युवाच कथं वम मन् कूपे प तत इ त ।। ५४ ।। उसने उपा यायक बात सुनकर उ च वरसे उ र दया—‘गु जी! म कुएँम गर पड़ा ँ।’ तब उपा यायने उससे पूछा—‘व स! तुम कुएँम कैसे गर गये?’ ।। ५४ ।। स उपा यायं युवाच—अकप ा ण भ य वा धीभूतोऽ यतः कूपे प तत इ त ।। ५५ ।। उसने उपा यायको उ र दया—‘भगवन्! म आकके प े खाकर अ धा हो गया ँ; इसी लये कुएँम गर गया’ ।। ५५ ।। तमुपा यायः युवाच—अ नौ तु ह । तौ दे व भषजौ वां च ु म तं कतारा व त । स एवमु उपा यायेनोपम युर नौ तोतुमुपच मे दे वाव नौ वा भऋ भः ।। ५६ ।। तब उपा यायने कहा—‘व स! दोन अ नीकुमार दे वता के वै ह। तुम उ ह क तु त करो। वे तु हारी आँख ठ क कर दगे।’ उपा यायके ऐसा कहनेपर उपम युने अ नीकुमार नामक दोन दे वता क ऋ वेदके म ारा तु त ार भ क ।। ५६ ।। पूवगौ पूवजौ च भानू गरा वाऽऽशंसा म तपसा न तौ । द ौ सुपण वरजौ वमानाव ध प तौ भुवना न व ा ।। ५७ ।। हे अ नीकुमारो! आप दोन सृ से पहले व मान थे। आप ही पूवज ह। आप ही च भानु ह। म वाणी और तपके ारा आपक तु त करता ँ; य क आप अन त ह। द व प ह। सु दर पंखवाले दो प ीक भाँ त सदा साथ रहनेवाले ह। रजोगुणशू य तथा अ भमानसे र हत ह। स पूण व म आरो यका व तार करते ह ।। ५७ ।। हर मयौ शकुनी सा परायौ नास यद ौ सुनसौ वै जय तौ । शु लं वय तौ तरसा सुवेमाव ध य ताव सतं वव वतः ।। ५८ ।। सुनहरे पंखवाले दो सु दर वहंगम क भाँ त आप दोन ब धु बड़े सु दर ह। पारलौ कक उ तके साधन से स प ह। नास य तथा द—ये दोन आपके नाम ह। आपक ना सका बड़ी सु दर है। आप दोन न त पसे वजय ा त करनेवाले ह। आप ी ( े ) े ी ो

ही वव वान् (सूयदे व)-के सुपु ह; अतः वयं ही सूय पम थत हो दन तथा रा प काले त तु से संव सर प व बुनते रहते ह और उस व ारा वेगपूवक दे वयान और पतृयान नामक सु दर माग को ा त कराते ह ।। ५८ ।। तां सुपण य बलेन व तकाममु चताम नौ सौभगाय । तावत् सुवृ ावनम त मायया वस मा गा अ णा उदावहन् ।। ५९ ।। परमा माक कालश ने जीव पी प ीको अपना ास बना रखा है। आप दोन अ नीकुमार नामक जीव मु महापु ष ने ान दे कर कैव य प महान् सौभा यक ा तके लये उस जीवको कालके ब धनसे मु कया है। मायाके सहवासी अ य त अ ानी जीव जबतक राग आ द वषय से आ ा त हो अपनी इ य के सम नत-म तक रहते ह, तबतक वे अपने-आपको शरीरसे आब ही मानते ह ।। ५९ ।। ष गाव शता धेनव एकं व सं सुवते तं ह त । नानागो ा व हता एकदोहनाताव नौ हतो घममु यम् ।। ६० ।। दन एवं रात—ये मनोवां छत फल दे नेवाली तीन सौ साठ धा गौएँ ह। वे सब एक ही संव सर पी बछड़ेको ज म दे ती और उसको पु करती ह। वह बछड़ा सबका उ पादक और संहारक है। ज ासु पु ष उ बछड़ेको न म बनाकर उन गौ से व भ फल दे नेवाली शा व हत याएँ हते रहते ह; उन सब या का एक (त व ानक इ छा) ही दोहनीय फल है। पूव गौ को आप दोन अ नीकुमार ही हते ह ।। ६० ।। एकां ना भ स तशता अराः ताः ध व या वश तर पता अराः । अने म च ं प रवततेऽजरं माया नौ समन चषणी ।। ६१ ।। हे अ नीकुमारो! इस कालच क एकमा संव सर ही ना भ है, जसपर रात और दन मलाकर सात सौ बीस अरे टके ए ह। वे सब बारह मास पी धय (अर को थामनेवाले पु )-म जुड़े ए ह। अ नीकुमारो! यह अ वनाशी एवं मायामय कालच बना ने मके ही अ नयत ग तसे घूमता तथा इहलोक और परलोक दोन लोक क जा का वनाश करता रहता है ।। ६१ ।। एकं च ं वतते ादशारं ष णा भमेका मृत य धारणम् । य मन् दे वा अ ध व े वष ाताव नौ मु चतं मा वषीदतम् ।। ६२ ।। ी













अ नीकुमारो! मेष आ द बारह रा शयाँ जसके बारह अरे, छह ऋतुएँ जसक छः ना भयाँ ह और संव सर जसक एक धुरी है, वह एकमा कालच सब ओर चल रहा है। यही कमफलको धारण करनेवाला आधार है। इसीम स पूण काला भमानी दे वता थत ह। आप दोन मुझे इस कालच से मु कर, य क म यहाँ ज म आ दके ःखसे अ य त क पा रहा ँ ।। ६२ ।। अ ना व ममृतं वृ भूयौ तरोध ाम नौ दासप नी । ह वा ग रम नौ गा मुदा चर तौ तद्वृ म ा थतौ बल य ।। ६३ ।। हे अ नीकुमारो! आप दोन म सदाचारका बा य है। आप अपने सुयशसे च मा, अमृत तथा जलक उ वलताको भी तर कृत कर दे ते ह। इस समय मे पवतको छोड़कर आप पृ वीपर सान द वचर रहे ह। आन द और बलक वषा करनेके लये ही आप दोन भाई दनम थान करते ह ।। ६३ ।। युवां दशो जनयथो दशा े समानं मू न रथयानं वय त । तासां यातमृषयोऽनु या त दे वा मनु याः तमाचर त ।। ६४ ।। हे अ नीकुमारो! आप दोन ही सृ के ार भकालम पूवा द दस दशा को कट करते—उनका ान कराते ह। उन दशा के म तक अथात् अ त र -लोकम रथसे या ा करनेवाले तथा सबको समान पसे काश दे नेवाले सूयदे वका और आकाश आ द पाँच भूत का भी आप ही ान कराते ह। उन-उन दशा म सूयका जाना दे खकर ऋ षलोग भी उनका अनुसरण करते ह तथा दे वता और मनु य (अपने अ धकारके अनुसार) वग या म यलोकक भू मका उपयोग करते ह ।। ६४ ।। युवां वणान् वकु थो व पांतेऽ ध य ते भुवना न व ा । ते भानवोऽ यनुसृता र त दे वा मनु याः तमाचर त ।। ६५ ।। हे अ नीकुमारो! आप अनेक रंगक व तु के स म णसे सब कारक ओष धयाँ तैयार करते ह, जो स पूण व का पोषण करती ह। वे काशमान ओष धयाँ सदा आपका अनुसरण करती ई आपके साथ ही वचरती ह। दे वता और मनु य आ द ाणी अपने अ धकारके अनुसार वग और म यलोकक भू मम रहकर उन ओष धय का सेवन करते ह ।। ६५ ।। तौ नास याव नौ वां महेऽहं जं च यां बभृथः पु कर य । तौ नास यावमृतावृतावृधावृते दे वा त पदे न सूते ।। ६६ ।। ी ो ी ो ‘ ’ े े ो

अ नीकुमारो! आप ही दोन ‘नास य’ नामसे स ह। म आपक तथा आपने जो कमलक माला धारण कर रखी है, उसक पूजा करता ँ। आप अमर होनेके साथ ही स यका पोषण और व तार करनेवाले ह। आपके सहयोगके बना दे वता भी उस सनातन स यक ा तम समथ नह ह ।। ६६ ।। मुखेन गभ लभेतां युवानौ गतासुरेतत् पदे न सूते । स ो जातो मातरम गभताव नौ मु चथो जीवसे गाः ।। ६७ ।। युवक माता- पता संतानो प के लये पहले मुखसे अ प गभ धारण करते ह। त प ात् पु ष म वीय पम और ीम रजो पसे प रणत होकर वह अ जड शरीर बन जाता है। त प ात् ज म लेनेवाला गभ थ जीव उ प होते ही माताके तन का ध पीने लगता है। हे अ नीकुमारो! पूव पसे संसार-ब धनम बँधे ए जीव को आप त व ान दे कर मु करते ह। मेरे जीवन- नवाहके लये मेरी ने े यको भी रोगसे मु कर ।। ६७ ।। तोतुं न श नो म गुणैभव तौ च ु वहीनः प थ स मोहः । गऽहम मन् प ततोऽ म कूपे युवां शर यौ शरणं प े ।। ६८ ।। अ नीकुमारो! म आपके गुण का बखान करके आप दोन क तु त नह कर सकता। इस समय ने हीन (अ धा) हो गया ँ। रा ता पहचाननेम भी भूल हो जाती है; इसी लये इस गम कूपम गर पड़ा ँ। आप दोन शरणागतव सल दे वता ह; अतः म आपक शरण लेता ँ ।। ६८ ।। इ येवं तेना भ ु ताव नावाज मतुराहतु ैनं ीतौ व एष तेऽपूपोऽशानैन म त ।। ६९ ।। इस कार उपम युके तवन करनेपर दोन अ नीकुमार वहाँ आये और उससे बोले —‘उपम यु! हम तु हारे ऊपर ब त स ह। यह तु हारे खानेके लये पूआ है, इसे खा लो’ ।। ६९ ।। स एवमु ः युवाच नानृतमूचतुभगव तौ न वहमेतमपूपमुपयो ु मु सहे गुरवेऽ नवे े त ।। ७० ।। उनके ऐसा कहनेपर उपम यु बोला—‘भगवन्! आपने ठ क कहा है, तथा प म गु जीको नवेदन कये बना इस पूएको अपने उपयोगम नह ला सकता’ ।। ७० ।। तत तम नावूचतुः—आवा यां पुर ताद् भवत उपा यायेनैवमेवा भ ु ता यामपूपो द उपयु ः स तेना नवे गुरवे वम प तथैव कु व यथा कृतमुपा यायेने त ।। ७१ ।। तब दोन अ नीकुमार बोले—‘व स! पहले तु हारे उपा यायने भी हमारी इसी कार तु त क थी। उस समय हमने उ ह जो पूआ दया था, उसे उ ह ने अपने गु जीको नवेदन े ी े े े ै ै ै ी ी

कये बना ही कामम ले लया था। तु हारे उपा यायने जैसा कया है, वैसा ही तुम भी करो’ ।। ७१ ।। स एवमु ः युवाच—एतत् यनुनये भव ताव नौ नो सहेऽहम नवे गुरवेऽपूपमुपयो ु म त ।। ७२ ।। उनके ऐसा कहनेपर उपम युने उ र दया—‘इसके लये तो आप दोन अ नीकुमार क म बड़ी अनुनय- वनय करता ँ। गु जीके नवेदन कये बना म इस पूएको नह खा सकता’ ।। ७२ ।। तम नावाहतुः ीतौ व तवानया गु भ या उपा याय य ते का णायसा द ता भवतोऽ प हर मया भवय त च ु मां भ व यसी त ेय ावा यसी त ।। ७३ ।। तब अ नीकुमार उससे बोले, ‘तु हारी इस गु -भ से हम बड़े स ह। तु हारे उपा यायके दाँत काले लोहेके समान ह। तु हारे दाँत सुवणमय हो जायँगे। तु हारी आँख भी ठ क हो जायँगी और तुम क याणके भागी भी होओगे’ ।। ७३ ।। स एवमु ोऽ यां लधच ु पा यायसकाशमाग या यवादयत् ।। ७४ ।। अ नीकुमार के ऐसा कहनेपर उपम युको आँख मल गय और उसने उपा यायके समीप आकर उ ह णाम कया ।। ७४ ।। आचच े च स चा य ी तमान् बभूव ।। ७५ ।। तथा सब बात गु जीसे कह सुनाय । उपा याय उसके ऊपर बड़े स ए ।। ७५ ।। आह चैनं यथा नावाहतु तथा वं ेयोऽवा य स ।। ७६ ।। और उससे बोले—‘जैसा अ नीकुमार ने कहा है, उसी कार तुम क याणके भागी होओगे ।। ७६ ।। सव च ते वेदाः तभा य त सवा ण च धमशा ाणी त । एषा त या प परी ोपम योः ।। ७७ ।। ‘तु हारी बु म स पूण वेद और सभी धमशा वतः फु रत हो जायँगे।’ इस कार यह उपम युक परी ा बतायी गयी ।। ७७ ।। अथापरः श य त यैवायोद य धौ य य वेदो नाम तमुपा यायः समा ददे श व स वेद इहा यतां ताव मम गृहे कं चत् कालं शु ूषुणा च भ वत ं ेय ते भ व यती त ।। ७८ ।। उ ह आयोदधौ यके तीसरे श य थे वेद। उ ह उपा यायने आ ा द , ‘व स वेद! तुम कुछ कालतक यहाँ मेरे घरम नवास करो। सदा शु ूषाम लगे रहना, इससे तु हारा क याण होगा’ ।। ७८ ।। स तथे यु वा गु कुले द घकालं गु शु ूषणपरोऽवसद् गौ रव न यं गु णा धूषु नयो यमानः शीतो ण ु ृ णा ःखसहः सव ा तकूल त य महता कालेन गु ः प रतोषं जगाम ।। ७९ ।। वेद ‘ब त अ छा’ कहकर गु के घरम रहने लगे। उ ह ने द घकालतक गु क सेवा क । गु जी उ ह बैलक तरह सदा भारी बोझ ढोनेम लगाये रखते थे और वेद सरद -गरमी े ी े ी े े

तथा भूख- यासका क सहन करते ए सभी अव था म गु के अनुकूल ही रहते थे। इस कार जब ब त समय बीत गया, तब गु जी उनपर पूणतः संतु ए ।। ७९ ।। त प रतोषा च ेयः सव तां चावाप । एषा त या प परी ा वेद य ।। ८० ।। गु के संतोषसे वेदने ेय तथा सव ता ा त कर ली। इस कार यह वेदक परी ाका वृ ा त कहा गया ।। ८० ।। स उपा यायेनानु ातः समावृत त माद् गु कुलवासाद् गृहा मं यप त । त या प वगृहे वसत यः श या बभूवुः स श यान् न क च वाच कम वा यतां गु शु ूषा चे त । ःखा भ ो ह गु कुलवास य श यान् प र लेशेन योज यतुं नेयेष ।। ८१ ।। तदन तर उपा यायक आ ा होनेपर वेद समावतन-सं कारके प ात् नातक होकर गु गृहसे लौटे । घर आकर उ ह ने गृह था मम वेश कया। अपने घरम नवास करते समय आचाय वेदके पास तीन श य रहते थे, कतु वे ‘काम करो अथवा गु सेवाम लगे रहो’ इ या द पसे कसी कारका आदे श अपने श य को नह दे ते थे; य क गु के घरम रहनेपर छा को जो क सहन करना पड़ता है, उससे वे प र चत थे। इस लये उनके मनम अपने श य को लेशदायक कायम लगानेक कभी इ छा नह होती थी ।। ८१ ।। अथ क मं त् काले वेदं ा णं जनमेजयः पौ य यावुपे य वर य वोपा यायं च तुः ।। ८२ ।। स कदा चद् या यकायणा भ थत उ ङ् कनामानं श यं नयोजयामास ।। ८३ ।। भो यत् क चद मद्गृहे प रहीयते त द छा यहमप रहीयमानं भवता यमाण म त स एवं तसं द यो ङ् कं वेदः वासं जगाम ।। ८४ ।। एक समयक बात है— वे ा आचाय वेदके पास आकर ‘जनमेजय और पौ य’ नामवाले दो य ने उनका वरण कया और उ ह अपना उपा याय बना लया। तदन तर एक दन उपा याय वेदने यजमानके कायसे बाहर जानेके लये उ त हो उ ंक नामवाले श यको अ नहो आ दके कायम नयु कया और कहा—‘व स उ ंक! मेरे घरम मेरे बना जस कसी व तुक कमी हो जाय, उसक पू त तुम कर दे ना, ऐसी मेरी इ छा है।’ उ ंकको ऐसा आदे श दे कर आचाय वेद बाहर चले गये ।। ८२—८४ ।। अथो ङ् कः शु ूषुगु नयोगमनु त मानो गु कुले वस त म । स त वसमान उपा याय ी भः स हता भरायो ः ।। ८५ ।। उ ंक गु क आ ाका पालन करते ए सेवापरायण हो गु के घरम रहने लगे। वहाँ रहते समय उ ह उपा यायके आ यम रहनेवाली सब य ने मलकर बुलाया और कहा — ।। ८५ ।। उपा यायानी ते ऋतुमती, उपा याय ो षतोऽ या यथायमृतुव यो न भव त तथा यतामेषा वषीदती त ।। ८६ ।। तु हारी गु प नी रज वला ई ह और उपा याय परदे श गये ह। उनका यह ऋतुकाल जस कार न फल न हो, वैसा करो; इसके लये गु प नी बड़ी च ताम पड़ी ह ।। ८६ ।। ी



एवमु ताः यः युवाच न मया ीणां वचना ददमकाय करणीयम् । न हमुपा यायेन सं द ोऽकायम प वया काय म त ।। ८७ ।। यह सुनकर उ ंकने उ र दया—‘म य के कहनेसे यह न करनेयो य न कम नह कर सकता। उपा यायने मुझे ऐसी आ ा नह द है क ‘तुम न करनेयो य काय भी कर डालना’ ।। ८७ ।। त य पुन पा यायः काला तरेण गृहमाजगाम त मात् वासात् । स तु तद् वृ ं त याशेषमुपल य ी तमानभूत् ।। ८८ ।। इसके बाद कुछ काल बीतनेपर उपा याय वेद परदे शसे अपने घर लौट आये। आनेपर उ ह उ ंकका सारा वृ ा त मालूम आ, इससे वे बड़े स ए ।। ८८ ।। उवाच चैनं व सो ङ् क क ते यं करवाणी त । धमतो ह शु ू षतोऽ म भवता तेन ी तः पर परेण नौ संवृ ा तदनुजाने भव तं सवानेव कामानवा य स ग यता म त ।। ८९ ।। और बोले—‘बेटा उ ंक! तु हारा कौन-सा य काय क ँ ? तुमने धमपूवक मेरी सेवा क है। इससे हम दोन क एक- सरेके त ी त ब त बढ़ गयी है। अब म तु ह घर लौटनेक आ ा दे ता ँ—जाओ, तु हारी सभी कामनाएँ पूण ह गी’ ।। ८९ ।। स एवमु ः युवाच क ते यं करवाणी त, एवमा ः ।। ९० ।। गु के ऐसा कहनेपर उ ंक बोले—‘भगवन्! म आपका कौन-सा य काय क ँ ? वृ पु ष कहते भी ह ।। ९० ।। य ाधमण वै ूयाद् य ाधमण पृ छ त । तयोर यतरः ै त व े षं चा धग छ त ।। ९१ ।। जो अधमपूवक अ यापन या उपदे श करता है अथवा जो अधमपूवक या अ ययन करता है, उन दोन मसे एक (गु अथवा श य) मृ यु एवं व े षको ा त होता है ।। ९१ ।। सोऽहमनु ातो भवते छामी ं गुवथमुपहतु म त । तेनैवमु उपा यायः युवाच व सो ङ् क उ यतां ताव द त ।। ९२ ।। अतः आपक आ ा मलनेपर म अभी गु द णा भट करना चाहता ँ।’ उ ंकके ऐसा कहनेपर उपा याय बोले—‘बेटा उ ंक! तब कुछ दन और यह ठहरो’ ।। ९२ ।। स कदा च पा यायमाहो ङ् क आ ापयतु भवान् क ते यमुपाहरा म गुवथ म त ।। ९३ ।। तदन तर कसी दन उ ंकने फर उपा यायसे कहा—‘भगवन्! आ ा द जये, म आपको कौन-सी य व तु गु द णाके पम भट क ँ ?’ ।। ९३ ।। तमुपा यायः युवाच व सो ङ् क ब शो मां चोदय स गुवथमुपाहरामी त तद् ग छै नां व योपा यायान पृ छ कमुपाहरामी त ।। ९४ ।। एषा यद् वी त त पाहर वे त । यह सुनकर उपा यायने उनसे कहा—‘व स उ ंक! तुम बार-बार मुझसे कहते हो क ‘म या गु द णा भट क ँ ?’ अतः जाओ, घरके भीतर वेश करके अपनी गु प नीसे ो



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पूछ लो क ‘म या गु द णा भट क ँ ?’ ।। ९४ ।। ‘वे जो बताव वही व तु उ ह भट करो।’ स एवमु उपा यायेनोपा यायानीमपृ छद् भगव युपा यायेना यनु ातो गृहं ग तु म छामी ं ते गुवथमुप यानृणो ग तु म त ।। ९५ ।। तदा ापयतु भवती कमुपाहरा म गुवथ म त । उपा यायके ऐसा कहनेपर उ ंकने गु प नीसे पूछा—‘दे व! उपा यायने मुझे घर जानेक आ ा द है, अतः म आपको कोई अभी व तु गु द णाके पम भट करके गु के ऋणसे उऋण होकर जाना चाहता ँ ।। ९५ ।। अतः आप आ ा द; म गु द णाके पम कौन-सी व तु ला ँ ।’ सैवमु ोपा यायानी तमु ङ् कं युवाच ग छ पौ यं त राजानं कु डले भ तुं त य यया पन े ।। ९६ ।। उ ंकके ऐसा कहनेपर गु प नी उनसे बोल —‘व स! तुम राजा पौ यके यहाँ, उनक ाणी प नीने जो दोन कु डल पहन रखे ह, उ ह माँग लानेके लये जाओ ।। १६ ।। ते आनय व चतुथऽह न पु यकं भ वता ता यामाब ा यां शोभमाना ा णान् प रवे ु म छा म । तत् स पादय व, एवं ह कुवतः ेयो भ वता यथा कुतः ेय इ त ।। ९७ ।। ‘और उन कु डल को शी ले आओ। आजके चौथे दन पु यक त होनेवाला है, म उस दन कान म उन कु डल को पहनकर सुशो भत हो ा ण को भोजन परोसना चाहती ँ; अतः तुम मेरा यह मनोरथ पूण करो। तु हारा क याण होगा। अ यथा क याणक ा त कैसे स भव है?’ ।। ९७ ।। स एवमु तया ा त तो ङ् कः स प थ ग छ प य षभम त माणं तम ध ढं च पु षम त माणमेव स पु ष उ ङ् कम यभाषत ।। ९८ ।। गु प नीके ऐसा कहनेपर उ ंक वहाँसे चल दये। मागम जाते समय उ ह ने एक ब त बड़े बैलको और उसपर चढ़े ए एक वशालकाय पु षको भी दे खा। उस पु षने उ ंकसे कहा— ।। ९८ ।। भो उ ङ् कैतत् पुरीषम य ऋषभ य भ य वे त स एवमु ो नै छत् ।। ९९ ।। ‘उ ंक! तुम इस बैलका गोबर खा लो।’ कतु उसके ऐसा कहनेपर भी उ ंकको वह गोबर खानेक इ छा नह ई ।। ९९ ।। तमाह पु षो भूयो भ य वो ङ् क मा वचारयोपा यायेना प ते भ तं पूव म त ।। १०० ।। तब वह पु ष फर उनसे बोला—‘उ ंक! खा लो, वचार न करो। तु हारे उपा यायने भी पहले इसे खाया था’ ।। १०० ।। स एवमु ो बाढ म यु वा तदा तद् वृषभ य मू ं पुरीषं च भ य वो ङ् कः स मा थत एवाप उप पृ य त थे ।। १०१ ।। उसके पुनः ऐसा कहनेपर उ ंकने ‘ब त अ छा’ कहकर उसक बात मान ली और उस बैलके गोबर तथा मू को खा-पीकर उतावलीके कारण खड़े-खड़े ही आचमन कया। े े

फर वे चल दये ।। १०१ ।। य स यः पौ य तमुपे यासीनमप य ङ् कः । स उ ङ् क तमुपे याशी भर भन ोवाच ।। १०२ ।। जहाँ वे य राजा पौ य रहते थे, वहाँ प ँचकर उ ंकने दे खा—वे आसनपर बैठे ए ह, तब उ ंकने उनके समीप जाकर आशीवादसे उ ह स करते ए कहा— ।। १०२ ।। अथ भव तमुपागतोऽ मी त स एनम भवा ोवाच भगवन् पौ यः ख वहं क करवाणी त ।। १०३ ।। ‘राजन्! म याचक होकर आपके पास आया ँ।’ राजाने उ ह णाम करके कहा —‘भगवन्! म आपका सेवक पौ य ँ; क हये, कस आ ाका पालन क ँ ?’ ।। १०३ ।। तमुवाच गुवथ कु डलयोरथना यागतोऽ मी त । ये वै ते यया पन े कु डले ते भवान् दातुमहती त ।। १०४ ।। उ ंकने पौ यसे कहा—‘राजन्! म गु द णाके न म दो कु डल के लये आपके यहाँ आया ँ। आपक ाणीने ज ह पहन रखा है, उ ह दोन कु डल को आप मुझे दे द। यह आपके यो य काय है’ ।। १०४ ।। तं युवाच पौ यः व या तःपुरं या या यता म त । स तेनैवमु ः व या तःपुरं यां नाप यत् ।। १०५ ।। यह सुनकर पौ यने उ ंकसे कहा—‘ न्! आप अ तःपुरम जाकर ाणीसे वे कु डल माँग ल।’ राजाके ऐसा कहनेपर उ ंकने अ तःपुरम वेश कया, कतु वहाँ उ ह ाणी नह दखायी द ।। १०५ ।। स पौ यं पुन वाच न यु ं भवताहमनृतेनोपच रतुं न ह तेऽ तःपुरे या स हता नैनां प या म ।। १०६ ।। तब वे पुनः राजा पौ यके पास आकर बोले—‘राजन्! आप मुझे संतु करनेके लये झूठ बात कहकर मेरे साथ छल कर, यह आपको शोभा नह दे ता है। आपके अ तःपुरम ाणी नह ह, य क वहाँ वे मुझे नह दखायी दे ती ह’ ।। १०६ ।। स एवमु ः पौ यः णमा ं वमृ यो ङ् कं युवाच नयतं भवानु छ ः मर ताव ह सा या उ छ ेनाशु चना श या ु ं प त ता वात् सैषा नाशुचेदशनमुपैती त ।। १०७ ।। उ ंकके ऐसा कहनेपर पौ यने एक णतक वचार करके उ ह उ र दया—‘ न य ही आप जूँठे मुँह ह, मरण तो क जये, य क मेरी ाणी प त ता होनेके कारण उ छ — अप व मनु यके ारा नह दे खी जा सकती ह। आप उ छ होनेके कारण अप व ह, इस लये वे आपक म नह आ रही ह’ ।। १०७ ।। अथैवमु उ ङ् कः मृ वोवाचा त खलु मयो थतेनोप पृ ं ग छतां चे त । तं पौ यः युवाच—एष ते त मो नो थतेनोप पृ ं भवती त शी ं ग छता चे त ।। १०८ ।। उनके ऐसा कहनेपर उ ंकने मरण करके कहा—‘हाँ, अव य ही मुझम अशु रह गयी है। यहाँक या ा करते समय मने खड़े होकर चलते-चलते आचमन कया है।’ तब ौ े े ‘ ी े ै े ो औ

पौ यने उनसे कहा—‘ न्! यही आपके ारा व धका उ लंघन आ है। खड़े होकर और शी तापूवक चलते-चलते कया आ आचमन नह के बराबर है’ ।। १०८ ।। अथो ङ् क तं तथे यु वा ाङ् मुख उप व य सु ा लतपा णपादवदनो नःश दा भरफेना भरनु णा भ द्गता भर ः पी वा ः प रमृ य खा य प पृ य चा तःपुरं ववेश ।। १०९ ।। त प ात् उ ंक राजासे ‘ठ क है’ ऐसा कहकर हाथ, पैर और मुँह भलीभाँ त धोकर पूवा भमुख हो आसनपर बैठे और दयतक प ँचनेयो य श द तथा फेनसे र हत शीतल जलके ारा तीन बार आचमन करके उ ह ने दो बार अँगठ ू े के मूल भागसे मुख प छा और ने , ना सका आ द इ य-गोलक का जलस हत अंगु लय ारा पश करके अ तःपुरम वेश कया ।। १०९ ।। तत तां यामप यत्, सा च ् वैवो ङ् कं यु थाया भवा ोवाच वागतं ते भगव ा ापय क करवाणी त ।। ११० ।। तब उ ह ाणीका दशन आ। महारानी उ ंकको दे खते ही उठकर खड़ी हो गय और णाम करके बोल —‘भगवन्! आपका वागत है, आ ा द जये, म या सेवा क ँ ?’ ।। ११० ।। स तामुवाचैते कु डले गुवथ मे भ ते दातुमहसी त । सा ीता तेन त य स ावेन पा मयमन त मणीय े त म वा ते कु डलेऽवमु या मै ाय छदाह त को नागराजः सुभृशं ाथय य म ो नेतुमहसी त ।। १११ ।। उ ंकने महारानीसे कहा—‘दे व! मने गु के लये आपके दोन कु डल क याचना क है। वे ही मुझे दे द।’ महारानी उ ंकके उस स ाव (गु भ )-से ब त स । उ ह ने यह सोचकर क ‘ये सुपा ा ण ह, इ ह नराश नह लौटाना चा हये’—अपने दोन कु डल वयं उतारकर उ ह दे दये और उनसे कहा—‘ न्! नागराज त क इन कु डल को पानेके लये ब त य नशील ह। अतः आपको सावधान होकर इ ह ले जाना चा हये’ ।। १११ ।। स एवमु तां यां युवाच भगव त सु नवृता भव । न मां श त को नागराजो धष यतु म त ।। ११२ ।। रानीके ऐसा कहनेपर उ ंकने उन ाणीसे कहा—‘दे व! आप न त रह। नागराज त क मुझसे भड़नेका साहस नह कर सकता’ ।। ११२ ।। स एवमु वा तां यामाम य पौ यसकाशमाग छत् । आह चैनं भोः पौ य ीतोऽ मी त तमु ङ् कं पौ यः युवाच ।। ११३ ।। महारानीसे ऐसा कहकर उनसे आ ा ले उ ंक राजा पौ यके नकट आये और बोले —‘महाराज पौ य! म ब त स ँ (और आपसे वदा लेना चाहता ँ)।’ यह सुनकर पौ यने उ ंकसे कहा— ।। ११३ ।। भगवं रेण पा मासा ते भवां गुणवान त थ त द छे ा ं कतु यतां ण इ त ।। ११४ ।। ‘

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‘भगवन्! ब त दन पर कोई सुपा ा ण मलता है। आप गुणवान् अ त थ पधारे ह, अतः म ा करना चाहता ँ। आप इसम समय द जये’ ।। ११४ ।। तमु ङ् कः युवाच कृत ण एवा म शी म छा म यथोपप म मुप कृतं भवते त स तथे यु वा यथोपप ेना ेनैनं भोजयामास ।। ११५ ।। तब उ ंकने राजासे कहा—‘मेरा समय तो दया ही आ है, कतु शी ता चाहता ँ। आपके यहाँ जो शु एवं सुसं कृत भोजन तैयार हो उसे मँगाइये।’ राजाने ‘ब त अ छा’ कहकर जो भोजन-साम ी तुत थी, उसके ारा उ ह भोजन कराया ।। ११५ ।। अथो ङ् कः सकेशं शीतम ं ् वा अशु येत द त म वा तं पौ यमुवाच य मा मेऽशु य ं ददा स त माद धो भ व यसी त ।। ११६ ।। परंतु जब भोजन सामने आया, तब उ ंकने दे खा, उसम बाल पड़ा है और वह ठ डा हो चुका है। फर तो ‘यह अप व अ है’ ऐसा न य करके वे राजा पौ यसे बोले—‘आप मुझे अप व अ दे रहे ह, अतः अ धे हो जायँगे’ ।। ११६ ।। तं पौ यः युवाच य मा वम य म ं षय स त मा वमनप यो भ व यसी त तमु ङ् कः युवाच ।। ११७ ।। तब पौ यने भी उ ह शापके बदले शाप दे ते ए कहा—‘आप शु अ को भी षत बता रहे ह, अतः आप भी संतानहीन हो जायँगे।’ तब उ ंक राजा पौ यसे बोले — ।। ११७ ।। न यु ं भवता मशु च द वा तशापं दातुं त माद मेव य ीकु । ततः पौ य तद मशु च ् वा त याशु चभावमपरो यामास ।। ११८ ।। ‘महाराज! अप व अ दे कर फर बदलेम शाप दे ना आपके लये कदा प उ चत नह है। अतः पहले अ को ही य दे ख ली जये।’ तब पौ यने उस अ को अप व दे खकर उसक अप व ताके कारणका पता लगाया ।। ११८ ।। अथ तद ं मु के या या यत् कृतमनु णं सकेशं चाशु येत द त म वा तमृ षमु ङ् कं सादयामास ।। ११९ ।। वह भोजन खुले केशवाली ीने तैयार कया था। अतः उसम केश पड़ गया था। दे रका बना होनेसे वह ठ डा भी हो गया था। इस लये वह अप व है, इस न यपर प ँचकर राजाने उ ंक ऋ षको स करते ए कहा— ।। ११९ ।। भगव ेतद ानाद ं सकेशमुपा तं शीतं तत् ामये भव तं न भवेयम ध इ त तमु ङ् कः युवाच ।। १२० ।। ‘भगवन्! यह केशयु और शीतल अ अनजानम आपके पास लाया गया है। अतः इस अपराधके लये म आपसे मा माँगता ँ। आप ऐसी कृपा क जये, जससे म अ धा न होऊँ।’ तब उ ंकने राजासे कहा— ।। १२० ।। न मृषा वी म भू वा वम धो न चरादन धो भ व यसी त । ममा प शापो भवता द ो न भवे द त ।। १२१ ।। ‘राजन्! म झूठ नह बोलता। आप पहले अ धे होकर फर थोड़े ही दन म इस दोषसे र हत हो जायँगे। अब आप भी ऐसी चे ा कर, जससे आपका दया आ शाप मुझपर ो’

लागू न हो’ ।। १२१ ।। तं पौ यः युवाच न चाहं श ः शापं यादातुं न ह मे म युर ा युपशमं ग छ त क चैतद् भवता न ायते यथा— ।। १२२ ।। नवनीतं दयं ा ण य वा च ुरो न हत ती णधारः । त भयमेतद् वपरीतं य य वाङ् नवनीतं दयं ती णधारम् । इ त ।। १२३ ।। यह सुनकर पौ यने उ ंकसे कहा—‘म शापको लौटानेम असमथ ँ, मेरा ोध अभीतक शा त नह हो रहा है। या आप यह नह जानते क ा णका दय म खनके समान मुलायम और ज द पघलनेवाला होता है? केवल उसक वाणीम ही तीखी धारवाले छु रेका-सा भाव होता है। कतु ये दोन ही बात यके लये वपरीत ह। उसक वाणी तो नवनीतके समान कोमल होती है, ले कन दय पैनी धारवाले छु रेके समान तीखा होता है ।। १२२-१२३ ।। तदे वं गते न श ोऽहं ती ण दय वात् तं शापम यथा कतु ग यता म त । तमु ङ् कः युवाच भवताहम याशु चभावमाल य यनुनीतः ाक् च तेऽ भ हतम् ।। १२४ ।। य माद म ं षय स त मादनप यो भ व यसी त । े चा े नैष मम शापो भ व यती त ।। १२५ ।। ‘अतः ऐसी दशाम कठोर दय होनेके कारण म उस शापको बदलनेम असमथ ँ। इस लये आप जाइये।’ तब उ ंक बोले—‘राजन्! आपने अ क अप व ता दे खकर मुझसे माके लये अनुनय- वनय क है, कतु पहले आपने कहा था क ‘तुम शु अ को षत बता रहे हो, इस लये संतानहीन हो जाओगे।’ इसके बाद अ का दोषयु होना मा णत हो गया, अतः आपका यह शाप मुझपर लागू नह होगा’ ।। १२४-१२५ ।। साधयाम ताव द यु वा ा त तो ङ् क ते कु डले गृही वा सोऽप यदथ प थ न नं पणकमाग छ तं मु मु यमानम यमानं च ।। १२६ ।। ‘अब हम अपना कायसाधन कर रहे ह।’ ऐसा कहकर उ ंक दोन कु डल को लेकर वहाँसे चल दये। मागम उ ह ने अपने पीछे आते ए एक न न पणकको दे खा जो बारबार दखायी दे ता और छप जाता था ।। १२६ ।। अथो ङ् क ते कु डले सं य य भूमावुदकाथ च मे । एत म तरे स पणक वरमाण उपसृ य ते कु डले गृही वा ा वत् ।। १२७ ।। कुछ र जानेके बाद उ ंकने उन कु डल को एक जलाशयके कनारे भू मपर रख दया और वयं जलस ब धी कृ य (शौच, नान, आचमन, सं यातपण आ द) करने लगे। इतनेम ही वह पणक बड़ी उतावलीके साथ वहाँ आया और दोन कु डल को लेकर चंपत हो गया ।। १२७ ।। तमु ङ् कोऽ भसृ य कृतोदककायः शु चः यतो नमो दे वे यो गु य कृ वा महता जवेन तम वयात् ।। १२८ ।। े







उ ंकने नान-तपण आ द जलस ब धी काय पूण करके शु एवं प व होकर दे वता तथा गु को नम कार कया और जलसे बाहर नकलकर बड़े वेगसे उस पणकका पीछा कया ।। १२८ ।। त य त को ढमास ः स तं ज ाह गृहीतमा ः स त प ू ं वहाय त क व पं कृ वा सहसा धर यां ववृतं महा बलं ववेश ।। १२९ ।। वा तवम वह नागराज त क ही था। दौड़नेसे उ ंकके अ य त समीपवत हो गया। उ ंकने उसे पकड़ लया। पकड़म आते ही उसने पणकका प याग दया और त क नागका प धारण करके वह सहसा कट ए पृ वीके एक ब त बड़े ववरम घुस गया ।। १२९ ।। व य च नागलोकं वभवनमग छत् । अथो ङ् क त याः याया वचः मृ वा तं त कम वग छत् ।। १३० ।। बलम वेश करके वह नागलोकम अपने घर चला गया। तदन तर उस ाणीक बातका मरण करके उ ंकने नागलोकतक उस त कका पीछा कया ।। १३० ।। स तद् बलं द डका ेन चखान न चाशकत् । तं ल यमान म ोऽप यत् स व ं ेषयामास ।। १३१ ।। पहले तो उ ह ने उस ववरको अपने डंडेक लकड़ीसे खोदना आर भ कया, कतु इसम उ ह सफलता न मली। उस समय इ ने उ ह लेश उठाते दे खा तो उनक सहायताके लये अपना व भेज दया ।। १३१ ।। ग छा य ा ण य साहा यं कु वे त । अथ व ं द डका मनु व य तद् बलमदारयत् ।। १३२ ।। उ ह ने वसे कहा—‘जाओ, इस ा णक सहायता करो।’ तब वने डंडेक लकड़ीम वेश करके उस बलको वद ण कर दया (इससे पाताललोकम जानेके लये माग बन गया) ।। १३२ ।। तमु ङ् कोऽनु ववेश तेनैव बलेन व य च तं नागलोकमपय तमनेक वध ासादह यवलभी नयूहशतसंकुलमु चावच डा य थानावक णमप यत् ।। १३३ ।। स त नागां तान तुवदे भः ोकैः— य ऐरावतराजानः सपाः स म तशोभनाः । र त इव जीमूताः स व ु पवने रताः ।। १३४ ।। तब उ ंक उस बलम घुस गये और उसी मागसे भीतर वेश करके उ ह ने नागलोकका दशन कया, जसक कह सीमा नह थी। जो अनेक कारके म दर , महल , झुके ए छ ज वाले ऊँचे-ऊँचे म डप तथा सैकड़ दरवाज से सुशो भत और छोटे -बड़े अद्भुत डा थान से ा त था। वहाँ उ ह ने इन ोक ारा उन नाग का तवन कया —ऐरावत जनके राजा ह, जो समरांगणम वशेष शोभा पाते ह, बजली और वायुसे े रत हो जलक वषा करनेवाले बादल क भाँ त बाण क धारावा हक वृ करते ह, उन सप क जय हो ।। १३३-१३४ ।। सु पा ब पा तथा क माषकु डलाः । े े ै ो

आ द यव ाकपृ े रेजुरैरावतो वाः ।। १३५ ।। ऐरावतकुलम उ प नागगण मसे कतने ही सु दर पवाले ह, उनके अनेक प ह, वे व च कु डल धारण करते ह तथा आकाशम सूयदे वक भाँ त वगलोकम का शत होते ह ।। १३५ ।। ब न नागवे मा न ग ाया तीर उ रे । त थान प सं तौ म महतः प गानहम् ।। १३६ ।। गंगाजीके उ र तटपर ब त-से नाग के घर ह, वहाँ रहनेवाले बड़े-बड़े सप क भी म तु त करता ँ ।। १३६ ।। इ छे त् कोऽकाशुसेनायां चतुमैरावतं वना । शता यशी तर ौ च सह ा ण च वश तः ।। १३७ ।। सपाणां हा या त धृतरा ो यदै ज त । ये चैनमुपसप त ये च रपथं गताः ।। १३८ ।। अहमैरावत ये ातृ योऽकरवं नमः । य य वासः कु े े खा डवे चाभवत् पुरा ।। १३९ ।। तं नागराजम तौषं कु डलाथाय त कम् । त क ा सेन न यं सहचरावुभौ ।। १४० ।। कु े ं च वसतां नद म ुमतीमनु । जघ यज त क य ुतसेने त यः ुतः ।। १४१ ।। अवसद् यो मह ु न ाथयन् नागमु यताम् । करवा ण सदा चाहं नम त मै महा मने ।। १४२ ।। ऐरावत नागके सवा सरा कौन है, जो सूयदे वक च ड करण के सै यम वचरनेक इ छा कर सकता है? ऐरावतके भाई धृतरा जब सूयदे वके साथ का शत होते और चलते ह, उस समय अाई स हजार आठ सप सूयके घोड़ क बागडोर बनकर जाते ह। जो इनके साथ जाते ह और जो रके मागपर जा प ँचे ह, ऐरावतके उन सभी छोटे ब धु क मने नम कार कया है। जनका नवास सदा कु े और खा डववनम रहा है, उन नागराज त कक म कु डल के लये तु त करता ँ। त क और अ सेन—ये दोन नाग सदा साथ वचरनेवाले ह। ये दोन कु े म इ ुमती नद के तटपर रहा करते थे। जो त कके छोटे भाई ह, ुतसेन नामसे जनक या त है तथा जो पाताललोकम नागराजक पदवी पानेके लये सूयदे वक उपासना करते ए कु े म रहे ह, उन महा माको म सदा नम कार करता ँ ।। १३७—१४२ ।। एवं तु वा स व ष ङ् को भुजगो मान् । नैव ते कु डले लेभे तत तामुपागमत् ।। १४३ ।। इस कार उन े नाग क तु त करनेपर भी जब ष उ ंक उन कु डल को न पा सके तो उ ह बड़ी च ता ई ।। १४३ ।। एवं तुव प नागान् यदा ते कु डले नालभत तदाप यत् यौ त े अ धरो य सुवेमे पटं वय यौ । त मं त े कृ णाः सता त तव ं चाप यद् ादशारं ै ी

षड् भः कुमारैः प रव यमानं पु षं चाप यद ं च दशनीयम् ।। १४४ ।। स तान् सवा तु ाव ए भम वदे व ोकैः ।। १४५ ।। इस कार नाग क तु त करते रहनेपर भी जब वे उन दोन कु डल को ा त न कर सके, तब उ ह वहाँ दो याँ दखायी द, जो सु दर करघेपर रखकर सूतके तानेम व बुन रही थ , उस तानेम उ ंक मु नने काले और सफेद दो कारके सूत और बारह अर का एक च भी दे खा, जसे छः कुमार घुमा रहे थे। वह एक े पु ष भी दखायी दये। जनके साथ एक दशनीय अ भी था। उ ंकने इन म तु य ोक ारा उनक तु त क — ।। १४४-१४५ ।। ी य पता य शता न म ये ष न यं चर त ुवेऽ मन् । च े चतु वश तपवयोगे षड् वै कुमाराः प रवतय त ।। १४६ ।। यह जो अ वनाशी कालच नर तर चल रहा है, इसके भीतर तीन सौ साठ अरे ह, चौबीस पव ह और इस च को छः कुमार घुमा रहे ह ।। १४६ ।। त ं चेदं व पे युव यौ वयत त तून् सततं वतय यौ । कृ णान् सतां ैव ववतय यौ भूता यज ं भुवना न चैव ।। १४७ ।। यह स पूण व जनका व प है, ऐसी दो युव तयाँ सदा काले और सफेद त तु को इधर-उधर चलाती ई इस वासना-जाल पी व को बुन रही ह तथा वे ही स पूण भूत और सम त भुवन का नर तर संचालन करती ह ।। १४७ ।। व य भता भुवन य गो ता वृ य ह ता नमुचे नह ता । कृ णे वसानो वसने महा मा स यानृते यो व वन लोके ।। १४८ ।। यो वा जनं गभमपां पुराणं वै ानरं वाहनम युपै त । नमोऽ तु त मै जगद राय लोक येशाय पुर दराय ।। १४९ ।। जो महा मा व धारण करके तीन लोक क र ा करते ह, ज ह ने वृ ासुरका वध तथा नमु च दानवका संहार कया है, जो काले रंगके दो व पहनते और लोकम स य एवं अस यका ववेचन करते ह; जलसे कट ए ाचीन वै ानर प अ को वाहन बनाकर उसपर चढ़ते ह तथा जो तीन लोक के शासक ह, उन जगद र पुर दरको मेरा नम कार है ।। १४८-१४९ ।। ततः स एनं पु षः ाह ीतोऽ म तेऽहमनेन तो ेण क ते यं करवाणी त स तमुवाच ।। १५० ।। े ो ‘ े ो े ँ ो

तब वह पु ष उ ंकसे बोला—‘ न्! म तु हारे इस तो से ब त स ँ। कहो, तु हारा कौन-सा य काय क ँ ?’ यह सुनकर उ ंकने कहा— ।। १५० ।। नागा मे वशमीयु र त स चैनं पु षः पुन वाच एतम मपाने धम वे त ।। १५१ ।। ‘सब नाग मेरे अधीन हो जायँ’—उनके ऐसा कहनेपर वह पु ष पुनः उ ंकसे बोला —‘इस घोड़ेक गुदाम फूँक मारो’ ।। १५१ ।। ततोऽ यापानमधमत् ततोऽ ा यमानात् सव ोतो यः पावका चषः सधूमा न पेतुः ।। १५२ ।। यह सुनकर उ ंकने घोड़ेक गुदाम फूँक मारी। फूँकनेसे घोड़ेके शरीरके सम त छ से धूएस ँ हत आगक लपट नकलने लग ।। १५२ ।। ता भनागलोक उपधू पतेऽथ स ा त त कोऽ ने तेजोभयाद् वष णः कु डले गृही वा सहसा भवना यो ङ् कमुवाच ।। १५३ ।। उस समय सारा नागलोक धूएस ँ े भर गया। फर तो त क घबरा गया और आगक वालाके भयसे ःखी हो दोन कु डल लये सहसा घरसे नकल आया और उ ंकसे बोला — ।। १५३ ।। इमे कु डले गृ ातु भवा न त स ते तज ाहो ङ् कः तगृ च कु डलेऽ च तयत् ।। १५४ ।। ‘ न्! आप ये दोन कु डल हण क जये।’ उ ंकने उन कु डल को ले लया। कु डल लेकर वे सोचने लगे— ।। १५४ ।। अ तत् पु यकमुपा याया या रं चाहम यागतः स कथं स भावयेय म त तत एनं च तयानमेव स पु ष उवाच ।। १५५ ।। ‘अहो! आज ही गु प नीका वह पु यक त है और म ब त र चला आया ँ। ऐसी दशाम कस कार इन कु डल ारा उनका स कार कर सकूँगा?’ तब इस कार च ताम पड़े ए उ ंकसे उस पु षने कहा— ।। १५५ ।। उ ङ् क एनमेवा म धरोह वां णेनैवोपा यायकुलं ाप य यती त ।। १५६ ।। ‘उ ंक! इसी घोड़ेपर चढ़ जाओ। यह तु ह णभरम उपा यायके घर प ँचा दे गा’ ।। १५६ ।। स तथे यु वा तम म ध याजगामोपा यायकुलमुपा यायानी च नाता केशानावापय युप व ो ङ् को नाग छती त शापाया य मनो दधे ।। १५७ ।। ‘ब त अ छा’ कहकर उ ंक उस घोड़ेपर चढ़े और तुरंत उपा यायके घर आ प ँचे। इधर गु प नी नान करके बैठ ई अपने केश सँवार रही थ । ‘उ ंक अबतक नह आया’—यह सोचकर उ ह ने श यको शाप दे नेका वचार कर लया ।। १५७ ।। अथ त म तरे स उ ङ् कः व य उपा यायकुलमुपा यायानीम यवादयत् ते चा यै कु डले ाय छत् सा चैनं युवाच ।। १५८ ।। इसी बीचम उ ंकने उपा यायके घरम वेश करके गु प नीको णाम कया और उ ह वे दोन कु डल दे दये। तब गु प नीने उ ंकसे कहा— ।। १५८ ।। े े े े

उ ङ् क दे शे कालेऽ यागतः वागतं ते व स वमनाग स मया न श तः ेय तवोप थतं स मा ुही त ।। १५९ ।। ‘उ ंक! तू ठ क समयपर उ चत थानम आ प ँचा। व स! तेरा वागत है। अ छा आ जो बना अपराधके ही तुझे शाप नह दया। तेरा क याण उप थत है, तुझे स ा त हो’ ।। १५९ ।। अथो ङ् क उपा यायम यवादयत् । तमुपा यायः युवाच व सो ङ् क वागतं ते क चरं कृत म त ।। १६० ।। तदन तर उ ंकने उपा यायके चरण म णाम कया। उपा यायने उससे कहा—‘व स उ ंक! तु हारा वागत है। लौटनेम दे र य लगायी?’ ।। १६० ।। तमु ङ् क उपा यायं युवाच भो त केण मे नागराजेन व नः कृतोऽ मन् कम ण तेना म नागलोकं गतः ।। १६१ ।। तब उ ंकने उपा यायको उ र दया—‘भगवन्! नागराज त कने इस कायम व न डाल दया था। इस लये म नागलोकम चला गया था ।। १६१ ।। त च मया े यौ त ेऽ धरो य पटं वय यौ त मं कृ णाः सता त तवः क तत् ।। १६२ ।। ‘वह मने दो याँ दे ख , जो करघेपर सूत रखकर कपड़ा बुन रही थ । उस करघेम काले और सफेद रंगके सूत लगे थे। वह सब या था? ।। १६२ ।। त च मया च ं ं ादशारं षट् चैनं कुमाराः प रवतय त तद प कम् । पु ष ा प मया ः स चा प कः । अ ा त माणो ः स चा प कः ।। १६३ ।। ‘वह मने एक च भी दे खा, जसम बारह अरे थे। छः कुमार उस च को घुमा रहे थे। वह भी या था? वहाँ एक पु ष भी मेरे दे खनेम आया था। वह कौन था? तथा एक ब त बड़ा अ भी दखायी दया था। वह कौन था? ।। १६३ ।। प थ ग छता च मया ऋषभो तं च पु षोऽ ध ढ तेना म सोपचारमु उ ङ् का य ऋषभ य पुरीषं भ य उपा यायेना प ते भ त म त ।। १६४ ।। इधरसे जाते समय मागम मने एक बैल दे खा, उसपर एक पु ष सवार था। उस पु षने मुझसे आ हपूवक कहा—‘उ ंक! इस बैलका गोबर खा लो। तु हारे उपा यायने भी पहले इसे खाया है’ ।। १६४ ।। तत त य वचना मया त षभ य पुरीषमुपयु ं स चा प कः । तदे तद् भवतोप द म छे यं ोतुं क त द त । स तेनैवमु उपा यायः युवाच ।। १६५ ।। ‘तब उस पु षके कहनेसे मने उस बैलका गोबर खा लया। अतः वह बैल और पु ष कौन थे? म आपके मुखसे सुनना चाहता ँ, वह सब या था?’ उ ंकके इस कार पूछनेपर उपा यायने उ र दया— ।। १६५ ।। ये ते यौ धाता वधाता च ये च ते कृ णाः सता त तव ते रायहनी । यद प त च ं ादशारं षड् वै कुमाराः प रवतय त तेऽ प षड् ऋतवः ादशारा ादश मासाः संव सर म् ।। १६६ ।। ‘ े

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‘वे जो दोन याँ थ , वे धाता और वधाता ह। जो काले और सफेद त तु थे, वे रात और दन ह। बारह अर से यु च को जो छः कुमार घुमा रहे थे, वे छः ऋतुएँ ह। बारह महीने ही बारह अरे ह। संव सर ही वह च है ।। १६६ ।। यः पु षः स पज यो योऽ ः सोऽ नय ऋषभ वया प थ ग छता ः स ऐरावतो नागराट ् ।। १६७ ।। ‘जो पु ष था, वह पज य (इ ) है। जो अ था वह अ न है। इधरसे जाते समय मागम तुमने जस बैलको दे खा था, वह नागराज ऐरावत ह ।। १६७ ।। य ैनम ध ढः पु षः स चे ो यद प ते भ तं त य ऋषभ य पुरीषं तदमृतं तेन ख व स त मन् नागभवने न ाप वम् ।। १६८ ।। ‘और जो उसपर चढ़ा आ पु ष था, वह इ है। तुमने बैलके जस गोबरको खाया है, वह अमृत था। इसी लये तुम नागलोकम जाकर भी मरे नह ।। १६८ ।। स ह भगवा न ो मम सखा वदनु ोशा द-ममनु हं कृतवान् । त मात् कु डले गृही वा पुनरागतोऽ स ।। १६९ ।। ‘वे भगवान् इ मेरे सखा ह। तुमपर कृपा करके ही उ ह ने यह अनु ह कया है। यही कारण है क तुम दोन कु डल लेकर फर यहाँ लौट आये हो ।। १६९ ।। तत् सौ य ग यतामनुजाने भव तं ेयोऽवा यसी त । स उपा यायेनानु ातो भगवानु ङ् कः ु त कं त चक षमाणो हा तनपुरं त थे ।। १७० ।। ‘अतः सौ य! अब तुम जाओ, म तु ह जानेक आ ा दे ता ँ। तुम क याणके भागी होओगे।’ उपा यायक आ ा पाकर उ ंक त कके त कु पत हो उससे बदला लेनेक इ छासे ह तनापुरक ओर चल दये ।। १७० ।। स हा तनपुरं ा य न चराद् व स मः । समाग छत राजानमु ङ् को जनमेजयम् ।। १७१ ।। ह तनापुरम शी प ँचकर व वर उ ंक राजा जनमेजयसे मले ।। १७१ ।। पुरा त शलासं थं नवृ मपरा जतम् । स य वज यनं ् वा सम ता म भवृतम् ।। १७२ ।। त मै जया शषः पूव यथा यायं यु य सः । उवाचैनं वचः काले श दस प या गरा ।। १७३ ।। जनमेजय पहले त शला गये थे। वे वहाँ जाकर पूण वजय पा चुके थे। उ ंकने म य से घरे ए उ म वजयसे स प राजा जनमेजयको दे खकर पहले उ ह यायपूवक जयस ब धी आशीवाद दया। त प ात् उ चत समयपर उपयु श द से वभू षत वाणी ारा उनसे इस कार कहा— ।। १७२-१७३ ।। उ ङ् क उवाच अ य मन् करणीये तु काय पा थवस म । बा या दवा यदे व वं कु षे नृपस म ।। १७४ ।। ो े









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उ ंक बोले—नृप े ! जहाँ तु हारे लये करनेयो य सरा काय उप थत हो, वहाँ अ ानवश तुम कोई और ही काय कर रहे हो ।। १७४ ।।

सौ त वाच एवमु तु व ेण स राजा जनमेजयः । अच य वा यथा यायं युवाच जो मम् ।। १७५ ।। उ वाजी कहते ह— व वर उ ंकके ऐसा कहनेपर राजा जनमेजयने उन ज े का व धपूवक पूजन कया और इस कार कहा ।। १७५ ।। जनमेजय उवाच आसां जानां प रपालनेन वं धम प रपालया म । ू ह मे क करणीयम येना स कायण समागत वम् ।। १७६ ।। जनमेजय बोले— न्! म इन जा क र ा ारा अपने यधमका पालन करता ँ। बताइये, आज मेरे करनेयो य कौन-सा काय उप थत है? जसके कारण आप यहाँ पधारे ह ।। १७६ ।। सौ त वाच स एवमु तु नृपो मेन जो मः पु यकृतां व र ः । उवाच राजानमद नस वं वमेव काय नृपते कु व ।। १७७ ।। उ वाजी कहते ह—राजा म े जनमेजयके इस कार कहनेपर पु या मा म अ ग य व वर उ ंकने उन उदार दयवाले नरेशसे कहा—‘महाराज! वह काय मेरा नह , आपका ही है, आप उसे अव य क जये’ ।। १७७ ।। उ ङ् क उवाच त केण मही े येन ते ह सतः पता । त मै तकु व वं प गाय रा मने ।। १७८ ।। इतना कहकर उ ंक फर बोले—भूपाल शरोमणे! नागराज त कने आपके पताक ह या क है; अतः आप उस रा मा सपसे इसका बदला ली जये ।। १७८ ।। कायकालं ह म येऽहं व ध य कमणः । तद्ग छाप च त राजन् पतु त य महा मनः ।। १७९ ।। म समझता ँ, श ुनाशन-कायक स के लये जो सपय प कम शा म दे खा गया है, उसके अनु ानका यह उ चत अवसर ा त आ है। अतः राजन्! अपने महा मा पताक मृ युका बदला आप अव य ल ।। १७९ ।। तेन नपराधी स द ो ा तरा मना ।

प च वमगमद् राजा व ाहत इव मः ।। १८० ।। य प आपके पता महाराज परी त्ने कोई अपराध नह कया था तो भी उस ा मा सपने उ ह डँस लया और वे वक े मारे ए वृ क भाँ त तुरंत ही गरकर कालके गालम चले गये ।। १८० ।। बलदपसमु स त कः प गाधमः । अकाय कृतवान् पापो योऽदशत् पतरं तव ।। १८१ ।। सप म अधम त क अपने बलके घम डसे उ म रहता है। उस पापीने यह बड़ा भारी अनु चत कम कया जो आपके पताको डँस लया ।। १८१ ।। राज षवंशगो तारममर तमं नृपम् । ययासुं का यपं चैव यवतयत पापकृत् ।। १८२ ।। वे महाराज परी त् राज षय के वंशक र ा करनेवाले और दे वता के समान तेज वी थे, का यप नामक एक ा ण आपके पताक र ा करनेके लये उनके पास आना चाहते थे, कतु उस पापाचारीने उ ह लौटा दया ।। १८२ ।। होतुमह स तं पापं व लते ह वाहने । सपस े महाराज व रतं तद् वधीयताम् ।। १८३ ।। अतः महाराज! आप सपय का अनु ान करके उसक व लत अ नम उस पापीको होम द जये; और ज द -से-ज द यह काय कर डा लये ।। १८३ ।। एवं पतु ाप च त कृतवां वं भ व य स । मम यं च सुमहत् कृतं राजन् भ व य त ।। १८४ ।। कमणः पृ थवीपाल मम येन रा मना । व नः कृतो महाराज गुवथ चरतोऽनघ ।। १८५ ।। ऐसा करके आप अपने पताक मृ युका बदला चुका सकगे एवं मेरा भी अ य त य काय स प हो जायगा। समूची पृ वीका पालन करनेवाले नरेश! त क बड़ा रा मा है। पापर हत महाराज! म गु जीके लये एक काय करने जा रहा था, जसम उस ने ब त बड़ा व न डाल दया था ।। १८४-१८५ ।। सौ त वाच एत छ वा तु नृप त त काय चुकोप ह । उ ङ् कवा यह वषा द तोऽ नह वषा यथा ।। १८६ ।। उ वाजी कहते ह—मह षयो! यह समाचार सुनकर राजा जनमेजय त कपर कु पत हो उठे । उ ंकके वा यने उनक ोधा नम घीका काम कया। जैसे घीक आ त पड़नेसे अ न व लत हो उठती है, उसी कार वे ोधसे अ य त कु पत हो गये ।। १८६ ।। अपृ छत् स तदा राजा म ण तान् सु ःखतः । उ ङ् क यैव सां न ये पतुः वगग त त ।। १८७ ।। े













उस समय राजा जनमेजयने अ य त ःखी होकर उ ंकके नकट ही म य से पताके वगगमनका समाचार पूछा ।। १८७ ।। तदै व ह स राजे ो ःखशोका लुतोऽभवत् । यदै व वृ ं पतरमु ङ् कादशृणोत् तदा ।। १८८ ।। उ ंकके मुखसे जस समय उ ह ने पताके मरनेक बात सुनी, उसी समय वे महाराज ःख और शोकम डू ब गये ।। १८८ ।। इ त ीमहाभारते आ दपव ण पौ यपव ण तृतीयोऽ यायः ।। ३ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत पौ यपवम (पौ या यान वषयक) तीसरा अ याय पूरा आ ।। ३ ।।

(प ौलोमपव) चतुथ ऽ यायः कथा- वेश लोमहषणपु उ वाः सौ तः पौरा णको नै मषार ये शौनक य कुलपते ादशवा षके स े ऋषीन यागतानुपत थे ।। १ ।। नै मषार यम कुलप त शौनकके बारह वष तक चालू रहनेवाले स म उप थत मह षय के समीप एक दन लोमहषणपु सूतन दन उ वा आये। वे पुराण क कथा कहनेम कुशल थे ।। १ ।। पौरा णकः पुराणे कृत मः स कृता ल तानुवाच । क भव तः ोतु म छ त कमहं वाणी त ।। २ ।। वे पुराण के ाता थे। उ ह ने पुराण व ाम ब त प र म कया था। वे नै मषार यवासी मह षय से हाथ जोड़कर बोले—‘पू यपाद मह षगण! आपलोग या सुनना चाहते ह? म कस संगपर बोलूँ?’ ।। २ ।। तमृषय ऊचुः परमं लौमहषणे व याम वां नः तव य स वचः शु ूषतां कथायोगं नः कथायोगे ।। ३ ।। तब ऋ षय ने उनसे कहा—लोमहषणकुमार! हम आपको उ म संग बतलायगे और कथा- संग ार भ होनेपर सुननेक इ छा रखनेवाले हमलोग के सम आप ब त-सी कथाएँ कहगे ।। ३ ।। त भगवान् कुलप त तु शौनकोऽ नशरणम या ते ।। ४ ।। कतु पू यपाद कुलप त भगवान् शौनक अभी अ नक उपासनाम संल न ह ।। ४ ।। योऽसौ द ाः कथा वेद दे वतासुरसं ताः । मनु योरगग धवकथा वेद च सवशः ।। ५ ।। वे दे वता और असुर से स ब ध रखनेवाली ब त-सी द कथाएँ जानते ह। मनु य , नाग तथा ग धव क कथा से भी वे सवथा प र चत ह ।। ५ ।। स चा य मन् मखे सौते व ान् कुलप त जः । द ो धृत तो धीमा छा े चार यके गु ः ।। ६ ।। सूतन दन! वे व ान् कुलप त व वर शौनकजी भी इस य म उप थत ह। वे चतुर, उ म तधारी तथा बु मान् ह। शा ( ु त, मृ त, इ तहास, पुराण) तथा आर यक (बृहदार यक आ द)-के तो वे आचाय ही ह ।। ६ ।। स यवाद शमपर तप वी नयत तः । े



सवषामेव नो मा यः स तावत्

तपा यताम् ।। ७ ।।



वाजीके ारा महाभारतक कथा

वे सदा स य बोलनेवाले, मन और इ य के संयमम त पर, तप वी और नयमपूवक तको नबाहनेवाले ह। वे हम सभी लोग के लये स माननीय ह; अतः जबतक उनका आना न हो, तबतक ती ा क जये ।। ७ ।। त म यास त गुरावासनं परमा चतम् । ततो व य स य वां स य त जस मः ।। ८ ।। गु दे व शौनक जब यहाँ उ म आसनपर वराजमान हो जायँ, उस समय वे ज े आपसे जो कुछ पूछ, उसी संगको लेकर आप बो लयेगा ।। ८ ।। सौ त वाच एवम तु गुरौ त म ुप व े महा म न । तेन पृ ः कथाः पु या व या म व वधा याः ।। ९ ।। उ वाजीने कहा—एवम तु (ऐसा ही होगा), गु दे व महा मा शौनकजीके बैठ जानेपर उ ह के पूछनेके अनुसार म नाना कारक पु यदा यनी कथाएँ क ँगा ।। ९ ।। सोऽथ व षभः सव कृ वा काय यथा व ध । दे वान् वा भः पतॄन तप य वाऽऽजगाम ह ।। १० ।। ी

य षयः स ाः सुखासीना धृत ताः । य ायतनमा य सूतपु पुरःसराः ।। ११ ।। तदन तर व शरोम ण शौनकजी मशः सब काय का व धपूवक स पादन करके वै दक तु तय ारा दे वता को और जलक अंज ल ारा पतर को तृ त करनेके प ात् उस थानपर आये, जहाँ उ म तधारी स षगण य म डपम सूतजीको आगे वराजमान करके सुखपूवक बैठे थे ।। १०-११ ।। ऋ व वथ सद येषु स वै गृहप त तदा । उप व ेषूप व ः शौनकोऽथा वी ददम् ।। १२ ।। ऋ वज और सद य के बैठ जानेपर कुलप त शौनकजी भी वहाँ बैठे और इस कार बोले ।। १२ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण पौलोमपव ण कथा वेशो नाम चतुथ ऽ यायः ।। ४ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत पौलोमपवम कथा- वेश नामक चौथा अ याय पूरा आ ।। ४ ।।

प चमोऽ यायः भृगुके आ मपर पुलोमा दानवका आगमन और उसक अ नदे वके साथ बातचीत शौनक उवाच पुराणमखलं तात पता तेऽधीतवान् पुरा । क चत् वम प तत् सवमधीषे लौमहषणे ।। १ ।। शौनकजीने कहा—तात लोमहषणकुमार! पूवकालम आपके पताने सब पुराण का अ ययन कया था। या आपने भी उन सबका अ ययन कया है? ।। १ ।। पुराणे ह कथा द ा आ दवंशा धीमताम् । कय ते ये पुरा मा भः ुतपूवाः पतु तव ।। २ ।। पुराणम द कथाएँ व णत ह। परम बु मान् राज षय और षय के आ दवंश भी बताये गये ह। जनको पहले हमने आपके पताके मुखसे सुना है ।। २ ।। त वंशमहं पूव ोतु म छा म भागवम् । कथय व कथामेतां क याः म वणे तव ।। ३ ।। उनमसे थम तो म भृगव ु ंशका ही वणन सुनना चाहता ँ। अतः आप इसीसे स ब ध रखनेवाली कथा क हये। हम सब लोग आपक कथा सुननेके लये सवथा उ त ह ।। ३ ।। सौ त वाच यदधीतं पुरा स यग् ज े ैमहा म भः । वैश पायन व ायै तै ा प क थतं यथा ।। ४ ।। सूतपु उ वाने कहा—भृगन ु दन! वैश पायन आ द े ा ण और महा मा जवर ने पूवकालम जो पुराण भलीभाँ त पढ़ा था और उन व ान ने जस कार पुराणका वणन कया है, वह सब मुझे ात है ।। ४ ।। यदधीतं च प ा मे स यक् चैव ततो मया । ताव छृ णु व यो दे वैः से ै ः स षम द्गणैः ।। ५ ।। पू जतः वरो वंशो भागवो भृगुन दन । इमं वंशमहं पूव भागवं ते महामुने ।। ६ ।। नगदा म यथा यु ं पुराणा यसंयुतम् । भृगुमह षभगवान् णा वै वय भुवा ।। ७ ।। व ण य तौ जातः पावका द त नः ुतम् । भृगोः सुद यतः पु यवनो नाम भागवः ।। ८ ।। मेरे पताने जस पुराण व ाका भलीभाँ त अ ययन कया था, वह सब मने उ ह के मुखसे पढ़ और सुनी है। भृगन ु दन! आप पहले उस सव े भृगव ु ंशका वणन सु नये, जो े











दे वता, इ , ऋ ष और म द्गण से पू जत है। महामुने! आपके इस अ य त द भागववंशका प रचय दे ता ँ। यह प रचय अद्भुत एवं यु यु तो होगा ही, पुराण के आ यसे भी संयु होगा। हमने सुना है क वय भू ाजीने व णके य म मह ष भगवान् भृगक ु ो अ नसे उ प कया था। भृगक ु े अ य त य पु यवन ए, ज ह भागव भी कहते ह ।। ५—८ ।। यवन य च दायादः म तनाम धा मकः । मतेर यभूत् पु ो घृता यां र युत ।। ९ ।। यवनके पु का नाम म त था, जो बड़े धमा मा ए। म तके घृताची नामक अ सराके गभसे नामक पु का ज म आ ।। ९ ।। रोर प सुतो ज े शुनको वेदपारगः । म रायां धमा मा तव पूव पतामहः ।। १० ।। के पु शुनक थे, जनका ज म म राके गभसे आ था। शुनक वेद के पारंगत व ान् और धमा मा थे। वे आपके पूव पतामह थे ।। १० ।। तप वी च यश वी च ुतवान् व मः । धा मकः स यवाद च नयतो नयताशनः ।। ११ ।। वे तप वी, यश वी, शा तथा वे ा म े थे। धमा मा, स यवाद और मनइ य को वशम रखनेवाले थे। उनका आहार- वहार नय मत एवं प र मत था ।। ११ ।। शौनक उवाच सूतपु यथा त य भागव य महा मनः । यवन वं प र यातं त ममाच व पृ छतः ।। १२ ।। शौनकजी बोले—सूतपु ! म पूछता ँ क महा मा भागवका नाम यवन कैसे स आ? यह मुझे बताइये ।। १२ ।। सौ त वाच भृगोः सुद यता भाया पुलोमे य भ व ुता । त यां समभवद् गभ भृगुवीयसमु वः ।। १३ ।। उ वाजीने कहा—महामुने! भृगक ु प नीका नाम पुलोमा था। वह अपने प तको ब त ही यारी थी। उसके उदरम भृगज ु ीके वीयसे उ प गभ पल रहा था ।। १३ ।। त मन् गभऽथ स भूते पुलोमायां भृगू ह । समये समशी ल यां धमप यां यश वनः ।। १४ ।। अ भषेकाय न ा ते भृगौ धमभृतां वरे । आ मं त य र ोऽथ पुलोमा याजगाम ह ।। १५ ।। भृगव ु ंश शरोमणे! पुलोमा यश वी भृगक ु अनुकूल शील- वभाववाली धमप नी थी। उसक कु म उस गभके कट होनेपर एक समय धमा मा म े भृगज ु ी नान करनेके लये आ मसे बाहर नकले। उस समय एक रा स, जसका नाम भी पुलोमा ही था, उनके आ मपर आया ।। १४-१५ ।। ो

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व या मं ् वा भृगोभायाम न दताम् । छयेन समा व ो वचेताः समप त ।। १६ ।। आ मम वेश करते ही उसक मह ष भृगक ु प त ता प नीपर पड़ी और वह कामदे वके वशीभूत हो अपनी सुध-बुध खो बैठा ।। १६ ।। अ यागतं तु त ः पुलोमा चा दशना । यम यत व येन फलमूला दना तदा ।। १७ ।। सु दरी पुलोमाने उस रा सको अ यागत अ त थ मानकर वनके फल-मूल आ दसे उसका स कार करनेके लये उसे योता दया ।। १७ ।। तां तु र तदा न् छयेना भपी डतम् । ् वा मभूद ् राजन् जहीषु ताम न दताम् ।। १८ ।। न्! वह रा स कामसे पी ड़त हो रहा था। उस समय उसने वहाँ पुलोमाको अकेली दे ख बड़े हषका अनुभव कया, य क वह सती-सा वी पुलोमाको हर ले जाना चाहता था ।। १८ ।। जात म य वीत् काय जहीषुमु दतः शुभाम् । सा ह पूव वृता तेन पुलो ना तु शु च मता ।। १९ ।। मनम उस शुभल णा सतीके अपहरणक इ छा रखकर वह स तासे फूल उठा और मन-ही-मन बोला, ‘मेरा तो काम बन गया।’ प व मुसकानवाली पुलोमाको पहले उस पुलोमा नामक रा सने वरण* कया था ।। १९ ।। तां तु ादात् पता प ाद् भृगवे शा व दा । त य तत् क बषं न यं द वत त भागव ।। २० ।। कतु पीछे उसके पताने शा व धके अनुसार मह ष भृगक ु े साथ उसका ववाह कर दया। भृगन ु दन! उसके पताका वह अपराध रा सके दयम सदा काँटे-सा कसकता रहता था ।। २० ।। इदम तर म येवं हतु च े मन तदा । अथा नशरणेऽप य वल तं जातवेदसम् ।। २१ ।। यही अ छा मौका है, ऐसा वचारकर उसने उस समय पुलोमाको हर ले जानेका प का न य कर लया। इतनेहीम रा सने दे खा, अ नहो -गृहम अ नदे व व लत हो रहे ह ।। २१ ।। तमपृ छत् ततो र ः पावकं व लतं तदा । शंस मे क य भाययम ने पृ छे ऋतेन वै ।। २२ ।। तब पुलोमाने उस समय उस व लत पावकसे पूछा—‘अ नदे व! म स यक शपथ दे कर पूछता ँ, बताओ, यह कसक प नी है?’ ।। २२ ।। मुखं वम स दे वानां वद पावक पृ छते । मया हीयं वृता पूव भायाथ वरव णनी ।। २३ ।। ‘







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‘पावक! तुम दे वता के मुख हो। अतः मेरे पूछनेपर ठ क-ठ क बताओ। पहले तो मने ही इस सु दरीको अपनी प नी बनानेके लये वरण कया था ।। २३ ।। प ा दमां पता ादाद् भृगवेऽनृतकारकः । सेयं य द वरारोहा भृगोभाया रहोगता ।। २४ ।। तथा स यं समा या ह जहीषा या मा दमाम् । स म यु त दयं दह व त त । म पूवभाया य दमां भृगुराप सुम यमाम् ।। २५ ।। ‘ कतु बादम अस य वहार करनेवाले इसके पताने भृगक ु े साथ इसका ववाह कर दया। य द यह एका तम मली ई सु दरी भृगक ु भाया है तो वैसी बात सच-सच बता दो; य क म इसे इस आ मसे हर ले जाना चाहता ँ। वह ोध आज मेरे दयको द ध-सा कर रहा है; इस सुम यमाको, जो पहले मेरी भाया थी, भृगन ु े अ यायपूवक हड़प लया है’ ।। २४-२५ ।। सौ त वाच एवं र तमाम य व लतं जातवेदसम् । शङ् कमानं भृगोभाया पुनः पुनरपृ छत ।। २६ ।। उ वाजी कहते ह—इस कार वह रा स भृगक ु प नीके त, यह मेरी है या भृगक ु —ऐसा संशय रखते ए, व लत अ नको स बो धत करके बार-बार पूछने लगा — ।। २६ ।। वम ने सवभूतानाम त र स न यदा । सा वत् पु यपापेषु स यं ू ह कवे वचः ।। २७ ।। ‘अ नदे व! तुम सदा सब ा णय के भीतर नवास करते हो। सव अ ने! तुम पु य और पापके वषयम सा ीक भाँ त थत रहते हो; अतः स ची बात बताओ ।। २७ ।। म पूवाप ता भाया भृगुणानृतका रणा । सेयं य द तथा मे वं स यमा यातुमह स ।। २८ ।। ‘अस य बताव करनेवाले भृगन ु े, जो पहले मेरी ही थी, उस भायाका अपहरण कया है। य द यह वही है, तो वैसी बात ठ क-ठ क बता दो ।। २८ ।। ु वा व ो भृगोभाया ह र या या मा दमाम् । जातवेदः प यत ते वद स यां गरं मम ।। २९ ।। ‘सव अ नदे व! तु हारे मुखसे सब बात सुनकर म भृगक ु इस भायाको तु हारे दे खते-दे खते इस आ मसे हर ले जाऊँगा; इस लये मुझसे स ची बात कहो’ ।। २९ ।। सौ त वाच त यैतद् वचनं ु वा स ता च ःखतोऽभवत् । भीतोऽनृता च शापा च भृगो र य वी छनैः ।। ३० ।। उ वाजी कहते ह—रा सक यह बात सुनकर वालामयी सात ज ा वाले अ नदे व ब त ःखी ए। एक ओर वे झूठसे डरते थे तो सरी ओर भृगक ु े शापसे; अतः ी े े ो े

धीरेसे इस कार बोले ।। ३० ।।

अ नन वाच वया वृता पुलोमेयं पूव दानवन दन । क वयं व धना पूव म व वृता वया ।। ३१ ।। अ नदे व बोले—दानवन दन! इसम संदेह नह क पहले तु ह ने इस पुलोमाका वरण कया था, कतु व धपूवक म ो चारण करते ए इसके साथ तुमने ववाह नह कया था ।। ३१ ।। प ा तु भृगवे द ा पुलोमेयं यश वनी । ददा त न पता तु यं वरलोभा महायशाः ।। ३२ ।। पताने तो यह यश वनी पुलोमा भृगक ु ो ही द है। तु हारे वरण करनेपर भी इसके महायश वी पता तु हारे हाथम इसे इस लये नह दे ते थे क उनके मनम तुमसे े वर मल जानेका लोभ था ।। ३२ ।। अथेमां वेद ेन कमणा व धपूवकम् । भायामृ षभृगुः ाप मां पुर कृ य दानव ।। ३३ ।। दानव! तदन तर मह ष भृगन ु े मुझे सा ी बनाकर वेदो या ारा व धपूवक इसका पा ण हण कया था ।। ३३ ।। सेय म यवग छा म नानृतं व ु मु सहे । नानृतं ह सदा लोके पू यते दानवो म ।। ३४ ।। यह वही है, ऐसा म जानता ँ। इस वषयम म झूठ नह बोल सकता। दानव े ! लोकम अस यक कभी पूजा नह होती है ।। ३४ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण पौलोमपव ण पुलोमा नसंवादे प चमोऽ यायः ।। ५ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत पौलोमपवम पुलोमा-अ नसंवाद वषयक पाँचवाँ अ याय पूरा आ ।। ५ ।।

* बा याव थाम पुलोमा रो रही थी। उसके रोदनक नवृ के लये पताने डराते ए कहा—‘रे रा स! तू इसे पकड़ ले।’ घरम पुलोमा रा स पहलेसे ही छपा आ था। उसने मन-ही-मन वरण कर लया—‘यह मेरी प नी है।’ बात केवल इतनी ही थी। इसका अ भ ाय यह है क हँसी-खेलम भी या डाँटने-डपटनेके लये भी बालक से ऐसी बात नह कहनी चा हये और रा सका नाम भी नह रखना चा हये।

ष ोऽ यायः मह ष यवनका ज म, उनके तेजसे पुलोमा रा सका भ म होना तथा भृगुका अ नदे वको शाप दे ना सौ त वाच अ नेरथ वचः ु वा तद् र ः जहार ताम् । न् वराह पेण मनोमा तरंहसा ।। १ ।। उ वाजी कहते ह— न्! अ नका यह वचन सुनकर उस रा सने वराहका प धारण करके मन और वायुके समान वेगसे उसका अपहरण कया ।। १ ।। ततः स गभ नवसन् कु ौ भृगुकुलो ह । रोषा मातुयुतः क ु ेयवन तेन सोऽभवत् ।। २ ।। भृगव ु ंश शरोमणे! उस समय वह गभ जो अपनी माताक कु म नवास कर रहा था, अ य त रोषके कारण योगबलसे माताके उदरसे युत होकर बाहर नकल आया। युत होनेके कारण ही उसका नाम यवन आ ।। २ ।। तं ् वा मातु दरा युतमा द यवचसम् । तद् र ो भ मसा तं पपात प रमु य ताम् ।। ३ ।। माताके उदरसे युत होकर गरे ए उस सूयके समान तेज वी गभको दे खते ही वह रा स पुलोमाको छोड़कर गर पड़ा और त काल जलकर भ म हो गया ।। ३ ।। सा तमादाय सु ोणी ससार भृगुन दनम् । यवनं भागवं पु ं पुलोमा ःखमू छता ।। ४ ।। सु दर क ट दे शवाली पुलोमा ःखसे मू छत हो गयी और कसी तरह सँभलकर भृगक ु ु लको आन दत करनेवाले अपने पु भागव यवनको गोदम लेकर ाजीके पास चली ।। ४ ।। तां ददश वयं ा सवलोक पतामहः । दत बा पपूणा भृगोभायाम न दताम् ।। ५ ।। सा वयामास भगवान् वधूं ा पतामहः । अ ुब वा त याः ावतत महानद ।। ६ ।। स पूण लोक के पतामह ाजीने वयं भृगक ु उस प त ता प नीको रोती और ने से आँसू बहाती दे खा। तब पतामह भगवान् ाने अपनी पु वधूको सा वना द — उसे धीरज बँधाया। उसके आँसु क बूँद से एक ब त बड़ी नद कट हो गयी ।। ५-६ ।। आवत ती सृ त त या भृगोः प या तप वनः । त या माग सृतवत ् वा तु स रतं तदा ।। ७ ।। नाम त या तदा न ा े लोक पतामहः । वधूसरे त भगवांयवन या मं त ।। ८ ।। ी

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वह नद तप वी भृगक ु उस प नीके मागको आ ला वत कये ए थी। उस समय लोक पतामह भगवान् ाने पुलोमाके मागका अनुसरण करनेवाली उस नद को दे खकर उसका नाम वधूसरा रख दया, जो यवनके आ मके पास वा हत होती है ।। ७-८ ।। स एव यवनो ज े भृगोः पु ः तापवान् । तं ददश पता त यवनं तां च भा मनीम् । स पुलोमां ततो भाया प छ कु पतो भृगुः ।। ९ ।। इस कार भृगप ु ु तापी यवनका ज म आ। तदन तर पता भृगन ु े वहाँ अपने पु यवन तथा प नी पुलोमाको दे खा और सब बात जानकर उ ह ने अपनी भाया पुलोमासे कु पत होकर पूछा— ।। ९ ।। भृगु वाच केना स र से त मै क थता वं जहीषते । न ह वां वेद तद् र ो म ाया चा हा सनीम् ।। १० ।। भृगु बोले—क याणी! तु ह हर लेनेक इ छासे आये ए उस रा सको कसने तु हारा प रचय दे दया? मनोहर मुसकानवाली मेरी प नी तुझ पुलोमाको वह रा स नह जानता था ।। १० ।। त वमा या ह तं श तु म छा यहं षा । बभे त को न शापा मे क य चायं त मः ।। ११ ।। ये! ठ क-ठ क बताओ। आज म कु पत होकर अपने उस अपराधीको शाप दे ना चाहता ँ। कौन मेरे शापसे नह डरता है? कसके ारा यह अपराध आ है? ।। ११ ।। पुलोमोवाच अ नना भगवं त मै र सेऽहं नवे दता । ततो मामनयद् र ः ोश त कुररी मव ।। १२ ।। पुलोमा बोली—भगवन्! अ नदे वने उस रा सको मेरा प रचय दे दया। इससे कुररीक भाँ त वलाप करती ई मुझ अबलाको वह रा स उठा ले गया ।। १२ ।। साहं तव सुत या य तेजसा प रमो ता । भ मीभूतं च तद् र ो मामु सृ य पपात वै ।। १३ ।। आपके इस पु के तेजसे म उस रा सके चंगल ु से छू ट सक ँ। रा स मुझे छोड़कर गरा और जलकर भ म हो गया ।। १३ ।। सौ त वाच इ त ु वा पुलोमाया भृगुः परमम युमान् । शशापा नम त ु ः सवभ ो भ व य स ।। १४ ।। उ वाजी कहते ह—पुलोमाका यह वचन सुनकर परम ोधी मह ष भृगक ु ा ोध और भी बढ़ गया। उ ह ने अ नदे वको शाप दया—‘तुम सवभ ी हो जाओगे’ ।। १४ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण पौलोमपव ण अ नशापे ष ोऽ यायः ।। ६ ।। ी े ौ ो

इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत पौलोमपवम अ नशाप वषयक छठा अ याय पूरा आ ।। ६ ।।

स तमोऽ यायः शापसे कु पत ए अ नदे वका अ य होना और ाजीका उनके शापको संकु चत करके उ ह स करना सौ त वाच श त तु भृगुणा व ः ु ो वा यमथा वीत् । क मदं साहसं न् कृतवान स मां त ।। १ ।। उ वाजी कहते ह—मह ष भृगक ु े शाप दे नेपर अ नदे वने कु पत होकर यह बात कही—‘ न्! तुमने मुझे शाप दे नेका यह साहसपूण काय य कया हे?’ ।। १ ।। धम यतमान य स यं च वदतः समम् । पृ ो यद वं स यं भचारोऽ को मम ।। २ ।। ‘म सदा धमके लये य नशील रहता और स य एवं प पातशू य वचन बोलता ँ; अतः उस रा सके पूछनेपर य द मने स ची बात कह द तो इसम मेरा या अपराध है? ।। २ ।। पृ ो ह सा ी यः सा यं जानानोऽ य यथा वदे त् । स पूवाना मनः स त कुले ह यात् तथा परान् ।। ३ ।। ‘जो सा ी कसी बातको ठ क-ठ क जानते ए भी पूछनेपर कुछ-का-कुछ कह दे ता —झूठ बोलता है, वह अपने कुलम पहले और पीछे क सात-सात पी ढ़य का नाश करता —उ ह नरकम ढकेलता है ।। ३ ।। य कायाथत व ो जानानोऽ प न भाषते । सोऽ प तेनैव पापेन ल यते ना संशयः ।। ४ ।। ‘इसी कार जो कसी कायके वा त वक रह यका ाता है, वह उसके पूछनेपर य द जानते ए भी नह बतलाता—मौन रह जाता है तो वह भी उसी पापसे ल त होता है; इसम संशय नह है ।। ४ ।। श ोऽहम प श तुं वां मा या तु ा णा मम । जानतोऽ प च ते न् कथ य ये नबोध तत् ।। ५ ।। ‘म भी तु ह शाप दे नेक श रखता ँ तो भी नह दे ता ँ; य क ा ण मेरे मा य ह। न्! य प तुम सब कुछ जानते हो, तथा प म तु ह जो बता रहा ँ, उसे यान दे कर सुनो— ।। ५ ।। योगेन ब धा मानं कृ वा त ा म मू तषु । अ नहो ेषु स ेषु यासु च मखेषु च ।। ६ ।। ‘म योग स के बलसे अपने-आपको अनेक प म कट करके गाहप य और द णा न आ द मू तय म, न य कये जानेवाले अ नहो म, अनेक य ारा ो ो ( )

संचा लत स म, गभाधान आ द या म तथा यो त ोम आ द मख (य )-म सदा नवास करता ँ ।। ६ ।। वेदो े न वधानेन म य यद् यते ह वः । दे वताः पतर ैव तेन तृ ता भव त वै ।। ७ ।। ‘मुझम वेदो व धसे जस ह व यक आ त द जाती है, उसके ारा न य ही दे वता तथा पतृगण तृ त होते ह ।। ७ ।। आपो दे वगणाः सव आपः पतृगणा तथा । दश पौणमास दे वानां पतृ भः सह ।। ८ ।। ‘जल ही दे वता ह तथा जल ही पतृगण ह। दश और पौणमास याग पतर तथा दे वता के लये कये जाते ह ।। ८ ।। दे वताः पतर त मात् पतर ा प दे वताः । एक भूता पू य ते पृथ वेन च पवसु ।। ९ ।। ‘अतः दे वता पतर ह और पतर ही दे वता ह। व भ पव पर ये दोन एक पम भी पूजे जाते ह और पृथक्-पृथक् भी ।। ९ ।। दे वताः पतर ैव भु ते म य यद् तम् । दे वतानां पतॄणां च मुखमेतदहं मृतम् ।। १० ।। ‘मुझम जो आ त द जाती है, उसे दे वता और पतर दोन भ ण करते ह। इसी लये म दे वता और पतर का मुख माना जाता ँ ।। १० ।। अमावा यां ह पतरः पौणमा यां ह दे वताः । म मुखेनैव य ते भु ते च तं ह वः ।। ११ ।। सवभ ः कथं वेषां भ व या म मुखं वहम् । ‘अमावा याको पतर के लये और पू णमाको दे वता के लये मेरे मुखसे ही आ त द जाती है और उस आ तके पम ा त ए ह व यका वे दे वता और पतर उपभोग करते ह, सवभ ी होनेपर म इन सबका मुँह कैसे हो सकता ँ?’ ।। ११ ।। सौ त वाच च त य वा ततो व े संहारमा मनः ।। १२ ।। जानाम नहो ेषु य स यासु च । नर कारवषट् काराः वधा वाहा वव जताः ।। १३ ।। वना नना जाः सवा तत आसन् सु ःखताः । अथषयः समु ना दे वान् ग वा ुवन् वचः ।। १४ ।। उ वाजी कहते ह—मह षयो! तदन तर अ नदे वने कुछ सोच- वचारकर ज के अ नहो , य , स तथा सं कारस ब धी या मसे अपने-आपको समेट लया। फर तो अ नके बना सम त जा ॐकार, वषट् कार, वधा और वाहा आ दसे वं चत होकर अ य त ःखी हो गयी। तब मह षगण अ य त उ न हो दे वता के पास जाकर बोले — ।। १२—१४ ।। ो



अ ननाशात् या ंशाद् ा ता लोका योऽनघाः । वद वम यत् काय न यात् काला ययो यथा ।। १५ ।। ‘पापर हत दे वगण! अ नके अ य हो जानेसे अ नहो आ द स पूण या का लोप हो गया है। इससे तीन लोक के ाणी ककत वमूढ़ हो गये ह; अतः इस वषयम जो आव यक कत हो, उसे आपलोग कर। इसम अ धक वल ब नह होना चा हये’ ।। १५ ।। अथषय दे वा ाणमुपग य तु । अ नेरावेदय छापं यासंहारमेव च ।। १६ ।। त प ात् ऋ ष और दे वता ाजीके पास गये और अ नको जो शाप मला था एवं अ नने स पूण या से जो अपने-आपको समेटकर अ य कर लया था, वह सब समाचार नवेदन करते ए बोले— ।। १६ ।। भृगुणा वै महाभाग श तोऽ नः कारणा तरे । कथं दे वमुखो भू वा य भागा भुक् तथा ।। १७ ।। तभुक् सवलोकेषु सवभ वमे य त । ‘महाभाग! कसी कारणवश मह ष भृगन ु े अ नदे वको सवभ ी होनेका शाप दे दया है, कतु वे स पूण दे वता के मुख, य भागके अ भो ा तथा स पूण लोक म द ई आ तय का उपभोग करनेवाले होकर भी सवभ ी कैसे हो सकगे?’ ।। १७ ।। ु वा तु तद् वच तेषाम नमाय व क ृ त् ।। १८ ।। उवाच वचनं णं भूताभावनम यम् । लोकाना मह सवषां वं कता चा त एव च ।। १९ ।। वं धारय स लोकां ीन् याणां च वतकः । स तथा कु लोकेश नो छ ेरन् यथा याः ।। २० ।। क मादे वं वमूढ वमी रः सन् ताशन । वं प व ं सदा लोके सवभूतग त ह ।। २१ ।। दे वता तथा ऋ षय क बात सुनकर व वधाता ाजीने ा णय को उ प करनेवाले अ वनाशी अ नको बुलाकर मधुर वाणीम कहा—‘ ताशन! यहाँ सम त लोक के ा और संहारक तु ह हो, तु ह तीन लोक को धारण करनेवाले हो, स पूण या के वतक भी तु ह हो। अतः लोके र! तुम ऐसा करो जससे अ नहो आ द या का लोप न हो। तुम सबके वामी होकर भी इस कार मूढ़ (मोह त) कैसे हो गये? तुम संसारम सदा प व हो, सम त ा णय क ग त भी तु ह हो ।। १८—२१ ।। न वं सवशरीरेण सवभ वमे य स । अपाने चषो या ते सव भ य त ताः शखन् ।। २२ ।। ‘तुम सारे शरीरसे सवभ ी नह होओगे। अ नदे व! तु हारे अपानदे शम जो वालाएँ ह गी, वे ही सब कुछ भ ण करगी ।। २२ ।। ादा च तनुया ते सा सव भ य य त । े

यथा सूयाशु भः मृ ं सव शु च वभा ते ।। २३ ।। तथा वद च नद धं सव शु च भ व य त । वम ने परमं तेजः व भावाद् व नगतम् ।। २४ ।। वतेजसैव तं शापं कु स यमृषे वभो । दे वानां चा मनो भागं गृहाण वं मुखे तम् ।। २५ ।। ‘इसके सवा जो तु हारी ाद मू त है (क चा मांस या मुदा जलानेवाली जो चताक आग है) वही सब कुछ भ ण करेगी। जैसे सूयक करण से पश होनेपर सब व तुएँ शु मानी जाती ह, उसी कार तु हारी वाला से द ध होनेपर सब कुछ शु हो जायगा। अ नदे व! तुम अपने भावसे ही कट ए उ कृ तेज हो; अतः वभो! अपने तेजसे ही मह षके उस शापको स य कर दखाओ और अपने मुखम आ तके पम पड़े ए दे वता के तथा अपने भागको भी हण करो’ ।। २३—२५ ।। सौ त वाच एवम व त तं व ः युवाच पतामहम् । जगाम शासनं कतु दे व य परमे नः ।। २६ ।। उ वाजी कहते ह—यह सुनकर अ नदे वने पतामह ाजीसे कहा—‘एवम तु (ऐसा ही हो)।’ य कहकर वे भगवान् ाजीके आदे शका पालन करनेके लये चल दये ।। २६ ।। दे वषय मु दता ततो ज मुयथागतम् । ऋषय यथापूव याः सवाः च रे ।। २७ ।। इसके बाद दे व षगण अ य त स हो जैसे आये थे वैसे ही चले गये। फर ऋ षमह ष भी अ नहो आ द स पूण कम का पूववत् पालन करने लगे ।। २७ ।। द व दे वा मुमु दरे भूतसङ् घा लौ ककाः । अ न परमां ी तमवाप हतक मषः ।। २८ ।। दे वतालोग वगलोकम आन दत हो गये और इस लोकके सम त ाणी भी बड़े स ए। साथ ही शापज नत पाप कट जानेसे अ नदे वको भी बड़ी स ता ई ।। २८ ।। एवं स भगवा छापं लेभेऽ नभृगुतः पुरा । एवमेष पुरावृ इ तहासोऽ नशापजः । पुलो न वनाशोऽयं यवन य च स भवः ।। २९ ।। इस कार पूवकालम भगवान् अ नदे वको मह ष भृगस ु े शाप ा त आ था। यही अ नशापस ब धी ाचीन इ तहास है। पुलोमा रा सके वनाश और यवन मु नके ज मका वृ ा त भी यही है ।। २९ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण पौलोमपव ण अ नशापमोचने स तमोऽ यायः ।। ७ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत पौलोमपवम अ नशापमोचनस ब धी सातवाँ अ याय पूरा आ ।। ७ ।।

अ मोऽ यायः म राका ज म, के साथ उसका वा दान तथा ववाहके पहले ही साँपके काटनेसे म राक मृ यु सौ त वाच स चा प यवनो न् भागवोऽजनयत् सुतम् । सुक यायां महा मानं म त द ततेजसम् ।। १ ।। म त तु ं नाम घृता यां समजीजनत् । ः म रायां तु शुनकं समजीजनत् ।। २ ।। उ वाजी कहते ह— न्! भृगप ु ु यवनने अपनी प नी सुक याके गभसे एक पु को ज म दया, जसका नाम म त था। महा मा म त बड़े तेज वी थे। फर म तने घृताची अ सरासे नामक पु उ प कया तथा के ारा म राके गभसे शुनकका ज म आ ।। १-२ ।। (शौनक तु महाभाग शुनक य सुतो भवान् ।) शुनक तु महास वः सवभागवन दनः । जात तप स ती े च थतः थरयशा ततः ।। ३ ।। महाभाग शौनकजी! आप शुनकके ही पु होनेके कारण ‘शौनक’ कहलाते ह। शुनक महान् स वगुणसे स प तथा स पूण भृगव ु ंशका आन द बढ़ानेवाले थे। वे ज म लेते ही ती तप याम संल न हो गये। इससे उनका अ वचल यश सब ओर फैल गया ।। ३ ।। त य न् रोः सव च रतं भू रतेजसः । व तरेण व या म त छृ णु वमशेषतः ।। ४ ।। न्! म महातेज वी के स पूण च र का व तारपूवक वणन क ँ गा। वह सबका-सब आप सु नये ।। ४ ।। ऋ षरासी महान् पूव तपो व ासम वतः । थूलकेश इ त यातः सवभूत हते रतः ।। ५ ।। पूवकालम थूलकेश नामसे व यात एक तप और व ासे स प मह ष थे; जो सम त ा णय के हतम लगे रहते थे ।। ५ ।। एत म ेव काले तु मेनकायां ज वान् । ग धवराजो व ष व ावसु र त मृतः ।। ६ ।। व ष! इ ह मह षके समयक बात ह—ग धवराज व ावसुने मेनकाके गभसे एक संतान उ प क ।। ६ ।। अ सरा मेनका त य तं गभ भृगुन दन । उ ससज यथाकालं थूलकेशा मं त ।। ७ ।। े







भृगन ु दन! मेनका अ सराने ग धवराज ारा था पत कये ए उस गभको समय पूरा होनेपर थूलकेश मु नके आ मके नकट ज म दया ।। ७ ।। उ सृ य चैव तं गभ न ा तीरे जगाम सा । अ सरा मेनका न् नदया नरप पा ।। ८ ।। न्! नदय और नल ज मेनका अ सरा उस नवजात गभको वह नद के तटपर छोड़कर चली गयी ।। ८ ।। क याममरगभाभां वल ती मव च या । तां ददश समु सृ ां नद तीरे महानृ षः ।। ९ ।। थूलकेशः स तेज वी वजने ब धुव जताम् । स तां ् वा तदा क यां थूलकेशो महा जः ।। १० ।। ज ाह च मु न े ः कृपा व ः पुपोष च । ववृधे सा वरारोहा त या मपदे शुभे ।। ११ ।। तदन तर तेज वी मह ष थूलकेशने एका त थानम यागी ई उस ब धुहीन क याको दे खा, जो दे वता क बा लकाके समान द शोभासे का शत हो रही थी। उस समय उस क याको वैसी दशाम दे खकर ज े मु नवर थूलकेशके मनम बड़ी दया आयी; अतः वे उसे उठा लाये और उसका पालन-पोषण करने लगे। वह सु दरी क या उनके शुभ आ मपर दनो दन बढ़ने लगी ।। ९—११ ।। जातका ाः या ा या व धपूव यथा मम् । थूलकेशो महाभाग कार सुमहानृ षः ।। १२ ।। महाभाग मह ष थूलकेशने मशः उस बा लकाके जात-कमा द सब सं कार व धपूवक स प कये ।। १२ ।। मदा यो वरा सा तु स व पगुणा वता । ततः म रे य या नाम च े महानृ षः ।। १३ ।। वह बु , प और सब उ म गुण से सुशो भत हो संसारक सम त मदा (सु दरी य )-से े जान पड़ती थी; इस लये मह षने उसका नाम ‘ म रा’ रख दया ।। १३ ।। तामा मपदे त य ् वा म राम् । बभूव कल धमा मा मदनोपहत तदा ।। १४ ।। एक दन धमा मा ने मह षके आ मम उस म राको दे खा। उसे दे खते ही उनका दय त काल कामदे वके वशीभूत हो गया ।। १४ ।। पतरं सख भः सोऽथ ावयामास भागवम् । म त ा ययाचत् तां थूलकेशं यश वनम् ।। १५ ।। तब उ ह ने म ारा अपने पता भृगव ु ंशी म तको अपनी अव था कहलायी। तदन तर म तने यश वी थूलकेश मु नसे (अपने पु के लये) उनक वह क या माँगी ।। १५ ।। ततः ादात् पता क यां रवे तां म राम् । ववाहं थाप य वा े न े भगदै वते ।। १६ ।। े ी े े औ ी

तब पताने अपनी क या म राका के लये वा दान कर दया और आगामी उ रफा गुनी न म ववाहका मु त न त कया ।। १६ ।। ततः क तपयाह य ववाहे समुप थते । सखी भः डती साध सा क या वरव णनी ।। १७ ।। तदन तर जब ववाहका मु त नकट आ गया, उसी समय वह सु दरी क या सखय के साथ ड़ा करती ई वनम घूमने लगी ।। १७ ।। नाप यत् स सु तं वै भुज ं तयगायतम् । पदा चैनं समा ाम मुमूषुः कालचो दता ।। १८ ।। मागम एक साँप चौड़ी जगह घेरकर तरछा सो रहा था। म राने उसे नह दे खा। वह कालसे े रत होकर मरना चाहती थी, इस लये सपको पैरसे कुचलती ई आगे नकल गयी ।। १८ ।। स त याः स म ाया ो दतः कालधमणा । वषोप ल तान् दशनान् भृशम े यपातयत् ।। १९ ।। उस समय कालधमसे े रत ए उस सपने उस असावधान क याके अंगम बड़े जोरसे अपने वषभरे दाँत गड़ा दये ।। १९ ।। सा द ा तेन सपण पपात सहसा भु व । ववणा वगत ीका ाभरणचेतना ।। २० ।। नरान दकरी तेषां ब धूनां मु मूधजा । सुर े णीया सा े णीयतमाभवत् ।। २१ ।। उस सपके डँस लेनेपर वह सहसा पृ वीपर गर पड़ी। उसके शरीरका रंग उड़ गया, शोभा न हो गयी, आभूषण इधर-उधर बखर गये और चेतना लु त हो गयी। उसके बाल खुले ए थे। अब वह अपने उन ब धुजन के दयम वषाद उ प कर रही थी। जो कुछ ही ण पहले अ य त सु दरी एवं दशनीय थी, वही ाणशू य होनेके कारण अब दे खनेयो य नह रह गयी ।। २०-२१ ।। सु ते वाभव चा प भु व सप वषा दता । भूयो मनोहरतरा बभूव तनुम यमा ।। २२ ।। वह सपके वषसे पी ड़त होकर गाढ़ न ाम सोयी ईक भाँ त भू मपर पड़ी थी। उसके शरीरका म यभाग अ य त कृश था। वह उस अचेतनाव थाम भी अ य त मनोहा रणी जान पड़ती थी ।। २२ ।। ददश तां पता चैव ये चैवा ये तप वनः । वचे मानां प ततां भूतले पवचसम् ।। २३ ।। उसके पता थूलकेशने तथा अ य तप वी महा मा ने भी आकर उसे दे खा। वह कमलक -सी का तवाली कशोरी धरतीपर चे ार हत पड़ी थी ।। २३ ।। ततः सव जवराः समाज मुः कृपा वताः । व या ेयो महाजानुः कु शकः शङ् खमेखलः ।। २४ ।। उ ालकः कठ ैव ेत ैव महायशाः । ौ े ो ौ

भर ाजः कौणकु य आ षेणोऽथ गौतमः ।। २५ ।। म तः सह पु ेण तथा ये वनवा सनः । तदन तर व या ेय, महाजानु, कु शक, शंखमेखल, उ ालक, कठ, महायश वी ेत, भर ाज, कौणकु य, आ षेण, गौतम, अपने पु स हत म त तथा अ य सभी वनवासी े ज दयासे वत होकर वहाँ आये ।। २४-२५ ।। तां ते क यां सुं ् वा भुज य वषा दताम् ।। २६ ।। ः कृपया व ा वात ब हययौ । ते च सव ज े ा त ैवोपा वशं तदा ।। २७ ।। वे सब लोग उस क याको सपके वषसे पी ड़त हो ाणशू य ई दे ख क णावश रोने लगे। तो अ य त आत होकर वहाँसे बाहर चला गया और शेष सभी ज उस समय वह बैठे रहे ।। २६-२७ ।। इ त ीमहाभारते आ दपव ण पौलोमपव ण म रासपदं शेऽ मोऽ यायः ।। ८ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत पौलोमपवम म राके सपदं शनसे स ब ध रखनेवाला आठवाँ अ याय पूरा आ ।। ८ ।। (दा णा य अ धक पाठका ोक मलाकर कुल २७ ोक ह)

नवमोऽ यायः क आधी आयुसे म राका जी वत होना, के साथ उसका ववाह, का सप को मारनेका न य तथा डु डु भ-संवाद सौ त वाच तेषु त ोप व ेषु ा णेषु महा मसु । ोश गहनं वनं ग वा त ःखतः ।। १ ।। शोकेना भहतः सोऽथ वलपन् क णं ब । अ वीद् वचनं शोचन् यां मृ वा म राम् ।। २ ।। शेते सा भु व त व मम शोक वव धनी । बा धवानां च सवषां क नु ःखमतः परम् ।। ३ ।। उ वाजी कहते ह—शौनकजी! वे ा ण म राके चार ओर वहाँ बैठे थे, उसी समय अ य त ःखत हो गहन वनम जाकर जोर-जोरसे दन करने लगा। शोकसे पी ड़त होकर उसने ब त क णाजनक वलाप कया और अपनी यतमा म राका मरण करके शोकम न हो इस कार बोला—‘हाय! वह कृशांगी बाला मेरा तथा सम त बा धव का शोक बढ़ाती ई भू मपर सो रही है; इससे बढ़कर ःख और या हो सकता है? ।। १—३ ।। य द द ं तप त तं गुरवो वा मया य द । स यगारा धता तेन संजीवतु मम या ।। ४ ।। ‘य द मने दान दया हो, तप या क हो अथवा गु जन क भलीभाँ त आराधना क हो तो उसके पु यसे मेरी या जी वत हो जाय ।। ४ ।। यथा च ज म भृ त यता माहं धृत तः । म रा तथा ेषा समु तु भा मनी ।। ५ ।। ‘य द मने ज मसे लेकर अबतक मन और इ य पर संयम रखा हो और चय आ द त का ढ़तापूवक पालन कया हो तो यह मेरी या म रा अभी जी उठे ’ ।। ५ ।। (क ृ णे व णौ षीकेशे लोकेशेऽसुर व ष । य द मे न ला भ मम जीवतु सा या ।।) ‘य द पापी असुर का नाश करनेवाले, इ य के वामी जगद र एवं सव ापी भगवान् ीकृ णम मेरी अ वचल भ हो तो यह क याणी म रा जी उठे ’। एवं लाल यत त य भायाथ ःखत य च । दे व त तदा ये य वा यमाह ं वने ।। ६ ।। इस कार जब प नीके लये ःख त हो अ य त वलाप कर रहा था, उस समय एक दे व त उसके पास आया और वनम से बोला ।। ६ ।। े

दे व त उवाच अ भध से ह यद् वाचा रो ःखेन त मृषा । यतो म य य धमा मन् नायुर त गतायुषः ।। ७ ।। गतायुरेषा कृपणा ग धवा सरसोः सुता । त मा छोके मन तात मा कृथा वं कथंचन ।। ८ ।। दे व तने कहा—धमा मा ! तुम ःखसे ाकुल हो अपनी वाणी ारा जो कुछ कहते हो, वह सब थ है; य क जस मनु यक आयु समा त हो गयी है, उसे फर आयु नह मल सकती। यह बेचारी म रा ग धव और अ सराक पु ी थी। इसे जतनी आयु मली थी, वह पूरी हो चुक है। अतः तात! तुम कसी तरह भी मनको शोकम न डालो ।। ७-८ ।। उपाय ा व हतः पूव दे वैमहा म भः । तं यद छ स कतु वं ा यसीह म राम् ।। ९ ।। इस वषयम महा मा दे वता ने एक उपाय न त कया है। य द तुम उसे करना चाहो तो इस लोकम म राको पा सकोगे ।। ९ ।। वाच क उपायः कृतो दे वै ू ह त वेन खेचर । क र येऽहं तथा ु वा ातुमह त मां भवान् ।। १० ।। बोला—आकाशचारी दे व त! दे वता ने कौन-सा उपाय न त कया है, उसे ठ क-ठ क बताओ? उसे सुनकर म अव य वैसा ही क ँ गा। तुम मुझे इस ःखसे बचाओ ।। १० ।। दे व त उवाच आयुषोउध य छ वं क यायै भृगुन दन । एवमु था य त रो तव भाया म रा ।। ११ ।। दे व तने कहा—भृगन ु दन ! तुम उस क याके लये अपनी आधी आयु दे दो। ऐसा करनेसे तु हारी भाया म रा जी उठे गी ।। ११ ।। वाच आयुषोऽध य छा म क यायै खेचरो म । शृ ार पाभरणा समु तु मे या ।। १२ ।। बोला—दे व े ! म उस क याको अपनी आधी आयु दे ता ँ। मेरी या अपने शृंगार, सु दर प और आभूषण के साथ जी वत हो उठे ।। १२ ।। सौ त वाच ततो ग धवराज दे व त स मौ । धमराजमुपे येदं वचनं यभाषताम् ।। १३ ।। ी











उ वाजी कहते ह—तब ग धवराज व ावसु और दे व त दोन स पु ष ने धमराजके पास जाकर कहा— ।। १३ ।। धमराजायुषोऽधन रोभाया म रा । समु तु क याणी मृतैवं य द म यसे ।। १४ ।। ‘धमराज! क भाया क याणी म रा मर चुक है। य द आप मान ल तो वह क आधी आयुसे जी वत हो जाय’ ।। १४ ।।

धमराज उवाच म रां रोभाया दे व त यद छ स । उ वायुषोऽधन रोरेव सम वता ।। १५ ।। धमराज बोले—दे व त! य द तुम क भाया म राको जलाना चाहते हो तो वह क ही आधी आयुसे संयु होकर जी वत हो उठे ।। १५ ।। सौ त वाच एवमु े ततः क या सोद त त् म रा । रो त यायुषोऽधन सु तेव वरव णनी ।। १६ ।। उ वाजी कहते ह—धमराजके ऐसा कहते ही वह सु दरी मु नक या म रा क आधी आयुसे संयु हो सोयी ईक भाँ त जाग उठ ।। १६ ।। एतद् ं भ व ये ह रो मतेजसः । आयुषोऽ त वृ य भायाथऽधमलु यत ।। १७ ।। तत इ ेऽह न तयोः पतरौ च तुमुदा । ववाहं तौ च रेमाते पर पर हतै षणौ ।। १८ ।। उ म तेज वी के भा यम ऐसी बात दे खी गयी थी। उनक आयु ब त बढ़ -चढ़ थी। जब उ ह ने भायाके लये अपनी आधी आयु दे द , तब दोन के पता ने न त दनम स तापूवक उनका ववाह कर दया। वे दोन द प त एक- सरेके हतैषी होकर आन दपूवक रहने लगे ।। १७-१८ ।। स ल वा लभां भाया प क कसु भाम् । तं च े वनाशाय ज गानां धृत तः ।। १९ ।। कमलके केसरक -सी का तवाली उस लभ भायाको पाकर तधारी ने सप के वनाशका न य कर लया ।। १९ ।। स ् वा ज गान् सवा ती कोपसम वतः । अ भह त यथास वं गृ हरणं सदा ।। २० ।। वह सप को दे खते ही अ य त ोधम भर जाता और हाथम डंडा ले उनपर यथाश हार करता था ।। २० ।। स कदा चद् वनं व ो र यागम महत् । शयानं त चाप यद् डु डु भं वयसा वतम् ।। २१ ।। ै









एक दनक बात है, ा ण कसी वशाल वनम गया, वहाँ उसने डु डु भ जा तके एक बूढ़े साँपको सोते दे खा ।। २१ ।। तत उ य द डं स कालद डोपमं तदा । जघांसुः कु पतो व तमुवाचाथ डु डु भः ।। २२ ।। उसे दे खते ही उसके ोधका पारा चढ़ गया और उस ा णने उस समय सपको मार डालनेक इ छासे कालद डके समान भयंकर डंडा उठाया। तब उस डु डु भने मनु यक बोलीम कहा— ।। २२ ।। नापरा या म ते क चदहम तपोधन । संर भा च कमथ माम भहं स षा वतः ।। २३ ।। ‘तपोधन! आज मने तु हारा कोई अपराध तो नह कया है? फर कस लये ोधके आवेशम आकर तुम मुझे मार रहे हो’ ।। २३ ।। इ त ीमहाभारते आ दपव ण पौलोमपव ण म राजीवने नवमोऽ यायः ।। ९ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत पौलोमपवम म राके जी वत होनेसे स ब ध रखनेवाला नवाँ अ याय पूरा आ ।। ९ ।। (दा णा य अ धक पाठका १ ोक मलाकर क ु ल २४ ोक ह)

दशमोऽ यायः मु न और डु डु भका संवाद वाच मम ाणसमा भाया द ासीद् भुजगेन ह । त मे समयो घोर आ मनोरग वै कृतः ।। १ ।। भुज ं वै सदा ह यां यं यं प येय म युत । ततोऽहं वां जघांसा म जी वतेना मो यसे ।। २ ।। बोला—सप! मेरी ाण के समान यारी प नीको एक साँपने डँस लया था। उसी समय मने यह घोर त ा कर ली क जस- जस सपको दे ख लूँगा, उसे-उसे अव य मार डालूँगा। उसी त ाके अनुसार म तु ह मार डालना चाहता ँ। अतः आज तु ह अपने ाण से हाथ धोना पड़ेगा ।। १-२ ।। डु डु भ उवाच अ ये ते भुजगा न् ये दश तीह मानवान् । डु डु भान हग धेन न वं ह सतुमह स ।। ३ ।। डु डु भने कहा— न्! वे सरे ही साँप ह जो इस लोकम मनु य को डँसते ह। साँप क आकृ त-मा से ही तु ह डु डु भ को नह मारना चा हये ।। ३ ।।

के दशनसे सह पाद ऋ षक सपयो नसे मु

एकानथान् पृथगथानेक ःखान् पृथ सुखान् । डु डु भान् धम वद् भू वा न वं ह सतुमह स ।। ४ ।। अहो! आ य है, बेचारे डु डु भ अनथ भोगनेम सब सप के साथ एक ह; परंतु उनका वभाव सरे सप से भ है तथा ःख भोगनेम तो वे सब सप के साथ एक ह; कतु सुख सबका अलग-अलग है। तुम धम हो, अतः तु ह डु डु भ क हसा नह करनी चा हये ।। ४ ।। सौ त वाच इ त ु वा वच त य भुजग य तदा । नावधीद् भयसं व नमृ ष म वाथ डु डु भम् ।। ५ ।। उ वाजी कहते ह—डु डु भ सपका यह वचन सुनकर ने उसे कोई भयभीत ऋ ष समझा, अतः उसका वध नह कया ।। ५ ।। उवाच चैनं भगवान् ः संशमय व । कामं मां भुजग ू ह कोऽसीमां व यां गतः ।। ६ ।। इसके सवा, बड़भागी ने उसे शा त दान करते ए-से कहा—‘भुजंगम! बताओ, इस वकृत (सप)-यो नम पड़े ए तुम कौन हो?’ ।। ६ ।। डु डु भ उवाच अहं पुरा रो ना ना ऋ षरासं सह पात् । सोऽहं शापेन व य भुजग वमुपागतः ।। ७ ।। डु डु भने कहा— रो! म पूवज मम सहपाद नामक ऋ ष था; कतु एक ा णके शापसे मुझे सपयो नम आना पड़ा है ।। ७ ।। वाच कमथ श तवान् ु ो ज वां भुजगो म । कय तं चैव कालं ते वपुरेतद् भ व य त ।। ८ ।। ने पूछा—भुजगो म! उस ा णने कस लये कु पत होकर तु ह शाप दया? तु हारा यह शरीर अभी कतने समयतक रहेगा? ।। ८ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण पौलोमपव ण डु डु भसंवादे दशमोऽ यायः ।। १० ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत पौलोमपवम -डु डु भसंवाद वषयक दसवाँ अ याय पूरा आ ।। १० ।।

एकादशोऽ यायः डु डु भक आ मकथा तथा उसके ारा उपदे श

को अ हसाका

डु डु भ उवाच सखा बभूव मे पूव खगमो नाम वै जः । भृशं सं शतवाक् तात तपोबलसम वतः ।। १ ।। स मया डता बा ये कृ वा ताण भुज मम् । अ नहो े स तु भी षतः मुमोह वै ।। २ ।। डु डु भने कहा—तात! पूवकालम खगम नामसे स एक ा ण मेरा म था। वह महान् तपोबलसे स प होकर भी ब त कठोर वचन बोला करता था। एक दन वह अ नहो म लगा था। मने खलवाड़म तनक का एक सप बनाकर उसे डरा दया। वह भयके मारे मू छत हो गया ।। १-२ ।। ल वा स च पुनः सं ां मामुवाच तपोधनः । नदह व कोपेन स यवाक् सं शत तः ।। ३ ।। फर होशम आनेपर वह स यवाद एवं कठोर ती तप वी मुझे ोधसे द ध-सा करता आ बोला— ।। ३ ।। यथावीय वया सपः कृतोऽयं मद् बभीषया । तथावीय भुज वं मम शापाद् भ व य स ।। ४ ।। ‘अरे! तूने मुझे डरानेके लये जैसा अ प श वाला सप बनाया था, मेरे शापवश ऐसा ही अ पश स प सप तुझे भी होना पड़ेगा’ ।। ४ ।। त याहं तपसो वीय जान ासं तपोधन । भृशमु न दय तमवोचमहं तदा ।। ५ ।। णतः स मा चैव ा लः पुरतः थतः । सखे त सहसेदं ते नमाथ वै कृतं मया ।। ६ ।। तुमह स मे न् शापोऽयं व नव यताम् । सोऽथ माम वीद् ् वा भृशमु नचेतसम् ।। ७ ।। मु णं व नः य सुस ा त तपोधनः । नानृतं वै मया ो ं भ वतेदं कथंचन ।। ८ ।। तपोधन! म उसक तप याका बल जानता था, अतः मेरा दय अ य त उ न हो उठा और बड़े वेगसे उसके चरण म णाम करके, हाथ जोड़, सामने खड़ा हो, उस तपोधनसे बोला—सखे! मने प रहासके लये सहसा यह काय कर डाला है। न्! इसके लये मा करो और अपना यह शाप लौटा लो। मुझे अ य त घबराया आ दे खकर स मम पड़े ए ी े





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उस तप वीने बार-बार गरम साँस ख चते ए कहा—‘मेरी कही ई यह बात कसी कार झूठ नह हो सकती’ ।। ५—८ ।। य ु व या म ते वा यं शृणु त मे तपोधन । ु वा च द ते वा य मदम तु सदानघ ।। ९ ।। ‘ न पाप तपोधन! इस समय म तुमसे जो कुछ कहता ँ, उसे सुनो और सुनकर अपने दयम सदा धारण करो ।। ९ ।। उप यत नाम मतेरा मजः शु चः । तं ् वा शापमो ते भ वता न चरा दव ।। १० ।। ‘भ व यम मह ष म तके प व पु उ प ह गे, उनका दशन करके तु ह शी ही इस शापसे छु टकारा मल जायगा’ ।। १० ।। स वं र त यातः मतेरा मजोऽ प च । व पं तप ाहम व या म ते हतम् ।। ११ ।। जान पड़ता है तुम वही नामसे व यात मह ष म तके पु हो। अब म अपना व प धारण करके तु हारे हतक बात बताऊँगा ।। ११ ।। स डौ डु भं प र य य पं व षभ तदा । व पं भा वरं भूयः तपेदे महायशाः ।। १२ ।। इदं चोवाच वचनं म तमौजसम् । अ हसा परमो धमः सव ाणभृतां वर ।। १३ ।। इतना कहकर महायश वी व वर सहपादने डु डु भका प यागकर पुनः अपने काशमान व पको ा त कर लया। फर अनुपम ओजवाले से यह बात कही —‘सम त ा णय म े ा ण! अ हसा सबसे उ म धम है ।। १२-१३ ।। त मात् ाणभृतः सवान् न ह याद् ा णः व चत् । ा णः सौ य एवेह भवती त परा ु तः ।। १४ ।। ‘अतः ा णको सम त ा णय मसे कसीक कभी और कह भी हसा नह करनी चा हये। ा ण इस लोकम सदा सौ य वभावका ही होता है, ऐसा ु तका उ म वचन है ।। १४ ।। वेदवेदा व ाम सवभूताभय दः । अ हसा स यवचनं मा चे त व न तम् ।। १५ ।। ा ण य परो धम वेदानां धारणा प च । य य ह यो धमः स ह ने येत वै तव ।। १६ ।। ‘वह वेद-वेदांग का व ान् और सम त ा णय को अभय दे नेवाला होता है। अ हसा, स यभाषण, मा और वेद का वा याय न य ही ये ा णके उ म धम ह। यका जो धम है वह तु हारे लये अभी नह है ।। १५-१६ ।। द डधारणमु वं जानां प रपालनम् । त ददं य यासीत् कम वै शृणु मे रो ।। १७ ।। जनमेजय य य ेऽ मन् सपाणां हसनं पुरा । ी

प र ाणं च भीतानां सपाणां ा णाद प ।। १८ ।। तपोवीयबलोपेताद् वेदवेदा पारगात् । आ तीकाद् जमु याद् वै सपस े जो म ।। १९ ।। ‘ रो! द डधारण, उ ता और जापालन—ये सब य के कम रहे ह। मेरी बात सुनो, पहले राजा जनमेजयके य म सप क बड़ी भारी हसा ई। ज े ! फर उसी सपस म तप याके बल-वीयसे स प , वेद वेदांग के पारंगत व ान् व वर आ तीक नामक ा णके ारा भयभीत सप क ाणर ा ई’ ।। १७—१९ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण पौलोमपव ण डु डु भशापमो े एकादशोऽ यायः ।। ११ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत पौलोमपवम डु डु भशापमो वषयक यारहवाँ अ याय पूरा आ ।। ११ ।।

ादशोऽ यायः जनमेजयके सपस के वषयम क ज ासा और पता ारा उसक पू त वाच कथं ह सतवान् सपान् स राजा जनमेजयः । सपा वा ह सता त कमथ जस म ।। १ ।। ने पूछा— ज े ! राजा जनमेजयने सप क हसा कैसे क ? अथवा उ ह ने कस लये य म सप क हसा करवायी? ।। १ ।। कमथ मो ता ैव प गा तेन धीमता । आ तीकेन ज े ोतु म छा यशेषतः ।। २ ।। व वर! परम बु मान् महा मा आ तीकने कस लये सप को उस य से बचाया था? यह सब म पूण पसे सुनना चाहता ँ ।। २ ।। ऋ ष वाच ो य स वं रो सवमा तीकच रतं महत् । ा णानां कथयता म यु वा तरधीयत ।। ३ ।। ऋ षने कहा—‘ रो! तुम कथावाचक ा ण के मुखसे आ तीकका महान् च र सुनोगे।’ ऐसा कहकर सहपाद मु न अ तधान हो गये ।। ३ ।। सौ त वाच ा प वनं सव पयधावत् सम ततः । तमृ ष न म व छन् सं ा तो यपतद् भु व ।। ४ ।। उ वाजी कहते ह—तदन तर वहाँ अ य ए मु नक खोजम उस वनके भीतर सब ओर दौड़ता रहा और अ तम थककर पृ वीपर गर पड़ा ।। ४ ।। स मोहं परमं ग वा न सं इवाभवत् । त षेवचनं तयं च तयानः पुनः पुनः ।। ५ ।। लधसं ो ायात् तदाच यौ पतु तदा । पता चा य तदा यानं पृ ः सव यवेदयत् ।। ६ ।। गरनेपर उसे बड़ी भारी मू छाने दबा लया। उसक चेतना न -सी हो गयी। मह षके यथाथ वचनका बार-बार च तन करते ए होशम आनेपर घर लौट आया। उस समय उसने पतासे वे सब बात कह सुनाय और पतासे भी आ तीकका उपा यान पूछा। के पूछनेपर पताने सब कुछ बता दया ।। ५-६ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण पौलोमपव ण सपस १२ ।। ी े ौ ो

तावनायां ादशोऽ यायः ।।

इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत पौलोमपवम सपस बारहवाँ अ याय पूरा आ ।। १२ ।।

तावना वषयक

(आ तीकपव) योदशोऽ यायः जर का का अपने पतर के अनुरोधसे ववाहके लये उ त होना शौनक उवाच कमथ राजशा लः स राजा जनमेजयः । सपस ेण सपाणां गतोऽ तं तद् वद व मे ।। १ ।। नखलेन यथात वं सौते सवमशेषतः । आ तीक ज े ः कमथ जपतां वरः ।। २ ।। मो यामास भुजगान् द ताद् वसुरेतसः । क य पु ः स राजासीत् सपस ं य आहरत् ।। ३ ।। स च जा त वरः क य पु ोऽ भध व मे । शौनकजीने पूछा—सूतजी! राजा म े जनमेजयने कस लये सपस ारा सप का अ त कया? यह संग मुझसे क हये। सूतन दन! इस वषयक सब बात का यथाथ पसे वणन क जये। जप-य करनेवाले पु ष म े व वर आ तीकने कस लये सप को व लत अ नम जलनेसे बचाया और वे राजा जनमेजय, ज ह ने सपस का आयोजन कया था, कसके पु थे? तथा जवंश शरोम ण आ तीक भी कसके पु थे? यह मुझे बताइये ।। १ —३ ।। सौ त वाच महदा यानमा तीकं यथैतत् ो यते ज ।। ४ ।। सवमेतदशेषेण शृणु मे वदतां वर । उ वाजीने कहा— न्! आ तीकका उपा यान ब त बड़ा है। व ा म े ! यह संग जैसे कहा जाता है, वह सब पूरा-पूरा सुनो ।। ४ ।। शौनक उवाच ोतु म छा यशेषेण कथामेतां मनोरमाम् ।। ५ ।। आ तीक य पुराणष ा ण य यश वनः । शौनकजीने कहा—सूतन दन! पुरातन ऋ ष एवं यश वी ा ण आ तीकक इस मनोरम कथाको म पूण पसे सुनना चाहता ँ ।। ५ ।। ौ

सौ त वाच इ तहास ममं व ाः पुराणं प रच ते ।। ६ ।। कृ ण ै पायन ो ं नै मषार यवा सषु । पूव चो दतः सूतः पता मे लोमहषणः ।। ७ ।। श यो ास य मेधावी ा णे वदमु वान् । त मादहमुप ु य व या म यथातथम् ।। ८ ।। उ वाजीने कहा—शौनकजी! ा णलोग इस इ तहासको ब त पुराना बताते ह। पहले मेरे पता लोमहषणजीने, जो ासजीके मेधावी श य थे, ऋ षय के पूछनेपर सा ात् ीकृ ण ै पायन ( ास)-के कहे ए इस इ तहासका नै मषार यवासी ा ण के समुदायम वणन कया था। उ ह के मुखसे सुनकर म भी इसका यथावत् वणन करता ँ ।। ६—८ ।। इदमा तीकमा यानं तु यं शौनक पृ छते । कथ य या यशेषेण सवपाप णाशनम् ।। ९ ।। शौनकजी! यह आ तीक मु नका उपा यान सब पाप का नाश करनेवाला है। आपके पूछनेपर म इसका पूरा-पूरा वणन कर रहा ँ ।। ९ ।। आ तीक य पता ासीत् जाप तसमः भुः । चारी यताहार तप यु े रतः सदा ।। १० ।। आ तीकके पता जाप तके समान भावशाली थे। चारी होनेके साथ ही उ ह ने आहारपर भी संयम कर लया था। वे सदा उ तप याम संल न रहते थे ।। १० ।। जर का र त यात ऊ वरेता महातपाः । यायावराणां वरो धम ः सं शत तः ।। ११ ।। स कदा च महाभाग तपोबलसम वतः । चचार पृ थव सवा य सायंगृहो मु नः ।। १२ ।। उनका नाम था जर का । वे ऊ वरेता और महान् ऋ ष थे। यायावर म१ उनका थान सबसे ऊँचा था। वे धमके ाता थे। एक समय तपोबलसे स प उन महाभाग जर का ने या ा ार भ क । वे मु न-वृ से रहते ए जहाँ शाम होती वह डेरा डाल दे ते थे ।। ११-१२ ।। तीथषु च समा लावं कुव ट त सवशः । चरन् द ां महातेजा रामकृता म भः ।। १३ ।। वे सब तीथ म नान करते ए घूमते थे। उन महातेज वी मु नने कठोर त क ऐसी द ा लेकर या ा ार भ क थी, जो अ जते य पु ष के लये अ य त ःसा य थी ।। १३ ।। वायुभ ो नराहारः शु य न मषो मु नः । इत ततः प रचरन् द तपावकस भः ।। १४ ।।

अटमानः कदा चत् वान् स ददश पतामहान् । ल बमानान् महागत पादै वरवाङ् मुखान् ।। १५ ।। वे कभी वायु पीकर रहते और कभी भोजनका सवथा याग करके अपने शरीरको सुखाते रहते थे। उन मह षने न ापर भी वजय ा त कर ली थी, इस लये उनक पलक नह लगती थी। इधर-उधर वचरण करते ए वे व लत अ नके समान तेज वी जान पड़ते थे। घूमते-घूमते कसी समय उ ह ने अपने पतामह को दे खा जो ऊपरको पैर और नीचेको सर कये एक वशाल गड् ढे म लटक रहे थे ।। १४-१५ ।। तान वीत् स ् वैव जर का ः पतामहान् । के भव तोऽवल ब ते गत म धोमुखाः ।। १६ ।। उ ह दे खते ही जर का ने उनसे पूछा—‘आपलोग कौन ह, जो इस गड् ढे म नीचेको मुख कये लटक रहे ह ।। १६ ।। वीरण त बके ल नाः सवतः प रभ ते । मूषकेन नगूढेन गतऽ मन् न यवा सना ।। १७ ।। ‘आप जस वीरण त ब (खस नामक तनक के समूह) -को पकड़कर लटक रहे ह, उसे इस गड् ढे म गु त पसे न य नवास करनेवाले चूहेने सब ओरसे ायः खा लया है’ ।। १७ ।।२ पतर ऊचुः यायावरा नाम वयमृषयः सं शत ताः । संतान याद् धो ग छाम मे दनीम् ।। १८ ।। पतर बोले— न्! हमलोग कठोर तका पालन करनेवाले यायावर नामक मु न ह। अपनी संतान-पर पराका नाश होनेसे हम नीचे—पृ वीपर गरना चाहते ह ।। १८ ।। अ माकं संत त वेको जर का र त मृतः । म दभा योऽ पभा यानां तप एव समा थतः ।। १९ ।। हमारी एक संत त बच गयी है, जसका नाम है जर का । हम भा यहीन क वह अभागी संतान केवल तप याम ही संल न है ।। १९ ।। न स पु ा न यतुं दारान् मूढ क ष त । तेन ल बामहे गत संतान य या दह ।। २० ।। अनाथा तेन नाथेन यया कृ तन तथा । क वं ब धु रवा माकमनुशोच स स म ।। २१ ।। ातु म छामहे न् को भवा नह नः थतः । कमथ चैव नः शो याननुशोच स स म ।। २२ ।। वह मूढ़ पु उ प करनेके लये कसी ीसे ववाह करना नह चाहता है। अतः वंशपर पराका वनाश होनेसे हम यहाँ इस गड् ढे म लटक रहे ह। हमारी े ौ ै ो ी ँ

र ा करनेवाला वह वंशधर मौजूद है, तो भी पापकम मनु य क भाँ त हम अनाथ हो गये ह। साधु शरोमणे! तुम कौन हो जो हमारे ब धु-बा धव क भाँ त हमलोग क इस दयनीय दशाके लये शोक कर रहे हो? न्! हम यह जानना चाहते ह क तुम कौन हो जो आ मीयक भाँ त यहाँ हमारे पास खड़े हो? स पु ष म े ! हम शोचनीय ा णय के लये तुम य शोकम न होते हो ।। २०—२२ ।। जर का वाच मम पूव भव तो वै पतरः स पतामहाः । ूत क करवा य जर का रहं वयम् ।। २३ ।। जर का ने कहा—महा माओ! आपलोग मेरे ही पतामह और पूवज पतृगण ह। वयं म ही जर का ँ। बताइये, आज आपक या सेवा क ँ ? ।। २३ ।। पतर ऊचुः यत व य नवां तात संतानाय कुल य नः । आ मनोऽथऽ मदथ च धम इ येव वा वभो ।। २४ ।। पतर बोले—तात! तुम हमारे कुलक संतान-पर पराको बनाये रखनेके लये नर तर य नशील रहकर ववाहके लये य न करो। भो! तुम अपने लये, हमारे लये अथवा धमका पालन हो, इस उ े यसे पु क उ प के लये य न करो ।। २४ ।। न ह धमफलै तात न तपो भः सुसं चतैः । तां ग त ा ुव तीह पु णो यां ज त वै ।। २५ ।। तात! पु वाले मनु य इस लोकम जस उ म ग तको ा त होते ह, उसे अ य लोग धमानुकूल फल दे नेवाले भलीभाँ त सं चत कये ए तपसे भी नह पाते ।। २५ ।। तद् दार हणे य नं संत यां च मनः कु । पु का म योगात् वमेत ः परमं हतम् ।। २६ ।। अतः बेटा! तुम हमारी आ ासे ववाह करनेका य न करो और संतानो पादनक ओर यान दो। यही हमारे लये सव म हतक बात होगी ।। २६ ।। जर का वाच न दारान् वै क र येऽहं न धनं जी वताथतः । भवतां तु हताथाय क र ये दारसं हम् ।। २७ ।। जर का ने कहा— पतामहगण! मने अपने मनम यह न य कर लया था क म जीवनके सुख-भोगके लये कभी न तो प नीका प र ह क ँ गा और न ी



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धनका सं ह ही; परंतु य द ऐसा करनेसे आपलोग का हत होता है तो उसके लये अव य ववाह कर लूँगा ।। २७ ।। समयेन च कताहमनेन व धपूवकम् । तथा य ुपल या म क र ये ना यथा हम् ।। २८ ।। कतु एक शतके साथ मुझे व धपूवक ववाह करना है। य द उस शतके अनुसार कसी कुमारी क याको पाऊँगा, तभी उससे ववाह क ँ गा, अ यथा ववाह क ँ गा ही नह ।। २८ ।। सना नी या भ व ी मे द सता चैव ब धु भः । भै यव ामहं क यामुपयं ये वधानतः ।। २९ ।। (वह शत य है—) जस क याका नाम मेरे नामके ही समान हो, जसे उसके भाई-ब धु वयं मुझे दे नेक इ छासे रखते ह और जो भ ाक भाँ त वयं ा त ई हो, उसी क याका म शा ीय व धके अनुसार पा ण हण क ँ गा ।। २९ ।। द र ाय ह मे भाया को दा य त वशेषतः । त ही ये भ ां तु य द क त् दा य त ।। ३० ।। वशेष बात तो यह है क म द र ँ, भला मुझे माँगनेपर भी कौन अपनी क या प नी पम दान करेगा? इस लये मेरा वचार है क य द कोई भ ाके तौरपर अपनी क या दे गा तो उसे हण क ँ गा ।। ३० ।। एवं दार याहेतोः य त ये पतामहाः । अनेन व धना श क र येऽहम यथा ।। ३१ ।। पतामहो! म इसी कार, इसी व धसे ववाहके लये सदा य न करता र ँगा। इसके वपरीत कुछ नह क ँ गा ।। ३१ ।। त चो प यते ज तुभवतां तारणाय वै । शा तं थानमासा मोद तां पतरो मम ।। ३२ ।। इस कार मली ई प नीके गभसे य द कोई ाणी ज म लेगा तो वह आपलोग का उ ार करेगा, अतः आप मेरे पतर अपने सनातन थानपर जाकर वहाँ स तापूवक रह ।। ३२ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण आ तीकपव ण जर का त पतृसंवादे योदशोऽ यायः ।। १३ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत आ तीकपवम जर का तथा उनके पतर का संवाद नामक तेरहवाँ अ याय पूरा आ ।। १३ ।।

१. यायावरका अथ है सदा वचरनेवाला मु न। मु नवृ से रहते ए सदा इधर-उधर घूमते रहनेवाले गृह थ ा ण के एक समूह वशेषक यायावर सं ा है। ये लोग एक गाँवम एक रातसे अ धक नह ठहरते औ















और प म एक बार अ नहो करते ह। प होम स दायक वृ इ ह से ई है। इनके वषयम भार ाजका वचन इस कार मलता है— यायावरा नाम ा णा आसं ते अधमासाद नहो मजु न् । यायावरलोग घूमते-घूमते जहाँ सं या हो जाती है वह ठहर जाते ह। २. यहाँ भूलोक ही गड् ढा है। वगवासी पतर को जो नीचे गरनेका भय लगा रहता है उसीको सू चत करनेके लये यह कहा गया है क उनके पैर ऊपर थे और सर नीचे। काल ही चूहा है और वंशपर परा ही वीरण त ब (खस नामक तनक का समुदाय) है। उस वंशम केवल जर का बच गये थे और अ य सब पु ष कालके अधीन हो चुके थे। यही करनेके लये चूहेके ारा तनक के समुदायको सब ओरसे खाया आ बताया गया है। जर का के ववाह न करनेसे उस वंशका वह शेष अंश भी न होना चाहता था। इसी लये पतर ाकुल थे और जर का को इसका बोध करानेके लये उ ह ने इस कार दशन दया था।

चतुदशोऽ यायः जर का

ारा वासु कक ब हनका पा ण हण

सौ त वाच ततो नवेशाय तदा स व ः सं शत तः । मह चचार दाराथ न च दारान व दत ।। १ ।। उ वाजी कहते ह—तदन तर वे कठोर तका पालन करनेवाले ा ण भायाक ा तके लये इ छु क होकर पृ वीपर सब ओर वचरने लगे; कतु उ ह प नीक उपल ध नह ई ।। १ ।। स कदा चद् वनं ग वा व ः पतृवचः मरन् । चु ोश क या भ ाथ त ो वाचः शनै रव ।। २ ।। एक दन कसी वनम जाकर व वर जर का ने पतर के वचनका मरण करके क याक भ ाके लये तीन बार धीरे-धीरे पुकार लगायी—‘कोई भ ा पम क या दे जाय’ ।। २ ।। तं वासु कः यगृ ा य भ गन तदा । न स तां तज ाह न सना नी त च तयन् ।। ३ ।। इसी समय नागराज वासु क अपनी ब हनको लेकर मु नक सेवाम उप थत हो गये और बोले, ‘यह भ ा हण क जये।’ कतु उ ह ने यह सोचकर क शायद यह मेरे-जैसे नामवाली न हो, उसे त काल हण नह कया ।। ३ ।। सना न चो तां भाया गृ या म त त य ह । मनो न व मभव जर कारोमहा मनः ।। ४ ।। उन महा मा जर का का मन इस बातपर थर हो गया था क मेरे-जैसे नामवाली क या य द उपल ध हो तो उसीको प नी पम हण क ँ ।। ४ ।। तमुवाच महा ा ो जर का महातपाः । कना नी भ गनीयं ते ू ह स यं भुजंगम ।। ५ ।। ऐसा न य करके परम बु मान् एवं महान् तप वी जर का ने पूछा—‘नागराज! सच-सच बताओ, तु हारी इस ब हनका या नाम है?’ ।। ५ ।। वासु क वाच जर कारो जर का ः वसेयमनुजा मम । तगृ व भायाथ मया द ां सुम यमाम् । वदथ र ता पूव ती छे मां जो म ।। ६ ।। वासु कने कहा—जर कारो! यह मेरी छोट ब हन जर का नामसे ही स है। इस सु दर क ट दे शवाली कुमारीको प नी बनानेके लये मने वयं आपक सेवाम सम पत ै









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कया है। इसे वीकार क जये। ज े ! यह ब त पहलेसे आपहीके लये सुर त रखी गयी है, अतः इसे हण कर ।। ६ ।। एवमु वा ततः ादाद् भायाथ वरव णनीम् । स च तां तज ाह व ध ेन कमणा ।। ७ ।। ऐसा कहकर वासु कने वह सु दरी क या मु नको प नी पम दान क । मु नने भी शा ीय व धके अनुसार उसका पा ण हण कया ।। ७ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण आ तीकपव ण वासु क वसृवरणे चतुदशोऽ यायः ।। १४ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत आ तीकपवम वासु कक ब हनके वरणसे स ब ध रखनेवाला चौदहवाँ अ याय पूरा आ ।। १४ ।।

प चदशोऽ यायः आ तीकका ज म तथा मातृशापसे सपस म न होनेवाले नागवंशक उनके ारा र ा सौ त वाच मा ा ह भुजगाः श ताः पूव वदां वर । जनमेजय य वो य े ध य य नलसार थः ।। १ ।। उ वाजी कहते ह— वे ा म े शौनक! पूवकालम नागमाता क न ू े सप को यह शाप दया था क तु ह जनमेजयके य म अ न भ म कर डालेगी ।। १ ।। त य शाप य शा यथ ददौ प गो मः । वसारमृषये त मै सु ताय महा मने ।। २ ।। स च तां तज ाह व ध ेन कमणा । आ तीको नाम पु त यां ज े महामनाः ।। ३ ।। उसी शापक शा तके लये नाग वर वासु कने सदाचारका पालन करनेवाले महा मा जर का को अपनी ब हन याह द थी। महामना जर का ने शा ीय व धके अनुसार उस नागक याका पा ण हण कया और उसके गभसे आ तीक नामक पु को ज म दया ।। २-३ ।। तप वी च महा मा च वेदवेदा पारगः । समः सव य लोक य पतृमातृभयापहः ।। ४ ।। आ तीक वेद-वेदांग के पारंगत व ान्, तप वी, महा मा, सब लोग के त समानभाव रखनेवाले तथा पतृकुल और मातृकुलके भयको र करनेवाले थे ।। ४ ।। अथ द घ य काल य पा डवेयो नरा धपः । आजहार महाय ं सपस म त ु तः ।। ५ ।। त मन् वृ े स े तु सपाणाम तकाय वै । मोचयामास तान् नागाना तीकः सुमहातपाः ।। ६ ।। तदन तर द घकालके प ात् पा डववंशीय नरेश जनमेजयने सपस नामक महान् य का आयोजन कया, ऐसा सुननेम आता है। सप के संहारके लये आर भ कये ए उस स म आकर महातप वी आ तीकने नाग को मौतसे छु ड़ाया ।। ५-६ ।। ातॄं मातुलां ैव तथैवा यान् स प गान् । पतॄं तारयामास संत या तपसा तथा ।। ७ ।। उ ह ने मामा तथा ममेरे भाइय को एवं अ या य स ब ध म आनेवाले सब नाग को संकटमु कया। इसी कार तप या तथा संतानो पादन ारा उ ह ने पतर का भी उ ार कया ।। ७ ।। तै व वधै न् वा यायै ानृणोऽभवत् । े





दे वां तपयामास य ै व वधद णैः ।। ८ ।। ऋष चयण संत या च पतामहान् । अप य गु ं भारं पतॄणां सं शत तः ।। ९ ।। जर का गतः वग स हतः वैः पतामहैः । आ तीकं च सुतं ा य धम चानु मं मु नः ।। १० ।। जर का ः सुमहता कालेन वगमे यवान् । एतदा यानमा तीकं यथावत् क थतं मया । ू ह भृगुशा ल कम यत् कथया म ते ।। ११ ।। न्! भाँ त-भाँ तके त और वा याय का अनु ान करके वे सब कारके ऋण से उऋण हो गये। अनेक कारक द णावाले य का अनु ान करके उ ह ने दे वता , चय तके पालनसे ऋ षय और संतानक उ प ारा पतर को तृ त कया। कठोर तका पालन करनेवाले जर का मु न पतर क च ताका भारी भार उतारकर अपने उन पतामह के साथ वगलोकको चले गये। आ तीक-जैसे पु तथा परम धमक ा त करके मु नवर जर का ने द घकालके प ात् वगलोकक या ा क । भृगक ु ु ल शरोमणे! इस कार मने आ तीकके उपा यानका यथावत् वणन कया है। बताइये, अब और या कहा जाय? ।। ८—११ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण आ तीकपव ण सपाणां मातृशाप तावे प चदशोऽ यायः ।। १५ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत आ तीकपवम सप को मातृशाप ा त होनेक तावनासे यु पं हवाँ अ याय पूरा आ ।। १५ ।।

षोडशोऽ यायः क ू और वनताको क यपजीके वरदानसे अभी पु क ा त शौनक उवाच सौते वं कथय वेमां व तरेण कथां पुनः । आ तीक य कवेः साधोः शु ूषा परमा ह नः ।। १ ।। शौनकजी बोले—सूतन दन! आप ानी महा मा आ तीकक इस कथाको पुनः व तारके साथ क हये। हम उसे सुननेके लये बड़ी उ क ठा है ।। १ ।। मधुरं कयते सौ य णा रपदं वया । ीयामहे भृशं तात पतेवेदं भाषसे ।। २ ।। सौ य! आप बड़ी मधुर कथा कहते ह। उसका एक-एक अ र और एक-एक पद कोमल है। तात! इसे सुनकर हम बड़ी स ता होती है। आप अपने पता लोमहषणक भाँ त ही वचन कर रहे ह ।। २ ।। अ म छु ूषणे न यं पता ह नरत तव । आच ैतद् यथा यानं पता ते वं तथा वद ।। ३ ।। आपके पता सदा हमलोग क सेवाम लगे रहते थे। उ ह ने इस उपा यानको जस कार कहा है, उसी पम आप भी क हये ।। ३ ।। सौ त वाच आयु म दमा यानमा तीकं कथया म ते । यथा ुतं कथयतः सकाशाद् वै पतुमया ।। ४ ।। उ वाजीने कहा—आयु मन्! मने अपने कथावाचक पताजीके मुखसे यह आ तीकक कथा, जस पम सुनी है, उसी कार आपसे कहता ँ ।। ४ ।। पुरा दे वयुगे न् जाप तसुते शुभे । आ तां भ ग यौ पेण समुपेतेऽ तेऽनघ ।। ५ ।। ते भाय क यप या तां क ू वनता च ह । ादात् ता यां वरं ीतः जाप तसमः प तः ।। ६ ।। क यपो धमप नी यां मुदा परमया युतः । वरा तसग ु वैवं क यपा मं च ते ।। ७ ।। हषाद तमां ी त ापतुः म वर यौ । व े क ःू सुतान् नागान् सह ं तु यवचसः ।। ८ ।। न्! पहले स ययुगम द जाप तक दो शुभल णा क याएँ थ —क ू और वनता। वे दोन ब हन प-सौ दयसे स प तथा अ त थ । अनघ! उन दोन का ववाह ी े

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मह ष क यपजीके साथ आ था। एक दन जाप त ाजीके समान श शाली प त मह ष क यपने अ य त हषम भरकर अपनी उन दोन धमप नय को स तापूवक वर दे ते ए कहा—‘तुममसे जसक जो इ छा हो वर माँग लो।’ इस कार क यपजीसे उ म वरदान मलनेक बात सुनकर स ताके कारण उन दोन सु दरी य को अनुपम आन द ा त आ। क न ू े समान तेज वी एक हजार नाग को पु पम पानेका वर माँगा ।। ५— ८ ।। ौ पु ौ वनता व े क प ू ु ा धकौ बले । तेजसा वपुषा चैव व मेणा धकौ च तौ ।। ९ ।। वनताने बल, तेज, शरीर तथा परा मम क क ू े पु से े केवल दो ही पु माँगे ।। ९ ।। त यै भता वरं ादाद यथ पु मी सतम् । एवम व त तं चाह क यपं वनता तदा ।। १० ।। वनताको प तदे वने, अ य त अभी दो पु के होनेका वरदान दे दया। उस समय वनताने क यपजीसे ‘एवम तु ‘कहकर उनके दये ए वरको शरोधाय कया ।। १० ।। यथावत् ा थतं ल वा वरं तु ाभवत् तदा । कृतकृ या तु वनता ल वा वीया धकौ सुतौ ।। ११ ।। अपनी ाथनाके अनुसार ठ क वर पाकर वह ब त स ई। क क ू े पु से अ धक बलवान् और परा मी—दो पु के होनेका वर ा त करके वनता अपनेको कृतकृ य मानने लगी ।। ११ ।। क ू ल वा पु ाणां सह ं तु यवचसाम् । धाय य नतो गभा व यु वा स महातपाः ।। १२ ।। ते भाय वरसंतु े क यपो वनमा वशत् । समान तेज वी एक हजार पु होनेका वर पाकर क ू भी अपना मनोरथ स आ समझने लगी। वरदान पाकर संतु ई अपनी उन धमप नय से यह कहकर क ‘तुम दोन य नपूवक अपने-अपने गभक र ा करना’ महातप वी क यपजी वनम चले गये ।। १२ ।। सौ त वाच कालेन महता क रू डानां दशतीदश ।। १३ ।। जनयामास व े े चा डे वनता तदा । उ वाजीने कहा— न्! तदन तर द घकालके प ात् क न ू े एक हजार और वनताने दो अ डे दये ।। १३ ।। तयोर डा न नदधुः ाः प रचा रकाः ।। १४ ।। सोप वेदेषु भा डेषु प चवषशता न च । ततः प चशते काले क प ू ु ा व नःसृताः ।। १५ ।। अ डा यां वनताया तु मथुनं न यत । े













दा सय ने अ य त स होकर दोन के अ ड को गरम बतन म रख दया। वे अ डे पाँच सौ वष तक उ ह बतन म पड़े रहे। त प ात् पाँच सौ वष पूरे होनेपर क क ू े एक हजार पु अ ड को फोड़कर बाहर नकल आये; परंतु वनताके अ ड से उसके दो ब चे नकलते नह दखायी दये ।। १४-१५ ।। ततः पु ा थनी दे वी ी डता च तप वनी ।। १६ ।। अ डं बभेद वनता त पु मप यत । पूवाधकायस प मतरेणा काशता ।। १७ ।। इससे पु ा थनी और तप वनी दे वी वनता सौतके सामने ल जत हो गयी। फर उसने अपने हाथ से एक अ डा फोड़ डाला। फूटनेपर उस अ डेम वनताने अपने पु को दे खा, उसके शरीरका ऊपरी भाग पूण पसे वक सत एवं पु था, कतु नीचेका आधा अंग अभी अधूरा रह गया था ।। १६-१७ ।। स पु ः ोधसंरधः शशापैना म त ु तः । योऽहमेवं कृतो मात वया लोभपरीतया ।। १८ ।। शरीरेणासम ेण त माद् दासी भ व य स । प चवषशता य या यया व पधसे सह ।। १९ ।। सुना जाता है, उस पु ने ोधके आवेशम आकर वनताको शाप दे दया—‘माँ! तूने लोभके वशीभूत होकर मुझे इस कार अधूरे शरीरका बना दया—मेरे सम त अंग को पूणतः वक सत एवं पु नह होने दया; इस लये जस सौतके साथ तू लाग-डाँट रखती है, उसीक पाँच सौ वष तक दासी बनी रहेगी ।। १८-१९ ।। एष च वां सुतो मातदासी वा मोच य य त । य ेनम प मात वं मा मवा ड वभेदनात् ।। २० ।। न क र य यन ं वा ं वा प तप वनम् । ‘और मा! यह जो सरे अ डेम तेरा पु है, यही तुझे दासीभावसे छु टकारा दलायेगा; कतु माता! ऐसा तभी हो सकता है जब तू इस तप वी पु को मेरी ही तरह अ डा फोड़कर अंगहीन या अधूरे अंग से यु न बना दे गी ।। २० ।। तपाल यत ते ज मकालोऽ य धीरया ।। २१ ।। व श ं बलमी स या प चवषशतात् परः । ‘इस लये य द तू इस बालकको वशेष बलवान् बनाना चाहती है तो पाँच सौ वषके बादतक तुझे धैय धारण करके इसके ज मक ती ा करनी चा हये’ ।। २१ ।। एवं श वा ततः पु ो वनताम त र गः ।। २२ ।। अ णो यते न् भातसमये सदा । आ द यरथम या ते सारयं समक पयत् ।। २३ ।। इस कार वनताको शाप दे कर वह बालक अ ण अ त र म उड़ गया। न्! तभीसे ातःकाल ( ाची दशाम) सदा जो लाली दखायी दे ती है, उसके पम वनताके ी















पु अ णका ही दशन होता है। वह सूयदे वके रथपर जा बैठा और उनके सार थका काम सँभालने लगा ।। २२-२३ ।। ग डोऽ प यथाकालं ज े प गभोजनः । स जातमा ो वनतां प र य य खमा वशत् ।। २४ ।। आदा य ा मनो भो यम ं व हतम य यत् । वधा ा भृगुशा ल ु धतः पतगे रः ।। २५ ।। तदन तर समय पूरा होनेपर सपसंहारक ग डका ज म आ। भृगु े ! प राज ग ड ज म लेते ही ुधासे ाकुल हो गये और वधाताने उनके लये जो आहार नयत कया था, अपने उस भो य पदाथको ा त करनेके लये माता वनताको छोड़कर आकाशम उड़ गये ।। २४-२५ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण आ तीकपव ण सपाद नामु प ौ षोडशोऽ यायः ।। १६ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत आ तीकपवम सप आ दक उ प से स ब ध रखनेवाला सोलहवाँ अ याय पूरा आ ।। १६ ।।

स तदशोऽ यायः मे पवतपर अमृतके लये वचार करनेवाले दे वता को भगवान् नारायणका समु म थनके लये आदे श सौ त वाच एत म ेव काले तु भ ग यौ ते तपोधन । अप यतां समायाते उ चैः वसम तकात् ।। १ ।। यं तं दे वगणाः सव पमपूजयन् । म यमानेऽमृते जातम र नमनु मम् ।। २ ।। अमोघबलम ानामु मं जगतां वरम् । ीम तमजरं द ं सवल णपू जतम् ।। ३ ।। उ वाजी कहते ह—तपोधन! इसी समय क ू और वनता दोन बहन एक साथ ही घूमनेके लये नकल । उस समय उ ह ने उ चैः वा नामक घोड़ेको नकटसे जाते दे खा। वह परम उ म अ र न अमृतके लये समु का म थन करते समय कट आ था। उसम अमोघ बल था। वह संसारके सम त अ म े , उ म गुण से यु , सु दर, अजर, द एवं स पूण शुभ ल ण से संयु था। उसके अंग बड़े -पु थे। स पूण दे वता ने उसक भू र-भू र शंसा क थी ।। १—३ ।। शौनक उवाच कथं तदमृतं दे वैम थतं व च शंस मे । य ज े महावीयः सोऽ राजो महा ु तः ।। ४ ।। शौनकजीने पूछा—सूतन दन! अब मुझे यह बताइये क दे वता ने अमृत-म थन कस कार और कस थानपर कया था, जसम वह महान् बल-परा मसे स प और अ य त तेज वी अ राज उ चैः वा कट आ? ।। ४ ।। सौ त वाच वल तमचलं मे ं तेजोरा शमनु मम् । आ प तं भां भानोः वशृ ै ः का चनो वलैः ।। ५ ।। कनकाभरणं च ं दे वग धवसे वतम् । अ मेयमनाधृ यमधमब लैजनैः ।। ६ ।। उ वाजीने कहा—शौनकजी! मे नामसे स एक पवत है, जो अपनी भासे व लत होता रहता है। वह तेजका महान् पुंज और परम उ म है। अपने अ य त काशमान सुवणमय शखर से वह सूयदे वक भाको भी तर कृत कये दे ता है। उस वणभू षत व च शैलपर दे वता और ग धव नवास करते ह। उसका कोई माप नह है। जनम पापक मा ा अ धक है, ऐसे मनु य वहाँ पैर नह रख सकते ।। ५-६ ।। ै

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ालैरावा रतं घोरै द ौष ध वद पतम् । नाकमावृ य त तमु येण महा ग रम् ।। ७ ।। अग यं मनसा य यैनद वृ सम वतम् । नानापतगसङ् घै ना दतं सुमनोहरैः ।। ८ ।। वहाँ सब ओर भयंकर सप भरे पड़े ह। द ओष धयाँ उस तेजोमय पवतको और भी उ ा सत करती रहती ह। वह महान् ग रराज अपनी ऊँचाईसे वगलोकको घेरकर खड़ा है। ाकृत मनु य के लये वहाँ मनसे भी प ँचना अस भव है। वह ग र दे श ब त-सी न दय और असं य वृ से सुशो भत है। भ - भ कारके अ य त मनोहर प य के समुदाय अपने कलरवसे उस पवतको कोलाहलपूण कये रहते ह ।। ७-८ ।। त य शृ मुपा ब र ना चतं शुभम् । अन तक पमु ं सुराः सव महौजसः ।। ९ ।। ते म यतुमारधा त ासीना दवौकसः । अमृताय समाग य तपो नयमसंयुताः ।। १० ।। त नारायणो दे वो ाण मदम वीत् । च तय सु सुरे वेवं म य सु च सवशः ।। ११ ।। दे वैरसुरसङ् घै मयतां कलशोद धः । भ व य यमृतं त मयमाने महोदधौ ।। १२ ।। उसके शुभ एवं उ चतम शृंग असं य चमक ले र न से ा त ह। वे अपनी वशालताके कारण आकाशके समान अन त जान पड़ते ह। सम त महातेज वी दे वता मे ग रके उस महान् शखरपर चढ़कर एक थानम बैठ गये और सब मलकर अमृता तके लये या उपाय कया जाय, इसका वचार करने लगे। वे सभी तप वी तथा शौचसंतोष आ द नयम से संयु थे। इस कार पर पर वचार एवं सबके साथ म णाम लगे ए दे वता के समुदायम उप थत हो भगवान् नारायणने ाजीसे य कहा—‘सम त दे वता और असुर मलकर महासागरका म थन कर। उस महासागरका म थन आर भ होनेपर उसमसे अमृत कट होगा ।। ९—१२ ।। सव षधीः समावा य सवर ना न चैव ह । म थ वमुदध द े वा वे य वममृतं ततः ।। १३ ।। ‘दे वताओ! पहले सम त ओष धय , फर स पूण र न को पाकर भी समु का म थन जारी रखो। इससे अ तम तुमलोग को न य ही अमृतक ा त होगी’ ।। १३ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण आ तीकपव ण अमृतम थने स तदशोऽ यायः ।। १७ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत आ तीकपवम अमृतम थन वषयक स हवाँ अ याय पूरा आ ।। १७ ।।

अ ादशोऽ यायः दे वता और दै य ारा अमृतके लये समु का म थन, अनेक र न के साथ अमृतक उ प और भगवान्का मो हनी प धारण करके दै य के हाथसे अमृत ले लेना सौ त वाच ततोऽ शखराकारै ग रशृ ै रलंकृतम् । म दरं पवतवरं लताजालसमाकुलम् ।। १ ।। नाना वहगसंघु ं नानादं समाकुलम् । क रैर सरो भ दे वैर प च से वतम् ।। २ ।। एकादश सह ा ण योजनानां समु तम् । अधो भूमेः सह ेषु ताव वेव त तम् ।। ३ ।। तमु तुमश ा वै सव दे वगणा तदा । व णुमासीनम ये य ाणं चेदम ुवन् ।। ४ ।। उ वाजी कहते ह—शौनकजी! तदन तर स पूण दे वता मलकर पवत े म दराचलको उखाड़नेके लये उसके समीप गये। वह पवत ेत मेघख ड के समान तीत होनेवाले गगनचु बी शखर से सुशो भत था। सब ओर फैली ई लता के समुदायने उसे आ छा दत कर रखा था। उसपर चार ओर भाँ त-भाँ तके वहंगम कलरव कर रहे थे। बड़ी-बड़ी दाढ़ वाले ा - सह आ द अनेक हसक जीव वहाँ सव भरे ए थे। उस पवतके व भ दे श म क रगण, अ सराएँ तथा दे वतालोग नवास करते थे। उसक ऊँचाई यारह हजार योजन थी और भू मके नीचे भी वह उतने ही सह योजन म त त था। जब दे वता उसे उखाड़ न सके, तब वहाँ बैठे ए भगवान् व णु और ाजीसे इस कार बोले— ।। १—४ ।। भव ताव कुव तां बु नैः ेयस पराम् । म दरो रणे य नः यतां च हताय नः ।। ५ ।। ‘आप दोन इस वषयम क याणमयी उ म बु दान कर और हमारे हतके लये म दराचल पवतको उखाड़नेका य न कर’ ।। ५ ।। सौ त वाच तथे त चा वीद् व णु णा सह भागव । अचोदयदमेया मा फणी ं पलोचनः ।। ६ ।। उ वाजी कहते ह—भृगन ु दन! दे वता के ऐसा कहनेपर ाजीस हत भगवान् व णुने कहा—‘तथा तु (ऐसा ही हो)’। तदन तर जनका व प मन, बु एवं माण क ँ



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प ँचसे परे है, उन कमलनयन भगवान् व णुने नागराज अन तको म दराचल उखाड़नेके लये आ ा द ।। ६ ।। ततोऽन तः समु थाय णा प रचो दतः । नारायणेन चा यु त मन् कम ण वीयवान् ।। ७ ।। जब ाजीने ेरणा द और भगवान् नारायणने भी आदे श दे दया, तब अतुलपरा मी अन त (शेषनाग) उठकर उस कायम लगे ।। ७ ।। अथ पवतराजानं तमन तो महाबलः । उ जहार बलाद् न् सवनं सवनौकसम् ।। ८ ।। न्! फर तो महाबली अन तने जोर लगाकर ग रराज म दराचलको वन और वनवासी ज तु स हत उखाड़ लया ।। ८ ।। तत तेन सुराः साध समु मुपत थरे । तमूचुरमृत याथ नम थ यामहे जलम् ।। ९ ।। अपां प तरथोवाच ममा यंशो भवेत् ततः । सोढा म वपुलं मद म दर मणा द त ।। १० ।। त प ात् दे वतालोग उस पवतके साथ समु तटपर उप थत ए और समु से बोले —‘हम अमृतके लये तु हारा म थन करगे।’ यह सुनकर जलके वामी समु ने कहा —‘य द अमृतम मेरा भी ह सा रहे तो म म दराचलको घुमानेसे जो भारी पीड़ा होगी, उसे सह लूँगा’ ।। ९-१० ।। ऊचु कूमराजानमकूपारे सुरासुराः । अ ध ानं गरेर य भवान् भ वतुमह त ।। ११ ।। तब दे वता और असुर ने (समु क बात वीकार करके) समु तलम थत क छपराजसे कहा—‘भगवन्! आप इस म दराचलके आधार ब नये’ ।। ११ ।। कूमण तु तथे यु वा पृ म य सम पतम् । तं शैलं त य पृ थं व ेणे ो यपीडयत् ।। १२ ।। तब क छपराजने ‘तथा तु’ कहकर म दराचलके नीचे अपनी पीठ लगा द । दे वराज इ ने उस पवतको व ारा दबाये रखा ।। १२ ।। म थानं म दरं कृ वा तथा ने ं च वासु कम् । दे वा म थतुमारधाः समु ं न धम भसाम् ।। १३ ।। अमृताथ पुरा ं तथैवासुरदानवाः । एकम तमुपा ा नागरा ो महासुराः ।। १४ ।। वबुधाः स हताः सव यतः पु छं ततः थताः । न्! इस कार पूवकालम दे वता , दै य और दानव ने म दराचलको मथानी और वासु क नागको डोरी बनाकर अमृतके लये जल न ध समु को मथना आर भ कया। उन महान् असुर ने नागराज वासु कके मुखभागको ढ़तापूवक पकड़ रखा था और जस ओर उसक पूँछ थी उधर स पूण दे वता उसे पकड़कर खड़े थे ।। १३-१४ ।। ो

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अन तो भगवान् दे वो यतो नारायण ततः । शर उ य नाग य पुनः पुनरवा पत् ।। १५ ।। भगवान् अन तदे व उधर ही खड़े थे, जधर भगवान् नारायण थे। वे वासु क नागके सरको बार-बार ऊपर उठाकर झटकते थे ।। १५ ।। वासुकेरथ नाग य सहसाऽऽ यतः सुरैः । सधूमाः सा चषो वाता न पेतुरसकृ मुखात् ।। १६ ।। तब दे वता ारा बार-बार ख चे जाते ए वासु क नागके मुखसे नर तर धूएँ तथा आगक लपट के साथ गम-गम साँस नकलने लग ।। १६ ।। ते धूमसङ् घाः स भूता मेघसङ् घाः स व ुतः । अ यवषन् सुरगणान् मसंतापक शतान् ।। १७ ।। वे धूमसमुदाय बज लय स हत मेघ क घटा बनकर प र म एवं संतापसे क पानेवाले दे वता पर जलक धारा बरसाते रहते थे ।। १७ ।। त मा च ग रकूटा ात् युताः पु पवृ यः । सुरासुरगणान् सवान् सम तात् समवा करन् ।। १८ ।। उस पवत शखरके अ भागसे स पूण दे वता तथा असुर पर सब ओरसे फूल क वषा होने लगी ।। १८ ।। बभूवा महानादो महामेघरवोपमः । उदधेमयमान य म दरेण सुरासुरैः ।। १९ ।। दे वता और असुर ारा म दराचलसे समु का म थन होते समय वहाँ महान् मेघ क ग भीर गजनाके समान जोर-जोरसे श द होने लगा ।। १९ ।। त नाना जलचरा व न प ा महा णा । वलयं समुपाज मुः शतशो लवणा भ स ।। २० ।। उस समय उस महान् पवतके ारा सैकड़ जलचर ज तु पस गये और खारे पानीके उस महासागरम वलीन हो गये ।। २० ।। वा णा न च भूता न व वधा न महीधरः । पातालतलवासी न वलयं समुपानयत् ।। २१ ।। म दराचलने व णालय (समु ) तथा पातालतलम नवास करनेवाले नाना कारके ा णय का संहार कर डाला ।। २१ ।। त मं ा यमाणेऽ ौ संघृ य तः पर परम् । यपतन् पतगोपेताः पवता ा महा माः ।। २२ ।। जब वह पवत घुमाया जाने लगा, उस समय उसके शखरसे बड़े-बड़े वृ आपसम टकराकर उनपर नवास करनेवाले प य स हत नीचे गर पड़े ।। २२ ।। तेषां संघषज ा नर च भः वलन् मु ः । व ु रव नीला मावृणो म दरं ग रम् ।। २३ ।। उनक आपसक रगड़से बार-बार आग कट होकर वाला के साथ व लत हो उठ और जैसे बजली नीले मेघको ढक ले, उसी कार उसने म दराचलको आ छा दत

कर लया ।। २३ ।। ददाह कु रां त सहां ैव व नगतान् । वगतासू न सवा ण स वा न व वधा न च ।। २४ ।। उस दावानलने पवतीय गजराज , गुफा से नकले ए सह तथा अ या य सह ज तु को जलाकर भ म कर दया। उस पवतपर जो नाना कारके जीव रहते थे, वे सब अपने ाण से हाथ धो बैठे ।। २४ ।। तम नममर े ः दह त मत ततः । वा रणा मेघजेने ः शमयामास सवशः ।। २५ ।। तब दे वराज इ ने इधर-उधर सबको जलाती ई उस आगको मेघ के ारा जल बरसाकर सब ओरसे बुझा दया ।। २५ ।। ततो नाना वधा त सु ुवुः सागरा भ स । महा माणां नयासा बहव ौषधीरसाः ।। २६ ।। तदन तर समु के जलम बड़े-बड़े वृ के भाँ त-भाँ तके ग द तथा ओष धय के चुर रस चू-चूकर गरने लगे ।। २६ ।। तेषाममृतवीयाणां रसानां पयसैव च । अमर वं सुरा ज मुः का चन य च नः वात् ।। २७ ।। वृ और ओष धय के अमृततु य भावशाली रस के जलसे तथा सुवणमय म दराचलक अनेक द भावशाली म णय से चूनेवाले रससे ही दे वतालोग अमर वको ा त होने लगे ।। २७ ।। तत त य समु य त जातमुदकं पयः । रसो मै व म ं च ततः ीरादभूद ् घृतम् ।। २८ ।। उन उ म रस के स म णसे समु का सारा जल ध बन गया और धसे घी बनने लगा ।। २८ ।। ततो ाणमासीनं दे वा वरदम ुवन् । ा ताः म सुभृशं न् नो व यमृतं च तत् ।। २९ ।। वना नारायणं दे वं सवऽ ये दे वदानवाः । चरारध मद ं चा प सागर या प म थनम् ।। ३० ।। तब दे वतालोग वहाँ बैठे ए वरदायक ाजीसे बोले—‘ न्! भगवान् नारायणके अ त र हम सभी दे वता और दानव ब त थक गये ह; कतु अभीतक वह अमृत कट नह हो रहा है। इधर समु का म थन आर भ ए ब त समय बीत चुका है’ ।। २९-३० ।। ततो नारायणं दे वं ा वचनम वीत् । वध वैषां बलं व णो भवान परायणम् ।। ३१ ।। यह सुनकर ाजीने भगवान् नारायणसे यह बात कही—‘सव ापी परमा मन्! इ ह बल दान क जये, यहाँ एकमा आप ही सबके आ य ह’ ।। ३१ ।। व णु वाच े

बलं ददा म सवषां कमतद् ये समा थताः । ो यतां कलशः सवम दरः प रव यताम् ।। ३२ ।। ी व णु बोले—जो लोग इस कायम लगे ए ह, उन सबको म बल दे रहा ँ। सब लोग पूरी श लगाकर म दराचलको घुमाव और इस सागरको ु ध कर द ।। ३२ ।। सौ त वाच नारायणवचः ु वा ब लन ते महोदधेः । तत् पयः स हता भूय रे भृशमाकुलम् ।। ३३ ।। उ वाजी कहते ह—शौनकजी! भगवान् नारायणका वचन सुनकर दे वता और दानव का बल बढ़ गया। उन सबने मलकर पुनः वेगपूवक महासागरका वह जल मथना आर भ कया और उस सम त जलरा शको अ य त ु ध कर डाला ।। ३३ ।। ततः शतसह ांशुमयमाना ु सागरात् । स ा मा समु प ः सोमः शीतांशु वलः ।। ३४ ।। फर तो उस महासागरसे अन त करण वाले सूयके समान तेज वी, शीतल काशसे यु , ेतवण एवं स ा मा च मा कट आ ।। ३४ ।। ीरन तरमु प ा घृतात् पा डु रवा सनी । सुरादे वी समु प ा तुरगः पा डु र तथा ।। ३५ ।। तदन तर उस घृत व प जलसे ेतव धा रणी ल मीदे वीका आ वभाव आ। इसके बाद सुरादे वी और ेत अ कट ए ।। ३५ ।। कौ तुभ तु म ण द उ प ो घृतस भवः । मरी च वकचः ीमान् नारायण उरोगतः ।। ३६ ।। फर अन त करण से समु वल द कौ तुभम णका उस जलसे ा भाव आ, जो भगवान् नारायणके व ः थलपर सुशो भत ई ।। ३६ ।। (पा रजात त ैव सुर भ महामुने । ज ाते तौ तदा न् सवकामफल दौ ।।) ीः सुरा चैव सोम तुरग मनोजवः । यतो दे वा ततो ज मुरा द यपथमा ताः ।। ३७ ।। न्! महामुने! वहाँ स पूण कामना का फल दे नेवाले पा रजात वृ एवं सुर भ गौक उ प ई। फर ल मी, सुरा, च मा तथा मनके समान वेगशाली उ चैः वा घोड़ा —ये सब सूयके माग आकाशका आ य ले, जहाँ दे वता रहते ह, उस लोकम चले गये ।। ३७ ।। ध व त र ततो दे वो वपु मानुद त त । ेतं कम डलुं ब दमृतं य त त ।। ३८ ।। इसके बाद द शरीरधारी ध व त र दे व कट ए। वे अपने हाथम ेत कलश लये ए थे, जसम अमृत भरा था ।। ३८ ।। एतद य तं ् वा दानवानां समु थतः । ो



अमृताथ महान् नादो ममेद म त ज पताम् ।। ३९ ।। यह अ य त अद्भुत य दे खकर दानव म अमृतके लये कोलाहल मच गया। वे सब कहने लगे ‘यह मेरा है, यह मेरा है’ ।। ३९ ।। ेतैद तै तु भ तु महाकाय ततः परम् । ऐरावतो महानागोऽभवद ् व भृता धृतः ।। ४० ।। त प ात् ेत रंगके चार दाँत से सुशो भत वशालकाय महानाग ऐरावत कट आ, जसे वधारी इ ने अपने अ धकारम कर लया ।। ४० ।। अ त नमथनादे व कालकूट ततः परः । जगदावृ य सहसा सधूमोऽ न रव वलन् ।। ४१ ।। तदन तर अ य त वेगसे मथनेपर कालकूट महा वष उ प आ, वह धूमयु अ नक भाँ त एकाएक स पूण जगत्को घेरकर जलाने लगा ।। ४१ ।। ैलो यं मो हतं य य ग धमा ाय तद् वषम् । ा स लोकर ाथ णो वचना छवः ।। ४२ ।। उस वषक ग ध सूँघते ही लोक के ाणी मू छत हो गये। तब ाजीके ाथना करनेपर भगवान् ीशंकरने लोक क र ाके लये उस महान् वषको पी लया ।। ४२ ।। दधार भगवान् क ठ े म मू तमहे रः । तदा भृ त दे व तु नीलक ठ इ त ु तः ।। ४३ ।। म मू त भगवान् महे रने वषपान करके उसे अपने क ठम धारण कर लया। तभीसे महादे वजी नीलक ठके नामसे व यात ए, ऐसी जन ु त है ।। ४३ ।। एतत् तद तं ् वा नराशा दानवाः थताः । अमृताथ च ल यथ महा तं वैरमा ताः ।। ४४ ।। ये सब अद्भुत बात दे खकर दानव नराश हो गये और अमृत तथा ल मीके लये उ ह ने दे वता के साथ महान् वैर बाँध लया ।। ४४ ।। ततो नारायणो मायां मो हन समुपा तः । ी पम तं कृ वा दानवान भसं तः ।। ४५ ।। उसी समय भगवान् व णुने मो हनी मायाका आ य ले मनोहा रणी ीका अ त प बनाकर, दानव के पास पदापण कया ।। ४५ ।। तत तदमृतं त यै द ते मूढचेतसः । यै दानवदै तेयाः सव तद्गतमानसाः ।। ४६ ।। सम त दै य और दानव ने उस मो हनीपर अपना दय नछावर कर दया। उनके च म मूढ़ता छा गयी। अतः उन सबने ी पधारी भगवान्को वह अमृत स प दया ।। ४६ ।। (सा तु नारायणी माया धारय ती कम डलुम् । आ यमानेषु दै येषु पङ् या च त दानवैः । दे वानपाययद् दे वी न दै यां ते च चु ु शुः ।।) ी









भगवान् नारायणक वह मू तमती माया हाथम कलश लये अमृत परोसने लगी। उस समय दानव स हत दै य पंगत लगाकर बैठे ही रह गये, परंतु उस दे वीने दे वता को ही अमृत पलाया; दै य को नह दया, इससे उ ह ने बड़ा कोलाहल मचाया। इत

ीमहाभारते आ दपव ण आ तीकपव ण अमृतम थनेऽ ादशोऽ यायः ।। १८ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत आ तीकपवम अमृतम थन वषयक अठारहवाँ अ याय पूरा आ ।। १८ ।। (दा णा य अ धक पाठक े २ ोक मलाकर कुल ४८ ोक ह)

एकोन वशोऽ यायः दे वताका

अमृतपान, दे वासुरसं ाम तथा दे वता वजय



सौ त वाच अथावरणमु या न नाना हरणा न च । गृ ा य वन् दे वान् स हता दै यदानवाः ।। १ ।। उ वाजी कहते ह—अमृत हाथसे नकल जानेपर दै य और दानव संग ठत हो गये और उ म-उ म कवच तथा नाना कारके अ -श लेकर दे वता पर टू ट पड़े ।। १ ।। तत तदमृतं दे वो व णुरादाय वीयवान् । जहार दानवे े यो नरेण स हतः भुः ।। २ ।। ततो दे वगणाः सव पपु तदमृतं तदा । व णोः सकाशात् स ा य स मे तुमुले स त ।। ३ ।। उधर अन त श शाली नरस हत भगवान् नारायणने जब मो हनी प धारण करके दानवे के हाथसे अमृत लेकर हड़प लया, तब सब दे वता भगवान् व णुसे अमृत लेलेकर पीने लगे; य क उस समय घमासान यु क स भावना हो गयी थी ।। २-३ ।। ततः पब सु त कालं दे वे वमृतमी सतम् । रा वबुध पेण दानवः ा पबत् तदा ।। ४ ।। जस समय दे वता उस अभी अमृतका पान कर रहे थे, ठ क उसी समय रा नामक दानवने दे वता पसे आकर अमृत पीना आर भ कया ।। ४ ।। त य क ठमनु ा ते दानव यामृते तदा । आ यातं च सूया यां सुराणां हतका यया ।। ५ ।। वह अमृत अभी उस दानवके क ठतक ही प ँचा था क च मा और सूयने दे वता के हतक इ छासे उसका भेद बतला दया ।। ५ ।। ततो भगवता त य शर छ मलंकृतम् । च ायुधेन च े ण पबतोऽमृतमोजसा ।। ६ ।। तब च धारी भगवान् ीह रने अमृत पीनेवाले उस दानवका मुकुटम डत म तक च ारा बलपूवक काट दया ।। ६ ।।

भगवान् व णुने च से रा का सर काट दया

त छै लशृ तमं दानव य शरो महत् । च छ ं खमु प य ननादा तभयंकरम् ।। ७ ।। च से कटा आ दानवका महान् म तक पवतके शखर-सा जान पड़ता था। वह आकाशम उछल-उछलकर अ य त भयंकर गजना करने लगा ।। ७ ।। तत् कब धं पपाता य व फुरद् धरणीतले । सपवतवन पां दै य याक पयन् महीम् ।। ८ ।। कतु उस दै यका वह धड़ धरतीपर गर पड़ा और पवत, वन तथा प स हत समूची पृ वीको कँपाता आ तड़फड़ाने लगा ।। ८ ।। ततो वैर व नब धः कृतो रा मुखेन वै । शा त सूया यां स य ा प चैव तौ ।। ९ ।। तभीसे रा के मुखने च मा और सूयके साथ भारी एवं थायी वैर बाँध लया; इसी लये वह आज भी दोन पर हण लगाता है ।। ९ ।। वहाय भगवां ा प ी पमतुलं ह रः । नाना हरणैभ मैदानवान् समक पयत् ।। १० ।। (दे वता को अमृत पलानेके बाद) भगवान् ीह रने भी अपना अनुपम मो हनी प यागकर नाना कारके भयंकर अ -श ारा दानव को अ य त क पत कर दया ।। १० ।। ततः वृ ः सं ामः समीपे लवणा भसः । सुराणामसुराणां च सवघोरतरो महान् ।। ११ ।। फर तो ारसागरके समीप दे वता और असुर का सबसे भयंकर महासं ाम छड़ गया ।। ११ ।। ासा वपुला ती णा यपत त सह शः । तोमरा सुती णा ाः श ा ण व वधा न च ।। १२ ।। दोन दल पर सह तीखी धारवाले बड़े-बड़े भाल क मार पड़ने लगी। तेज नोकवाले तोमर तथा भाँ त-भाँ तके श बरसने लगे ।। १२ ।। ततोऽसुरा भ ा वम तो धरं ब । अ सश गदा णा नपेतुधरणीतले ।। १३ ।। छ ा न प शै ैव शरां स यु ध दा णैः । त तका चनमाली न नपेतुर नशं तदा ।। १४ ।। भगवान्के च से छ - भ तथा दे वता के खड् ग, श और गदासे घायल ए असुर मुखसे अ धका धक र वमन करते ए पृ वीपर लोटने लगे। उस समय तपाये ए सुवणक माला से वभू षत दानव के सर भयंकर प श से कटकर नर तर यु भू मम गर रहे थे ।। १३-१४ ।। धरेणानु ल ता ा नहता महासुराः । अ णा मव कूटा न धातुर ा न शेरते ।। १५ ।। ँ

















वहाँ खूनसे लथपथ अंगवाले मरे ए महान् असुर, जो समरभू मम सो रहे थे, गे आ द धातु से रँगे ए पवत- शखर के समान जान पड़ते थे ।। १५ ।। हाहाकारः समभवत् त त सह शः । अ यो यं छ दतां श ैरा द ये लो हताय त ।। १६ ।। सं याके समय जब सूयम डल लाल हो रहा था, एक- सरेके श से कटनेवाले सह यो ा का हाहाकार इधर-उधर सब ओर ग ँज ू उठा ।। १६ ।। प रघैरायसै ती णैः सं नकष च मु भः । न नतां समरेऽ यो यं श दो दव मवा पृशत् ।। १७ ।। उस समरांगणम रवत दे वता और दानव लोहेके तीखे प रघ से एक- सरेपर चोट करते थे और नकट आ जानेपर आपसम मु का-मु क करने लगते थे। इस कार उनके पार प रक आघात- याघातका श द मानो सारे आकाशम गूँज उठा ।। १७ ।। छ ध भ ध धाव वं पातया भसरे त च । ूय त महाघोराः श दा त सम ततः ।। १८ ।। उस रणभू मम चार ओर ये ही अ य त भयंकर श द सुनायी पड़ते थे क ‘टु कड़ेटु कड़े कर दो, चीर डालो, दौड़ो, गरा दो और पीछा करो’ ।। १८ ।। एवं सुतुमुले यु े वतमाने महाभये । नरनारायणौ दे वौ समाज मतुराहवम् ।। १९ ।। इस कार अ य त भयंकर तुमुल यु हो ही रहा था क भगवान् व णुके दो प नर और नारायणदे व भी यु भू मम आ गये ।। १९ ।। त द ं धनु ् वा नर य भगवान प । च तयामास त च ं व णुदानवसूदनम् ।। २० ।। भगवान् नारायणने वहाँ नरके हाथम द धनुष दे खकर वयं भी दानवसंहारक द च का च तन कया ।। २० ।। ततोऽ बरा च ततमा मागतं महा भं च म म तापनम् । वभावसो तु यमकु ठम डलं सुदशनं संय त भीमदशनम् ।। २१ ।। च तन करते ही श ु को संताप दे नेवाला अ य त तेज वी च आकाशमागसे उनके हाथम आ गया। वह सूय एवं अ नके समान जा व यमान हो रहा था। उस म डलाकार च क ग त कह भी कु ठत नह होती थी। उसका नाम तो सुदशन था, कतु वह यु म श ु के लये अ य त भयंकर दखायी दे ता था ।। २१ ।। तदागतं व लत ताशन भं भयंकरं क रकरबा र युतः । मुमोच वै बलव वेगवान् महा भं परनगरावदारणम् ।। २२ ।। ँ





वहाँ आया आ वह भयंकर च व लत अ नके समान का शत हो रहा था। उसम श ु के बड़े-बड़े नगर को व वंस कर डालनेक श थी। हाथीक सूँड़के समान वशाल भुजद डवाले उ वेगशाली भगवान् नारायणने उस महातेज वी एवं महाबलशाली च को दानव के दलपर चलाया ।। २२ ।। तद तक वलनसमानवचसं पुनः पुन यपतत वेगव दा । वदारयद् द तदनुजान् सह शः करे रतं पु षवरेण संयुगे ।। २३ ।। उस महासमरम पु षो म ीह रके हाथ से संचा लत हो वह च लयकालीन अ नके समान जा व यमान हो उठा और सह दै य तथा दानव को वद ण करता आ बड़े वेगसे बार बार उनक सेनापर पड़ने लगा ।। २३ ।। दहत् व च वलन इवावले लहत् स तानसुरगणान् यकृ तत । वे रतं वय त मु ः तौ तथा पपौ रणे धरमथो पशाचवत् ।। २४ ।। ीह रके हाथ से चलाया आ सुदशन च कभी व लत अ नक भाँ त अपनी लपलपाती लपट से असुर को चाटता आ भ म कर दे ता और कभी हठपूवक उनके टु कड़े-टु कड़े कर डालता था। इस कार रणभू मके भीतर पृ वी और आकाशम घूमघूमकर वह पशाचक भाँ त बार-बार र पीने लगा ।। २४ ।। तथासुरा ग र भरद नचेतसो मु मु ः सुरगणमादयं तदा । महाबला वग लतमेघवचसः सह शो गगनम भ प ह ।। २५ ।। इसी कार उदार एवं उ साहभरे दयवाले महाबली असुर भी, जो जलर हत बादल के समान ेत रंगके दखायी दे ते थे, उस समय सह क सं याम आकाशम उड़-उड़कर शलाख ड क वषासे बार-बार दे वता को पी ड़त करने लगे ।। २५ ।। अथा बराद् भयजननाः पे दरे सपादपा ब वधमेघ पणः । महा यः प रग लता सानवः पर परं तम भह य स वनाः ।। २६ ।। त प ात् आकाशसे नाना कारके लाल, पीले, नीले आ द रंगवाले बादल -जैसे बड़ेबड़े पवत भय उ प करते ए वृ स हत पृ वीपर गरने लगे। उनके ऊँचे-ऊँचे शखर गलते जा रहे थे और वे एक- सरेसे टकराकर बड़े जोरका श द करते थे ।। २६ ।। ततो मही वच लता सकानना महा पाता भहता सम ततः । पर परं भृशम भगजतां मु े े

रणा जरे भृशम भस व तते ।। २७ ।। उस समय एक- सरेको ल य करके बार-बार जोर-जोरसे गरजनेवाले दे वता और असुर के उस समरांगणम सब ओर भयंकर मार-काट मच रही थी; बड़े-बड़े पवत के गरनेसे आहत ई वनस हत सारी भू म काँपने लगी ।। २७ ।। नर ततो वरकनका भूषणैमहेषु भगगनपथं समावृणोत् । वदारयन् ग र शखरा ण प भः महाभयेऽसुरगण व हे तदा ।। २८ ।। तब उस महाभयंकर दे वासुर-सं ामम भगवान् नरने उ म सुवण-भू षत अ भागवाले पंखयु बड़े-बड़े बाण ारा पवत- शखर को वद ण करते ए सम त आकाशमागको आ छा दत कर दया ।। २८ ।। ततो मह लवणजलं च सागरं महासुराः व वशुर दताः सुरैः । वयद्गतं व लत ताशन भं सुदशनं प रकु पतं नश य ते ।। २९ ।। इस कार दे वता के ारा पी ड़त ए महादै य आकाशम जलती ई आगके समान उ ा सत होनेवाले सुदशन च को अपने ऊपर कु पत दे ख पृ वीके भीतर और खारे पानीके समु म घुस गये ।। २९ ।। ततः सुरै वजयमवा य म दरः वमेव दे शं ग मतः सुपू जतः । वना खं दवम प चैव सवशः ततो गताः स ललधरा यथागतम् ।। ३० ।। तदन तर दे वता ने वजय पाकर म दराचलको स मानपूवक उसके पूव थानपर ही प ँचा दया। इसके बाद वे अमृत धारण करनेवाले दे वता अपने सहनादसे अ त र और वगलोकको भी सब ओरसे गुँजाते ए अपने-अपने थानको चले गये ।। ३० ।। ततोऽमृतं सु न हतमेव च रे सुराः परां मुदम भग य पु कलाम् । ददौ च तं न धममृत य र तुं करी टने बल भदथामरैः सह ।। ३१ ।। दे वता को इस वजयसे बड़ी भारी स ता ा त ई। उ ह ने उस अमृतको बड़ी सु व थासे रखा। अमर स हत इ ने अमृतक वह न ध करीटधारी भगवान् नरको र ाके लये स प द ।। ३१ ।। इ त ीमहाभारते आ दपव ण आ तीकपव ण अमृतम थनसमा तनामैकोन वशोऽ यायः ।। १९ ।।







इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत आ तीकपवम अमृतम थन-समा त नामक उ ीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १९ ।।

वशोऽ यायः क ू और वनताक होड़ , क ू ारा अपने पु को शाप एवं ाजी ारा उसका अनुमोदन सौ त वाच एतत् ते क थतं सवममृतं म थतं यथा । य सोऽ ः समु प ः ीमानतुल व मः ।। १ ।। यं नश य तदा क ू वनता मदम वीत् । उ चैः वा ह क वण भ े ू ह मा चरम् ।। २ ।। उ वाजी कहते ह—शौनका द मह षयो! जस कार अमृत मथकर नकाला गया, वह सब संग मने आपलोग से कह सुनाया। उस अमृत-म थनके समय ही वह अनुपम वेगशाली सु दर अ उ प आ था, जसे दे खकर क न ू े वनतासे कहा—‘भ े ! शी बताओ तो यह उ चैः वा घोड़ा कस रंगका है?’ ।। १-२ ।। वनतोवाच ेत एवा राजोऽयं क वा वं म यसे शुभे । ू ह वण वम य य ततोऽ वपणावहे ।। ३ ।। वनता बोली—शुभे! यह अ राज ेत वणका ही है। तुम इसे कैसा समझती हो? तुम भी इसका रंग बताओ, तब हम दोन इसके लये बाजी लगायगी ।। ३ ।। क ू वाच कृ णवालमहं म ये हयमेनं शु च मते । ए ह साध मया द दासीभावाय भा म न ।। ४ ।। क न ू े कहा—प व मुसकानवाली बहन! इस घोड़े (का रंग तो अव य सफेद है, कतु इस)-क पूँछको म काले रंगक ही मानती ँ। भा म न! आओ, दासी होनेक शत रखकर मेरे साथ बाजी लगाओ (य द तु हारी बात ठ क ई तो म दासी बनकर र ँगी; अ यथा तु ह मेरी दासी बनना होगा) ।। ४ ।। सौ त वाच एवं ते समयं कृ वा दासीभावाय वै मथः । ज मतुः वगृहानेव ो याव इ त म ह ।। ५ ।। उ वाजी कहते ह—इस कार वे दोन बहन आपसम एक- सरेक दासी होनेक शत रखकर अपने-अपने घर चली गय और उ ह ने यह न य कया क कल आकर घोड़ेको दे खगी ।। ५ ।। ततः पु सह ं तु क ू ज ं चक षती ।

आ ापयामास तदा वाला भू वा न भाः ।। ६ ।। आ वश वं हयं ं दासी न यामहं यथा । नावप त ये वा यं ता छशाप भुज मान् ।। ७ ।। सपस े वतमाने पावको वः ध य त । जनमेजय य राजषः पा डवेय य धीमतः ।। ८ ।। क ू कु टलता एवं छलसे काम लेना चाहती थी। उसने अपने सह पु को इस समय आ ा द क तुम काले रंगके बाल बनकर शी उस घोड़ेक पूँछम लग जाओ, जससे मुझे दासी न होना पड़े। उस समय जन सप ने उसक आ ा न मानी उ ह उसने शाप दया क, ‘जाओ, पा डववंशी बु मान् राज ष जनमेजयके सपय का आर भ होनेपर उसम व लत अ न तु ह जलाकर भ म कर दे गी’ ।। ६—८ ।। शापमेनं तु शु ाव वयमेव पतामहः । अ त ू रं समु सृ ं क व ् ा दै वादतीव ह ।। ९ ।। इस शापको वयं ाजीने सुना। यह दै वसंयोगक बात है क सप को उनक माता क क ू ओरसे ही अ य त कठोर शाप ा त हो गया ।। ९ ।। साध दे वगणैः सववाचं ताम वमोदत । ब वं े य सपाणां जानां हतका यया ।। १० ।। स पूण दे वता स हत ाजीने सप क सं या बढ़ती दे ख जाके हतक इ छासे क क ू उस बातका अनुमोदन ही कया ।। १० ।। त मवीय वषा ेते द दशूका महाबलाः । तेषां ती ण वष वा जानां च हताय च ।। ११ ।। यु ं मा ा कृतं तेषां परपीडोपस पणाम् । अ येषाम प स वानां न यं दोषपरा तु ये ।। १२ ।। तेषां ाणा तको द डो दे वेन व नपा यते । एवं स भा य दे व तु पू य क ूं च तां तदा ।। १३ ।। आय क यपं द े व इदं वचनम वीत् । यदे ते द दशूका सपा जाता वयानघ ।। १४ ।। वषो बणा महाभोगा मा ा श ताः परंतप । त म यु वया तात न कत ः कथंचन ।। १५ ।। ं पुरातनं ेतद् य े सप वनाशनम् । इ यु वा सृ कृद् दे व तं सा जाप तम् । ादाद् वषहर व ां क यपाय महा मने ।। १६ ।। ‘ये महाबली ःसह परा म तथा च ड वषसे यु ह। अपने तीखे वषके कारण ये सदा सर को पीड़ा दे नेके लये दौड़ते- फरते ह। अतः सम त ा णय के हतक से इ ह शाप दे कर माता क न ू े उ चत ही कया है। जो सदा सरे ा णय को हा न प ँचाते रहते ह, उनके ऊपर दै वके ारा ही ाणनाशक द ड आ पड़ता है।’ ऐसी बात कहकर ाजीने क क ू शंसा क और क यपजीको बुलाकर यह बात कही—‘अनघ! तु हारे ो े ो ो ँ े े ो े े ी औ

ारा जो ये लोग को डँसनेवाले सप उ प हो गये ह, इनके शरीर ब त वशाल और वष बड़े भयंकर ह। परंतप! इ ह इनक माताने शाप दे दया है, इसके कारण तुम कसी तरह भी उसपर ोध न करना। तात! य म सप का नाश होनेवाला है, यह पुराणवृ ा त तु हारी म भी है ही।’ ऐसा कहकर सृ कता ाजीने जाप त क यपको स करके उन महा माको सप का वष उतारनेवाली व ा दान क ।। ११—१६ ।। (एवं श तेषु नागेषु क व ् ा च जस म । उ नः शापत त याः क ूं कक टकोऽ वीत् ।। मातरं परम ीत तदा भुजगस मः । आ व य वा जनं मु यं वालो भू वा न भः ।। दश य या म त ाहमा मानं काममा स । एवम व त तं पु ं युवाच यश वनी ।।) ज े ! इस कार माता क न ू े जब नाग को शाप दे दया, तब उस शापसे उ न हो भुजंग वर कक टकने परम स ता करते ए अपनी मातासे कहा—‘मा! तुम धैय रखो, म काले रंगका बाल बनकर उस े अ के शरीरम व हो अपने-आपको ही इसक काली पूँछके पम दखाऊँगा।’ यह सुनकर यश वनी क न ू े पु को उ र दया —‘बेटा! ऐसा ही होना चा हये’। इ त ीमहाभारते आ दपव ण आ तीकपव ण सौपण वशोऽ यायः ।। २० ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत आ तीकपवम ग डच रत वषयक बीसवाँ अ याय पूरा आ ।। २० ।। (दा णा य अ धक पाठक े ३ ोक मलाकर कुल १९ ोक ह)

एक वशोऽ यायः समु का व तारसे वणन सौ त वाच ततो रज यां ु ायां भातेऽ यु दते रवौ । क ू वनता चैव भ ग यौ ते तपोधन ।। १ ।। अम षते सुसंरधे दा ये कृतपणे तदा । ज मतु तुरगं ु मु चैः वसम तकात् ।। २ ।। उ वाजी कहते ह—तपोधन! तदन तर जब रात बीती, ातःकाल आ और भगवान् सूयका उदय हो गया, उस समय क ू और वनता दोन बहन बड़े जोश और रोषके साथ दासी होनेक बाजी लगाकर उ चैः वा नामक अ को नकटसे दे खनेके लये गय ।। १-२ ।। द शातेऽथ ते त समु ं न धम भसाम् । महा तमुदकागाधं ो यमाणं महा वनम् ।। ३ ।। कुछ र जानेपर उ ह ने मागम जल न ध समु को दे खा, जो महान् होनेके साथ ही अगाध जलसे भरा था। मगर आ द जल-ज तु उसे व ु ध कर रहे थे और उससे बड़े जोरक गजना हो रही थी ।। ३ ।। त म लझषाक ण मकरैरावृतं तथा । स वै ब साह ैनाना पैः समावृतम् ।। ४ ।। वह त म नामक बड़े-बड़े म य को भी नगल जानेवाले तम गल , म य तथा मगर आ दसे ा त था। नाना कारक आकृ तवाले सह जल-ज तु उसम भरे ए थे ।। ४ ।। भीषणै वकृतैर यैघ रैजलचरै तथा । उ ै न यमनाधृ यं कूम ाहसमाकुलम् ।। ५ ।। वकट आकारवाले सरे- सरे घोर डरावने जलचर तथा उ जल-ज तु के कारण वह महासागर सदा सबके लये धष बना आ था। उसके भीतर ब त-से कछु ए और ाह नवास करते थे ।। ५ ।। आकरं सवर नानामालयं व ण य च । नागानामालयं र यमु मं स रतां प तम् ।। ६ ।। स रता का वामी वह महासागर स पूण र न क खान, व णदे वका नवास थान और नाग का रमणीय उ म गृह है ।। ६ ।। पाताल वलनावासमसुराणां च बा धवम् । भयंकरं च स वानां पयसां न धमणवम् ।। ७ ।। पातालक अ न—बड़वानलका नवास भी उसीम है। असुर को तो वह जल न ध समु भाई-ब धुक भाँ त शरण दे नेवाला है तथा सरे थलचर जीव के लये अ य त ै

भयदायक है ।। ७ ।। शुभं द मम यानाममृत याकरं परम् । अ मेयम च यं च सुपु यजलम तम् ।। ८ ।। अमर के अमृतक खान होनेसे वह अ य त शुभ एवं द माना जाता है। उसका कोई माप नह है। वह अ च य, प व जलसे प रपूण तथा अ त है ।। ८ ।। घोरं जलचरारावरौ ं भैरव नः वनम् । ग भीरावतक ललं सवभूतभयंकरम् ।। ९ ।। वह घोर समु जल-ज तु के श द से और भी भयंकर तीत होता था, उससे भयंकर गजना हो रही थी, उसम गहरी भँवर उठ रही थ तथा वह सम त ा णय के लये भय-सा उ प करता था ।। ९ ।। वेलादोला नलचलं ोभो े गसमु तम् । वीचीह तैः च लतैनृ य त मव सवतः ।। १० ।। तटपर ती वेगसे बहनेवाली वायु मानो झूला बनकर उस महासागरको चंचल कये दे ती थी। वह ोभ और उ े गसे ब त ऊँचेतक लहर उठाता था और सब ओर चंचल तरंग पी हाथ को हला- हलाकर नृ य-सा कर रहा था ।। १० ।। च वृ यवशा द्वृ ो मसमाकुलम् । पा चज य य जननं र नाकरमनु मम् ।। ११ ।। च माक वृ और यके कारण उसक लहर ब त ऊँचे उठत और उतरती थ (उसम वार-भाटे आया करते थे), अतः वह उ ाल-तरंग से ा त जान पड़ता था। उसीने पांचज य शंखको ज म दया था। वह र न का आकर और परम उ म था ।। ११ ।। गां व दता भगवता गो व दे ना मतौजसा । वराह पणा चा त व ो भतजला वलम् ।। १२ ।। अ मततेज वी भगवान् गो व दने वराह पसे पृ वीको उपल ध करते समय उस समु को भीतरसे मथ डाला था और उस म थत जलसे वह सम त महासागर म लन-सा जान पड़ता था ।। १२ ।। षणा तवता वषाणां शतम णा । अनासा दतगाधं च पातालतलम यम् ।। १३ ।। तधारी ष अ ने समु के भीतरी तलका अ वेषण करते ए सौ वष तक चे ा करके भी उसका पता नह पाया। वह पातालके नीचेतक ा त है और पातालके न होनेपर भी बना रहता है, इस लये अ वनाशी है ।। १३ ।। अ या मयोग न ां च पनाभ य सेवतः । युगा दकालशयनं व णोर मततेजसः ।। १४ ।। आ या मक योग न ाका सेवन करनेवाले अ मत-तेज वी कमलनाभ भगवान् व णुके लये वह (युगा तकालसे लेकर) युगा दकालतक शयनागार बना रहता है ।। १४ ।। व पातनसं तमैनाक याभय दम् । ड बाहवा दतानां च असुराणां परायणम् ।। १५ ।। ी े े े ै ो ै ँ े े

उसीने वपातसे डरे ए मैनाक पवतको अभयदान दया है तथा जहाँ भयके मारे हाहाकार करना पड़ता है, ऐसे यु से पी ड़त ए असुर का वह सबसे बड़ा आ य है ।। १५ ।। वडवामुखद ता ने तोयह दं शवम् । अगाधपारं व तीणम मेयं स र प तम् ।। १६ ।। बड़वानलके व लत मुखम वह सदा अपने जल पी ह व यक आ त दे ता रहता है और जगत्के लये क याणकारी है। इस कार वह स रता का वामी समु अगाध, अपार, व तृत और अ मेय है ।। १६ ।। महानद भब भः पधयेव सह शः । अ भसायमाणम नशं द शाते महाणवम् । आपूयमाणम यथ नृ यमान मवो म भः ।। १७ ।। सह बड़ी-बड़ी न दयाँ आपसम होड़-सी लगाकर उस व तृत महासागरम नर तर मलती रहती ह और अपने जलसे उसे सदा प रपूण कया करती ह। वह ऊँची-ऊँची लहर क भुजाएँ ऊपर उठाये नर तर नृ य करता-सा जान पड़ता है ।। १७ ।। ग भीरं त ममकरो संकुलं तं गज तं जलचररावरौ नादै ः । व तीण द शतुर बर काशं तेऽगाधं न धमु म भसामन तम् ।। १८ ।। इस कार ग भीर, त म और मकर आ द भयंकर जल-ज तु से ा त, जलचर जीव के श द प भयंकर नादसे नर तर गजना करनेवाले, अ य त व तृत, आकाशके समान व छ, अगाध, अन त एवं महान् जल न ध समु को क ू और वनताने दे खा ।। १८ ।। इ त ीमहाभारते आ दपव ण आ तीकपव ण सौपण एक वशोऽ यायः ।। २१ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत आ तीकपवम ग डच रतके संगम इ क सवाँ अ याय पूरा आ ।। २१ ।।

ा वशोऽ यायः नाग ारा उ चैः वाक पूँछको काली बनाना; क ू और वनताका समु को दे खते ए आगे बढ़ ना सौ त वाच नागा सं वदं कृ वा कत म त त चः । नः नेहा वै दहे माता अस ा तमनोरथा ।। १ ।। स ा मो येद मां त मा छापा च भा मनी । कृ णं पु छं क र याम तुरग य न संशयः ।। २ ।। उ वाजी कहते ह—मह षयो! इधर नाग ने पर पर वचार करके यह न य कया क ‘हम माताक आ ाका पालन करना चा हये। य द इसका मनोरथ पूरा न होगा तो वह नेहभाव छोड़कर रोषपूवक हम जला दे गी। य द इ छा पूण हो जानेसे स हो गयी तो वह भा मनी हम अपने शापसे मु कर सकती है; इस लये हम न य ही उस घोड़ेक पूँछको काली कर दगे’ ।। १-२ ।। तथा ह ग वा ते त य पु छे वाला इव थताः । एत म तरे ते तु सप यौ प णते तदा ।। ३ ।। तत ते प णतं कृ वा भ ग यौ जस म । ज मतुः परया ी या परं पारं महोदधेः ।। ४ ।। क ू वनता चैव दा ाय यौ वहायसा । आलोकय याव ो यं समु ं न धम भसाम् ।। ५ ।। वायुनातीव सहसा ो यमाणं महा वनम् । तम गलसमाक ण मकरैरावृतं तथा ।। ६ ।। संयुतं ब साह ैः स वैनाना वधैर प । घोरैघ रमनाधृ यं ग भीरम तभैरवम् ।। ७ ।। ऐसा वचार करके वे वहाँ गये और काले रंगके बाल बनकर उसक पूँछम लपट गये। ज े ! इसी बीचम बाजी लगाकर आयी ई दोन सौत और सगी बहन पुनः अपनी शतको हराकर बड़ी स ताके साथ समु के सरे पार जा प ँच । द कुमारी क ू और वनता आकाशमागसे अ ो य जल न ध समु को दे खती ई आगे बढ़। वह महासागर अ य त बल वायुके थपेड़े खाकर सहसा व ु ध हो रहा था। उससे बड़े जोरक गजना होती थी। तम गल और मगरम छ आ द जलज तु उसम सब ओर ा त थे। नाना कारके भयंकर ज तु सह क सं याम उसके भीतर नवास करते थे। इन सबके कारण वह अ य त घोर और धष जान पड़ता था तथा गहरा होनेके साथ ही अ य त भयंकर था ।। ३—७ ।। आकरं सवर नानामालयं व ण य च ।

नागानामालयं चा प सुर यं स रतां प तम् ।। ८ ।। न दय का वह वामी सब कारके र न क खान, व णका नवास थान तथा नाग का सुर य गृह था ।। ८ ।। पाताल वलनावासमसुराणां तथाऽऽलयम् । भयंकराणां स वानां पयसो न धम यम् ।। ९ ।। वह पाताल ापी बड़वानलका आ य, असुर के छपनेका थान, भयंकर ज तु का घर, अन त जलका भ डार और अ वनाशी था ।। ९ ।। शु ं द मम यानाममृत याकरं परम् । अ मेयम च यं च सुपु यजलस मतम् ।। १० ।। वह शु , द , अमर के अमृतका उ म उ प - थान, अ मेय, अ च य तथा परम प व जलसे प रपूण था ।। १० ।। महानद भब भ त त सह शः । आपूयमाणम यथ नृ य त मव चो म भः ।। ११ ।। ब त-सी बड़ी-बड़ी न दयाँ सह क सं याम आकर उसम य -त मलत और उसे अ धका धक भरती रहती थ । वह भुजा के समान ऊँची लहर को ऊपर उठाये नृ य-सा कर रहा था ।। ११ ।। इ येवं तरलतरो मसंकुलं तं ग भीरं वक सतम बर काशम् । पाताल वलन शखा वद पता ं गज तं तम भज मतु तत ते ।। १२ ।। इस कार अ य त तरल तरंग से ा त, आकाशके समान व छ, बड़वानलक शखा से उ ा सत, ग भीर, वक सत और नर तर गजन करनेवाले महासागरको दे खती ई वे दोन बहन तुरंत आगे बढ़ गय ।। १२ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण आ तीकपव ण सौपण समु दशनं नाम ा वशोऽ यायः ।। २२ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत आ तीकपवम ग डच रतके संगम समु दशन नामक बाईसवाँ अ याय पूरा आ ।। २२ ।।

यो वशोऽ यायः परा जत वनताका क क ू दासी होना, ग डक उ प तथा दे वता ारा उनक तु त सौ त वाच तं समु म त य क ू वनतया सह । यपतत् तुरगा याशे न चरा दव शी गा ।। १ ।। तत ते तं हय े ं द शाते महाजवम् । शशाङ् क करण यं कालवालमुभे तदा ।। २ ।। उ वाजी कहते ह—शौनक! तदन तर शी गा मनी क ू वनताके साथ उस समु को लाँघकर तुरंत ही उ चैः वा घोड़ेके पास प ँच गय । उस समय च माक करण के समान ेत वणवाले उस महान् वेगशाली े अ को उन दोन ने काली पूँछवाला दे खा ।। १-२ ।। नश य च बन् बालान् क ृ णान् पु छसमा तान् । वष ण पां वनतां क दू ा ये ययोजयत् ।। ३ ।। पूँछके घनीभूत बाल को काले रंगका दे खकर वनता वषादक मू त बन गयी और क न ू े उसे अपनी दासीके कामम लगा दया ।। ३ ।। ततः सा वनता त मन् प णतेन परा जता । अभवद् ःखसंत ता दासीभावं समा थता ।। ४ ।। पहलेक लगायी ई बाजी हारकर वनता उस थानपर ःखसे संत त हो उठ और उसने दासीभाव वीकार कर लया ।। ४ ।। एत म तरे चा प ग डः काल आगते । वना मा ा महातेजा वदाया डमजायत ।। ५ ।। इसी बीचम समय पूरा होनेपर महातेज वी ग ड माताक सहायताके बना ही अ डा फोड़कर बाहर नकल आये ।। ५ ।। महास वबलोपेतः सवा व ोतयन् दशः । काम पः कामगमः कामवीय वहंगमः ।। ६ ।। वे महान् साहस और परा मसे स प थे। अपने तेजसे स पूण दशा को का शत कर रहे थे। उनम इ छानुसार प धारण करनेक श थी। वे जहाँ जतनी ज द जाना चाह जा सकते थे और अपनी चके अनुसार परा म दखला सकते थे। उनका ाक आकाशचारी प ीके पम आ था ।। ६ ।। अ नरा श रवोद्भासन् स म ोऽ तभयंकरः । व ु प प ा ो युगा ता नसम भः ।। ७ ।। े









वे व लत अ न-पुंजके समान उ ा सत होकर अ य त भयंकर जान पड़ते थे। उनक आँख बजलीके समान चमकनेवाली और पगलवणक थ । वे लयकालक अ नके समान व लत एवं का शत हो रहे थे ।। ७ ।। वृ ः सहसा प ी महाकायो नभोगतः । घोरो घोर वनो रौ ो व रौव इवापरः ।। ८ ।। उनका शरीर थोड़ी ही दे रम बढ़कर वशाल हो गया। प ी ग ड आकाशम उड़ चले। वे वयं तो भयंकर थे ही, उनक आवाज भी बड़ी भयानक थी। वे सरे बड़वानलक भाँ त बड़े भीषण जान पड़ते थे ।। ८ ।। तं ् वा शरणं ज मुदवाः सव वभावसुम् । णप या ुवं ैनमासीनं व पणम् ।। ९ ।। उ ह दे खकर सब दे वता व पधारी अ नदे वक शरणम गये और उ ह णाम करके बैठे ए उन अ नदे वसे इस कार बोले— ।। ९ ।। अ ने मा वं व ध ाः क च ो न दध स । असौ ह रा शः सुमहान् स म तव सप त ।। १० ।। ‘अ ने! आप इस कार न बढ़। आप हमलोग को जलाकर भ म तो नह कर डालना चाहते ह? दे खये, वह आपका महान्, व लत तेजःपुंज इधर ही फैलता आ रहा है’ ।। १० ।। अ न वाच नैतदे वं यथा यूयं म य वमसुरादनाः । ग डो बलवानेष मम तु य तेजसा ।। ११ ।। अ नदे वने कहा—असुर वनाशक दे वताओ! तुम जैसा समझ रहे हो, वैसी बात नह है। ये महाबली ग ड ह, जो तेजम मेरे ही तु य ह ।। ११ ।। जातः परमतेज वी वनतान दवधनः। तेजोरा श ममं ् वा यु मान् मोहः समा वशत् ।। १२ ।। वनताका आन द बढ़ानेवाले ये परम तेज वी ग ड इसी पम उ प ए ह। तेजके पुंज प इन ग डको दे खकर ही तुमलोग पर मोह छा गया है ।। १२ ।। नाग यकर ैव का यपेयो महाबलः । दे वानां च हते यु व हतो दै यर साम् ।। १३ ।। क यपन दन महाबली ग ड नाग के वनाशक, दे वता के हतैषी और दै य तथा रा स के श ु ह ।। १३ ।। न भीः काया कथं चा प य वं स हता मम । एवमु ा तदा ग वा ग डं वा भर तुवन् ।। १४ ।। ते सद युपे यैनं दे वाः स षगणा तदा ।







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इनसे कसी कारका भय नह करना चा हये। तुम मेरे साथ चलकर इनका दशन करो। अ नदे वके ऐसा कहनेपर उस समय दे वता तथा ऋ षय ने ग डके पास जाकर अपनी वाणी ारा उनका इस कार तवन कया (यहाँ परमा माके पम ग डक तु त क गयी है) ।। १४ ।। दे वा ऊचुः वमृ ष वं महाभाग वं दे वः पतगे रः ।। १५ ।। दे वता बोले— भो! आप म ा ऋ ष ह; आप ही महाभाग दे वता तथा आप ही पतगे र (प य तथा जीव के वामी) ह ।। १५ ।। वं भु तपनः सूयः परमे ी जाप तः । वम वं हयमुख वं शव वं जग प तः ।। १६ ।। आप ही भु, तपन, सूय, परमे ी तथा जाप त ह। आप ही इ ह, आप ही हय ीव ह, आप ही शव ह तथा आप ही जगत्के वामी ह ।। १६ ।। वं मुखं पजो व वम नः पवन तथा । वं ह धाता वधाता च वं व णुः सुरस मः ।। १७ ।। आप ही भगवान्के मुख व प ा ण, प यो न ा और व ानवान् व ह, आप ही अ न तथा वायु ह, आप ही धाता, वधाता और दे व े व णु ह ।। १७ ।। वं महान भभूः श दमृतं वं महद् यशः । वं भा वम भ ेतं वं न ाणमनु मम् ।। १८ ।। आप ही मह व और अहंकार ह। आप ही सनातन, अमृत और महान् यश ह। आप ही भा और आप ही अभी पदाथ ह। आप ही हमलोग के सव म र क ह ।। १८ ।। बलो ममान् साधुरद नस वः समृ मान् वषह वमेव । व ः सृतं सवमहीनक त नागतं चोपगतं च सवम् ।। १९ ।। आप बलके सागर और साधु पु ष ह। आपम उदार स वगुण वराजमान है। आप महान् ऐ यशाली ह। यु म आपके वेगको सह लेना सभीके लये सवथा क ठन है। पु य ोक! यह स पूण जगत् आपसे ही कट आ है। भूत, भ व य और वतमान सब कुछ आप ही ह ।। १९ ।। वमु मः सव मदं चराचरं गभ त भभानु रवावभाससे । समा पन् भानुमतः भां मु वम तकः सव मदं ुवा ुवम् ।। २० ।। आप उ म ह। जैसे सूय अपनी करण से सबको का शत करता है, उसी कार आप इस स पूण जगत्को का शत करते ह। आप ही सबका अ त करनेवाले काल ह और े



बार बार सूयक भाका उपसंहार करते ए इस सम त र और अ र प जगत्का संहार करते ह ।। २० ।। दवाकरः प रकु पतो यथा दहेत् जा तथा दह स ताशन भ । भयंकरः लय इवा न थतो वनाशयन् युगप रवतना तकृत् ।। २१ ।। अ नके समान का शत होनेवाले दे व! जैसे सूय ु होनेपर सबको जला सकते ह, उसी कार आप भी कु पत होनेपर स पूण जाको द ध कर डालते ह। आप युगा तकारी कालके भी काल ह और लयकालम सबका वनाश करनेके लये भयंकर संवतका नके पम कट होते ह ।। २१ ।। खगे रं शरणमुपागता वयं महौजसं वलनसमानवचसम् । त ड भं व त मरम गोचरं महाबलं ग डमुपे य खेचरम् ।। २२ ।। आप स पूण प य एवं जीव के अधी र ह। आपका ओज महान् है। आप अ नके समान तेज वी ह। आप बजलीके समान का शत होते ह। आपके ारा अ ानपुंजका नवारण होता है। आप आकाशम मेघ क भाँ त वचरनेवाले महापरा मी ग ड ह। हम यहाँ आकर आपके शरणागत हो रहे ह ।। २२ ।। परावरं वरदमज य व मं तवौजसा सव मदं ता पतम् । जग भो त तसुवणवचसा वं पा ह सवा सुरान् महा मनः ।। २३ ।। आप ही काय और कारण प ह। आपसे ही सबको वर मलता है। आपका परा म अजेय है। आपके तेजसे यह स पूण जगत् संत त हो उठा है। जगद र! आप तपाये ए सुवणके समान अपने द तेजसे स पूण दे वता और महा मा पु ष क र ा कर ।। २३ ।। भया वता नभ स वमानगा मनो वमा नता वपथग त या त ते । ऋषेः सुत वम स दयावतः भो महा मनः खगवर क यप य ह ।। २४ ।। प राज! भो! वमानपर चलनेवाले दे वता आपके तेजसे तर कृत एवं भयभीत हो आकाशम पथ हो जाते ह। आप दयालु महा मा मह ष क यपके पु ह ।। २४ ।। स मा ु धः कु जगतो दयां परां वमी रः शममुपै ह पा ह नः । महाश न फु रतसम वनेन ते दशोऽ बरं दव मयं च मे दनी ।। २५ ।।

चल त नः खग दया न चा नशं नगृ तां वपु रदम नसं नभम् । तव ु त कु पतकृता तसं नभां नश य न ल त मनोऽ व थतम् । सीद नः पतगपते याचतां शव नो भव भगवन् सुखावहः ।। २६ ।। भो! आप कु पत न ह , स पूण जगत्पर उ म दयाका व तार कर। आप ई र ह, अतः शा त धारण कर और हम सबक र ा कर। महान् वक गड़गड़ाहटके समान आपक गजनासे स पूण दशाएँ, आकाश, वग तथा यह पृ वी सब-के-सब वच लत हो उठे ह और हमारा दय भी नर तर काँपता रहता है। अतः खग े ! आप अ नके समान तेज वी अपने इस भयंकर पको शा त क जये। ोधम भरे ए यमराजके समान आपक उ का त दे खकर हमारा मन अ थर एवं चंचल हो जाता है। आप हम याचक पर स होइये। भगवन्! आप हमारे लये क याण व प और सुखदायक हो जाइये ।। २५-२६ ।। एवं तुतः सुपण तु दे वैः स षगणै तदा । तेजसः तसंहारमा मनः स चकार ह ।। २७ ।। ऋ षय स हत दे वता के इस कार तु त करनेपर उ म पंख वाले ग डने उस समय अपने तेजको समेट लया ।। २७ ।। इ त ीमहाभारते आ दपव ण आ तीकपव ण सौपण यो वशोऽ यायः ।। २३ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत आ तीकपवम ग डच र वषयक तेईसवाँ अ याय पूरा आ ।। २३ ।।

चतु वशोऽ यायः ग डके ारा अपने तेज और शरीरका संकोच तथा सूयके ोधज नत ती तेजक शा तके लये अ णका उनके रथपर थत होना सौ त वाच स ु वाथा मनो दे हं सुपणः े य च वयम् । शरीर तसंहारमा मनः स च मे ।। १ ।। उ वाजी कहते ह—शौनका द मह षयो! दे वता ारा क ई तु त सुनकर ग डजीने वयं भी अपने शरीरक ओर पात कया और उसे संकु चत कर लेनेक तैयारी करने लगे ।। १ ।। सुपण उवाच न मे सवा ण भूता न व भयुदहदशनात् । भीम पात् समु ना त मात् तेज तु संहरे ।। २ ।। ग डजीने कहा—दे वताओ! मेरे इस शरीरको दे खनेसे संसारके सम त ाणी उस भयानक व पसे उ न होकर डर न जायँ इस लये म अपने तेजको समेट लेता ँ ।। २ ।। सौ त वाच ततः कामगमः प ी कामवीय वहंगमः । अ णं चा मनः पृ मारो य स पतुगृहात् ।। ३ ।। मातुर तकमाग छत् परं तीरं महोदधेः । उ वाजी कहते ह—तदन तर इ छानुसार चलने तथा चके अनुसार परा म कट करनेवाले प ी ग ड अपने भाई अ णको पीठपर चढ़ाकर पताके घरसे माताके समीप महासागरके सरे तटपर आये ।। ३ ।। त ा ण न तो दशं पूवा महा ु तः ।। ४ ।। सूय तेजो भर यु ैल कान् द धुमना यदा । जब सूयने अपने भयंकर तेजके ारा स पूण लोक को द ध करनेका वचार कया, उस समय ग डजी महान् तेज वी अ णको पुनः पूव दशाम लाकर सूयके समीप रख आये ।। ४ ।। वाच कमथ भगवान् सूय लोकान् द धुमना तदा ।। ५ ।। कम याप तं दे वैयनेमं म युरा वशत् । े











ने पूछा— पताजी! भगवान् सूयने उस समय स पूण लोक को द ध कर डालनेका वचार य कया? दे वता ने उनका या हड़प लया था, जससे उनके मनम ोधका संचार हो गया? ।। ५ ।। म त वाच च ाका यां यदा रा रा यातो मृतं पबन् ।। ६ ।। वैरानुब धं कृतवां ा द यौ तदानघ । व यमाने हेणाथ आ द ये म युरा वशत् ।। ७ ।। म तने कहा—अनघ! जब रा अमृत पी रहा था, उस समय च मा और सूयने उसका भेद बता दया; इसी लये उसने च मा और सूयसे भारी वैर बाँध लया और उ ह सताने लगा। रा से पी ड़त होनेपर सूयके मनम ोधका आवेश आ ।। ६-७ ।। सुराथाय समु प ो रोषो राहो तु मां त । ब नथकरं पापमेकोऽहं समवा ुयाम् ।। ८ ।। वे सोचने लगे, ‘दे वता के हतके लये ही मने रा का भेद खोला था जससे मेरे त रा का रोष बढ़ गया। अब उसका अ य त अनथकारी प रणाम ःखके पम अकेले मुझे ा त होता है ।। ८ ।। सहाय एव कायषु न च कृ े षु यते । प य त यमानं मां सह ते वै दवौकसः ।। ९ ।। ‘संकटके अवसर पर मुझे अपना कोई सहायक ही नह दखायी दे ता। दे वतालोग मुझे रा से त होते दे खते ह तो भी चुपचाप सह लेते ह ।। ९ ।। त मा लोक वनाशाथ व त े न संशयः । एवं कृतम तः सूय तम यगमद् ग रम् ।। १० ।। ‘अतः स पूण लोक का वनाश करनेके लये नःसंदेह म अ ताचलपर जाकर वह ठहर जाऊँगा।’ ऐसा न य करके सूयदे व अ ताचलको चले गये ।। १० ।। त मा लोक वनाशाय संतापयत भा करः । ततो दे वानुपाग य ोचुरेवं महषयः ।। ११ ।। और वह से सूयदे वने स पूण जगत्का वनाश करनेके लये सबको संताप दे ना आर भ कया। तब मह षगण दे वता के पास जाकर इस कार बोले— ।। ११ ।। अ ाधरा समये सवलोकभयावहः । उ प यते महान् दाह ैलो य य वनाशनः ।। १२ ।। ‘दे वगण! आज आधी रातके समय सब लोक को भयभीत करनेवाला महान् दाह उ प होगा, जो तीन लोक का वनाश करनेवाला हो सकता है’ ।। १२ ।। ततो दे वाः स षगणा उपग य पतामहम् । अ ुवन् क मवेहा महद् दाहकृतं भयम् ।। १३ ।। न तावद् यते सूयः योऽयं तभा त च । उ दते भगवन् भानौ कथमेतद् भ व य त ।। १४ ।। े





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तदन तर दे वता ऋ षय को साथ ले ाजीके पास जाकर बोले—‘भगवन्! आज यह कैसा महान् दाहज नत भय उप थत होना चाहता है? अभी सूय नह दखायी दे ते तो भी ऐसी गरमी तीत होती है मानो जगत्का वनाश हो जायगा। फर सूय दय होनेपर गरमी कैसी ती होगी, यह कौन कह सकता है?’ ।। १३-१४ ।।

पतामह उवाच एष लोक वनाशाय र व तुमु तः । य ेव ह लोकान् स भ मराशीक र य त ।। १५ ।। ाजीने कहा—ये सूयदे व आज स पूण लोक का वनाश करनेके लये ही उ त होना चाहते ह। जान पड़ता है, ये म आते ही स पूण लोक को भ म कर दगे ।। १५ ।। त य त वधानं च व हतं पूवमेव ह । क यप य सुतो धीमान णे य भ व ुतः ।। १६ ।। कतु उनके भीषण संतापसे बचनेका उपाय मने पहलेसे ही कर रखा है। मह ष क यपके एक बु मान् पु ह, जो अ ण नामसे व यात ह ।। १६ ।। महाकायो महातेजाः स था य त पुरो रवेः । क र य त च सारयं तेज ा य ह र य त ।। १७ ।। लोकानां व त चैवं वाद् ऋषीणां च दवौकसाम् । उनका शरीर वशाल है। वे महान् तेज वी ह। वे ही सूयके आगे रथपर बैठगे। उनके सार थका काय करगे और उनके तेजका भी अपहरण करगे। ऐसा करनेसे स पूण लोक , ऋ ष-मह षय तथा दे वता का भी क याण होगा ।। १७ ।। म त वाच ततः पतामहा ातः सव च े तदा णः ।। १८ ।। उ दत ैव स वता णेन समावृतः । एतत् ते सवमा यातं यत् सूय म युरा वशत् ।। १९ ।। म त कहते ह—त प ात् पतामह ाजीक आ ासे अ णने उस समय सब काय उसी कार कया। सूय अ णसे आवृत होकर उ दत ए। व स! सूयके मनम य ोधका आवेश आ था, इस के उ रम मने ये सब बात कही ह ।। १८-१९ ।। अ ण यथैवा य सारयमकरोत् भुः । भूय एवापरं ं शृणु पूवमुदा तम् ।। २० ।। श शाली अ णने सूयके सार थका काय य कया, यह बात भी इस संगम प हो गयी है। अब अपने पूवक थत सरे का पुनः उ र सुनो ।। २० ।। इ त ीमहाभारते आ दपव ण आ तीकपव ण सौपण चतु वशोऽ यायः ।। २४ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत आ तीकपवम ग डच र वषयक चौबीसवाँ अ याय पूरा आ ।। २४ ।।

प च वशोऽ यायः सूयके तापसे मू छत ए सप क र ाके लये क ू ारा इ दे वक तु त सौ त वाच ततः कामगमः प ी महावीय महाबलः । मातुर तकमाग छत् परं पारं महोदधेः ।। १ ।। उ वाजी कहते ह—शौनका द मह षयो! तदन तर इ छानुसार गमन करनेवाले महान् परा मी तथा महाबली ग ड समु के सरे पार अपनी माताके समीप आये ।। १ ।। य सा वनता त मन् प णतेन परा जता । अतीव ःखसंत ता दासीभावमुपागता ।। २ ।। जहाँ उनक माता वनता बाजी हार जानेसे दासी-भावको ा त हो अ य त ःखसे संत त रहती थ ।। २ ।। ततः कदा चद् वनतां णतां पु सं नधौ । काले चाय वचनं क ू रदमभाषत ।। ३ ।। एक दन अपने पु के समीप बैठ ई वनय-शील वनताको कसी समय बुलाकर क न ू े यह बात कही— ।। ३ ।। नागानामालयं भ े सुर यं चा दशनम् । समु कु ावेका ते त मां वनते नय ।। ४ ।। ‘क याणी वनते! समु के भीतर नजन दे शम एक ब त रमणीय तथा दे खनेम अ य त मनोहर नाग का नवास थान है। तू वहाँ मुझे ले चल’ ।। ४ ।। ततः सुपणमाता तामवहत् सपमातरम् । प गान् ग ड ा प मातुवचनचो दतः ।। ५ ।। तब ग डक माता वनता सप क माता क क ू ो अपनी पीठपर ढोने लगी। इधर माताक आ ासे ग ड भी सप को अपनी पीठपर चढ़ाकर ले चले ।। ५ ।। स सूयम भतो या त वैनतेयो वहंगमः । सूयर म त ता मू छताः प गाभवन् ।। ६ ।। प राज ग ड आकाशम सूयके नकट होकर चलने लगे। अतः सप सूयक करण से संत त हो मू छत हो गये ।। ६ ।। तदव थान् सुतान् ् वा क ःू श मथा तुवत् । नम ते सवदे वेश नम ते बलसूदन ।। ७ ।। अपने पु को इस दशाम दे खकर क ू इ क तु त करने लगी—‘स पूण दे वता के ई र! तु ह नम कार है। बलसूदन! तु ह नम कार है ।। ७ ।। नमु च न नम तेऽ तु सह ा शचीपते । ो

सपाणां सूयत तानां वा रणा वं लवो भव ।। ८ ।। ‘सह ने वाले नमु चनाशन! शचीपते! तु ह नम कार है। तुम सूयके तापसे संत त ए सप को जलसे नहलाकर नौकाक भाँ त उनके र क हो जाओ ।। ८ ।। वमेव परमं ाणम माकममरो म । ईशो स पयः ु ं वमन पं पुर दर ।। ९ ।। ‘अमरो म! तु ह हमारे सबसे बड़े र क हो । पुर दर! तुम अ धक-से-अ धक जल बरसानेक श रखते हो ।। ९ ।। वमेव मेघ वं वायु वम न व ुतोऽ बरे । वम गण व े ता वामेवा महाघनम् ।। १० ।। ‘तु ह मेघ हो, तु ह वायु हो और तु ह आकाशम बजली बनकर का शत होते हो। तु ह बादल को छ - भ करनेवाले हो और व ान् पु ष तु ह ही महामेघ कहते ह ।। १० ।। वं व मतुलं घोरं घोषवां वं बलाहकः । ा वमेव लोकानां संहता चापरा जतः ।। ११ ।। ‘संसारम जसक कह तुलना नह है, वह भयानक व तु ह हो, तु ह भयंकर गजना करनेवाले बलाहक ( लयकालीन मेघ) हो। तु ह स पूण लोक क सृ और संहार करनेवाले हो। तुम कभी परा त नह होते ।। ११ ।। वं यो तः सवभूतानां वमा द यो वभावसुः । वं मह तमा य वं राजा वं सुरो मः ।। १२ ।। ‘तु ह सम त ा णय क यो त हो। सूय और अ न भी तु ह हो। तुम आ यमय महान् भूत हो, तुम राजा हो और तुम दे वता म सबसे े हो ।। १२ ।। वं व णु वं सह ा वं दे व वं परायणम् । वं सवममृतं दे व वं सोमः परमा चतः ।। १३ ।। ‘तु ह सव ापी व णु, सहलोचन इ , ु तमान् दे वता और सबके परम आ य हो। दे व! तु ह सब कुछ हो। तु ह अमृत हो और तु ह परम पू जत सोम हो ।। १३ ।। वं मुत त थ वं च वं लव वं पुनः णः । शु ल वं ब ल वं च कला का ा ु ट तथा । संव सरतवो मासा रज य दना न च ।। १४ ।। ‘तुम मु त हो, तु ह त थ हो, तु ह लव तथा तु ह ण हो। शु लप और कृ णप भी तुमसे भ नह ह। कला, का ा और ु ट सब तु हारे ही व प ह। संव सर, ऋतु, मास, रा तथा दन भी तु ह हो ।। १४ ।। वमु मा स ग रवना वसु धरा सभा करं व त मरम बरं तथा । महोद धः स त म तम गल तथा महो ममान् ब मकरो झषाकुलः ।। १५ ।। ‘



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‘तु ह पवत और वन स हत उ म वसु धरा हो और तु ह अ धकारर हत एवं सूयस हत आकाश हो। त म और त म गल से भरपूर, ब तेरे मगर और म य से ा त तथा उ ाल तरंग से सुशो भत महासागर भी तु ह हो ।। १५ ।। महायशा व म त सदा भपू यसे मनी ष भमु दतमना मह ष भः । अ भ ु तः पब स च सोमम वरे वषट् कृता य प च हव ष भूतये ।। १६ ।। ‘तुम महान् यश वी हो। ऐसा समझकर मनीषी पु ष सदा तु हारी पूजा करते ह। मह षगण नर तर तु हारा तवन करते ह। तुम यजमानक अभी स करनेके लये य म मु दत मनसे सोमरस पीते हो और वषट् कारपूवक सम पत कये ए ह व य भी हण करते हो ।। १६ ।। वं व ैः सतत महे यसे फलाथ वेदा े वतुलबलौघ गीयसे च । व े तोयजनपरायणा जे ा वेदा ा य भगमय त सवय नैः ।। १७ ।। ‘इस जगत्म अभी फलक ा तके लये व गण तु हारी पूजा करते ह। अतु लत बलके भ डार इ ! वेदांग म भी तु हारी ही म हमाका गान कया गया है। य परायण े ज तु हारी ा तके लये ही सवथा य न करके वेदांग का ान ा त करते ह (यहाँ क क ू े ारा ई र पसे इ क तु त क गयी है)’ ।। १७ ।। इ त ीमहाभारते आ दपव ण आ तीकपव ण सौपण प च वशोऽ यायः ।। २५ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत आ तीकपवम ग डच र वषयक पचीसवाँ अ याय पूरा आ ।। २५ ।।

षड् वशोऽ यायः इ

ारा क

ई वषासे सप क

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सौ त वाच एवं तुत तदा क व ् ा भगवान् ह रवाहनः । नीलजीमूतसंघातैः सवम बरमावृणोत् ।। १ ।। उ वाजी कहते ह—नागमाता क क ू े इस कार तु त करनेपर भगवान् इ ने मेघ क काली घटा ारा स पूण आकाशको आ छा दत कर दया ।। १ ।। मेघाना ापयामास वष वममृतं शुभम् । ते मेघा मुमुचु तोयं भूतं व ु वलाः ।। २ ।। साथ ही मेघ को आ ा द —‘तुम सब शीतल जलक वषा करो।’ आ ा पाकर बज लय से का शत होनेवाले उन मेघ ने चुर जलक वृ क ।। २ ।। पर पर मवा यथ गज तः सततं द व । संव तत मवाकाशं जलदै ः सुमहा तैः ।। ३ ।। सृज रतुलं तोयमज ं सुमहारवैः । स नृ मवाकाशं धारो म भरनेकशः ।। ४ ।। वे पर पर अ य त गजना करते ए आकाशसे नर तर पानी बरसाते रहे। जोर-जोरसे गजने और लगातार असीम जलक वषा करनेवाले अ य त अद्भुत जलधर ने सारे आकाशको घेर-सा लया था। असं य धारा प लहर से यु वह ोमसमु मानो नृ य-सा कर रहा था ।। ३-४ ।। मेघ त नत नघ षै व ु पवनक पतैः । तैमघैः सततासारं वष र नशं तदा ।। ५ ।। न च ाक करणम बरं समप त । नागानामु मो हष तथा वष त वासवे ।। ६ ।। भयंकर गजन-तजन करनेवाले वे मेघ बजली और वायुसे क पत हो उस समय नर तर मूसलाधार पानी गरा रहे थे। उनके ारा आ छा दत आकाशम च मा और सूयक करण भी अ य हो गयी थ । इ दे वके इस कार वषा करनेपर नाग को बड़ा हष आ ।। ५-६ ।। आपूयत मही चा प स ललेन सम ततः । रसातलमनु ा तं शीतलं वमलं जलम् ।। ७ ।। पृ वीपर सब ओर पानी-ही-पानी भर गया। वह शीतल और नमल जल रसातलतक प ँच गया ।। ७ ।। तदा भूरभव छ ा जलो म भरनेकशः । रामणीयकमाग छन् मा ा सह भुज माः ।। ८ ।। े



उस समय सारा भूतल जलक असं य तरंग से आ छा दत हो गया था। इस कार वषासे संतु ए सप अपनी माताके साथ रामणीयक पम आ गये ।। ८ ।। इ त ीमहाभारते आ दपव ण आ तीकपव ण सौपण षड् वशोऽ यायः ।। २६ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत आ तीकपवम ग डच र वषयक छ बीसवाँ अ याय पूरा आ ।। २६ ।।

स त वशोऽ यायः रामणीयक पके मनोरम वनका वणन तथा ग डका दा यभावसे छू टनेके लये सप से उपाय पूछना सौ त वाच स ा ततो नागा जलधारा लुता तदा । सुपणनो माना ते ज मु तं पमाशु वै ।। १ ।। उ वाजी कहते ह—ग डपर सवार होकर या ा करनेवाले वे नाग उस समय जलधारासे नहाकर अ य त स हो शी ही रामणीयक पम जा प ँचे ।। १ ।। तं पं मकरावासं व हतं व कमणा । त ते लवणं घोरं द शुः पूवमागताः ।। २ ।। व कमाजीके बनाये ए उस पम, जहाँ अब मगर नवास करते थे, जब पहली बार नाग आये थे तो उ ह वहाँ भयंकर लवणासुरका दशन आ था ।। २ ।। सुपणस हताः सपाः काननं च मनोरमम् । सागरा बुप र तं प सङ् घ नना दतम् ।। ३ ।। सप ग डके साथ उस पके मनोरम वनम आये, जो चार ओरसे समु ारा घरकर उसके जलसे अ भ ष हो रहा था। वहाँ झुंड-के-झुंड प ी कलरव कर रहे थे ।। ३ ।। व च फलपु पा भवनरा ज भरावृतम् । भवनैरावृतं र यै तथा पाकरैर प ।। ४ ।। व च फूल और फल से भरी ई वन े णयाँ उस द वनको घेरे ए थ । वह वन ब त-से रमणीय भवन और कमलयु सरोवर से आवृत था ।। ४ ।। स स ललै ा प दै द ै वभू षतम् । द ग धवहैः पु यैमा तै पवी जतम् ।। ५ ।। व छ जलवाले कतने ही द सरोवर उसक शोभा बढ़ा रहे थे। द सुग धका भार वहन करनेवाली पावन वायु मानो वहाँ चँवर डु ला रही थी ।। ५ ।। उ पत रवाकाशं वृ ैमलयजैर प । शो भतं पु पवषा ण मु च मा तो तैः ।। ६ ।। वहाँ ऊँचे-ऊँचे मलयज वृ ऐसे तीत होते थे, मानो आकाशम उड़े जा रहे ह । वे वायुके वेगसे वक पत हो फूल क वषा करते ए उस दे शक शोभा बढ़ा रहे थे ।। ६ ।। वायु व तकुसुमै तथा यैर प पादपैः । कर रव त थान् नागान् पु पा बुवृ भः ।। ७ ।। हवाके झ केसे सरे- सरे वृ के भी फूल झड़ रहे थे, मानो वहाँके वृ समूह वहाँ उप थत ए नाग पर फूल क वषा करते ए उनके लये अ य दे रहे ह ।। ७ ।। मनःसंहषजं द ं ग धवा ससां यम् । ो

म मरसंघु ं मनो ाकृ तदशनम् ।। ८ ।। वह द वन दयके हषको बढ़ानेवाला था। ग धव और अ सराएँ उसे अ धक पसंद करती थ । मतवाले मर वहाँ सब ओर गूँज रहे थे। अपनी मनोहर छटाके ारा वह अ य त दशनीय जान पड़ता था ।। ८ ।। रमणीयं शवं पु यं सवजनमनोहरैः । नानाप तं र यं क प ू ु हषणम् ।। ९ ।। वह वन रमणीय, मंगलकारी और प व होनेके साथ ही लोग के मनको मोहनेवाले सभी उ म गुण से यु था। भाँ त भाँ तके प य के कलरव से ा त एवं परम सु दर होनेके कारण वह क क ू े पु का आन द बढ़ा रहा था ।। ९ ।। तत् ते वनं समासा वजः प गा तदा । अ ुवं महावीय सुपण पतगे रम् ।। १० ।। उस वनम प ँचकर वे सप उस समय सब ओर वहार करने लगे और महापरा मी प राज ग डसे इस कार बोले— ।। १० ।। वहा मानपरं पं सुर यं वमलोदकम् । वं ह दे शान् बन् र यान् जन् प य स खेचर ।। ११ ।। ‘खेचर! तुम आकाशम उड़ते समय ब त-से रमणीय दे श दे खा करते हो; अतः हम नमल जलवाले कसी सरे रमणीय पम ले चलो’ ।। ११ ।। स व च या वीत् प ी मातरं वनतां तदा । क कारणं मया मातः कत ं सपभा षतम् ।। १२ ।। ग डने कुछ सोचकर अपनी माता वनतासे पूछा—‘माँ! या कारण है क मुझे सप क आ ाका पालन करना पड़ता है?’ ।। १२ ।। वनतोवाच दासीभूता म य गात् सप याः पतगो म । पणं वतथमा थाय सप प धना कृतम् ।। १३ ।। वनता बोली—बेटा प राज! म भा यवश सौतक दासी ँ, इन सप ने छल करके मेरी जीती ई बाजीको पलट दया था ।। १३ ।। त मं तु क थते मा ा कारणे गगनेचरः । उवाच वचनं सपा तेन ःखेन ःखतः ।। १४ ।। माताके यह कारण बतानेपर आकाशचारी ग डने उस ःखसे ःखी होकर सप से कहा— ।। १४ ।। कमा य व द वा वा क वा कृ वेह पौ षम् । दा याद् वो व मु येयं तयं वदत ले लहाः ।। १५ ।। ‘जीभ लपलपानेवाले सप ! तुमलोग सच-सच बताओ म तु ह या लाकर दे ँ ? कस व ाका लाभ करा ँ अथवा यहाँ कौन-सा पु षाथ करके दखा ँ ; जससे मुझे तथा मेरी माताको तु हारी दासतासे छु टकारा मल जाय’ ।। १५ ।।



सौ त वाच ु वा तम ुवन् सपा आहरामृतमोजसा । ततो दा याद् व मो ो भ वता तव खेचर ।। १६ ।। उ वाजी कहते ह—ग डक बात सुनकर सप ने कहा—‘ग ड! तुम परा म करके हमारे लये अमृत ला दो। इससे तु ह दा यभावसे छु टकारा मल जायगा’ ।। १६ ।। इ त ीमहाभारते आ दपव ण आ तीकपव ण सौपण स त वशोऽ यायः ।। २७ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत आ तीकपवम ग डच र वषयक स ाईसवाँ अ याय पूरा आ ।। २७ ।।

अ ा वशोऽ यायः ग डका अमृतके लये जाना और अपनी माताक आ ाके अनुसार नषाद का भ ण करना सौ त वाच इ यु ो ग डः सप ततो मातरम वीत् । ग छा यमृतमाहतु भ य म छा म वे दतुम् ।। १ ।। उ वाजी कहते ह—सप क यह बात सुनकर ग ड अपनी मातासे बोले—‘माँ! म अमृत लानेके लये जा रहा ँ, कतु मेरे लये भोजन-साम ी या होगी? यह म जानना चाहता ँ’ ।। १ ।। वनतोवाच समु कु ावेका ते नषादालयमु मम् । नषादानां सह ा ण तान् भु वामृतमानय ।। २ ।। वनताने कहा—समु के बीचम एक टापू है, जसके एका त दे शम नषाद (जीव हसक )-का नवास है। वहाँ सह नषाद रहते ह। उ ह को मारकर खा लो और अमृत ले आओ ।। २ ।। न च ते ा णं ह तुं काया बु ः कथंचन । अव यः सवभूतानां ा णो नलोपमः ।। ३ ।। कतु तु ह कसी कार ा णको मारनेका वचार नह करना चा हये; य क ा ण सम त ा णय के लये अव य है। वह अ नके समान दाहक होता है ।। ३ ।। अ नरक वषं श ं व ो भव त को पतः । गु ह सवभूतानां ा णः प रक ततः ।। ४ ।। कु पत कया आ ा ण अ न, सूय, वष एवं श के समान भयंकर होता है। ा णको सम त ा णय का गु कहा गया है ।। ४ ।। एवमा द व पै तु सतां वै ा णो मतः । स ते तात न ह त ः सं ु े ना प सवथा ।। ५ ।। इ ह प म स पु ष के लये ा ण आदरणीय माना गया है। तात! तु ह ोध आ जाय तो भी ा णक ह यासे सवथा र रहना चा हये ।। ५ ।। ा णानाम भ ोहो न कत ः कथंचन । न ेवम नना द यो भ म कुयात् तथानघ ।। ६ ।। यथा कुयाद भ ु ो ा णः सं शत तः । तदे तै व वधै ल ै वं व ा तं जो मम् ।। ७ ।। भूतानाम भू व ो वण े ः पता गु ः । े









ा ण के साथ कसी कार ोह नह करना चा हये। अनघ! कठोर तका पालन करनेवाला ा ण ोधम आनेपर अपराधीको जस कार जलाकर भ म कर दे ता है, उस तरह अ न और सूय भी नह जला सकते। इस कार व वध च के ारा तु ह ा णको पहचान लेना चा हये। ा ण सम त ा णय का अ ज, सब वण म े , पता और गु है ।। ६-७ ।। ग ड उवाच क पो ा णो मातः कशीलः कपरा मः ।। ८ ।। ग डने पूछा—माँ! ा णका प कैसा होता है? उसका शील- वभाव कैसा है? तथा उसम कौन-सा परा म है ।। ८ ।। क वद न नभो भा त क वत् सौ य दशनः । यथाहम भजानीयां ा णं ल णैः शुभैः ।। ९ ।। त मे कारणतो मातः पृ छतो व ु मह स । वह दे खनेम अ न-जैसा जान पड़ता है? अथवा सौ य दखायी दे ता है? माँ! जस कार शुभ ल ण ारा म ा णको पहचान सकूँ, वह सब उपाय मुझे बताओ ।। ९ ।। वनतोवाच य ते क ठमनु ा तो नगीण ब डशं यथा ।। १० ।। दहेद ारवत् पु तं व ा ा णषभम् । व वया न ह त ः सं ु े ना प सवदा ।। ११ ।। वनता बोली—बेटा! जो तु हारे क ठम पड़नेपर अंगारक तरह जलाने लगे और मानो बंसीका काँटा नगल लया गया हो, इस कार क दे ने लगे, उसे वण म े ा ण समझना। ोधम भरे होनेपर भी तु ह ह या नह करनी चा हये ।। १०-११ ।। ोवाच चैनं वनता पु हादा ददं वचः । जठरे न च जीयद ् य तं जानी ह जो मम् ।। १२ ।। वनताने पु के त नेह होनेके कारण पुनः इस कार कहा—‘बेटा! जो तु हारे पेटम पच न सके, उसे ा ण जानना’ ।। १२ ।। पुनः ोवाच वनता पु हादा ददं वचः । जान य यतुलं वीयमाशीवादपरायणा ।। १३ ।। ीता परम ःखाता नागै व कृता सती । पु के त नेह होनेके कारण वनताने पुनः इस कार कहा—वह पु के अनुपम बलको जानती थी तो भी नाग ारा ठगी जानेके कारण बड़े भारी ःखसे आतुर हो गयी थी। अतः अपने पु को ेमपूवक आशीवाद दे ने लगी ।। १३ ।। वनतोवाच प ौ ते मा तः पातु च सूय च पृ तः ।। १४ ।। े









वनताने कहा—बेटा! वायु तु हारे दोन पंख क र ा कर, च मा और सूय पृ भागका संर ण कर ।। १४ ।। शर पातु व ते वसवः सवत तनुम् । अहं च ते सदा पु शा त व तपरायणा ।। १५ ।। इहासीना भ व या म व तकारे रता सदा । अ र ं ज प थानं पु कायाथ स ये ।। १६ ।। अ नदे व तु हारे सरक और वसुगण तु हारे स पूण शरीरक सब ओरसे र ा कर। पु ! म भी तु हारे लये शा त एवं क याणसाधक कमम संल न हो यहाँ नर तर कुशल मनाती र ँगी। व स! तु हारा माग व नर हत हो, तुम अभी कायक स के लये या ा करो ।। १५-१६ ।।

सौ त वाच ततः स मातुवचनं नश य वत य प ौ नभ उ पपात । ततो नषादान् बलवानुपागतो बुभु तः काल इवा तकोऽपरः ।। १७ ।। उ वाजी कहते ह—शौनका द मह षयो! माताक बात सुनकर महाबली ग ड पंख पसारकर आकाशम उड़ गये तथा ुधातुर काल या सरे यमराजक भाँ त उन नषाद के पास जा प ँचे ।। १७ ।। स तान् नषादानुपसंहरं तदा रजः समुदधू ् य नभः पृशं महत् । समु कु ौ च वशोषयन् पयः समीपजान् भूधरजान् वचालयन् ।। १८ ।। उन नषाद का संहार करनेके लये उ ह ने उस समय इतनी अ धक धूल उड़ायी, जो पृ वीसे आकाशतक छा गयी। वहाँ समु क कु म जो जल था, उसका शोषण करके उ ह ने समीपवत पवतीय वृ को भी वक पत कर दया ।। १८ ।। ततः स च े महदाननं तदा नषादमाग त य प राट् । ततो नषादा व रताः व जुः यतो मुखं त य भुज भो जनः ।। १९ ।। इसके बाद प राजने अपना मुख ब त बड़ा कर लया और नषाद का माग रोककर खड़े हो गये। तदन तर वे नषाद उतावलीम पड़कर उसी ओर भागे, जधर सपभोजी ग डका मुख था ।। १९ ।। तदाननं ववृतम त माणवत् सम ययुगगन मवा दताः खगाः । सह शः पवनरजो वमो हता े



यथा नल च लतपादपे वने ।। २० ।। जैसे आँधीसे क पत वृ वाले वनम पवन और धूलसे वमो हत एवं पी ड़त सह प ी उ मु आकाशम उड़ने लगते ह, उसी कार हवा और धूलक वषासे बेसुध ए हजार नषाद ग डके खुले ए अ य त वशाल मुखम समा गये ।। २० ।। ततः खगो वदनम म तापनः समाहरत् प रचपलो महाबलः । नषूदयन् ब वधम यजी वनो बुभु तो गगनचरे र तदा ।। २१ ।। त प ात् श ु को संताप दे नेवाले, अ य त चपल, महाबली और ुधातुर प राज ग डने मछली मारकर जी वका चलानेवाले उन अनेकानेक नषाद का वनाश करनेके लये अपने मुखको संकु चत कर लया ।। २१ ।। इ त ीमहाभारते आ दपव ण आ तीकपव ण सौपण अ ा वशोऽ यायः ।। २८ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत आ तीकपवम ग डच र वषयक अाईसवाँ अ याय पूरा आ ।। २८ ।।

एकोन शोऽ यायः क यपजीका ग डको हाथी और कछु एके पूवज मक कथा सुनाना, ग डका उन दोन को पकड़ कर एक द वटवृ क शाखापर ले जाना और उस शाखाका टू टना सौ त वाच त य क ठमनु ा तो ा णः सह भायया । दहन् द त इवा ार तमुवाचा त र गः ।। १ ।। जो म व नग छ तूणमा यादपावृतात् । न ह मे ा णो व यः पापे व प रतः सदा ।। २ ।। उ वाजी कहते ह— नषाद के साथ एक ा ण भी भायास हत ग डके क ठम चला गया था। वह दहकते ए अंगारक भाँ त जलन पैदा करने लगा। तब आकाशचारी ग डने उस ा णसे कहा—‘ ज े ! तुम मेरे खुले ए मुखसे ज द नकल जाओ। ा ण पापपरायण ही य न हो मेरे लये सदा अव य है’ ।। १-२ ।। ुवाणमेवं ग डं ा णः यभाषत । नषाद मम भाययं नग छतु मया सह ।। ३ ।। ऐसी बात कहनेवाले ग डसे वह ा ण बोला—‘यह नषाद-जा तक क या मेरी भाया है; अतः मेरे साथ यह भी नकले (तभी म नकल सकता ँ)’ ।। ३ ।। ग ड उवाच एताम प नषाद वं प रगृ ाशु न पत । तूण स भावया मानमजीण मम तेजसा ।। ४ ।। ग डने कहा— ा ण! तुम इस नषाद को भी लेकर ज द नकल जाओ। तुम अभीतक मेरी जठरा नके तेजसे पचे नह हो; अतः शी अपने जीवनक र ा करो ।। ४ ।। सौ त वाच ततः स व ो न ा तो नषाद स हत तदा । वध य वा च ग ड म ं दे शं जगाम ह ।। ५ ।। उ वाजी कहते ह—उनके ऐसा कहनेपर वह ा ण नषाद स हत ग डके मुखसे नकल आया और उ ह आशीवाद दे कर अभी दे शको चला गया ।। ५ ।। सहभाय व न ा ते त मन् व े च प राट् । वत य प ावाकाशमु पपात मनोजवः ।। ६ ।। भायास हत उस ा णके नकल जानेपर प राज ग ड पंख फैलाकर मनके समान ती वेगसे आकाशम उड़े ।। ६ ।। ो

ततोऽप यत् स पतरं पृ ा यातवान् पतुः । यथा यायममेया मा तं चोवाच महानृ षः ।। ७ ।। तदन तर उ ह अपने पता क यपजीका दशन आ। उनके पूछनेपर अमेया मा ग डने पतासे यथो चत कुशल-समाचार कहा। मह ष क यप उनसे इस कार बोले ।। ७ ।। क यप उवाच क चद् वः कुशलं न यं भोजने ब लं सुत । क च च मानुषे लोके तवा ं व ते ब ।। ८ ।। क यपजीने पूछा—बेटा! तुमलोग कुशलसे तो हो न? वशेषतः त दन भोजनके स ब धम तु ह वशेष सु वधा है न? या मनु यलोकम तु हारे लये पया त अ मल जाता है ।। ८ ।। ग ड उवाच माता मे कुशला शा त् तथा ाता तथा हम् । न ह मे कुशलं तात भोजने ब ले सदा ।। ९ ।। ग डने कहा—मेरी माता सदा कुशलसे रहती ह। मेरे भाई तथा म दोन सकुशल ह। परंतु पताजी! पया त भोजनके वषयम तो सदा मेरे लये कुशलका अभाव ही है ।। ९ ।। अहं ह सपः हतः सोममाहतुमु मम् । मातुदा य वमो ाथमाह र ये तम वै ।। १० ।। मुझे सप ने उ म अमृत लानेके लये भेजा है। माताको दासीपनसे छु टकारा दलानेके लये आज म न य ही उस अमृतको लाऊँगा ।। १० ।। मा ा चा समा द ो नषादान् भ ये त ह । न च मे तृ तरभवद् भ य वा सह शः ।। ११ ।। भोजनके वषयम पूछनेपर माताने कहा—‘ नषाद का भ ण करो’, परंतु हजार नषाद को खा लेनेपर भी मुझे तृ त नह ई है ।। ११ ।। त माद् भ यं वमपरं भगवन् दश व मे । यद् भु वामृतमाहतु समथः यामहं भो ।। १२ ।। ु पपासा वघाताथ भ यमा यातु मे भवान् । अतः भगवन्! आप मेरे लये कोई सरा भोजन बताइये। भो! वह भोजन ऐसा हो जसे खाकर म अमृत लानेम समथ हो सकूँ। मेरी भूख- यासको मटा दे नेके लये आप पया त भोजन बताइये ।। १२ ।। क यप उवाच इदं सरो महापु यं दे वलोकेऽ प व ुतम् ।। १३ ।। क यपजी बोले—बेटा! यह महान् पु यदायक सरोवर है, जो दे वलोकम भी व यात है ।। १३ ।। य कूमा जं ह ती सदा कष यवाङ् मुखः । ो

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तयोज मा तरे वैरं स व या यशेषतः ।। १४ ।। त मे त वं नबोध व य माणौ च तावुभौ । उसम एक हाथी नीचेको मुँह कये सदा सूँड़से पकड़कर एक कछु एको ख चता रहता है। वह कछु आ पूवज मम उसका बड़ा भाई था। दोन म पूवज मका वैर चला आ रहा है। उनम यह वैर य और कैसे आ तथा उन दोन के शरीरक ल बाई-चौड़ाई और ऊँचाई कतनी है, ये सारी बात म ठ क-ठ क बता रहा ँ। तुम यान दे कर सुनो ।। १४ ।। आसीद् वभावसुनाम मह षः कोपनो भृशम् ।। १५ ।। ाता त यानुज ासीत् सु तीको महातपाः । स ने छ त धनं ाता सहैक थं महामु नः ।। १६ ।। पूवकालम वभावसु नामसे स एक मह ष थे। वे वभावके बड़े ोधी थे। उनके छोटे भाईका नाम था सु तीक। वे भी बड़े तप वी थे। महामु न सु तीक अपने धनको बड़े भाईके साथ एक जगह नह रखना चाहते थे ।। १५-१६ ।। वभागं क तय येव सु तीको ह न यशः । अथा वी च तं ाता सु तीकं वभावसुः ।। १७ ।। सु तीक त दन बँटवारेके लये आ ह करते ही रहते थे। तब एक दन बड़े भाई वभावसुने सु तीकसे कहा— ।। १७ ।। वभागं बहवो मोहात् कतु म छ त न यशः । ततो वभ ा व यो यं व ु य तेऽथमो हताः ।। १८ ।। ‘भाई! ब त-से मनु य मोहवश सदा धनका बँटवारा कर लेनेक इ छा रखते ह। तदन तर बँटवारा हो जानेपर धनके मोहम फँसकर वे एक- सरेके वरोधी हो पर पर ोध करने लगते ह ।। १८ ।। ततः वाथपरान् मूढान् पृथ भूतान् वकैधनैः । व द वा भेदय येतान म ा म पणः ।। १९ ।। ‘वे वाथपरायण मूढ़ मनु य अपने धनके साथ जब अलग-अलग हो जाते ह, तब उनक यह अव था जानकर श ु भी म पम आकर मलते और उनम भेद डालते रहते ह ।। १९ ।। व द वा चापरे भ ान तरेषु पत यथ । भ ानामतुलो नाशः मेव वतते ।। २० ।। ‘ सरे लोग, उनम फूट हो गयी है, यह जानकर उनके छ दे खा करते ह एवं छ मल जानेपर उनम पर पर वैर बढ़ानेके लये वयं बीचम आ पड़ते ह। इस लये जो लोग अलग-अलग होकर आपसम फूट पैदा कर लेते ह, उनका शी ही ऐसा वनाश हो जाता है, जसक कह तुलना नह है ।। २० ।। त माद् वभागं ातॄणां न शंस त साधवः । गु शा े नब ानाम यो येना भशङ् कनाम् ।। २१ ।। ‘









‘अतः साधु पु ष भाइय के बलगाव या बँटवारेक शंसा नह करते; य क इस कार बँट जानेवाले भाई गु व प शा क अलंघनीय आ ाके अधीन नह रह जाते और एक- सरेको संदेहक से दे खने लगते ह’ ।। २१ ।।* नय तुं न ह श य वं भेदतो धन म छ स । य मात् त मात् सु तीक ह त वं समवा य स ।। २२ ।। ‘सु तीक! तु ह वशम करना अस भव हो रहा है और तुम भेदभावके कारण ही बँटवारा करके धन लेना चाहते हो, इस लये तु ह हाथीक यो नम ज म लेना पड़ेगा’ ।। २२ ।। श त वेवं सु तीको वभावसुमथा वीत् । वम य तजलचरः क छपः स भ व य स ।। २३ ।। इस कार शाप मलनेपर सु तीकने वभावसुसे कहा—‘तुम भी पानीके भीतर वचरनेवाले कछु ए होओगे’ ।। २३ ।। एवम यो यशापात् तौ सु तीक वभावसू । गजक छपतां ा तावथाथ मूढचेतसौ ।। २४ ।। इस कार सु तीक और वभावसु मु न एक- सरेके शापसे हाथी और कछु एक यो नम पड़े ह। धनके लये उनके मनम मोह छा गया था ।। २४ ।। रोषदोषानुष े ण तय यो नगतावुभौ । पर पर े षरतौ माणबलद पतौ ।। २५ ।। सर य मन् महाकायौ पूववैरानुसा रणौ । तयोर यतरः ीमान् समुपै त महागजः ।। २६ ।। य य बृं हतश दे न कूम ऽ य तजलेशयः । उ थतोऽसौ महाकायः कृ नं व ोभयन् सरः ।। २७ ।। रोष और लोभ पी दोषके स ब धसे उन दोन को तयक्-यो नम जाना पड़ा है। वे दोन वशालकाय ज तु पूव ज मके वैरका अनुसरण करके अपनी वशालता और बलके घम डम चूर हो एक- सरेसे े ष रखते ए इस सरोवरम रहते ह। इन दोन म एक जो सु दर महान् गजराज है, वह जब सरोवरके तटपर आता है, तब उसके च घाड़नेक आवाज सुनकर जलके भीतर शयन करनेवाला वशालकाय कछु आ भी पानीसे ऊपर उठता है। उस समय वह सारे सरोवरको मथ डालता है ।। २५—२७ ।। यं ् वा वे तकरः पत येष गजो जलम् । द तह ता ला लपादवेगेन वीयवान् ।। २८ ।। व ोभयं ततो नागः सरो ब झषाकुलम् । कूम ऽ य यु त शरा यु ाया ये त वीयवान् ।। २९ ।। उसे दे खते ही यह परा मी हाथी अपनी सूँड़ लपेटे ए जलम टू ट पड़ता है तथा दाँत, सूँड़, पूँछ और पैर के वेगसे असं य मछ लय से भरे ए समूचे सरोवरम हलचल मचा दे ता ै









है। उस समय परा मी क छप भी सर उठाकर यु के लये नकट आ जाता है ।। २८-२९ ।। षडु तो योजना न गज तद् गुणायतः । कूम योजनो सेधो दशयोजनम डलः ।। ३० ।। हाथीका शरीर छः योजन ऊँचा और बारह योजन लंबा है। कछु आ तीन योजन ऊँचा और दस योजन गोल है ।। ३० ।। तावुभौ यु स म ौ पर परवधै षणौ । उपयु याशु कमदं साधये सतमा मनः ।। ३१ ।। वे दोन एक- सरेको मारनेक इ छासे यु के लये मतवाले बने रहते ह। तुम शी जाकर उ ह दोन को भोजनके उपयोगम लाओ और अपने इस अभी कायका साधन करो ।। ३१ ।। महा घनसंकाशं तं भु वामृतमानय । महा ग रसम यं घोर पं च ह तनम् ।। ३२ ।। कछु आ महान् मेघ-ख डके समान है और हाथी भी महान् पवतके समान भयंकर है। उ ह दोन को खाकर अमृत ले आओ ।। ३२ ।। सौ त वाच इ यु वा ग डं सोऽथ मा यमकरोत् तदा । यु यतः सह दे वै ते यु े भवतु म लम् ।। ३३ ।। उ वाजी कहते ह—शौनकजी! क यपजी ग डसे ऐसा कहकर उस समय उनके लये मंगल मनाते ए बोले—‘ग ड! यु म दे वता के साथ लड़ते ए तु हारा मंगल हो ।। ३३ ।। पूणकु भो जा गावो य चा यत् क च मम् । शुभं व ययनं चा प भ व य त तवा डज ।। ३४ ।। ‘प वर! भरा आ कलश, ा ण, गौएँ तथा और जो कुछ भी मांग लक व तुएँ ह, वे तु हारे लये क याणकारी ह गी ।। ३४ ।। यु यमान य सं ामे दे वैः साध महाबल । ऋचो यजूं ष सामा न प व ा ण हव ष च ।। ३५ ।। रह या न च सवा ण सव वेदा ते बलम् । इ यु ो ग डः प ा गत तं दम तकात् ।। ३६ ।। ‘महाबली प राज! सं ामम दे वता के साथ यु करते समय ऋ वेद, यजुवद, सामवेद, प व ह व य, स पूण रह य तथा सभी वेद तु ह बल दान कर।’ पताके ऐसा कहनेपर ग ड उस सरोवरके नकट गये ।। ३५-३६ ।। अप य मलजलं नानाप समाकुलम् । स तत् मृ वा पतुवा यं भीमवेगोऽ त र गः ।। ३७ ।। नखेन गजमेकेन कूममेकेन चा पत् । ै

समु पपात चाकाशं तत उ चै वहंगमः ।। ३८ ।। उ ह ने दे खा, सरोवरका जल अ य त नमल है और नाना कारके प ी इसम सब ओर चहचहा रहे ह। तदन तर भयंकर वेगशाली अ त र गामी ग डने पताके वचनका मरण करके एक पंजेसे हाथीको और सरेसे कछु एको पकड़ लया। फर वे प राज आकाशम ऊँचे उड़ गये ।। ३७-३८ ।। सोऽल बं तीथमासा दे ववृ ानुपागमत् । ते भीताः समक प त त य प ा नलाहताः ।। ३९ ।। न नो भ या द त तदा द ाः कनकशाखनः । चला ान् स तान् ् वा मनोरथफल मान् ।। ४० ।। अ यानतुल पा ानुपच ाम खेचरः । का चनै राजतै ैव फलैव यशाखनः । सागरा बुप र तान् ाजमानान् महा मान् ।। ४१ ।। उड़कर वे फर अल बतीथम जा प ँचे। वहाँ (मे ग रपर) ब त-से द वृ अपनी सुवणमय शाखा- शाखा के साथ लहलहा रहे थे। जब ग ड उनके पास गये, तब उनके पंख क वायुसे आहत होकर वे सभी द वृ इस भयसे क पत हो उठे क कह ये हम तोड़ न डाल। ग ड चके अनुसार फल दे नेवाले उन क पवृ को काँपते दे ख अनुपम प-रंग तथा अंग वाले सरे- सरे महावृ क ओर चल दये। उनक शाखाएँ वै य म णक थ और वे सुवण तथा रजतमय फल से सुशो भत हो रहे थे। वे सभी महावृ समु के जलसे अ भ ष होते रहते थे ।। ३९—४१ ।। तमुवाच खग े ं त रौ हणपादपः । अ त वृ ः सुमहानापत तं मनोजवम् ।। ४२ ।। वह एक ब त बड़ा वशाल वटवृ था। उसने मनके समान ती -वेगसे आते ए प य के सरदार ग डसे कहा ।। ४२ ।। रौ हण उवाच यैषा मम महाशाखा शतयोजनमायता । एतामा थाय शाखां वं खादे मौ गजक छपौ ।। ४३ ।। वटवृ बोला—प राज! यह जो मेरी सौ योजनतक फैली ई सबसे बड़ी शाखा है, इसीपर बैठकर तुम इस हाथी और कछु एको खा लो ।। ४३ ।। ततो मं पतगसह से वतं महीधर तमवपुः क पयन् । खगो मो तम भप य वेगवान् बभ ताम वरलप संचयाम् ।। ४४ ।। तब पवतके समान वशाल शरीरवाले, प य म े , वेगशाली ग ड सह वहंगम से से वत उस महान् वृ को क पत करते ए तुरंत उसपर जा बैठे। बैठते ही े















अपने अस वेगसे उ ह ने सघन प लव से सुशो भत उस वशाल शाखाको तोड़ डाला ।। ४४ ।। इ त ीमहाभारते आ दपव ण आ तीकपव ण सौपण एकोन शोऽ यायः ।। २९ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत आ तीकपवम ग डच र - वषयक उनतीसवाँ अ याय पूरा आ ।। २९ ।।

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‘क न ान् पु वत् प ये ये ो ाता पतुः समः’ अथात् ‘बड़ा भाई पताके समान होता है। वह अपने छोटे भाइय को पु के समान दे खे।’ यह शा क आ ा है। जनम फूट हो जाती है, वे पीछे इस आ ाका पालन नह कर पाते।

शोऽ यायः ग डका क यपजीसे मलना, उनक ाथनासे वाल ख य ऋ षय का शाखा छोड़ कर तपके लये थान और ग डका नजन पवतपर उस शाखाको छोड़ ना सौ त वाच पृ मा ा तु प यां सा ग डेन बलीयसा । अभ यत तरोः शाखा भ नां चैनामधारयत् ।। १ ।। उ वाजी कहते ह—शौनका द मह षयो! महाबली ग डके पैर का पश होते ही उस वृ क वह महाशाखा टू ट गयी; कतु उस टू ट ई शाखाको उ ह ने फर पकड़ लया ।। १ ।। तां भङ् वा स महाशाखां मयमानो वलोकयन् । अथा ल बतोऽप यद् वालख यानधोमुखान् ।। २ ।। उस महाशाखाको तोड़कर ग ड मुसकराते ए उसक ओर दे खने लगे। इतनेहीम उनक वालख य नामवाले मह षय पर पड़ी, जो नीचे मुँह कये उसी शाखाम लटक रहे थे ।। २ ।। ऋषयो ल ब ते न ह या म त तानृषीन् । तपोरतान् ल बमानान् ष न भवी य सः ।। ३ ।। ह यादे तान् स पत ती शाखे यथ व च य सः । नखै ढतरं वीरः संगृ गजक छपौ ।। ४ ।। स त नाशसं ासाद भप य खगा धपः । शाखामा येन ज ाह तेषामेवा ववे या ।। ५ ।। तप याम त पर ए उन षय को वटक शाखाम लटकते दे ख ग डने सोचा —‘इसम ऋ ष लटक रहे ह। मेरे ारा इनका वध न हो जाय। यह गरती ई शाखा इन ऋ षय का अव य वध कर डालेगी।’ यह वचारकर वीरवर प राज ग डने हाथी और कछु एको तो अपने पंज से ढ़तापूवक पकड़ लया और उन मह षय के वनाशके भयसे झपटकर वह शाखा अपनी च चम ले ली। उन मु नय क र ाके लये ही ग डने ऐसा अद्भुत परा म कया था ।। ३—५ ।। अ तदै वं तु तत् त य कम ् वा महषयः । व मयो क प दया नाम च ु महाखगे ।। ६ ।। जसे दे वता भी नह कर सकते थे, ग डका ऐसा अलौ कक कम दे खकर वे मह ष आ यसे च कत हो उठे । उनके दयम क प छा गया और उ ह ने उस महान् प ीका नाम इस कार रखा (उनके ग ड नामक ु प इस कार क )— ।। ६ ।। ो ी

गु ं भारं समासा ोीन एष वहंगमः । ग ड तु खग े त मात् प गभोजनः ।। ७ ।। ये आकाशम वचरनेवाले सपभोजी प राज भारी भार लेकर उड़े ह; इस लये (‘गु म् आदाय उीन इ त ग डः’ इस ु प के अनुसार) ये ग ड कहलायगे ।। ७ ।। ततः शनैः पयपतत् प ैः शैलान् क पयन् । एवं सोऽ यपतद् दे शान् बन् सगजक छपः ।। ८ ।। तदन तर ग ड अपने पंख क हवासे बड़े-बड़े पवत को क पत करते ए धीरे-धीरे उड़ने लगे। इस कार वे हाथी और कछु एको साथ लये ए ही अनेक दे श म उड़ते फरे ।। ८ ।। दयाथ वालख यानां न च थानम व दत । स ग वा पवत े ं ग धमादनम सा ।। ९ ।। वालख य ऋ षय के ऊपर दयाभाव होनेके कारण ही वे कह बैठ न सके और उड़तेउड़ते अनायास ही पवत े ग धमादनपर जा प ँचे ।। ९ ।। ददश क यपं त पतरं तप स थतम् । ददश तं पता चा प द पं वहंगमम् ।। १० ।। तेजोवीयबलोपेतं मनोमा तरंहसम् । शैलशृ तीकाशं द ड मवो तम् ।। ११ ।। वहाँ उ ह ने तप याम लगे ए अपने पता क यपजीको दे खा। पताने भी अपने पु को दे खा। प राजका व प द था। वे तेज, परा म और बलसे स प तथा मन और वायुके समान वेगशाली थे। उ ह दे खकर पवतके शखरका भान होता था। वे उठे ए द डके समान जान पड़ते थे ।। १०-११ ।। अ च यमन भ येयं सवभूतभयंकरम् । महावीयधरं रौ ं सा ाद न मवो तम् ।। १२ ।। उनका व प ऐसा था, जो च तन और यानम नह आ सकता था। वे सम त ा णय के लये भय उ प कर रहे थे। उ ह ने अपने भीतर महान् परा म धारण कर रखा था। वे ब त भयंकर तीत होते थे। जान पड़ता था, उनके पम वयं अ नदे व कट हो गये ह ।। १२ ।। अ धृ यमजेयं च दे वदानवरा सैः । भे ारं ग रशृ ाणां समु जलशोषणम् ।। १३ ।। दे वता, दानव तथा रा स कोई भी न तो उ ह दबा सकता था और न जीत ही सकता था। वे पवत- शखर को वद ण करने और समु के जलको सोख लेनेक श रखते थे ।। १३ ।। लोकसंलोडनं घोरं कृता तसमदशनम् । तमागतम भ े य भगवान् क यप तदा । व द वा चा य संक प मदं वचनम वीत् ।। १४ ।। े





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वे सम त संसारको भयसे क पत कये दे ते थे। उनक मू त बड़ी भयंकर थी। वे सा ात् यमराजके समान दखायी दे ते थे। उ ह आया दे ख उस समय भगवान् क यपने उनका संक प जानकर इस कार कहा ।। १४ ।। क यप उवाच पु मा साहसं काष मा स ो ल यसे थाम् । मा वां दहेयुः सं ु ा वालख या मरी चपाः ।। १५ ।। क यपजी बोले—बेटा! कह ःसाहसका काम न कर बैठना, नह तो त काल भारी ःखम पड़ जाओगे। सूयक करण का पान करनेवाले वालख य मह ष कु पत होकर तु ह भ म न कर डाल ।। १५ ।। सौ त वाच ततः सादयामास क यपः पु कारणात् । वालख यान् महाभागां तपसा हतक मषान् ।। १६ ।। उ वाजी कहते ह—तदन तर पु के लये मह ष क यपने तप यासे न पाप ए महाभाग वालख य मु नय को इस कार स कया ।। १६ ।। क यप उवाच जा हताथमार भो ग ड य तपोधनाः । चक ष त मह कम तदनु ातुमहथ ।। १७ ।। क यपजी बोले—तपोधनो! ग डका यह उ ोग जाके हतके लये हो रहा है। ये महान् परा म करना चाहते ह, आपलोग इ ह आ ा द ।। १७ ।। सौ त वाच एवमु ा भगवता मुनय ते सम ययुः । मु वा शाखां गर पु यं हमव तं तपोऽ थनः ।। १८ ।। उ वाजी कहते ह—भगवान् क यपके इस कार अनुरोध करनेपर वे वालख य मु न उस शाखाको छोड़कर तप या करनेके लये परम पु यमय हमालयपर चले गये ।। १८ ।। तत ते वपयातेषु पतरं वनतासुतः । शाखा ा तवदनः पयपृ छत क यपम् ।। १९ ।। उनके चले जानेपर वनतान दन ग डने, जो मुँहम शाखा लये रहनेके कारण क ठनाईसे बोल पाते थे, अपने पता क यपजीसे पूछा— ।। १९ ।। भगवन् व वमु चा म तरोः शाखा ममामहम् । व जतं मानुषैदशमा यातु भगवान् मम ।। २० ।। ‘भगवन्! इस वृ क शाखाको म कहाँ छोड़ ँ ? आप मुझे ऐसा कोई थान बताव जहाँ ब त रतक मनु य न रहते ह ’ ।। २० ।। ततो नःपु षं शैलं हमसं क दरम् । ै ौ

अग यं मनसा य यै त याच यौ स क यपः ।। २१ ।। तब क यपजीने उ ह एक ऐसा पवत बता दया, जो सवथा नजन था। जसक क दराएँ बफसे ढँ क ई थ और जहाँ सरा कोई मनसे भी नह प ँच सकता था ।। २१ ।। तं पवतं महाकु मु य स महाखगः । जवेना यपतत् ता यः सशाखागजक छपः ।। २२ ।। उस बड़े पेटवाले पवतका पता पाकर महान् प ी ग ड उसीको ल य करके शाखा, हाथी और कछु एस हत बड़े वेगसे उड़े ।। २२ ।। न तां व ी प रणहे छतचमा महातनुभ् । शाखनो महत शाखां यां गृ ययौ खगः ।। २३ ।। ग ड वटवृ क जस वशाल शाखाको च चम लेकर जा रहे थे, वह इतनी मोट थी क सौ पशु के चमड़ से बनायी ई र सी भी उसे लपेट नह सकती थी ।। २३ ।। स ततः शतसाह ं योजना तरमागतः । कालेन ना तमहता ग डः पतगे रः ।। २४ ।। प राज ग ड उसे लेकर थोड़ी ही दे रम वहाँसे एक लाख योजन र चले आये ।। २४ ।। स तं ग वा णेनैव पवतं वचनात् पतुः । अमु च महत शाखां स वनं त खेचरः ।। २५ ।। पताके आदे शसे णभरम उस पवतपर प ँचकर उ ह ने वह वशाल शाखा वह छोड़ द । गरते समय उससे बड़ा भारी श द आ ।। २५ ।। प ा नलहत ा य ाक पत स शैलराट् । मुमोच पु पवष च समाग लतपादपः ।। २६ ।। वह पवतराज उनके पंख क वायुसे आहत होकर काँप उठा। उसपर उगे ए ब तेरे वृ गर पड़े और वह फूल क वषा-सी करने लगा ।। २६ ।। शृ ा ण च शीय त गरे त य सम ततः । म णका चन च ा ण शोभय त महा ग रम् ।। २७ ।। उस पवतके म णकांचनमय व च शखर, जो उस महान् शैलक शोभा बढ़ा रहे थे, सब ओरसे चूर-चूर होकर गर पड़े ।। २७ ।। शाखनो बहव ा प शाखया भहता तया । का चनैः कुसुमैभा त व ु व त इवा बुदाः ।। २८ ।। उस वशाल शाखासे टकराकर ब त-से वृ भी धराशायी हो गये। वे अपने सुवणमय फूल के कारण बजलीस हत मेघ क भाँ त शोभा पाते थे ।। २८ ।। ते हेम वकचा भूमौ युताः पवतधातु भः । राज छाखन त सूयाशु तर ताः ।। २९ ।। सुवणमय पु पवाले वे वृ धरतीपर गरकर पवतके गे आ द धातु से संयु हो सूयक करण ारा रँगे ए-से सुशो भत होते थे ।। २९ ।। े ो

तत त य गरेः शृ मा थाय स खगो मः । भ यामास ग ड तावुभौ गजक छपौ ।। ३० ।। तदन तर प राज ग डने उसी पवतक एक चोट पर बैठकर उन दोन —हाथी और कछु एको खाया ।। ३० ।। तावुभौ भ य वा तु स ता यः कूमकु रौ । ततः पवतकूटा ा पपात महाजवः ।। ३१ ।। इस कार कछु ए और हाथी दोन को खाकर महान् वेगशाली ग ड पवतक उस चोट से ही ऊपरक ओर उड़े ।। ३१ ।। ावत ताथ दे वानामु पाता भयशं सनः । इ य व ं द यतं ज वाल भयात् ततः ।। ३२ ।। उस समय दे वता के यहाँ ब त-से भयसूचक उ पात होने लगे। दे वराज इ का य आयुध व भयसे जल उठा ।। ३२ ।। सधूमा यपतत् सा च दवो का नभसयुता । तथा वसूनां ाणामा द यानां च सवशः ।। ३३ ।। सा यानां म तां चैव ये चा ये दे वतागणाः । वं वं हरणं तेषां पर परमुपा वत् ।। ३४ ।। अभूतपूव सं ामे तदा दे वासुरेऽ प च । ववुवाताः स नघाताः पेतु काः सह शः ।। ३५ ।। आकाशसे दनम ही धूएँ और लपट के साथ उ का गरने लगी। वसु, , आ द य, सा य, म द्गण तथा और जो-जो दे वता ह, उन सबके आयुध पर पर इस कार उप व करने लगे, जैसा पहले कभी दे खनेम नह आया था। दे वासुर-सं ामके समय भी ऐसी अनहोनी बात नह ई थी। उस समय वक गड़गड़ाहटके साथ बड़े जोरक आँधी उठने लगी। हजार उ काएँ गरने लग ।। ३३—३५ ।। नर मेव चाकाशं जगज महा वनम् । दे वानाम प यो दे वः सोऽ यवषत शो णतम् ।। ३६ ।। आकाशम बादल नह थे तो भी बड़ी भारी आवाजम वकट गजना होने लगी। दे वता के भी दे वता पज य र क वषा करने लगे ।। ३६ ।। म लुमा या न दे वानां नेशु तेजां स चैव ह । उ पातमेघा रौ ा ववृषुः शो णतं ब ।। ३७ ।। दे वता के द पु पहार मुरझा गये, उनके तेज न होने लगे। उ पातका लक ब तसे भयंकर मेघ कट हो अ धक मा ाम धरक वषा करने लगे ।। ३७ ।। रजां स मुकुटा येषामु थता न धषयन् । तत ाससमु नः सह दे वैः शत तुः । उ पातान् दा णान् प य युवाच बृह प तम् ।। ३८ ।। ब त-सी धूल उड़कर दे वता के मुकुट को म लन करने लग । ये भयंकर उ पात दे खकर दे वता -स हत इ भयसे ाकुल हो गये और बृह प तजीसे इस कार ो े

बोले ।। ३८ ।।

इ उवाच कमथ भगवन् घोरा उ पाताः सहसो थताः । न च श ुं प या म यु ध यो नः धषयेत् ।। ३९ ।। इ ने पूछा—भगवन्! सहसा ये भयंकर उ पात य होने लगे ह? म ऐसा कोई शु नह दे खता, जो यु म हम दे वता का तर कार कर सके ।। ३९ ।। बृह प त वाच तवापराधाद् दे वे मादा च शत तो । तपसा वालख यानां महष णां महा मनाम् ।। ४० ।। क यप य मुनेः पु ो वनताया खेचरः । हतु सोमम भ ा तो बलवान् काम पधृक् ।। ४१ ।। बृह प तजीने कहा—दे वराज इ ! तु हारे ही अपराध और मादसे तथा महा मा वालख य मह षय के तपके भावसे क यप मु न और वनताके पु प राज ग ड अमृतका अपहरण करनेके लये आ रहे ह। वे बड़े बलवान् और इ छानुसार प धारण करनेम समथ ह ।। ४०-४१ ।। समथ ब लनां े ो हतु सोमं वहंगमः । सव स भावया य म सा यम प साधयेत् ।। ४२ ।। बलवान म े आकाशचारी ग ड अमृत हर ले जानेम समथ ह। म उनम सब कारक श य के होनेक स भावना करता ँ। वे असा य काय भी स कर सकते ह ।। ४२ ।। सौ त वाच ु वैतद् वचनं श ः ोवाचामृतर णः । महावीयबलः प ी हतु सोम महो तः ।। ४३ ।। उ वाजी कहते ह—बृह प तजीक यह बात सुनकर दे वराज इ अमृतक र ा करनेवाले दे वता से बोले—‘र को! महान् परा मी और बलवान् प ी ग ड यहाँसे अमृत हर ले जानेको उ त ह ।। ४३ ।। यु मान् स बोधया येष यथा न स हरेद ् बलात् । अतुलं ह बलं त य बृह प त वाच ह ।। ४४ ।। ‘म तु ह सचेत कर दे ता ँ, जससे वे बलपूवक इस अमृतको न ले जा सक। बृह प तजीने कहा है क उनके बलक कह तुलना नह है’ ।। ४४ ।। त छ वा वबुधा वा यं व मता य नमा थताः । प रवायामृतं त थुव ी चे ः तापवान् ।। ४५ ।। इ क यह बात सुनकर दे वता बड़े आ यम पड़ गये और य नपूवक अमृतको चार ओरसे घेरकर खड़े हो गये। तापी इ भी हाथम व लेकर वहाँ डट गये ।। ४५ ।। ो

धारय तो व च ा ण का चना न मन वनः । कवचा न महाहा ण वै य वकृता न च ।। ४६ ।। मन वी दे वता व च सुवणमय तथा ब मू य वै य म णमय कवच धारण करने लगे ।। ४६ ।। चमा य प च गा ेषु भानुम त ढा न च । व वधा न च श ा ण घोर पा यनेकशः ।। ४७ ।। शतती णा धारा ण समु य सुरो माः । स व फु ल वाला न सधूमा न च सवशः ।। ४८ ।। च ा ण प रघां ैव शूला न पर धान् । श व वधा ती णाः करवालां नमलान् । वदे ह पा यादाय गदा ो दशनाः ।। ४९ ।। उ ह ने अपने अंग म यथा थान मजबूत और चमक ले चमड़ेके बने ए हाथके मोजे आ द धारण कये। नाना कारके भयंकर अ -श भी ले लये। उन सब आयुध क धार ब त तीखी थी। वे े दे वता सब कारके आयुध लेकर यु के लये उ त हो गये। उनके पास ऐसे-ऐसे च थे, जनसे सब ओर आगक चनगा रयाँ और धूमस हत लपट कट होती थ । उनके सवा प रघ, शूल, फरसे, भाँ त-भाँ तक तीखी श याँ चमक ले खड् ग और भयंकर दखायी दे नेवाली गदाएँ भी थ । अपने शरीरके अनु प इन अ -श को लेकर दे वता डट गये ।। ४७—४९ ।। तैः श ैभानुम ते द ाभरणभू षताः । भानुम तः सुरगणा त थु वगतक मषाः ।। ५० ।। द आभूषण से वभू षत न पाप दे वगण तेज वी अ -श के साथ अ धक काशमान हो रहे थे ।। ५० ।। अनुपमबलवीयतेजसो धृतमनसः प रर णेऽमृत य । असुरपुर वदारणाः सुरा वलनस म वपुः का शनः ।। ५१ ।। उनके बल, परा म और तेज अनुपम थे, जो असुर के नगर का वनाश करनेम समथ एवं अ नके समान दे द यमान शरीरसे का शत होनेवाले थे; उ ह ने अमृतक र ाके लये अपने मनम ढ न य कर लया था ।। ५१ ।। इ त समरवरं सुराः थता ते प रघसह शतैः समाकुलम् । वग लत मव चा बरा तरं तपनमरी च वका शतं बभासे ।। ५२ ।। इस कार वे तेज वी दे वता उस े समरके लये तैयार खड़े थे। वह रणांगण लाख प रघ आ द आयुध से ा त होकर सूयक करण ारा का शत एवं टू टकर गरे ए सरे आकाशके समान सुशो भत हो रहा था ।। ५२ ।। ी े ी ौ ो

इ त ीमहाभारते आ दपव ण आ तीकपव ण सौपण शोऽ यायः ।। ३० ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत आ तीकपवम ग डच र वषयक तीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ३० ।।

एक शोऽ यायः इ के ारा वाल ख य का अपमान और उनक तप याके भावसे अ ण एवं ग डक उ प शौनक उवाच कोऽपराधो महे य कः माद सूतज । तपसा वालख यानां स भूतो ग डः कथम् ।। १ ।। शौनकजीने पूछा—सूतन दन! इ का या अपराध और कौन-सा माद था? वालख य मु नय क तप याके भावसे ग डक उ प कैसे ई थी? ।। १ ।। क यप य जाते कथं वै प राट् सुतः । अधृ यः सवभूतानामव य ाभवत् कथम् ।। २ ।। क यपजी तो ा ण ह, उनका पु प राज कैसे आ? साथ ही वह सम त ा णय के लये धष एवं अव य कैसे हो गया? ।। २ ।। कथं च कामचारी स कामवीय खेचरः । एत द छा यहं ोतुं पुराणे य द पते ।। ३ ।। उस प ीम इ छानुसार चलने तथा चके अनुसार परा म करनेक श कैसे आ गयी? म यह सब सुनना चाहता ँ। य द पुराणम कह इसका वणन हो तो सुनाइये ।। ३ ।। सौ त वाच वषयोऽयं पुराण य य मां वं प रपृ छ स । शृणु मे वदतः सवमेतत् सं ेपतो ज ।। ४ ।। उ वाजीने कहा— न्! आप मुझसे जो पूछ रहे ह, वह पुराणका ही वषय है। म सं ेपम ये सब बात बता रहा ँ, सु नये ।। ४ ।। यजतः पु काम य क यप य जापतेः । साहा यमृषयो दे वा ग धवा द ः कल ।। ५ ।। कहते ह, जाप त क यपजी पु क कामनासे य कर रहे थे, उसम ऋ षय , दे वता तथा ग धव ने भी उ ह बड़ी सहायता द ।। ५ ।। त े मानयने श ो नयु ः क यपेन ह । मुनयो वालख या ये चा ये दे वतागणाः ।। ६ ।। उस य म क यपजीने इ को स मधा लानेके कामपर नयु कया था। वालख य मु नय तथा अ य दे वगण को भी यही काय स पा गया था ।। ६ ।। श तु वीयस श म यभारं ग र भम् । समु यानयामास ना तकृ ा दव भुः ।। ७ ।। ी















इ श शाली थे। उ ह ने अपने बलके अनुसार लकड़ीका एक पहाड़-जैसा बोझ उठा लया और उसे बना क के ही वे ले आये ।। ७ ।। अथाप य षीन् वान ोदरव मणः । पलाशव तकामेकां वहतः संहतान् प थ ।। ८ ।। उ ह ने मागम ब त-से ऐसे ऋ षय को दे खा जो कदम ब त ही छोटे थे। उनका सारा शरीर अँगठ ू े के म यभागके बराबर था। वे सब मलकर पलाशक एक बाती (छोट -सी टहनी) लये आ रहे थे ।। ८ ।। लीनान् वे ववा े षु नराहारां तपोधनान् । ल यमानान् म दबलान् गो पदे स लुतोदके ।। ९ ।। उ ह ने आहार छोड़ रखा था। तप या ही उनका धन था। वे अपने अंग म ही समाये ए-से जान पड़ते थे। पानीसे भरे ए गोखुरके लाँघनेम भी उ ह बड़ा लेश होता था। उनम शारी रक बल ब त कम था ।। ९ ।। तान् सवान् व मया व ो वीय म ः पुर दरः । अवह या यगा छ ं लङ् घ य वावम य च ।। १० ।। अपने बलके घमंडम मतवाले इ ने आ य-च कत होकर उन सबको दे खा और उनक हँसी उड़ाते ए वे अपमानपूवक उ ह लाँघकर शी ताके साथ आगे बढ़ गये ।। १० ।। तेऽथ रोषसमा व ाः सुभृशं जातम यवः । आरे भरे महत् कम तदा श भयंकरम् ।। ११ ।। इ के इस वहारसे वालख य मु नय को बड़ा रोष आ। उनके दयम भारी ोधका उदय हो गया। अतः उ ह ने उस समय एक ऐसे महान् कमका आर भ कया, जसका प रणाम इ के लये भयंकर था ।। ११ ।। जु वु ते सुतपसो व धव जातवेदसम् । म ै चावचै व ा येन कामेन त छृ णु ।। १२ ।। ा णो! वे उ म तप वी वालख य मनम जो कामना रखकर छोटे -बड़े म ारा व धपूवक अ नम आ त दे ते थे, वह बताता ँ, सु नये ।। १२ ।। कामवीयः कामगमो दे वराजभय दः । इ ोऽ यः सवदे वानां भवे द त यत ताः ।। १३ ।। संयमपूवक उ म तका पालन करनेवाले वे मह ष यह संक प करते थे क —‘स पूण दे वता के लये कोई सरा ही इ उ प हो, जो वतमान दे वराजके लये भयदायक, इ छानुसार परा म करने-वाला और अपनी चके अनुसार चलनेक श रखनेवाला हो ।। १३ ।। इ ा छतगुणः शौय वीय चैव मनोजवः । तपसो नः फलेना दा णः स भव व त ।। १४ ।। ‘शौय और वीयम इ से वह सौगुना बढ़कर हो। उसका वेग मनके समान ती हो। हमारी तप याके फलसे अब ऐसा ही वीर कट हो जो इ के लये भयंकर हो’ ।। १४ ।। ो े

तद् बुद ् वा भृशसंत तो दे वराजः शत तुः । जगाम शरणं त क यपं सं शत तम् ।। १५ ।। उनका यह संक प सुनकर सौ य का अनु ान पूण करनेवाले दे वराज इ को बड़ा संताप आ और वे कठोर तका पालन करनेवाले क यपजीक शरणम गये ।। १५ ।। त छ वा दे वराज य क यपोऽथ जाप तः । वालख यानुपाग य कम स मपृ छत ।। १६ ।। दे वराज इ के मुखसे उनका संक प सुनकर जाप त क यप वालख य के पास गये और उनसे उस कमक स के स ब धम कया ।। १६ ।। एवम व त तं चा प यूचुः स यवा दनः । तान् क यप उवाचेदं सा वपूव जाप तः ।। १७ ।। स यवाद मह ष वालख य ने ‘हाँ ऐसी ही बात है’ कहकर अपने कमक स का तपादन कया। तब जाप त क यपने उ ह सा वनापूवक समझाते ए कहा — ।। १७ ।। अय म भुवने नयोगाद् णः कृतः । इ ाथ च भव तोऽ प य नव त तपोधनाः ।। १८ ।। ‘तपोधनो! ाजीक आ ासे ये पुर दर तीन लोक के इ बनाये गये ह और आपलोग भी सरे इ क उ प के लये य नशील ह ।। १८ ।। न मया णो वा यं कतुमहथ स माः । भवतां ह न मयायं संक पो वै चक षतः ।। १९ ।। ‘संत-महा माओ! आप ाजीका वचन म या न कर। साथ ही म यह भी चाहता ँ क आपके ारा कया आ यह अभी संक प भी म या न हो ।। १९ ।। भव वेष पत ीणा म ोऽ तबलस ववान् । सादः यताम य दे वराज य याचतः ।। २० ।। ‘अतः अ य त बल और स वगुणसे स प जो यह भावी पु है, यह प य का इ हो। दे वराज इ आपके पास याचक बनकर आये ह, आप इनपर अनु ह कर’ ।। २० ।। एवमु ाः क यपेन वालख या तपोधनाः । यूचुर भस पू य मु न े ं जाप तम् ।। २१ ।। मह ष क यपके ऐसा कहनेपर तप याके धनी वालख य मु न उन मु न े जाप तका स कार करके बोले ।। २१ ।। वालख या ऊचुः इ ाथ ऽयं समार भः सवषां नः जापते । अप याथ समार भो भवत ायमी सतः ।। २२ ।। त ददं सफलं कम वयैव तगृ ताम् । तथा चैवं वध वा यथा ेयोऽनुप य स ।। २३ ।। े









वालख य ने कहा— जापते! हम सब लोग का यह अनु ान इ के लये आ था और आपका यह य समारोह संतानके लये अभी था। अतः इस फलस हत कमको आप ही वीकार कर और जसम सबक भलाई दखायी दे , वैसा ही कर ।। २२-२३ ।। सौ त वाच एत म ेव काले तु दे वी दा ायणी शुभा । वनता नाम क याणी पु कामा यश वनी ।। २४ ।। तप त वा तपरा नाता पुंसवने शु चः । उपच ाम भतारं तामुवाचाथ क यपः ।। २५ ।। उ वाजी कहते ह—इसी समय शुभल णा द क या क याणमयी वनता दे वी, जो उ म यशसे सुशो भत थी, पु क कामनासे तप यापूवक चय- तका पालन करने लगी। ऋतुकाल आनेपर जब वह नान करके शु ई, तब अपने वामीक सेवाम गयी। उस समय क यपजीने उससे कहा— ।। २४-२५ ।। आर भः सफलो दे व भ वता य वये सतः । जन य य स पु ौ ौ वीरौ भुवने रौ ।। २६ ।। ‘दे व! तु हारा यह अभी समार भ अव य सफल होगा। तुम ऐसे दो पु को ज म दोगी, जो बड़े वीर और तीन लोक पर शासन करनेक श रखनेवाले ह गे ।। २६ ।। तपसा वालख यानां मम संक पजौ तथा । भ व यतो महाभागौ पु ौ ैलो यपू जतौ ।। २७ ।। ‘वालख य क तप या तथा मेरे संक पसे तु ह दो परम सौभा यशाली पु ा त ह गे, जनक तीन लोक म पूजा होगी’ ।। २७ ।। उवाच चैनां भगवान् क यपः पुनरेव ह । धायताम मादे न गभ ऽयं सुमहोदयः ।। २८ ।। इतना कहकर भगवान् क यपने पुनः वनतासे कहा—‘दे व! यह गभ महान् अ युदयकारी होगा, अतः इसे सावधानीसे धारण करो ।। २८ ।। एतौ सवपत ीणा म वं कार य यतः । लोकस भा वतौ वीरौ काम पौ वहंगमौ ।। २९ ।। ‘तु हारे ये दोन पु स पूण प य के इ पदका उपभोग करगे। व पसे प ी होते ए भी इ छानुसार प धारण करनेम समथ और लोक-स भा वत वीर ह गे’ ।। २९ ।। शत तुमथोवाच ीयमाणः जाप तः । व सहायौ महावीय ातरौ ते भ व यतः ।। ३० ।। नैता यां भ वता दोषः सकाशात् ते पुर दर । ेतु ते श संताप वमेवे ो भ व य स ।। ३१ ।। वनतासे ऐसा कहकर स ए जाप तने शत तु इ से कहा—‘पुर दर! ये दोन महापरा मी ाता तु हारे सहायक ह गे। तु ह इनसे कोई हा न नह होगी। इ ! तु हारा संताप र हो जाना चा हये। दे वता के इ तु ह बने रहोगे ।। ३०-३१ ।। े



न चा येवं वया भूयः े त ा वा दनः । न चावमा या दपात् ते वा व ा भृशकोपनाः ।। ३२ ।। ‘एक बात यान रखना—आजसे फर कभी तुम घमंडम आकर वाद महा मा का उपहास और अपमान न करना; य क उनके पास वाणी प अमोघ व है तथा वे ती ण कोपवाले होते ह’ ।। ३२ ।। एवमु ो जगामे ो न वशङ् क व पम् । वनता चा प स ाथा बभूव मु दता तथा ।। ३३ ।। क यपजीके ऐसा कहनेपर दे वराज इ नःशंक होकर वगलोकम चले गये। अपना मनोरथ स होनेसे वनता भी ब त स ई ।। ३३ ।। जनयामास पु ौ ाव णं ग डं तथा । वकला ोऽ ण त भा कर य पुरःसरः ।। ३४ ।। उसने दो पु उ प कये—अ ण और ग ड। जनके अंग कुछ अधूरे रह गये थे, वे अ ण कहलाते ह, वे ही सूयदे वके सार थ बनकर उनके आगे-आगे चलते ह ।। ३४ ।। पत ीणां च ग ड म वेना य ष चत । त यैतत् कम सुमह छयतां भृगुन दन ।। ३५ ।। भृगन ु दन! सरे पु ग डका प य के इ -पदपर अ भषेक कया गया। अब तुम ग डका यह महान् परा म सुनो ।। ३५ ।। इ त ीमहाभारते आ दपव ण आ तीकपव ण सौपण एक शोऽ यायः ।। ३१ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत आ तीकपवम ग डच र वषयक इकतीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ३१ ।।

ा शोऽ यायः ग डका दे वताक े साथ यु

और दे वता

क पराजय

सौ त वाच तत त मन् ज े समुद ण तथा वधे । ग डः प राट् तूण स ा तो वबुधान् त ।। १ ।। तं ् वा तबलं चैव ाक प त सुरा ततः । पर परं च य नन् सव हरणा युत ।। २ ।। उ वाजी कहते ह— ज े ! दे वता का समुदाय जब इस कार भाँ त-भाँ तके अ -श से स प हो यु के लये उ त हो गया, उसी समय प राज ग ड तुरंत ही दे वता के पास जा प ँचे। उन अ य त बलवान् ग डको दे खकर स पूण दे वता काँप उठे । उनके सभी आयुध आपसम ही आघात- याघात करने लगे ।। १-२ ।। त चासीदमेया मा व ुद नसम भः । भौमनः सुमहावीयः सोम य प रर ता ।। ३ ।। वहाँ व ुत् एवं अ नके समान तेज वी और महापरा मी अमेया मा भौमन ( व कमा) अमृतक र ा कर रहे थे ।। ३ ।। स तेन पतगे े ण प तु डनख तः । मुतमतुलं यु ं कृ वा व नहतो यु ध ।। ४ ।। वे प राजके साथ दो घड़ीतक अनुपम यु करके उनके पंख, च च और नख से घायल हो उस रणांगणम मृतकतु य हो गये ।। ४ ।। रज ोद्धूय सुमहत् प वातेन खेचरः । कृ वा लोकान् नरालोकां तेन दे वानवा करत् ।। ५ ।। तदन तर प राजने अपने पंख क च ड वायुसे ब त धूल उड़ाकर सम त लोक म अ धकार फैला दया और उसी धूलसे दे वता को ढक दया ।। ५ ।। तेनावक णा रजसा दे वा मोहमुपागमन् । न चैवं द शु छ ा रजसामृतर णः ।। ६ ।। उस धूलसे आ छा दत होकर दे वता मो हत हो गये। अमृतक र ा करनेवाले दे वता भी इसी कार धूलसे ढक जानेके कारण कुछ दे ख नह पाते थे ।। ६ ।। एवं संलोडयामास ग ड दवालयम् । प तु ड हारै तु दे वान् स वददार ह ।। ७ ।। इस तरह ग डने वगलोकको ाकुल कर दया और पंख तथा च च क मारसे दे वता का अंग-अंग वद ण कर डाला ।। ७ ।। ततो दे वः सह ा तूण वायुमचोदयत् । व पेमां रजोवृ तवेदं कम मा त ।। ८ ।। े













तब सह ने वाले इ दे वने तुरंत ही वायुको आ ा द —‘मा त! तुम इस धूलक वृ को र हटा दो; य क यह काम तु हारे ही वशका है’ ।। ८ ।। अथ वायुरपोवाह तद् रज तरसा बली । ततो व त मरे जाते दे वाः शकु नमादयन् ।। ९ ।। तब बलवान् वायुदेवने बड़े वेगसे उस धूलको र उड़ा दया। इससे वहाँ फैला आ अ धकार र हो गया। अब दे वता अपने अ -श ारा प ी ग डको पी डत करने लगे ।। ९ ।। ननादो चैः स बलवान् महामेघ इवा बरे । व यमानः सुरगणैः सवभूता न भीषयन् ।। १० ।। दे वता के हारको सहते ए महाबली ग ड आकाशम छाये ए महामेघक भाँ त सम त ा णय को डराते ए जोर-जोरसे गजना करने लगे ।। १० ।। उ पपात महावीयः प राट् परवीरहा । समु प या त र थं दे वानामुप र थतम् ।। ११ ।। व मणो वबुधाः सव नानाश ैरवा करन् । प शैः प रघैः शूलैगदा भ सवासवाः ।। १२ ।। श ुवीर का संहार करनेवाले प राज बड़े परा मी थे। वे आकाशम ब त ऊँचे उड़ गये। उड़कर अ त र म दे वता के ऊपर (ठ क सरक सीधम) खड़े हो गये। उस समय कवच धारण कये इ आ द स पूण दे वता उनपर प श, प रघ, शूल और गदा आ द नाना कारके अ -श ारा हार करने लगे ।। ११-१२ ।। ुर ै व लतै ा प च ै रा द य प भः । नानाश वसग तैव यमानः सम ततः ।। १३ ।। अ नके समान व लत ुर , सूयके समान उ ा सत होनेवाले च तथा नाना कारके सरे- सरे श के हार ारा उनपर सब ओरसे मार पड़ रही थी ।। १३ ।। कुवन् सुतुमुलं यु ं प रा न क पत । नदह व चाकाशे वैनतेयः तापवान् । प ा यामुरसा चैव सम ताद् ा पत् सुरान् ।। १४ ।। तो भी प राज ग ड दे वता के साथ तुमुल यु करते ए त नक भी वच लत न ए। परम तापी वनतान दन ग डने, मानो दे वता को द ध कर डालगे, इस कार रोषम भरकर आकाशम खड़े-खड़े ही पंख और छातीके ध केसे उन सबको चार ओर मार गराया ।। १४ ।। ते व ता ततो दे वा वुग डा दताः । नखतु ड ता ैव सु ुवुः शो णतं ब ।। १५ ।। ग डसे पी ड़त और र फके गये दे वता इधर-उधर भागने लगे। उनके नख और च चसे त- व त हो वे अपने अंग से ब त-सा र बहाने लगे ।। १५ ।। सा याः ाच सग धवा वसवो द णां दशम् । ज मुः स हता ाः पतगे ध षताः ।। १६ ।। े ो औ ओ े

प राजसे परा जत हो सा य और ग धव पूव दशाक ओर भाग चले। वसु तथा ने द ण दशाक शरण ली ।। १६ ।। दशं तीचीमा द या नास यावु रां दशम् । मु मु ः े माणा यु यमाना महौजसः ।। १७ ।। आ द यगण प म दशाक ओर भागे तथा अ नीकुमार ने उ र दशाका आ य लया। ये महा-परा मी यो ा बार-बार पीछे क ओर दे खते ए भाग रहे थे ।। १७ ।। अ दे न वीरेण रेणुकेन च प राट् । थनेन च शूरेण तपनेन च खेचरः ।। १८ ।। उलूक सना यां च नमेषेण च प राट् । जेन च सं ामं चकार पु लनेन च ।। १९ ।। इसके बाद आकाशचारी प राज ग डने वीर अ द, रेणुक, शूरवीर थन, तपन, उलूक, सन, नमेष, ज तथा पु लन—इन नौ य के साथ यु कया ।। १८-१९ ।। तान् प नखतु डा ैर भनद् वनतासुतः । युगा तकाले सं ु ः पनाक व परंतपः ।। २० ।। श ु का दमन करनेवाले वनताकुमारने लय-कालम कु पत ए पनाकधारी क भाँ त ोधम भरकर उन सबको पंख , नख और च चके अ भागसे वद ण कर डाला ।। २० ।। महाबला महो साहा तेन ते ब धा ताः । रेजुर घन या धरौघ व षणः ।। २१ ।। वे सभी य बड़े बलवान् और अ य त उ साही थे; उस यु म ग ड ारा बार-बार त- व त होकर वे सूनक धारा बहाते ए बादल क भाँ त शोभा पा रहे थे ।। २१ ।। तान् कृ वा पतग े ः सवानु ा तजी वतान् । अ त ा तोऽमृत याथ सवतोऽ नमप यत ।। २२ ।। प राज उन सबके ाण लेकर जब अमृत उठानेके लये आगे बढ़े , तब उसके चार ओर उ ह ने आग जलती दे खी ।। २२ ।। आवृ वानं महा वालम च भः सवतोऽ बरम् । दह त मव ती णांशुं च डवायुसमी रतम् ।। २३ ।। वह आग अपनी लपट से वहाँके सम त आकाशको आवृत कये ए थी। उससे बड़ी ऊँची वालाएँ उठ रही थ । वह सूयम डलक भाँ त दाह उ प करती और च ड वायुसे े रत हो अ धका धक व लत होती रहती थी ।। २३ ।। ततो नव या नवतीमुखानां कृ वा महा मा ग ड तर वी । नद ः समापीय मुखै तत तैः सुशी माग य पुनजवेन ।। २४ ।। वल तम नं तम म तापनः समा तर प रथो नद भः । े

ततः च े वपुर यद पं वे ु कामोऽ नम भ शा य ।। २५ ।। तब वेगशाली महा मा ग डने अपने शरीरम आठ हजार एक सौ मुख कट करके उनके ारा न दय का जल पी लया और पुनः बड़े वेगसे शी तापूवक वहाँ आकर उस जलती ई आगपर वह सब जल उड़ेल दया। इस कार श ु को ताप दे नेवाले प वाहन ग डने न दय के जलसे उस आगको बुझाकर अमृतके पास प ँचनेक इ छासे एक सरा ब त छोटा प धारण कर लया ।। २४-२५ ।। इ त ीमहाभारते आ दपव ण आ तीकपव ण सौपण ा शोऽ यायः ।। ३२ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत आ तीकपवम ग डच र वषयक ब ीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ३२ ।।



ंशोऽ यायः

ग डका अमृत लेकर लौटना, मागम भगवान् व णुसे वर पाना एवं उनपर इ के ारा व - हार सौ त वाच जा बूनदमयो भू वा मरी च नकरो वलः । ववेश बलात् प ी वा रवेग इवाणवम् ।। १ ।। उ वाजी कहते ह—तदन तर जैसे जलका वेग समु म वेश करता है, उसी कार प राज ग ड सूयक करण के समान काशमान सुवणमय व प धारण करके बलपूवक जहाँ अमृत था, उस थानम घुस गये ।। १ ।। सच ं ुरपय तमप यदमृता तके । प र म तम नशं ती णधारमय मयम् ।। २ ।। उ ह ने दे खा, अमृतके नकट एक लोहेका च घूम रहा है। उसके चार ओर छु रे लगे ए ह। वह नर तर चलता रहता है और उसक धार बड़ी तीखी है ।। २ ।। वलनाक भं घोरं छे दनं सोमहा रणाम् । घोर पं तद यथ य ं दे वैः सु न मतम् ।। ३ ।। वह घोर च अ न और सूयके समान जा व यमान था। दे वता ने उस अ य त भयंकर य का नमाण इस लये कया था क वह अमृत चुरानेके लये आये ए चोर के टु कड़े-टु कड़े कर डाले ।। ३ ।। त या तरं स ् वैव पयवतत खेचरः । अरा तरेणा यपतत् सं या ं णेन ह ।। ४ ।। प ी ग ड उसके भीतरका छ —उसम घुसनेका माग दे खते ए खड़े रहे। फर एक णम ही वे अपने शरीरको संकु चत करके उस च के अर के बीचसे होकर भीतर घुस गये ।। ४ ।। अध य चैवा द तानलसम ुती । व ु ज ौ महावीय द ता यौ द तलोचनौ ।। ५ ।। च ु वषौ महाघोरौ न यं ु ौ तर वनौ । र ाथमेवामृत य ददश भुजगो मौ ।। ६ ।। वहाँ च के नीचे अमृतक र ाके लये ही दो े सप नयु कये गये थे। उनक का त व लत अ नके समान जान पड़ती थी। बजलीके समान उनक लपलपाती ई जीभ, दे द यमान मुख और चमकती ई आँख थ । वे दोन सप बड़े परा मी थे। उनके ने म ही वष भरा था। वे बड़े भयंकर, न य ोधी और अ य त वेगशाली थे। ग डने उन दोन को दे खा ।। ५-६ ।। सदा संरधनयनौ सदा चा न मषे णौ । ो े ो





तयोरेकोऽ प यं प येत् स तूण भ मसाद् भवेत् ।। ७ ।। उनके ने म सदा ोध भरा रहता था। वे नर तर एकटक से दे खा करते थे (उनक आँख कभी बंद नह होती थ )। उनमसे एक भी जसे दे ख ले, वह त काल भ म हो सकता था ।। ७ ।। तयो ूं ष रजसा सुपणः सहसावृणोत् । ता याम पोऽसौ सवतः समताडयत् ।। ८ ।। सुंदर पंखवाले ग डजीने सहसा धूल झ ककर उनक आँख बंद कर द और उनसे अ य रहकर ही वे सब ओरसे उ ह मारने और कुचलने लगे ।। ८ ।। तयोर े समा य वैनतेयोऽ त र गः । आ छनत् तरसा म ये सोमम य वत् ततः ।। ९ ।। समु पा ामृतं त वैनतेय ततो बली । उ पपात जवेनैव य मु मय वीयवान् ।। १० ।। आकाशम वचरनेवाले महापरा मी वनता-कुमारने वेगपूवक आ मण करके उन दोन सप के शरीरको बीचसे काट डाला; फर वे अमृतक ओर झपटे और च को तोड़फोड़कर अमृतके पा को उठाकर बड़ी तेजीके साथ वहाँसे उड़ चले ।। ९-१० ।। अपी वैवामृतं प ी प रगृ ाशु नःसृतः । आग छदप र ा त आवायाक भां ततः ।। ११ ।। उ ह ने वयं अमृतको नह पीया, केवल उसे लेकर शी तापूवक वहाँसे नकल गये और सूयक भाका तर कार करते ए बना थकावटके चले आये ।। ११ ।। व णुना च तदाकाशे वैनतेयः समे यवान् । त य नारायण तु तेनालौ येन कमणा ।। १२ ।। उस समय आकाशम वनतान दन ग डक भगवान् व णुसे भट हो गयी। भगवान् नारायण ग डके लोलुपतार हत परा मसे ब त संतु ए थे ।। १२ ।। तमुवाचा यो दे वो वरदोऽ मी त खेचरम् । स व े तव त ेयमुपरी य त र गः ।। १३ ।। अतः उन अ वनाशी भगवान् व णुने आकाशचारी ग डसे कहा—‘म तु ह वर दे ना चाहता ँ।’ अ त र म वचरनेवाले ग डने यह वर माँगा—‘ भो! म आपके ऊपर ( वजम) थत होऊँ’ ।। १३ ।। उवाच चैनं भूयोऽ प नारायण मदं वचः । अजर ामर याममृतेन वना यहम् ।। १४ ।। इतना कहकर वे भगवान् नारायणसे फर य बोले—‘भगवन्! म अमृत पीये बना ही अजर-अमर हो जाऊँ’ ।। १४ ।। एवम व त तं व णु वाच वनतासुतम् । तगृ वरौ तौ च ग डो व णुम वीत् ।। १५ ।। तब भगवान् व णुने वनतान दन ग डसे कहा—‘एवम तु’—ऐसा ही हो। वे दोन वर हण करके ग डने भगवान् व णुसे कहा— ।। १५ ।। े ो

भवतेऽ प वरं द ां वृणोतु भगवान प । तं व े वाहनं व णुग म तं महाबलम् ।। १६ ।। ‘दे व! म भी आपको वर दे ना चाहता ँ। भगवान् भी कोई वर माँग।’ तब ीह रने महाबली ग मान्से अपना वाहन होनेका वर माँगा ।। १६ ।। वजं च च े भगवानुप र था यसी त तम् । एवम व त तं दे वमु वा नारायणं खगः ।। १७ ।। व ाज तरसा वेगाद् वायुं पधन् महाजवः । तं ज तं खग े ं व ेणे ोऽ यताडयत् ।। १८ ।। हर तममृतं रोषाद् ग डं प णां वरम् । भगवान् व णुने ग डको अपना वज बना लया—उ ह वजके ऊपर थान दया और कहा—‘इस कार तुम मेरे ऊपर रहोगे।’ तदन तर उन भगवान् नारायणसे ‘एवम तु’ कहकर प ी ग ड वहाँसे वेग-पूवक चले गये। महान् वेगशाली ग ड उस समय वायुसे होड़ लगाते चल रहे थे। प य के सरदार उन खग े ग डको अमृतका अपहरण करके लये जाते दे ख इ ने रोषम भरकर उनके ऊपर वसे आघात कया ।। १७-१८ ।। तमुवाचे मा दे ग डः पततां वरः ।। १९ ।। हस णया वाचा तथा व समाहतः । ऋषेमानं क र या म व ं य या थस भवम् ।। २० ।। व य च क र या म तवैव च शत तो । एतत् प ं यजा येकं य या तं नोपल यसे ।। २१ ।। वहंग वर ग डने उस यु म वाहत होकर भी हँसते ए मधुर वाणीम इ से कहा —‘दे वराज! जनक हीसे यह व बना है, उन मह षका स मान म अव य क ँ गा। शत तो! ऋ षके साथ-साथ तु हारा और तु हारे वका भी आदर क ँ गा; इसी लये म अपनी एक पाँख, जसका तुम कह अ त नह पा सकोगे, याग दे ता ँ ।। १९—२१ ।। न च व नपातेन जा मेऽ तीह काचन । एवमु वा ततः प मु ससज स प राट् ।। २२ ।। ‘तु हारे वक े हारसे मेरे शरीरम कुछ भी पीड़ा नह ई है।’ ऐसा कहकर प राजने अपना एक पंख गरा दया ।। २२ ।। त सृ म भ े य त य पणमनु मम् । ा न सवभूता न नाम च ु ग मतः ।। २३ ।। उस गरे ए परम उ म पंखको दे खकर सब ा णय को बड़ा हष आ और उसीके आधारपर उ ह ने ग डका नामकरण कया ।। २३ ।। सु पं प माल य सुपण ऽयं भव व त । तद् ् वा महदा य सह ा ः पुर दरः । खगो मह ददं भूत म त म वा यभाषत ।। २४ ।। ँ









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वह सु दर पाँख दे खकर लोग ने कहा—‘ जसका यह सु दर पण (पंख) है, वह प ी सुपण नामसे व यात हो।’ (ग डपर व भी न फल हो गया) यह महान् आ यक बात दे खकर सह ने वाले इ ने मन-ही-मन वचार कया—अहो! यह प ी पम कोई महान् ाणी है, ऐसा सोचकर उ ह ने कहा ।। २४ ।। श उवाच बलं व ातु म छा म यत् ते परमनु मम् । स यं चान त म छा म वया सह खगो म ।। २५ ।। इ ने कहा— वहंग वर! म तु हारे सव म उ कृ बलको जानना चाहता ँ और तु हारे साथ ऐसी मै ी था पत करना चाहता ँ, जसका कभी अ त न हो ।। २५ ।। इ त ीमहाभारते आ दपव ण आ तीकपव ण सौपण य ंशोऽ यायः ।। ३३ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत आ तीकपवम ग डच र वषयक ततीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ३३ ।।

चतु इ

ंशोऽ यायः

और ग डक म ता, ग डका अमृत लेकर नाग के पास आना और वनताको दासीभावसे छु ड़ ाना तथा इ ारा अमृतका अपहरण

ग ड उवाच स यं मेऽ तु वया दे व यथे छ स पुर दर । बलं तु मम जानी ह मह चास मेव च ।। १ ।। ग डने कहा—दे व पुर दर! जैसी तु हारी इ छा है, उसके अनुसार तु हारे साथ (मेरी) म ता था पत हो। मेरा बल भी जान लो, वह महान् और अस है ।। १ ।। कामं नैतत् शंस त स तः वबलसं तवम् । गुणसंक तनं चा प वयमेव शत तो ।। २ ।। शत तो! साधु पु ष वे छासे अपने बलक तु त और अपने ही मुखसे अपने गुण का बखान अ छा नह मानते ।। २ ।। सखे त कृ वा तु सखे पृ ो व या यहं वया । न ा म तवसंयु ं व म न म तः ।। ३ ।। कतु सखे! तुमने म मानकर पूछा है, इस लये म बता रहा ँ; य क अकारण ही अपनी शंसासे भरी ई बात नह कहनी चा हये ( कतु कसी म के पूछनेपर स ची बात कहनेम कोई हज नह है।) ।। ३ ।। सपवतवनामुव ससागरजला ममाम् । वहे प ेण वै श वाम य ावल बनम् ।। ४ ।। इ ! पवत, वन और समु के जलस हत सारी पृ वीको तथा इसके ऊपर रहनेवाले आपको भी अपने एक पंखपर उठाकर म बना प र मके उड़ सकता ँ ।। ४ ।। सवान् स प डतान् वा प लोकान् स थाणुज मान् । वहेयमप र ा तो व दं मे महद् बलम् ।। ५ ।। अथवा स पूण चराचर लोक को एक करके य द मेरे ऊपर रख दया जाय तो म सबको बना प र मके ढो सकता ँ। इससे तुम मेरे महान् बलको समझ लो ।। ५ ।। सौ त वाच इ यु वचनं वीरं करीट ीमतां वरः । आह शौनक दे वे ः सवलोक हतः भुः ।। ६ ।। एवमेव यथा थ वं सव स भा ते व य । संगृ ता मदान मे स यम य तमु मम् ।। ७ ।। ी















उ वाजी कहते ह—शौनक! वीरवर ग डके इस कार कहनेपर ीमान म े करीटधारी सवलोक- हतकारी भगवान् दे वे ने कहा—‘ म ! तुम जैसा कहते हो, वैसी ही बात है। तुमम सब कुछ स भव है। इस समय मेरी अ य त उ म म ता वीकार करो ।। ६-७ ।। न काय य द सोमेन मम सोमः द यताम् । अ मां ते ह बाधेयुय यो द ाद् भवा नमम् ।। ८ ।। ‘य द तु ह वयं अमृतक आव यकता नह है तो वह मुझे वापस दे दो। तुम जनको यह अमृत दे ना चाहते हो, वे इसे पीकर हम क प ँचावगे’ ।। ८ ।। ग ड उवाच क चत् कारणमु य सोमोऽयं नीयते मया । न दा या म समादातुं सोमं क मै चद यहम् ।। ९ ।। य ेमं तु सह ा न पेयमहं वयम् । वमादाय तत तूण हरेथा दवे र ।। १० ।। ग डने कहा— वगके साट ् सहा ! कसी कारणवश म यह अमृत ले जाता ँ। इसे कसीको भी पीनेके लये नह ँ गा। म वयं जहाँ इसे रख ँ , वहाँसे तुरंत तुम उठा ले जा सकते हो ।। ९-१० ।। श उवाच वा येनानेन तु ोऽहं यत् वयो महा डज । य म छ स वरं म तं गृहाण खगो म ।। ११ ।। इ बोले—प राज! तुमने यहाँ जो बात कही है, उससे म ब त संतु तुम मुझसे जो चाहो, वर माँग लो ।। ११ ।। सौ त वाच

ँ। खग े !

इ यु ः युवाचेदं क प ू ु ाननु मरन् । मृ वा चैवोप धकृतं मातुदा य न म तः ।। १२ ।। ईशोऽहम प सव य क र या म तु तेऽ थताम् । भवेयुभुजगाः श मम भ या महाबलाः ।। १३ ।। उ वाजी कहते ह—इ के ऐसा कहनेपर ग डको क प ू ु क ताका मरण हो आया। साथ ही उनके उस कपटपूण बतावक भी याद आ गयी, जो माताको दासी बनानेम कारण था। अतः उ ह ने इ से कहा—‘इ ! य प म सब कुछ करनेम समथ ँ, तो भी तु हारी इस याचनाको पूण क ँ गा क अमृत सर को न दया जाय। साथ ही तु हारे कथनानुसार यह वर भी माँगता ँ क महाबली सप मेरे भोजनक साम ी हो जायँ’ ।। १२-१३ ।। तथे यु वा वग छत् तं ततो दानवसूदनः । दे वदे वं महा मानं यो गनामी रं ह रम् ।। १४ ।। ‘



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तब दानवश ु इ ‘तथा तु’ कहकर योगी र दे वा धदे व परमा मा ीह रके पास गये ।। १४ ।। स चा वमोदत् तं चाथ यथो ं ग डेन वै । इदं भूयो वचः ाह भगवां दशे रः ।। १५ ।। ह र या म व न तं सोम म यनुभा य तम् । आजगाम तत तूण सुपण मातुर तकम् ।। १६ ।। ीह रने भी ग डक कही ई बातका अनुमोदन कया। तदन तर वगलोकके वामी भगवान् इ पुनः ग डको स बो धत करके इस कार बोले—‘तुम जस समय इस अमृतको कह रख दोगे उसी समय म इसे हर ले आऊँगा’ (ऐसा कहकर इ चले गये)। फर सु दर पंखवाले ग ड तुरंत ही अपनी माताके समीप आ प ँचे ।। १५-१६ ।। अथ सपानुवाचेदं सवान् परम वत् । इदमानीतममृतं न े या म कुशेषु वः ।। १७ ।। नाता मंगलसंयु ा ततः ाीत प गाः । भव रदमासीनैय ं त च तदा ।। १८ ।। अदासी चैव मातेयम भृ त चा तु मे । यथो ं भवतामेतद् वचो मे तपा दतम् ।। १९ ।। तदन तर अ य त स -से होकर वे सम त सप से इस कार बोले—‘प गो! मने तु हारे लये यह अमृत ला दया है। इसे कुश पर रख दे ता ँ। तुम सब लोग नान और मंगल-कम ( व त-वाचन आ द) करके इस अमृतका पान करो। अमृतके लये भेजते समय तुमने यहाँ बैठकर मुझसे जो बात कही थ , उनके अनुसार आजसे मेरी ये माता दासीपनसे मु हो जायँ; य क तुमने मेरे लये जो काम बताया था, उसे मने पूण कर दया है’ ।। १७—१९ ।। ततः नातुं गताः सपाः यु वा तं तथे युत । श ोऽ यमृतमा य जगाम दवं पुनः ।। २० ।। तब सपगण ‘तथा तु’ कहकर नानके लये गये। इसी बीचम इ वह अमृत लेकर पुनः वगलोकको चले गये ।। २० ।। अथागता तमुददे् शं सपाः सोमा थन तदा । नाता कृतज या ाः कृतमंगलाः ।। २१ ।। य ैतदमृतं चा प था पतं कुशसं तरे । तद् व ाय तं सपाः तमायाकृतं च तत् ।। २२ ।। इसके अन तर अमृत पीनेक इ छावाले सप नान, जप और मंगल-काय करके स तापूवक उस थानपर आये, जहाँ कुशके आसनपर अमृत रखा गया था। आनेपर उ ह मालूम आ क कोई उसे हर ले गया। तब सप ने यह सोचकर संतोष कया क यह हमारे कपटपूण बतावका बदला है ।। २१-२२ ।। सोम थान मदं चे त दभा ते ल ल तदा । ततो धाकृता ज ाः सपाणां तेन कमणा ।। २३ ।। ँ े ै

फर यह समझकर क यहाँ अमृत रखा गया था, इस लये स भव है इसम उसका कुछ अंश लगा हो, सप ने उस समय कुश को चाटना शु कया। ऐसा करनेसे सप क जीभके दो भाग हो गये ।। २३ ।। अभवं ामृत पशाद् दभा तेऽथ प व णः । एवं तदमृतं तेन तमा तमेव च । ज ा कृताः सपा ग डेन महा मना ।। २४ ।। तभीसे प व अमृतका पश होनेके कारण कुश क ‘प व ी’ सं ा हो गयी। इस कार महा मा ग डने दे वलोकसे अमृतका अपहरण कया और सप के समीपतक उसे प ँचाया; साथ ही सप को ज (दो ज ा से यु ) बना दया ।। २४ ।। ततः सुपणः परम हषवान् व य मा ा सह त कानने । भुज भ ः परमा चतः खगैरहीनक त वनतामन दयत् ।। २५ ।। उस दनसे सु दर पंखवाले ग ड अ य त स हो अपनी माताके साथ रहकर वहाँ वनम इ छानुसार घूमने- फरने लगे। वे सप को खाते और प य से सादर स मा नत होकर अपनी उ वल क त चार ओर फैलाते ए माता वनताको आन द दे ने लगे ।। २५ ।। इमां कथां यः शृणुया रः सदा पठ े त वा जगणमु यसंस द । असंशयं दव मयात् स पु यभाक् महा मनः पतगपतेः क तनात् ।। २६ ।। जो मनु य इस कथाको े ज क उ म गो ीम सदा पढ़ता अथवा सुनता है, वह प राज महा मा ग डके गुण का गान करनेसे पु यका भागी होकर न य ही वगलोकम जाता है ।। २६ ।। इ त ीमहाभारते आ दपव ण आ तीकपव ण सौपण चतु ंशोऽ यायः ।। ३४ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत आ तीकपवम ग डच र वषयक च तीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ३४ ।।

प च शोऽ यायः मु य-मु य नाग के नाम शौनक उवाच भुज मानां शाप य मा ा चैव सुतेन च । वनताया वया ो ं कारणं सूतन दन ।। १ ।। शौनकजीने कहा—सूतन दन! सप को उनक मातासे और वनता दे वीको उनके पु से जो शाप ा त आ था, उसका कारण आपने बता दया ।। १ ।। वर दानं भ ा च क ू वनतयो तथा । नामनी चैव ते ो े प णोवनतेययोः ।। २ ।। क ू और वनताको उनके प त क यपजीसे जो वर मले थे, वह कथा भी कह सुनायी तथा वनताके जो दोन पु प ी पम कट ए थे, उनके नाम भी आपने बताये ह ।। २ ।। प गानां तु नामा न न क तय स सूतज । ाधा येना प नामा न ोतु म छामहे वयम् ।। ३ ।। कतु सूतपु ! आप सप के नाम नह बता रहे ह। य द सबका नाम बताना स भव न हो, तो उनम जो मु य-मु य सप ह, उ ह के नाम हम सुनना चाहते ह ।। ३ ।। सौ त वाच ब वा ामधेया न प गानां तपोधन । न क त य ये सवषां ाधा येन तु मे शृणु ।। ४ ।। उ वाजीने कहा—तपोधन! सप क सं या ब त है; अतः उन सबके नाम तो नह क ँगा, कतु उनम जो मु य-मु य सप ह, उनके नाम मुझसे सु नये ।। ४ ।। शेषः थमतो जातो वासु क तदन तरम् । ऐरावत त क कक टकधनंजयौ ।। ५ ।। का लयो म णनाग नाग ापूरण तथा । नाग तथा प रक एलाप ोऽथ वामनः ।। ६ ।। नीलानीलौ तथा नागौ क माषशबलौ तथा । आयक ो क ैव नागः कलशपोतकः ।। ७ ।। सुमना यो द धमुख तथा वमल प डकः । आ तः कक टक ैव शङ् खो वा ल शख तथा ।। ८ ।। न ानको हेमगुहो न षः प ल तथा । बा कण ह तपद तथा मुदगर ् प डकः ।। ९ ।। क बला तरौ चा प नागः कालीयक तथा । वृ संवतकौ नागौ ौ च पा व त ुतौ ।। १० ।। ै



नागः शङ् खमुख ैव तथा कू मा डकोऽपरः । ेमक तथा नागो नागः प डारक तथा ।। ११ ।। करवीरः पु पदं ो ब वको ब वपा डु रः । मूषकादः शङ् ख शराः पूणभ ो ह र कः ।। १२ ।। अपरा जतो यो तक प गः ीवह तथा । कौर ो धृतरा शङ् ख प ड वीयवान् ।। १३ ।। वरजा सुबा शा ल प ड वीयवान् । ह त प डः पठरकः सुमुखः कौणपाशनः ।। १४ ।। कुठरः क ु र ैव तथा नागः भाकरः । कुमुदः कुमुदा त रह लक तथा ।। १५ ।। कदम महानागो नाग ब मूलकः । ककराककरौ नागौ कु डोदरमहोदरौ ।। १६ ।। नाग म सबसे पहले शेषजी कट ए ह। तदन तर वासु क, ऐरावत, त क, कक टक, धनंजय, का लय, म णनाग, आपूरण, पजरक, एलाप , वामन, नील, अनील, क माष, शबल, आयक, उ क, कलशपोतक, सुमना य, द धमुख, वमल प डक, आ त, कक टक ( तीय), शंख, वा ल शख, न ानक, हेमगुह, न ष, पगल, बा कण, ह तपद, मुदगर ् प डक, क बल, अ तर, कालीयक, वृ , संवतक, प ( थम), प ( तीय), शंखमुख, कू मा डक, ेमक, प डारक, करवीर, पु पदं , ब वक, ब वपा डु र, मूषकाद, शंख शरा, पूणभ , ह र क, अपरा जत, यो तक, ीवह, कौर , धृतरा, परा मी शंख प ड, वरजा, सुबा , वीयवान् शा ल प ड, ह त प ड, पठरक, सुमुख, कौणपाशन, कुठर, कुंजर, भाकर, कुमुद, कुमुदा , त र, ह लक, महानाग कदम, ब मूलक, ककर, अककर, कु डोदर और महोदर—ये नाग उ प ए ।। ५—१६ ।। एते ाधा यतो नागाः क तता जस म । ब वा ामधेयाना मतरे नानुक तताः ।। १७ ।। ज े ! ये मु य-मु य नाग यहाँ बताये गये ह। सप क सं या अ धक होनेसे उनके नाम भी ब त ह। अतः अ य अ धान नाग के नाम यहाँ नह कहे गये ह ।। १७ ।। एतेषां सवो य सव य च संत तः । असं येये त म वा तान् न वी म तपोधन ।। १८ ।। तपोधन! इन नाग क संतान तथा उन संतान क भी संत त असं य ह। ऐसा समझकर उनके नाम म नह कहता ँ ।। १८ ।। बनीह सह ा ण युता यबुदा न च । अश या येव सं यातुं प गानां तपोधन ।। १९ ।। तप वी शौनकजी! नाग क सं या यहाँ कई हजार से लेकर लाख -अरब तक प ँच जाती है। अतः उनक गणना नह क जा सकती है ।। १९ ।। ी









इत

ीमहाभारते आ दपव ण आ तीकपव ण सपनामकथने प च शोऽ यायः ।। ३५ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत आ तीकपवम सपनामकथन वषयक पतीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ३५ ।।

षट् शोऽ यायः शेषनागक तप या, ाजीसे वर- ा त तथा पृ वीको सरपर धारण करना शौनक उवाच आ याता भुजगा तात वीयव तो रासदाः । शापं तं तेऽ भ व ाय कृतव तः कमु रम् ।। १ ।। शौनकजीने पूछा—तात सूतन दन! आपने महापरा मी और धष नाग का वणन कया। अब यह बताइये क माता क क ू े उस शापक बात मालूम हो जानेपर उ ह ने उसके नवारणके लये आगे चलकर कौन-सा काय कया? ।। १ ।। सौ त वाच तेषां तु भगवा छे षः क ूं य वा महायशाः । उ ं तपः समात थे वायुभ ो यत तः ।। २ ।। उ वाजीने कहा—शौनक! उन नाग मसे महा-यश वी भगवान् शेषनागने क क ू ा साथ छोड़कर कठोर तप या ार भ क । वे केवल वायु पीकर रहते और संयमपूवक तका पालन करते थे ।। २ ।। ग धमादनमासा बदया च तपोरतः । गोकण पु करार ये तथा हमवत तटे ।। ३ ।। तेषु तेषु च पु येषु तीथ वायतनेषु च । एका तशीलो नयतः सततं व जते यः ।। ४ ।। अपनी इ य को वशम करके सदा नयमपूवक रहते ए शेषजी ग धमादन पवतपर जाकर बद रका म तीथम तप करने लगे। त प ात् गोकण, पु कर, हमालयके तटवत दे श तथा भ - भ पु य-तीथ और दे वालय म जा-जाकर संयम- नयमके साथ एका तवास करने लगे ।। ३-४ ।। त यमानं तपो घोरं तं ददश पतामहः । संशु कमांस व नायुं जटाचीरधरं मु नम् ।। ५ ।। तम वीत् स यधृ त त यमानं पतामहः । क मदं कु षे शेष जानां व त वै कु ।। ६ ।। ाजीने दे खा, शेषनाग घोर तप कर रहे ह। उनके शरीरका मांस, वचा और ना ड़याँ सूख गयी ह। वे सरपर जटा और शरीरपर व कल व धारण कये मु नवृ से रहते ह। उनम स चा धैय है और वे नर तर तपम संल न ह। यह सब दे खकर ाजी उनके पास आये और बोले—‘शेष! तुम यह या कर रहे हो? सम त जाका क याण करो ।। ५-६ ।। वं ह ती ेण तपसा जा तापयसेऽनघ । े





ू ह कामं च मे शेष य ते द व थतः ।। ७ ।। ‘अनघ! इस ती तप याके ारा तुम स पूण जावगको संत त कर रहे हो। शेषनाग! तु हारे दयम जो कामना हो वह मुझसे कहो’ ।। ७ ।। शेष उवाच सोदया मम सव ह ातरो म दचेतसः । सह तैन सहे व तुं तद् भवाननुम यताम् ।। ८ ।। शेषनाग बोले—भगवन्! मेरे सब सहोदर भाई बड़े म दबु ह, अतः म उनके साथ नह रहना चाहता। आप मेरी इस इ छाका अनुमोदन कर ।। ८ ।। अ यसूय त सततं पर परम म वत् । ततोऽहं तप आ त ं नैतान् प येय म युत ।। ९ ।। वे सदा पर पर श ुक भाँ त एक- सरेके दोष नकाला करते ह। इससे ऊबकर म तप याम लग गया ँ; जससे म उ ह दे ख न सकूँ ।। ९ ।। न मषय त ससुतां सततं वनतां च ते । अ माकं चापरो ाता वैनतेयोऽ त र गः ।। १० ।। वे वनता और उसके पु से डाह रखते ह, इस लये उनक सुख-सु वधा सहन नह कर पाते। आकाशम वचरने-वाले वनतापु ग ड भी हमारे सरे भाई ही ह ।। १० ।। तं च ष त सततं स चा प बलव रः । वर दानात् स पतुः क यप य महा मनः ।। ११ ।। कतु वे नाग उनसे भी सदा े ष रखते ह। मेरे पता महा मा क यपजीके वरदानसे ग ड भी बड़े ही बलवान् ह ।। ११ ।। सोऽहं तपः समा थाय मो यामीदं कलेवरम् । कथं मे े यभावेऽ प न तैः यात् सह संगमः ।। १२ ।। इन सब कारण से मने यही न य कया है क तप या करके म इस शरीरको याग ँ गा, जससे मरनेके बाद भी कसी तरह उन के साथ मेरा समागम न हो ।। १२ ।। तमेवंवा दनं शेषं पतामह उवाच ह । जाना म शेष सवषां ातॄणां ते वचे तम् ।। १३ ।। ऐसी बात करनेवाले शेषनागसे पतामह ाजीने कहा—‘शेष! म तु हारे सब भाइय क कुचे ा जानता ँ’ ।। १३ ।। मातु ा यपराधाद् वै ातॄणां ते महद् भयम् । कृतोऽ प रहार पूवमेव भुज म ।। १४ ।। ‘माताका अपराध करनेके कारण न य ही तु हारे उन सभी भाइय के लये महान् भय उप थत हो गया है; परंतु भुजंगम! इस वषयम जो प रहार अपे त है, उसक व था मने पहलेसे ही कर रखी है ।। १४ ।। ातॄणां तव सवषां न शोकं कतुमह स । वृणी व च वरं म ः शेष यत् तेऽ भकाङ् तम् ।। १५ ।। ‘















‘अतः अपने स पूण भाइय के लये तु ह शोक नह करना चा हये। शेष! तु ह जो अभी हो, वह वर मुझसे माँग लो ।। १५ ।। दा या म ह वरं तेऽ ी तम परमा व य । द ा बु ते धम न व ा प गो म । भूयो भूय ते बु धम भवतु सु थरा ।। १६ ।। ‘तु हारे ऊपर मेरा बड़ा ेम है; अतः आज म तु ह अव य वर ँ गा। प गो म! यह सौभा यक बात है क तु हारी बु धमम ढ़तापूवक लगी ई है। म भी आशीवाद दे ता ँ क तु हारी बु उ रो र धमम थर रहे’ ।। १६ ।।

शेष उवाच एष एव वरो दे व काङ् तो मे पतामह । धम मे रमतां बु ः शमे तप स चे र ।। १७ ।। शेषजीने कहा—दे व! पतामह! परमे र! मेरे लये यही अभी वर है क मेरी बु सदा धम, मनो न ह तथा तप याम लगी रहे ।। १७ ।। ोवाच ीतोऽ यनेन ते शेष दमेन च शमेन च । वया वदं वचः काय म योगात् जा हतम् ।। १८ ।। ाजी बोले—शेष! तु हारे इस इ यसंयम और मनो न हसे म ब त स ँ। अब मेरी आ ासे जाके हतके लये यह काय, जसे म बता रहा ँ, तु ह करना चा हये ।। १८ ।। इमां मह शैलवनोपप ां ससागर ाम वहारप नाम् । वं शेष स यक् च लतां यथावत् संगृ त व यथाचला यात् ।। १९ ।। शेषनाग! पवत, वन, सागर, ाम, वहार और नगर स हत यह समूची पृ वी ायः हलती-डु लती रहती है। तुम इसे भलीभाँ त धारण करके इस कार थत रहो, जससे यह पूणतः अचल हो जाय ।। १९ ।।

ाजीने शेषजीको वरदान तथा पृवी धारण करनेक आ ा द

शेष उवाच यथाह दे वो वरदः जाप तमहीप तभूतप तजग प तः । तथा मह धार यता म न लां य छतां मे शर स जापते ।। २० ।। शेषनागने कहा— जापते! आप वरदायक दे वता, सम त जाके पालक, पृ वीके र क, भूत- ा णय के वामी और स पूण जगत्के अ धप त ह। आप जैसी आ ा दे ते ह, उसके अनुसार म इस पृ वीको इस तरह धारण क ँ गा, जससे यह हले-डु ले नह । आप इसे मेरे सरपर रख द ।। २० ।।

ोवाच अधो मह ग छ भुज मो म वयं तवैषा ववरं दा य त । इमां धरां धारयता वया ह मे महत् यं शेष कृतं भ व य त ।। २१ ।। ाजीने कहा—नागराज शेष! तुम पृ वीके नीचे चले जाओ। यह वयं तु ह वहाँ जानेके लये माग दे दे गी। इस पृ वीको धारण कर लेनेपर तु हारे ारा मेरा अ य त य काय स प हो जायगा ।। २१ ।।

सौ त वाच तथैव कृ वा ववरं व य स भुभुवो भुजगवरा जः थतः । बभ त दे व शरसा मही ममां समु नेम प रगृ सवतः ।। २२ ।। उ वाजी कहते ह—नागराज वासु कके बड़े भाई सवसमथ भगवान् शेषने ‘ब त अ छा’ कहकर ाजीक आ ा शरोधाय क और पृ वीके ववरम वेश करके समु से घरी ई इस वसुधा-दे वीको उ ह ने सब ओरसे पकड़कर सरपर धारण कर लया (तभीसे यह पृ वी थर हो गयी) ।। २२ ।। ोवाच शेषोऽ स नागो म धमदे वो मही ममां धारयसे यदे कः । अन तभोगैः प रगृ सवा यथाहमेवं बल भद् यथा वा ।। २३ ।। तदन तर ाजी बोले—नागो म! तुम शेष हो, धम ही तु हारा आरा यदे व है, तुम अकेले अपने अन त फण से इस सारी पृ वीको पकड़कर उसी कार धारण करते हो, जैसे म अथवा इ ।। २३ ।। ौ

सौ त वाच अधोभूमौ वस येवं नागोऽन तः तापवान् । धारयन् वसुधामेकः शासनाद् णो वभुः ।। २४ ।। उ वाजी कहते ह—शौनक! इस कार तापी नाग भगवान् अन त अकेले ही ाजीके आदे शसे इस सारी पृ वीको धारण करते ए भू मके नीचे पाताल-लोकम नवास करते ह ।। २४ ।। सुपण च सहायं वै भगवानमरो मः । ादादन ताय तदा वैनतेयं पतामहः ।। २५ ।। त प ात् दे वता म े भगवान् पतामहने शेषनागके लये वनतान दन ग डको सहायक बना दया ।। २५ ।। (अन ते च याते तु वासु कः सुमहाबलः । अ य ष यत नागै तु दै वतै रव वासवः ।।) अन त नागके चले जानेपर नाग ने महाबली वासु कका नागराजके पदपर उसी कार अ भषेक कया, जैसे दे वता ने इ का दे वराजके पदपर अ भषेक कया था। इत

ीमहाभारते आ दपव ण आ तीकपव ण शेषवृ कथने षट् शोऽ यायः ।। ३६ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत आ तीकपवम शेषनागवृ ा त-कथन वषयक छ ीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ३६ ।। (दा णा य अ धक पाठक े १ ोक मलाकर कुल २६ ोक ह)

स त शोऽ यायः माताके शापसे बचनेके लये वासु क आ द नाग का पर पर परामश सौ त वाच मातुः सकाशात् तं शापं ु वा वै प गो मः । वासु क तयामास शापोऽयं न भवेत् कथम् ।। १ ।। उ वाजी कहते ह—शौनक! माता क स ू े नाग के लये वह शाप ा त आ सुनकर नागराज वासु कको बड़ी च ता ई। वे सोचने लगे ‘ कस कार यह शाप र हो सकता है’ ।। १ ।। ततः स म यामास ातृ भः सह सवशः । ऐरावत भृ त भः सवधमपरायणैः ।। २ ।। तदन तर उ ह ने ऐरावत आ द सवधमपरायण ब धु के साथ उस शापके वषयम वचार कया ।। २ ।। वासु क वाच अयं शापो यथो ो व दतं व तथानघाः । त य शाप य मो ाथ म य वा यतामहे ।। ३ ।। सवषामेव शापानां तघातो ह व ते । न तु मा ा भश तानां मो ः वचन व ते ।। ४ ।। वासु क बोले— न पाप नागगण! माताने हम जस कार यह शाप दया है, वह सब आपलोग को व दत ही है। उस शापसे छू टनेके लये या उपाय हो सकता है? इसके वषयम सलाह करके हम सब लोग को उसके लये य न करना चा हये। सब शाप का तीकार स भव है, परंतु जो माताके शापसे त ह, उनके छू टनेका कोई उपाय नह है ।। ३-४ ।। अ य या मेय य स य य च तथा तः । श ता इ येव मे ु वा जायते द वेपथुः ।। ५ ।। अ वनाशी, अ मेय तथा स य व प ाजीके आगे माताने हम शाप दया है—यह सुनकर ही हमारे दयम क प छा जाता है ।। ५ ।। नूनं सव वनाशोऽयम माकं समुपागतः । न ेतां सोऽ यो दे वः शप त यषेधयत् ।। ६ ।। न य ही यह हमारे सवनाशका समय आ गया है, य क अ वनाशी दे व भगवान् ाने भी शाप दे ते समय माताको मना नह कया ।। ६ ।। त मात् स म यामोऽ भुज ानामनामयम् । े



यथा भवे सवषां मा नः कालोऽ यगादयम् ।। ७ ।। सव एव ह न तावद् बु म तो वच णाः । अ प म यमाणा ह हेतुं प याम मो णे ।। ८ ।। यथा न ं पुरा दे वा गुढम नं गुहागतम् । इस लये आज हम अ छ तरह वचार कर लेना चा हये क कस उपायसे हम सभी नाग कुशलपूवक रह सकते ह। अब हम थ समय नह गँवाना चा हये। हमलोग म ायः सब नाग बु मान् और चतुर ह। य द हम मल-जुलकर सलाह कर तो इस संकटसे छू टनेका कोई उपाय ढूँ ढ़ नकालगे; जैसे पूवकालम दे वता ने गुफाम छपे ए अ नको खोज नकाला था ।। ७-८ ।। यथा स य ो न भवेद ् यथा वा प पराभवः । जनमेजय य सपाणां वनाशकरणाय वै ।। ९ ।। सप के वनाशके लये आर भ होनेवाला जनमेजयका य जस कार टल जाय अथवा जस तरह उसम व न पड़ जाय, वह उपाय हम सोचना चा हये ।। ९ ।। सौ त वाच तथे यु वा ततः सव का वेयाः समागताः । समयं च रे त म बु वशारदाः ।। १० ।। उ वाजी कहते ह—शौनक! वहाँ एक ए सभी क प ू ु ‘ब त अ छा’ कहकर एक न यपर प ँच गये, य क वे नी तका न य करनेम नपुण थे ।। १० ।। एके त ा ुवन् नागा वयं भू वा जषभाः । जनमेजयं तु भ ामो य ते न भवे द त ।। ११ ।। उस समय वहाँ कुछ नाग ने कहा—‘हमलोग े ा ण बनकर जनमेजयसे यह भ ा माँग क तु हारा य न हो ‘ ।। ११ ।। अपरे व ुवन् नागा त प डतमा ननः । म णोउ य वयं सव भ व यामः सुस मताः ।। १२ ।। अपनेको बड़ा भारी प डत माननेवाले सरे नाग ने कहा—‘हम सब लोग जनमेजयके व ासपा म ी बन जायँगे ।। १२ ।। स नः य त सवषु काय वथ व न यम् । त बु दा यामो यथा य ो नव य त ।। १३ ।। ‘ फर वे सभी काय म अभी योजनका न य करनेके लये हमसे सलाह पूछगे। उस समय हम उ ह ऐसी बु दगे, जससे य होगा ही नह ।। १३ ।। स नो ब मतान् राजा बु या बु मतां वरः । य ाथ य त ं ने त व यामहे वयम् ।। १४ ।। ‘हम वहाँ ब त व त एवं स मा नत होकर रहगे। अतः बु मान म े राजा जनमेजय य के वषयम हमारी स म त जाननेके लये अव य पूछगे। उस समय हम प कह दगे—‘य न करो’ ।। १४ ।। ो







दशय तो बन् दोषान् े य चेह च दा णान् । हेतु भः कारणै ैव यथा य ो भवे सः ।। १५ ।। ‘हम यु य और कारण ारा यह दखायगे क उस य से इहलोक और परलोकम अनेक भयंकर दोष ा त ह गे; इससे वह य होगा ही नह ।। १५ ।। अथवा य उपा यायः तो त य भ व य त । सपस वधान ो राजकाय हते रतः ।। १६ ।। तं ग वा दशतां क द् भुज ः स म र य त । त मन् मृते य कारे तुः स न भ व य त ।। १७ ।। ‘अथवा जो उस य के आचाय ह गे, ज ह सपय क व धका ान हो और जो राजाके काय एवं हतम लगे रहते ह , उ ह कोई सप जाकर डँस ले। फर वे मर जायँगे। य करानेवाले आचायके मर जानेपर वह य अपने-आप बंद हो जायगा ।। १६-१७ ।। ये चा ये सपस ा भ व य य य च वजः । तां सवान् द श यामः कृतमेवं भ व य त ।। १८ ।। ‘आचायके सवा सरे जो-जो ा ण सपय क व धको जानते ह गे और जनमेजयके य म ऋ वज् बननेवाले ह गे, उन सबको हम डँस लगे। इस कार सारा काम बन जायगा’ ।। १८ ।। अपरे व ुवन् नागा धमा मानो दयालवः । अबु रेषा भवतां ह या न शोभनम् ।। १९ ।। यह सुनकर सरे धमा मा और दयालु नाग ने कहा—‘ऐसा सोचना तु हारी मूखता है। -ह या कभी शुभकारक नह हो सकती ।। १९ ।। स य स ममूला वै सने शा त मा । अधम रता नाम कृ नं ापादये जगत् ।। २० ।। ‘आप कालम शा तके लये वही उपाय उ म माना गया है जो भलीभाँ त े धमके अनुकूल कया गया हो। संकटसे बचनेके लये उ रो र अधम करनेक वृ तो स पूण जगत्का नाश कर डालेगी’ ।। २० ।। अपरे व ुवन् नागाः स म ं जातवेदसम् । वष नवाप य यामो मेघा भू वा स व ुतः ।। २१ ।। इसपर सरे नाग बोल उठे —‘ जस समय सपय के लये अ न व लत होगी, उस समय हम बज लय स हत मेघ बनकर पानीक वषा ारा उसे बुझा दगे ।। २१ ।। ु भा डं न श ग वा च अपरे भुजगो माः । म ानां हर वाशु व न एवं भ व य त ।। २२ ।। ‘ सरे े नाग रातम वहाँ जाकर असावधानीसे सोये ए ऋ वज के ुक ् , ुवा और य पा आ द शी चुरा लाव। इस कार उसम व न पड़ जायगा ।। २२ ।। य े वा भुजगा त म छतशोऽथ सह शः । जनान् दश तु वै सव नैवं ासो भ व य त ।। २३ ।। ‘













‘अथवा उस य म सभी सप जाकर सैकड़ और हजार मनु य को डँस ल; ऐसा करनेसे हमारे लये भय नह रहेगा ।। २३ ।। अथवा सं कृतं भो यं षय तु भुज माः । वेन मू पुरीषेण सवभो य वना शना ।। २४ ।। ‘अथवा सपगण उस य के सं कारयु भो य पदाथको अपने मल-मू ारा, जो सब कारक भोजन-साम ीका वनाश करनेवाले ह, षत कर द’ ।। २४ ।। अपरे व ुवं त ऋ वजोऽ य भवामहे । य व नं क र यामो द यतां द णा इ त ।। २५ ।। व यतां च गतोऽसौ नः क र य त यथे सतम् । इसके बाद अ य सप ने कहा—‘हम उस य म ऋ वज् हो जायँगे और यह कहकर क ‘हम मुँहमाँगी द णा दो’ य म व न खड़ा कर दगे। उस समय राजा हमारे वशम पड़कर जैसी हमारी इ छा होगी, वैसा करगे’ ।। २५ ।। अपरे व ुवं त जले डतं नृपम् ।। २६ ।। गृहमानीय ब नीमः तुरेवं भवे सः । फर अ य नाग बोले—‘जब राजा जनमेजय जल- ड़ा करते ह , उस समय उ ह वहाँसे ख चकर हम अपने घर ले आव और बाँधकर रख ल। ऐसा करनेसे वह य होगा ही नह ’— ।। २६ ।। अपरे व ुवं त नागाः प डतमा ननः ।। २७ ।। दशाम तं गृ ाशु कृतमेवं भ व य त । छ ं मूलमनथानां मृते त मन् भ व य त ।। २८ ।। इसपर अपनेको प डत माननेवाले सरे नाग बोल उठे —‘हम जनमेजयको पकड़कर डँस लगे।’ ऐसा करनेसे तुरंत ही सब काम बन जायगा। उस राजाके मरनेपर हमारे लये अनथ क जड़ ही कट जायगी ।। २७-२८ ।। एषा नो नै क बु ः सवषामी ण वः । अथ य म यसे राजन् तं तत् सं वधीयताम् ।। २९ ।। ‘ने से सुननेवाले नागराज! हम सब लोग क बु तो इसी न यपर प ँची है। अब आप जैसा ठ क समझते ह , वैसा शी कर’ ।। २९ ।। इ यु वा समुदै त वासु क प गो मम् । वासु क ा प सं च य तानुवाच भुज मान् ।। ३० ।। यह कहकर वे सप नागराज वासु कक ओर दे खने लगे। तब वासु कने भी खूब सोचवचारकर उन सप से कहा— ।। ३० ।। नैषा वो नै क बु मता कतु भुज माः । सवषामेव मे बु ः प गानां न रोचते ।। ३१ ।। ‘नागगण! तु हारी बु ने जो न य कया है, वह वहारम लानेयो य नह है। इसी कार मेरा वचार भी सब सप को जँच जाय, यह स भव नह है ।। ३१ ।।

क त सं वधात ं भवतां या तं तु यत् । ेयः साधनं म ये क यप य महा मनः ।। ३२ ।। ‘ऐसी दशाम या करना चा हये, जो तु हारे लये हतकर हो। मुझे तो महा मा क यपजीको स करनेम ही अपना क याण जान पड़ता है ।। ३२ ।। ा तवग य सौहादादा मन भुज माः । न च जाना त मे बु ः क चत् कतु वचो ह वः ।। ३३ ।। ‘भुजंगमो! अपने जा त-भाइय के और अपने हतको म रखकर तु हारे कथनानुसार कोई भी काय करना मेरी समझम नह आया ।। ३३ ।। मया हीदं वधात ं भवतां य तं भवेत् । अनेनाहं भृशं त ये गुणदोषौ मदा यौ ।। ३४ ।। ‘मुझे वही काम करना है, जसम तुम-लोग का वा त वक हत हो। इसी लये म अ धक च तत ँ; य क तुम सबम बड़ा होनेके कारण गुण और दोषका सारा उ रदा य व मुझपर ही है’ ।। ३४ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण आ तीकपव ण वासु या दम णे स त शोऽ यायः ।। ३७ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत आ तीकपवम वासु क आ द नाग क म णा नामक सतीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ३७ ।।



शोऽ यायः

वासु कक ब हन जर का का जर का मु नके साथ ववाह करनेका न य सौ त वाच सपाणां तु वचः ु वा सवषा म त चे त च । वासुके वचः ु वा एलाप ोऽ वी ददम् ।। १ ।। उ वाजी कहते ह—शौनकजी! सम त सप क भ - भ राय सुनकर और अ तम वासु कके वचन का वण कर एलाप नामक नागने इस कार कहा— ।। १ ।। न स य ो न भ वता न स राजा तथा वधः । जनमेजयः पा डवेयो यतोऽ माकं महद् भयम् ।। २ ।। ‘भाइयो! यह स भव नह क वह य न हो तथा पा डववंशी राजा जनमेजय भी, जससे हम महान् भय ा त आ है, ऐसा नह है क हम उसका कुछ बगाड़ सक ।। २ ।। दै वेनोपहतो राजन् यो भवे दह पू षः । स दै वमेवा यते ना यत् त परायणम् ।। ३ ।। ‘राजन्! इस लोकम जो पु ष दै वका मारा आ है, उसे दै वक ही शरण लेनी चा हये। वहाँ सरा कोई आ य नह काम दे ता ।। ३ ।। त ददं चैवम माकं भयं प गस माः । दै वमेवा यामोऽ शृणु वं च वचो मम ।। ४ ।। अहं शापे समु सृ े सम ौषं वच तदा । मातु संगमा ढो भयात् प गस माः ।। ५ ।। दे वानां प ग े ा ती णा ती णा इ त भो । पतामहमुपाग य ःखातानां महा ुते ।। ६ ।। ‘ े नागगण! हमारे ऊपर आया आ यह भय भी दै वज नत ही है, अतः हम दै वका ही आ य लेना चा हये। उ म सपगण! इस वषयम आपलोग मेरी बात सुन। जब माताने सप को यह शाप दया था, उस समय भयके मारे म माताक गोदम चढ़ गया था। प ग वर महातेज वी नागराजगण! तभी ःखसे आतुर होकर ाजीके समीप आये ए दे वता क यह वाणी मेरे कान म पड़ी—‘अहो! याँ बड़ी कठोर होती ह, बड़ी कठोर होती ह’ ।। ४—६ ।। दे वा ऊचुः का ह ल वा यान् पु ा छपेद े वं पतामह । ऋते क ूं ती ण पां दे वदे व तवा तः ।। ७ ।। े

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दे वता बोले— पतामह! दे वदे व! तीखे वभाववाली इस ू र क क ू ो छोड़कर सरी कौन ी होगी जो य पु को पाकर उ ह इस कार शाप दे सके और वह भी आपके सामने ।। ७ ।। तथे त च वच त या वया यु ं पतामह । एत द छा म व ातुं कारणं य वा रता ।। ८ ।। पतामह! आपने भी ‘तथा तु’ कहकर क क ू बातका अनुमोदन ही कया है; उसे शाप दे नेसे रोका नह है। इसका या कारण है, हम यह जानना चाहते ह ।। ८ ।। ोवाच बहवः प गा ती णा घोर पा वषो बणाः । जानां हतकामोऽहं न च वा रतवां तदा ।। ९ ।। ाजीने कहा—इन दन भयानक प और च ड वषवाले ू र सप ब त हो गये ह (जो जाको क दे रहे ह)। मने जाजन के हतक इ छासे ही उस समय क क ू ो मना नह कया ।। ९ ।। ये द दशूकाः ु ा पापाचारा वषो बणाः । तेषां वनाशो भ वता न तु ये धमचा रणः ।। १० ।। जनमेजयके सपय म उ ह सप का वनाश होगा जो ायः लोग को डँसते रहते ह, ु वभावके ह और पापाचारी तथा च ड वषवाले ह। कतु जो धमा मा ह, उनका नाश नह होगा ।। १० ।। य म ं च भ वता मो तेषां महाभयात् । प गानां नबोध वं त मन् काले समागते ।। ११ ।। वह समय आनेपर सप का उस महान् भयसे जस न म से छु टकारा होगा, उसे बतलाता ँ, तुम सब लोग सुनो ।। ११ ।। यायावरकुले धीमान् भ व य त महानृ षः । जर का र त यात तप वी नयते यः ।। १२ ।। यायावरकुलम जर का नामसे व यात एक बु मान् मह ष ह गे। वे तप याम त पर रहकर अपने मन और इ य को संयमम रखगे ।। १२ ।। त य पु ो जर कारोभ व य त तपोधनः । आ तीको नाम य ं स तषे य त तं तदा । त मो य त भुजगा ये भ व य त धा मकाः ।। १३ ।। उ ह के आ तीक नामका एक महातप वी पु उ प होगा जो उस य को बंद करा दे गा। अतः जो सप धामक ह गे, वे उसम जलनेसे बच जायँगे ।। १३ ।। दे वा ऊचुः स मु न वरो र का महातपाः । क यां पु ं महा मानं जन य य त वीयवान् ।। १४ ।। े













दे वताने पूछा— न्! वे मु न शरोम ण महातप वी श गभसे अपने उस महा मा पु को उ प करगे? ।। १४ ।।

शाली जर का

कसके

ोवाच सनामायां सनामा स क यायां जस मः । अप यं वीयस प ं वीयवा न य य त ।। १५ ।। ाजीने कहा—वे श शाली ज े जस ‘जर का ’ नामसे स ह गे, उसी नामवाली क याको प नी पम ा त करके उसके गभसे एक श स प पु उ प करगे ।। १५ ।। वासुकेः सपराज य जर का ः वसा कल । स त यां भ वता पु ः शापा ागां मो य त ।। १६ ।। सपराज वासु कक ब हनका नाम जर का है। उसीके गभसे वह पु उ प होगा, जो नाग को शापसे छु ड़ायेगा ।। १६ ।। एलाप उवाच एवम व त तं दे वाः पतामहमथा ुवन् । उ वैवं वचनं दे वान् व र च दवं ययौ ।। १७ ।। एलाप कहते ह—यह सुनकर दे वता ाजीसे कहने लगे—‘एवम तु’ (ऐसा ही हो)। दे वता से ये सब बात बताकर ाजी लोकम चले गये ।। १७ ।। सोऽहमेवं प या म वासुके भ गन तव । जर का र त यातां तां त मै तपादय ।। १८ ।। भै वद् भ माणाय नागानां भयशा तये । ऋषये सु तायैनामेष मो ः ुतो मया ।। १९ ।। अतः नागराज वासुके! म तो ऐसा समझता ँ क आप नाग का भय र करनेके लये क याक भ ा माँगनेवाले, उ म तका पालन करनेवाले मह ष जर का को अपनी जर का नामवाली यह ब हन ही भ ा पम अ पत कर द। उस शापसे छू टनेका यही उपाय मने सुना है ।। १८-१९ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण आ तीकपव ण एलाप वा ये अ शोऽ यायः ।। ३८ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत आ तीकपवम एलाप -वा यस ब धी अड़तीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ३८ ।।

एकोनच वा रशोऽ यायः ाजीक आ ासे वासु कका जर का मु नके साथ अपनी ब हनको याहनेके लये य नशील होना सौ त वाच एलाप वचः ु वा ते नागा जस म । सव मनसः साधु सा व यथा ुवन् ।। १ ।। ततः भृ त तां क यां वासु कः पयर त । जर का ं वसारं वै परं हषमवाप च ।। २ ।। उ वाजी कहते ह— ज े ! एलाप क बात सुनकर नाग का च स हो गया। वे सब-के-सब एक साथ बोल उठे —‘ठ क है, ठ क है।’ वासु कको भी इस बातसे बड़ी स ता ई। वे उसी दनसे अपनी ब हन जर का का बड़े चावसे पालन-पोषण करने लगे ।। १-२ ।। ततो ना तमहान् कालः समतीत इवाभवत् । अथ दे वासुराः सव मम थुव णालयम् ।। ३ ।। त ने मभू ागो वासु कब लनां वरः । समा यैव च तत् कम पतामहमुपागमन् ।। ४ ।। दे वा वासु कना साध पतामहमथा ुवन् । भगव छापभीतोऽयं वासु क त यते भृशम् ।। ५ ।। तदन तर थोड़ा ही समय तीत होनेपर स पूण दे वता तथा असुर ने समु का म थन कया। उसम बलवान म े वासु क नाग म दराचल प मथानीम लपेटनेके लये र सी बने ए थे। समु -म थनका काय पूरा करके दे वता वासु क नागके साथ पतामह ाजीके पास गये और उनसे बोले—‘भगवन्! ये वासु क माताके शापसे भयभीत हो ब त संत त होते रहते ह ।। ३—५ ।। अ यैत मानसं श यं समु तु वमह स । जन याः शापजं दे व ातीनां हत म छतः ।। ६ ।। ‘दे व! अपने भाई-ब धु का हत चाहनेवाले इन नागराजके दयम माताका शाप काँटा बनकर चुभा आ है और कसक पैदा करता है। आप इनके उस काँटेको नकाल द जये ।। ६ ।। हतो यं सदा माकं यकारी च नागराट् । सादं कु दे वेश शमया य मनो वरम् ।। ७ ।। ‘दे वे र! नागराज वासु क हमारे हतैषी ह और सदा हमलोग के य कायम लगे रहते ह; अतः आप इनपर कृपा कर और इनके मनम जो च ताक आग जल रही है, उसे बुझा द’ ।। ७ ।। ो

ोवाच मयैव तद् वतीण वै वचनं मनसामराः । एलाप ेण नागेन यद या भ हतं पुरा ।। ८ ।। ाजीने कहा—‘दे वताओ! एलाप नागने वासु कके सम पहले जो बात कही थी, वह मने ही मान सक संक प ारा उसे द थी (मेरी ही ेरणासे एलाप ने वे बात वासु क आ द नाग के स मुख कही थ ) ।। ८ ।। तत् करो वेष नागे ः ा तकालं वचः वयम् । वन श य त ये पापा न तु ये धमचा रणः ।। ९ ।। ये नागराज समय आनेपर वयं तदनुसार ही काय कर। जनमेजयके य म पापी सप ही न ह गे, कतु जो धमा मा ह वे नह ।। ९ ।। उ प ः स जर का तप यु े रतो जः । त यैष भ गन काले जर का ं य छतु ।। १० ।। अब जर का ा ण उ प होकर उ तप याम लगे ह। अवसर दे खकर ये वासु क अपनी ब हन जर का को उन मह षक सेवाम सम पत कर द ।। १० ।। एलाप ेण यत् ो ं वचनं भुजगेन ह । प गानां हतं दे वा तत् तथा न तद यथा ।। ११ ।। दे वताओ! एलाप नागने जो बात कही है, वही सप के लये हतकर है। वही बात होनेवाली है। उससे वपरीत कुछ भी नह हो सकता ।। ११ ।। सौ त वाच एत छ वा तु नागे ः पतामहवच तदा । सं द य प गान् सवान् वासु कः शापमो हतः ।। १२ ।। वसारमु य तदा जर का मृ ष त । सपान् ब र कारौ न ययु ान् समादधत् ।। १३ ।। उ वाजी कहते ह— ाजीक बात सुनकर शापसे मो हत ए नागराज वासु कने सब सप को यह संदेश दे दया क मुझे अपनी ब हनका ववाह जर का मु नके साथ करना है। फर उ ह ने जर का मु नक खोजके लये न य आ ाम रहनेवाले ब त-से सप को नयु कर दया ।। १२-१३ ।। जर का यदा भाया म छे द ् वर यतुं भुः । शी मे य तदा येयं त ः ेयो भ व य त ।। १४ ।। और यह कहा—‘साम यशाली जर का मु न जब प नीका वरण करना चाह, उस समय शी आकर यह बात मुझे सू चत करनी चा हये। उसीसे हमलोग का क याण होगा’ ।। १४ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण आ तीकपव ण जर काव वेषणे एकोनच वारशोऽ यायः ।। ३९ ।।







इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत आ तीकपवम जर का मु नका अ वेषण वषयक उनतालीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ३९ ।।

च वा रशोऽ यायः जर का क तप या, राजा परी त्का उपा यान तथा राजा ारा मु नके कंधेपर मृतक साँप रखनेके कारण ःखी ए कृशका शृंगीको उ े जत करना शौनक उवाच जर का र त यातो य वया सूतन दन । इ छा म तदहं ोतुं ऋषे त य महा मनः ।। १ ।। क कारणं जर कारोनामैतत् थतं भु व । जर का न वं यथावद् व ु मह स ।। २ ।। शौनकजीने पूछा—सूतन दन! आपने जन जर का ऋ षका नाम लया है, उन महा मा मु नके स ब धम म यह सुनना चाहता ँ क पृ वीपर उनका जर का नाम य स आ? जर का श दक ुप या है? यह आप ठ क-ठ क बतानेक कृपा कर ।। १-२ ।। सौ त वाच जरे त यमा व दा णं का सं तम् । शरीरं का त यासी त् स धीमा छनैः शनैः ।। ३ ।। पयामास ती ेण तपसे यत उ यते । जर का र त न् वासुकेभ गनी तथा ।। ४ ।। उ वाजीने कहा—शौनकजी! जरा कहते ह यको और का श द दा णका वाचक है। पहले उनका शरीर का अथात् खूब ह ा-क ा था। उसे परम बु मान् मह षने धीरे-धीरे ती तप या ारा ीण बना दया। न्! इस लये उनका नाम जर का पड़ा। वासु कक ब हनके भी जर का नाम पड़नेका यही कारण था ।। ३-४ ।। एवमु तु धमा मा शौनकः ाहसत् तदा । उ वासमाम य उपप म त ुवन् ।। ५ ।। उ वाजीके ऐसा कहनेपर धमा मा शौनक उस समय खलखलाकर हँस पड़े और फर उ वाजीको स बो धत करके बोले—‘तु हारी बात उ चत है’ ।। ५ ।। शौनक उवाच उ ं नाम यथापूव सव त छमतवानहम् । यथा तु जातो ा तीक एत द छा म वे दतुम् । त छ वा वचनं त य सौ तः ोवाच शा तः ।। ६ ।। शौनकजी बोले—सूतपु ! आपने पहले जो जर का नामक ु प बतायी है, वह सब मने सुन ली। अब म यह जानना चाहता ँ क आ तीक मु नका ज म कस कार ौ ी ी े े ी े

आ? शौनकजीका यह वचन सुनकर उ वाजीने पुराणशा के अनुसार आ तीकके ज मका वृ ा त बताया ।। ६ ।। सौ त वाच सं द य प गान् सवान् वासु कः सुसमा हतः । वसारमु य तदा जर का मृ ष त ।। ७ ।। उ वाजी बोले—नागराज वासु कने एका च हो खूब सोच-समझकर सब सप को यह संदेश दे दया—‘मुझे अपनी ब हनका ववाह जर का मु नके साथ करना है’ ।। ७ ।। अथ काल य महतः स मु नः सं शत तः । तप य भरतो धीमान् स दारान् ना यकाङ् त ।। ८ ।। तदन तर द घकाल बीत जानेपर भी कठोर तका पालन करनेवाले परम बु मान् जर का मु न केवल तपम ही लगे रहे। उ ह ने ीसं हक इ छा नह क ।। ८ ।। स तू वरेता तप स स ः वा यायवान् वीतभयः कृता मा । चचार सवा पृ थव महा मा न चा प दारान् मनसा यकाङ् त ।। ९ ।। वे ऊ वरेता चारी थे। तप याम संल न रहते थे। न य नयमपूवक वेद का वा याय करते थे। उ ह कह से कोई भय नह था। वे मन और इ य को सदा काबूम रखते थे। महा मा जर का सारी पृ वीपर घूम आये; कतु उ ह ने मनसे कभी ीक अ भलाषा नह क ।। ९ ।। ततोऽपर मन् स ा ते काले क मं दे व तु । पर ाम राजासीद् न् कौरववंशजः ।। १० ।। न्! तदन तर कसी सरे समयम इस पृ वीपर कौरववंशी राजा परी त् रा य करने लगे ।। १० ।। यथा पा डु महाबा धनुधरवरो यु ध । बभूव मृगयाशीलः पुरा य पतामहः ।। ११ ।। यु म सम त धनुधा रय म े उनके पतामह महाबा पा डु जस कार पूवकालम शकार खेलनेके शौक न ए थे, उसी कार राजा परी त् भी थे ।। ११ ।। मृगान् व यन् वराहां तर ून् म हषां तथा । अ यां व वधान् व यां चार पृ थवीप तः ।। १२ ।। महाराज परी त् वराह, तर ु ( ा वशेष), म हष तथा सरे- सरे नाना कारके वनके हसक पशु का शकार खेलते ए वनम घूमते रहते थे ।। १२ ।। स कदा च मृगं वद् वा बाणेनानतपवणा । पृ तो धनुरादाय ससार गहने वने ।। १३ ।। े













एक दन उ ह ने गहन वनम धनुष लेकर झुक ई गाँठवाले बाणसे एक हसक पशुको ब ध डाला और भागनेपर ब त रतक उसका पीछा कया ।। १३ ।। यथैव भगवान् ो वद् वा य मृगं द व । अ वग छद् धनु पा णः पय वे ु मत ततः ।। १४ ।। जैसे भगवान् आकाशम मृग शरा न को ब ध-कर उसे खोजनेके लये धनुष हाथम लये इधर-उधर घूमते फरे, उसी कार परी त् भी घूम रहे थे ।। १४ ।। न ह तेन मृगो व ो जीवन् ग छ त वै वने । पूव पं तु त ूण सोऽगात् वगग त त ।। १५ ।। प र तो नरे य व ो य वान् मृगः । रं चाप त तेन मृगेण स महीप तः ।। १६ ।। उनके ारा घायल कया आ मृग कभी वनम जी वत बचकर नह जाता था; परंतु आज जो महाराज परी त्का घायल कया आ मृग त काल अ य हो गया था, वह वा तवम उनके वगवासका मू तमान् कारण था। उस मृगके साथ राजा परी त् ब त रतक खचे चले गये ।। १५-१६ ।। प र ा तः पपासात आससाद मु न वने । गवां चारे वासीनं व सानां मुख नःसृतम् ।। १७ ।। भू य मुपयु ानं फेनमा पबतां पयः । तम भ य वेगेन स राजा सं शत तम् ।। १८ ।। अपृ छद् धनु य तं मु न ु मा वतः । भो भो हं राजा परी द भम युजः ।। १९ ।। मया व ो मृगो न ः क चत् तं वान स । स मु न तं तु नोवाच क च मौन ते थतः ।। २० ।। उ ह बड़ी थकावट आ गयी। वे याससे ाकुल हो उठे और इसी दशाम वनम शमीक मु नके पास आये। वे मु न गौ के रहनेके थानम आसनपर बैठे थे और गौ का ध पीते समय बछड़ के मुखसे जो ब त-सा फेन नकलता, उसीको खा-पीकर तप या करते थे। राजा परी त्ने कठोर तका पालन करनेवाले उन मह षके पास बड़े वेगसे आकर पूछा। पूछते समय वे भूख और थकावटसे ब त आतुर हो रहे थे और धनुषको उ ह ने ऊपर उठा रखा था। वे बोले—‘ न्! म अ भम युका पु राजा परी त् ँ। मेरे बाण से व होकर एक मृग कह भाग नकला है। या आपने उसे दे खा है?’ मु न मौन- तका पालन कर रहे थे, अतः उ ह ने राजाको कुछ भी उ र नह दया ।। १७—२० ।। त य क धे मृतं सप ु ो राजा समासजत् । समु य धनु को ा स चैनं समुपै त ।। २१ ।। तब राजाने कु पत हो धनुषक नोकसे एक मरे ए साँपको उठाकर उनके कंधेपर रख दया, तो भी मु नने उनक उपे ा कर द ।। २१ ।। न स क च वाचैनं शुभं वा य द वाशुभम् । स राजा ोधमु सृ य थत तं तथागतम् । ी ै

् वा जगाम नगरमृ ष वासीत् तथैव सः ।। २२ ।। उ ह ने राजासे भला या बुरा कुछ भी नह कहा। उ ह इस अव थाम दे ख राजा परी त्ने ोध याग दया और मन-ही-मन थत हो प ा ाप करते ए वे अपनी राजधानीको चले गये। वे मह ष य -क- य बैठे रहे ।। २२ ।। न ह तं राजशा लं माशीलो महामु नः । वधम नरतं भूपं समा तोऽ यधषयत् ।। २३ ।। राजा म े भूपाल परी त् अपने धमके पालनम त पर रहते थे, अतः उस समय उनके ारा तर कृत होनेपर भी माशील महामु नने उ ह अपमा नत नह कया ।। २३ ।। न ह तं राजशा ल तथा धमपरायणम् । जाना त भरत े तत एनमधषयत् ।। २४ ।। भरतवंश शरोम ण नृप े परी त् उन धमपरायण मु नको यथाथ पम नह जानते थे; इसी लये उ ह ने मह षका अपमान कया ।। २४ ।। त ण त य पु ोऽभूत् त मतेजा महातपाः । शृ नाम महा ोधो सादो महा तः ।। २५ ।। मु नके शृंगी नामक एक पु था, जसक अभी त णाव था थी। वह महान् तप वी, ःसह तेजसे स प और महान् तधारी था। उसम ोधक मा ा ब त अ धक थी; अतः उसे स करना अ य त क ठन था ।। २५ ।। स दे वं परमासीनं सवभूत हते रतम् । ाणमुपत थे वै काले काले सुसंयतः ।। २६ ।। वह समय-समयपर मन और इ य को संयमम रखकर स पूण ा णय के हतम त पर रहनेवाले, उ म आसनपर वराजमान आचायदे वक सेवाम उप थत आ करता था ।। २६ ।। स तेन समनु ातो णा गृहमे यवान् । स यो ः डमानेन स त हसता कल ।। २७ ।। संर भात् कोपनोऽतीव वषक पो मुनेः सुतः । उ य पतरं त य य छ वा रोषमाहरत् । ऋ षपु ेण धमाथ कृशेन जस म ।। २८ ।। शृंगी उस दन आचायक आ ा लेकर घरको लौट रहा था। रा तेम उसका म ऋ षकुमार कृश, जो धमके लये क उठानेके कारण सदा ही कृश ( बल) रहा करता था, खेलता मला। उसने हँसते-हँसते शृंगी ऋ षको उसके पताके स ब धम ऐसी बात बतायी, जसे सुनते ही वह रोषम भर गया। ज े ! मु नकुमार शृंगी ोधके आवेशम आनेपर अ य त ती ण (कठोर) एवं वषके समान वनाशकारी हो जाता था ।। २७-२८ ।। कृश उवाच तेज वन तव पता तथैव च तप वनः । शवं क धेन वह त मा शृं गन् ग वतो भव ।। २९ ।। े



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कृशने कहा—शृं गन्! तुम बड़े तप वी और तेज वी बनते हो, कतु तु हारे पता अपने कंधेपर मुदा सप ढो रहे ह। अब कभी अपनी तप यापर गव न करना ।। २९ ।। ाहर वृ षपु ेषु मा म क चद् वचो वद । अ म धेषु स े षु व सु तप वषु ।। ३० ।। हम-जैसे स , वे ा तथा तप वी ऋ षपु जब कभी बात करते ह , उस समय तुम वहाँ कुछ न बोलना ।। ३० ।। व ते पु षमा न वं व ते वाच तथा वधाः । दपजाः पतरं ा य वं शवधरं तथा ।। ३१ ।। कहाँ है तु हारा पौ षका अ भमान, कहाँ गय तु हारी वे दपभरी बात? जब तुम अपने पताको मुदा ढोते चुपचाप दे ख रहे हो! ।। ३१ ।। प ा च तव तत् कम नानु प मवा मनः । कृतं मु नजन े येनाहं भृश ःखतः ।। ३२ ।। मु नजन शरोमणे! तु हारे पताके ारा कोई अनु चत कम नह बना था; इस लये जैसे मेरे ही पताका अपमान आ हो उस कार तु हारे पताके तर कारसे म अ य त ःखी हो रहा ँ ।। ३२ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण आ तीकपव ण प र पा याने च वारशोऽ यायः ।। ४० ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत आ तीकपवम परी त्-उपा यान वषयक चालीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ४० ।।

एकच वा रशोऽ यायः शृंगी ऋ षका राजा परी त्को शाप दे ना और शमीकका अपने पु को शा त करते ए शापको अनु चत बताना सौ त वाच एवमु ः स तेज वी शृ कोपसम वतः । मृतधारं गु ं ु वा पयत यत म युना ।। १ ।। उ वाजी कहते ह—शौनकजी! कृशके ऐसा कहनेपर तेज वी शृंगी ऋ षको बड़ा ोध आ। अपने पताके कंधेपर मृतक (सप) रखे जानेक बात सुनकर वह रोष और शोकसे संत त हो उठा ।। १ ।। स तं कृशम भ े य सूनृतां वाचमु सृजन् । अपृ छत् तं कथं तातः स मेऽ मृतधारकः ।। २ ।। उसने कृशक ओर दे खकर मधुर वाणीम पूछा—‘भैया! बताओ तो, आज मेरे पता अपने कंधेपर मृतक कैसे धारण कर रहे ह?’ ।। २ ।। कृश उवाच रा ा प र ता तात मृगयां प रधावता । अवस ः पतु तेऽ मृतः क धे भुज मः ।। ३ ।। कृशने कहा—तात! आज राजा परी त् अपने शकारके पीछे दौड़ते ए आये थे। उ ह ने तु हारे पताके कंधेपर मृतक साँप रख दया है ।। ३ ।। शृं युवाच क मे प ा कृतं त य रा ोऽ न ं रा मनः । ू ह तत् कृश त वेन प य मे तपसो बलम् ।। ४ ।। शृंगी बोला—कृश! ठ क-ठ क बताओ, मेरे पताने उस रा मा राजाका या अपराध कया था? फर मेरी तप याका बल दे खना ।। ४ ।। कृश उवाच स राजा मृगयां यातः प र द भम युजः । ससार मृगमेकाक वद् वा बाणेन शी गम् ।। ५ ।। न चाप य मृगं राजा चरं त मन् महावने । पतरं ते स ् वैव प छान भभा षणम् ।। ६ ।। कृशने कहा—अ भम युपु राजा परी त् अकेले शकार खेलने आये थे। उ ह ने एक शी गामी हसक मृग (पशु)-को बाणसे ब ध डाला; कतु उस वशाल वनम वचरते ो





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ए राजाको वह मृग कह दखायी न दया। फर उ ह ने तु हारे मौनी पताको दे खकर उसके वषयम पूछा ।। ५-६ ।। तं थाणुभूतं त तं ु पपासा मातुरः । पुनः पुनमृगं न ं प छ पतरं तव ।। ७ ।। स च मौन तोपेतो नैव तं यभाषत । त य राजा धनु को ा सप क धे समासजत् ।। ८ ।। राजा भूख- यास और थकावटसे ाकुल थे। इधर तु हारे पता काठक भाँ त अ वचल भावसे बैठे थे। राजाने बार-बार तु हारे पतासे उस भागे ए मृगके वषयम कया, परंतु मौन- तावल बी होनेके कारण उ ह ने कुछ उ र नह दया। तब राजाने धनुषक नोकसे एक मरा आ साँप उठाकर उनके कंधेपर डाल दया ।। ७-८ ।। शृ तव पता सोऽ प तथैवा ते यत तः । सोऽ प राजा वनगरं थतो गजसा यम् ।। ९ ।। शृं गन्! संयमपूवक तका पालन करनेवाले तु हारे पता अभी उसी अव थाम बैठे ह और वे राजा परी त् अपनी राजधानी ह तनापुरको चले गये ह ।। ९ ।। सौ त वाच ु वैवमृ षपु तु शवं क धे त तम् । कोपसंर नयनः वल व म युना ।। १० ।। उ वाजी कहते ह—शौनकजी! इस कार अपने पताके कंधेपर मृतक सपके रखे जानेका समाचार सुनकर ऋ षकुमार शृंगी ोधसे जल उठा। कोपसे उसक आँख लाल हो गय ।। १० ।। आ व ः स ह कोपेन शशाप नृप त तदा । वायुप पृ य तेज वी ोधवेगबला कृतः ।। ११ ।। वह तेज वी बालक रोषके आवेशम आकर च ड ोधके वेगसे यु हो गया था। उसने जलसे आचमन करके हाथम जल लेकर उस समय राजा परी त्को इस कार शाप दया ।। ११ ।। शृं युवाच योऽसौ वृ य तात य तथा कृ गत य ह । क धे मृतं समा ा ीत् प गं राज क बषी ।। १२ ।। तं पापम तसं ु त कः प गे रः । आशी वष त मतेजा म ा यबलचो दतः ।। १३ ।। स तरा ा दतो नेता यम य सदनं त । जानामवम तारं कु णामयश करम् ।। १४ ।। शृंगी बोला— जस पापा मा नरेशने वैसे धम-संकटम पड़े ए मेरे बूढ़े पताके कंधेपर मरा साँप रख दया है, ा ण का अपमान करनेवाले उस कु कुलकलंक पापी परी त्को े











आजसे सात रातके बाद च ड तेज वी प गो म त क नामक वषैला नाग अ य त कोपम भरकर मेरे वा यबलसे े रत हो यमलोक प ँचा दे गा ।। १२—१४ ।।

सौ त वाच इ त श वा तसं ु ः शृंगी पतरम यगात् । आसीनं गो जे त मन् वह तं शवप गम् ।। १५ ।। उ वाजी कहते ह—इस कार अ य त ोधपूवक शाप दे कर शृंगी अपने पताके पास आया, जो उस गो म कंधेपर मृतक सप धारण कये बैठे थे ।। १५ ।। स तमाल य पतरं शृ क धगतेन वै । शवेन भुजगेनासीद् भूयः ोधसमाकुलः ।। १६ ।। कंधेपर रखे ए मुद साँपसे संयु पताको दे खकर शृंगी पुनः ोधसे ाकुल हो उठा ।। १६ ।। ःखा चा ू ण मुमुचे पतरं चेदम वीत् । ु वेमां धषणां तात तव तेन रा मना ।। १७ ।। रा ा प र ता कोपादशपं तमहं नृपम् । यथाह त स एवो ं शापं कु कुलाधमः । स तमेऽह न तं पापं त कः प गो मः ।। १८ ।। वैव वत य सदनं नेता परमदा णम् । तम वीत् पता ं तथा कोपसम वतम् ।। १९ ।। वह ःखसे आँसू बहाने लगा। उसने पतासे कहा—‘तात! उस रा मा राजा परी त्के ारा आपके इस अपमानक बात सुनकर मने उसे ोधपूवक जैसा शाप दया है, वह कु कुलाधम वैसे ही भयंकर शापके यो य है। आजके सातव दन नागराज त क उस पापीको अ य त भयंकर यमलोकम प ँचा दे गा।’ न्! इस कार ोधम भरे ए पु से उसके पता शमीकने कहा ।। १७—१९ ।। शमीक उवाच न मे यं कृतं तात नैष धम तप वनाम् । वयं त य नरे य वषये नवसामहे ।। २० ।। यायतो र ता तेन त य शापं न रोचये । सवथा वतमान य रा ो म धैः सदा ।। २१ ।। त ं पु धम ह हतो ह त न संशयः । य द राजा न संर ेत् पीडा नः परमा भवेत् ।। २२ ।। शमीक बोले—व स! तुमने शाप दे कर मेरा य काय नह कया है। यह तप वय का धम नह है। हमलोग उन महाराज परी त्के रा यम नवास करते ह और उनके ारा यायपूवक हमारी र ा होती है। अतः उनको शाप दे ना मुझे पसंद नह है। हमारे-जैसे साधु पु ष को तो वतमान राजा परी त्के अपराधको सब कारसे मा ही करना चा हये। े











बेटा! य द धमको न कया जाय तो वह मनु यका नाश कर दे ता है, इसम संशय नह है। य द राजा र ा न करे तो हम भारी क प ँच सकता है ।। २०—२२ ।। न श नुयाम च रतुं धम पु यथासुखम् । र यमाणा वयं तात राज भधम भः ।। २३ ।। चरामो वपुलं धम तेषां भागोऽ त धमतः । सवथा वतमान य रा ः त मेव ह ।। २४ ।। पु ! हम राजाके बना सुखपूवक धमका अनु ान नह कर सकते। तात! धमपर रखनेवाले राजा के ारा सुर त होकर हम अ धक-से-अ धक धमका आचरण कर पाते ह। अतः हमारे पु यकम म धमतः उनका भी भाग है। इस लये वतमान राजा परी त्के अपराधको तो मा ही कर दे ना चा हये ।। २३-२४ ।। पर ु वशेषेण यथा य पतामहः । र य मां तथा रा ा र त ाः जा वभो ।। २५ ।। परी त् तो वशेष पसे अपने पतामह यु ध र आ दक भाँ त हमारी र ा करते ह। श शाली पु ! येक राजाको इसी कार जाक र ा करनी चा हये ।। २५ ।। तेनेह ु धतेना ा तेन च तप वना । अजानता कृतं म ये तमेत ददं मम ।। २६ ।। वे आज भूखे और थके-माँदे यहाँ आये थे। वे तप वी नरेश मेरे इस मौन- तको नह जानते थे; म समझता ँ इसी लये उ ह ने मेरे साथ ऐसा बताव कर दया ।। २६ ।। अराजके जनपदे दोषा जाय त वै सदा । उद्वृ ं सततं लोकं राजा द डेन शा त वै ।। २७ ।। जस दे शम राजा न हो वहाँ अनेक कारके दोष (चोर आ दके भय) पैदा होते ह। धमक मयादा यागकर उ छृ ं खल बने ए लोग को राजा अपने द डके ारा श ा दे ता है ।। २७ ।। द डात् तभयं भूयः शा त प ते तदा । नो न रते धम नो न रते याम् ।। २८ ।। द डसे भय होता है, फर भयसे त काल शा त था पत होती है। जो चोर आ दके भयसे उ न है, वह धमका अनु ान नह कर सकता। वह उ न पु ष य , ा आ द शा ीय कम का आचरण भी नह कर सकता ।। २८ ।। रा ा त तो धम धमात् वगः त तः । रा ो य याः सवा य ाद् दे वाः त ताः ।। २९ ।। राजासे धमक थापना होती है और धमसे वगलोकक त ा ( ा त) होती है। राजासे स पूण य कम त त होते ह और य से दे वता क त ा होती है ।। २९ ।। दे वाद् वृ ः वतत वृ ेरोषधयः मृताः । ओष ध यो मनु याणां धारयन् सततं हतम् ।। ३० ।। मनु याणां च यो धाता राजा रा यकरः पुनः । दश ो यसमो राजा इ येवं मनुर वीत् ।। ३१ ।। े े ो े े ो ी ै े ै ो ै औ े

दे वताके स होनेसे वषा होती है, वषासे अ पैदा होता है और अ से नर तर मनु य के हतका पोषण करते ए रा यका पालन करनेवाला राजा मनु य के लये वधाता (धारण-पोषण करनेवाला) है। राजा दस ो यके समान है, ऐसा मनुजीने कहा है ।। ३०-३१ ।। तेनेह ु धतेना ा तेन च तप वना । अजानता कृतं म ये तमेत ददं मम ।। ३२ ।। वे तप वी राजा यहाँ भूखे- यासे और थके-माँदे आये थे। उ ह मेरे इस मौन- तका पता नह था, इस लये मेरे न बोलनेसे होकर उ ह ने ऐसा कया है ।। ३२ ।। क मा ददं वया बा यात् सहसा कृतं कृतम् । न ह त नृपः शापम म ः पु सवथा ।। ३३ ।। तुमने मूखतावश बना वचारे य यह कम कर डाला? बेटा! राजा हमलोग से शाप पानेके यो य नह ह ।। ३३ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण आ तीकपव ण प र छापे एकच वारशोऽ यायः ।। ४१ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत आ तीकपवम परी त्-शाप वषयक इकतालीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ४१ ।।

च वा रशोऽ यायः शमीकका अपने पु को समझाना और गौरमुखको राजा परी त्के पास भेजना, राजा ारा आ मर ाक व था तथा त क नाग और का यपक बातचीत शृ युवाच य ेतत् साहसं तात य द वा कृतं कृतम् । यं वा य यं वा ते वागु ा न मृषा भवेत् ।। १ ।। शृंगी बोला—तात! य द यह साहस है अथवा य द मेरे ारा कम हो गया है तो हो जाय। आपको यह य लगे या अ य, कतु मने जो बात कह द है, वह झूठ नह हो सकती ।। १ ।। नैवा यथेदं भ वता पतरेष वी म ते । नाहं मृषा वी येवं वैरे व प कुतः शपन् ।। २ ।। पताजी! म आपसे सच कहता ँ, अब यह शाप टल नह सकता। म हँसी-मजाकम भी झूठ नह बोलता, फर शाप दे ते समय कैसे झूठ बात कह सकता ँ ।। २ ।। शमीक उवाच जाना यु भावं वां तात स य गरं तथा । नानृतं चो पूव ते नैत मया भ व य त ।। ३ ।। शमीकने कहा—बेटा! म जानता ँ तु हारा भाव उ है, तुम बड़े स यवाद हो, तुमने पहले भी कभी झूठ बात नह कही है; अतः यह शाप म या नह होगा ।। ३ ।। प ा पु ो वयः थोऽ प सततं वा य एव तु । यथा याद् गुणसंयु ः ा ुया च महद् यशः ।। ४ ।। तथा प पताको उ चत है क वह अपने पु को बड़ी अव थाका हो जानेपर भी सदा स कम का उपदे श दे ता रहे; जससे वह गुणवान् हो और महान् यश ा त करे ।। ४ ।। क पुनबाल एव वं तपसा भा वतः सदा । वधते च भवतां कोपोऽतीव महा मनाम् ।। ५ ।। फर तु ह उपदे श दे नेक तो बात ही या है, तुम तो अभी बालक ही हो। तुमने सदा तप याके ारा अपनेको द श से स प कया है। जो योगज नत ऐ यसे स प ह, ऐसे भावशाली तेज वी पु ष का भी ोध अ धक बढ़ जाता है; फर तुम-जैसे बालकको ोध हो, इसम कहना ही या है ।। ५ ।। सोऽहं प या म व ं व य धमभृतां वर । पु वं बालतां चैव तवावे य च साहसम् ।। ६ ।। (





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( कतु यह ोध धमका नाशक होता है) इस लये धमा मा म े पु ! तु हारे बचपन और ःसाहसपूण कायको दे खकर म तु ह कुछ कालतक उपदे श दे नेक आव यकता समझता ँ ।। ६ ।। स वं शमपरो भू वा व यमाहारमाचरन् । चर ोध ममं ह वा नैवं धम हा य स ।। ७ ।। तुम मन और इ य के न हम त पर होकर जंगली क द, मूल, फलका आहार करते ए इस ोधको मटाकर उ म आचरण करो; ऐसा करनेसे तु हारे धमक हा न नह होगी ।। ७ ।। ोधो ह धम हर त यतीनां ःखसं चतम् । ततो धम वहीनानां ग त र ा न व ते ।। ८ ।। ोध य नशील साधक के अ य त ःखसे उपाजत धमका नाश कर दे ता है। फर धमहीन मनु य को अभी ग त नह मलती है ।। ८ ।। शम एव यतीनां ह मणां स कारकः । मावतामयं लोकः पर ैव मावताम् ।। ९ ।। शम (मनो न ह) ही माशील साधक को स क ा त करानेवाला है। जनम मा है, उ ह के लये यह लोक और परलोक दोन क याणकारक ह ।। ९ ।। त मा चरेथाः सततं माशीलो जते यः । मया ा यसे लोकान् णः समन तरान् ।। १० ।। इस लये तुम सदा इ य को वशम रखते ए माशील बनो। मासे ही ाजीके नकटवत लोक म जा सकोगे ।। १० ।। मया तु शममा थाय य छ यं कतुम वै । तत् क र या यहं तात ेष य ये नृपाय वै ।। ११ ।। मम पु ेण श तोऽ स बालेन कृशबु ना । ममेमां धषणां व ः े य राज म षणा ।। १२ ।। तात! म तो शा त धारण करके अब जो कुछ कया जा सकता है, वह क ँ गा। राजाके पास यह संदेश भेज ँ गा क ‘राजन्! तु हारे ारा मुझे जो तर कार ा त आ है उसे दे खकर अमषम भरे ए मेरे अ पबु एवं मूढ़ पु ने तु ह शाप दे दया है’ ।। ११-१२ ।। सौ त वाच एवमा द य श यं स ेषयामास सु तः । प र ते नृपतये दयाप ो महातपाः ।। १३ ।। सं द य कुशल ं कायवृ ा तमेव च । श यं गौरमुखं नाम शीलव तं समा हतम् ।। १४ ।। उ वाजी कहते ह—उ म तका पालन करनेवाले दयालु एवं महातप वी शमीक मु नने अपने गौरमुख नामवाले एका च एवं शीलवान् श यको इस कार आदे श दे े









कुशल- , काय एवं वृता तका संदेश दे कर राजा परी त्के पास भेजा ।। १३-१४ ।। सोऽ भग य ततः शी ं नरे ं कु वधनम् । ववेश भवनं रा ः पूव ाः थै नवे दतः ।। १५ ।। गौरमुख वहाँसे शी कु कुलक वृ करनेवाले महाराज परी त्के पास चला गया। राजधानीम प ँचनेपर ारपालने पहले महाराजको उसके आनेक सूचना द और उनक आ ा मलनेपर गौरमुखने राजभवनम वेश कया ।। १५ ।। पू जत तु नरे े ण जो गौरमुख तदा । आच यौ च प र ा तो रा ः सवमशेषतः ।। १६ ।। शमीकवचनं घोरं यथो ं म स धौ । महाराज परी त्ने उस समय गौरमुख ा णका बड़ा स कार कया। जब उसने व ाम कर लया, तब शमीकके कहे ए घोर वचनको म य के समीप राजाके सामने पूण पसे कह सुनाया ।। १६ ।। गौरमुख उवाच शमीको नाम राजे वतते वषये तव ।। १७ ।। ऋ षः परमधमा मा दा तः शा तो महातपाः । त य वया नर ा सपः ाणै वयो जतः ।। १८ ।। अवस ो धनु को ा क धे मौना वत य च । ा तवां तव तत् कम पु त य न च मे ।। १९ ।। गौरमुख बोला—महाराज! आपके रा यम शमीक नामवाले एक परम धमा मा मह ष रहते ह। वे जते य, मनको वशम रखनेवाले और महान् तप वी ह। नर ा ! आपने मौन त धारण करनेवाले उन महा माके कंधेपर धनुषक नोकसे उठाकर एक मरा आ साँप रख दया था। मह षने तो उसके लये आपको मा कर दया था, कतु उनके पु को वह सहन नह आ ।। १७—१९ ।। तेन श तोऽ स राजे पतुर ातम वै । त कः स तरा ेण मृ यु तव भ व य त ।। २० ।। राजे ! उस ऋ षकुमारने आज अपने पताके अनजानम ही आपके लये यह शाप दया है क ‘आजसे सात रातके बाद ही त क नाग आपक मृ युका कारण हो जायगा’ ।। २० ।। त र ां कु वे त पुनः पुनरथा वीत् । तद यथा न श यं च कतु केन चद युत ।। २१ ।। इस दशाम आप अपनी र ाक व था कर। यह मु नने बार-बार कहा है। उस शापको कोई भी टाल नह सकता ।। २१ ।। न ह श नो त तं य तुं पु ं कोपसम वतम् । ततोऽहं े षत तेन तव राजन् हता थना ।। २२ ।। ी











वयं मह ष भी ोधम भरे ए अपने पु को शा त नह कर पा रहे ह। अतः राजन्! आपके हतक इ छासे उ ह ने मुझे यहाँ भेजा है ।। २२ ।। सौ त वाच इ त ु वा वचो घोरं स राजा कु न दनः । पयत यत तत् पापं कृ वा राजा महातपाः ।। २३ ।। उ वाजी कहते ह—यह घोर वचन सुनकर कु न दन राजा परी त् मु नका अपराध करनेके कारण मन-ही-मन संत त हो उठे ।। २३ ।। तं च मौन तं ु वा वने मु नवरं तदा । भूय एवाभवद् राजा शोकसंत तमानसः ।। २४ ।। वे े मह ष उस समय वनम मौन- तका पालन कर रहे थे, यह सुनकर राजा परी त्का मन और भी शोक एवं संतापम डू ब गया ।। २४ ।। अनु ोशा मतां त य शमीक यावधाय च । पयत यत भूयोऽ प कृ वा तत् क बषं मुनेः ।। २५ ।। शमीक मु नक दयालुता और अपने ारा उनके त कये ए उस अपराधका वचार करके वे अ धका धक संत त होने लगे ।। २५ ।। न ह मृ युं तथा राजा ु वा वै सोऽ वत यत । अशोचदमर यो यथा कृ वेह कम तत् ।। २६ ।। दे वतु य राजा परी त्को अपनी मृ युका शाप सुनकर वैसा संताप नह आ जैसा क मु नके त कये ए अपने उस बतावको याद करके वे शोकम न हो रहे थे ।। २६ ।। तत तं ेषयामास राजा गौरमुखं तदा । भूयः सादं भगवान् करो वह ममे त वै ।। २७ ।। तदन तर राजाने यह संदेश दे कर उस समय गौरमुखको वदा कया क ‘भगवान् शमीक मु न यहाँ पधारकर पुनः मुझपर कृपा कर’ ।। २७ ।। त मं गतमा ेऽथ राजा गौरमुखे तदा । म भम यामास सह सं व नमानसः ।। २८ ।। गौरमुखके चले जानेपर राजाने उ न च हो म य के साथ गु त म णा क ।। २८ ।। सम यम भ ैव स तथा म त व वत् । ासादं कारयामास एक त भं सुर तम् ।। २९ ।। म -त वके ाता महाराजने म य से सलाह करके एक ऊँचा महल बनवाया; जसम एक ही खंभा लगा था। वह भवन सब ओरसे सुर त था ।। २९ ।। र ां च वदधे त भषज ौषधा न च । ा णान् म स ां सवतो वै ययोजयत् ।। ३० ।। राजाने वहाँ र ाके लये आव यक ब ध कया, उ ह ने सब कारक ओष धयाँ जुटा ल और वै तथा म स ा ण को सब ओर नयु कर दया ।। ३० ।। े



राजकाया ण त थः सवा येवाकरो च सः । म भः सह धम ः सम तात् प रर तः ।। ३१ ।। वह रहकर वे धम नरेश सब ओरसे सुर त हो म य के साथ स पूण राजकायक व था करने लगे ।। ३१ ।। न चैनं क दा ढं लभते राजस मम् । वातोऽ प न रं त वेशे व नवायते ।। ३२ ।। उस समय महलम बैठे ए महाराजसे कोई भी मलने नह पाता था। वायुको भी वहाँसे नकल जानेपर पुनः वेशके समय रोका जाता था ।। ३२ ।। ा ते च दवसे त मन् स तमे जस मः । का यपोऽ यागमद् व ां तं राजानं च क सतुम् ।। ३३ ।। सातवाँ दन आनेपर म शा के ाता ज े का यप राजाक च क सा करनेके लये आ रहे थे ।। ३३ ।। ुतं ह तेन तदभूद ् यथा तं राजस मम् । त कः प ग े ो ने यते यमसादनम् ।। ३४ ।। उ ह ने सुन रखा था क ‘भूप शरोम ण परी त्को आज नाग म े त क यमलोक प ँचा दे गा’ ।। ३४ ।। तं द ं प गे े ण क र येऽहमप वरम् । त मेऽथ धम भ वते त व च तयन् ।। ३५ ।। अतः उ ह ने सोचा क नागराजके डँसे ए महाराजका वष उतारकर म उ ह जी वत कर ँ गा। ऐसा करनेसे वहाँ मुझे धन तो मलेगा ही, लोकोपकारी राजाको जलानेसे धम भी होगा ।। ३५ ।। तं ददश स नागे त कः का यपं प थ । ग छ तमेकमनसं जो भू वा वयोऽ तगः ।। ३६ ।। तम वीत् प गे ः का यपं मु नपु वम् । व भवां व रतो या त क च काय चक ष त ।। ३७ ।। मागम नागराज त कने का यपको दे खा। वे एक च होकर ह तनापुरक ओर बढ़े जा रहे थे। तब नागराजने बूढ़े ा णका वेश बनाकर मु नवर का यपसे पूछा—‘आप कहाँ बड़ी उतावलीके साथ जा रहे ह और कौन-सा काय करना चाहते ह?’ ।। ३६-३७ ।। का यप उवाच नृपं कु कुलो प ं प र तम र दमम् । त कः प ग े तेजसा ध य त ।। ३८ ।। का यपने कहा—कु कुलम उ प श ुदमन महाराज परी त्को आज नागराज त क अपनी वषा नसे द ध कर दे गा ।। ३८ ।। तं द ं प गे े ण तेना नसमतेजसा । पा डवानां कुलकरं राजानम मतौजसम् । ौ

ग छा म व रतं सौ य स ः कतुमप वरम् ।। ३९ ।। वे राजा पा डव क वंशपर पराको सुर त रखने-वाले तथा अ य त परा मी ह। अतः सौ य! अ नके समान तेज वी नागराजके डँस लेनेपर उ ह त काल वषर हत करके जी वत कर दे नेके लये म ज द -ज द जा रहा ँ ।। ३९ ।। त क उवाच अहं स त को ं तं ध या म महीप तम् । नवत व न श वं मया द ं च क सतुम् ।। ४० ।। त क बोला— न्! म ही वह त क ँ। आज राजाको भ म कर डालूँगा। आप लौट जाइये। म जसे डँस लूँ, उसक च क सा आप नह कर सकते ।। ४० ।। का यप उवाच अहं तं नृप त ग वा वया द मप वरम् । क र यामी त मे बु व ाबलसम वता ।। ४१ ।। का यपने कहा—म तु हारे डँसे ए राजाको वहाँ जाकर वषसे र हत कर ँ गा। यह व ाबलसे स प मेरी बु का न य है ।। ४१ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण आ तीकपव ण का यपागमने च वारशोऽ यायः ।। ४२ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत आ तीकपवम का यपागमन वषयक बयालीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ४२ ।।

च वा रशोऽ यायः त कका धन दे कर का यपको लौटा दे ना और छलसे राजा परी त्के समीप प ँचकर उ ह डँसना त क उवाच य द द ं मयेह वं श ः क च च क सतुम् । ततो वृ ं मया द ममं जीवय का यप ।। १ ।। त क बोला—का यप! य द इस जगत्म मेरे डँसे ए रोगीक कुछ भी च क सा करनेम तुम समथ हो तो मेरे डँसे ए इस वृ को जी वत कर दो ।। १ ।। परं म बलं यत् ते तद् दशय यत व च । य ोधमेनं ध या म प यत ते जो म ।। २ ।। ज े ! तु हारे पास जो उ म म का बल है, उसे दखाओ और य न करो। लो, तु हारे दे खते-दे खते इस वटवृ को म भ म कर दे ता ँ ।। २ ।। का यप उवाच दश नागे वृ ं वं य ेतद भम यसे । अहमेनं वया द ं जीव य ये भुज म ।। ३ ।। का यपने कहा—नागराज! य द तु ह इतना अ भमान है तो इस वृ को डँसो। भुजंगम! तु हारे डँसे ए इस वृ को म अभी जी वत कर ँ गा ।। ३ ।। सौ त वाच एवमु ः स नागे ः का यपेन महा मना । अदशद् वृ म ये य य ोधं प गो मः ।। ४ ।। उ वाजी कहते ह—महा मा का यपके ऐसा कहनेपर सप म े नागराज त कने नकट जाकर बरगदके वृ को डँस लया ।। ४ ।। स वृ तेन द तु प गेन महा मना । आशी वष वषोपेतः ज वाल सम ततः ।। ५ ।। उस महाकाय वषधर सपके डँसते ही उसके वषसे ा त हो वह वृ सब ओरसे जल उठा ।। ५ ।। तं द वा स नगं नागः का यपं पुनर वीत् । कु य नं ज े जीवयैनं वन प तम् ।। ६ ।। इस कार उस वृ को जलाकर नागराज पुनः का यपसे बोला—‘ ज े ! अब तुम य न करो और इस वृ को जला दो’ ।। ६ ।। सौ त वाच ी







भ मीभूतं ततो वृ ं प गे य तेजसा । भ म सव समा य का यपो वा यम वीत् ।। ७ ।। उ वाजी कहते ह—शौनकजी! नागराजके तेजसे भ म ए उस वृ क सारी भ मरा शको एक करके का यपने कहा— ।। ७ ।। व ाबलं प गे प य मेऽ वन पतौ । अहं संजीवया येनं प यत ते भुज म ।। ८ ।। ‘नागराज! इस वन प तपर आज मेरी व ाका बल दे खो। भुजंगम! म तु हारे दे खतेदे खते इस वृ को जी वत कर दे ता ँ’ ।। ८ ।। ततः स भगवान् व ान् का यपो जस मः । भ मराशीकृतं वृ ं व या समजीवयत् ।। ९ ।। तदन तर सौभा यशाली व ान् ज े का यपने भ मरा शके पम व मान उस वृ को व ाके बलसे जी वत कर दया ।। ९ ।। अङ् कुरं कृतवां त ततः पण या वतम् । पला शनं शाखनं च तथा वट पनं पुनः ।। १० ।। पहले उ ह ने उसमसे अंकुर नकाला, फर उसे दो प ेका कर दया। इसी कार मशः प लव, शाखा और शाखा से यु उस महान् वृ को पुनः पूववत् खड़ा कर दया ।। १० ।। तं ् वा जी वतं वृ ं का यपेन महा मना । उवाच त को न् नैतद य तं व य ।। ११ ।। महा मा का यप ारा जलाये ए उस वृ को दे खकर त कने कहा—‘ न्! तुमजैसे म वे ाम ऐसे चम कारका होना कोई अद्भुत बात नह है ।। ११ ।। जे यद् वषं ह या मम वा म ध य वा । कं वमथम भ े सुया स त तपोधन ।। १२ ।। ‘तप याके धनी जे ! जब तुम मेरे या मेरे-जैसे सरे सपके वषको अपनी व ाके बलसे न कर सकते हो तो बताओ, तुम कौन-सा योजन स करनेक इ छासे वहाँ जा रहे हो ।। १२ ।। यत् तेऽ भल षतं ा तुं फलं त मा ृपो मात् । अहमेव दा या म तत् ते य प लभम् ।। १३ ।। ‘उस े राजासे जो फल ा त करना तु ह अभी है, वह अ य त लभ हो तो भी म ही तु ह दे ँ गा ।। १३ ।। व शापा भभूते च ीणायु ष नरा धपे । घटमान य ते व स ः संश यता भवेत् ।। १४ ।। ‘ व वर! महाराज परी त् ा णके शापसे तर कृत ह और उनक आयु भी समा त हो चली है। ऐसी दशाम उ ह जलानेके लये चे ा करनेपर तु ह स ा त होगी, इसम संदेह है ।। १४ ।। ततो यशः द तं ते षु लोकेषु व ुतम् । ो े

नरंशु रव घमाशुर तधान मतो जेत् ।। १५ ।। ‘य द तुम सफल न ए तो तीन लोक म व यात एवं का शत तु हारा यश करणर हत सूयके समान इस लोकसे अ य हो जायगा’ ।। १५ ।। का यप उवाच धनाथ या यहं त त मे दे ह भुज म । ततोऽहं व नव त ये वापतेयं गृ वै ।। १६ ।। का यपने कहा—नागराज त क! म तो वहाँ धनके लये ही जाता ँ, वह तु ह मुझे दे दो तो उस धनको लेकर म घर लौट जाऊँगा ।। १६ ।। त क उवाच याव नं ाथयसे त माद् रा ततोऽ धकम् । अहमेव दा या म नवत व जो म ।। १७ ।। त क बोला— ज े ! तुम राजा परी त्से जतना धन पाना चाहते हो, उससे अ धक म ही दे ँ गा, अतः लौट जाओ ।। १७ ।।

सौ त वाच त क य वचः ु वा का यपो जस मः । द यौ सुमहातेजा राजानं त बु मान् ।। १८ ।। उ वाजी कहते ह—त कक बात सुनकर परम बु मान् महातेज वी व वर का यपने राजा परी त्के वषयम कुछ दे र यान लगाकर सोचा ।। १८ ।। द ानः स तेज वी ा वा तं नृप त तदा । ीणायुषं पा डवेयमपावतत का यपः ।। १९ ।। ल वा व ं मु नवर त काद् यावद सतम् । नवृ े का यपे त मन् समयेन महा म न ।। २० ।। जगाम त क तूण नगरं नागसा यम् । अथ शु ाव ग छन् स त को जगतीप तम् ।। २१ ।। म ैगदै वषहरै र यमाणं य नतः । तेज वी का यप द ानसे स प थे। उस समय उ ह ने जान लया क पा डववंशी राजा परी त्क आयु अब समा त हो गयी है, अतः वे मु न े त कसे अपनी चके अनुसार धन लेकर वहाँसे लौट गये। महा मा का यपके समय रहते लौट जानेपर त क तुरंत ह तनापुर नगरम जा प ँचा। वहाँ जानेपर उसने सुना, राजा परी त्क म तथा वष उतारनेवाली ओष धय ारा य नपूवक र ा क जा रही है ।। १९—२१ ।। सौ त वाच स च तयामास तदा मायायोगेन पा थवः ।। २२ ।। मया व च यत ोऽसौ क उपायो भवे द त । े



तत तापस पेण ा हणोत् स भुज मान् ।। २३ ।। फलदभ दकं गृ रा े नागोऽथ त कः । उ वाजी कहते ह—शौनकजी! तब त कने वचार कया, मुझे मायाका आ य लेकर राजाको ठग लेना चा हये; कतु इसके लये या उपाय हो? तदन तर त क नागने फल, दभ (कुशा) और जल लेकर कुछ नाग को तप वी पम राजाके पास जानेक आ ा द ।। २२-२३ ।। त क उवाच ग छ वं यूयम ा राजानं कायव या ।। २४ ।। फलपु पोदकं नाम त ाह यतुं नृपम् । त कने कहा—तुमलोग कायक सफलताके लये राजाके पास जाओ, कतु त नक भी न होना। तु हारे जानेका उ े य है—महाराजको फल, फूल और जल भट करना ।। २४ ।। सौ त वाच ते त कसमा द ा तथा च ु भुज माः ।। २५ ।। उ वाजी कहते ह—त कके आदे श दे नेपर उन नाग ने वैसा ही कया ।। २५ ।। उप न यु तथा रा े दभानापः फला न च । त च सव स राजे ः तज ाह वीयवान् ।। २६ ।। वे राजाके पास कुश, जल और फल लेकर गये। परम परा मी महाराज परी त्ने उनक द ई वे सब व तुएँ हण कर ल ।। २६ ।। कृ वा तेषां च काया ण ग यता म युवाच तान् । गतेषु तेषु नागेषु तापस छ पषु ।। २७ ।। अमा यान् सु द ैव ोवाच स नरा धपः । भ य तु भव तो वै वा नीमा न सवशः ।। २८ ।। तापसै पनीता न फला न स हता मया । ततो राजा सस चवः फला यादातुमै छत ।। २९ ।। तदन तर उ ह पा रतो षक दे ने आ दका काय करके कहा—‘अब आपलोग जायँ।’ तप वय के वेषम छपे ए उन नाग के चले जानेपर राजाने अपने म य और सु द से कहा—‘ये सब तप वय ारा लाये ए बड़े वा द फल ह। इ ह मेरे साथ आपलोग भी खायँ।’ ऐसा कहकर म य स हत राजाने उन फल को लेनेक इ छा क ।। २७—२९ ।। व धना स यु ो वै ऋ षवा येन तेन तु । य म ेव फले नाग तमेवाभ यत् वयम् ।। ३० ।। वधाताके वधान एवं मह षके वचनसे े रत होकर राजाने वही फल वयं खाया, जसपर त क नाग बैठा था ।। ३० ।। ततो भ यत त य फलात् कृ मरभूदणुः । ौ

वकः कृ णनयन ता वण ऽथ शौनक ।। ३१ ।। शौनकजी! खाते समय राजाके हाथम जो फल था, उससे एक छोटा-सा क ट कट आ। दे खनेम वह अ य त लघु था, उसक आँख काली और शरीरका रंग ताँबेके समान था ।। ३१ ।। स तं गृ नृप े ः स चवा नदम वीत् । अ तम ये त स वता वषाद न मे भयम् ।। ३२ ।। नृप े परी त्ने उस क ड़ेको हाथम लेकर म य से इस कार कहा—‘अब सूयदे व अ ताचलको जा रहे ह; इस लये इस समय मुझे सपके वषसे कोई भय नह है ।। ३२ ।। स यवाग तु स मु नः कृ ममा दशतामयम् । त को नाम भू वा वै तथा प र तं भवेत् ।। ३३ ।। ‘वे मु न स यवाद ह , इसके लये यह क ट ही त क नाम धारण करके मुझे डँस ले। ऐसा करनेसे मेरे दोषका प रहार हो जायगा ।। ३३ ।। ते चैनम ववत त म णः कालचो दताः । एवमु वा स राजे ो ीवायां सं नवे य ह ।। ३४ ।। कृ मकं ाहसत् तूण मुमूषुन चेतनः । हस ेव भोगेन त केण ववे त ।। ३५ ।। त मात् फलाद् व न य यत् तद् रा े नवे दतम् । वे य वा च वेगेन वन च महा वनम् । अदशत् पृ थवीपालं त कः प गे रः ।। ३६ ।। कालसे े रत होकर म य ने भी उनक हाँ-म-हाँ मला द । म य से पूव बात कहकर राजा धराज परी त् उस लघु क टको कंधेपर रखकर जोर-जोरसे हँसने लगे। वे त काल ही मरनेवाले थे; अतः उनक बु मारी गयी थी। राजा अभी हँस ही रहे थे क उ ह जो नवे दत कया गया था उस फलसे नकलकर त क नागने अपने शरीरसे उनको जकड़ लया। इस कार वेगपूवक उनके शरीरम लपटकर नागराज त कने बड़े जोरसे गजना क और भूपाल परी त्को डँस लया ।। ३४—३६ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण आ तीकपव ण त कदं शे च वारशोऽ यायः ।। ४३ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत आ तीकपवम त क-दं शन वषयक ततालीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ४३ ।।

चतु

वा रशोऽ यायः

जनमेजयका रा या भषेक और ववाह सौ त वाच ते तथा म णो ् वा भोगेन प रवे तम् । वष णवदनाः सव भृश ःखताः ।। १ ।। उ वाजी कहते ह—शौनकजी! म ीगण राजा परी त्को त क नागसे जकड़ा आ दे ख अ य त ःखी हो गये। उनके मुखपर वषाद छा गया और वे सब-के-सब रोने लगे ।। १ ।। तं तु नादं ततः ु वा म ण ते वुः । अप य त तथा या तमाकाशे नागम तम् ।। २ ।। सीम त मव कुवाणं नभसः पवचसम् । त कं प ग े ं भृशं शोकपरायणाः ।। ३ ।। त कक फुंकारभरी गजना सुनकर म ीलोग भाग चले। उ ह ने दे खा लाल कमलक -सी का त-वाला वह अद्भुत नाग आकाशम स रक रेखा-सी ख चता आ चला जा रहा है। नाग म े त कको इस कार जाते दे ख वे राजम ी अ य त शोकम डू ब गये ।। २-३ ।। तत तु ते तद् गृहम ननाऽऽवृतं द यमानं वषजेन भो गनः । भयात् प र य य दशः पे दरे पपात राजाश नता डतो यथा ।। ४ ।। वह राजमहल सपके वषज नत अ नसे आवृत हो धू-धू करके जलने लगा। यह दे ख उन सब म य ने भयसे उस थानको छोड़कर भ - भ दशा क शरण ली तथा राजा परी त् वक े मारे एक भाँ त धरतीपर गर पड़े ।। ४ ।। ततो नृपे त कतेजसा हते यु य सवाः परलोकस याः । शु च जो राजपुरो हत तदा तथैव ते त य नृप य म णः ।। ५ ।। नृपं शशुं त य सुतं च रे समे य सव पुरवा सनो जनाः । नृपं यमा तम म घा तनं कु वीरं जनमेजयं जनाः ।। ६ ।। त कक वषा न ारा राजा परी त्के द ध हो जानेपर उनक सम त पारलौ कक याएँ करके प व ा ण राजपुरो हत, उन महाराजके म ी तथा सम त पुरवासी े











मनु य ने मलकर उ ह के पु को, जसक अव था अभी ब त छोट थी, राजा बना दया। कु कुलका वह े वीर अपने श ु का वनाश करनेवाला था। लोग उसे राजा जनमेजय कहते थे ।। ५-६ ।। स बाल एवायम तनृपो मः सहैव तैम पुरो हतै तदा । शशास रा यं कु पु वा जो यथा य वीरः पतामह तथा ।। ७ ।। बचपनम ही नृप े जनमेजयक बु े पु ष के समान थी। अपने वीर पतामह महाराज यु ध रक भाँ त कु े वीर के अ ग य जनमेजय भी उस समय म ी और पुरो हत के साथ धमपूवक रा यका पालन करने लगे ।। ७ ।। तत तु राजानम म तापनं समी य ते त य नृप य म णः । सुवणवमाणमुपे य का शपं वपु माथ वरया च मुः ।। ८ ।। राजम य ने दे खा, राजा जनमेजय श ु को दबानेम समथ हो गये ह, तब उ ह ने का शराज सुवणवमाके पास जाकर उनक पु ी वपु माके लये याचना क ।। ८ ।। ततः स राजा ददौ वपु मां कु वीराय परी य धमतः । स चा प तां ा य मुदायुतोऽभवचा यनारीषु मनोदधे व चत् ।। ९ ।। का शराजने धमक से भलीभाँ त जाँच-पड़ताल करके अपनी क या वपु माका ववाह कु कुलके े वीर जनमेजयके साथ कर दया। जनमेजयने भी वपु माको पाकर बड़ी स ताका अनुभव कया और सरी य क ओर कभी अपने मनको नह जाने दया ।। ९ ।। सरःसु फु लेषु वनेषु चैव ह स चेता वजहार वीयवान् । तथा स राज यवरो वज वान् यथोवश ा य पुरा पु रवाः ।। १० ।। राजा म े महापरा मी जनमेजयने स - च होकर सरोवर तथा पु पशो भत उपवन म रानी वपु माके साथ उसी कार वहार कया, जैसे पूवकालम उवशीको पाकर महाराज पु रवाने कया था ।। १० ।। वपु मा चा प वरं प त ता तीत पा समवा य भूप तम् । भावेन रामा रमया बभूव सा वहारकाले ववरोधसु दरी ।। ११ ।। ी





वपु मा प त ता थी। उसका पसौ दय सव व यात था। वह राजाके अ तःपुरम सबसे सु दरी रमणी थी। राजा जनमेजयको प त पम ा त करके वह वहारकालम बड़े अनुरागके साथ उ ह आन द दान करती थी ।। ११ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण आ तीकपव ण जनमेजयरा या भषेके चतु वारशोऽ यायः ।। ४४ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत आ तीकपवम जनमेजयरा या भषेकस ब धी चौवालीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ४४ ।।

प चच वा रशोऽ यायः जर का को अपने पतर का दशन और उनसे वातालाप सौ त वाच एत म ेव काले तु जर का महातपाः । चचार पृ थव कृ नां य सायंगृहो मु नः ।। १ ।। उ वाजी कहते ह—इ ह दन क बात है, महातप वी जर का मु न स पूण पृ वीपर वचरण कर रहे थे। जहाँ सायंकाल हो जाता, वह वे ठहर जाते थे ।। १ ।। चरन् द ां महातेजा रामकृता म भः । तीथ वा लवनं कृ वा पु येषु वचचार ह ।। २ ।। उन महातेज वी मह षने ऐसे कठोर नयम क द ा ले रखी थी, जनका पालन करना सरे अ जते य पु ष के लये सवथा क ठन था। वे प व तीथ म नान करते ए वचर रहे थे ।। २ ।। वायुभ ो नराहारः शु य हरहमु नः । स ददश पतॄन् गत ल बमानानधोमुखान् ।। ३ ।। एकत वव श ं वै वीरण त बमा तान् । तं त तुं च शनैराखुमाददानं बलेशयम् ।। ४ ।। वे मु न वायु पीते और नराहार रहते थे; इस लये दन-पर- दन सूखते चले जाते थे। एक दन उ ह ने पतर को दे खा, जो नीचे मुँह कये एक गड् ढे म लटक रहे थे। उ ह ने खश नामक तनक के समूहको पकड़ रखा था, जसक जड़म केवल एक त तु बच गया था। उस बचे ए त तुको भी वह बलम रहनेवाला एक चूहा धीरे-धीरे खा रहा था ।। ३-४ ।। नराहारान् कृशान् द नान् गत व ाण म छतः । उपसृ य स तान् द नान् द न पोऽ यभाषत ।। ५ ।। वे पतर नराहार, द न और बल हो गये थे और चाहते थे क कोई हम इस गड् ढे म गरनेसे बचा ले। जर का उनक दयनीय दशा दे खकर दयासे वत हो वयं भी द न हो गये और उन द न- ःखी पतर के समीप जाकर बोले— ।। ५ ।। के भव तोऽवल ब ते वीरण त बमा ताः । बलं खा दतैमूलैराखुना बलवा सना ।। ६ ।। ‘आपलोग कौन ह जो खशके गु छे के सहारे लटक रहे ह? इस खशक जड़ यहाँ बलम रहनेवाले चूहेने खा डाली ह, इस लये यह ब त कमजोर है ।। ६ ।। वीरण त बके मूलं यद येक मह थतम् । तद ययं शनैराखुराद े दशनैः शतैः ।। ७ ।। ‘खशके इस गु छे म जो मूलका एक त तु यहाँ बचा है, उसे भी यह चूहा अपने तीखे दाँत से धीरे-धीरे कुतर रहा है ।। ७ ।। े





छे यतेऽ पाव श वादे तद य चरा दव । तत तु प ततारोऽ गत मधोमुखाः ।। ८ ।। ‘उसका व प भाग शेष है, वह भी बात-क -बातम कट जायगा। फर तो आपलोग नीचे मुँह कये न य ही इस गड् ढे म गर जायँगे ।। ८ ।। त य मे ःखमु प ं ् वा यु मानधोमुखान् । कृ मापदमाप ान् यं क करवा ण वः ।। ९ ।। तपसोऽ य चतुथन तृतीयेनाथवा पुनः । अधन वा प न ततुमापदं ूत मा चरम् ।। १० ।। ‘आपको इस कार नीचे मुँह कये लटकते दे ख मेरे मनम बड़ा ःख हो रहा है। आपलोग बड़ी क ठन वप म पड़े ह। म आपलोग का कौन य काय क ँ ? आपलोग मेरी इस तप याके चौथे, तीसरे अथवा आधे भागके ारा भी इस वप से बचाये जा सक तो शी बतलाव ।। ९-१० ।। अथवा प सम ेण तर तु तपसा मम । भव तः सव एवेह काममेवं वधीयताम् ।। ११ ।। ‘अथवा मेरी सारी तप याके ारा भी य द आप सभी लोग यहाँ इस संकटसे पार हो सक तो भले ही ऐसा कर ल’ ।। ११ ।। पतर ऊचुः वृ ो भवान् चारी यो न ातु महे छ स । न तु व ा य तपसा श यते तद् पो हतुम् ।। १२ ।। पतर ने कहा— व वर! आप बूढ़े चारी ह, जो यहाँ हमारी र ा करना चाहते ह; कतु हमारा संकट तप यासे नह टाला जा सकता ।। १२ ।। अ त न तात तपसः फलं वदतां वर । संतान याद् न् पताम नरयेऽशुचौ ।। १३ ।। तात! तप याका बल तो हमारे पास भी है। व ा म े ा ण! हम तो वंशपर पराका व छे द होनेके कारण अप व नरकम गर रहे ह ।। १३ ।। संतानं ह परो धम एवमाह पतामहः । ल बता मह न तात न ानं तभा त वै ।। १४ ।। ाजीका वचन है क संतान ही सबसे उ कृ धम है। तात! यहाँ लटकते ए हमलोग क सुध-बुध ायः खो गयी है, हम कुछ ात नह होता ।। १४ ।। येन वा ना भजानीमो लोके व यातपौ षम् । वृ ो भवान् महाभागो यो नः शो यान् सु ःखतान् ।। १५ ।। शोचते चैव का या छृ णु ये वै वयं ज । यायावरा नाम वयमृषयः सं शत ताः ।। १६ ।। इसी लये लोकम व यात पौ षवाले आप-जैसे महापु षको हम पहचान नह पा रहे ह। आप कोई महान् सौभा यशाली महापु ष ह, जो अ य त ःखम पड़े ए हम-जैसे ो















शोचनीय ा णय के लये क णावश शोक कर रहे ह। न्! हमलोग कौन ह इसका प रचय दे ते ह, सु नये। हम अ य त कठोर तका पालन करनेवाले यायावर नामक मह ष ह ।। १५-१६ ।। लोकात् पु या दह ाः संतान या मुने । ण ं न तप ती ं न ह न त तुर त वै ।। १७ ।। मुने! वंशपर पराका य होनेके कारण हम पु य-लोकसे होना पड़ा है। हमारी ती तप या न हो गयी; य क हमारे कुलम अब कोई संत त नह रह गयी है ।। १७ ।। अ त वेकोऽ न त तुः सोऽ प ना त यथा तथा । म दभा योऽ पभा यानां तप एकं समा थतः ।। १८ ।। आजकल हमारी पर पराम एक ही त तु या संत त शेष है, कतु वह भी नह के बराबर है। हम अ पभा य ह, इसीसे वह म दभा य संत त एकमा तपम लगी ई है ।। १८ ।। जर का र त यातो वेदवेदा पारगः । नयता मा महा मा च सु तः सुमहातपाः ।। १९ ।। उसका नाम है जर का । वह वेद-वेदांग का पारंगत व ान् होनेके साथ ही मन और इ य को संयमम रखनेवाला, महा मा, उ म तका पालक और महान् तप वी है ।। १९ ।। तेन म तपसो लोभात् कृ मापा दता वयम् । न त य भाया पु ो वा बा धवो वा त क न ।। २० ।। उसने तप याके लोभसे हम संकटम डाल दया है। उसके न प नी है, न पु और न कोई भाई-ब धु ही है ।। २० ।। त मा ल बामहे गत न सं ा नाथवत् । सव वया ो माकं नाथव या ।। २१ ।। इसीसे हमलोग अपनी सुध-बुध खोकर अनाथक तरह इस गड् ढे म लटक रहे ह। य द वह आपके दे खनेम आवे तो हम अनाथ को सनाथ करनेके लये उससे इस कार क हयेगा — ।। २१ ।। पतर तेऽवल ब ते गत द ना अधोमुखाः । साधु दारान् कु वे त जामु पादये त च ।। २२ ।। ‘जर कारो! तु हारे पतर अ य त द न हो नीचे मुँह करके ग ेम लटक रहे ह। तुम उ म री तसे प नीके साथ ववाह कर लो और उसके ारा संतान उ प करो ।। २२ ।। कुलत तु ह नः श वमेवैक तपोधन । य वं प य स नो न् वीरण त बमा तान् ।। २३ ।। एषोऽ माकं कुल त ब आ ते वकुलवधनः । या न प य स वै न् मूलानीहा य वी धः ।। २४ ।। एते न त तव तात कालेन प रभ ताः । य वेतत् प य स न् मूलम याधभ तम् ।। २५ ।। य ल बामहे गत सोऽ येक तप आ थतः ।

यमाखुं प य स न् काल एष महाबलः ।। २६ ।। ‘तपोधन! तु ह अपने पूवज के कुलम एकमा त तु बच रहे हो। न्! आप जो हम खशके गु छे का सहारा लेकर लटकते दे ख रहे ह, यह खशका गु छा नह है, हमारे कुलका आ य है, जो अपने कुलको बढ़ानेवाला है। व वर! इस खशक जो कट ई जड़ यहाँ आपक म आ रही ह, ये ही हमारे वंशके वे त तु (संतान) ह, ज ह काल पी चूहेने खा लया है। ा ण! आप जो इस खशक यह अधकट जड़ दे खते ह, जसके सहारे हम गड् ढे म लटक रहे ह, यह वही एकमा संतान जर का है, जो तप याम लगा है और ा ण दे वता! जसे आप चूहेके पम दे ख रहे ह, यह महाबली काल है ।। २३—२६ ।। स तं तपोरतं म दं शनैः पयते तुदन् । जर का ं तपोलधं म दा मानमचेतसम् ।। २७ ।। ‘वह उस तप वी एवं मूढ़ जर का को, जो तपको ही लाभ माननेवाला, म दा मा (अ रदश ) और अचेत (जड) हो रहा है, धीरे-धीरे पीड़ा दे ते ए दाँत से काट रहा है ।। २७ ।। न ह न तत् तप त य तार य य त स म । छ मूलान् प र ान् कालोपहतचेतसः ।। २८ ।। अधः व ान् प या मान् यथा कृ तन तथा । अ मासु प तते व सह सवः सबा धवैः ।। २९ ।। छ ः कालेन सोऽ य ग ता वै नरकं ततः । तपो वा यथवा य ो य चा यत् पावनं महत् ।। ३० ।। तत् सवमपरं तात न संत या समं मतम् । स तात ् वा ूया तं जर का ं तपोधन ।। ३१ ।। यथा मदं चा वया येयमशेषतः । यथा दारान् कुयात् स पु ानु पादयेद ् यथा ।। ३२ ।। तथा ं वया वा यः सोऽ माकं नाथव या । बा धवानां हत येह यथा चा मकुलं तथा ।। ३३ ।। क वं ब धु मवा माकमनुशोच स स म । ोतु म छाम सवषां को भवा नह त त ।। ३४ ।। ‘साधु शरोमणे! उस जर का क तप या हम इस संकटसे नह उबारेगी। दे खये, हमारी जड़ कट गयी ह, कालने हमारी चेतनाश न कर द है और हम अपने थानसे होकर नीचे इस गड् ढे म गर रहे ह। जैसे पा पय क ग त होती है, वैसे ही हमारी होती है। हम सम त ब धु-बा धव के साथ जब इस गड् ढे म गर जायँगे, तब वह जर का भी कालका ास बनकर अव य इसी नरकम आ गरेगा। तात! तप या, य अथवा अ य जो महान् एवं प व साधन ह, वे सब संतानके समान नह ह। तात! आप तप याके धनी जान पड़ते ह। आपको तप वी जर का मल जाय तो उससे हमारा संदेश क हयेगा और आपने यहाँ जो कुछ दे खा है, वह सब उसे बता द जयेगा! न्! हम सनाथ बनानेक से आप जर का के साथ इस कार वातालाप क जयेगा, जससे वह प नी-सं ह करे और े ो े े ो ो े े े

उसके ारा पु को ज म दे । तात! जर का के बा धव जो हमलोग ह, हमारे लये अपने कुलक भाँ त अपने भाई-ब धुके समान आप सोच कर रहे ह। अतः साधु शरोमणे! बताइये, आप कौन ह? हम सब लोग मसे आप कसके या लगते ह, जो यहाँ खड़े ए ह? हम आपका प रचय सुनना चाहते ह’ ।। २८—३४ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण आ तीकपव ण जर का पतृदशने प चच वारशोऽ यायः ।। ४५ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत आ तीकपवम जर का के पतृदशन वषयक पतालीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ४५ ।।

षट् च वा रशोऽ यायः जर का का शतके साथ ववाहके लये उ त होना और नागराज वासु कका जर का नामक क याको लेकर आना सौ त वाच एत छ वा जर का भृशं शोकपरायणः । उवाच तान् पतॄन् ःखाद् वा पसं द धया गरा ।। १ ।। उ वाजी कहते ह—शौनकजी! यह सुनकर जर का अ य त शोकम म न हो गये और ःखसे आँसू बहाते ए गद्गद वाणीम अपने पतर से बोले ।। १ ।। जर का वाच मम पूव भव तो वै पतरः स पतामहाः । तद् ूत य मया काय भवतां यका यया ।। २ ।। अहमेव जर का ः क बषी भवतां सुतः । ते द डं धारयत मे कृतेरकृता मनः ।। ३ ।। जर का ने कहा—आप मेरे ही पूवज पता और पतामह आ द ह। अतः बताइये आपका य करनेके लये मुझे या करना चा हये। म ही आपलोग का पु पापी जर का ँ। आप मुझ अकृता मा पापीको इ छानुसार द ड द ।। २-३ ।। पतर ऊचुः पु द ा स स ा त इमं दे शं य छया । कमथ च वया न् न कृतो दारसं हः ।। ४ ।। पतर बोले—पु ! बड़े सौभा यक बात है जो तुम अक मात् इस थानपर आ गये। न्! तुमने अबतक ववाह य नह कया? ।। ४ ।। जर का वाच ममायं पतरो न यं य थः प रवतते । ऊ वरेताः शरीरं वै ापयेयममु वै ।। ५ ।। जर का ने कहा— पतृगण! मेरे दयम यह बात नर तर घूमती रहती थी क म ऊ वरेता (अख ड चयका पालक) होकर इस शरीरको परलोक (पु यधाम)-म प ँचाऊँ ।। ५ ।। न दारान् वै क र येऽह म त मे भा वतं मनः । एवं ् वा तु भवतः शकु ता नव ल बतः ।। ६ ।। मया नव तता बु चयात् पतामहाः । े





क र ये वः यं कामं नवे येऽहमसंशयम् ।। ७ ।। अतः मने अपने मनम यह ढ़ न य कर लया था क ‘म कभी प नी-प र ह ( ववाह) नह क ँ गा।’ कतु पतामहो! आपको प य क भाँ त लटकते दे ख अख ड चयके पालन-स ब धी न यसे मने अपनी बु लौटा ली है। अब म आपका य मनोरथ पूण क ँ गा, न य ही ववाह कर लूँगा ।। ६-७ ।। सना न य हं क यामुपल ये कदाचन । भ व य त च या का चद् भै यवत् वयमु ता ।। ८ ।। त हीता ताम म न भरेयं च यामहम् । एवं वधमहं कुया नवेशं ा ुयां य द । अ यथा न क र येऽहं स यमेतत् पतामहाः ।। ९ ।। (परंतु इसके लये एक शत होगी—) ‘य द म कभी अपने ही जैसे नामवाली कुमारी क या पाऊँगा, उसम भी जो भ ाक भाँ त बना माँगे वयं ही ववाहके लये तुत हो जायगी और जसके पालन-पोषणका भार मुझपर न होगा, उसीका म पा ण हण क ँ गा।’ य द ऐसा ववाह मुझे सुलभ हो जाय तो कर लूँगा, अ यथा ववाह क ँ गा ही नह । पतामहो! यह मेरा स य न य है ।। ८-९ ।। त चो प यते ज तुभवतां तारणाय वै । शा ता ा या ैव त तु पतरो मम ।। १० ।। वैसे ववाहसे जो प नी मलेगी, उसीके गभसे आपलोग को तारनेके लये कोई ाणी उ प होगा। म चाहता ँ मेरे पतर न य शा त लोक म बने रह, वहाँ वे अ य सुखके भागी ह ।। १० ।। सौ त वाच एवमु वा तु स पतॄं चार पृ थव मु नः । न च म लभते भाया वृ ोऽय म त शौनक ।। ११ ।। उ वाजी कहते ह—शौनकजी! इस कार पतर से कहकर जर का मु न पूववत् पृ वीपर वचरने लगे। परंतु ‘यह बूढ़ा है’ ऐसा समझकर कसीने क या नह द , अतः उ ह प नी उपल ध न हो सक ।। ११ ।। यदा नवदमाप ः पतृ भ ो दत तथा । तदार यं स ग वो चै ोश भृश ःखतः ।। १२ ।। जब वे ववाहक ती ाम ख हो गये, तब पतर से े रत होनेके कारण वनम जाकर अ य त ःखी हो जोर-जोरसे याहके लये पुकारने लगे ।। १२ ।। स वर यगतः ा ः पतॄणां हतका यया । उवाच क यां याचा म त ो वाचः शनै रमाः ।। १३ ।। वनम जानेपर व ान् जर का ने पतर के हतक कामनासे तीन बार धीरे-धीरे यह बात कही—‘म क या माँगता ँ’ ।। १३ ।। या न भूता न स तीह थावरा ण चरा ण च । े

अ त हता न वा या न ता न शृ व तु मे वचः ।। १४ ।। ( फर जोरसे बोले—) ‘यहाँ जो थावर-जंगम, य या अ य ाणी ह, वे सब मेरी बात सुन— ।। १४ ।। उ े तप स वत ते पतर ोदय त माम् । न वश वे त ःखाताः संतान य चक षया ।। १५ ।। ‘मेरे पतर भयंकर क म पड़े ह और ःखसे आतुर हो संतान- ा तक इ छा रखकर मुझे े रत कर रहे ह क ‘तुम ववाह कर लो’ ।। १५ ।। नवेशायाखलां भूम क याभै यं चरा म भोः । द र ो ःखशील पतृ भः सं नयो जतः ।। १६ ।। ‘अतः ववाहके लये म सारी पृ वीपर घूमकर क याक भ ा चाहता ँ। य प म द र ँ और सु वधा के अभावम ःखी ँ, तो भी पतर क आ ासे ववाहके लये उ त ँ ।। १६ ।। य य क या त भूत य ये मयेह क तताः । ते मे क यां य छ तु चरतः सवतो दशम् ।। १७ ।। ‘मने यहाँ जनका नाम लेकर पुकारा है, उनमसे जस कसी भी ाणीके पास ववाहके यो य व यात गुण वाली क या हो, वह सब दशा म वचरनेवाले मुझ ा णको अपनी क या दे ।। १७ ।। मम क या सना नी या भै यव चो दता भवेत् । भरेयं चैव यां नाहं तां मे क यां य छत ।। १८ ।। ‘जो क या मेरे ही जैसे नामवाली हो, भ ाक भाँ त मुझे द जा सकती हो और जसके भरण-पोषणका भार मुझपर न हो, ऐसी क या कोई मुझे दे ’ ।। १८ ।। तत ते प गा ये वै जर कारौ समा हताः । तामादाय वृ ते वासुकेः यवेदयन् ।। १९ ।। तब उन नाग ने जो जर का मु नक खोजम लगाये गये थे, उनका यह समाचार पाकर उ ह ने नागराज वासु कको सू चत कया ।। १९ ।। तेषां ु वा स नागे तां क यां समलंकृताम् । गृ ार यमगमत् समीपं त य प गः ।। २० ।। उनक बात सुनकर नागराज वासु क अपनी उस कुमारी ब हनको व ाभूषण से वभू षत करके साथ ले वनम मु नके समीप गये ।। २० ।। त तां भै यवत् क यां ादात् त मै महा मने । नागे ो वासु क न् न स तां यगृ त ।। २१ ।। न्! वहाँ नागे वासु कने महा मा जर का को भ ाक भाँ त वह क या सम पत क ; कतु उ ह ने सहसा उसे वीकार नह कया ।। २१ ।। असनामे त वै म वा भरणे चा वचा रते । मो भावे थत ा प म द भूतः प र हे ।। २२ ।। ततो नाम स क यायाः प छ भृगुन दन ।

वासु क भरणं चा या न कुया म युवाच ह ।। २३ ।। सोचा, स भव है। यह क या मेरे-जैसे नामवाली न हो। इसके भरण-पोषणका भार कसपर रहेगा, इस बातका नणय भी अभीतक नह हो पाया है। इसके सवा म मो भावम थत ँ, यही सोचकर उ ह ने प नी-प र हम श थलता दखायी। भृगन ु दन! इसी लये पहले उ ह ने वासु कसे उस क याका नाम पूछा और यह प कह दया—‘म इसका भरण-पोषण नह क ँ गा’ ।। २२-२३ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण आ तीकपव ण वासु कजर का समागमे षट् च वारशोऽ यायः ।। ४६ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत आ तीकपवम वासु क-जर का समागमस ब धी छयालीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ४६ ।।

स तच वा रशोऽ यायः जर का मु नका नागक याके साथ ववाह, नागक या जर का ारा प तसेवा तथा प तका उसे यागकर तप याके लये गमन सौ त वाच वासु क व वीद् वा यं जर का मृ ष तदा । सना नी तव क येयं वसा मे तपसा वता ।। १ ।। भ र या म च ते भाया ती छे मां जो म । र णं च क र येऽ याः सवश या तपोधन । वदथ र यते चैषा मया मु नवरो म ।। २ ।। उ वाजी कहते ह—शौनक! उस समय वासु कने जर का मु नसे कहा —‘ ज े ! इस क याका वही नाम है, जो आपका है। यह मेरी ब हन है और आपक ही भाँ त तप वनी भी है। आप इसे हण कर। आपक प नीका भरण-पोषण म क ँ गा। तपोधन! अपनी सारी श लगाकर म इसक र ा करता र ँगा। मु न े ! अबतक आपहीके लये मने इसक र ा क है ।। १-२ ।। ऋ ष वाच न भ र येऽहमेतां वै एष मे समयः कृतः । अ यं च न कत ं कृते चैनां यजा यहम् ।। ३ ।। ऋ षने कहा—नागराज! म इसका भरण-पोषण नह क ँ गा, मेरी यह शत तो तय हो गयी। अब सरी शत यह है क तु हारी इस ब हनको कभी ऐसा काय नह करना चा हये, जो मुझे अ य लगे। य द अ य काय कर बैठेगी तो उसी समय म इसे याग ँ गा ।। ३ ।। सौ त वाच त ुते तु नागेन भ र ये भ गनी म त । जर का तदा वे म भुजग य जगाम ह ।। ४ ।। उ वाजी कहते ह—नागराजने यह शत वीकार कर ली क ‘म अपनी ब हनका भरण-पोषण क ँ गा।’ तब जर का मु न वासु कके भवनम गये ।। ४ ।। त म वदां े तपोवृ ो महा तः । ज ाह पा ण धमा मा व धम पुर कृतम् ।। ५ ।। वहाँ म वे ा म े तपोवृ महा ती धमा मा जर का ने शा ीय व ध और म ो चारणके साथ नागक याका पा ण हण कया ।। ५ ।। ततो वासगृहं र यं प गे य स मतम् । जगाम भायामादाय तूयमानो मह ष भः ।। ६ ।। े ो े े े ी ो े

तदन तर मह षय से शं सत होते ए वे नागराजके रमणीय भवनम, जो मनके अनुकूल था, अपनी प नीको लेकर गये ।। ६ ।। शयनं त सं लृ तं प या तरणसंवृतम् । त भायासहायो वै जर का वास ह ।। ७ ।। वहाँ ब मू य बछौन से सजी ई शया बछ थी। जर का मु न अपनी प नीके साथ उसी भवनम रहने लगे ।। ७ ।। स त समयं च े भायया सह स मः । व यं मे न कत ं न च वा यं कदाचन ।। ८ ।। उन साधु शरोम णने वहाँ अपनी प नीके सामने यह शत रखी—‘तु ह ऐसा कोई काम नह करना चा हये, जो मुझे अ य लगे। साथ ही कभी अ य वचन भी नह बोलना चा हये ।। ८ ।। यजेयं व ये च वां कृते वासं च ते गृहे । एतद् गृहाण वचनं मया यत् समुद रतम् ।। ९ ।। ‘तुमसे अ य काय हो जानेपर म तु ह और तु हारे घरम रहना छोड़ ँ गा। मने जो कुछ कहा है, मेरे इस वचनको ढ़तापूवक धारण कर लो’ ।। ९ ।। ततः परमसं व ना वसा नागपते तदा । अ त ःखा वता वा यं तमुवाचैवम व त ।। १० ।। यह सुनकर नागराजक ब हन अ य त उ न हो गयी और उस समय ब त ःखी होकर बोली—‘भगवन्! ऐसा ही होगा’ ।। १० ।। तथैव सा च भतारं ःखशीलमुपाचरत् । उपायैः ेतकाक यैः यकामा यश वनी ।। ११ ।। फर वह यश वनी नागक या ःखद वभाववाले प तक उसी शतके अनुसार सेवा करने लगी। वह ेतकाक य* उपाय से सदा प तका य करनेक इ छा रखकर नर तर उनक आराधनाम लगी रहती थी ।। ११ ।। ऋतुकाले ततः नाता कदा चद् वासुकेः वसा । भतारं वै यथा यायमुपत थे महामु नम् ।। १२ ।। तदन तर कसी समय ऋतुकाल आनेपर वासु कक ब हन नान करके यायपूवक अपने प त महामु न जर का क सेवाम उप थत ई ।। १२ ।। त त याः समभवद् गभ वलनसं नभः । अतीवतेजसा यु ो वै ानरसम ु तः ।। १३ ।। वहाँ उसे गभ रह गया, जो व लत अ नके समान अ य त तेज वी तथा तपःश से स प था। उसक अंगका त अ नके तु य थी ।। १३ ।। शु लप े यथा सोमो वधत तथैव सः । ततः क तपयाह य जर का महायशाः ।। १४ ।। उ स े ऽ याः शरः कृ वा सु वाप प रख वत् । े

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त मं सु ते व े े स वता त मयाद् ग रम् ।। १५ ।। जैसे शु लप म च मा बढ़ते ह, उसी कार वह गभ भी न य प रपु होने लगा। त प ात् कुछ दन के बाद महातप वी जर का कुछ ख -से होकर अपनी प नीक गोदम सर रखकर सो गये। उन व वर जर का के सोते समय ही सूय अ ताचलको जाने लगे ।। १४-१५ ।। अ ः प र ये ं ततः सा च तयत् तदा । वासुकेभ गनी भीता धमलोपा मन वनी ।। १६ ।। क नु मे सुकृतं भूयाद् भतु थापनं न वा । ःखशीलो ह धमा मा कथं ना यापरा नुयाम् ।। १७ ।। न्! दन समा त होने ही वाला था। अतः वासु कक मन वनी ब हन जर का अपने प तके धमलोपसे भयभीत हो उस समय इस कार सोचने लगी—‘इस समय प तको जगाना मेरे लये अ छा (धमानुकूल) होगा या नह ? मेरे धमा मा प तका वभाव बड़ा ःखद है। म कैसा बताव क ँ , जससे उनक म अपरा धनी न बनूँ ।। १६-१७ ।। कोपो वा धमशील य धमलोपोऽथवा पुनः । धमलोपो गरीयान् वै या द य ाकरो म तम् ।। १८ ।। उ थाप य ये य ेनं ुवं कोपं क र य त । धमलोपो भवेद य सं या त मणे ुवम् ।। १९ ।। ‘य द इ ह जगाऊँगी तो न य ही इ ह मुझपर ोध होगा और य द सोते-सोते सं योपासनका समय बीत गया तो अव य इनके धमका लोप हो जायगा, ऐसी दशाम धमा मा प तका कोप वीकार क ँ या उनके धमका लोप? इन दोन म धमका लोप ही भारी जान पड़ता है।’ अतः जससे उनके धमका लोप न हो, वही काय करनेका उसने न य कया ।। १८-१९ ।। इ त न य मनसा जर का भुज मा । तमृ ष द ततपसं शयानमनलोपमम् ।। २० ।। उवाचेदं वचः णं ततो मधुरभा षणी । उ वं महाभाग सूय ऽ तमुपग छ त ।। २१ ।। मन-ही-मन ऐसा न य करके मीठे वचन बोलनेवाली नागक या जर का ने वहाँ सोते ए अ नके समान तेज वी एवं ती तप वी मह षसे मधुरवाणीम य कहा—‘महाभाग! उ ठये, सूयदे व अ ताचलको जा रहे ह ।। २०-२१ ।। सं यामुपा व भगव पः पृ ् वा यत तः । ा कृता नहो ोऽयं मुत र यदा णः ।। २२ ।। सं या वतते चेयं प मायां द श भो ।











‘भगवन्! आप संयमपूवक आचमन करके सं योपासन क जये। अब अ नहो क बेला हो रही है। यह मु त धमका साधन होनेके कारण अ य त रमणीय जान पड़ता है। इसम भूत आ द ाणी वचरते ह, अतः भयंकर भी है। भो! प म दशाम सं या कट हो रही है—उधरका आकाश लाल हो रहा है’ ।। २२ ।। एवमु ः स भगवान् जर का महातपाः ।। २३ ।। भाय फुरमाणौ इदं वचनम वीत् । अवमानः यु ोऽयं वया मम भुज मे ।। २४ ।। नागक याके ऐसा कहनेपर महातप वी भगवान् जर का जाग उठे । उस समय ोधके मारे उनके होठ काँपने लगे। वे इस कार बोले—‘नागक ये! तूने मेरा यह अपमान कया है ।। २३-२४ ।। समीपे ते न व या म ग म या म यथागतम् । श र त न वामो म य सु ते वभावसोः ।। २५ ।। अ तं ग तुं यथाकाल म त मे द वतते । न चा यवमत येह वासो रोचेत क य चत् ।। २६ ।। क पुनधमशील य मम वा म ध य वा । ‘इस लये अब म तेरे पास नह र ँगा। जैसे आया ँ, वैसे ही चला जाऊँगा। वामो ! सूयम इतनी श नह है क म सोता र ँ और वे अ त हो जायँ। यह मेरे दयम न य है। जसका कह अपमान हो जाय ऐसे कसी भी पु षको वहाँ रहना अ छा नह लगता। फर मेरी अथवा मेरे-जैसे सरे धमशील पु षक तो बात ही या है’ ।। २५-२६ ।। एवमु ा जर का भ ा दयक पनम् ।। २७ ।। अ वीद् भ गनी त वासुकेः सं नवेशने । नावमानात् कृतवती तवाहं व बोधनम् ।। २८ ।। धमलोपो न ते व या द येत मया कृतम् । उवाच भाया म यु ो जर का महातपाः ।। २९ ।। ऋ षः कोपसमा व य ु कामो भुज माम् । न मे वागनृतं ाह ग म येऽहं भुज मे ।। ३० ।। जब प तने इस कार दयम कँपकँपी पैदा करनेवाली बात कही, तब उस घरम थत वासु कक ब हन इस कार बोली—‘ व वर! मने अपमान करनेके लये आपको नह जगाया था। आपके धमका लोप न हो जाय, यही यानम रखकर मने ऐसा कया है।’ यह सुनकर ोधम भरे ए महातप वी ऋ ष जर का ने अपनी प नी नागक याको याग दे नेक इ छा रखकर उससे कहा—‘नागक ये! मने कभी झूठ बात मुँहसे नह नकाली है, अतः अव य जाऊँगा’ ।। २७—३० ।। समयो ेष मे पूव वया सह मथः कृतः । सुखम यु षतो भ े ूया वं ातरं शुभे ।। ३१ ।। इतो म य गते भी गतः स भगवा न त । े



वं चा प म य न ा ते न शोकं कतुमह स ।। ३२ ।। ‘मने तु हारे साथ आपसम पहले ही ऐसी शत कर ली थी। भ े ! म यहाँ बड़े सुखसे रहा ँ। यहाँसे मेरे चले जानेके बाद अपने भाईसे कहना—‘भगवान् जर का चले गये।’ शुभे! भी ! मेरे नकल जानेपर तु ह भी शोक नह करना चा हये’ ।। ३१-३२ ।। इ यु ा सानव ा युवाच मु न तदा । जर का ं जर का ताशोकपरायणा ।। ३३ ।। बा पगद्गदया वाचा मुखेन प रशु यता । कृता लवरारोहा पय ुनयना ततः ।। ३४ ।। धैयमाल य वामो दयेन वेपता । न मामह स धम प र य ु मनागसम् ।। ३५ ।। धम थतां थतो धम सदा य हते रताम् । दाने कारणं य च मम तु यं जो म ।। ३६ ।। तदलधवत म दां क मां व य त वासु कः । मातृशापा भभूतानां ातीनां मम स म ।। ३७ ।। अप यमी सतं व त च ताव यते । व ो प यलाभेन ातीनां मे शवं भवेत् ।। ३८ ।। उनके ऐसा कहनेपर अ न सु दरी जर का भाईके कायक च ता और प तके वयोगज नत शोकम डू ब गयी। उसका मुँह सूख गया, ने म आँसू छलक आये और दय काँपने लगा। फर कसी कार धैय धारण करके सु दर जाँघ और मनोहर शरीरवाली वह नागक या हाथ जोड़ गद्गद वाणीम जर का मु नसे बोली—‘धम ! आप सदा धमम थत रहनेवाले ह। म भी प नी-धमम थत तथा आप यतमके हतम लगी रहनेवाली ँ। आपको मुझ नरपराध अबलाका याग नह करना चा हये। ज े ! मेरे भाईने जस उद्दे यको लेकर आपके साथ मेरा ववाह कया था, म म दभा गनी अबतक उसे पा न सक । नागराज वासु क मुझसे या कहगे? साधु शरोमणे! मेरे कुटु बीजन माताके शापसे दबे ए ह। उ ह मेरे ारा आपसे एक संतानक ा त अभी थी, कतु उसका भी अबतक दशन नह आ। आपसे पु क ा त हो जाय तो उसके ारा मेरे जा त-भाइय का क याण हो सकता है ।। ३३—३८ ।। स योगो भवे ायं मम मोघ वया ज । ातीनां हत म छ ती भगवं वां सादये ।। ३९ ।। ‘ न्! आपसे जो मेरा स ब ध आ, वह थ नह जाना चा हये। भगवन्! अपने बा धवजन का हत चाहती ई म आपसे स होनेक ाथना करती ँ ।। ३९ ।। इमम पं मे गभमाधाय स म । कथं य वा महा मा सन् ग तु म छ यनागसम् ।। ४० ।। ‘महाभाग! आपने जो गभ था पत कया है, उसका व प या ल ण अभी कट नह आ। महा मा होकर ऐसी दशाम आप मुझ नरपराध प नीको यागकर कैसे जाना चाहते ह?’ ।। ४० ।। ी

एवमु तु स मु नभाया वचनम वीत् । यद् यु मनु पं च जर का ं तपोधनः ।। ४१ ।। यह सुनकर उन तपोधन मह षने अपनी प नी जर का से उ चत तथा अवसरके अनु प बात कही— ।। ४१ ।। अ ययं सुभगे गभ तव वै ानरोपमः । ऋ षः परमधमा मा वेदवेदा पारगः ।। ४२ ।। सुभगे! ‘अयंअ त’ —तु हारे उदरम गभ है। तु हारा यह गभ थ बालक अ नके समान तेज वी, परम धमा मा मु न तथा वेद-वेदांग का पारंगत व ान् होगा’ ।। ४२ ।। एवमु वा स धमा मा जर का महानृ षः । उ ाय तपसे भूयो जगाम कृत न यः ।। ४३ ।। ऐसा कहकर धमा मा महामु न जर का , ज ह ने जानेका ढ़ न य कर लया था, फर कठोर तप याके लये वनम चले गये ।। ४३ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण आ तीकपव ण जर का नगमे स तच वारशोऽ यायः ।। ४७ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत आ तीकपवम जर का का तप याके लये न मण वषयक सतालीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ४७ ।।

*

ेतकाकका अथ यह है— ा, एत और काक; जसका मशः अथ है—कु ा, ह रण और कौआ ( ा+एतम पर प आ है)। ता पय यह है क यह कु तयाक भाँ त सदा जागती और कम सोती थी, ह रणीके समान भयसे च कत रहती और कौएक भाँ त उनके इं गत (इशारे) समझनेके लये सावधान रहती थी।

अ च वा रशोऽ यायः वासु क नागक च ता, ब हन ारा उसका नवारण तथा आ तीकका ज म एवं व ा ययन सौ त वाच गतमा ं तु भतारं जर का रवेदयत् । ातुः सकाशमाग य याथातयं तपोधन ।। १ ।। उ वाजी कहते ह—तपोधन शौनक! प तके नकलते ही नागक या जर का ने अपने भाई वासु कके पास जाकर उनके चले जानेका सब हाल य -का- य सुना दया ।। १ ।। ततः स भुजग े ः ु वा सुमहद यम् । उवाच भ गन द नां तदा द नतरः वयम् ।। २ ।। यह अ य त अ य समाचार सुनकर सप म े वासु क वयं भी ब त ःखी हो गये और ःखम पड़ी ई अपनी ब हनसे बोले ।। २ ।। वासु क वाच जाना स भ े यत् काय दाने कारणं च यत् । प गानां हताथाय पु ते यात् ततो य द ।। ३ ।। वासु कने कहा—भ े ! सप का जो महान् काय है और मु नके साथ तु हारा ववाह होनेम जो उ े य रहा है, उसे तो तुम जानती ही हो। य द उनके ारा तु हारे गभसे कोई पु उ प हो जाता तो उससे सप का ब त बड़ा हत होता ।। ३ ।। स सपस ात् कल नो मो य य त वीयवान् । एवं पतामहः पूवमु वां तु सुरैः सह ।। ४ ।। वह श शाली मु नकुमार ही हमलोग को जनमेजयके सपय म जलनेसे बचायेगा; यह बात पहले दे वता के साथ भगवान् ाजीने कही थी ।। ४ ।। अ य त गभः सुभगे त मात् ते मु नस मात् । न चे छा यफलं त य दारकम मनी षणः ।। ५ ।। काय च मम न या यं ु ं वां कायमी शम्। कतु कायगरीय वात् तत वाहमचूचुदम् ।। ६ ।। सुभगे! या उन मु न े से तु ह गभ रह गया है? तु हारे साथ उन मनीषी महा माका ववाह-कम न फल हो, यह म नह चाहता। म तु हारा भाई ँ, ऐसे काय (पु ो प )-के वषयम तुमसे कुछ पूछना मेरे लये उ चत नह है, परंतु कायके गौरवका वचार करके मने तु ह इस वषयम सब बात बतानेके लये े रत कया है ।। ५-६ ।। वायतां व द वा च भतु तेऽ ततप वनः । ै



नैनम वाग म या म कदा च शपेत् स माम् ।। ७ ।। तु हारे महातप वी प तको जानेसे रोकना कसीके लये भी अ य त क ठन है, यह जानकर म उ ह लौटा लानेके लये उनके पीछे नह जा रहा ँ। लौटनेका आ ह क ँ तो कदा चत् वे मुझे शाप भी दे सकते ह ।। ७ ।। आच व भ े भतुः वं सवमेव वचे तम् । उ र व च श यं मे घोरं द चर थतम् ।। ८ ।। अतः भ े ! तुम अपने प तक सारी चे ा बताओ और मेरे दयम द घकालसे जो भयंकर काँटा चुभा आ है, उसे नकाल दो ।। ८ ।। जर का ततो वा य म यु ा यभाषत । आ ासय ती संत तं वासु क प गे रम् ।। ९ ।। भाईके इस कार पूछनेपर तब जर का अपने संत त ाता नागराज वासु कको धीरज बँधाती ई इस कार बोली ।। ९ ।। जर का वाच पृ ो मयाप यहेतोः स महा मा महातपाः । अ ती यु रमु य ममेदं गतवां सः ।। १० ।। जर का ने कहा—भाई! मने संतानके लये उन महातप वी महा मासे पूछा था। मेरे गभके वषयम ‘अ त’(तु हारे गभम पु है) इतना ही कहकर वे चले गये ।। १० ।। वैरे व प न तेनाहं मरा म वतथं वचः । उ पूव कुतो राजन् सा पराये स व य त ।। ११ ।। न संताप वया कायः काय त भुज मे । उ प य त च ते पु ो वलनाकसम भः ।। १२ ।। इ यु वा स ह मां ातगतो भता तपोधनः । त माद् ेतु परं ःखं तवेदं मन स थतम् ।। १३ ।। राजन्! उ ह ने पहले कभी वनोदम भी झूठ बात कही हो, यह मुझे मरण नह है। फर इस संकटके समय तो वे झूठ बोलगे ही य ? भैया! मेरे प त तप याके धनी ह। उ ह ने जाते समय मुझसे यह कहा—‘नागक ये! तुम अपनी काय- स के स ब धम कोई च ता न करना। तु हारे गभसे अ न और सूयके समान तेज वी पु उ प होगा।’ इतना कहकर वे तपोवनम चले गये। अतः भैया! तु हारे मनम जो महान् ःख है, वह र हो जाना चा हये ।। ११—१३ ।। सौ त वाच एत छ वा स नागे ो वासु कः परया मुदा । एवम व त तद् वा यं भ ग याः यगृ त ।। १४ ।। उ वाजी कहते ह—शौनक! यह सुनकर नागराज वासु क बड़ी स तासे बोले —‘एवम तु’ (ऐसा ही हो)। इस कार उ ह ने ब हनक बातको व ासपूवक हण कया ।। १४ ।। ै

सा वमानाथदानै पूजया चानु पया । सोदया पूजयामास वसारं प गो मः ।। १५ ।। सप म े वासु क अपनी सहोदरा ब हनको सा वना, स मान तथा धन दे कर एवं सु दर पसे उसका वागत-स कार करके उसक समाराधना करने लगे ।। १५ ।। ततः ववृधे गभ महातेजा महा भः । यथा सोमो ज े शु लप ो दतो द व ।। १६ ।। ज े ! जैसे शु लप म आकाशम उ दत होनेवाला च मा त दन बढ़ता है, उसी कार जर का का वह महातेज वी और परम का तमान् गभ बढ़ने लगा ।। १६ ।। अथ काले तु सा न् ज े भुजग वसा । कुमारं दे वगभाभं पतृमातृभयापहम् ।। १७ ।। न्! तदन तर समय आनेपर वासु कक ब हनने एक द कुमारको ज म दया, जो दे वता के बालक-सा तेज वी जान पड़ता था। वह पता और माता—दोन प के भयको न करनेवाला था ।। १७ ।। ववृधे स तु त ैव नागराज नवेशने । वेदां ा धजगे सा ान् भागवा यवना मुनेः ।। १८ ।। वह वह नागराजके भवनम बढ़ने लगा। बड़े होनेपर उसने भृगक ु ु लो प यवन मु नसे छह अंग स हत वेद का अ ययन कया ।। १८ ।। चीण तो बाल एव बु स वगुणा वतः । नाम चा याभवत् यातं लोके वा तीक इ युत ।। १९ ।। वह बचपनसे ही चय तका पालन करनेवाला, बु मान् तथा स वगुणस प आ। लोकम आ तीक नामसे उसक या त ई ।। १९ ।। अ ती यु वा गतो य मात् पता गभ थमेव तम् । वनं त मा ददं त य नामा तीके त व ुतम् ।। २० ।। वह बालक अभी गभम ही था, तभी उसके पता ‘अ त’कहकर वनम चले गये थे। इस लये संसारम उसका आ तीक नाम स आ ।। २० ।। स बाल एव त थ र मतबु मान् । गृहे प गराज य य नात् प रर तः ।। २१ ।। भगवा नव दे वेशः शूलपा ण हर मयः । ववधमानः सवा तान् प गान यहषयत् ।। २२ ।। अ मत बु मान् आ तीक बा याव थाम ही वहाँ रहकर चयका पालन एवं धमका आचरण करने लगा। नागराजके भवनम उसका भलीभाँ त य नपूवक लालन-पालन कया गया। सुवणके समान का तमान् शूलपा ण दे वे र भगवान् शवक भाँ त वह बालक दनो दन बढ़ता आ सम त नाग का आन द बढ़ाने लगा ।। २१-२२ ।। इत



ीमहाभारते आ दपव ण आ तीकपव ण आ तीको प ौ अ च वारशोऽ यायः ।। ४८ ।।







इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत आ तीकपवम आ तीकक उ प अड़तालीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ४८ ।।

वषयक

एकोनप चाश मोऽ यायः राजा परी त्के धममय आचार तथा उ म गुण का वणन, राजाका शकारके लये जाना और उनके ारा शमीक मु नका तर कार शौनक उवाच यदपृ छत् तदा राजा म णो जनमेजयः । पतुः वगग त त मे व तरेण पुनवद ।। १ ।। शौनकजी बोले—सूतन दन! राजा जनमेजयने (उ ंकक बात सुनकर) अपने पता परी त्के वगवासके स ब धम म य से जो पूछ-ताछ क थी, उसका आप व तारपूवक पुनः वणन क जये ।। १ ।। सौ त वाच शृणु न् यथापृ छ म णो नृप त तदा । यथा चा यातव त ते नधनं तत् परी तः ।। २ ।। उ वाजीने कहा— न्! सु नये, उस समय राजाने म य से जो कुछ पूछा और उ ह ने परी त्क मृ युके स ब धम जैसी बात बताय , वह सब म सुना रहा ँ ।। २ ।। जनमेजय उवाच जान त म भव त तद् यथा वृ ं पतुमम । आसीद् यथा स नधनं गतः काले महायशाः ।। ३ ।। जनमेजयने पूछा—आपलोग यह जानते ह गे क मेरे पताके जीवनकालम उनका आचार- वहार कैसा था? और अ तकाल आनेपर वे महायश वी नरेश कस कार मृ युको ा त ए थे? ।। ३ ।। ु वा भव सकाशा पतुवृ मशेषतः । क याणं तप या म वपरीतं न जातु चत् ।। ४ ।। आपलोग से अपने पताके स ब धम सारा वृ ा त सुनकर ही मुझे शा त ा त होगी; अ यथा म कभी शा त न रह सकूँगा ।। ४ ।। सौ त वाच म णोऽथा ुवन् वा यं पृ ा तेन महा मना । सव धम वदः ा ा राजानं जनमेजयम् ।। ५ ।। उ वाजी कहते ह—राजाके सब म ी धम और बु मान् थे। उन महा मा राजा जनमेजयके इस कार पूछनेपर वे सभी उनसे य बोले ।। ५ ।। म ण ऊचुः े

शृणु पा थव यद् ूषे पतु तव महा मनः । च रतं पा थवे य यथा न ां गत सः ।। ६ ।। म य ने कहा—भूपाल! तुम जो कुछ पूछते हो, वह सुनो। तु हारे महा मा पता राजराजे र परी त्का च र जैसा था और जस कार वे मृ युको ा त ए वह सब हम बता रहे ह ।। ६ ।। धमा मा च महा मा च जापालः पता तव । आसी दह यथावृ ः स महा मा शृणु व तत् ।। ७ ।। महाराज! आपके पता बड़े धमा मा, महा मा और जापालक थे। वे महामना नरेश इस जगत्म जैसे आचार- वहारका पालन करते थे, वह सुनो ।। ७ ।। चातुव य वधम थं स कृ वा पयर त । धमतो धम वद् राजा धम व हवा नव ।। ८ ।। वे चार वण को अपने-अपने धमम था पत करके उन सबक धमपूवक र ा करते थे। राजा परी त् केवल धमके ाता ही नह थे, वे धमके सा ात् व प थे ।। ८ ।। रर पृ थव दे व ीमानतुल व मः । े ार त य नैवासन् स च े न कंचन ।। ९ ।। उनके परा मक कह तुलना नह थी। वे ीस प होकर इस वसुधादे वीका पालन करते थे। जगत्म उनसे े ष रखनेवाले कोई न थे और वे भी कसीसे े ष नह रखते थे ।। ९ ।। समः सवषु भूतेषु जाप त रवाभवत् । ा णाः या वै याः शू ा ैव वकमसु ।। १० ।। थताः सुमनसो राजं तेन रा ा व ध ताः । वधवानाथ वकलान् कृपणां बभार सः ।। ११ ।। जाप त ाजीके समान वे सम त ा णय के त समभाव रखते थे। राजन्! महाराज परी त्के शासनम रहकर ा ण, य, वै य तथा शू सभी अपने-अपने वणा मो चत कम म संल न और स च रहते थे। वे महाराज वधवा , अनाथ , अंगहीन और द न का भी भरण-पोषण करते थे ।। १०-११ ।। सुदशः सवभूतानामासीत् सोम इवापरः । तु पु जनः ीमान् स यवाग् ढ व मः ।। १२ ।। सरे च माक भाँ त उनका दशन स पूण ा णय के लये सुखद एवं सुलभ था। उनके रा यम सब लोग -पु थे। वे ल मीवान्, स यवाद तथा अटल परा मी थे ।। १२ ।। धनुवदे तु श योऽभू ृपः शार त य सः । गो व द य य ासीत् पता ते जनमेजय ।। १३ ।। राजा परी त् धनुवदम कृपाचायके श य थे। जनमेजय! तु हारे पता भगवान् ीकृ णके भी य थे ।। १३ ।। लोक य चैव सव य य आसी महायशाः । ी े ो ी

प र ीणेषु कु षु सो रायामजीजनत् ।। १४ ।। परी दभवत् तेन सौभ या मजो बली । राजधमाथकुशलो यु ः सवगुणैवृतः ।। १५ ।। वे महायश वी महाराज स पूण जगत्के ेमपा थे। जब कु कुल प र ीण (सवथा न ) हो चला था, उस समय उ राके गभसे उनका ज म आ। इस लये वे महाबली अ भम युकुमार परी त् नामसे व यात ए। राजधम और अथनी तम वे अ य त नपुण थे। सम त सद्गुण ने वयं उनका वरण कया था। वे सदा उनसे संयु रहते थे ।। १४-१५ ।। जते य ा मवां मेधावी धमसे वता । षड् वग ज महाबु न तशा व मः ।। १६ ।। उ ह ने अपनी इ य को जीतकर मनको अपने वशम कर रखा था। वे मेधावी तथा धमका सेवन करनेवाले थे। उ ह ने काम, ोध, लोभ, मोह, मद और मा सय—इन छह श ु पर वजय ा त कर ली थी। उनक बु वशाल थी। वे नी तके व ान म सव े थे ।। १६ ।। जा इमा तव पता ष वषा यपालयत् । ततो द ा तमाप ः सवषां ःखमावहन् ।। १७ ।। तत वं पु ष े धमण तपे दवान् । इदं वषसह ा ण रा यं कु कुलागतम् । बाल एवा भ ष वं सवभूतानुपालकः ।। १८ ।। तु हारे पताने साठ वषक आयुतक इन सम त जाजन का पालन कया था। तदन तर हम सबको ःख दे कर उ ह ने वदे ह-कैव य ा त कया। पु ष े ! पताके दे हावसानके बाद तुमने धमपूवक इस रा यको हण कया है, जो सह वष से कु कुलके अधीन चला आ रहा है। बा याव थाम ही तु हारा रा या भषेक आ था। तबसे तु ह इस रा यके सम त ा णय का पालन करते हो ।। १७-१८ ।।

जनमेजय उवाच ना मन् कुले जातु बभूव राजा यो न जानां यकृत् य । वशेषतः े य पतामहानां वृ ं महद्वृ परायणानाम् ।। १९ ।। जनमेजयने पूछा—म यो! हमारे इस कुलम कभी कोई ऐसा राजा नह आ, जो जाका य करनेवाला तथा सब लोग का ेमपा न रहा हो। वशेषतः महापु ष के आचारम वृ रहनेवाले हमारे पतामह पा डव के सदाचारको दे खकर ायः सभी धमपरायण ही ह गे ।। १९ ।। कथं नधनमाप ः पता मम तथा वधः । आच वं यथाव मे ोतु म छा म त वतः ।। २० ।। ँ

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अब म यह जानना चाहता ँ क मेरे वैसे धमा मा पताक मृ यु कस कार ई? आपलोग मुझसे इसका यथावत् वणन कर। म इस वषयम सब बात ठ क-ठ क सुनना चाहता ँ ।। २० ।। सौ त वाच एवं संचो दता रा ा म ण ते नरा धपम् । ऊचुः सव यथावृ ं रा ः य हतै षणः ।। २१ ।। उ वाजी कहते ह—शौनक! राजा जनमेजयके इस कार पूछनेपर उन म य ने महाराजसे सब वृ ा त ठ क-ठ क बताया; य क वे सभी राजाका य चाहनेवाले और हतैषी थे ।। २१ ।। म ण ऊचुः स राजा पृ थवीपालः सवश भृतां वरः । बभूव मृगयाशील तव राजन् पता सदा ।। २२ ।। यथा पा डु महाबा धनुधरवरो यु ध । अ मा वास य सवा ण राजकाया यशेषतः ।। २३ ।। स कदा चद् वनगतो मृगं व ाध प णा । वद् वा चा वसरत् तूण तं मृगं गहने वने ।। २४ ।। म ी बोले—राजन्! सम त श धा रय म े तु हारे पता भूपाल परी त्का सदा महाबा पा डु क भाँ त हसक पशु को मारनेका वभाव था और यु म वे उ ह क भाँ त स पूण धनुधर वीर म े स होते थे। एक दनक बात है, वे स पूण राजकायका भार हमलोग पर रखकर वनम शकार खेलनेके लये गये। वहाँ उ ह ने पंखयु बाणसे एक हसक पशुको ब ध डाला। ब धकर तुरंत ही गहन वनम उसका पीछा कया ।। २२— २४ ।। पदा तब न ंश ततायुधकलापवान् । न चाससाद गहने मृगं न ं पता तव ।। २५ ।। वे तलवार बाँधे पैदल ही चल रहे थे। उनके पास बाण से भरा आ वशाल तूणीर था। वह घायल पशु उस घने वनम कह छप गया। तु हारे पता ब त खोजनेपर भी उसे पा न सके ।। २५ ।। प र ा तो वयः थ ष वष जरा वतः । ु धतः स महार ये ददश मु नस मम् ।। २६ ।। स तं प छ राजे ो मु न मौन ते थतम् । न च क च वाचैनं पृ ोऽ प स मु न तदा ।। २७ ।। ौढ़ अव था, साठ वषक आयु और बुढ़ापेका संयोग इन सबके कारण वे ब त थक गये थे। उस वशाल वनम उ ह भूख सताने लगी। इसी दशाम महाराजने वहाँ मु न े शमीकको दे खा। राजे परी त्ने उनसे मृगका पता पूछा; कतु वे मु न उस समय ौ













मौन तके पालनम संल न थे। उनके पूछनेपर भी मह ष शमीक उस समय कुछ न बोले ।। २६-२७ ।। ततो राजा ु मात तं मु न थाणुवत् थतम् । मौन तधरं शा तं स ो म युवशं गतः ।। २८ ।। वे काठक भाँ त चुपचाप, न े एवं अ वचल भावसे थत थे। यह दे ख भूख- यास और थकावटसे ाकुल ए राजा परी त्को उन मौन तधारी शा त मह षपर त काल ोध आ गया ।। २८ ।। न बुबोध च तं राजा मौन तधरं मु नम् । स तं ोधसमा व ो धषयामास ते पता ।। २९ ।। राजाको यह पता नह था क मह ष मौन तधारी ह; अतः ोधम भरे ए आपके पताने उनका तर कार कर दया ।। २९ ।। मृतं सप धनु को ा समु य धरातलात् । त य शु ा मनः ादात् क धे भरतस म ।। ३० ।। भरत े ! उ ह ने धनुषक नोकसे पृ वीपर पड़े ए एक मृत सपको उठाकर उन शु ा मा मह षके कंधेपर डाल दया ।। ३० ।। न चोवाच स मेधावी तमथो सा वसाधु वा । त थौ तथैव चा ु ः सप क धेन धारयन् ।। ३१ ।। कतु उन मेधावी मु नने इसके लये उ ह भला या बुरा कुछ नह कहा। वे ोधर हत हो कंधेपर मरा सप लये ए पूववत् शा त-भावसे बैठे रहे ।। ३१ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण आ तीकपव ण पारी तीये एकोनप चाश मोऽ यायः ।। ४९ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत आ तीकपवम परी त्-च र वषयक उनचासवाँ अ याय पूरा आ ।। ४९ ।।

प चाश मोऽ यायः शृंगी ऋ षका परी त्को शाप, त कका का यपको लौटाकर छलसे परी त्को डँसना और पताक मृ युका वृ ा त सुनकर जनमेजयक त कसे बदला लेनेक त ा म ण ऊचुः ततः स राजा राजे क धे त य भुज मम् । मुनेः ु ाम आस य वपुरं पुनराययौ ।। १ ।। म ी बोले—राजे ! उस समय राजा परी त् भूखसे पी ड़त हो शमीक मु नके कंधेपर मृतक सप डालकर पुनः अपनी राजधानीम लौट आये ।। १ ।। ऋषे त य तु पु ोऽभूद ् ग व जातो महायशाः । शृ नाम महातेजा त मवीय ऽ तकोपनः ।। २ ।। उन मह षके शृंगी नामक एक महातेज वी पु था, जसका ज म गायके पेटसे आ था। वह महान् यश वी, ती श शाली और अ य त ोधी था ।। २ ।। ाणं समुपाग य मु नः पूजां चकार ह । सोऽनु ात तत त शृ शु ाव तं तदा ।। ३ ।। स युः सकाशात् पतरं प ा ते ध षतं पुरा । मृतं सप समास ं थाणुभूत य त य तम् ।। ४ ।। वह तं राजशा ल क धेनानपका रणम् । तप वनमतीवाथ तं मु न वरं नृप ।। ५ ।। जते यं वशु ं च थतं कम यथाद्भुतम् । तपसा ो तता मानं वे व े षु यतं तदा ।। ६ ।। शुभाचारं शुभकथं सु थतं तमलोलुपम् । अ ु मनसूयं च वृ ं मौन ते थतम् । शर यं सवभूतानां प ा व नकृतं तव ।। ७ ।। एक दन उसने आचायदे वके समीप जाकर पूजा क और उनक आ ा ले वह घरको लौटा। उसी समय शृंगी ऋ षने अपने एक सहपाठ म के मुखसे तु हारे पता ारा अपने पताके तर कृत होनेक बात सुनी। राज सह! शृंगीको यह मालूम आ क मेरे पता काठक भाँ त चुपचाप बैठे थे और उनके कंधेपर मृतक साँप डाल दया गया। वे अब भी उस सपको अपने कंधेपर रखे ए ह। य प उ ह ने कोई अपराध नह कया था। वे मु न े तप वी, जते य, वशु ा मा, कम न , अद्भुत श शाली, तप या ारा का तमान् शरीरवाले, अपने अंग को संयमम रखनेवाले, सदाचारी, शुभव ा, न ल े



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भावसे थत, लोभर हत, ु ताशू य (ग भीर), दोष से र हत, वृ , मौन तावल बी तथा स पूण ा णय को आ य दे नेवाले थे, तो भी आपके पता परी त्ने उनका तर कार कया ।। ३—७ ।। शशापाथ महातेजाः पतरं ते षा वतः । ऋषेः पु ो महातेजा बालोऽ प थ वर ु तः ।। ८ ।। यह सब जानकर वह बा याव थाम भी वृ का-सा तेज धारण करनेवाला महातेज वी ऋ षकुमार ोधसे आगबबूला हो उठा और उसने तु हारे पताको शाप दे दया ।। ८ ।। स मुदकं पृ ् वा रोषा ददमुवाच ह । पतरं तेऽ भसंधाय तेजसा वल व ।। ९ ।। अनाग स गुरौ यो मे मृतं सपमवासृजत् । तं नाग त कः ु तेजसा द ह य त ।। १० ।। आशी वष त मतेजा म ा यबलचो दतः । स तरा ा दतः पापं प य मे तपसो बलम् ।। ११ ।। शृंगी तेजसे व लत-सा हो रहा था। उसने शी ही हाथम जल लेकर तु हारे पताको ल य करके रोषपूवक यह बात कही—‘ जसने मेरे नरपराध पतापर मरा साँप डाल दया है, उस पापीको आजसे सात रातके बाद मेरी वाक्श से े रत च ड तेज वी वषधर त क नाग कु पत हो अपनी वषा नसे जला दे गा। दे खो, मेरी तप याका बल’ ।। ९— ११ ।। इ यु वा ययौ त पता य ा य सोऽभवत् । ् वा च पतरं त मै तं शापं यवेदयत् ।। १२ ।। ऐसा कहकर वह बालक उस थानपर गया, जहाँ उसके पता बैठे थे। पताको दे खकर उसने राजाको शाप दे नेक बात बतायी ।। १२ ।। स चा प मु नशा लः ेषयामास ते पतुः । श यं गौरमुखं नाम शीलव तं गुणा वतम् ।। १३ ।। आच यौ स च व ा तो रा ः सवमशेषतः । श तोऽ स मम पु ेण य ो भव महीपते ।। १४ ।। तब मु न े शमीकने तु हारे पताके पास अपने श य गौरमुखको भेजा, जो सुशील और गुणवान् था। उसने व ाम कर लेनेपर राजासे सब बात बताय और मह षका संदेश इस कार सुनाया—‘भूपाल! मेरे पु ने तु ह शाप दे दया है; अतः सावधान हो जाओ ।। १३-१४ ।। त क वां महाराज तेजसासौ द ह य त । ु वा च तद् वचो घोरं पता ते जनमेजय ।। १५ ।। य ोऽभवत् प र त त कात् प गो मात् । तत त मं तु दवसे स तमे समुप थते ।। १६ ।। रा ः समीपं षः का यपो ग तुमै छत । तं ददशाथ नागे त कः का यपं तदा ।। १७ ।। ‘ ( े ) े े े े ’ े

‘महाराज! (सात दनके बाद) त क नाग तु ह अपने तेजसे जला दे गा।’ जनमेजय! यह भयंकर बात सुनकर तु हारे पता नाग े त कसे अ य त भयभीत हो सतत सावधान रहने लगे। तदन तर जब सातवाँ दन उप थत आ, तब उस दन ष का यपने राजाके समीप जानेका वचार कया। मागम नागराज त कने उस समय का यपको दे खा ।। १५—१७ ।। तम वीत् प गे ः का यपं व रतं जम् । व भवां व रतो या त क च काय चक ष त ।। १८ ।। व वर का यप बड़ी उतावलीसे पैर बढ़ा रहे थे। उ ह दे खकर नागराजने ( ा णका वेष धारण करके) इस कार पूछा—‘ ज े ! आप कहाँ इतनी ती ग तसे जा रहे ह और कौन-सा काय करना चाहते ह?’ ।। १८ ।।

का यप उवाच य राजा कु े ःपर ाम वै ज । त केण भुज े न ध यते कल सोऽ वै ।। १९ ।। ग छा यहं तं व रतः स ः कतुमप वरम् । मया भप ं तं चा प न सप धष य य त ।। २० ।। का यपने कहा— न्! म वहाँ जाता ँ जहाँ कु कुलके े राजा परी त् रहते ह। सुना है क आज ही त क नाग उ ह डँसेगा। अतः म त काल ही उ ह नीरोग करनेके लये ज द -ज द वहाँ जा रहा ँ। मेरे ारा सुर त नरेशको वह सप न नह कर सकेगा ।। १९-२० ।। त क उवाच कमथ तं मया द ं संजीव यतु म छ स । अहं स त को न् प य मे वीयम तम् ।। २१ ।। नश वं मया द ं तं संजीव यतुं नृपम् । इ यु वा त क त सोऽदशद् वै वन प तम् ।। २२ ।। त कने कहा— न्! मेरे डँसे ए मनु यको जलानेक इ छा आप कैसे रखते ह। म ही वह त क ँ। मेरी अद्भुत श दे खये। मेरे डँस लेनेपर उस राजाको आप जी वत नह कर सकते। ऐसा कहकर त कने एक वृ को डँस लया ।। २१-२२ ।। स द मा ो नागेन भ मीभूतोऽभव गः । का यप ततो राज जीवयत तं नगम् ।। २३ ।। नागके डँसते ही वह वृ जलकर भ म हो गया। राजन्! तदन तर का यपने (अपनी म - व ाके बलसे) उस वृ को पूववत् जी वत (हरा-भरा) कर दया ।। २३ ।। तत तं लोभयामास कामं ूही त त कः । स एवमु तं ाह का यप त कं पुनः ।। २४ ।। धन ल सुरहं त यामी यु तेन सः । तमुवाच महा मानं त कः णया गरा ।। २५ ।। ो ो े े े ‘ ी ो ो े

अब त क का यपको लोभन दे ने लगा। उसने कहा—‘तु हारी जो इ छा हो, मुझसे माँग लो।’ त कके ऐसा कहनेपर का यपने उससे कहा—‘म तो वहाँ धनक इ छासे जा रहा ँ।’ उनके ऐसा कहनेपर त कने महा मा का यपसे मधुर वाणीम कहा — ।। २४-२५ ।। याव नं ाथयसे रा त मात् ततोऽ धकम् । गृहाण म एव वं सं नवत व चानघ ।। २६ ।। ‘अनघ! तुम राजासे जतना धन पाना चाहते हो, उससे भी अ धक मुझसे ही ले लो और लौट जाओ’ ।। २६ ।। स एवमु ो नागेन का यपो पदां वरः । ल वा व ं नववृते त काद ् यावद सतम् ।। २७ ।। त क नागक यह बात सुनकर मनु य म े का यप उससे इ छानुसार धन लेकर लौट गये ।। २७ ।। त मन् तगते व े छनोपे य त कः । तं नृपं नृप त े ं पतरं धा मकं तव ।। २८ ।। ासाद थं य म प द धवान् वषव ना । तत वं पु ष ा वजयाया भषे चतः ।। २९ ।। ा णके चले जानेपर त कने छलसे भूपाल म े तु हारे धमा मा पता राजा परी त्के पास प ँचकर, य प वे महलम सावधानीके साथ रहते थे, तो भी उ ह अपनी वषा नसे भ म कर दया। नर े ! तदन तर वजयक ा तके लये तु हारा राजाके पदपर अ भषेक कया गया ।। २८-२९ ।। एतद् ं ुतं चा प यथाव ृपस म । अ मा भ नखलं सव क थतं तेऽ तदा णम् ।। ३० ।। नृप े ! य प यह संग बड़ा ही न ु र और ःखदायक है, तथा प तु हारे पूछनेसे हमने सब बात तुमसे कही ह। यह सब कुछ हमने अपनी आँख दे खा और कान से भी ठ क-ठ क सुना है ।। ३० ।। ु वा चैनं नर े पा थव य पराभवम् । अ य चष तंक य वध व यदन तरम् ।। ३१ ।। महाराज! इस कार त कने तु हारे पता राजा परी त्का तर कार कया है। इन मह ष उ ंकको भी उसने ब त तंग कया है। यह सब तुमने सुन लया, अब तुम जैसा उ चत समझो, करो ।। ३१ ।। सौ त वाच एत म ेव काले तु स राजा जनमेजयः । उवाच म णः सवा नदं वा यम र दमः ।। ३२ ।। उ वाजी कहते ह—शौनक! उस समय श ु का दमन करनेवाले राजा जनमेजय अपने स पूण म य से इस कार बोले ।। ३२ ।।



जनमेजय उवाच अथ तत् क थतं केन यद् वृ ं तद् वन पतौ । आ यभूतं लोक य भ मराशीकृतं तदा ।। ३३ ।। यद् वृ ं जीवयामास का यप त केण वै । नूनं म ैहत वषो न ण येत का यपात् ।। ३४ ।। जनमेजयने कहा—उस वृ के डँसे जाने और फर हरे होनेक बात आपलोग से कसने कही? उस समय त कके काटनेसे जो वृ राखका ढे र बन गया था, उसे का यपने पुनः जलाकर हरा-भरा कर दया। यह सब लोग के लये बड़े आ यक बात है। य द का यपके आ जानेसे उनके म ारा त कका वष न कर दया जाता तो न य ही मेरे पताजी बच जाते ।। ३३-३४ ।। च तयामास पापा मा मनसा प गाधमः । द ं य द मया व ः पा थवं जीव य य त ।। ३५ ।। त कः संहत वषो लोके या य त हा यताम् । व च यैवं कृता तेन ुवं तु ज य वै ।। ३६ ।। परंतु उस पापा मा नीच सपने अपने मनम यह सोचा होगा—‘य द मेरे डँसे ए राजाको ा ण जला दगे तो लोग कहगे क त कका वष भी न हो गया। इस कार त क लोकम उपहासका पा बन जायगा।’ अव य ही ऐसा सोचकर उसने ा णको धनके ारा संतु कया था ।। ३५-३६ ।। भ व य त पायेन य य दा या म यातनाम् । एकं तु ोतु म छा म तद् वृ ं नजने वने ।। ३७ ।। संवादं प गे य का यप य च क तदा । ुतवान् वां ा प भव सु कथमागतम् । ु वा त य वधा येऽहं प गा तकर म तम् ।। ३८ ।। अ छा, भ व यम य नपूवक कोई-न-कोई उपाय करके त कको इसके लये द ड ँ गा। परंतु एक बात म सुनना चाहता ँ। नागराज त क और का यप ा णका वह संवाद तो नजन वनम आ होगा। यह सब वृ ा त कसने दे खा और सुना था? आपलोग तक यह बात कैसे आयी? यह सब सुनकर म सप के नाशका वचार क ँ गा ।। ३७-३८ ।। म ण ऊचुः शृणु राजन् यथा माकं येन तत् क थतं पुरा । समागतं जे य प गे य चा व न ।। ३९ ।। त मन् वृ े नरः क द धनाथाय पा थव । व च वन् पूवमा ढः शु कशाखां वन पतौ ।। ४० ।। म ी बोले—राजन्! सुनो, व वर का यप और नागराज त कका मागम एकसरेके साथ जो समागम आ था, उसका समाचार जसने और जस कार हमारे सामने े े े ी ोई ी

बताया था, उसका वणन करते ह। भूपाल! उस वृ पर पहलेसे ही कोई मनु य लकड़ी लेनेके लये सूखी डाली खोजता आ चढ़ गया था ।। ३९-४० ।। न बु येतामुभौ तौ च नग थं प ग जौ । सह तेनैव वृ ेण भ मीभूतोऽभव ृप ।। ४१ ।। त क नाग और ा ण—दोन ही नह जानते थे क इस वृ पर कोई सरा मनु य भी है। राजन्! त कके काटनेपर उस वृ के साथ ही वह मनु य भी जलकर भ म हो गया था ।। ४१ ।। ज भावाद् राजे जीवत् सवन प तः । तेनाग य नर े पुंसा मासु नवे दतम् ।। ४२ ।। परंतु राजे ! ा णके भावसे वह भी उस वृ के साथ जी उठा। नर े ! उसी मनु यने आकर हमलोग से त क और ा णक जो घटना थी, वह सुनायी ।। ४२ ।। यथावृ ं तु तत् सव त क य ज य च । एतत् ते क थतं राजन् यथा ं ुतं च यत् । ु वा च नृपशा ल वध व यदन तरम् ।। ४३ ।। राजन्! इस कार हमने जो कुछ सुना और दे खा है, वह सब तु ह कह सुनाया। भूपाल शरोमणे! यह सुनकर अब तु ह जैसा उ चत जान पड़े, वह करो ।। ४३ ।। सौ त वाच म णां तु वचः ु वा स राजा जनमेजयः । पयत यत ःखातः य पषत् करं करे ।। ४४ ।। उ वाजी कहते ह—म य क बात सुनकर राजा जनमेजय ःखसे आतुर हो संत त हो उठे और कु पत होकर हाथसे हाथ मलने लगे ।। ४४ ।। नः ासमु णमसकृद् द घ राजीवलोचनः । मुमोचा ू ण च तदा ने ा यां दन् नृपः ।। ४५ ।। वे बार बार ल बी और गरम साँस छोड़ने लगे। कमलके समान ने वाले राजा जनमेजय उस समय ने से आँसू बहाते ए फूट-फूटकर रोने लगे ।। ४५ ।। उवाच च महीपालो ःखशोकसम वतः । धरं वा पमु सृ य पृ ् वा चापो यथा व ध ।। ४६ ।। मुत मव च या वा न य मनसा नृपः । अमष म णः सवा नदं वचनम वीत् ।। ४७ ।। राजाने दो घड़ीतक यान करके मन-ही-मन कुछ न य कया, फर ःख-शोक और अमषम डू बे ए नरेश न थमनेवाले आँसु क अ व छ धारा बहाते ए व धपूवक जलका पश करके स पूण म य से इस कार बोले— ।। ४६-४७ ।। जनमेजय उवाच ु वैतद् भवतां वा यं पतुम वग त त । न तेयं मम म तया च तां मे नबोधत । े े

अन तरं च म येऽहं त काय रा मने ।। ४८ ।। तकत म येवं येन मे ह सतः पता । शृ णं हेतुमा ं यः कृ वा द वा च पा थवम् ।। ४९ ।। जनमेजयने कहा—म यो! मेरे पताके वगलोकगमनके वषयम आपलोग का यह वचन सुनकर मने अपनी बु ारा जो कत न त कया है, उसे आप सुन ल। मेरा वचार है, उस रा मा त कसे तुरंत बदला लेना चा हये, जसने शृंगी ऋ षको न म मा बनाकर वयं ही मेरे पता महाराजको अपनी वषा नसे द ध करके मारा है ।। ४८-४९ ।। इयं रा मता त य का यपं यो यवतयत् । यदाऽऽग छे त् स वै व ो ननु जीवेत् पता मम ।। ५० ।। उसक सबसे बड़ी ता यह है क उसने का यपको लौटा दया। य द वे ा णदे वता आ जाते तो मेरे पता न य ही जी वत हो सकते थे ।। ५० ।। प रहीयेत क त य य द जीवेत् स पा थवः । का यप य सादे न म णां वनयेन च ।। ५१ ।। य द म य के वनय और का यपके कृपा सादसे महाराज जी वत हो जाते तो इसम उस क या हा न हो जाती? ।। ५१ ।। स तु वा रतवान् मोहात् का यपं जस मम् । सं जजीव यषुं ा तं राजानमपरा जतम् ।। ५२ ।। जो कह भी परा त न होते थे, ऐसे मेरे पता राजा परी त्को जी वत करनेक इ छासे ज े का यप आ प ँचे थे, कतु त कने मोहवश उ ह रोक दया ।। ५२ ।। महान त मो ेष त क य रा मनः । ज य योऽददद् ं मा नृपं जीवये द त ।। ५३ ।। रा मा त कका यह सबसे बड़ा अपराध है क उसने ा णदे वको इस लये धन दया क वे महाराजको जला न द ।। ५३ ।। उ ङ् क य यं कतुमा मन महत् यम् । भवतां चैव सवषां ग छा यप च त पतुः ।। ५४ ।। इस लये म मह ष उ ंकका, अपना तथा आप सब लोग का अ य त य करनेके लये पताके वैरका अव य बदला लूँगा ।। ५४ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण आ तीकपव ण पा र म संवादे प चाश मोऽ यायः ।। ५० ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत आ तीकपवम जनमेजय और म य का संवाद वषयक पचासवाँ अ याय पूरा आ ।। ५० ।।

एकप चाश ोऽ यायः जनमेजयके सपय का उप म सौ त वाच एवमु वा ततः ीमान् म भ ानुमो दतः । आ रोह त ां स सपस ाय पा थवः ।। १ ।। उ वाजी कहते ह—शौनक! ीमान् राजा जनमेजयने जब ऐसा कहा, तब उनके म य ने भी उस बातका समथन कया। त प ात् राजा सपय करनेक त ापर आ ढ़ हो गये ।। १ ।। न् भरतशा लो राजा पा र त तदा । पुरो हतमथाय ऋ वजो वसुधा धपः ।। २ ।। अ वीद् वा यस प ः कायस प करं वचः । न्! स पूण वसुधाके वामी भरतवं शय म े परी त्कुमार राजा जनमेजयने उस समय पुरो हत तथा ऋ वज को बुलाकर काय स करनेवाली बात कही— ।। २ ।। यो मे ह सतवां तातं त कः स रा मवान् ।। ३ ।। तकुया तथा त य तद् भव तो ुव तु मे । अ प तत् कम व दतं भवतां येन प गम् ।। ४ ।। त कं स द तेऽ नौ पेयं सबा धवम् । यथा तेन पता म ं पूव द धो वषा नना । तथाहम प तं पापं द धु म छा म प गम् ।। ५ ।। ‘ ा णो! जस रा मा त कने मेरे पताक ह या क है, उससे म उसी कारका बदला लेना चाहता ँ। इसके लये मुझे या करना चा हये, यह आपलोग बताव। या आपलोग को ऐसा कोई कम व दत है जसके ारा म त क नागको उसके ब धुबा धव स हत जलती ई आगम झ क सकूँ? उसने अपनी वषा नसे पूवकालम मेरे पताको जस कार द ध कया था, उसी कार म भी उस पापी सपको जलाकर भ म कर दे ना चाहता ँ’ ।। ३—५ ।। ऋ वज ऊचुः अ त राजन् महत् स ं वदथ दे व न मतम् । सपस म त यातं पुराणे प रपते ।। ६ ।। ऋ वज ने कहा—राजन्! इसके लये एक महान् य है, जसका दे वता ने आपके लये पहलेसे ही नमाण कर रखा है। उसका नाम है सपस । पुराण म उसका वणन आया है ।। ६ ।। आहता त य स य व ा योऽ त नरा धप । ौ

इ त पौरा णकाः ा र माकं चा त स तुः ।। ७ ।। नरे र! उस य का अनु ान करनेवाला आपके सवा सरा कोई नह है, ऐसा पौरा णक व ान् कहते ह। उस य का वधान हमलोग को मालूम है ।। ७ ।। एवमु ः स राज षमने द धं ह त कम् । ताशनमुखे द ते व म त स म ।। ८ ।। साधु शरोमणे! ऋ वज के ऐसा कहनेपर राज ष जनमेजयको व ास हो गया क अब त क न य ही व लत अ नके मुखम समाकर भ म हो जायगा ।। ८ ।। ततोऽ वी म वद तान् राजा ा णां तदा । आह र या म तत् स ं स भाराः स य तु मे ।। ९ ।। तब राजाने उस समय उन म वे ा ा ण से कहा—‘म उस य का अनु ान क ँ गा। आपलोग उसके लये आव यक साम ी सं ह क जये’ ।। ९ ।। तत ते ऋ वज त य शा तो जस म । तं दे शं मापयामासुय ायतनकारणात् ।। १० ।। ज े ! तब उन ऋ वज ने शा ीय व धके अनुसार य म डप बनानेके लये वहाँक भू म नाप ली ।। १० ।। यथावद् वेद व ांसः सव बु े ः परं गताः । ऋ या परमया यु म ं जगणैयुतम् ।। ११ ।। भूतधनधा यामृ व भः सु नषे वतम् । नमाय चा प व धवद् य ायतनमी सतम् ।। १२ ।। राजानं द यामासुः सपस ा तये तदा । इदं चासीत् त पूव सपस े भ व य त ।। १३ ।। वे सभी ऋ वज् वेद के यथावत् व ान् तथा परम बु मान् थे। उ ह ने व धपूवक मनके अनु प एक य -म डप बनाया, जो परम समृ से स प , उ म ज के समुदायसे सुशो भत, चुर धनधा यसे प रपूण तथा ऋ वज से सुसे वत था। उस य म डपका नमाण कराकर ऋ वज ने सपय क स के लये उस समय राजा जनमेजयको द ा द । इसी समय जब क सपस अभी ार भ होनेवाला था, वहाँ पहले ही यह घटना घ टत ई ।। ११—१३ ।। न म ं मह प ं य व नकरं तदा । य यायतने त मन् यमाणे वचोऽ वीत् ।। १४ ।। थप तबु स प ो वा तु व ा वशारदः । इ य वीत् सू धारः सूतः पौरा णक तदा ।। १५ ।। उस य म व न डालनेवाला ब त बड़ा कारण कट हो गया। जब वह य म डप बनाया जा रहा था, उस समय वा तुशा के पारंगत व ान्, बु मान् एवं अनुभवी सू धार श पवे ा सूतने वहाँ आकर कहा— ।। १४-१५ ।। य मन् दे शे च काले च मापनेयं व तता । ा णं कारणं कृ वा नायं सं था यते तुः ।। १६ ।। ‘ औ े ई ै े े

‘ जस थान और समयम यह य म डप मापनेक या ार भ ई है, उसे दे खकर यह मालूम होता है क एक ा णको न म बनाकर यह य पूण न हो सकेगा’ ।। १६ ।। एत छ वा तु राजासौ ा द ाकालम वीत् । ारं न ह मे क द ातः वशे द त ।। १७ ।। यह सुनकर राजा जनमेजयने द ा लेनेसे पहले ही सेवकको यह आदे श दे दया —‘मुझे सू चत कये बना कसी अप र चत को य म डपम वेश न करने दया जाय’ ।। १७ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण आ तीकपव ण सपस ोप मे एकप चाश मोऽ यायः ।। ५१ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत आ तीकपवम सपस ोप मस ब धी इ यावनवाँ अ याय पूरा आ ।। ५१ ।।

प चाश मोऽ यायः सपस का आर भ और उसम सप का वनाश सौ त वाच ततः कम ववृते सपस वधानतः । पय ामं व धवत् वे वे कम ण याजकाः ।। १ ।। उ वाजी कहते ह—शौनक! तदन तर सपय क व धसे काय ार भ आ। सब याजक व धपूवक अपने-अपने कमम संल न हो गये ।। १ ।। ावृ य कृ णवासां स धूमसंर लोचनाः । जु वुम व चैव स म ं जातवेदसम् ।। २ ।। सबक आँख धूएस ँ े लाल हो रही थ । वे सभी ऋ वज् काले व पहनकर म ो चारणपूवक व लत अ नम होम करने लगे ।। २ ।। क पय त सवषामुरगाणां मनां स च । सपानाजु वु त सवान नमुखे तदा ।। ३ ।। वे सम त सप के दयम कँपकँपी पैदा करते ए उनके नाम ले-लेकर उन सबका वहाँ आगके मुखम होम करने लगे ।। ३ ।। ततः सपाः समापेतुः द ते ह वाहने । वचे मानाः कृपणमा य तः पर परम् ।। ४ ।। त प ात् सपगण तड़फड़ाते और द न वरम एक- सरेको पुकारते ए व लत अ नम टपाटप गरने लगे ।। ४ ।। व फुर तः स त वे य तः पर परम् । पु छै ः शरो भ भृशं च भानुं पे दरे ।। ५ ।। वे उछलते, ल बी साँस लेते, पूँछ और फन से एक- सरेको लपेटते ए धधकती आगके भीतर अ धका धक सं याम गरने लगे ।। ५ ।। ेताः कृ णा नीला थ वराः शशव तथा । नद तो व वधान् नादान् पेतुद ते वभावसौ ।। ६ ।। सफेद, काले, नीले, बूढ़े और ब चे सभी कारके सप व वध कारसे ची कार करते ए जलती आगम ववश होकर गर रहे थे ।। ६ ।। ोशयोजनमा ा ह गोकण य माणतः । पत यज ं वेगेन व ाव नमतां वर ।। ७ ।। कोई एक कोस ल बे थे, तो कोई चार कोस और क ह - क ह क ल बाई तो केवल गायके कानके बराबर थी। अ नहो य म े शौनक! वे छोटे -बड़े सभी सप बड़े वेगसे आगक वालाम नर तर आ त बन रहे थे ।। ७ ।। एवं शतसह ा ण युता यबुदा न च । ै

अवशा न वन ा न प गानां तु त वै ।। ८ ।। इस कार लाख , करोड़ तथा अरब सप वहाँ ववश होकर न हो गये ।। ८ ।। तुरगा इव त ा ये ह तह ता इवापरे । म ा इव च मात ा महाकाया महाबलाः ।। ९ ।। कुछ सप क आकृ त घोड़ के समान थी और कुछक हाथीक सूँड़के स श। कतने ही वशाल-काय महाबली नाग मतवाले गजराज को मात कर रहे थे ।। ९ ।। उ चावचा बहवो नानावणा वषो बणाः । घोरा प रघ या द दशूका महाबलाः । पेतुर नावुरगा मातृवा द डपी डताः ।। १० ।। भयंकर वषवाले छोटे -बड़े अनेक रंगके ब -सं यक सप, जो दे खनेम भयानक, प रघके समान मोटे , अकारण ही डँस लेनेवाले और अ य त श शाली थे, अपनी माताके शापसे पी ड़त होकर वयं ही आगम पड़ रहे थे ।। १० ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण आ तीकपव ण सपस ोप मे प चाश मोऽ यायः ।। ५२ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत आ तीकपवम सपस ोप म वषयक बावनवाँ अ याय पूरा आ ।। ५२ ।।

प चाश मोऽ यायः सपय के ऋ वज क नामावली, सप का भयंकर वनाश, त कका इ क शरणम जाना तथा वासु कका अपनी ब हनसे आ तीकको य म भेजनेके लये कहना शौनक उवाच सपस े तदा रा ः पा डवेय य धीमतः । जनमेजय य के वास ृ वजः परमषयः ।। १ ।। शौनकजीने पूछा—सूतन दन! पा डववंशी बु मान् राजा जनमेजयके उस सपय म कौन-कौनसे मह ष ऋ वज् बने थे? ।। १ ।। के सद या बभूवु सपस े सुदा णे । वषादजननेऽ यथ प गानां महाभये ।। २ ।। उस अ य त भयंकर सपस म, जो सप के लये महान् भयदायक और वषादजनक था, कौन-कौनसे मु न सद य ए थे? ।। २ ।। सव व तरश तात भवा छं सतुमह त । सपस वधान व ेयाः के च सूतज ।। ३ ।। तात! ये सब बात आप व तारपूवक बताइये। सूतपु ! यह भी सू चत क जये क सपस क व धको जाननेवाले व ान म े समझे जानेयो य कौन-कौनसे मह ष वहाँ उप थत थे ।। ३ ।। सौ त वाच ह त ते कथ य या म नामानीह मनी षणाम् । ये ऋ वजः सद या त यासन् नृपते तदा ।। ४ ।। त होता बभूवाथ ा ण डभागवः । यवन या वये यातो जातो वेद वदां वरः ।। ५ ।। उद्गाता ा णो वृ ो व ान् कौ सोऽथ जै म नः । ाभव छा रवोऽथा वयु ा प प लः ।। ६ ।। उ वाजीने कहा—शौनकजी! म आपको उन मनीषी महा मा के नाम बता रहा ँ, जो उस समय राजा जनमेजयके ऋ वज् और सद य थे। उस य म वेद-वे ा म े ा ण च डभागव होता थे। उनका ज म यवन मु नके वंशम आ था। वे उस समयके व यात कमका डी थे। वृ एवं व ान् ा ण कौ स उद्गाता, जै म न ा तथा शा रव और पगल अ वयु थे ।। ४—६ ।। सद य ाभवद् ासः पु श यसहायवान् । उद्दालकः मतकः ेतकेतु प लः ।। ७ ।। ो े



अ सतो दे वल ैव नारदः पवत तथा । आ ेयः कु डजठरौ जः कालघट तथा ।। ८ ।। वा यः ुत वा वृ ो जप वा यायशीलवान् । कोहलो दे वशमा च मौद्ग यः समसौरभः ।। ९ ।। एते चा ये च बहवो ा णा वेदपारगाः । सद या ाभवं त स े पारी त य ह ।। १० ।। इसी कार पु और श य स हत भगवान् वेद ास, उद्दालक, मतक, ेतकेतु, पगल, अ सत, दे वल, नारद, पवत, आ ेय, कु ड, जठर, ज े कालघट, वा य, जप और वा यायम लगे रहनेवाले बूढ़े ुत वा, कोहल, दे वशमा, मौद्ग य तथा समसौरभ— ये और अ य ब त-से वेद व ाके पारंगत ा ण जनमेजयके उस सपय म सद य बने थे ।। ७—१० ।। जु वृ व वथ तदा सपस े महा तौ । अहयः ापतं त घोराः ा णभयावहाः ।। ११ ।। उस समय उस महान् य सपस म य - य ऋ वज् लोग आ तयाँ डालते, य - य ा णमा को भय दे नेवाले घोर सप वहाँ आ-आकर गरते थे ।। ११ ।। वसामेदोवहाः कु या नागानां स व तताः । ववौ ग ध तुमुलो द ताम नशं तदा ।। १२ ।। नाग क चब और मेदसे भरे ए कतने ही नाले बह चले। नर तर जलनेवाले सप क तीखी ग ध चार ओर फैल रही थी ।। १२ ।। पततां चैव नागानां ध तानां तथा बरे । अ ूयता नशं श दः प यतां चा नना भृशम् ।। १३ ।। जो आगम पड़ रहे थे, जो आकाशम ठहरे ए थे और जो जलती ई आगक वालाम पक रहे थे, उन सभी सप का क ण दन नर तर जोर-जोरसे सुनायी पड़ता था ।। १३ ।। त क तु स नागे ः पुर दर नवेशनम् । गतः ु वैव राजानं द तं जनमेजयम् ।। १४ ।। नागराज त कने जब सुना क राजा जनमेजयने सपय क द ा ली है, तब उसे सुनते ही वह दे वराज इ के भवनम चला गया ।। १४ ।। ततः सव यथावृ मा याय भुजगो मः । अग छ छरणं भीत आगः कृ वा पुर दरम् ।। १५ ।। वहाँ उसने सब बात ठ क-ठ क कह सुनाय । फर सप म े त कने अपराध करनेके कारण भयभीत हो इ दे वक शरण ली ।। १५ ।। त म ः ाह सु ीतो न तवा तीह त क । भयं नागे त माद् वै सपस ात् कदाचन ।। १६ ।। तब इ ने अ य त स होकर कहा—‘नागराज त क! तु ह यहाँ उस सपय से कदा प कोई भय नह है ।। १६ ।। ो

सा दतो मया पूव तवाथाय पतामहः । त मात् तव भयं ना त ेतु ते मानसो वरः ।। १७ ।। तु हारे लये मने पहलेसे ही पतामह ाजीको स कर लया है, अतः तु ह कुछ भी भय नह है। तु हारी मान सक च ता र हो जानी चा हये’ ।। १७ ।।

सौ त वाच एवमा ा सत तेन ततः स भुजगो मः । उवास भवने त म छ य मु दतः सुखी ।। १८ ।। उ वाजी कहते ह—इ के इस कार आ ासन दे नेपर सप म े त क उस इ भवनम ही सुखी एवं स होकर रहने लगा ।। १८ ।। अज ं नपत व नौ नागेषु भृश ःखतः । अ पशेषपरीवारो वासु कः पयत यत ।। १९ ।। नाग नर तर उस य क आगम आ त बनते जा रहे थे। सप का प रवार अब ब त थोड़ा बच गया था। यह दे ख वासु क नाग अ य त ःखी हो मन-ही-मन संत त होने लगे ।। १९ ।। क मलं चा वशद् घोरं वासु क प गो मम् । स घूणमान दयो भ गनी मदम वीत् ।। २० ।। सप म े वासु कपर भयानक मोह-सा छा गया, उनके दयम च कर आने लगा। अतः वे अपनी ब हनसे इस कार बोले— ।। २० ।। द य ा न मे भ े न दशः तभा त च । सीदामीव च स मोहात् घूणतीव च मे मनः ।। २१ ।। ा य त मेऽतीव दयं द यतीव च । प त या यवशोऽ ाहं त मन् द ते वभावसौ ।। २२ ।। ‘भ े ! मेरे अंग म जलन हो रही है। मुझे दशाएँ नह सूझत । म श थल-सा हो रहा ँ और मोहवश मेरे म त कम च कर-सा आ रहा है, मेरे ने घूम रहे ह, दय अ य त वद ण-सा होता जा रहा है। जान पड़ता है, आज म भी ववश होकर उस य क व लत अ नम गर पडँगा ।। २१-२२ ।। पा र त य य ोऽसौ वततेऽ म जघांसया । ं मया प ग त ं ेतराज नवेशनम् ।। २३ ।। ‘जनमेजयका वह य हमलोग क हसाके लये ही हो रहा है। न य ही अब मुझे भी यमलोक जाना पड़ेगा ।। २३ ।। अयं स कालः स ा तो यदथम स मे वसः । जर कारौ मया द ा ाय वा मान् सबा धवान् ।। २४ ।। ‘ब हन! जसके लये मने तु हारा ववाह जर का मु नसे कया था, उसका यह अवसर आ गया है। तुम बा धव स हत हमारी र ा करो ।। २४ ।। आ तीकः कल य ं तं वत तं भुजगो मे । े

तषे य त मां पूव वयमाह पतामहः ।। २५ ।। ‘ े नागक ये! पूवकालम सा ात् ाजीने मुझसे कहा था—‘आ तीक उस य को बंद कर दे गा’ ।। २५ ।। तद् व से ू ह व सं वं कुमारं वृ स मतम् । ममा वं सभृ य य मो ाथ वेद व मम् ।। २६ ।। ‘अतः व से! आज तुम ब धु-बा धव स हत मेरे जीवनको संकटसे छु ड़ानेके लये वेदवे ा म े अपने पु कुमार आ तीकसे कहो। वह बालक होनेपर भी वृ पु ष के लये भी आदरणीय है’ ।। २६ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण आ तीकपव ण सपस े वासु कवा ये प चाश मोऽ यायः ।। ५३ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत आ तीकपवम सपस के वषयम वासु कवचनस ब धी तरपनवाँ अ याय पूरा आ ।। ५३ ।।

चतु प चाश मोऽ यायः माताक आ ासे मामाको सा वना दे कर आ तीकका सपय म जाना सौ त वाच तत आय पु ं वं जर का भुज मा । वासुकेनागराज य वचना ददम वीत् ।। १ ।। उ वाजी कहते ह—तब नागक या जर का नागराज वासु कके कथनानुसार अपने पु को बुलाकर इस कार बोली— ।। १ ।। अहं तव पतुः पु ा ा द ा न म तः । कालः स चायं स ा त तत् कु व यथातथम् ।। २ ।। ‘बेटा! मेरे भैयाने एक न म को लेकर तु हारे पताके साथ मेरा ववाह कया था। उसक पू तका यही उपयु अवसर ा त आ है। अतः तुम यथावत् पसे उस उ े यक पू त करो’ ।। २ ।। आ तीक उवाच क न म ं मम पतुद ा वं मातुलेन मे । त ममाच व त वेन ु वा कता म तत् तथा ।। ३ ।। आ तीकने पूछा—माँ! मामाजीने कस न म को लेकर पताजीके साथ तु हारा ववाह कया था? वह मुझे ठ क-ठ क बताओ। उसे सुनकर म उसक स के लये य न क ँ गा ।। ३ ।। सौ त वाच तत आच सा त मै बा धवानां हतै षणी । भ गनी नागराज य जर का र व लवा ।। ४ ।। उ वाजी कहते ह—तदन तर अपने भाई-ब धु का हत चाहनेवाली नागराजक ब हन जर का शा त च हो आ तीकसे बोली ।। ४ ।। जर का वाच प गानामशेषाणां माता क ू र त ुता । तया श ता षतया सुता य मा बोध तत् ।। ५ ।। जर का ने कहा—व स! स पूण नाग क माता क ू नामसे व यात ह। उ ह ने कसी समय होकर अपने पु को शाप दे दया था। जस कारणसे वह शाप दया, वह बताती ँ, सुनो ।। ५ ।। उ चैः वाः सोऽ राजो य मया न क ृ तो मम । े



वनताथाय प णते दासीभावाय पु काः ।। ६ ।। जनमेजय य वो य े ध य य नलसार थः । त प च वमाप ाः ेतलोकं ग म यथ ।। ७ ।। (अ का राजा जो उ चैः वा है, उसके रंगको लेकर वनताके साथ क न ू े बाजी लगायी थी। उसम यह शत थी—‘जो हारे वह जीतनेवालीक दासी बने।’ क ू उ चैः वाक पूँछ काली बता चुक थी। अतः उसने अपने पु से कहा—‘तुमलोग छलपूवक उस घोड़ेक पूँछ काले रंगक कर दो।’ सप इससे सहमत न ए। तब उ ह ने सप को शाप दे ते ए कहा —) ‘पु ो! तुमलोग ने मेरे कहनेसे अ राज उ चैः वाक पूँछका रंग न बदलकर वनताके साथ जो मेरी दासी होनेक शत थी, उसम—उस घोड़ेके स ब धम वनताके कथनको म या नह कर दखाया, इस लये जनमेजयके य म तुमलोग को आग जलाकर भ म कर दे गी और तुम सभी मरकर ेतलोकको चले जाओगे’ ।। ६-७ ।। तां च श तवत दे वः सा ा लोक पतामहः । एवम व त त ा यं ोवाचानुमुमोद च ।। ८ ।। क न ू े जब इस कार शाप दे दया, तब सा ात् लोक पतामह भगवान् ाने ‘एवम तु’ कहकर उनके वचनका अनुमोदन कया ।। ८ ।। वासु क ा प त छ वा पतामहवच तदा । अमृते म थते तात दे वा छरणमी यवान् ।। ९ ।। तात! मेरे भाई वासु कने भी उस समय पतामहक बात सुनी थी। फर अमृतम थनका काय हो जानेपर वे दे वता क शरणम गये ।। ९ ।। स ाथा सुराः सव ा यामृतमनु मम् । ातरं मे पुर कृ य पतामहमुपागमन् ।। १० ।। ते तं सादयामासुः सुराः सवऽ जस भवम् । रा ा वासु कना साध शापोऽसौ न भवे द त ।। ११ ।। दे वतालोग मेरे भाईक सहायतासे उ म अमृत पाकर अपना मनोरथ स कर चुके थे। अतः वे मेरे भाईको आगे करके पतामह ाजीके पास गये। वहाँ सम त दे वता ने नागराज वासु कके साथ रहकर पतामह ाजीको स कया। उ ह स करनेका उ े य यह था क माताका वह शाप लागू न हो ।। १०-११ ।। दे वा ऊचुः वासु कनागराजोऽयं ःखतो ा तकारणात् । अ भशापः स मातु तु भगवन् न भवेत् कथम् ।। १२ ।। दे वता बोले—भगवन्! ये नागराज वासु क अपने जा त-भाइय के लये ब त ःखी ह। कौन-सा ऐसा उपाय है, जससे माताका शाप इन लोग पर लागू न हो ।। १२ ।। ोवाच जर का जर का ं यां भाया समवा य त । त जातो जः शापा मो य य त प गान् ।। १३ ।। ी े ी ी ो े

ाजीने कहा—जर का मु न जर का नामवाली जस प नीको हण करगे, उसके गभसे उ प ा ण सप को माताके शापसे मु करेगा ।। १३ ।। एत छ वा तु वचनं वासु कः प गो मः । ादा माममर य तव प े महा मने ।। १४ ।। ागेवानागते काले त मात् वं म यजायथाः । अयं स कालः स ा तो भया ातुमह स ।। १५ ।। ातरं चा प मे त मात् ातुमह स पावकात् । न मोघं तु कृतं तत् याद् यदहं तव धीमते । प े द ा वमो ाथ कथं वा पु म यसे ।। १६ ।। दे वताके समान तेज वी पु ! ाजीक वह बात सुनकर नाग े वासु कने मुझे तु हारे महा मा पताक सेवाम सम पत कर दया। यह अवसर आनेसे ब त पहले इसी न म से मेरा ववाह कया गया। तदन तर उन मह ष ारा मेरे गभसे तु हारा ज म आ। जनमेजयके सपय का वह पूव नद काल आज उप थत है (उस य म नर तर सप जल रहे ह), अतः उस भयसे तुम उन सबका उ ार करो। मेरे भाईको भी उस भयंकर अ नसे बचा लो। जस उ े यको लेकर तु हारे बु मान् पताक सेवाम म द गयी, वह थ नह जाना चा हये। अथवा बेटा! सप को इस संकटसे बचानेके लये तुम या उ चत समझते हो? ।। १४—१६ ।। सौ त वाच एवमु तथे यु वा सा तीको मातरं तदा । अ वीद् ःखसंत तं वासु क जीवय व ।। १७ ।। उ वाजी कहते ह—माताके ऐसा कहनेपर आ तीकने उससे कहा—‘माँ! तु हारी जैसी आ ा है वैसा ही क ँ गा।’ इसके बाद वे ःखपी ड़त वासु कको जीवनदान दे ते एसे बोले— ।। १७ ।। अहं वां मो य या म वासुके प गो म । त मा छापा महास व स यमेतद् वी म ते ।। १८ ।। ‘महान् श शाली नागराज वासुके! म आपको माताके उस शापसे छु ड़ा ँ गा। यह आपसे स य कहता ँ ।। १८ ।। भव व थमना नाग न ह ते व ते भयम् । य त ये तथा राजन् यथा ेयो भ व य त ।। १९ ।। ‘नाग वर! आप न त रह। आपके लये कोई भय नह है। राजन्! जैसे भी आपका क याण होगा, म वैसा य न क ँ गा ।। १९ ।। न मे वागनृतं ाह वैरे व प कुतोऽ यथा । तं वै नृपवरं ग वा द तं जनमेजयम् ।। २० ।। वा भम लयु ा भ तोष य येऽ मातुल । यथा स य ो नृपते नव त य त स म ।। २१ ।। ‘



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‘मने कभी हँसी-मजाकम भी झूठ बात नह कही है, फर इस संकटके समय तो कह ही कैसे सकता ँ। स पु ष म े मामाजी! सपय के लये द त नृप े जनमेजयके पास जाकर अपनी मंगलमयी वाणीसे आज उ ह ऐसा संतु क ँ गा, जससे राजाका वह य बंद हो जायगा ।। २०-२१ ।। स स भावय नागे म य सव महामते । न ते म य मनो जातु मया भ वतुमह त ।। २२ ।। ‘महाबु मान् नागराज! मुझम यह सब कुछ करनेक यो यता है, आप इसपर व ास रख। आपके मनम मेरे त जो आशा-भरोसा है, वह कभी म या नह हो सकता’ ।। २२ ।। वासु क वाच आ तीक प रघूणा म दयं मे वद यते । दशो न तजाना म द ड नपी डतः ।। २३ ।। वासु क बोले—आ तीक! माताके शाप प द डसे पी ड़त होनेके कारण मुझे च कर आ रहा है, मेरा दय वद ण होने लगा है और मुझे दशा का ान नह हो रहा है ।। २३ ।। आ तीक उवाच न संताप वया कायः कथं चत् प गो म । द ता नेः समु प ं नाश य या म ते भयम् ।। २४ ।। आ तीकने कहा—नाग वर! आपको मनम कसी कार संताप नह करना चा हये। सपय क धधकती ई आगसे जो भय आपको ा त आ है, म उसका नाश कर ँ गा ।। २४ ।। द डं महाघोरं काला नसमतेजसम् । नाश य या म मा वं भयं काष ः कथंचन ।। २५ ।। काला नके समान दाहक और अ य त भयंकर शापका यहाँ म अव य नाश कर डालूँगा। अतः आप उससे कसी तरह भय न कर ।। २५ ।। सौ त वाच ततः स वासुकेघ रमपनीय मनो वरम् । आधाय चा मनोऽ े षु जगाम व रतो भृशम् ।। २६ ।। जनमेजय य तं य ं सवः समु दतं गुणैः । मो ाय भुजगे ाणामा तीको जस मः ।। २७ ।। उ वाजी कहते ह—तदन तर नागराज वासु कके भयंकर च ता- वरको र कर और उसे अपने ऊपर लेकर ज े आ तीक बड़ी उतावलीके साथ नागराज वासु क आ दको ाण-संकटसे छु ड़ानेके लये राजा जनमेजयके उस सपय म गये, जो सम त उ म गुण से स प था ।। २६-२७ ।। ी ो

स ग वाप यदा तीको य ायतनमु मम् । वृतं सद यैब भः सूयव सम भैः ।। २८ ।। वहाँ प ँचकर आ तीकने परम उ म य म डप दे खा, जो सूय और अ नके समान तेज वी अनेक सद य से भरा आ था ।। २८ ।। स त वा रतो ाः थैः वशन् जस मः । अ भतु ाव तं य ं वेशाथ परंतपः ।। २९ ।। ज े आ तीक जब य म डपम वेश करने लगे, उस समय ारपाल ने उ ह रोक दया। तब काम- ोध आ द श ु को संत त करनेवाले आ तीक उसम वेश करनेक इ छा रखकर उस य क तु त करने लगे ।। २९ ।। स ा य य ायतनं व र ं जो मः पु यकृतां व र ः । तु ाव राजानमन तक तमृ व सद यां तथैव चा नम् ।। ३० ।। इस कार उस परम उ म य म डपके नकट प ँचकर पु यवान म े व वर आ तीकने अ य क तसे सुशो भत यजमान राजा जनमेजय, ऋ वज , सद य तथा अ नदे वका तवन आर भ कया ।। ३० ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण आ तीकपव ण सपस े आ तीकागमने चतु प चाश मोऽ यायः ।। ५४ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत आ तीकपवम सपस म आ तीकका आगमन वषयक चौवनवाँ अ याय पूरा आ ।। ५४ ।।

प चप चाश मोऽ यायः आ तीकके ारा यजमान, य , ऋ वज्, सद यगण और अ नदे वक तु त- शंसा आ तीक उवाच सोम य य ो व ण य य ः जापतेय आसीत् यागे । तथा य ोऽयं तव भारता य पा र त व त नोऽ तु ये यः ।। १ ।। आ तीकने कहा—भरतवं शय म े जनमेजय! च माका जैसा य आ था, व णने जैसा य कया था और यागम जाप त ाजीका य जस कार सम त सद्गुण से स प आ था, उसी कार तु हारा यह य भी उ म गुण से यु है। हमारे यजन का क याण हो ।। १ ।। श य य ः शतसं य उ तथा पूरो तु यसं यं शतं वै । तथा य ोऽयं तव भारता य पा र त व त नोऽ तु ये यः ।। २ ।। भरतकुल शरोम ण परी त्कुमार! इ के य क सं या सौ बतायी गयी है, राजा पू के य क सं या भी उनके समान ही सौ है। उन सबके य के तु य ही तु हारा यह य शोभा पा रहा है। हमारे यजन का क याण हो ।। २ ।। यम य य ो ह रमेधस यथा य ो र तदे व य रा ः । तथा य ोऽयं तव भारता य पा र त व त नोऽ तु ये यः ।। ३ ।। जनमेजय! यमराजका य , ह रमेधाका य तथा राजा र तदे वका य जस कार े गुण से स प था, वैसे ही तु हारा यह य है। हमारे यजन का क याण हो ।। ३ ।। गय य य ः शश ब दो रा ो य तथा वै वण य रा ः । तथा य ोऽयं तव भारता य पा र त व त नोऽ तु ये यः ।। ४ ।। भरतवं शय म अ ग य जनमेजय! महाराज गयका य , राजा शश ब का य तथा राजा धराज कुबेरका य जस कार उ म व ध- वधानसे स प आ था, वैसा ही तु हारा यह य है। हमारे यजन का क याण हो ।। ४ ।। नृग य य वजमीढ य चासीद् ो



यथा य ो दाशरथे रा ः । तथा य ोऽयं तव भारता य पा र त व त नोऽ तु ये यः ।। ५ ।। परी त्कुमार! राजा नृग, राजा अजमीढ़ और महाराज दशरथन दन ीरामच जीने जस कार य कया था, वैसा ही तु हारा यह य भी है। हमारे यजन का क याण हो ।। ५ ।। य ः ुतो द व दे व य सूनोयु ध र याजमीढ य रा ः । तथा य ोऽयं तव भारता य पा र त व त नोऽ तु ये यः ।। ६ ।। भरत े जनमेजय! अजमीढ़वंशी धमपु महाराज यु ध रके य क या त वगके े दे वता ने भी सुन रखी थी, वैसा ही तु हारा भी यह य है। हमारे यजन का क याण हो ।। ६ ।। कृ ण य य ः स यव याः सुत य वयं च कम चकार य । तथा य ोऽयं तव भारता य पा र त व त नोऽ तु ये यः ।। ७ ।। भरता ग य जनमेजय! स यवतीन दन ासजीका य जसम उ ह ने वयं सब काय स प कया था, जैसा हो पाया था, वैसा ही तु हारा यह य भी है। हमारे यजन का क याण हो ।। ७ ।। इमे च ते सूयसमानवचसः समासते वृ हणः तुं यथा । नैषां ातुं व ते ानम द ं ये यो न ण येत् कदा चत् ।। ८ ।। तु हारे ये ऋ वज सूयके समान तेज वी ह और इ के य क भाँ त तु हारे इस य का भलीभाँ त अनु ान करते ह। कोई भी ऐसी जानने यो य व तु नह है, जसका इ ह ान न हो। इ ह दया आ दान कभी न नह हो सकता ।। ८ ।। ऋ वक् समो ना त लोकेषु चैव ै पायनेने त व न तं मे । एत य श याः तमाचर त सव वजः कमसु वेषु द ाः ।। ९ ।। ै पायन ासजीके समान पारलौ कक साधन म कुशल सरा कोई ऋ वज नह है, यह मेरा न त मत है। इनके श य ही अपने-अपने कम म नपुण होता, उद्गाता आ द सभी कारके ऋ वज ह, जो य करानेके लये स पूण भूम डलम वचरते रहते ह ।। ९ ।। वभावसु भानुमहा मा े

हर यरेता तभुक् कृ णव मा । द णावत शखः द तो ह ं तवेदं तभुग् व दे वः ।। १० ।। जो वभावसु, च भानु, महा मा, हर यरेता, ह व यभोजी तथा कृ णव मा कहलाते ह, वे अ नदे व तु हारे इस य म द णावत शखा से व लत हो द ई आ तको भोग लगाते ए तु हारे इस ह व यक सदा इ छा रखते ह ।। १० ।। नेह वद यो व ते जीवलोके समो नृपः पाल यता जानाम् । धृ या च ते ीतमनाः सदाहं वं वा व णो धमराजो यमो वा ।। ११ ।। इस मृ युलोकम तु हारे सवा सरा कोई ऐसा राजा नह है, जो तु हारी भाँ त जाका पालन कर सके। तु हारे धैयसे मेरा मन सदा स रहता है। तुम सा ात् व ण, धमराज एवं यमके समान भावशाली हो ।। ११ ।। श ः सा ाद् व पा णयथेह ाता लोकेऽ मं वं तथेह जानाम् । मत वं नः पु षे े ह लोके न च वद यो भूप तर त ज े ।। १२ ।। पु षोम े जनमेजय! जैसे सा ात् वपा ण इ स पूण जाक र ा करते ह, उसी कार तुम भी इस लोकम हम जावगके पालक माने गये हो। संसारम तु हारे सवा सरा कोई भूपाल तुम-जैसा जापालक नह है ।। १२ ।। खट् वा नाभाग दलीपक प यया तमा धातृसम भाव । आ द यतेजः तमानतेजा भी मो यथा राज स सु त वम् ।। १३ ।। राजन्! तुम खट् वांग, नाभाग और दलीपके समान तापी हो। तु हारा भाव राजा यया त और मा धाताके समान है। तुम अपने तेजसे भगवान् सूयके च ड तेजक समानता कर रहे हो। जैसे भी म पतामहने उ म चय तका पालन कया था, उसी कार तुम भी इस य म परम उ म तका पालन करते ए शोभा पा रहे हो ।। १३ ।। वा मी कवत् ते नभृतं ववीय व स वत् ते नयत कोपः । भु व म वसमं मतं मे ु त नारायणवद् वभा त ।। १४ ।। मह ष वा मी कक भाँ त तु हारा अद्भुत परा म तुमम ही छपा आ है। मह ष व स जीके समान तुमने अपने ोधको काबूम कर रखा है। मेरी ऐसी मा यता है क तु हारा भु व इ के ऐ यके तु य है और तु हारी अंगका त भगवान् नारायणके समान सुशो भत होती है ।। १४ ।। ो

यमो यथा धम व न य ः कृ णो यथा सवगुणोपप ः । यां नवासोऽ स यथा वसूनां नधानभूतोऽ स तथा तूनाम् ।। १५ ।। तुम यमराजक भाँ त धमके न त स ा तको जाननेवाले हो। भगवान् ीकृ णक भाँ त सवगुणस प हो। वसुगण के पास जो स प याँ ह, वैसी ही स पदा के तुम नवास थान हो तथा य क तो तुम सा ात् न ध ही हो ।। १५ ।। द भो वेना स समो बलेन रामो यथा शा वद व च । औव ता याम स तु यतेजा े णीयोऽ स भगीरथेन ।। १६ ।। राजन्! तुम बलम द भो वके समान और अ -श के ानम परशुरामके स श हो। तु हारा तेज औव और त नामक मह षय के तु य है। राजा भगीरथक भाँ त तु हारी ओर दे खना भी क ठन है ।। १६ ।। सौ त वाच एवं तुताः सव एव स ा राजा सद या ऋ वजो ह वाहः । तेषां ् वा भा वतानी ता न ोवाच राजा जनमेजयोऽथ ।। १७ ।। उ वाजी कहते ह—आ तीकके इस कार तु त करनेपर यजमान राजा जनमेजय, सद य, ऋ वज् और अ नदे व सभी बड़े स ए। इन सबके मनोभाव तथा बा चे ा को ल य करके राजा जनमेजय इस कार बोले ।। १७ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण आ तीकपव ण सपस े आ तीककृतराज तवे प चप चाश मोऽ याय ।। ५५ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत आ तीकपवम आ तीक ारा सपस म राजा जनमेजयक तु त वषयक पचपनवाँ अ याय पूरा आ ।। ५५ ।।

षट् प चाश मोऽ यायः राजाका आ तीकको वर दे नेके लये तैयार होना, त क नागक ाकुलता तथा आ तीकका वर माँगना जनमेजय उवाच बालोऽ ययं थ वर इवावभाषते नायं बालः थ वरोऽयं मतो मे । इ छा यहं वरम मै दातुं त मे व ाः सं वद वं यथावत् ।। १ ।। जनमेजयने कहा— ा णो! यह बालक है तो भी वृ पु ष के समान बात करता है, इस लये म इसे बालक नह , वृ मानता ँ और इसको वर दे ना चाहता ँ। इस वषयम आपलोग अ छ तरह वचार करके अपनी स म त द ।। १ ।। सद या ऊचुः बालोऽ प व ो मा य एवेह रा ां व ान् यो वै स पुनव यथावत् । सवान् कामां व एवाहतेऽ यथा च न त क ए त शी म् ।। २ ।। सद य ने कहा— ा ण य द बालक हो तो भी यहाँ राजा के लये स माननीय ही है। य द वह व ान् हो तब तो कहना ही या है? अतः यह ा ण बालक आज आपसे यथो चत री तसे अपनी स पूण कामना को पानेके यो य है, कतु वर दे नेसे पहले त क नाग चाहे जैसे भी शी तापूवक हमारे पास आ प ँचे, वैसा उपाय करना चा हये ।। २ ।। सौ त वाच ाहतुकामे वरदे नृपे जं वरं वृणी वे त ततोऽ युवाच । होता वा यं ना त ा तरा मा कम य मं त को नै त तावत् ।। ३ ।। उ वाजी कहते ह—शौनक! तदन तर वर दे नेके लये उ त राजा जनमेजय व वर आ तीकसे यह कहना ही चाहते थे क ‘तुम मुँहमाँगा वर माँग लो।’ इतनेम ही होता, जसका मन अ धक स नह था, बोल उठा—‘हमारे इस य कमम त क नाग तो अभीतक आया ही नह ’ ।। ३ ।। जनमेजय उवाच यथा चेदं कम समा यते मे ै



यथा च वै त क ए त शी म् । तथा भव तः यत तु सव परं श या स ह मे व षाणः ।। ४ ।। जनमेजयने कहा— ा णो! जैसे भी यह कम पूरा हो जाय और जस कार भी त क नाग शी यहाँ आ जाय, आपलोग पूरी श लगाकर वैसा ही य न क जये; य क मेरा असली श ु तो वही है ।। ४ ।। ऋ वज ऊचुः यथा शा ा ण नः ा यथा शंस त पावकः । इ य भवने राजं त को भयपी डतः ।। ५ ।। ऋ वज बोले—राजन्! हमारे शा जैसा कहते ह तथा अ नदे व जैसी बात बता रहे ह, उसके अनुसार तो त क नाग भयसे पी ड़त हो इ के भवनम छपा आ है ।। ५ ।। यथा सूतो लो हता ो महा मा पौरा णको वे दतवान् पुर तात् । स राजानं ाह पृ तदान यथा व ा त दे त ृदेव ।। ६ ।। लाल ने वाले पुराणवे ा महा मा सूतजीने पहले ही यह बात सू चत कर द थी। तब राजाने सूतजीसे इसके वषयम पूछा। पूछनेपर उ ह ने राजासे कहा—‘नरदे व! ा णलोग जैसी बात कह रहे ह, वह ठ क वैसी ही है ।। ६ ।। पुराणमाग य ततो वी यहं द ं त मै वर म े ण राजन् । वसेह वं म सकाशे सुगु तो न पावक वां द ह यती त ।। ७ ।। ‘राजन्! पुराणको जानकर म यह कह रहा ँ क इ ने त कको वर दया है —‘नागराज! तुम यहाँ मेरे समीप सुर त होकर रहो। सपस क आग तु ह नह जला सकेगी’ ।। ७ ।। एत छ वा द त त यमान आ ते होतारं चोदयन् कमकाले । होता च य ोऽ याजुहावाथ म ैरथो महे ः वयमाजगाम ।। ८ ।। वमानमा महानुभावः सवदवैः प रसं तूयमानः । बलाहकै ा यनुग यमानो व ाधरैर सरसां गणै ।। ९ ।। यह सुनकर य क द ा हण करनेवाले यजमान राजा जनमेजय संत त हो उठे और कमके समय होता-को इ स हत त क नागका आकषण करनेके लये े रत करने लगे। ो





तब होताने एका च होकर म ारा इ स हत त कका आवाहन कया। तब वयं दे वराज इ वमानपर बैठकर आकाशमागसे चल पड़े। उस समय स पूण दे वता सब ओरसे घेरकर उन महानुभाव इ क तु त कर रहे थे। अ सराएँ, मेघ और व ाधर भी उनके पीछे -पीछे आ रहे थे ।। ८-९ ।। त यो रीये न हतः स नागो भयो नः शम नैवा यग छत् । ततो राजा म वदोऽ वीत् पुनः ु ो वा यं त क या त म छन् ।। १० ।। त क नाग उ ह के उ रीय व ( प े )-म छपा था। भयसे उ न होनेके कारण त कको त नक भी चैन नह आता था। इधर राजा जनमेजय त कका नाश चाहते ए कु पत होकर पुनः म वे ा ा ण से बोले ।। १० ।। जनमेजय उवाच इ य भवने व ा य द नागः स त कः । त म े णैव स हतं पातय वं वभावसौ ।। ११ ।। जनमेजयने कहा— व गण! य द त क नाग इ के वमानम छपा आ है तो उसे इ के साथ ही अ नम गरा दो ।। ११ ।। सौ त वाच जनमेजयेन रा ा तु नो दत त कं त । होता जुहाव त थं त कं प गं तथा ।। १२ ।। उ वाजी कहते ह—राजा जनमेजयके ारा इस कार त कक आ तके लये े रत हो होताने इ के समीपवत त क नागका अ नम आवाहन कया—उसके नामक आ त डाली ।। १२ ।। यमाने तथा चैव त कः सपुर दरः । आकाशे द शे चैव णेन थत तदा ।। १३ ।। इस कार आ त द जानेपर णभरम इ स हत त क नाग आकाशम दखायी दया। उस समय उसे बड़ी पीड़ा हो रही थी ।। १३ ।। पुर दर तु तं य ं ् वो भयमा वशत् । ह वा तु त कं तः वमेव भवनं ययौ ।। १४ ।। उस य को दे खते ही इ अ य त भयभीत हो उठे और त क नागको वह छोड़कर बड़ी घबराहटके साथ अपने भवनको ही चलते बने ।। १४ ।। इ े गते तु नागे त को भयमो हतः । म श या पावका चः समीपमवशो गतः ।। १५ ।। इ के चले जानेपर नागराज त क भयसे मो हत हो म श से खचकर ववशतापूवक अ नक वालाके समीप आने लगा ।। १५ ।।

ऋ वज ऊचुः वतते तव राजे कमतद् व धवत् भो । अ मै तु जमु याय वरं वं दातुमह स ।। १६ ।। ऋ वज ने कहा—राजे ! आपका यह य कम व धपूवक स प हो रहा है। अब आप इन व वर आ तीकको मनोवां छत वर दे सकते ह ।। १६ ।। जनमेजय उवाच बाला भ प य तवा मेय वरं य छा म यथानु पम् । वृणी व यत् तेऽ भमतं द थतं तत् ते दा या य प चेददे यम् ।। १७ ।। जनमेजयने कहा— ा णबालक! तुम अ मेय हो—तु हारी तभाक कोई सीमा नह है। म तुम-जैसे व ान्के लये वर दे ना चाहता ँ। तु हारे मनम जो अभी कामना हो, उसे बताओ। वह दे नेयो य न होगी, तो भी तु ह अव य दे ँ गा ।। १७ ।। ऋ वज ऊचुः अयमाया त तूण स त क ते वशं नृप । ूयतेऽ य महान् नादो नदतो भैरवं रवम् ।। १८ ।। ऋ वज बोले—राजन्! यह त क नाग अब शी ही तु हारे वशम आ रहा है। वह बड़ी भयानक आवाजम ची कार कर रहा है। उसक भारी च लाहट अब सुनायी दे ने लगी है ।। १८ ।। नूनं मु ो व भृता स नागो ो नाका म व तकायः । घूण ाकाशे न सं ोऽ युपै त ती ान् नः ासान् नः सन् प गे ः ।। १९ ।। न य ही इ ने उस नागराज त कको याग दया है। उसका वशाल शरीर म ारा आकृ होकर वगलोकसे नीचे गर पड़ा है। वह आकाशम च कर काटता अपनी सुध-बुध खो चुका है और बड़े वेगसे ल बी साँस छोड़ता आ अ नकु डके समीप आ रहा है ।। १९ ।। सौ त वाच प त यमाणे नागे े त के जातवेद स । इदम तर म येव तदाऽऽ तीकोऽ यचोदयत् ।। २० ।। उ वाजी कहते ह—शौनक! नागराज त क अब कुछ ही ण म आगक वालाम गरनेवाला था। उस समय आ तीकने यह सोचकर क ‘यही वर माँगनेका अ छा अवसर है’ राजाको वर दे नेके लये े रत कया ।। २० ।। आ तीक उवाच े ो े

वरं ददा स चे म ं वृणो म जनमेजय । स ं ते वरम वेत पतेयु रहोरगाः ।। २१ ।। आ तीकने कहा—राजा जनमेजय! य द तुम मुझे वर दे ना चाहते हो तो सुनो, म माँगता ँ क तु हारा यह य बंद हो जाय और अब इसम सप न गरने पाव ।। २१ ।। एवमु तदा तेन न् पा र त तु सः । ना त मना ेदमा तीकं वा यम वीत् ।। २२ ।। न्! आ तीकके ऐसा कहनेपर वे परी त्-कुमार जनमेजय ख च होकर बोले — ।। २२ ।। सुवण रजतं गा य चा य म यसे वभो । तत् ते द ां वरं व न नवतत् तुमम ।। २३ ।। ‘ व वर! आप सोना, चाँद , गौ तथा अ य अभी व तु को, ज ह आप ठ क समझते ह , माँग ल। भो! वह मुँहमाँगा वर म आपको दे सकता ँ, कतु मेरा यह य बंद नह होना चा हये’ ।। २३ ।। आ तीक उवाच सुवण रजतं गा न वां राजन् वृणो यहम् । स ं ते वरम वेतत् व त मातृकुल य नः ।। २४ ।। आ तीकने कहा—राजन्! म तुमसे सोना, चाँद और गौएँ नह माँगँग ू ा, मेरी यही इ छा है क तु हारा यह य बंद हो जाय, जससे मेरी माताके कुलका क याण हो ।। २४ ।। सौ त वाच आ तीकेनैवमु तु राजा पा र त तदा । पुनः पुन वाचेदमा तीकं वदतां वरः ।। २५ ।। अ यं वरय भ ं ते वरं जवरो म । अयाचत न चा य यं वरं स भृगुन दन ।। २६ ।। उ वाजी कहते ह—भृगन ु दन शौनक! आ तीकके ऐसा कहनेपर उस समय व ा म े राजा जनमेजयने उनसे बार-बार अनुरोध कया—‘ व शरोमणे! आपका क याण हो, कोई सरा वर माँ गये।’ कतु आ तीकने सरा कोई वर नह माँगा ।। २५-२६ ।। ततो वेद वद तात सद याः सव एव तम् । राजानमूचुः स हता लभतां ा णो वरम् ।। २७ ।। तब स पूण वेदवे ा सभासद ने एक साथ संग ठत होकर राजासे कहा—‘ ा णको ( वीकार कया आ) वर मलना ही चा हये’ ।। २७ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण आ तीकपव ण आ तीकवर दानं नाम षट् प चाश मोऽ यायः ।। ५६ ।।











इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत आ तीकपवम आ तीकको वर दान नामक छ पनवाँ अ याय पूरा आ ।। ५६ ।।

स तप चाश मोऽ यायः सपय म द ध ए धान- धान सप के नाम शौनक उवाच ये सपाः सपस ेऽ मन् प तता ह वाहने । तेषां नामा न सवषां ोतु म छा म सूतज ।। १ ।। शौनकजीने पूछा—सूतन दन! इस सपस क धधकती ई आगम जो-जो सप गरे थे, उन सबके नाम म सुनना चाहता ँ ।। १ ।। सौ त वाच सह ा ण ब य मन् युता यबुदा न च । न श यं प रसं यातुं ब वाद् जस म ।। २ ।। उ वाजीने कहा— ज े ! इस य म सह , लाख एवं अरब सप गरे थे, उनक सं या ब त होनेके कारण गणना नह क जा सकती ।। २ ।। यथा मृ त तु नामा न प गानां नबोध मे । उ यमाना न मु यानां तानां जातवेद स ।। ३ ।। परंतु सपय क अ नम जन धान- धान नाग क आ त द गयी थी, उन सबके नाम अपनी मृ तके अनुसार बता रहा ँ, सुनो ।। ३ ।। वासुकेः कुलजातां तु ाधा येन नबोध मे । नीलर ान् सतान् घोरान् महाकायान् वषो बणान् ।। ४ ।। पहले वासु कके कुलम उ प ए मु य-मु य सप के नाम सुनो—वे सब-के-सब नीले, लाल, सफेद और भयानक थे। उनके शरीर वशाल और वष अ य त भयंकर थे ।। ४ ।। अवशान् मातृवा द डपी डताम् कृपणान् तान् । को टशो मानसः पूणः शलः पालो हलीमकः ।। ५ ।। प छलः कौणप ः कालवेगः कालनः । हर यबा ः शरणः क कः कालद तकः ।। ६ ।। वे बेचारे सप माताके शापसे पी ड़त हो ववशतापूवक सपय क आगम होम दये गये थे। उनके नाम इस कार ह—को टश, मानस, पूण, शल, पाल, हलीमक, प छल, कौणप, च , कालवेग, कालन, हर यबा , शरण, क क और कालद तक ।। ५-६ ।। एते वासु कजा नागाः व ा ह वाहने । अ ये च बहवो व तथा वै कुलस भवाः । द ता नौ ताः सव घोर पा महाबलाः ।। ७ ।। ये वासु कके वंशज नाग थे, ज ह अ नम वेश करना पड़ा। व वर! ऐसे ही सरे भी ब त-से महाबली और भयंकर सप थे, जो उसी कुलम उ प ए थे। वे सब-के-सब े े

सपस क

व लत अ नम आ त बन गये थे ।। ७ ।।

आ तीकने त कको अ नकु डम गरनेसे रोक दया

त क य कुले जातान् व या म नबोध तान् । पु छा डको म डलकः प डसे ा रभेणकः ।। ८ ।। उ छखः शरभो भ ो ब वतेजा वरोहणः । शली शलकरो मूकः सुकुमारः वेपनः ।। ९ ।। मुदगरः ् शशुरोमा च सुरोमा च महाहनुः । एते त कजा नागाः व ा ह वाहनम् ।। १० ।। अब त कके कुलम उ प नाग का वणन क ँ गा, उनके नाम सुनो—पु छा डक, म डलक, प डसे ा, रभेणक, उ छख, शरभ, भंग, ब वतेजा, वरोहण, शली, शलकर, मूक, सुकुमार, वेपन, मुदगर, ् शशुरोमा, सुरोमा और महाहनु—ये त कके वंशज नाग थे, जो सपस क आगम समा गये ।। ८—१० ।। पारावतः पा रजातः पा डरो ह रणः कृशः । वह ः शरभो मेदः मोदः संहतापनः ।। ११ ।। ऐरावतक ु लादे ते व ा ह वाहनम् । पारावत, पा रजात, पा डर, ह रण, कृश, वहंग, शरभ, मेद, मोद और संहतापन—ये ऐरावतके कुलसे आकर आगम आ त बन गये थे ।। ११ ।। कौर कुलजान् नागा छृ णु मे वं जो म ।। १२ ।। ज े ! अब तुम मुझसे कौर के कुलम उ प ए नाग के नाम सुनो ।। १२ ।। एरकः कु डलो वेणी वेणी क धः कुमारकः । बा कः शृंगवेर धूतकः ातरातकौ ।। १३ ।। कौर कुलजा वेते व ा ह वाहनम् । एरक, कु डल, वेणी, वेणी क ध, कुमारक, बा क, शृंगवेर, धूतक, ातर और आतक —ये कौर -कुलके नाग य ा नम जल मरे थे ।। १३ ।। धृतरा कुले जाता छृ णु नागान् यथातथम् ।। १४ ।। क यमानान् मया न् वातवेगान् वषो बणान् । शङ् कुकणः पठरकः क ु ठारमुखसेचकौ ।। १५ ।। पूणा दः पूणमुखः हासः शकु नद रः । अमाहठः कामठकः सुषेणो मानसोऽ यः ।। १६ ।। भैरवो मु डवेदा ः पश ो पारकः । ऋषभो वेगवान् नागः प डारकमहाहनू ।। १७ ।। र ा ः सवसार ः समृ पटवासकौ । वराहको वीरणकः सु च वे गकः ।। १८ ।। पराशर त णको म णः क ध तथा णः । इ त नागा मया न् क तताः क तवधनाः ।। १९ ।। ाधा येन ब वात् तु न सव प रक तताः । एतेषां सवो य सव य च संत तः ।। २० ।। े

न श यं प रसं यातुं ये द तं पावकं गताः । शीषाः स तशीषा दशशीषा तथापरे ।। २१ ।। न्! अब धृतराक े कुलम उ प नाग के नाम का मुझसे यथावत् वणन सुनो। वे वायुके समान वेगशाली और अ य त वषैले थे। (उनके नाम इस कार ह—) शंकुकण, पठरक, कुठार, मुखसेचक, पूणागद, पूणमुख, हास, शकु न, द र, अमाहठ, कामठक, सुषेण, मानस, अ य, भैरव, मु डवेदांग, पशंग, उ पारक, ऋषभ, वेगवान् नाग, प डारक, महाहनु, र ांग, सवसारंग, समृ , पटवासक, वराहक, वीरणक, सु च , च वे गक, पराशर, त णक, म ण, क ध और आ ण—(ये सभी धृतरावंशी नाग सपस क आगम जलकर भ म हो गये थे।) न्! इस कार मने अपने कुलक क त बढ़ानेवाले मु य-मु य नाग का वणन कया है। उनक सं या ब त है, इस लये सबका नामो लेख नह कया गया है। इन सबक संतान क और संतान क संत तक , जो व लत अ नम जल मरी थ , गणना नह क जा सकती। कसीके तीन सर थे तो कसीके सात तथा कतने ही दस-दस सरवाले नाग थे ।। १४—२१ ।। कालानल वषा घोरा ताः शतसह शः । महाकाया महावेगाः शैलशृ समु याः ।। २२ ।। उनके वष लया नके समान दाहक थे। वे नाग बड़े ही भयंकर थे। उनके शरीर वशाल और वेग महान् थे। वे ऊँचे तो ऐसे थे, मानो पवतके शखर ह । ऐसे नाग लाख क सं याम य ा नक आ त बन गये ।। २२ ।। योजनायाम व तारा योजनसमायताः । काम पाः कामबला द तानल वषो बणाः ।। २३ ।। द धा त महास े द ड नपी डताः ।। २४ ।। उनक ल बाई-चौड़ाई एक-एक, दो-दो योजनतकक थी। वे इ छानुसार प धारण करनेवाले तथा इ छानु प बल-परा मसे स प थे। वे सब-के-सब धधकती ई आगके समान भयंकर वषसे भरे थे। माताके शाप पी द डसे पी ड़त होनेके कारण वे उस महास म जलकर भ म हो गये ।। २३-२४ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण आ तीकपव ण सपनामकथने स तप चाश मोऽ यायः ।। ५७ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत आ तीकपवम सपनामकथन वषयक स ावनवाँ अ याय पूरा आ ।। ५७ ।।

अ प चाश मोऽ यायः य क समा त एवं आ तीकका सप से वर ा त करना सौ त वाच इदम य तं चा यदा तीक यानुशु ुम । तथा वरै छ ामाने रा ा पा र तेन ह ।। १ ।। इ ह ता युतो नागः ख एव यद त त । तत तापरो राजा बभूव जनमेजयः ।। २ ।। उ वाजी कहते ह—शौनक! आ तीकके स ब धम यह एक और अद्भुत बात मने सुन रखी है क जब राजा जनमेजयने उनसे पूव पसे वर माँगनेका अनुरोध कया और उनके वर माँगनेपर इ के हाथसे छू टकर गरा आ त क नाग आकाशम ही ठहर गया, तब महाराज जनमेजयको बड़ी च ता ई ।। १-२ ।। यमाने भृशं द ते व धवद ् वसुरेत स । न म स ापतद् व ौ त को भयपी डतः ।। ३ ।। य क अ न पूण पसे व लत थी और उसम व धपूवक आ तयाँ द जा रही थ तो भी भयसे पी ड़त त क नाग उस अ नम नह गरा ।। ३ ।। शौनक उवाच क सूत तेषां व ाणां म ामो मनी षणाम् । न यभात् तदा नौ यत् स पपात न त कः ।। ४ ।। शौनकजीने पूछा—सूत! उस य म बड़े-बड़े मनीषी ा ण उप थत थे। या उ ह ऐसे म नह सूझे, जनसे त क शी अ नम आ गरे? या कारण था जो त क अ नकु डम न गरा? ।। ४ ।। सौ त वाच त म ह ताद् व तं वसं ं प गो मम् । आ तीक त त े त वाच त ोऽ युदैरयत् ।। ५ ।। उ वाजीने कहा—शौनक! इ के हाथसे छू टनेपर नाग वर त क भयसे थरा उठा। उसक चेतना लु त हो गयी। उस समय आ तीकने उसे ल य करके तीन बार इस कार कहा—‘ठहर जा, ठहर जा, ठहर जा’ ।। ५ ।। वत थे सोऽ त र े च दयेन व यता । यथा त त वै क त् खं च गां चा तरा नरः ।। ६ ।। तब त क पी ड़त दयसे आकाशम उसी कार ठहर गया, जैसे कोई मनु य आकाश और पृ वीके बीचम लटक रहा हो ।। ६ ।। ततो राजा वीद् वा यं सद यै ो दतो भृशम् । े





काममेतद् भव वेवं यथाऽऽ तीक य भा षतम् ।। ७ ।। तदन तर सभासद के बार-बार े रत करनेपर राजा जनमेजयने यह बात कही —‘अ छा, आ तीकने जैसा कहा है, वही हो ।। ७ ।। समा यता मदं कम प गाः स वनामयाः । ीयतामयमा तीकः स यं सूतवचोऽ तु तत् ।। ८ ।। ‘यह य कम समा त कया जाय। नागगण कुशलपूवक रह और ये आ तीक स ह । साथ ही सूतजीक कही ई बात भी स य हो’ ।। ८ ।। ततो हलहलाश दः ी तदः समजायत । आ तीक य वरे द े तथैवोपरराम च ।। ९ ।। स य ः पा डवेय य रा ः पा र त य ह । ी तमां ाभवद् राजा भारतो जनमेजयः ।। १० ।। जनमेजयके ारा आ तीकको यह वरदान ा त होते ही सब ओर स ता बढ़ानेवाली हष व न छा गयी और पा डववंशी महाराज जनमेजयका वह य बंद हो गया। ा णको वर दे कर भरतवंशी राजा जनमेजयको भी स ता ई ।। ९-१० ।। ऋ व यः ससद ये यो ये त ासन् समागताः । ते य ददौ व ं शतशोऽथ सह शः ।। ११ ।। उस य म जो ऋ वज् और सद य पधारे थे, उन सबको राजा जनमेजयने सैकड़ और सह क सं याम धन-दान कया ।। ११ ।। लो हता ाय सूताय तथा थपतये वभुः । येनो ं त य त ा े सपस नवतने ।। १२ ।। न म ं ा ण इ त त मै व ं ददौ ब । द वा ं यथा यायं भोजना छादना वतम् ।। १३ ।। ीत त मै नरप तर मेयपरा मः । तत कारावभृथं व ध ेन कमणा ।। १४ ।। लो हता , सूत तथा श पीको, जसने य के पहले ही बता दया था क इस सपस को बंद करनेम एक ा ण न म बनेगा, भावशाली राजा जनमेजयने ब त धन दया। जनके परा मक कह तुलना नह है, उन नरे र जनमेजयने स होकर यथायो य और भोजन-व आ दका दान करनेके प ात् शा ीय व धके अनुसार अवभृथ- नान कया ।। १२—१४ ।। आ तीकं ेषयामास गृहानेव सुसं कृतम् । राजा ीतमनाः ीतं कृतकृ यं मनी षणम् ।। १५ ।। पुनरागमनं काय म त चैनं वचोऽ वीत् । भ व य स सद यो मे वा जमेधे महा तौ ।। १६ ।। आ तीक शुभ-सं कार से स प और मनीषी व ान् थे। अपना कत पूण कर लेनेके कारण वे कृतकृ य एवं स थे। राजा जनमेजयने उ ह स च होकर घरके े





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लये वदा द और कहा—‘ न्! मेरे भावी अ मेध नामक महाय म आप सद य ह और उस समय पुनः पधारनेक कृपा कर’ ।। १५-१६ ।। तथे यु वा ाव तदाऽऽ तीको मुदा युतः । कृ वा वकायमतुलं तोष य वा च पा थवम् ।। १७ ।। आ तीकने स तापूवक ‘ब त अ छा’ कहकर राजाक ाथना वीकार कर ली और अपने अनुपम कायका साधन करके राजाको संतु करनेके प ात् वहाँसे शी तापूवक थान कया ।। १७ ।। स ग वा परम ीतो मातुलं मातरं च ताम् । अ भग योपसंगृ तथावृ ं यवेदयत् ।। १८ ।। वे अ य त स हो घर जाकर मामा और मातासे मले और उनके चरण म णाम करके वहाँका सब समाचार सुनाया ।। १८ ।। सौ त वाच एत छ वा ीयमाणाः समेता ये त ासन् प गा वीतमोहाः । आ तीके वै ी तम तो बभूवुचु ैनं वर म ं वृणी व ।। १९ ।। उ वाजी कहते ह—शौनक! सपस से बचे ए जो-जो नाग मोहर हत हो उस समय वासु क नागके यहाँ उप थत थे, वे सब आ तीकके मुखसे उस य के बंद होनेका समाचार सुनकर बड़े स ए। आ तीकपर उनका ेम ब त बढ़ गया और वे उनसे बोले —‘व स! तुम कोई अभी वर माँग लो’ ।। १९ ।। भूयो भूयः सवश तेऽ ुवं तं क ते यं करवामा व न् । ीता वयं मो ता ैव सव कामं क ते करवामा व स ।। २० ।। वे सब-के-सब बार-बार यह कहने लगे—‘ व ान्! आज हम तु हारा कौन-सा य काय कर? व स! तुमने हम मृ युके मुखसे बचाया है; अतः हम सब लोग तुमसे ब त स ह। बोलो, तु हारा कौन-सा मनोरथ पूण कर?’ ।। २० ।। आ तीक उवाच सायं ातय स ा म पा लोके व ा मानवा ये परेऽ प । धमा यानं ये पठ े युममेदं तेषां यु म ैव क चद् भयं यात् ।। २१ ।। आ तीकने कहा—नागगण! लोकम जो ा ण अथवा कोई सरा मनु य स च होकर मेरे इस धममय उपा यानका पाठ करे, उसे आपलोग से कोई भय न हो ।। २१ ।। तै ा यु ो भा गनेयः स ैे े े

रेतत् स यं काममेवं वरं ते । ी या यु ाः का मतं सवश ते कतारः म वणा भा गनेय ।। २२ ।। यह सुनकर सभी सप ब त स ए और अपने भानजेसे बोले—‘ य व स! तु हारी यह कामना पूण हो। भ गनीपु ! हम बड़े ेम और नतासे यु होकर सवथा तु हारे इस मनोरथको पूण करते रहगे ।। २२ ।। अ सतं चा तम तं च सुनीथं चा प यः मरेत् । दवा वा य द वा रा ौ ना य सपभयं भवेत् ।। २३ ।। ‘जो कोई अ सत, आ तमान् और सुनीथ म का दन अथवा रातके समय मरण करेगा, उसे सप से कोई भय नह होगा ।। २३ ।। यो जर का णा जातो जर कारौ महायशाः । आ तीकः सपस े वः प गान् योऽ यर त । तं मर तं महाभागा न मां ह सतुमहथ ।। २४ ।। ‘(म और उनके भाव इस कार ह—) जर का ऋ षसे जर का नामक नागक यासे जो आ तीक नामक यश वी ऋ ष उ प ए तथा ज ह ने सपस म तुम सप क र ा क थी, उनका म मरण कर रहा ँ। महाभा यवान् सप ! तुमलोग मुझे मत डँसो ।। २४ ।। सपापसप भ ं ते ग छ सप महा वष । जनमेजय य य ा ते आ तीकवचनं मर ।। २५ ।। ‘महा वषधर सप! तुम भाग जाओ! तु हारा क याण हो! अब तुम जाओ। जनमेजयके य क समा तम आ तीकको तुमने जो वचन दया था, उसका मरण करो ।। २५ ।। आ तीक य वचः ु वा यः सप न नवतते । शतधा भ ते मू न शशवृ फलं यथा ।। २६ ।। ‘जो सप आ तीकके वचनक शपथ सुनकर भी नह लौटे गा, उसके फनके शीशमके फलके समान सैकड़ टु कड़े हो जायँगे’ ।। २६ ।। सौ त वाच स एवमु तु तदा जे ः समागतै तैभुजगे मु यैः । स ा य ी त वपुलां महा मा ततो मनो गमनायाथ द े ।। २७ ।। मो य वा तु भुजगान् सपस ाद् जो मः । जगाम काले धमा मा द ा तं पु पौ वान् ।। २८ ।। उ वाजी कहते ह— व वर शौनक! उस समय वहाँ आये ए धान- धान नागराज के इस कार कहनेपर महा मा आ तीकको बड़ी स ता ा त ई। तदन तर उ ह ने वहाँसे चले जानेका वचार कया। इस कार सपस से नाग का उ ार करके े









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ज े धमा मा आ तीकने ववाह करके पु -पौ ा द उ प कये और समय आनेपर ( ार ध शेष होनेसे) मो ा त कर लया ।। २७-२८ ।। इ या यानं मयाऽऽ तीकं यथावत् तव क ततम् । यत् क त य वा सप यो न भयं व ते व चत् ।। २९ ।। इस कार मने आपसे आ तीकके उपा यानका यथावत् वणन कया है; जसका पाठ कर लेनेपर कह भी सप से भय नह होता ।। २९ ।। यथा क थतवान् न् म तः पूवज तव । पु ाय रवे ीतः पृ छते भागवो म ।। ३० ।। यद् वा यं ुतवां ाहं तथा च क थतं मया । आ तीक य कवे व ीम च रतमा दतः ।। ३१ ।। न्! भृगव ु ंश शरोमणे! आपके पूवज म तने अपने पु के पूछनेपर जस कार आ तीकोपा यान कहा था और जसे मने भी सुना था, उसी कार व ान् महा मा आ तीकके मंगलमय च र का मने ार भसे ही वणन कया है ।। ३०-३१ ।। ु वा ध म मा यानमा तीकं पु यवधनम् । य मां वं पृ वान् छ वा डु डु भभा षतम् । ेतु ते सुमहद् न् कौतूहलम र दम ।। ३२ ।। आ तीकका यह धममय उपा यान पु यक वृ करनेवाला है। काम- ोधा द श ु का दमन करनेवाले ा ण! कथा संगम डु डु भक बात सुनकर आपने मुझसे जसके वषयम पूछा था, वह सब उपा यान मने कह सुनाया। इसे सुनकर आपके मनका महान् कौतूहल अब नवृ हो जाना चा हये ।। ३२ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण आ तीकपव ण सपस े अ प चाश मोऽ यायः ।। ५८ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत आ तीकपवम सपस वषयक अावनवाँ अ याय पूरा आ ।। ५८ ।।

(अ ंशावतरणपव) एकोनष तमोऽ यायः महाभारतका उप म शौनक उवाच भृगुवंशात् भृ येव वया मे क ततं महत् । आ यानमखलं तात सौते ीतोऽ म तेन ते ।। १ ।। शौनकजी बोले—तात सूतन दन! आपने भृगव ु ंशसे ही ार भ करके जो मुझे यह सब महान् उपा यान सुनाया है, इससे म आपपर ब त स ँ ।। १ ।। व या म चैव भूय वां यथावत् सूतन दन । याः कथा ासस प ा ता भूयो वच व मे ।। २ ।। सूतपु ! अब म पुनः आपसे यह कहना चाहता ँ क भगवान् ासने जो कथाएँ कही ह, उनका मुझसे यथावत् वणन क जये ।। २ ।। त मन् परम पारे सपस े महा मनाम् । कमा तरेषु य य सद यानां तथा वरे ।। ३ ।। या बभूवुः कथा ा ये वथषु यथातथम् । व इ छामहे ोतुं सौते वं वै च व नः ।। ४ ।। जसका पार होना क ठन था, ऐसे सपय म आये ए महा मा एवं सभासद को जब य कमसे अवकाश मलता था, उस समय उनम जन- जन वषय को लेकर जो-जो व च कथाएँ होती थ उन सबका आपके मुखसे हम यथाथ वणन सुनना चाहते ह। सूतन दन! आप हमसे अव य कह ।। ३-४ ।। सौ त वाच कमा तरे वकथयन् जा वेदा याः कथाः । ास वकथय च मा यानं भारतं महत् ।। ५ ।। उ वाजीने कहा—शौनक! य कमसे अवकाश मलनेपर अ य ा ण तो वेद क कथाएँ कहते थे, परंतु ासदे वजी अ त व च महाभारतक कथा सुनाया करते थे ।। ५ ।। शौनक उवाच महाभारतमा यानं पा डवानां यश करम् । जनमेजयेन पृ ः सन् कृ ण ै पायन तदा ।। ६ ।। े

ावयामास व धवत् तदा कमा तरे तु सः । तामहं व धवत् पु यां ोतु म छा म वै कथाम् ।। ७ ।। शौनकजी बोले—सूतन दन! महाभारत नामक इ तहास तो पा डव के यशका व तार करनेवाला है। सपय के व भ कम के बीचम अवकाश मलने-पर जब राजा जनमेजय करते, तब ीकृ ण- ै पायन ासजी उ ह व धपूवक महाभारतक कथा सुनाते थे। म उसी पु यमयी कथाको व धपूवक सुनना चाहता ँ ।। ६-७ ।। मनःसागरस भूतां महषभा वता मनः । कथय व सतां े सवर नमयी ममाम् ।। ८ ।। यह कथा प व अ तःकरणवाले मह ष वेद- ासके दय पी समु से कट ए सब कारके शुभ वचार पी र न से प रपूण है। साधु शरोमणे! आप इस कथाको मुझे सुनाइये ।। ८ ।। सौ त वाच ह त ते कथ य या म महदा यानमु मम् । कृ ण ै पायनमतं महाभारतमा दतः ।। ९ ।। उ वाजीने कहा—शौनक! म बड़ी स ताके साथ महाभारत नामक उ म उपा यानका आर भसे ही वणन क ँ गा, जो ीकृ ण ै पायन वेद ासको अ भमत है ।। ९ ।। शृणु सवमशेषेण कयमानं मया ज । शं सतुं त महान् हष ममापीह वतते ।। १० ।। व वर! मेरे ारा कही जानेवाली इस स पूण महाभारत-कथाको आप पूण पसे सु नये। यह कथा सुनाते समय मुझे भी महान् हष ा त होता है ।। १० ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण अंशावतरणपव ण कथानुब धे एकोनष तमोऽ यायः ।। ५९ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत अंशावतरणपवम कथानुब ध वषयक उनसठवाँ अ याय पूरा आ ।। ५९ ।।

ष तमोऽ यायः जनमेजयके य म ासजीका आगमन, स कार तथा राजाक ाथनासे ासजीका वैश पायनजीसे महाभारतकथा सुनानेके लये कहना सौ त वाच ु वा तु सपस ाय द तं जनमेजयम् । अ यग छ ष व ान् कृ ण ै पायन तदा ।। १ ।। उ वाजी कहते ह—शौनक! जब व ान् मह ष ीकृ ण ै पायनने यह सुना क राजा जनमेजय सपय क द ा ले चुके ह, तब वे वहाँ आये ।। १ ।। जनयामास यं काली श े ः पु ात् पराशरात् । क यैव यमुना पे पा डवानां पतामहम् ।। २ ।। वेद ासजीको स यवतीने क याव थाम ही श न दन पराशरजीसे यमुनाजीके पम उ प कया था। वे पा डव के पतामह ह ।। २ ।। जातमा यः स इ ा दे हमवीवृधत् । वेदां ा धजगे सा ान् से तहासान् महायशाः ।। ३ ।। य ै त तपसा क वेदा ययनेन च । न तैन पवासै न शा या न म युना ।। ४ ।। ज म लेते ही उ ह ने अपनी इ छासे शरीरको बढ़ा लया तथा उन महायश वी ासजीको ( वतः ही) अंग और इ तहास स हत स पूण वेद और उस परमा मत वका ान ा त हो गया, जसे कोई तप या, वेदा ययन, त, उपवास, शम और य आ दके ारा भी नह ा त कर सकता ।। ३-४ ।। व ासैकं चतुधा यो वेदं वेद वदां वरः । परावर ो षः क वः स य त शु चः ।। ५ ।। वे वेदवे ा म े थे और उ ह ने एक ही वेदको चार भाग म वभ कया था। ष ासजी पर और अपर के ाता, क व ( कालदश ), स य तपरायण तथा परम प व ह ।। ५ ।। यः पा डु ं धृतरा ं च व रं चा यजीजनत् । शा तनोः संत त त वन् पु यक तमहायशाः ।। ६ ।। उनक क त पु यमयी है और वे महान् यश वी ह। उ ह ने ही शा तनुक संतानपर पराका व तार करनेके लये पा डु , धृतरा तथा व रको ज म दया था ।। ६ ।। जनमेजय य राजषः स महा मा सद तदा । ववेश स हतः श यैवदवेदा पारगैः ।। ७ ।। े े







उन महा मा ासने वेद-वेदांग के पारंगत व ान् श य के साथ उस समय राज ष जनमेजयके य म डपम वेश कया ।। ७ ।। त राजानमासीनं ददश जनमेजयम् । वृतं सद यैब भदवै रव पुर दरम् ।। ८ ।। वहाँ प ँचकर उ ह ने सहासनपर बैठे ए राजा जनमेजयको दे खा, जो ब त-से सभासद ारा इस कार घरे ए थे, मानो दे वराज इ दे वता से घरे ए ह ।। ८ ।। तथा मूधा भ ष ै नानाजनपदे रैः । ऋ व भ क पै कुशलैय सं तरे ।। ९ ।। जनके म तक पर अ भषेक कया गया था, ऐसे अनेक जनपद के नरेश तथा य ानु ानम कुशल ाजीके समान यो यतावाले ऋ वज् भी उ ह सब ओरसे घेरे ए थे ।। ९ ।। जनमेजय तु राज ष ् वा तमृ षमागतम् । सगणोऽ यु यौ तूण ी या भरतस मः ।। १० ।। भरत े राज ष जनमेजय मह ष ासको आया दे ख बड़ी स ताके साथ उठकर खड़े हो गये और अपने सेवकगण के साथ तुरंत ही उनक अगवानी करनेके लये चल दये ।। १० ।। का चनं व रं त मै सद यानुमतः भुः । आसनं क पयामास यथा श ो बृह पतेः ।। ११ ।। जैसे इ बृह प तजीको आसन दे ते ह, उसी कार राजाने सद य क अनुम त लेकर ासजीके लये सुवणका व र दे आसनक व था क ।। ११ ।। त ोप व ं वरदं दे व षगणपू जतम् । पूजयामास राजे ः शा ेन कमणा ।। १२ ।। दे व षय ारा पू जत वरदायक ासजी जब वहाँ बैठ गये, तब राजे जनमेजयने शा ीय व धके अनुसार उनका पूजन कया ।। १२ ।। पा माचमनीयं च अ य गां च वधानतः । पतामहाय कृ णाय तदहाय यवेदयत् ।। १३ ।। उ ह ने अपने पतामह ीकृ ण ै पायनको व ध- वधानके साथ पा , आचमनीय, अ य और गौ भट क , जो इन व तु को पानेके अ धकारी थे ।। १३ ।। तगृ तु तां पूजां पा डवा जनमेजयात् । गां चैव समनु ा य ासः ीतोऽभवत् तदा ।। १४ ।। पा डववंशी जनमेजयसे वह पूजा हण करके गौके स ब धम अपना आदर करते ए ासजी उस समय बड़े स ए ।। १४ ।। तथा च पूज य वा तं णयात् पतामहम् । उपोप व य ीता मा पयपृ छदनामयम् ।। १५ ।। पतामह ासजीका ेमपूवक पूजन करके जनमेजयका च स हो गया और वे उनके पास बैठकर कुशल-मंगल पूछने लगे ।। १५ ।। े

भगवान प तं ् वा कुशलं तवे च । सद यैः पू जतः सवः सद यान् यपूजयत् ।। १६ ।। भगवान् ासने भी जनमेजयक ओर दे खकर अपना कुशल-समाचार बताया तथा अ य सभासद ारा स मा नत हो उनका भी स मान कया ।। १६ ।। तत तु स हतः सवः सद यैजनमेजयः । इदं प ाद् ज े ं पयपृ छत् कृता लः ।। १७ ।। तदन तर सब सद य स हत राजा जनमेजयने हाथ जोड़कर ज े ासजीसे इस कार कया ।। १७ ।।

जनमेजय उवाच कु णां पा डवानां च भवान् य द शवान् । तेषां च रत म छा म कयमानं वया ज ।। १८ ।। जनमेजयने कहा— न्! आप कौरव और पा डव को य दे ख चुके ह; अतः म आपके ारा व णत उनके च र को सुनना चाहता ँ ।। १८ ।। कथं समभवद् भेद तेषाम ल कमणाम् । त च यु ं कथं वृ ं भूता तकरणं महत् ।। १९ ।। वे तो राग- े ष आ द दोष से र हत स कम करनेवाले थे, उनम भेद-बु कैसे उ प ई? तथा ा णय का अ त करनेवाला उनका वह महायु कस कार आ? ।। १९ ।। पतामहानां सवषां दै वेना न चेतसाम् । का यनैत ममाच व यथावृ ं जो म ।। २० ।। ज े ! जान पड़ता है, ार धने ही ेरणा करके मेरे सब पतामह के मनको यु पी अ न म लगा दया था। उनके इस स पूण वृ ा तका आप यथावत् पसे वणन कर ।। २० ।। सौ त वाच त य तद् वचनं ु वा कृ ण ै पायन तदा । शशास श यमासीनं वैश पायनम तके ।। २१ ।। उ वाजी कहते ह—जनमेजयक यह बात सुनकर ीकृ ण ै पायन ासने पास ही बैठे ए अपने श य वैश पायनको उस समय इस कार आदे श दया ।। २१ ।। ास उवाच कु णां पा डवानां च यथा भेदोऽभवत् पुरा । तद मै सवमाच व य म ः ुतवान स ।। २२ ।। ासजी बोले—वैश पायन! पूवकालम कौरव और पा डव म जस कार फूट पड़ी थी; जसे तुम मुझसे सुन चुके हो, वह सब इस समय इन राजा जनमेजयको सुनाओ ।। २२ ।। गुरोवचनमा ाय स तु व षभ तदा । े

आचच े ततः सव म तहासं पुरातनम् ।। २३ ।। रा े त मै सद ये यः पा थवे य सवशः । भेदं सव वनाशं च कु पा डवयो तदा ।। २४ ।। उस समय गु दे व ासजीक यह आ ा पाकर व वर वैश पायनने राजा जनमेजय, सभासद्गण तथा अ य सब भूपाल से कौरव-पा डव म जस कार फूट पड़ी और उनका सवनाश आ, वह सब पुरातन इ तहास कहना ार भ कया ।। २३-२४ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण अंशावतरणपव ण कथानुब धे ष तमोऽ यायः ।। ६० ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत अंशावतरणपवम कथानुब ध वषयक साठवाँ अ याय पूरा आ ।। ६० ।।

एकष तमोऽ यायः कौरव-पा डव म फूट और यु होनेके वृ ा तका सू पम नदश वैश पायन उवाच गुरवे ाङ् नम कृ य मनोबु समा ध भः । स पू य च जान् सवा तथा यान् व षो जनान् ।। १ ।। महष व ुत येह सवलोकेषु धीमतः । व या म मतं कृ नं ास या य महा मनः ।। २ ।। वैश पायनजीने कहा—राजन्! म सबसे पहले ा-भ पूवक एका च से अपने गु दे व ी ासजी महाराजको सा ांग नम कार करके स पूण ज तथा अ या य व ान का समादर करते ए यहाँ स पूण लोक म व यात मह ष एवं महा मा इन परम बु मान् ासजीके मतका पूण पसे वणन करता ँ ।। १-२ ।। ीतुं पा ं च राजं वं ा येमां भारत कथाम् । गुरोव प र प दो मनः ो साहतीव मे ।। ३ ।। जनमेजय! तुम इस महाभारतक कथाको सुननेके लये उ म पा हो और मुझे यह कथा उपल ध है तथा ीगु जीके मुखार व दसे मुझे यह आदे श मल गया है क म तु ह कथा सुनाऊँ, इससे मेरे मनको बड़ा उ साह ा त होता है ।। ३ ।। शृणु राजन् यथा भेदः कु पा डवयोरभूत् । रा याथ ूतस भूतो वनवास तथैव च ।। ४ ।। यथा च यु मभवत् पृ थवी यकारकम् । तत् तेऽहं कथ य या म पृ छते भरतषभ ।। ५ ।। राजन्! जस कार कौरव और पा डव म फूट पड़ी, वह संग सुनो। रा यके लये जो जुआ खेला गया, उससे उनम फूट ई और उसीके कारण पा डव का वनवास आ। भरत े ! फर जस कार पृ वीके वीर का वनाश करनेवाला महाभारत-यु आ, वह तु हारे के अनुसार तुमसे कहता ँ, सुनो ।। ४-५ ।। मृते पत र ते वीरा वनादे य वम दरम् । न चरादे व व ांसो वेदे धनु ष चाभवन् ।। ६ ।। अपने पता महाराज पा डु के वगवासी हो जानेपर वे वीर पा डव वनसे अपने राजभवनम आकर रहने लगे। वहाँ थोड़े ही दन म वे वेद तथा धनुवदके पूरे प डत हो गये ।। ६ ।। तां तथा स ववीय जः स प ान् पौरस मतान् । नामृ यन् कुरवो ् वा पा डवा यशोभृतः ।। ७ ।। ( ै औ

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स व (धैय और उ साह), वीय (परा म) तथा ओज (दे हबल)-से स प होनेके कारण पा डवलोग पुरवा सय के ेम और स मानके पा थे। उनके धन, स प और यशक वृ होने लगी। यह सब दे खकर कौरव उनके उ कषको सहन न कर सके ।। ७ ।। ततो य धनः ू रः कण सहसौबलः । तेषां न ह नवासान् व वधां ते समारभन् ।। ८ ।। तब ू र य धन, कण और शकु न तीन ने मलकर पा डव को वशम करने या दे शसे नकाल दे नेके लये नाना कारके य न आर भ कये ।। ८ ।। ततो य धनः शूरः कु ल य मते थतः । पा डवान् व वधोपायै रा यहेतोरपीडयत् ।। ९ ।। शकु नक स म तसे चलनेवाले शूरवीर य धनने रा यके लये भाँ त-भाँ तके उपाय करके पा डव को पीड़ा द ।। ९ ।। ददावथ वषं पापो भीमाय धृतरा जः । जरयामास तद् वीरः सहा तेन वृकोदरः ।। १० ।। उस पापी धृतरापु ने भीमसेनको वष दे दया, कतु वीरवर भीमसेनने भोजनके साथ उस वषको भी पचा लया ।। १० ।। माणको ां संसु तं पुनबद् वा वृकोदरम् । तोयेषु भीमं गंगायाः य पुरमा जत् ।। ११ ।। फर य धनने गंगाके माणको ट नामक तीथपर सोये ए भीमसेनको बाँधकर गंगाजीके गहरे जलम डाल दया और वयं चुपचाप नगरम लौट आया ।। ११ ।। यदा वबु ः कौ तेय तदा सं छ ब धनम् । उद त महाबा भ मसेनो गत थः ।। १२ ।। जब कु तीन दन महाबा भीमक आँख खुली, तब वे सारा ब धन तोड़कर बना कसी पीड़ाके उठ खड़े ए ।। १२ ।। आशी वषैः कृ णसपः सु तं चैनमदं शयत् । सव वेवाङ् गदे शेषु न ममार च श ुहा ।। १३ ।। एक दन य धनने भीमसेनको सोते समय उनके स पूण अंग- यंग म काले साँप से डँसवा दया, कतु श ुघाती भीम मर न सके ।। १३ ।। तेषां तु व कारेषु तेषु तेषु महाम तः । मो णे तकारे च व रोऽव हतोऽभवत् ।। १४ ।। कौरव के ारा कये ए उन सभी अपकार के समय पा डव को उनसे छु ड़ाने अथवा उनका तीकार करनेके लये परम बु मान् व रजी सदा सावधान रहते थे ।। १४ ।। वग थो जीवलोक य यथा श ः सुखावहः । पा डवानां तथा न यं व रोऽ प सुखावहः ।। १५ ।। जैसे वगलोकम नवास करनेवाले इ स पूण जीव-जगत्को सुख प ँचाते रहते ह, उसी कार व रजी भी सदा पा डव को सुख दया करते थे ।। १५ ।। यदा तु व वधोपायैः संवृतै ववृतैर प । ै

नाशकद् व नह तुं तान् दै वभा थर तान् ।। १६ ।। ततः स म य स चवैवृष ःशासना द भः । धृतरा मनु ा य जातुषं गृहमा दशत् ।। १७ ।। भ व यम जो घटना घ टत होनेवाली थी, उसके लये मानो दै व ही पा डव क र ा कर रहा था। जब छपकर या कट पम कये ए अनेक उपाय से भी य धन पा डव का नाश न कर सका, तब उसने कण और ःशासन आ द म य से सलाह करके धृतराक आ ासे वारणावत नगरम एक लाहका घर बनानेक आ ा द ।। १६-१७ ।। सुत यैषी तान् राजा पा डवान बकासुतः । ततो ववासयामास रा यभोगबुभु या ।। १८ ।। अ बकान दन धृतरा अपने पु का य चाहनेवाले थे। अतः उ ह ने रा यभोगक इ छासे पा डव को ह तनापुर छोड़कर वारणावतके ला ागृहम रहनेक आ ा दे द ।। १८ ।। ते ा त त स हता नगरा ागसा यात् । थाने चाभव म ी ा तेषां महा मनाम् ।। १९ ।। तेन मु ा जतुगृहा शीथे ा वन् वनम् । मातास हत पाँच पा डव एक साथ ह तनापुरसे थत ए। उन महा मा पा डव के थानकालम व रजी सलाह दे नेवाले ए। उ ह क सलाह एवं सहायतासे पा डवलोग ला ागृहसे बचकर आधीरातके समय वनम भाग नकले थे ।। १९ ।। ततः स ा य कौ तेया नगरं वारणावतम् ।। २० ।। यवस त महा मानो मा ा सह परंतपाः । धृतरा ेण चा ता उ षता जातुषे गृहे ।। २१ ।। पुरोचनाद् र माणाः संव सरमत ताः । सु ां कार य वा तु व रेण चो दताः ।। २२ ।। आद य जातुषं वे म द वा चैव पुरोचनम् । ा वन् भयसं व ना मा ा सह परंतपाः ।। २३ ।। धृतराक आ ासे श ु का दमन करनेवाले कु तीकुमार महा मा पा डव वारणावत नगरम आकर ला ागृहम अपनी माताके साथ रहने लगे। पुरोचनसे सुर त हो सदा सजग रहकर उ ह ने एक वषतक वहाँ नवास कया। फर व रक ेरणा ( व रके भेजे ए आद मय )-से पा डव ने एक सुरंग खुदवायी। त प ात् वे श ुसंतापी पा डव उस ला ागृहम आग लगा पुरोचनको द ध करके भयसे ाकुल हो मातास हत सुरंग ारा वहाँसे नकल भागे ।। २०—२३ ।। द शुदा णं र ो ह ड बं वन नझरे । ह वा च तं रा से ं भीताः समवबोधनात् ।। २४ ।। न श स ा वन् पाथा धातरा भया दताः । ा ता ह ड बा भीमेन य जातो घटो कचः ।। २५ ।। े े



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त प ात् वनम एक झरनेके पास उ ह ने एक भयंकर रा सको दे खा, जसका नाम ह ड ब था। रा सराज ह ड बको मारकर पा डवलोग कट होनेके भयसे रातम ही वहाँसे र नकल गये। उस समय उ ह धृतराक े पु का भय सता रहा था। ह ड ब-वधके प ात् भीमको ह ड बा नामक रा सी प नी पम ा त ई, जसके गभसे घटो कचका ज म आ ।। २४-२५ ।। एकच ां ततो ग वा पा डवाः सं शत ताः । वेदा ययनस प ा तेऽभवन् चा रणः ।। २६ ।। तदन तर कठोर तका पालन करनेवाले पा डव एकच ा नगरीम जाकर वेदा ययनपरायण चारी बन गये ।। २६ ।। ते त नयताः कालं कं च षुनरषभाः । मा ा सहैकच ायां ा ण य नवेशने ।। २७ ।। उस एकच ा नगरीम वे नर े पा डव अपनी माताके साथ एक ा णके घरम कुछ कालतक टके रहे ।। २७ ।। त ाससाद ु धतं पु षादं वृकोदरः । भीमसेनो महाबा बकं नाम महाबलम् ।। २८ ।। उस नगरके समीप एक मनु यभ ी रा स रहता था, जसका नाम था बक। एक दन महाबा भीमसेन उस ुधातुर महाबली रा स बकके समीप गये ।। २८ ।। तं चा प पु ष ा ो बा वीयण पा डवः । नह य तरसा वीरो नागरान् पयसा वयत् ।। २९ ।। नर े पा डु न दन वीरवर भीमने अपने बा बलसे उस रा सको वेगपूवक मारकर वहाँके नगर नवा सय को धैय बँधाया ।। २९ ।। तत ते शु ुवुः कृ णां प चालेषु वयंवराम् । ु वा चैवा यग छ त ग वा चैवालभ त ताम् ।। ३० ।। ते त ौपद ल वा प रसंव सरो षताः । व दता हा तनपुरं याज मुररदमाः ।। ३१ ।। वह सुननेम आया क पांचाल दे शक राजकुमारी कृ णाका वयंवर होनेवाला है। यह सुनकर पा डव वहाँ गये और जाकर उ ह ने राजकुमारीको ा त कर लया। ौपद को ा त करनेके बाद पहचान लये जानेपर भी वे एक वषतक पांचाल दे शम ही रहे। फर वे श ुदमन पा डव पुनः ह तनापुर लौट आये ।। ३०-३१ ।। ते उ ा धृतरा ेण रा ा शा तनवेन च । ातृ भ व ह तात कथं वो न भवे द त ।। ३२ ।। अ मा भः खा डव थे यु म ासोऽनु च ततः । त मा जनपदोपेतं सु वभ महापथम् ।। ३३ ।। वासाय खा डव थं ज वं गतम सराः । तयो ते वचना ज मुः सह सवः सु जनैः ।। ३४ ।। नगरं खा डव थं र ना यादाय सवशः । े

त ते यवसन् पाथाः संव सरगणान् बन् ।। ३५ ।। वशे श तापेन कुव तोऽ यान् महीभृतः । एवं धम धाना ते स य तपरायणाः ।। ३६ ।। अ म ो थताः ा ताः तप तोऽ हतान् बन् । वहाँ आनेपर राजा धृतरा तथा शा तनुन दन भी मजीने उनसे कहा—‘तात! तु ह अपने भाई कौरव के साथ लड़ने-झगड़नेका अवसर न ा त हो इसके लये हमने वचार कया है क तुमलोग खा डव थम रहो। वहाँ अनेक जनपद उससे जुड़े ए ह। वहाँ सु दर वभागपूवक बड़ी-बड़ी सड़क बनी ई ह। अतः तुमलोग ई याका याग करके खा डव थम रहनेके लये जाओ।’ उन दोन के इस कार आ ा दे नेपर सब पा डव अपने सम त सु द के साथ सब कारके र न लेकर खा डव थको चले गये। वहाँ वे कु तीपु अपने अ -श के तापसे अ या य राजा को अपने वशम करते ए ब त वष तक नवास करते रहे। इस कार धमको धानता दे नेवाले, स य तके पालनम त पर, सदा सावधान एवं सजग रहनेवाले, माशील पा डव वीर ब त-से श ु को संत त करते ए वहाँ नवास करने लगे ।। ३२—३६ ।। अजयद् भीमसेन तु दशं ाच महायशाः ।। ३७ ।। उद चीमजुनो वीरः तीच नकुल तथा । द णां सहदे व तु व ज ये परवीरहा ।। ३८ ।। महायश वी भीमसेनने पूव दशापर वजय पायी। वीर अजुनने उ र, नकुलने प म और श ु वीर का संहार करनेवाले सहदे वने द ण दशापर वजय ा त क ।। ३७-३८ ।। एवं च ु रमां सव वशे कृ नां वसु धराम् । प च भः सूयसंकाशैः सूयण च वराजता ।। ३९ ।। षट् सूयवाभवत् पृवी पा डवैः स य व मैः । ततो न म े क मं द् धमराजो यु ध रः ।। ४० ।। वनं थापयामास तेज वी स य व मः । ाणे योऽ प यतरं ातरं स सा चनम् ।। ४१ ।। अजुनं पु ष ा ं थरा मानं गुणैयुतम् । (धैयात् स या च धमा च वजया चा धक यः । अजुनो ातरं ये ं ना यवतत जातु चत् ।।) स वै संव सरं पूण मासं चैकं वने वसन् ।। ४२ ।। इस तरह सब पा डव ने समूची पृ वीको अपने वशम कर लया। वे पाँच भाई सूयके समान तेज वी थे और आकाशम न य उ दत होनेवाले सूय तो का शत थे ही; इस तरह स यपरा मी पा डव के होनेसे यह पृ वी मानो छः सूय से का शत होनेवाली बन गयी। तदन तर कोई न म बन जानेके कारण स यपरा मी तेज वी धमराज यु ध रने अपने ाण से भी अ य त य, थर-बु तथा सद्गुणयु भाई नर े स साची अजुनको वनम भेज दया। अजुन अपने धैय, स य, धम और वजयशीलताके कारण भाइय को े















अ धक य थे। उ ह ने अपने बड़े भाईक आ ाका कभी उ लंघन नह कया था। वे पूरे बारह वष और एक मासतक वनम रहे ।। ३९—४२ ।। (तीथया ां च क ृ तवान् नागक यामवा य च । पा य तनयां ल वा त ता यां सहो षतः ।।) ततोऽग छद्धृषीकेशं ारव यां कदाचन । लधवां त बीभ सुभाया राजीवलोचनाम् ।। ४३ ।। अनुजां वासुदेव य सुभ ां भ भा षणीम् । सा शचीव महे े ण ीः कृ णेनेव संगता ।। ४४ ।। सुभ ा युयुजे ी या पा डवेनाजुनेन ह । उसी समय उ ह ने नमल तीथ क या ा क और नागक या उलूपीको पाकर पा द े शीय नरेश च वाहनक पु ी च ांगदाको भी ा त कया और उन-उन थान म उन दोन के साथ कुछ कालतक नवास कया। त प ात् वे कसी समय ारकाम भगवान् ीकृ णके पास गये। वहाँ अजुनने मंगलमय वचन बोलनेवाली कमललोचना सुभ ाको, जो वसुदेवन दन ीकृ णक छोट ब हन थी, प नी पम ा त कया। जैसे इ से शची और भगवान् व णुसे ल मी संयु ई ह, उसी कार सुभ ा बड़े ेमसे पा डु न दन अजुनसे मली ।। ४३-४४ ।। अतपय च कौ तेयः खा डवे ह वाहनम् ।। ४५ ।। बीभ सुवासुदेवेन स हतो नृपस म । ना तभारो ह पाथ य केशवेन सहाभवत् ।। ४६ ।। वसायसहाय य व णोः श ुवधे वव । त प ात् कु तीकुमार अजुनने खा डव थम भगवान् वासुदेवके साथ रहकर अ नदे वको तृ त कया। नृप े जनमेजय! भगवान् ीकृ णका साथ होनेसे अजुनको इस कायम ठ क उसी तरह अ धक प र म या भारका अनुभव नह आ, जैसे ढ़ न यको सहायक बनाकर दे वश ु का वध करते समय भगवान् व णुको भार या प र मक ती त नह होती है ।। ४५-४६ ।। पाथाया नददौ चा प गा डीवं धनु मम् ।। ४७ ।। इषुधी चा यैबाणै रथं च क पल णम् । मो यामास बीभ सुमयं य महासुरम् ।। ४८ ।। तदन तर अ नदे वने संतु हो अजुनको उ म गा डीव धनुष, अ य बाण से भरे ए दो तूणीर और एक क प वज रथ दान कया। उसी समय अजुनने महान् असुर मयको खा डव वनम जलनेसे बचाया था ।। ४७-४८ ।। स चकार सभां द ां सवर नसमा चताम् । त यां य धनो म दो लोभं च े सु म तः ।। ४९ ।। इससे संतु होकर उसने अजुनके लये एक द सभाभवनका नमाण कया, जो सब कारके र न से सुशो भत था। खोट बु वाले मूख य धनके मनम उस सभाको ले े े े

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लेनेके लये लोभ पैदा आ ।। ४९ ।। ततोऽ ैव च य वा च सौबलेन यु ध रम् । वनं थापयामास स त वषा ण प च च ।। ५० ।। अ ातमेकं रा े च ततो वष योदशम् । तत तुदशे वष याचमानाः वकं वसु ।। ५१ ।। तब उसने शकु नक सहायतासे कपटपूण जुएके ारा यु ध रको ठग लया और उ ह बारह वषतक वनम और तेरहव वष एक राम अ ात- पसे वास करनेके लये भेज दया। इसके बाद चौदहव वषम पा डव ने लौटकर अपना रा य और धन माँगा ।। ५०-५१ ।। नालभ त महाराज ततो यु मवतत । तत ते मु सा ह वा य धनं नृपम् ।। ५२ ।। रा यं वहतभू य ं यप त पा डवाः । एवमेतत् पुरावृ ं तेषाम ल कमणाम् । भेदो रा य वनाशाय जय जयतां वर ।। ५३ ।। महाराज! जब इस कार यायपूवक माँगनेपर भी उ ह रा य नह मला, तब दोन दल म यु छड़ गया। फर तो पा डव-वीर ने यकुलका संहार करके राजा य धनको भी मार डाला और अपने रा यको, जसका अ धकांश भाग उजाड़ हो गया था, पुनः अपने अ धकारम कर लया। वजयी वीर म े जनमेजय! अनायास महान् कम करनेवाले पा डव का यही पुरातन इ तहास है। इस कार रा यके वनाशके लये उनम फूट पड़ी और यु के बाद उ ह वजय ा त ई ।। ५२-५३ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण अंशावतरणपव ण भारतसू ं नामैकष तमोऽ यायः ।। ६१ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत अंशावतरणपवम भारतसू नामक इकसठवाँ अ याय पूरा आ ।। ६१ ।। (दा णा य अ धक पाठक े २ ोक मलाकर कुल ५५ ोक ह)

ष तमोऽ यायः महाभारतक मह ा जनमेजय उवाच क थतं वै समासेन वया सव जो म । महाभारतमा यानं कु णां च रतं महत् ।। १ ।। जनमेजयने कहा— ज े ! आपने कु वं शय के च र प महान् महाभारत नामक स पूण इ तहासका ब त सं ेपसे वणन कया है ।। १ ।। कथां वनघ च ाथा कथय व तपोधन । व तर वणे जातं कौतूहलमतीव मे ।। २ ।। न पाप तपोधन! अब उस व च अथवाली कथाको व तारके साथ क हये; य क उसे व तारपूवक सुननेके लये मेरे मनम बड़ा कौतूहल हो रहा है ।। २ ।। स भवान् व तरेणेमां पुनरा यातुमह त । न ह तृ या म पूवषां शृ वान रतं महत् ।। ३ ।। व वर! आप पुनः पूरे व तारके साथ यह कथा सुनाव। म अपने पूवज के इस महान् च र को सुनते-सुनते तृ त नह हो रहा ँ ।। ३ ।। न तत् कारणम पं वै धम ा य पा डवाः । अव यान् सवशो ज नुः श य ते च मानवैः ।। ४ ।। सब मनु य ारा जनक शंसा क जाती है, उन धम पा डव ने जो यु भू मम सम त अव य सै नक का भी वध कया था, इसका कोई छोटा या साधारण कारण नह हो सकता ।। ४ ।। कमथ ते नर ा ाः श ाः स तो नागसः । यु यमानान् सं लेशान् ा तव तो रा मनाम् ।। ५ ।। नर े पा डव श शाली और नरपराध थे तो भी उ ह ने रा मा कौरव के दये ए महान् लेश को कैसे चुपचाप सहन कर लया? ।। ५ ।। कथं नागायुत ाणो बा शाली वृकोदरः । प र ल य प ोधं धृतवान् वै जो म ।। ६ ।। जो म! अपनी वशाल भुजा से सुशो भत होनेवाले भीमसेनम तो दस हजार हा थय का बल था। फर उ ह ने लेश उठाते ए भी ोधको कस लये रोक रखा था? ।। ६ ।। कथं सा ौपद कृ णा ल यमाना रा म भः । श ा सती धातरा ान् नादहत् ोधच ुषा ।। ७ ।। पदकुमारी कृ णा भी सब कुछ करनेम समथ, सती-सा वी दे वी थ । धृतराक े रा मा पु ारा सतायी जानेपर भी उ ह ने अपनी ोधपूण से उन सबको जलाकर

भ म य नह कर दया? ।। ७ ।। कथं स ननं ुते पाथ मा सुतौ तदा । अ वयु ते नर ा ा बा यमाना रा म भः ।। ८ ।। कु तीके दोन पु भीमसेन और अजुन तथा मा -न दन नकुल और सहदे व भी उस समय कौरव ारा अकारण सताये गये थे। उन चार भाइय ने जुएके सनम फँसे ए राजा यु ध रका साथ य दया? ।। ८ ।। कथं धमभृतां े ः सुतो धम य धम वत् । अनहः परमं लेशं सोढवान् स यु ध रः ।। ९ ।। धमा मा म े धमपु यु ध र धमके ाता थे, महान् लेशम पड़नेयो य कदा प नह थे, तो भी उ ह ने वह सब कैसे सहन कर लया? ।। ९ ।। कथं च ब लाः सेनाः पा डवः कृ णसार थः । अ य ेकोऽनयत् सवाः पतृलोकं धनंजयः ।। १० ।। भगवान् ीकृ ण जनके सार थ थे, उन पा डु न दन अजुनने अकेले ही बाण क वषा करके सम त सेना को, जनक सं या ब त बड़ी थी, कस कार यमलोक प ँचा दया? ।। १० ।। एतदाच व मे सव यथावृ ं तपोधन । यद् य च कृतव त ते त त महारथाः ।। ११ ।। तपोधन! यह सब वृ ा त आप ठ क-ठ क मुझे बताइये। उन महारथी वीर ने व भ थान और अवसर म जो-जो कम कये थे, वह सब सुनाइये ।। ११ ।। वैश पायन उवाच णं कु महाराज वपुलोऽयमनु मः । पु या यान य व ः कृ ण ै पायने रतः ।। १२ ।। वैश पायनजी बोले—महाराज! इसके लये कुछ समय नयत क जये; य क इस प व आ यानका ी ासजीके ारा जो मानुसार वणन कया गया है, वह ब त व तृत है और वह सब आपके सम कहकर सुनाना है ।। १२ ।। महषः सवलोकेषु पू जत य महा मनः । व या म मतं कृ नं ास या मततेजसः ।। १३ ।। सवलोकपू जत अ मत तेज वी महामना मह ष ासजीके स पूण मतका यहाँ वणन क ँ गा ।। १३ ।। इदं शतसह ं ह ोकानां पु यकमणाम् । स यव या मजेनेह ा यातम मतौजसा ।। १४ ।। असीम भावशाली स यवतीन दन ासजीने पु या मा पा डव क यह कथा एक लाख ोक म कही है ।। १४ ।। य इदं ावयेद ् व ान् ये चेदं शृणुयुनराः । ते णः थानमे य ा ुयुदवतु यताम् ।। १५ ।। ो



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जो व ान् इस आ यानको सुनाता है और जो मनु य सुनते ह, वे लोकम जाकर दे वता के समान हो जाते ह ।। १५ ।। इदं ह वेदैः स मतं प व म प चो मम् । ा ाणामु मं चेदं पुराणमृ षसं तुतम् ।। १६ ।। यह ऋ षय ारा शं सत पुरातन इ तहास वण करनेयो य सब थ म े है। यह वेद के समान ही प व तथा उ म है ।। १६ ।। अ म थ धम नखलेनोप द यते । इ तहासे महापु ये बु प रनै क ।। १७ ।। अ ु ान् दानशीलां स यशीलानना तकान् । का ण वेद ममं व ा ाव य वाथमुते ।। १८ ।। इसम अथ और धमका भी पूण पसे उपदे श कया जाता है। इस परम पावन इ तहाससे मो बु ा त होती है। जनका वभाव अथवा वचार खोटा नह है, जो दानशील, स यवाद और आ तक ह, ऐसे लोग को ास ारा वर चत वेद व प इस महाभारतका जो वण कराता है, वह व ान् अभी अथको ा त कर लेता है ।। १७-१८ ।। ूणह याकृतं चा प पापं ज ादसंशयम् । इ तहास ममं ु वा पु षोऽ प सुदा णः ।। १९ ।। मु यते सवपापे यो रा णा च मा यथा । जयो नामे तहासोऽयं ोत ो व जगीषुणा ।। २० ।। साथ ही वह ूणह या-जैसे पापको भी न कर दे ता है, इसम संशय नह है। इस इ तहासको वण करके अ य त ू र मनु य भी रा से छू टे ए च माक भाँ त सब पाप से मु हो जाता है। यह ‘जय’ नामक इ तहास वजयक इ छावाले पु षको अव य सुनना चा हये ।। १९-२० ।। मह वजयते राजा श ूं ा प पराजयेत् । इदं पुंसवनं े मदं व ययनं महत् ।। २१ ।। इसका वण करनेवाला राजा भू मपर वजय पाता और सब श ु को परा त कर दे ता है। यह पु क ा त करानेवाला और महान् मंगलकारी े साधन है ।। २१ ।। म हषीयुवराजा यां ोत ं ब श तथा । वीरं जनयते पु ं क यां वा रा यभा गनीम् ।। २२ ।। युवराज तथा रानीको बार बार इसका वण करते रहना चा हये, इससे वह वीर पु अथवा रा य सहासनपर बैठनेवाली क याको ज म दे ती है ।। २२ ।। धमशा मदं पु यमथशा मदं परम् । मो शा मदं ो ं ासेना मतबु ना ।। २३ ।। अ मत मेधावी ासजीने इसे पु यमय धमशा , उ म अथशा तथा सव म मो शा भी कहा है ।। २३ ।। स याच ते चेदं तथा ो य त चापरे । े

पु ाः शु ूषवः स त े या यका रणः ।। २४ ।। जो वतमानकालम इसका पाठ करते ह तथा जो भ व यम इसे सुनगे, उनके पु सेवापरायण और सेवक वामीका य करनेवाले ह गे ।। २४ ।। शरीरेण कृतं पापं वाचा च मनसैव च । सव सं यज त ं य इदं शृणुया रः ।। २५ ।। जो मानव इस महाभारतको सुनता है, वह शरीर, वाणी और मनके ारा कये ए स पूण पाप को याग दे ता है ।। २५ ।। भरतानां मह ज म शृ वतामनसूयताम् । ना त ा धभयं तेषां परलोकभयं कुतः ।। २६ ।। जो सर के दोष न दे खनेवाले भरतवं शय के महान् ज म-वृ ा त प महाभारतका वण करते ह, उ ह इस लोकम भी रोग- ा धका भय नह होता, फर परलोकम तो हो ही कैसे सकता है? ।। २६ ।। ध यं यश यमायु यं पु यं व य तथैव च । कृ ण ै पायनेनेदं कृतं पु य चक षुणा ।। २७ ।। क त थयता लोके पा डवानां महा मनाम् । अ येषां याणां च भू र वणतेजसाम् ।। २८ ।। सव व ावदातानां लोके थतकमणाम् । य इदं मानवो लोके पु याथ ा णा छु चीन् ।। २९ ।। ावयेत महापु यं त य धमः सनातनः । कु णां थतं वंशं क तयन् सततं शु चः ।। ३० ।। लोकम जनके महान् कम व यात ह, जो स पूण व ा के ान ारा उ ा सत होते थे और जनके धन एवं तेज महान् थे, ऐसे महामना पा डव तथा अ य यक उ वल क तको लोकम फैलानेवाले और पु यकमके इ छु क ीकृ ण ै पायन वेद ासने इस पु यमय महाभारत थका नमाण कया है। यह धन, यश, आयु, पु य तथा वगक ा त करानेवाला है। जो मानव इस लोकम पु यके लये प व ा ण को इस परम पु यमय थका वण कराता है, उसे शा त धमक ा त होती है। जो सदा कौरव के इस व यात वंशका क तन करता है, वह प व हो जाता है ।। २७—३० ।। वंशमा ो त वपुलं लोके पू यतमो भवेत् । योऽधीते भारतं पु यं ा णो नयत तः ।। ३१ ।। चतुरो वा षकान् मासान् सवपापैः मु यते । व ेयः स च वेदानां पारगो भारतं पठन् ।। ३२ ।। इसके सवा, उसे वपुल वंशक ा त होती है और वह लोकम अ य त पूजनीय होता है। जो ा ण नयमपूवक चय तका पालन करते ए वषाके चार महीनेतक नर तर इस पु य द महाभारतका पाठ करता है, वह सब पाप से मु हो जाता है। जो महाभारतका पाठ करता है, उसे स पूण वेद का पारंगत व ान् जानना चा हये ।। ३१-३२ ।। े ो

दे वा राजषयो पु या षय तथा । क य ते धूतपा मानः क यते केशव तथा ।। ३३ ।। इसम दे वता , राज षय तथा पु या मा षय के, ज ह ने अपने सब पाप धो दये ह, च र का वणन कया गया है। इसके सवा इस थम भगवान् ीकृ णक म हमाका भी क तन कया जाता है ।। ३३ ।। भगवां ा प दे वेशो य दे वी च क यते । अनेकजननो य का तकेय य स भवः ।। ३४ ।। दे वे र भगवान् शव और दे वी पावतीका भी इसम वणन है तथा अनेक माता से उ प होनेवाले का तकेय-जीके ज मका संग भी इसम कहा गया है ।। ३४ ।। ा णानां गवां चैव माहा यं य क यते । सव ु तसमूहोऽयं ोत ो धमबु भः ।। ३५ ।। ा ण तथा गौ के माहा यका न पण भी इस थम कया गया है। इस कार यह महाभारत स पूण ु तय का समूह है। धमा मा पु ष को सदा इसका वण करना चा हये ।। ३५ ।। य इदं ावयेद ् व ान् ा णा नह पवसु । धूतपा मा जत वग ग छ त शा तम् ।। ३६ ।। जो व ान् पवके दन ा ण को इसका वण कराता है, उसके सब पाप धुल जाते ह और वह वग-लोकको जीतकर सनातन को ा त कर लेता है ।। ३६ ।। (य तु राजा शृणोतीदमखलामुते महीम् । सूते ग भणी पु ं क या चाशु द यते ।। व णजः स या ाः युव रा वजयमा ुयुः । आ तका ावये यं ा णाननसूयकान् ।। वेद व ा त नातान् या यमा थतान् । वधम न यान् वै यां ावयेत् सं तान् ।।) जो राजा इस महाभारतको सुनता है, वह सारी पृ वीके रा यका उपभोग करता है। गभवती ी इसका वण करे तो वह पु को ज म दे ती है। कुमारी क या इसे सुने तो उसका शी ववाह हो जाता है। ापारी वै य य द महाभारत वण कर तो उनक ापारके लये क ई या ा सफल होती है। शूरवीर सै नक इसे सुननेसे यु म वजय पाते ह। जो आ तक और दोष से र हत ह , उन ा ण को न य इसका वण कराना चा हये। वेद- व ाका अ ययन एवं चय त पूण करके जो नातक हो चुके ह, उन वजयी य को और य के अधीन रहनेवाले वधम-परायण वै य को भी महाभारत वण कराना चा हये। (एष धमः पुरा ः सवधमषु भारत । ा णा वणं राजन् वशेषेण वधीयते ।। भूयो वा यः पठ े यं स ग छे त् परमां ग तम् । ोकं वा यनु गृ त तथाध ोकमेव वा ।। े ो े )

अ प पादं पठ े यं न च नभारतो भवेत् ।) भारत! सब धम म यह महाभारत- वण प े धम पूवकालसे ही दे खा गया है। राजन्! वशेषतः ा णके मुखसे इसे सुननेका वधान है। जो बार बार अथवा त दन इसका पाठ करता है, वह परम ग तको ा त होता है। त दन चाहे एक ोक या आधे ोक अथवा ोकके एक चरणका ही पाठ कर ले, कतु महाभारतके अ ययनसे शू य कभी नह रहना चा हये। (इह नैका यं ज म राजष णां महा मनाम् ।। इह म पदं यु ं धम चानेकदशनम् । इह यु ा न च ा ण रा ां वृ रहैव च ।। ऋषीणां च कथा तात इह ग धवर साम् । इह तत् तत् समासा व हतो वा य व तरः ।। तीथानां नाम पु यानां दे शानां चेह क तनम् । वनानां पवतानां च नद नां सागर य च ।।) इस महाभारतम महा मा राज षय के व भ कारके ज म-वृ ा त का वणन है। इसम म -पद का योग है। अनेक य (मत )-के अनुसार धमके व पका ववेचन कया गया है। इस थम व च यु का वणन तथा राजा के अ युदयक कथा है। तात! इस महाभारतम ऋ षय तथा ग धव एवं रा स क भी कथाएँ ह। इसम व भ संग को लेकर व तारपूवक वा यरचना क गयी है। इसम पु यतीथ , प व दे श , वन , पवत , न दय और समु के भी माहा यका तपादन कया गया है। (द े शानां चैव पु यानां पुराणां चैव क तनम् । उपचार तथैवा यो वीयम य तमानुषम् ।। इह स कारयोग भारते परम षणा । रथा वारणे ाणां क पना यु कौशलम् ।। वा यजा तरनेका च सवम मन् सम पतम् ।) पु य दे श तथा नगर का भी वणन कया गया है। े उपचार और अलौ कक परा मका भी वणन है। इस महाभारतम मह ष ासने स कार-योग ( वागत-स कारके व वध कार)-का न पण कया है तथा रथसेना, अ सेना और गजसेनाक ूहरचना तथा यु कौशलका वणन कया है। इसम अनेक शैलीक वा ययोजना—कथोपकथनका समावेश आ है। सारांश यह क इस थम सभी वषय का वणन है। ावयेद ् ा णा ा े य ेमं पादम ततः । अ यं त य त ा मुपावतत् पतॄ नह ।। ३७ ।। जो ा करते समय अ तम ा ण को महाभारतके ोकका एक चतुथाश भी सुना दे ता है, उसका कया आ वह ा अ य होकर पतर को अव य ा त हो जाता है ।। ३७ ।। अ ा यदे नः यते इ यैमनसा प वा । ानाद ानतो वा प करो त नर यत् ।। ३८ ।। ै ी े

त महाभारता यानं ु वैव वलीयते । भरतानां मह ज म महाभारतमु यते ।। ३९ ।। दनम इ य अथवा मनके ारा जो पाप बन जाता है अथवा मनु य जानकर या अनजानम जो पाप कर बैठता है, वह सब महाभारतक कथा सुनते ही न हो जाता है। इसम भरतवं शय के महान् ज म-वृ ा तका वणन है, इस लये इसको ‘महाभारत’ कहते ह ।। ३८-३९ ।। न म य यो वेद सवपापैः मु यते । भरतानां यत ाय म तहासो महा तः ।। ४० ।। महतो ेनसो म यान् मोचयेदनुक ततः । भवषलधकामः क ृ ण ै पायनो मु नः ।। ४१ ।। न यो थतः शु चः श ो महाभारतमा दतः । तपो नयममा थाय कृतमेत मह षणा ।। ४२ ।। त मा यमसंयु ै ः ोत ं ा णै रदम् । कृ ण ो ा ममां पु यां भारतीमु मां कथाम् ।। ४३ ।। ाव य य त ये व ा ये च ो य त मानवाः । सवथा वतमाना वै न ते शो याः कृताकृतैः ।। ४४ ।। जो महाभारत नामका यह न ( ु प यु अथ) जानता है, वह सब पाप से मु हो जाता है। यह भरतवंशी य का महान् और अद्भुत इ तहास है। अतः नर तर पाठ करनेपर मनु य को बड़े-से-बड़े पापसे छु ड़ा दे ता है। श शाली आ तकाम मु नवर ीकृ ण ै पायन ासजी त दन ातःकाल उठकर नान-सं या आ दसे शु हो आ दसे ही महाभारतक रचना करते थे। मह षने तप या और नयमका आ य लेकर तीन वष म इस थको पूरा कया है। इस लये ा ण को भी नयमम थत होकर ही इस कथाका वण करना चा हये। जो ा ण ी ासजीक कही ई इस पु यदा यनी उ म भारती कथाका वण करायगे और जो मनु य इसे सुनगे, वे सब कारक चे ा करते ए भी इस बातके लये शोक करने यो य नह ह क उ ह ने अमुक कम य कया और अमुक कम य नह कया ।। ४०—४४ ।। नरेण धमकामेन सवः ोत इ य प । नखलेने तहासोऽयं ततः स मवा ुयात् ।। ४५ ।। धमक इ छा रखनेवाले मनु यके ारा यह सारा महाभारत इ तहास पूण पसे वण करनेयो य है। ऐसा करनेसे मनु य स को ा त कर लेता है ।। ४५ ।। न तां वगग त ा य तु ा ो त मानवः । यां ु वैव महापु य म तहासमुपाुते ।। ४६ ।। इस महान् पु यदायक इ तहासको सुननेमा से ही मनु यको जो संतोष ा त होता है, वह वगलोक ा त कर लेनेसे भी नह मलता ।। ४६ ।। शृ व ा ः पु यशीलः ावयं ेदम तम् । नरः फलमवा ो त राजसूया मेधयोः ।। ४७ ।। ो ो औ ै

जो पु या मा मनु य ापूवक इस अद्भुत इ तहासको सुनता और सुनाता है, वह राजसूय तथा अ मेध य का फल पाता है ।। ४७ ।। यथा समु ो भगवान् यथा मे महा ग रः । उभौ यातौ र न नधी तथा भारतमु यते ।। ४८ ।। जैसे ऐ यपूण समु और महान् पवत मे दोन र न क खान कहे गये ह, वैसे ही महाभारत र न व प कथा और उपदे श का भ डार कहा जाता है ।। ४८ ।। इदं ह वेदैः स मतं प व म प चो मम् । ं ु तसुखं चैव पावनं शीलवधनम् ।। ४९ ।। यह महाभारत वेद के समान प व और उ म है। यह सुननेयो य तो है ही, सुनते समय कान को सुख दे नेवाला भी है। इसके वणसे अ तःकरण प व होता और उ म शील- वभावक वृ होती है ।। ४९ ।। य इदं भारतं राजन् वाचकाय य छ त । तेन सवा मही द ा भवेत् सागरमेखला ।। ५० ।। राजन्! जो वाचकको यह महाभारत दान करता है, उसके ारा समु से घरी ई स पूण पृ वीका दान स प हो जाता है ।। ५० ।। पा र तकथां द ां पु याय वजयाय च । कयमानां मया क ृ नां शृणु हषकरी ममाम् ।। ५१ ।। जनमेजय! मेरे ारा कही ई इस आन ददा यनी द कथाको तुम पु य और वजयक ा तके लये पूण पसे सुनो ।। ५१ ।। भवषः सदो थायी कृ ण ै पायनो मु नः । महाभारतमा यानं कृतवा नदम तम् ।। ५२ ।। त दन ातःकाल उठकर इस थका नमाण करनेवाले महामु न ीकृ ण ै पायनने महाभारत नामक इस अद्भुत इ तहासको तीन वष म पूण कया है ।। ५२ ।। धम चाथ च कामे च मो े च भरतषभ । य दहा त तद य य ेहा त न तत् व चत् ।। ५३ ।। भरत े ! धम, अथ, काम और मो के स ब धम जो बात इस थम है, वही अ य भी है। जो इसम नह है, वह कह भी नह है ।। ५३ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण अंशावतरणपव ण महाभारत शंसायां ष तमोऽ यायः ।। ६२ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत अंशावतरणपवम महाभारत शंसा वषयक बासठवाँ अ याय पूरा आ ।। ६२ ।। (दा णा य अ धक पाठक े ११ ोक मलाकर कुल ६४ ोक ह)

ष तमोऽ यायः राजा उप रचरका च र तथा स यवती, ासा द मुख पा क सं त ज मकथा वैश पायन उवाच राजोप रचरो नाम धम न यो महीप तः । बभूव मृगयां ग तुं सदा कल धृत तः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! पहले उप रचर नामसे स एक राजा हो गये ह, जो न य- नर तर धमम ही लगे रहते थे। साथ ही सदा हसक पशु के शकारके लये वनम जानेका उनका नयम था ।। १ ।। स चे द वषयं र यं वसुः पौरवन दनः । इ ोपदे शा ज ाह रमणीयं महीप तः ।। २ ।। पौरवन दन राजा उप रचर वसुने इ के कहनेसे अ य त रमणीय चे ददे शका रा य वीकार कया था ।। २ ।। तमा मे य तश ं नवस तं तपो न धम् । दे वाः श पुरोगा वै राजानमुपत थरे ।। ३ ।। इ वमह राजायं तपसे यनु च य वै । तं सा वेन नृपं सा ात् तपसः सं यवतयन् ।। ४ ।। एक समयक बात है, राजा वसु अ -श का याग करके आ मम नवास करने लगे। उ ह ने बड़ा भारी तप कया, जससे वे तपो न ध माने जाने लगे। उस समय इ आ द दे वता यह सोचकर क यह राजा तप याके ारा इ पद ा त करना चाहता है, उनके समीप गये। दे वता ने राजाको य दशन दे कर उ ह शा तपूवक समझाया और तप यासे नवृ कर दया ।। ३-४ ।। दे वा ऊचुः न संक यत धम ऽयं पृ थ ां पृ थवीपते । वया ह धम वधृतः कृ नं धारयते जगत् ।। ५ ।। दे वता बोले—पृ वीपते! तु ह ऐसी चे ा रखनी चा हये जससे इस भू मपर वणसंकरता न फैलने पावे (तु हारे न रहनेसे अराजकता फैलनेका भय है, जससे जा वधमम थत नह रह सकेगी। अतः तु ह तप या न करके इस वसुधाका संर ण करना चा हये)। राजन्! तु हारे ारा सुर त धम ही स पूण जगत्को धारण कर रहा है ।। ५ ।। इ उवाच लोके धम पालय वं न ययु ः समा हतः । धमयु ततो लोकान् पु यान् ा य स शा तान् ।। ६ ।। े







इ ने कहा—राजन्! तुम इस लोकम सदा सावधान और य नशील रहकर धमका पालन करो। धमयु रहनेपर तुम सनातन पु यलोक को ा त कर सकोगे ।। ६ ।। द व य भु व वं सखाभूतो मम यः । र यः पृ थ ां यो दे श तमावस नरा धप ।। ७ ।। य प म वगम रहता ँ और तुम भू मपर; तथा प आजसे तुम मेरे य सखा हो गये। नरे र! इस पृ वीपर जो सबसे सु दर एवं रमणीय दे श हो, उसीम तुम नवास करो ।। ७ ।। पश ैव पु य भूतधनधा यवान् । वार य ैव सौ य भो यैभू मगुणैयुतः ।। ८ ।। अथवानेष दे शो ह धनर ना द भयुतः । वसुपूणा च वसुधा वस चे दषु चे दप ।। ९ ।। धमशीला जनपदाः सुसंतोषा साधवः । न च मया लापोऽ वैरे व प कुतोऽ यथा ।। १० ।। न च प ा वभ य ते पु ा गु हते रताः । यु ते धु र नो गा कृशान् संधु य त च ।। ११ ।। सव वणाः वधम थाः सदा चे दषु मानद । न तेऽ य व दतं क चत् षु लोकेषु यद् भवेत् ।। १२ ।। इस समय चे ददे श पशु के लये हतकर, पु यजनक, चुर धन-धा यसे स प , वगके समान सुखद होनेके कारण र णीय, सौ य तथा भो य पदाथ और भू मस ब धी उ म गुण से यु है। यह दे श अनेक पदाथ से यु और धन-र न आ दसे स प है। यहाँक वसुधा वा तवम वसु (धन-स प )-से भरी-पूरी है। अतः तुम चे ददे शके पालक होकर उसीम नवास करो। यहाँके जनपद धमशील, संतोषी और साधु ह। यहाँ हासप रहासम भी कोई झूठ नह बोलता, फर अ य अवसर पर तो बोल ही कैसे सकता है। पु सदा गु जन के हतम लगे रहते ह, पता अपने जीते-जी उनका बँटवारा नह करते। यहाँके लोग बैल को भार ढोनेम नह लगाते और द न एवं अनाथ का पोषण करते ह। मानद! चे ददे शम सब वण के लोग सदा अपने-अपने धमम थत रहते ह। तीन लोक म जो कोई घटना होगी, वह सब यहाँ रहते ए भी तुमसे छपी न रहेगी—तुम सव बने रहोगे ।। ८— १२ ।। दे वोपभो यं द ं वामाकाशे फा टकं महत् । आकाशगं वां म ं वमानमुपप यते ।। १३ ।। जो दे वता के उपभोगम आने यो य है, ऐसा फ टक म णका बना आ एक द , आकाशचारी एवं वशाल वमान मने तु ह भट कया है। वह आकाशम तु हारी सेवाके लये सदा उप थत रहेगा ।। १३ ।। वमेकः सवम यषु वमानवरमा थतः । च र य युप र थो ह दे वो व हवा नव ।। १४ ।। स पूण मनु य म एक तु ह इस े वमानपर बैठकर मू तमान् दे वताक भाँ त सबके ऊपर-ऊपर वचरोगे ।। १४ ।। े ै

ददा म ते वैजय त मालाम लानपंकजाम् । धार य य त सं ामे या वां श ैर व तम् ।। १५ ।। म तु ह यह वैजय ती माला दे ता ँ, जसम परोये ए कमल कभी कु हलाते नह ह। इसे धारण कर लेनेपर यह माला सं ामम तु ह अ -श के आघातसे बचायेगी ।। १५ ।। ल णं चैतदे वेह भ वता ते नरा धप । इ माले त व यातं ध यम तमं महत् ।। १६ ।। नरे र! यह माला ही इ मालाके नामसे व यात होकर इस जग म तु हारी पहचान करानेके लये परम ध य एवं अनुपम च होगी ।। १६ ।। य च वैणव त मै ददौ वृ नषूदनः । इ दानमु य श ानां तपा लनीम् ।। १७ ।। ऐसा कहकर वृ ासुरका नाश करनेवाले इ ने राजाको ेमोपहार व प बाँसक एक छड़ी द , जो श पु ष क र ा करनेवाली थी ।। १७ ।। त याः श य पूजाथ भूमौ भू मप त तदा । वेशं कारयामास गते संव सरे तदा ।। १८ ।। तदन तर एक वष बीतनेपर भूपाल वसुने इ क पूजाके लये उस छड़ीको भू मम गाड़ दया ।। १८ ।। ततः भृ त चा ा प य ेः तपस मैः । वेशः यते राजन् यथा तेन व ततः ।। १९ ।। राजन्! तबसे लेकर आजतक े राजा ारा छड़ी धरतीम गाड़ी जाती है। वसुने जो था चला द , वह अबतक चली आती है ।। १९ ।। अपरे ु तत त याः यतेऽ यु यो नृपैः । अलंकृतायाः पटकैग धमा यै भूषणैः ।। २० ।। मा यदामप र ता व धवत् यतेऽ प च । भगवान् पू यते चा हंस पेण चे रः ।। २१ ।। सरे दन अथात् नवीन संव सरके थम दन त-पदाको वह छड़ी वहाँसे नकालकर ब त ऊँचे थानम रखी जाती है; फर कपड़ेक पेट , च दन, माला और आभूषण से उसको सजाया जाता है। उसम व धपूवक फूल के हार और सूत लपेटे जाते ह। त प ात् उसी छड़ीपर दे वे र भगवान् इ का हंस पसे पूजन कया जाता है ।। २०-२१ ।। वयमेव गृहीतेन वसोः ी या महा मनः । स तां पूजां महे तु ् वा दे वः कृतां शुभाम् ।। २२ ।। वसुना राजमु येन ी तमान वीत् भुः । ये पूज य य त नरा राजान महं मम ।। २३ ।। कार य य त च मुदा यथा चे दप तनृटपः । तेषां ी वजय ैव सरा ाणां भ व य त ।। २४ ।। े







इ ने महा मा वसुके ेमवश वयं हंसका प धारण करके वह पूजा हण क । नृप े वसुके ारा क ई उस शुभ पूजाको दे खकर भावशाली भगवान् महे स हो गये और इस कार बोले—‘चे ददे शके अ धप त उप रचर वसु जस कार मेरी पूजा करते ह, उसी तरह जो मनु य तथा राजा मेरी पूजा करगे और मेरे इस उ सवको रचायगे, उनको और उनके समूचे राको ल मी एवं वजयक ा त होगी ।। २२—२४ ।। तथा फ तो जनपदो मु दत भ व य त । एवं महा मना तेन महे े ण नरा धप ।। २५ ।। वसुः ी या मघवता महाराजोऽ भस कृतः । उ सवं कार य य त सदा श य ये नराः ।। २६ ।। भू मर ना द भदानै तथा पू या भव त ते । वरदानमहाय ै तथा श ो सवेन च ।। २७ ।। ‘इतना ही नह , उनका सारा जनपद ही उ रो र उ तशील और स होगा।’ राजन्! इस कार महा मा महे ने, ज ह मघवा भी कहते ह, ेमपूवक महाराज वसुका भलीभाँ त स कार कया। जो मनु य भू म तथा र न आ दका दान करते ए सदा दे वराज इ का उ सव रचायगे, वे इ ो सव ारा इ का वरदान पाकर उसी उ म ग तको पा जायँगे, जसे भू मदान आ दके पु य से यु मानव ा त करते ह ।। २५—२७ ।। स पू जतो मघवता वसु ेद रो नृपः । पालयामास धमण चे द थः पृ थवी ममाम् ।। २८ ।। इ के ारा उपयु पसे स मा नत चे दराज वसुने चे ददे शम ही रहकर इस पृ वीका धमपूवक पालन कया ।। २८ ।। इ ी या चे दप त कारे महं वसुः । पु ा ा य महावीयाः प चास मतौजसः ।। २९ ।। इ क स ताके लये चे दराज वसु तवष इ ो सव मनाया करते थे। उनके अन त बलशाली महापरा मी पाँच पु थे ।। २९ ।। नानारा येषु च सुतान् स स ाड यषेचयत् । महारथो मागधानां व ुतो यो बृह थः ।। ३० ।। साट ् वसुने व भ रा य पर अपने पु को अ भ ष कर दया। उनम महारथी बृह थ मगध दे शका व यात राजा आ ।। ३० ।। य हः कुशा ब यमा म णवाहनम् । मावे ल य ैव राज य ापरा जतः ।। ३१ ।। सरे पु का नाम य ह था, तीसरा कुशा ब था, जसे म णवाहन भी कहते ह। चौथा मावे ल था। पाँचवाँ राजकुमार य था, जो यु म कसीसे परा जत नह होता था ।। ३१ ।। एते त य सुता राजन् राजषभू रतेजसः । यवासयन् नाम भः वै ते दे शां पुरा ण च ।। ३२ ।। े













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राजा जनमेजय! महातेज वी राज ष वसुके इन पु ने अपने-अपने नामसे दे श और नगर बसाये ।। ३२ ।। वासवाः प च राजानः पृथ वंशा शा ताः । वस त म ासादे आकाशे फा टके च तम् ।। ३३ ।। उपत थुमहा मानं ग धवा सरसो नृपम् । राजोप रचरे येवं नाम त याथ व ुतम् ।। ३४ ।। पाँच वसुपु भ - भ दे श के राजा थे और उ ह ने पृथक्-पृथक् अपनी सनातन वंशपर परा चलायी। चे दराज वसु इ के दये ए फ टक म णमय वमानम रहते ए आकाशम ही नवास करते थे। उस समय उन महा मा नरेशक सेवाम ग धव और अ सराएँ उप थत होती थ । सदा ऊपर-ही-ऊपर चलनेके कारण उनका नाम ‘राजा उप रचर’ के पम व यात हो गया ।। ३३-३४ ।। पुरोपवा हन त य नद शु मत ग रः । अरौ सी चेतनायु ः कामात् कोलाहलः कल ।। ३५ ।। उनक राजधानीके समीप शु मती नद बहती थी। एक समय कोलाहल नामक सचेतन पवतने कामवश उस द पधा रणी नद को रोक लया ।। ३५ ।। गर कोलाहलं तं तु पदा वसुरताडयत् । न ाम तत तेन हार ववरेण सा ।। ३६ ।। उसके रोकनेसे नद क धारा क गयी। यह दे ख उप रचर वसुने कोलाहल पवतपर अपने पैरसे हार कया। हार करते ही पवतम दरार पड़ गयी, जससे नकलकर वह नद पहलेके समान बहने लगी ।। ३६ ।। त यां न ामजनय मथुनं पवतः वयम् । त माद् वमो णात् ीता नद रा े यवेदयत् ।। ३७ ।। पवतने उस नद के गभसे एक पु और एक क या, जुड़व संतान उ प क थी। उसके अवरोधसे मु करनेके कारण स ई नद ने राजा उप रचरको अपनी दोन संतान सम पत कर द ।। ३७ ।। यः पुमानभवत् त तं स राज षस मः । वसुवसु द े सेनाप तम र दमः ।। ३८ ।। उनम जो पु ष था, उसे श ु का दमन करनेवाले धनदाता राज ष वर वसुने अपना सेनाप त बना लया ।। ३८ ।। चकार प न क यां तु तथा तां ग रकां नृपः । वसोः प नी तु ग रका कामकालं यवेदयत् ।। ३९ ।। ऋतुकालमनु ा ता नाता पुंसवने शु चः । तदहः पतर ैनमूचुज ह मृगा न त ।। ४० ।। तं राजस मं ीता तदा म तमतां वर । स पतॄणां नयोगं तमन त य पा थवः ।। ४१ ।। चकार मृगयां कामी ग रकामेव सं मरन् । ी

अतीव पस प ां सा ा य मवापराम् ।। ४२ ।। और जो क या थी उसे राजाने अपनी प नी बना लया। उसका नाम था ग रका। बु मान म े जनमेजय! एक दन ऋतुकालको ा त हो नानके प ात् शु ई वसुप नी ग रकाने पु उ प होने यो य समयम राजासे समागमक इ छा कट क । उसी दन पतर ने राजा म े वसुपर स हो उ ह आ ा द —‘तुम हसक पशु का वध करो।’ तब राजा पतर क आ ाका उ लंघन न करके कामनावश सा ात् सरी ल मीके समान अ य त प और सौ दयके वैभवसे स प ग रकाका ही च तन करते ए हसक पशु को मारनेके लये वनम गये ।। ३९—४२ ।। अशोकै पकै तैरनेकैर तमु कैः । पु ागैः क णकारै वकुलै द पाटलैः ।। ४३ ।। पाटलैना रकेलै च दनै ाजुनै तथा । एतै र यैमहावृ ैः पु यैः वा फलैयुतम् ।। ४४ ।। को कलाकुलसंनादं म मरना दतम् । वस तकाले तत् त य वनं चै रथोपमम् ।। ४५ ।। राजाका वह वन दे वता के चै रथ नामक वनके समान शोभा पा रहा था। वस तका समय था; अशोक, च पा, आम, अ तमु क (माधवीलता), पु ाग (नागकेसर), कनेर, मौल सरी, द पाटल, पाटल, ना रयल, च दन तथा अजुन—से वा द फल से यु , रमणीय तथा प व महावृ उस वनक शोभा बढ़ा रहे थे। को कला के कल-कूजनसे सम त वन गूँज उठा था। चार ओर मतवाले भ रे कल-कल नाद कर रहे थे ।। ४३—४५ ।। म मथा भपरीता मा नाप यद् ग रकां तदा । अप यन् कामसंत त रमाणो य छया ।। ४६ ।। यह उ पन-साम ी पाकर राजाका दय कामवेदनासे पी ड़त हो उठा। उस समय उ ह अपनी रानी ग रकाका दशन नह आ। उसे न दे खकर कामा नसे संत त हो वे इ छानुसार इधर-उधर घूमने लगे ।। ४६ ।। पु पसंछ शाखा ं प लवै पशो भतम् । अशोकं तबकै छ ं रमणीयमप यत ।। ४७ ।। घूमते-घूमते उ ह ने एक रमणीय अशोकका वृ दे खा, जो प लव से सुशो भत और पु पके गु छ से आ छा दत था। उसक शाखा के अ भाग फूल से ढके ए थे ।। ४७ ।। अध तात् त य छायायां सुखासीनो नरा धपः । मधुग धै संयु ं पु पग धमनोहरम् ।। ४८ ।। राजा उसी वृ के नीचे उसक छायाम सुखपूवक बैठ गये। वह वृ मकर द और सुग धसे भरा था। फूल क ग धसे वह बरबस मनको मोह लेता था ।। ४८ ।। वायुना ेयमाण तु धू ाय मुदम वगात् । त य रेतः च क द चरतो गहने वने ।। ४९ ।। उस समय कामोद्द पक वायुसे े रत हो राजाके मनम र तके लये ी वषयक ी त उ प ई। इस कार वनम वचरनेवाले राजा उप रचरका वीय ख लत हो गया ।। ४९ ।। े ो े

क मा ं च तद् रेतो वृ प ेण भू मपः । तज ाह मया मे न पतेद ् रेत इ युत ।। ५० ।। उसके ख लत होते ही राजाने यह सोचकर क मेरा वीय थ न जाय, उसे वृ के प ेपर उठा लया ।। ५० ।। इदं मया प र क ं रेतो मे न भवे द त । ऋतु त याः प या मे न मोघः या द त भुः ।। ५१ ।। सं च यैवं तदा राजा वचाय च पुनः पुनः । अमोघ वं च व ाय रेतसो राजस मः ।। ५२ ।। उ ह ने वचार कया, ‘मेरा यह ख लत वीय थ न हो, साथ ही मेरी प नी ग रकाका ऋतुकाल भी थ न जाय’ इस कार बार बार वचारकर राजा म े वसुने उस वीयको अमोघ बनानेका ही न य कया ।। ५१-५२ ।। शु थापने कालं म ह याः समी य वै । अ भम याथ त छ ु मारात् त तमाशुगम् ।। ५३ ।। सू मधमाथत व ो ग वा येनं ततोऽ वीत् । म याथ मदं सौ य शु ं मम गृहं नय ।। ५४ ।। ग रकायाः य छाशु त या ातवम वै । गृही वा तत् तदा येन तूणमु प य वेगवान् ।। ५५ ।। तदन तर रानीके पास अपना वीय भेजनेका उपयु अवसर दे ख उ ह ने उस वीयको पु ो प कारक म ारा अ भम त कया। राजा वसु धम और अथके सू मत वको जाननेवाले थे। उ ह ने अपने वमानके समीप ही बैठे ए शी गामी येन प ी (बाज)-के पास जाकर कहा—‘सौ य! तुम मेरा य करनेके लये यह वीय मेरे घर ले जाओ और महारानी ग रकाको शी दे दो; य क आज ही उनका ऋतुकाल है।’ बाज वह वीय लेकर बड़े वेगके साथ तुरंत वहाँसे उड़ गया ।। ५३—५५ ।। जवं परममा थाय ाव वहंगमः । तमप यदथाया तं येनं येन तथापरः ।। ५६ ।। वह आकाशचारी प ी सव म वेगका आ य ले उड़ा जा रहा था, इतनेहीम एक सरे बाजने उसे आते दे खा ।। ५६ ।। अ य व च तं स ो ् वैवा मषशङ् कया । तु डयु मथाकाशे तावुभौ स च तुः ।। ५७ ।। उस बाजको दे खते ही उसके पास मांस होनेक आशंकासे सरा बाज त काल उसपर टू ट पड़ा। फर वे दोन प ी आकाशम एक- सरेको च च से मारते ए यु करने लगे ।। ५७ ।। यु यतोरपतद् रेत त चा प यमुना भ स । त ा के त व याता शापाद् वरा सराः ।। ५८ ।। मीनभावमनु ा ता बभूव यमुनाचरी । येनपादप र ं तद् वीयमथ वासवम् ।। ५९ ।। ो े ी

ज ाह तरसोपे य सा का म य पणी । कदा चद प म स तां बब धुम यजी वनः ।। ६० ।। मासे च दशमे ा ते तदा भरतस म । उ ज दरात् त याः पुमांसं च मानुषम् ।। ६१ ।। उन दोन के यु करते समय वह वीय यमुनाजीके जलम गर पड़ा। अ का नामसे व यात एक सु दरी अ सरा ाजीके शापसे मछली होकर वह यमुनाजीके जलम रहती थी। बाजके पंजेसे छू टकर गरे ए वसुस ब धी उस वीयको म य पधा रणी अ काने वेगपूवक आकर नगल लया। भरत े ! त प ात् दसवाँ मास आनेपर म यजीवी म लाह ने उस मछलीको जालम बाँध लया और उसके उदरको चीरकर एक क या और एक पु ष नकाला ।। ५८—६१ ।। आ यभूतं तद् ग वा रा ेऽथ यवेदयन् । काये म या इमौ राजन् स भूतौ मानुषा व त ।। ६२ ।। यह आ यजनक घटना दे खकर मछे र ने राजाके पास जाकर नवेदन कया —‘महाराज! मछलीके पेटसे ये दो मनु य बालक उ प ए ह’ ।। ६२ ।। तयोः पुमांसं ज ाह राजोप रचर तदा । स म यो नाम राजासीद् धा मकः स यसंगरः ।। ६३ ।। मछे र क बात सुनकर राजा उप रचरने उस समय उन दोन बालक मसे जो पु ष था, उसे वयं हण कर लया। वही म य नामक धमा मा एवं स य त राजा आ ।। ६३ ।। सा सरा मु शापा च णेन समप त । या पुरो ा भगवता तय यो नगता शुभा ।। ६४ ।। मानुषौ जन य वा वं शापमो मवा य स । ततः सा जन य वा तौ वश ता म यघा तना ।। ६५ ।। सं य य म य पं सा द ं पमवा य च । स षचारणपथं जगामाथ वरा सराः ।। ६६ ।। इधर वह शुभल णा अ सरा अ का णभरम शापमु हो गयी। भगवान् ाजीने पहले ही उससे कह दया था क ‘ तयग्-यो नम पड़ी ई तुम दो मानव-संतान को ज म दे कर शापसे छू ट जाओगी।’ अतः मछली मारनेवाले म लाहने जब उसे काटा तो वह मानव-बालक को ज म दे कर मछलीका प छोड़ द पको ा त हो गयी। इस कार वह सु दरी अ सरा स मह ष और चारण के पथसे वगलोकम चली गयी ।। ६४— ६६ ।। सा क या हता त या म या म यसग धनी । रा ा द ा च दाशाय क येयं ते भव व त ।। ६७ ।। उन जुड़वी संतान म जो क या थी, मछलीक पु ी होनेसे उसके शरीरसे मछलीक ग ध आती थी। अतः राजाने उसे म लाहको स प दया और कहा—‘यह तेरी पु ी होकर रहे’ ।। ६७ ।। पस वसमायु ा सवः समु दता गुणैः । ी

सा तु स यवती नाम म यघा य भसं यात् ।। ६८ ।। आसीत् सा म यग धैव कं चत् कालं शु च मता । शु ूषाथ पतुनावं वाहय त जले च ताम् ।। ६९ ।। तीथया ां प र ाम प यद् वै पराशरः । अतीव पस प ां स ानाम प काङ् ताम् ।। ७० ।। वह प और स व (स य)-से संयु तथा सम त सद्गुण से स प होनेके कारण ‘स यवती’ नामसे स ई। मछे र के आ यम रहनेके कारण वह प व मुसकानवाली क या कुछ कालतक म यग धा नामसे ही व यात रही। वह पताक सेवाके लये यमुनाजीके जलम नाव चलाया करती थी। एक दन तीथया ाके उ े यसे सब ओर वचरनेवाले मह ष पराशरने उसे दे खा। वह अ तशय प-सौ दयसे सुशो भत थी। स के दयम भी उसे पानेक अ भलाषा जाग उठती थी ।। ६८—७० ।। ् वैव स च तां धीमां कमे चा हा सनीम् । द ां तां वासव क यां र भो ं मु नपु वः ।। ७१ ।। उसक हँसी बड़ी मोहक थी, उसक जाँघ कदलीक -सी शोभा धारण करती थ । उस द वसुकुमारीको दे खकर परम बु मान् मु नवर पराशरने उसके साथ समागमक इ छा कट क ।। ७१ ।। संगमं मम क या ण कु वे य यभाषत । सा वीत् प य भगवन् पारावारे थतानृषीन् ।। ७२ ।। और कहा—‘क याणी! मेरे साथ संगम करो।’ वह बोली—‘भगवन्! दे खये, नद के आर-पार दोन तट पर ब त-से ऋ ष खड़े ह ।। ७२ ।। आवयो योरे भः कथं तु यात् समागमः । एवं तयो ो भगवान् नीहारमसृजत् भुः ।। ७३ ।। ‘और हम दोन को दे ख रहे ह। ऐसी दशाम हमारा समागम कैसे हो सकता है?’ उसके ऐसा कहनेपर श शाली भगवान् पराशरने कुहरेक सृ क ।। ७३ ।। येन दे शः स सव तु तमोभूत इवाभवत् । ् वा सृ ं तु नीहारं तत तं परम षणा ।। ७४ ।। व मता साभवत् क या ी डता च तप वनी । जससे वहाँका सारा दे श अ धकारसे आ छा दत-सा हो गया। मह ष ारा कुहरेक सृ दे खकर वह तप वनी क या आ यच कत एवं ल जत हो गयी ।। ७४ ।।

स यव युवाच व मां भगवन् क यां सदा पतृवशानुगाम् ।। ७५ ।। स यवतीने कहा—भगवन्! आपको मालूम होना चा हये क म सदा अपने पताके अधीन रहनेवाली कुमारी क या ँ ।। ७५ ।। व संयोगा च येत क याभावो ममानघ । क या वे षते वा प कथं श ये जो म ।। ७६ ।। े





गृहं ग तुमृषे चाहं धीमन् न थातुमु सहे । एतत् सं च य भगवन् वध व यदन तरम् ।। ७७ ।। न पाप महष! आपके संयोगसे मेरा क याभाव (कुमारीपन) षत हो जायगा। ज े ! क याभाव षत हो जानेपर म कैसे अपने घर जा सकती ँ। बु मान् मुनी र! अपने क यापनके कलं कत हो जानेपर म जी वत रहना नह चाहती। भगवन्! इस बातपर भलीभाँ त वचार करके जो उ चत जान पड़े, वह क जये ।। ७६-७७ ।। एवमु वत तां तु ी तमानृ षस मः । उवाच म यं कृ वा क यैव वं भ व य स ।। ७८ ।। वृणी व च वरं भी यं व म छ स भा म न । वृथा ह न सादो मे भूतपूवः शु च मते ।। ७९ ।। स यवतीके ऐसा कहनेपर मु न े पराशर स होकर बोले—‘भी ! मेरा य काय करके भी तुम क या ही रहोगी। भा म न! तुम जो चाहो, वह मुझसे वर माँग लो। शु च मते! आजसे पहले कभी भी मेरा अनु ह थ नह गया है’ ।। ७८-७९ ।। एवमु ा वरं व े गा सौग यमु मम् । स चा यै भगवान् ादा मनसःकाङ् तं भु व ।। ८० ।। मह षके ऐसा कहनेपर स यवतीने अपने शरीरम उ म सुमन होनेका वरदान माँगा। भगवान् पराशरने इस भूतलपर उसे वह मनोवां छत वर दे दया ।। ८० ।। ततो लधवरा ीता ीभावगुणभू षता । जगाम सह संसगमृ षणा तकमणा ।। ८१ ।। तेन ग धवती येवं नामा याः थतं भु व । त या तु योजनाद् ग धमा ज त नरा भु व ।। ८२ ।। त या योजनग धे त ततो नामापरं मृतम् । तदन तर वरदान पाकर स ई स यवती नारीपनके समागमो चत गुण (स ः ऋतु नान आ द)-से वभू षत हो गयी और उसने अ तकमा मह ष पराशरके साथ समागम कया। उसके शरीरसे उ म ग ध फैलनेके कारण पृ वीपर उसका ग धवती नाम व यात हो गया। इस पृ वीपर एक योजन रके मनु य भी उसक द सुग धका अनुभव करते थे। इस कारण उसका सरा नाम योजनग धा हो गया ।। ८१-८२ ।। इ त स यवती ा ल वा वरमनु मम् ।। ८३ ।। पराशरेण संयु ा स ो गभ सुषाव सा । ज े च यमुना पे पाराशयः स वीयवान् ।। ८४ ।। इस कार परम उ म वर पाकर हष लाससे भरी ई स यवतीने मह ष पराशरका संयोग ा त कया और त काल ही एक शशुको ज म दया। यमुनाके पम अ य त श शाली पराशरन दन ास कट ए ।। ८३-८४ ।। स मातरमनु ा य तप येव मनो दधे । मृतोऽहं दश य या म कृ ये व त च सोऽ वीत् ।। ८५ ।। े









उ ह ने मातासे यह कहा—‘आव यकता पड़नेपर तुम मेरा मरण करना। म अव य दशन ँ गा।’ इतना कहकर माताक आ ा ले ासजीने तप याम ही मन लगाया ।। ८५ ।। एवं ै पायनो ज े स यव यां पराशरात् । य तो पे स यद् बाल त माद् ै पायनः मृतः ।। ८६ ।। इस कार मह ष पराशर ारा स यवतीके गभसे ै पायन ासजीका ज म आ। वे बा याव थाम ही यमुनाके पम छोड़ दये गये, इस लये ‘ ै पायन’ नामसे स ए ।। ८६ ।। (ततः स यवती ा जगाम वं नवेशनम् । त या वायोजनाद् ग धमा ज त नरा भु व ।। दाशराज तु तद्ग धमा ज न् ी तमावहत् ।) तदन तर स यवती स तापूवक अपने घरपर गयी। उस दनसे भूम डलके मनु य एक योजन रसे ही उसक द ग धका अनुभव करने लगे। उसका पता दाशराज भी उसक ग ध सूँघकर ब त स आ। दाश उवाच ( वामा म यग धे त कथं बाले सुग धता । अपा य म यग ध वं केन द ा सुग धता ।।) दाशराजने पूछा—बेट ! तेरे शरीरसे मछलीक -सी ग ध आनेके कारण लोग तुझे ‘म यग धा’ कहा करते थे, फर तुझम यह सुग ध कहाँसे आ गयी? कसने यह मछलीक ग ध र कर तेरे शरीरको सुग ध दान क है?

स यव युवाच (श े ः पु ो महा ा ः पराशर इ त मृतः ।। नावं वाहयमानाया मम ् वा सुग हतम् । अपा य म यग ध वं योजनाद् ग धतां ददौ ।। ऋषेः सादं ् वा तु जनाः ी तमुपागमन् ।) स यवती बोली— पताजी! मह ष श के पु महा ानी पराशर ह, (वे यमुनाजीके तटपर आये थे; उस समय) म नाव खे रही थी। उ ह ने मेरी ग धताक ओर ल य करके मुझपर कृपा क और मेरे शरीरसे मछलीक ग ध र करके ऐसी सुग ध दे द , जो एक योजन रतक अपना भाव रखती है। मह षका यह कृपा साद दे खकर सब लोग बड़े स ए। पादापसा रणं धम स तु व ान् युगे युगे । आयुः श च म यानां युगाव थामवे य च ।। ८७ ।। णो ा णानां च तथानु हकाङ् या । व ास वेदान् य मात् स त माद् ास इ त मृतः ।। ८८ ।। व ान् ै पायनजीने दे खा क येक युगम धमका एक-एक पाद लु त होता जा रहा है। मनु य क आयु और श ीण हो चली है और युगक ऐसी रव था हो गयी है। यह े े े औ े े े

सब दे ख-सुनकर उ ह ने वेद और ा ण पर अनु ह करनेक इ छासे वेद का ास ( व तार) कया। इस लये वे ास नामसे व यात ए ।। ८७-८८ ।। वेदान यापयामास महाभारतप चमान् । सुम तुं जै म न पैलं शुकं चैव वमा मजम् ।। ८९ ।। भुव र ो वरदो वैश पायनमेव च । सं हता तैः पृथ वेन भारत य का शताः ।। ९० ।। सव े वरदायक भगवान् ासने चार वेद तथा पाँचव वेद महाभारतका अ ययन सुम तु, जै म न, पैल, अपने पु शुकदे व तथा मुझ वैश पायनको कराया। फर उन सबने पृथक्-पृथक् महाभारतक सं हताएँ का शत क ।। ८९-९० ।। तथा भी मः शा तनवो ग ायाम मत ु तः । वसुवीयात् समभव महावीय महायशाः ।। ९१ ।। अ मततेज वी शा तनुन दन भी म आठव वसुके अंशसे तथा गंगाजीके गभसे उ प ए। वे महान् परा मी और अ य त यश वी थे ।। ९१ ।। वेदाथ व च भगवानृ ष व ो महायशाः । शूले ोतः पुराण षरचौर ौरशङ् कया ।। ९२ ।। अणीमा ड इ येवं व यातः स महायशाः । स धममाय पुरा मह ष रदमु वान् ।। ९३ ।। पूवकालक बात है वेदाथ के ाता, महान् यश वी, पुरातन मु न, ष भगवान् अणीमा ड चोर न होते ए भी चोरके संदेहसे शूलीपर चढ़ा दये गये। परलोकम जानेपर उन महायश वी मह षने पहले धमको बुलाकर इस कार कहा— ।। ९२-९३ ।। इषीकया मया बा याद् व ा ेका शकु तका । तत् क बषं मरे धम ना यत् पापमहं मरे ।। ९४ ।। ‘धमराज! पहले कभी मने बा याव थाके कारण स कसे एक च ड़येके ब चेको छे द दया था। वही एक पाप मुझे याद आ रहा है। अपने सरे कसी पापका मुझे मरण नह है ।। ९४ ।। त मे सह म मतं क मा ेहाजयत् तपः । गरीयान् ा णवधः सवभूतवधाद् यतः ।। ९५ ।। ‘मने अग णत सहग न ु ा तप कया है। फर उस तपने मेरे छोटे -से पापको य नह न कर दया। ा णका वध सम त ा णय के वधसे बड़ा है ।। ९५ ।। त मात् वं क बषी धम शू योनौ ज न य स । तेन शापेन धम ऽ प शू योनावजायत ।। ९६ ।। ‘(तुमने मुझे शूलीपर चढ़वाकर वही पाप कया है) इस लये तुम पापी हो। अतः पृ वीपर शू क यो नम तु ह ज म लेना पड़ेगा।’ अणीमा ड के उस शापसे धम भी शू क यो नम उ प ए ।। ९६ ।। व ान् व र पेण धाम तनुर क बषी । संजयो मु नक प तु ज े सूतो गव गणात् ।। ९७ ।। े ी ी ी

पापर हत व ान् व रके पम धमराजका शरीर ही कट आ था। उसी समय गव गणसे संजय नामक सूतका ज म आ, जो मु नय के समान ानी और धमा मा थे ।। ९७ ।। सूया च कु तक याया ज े कण महाबलः । सहजं कवचं ब त् कु डलो ो तताननः ।। ९८ ।। राजा कु तभोजक क या कु तीके गभसे सूयके अंशसे महाबली कणक उ प ई। वह बालक ज मके साथ ही कवचधारी था। उसका मुख शरीरके साथ ही उ प ए कु डलक भासे का शत होता था ।। ९८ ।। अनु हाथ लोकानां व णुल कनम कृतः । वसुदेवात् तु दे व यां ा भूतो महायशाः ।। ९९ ।। उ ह दन व व दत महायश वी भगवान् व णु जगत्के जीव पर अनु ह करनेके लये वसुदेवजीके ारा दे वक के गभसे कट ए ।। ९९ ।। अना द नधनो दे वः स कता जगतः भुः । अ म रं धानं गुणा मकम् ।। १०० ।। वे भगवान् आ द-अ तसे र हत, ु तमान्, स पूण जगत्के कता तथा भु ह। उ ह को अ अ र (अ वनाशी) और गुणमय धान कहते ह ।। १०० ।। आ मानम यं चैव कृ त भवं भुम् । पु षं व कमाणं स वयोगं ुवा रम् ।। १०१ ।। अन तमचलं दे वं हंसं नारायणं भुम् । धातारमजम ं यमा ः परम यम् ।। १०२ ।। कैव यं नगुणं व मना दमजम यम् । पु षः स वभुः कता सवभूत पतामहः ।। १०३ ।। आ मा, अ य, कृ त (उपादान), भव (उ प -कारण), भु (अ ध ाता), पु ष (अ तयामी), व कमा, स वगुणसे ा त होने यो य तथा णवा र भी वे ही ह; उ ह को अन त, अचल, दे व, हंस, नारायण, भु, धाता, अज मा, अ , पर, अ य, कैव य, नगुण, व प, अना द, ज मर हत और अ वकारी कहा गया है। वे सव ापी, परम पु ष परमा मा, सबके कता और स पूण भूत के पतामह ह ।। १०१—१०३ ।। धमसंवधनाथाय ज ेऽ धकवृ णषु । अ ौ तु महावीय सवशा वशारदौ ।। १०४ ।। उ ह ने ही धमक वृ के लये अ धक और वृ णकुलम बलराम और ीकृ ण पम अवतार लया था। वे दोन भाई स पूण अ -श के ाता, महापरा मी और सम त शा के ानम परम वीण थे ।। १०४ ।। सा य कः कृतवमा च नारायणमनु तौ । स यकाद् दका चैव ज ातेऽ वशारदौ ।। १०५ ।। स यकसे सा य क और दकसे कृतवमाका ज म आ था। वे दोन अ व ाम अ य त नपुण और भगवान् ीकृ णके अनुगामी थे ।। १०५ ।। ो

भर ाज य च क ं ो यां शु मवधत । महष तपस त माद् ोणो जायत ।। १०६ ।। एक समय उ तप वी मह ष भर ाजका वीय कसी ोणी (पवतक गुफा)-म ख लत होकर धीरे-धीरे पु होने लगा। उसीसे ोणका ज म आ ।। १०६ ।। गौतमा मथुनं ज े शर त बा छर तः । अ था न जननी कृप ैव महाबलः ।। १०७ ।। कसी समय गौतमगो ीय शर ान्का वीय सरकंडेके समूहपर गरा और दो भाग म बँट गया। उसीसे एक क या और एक पु का ज म आ। क याका नाम कृपी था, जो अ थामाक जननी ई। पु महाबली कृपके नामसे व यात आ ।। १०७ ।। अ थामा ततो ज े ोणादे व महाबलः । तथैव धृ ु नोऽ प सा ाद नसम ु तः ।। १०८ ।। वैताने कम ण ततः पावकात् समजायत । वीरो ोण वनाशाय धनुरादाय वीयवान् ।। १०९ ।। तदन तर ोणाचायसे महाबली अ थामाका ज म आ। इसी कार य कमका अनु ान होते समय व लत अ नसे धृ ु नका ा भाव आ, जो सा ात् अ नदे वके समान तेज वी था। परा मी वीर धृ ु न ोणाचायका वनाश करनेके लये धनुष लेकर कट आ था ।। १०८-१०९ ।। त ैव वे ां कृ णा प ज े तेज वनी शुभा । व ाजमाना वपुषा ब ती पमु मम् ।। ११० ।। उसी य क वेद से शुभ व पा तेज वनी ौपद उ प ई, जो परम उ म प धारण करके अपने सु दर शरीरसे अ य त शोभा पा रही थी ।। ११० ।। ाद श यो न न जत् सुबल ाभवत् ततः । त य जा धमह ी ज े दे व कोपनात् ।। १११ ।। गा धारराजपु ोऽभू छकु नः सौबल तथा । य धन य जननी ज ातेऽथ वशारदौ ।। ११२ ।। ादका श य न न जत् राजा सुबलके पम कट आ। दे वता के कोपसे उसक संत त (शकु न) धमका नाश करनेवाली ई। गा धारराज सुबलका पु शकु न एवं सौबल नामसे व यात आ तथा उनक पु ी गा धारी य धनक माता थी। ये दोन भाई-ब हन अथशा के ानम नपुण थे ।। १११-११२ ।। कृ ण ै पायना ज े धृतरा ो जने रः । े े व च वीय य पा डु ैव महाबलः ।। ११३ ।। धमाथकुशलो धीमान् मेधावी धूतक मषः । व रः शू योनौ तु ज े ै पायनाद प ।। ११४ ।। पा डो तु ज रे प च पु ा दे वसमाः पृथक् । योः योगुण ये तेषामासीद् यु ध रः ।। ११५ ।। ी











राजा व च वीयक े भूता अ बका और अ बा लकाके गभसे कृ ण ै पायन ास ारा राजा धृतरा और महाबली पा डु का ज म आ। ै पायन ाससे ही शू जातीय ीके गभसे व रजीका भी ज म आ था। वे धम और अथके ानम नपुण, बु मान्, मेधावी और न पाप थे। पा डु से दो य के ारा पृथक्-पृथक् पाँच पु उ प ए, जो सब-के-सब दे वता के समान थे। उन सबम बड़े यु ध र थे। वे उ म गुण म भी सबसे बढ़-चढ़कर थे ।। ११३—११५ ।। धमाद् यु ध रो ज े मा ता च वृकोदरः । इ ाद् धनंजयः ीमान् सवश भृतां वरः ।। ११६ ।। ज ाते पस प ाव यां च यमाव प । नकुलः सहदे व गु शु ूषणे रतौ ।। ११७ ।। यु ध र धमसे, भीमसेन वायुदेवतासे, स पूण श धा रय म े ीमान् अजुन इ दे वसे तथा सु दर पवाले नकुल और सहदे व अ नीकुमार से उ प ए थे। वे जुड़व पैदा ए थे। नकुल और सहदे व सदा गु जन क सेवाम त पर रहते थे ।। ११६-११७ ।। तथा पु शतं ज े धृतरा य धीमतः । य धन भृतयो युयु सुः करण तथा ।। ११८ ।। परम बु मान् राजा धृतराक े य धन आ द सौ पु ए। इनके अ त र युयु सु भी उ ह का पु था। वह वै यजातीय मातासे उ प होनेके कारण ‘करण* ’ कहलाता था ।। ११८ ।। ततो ःशासन ैव ःसह ा प भारत । मषणो वकण च सेनो व वश तः ।। ११९ ।। जयः स य त ैव पु म भारत । वै यापु ो युयु सु एकादश महारथाः ।। १२० ।। भरतवंशी जनमेजय! धृतराक े पु म य धन, ःशासन, ःसह, मषण, वकण, च सेन, व वश त, जय, स य त, पु म तथा वै यापु युयु सु—ये यारह महारथी थे ।। ११९-१२० ।। अ भम युः सुभ ायामजुनाद यजायत । व ीयो वासुदेव य पौ ः पा डोमहा मनः ।। १२१ ।। अजुन ारा सुभ ाके गभसे अ भम युका ज म आ। वह महा मा पा डु का पौ और भगवान् ीकृ णका भानजा था ।। १२१ ।। पा डवे यो ह पा चा यां ौप ां प च ज रे । कुमारा पस प ाः सवशा वशारदाः ।। १२२ ।। पा डव ारा ौपद के गभसे पाँच पु उ प ए थे, जो बड़े ही सु दर और सब शा म नपुण थे ।। १२२ ।। त व यो यु ध रात् सुतसोमो वृकोदरात् । अजुना छतक त तु शतानीक तु नाकु लः ।। १२३ ।। ै





तथैव सहदे वा च ुतसेनः तापवान् । ह ड बायां च भीमेन वने ज े घटो कचः ।। १२४ ।। यु ध रसे त व य, भीमसेनसे सुतसोम, अजुनसे ुतक त, नकुलसे शतानीक तथा सहदे वसे तापी ुतसेनका ज म आ था। भीमसेनके ारा ह ड बासे वनम घटो कच नामक पु उ प आ ।। १२३-१२४ ।। शख डी पदा ज े क या पु वमागता । यां य ः पु षं च े थूणः य चक षया ।। १२५ ।। राजा पदसे शख डी नामक एक क या ई, जो आगे चलकर पु पम प रणत हो गयी। थूणाकण नामक य ने उसका य करनेक इ छासे उसे पु ष बना दया था ।। १२५ ।। कु णां व हे त मन् समाग छन् बन् यथा । रा ां शतसह ा ण यो यमाना न संयुगे ।। १२६ ।। तेषामप रमेयानां नामधेया न सवशः । न श या न समा यातुं वषाणामयुतैर प । एते तु क तता मु या यैरा यान मदं ततम् ।। १२७ ।। कौरव के उस महासमरम यु करनेके लये राजा के कई लाख यो ा आये थे। दस हजार वष तक गनती क जाय तो भी उन असं य यो ा के नाम पूणतः नह बताये जा सकते। यहाँ कुछ मु य-मु य राजा के नाम बताये गये ह, जनके च र से इस महाभारत-कथाका व तार आ है ।। १२६-१२७ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण अंशावतरणपव ण ासा ु प ौ ष तमोऽ यायः ।। ६३ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत अंशावतरणपवम ास आ दक उ प से स ब ध रखनेवाला तरसठवाँ अ याय पूरा आ ।। ६३ ।। (दा णा य अ धक पाठक े ४ ोक मलाकर कुल १३१ ोक ह)

चतुःष तमोऽ यायः ा ण ारा यवंशक उ प और वृ तथा उस समयके धा मक रा यका वणन; असुर का ज म और उनके भारसे पी ड़ त पृ वीका ाजीक शरणम जाना तथा ाजीका दे वता को अपने अंशसे पृ वीपर ज म लेनेका आदे श जनमेजय उवाच य एते क तता न् ये चा ये नानुक तताः । स यक् ता ोतु म छा म रा ा यान् सह शः ।। १ ।। जनमेजय बोले— न्! आपने यहाँ जन राजा के नाम बताये ह और जन सरे नरेश के नाम यहाँ नह लये ह, उन सब सह राजा का म भलीभाँ त प रचय सुनना चाहता ँ ।। १ ।। यदथ मह स भूता दे वक पा महारथाः । भु व त मे महाभाग स यगा यातुमह स ।। २ ।। महाभाग! वे दे वतु य महारथी इस पृ वीपर जस उ े यक स के लये उ प ए थे, उसका यथावत् वणन क जये ।। २ ।। वैश पायन उवाच रह यं ख वदं राजन् दे वाना म त नः ुतम् । त ु ते कथ य या म नम कृ य वय भुवे ।। ३ ।। वैश पायनजीने कहा—राजन्! यह दे वता का रह य है, ऐसा मने सुन रखा है। वय भू ाजीको नम कार करके आज उसी रह यका तुमसे वणन क ँ गा ।। ३ ।। ःस तकृ वः पृ थव कृ वा नः यां पुरा । जामद य तप तेपे महे े पवतो मे ।। ४ ।। तदा नः ये लोके भागवेण कृते स त । ा णान् या राजन् सुता थ योऽ भच मुः ।। ५ ।। पूवकालम जमद नन दन परशुरामने इ क स बार पृ वीको यर हत करके उ म पवत महे पर तप या क थी। उस समय जब भृगन ु दनने इस लोकको यशू य कर दया था, य-ना रय ने पु क अ भलाषासे ा ण क शरण हण क थी ।। ४-५ ।। ता भः सह समापेतु ा णाः सं शत ताः । ऋतावृतौ नर ा न कामा ानृतौ तथा ।। ६ ।। े











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नरर न! वे कठोर तधारी ा ण केवल ऋतुकालम ही उनके साथ मलते थे; न तो कामवश और न बना ऋतुकालके ही ।। ६ ।। ते य ले भरे गभ या ताः सह शः । ततः सुषु वरे राजन् यान् वीयव रान् ।। ७ ।। कुमारां कुमारी पुनः ा भवृ ये । एवं तद् ा णैः ं यासु तप व भः ।। ८ ।। जातं वृ ं च धमण सुद घणायुषा वतम् । च वारोऽ प ततो वणा बभूवु ा णो राः ।। ९ ।। राजन्! उन सह ा णय ने ा ण से गभ धारण कया और पुनः यकुलक वृ के लये अ य त बलशाली यकुमार तथा कुमा रय को ज म दया। इस कार तप वी ा ण ारा ा णय के गभसे धमपूवक य-संतानक उ प और वृ ई। वे सब संतान द घायु होती थ । तदन तर जगत्म पुनः ा ण धान चार वण त त ए ।। ७—९ ।। अ यग छ ृतौ नार न कामा ानृतौ तथा । तथैवा या न भूता न तय यो नगता य प ।। १० ।। ऋतौ दारां ग छ त तत् तथा भरतषभ । ततोऽवध त धमण सह शतजी वनः ।। ११ ।। उस समय सब लोग ऋतुकालम ही प नीसमागम करते थे; केवल कामनावश या ऋतुकालके बना नह करते थे। इसी कार पशु-प ी आ दक यो नम पड़े ए जीव भी ऋतुकालम ही अपनी य से संयोग करते थे। भरत े ! उस समय धमका आ य लेनेसे सब लोग सह एवं शत वष तक जी वत रहते थे और उ रो र उ त करते थे ।। १०-११ ।। ताः जाः पृ थवीपाल धम तपरायणाः । आ ध भ ा ध भ ैव वमु ाः सवशो नराः ।। १२ ।। भूपाल! उस समयक जा धम एवं तके पालनम त पर रहती थी; अतः सभी लोग रोग तथा मान सक च ता से मु रहते थे ।। १२ ।। अथेमां सागरापा गां गजे गताखलाम् । अ य त त् पुनः ं सशैलवनप नाम् ।। १३ ।। गजराजके समान गमन करनेवाले राजा जनमेजय! तदन तर धीरे-धीरे समु से घरी ई पवत, वन और नगर स हत इस स पूण पृ वीपर पुनः यजा तका ही अ धकार हो गया ।। १३ ।। शास त पुनः े धमणेमां वसु धराम् । ा णा ा ततो वणा ले भरे मुदमु माम् ।। १४ ।। जब पुनः य शासक धमपूवक इस पृ वीका पालन करने लगे, तब ा ण आ द वण को बड़ी स ता ा त ई ।। १४ ।। काम ोधो वान् दोषान् नर य च नरा धपाः । े ो

धमण द डं द ेषु णय तोऽ वपालयन् ।। १५ ।। उन दन राजालोग काम और ोधज नत दोष को र करके द डनीय अपरा धय को धमानुसार द ड दे ते ए पृ वीका पालन करते थे ।। १५ ।। तथा धमपरे े सह ा ः शत तुः । वा दे शे च काले च वषणापालयत् जाः ।। १६ ।। इस तरह धमपरायण य के शासनम सारा दे श-काल अ य त चकर तीत होने लगा। उस समय सह ने वाले दे वराज इ समयपर वषा करके जा का पालन करते थे ।। १६ ।। न बाल एव यते तदा क जना धप । नच यं जाना त क द ा तयौवनः ।। १७ ।। राजन्! उन दन कोई भी बा याव थाम नह मरता था। कोई भी पु ष युवाव था ा त ए बना ी-सुखका अनुभव नह करता था ।। १७ ।। एवमायु मती भ तु जा भभरतषभ । इयं सागरपय ता समापूयत मे दनी ।। १८ ।। भरत े ! ऐसी व था हो जानेसे समु पय त यह सारी पृ वी द घकालतक जी वत रहनेवाली जा से भर गयी ।। १८ ।। ई जरे च महाय ैः या ब द णैः । सा ोप नषदान् वेदान् व ा ाधीयते तदा ।। १९ ।। यलोग ब त-सी द णावाले बड़े-बड़े य ारा यजन करते थे। ा ण अंग और उप नषद स हत स पूण वेद का अ ययन करते थे ।। १९ ।। न च व णते ा णा तदा नृप । न च शू सम याशे वेदानु चारय युत ।। २० ।। राजन्! उस समय ा ण न तो वेदका व य करते और न शू के नकट वेदम का उ चारण ही करते थे ।। २० ।। कारय तः कृ ष गो भ तथा वै याः ता वह । यु ते धु र नो गा कृशा ां ा यजीवयन् ।। २१ ।। वै यगण बैल ारा इस पृ वीपर सर से खेती कराते ए भी वयं उनके कंधेपर जुआ नह रखते थे—उ ह बोझ ढोनेम नह लगाते थे और बल अंग वाले नक मे पशु को भी दाना-घास दे कर उनके जीवनक र ा करते थे ।। २१ ।। फेनपां तथा व सान् न ह त म मानवाः । न कूटमानैव णजः पा यं व णते तदा ।। २२ ।। जबतक बछड़े केवल धपर रहते, घास नह चरते, तबतक मनु य गौ का ध नह हते थे। ापारीलोग बेचने यो य व तु का झूठे माप-तौल ारा व य नह करते थे ।। २२ ।। कमा ण च नर ा धम पेता न मानवाः । धममेवानुप य त ु धमपरायणाः ।। २३ ।। े ीओ ी ो

नर े ! सब मनु य धमक ही ओर रखकर धमम ही त पर हो धमयु कम का ही अनु ान करते थे ।। २३ ।। वकम नरता ासन् सव वणा नरा धप । एवं तदा नर ा धम न सते व चत् ।। २४ ।। राजन्! उस समय सब वण के लोग अपने-अपने कमके पालनम लगे रहते थे। नर े ! इस कार उस समय कह भी धमका ास नह होता था ।। २४ ।। काले गावः सूय ते नाय भरतषभ । भव यृतुषु वृ ाणां पु पा ण च फला न च ।। २५ ।। भरत े ! गौएँ तथा याँ भी ठ क समयपर ही संतान उ प करती थ । ऋतु आनेपर ही वृ म फूल और फल लगते थे ।। २५ ।। एवं कृतयुगे स यग् वतमाने तदा नृप । आपूयत मही कृ ना ा ण भब भभृशम् ।। २६ ।। नरे र! इस तरह उस समय सब ओर स ययुग छा रहा था। सारी पृ वी नाना कारके ा णय से खूब भरी-पूरी रहती थी ।। २६ ।। एवं समु दते लोके मानुषे भरतषभ । असुरा ज रे े े रा ां तु मनुजे र ।। २७ ।। भरत े ! इस कार स पूण मानव-जगत् ब त स था। मनुजे र! इसी समय असुरलोग राजप नय के गभसे ज म लेने लगे ।। २७ ।। आ द यै ह तदा दै या ब शो न जता यु ध । ऐ याद ् ं शताः वगात् स बभूवुः ता वह ।। २८ ।। उन दन अ द तके पु (दे वता )- ारा दै यगण अनेक बार यु म परा जत हो चुके थे। वगके ऐ यसे होनेपर वे इस पृ वीपर ही ज म लेने लगे ।। २८ ।। इह दे व व म छ तो मानुषेषु मन वनः । ज रे भु व भूतेषु तेषु ते वसुरा वभो ।। २९ ।। भो! यह रहकर दे व व ा त करनेक इ छासे वे मन वी असुर भूतलपर मनु य तथा भ - भ ा णय म ज म लेने लगे ।। २९ ।। गो व ेषु च राजे खरो म हषेषु च । ा सु चैव भूतेषु गजेषु च मृगेषु च ।। ३० ।। जातै रह महीपाल जायमानै तैमही । न शशाका मनाऽऽ मान मयं धार यतुं धरा ।। ३१ ।। राजे ! गौ , घोड़ , गदह , ऊँट , भैस , क चे मांस खानेवाले पशु , हा थय और मृग क यो नम भी यहाँ असुर ने ज म लया और अभीतक वे ज म धारण करते जा रहे थे। उन सबसे यह पृ वी इस कार भर गयी क अपने-आपको भी धारण करनेम समथ न हो सक ।। ३०-३१ ।। अथ जाता महीपालाः के चद् ब मदा वताः । दतेः पु ा दनो ैव तदा लोक इह युताः ।। ३२ ।। ी ो े ी

वीयव तोऽव ल ता ते नाना पधरा महीम् । इमां सागरपय तां परीयुर रमदनाः ।। ३३ ।। वगसे इस लोकम गरे ए तथा राजा के पम उ प ए कतने ही दै य और दानव अ य त मदसे उ म रहते थे। वे परा मी होनेके साथ ही अहंकारी भी थे। अनेक कारके प धारण कर अपने श ु का मान-मदन करते ए समु पयज सारी पृ वीपर वचरते रहते थे ।। ३२-३३ ।। ा णान् यान् वै या छू ां ैवा यपीडयन् । अ या न चैव स वा न पीडयामासुरोजसा ।। ३४ ।। वे ा ण , य , वै य तथा शू को भी सताया करते थे। अ या य जीव को भी अपने बल और परा मसे पीड़ा दे ते थे ।। ३४ ।। ासय तोऽ भ न न तः सवभूतगणां ते । वचे ः सवशो राजन् मह शतसह शः ।। ३५ ।। राजन्! वे असुर लाख क सं याम उ प ए थे और सम त ा णय को डरातेधमकाते तथा उनक हसा करते ए भूम डलम सब ओर घूमते रहते थे ।। ३५ ।। आ म थान् महष धषय त तत ततः । अ या वीयमदा म ा मदबलेन च ।। ३६ ।। वे वेद और ा णके वरोधी, परा मके नशेम चूर तथा अहंकार और बलसे मतवाले होकर इधर-उधर आ मवासी मह षय का भी तर कार करने लगे ।। ३६ ।। एवं वीयबलो स ै भू रय नैमहासुरैः । पी माना मही राजन् ाणमुपच मे ।। ३७ ।। राजन्! जब इस कार बल और परा मके मदसे उ म महादै य वशेष य नपूवक इस पृ वीको पीड़ा दे ने लगे, तब यह ाजीक शरणम जानेको उ त ई ।। ३७ ।। न मी भूतस वौघाः प गाः सनगां महीम् । तदा धार यतुं शेकुः सं ा तां दानवैबलात् ।। ३८ ।। ततो मही महीपाल भाराता भयपी डता । जगाम शरणं दे वं सवभूत पतामहम् ।। ३९ ।। सा संवृतं महाभागैदव जमह ष भः । ददश दे वं ाणं लोककतारम यम् ।। ४० ।। दानव ने बलपूवक जसपर अ धकार कर लया था, पवत और वृ स हत उस पृ वीको उस समय क छप और द गज आ दक संग ठत श याँ तथा शेषनाग भी धारण करनेम समथ न हो सके। महीपाल! तब असुर के भारसे आतुर तथा भयसे पी ड़त ई पृ वी स पूण भूत के पतामह भगवान् ाजीक शरणम उप थत ई। लोकम जाकर पृ वीने उन लोक ा अ वनाशी दे व भगवान् ाजीका दशन कया, ज ह महाभाग दे वता, ज और मह ष घेरे ए थे ।। ३८—४० ।। ग धवर सते भ दै वकमसु न तैः । व मानं मुदोपेतैवव दे चैनमे य सा ।। ४१ ।। े े े ँऔ े े

दे वकमम संल न रहनेवाले अ सराएँ और ग धव उ ह स तापूवक णाम करते थे। पृ वीने उनके नकट जाकर णाम कया ।। ४१ ।। अथ व ापयामास भू म तं शरणा थनी । सं नधौ लोकपालानां सवषामेव भारत ।। ४२ ।। तत् धाना मन त य भूमेः कृ यं वय भुवः । पूवमेवाभवद् राजन् व दतं परमे नः ।। ४३ ।। भारत! तदन तर शरण चाहनेवाली भू मने सम त लोकपाल के समीप अपना सारा ःख ाजीसे नवेदन कया। राजन्! वय भू ा सबके कारण प ह, अतः पृ वीका जो आव यक काय था वह उ ह पहलेसे ही ात हो गया था ।। ४२-४३ ।। ा ह जगतः क मा स बु येत भारत । ससुरासुरलोकानामशेषेण मनोगतम् ।। ४४ ।। भारत! भला जो जगत्के ा ह, वे दे वता और असुर स हत सम त जगत्का स पूण मनोगत भाव य न समझ ल ।। ४४ ।। तामुवाच महाराज भूम भू मप तः भुः । भवः सवभूतानामीशः श भुः जाप तः ।। ४५ ।। महाराज! जो इस भू मके पालक और भु ह, सबक उ प के कारण तथा सम त ा णय के अधी र ह, वे क याणमय जाप त ाजी उस समय भू मसे इस कार बोले ।। ४५ ।।

ोवाच यदथम भस ा ता म सकाशं वसु धरे । तदथ सं नयो या म सवानेव दवौकसः ।। ४६ ।। ाजीने कहा—वसु धरे! तुम जस उ े यसे मेरे पास आयी हो, उसक स के लये म स पूण दे वता को नयु कर रहा ँ ।। ४६ ।। वैश पायन उवाच इ यु वा स मह दे वो ा राजन् वसृ य च । आ ददे श तदा सवान् वबुधान् भूतकृत् वयम् ।। ४७ ।। अ या भूमे नर सतुं भारं भागैः पृथक् पृथक् । अ यामेव सूय वं वरोधाये त चा वीत् ।। ४८ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! स पूण भूत क सृ करनेवाले भगवान् ाजीने ऐसा कहकर उस समय पृ वीको तो वदा कर दया और सम त दे वता को यह आदे श दया—‘दे वताओ! तुम इस पृ वीका भार उतारनेके लये अपने-अपने अंशसे पृ वीके व भ भाग म पृथक्-पृथक् ज म हण करो। वहाँ असुर से वरोध करके अभी उ े यक स करनी होगी’ ।। ४७-४८ ।। तथैव स समानीय ग धवा सरसां गणान् । उवाच भगवान् सवा नदं वचनमथवत् ।। ४९ ।। ी े औ ो ी

इसी कार भगवान् ाने स पूण ग धव और अ सरा अथसाधक वचन कहा ।। ४९ ।।

को भी बुलाकर यह

ोवाच वैः वैरंशैः सूय वं यथे ं मानुषेषु च । अथ श ादयः सव ु वा सुरगुरोवचः । त मय च पयं च त य ते जगृ तदा ।। ५० ।। ाजी बोले—तुम सब लोग अपने-अपने अंशसे मनु य म इ छानुसार ज म हण करो। तदन तर इ आ द सब दे वता ने दे वगु ाजीक स य, अथसाधक और हतकर बात सुनकर उस समय उसे शरोधाय कर लया ।। ५० ।। अथ ते सवश ऽशैः वैग तुं भूम कृ त णाः । नारायणम म नं वैकु ठमुपच मुः ।। ५१ ।। अब वे अपने-अपने अंश से भूलोकम सब ओर जानेका न य करके श ु का नाश करनेवाले भगवान् नारायणके समीप वैकु ठधामम जानेको उ त ए ।। ५१ ।। यः स च गदापा णः पीतवासाः श त भः । पनाभः सुरा र नः पृथुचाव चते णः ।। ५२ ।। जो अपने हाथ म च और गदा धारण करते ह, पीता बर पहनते ह, जनके अंग क का त याम रंगक है, जनक ना भसे कमलका ा भाव आ है, जो दे व-श ु के नाशक तथा वशाल और मनोहर ने से यु ह ।। ५२ ।। जाप तप तदवः सुरनाथो महाबलः । ीव साङ् को षीकेशः सवदै वतपू जतः ।। ५३ ।। जो जाप तय के भी प त, द व प, दे वता के र क, महाबली, ीव स च से सुशो भत, इ य के अ ध ाता तथा स पूण दे वता ारा पू जत ह ।। ५३ ।। तं भुवः शोधनाये उवाच पु षो मम् । अंशेनावतरे येवं तथे याह च तं ह रः ।। ५४ ।। उन भगवान् पु षो मके पास जाकर इ ने उनसे कहा—‘ भो! आप पृ वीका शोधन (भार-हरण) करनेके लये अपने अंशसे अवतार हण कर।’ तब ीह रने ‘तथा तु’ कहकर उनक ाथना वीकार कर ली ।। ५४ ।। इ त ीमहाभारते आ दपव ण अंशावतरणपव ण चतुःष तमोऽ यायः ।। ६४ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत अंशावतरणपवम च सठवाँ अ याय पूरा आ ।। ६४ ।।

* ‘वै यायां या जातः करणः प रक ततः ।’ (वै य माता और धमशा ीय वचनके अनुसार युयु सुक ‘करण’ सं ा बतायी गयी है।

य पतासे उ प पु ‘करण’ कहलाता है) इस

(स भवपव) प चष तमोऽ यायः मरी च आ द मह षय तथा अ द त आ द द क या वंशका ववरण

के

वैश पायन उवाच अथ नारायणेने कार सह सं वदम् । अवततु मह वगादं शतः स हतः सुरैः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! दे वता स हत इ ने भगवान् व णुके साथ वग एवं वैकु ठसे पृ वीपर अंशतः अवतार हण करनेके स ब धम कुछ सलाह क ।। १ ।। आ द य च वयं श ः सवानेव दवौकसः । नजगाम पुन त मात् या ारायण य ह ।। २ ।। त प ात् सभी दे वता को तदनुसार काय करनेके लये आदे श दे कर वे भगवान् नारायणके नवास थान वैकु ठधामसे पुनः चले आये ।। २ ।। तेऽमरा र वनाशाय सवलोक हताय च । अवते ः मेणैव मह वगाद् दवौकसः ।। ३ ।। तब दे वतालोग स पूण लोक के हत तथा रा स के वनाशके लये वगसे पृ वीपर आकर मशः अवतीण होने लगे ।। ३ ।। ततो षवंशेषु पा थव षकुलेषु च । ज रे राजशा ल यथाकामं दवौकसः ।। ४ ।। नृप े ! वे दे वगण अपनी इ छाके अनुसार षय अथवा राज षय के वंशम उ प ए ।। ४ ।। दानवान् रा सां ैव ग धवान् प गां तथा । पु षादा न चा या न ज नुः स वा यनेकशः ।। ५ ।। दानवा रा सा ैव ग धवाः प गा तथा । न तान् बल थान् बा येऽ प ज नुभरतस म ।। ६ ।। वे दानव, रा स, ग धव, सप तथा अ या य मनु यभ ी जीव का बार बार संहार करने लगे। भरत े ! वे बचपनम भी इतने बलवान् थे क दानव, रा स, ग धव तथा सप उनका बाल बाँका तक नह कर पाते थे ।। ५-६ ।। जनमेजय उवाच े

दे वदानवसङ् घानां ग धवा सरसां तथा । मानवानां च सवषां तथा वै य र साम् ।। ७ ।। ोतु म छा म त वेन स भवं कृ नमा दतः । ा णनां चैव सवषां स भवं व ु मह स ।। ८ ।। जनमेजय बोले—भगवन्! म दे वता, दानवसमुदाय, ग धव, अ सरा, मनु य, य , रा स तथा स पूण ा णय क उ प यथाथ पसे सुनना चाहता ँ। आप कृपा करके आर भसे ही इन सबक उ प का यथावत् वणन क जये ।। ७-८ ।। वैश पायन उवाच ह त ते कथ य या म नम कृ य वय भुवे । सुराद नामहं स यग् लोकानां भवा ययम् ।। ९ ।। वैश पायनजीने कहा—अ छा, म वय भू भगवान् ा एवं नारायणको नम कार करके तुमसे दे वता आ द स पूण लोग क उ प और नाशका यथावत् वणन करता ँ ।। ९ ।। णो मानसाः पु ा व दताः ष महषयः । मरी चरय रसौ पुल यः पुलहः तुः ।। १० ।। ाजीके मानस पु छः मह ष व यात ह—मरी च, अ , अं गरा, पुल य, पुलह और तु ।। १० ।। मरीचेः क यपः पु ः क यपात् तु इमाः जाः । ज रे महाभागा द क या योदश ।। ११ ।। मरी चके पु क यप थे और क यपसे ही ये सम त जाएँ उ प ई ह। ( ाजीके एक पु द भी ह) जाप त द के परम सौभा यशा लनी तेरह क याएँ थ ।। ११ ।। अ द त द तदनुः काला दनायुः स हका तथा । ोधा ाधा च व ा च वनता क पला मु नः ।। १२ ।। क ू मनुज ा द क यैव भारत । एतासां वीयस प ं पु पौ मन तकम् ।। १३ ।। नर े ! उनके नाम इस कार ह—अ द त, द त, दनु, काला, दनायु, स हका, ोधा ( ू रा), ाधा, व ा, वनता, क पला, मु न और क ।ू भारत! ये सभी द क क याएँ ह। इनके बल-परा मस प पु -पौ क सं या अन त है ।। १२-१३ ।। अ द यां ादशा द याः स भूता भुवने राः । ये राजन् नामत तां ते क त य या म भारत ।। १४ ।। अ द तके पु बारह आ द य ए, जो लोके र ह। भरतवंशी नरेश! उन सबके नाम तु ह बता रहा ँ— ।। १४ ।। धाता म ोऽयमा श ो व ण वंश एव च । भगो वव वान् पूषा च स वता दशम तथा ।। १५ ।। एकादश तथा व ा ादशो व णु यते ।

जघ यज तु सवषामा द यानां गुणा धकः ।। १६ ।। धाता, म , अयमा, इ , व ण, अंश, भग, वव वान्, पूषा, दसव स वता, यारहव व ा और बारहव व णु कहे जाते ह। इन सब आ द य म व णु छोटे ह; कतु गुण म वे सबसे बढ़कर ह ।। १५-१६ ।। एक एव दतेः पु ो हर यक शपुः मृतः । ना ना याता तु त येमे प च पु ा महा मनः ।। १७ ।। द तका एक ही पु हर यक शपु अपने नामसे व यात आ। उस महामना दै यके पाँच पु थे ।। १७ ।। ादः पूवज तेषां सं ाद तदन तरम् । अनु ाद तृतीयोऽभूत् त मा च श बबा कलौ ।। १८ ।। उन पाँच म थमका नाम ाद है। उससे छोटे को संाद कहते ह। तीसरेका नाम अनुाद है। उसक े बाद चौथे श ब और पाँचव बा कल ह ।। १८ ।। ाद य यः पु ाः याताः सव भारत । वरोचन कु भ नकु भ े त भारत ।। १९ ।। भारत! ादक े तीन पु ए, जो सव व यात ह। उनके नाम ये ह— वरोचन, कु भ और नकु भ ।। १९ ।। वरोचन य पु ोऽभूद ् ब लरेकः तापवान् । बले थतः पु ो बाणो नाम महासुरः ।। २० ।। वरोचनके एक ही पु आ, जो महा तापी ब लके नामसे स है। ब लका व व यात पु बाण नामक महान् असुर है ।। २० ।। यानुचरः ीमान् महाकाले त यं व ः । चतु ंशद् दनोः पु ाः याताः सव भारत ।। २१ ।। जसे सब लोग भगवान् शंकरके पाषद ीमान् महाकालके नामसे जानते ह। भारत! दनुके च तीस पु ए, जो सव व यात ह ।। २१ ।। तेषां थमजो राजा व च महायशाः । श बरो नमु च ैव पुलोमा चे त व ुतः ।। २२ ।। अ सलोमा च केशी च जय ैव दानवः । अयः शरा अ शरा अ शंकु वीयवान् ।। २३ ।। तथा गगनमूधा च वेगवान् केतुमां सः । वभानुर ोऽ प तवृषपवाजक तथा ।। २४ ।। अ ीव सू म तु ड महाबलः । इषुपादे कच व पा ो हराहरौ ।। २५ ।। नच नकु भ कुपटः कपट तथा । शरभः शलभ ैव सूयाच मसौ तथा । एते याता दनोवशे दानवाः प रक तताः ।। २६ ।। ी







उनम महायश वी राजा व च सबसे बड़ा था। उसके बाद श बर, नमु च, पुलोमा, अ सलोमा, केशी, जय, अयः शरा, अ शरा, परा मी अ शंकु, गगनमूधा, वेगवान्, केतुमान्, वभानु, अ , अ प त, वृषपवा, अजक, अ ीव, सू म, महाबली तु ड, इषुपाद, एकच , व पा , हर, अहर, नच , नकु भ, कुपट, कपट, शरभ, शलभ, सूय और च मा ह। ये दनुके वंशम व यात दानव बताये गये ह ।। २२—२६ ।। अ यौ तु खलु दे वानां सूयाच मसौ मृतौ । अ यौ दानवमु यानां सूयाच मसौ तथा ।। २७ ।। दे वता म जो सूय और च मा माने गये ह, वे सरे ह और धान दानव म सूय तथा च मा सरे ह ।। २७ ।। इमे च वंशाः थताः स वव तो महाबलाः । दनुपु ा महाराज दश दानववंशजाः ।। २८ ।। महाराज! ये व यात दानववंश कहे गये ह, जो बड़े धैयवान् और महाबलवान् ए ह। दनुके पु म न नां कत दानव के दस कुल ब त स ह— ।। २८ ।। एका ो मृतपा वीरः ल बनरकाव प । वातापी श ुतपनः शठ ैव महासुरः ।। २९ ।। गव वनायु द घ ज दानवः । असं येयाः मृता तेषां पु ाः पौ ा भारत ।। ३० ।। एका , वीर मृतपा, ल ब, नरक, वातापी, श ुतपन, महान् असुर शठ, ग व , वनायु तथा दानव द घ ज । भारत! इन सबके पु -पौ असं य बताये गये ह ।। २९-३० ।। स हका सुषुवे पु ं रा ं च ाकमदनम् । सुच ं च हतारं तथा च मदनम् ।। ३१ ।। स हकाने रा नामक पु को उ प कया, जो च मा और सूयका मान-मदन करनेवाला है। इसके सवा सुच , च हता तथा च मदनको भी उसीने ज म दया ।। ३१ ।। ू र वभावं ू रायाः पु पौ मन तकम् । गणः ोधवशो नाम ू रकमा रमदनः ।। ३२ ।। ू रा ( ोधा)-के ू र वभाववाले असं य पु -पौ उ प ए। श ु का नाश करनेवाला ू रकमा ोधवश नामक गण भी ू राक ही संतान ह ।। ३२ ।। दनायुषः पुनः पु ा वारोऽसुरपु वाः । व रो बलवीरौ च वृ ैव महासुरः ।। ३३ ।। दनायुके असुर म े चार पु ए— व र, बल, वीर और महान् असुर वृ ।। ३३ ।। कालायाः थताः पु ाः कालक पाः हा रणः । व याता महावीया दानवेषु परंतपाः ।। ३४ ।। कालाके व यात पु अ -श का हार करनेम कुशल और सा ात् कालके समान भयंकर थे। दानव म उनक बड़ी या त थी। वे महान् परा मी और श ु को संताप दे नेवाले थे ।। ३४ ।। ो ो ै

वनाशन ोध ोधह ता तथैव च । ोधश ु तथैवा ये कालकेया इ त ुताः ।। ३५ ।। उनके नाम इस कार ह— वनाशन, ोध, ोधह ता तथा ोधश ु। कालकेय नामसे व यात सरे- सरे असुर भी कालाके ही पु थे ।। ३५ ।। असुराणामुपा यायः शु वृ षसुतोऽभवत् । याता ोशनसः पु ा वारोऽसुरयाजकाः ।। ३६ ।। असुर के उपा याय (अ यापक एवं पुरो हत) शु ाचाय मह ष भृगक ु े पु थे। उ ह उशना भी कहते ह। उशनाके चार पु ए, जो असुर के पुरो हत थे ।। ३६ ।। व ाधर तथा ाव यौ रौ क मणौ । तेजसा सूयसंकाशा लोकपरायणाः ।। ३७ ।। इनके अ त र व ाधर तथा अ ये दो पु और ए, जो रौ कम करने और करानेवाले थे। उशनाके सभी पु सूयके समान तेज वी तथा लोकको ही परम आ य माननेवाले थे ।। ३७ ।। इ येष वंश भवः क थत ते तर वनाम् । असुराणां सुराणां च पुराणे सं ुतो मया ।। ३८ ।। राजन्! मने पुराणम जैसा सुन रखा है, उसके अनुसार तुमसे यह वेगशाली असुर और दे वता के वंशक उ प का वृ ा त बताया है ।। ३८ ।। एतेषां यदप यं तु न श यं तदशेषतः । सं यातुं महीपाल गुणभूतमन तकम् ।। ३९ ।। ता य ा र ने म तथैव ग डा णौ । आ णवा ण ैव वैनतेयाः क तताः ।। ४० ।। महीपाल! इनक जो संतान ह, उन सबक पूण पसे गणना नह क जा सकती; य क वे सब अन त गुने ह। ता य, अ र ने म, ग ड, अ ण, आ ण तथा वा ण—ये वनताके पु कहे गये ह ।। ३९-४० ।। शेषोऽन तो वासु क त क भुज मः । कूम कु लक ैव का वेयाः क तताः ।। ४१ ।। शेष, अन त, वासु क, त क, कूम और कु लक आ द नागगण क क ू े पु कहलाते ह ।। ४१ ।। भीमसेनो सेनौ च सुपण व ण तथा । गोप तधृतरा सूयवचा स तमः ।। ४२ ।। स यवागकपण युत ा प व ुतः । भीम रथ ैव व यातः सव वद् वशी ।। ४३ ।। तथा शा ल शरा राजन् पज य चतुदशः । क लः प चदश तेषां नारद ैव षोडशः । इ येते दे वग धवा मौनेयाः प रक तताः ।। ४४ ।। ी







राजन्! भीमसेन, उ सेन, सुपण, व ण, गोप त, धृतरा, सातव सूयवचा, स यवाक्, अकपण, व यात युत, भीम, सव और जते य च रथ, शा ल शरा, चौदहव पज य, पं हव क ल और सोलहव नारद—से सब दे वग धव जा तवाले सोलह पु मु नके गभसे उ प कहे गये ह ।। ४२—४४ ।। अथ भूता य या न क त य या म भारत । अनव ां मनुं वंशामसुरां मागण याम् ।। ४५ ।। अ पां सुभगां भासी म त ाधा जायत । स ः पूण ब ह पूणायु महायशाः ।। ४६ ।। चारी र तगुणः सुपण ैव स तमः । व ावसु भानु सुच ो दशम तथा ।। ४७ ।। इ येते दे वग धवाः ाधेयाः प रक तताः । इमं व सरसां वंशं व दतं पु यल णम् ।। ४८ ।। ाधासूत महाभागा दे वी दे व षतः पुरा । अल बुषा म केशी व ु पणा तलो मा ।। ४९ ।। अ णा र ता चैव र भा त मनोरमा । के शनी च सुबा सुरता सुरजा तथा ।। ५० ।। सु या चा तबा व यातौ च हाहा ः । तु बु े त च वारः मृता ग धवस माः ।। ५१ ।। भारत! इसके अ त र अ य ब त-से वंश क उ प का वणन करता ँ। ाधा नामवाली द क याने अनव ा, मनु, वंशा, असुरा, मागण या, अ पा, सुभगा और भासी इन क या को उ प कया। स , पूण, बा ह, महायश वी पूणायु, चारी, र तगुण, सातव सुपण, व ावसु, भानु और दसव सुच —से दस दे व-ग धव भी ाधाके ही पु बताये गये ह। इनके सवा महाभागा दे वी ाधाने पहले दे व ष (क यप)-के समागमसे इन स अ सरा के शुभ ल णवाले समुदायको उ प कया था। उनके नाम ये ह— अल बुषा, म केशी, व ु पणा, तलो मा, अ णा, र ता, र भा, मनोरमा, के शनी, सुबा , सुरता, सुरजा और सु या। अ तबा , सु स हाहा और तथा तु बु —ये चार े ग धव भी ाधाके ही पु माने गये ह ।। ४५—५१ ।। अमृतं ा णा गावो ग धवा सरस तथा । अप यं क पलाया तु पुराणे प रक ततम् ।। ५२ ।। अमृत, ा ण, गौएँ, ग धव तथा अ सराएँ—ये सब पुराणम क पलाक संतान बतायी गयी ह ।। ५२ ।। इ त ते सवभूतानां स भवः क थतो मया । यथावत् स प र यातो ग धवा सरसां तथा ।। ५३ ।। भुज ानां सुपणानां ाणां म तां तथा । गवां च ा णानां च ीमतां पु यकमणाम् ।। ५४ ।। े





राजन्! इस कार मने तु ह स पूण भूत क उ प का वृ ा त बताया है। इसी तरह ग धव , अ सरा , नाग , सुपण , , म द्गण , गौ तथा ीस प पु यकमा ा ण के ज मक कथा भी भलीभाँ त कही है ।। ५३-५४ ।। आयु य ैव पु य ध यः ु तसुखावहः । ोत ैव सततं ा ैवानसूयता ।। ५५ ।। यह संग आयु दे नेवाला, पु यमय, शंसनीय तथा सुननेम सुखद है। मनु यको चा हये क वह दोष न रखकर सदा इसे सुने और सुनावे ।। ५५ ।। इमं तु वंशं नयमेन यः पठ े त् महा मनां ा णदे वसं नधौ । अप यलाभं लभते स पु कलं यं यशः े य च शोभनां ग तम् ।। ५६ ।। जो ा ण और दे वता के समीप महा मा क इस वंशावलीका नयमपूवक पाठ करता है, वह चुर संतान, स प और यश ा त करता है तथा मृ युके प ात् उ म ग त पाता है ।। ५६ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण आ द या दवंशकथने प चष तमोऽ यायः ।। ६५ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम आ द या दवंशकथन वषयक पसठवाँ अ याय पूरा आ ।। ६५ ।।

षट् ष तमोऽ यायः मह षय तथा क यप-प नय क संतान-पर पराका वणन वैश पायन उवाच णो मानसाः पु ा व दताः ष महषयः । एकादश सुताः थाणोः याताः परमतेजसः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! ाके मानस पु छः मह षय के नाम तु ह ात हो चुके ह। उनके सातव पु थे थाणु। थाणुके परम तेज वी यारह पु व यात ह ।। १ ।। मृग ाध सप नऋ त महायशाः । अजैकपाद हबु यः पनाक च परंतपः ।। २ ।। दहनोऽथे र ैव कपाली च महा ु तः । थाणुभव भगवान् ा एकादश मृताः ।। ३ ।। मृग ाध, सप, महायश वी नऋ त, अजैकपाद, अ हबु य, श ुसंतापन पनाक , दहन, ई र, परम का तमान् कपाली, थाणु और भगवान् भव—ये यारह माने गये ह ।। २-३ ।। मरी चर रा अ ः पुल यः पुलहः तुः । षडेते णः पु ा वीयव तो महषयः ।। ४ ।। मरी च, अं गरा, अ , पुल य, पुलह और तु—ये ाजीके छः पु बड़े श शाली मह ष ह ।। ४ ।। य व रसः पु ा लोके सव व ुताः । बृह प त तय संवत धृत ताः ।। ५ ।। अ े तु बहवः पु ाः ूय ते मनुजा धप । सव वेद वदः स ाः शा ता मानो महषयः ।। ६ ।। अं गराके तीन पु ए, जो लोकम सव व यात ह। उनके नाम ये ह— बृह प त, उत य और संवत। ये तीन ही उ म त धारण करनेवाले ह। मनुजे र! अ के ब त-से पु सुने जाते ह। वे सब-के-सब वेदवे ा, स और शा त च मह ष ह ।। ५-६ ।। रा सा पुल य य वानराः क रा तथा । य ा मनुज ा पु ा त य च धीमतः ।। ७ ।। नर े ! बु मान् पुल य मु नके पु रा स, वानर, क र तथा य ह ।। ७ ।। पुलह य सुता राज छरभा क तताः । ई

सहाः क पु षा ा ा ऋ ा ईहामृगा तथा ।। ८ ।। राजन्! पुलहके शरभ, सह, क पु ष, ा , रीछ, और ईहामृग (भे ड़या) जा तके पु ए ।। ८ ।। तोः तुसमाः पु ाः पत सहचा रणः । व ुता षु लोकेषु स य तपरायणाः ।। ९ ।। तु (य )-के पु तुके ही समान प व , तीन लोक म व यात, स यवाद , तपरायण तथा भगवान् सूयके आगे चलनेवाले साठ हजार वालख य ऋ ष ए ।। ९ ।। द वजायताङ् गु ाद् द णाद् भगवानृ षः । णः पृ थवीपाल शा ता मा सुमहातपाः ।। १० ।। भू मपाल! ाजीके दा हने अँगठ ू े से महातप वी शा त च मह ष भगवान् द उ प ए ।। १० ।। वामादजायताङ् गु ाद् भाया त य महा मनः । त यां प चाशतं क याः स एवाजनय मु नः ।। ११ ।। इसी कार उन महा माके बाय अँगठ ू े से उनक प नीका ा भाव आ। मह षने उसके गभसे पचास क याएँ उ प क ।। ११ ।। ताः सवा वनव ा यः क याः कमललोचनाः । पु काः थापयामास न पु ः जाप तः ।। १२ ।। वे सभी क याएँ परम सु दर अंग वाली तथा वक सत कमलके स श वशाल लोचन से सुशो भत थ । जाप त द के पु जब न हो गये, तब उ ह ने अपनी उन क या को पु का बनाकर रखा (और उनका ववाह पु काधमके अनुसार ही कया* ) ।। १२ ।। ददौ स दश धमाय स त वश त म दवे । द ेन व धना राजन् क यपाय योदश ।। १३ ।। राजन्! द ने दस क याएँ धमको, स ाईस क याएँ च माको और तेरह क याएँ मह ष क यपको द व धके अनुसार सम पत कर द ।। १३ ।। नामतो धमप य ताः क यमाना नबोध मे । क तल मीधृ तमधा पु ः ा या तथा ।। १४ ।। बु ल जा म त ैव प यो धम य ता दश । ारा येता न धम य व हता न वय भुवा ।। १५ ।। अब म धमक प नय के नाम बता रहा ँ, सुनो—क त, ल मी, धृ त, मेधा, पु , ा, या, बु , ल जा और म त—ये धमक दस प नयाँ ह। वय भू ाजीने इन सबको धमका ार न त कया है अथात् इनके ारा धमम वेश होता है ।। १४-१५ ।। स त वश तः सोम य प यो लोक य व ुताः । े



काल य नयने यु ाः सोमप यः शु च ताः ।। १६ ।। च माक स ाईस याँ सम त लोक म व यात ह। वे प व त धारण करनेवाली सोमप नयाँ काल- वभागका ापन करनेम नयु ह ।। १६ ।। सवा न यो ग यो लोकया ा वधानतः । पैतामहो मु नदव त य पु ः जाप तः । त या ौ वसवः पु ा तेषां व या म व तरम् ।। १७ ।। धरो ुव सोम अह ैवा नलोऽनलः । यूष भास वसवोऽ ौ क तताः ।। १८ ।। लोक- वहारका नवाह करनेके लये वे सब-क -सब न -वाचक नाम से यु ह। पतामह ाजीके तनसे उ प होनेके कारण मु नवर धमदे व उनके पु माने गये ह। जाप त द भी ाजीके ही पु ह। द क क या के गभसे धमके आठ पु उ प ए, ज ह वसुगण कहते ह। अब म वसु का व तारपूवक प रचय दे ता ँ। धर, ुव, सोम, अह, अ नल, अनल, यूष और भास—ये आठ वसु कहे गये ह ।। १७-१८ ।। धू ाया तु धरः पु ो व ो ुव तथा । च मा तु मन व याः ासायाः सन तथा ।। १९ ।। रताया ा यहः पु ः शा ड या ताशनः । यूष भास भातायाः सुतौ मृतौ ।। २० ।। धर और वे ा ुव धूाक े पु ह। च मा मन वनीके और अ नल ासाके पु ह। अह रताके और अनल शा डलीके पु ह तथा यूष और भास ये दोन भाताके पु बताये गये ह ।। १९-२० ।। धर य पु ो वणो तह वह तथा । ुव य पु ो भगवान् कालो लोक कालनः ।। २१ ।। धरके दो पु ए— वण तथा तह वह। सब लोक को अपना ास बनानेवाले भगवान् काल ुवके पु ह ।। २१ ।। सोम य तु सुतो वचा वच वी येन जायते । मनोहरायाः श शरः ाणोऽथ रमण तथा ।। २२ ।। सोमके मनोहरा नामक ीके गभसे थम तो वचा नामक पु आ, जससे लोग वच वी (तेज, का त और परा मसे स प ) होते ह, फर श शर, ाण तथा रमण नामक पु उ प ए ।। २२ ।। अ ः सुत तथा यो तः शमः शा त तथा मु नः । अ नेः पु ः कुमार तु ीमा छरवणालयः ।। २३ ।। अहके चार पु ए— यो त, शम, शा त तथा मु न। अनलके पु ीमान् कुमार ( क द) ए, जनका ज मकालम सरकंड के वनम नवास था ।। २३ ।। त य शाखो वशाख नैगमेय पृ जः । कृ का युपप े का तकेय इ त मृतः ।। २४ ।।

शाख, वशाख और नैगमेय* —ये तीन कुमारके छोटे भाई ह। छः कृ का को माता पम वीकार कर लेनेके कारण कुमारका सरा नाम का तकेय भी है ।। २४ ।। अ नल य शवा भाया त याः पु ो मनोजवः । अ व ातग त ैव ौ पु ाव नल य तु ।। २५ ।। अ नलक भायाका नाम शवा है। उसके दो पु ह—मनोजव तथा अ व ातग त। इस कार अ नलके दो पु कहे गये ह ।। २५ ।। यूष य व ः पु मृ ष ना नाथ दे वलम् । ौ पु ौ दे वल या प माव तौ मनी षणौ । बृह पते तु भ गनी वर ी वा दनी ।। २६ ।। योगस ा जगत् कृ नमस ा वचचार ह । भास य तु भाया सा वसूनाम म य ह ।। २७ ।। दे वल नामक सु स मु नको यूषका पु माना जाता है। दे वलके भी दो पु ए। वे दोन ही मावान् और मनीषी थे। बृह प तक ब हन यम े एवं वा दनी थ । वे योगम त पर हो स पूण जगत्म अनास भावसे वचरती रह । वे ही वसु म आठव वसु भासक धमप नी थ ।। २६-२७ ।। व कमा महाभागो ज े श प जाप तः । कता श पसह ाणां दशानां च वध कः ।। २८ ।। श पकमके ा महाभाग व कमा उ ह से उ प ए ह। वे सह श प के नमाता तथा दे वता के बढ़ई कहे जाते ह ।। २८ ।। भूषणानां च सवषां कता श पवतां वरः । यो द ा न वमाना न दशानां चकार ह ।। २९ ।। वे सब कारके भूषण को बनानेवाले और श पय म े ह। उ ह ने दे वता के असं य द वमान बनाये ह ।। २९ ।। मनु या ोपजीव त य य श पं महा मनः । पूजय त च यं न यं व कमाणम यम् ।। ३० ।। मनु य भी महा मा व कमाके श पका आ य ले जीवन नवाह करते ह और सदा उन अ वनाशी व कमाक पूजा करते रहते ह ।। ३० ।। तनं तु द णं भ वा णो नर व हः । नःसृतो भगवान् धमः सवलोकसुखावहः ।। ३१ ।। ाजीके दा हने तनको वद ण करके मनु य पम भगवान् धम कट ए, जो स पूण लोक को सुख दे नेवाले ह ।। ३१ ।। य त य वराः पु ाः सवभूतमनोहराः । शमः काम हष तेजसा लोकधा रणः ।। ३२ ।। े











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उनके तीन े पु ह, जो स पूण ा णय के मनको हर लेते ह। उनके नाम ह—शम, काम और हष। वे अपने तेजसे स पूण जगत्को धारण करनेवाले ह ।। ३२ ।। काम य तु र तभाया शम य ा तर ना । न दा तु भाया हष य यासु लोकाः त ताः ।। ३३ ।। कामक प नीका नाम र त है। शमक भाया ा त है। हषक प नी न दा है। इ ह म स पूण लोक त त ह ।। ३३ ।। मरीचेः क यपः पु ः क यप य सुरासुराः । ज रे नृपशा ल लोकानां भव तु सः ।। ३४ ।। मरी चके पु क यप और क यपके स पूण दे वता तथा असुर उ प ए। नृप े ! इस कार क यप स पूण लोक के आ द कारण ह ।। ३४ ।। वा ी तु स वतुभाया वडवा पधा रणी । असूयत महाभागा सा त र ेऽ नावुभौ ।। ३५ ।। ादशैवा दतेः पु ाः श मु या नरा धप । तेषामवरजो व णुय लोकाः त ताः ।। ३६ ।। व ाक पु ी सं ा भगवान् सूयक धमप नी ह। वे परम सौभा यवती ह। उ ह ने अ नी (घोड़ी)-का प धारण करके अ त र म दोन अ नीकुमार को ज म दया। राजन्! अ द तके इ आ द बारह पु ही ह। उनम भगवान् व णु सबसे छोटे ह, जनम ये स पूण लोक त त ह ।। ३५-३६ ।। य ंशत इ येते दे वा तेषामहं तव । अ वयं स व या म प ै कुलतो गणान् ।। ३७ ।। इस कार आठ वसु, यारह , बारह आ द य तथा जाप त और वषट् कार—ये ततीस मु य दे वता ह। अब म तु ह इनके प और कुल आ दके उ लेखपूवक वंश और गण आ दका प रचय दे ता ँ ।। ३७ ।। ाणामपरः प ः सा यानां म तां तथा । वसूनां भागवं व ाद् व ेदेवां तथैव च ।। ३८ ।। का एक अलग प या गण है, सा य, म त् तथा वसु का भी पृथक्पृथक् गण है। इसी कार भागव तथा व ेदेवगणको भी जानना चा हये ।। ३८ ।। वैनतेय तु ग डो बलवान ण तथा । बृह प त भगवाना द ये वेव ग यते ।। ३९ ।। वनतान दन ग ड, बलवान् अ ण तथा भगवान् बृह प तक गणना आ द य म ही क जाती है ।। ३९ ।। अ नौ गु कान् व सव ष य तथा पशून् । एते दे वगणा राजन् क तता तेऽनुपूवशः ।। ४० ।। ी ो े ी

अ नीकुमार, सवष ध तथा पशु—इन सबको गु कसमुदायके भीतर समझो। राजन्! ये दे वगण तु ह मशः बताये गये ह ।। ४० ।। यान् क त य वा मनुजः सवपापैः मु यते । णो दयं भ वा नःसृतो भगवान् भृगुः ।। ४१ ।। मनु य इन सबका क तन करके सब पाप से मु हो जाता है। भगवान् भृगु ाजीके दयका भेदन करके कट ए थे ।। ४१ ।। भृगोः पु ः क व व ा छु ः क वसुतो हः । ैलो य ाणया ाथ वषावष भयाभये । वय भुवा नयु ः सन् भुवनं प रधाव त ।। ४२ ।। भृगक ु े व ान् पु क व ए और क वके पु शु ाचाय ए, जो ह होकर तीन लोक के जीवनक र ाके लये वृ , अनावृ तथा भय और अभय उ प करते ह। वय भू ाजीक ेरणासे वे सम त लोक का च कर लगाते रहते ह ।। ४२ ।। योगाचाय महाबु द यानामभवद् गु ः । सुराणां चा प मेधावी चारी यत तः ।। ४३ ।। महाबु मान् शु ही योगके आचाय और दै य के गु ए। वे ही योगबलसे मेधावी, चारी एवं तपरायण बृह प तके पम कट हो दे वता के भी गु होते ह ।। ४३ ।। त मन् नयु े व धना योग ेमाय भागवे । अ यमु पादयामास पु ं भृगुर न दतम् ।। ४४ ।। ाजीने जब भृगप ु ु शु को जगत्के योग ेमके कायम नयु कर दया, तब मह ष भृगन ु े एक सरे नद ष पु को ज म दया ।। ४४ ।। यवनं द ततपसं धमा मानं यश वनम् । यः स रोषा युतो गभा मातुम ाय भारत ।। ४५ ।। जसका नाम था यवन। मह ष यवनक तप या सदा उ त रहती है। वे धमा मा और यश वी ह। भारत! वे अपनी माताको संकटसे बचानेके लये रोषपूवक गभसे युत हो गये थे (इसी लये यवन कहलाये) ।। ४५ ।। आ षी तु मनोः क या त य प नी मनी षणः । औव त यां समभव ं भ वा महायशाः ।। ४६ ।। मनुक पु ी आ षी मनीषी यवन मु नक प नी थी। उससे महायश वी औव मु नका ज म आ। वे अपनी माताक ऊ (जाँघ) फाड़कर कट ए थे; इस लये औव कहलाये ।। ४६ ।। महातेजा महावीय बाल एव गुणैयुतः । ऋचीक त य पु तु जमद न ततोऽभवत् ।। ४७ ।। वे महान् तेज वी और अ य त श शाली थे। बचपनम ही अनेक सद्गुण उनक शोभा बढ़ाने लगे। औवके पु ऋचीक तथा ऋचीकके पु जमद न

ए ।। ४७ ।। जमद ने तु च वार आसन् पु ा महा मनः । राम तेषां जघ योऽभूदजघ यैगुणैयुतः । सवश ेषु कुशलः या तकरो वशी ।। ४८ ।। महा मा जमद नके चार पु थे, जनम परशुरामजी सबसे छोटे थे; कतु उनके गुण छोटे नह थे। वे े सद्गुण से वभू षत थे, स पूण श व ाम कुशल, य-कुलका संहार करनेवाले तथा जते य थे ।। ४८ ।। औव यासीत् पु शतं जमद नपुरोगमम् । तेषां पु सह ा ण बभूवुभु व व तरः ।। ४९ ।। औव मु नके जमद न आ द सौ पु थे। फर उनके भी सह पु ए। इस कार इस पृ वीपर भृगव ु ंशका व तार आ ।। ४९ ।। ौ पु ौ ण व यौ ययो त त ल णम् । लोके धाता वधाता च यौ थतौ मनुना सह ।। ५० ।। ाजीके दो पु और थे, जनका धारण-पोषण और सृ प ल ण लोकम सदा ही उपल ध होता है। उनके नाम ह धाता और वधाता। ये मनुके साथ रहते ह ।। ५० ।। तयोरेव वसा दे वी ल मीः पगृहा शुभा । त या तु मानसाः पु ा तुरगा ोमचा रणः ।। ५१ ।। व ण य भाया या ये ा शु ाद् दे वी जायत । त याः पु ं बलं व सुरां च सुरन दनीम् ।। ५२ ।। कमल म नवास करनेवाली शुभ व पा ल मीदे वी उन दोन क ब हन ह। आकाशम वचरनेवाले अ ल मीदे वीके मानस पु ह। राजन्! व णके बीजसे उनक ये प नी दे वीने एक पु और एक पु ीको ज म दया। उसके पु को तो बल और दे वन दनी पु ीको सुरा समझो ।। ५१-५२ ।। जानाम कामानाम यो यप रभ णात् । अधम त संजातः सवभूत वनाशकः ।। ५३ ।। तदन तर एक समय ऐसा आया, जब जा भूखसे पी ड़त हो भोजनक इ छासे एक- सरेको मारकर खाने लगी, उस समय वहाँ अधम कट आ, जो सम त ा णय का नाश करनेवाला है ।। ५३ ।। त या प नऋ तभाया नैऋता येन रा साः । घोरा त या यः पु ाः पापकमरताः सदा ।। ५४ ।। अधमक ी नऋ त ई, जससे नैऋत नामवाले तीन भयंकर रा स पु उ प ए, जो सदा पापकमम ही लगे रहनेवाले ह ।। ५४ ।। भयो महाभय ैव मृ युभूता तक तथा । न त य भाया पु ो वा क द य तको ह सः ।। ५५ ।। े



उनके नाम इस कार ह—भय, महाभय और मृ यु। उनम मृ यु सम त ा णय का अ त करनेवाला है। उसके प नी या पु कोई नह है, य क वह सबका अ त करनेवाला है ।। ५५ ।। काक येन तथा भास धृतरा तथा शुक म् । ता ा तु सुषुवे दे वी प चैता लोक व ुताः ।। ५६ ।। दे वी तााने काक , येनी, भासी, धृतराी तथा शुक —इन पाँच लोक व यात क या को उ प कया ।। ५६ ।। उलूकान् सुषुवे काक येनी येनान् जायत । भासी भासानजनयद् गृ ां ैव जना धप ।। ५७ ।। जने र! काक ने उ लु और येनीने बाज को ज म दया; भासीने मुग तथा गीध को उ प कया ।। ५७ ।। धृतरा ी तु हंसां कलहंसां सवशः । च वाकां भ ा तु जनयामास सैव तु ।। ५८ ।। शुक च जनयामास शुकानेव यश वनी । क याणगुणस प ा सवल णपू जता ।। ५९ ।। क याणमयी धृतराीने सब कारके हंस , कल-हंस तथा च वाक को ज म दया। क याणमय गुण से स प तथा सम त शुभ ल ण से यु यश वनी शुक ने शुक (तोत )-को ही उ प कया ।। ५८-५९ ।। नव ोधवशा नारीः ज े ोधस भवाः । मृगी च मृगम दा च हरी भ मना अ प ।। ६० ।। मात वथ शा ली ेता सुर भरेव च । सवल णस प ा सुरसा चैव भा मनी ।। ६१ ।। ोधवशाने नौ कारक ोधज नत क या को ज म दया। उनके नाम ये ह—मृगी, मृगम दा, हरी, भ मना, मातंगी, शा ली, ेता, सुर भ तथा स पूण शुभ ल ण से स प सु दरी सुरसा ।। ६०-६१ ।। अप यं तु मृगाः सव मृ या नरवरो म । ऋ ा मृगम दायाः सृमरा परंतप ।। ६२ ।। तत वैसवतं नागं ज े भ मनाः सुतम् । ऐरावतः सुत त या दे वनागो महागजः ।। ६३ ।। नर े ! सम त मृग मृगीक संतान ह। परंतप! मृगम दासे रीछ तथा सृमर (छोट जा तके मृग) उ प ए। भ मनाने ऐरावत हाथीको अपने पु पम उ प कया। दे वता का हाथी महान् गजराज ऐरावत भ मनाका ही पु है ।। ६२-६३ ।। हया हरयोऽप यं वानरा तर वनः । गोलांगूलां भ ं ते हयाः पु ान् च ते ।। ६४ ।। ज े वथ शा ली सहान् ा ाननेकशः । े

पन महास वान् सवानेव न संशयः ।। ६५ ।। राजन्! तु हारा क याण हो, वेगवान् घोड़े और वानर हरीके पु ह। गायके समान पूँछवाले लंगरू को भी हरीका ही पु बताया जाता है। शा लीने सह , अनेक कारके बाघ और महान् बलशाली सभी कारके चीत को भी ज म दया, इसम संशय नह है ।। ६४-६५ ।। मात य प च मात ानप या न नरा धप । दशां गजं तु ेता यं ेताजनयदाशुगम् ।। ६६ ।। तथा हतरौ राजन् सुर भव जायत । रो हणी चैव भ ं ते ग धव तु यश वनी ।। ६७ ।। नरे र! मातंगीने मतवाले हा थय को संतानके पम उ प कया। ेताने शी गामी द गज ेतको ज म दया। राजन्! तु हारा भला हो, सुर भने दो क या को उ प कया। उनमसे एकका नाम रो हणी था और सरीका ग धव । ग धव बड़ी यश वनी थी ।। ६६-६७ ।। वमलाम प भ ं ते अनलाम प भारत । रो ह यां ज रे गावो ग ध ा वा जनः सुताः । स त प डफलान् वृ ाननला प जायत ।। ६८ ।। भारत! त प ात् रो हणीने वमला और अनला नामवाली दो क याएँ और उ प क। रो हणीसे गाय-बैल और ग धव से घोड़े ही पु पम उ प ए। अनलाने सात कारके वृ को* उ प कया, जनम प डाकार फल लगते ह ।। ६८ ।। अनलायाः शुक पु ी कङ् क तु सुरसासुतः । अ ण य भाया येनी तु वीयव तौ महाबलौ ।। ६९ ।। स पा त जनयामास वीयव तं जटायुषम् । सुरसाजनय ागान् क ःू पु ां तु प गान् ।। ७० ।। ौ पु ौ वनताया तु व यातौ ग डा णौ । अनलाके शुक नामक एक क या भी ई। कंक प ी सुरसाका पु है। अ णक प नी येनीने दो महाबली और परा मी पु उ प कये। एकका नाम था स पाती और सरेका जटायु। जटायु बड़ा श शाली था। सुरसा और क न ू े नाग एवं प ग जा तके पु को उ प कया। वनताके दो ही पु व यात ह, ग ड और अ ण ।। ६९-७० ।। (सुरसाजनयत् सपा छतमेक शरोधरान् । सुरसाक यका जाता त ः कमललोचनाः ।। वन पतीनां वृ ाणां वी धां चैव मातरः । अनला हा च े ो े वी धां चैव ताः मृताः ।। गृ त ये वना पु पं फला न तरवः पृथक् । े







अनलासुता ते व ेयाः तानेवा वन पतीन् ।। पु पैः फल हान् वृ ान् हायाः सवान् वभो । लतागु मा न व य व सारतृणजातयः ।। वी धायाः जा ताः युर वंशः समा यते ।) सुरसाने एक सौ एक सरवाले सप को ज म दया था। सुरसासे तीन कमलनयनी क याएँ उ प , जो वन प तय , वृ और लता-गु म क जननी । उनके नाम इस कार ह—अनला, हा और वी धा। जो वृ बना फूलके ही फल हण करते ह उन सबको अनलाका पु जानना चा हये; वे ही वन प त कहलाते ह। भो! जो फूलसे फल हण करते ह उन वृ को हाक संतान समझो। लता, गु म, व ली, बाँस और तनक क जतनी जा तयाँ ह उन सबक उ प वी धासे ई है। यहाँ वंशवणन समा त होता है। इ येष सवभूतानां महतां मनुजा धप । भवः क ततः स यङ् मया म तमतां वर ।। ७१ ।। यं ु वा पु षः स यङ् मु ो भव त पा मनः । सव तां च लभते ग तम यां च व द त ।। ७२ ।। बु मान म े राजा जनमेजय! इस कार मने स पूण महाभूत क उ प का भलीभाँ त वणन कया है। जसे अ छ तरह सुनकर मनु य सब पाप से पूणतः मु हो जाता है और सव ता तथा उ म ग त ा त कर लेता है ।। ७१-७२ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण षट् ष तमोऽ यायः ।। ६६ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम अंशावतरण वषयक छाछठवाँ अ याय पूरा आ ।। ६६ ।। (दा णा य अ धक पाठक े ४ ोक मलाकर कुल ७६ ोक ह)



* मनु मृ तम जाप त द को ही पु का- व धका वतक बताकर उसका ल ण इस कार दया है

अपु ोऽनेन व धना सुतां कुव त पु काम् । यदप यं भवेद यां त मम यात् वधाकरम् ।। (९।१२७) जसके पु न ह वह न नां कत व धसे अपनी क याको पु का बना ले—यह संक प कर ले क इस क याके गभसे जो बालक उ प हो, वह मेरा ा ा द कम करनेवाला पु प हो। * कसी- कसीके मतम शाख, वशाख और नैगमेय—ये तीन नाम कुमार का तकेयके ही ह। क ह के मतम कुमार का तकेयके पु क सं ा शाख, वशाख और नैगमेय है। क पभेदसे सभी ठ क हो सकते ह। * खजूरं ताल ह तालौ ताली खजू रका तथा । गुणका ना रकेल स त प डफला माः ।। (खजूर, ताल, ह ताल, ताली, छोटे खजूर, सोपारी और ना रयल—ये सात प डाकार फलवाले वृ ह।)

स तष तमोऽ यायः दे वता और दै य आ दके अंशावतार का द दशन जनमेजय उवाच दे वानां दानवानां च ग धव रगर साम् । सह ा मृदगाणां च प गानां पत णाम् ।। १ ।। सवषां चैव भूतानां स भवं भगव हम् । ोतु म छा म त वेन मानुषेषु महा मनाम् । ज म कम च भूतानामेतेषामनुपूवशः ।। २ ।। जनमेजयने कहा—भगवन्! म मनु य-यो नम अंशतः उ प ए दे वता, दानव, ग धव, नाग, रा स, सह, ा , ह रण, सप, प ी एवं स पूण भूत के ज मका वृ ा त यथाथ पसे सुनना चाहता ँ। मनु य म जो महा मा पु ष ह, उनके तथा इन सभी ा णय के ज म-कमका मशः वणन सुनना चाहता ँ ।। १२ ।। वैश पायन उवाच मानुषेषु मनु ये स भूता ये दवौकसः । थमं दानवां ैव तां ते व या म सवशः ।। ३ ।। व च र त यातो य आसीद् दानवषभः । जरास ध इ त यातः स आसी मनुजषभः ।। ४ ।। दतेः पु तु यो राजन् हर यक शपुः मृतः । स ज े मानुषे लोके शशुपालो नरषभः ।। ५ ।। वैश पायनजी बोले—नरे ! मनु य म जो दे वता और दानव कट ए थे, उन सबके ज मका ही पहले तु ह प रचय दे रहा ँ। व च नामसे व यात जो दानव का राजा था, वही मनु य म े जरास ध नामसे व यात आ। राजन्! हर यक शपु नामसे स जो द तका पु था, वही मनु यलोकम नर े शशुपालके पम उ प आ ।। ३-५ ।। सं ाद इ त व यातः ाद यानुज तु यः । स श य इ त व यातो ज े बा कपु वः ।। ६ ।। अनु ाद तु तेज वी योऽभूत् यातो जघ यजः । धृ केतु र त यातः स बभूव नरे रः ।। ७ ।। ादका छोटा भाई जो संादक े नामसे व यात था, वही बा क दे शका सु स राजा श य आ। ादका ही सरा छोटा भाई जसका नाम अनुाद था, धृ केतु नामक राजा आ ।। ६-७ ।। य तु राज छ बनाम दै तेयः प रक ततः । म इ य भ व यातः स आसीद् भु व पा थवः ।। ८ ।। ो











राजन्! जो श ब नामका दै य कहा गया है, वही इस पृ वीपर म नामसे व यात राजा आ ।। ८ ।। बा कलो नाम य तेषामासीदसुरस मः । भगद इ त यातः स ज े पु षषभः ।। ९ ।। असुर म े जो बा कल था, वही नर े भगद के नामसे उ प आ ।। ९ ।। अयः शरा अ शरा अयःशङ् कु वीयवान् । तथा गगनमूधा च वेगवां ा प चमः ।। १० ।। प चैते ज रे राजन् वीयव तो महासुराः । केकयेषु महा मानः पा थवषभस माः । केतुमा न त व यातो य ततोऽ यः तापवान् ।। ११ ।। अ मतौजा इ त यातः सो कमा नरा धपः । वभानु र त व यातः ीमान् य तु महासुरः ।। १२ ।। उ सेन इ त यात उ कमा नरा धपः । य व इ त व यातः ीमानासी महासुरः ।। १३ ।। अशोको नाम राजाभू महावीय ऽपरा जतः । त मादवरजो य तु राज प तः मृतः ।। १४ ।। दै तेयः सोऽभवद् राजा हा द यो मनुजषभः । वृषपव त व यातः ीमान् य तु महासुरः ।। १५ ।। दघ इ त यातः पृ थ ां सोऽभव ृपः । अजक ववरो राजन् य आसीद् वृषपवणः ।। १६ ।। स शा व इ त व यातः पृ थ ामभव ृपः । अ ीव इ त यातः स ववान् यो महासुरः ।। १७ ।। रोचमान इ त यातः पृ थ ां सोऽभव ृपः । सू म तु म तमान् राजन् क तमान् यः क ततः ।। १८ ।। बृह थ इ त यातः तावासीत् स पा थवः । तु ड इ त व यातो य आसीदसुरो मः ।। १९ ।। सेना ब र त यातः स बभूव नरा धपः । इषुपा ाम य तेषामसुराणां बला धकः ।। २० ।। न न ज ाम राजासीद् भु व व यात व मः । एकच इ त यात आसीद् य तु महासुरः ।। २१ ।। त व य इ त यातो बभूव थतः तौ । व पा तु दै तेय योधी महासुरः ।। २२ ।। च धम त व यातः तावासीत् स पा थवः । हर व रहरो वीर आसीद् यो दानवो मः ।। २३ ।। सुबा र त व यातः ीमानासीत् स पा थवः । अहर तु महातेजाः श ुप यंकरः ।। २४ ।। ो ौ

बा को नाम राजा स बभूव थतः तौ । नच व तु य आसीदसुरो मः ।। २५ ।। मु केश इ त यातः ीमानासीत् स पा थवः । नकु भ व जतः सं ये महाम तरजायत ।। २६ ।। भूमौ भू मप तः े ो दे वा धप इ त मृतः । शरभो नाम य तेषां दै तेयानां महासुरः ।। २७ ।। पौरवो नाम राज षः स बभूव नरो मः । कुपट तु महावीयः ीमान् राजन् महासुरः ।। २८ ।। सुपा इ त व यातः तौ ज े महीप तः । थ तु राजन् राज षः तौ ज े महासुरः ।। २९ ।। पावतेय इ त यातः का चनाचलसं नभः । तीयः शलभ तेषामसुराणां बभूव ह ।। ३० ।। ादो नाम बा कः स बभूव नरा धपः । च तु द तज े ो लोके तारा धपोपमः ।। ३१ ।। च वम त व यातः का बोजानां नरा धपः । अक इ य भ व यातो य तु दानवपु वः ।। ३२ ।। ऋ षको नाम राज षबभूव नृपस मः । मृतपा इ त व यातो य आसीदसुरो मः ।। ३३ ।। प मानूपकं व तं नृपं नृपस म । ग व तु महातेजा यः यातो महासुरः ।। ३४ ।। मसेन इ त यातः पृ थ ां सोऽभव ृपः । मयूर इ त व यातः ीमान् य तु महासुरः ।। ३५ ।। स व इ त व यातो बभूव पृ थवीप तः । सुपण इ त व यात त मादवरज तु यः ।। ३६ ।। कालक त र त यातः पृ थ ां सोऽभव ृपः । च ह ते त य तेषां क ततः वरोऽसुरः ।। ३७ ।। शुनको नाम राज षः स बभूव नरा धपः । वनाशन तु च य य आ यातो महासुरः ।। ३८ ।। जान कनाम व यातः सोऽभव मनुजा धपः । द घ ज तु कौर य उ ो दानवषभः ।। ३९ ।। का शराजः स व यातः पृ थ ां पृ थवीपते । हं तु सुषुवे यं तु स हकाक मदनम् । स ाथ इ त व यातो बभूव मनुजा धपः ।। ४० ।। अयः शरा, अ शरा, वीयवान् अयःशंकु, गगनमूधा और वेगवान्—राजन्! ये पाँच परा मी महादै य केकय दे शके धान- धान महा मा राजा के पम उ प ए। उनसे भ केतुमान् नामसे स तापी महान् असुर अ मतौजा नामसे व यात राजा आ, ो े ो ी ी

जो भयानक कम करनेवाला था। वभानु नामवाला जो ीस प महान् असुर था, वही भयंकर कम करनेवाला राजा उ सेन कहलाया। अ नामसे व यात जो ीस प महान् असुर था, वही कसीसे परा त न होनेवाला महापरा मी राजा अशोक आ। राजन्! उसका छोटा भाई जो अ प त नामक दै य था, वही मनु य म े हाद य नामवाला राजा आ। वृषपवा नामसे स जो ीमान् महादै य था, वह पृ वीपर द घ नामक राजा आ। राजन्! वृषपवाका छोटा भाई जो अजक था, वही इस भूम डलम शा व नामसे स राजा आ। अ ीव नामवाला जो धैयवान् महादै य था, वह पृ वीपर रोचमान नामसे व यात राजा आ। राजन्! बु मान् और यश वी सू म नामसे स जो दै य कहा गया है, वह इस पृ वीपर बृह थ नामसे व यात राजा आ है। असुर म े जो तु ड नामक दै य था, वही यहाँ सेना ब नामसे व यात राजा आ। असुर के समाजम जो सबसे अ धक बलवान् था, वह इषुपाद नामक दै य इस पृ वीपर व यात परा मी न न जत् नामक राजा आ। एकच नामसे स जो महान् असुर था, वही इस पृ वीपर त व य नामसे व यात राजा आ। व च यु करनेवाला महादै य व पा इस पृ वीपर च धमा नामसे स राजा आ। श ु का संहार करनेवाला जो वीर दानव े हर था, वही सुबा नामक ीस प राजा आ। श ुप का वनाश करनेवाला महातेज वी अहर इस भूम डलम बा क नामसे व यात राजा आ। च माके समान सु दर मुखवाला जो असुर े नच था, वही मुंजकेश नामसे व यात ीस प राजा आ। परम बु मान् नकु भ जो यु म अजेय था, वह इस भू मपर भूपाल म े दे वा धप कहलाया। दै य म जो शरभ नामसे स महान् असुर था, वही मनु य म े राज ष पौरव आ। राजन्! महापरा मी महान् असुर कुपट ही इस पृ वीपर राजा सुपा के पम उ प आ। महाराज! महादै य थ इस पृ वीपर राज ष पावतेयके नामसे उ प आ, उसका शरीर मे पवतके समान वशाल था। असुर म शलभ नामसे स जो सरा दै य था, वह बा कवंशी राजा ाद आ। दै य े च इस लोकम च माके समान सु दर और च वमा नामसे व यात का बोज दे शका राजा आ। अक नामसे व यात जो दानव का सरदार था, वही नरप तय म े राज ष ऋ षक आ। नृप शरोमणे! मृतपा नामसे स जो े असुर था, उसे प म अनूप दे शका राजा समझो। ग व नामसे स जो महातेज वी असुर था, वही इस पृ वीपर मसेन नामक राजा आ। मयूर नामसे स जो ीमान् एवं महान् असुर था, वही व नामसे व यात राजा आ। मयूरका छोटा भाई सुपण ही भूम डलम कालक त नामसे स राजा आ। दै य म जो च ह ता नामसे स े असुर कहा गया है, वही मनु य का वामी राज ष शुनक आ। इसी कार जो च वनाशन नामक महान् असुर बताया गया है, वही जान क नामसे स राजा आ। कु े जनमेजय! द घ ज नामसे स दानवराज ही इस पृ वीपर का शराजके नामसे व यात था। स हकाने सूय और च माका मान मदन करनेवाले जस रा नामक हको ज म दया था, वही यहाँ ाथ नामसे स राजा आ ।। १०-४० ।। दनायुष तु पु ाणां चतुणा वरोऽसुरः । व रो नाम तेज वी वसु म ो नृपः मृतः ।। ४१ ।। े ो े ै े ी ँ

दनायुके चार पु म जो सबसे बड़ा है, वह व र नामक तेज वी असुर यहाँ राजा वसु म बताया गया है ।। ४१ ।। तीयो व राद् य तु नरा धप महासुरः । पा रा ा धप इ त व यातः सोऽभव ृपः ।। ४२ ।। नरा धप! व रसे छोटा उसका सरा भाई बल, जो असुर का राजा था, पा दे शका सु व यात राजा आ ।। ४२ ।। बली वीर इ त यातो य वासीदसुरो मः । पौ मा यक इ येवं बभूव स नरा धपः ।। ४३ ।। महाबली वीर नामसे व यात जो े असुर ( व रका तीसरा भाई) था, पौ मा यक नामसे स राजा आ ।। ४३ ।। वृ इ य भ व यातो य तु राजन् महासुरः । म णमा ाम राज षः स बभूव नरा धपः ।। ४४ ।। राजन्! जो वृ नामसे व यात (और व रका चौथा भाई) महान् असुर था, वही पृ वीपर राज ष म णमान्के नामसे स भूपाल आ ।। ४४ ।। ोधह ते त य त य बभूवावरजोऽसुरः । द ड इ य भ व यातः स आसी ृप तः तौ ।। ४५ ।। ोधह ता नामक असुर जो उसका छोटा भाई (कालाके पु म तीसरा) था, वह इस पृ वीपर द ड नामसे व यात नरेश आ ।। ४५ ।। ोधवधन इ येवं य व यः प रक ततः । द डधार इ त यातः सोऽभव मनुजषभः ।। ४६ ।। ोधवधन नामक जो सरा दै य कहा गया है, वह मनु य म े द डधार नामसे व यात आ ।। ४६ ।। कालेयानां तु ये पु ा तेषाम ौ नरा धपाः । ज रे राजशा ल शा लसम व माः ।। ४७ ।। नृप े ! कालेय नामक दै य के जो पु थे, उनमसे आठ इस पृ वीपर सहके समान परा मी राजा ए ।। ४७ ।। मगधेषु जय सेन तेषामासीत् स पा थवः । अ ानां वर तेषां कालेयानां महासुरः ।। ४८ ।। उन आठ कालेय म े जो महान् असुर था, वही मगध दे शम जय सेन नामक राजा आ ।। ४८ ।। तीय तु तत तेषां ीमान् ह रहयोपमः । अपरा जत इ येवं स बभूव नरा धपः ।। ४९ ।। उन कालेय मसे जो सरा इ के समान ीस प था, वही अपरा जत नामक राजा आ ।। ४९ ।। तृतीय तु महातेजा महामायो महासुरः । नषादा धप तज े भु व भीमपरा मः ।। ५० ।। ी ो े ी औ ी ै ी

तीसरा जो महान् तेज वी और महामायावी महादै य था, वह इस पृ वीपर भयंकर परा मी नषादनरेशके पम उ प आ ।। ५० ।। तेषाम यतमो य तु चतुथः प रक ततः । े णमा न त व यातः तौ राज षस मः ।। ५१ ।। कालेय मसे ही एक जो चौथा बताया गया है, वह इस भूम डलम राज ष वर े णमान्के नामसे व यात आ ।। ५१ ।। प चम वभवत् तेषां वरो यो महासुरः । महौजा इ त व यातो बभूवेह परंतपः ।। ५२ ।। कालेय म जो पाँचवाँ े महादै य था, वही इस लोकम श ुतापन महौजाके नामसे व यात आ ।। ५२ ।। ष तु म तमान् यो वै तेषामासी महासुरः । अभी र त व यातः तौ राज षस मः ।। ५३ ।। उन कालेय म जो छठा महान् असुर था, वह भूम डलम राज ष शरोम ण अभी के नामसे स आ ।। ५३ ।। समु सेन तु नृप तेषामेवाभवद् गणात् । व ुतः सागरा तायां तौ धमाथत व वत् ।। ५४ ।। उ ह मसे सातवाँ असुर राजा समु सेन आ, जो समु पय त पृ वीपर सब ओर व यात और धम एवं अथत वका ाता था ।। ५४ ।। बृह ामा म तेषां कालेयानां नरा धप । बभूव राजा धमा मा सवभूत हते रतः ।। ५५ ।। राजन्! कालेय म जो आठवाँ था, वह बृहत् नामसे स सवभूत हतकारी धमा मा राजा आ ।। ५५ ।। कु तु राजन् व यातो दानवानां महाबलः । पावतीय इ त यातः का चनाचलसं नभः ।। ५६ ।। महाराज! दानव म कु नामसे स जो महाबली राजा था, वह पावतीय नामक राजा आ; जो मे ग रके समान तेज वी एवं वशाल था ।। ५६ ।। थन महावीयः ीमान् राजा महासुरः । सूया इ त व यातः तौ ज े महीप तः ।। ५७ ।। महापरा मी थन नामक जो ीस प महान् असुर था, वह भूम डलम पृ वीप त राजा सूया नामसे उ प आ ।। ५७ ।। असुराणां तु यः सूयः ीमां ैव महासुरः । दरदो नाम बा को वरः सवमही ताम् ।। ५८ ।। असुर म जो सूय नामक ीस प महान् असुर था, वही पृ वीपर सब राजा म े दरद नामक बा कराज आ ।। ५८ ।। गणः ोधवशो नाम य ते राजन् क ततः । ततः संज रे वीराः ता वह नरा धपाः ।। ५९ ।। ो ै े ो

राजन्! ोधवश नामक जन असुरगण का तु ह प रचय दया है, उ ह मसे कुछ लोग इस पृ वीपर न नां कत वीर राजा के पम उ प ए ।। ५९ ।। म कः कणवे स ाथः क टक तथा । सुवीर सुबा महावीरोऽथ बा कः ।। ६० ।। थो व च ः सुरथः ीमान् नील भू मपः । चीरवासा कौर भू मपाल नामतः ।। ६१ ।। द तव नामासीद् जय ैव दानवः । मी च नृपशा लो राजा च जनमेजयः ।। ६२ ।। आषाढो वायुवेग भू रतेजा तथैव च । एकल ः सु म वाटधानोऽथ गोमुखः ।। ६३ ।। का षका राजानः ेमधू त तथैव च । ुतायु ह ैव बृह सेन तथैव च ।। ६४ ।। ेमो तीथः कुहरः क ल े षु नरा धपः । म तमां मनु ये ई र े त व ुतः ।। ६५ ।। म क, कणवे , स ाथ, क टक, सुवीर, सुबा , महावीर, बा क, थ, व च , सुरथ, ीमान् नील नरेश, चीरवासा, भू मपाल, द तव , दानव जय, नृप े मी, राजा जनमेजय, आषाढ, वायुवेग, भू रतेजा, एकल , सु म , वाटधान, गोमुख, क षदे शके अनेक राजा, ेमधू त, ुतायु, उ ह, बृह सेन, ेम, उ तीथ, क लग-नरेश कुहर तथा परम बु मान् मनु य का राजा ई र ।। ६०—६५ ।। गणात् ोधवशादे ष राजपूगोऽभवत् तौ । जातः पुरा महाभागो महाक तमहाबलः ।। ६६ ।। इतने राजा का समुदाय पहले इस पृ वीपर ोधवश नामक दै यगणसे उ प आ था। ये सब राजा परम सौभा यशाली, महान् यश वी और अ य त बलशाली थे ।। ६६ ।। कालने म र त यातो दानवानां महाबलः । स कंस इ त व यात उ सेनसुतो बली ।। ६७ ।। दानव म जो महाबली कालने म था, वही राजा उ सेनके पु बलवान् कंसके नामसे व यात आ ।। ६७ ।। य वासीद् दे वको नाम दे वराजसम ु तः । स ग धवप तमु यः तौ ज े नरा धपः ।। ६८ ।। इ के समान का तमान् राजा दे वकके पम इस पृ वीपर े ग धवराज ही उ प आ था ।। ६८ ।। बृह पतेबृह क तदवष व भारत । अंशाद् ोणं समु प ं भार ाजमयो नजम् ।। ६९ ।। भारत! महान् क तशाली दे व ष बृह प तके अंशसे अयो नज भर ाजन दन ोण उ प ए, यह जान लो ।। ६९ ।। ध वनां नृपशा ल यः सवा व मः । े े े

महाक तमहातेजाः स ज े मनुजे र ।। ७० ।। नृप े राजा जनमेजय! आचाय ोण सम त धनुधर वीर म उ म और स पूण अ के ाता थे। उनक क त ब त रतक फैली ई थी। वे महान् तेज वी थे ।। ७० ।। धनुवदे च वेदे च यं तं वेद वदो व ः । व र ं च कमाणं ोणं वकुलवधनम् ।। ७१ ।। वेदवे ा व ान् ोणको धनुवद और वेद दोन म सव े मानते थे। वे व च कम करनेवाले तथा अपने कुलक मयादाको बढ़ानेवाले थे ।। ७१ ।। महादे वा तका यां च कामात् ोधा च भारत । एक वमुपप ानां ज े शूरः परंतपः ।। ७२ ।। अ थामा महावीयः श ुप भयावहः । वीरः कमलप ा ः तावासी रा धप ।। ७३ ।। भारत! उनके यहाँ महादे व, यम, काम और ोधके स म लत अंशसे श ुसंतापी शूरवीर अ थामाका ज म आ, जो इस पृ वीपर महापरा मी और श ुप का संहार करनेवाला वीर था। राजन्! उसके ने कमलदलके समान वशाल थे ।। ७२-७३ ।। ज रे वसव व ौ ग ायां शा तनोः सुताः । व स य च शापेन नयोगाद् वासव य च ।। ७४ ।। मह ष व स के शाप और इ के आदे शसे आठ वसु गंगाजीके गभसे राजा शा तनुके पु पम उ प ए ।। ७४ ।। तेषामवरजो भी मः कु णामभयंकरः । म तमान् वेद वद् वा मी श ुप यंकरः ।। ७५ ।। उनम सबसे छोटे भी म थे, ज ह ने कौरववंशको नभय बना दया था। वे परम बु मान्, वेदवे ा, व ा तथा श ुप का संहार करनेवाले थे ।। ७५ ।। जामद येन रामेण सवा व षां वरः । योऽयु यत महातेजा भागवेण महा मना ।। ७६ ।। स पूण अ -श के व ान म े महातेज वी भी मने भृगव ु ंशी महा मा जमद नन दन परशुरामजीके साथ यु कया था ।। ७६ ।। य तु राजन् कृपो नाम षरभवत् तौ । ाणां तु गणाद् व स भूतम तपौ षम् ।। ७७ ।। महाराज! जो कृप नामसे स ष इस पृ वीपर कट ए थे, उनका पु षाथ असीम था। उ ह गणके अंशसे उ प आ समझो ।। ७७ ।। शकु ननाम य वासीद् राजा लोके महारथः । ापरं व तं राजन् स भूतम रमदनम् ।। ७८ ।। राजन्! जो इस जगत्म महारथी राजा शकु नके नामसे व यात था, उसे तुम ापरके अंशसे उ प आ मानो। वह श ु का मान-मदन करनेवाला था ।। ७८ ।। सा य कः स यस ध योऽसौ वृ णकुलो हः । प ात् स ज े म तां दे वानाम रमदनः ।। ७९ ।। े े ो े े

वृ णवंशका भार वहन करनेवाले जो स य त श ुमदन सा य क थे, वे म त्दे वता के अंशसे उ प ए थे ।। ७९ ।। पद ैव राज ष तत एवाभवद् गणात् । मानुषे नृप लोकेऽ मन् सवश भृतां वरः ।। ८० ।। राजा जनमेजय! स पूण श धा रय म े राज ष पद भी इस मनु यलोकम उस म द्गणसे ही उ प ए थे ।। ८० ।। तत कृतवमाणं व राज ना धपम् । तम तमकमाणं यषभस मम् ।। ८१ ।। महाराज! अनुपम कम करनेवाले, य म े राजा कृतवमाको भी तुम म द्गण से ही उ प मानो ।। ८१ ।। म तां तु गणाद् व संजातम रमदनम् । वराटं नाम राजानं पररा तापनम् ।। ८२ ।। श ुराको संताप दे नेवाले श ुमदन राजा वराटको भी म द्गण से ही उ प समझो ।। ८२ ।। अ र ाया तु यः पु ो हंस इ य भ व ुतः । स ग धवप तज े कु वंश ववधनः ।। ८३ ।। धृतरा इ त यातः कृ ण ै पायना मजः । द घबा महातेजाः ाच ुनरा धपः ।। ८४ ।। मातुद षा षेः कोपाद ध एव जायत । अ र ाका पु जो हंस नामसे व यात ग धवराज था, वही कु वंशक वृ करनेवाले ासन दन धृतरा के नामसे स आ। धृतराक बाँह ब त बड़ी थ । वे महातेज वी नरेश ाच ु (अ धे) थे। वे माताके दोष और मह षके ोधसे अ धे ही उ प ए ।। ८३-८४ ।। त यैवावरजो ाता महास वो महाबलः ।। ८५ ।। स पा डु र त व यातः स यधमरतः शु चः । अ े तु* सुमहाभागं पु ं पु वतां वरम् । व रं व तं लोके जातं बु मतां वरम् ।। ८६ ।। उ ह के छोटे भाई महान् श शाली महाबली पा डु के नामसे व यात ए। वे स यधमम त पर और प व थे। पु वान म े और बु मान म उ म परम सौभा यशाली व रको तुम इस लोकम सूयपु धमके अंशसे उ प आ समझो ।। ८५-८६ ।। कलेरंश तु संज े भु व य धनो नृपः । बु म त ैव कु णामयश करः ।। ८७ ।। खोट बु और षत वचारवाले कु कुलकलंक राजा य धनके पम इस पृ वीपर क लका अंश ही उ प आ था ।। ८७ ।। जगतो य तु सव य व ः क लपू षः । ी



यः सवा घातयामास पृ थव पृ थवीपते ।। ८८ ।। राजन्! वह क ल व प पु ष सबका े षपा था। उसने सारी पृ वीके वीर को लड़ाकर मरवा दया था ।। ८८ ।। उ पतं येन वैरं भूता तकरणं महत् । पौल या ातर ा य ज रे मनुजे वह ।। ८९ ।। उसके ारा व लत क ई वैरक भारी आग असं य ा णय के वनाशका कारण बन गयी। पुल य-कुलके रा स भी मनु य म य धनके भाइय के पम उ प ए थे ।। ८९ ।। शतं ःशासनाद नां सवषां ू रकमणाम् । मुखो ःसह ैव ये चा ये नानुक तताः ।। ९० ।। य धनसहाया ते पौल या भरतषभ । वै यापु ो युयु सु धातरा ः शता धकः ।। ९१ ।। उसके ःशासन आ द सौ भाई थे। वे सभी ू रतापूण कम कया करते थे। मुख, ःसह तथा अ य कौरव जनका नाम यहाँ नह लया गया है, य धनके सहायक थे। भरत े ! धृतराक े वे सब पु पूवज मके रा स थे। धृतरापु युयु सु वै य-जातीय ीसे उ प आ था। वह य धन आ द सौ भाइय के अ त र था ।। ९०-९१ ।।

जनमेजय उवाच ये ानु ये तामेषां नामधेया न वा वभो । धृतरा य पु ाणामानुपू ण क तय ।। ९२ ।। जनमेजयने कहा— भो! धृतराक े जो सौ पु थे, उनके नाम मुझे बड़े-छोटे के मसे एक-एक करके बताइये ।। ९२ ।। वैश पायन उवाच य धनो युयु सु राजन् ःशासन तथा । ःसहो ःशल ैव मुख तथापरः ।। ९३ ।। व वश त वकण जलस धः सुलोचनः । व दानु व दौ धषः सुबा धषणः ।। ९४ ।। मषणो मुख कणः कण एव च । च ोप च ौ च ा ा ा द ह ।। ९५ ।। मदो धष व व सु वकटः समः । ऊणनाभः पनाभ तथा न दोपन दकौ ।। ९६ ।। सेनाप तः सुषेण कु डोदरमहोदरौ । च बा वमा सुवमा वरोचनः ।। ९७ ।। अयोबा महाबा चापसुकु डलौ । भीमवेगो भीमबलो बलाक भीम व मौ ।। ९८ ।। उ ायुधो भीमशरः कनकायु ढायुधः । ो

ढवमा ढ ः सोमक तरनूदरः ।। ९९ ।। जरास धो ढस धः स यस धः सह वाक् । उ वा उ सेनः ेममू त तथैव च ।। १०० ।। अपरा जतः प डतको वशाला ो राधनः ।। १०१ ।। ढह तः सुह त वातवेगसुवचसौ । आ द यकेतुब ाशी नागद ानुया यनौ ।। १०२ ।। कवची नष द डी द डधारो धनु हः । उ ो भीमरथो वीरो वीरबा रलोलुपः ।। १०३ ।। अभयो रौ कमा च तथा ढरथ यः । अनाधृ यः कु डभेद वरावी द घलोचनः ।। १०४ ।। द घबा महाबा ूढो ः कनका दः । कु डज क ैव ःशला च शता धका ।। १०५ ।। वैश पायनजी बोले—राजन्! सुनो—१ य धन, २ युयु सु, ३ ःशासन, ४ ःसह, ५ ःशल, ६ मुख, ७ व वश त, ८ वकण, ९ जलस ध, १० सुलोचन, ११ व द, १२ अनु व द, १३ धष, १४ सुबा , १५ धषण, १६ मषण, १७ मुख, १८ कण, १९ कण, २० च , २१ उप च , २२ च ा , २३ चा , २४ च ांगद, २५ मद, २६ धष, २७ व व सु, २८ वकट, २९ सम, ३० ऊणनाभ, ३१ प नाभ, ३२ न द, ३३ उपन द, ३४ सेनाप त, ३५ सुषेण, ३६ कु डोदर, ३७ महोदर, ३८ च बा , ३९ च वमा, ४० सुवमा, ४१ वरोचन, ४२ अयोबा , ४३ महाबा , ४४ च चाप, ४५ सुकु डल, ४६ भीमवेग, ४७ भीमबल, ४८ बलाक , ४९ भीम, ५० व म, ५१ उ ायुध, ५२ भीमशर, ५३ कनकायु, ५४ ढायुध, ५५ ढवमा, ५६ ढ , ५७ सोमक त, ५८ अनूदर, ५९ जरास ध, ६० ढस ध, ६१ स यस ध, ६२ सहवाक ् , ६३ उ वा, ६४ उ सेन, ६५ ेममू त, ६६ अपरा जत, ६७ प डतक, ६८ वशाला , ६९ राधन, ७० ढह त, ७१ सुह त, ७२ वातवेग, ७३ सुवचा, ७४ आ द यकेतु, ७५ ब ाशी, ७६ नागद , ७७ अनुयायी, ७८ कवची, ७९ नषंगी, ८० द डी, ८१ द डधार, ८२ धनु ह, ८३ उ , ८४ भीमरथ, ८५ वीर, ८६ वीरबा , ८७ अलोलुप, ८८ अभय, ८९ रौ कमा, ९० ढरथ, ९१ अनाधृ य, ९२ कु डभेद , ९३ वरावी, ९४ द घलोचन, ९५ द घबा , ९६ महाबा , ९७ ूढो , ९८ कनकांगद, ९९ कु डज और १०० च क—ये धृतराक े सौ पु थे। इनके सवा ःशला नामक एक क या थी ।। ९३ —१०५ ।। वै यापु ो युयु सु धातरा ः शता धकः । एतदे कशतं राजन् क या चैका क तता ।। १०६ ।। धृतराका वह पु जसका नाम युयु सु था, वै याके गभसे उ प आ था। वह य धन आ द सौ पु से अ त र था। राजन्! इस कार धृतराक े एक सौ एक पु तथा एक क या बतायी गयी है ।। १०६ ।। नामधेयानुपू ा च ये ानु जे तां व ः । सव व तरथाः शूराः सव यु वशारदाः ।। १०७ ।। े ो ै ी े े औ

इनके नाम का जो म दया गया है, उसीके अनुसार व ान् पु ष इ ह जेठा और छोटा समझते ह। धृतराक े सभी पु उ कृ रथी, शूरवीर और यु क कलाम कुशल थे ।। १०७ ।। सव वेद वद ैव राज छा े च पारगाः । सव सं ाम व ासु व ा भजनशो भनः ।। १०८ ।। राजन्! वे सब-के-सब वेदवे ा, शा के पारंगत व ान्, सं ाम- व ाम वीण तथा उ म व ा और उ म कुलसे सुशो भत थे ।। १०८ ।। सवषामनु पा कृता दारा महीपते । ःशलां समये राजन् स धुराजाय कौरवः ।। १०९ ।। जय थाय ददौ सौबलानुमते तदा । धम यांशं तु राजानं व राजन् यु ध रम् ।। ११० ।। भूपाल! उन सबका सुयो य य के साथ ववाह आ था। महाराज! कु राज य धनने समय आनेपर शकु नक सलाहसे अपनी ब हन ःशलाका ववाह स धुदेशके राजा जय थके साथ कर दया। जनमेजय! राजा यु ध रको तो तुम धमका अंश जानो ।। १०९-११० ।। भीमसेनं तु वात य दे वराज य चाजुनम् । अ नो तु तथैवांशौ पेणा तमौ भु व ।। १११ ।। नकुलः सहदे व सवभूतमनोहरौ । य तु वचा इ त यातः सोमपु ः तापवान् ।। ११२ ।। सोऽ भम युबृह क तरजुन य सुतोऽभवत् । य यावतरणे राजन् सुरान् सोमोऽ वी ददम् ।। ११३ ।। भीमसेनको वायुका और अजुनको दे वराज इ का अंश जानो। प-सौ दयक से इस पृ वीपर जनक समानता करनेवाला कोई नह था, वे सम त ा णय का मन मोह लेनेवाले नकुल और सहदे व अ नीकुमार के अंशसे उ प ए थे। वचा नामसे व यात जो च माका तापी पु था, वही महायश वी अजुनकुमार अ भम यु आ। जनमेजय! उसके अवतार-कालम च माने दे वता से इस कार कहा— ।। १११—११३ ।। नाहं द ां यं पु ं मम ाणैगरीयसम् । समयः यतामेष न श यम तव ततुम् ।। ११४ ।। ‘मेरा पु मुझे अपने ाण से भी अ धक य है, अतः म इसे अ धक दन के लये नह दे सकता। इस लये मृ युलोकम इसके रहनेक कोई अव ध न त कर द जाय। फर उस अव धका उ लंघन नह कया जा सकता ।। ११४ ।। सुरकाय ह नः कायमसुराणां तौ वधः । त या य ययं वचा न च था य त वै चरम् ।। ११५ ।। ‘पृ वीपर असुर का वध करना दे वता का काय है और वह हम सबके लये करनेयो य है। अतः उस कायक स के लये यह वचा भी वहाँ अव य जायगा। परंतु द घकालतक वहाँ नह रह सकेगा ।। ११५ ।। ऐ



नर तु भ वता य य नारायणः सखा । सोऽजुने य भ व यातः पा डोः पु ः तापवान् ।। ११६ ।। ‘भगवान् नर, जनके सखा भगवान् नारायण ह, इ के अंशसे भूतलम अवतीण ह गे। वहाँ उनका नाम अजुन होगा और वे पा डु के तापी पु माने जायँगे ।। ११६ ।। त यायं भ वता पु ो बालो भु व महारथः । ततः षोडश वषा ण था य यमरस माः ।। ११७ ।। ‘ े दे वगण! पृ वीपर यह वचा उ ह अजुनका पु होगा, जो बा याव थाम ही महारथी माना जायगा। ज म लेनेके बाद सोलह वषक अव थातक यह वहाँ रहेगा ।। ११७ ।। अ य षोडशवष य स सं ामो भ व य त । य ांशा वः क र य त कम वीर नषूदनम् ।। ११८ ।। ‘इसके सोलहव वषम वह महाभारत-यु होगा, जसम आपलोग के अंशसे उ प ए वीर-पु ष श ुवीर का संहार करनेवाला अद्भुत परा म कर दखायगे ।। ११८ ।। नरनारायणा यां तु स सं ामो वना कृतः । च ूहं समा थाय योध य य त वः सुराः ।। ११९ ।। वमुखा छा वान् सवान् कार य य त मे सुतः । बालः व य च ूहमभे ं वच र य त ।। १२० ।। ‘दे वताओ! एक दन जब क उस यु म नर और नारायण (अजुन और ीकृ ण) उप थत न रहगे, उस समय श ुप के लोग च ूहक रचना करके आप-लोग के साथ यु करगे। उस यु म मेरा यह पु सम त श ु-सै नक को यु से मार भगायेगा और बालक होनेपर भी उस अभे ूहम घुसकर नभय वचरण करेगा ।। ११९-१२० ।। महारथानां वीराणां कदनं च क र य त । सवषामेव श ूणां चतुथाशं न य य त ।। १२१ ।। दनाधन महाबा ः ेतराजपुरं त । ततो महारथैव रैः समे य ब शो रणे ।। १२२ ।। दन ये महाबा मया भूयः समे य त । एकं वंशकरं पु ं वीरं वै जन य य त ।। १२३ ।। ण ं भारतं वंशं स भूयो धार य य त । एतत् सोमवचः ु वा तथा व त दवौकसः ।। १२४ ।। यूचुः स हताः सव तारा धपमपूजयन् । एवं ते क थतं राजं तव ज म पतुः पतुः ।। १२५ ।। ‘तथा बड़े-बड़े महारथी वीर का संहार कर डालेगा। आधे दनम ही महाबा अ भम यु सम त श ु के एक चौथाई भागको यमलोक प ँचा दे गा। तदन तर ब त-से महारथी एक साथ ही उसपर टू ट पड़गे और वह महाबा उन सबका सामना करते ए सं या होते-होते पुनः मुझसे आ मलेगा। वह एक ही वंश वतक वीर पु को ज म दे गा, जो न ए भरतकुलको पुनः धारण करेगा।’ सोमका यह वचन सुनकर सम त दे वता ने ‘तथा तु’ ी औ े े

कहकर उनक बात मान ली और सबने च माका पूजन कया। राजा जनमेजय! इस कार मने तु हारे पताके पताका ज म-रह य बताया है ।। १२१—१२५ ।। अ नेभागं तु व वं धृ ु नं महारथम् । शख डनमथो राजन् ीपूव व रा सम् ।। १२६ ।। महाराज! महारथी धृ ु नको तुम अ नका भाग समझो। शख डी रा सके अंशसे उ प आ था। वह पहले क या पम उ प होकर पुनः पु ष हो गया था ।। १२६ ।। ौपदे या ये प च बभूवुभरतषभ । व ान् दे वगणान् व संजातान् भरतषभ ।। १२७ ।। भरतषभ! तु ह मालूम होना चा हये क ौपद के जो पाँच पु थे, उनके पम पाँच व ेदेवगण ही कट ए थे ।। १२७ ।। त व यः सुतसोमः ुतक त तथापरः । नाकु ल तु शतानीकः ुतसेन वीयवान् ।। १२८ ।। उनके नाम मशः इस कार ह— त व य, सुतसोम, ुतक त, नकुलन दन शतानीक तथा परा मी ुतसेन ।। १२८ ।। शूरो नाम य े ो वसुदेव पताभवत् । त य क या पृथा नाम पेणास शी भु व ।। १२९ ।। वसुदेवजीके पताका नाम था शूरसेन। वे य वंशके एक े पु ष थे। उनके पृथा नामवाली एक क या ई, जसके समान पवती ी इस पृ वीपर सरी नह थी ।। १२९ ।। पतुः व ीयपु ाय सोऽनप याय वीयवान् । अ म े त ाय व याप य य वै तदा ।। १३० ।। उ सेनके फुफेरे भाई कु तभोज संतानहीन थे। परा मी शूरसेनने पहले कभी उनके सामने यह त ा क थी क ‘म अपनी पहली संतान आपको दे ँ गा’ ।। १३० ।। अ जाते त तां क यां शूरोऽनु हकाङ् या । अददात् कु तभोजाय स तां हतरं तदा ।। १३१ ।। तदन तर सबसे पहले उनके यहाँ क या ही उ प ई। शूरसेनने अनु हक इ छासे राजा कु तभोजको अपनी वह पु ी पृथा थम संतान होनेके कारण गोद दे द ।। १३१ ।। सा नयु ा पतुगहे ा णा त थपूजने । उ ं पयचरद् घोरं ा णं सं शत तम् ।। १३२ ।। नगूढ न यं धम यं तं वाससं व ः । तमु ं शं सता मानं सवय नैरतोषयत् ।। १३३ ।। पताके घरपर रहते समय पृथाको ा ण और अ त थय के वागत-स कारका काय स पा गया था। एक दन उसने कठोर तका पालन करनेवाले भयंकर ोधी तथा उ कृ तवाले एक ा ण मह षक , जो धमके वषयम अपने न यको छपाये रखते थे और लोग ज ह वासाके नामसे जानते ह, सेवा क । वे ऊपरसे तो उ वभावके थे, परंतु ो े े









उनका दय महान् होनेके कारण सबके ारा शं सत था। पृथाने पूरा य न करके अपनी सेवा ारा मु नको संतु कया ।। १३२-१३३ ।। तु ोऽ भचारसंयु माचच े यथा व ध । उवाच चैनां भगवान् ीतोऽ म सुभगे तव ।। १३४ ।। भगवान् वासाने संतु होकर पृथाको योग- व धस हत एक म का व धपूवक उपदे श कया और कहा—‘सुभगे! म तुमपर ब त स ँ ।। १३४ ।। यं यं दे वं वमेतेन म ेणावाह य य स । त य त य सादात् वं दे व पु ा न य स ।। १३५ ।। ‘दे व! तुम इस म ारा जस- जस दे वताका आवाहन करोगी, उसी-उसीके कृपा सादसे पु उ प करोगी’ ।। १३५ ।। एवमु ा च सा बाला तदा कौतूहला वता । क या सती दे वमकमाजुहाव यश वनी ।। १३६ ।। वासाके ऐसा कहनेपर वह सती-सा वी यश वनी बाला य प अभी कुमारी क या थी, तो भी कौतूहलवश उसने भगवान् सूयका आवाहन कया ।। १३६ ।। काशकता भगवां त यां गभ दधौ तदा । अजीजनत् सुतं चा यां सवश भृतां वरम् ।। १३७ ।। तब स पूण जगत्म काश फैलानेवाले भगवान् सूयने कु तीके उदरम गभ था पत कया और उस गभसे एक ऐसे पु को ज म दया, जो सम त श धा रय म े था ।। १३७ ।। सकु डलं सकवचं दे वगभ या वतम् । दवाकरसमं द या चा सवा भू षतम् ।। १३८ ।। वह कु डल और कवचके साथ ही कट आ था। दे वता के बालक म जो सहज का त होती है, उसीसे वह सुशो भत था। अपने तेजसे वह सूयके समान जान पड़ता था। उसके सभी अंग मनोहर थे, जो उसके स पूण शरीरक शोभा बढ़ा रहे थे ।। १३८ ।। नगूहमाना जातं वै ब धुप भयात् तदा । उ ससज जले कु ती तं कुमारं यश वनम् ।। १३९ ।। उस समय कु तीने पता-माता आ द बा धव-प के भयसे उस यश वी कुमारको छपाकर एक पेट म रखकर जलम छोड़ दया ।। १३९ ।। तमु सृ ं जले गभ राधाभता महायशाः । राधायाः क पयामास पु ं सोऽ धरथ तदा ।। १४० ।। जलम छोड़े ए उस बालकको राधाके प त महायश वी अ धरथ सूतने लेकर राधाक गोदम दे दया और उसे राधाका पु बना लया ।। १४० ।। च तुनामधेयं च त य बाल य तावुभौ । द पती वसुषेणे त द ु सवासु व ुतम् ।। १४१ ।। उन दोन द प तने उस बालकका नाम वसुषेण रखा। वह स पूण दशा म भलीभाँ त व यात था ।। १४१ ।। ो े ो

संवधमानो बलवान् सवा ेषू मोऽभवत् । वेदा ा न च सवा ण जजाप जयतां वरः ।। १४२ ।। बड़ा होनेपर वह बलवान् बालक स पूण अ -श को चलानेक कलाम उ म आ। उस वजयी वीरने स पूण वेदांग का अ ययन कर लया ।। १४२ ।। य मन् काले जप ा ते धीमान् स यपरा मः । नादे यं ा णे वासीत् त मन् काले महा मनः ।। १४३ ।। वसुषेण (कण) बड़ा बु मान् और स यपरा मी था। जस समय वह जपम लगा होता, उस समय उस महा माके पास ऐसी कोई व तु नह थी, जसे वह ा ण के माँगनेपर न दे डाले ।। १४३ ।। त म ो ा णो भू वा पु ाथ भूतभावनः । ययाचे कु डले वीरं कवचं च सहा जम् ।। १४४ ।। भूतभावन इ ने अपने पु अजुनके हतके लये ा णका प धारण करके वीर कणसे दोन कु डल तथा उसके शरीरके साथ ही उ प आ कवच माँगा ।। १४४ ।। उ कृ य कण ददात् कवचं कु डले तथा । श श ो ददौ त मै व मत ेदम वीत् ।। १४५ ।। दे वासुरमनु याणां ग धव रगर साम् । य मन् े य स धष स एको न भ व य त ।। १४६ ।। कणने अपने शरीरम चपके ए कवच और कु डल को उधेड़कर दे दया। इ ने व मत होकर कणको एक श दान क और कहा—‘ धष वीर! तुम दे वता, असुर, मनु य, ग धव, नाग और रा स मसे जसपर भी इस श को चलाओगे, वह एक न य ही अपने ाण से हाथ धो बैठेगा’ ।। १४५-१४६ ।। पुरा नाम च त यासीद् वसुषेण इ त तौ । ततो वैकतनः कणः कमणा तेन सोऽभवत् ।। १४७ ।। पहले कणका नाम इस पृ वीपर वसुषेण था। फर कवच और कु डल काटनेके कारण वह वैकतन नामसे स आ ।। १४७ ।। आमु कवचो वीरो य तु ज े महायशाः । स कण इ त व यातः पृथायाः थमः सुतः ।। १४८ ।। जो महायश वी वीर कवच धारण कये ए ही उ प आ, वह पृथाका थम पु कण नामसे ही सव व यात था ।। १४८ ।। स तु सूतकुले वीरो ववृधे राजस म । कण नरवर े ं सवश भृतां वरम् ।। १४९ ।। महाराज! वह वीर सूतकुलम पाला-पोसा जाकर बड़ा आ था। नर े कण स पूण श धा रय म े था ।। १४९ ।। य धन य स चवं म ं श ु वनाशनम् । दवाकर य तं व राज ंशमनु मम् ।। १५० ।। ीऔ

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वह य धनका म ी और म होनेके साथ ही उसके श ु का नाश करनेवाला था। राजन्! तुम कणको सा ात् सूयदे वका सव म अंश जानो ।। १५० ।। य तु नारायणो नाम दे वदे वः सनातनः । त यांशो मानुषे वासीद् वासुदेवः तापवान् ।। १५१ ।। दे वता के भी दे वता जो सनातन पु ष भगवान् नारायण ह, उ ह के अंश व प तापी वसुदेवन दन ीकृ ण मनु य म अवतीण ए थे ।। १५१ ।। शेष यांश नाग य बलदे वो महाबलः । सन कुमारं ु नं व राजन् महौजसम् ।। १५२ ।। महाबली बलदे वजी शेषनागके अंश थे। राजन्! महातेज वी ु नको तुम सन कुमारका अंश जानो ।। १५२ ।। एवम ये मनु ये ा बहव ऽशा दवौकसाम् । ज रे वसुदेव य कुले कुल ववधनाः ।। १५३ ।। इस कार वसुदेवजीके कुलम ब त-से सरे- सरे नरे उ प ए, जो दे वता के अंश थे। वे सभी अपने कुलक वृ करनेवाले थे ।। १५३ ।। गण व सरसां यो वै मया राजन् क ततः । त य भागः तौ ज े नयोगाद् वासव य ह ।। १५४ ।। महाराज! मने अ सरा के जस समुदायका वणन कया है, उसका अंश भी इ के आदे शसे इस पृ वीपर उ प आ था ।। १५४ ।। ता न षोडश दे वीनां सह ा ण नरा धप । बभूवुमानुषे लोके वासुदेवप र हः ।। १५५ ।। नरे र! वे अ सराएँ मनु यलोकम सोलह हजार दे वय के पम उ प ई थ , जो सब-क -सब भगवान् ीकृ णक प नयाँ ।। १५५ ।। य तु भागः संज े र यथ पृ थवीतले । भी मक य कुले सा वी मणी नाम नामतः ।। १५६ ।। नारायण व प भगवान् ीकृ णको आन द दान करनेके लये भूतलपर वदभराज भी मकके कुलम सती-सा वी मणीदे वीके नामसे ल मीजीका ही अंश कट आ था ।। १५६ ।। ौपद वथ संज े शचीभागाद न दता । पद य कुले क या वे दम याद न दता ।। १५७ ।। सती-सा वी ौपद शचीके अंशसे उ प ई थी। वह राजा पदके कुलम य क वेद के म यभागसे एक अ न सु दरी कुमारी क याके पम कट ई थी ।। १५७ ।। ना त वा न महती नीलो पलसुग धनी । पायता ी सु ोणी व सता चतमूधजा ।। १५८ ।। वह न तो ब त छोट थी और न ब त बड़ी ही। उसके अंग से नीलकमलक सुग ध फैलती रहती थी। उसके ने कमलदलके समान सु दर और वशाल थे, नत बभाग बड़ा ही मनोहर था और उसके काले-काले घुँघराले बाल का सौ दय भी अद्भुत था ।। १५८ ।। ै

सवल णस पूणा वै यम णसं नभा । प चानां पु षे ाणां च मथनी रहः ।। १५९ ।। वह सम त शुभ ल ण से स प तथा वै य म णके समान का तमती थी। एका तम रहकर वह पाँच पु ष वर पा डव के मनको मु ध कये रहती थी ।। १५९ ।। स धृ त ये दे ौ प चानां मातरौ तु ते । कु ती मा च ज ाते म त तु सुबला मजा ।। १६० ।। स और धृ त नामवाली जो दो दे वयाँ ह, वे ही पाँच पा डव क दोन माता — कु ती और मा के पम उ प ई थ । सुबल-नरेशक पु ी गा धारीके पम सा ात् म तदे वी ही कट ई थ ।। १६० ।। इ त दे वासुराणां ते ग धवा सरसां तथा । अंशावतरणं राजन् रा सानां च क ततम् ।। १६१ ।। ये पृ थ ां समुदभू ् ता राजानो यु मदाः । महा मानो य नां च ये जाता वपुले कुले ।। १६२ ।। ा णाः या वै या मया ते प रक तताः । ध यं यश यं पु ीयमायु यं वजयावहम् । इदमंशावतरणं ोत मनसूयता ।। १६३ ।। राजन्! इस कार तु ह दे वता , असुर , ग धव , अ सरा तथा रा स के अंश का अवतरण बताया गया। यु म उ म रहनेवाले जो-जो राजा इस पृ वीपर उ प ए थे और जो-जो महा मा य यादव के वशाल कुलम कट ए थे, वे ा ण, य अथवा वै य जो भी रहे ह, उन सबके व पका प रचय मने तु ह दे दया है। मनु यको चा हये क वह दोष- का याग करके इस अंशावतरणके संगको सुने। यह धन, यश, पु , आयु तथा वजयक ा त करानेवाला है ।। १६१—१६३ ।। अंशावतरणं ु वा दे वग धवर साम् । भवा यय वत् ा ो न कृ े ववसीद त ।। १६४ ।। दे वता, ग धव तथा रा स के इस अंशावतरणको सुनकर व क उ प और लयके अ ध ान परमा माके व पको जाननेवाला ा पु ष बड़ी-बड़ी वप य म भी ःखी नह होता ।। १६४ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण अंशावतरणसमा तौ स तष तमोऽ यायः ।। ६७ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम अंशावतरणसमा त वषयक सड़सठवाँ अ याय पूरा आ ।। ६७ ।।

* ‘अ ’ श दसे यहाँ सूयको हण कया गया है। नीलक ठने भी यही अथ लया है।

अ ष तमोऽ यायः राजा

य तक अद्भुत श तथा रा यशासनक मताका वणन

जनमेजय उवाच व ः ुत मदं न् दे वदानवर साम् । अंशावतरणं स यग् ग धवा सरसां तथा ।। १ ।। जनमेजय बोले— न्! मने आपके मुखसे दे वता, दानव, रा स, ग धव तथा अ सरा के अंशावतरणका वणन अ छ तरह सुन लया ।। १ ।। इमं तु भूय इ छा म कु णां वंशमा दतः । कयमानं वया व व षगणसं नधौ ।। २ ।। व वर! अब इन षय के समीप आपके ारा व णत कु वंशका वृ ा त पुनः आ दसे ही सुनना चाहता ँ ।। २ ।। वैश पायन उवाच पौरवाणां वंशकरो य तो नाम वीयवान् । पृ थ ा तुर ताया गो ता भरतस म ।। ३ ।। वैश पायनजीने कहा—भरतवंश शरोमणे! पू वंशका व तार करनेवाले एक राजा हो गये ह, जनका नाम था य त। वे महान् परा मी तथा चार समु से घरी ई समूची पृ वीके पालक थे ।। ३ ।। चतुभागं भुवः कृ नं यो भुङ् े मनुजे रः । समु ावरणां ा प दे शान् स स म तजयः ।। ४ ।। आ ले छाव धकान् सवान् स भुङ् े रपुमदनः । र नाकरसमु ा तां ातुव यजनावृतान् ।। ५ ।। राजा य त पृ वीके चार भाग का तथा समु से आवृत स पूण दे श का भी पूण पसे पालन करते थे। उ ह ने अनेक यु म वजय पायी थी। र नाकर समु तक फैले ए, चार वणके लोग से भरे-पूरे तथा ले छ दे शक सीमासे मले-जुले स पूण भूभाग का वे श ुमदन नरेश अकेले ही शासन तथा संर ण करते थे ।। ४-५ ।। न वणसंकरकरो न कृ याकरकृ जनः । न पापकृत् क दासीत् त मन् राज न शास त ।। ६ ।। उस राजाके शासनकालम कोई मनु य वणसंकर संतान उ प नह करता था; पृ वी बना जोते-बोये ही अनाज पैदा करती थी और सारी भू म ही र न क खान बनी ई थी, इस लये कोई भी खेती करने या र न क खानका पता लगानेक चे ा नह करता था। पाप करनेवाला तो उस रा यम कोई था ही नह ।। ६ ।। े





धम र त सेवमाना धमाथाव भपे दरे । तदा नरा नर ा त म नपदे रे ।। ७ ।। नासी चौरभयं तात न ुधाभयम व प । नासीद् ा धभयं चा प त म नपदे रे ।। ८ ।। नर े ! सभी लोग धमम अनुराग रखते और उसीका सेवन करते थे। अतः धम और अथ दोन ही उ ह वतः ा त हो जाते थे। तात! राजा य त जब इस दे शके शासक थे, उस समय कह चोर का भय नह था। भूखका भय तो नाममा को भी नह था। इस दे शपर य तके शासनकालम रोग- ा धका डर तो बलकुल ही नह रह गया था ।। ७-८ ।। वधम रे मरे वणा दै वे कम ण नः पृहाः । तमा य महीपालमासं ैवाकुतोभयाः ।। ९ ।। सब वण के लोग अपने-अपने धमके पालनम रत रहते थे। दे वाराधन आ द कम को न कामभावसे ही करते थे। राजा य तका आ य लेकर सम त जा नभय हो गयी थी ।। ९ ।। कालवष च पज यः स या न रसव त च । सवर नसमृ ा च मही पशुमती तथा ।। १० ।। मेघ समयपर पानी बरसाता और अनाज रसयु होते थे। पृ वी सब कारके र न से स प तथा पशु-धनसे प रपूण थी ।। १० ।। वकम नरता व ा नानृतं तेषु व ते । स चा तमहावीय व संहननो युवा ।। ११ ।। ा ण अपने वणा मो चत कम म त पर थे। उनम झूठ एवं छल-कपट आ दका अभाव था। राजा य त वयं भी नवयुवक थे। उनका शरीर वक े स श ढ था। वे अद्भुत एवं महान् परा मसे स प थे ।। ११ ।। उ य म दरं दो या वहेत् सवनकाननम् । चतु पथगदायु े सव हरणेषु च ।। १२ ।। नागपृ ेऽ पृ े च बभूव प र न तः । बले व णुसम ासीत् तेजसा भा करोपमः ।। १३ ।। वे अपने दोन हाथ ारा उपवन और कानन स हत म दराचलको उठाकर ले जानेक श रखते थे। गदायु के ेप१, व ेप२, प र ेप३, और अ भ ेप४—इन चार कार म कुशल तथा स पूण अ -श क व ाम अ य त नपुण थे। घोड़े और हाथीक पीठपर बैठनेक कलाम वे अ य त वीण थे। बलम भगवान् व णुके समान और तेजम भगवान् सूयके स श थे ।। १२-१३ ।। अ ो य वेऽणवसमः स ह णु वे धरासमः । स मतः स महीपालः स पुररा वान् ।। १४ ।। भूयो धमपरैभावैमु दतं जनमा दशत् ।। १५ ।। े







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वे समु के समान अ ो य और पृ वीके समान सहनशील थे। महाराज य तका सव स मान था। उनके नगर तथा राक े लोग सदा स रहते थे। वे अ य त धमयु भावनासे सदा स रहनेवाली जाका शासन करते थे ।। १४-१५ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण शकु तलोपा याने अ ष तमोऽ यायः ।। ६८ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम शकु तलोपा यान वषयक अड़सठवाँ अ याय पूरा आ ।। ६८ ।।

१. रवत श ुपर गदा फकना ‘ ेप’ कहलाता है। २. समीपवत श ुपर गदाक को टसे हार करना ‘ व ेप’ कहा गया है। ३. जब श ु ब त ह तो सब ओर गदाको घुमाते ए श ु पर उसका हार करना ‘प र ेप’ है। ४. गदाके अ भागसे मारना ‘अ भ ेप’ कहलाता है।

एकोनस त ततमोऽ यायः य तका शकारके लये वनम जाना और व वध हसक वन-ज तुका वध करना जनमेजय उवाच स भवं भरत याहं च रतं च महामतेः । शकु तलाया ो प ोतु म छा म त वतः ।। १ ।। जनमेजय बोले— न्! म परम बु मान् भरतक उ प और च र को तथा शकु तलाक उ प के संगको भी यथाथ पसे सुनना चाहता ँ ।। १ ।। य तेन च वीरेण यथा ा ता शकु तला । तं वै पु ष सह य भगवन् व तरं वहम् ।। २ ।। ोतु म छा म त व सव म तमतां वर । भगवन्! वीरवर य तने शकु तलाको कैसे ा त कया? म पु ष सह य तके उस च र को व तारपूवक सुनना चाहता ँ। त व मुने! आप बु मान म े ह। अतः ये सब बात बताइये ।। २ ।। वैश पायन उवाच स कदा च महाबा ः भूतबलवाहनः ।। ३ ।। वनं जगाम गहनं हयनागशतैवृतः । बलेन चतुर े ण वृतः परमव गुना ।। ४ ।। वैश पायनजीने कहा—एक समयक बात है, महाबा राजा य त ब त-से सै नक और सवा रय को साथ लये सैकड़ हाथी-घोड़ से घरकर परम सु दर चतुरं गणी सेनाके साथ एक गहन वनक ओर चले ।। ३-४ ।। खड् गश धरैव रैगदामुसलपा ण भः । ासतोमरह तै ययौ योधशतैवृतः ।। ५ ।। जब राजाने या ा क , उस समय खड् ग, श , गदा, मुसल, ास और तोमर हाथम लये सैकड़ यो ा उ ह घेरे ए थे ।। ५ ।। सहनादै योधानां शङ् ख भ नः वनैः । रथने म वनै ैव सनागवरबृं हतैः ।। ६ ।। नानायुधधरै ा प नानावेषधरै तथा । े षत वन म ै वे डता फो टत वनैः ।। ७ ।। आसीत् कल कलाश द त मन् ग छ त पा थवे । ासादवरशृ थाः परया नृपशोभया ।। ८ ।। द शु तं य त शूरमा मयश करम् । ो

श ोपमम म नं परवारणवारणम् ।। ९ ।। महाराज य तके या ा करते समय यो ा के सहनाद, शंख और नगाड़ क आवाज, रथके प हय क घरघराहट, बड़े-बड़े गजराज क च घाड़, घोड़ क हन हनाहट, नाना कारके आयुध तथा भाँ त-भाँ तके वेष धारण करनेवाले यो ा ारा क ई गजना और ताल ठ कनेक आवाज से चार ओर भारी कोलाहल मच गया था। महलके े शखरपर बैठ ई याँ उ म राजो चत शोभासे स प शूरवीर य तको दे ख रही थ । वे अपने यशको बढ़ानेवाले, इ के समान परा मी और श ु का नाश करनेवाले थे। श ु पी मतवाले हाथीको रोकनेके लये उनम सहके समान श थी ।। ६—९ ।। प य तः ीगणा त व पा ण म मे नरे । अयं स पु ष ा ो रणे वसुपरा मः ।। १० ।। य य बा बलं ा य न भव यसु द्गणाः । वहाँ दे खती ई य ने उ ह वपा ण इ के समान समझा और आपसम वे इस कार बात करने लग —‘सखयो! दे खो तो सही, ये ही वे पु ष सह महाराज य त ह, जो सं ामभू मम वसु के समान परा म दखाते ह, जनके बा बलम पड़कर श ु का अ त व मट जाता है’ ।। १० ।। इ त वाचो ुव य ताः यः े णा नरा धपम् ।। ११ ।। तु ु वुः पु पवृ ी ससृजु त य मूध न । त त च व े ै ः तूयमानः सम ततः ।। १२ ।। ऐसी बात करती ई वे याँ बड़े ेमसे महाराज य तक तु त करत और उनके म तकपर फूल क वषा करती थ । य -त खड़े ए े ा ण सब ओर उनक तु तशंसा करते थे ।। ११-१२ ।। नययौ परम ी या वनं मृग जघांसया । तं दे वराज तमं म वारणधूगतम् ।। १३ ।। ज य वट् शू ा नया तमनुज मरे । द शुवधमाना ते आशी भ जयेन च ।। १४ ।। इस कार महाराज वनम हसक पशु का शकार खेलनेके लये बड़ी स ताके साथ नगरसे बाहर नकले। वे दे वराज इ के समान परा मी थे। मतवाले हाथीक पीठपर बैठकर या ा करनेवाले उन महाराज य तके पीछे -पीछे ा ण, य, वै य और शू सभी वण के लोग गये और सब आशीवाद एवं वजयसूचक वचन ारा उनके अ युदयक कामना करते ए उनक ओर दे खते रहे ।। १३-१४ ।। सु रमनुज मु तं पौरजानपदा तथा । यवत त ततः प ादनु ाता नृपेण ह ।। १५ ।। नगर और जनपदके लोग ब त रतक उनके पीछे -पीछे गये। फर महाराजक आ ा होनेपर लौट आये ।। १५ ।। सुपण तमेनाथ रथेन वसुधा धपः । ी

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महीमापूरयामास घोषेण दवं तथा ।। १६ ।। स ग छन् द शे धीमान् न दन तमं वनम् । ब वाकख दराक ण क प थधवसंकुलम् ।। १७ ।। उनका रथ ग डके समान वेगशाली था। उसके ारा या ा करनेवाले नरेशने घरघराहटक आवाजसे पृ वी और आकाशको गुँजा दया। जाते-जाते बु मान् य तने एक न दनवनके समान मनोहर वन दे खा, जो बेल, आक, खैर, कैथ और धव (बाकली) आ द वृ से भरपूर था ।। १६-१७ ।। वषमं पवत तैर म भ समावृतम् । नजलं नमनु यं च ब योजनमायतम् ।। १८ ।। पवतक चोट से गरे ए ब त-से शला-ख ड वहाँ इधर-उधर पड़े थे। ऊँची-नीची भू मके कारण वह वन बड़ा गम जान पड़ता था। अनेक योजनतक फैले ए उस वनम कह जल या मनु यका पता नह चलता था ।। १८ ।। मृग सहैवृतं घोरैर यै ा प वनेचरैः । तद् वनं मनुज ा ः सभृ यबलवाहनः ।। १९ ।। लोडयामास य तः सूदयन् व वधान् मृगान् । बाणगोचरस ा तां त ा गणान् बन् ।। २० ।। पातयामास य तो न बभेद च सायकैः । र थान् सायकैः कां द भनत् स नरा धपः ।। २१ ।। अ याशमागतां ा यान् खड् गेन नरकृ तत । कां दे णान् समाज ने श या श मतां वरः ।। २२ ।। वह सब ओर मृग और सह आ द भयंकर ज तु तथा अ य वनवासी जीव से भरा आ था। नर े राजा य तने सेवक, सै नक और सवा रय के साथ नाना कारके हसक पशु का शकार करते ए उस वनको र द डाला। वहाँ बाण के ल यम आये ए ब त-से ा को महाराज य तने मार गराया और कतन को सायक से ब ध डाला। श शाली पु ष म े नरेशने कतने ही रवत हसक पशु को बाण ारा घायल कया। जो नकट आ गये, उ ह तलवारसे काट डाला और कतने ही एण जा तके पशु को श नामक श ारा मौतके घाट उतार दया ।। १९—२२ ।। गदाम डलत व चारा मत व मः । तोमरैर स भ ा प गदामुसलक पनैः ।। २३ ।। चचार स व न नन् वै वैरचारान् वन पान् । रा ा चा तवीयण योधै समर यैः ।। २४ ।। लो मानं महार यं त यजुः म मृगा धपाः । त व तयूथा न हतयूथपती न च ।। २५ ।। मृगयूथा यथौ सु या छ दं च ु तत ततः । शु का ा प नद ग वा जलनैरा यक शताः ।। २६ ।। ायाम ला त दयाः पत त म वचेतसः । ी

ु पपासापरीता ा ता प तता भु व ।। २७ ।। असीम परा मवाले राजा गदा घुमानेक कलाम अ य त वीण थे। अतः वे तोमर, तलवार, गदा तथा मुसल क मारसे वे छापूवक वचरनेवाले जंगली हा थय का वध करते ए वहाँ सब ओर वचरने लगे। अद्भुत परा मी नरेश और उनके यु - ेमी सै नक ने उस वशाल वनका कोना-कोना छान डाला। अतः सह और बाघ उस वनको छोड़कर भाग गये। पशु के कतने ही झुंड, जनके यूथप त मारे गये थे, होकर भागे जा रहे थे और कतने ही यूथ इधर-उधर आतनाद करते थे। वे याससे पी ड़त हो सूखी न दय म जाकर जब जल नह पाते, तब नराशासे अ य त ख हो दौड़नेके प र मसे ला त च होनेके कारण मू छत होकर गर पड़ते थे। भूख, यास और थकावटसे चूर-चूर हो ब त-से पशु धरतीपर गर पड़े ।। २३—२७ ।। के चत् त नर ा ैरभ य त बुभु तैः । के चद नमथो पा संसा य च वनेचराः ।। २८ ।। भ य त म मांसा न कु व धवत् तदा । त के चद् गजा म ा ब लनः श व ताः ।। २९ ।। संको या करान् भीताः व त म वे गताः । शकृ मू ं सृज त र तः शो णतं ब ।। ३० ।। वहाँ कतने ही ा - वभावके नृशंस जंगली मनु य भूखे होनेके कारण कुछ मृग को क चे ही चबा गये। कतने ही वनम वचरनेवाले ाध वहाँ आग जलाकर मांस पकानेक अपनी री तके अनुसार मांसको कूट-कूटकर राँधने और खाने लगे। उस वनम कतने ही बलवान् और मतवाले हाथी अ -श के आघातसे त- व त होकर सूँड़को समेटे ए भयके मारे वेगपूवक भाग रहे थे। उस समय उनके घाव से ब त-सा र बह रहा था और वे मल-मू करते जाते थे ।। २८—३० ।। व या गजवरा त ममृ मनुजान् बन् । तद् वनं बलमेघेन शरधारेण संवृतम् । रोचत मृगाक ण रा ा हतमृगा धपम् ।। ३१ ।। बड़े-बड़े जंगली हा थय ने भी वहाँ भागते समय ब त-से मनु य को कुचल डाला। वहाँ बाण पी जलक धारा बरसानेवाले सै य पी बादल ने उस वन पी ोमको सब ओरसे घेर लया था। महाराज य तने जहाँके सह को मार डाला था, वह हसक पशु से भरा आ वन बड़ी शोभा पा रहा था ।। ३१ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण शकु तलोपा याने एकोनस त ततमोऽ यायः ।। ६९ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम शकु तलोपा यान वषयक उनह रवाँ अ याय पूरा आ ।। ६९ ।।

स त ततमोऽ यायः तपोवन और क वके आ मका वणन तथा राजा य तका उस आ मम वेश वैश पायन उवाच ततो मृगसह ा ण ह वा सबलवाहनः । राजा मृग स े न वनम यद् ववेश ह ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! तदन तर सेना और सवा रय के साथ राजा य तने सह हसक पशु का वध करके एक हसक पशुका ही पीछा करते ए सरे वनम वेश कया ।। १ ।। एक एवो मबलः ु पपासा मा वतः । स वन या तमासा मह छू यं समासदत् ।। २ ।। उस समय उ म बलसे यु महाराज य त अकेले ही थे तथा भूख, यास और थकावटसे श थल हो रहे थे। उस वनके सरे छोरम प ँचनेपर उ ह एक ब त बड़ा ऊसर मैदान मला, जहाँ वृ आ द नह थे ।। २ ।। त चा यती य नृप त मा मसंयुतम् । मनः ादजननं का तमतीव च ।। ३ ।। शीतमा तसंयु ं जगामा य महद् वनम् । पु पतैः पादपैः क णमतीव सुखशा लम् ।। ४ ।। उस वृ शू य ऊसर भू मको लाँघकर महाराज य त सरे वशालवनम जा प ँचे, जो अनेक उ म आ म से सुशो भत था। दे खनेम अ य त सु दर होनेके साथ ही वह मनम अद्भुत आन दो लासक सृ कर रहा था। उस वनम शीतल वायु चल रही थी। वहाँके वृ फूल से भरे थे और वनम सब ओर ा त हो उसक शोभा बढ़ा रहे थे। वहाँ अ य त सुखद हरी-हरी कोमल घास उगी ई थी ।। ३-४ ।। वपुलं मधुरारावैना दतं वहगै तथा । पुं को कल ननादै झ लीकगणना दतम् ।। ५ ।। वह वन ब त बड़ा था और मीठ बोली बोलनेवाले व वध वहंगम के कलरव से गूँज रहा था। उसम कह को कल क कु -कु सुन पड़ती थी तो कह झ गुर क झीनी झनकार गूँज रही थी ।। ५ ।। वृ वटपैवृ ैः सुख छायैः समावृतम् । षट् पदाघू णततलं ल या परमया युतम् ।। ६ ।। वहाँ सब ओर बड़ी-बड़ी शाखा वाले वशाल वृ अपनी सुखद शीतल छाया कये ए थे और उन वृ के नीचे सब ओर मर मँड़रा रहे थे। इस कार वहाँ सव बड़ी भारी शोभा छा रही थी ।। ६ ।। ो

नापु पः पादपः क ाफलो ना प क टक । षट् पदै ना यपाक ण त मन् वै काननेऽभवत् ।। ७ ।। उस वनम एक भी वृ ऐसा नह था, जसम फूल और फल न लगे ह तथा भ रे न बैठे ह । काँटेदार वृ तो वहाँ ढूँ ढ़नेपर भी नह मलता था ।। ७ ।। वहगैना दतं पु पैरलंकृतमतीव च । सवतुकुसुमैवृ ैः सुख छायैः समावृतम् ।। ८ ।। सब ओर अनेकानेक प ी चहक रहे थे। भाँ त-भाँ तके पु प उस वनक अ य त शोभा बढ़ा रहे थे। सभी ऋतु म फूल दे नेवाले सुखद छायायु वृ वहाँ चार ओर फैले ए थे ।। ८ ।। मनोरमं महे वासो ववेश वनमु मम् । मा ताक लता त माः कुसुमशाखनः ।। ९ ।। पु पवृ व च ां तु सृजं ते पुनः पुनः । दवः पृशोऽथ संघु ाः प भमधुर वनैः ।। १० ।। महान् धनुधर राजा य तने इस कार मनको मोह लेनेवाले उस उ म वनम वेश कया। उस समय फूल से भरी ई डा लय वाले वृ वायुके झकोर से हल- हलकर उनके ऊपर बार-बार अद्भुत पु प-वषा करने लगे। वे वृ इतने ऊँचे थे, मानो आकाशको छू लगे। उनपर बैठे ए मीठ बोली बोलनेवाले प य के मधुर श द वहाँ गूँज रहे थे ।। ९— १० ।। वरेजुः पादपा त व च कुसुमा बराः । तेषां त वालेषु पु पभारावना मषु ।। ११ ।। व त रावान् मधुरान् षट् पदा मधु ल सवः । त दे शां बन् क ु सुमो करम डतान् ।। १२ ।। लतागृहप र तान् मनसः ी तवधनान् । स प यन् सुमहातेजा बभूव मु दत तदा ।। १३ ।। उस वनम पु प पी व च व धारण करनेवाले वृ अद्भुत शोभा पा रहे थे। फूल के भारसे झुके ए उनके कोमल प लव पर बैठे ए मधुलोभी मर मधुर गुंजार कर रहे थे। राजा य तने वहाँ ब त-से ऐसे रमणीय दे श दे खे जो फूल के ढे रसे सुशो भत तथा लताम डप से अलंकृत थे। मनक स ताको बढ़ानेवाले उन मनोहर दे श का अवलोकन करके उस समय महातेज वी राजाको बड़ा हष आ ।। ११—१३ ।। पर परा शाखैः पादपैः कुसुमा वतैः । अशोभत वनं तत् तु महे वजसं नभैः ।। १४ ।। फूल से लदे ए वृ एक- सरेसे अपनी डा लय को सटाकर मानो गले मल रहे थे। वे गगनचु बी वृ इ क वजाके समान जान पड़ते थे और उनके कारण उस वनक बड़ी शोभा हो रही थी ।। १४ ।। स चारणसंघै ग धवा सरसां गणैः । से वतं वनम यथ म वानर क रम् ।। १५ ।। औ े ी

स -चारणसमुदाय तथा ग धव और अ सरा के समूह भी उस वनका अ य त सेवन करते थे। वहाँ मतवाले वानर और क र नवास करते थे ।। १५ ।। सुखः शीतः सुग धी च पु परेणुवहोऽ नलः । प र ामन् वने वृ ानुपैतीव ररंसया ।। १६ ।। उस वनम शीतल, सुग ध, सुखदा यनी म द वायु फूल के पराग वहन करती ई मानो रमणक इ छासे बार-बार वृ के समीप आती थी ।। १६ ।। एवंगुणसमायु ं ददश स वनं नृपः । नद क छो वं का तमु त वजसं नभम् ।। १७ ।। वह वन मा लनी नद के कछारम फैला आ था और ऊँची वजा के समान ऊँचे वृ से भरा होनेके कारण अ य त मनोहर जान पड़ता था। राजाने इस कार उ म गुण से यु उस वनका भलीभाँ त अवलोकन कया ।। १७ ।। े माणो वनं तत् तु सु वह मम् । आ म वरं र यं ददश च मनोरमम् ।। १८ ।। इस कार राजा अभी वनक शोभा दे ख ही रहे थे क उनक एक उ म आ मपर पड़ी, जो अ य त रमणीय और मनोरम था। वहाँ ब त-से प ी हष लासम भरकर चहक रहे थे ।। १८ ।। नानावृ समाक ण स व लतपावकम् । तं तदा तमं ीमाना मं यपूजयत् ।। १९ ।। नाना कारके वृ से भरपूर उस वनम थान- थानपर अ नहो क आग व लत हो रही थी। इस कार उस अनुपम आ मका ीमान् य त नरेशने मन-ही-मन बड़ा स मान कया ।। १९ ।। य त भवालख यै वृतं मु नगणा वतम् । अ यगारै ब भः पु पसं तरसं तृतम् ।। २० ।। वहाँ ब त-से यागी वरागी य त, बालख य ऋ ष तथा अ य मु नगण नवास करते थे। अनेकानेक अ नहो गृह उस आ मक शोभा बढ़ा रहे थे। वहाँ इतने फूल झड़कर गरे थे क उनके बछौने-से बछ गये थे ।। २० ।। महाक छै बृह व ा जतमतीव च । मा लनीम भतो राजन् नद पु यां सुखोदकाम् ।। २१ ।। बड़े-बड़े तूनके वृ से उस आ मक शोभा ब त बढ़ गयी थी। राजन्! बीचम पु यस लला मा लनी नद बहती थी, जसका जल बड़ा ही सुखद एवं वा द था। उसके दोन तट पर वह आ म फैला आ था ।। २१ ।। नैकप गणाक णा तपोवनमनोरमाम् । त ालमृगान् सौ यान् प यन् ी तमवाप सः ।। २२ ।। मा लनीम अनेक कारके जलप ी नवास करते थे तथा तटवत तपोवनके कारण उसक मनोहरता और बढ़ गयी थी। वहाँ वषधर सप और हसक वनज तु भी सौ यभाव ( हसाशू य कोमलवृ )-से रहते थे। यह सब दे खकर राजाको बड़ी स ता ई ।। २२ ।। ी

तं चा तरथः ीमाना मं यप त । दे वलोक तीकाशं सवतः सुमनोहरम् ।। २३ ।। ीमान् य त नरेश अ तरथ वीर थे—उस समय उनक समानता करनेवाला भूम डलम सरा कोई रथी यो ा नह था। वे उ आ मके समीप जा प ँचे, जो दे वता के लोक-सा तीत होता था। वह आ म सब ओरसे अ य त मनोहर था ।। २३ ।। नद चा मसं ां पु यतोयां ददश सः । सव ाणभृतां त जननी मव ध ताम् ।। २४ ।। राजाने आ मसे सटकर बहनेवाली पु यस लला मा लनी नद क ओर भी पात कया; जो वहाँ सम त ा णय क जननी-सी वराज रही थी ।। २४ ।। सच वाकपु लनां पु पफेन वा हनीम् । स क रगणावासां वानर नषे वताम् ।। २५ ।। उसके तटपर चकवा-चकई कलोल कर रहे थे। नद के जलम ब त-से फूल इस कार बह रहे थे, मानो फेन ह । उसके तट ा तम क र के नवास- थान थे। वानर और रीछ भी उस नद का सेवन करते थे ।। २५ ।। पु य वा यायसंघु ां पु लनै पशो भताम् । म वारणशा लभुजगे नषे वताम् ।। २६ ।। अनेक सु दर पु लन मा लनीक शोभा बढ़ा रहे थे। वेद-शा के प व वा यायक व नसे उस स रताका नकटवत दे श गूँज रहा था। मतवाले हाथी, सह और बड़े-बड़े सप भी मा लनीके तटका आ य लेकर रहते थे ।। २६ ।। त या तीरे भगवतः का यप य महा मनः । आ म वरं र यं मह षगणसे वतम् ।। २७ ।। उसके तटपर ही क यपगो ीय महा मा क वका वह उ म एवं रमणीय आ म था। वहाँ मह षय के समुदाय नवास करते थे ।। २७ ।। नद मा मस ब ां ् वाऽऽ मपदं तथा । चकारा भ वेशाय म त स नृप त तदा ।। २८ ।। उस मनोहर आ म और आ मसे सट ई नद को दे खकर राजाने उस समय उसम वेश करनेका वचार कया ।। २८ ।। अलंकृतं पव या मा ल या र यतीरया । नरनारायण थानं ग येवोपशो भतम् ।। २९ ।। टापु से यु तथा सुर य तटवाली मा लनी नद से सुशो भत वह आ म गंगा नद से शोभायमान भगवान् नर-नारायणके आ म-सा जान पड़ता था ।। २९ ।। म ब हणसंघु ं ववेश महद् वनम् । तत् स चै रथ यं समुपे य नरषभः ।। ३० ।। अतीवगुणस प म नद यं च वचसा । मह ष का यपं ु मथ क वं तपोधनम् ।। ३१ ।। व जनीम स बाधां पदा तगजसंकुलाम् । े

अव था य वन ा र सेना मदमुवाच सः ।। ३२ ।। तदन तर नर े य तने अ य त उ म गुण से स प क यपगो ीय मह ष तपोधन क वका, जनके तेजका वाणी ारा वणन नह कया जा सकता था, दशन करनेके लये कुबेरके चै रथवनके समान मनोहर उस महान् वनम वेश कया, जहाँ मतवाले मयूर अपनी केका व न फैला रहे थे। वहाँ प ँचकर नरेशने रथ, घोड़े, हाथी और पैदल से भरी ई अपनी चतुरं गणी सेनाको उस तपोवनके कनारे ठहरा दया और कहा— ।। ३०— ३२ ।। मु न वरजसं ु ं ग म या म तपोधनम् । का यपं थीयताम यावदागमनं मम ।। ३३ ।। ‘सेनाप त! और सै नको! म रजोगुणर हत तप वी मह ष क यपन दन क वका दशन करनेके लये उनके आ मम जाऊँगा। जबतक म वहाँसे लौट न आऊँ, तबतक तुमलोग यह ठहरो’ ।। ३३ ।। तद् वनं न दन यमासा मनुजे रः । ु पपासे जहौ राजा मुदं चावाप पु कलाम् ।। ३४ ।। इस कार आदे श दे नरे र य तने न दनवनके समान सुशो भत उस तपोवनम प ँचकर भूख- यासको भुला दया। वहाँ उ ह बड़ा आन द मला ।। ३४ ।। सामा यो राज ल ा न सोऽपनीय नरा धपः । पुरो हतसहाय जगामा ममु मम् ।। ३५ ।। वे नरेश मुकुट आ द राज च को हटाकर साधारण वेश-भूषाम म य और पुरो हतके साथ उस उ म आ मके भीतर गये ।। ३५ ।। द ु त तमृ ष तपोरा शमथा यम् । लोक तीकाशमा मं सोऽ भवी य ह । षट् पदोद्गीतसंघु ं नाना जगणायुतम् ।। ३६ ।। वहाँ ये तप याके भ डार अ वकारी मह ष क वका दशन करना चाहते थे। राजाने उस आ मको दे खा, मानो सरा लोक हो। नाना कारके प ी वहाँ कलरव कर रहे थे। मर के गुंजनसे सारा आ म गूँज रहा था ।। ३६ ।। ऋचो ब चमु यै ेयमाणाः पद मैः । शु ाव मनुज ा ो वतते वह कमसु ।। ३७ ।। े ऋ वेद ा ण पद और मपूवक ऋचा का पाठ कर रहे थे। नर े य तने अनेक कारके य स ब धी कम म पढ़ जाती ई वै दक ऋचा को सुना ।। ३७ ।। य व ा व यजु व शो भतम् । मधुरैः सामगीतै ऋ ष भ नयत तैः ।। ३८ ।। भा डसामगीता भरथव शरसोद्गतैः । यता म भः सु नयतैः शुशुभे स तदा मः ।। ३९ ।। य व ा और उसके अंग क जानकारी रखनेवाले यजुवद व ान् भी आ मक शोभा बढ़ा रहे थे। नयमपूवक चय तका पालन करनेवाले सामवेद मह षय ारा वहाँ े े ो

मधुर वरसे सामवेदका गान कया जा रहा था। मनको संयमम रखकर नयमपूवक उ म तका पालन करनेवाले सामवेद और अथववेद मह ष भा डसं क सामम के गीत गाते और अथववेदके म का उ चारण करते थे; जससे उस आ मक बड़ी शोभा होती थी ।। ३८-३९ ।। अथववेद वराः पूगय यसामगाः । सं हतामीरय त म पद मयुतां तु ते ।। ४० ।। े अथववेद य व ान् तथा पूगय य नामक सामके गायक सामवेद मह ष पद और मस हत अपनी-अपनी सं हताका पाठ करते थे ।। ४० ।। श दसं कारसंयु ै ुव ापरै जैः । ना दतः स बभौ ीमान् लोक इवापरः ।। ४१ ।। सरे जबालक श द-सं कारसे स प थे—वे थान, करण और य नका यान रखते ए सं कृतवा य का उ चारण कर रहे थे। इन सबके तुमुल श द से गूँजता आ वह सु दर आ म तीय लोकके समान सुशो भत होता था ।। ४१ ।। य सं तर व म श ा वशारदै ः । यायत वा म व ानस प ैवदपारगैः ।। ४२ ।। नानावा यसमाहारसमवाय वशारदै ः । वशेषकाय व मो धमपरायणैः ।। ४३ ।। थापना ेप स ा तपरमाथ तां गतैः । श द छ दो न ैः काल ान वशारदै ः ।। ४४ ।। कमगुण ै कायकारणवे द भः । प वानर त ै ास थसमा तैः ।। ४५ ।। नानाशा ेषु मु यै शु ाव वनमी रतम् । लोकाय तकमु यै सम तादनुना दतम् ।। ४६ ।। य वेद क रचनाके ाता, म और श ाम कुशल, यायके त व और आ मानुभवसे स प , वेद के पारंगत, पर पर व तीत होनेवाले अनेक वा य क एकवा यता करनेम कुशल तथा व भ शाखा क गुण व धय का एक शाखाम उपसंहार करनेक कलाम नपुण, उपासना आ द वशेषकाय के ाता, मो धमम त पर, अपने स ा तक थापना करके उसम शंका उठाकर उसके प रहारपूवक उस स ा तके समथनम परम वीण, ाकरण, छ द, न , यो तष तथा श ा और क प—वेदके इन छह अंग के व ान्, पदाथ, शुभाशुभ कम, स व, रज, तम आ द गुण को जाननेवाले तथा काय ( यवग) और कारण (मूल कृ त)-के ाता, पशु-प य क बोली समझनेवाले, ास थका आ य लेकर म क ा या करनेवाले तथा व भ शा के मुख व ान् वहाँ रहकर जो श दो चारण कर रहे थे, उन सबको राजा य तने सुना। कुछ लोकरंजन करनेवाले लोग क बात भी उस आ मम चार ओर सुनायी पड़ती थ ।। ४२— ४६ ।। त त च व े ान् नयतान् सं शत तान् । ो ी

जपहोमपरान् व ान् ददश परवीरहा ।। ४७ ।। श ुवीर का संहार करनेवाले य तने थान- थानपर नयमपूवक उ म एवं कठोर तका पालन करनेवाले े एवं बु मान् ा ण को जप और होमम लगे ए दे खा ।। ४७ ।। आसना न व च ा ण चरा ण महीप तः । य नोप हता न म ् वा व मयमागमत् ।। ४८ ।। वहाँ य नपूवक तैयार कये ए ब त सु दर एवं व च आसन दे खकर राजाको बड़ा आ य आ ।। ४८ ।। दे वतायतनानां च े य पूजां कृतां जैः । लोक थमा मानं मेने स नृपस मः ।। ४९ ।। ज ारा क ई दे वालय क पूजा-प त दे खकर नृप े य तने ऐसा समझा क म लोकम आ प ँचा ँ ।। ४९ ।। स का यपतपोगु तमा म वरं शुभम् । नातृ यत् े माणो वै तपोवनगुणैयुतम् ।। ५० ।। वह े एवं शुभ आ म क यपन दन मह ष क वक तप यासे सुर त तथा तपोवनके उ म गुण से संयु था। राजा उसे दे खकर तृ त नह होते थे ।। ५० ।। स का यप यायतनं महा तैवृतं सम ता ष भ तपोधनैः । ववेश सामा यपुरो हतोऽ रहा व व म यथमनोहरं शुभम् ।। ५१ ।। मह ष क वका वह आ म, जसम वे वयं रहते थे, सब ओरसे महान् तका पालन करनेवाले तप वी मह षय ारा घरा आ था। वह अ य त मनोहर, मंगलमय और एका त थान था। श ुनाशक राजा य तने म ी और पुरो हतके साथ उसक सीमाम वेश कया ।। ५१ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण शकु तलोपा याने स त ततमोऽ यायः ।। ७० ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम शकु तलोपा यान वषयक स रवाँ अ याय पूरा आ ।। ७० ।।

एकस त ततमोऽ यायः राजा य तका शकु तलाके साथ वातालाप, शकु तलाके ारा अपने ज मका कारण बतलाना तथा उसी संगम व ा म क तप यासे इ का च तत होकर मेनकाको मु नका तपोभंग करनेके लये भेजना वैश पायन उवाच ततोऽग छ महाबा रेकोऽमा यान् वसृ य तान् । नाप य चा मे त मं तमृ ष सं शत तम् ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! तदन तर महाबा राजा य त साथ आये ए अपने उन म य को भी बाहर छोड़कर अकेले ही उस आ मम गये, कतु वहाँ कठोर तका पालन करनेवाले मह ष नह दखायी दये ।। १ ।। सोऽप यमान तमृ ष शू यं ् वा तथाऽऽ मम् । उवाच क इहे यु चैवनं संनादय व ।। २ ।। मह ष क वको न दे खकर और आ मको सूना पाकर राजाने स पूण वनको त व नत करते ए-से पूछा—‘यहाँ कौन है?’ ।। २ ।। ु वाथ त य तं श दं क या ी रव पणी । न ामा मात् त मात् तापसीवेषधा रणी ।। ३ ।। य तके उस श दको सुनकर एक मू तमती ल मी-सी सु दरी क या तापसीका वेष धारण कये आ मके भीतरसे नकली ।। ३ ।। सा तं ् वैव राजानं य तम सते णा । (सु ता यागतं तं तु पू यं ा तमथे रम् । पयौवनस प ा शीलाचारवती शुभा । सा तमायतपा ं ूढोर कं सुसंहतम् ।। सह क धं द घबा ं सवल णपू जतम् । व प ं मधुरां वाचं सा वी जनमेजय ।) वागतं त इ त मुवाच तपू य च ।। ४ ।। जनमेजय! उ म तका पालन करनेवाली वह सु दरी क या प, यौवन, शील और सदाचारसे स प थी। राजा य तके वशाल ने फु ल कमलदलके समान सुशो भत थे। उनक छाती चौड़ी, शरीरक गठन सु दर, कंधे सहके स श और भुजाएँ लंबी थ । वे सम त शुभ ल ण से स मा नत थे। याम ने वाली उस शुभल णा क याने स मा य राजा य तको दे खते ही मधुर वाणीम उनके त स मानका भाव द शत करते ए शी तापूवक प श द म कहा—‘अ त थदे व! आपका वागत है’ ।। ४ ।। े





आसनेनाच य वा च पा ेना यण चैव ह । प छानामयं राजन् कुशलं च नरा धपम् ।। ५ ।। महाराज! फर आसन, पा और अ य अपण करके उनका समादर करनेके प ात् उसने राजासे पूछा—‘आपका शरीर नीरोग है न? घरपर कुशल तो है?’ ।। ५ ।। यथावदच य वाथ पृ ् वा चानामयं तदा । उवाच मयमानेव क काय यता म त ।। ६ ।। उस समय व धपूवक आदर-स कार करके आरो य और कुशल पूछकर वह तप वनी क या मुसकराती ई-सी बोली—‘क हये आपक या सेवा क जाय?’ ।। ६ ।। (आ म या भगमने क वं काय चक ष स । क वम ेह स ा तो महषरा मं शुभम् ।।) ‘आपके आ मक ओर पधारनेका या कारण है? आप यहाँ कौन-सा काय स करना चाहते ह? आपका प रचय या है? आप कौन ह? और आज यहाँ मह षके इस शुभ आ मपर ( कस उ े यसे) आये ह?’ ताम वीत् ततो राजा क यां मधुरभा षणीम् । ् वा चैवानव ा यथावत् तपू जतः ।। ७ ।। उसके ारा व धवत् कये ए आ त य स कारको हण करके राजाने उस सवागसु दरी एवं मधुरभा षणी क याक ओर दे खकर कहा ।। ७ ।। ( य त उवाच राजषर म पु ोऽह म लल य महा मनः । य त इ त मे नाम स यं पु करलोचने ।।) आगतोऽहं महाभागमृ ष क वमुपा सतुम् । व गतो भगवान् भ े त ममाच व शोभने ।। ८ ।। य त बोले—कमललोचने! म राज ष महा मा इ लल* का पु ँ और मेरा नाम य त है। म यह स य कहता ँ। भ े ! म परम भा यशाली मह ष क वक उपासना करने —उनके स संगका लाभ लेनेके लये आया ँ। शोभने! बताओ तो, भगवान् क व कहाँ गये ह? ।। ८ ।। शकु तलोवाच गतः पता मे भगवान् फला याहतुमा मात् । मुत स ती व ा येनमुपागतम् ।। ९ ।। शकु तला बोली—अ यागत! मेरे पू य पताजी फल लानेके लये आ मसे बाहर गये ह। अतः दो घड़ी ती ा क जये। लौटनेपर उनसे म लयेगा ।। ९ ।। वैश पायन उवाच अप यमान तमृ ष तथा चो तया च सः । तां ् वा च वरारोहां ीमत चा हा सनीम् ।। १० ।। े

व ाजमानां वपुषा तपसा च दमेन च । पयौवनस प ा म युवाच महीप तः ।। ११ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! राजा य तने दे खा—मह ष क व आ मपर नह ह और वह तापसी क या उ ह वहाँ ठहरनेके लये कह रही है; साथ ही उनक इस बातक ओर भी गयी क यह क या सवागसु दरी, अपूव शोभासे स प तथा मनोहर मुसकानसे सुशो भत है। इसका शरीर सौ दयक भासे का शत हो रहा है, तप या तथा मन-इ य के संयमने इसम अपूव तेज भर दया है। यह अनुपम प और नयी जवानीसे उ ा सत हो रही है, यह सब सोचकर राजाने पूछा— ।। १०-११ ।। का वं क या स सु ो ण कमथ चागता वनम् । एवं पगुणोपेता कुत वम स शोभने ।। १२ ।। ‘मनोहर क ट दे शसे सुशो भत सु दरी! तुम कौन हो? कसक पु ी हो? और कस लये इस वनम आयी हो? शोभने! तुमम ऐसे अद्भुत प और गुण का वकास कैसे आ है? ।। १२ ।। दशनादे व ह शुभे वया मेऽप तं मनः । इ छा म वामहं ातुं त ममाच व शोभने ।। १३ ।। ‘शुभे! तुमने दशनमा से मेरे मनको हर लया है। क या ण! म तु हारा प रचय जानना चाहता ँ, अतः मुझे सब कुछ ठ क-ठ क बताओ ।। १३ ।। (शृणु मे नागनासो वचनं म का श न ।। राजषर वये जातः पूरोर म वशेषतः । वृणे वाम सु ो ण य तो वरव ण न ।। न मेऽ य यायां मनो जातु वतते । ऋ षपु ीषु चा यासु नावणासु परासु वा ।। त मात् ण हता मानं व मां कलभा ष ण । त य मे व य भावोऽ त या स का वद ।। न ह मे भी व ायांमनः सहते ग तम् । भजे वामायतापा भ ं भ जतुमह स ।। भुङ् व रा यं वशाला बु मा व यथा कृथाः ।) ‘हाथीक सूँड़के समान जाँघ वाली मतवाली सु दरी! मेरी बात सुनो; म राज ष पू के वंशम उ प राजा य त ँ। आज म अपनी प नी बनानेके लये तु हारा वरण करता ँ। य-क याके सवा सरी कसी ीक ओर मेरा मन कभी नह जाता। अ या य ऋ षपु य , अपनेसे भ वणक कुमा रय तथा परायी य क ओर भी मेरे मनक ग त नह होती। मधुरभा ष ण! तु ह यह ात होना चा हये क म अपने मनको पूणतः संयमम रखता ँ। ऐसा होनेपर भी तुमपर मेरा अनुराग हो रहा है, अतः तुम य-क या ही हो। बताओ, तुम कौन हो? भी ! ा ण-क याक ओर आकृ होना मेरे मनको कदा प स नह है। वशाल ने वाली सु दरी! म तु हारा भ ँ; तु हारी सेवा चाहता ँ; तुम मुझे ी









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वीकार करो। वशाललोचने! मेरा रा य भोगो। मेरे त अ यथा वचार न करो, मुझे पराया न समझो’। एवमु ा तु सा क या तेन रा ा तमा मे । उवाच हसती वा य मदं सुमधुरा रम् ।। १४ ।। उस आ मम राजाके इस कार पूछनेपर वह क या हँसती ई मठासभरे वचन म उनसे इस कार बोली— ।। १४ ।। क व याहं भगवतो य त हता मता । तप वनो धृ तमतो धम य महा मनः ।। १५ ।। ‘महाराज य त! म तप वी, धृ तमान्, धम तथा महा मा भगवान् क वक पु ी मानी जाती ँ ।। १५ ।। (अ वत ा म राजे का यपो मे गु ः पता । तमेव ाथय वाथ नायु ं कतुमह स ।।) ‘राजे ! म परत ँ। क यपन दन मह ष क व मेरे गु और पता ह। उ ह से आप अपने योजनक स के लये ाथना कर। आपको अनु चत काय नह करना चा हये’। य त उवाच ऊ वरेता महाभागे भगवाँ लोकपू जतः । चले वृ ाद् धम ऽ प न चलेत् सं शत तः ।। १६ ।। य त बोले—महाभागे! व व क व तो नै क चारी ह। वे बड़े कठोर तका पालन करते ह। सा ात् धमराज भी अपने सदाचारसे वच लत हो सकते ह, परंतु मह ष क व नह ।। १६ ।। कथं वं त य हता स भूता वरव णनी । संशयो मे महान त मे छे ु महाह स ।। १७ ।। ऐसी दशाम तुम-जैसी सु दरी दे वी उनक पु ी कैसे हो सकती है? इस वषयम मुझे बड़ा भारी संदेह हो रहा है। मेरे इस संदेहका नवारण तु ह कर सकती हो ।। १७ ।।

शकु तलोवाच यथायमागमो म ं यथा चेदमभूत् पुरा । शृणु राजन् यथात वं यथा म हता मुनेः ।। १८ ।। शकु तलाने कहा—राजन्! ये सब बात मुझे जस कार ात ई ह, मेरा यह ज म आ द पूवकालम जस कार आ है और म जस कार क व मु नक पु ी ँ, वह सब वृ ा त ठ क-ठ क बता रही ँ; सु नये ।। १८ ।। (अ यथा स तमा मानम यथा स सु भाषते । स पापेनावृतो मूखः तेन आ मापहारकः ।।) जसका व प तो अ य कारका है, कतु जो स पु ष के सामने उसका अ य कारसे ही प रचय दे ता है, अथात् जो पापा मा होते ए भी अपनेको धमा मा कहता है, वह मूख, पापसे आवृत, चोर एवं आ मवंचक है। ो

ऋ षः क दहाग य मम ज मा यचोदयत् । (ऊ वरेता यथा स वं कुत येयं शकु तला । पु ी व ः कथं जाता स यं मे ू ह का यप ।।) त मै ोवाच भगवान् यथा त छृ णु पा थव ।। १९ ।। पृ वीपते! एक दन कसी ऋ षने यहाँ आकर मेरे ज मके स ब धम मु नसे पूछा —‘क यपन दन! आप तो ऊ वरेता चारी ह, फर यह शकु तला कहाँसे आयी? आपसे पु ीका ज म कैसे आ? यह मुझे सच-सच बताइये।’ उस समय भगवान् क वने उससे जो बात बतायी, वही कहती ँ, सु नये ।। १९ ।। क व उवाच त यमानः कल पुरा व ा म ो महत् तपः । सुभृशं तापयामास श ं सुरगणे रम् ।। २० ।। क व बोले—पहलेक बात है, मह ष व ा म बड़ी भारी तप या कर रहे थे। उ ह ने दे वता के वामी इ को अपनी तप यासे अ य त संतापम डाल दया ।। २० ।। तपसा द तवीय ऽयं थाना मां यावये द त । भीतः पुरंदर त मा मेनका मदम वीत् ।। २१ ।। इ को यह भय हो गया क तप यासे अ धक श शाली होकर ये व ा म मुझे अपने थानसे कर दगे, अतः उ ह ने मेनकासे इस कार कहा— ।। २१ ।। गुणैर सरसां द ैमनके वं व श यसे । ेयो मे कु क या ण यत् वां व या म त छृ णु ।। २२ ।। असावा द यसंकाशो व ा म ो महातपाः । त यमान तपो घोरं मम क पयते मनः ।। २३ ।। ‘मेनके! अ सरा के जो द गुण ह, वे तुमम सबसे अ धक ह। क या ण! तुम मेरा भला करो और म तुमसे जो बात कहता ँ, सुनो। वे सूयके समान तेज वी, महातप वी व ा म घोर तप याम संल न हो मेरे मनको क पत कर रहे ह ।। २२-२३ ।। मेनके तव भारोऽयं व ा म ः सुम यमे । शं सता मा सु धष उ े तप स वतते ।। २४ ।। ‘सु दरी मेनके! उ ह तप यासे वच लत करनेका यह महान् भार म तु हारे ऊपर छोड़ता ँ। व ा म का अ तःकरण शु है। उ ह परा जत करना अ य त क ठन है और वे इस समय घोर तप याम लगे ह ।। २४ ।। स मां न यावयेत् थानात् तं वै ग वा लोभय । चर त य तपो व नं कु मेऽ व नमु मम् ।। २५ ।। ‘अतः ऐसा करो, जससे वे मुझे अपने थानसे न कर सक। तुम उनके पास जाकर उ ह लुभाओ, उनक तप याम व न डाल दो और इस कार मेरे व नके नवारणका उ म साधन तुत करो ।। २५ ।। पयौवनमाधुयचे त मतभाषणैः । ो

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लोभ य वा वरारोहे तपस तं नवतय ।। २६ ।। ‘वरारोहे! अपने प, जवानी, मधुर वभाव, हाव-भाव, म द मुसकान और सरस वातालाप आ दके ारा मु नको लुभाकर उ ह तप यासे नवृ कर दो’ ।। २६ ।। मेनकोवाच महातेजाः स भगवां तथैव च महातपाः । कोपन तथा ेनं जाना त भगवान प ।। २७ ।। मेनका बोली—दे वराज! भगवान् व ा म बड़े भारी तेज वी और महान् तप वी ह। वे ोधी भी ब त ह। उनके इस वभावको आप भी जानते ह ।। २७ ।। तेजस तपस ैव कोप य च महा मनः । वम यु जसे य य नो जेयमहं कथम् ।। २८ ।। जन महा माके तेज, तप और ोधसे आप भी उ न हो उठते ह, उनसे म कैसे नह ड ँ गी? ।। २८ ।। महाभागं व स ं यः पु ै र ै योजयत् । जात यः पूवमभवद् ा णो बलात् ।। २९ ।। शौचाथ यो नद च े गमां ब भजलैः । यां तां पु यतमां लोके कौ शक त व जनाः ।। ३० ।। व ा म ऋ ष वे ही ह, ज ह ने महाभाग मह ष व स का उनके यारे पु से सदाके लये वयोग करा दया; जो पहले यकुलम उ प होकर भी तप याके बलसे ा ण बन गये; ज ह ने अपने शौच- नानक सु वधाके लये अगाध जलसे भरी ई उस गम नद का नमाण कया, जसे लोकम सब मनु य अ य त पु यमयी कौ शक नद के नामसे जानते ह ।। २९-३० ।। बभार य ा य पुरा काले ग महा मनः । दारा मत ो धमा मा राज ष ाधतां गतः ।। ३१ ।। व ा म मह ष वे ही ह, जनक प नीका पूवकालम संकटके समय शापवश ाध बने ए धमा मा राज ष मतंगने भरण-पोषण कया था ।। ३१ ।। अतीतकाले भ े अ ये य पुनरा मम् । मु नः पारे त न ा वै नाम च े तदा भुः ।। ३२ ।। भ बीत जानेपर उन श शाली मु नने पुनः आ मपर आकर उस नद का नाम ‘पारा’ रख दया था ।। ३२ ।। मत ं याजया च े य ीतमनाः वयम् । वं च सोमं भयाद् य य गतः पातुं सुरे र ।। ३३ ।। सुरे र! उ ह ने मतंग मु नके कये ए उपकारसे स होकर वयं पुरो हत बनकर उनका य कराया; जसम उनके भयसे आप भी सोमपान करनेके लये पधारे थे ।। ३३ ।। चकारा यं च लोकं वै ु ो न स पदा । त वणपूवा ण न ा ण चकार यः । ो



गु शापहत या प शङ् कोः शरणं ददौ ।। ३४ ।। उ ह ने ही कु पत होकर सरे लोकक सृ क और न -स प से ठकर त वण आ द नूतन न का नमाण कया था। ये वे ही महा मा ह, ज ह ने गु के शापसे हीनाव थाम पड़े ए राजा शंकुको भी शरण द थी ।। ३४ ।। ( षशापं राज षः कथं मो य त कौ शकः । अवम य तदा दे वैय ा ं तद् वना शतम् ।। अ या न च महातेजा य ा ा यसृजत् भुः । ननाय च तदा वग शंकुं स महातपाः ।।) उस समय यह सोचकर क ‘ व ा म ष व स के शापको कैसे छु ड़ा दगे?’ दे वता ने उनक अवहेलना करके शंकुके य क वह सारी साम ी न कर द । परंतु महातेज वी श शाली व ा म ने सरी य -साम य क सृ कर ली तथा उन महातप वीने शंकुको वगलोकम प ँचा ही दया। एता न य य कमा ण त याहं भृशमु जे । यथासौ न दहेत् ु तथाऽऽ ापय मां वभो ।। ३५ ।। जनके ऐसे-ऐसे अद्भुत कम ह, उन महा मासे म ब त डरती ँ। भो! जससे वे कु पत हो मुझे भ म न कर द, ऐसे कायके लये मुझे आ ा द जये ।। ३५ ।। तेजसा नदहे लोकान् क पयेद ् धरण पदा । सं पे च महामे ं तूणमावतयेद ् दशः ।। ३६ ।। वे अपने तेजसे स पूण लोक को भ म कर सकते ह, पैरके आघातसे पृ वीको कँपा सकते ह, वशाल मे पवतको छोटा बना सकते ह और स पूण दशा म तुरंत उलट-फेर कर सकते ह ।। ३६ ।। ता शं तपसा यु ं द त मव पावकम् । कथम म धा नारी जते यम भ पृशेत् ।। ३७ ।। ऐसे व लत अ नके समान तेज वी, तप वी और जते य महा माका मुझ-जैसी नारी कैसे पश कर सकती है? ।। ३७ ।। ताशनमुखं द तं सूयच ा तारकम् । काल ज ं सुर े कथम म धा पृशेत् ।। ३८ ।। सुर े ! अ न जनका मुख है, सूय और च मा जनक आँख के तारे ह और काल जनक ज ा है, उन तेज वी मह षको मेरी-जैसी ी कैसे छू सकती है? ।। ३८ ।। यम सोम महषय सा या व े वालख या सव । एतेऽ प य यो ज ते भावात् त मात् क मा मा शी नो जेत ।। ३९ ।। यमराज, च मा, मह षगण, सा यगण, व ेदेव और स पूण बालख य ऋ ष—ये भी जनके भावसे उ न रहते ह, उन व ा म मु नसे मेरी-जैसी ी कैसे नह डरेगी? ।। ३९ ।। ै ी

वयैवमु ा च कथं समीपमृषेन ग छे यमहं सुरे । र ां तु मे च तय दे वराज यथा वदथ र ताहं चरेयम् ।। ४० ।। सुरे ! आपके इस कार वहाँ जानेका आदे श दे नेपर म उन मह षके समीप कैसे नह जाऊँगी? कतु दे वराज! पहले मेरी र ाका कोई उपाय सो चये; जससे सुर त रहकर म आपके कायक स के लये चे ा कर सकूँ ।। ४० ।। कामं तु मे मा त त वासः डताया ववृणोतु दे व । भवे च मे म मथ त काय सहायभूत तु तव सादात् ।। ४१ ।। दे व! म वहाँ जाकर जब ड़ाम नम न हो जाऊँ, उस समय वायुदेव आव यकता समझकर मेरा व उड़ा द और इस कायम आपके सादसे कामदे व भी मेरे सहायक ह ।। ४१ ।। वना च वायुः सुर भः वायात् त मन् काले तमृ ष लोभय याः । तथे यु वा व हते चैव त मंततो ययौ साऽऽ मं कौ शक य ।। ४२ ।। जब म ऋ षको लुभाने लगूँ, उस समय वनसे सुग धभरी वायु चलनी चा हये। ‘तथा तु’ कहकर इ ने जब इस कारक व था कर द , तब मेनका व ा म मु नके आ मपर गयी ।। ४२ ।। ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण शकु तलोपा याने एकस त ततमोऽ यायः ।। ७१ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम शकु तलोपा यान वषयक इकह रवाँ अ याय पूरा आ ।। ७१ ।। ( ा णा य अ धक पाठक े १५ ोक मलाकर कुल ५७ ोक ह) द

*

इत

य तके पताके ‘इ लल’ और ‘ई लन’ दोन ही नाम मलते ह।

स त ततमोऽ यायः मेनका- व ा म - मलन, क याक उ प , शकु त प य के ारा उसक र ा और क वका उसे अपने आ मपर लाकर शकु तला नाम रखकर पालन करना क व उवाच एवमु तया श ः सं ददे श सदाग तम् । ा त त तदा काले मेनका वायुना सह ।। १ ।। (शक ु तला य तसे कहती है—) मह ष क वने (पूव ऋ षसे शेष वृ ा त इस कार) कहा—मेनकाके ऐसा कहनेपर इ दे वने वायुको उसके साथ जानेका आदे श दया। तब मेनका वायुदेवके साथ समयानुसार वहाँसे थत ई ।। १ ।। अथाप यद् वरारोहा तपसा द ध क बषम् । व ा म ं त यमानं मेनका भी रा मे ।। २ ।। वनम प ँचकर भी वभाववाली सु दरी मेनकाने एक आ मम व ा म मु नको तप करते दे खा। वे तप या ारा अपने सम त पाप द ध कर चुके थे ।। २ ।। अ भवा ततः सा तं ा ड षसं नधौ । अपोवाह च वासोऽ या मा तः श शसं नभम् ।। ३ ।। उस समय मह षको णाम करके वह अ सरा उनके समीपवत थानम ही भाँ तभाँ तक ड़ाएँ करने लगी। इतनेम ही वायुने मेनकाका च माके समान उ वल व उसके शरीरसे हटा दया ।। ३ ।। साग छत् व रता भूम वास तद भ ल सती । मयमानेव स ीडं मा तं वरव णनी ।। ४ ।। यह दे ख सु दरी मेनका लजाकर वायुदेवको कोसती एवं मुसकराती ई-सी वह व लेनेक इ छासे तुरंत ही उस थानक ओर दौड़ी गयी, जहाँ वह गरा था ।। ४ ।। प यत त य त षर य नसमतेजसः । व ा म तत तां तु वषम थाम न दताम् ।। ५ ।। गृ ां वास स स ा तां मेनकां मु नस मः । अ नद यवयो पामप यद् ववृतां तदा ।। ६ ।। अ नके समान तेज वी मह ष व ा म के दे खते-दे खते वहाँ यह घटना घ टत ई। वह अ न सु दरी वषम प र थ तम पड़ गयी थी और घबराकर व लेनेक इ छा कर रही थी। उसका प-सौ दय अवणनीय था। त णाव था भी अद्भुत थी। उस सु दरी अ सराको मु नवर व ा म ने वहाँ नंगी दे ख लया ।। ५६ ।। त या पगुणान् ् वा स तु व षभ तदा । चकार भावं संसगात् तया कामवशं गतः ।। ७ ।। े औ ो े े ी े ी ो े

उसके प और गुण को दे खते ही व वर व ा म कामके अधीन हो गये। स पकम आनेके कारण मेनकाम उनका अनुराग हो गया ।। ७ ।। यम यत चा येनां सा चा यै छद न दता । तौ त सु चरं कालमुभौ हरतां तदा ।। ८ ।। रममाणौ यथाकामं यथैक दवसं तथा । (काम ोधाव जतवान् मु न न यं मा वतः । चरा जत य तपसः यं स कृतवानृ षः ।। तपसः सं यादे व मु नम हं समा वशत् । कामरागा भभूत य मुनेः पा जगाम सा ।।) जनयामास स मु नमनकायां शकु तलाम् ।। ९ ।। थे हमवतो र ये मा लनीम भतो नद म् । जातमु सृ य तं गभ मेनका मा लनीमनु ।। १० ।। कृतकाया तत तूणमग छ छ संसदम् । तं वने वजने गभ सह ा समाकुले ।। ११ ।। ् वा शयानं शकुनाः सम तात् पयवारयन् । नेमां ह युवने बालां ादा मांसगृ नः ।। १२ ।। उ ह ने मेनकाको अपने नकट आनेका नम ण दया। अ न सु दरी मेनका तो यह चाहती ही थी, उनसे स ब ध था पत करनेके लये वह राजी हो गयी। तदन तर वे दोन वहाँ सुद घ कालतक इ छानुसार वहार तथा रमण करते रहे। वह महान् काल उ ह एक दनके समान तीत आ। काम और ोधपर वजय न पा सकनेवाले उन सदा माशील मह षने द घकालसे उपाजत क ई तप याको न कर दया। तप याका य होनेसे मु नके मनपर मोह छा गया। तब मेनका काम तथा रागके वशीभूत ए मु नके पास गयी। न्! फर मु नने मेनकाके गभसे हमालयके रमणीय शखरपर मा लनी नद के कनारे शकु तलाको ज म दया। मेनकाका काम पूरा हो चुका था; वह उस नवजात गभको मा लनीके तटपर छोड़कर तुरंत इ -लोकको चली गयी। सह और ा से भरे ए नजन वनम उस शशुको सोते दे ख शकु त (प य )-ने उसे सब ओरसे पाँख ारा ढक लया; जससे क चे मांस खानेवाले गीध आ द जीव वनम इस क याक हसा न कर सक ।। ८— १२ ।। पयर त तां त शकु ता मेनका मजाम् । उप ु ं गत ाहमप यं श यता ममाम् ।। १३ ।। नजने व पने र ये शकु तैः प रवा रताम् । (मां ् वैवा वप त पादयोः प तता जाः । अ ुव छकुनाः सव कलं मधुरभा षणः ।।















इस कार वहाँ शकु त ही मेनकाकुमारीक र ा कर रहे थे। उसी समय आचमन करनेके लये जब म मा लनीतटपर गया तो दे खा—यह रमणीय नजन वनम प य से घरी ई सो रही है। मुझे दे खते ही वे सब मधुरभाषी प ी मेरे पैर पर गर गये और सु दर वाणीम इस कार कहने लगे ।। १३ ।। जा ऊचुः व ा म सुतां न् यासभूतां भर व वै । काम ोधाव जतवान् सखा ते कौ शक गतः ।। त मात् पोषय त पु दयावा न त तेऽ ुवन् । प ी बोले— न्! यह व ा म क क या आपके यहाँ धरोहरके पम आयी है। आप इसका पालन-पोषण क जये। कौ शक के तटपर गये ए आपके सखा व ा म काम और ोधको नह जीत सके थे। आप दयालु ह; इस लये उनक पु ीका पालन क जये। इस कार प य ने कहा। क व उवाच सवभूत त ोऽहं दयावान् सवज तुषु । नजनेऽ प महार ये शकुनैः प रवा रताम् ।।) आन य वा तत ैनां हतृ वे यवेशयम् ।। १४ ।। क व मु न कहते ह— न्! म सम त ा णय क बोली समझता ँ और सब जीव के त दयाभाव रखता ँ। अतः उस नजन महावनम प य से घरी ई इस क याको वहाँसे लाकर मने इसे अपनी पु ीके पदपर त त कया ।। १४ ।। शरीरकृत् ाणदाता य य चा ा न भु ते । मेणैते योऽ यु ाः पतरो धमशासने ।। १५ ।। जो गभाधानके ारा शरीरका नमाण करता है, जो अभयदान दे कर ाण क र ा करता है और जसका अ भोजन कया जाता है, धमशा म मशः ये तीन पु ष पता कहे गये ह ।। १५ ।। नजने तु वने य मा छकु तैः प रवा रता । शकु तले त नामा याः कृतं चा प ततो मया ।। १६ ।। नजन वनम इसे शकु त ने घेर रखा था, इस लये ‘शकु तान् ला त र क वेन गृा त’ इस ु प के अनुसार इस क याका नाम मने ‘शकु तला’ रख दया ।। १६ ।। एवं हतरं व मम व शकु तलाम् । शकु तला च पतरं म यते माम न दता ।। १७ ।। न्! इस कार शकु तला मेरी बेट ई, आप यह जान ल। शंसनीय शीलवभाववाली शकु तला भी मुझे अपना पता मानती है ।। १७ ।। शकु तलोवाच एतदाच पृ ः सन् मम ज म महषये । े

सुतां क व य मामेवं व वं मनुजा धप ।। १८ ।। क वं ह पतरं म ये पतरं वमजानती । इ त ते क थतं राजन् यथावृ ं ुतं मया ।। १९ ।। शकु तला कहती है—राजन्! उन मह षके पूछनेपर पता क वने मेरे ज मका यह वृ ा त उ ह बताया था। इस तरह आप मुझे क वक ही पु ी सम झये। म अपने ज मदाता पताको तो जानती नह , क वको ही पता मानती ँ। महाराज! इस कार जो वृ ा त मने सुन रखा था, वह सब आपको बता दया ।। १८-१९ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण शकु तलोपा याने स त ततमोऽ यायः ।। ७२ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम शकु तलोपा यान वषयक बह रवाँ अ याय पूरा आ ।। ७२ ।। (दा णा य अ धक पाठक े ५ ोक मलाकर कुल २४ ोक ह)

स त ततमोऽ यायः शकु तला और य तका गा धव ववाह और मह ष क वके ारा उसका अनुमोदन य त उवाच सु ं राजपु ी वं यथा क या ण भाषसे । भाया मे भव सु ो ण ू ह क करवा ण ते ।। १ ।। य त बोले—क या ण! तुम जैसी बात कह चुक हो, उनसे भलीभाँ त प हो गया क तुम य-क या हो ( य क व ा म मु न ज मसे तो य ही ह)। सु ो ण! मेरी प नी बन जाओ। बोलो, म तु हारी स ताके लये या क ँ ।। १ ।। सुवणमालां वासां स कु डले प रहाटके । नानाप नजे शु े म णर ने च शोभने ।। २ ।। आहरा म तवा ाहं न काद य जना न च । सव रा यं तवा ा तु भाया मे भव शोभने ।। ३ ।। सोनेके हार, सु दर व , तपाये ए सुवणके दो कु डल, व भ नगर के बने ए सु दर और चमक ले म णर न नमत आभूषण, वणपदक और कोमल मृगचम आ द व तुएँ तु हारे लये म अभी लाये दे ता ँ। शोभने! अ धक या क ँ, मेरा सारा रा य आजसे तु हारा हो जाय, तुम मेरी महारानी बन जाओ ।। २-३ ।। गा धवण च मां भी ववाहेनै ह सु द र । ववाहानां ह र भो गा धवः े उ यते ।। ४ ।। भी ! सु द र! गा धव ववाहके ारा मुझे अंगीकार करो। र भो ! ववाह म गा धव ववाह े कहलाता है ।। ४ ।। शकु तलोवाच फलाहारो गतो राजन् पता मे इत आ मात् । मुत स ती व स मां तु यं दा य त ।। ५ ।। शकु तलाने कहा—राजन्! मेरे पता क व फल लानेके लये इस आ मसे बाहर गये ह। दो घड़ी ती ा क जये। वे ही मुझे आपक सेवाम सम पत करगे ।। ५ ।। ( पता ह मे भु न यं दै वतं परमं मतम् । य य वा दा य त पता स मे भता भ व य त ।। पता र त कौमारे भता र त यौवने । पु तु थ वरे भावे न ी वात यमह त ।। अम यमाना राजे पतरं मे तप वनम् । अधमण ह ध म कथं वरमुपा महे ।। ी े े





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महाराज! पता ही मेरे भु ह। उ ह ही म सदा अपना सव कृ दे वता मानती ँ। पताजी मुझे जसको स प दगे, वही मेरा प त होगा। कुमाराव थाम पता, जवानीम प त और बुढ़ापेम पु र ा करता है। अतः ीको कभी वत नह रहना चा हये। धम राजे ! म अपने तप वी पताक अवहेलना करके अधमपूवक प तका वरण कैसे कर सकती ँ? य त उवाच मा मैवं वद सु ो ण तपोरा श दया मकम् । य त बोले—सु दरी! ऐसा न कहो। तपोरा श महा मा क व बड़े ही दयालु ह। शकु तलोवाच म यु हरणा व ा न व ाः श पाणयः ।। अ नदह त तेजो भः सूय दह त र म भः । राजा दह त द डेन ा णो म युना दहेत् ।। ो धतो म युना ह त व पा ण रवासुरान् ।) शकु तलाने कहा—राजन्! ा ण ोधके ारा ही हार करते ह। वे हाथम लोहेका ह थयार नह धारण करते। अ न अपने तेजसे, सूय अपनी करण से, राजा द डसे और ा ण ोधसे द ध करते ह। कु पत ा ण अपने ोधसे अपराधीको वैसे ही न कर दे ता है, जैसे वधारी इ असुर को। य त उवाच इ छा म वां वरारोहे भजमानाम न दते । वदथ मां थतं व वद्गतं ह मनो मम ।। ६ ।। य त बोले—वरारोहे! तु हारा शील और वभाव शंसाके यो य है। म चाहता ँ, तुम मुझे वे छासे वीकार करो। म तु हारे लये ही यहाँ ठहरा ँ। मेरा मन तुमम ही लगा आ है ।। ६ ।। आ मनो ब धुरा मैव ग तरा मैव चा मनः । आ मनो म मा मैव तथाऽऽ मा चा मनः पता । आ मनैवा मनो दानं कतुमह स धमतः ।। ७ ।। आ मा ही अपना ब धु है। आ मा ही अपना आ य है। आ मा ही अपना म है और वही अपना पता है, अतः तुम वयं ही धमपूवक आ मसमपण करनेयो य हो ।। ७ ।। अ ावेव समासेन ववाहा धमतः मृताः । ा ो दै व तथैवाषः ाजाप य तथासुरः ।। ८ ।। गा धव रा स ैव पैशाच ा मः मृतः । तेषां ध यान् यथापूव मनुः वाय भुवोऽ वीत् ।। ९ ।। धमशा क से सं ेपसे आठ कारके ही ववाह माने गये ह— ा , दै व, आष, ाजाप य, आसुर, गा धव, रा स तथा आठवाँ पैशाच।* वाय भुव मनुका कथन है क े े े

इनम बादवाल क अपे ा पहलेवाले ववाह धमानुकूल ह ।। ८-९ ।। श तां तुरः पूवान् ा ण योपधारय । षडानुपू ा य व ध यान न दते ।। १० ।। पूवक थत जो चार ववाह— ा , दै व, आष तथा ाजापा य ह, उ ह ा णके लये उ म समझो। अ न दते! ा से लेकर गा धवतक मशः छः ववाह यके लये धमानुकूल जानो ।। १० ।। रा ां तु रा सोऽ यु ो वट् शू े वासुरः मृतः । प चानां तु यो ध या अध य ौ मृता वह ।। ११ ।। राजा के लये तो रा स ववाहका भी वधान है। वै य और शू म आसुर ववाह ा माना गया है। अ तम पाँच ववाह म तीन तो धमस मत ह और दो अधम प माने गये ह ।। ११ ।। पैशाच आसुर ैव न कत ौ कदाचन । अनेन व धना काय धम यैषा ग तः मृता ।। १२ ।। पैशाच और आसुर ववाह कदा प करनेयो य नह ह। इस व धके अनुसार ववाह करना चा हये। यह धमका माग बताया गया है ।। १२ ।। गा धवरा सौ े ध य तौ मा वशङ् कथाः । पृथग् वा य द वा म ौ कत ौ ना संशयः ।। १३ ।। गा धव और रा स—दोन ववाह यजा तके लये धमानुकूल ही ह। अतः उनके वषयम तु ह संदेह नह करना चा हये। वे दोन ववाह पर पर मले ह या पृथक्-पृथक् ह , यके लये करनेयो य ही ह, इसम संशय नह है ।। १३ ।। सा वं मम सकाम य सकामा वरव ण न । गा धवण ववाहेन भाया भ वतुमह स ।। १४ ।। अतः सु दरी! म तु ह पानेके लये इ छु क ँ। तुम भी मुझे पानेक इ छा रखकर गा धव ववाहके ारा मेरी प नी बन जाओ ।। १४ ।।

शकु तलोवाच य द धमपथ वेष य द चा मा भुमम । दाने पौरव े शृणु मे समयं भो ।। १५ ।। शकु तलाने कहा—पौरव े ! य द यह गा धव ववाह धमका माग है, य द आ मा वयं ही अपना दान करनेम समथ है तो इसके लये म तैयार ँ; कतु भो! मेरी एक शत है, उसे सुन ली जये ।। १५ ।। स यं मे तजानी ह यथा व या यहं रहः । म य जायेत यः पु ः स भवेत् वदन तरः ।। १६ ।। युवराजो महाराज स यमेतद् वी म ते । य ेतदे वं य त अ तु मे स म वया ।। १७ ।। औ

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और उसका पालन करनेके लये मुझसे स ची त ा क जये। वह शत या है, यह म एका तम आपसे कह रही ँ—महाराज य त! मेरे गभसे आपके ारा जो पु उ प हो, वही आपके बाद युवराज हो, ऐसी मेरी इ छा है। यह म आपसे स य कहती ँ। य द यह शत इसी पम आपको वीकार हो तो आपके साथ मेरा समागम हो सकता है ।। १६-१७ ।। वैश पायन उवाच एवम व त तां राजा युवाचा वचारयन् । अ प च वां ह ने या म नगरं वं शु च मते ।। १८ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! शकु तलाक यह बात सुनकर राजा य तने बना कुछ सोचे- वचारे यह उ र दे दया क ‘ऐसा ही होगा।’ वे शकु तलासे बोले —‘शु च मते! म शी तु ह अपने नगरम ले चलूँगा ।। १८ ।। यथा वमहा सु ो ण स यमेतद् वी म ते । एवमु वा स राज ष ताम न दतगा मनीम् ।। १९ ।। ज ाह व धवत् पाणायुवास च तया सह । व ा य चैनां स ायाद वी च पुनः पुनः ।। २० ।। ेष य ये तवाथाय वा हन चतुर णीम् । तया वानाय य या म नवासं वं शु च मते ।। २१ ।। ‘सु ो ण! तुम राजभवनम ही रहनेयो य हो। म तुमसे यह स ची बात कहता ँ।’ ऐसा कहकर राज ष य तने अ न गा मनी शकु तलाका व धपूवक पा ण हण कया और उसके साथ एका तवास कया। फर उसे व ास दलाकर वहाँसे वदा ए। जाते समय उ ह ने बार-बार कहा—‘प व मुसकानवाली सु दरी! म तु हारे लये चतुरं गणी सेना भेजूँगा और उसीके साथ अपने राजभवनम बुलवाऊँगा’ ।। १९—२१ ।। (एवमु वा स राज ष ताम न दतगा मनीम् । स प र व य बा यां मतपूवमुदै त ।। द णीकृतां दे व राजा स प रष वजे । शकु तला ुमुखी पपात नृपपादयोः ।। तां दे व पुन था य मा शुचे त पुनः पुनः । शपेयं सुकृतेनैव ाप य ये नृपा मजे ।।) अ न गा मनी शकु तलासे ऐसा कहकर राज ष य तने उसे अपनी भुजा म भर लया और उसक ओर मुसकराते ए दे खा। दे वी शकु तला राजाक प र मा करके खड़ी थी। उस समय उ ह ने उसे दयसे लगा लया। शकु तलाके मुखपर आँसु क धारा बह चली और वह नरेशके चरण म गर पड़ी। राजाने दे वी शकु तलाको फर उठाकर बार-बार कहा—‘राजकुमारी! च ता न करो। म अपने पु यक शपथ खाकर कहता ँ, तु ह अव य बुला लूँगा।’ वैश पायन उवाच ो े

इ त त याः त ु य स नृपो जनमेजय । मनसा च तयन् ायात् का यपं त पा थवः ।। २२ ।। भगवां तपसा यु ः ु वा क नु क र य त । एवं स च तय ेव ववेश वकं पुरम् ।। २३ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! इस कार शकु तलासे त ा करके नरे र राजा य त आ मसे चल दये। उनके मनम मह ष क वक ओरसे बड़ी च ता थी क तप वी भगवान् क व यह सब सुनकर न जाने या कर बैठगे? इस तरह च ता करते ए ही राजाने अपने नगरम वेश कया ।। २२-२३ ।। मुतयाते त मं तु क वोऽ या ममागमत् । शकु तला च पतरं या नोपजगाम तम् ।। २४ ।। उनके गये दो ही घड़ी बीती थी क मह ष क व भी आ मपर आ गये; परंतु शकु तला ल जावश पहलेके समान पताके समीप नह गयी ।। २४ ।। (शङ ् कतैव च व षमुपच ाम सा शनैः । ततोऽ य राज ाह आसनं चा यक पयत् ।। शकु तला च स ीडा तमृ ष ना यभाषत । त मात् वधमात् ख लता भीता सा भरतषभ ।। अभवद् दोषद श वाद् चा र यय ता । स तदा ी डतां ् वा ऋ ष तां यभाषत ।। त प ात् वह डरती ई षके नकट धीरे-धीरे गयी। फर उसने उनके लये आसन लेकर बछाया। शकु तला इतनी ल जत हो गयी थी क मह षसे कोई बाततक न कर सक । भरत े ! वह अपने धमसे गर जानेके कारण भयभीत हो रही थी। जो कुछ समय पहलेतक वाधीन चा रणी थी, वही उस समय अपना दोष दे खनेके कारण घबरा गयी थी। शकु तलाको ल जाम डू बी ई दे ख मह ष क वने उससे कहा। क व उवाच स ीडैव च द घायुः पुरेव भ वता न च । वृ ं कथय र भो मा ासं च क पय ।। क व बोले—बेट ! तू सल ज रहकर ही द घायु होगी। अब पहले जैसी चपल न रह सकेगी। शुभे! सारी बात प बता; भय न कर। वैश पायन उवाच ततः कृ ाद तशुभा स ीडा ीमती तदा । सगद्गदमुवाचेदं का यपं सा शु च मता ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! प व मुसकान-वाली वह सु दरी अ य त सदाचा रणी थी; तो भी अपने वहारसे ल जाका अनुभव करती ई मह ष क वसे बड़ी क ठनाईके साथ गद्गदक ठ होकर बोली।



शकु तलोवाच राजा ताताजगामेह य त इ लला मजः । मया प तवृतो योऽसौ दै वयोगा दहागतः ।। त य तात सीद व भता मे सुमहायशाः । अतः सव तु यद् वृ ं द ानेन प य स । अभयं यकुले सादं कतुमह स ।।) शकु तला बोली—तात! इ ललकुमार महाराज य त इस वनम आये थे। दै वयोगसे इस आ मपर भी उनका आगमन आ और मने उ ह अपना प त वीकार कर लया। पताजी! आप उनपर स ह । वे महायश वी नरेश अब मेरे वामी ह। इसके बादका सारा वृ ा त आप द ान से दे ख सकते ह। यकुलको अभयदान दे कर उनपर कृपा कर। व ायाथ च तां क वो द ानो महातपाः । उवाच भगवान् ीतः प यन् द ेन च ुषा ।। २५ ।। महातप वी भगवान् क व द ानसे स प थे। वे द से दे खकर शकु तलाक ता का लक अव थाको जान गये; अतः स होकर बोले— ।। २५ ।। वया भ े रह स मामना य यः कृतः । पुंसा सह समायोगो न स धम पघातकः ।। २६ ।। ‘भ े ! आज तुमने मेरी अवहेलना करके जो एका तम कसी पु षके साथ स ब ध था पत कया है, वह तु हारे धमका नाशक नह है ।। २६ ।। य य ह गा धव ववाहः े उ यते । सकामायाः सकामेन नम ो रह स मृतः ।। २७ ।। ‘ यके लये गा धव ववाह े कहा गया है। ी और पु ष दोन एक सरेको चाहते ह , उस दशाम उन दोन का एका तम जो म हीन स ब ध था पत होता है, उसे गा धव ववाह कहा गया है ।। २७ ।। धमा मा च महा मा च य तः पु षो मः । अ यग छः प त यत् वं भजमानं शकु तले ।। २८ ।। महा मा ज नता लोके पु तव महाबलः । य इमां सागरापा कृ नां भो य त मे दनीम् ।। २९ ।। ‘शकु तले! महामना य त धमा मा और े पु ष ह। वे तु ह चाहते थे। तुमने यो य प तके साथ स ब ध था पत कया है; इस लये लोकम तु हारे गभसे एक महाबली और महा मा पु उ प होगा, जो समु से घरी ई इस समूची पृ वीका उपभोग करेगा ।। २८-२९ ।। परं चा भ यात य च ं त य महा मनः । भ व य य तहतं सततं च व तनः ।। ३० ।। ‘









‘श ु पर आ मण करनेवाले उस महामना च वत नरेशक सेना सदा अ तहत होगी। उसक ग तको कोई रोक नह सकेगा’ ।। ३० ।। ततः ा य पादौ सा व ा तं मु नम वीत् । व नधाय ततो भारं सं नधाय फला न च ।। ३१ ।। तदन तर शकु तलाने उनके लाये ए फलके भारको लेकर यथा थान रख दया। फर उनके दोन पैर धोये तथा जब वे भोजन और व ाम कर चुके, तब वह मु नसे इस कार बोली ।। ३१ ।। शकु तलोवाच मया प तवृतो राजा य तः पु षो मः । त मै सस चवाय वं सादं कतुमह स ।। ३२ ।। शकु तलाने कहा—भगवन्! मने पु ष म े राजा य तका प त पम वरण कया है। अतः म य स हत उन नरेशपर आपको कृपा करनी चा हये ।। ३२ ।। क व उवाच स एव त याहं व कृते वरव ण न । (ऋतवो बहव ते वै गता थाः शु च मते । साथकं सा तं ेत च पापोऽ त तेऽनघे ।।) गृहाण च वरं म वं शुभे यदभी सतम् ।। ३३ ।। क व बोले—उ म वणवाली पु ी! म तु हारे भलेके लये राजा य तपर भी स ही ँ। शु च मते! अबतक तेरे ब त-से ऋतु थ बीत गये ह। इस बार यह साथक आ है। अनघे! तु ह पाप नह लगेगा। शुभे! तु हारी जो इ छा हो, वह वर मुझसे माँग लो ।। ३३ ।।

वैश पायन उवाच ततो ध म तां व े रा या चा खलनं तथा । शकु तला पौरवाणां य त हतका यया ।। ३४ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तब शकु तलाने य तके हतक इ छासे यह वर माँगा क पु वंशी नरेश सदा धमम थर रह और वे कभी रा यसे न ह ।। ३४ ।। (एवम व त तां ाह क वो धमभृतां वरः । प पश चा प पा ण यां सुतां ी मव पणीम् ।। उस समय धमा मा म े क वने उससे कहा—‘एवम तु’ (ऐसा ही हो)। यह कहकर उ ह ने मू तमती ल मी-सी पु ी शकु तलाका दोन हाथ से पश कया और कहा। क व उवाच अ भृ त दे वी वं य त य महा मनः । प त तानां या वृ तां वृ मनुपालय ।।) ो े





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क व बोले—बेट ! आजसे तू महा मा राजा य तक महारानी है। अतः प त ता य का जो बताव तथा सदाचार है, उसका नर तर पालन कर। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण शकु तलोपा याने स त ततमो यायः ।। ७३ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम शकु तलोपा यान वषयक तह रवाँ अ याय पूरा आ ।। ७३ ।। (दा णा य अ धक पाठक े १९ ोक मलाकर कुल ५३ ोक ह)

* क याको व और आभूषण से अलंकृत करके सजातीय यो य वरके हाथम दे ना ‘ ा ’ ववाह कहलाता है। अपने घरपर दे वय करके य ा तम ऋ वज्को अपनी क याका दान करना ‘दै व’ ववाह कहा गया है। वरसे एक गाय और एक बैल शु कके पम लेकर क यादान करना ‘आष’ ववाह बताया गया है। वर और क या दोन साथ रहकर धमाचरण कर, इस बु से क यादान करना ‘ ाजाप य’ ववाह माना गया है। वरसे मू यके पम ब त-सा धन लेकर क या दे ना ‘आसुर’ ववाह माना गया है। वर और वधू दोन एक- सरेको वे छासे वीकार कर ल, यह ‘गा धव’ ववाह है। यु करके मार-काट मचाकर रोती ई क याको उसके रोते ए भाई-ब धु से छ न लाना ‘रा स’ ववाह माना गया है। जब घरके लोग सोये ह अथवा असावधान ह , उस दशाम क याको चुरा लेना ‘पैशाच’ ववाह है।

चतुःस त ततमोऽ यायः शकु तलाके पु का ज म, उसक अ त श , पु स हत शकु तलाका य तके यहाँ जाना, य त-शकु तलासंवाद, आकाशवाणी ारा शकु तलाक शु का समथन और भरतका रा या भषेक वैश पायन उवाच त ाय तु य ते तयाते शकु तलाम् । (गभ ववृधे त यां राजपुयां महा मनः । शकु तला च तय ती राजानं कायगौरवात् ।। दवारा म न ै व नानभोजनव जता ।। राज ेष णका व ा तुर बलैः सह । अ ो वा पर ो वा समाया ती त न ता ।। दवसान् प ानृतून् मासानयना न च सवशः । ग यमानेषु सवषु तीयु ी ण भारत ।।) वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! जब शकु तलासे पूव त ा करके राजा य त चले गये, तब यक या शकु तलाके उदरम उन महा मा य तके ारा था पत कया आ गभ धीरे-धीरे बढ़ने और पु होने लगा। शकु तला कायक गु तापर रखकर नर तर राजा य तका ही च तन करती रहती थी। उसे न तो दनम न द आती थी और न रातम ही। उसका नान और भोजन छू ट गया था। उसे यह ढ़ व ास था क राजाके भेजे ए ा ण चतुरं गणी सेनाके साथ आज, कल या परस तक मुझे लेनेके लये अव य आ जायँगे। भरतन दन! शकु तलाको दन, प , मास, ऋतु, अयन तथा वष—इन सबक गणना करते-करते तीन वष बीत गये। गभ सुषाव वामो ः कुमारम मतौजसम् ।। १ ।। षु वषषु पूणषु द तानलसम ु तम् । पौदायगुणोपेतं दौ य तं जनमेजय ।। २ ।। जनमेजय! तदन तर पूरे तीन वष तीत होनेके बाद सु दर जाँघ वाली शकु तलाने अपने गभसे व लत अ नके समान तेज वी, प और उदारता आ द गुण से स प , अ मत परा मी कुमारको ज म दया, जो य तके वीयसे उ प आ था ।। १-२ ।। (त मै तदा त र ात् तु पु पवृ ः पपात ह । दे व भयो ने ननृतु ा सरोगणाः ।। गाय यो मधुरं त दे वैः श ोऽ युवाच ह । े





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उस समय आकाशसे उस बालकके लये फूल क वषा ई, दे वता क भयाँ बज उठ और अ सराएँ मधुर वरम गाती ई नृ य करने लग । उस अवसरपर वहाँ दे वता स हत इ ने आकर कहा। श उवाच शकु तले तव सुत वत भ व य त ।। बलं तेज पं च न समं भु व केन चत् । आहता वा जमेध य शतसं य य पौरवः ।। अनेका न सह ा ण राजसूया द भमखैः । वाथ ा णसात् कृ वा द णाम मतां ददात् ।। इ बोले—शकु तले! तु हारा यह पु च वत स ाट् होगा। पृ वीपर कोई भी इसके बल, तेज तथा पक समानता नह कर सकता। यह पू वंशका र न सौ अ मेध य का अनु ान करेगा। राजसूय आ द य ारा सह बार अपना सारा धन ा ण के अधीन करके उ ह अप र मत द णा दे गा। वैश पायन उवाच दे वतानां वचः ु वा क वा म नवा सनः । सभाजय त क व य सुतां सव महषयः ।। शकु तला च त छ वा परं हषमवाप सा । जानाय मु न भः स कृ य च महायशाः ।।) जातकमा दसं कारं क वः पु यकृतां वरः । व धवत् कारयामास वधमान य धीमतः ।। ३ ।। वैश पायनजी कहते ह—इ ा द दे वता का यह वचन सुनकर क वके आ मम रहनेवाले सभी मह ष क वक या शकु तलाके सौभा यक भू र-भू र शंसा करने लगे। यह सब सुनकर शकु तलाको भी बड़ा हष आ। पु यवान म े महायश वी क वने मु नय से ा ण को बुलाकर उनका पूण स कार करके बालकका व धपूवक जातकम आ द सं कार कराया। वह बु मान् बालक त दन बढ़ने लगा ।। ३ ।। द तैः शु लैः शख र भः सहसंहननो महान् । च ाङ् कतकरः ीमान् महामूधा महाबलः ।। ४ ।। वह सफेद और नुक ले दाँत से शोभा पा रहा था। उसके शरीरका गठन सहके समान था। वह ऊँचे कदका था। उसके हाथ म च के च थे। वह अद्भुत शोभासे स प , वशाल म तकवाला और महान् बलवान् था ।। ४ ।। कुमारो दे वगभाभः स त ाशु वधत । षड् वष एव बालः स क वा मपदं त ।। ५ ।। सह ा ान् वराहां म हषां गजां तथा । बब ध वृ े बलवाना म य समीपतः ।। ६ ।। े





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दे वता के बालक-सा तीत होनेवाला वह तेज वी कुमार वहाँ शी तापूवक बढ़ने लगा। छः वषक अव थाम ही वह बलवान् बालक क वके आ मम सह , ा , वराह , भस और हा थय को पकड़कर ख च लाता और आ मके समीपवत वृ म बाँध दे ता था ।। ५-६ ।। आरोहन् दमयं ैव डं प रधाव त । (तत रा सान् सवान् पशाचां रपून् रणे । मु यु े न ता वा ऋषीनाराधयत् तदा ।। क द् द तसुत तं तु ह तुकामो महाबलः । व यमानां तु दै तेयानमष तं सम ययात् ।। तमागतं ह यैव बा यां प रगृ च । ढं चाब य बा यां पीडयामास तं तदा ।। म दतो न शशाका य मो चतुं बलव या । ा ोशद् भैरवं त ारे यो नःसृतं वसृक् ।। तेन श दे न व ता मृगाः सहादयो गणाः । सु ुवु शकृ मू मा म था सु ुवुः ।। नरसुं जानु भः कृ वा वससज च सोऽपतत् । तं ् वा व मयं च ु ः कुमार य वचे तम् ।। न यकालं व यमाना दै तेया रा सैः सह । कुमार य भयादे व नैव ज मु तदा मम् ।।) ततोऽ य नाम च ु ते क वा म नवा सनः ।। ७ ।। फर वह सबका दमन करते ए उनक पीठपर चढ़ जाता और ड़ा करते ए उ ह सब ओर दौड़ाता आ दौड़ता था। वहाँ सब रा स और पशाच आ द श ु को यु म मु हारके ारा परा त करके वह राजकुमार ऋ ष-मु नय क आराधनाम लगा रहता था। एक दन कोई महाबली दै य उसे मार डालनेक इ छासे उस वनम आया। वह उसके ारा त दन सताये जाते ए सरे दै य क दशा दे खकर अमषम भरा आ था। उसके आते ही राजकुमारने हँसकर उसे दोन हाथ से पकड़ लया और अपनी बाँह म ढ़तापूवक कसकर दबाया। वह ब त जोर लगानेपर भी अपनेको उस बालकके चंगल ु से छु ड़ा न सका, अतः भयंकर वरसे ची कार करने लगा। उस समय दबावके कारण उसक इ य से र बह चला। उसक ची कारसे भयभीत हो मृग और सह आ द जंगली जीव मल-मू करने लगे तथा आ मपर रहनेवाले ा णय क भी यही दशा ई। य तकुमारने घुटन से मारमारकर उस दै यके ाण ले लये; त प ात् उसे छोड़ दया। उसके हाथसे छू टते ही वह दै य गर पड़ा। उस बालकका यह परा म दे खकर सब लोग को बड़ा व मय आ। कतने ही दै य और रा स त दन उस य तकुमारके हाथ मारे जाते थे। कुमारके भयसे ही उ ह ने क वके आ मपर जाना छोड़ दया। यह दे ख क वके आ मम रहनेवाले ऋ षय ने उसका नया नामकरण कया— ।। ७ ।। अ वयं सवदमनः सव ह दमय यसौ । ो

स सवदमनो नाम कुमारः समप त ।। ८ ।। व मेणौजसा चैव बलेन च सम वतः । ‘यह सब जीव का दमन करता है, इस लये ‘सवदमन’ नामसे स हो।’ तबसे उस कुमारका नाम सवदमन हो गया। वह परा म, तेज और बलसे स प था ।। ८ ।। (अ ेषय त य ते म ह या तनय य च । पा डु भावपरीता च तया सम भ लुताम् ।। ल बालकां कृशां द नां तथा म लनवाससम् । शकु तलां च स े य द यौ स मु न तदा ।। शा ा ण सववेदा ादशा द य चाभवन् ।।) राजा य तने अपनी रानी और पु को बुलानेके लये जब कसी भी मनु यको नह भेजा, तब शकु तला च ताम न हो गयी। उसके सारे अंग सफेद पड़ने लगे। उसके खुले ए लंबे केश लटक रहे थे, व मैले हो गये थे, वह अ य त बल और द न दखायी दे ती थी। शकु तलाको इस दयनीय दशाम दे खकर क व मु नने कुमार सवदमनके लये व ाका च तन कया। इससे उस बारह वषके ही बालकके दयम सम त शा और स पूण वेद का ान का शत हो गया। तं कुमारमृ ष ् वा कम चा या तमानुषम् ।। ९ ।। समयो यौवरा याये य वी च शकु तलाम् । मह ष क वने उस कुमार और उसके लोको र कमको दे खकर शकु तलासे कहा —‘अब इसके युवराज-पदपर अ भ ष होनेका समय आया है ।। ९ ।। (शृणु भ े मम सुते मम वा यं शु च मते । प त तानां नारीणां व श म त चो यते ।। ‘मेरी क याणमयी पु ी! मेरा यह वचन सुनो। प व मुसकानवाली शकु तले! प त ता य के लये यह वशेष यान दे नेयो य बात है; इस लये बता रहा ँ। प तशु ूषणं पूव मनोवा कायचे तैः । अनु ाता मया पूव पूजयैतद् तं तव ।। एतेनैव च वृ ेन व श ां ल यसे यम् । ‘सती य के लये सव थम कत यह है क वे मन, वाणी, शरीर और चे ा ारा नर तर प तक सेवा करती रह। मने पहले भी तु ह इसके लये आदे श दया है। तुम अपने इस तका पालन करो। इस प त तो चत आचार- वहारसे ही व श शोभा ा त कर सकोगी। त माद् भ े यात ं समीपं पौरव य ह ।। वयं नाया त म वा ते गतं कालं शु च मते । ग वाऽऽराधय राजानं य तं हतका यया ।। ‘भ े ! तु ह पू न दन य तके पास जाना चा हये। वे वयं नह आ रहे ह, ऐसा सोचकर तुमने ब त-सा समय उनक सेवासे र रहकर बता दया। शु च मते! अब तुम े





अपने हतक इ छासे वयं जाकर राजा य तक आराधना करो। दौ य तं यौवरा य थं ् वा ी तमवा य स । दे वतानां गु णां च याणां च भा म न । भतॄणां च वशेषेण हतं संगमनं सताम् ।। त मात् पु कुमारेण ग त ं म ये सया । तवा यं न द ा वं शा पता मम पादयोः ।। ‘वहाँ य तकुमार सवदमनको युवराज-पदपर त त दे ख तु ह बड़ी स ता होगी। दे वता, गु , य, वामी तथा साधु पु ष—इनका संग वशेष हतकर है। अतः बेट ! तु ह मेरा य करनेक इ छासे कुमारके साथ अव य अपने प तके यहाँ जाना चा हये। म अपने चरण क शपथ दलाकर कहता ँ क तुम मुझे मेरी इस आ ाके वपरीत कोई उ र न दे ना’। वैश पायन उवाच एवमु वा सुतां त पौ ं क वोऽ यभाषत । प र व य च बा यां मू युपा ाय पौरवम् ।। वैश पायनजी कहते ह—पु ीसे ऐसा कहकर मह ष क वने उसके पु भरतको दोन बाँह से पकड़कर अंकम भर लया और उसका म तक सूँघकर कहा।

क व उवाच सोमवंशो वो राजा य तो नाम व ुतः । त या म हषी चैषा तव माता शु च ता ।। ग तुकामा भतृवशं वया सह सुम यमा । ग वा भवा राजानं यौवरा यमवा य स ।। स पता तव राजे त य वं वशगो भव । पतृपैतामहं रा यमनु त व भावतः ।। क व बोले—व स! च वंशम य त नामसे स एक राजा ह। प व तका पालन करनेवाली यह तु हारी माता उ ह क महारानी है। यह सु दरी तु ह साथ लेकर अब प तक सेवाम जाना चाहती है। तुम वहाँ जाकर राजाको णाम करके युवराज-पद ा त करोगे। वे महाराज य त ही तु हारे पता ह। तुम सदा उनक आ ाके अधीन रहना और बाप-दादे के रा यका ेमपूवक पालन करना। शकु तले शृणु वेदं हतं पयं च भा म न । प त ताभावगुणान् ह वा सा यं न क चन ।। प त तानां दे वा वै तु ाः सववर दाः । सादं च क र य त ापदथ च भा म न ।। प त सादात् पु यग त ा ुव त न चाशुभम् । त माद् ग वा तु राजानमाराधय शु च मते ।।) (

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( फर क व शकु तलासे बोले—) ‘भा म न! शकु तले! यह मेरी हतकर एवं लाभ द बात सुनो। प त ताभाव-स ब धी गुण को छोड़कर तु हारे लये और कोई व तु सा य नह है। प त ता पर स पूण वर को दे नेवाले दे वतालोग भी संतु रहते ह। भा म न! वे आप के नवारणके लये अपने कृपा- सादका भी प रचय दगे। शु च मते! प त ता दे वयाँ प तके सादसे पु यग तको ही ा त होती ह; अशुभ ग तको नह । अतः तुम जाकर राजाक आराधना करो’। त य तद् बलमा ाय क वः श यानुवाच ह ।। १० ।। शकु तला ममां शी ं सहपु ा मतो गृहात् । भतुः ापयतागारं सवल णपू जताम् ।। ११ ।। फर उस बालकके बलको समझकर क वने अपने श य से कहा—‘तुमलोग सम त शुभ ल ण से स मा नत मेरी पु ी शकु तला और इसके पु को शी ही इस घरसे ले जाकर प तके घरम प ँचा दो ।। १०-११ ।। नारीणां चरवासो ह बा धवेषु न रोचते । क तचा र धम न त मा यत मा चरम् ।। १२ ।। ‘ य का अपने भाई-ब धु के यहाँ अ धक दन तक रहना अ छा नह होता। वह उनक क त, शील तथा पा त य धमका नाश करनेवाला होता है। अतः इसे अ वल ब प तके घरम प ँचा दो’ ।। १२ ।। (वैश पायन उवाच धमा भपू जतं पु ं का यपेन नशा य तु । का यपात् ा य चानु ां मुमुदे च शकु तला ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! क यपन दन क वने धमानुसार मेरे पु का बड़ा आदर कया है, यह दे खकर तथा उनक ओरसे प तके घर जानेक आ ा पाकर शकु तला मन-ही-मन ब त स ई। क व य वचनं ु वा तग छे त चासकृत् । तथे यु वा तु क वं च मातरं पौरवोऽ वीत् ।। क चराय स मात वं ग म यामो नृपालयम् । क वके मुखसे बारंबार ‘जाओ-जाओ’ यह आदे श सुनकर पू न दन सवदमनने ‘तथा तु’ कहकर उनक आ ा शरोधाय क और मातासे कहा—‘माँ! तुम य वल ब करती हो, चलो राजमहल चल’। एवमु वा तु तां दे व य त य महा मनः ।। अ भवा मुनेः पादौ ग तुमै छत् स पौरवः । दे वी शकु तलासे ऐसा कहकर पौरवराजकुमारने मु नके चरण म म तक झुकाकर महा मा राजा य तके यहाँ जानेका वचार कया। शकु तला च पतरम भवा कृता लः ।। द णीकृ य तदा पतरं वा यम वीत् । े



अ ाना मे पता चे त ं वा प चानृतम् ।। अकाय वा य न ं वा तुमह त का यप । शकु तलाने भी हाथ जोड़कर पताको णाम कया और उनक प र मा करके उस समय यह बात कही—‘भगवन्! का यप! आप मेरे पता ह, यह समझकर मने अ ानवश य द कोई कठोर या अस य बात कह द हो अथवा न करनेयो य या अ य काय कर डाला हो, तो उसे आप मा कर दगे’। एवमु ो नत शरा मु नन वाच क चन ।। मनु यभावात् क वोऽ प मु नर ू यवतयत् । शकु तलाके ऐसा कहनेपर सर झुकाकर बैठे ए क व मु न कुछ बोल न सके; मानव- वभावके अनुसार क णाका उदय हो जानेसे ने से आँसू बहाने लगे। अभ ान् वायुभ ां शीणपणाशनान् मुनीन् ।। फलमूला शनो दा तान् कृशान् धम नसंततान् । तनो ज टलान् मु डान् व कला जनसंवृतान् ।। उनके आ मम ब त-से ऐसे मु न रहते थे, जो जल पीकर, वायु पीकर अथवा सूखे प े खाकर तप या करते थे। फल-मूल खाकर रहनेवाले भी ब त थे। वे सब-के-सब जते य एवं बल शरीरवाले थे। उनके शरीरक नस-ना ड़याँ प दखायी दे ती थ । उ म त का पालन करनेवाले उन मह षय मसे कतने ही सरपर जटा धारण करते थे और कतने ही सर मुड़ाये रहते थे। कोई व कल धारण करते थे और कोई मृगचम लपेटे रहते थे। समाय मुनीन् क वः का या ददम वीत् ।। मया तु ला लता न यं मम पु ी यश वनी । वने जाता ववृ ा च न च जाना त क चन ।। अ मेण पथा सवन यतां यालयम् ।) मह ष क वने उन मु नय को बुलाकर क ण भावसे कहा—‘मह षयो! यह मेरी यश वनी पु ी वनम उ प ई और यह पलकर इतनी बड़ी ई है। मने सदा इसे लाड़यार कया है। यह कुछ नह जानती है। व गण! तुम सब लोग इसे ऐसे मागसे राजा य तके घर ले जाओ जसम अ धक म न हो’। तथे यु वा तु ते सव ा त त महौजसः । शकु तलां पुर कृ य य त य पुरं त ।। १३ ।। ‘ब त अ छा’ कहकर वे सभी महातेज वी श य (पु स हत) शकु तलाको आगे करके य तके नगरक ओर चले ।। १३ ।। गृही वामरगभामं पु ं कमललोचनम् । आजगाम ततः सु ू य तं व दताद् वनात् ।। १४ ।। तदन तर सु दर भ ह वाली शकु तला कमलके समान ने वाले दे वबालकके स श तेज वी पु को साथ ले अपने प र चत तपोवनसे चलकर महाराज य तके यहाँ आयी ।। १४ ।। े

अ भसृ य च राजानं व दता च वे शता । सह तेनैव पु ेण बालाकसमतेजसा ।। १५ ।। राजाके यहाँ प ँचकर अपने आगमनक सूचना दे अनुम त लेकर वह उसी बालसूयके समान तेज वी पु के साथ राजसभाम व ई ।। १५ ।। नवेद य वा ते सव आ मं पुनरागताः । पूज य वा यथा यायम वी च शकु तला ।। १६ ।। सब श यगण राजाको मह षका संदेश सुनाकर पुनः आ मको लौट आये और शकु तला यायपूवक महाराजके त स मानका भाव कट करती ई पु से बोली — ।। १६ ।। (अ भवादय राजानं पतरं ते ढ तम् । एवमु वा तु पु ं सा ल जानतमुखी थता ।। त भमा लङ् य राजानं सीद वे युवाच सा । शाकु तलोऽ प राजानम भवा कृता लः ।। हषणो फु लनयनो राजानं चा ववै त । य तो धमबु या तु च तय ेव सोऽ वीत् ।। ‘बेटा! ढ़तापूवक उ म तका पालन करनेवाले ये महाराज तु हारे पता ह; इ ह णाम करो।’ पु से ऐसा कहकर शकु तला ल जासे मुख नीचा कये एक खंभेका सहारा लेकर खड़ी हो गयी और महाराजसे बोली—‘दे व! स ह ।’ शकु तलाका पु भी हाथ जोड़कर राजाको णाम करके उ ह क ओर दे खने लगा। उसके ने हषसे खल उठे थे। राजा य तने उस समय धमबु से कुछ वचार करते ए ही कहा। य त उवाच कमागमनकाय ते ू ह वं वरव ण न । क र या म न संदेहः सपु ाया वशेषतः ।। य त बोले—सु द र! यहाँ तु हारे आगमनका या उ े य है? बताओ। वशेषतः उस दशाम, जब क तुम पु के साथ आयी हो, म तु हारा काय अव य स क ँ गा; इसम संदेह नह ।

शकु तलोवाच सीद व महाराज व या म पु षो म ।।) शकु तलाने कहा—महाराज! आप स ह । पु षो म! म अपने आगमनका उ े य बताती ँ, सु नये। अयं पु वया राजन् यौवरा येऽ भ ष यताम् । वया यं सुतो राजन् म यु प ः सुरोपमः । यथासमयमेत मन् वत व पु षो म ।। १७ ।। राजन्! यह आपका पु है। इसे आप युवराज-पदपर अ भ ष क जये। महाराज! यह दे वोपम कुमार आपके ारा मेरे गभसे उ प आ है। पु षो म! इसके लये आपने े े ो ी ै े

मेरे साथ जो शत कर रखी है, उसका पालन क जये ।। १७ ।। यथा म स मे पूव यः कृतः समय वया । तं मर व महाभाग क वा मपदं त ।। १८ ।। महाभाग! आपने क वके आ मपर मेरे साथ समागमके समय पहले जो त ा क थी, उसका इस समय मरण क जये ।। १८ ।। सोऽथ ु वैव तद् वा यं त या राजा मर प । अ वी मरामी त क य वं ताप स ।। १९ ।। राजा य तने शकु तलाका यह वचन सुनकर सब बात को याद रखते ए भी उससे इस कार कहा—‘ तप व न! मुझे कुछ भी याद नह है। तुम कसक ी हो? ।। १९ ।। धमकामाथस ब धं न मरा म वया सह । ग छ वा त वा कामं यद् वापी छ स तत् कु ।। २० ।। ‘तु हारे साथ मेरा धम, काम अथवा अथको लेकर वैवा हक स ब ध था पत आ है, इस बातका मुझे त नक भी मरण नह है। तुम इ छानुसार जाओ या रहो अथवा जैसी तु हारी च हो, वैसा करो’ ।। २० ।। सैवमु ा वरारोहा ी डतेव तप वनी । नःसं ेव च ःखेन त थौ थूणेव न ला ।। २१ ।। सु दर अंगवाली तप वनी शकु तला य तके ऐसा कहनेपर ल जत हो ःखसे बेहोश-सी हो गयी और खंभेक तरह न लभावसे खड़ी रह गयी ।। २१ ।। संर भामषता ा ी फुरमाणौ स पुटा । कटा ै नदह तीव तयग् राजानमै त ।। २२ ।। ोध और अमषसे उसक आँख लाल हो गय , ओठ फड़कने लगे और मानो जला दे गी, इस भावसे टे ढ़ चतवन ारा राजाक ओर दे खने लगी ।। २२ ।। आकारं गूहमाना च म युना च समी रता । तपसा स भृतं तेजो धारयामास वै तदा ।। २३ ।। ोध उसे उ े जत कर रहा था, फर भी उसने अपने आकारको छपाये रखा और तप या ारा सं चत कये ए अपने तेजको वह अपने भीतर ही धारण कये रही ।। २३ ।। सा मुत मव या वा ःखामषसम वता । भतारम भस े य ु ा वचनम वीत् ।। २४ ।। जान प महाराज क मादे वं भाषसे । न जानामी त नःशङ् कं यथा यः ाकृतो जनः ।। २५ ।। वह दो घड़ीतक कुछ सोच- वचार-सा करती रही, फर ःख और अमषम भरकर प तक ओर दे खती ई ोधपूवक बोली—‘महाराज! आप जान-बूझकर भी सरे- सरे न न को टके मनु य क भाँ त नःशंक होकर ऐसी बात य कहते ह क ‘म नह जानता’ ।। २४-२५ ।। अ ते दयं वेद स य यैवानृत य च । े

क याणं वद सा येण माऽऽ मानमवम यथाः ।। २६ ।। ‘इस वषयम यहाँ या झूठ है और या सच, इस बातको आपका दय ही जानता होगा। उसीको सा ी बनाकर— दयपर हाथ रखकर सही-सही बात क हये, जससे आपका क याण हो। आप अपने आ माक अवहेलना न क जये ।। २६ ।। योऽ यथा स तमा मानम यथा तप ते । क तेन न कृतं पापं चौरेणा मापहा रणा ।। २७ ।। ‘(आपका व प तो कुछ और है’ परंतु आप बन कुछ और रहे ह।) जो अपने असली व पको छपाकर अपनेको कुछ-का-कुछ दखाता है, अपने आ माका अपहरण करनेवाले उस चोरने कौन-सा पाप नह कया? ।। २७ ।। एकोऽहम मी त च म यसे वं न छयं वे स मु न पुराणम् । यो वे दता कमणः पापक य त या तके वं वृ जनं करो ष ।। २८ ।। ‘आप समझ रहे ह क उस समय म अकेला था (कोई दे खनेवाला नह था), परंतु आपको पता नह क वह सनातन मु न (परमा मा) सबके दयम अ तयामी पसे व मान है। वह सबके पाप-पु यको जानता है और आप उसीके नकट रहकर पाप कर रहे ह ।। २८ ।। (धम एव ह साधूनां सवषां हतकारणम् । न यं मया वहीनानां न च ःखावहो भवेत् ।।) म यते पापकं कृ वा न क द् वे मा म त । वद त चैनं दे वा य ैवा तरपू षः ।। २९ ।। ‘जो सदा अस यसे र रहनेवाले ह, उन सम त साधु पु ष क म केवल धम ही हतकारक है। धम कभी ःखदायक नह होता। मनु य पाप करके यह समझता है क मुझे कोई नह जानता, कतु उसका यह समझना भारी भूल है; य क सब दे वता और अ तयामी परमा मा भी मनु यके उस पाप-पु यको दे खते और जानते ह ।। २९ ।। आ द यच ाव नलानलौ च ौभू मरापो दयं यम । अह रा उभे च सं ये धम जाना त नर य वृ म् ।। ३० ।। ‘सूय, च मा, वायु, अ न, अ त र , पृ वी, जल, दय, यमराज, दन, रात, दोन सं याएँ और धम—ये सभी मनु यके भले-बुरे आचार- वहारको जानते ह ।। ३० ।। यमो वैव वत त य नयातय त कृतम् । द थतः कमसा ी े ो य य तु य त ।। ३१ ।। ‘ जसपर दय थत कमसा ी े परमा मा संतु रहते ह, सूयपु यमराज उसके सभी पाप को वयं न कर दे ते ह ।। ३१ ।। न तु तु य त य यैष पु ष य रा मनः ।

तं यमः पापकमाणं वयातय त कृतम् ।। ३२ ।। ‘परंतु जस रा मापर अ तयामी संतु नह होते, यमराज उस पापीको उसके पाप का वयं ही द ड दे ते ह ।। ३२ ।। योऽवम या मनाऽऽ मानम यथा तप ते । न त य दे वाः ेयांसो य या मा प न कारणम् ।। ३३ ।। वयं ा ते त मामेवं मावमं थाः प त ताम् । अचाहा नाचय स मां वयं भायामुप थताम् ।। ३४ ।। ‘जो वयं अपने आ माका तर कार करके कुछ-का-कुछ समझता और करता है, दे वता भी उसका भला नह कर सकते और उसका आ मा भी उसके हतका साधन नह कर सकता। म वयं आपके पास आयी ँ, ऐसा समझकर मुझ प त ता प नीका तर कार न क जये। म आपके ारा आदर पानेयो य ँ और वयं आपके नकट आयी ई आपहीक प नी ँ, तथा प आप मेरा आदर नह करते ह ।। ३३-३४ ।। कमथ मां ाकृतव प े स संस द । न ख वह मदं शू ये रौ म क न शृणो ष मे ।। ३५ ।। ‘आप कस लये नीच पु षक भाँ त भरी सभाम मुझे अपमा नत कर रहे ह? म सूने जंगलम तो नह रो रही ँ? फर आप मेरी बात य नह सुनते? ।। ३५ ।। य द मे याचमानाया वचनं न क र य स । य त शतधा मूधा तत तेऽ फु ट य त ।। ३६ ।। ‘महाराज य त! य द मेरे उ चत याचना करनेपर भी आप मेरी बात नह मानगे, तो आज आपके सरके सैकड़ टु कड़े हो जायँगे ।। ३६ ।। भाया प तः स व य स य मा जायते पुनः । जायाया त जाया वं पौराणाः कवयो व ः ।। ३७ ।। ‘प त ही प नीके भीतर गभ पसे वेश करके पु पम ज म लेता है। यही जाया (ज म दे नेवाली ी)-का जाया व है, जसे पुराणवे ा व ान् जानते ह ।। ३७ ।। यदागमवतः पुंस तदप यं जायते । तत् तारय त संत या पूव ेतान् पतामहान् ।। ३८ ।। ‘शा के ाता पु षके इस कार जो संतान उ प होती है, वह संत तक पर परा ारा अपने पहलेके मरे ए पतामह का उ ार कर दे ती है ।। ३८ ।। पु ा नो नरकाद् य मात् पतरं ायते सुतः । त मात् पु इ त ो ः वयमेव वय भुवा ।। ३९ ।। ‘पु ’ ‘पुत्’ नामक नरकसे पताका ाण करता है, इस लये सा ात् ाजीने उसे ‘पु ’ कहा है ।। ३९ ।। (पु ेण लोका य त पौ ेणान यमुते । अथ पौ य पु ेण मोद ते पतामहाः ।।) ‘मनु य पु से पु यलोक पर वजय पाता है, पौ से अ य सुखका भागी होता है तथा पौ के पु से पतामहगण आन दके भागी होते ह। े ी

सा भाया या गृहे द ा सा भाया या जावती । सा भाया या प त ाणा सा भाया या प त ता ।। ४० ।। ‘वही भाया है, जो घरके काम-काजम कुशल हो। वही भाया है, जो संतानवती हो। वही भाया है, जो अपने प तको ाण के समान य मानती हो और वही भाया है, जो प त ता हो ।। ४० ।। अध भाया मनु य य भाया े तमः सखा । भाया मूलं वग य भाया मूलं त र यतः ।। ४१ ।। ‘भाया पु षका आधा अंग है। भाया उसका सबसे उ म म है। भाया धम, अथ और कामका मूल है और संसार-सागरसे तरनेक इ छावाले पु षके लये भाया ही मुख साधन है ।। ४१ ।। भायाव तः याव तः सभाया गृहमे धनः । भायाव तः मोद ते भायाव तः या वताः ।। ४२ ।। ‘ जनके प नी है, वे ही य आ द कम कर सकते ह। सप नीक पु ष ही स चे गृह थ ह। प नीवाले पु ष सुखी और स रहते ह तथा जो प नीसे यु ह, वे मानो ल मीसे स प ह ( य क प नी ही घरक ल मी है) ।। ४२ ।। सखायः व व े षु भव येताः यंवदाः । पतरो धमकायषु भव यात य मातरः ।। ४३ ।। ‘प नी ही एका तम य वचन बोलनेवाली सं गनी या म है। धमकाय म ये याँ पताक भाँ त प तक हतै षणी होती ह और संकटके समय माताक भाँ त ःखम हाथ बँटाती तथा क - नवारणक चे ा करती ह ।। ४३ ।। का तारे व प व ामो जन या व नक य वै । यः सदारः स व ा य त माद् दाराः परा ग तः ।। ४४ ।। ‘परदे शम या ा करनेवाले पु षके साथ य द उसक ी हो तो वह घोर-से-घोर जंगलम भी व ाम पा सकता है—सुखसे रह सकता है। लोक- वहारम भी जसके ी है, उसीपर सब व ास करते ह। इस लये ी ही पु षक े ग त है ।। ४४ ।। संसर तम प ेतं वषमे वेकपा तनम् । भायवा वे त भतारं सततं या प त ता ।। ४५ ।। ‘प त संसारम हो या मर गया हो अथवा अकेले ही नरकम पड़ा हो; प त ता ी ही सदा उसका अनुगमन करती है ।। ४५ ।। थमं सं थता भाया प त े य ती ते । पूव मृतं च भतारं प ात् सा नुग छ त ।। ४६ ।। ‘सा वी ी य द पहले मर गयी हो तो परलोकम जाकर वह प तक ती ा करती है और य द पहले प त मर गया हो तो सती ी पीछे से उसका अनुसरण करती है ।। ४६ ।। एत मात् कारणाद् राजन् पा ण हण म यते । यदा ो त प तभाया महलोके पर च ।। ४७ ।। ‘



















‘राजन्! इसी लये सुशीला ीका पा ण हण करना सबके लये अभी होता है; य क प त अपनी प त ता ीको इहलोकम तो पाता ही है, परलोकम भी ा त करता है ।। ४७ ।। आ माऽऽ मनैव ज नतः पु इ यु यते बुधैः । त माद् भाया नरः प ये मातृवत् पु मातरम् ।। ४८ ।। ‘प नीके गभसे अपने ारा उ प कये ए आ माको ही व ान् पु ष पु कहते ह, इस लये मनु यको चा हये क वह अपनी उस धमप नीको जो पु क माता बन चुक है, माताके ही समान दे खे ।। ४८ ।। (अ तरा मैव सव य पु ना नो यते सदा । गती पं च चे ा च आवता ल णा न च ।। पतॄणां या न य ते पु ाणां स त ता न च । तेषां शीलाचारगुणा त स पका छु भाशुभाः ।।) ‘सबका अ तरा मा ही सदा पु नामसे तपा दत होता है। पताक जैसी चाल होती है, जैसे प, चे ा, आवत (भँवर) और ल ण आ द होते ह, पु म भी वैसी ही चाल और वैसे ही प-ल ण आ द दे खे जाते ह। पताके स पकसे ही पु म शुभ-अशुभ शील, गुण एवं आचार आ द आते ह। भायायां ज नतं पु मादश वव चाननम् । ादते ज नता े य वग ा येव पु यकृत् ।। ४९ ।। ‘जैसे दपणम अपना मुँह दे खा जाता है, उसी कार प नीके गभसे उ प ए अपने आ माको ही पु पम दे खकर पताको वैसा ही आन द होता है, जैसा पु या मा पु षको वगलोकक ा त हो जानेपर होता है ।। ४९ ।। द माना मनो ःखै ा ध भ ातुरा नराः । ाद ते वेषु दारेषु घमाताः स लले वव ।। ५० ।। ‘जैसे धूपसे तपे ए जीव जलम नान कर लेनेपर शा तका अनुभव करते ह, उसी कार जो मान सक ःख और च ता क आगम जल रहे ह तथा जो नाना कारके रोग से पी ड़त ह, वे मानव अपनी प नीके समीप होनेपर आन दका अनुभव करते ह ।। ५० ।। ( व वासक ृ शा द ना नरा म लनवाससः । तेऽ प वदारां तु य त द र ा धनलाभवत् ।।) ‘जो परदे शम रहकर अ य त बल हो गये ह, जो द न और म लन व धारण करनेवाले ह, वे द र मनु य भी अपनी प नीको पाकर ऐसे संतु होते ह, मानो उ ह कोई धन मल गया हो। सुसंरधोऽ प रामाणां न क ु याद यं नरः । र त ी त च धम च ता वाय मवे य ह ।। ५१ ।। ‘र त, ी त तथा धम प नीके ही अधीन ह, ऐसा सोचकर पु षको चा हये क वह कु पत होनेपर भी प नीके साथ कोई अ य बताव न करे ।। ५१ ।। ( ो ौ

(आ मनोऽध म त ौतं सा र त धनं जाः । शरीरं लोकया ां वै धम वगमृषीन् पतॄन् ।।) ‘प नी अपना आधा अंग है, यह ु तका वचन है। वह धन, जा, शरीर, लोकया ा, धम, वग, ऋ ष तथा पतर—इन सबक र ा करती है। आ मनो ज मनः े ं पु यं रामाः सनातनम् । ऋषीणाम प का श ः ु ं रामामृते जाम् ।। ५२ ।। ‘ याँ प तके आ माके ज म लेनेका सनातन पु य े ह। ऋ षय म भी या श है क बना ीके संतान उ प कर सक ।। ५२ ।। तप यदा सूनुधरणीरेणुगु ठतः । पतुरा यतेऽ ा न कम य य धकं ततः ।। ५३ ।। ‘जब पु धरतीक धूलम सना आ पास आता और पताके अंग से लपट जाता है, उस समय जो सुख मलता है, उससे बढ़कर और या हो सकता है? ।। ५३ ।। स वं वयम भ ा तं सा भलाष ममं सुतम् । े माणं कटा ेण कमथमवम यसे ।। ५४ ।। अ डा न ब त वा न न भ द त पपी लकाः । न भरेथाः कथं नु वं धम ः सन् वमा मजम् ।। ५५ ।। ‘दे खये, आपका यह पु वयं आपके पास आया है और ेमपूण तरछ चतवनसे आपक ओर दे खता आ आपक गोदम बैठनेके लये उ सुक है; फर आप कस लये इसका तर कार करते ह। च टयाँ भी अपने अ ड का पालन ही करती ह; उ ह फोड़त नह । फर आप धम होकर भी अपने पु का भरण-पोषण य नह करते? ।। ५४-५५ ।। (ममा डानी त वध ते को कलान प वायसाः । क पुन वं न म येथाः सव ः पु मी शम् ।। मलया च दनं जातम तशीतं वद त वै । शशोरा लङ् यमान य च दनाद धकं भवेत् ।।) ‘ये मेरे अपने ही अ डे ह’ ऐसा समझकर कौए कोयलके अ ड का भी पालन-पोषण करते ह; फर आप सव होकर अपनेसे ही उ प ए ऐसे सुयो य पु का स मान य नह करते? लोग मलय ग रके च दनको अ य त शीतल बताते ह, परंतु गोदम सटाये ए शशुका पश च दनसे भी अ धक शीतल एवं सुखद होता है। न वाससां न रामाणां नापां पश तथा वधः । शशोरा लङ् यमान य पशः सूनोयथा सुखः ।। ५६ ।। ‘अपने शशु पु को दयसे लगा लेनेपर उसका पश जतना सुखदायक जान पड़ता है, वैसा सुखद पश न तो कोमल व का है, न रमणीय सु द रय का है और न शीतल जलका ही है ।। ५६ ।। ा णो पदां े ो गौव र ा चतु पदाम् । गु गरीयसां े ः पु ः पशवतां वरः ।। ५७ ।। ‘





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‘मनु य म ा ण े है, चतु पद (चौपाय )-म गौ े तम है, गौरवशाली यम गु े है और पश करनेयो य व तु म पु ही सबसे े है ।। ५७ ।। पृशतु वां समा य पु ोऽयं यदशनः । पु पशात् सुखतरः पश लोके न व ते ।। ५८ ।। ‘आपका यह पु दे खनेम कतना यारा है। यह आपके अंग से लपटकर आपका पश करे। संसारम पु के पशसे बढ़कर सुखदायक पश और कसीका नह है ।। ५८ ।। षु वषषु पूणषु जाताहमरदम । इमं कुमारं राजे तव शोक वनाशनम् ।। ५९ ।। आहता वा जमेध य शतसं य य पौरव । इ त वाग त र े मां सूतकेऽ यवदत् पुरा ।। ६० ।। ‘श ु का दमन करनेवाले साट ् ! मने पूरे तीन वष तक अपने गभम धारण करनेके प ात् आपके इस पु को ज म दया है। यह आपके शोकका वनाश करनेवाला होगा। पौरव! पहले जब म सौरम थी, उस समय आकाशवाणीने मुझसे कहा था क यह बालक सौ अ मेध य का अनु ान करनेवाला होगा ।। ५९-६० ।। ननु नामाङ् कमारो य नेहाद् ामा तरं गताः । मू न पु ानुपा ाय तन द त मानवाः ।। ६१ ।। ‘ ायः दे खा जाता है क सरे गाँवक या ा करके लौटे ए मनु य घर आनेपर बड़े नेहसे पु को गोदम उठा लेते ह और उनके म तक सूँघकर आन दत होते ह ।। ६१ ।। वेदे व प वद तीम म ामं जातयः । जातकम ण पु ाणां तवा प व दतं तथा ।। ६२ ।। ‘पु के जातकम सं कारके समय वेद ा ण जस वै दक म समुदायका उ चारण करते ह, उसे आप भी जानते ह ।। ६२ ।। अ ाद ात् स भव स दयाद धजायसे । आ मा वै पु नामा स स जीव शरदः शतम् ।। ६३ ।। ‘(उस म समुदायका भाव इस कार है—) हे बालक! तुम मेरे अंग-अंगसे कट ए हो; दयसे उ प ए हो। तुम पु नामसे स मेरे आ मा ही हो, अतः व स! तुम सौ वष तक जी वत रहो ।। ६३ ।। जी वतं वदधीनं मे संतानम प चा यम् । त मात् वं जीव मे पु सुसुखी शरदां शतम् ।। ६४ ।। ‘मेरा जीवन तथा अ य संतान-पर परा भी तु हारे ही अधीन है, अतः पु ! तुम अ य त सुखी होकर सौ वष तक जीवन धारण करो ।। ६४ ।। वद े यः सूतोऽयं पु षात् पु षोऽपरः । सरसीवामलेऽऽ मानं तीयं प य वै सुतम् ।। ६५ ।। ‘यह बालक आपके अंग से उ प आ है; मानो एक पु षसे सरा पु ष कट आ है। नमल सरोवरम दखायी दे नेवाले त ब बक भाँ त अपने तीय आ मा प इस पु को दे खये ।। ६५ ।। ी ो ी े

यथा ाहवनीयोऽ नगाहप यात् णीयते । तथा व ः सूतोऽयं वमेकः सन् धा कृतः ।। ६६ ।। मृगावकृ ेन पुरा मृगयां प रधावता । अहमासा दता राजन् कुमारी पतुरा मे ।। ६७ ।। ‘जैसे गाहप य अ नसे आहवनीय अ नका णयन ( ाक ) होता है, उसी कार यह बालक आपसे उ प आ है, मानो आप एक होकर भी अब दो प म कट हो गये ह। राजन्! आजसे कुछ वष पहले आप शकार खेलने वनम गये थे। वहाँ एक हसक पशुके पीछे आकृ हो आप दौड़ते ए मेरे पताजीके आ मपर प ँच गये, जहाँ मुझ कुमारी क याको आपने गा धव ववाह ारा प नी पम ा त कया ।। ६६-६७ ।। उवशी पूव च सहज या च मेनका । व ाची च घृताची च षडेवा सरसां वराः ।। ६८ ।। ‘उवशी, पूव च , सहज या, मेनका, व ाची और घृताची—ये छः अ सराएँ ही अ य सब अ सरा से े ह ।। ६८ ।। तासां सा मेनका नाम यो नवरा सराः । दवः स ा य जगत व ा म ादजीजनत् ।। ६९ ।। ‘उन सबम भी मेनका नामवाली अ सरा े है, य क वह सा ात् ाजीसे उ प ई है। उसीने वगलोकसे भूतलपर आकर व ा म जीके स पकसे मुझे उ प कया था ।। ६९ ।। ( ीमानृ षधमपरो वै ानर इवापरः । यो नः कुशो नाम व ा म पतामहः ।। कुश य पु ो बलवान् कुशनाभ धा मकः । गा ध त य सुतो राजन् व ा म तु गा धजः ।। एवं वधः पता राजन् मेनका जननी वरा ।।) ‘महाराज! पूवकालम कुश नामसे स एक धमपरायण तेज वी मह ष हो गये ह, जो सरे अ नदे वके समान तापी थे। उनक उ प ाजीसे ई थी। वे मह ष व ा म के पतामह थे। कुशके बलवान् पु का नाम कुशनाभ था। वे बड़े धमा मा थे। राजन्! कुशनाभके पु गा ध ए और गा धसे व ा म का ज म आ। ऐसे कुलीन मह ष मेरे पता ह और मेनका मेरी े माता है। सा मां हमवतः थे सुषुवे मेनका सराः । अवक य च मां याता परा मज मवासती ।। ७० ।। ‘उस मेनका अ सराने हमालयके शखरपर मुझे ज म दया; कतु वह असद् वहार करनेवाली अ सरा मुझे परायी संतानक तरह वह छोड़कर चली गयी ।। ७० ।। (प णः पु यव त ते स हता धमत तदा । प ै तैर भगु ता च त माद म शकु तला ।। ततोऽहमृ षणा ा का यपेन महा मना । जलाथम नहो य गतं ् वा तु प णः ।। े

यासभूता मव मुनेः द मा दयावतः । स मार ण मवादाय वमा ममुपागमत् ।। सा वै स भा वता राज नु ोशा मह षणा । तेनैव वसुतेवाहं राजन् वै परम षणा ।। व ा म सुता चाहं व धता मु नना नृप । यौवने वतमानां च वान स मां नृप ।। आ मे पणशालायां कुमार वजने वने । धा ा चो दतां शू ये प ा वर हतां मथः ।। वा भ वं सूनृता भमामप याथमचूचुदः । अकाष वा मे वासं धमकामाथ न तम् ।। गा धवण ववाहेन व धना पा णम हीः । साहं कुलं च शीलं च स यवा द वमा मनः ।। वधम च पुर कृ य वाम शरणं गता । त मा ाह स सं ु य तथे त वतथं वचः ।। वधम पृ तः कृ वा प र य ु मुप थताम् । व ाथां लोकनाथ वं नाह स वमनागसम् ।।) ‘वे प ी भी पु यवान् ह, ज ह ने एक साथ आकर उस समय धमपूवक अपने पंख से मेरी र ा क । शकु त (प य )-ने मेरी र ा क , इस लये मेरा नाम शकु तला हो गया। तदन तर महा मा क यपन दन क वक मुझपर पड़ी। वे अ नहो के लये जल लानेके हेतु उधर गये ए थे। उ ह दे खकर प य ने उन दयालु मह षको मुझे धरोहरक भाँ त स प दया। वे मुझे अरणी (शमी)-क भाँ त लेकर अपने आ मपर आये। राजन्! मह षने कृपापूवक अपनी पु ीके समान मेरा पालन-पोषण कया। नरे र! इस कार म व ा म मु नक पु ी ँ और महा मा क वने मुझे पाल-पोसकर बड़ी कया है। आपने युवाव थाम मुझे दे खा था। नजन वनम आ मक पणकुट के भीतर सूने थानम, जब क मेरे पता उप थत नह थे, वधाताक ेरणासे भा वत मुझ कुमारी क याको आपने अपने मीठे वचन ारा संतानो पादनके न म सहवासके लये े रत कया। धम, अथ एवं कामक ओर रखकर मेरे साथ आ मम नवास कया। गा धव ववाहक व धसे आपने मेरा पा ण हण कया है। वही म आज अपने कुल, शील, स यवा दता और धमको आगे रखकर आपक शरणम आयी ँ। इस लये पूवकालम वैसी त ा करके अब उसे अस य न क जये। आप जगत्के र क ह, मेरे ाणनाथ ह। म सवथा नरपराध ँ और वयं आपक सेवाम उप थत ँ, अतः अपने धमको पीछे करके मेरा प र याग न क जये। क नु कमाशुभं पूव कृतव य यज म न । यदहं बा धवै य ा बा ये स त च वया ।। ७१ ।। ‘मने पूव ज मा तर म कौन-सा ऐसा पाप कया था, जससे बा याव थाम तो मेरे बा धव ने मुझे याग दया और इस समय आप प तदे वताके ारा भी म याग द गयी ।। ७१ ।।

कामं वया प र य ा ग म या म वमा मम् । इमं तु बालं सं य ुं नाह या मजमा मनः ।। ७२ ।। ‘महाराज! आपके ारा वे छासे याग द जानेपर म पुनः अपने आ मको लौट जाऊँगी, कतु अपने इस न हे-से पु का याग आपको नह करना चा हये’ ।। ७२ ।। य त उवाच न पु म भजाना म व य जातं शकु तले । अस यवचना नायः क ते ा यते वचः ।। ७३ ।। मेनका नरनु ोशा ब धक जननी तव । यया हमवतः पृ े नमा य मव चो झता ।। ७४ ।। य त बोले—शकु तले! म तु हारे गभसे उ प इस पु को नह जानता। याँ ायः झूठ बोलनेवाली होती ह। तु हारी बातपर कौन ा करेगा? तु हारी माता वे या मेनका बड़ी ू र दया है, जसने तु ह हमालयके शखरपर नमा यक तरह उतार फका है ।। ७३-७४ ।। स चा प नरनु ोशः यो नः पता तव । व ा म ो ा ण वे लुधः कामवशं गतः ।। ७५ ।। और तु हारे यजातीय पता व ा म भी, जो ा ण बननेके लये लाला यत थे और मेनकाको दे खते ही कामके अधीन हो गये थे, बड़े नदयी जान पड़ते ह ।। ७५ ।। मेनका सरसां े ा महष णां पता च ते । तयोरप यं क मात् वं पुं लीव भाषसे ।। ७६ ।। मेनका अ सरा म े बतायी जाती है और तु हारे पता व ा म भी मह षय म उ म समझे जाते ह। तुम उ ह दोन क संतान होकर भचा रणी ीके समान य झूठ बात बना रही हो ।। ७६ ।। अ े य मदं वा यं कथय ती न ल जसे । वशेषतो म सकाशे ताप स ग यताम् ।। ७७ ।। तु हारी यह बात ा करनेके यो य नह है। इसे कहते समय तु ह ल जा नह आती? वशेषतः मेरे समीप ऐसी बात कहनेम तु ह संकोच होना चा हये। तप व न! तुम चली जाओ यहाँसे ।। ७७ ।। व मह षः स चैवा यः सा सराः व च मेनका । व च वमेवं कृपणा तापसीवेषधा रणी ।। ७८ ।। कहाँ वे मु न शरोम ण मह ष व ा म , कहाँ अ सरा म े मेनका और कहाँ तुमजैसी तापसीका वेष धारण करनेवाली द न-हीन नारी? ।। ७८ ।। अ तकाय ते पु ो बालोऽ तबलवानयम् । कथम पेन कालेन शाल त भ इवोद्गतः ।। ७९ ।। तु हारे इस पु का शरीर ब त बड़ा है। बा याव थाम ही यह अ य त बलवान् जान पड़ता है। इतने थोड़े समयम यह साखूके खंभे-जैसा ल बा कैसे हो गया? ।। ७९ ।। े ो





सु नकृ ा च ते यो नः पुं लीव भाषसे । य छया कामरागा जाता मेनकया स ।। ८० ।। तु हारी जा त नीच है। तुम कुलटा-जैसी बात करती हो। जान पड़ता है, मेनकाने अक मात् भोगास के वशीभूत होकर तु ह ज म दया है ।। ८० ।। सवमेतत् परो ं मे यत् वं वद स ताप स । नाहं वाम भजाना म यथे ं ग यतां वया ।। ८१ ।। तुम जो कुछ कहती हो, वह सब मेरी आँख के सामने नह आ है। तापसी! म तु ह नह पहचानता। तु हारी जहाँ इ छा हो, वह चली जाओ ।। ८१ ।।

शकु तलोवाच राजन् सषपमा ा ण पर छ ा ण प य स । आ मनो ब वमा ा ण प य प न प य स ।। ८२ ।। शकु तलाने कहा—राजन्! आप सर के सरस बराबर दोष को तो दे खते रहते ह, कतु अपने बेलके समान बड़े-बड़े दोष को दे खकर भी नह दे खते ।। ८२ ।। मेनका दशे वेव दशा ानु मेनकाम् । ममैवो यते ज म य त तव ज मनः ।। ८३ ।। मेनका दे वता म रहती है और दे वता मेनकाके पीछे चलते ह—उसका आदर करते ह (उसी मेनकासे मेरा ज म आ है); अतः महाराज य त! आपके ज म और कुलसे मेरा ज म और कुल बढ़कर है ।। ८३ ।। तावट स राजे अ त र े चरा यहम् । आवयोर तरं प य मे सषपयो रव ।। ८४ ।। राजे ! आप केवल पृ वीपर घूमते ह, कतु म आकाशम भी चल सकती ँ। त नक यानसे दे खये, मुझम और आपम सुमे पवत और सरस का-सा अ तर है ।। ८४ ।। महे य कुबेर य यम य व ण य च । भवना यनुसंया म भावं प य मे नृप ।। ८५ ।। नरे र! मेरे भावको दे ख लो। म इ , कुबेर, यम और व ण—सभीके लोक म नर तर आने-जानेक श रखती ँ ।। ८५ ।। स य ा प वादोऽयं यं व या म तेऽनघ । नदशनाथ न े षा छ वा तं तुमह स ।। ८६ ।। अनघ! लोकम एक कहावत स है और वह स य भी है, जसे म ा तके तौरपर आपसे क ँगी; े षके कारण नह । अतः उसे सुनकर मा क जयेगा ।। ८६ ।। व पो यावदादश ना मनः प यते मुखम् । म यते तावदा मानम ये यो पव रम् ।। ८७ ।। कु प मनु य जबतक आइनेम अपना मुँह नह दे ख लेता, तबतक वह अपनेको सर से अ धक पवान् समझता है ।। ८७ ।। यदा वमुखमादश वकृतं सोऽ भवी ते । ी े



तदा तरं वजानीते आ मानं चेतरं जनम् ।। ८८ ।। कतु जब कभी आइनेम वह अपने वकृत मुखका दशन कर लेता है, तब अपने और सर म या अ तर है, यह उसक समझम आ जाता है ।। ८८ ।। अतीव पस प ो न कं चदवम यते । अतीव ज पन् वाचो भवतीह वहेठकः ।। ८९ ।। जो अ य त पवान् है, वह कसी सरेका अपमान नह करता; परंतु जो पवान् न होकर भी अपने पक शंसाम अ धक बात बनाता है, वह मुखसे खोटे वचन कहता और सर को पी ड़त करता है ।। ८९ ।। मूख ह ज पतां पुंसां ु वा वाचः शुभाशुभाः । अशुभं वा यमाद े पुरीष मव सूकरः ।। ९० ।। मूख मनु य पर पर वातालाप करनेवाले सरे लोग क भली-बुरी बात सुनकर उनमसे बुरी बात को ही हण करता है; ठ क वैसे ही, जैसे सूअर अ य व तु के रहते ए भी व ाको ही अपना भोजन बनाता है ।। ९० ।। ा तु ज पतां पुंसां ु वा वाचः शुभाशुभाः । गुणवद् वा यमाद े हंसः ीर मवा भसः ।। ९१ ।। परंतु व ान् पु ष सरे व ा के शुभाशुभ वचनको सुनकर उनमसे गुणयु बात को ही अपनाता है, ठ क उसी तरह, जैसे हंस पानीको छोड़कर केवल ध हण कर लेता है ।। ९१ ।। अ यान् प रवदन् साधुयथा ह प रत यते । तथा प रवद यां तु ो भव त जनः ।। ९२ ।। साधु पु ष सर क न दाका अवसर आनेपर जैसे अ य त संत त हो उठता है, ठ क उसी कार मनु य सर क न दाका अवसर मलनेपर ब त संतु होता है ।। ९२ ।। अ भवा यथा वृ ान् स तो ग छ त नवृ तम् । एवं स जनमा ु य मूख भव त नवृतः ।। ९३ ।। सुखं जीव यदोष ा मूखा दोषानुद शनः । य वा याः परैः स तः पराना तथा वधान् ।। ९४ ।। जैसे साधु पु ष बड़े-बूढ़ को णाम करके बड़े स होते ह, वैसे ही मूख मानव साधु पु ष क न दा करके संतोषका अनुभव करते ह। साधु पु ष सर के दोष न दे खते ए सुखसे जीवन बताते ह, कतु मूख मनु य सदा सर के दोष ही दे खा करते ह। जन दोष के कारण ा मा मनु य साधु पु ष ारा न दाके यो य समझे जाते ह, लोग वैसे ही दोष का साधु पु ष पर आरोप करके उनक न दा करते ह ।। ९३-९४ ।। अतो हा यतरं लोके क चद य व ते । य जन म याह जनः स जनं वयम् ।। ९५ ।। संसारम इससे बढ़कर हँसीक सरी कोई बात नह हो सकती क जो जन ह, वे वयं ही स जन पु ष को जन कहते ह ।। ९५ ।। स यधम युतात् पुंसः ु ादाशी वषा दव । ो े

अना तकोऽ यु जते जनः क पुनरा तकः ।। ९६ ।। जो स य पी धमसे है, वह पु ष ोधम भरे ए वषधर सपके समान भयंकर है। उससे ना तक भी भय खाता है; फर आ तक मनु यके लये तो कहना ही या है ।। ९६ ।। वयमु पा वै पु ं स शं यो न म यते । त य दे वाः यं न त न च लोकानुपाते ।। ९७ ।। जो वयं ही अपने तु य पु उ प करके उसका स मान नह करता, उसक स प को दे वता न कर दे ते ह और वह उ म लोक म नह जाता ।। ९७ ।। कुलवंश त ां ह पतरः पु म ुवन् । उ मं सवधमाणां त मात् पु ं न सं यजेत् ।। ९८ ।। पतर ने पु को कुल और वंशक त ा बताया है, अतः पु सब धम म उ म है। इस लये पु का याग नह करना चा हये ।। ९८ ।। वप नी भवान् प च लधान् तान् वव धतान् । कृतान यासु चो प ान् पु ान् वै मनुर वीत् ।। ९९ ।। अपनी प नीसे उ प एक और अ य य से उ प ल ध, त, पो षत तथा उपनयना दसे सं कृत—ये चार मलाकर कुल पाँच कारके पु मनुजीने बताये ह ।। ९९ ।। धमक यावहा नॄणां मनसः ी तवधनाः । ाय ते नरका जाताः पु ा धम लवाः पतॄन् ।। १०० ।। ये सभी पु मनु य को धम और क तक ा त करानेवाले तथा मनक स ताको बढ़ानेवाले होते ह। पु धम पी नौकाका आ य ले अपने पतर का नरकसे उ ार कर दे ते ह ।। १०० ।। स वं नृप तशा ल पु ं न य ु मह स । आ मानं स यधम च पालयन् पृ थवीपते । नरे सह कपटं न वोढुं व महाह स ।। १०१ ।। अतः नृप े ! आप अपने पु का प र याग न कर। पृ वीपते! नरे वर! आप अपने आ मा, स य और धमका पालन करते ए अपने सरपर कपटका बोझ न उठाव ।। १०१ ।। वरं कूपशताद् वापी वरं वापीशतात् तुः । वरं तुशतात् पु ः स यं पु शताद् वरम् ।। १०२ ।। सौ कुएँ खोदवानेक अपे ा एक बावड़ी बनवाना उ म है। सौ बाव ड़य क अपे ा एक य कर लेना उ म है। सौ य करनेक अपे ा एक पु को ज म दे ना उ म है और सौ पु क अपे ा भी स यका पालन े है ।। १०२ ।। अ मेधसह ं च स यं च तुलया धृतम् । अ मेधसह ा स यमेव व श यते ।। १०३ ।। े



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एक हजार अ मेध य एक ओर तथा स यभाषणका पु य सरी ओर य द तराजूपर रखा जाय, तो हजार अ मेध य क अपे ा स यका पलड़ा ही भारी होता है ।। १०३ ।। सववेदा धगमनं सवतीथावगाहनम् । स यं च वचनं राजन् समं वा या वा समम् ।। १०४ ।। राजन्! स पूण वेद का अ ययन और सम त तीथ का नान भी स य वचनक समानता कर सकेगा या नह , इसम संदेह ही है ( य क स य उनसे भी े है) ।। १०४ ।। ना त स यसमो धम न स याद् व ते परम् । न ह ती तरं क चदनृता दह व ते ।। १०५ ।। स यके समान कोई धम नह है। स यसे उ म कुछ भी नह है और झूठसे बढ़कर ती तर पाप इस जगत्म सरा कोई नह है ।। १०५ ।। राजन् स यं परं स यं च समयः परः । मा या ीः समयं राजन् स यं संगतम तु ते ।। १०६ ।। राजन्! स य पर परमा माका व प है। स य सबसे बड़ा नयम है। अतः महाराज! आप अपनी स य त ाको न छो ड़ये। स य आपका जीवनसंगी हो ।। १०६ ।। अनृते चेत् स ते धा स न चेत् वयम् । आ मना ह त ग छा म वा शे ना त संगतम् ।। १०७ ।। य द आपक झूठम ही आस है और मेरी बातपर ा नह करते ह तो म वयं ही चली जाती ँ। आप-जैसेके साथ रहना मुझे उ चत नह है ।। १०७ ।। (पु वे शङ् कमान य बु ापकद पना । ग तः वरः मृ तः स वं शील व ान व माः ।। धृ णु कृ तभावौ च आवता रोमराजयः । समा य य यतः यु ते त य पु ो न संशयः ।। सा येनोद्धृतं ब बं तव दे हाद् वशा पते । ताते त भाषमाणं वै मा म राजन् वृथा कृथाः ।।) यह मेरा पु है या नह , ऐसा संदेह होनेपर बु ही इसका नणय करनेवाली अथवा इस रह यपर काश डालनेवाली है। चाल-ढाल, वर, मरणश , उ साह, शील- वभाव, व ान, परा म, साहस, कृ तभाव, आवत (भँवर) तथा रोमावली— जसक ये सब व तुएँ जससे सवथा मलती-जुलती ह , वह उसीका पु है, इसम संशय नह है। राजन्! आपके शरीरसे पूण समानता लेकर यह ब बक भाँ त कट आ है और आपको ‘तात’ कहकर पुकार रहा है। आप इसक आशा न तोड़। वामृतेऽ प ह य त शैलराजावतंसकाम् । चतुर ता ममामुव पु ो मे पाल य य त ।। १०८ ।। महाराज य त! म एक बात कहे दे ती ँ, आपके सहयोगके बना भी मेरा यह पु चार समु से घरी ई ग रराज हमालय पी मुकुटसे सुशो भत समूची पृ वीका शासन करेगा ।। १०८ ।। (शक ु तले तव सुत वत भ व य त । ो े े

एवमु ो महे े ण भ व य त न चा यथा ।। सा वे बहवोऽ यु ा दे व तादयो मताः । न ुव त यथा स यमुताहोऽ यनृतं कल ।। असा णी म दभा या ग म या म यथाऽऽगतम् ।) दे वराज इ का वचन है—‘शकु तले! तु हारा पु च वत साट ् होगा।’ यह कभी म या नह हो सकता। य प दे व त आ द ब त-से सा ी बताये गये ह, तथा प इस समय वे या स य है और या अस य—इसके वषयम कुछ नह कह रहे ह। अतः सा ीके अभावम यह भा यहीन शकु तला जैसे आयी है, वैसे ही लौट जायगी। वैश पायन उवाच एताव वा राजानं ा त त शकु तला । अथा त र ाद् य तं वागुवाचाशरी रणी ।। १०९ ।। ऋ व पुरो हताचायम भ वृतं तदा । वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! राजा य तसे इतनी बात कहकर शकु तला वहाँसे चलनेको उ त ई। इतनेम ही ऋ वज्, पुरो हत, आचाय और म य से घरे ए य तको स बो धत करते ए आकाशवाणी ई ।। १०९ ।। भ ा माता पतुः पु ो येन जातः स एव सः ।। ११० ।। भर व पु ं य त मावमं थाः शकु तलाम् । (सव यो म े यः सा ा प ते सुतः । आ मा चैष सुतो नाम तथैव तव पौरव ।। आ हतं ा मनाऽऽ मानं प रर इमं सुतम् । अन यां वां ती व मावमं थाः शकु तलाम् ।। यः प व मतुलमेतद् य त धमतः । मा स मा स रजो ासां कृता यपकष त ।।) रेतोधाः पु उ य त नरदे व यम यात् ।। १११ ।। वं चा य धाता गभ य स यमाह शकु तला । जाया जनयते पु मा मनोऽ ं धा कृतम् ।। ११२ ।। ‘ य त! माता तो केवल भाथी (ध कनी)-के समान है। पु पताका ही होता है; य क जो जसके ारा उ प होता है, वह उसीका व प है—इस यायसे पता ही पु पम उ प होता है, अतः य त! तुम पु का पालन करो। शकु तलाका अनादर मत करो। पौरव! पु सा ात् अपना ही शरीर है। वह पताके स पूण अंग से उ प होता है। वा तवम वह पु नामसे स अपना आ मा ही है। ऐसा ही यह तु हारा पु भी है। अपने ारा ही गभम था पत कये ए आ म व प इस पु क तुम र ा करो। शकु तला तु हारे त अन य अनुराग रखनेवाली धम-प नी है। इसे इसी से दे खो! उसका अनादर मत करो। य त! याँ अनुपम प व व तु ह, यह धमतः वीकार कया गया है। येक मासम इनके जो रजःाव होता है, वह इनके सारे दोष को र कर दे ता है। नरदे व! वीयका े



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आधान करनेवाला पता ही पु बनता है और वह यमलोकसे अपने पतृगणका उ ार करता है। तुमने ही इस गभका आधान कया था। शकु तला स य कहती है। जाया (प नी) दो भाग म वभ ए प तके अपने ही शरीरको पु पम उ प करती है ।। ११०— ११२ ।। त माद् भर व य त पु ं शाकु तलं नृप । अभू तरेषा यत् य वा जीवे जीव तमा मजम् ।। ११३ ।। ‘इस लये राजा य त! तुम शकु तलासे उ प ए अपने पु का पालन-पोषण करो। अपने जी वत पु को यागकर जीवन धारण करना बड़े भा यक बात है ।। ११३ ।। शाकु तलं महा मानं दौ य तं भर पौरव । भत ोऽयं वया य माद माकं वचनाद प ।। ११४ ।। त माद् भव वयं ना ना भरतो नाम ते सुतः । ‘पौरव! यह महामना बालक शकु तला और य त दोन का पु है। हम दे वता के कहनेसे तुम इसका भरण-पोषण करोगे, इस लये तु हारा यह पु भरतके नामसे व यात होगा’ ।। ११४ ।। (एवमु वा ततो दे वा ऋषय तपोधनाः । प त ते त सं ाः पु पवृ वव षरे ।।) त छ वा पौरवो राजा ा तं दवौकसाम् ।। ११५ ।। पुरो हतममा यां स ोऽ वी ददम् । शृ व वेतद् भव तोऽ य दे व त य भा षतम् ।। ११६ ।। (वैश पायनजी कहते ह—राजन्!) ऐसा कहकर दे वता तथा तप वी ऋ ष शकु तलाको प त ता बतलाते ए उसपर फूल क वषा करने लगे। पू वंशी राजा य त दे वता क यह बात सुनकर बड़े स ए और पुरो हत तथा म य से इस कार बोले —‘आपलोग इस दे व तका कथन भलीभाँ त सुन ल ।। ११५-११६ ।। अहं चा येवमेवैनं जाना म वयमा मजम् । य हं वचनाद या गृ या म ममा मजम् ।। ११७ ।। भवे शङ् यो लोक य नैव शु ो भवेदयम् । ‘म भी अपने इस पु को इसी पम जानता ँ। य द केवल शकु तलाके कहनेसे म इसे हण कर लेता, तो सब लोग इसपर संदेह करते और यह बालक वशु नह माना जाता’ ।। ११७ ।। वैश पायन उवाच तं वशो य तदा राजा दे व तेन भारत । ः मु दत ा प तज ाह तं सुतम् ।। ११८ ।। वैश पायनजी कहते ह—भारत! इस कार दे व तके वचनसे उस बालकक शु ता मा णत करके राजा य तने हष और आन दम म न हो उस समय अपने उस पु को हण कया ।। ११८ ।।

तत त य तदा राजा पतृकमा ण सवशः । कारयामास मु दतः ी तमाना मज य ह ।। ११९ ।। तदन तर महाराज य तने पताको जो-जो काय करने चा हये, वे सब उपनयन आ द सं कार बड़े आन द और ेमके साथ अपने उस पु के लये (शा और कुलक मयादाके अनुसार) कराये ।। ११९ ।। मू न चैनमुपा ाय स नेहं प रष वजे । सभा यमानो व ै तूयमान व द भः । स मुदं परमां लेभे पु सं पशजां नृपः ।। १२० ।। और उसका म तक सूँघकर अ य त नेहपूवक उसे दयसे लगा लया। उस समय ा ण ने उ ह आशीवाद दया और व द जन ने उनके गुण गाये। महाराजने पु पशज नत परम आन दका अनुभव कया ।। १२० ।। तां चैव भाया य तः पूजयामास धमतः । अ वी चैव तां राजा सा वपूव मदं वचः ।। १२१ ।। य तने अपनी प नी शकु तलाका भी धमपूवक आदर-स कार कया और उसे समझाते ए कहा— ।। १२१ ।। कृतो लोकपरो ोऽयं स ब धो वै वया सह । त मादे त मया दे व व छु यथ वचा रतम् ।। १२२ ।। ‘दे व! मने तु हारे साथ जो ववाह-स ब ध था पत कया था, उसे साधारण जनता नह जानती थी। अतः तु हारी शु के लये ही मने यह उपाय सोचा था ।। १२२ ।। ( ा णाः या वै याः शू ा ैव पृथ वधाः । वां दे व पूज य य त न वशङ् कं प त ताम् ।।) ‘दे व! तुम नःसंदेह प त ता हो। ा ण, य, वै य और शू —ये सभी पृथक्पृथक् तु हारा पूजन (समादर) करगे। म यते चैव लोक ते ीभावा म य संगतम् । पु ायं वृतो रा ये मया त माद् वचा रतम् ।। १२३ ।। ‘य द इस कार तु हारी शु न होती तो लोग यही समझते क तुमने ी- वभावके कारण कामवश मुझसे स ब ध था पत कर लया और मने भी कामके अधीन होकर ही तु हारे पु को रा यपर बठानेक त ा कर ली। हम दोन के धामक स ब धपर कसीका व ास नह होता; इसी लये यह उपाय सोचा गया था ।। १२३ ।। य च को पतया यथ वयो ोऽ य यं ये । ण य या वशाला तत् ा तं ते मया शुभे ।। १२४ ।। ‘ ये! वशाललोचने! तुमने भी कु पत होकर जो मेरे लये अ य त अ य वचन कहे ह, वे सब मेरे त तु हारा अ य त ेम होनेके कारण ही कहे गये ह। अतः शुभे! मने वह सब अपराध मा कर दया है ।। १२४ ।। (अनृतं वा य न ं वा ं वा प कृतम् । वया येवं वशाला त ं मम वचः ।। े )

ा या प तकृते नायः पा त यं ज त ताः ।) ‘ वशाल ने वाली दे व! इसी कार तु ह भी मेरे कहे ए अस य, अ य, कटु एवं पापपूण वचन के लये मुझे मा कर दे ना चा हये। प तके लये माभाव धारण करनेसे याँ पा त य-धमको ा त होती ह’। तामेवमु वा राज ष य तो म हष याम् । वासो भर पानै पूजयामास भारत ।। १२५ ।। जनमेजय! अपनी यारी रानीसे ऐसी बात कहकर राज ष य तने अ , पान और व आ दके ारा उसका आदर-स कार कया ।। १२५ ।। (स मातरमुप थाय रथ तयामभाषत । मम पु ो वने जात तव शोक णाशनः ।। ऋणाद वमु ोऽहम म पौ ेण ते शुभे । व ा म सुता चेयं क वेन च वव धता ।। नुषा तव महाभागे सीद व शकु तलाम् । पु य वचनं ु वा पौ ं सा प रष वजे ।। पादयोः प ततां त रथ तया शकु तलाम् । प र व य च बा यां हषाद ू यवतयत् ।। उवाच वचनं स यं ल यँ ल णा न च । तव पु ो वशाला च वत भ व य त ।। तव भता वशाला ैलो य वजयी भवेत् । द ान् भोगाननु ा ता भव वं वरव ण न ।। एवमु ा रथ तया परं हषमवाप सा । शकु तलां तदा राजा शा ो े नैव कमणा ।। ततोऽ म हष कृ वा सवाभरणभू षताम् । ा णे यो धनं द वा सै नकानां च भूप तः ।।) तदन तर वे अपनी माता रथ तयाके पास जाकर बोले—‘माँ! यह मेरा पु है, जो वनम उ प आ है। यह तु हारे शोकका नाश करनेवाला होगा। शुभे! तु हारे इस पौ को पाकर आज म पतृ-ऋणसे मु हो गया। महाभागे! यह तु हारी पु -वधू है। मह ष व ा म ने इसे ज म दया और महा मा क वने पाला है। तुम शकु तलापर कृपा रखो।’ पु क यह बात सुनकर राजमाता रथ तयाने पौ को दयसे लगा लया और अपने चरण म पड़ी ई शकु तलाको दोन भुजा म भरकर वे हषके आँसू बहाने लग । साथ ही पौ के शुभ ल ण क ओर संकेत करती ई बोल —‘ वशाला ! तेरा पु च वत साट ् होगा। तेरे प तको तीन लोक पर वजय ा त हो। सु द र! तु ह सदा द भोग ा त होते रह।’ यह कहकर राजमाता रथ तया अ य त हषसे वभोर हो उठ। उस समय राजाने शा ो व धके अनुसार सम त आभूषण से वभू षत शकु तलाको पटरानीके पदपर अ भ ष करके ा ण तथा सै नक को ब त धन अ पत कया। य त तु तदा राजा पु ं शाकु तलं तदा । ौ े े

भरतं नामतः कृ वा यौवरा येऽ यषेचयत् ।। १२६ ।। तदन तर महाराज य तने शकु तलाकुमारका नाम भरत रखकर उसे युवराजके पदपर अ भ ष कर दया ।। १२६ ।। (भरते भारमावे य क ृ तकृ योऽभव ृपः । ततो वषशतं पूण रा यं कृ वा नरा धपः ।। कृ वा दाना न य तः वगलोकमुपे यवान् ।) फर भरतको रा यका भार स पकर महाराज य त कृतकृ य हो गये। वे पूरे सौ वष तक रा य भोगकर व वध कारके दान दे अ तम वगलोक सधारे । त य तत् थतं च ं ावतत महा मनः । भा वरं द म जतं लोकसंनादनं महत् ।। १२७ ।। महा मा राजा भरतका व यात च * सब ओर घूमने लगा। वह अ य त काशमान, द और अजेय था। वह महान् च अपनी भारी आवाजसे स पूण जगत्को त व नत करता चलता था ।। १२७ ।। स व ज य महीपालां कार वशव तनः । चचार च सतां धम ाप चानु मं यशः ।। १२८ ।। उ ह ने सब राजा को जीतकर अपने अधीन कर लया तथा स पु ष के धमका पालन और उ म यशका उपाजन कया ।। १२८ ।। स राजा च व यासीत् सावभौमः तापवान् । ईजे च ब भय ैयथा श ो म प तः ।। १२९ ।। महाराज भरत सम त भूम डलम व यात, तापी एवं च वत साट ् थे। उ ह ने दे वराज इ क भाँ त ब त-से य का अनु ान कया ।। १२९ ।। याजयामास तं क वो व धवद् भू रद णम् । ीमान् गो वततं नाम वा जमेधमवाप सः । य मन् सह ं पानां क वाय भरतो ददौ ।। १३० ।। मह ष क वने आचाय होकर भरतसे चुर द णा से यु ‘गो वतत’ नामक अ मेध य का व धपूवक अनु ान करवाया। ीमान् भरतने उस य का पूरा फल ा त कया। उसम महाराज भरतने आचाय क वको एक सह प वणमु ाएँ द णा पम द ।। १३० ।। भरताद् भारती क तयनेदं भारतं कुलम् । अपरे ये च पूव वै भारता इ त व ुताः ।। १३१ ।। भरतसे ही इस भूख डका नाम भारत (अथवा भू मका नाम भारती) आ। उ ह से यह कौरववंश भरतवंशके नामसे स आ। उनके बाद उस कुलम पहले तथा आज भी जो राजा हो गये ह, वे भारत (भरतवंशी) कहे जाते ह ।। १३१ ।। भरत या ववाये ह दे वक पा महौजसः । बभूवु क पा बहवो राजस माः ।। १३२ ।। े





येषामप रमेया न नामधेया न सवशः । तेषां तु ते यथामु यं क त य या म भारत । महाभागान् दे वक पान् स याजवपरायणान् ।। १३३ ।। भरतके कुलम दे वता के समान महापरा मी तथा ाजीके समान तेज वी ब तसे राज ष हो गये ह; जनके स पूण नाम क गणना अस भव है। जनमेजय! इनम जो मु य ह, उ ह के नाम का तुमसे वणन क ँ गा। वे सभी महाभाग नरेश दे वता के समान तेज वी तथा स य, सरलता आ द धम म त पर रहनेवाले थे ।। १३२-१३३ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण शकु तलोपा याने चतुःस त ततमोऽ यायः ।। ७४ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम शकु तलोपा यान वषयक चौह रवाँ अ याय पूरा आ ।। ७४ ।। (दा णा य अ धक पाठक े ८९ ोक मलाकर कुल २२२ ोक ह)

* च के वशेषण से यहाँ यही अनुमान होता है क भरतके पास सुदशन च के समान ही कोई च

था।

प चस त ततमोऽ यायः द , वैव वत मनु तथा उनके पु क उ प ; पु रवा, न ष और यया तके च र का सं ेपसे वणन वैश पायन उवाच जापते तु द य मनोवव वत य च । भरत य कुरोः पूरोराजमीढ य चानघ ।। १ ।। यादवाना ममं वंशं कौरवाणां च सवशः । तथैव भरतानां च पु यं व ययनं महत् ।। २ ।। ध यं यश यमायु यं क त य या म तेऽनघ । वैश पायनजी कहते ह— न पाप जनमेजय! अब म द जाप त, वैव वत मनु, भरत, कु , पू , अजमीढ, यादव, कौरव तथा भरतवं शय क कुल-पर पराका तुमसे वणन क ँ गा। उनका कुल परम प व , महान् मंगलकारी तथा धन, यश और आयुक ा त करानेवाला है ।। १-२ ।। तेजो भ दताः सव मह षसमतेजसः ।। ३ ।। दश ाचेतसः पु ाः स तः पु यजनाः मृताः । मुखजेना नना यै ते पूव द धा मही हाः ।। ४ ।। चेताके दस पु थे, जो अपने तेजके ारा सदा का शत होते थे। वे सब-के-सब मह षय के समान तेज वी, स पु ष और पु यकमा माने गये ह। उ ह ने पूवकालम अपने मुखसे कट क ई अ न ारा उन बड़े-बड़े वृ को जलाकर भ म कर दया था (जो ा णय को पीड़ा दे रहे थे) ।। ३-४ ।। ते यः ाचेतसो ज े द ो द ा दमाः जाः । स भूताः पु ष ा स ह लोक पतामहः ।। ५ ।। उ दस चेता ारा (मा रषाके गभसे) ाचेतस द का ज म आ तथा द से ये सम त जाएँ उ प ई ह। नर े ! वे स पूण जगत्के पतामह ह ।। ५ ।। वी र या सह संग य द ः ाचेतसो मु नः । आ मतु यानजनयत् सह ं सं शत तान् ।। ६ ।। ाचेतस मु न द ने वी रणीसे समागम करके अपने ही समान गुण-शीलवाले एक हजार पु उ प कये। वे सब-के-सब अ य त कठोर तका पालन करनेवाले थे ।। ६ ।। सह सं यान् स भूतान् द पु ां नारदः । मो म यापयामास सां य ानमनु मम् ।। ७ ।। एक सहक सं याम कट ए उन द -पु को दे व ष नारदजीने मो -शा का अ ययन कराया। परम उ म सां य- ानका उपदे श कया ।। ७ ।। ततः प चाशतं क याः पु का अ भसंदधे । े

जाप तः जा द ः ससृ ुजनमेजय ।। ८ ।। जनमेजय! जब वे सभी वर होकर घरसे नकल गये, तब जाक सृ करनेक इ छासे जाप त द ने पु काके ारा पु (दौ ह ) होनेपर उस पु काको ही पु मानकर पचास क याएँ उ प क ।। ८ ।। ददौ दश स धमाय क यपाय योदश । काल य नयने यु ाः स त वश त म दवे ।। ९ ।। उ ह ने दस क याएँ धमको, तेरह क यपको और कालका संचालन करनेम नयु न व पा स ाईस क याएँ च माको याह द ।। ९ ।। योदशानां प नीनां या तु दा ायणी वरा । मारीचः क यप व यामा द यान् समजीजनत् ।। १० ।। इ ाद न् वीयस प ान् वव व तमथा प च । वव वतः सुतो ज े यमो वैव वतः भुः ।। ११ ।। मरी चन दन क यपने अपनी तेरह प नय मसे जो सबसे बड़ी द -क या अ द त थ , उनके गभसे इ आ द बारह आ द य को ज म दया, जो बड़े परा मी थे। तदन तर उ ह ने अ द तसे ही वव वान्को उ प कया। वव वान्के पु यम ए, जो वैव वत कहलाते ह। वे सम त ा णय के नय ता ह ।। १०-११ ।। मात ड य मनुध मानजायत सुतः भुः । यम ा प सुतो ज े यात त यानुजः भुः ।। १२ ।। वव वान्के ही पु परम बु मान् मनु ए, जो बड़े भावशाली ह। मनुके बाद उनसे यम नामक पु क उ प ई, जो सव व यात ह। यमराज मनुके छोटे भाई तथा ा णय का नयमन करनेम समथ ह ।। १२ ।। धमा मा स मनुध मान् य वंशः त तः । मनोवशो मानवानां ततोऽयं थतोऽभवत् ।। १३ ।। बु मान् मनु बड़े धमा मा थे, जनपर सूयवंशक त ा ई। मानव से स ब ध रखनेवाला यह मनुवंश उ ह से व यात आ ।। १३ ।। ादय त मा मनोजाता तु मानवाः । ततोऽभव महाराज ेण संगतम् ।। १४ ।। उ ह मनुसे ा ण, य आ द सब मानव उ प ए ह। महाराज! तभीसे ा णकुल यसे स ब आ ।। १४ ।। ा णा मानवा तेषां सा ं वेदमधारयन् । वेनं धृ णुं न र य तं नाभागे वाकुमेव च ।। १५ ।। का षमथ शया त तथा चैवा मी मलाम् । पृष ं नवमं ा ः धमपरायणम् ।। १६ ।। नाभागा र दशमान् मनोः पु ान् च ते । प चाशत् तु मनोः पु ा तथैवा येऽभवन् तौ ।। १७ ।। े











उनमसे ा णजातीय मानव ने छह अंग स हत वेद को धारण कया। वेन, धृ णु, न र य त, नाभाग, इ वाकु, का ष, शया त, आठव इला, नव य-धमपरायण पृष तथा दसव नाभागा र —इन दस को मनुपु कहा जाता है। मनुके इस पृ वीपर पचास पु और ए ।। १५-१७ ।। अ यो यभेदात् ते सव वनेशु र त नः ुतम् । पु रवा ततो व ा नलायां समप त ।। १८ ।। परंतु आपसक फूटके कारण वे सब-के-सब न हो गये, ऐसा हमने सुना है। तदन तर इलाके गभसे व ान् पु रवाका ज म आ ।। १८ ।। सा वै त याभव माता पता चैवे त नः ुतम् । योदश समु य पानन् पु रवाः ।। १९ ।। सुना जाता है, इला पु रवाक माता भी थी और पता भी* । राजा पु रवा समु के तेरह प का शासन और उपभोग करते थे ।। १९ ।। अमानुषैवृतः स वैमानुषः सन् महायशाः । व ैः स व हं च े वीय म ः पु रवाः ।। २० ।। जहार च स व ाणां र ना यु ोशताम प । महायश वी पु रवा मनु य होकर भी मानवेतर ा णय से घरे रहते थे। वे अपने बलपरा मसे उ म हो ा ण के साथ ववाद करने लगे। बेचारे ा ण चीखते- च लाते रहते थे तो भी वे उनका सारा धन-र न छ न लेते थे ।। २० ।। सन कुमार तं राजन् लोका पे य ह ।। २१ ।। अनुदश तत े यगृ ा चा यसौ । ततो मह ष भः ु ै ः स ः श तो न यत ।। २२ ।। जनमेजय! लोकसे सन कुमारजीने आकर उ ह ब त समझाया और ा ण पर अ याचार न करनेका उपदे श दया, कतु वे उनक श ा हण न कर सके। तब ोधम भरे ए मह षय ने त काल उ ह शाप दे दया, जससे वे न हो गये ।। २१-२२ ।। लोभा वतो बलमदा सं ो नरा धपः । स ह ग धवलोक थानुव या स हतो वराट् ।। २३ ।। आ ननाय याथऽ नीन् यथावत् व हतां धा । षट् सुता ज रे चैलादायुध मानमावसुः ।। २४ ।। ढायु वनायु शतायु ोवशीसुताः । न षं वृ शमाणं रज गयमनेनसम् ।। २५ ।। वभानवीसुतानेतानायोः पु ान् च ते । आयुषो न षः पु ो धीमान् स यपरा मः ।। २६ ।। राजा पु रवा लोभसे अ भभूत थे और बलके घमंडम आकर अपनी ववेक-श खो बैठे थे। वे शोभाशाली नरेश ही ग धवलोकम थत और व धपूवक था पत वध अ नय को उवशीके साथ इस धरातलपर लाये थे। इलान दन पु रवाके छः पु उ प े







ए, जनके नाम इस कार ह—आयु, धीमान्, अमावसु, ढायु, वनायु और शतायु। ये सभी उवशीके पु ह। उनमसे आयुके वभानुकुमारीके गभसे उ प पाँच पु बताये जाते ह—न ष, वृ शमा, र ज, गय तथा अनेना। आयुन दन न ष बड़े बु मान् और स यपरा मी थे ।। २३-२६ ।। रा यं शशास सुमहद् धमण पृ थवीपते । पतॄन् दे वानृषीन् व ान् ग धव रगरा सान् ।। २७ ।। न षः पालयामास मथो वशः । स ह वा द युसंघातानृषीन् करमदापयत् ।। २८ ।। पृ वीपते! उ ह ने अपने वशाल रा यका धमपूवक शासन कया। पतर , दे वता , ऋ षय , ा ण , ग धव , नाग , रा स तथा ा ण, य और वै य का भी पालन कया। राजा न षने झुंड-के-झुंड डाकु और लुटेर का वध करके ऋ षय को भी कर दे नेके लये ववश कया ।। २७-२८ ।। पशुव चैव तान् पृ े वाहयामास वीयवान् । कारयामास चे वम भभूय दवौकसः ।। २९ ।। तेजसा तपसा चैव व मेणौजसा तथा । य त यया त संया तमाया तमय त ुवम् ।। ३० ।। न षो जनयामास षट् सुतान् यवा दनः । य त तु योगमा थाय भूतोऽभव मु नः ।। ३१ ।। अपने इ वकालम परा मी न षने मह षय को पशुक तरह वाहन बनाकर उनक पीठपर सवारी क थी। उ ह ने तेज, तप, ओज और परा म ारा सम त दे वता को तर कृत करके इ पदका उपभोग कया था। राजा न षने छः यवाद पु को ज म दया, जनके नाम इस कार ह—य त, यया त, संया त, आया त, अय त और ुव। इनम य त योगका आ य लेकर भूत मु न हो गये थे ।। २९—३१ ।। यया तना षः स ाडासीत् स यपरा मः । स पालयामास महीमीजे च ब भमखैः ।। ३२ ।। तब न षके सरे पु स यपरा मी यया त साट ् ए। उ ह ने इस पृ वीका पालन तथा ब त-से य का अनु ान कया ।। ३२ ।। अ तभ या पतॄनचन् दे वां यतः सदा । अ वगृ ात् जाः सवा यया तरपरा जतः ।। ३३ ।। त य पु ा महे वासाः सवः समु दता गुणैः । दे वया यां महाराज श म ायां च ज रे ।। ३४ ।। महाराज यया त कसीसे परा त होनेवाले नह थे। वे सदा मन और इ य को संयमम रखकर बड़े भ -भावसे दे वता तथा पतर का पूजन करते और सम त जापर अनु ह रखते थे। महाराज जनमेजय! राजा यया तके दे वयानी और शम ाके गभसे महान् धनुधर पु उ प ए। वे सभी सम त सद्गुण के भ डार थे ।। ३३-३४ ।। दे वया यामजायेतां य तुवसुरेव च । े

ानु पू श म ायां च ज रे ।। ३५ ।। य और तुवसु—ये दो दे वयानीके पु थे और , अनु तथा पू —ये तीन शम ाके गभसे उ प ए थे ।। ३५ ।। स शा तीः समा राजन् जा धमण पालयन् । जरामा छ महाघोरां ना षो पना शनीम् ।। ३६ ।। राजन्! वे सवदा धमपूवक जाका पालन करते थे। एक समय न षपु यया तको अ य त भयानक वृ ाव था ा त ई, जो प और सौ दयका नाश करनेवाली है ।। ३६ ।। जरा भभूतः पु ान् स राजा वचनम वीत् । य ं पू ं तुवसुं च ं चानुं च भारत ।। ३७ ।। जनमेजय! वृ ाव थासे आ ा त होनेपर राजा यया तने अपने सम त पु य , पू , तुवसु, तथा अनुसे कहा— ।। ३७ ।। यौवनेन चरन् कामान् युवा युव त भः सह । वहतुमह म छा म सा ं कु त पु काः ।। ३८ ।। ‘पु ो! म युवाव थासे स प हो जवानीके ारा कामोपभोग करते ए युव तय के साथ वहार करना चाहता ँ। तुम मेरी सहायता करो’ ।। ३८ ।। तं पु ो दै वयानेयः पूवजो वा यम वीत् । क काय भवतः कायम माकं यौवनेन ते ।। ३९ ।। यह सुनकर दे वयानीके ये पु य ने पूछा—‘भगवन्! हमारी जवानी लेकर उसके ारा आपको कौन-सा काय करना है’ ।। ३९ ।। यया तर वीत् तं वै जरा मे तगृ ताम् । यौवनेन वद येन चरेयं वषयानहम् ।। ४० ।। तब यया तने उससे कहा—तुम मेरा बुढ़ापा ले लो और म तु हारी जवानीसे वषयोपभोग क ँ गा ।। ४० ।। यजतो द घस ैम शापा चोशनसो मुनेः । कामाथः प रहीणोऽयं त येयं तेन पु काः ।। ४१ ।। ‘पु ो! अबतक तो म द घकालीन य के अनु ानम लगा रहा और अब मु नवर शु ाचायके शापसे बुढ़ापेने मुझे धर दबाया है, जससे मेरा काम प पु षाथ छन गया। इसीसे म संत त हो रहा ँ ।। ४१ ।। मामकेन शरीरेण रा यमेकः शा तु वः । अहं त वा भनवया युवा काममवा ुयाम् ।। ४२ ।। ‘तुममसे कोई एक मेरा वृ शरीर लेकर उसके ारा रा यशासन करे। म नूतन शरीर पाकर युवाव थासे स प हो वषय का उपभोग क ँ गा’ ।। ४२ ।। ते न त य यगृ न् य भृतयो जराम् । तम वीत् ततः पू ः कनीयान् स य व मः ।। ४३ ।। राजं रा भनवया त वा यौवनगोचरः । े े

अहं जरां समादाय रा ये था या म तेऽऽ या ।। ४४ ।। राजाके ऐसा कहनेपर भी वे य आ द चार पु उनक वृ ाव था न ले सके। तब सबसे छोटे पु स यपरा मी पू ने कहा—‘राजन्! आप मेरे नूतन शरीरसे नौजवान होकर वषय का उपभोग क जये। म आपक आ ासे बुढ़ापा लेकर रा य सहासनपर बैठँ ू गा’ ।। ४३-४४ ।। एवमु ः स राज ष तपोवीयसमा यात् । संचारयामास जरां तदा पु े महा म न ।। ४५ ।। पु के ऐसा कहनेपर राज ष यया तने तप और वीयके आ यसे अपनी वृ ाव थाका अपने महा मा पु पू म संचार कर दया ।। ४५ ।। पौरवेणाथ वयसा राजा यौवनमा थतः । यायातेना प वयसा रा यं पू रकारयत् ।। ४६ ।। यया त वयं पू क नयी अव था लेकर नौजवान बन गये। इधर पू भी राजा यया तक अव था लेकर उसके ारा रा यका पालन करने लगे ।। ४६ ।। ततो वषसह ा ण यया तरपरा जतः । थतः स नृपशा लः शा लसम व मः ।। ४७ ।। तदन तर कसीसे परा त न होनेवाले और सहके समान परा मी नृप े यया त एक सह वषतक युवाव थाम थत रहे ।। ४७ ।। यया तर प प नी यां द घकालं व य च । व ा या स हतो रेमे पुन ै रथे वने ।। ४८ ।। उ ह ने अपनी दोन प नय के साथ द घकालतक वहार करके चै रथ वनम जाकर व ाची अ सराके साथ रमण कया ।। ४८ ।। ना यग छत् तदा तृ तं कामानां स महायशाः । अवे य मनसा राज मां गाथां तदा जगौ ।। ४९ ।। परंतु उस समय भी महायश वी यया त काम-भोगसे तृ त न हो सके। राजन्! उ ह ने मनसे वचारकर यह न य कर लया क वषय के भोगनेसे भोगे छा कभी शा त नह हो सकती। तब राजाने (संसारके हतके लये) यह गाथा गायी— ।। ४९ ।। न जातु कामः कामानामुपभोगेन शा य त । ह वषा कृ णव मव भूय एवा भवधते ।। ५० ।। ‘ वषय-भोगक इ छा वषय का उपभोग करनेसे कभी शा त नह हो सकती। घीक आ त डालनेसे अ धक व लत होनेवाली आगक भाँ त वह और भी बढ़ती ही जाती है’ ।। ५० ।। पृ थवी र नस पूणा हर यं पशवः यः । नालमेक य तत् सव म त म वा शमं जेत् ।। ५१ ।। ‘र न से भरी ई सारी पृ वी, संसारका सारा सुवण, सारे पशु और सु दरी याँ कसी एक पु षको मल जायँ, तो भी वे सब-के-सब उसके लये पया त नह ह गे। वह और भी पाना चाहेगा। ऐसा समझकर शा त धारण करे—भोगे छाको दबा दे ।। ५१ ।। े े

यदा न कु ते पापं सवभूतेषु क ह चत् । कमणा मनसा वाचा स प ते तदा ।। ५२ ।। ‘जब मनु य मन, वाणी और या ारा कभी कसी भी ाणीके त बुरा भाव नह करता, तब वह को ा त हो जाता है’ ।। ५२ ।। यदा चायं न बभे त यदा चा मा ब य त । यदा ने छ त न े स प ते तदा ।। ५३ ।। ‘जब सव होनेके कारण यह पु ष कसीसे नह डरता और जब उससे भी सरे ाणी नह डरते तथा जब वह न तो कसीक इ छा करता है और न कसीसे े ष ही रखता है, उस समय वह को ा त हो जाता है’ ।। ५३ ।। इ यवे य महा ा ः कामानां फ गुतां नृप । समाधाय मनो बु या यगृ ा जरां सुतात् ।। ५४ ।। जनमेजय! परम बु मान् महाराज यया तने इस कार भोग क नःसारताका वचार करके बु के ारा मनको एका कया और पु से अपना बुढ़ापा वापस ले लया ।। द वा च यौवनं राजा पू ं रा येऽ भ ष य च । अतृ त एव कामानां पू ं पु मुवाच ह ।। ५५ ।। पू को उसक जवानी लौटाकर राजाने उसे रा यपर अ भ ष कर दया और भोग से अतृ त रहकर ही अपने पु पू से कहा— ।। ५५ ।। वया दायादवान म वं मे वंशकरः सुतः । पौरवो वंश इ त ते या त लोके ग म य त ।। ५६ ।। ‘बेटा! तु हारे-जैसे पु से ही म पु वान् ँ। तु ह मेरे वंश- वतक पु हो। तु हारा वंश इस जगत्म पौरव वंशके नामसे व यात होगा’ ।। ५६ ।। वैश पायन उवाच ततः स नृपशा ल पू ं रा येऽ भ ष य च । ततः सुच रतं कृ वा भृगुतु े महातपाः ।। ५७ ।। कालेन महता प ात् कालधममुपे यवान् । कार य वा वनशनं सदारः वगमा तवान् ।। ५८ ।। वैश पायनजी कहते ह—नृप े ! तदन तर पू का रा या भषेक करनेके प ात् राजा यया तने अपनी प नय के साथ भृगत ु ुंग पवतपर जाकर स कम का अनु ान करते ए वहाँ बड़ी भारी तप या क । इस कार द घकाल तीत होनेके बाद य स हत नराहार त करके उ ह ने वगलोक ा त कया ।। ५७-५८ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण यया युपा याने प चस त ततमोऽ यायः ।। ७५ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम यया युपा यान वषयक पचह रवाँ अ याय पूरा आ ।। ७५ ।।

* वा तवम इला माता ही थी। ज मदाता पता च माके पु बुध थे, परंतु इला जब पु ष पम प रणत ई तो उसका नाम सु ु न आ। सु ु नने ही पु रवाको रा य दया था, इस लये वे पता भी कहे जाते ह।

षट् स त ततमोऽ यायः कचका श यभावसे शु ाचाय और दे वयानीक सेवाम संल न होना और अनेक क सहनेके प ात् मृतसंजीवनी व ा ा त करना जनमेजय उवाच यया तः पूवजोऽ माकं दशमो यः जापतेः । कथं स शु तनयां लेभे परम लभाम् ।। १ ।। एत द छा यहं ोतुं व तरेण तपोधन । आनुपू ा च मे शंस रा ो वंशकरान् पृथक् ।। २ ।। जनमेजयने पूछा—तपोधन! हमारे पूवज महाराज यया तने, जो जाप तसे दसव पीढ़ म उ प ए थे, शु ाचायक अ य त लभ पु ी दे वयानीको प नी पम कैसे ा त कया? म इस वृ ा तको व तारके साथ सुनना चाहता ँ। आप मुझसे सभी वंश- वतक राजा का मशः पृथक्-पृथक् वणन क जये ।। १-२ ।। वैश पायन उवाच यया तरासी ृप तदवराजसम ु तः । तं शु वृषपवाणौ व ाते वै यथा पुरा ।। ३ ।। तत् तेऽहं स व या म पृ छते जनमेजय । दे वया या संयोगं ययातेना ष य च ।। ४ ।। वैश पायनजीने कहा—जनमेजय! राजा यया त दे वराज इ के समान तेज वी थे। पूवकालम शु ाचाय और वृषपवाने यया तका अपनी-अपनी क याके प तके पम जस कार वरण कया, वह सब संग तु हारे पूछनेपर म तुमसे क ँगा। साथ ही यह भी बताऊँगा क न षन दन यया त तथा दे वयानीका संयोग कस कार आ ।। ३-४ ।। सुराणामसुराणां च समजायत वै मथः । ऐ य त संघष ैलो ये सचराचरे ।। ५ ।। एक समय चराचर ा णय स हत सम त लोक के ऐ यके लये दे वता और असुर म पर पर बड़ा भारी संघष आ ।। ५ ।। जगीषया ततो दे वा व रेऽऽ रसं मु नम् । पौरो ह येन या याथ का ं तूशनसं परे ।। ६ ।। ा णौ तावुभौ न यम यो य प धनौ भृशम् । त दे वा नज नुयान् दानवान् यु ध संगतान् ।। ७ ।। तान् पुनज वयामास का ो व ाबला यात् । तत ते पुन थाय योधयांच रे सुरान् ।। ८ ।। े

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उसम वजय पानेक इ छासे दे वता ने अं गरा मु नके पु बृह प तका पुरो हतके पदपर वरण कया और दै य ने शु ाचायको पुरो हत बनाया। वे दोन ा ण सदा आपसम ब त लाग-डाट रखते थे। दे वता ने उस यु म आये ए जन दानव को मारा था, उ ह शु ाचायने अपनी संजीवनी व ाके बलसे पुनः जी वत कर दया। अतः वे पुनः उठकर दे वता से यु करने लगे ।। ६—८ ।। असुरा तु नज नुयान् सुरान् समरमूध न । न तान् संजीवयामास बृह प त दारधीः ।। ९ ।। परंतु असुर ने यु के मुहानेपर जन दे वता को मारा था, उ ह उदारबु बृह प त जी वत न कर सके ।। ९ ।। न ह वेद स तां व ां यां का ो वे वीयवान् । संजी वन ततो दे वा वषादमगमन् परम् ।। १० ।। य क श शाली शु ाचाय जस संजीवनी व ाको जानते थे, उसका ान बृह प तको नह था। इससे दे वता को बड़ा वषाद आ ।। १० ।। ते तु दे वा भयो नाः का ा शनस तदा । ऊचुः कचमुपाग य ये ं पु ं बृह पतेः ।। ११ ।। इससे दे वता शु ाचायके भयसे उ न हो उस समय बृह प तके ये पु कचके पास जाकर बोले— ।। ११ ।। भजमानान् भज वा मान् कु नः सा मु मम् । या सा व ा नवस त ा णेऽ मततेज स ।। १२ ।। शु े तामाहर ं भागभाङ् नो भ व य स । वृषपवसमीपे ह श यो ु ं वया जः ।। १३ ।। ‘ न्! हम आपके सेवक ह। आप हम अपनाइये और हमारी उ म सहायता क जये। अ मततेज वी ा ण शु ाचायके पास जो मृतसंजीवनी व ा है, उसे शी सीखकर यहाँ ले आइये। इससे आप हम दे वता के साथ य म भाग ा त कर सकगे। राजा वृषपवाके समीप आपको व वर शु ाचायका दशन हो सकता है’ ।। १२-१३ ।। र ते दानवां त न स र यदानवान् । तमाराध यतुं श ो भवान् पूववयाः क वम् ।। १४ ।। ‘वहाँ रहकर वे दानव क र ा करते ह। जो दानव नह ह, उनक र ा नह करते। आपक अभी नयी अव था है, अतः आप शु ाचायक आराधना (करके उ ह स ) करनेम समथ ह’ ।। १४ ।। दे वयान च द यतां सुतां त य महा मनः । वमाराध यतुं श ो ना यः क न व ते ।। १५ ।। ‘उन महा माक यारी पु ीका नाम दे वयानी है, उसे अपनी सेवा ारा आप ही स कर सकते ह। सरा कोई इसम समथ नह है’ ।। १५ ।। शीलदा यमाधुयराचारेण दमेन च । दे वया यां ह तु ायां व ां तां ा य स ुवम् ।। १६ ।। ‘ े ी

‘अपने शील- वभाव, उदारता, मधुर वहार, सदाचार तथा इ यसंयम ारा दे वयानीको संतु कर लेनेपर आप न य ही उस व ाको ा त कर लगे’ ।। १६ ।। तथे यु वा ततः ायाद् बृह प तसुतः कचः । तदा भपू जतो दे वैः समीपे वृषपवणः ।। १७ ।। तब ‘ब त अ छा’ कहकर बृह प तपु कच दे वता से स मा नत हो वहाँसे वृषपवाके समीप गये ।। १७ ।। स ग वा व रतो राजन् दे वैः स े षतः कचः । असुरे पुरे शु ं ् वा वा यमुवाच ह ।। १८ ।। राजन्! दे वता के भेजे ए कच तुरंत दानवराज वृषपवाके नगरम जाकर शु ाचायसे मले और इस कार बोले— ।। १८ ।। ऋषेर रसः पौ ं पु ं सा ाद् बृह पतेः । ना ना कच म त यातं श यं गृ ातु मां भवान् ।। १९ ।। ‘भगवन्! म अं गरा ऋ षका पौ तथा सा ात् बृह प तका पु ँ। मेरा नाम कच है। आप मुझे अपने श यके पम हण कर ।। १९ ।। चय च र या म व यहं परमं गुरौ । अनुम य व मां न् सह ं प रव सरान् ।। २० ।। ‘ न्! आप मेरे गु ह। म आपके समीप रहकर एक हजार वष तक उ म चयका पालन क ँ गा। इसके लये आप मुझे अनुम त द’ ।। २० ।।

शु उवाच कच सु वागतं तेऽ तु तगृ ा म ते वचः । अच य येऽहम य वाम चतोऽ तु बृह प तः ।। २१ ।। शु ाचायने कहा—कच! तु हारा भलीभाँ त वागत है; म तु हारी ाथना वीकार करता ँ। तुम मेरे लये आदरके पा हो, अतः म तु हारा स मान एवं स कार क ँ गा। तु हारे आदर-स कारसे मेरे ारा बृह प तका आदर-स कार होगा ।। २१ ।। वैश पायन उवाच कच तु तं तथे यु वा तज ाह तद् तम् । आ द ं क वपु ेण शु े णोशनसा वयम् ।। २२ ।। वैश पायनजी कहते ह—तब कचने ‘ब त अ छा’ कहकर महाका तमान् क वपु शु ाचायके आदे शके अनुसार वयं चय त हण कया ।। २२ ।। त य ा तकालं स यथो ं यगृ त । आराधय ुपा यायं दे वयान च भारत ।। २३ ।। न यमाराध य यं तौ युवा यौवनगोचरे । गायन् नृ यन् वादयं दे वयानीमतोषयत् ।। २४ ।। जनमेजय! नयत समयतकके लये तक द ा लेनेवाले कचको शु ाचायने भलीभाँ त अपना लया। कच आचाय शु तथा उनक पु ी दे वयानी दोन क न य े े े ेऔ ी े े औ

आराधना करने लगे। वे नवयुवक थे और जवानीम य लगनेवाले काय—गायन और नृ य करके तथा भाँ त-भाँ तके बाजे बजाकर दे वयानीको संतु रखते थे ।। २३-२४ ।। स शीलयन् दे वयान क यां स ा तयौवनाम् । पु पैः फलैः ेषणै तोषयामास भारत ।। २५ ।। भारत! आचायक या दे वयानी भी युवाव थाम पदापण कर चुक थी। कच उसके लये फूल और फल ले आते तथा उसक आ ाके अनुसार काय करते थे। इस कार उसक सेवाम संल न रहकर वे सदा उसे स रखते थे ।। २५ ।। दे वया य प तं व ं नयम तधारणम् । गाय ती च लल ती च रहः पयचरत् तथा ।। २६ ।। दे वयानी भी नयमपूवक चय धारण करनेवाले कचके ही समीप रहकर गाती और आमोद- मोद करती ई एका तम उनक सेवा करती थी ।। २६ ।। प चवषशता येवं कच य चरतो तम् । त ातीयुरथो बुद ् वा दानवा तं ततः कचम् ।। २७ ।। गा र तं वने ् वा रह येकमम षताः । ज नुबृह पते षाद् व ार ाथमेव च ।। २८ ।। इस कार वहाँ रहकर चय तका पालन करते ए कचके पाँच सौ वष तीत हो गये। तब दानव को यह बात मालूम ई। तदन तर कचको वनके एका त दे शम अकेले गौएँ चराते दे ख बृह प तके े षसे और संजीवनी व ाक र ाके लये ोधम भरे ए दानव ने कचको मार डाला ।। २७-२८ ।। ह वा शालावृके य ाय छँ लवशः कृतम् । ततो गावो नवृ ा ता अगोपाः वं नवेशनम् ।। २९ ।। उ ह ने मारनेके बाद उनके शरीरको टु कड़े-टु कड़े कर कु और सयार को बाँट दया। उस दन गौएँ बना र कके ही अपने थानपर लौट ।। २९ ।। सा ् वा र हता गा कचेना यागता वनात् । उवाच वचनं काले दे वया यथ भारत ।। ३० ।। जनमेजय! जब दे वयानीने दे खा, गौएँ तो वनसे लौट आय पर उनके साथ कच नह ह, तब उसने उस समय अपने पतासे इस कार कहा ।। ३० ।। दे वया युवाच आ तं चा नहो ं ते सूय ा तं गतः भो । अगोपा ागता गावः कच तात न यते ।। ३१ ।।

शु ाचाय और कच

दे वयानी बोली— भो! आपने अ नहो कर लया और सूयदे व भी अ ताचलको चले गये। गौएँ भी आज बना र कके ही लौट आयी ह। तात! तो भी कच नह दखायी दे ते ह ।। ३१ ।। ं हतो मृतो वा प कच तात भ व य त । तं वना न च जीवेय म त स यं वी म ते ।। ३२ ।। पताजी! अव य ही कच या तो मारे गये ह या मर गये ह। म आपसे सच कहती ँ, उनके बना जी वत नह रह सकूँगी ।। ३२ ।। शु उवाच अयमेही त संश मृतं संजीवया यहम् । ततः संजी वन व ां यु य कचमा यत् ।। ३३ ।। शु ाचायने कहा—(बेट ! च ता न करो।) म अभी ‘आओ’ इस कार बुलाकर मरे ए कचको जी वत कये दे ता ँ। ऐसा कहकर उ ह ने संजीवनी व ाका योग कया और कचको पुकारा ।। ३३ ।। भ वा भ वा शरीरा ण वृकाणां स व नगतः । आतः ा रभवत् कचो ोऽथ व या ।। ३४ ।। फर तो गु के पुकारनेपर कच व ाके भावसे -पु हो कु के शरीर फाड़फाड़कर नकल आये और वहाँ कट हो गये ।। ३४ ।। क मा चरा यतोऽसी त पृ तामाह भागवीम् । स मध कुशाद न का भारं च भा म न ।। ३५ ।। गृही वा मभारात वटवृ ं समा तः । गाव स हताः सवा वृ छायामुपा ताः ।। ३६ ।। उ ह दे खते ही दे वयानीने पूछा—‘आज आपने लौटनेम वल ब य कया?’ इस कार पूछनेपर कचने शु ाचायक क यासे कहा—‘भा म न! म स मधा, कुश आ द और का का भार लेकर आ रहा था। रा तेम थकावट और भारसे पी ड़त हो एक वटवृ के नीचे ठहर गया। साथ ही सारी गौएँ भी उसी वृ क छायाम आकर व ाम करने लग ।। ३५-३६ ।। असुरा त मां ् वा क व म य यचोदयन् । बृह प तसुत ाहं कच इ य भ व ुतः ।। ३७ ।। ‘वहाँ मुझे दे खकर असुर ने पूछा—‘तुम कौन हो?’ मने कहा—मेरा नाम कच है, म बृह प तका पु ँ ।। ३७ ।। इ यु मा े मां ह वा पेषीकृ वा तु दानवाः । द वा शालावृके य तु सुखं ज मुः वमालयम् ।। ३८ ।। ‘मेरे इतना कहते ही दानव ने मुझे मार डाला और मेरे शरीरको चूण करके कु ेसयार को बाँट दया। फर वे सुखपूवक अपने घर चले गये ।। ३८ ।। आतो व या भ े भागवेण महा मना । ी



व समीप महायातः कथं चत् समजी वतः ।। ३९ ।। ‘भ े ! फर महा मा भागवने जब व ाका योग करके मुझे बुलाया है, तब कसी कारसे पूण जीवन लाभ करके यहाँ तु हारे पास आ सका ँ’ ।। ३९ ।। हतोऽह म त चाच यौ पृ ो ा णक यया । स पुनदवया यो ः पु पाहारो य छया ।। ४० ।। इस कार ा णक याके पूछनेपर कचने उससे अपने मारे जानेक बात बतायी। तदन तर पुनः दे वयानीने एक दन अक मात् कचको फूल लानेके लये कहा ।। ४० ।। वनं ययौ कचो व ो द शुदानवा तम् । पुन तं पेष य वा तु समु ा भ य म यन् ।। ४१ ।। व वर कच इसके लये वनम गये। वहाँ दानव ने उ ह दे ख लया और फर उ ह पीसकर समु के जलम घोल दया ।। ४१ ।। चरं गतं पुनः क या प े तं सं यवेदयत् । व ेण पुनरातो व या गु द े हजः । पुनरावृ य तद् वृ ं यवेदयत तद् यथा ।। ४२ ।। जब उसके लौटनेम वल ब आ, तब आचायक याने पतासे पुनः यह बात बतायी। व वर शु ाचायने कचका पुनः संजीवनी व ा ारा आवाहन कया। इससे बृह प तपु कच पुनः वहाँ आ प ँचे और उनके साथ असुर ने जो बताव कया था, वह बताया ।। ४२ ।। तत तृतीयं ह वा तं द वा कृ वा च चूणशः । ाय छन् ा णायैव सुरायामसुरा तदा ।। ४३ ।। त प ात् असुर ने तीसरी बार कचको मारकर आगम जलाया और उनक जली ई लाशका चूण बनाकर म दराम मला दया तथा उसे ा ण शु ाचायको ही पला दया ।। ४३ ।। दे वया यथ भूयोऽ प पतरं वा यम वीत् । पु पाहारः ेषणकृत् कच तात न यते ।। ४४ ।। अब दे वयानी पुनः अपने पतासे यह बात बोली—‘ पताजी! कच मेरे कहनेपर येक काय पूण कर दया करते ह। आज मने उ ह फूल लानेके लये भेजा था, परंतु अभीतक वे दखायी नह दये ।। ४४ ।। ं हतो मृतो वा प कच तात भ व य त । तं वना न च जीवेयं कचं स यं वी म ते ।। ४५ ।। ‘तात! जान पड़ता है वे मार दये गये या मर गये। म आपसे सच कहती ँ, म उनके बना जी वत नह रह सकती ँ’ ।। ४५ ।। शु उवाच बृह पतेः सुतः पु कचः ेतग त गतः । व या जी वतोऽ येवं ह यते करवा ण कम् ।। ४६ ।। ै





मैवं शुचो मा द दे वया न न वा शी म यमनु शोचते । य या तव च ा णा से ा दे वा वसवोऽथा नौ च ।। ४७ ।। सुर ष ैव जग च सवमुप थाने संनम त भावात् । अश योऽसौ जीव यतुं जा तः संजी वतो ब यते चैव भूयः ।। ४८ ।। शु ाचायने कहा—बेट ! बृह प तके पु कच मर गये। मने व ासे उ ह कई बार जलाया, तो भी वे इस कार मार दये जाते ह, अब म या क ँ । दे वयानी! तुम इस कार शोक न करो, रोओ मत। तुम-जैसी श शा लनी ी कसी मरनेवालेके लये शोक नह करती। तु ह तो वेद, ा ण, इ स हत सब दे वता, वसुगण, अ नीकुमार, दै य तथा स पूण जगत्के ाणी मेरे भावसे तीन सं या के समय म तक झुकाकर णाम करते ह। अब उस ा णको जलाना अस भव है। य द जी वत हो जाय, तो फर दै य ारा मार डाला जायगा (अतः उसे जलानेसे कोई लाभ नह है) ।। ४६—४८ ।। दे वया युवाच य या रा वृ तमः पतामहो बृह प त ा प पता तपो न धः । ऋषेः पु ं तमथो वा प पौ ं कथं न शोचेयमहं न ाम् ।। ४९ ।। दे वयानी बोली— पताजी! अ य त वृ मह ष अं गरा जनके पतामह ह, तप याके भ डार बृह प त जनके पता ह, जो ऋ षके पु और ऋ षके ही पौ ह; उन चारी कचके लये म कैसे शोक न क ँ और कैसे न रोऊँ ।। ४९ ।। स चारी च तपोधन सदो थतः कमसु चैव द ः । कच य माग तप ये न भो ये यो ह मे तात कचोऽ भ पः ।। ५० ।। तात! वे चयपालनम रत थे, तप या ही उनका धन था। वे सदा ही सजग रहनेवाले और काय करनेम कुशल थे। इस लये कच मुझे ब त य थे। वे सदा मेरे मनके अनु प चलते थे। अब म भोजनका याग कर ँ गी और कच जस मागपर गये ह, वह म भी चली जाऊँगी ।। ५० ।। वैश पायन उवाच स पी डतो दे वया या मह षः समा यत् संर भा चैव का ः । असंशयं मामसुरा ष त े े

ये मे श यानागतान् सूदय त ।। ५१ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! दे वयानीके कहनेसे उसके ःखसे ःखी ए मह ष शु ाचायने कचको पुकारा और दै य के त कु पत होकर बोले—‘इसम त नक भी संशय नह है क असुरलोग मुझसे े ष करते ह। तभी तो यहाँ आये ए मेरे श य को ये लोग मार डालते ह ।। ५१ ।। अ ा णं कतु म छ त रौ ाते मां यथा भचर त न यम् । अ य य पाप य भवे दहा तः कं ह या न दहेदपी म् ।। ५२ ।। ‘ये भयंकर वभाववाले दै य मुझे ा ण वसे गराना चाहते ह। इसी लये त दन मेरे व आचरण कर रहे ह। इस पापका प रणाम यहाँ अव य कट होगा। ह या कसे नह जला दे गी, चाहे वह इ ही य न हो? ।। ५२ ।। गुरो ह भीतो व या चोपतः शनैवा यं जठरे ाजहार । जब गु ने व ाका योग करके बुलाया, तब उनके पेटम बैठे ए कच भयभीत हो धीरेसे बोले। (कच उवाच सीद भगवन् म ं कचोऽहम भवादये । यथा ब मतः पु तथा म यतु मां भवान् ।।) कचने कहा—भगवन्! आप मुझपर स ह , म कच ँ और आपके चरण म णाम करता ँ। जैसे पु पर पताका ब त यार होता है, उसी कार आप मुझे भी अपना नेहभाजन समझ। वैश पायन उवाच तम वीत् केन पथोपनीतवं चोदरे त स ू ह व ।। ५३ ।। वैश पायनजी कहते ह—उनक आवाज सुनकर शु ाचायने पूछा—‘ व ! कस मागसे जाकर तुम मेरे उदरम थत हो गये? ठ क-ठ क बताओ’ ।। ५३ ।। कच उवाच तव सादा जहा त मां मृ तः मरा म सव य च यथा च वृ म् । न वेवं यात् तपसः सं यो मे ततः लेशं घोर ममं सहा म ।। ५४ ।। कचने कहा—गु दे व! आपके सादसे मेरी मरणश ने साथ नह छोड़ा है। जो बात जैसे ई है, वह सब मुझे याद है। इस कार पेट फाड़कर नकल आनेसे मेरी ो







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तप याका नाश होगा। वह न हो, इसी लये म यहाँ घोर लेश सहन करता ँ ।। ५४ ।। असुरैः सुरायां भवतोऽ म द ो ह वा द वा चूण य वा च का । ा मायां चासुर व मायां व य थते कथमेवा तवतत् ।। ५५ ।। आचायपाद! असुर ने मुझे मारकर मेरे शरीरको जलाया और चूण बना दया। फर उसे म दराम मलाकर आपको पला दया! व वर! आप ा ी, आसुरी और दै वी तीन कारक माया को जानते ह। आपके होते ए कोई इन माया का उ लंघन कैसे कर सकता है? ।। ५५ ।। शु उवाच क ते यं करवा य व से वधेन मे जी वतं यात् कच य । ना य कु ेमम भेदनेन येत् कचो मद्गतो दे वया न ।। ५६ ।। शु ाचाय बोले—बेट दे वयानी! अब तु हारे लये कौन-सा य काय क ँ ? मेरे वधसे ही कचका जी वत होना स भव है। मेरे उदरको वद ण करनेके सवा और कोई ऐसा उपाय नह है, जससे मेरे शरीरम बैठा आ कच बाहर दखायी दे ।। ५६ ।। दे वया युवाच ौ मां शोकाव नक पौ दहेतां कच य नाश तव चैवोपघातः । कच य नाशे मम ना त शम तवोपघाते जी वतुं ना म श ा ।। ५७ ।। दे वयानीने कहा— पताजी! कचका नाश और आपका वध—ये दोन ही शोक अ नके समान मुझे जला दगे। कचके न होनेपर मुझे शा त नह मलेगी और आपका वध हो जानेपर म जी वत नह रह सकूँगी ।। ५७ ।। शु उवाच सं स पोऽ स बृह पतेः सुत यत् वां भ ं भजते दे वयानी । व ा ममां ा ु ह जी वन वं न चे द ः कच पी वम ।। ५८ ।। शु ाचाय बोले—बृह प तके पु कच! अब तुम स हो गये, य क तुम दे वयानीके भ हो और वह तु ह चाहती है। य द कचके पम तुम इ नह हो, तो मुझसे मृतसंजीवनी व ा हण करो ।। ५८ ।। न नवतत् पुनज वन् क द यो ममोदरात् । ै

ा णं वज य वैकं त माद् व ामवा ु ह ।। ५९ ।। केवल एक ा णको छोड़कर सरा कोई ऐसा नह है, जो मेरे पेटसे पुनः जी वत नकल सके। इस लये तुम व ा हण करो ।। ५९ ।। पु ो भू वा भावय भा वतो माम म े हा प न य तात । समी ेथा धमवतीमवे ां गुरोः सकाशात् ा य व ां स व ः ।। ६० ।। तात! मेरे इस शरीरसे जी वत नकलकर मेरे लये पु के तु य हो मुझे पुनः जला दे ना। मुझ गु से व ा ा त करके व ान् हो जानेपर भी मेरे त धमयु से ही दे खना ।। ६० ।। वैश पायन उवाच गुरोः सकाशात् समवा य व ां भ वा कु न वच ाम व ः । कचोऽ भ प त णाद् ा ण य शु ला यये पौणमा या मवे ः ।। ६१ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! गु से संजीवनी व ा ा त करके सु दर पवाले व वर कच त काल ही मह ष शु ाचायका पेट फाड़कर ठ क उसी तरह बाहर नकल आये, जैसे दन बीतनेपर पू णमाक सं याको च मा कट हो जाते ह ।। ६१ ।। ् वा च तं प ततं रा शमु थापयामास मृतं कचोऽ प । व ां स ां तामवा या भवा ततः कच तं गु म युवाच ।। ६२ ।। मू तमान् वेदरा शके तु य शु ाचायको भू मपर पड़ा दे ख कचने भी अपने मरे ए गु को व ाके बलसे जलाकर उठा दया और उस स व ाको ा त कर लेनेपर गु को णाम करके वे इस कार बोले— ।। ६२ ।। यः ो योरमृतं सं न ष चेद ् व ाम व य यथा ममायम् । तं म येऽहं पतरं मातरं च त मै न ेत् कृतम य जानन् ।। ६३ ।। ‘म व ासे शू य था, उस दशाम मेरे इन पूजनीय आचाय जैसे मेरे दोन कान म मृतसंजीवनी व ा प अमृतक धारा डाली है, इसी कार जो कोई सरे ानी महा मा मेरे कान म ान प अमृतका अ भषेक करगे, उ ह भी म अपना माता- पता मानूँगा (जैसे गु दे व शु ाचायको मानता ँ)। गु दे वके ारा कये ए उपकारको मरण रखते ए श यको उ चत है क वह उनसे कभी ोह न करे ।। ६३ ।। ऋत य दातारमनु म य ी

नध नधीनाम प लध व ाः । ये ना य ते गु मचनीयं पापाँ लोकां ते ज य त ाः ।। ६४ ।। ‘जो लोग स पूण वेदके सव म ानको दे ने-वाले तथा सम त व ा के आ यभूत पूजनीय गु दे वका उनसे व ा ा त करके भी आदर नह करते, वे त ार हत होकर पापपूण लोक —नरक म जाते ह’ ।। ६४ ।।

वैश पायन उवाच सुरापानाद् व चनां ा य व ान् सं ानाशं चैव महा तघोरम् । ् वा कचं चा प तथा भ पं पीतं तदा सुरया मो हतेन ।। ६५ ।। सम यु थाय महानुभावतदोशना व हतं चक षुः । सुरापानं त संजातम युः का ः वयं वा य मदं जगाद ।। ६६ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! व ान् शु ाचाय म दरापानसे ठगे गये थे और उस अ य त भयानक प र थ तको प ँच गये थे, जसम त नक भी चेत नह रह जाता। म दरासे मो हत होनेके कारण ही वे उस समय अपने मनके अनुकूल चलनेवाले य श य ा णकुमार कचको भी पी गये थे। यह सब दे ख और सोचकर वे महानुभाव क वपु शु कु पत हो उठे । म दरापानके त उनके मनम ोध और घृणाका भाव जाग उठा और उ ह ने ा ण का हत करनेक इ छासे वयं इस कार घोषणा क — ।। ६५-६६ ।। यो ा णोऽ भृतीह क मोहात् सुरां पा य त म दबु ः । अपेतधमा हा चैव स याद मं लोके ग हतः यात् परे च ।। ६७ ।। ‘आजसे इस जगत्का जो कोई भी म दबु ा ण अ ानसे भी म दरापान करेगा, वह धमसे हो ह याके पापका भागी होगा तथा इस लोक और परलोक दोन म वह न दत होगा’ ।। ६७ ।। मया चैतां व धम सीमां मयादां वै था पतां सवलोके । स तो व ाः शु ुवांसो गु णां दे वा लोका ोपशृ व तु सव ।। ६८ ।। ‘धमशा म ा ण-धमक जो सीमा नधा रत क गयी है, उसीम मेरे ारा था पत क ई यह मयादा भी रहे और यह स पूण लोकम मा य हो। साधु पु ष, ा ण, गु के ी











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समीप अ ययन करनेवाले श य, दे वता और सम त जगत्के मनु य, मेरी बाँधी ई इस मयादाको अ छ तरह सुन ल’ ।। ६८ ।। इतीदमु वा स महानुभावतपो नधीनां न धर मेयः । तान् दानवान् दै व वमूढबु नदं समाय वचोऽ युवाच ।। ६९ ।। ऐसा कहकर तप याक न धय क न ध, अ मेय श शाली महानुभाव शु ाचायने दै वने जनक बु को मो हत कर दया था उन दानव को बुलाया और इस कार कहा — ।। ६९ ।। आच े वो दानवा बा लशाः थ स ः कचो व य त म सकाशे । संजी वन ा य व ां महा मा तु य भावो ा णो भूतः ।। ७० ।। (योऽकाष द ् करं कम दे वानां कारणात् कचः । न त क तजरां ग छे द ् य य भ व य त ।।) एताव वा वचनं वरराम स भागवः । दानवा व मया व ाः ययुः वं नवेशनम् ।। ७१ ।। ‘ जन महा मा कचने दे वता के लये वह कर काय कया है, उनक क त कभी न नह हो सकती और वे य भागके अ धकारी ह गे।’ ऐसा कहकर शु ाचायजी चुप हो गये और दानव आ यच कत होकर अपने-अपने घर चले गये ।। ७१ ।। गुरो य सकाशे तु दशवषशता न सः । अनु ातः कचो ग तु मयेष दशालयम् ।। ७२ ।। कचने एक हजार वष तक गु के समीप रहकर अपना त पूरा कर लया। तब घर जानेक अनुम त मल जानेपर कचने दे वलोकम जानेका वचार कया ।। ७२ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण यया युपा याने षट् स त ततमोऽ यायः ।। ७६ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम यया युपा यान वषयक छह रवाँ अ याय पूरा आ ।। ७६ ।। (दा णा य अ धक पाठक े २ ोक मलाकर कुल ७४ ोक ह)

स तस त ततमोऽ यायः दे वयानीका कचसे पा ण हणके लये अनुरोध, कचक अ वीकृ त तथा दोन का एक- सरेको शाप दे ना वैश पायन उवाच समावृत तं तं तु वसृ ं गु णा तदा । थतं दशावासं दे वया य वी ददम् ।। १ ।। ऋषेर रसः पौ वृ ेना भजनेन च । ाजसे व या चैव तपसा च दमेन च ।। २ ।। वैश पायनजी कहते ह—जब कचका त समा त हो गया और गु ने उ ह जानेक आ ा दे द , तब वे दे वलोकको थत ए। उस समय दे वयानीने उनसे इस कार कहा —‘मह ष अं गराके पौ ! आप सदाचार, उ म कुल, व ा, तप या तथा इ यसंयम आ दसे बड़ी शोभा पा रहे ह ।। १-२ ।। ऋ षयथा रा मा यः पतुमम महायशाः । तथा मा य पू य मम भूयो बृह प तः ।। ३ ।। ‘महायश वी मह ष अं गरा जस कार मेरे पताजीके लये माननीय ह, उसी कार आपके पता बृह प तजी मेरे लये आदरणीय तथा पू य ह ।। ३ ।। एवं ा वा वजानी ह यद् वी म तपोधन । त थे नयमोपेते यथा वता यहं व य ।। ४ ।। ‘तपोधन! ऐसा जानकर म जो कहती ँ उसपर वचार कर। आप जब त और नयम के पालनम लगे थे, उन दन मने आपके साथ जो बताव कया है, उसे आप भूले नह ह गे ।। ४ ।। स समावृत व ो मां भ ां भ जतुमह स । गृहाण पा ण व धव मम म पुर कृतम् ।। ५ ।। ‘अब आप त समा त करके अपनी अभी व ा ा त कर चुके ह। म आपसे ेम करती ँ, आप मुझे वीकार कर; वै दक म के उ चारणपूवक व धवत् मेरा पा ण हण क जये’ ।। ५ ।। कच उवाच पू यो मा य भगवान् यथा तव पता मम । तथा वमनव ा पूजनीयतरा मम ।। ६ ।। कचने कहा— नद ष अंग वाली दे वयानी! जैसे तु हारे पता भगवान् शु ाचाय मेरे लये पूजनीय और माननीय ह, वैसे ही तुम हो; ब क उनसे भी बढ़कर मेरी पूजनीया हो ।। ६ ।। े



ाणे योऽ प यतरा भागव य महा मनः । वं भ े धमतः पू या गु पु ी सदा मम ।। ७ ।। भ े ! महा मा भागवको तुम ाण से भी अ धक यारी हो, गु पु ी होनेके कारण धमक से सदा मेरी पूजनीया हो ।। ७ ।। यथा मम गु न यं मा यः शु ः पता तव । दे वया न तथैव वं नैवं मां व ु मह स ।। ८ ।। दे वयानी! जैसे मेरे गु दे व तु हारे पता शु ाचाय सदा मेरे माननीय ह, उसी कार तुम हो; अतः तु ह मुझसे ऐसी बात नह कहनी चा हये ।। ८ ।। दे वया युवाच गु पु य पु ो वै न वं पु मे पतुः । त मात् पू य मा य ममा प वं जो म ।। ९ ।। असुरैह यमाने च कच व य पुनः पुनः । तदा भृ त या ी त तां वम मर व मे ।। १० ।। दे वयानी बोली— जो म! आप मेरे पताके गु पु के पु ह, मेरे पताके नह ; अतः मेरे लये भी आप पूजनीय और माननीय ह। कच! जब असुर आपको बार-बार मार डालते थे, तबसे लेकर आजतक आपके त मेरा जो ेम रहा है, उसे आज याद क जये ।। ९-१० ।। सौहाद चानुरागे च वे थ मे भ मु माम् । न मामह स धम य ुं भ ामनागसम् ।। ११ ।। सौहाद और अनुरागके अवसरपर मेरी उ म भ का प रचय आपको मल चुका है। आप धमके ाता ह। म आपके त भ रखनेवाली नरपराध अबला ँ। आपको मेरा याग करना उ चत नह है ।। ११ ।। कच उवाच अ नयो ये नयोगे मां नयुनङ् शुभ ते । सीद सु ु वं म ं गुरोगु तरा शुभे ।। १२ ।। य ो षतं वशाला वया च नभानने । त ाहमु षतो भ े कु ौ का य भा म न ।। १३ ।। भ गनी धमतो मे वं मैवं वोचः सुम यमे । सुखम यु षतो भ े न म यु व ते मम ।। १४ ।। कचने कहा—उ म तका आचरण करनेवाली सु दरी! तुम मुझे ऐसे कायम लगा रही हो, जसम लगाना कदा प उ चत नह है। शुभे! तुम मेरे ऊपर स होओ। तुम मेरे लये गु से भी बढ़कर गु तर हो। वशाल ने तथा च माके समान मुखवाली भा म न! शु ाचायके जस उदरम तुम रह चुक हो, उसीम म भी रहा ँ। इस लये भ े ! धमक से तुम मेरी ब हन हो। अतः सुम यमे! मुझसे ऐसी बात न कहो। क याणी! म तु हारे यहाँ बड़े सुखसे रहा ँ। तु हारे त मेरे मनम त नक भी रोष नह है ।। १२—१४ ।। े े

आपृ छे वां ग म या म शवमाशंस मे प थ । अ वरोधेन धम य मत ोऽ म कथा तरे । अ म ो थता न यमाराधय गु ं मम ।। १५ ।। अब म जाऊँगा, इस लये तुमसे पूछता ँ—तु हारी आ ा चाहता ँ, आशीवाद दो क मागम मेरा मंगल हो। धमक अनुकूलता रखते ए बातचीतके संगम कभी मेरा भी मरण कर लेना और सदा सावधान एवं सजग रहकर मेरे गु दे वक सेवाम लगी रहना ।। १५ ।।

दे वया युवाच य द मां धमकामाथ या या य स या चतः । ततः कच न ते व ा स मेषा ग म य त ।। १६ ।। दे वयानी बोली—कच! मने धमानुकूल कामके लये आपसे ाथना क है। य द आप मुझे ठु करा दगे, तो आपक यह संजीवनी व ा स नह हो सकेगी ।। १६ ।। कच उवाच गु पु ी त कृ वाहं याच े न दोषतः । गु णा चाननु ातः काममेवं शप व माम् ।। १७ ।। कचने कहा—दे वयानी! गु पु ी समझकर ही मने तु हारे अनुरोधको टाल दया है; तुमम कोई दोष दे खकर नह । गु जीने भी इसके वषयम मुझे कोई आ ा नह द है। तु हारी जैसी इ छा हो, मुझे शाप दे दो ।। १७ ।। आष धम ुवाणोऽहं दे वया न यथा वया । श तो नाह ऽ म शाप य कामतोऽ न धमतः ।। १८ ।। त माद् भव या यः कामो न तथा स भ व य त । ऋ षपु ो न ते क जातु पा ण ही य त ।। १९ ।। ब हन! म आष धमक बात बता रहा था। इस दशाम तु हारे ारा शाप पानेके यो य नह था। तुमने मुझे धमके अनुसार नह , कामके वशीभूत होकर आज शाप दया है, इस लये तु हारे मनम जो कामना है, वह पूरी नह होगी। कोई भी ऋ षपु ( ा णकुमार) कभी तु हारा पा ण हण नह करेगा ।। १८-१९ ।। फ ल य त न ते व ा यत् वं मामा थ तत् तथा । अ याप य या म तु यं त य व ा फ ल य त ।। २० ।। तुमने जो मुझे यह कहा क तु हारी व ा सफल नह होगी, सो ठ क है; कतु म जसे यह व ा पढ़ा ँ गा, उसक व ा तो सफल होगी ही ।। २० ।। वैश पायन उवाच एवमु वा ज े ो दे वयान कच तदा । दशेशालयं शी ं जगाम जस मः ।। २१ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! ज े कच दे वयानीसे ऐसा कहकर त काल बड़ी उतावलीके साथ इ लोकको चले गये ।। २१ ।। े





तमागतम भ े य दे वा इ पुरोगमाः । बृह प त सभा येदं कचं वचनम ुवन् ।। २२ ।। उ ह आया दे ख इ ा द दे वता बृह प तजीक सेवाम उप थत हो कचसे यह वचन बोले ।। २२ ।। दे वा ऊचुः यत् वया म तं कम कृतं वै परमा तम् । न ते यशः ण शता भागभाक् च भ व य स ।। २३ ।। दे वता बोले— न्! तुमने हमारे हतके लये यह बड़ा अद्भुत काय कया है, अतः तु हारे यशका कभी लोप नह होगा और तुम य म भाग पानेके अ धकारी होओगे ।। २३ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण यया युपा याने स तस त ततमोऽ यायः ।। ७७ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम यया युपा यान वषयक सतह रवाँ अ याय पूरा आ ।। ७७ ।।

अ स त ततमोऽ यायः दे वयानी और श म ाका कलह, श म ा ारा कुएँम गरायी गयी दे वयानीको यया तका नकालना और दे वयानीका शु ाचायजीके साथ वातालाप वैश पायन उवाच कृत व े कचे ा ते पा दवौकसः । कचादधी य तां व ां कृताथा भरतषभ ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! जब कच मृतसंजीवनी व ा सीखकर आ गये, तब दे वता को बड़ी स ता ई। वे कचसे उस व ाको पढ़कर कृताथ हो गये ।। १ ।। सव एव समाग य शत तुमथा ुवन् । काल ते व म या ज ह श ून् पुर दर ।। २ ।। फर सबने मलकर इ से कहा—‘पुर दर! अब आपके लये परा म करनेका समय आ गया है, अपने श ु का संहार क जये’ ।। २ ।। एवमु तु स हतै दशैमघवां तदा । तथे यु वा च ाम सोऽप यत वने यः ।। ३ ।। संग ठत होकर आये ए दे वता ारा इस कार कहे जानेपर इ ‘ब त अ छा’ कहकर भूलोकम आये। वहाँ एक वनम उ ह ने ब त-सी य को दे खा ।। ३ ।। ड तीनां तु क यानां वने चै रथोपमे । वायुभूतः स व ा ण सवा येव म यत् ।। ४ ।। वह वन चै रथ नामक दे वो ानके समान मनोहर था। उसम वे क याएँ जल ड़ा कर रही थ । इ ने वायुका प धारण करके उनके सारे कपड़े पर पर मला दये ।। ४ ।। ततो जलात् समु ीय क या ताः स हता तदा । व ा ण जगृ ता न यथास ा यनेकशः ।। ५ ।। त वासो दे वया याः श म ा जगृहे तदा । त म मजान ती हता वृषपवणः ।। ६ ।। तब वे सभी क याएँ एक साथ जलसे नकलकर अपने-अपने अनेक कारके व , जो नकट ही रखे ए थे; लेने लग । उस स म णम शम ाने दे वयानीका व ले लया। शम ा वृषपवाक पु ी थी; दोन के व मल गये ह, इस बातका उसे पता नह था ।। ५-६ ।। तत तयो मथ त वरोधः समजायत । दे वया या राजे श म ाया त कृते ।। ७ ।। राजे ! उस समय व क अदला-बदलीको लेकर दे वयानी और शम ा दोन म वहाँ पर पर बड़ा भारी वरोध खड़ा हो गया ।। ७ ।। े

दे वया युवाच क माद् गृ ा स मे व ं श या भू वा ममासु र । समुदाचारहीनाया न ते साधु भ व य त ।। ८ ।। दे वयानी बोली—अरी दानवक बेट ! मेरी श या होकर तू मेरा व कैसे ले रही है? तू स जन के उ म आचारसे शू य है, अतः तेरा भला न होगा ।। ८ ।। शम ोवाच आसीनं च शयानं च पता ते पतरं मम । तौ त व द व चाभी णं नीचेः थ वा वनीतवत् ।। ९ ।। श म ाने कहा—अरी! मेरे पता बैठे ह या सो रहे ह , उस समय तेरा पता वनयशील सेवकके समान नीचे खड़ा होकर बार-बार व द जन क भाँ त उनक तु त करता है ।। ९ ।। याचत वं ह हता तुवतः तगृ तः । सुताहं तूयमान य ददतोऽ तगृ तः ।। १० ।। आ व व व व व कु य व याच क । अनायुधा सायुधाया र ा ु य स भ ु क । ल यसे तयो ारं न ह वां गणया यहम् ।। ११ ।। तू भखमंगेक बेट है, तेरा बाप तु त करता और दान लेता है। म उनक बेट ँ, जनक तु त क जाती है, जो सर को दान दे ते ह और वयं कसीसे कुछ भी नह लेते ह। अरी भ ु क! तू छाती पीट-पीटकर रो अथवा धूलम लोट-लोटकर क भोग। मुझसे ोह रख या ोध कर (इसक परवा नह है)। भखमं गन! तू खाली हाथ है, तेरे पास कोई अ -श भी नह है और दे ख ले, मेरे पास ह थयार है। इस लये तू मेरे ऊपर थ ही ोध कर रही है। य द लड़ना ही चाहती है, तो इधरसे भी डटकर सामना करनेवाला मुझजैसा यो ा तुझे मल जायगा। म तुझे कुछ भी नह गनती ।। १०-११ ।। ( तक ू लं वद स चे दतः भृ त याच क । आकृ य मम दासी भः था य स ब हब हः ।।) भ ुक ! अबसे य द मेरे व कोई बात कहेगी, तो अपनी दा सय से घसीटवाकर तुझे यहाँसे बाहर नकलवा ँ गी। वैश पायन उवाच समु यं दे वयान गतां स ां च वास स ।। १२ ।। श म ा ा पत् कूपे ततः वपुरमागमत् । हतेय म त व ाय श म ा पाप न या ।। १३ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! दे वयानीने स ची बात कहकर अपनी उ चता और मह ा स कर द और शम ाके शरीरसे अपने व को ख चने लगी। यह दे ख े









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शम ाने उसे कुएँम ढकेल दया और अब यह मर गयी होगी, ऐसा समझकर पापमय वचारवाली शम ा नगरको लौट आयी ।। १२-१३ ।। अनवे य ययौ वे म ोधवेगपरायणा । अथ तं दे शम यागाद् यया तन षा मजः ।। १४ ।। वह ोधके आवेशम थी, अतः दे वयानीक ओर दे खे बना ही घर लौट गयी। तदन तर न षपु यया त उस थानपर आये ।। १४ ।। ा तयु यः ा तहयो मृग ल सुः पपा सतः । स ना षः े माण उदपानं गतोदकम् ।। १५ ।। उनके रथके वाहन तथा अ य घोड़े भी थक गये थे। वे एक हसक पशुको पकड़नेके लये उसके पीछे -पीछे आये थे और याससे क पा रहे थे। यया त उस जलशू य कूपको दे खने लगे ।। १५ ।। ददश राजा तां त क याम न शखा मव । तामपृ छत् स ् वैव क याममरव णनीम् ।। १६ ।। वहाँ उ ह अ न- शखाके समान तेज वनी एक क या दखायी द , जो दे वांगनाके समान सु दरी थी। उसपर पड़ते ही राजाने उससे पूछा ।। १६ ।। सा व य वा नृप े ः सा ना परमव गुना । का वं ता नखी यामा सुमृ म णकु डला ।। १७ ।। नृप े यया तने पहले परम मधुर वचन ारा शा तभावसे उसे आ ासन दया और कहा—‘तुम कौन हो? तु हारे नख लाल-लाल ह। तुम षोडशी जान पड़ती हो। तु हारे कान के म णमय कु डल अ य त सु दर और चमक ले ह ।। १७ ।। द घ याय स चा यथ क मा छोच स चातुरा । कथं च प तता य मन् कूपे वी ृणावृते ।। १८ ।। हता चैव क य वं वद स यं सुम यमे । ‘तुम कसी अ य त घोर च ताम पड़ी हो। आतुर होकर शोक य कर रही हो? तृण और लता से ढके ए इस कुएँम कैसे गर पड़ी? तुम कसक पु ी हो? सुम यमे! ठ कठ क बताओ’ ।। १८ ।। दे वया युवाच योऽसौ दे वैहतान् दै यानु थापय त व या ।। १९ ।। त य शु य क याहं स मां नूनं न बु यते । दे वयानी बोली—जो दे वता ारा मारे गये दै य को अपनी व ाके बलसे जलाया करते ह, उ ह शु ाचायक म पु ी ँ। न य ही उ ह इस बातका पता नह होगा क म इस रव थाम पड़ी ँ ।। १९ ।। (पृ छसे मां क वम स पवीयबला वतः । ू ागमनं क वा ोतु म छा म त वतः ।। ी औ







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प, वीय और बलसे स प तुम कौन हो, जो मेरा प रचय पूछते हो। यहाँ तु हारे आगमनका या कारण है, बताओ। म यह सब ठ क-ठ क सुनना चाहती ँ। यया त वाच यया तना षोऽहं तु ा तोऽ मृग ल सया । कूपे तृणावृते भ े वान म वा मह ।।) यया तने कहा—भ े ! म राजा न षका पु यया त ँ। एक हसक पशुको मारनेक इ छासे इधर आ नकला। थका-माँदा यास बुझानेके लये यहाँ आया और तनक से ढके ए इस कूपम गरी ई तुमपर मेरी पड़ गयी। एष मे द णो राजन् पा ण ता नखाङ् गु लः ।। २० ।। समु र गृही वा मां कुलीन वं ह मे मतः । जाना म वां ह संशा तं वीयव तं यश वनम् ।। २१ ।। त मा मां प तताम मात् कूपा तुमह स । (दे वयानी बोली—) महाराज! लाल नख और अंगु लय से यु यह मेरा दा हना हाथ है। इसे पकड़कर आप इस कुएँसे मेरा उ ार क जये। म जानती ँ, आप उ म कुलम उ प ए नरेश ह। मुझे यह भी मालूम है क आप परम शा त वभाववाले, परा मी तथा यश वी वीर ह। इस लये इस कुएँम गरी ई मुझ अबलाका आप यहाँसे उ ार क जये ।। २०-२१ ।। वैश पायन उवाच तामथो ा ण राजा व ाय न षा मजः ।। २२ ।। गृही वा द णे पाणावु जहार ततोऽवटात् । उद्धृ य चैनां तरसा त मात् कूपा रा धपः ।। २३ ।। (ग छ भ े यथाकामं न भयं व ते तव । इ यु यमाना नृप त दे वयानी तमु रम् ।। उवाच मां वमादाय ग छ शी ं यो ह मे । गृहीताहं वया पाणौ त माद् भ ा भ व य स ।। इ येवमु ो नृप तराह कुलो वः । वं भ े ा णी त मा मया नाह स स मम् ।। सवलोकगु ः का वं त य हता स वै । त माद प भयं मेऽ त मात् क या ण नाह स ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर न षपु राजा यया तने दे वयानीको ा णक या जानकर उसका दा हना हाथ अपने हाथम ले उसे उस कुएँसे बाहर नकाला। वेगपूवक कुएँसे बाहर करके राजा यया त उससे बोले—‘भ े ! अब जहाँ इ छा हो जाओ। तु ह कोई भय नह है।’ राजा यया तके ऐसा कहनेपर दे वयानीने उ ह उ र दे ते ए कहा —‘तुम मुझे शी अपने साथ ले चलो; य क तुम मेरे यतम हो। तुमने मेरा हाथ पकड़ा ै

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है, अतः तु ह मेरे प त होओगे।’ दे वयानीके ऐसा कहनेपर राजा बोले—‘भ े ! म यकुलम उ प आ ँ और तुम ा णक या हो। अतः मेरे साथ तु हारा समागम नह होना चा हये। क याणी! भगवान् शु ाचाय स पूण जगत्के गु ह और तुम उनक पु ी हो, अतः मुझे उनसे भी डर लगता है। तुम मुझ-जैसे तु छ पु षके यो य कदा प नह हो’। दे वया युवाच य द म चनाद मां ने छ स नरा धप । वामेव वरये प ा प ा ा य स ग छ स ।।) दे वयानी बोली—नरे र! य द तुम मेरे कहनेसे आज मुझे साथ ले जाना नह चाहते, तो म पताजीके ारा भी तु हारा ही वरण क ँ गी। फर तुम मुझे अपने यो य मानोगे और साथ ले चलोगे। आम य वा सु ोण यया तः वपुरं ययौ । गते तु ना षे त मन् दे वया य य न दता ।। २४ ।। ( व चदाता च दती वृ मा य त त । तत रायमाणायां हतयाह भागवः ।। धा वमानय ं दे वयान शु च मताम् । इ यु मा े सा धा ी व रताऽऽ यतुं गता ।। य य सखी भः सा गता पदममागत । सा ददश तथा द नां माता दत थताम् ।। (वैश पायनजी कहते ह—) तदन तर सु दरी दे वयानीक अनुम त लेकर राजा यया त अपने नगरको चले गये। न षन दन यया तके चले जानेपर सती-सा वी दे वयानी आतभावसे रोती ई कह कसी वृ का सहारा लेकर खड़ी रही। जब पु ीके घर लौटनेम वल ब आ, तब शु ाचायने धायसे कहा—‘धाय! तू प व हा यवाली मेरी बेट दे वयानीको शी यहाँ बुला ला।’ उनके इतना कहते ही धाय तुरंत उसे बुलाने चली गयी। जहाँ-जहाँ दे वयानी सखय के साथ गयी थी, वहाँ-वहाँ उसका पद च खोजती ई धाय गयी और उसने पूव पसे मपी ड़त एवं द न होकर रोती ई दे वयानीको दे खा। धायुवाच वृ ं ते क मदं भ े शी ं वद पताऽऽ यत् । धा ीमाह समाय श म ावृ जनं क ृ तम् ।।) उवाच शोकसंत ता घू णकामागतां पुरः । तब धायने पूछा—भ े ! यह तु हारा या हाल है? शी बताओ। तु हारे पताजीने तु ह बुलाया है। इसपर दे वयानीने धायको अपने नकट बुलाकर शम ा ारा कये ए अपराधको बताया। वह शोकसे संत त हो अपने सामने आयी ई धाय घू णकासे बोली। दे वया युवाच व रतं घू णके ग छ शी माच व मे पतुः ।। २५ ।। े



नेदान स वे या म नगरं वृषपवणः । दे वयानीने कहा—घू णके! तुम वेगपूवक जाओ और शी मेरे पताजीसे कह दो —‘अब म वृषपवाके नगरम पैर नह रखूँगी’ ।। २२-२५ ।। वैश पायन उवाच सा त व रतं ग वा घू णकासुरम दरम् ।। २६ ।। ् वा का मुवाचेदं स मा व चेतना । आचच े महा ा ं दे वयान वने हताम् ।। २७ ।। श म या महाभाग ह ा वृषपवणः । ु वा हतरं का त श म या हताम् ।। २८ ।। वरया नययौ ःखा मागमाणः सुतां वने । ् वा हतरं का ो दे वयान ततो वने ।। २९ ।। बा यां स प र व य ःखतो वा यम वीत् । आ मदोषै नय छ त सव ःखसुखे जनाः ।। ३० ।। म ये रतं तेऽ त य येयं न कृ तः कृता । वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! दे वयानीक बात सुनकर घू णका तुरंत असुरराजके महलम गयी और वहाँ शु ाचायको दे खकर स मपूण च से वह बात बतला द । महाभाग! उसने महा ा शु ाचायको यह बताया क ‘वृषपवाक पु ी शम ाके ारा दे वयानी वनम मृततु य कर द गयी है।’ अपनी पु ीको शम ा- ारा मृततु य क गयी सुनकर शु ाचाय बड़ी उतावलीके साथ नकले और ःखी होकर उसे वनम ढूँ ढ़ने लगे। तदन तर वनम अपनी बेट दे वयानीको दे खकर शु ाचायने दोन भुजा से उठाकर उसे दयसे लगा लया और ःखी होकर कहा—‘बेट ! सब लोग अपने ही दोष और गुण से—अशुभ या शुभ कम से ःख एवं सुखम पड़ते ह। मालूम होता है, तुमसे कोई बुरा कम बन गया था, जसका बदला तु ह इस पम मला है’ ।। २६-३० ।। दे वया युवाच न कृ तमऽ तु वा मा तु शृणु वाव हतो मम ।। ३१ ।। दे वयानी बोली— पताजी! मुझे अपने कम का फल मले या न मले, आप मेरी बात यान दे कर सु नये ।। ३१ ।। श म या य ा म ह ा वृषपवणः । स यं कलैतत् सा ाह दै यानाम स गायनः ।। ३२ ।। वृषपवाक पु ी शम ाने आज मुझसे जो कु छ कहा है, या यह सच है? वह कहती है —‘आप भाट क तरह दै य के गुण गाया करते ह ।। ३२ ।। एवं ह मे कथय त श म ा वाषपवणी । वचनं ती णप षं ोधर े णा भृशम् ।। ३३ ।। ी











वृषपवाक ला ड़ली शम ा ोधसे लाल आँख करके आज मुझसे इस कार अ य त तीखे और कठोर वचन कह रही थी— ।। ३३ ।। तुवतो हता न यं याचतः तगृ तः । अहं तु तूयमान य ददतोऽ तगृ तः ।। ३४ ।। ‘दे वयानी! तू तु त करनेवाले, न य भीख माँगनेवाले और दान लेनेवालेक बेट है और म तो उन महाराजक पु ी ँ, जनक तु हारे पता तु त करते ह, जो वयं दान दे ते ह और लेते एक धेला भी नह ह’ ।। ३४ ।। इदं मामाह श म ा हता वृषपवणः । ोधसंर नयना दपपूणा पुनः पुनः ।। ३५ ।। वृषपवाक बेट शम ाने आज मुझसे ऐसी बात कही है। कहते समय उसक आँख ोधसे लाल हो रही थ । वह भारी घमंडसे भरी ई थी और उसने एक बार ही नह , अ पतु बार-बार उपयु बात हरायी ह ।। ३५ ।। य हं तुवत तात हता तगृ तः । साद य ये श म ा म यु ा तु सखी मया ।। ३६ ।। तात! य द सचमुच म तु त करनेवाले और दान लेनेवालेक बेट ँ, तो म शम ाको अपनी सेवा ारा स क ँ गी। यह बात मने अपनी सखीसे कह द थी ।। ३६ ।। (उ ा येवं भृशं ु ा मां गृ वजने वने । कूपे ेपयामास यैव गृहं ययौ ।।) मेरे ऐसा कहनेपर भी अ य त ोधम भरी ई शम ाने उस नजन वनम मुझे पकड़कर कुएँम ढकेल दया, उसके बाद वह अपने घर चली गयी।

शु उवाच तुवतो हता न वं याचतः तगृ तः । अ तोतुः तूयमान य हता दे वया य स ।। ३७ ।। शु ाचायने कहा—दे वयानी! तू तु त करनेवाले, भीख माँगनेवाले या दान लेनेवालेक बेट नह है। तू उस प व ा णक पु ी है, जो कसीक तु त नह करता और जसक सब लोग तु त करते ह ।। ३७ ।। वृषपवव तद् वेद श ो राजा च ना षः । अ च यं न मै रं ह बलं मम ।। ३८ ।। इस बातको वृषपवा, दे वराज इ तथा राजा यया त जानते ह। न अच य ही मेरा ऐ ययु बल है ।। ३८ ।। य च क चत् सवगतं भूमौ वा य द वा द व । त याहमी रो न यं तु ेनो ः वय भुवा ।। ३९ ।। ाजीने संतु होकर मुझे वरदान दया है; उसके अनुसार इस भूतलपर, दे वलोकम अथवा सब ा णय म जो कुछ भी है, उन सबका म सदा-सवदा वामी ँ ।। ३९ ।। अहं जलं वमु चा म जानां हतका यया । ो





पु णा योषधयः सवा इ त स यं वी म ते ।। ४० ।। म ही जा के हतके लये पानी बरसाता ँ और म ही स पूण ओष धय का पोषण करता ँ, यह तुमसे स ची बात कह रहा ँ ।। ४० ।। वैश पायन उवाच एवं वषादमाप ां म युना स पी डताम् । वचनैमधुरैः णैः सा वयामास तां पता ।। ४१ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! दे वयानी इस कार वषादम डू बकर ोध और ला नसे अ य त क पा रही थी, उस समय पताने सु दर मधुर वचन ारा उसे समझाया ।। ४१ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण यया युपा यानेऽ स त ततमोऽ यायः ।। ७८ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम यया युपा यान वषयक अठह रवाँ अ याय पूरा आ ।। ७८ ।। (दा णा य अ धक पाठक े १३ ोक मलाकर कुल ५४ ोक ह)

एकोनाशी ततमोऽ यायः शु ाचाय ारा दे वयानीको समझाना और दे वयानीका असंतोष शु उवाच (मम व ा ह न ा ऐ य ह फलं मम । दै यं शां च जै यं च ना त मे यदधमतः ।।) यः परेषां नरो न यम तवादां त त ते । दे वया न वजानी ह तेन सव मदं जतम् ।। १ ।। यः समु प ततं ोधं नगृ ा त हयं यथा । स य ते यु यते स न यो र मषु ल बते ।। २ ।। शु ाचायने कहा—बेट ! मेरी व ा र हत है। मेरा ऐ य ही उसका फल है। मुझम द नता, शठता, कु टलता और अधमपूण बताव नह है। दे वयानी! जो मनु य सदा सर के कठोर वचन ( सर ारा क ई अपनी न दा)-को सह लेता है, उसने इस स पूण जगत्पर वजय ा त कर ली, ऐसा समझो। जो उभरे ए ोधको घोड़ेके समान वशम कर लेता है, वही स पु ष ारा स चा सार थ कहा गया है। कतु जो केवल बागडोर या लगाम पकड़कर लटकता रहता है, वह नह ।। १-२ ।। यः समु प ततं ोधम ोधेन नर य त । दे वया न वजानी ह तेन सव मदं जतम् ।। ३ ।। दे वयानी! जो उ प ए ोधको अ ोध ( माभाव)-के ारा मनसे नकाल दे ता है, समझ लो, उसने स पूण जगत्को जीत लया ।। ३ ।। यः समु प ततं ोधं मयेह नर य त । यथोरग वचं जीणा स वै पु ष उ यते ।। ४ ।। जैसे साँप पुरानी कचुल छोड़ता है, उसी कार जो मनु य उभड़नेवाले ोधको यहाँ मा ारा याग दे ता है, वही े पु ष कहा गया है ।। ४ ।। यः संधारयते म युं योऽ तवादां त त ते । य त तो न तप त ढं सोऽथ य भाजनम् ।। ५ ।। जो ोधको रोक लेता है, न दा सह लेता है और सरेके सतानेपर भी ःखी नह होता, वही सब पु षाथ का सु ढ़ पा है ।। ५ ।। यो यजेदप र ा तो मा स मा स शतं समाः । न ु े यद् य सव य तयोर ोधनोऽ धकः ।। ६ ।। जो मनु य सौ वष तक येक मासम बना कसी थकावटके नर तर य करता रहता है और सरा जो कसीपर भी ोध नह करता, उन दोन म ोध न करनेवाला ही े है ।। ६ ।। ( े

( ु य न फला येव दानय तपां स च । त माद ोधने य तपो दानं महाफलम् ।। न पूतो न तप वी च न य वा न च कम वत् । ोध य यो वशं ग छे त् त य लोक यं न च ।। पु भृ यसु म भाया धम स यता । त यैता यपया य त ोधशील य न तम् ।।) यत् कुमाराः कुमाय वैरं कुयुरचेतसः । न तत् ा ोऽनुकुव त न व ते बलाबलम् ।। ७ ।। ोधीके य , दान और तप—सभी न फल होते ह। अतः जो ोध नह करता, उसी पु षके य , तप और दान महान् फल दे नेवाले होते ह। जो ोधके वशीभूत हो जाता है, वह कभी प व नह होता तथा तप या भी नह कर सकता। उसके ारा य का अनु ान भी स भव नह है और वह कमके रह यको भी नह जानता। इतना ही नह , उसके लोक और परलोक दोन ही न हो जाते ह। जो वभावसे ही ोधी है, उसके पु , भृ स, सु द्, म , प नी, धम और स य—ये सभी न य ही उसे छोड़कर र चले जायँगे। अबोध बालक और बा लकाएँ अ ानवश आपसम जो वैर- वरोध करते ह, उसका अनुकरण समझदार मनु य को नह करना चा हये; य क वे नादान बालक सर के बलाबलको नह जानते ।। ७ ।। दे वया युवाच वेदाहं तात बाला प धमाणां य दहा तरम् । अ ोधे चा तवादे च वेद चा प बलाबलम् ।। ८ ।। दे वयानीने कहा— पताजी! य प म अभी बा लका ँ फर भी धम-अधमका अ तर समझती ँ। मा और न दाक सबलता और नबलताका भी मुझे ान है ।। ८ ।। श य या श यवृ े तु न त ं बुभूषता । त मात् संक णवृ ेषु वासो मम न रोचते ।। ९ ।। परंतु जो श य होकर भी श यो चत बताव नह करता, अपना हत चाहनेवाले गु को उसक धृ ता मा नह करनी चा हये। इस लये इन संक ण आचार- वचारवाले दानव के बीच नवास करना अब मुझे अ छा नह लगता ।। ९ ।। पुमांसो ये ह न द त वृ ेना भजनेन च । न तेषु नवसेत् ा ः ेयोऽथ पापबु षु ।। १० ।। जो पु ष सर के सदाचार और कुलक न दा करते ह, उन पापपूण वचारवाले मनु य म क याणक इ छावाले व ान् पु षको नह रहना चा हये ।। १० ।। ये वेनम भजान त वृ ेना भजनेन वा । तेषु साधुषु व त ं स वासः े उ यते ।। ११ ।। जो लोग आचार, वहार अथवा कुलीनताक शंसा करते ह , उन साधु पु ष म ही नवास करना चा हये और वही नवास े कहा जाता है ।। ११ ।। (





(सुय ता वरा न यं वहीना धनैनराः । वृ ाः पापकमाण ा डाला ध ननोऽ प वा ।। अकारणाद् ये ष त प रवादं वद त च । न त ा य नवासोऽ त पा म भः पापतां जेत् ।। सुकृते कृते वा प य स ज त यो नरः । ुवं र तभवेत् त त माद् दोषं न रोचयेत् ।।) वाग् ं महाघोरं हतुवृषपवणः । मम मना त दयम नकाम इवार णम् ।। १२ ।। धनहीन मनु य भी य द सदा अपने मनपर संयम रख तो वे े ह और धनवान् भी य द राचारी तथा पापकम ह , तो वे चा डालके समान ह। जो अकारण कसीके साथ े ष करते ह और सर क न दा करते रहते ह, उनके बीचम स पु षका नवास नह होना चा हये; य क पा पय के संगसे मनु य पापा मा हो जाता है। मनु य पाप अथवा पु य जसम भी आस होता है, उसीम उसक ढ़ ी त हो जाती है, इस लये पापकमम ी त नह करनी चा हये। तात! वृषपवाक पु ी शम ाने जो अ य त भयंकर वचन कहा है, वह मेरे दयको मथ रहा है। ठ क उसी तरह, जैसे अ न कट करनेक इ छावाला पु ष अरणीका का म थन करता है ।। १२ ।। न तो करतरं म ये लोके व प षु । ( नःसंशयो वशेषेण प षं ममक ृ तनम् । सु म जना तेषु सौ दं न च कुवते ।।) यः सप न यं द तां हीन ीः पयुपासते । मरणं शोभनं त य इ त व जना व ः ।। १३ ।। इससे बढ़कर महान् ःखक बात म अपने लये तीन लोक म और कुछ नह मानती ँ। इसम संदेह नह क कटु वचन मम थल को वद ण करनेवाला होता है। कटु वाद मनु य से उनके सगे-स ब धी और म भी ेम नह करते ह। जो ीहीन होकर श ु क चमकती ई ल मीक उपासना करता है, उस मनु यका तो मर जाना ही अ छा है; ऐसा व ान् पु ष अनुभव करते ह ।। १३ ।। (अवमानमवा ो त शनैन चेषु स तः । वा सायका वदना पत त यैराहतः शोच त रायहा न । शनै ःखं श वषा नजातं तान् प डतो नावसृजेत् परेषु ।। संरोह त शरै व ं वनं परशुना हतम् । वाचा ं बीभ सं न संरोह त वा तम् ।।) नीच पु ष के संगसे मनु य धीरे-धीरे अपमा नत हो जाता है। मुखसे जो कटु वचन पी बाण छू टते ह, उनसे आहत होकर मनु य रात- दन शोकम डू बा रहता है। श , वष और अ नसे ा त होनेवाला ःख शनैः-शनैः अनुभवम आता है (परंतु कटु वचन त काल ही े े ै) ो े

अ य त क दे ने लगता है)। अतः व ान् पु षको चा हये क वह सर पर वा बाण न छोड़े। बाणसे बधा आ वृ और फरसेसे काटा आ जंगल फर पनप जाता है, परंतु वाणी ारा जो भयानक कटु वचन नकलता है, उससे घायल ए दयका घाव फर नह भरता। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण यया युपा याने एकोनाशी ततमोऽ यायः ।। ७९ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम यया युपा यान वषयक उ यासीवाँ अ याय पूरा आ ।। ७९ ।। (दा णा य अ धक पाठक े १० ोक मलाकर कुल २३ ोक ह)

अशी ततमोऽ यायः शु ाचायका वृषपवाको फटकारना तथा उसे छोड़ कर जानेके लये उ त होना और वृषपवाके आदे शसे श म ाका दे वयानीक दासी बनकर शु ाचाय तथा दे वयानीको संतु करना वैश पायन उवाच ततः का ो भृगु े ः सम यु पग य ह । वृषपवाणमासीन म युवाचा वचारयन् ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! दे वयानीक बात सुनकर भृगु े शु ाचाय बड़े ोधम भरकर वृषपवाके समीप गये। वह राज सहासनपर बैठा आ था। शु ाचायजीने बना कुछ सोचे- वचारे उससे इस कार कहना आर भ कया— ।। १ ।। नाधम रतो राजन् स ः फल त गौ रव । शनैराव यमानो ह कतुमूला न कृ त त ।। २ ।। ‘राजन्! जो अधम कया जाता है, उसका फल तुरंत नह मलता। जैसे गायक सेवा करनेपर धीरे-धीरे कुछ कालके बाद वह याती और ध दे ती है अथवा धरतीको जोतबोकर बीज डालनेसे कुछ कालके बाद पौधा उगता और यथासमय फल दे ता है, उसी कार कया जानेवाला अधम धीरे-धीरे कताक जड़ काट दे ता है ।। २ ।। पु ेषु वा न तृषु वा न चेदा म न प य त । फल येव ुवं पापं गु भु मवोदरे ।। ३ ।। ‘य द वह (पापसे उपाजत का) प रणाम अपने ऊपर नह दखायी दे ता तो उस अ यायोपाजत का उपभोग करनेके कारण पु अथवा नाती-पोत पर अव य कट होता है। जैसे खाया आ ग र अ तुरंत नह तो कुछ दे र बाद अव य ही पेटम उप व करता है, उसी कार कया आ पाप भी न य ही अपना फल दे ता है’ ।। ३ ।। (अधीयानं हतं राजन् माव तं जते यम् ।) यदघात यथा व ं कचमा रसं तदा । अपापशीलं धम ं शु ूषुं मद्गृहे रतम् ।। ४ ।। ‘राजन्! अं गराके पौ कच वशु ा ण ह। वे वा याय-परायण, हतैषी, मावान् और जते य ह, वभावसे ही न पाप और धम ह तथा उन दन मेरे घरम रहकर नर तर मेरी सेवाम संल न थे, परंतु तुमने उनका बार-बार वध करवाया था ।। ४ ।। वधादनहत त य वधा च हतुमम । वृषपवन् नबोधेदं य या म वां सबा धवम् । थातुं व षये राजन् न श या म वया सह ।। ५ ।। ‘



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‘वृषपवन्! यान दे कर मेरी यह बात सुन लो, तु हारे ारा पहले वधके अयो य ा णका वध कया गया है और अब मेरी पु ी दे वयानीका भी वध करनेके लये उसे कुएँम ढकेला गया है। इन दोन ह या के कारण म तुमको और तु हारे भाई-ब धु को याग ँ गा। राजन्! तु हारे रा यम और तु हारे साथ म एक ण भी नह ठहर सकूँगा ।। ५ ।। अहो माम भजाना स दै य मया ला पनम् । यथेममा मनो दोषं न नय छ युपे से ।। ६ ।। ‘दै यराज! बड़े आ यक बात है क तुमने मुझे म यावाद समझ लया। तभी तो तुम अपने इस दोषको र नह करते और लापरवाही दखाते हो’ ।। ६ ।। वृषपव वाच (य द न् घातया म य द वाऽऽ ोशया यहम् । श म या दे वयान तेन ग छा यसद्ग तम् ।।) वृषपवा बोले— न्! य द म शम ासे दे वयानीको पटवाता या तर कृत करवाता होऊँ तो इस पापसे मुझे सद्ग त न मले। नाधम न मृषावादं व य जाना म भागव । व य धम स यं च तत् सीदतु नो भवान् ।। ७ ।। य मानपहाय व मतो ग छ स भागव । समु ं स वे यामो ना यद त परायणम् ।। ८ ।। भृगन ु दन! आपपर अधम अथवा म याभाषणका दोष मने कभी लगाया हो, यह म नह जानता। आपम तो सदा धम और स य त त ह। अतः आप हमलोग पर कृपा करके स होइये। भागव! य द आप हम छोड़कर चले जाते ह तो हम सब लोग समु म समा जायँगे; हमारे लये सरी कोई ग त नह है ।। ७-८ ।। (य ेव द े वान् ग छे वं मां च य वा हा धप । सव यागं ततः कृ वा वशा म ताशनम् ।।) हे र! य द आप मुझे छोड़कर दे वता के प म चले जायँगे तो म भी सव व याग कर जलती आगम कूद पडँगा। शु उवाच समु ं वश वं वा दशो वा वतासुराः । हतुना यं सोढुं श ोऽहं द यता ह मे ।। ९ ।। शु ाचायने कहा—असुरो! तुमलोग समु म घुस जाओ अथवा चार दशा म भाग जाओ; म अपनी पु ीके त कया गया अ य बताव नह सह सकता; य क वह मुझे अ य त य है ।। ९ ।। सा तां दे वयानी जी वतं य मे थतम् । योग ेमकर तेऽह म येव बृह प तः ।। १० ।। े

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तुम दे वयानीको स करो, य क उसीम मेरे ाण बसते ह। उसके स हो जानेपर इ के पुरो हत बृह प तक भाँ त म तु हारे योग ेमका वहन करता र ँगा ।। १० ।।

वृषपव वाच यत् क चदसुरे ाणां व ते वसु भागव । भु व ह तगवा ं च त य वं मम चे रः ।। ११ ।। वृषपवा बोले—भृगन ु दन! असुरे र के पास इस भूतलपर जो कुछ भी स प तथा हाथी-घोड़े और गाय आ द पशुधन है, उसके और मेरे भी आप ही वामी ह ।। ११ ।। शु उवाच यत् क चद त वणं दै ये ाणां महासुर । त ये रोऽ म य ेषा दे वयानी सा ताम् ।। १२ ।। शु ाचायने कहा—महान् असुर! दै यराज का जो कुछ भी धन-वैभव है, य द उसका वामी म ही ँ तो उसके ारा इस दे वयानीको स करो ।। १२ ।। वैश पायन उवाच एवमु तथे याह वृषपवा महाक वः । दे वया य तकं ग वा तमथ ाह भागवः ।। १३ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! शु ाचायके ऐसा कहनेपर वृषपवाने ‘तथा तु’ कहकर उनक आ ा मान ली। तदन तर दोन दे वयानीके पास गये और महाक व शु ाचायने वृषपवाक कही ई सारी बात कह सुनायी ।। १३ ।। दे वया युवाच य द वमी र तात रा ो व य भागव । ना भजाना म तत् तेऽहं राजा तु वदतु वयम् ।। १४ ।। तब दे वयानीने कहा—तात! य द आप राजाके धनके वामी ह तो आपके कहनेसे म इस बातको नह मानूँगी। राजा वयं कह, तो मुझे व ास होगा ।। १४ ।। वृषपव वाच यं कामम भकामा स दे वया न शु च मते । तत् तेऽहं स दा या म य द वा प ह लभम् ।। १५ ।। वृषपवा बोले—प व मुसकानवाली दे वयानी! तुम जस व तुको पाना चाहती हो, वह य द लभ हो तो भी तु ह अव य ँ गा ।। १५ ।। दे वया युवाच दास क यासह ेण श म ाम भकामये । अनु मां त ग छे त् सा य द ा च मे पता ।। १६ ।। दे वयानीने कहा—म चाहती ँ, शम ा एक हजार क या के साथ मेरी दासी होकर रहे और पताजी जहाँ मेरा ववाह कर, वहाँ भी वह मेरे साथ जाय ।। १६ ।।

वृषपव वाच उ वं ग छ धा श म ां शी मानय । यं च कामयते कामं दे वयानी करोतु तम् ।। १७ ।। यह सुनकर वृषपवाने धायसे कहा—धा ी! तुम उठो, जाओ और शम ाको शी बुला लाओ एवं दे वयानीक जो कामना हो, उसे वह पूण करे ।। १७ ।। ( यजेदेकं कुल याथ ाम याथ कुलं यजेत् । ामं जनपद याथ आ माथ पृ थव यजेत् ।।) कुलके हतके लये एक मनु यको याग दे । गाँवके भलेके लये एक कुलको छोड़ दे । जनपदके लये एक गाँवक उपे ा कर दे और आ मक याणके लये सारी पृ वीको याग दे । वैश पायन उवाच ततो धा ी त ग वा श म ां वा यम वीत् । उ भ े श म े ातीनां सुखमावह ।। १८ ।। वैश पायनजी कहते ह—तब धायने शम ाके पास जाकर कहा—‘भ े शम े! उठो और अपने जा त-भाइय को सुख प ँचाओ ।। १८ ।। यज त ा णः श यान् दे वया या चो दतः । सा यं कामयते कामं स काय ऽ वयानघे ।। १९ ।। ‘पापर हत राजकुमारी! आज बाबा शु ाचाय दे वयानीके कहनेसे अपने श य — यजमान को याग रहे ह। अतः दे वयानीक जो कामना हो, वह तु ह पूण करनी चा हये’ ।। १९ ।। शम ोवाच यं सा कामयते कामं करवा यहम तम् । य ेवमा ये छु ो दे वयानीकृते ह माम् । म ोषा मा गम छु ो दे वयानी च म कृते ।। २० ।। श म ा बोली—य द इस कार दे वयानीके लये ही शु ाचायजी मुझे बुला रहे ह तो दे वयानी जो कुछ चाहती है, वह सब आजसे म क ँ गी। मेरे अपराधसे शु ाचायजी न जायँ और दे वयानी भी मेरे कारण अ य जानेका वचार न करे ।। २० ।। वैश पायन उवाच ततः क यासह ेण वृता श बकया तदा । पतु नयोगात् व रता न ाम पुरो मात् ।। २१ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर पताक आ ासे राजकुमारी शम ा श बकापर आ ढ़ हो तुरंत राजधानीसे बाहर नकली। उस समय वह एक सह क या से घरी ई थी ।। २१ ।। शम ोवाच ी े ी े

अहं दासीसह ेण दासी ते प रचा रका । अनु वां त या या म य दा य त ते पता ।। २२ ।। श म ा बोली—दे वयानी! म एक सह दा सय के साथ तु हारी दासी बनकर सेवा क ँ गी और तु हारे पता जहाँ भी तु हारा याह करगे, वहाँ तु हारे साथ चलूँगी ।। २२ ।। दे वया युवाच तुवतो हताहं ते याचतः तगृ तः । तूयमान य हता कथं दासी भ व य स ।। २३ ।। दे वयानीने कहा—अरी! म तो तु त करनेवाले और दान लेनेवाले भ ुकक पु ी ँ और तुम उस बड़े बापक बेट हो, जसक मेरे पता तु त करते ह; फर मेरी दासी बनकर कैसे रहोगी ।। २३ ।। शम ोवाच येन केन चदातानां ातीनां सुखमावहेत् । अत वामनुया या म य दा य त ते पता ।। २४ ।। श म ा बोली— जस कसी उपायसे भी स भव हो, अपने वपद् त जा तभाइय को सुख प ँचाना चा हये। अतः तु हारे पता जहाँ तु ह दगे, वहाँ भी म तु हारे साथ चलूँगी ।। २४ ।। वैश पायन उवाच त ुते दासभावे ह ा वृषपवणः । दे वयानी नृप े पतरं वा यम वीत् ।। २५ ।। वैश पायनजी कहते ह—नृप े ! जब वृषपवाक पु ीने दासी होनेक त ा कर ली, तब दे वयानीने अपने पतासे कहा ।। २५ ।। दे वया युवाच वशा म पुरं तात तु ा म जस म । अमोघं तव व ानम त व ाबलं च ते ।। २६ ।। दे वयानी बोली— पताजी! अब म नगरम वेश क ँ गी। ज े ! अब मुझे व ास हो गया क आपका व ान और आपक व ाका बल अमोघ है ।। २६ ।। वैश पायन उवाच एवमु ो ह ा स ज े ो महायशाः । ववेश पुरं ः पू जतः सवदानवैः ।। २७ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! अपनी पु ी दे वयानीके ऐसा कहनेपर महायश वी ज े शु ाचायने सम त दानव से पू जत एवं स होकर नगरम वेश कया ।। २७ ।। ी









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ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण यया युपा यानेऽशी ततमोऽ यायः ।। ८० ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम यया युपा यान वषयक अ सीवाँ अ याय पूरा आ ।। ८० ।। (दा णा य अ धक पाठक े ५ ोक मलाकर कुल ३२ ोक ह)

एकाशी ततमोऽ यायः स खय स हत दे वयानी और श म ाका वन- वहार, राजा यया तका आगमन, दे वयानीक उनके साथ बातचीत तथा ववाह वैश पायन उवाच अथ द घ य काल य दे वयानी नृपो म । वनं तदे व नयाता डाथ वरव णनी ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—नृप े ! तदन तर द घकालके प ात् उ म वणवाली दे वयानी फर उसी वनम वहारके लये गयी ।। १ ।। तेन दासीसह ेण साध श म या तदा । तमेव दे शं स ा ता यथाकामं चचार सा ।। २ ।। ता भः सखी भः स हता सवा भमु दता भृशम् । ड योऽ भरताः सवाः पब यो मधुमाधवीम् ।। ३ ।। खाद यो व वधान् भ यान् वदश यः फला न च । पुन ना षो राजा मृग ल सुय छया ।। ४ ।। तमेव दे शं स ा तो जलाथ मक शतः । द शे दे वयान स श म ां ता यो षतः ।। ५ ।। उस समय उसके साथ एक हजार दा सय स हत शम ा भी सेवाम उप थत थी। वनके उसी दे शम जाकर वह उन सम त सखय के साथ अ य त स तापूवक इ छानुसार वचरने लगी। वे सभी कशो रयाँ वहाँ भाँ त-भाँ तके खेल खेलती ई आन दम म न हो गय । वे कभी वास तक पु प के मकर दका पान करत , कभी नाना कारके भो य पदाथ का वाद लेत और कभी फल खाती थ । इसी समय न षपु राजा यया त पुनः शकार खेलनेके लये दै वे छासे उसी थानपर आ गये। वे प र म करनेके कारण अ धक थक गये थे और जल पीना चाहते थे। उ ह ने दे वयानी, शम ा तथा अ य युव तय को भी दे खा ।। २—५ ।। पब तीललमाना द ाभरणभू षताः । (आसने वरे द े सवाभरणभू षते ।) उप व ां च द शे दे वयान शु च मताम् ।। ६ ।। वे सभी द आभूषण से वभू षत हो पीनेयो य रसका पान और भाँ त-भाँ तक ड़ाएँ कर रही थ । राजाने प व मुसकानवाली दे वयानीको वहाँ सम त आभूषण से वभू षत परम सु दर द आसनपर बैठ ई दे खा ।। ६ ।। पेणा तमां तासां ीणां म ये वरा नाम् । श म या से मानां पादसंवाहना द भः ।। ७ ।। े ी ी े ै ई ीऔ

उसके पक कह तुलना नह थी। वह सु दरी उन य के म यम बैठ ई थी और शम ा ारा उसक चरणसेवा क जा रही थी ।। ७ ।। यया त वाच ा यां क यासह ा यां े क ये प रवा रते । गो े च नामनी चैव योः पृ छा यहं शुभे ।। ८ ।। यया तने पूछा—दो हजार* कुमारी सखय से घरी ई क याओ! म आप दोन के गो और नाम पूछ रहा ँ। शुभे! आप दोन अपना प रचय द ।। ८ ।।

दे वया युवाच आ या या यहमाद व वचनं मे नरा धप । शु ो नामासुरगु ः सुतां जानी ह त य माम् ।। ९ ।। दे वयानी बोली—महाराज! म वयं प रचय दे ती ँ, आप मेरी बात सुन। असुर के जो सु स गु शु ाचाय ह, मुझे उ ह क पु ी जा नये ।। ९ ।। इयं च मे सखी दासी य ाहं त गा मनी । हता दानवे य श म ा वृषपवणः ।। १० ।। यह दानवराज वृषपवाक पु ी शम ा मेरी सखी और दासी है। म ववाह होनेपर जहाँ जाऊँगी, वहाँ यह भी जायगी ।। १० ।। यया त वाच कथं तु ते सखी दासी क येयं वरव णनी । असुरे सुता सु ूः परं कौतूहलं ह मे ।। ११ ।। यया त बोले—सु दरी! यह असुरराजक पवती क या सु दर भ ह वाली शम ा आपक सखी और दासी कस कार ई? यह बताइये। इसे सुननेके लये मेरे मनम बड़ी उ क ठा है ।। ११ ।। दे वया युवाच सव एव नर े वधानमनुवतते । वधान व हतं म वा मा व च ाः कथाः कृथाः ।। १२ ।। दे वयानी बोली—नर े ! सब लोग दै वके वधानका ही अनुसरण करते ह। इसे भी भा यका वधान मानकर संतोष क जये। इस वषयक व च घटना को न पू छये ।। १२ ।। राजवद् पवेषौ ते ा वाचं बभ ष च । को नाम वं कुत ा स क य पु शंस मे ।। १३ ।। आपके प और वेष राजाके समान ह और आप ा ी वाणी ( वशु सं कृत भाषा) बोल रहे ह। मुझे बताइये; आपका या नाम है, कहाँसे आये ह और कसके पु ह? ।। १३ ।।

यया त वाच चयण वेदो मे कृ नः ु तपथं गतः । राजाहं राजपु यया त र त व ुतः ।। १४ ।। यया तने कहा—मने चयपालनपूवक स पूण वेदका अ ययन कया है। म राजा न षका पु ँ और इस समय वयं राजा ँ। मेरा नाम यया त है ।। १४ ।। दे वया युवाच केना यथन नृपते इमं दे शमुपागतः । जघृ ुवा रजं क चदथवा मृग ल सया ।। १५ ।। दे वयानीने पूछा—महाराज! आप कस कायसे वनके इस दे शम आये ह? आप जल अथवा कमल लेना चाहते ह या शकारक इ छासे ही आये ह? ।। १५ ।। यया त वाच मृग ल सुरहं भ े पानीयाथमुपागतः । ब धा यनुयु ोऽ म तदनु ातुमह स ।। १६ ।। यया तने कहा—भ े ! म एक हसक पशुको मारनेके लये उसका पीछा कर रहा था, इससे ब त थक गया ँ और पानी पीनेके लये यहाँ आया ँ। अतः अब मुझे आ ा द जये ।। १६ ।। दे वया युवाच ा यां क यासह ा यां दा या श म या सह । वदधीना म भ ं ते सखा भता च मे भव ।। १७ ।। दे वयानीने कहा—राजन्! आपका क याण हो। म दो हजार क या तथा अपनी से वका शम ाके साथ आपके अधीन होती ँ। आप मेरे सखा और प त हो जायँ ।। १७ ।। यया त वाच व यौशन स भ ं ते न वामह ऽ म भा व न । अ ववा ा ह राजानो दे वया न पतु तव ।। १८ ।। यया त बोले—शु न दनी दे वयानी! आपका भला हो। भा व न! म आपके यो य नह ँ। यलोग आपके पतासे क यादान लेनेके अ धकारी नह ह ।। १८ ।। दे वया युवाच संसृ ं णा ं ेण सं हतम् । ऋ ष ा यृ षपु ना षा वह व माम् ।। १९ ।। दे वयानीने कहा—न षन दन! ा णसे य जा त और यसे ा ण जा त मली ई है। आप राज षके पु ह और वयं भी राज ष ह। अतः मुझसे ववाह क जये ।। १९ ।।

यया त वाच एकदे हो वा वणा वारोऽ प वरा ने । पृथ धमाः पृथ छौचा तेषां तु ा णो वरः ।। २० ।। यया त बोले—वरांगने! एक ही परमे रके शरीरसे चार वण क उ प ई है; परंतु सबके धम और शौचाचार अलग-अलग ह। ा ण उन सब वण म े ह ।। २० ।। दे वया युवाच पा णधम ना षायं न पु भः से वतः पुरा । तं मे वम हीर े वृणो म वामहं ततः ।। २१ ।। दे वयानीने कहा—न षकुमार! नारीके लये पा ण हण एक धम है। पहले कसी भी पु षने मेरा हाथ नह पकड़ा था। सबसे पहले आपहीने मेरा हाथ पकड़ा था। इस लये आपहीका म प त पम वरण करती ँ ।। २१ ।। कथं नु मे मन व याः पा णम यः पुमान् पृशेत् । गृहीतमृ षपु ेण वयं वा यृ षणा वया ।। २२ ।। म मनको वशम रखनेवाली ी ँ। आप-जैसे राज षकुमार अथवा राज ष ारा पकड़े गये मेरे हाथका पश अब सरा पु ष कैसे कर सकता है ।। २२ ।। यया त वाच ु ादाशी वषात् सपा वलनात् सवतोमुखात् । राधषतरो व ो ेयः पुंसा वजानता ।। २३ ।। यया त बोले—दे व! व पु षको चा हये क वह ा णको ोधम भरे ए वषधर सप तथा सब ओरसे व लत अ नसे भी अ धक धष एवं भयंकर समझे ।। २३ ।। दे वया युवाच कथमाशी वषात् सपा वलनात् सवतोमुखात् । राधषतरो व इ या थ पु षषभ ।। २४ ।। दे वयानीने कहा—पु ष वर! ा ण वषधर सप और सब ओरसे व लत होनेवाली अ नसे भी धष एवं भयंकर है, यह बात आपने कैसे कही? ।। २४ ।। यया त वाच एकमाशी वषो ह त श ेणैक व यते । ह त व ः सरा ा ण पुरा य प ह को पतः ।। २५ ।। राधषतरो व त माद् भी मतो मम । अतोऽद ां च प ा वां भ े न ववहा यहम् ।। २६ ।। यया त बोले—भ े ! सप एकको ही मारता है, श से भी एक ही का वध होता है; परंतु ोधम भरा आ ा ण सम त रा और नगरका भी नाश कर दे ता है। भी ! े







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इस लये म ा णको अ धक धष मानता ँ। अतः जबतक आपके पता आपको मेरे हवाले न कर द, तबतक म आपसे ववाह नह क ँ गा ।। २५-२६ ।। दे वया युवाच द ां वह व त मा वं प ा राजन् वृतो मया । अयाचतो भयं ना त द ां च तगृ तः ।। २७ ।। ( त राजन् मुत तु ेष य या यहं पतुः । दे वयानीने कहा—राजन्! मने आपका वरण कर लया है, अब आप मेरे पताके दे नेपर ही मुझसे ववाह कर। आप वयं तो उनसे याचना करते नह ह; उनके दे नेपर ही मुझे वीकार करगे। अतः आपको उनके कोपका भय नह है। राजन्! दो घड़ी ठहर जाइये। म अभी पताके पास संदेश भेजती ँ ।। २७ ।। ग छ वं धा के शी ं क प महानय ।। वयंवरे वृतं शी ं नवेदय च ना षम् ।।) धाय! शी जाओ और मेरे तु य पताको यहाँ बुला ले आओ। उनसे यह भी कह दे ना क दे वयानीने वयंवरक व धसे न षन दन राजा यया तका प त पम वरण कया है। वैश पायन उवाच व रतं दे वया याथ सं द ं पतुरा मनः । सव नवेदयामास धा ी त मै यथातथम् ।। २८ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! इस कार दे वयानीने तुरंत धायको भेजकर अपने पताको संदेश दया। धायने जाकर शु ाचायसे सब बात ठ क-ठ क बता द ।। २८ ।। ु वैव च स राजानं दशयामास भागवः । ् वैव चागतं शु ं यया तः पृ थवीप तः । वव दे ा णं का ं ा लः णतः थतः ।। २९ ।। सब समाचार सुनते ही शु ाचायने वहाँ आकर राजाको दशन दया। व वर शु ाचायको आया दे ख राजा यया तने उ ह णाम कया और हाथ जोड़कर वनभावसे खड़े हो गये ।। २९ ।। दे वया युवाच राजायं ना ष तात गमे पा णम हीत् । नम ते दे ह माम मै लोके ना यं प त वृणे ।। ३० ।। दे वयानी बोली—तात! ये न षपु राजा यया त ह। इ ह ने संकटके समय मेरा हाथ पकड़ा था। आपको नम कार है। आप मुझे इ ह क सेवाम सम पत कर द। म इस जगत्म इनके सवा सरे कसी प तका वरण नह क ँ गी ।। ३० ।। शु उवाच वृतोऽनया प तव र सुतया वं ममे या । े

गृहाणेमां मया द ां म हष न षा मज ।। ३१ ।। शु ाचायने कहा—वीर न षन दन! मेरी इस लाड़ली पु ीने तु ह प त पम वरण कया है; अतः मेरी द ई इस क याको तुम अपनी पटरानीके पम हण करो ।। ३१ ।। यया त वाच अधम न पृशेदेष महान् मा मह भागव । वणसंकरजो त वां वृणो यहम् ।। ३२ ।। यया त बोले—भागव न्! म आपसे यह वर माँगता ँ क इस ववाहम यह य द खनेवाला वणसंकरज नत महान् अधम मेरा पश न करे ।। ३२ ।। शु उवाच अधमात् वां वमु चा म वृणु वं वरमी सतम् । अ मन् ववाहे मा लासीरहं पापं नुदा म ते ।। ३३ ।। शु ाचायने कहा—राजन्! म तु ह अधमसे मु करता ँ; तु हारी जो इ छा हो वर माँग लो। इस ववाहको लेकर तु हारे मनम ला न नह होनी चा हये। म तु हारे सारे पापको र करता ँ ।। ३३ ।। वह व भाया धमण दे वयान सुम यमाम् । अनया सह स ी तमतुलां समवा ु ह ।। ३४ ।। तुम सु दरी दे वयानीको धमपूवक अपनी प नी बनाओ और इसके साथ रहकर अतुल सुख एवं स ता ा त करो ।। ३४ ।। इयं चा प कुमारी ते श म ा वाषपवणी । स पू या सततं राजन् मा चैनां शयने येः ।। ३५ ।। महाराज! वृषपवाक पु ी यह कुमारी शम ा भी तु ह सम पत है। इसका सदा आदर करना, कतु इसे अपनी सेजपर कभी न बुलाना ।। ३५ ।। (रह येनां समाय न वद े न च सं पृशेः । वह व भाया भ ं ते यथाकाममवा य स ।।) तु हारा क याण हो। इस शम ाको एका तम बुलाकर न तो इससे बात करना और न इसके शरीरका पश ही करना। अब तुम ववाह करके इसे अपनी प नी बनाओ। इससे तु ह इ छानुसार फलक ा त होगी। वैश पायन उवाच एवमु ो यया त तु शु ं कृ वा द णम् । शा ो व धना राजा ववाहमकरो छु भम् ।। ३६ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! शु ाचायके ऐसा कहनेपर राजा यया तने उनक प र मा क और शा ो व धसे मंगलमय ववाह-काय स प कया ।। ३६ ।। ल वा शु ा महद ् व ं दे वयान तदो माम् । सह ेण क यानां तथा श म या सह ।। ३७ ।। े





स पू जत शु े ण दै यै नृपस मः । जगाम वपुरं ोऽनु ातोऽथ महा मना ।। ३८ ।। शु ाचायसे दे वयानी-जैसी उ म क या, शम ा और दो हजार अ य क या तथा महान् वैभवको पाकर दै य एवं शु ाचायसे पू जत हो, उन महा माक आ ा ले नृप े यया त बड़े हषके साथ अपनी राजधानीको गये ।। ३७-३८ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण यया युपा याने एकाशी ततमोऽ यायः ।। ८१ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत यया युपा यान वषयक इ यासीवाँ अ याय पूरा आ ।। ८१ ।। (दा णा य अ धक पाठक े ३ ोक मलाकर कुल ४१ ोक ह)

*

कह

ोक म दो हजार और क ह म एक हजार सखय का वणन आता है। यथावसर दोन ठ क ह।

यशी ततमोऽ यायः यया तसे दे वयानीको पु - ा त; यया त और श म ाका एका त मलन और उनसे एक पु का ज म वैश पायन उवाच यया तः वपुरं ा य महे पुरसं नभम् । व या तःपुरं त दे वयान यवेशयत् ।। १ ।। दे वया या ानुमते सुतां तां वृषपवणः । अशोकव नका याशे गृहं कृ वा यवेशयत् ।। २ ।। वृतां दासीसह ेण श म ां वाषपवणीम् । वासो भर पानै सं वभ य सुस कृताम् ।। ३ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! यया तक राजधानी महे पुरी (अमरावती)-के समान थी। उ ह ने वहाँ आकर दे वयानीको तो अ तःपुरम थान दया और उसीक अनुम तसे अशोकवा टकाके समीप एक महल बनवाकर उसम वृषपवाक पु ी शम ाको उसक एक हजार दा सय के साथ ठहराया और उन सबके लये अ , व तथा पेय आ दक अलग-अलग व था करके शम ाका समु चत स कार कया ।। १—३ ।। (अशोकव नकाम ये द े वयानी समागता । श म या सा ड वा रमणीये मनोरमे ।। त ैव तां तु न द य रा ा सह ययौ गृहम् । एवमेव सह ी या मुमुदे ब कालतः ।।) दे वयानी यया तके साथ परम रमणीय एवं मनोरम अशोकवा टकाम आती और शम ाके साथ वन- वहार करके उसे वह छोड़कर वयं राजाके साथ महलम चली जाती थी। इस तरह वह ब त समयतक स तापूवक आन द भोगती रही। दे वया या तु स हतः स नृपो न षा मजः । वजहार बन दान् दे वव मु दतः सुखी ।। ४ ।। न षकुमार राजा यया तने दे वयानीके साथ ब त वष तक दे वता क भाँ त वहार कया। वे उसके साथ ब त स और सुखी थे ।। ४ ।। ऋतुकाले तु स ा ते दे वयानी वरा ना । लेभे गभ थमतः कुमारं च जायत ।। ५ ।। ऋतुकाल आनेपर सु दरी दे वयानीने गभ धारण कया और समयानुसार थम पु को ज म दया ।। ५ ।। गते वषसह े तु श म ा वाषपवणी । ददश यौवनं ा ता ऋतुं सा चा व च तयत् ।। ६ ।। ी











इस कार एक हजार वष तीत हो जानेपर युवाव थाको ा त ई वृषपवाक पु ी शम ाने अपनेको रज वलाव थाम द े खा और च ताम न हो गयी ।। ६ ।। (शु ा नाता तु श म ा सवालंकारभू षता । अशोकशाखामाल य सुफु लैः तबकैवृताम् ।। आदश मुखमु य भतृदशनलालसा । शोकमोहसमा व ा वचनं चेदम वीत् ।। अशोक शोकापनुद शोकोपहतचेतसाम् । व ामानं कु ं यसंदशना माम् ।। एवमु वती सा तु श म ा पुनर वीत् ।।) नान करके शु हो सम त आभूषण से वभू षत ई शम ा सु दर पु प के गु छ से भरी अशोक-शाखाका आ य लये खड़ी थी। दपणम अपना मुँह दे खकर उसके मनम प तके दशनक लालसा जाग उठ और वह शोक एवं मोहसे यु हो इस कार बोली—‘हे अशोक वृ ! जनका दय शोकम डू बा आ है, उन सबके शोकको तुम र करनेवाले हो। इस समय मुझे यतमका दशन कराकर अपने ही जैसे नामवाली बना दो’ ऐसा कहकर शम ा फर बोली— । ऋतुकाल स ा तो न च मेऽ त प तवृतः । क ा तं क नु कत ं क वा कृ वा कृतं भवेत् ।। ७ ।। ‘मुझे ऋतुकाल ा त हो गया; कतु अभीतक मने प तका वरण नह कया है। यह कैसी प र थ त आ गयी। अब या करना चा हये अथवा या करनेसे सुकृत (पु य) होगा ।। ७ ।। दे वयानी जातासौ वृथाहं ा तयौवना । यथा तया वृतो भता तथैवाहं वृणो म तम् ।। ८ ।। ‘दे वयानी तो पु वती हो गयी; कतु मुझे जो जवानी मली है, वह थ जा रही है। जस कार उसने प तका वरण कया है, उसी तरह म भी उ ह महाराजका य न प तके पम वरण कर लूँ ।। ८ ।। रा ा पु फलं दे य म त मे न ता म तः । अपीदान स धमा मा इया मे दशनं रहः ।। ९ ।। ‘मेरे याचना करनेपर राजा मुझे पु प फल दे सकते ह, इस बातका मुझे पूरा व ास है; परंतु या वे धमा मा नरेश इस समय मुझे एका तम दशन दगे?’ ।। ९ ।। अथ न य राजासौ त मन् काले य छया । अशोकव नका याशे श म ां े य व तः ।। १० ।। शम ा इस कार वचार कर ही रही थी क राजा यया त उसी समय दै ववश महलसे बाहर नकले और अशोकवा टकाके नकट शम ाको द े खकर ठहर गये ।। १० ।। तमेकं र हते ् वा श म ा चा हा सनी । युदग ् या ल कृ वा राजानं वा यम वीत् ।। ११ ।। ो













मनोहर हासवाली शम ाने उ ह एका तम अकेला दे ख आगे बढ़कर उनक अगवानी क तथा हाथ जोड़कर राजासे यह बात कही ।। ११ ।।

शम ोवाच सोम ये य व णोवा यम य व ण य च । तव वा ना ष गृहे कः यं ु मह त ।। १२ ।। पा भजनशीलै ह वं राजन् वे थ मां सदा । सा वां याचे सा ाहमृतुं दे ह नरा धप ।। १३ ।। श म ाने कहा—न षन दन! च मा, इ , व णु, यम, व ण अथवा आपके महलम कौन कसी ीक ओर डाल सकता है? (अतएव यहाँ म सवथा सुर त ँ) महाराज! मेरे प, कुल और शील कैसे ह, यह तो आप सदासे ही जानते ह। म आज आपको स करके यह ाथना करती ँ क मुझे ऋतुदान द जये—मेरे ऋतुकालको सफल बनाइये ।। १२-१३ ।। यया त वाच वे वां शीलस प ां दै यक याम न दताम् । पं च ते न प या म सू य म प न दतम् ।। १४ ।। यया तने कहा—शम े! तुम दै यराजक सुशील और नद ष क या हो। म तु ह अ छ तरह जानता ँ। तु हारे शरीर अथवा पम सूईक नोक बराबर भी ऐसा थान नह है, जो न दाके यो य हो ।। १४ ।। अ वी शना का ो दे वयान यदावहम् । नेयमा यत ा ते शयने वाषपवणी ।। १५ ।। परंतु या क ँ ; जब मने दे वयानीके साथ ववाह कया था, उस समय क वपु शु ाचायने मुझसे प कहा था क ‘वृषपवाक पु ी इस शम ाको अपनी सेजपर न बुलाना’ ।। १५ ।। शम ोवाच न नमयु ं वचनं हन त न ीषु राजन् न ववाहकाले । ाणा यये सवधनापहारे प चानृता या रपातका न ।। १६ ।। श म ाने कहा—राजन्! प रहासयु वचन अस य हो तो भी वह हा नकारक नह होता। अपनी य के त, ववाहके समय, ाणसंकटके समय तथा सव वका अपहरण होते समय य द कभी ववश होकर अस य भाषण करना पड़े तो वह दोषकारक नह होता। ये पाँच कारके अस य पापशू य बताये गये ह ।। १६ ।। पृ ं तु सा ये वद तम यथा वद त मया प ततं नरे ।

एकाथतायां तु समा हतायां मया वद तं वनृतं हन त ।। १७ ।। महाराज! कसी नद ष ाणीका ाण बचानेके लये गवाही दे ते समय कसीके पूछनेपर अ यथा (अस य) भाषण करनेवालेको य द कोई प तत कहता है तो उसका कथन म या है। परंतु जहाँ अपने और सरे दोन के ही ाण बचानेका संग उप थत हो, वहाँ केवल अपने ाण बचानेके लये म या बोलनेवालेका अस यभाषण उसका नाश कर दे ता है ।। १७ ।। यया त वाच राजा माणं भूतानां स न येत मृषा वदन् । अथकृ म प ा य न मया कतुमु सहे ।। १८ ।। यया त बोले—दे व! सब ा णय के लये राजा ही माण है। वह य द झूठ बोलने लगे तो उसका नाश हो जाता है। अतः अथ-संकटम पड़नेपर भी म झूठा काम नह कर सकता ।। १८ ।। शम ोवाच समावेतौ मतौ राजन् प तः स या यः प तः । समं ववाह म या ः स या मेऽ स वृतः प तः ।। १९ ।। श म ाने कहा—राजन्! अपना प त और सखीका प त दोन बराबर माने गये ह। सखीके साथ ही उसक सेवाम रहनेवाली सरी क या का भी ववाह हो जाता है। मेरी सखीने आपको अपना प त बनाया है, अतः मने भी बना लया ।। १९ ।। (सह द ा म का ेन दे वया या मह षणा । पू या पोष यत े त न मृषा कतुमह स ।। सुवणम णर ना न व ा याभरणा न च । या चतॄणां ददा स वं गोभू याद न या न च ।। वा हकं दान म यु ं न शरीरा तं नृप । करं पु दानं च आ मदानं च करम् ।। शरीरदानात् तत् सव द ं भव त ना ष । य य य य यथा काम त य त य ददा यहम् ।। इ यु वा नगरे राजं कालं घो षतं वया ।। अनृतं त ु राजे वृथा घो षतमेव च । तत् स यं कु राजे यथा वै वण तथा ।।) राजन्! मह ष शु ाचायने दे वयानीके साथ मुझे भी यह कहकर आपको सम पत कया है क तुम इसका भी पालन-पोषण और आदर करना। आप उनके वचनको म या न कर। महाराज! आप त दन याचक को जो सुवण, म ण, र न, व , आभूषण, गौ और भू म आ द दान करते ह, वह बा दान कहा गया है। वह शरीरके आ त नह है। पु दान और शरीरदान अ य त क ठन है। न षन दन! शरीरदानसे उपयु सब दान स प हो ै ‘ ै ी ो ी ो ँ ँ ी ँ ’ऐ

जाता है। राजन्! ‘ जसक जैसी इ छा होगी उस-उस मनु यको म मुँहमाँगी व तु ँ गा’ ऐसा कहकर आपने नगरम जो तीन समय दानक घोषणा करायी है, वह मेरी ाथना ठु करा दे नेपर झूठ स होगी। वह सारी घोषणा ही थ समझी जायगी। राजे ! आप कुबेरक भाँ त अपनी उस घोषणाको स य क जये। यया त वाच दात ं याचमाने य इ त मे तमा हतम् । वं च याच स मां कामं ू ह क करवा ण ते ।। २० ।। यया त बोले—याचक को उनक अभी व तुएँ द जायँ, ऐसा मेरा त है। तुम भी मुझसे अपने मनोरथक याचना करती हो; अतः बताओ म तु हारा कौन-सा य काय क ँ ? ।। २० ।। शम ोवाच अधमात् पा ह मां राजन् धम च तपादय । व ोऽप यवती लोके चरेयं धममु मम् ।। २१ ।। श म ाने कहा—राजन्! मुझे अधमसे बचाइये और धमका पालन कराइये। म चाहती ँ, आपसे संतानवती होकर इस लोकम उ म धमका आचरण क ँ ।। २१ ।। य एवाधना राजन् भाया दास तथा सुतः । यत् ते सम धग छ त य यैते त य तद् धनम् ।। २२ ।। महाराज! तीन धनके अ धकारी नह ह—प नी, दास और पु । ये जो धन ा त करते ह वह उसीका होता है जसके अ धकारम ये ह। अथात् प नीके धनपर प तका, सेवकके धनपर वामीका और पु के धनपर पताका अ धकार होता है ।। २२ ।। दे वया या भु ज या म व या च तव भागवी । सा चाहं च वया राजन् भजनीये भज व माम् ।। २३ ।। म दे वयानीक से वका ँ और वह आपके अधीन है; अतः राजन्! वह और म दोन ही आपके सेवन करनेयो य ह। अतः मेरा सेवन क जये ।। २३ ।। वैश पायन उवाच एवमु तु राजा स तय म य भज वान् । पूजयामास श म ां धम च यपादयत् ।। २४ ।। वैश पायनजी कहते ह—शम ाके ऐसा कहनेपर राजाने उसक बात को ठ क समझा। उ ह ने शम ाका स कार कया और धमानुसार उसे अपनी भाया बनाया ।। २४ ।। स समाग य श म ां यथाकाममवा य च । अ यो यं चा भस पू य ज मतु तौ यथागतम् ।। २५ ।। फर शम ाके साथ समागम कया और इ छानुसार कामोपभोग करके एक- सरेका आदर-स कार करनेके प ात् दोन जैसे आये थे वैसे ही अपने-अपने थानपर चले े

गये ।। २५ ।। त मन् समागमे सु ूः श म ा चा हा सनी । लेभे गभ थमत त मा ृप तस मात् ।। २६ ।। सु दर भ ह तथा मनोहर मुसकानवाली शम ाने उस समागमम नृप े यया तसे पहले-पहल गभ धारण कया ।। २६ ।। ज े च ततः काले राजन् राजीवलोचना । कुमारं दे वगभाभं राजीव नभलोचनम् ।। २७ ।। जनमेजय! तदन तर समय आनेपर कमलके समान ने वाली शम ाने दे वबालकजैसे सु दर एक कमलनयन कुमारको उ प कया ।। २७ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण यया युपा याने यशी ततमोऽ यायः ।। ८२ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम यया युपा यान वषयक बयासीवाँ अ याय पूरा आ ।। ८२ ।। (दा णा य अ धक पाठक े ११ ोक मलाकर कुल ३८ ोक ह)

यशी ततमोऽ यायः दे वयानी और श म ाका संवाद, यया तसे श म ाके पु होनेक बात जानकर दे वयानीका ठ कर पताके पास जाना, शु ाचायका यया तको बूढ़ े होनेका शाप दे ना वैश पायन उवाच ु वा कुमारं जातं तु दे वयानी शु च मता । च तयामास ःखाता श म ां त भारत ।। १ ।। अ भग य च श म ां दे वया य वी ददम् । वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! प व मुसकानवाली दे वयानीने जब सुना क शम ाके पु आ है, तब वह ःखसे पी ड़त हो शम ाके वहारको लेकर बड़ी च ता करने लगी। वह शम ाके पास गयी और इस कार बोली ।। १ ।। दे वया युवाच क मदं वृ जनं सु ु कृतं वै कामलुधया ।। २ ।। दे वयानीने कहा—सु दर भ ह वाली शम े! तुमने कामलोलुप होकर यह कैसा पाप कर डाला? ।। २ ।। शम ोवाच ऋ षर यागतः क द् धमा मा वेदपारगः । स मया वरदः कामं या चतो धमसं हतम् ।। ३ ।। श म ा बोली—सखी! कोई धमा मा ऋ ष आये थे, जो वेद के पारंगत व ान् थे। मने उन वरदायक ऋ षसे धमानुसार कामक याचना क ।। ३ ।। नाहम यायतः काममाचरा म शु च मते । त मा षेममाप य म त स यं वी म ते ।। ४ ।। शु च मते! म याय व कामका आचरण नह करती। उन ऋ षसे ही मुझे संतान पैदा ई है, यह तुमसे स य कहती ँ ।। ४ ।। दे वया युवाच शोभनं भी य ेवमथ स ायते जः । गो नामा भजनतो वे ु म छा म तं जम् ।। ५ ।। दे वयानीने कहा—भी ! य द ऐसी बात है तो ब त अ छा आ। या उन जके गो , नाम और कुलका कुछ प रचय मला है? म उनको जानना चाहती ँ ।। ५ ।। शम ोवाच े



तपसा तेजसा चैव द यमानं यथा र वम् । तं ् वा मम स ु ं श नासी छु च मते ।। ६ ।। श म ा बोली—शु च मते! वे अपने तप और तेजसे सूयक भाँ त का शत हो रहे थे। उ ह दे खकर मुझे कुछ पूछनेका साहस ही नह आ ।। ६ ।। दे वया युवाच य ेतदे वं श म े न म यु व ते मम । अप यं य द ते लधं ये ा े ा च वै जात् ।। ७ ।। दे वयानीने कहा—शम े! य द ऐसी बात है; य द तुमने ये और े जसे संतान ा त क है तो तु हारे ऊपर मेरा ोध नह रहा ।। ७ ।। वैश पायन उवाच अ यो यमेवमु वा तु स ह य च ते मथः । जगाम भागवी वे म तय म यवज मुषी ।। ८ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! वे दोन आपसम इस कार बात करके हँस पड़ । दे वयानीको तीत आ क शम ा ठ क कहती है; अतः वह चुपचाप महलम चली गयी ।। ८ ।। यया तदवया यां तु पु ावजनय ृपः । य ं च तुवसुं चैव श व णू इवापरौ ।। ९ ।। राजा यया तने दे वयानीके गभसे दो पु उ प कये, जनके नाम थे य और तुवसु। वे दोन सरे इ और व णुक भाँ त तीत होते थे ।। ९ ।। त मादे व तु राजषः श म ा वाषपवणी । ं चानुं च पू ं च ीन् कुमारानजीजनत् ।। १० ।। उ ह राज षसे वृषपवाक पु ी शम ाने तीन पु को ज म दया, जनके नाम थे , अनु और पू ।। १० ।। ततः काले तु क मं द् दे वयानी शु च मता । यया तस हता राज गाम र हतं वनम् ।। ११ ।। राजन्! तदन तर कसी समय प व मुसकानवाली दे वयानी यया तके साथ एका त वनम गयी ।। ११ ।। ददश च तदा त कुमारान् दे व पणः । डमानान् सु व धान् व मता चेदम वीत् ।। १२ ।। वहाँ उसने दे वता के समान सु दर पवाले कुछ बालक को नभय होकर ड़ा करते दे खा। उ ह दे खकर आ यच कत हो वह इस कार बोली ।। १२ ।। दे वया युवाच क यैते दारका राजन् दे वपु ोपमाः शुभाः । वचसा पत ैव स शा मे मता तव ।। १३ ।। े

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दे वयानीने पूछा—राजन्! ये दे वबालक के तु य शुभ ल णस प कुमार कसके ह? तेज और पम तो ये मुझे आपहीके समान जान पड़ते ह ।। १३ ।।

वैश पायन उवाच एवं पृ ् वा तु राजानं कुमारान् पयपृ छत । वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! राजासे इस कार पूछकर उसने उन कुमार से कया ।। १३ ।। दे वया युवाच क नामधेयं वंशो वः पु काः क वः पता । ूत मे यथातयं ोतु म छा म तं हम् ।। १४ ।। दे वयानीने पूछा—ब चो! तु हारे कुलका या नाम है? तु हारे पता कौन ह? यह मुझे ठ क-ठ क बताओ। म तु हारे पताका नाम सुनना चाहती ँ ।। १४ ।। (एवमु ाः क ु मारा ते दे वया या सुम यमा ।) तेऽदशयन् दे श या तमेव नृपस मम् । श म ां मातरं चैव तथाऽऽच यु दारकाः ।। १५ ।। सु दरी दे वयानीके इस कार पूछनेपर उन बालक ने पताका प रचय दे ते ए तजनी अँगल ु ीसे उ ह नृप े यया तको दखा दया और शम ाको अपनी माता बताया ।। १५ ।। वैश पायन उवाच इ यु वा स हता ते तु राजानमुपच मुः । ना यन दत तान् राजा दे वया या तदा तके ।। १६ ।। वैश पायनजी कहते ह—ऐसा कहकर वे सब बालक एक साथ राजाके समीप आ गये; परंतु उस समय दे वयानीके नकट राजाने उनका अ भन दन नह कया—उ ह गोदम नह उठाया ।। १६ ।।

द त तेऽथ श म ाम ययुबालका ततः । ु वा तु तेषां बालानं स ीड इव पा थवः ।। १७ ।। तब वे बालक रोते ए शम ाके पास चले गये। उनक बात सुनकर राजा यया त ल जत-से हो गये ।। १७ ।। ् वा तु तेषां बालानां णयं पा थवं त । बुद ् वा च त वं सा दे वी श म ा मदम वीत् ।। १८ ।। उन बालक का राजाके त वशेष ेम दे खकर दे वयानी सारा रह य समझ गयी और शम ासे इस कार बोली ।। १८ ।। दे वया युवाच (अ याग छ त मां क ष र येवम वीः । यया तमेव नूनं वं ो साहय स भा म न ।। पूवमेव मया ो ं वया तु वृ जनं कृतम् ।) मदधीना सती क मादकाष व यं मम । तमेवासुरधम वमा थता न बभे ष मे ।। १९ ।। दे वयानी बोली—भा म न! तुम तो कहती थ क मेरे पास कोई ऋ ष आया करते ह। यह बहाना लेकर तुम राजा यया तको ही अपने पास आनेके लये ो साहन दे ती रह । मने पहले ही कह दया था क तुमने कोई पाप कया है। शम े! तुमने मेरे अधीन होकर भी े







मुझे अ य लगनेवाला बताव य कया? तुम फर उसी असुर-धमपर उतर आय । मुझसे डरती भी नह हो? ।। १९ ।। शम ोवाच य मृ ष र येव तत् स यं चा हा स न । यायतो धमत ैव चर ती न बभे म ते ।। २० ।। श म ा बोली—मनोहर मुसकानवाली सखी! मने जो ऋ ष कहकर अपने वामीका प रचय दया था, सो स य ही है। म याय और धमके अनुकूल आचरण करती ँ, अतः तुमसे नह डरती ।। २० ।। यदा वया वृतो भता वृत एव तदा मया । सखीभता ह धमण भता भव त शोभने ।। २१ ।। पू या स मम मा या च ये ा च ा णी स । व ोऽ प मे पू यतमो राज षः क न वे थ तत् ।। २२ ।। ( व प ा गु णा मे च सह द े उभे शुभे । तव भता च पू य पो यां पोषयतीह माम् ।।) जब तुमने प तका वरण कया था, उसी समय मने भी कर लया। शोभने! जो सखीका वामी होता है, वही उसके अधीन रहनेवाली अ य अ ववा हता सखय का भी धमतः प त होता है। तुम ये हो, ा णक पु ी हो, अतः मेरे लये माननीय एवं पूजनीय हो; परंतु ये राज ष मेरे लये तुमसे भी अ धक पूजनीय ह। या यह बात तुम नह जानत ? ।। २१-२२ ।। शुभे! तु हारे पता और मेरे गु (शु ाचायजी)-ने हम दोन को एक ही साथ महाराजक सेवाम सम पत कया है। तु हारे प त और पूजनीय महाराज यया त भी मुझे पालन करनेयो य मानकर मेरा पोषण करते ह। वैश पायन उवाच ु वा त या ततो वा यं दे वया य वी ददम् । राजन् ना ेह व या म व यं मे कृतं वया ।। २३ ।। वैश पायनजी कहते ह—शम ाका यह वचन सुनकर दे वयानीने कहा—‘राजन्! अब म यहाँ नह र ँगी। आपने मेरा अ य त अ य कया है’ ।। २३ ।। सहसो प ततां यामां ् वा तां सा ुलोचनाम् । तूण सकाशं का य थतां थत तदा ।। २४ ।। ऐसा कहकर त णी दे वयानी आँख म आँसू भरकर सहसा उठ और तुरंत ही शु ाचायजीके पास जानेके लये वहाँसे चल द । यह दे ख उस समय राजा यया त थत हो गये ।। २४ ।। अनुव ाज स ा तः पृ तः सा वयन् नृपः । यवतत न चैव म ोधसंर लोचना ।। २५ ।। े

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वे ाकुल हो दे वयानीको समझाते ए उसके पीछे -पीछे गये, कतु वह नह लौट । उसक आँख ोधसे लाल हो रही थ ।। २५ ।। अ व ुव ती क चत् सा राजानं सा ुलोचना । अ चरादे व स ा ता का योशनसोऽ तकम् ।। २६ ।। वह राजासे कुछ न बोलकर केवल ने से आँसू बहाये जाती थी। कुछ ही दे रम वह क वपु शु ाचायके पास जा प ँची ।। २६ ।। सा तु ् वैव पतरम भवा ा तः थता । अन तरं यया त तु पूजयामास भागवम् ।। २७ ।। पताको दे खते ही वह णाम करके उनके सामने खड़ी हो गयी। तदन तर राजा यया तने भी शु ाचायक व दना क ।। २७ ।। दे वया युवाच अधमण जतो धमः वृ मधरो रम् । श म या तवृ ा म ह ा वृषपवणः ।। २८ ।। दे वयानीने कहा— पताजी! अधमने धमको जीत लया। नीचक उ त ई और उ चक अवन त। वृषपवाक पु ी शम ा मुझे लाँघकर आगे बढ़ गयी ।। २८ ।। योऽ यां ज नताः पु ा रा ानेन यया तना । भगाया मम ौ तु पु ौ तात वी म ते ।। २९ ।। इन महाराज यया तसे ही उसके तीन पु ए ह, कतु तात! मुझ भा यहीनाके दो ही पु ए ह। यह म आपसे ठ क बता रही ँ ।। २९ ।। धम इ त व यात एष राजा भृगू ह । अ त ा त मयादां का ैतत् कथया म ते ।। ३० ।। भृगु े ! ये महाराज धम के पम स ह; कतु इ ह ने ही मयादाका उ लंघन कया है। क वन दन! यह आपसे यथाथ कह रही ँ ।। ३० ।। शु उवाच धम ः सन् महाराज योऽधममकृथाः यम् । त मा जरा वाम चराद् धष य य त जया ।। ३१ ।। शु ाचायने कहा—महाराज! तुमने धम होकर भी अधमको य मानकर उसका आचरण कया है। इस लये जसको जीतना क ठन है, वह वृ ाव था तु ह शी ही धर दबायेगी ।। ३१ ।।

यया त वाच ऋतुं वै याचमानाया भगवन् ना यचेतसा । हतुदानवे य ध यमेतत् कृतं मया ।। ३२ ।। ऋतुं वै याचमानाया न ददा त पुमानृतुम् । ूणहे यु यते न् स इह वा द भः ।। ३३ ।। अ भकामां यं य ग यां रह स या चतः । नोपै त स च धमषु ूणहे यु यते बुधैः ।। ३४ ।। यया त बोले—भगवन्! दानवराजक पु ी मुझसे ऋतुदान माँग रही थी; अतः मने धम-स मत मानकर यह काय कया, कसी सरे वचारसे नह । न्! जो पु ष याययु ऋतुक याचना करनेवाली ीको ऋतुदान नह दे ता, वह वाद व ान ारा ूणह या करनेवाला कहा जाता है। जो यायस मत कामनासे यु ग या ीके ारा एका तम ाथना करनेपर उसके साथ समागम नह करता, वह धम-शा म व ान ारा गभक ह या करनेवाला बताया जाता है ।। ३२—३४ ।। (यद ् यद् याच त मां क त् तत् तद् दे य म त तम् । वया च सा प द ा मे ना यं नाथ महे छ त ।। म वैत मे धम इ त कृतं न् म व माम् ।) इ येता न समी याहं कारणा न भृगू ह । अधमभयसं व नः श म ामुपज मवान् ।। ३५ ।। े





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न्! मेरा यह त है क मुझसे कोई जो भी व तु माँगे, उसे वह अव य दे ँ गा। आपके ही ारा मुझे स पी ई शम ा इस जगत्म सरे कसी पु षको अपना प त बनाना नह चाहती थी। अतः उसक इ छा पूण करना धम समझकर मने वैसा कया है। आप इसके लये मुझे मा कर। भृगु े ! इ ह सब कारण का वचार करके अधमके भयसे उ न हो म शम ाके पास गया था ।। ३५ ।।

शु उवाच न वहं यवे य ते मदधीनोऽ स पा थव । मयाचार य धमषु चौय भव त ना ष ।। ३६ ।। शु ाचायने कहा—राजन्! तु ह इस वषयम मेरे आदे शक भी ती ा करनी चा हये थी; य क तुम मेरे अधीन हो। न षन दन! धमम म या आचरण करनेवाले पु षको चोरीका पाप लगता है ।। ३६ ।। वैश पायन उवाच ु े नोशनसा श तो यया तना ष तदा । पूव वयः प र य य जरां स ोऽ वप त ।। ३७ ।। वैश पायनजी कहते ह— ोधम भरे ए शु ाचायके शाप दे नेपर न षपु राजा यया त उसी समय पूवाव था (यौवन)-का प र याग करके त काल बूढ़े हो गये ।। ३७ ।। यया त वाच अतृ तो यौवन याहं दे वया यां भृगू ह । सादं कु मे रेयं न वशे च माम् ।। ३८ ।। यया त बोले—भृगु े ! म दे वयानीके साथ युवाव थाम रहकर तृ त नह हो सका ँ; अतः न्! मुझपर ऐसी कृपा क जये, जससे यह बुढ़ापा मेरे शरीरम वेश न करे ।। ३८ ।। शु उवाच नाहं मृषा वी येत जरां ा तोऽ स भू मप । जरां वेतां वम य मन् सं ामय यद छ स ।। ३९ ।। शु ाचायजीने कहा—भू मपाल! म झूठ नह बोलता; बूढ़े तो तुम हो ही गये; कतु तु ह इतनी सु वधा दे ता ँ क य द चाहो तो कसी सरेसे जवानी लेकर इस बुढ़ापाको उसके शरीरम डाल सकते हो ।। ३९ ।। यया त वाच रा यभाक् स भवेद ् न् पु यभाक् क तभाक् तथा । यो मे द ात् वयः पु तद् भवाननुम यताम् ।। ४० ।। यया त बोले— न्! मेरा जो पु अपनी युवाव था मुझे दे , वही पु य और क तका भागी होनेके साथ ही मेरे रा यका भी भागी हो। आप इसका अनुमोदन कर ।। ४० ।।

शु उवाच सं ाम य य स जरां यथे ं न षा मज । मामनु याय भावेन न च पापमवा य स ।। ४१ ।। वयो दा य त ते पु ो यः स राजा भ व य त । आयु मान् क तमां ैव ब प य तथैव च ।। ४२ ।। शु ाचायने कहा—न षन दन! तुम भ भावसे मेरा च तन करके अपनी वृ ाव थाका इ छानुसार सरेके शरीरम संचार कर सकोगे। उस दशाम तु ह पाप भी नह लगेगा। जो पु तु ह ( स तापूवक) अपनी युवाव था दे गा, वही राजा होगा, साथ ही द घायु, यश वी तथा अनेक संतान से यु होगा ।। ४१-४२ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण यया युपा याने यशी ततमोऽ यायः ।। ८३ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम यया युपा यान वषयक तरासीवाँ अ याय पूरा आ ।। ८३ ।। (दा णा य अ धक पाठक े ४ ोक मलाकर कुल ४६ ोक ह)

चतुरशी ततमोऽ यायः यया तका अपने पु य , तुवसु, और अनुसे अपनी युवाव था दे कर वृ ाव था लेनेके लये आ ह और उनके अ वीकार करनेपर उ ह शाप दे ना, फर अपने पु पू को जराव था दे कर उनक युवाव था लेना तथा उ ह वर दान करना वैश पायन उवाच जरां ा य यया त तु वपुरं ा य चैव ह । पु ं ये ं व र ं च य म य वीद् वचः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजा यया त बुढ़ापा लेकर वहाँसे अपने नगरम आये और अपने ये एवं े पु य से इस कार बोले ।। १ ।। यया त वाच जरा वली च मां तात प लता न च पयगुः । का योशनसः शापा च तृ तोऽ म यौवने ।। २ ।। यया तने कहा—तात! क वपु शु ाचायके शापसे मुझे बुढ़ापेने घेर लया; मेरे शरीरम झुरयाँ पड़ गय और बाल सफे द हो गये; कतु म अभी जवानीके भोग से तृ त नह आ ँ ।। २ ।। वं यदो तप व पा मानं जरया सह । यौवनेन वद येन चरेयं वषयानहम् ।। ३ ।। पूण वषसह े तु पुन ते यौवनं वहम् । द वा वं तप या म पा मानं जरया सह ।। ४ ।। यदो! तुम बुढ़ापेके साथ मेरे दोषको ले लो और म तु हारी जवानीके ारा वषय का उपभोग क ँ । एक हजार वष पूरे होनेपर म पुनः तु हारी जवानी दे कर बुढ़ापेके साथ अपना दोष वापस ले लूँगा ।। ३-४ ।। य वाच जरायां बहवो दोषाः पानभोजनका रताः । त मा जरां न ते राजन् ही य इ त मे म तः ।। ५ ।। य बोले—राजन्! बुढ़ापेम खाने-पीनेसे अनेक दोष कट होते ह; अतः म आपक वृ ाव था नह लूँगा, यही मेरा न त वचार है ।। ५ ।। सत म ु नरान दो जरया श थलीकृतः । वलीसंगतगा तु दश बलः कृशः ।। ६ ।। े ो

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महाराज! म उस बुढ़ापेको लेनेक इ छा नह करता, जसके आनेपर दाढ़ -मूँछके बाल सफेद हो जाते ह; जीवनका आन द चला जाता है। वृ ाव था एकदम श थल कर दे ती है। सारे शरीरम झुरयाँ पड़ जाती ह और मनु य इतना बल तथा कृशकाय हो जाता है क उसक ओर दे खते नह बनता ।। ६ ।। अश ः कायकरणे प रभूतः स यौवतैः । सहोपजी व भ ैव तां जरां ना भकामये ।। ७ ।। बुढ़ापेम काम-काज करनेक श नह रहती, युव तयाँ तथा जी वका पानेवाले सेवक भी तर कार करते ह; अतः म वृ ाव था नह लेना चाहता ।। ७ ।। स त ते बहवः पु ा म ः यतरा नृप । जरां हीतुं धम त माद यं वृणी व वै ।। ८ ।। धम नरे र! आपके ब त-से पु ह, जो आपको मुझसे भी अ धक य ह; अतः बुढ़ापा लेनेके लये कसी सरे पु को चुन ली जये ।। ८ ।। यया त वाच यत् वं मे दया जातो वयः वं न य छ स । त मादरा यभाक् तात जा तव भ व य त ।। ९ ।। यया तने कहा—तात! तुम मेरे दयसे उ प (औरस पु ) होकर भी मुझे अपनी युवाव था नह दे ते; इस लये तु हारी संतान रा यक अ धका रणी नह होगी ।। ९ ।। तुवसो तप व पा मानं जरया सह । यौवनेन चरेयं वै वषयां तव पु क ।। १० ।। (अब उ ह ने तुवसुको बुलाकर कहा—) तुवसो! बुढ़ापेके साथ मेरा दोष ले लो। बेटा! म तु हारी जवानीसे वषय का उपभोग क ँ गा ।। १० ।। पूण वषसह े तु पुनदा या म यौवनम् । वं चैव तप या म पा मानं जरया सह ।। ११ ।। एक हजार वष पूण होनेपर म तु ह जवानी लौटा ँ गा और बुढ़ापेस हत अपने दोषको वापस ले लूँगा ।। ११ ।। तुवसु वाच न कामये जरां तात कामभोग णा शनीम् । बल पा तकरण बु ाण णा शनीम् ।। १२ ।। तुवसु बोले—तात! काम-भोगका नाश करनेवाली वृ ाव था मुझे नह चा हये। वह बल तथा पका अ त कर दे ती है और बु एवं ाणश का भी नाश करनेवाली है ।। १२ ।। यया त वाच यत् वं मे दया जातो वयः वं न य छ स । त मात् जा समु छे दं तुवसो तव या य त ।। १३ ।। े



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यया तने कहा—तुवसो! तू मेरे दयसे उ प होकर भी मुझे अपनी युवाव था नह दे ता है, इस लये तेरी संत त न हो जायगी ।। १३ ।। संक णाचारधमषु तलोमचरेषु च । प शता शषु चा येषु मूढ राजा भ व य स ।। १४ ।। मूढ़! जनके आचार और धम वणसंकर के समान ह, जो तलोमसंकर जा तय म गने जाते ह तथा जो क चा मांस खानेवाले एवं चा डाल आ दक ेणीम ह, ऐसे लोग का तू राजा होगा ।। १४ ।। गु दार स े षु तय यो नगतेषु च । पशुधमषु पापेषु ले छे षु वं भ व य स ।। १५ ।। जो गु -प नय म आस ह, जो पशु-प ी आ दका-सा आचरण करनेवाले ह तथा जनके सारे आचार- वचार भी पशु के समान ह, तू उन पापा मा ले छ का राजा होगा ।। १५ ।।

वैश पायन उवाच एवं स तुवसुं श वा यया तः सुतमा मनः । श म ायाः सुतं मदं वचनम वीत् ।। १६ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! राजा यया तने इस कार अपने पु तुवसुको शाप दे कर शम ाके पु से यह बात कही ।। १६ ।। यया त वाच ो वं तप व वण प वना शनीम् । जरां वषसह ं मे यौवनं वं दद व च ।। १७ ।। यया तने कहा— ो! का त तथा पका नाश करनेवाली यह वृ ाव था तुम ले लो और एक हजार वष के लये अपनी जवानी मुझे दे दो ।। १७ ।। पूण वषसह े तु पुनदा या म यौवनम् । वं चादा या म भूयोऽहं पा मानं जरया सह ।। १८ ।। हजार वष पूण हो जानेपर म पुनः तु हारी जवानी तु ह दे ँ गा और बुढ़ापेके साथ अपना दोष फर ले लूँगा ।। १८ ।। वाच न गजं न रथं ना ं जीण भुङ् े न च यम् । वा स ा य भव त तां जरां ना भकामये ।। १९ ।। बोले— पताजी! बूढ़ा मनु य हाथी, घोड़े और रथपर नह चढ़ सकता; ीका भी उपभोग नह कर सकता। उसक वाणी भी लड़खड़ाने लगती है; अतः म वृ ाव था नह लेना चाहता ।। १९ ।। यया त वाच यत् वं मे दया जातो वयः वं न य छ स । ो ो े े

त माद् ो यः कामो न ते स प यते व चत् ।। २० ।। यया त बोले— ो! तू मेरे दयसे उ प होकर भी अपनी जवानी मुझे नह दे रहा है; इस लये तेरा य मनोरथ कभी स नह होगा ।। २० ।। य ा रथमु यानाम ानां याद् गतं न च । ह तनां पीठकानां च गद भानां तथैव च ।। २१ ।। ब तानां च गवां चैव श बकाया तथैव च । उडु प लवसंतारो य न यं भ व य त । अराजा भोजश दं वं त ा य स सा वयः ।। २२ ।। जहाँ घोड़े जुते ए उ म रथ , घोड़ , हा थय , पीठक (पाल कय ), गदह , बकर , बैल और श बका आ दक भी ग त नह है, जहाँ त दन नावपर बैठकर ही घूमना फरना होगा, ऐसे दे शम तू अपनी संतान के साथ चला जायगा और वहाँ तेरे वंशके लोग राजा नह , भोज कहलायगे ।। २१-२२ ।। यया त वाच अनो वं तप व पा मानं जरया सह । एकं वषसह ं तु चरेयं यौवनेन ते ।। २३ ।। तदन तर यया तने [अनुसे] कहा— अनो! तुम बुढ़ापेके साथ मेरा दोष ले लो और म तु हारी जवानीके ारा एक हजार वषतक सुख भोगूँगा ।। २३ ।। अनु वाच जीणः शशुवदाद ेऽकालेऽ मशु चयथा । न जुहो त च कालेऽ नं तां जरां ना भकामये ।। २४ ।। अनु बोले— पताजी! बूढ़ा मनु य ब च क तरह असमयम भोजन करता है, अप व रहता है तथा समयपर अ नहो नह करता, अतः ऐसी वृ ाव थाको म नह लेना चाहता ।। २४ ।। यया त वाच यत् वं मे दया जातो वयः वं न य छ स । जरादोष वया ो त मात् वं तप यसे ।। २५ ।। जा यौवन ा ता वन श य यनो तव । अ न क दनपर वं चा येवं भ व य स ।। २६ ।। यया तने कहा—अनो! तू मेरे दयसे उ प होकर भी अपनी युवाव था मुझे नह दे रहा है और बुढ़ापेके दोष बतला रहा है, अतः तू वृ ाव थाके सम त दोष को ा त करेगा और तेरी संतान जवान होते ही मर जायगी तथा तू भी बूढ़े-जैसा होकर अ नहो का याग कर दे गा ।। २५-२६ ।। यया त वाच पूरो वं मे यः पु वं वरीयान् भ व य स । ी

जरा वली च मां तात प लता न च पयगुः ।। २७ ।। यया तने [पू से] कहा—पूरो! तुम मेरे य पु हो। गुण म तुम े होओगे। तात! मुझे बुढ़ापेने घेर लया; सब अंग म झुरयाँ पड़ गय और सरके बाल सफेद हो गये। बुढ़ापाके ये सारे च मुझे एक ही साथ ा त ए ह ।। २७ ।। का योशनसः शापा च तृ तोऽ म यौवने । पूरो वं तप व पा मानं जरया सह । कं चत् कालं चरेयं वै वषयान् वयसा तव ।। २८ ।। पूण वषसह े तु पुनदा या म यौवनम् । वं चैव तप या म पा मानं जरया सह ।। २९ ।। क वपु शु ाचायके शापसे मेरी यह दशा ई है; कतु म जवानीके भोग से अभी तृ त नह आ ँ। पूरो! तुम बुढ़ापेके साथ मेरे दोषको ले लो और म तु हारी युवाव था लेकर उसके ारा कुछ कालतक वषयभोग क ँ गा। एक हजार वष पूरे होनेपर म तु ह पुनः तु हारी जवानी दे ँ गा और बुढ़ापेके साथ अपना दोष ले लूँगा ।। २८-२९ ।। वैश पायन उवाच एवमु ः युवाच पू ः पतरम सा । यथाऽऽ थ मां महाराज तत् क र या म ते वचः ।। ३० ।। वैश पायनजी कहते ह—यया तके ऐसा कहनेपर पू ने अपने पतासे वनयपूवक कहा—‘महाराज! आप मुझे जैसा आदे श दे रहे ह, आपके उस वचनका म पालन क ँ गा ।। ३० ।। (गुरोव वचनं पु यं व यमायु करं नृणाम् । गु सादात् ैलो यम वशास छत तुः ।। गुरोरनुम त ा य सवान् कामानवा ुयात् ।) ‘गु जन क आ ाका पालन मनु य के लये पु य, वग तथा आयु दान करनेवाला है। गु के ही सादसे इ ने तीन लोक का शासन कया है। गु व प पताक अनुम त ा त करके मनु य स पूण कामना को पा लेता है। तप या म ते राजन् पा मानं जरया सह । गृहाण यौवनं म र कामान् यथे सतान् ।। ३१ ।। ‘राजन्! म बुढ़ापेके साथ आपका दोष हण कर लूँगा। आप मुझसे जवानी ले ल और इ छानुसार वषय का उपभोग कर ।। ३१ ।। जरयाहं त छ ो वयो पधर तव । यौवनं भवते द वा च र या म यथाऽऽ थ माम् ।। ३२ ।। ‘म वृ ाव थासे आ छा दत हो आपक आयु एवं प धारण करके र ँगा और आपको जवानी दे कर आप मेरे लये जो आ ा दगे, उसका पालन क ँ गा’ ।। ३२ ।। यया त वाच पूरो ीतोऽ म ते व स ीत ेदं ददा म ते । े े

सवकामसमृ ा ते जा रा ये भ व य त ।। ३३ ।। यया त बोले—व स! पूरो! म तुमपर स ँ और स होकर तु ह यह वर दे ता ँ —‘तु हारे रा यम सारी जा सम त कामना से स प होगी’ ।। ३३ ।। एवमु वा यया त तु मृ वा का ं महातपाः । सं ामयामास जरां तदा पूरौ महा म न ।। ३४ ।। ऐसा कहकर महातप वी यया तने शु ाचायका मरण कया और अपनी वृ ाव था महा मा पू को दे कर उनक युवाव था ले ली ।। ३४ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण यया युपा याने चतुरशी ततमोऽ यायः ।। ८४ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम यया युपा यान वषयक चौरासीवाँ अ याय पूरा आ ।। ८४ ।। (दा णा य अ धक पाठक े १ ोक मलाकर कुल ३५ ोक ह)

प चाशी ततमोऽ यायः राजा यया तका वषय-सेवन और वैरा य तथा पू का रा या भषेक करके वनम जाना वैश पायन उवाच पौरवेणाथ वयसा यया तन षा मजः । ी तयु ो नृप े चार वषयान् यान् ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! न षके पु नृप े यया तने पू क युवाव थासे अ य त स होकर अभी वषयभोग का सेवन आर भ कया ।। १ ।। यथाकामं यथो साहं यथाकालं यथासुखम् । धमा व ं राजे यथाह त स एव ह ।। २ ।। राजे ! उनक जैसी कामना होती, जैसा उ साह होता और जैसा समय होता, उसके अनुसार वे सुखपूवक धमानुकूल भोग का उपभोग करते थे। वा तवम उसके यो य वे ही थे ।। २ ।। दे वानतपयद् य ैः ा ै त त् पतॄन प । द नाननु है र ैः कामै जस मान् ।। ३ ।। उ ह ने य ारा दे वता को, ा से पतर को, इ छाके अनुसार अनु ह करके द न- ःखय को और मुँहमाँगी भो य व तुए ँ दे कर े ा ण को तृ त कया ।। ३ ।। अ तथीन पानै वश प रपालनैः । आनृशं येन शू ां द यून् सं न हेण च ।। ४ ।। धमण च जाः सवा यथावदनुर यन् । यया तः पालयामास सा ा द इवापरः ।। ५ ।। वे अ त थय को अ और जल दे कर, वै य को उनके धन-वैभवक र ा करके, शू को दयाभावसे, लुटेर को कैद करके तथा स पूण जाको धमपूवक संर ण ारा स रखते थे। इस कार सा ात् सरे इ के समान राजा यया तने सम त जाका पालन कया ।। ४-५ ।। स राजा सह व ा तो युवा वषयगोचरः । अ वरोधेन धम य चचार सुखमु मम् ।। ६ ।। वे राजा सहके समान परा मी और नवयुवक थे। स पूण वषय उनके अधीन थे और वे धमका वरोध न करते ए उ म सुखका उपभोग करते थे ।। ६ ।। स स ा य शुभान् कामां तृ तः ख पा थवः । कालं वषसह ा तं स मार मनुजा धपः ।। ७ ।। प रसं याय काल ः कलाः का ा वीयवान् । यौवनं ा य राज षः सह प रव सरान् ।। ८ ।। ो े े





व ा या स हतो रेमे ाज दने वने । अलकायां स कालं तु मे शृ े तथो रे ।। ९ ।। यदा स प यते कालं धमा मा तं महीप तः । पूण म वा ततः कालं पू ं पु मुवाच ह ।। १० ।। वे नरेश शुभ भोग को ा त करके पहले तो तृ त एवं आन दत होते थे; परंतु जब यह बात यानम आती क ये हजार वष भी पूरे हो जायँगे, तब उ ह बड़ा खेद होता था। कालत वको जाननेवाले परा मी राजा यया त एक-एक कला और का ाक गनती करके एक हजार वषके समयक अव धका मरण रखते थे। राज ष यया त हजार वष क जवानी पाकर न दनवनम व ाची अ सराके साथ रमण करते और का शत होते थे। वे अलकापुरीम तथा उ र दशावत मे शखरपर भी इ छानुसार वहार करते थे। धमा मा नरेशने जब दे खा क समय अब पूरा हो गया, तब वे अपने पु पु के पास आकर बोले — ।। ७—१० ।। यथाकामं यथो साहं यथाकालमरदम । से वता वषयाः पु यौवनेन मया तव ।। ११ ।। ‘श ुदमन पु ! मने तु हारी जवानीके ारा अपनी च, उ साह और समयके अनुसार वषय का सेवन कया है ।। ११ ।। न जातु कामः कामानामुपभोगेन शा य त । ह वषा कृ णव मव भूय एवा भवधते ।। १२ ।। ‘परंतु वषय क कामना उन वषय के उपभोगसे कभी शा त नह होती; अ पतु घीक आ त पड़नेसे अ नक भाँ त वह अ धका धक बढ़ती ही जाती है ।। १२ ।। यत् पृ थ ां ी हयवं हर यं पशवः यः । एक या प न पया तं त मात् तृ णां प र यजेत् ।। १३ ।। ‘इस पृ वीपर जतने भी धान, जौ, वण, पशु और याँ ह, वे सब एक मनु यके लये भी पया त नह ह। अतः तृ णाका याग कर दे ना चा हये ।। १३ ।। या यजा म त भया न जीय त जीयतः । योऽसौ ाणा तको रोग तां तृ णां यजतः सुखम् ।। १४ ।। ‘खोट बु वाले लोग के लये जसका याग करना अ य त क ठन है, जो मनु यके बूढ़े होनेपर भी वयं बूढ़ नह होती तथा जो एक ाणा तक रोग है, उस तृ णाको याग दे नेवाले पु षको ही सुख मलता है ।। १४ ।। पूण वषसह ं मे वषयास चेतसः । तथा यनु दनं तृ णा ममैते व भजायते ।। १५ ।। ‘दे खो, वषयभोगम आस च ए मेरे एक हजार वष बीत गये, तो भी त दन उन वषय के लये ही तृ णा पैदा होती है ।। १५ ।। त मादे नामहं य वा याधाय मानसम् । न ो नममो भू वा च र या म मृगैः सह ।। १६ ।। ‘

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‘अतः म इस तृ णाको छोड़कर पर परमा माम मन लगा और ममतासे र हत हो वनम मृग के साथ वच ँ गा ।। १६ ।। पूरो ीतोऽ म भ ं ते गृहाणेदं वयौवनम् । रा यं चेदं गृहाण वं वं ह मे यकृत् सुतः ।। १७ ।। ‘पूरो! तु हारा भला हो, म स ँ। अपनी यह जवानी ले लो। साथ ही यह रा य भी अपने अ धकारम कर लो; य क तुम मेरा य करनेवाले पु हो’ ।। १७ ।।

वैश पायन उवाच तपेदे जरां राजा यया तना ष तदा । यौवनं तपेदे च पू ः वं पुनरा मनः ।। १८ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! उस समय न षन दन राजा यया तने अपनी वृ ाव था वापस ले ली और पू ने पुनः अपनी युवाव था ा त कर ली ।। १८ ।। अ भषे ु कामं नृप त पू ं पु ं कनीयसम् । ा ण मुखा वणा इदं वचनम ुवन् ।। १९ ।। जब ा ण आ द वण ने दे खा क महाराज यया त अपने छोटे पु पू को राजाके पदपर अ भ ष करना चाहते ह, तब उनके पास आकर इस कार बोले— ।। १९ ।। कथं शु य न तारं दे वया याः सुतं भो । ये ं य म त य रा यं पूरोः य छ स ।। २० ।। ‘ भो! शु ाचायके नाती और दे वयानीके ये पु य के होते ए उ ह लाँघकर आप पू को रा य य दे ते ह? ।। २० ।। य य तव सुतो जात तमनु तुवसुः । श म ायाः सुतो ततोऽनुः पू रेव च ।। २१ ।। ‘य आपके ये पु ह। उनके बाद तुवसु उ प ए ह। तदन तर शम ाके पु मशः , अनु और पू ह ।। २१ ।। कथं ये ान त य कनीयान् रा यमह त । एतत् स बोधयाम वां धम वं तपालय ।। २२ ।। ‘ ये पु का उ लंघन करके छोटा पु रा यका अ धकारी कैसे हो सकता है? हम आपको इस बातका मरण दला रहे ह। आप धमका पालन क जये’ ।। २२ ।। यया त वाच ा ण मुखा वणाः सव शृ व तु मे वचः । ये ं त यथा रा यं न दे यं मे कथंचन ।। २३ ।। यया तने कहा— ा ण आ द सब वणके लोग मेरी बात सुन, मुझे ये पु को कसी तरह रा य नह दे ना है ।। २३ ।। मम ये ेन य ना नयोगो नानुपा लतः । तकूलः पतुय न स पु ः सतां मतः ।। २४ ।। े े



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मेरे ये पु य ने मेरी आ ाका पालन नह कया है। जो पताके तकूल हो, वह स पु ष क म पु नह माना गया है ।। २४ ।। माता प ोवचनकृ तः पय यः सुतः । स पु ः पु वद् य वतते पतृमातृषु ।। २५ ।। जो माता और पताक आ ा मानता है, उनका हत चाहता है, उनके अनुकूल चलता है तथा माता- पताके त पु ो चत बताव करता है, वही वा तवम पु है ।। २५ ।। (पु द त नरक या या ःखं ह नरकं व ः । पुत ाणात् ततः पु महे छ त पर च ।। आ मनः स शः पु ः पतृदेव षपूजने । यो बनां गुणकरः स पु ो ये उ यते ।। ये ांशभाक् स गुणकृ दह लोके पर च । ेयान् पु ो गुणोपेतः स पु ो नेतरो वृथा ।। वद त धम धम ाः पतॄणां पु कारणात् ।) ‘पुत्’ यह नरकका नाम है। नरकको ःख प ही मानते ह पुत् नामक नरकसे ाण (र ा) करनेके कारण ही लोग इहलोक और परलोकम पु क इ छा करते ह। अपने अनु प पु दे वता , ऋ षय और पतर के पूजनका अ धकारी होता है। जो ब त-से मनु य के लये गुणकारक (लाभदायक) हो, उसीको ये पु कहते ह। वह गुणकारक पु ही इहलोक और परलोकम ये के अंशका भागी होता है। जो उ म गुण से स प है, वही पु े माना गया है, सरा नह । गुणहीन पु थ कहा गया है। धम पु ष पु के ही कारण पतर के धमका बखान करते ह। य नाहमव ात तथा तुवसुना प च । ना चानुना चैव म यव ा कृता भृशम् ।। २६ ।। य ने मेरी अवहेलना क है; तुवसु, तथा अनुने भी मेरा बड़ा तर कार कया है ।। २६ ।। पू णा तु कृतं वा यं मा नतं च वशेषतः । कनीयान् मम दायादो धृता येन जरा मम ।। २७ ।। पू ने मेरी आ ाका पालन कया; मेरी बातको अ धक आदर दया है, इसीने मेरा बुढ़ापा ले रखा था। अतः मेरा यह छोटा पु ही वा तवम मेरे रा य और धनको पानेका अ धकारी है ।। २७ ।। मम कामः स च कृतः पू णा म पणा । शु े ण च वरो द ः का ेनोशनसा वयम् ।। २८ ।। पु ो य वानुवतत स राजा पृ थवीप तः । भवतोऽनुनया येवं पू रा येऽ भ ष यताम् ।। २९ ।। पू ने म प होकर मेरी कामनाएँ पूण क ह। वयं शु ाचायने मुझे वर दया है क ‘जो पु तु हारा अनुसरण करे, वही राजा एवं सम त भूम डलका पालक हो’। अतः म ो









आपलोग से वनयपूण आ ह करता ँ क पू को ही रा यपर अ भ ष कर ।। २८-२९ ।। कृतय ऊचुः यः पु ो गुणस प ो माता प ो हतः सदा । सवमह त क याणं कनीयान प स मः ।। ३० ।। जावगके लोग बोले—जो पु गुणवान् और सदा माता- पताका हतैषी हो, वह छोटा होनेपर भी े तम है। वही स पूण क याणका भागी होनेयो य है ।। ३० ।। अहः पू रदं रा यं यः सुतः यकृत् तव । वरदानेन शु य न श यं व ु मु रम् ।। ३१ ।। पू आपका य करनेवाले पु ह, अतः शु ाचायके वरदानके अनुसार ये ही इस रा यको पानेके अ धकारी ह। इस न यके व कुछ भी उ र नह दया जा सकता ।। ३१ ।।

वैश पायन उवाच पौरजानपदै तु ै र यु ो ना ष तदा । अ य ष चत् ततः पू ं रा ये वे सुतमा मनः ।। ३२ ।। वैश पायनजी कहते ह—नगर और रा यके लोग ने संतु होकर जब इस कार कहा, तब न षन दन यया तने अपने पु पू को ही अपने रा यपर अ भ ष कया ।। ३२ ।। द वा च पूरवे रा यं वनवासाय द तः । पुरात् स नययौ राजा ा णै तापसैः सह ।। ३३ ।। इस कार पू को रा य दे वनवासक द ा लेकर राजा यया त तप वी ा ण के साथ नगरसे बाहर नकल गये ।। ३३ ।। यदो तु यादवा जाता तुवसोयवनाः मृताः । ोः सुता तु वै भोजा अनो तु ले छजातयः ।। ३४ ।। य से यादव य उप ए, तुवसुक संतान यवन कहलायी, के पु भोज नामसे स ए और अनुसे ले छजा तयाँ उ प ।। ३४ ।। पूरो तु पौरवो वंशो य जातोऽ स पा थव । इदं वषसह ा ण रा यं कार यतुं वशी ।। ३५ ।। राजा जनमेजय! पू से पौरव वंश चला; जसम तुम उ प ए हो। तु ह इ यसंयमपूवक एक हजार वष तक यह रा य करना है ।। ३५ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण यया युपा याने पूवयायातसमा तौ प चाशी ततमोऽ यायः ।। ८५ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम यया युपा यानके संगम पूवयायातसमा त वषयक पचासीवाँ अ याय पूरा आ ।। ८५ ।।

(दा

णा य अ धक पाठक े ३

ोक मलाकर कुल ३८

ोक ह)

षडशी ततमोऽ यायः वनम राजा यया तक तप या और उ ह वगलोकक ा त वैश पायन उवाच एवं स ना षो राजा यया तः पु मी सतम् । रा येऽ भ ष य मु दतो वान थोऽभव मु नः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! इस कार न षन दन राजा यया त अपने य पु पू का रा या भषेक करके स तापूवक वान थ मु न हो गये ।। १ ।। उ ष वा च वने वासं ा णैः सं शत तः । फलमूलाशनो दा त ततः वग मतो गतः ।। २ ।। वे वनम ा ण के साथ रहकर कठोर तका पालन करते ए फल-मूलका आहार तथा मन और इ य का संयम करते थे, इससे वे वगलोकम गये ।। २ ।। स गतः व नवासं तं नवसन् मु दतः सुखी । कालेन चा तमहता पुनः श े ण पा ततः ।। ३ ।। नपतन् युतः वगाद ा तो मे दनीतलम् । थत आसीद त र े स तदे त ुतं मया ।। ४ ।। वगलोकम जाकर वे बड़ी स ताके साथ सुखपूवक रहने लगे और ब त कालके बाद इ ारा वे पुनः वगसे नीचे गरा दये गये। वगसे हो पृ वीपर गरते समय वे भूतलतक नह प ँचे, आकाशम ही थर हो गये, ऐसा मने सुना है ।। ३-४ ।। तत एव पुन ा प गतः वग म त ुतम् । रा ा वसुमता साधम केन च वीयवान् ।। ५ ।। तदनेन श बना समे य कल संस द । फर यह भी सुननेम आया है क वे परा मी राजा यया त मु नसमाजम राजा वसुमान्, अ क, तदन और श बसे मलकर पुनः वह से साधु पु ष के संगके भावसे वगलोकम चले गये ।। ५ ।। जनमेजय उवाच कमणा केन स दवं पुनः ा तो महीप तः ।। ६ ।। जनमेजयने पूछा—मुने! कस कमसे वे भूपाल पुनः वगम प ँचे थे? ।। ६ ।। सवमेतदशेषेण ोतु म छा म त वतः । कयमानं वया व व षगणसं नधौ ।। ७ ।। व वर! म ये सारी बात पूण पसे यथावत् सुनना चाहता ँ। इन षय के समीप आप इस संगका वणन कर ।। ७ ।। े







दे वराजसमो ासीद् यया तः पृ थवीप तः । वधनः कु वंश य वभावसुसम ु तः ।। ८ ।। कु वंशक वृ करनेवाले, अ नके समान तेज वी राजा यया त दे वराज इ के समान थे ।। ८ ।। त य व तीणयशसः स यक तमहा मनः । च रतं ोतु म छा म द व चेह च सवशः ।। ९ ।। उनका यश चार ओर फैला था। म उन स यक त महा मा यया तका च र , जो इहलोक और वगलोकम सव स है, सुनना चाहता ँ ।। ९ ।। वैश पायन उवाच ह त ते कथ य या म ययाते मां कथाम् । द व चेह च पु याथा सवपाप णा शनीम् ।। १० ।। वैश पायनजी बोले—जनमेजय! यया तक उ म कथा इहलोक और वगलोकम भी पु यदायक है। वह सब पाप का नाश करनेवाली है, म तुमसे उसका वणन करता ँ ।। १० ।। यया तना षो राजा पू ं पु ं कनीयसम् । रा येऽ भ ष य मु दतः व ाज वनं तदा ।। ११ ।। अ येषु स व न य पु ान् य पुरोगमान् । फलमूलाशनो राजा वने सं यवस चरम् ।। १२ ।। न षपु महाराज यया तने अपने छोटे पु पू को रा यपर अ भ ष करके य आ द अ य पु को सीमा त ( कनारेके दे श )-म रख दया। फर बड़ी स ताके साथ वे वनम गये। वहाँ फल-मूलका आहार करते ए उ ह ने द घकालतक वनम नवास कया ।। ११-१२ ।। शं सता मा जत ोध तपयन् पतृदेवताः । अन व धव जु न् वान थ वधानतः ।। १३ ।। उ ह ने अपने मनको शु करके ोधपर वजय पायी और त दन दे वता तथा पतर का तपण करते ए वान था मक व धसे शा ीय वधानके अनुसार अ नहो ार भ कया ।। १३ ।। अ तथीन् पूजयामास व येन ह वषा वभुः । शलो छवृ मा थाय शेषा कृतभोजनः ।। १४ ।। वे राजा शलो छवृ का आ य ले य शेष अ का भोजन करते थे। भोजनसे पूव वनम उपल ध होनेवाले फल, मूल आ द ह व यके ारा अ त थय का आदर-स कार करते थे ।। १४ ।। पूण वषसह ं च एवंवृ रभू ृपः । अभ ः शरद ंशदासी यतवामङ ् मनाः ।। १५ ।। ो



















राजाको इसी वृ से रहते ए पूरे एक हजार वष बीत गये। उ ह ने मन और वाणीपर संयम करके तीस वष तक केवल जलका आहार कया ।। १५ ।। तत वायुभ ोऽभूत् संव सरमत तः । तथा प चा नम ये च तप तेपे च व सरम् ।। १६ ।। त प ात् वे आल यर हत हो एक वषतक केवल वायु पीकर रहे। फर एक वषतक पाँच अ नय के बीचम बैठकर तप या क ।। १६ ।। एकपादः थत ासीत् ष मासान नलाशनः । पु यक त ततः वग जगामावृ य रोदसी ।। १७ ।। इसके बाद छः महीन तक हवा पीकर वे एक पैरसे खड़े रहे। तदन तर पु यक त महाराज यया त पृ वी और आकाशम अपना यश फैलाकर वगलोकम चले गये ।। १७ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण उ रयायाते षडशी ततमोऽ यायः ।। ८६ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम उ रयायात वषयक छयासीवाँ अ याय पूरा आ ।। ८६ ।।

स ताशी ततमोऽ यायः इ के पूछनेपर यया तका अपने पु पू को दये ए उपदे शक चचा करना वैश पायन उवाच वगतः स तु राजे ो नवसन् दे ववे म न । पू जत दशैः सा यैम वसु भ तथा ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! वगलोकम जाकर महाराज यया त दे वभवनम नवास करने लगे। वहाँ दे वता , सा यगण , म द्गण तथा वसु ने उनका बड़ा वागतस कार कया ।। १ ।। दे वलोकं लोकं संचरन् पु यकृद् वशी । अवसत् पृ थवीपालो द घकाल म त ु तः ।। २ ।। सुना जाता है क पु या मा तथा जते य राजा यया त दे वलोक और लोकम मण करते ए वहाँ द घकालतक रहे ।। २ ।। स कदा च ृप े ो यया तः श मागमत् । कथा ते त श े ण स पृ ः पृ थवीप तः ।। ३ ।। एक दन नृप े यया त दे वराज इ के पास आये। दोन म वातालाप आ और अ तम इ ने राजा यया तसे पूछा ।। ३ ।। श उवाच यदा स पू तव पेण राजन् जरां गृही वा चचार भूमौ । तदा च रा यं स दायैव त मै वया कमु ः कथयेह स यम् ।। ४ ।। इ ने पूछा—राजन्! जब पू तुमसे वृ ाव था लेकर तु हारे व पसे इस पृ वीपर वचरण करने लगा, तुम स य कहो, उस समय रा य दे कर तुमने उसको या आदे श दया था? ।। ४ ।। यया त वाच ग ायमुनयोम ये कृ नोऽयं वषय तव । म ये पृ थ ा वं राजा ातरोऽ या धपा तव ।। ५ ।। यया तने कहा—(दे वराज! मने अपने पु पू से कहा था क) बेटा! गंगा और यमुनाके बीचका यह सारा दे श तु हारे अ धकारम रहेगा। यह पृ वीका म य भाग है, इसके तुम राजा होओगे और तु हारे भाई सीमा त दे श के अ धप त ह गे ।। ५ ।। (न च क ु या रो दै यं शां ोधं तथैव च । ै







जै यं च म सरं वैरं सव ैव न कारयेत् ।। मातरं पतरं चैव व ांसं च तपोधनम् । माव तं च दे वे नावम येत बु मान् ।। श तु मते न यमश ः ु यते नरः । जनः सुजनं े बलो बलव रम् ।। पव तम पी च धनव तं च नधनः । अकम क मणं े धा मकं च न धा मकः ।। नगुणो गुणव तं च श ै तत् क लल णम् ।) दे वे ! (इसके बाद मने यह आदे श दया क) मनु य द नता, शठता और ोध न करे। कु टलता, मा सय और वैर कह न करे। माता- पता, व ान्, तप वी तथा माशील पु षका बु मान् मनु य कभी अपमान न करे। श शाली पु ष सदा मा करता है। श हीन मनु य सदा ोध करता है। मानव साधु पु षसे और बल अ धक बलवान्से े ष करता है। कु प मनु य पवान्से, नधन धनवान्से, अकम य कम न से और अधामक धमा मासे े ष करता है। इसी कार गुणहीन मनु य गुणवान्से डाह रखता है। इ ! यह क लका ल ण है। अ ोधनः ोधने यो व श तथा त त ुर त त ो व श ः । अमानुषे यो मानुषा धाना व ां तथैवा व षः धानः ।। ६ ।। ोध करनेवाल से वह पु ष े है, जो कभी ोध नह करता। इसी कार असहनशीलसे सहनशील उ म है, मनु येतर ा णय से मनु य े ह और मूख से व ान् उ म है ।। ६ ।। आ ु यमानो ना ोशे म युरेव त त तः । आ ो ारं नदह त सुकृतं चा य व द त ।। ७ ।। य द कोई कसीक न दा करता या उसे गाली दे ता हो तो वह भी बदलेम न दा या गाली-गलौज न करे; य क जो गाली या न दा सह लेता है, उस पु षका आ त रक ःख ही गाली दे नेवाले या अपमान करनेवालेको जला डालता है। साथ ही उसके पु यको भी वह ले लेता है ।। ७ ।। ना तुदः या नृशंसवाद न हीनतः परम यादद त । यया य वाचा पर उ जेत न तां वदे षत पापलो याम् ।। ८ ।। ोधवश कसीके मम- थानम चोट न प ँचाये (ऐसा बताव न करे, जससे कसीको मामक पीड़ा हो)। कसीके त कठोर बात भी मुँहसे न नकाले। अनु चत उपायसे श ुको भी वशम न करे। जो जीको जलानेवाली हो, जससे सरेको उ े ग होता हो, ऐसी बात मुँहसे न बोले; य क पापीलोग ही ऐसी बात बोला करते ह ।। ८ ।। ी

अ तुदं प षं ती णवाचं वा क टकै वतुद तं मनु यान् । व ादल मीकतमं जनानां मुखे नब ां नऋ त वह तम् ।। ९ ।। जो वभावका कठोर हो, सर के ममम चोट प ँचाता हो, तीखी बात बोलता हो और कठोर वचन पी काँट से सरे मनु यको पीड़ा दे ता हो, उसे अ य त ल मीहीन (द र या अभागा) समझे। (उसको दे खना भी बुरा है; य क) वह कड़वी बोलीके पम अपने मुँहम बँधी ई एक पशा चनीको ढो रहा है ।। ९ ।। स ः पुर ताद भपू जतः यात् स तथा पृ तो र तः यात् । सदासताम तवादां त त ेत् सतां वृ ं चादद तायवृ ः ।। १० ।। (अपना बताव और वहार ऐसा रखे, जससे) साधु पु ष सामने तो स कार कर ही, पीठ-पीछे भी उनके ारा अपनी र ा हो। लोग क कही ई अनु चत बात सदा सह लेनी चा हये तथा े पु ष के सदाचारका आ य लेकर साधु पु ष के वहारको ही अपनाना चा हये ।। १० ।। वा सायका वदना पत त यैराहतः शोच त रायहा न । पर य नाममसु ते पत त तान् प डतो नावसृजेत् परेषु ।। ११ ।। मनु य के मुखसे कटु वचन पी बाण सदा छू टते रहते ह, जनसे आहत होकर मनु य रात- दन शोक और च ताम डू बा रहता है। वे वा बाण सर के मम थान पर ही चोट करते ह। अतः व ान् पु ष सरेके त ऐसी कठोर वाणीका योग न करे ।। ११ ।। न ही शं संवननं षु लोकेषु व ते । दया मै ी च भूतेषु दानं च मधुरा च वाक् ।। १२ ।। सभी ा णय के त दया और मै ीका बताव, दान और सबके त मधुर वाणीका योग—तीन लोक म इनके समान कोई वशीकरण नह है ।। १२ ।। त मात् सा वं सदा वा यं न वा यं प षं व चत् । पू यान् स पूजयेद ् द ा च याचेत् कदाचन ।। १३ ।। इस लये कभी कठोर वचन न बोले। सदा सा वनापूण मधुर वचन ही बोले। पूजनीय पु ष का पूजन (आदर-स कार) करे। सर को दान दे और वयं कभी कसीसे कुछ न माँगे ।। १३ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण उ रयायाते स ताशी ततमोऽ यायः ।। ८७ ।।





ी ँ

इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम उ रयायात वषयक स ासीवाँ अ याय पूरा आ ।। ८७ ।। (दा णा य अ धक पाठक े ४ ोक मलाकर कुल १७ ोक ह)

अ ाशी ततमोऽ यायः यया तका वगसे पतन और अ कका उनसे इ

करना

उवाच

सवा ण कमा ण समा य राजन् गृहं प र य य वनं गतोऽ स । तत् वां पृ छा म न ष य पु केना स तु य तपसा ययाते ।। १ ।। इ ने कहा—राजन्! तुम स पूण कम को समा त करके घर छोड़कर वनम चले गये थे। अतः न षपु ययाते! म तुमसे पूछता ँ क तुम तप याम कसके समान हो ।। १ ।।

यया त वाच नाहं दे वमनु येषु ग धवषु मह षषु । आ मन तपसा तु यं कं चत् प या म वासव ।। २ ।। यया तने कहा—इ ! म दे वता , मनु य , ग धव और मह षय मसे कसीको भी तप याम अपनी बराबरी करनेवाला नह दे खता ँ ।। २ ।। इ उवाच यदावमं थाः स शः ेयस अ पीयस ा व दत भावः । त मा लोका व तव त तवेमे ीणे पु ये प तता य राजन् ।। ३ ।। इ बोले—राजन्! तुमने अपने समान, अपनेसे बड़े और छोटे लोग का भाव न जानकर सबका तर कार कया है, अतः तु हारे इन पु यलोक म रहनेक अव ध समा त हो गयी; य क ( सर क न दा करनेके कारण) तु हारा पु य ीण हो गया, इस लये अब तुम यहाँसे नीचे गरोगे ।। ३ ।। यया त वाच सुर षग धवनरावमानात् यं गता मे य द श लोकाः । इ छा यहं सुरलोकाद् वहीनः सतां म ये प ततुं दे वराज ।। ४ ।। यया तने कहा—दे वराज इ ! दे वता, ऋ ष, ग धव और मनु य आ दका अपमान करनेके कारण य द मेरे पु यलोक ीण हो गये ह तो इ लोकसे होकर म साधु पु ष के बीचम गरनेक इ छा करता ँ ।। ४ ।। इ उवाच े

सतां सकाशे प तता स राजंयुतः त ां य लधा स भूयः । एतद् व द वा च पुनययाते वं मावमं थाः स शः ेयस ।। ५ ।। इ बोले—राजा यया त! तुम यहाँसे युत होकर साधु पु ष के समीप गरोगे और वहाँ अपनी खोयी ई त ा पुनः ा त कर लोगे। यह सब जानकर तुम फर कभी अपने बराबर तथा अपनेसे बड़े लोग का अपमान न करना ।। ५ ।। वैश पायन उवाच ततः हायामरराजजु ान् पु याँ लोकान् पतमानं यया तम् । स े य राज षवरोऽ क तमुवाच स म वधानगो ता ।। ६ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर दे वराज इ के सेवन करनेयो य पु यलोक का प र याग करके राजा यया त नीचे गरने लगे। उस समय राज षय म े अ कने उ ह गरते दे खा। वे उ म धम- व धके पालक थे। उ ह ने यया तसे कहा ।। ६ ।।

यया तका पतन

अ क उवाच क वं युवा वासवतु य पः वतेजसा द यमानो यथा नः । पत युद णा बुधरा धकारात् खात् खेचराणां वरो यथाकः ।। ७ ।। अ कने पूछा—इ के समान सु दर पवाले त ण पु ष तुम कौन हो? तुम अपने तेजसे अ नक भाँ त दे द यमान हो रहे हो। मेघ पी घने अ धकारवाले आकाशसे आकाशचारी ह म े सूयके समान तुम कैसे गर रहे हो? ।। ७ ।। ् वा च वां सूयपथात् पत तं वै ानराक ु तम मेयम् । क नु वदे तत् पतती त सव वतकय तः प रमो हताः मः ।। ८ ।। तु हारा तेज सूय और अ नके स श है। तुम अ मेय श शाली जान पड़ते हो। तु ह सूयके मागसे गरते दे ख हम सब लोग मो हत होकर इस तक- वतकम पड़े ह क ‘यह या गर रहा है?’ ।। ८ ।। ् वा च वां ध तं दे वमाग श ाक व णु तम भावम् ।

अ युदगता ् वां वयम सव त वं पाते तव ज ासमानाः ।। ९ ।। तुम इ , सूय और व णुके समान भावशाली हो। तु ह आकाशम थत दे खकर हम सब लोग अब यह जाननेके लये तु हारे नकट आये ह क तु हारे पतनका यथाथ कारण या है? ।। ९ ।। न चा प वां धृ णुमः ु म े न च वम मान् पृ छ स ये वयं मः । तत् वां पृ छा म पृहणीय प क य वं वा क न म ं वमागाः ।। १० ।। हम पहले तुमसे कुछ पूछनेका साहस नह कर सकते और तुम भी हमसे हमारा प रचय नह पूछते हो; क हम कौन ह? इस लये म ही तुमसे पूछता ँ। मनोरम पवाले महापु ष! तुम कसके पु हो? और कस लये यहाँ आये हो? ।। १० ।। भयं तु ते ेतु वषादमोहौ यजाशु चैवे सम भाव । वां वतमानं ह सतां सकाशे नालं सोढुं बलहा प श ः ।। ११ ।। इ के तु य श शाली पु ष! तु हारा भय र हो जाना चा हये। अब तु ह वषाद और मोहको भी तुरंत याग दे ना चा हये। इस समय तुम संत के समीप व मान हो। बल दानवका नाश करनेवाले इ भी अब तु हारा तेज सहन करनेम असमथ ह ।। ११ ।। स तः त ा ह सुख युतानां सतां सदै वामरराजक प । ते संगताः थावरज मेशाः त त वं स शेषु स सु ।। १२ ।। दे वे र इ के समान तेज वी महानुभाव! सुखसे वं चत होनेवाले साधु पु ष के लये सदा संत ही परम आ य ह। वे थावर और जंगम सब ा णय पर शासन करनेवाले स पु ष यहाँ एक ए ह। तुम अपने समान पु या मा संत के बीचम थत हो ।। १२ ।। भुर नः तपने भू मरावपने भुः । भुः सूयः का श वे सतां चा यागतः भुः ।। १३ ।। जैसे तपनेक श अ नम है, बोये ए बीजको धारण करनेक श पृ वीम है, का शत होनेक श सूयम है, इसी कार संत पर शासन करनेक श केवल अ त थम है ।। १३ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण उ रयायाते अ ाशी ततमोऽ यायः ।। ८८ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम उ रयायात वषयक अासीवाँ अ याय पूरा आ ।। ८८ ।।

एकोननव ततमोऽ यायः यया त और अ कका संवाद यया त वाच अहं यया तन ष य पु ः पूरोः पता सवभूतावमानात् । ं शतः सुर स षलोकात् प र युतः पता य पपु यः ।। १ ।। यया तने कहा—महा मन्! म न षका पु और पू का पता यया त ँ। सम त ा णय का अपमान करनेसे मेरा पु य ीण हो जानेके कारण म दे वता , स तथा मह षय के लोकसे युत होकर नीचे गर रहा ँ ।। १ ।। अहं ह पूव वयसा भवद् यतेना भवादं भवतां न यु े । यो व या तपसा ज मना वा वृ ः स पू यो भव त जानाम् ।। २ ।। म आपलोग से अव थाम बड़ा ँ, अतः आपलोग को णाम नह कर रहा ँ। जा तय म जो व ा, तप और अव थाम बड़ा होता है, वह पूजनीय माना जाता है ।। २ ।।

अ क उवाच अवाद वं वयसा यः वृ ः स वै राजन् ना य धकः कयते च । यो व या तपसा स वृ ः स एव पू यो भव त जानाम् ।। ३ ।। अ क बोले—राजन्! आपने कहा है क जो अव थाम बड़ा हो, वही अ धक स माननीय कहा जाता है। परंतु ज म तो जो व ा और तप याम बढ़ा-चढ़ा हो, वही पू य होता है ।। ३ ।। यया त वाच तकूलं कमणां पापमा तद् वततेऽ वणे पापलो यम् । स तोऽसतां नानुवत त चैतद् यथा चैषामनुकूला तथाऽऽसन् ।। ४ ।। यया तने कहा—पापको पु यकम का नाशक बताया जाता है, वह नरकक ा त करानेवाला है और वह उ ड पु ष म ही दे खा जाता है। राचारी पु ष के राचारका े े

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पु ष अनुसरण नह करते ह। पहलेके साधु पु ष भी उन े पु ष के ही अनुकूल आचरण करते थे ।। ४ ।। अभूद ् धनं मे वपुलं गतं तद् वचे मानो ना धग ता तद म । एवं धाया म हते न व ो यो वतते स वजाना त धीरः ।। ५ ।। मेरे पास पु य पी ब त धन था; कतु सर क न दा करनेके कारण वह सब न हो गया। अब म चे ा करके भी उसे नह पा सकता। मेरी इस रव थाको समझ-बूझकर जो आ मक याणम संल न रहता है, वही ानी और वही धीर है ।। ५ ।। महाधनो यो यजते सुय ैयः सव व ासु वनीतबु ः । वेदानधी य तपसाऽऽयो य दे हं दवं समायात् पु षो वीतमोहः ।। ६ ।। जो मनु य ब त धनी होकर उ म य ारा भगवान्क आराधना करता है, स पूण व ा को पाकर जसक बु वनययु है तथा जो वेद को पढ़कर अपने शरीरको तप याम लगा दे ता है, वह पु ष मोहर हत होकर वगम जाता है ।। ६ ।। न जातु ये महता धनेन वेदानधीयीतानहंकृतः यात् । नानाभावा बहवो जीवलोके दै वाधीना न चे ा धकाराः । तत् तत् ा य न वह येत धीरो द ं बलीय इ त म वाऽऽ मबुा ।। ७ ।। महान् धन पाकर कभी हषसे उ ल सत न हो, वेद का अ ययन करे, कतु अहंकारी न बने। इस जीव-जगत्म भ - भ वभाववाले ब त-से ाणी ह, वे सभी ार धके अधीन ह, अतः उनके धना द पदाथ के लये कये ए उ ोग और अ धकार सभी थ हो जाते ह। इस लये धीर पु षको चा हये क वह अपनी बु से ‘ ार ध ही बलवान् है’ यह जानकर ःख या सुख जो भी मले, उसम वकारको ा त न हो ।। ७ ।। सुखं ह ज तुय द वा प ःखं दै वाधीनं व दते ना मश या । त माद् द ं बलव म यमानो न सं वरे ा प येत् कथं चत् ।। ८ ।। जीव जो सुख अथवा ःख पाता है, वह ार धसे ही ा त होता है, अपनी श से नह । अतः ार धको ही बलवान् मानकर मनु य कसी कार भी हष अथवा शोक न करे ।। ८ ।। ःखैन त ये सुखैः येत् समेन वतत सदै व धीरः । ी ो

द ं बलीय इ त म यमानो न सं वरे ा प येत् कथं चत् ।। ९ ।। ःख से संत त न हो और सुख से ह षत न हो। धीर पु ष सदा समभावसे ही रहे और भा यको ही बल मानकर कसी कार च ता एवं हषके वशीभूत न हो ।। ९ ।। भये न मु ा य काहं कदा चत् संतापो मे मानसो ना त क त् । धाता यथा मां वदधीत लोके ुवं तथाहं भ वते त म वा ।। १० ।। अ क! म कभी भयम पड़कर मो हत नह होता, मुझे कोई मान सक संताप भी नह होता; य क म समझता ँ क वधाता इस संसारम मुझे जैसे रखेगा, वैसे ही र ँगा ।। १० ।। सं वेदजा अ डजा ो द सरीसृपाः कृमयोऽथा सु म याः । तथा मान तृणका ं च सव द ये वां कृ त भज त ।। ११ ।। वेदज, अ डज, उ ज, सरीसृप, कृ म, जलम रहनेवाले म य आ द जीव तथा पवत, तृण और का —ये सभी ार ध-भोगका सवथा य हो जानेपर अपनी कृ तको ा त हो जाते ह ।। ११ ।। अ न यतां सुख ःख य बुद ् वा क मात् संतापम काहं भजेयम् । क कुया वै क च कृ वा न त ये त मात् संतापं वजया य म ः ।। १२ ।। अ क! म सुख तथा ःख दोन क अ न यताको जानता ँ, फर मुझे संताप हो तो कैसे? म या क ँ और या करके संत त न होऊँ, इन बात क च ता छोड़ चुका ँ। अतः सावधान रहकर शोक-संतापको अपनेसे र रखता ँ ।। १२ ।। ( ःखे न ख े सुखेन मा ेत् समेन वतत स धीरधमा । द ं बलीयः समवे य बुद ् या न स जते चा भृशं मनु यः ।।) जो ःखम ख नह होता, सुखसे मतवाला नह हो उठता और सबके साथ समान भावसे बताव करता है, वह धीर कहा गया है। व मनु य बु से ार धको अ य त बलवान् समझकर यहाँ कसी भी वषयम अ धक आस नह होता। वैश पायन उवाच एवं ुवाणं नृप त यया तमथा कः पुनरेवा वपृ छत् । ो

मातामहं सवगुणोपप ं त थतं वगलोके यथावत् ।। १३ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! राजा यया त सम त सद्गुण से स प थे और नातेम अ कके नाना लगते थे। वे अ त र म वैसे ही ठहरे ए थे, मानो वगलोकम ह । जब उ ह ने उपयु बात कह , तब अ कने उनसे पुनः कया ।। १३ ।। अ क उवाच ये ये लोकाः पा थवे धानावया भु ा यं च कालं यथावत् । तान् मे राजन् ू ह सवान् यथावत् े वद् भाषसे वं ह धमान् ।। १४ ।। अ क बोले—महाराज! आपने जन- जन धान लोक म रहकर जतने समयतक वहाँके सुख का भलीभाँ त उपभोग कया है, उन सबका मुझे यथाथ प रचय द जये। राजन्! आप तो महा मा क भाँ त धम का उपदे श कर रहे ह ।। १४ ।। यया त वाच राजाहमास मह सावभौमततो लोकान् महत ाजयं वै । त ावसं वषसह मा ं ततो लोकं परम य युपेतः ।। १५ ।। यया तने कहा—अ क! म पहले सम त भूम डलम स च वत राजा था। तदन तर स कम ारा बड़े-बड़े लोक पर मने वजय ा त क और उनम एक हजार वष तक नवास कया। इसके बाद उनसे भी उ चतम लोकम जा प ँचा ।। १५ ।। ततः पुर पु त य र यां सह ारां शतयोजनायताम् । अ यावसं वषसह मा ं ततो लोकं परम य युपेतः ।। १६ ।। वहाँ सौ योजन व तृत और एक हजार दरवाज से यु इ क रमणीय पुरी ा त ई। उसम मने केवल एक हजार वष तक नवास कया और उसके बाद उससे भी ऊँचे लोकम गया ।। १६ ।। ततो द मजंर ा य लोकं जापतेल कपते रापम् । त ावसं वषसह मा ं ततो लोकं परम य युपेतः ।। १७ ।। तदन तर लोकपाल के लये भी लभ जाप तके उस द लोकम जा प ँचा, जहाँ जराव थाका वेश नह है। वहाँ एक हजार वषतक रहा, फर उससे भी उ म लोकम चला गया ।। १७ ।। े े े े

स दे वदे व य नवेशने च व य लोकानवसं यथे म् । स पू यमान दशैः सम तैतु य भाव ु तरी राणाम् ।। १८ ।। वह दे वा धदे व ाजीका धाम था। वहाँ म अपनी इ छाके अनुसार भ - भ लोक म वहार करता आ स पूण दे वता से स मा नत होकर रहा। उस समय मेरा भाव और तेज दे वे र के समान था ।। १८ ।। तथावसं न दने काम पी संव सराणामयुतं शतानाम् । सहा सरो भ वहरन् पु यग धान् प यन् नगान् पु पतां ा पान् ।। १९ ।। इसी कार म न दनवनम इ छानुसार प धारण करके अ सरा के साथ वहार करता आ दस लाख वष तक रहा। वहाँ मुझे प व ग ध और मनोहर पवाले वृ दे खनेको मले, जो फूल से लदे ए थे ।। १९ ।। त थतं मां दे वसुखेषु स ं कालेऽतीते मह त ततोऽ तमा म् । तो दे वानाम वी पो वंसे यु चै ः लुतेन वरेण ।। २० ।। वहाँ रहकर म दे वलोकके सुख म आस हो गया। तदन तर ब त अ धक समय बीत जानेपर एक भयंकर पधारी दे व त आकर मुझसे ऊँची आवाजम तीन बार बोला—‘ गर जाओ, गर जाओ, गर जाओ’ ।। २० ।। एताव मे व दतं राज सह ततो ोऽहं न दनात् ीणपु यः । वाचोऽ ौषं चा त र े सुराणां सानु ोशाः शोचतां मां नरे ।। २१ ।। राज शरोमणे! मुझे इतना ही ात हो सका है। तदन तर पु य ीण हो जानेके कारण म न दनवनसे नीचे गर पड़ा। नरे ! उस समय मेरे लये शोक करनेवाले दे वता क अ त र म यह दयाभरी वाणी सुनायी पड़ी— ।। २१ ।। अहो क ं ीणपु यो यया तः पत यसौ पु यकृत् पु यक तः । तान ुवं पतमान ततोऽहं सतां म ये नपतेयं कथं नु ।। २२ ।। ‘अहो! बड़े क क बात है क प व क तवाले ये पु यकमा महाराज यया त पु य ीण होनेके कारण नीचे गर रहे ह।’ तब नीचे गरते ए मने उनसे पूछा—‘दे वताओ! म साधु पु ष के बीच ग ँ , इसका या उपाय है!’ ।। २२ ।। तैरा याता भवतां य भू मः ी े ो

समी य चेमां व रतमुपागतोऽ म । ह वग धं दे शकं य भूमेधूमापा ं तगृ तीतः ।। २३ ।। तब दे वता ने मुझे आपक य भू मका प रचय दया। म इसीको दे खता आ तुरंत यहाँ आ प ँचा ँ। य भू मका प रचय दे नेवाली ह व यक सुग धका अनुभव तथा धूम ा तका अवलोकन करके मुझे बड़ी स ता और सा वना मली है ।। २३ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण उ रयायाते एकोननव ततमोऽ यायः ।। ८९ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम उ रयायात वषयक नवासीवाँ अ याय पूरा आ ।। ८९ ।। (दा णा य अ धक पाठक े १ ोक मलाकर कुल २४ ोक ह)

नव ततमोऽ यायः अ क और यया तका संवाद अ क उवाच यदावसो न दने काम पी संव सराणामयुतं शतानाम् । क कारणं कातयुग धान ह वा च वं वसुधाम वप ः ।। १ ।। अ कने पूछा—स ययुगके न पाप राजा म धान नरेश! जब आप इ छानुसार प धारण करके दस लाख वष तक न दनवनम नवास कर चुके ह, तब या कारण है क आप उसे छोड़कर भूतलपर चले आये? ।। १ ।।

यया त वाच ा तः सु त् वजनो वा यथेह ीणे व े य यते मानवै ह । तथा त ीणपु यं मनु यं यज त स ः से रा दे वसङ् घाः ।। २ ।। यया त बोले—जैसे इस लोकम जा त-भाई, सु द् अथवा वजन कोई भी य न हो, धन न हो जानेपर उसे सब मनु य याग दे ते ह; उसी कार परलोकम जसका पु य समा त हो गया है, उस मनु यको दे वराज इ स हत स पूण दे वता तुरंत याग दे ते ह ।। २ ।। अ क उवाच त मन् कथं ीणपु या भव त स मु ते मेऽ मनोऽ तमा म् । क वा व श ाः क य धामोपया त तद् वै ू ह े वत् वं मतो मे ।। ३ ।। अ कने पूछा—दे वलोकम मनु य के पु य कैसे ीण होते ह? इस वषयम मेरा मन अ य त मो हत हो रहा है। जाप तका वह कौन-सा धाम है, जसम व श (अपुनरावृ क यो यतावाले) पु ष जाते ह? यह बताइये; य क आप मुझे े (आ म ानी) जान पड़ते ह ।। ३ ।। यया त वाच इमं भौमं नरकं ते पत त लाल यमाना नरदे व सव । ते कङ् कगोमायुबलाशनाथ* ी

ीणा ववृ ब धा ज त ।। ४ ।। यया त बोले—नरदे व! जो अपने मुखसे अपने पु य-कम का बखान करते ह, वे सभी इस भौम नरकम आ गरते ह। यहाँ वे गीध , गीदड़ और कौ आ दके खानेयो य इस शरीरके लये बड़ा भारी प र म करके ीण होते और पु -पौ ा द पसे ब धा व तारको ा त होते ह ।। ४ ।। त मादे तद् वजनीयं नरे ं लोके गहणीयं च कम । आ यातं ते पा थव सवमेव भूय ेदान वद क ते वदा म ।। ५ ।। इस लये नरे ! इस लोकम जो और न दनीय कम हो उसको सवथा याग दे ना चा हये। भूपाल! मने तुमसे सब कुछ कह दया, बोलो, अब और तु ह या बताऊँ? ।। ५ ।। अ क उवाच यदा तु तान् वतुद ते वयां स तथा गृ ाः श तक ठाः पत ाः । कथं भव त कथमाभव त न भौमम यं नरकं शृणो म ।। ६ ।। अ कने पूछा—जब मनु य को मृ युके प ात् प ी, गीध, नीलक ठ और पतंग ये नोच-नोचकर खा लेते ह, तब वे कैसे और कस पम उ प होते ह? मने अबतक भौम नामक कसी सरे नरकका नाम नह सुना था ।। ६ ।।

यया त वाच ऊ व दे हात् कमणा जृ भमाणाद् ं पृ थ ामनुसंचर त । इमं भौमं नरकं ते पत त नावे ते वषपूगाननेकान् ।। ७ ।। यया त बोले—कमसे उ प होने और बढ़नेवाले शरीरको पाकर गभसे नकलनेके प ात् जीव सबके सम इस पृ वीपर ( वषय म) वचरते ह। उनका यह वचरण ही भौम नरक कहा गया है। इसीम वे पड़ते ह। इसम पड़नेपर वे थ बीतनेवाले अनेक वषसमूह क ओर पात नह करते ।। ७ ।। ष सह ा ण पत त ो न तथा अशी त प रव सरा ण । तान् वै तुद त पततः पातं भीमा भौमा रा सा ती णदं ाः ।। ८ ।। कतने ही ाणी आकाश ( वगा द)-म साठ हजार वष रहते ह। कुछ अ सी हजार वष तक वहाँ नवास करते ह। इसके बाद वे भू मपर गरते ह। यहाँ उन गरनेवाले जीव को ी ी े ी े ( ी) ी े े

तीखी दाढ़ वाले पृ वीके भयानक रा स ( ाणी) अ य त पीड़ा दे ते ह ।। ८ ।। अ क उवाच यदे नस ते पतत तुद त भीमा भौमा रा सा ती णदं ाः । कथं भव त कथमाभव त कथंभूता गभभूता भव त ।। ९ ।। अ कने पूछा—तीखी दाढ़ वाले पृ वीके वे भयंकर रा स पापवश आकाशसे गरते ए जन जीव को सताते ह, वे गरकर कैसे जी वत रहते ह? कस कार इ य आ दसे यु होते ह? और कैसे गभम आते ह? ।। ९ ।। यया त वाच अ ं रेतः पु पफलानुपृ म वे त तद् वै पु षेण सृ म् । स वै त या रज आप ते वै स गभभूतः समुपै त त ।। १० ।। यया त बोले—अ त र से गरा आ ाणी अ (जल) होता है। फर वही मशः नूतन शरीरका बीजभूत वीय बन जाता है। वह वीय फूल और फल पी शेष कम से संयु होकर तदनु प यो नका अनुसरण करता है। गभाधान करनेवाले पु षके ारा ीसंसग होनेपर वह वीयम आ व आ जीव उस ीके रजसे मल जाता है। तदन तर वही गभ पम प रणत हो जाता है ।। १० ।। वन पतीनोषधी ा वश त अपो वायुं पृ थव चा त र म् । चतु पदं पदं चा प सवमेव भूता गभभूता भव त ।। ११ ।। जीव जल पसे गरकर वन प तय और ओष धय म वेश करते ह। जल, वायु, पृ वी और अ त र आ दम वेश करते ए कमानुसार पशु अथवा मनु य सब कुछ होते ह। इस कार भू मपर आकर फर पूव मके अनुसार गभभावको ा त होते ह ।। ११ ।। अ क उवाच अ यद् वपु वदधातीह गभमुताहो वत् वेन कायेन या त । आप मानो नरयो नमेतामाच व मे संशयात् वी म ।। १२ ।। अ कने पूछा—राजन्! इस मनु ययो नम आनेवाला जीव अपने इसी शरीरसे गभम आता है या सरा शरीर धारण करता है। आप यह रह य मुझे बताइये। म संशय होनेके कारण पूछता ँ ।। १२ ।। ी



शरीरभेदा भसमु यं च च ुः ो े लभते केन सं ाम् । एतत् त वं सवमाच व पृ ः े ं वां तात म याम सव ।। १३ ।। गभम आनेपर वह भ - भ शरीर पी आ यको, आँख और कान आ द इ य को तथा चेतनाको भी कैसे उपल ध करता है? मेरे पूछनेपर ये सब बात आप बताइये। तात! हम सब लोग आपको े (आ म ानी) मानते ह ।। १३ ।। यया त वाच वायुः समु कष त गभयो नमृतौ रेतः पु परसानुपृ म् । स त त मा कृता धकारः मेण संवधयतीह गभम् ।। १४ ।। यया त बोले—ऋतुकालम पु परससे संयु वीयको वायु गभाशयम ख च लाता है। वहाँ गभाशयम सू मभूत उसपर अ धकार कर लेते ह और वह मशः गभक वृ करता रहता है ।। १४ ।। स जायमानो वगृहीतमा ः सं ाम ध ाय ततो मनु यः । स ो ा यां वेदयतीह श दं स वै पं प य त च ुषा च ।। १५ ।। वह गभ बढ़कर जब स पूण अवयव से स प हो जाता है, तब चेतनताका आ य ले यो नसे बाहर नकलकर मनु य कहलाता है। वह कान से श द सुनता है, आँख से प दे खता है ।। १५ ।। ाणेन ग धं ज याथो रसं च वचा पश मनसा वेद भावम् । इ य केहोप हतं ह व महा मनां ाणभृतां शरीरे ।। १६ ।। ना सकासे सुग ध लेता है। ज ासे रसका आ वादन करता है। वचासे पश और मनसे आ त रक भाव का अनुभव करता है। अ क! इस कार महा मा ाणधा रय के शरीरम जीवक थापना होती है ।। १६ ।। अ क उवाच यः सं थतः पु षो द ते वा नख यते वा प नकृ यते वा । अभावभूतः स वनाशमे य केना मना चेतयते पर तात् ।। १७ ।। े









अ कने पूछा—जो मनु य मर जाता है, वह जलाया जाता है या गाड़ दया जाता है अथवा जलम बहा दया जाता है। इस कार वनाश होकर थूल शरीरका अभाव हो जाता है। फर वह चेतन जीवा मा कस शरीरके आधारपर रहकर चैत ययु वहार करता है? ।। १७ ।। यया त वाच ह वा सोऽसून् सु तव न वा पुरोधाय सुकृतं कृतं वा । अ यां यो न पवना ानुसारी ह वा दे हं भजते राज सह ।। १८ ।। यया त बोले—राज सह! जैसे मनु य ास लेते ए ाणयु थूल शरीरको छोड़कर व म वचरण करता है, वैसे ही यह चेतन जीवा मा अ फुट श दो चारणके साथ इस मृतक थूल शरीरको यागकर सू म शरीरसे संयु होता है और फर पु य अथवा पापको आगे रखकर वायुके समान वेगसे चलता आ अ य यो नको ा त होता है ।। १८ ।। पु यां यो न पु यकृतो ज त पापां यो न पापकृतो ज त । क टाः पत ा भव त पापा न मे वव ा त महानुभाव ।। १९ ।। चतु पदा पदाः षट् पदा तथाभूता गभभूता भव त । आ यातमेत खलेन सव भूय तु क पृ छ स राज सह ।। २० ।। पु य करनेवाले मनु य पु य-यो नय म जाते ह और पाप करनेवाले मनु य पाप-यो नम जाते ह। इस कार पापी जीव क ट-पतंग आ द होते ह। महानुभाव! इन सब वषय को व तारके साथ कहनेक इ छा नह होती। नृप े ! इसी कार जीव गभम आकर चार पैर, छः पैर और दो पैरवाले ा णय के पम उ प होते ह। यह सब मने पूरा-पूरा बता दया। अब और या पूछना चाहते हो? ।। १९-२० ।। अ क उवाच क वत् कृ वा लभते तात लोकान् म यः े ां तपसा व या वा । त मे पृ ः शंस सव यथावछु भाँ लोकान् येन ग छे त् मेण ।। २१ ।। अ कने पूछा—तात! मनु य कौन-सा कम करके उ म लोक ा त करता है? वे लोक तपसे ा त होते ह या व ासे? म यही पूछता ँ। जस कमके ारा मशः े लोक क ा त हो सके, वह सब यथाथ पसे बताइये ।। २१ ।।

यया त वाच तप

दानं च शमो दम ीराजवं सवभूतानुक पा । वग य लोक य वद त स तो ारा ण स तैव महा त पुंसाम् । न य त मानेन तमोऽ भभूताः पुंसः सदै वे त वद त स तः ।। २२ ।। यया त बोले—राजन्! साधु पु ष वगलोकके सात महान् दरवाजे बतलाते ह, जनसे ाणी उसम वेश करते ह। उनके नाम ये ह—तप, दान, शम, दम, ल जा, सरलता और सम त ा णय के त दया। वे तप आ द ार सदा ही पु षके अ भमान प तमसे आ छा दत होनेपर न हो जाते ह, यह संत पु ष का कथन है ।। २२ ।। अधीयानः प डतं म यमानो यो व या ह त यशः परेषाम् । त या तव त भव त लोका न चा य तद् फलं ददा त ।। २३ ।। जो वेद का अ ययन करके अपनेको सबसे बड़ा प डत मानता और अपनी व ा ारा सर के यशका नाश करता है, उसके पु यलोक अ तवान् ( वनाशशील) होते ह और उसका पढ़ा आ वेद भी उसे फल नह दे ता ।। २३ ।। च वा र कमा यभयंकरा ण भयं य छ ययथाकृता न । माना नहो मुत मानमौनं मानेनाधीतमुत मानय ः ।। २४ ।। अ नहो , मौन, अ ययन और य —ये चार कम मनु यको भयसे मु करनेवाले ह; परंतु वे ही ठ कसे न कये जायँ, अ भमानपूवक उनका अनु ान कया जाय तो वे उलटे भय दान करते ह ।। २४ ।। न मानमा यो मुदमादद त न संतापं ा ुया चावमानात् । स तः सतः पूजय तीह लोके नासाधवः साधुबु लभ ते ।। २५ ।। व ान् पु ष स मा नत होनेपर अ धक आन दत न हो और अपमा नत होनेपर संत त न हो। इस लोकम संत पु ष ही स पु ष का आदर करते ह। पु ष को ‘यह स पु ष है’ ऐसी बु ा त ही नह होती ।। २५ ।। इ त द ा म त यज इ यधीय इ त तम् । इ येता न भया या ता न व या न सवशः ।। २६ ।। े





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म यह दे सकता ँ, इस कार यजन करता ँ, इस तरह वा यायम लगा रहता ँ और यह मेरा त है; इस कार जो अहंकारपूवक वचन ह, उ ह भय प कहा गया है। ऐसे वचन को सवथा याग दे ना चा हये ।। २६ ।। ये चा यं वेदय ते पुराणं मनी षणो मानसमाग म् । त ः ेय तेन संयोगमे य परां शा तं ा ुयुः े य चेह ।। २७ ।। जो सबका आ य है, पुराण (कूट थ) है तथा जहाँ मनक ग त भी क जाती है वह (पर परमा मा) तुम सब लोग के लये क याणकारी हो। जो व ान् उसे जानते ह, वे उस पर परमा मासे संयु होकर इहलोक और परलोकम परम शा तको ा त होते ह ।। २७ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण उ रयायाते नव ततमोऽ यायः ।। ९० ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम उ रयायात वषयक न बेवाँ अ याय पूरा आ ।। ९० ।।

* ‘बल’ श दका अथ यहाँ कौआ कया गया है; जो ‘ थौ यसाम यसै येषु बलं ना काकसी रणोः’ अमरकोषके इस वा यसे सम थत होता है।

एकनव ततमोऽ यायः यया त और अ कका आ मधमस ब धी संवाद अ क उवाच चरन् गृह थः कथमे त धमान् कथं भ ुः कथमाचायकमा । वान थः स पथे सं न व ो ब य मन् स त वेदय त ।। १ ।। अ कने पूछा—महाराज! वेद व ान् इस धमके अ तगत ब त-से कम को उ म लोक क ा तका ार बताते ह; अतः म पूछता ँ, आचायक सेवा करनेवाला चारी, गृह थ, स मागम थत वान थ और सं यासी कस कार धमाचरण करके उ म लोकम जाता है? ।। १ ।।

यया त वाच आता यायी गु कम वचो ः पूव थायी चरमं चोपशायी । मृ दा तो धृ तमान म ः वा यायशीलः स य त चारी ।। २ ।। यया त बोले— श यको उ चत है क गु के बुलानेपर उसके समीप जाकर पढ़े । गु क सेवाम बना कहे लगा रहे, रातम गु जीके सो जानेके बाद सोये और सबेरे उनसे पहले ही उठ जाय। वह मृ ल ( वन ), जते य, धैयवान्, सावधान और वा यायशील हो। इस नयमसे रहनेवाला चारी स को पाता है ।। २ ।। धमागतं ा य धनं यजेत द ात् सदै वा तथीन् भोजये च । अनाददान परैरद ं सैषा गृह थोप नषत् पुराणी ।। ३ ।। गृह थ पु ष यायसे ा त ए धनको पाकर उससे य करे, दान दे और सदा अ त थय को भोजन करावे। सर क व तु उनके दये बना हण नह करे। यह गृह थधमका ाचीन एवं रह यमय व प है ।। ३ ।। ववीयजीवी वृ जना वृ ो दाता परे यो न परोपतापी । ता ङ् मु नः स मुपै त मु यां वस र ये नयताहारचे ः ।। ४ ।। वान थ मु न वनम नवास करे। आहार और वहारको नय मत रखे। अपने ही परा म एवं प र मसे जीवन- नवाह करे, पापसे र रहे। सर को दान दे और कसीको ँ

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क न प ँचावे। ऐसा मु न परम मो को ा त होता है ।। ४ ।। अ श पजीवी गुणवां ैव न यं जते यः सवतो व यु ः । अनोकशायी लघुर प चाररन् दे शानेकचरः स भ ुः ।। ५ ।। सं यासी श पकलासे जीवन- नवाह न करे। शम, दम आ द े गुण से स प हो। सदा अपनी इ य को काबूम रखे। सबसे अलग रहे। गृह थके घरम न सोये। प र हका भार न लेकर अपनेको हलका रखे। थोड़ा थोड़ा चले। अकेला ही अनेक थान म मण करता रहे। ऐसा सं यासी ही वा तवम भ ु कहलानेयो य है ।। ५ ।। राया यया वा भ जता लोका भव त कामा भ जताः सुखा । तामेव रा यतेत व ानर यसं थो भ वतुं यता मा ।। ६ ।। जस समय प, रस आ द वषय तु छ तीत होने लग, इ छानुसार जीत लये जायँ तथा उनके प र यागम ही सुख जान पड़े, उसी समय व ान् पु ष मनको वशम करके सम त सं ह का याग कर वनवासी होनेका य न करे ।। ६ ।। दशैव पूवान् दश चापरां ातीनथा मानमथैक वशम् । अर यवासी सुकृते दधा त वमु यार ये वशरीरधातून् ।। ७ ।। जो वनवासी मु न वनम ही अपने पंचभूता मक शरीरका प र याग करता है, वह दस पीढ़ पूवके और दस पीढ़ बादके जा त-भाइय को तथा इ क सव अपनेको भी पु यलोक म प ँचा दे ता है ।। ७ ।। अ क उवाच क त वदे व मुनयः क त मौना न चा युत । भव ती त तदाच व ोतु म छामहे वयम् ।। ८ ।। अ कने पूछा—राजन्! मु न कतने ह? और मौन कतने कारके ह? यह बताइये, हम इसे सुनना चाहते ह ।। ८ ।। यया त वाच अर ये वसतो य य ामो भव त पृ तः । ामे वा वसतोऽर यं स मु नः या जना धप ।। ९ ।। यया तने कहा—जने र! अर यम नवास करते समय जसके लये ाम पीछे होता है और ामम वास करते समय जसके लये अर य पीछे होता है, वह मु न कहलाता है ।। ९ ।।

अ क उवाच कथं वद् वसतोऽर ये ामो भव त पृ तः । ामे वा वसतोऽर यं कथं भव त पृ तः ।। १० ।। अ कने पूछा—अर यम नवास करनेवालेके लये ाम और ामम नवास करनेवालेके लये अर य पीछे कैसे है? ।। १० ।। यया त वाच न ा यमुपयु ीत य आर यो मु नभवेत् । तथा य वसतोऽर ये ामो भव त पृ तः ।। ११ ।। यया तने कहा—जो मु न वनम नवास करता है और गाँव म ा त होनेवाली व तु का उपयोग नह करता, इस कार वनम नवास करनेवाले उस (वान थ) मु नके लये गाँव पीछे समझा जाता है ।। ११ ।। अन नर नकेत ा यगो चरणो मु नः । कौपीना छादनं यावत् ताव द छे च चीवरम् ।। १२ ।। यावत् ाणा भसंधानं ताव द छे च भोजनम् । तथा य वसतो ामेऽर यं भव त पृ तः ।। १३ ।। जो अ न और गृहको याग चुका है, जसका गो और चरण (वेदक शाखा एवं जा त)-से भी स ब ध नह रह गया है, जो मौन रहता है और उतने ही व क इ छा रखता है जतनेसे लंगोट और ओढ़नेका काम चल जाय; इसी कार जतनेसे ाण क र ा हो सके उतना ही भोजन चाहता है; इस नयमसे गाँवम नवास करनेवाले उस (सं यासी) मु नके लये अर य पीछे समझा जाता है ।। १२-१३ ।। य तु कामान् प र य य य कमा जते यः । आ त े च मु नमनं स लोके स मा ुयात् ।। १४ ।। जो मु न स पूण कामना को छोड़कर कम को याग चुका है और इ य-संयमपूवक सदा मौनम थत है, ऐसा सं यासी लोकम परम स को ा त होता है ।। १४ ।। धौतद तं कृ नखं सदा नातमलंकृतम् । अ सतं सतकमाणं क तमह त ना चतुम् ।। १५ ।। जसके दाँत शु और साफ ह, जसके नख (और केश) कटे ए ह, जो सदा नान करता है तथा यम- नयमा दसे अलंकृत (है, उ ह धारण कये ए) है, शीतो णको सहनेसे जसका शरीर याम पड़ गया है, जसके आचरण उ म ह—ऐसा सं यासी कसके लये पूजनीय नह है? ।। १५ ।। तपसा क शतः ामः ीणमांसा थशो णतः । स च लोक ममं ज वा लोकं वजयते परम् ।। १६ ।। तप यासे मांस, ही तथा र के ीण हो जानेपर जसका शरीर कृश और बल हो गया है, वह (वान थ) मु न इस लोकको जीतकर परलोकपर भी वजय पाता है ।। १६ ।। यदा भव त न ो मु नम नं समा थतः । ो ो े

अथ लोक ममं ज वा लोकं वजयते परम् ।। १७ ।। जब (वान थ) मु न सुख- ःख, राग- े ष आ द से र हत एवं भलीभाँ त मौनावल बी हो जाता है, तब वह इस लोकको जीतकर परलोकपर भी वजय पाता है ।। १७ ।। आ येन तु यदाहारं गोव मृगयते मु नः । अथा य लोकः सव ऽयं सोऽमृत वाय क पते ।। १८ ।। जब सं यासी मु न गाय-बैल क तरह मुखसे ही आहार हण करता है, हाथ आ दका भी सहारा नह लेता, तब उसके ारा ये सब लोक जीत लये गये समझे जाते ह और वह मो क ा तके लये समथ समझा जाता है ।। १८ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण उ रयायाते एकनव ततमोऽ यायः ।। ९१ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम उ रयायात वषयक इ यानबेवाँ अ याय पूरा आ ।। ९१ ।।

नव ततमोऽ यायः अ क-यया त-संवाद और यया त ारा सर के दये ए पु यदानको अ वीकार करना अ क उवाच कतर वनयोः पूव दे वानामे त सा मताम् । उभयोधावतो राजन् सूयाच मसो रव ।। १ ।। अ कने पूछा—राजन्! सूय और च माक तरह अपने-अपने ल यक ओर दौड़ते ए वान थ और सं यासी इन दोन मसे पहले कौन-सा दे वता के आ मभाव ( )-को ा त होता है? ।। १ ।। यया त वाच अ नकेतो गृह थेषु कामवृ ेषु संयतः । ाम एव वसन् भ ु तयोः पूवतरं गतः ।। २ ।। यया त बोले—कामवृ वाले गृह थ के बीच ामम ही वास करते ए भी जो जते य और गृहर हत सं यासी है, वही उन दोन कारके मु नय म पहले भावको ा त होता है ।। २ ।। अवा य द घमायु तु यः ा तो वकृ त चरेत् । त यते य द तत् कृ वा चरेत् सोऽ यत् तप ततः ।। ३ ।। जो वान थ बड़ी आयु पाकर भी वषय के ा त होनेपर उनसे वकृत हो उ ह म वचरने लगता है, उसे य द वषयोपभोगके अन तर प ा ाप होता है तो उसे मो के लये पुनः तपका अनु ान करना चा हये ।। ३ ।। पापानां कमणां न यं ब भयाद् य तु मानवः । सुखम याचरन् न यं सोऽ य तं सुखमेधते ।। ४ ।। कतु जो वान थ मनु य पापकम से न य भय करता है और सदा अपने धमका आचरण करता है, वह अ य त सुख प मो को अनायास ही ा त कर लेता है ।। ४ ।। तद् वै नृशंसं तदस यमा यः सेवतेऽधममनथबु ः । अथ ऽ यनीश य तथैव राजंतदाजवं स समा ध तदायम् ।। ५ ।। राजन्! जो पापबु वाला मनु य अधमका आचरण करता है, उसका वह आचरण नृशंस (पापमय) और अस य कहा गया है एवं उस अ जते यका धन भी वैसा ही पापमय और अस य है। परंतु वान थ मु नका जो धमपालन है, वही सरलता है, वही समा ध है और वही े आचरण है ।। ५ ।।

अ क उवाच केना स तः हतोऽ स राजन् युवा वी दशनीयः सुवचाः । कुत आयातः कतर यां द श वमुताहो वत् पा थवं थानम त ।। ६ ।। अ कने पूछा—राजन्! आपको यहाँ कसने बुलाया? कसने भेजा है? आप अव थाम त ण, फूल क मालासे सुशो भत, दशनीय तथा उ म तेजसे उ ा सत जान पड़ते ह। आप कहाँसे आये ह? कस दशाम भेजे गये ह? अथवा या आपके लये इस पृ वीपर कोई उ म थान है? ।। ६ ।। यया त वाच इमं भौमं नरकं ीणपु यः वे ु मुव गगनाद ् व हीणः । उ वाहं वः प त या यन तरं वर त मां लोकपा णो ये ।। ७ ।। यया तने कहा—म अपने पु यका य होनेसे भौम नरकम वेश करनेके लये आकाशसे गर रहा ँ। ाजीके जो लोकपाल ह, वे मुझे गरनेके लये ज द मचा रहे ह; अतः आपलोग से पूछकर वदा लेकर इस पृ वीपर ग ँ गा ।। ७ ।। सतां सकाशे तु वृतः पातते संगता गुणव त तु सव । श ा च लधो ह वरो मयैष प त यता भू मतलं नरे ।। ८ ।। नरे ! म जब इस पृ वीतलपर गरनेवाला था, उस समय मने इ से यह वर माँगा था क म साधु पु ष के समीप ग ँ । वह वर मुझे मला, जसके कारण आप सब सद्गुणी संत का संग ा त आ ।। ८ ।। अ क उवाच पृ छा म वां मा पत पातं य द लोकाः पा थव स त मेऽ । य त र े य द वा द व थताः े ं वां त य धम य म ये ।। ९ ।। अ क बोले—महाराज! मेरा व ास है क आप पारलौ कक धमके ाता ह। म आपसे एक बात पूछता ँ— या अ त र या वगलोकम मुझे ा त होनेवाले पु यलोक भी ह? य द ह तो (उनके भावसे) आप नीचे न गर, आपका पतन न हो ।। ९ ।।

यया त वाच यावत् पृ थ ां व हतं गवा ं ै ै

सहार यैः पशु भः पावतै । ताव लोका द व ते सं थता वै तथा वजानी ह नरे सह ।। १० ।। यया तने कहा—नरे सह! इस पृ वीपर जंगली और पवतीय पशु के साथ जतने गाय, घोड़े आ द पशु रहते ह, वगम तु हारे लये उतने ही लोक व मान ह। तुम इसे न य जानो ।। १० ।।

अ क उवाच तां ते ददा म मा पत पातं ये मे लोका द व राजे स त । य त र े य द वा द व ताताना म मपेतमोहः ।। ११ ।। अ क बोले—राजे ! वगम मेरे लये जो लोक व मान ह, वे सब आपको दे ता ँ; परंतु आपका पतन न हो। अ त र या ुलोकम मेरे लये जो थान ह, उनम आप शी ही मोहर हत होकर चले जायँ ।। ११ ।। यया त वाच ना म धो ा णो व च त हे वतते राजमु य । यथा दे यं सततं जे यतथाददं पूवमहं नरे ।। १२ ।। यया तने कहा—नृप े ! वे ा ा ण ही त ह लेता है। मेरे-जैसा य कदा प नह । नरे ! जैसे दान करना चा हये, उस व धसे पहले मने भी सदा उ म ा ण को ब त दान दये ह ।। १२ ।। ना ा णः कृपणो जातु जीवेद ् या ञा प याद् ा णी वीरप नी । सोऽहं नैवाकृतपूव चरेयं व ध समानः कमु त साधु ।। १३ ।। जो ा ण नह है, उसे द न याचक बनकर कभी जीवन नह बताना चा हये। याचना तो व ासे द वजय करनेवाले व ान् ा णक प नी है अथात् वे ा ा णको ही याचना करनेका अ धकार है। मुझे उ म स कम करनेक इ छा है; अतः ऐसा कोई काय कैसे कर सकता ँ, जो पहले कभी नह कया हो ।। १३ ।। तदन उवाच पृ छा म वां पृहणीय प तदनोऽहं य द मे स त लोकाः । य त र े य द वा द व ताः े



े ं वां त य धम य म ये ।। १४ ।। तदन बोले—वांछनीय पवाले े पु ष! म तदन ँ और आपसे पूछता ँ, य द अ त र अथवा वगम मेरे भी लोक ह तो बताइये। म आपको पारलौ कक धमका ाता मानता ँ ।। १४ ।। यया त वाच स त लोका बहव ते नरे अ येकैकः स तस ता यहा न । मधु युतो घृतपृ ा वशोकाते ना तव तः तपालय त ।। १५ ।। यया तने कहा—नरे ! आपके तो ब त लोक ह, य द एक-एक लोकम सात-सात दन रहा जाय तो भी उनका अ त नह है। वे सब-के-सब अमृतके झरने बहाते ह एवं घृत (तेज)-से यु ह। उनम शोकका सवथा अभाव है। वे सभी लोक आपक ती ा कर रहे ह ।। १५ ।। तदन उवाच तां ते ददा न मा पत पातं ये मे लोका तव ते वै भव तु । य त र े य द वा द व ताताना म मपेतमोहः ।। १६ ।। तदन बोले—महाराज! वे सभी लोक म आपको दे ता ँ, आप नीचे न गर। जो मेरे लोक ह वे सब आपके हो जायँ। वे अ त र म ह या वगम, आप शी मोहर हत होकर उनम चले जाइये ।। १६ ।। यया त वाच न तु यतेजाः सुकृतं कामयेत योग ेमं पा थव पा थवः सन् । दै वादे शादापदं ा य व ांरे ृशंसं न ह जातु राजा ।। १७ ।। यया तने कहा—राजन्! कोई भी राजा समान तेज वी होकर सरेसे पु य तथा योगेमक इ छा न करे। व ान् राजा दै ववश भारी आप म पड़ जानेपर भी कोई पापमय काय न करे ।। १७ ।। ध य माग यतमानो यश यं कुया ृपो धममवे माणः । न म धो धमबु ः जानन् कुयादे वं कृपणं मां यथाऽऽ थ ।। १८ ।। े











धमपर रखनेवाले राजाको उ चत है क वह य नपूवक धम और यशके मागपर ही चले। जसक बु धमम लगी हो उस मेरे-जैसे मनु यको जान-बूझकर ऐसा द नतापूण काय नह करना चा हये, जसके लये आप मुझसे कह रहे ह ।। १८ ।। कुयादपूव न कृतं यद यैव ध समानः कमु त साधु । (धमाधम सु व न य स यक् कायाकाय व म रेद ् यः । स वै धीमान् स यस धः कृता मा राजा भवे लोकपालो म ह ना ।। यदा भवेत् संशयो धमकाय कामाथ वा य व द त स यक् । काय त थमं धमकाय न तौ कुयादथकामौ स धमः ।।) ुवाणमेनं नृप त यया त नृपो मो वसुमान वीत् तम् ।। १९ ।। जो शुभ कम करनेक इ छा रखता है, वह ऐसा काम नह कर सकता, जसे अ य राजा ने नह कया हो। जो धम और अधमका भलीभाँ त न य करके कत और अकत के वषयम सावधान होकर वचरता है, वही राजा बु मान्, स य त और मन वी है। वह अपनी म हमासे लोकपाल होता है। जब धमकायम संशय हो अथवा जहाँ यायतः काम और अथ दोन आकर ा त ह , वहाँ पहले धमकायका ही स पादन करना चा हये, अथ और कामका नह । यही धम है। इस कारक बात कहनेवाले राजा यया तसे नृप े वसुमान् बोले ।। १९ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण उ रयायाते नव ततमोऽ यायः ।। ९२ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम उ रयायात वषयक बानबेवाँ अ याय पूरा आ ।। ९२ ।। (दा णा य अ धक पाठक े २ ोक मलाकर कुल २१ ोक ह)

नव ततमोऽ यायः राजा यया तका वसुमान् और श बके त हको अ वीकार करना तथा अ क आ द चार राजा के साथ वगम जाना वसुमानुवाच पृ छा म वां वसुमानौषद य त लोको द व मे नरे । य त र े थतो महा मन् े ं वां त य धम य म ये ।। १ ।। वसुमान्ने कहा—नरे द! म उषद का पु वसुमान् ँ और आपसे पूछ रहा ँ। य द वग या अ त र म मेरे लये भी कोई व यात लोक ह तो बताइये। महा मन्! म आपको पारलौ कक धमका ाता मानता ँ ।। १ ।।

यया त वाच यद त र ं पृ थवी दश य ेजसा तपते भानुमां । लोका ताव तो द व सं थता वै ते ना तव तः तपालय त ।। २ ।। यया तने कहा—राजन्! पृ वी, आकाश और दशा के जतने दे शको सूयदे व अपनी करण से तपाते और का शत करते ह; उतने लोक तु हारे लये वगम थत ह। वे अ तवान् न होकर चर थायी ह और आपक ती ा करते ह ।। २ ।। वसुमानुवाच तां ते ददा न मा पत पातं ये मे लोका तव ते वै भव तु । णी वैतां तृणकेना प राजन् त ह ते य द धीमन् ः ।। ३ ।। वसुमान् बोले—राजन्! वे सभी लोक म आपके लये दे ता ँ, आप नीचे न गर। मेरे लये जतने पु यलोक ह, वे सब आपके हो जायँ। धीमन्! य द आपको त ह लेनेम दोष दखायी दे ता हो तो एक मु तनका मुझे मू यके पम दे कर मेरे इन सभी लोक को खरीद ल ।। ३ ।।

यया त वाच न मयाहं व यं वै ी

मरा म

वृथा गृहीतं शशुका छङ् कमानः । कुया न चैवाकृतपूवम यैव ध समानः कमु त साधु ।। ४ ।। यया तने कहा—मने इस कार कभी झूठ-मूठक खरीद- ब क हो अथवा छलपूवक थ कोई व तु ली हो, इसका मुझे मरण नह है। म कालच से शं कत रहता ँ। जसे पूववत अ य महापु ष ने नह कया वह काय म भी नह कर सकता ँ; य क म स कम करना चाहता ँ ।। ४ ।। वसुमानुवाच तां वं लोकान् तप व राजन् मया द ान् य द ने ः य ते । अहं न तान् वै तग ता नरे सव लोका तव ते वै भव तु ।। ५ ।। वसुमान् बोले—राजन्! य द आप खरीदना नह चाहते तो मेरे ारा वतः अपण कये ए पु यलोक को हण क जये। नरे ! न य जा नये, म उन लोक म नह जाऊँगा। वे सब आपके ही अ धकारम रह ।। ५ ।। श ब वाच पृ छा म वां श बरौशीनरोऽहं ममा प लोका य द स तीह तात । य त र े य द वा द व ताः े ं वां त य धम य म ये ।। ६ ।। श बने कहा—तात! म उशीनरका पु श ब आपसे पूछता ँ। य द अ त र या वगम मेरे भी पु यलोक ह , तो बताइये; य क म आपको उ धमका ाता मानता ँ ।। ६ ।। यया त वाच यत् वं वाचा दयेना प साधून् परी समानान् नावमं था नरे । तेनान ता द व लोकाः ता ते व ु प ू ाः वनव तो महा तः ।। ७ ।। यया त बोले—नरे ! जो-जो साधु पु ष तुमसे कुछ माँगनेके लये आये, उनका तुमने वाणीसे कौन कहे, मनसे भी अपमान नह कया। इस कारण वगम तु हारे लये अन त लोक व मान ह, जो व ुतक ् े समान तेजोमय, भाँ त-भाँ तके सुमधुर श द से यु तथा महान् ह ।। ७ ।। श ब वाच तां वं लोकान् तप व राजन् े े

मया द ान् य द ने ः य ते । न चाहं तान् तप ये ह द वा य ग वा नानुशोच त धीराः ।। ८ ।। श बने कहा—महाराज! य द आप खरीदना नह चाहते तो मेरे ारा वयं अपण कये ए पु यलोक को हण क जये। उन सबको दे कर न य ही म उन लोक म नह जाऊँगा। वे लोक ऐसे ह, जहाँ जाकर धीर पु ष कभी शोक नह करते ।। ८ ।।

यया त वाच यथा व म तम भावते चा यन ता नरदे व लोकाः । तथा लोके न रमेऽ यद े त मा छबे ना भन दा म दे यम् ।। ९ ।। यया त बोले—नरदे व श ब! जस कार तुम इ के समान भावशाली हो, उसी कार तु हारे वे लोक भी अन त ह; तथा प सरेके दये ए लोकम म वहार नह कर सकता, इसी लये तु हारे दये एका अ भन दन नह करता ।। ९ ।। अ क उवाच न चेदेकैकशो राजँ लोकान् नः तन द स । सव दाय भवते ग तारो नरकं वयम् ।। १० ।। अ कने कहा—राजन्! य द आप हममसे एक-एकके दये ए लोक को स तापूवक हण नह करते तो हम सब लोग अपने पु यलोक आपक सेवाम अ पत करके नरक (भूलोक)-म जानेको तैयार ह ।। १० ।। यया त वाच यदह ऽहं तद् यत वं स तः स या भन दनः । अहं त ा भजाना म यत् कृतं न मया पुरा ।। ११ ।। यया त बोले—म जसके यो य ँ, उसीके लये य न करो; य क साधु पु ष स यका ही अ भन दन करते ह। मने पूवकालम जो कम नह कया, उसे अब भी करनेयो य नह समझता ।। ११ ।। अ क उवाच क यैते त य ते रथाः प च हर मयाः । याना नरो लोकान भवा छ त शा तान् ।। १२ ।। अ कने कहा—आकाशम ये कसके पाँच सुवणमय रथ दखायी दे ते ह, जनपर आ ढ़ होकर मनु य सनातन लोक म जानेक इ छा करता है ।। १२ ।। यया त वाच यु मानेते व ह य त रथाः प च हर मयाः । ै





उ चैः स तः काश ते वल तोऽ न शखा इव ।। १३ ।। यया त बोले—ऊपर आकाशम थत व लत अ नक लपट के समान जो पाँच सुवणमय रथ का शत हो रहे ह, ये आपलोग को ही वगम ले जायँगे ।। १३ ।। (वैश पायन उवाच) (एत म तरे चैव माधवी तु तपोधना । मृगचमपरीता प रणामे मृग तम् ।। मृगैः सह चर ती सा मृगाहार वचे ता । य वाटं मृगगणैः व य भृश व मता ।। आ ाय ती धूमग धं मृगैरेव चचार सा । वैश पायनजी कहते ह—राजन्! इसी समय तप वनी माधवी उधर आ नकली। उसने मृगचमसे अपने सब अंग को ढक रखा था। वृ ाव था ा त होनेपर वह मृग के साथ वचरती ई मृग तका पालन कर रही थी। उसक भोजन-साम ी और चे ा मृग के ही तु य थी। वह मृग के झुंडके साथ य म डपम वेश करके अ य त व मत ई और य ीय धूमक सुग ध लेती ई मृग के साथ वहाँ वचरने लगी। य वाटमट ती सा पु ां तानपरा जतान् ।। प य ती य माहा यं मुदं लेभे च माधवी । य शालाम घूम-घूमकर अपने अपरा जत पु को दे खती और य क म हमाका अनुभव करती ई माधवी ब त स ई। असं पृश तं वसुधां यया त ना षं तदा ।। द व ं ा तमा ाय वव दे पतरं तदा । ततो वसुमनाः* पृ छन् मातरं वै तप वनीम् ।। उसने दे खा, वगवासी न षन दन महाराज यया त आये ह, परंतु पृ वीका पश नह कर रहे ह (आकाशम ही थत ह)। अपने पताको पहचानकर माधवीने उ ह णाम कया। तब वसुमनाने अपनी तप वनी मातासे करते ए कहा। वसुमना उवाच भव या यत् कृत मदं व दनं वरव ण न । कोऽयं दे वोऽथवा राजा य द जाना स मे वद ।। वसुमना बोले—माँ! तुम े वणक दे वी हो। तुमने इन महापु षको णाम कया है। ये कौन ह? कोई दे वता ह या राजा? य द जानती हो तो मुझे बताओ। माध ुवाच शृणु वं स हताः पु ा ना षोऽयं पता मम । यया तमम पु ाणां मातामह इ त ुतः ।। पू ं मे ातरं रा ये समावे य दवं गतः । केन वा कारणेनैव इह ा तो महायशाः ।। ी े ो ो ो ‘ े े े

माधवीने कहा—पु ो! तुम सब लोग एक साथ सुन लो—‘ये मेरे पता न षन दन महाराज यया त ह। मेरे पु के सु व यात मातामह (नाना) ये ही ह। इ ह ने मेरे भाई पू को रा यपर अ भ ष करके वगलोकक या ा क थी; परंतु न जाने कस कारणसे ये महायश वी महाराज पुनः यहाँ आये ह’। वैश पायन उवाच त या तद् वचनं ु वा थान े त चा वीत् । सा पु य वचः ु वा स मा व चेतना ।। माधवी पतरं ाह दौ ह प रवा रतम् । वैश पायनजी कहते ह—राजन्! माताक यह बात सुनकर वसुमनाने कहा—माँ! ये अपने थानसे हो गये ह। पु का यह वचन सुनकर माधवी ा त च हो उठ और दौ ह से घरे ए अपने पतासे इस कार बोली। माध ुवाच तपसा न जताँ लोकान् तगृ व मामकान् । पु ाणा मव पौ ाणां धमाद धगतं धनम् ।। वाथमेव वद तीह ऋषयो वेदपारगाः । त माद् दानेन तपसा अ माकं दवमा ज ।। माधवीने कहा— पताजी! मने तप या ारा जन लोक पर अ धकार ा त कया है, उ ह आप हण कर। पु और पौ क भाँ त पु ी और दौ ह का धमाचरणसे ा त कया आ धन भी अपने ही लये है, यह वेदवे ा ऋ ष कहते ह; अतः आप हमलोग के दान एवं तप याज नत पु यसे वगलोकम जाइये। यया त वाच य द धमफलं ेत छोभनं भ वता तथा । ह ा चैव दौ ह ै ता रतोऽहं महा म भः ।। यया त बोले—य द यह धमज नत फल है, तब तो इसका शुभ प रणाम अव य भावी है। आज मुझे मेरी पु ी तथा महा मा दौ ह ने तारा है। त मात् प व ं दौ ह म भृ त पैतृके । भ व य त न संदेहः पतॄणां ी तवधनम् ।। इस लये आजसे पतृ-कम ( ा )-म दौ ह परम प व समझा जायगा। इसम संशय नह क वह पतर का हष बढ़ानेवाला होगा। ी ण ा े प व ा ण दौ ह ः कुतप तलाः । ी ण चा शंस त शौचम ोधम वराम् ।। भो ारः प रवे ारः ा वतारः प व काः । ा म तीन व तुएँ प व मानी जायँगी—दौ ह , कुतप और तल। साथ ही इसम तीन गुण भी शं सत ह गे—प व ता, अ ोध और अ वरा (उतावलेपनका अभाव)। तथा ो









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ा म भोजन करनेवाले, परोसनेवाले और (वै दक या पौरा णक म का पाठ) सुनानेवाले—ये तीन कारके मनु य भी प व माने जायँगे। दवस या मे भागे म द भव त भा करे । स कालः कुतपो नाम पतॄणां द म यम् ।। दनके आठव भागम जब सूयका ताप घटने लगता है, उस समयका नाम कुतप है। उसम पतर के लये दया आ दान अ य होता है। तलाः पशाचाद् र त दभा र त रा सात् । र त ो याः पङ् य त भभु म यम् ।। तल पशाच से ा क र ा करते ह, कुश रा स से बचाते ह, ो य ा ण पं क र ा करते ह और य द य तगण ा म भोजन कर ल तो वह अ य हो जाता है। ल वा पा ं तु व ांसं ो यं सु तं शु चम् । स कालः कालतो द ं ना यथा काल इ यते ।। उ म तका आचरण करनेवाला प व ो य ा ण ा का उ म पा है। वह जब ा त हो जाय, वही ा का उ म काल समझना चा हये। उसको दया आ दान उ म कालका दान है। इसके सवा और कोई उपयु काल नह है। वैश पायन उवाच एवमु वा यया त तु पुनः ोवाच बु मान् । सव वभृथ नाता वर वं कायगौरवात् ।।) वैश पायनजी कहते ह—राजन्! बु मान् यया त उपयु बात कहकर पुनः अपने दौ ह से बोले—‘तुम सब लोग अवभृथ नान कर चुके हो। अब मह वपूण कायक स के लये शी तैयार हो जाओ’। अ क उवाच आ त व रथान् राजन् व म व वहायसम् । वयम यनुया यामो यदा कालो भ व य त ।। १४ ।। अ क बोले—राजन्! आप इन रथ म बै ठये और आकाशम ऊपरक ओर ब ढ़ये। जब समय होगा, तब हम भी आपका अनुसरण करगे ।। १४ ।। यया त वाच सव रदान ग त ं सह वग जतो वयम् । एष नो वरजाः प था यते दे वसनः ।। १५ ।। यया त बोले—हम सब लोग ने साथ-साथ वगपर वजय पायी है, इस लये इस समय सबको वहाँ चलना चा हये। दे वलोकका यह रजोहीन सा वक माग हम प दखायी दे रहा है ।। १५ ।। वैश पायन उवाच तेऽ ध रथान् सव याता नृपस माः । ो ो ी

आ म तो दवं भा भधमणावृ य रोदसी ।। १६ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! तदन तर वे सभी नृप े उन द रथ पर आ ढ़ हो धमके बलसे वगम प ँचनेके लये चल दये। उस समय पृ वी और आकाशम उनक भा ा त हो रही थी ।। १६ ।। (अ क श ब ैव का शराजः तद नः । ऐ वाकवो वसुमना वारो भू मपा ह ।। सव वभृथ नाताः वगताः साधवः सह ।) अ क, श ब, का शराज तदन तथा इ वाकुवंशी वसुमना—ये चार साधु नरेश य ा त- नान करके एक साथ वगम गये। अ क उवाच अहं म ये पूवमेकोऽ म ग ता सखा चे ः सवथा मे महा मा । क मादे वं श बरौशीनरोऽयमेकोऽ यगात् सववेगेन वाहान् ।। १७ ।। अ क बोले—राजन्! महा मा इ मेरे बड़े म ह, अतः म तो समझता था क अकेला म ही सबसे पहले उनके पास प ँचूँगा। परंतु ये उशीनरपु श ब अकेले स पूण वेगसे हम सबके वाहन को लाँघकर आगे बढ़ गये ह, ऐसा कैसे आ? ।। १७ ।। यया त वाच अददद् दे वयानाय यावद् व म व दत । उशीनर य पु ोऽयं त मा े ो ह वः श बः ।। १८ ।। यया तने कहा—राजन्! उशीनरके पु श बने लोकके मागक ा तके लये अपना सव व दान कर दया था, इसी लये ये तुम सब लोग म े ह ।। १८ ।। दानं तपः स यमथा प धम ीः ीः मा सौ यमथो व ध सा । राज ेता य मेया ण रा ः शबेः थता य तम य बुा ।। १९ ।। नरे र! दान, तप या, स य, धम, ी, ी, मा, सौ यभाव और त-पालनक अ भलाषा—राजा श बम ये सभी गुण अनुपम ह तथा बु म भी उनक समता करनेवाला कोई नह है ।। १९ ।। एवंवृ ो ी नषेव य मात् त मा छ बर यगाद् वै रथेन । राजा श ब ऐसे सदाचारस प और ल जाशील ह! (इनम अ भमानक मा ा छू भी नह गयी है।) इसी लये श ब हम सबसे आगे बढ़ गये ह। वैश पायन उवाच े

अथा कः पुनरेवा वपृ छमातामहं कौतुकेने क पम् ।। २० ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर अ कने कौतूहलवश इ के तु य अपने नाना राजा यया तसे पुनः कया ।। २० ।। पृ छा म वां नृपते ू ह स यं कुत क ा स सुत क य । कृतं वया य न त य कता लोके वद यः यो ा णो वा ।। २१ ।। महाराज! म आपसे एक बात पूछता ँ। आप उसे सच-सच बताइये। आप कहाँसे आये ह, कौन ह और कसके पु ह? आपने जो कुछ कया है, उसे करनेवाला आपके सवा सरा कोई य अथवा ा ण इस संसारम नह है ।। २१ ।। यया त वाच यया तर म न ष य पु ः पूरोः पता सावभौम वहासम् । गु ं चाथ मामके यो वी म मातामहोऽहं भवतां काशम् ।। २२ ।। यया तने कहा—म न षका पु और पू का पता राजा यया त ँ। इस लोकम म च वत नरेश था। आप सब लोग मेरे अपने ह; अतः आपसे गु त बात भी खोलकर बतलाये दे ता ँ। म आपलोग का नाना ँ। (य प पहले भी यह बात बता चुका ँ, तथा प पुनः प कर दे ता ँ) ।। २२ ।। सवा ममां पृ थव न जगाय ादामहं छादनं ा णे यः । मे यान ानेकशतान् सु पांतदा दे वाः पु यभाजो भव त ।। २३ ।। मने इस सारी पृ वीको जीत लया था। म ा ण को अ -व दया करता था। मनु य जब एक सौ सु दर प व अ का दान करते ह, तब वे पु या मा दे वता होते ह ।। २३ ।। अदामहं पृ थव ा णे यः पूणा ममामखलां वाहनेन । गो भः सुवणन धनै मु यैतदाददं गाः शतमबुदा न ।। २४ ।। मने तो सवारी, गौ, सुवण तथा उ म धनसे प रपूण यह सारी पृ वी ा ण को दान कर द थी एवं सौ अबुद (दस अरब) गौ का दान भी कया था ।। २४ ।। स येन वै ौ वसु धरा च तथैवा न वलते मानुषेषु । े



न मे वृथा ा तमेव वा यं स यं ह स तः तपूजय त ।। २५ ।। स यसे ही पृ वी और आकाश टके ए ह। इसी कार स यसे ही मनु य-लोकम अ न व लत होती है। मने कभी थ बात मुँहसे नह नकाली है; य क साधु पु ष सदा स यका ही आदर करते ह ।। २५ ।। यद क वीमीह स यं तदनं चौषद शव तथैव । सव च लोका मुनय दे वाः स येन पू या इ त मे मनोगतम् ।। २६ ।। अ क! म तुमसे, तदनसे और उषद के पु वसुमान्से भी यहाँ जो कुछ कहता ँ; वह सब स य ही है। मेरे मनका यह व ास है क सम त लोक, मु न और दे वता स यसे ही पूजनीय होते ह ।। २६ ।। यो नः वग जतः सवान् यथा वृ ं नवेदयेत् । अनसूयु जाये यः स लभे ः सलोकताम् ।। २७ ।। जो मनु य दयम ई या न रखकर वगपर अ धकार करनेवाले हम सब लोग के इस वृ ा तको यथाथ पसे े ज के सामने सुनायेगा, वह हमारे ही समान पु यलोक को ा त कर लेगा ।। २७ ।।

वैश पायन उवाच एवं राजा स महा मा तीव वैद ह ै ता रतोऽ म साहः । य वा मह परमोदारकमा वग गतः कम भ ा य पृवीम् ।। २८ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! राजा यया त बड़े महा मा थे। श ु के लये अजेय और उनके कम अ य त उदार थे। उनके दौ ह ने उनका उ ार कया और वे अपने स कम ारा स पूण भूम डलको ा त करके पृ वी छड़कर वगलोकम चले गये ।। २८ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण उ रयायातसमा तौ नव ततमोऽ यायः ।। ९३ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम उ रयायातसमा त वषयक तरानबेवाँ अ याय पूरा आ ।। ९३ ।। (दा णा य अ धक पाठक े २० ोक मलाकर कुल ४८ ोक ह)

* ये वसुमान् नामसे भी



थे।

चतुनव ततमोऽ यायः पू वंशका वणन जनमेजय उवाच भगव ोतु म छा म पूरोवशकरान् नृपान् । य यान् या शां ा प यावतो य परा मान् ।। १ ।। जनमेजय बोले—भगवन! अब म पू के वंशका व तार करनेवाले राजा का प रचय सुनना चाहता ँ। उनका बल और परा म कैसा था? वे कैसे और कतने थे? ।। १ ।। न मन् शीलहीनो वा नव य वा नरा धपः । जा वर हतो वा प भूतपूवः कथंचन ।। २ ।। मेरा व ास है क इस वंशम पहले कभी कसी कार भी कोई ऐसा राजा नह आ है, जो शीलर हत, बल-परा मसे शू य अथवा संतानहीन रहा हो ।। २ ।। तेषां थतवृ ानां रा ां व ानशा लनाम् । च रतं ोतु म छा म व तरेण तपोधन ।। ३ ।। तपोधन! जो अपने सदाचारके लये स और ववेकस प थे, उन सभी पू वंशी राजा के च र को मुझे व तारपूवक सुननेक इ छा है ।। ३ ।। वैश पायन उवाच ह त ते कथ य या म य मां वं प रपृ छ स । पूरोवशधरान् वीरा छ तमतेजसः । भू र वण व ा तान् सवल णपू जतान् ।। ४ ।। वैश पायनजीने कहा—जनमेजय! तुम मुझसे जो कुछ पूछ रहे हो, वह सब म तु ह बताऊँगा। पू के वंशम उ प ए वीर नरेश इ के समान तेज वी, अ य त धनवान्, परम परा मी तथा सम त शुभ ल ण से स मा नत थे (उन सबका प रचय दे ता ँ) ।। ४ ।। वीरे ररौ ा ा यः पु ा महारथाः । पूरोः पौ ामजाय त वीरो वंशकृत् ततः ।। ५ ।। पू के पौ ी नामक प नीके गभसे वीर, ई र तथा रौ ा नामक तीन महारथी पु ए। इनमसे वीर अपनी वंश-पर पराको आगे बढ़ानेवाले ए ।। ५ ।। मन युरभवत् त मा छू रसेनीसुतः भुः । पृ थ ा तुर ताया गो ता राजीवलोचनः ।। ६ ।। वीरके पु का नाम मन यु था, जो शूरसेनीके पु और श शाली थे। कमलके समान ने वाले मन युने चार समु से घरी ई सम त पृ वीका पालन कया ।। ६ ।। श ः संहननो वा मी सौवीरीतनया यः । मन योरभवन् पु ाः शूराः सव महारथाः ।। ७ ।। े

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मन युके सौवीरीके गभसे तीन पु ए—श , संहनन और वा मी। वे सभी शूरवीर और महारथी थे ।। ७ ।। अ व भानु भृतयो म के यां मन वनः । रौ ा य महे वासा दशा सर स सूनवः ।। ८ ।। य वानो ज रे शूराः जाव तो ब ुताः । सव सवा व ांसः सव धमपरायणाः ।। ९ ।। पू के तीसरे पु मन वी रौ ा के म केशी अ सराके गभसे अ व भानु आ द दस महाधनुधर पु ए, जो सभी य कता, शूरवीर, संतानवान्, अनेक शा के व ान, स पूण अ व ाके ाता तथा धमपरायण थे ।। ८-९ ।। ऋचेयुरथ क ेयुः कृकणेयु वीयवान् । थ डलेयुवनेयु जलेयु महायशाः ।। १० ।। तेजेयुबलवान् धीमान् स येयु े व मः । धमयुः संनतेयु दशमो दे व व मः ।। ११ ।। (उन सबके नाम इस कार ह—) ऋचेय*ु , क ेयु, परा मी कृकणेयु, थ डलेयु, वनेयु, महायश वी जलेयु, बलवान् और बु मान् तेजेयु, इ के समान परा मी स येयु, धमयु तथा दसव दे वतु य परा मी संनतेयु ।। १०-११ ।। अनाधृ रभूत् तेषां व ान् भु व तथैकराट् । ऋचेयुरथ व ा तो दे वाना मव वासवः ।। १२ ।। ऋचेयु जनका एक नाम अनाधृ भी है, अपने सब भाइय म वैसे ही व ान् और परा मी ए, जैसे दे वता म इ । वे भूम डलके च वत राजा थे ।। १२ ।। अनाधृ सुत वासीद् राजसूया मेधकृत् । म तनार इ त यातो राजा परमधा मकः ।। १३ ।। अनाधृ के पु का नाम म तनार था। राजा म तनार राजसूय तथा अ मेध य करनेवाले एवं परम धमा मा थे ।। १३ ।। म तनारसुता राजं वारोऽ मत व माः । तंसुमहान तरथो ा तम ु तः ।। १४ ।। राजन्! म तनारके चार पु ए, जो अ य त परा मी थे। उनके नाम ये ह—तंसु, महान्, अ तरथ और अनुपम तेज वी ।। १४ ।। तेषां तंसुमहावीयः पौरवं वंशमु हन् । आजहार यशो द तं जगाय च वसु धराम् ।। १५ ।। इनम महापरा मी तंसुने पौरव वंशका भार वहन करते ए उ वल यशका उपाजन कया और सारी पृ वीको जीत लया ।। १५ ।। ई लनं तु सुतं तंसुजनयामास वीयवान् । सोऽ प कृ ना ममां भूम व ज ये जयतां वरः ।। १६ ।। ी

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परा मी तंसुने ई लन नामक पु उ प कया, जो वजयी पु ष म े था। उसने भी सारी पृ वी जीत ली थी ।। १६ ।। रथ तया सुतान् प च प चभूतोपमां ततः । ई लनो जनयामास य त भृतीन् नृपान् ।। १७ ।। ई लनने रथ तरी नामवाली अपनी प नीके गभसे पंच महाभूत के समान य त आ द पाँच राजपु को पु पम उ प कया ।। १७ ।। य तं शूरभीमौ च वसुं वसुमेव च । तेषां े ोऽभवद् राजा य तो जनमेजय ।। १८ ।। (उनके नाम ये ह—) य त, शूर, भीम, वसु तथा वसु। जनमेजय! इनम सबसे बड़े होनेके कारण य त राजा ए ।। १८ ।। य ताद् भरतो ज े व ा छाकु तलो नृपः । त माद् भरतवंश य व त थे महद् यशः ।। १९ ।। य तसे व ान् राजा भरतका ज म आ, जो शकु तलाके पु थे। उ ह से भरतवंशका महान् यश फैला ।। १९ ।। भरत तसृषु ीषु नव पु ानजीजनत् । ना यन दत तान् राजा नानु पा ममे युत ।। २० ।। भरतने अपनी तीन रा नय से नौ पु उ प कये। कतु ‘ये मेरे अनु प नह ह’ ऐसा कहकर राजाने उन शशु का अ भन दन नह कया ।। २० ।। तत तान् मातरः ु ाः पु ान् न युयम यम् । तत त य नरे य वतथं पु ज म तत् ।। २१ ।। तब उन शशु क माता ने कु पत होकर उनको मार डाला। इससे महाराज भरतका वह पु ो पादन थ हो गया ।। २१ ।। ततो मह ः तु भरीजानो भरत तदा । लेभे पु ं भर ाजाद् भुम युं नाम भारत ।। २२ ।। भारत! तब महाराज भरतने बड़े-बड़े य का अनु ान कया और मह ष भर ाजक कृपासे एक पु ा त कया, जसका नाम भुम यु था ।। २२ ।। ततः पु णमा मानं ा वा पौरवन दनः । भुम युं भरत े यौवरा येऽ यषेचयत् ।। २३ ।। भरत े ! तदन तर पौरवकुलका आन द बढ़ानेवाले भरतने अपनेको पु वान् समझकर भुम युको युवराजके पदपर अ भ ष कया ।। २३ ।। ततो द वरथो नाम भुम योरभवत् सुतः । सुहो सुहोता च सुह वः सुयजु तथा ।। २४ ।। पु क र यामृचीक भुम योरभवन् सुताः । तेषां ये ः सुहो तु रा यमाप मही ताम् ।। २५ ।। भुम युके द वरथ नामक पु आ। उसके सवा सुहो , सुहोता, सुह व, सुयजु तथा ऋचीक भी भुम युके ही पु थे। ये सब पु क रणीके गभसे उ प ए थे। इन सब यम ो ी े े ो

सुहो ही ये थे। अतः उ ह को रा य मला ।। २४-२५ ।। राजसूया मेधा ैः सोऽयजद् ब भः सवैः । सुहो ः पृ थव कृ नां बुभुजे सागरा बराम् ।। २६ ।। पूणा ह तगजा ै ब र नसमाकुलाम् । मम जेव मही त य भू रभारावपी डता ।। २७ ।। ह य रथस पूणा मनु यक लला भृशम् । सुहो े राज न तदा धमतः शास त जाः ।। २८ ।। राजा सुहो ने राजसूय तथा अ मेध आ द अनेक य ारा यजन कया और समु पय त स पूण पृ वीका, जो हाथी-घोड़ से प रपूण तथा अनेक कारके र न से स प थी, उपभोग कया। जब राजा सुहो धमपूवक जाका शासन कर रहे थे, उस समय सारी पृ वी हाथी, घोड़ , रथ और मनु य से खचाखच भरी थी। उन पशु आ दके भारी भारसे पी ड़त होकर राजा सुहो के शासनकालक पृ वी मानो नीचे धँसी जाती थी ।। २६— २८ ।। चै ययूपाङ् कता चासीद् भू मः शतसह शः । वृ जनस या च सवदै व रोचत ।। २९ ।। उनके रा यक भू म लाख चै य (दे व-म दर ) और य यूप से च त दखायी दे ती थी। सब लोग -पु होते थे। खेतीक उपज अ धक आ करती थी। इस कार उस रा यक पृ वी सदा ही अपने वैभवसे सुशो भत होती थी ।। २९ ।। ऐ वाक जनयामास सुहो ात् पृ थवीपतेः । अजमीढं सुमीढं च पु मीढं च भारत ।। ३० ।। भारत! राजा सुहो से ऐ वाक ने अजमीढ, सुमीढ तथा पु मीढ नामक तीन पु को ज म दया ।। ३० ।। अजमीढो वर तेषां त मन् वंशः त तः । षट् पु ान् सोऽ यजनयत् तसृषु ीषु भारत ।। ३१ ।। उनम अजमीढ ये थे। उ ह पर वंशक मयादा टक ई थी। जनमेजय! उ ह ने भी तीन य के गभसे छः पु को उ प कया ।। ३१ ।। ऋ ं धू म यथो नीली य तपरमे नौ । के श यजनय ज ं सुतौ जन पणौ ।। ३२ ।। उनक धू मनी नामवाली ीने ऋ को, नीलीने य त और परमे ीको तथा के शनीने ज , जन तथा पण इन तीन पु को ज म दया ।। ३२ ।। तथेमे सवप चाला य तपरमे नोः । अ वयाः कु शका राजन् ज ोर मततेजसः ।। ३३ ।। इनम य त और परमे ीके सभी पु पांचाल कहलाये। राजन्! अ मततेज वी ज के वंशज कु शक नामसे स ए ।। ३३ ।। जन पणयो य मृ मा जना धपम् । ऋ ात् संवरणो ज े राजन् वंशकरः सुतः ।। ३४ ।। े े ई ो ै े

जन तथा पणके ये भाई ऋ को राजा कहा गया है। ऋ से संवरणका ज म आ। राजन्! वे वंशक वृ करनेवाले पु थे ।। ३४ ।। आ संवरणे राजन् शास त वसुंधराम् । सं यः सुमहानासीत् जाना म त नः ुतम् ।। ३५ ।। जनमेजय! ऋ पु संवरण जब इस पृ वीका शासन कर रहे थे, उस समय जाका ब त बड़ा संहार आ था, ऐसा हमने सुना है ।। ३५ ।। शीयत ततो रा ं यैनाना वधै तदा । ु मृ यु यामनावृ ा ा ध भ समाहतम् ।। ३६ ।। इस तरह नाना कारसे य होनेके कारण वह सारा रा य न -सा हो गया। सबको भूख, मृ यु, अनावृ और ा ध आ दके क सताने लगे ।। ३६ ।। अ य नन् भारतां ैव सप नानां बला न च । चालयन् वसुधां चेमां बलेन चतुर णा ।। ३७ ।। अ ययात् तं च पा चा यो व ज य तरसा महीम् । अ ौ हणी भदश भः स एनं समरेऽजयत् ।। ३८ ।। श ु क सेनाएँ भरतवंशी यो ा का नाश करने लग । पांचालनरेशने इस पृ वीको क पत करते ए चतुरं गणी सेनाके साथ संवरणपर आ मण कया और उनक सारी भू म वेगपूवक जीतकर दस अ ौ हणी सेना ारा संवरणको भी यु म परा त कर दया ।। ३७-३८ ।। ततः सदारः सामा यः सपु ः ससु जनः । राजा संवरण त मात् पलायत महाभयात् ।। ३९ ।। तदन तर ी, पु , सु द् और म य के साथ राजा संवरण महान् भयके कारण वहाँसे भाग चले ।। ३९ ।। स धोनद य महतो नकु े यवसत् तदा । नद वषयपय ते पवत य समीपतः ।। ४० ।। उस समय उ ह ने सधु नामक महानदके तटवत नकुंजम, जो एक पवतके समीपसे लेकर नद के तटतक फैला आ था, नवास कया ।। ४० ।। त ावसन् बन् कालान् भारता गमा ताः । तेषां नवसतां त सह ं प रव सरान् ।। ४१ ।। वहाँ उस गका आ य लेकर भरतवंशी य ब त वष तक टके रहे। उन सबको वहाँ रहते ए एक हजार वष बीत गये ।। ४१ ।। अथा यग छद् भरतान् व स ो भगवानृ षः । तमागतं य नेन युदग ् या भवा च ।। ४२ ।। अ यम याहरं त मै ते सव भारता तदा । नवे सवमृषये स कारेण सुवचसे ।। ४३ ।। तमासने चोप व ं राजा व े वयं तदा । पुरो हतो भवान् नोऽ तु रा याय यतेम ह ।। ४४ ।। ी े े े े

इसी समय उनके पास भगवान् मह ष व स आये। उ ह आया दे ख भरतवं शय ने य नपूवक उनक अगवानी क और णाम करके सबने उनके लये अ य अपण कया। फर उन तेज वी मह षको स कारपूवक अपना सव व समपण करके उ म आसनपर बठाकर राजाने वयं उनका वरण करते ए कहा—‘भगवन्! हम पुनः रा यके लये य न कर रहे ह। आप हमारे पुरो हत हो जाइये’ ।। ४२—४४ ।। ओ म येवं व स ोऽ प भारतान् यप त । अथा य ष चत् सा ा ये सव य पौरवम् ।। ४५ ।। वषाणभूतं सव यां पृ थ ा म त नः ुतम् । भरता यु षतं पूव सोऽ य त त् पुरो मम् ।। ४६ ।। तब ‘ब त अ छा’ कहकर व स जीने भी भरतवं शय को अपनाया और सम त भूम डलम उ कृ पू वंशी संवरणको सम त य के साट ् -पदपर अ भ ष कर दया, ऐसा हमारे सुननेम आया है। त प ात् महाराज संवरण, जहाँ ाचीन भरतवंशी राजा रहते थे, उस े नगरम नवास करने लगे ।। ४५-४६ ।। पुनब लभृत ैव च े सवमही तः । ततः स पृ थव ा य पुनरीजे महाबलः ।। ४७ ।। आजमीढो महाय ैब भभू रद णैः । ततः संवरणात् सौरी तपती सुषुवे कु म् ।। ४८ ।। फर उ ह ने सब राजा को जीतकर उ ह करद बना लया। तदन तर वे महाबली नरेश अजमीढवंशी संवरण पुनः पृ वीका रा य पाकर ब त द णावाले ब सं यक महाय ारा भगवान्का यजन करने लगे। कुछ कालके प ात् सूयक या तपतीने संवरणके वीयसे कु नामक पु को ज म दया ।। ४७-४८ ।। राज वे तं जाः सवा धम इ त व रे । त य ना ना भ व यातं पृ थ ां कु जा लम् ।। ४९ ।। कु को धम मानकर स पूण जावगके लोग ने वयं उनका राजाके पदपर वरण कया। उ ह के नामसे पृ वीपर कु जांगलदे श स आ ।। ४९ ।। कु े ं स तपसा पु यं च े महातपाः । अ व तम भ य तं तथा चै रथं मु नम् ।। ५० ।। जनमेजयं च व यातं पु ां ा यानुशु ुम । प चैतान् वा हनी पु ान् जायत मन वनी ।। ५१ ।। उन महातप वी कु ने अपनी तप याके बलसे कु े को प व बना दया। उनके पाँच पु सुने गये ह—अ वान्, अ भ य त, चै रथ, मु न तथा सु स जनमेजय। इन पाँच पु को उनक मन वनी प नी वा हनीने ज म दया था ।। ५०-५१ ।। अ व तः प र त् तु शबला तु वीयवान् । आ दराजो वराज शा म ल महाबलः ।। ५२ ।। उ चैः वा भ कारो जता र ा मः मृतः । एतेषाम ववाये तु याता ते कमजैगुणैः । े ै े

जनमेजयादयः स त तथैवा ये महारथाः ।। ५३ ।। अ वान्का सरा नाम अ व त् था। उसके आठ पु ए, जनके नाम इस कार ह —प र त्, परा मी शबला , आ दराज, वराज, महाबली शा म ल, उ चैः वा, भंगकार तथा आठवाँ जता र। इनके वंशम जनमेजय आ द अ य सात महारथी भी ए, जो अपने कमज नत गुण से स ह ।। ५२-५३ ।। प र तोऽभवन् पु ाः सव धमाथको वदाः । क सेनो सेनौ तु च सेन वीयवान् ।। ५४ ।। इ सेनः सुषेण भीमसेन नामतः । जनमेजय य तनया भु व याता महाबलाः ।। ५५ ।। धृतरा ः थमजः पा डु बा क एव च । नषध महातेजा तथा जा बूनदो बली ।। ५६ ।। कु डोदरः पदा त वसा त ा मः मृतः । सव धमाथकुशलाः सवभूत हते रताः ।। ५७ ।। प र त्के सभी पु धम और अथके ाता थे; जनके नाम इस कार ह—क सेन, उ सेन, परा मी, च सेन, इ सेन, सुषेण और भीमसेन। जनमेजयके महाबली पु भूम डलम व यात थे। उनम थम पु का नाम धृतरा था। उनसे छोटे मशः पा डु , बा क, महातेज वी नषध, बलवान् जा बूनद, कु डोदर, पदा त तथा वसा त थे। इनम वसा त आठवाँ था। ये सभी धम और अथम कुशल तथा सम त ा णय के हतम संल न रहनेवाले थे ।। ५४—५७ ।। धृतरा ोऽथ राजाऽऽसीत् त य पु ोऽथ कु डकः । ह ती वतकः ाथ कु डन ा प प चमः ।। ५८ ।। ह वः वा तथे ाभो भुम यु ापरा जतः । धृतरा सुतानां तु ीनेतान् थतान् भु व ।। ५९ ।। तीपं धमने ं च सुने ं चा प भारत । तीपः थत तेषां बभूवा तमो भु व ।। ६० ।। इनम धृतरा राजा ए। उनके पु कु डक, ह ती, वतक, ाथ, कु डन, ह वः वा, इ ाभ, भुम यु और अपरा जत थे। भारत! इनके सवा तीप, धमने और सुने —ये तीन पु और थे। धृतराक े पु म ये ही तीन इस भूतलपर अ धक व यात थे। इनम भी तीपक स अ धक थी। भूम डलम उनक समानता करनेवाला कोई नह था ।। ५८ —६० ।। तीप य यः पु ा ज रे भरतषभ । दे वा पः शा तनु ैव बा क महारथः ।। ६१ ।। दे वा प व ाज तेषां धम हते सया । शा तनु मह लेभे बा क महारथः ।। ६२ ।। भरत े ! तीपके तीन पु ए—दे वा प, शा तनु और महारथी बा क। इनमसे दे वा प धमाचरण ारा क याण- ा तक इ छासे वनको चले गये, इस लये शा तनु एवं ी े ी

महारथी बा कने इस पृ वीका रा य ा त कया ।। ६१-६२ ।। भरत या वये जाताः स वव तो नरा धपाः । दे व षक पा नृपते बहवो राजस माः ।। ६३ ।। राजन्! भरतके वंशम सभी नरेश धैयवान् एवं श शाली थे। उस वंशम ब त-से े नृप तगण दे व षय के समान थे ।। ६३ ।। एवं वधा ा यपरे दे वक पा महारथाः । जाता मनोर ववाये ऐलवंश ववधनाः ।। ६४ ।। ऐसे ही और भी कतने ही दे वतु य महारथी मनुवंशम उ प ए थे, जो महाराज पु रवाके वंशक वृ करनेवाले थे ।। ६४ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण पू वंशानुक तने चतुनव ततमोऽ यायः ।। ९४ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम पू वंशवणन वषयक चौरानबेवाँ अ याय पूरा आ ।। ९४ ।।

* ऋचेयु, अ व भानु और अनाधृ

एक ही

के नाम ह।

प चनव ततमोऽ यायः द

जाप तसे लेकर पू वंश, भरतवंश एवं पा डु वंशक पर पराका वणन

जनमेजय उवाच ुत व ो मया न् पूवषां स भवो महान् । उदारा ा प वंशेऽ मन् राजानो मे प र ुताः ।। १ ।। जनमेजय बोले— न्! मने आपके मुखसे पूववत राजा क उ प का महान् वृ ा त सुना। इस पू वंशम उ प ए उदार राजा के नाम भी मने भलीभाँ त सुन लये ।। १ ।। कतु ल वथसंयु ं या यानं न माम त । ीणा यतो भवान् भूयो व तरेण वीतु मे ।। २ ।। एतामेव कथां द ामा जाप ततो मनोः । तेषामाजननं पु यं क य न ी तमावहेत् ।। ३ ।। परंतु सं ेपसे कहा आ यह य आ यान सुनकर मुझे पूणतः तृ त नह हो रही है। अतः आप पुनः व तारपूवक मुझसे इसी द कथाका वणन क जये। द जाप त और मनुसे लेकर उन सब राजा का प व ज म- संग कसको स नह करेगा? ।। २-३ ।। स मगुणमाहा यैर भव धतमु मम् । व य लोकां ीनेषां यशः फ तमव थतम् ।। ४ ।। उ म धम और गुण के माहा यसे अ य त वृ को ा त आ इन राजा का े और उ वल यश तीन लोक म ा त हो रहा है ।। ४ ।। गुण भाववीय जःस वो साहवतामहम् । न तृ या म कथां शृ व मृता वादस मताम् ।। ५ ।। ये सभी नरेश उ म गुण, भाव, बल-परा म, ओज, स व (धैय) और उ साहसे स प थे। इनक कथा अमृतके समान मधुर है, उसे सुनते-सुनते मुझे तृ त नह हो रही है ।। ५ ।। वैश पायन उवाच शृणु राजन् पुरा स यङ् मया ै पायना छतम् । ो यमान मदं कृ नं ववंशजननं शुभम् ।। ६ ।। वैश पायनजीने कहा—राजन्! पूवकालम मने मह ष कृ ण ै पायनके मुखसे जसका भलीभाँ त वण कया था, वह स पूण संग तु ह सुनाता ँ। अपने वंशक उ प का वह शुभ वृ ा त सुनो ।। ६ ।। े





द ाद द तर दते वव वान् वव वतो मनुमनो- रला इलायाः पु रवाः पु रवस आयुरायुषो न षो न षाद् यया तः; ययाते भाय बभूवतुः ।। ७ ।। उशनसो हता दे वयानी; वृषपवण हता श म ा नाम ।। ८ ।। द से अ द त, अ द तसे वव वान् (सूय), वव वान्से मनु, मनुसे इला, इलासे पु रवा, पु रवासे आयु, आयुसे न ष और न षसे यया तका ज म आ। यया तक दो प नयाँ थ पहली शु ाचायक पु ी दे वयानी तथा सरी वृषपवाक पु ी शम ा ।। ८ ।। अ ानुवंश ोको भव त— य ं च तुवसुं चैव दे वयानी जायत । ं चानुं च पू ं च श म ा वाषपवणी ।। ९ ।। यहाँ उनके वंशका प रचय दे नेवाला यह ोक कहा जाता है— दे वयानीने य और तुवसु नामवाले दो पु को ज म दया और वृषपवाक पु ी शम ाने , अनु तथा पू —ये तीन पु उ प कये ।। ९ ।। त यदोयादवाः; पूरोः पौरवाः ।। १० ।। इनम य से यादव और पू से पौरव ए ।। १० ।। पूरो तु भाया कौस या नाम । त याम य ज े जनमेजयो नाम; य ीन मेधानाजहार, व जता चे ् वा वनं ववेश ।। ११ ।। पू क प नीका नाम कौस या था (उसीको पौ ी भी कहते ह)। उसके गभसे पू के जनमेजय नामक पु आ (इसीका सरा नाम वीर है); जसने तीन अ मेध य का अनु ान कया था और व जत् य करके वान थ आ म हण कया था ।। ११ ।। जनमेजयः ख वन तां नामोपयेमे माधवीम् । त याम य ज े ा च वान्; यः ाच दशं जगाय यावत् सूय दयात्, तत त य ा च व वम् ।। १२ ।। जनमेजयने मधुवंशक क या अन ताके साथ ववाह कया था। उसके गभसे उनके ा च वान् नामक पु उ प आ। उसने उदयाचलसे लेकर सारी ाची दशाको एक ही दनम जीत लया था; इसी लये उसका नाम ा च वान् आ ।। १२ ।। ा च वान् ख व मक मुपयेमे यादवीम् । त याम य ज े संया तः ।। १३ ।। ा च वान्ने य कुलक क या अ मक को अपनी प नी बनाया। उसके गभसे उ ह संया त नामक पु ा त आ ।। १३ ।। संया तः खलु ष तो हतरं वरा नामोपयेमे । त याम य ज े अहंया तः ।। १४ ।। संया तने ष ान्क पु ी वरांगीसे ववाह कया। उसके गभसे उ ह अहंया त नामक पु आ ।। १४ ।। अहंया तः खलु कृतवीय हतरमुपयेमे भानुमत नाम । त याम य ज े सावभौमः ।। १५ ।। अहंया तने कृतवीयकुमारी भानुमतीको अपनी प नी बनाया। उसके गभसे अहंया तके सावभौम नामक पु उ प आ ।। १५ ।। ौ

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सावभौमः खलु ज वा जहार कैकेय सुन दां नाम । तामुपयेमे । त याम य ज े जय सेनो नाम ।। १६ ।। सावभौमने यु म जीतकर केकयकुमारी सुन दाका अपहरण कया और उसीको अपनी प नी बनाया। उससे उनको जय सेन नामक पु ा त आ ।। १६ ।। जय सेनो खलु वैदभ मुपयेमे सु वां नाम । त याम य ज े अवाचीनः ।। १७ ।। जय सेनने वदभराजकुमारी सु वासे ववाह कया। उसके गभसे उनके अवाचीन नामक पु आ ।। १७ ।। अवाचीनोऽ प वैदभ मपरामेवोपयेमे मयादां नाम । त याम य ज े अ रहः ।। १८ ।। अवाचीनने भी वदभराजकुमारी मयादाके साथ ववाह कया, जो आगे बतायी जानेवाली दे वा त थक प नीसे भ थी। उसके गभसे उ ह ‘अ रह’ नामक पु आ ।। १८ ।। अ रहः ख वा मुपयेमे । त याम य ज े महाभौमः ।। १९ ।। अ रहने अंगदे शक राजकुमारीसे ववाह कया और उसके गभसे उ ह महाभौम नामक पु ा त आ ।। १९ ।। महाभौमः खलु ासेन जतीमुपयेमे सुय ा नाम । त याम य ज े अयुतनायी; यः पु षमेधानामयुतमानयत्, तेना यायुतना य वम् ।। २० ।। महाभौमने सेन जत्क पु ी सुय ासे ववाह कया। उसके गभसे उ ह अयुतनायी नामक पु ा त आ; जसने दस हजार पु षमेध ‘य ’ कये। अयुत य का आनयन (अनु ान) करनेके कारण ही उनका नाम अयुतनायी आ ।। २० ।। अयुतनायी खलु पृथु वसो हतरमुपयेमे कामां नाम । त याम य ज े अ ोधनः ।। २१ ।। अयुतनायीने पृथु वाक पु ी कामासे ववाह कया, जसके गभसे अ ोधनका ज म आ ।। २१ ।। स खलु का ल कर भां नामोपयेमे । त याम य ज े दे वा त थः ।। २२ ।। अ ोधनने क लगदे शक राजकुमारी कर भासे ववाह कया। जसके गभसे उनके दे वा त थ नामक पु का ज म आ ।। २२ ।। दे वा त थः खलु वैदेहीमुपयेमे मयादां नाम । त याम य ज े अ रहो नाम ।। २३ ।। दे वा त थने वदे हराजकुमारी मयादासे ववाह कया, जसके गभसे अ रह नामक पु उ प आ ।। २३ ।। अ रहः ख वा े यीमुपयेमे सुदेवां नाम । त यां पु मजीजन म् ।। २४ ।। अ रहने अंगराजकुमारी सुदेवाके साथ ववाह कया और उसके गभसे ऋ नामक पु को ज म दया ।। २४ ।। ऋ ः खलु त क हतरमुपयेमे वालां नाम । त यां पु ं म तनारं नामो पादयामास ।। २५ ।। े ी े औ े े

ऋ ने त कक पु ी वालाके साथ ववाह कया और उसके गभसे म तनार नामक पु को उ प कया ।। २५ ।। म तनारः खलु सर व यां गुणसम वतं ादशवा षकं स माहरत् । समा ते च स े सर व य- भग य तं भतारं वरयामास । त यां पु मजीजनत् तंसुं नाम ।। २६ ।। म तनारने सर वतीके तटपर उ म गुण से यु ादशवा षक य का अनु ान कया। उसके समा त होनेपर सर वतीने उनके पास आकर उ ह प त पम वरण कया। म तनारने उसके गभसे तंसु नामक पु उ प कया ।। २६ ।। अ ानुवंश ोको भव त— तंसुं सर वती पु ं म तनारादजीजनत् । ई लनं जनयामास का ल यां तंसुरा मजम् ।। २७ ।। यहाँ वंशपर पराका सूचक ोक इस कार है— सर वतीने म तनारसे तंसु नामक पु उ प कया और तंसुने क लगराजकुमारीके गभसे ई लन नामक पु को ज म दया ।। २७ ।। ई लन तु रथ तया य ता ान् प च पु ानजीजनत् ।। २८ ।। ई लनने रथ तरीके गभसे य त आ द पाँच पु उ प कये ।। २८ ।। य तः खलु व ा म हतरं शकु तलां नामोपयेमे । त याम य ज े भरतः ।। २९ ।। य तने व ा म क पु ी शकु तलाके साथ ववाह कया; जसके गभसे उनके पु भरतका ज म आ ।। २९ ।। अ ानुवंश ोकौ भवतः— भ ा माता पतुः पु ो येन जातः स एव सः । भर व पु ं य त मावमं थाः शकु तलाम् ।। ३० ।। यहाँ वंशपर पराके सूचक दो ोक ह— ‘माता तो भाथी (ध कनी)-के समान है। वा तवम पु पताका ही होता है; जससे उसका ज म होता है, वही उस बालकके पम कट होता है। य त! तुम अपने पु का भरण-पोषण करो; शकु तलाका अपमान न करो ।। ३० ।। रेतोधाः पु उ य त नरदे व यम यात् । वं चा य धाता गभ य स यमाह शकु तला ।। ३१ ।। ‘गभाधान करनेवाला पता ही पु पम उ प होता है। नरदे व! पु यमलोकसे पताका उ ार कर दे ता है। तु ह इस गभके आधान करनेवाले हो। शकु तलाका कथन स य है’ ।। ३१ ।। ततोऽ य भरत वम् । भरतः खलु काशेयीमुपयेमे सावसेन सुन दां नाम । त याम य ज े भुम युः ।। ३२ ।। आकाशवाणीने भरण-पोषणके लये कहा था, इस लये उस बालकका नाम भरत आ। भरतने राजा सवसेनक पु ी सुन दासे ववाह कया। वह काशीक राजकुमारी थी। उसके गभसे भरतके भुम यु नामक पु आ ।। ३२ ।। े े े ो

भुम युः खलु दाशाह मुपयेमे वजयां नाम । त याम य ज े सुहो ः ।। ३३ ।। भुम युने दशाहक या वजयासे ववाह कया; जसके गभसे सुहो का ज म आ ।। ३३ ।। सुहो ः ख व वाकुक यामुपयेमे सुवणा नाम । त याम य ज े ह ती; य इदं हा तनपुरं थापयामास । एतद य हा तनपुर वम् ।। ३४ ।। सुहो ने इ वाकुकुलक क या सुवणासे ववाह कया। उसके गभसे उ ह ह ती नामक पु आ; जसने यह ह तनापुर नामक नगर बसाया था। ह तीके बसानेसे ही यह नगर ‘हा तनपुर’ कहलाया ।। ३४ ।। ह ती खलु ैगत मुपयेमे यशोधरां नाम । त याम य ज े वकु ठनो नाम ।। ३५ ।। ह तीने गतराजक पु ी यशोधराके साथ ववाह कया और उसके गभसे वकु ठन नामक पु उ प आ ।। ३५ ।। वकु ठनः खलु दाशाह मुपयेमे सुदेवां नाम । त याम य ज े अजमीढो नाम ।। ३६ ।। वकु ठनने दशाहकुलक क या सुदेवासे ववाह कया और उसके गभसे उ ह अजमीढ नामक पु ा त आ ।। ३६ ।। अजमीढ य चतु वशं पु शतं बभूव कैके यां गा धाया वशालायामृ ायां चे त । पृथक् पृथक् वंशधरा नृपतयः । त वंशकरः संवरणः ।। ३७ ।। अजमीढके कैकेयी, गा धारी, वशाला तथा ऋ ासे एक सौ चौबीस पु ए। वे सब पृथक्-पृथक् वंश वतक राजा ए। इनम राजा संवरण कु वंशके वतक ए ।। ३७ ।। संवरणः खलु वैव वत तपत नामोपयेमे । त याम य ज े कु ः ।। ३८ ।। संवरणने सूयक या तपतीसे ववाह कया; जसके गभसे कु का ज म आ ।। ३८ ।। कु ः खलु दाशाह मुपयेमे शुभा नाम । त याम य ज े व रः ।। ३९ ।। कु ने दशाहकुलक क या शुभांगीसे ववाह कया। उसके गभसे व र नामक पु आ ।। ३९ ।। व र तु माधवीमुपयेमे स यां नाम । त या-म य ज े अन ा नाम ।। ४० ।। व रने मधुवंशक क या स यासे ववाह कया; जसके गभसे अन ा नामक पु ा त आ ।। ४० ।। अन ा खलु मागधीमुपयेमे अमृतां नाम । त याम य ज े प र त् ।। ४१ ।। अन ाने मगधराजकुमारी अमृताको अपनी प नी बनाया। उसके गभसे प र त् नामक पु उ प आ ।। ४१ ।। प र त् खलु बा दामुपयेमे सुयशां नाम । त याम य ज े भीमसेनः ।। ४२ ।। प र त्ने बा दराजक पु ी सुयशाके साथ ववाह कया; जसके गभसे भीमसेन नामक पु आ ।। ४२ ।। भीमसेनः खलु कैकेयीमुपयेमे कुमार नाम । त याम य ज े त वा नाम ।। ४३ ।। ी े े े े ी ी ो ी ी े े

भीमसेनने केकयदे शक राजकुमारी कुमारीको अपनी प नी बनाया; जसके गभसे त वाका ज म आ ।। ४३ ।। त वसः तीपः खलु । शै यामुपयेमे सुन दां नाम । त यां पु ानु पादयामास दे वा प शा तनुं बा कं चे त ।। ४४ ।। त वासे तीप उ प आ। उसने श ब-दे शक राजक या सुन दासे ववाह कया और उसके गभसे दे वा प, शा तनु तथा बा क—इन तीन पु को ज म दया ।। ४४ ।। दे वा पः खलु बाल एवार यं ववेश । शा तनु तु महीपालो बभूव ।। ४५ ।। दे वा प बा याव थाम ही वनको चले गये, अतः शा तनु राजा ए ।। ४५ ।। अ ानुवंश ोको भव त— यं यं करा यां पृश त जीण स सुखमुते । पुनयुवा च भव त त मात् तं शा तनुं व ः ।। इ त तद य शा तनु वम् ।। ४६ ।। शा तनुके वषयम यह अनुवंश ोक उपल ध होता है— वे जस- जस बूढ़ेको अपने दोन हाथ से छू दे ते थे, वह बड़े सुख और शा तका अनुभव करता था तथा पुनः नौजवान हो जाता था। इसी लये लोग उ ह शा तनुके पम जानने लगे। यही उनके शा तनु नाम पड़नेका कारण आ ।। ४६ ।। शा तनुः खलु ग ां भागीरथीमुपयेमे । त याम य ज े दे व तो नामः यमा भ म म त ।। ४७ ।। शा तनुने भागीरथी गंगाको अपनी प नी बनाया; जसके गभसे उ ह दे व त नामक पु ा त आ, जसे लोग ‘भी म’ कहते ह ।। ४७ ।। भी मः खलु पतुः य चक षया स यवत मातरमुदवाहयत्; यामा ग धकाली त ।। ४८ ।। भी मने अपने पताका य करनेक इ छासे उनके साथ माता स यवतीका ववाह कराया; जसे ग धकाली भी कहते ह ।। ४८ ।। त यां पूव कानीनो गभः पराशराद् ै पायनोऽभवत् । त यामेव शा तनोर यौ ौ पु ौ बभूवतुः ।। ४९ ।। स यवतीके गभसे पहले क याव थाम मह ष पराशरसे ै पायन ास उ प ए थे। फर उसी स यवतीके राजा शा तनु ारा दो पु और ए ।। ४९ ।। व च वीय ा द । तयोर ा तयौवन एव च ा दो ग धवण हतः; व च वीय तु राजाऽऽसीत् ।। ५० ।। जनका नाम था, व च वीय और च ांगद। उनमसे च ांगद युवाव थाम पदापण करनेसे पहले ही एक ग धवके ारा मारे गये; परंतु व च वीय राजा ए ।। ५० ।। व च वीयः खलु कौस या मजे अ बका बा लके का शराज हतरावुपयेमे ।। ५१ ।। व च वीयने अ बका और अ बा लकासे ववाह कया। वे दोन का शराजक पु याँ थ और उनक माताका नाम कौस या था ।। ५१ ।। ी







व च वीय वनप य एव वदे ह वं ा तः । ततः स यव य च तय मा दौ य तो वंश उ छे दं जे द त ।। ५२ ।। व च वीयके अभी कोई संतान नह ई थी, तभी उनका दे हावसान हो गया। तब स यवतीको यह च ता ई क ‘राजा य तका यह वंश न न हो जाय’ ।। ५२ ।। सा ै पायनमृ ष मनसा च तयामास । स त याः पुरतः थतः, क करवाणी त ।। ५३ ।। उसने मन-ही-मन ै पायन मह ष ासका च तन कया। फर तो ासजी उसके आगे कट हो गये और बोले—‘ या आ ा है?’ ।। ५३ ।। सा तमुवाच— ाता तवानप य एव वयातो व च वीयः । सा वप यं त यो पादये त ।। ५४ ।। स यवतीने उनसे कहा—‘बेटा! तु हारे भाई व च वीय संतानहीन अव थाम ही वगवासी हो गये। अतः उनके वंशक र ाके लये उ म संतान उ प करो’ ।। ५४ ।। स तथे यु वा ीन् पु ानु पादयामास; धृतरा ं पा ड ु ं व रं चे त ।। ५५ ।। उ ह ने ‘तथा तु’ कहकर धृतरा, पा डु और व र—इन तीन पु को उ प कया ।। ५५ ।। त धृतरा य रा ः पु शतं बभूव गा धाया वरदानाद् ै पायन य ।। ५६ ।। उनमसे राजा धृतराक े गा धारीके गभसे ासजीके दये ए वरदानके भावसे सौ पु ए ।। ५६ ।। तेषां धृतरा य पु ाणां च वारः धाना बभूवुः; य धनो ःशासनो वकण सेन े त ।। ५७ ।। धृतराक े उन सौ पु म चार धान थे— य धन, ःशासन, वकण और च सेन ।। ५७ ।। पा डो तु े भाय बभूवतुः कु ती पृथा नाम मा च इ युभे ीर ने ।। ५८ ।। पा डु क दो प नयाँ थ ; कु तभोजक क या पृथा और मा । ये दोन ही यम र न व पा थ ।। ५८ ।। अथ पा डु मृगयां चरन् मैथुनगतमृ षमप य मृ यां वतमानम् । तथैवा तमनासा दतकामरसमतृ तं च बाणेनाजघान ।। ५९ ।। एक दन राजा पा डु ने शकार खेलते समय एक मृग पधारी ऋ षको मृगी पधा रणी अपनी प नीके साथ मैथुन करते दे खा। वह अद्भुत मृग अभी काम-रसका आ वादन नह कर सका था। उसे अतृ त अव थाम ही राजाने बाणसे मार दया ।। ५९ ।। स बाण व उवाच पा डु म्—चरता धम ममं येन वया भ ेन कामरस याहमनवा तकामरसो नहत त मात् वम येतामव थामासा ानवा तकामरसः प च वमा य स मेवे त । स ववण प तथा पा डु ः शापं प रहरमाणो नोपासपत भाय । वा यं चोवाच — ।। ६० ।। े













बाणसे घायल होकर उस मु नने पा डु से कहा—‘राजन्! तुम भी इस मैथुन धमका आचरण करनेवाले तथा काम-रसके ाता हो, तो भी तुमने मुझे उस दशाम मारा है, जब क म काम-रससे तृ त नह आ था। इस कारण इसी अव थाम प ँचकर काम-रसका आ वादन करनेसे पहले ही शी मृ युको ा त हो जाओगे।’ यह सुनकर राजा पा डु उदास हो गये और शापका प रहार करते ए प नय के सहवाससे र रहने लगे। उ ह ने कहा— ।। ६० ।। वचाप या ददं ा तवानहं शृणो म च नानप य य लोकाः स ती त । सा वं मदथ पु ानु पादये त कु तीमुवाच । सा तथो ा पु ानु पादयामास । धमाद् यु ध रं मा ताद् भीमसेनं श ादजुन म त ।। ६१ ।। ‘दे वयो! अपनी चपलताके कारण मुझे यह शाप मला है। सुनता ँ, संतानहीनको पु यलोक नह ा त होते ह। अतः तुम मेरे लये पु उ प करो।’ यह बात उ ह ने कु तीसे कही। उनके ऐसा कहनेपर कु तीने तीन पु उ प कये—धमराजसे यु ध रको, वायुदेवसे भीमसेनको और इ से अजुनको ज म दया ।। ६१ ।। तां सं ः पा डु वाच— इयं ते सप यनप या; सा व या अप यमु पा ता म त । एवम व त कु ती तां व ां मा याः ाय छत् ।। ६२ ।। इससे पा डु को बड़ी स ता ई। उ ह ने कु तीसे कहा—‘यह तु हारी सौत मा तो संतानहीन ही रह गयी, इसके गभसे भी सु दर संतान उ प होनेक व था करो।’ ‘ऐसा ही हो’ कहकर कु तीने अपनी वह व ा ( जससे दे वता आकृ होकर चले आते थे) मा को भी दे द ।। ६२ ।। मा याम यां नकुलसहदे वावु पा दतौ ।। ६३ ।। मा के गभसे अ नीकुमार ने नकुल और सहदे वको उ प कया ।। ६३ ।। मा ख वलंकृतां ् वा पा डु भावं च े च तां पृ ् वैव वदे ह वं ा तः ।। ६४ ।। त ैनं चता न थं मा सम वा रोह उवाच कु तीम्; यमयोर म या वया भ वत म त ।। ६५ ।। एक दन मा को शृंगार कये दे ख पा डु उसके त आस हो गये और उसका पश होते ही उनका शरीर छू ट गया। तदन तर वहाँ चताक आगम थत प तके शवके साथ मा चतापर आ ढ़ हो गयी और कु तीसे बोली—‘ब हन! मेरे जुड़व ब च के भी लालनपालनम तुम सदा सावधान रहना’ ।। ६४-६५ ।। तत ते पा डवाः कु या स हता हा तनपुर-मानीय तापसैभ म य च व र य च नवे दताः । सववणानां च नवे ा त हता तापसा बभूवुः े य-माणानां तेषाम् ।। ६६ ।। इसके बाद तप वी मु नय ने कु तीस हत पा डव को वनसे ह तनापुरम लाकर भी म तथा व रजीको स प दया। साथ ही सम त जावगके लोग को भी सारे समाचार बताकर वे तप वी उन सबके दे खते-दे खते वहाँसे अ तधान हो गये ।। ६६ ।। े े

त च वा यमुप ु य भगवताम त र ात् पु पवृ ः पपात; दे व भय णे ः ।। ६७ ।। उन ऐ यशाली मु नय क बात सुनकर आकाशसे फूल क वषा होने लगी और दे वता क भयाँ बज उठ ।। ६७ ।। तगृहीता पा डवाः पतु नधनमावेदयन् त यौ वदे हकं यायत कृतव तः । तां त नवसतः पा डवान् बा यात् भृ त य धनो नामषयत् ।। ६८ ।। भी म और धृतराक े ारा अपना लये जानेपर पा डव ने उनसे अपने पताक मृ युका समाचार बताया, त प ात् पताक औ वदै हक याको व धपूवक स प करके पा डव वह रहने लगे। य धनको बा याव थासे ही पा डव का साथ रहना सहन नह आ ।। ६८ ।। पापाचारो रा स बु मा तोऽनेकै पायै तु च व सतः; भा व वा चाथ य न श कता ते समु तुम् ।। ६९ ।। पापाचारी य धन रा सी बु का आ य ले अनेक उपाय से पा डव क जड़ उखाड़नेका य न करता रहता था। परंतु जो होनेवाली बात है, वह होकर ही रहती है; इस लये य धन आ द पा डव को न करनेम सफल न हो सके ।। ६९ ।। तत धृतरा ेण ाजेन वारणावतमनु े षता गमनमरोचयन् ।। ७० ।। इसके बाद धृतराने कसी बहानेसे पा डव को जब वारणावत नगरम जानेके लये े रत कया, तब उ ह ने वहाँसे जाना वीकार कर लया ।। ७० ।। त ा प जतुगृहे द धुं समारधा न श कता व रम तेने त ।। ७१ ।। वहाँ भी उ ह ला ागृहम जला डालनेका य न कया गया; कतु पा डव के व रजीक सलाहके अनुसार काम करनेके कारण वरोधीलोग उनको द ध करनेम समथ न हो सके ।। ७१ ।। त मा च ह ड बम तरा ह वा एकच ां गताः ।। ७२ ।। पा डव वारणावतसे अपनेको छपाते ए चल पड़े और मागम ह ड ब रा सका वध करके वे एकच ा नगरीम जा प ँचे ।। ७२ ।। त याम येकच ायां बकं नाम रा सं ह वा पा चालनगरम धगताः ।। ७३ ।। एकच ाम भी बक नामवाले रा सका संहार करके वे पांचाल नगरम चले गये ।। ७३ ।। त ौपद भायाम व दन्, व वषयं चा भज मुः ।। ७४ ।। वहाँ पा डव ने ौपद को प नी पम ा त कया और फर अपनी राजधानी ह तनापुरम लौट आये ।। ७४ ।। कुश लनः पु ां ो पादयामासुः । त व यं यु ध रः, सुतसोमं वृकोदरः, ुतक तमजुनः, शतानीकं नकुलः, ुतकमाणं सहदे व इ त ।। ७५ ।। वहाँ कुशलपूवक रहते ए उ ह ने ौपद से पाँच पु उ प कये। यु ध रने त व यको, भीमसेनने सुतसोमको, अजुनने ुतक तको, नकुलने शतानीकको और सहदे वने ुतकमाको ज म दया ।। ७५ ।। ो ै े े े े

यु ध र तु गोवासन य शै य य दे वकां नाम क यां वयंवरे लेभे । त यां पु ं जनयामास यौधेयं नाम ।। ७६ ।। भीमसेनोऽ प का यां बल धरां नामोपयेमे वीय-शु काम् । त यां पु ं सवगं नामो पादयामास ।। ७७ ।। यु ध रने श बदे शके राजा गोवासनक पु ी दे वकाको वयंवरम ा त कया और उसके गभसे एक पु को ज म दया; जसका नाम यौधेय था। भीमसेनने भी का शराजक क या बल धराके साथ ववाह कया; उसे ा त करनेके लये बल एवं परा मका शु क रखा गया था अथात् यह शत थी क जो अ धक बलवान् हो, वही उसके साथ ववाह कर सकता है। भीमसेनने उसके गभसे एक पु उ प कया, जसका नाम सवग था ।। ७६-७७ ।। अजुनः खलु ारवत ग वा भ गन वासुदेव य सुभ ां भ भा षण भायामुदावहत् । व वषयं चा याजगाम कुशली । त यां पु म भम युमतीव गुणस प ं द यतं वासुदेव याजनयत् ।। ७८ ।। अजुनने ारकाम जाकर मंगलमय वचन बोलनेवाली वासुदेवक ब हन सुभ ाको प नी पम ा त कया और उसे लेकर कुशलपूवक अपनी राजधानीम चले आये वहाँ उसके गभसे अ य त गुणस प अ भम यु नामक पु को उ प कया; जो वसुदेवन दन भगवान् ीकृ णको ब त य था ।। ७८ ।। नकुल तु चै ां करेणुमत नाम भायामुदावहत् । त यां पु ं नर म ं नामाजनयत् ।। ७९ ।। नकुलने चे दनरेशक पु ी करेणुमतीको प नी पम ा त कया और उसके गभसे नर म नामक पु को ज म दया ।। ७९ ।। सहदे वोऽ प मा मेव वयंवरे वजयां नामोपयेमे म राज य ु तमतो हतरम् । त यां पु मजनयत् सुहो ं नाम ।। ८० ।। सहदे वने भी म दे शक राजकुमारी वजयाको वयंवरम ा त कया। वह म राज ु तमान्क पु ी थी। उसके गभसे उ ह ने सुहो नामक पु को ज म दया ।। ८० ।। भीमसेन तु पूवमेव ह ड बायां रा सं घटो कचं पु मु पादयामास ।। ८१ ।। भीमसेनने पहले ही ह ड बाके गभसे घटो कच नामक रा सजातीय पु को उ प कया ।। ८१ ।। इ येत एकादश पा डवानां पु ाः । तेषां वंशकरोऽ भम युः ।। ८२ ।। इस कार ये पा डव के यारह पु ए। इनमसे अ भम युका ही वंश चला ।। ८२ ।। स वराट य हतरमुपयेमे उ रां नाम । त याम य परासुगभ ऽभवत् । तमु स े न तज ाह पृथा नयोगात् पु षो म य वासुदेव य, षा मा सकं गभमहमेनं जीव य यामी त ।। ८३ ।। अ भम युने वराटक पु ी उ राके साथ ववाह कया था। उसके गभसे अ भम युके एक पु आ; जो मरा आ था। पु षोतम भगवान् ीकृ णके आदे शसे कु तीने उसे ी ो





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अपनी गोदम ले लया। उ ह ने यह आ ासन दया क छः महीनेके इस मरे ए बालकको म जी वत कर ँ गा ।। ८३ ।। स भगवता वासुदेवेनासंजातबलवीय-परा मोऽकालजातोऽ ा नना द ध तेजसा वेन संजी वतः । जीव य वा चैनमुवाच—प र ीणे कुले जातो भव वयं पर ामे त ।। ८४ ।। प र त् खलु मा वत नामोपयेमे व मातरम् । त यां भवान् जनमेजयः ।। ८५ ।। अ थामाके अ क अ नसे झुलसकर वह असमयम (समयसे पहले) ही पैदा हो गया था। उसम बल, वीय और परा म नह था। परंतु भगवान् ीकृ णने उसे अपने तेजसे जी वत कर दया। इसको जी वत करके वे इस कार बोले—‘इस कुलके प र ीण (न ) होनेपर इसका ज म आ है; अतः यह बालक प र त् नामसे व यात हो’। प र त्ने तु हारी माता मा वतीके साथ ववाह कया, जसके गभसे तुम जनमेजय नामक पु उ प ए ।। ८४-८५ ।। भवतो वपु मायां ौ पु ौ ज ाते; शतानीकः शङ् कुकण । शतानीक य वैदे ां पु उ प ोऽ -मेधद इ त ।। ८६ ।। तु हारी प नी वपु माके गभसे दो पु उ प ए ह—शतानीक और शंकुकण। शतानीकक प नी वदे हराजकुमारीके गभसे उ प ए पु का नाम है अ मेधद ।। ८६ ।। एष पूरोवशः पा डवानां च क ततः; ध यः पु यः परमप व ः सततं ोत ो ा णै नयम-व रन तरं यैः वधम नरतैः जापालन-त परैव यैर प च ोत ोऽ धग य तथा शू ै र प वणशु ूषु भः धानै र त ।। ८७ ।। यह पू तथा पा डव के वंशका वणन कया गया; जो धन और पु यक ा त करानेवाला एवं परम प व है, नयमपरायण ा ण , अपने धमम थत जापालक य , वै य तथा तीन वण क सेवा करनेवाले ालु शू को भी सदा इसका वण एवं वा याय करना चा हये ।। ८७ ।। इ तहास ममं पु यमशेषतः ाव य य त ये नराः ो य त वा नयता मानो वम सरा मै ा वेद-परा तेऽ प वग जतः पु यलोका भव त सततं दे व ा णमनु याणां मा याः स पू या ।। ८८ ।। जो पु या मा मनु य मनको वशम करके ई या छोड़कर सबके त मै ीभावको रखते ए वेदपरायण हो इस स पूण पु यमय इ तहासको सुनावगे अथवा सुनगे वे वगलोकके अ धकारी ह गे और दे वता, ा ण तथा मनु य के लये सदै व आदरणीय तथा पूजनीय ह गे ।। ८८ ।। परं हीदं भारतं भगवता ासेन ो ं पावनं ये ा णादयो वणाः धाना अम सरा मै ा वेदस प ाः ो य त, तेऽ प वग जतः सुकृ तनोऽशो याः कृताकृते भव त ।। ८९ ।। ो





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जो ा ण आ द वण के लोग मा सयर हत, मै ीभावसे संयु और वेदा ययनसे स प हो ापूवक भगवान् ासके ारा कहे ए इस परम पावन महाभारत थको सुनगे, वे भी वगके अ धकारी और पु या मा ह गे तथा उनके लये इस बातका शोक नह रह जायगा क उ ह ने अमुक कम य कया और अमुक कम य नह कया ।। ८९ ।। भव त चा ोकः— इदं ह वेदैः स मतं प व म प चो मम् । ध यं यश यमायु यं ोत ं नयता म भः ।। ९० ।। इस वषयम यह ोक स है— ‘यह महाभारत वेद के समान प व , उ म तथा धन, यश और आयुक ा त करानेवाला है। मनको वशम रखनेवाले साधु पु ष को सदै व इसका वण करना चा हये’ ।। ९० ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण पू वंशानुक तने प चनव ततमोऽ यायः ।। ९५ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम पू वंशानुवणन वषयक पंचानबेवाँ अ याय पूरा आ ।। ९५ ।।

ष णव ततमोऽ यायः महा भषको

ाजीका शाप तथा शाप साथ गंगाक बातचीत

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वैश पायन उवाच इ वाकुवंश भवो राजाऽऽसीत् पृ थवीप तः । महा भष इ त यातः स यवाक् स य व मः ।। १ ।। सोऽ मेधसह ेण राजसूयशतेन च । तोषयामास दे वेशं वग लेभे ततः भुः ।। २ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! इ ाकु-वंशम उ प महा भष नामसे स एक राजा हो गये ह, जो स यवाद होनेके साथ ही स यपरा मी भी थे। उ ह ने एक हजार अ मेध और एक सौ राजसूय य ारा दे वे र इ को संतु कया और उन य के पु यसे उन श शाली नरेशने वगलोग ा त कर लया ।। १-२ ।। ततः कदा चद् ाणमुपासांच रे सुराः । त राजषयो ासन् स च राजा महा भषः ।। ३ ।। तदन तर एक समय सब दे वता ाजीक सेवाम उनके समीप बैठे ए थे। वहाँ ब त-से राज ष तथा पूव राजा महा भष भी उप थत थे ।। ३ ।। अथ ग ा स र े ा समुपायात् पतामहम् । त या वासः समु तं मा तेन श श भम् ।। ४ ।। इसी समय स रता म े गंगा ाजीके समीप आयी। उस समय वायुके झ केसे उसके शरीरका चाँदनीके समान उ वल व सहसा ऊपरक ओर उठ गया ।। ४ ।। ततोऽभवन् सुरगणाः सहसावाङ् मुखा तदा । महा भष तु राज षरशङ् को वान् नद म् ।। ५ ।। यह दे ख सब दे वता ने तुरंत अपना मुँह नीचेक ओर कर लया; कतु राज ष महा भष नःशंक होकर दे वनद क ओर दे खते ही रह गये ।। ५ ।। सोऽप यातो भगवता णा तु महा भषः । उ जातो म यषु पुनल कानवा य स ।। ६ ।। ययाऽऽ तमना ा स ग या वं ह मते । सा ते वै मानुषे लोके व या याच र य त ।। ७ ।। तब भगवान् ाने महा भषको शाप दे ते ए कहा—‘ मते! तुम मनु य म ज म लेकर फर पु यलोक म आओगे। जस गंगाने तु हारे च को चुरा लया है, वही मनु यलोकम तु हारे तकूल आचरण करेगी ।। ६-७ ।। यदा ते भ वता म यु तदा शापाद् वमो यसे । ‘जब तु ह गंगापर ोध आ जायगा, तब तुम भी शापसे छू ट जाओगे।’ ै

वैश पायन उवाच स च त य वा नृप तनृपान यां तपोधनान् ।। ८ ।। तीपं रोचयामास पतरं भू रतेजसम् । महा भषं तु तं ् वा नद धैया युतं नृपम् ।। ९ ।। तमेव मनसा याय युपावतत् स र रा । सा तु व व तवपुषः क मला भहतान् नृप ।। १० ।। ददश प थ ग छ ती वसून् दे वान् दवौकसः । तथा पां तान् ् वा प छ स रतां वरा ।। ११ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तब राजा महा भषने अ य ब त-से तप वी राजा का च तन करके महातेज वी राजा तीपको ही अपना पता बनानेके यो य चुना —उ ह को पसंद कया। महानद गंगा राजा महा भषको धैय खोते दे ख मन-ही-मन उ ह का च तन करती ई लौट । मागसे जाती ई गंगाने वसुदेवता को दे खा। उनका शरीर वगसे नीचे गर रहा था। वे मोहा छ एवं म लन दखायी दे रहे थे। उ ह इस पम दे खकर न दय म े गंगाने पूछा— ।। ८—११ ।। क मदं न पाः थ क चत् ेमं दवौकसाम् । तामूचुवसवो दे वाः श ताः मो वै महान द ।। १२ ।। अ पेऽपराधे संर भाद् व स ेन महा मना । वमूढा ह वयं सव छ मृ षस मम् ।। १३ ।। सं यां व स मासीनं तम य भसृताः पुरा । तेन कोपाद् वयं श ता योनौ स भवते त ह ।। १४ ।। तुमलोग का द प न कैसे हो गया? दे वता सकुशल तो ह न? तब वसुदेवता ने गंगासे कहा—‘महानद ! महा मा व स ने थोड़े-से अपराधपर ोधम आकर हम शाप दे दया है। पहलेक बात है एक दन जब व स जी पेड़ क आड़म सं योपासना कर रहे थे, हम सब मोहवश उनका उ लंघन करके चले गये (और उनक धेनुका अपहरण कर लया)। इससे कु पत होकर उ ह ने हम शाप दया क ‘तुमलोग मनु ययो नम ज म लो’ ।। १२— १४ ।। न नवत यतुं श यं य ं वा दना । वम मान् मानुषी भू वा सृज पु ान्-वसून् भु व ।। १५ ।। ‘उन वाद मह षने जो बात कह द है, वह टाली नह जा सकती; अतः हमारी ाथना है क तुम पृ वीपर मानवप नी होकर हम वसु को अपने पु पसे उ प करो ।। १५ ।। न मानुषीणां जठरं वशेम वयं शुभे । इ यु ा तै वसु भ तथे यु वा वी ददम् ।। १६ ।। ‘शुभे! हम मानुषी य के उदरम वेश न करना पड़े, इसी लये हमने यह अनुरोध कया है।’ वसु के ऐसा कहनेपर गंगाजी ‘तथा तु’ कहकर य बोल ।। १६ ।। ो

गोवाच म यषु पु ष े ः को वः कता भ व य त । गंगाजीने कहा—वसुओ! म यलोकम ऐसे े पु ष कौन ह; जो तुमलोग के पता ह गे। वसव ऊचुः तीप य सुतो राजा शा तनुल क व ुतः । भ वता मानुषे लोके स नः कता भ व य त ।। १७ ।। वसुगण बोले— तीपके पु राजा शा तनु लोक व यात साधु पु ष ह गे। मनु यलोकम वे ही मारे जनक ह गे ।। १७ ।। गोवाच ममा येवं मतं दे वा यथा मां वदतानघाः । यं त य क र या म यु माकं चैतद सतम् ।। १८ ।। गंगाजीने कहा— न पाप दे वताओ! तुमलोग जैसा कहते हो, वैसा ही मेरा भी वचार है। म राजा शा तनुका य क ँ गी और तु हारे इस अभी कायको भी स क ँ गी ।। १८ ।। वसव ऊचुः जातान् कुमारान् वान सु े तुं वै वमह स । यथा न चरकालं नो न कृ तः यात् लोकगे ।। १९ ।। वसुगण बोले—तीन लोक म वा हत होनेवाली गंगे! हमलोग जब तु हारे गभसे ज म ल, तब तुम पैदा होते ही हम अपने जलम फक दे ना; जससे शी ही हमारा म यलोकसे छु टकारा हो जाय ।। १९ ।। गोवाच एवमेतत् क र या म पु त य वधीयताम् । ना य मोघः संगमः यात् पु हेतोमया सह ।। २० ।। गंगाजीने कहा—ठ क है, म ऐसा ही क ँ गी; परंतु उस राजाका मेरे साथ पु के लये कया आ स ब ध थ न हो जाय, इस लये उनके लये एक पु क भी व था होनी चा हये ।। २० ।। वसव ऊचुः तुरीयाध दा यामो वीय यैकैकशो वयम् । तेन वीयण पु ते भ वता त य चे सतः ।। २१ ।। वसुगण बोले—हम सब लोग अपने तेजका एक-एक अ मांश दगे। उस तेजसे जो तु हारा एक पु होगा, वह उस राजाक इ छाके अनु प होगा ।। २१ ।। न स प य त म यषु पुन त य तु संत तः । े ी

त मादपु ः पु ते भ व य त स वीयवान् ।। २२ ।। कतु म यलोकम उसक कोई संतान न होगी। अतः तु हारा वह पु संतानहीन होनेके साथ ही अ य त परा मी होगा ।। २२ ।। एवं ते समयं कृ वा ग या वसवः सह । ज मुः सं मनसो यथासंक पम सा ।। २३ ।। इस कार गंगाजीके साथ शत करके वसुगण स तापूवक अपनी इ छाके अनुसार चले गये ।। २३ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण महा भषोपा याने ष णव ततमोऽ यायः ।। ९६ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम महा भषोपा यान वषयक छानबेवाँ अ याय पूरा आ ।। ९६ ।।

स तनव ततमोऽ यायः राजा तीपका गंगाको पु वधूके पम वीकार करना और शा तनुका ज म, रा या भषेक तथा गंगासे मलना वैश पायन उवाच ततः तीपो राजाऽऽसीत् सवभूत हतः सदा । नषसाद समा ब ग ा ारगतो जपन् ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—तदन तर इस पृ वीपर राजा तीप रा य करने लगे। वे सदा स पूण ा णय के हतम संल न रहते थे। एक समय महाराज तीप गंगा ार (ह र ार)-म गये और ब त वष तक जप करते ए एक आसनपर बैठे रहे ।। १ ।। त य पगुणोपेता ग ा ी पधा रणी । उ ीय स ललात् त मा लोभनीयतमाकृ तः ।। २ ।। अधीयान य राजष द पा मन वनी । द णं शालसंकाशमू ं भेजे शुभानना ।। ३ ।। उस समय मन वनी गंगा सु दर प और उ म गुण से यु युवती ीका प धारण करके जलसे नकल और वा यायम लगे ए राज ष तीपके शाल-जैसे वशाल दा हने ऊ (जाँघ)-पर जा बैठ। उस समय उनक आकृ त बड़ी लुभावनी थी; प दे वांगना के समान था और मुख अ य त मनोहर था ।। २-३ ।। तीप तु महीपाल तामुवाच यश वनीम् । करो म क ते क या ण यं यत् तेऽ भकाङ् तम् ।। ४ ।। अपनी जाँघपर बैठ ई उस यश वनी नारीसे राजा तीपने पूछा—‘क या ण! म तु हारा कौन-सा य काय क ँ ? तु हारी या इ छा है?’ ।। ४ ।। युवाच वामहं कामये राजन् भजमानां भज व माम् । यागः कामवतीनां ह ीणां स वग हतः ।। ५ ।। ी बोली—राजन्! म आपको ही चाहती ँ। आपके त मेरा अनुराग है, अतः आप मुझे वीकार कर; य क कामके अधीन होकर अपने पास आयी ई य का प र याग साधु पु ष ने न दत माना है ।। ५ ।। तीप उवाच नाहं पर यं कामाद् ग छे यं वरव ण न । न चासवणा क या ण ध यमेत मे तम् ।। ६ ।। तीपने कहा—सु दरी! म कामवश परायी ीके साथ समागम नह कर सकता। जो अपने वणक न हो, उससे भी म स ब ध नह रख सकता। क या ण! यह मेरा धमानुकूल ै

त है ।। ६ ।।

युवाच ना ेय य म नाग या न व ा च क ह चत् । भज त भज मां राजन् द ां क यां वर यम् ।। ७ ।। ी बोली—राजन्! म अशुभ या अमंगल करनेवाली नह ँ, समागमके अयो य भी नह ँ और ऐसी भी नह ँ क कभी कोई मुझपर कलंक लगावे। म आपके त अनुर होकर आयी ई द क या एवं सु दरी ी ँ। अतः आप मुझे वीकार कर ।। ७ ।। तीप उवाच वया नवृ मेतत् तु य मां चोदय स यम् । अ यथा तप ं मां नाशयेद ् धम व लवः ।। ८ ।। तीपने कहा—सु दरी! तुम जस य मनोरथक पू तके लये मुझे े रत कर रही हो, उसका नराकरण भी तु हारे ारा ही हो गया। य द म धमके वपरीत तु हारा यह ताव वीकार कर लूँ तो धमका यह वनाश मेरा भी नाश कर डालेगा ।। ८ ।। ा य द णमू ं मे वमा ा वरा ने । अप यानां नुषाणां च भी वेतदासनम् ।। ९ ।। वरांगने! तुम मेरी दा हनी जाँघपर आकर बैठ हो। भी ! तु ह मालूम होना चा हये क यह पु , पु ी तथा पु वधूका आसन है ।। ९ ।। स ो ः का मनीभो य वया स च वव जतः । त मादहं नाच र ये व य कामं वरा ने ।। १० ।। पु षक बाय जाँघ ही का मनीके उपभोगके यो य है; कतु तुमने उसका याग कर दया है। अतः वरांगने! म तु हारे त कामयु आचरण नह क ँ गा ।। १० ।। नुषा मे भव सु ो ण पु ाथ वां वृणो यहम् । नुषाप ं ह वामो वमाग य समा ता ।। ११ ।। सु ो ण! तुम मेरी पु वधू हो जाओ। म अपने पु के लये तु हारा वरण करता ँ; य क वामो ! तुमने यहाँ आकर मेरी उसी जाँघका आ य लया है, जो पु वधूके प क है ।। ११ ।। युवाच एवम य तु धम संयु येयं सुतेन ते । व या तु भ ज या म यातं भारतं कुलम् ।। १२ ।। ी बोली—धम नरेश! आप जैसा कहते ह, वैसा भी हो सकता है। म आपके पु के साथ संयु होऊँगी। आपके त जो मेरी भ है, उसके कारण म व यात भरतवंशका सेवन क ँ गी ।। १२ ।। पृ थ ां पा थवा ये च तेषां यूयं परायणम् । गुणा न ह मया श या व ुं वषशतैर प ।। १३ ।। ी











पृ वीपर जतने राजा ह, उन सबके आपलोग उ म आ य ह। सौ वष म भी आपलोग के गुण का वणन म नह कर सकती ।। १३ ।। कुल य ये वः थता त साधु वमथो मम् । समयेनेह धम आचरेयं च यद् वभो ।। १४ ।। तत् सवमेव पु ते न मीमांसेत क ह चत् । एवं वस ती पु े ते वध य या यहं र तम् ।। १५ ।। पु ैः पु यैः यै ैव वग ा य त ते सुतः । आपके कुलम जो व यात राजा हो गये ह, उनक साधुता सव प र है। धम ! म एक शतके साथ आपके पु से ववाह क ँ गी। भो! म जो कुछ भी आचरण क ँ , वह सब आपके पु को वीकार होना चा हये। वे उसके वषयम कभी कुछ वचार न कर। इस शतपर रहती ई म आपके पु के त अपना ेम बढ़ाऊँगी। मुझसे जो पु या मा एवं य पु उ प ह गे, उनके ारा आपके पु को वगलोकक ा त होगी ।। १४-१५ ।। वैश पायन उवाच तथे यु ा तु सा राजं त ैवा तरधीयत ।। १६ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! राजा तीपने ‘तथा तु’ कहकर उसक शत वीकार कर ली। त प ात् वह वह अ तधान हो गयी ।। १६ ।। पु ज म ती न् वै स राजा तदधारयत् । एत म ेव काले तु तीपः यषभः ।। १७ ।। तप तेपे सुत याथ सभायः कु न दन । इसके बाद पु के ज मक ती ा करते ए राजा तीपने उसक बात याद रखी। कु न दन! इ ह दन य म े तीप अपनी प नीको साथ लेकर पु के लये तप या करने लगे ।। १७ ।। ( तीप य तु भायायां गभः ीमानवधत । या परमया यु ः शर छु ले यथा शशी ।। तत तु दशमे मा स ाजायत र व भम् । कुमारं दे वगभाभं तीपम हषी तदा ।।) तयोः समभवत् पु ो वृ योः स महा भषः ।। १८ ।। तीपक प नीक कु म एक तेज वी गभका आ वभाव आ, जो शरद्-ऋतुके शु ल प म परम का तमान् च माक भाँ त त दन बढ़ने लगा। तदन तर दसवाँ मास ा त होनेपर तीपक महारानीने एक दे वोपम पु को ज म दया, जो सूयके समान काशमान था। उन बूढ़े राजद प तके यहाँ पूव राजा महा भष ही पु पम उ प ए ।। १८ ।। शा त य ज े संतान त मादासीत् स शा तनुः । शा त पताक संतान होनेसे वे शा तनु कहलाये। (त य जात य कृ या न तीपोऽकारयत् भुः । े

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जातकमा द व ेण वेदो ै ः कम भ तदा ।। श शाली राजा तीपने उस बालकके आव यक कृ य (सं कार) करवाये। ा ण पुरो हतने वेदो या ारा उसके जात-कम आ द स प कये। नामकम च व ा तु च ु ः परमस कृतम् । शा तनोरवनीपाल वेदो ै ः कम भ तदा ।। जनमेजय! तदन तर ब त-से ा ण ने मलकर वेदो व धय के अनुसार शा तनुका नामकरण-सं कार भी कया। ततः संव धतो राजा शा तनुल कपालकः । स तु लेभे परां न ां ा य धम वदां वरः ।। धनुवदे च वेदे च ग त स परमां गतः । यौवनं चा प स ा तः कुमारो वदतां वरः ।।) त प ात् बड़े होनेपर राजकुमार शा तनु लोकर ाका काय करने लगे। वे धम म े थे। उ ह ने धनुवदम उ म यो यता ा त करके वेदा ययनम भी ऊँची थ त ा त क । व ा म सव े वे राजकुमार धीरे-धीरे युवाव थाम प ँच गये। सं मरं ा याँ लोकान् वजातान् वेन कमणा ।। १९ ।। पु यकमकृदे वासी छा तनुः कु स मः । तीपः शा तनुं पु ं यौवन थं ततोऽ वशात् ।। २० ।। अपने स कम ारा उपाजत अ य पु यलोक का मरण करके कु े शा तनु सदा पु यकम के अनु ानम ही लगे रहते थे। युवाव थाम प ँचे ए राजकुमार शा तनुको राजा तीपने आदे श दया— ।। १९-२० ।। पुरा ी मां सम यागा छा तनो भूतये तव । वामा जेद ् य द रहः सा पु वरव णनी ।। २१ ।। कामयाना भ पाा द ा ी पु का यया । सा वया नानुयो ा का स क या स चा ने ।। २२ ।। ‘शा तनो! पूवकालम मेरे समीप एक द नारी आयी थी। उसका आगमन तु हारे क याणके लये ही आ था। बेटा! य द वह सु दरी कभी एका तम तु हारे पास आवे, तु हारे त कामभावसे यु हो और तुमसे पु पानेक इ छा रखती हो, तो तुम उ म पसे सुशो भत उस द नारीसे ‘अंगने! तुम कौन हो? कसक पु ी हो? इ या द न करना ।। २१-२२ ।। य च कुया तत् कम सा ा वयानघ । म योगाद् भज त तां भजेथा इ युवाच तम् ।। २३ ।। ‘अनघ! वह जो काय करे, उसके वषयम भी तु ह कुछ पूछताछ नह करनी चा हये। य द वह तु ह चाहे, तो मेरी आ ासे उसे अपनी प नी बना लेना।’ ये बात राजा तीपने अपने पु से कह ।। २३ ।। वैश पायन उवाच ी

एवं सं द य तनयं तीपः शा तनुं तदा । वे च रा येऽ भ ष यैनं वनं राजा ववेश ह ।। २४ ।। वैश पायनजी कहते ह—अपने पु शा तनुको ऐसा आदे श दे कर राजा तीपने उसी समय उ ह अपने रा यपर अ भ ष कर दया और वयं वनम वेश कया ।। २४ ।। स राजा शा तनुध मान् दे वराजसम ु तः । बभूव मृगयाशीलः शा तनुवनगोचरः ।। २५ ।। बु मान् राजा शा तनु दे वराज इ के समान तेज वी थे। वे हसक पशु को मारनेके उ े यसे वनम घूमते रहते थे ।। २५ ।। स मृगान् म हषां ैव व न नन् राजस मः । ग ामनुचचारैकः स चारणसे वताम् ।। २६ ।। राजा म े शा तनु हसक पशु और जंगली भस को मारते ए स एवं चारण से से वत गंगाजीके तटपर अकेले ही वचरण करते थे ।। २६ ।। स कदा च महाराज ददश परमां यम् । जा व यमानां वपुषा सा ा य मवापराम् ।। २७ ।। महाराज जनमेजय! एक दन उ ह ने एक परम सु दरी नारी दे खी, जो अपने तेज वी शरीरसे ऐसी का शत हो रही थी, मानो सा ात् ल मी ही सरा शरीर धारण करके आ गयी हो ।। २७ ।। सवानव ां सुदत द ाभरणभू षताम् । सू मा बरधरामेकां पोदरसम भाम् ।। २८ ।। उसके सारे अंग परम सु दर और नद ष थे। दाँत तो और भी सु दर थे। वह द आभूषण से वभू षत थी। उसके शरीरपर महीन साड़ी शोभा पा रही थी और कमलके भीतरी भागके समान उसक का त थी, वह अकेली थी ।। २८ ।। तां ् वा रोमाभूद ् व मतो पस पदा । पब व च ने ा यां नातृ यत नरा धपः ।। २९ ।। उसे दे खते ही राजा शा तनुके शरीरम रोमांच हो आया, वे उसक प-स प से आ यच कत हो उठे और दोन ने ारा उसक सौ दय-सुधाका पान करते ए-से तृ त नह होते थे ।। २९ ।। सा च ् वैव राजानं वचर तं महा ु तम् । नेहादागतसौहादा नातृ यत वला सनी ।। ३० ।। वह भी वहाँ वचरते ए महातेज वी राजा शा तनुको दे खते ही मु ध हो गयी। नेहवश उसके दयम सौहादका उदय हो आया। वह वला सनी राजाको दे खते-दे खते तृ त नह होती थी ।। ३० ।। तामुवाच ततो राजा सा वय शल णया गरा । दे वी वा दानवी वा वं ग धव चाथ वा सराः ।। ३१ ।। य ी वा प गी वा प मानुषी वा सुम यमे । याचे वां सुरगभाभे भाया मे भव शोभने ।। ३२ ।। े े े ी ो े ‘ े े ी

तब राजा शा तनु उसे सा वना दे ते ए मधुर वाणीम बोले—‘सुम यमे! तुम दे वी, दानवी, ग धव , अ सरा, य ी, नागक या अथवा मानवी, कुछ भी य न होओ; दे वक याके समान सुशो भत होनेवाली सु दरी! म तुमसे याचना करता ँ क मेरी प नी हो जाओ’ ।। ३१-३२ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण शा तनूपा याने स तनव ततमोऽ यायः ।। ९७ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम शा तनूपा यान वषयक स ानबेवाँ अ याय पूरा आ ।। ९७ ।। (दा णा य अ धक पाठक े ६ ोक मलाकर कुल ३८ ोक ह)

अ नव ततमोऽ यायः शा तनु और गंगाका कुछ शत के साथ स ब ध, वसु ज म और शापसे उ ार तथा भी मक उ प

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वैश पायन उवाच एत छ वा वचो रा ः स मतं मृ व गु च । (यश वनी च साऽऽग छ छा तनोभूतये तदा । सा च ् वा नृप े ं चर तं तीरमा तम् ।।) वसूनां समयं मृ वाथा यग छद न दता ।। १ ।। ( जा थनी राजपु ं शा तनुं पृ थवीप तम् । तीपवचनं चा प सं मृ यैव वयं नृप ।। कालोऽय म त म वा सा वसूनां शापचो दता ।) उवाच चैव रा ः सा ादय ती मनो गरा । भ व या म महीपाल म हषी ते वशानुगा ।। २ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! राजा शा तनुका मधुर मुसकानयु मनोहर वचन सुनकर यश वनी गंगा उनक ऐ य-वृ के लये उनके पास आय । तटपर वचरते ए उन नृप े को दे खकर सती सा वी गंगाको वसु को दये ए वचनका मरण हो आया। साथ ही राजा तीपक बात भी याद आ गयी। तब यही उपयु समय है, ऐसा मानकर वसु को मले ए शापसे े रत हो वे वयं संतानो पादनक इ छासे पृ वीप त महाराज शा तनुके समीप चली आय और अपनी मधुर वाणीसे महाराजके मनको आन द दान करती ई बोल —‘भूपाल! म आपक महारानी बनूँगी एवं आपके अधीन र ँगी ।। १-२ ।। यत् तु कुयामहं राज छु भं वा य द वाशुभम् । न तद् वार यत ा म न व ा तथा यम् ।। ३ ।। ‘(परंतु एक शत है—) राजन्! म भला या बुरा जो कुछ भी क ँ , उसके लये आपको मुझे नह रोकना चा हये और मुझसे कभी अ य वचन भी नह कहना चा हये ।। ३ ।। एवं ह वतमानेऽहं व य व या म पा थव । वा रता व यं चो ा यजेयं वामसंशयम् ।। ४ ।। ‘पृ वीपते! ऐसा बताव करनेपर ही म आपके समीप र ँगी। य द आपने कभी मुझे कसी कायसे रोका या अ य वचन कहा तो म न य ही आपका साथ छोड़ ँ गी’ ।। ४ ।। तथे त सा यदा तू ा तदा भरतस म । हषमतुलं लेभे ा य तं पा थवो मम् ।। ५ ।। भरत े ! उस समय ब त अ छा कहकर राजाने जब उसक शत मान ली, तब उन नृप े को प त पम ा त करके उस दे वीको अनुपम आन द मला ।। ५ ।। (





(रथमारो य तां द े व जगाम स तया सह । सा च शा तनुम यागात् सा ा ल मी रवापरा ।।) तब राजा शा तनु दे वी गंगाको रथपर बठाकर उनके साथ अपनी राजधानीको चले गये। सा ात् सरी ल मीके समान सुशो भत होनेवाली गंगादे वी शा तनुके साथ गय । आसा शा तनु तां च बुभुजे कामतो वशी । न े त म वानो न स तां क च चवान् ।। ६ ।। इ य को वशम रखनेवाले राजा शा तनु उस दे वीको पाकर उसका इ छानुसार उपभोग करने लगे। पताका यह आदे श था क उससे कुछ पूछना मत; अतः उनक आ ा मानकर राजाने उससे कोई बात नह पूछ ।। ६ ।। स त याः शीलवृ ेन पौदायगुणेन च । उपचारेण च रह तुतोष जगतीप तः ।। ७ ।। उसके उ म शील- वभाव, सदाचार, प, उदारता, सद्गुण तथा एका त सेवासे महाराज शा तनु ब त संतु रहते थे ।। ७ ।। द पा ह सा दे वी ग ा पथगा मनी । मानुषं व हं कृ वा ीम तं वरव णनी ।। ८ ।। भा योपनतकाम य भाया चोपनताभवत् । शा तनोनृप सह य दे वराजसम ुतेः ।। ९ ।। पथगा मनी द पणी दे वी गंगा ही अ य त सु दर मनु य-दे ह धारण करके दे वराज इ के समान तेज वी नृप शरोम ण महाराज शा तनुको, ज ह भा यसे इ छानुसार सुख अपने-आप मल रहा था, सु दरी प नीके पम ा त ई थ ।। ८-९ ।। स भोग नेहचातुयहावभावसम वतैः । राजानं रमयामास यथा रेमे तथैव सः ।। १० ।। गंगादे वी हाव-भावसे यु स भोग-चातुरी और णय-चातुरीसे राजाको जैसे-जैसे रमात , उसी-उसी कार वे उनके साथ रमण करते थे ।। १० ।। स राजा र तस वा म ीगुणै तः । संव सरानृतून् मासान् बुबुधे न बन् गतान् ।। ११ ।। उस द नारीके उ म गुण ने उनके च को चुरा लया था; अतः वे राजा उसके साथ र त-भोगम आस हो गये। कतने ही वष, ऋतु और मास तीत हो गये, कतु उसम आस होनेके कारण राजाको कुछ पता न चला ।। ११ ।। रममाण तया साध यथाकामं नरे रः । अ ावजनयत् पु ां त याममरसं नभान् ।। १२ ।। उसके साथ इ छानुसार रमण करते ए महाराज शा तनुने उसके गभसे दे वता के समान तेज वी आठ पु उ प कये ।। १२ ।। जातं जातं च सा पु ं प य भ स भारत । ीणा यहं वा म यु वा ग ा ोत यम जयत् ।। १३ ।। ो







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भारत! जो-जो पु उ प होता, उसे वह गंगाजीके जलम फक दे ती और कहती —‘(व स! इस कार शापसे मु करके) म तु ह स कर रही ँ।’ ऐसा कहकर गंगा येक बालकको धाराम डु बो दे ती थी ।। १३ ।। त यत यं रा ः शा तनोरभवत् तदा । न च तां कचनोवाच यागाद् भीतो महीप तः ।। १४ ।। प नीका यह वहार राजा शा तनुको अ छा नह लगता था, तो भी वे उस समय उससे कुछ नह कहते थे। राजाको यह डर बना आ था क कह यह मुझे छोड़कर चली न जाय ।। १४ ।। अथैनाम मे पु े जाते हसती मव । उवाच राजा ःखातः परी सन् पु मा मनः ।। १५ ।। तदन तर जब आठवाँ पु उ प आ, तब हँसती ई-सी अपनी ीसे राजाने अपने पु का ाण बचानेक इ छासे ःखातुर होकर कहा— ।। १५ ।। मा वधीः क य कासी त क हन स सुता न त । पु न सुमहत् पापं स ा तं ते सुग हतम् ।। १६ ।। ‘अरी! इस बालकका वध न कर, तू कसक क या है? कौन है? य अपने ही बेट को मारे डालती है। पु घा त न! तुझे पु ह याका यह अ य त न दत और भारी पाप लगा है’ ।। १६ ।। युवाच पु काम न ते ह म पु ं पु वतां वर । जीण तु मम वासोऽयं यथा स समयः कृतः ।। १७ ।। ी बोली—पु क इ छा रखनेवाले नरेश! तुम पु वान म े हो। म तु हारे इस पु को नह मा ँ गी; परंतु यहाँ मेरे रहनेका समय अब समा त हो गया; जैसी क पहले ही शत हो चुक है ।। १७ ।। अहं ग ा ज सुता मह षगणसे वता । दे वकायाथ सथमु षताहं वया सह ।। १८ ।। म ज क पु ी और मह षय ारा से वत गंगा ँ। दे वता का काय स करनेके लये तु हारे साथ रह रही थी ।। १८ ।। इमेऽ ौ वसवो दे वा महाभागा महौजसः । व स शापदोषेण मानुष वमुपागताः ।। १९ ।। ये तु हारे आठ पु महातेज वी महाभाग वसु दे वता ह। व स जीके शाप-दोषसे ये मनु य-यो नम आये थे ।। १९ ।। तेषां जन यता ना य व ते भु व व ते । म धा मानुषी धा ी लोके ना तीह काचन ।। २० ।। तु हारे सवा सरा कोई राजा इस पृ वीपर ऐसा नह था, जो उन वसु का जनक हो सके। इसी कार इस जगत्म मेरी-जैसी सरी कोई मानवी नह है, जो उ ह गभम धारण े

कर सके ।। २० ।। त मात् त जननीहेतोमानुष वमुपागता । जन य वा वसून ौ जता लोका वया याः ।। २१ ।। अतः इन वसु क जननी होनेके लये म मानवशरीर धारण करके आयी थी। राजन्! तुमने आठ वसु को ज म दे कर अ य लोक जीत लये ह ।। २१ ।। दे वानां समय वेष वसूनां सं ुतो मया । जातं जातं मो य ये ज मतो मानुषा द त ।। २२ ।। वसु दे वता क यह शत थी और मने उसे पूण करनेक त ा कर ली थी क जो-जो वसु ज म लेगा, उसे म ज मते ही मनु य-यो नसे छु टकारा दला ँ गी ।। २२ ।। तत् ते शापाद् व नमु ा आपव य महा मनः । व त तेऽ तु ग म या म पु ं पा ह महा तम् ।। २३ ।। इस लये अब वे वसु महा मा आपव (व स )-के शापसे मु हो चुके ह। तु हारा क याण हो, अब म जाऊँगी। तुम इस महान् तधारी पु का पालन करो ।। २३ ।। (अयं तव सुत तेषां वीयण कुलन दनः । स भूतोऽ त जनान यान् भ व य त न संशयः ।।) यह तु हारा पु सब वसु के परा मसे स प होकर अपने कुलका आन द बढ़ानेके लये कट आ है। इसम संदेह नह क यह बालक बल और परा मम सरे सब लोग से बढ़कर होगा। एष पयायवासो मे वसूनां सं नधौ कृतः । म सू त वजानी ह ग ाद ममं सुतम् ।। २४ ।। यह बालक वसु मसे येकके एक-एक अंशका आ य है—स पूण वसु के अंशसे इसक उ प ई है। मने तु हारे लये वसु के समीप ाथना क थी क ‘राजाका एक पु जी वत रहे’। इसे मेरा बालक समझना और इसका नाम ‘गंगाद ’ रखना ।। २४ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण भी मो प ाव नव ततमोऽ यायः ।। ९८ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम भी मो प वषयक अानबेवाँ अ याय पूरा आ ।। ९८ ।। (दा णा य अ धक पाठक े ४ ोक मलाकर कुल २८ ोक ह)

नवनव ततमोऽ यायः मह ष व स

ारा वसु

को शाप ा त होनेक कथा

शा तनु वाच आपवो नाम को वेष वसूनां क च कृतम् । य या भशापात् ते सव मानुष यो नमागताः ।। १ ।। शा तनुने पूछा—दे व! ये आपव नामके महा मा कौन ह? और वसु का या अपराध था, जससे आपवके शापसे उन सबको मनु य-यो नम आना पड़ा ।। १ ।। अनेन च कुमारेण वया द ेन क कृतम् । य य चैव कृतेनायं मानुषेषु नव य त ।। २ ।। और तु हारे दये ए इस पु ने कौन-सा कम कया है, जसके कारण यह मनु यलोकम नवास करेगा ।। २ ।। ईशा वै सवलोक य वसव ते च वै कथम् । मानुषेषूदप त त ममाच व जा व ।। ३ ।। जा व! वसु तो सम त लोक के अधी र ह, वे कैसे मनु यलोकम उ प ए? यह सब बात मुझे बताओ ।। ३ ।। वैश पायन उवाच एवमु ा तदा ग ा राजान मदम वीत् । भतारं जा वी दे वी शा तनुं पु षषभ ।। ४ ।। वैश पायनजी कहते ह—नर े जनमेजय! अपने प त राजा शा तनुके इस कार पूछनेपर ज पु ी गंगादे वीने उनसे इस कार कहा ।। ४ ।। गोवाच यं लेभे व णः पु ं पुरा भरतस म । व स नामा स मु नः यात आपव इ युत ।। ५ ।। गंगा बोल —भरत े ! पूवकालम व णने ज ह पु पम ा त कया था, वे व स नामक मु न ही ‘आपव’ नामसे व यात ह ।। ५ ।। त या मपदं पु यं मृगप सम वतम् । मेरोः पा नगे य सवतुकुसुमावृतम् ।। ६ ।। ग रराज मे के पा भागम उनका प व आ म है; जो मृग और प य से भरा रहता है। सभी ऋतु म वक सत होनेवाले फूल उस आ मक शोभा बढ़ाते ह ।। ६ ।। स वा ण तप तेपे त मन् भरतस म । वने पु यकृतां े ः वा मूलफलोदके ।। ७ ।। ो







भरतवंश शरोमणे! उस वनम वा द फल, मूल और जलक सु वधा थी, पु यवान म े व णन दन मह ष व स उसीम तप या करते थे ।। ७ ।। द य हता या तु सुरभी य भश दता । गां जाता तु सा दे वी क यपाद् भरतषभ ।। ८ ।। महाराज! द जाप तक पु ीने, जो दे वी सुर भ नामसे व यात है, क यपजीके सहवाससे एक गौको ज म दया ।। ८ ।। अनु हाथ जगतः सवकाम हां वरा । तां लेभे गां तु धमा मा होमधेनुं स वा णः ।। ९ ।। वह गौ स पूण जगत्पर अनु ह करनेके लये कट ई थी तथा सम त कामना को दे नेवाल म े थी। व णपु धमा मा व स ने उस गौको अपनी होमधेनुके पम ा त कया ।। ९ ।। सा त मं तापसार ये वस ती मु नसे वते । चचार पु ये र ये च गौरपेतभया तदा ।। १० ।। वह गौ मु नय ारा से वत उस प व एवं रमणीय तापसवनम रहती ई सब ओर नभय होकर चरती थी ।। १० ।। अथ तद् वनमाज मुः कदा चद् भरतषभ । पृवा ा वसवः सव द े वा दे व षसे वतम् ।। ११ ।। भरत े ! एक दन उस दे व षसे वत वनम पृथु आ द वसु तथा स पूण दे वता पधारे ।। ११ ।। ते सदारा वनं त च चर त सम ततः । रे मरे रमणीयेषु पवतेषु वनेषु च ।। १२ ।। वे अपनी य के साथ उस वनम चार ओर वचरने तथा रमणीय पवत और वन म रमण करने लगे ।। १२ ।। त ैक याथ भाया तु वसोवासव व म । संचर ती वने त मन् गां ददश सुम यमा ।। १३ ।। इ के समान परा मी महीपाल! उन वसु मसे एकक सु दरी प नीने उस वनम घूमते समय उस गौको दे खा ।। १३ ।। न दन नाम राजे सवकामधुगु माम् । सा व मयसमा व ा शील वणस पदा ।। १४ ।। राजे ! स पूण कामना को दे नेवाल म उ म न दनी नामवाली उस गायको दे खकर उसक शीलस प से वह वसुप नी आ यच कत हो उठ ।। १४ ।। वे वै दशयामास तां गां गोवृषभे ण । आपीनां च सुदो च सुवाल धखुरां शुभाम् ।। १५ ।। उपप ां गुणैः सवः शीलेनानु मेन च । एवंगुणसमायु ां वसवे वसुन दनी ।। १६ ।। दशयामास राजे पुरा पौरवन दन । ौ ै े े

ौ तदा तां तु ् वैव गां गजे े व म ।। १७ ।। उवाच राजं तां दे व त या पगुणान् वदन् । एषा गौ मा दे वी वा णेर सते णा ।। १८ ।। ऋषे त य वरारोहे य येदं वनमु मम् । अ याः ीरं पबे म यः वा यो वै सुम यमे ।। १९ ।। दशवषसह ा ण स जीवेत् थरयौवनः । एत छ वा तु सा दे वी नृपो म सुम यमा ।। २० ।। तमुवाचानव ा भतारं द ततेजसम् । अ त मे मानुषे लोके नरदे वा मजा सखी ।। २१ ।। वृषभके समान वशाल ने वाले महाराज! उस दे वीने ो नामक वसुको वह शुभ गाय दखायी, जो भलीभाँ त -पु थी। धसे भरे ए उसके थन बड़े सु दर थे, पूँछ और खुर भी ब त अ छे थे। वह सु दर गाय सभी सद्गुण से स प और सव म शील- वभावसे यु थी। पू वंशका आन द बढ़ानेवाली साट ् ! इस कार पूवकालम वसुका आन द बढ़ानेवाली दे वीने अपने प त वसुको ऐसे सद्गुण वाली गौका दशन कराया। गजराजके समान परा मी महाराज! ोने उस गायको दे खते ही उसके प और गुण का वणन करते ए अपनी प नीसे कहा—‘यह कजरारे ने वाली उ म गौ द है। वरारोहे! यह उन व णन दन मह ष व स क गाय है, जनका यह उ म तपोवन है। सुम यमे! जो मनु य इसका वा द ध पी लेगा, वह दस हजार वष तक जी वत रहेगा और उतने समयतक उसक युवाव था थर रहेगी।’ नृप े ! सु दर क ट- दे श और नद ष अंग वाली वह दे वी यह बात सुनकर अपने तेज वी प तसे बोली—‘ ाणनाथ! मनु यलोकम एक राजकुमारी मेरी सखी है’ ।। १५—२१ ।। ना ना जतवती नाम पयौवनशा लनी । उशीनर य राजषः स यसंध य धीमतः ।। २२ ।। हता थता लोके मानुषे पस पदा । त या हेतोमहाभाग सव सां गां ममे सताम् ।। २३ ।। ‘उसका नाम है जतवती। वह सु दर प और युवाव थासे सुशो भत है। स य त बु मान् राज ष उशीनरक पु ी है। पस प क से मनु यलोकम उसक बड़ी या त है। महाभाग! उसीके लये बछड़ेस हत यह गाय लेनेक मेरी बड़ी इ छा है ।। २२-२३ ।। आनय वामर े व रतं पु यवधन । यावद याः पयः पी वा सा सखी मम मानद ।। २४ ।। मानुषेषु भव वेका जरारोग वव जता । एत मम महाभाग कतुमह य न दत ।। २५ ।। ‘सुर े ! आप पु यक वृ करनेवाले ह। इस गायको शी ले आइये। मानद! जससे इसका ध पीकर मेरी वह सखी मनु यलोकम अकेली ही जराव था एवं रोगे





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ा धसे बची रहे। महाभाग! आप न दार हत ह; मेरे इस मनोरथको पूण क जये ।। २४-२५ ।। यं यतरं मा ा त मेऽ यत् कथंचन । एत छ वा वच त या दे ाः य चक षया ।। २६ ।। पृवा ै ातृ भः साध ौ तदा तां जहार गाम् । तया कमलप ा या नयु ो ौ तदा नृप ।। २७ ।। ऋषे त य तप ती ं न शशाक नरी तुम् । ता गौः सा सदा तेन पात तु न त कतः ।। २८ ।। ‘मेरे लये कसी तरह भी इससे बढ़कर य अथवा यतर व तु सरी नह है।’ उस दे वीका यह वचन सुनकर उसका य करनेक इ छासे ो नामक वसुने पृथु आ द अपने भाइय क सहायतासे उस गौका अपहरण कर लया। राजन्! कमलदलके समान वशाल ने वाली प नीसे े रत होकर ोने गौका अपहरण तो कर लया; परंतु उस समय उन मह ष व स क ती तप याके भावक ओर वे पात नह कर सके और न यही सोच सके क ऋ षके कोपसे मेरा वगसे पतन हो जायगा ।। २६—२८ ।। अथा मपदं ा तः फला यादाय वा णः । न चाप यत् स गां त सव सां काननो मे ।। २९ ।। कुछ समयके बाद व णन दन व स जी फल-मूल लेकर आ मपर आये; परंतु उस सु दर काननम उ ह बछड़ेस हत अपनी गाय नह दखायी द ।। २९ ।। ततः स मृगयामास वने त मं तपोधनः । ना यग छ च मृगयं तां गां मु न दारधीः ।। ३० ।। तब तपोधन व स जी उस वनम गायक खोज करने लगे; परंतु खोजनेपर भी वे उदारबु मह ष उस गायको न पा सके ।। ३० ।। ा वा तथापनीतां तां वसु भ द दशनः । ययौ ोधवशं स ः शशाप च वसूं तदा ।। ३१ ।। तब उ ह ने द से दे खा और यह जान गये क वसु ने उसका अपहरण कया है। फर तो वे ोधके वशीभूत हो गये और त काल वसु को शाप दे दया— ।। ३१ ।। य मा मे वसवो ज गा वै दो सुवाल धम् । त मात् सव ज न य त मानुषेषु न संशयः ।। ३२ ।। ‘वसु ने सु दर पूँछवाली मेरी कामधेनु गायका अपहरण कया है, इस लये वे सबके-सब मनु य-यो नम ज म लगे, इसम संशय नह है’ ।। ३२ ।। एवं शशाप भगवान् वसूं तान् भरतषभ । वशं ोध य स ा त आपवो मु नस मः ।। ३३ ।। भरतषभ! इस कार मु नवर भगवान् व स ने ोधके आवेशम आकर उन वसु को शाप दया ।। ३३ ।। श वा च तान् महाभाग तप येव मनो दधे । एवं स श तवान् राजन् वसून ौ तपोधनः ।। ३४ ।। ो ो

महा भावो षदवान् ोधसम वतः । अथा मपदं ा ता ते वै भूयो महा मनः ।। ३५ ।। श ताः म इ त जान त ऋ ष तमुपच मुः । सादय त तमृ ष वसवः पा थवषभ ।। ३६ ।। ले भरे न च त मात् ते सादमृ षस मात् । आपवात् पु ष ा सवधम वशारदात् ।। ३७ ।। उ ह शाप दे कर उन महाभाग मह षने फर तप याम ही मन लगाया। राजन्! तप याके धनी ष व स का भाव ब त बड़ा है। इसी लये उ ह ने ोधम भरकर दे वता होनेपर भी उन आठ वसु को शाप दे दया। तदन तर हम शाप मला है, यह जानकर वे वसु पुनः महामना व स के आ मपर आये और उन मह षको स करनेक चे ा करने लगे। नृप े ! मह ष आपव सम त धम के ानम नपुण थे। महाराज! उनको स करनेक पूरी चे ा करने-पर भी वे वसु उन मु न े से उनका कृपा साद न पा सके ।। ३४—३७ ।। उवाच च स धमा मा श ता यूयं धरादयः । अनुसंव सरात् सव शापमो मवा यथ ।। ३८ ।। उस समय धमा मा व स ने उनसे कहा—‘मने धर आ द तुम सभी वसु को शाप दे दया है; परंतु तुमलोग तो त वष एक-एक करके सब-के-सब शापसे मु हो जाओगे ।। ३८ ।। अयं तु य कृते यूयं मया श ताः स व य त । ौ तदा मानुषे लोके द घकालं वकमणा ।। ३९ ।। ‘ कतु यह ो, जसके कारण तुम सबको शाप मला है, मनु यलोकम अपने कमानुसार द घकालतक नवास करेगा ।। ३९ ।। नानृतं त चक षा म ु ो यु मान् यद ुवम् । न जा य त चा येष मानुषेषु महामनाः ।। ४० ।। ‘मने ोधम आकर तुमलोग से जो कुछ कहा है, उसे अस य करना नह चाहता। ये महामना ो मनु यलोकम संतानक उ प नह करगे ।। ४० ।। भ व य त च धमा मा सवशा वशारदः । पतुः य हते यु ः ीभोगान् वज य य त ।। ४१ ।। ‘और धमा मा तथा सब शा म नपुण व ान् ह गे; पताके य एवं हतम त पर रहकर ी-स ब धी भोग का प र याग कर दगे’ ।। ४१ ।। एवमु वा वसून् सवान् स जगाम महानृ षः । ततो मामुपज मु ते समेता वसव तदा ।। ४२ ।। उन सब वसु से ऐसी बात कहकर वे मह ष वहाँसे चल दये। तब वे सब वसु एक होकर मेरे पास आये ।। ४२ ।। अयाच त च मां राजन् वरं त च मया कृतम् । जाता ातान् पा मान् वयं ग े वम भ स ।। ४३ ।। े









राजन्! उस समय उ ह ने मुझसे याचना क और मने उसे पूण कया। उनक याचना इस कार थी—‘गंगे! हम य - य ज म ल, तुम वयं हम अपने जलम डाल दे ना’ ।। ४३ ।। एवं तेषामहं स यक् श तानां राजस म । मो ाथ मानुषा लोकाद् यथावत् कृतव यहम् ।। ४४ ।। राज शरोमणे! इस कार उन शाप त वसु को इस मनु यलोकसे मु करनेके लये मने यथावत् य न कया है ।। ४४ ।। अयं शापा षे त य एक एव नृपो म । ौ राजन् मानुषे लोके चरं व य त भारत ।। ४५ ।। भारत! नृप े ! यह एकमा ो ही मह षके शापसे द घकालतक मनु यलोकम नवास करेगा ।। ४५ ।। (अयं द े व त ैव ग ाद मे सुतः । नामा शा तनोः पु ः शा तनोर धको गुणैः ।। अयं कुमारः पु ते ववृ ः पुनरे य त । अहं च ते भ व या म आ ानोपगता नृप ।।) राजन्! मेरा यह पु दे व त और गंगाद —दो नाम से व यात होगा। आपका बालक गुण म आपसे भी बढ़कर होगा। (अ छा, अब जाती ँ) आपका यह पु अभी शशुअव थाम है। बड़ा होनेपर फर आपके पास आ जायगा और आप जब मुझे बुलायगे तभी म आपके सामने उप थत हो जाऊँगी। वैश पायन उवाच एतदा याय सा दे वी त ैवा तरधीयत । आदाय च कुमारं तं जगामाथ यथे सतम् ।। ४६ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! ये सब बात बताकर गंगादे वी उस नवजात शशुको साथ ले वह अ तधान हो गय और अपने अभी थानको चली गय ।। ४६ ।। स तु दे व तो नाम गा े य इ त चाभवत् । ुनामा शा तनोः पु ः शा तनोर धको गुणैः ।। ४७ ।। उस बालकका नाम आ दे व त। कुछ लोग गांगेय भी कहते थे। *ु नामवाले वसु शा तनुके पु होकर गुण म उनसे भी बढ़ गये ।। ४७ ।। शा तनु ा प शोकात जगाम वपुरं ततः । त याहं क त य या म शा तनोर धकान् गुणान् ।। ४८ ।। इधर शा तनु शोकसे आतुर हो पुनः अपने नगरको लौट गये। शा तनुके उ म गुण का म आगे चलकर वणन क ँ गा ।। ४८ ।। महाभा यं च नृपतेभारत य महा मनः । य ये तहासो ु तमान् महाभारतमु यते ।। ४९ ।। ी













उन भरतवंशी महा मा नरेशके महान् सौभा यका भी म वणन क ँ गा, जनका वल इ तहास ‘महाभारत’ नामसे व यात है ।। ४९ ।।

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ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण आपवोपा याने नवनव ततमोऽ यायः ।। ९९ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम आपवोपा यान वषयक न यानबेवाँ अ याय पूरा आ ।। ९९ ।। (दा णा य अ धक पाठक े २ ोक मलाकर कुल ५१ ोक ह)

* ‘ ु’ का ही नाम ‘ ो’ है, जैसा क पहले कई बार आ चुका है।

शततमोऽ यायः शा तनुके प, गुण और सदाचारक शंसा, गंगाजीके ारा सु श त पु क ा त तथा दे व तक भी म- त ा वैश पायन उवाच स राजा शा तनुध मान् दे वराज षस कृतः । धमा मा सवलोकेषु स यवा ग त व ुतः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! राजा शा तनु बड़े बु मान् थे; दे वता तथा राज ष भी उनका स कार करते थे। वे धमा मा नरेश स पूण जगत्म स यवाद के पम व यात थे ।। १ ।। दमो दानं मा बु धृ त तेज उ मम् । न या यासन् महास वे शा तनौ पु षषभे ।। २ ।। उन महाबली नर े शा तनुम इ यसंयम, दान, मा, बु , ल जा, धैय तथा उ म तेज आ द सद्गुण सदा व मान थे ।। २ ।। एवं स गुणस प ो धमाथकुशलो नृपः । आसीद् भरतवंश य गो ता सवजन य च ।। ३ ।। इस कार उ म गुण से स प एवं धम और अथके साधनम कुशल राजा शा तनु भरतवंशका पालन तथा स पूण जाक र ा करते थे ।। ३ ।। क बु ीवः पृथु ंसो म वारण व मः । अ वतः प रपूणाथः सवनृप तल णैः ।। ४ ।। उनक ीवा शंखके समान शोभा पाती थी। कंधे वशाल थे। वे मतवाले हाथीके समान परा मी थे। उनम सभी राजो चत शुभ ल ण पूण साथक होकर नवास करते थे ।। ४ ।। त य क तमतो वृ मवे म सततं नराः । धम एव परः कामादथा चे त व थताः ।। ५ ।। उन यश वी महाराजके धमपूण सदाचारको दे खकर सब मनु य सदा इसी न यपर प ँचे थे क काम और अथसे धम ही े है ।। ५ ।। एता यासन् महास वे शा तनौ पु षषभे । न चा य स शः क द् धमतः पा थवोऽभवत् ।। ६ ।। महान् श शाली पु ष े शा तनुम ये सभी सद्गुण व मान थे। उनके समान धमपूवक शासन करनेवाला सरा कोई राजा नह था ।। ६ ।। वतमानं ह धमषु सवधमभृतां वरम् । तं महीपा महीपालं राजरा येऽ यषेचयन् ।। ७ ।। वे धमम सदा थर रहनेवाले और स पूण धमा मा म े थे; अतः सम त राजा ने मलकर राजा शा तनुको राजराजे र (साट ् )-के पदपर अ भ ष कर

दया ।। ७ ।। वीतशोकभयाबाधाः सुख व नबोधनाः । प त भारत गो तारं समप त भू मपाः ।। ८ ।। जनमेजय! जब सब राजा ने शा तनुको अपना वामी तथा र क बना लया, तब कसीको शोक, भय और मान सक संताप नह रहा। सब लोग सुखसे सोने और जागने लगे ।। ८ ।। तेन क तमता श ाः श तमतेजसा । य दान याशीलाः समप त भू मपाः ।। ९ ।। इ के समान तेज वी और क तशाली शा तनुके शासनम रहकर अ य राजालोग भी दान और य कम म वभावतः वृ होने लगे ।। ९ ।। शा तनु मुखैगु ते लोके नृप त भ तदा । नयमात् सववणानां धम रमवतत ।। १० ।। उस समय शा तनु धान राजा ारा सुर त जगत्म सभी वण के लोग नयमपूवक येक बतावम धमको ही धानता दे ने लगे ।। १० ।। पयचरत् ं वशः मनु ताः । ानुर ा शू ाः पयचरन् वशः ।। ११ ।। यलोग ा ण क सेवा करते, वै य ा ण और य म अनुर रहते तथा शू ा ण और य म अनुराग रखते ए वै य क सेवाम त पर रहते थे ।। ११ ।। स हा तनपुरे र ये कु णां पुटभेदने । वसन् सागरपय ताम वशासद् वसु धराम् ।। १२ ।। महाराज शा तनु कु वंशक रमणीय राजधानी ह तनापुरम नवास करते ए समु पय त पृ वीका शासन और पालन करते थे ।। १२ ।। स दे वराजस शो धम ः स यवागृजुः । दानधमतपोयोगा या परमया युतः ।। १३ ।। वे दे वराज इ के समान परा मी, धम , स यवाद तथा सरल थे। दान, धम और तप या तीन के योगसे उनम द का तक वृ हो रही थी ।। १३ ।। अराग े षसंयु ः सोमवत् यदशनः । तेजसा सूयक पोऽभूद ् वायुवेगसमो जवे । अ तक तमः कोपे मया पृ थवीसमः ।। १४ ।। उनम न राग था न े ष। च माक भाँ त उनका दशन सबको यारा लगता था। वे तेजम सूय और वेगम वायुके समान जान पड़ते थे; ोधम यमराज और माम पृ वीक समानता करते थे ।। १४ ।। वधः पशुवराहाणां तथैव मृगप णाम् । शा तनौ पृ थवीपाले नावतत तथा नृप ।। १५ ।। जनमेजय! महाराज शा तनुके इस पृ वीका पालन करते समय पशु , वराह , मृग तथा प य का वध नह होता था ।। १५ ।। े े

धम रे रा ये शा तनु वनया मवान् । समं शशास भूता न कामराग वव जतः ।। १६ ।। उनके रा यम और धमक धानता थी। महाराज शा तनु बड़े वनयशील तथा काम-राग आ द दोष से र रहनेवाले थे। वे सब ा णय का समानभावसे शासन करते थे ।। १६ ।। दे व ष पतृय ाथमार य त तदा याः । न चाधमण केषां चत् ा णनामभवद् वधः ।। १७ ।। उन दन दे वय , ऋ षय तथा पतृय के लये कम का आर भ होता था। अधमका भय होनेके कारण कसी भी ाणीका वध नह कया जाता था ।। १७ ।। असुखानामनाथानां तय यो नषु वतताम् । स एव राजा सवषां भूतानामभवत् पता ।। १८ ।। ःखी, अनाथ एवं पशु-प ीक यो नम पड़े ए जीव—इन सब ा णय का वे राजा शा तनु ही पताके समान पालन करते थे ।। १८ ।। त मन् कु प त े े राजराजे रे स त । ता वागभवत् स यं दानधमा तं मनः ।। १९ ।। कु वंशी नरेश म े राजराजे र शा तनुके शासन-कालम सबक वाणी स यके आ त थी—सभी स य बोलते थे और सबका मन दान एवं धमम लगता था ।। १९ ।। स समाः षोडशा ौ च चत ोऽ ौ तथापराः । र तम ा ुवन् ीषु बभूव वनगोचरः ।। २० ।। राजा शा तनु सोलह, आठ, चार और आठ कुल छ ीस वष तक ी वषयक अनुरागका अनुभव न करते ए वनम रहे ।। २० ।। तथा प तथाचार तथावृ तथा ुतः । गा े य त य पु ोऽभू ा ना दे व तो वसुः ।। २१ ।। वसुके अवतारभूत गांगेय उनके पु ए, जनका नाम दे व त था। वे पताके समान ही प, आचार, वहार तथा व ासे स प थे ।। २१ ।। सवा ेषु स न णातः पा थवे वतरेषु च । महाबलो महास वो महावीय महारथः ।। २२ ।। लौ कक और अलौ कक सब कारके अ श क कलाम वे पारंगत थे। उनके बल, स व (धैय) तथा वीय (परा म) महान् थे। वे महारथी वीर थे ।। २२ ।। स कदा च मृगं वद् वा ग ामनुसरन् नद म् । भागीरथीम पजलां शा तनु वान् नृपः ।। २३ ।। एक समय कसी हसक पशुको बाण से ब धकर राजा शा तनु उसका पीछा करते ए भागीरथी गंगाके तटपर आये। उ ह ने दे खा क गंगाजीम ब त थोड़ा जल रह गया है ।। २३ ।। तां ् वा च तयामास शा तनुः पु षषभः । व दते क वयं ना स र े ा यथा पुरा ।। २४ ।। े े े े

उसे दे खकर पु ष म े महाराज शा तनु इस च ताम पड़ गये क यह स रता म े दे वनद आज पहलेक तरह य नह बह रही है ।। २४ ।। ततो न म म व छन् ददश स महामनाः । कुमारं पस प ं बृह तं चा दशनम् ।। २५ ।। द म ं वकुवाणं यथा दे वं पुर दरम् । कृ नां ग ां समावृ य शरै ती णैरव थतम् ।। २६ ।। तदन तर उन महामना नरेशने इसके कारणका पता लगाते ए जब आगे बढ़कर दे खा, तब मालूम आ क एक परम सु दर मनोहर पसे स प वशालकाय कुमार दे वराज इ के समान द ा का अ यास कर रहा है और अपने तीखे बाण से समूची गंगाक धाराको रोककर खड़ा है ।। २५-२६ ।। तां शरैरा चतां ् वा नद ग ां तद तके । अभवद् व मतो राजा ् वा कमा तमानुषम् ।। २७ ।। राजाने उसके नकटक गंगा नद को उसके बाण से ा त दे खा। उस बालकका यह अलौ कक कम दे खकर उ ह बड़ा आ य आ ।। २७ ।। जातमा ं पुरा ् वा तं पु ं शा तनु तदा । नोपलेभे मृ त धीमान भ ातुं तमा मजम् ।। २८ ।। शा तनुने अपने पु को पहले पैदा होनेके समय ही दे खा था; अतः उन बु मान् नरेशको उस समय उसक याद नह आयी; इसी लये वे अपने ही पु को पहचान न सके ।। २८ ।। स तु तं पतरं ् वा मोहयामास मायया । स मो तु ततः ं त ैवा तरधीयत ।। २९ ।। बालकने अपने पताको दे खकर उ ह मायासे मो हत कर दया और मो हत कर दया और मो हत करके शी वह अ तधान हो गया ।। २९ ।। तद तं ततो ् वा त राजा स शा तनुः । शङ् कमानः सुतं ग ाम वीद् दशये त ह ।। ३० ।। यह अद्भुत बात दे खकर राजा शा तनुको कुछ संदेह आ और उ ह ने गंगासे अपने पु को दखानेको कहा ।। ३० ।। दशयामास तं ग ा ब ती पमु मम् । गृही वा द णे पाणौ तं कुमारमलंकृतम् ।। ३१ ।। तब गंगाजी परम सु दर प धारण करके अपने पु का दा हना हाथ पकड़े सामने आय और द व ाभूषण से वभू षत कुमार दे व तको दखाया ।। ३१ ।। अलंकृतामाभरणै वरजोऽ बरसंवृताम् । पूवाम प स तां ना यजानात् स शा तनुः ।। ३२ ।। गंगा द आभूषण से अलंकृत हो व छ सु दर साड़ी पहने ई थ । इससे उनका अनुपम सौ दय इतना बढ़ गया था क पहलेक दे खी होनेपर भी राजा शा तनु उ ह पहचान न सके ।। ३२ ।। ो

गोवाच यं पु म मं राजं वं पुरा म य व दथाः । स चायं पु ष ा सवा वदनु मः ।। ३३ ।। गंगाजीने कहा—महाराज! पूवकालम आपने अपने जस आठव पु को मेरे गभसे ा त कया था, यह वही है। पु ष सह! यह स पूण अ वे ा म अ य त उ म है ।। ३३ ।।

गृहाणेमं महाराज मया संव धतं सुतम् । आदाय पु ष ा नय वैनं गृहं वभो ।। ३४ ।। राजन! मने इसे पाल-पोसकर बड़ा कर दया है। अब आप अपने इस पु को हण क जये। नर े ! वा मन्! इसे घर ले जाइये ।। ३४ ।। वेदान धजगे सा ान् व स ादे ष वीयवान् । कृता ः परमे वासो दे वराजसमो यु ध ।। ३५ ।। आपका यह बलवान् पु मह ष व स से छह अंग स हत सम त वेद का अ ययन कर चुका है। यह अ - व ाका भी प डत है, महान् धनुधर है और यु म दे वराज इ के समान परा मी है ।। ३५ ।। सुराणां स मतो न यमसुराणां च भारत । उशना वेद य छा मयं तद् वेद सवशः ।। ३६ ।। े







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भारत! दे वता और असुर भी इसका सदा स मान करते ह। शु ाचाय जस (नी त) शा को जानते ह, उसका यह भी पूण पसे जानकार है ।। ३६ ।। तथैवा रसः पु ः सुरासुरनम कृतः । यद् वेद शा ं त चा प कृ नम मन् त तम् ।। ३७ ।। तव पु े महाबाहौ सा ोपा ं महा म न । ऋ षः परैरनाधृ यो जामद यः तापवान् ।। ३८ ।। यद ं वेद राम तदे त मन् त तम् । महे वास ममं राजन् राजधमाथको वदम् ।। ३९ ।। मया द ं नजं पु ं वीरं वीर गृहं नय । इसी कार अं गराके पु दे व-दानव-व दत बृह प त जस शा को जानते ह, वह भी आपके इस महाबा महा मा पु म अंग और उपांग स हत पूण पसे त त है। जो सर से परा त नह होते, वे तापी मह ष जमद नन दन परशुराम जस अ - व ाको जानते ह, वह भी मेरे इस पु म त त है। वीरवर महाराज! यह कुमार राजधम तथा अथशा का महान् प डत है। मेरे दये ए इस महाधनुधर वीर पु को आप घर ले जाइये ।। ३७—३९ ।। वैश पायन उवाच (इ यु वा सा महाभागा त ैवा तरधीयत ।) तयैवं समनु ातः पु मादाय शा तनुः ।। ४० ।। ाजमानं यथा द यमाययौ वपुरं त । पौरव तु पुर ग वा पुर दरपुरोपमाम् ।। ४१ ।। सवकामसमृ ाथ मेने सोऽऽ मानमा मना । पौरवेषु ततः पु ं रा याथमभय दम् ।। ४२ ।। गुणव तं महा मानं यौवरा येऽ यषेचयत् । पौरवा छा तनोः पु ः पतरं च महायशाः ।। ४३ ।। रा ं च र यामास वृ ेन भरतषभ । स तथा सह पु ेण रममाणो महीप तः ।। ४४ ।। वतयामास वषा ण च वाय मत व मः । स कदा चद् वनं यातो यमुनाम भतो नद म् ।। ४५ ।। वैश पायनजी कहते ह—ऐसा कहकर महाभागा गंगादे वी वह अ तधान हो गय । गंगाजीके इस कार आ ा दे नेपर महाराज शा तनु सूयके समान का शत होनेवाले अपने पु को लेकर राजधानीम आये। उनका ह तनापुर इ नगरी अमरावतीके समान सु दर था। पू वंशी राजा शा तनु पु स हत उसम जाकर अपने-आपको स पूण कामना से स प एवं सफलमनोरथ मानने लगे। तदन तर उ ह ने सबको अभय दे नेवाले महा मा एवं गुणवान् पु को राजकाजम सहयोग करनेके लये सम त पौरव के बीचम युवराज-पदपर अ भ ष कर दया। जनमेजय! शा तनुके उस महायश वी पु ने अपने आचार- वहारसे पताको, ौ









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पौरवसमाजको तथा समूचे राको स कर लया। अ मतपरा मी राजा शा तनुने वैसे गुणवान् पु के साथ आन दपूवक रहते ए चार वष तीत कये। एक दन वे यमुना नद के नकटवत वनम गये ।। ४०—४५ ।। महीप तर नद यमा ज द् ग धमु मम् । त य भवम व छन् वचचार सम ततः ।। ४६ ।। वहाँ राजाको अवणनीय एवं परम उ म सुग धका अनुभव आ। वे उसके उद्गम थानका पता लगाते ए सब ओर वचरने लगे ।। ४६ ।। स ददश तदा क यां दाशानां दे व पणीम् । तामपृ छत् स ् वैव क याम सतलोचनाम् ।। ४७ ।। घूमते-घूमते उ ह ने म लाह क एक क या दे खी, जो दे वांगना के समान पवती थी। याम ने वाली उस क याको दे खते ही राजाने पूछा— ।। ४७ ।। क य वम स का चा स क च भी चक ष स । सा वीद् दाशक या म धमाथ वाहये त रम् ।। ४८ ।। पतु नयोगाद् भ ं ते दाशरा ो महा मनः । पमाधुयग धै तां संयु ां दे व पणीम् ।। ४९ ।। समी य राजा दाशेय कामयामास शा तनुः । स ग वा पतरं त या वरयामास तां तदा ।। ५० ।। ‘भी ! तू कौन है, कसक पु ी है और या करना चाहती है?’ वह बोली—‘राजन्! आपका क याण हो। म नषादक या ँ और अपने पता महामना नषादराजक आ ासे धमाथ नाव चलाती ँ।’ राजा शा तनुने प, माधुय तथा सुग धसे यु दे वांगनाके तु य उस नषादक याको दे खकर उसे ा त करनेक इ छा क । तदन तर उसके पताके समीप जाकर उ ह ने उसका वरण कया ।। ४८—५० ।। पयपू छत् तत त याः पतरं सोऽऽ मकारणात् । स च तं युवाचेदं दाशराजो महीप तम् ।। ५१ ।। उ ह ने उसके पतासे पूछा—‘म अपने लये तु हारी क या चाहता ँ।’ यह सुनकर नषादराजने राजा शा तनुको यह उ र दया— ।। ५१ ।। जातमा ैव मे दे या वराय वरव णनी । द काम तु मे क त् तं नबोध जने र ।। ५२ ।। ‘जने र! जबसे इस सु दरी क याका ज म आ है, तभीसे मेरे मनम यह च ता है क इसका कसी े वरके साथ ववाह करना चा हये; कतु मेरे दयम एक अ भलाषा है, उसे सुन ली जये ।। ५२ ।। यद मां धमप न वं म ः ाथयसेऽनघ । स यवाग स स येन समयं कु मे ततः ।। ५३ ।। ‘पापर हत नरेश! य द इस क याको अपनी धमप नी बनानेके लये आप मुझसे माँग रहे ह, तो स यको सामने रखकर मेरी इ छा पूण करनेक त ा क जये; य क आप स यवाद ह ।। ५३ ।। े े

समयेन द ां ते क यामह ममां नृप । न ह मे व समः क द् वरो जातु भ व य त ।। ५४ ।। ‘राजन्! म इस क याको एक शतके साथ आपक सेवाम ँ गा। मुझे आपके समान सरा कोई े वर कभी नह मलेगा’ ।। ५४ ।।

शा तनु वाच ु वा तव वरं दाश व येयमहं तव । दात ं चेत् दा या म न वदे यं कथंचन ।। ५५ ।। शा तनुने कहा— नषाद! पहले तु हारे अभी वरको सुन लेनेपर म उसके वषयम कुछ न य कर सकता ँ। य द दे नेयो य होगा, तो ँ गा और दे नेयो य नह होगा, तो कदा प नह दे सकता ।। ५५ ।। दाश उवाच अ यां जायेत यः पु ः स राजा पृ थवीपते । व वम भषे ो ना यः क न पा थव ।। ५६ ।। नषाद बोला—पृ वीपते! इसके गभसे जो पु उ प हो, आपके बाद उसीका राजाके पदपर अ भषेक कया जाय, अ य कसी राजकुमारका नह ।। ५६ ।। वैश पायन उवाच

नाकामयत तं दातुं वरं दाशाय शा तनुः । शरीरजेन ती ेण द मानोऽ प भारत ।। ५७ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! राजा शा तनु च ड कामा नसे जल रहे थे, तो भी उनके मनम नषादको वह वर दे नेक इ छा नह ई ।। ५७ ।। स च तय ेव तदा दाशक यां महीप तः । यया ा तनपुरं कामोपहतचेतनः ।। ५८ ।। कामक वेदनासे उनका च चंचल था। वे उस नषादक याका ही च तन करते ए उस समय ह तनापुरको लौट गये ।। ५८ ।। ततः कदा च छोच तं शा तनुं यानमा थतम् । पु ो दे व तोऽ ये य पतरं वा यम वीत् ।। ५९ ।। तदन तर एक दन राजा शा तनु यान थ होकर कुछ सोच रहे थे— च ताम पड़े थे। इसी समय उनके पु दे व त अपने पताके पास आये और इस कार बोले— ।। ५९ ।। सवतो भवतः ेमं वधेयाः सवपा थवाः । तत् कमथ महाभी णं प रशोच स ःखतः ।। ६० ।। ‘ पताजी! आपका तो सब ओरसे कुशल-मंगल है, भू-म डलके सभी नरेश आपक आ ाके अधीन ह; फर कस लये आप नर तर ःखी होकर शोक और च ताम डू बे रहते ह ।। ६० ।। याय व च मां राज ा भभाष स कचन । न चा ेन व नया स ववण ह रणः कृशः ।। ६१ ।। ‘राजन्! आप इस तरह मौन बैठे रहते ह, मानो कसीका यान कर रहे ह ; मुझसे कोई बातचीततक नह करते। घोड़ेपर सवार हो कह बाहर भी नह नकलते। आपक का त म लन होती जा रही है। आप पीले और बले हो गये ह ।। ६१ ।। ा ध म छा म ते ातुं तकुया ह त वै । एवमु ः स पु ेण शा तनुः यभाषत ।। ६२ ।। ‘आपको कौन-सा रोग लग गया है, यह म जानना चाहता ँ, जससे म उसका तीकार कर सकूँ।’ पु के ऐसा कहनेपर शा तनुने उ र दया— ।। ६२ ।। असंशयं यानपरो यथा व स तथा शृणु । अप यं न वमेवैकः कुले मह त भारत ।। ६३ ।। ‘बेटा! इसम संदेह नह क म च ताम डू बा रहता ँ। वह च ता कैसी है, सो बताता ँ, सुनो। भारत! तुम इस वशाल वंशम मेरे एक ही पु हो ।। ६३ ।। श न य सततं पौ षे पयव थतः । अ न यतां च लोकानामनुशोचा म पु क ।। ६४ ।। ‘तुम भी सदा अ -श के अ यासम लगे रहते हो और पु षाथके लये सदै व उ त रहते हो। बेटा! म इस जगत्क अ न यताको लेकर नर तर शोक त एवं च तत रहता ँ ।। ६४ ।। कथं चत् तव गा े य वप ौ ना त नः कुलम् । े ै

असंशयं वमेवैकः शताद प वरः सुतः ।। ६५ ।। ‘गंगान दन! य द कसी कार तुमपर कोई वप आयी, तो उसी दन हमारा यह वंश समा त हो जायगा। इसम संदेह नह क तुम अकेले ही मेरे लये सौ पु से भी बढ़कर हो ।। ६५ ।। न चा यहं वृथा भूयो दारान् कतु महो सहे । संतान या वनाशाय कामये भ म तु ते ।। ६६ ।। ‘म पुनः थ ववाह नह करना चाहता; कतु हमारी वंशपर पराका लोप न हो, इसीके लये मुझे पुनः प नीक कामना ई है। तु हारा क याण हो ।। ६६ ।। अनप यतैकपु व म या धमवा दनः । (च ुरेक ं च पु अ त ना त च भारत । च ुनाशे तनोनाशः पु नाशे कुल यः ।।) अ नहो ं यी व ासंतानम प चा यम् ।। ६७ ।। सवा येता यप य य कलां नाह त षोडशीम् । ‘धमवाद व ान् कहते ह क एक पु का होना संतानहीनताके ही तु य है। भारत! एक आँख अथवा एक पु य द है, तो वह भी नह के बराबर है। ने का नाश होनेपर मानो शरीरका ही नाश हो जाता है, इसी कार पु के न होनेपर कुलपर परा ही न हो जाती है। अ नहो , तीन वेद तथा श य- श यके मसे चलनेवाले व ाज नत वंशक अ य पर परा—ये सब मलकर भी ज मसे होनेवाली संतानक सोलहव कलाके भी बराबर नह है ।। ६७ ।। एवमेत मनु येषु त च सव जा व त ।। ६८ ।। ‘इस कार संतानका मह व जैसा मनु य म मा य है, उसी कार अ य सब ा णय म भी है ।। ६८ ।। यदप यं महा ा त मे ना त संशयः । एषा यीपुराणानां दे वतानां च शा ती ।। ६९ ।। (अप यं कम व ा च ी ण योत ष भारत । य ददं कारणं तात सवमा यातम सा ।।) ‘भारत! महा ा ! इस बातम मुझे त नक भी संदेह नह है क संतान, कम और व ा —ये तीन यो तयाँ ह; इनम भी जो संतान है, उसका मह व सबसे अ धक है। यही वेद यी पुराण तथा दे वता का भी सनातन मत है। तात! मेरी च ताका जो कारण है, वह सब तु ह प बता दया ।। ६९ ।। वं च शूरः सदामष श न य भारत । ना य यु ात् त मात् ते नधनं व ते व चत् ।। ७० ।। ‘भारत! तुम शूरवीर हो। तुम कभी कसीक बात सहन नह कर सकते और सदा अ -श के अ यासम ही लगे रहते हो; अतः यु के सवा और कसी कारणसे कभी तु हारी मृ यु होनेक स भावना नह है ।। ७० ।। ो





सोऽ म संशयमाप व य शा ते कथं भवेत् । इ त ते कारणं तात ःख यो मशेषतः ।। ७१ ।। ‘इसी लये म इस संदेहम पड़ा ँ क तु हारे शा त हो जानेपर इस वंशपर पराका नवाह कैसे होगा? तात! यही मेरे ःखका कारण है; वह सब-का-सब तु ह बता दया’ ।। ७१ ।। वैश पायन उवाच तत त कारणं रा ो ा वा सवमशेषतः । दे व तो महाबु ः या चा व च तयत् ।। ७२ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! राजाके ःखका वह सारा कारण जानकर परम बु मान् दे व तने अपनी बु से भी उसपर वचार कया ।। ७२ ।। अ यग छत् तदै वाशु वृ ामा यं पतु हतम् । तमपृ छत् तदा ये य पतु त छोककारणम् ।। ७३ ।। तदन तर वे उसी समय तुरंत अपने पताके हतैषी बूढ़े म ीके पास गये और पताके शोकका वा त वक कारण या है, इसके वषयम उनसे पूछताछ क ।। ७३ ।। त मै स कु मु याय यथावत् प रपृ छते । वरं शशंस क यां तामु य भरतषभ ।। ७४ ।। भरत े ! कु वंशके े पु ष दे व तके भलीभाँ त पूछनेपर वृ म ीने बताया क महाराज एक क यासे ववाह करना चाहते ह ।। ७४ ।। (सूतं भूयोऽ प संत त आ यामास वै पतुः ।। सूत तु कु मु य य उपयात तदा या । तमुवाच महा ा ो भी मो वै सार थ पतुः ।। उसके बाद भी ःखसे ःखी दे व तने पताके सार थको बुलाया। राजकुमारक आ ा पाकर कु राज शा तनुका सार थ उनके पास आया। तब महा ा भी मने पताके सार थसे पूछा।

भी म उवाच वं सारथे पतुम ं सखा स रथयुग् यतः । अ प जाना स य द वै क यां भावो नृप य तु ।। यथा व य स मे पृ ः क र ये न तद यथा । भी म बोले—सारथे! तुम मेरे पताके सखा हो, य क उनका रथ जोतनेवाले हो। या तुम जानते हो क महाराजका अनुराग कस ीम है? मेरे पूछनेपर तुम जैसा कहोगे, वैसा ही क ँ गा, उसके वपरीत नह क ँ गा। सूत उवाच दाशक या नर े त भावः पतुगतः । वृतः स नरदे वेन तदा वचनम वीत् ।। ो



योऽ यां पुमान् भवेद ् गभः स राजा वदन तरम् । नाकामयत तं दातुं पता तव वरं तदा ।। स चा प न य त य न च द ामतोऽ यथा । एवं ते क थतं वीर कु व यदन तरम् ।।) सूत बोला—नर े ! एक धीवरक क या है, उसीके त आपके पताका अनुराग हो गया है। महाराजने धीवरसे उस क याको माँगा भी था, परंतु उस समय उसने यह शत रखी क ‘इसके गभसे जो पु हो, वही आपके बाद राजा होना चा हये।’ आपके पताजीके मनम धीवरको ऐसा वर दे नेक इ छा नह ई। इधर उसका भी प का न य है क यह शत वीकार कये बना म अपनी क या नह ँ गा। वीर! यही वृ ा त है, जो मने आपसे नवेदन कर दया। इसके बाद आप जैसा उ चत समझ, वैसा कर। ततो दे व तो वृ ै ः यैः स हत तदा । अ भग य दाशराजं क यां व े पतुः वयम् ।। ७५ ।। यह सुनकर कुमार दे व तने उस समय बूढ़े य के साथ नषादराजके पास जाकर वयं अपने पताके लये उसक क या माँगी ।। ७५ ।। तं दाशः तज ाह व धवत् तपू य च । अ वी चैनमासीनं राजसंस द भारत ।। ७६ ।। भारत! उस समय नषादने उनका बड़ा स कार कया और व धपूवक पूजा करके आसनपर बैठनेके प ात् साथ आये ए य क म डलीम दाशराजने उनसे कहा ।। ७६ ।।

दाश उवाच (रा यशु का दात ा क येयं याचतां वर । अप यं यद् भवेत् त याः स राजा तु पतुः परम् ।।) दाशराज बोला—याचक म े राजकुमार! इस क याको दे नेम मने रा यको ही शु क रखा है। इसके गभसे जो पु उ प हो, वही पताके बाद राजा हो। वमेव नाथः पया तः शा तनोभरतषभ । पु ः श भृतां े ः क तु व या म ते वचः ।। ७७ ।। भरतषभ! राजा शा तनुके पु अकेले आप ही सबक र ाके लये पया त ह। श धा रय म आप सबसे े समझे जाते ह; परंतु तो भी म अपनी बात आपके सामने रखूँगा ।। ७७ ।। को ह स ब धकं ा यमी सतं यौनमी शम् । अ त ाम त येत सा ाद प शत तुः ।। ७८ ।। ऐसे मनोऽनुकूल और पृहणीय उ म ववाह-स ब धको ठु कराकर कौन ऐसा मनु य होगा जसके मनम संताप न हो? भले ही वह सा ात् इ ही य न हो ।। ७८ ।। अप यं चैतदाय य यो यु माकं समो गुणैः । य य शु ात् स यवती स भूता वरव णनी ।। ७९ ।। ै











यह क या एक आय पु षक संतान है, जो गुण म आपलोग के ही समान ह और जनके वीयसे इस सु दरी स यवतीका ज म आ है ।। ७९ ।। तेन मे ब श तात पता ते प रक ततः । अहः स यवत बोढुं धम ः स नरा धपः ।। ८० ।। तात! उ ह ने अनेक बार मुझसे आपके पताके वषयम चचा क थी। वे कहते थे, स यवतीको याहनेयो य तो केवल धम राजा शा तनु ही ह ।। ८० ।। अ थत ा प राज षः या यातः पुरा मया । स चा यासीत् स यव या भृशमथ महायशाः ।। ८१ ।। क या पतृ वात् क चत् तु व या म वां नरा धप । बलव सप नताम दोषं प या म केवलम् ।। ८२ ।। महान् क तवाले राज ष शा तनु स यवतीको पहले भी ब त आ हपूवक माँग चुके ह; कतु उनके माँगनेपर भी मने उनक बात अ वीकार कर द थी। युवराज! म क याका पता होनेके कारण कुछ आपसे भी क ँगा ही। आपके यहाँ जो स ब ध हो रहा है, उसम मुझे केवल एक दोष दखायी दे ता है, बलवान्के साथ श ुता ।। ८१-८२ ।। य य ह वं सप नः या ग धव यासुर य वा । न स जातु चरं जीवेत् व य ु े परंतप ।। ८३ ।। परंतप! आप जसके श ु ह गे, वह ग धव हो या असुर, आपके कु पत होनेपर कभी चरजीवी नह हो सकता ।। ८३ ।। एतावान दोषो ह ना यः क न् पा थव । एत जानी ह भ ं ते दानादाने परंतप ।। ८४ ।। पृ वीनाथ! बस, इस ववाहम इतना ही दोष है, सरा कोई नह । परंतप! आपका क याण हो, क याको दे ने या न दे नेम केवल यही दोष वचारणीय है; इस बातको आप अ छ तरह समझ ल ।। ८४ ।। वैश पायन उवाच एवमु तु गा े य त ु ं यभाषत । शृ वतां भू मपालानां पतुरथाय भारत ।। ८५ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! नषादके ऐसा कहनेपर गंगान दन दे व तने पताके मनोरथको पूण करनेके लये सब राजा के सुनते-सुनते यह उ चत उ र दया — ।। ८५ ।। इदं मे तमाद व स यं स यवतां वर । नैव जातो न वाजात ई शं व ु मु सहेत् ।। ८६ ।। ‘स यवान म े नषादराज! मेरी यह स ची त ा सुनो और हण करो। ऐसी बात कह सकनेवाला कोई मनु य न अबतक पैदा आ है और न आगे पैदा होगा ।। ८६ ।। एवमेतत् क र या म यथा वमनुभाषसे । योऽ यां ज न यते पु ः स नो राजा भ व य त ।। ८७ ।। ‘ ो





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‘लो, तुम जो कुछ चाहते या कहते हो, वैसा ही क ँ गा। इस स यवतीके गभसे जो पु पैदा होगा, वही हमारा राजा बनेगा’ ।। ८७ ।।

इ यु ः पुनरेवाथ तं दाशः यभाषत । चक षु करं कम रा याथ भरतषभ ।। ८८ ।। भरतवंशावतंस जनमेजय! दे व तके ऐसा कहनेपर नषाद उनसे फर बोला। वह रा यके लये उनसे कोई कर त ा कराना चाहता था ।। ८८ ।। वमेव नाथः स ा तः शा तनोर मत ुते । क याया ैव धमा मन् भुदानाय चे रः ।। ८९ ।। उसने कहा—‘अ मत तेज वी युवराज! आप ही महाराज शा तनुक ओरसे मा लक बनकर यहाँ आये ह। धमा मन्! इस क यापर भी आपका पूरा अ धकार है। आप जसे चाह, इसे दे सकते ह। आप सब कुछ करनेम समथ ह ।। ८९ ।। इदं तु वचनं सौ य काय चैव नबोध मे । कौमा रकाणां शीलेन व या यहम र दम ।। ९० ।। ‘परंतु सौ य! इस वषयम मुझे आपसे कुछ और कहना है और वह आव यक काय है; अतः आप मेरे इस कथनको सु नये। श ुदमन! क या के त नेह रखनेवाले सगेस ब धय का जैसा वभाव होता है, उसीसे े रत होकर म आपसे कुछ नवेदन क ँ गा ।। ९० ।। यत् वया स यव यथ स यधमपरायण । े ै

राजम ये त ातमनु पं तवैव तत् ।। ९१ ।। ‘स यधमपरायण राजकुमार! आपने स यवतीके हतके लये इन राजा के बीचम जो त ा क है, वह आपके ही यो य है ।। ९१ ।। ना यथा त महाबाहो संशयोऽ न क न । तवाप यं भवेद ् यत् तु त नः संशयो महान् ।। ९२ ।। ‘महाबाहो! वह टल नह सकती; उसके वषयम मुझे कोई संदेह नह है, परंतु आपका जो पु होगा, वह शायद इस त ापर ढ़ न रहे, यही हमारे मनम बड़ा भारी संशय है’ ।। ९२ ।।

वैश पायन उवाच त यैत मतमा ाय स यधमपरायणः । यजानात् तदा राजन् पतुः य चक षया ।। ९३ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! नषादराजके इस अ भ ायको समझकर स यधमम त पर रहनेवाले कुमार दे व तने उस समय पताका य करनेक इ छासे यह कठोर त ा क ।। ९३ ।। गा े य उवाच दाशराज नबोधेदं वचनं मे नरो म । (ऋषयो वाथवा द े वा भूता य त हता न च । या न यानीह शृ व तु ना त व ा ह म समः ।। इदं वचनमाद व स येन मम ज पतः ।) शृ वतां भू मपालानां यद् वी म पतुः कृते ।। ९४ ।। भी मने कहा—नर े नषादराज! मेरी यह बात सुनो। जो-जो ऋ ष, दे वता एवं अ त र के ाणी यहाँ ह , वे सब भी सुन। मेरे समान वचन दे नेवाला सरा नह है। नषाद! म स य कहता ँ, पताके हतके लये सब भू मपाल के सुनते ए म जो कुछ कहता ँ, मेरी इस बातको समझो ।। ९४ ।। रा यं तावत् पूवमेव मया य ं नरा धपाः । अप यहेतोर प च क र येऽ व न यम् ।। ९५ ।। राजाओ! रा य तो मने पहले ही छोड़ दया है; अब संतानके लये भी अटल न य कर रहा ँ ।। ९५ ।। अ भृ त मे दाश चय भ व य त । अपु या प मे लोका भ व य य या द व ।। ९६ ।। नषादराज! आजसे मेरा आजीवन अख ड चय त चलता रहेगा। मेरे पु न होनेपर भी वगम मुझे अ य लोक ा त ह गे ।। ९६ ।। (न ह ज म भृ यु ं मम क च दहानृतम् । यावत् ाणा य ते वै मम दे हं समा ताः ।। ताव जन य या म प े क यां य छ मे । ै

प र यजा बहं रा यं मैथुनं चा प सवशः ।। ऊ वरेता भ व या म दाश स यं वी म ते ।) मने ज मसे लेकर अबतक कोई झूठ बात नह कही है। जबतक मेरे शरीरम ाण रहगे, तबतक म संतान नह उ प क ँ गा। तुम पताजीके लये अपनी क या दे दो। दाश! म रा य तथा मैथुनका सवथा प र याग क ँ गा और ऊ वरेता (नै क चारी) होकर र ँगा—यह म तुमसे स य कहता ँ। वैश पायन उवाच त य तद् वचनं ु वा स तनू हः । ददानी येव तं दाशो धमा मा यभाषत ।। ९७ ।। वैश पायनजी कहते ह—दे व तका यह वचन सुनकर धमा मा नषादराजके र गटे खड़े हो गये। उसने तुरंत उ र दया—‘म यह क या आपके पताके लये अव य दे ता ँ’ ।। ९७ ।। ततोऽ त र ेऽ सरसो दे वाः स षगणा तदा । अ यवष त कुसुमैभ मोऽय म त चा ुवन् ।। ९८ ।। उस समय अ त र म अ सरा, दे वता तथा ऋ षगण फूल क वषा करने लगे और बोल उठे —‘ये भयंकर त ा करनेवाले राजकुमार भी म ह (अथात् भी मके नामसे इनक या त होगी)’ ।। ९८ ।। ततः स पतुरथाय तामुवाच यश वनीम् । अ धरोह रथं मातग छावः वगृहा न त ।। ९९ ।। त प ात् भी म पताके मनोरथक स के लये उस यश वनी नषादक यासे बोले —‘माताजी! इस रथपर बै ठये। अब हमलोग अपने घर चल’ ।। ९९ ।। वैश पायन उवाच एवमु वा तु भी म तां रथमारो य भा वनीम् । आग य हा तनपुरं शा तनोः सं यवेदयत् ।। १०० ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! ऐसा कहकर भी मने उस भा मनीको रथपर बैठा लया और ह तनापुर आकर उसे महाराज शा तनुको स प दया ।। १०० ।। त य तद् करं कम शशंसुनरा धपाः । समेता पृथक् चैव भी मोऽय म त चा ुवन् ।। १०१ ।। उनके इस कर कमक सब राजालोग एक होकर और अलग-अलग भी शंसा करने लगे। सबने एक वरसे कहा, ‘यह राजकुमार वा तवम भी म है’ ।। १०१ ।। न छ वा करं कम कृतं भी मेण शा तनुः । व छ दमरणं तु ो ददौ त मै महा मने ।। १०२ ।। भी मके ारा कये ए उस कर कमक बात सुनकर राजा शा तनु ब त संतु ए और उ ह ने उन महा मा भी मको व छ द मृ युका वरदान दया ।। १०२ ।।

दे व त (भी म)-क भीषण

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न ते मृ युः भ वता याव जी वतु म छ स । व ो नु ां स ा य मृ युः भ वतानघ ।। १०३ ।। वे बोले—‘मेरे न पाप पु ! तुम जबतक यहाँ जी वत रहना चाहोगे, तबतक मृ यु तु हारे ऊपर अपना भाव नह डाल सकती। तुमसे आ ा लेकर ही मृ यु तुमपर अपना भाव कट कर सकती है’ ।। १०३ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण स यवतीलाभोपा याने शततमोऽ यायः ।। १०० ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम स यवतीलाभोपा यान वषयक सौवाँ अ याय पूरा आ ।। १०० ।। ( ा णा य अ धक पाठक े १३ द ोक मलाकर कुल ११६ ोक ह)

एका धकशततमोऽ यायः स यवतीके गभसे च ांगद और व च वीयक उ प , शा तनु और च ांगदका नधन तथा व च वीयका रा या भषेक वैश पायन उवाच (चे दराजसुतां ा वा दाशराजेन व धताम् । ववाहं कारयामास शा ेन कमणा ।।) ततो ववाहे नवृ े स राजा शा तनुनृपः । तां क यां पस प ां वगृहे सं यवेशयत् ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—स यवती चे दराज वसुक पु ी है और नषादराजने इसका पालन-पोषण कया है—यह जानकर राजा शा तनुने उसके साथ शा ीय व धसे ववाह कया। तदन तर ववाह स प हो जानेपर राजा शा तनुने उस पवती क याको अपने महलम रखा ।। १ ।। ततः शा तनवो धीमान् स यव यामजायत । वीर ा दो नाम वीयवान् पु षे रः ।। २ ।। कुछ कालके प ात् स यवतीके गभसे शा तनुका बु मान् पु वीर च ांगद उ प आ, जो बड़ा ही परा मी तथा सम त पु ष म े था ।। २ ।। अथापरं महे वासं स यव यां सुतं भुः । व च वीय राजानं जनयामास वीयवान् ।। ३ ।। इसके बाद महापरा मी और श शाली राजा शा तनुने सरे पु महान् धनुधर राजा व च वीयको ज म दया ।। ३ ।। अ ा तव त त मं तु यौवनं पु षषभे । स राजा शा तनुध मान् कालधममुपे यवान् ।। ४ ।। नर े व च वीय अभी यौवनको ा त भी नह ए थे क बु मान् महाराज शा तनुक मृ यु हो गयी ।। ४ ।। वगते शा तनौ भी म ा दमरदमम् । थापयामास वै रा ये स यव या मते थतः ।। ५ ।। शा तनुके वगवासी हो जानेपर भी मने स यवतीक स म तसे श ु का दमन करनेवाले वीर च ांगदको रा यपर बठाया ।। ५ ।। स तु च ा दः शौयात् सवा ेप पा थवान् । मनु यं न ह मेने स क चत् स शमा मनः ।। ६ ।। च ांगद अपने शौयके घमंडम आकर सब राजा का तर कार करने लगे। वे कसी भी मनु यको अपने समान नह मानते थे ।। ६ ।। ै

तं प तं सुरां ैव मनु यानसुरां तथा । ग धवराजो बलवां तु यनामा ययात् तदा ।। ७ ।। मनु य पर ही नह , वे दे वता तथा असुर पर भी आ ेप करते थे। तब एक दन उ ह के समान नामवाला महाबली ग धवराज च ांगद उनके पास आया ।। ७ ।। (ग धव उवाच वं वै स शनामा स यु ं दे ह नृपा मज । नाम चा यत् गृणी व य द यु ं न दा य स ।। वयाहं यु म छा म व सकाशात् तु नामतः । आगतोऽ म वृथाभा यो न ग छे ामतो यथा ।।) ग धवने कहा—राजकुमार! तुम मेरे स श नाम धारण करते हो, अतः मुझे यु का अवसर दो और य द यह न कर सको तो अपना सरा नाम रख लो। म तुमसे यु करना चाहता ँ। नामक एकताके कारण ही म तु हारे नकट आया ँ। मेरे नाम ारा थ पुकारा जानेवाला मनु य मेरे सामनेसे सकुशल नह जा सकता। तेना य सुमहद् यु ं कु े े बभूव ह । तयोबलवतो त ग धवकु मु ययोः । न ा तीरे सर व याः समा त ोऽभवद् रणः ।। ८ ।। त मन् वमद तुमुले श वषसमाकुले । माया धकोऽवधीद् वीरं ग धवः कु स मम् ।। ९ ।। तदन तर उसके साथ कु े म राजा च ांगदका बड़ा भारी यु आ। ग धवराज और कु राज दोन ही बड़े बलवान् थे। उनम सर वती नद के तटपर तीन वष तक यु होता रहा। अ -श क वषासे ा त उस घमासान यु म मायाम बढ़े -चढ़े ए ग धवने कु े वीर च ांगदका वध कर डाला ।। ८-९ ।। स ह वा तु नर े ं च ा दमरदमम् । अ ताय कृ वा ग धव दवमाच मे ततः ।। १० ।। श ु का दमन करनेवाले नर े च ांगदको मारकर यु समा त करके वह ग धव वगलोकम चला गया ।। १० ।। त मन् पु षशा ले नहते भू रतेज स । भी मः शा तनवो राजा ेतकाया यकारयत् ।। ११ ।। उन महान् तेज वी पु ष सह च ांगदके मारे जानेपर शा तनुन दन भी मने उनके ेतकम करवाये ।। ११ ।। व च वीय च तदा बालम ा तयौवनम् । कु रा ये महाबा र य ष चदन तरम् ।। १२ ।। व च वीय अभी बालक थे, युवाव थाम नह प ँचे थे तो भी महाबा भी मने उ ह कु दे शके रा यपर अ भ ष कर दया ।। १२ ।। व च वीयः स तदा भी म य वचने थतः । ै

अ वशास महाराज पतृपैतामहं पदम् ।। १३ ।। महाराज जनमेजय! तब व च वीय भी मजीक आ ाके अधीन रहकर अपने बापदाद के रा यका शासन करने लगे ।। १३ ।। स धमशा कुशलं भी मं शा तनवं नृपः । पूजयामास धमण स चैनं यपालयत् ।। १४ ।। शा तनुन दन भी म धम एवं राजनी त आ द शा म कुशल थे; अतः राजा व च वीय धमपूवक उनका स मान करते थे और भी मजी भी इन अ पवय क नरेशक सब कारसे र ा करते थे ।। १४ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण च ा दोपा याने एका धकशततमोऽ यायः ।। १०१ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम च ांगदोपा यान वषयक एक सौ एकवाँ अ याय पूरा आ ।। १०१ ।। (दा णा य अ धक पाठक े ३ ोक मलाकर कुल १७ ोक ह)

य धकशततमोऽ यायः भी मके ारा वयंवरसे का शराजक क या का हरण, यु म सब राजा तथा शा वक पराजय, अ बका और अ बा लकाके साथ व च वीयका ववाह तथा नधन वैश पायन उवाच हते च ा दे भी मो बाले ात र कौरव । पालयामास तद् रा यं स यव या मते थतः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! च ांगदके मारे जानेपर सरे भाई व च वीय अभी ब त छोटे थे, अतः स यवतीक रायसे भी मजीने ही उस रा यका पालन कया ।। १ ।। स ा तयौवनं ् वा ातरं धीमतां वरः । भी मो व च वीय य ववाहायाकरो म तम् ।। २ ।। जब व च वीय धीरे-धीरे युवाव थाम प ँचे, तब बु मान म े भी मजीने उनक वह अव था दे ख व च वीयके ववाहका वचार कया ।। २ ।। अथ का शपतेभ मः क या त ोऽ सरोपमाः । शु ाव स हता राजन् वृ वाना वै वयंवरम् ।। ३ ।। राजन्! उन दन का शराजक तीन क याएँ थ , जो अ सरा के समान सु दर थ । भी मजीने सुना, वे तीन क याएँ साथ ही वयंवर-सभाम प तका वरण करनेवाली ह ।। ३ ।। ततः स र थनां े ो रथेनैकेन श ु जत् । जगामानुमते मातुः पुर वाराणस भुः ।। ४ ।। तब माता स यवतीक आ ा ले र थय म े श ु वजयी भी म एकमा रथके साथ वाराणसीपुरीको गये ।। ४ ।। त रा ः समु दतान् सवतः समुपागतान् । ददश क या ता ैव भी मः शा तनुन दनः ।। ५ ।। वहाँ शा तनुन दन भी मने दे खा, सब ओरसे आये ए राजा का समुदाय वयंवरसभाम जुटा आ है और वे क याएँ भी वयंवरम उप थत ह ।। ५ ।। क यमानेषु रा ां तु तदा नामसु सवशः । एका कनं तदा भी मं वृ ं शा तनुन दनम् ।। ६ ।। सो े गा इव तं ् वा क याः परमशोभनाः । अपा ाम त ताः सवा वृ इ येव च तया ।। ७ ।। उस समय सब ओर राजा के नाम ले-लेकर उन सबका प रचय दया जा रहा था। इतनेम ही शा तनुन दन भी म, जो अब वृ हो चले थे, वहाँ अकेले ही आ प ँचे। उ ह े े ी ँ ी ो े े ऐ ो ी ई ँ े

दे खकर वे सब परम सु दरी क याएँ उ न-सी होकर, ये बूढ़े ह, ऐसा सोचती ई वहाँसे र भाग गय ।। ६-७ ।। वृ ः परमधमा मा वलीप लतधारणः । क कारण महायातो नल जो भरतषभः ।। ८ ।। मया त ो लोक े षु क व द य त भारत । चारी त भी मो ह वृथैव थतो भु व ।। ९ ।। इ येवं ुव त ते हस त म नृपाधमाः । वहाँ जो नीच वभावके नरेश एक थे, वे आपसम ये बात कहते ए उनक हँसी उड़ाने लगे—‘भरतवं शय म े भी म तो बड़े धमा मा सुने जाते थे। ये बूढ़े हो गये ह, शरीरम झुरयाँ पड़ गयी ह, सरके बाल सफेद हो चुके ह; फर या कारण है क यहाँ आये ह? ये तो बड़े नल ज जान पड़ते ह। अपनी त ा झूठ करके ये लोग म या कहगे— कैसे मुँह दखायगे? भूम डलम थ ही यह बात फैल गयी है क भी मजी चारी ह’ ।। ८-९ ।। वैश पायन उवाच याणां वचः ु वा भी म ोध भारत ।। १० ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! य क ये बात सुनकर भी म अ य त कु पत हो उठे ।। १० ।। भी म तदा वयं क या वरयामास ताः भुः । उवाच च महीपालान् राज लद नः वनः ।। ११ ।। रथमारो य ताः क या भी मः हरतां वरः । आय दानं क यानां गुणवद् यः मृतं बुधः ।। १२ ।। अलंकृ य यथाश दाय च धना य प । य छ यपरे क या मथुनेन गवाम प ।। १३ ।। राजन्! वे श शाली तो थे ही, उ ह ने उस समय वयं ही सम त क या का वरण कया। इतना ही नह , हार करनेवाल म े वीरवर भी मने उन क या को उठाकर रथपर चढ़ा लया और सम त राजा को ललकारते ए मेघके समान ग भीर वाणीम कहा —‘ व ान ने क याको यथाश व ाभूषण से वभू षत करके गुणवान् वरको बुलाकर उसे कुछ धन दे नेके साथ ही क यादान करना उ म ( ा ववाह) बताया है। कुछ लोग एक जोड़ा गाय और बैल लेकर क यादान करते ह (यह आष ववाह है) ।। ११—१३ ।। व ेन क थतेना ये बलेना येऽनुमा य च । म ामुपय य ये वयम ये च व दते ।। १४ ।। ‘ कतने ही मनु य नयत धन लेकर क यादान करते ह (यह आसुर ववाह है)। कुछ लोग बलसे क याका हरण करते ह (यह रा स ववाह है)। सरे लोग वर और क याक पर पर अनुम त होनेपर ववाह करते ह (यह गा धव ववाह है)। कुछ लोग अचेत अव थाम पड़ी ई क याको उठा ले जाते ह (यह पैशाच ववाह है)। कुछ लोग वर और ो











क याको एक करके वयं ही उनसे त ा कराते ह क हम दोन गाह य धमका पालन करगे; फर क या पता दोन क पूजा करके अलंकारयु क याका वरके लये दान करता है; इस कार ववा हत होनेवाले ( ाजाप य ववाहक री तसे) प नीक उपल ध करते ह ।। १४ ।। आष वध पुर कृ य दारान् व द त चापरे । अ मं तमथो व ववाहं क व भवृतम् ।। १५ ।। ‘कुछ लोग आष व ध (य ) करके ऋ वजको क या दे ते ह। इस कार ववा हत होनेवाले (दै व ववाहक री तसे) प नी ा त करते ह। इस तरह व ान ने यह ववाहका आठवाँ कार माना है। इन सबको तुमलोग समझो ।। १५ ।। वयंवरं तु राज याः शंस युपया त च । मय तु तामा यायस धमवा दनः ।। १६ ।। ‘ य वयंवरक शंसा करते और उसम जाते ह; परंतु उसम भी सम त राजा को परा त करके जस क याका अपहरण कया जाता है, धमवाद व ान् यके लये उसे सबसे े मानते ह ।। १६ ।। ता इमाः पृ थवीपाला जहीषा म बला दतः । ते यत वं परं श या वजयायेतराय वा ।। १७ ।। ‘अतः भू मपालो! म इन क या को यहाँसे बलपूवक हर ले जाना चाहता ँ। तुमलोग अपनी सारी श लगाकर वजय अथवा पराजयके लये मुझे रोकनेका य न करो ।। १७ ।। थतोऽहं पृ थवीपाला यु ाय कृत न यः । एवमु वा महीपालान् का शराजं च वीयवान् ।। १८ ।। सवाः क याः स कौर ो रथमारो य च वकम् । आम य च स तान् ाया छ ं क याः गृ ताः ।। १९ ।। ‘राजाओ! म यु के लये ढ़ न य करके यहाँ डटा आ ँ।’ परम परा मी कु कुल े भी मजी उन महीपाल तथा का शराजसे उपयु बात कहकर उन सम त क या को, ज ह वे उठाकर अपने रथपर बठा चुके थे, साथ लेकर सबको ललकारते ए वहाँसे शी तापूवक चल दये ।। १८-१९ ।।

तत ते पा थवाः सव समु पेतुरम षताः । सं पृश तः वकान् बान् दश तो दशन छदान् ।। २० ।। फर तो सम त राजा इस अपमानको न सह सके; वे अपनी भुजा का पश करते (ताल ठोकते) और दाँत से ओठ चबाते ए अपनी जगहसे उछल पड़े ।। २० ।। तेषामाभरणा याशु व रतानां वमु चताम् । आमु चतां च वमा ण स मः सुमहानभूत् ।। २१ ।। सब लोग ज द -ज द अपने आभूषण उतारकर कवच पहनने लगे। उस समय बड़ा भारी कोलाहल मच गया ।। २१ ।। ताराणा मव स पातो बभूव जनमेजय । भूषणानां च सवषां कवचानां च सवशः ।। २२ ।। सवम भभूणै क य रत ततः । स ोधामष ज ूकषायीकृतलोचनाः ।। २३ ।। सूतोप लृ तान् चरान् सद ै पक पतान् । रथाना थाय ते वीराः सव हरणा वताः ।। २४ ।। या तमथ कौर मनुस ु दायुधाः । ततः समभवद् यु ं तेषां त य च भारत । एक य च बनां च तुमुलं लोमहषणम् ।। २५ ।। े

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जनमेजय! ज दबाजीके कारण उन सबके आभूषण और कवच इधर-उधर गर पड़ते थे। उस समय ऐसा जान पड़ता था, मानो आकाशम डलसे तारे टू ट-टू टकर गर रहे ह । कतने ही यो ा के कवच और गहने इधर-उधर बखर गये। ोध और अमषके कारण उनक भ ह टे ढ़ और आँख लाल हो गयी थ । सार थय ने सु दर रथ सजाकर उनम सु दर अ जोत दये थे। उन रथ पर बैठकर सब कारके अ -श से स प हो ह थयार उठाये ए उन वीर ने जाते ए कु न दन भी मजीका पीछा कया। जनमेजय! तदन तर उन राजा और भी मजीका घोर सं ाम आ। भी मजी अकेले थे और राजालोग ब त। उनम र गटे खड़े कर दे नेवाला भयंकर सं ाम छड़ गया ।। २२—२५ ।। ते वषून् साह ां त मन् युगपदा पन् । अ ा तां ैव तानाशु भी मः सवा तथा तरा ।। २६ ।। अ छन छरवषण महता लोमवा हना । तत ते पा थवाः सव सवतः प रवाय तम् ।। २७ ।। ववृषुः शरवषण वषणेवा म बुदाः । स तं बाणमयं वष शरैरावाय सवतः ।। २८ ।। ततः सवान् महीपालान् पय व यात् भ भः । एकैक तु ततो भी मं राजन् व ाध प च भः ।। २९ ।। राजन्! उन नरेश ने भी मजीपर एक ही साथ दस हजार बाण चलाये; परंतु भी मजीने उन सबको अपने ऊपर आनेसे पहले बीचम ही वशाल पंखयु बाण क बौछार करके शी तापूवक काट गराया। तब वे सब राजा उ ह चार ओरसे घेरकर उनके ऊपर उसी कार बाण क झड़ी लगाने लगे, जैसे बादल पवतपर पानीक धारा बरसाते ह। भी मजीने सब ओरसे उस बाण-वषाको रोककर उन सभी राजा को तीन-तीन बाण से घायल कर दया। तब उनमसे येकने भी मजीको पाँच-पाँच बाण मारे ।। २६—२९ ।। स च तान् त व ाध ा यां ा यां परा मन् । तद् यु मासीत् तुमुलं घोरं दे वासुरोपमम् ।। ३० ।। प यतां लोकवीराणां शरश समाकुलम् । स धनूं ष वजा ा ण वमा ण च शरां स च ।। ३१ ।। च छे द समरे भी मः शतशोऽथ सह शः । त या त पु षान याँ लाघवं रथचा रणः ।। ३२ ।। र णं चा मनः सं ये श वोऽ य यपूजयन् । तान् व न ज य तु रणे सवश भृतां वरः ।। ३३ ।। क या भः स हतः ायाद् भारतो भारतान् त । तत तं पृ तो राज छा वराजो महारथः ।। ३४ ।। अ यग छदमेया मा भी मं शा तनवं रणे । वारणं जघने भ दन् द ता यामपरो यथा ।। ३५ ।। वा सतामनुस ा तो यूथपो ब लनां वरः । ीकाम त त े त भी ममाह स पा थवः ।। ३६ ।। ो ो

शा वराजो महाबा रमषण चो दतः । ततः सः पु ष ा ो भी मः परबलादनः ।। ३७ ।। त ा याकु लतः ोधाद् वधूमोऽ न रव वलन् । वततेषुधनु या ण वकु चतललाटभृत् ।। ३८ ।। फर भी मजीने भी अपना परा म कट करते ए येक यो ाको दो-दो बाण से ब ध डाला। बाण और श य से ा त उनका वह तुमुल यु दे वासुर-सं ामके समान भयंकर जान पड़ता था। उस समरांगणम भी मने लोक व यात वीर के दे खते-दे खते उनके धनुष, वजाके अ भाग, कवच और म तक सैकड़ और हजार क सं याम काट गराये। यु म रथसे वचरनेवाले भी मजीक सरे वीर से बढ़कर हाथक फुत और आ मर ा आ दक श ु ने भी सराहना क । स पूण श धा रय म े भरतकुलभूषण भी मजीने उन सब यो ा को जीतकर क या को साथ ले भरतवं शय क राजधानी ह तनापुरको थान कया। राजन्! तब महारथी शा वराजने पीछे से आकर यु के लये शा तनुन दन भी मपर आ मण कया। शा वके शारी रक बलक कोई सीमा नह थी। जैसे ह थनीके पीछे लगे ए एक गजराजके पृ भागम उसीका पीछा करनेवाला सरा यूथप त दाँत से हार करके उसे वद ण करना चाहता है, उसी कार बलवान म े महाबा शा वराज ीको पानेक इ छासे ई या और ोधके वशीभूत हो भी मका पीछा करते ए उनसे बोला—‘अरे ओ! खड़ा रह, खड़ा रह।’ तब श ुसेनाका संहार करनेवाले पु ष सह भी म उसके वचन को सुनकर ोधसे ाकुल हो धूमर हत अ नके समान जलने लगे और हाथम धनुष-बाण लेकर खड़े हो गये। उनके ललाटम सकुड़न आ गयी ।। ३०—३८ ।। धम समा थाय पेतभयस मः । नवतयामास रथं शा वं त महारथः ।। ३९ ।। महारथी भी मने य-धमका आ य ले भय और घबराहट छोड़कर शा वक ओर अपना रथ लौटाया ।। ३९ ।। नवतमानं तं ् वा राजानः सव एव ते । े काः समप त भी मशा वसमागमे ।। ४० ।। उ ह लौटते दे ख सब राजा भी म और शा वके यु म कुछ भाग न लेकर केवल दशक बन गये ।। ४० ।। तौ वृषा वव नद तौ ब लनौ वा सता तरे । अ यो यम यवततां बल व मशा लनौ ।। ४१ ।। ये दोन बलवान् वीर मैथुनक इ छावाली गौके लये आपसम लड़नेवाले दो साँड़ क तरह ंकार करते ए एक- सरेसे भड़ गये। दोन ही बल और परा मसे सुशो भत थे ।। ४१ ।। ततो भी मं शा तनवं शरैः शतसह शः । शा वराजो नर े ः समवा करदाशुगैः ।। ४२ ।। तदन तर मनु य म े राजा शा व शा तनुन दन भी मपर सैकड़ और हजार शी गामी बाण क बौछार करने लगा ।। ४२ ।। ी े े

पूवम य दतं ् वा भी मं शा वेन ते नृपाः । व मताः समप त साधु सा व त चा ुवन् ।। ४३ ।। शा वने पहले ही भी मको पी ड़त कर दया। यह दे खकर सभी राजा आ यच कत हो गये और ‘वाह-वाह’ करने लगे ।। ४३ ।। लाघवं त य ते ् वा समरे सवपा थवाः । अपूजय त सं ा वा भः शा वं नरा धपम् ।। ४४ ।। यु म उसक फुत दे ख सब राजा बड़े स ए और अपनी वाणी ारा शा वनरेशक शंसा करने लगे ।। ४४ ।। याणां ततो वाचः ु वा परपुरंजयः । ु ः शा तनवो भी म त त े यभाषत ।। ४५ ।। श ु क राजधानीको जीतनेवाले शा तनुन दन भी मने य क वे बात सुनकर कु पत हो शा वसे कहा—‘खड़ा रह, खड़ा रह’ ।। ४५ ।। सार थ चा वीत् ु ो या ह य ैष पा थवः । यावदे नं नह य भुज मव प राट् ।। ४६ ।। फर सार थसे कहा—‘जहाँ यह राजा शा व है, उधर ही रथ ले चलो। जैसे प राज ग ड सपको दबोच लेते ह, उसी कार म इसे अभी मार डालता ँ’ ।। ४६ ।। ततोऽ ं वा णं स यग् योजयामास कौरवः । तेना ां तुरोऽमृदन ् ा छा वराज य भूपते ।। ४७ ।। जनमेजय! तदन तर कु न दन भी मने धनुषपर उ चत री तसे वा णा का संधान कया और उसके ारा शा वराजके चार घोड़ को र द डाला ।। ४७ ।। अ ैर ा ण संवाय शा वराज य कौरवः । भी मो नृप तशा ल यवधीत् त य सार थम् ।। ४८ ।। नृप े ! फर अपने अ से राजा शा वके अ का नवारण करके कु वंशी भी मने उसके सार थको भी मार डाला ।। ४८ ।। अ ेण चा याथै े ण यवधीत् तुरगो मान् । क याहेतोनर े भी मः शा तनव तदा ।। ४९ ।। ज वा वसजयामास जीव तं नृपस मम् । ततः शा वः वनगरं ययौ भरतषभ ।। ५० ।। वरा यम वशा चैव धमण नृप त तदा । राजानो ये च त ासन् वयंवर द वः ।। ५१ ।। वा येव तेऽ प रा ा ण ज मुः परपुरंजयाः । एवं व ज य ताः क या भी मः हरतां वरः ।। ५२ ।। ययौ हा तनपुरं य राजा स कौरवः । व च वीय धमा मा शा त वसुधा ममाम् ।। ५३ ।। त प ात् ऐ ा ारा उसके उ म अ को यमलोक प ँचा दया। नर े ! उस समय शा तनुन दन भी मने क या के लये यु करके शा वको जीत लया और नृप े ी े ो े ी ी ो

शा वका भी केवल ाणमा छोड़ दया। जनमेजय! उस समय शा व अपनी राजधानीको लौट गया और धमपूवक रा यका पालन करने लगा। इसी कार श ुनगरीपर वजय पानेवाले जो-जो राजा वहाँ वयंवर दे खनेक इ छासे आये थे, वे भी अपने-अपने दे शको चले गये। हार करनेवाले यो ा म े भी म उन क या को जीतकर ह तनापुरको चल दये; जहाँ रहकर धमा मा कु वंशी राजा व च वीय इस पृ वीका शासन करते थे ।। ४९—५३ ।। यथा पता य कौर ः शा तनुनृपस मः । सोऽ चरेणैव कालेन अ य ाम रा धप ।। ५४ ।। वना न स रत ैव शैलां व वधान् मान् । अ तः प य वारीन् सं येऽसं येय व मः ।। ५५ ।। उनके पता कु े नृप शरोम ण शा तनु जस कार रा य करते थे, वैसा ही वे भी करते थे। जनमेजय! भी मजी थोड़े ही समयम वन, नद , पवत को लाँघते और नाना कारके वृ को लाँघते और पीछे छोड़ते ए आगे बढ़ गये। यु म उनका परा म अवणनीय था। उ ह ने वयं अ त रहकर श ु को ही त प ँचायी थी ।। ५४-५५ ।। आनयामास का य य सुताः सागरगासुतः । नुषा इव स धमा मा भ गनी रव चानुजाः ।। ५६ ।। यथा हतर ैव प रगृ ययौ कु न् । आ न ये स महाबा ातुः य चक षया ।। ५७ ।। धमा मा गंगान दन भी म का शराजक क या को पु वधू, छोट ब हन एवं पु ीक भाँ त साथ रखकर कु दे शम ले आये। वे महाबा अपने भाई व च वीयका य करनेक इ छासे उन सबको लाये थे ।। ५६-५७ ।। ताः सवगुणस प ा ाता ा े यवीयसे । भी मो व च वीयाय ददौ व मा ताः ।। ५८ ।। भाई भी मने अपने परा म ारा हरकर लायी ई उन सवसद्गुणस प क या को अपने छोटे भाई व च वीयके हाथम दे दया ।। ५८ ।। एवं धमण धम ः कृ वा कमा तमानुषम् । ातु व च वीय य ववाहायोपच मे ।। ५९ ।। स यव या सह मथः कृ वा न यमा मवान् । ववाहं कार य य तं भी मं का शपतेः सुता । ये ा तासा मदं वा यम वी सती तदा ।। ६० ।। धम एवं जता मा भी मजी इस कार धमपूवक अलौ कक परा म करके माता स यवतीसे सलाह ले एक न यपर प ँचकर भाई व च वीयके ववाहक तैयारी करने लगे। का शराजक उन क या म जो सबसे बड़ी थी, वह बड़ी सती-सा वी थी। उसने जब सुना क भी मजी मेरा ववाह अपने छोटे भाईके साथ करगे, तब वह उनसे हँसती ई इस कार बोली— ।। ५९-६० ।। मया सौभप तः पूव मनसा ह वृतः प तः । े े े

तेन चा म वृता पूवमेष काम मे पतुः ।। ६१ ।। ‘धमा मन्! मने पहलेसे ही मन-ही-मन सौभ नामक वमानके अ धप त राजा शा वको प त पम वरण कर लया था। उ ह ने भी पूवकालम मेरा वरण कया था। मेरे पताजीक भी यही इ छा थी क मेरा ववाह शा वके साथ हो ।। ६१ ।। मया वर यत ोऽभू छा व त मन् वयंवरे । एतद् व ाय धम धमत वं समाचर ।। ६२ ।। ‘उस वयंवरम मुझे राजा शा वका ही वरण करना था। धम ! इन सब बात को सोचसमझकर जो धमका सार तीत हो, वही काय क जये’ ।। ६२ ।। एवमु तया भी मः क यया व संस द । च ताम यगमद् वीरो यु ां त यैव कमणः ।। ६३ ।। जब उस क याने ा णम डलीके बीच वीरवर भी मजीसे इस कार कहा, तब वे उस वैवा हक कमके वषयम यु यु वचार करने लगे ।। ६३ ।। व न य स धम ो ा णैवदपारगैः । अनुजने तदा ये ाम बां का शपतेः सुताम् ।। ६४ ।। वे वयं भी धमके ाता थे, फर भी वेद के पारंगत व ान् ा ण के साथ भलीभाँ त वचार करके उ ह ने का शराजक ये पु ी अ बाको उस समय शा वके यहाँ जानेक अनुम त दे द ।। ६४ ।। अ बका बा लके भाय ादाद् ा े यवीयसे । भी मो व च वीयाय व ध ेन कमणा ।। ६५ ।। शेष दो क या का नाम अ बका और अ बा लका था। उ ह भी मजीने शा ो व धके अनुसार छोटे भाई व च वीयको प नी पम दान कया ।। ६५ ।। तयोः पाणी गृही वा तु पयौवनद पतः । व च वीय धमा मा कामा मा समप त ।। ६६ ।। उन दोन का पा ण हण करके प और यौवनके अ भमानसे भरे ए धमा मा व च वीय कामा मा बन गये ।। ६६ ।। ते चा प बृहती यामे नीलकु चतमूधजे । र तु नखोपेते पीन ो णपयोधरे ।। ६७ ।। उनक वे दोन प नयाँ सयानी थ । उनक अव था सोलह वषक हो चुक थी। उनके केश नीले और घुँघराले थे; हाथ-पैर के नख लाल और ऊँचे थे; नत ब और उरोज थूल और उभरे ए थे ।। ६७ ।। आ मनः त पोऽसौ लधः प त र त थते । व च वीय क या यौ पूजयामासतुः शुभे ।। ६८ ।। वे यह जानकर संतु थ क हम दोन को अपने अनु प प त मले ह; अतः वे दोन क याणमयी दे वयाँ व च वीयक बड़ी सेवा-पूजा करने लग ।। ६८ ।। स चा पस शो दे वतु यपरा मः । सवासामेव नारीणां च मथनो रहः ।। ६९ ।। ी ी े े े े ी े

व च वीयका प अ नीकुमार के समान था। वे दे वता के समान परा मी थे। एका तम वे सभी ना रय के मनको मोह लेनेक श रखते थे ।। ६९ ।। ता यां सह समाः स त वहरन् पृ थवीप तः । व च वीय त णो य मणा समगृ त ।। ७० ।। राजा व च वीयने उन दोन प नय के साथ सात वष तक नर तर वहार कया; अतः उस असंयमके प रणाम व प वे युवाव थाम ही राजय माके शकार हो गये ।। ७० ।। सु दां यतमानानामा तैः सह च क सकैः । जगामा त मवा द यः कौर ो यमसादनम् ।। ७१ ।। उनके हतैषी सगे-स ब धय ने नामी और व सनीय च क सक के साथ उनके रोगनवारणक पूरी चे ा क , तो भी जैसे सूय अ ताचलको चले जाते ह, उसी कार वे कौरवनरेश यमलोकको चले गये ।। ७१ ।। धमा मा स तु गा े य ताशोकपरायणः । ेतकाया ण सवा ण त य स यगकारयत् ।। ७२ ।। रा ो व च वीय य स यव या मते थतः । ऋ व भः स हतो भी मः सव कु पु वैः ।। ७३ ।। धमा मा गंगान दन भी मजी भाईक मृ युसे च ता और शोकम डू ब गये। फर माता स यवतीक आ ाके अनुसार चलनेवाले उन भी मजीने ऋ वज तथा कु कुलके सम त े पु ष के साथ राजा व च वीयके सभी ेतकाय अ छ तरह कराये ।। ७२-७३ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण व च वीय परमे य धकशततमोऽ यायः ।। १०२ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम व च वीयका नधन वषयक एक सौ दोवाँ अ याय पूरा आ ।। १०२ ।।

य धकशततमोऽ यायः स यवतीका भी मसे रा य हण और संतानो पादनके लये आ ह तथा भी मके ारा अपनी त ा बतलाते ए उसक अ वीकृ त वैश पायन उवाच ततः स यवती द ना कृपणा पु गृ नी । पु य कृ वा काया ण नुषा यां सह भारत ।। १ ।। समा ा य नुषे ते च भी मं श भृतां वरम् । धम च पतृवंशं च मातृवंशं च भा वनी । समी य महाभागा गा े यं वा यम वीत् ।। २ ।। शा तनोधम न य य कौर य यश वनः । व य प ड क त संतानं च त तम् ।। ३ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर पु क इ छा रखनेवाली स यवती अपने पु के वयोगसे अ य त द न और कृपण हो गयी। उसने पु वधु के साथ पु के ेतकाय करके अपनी दोन ब तथा श धा रय म े भी मजीको धीरज बँधाया। फर उस महाभागा मंगलमयी दे वीने धम, पतृकुल तथा मातृकुलक ओर दे खकर गंगान दन भी मसे कहा—‘बेटा! सदा धमम त पर रहनेवाले परम यश वी कु न दन महाराज शा तनुके प ड, क त और वंश ये सब अब तु ह पर अवल बत ह ।। १—३ ।। यथा कम शुभं कृ वा वग पगमनं ुवम् । यथा चायु ुवं स ये व य धम तथा ुवः ।। ४ ।। ‘जैसे शुभ कम करके वगलोकम जाना न त है, जैसे स य बोलनेसे आयुका बढ़ना अव य भावी है, वैसे ही तुमम धमका होना भी न त है ।। ४ ।। वे थ धमा धम समासेनेतरेण च । व वधा वं ुतीव थ वेदा ा न च सवशः ।। ५ ।। ‘धम ! तुम सब धम को सं ेप और व तारसे जानते हो। नाना कारक ु तय और सम त वेदांग का भी तु ह पूण ान है ।। ५ ।। व थानं च ते धम कुलाचारं च ल ये । तप च कृ े षु शु ा रसयो रव ।। ६ ।। ‘म तु हारी धम न ा और कुलो चत सदाचारको भी दे खती ँ। संकटके समय शु ाचाय और बृह प तक भाँ त तु हारी बु उपयु कत का नणय करनेम समथ है ।। ६ ।। त मात् सुभृशमा य व य धमभृतां वर । ो

काय वां व नयो या म त छ वा कतुमह स ।। ७ ।। ‘अतः धमा मा म े भी म! तुमपर अ य त व ास रखकर ही म तु ह एक आव यक कायम लगाना चाहती ँ। तुम पहले उसे सुन लो; फर उसका पालन करनेक चे ा करो ।। ७ ।। मम पु तव ाता वीयवान् सु य ते । बाल एव गतः वगमपु ः पु षषभ ।। ८ ।। इमे म ह यौ ातु ते का शराजसुते शुभे । पयौवनस प े पु कामे च भारत ।। ९ ।। तयो पादयाप यं संतानाय कुल य नः । म योगा महाबाहो धम कतु महाह स ।। १० ।। ‘मेरा पु और तु हारा भाई व च वीय जो परा मी होनेके साथ ही तु ह अ य त य था, छोट अव थाम ही वगवासी हो गया। नर े ! उसके कोई पु नह आ था। तु हारे भाईक ये दोन सु दरी रा नयाँ, जो का शराजक क याएँ ह, मनोहर प और युवाव थासे स प ह। इनके दयम पु पानेक अ भलाषा है। भारत! तुम हमारे कुलक संतानपर पराको सुर त रखनेके लये वयं ही इन दोन के गभसे पु उ प करो। महाबाहो! मेरी आ ासे यह धमकाय तुम अव य करो ।। ८—१० ।। रा ये चैवा भ ष य व भारताननुशा ध च । दारां कु धमण मा नम जीः पतामहान् ।। ११ ।। ‘रा यपर अपना अ भषेक करो और भारतीय जाका पालन करते रहो। धमके अनुसार ववाह कर लो; पतर को नरकम न गरने दो’ ।। ११ ।। वैश पायन उवाच तथो यमानो मा ा स सु परंतपः । इ युवाचाथ धमा मा ध यमेवो रं वचः ।। १२ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! माता और सु द के ऐसा कहनेपर श ुदमन धमा मा भी मने यह धमानुकूल उ र दया— ।। १२ ।। असंशयं परो धम वया मात दा तः । रा याथ ना भ ष चेयं नोपेयां जातु मैथुनम् । वमप यं त च मे त ां वे थ वै पराम् ।। १३ ।। जाना स च यथावृ ं शु कहेतो वद तरे । स स यव त स यं ते तजाना यहं पुनः ।। १४ ।। ‘माता! तुमने जो कुछ कहा है, वह धमयु है, इसम संशय नह ; परंतु म रा यके लोभसे न तो अपना अ भषेक कराऊँगा और न ीसहवास ही क ँ गा। संतानो पादन और रा य हण न करनेके वषयम जो मेरी कठोर त ा है, उसे तो तुम जानती ही हो। स यवती! तु हारे लये शु क दे नेके हेतु जो-जो बात ई थ , वे सब तु ह ात ह। उन त ा को पुनः स ची करनेके लये म अपना ढ़ न य बताता ँ ।। १३-१४ ।। े

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प र यजेयं ैलो यं रा यं दे वेषु वा पुनः । यद् वा य धकमेता यां न तु स यं कथंचन ।। १५ ।। ‘म तीन लोक का रा य, दे वता का साा य अथवा इन दोन से भी अ धक मह वक व तुको भी एकदम याग सकता ँ, परंतु स यको कसी कार नह छोड़ सकता ।। १५ ।। यजे च पृवी ग धमाप रसमा मनः । यो त तथा यजेद ् पं वायुः पशगुणं यजेत् ।। १६ ।। ‘पृ वी अपनी गंध छोड़ दे , जल अपने रसका प र याग कर दे , तेज पका और वायु पश नामक वाभा वक गुणका याग कर दे ।। १६ ।। भां समु सृजेदक धूमकेतु तथो मताम् । यजे छ दं तथाऽऽकाशं सोमः शीतांशुतां यजेत् ।। १७ ।। ‘सूय भा और अ न अपनी उ णताको छोड़ दे , आकाश श दका और च मा अपनी शीतलताका प र याग कर दे ।। १७ ।। व मं वृ हा ज ाद् धम ज ा च धमराट् । न वहं स यमु ु ं वसेयं कथंचन ।। १८ ।। ‘इ परा मको छोड़ द और धमराज धमक उपे ा कर द; परंतु म कसी कार स यको छोड़नेका वचार भी नह कर सकता ।। १८ ।। (त जा व यथा कुया लोकानाम प सं ये । अमर व य वा हेतो ैलो यसदन य वा ।। एवमु ा तु पु ेण भू र वणतेजसा ।) माता स यवती भी ममुवाच तदन तरम् ।। १९ ।। जाना म ते थ त स ये परां स यपरा म । इ छन् सृजेथा लोकान यां वं वेन तेजसा ।। २० ।। जाना म चैवं स यं त मदथ य च भा षतम् । आप म वमावे य वह पैतामह धुरम् ।। २१ ।। ‘सारे संसारका नाश हो जाय, मुझे अमर व मलता हो या लोक का रा य ा त हो, तो भी म अपने कये ए णको नह तोड़ सकता।’ महान् तेजो प धनसे स प अपने पु भी मके ऐसा कहनेपर माता स यवती इस कार बोली—‘बेटा! तुम स यपरा मी हो। म जानती ँ, स यम तु हारी ढ़ न ा है। तुम चाहो तो अपने ही तेजसे नयी लोक क रचना कर सकते हो। म उस स यको भी नह भूल सक ँ, जसक तुमने मेरे लये घोषणा क थी। फर भी मेरा आ ह है क तुम आप मका वचार करके बाप-दाद के दये ए इस रा यभारको वहन करो ।। १९—२१ ।। यथा ते कुलत तु धम न पराभवेत् । सु द येरं तथा कु परंतप ।। २२ ।। ‘परंतप! जस उपायसे तु हारे वंशक पर परा न न हो, धमक भी अवहेलना न होने पावे और ेमी सु द् भी संतु हो जायँ, वही करो’ ।। २२ ।। े ी

लाल यमानां तामेवं कृपणां पु गृ नीम् । धमादपेतं ुवत भी मो भूयोऽ वी ददम् ।। २३ ।। पु क कामनासे द न वचन बोलनेवाली और मुखसे धमर हत बात कहनेवाली स यवतीसे भी मने फर यह बात कही— ।। २३ ।। रा धमानवे व मा नः सवान् नीनशः । स या यु तः य य न धमषु श यते ।। २४ ।। ‘राजमाता! धमक ओर डालो, हम सबका नाश न करो। यका स यसे वच लत होना कसी भी धमम अ छा नह माना गया है ।। २४ ।। शा तनोर प संतानं यथा याद यं भु व । तत् ते धम व या म ा ं रा सनातनम् ।। २५ ।। ‘राजमाता! महाराज शा तनुक संतानपर परा भी जस उपायसे इस भूतलपर अ य बनी रहे, वह धमयु उपाय म तु ह बतलाऊँगा। वह सनातन यधम है ।। २५ ।। ु वा तं तप व ा ैः सह पुरो हतैः । आप माथकुशलैल कत मवे य च ।। २६ ।। उसे आप मके नणयम कुशल व ान् पुरो हत से सुनकर और लोकत क ओर भी दे खकर न य करो ।। २६ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण भी मस यवतीसंवादे य धकशततमोऽ यायः ।। १०३ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम भी म-स यवती-संवाद वषयक एक सौ तीनवाँ अ याय पूरा आ ।। १०३ ।।

चतुर धकशततमोऽ यायः भी मक स म तसे स यवती ारा ासका आवाहन और ासजीका माताक आ ासे कु वंश-क वृ के लये व च वीयक प नय के गभसे संतानो पादन करनेक वीकृ त दे ना भी म उवाच पुनभरतवंश य हेतुं संतानवृ ये । व या म नयतं मात त मे नगदतः शृणु ।। १ ।। ा णो गुणवान् क द् धनेनोप नम यताम् । व च वीय े ेषु यः समु पादयेत् जाः ।। २ ।। भी मजी कहते ह—मातः! भरतवंशक संतानपर पराको बढ़ाने और सुर त रखनेके लये जो नयत उपाय है, उसे म बता रहा ँ; सुनो। कसी गुणवान्* ा णको धन दे कर बुलाओ, जो व च वीयक य के गभसे संतान उ प कर सके ।। १-२ ।। वैश पायन उवाच ततः स यवती भी मं वाचा संस जमानया । वहस तीव स ीड मदं वचनम वीत् ।। ३ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तब स यवती कुछ हँसती और साथ ही लजाती ई भी मजीसे इस कार बोली। बोलते समय उसक वाणी संकोचसे कुछ अ प -सी हो जाती थी ।। ३ ।। स यमेत महाबाहो यथा वद स भारत । व ासात् ते व या म संतानाय कुल य नः ।। ४ ।। उसने कहा—‘महाबा भी म! तुम जैसा कहते हो वही ठ क है। तुमपर व ास होनेसे अपने कुलक संत तक र ाके लये तु ह म एक बात बतलाती ँ ।। ४ ।। न ते श यमना यातुमाप म तथा वधम् । वमेव नः कुले धम वं स यं वं परा ग तः ।। ५ ।। ‘ऐसे आप मको दे खकर वह बात तु ह बताये बना म नह रह सकती। तु ह हमारे कुलम मू तमान् धम हो, तु ह स य हो और तु ह परम ग त हो ।। ५ ।। त मा श य स यं मे कु व यदन तरम् । (



(य तु राजा वसुनाम ुत ते भरतषभ । त य शु ादहं म याद् धृता कु ौ पुरा कल ।। मातरं मे जलाद्धृ वा दाशः परमधम वत् । मां तु वगृहमानीय हतृ वे क पयत् ।।) धमयु य धमाथ पतुरासीत् तरी मम ।। ६ ।। ‘अतः मेरी स ची बात सुनकर उसके बाद जो कत हो, उसे करो। ‘भरत े ! तुमने महाराज वसुका नाम सुना होगा। पूवकालम म उ ह के वीयसे उ प ई थी। मुझे एक मछलीने अपने पेटम धारण कया था। एक परम धम म लाहने जलमसे मेरी माताको पकड़ा, उसके पेटसे मुझे नकाला और अपने घर लाकर अपनी पु ी बनाकर रखा। मेरे उन धमपरायण पताके पास एक नौका थी, जो (धनके लये नह ) धमाथ चलायी जाती थी ।। ६ ।। सा कदा चदहं त गता थमयौवनम् । अथ धम वदां े ः परम षः पराशरः ।। ७ ।। आजगाम तर धीमां त र यन् यमुनां नद म् । स तायमाणो यमुनां मामुपे या वीत् तदा ।। ८ ।। सा वपूव मु न े ः कामात मधुरं वचः । उ ं ज म कुलं म म म दाशसुते यहम् ।। ९ ।। ‘एक दन म उसी नावपर गयी ई थी। उन दन मेरे यौवनका ार भ था। उसी समय धम म े बु मान् मह ष पराशर यमुना नद पार करनेके लये मेरी नावपर आये। म उ ह पार ले जा रही थी, तबतक वे मु न े काम-पी ड़त हो मेरे पास आ मुझे समझाते ए मधुर वाणीम बोले और उ ह ने मुझसे अपने ज म और कुलका प रचय दया। इसपर मने कहा—‘भगवन्! म तो नषादक पु ी ँ’ ।। ७—९ ।। तमहं शापभीता च पतुभ ता च भारत । वरैरसुलभै ा न या यातुमु सहे ।। १० ।। ‘भारत! एक ओर म पताजीसे डरती थी और सरी ओर मुझे मु नके शापका भी डर था। उस समय मह षने मुझे लभ वर दे कर उ सा हत कया, जससे म उनके अनुरोधको टाल न सक ।। १० ।। अ भभूय स मां बालां तेजसा वशमानयत् । तमसा लोकमावृ य नौगतामेव भारत ।। ११ ।। म यग धो महानासीत् पुरा मम जुगु सतः । तमपा य शुभं ग ध ममं ादात् स मे मु नः ।। १२ ।। ‘य प म चाहती नह थी, तो भी उ ह ने मुझ अबलाको अपने तेजसे तर कृत करके नौकापर ही मुझे अपने वशम कर लया। उस समय उ ह ने कुहरा उ प करके स पूण लोकको अ धकारसे आवृत कर दया था। भारत! े

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पहले मेरे शरीरसे अ य त घृ णत मछलीक -सी बड़ी ती ग ध आती थी। उसको मटाकर मु नने मुझे यह उ म ग ध दान क थी ।। ११-१२ ।। ततो मामाह स मु नगभमु सृ य मामकम् । पेऽ या एव स रतः क यैव वं भ व य स ।। १३ ।। ‘तदन तर मु नने मुझसे कहा—‘तुम इस यमुनाके ही पम मेरे ारा था पत इस गभको यागकर फर क या ही हो जाओगी’ ।। १३ ।। पाराशय महायोगी स बभूव महानृ षः । क यापु ो मम पुरा ै पायन इ त ुतः ।। १४ ।। ‘उस गभसे पराशरजीके पु महान् योगी मह ष ास कट ए। वे ही ै पायन नामसे व यात ह। वे मेरे क याव थाके पु ह ।। १४ ।। यो य वेदां तुर तपसा भगवानृ षः । लोके ास वमापेदे का यात् कृ ण वमेव च ।। १५ ।। ‘वे भगवान् ै पायन मु न अपने तपोबलसे चार वेद का पृथक्-पृथक् व तार करके लोकम ‘ ास’ पदवीको ा त ए ह। शरीरका रंग साँवला होनेसे उ ह लोग ‘कृ ण’ भी कहते ह ।। १५ ।। स यवाद शमपर तप वी द ध क बषः । समु प ः स तु महान् सह प ा ततो गतः ।। १६ ।। ‘वे स यवाद , शा त, तप वी और पापशू य ह। वे उ प होते ही बड़े होकर उस पसे अपने पताके साथ चले गये थे ।। १६ ।। स नयु ो मया ं वया चा तम ु तः । ातुः े ेषु क याणमप यं जन य य त ।। १७ ।। ‘मेरे और तु हारे आ ह करनेपर वे अनुपम तेज वी ास अव य ही अपने भाईके े म क याणकारी संतान उ प करगे ।। १७ ।। स ह मामु वां त मरेः कृ े षु मा म त । तं म र ये महाबाहो य द भी म व म छ स ।। १८ ।। ‘उ ह ने जाते समय मुझसे कहा था क संकटके समय मुझे याद करना। महाबा भी म! य द तु हारी इ छा हो, तो म उ ह का मरण क ँ ।। १८ ।। तव नुमते भी म नयतं स महातपाः । व च वीय े ेषु पु ानु पाद य य त ।। १९ ।। ‘भी म! तु हारी अनुम त मल जाय, तो महा-तप वी ास न य ही व च वीयक य से पु को उ प करगे’ ।। १९ ।। वैश पायन उवाच महषः क तने त य भी मः ा लर वीत् । धममथ च कामं च ीनेतान् योऽनुप य त ।। २० ।। अथमथानुब धं च धम धमानुब धनम् । ी

कामं कामानुब धं च वपरीतान् पृथक् पृथक् ।। २१ ।। यो व च य धया धीरो व य त स बु मान् । त ददं धमयु ं च हतं चैव कुल य नः ।। २२ ।। उ ं भव या य े य त म ं रोचते भृशम् । वैश पायनजी कहते ह—मह ष ासका नाम लेते ही भी मजी हाथ जोड़कर बोले—‘माताजी! जो मनु य धम, अथ और काम—इन तीन का बारंबार वचार करता है तथा यह भी जानता है क कस कार अथसे अथ, धमसे धम और कामसे काम प फलक ा त होती है और वह प रणामम कैसे सुखद होता है तथा कस कार अथा दके सेवनसे वपरीत फल (अथनाश आ द) कट होते ह, इन बात पर पृथक्-पृथक् भलीभाँ त वचार करके जो धीर पु ष अपनी बु के ारा कत ाकत का नणय करता है, वही बु मान् है। तुमने जो बात कही है, वह धमयु तो है ही, हमारे कुलके लये भी हतकर और क याणकारी है; इस लये मुझे ब त अ छ लगी है’ ।। २०—२२ ।। वैश पायन उवाच तत त मन् त ाते भी मेण कु न दन ।। २३ ।। कृ ण ै पायनं काली च तयामास वै मु नम् । स वेदान् व ुवन् धीमान् मातु व ाय च ततम् ।। २४ ।। ा बभूवा व दतः णेन कु न दन । त मै पूजां ततः कृ वा सुताय व धपूवकम् ।। २५ ।। प र व य च बा यां वैर य ष चत । मुमोच बा पं दाशेयी पु ं ् वा चर य तु ।। २६ ।। वैश पायनजी कहते ह—कु न दन! उस समय भी मजीके इस कार अपनी स म त दे नेपर काली (स यवती)-ने मु नवर कृ ण ै पायनका च तन कया। जनमेजय! माताने मेरा मरण कया है, यह जानकर परम बु मान् ासजी वेदम का पाठ करते ए णभरम वहाँ कट हो गये। वे कब कधरसे आ गये, इसका पता कसीको न चला। स यवतीने अपने पु का भलीभाँ त स कार कया और दोन भुजा से उनका आ लगन करके अपने तन के झरते ए धसे उनका अ भषेक कया। अपने पु को द घकालके बाद दे खकर स यवतीक आँख से नेह और आन दके आँसू बहने लगे ।। २३— २६ ।। ताम ः प र ष याता मह षर भवा च । मातरं पूवजः पु ो ासो वचनम वीत् ।। २७ ।। तदन तर स यवतीके थम पु मह ष ासने अपने कम डलुके प व जलसे ःखनी माताका अ भषेक कया और उ ह णाम करके इस कार कहा— ।। २७ ।। े

भव या यद भ ेतं तदहं कतुमागतः । शा ध मां धमत व े करवा ण यं तव ।। २८ ।। ‘धमके त वको जाननेवाली माताजी! आपक जो हादक इ छा हो, उसके अनुसार काय करनेके लये म यहाँ आया ँ। आ ा द जये, म आपक कौन-सी य सेवा क ँ ’ ।। २८ ।। त मै पूजां ततोऽकाष त् पुरोधाः परमषये । स च तां तज ाह व धव म पूवकम् ।। २९ ।। त प ात् पुरो हतने मह षका व धपूवक म ो चारणके साथ पूजन कया और मह षने उसे स तापूवक हण कया ।। २९ ।। पू जतो म पूव तु व धवत् ी तमाप सः । तमासनगतं माता पृ ् वा कुशलम यम् ।। ३० ।। स यव यथ वी यैनमुवाचेदमन तरम् । व ध और म ो चारणपूवक क ई उस पूजासे ासजी ब त स ए। जब वे आसनपर बैठ गये, तब माता स यवतीने उनका कुशल- ेम पूछा और उनक ओर दे खकर इस कार कहा— ।। ३० ।। माता प ोः जाय ते पु ाः साधारणाः कवे ।। ३१ ।। तेषां पता यथा वामी तथा माता न संशयः । वधान व हतः स यं यथा मे थमः सुतः ।। ३२ ।। व च वीय ष तथा मेऽवरजः सुतः । यथैव पतृतो भी म तथा वम प मातृतः ।। ३३ ।। ाता व च वीय य यथा वा पु म यसे । अयं शा तनवः स यं पालयन् स य व मः ।। ३४ ।। ‘ व न्! माता और पता दोन से पु का ज म होता है, अतः उनपर दोन का समान अ धकार है। जैसे पता पु का वामी है, उसी कार माता भी है। इसम संदेह नह है। ष! वधाताके वधान या मेरे पूवज म के पु यसे जस कार तुम मेरे थम पु हो, उसी कार व च वीय मेरा सबसे छोटा पु था। जैसे एक पताके नाते भी म उसके भाई ह, उसी कार एक माताके नाते तुम भी व च वीयके भाई ही हो। बेटा! मेरी तो ऐसी ही मा यता है; फर तुम जैसा समझो। ये स यपरा मी शा तनुन दन भी म स यका पालन कर रहे ह ।। ३१—३४ ।। बु न कु तेऽप ये तथा रा यानुशासने । स वं पे या ातुः संतानाय कुल य च ।। ३५ ।। भी म य चा य वचना योगा च ममानघ । अनु ोशा च भूतानां सवषां र णाय च ।। ३६ ।। आनृशं या च यद् ूयां त छ वा कतुमह स । ी





यवीयस तव ातुभाय सुरसुतोपमे ।। ३७ ।। पयौवनस प े पु कामे च धमतः । तयो पादयाप यं समथ स पु क ।। ३८ ।। अनु पं कुल या य संत याः सव य च । ‘अनघ! संतानो पादन तथा रा य-शासन करनेका इनका वचार नह है; अतः तुम अपने भाईके पारलौ कक हतका वचार करके तथा कुलक संतानपर पराक र ाके लये भी मके अनुरोध और मेरी आ ासे सब ा णय पर दया करके उनक र ा करनेके उ े यसे और अपने अ तःकरणक कोमल वृ को दे खते ए म जो कुछ क ँ, उसे सुनकर उसका पालन करो। तु हारे छोटे भाईक प नयाँ दे वक या के समान सु दर प तथा युवाव थासे स प ह। उनके मनम धमतः पु पानेक कामना है। पु ! तुम इसके लये समथ हो, अतः उन दोन के गभसे ऐसी संतान को ज म दो, जो इस कुलपर पराक र ा तथा वृ के लये सवथा सुयो य ह ’ ।। ३५—३८ ।।

ास उवाच वे थ धम स यव त परं चापरमेव च ।। ३९ ।। तथा तव महा ा े धम ण हता म तः । त मादहं व योगाद् धममु य कारणम् ।। ४० ।। ई सतं ते क र या म ं ोतत् सनातनम् । ातुः पु ान् दा या म म ाव णयोः समान् ।। ४१ ।। ासजीने कहा—माता स यवती! आप पर और अपर दोन कारके धम को जानती ह। महा ा े! आपक बु सदा धमम लगी रहती है। अतः म आपक आ ासे धमको ही म रखकर (कामके वश न होकर ही) आपक इ छाके अनु प काय क ँ गा। यह सनातन माग शा म दे खा गया है। म अपने भाईके लये म और व णके समान तेज वी पु उ प क ँ गा ।। ३९ —४१ ।। तं चरेतां ते दे ौ न द मह य मया । संव सरं यथा यायं ततः शु े भ व यतः ।। ४२ ।। न ह माम तोपेता उपेयात् का चद ना । व च वीयक य को मेरे बताये अनुसार एक वषतक व धपूवक त ( जते य होकर केवल संतानाथ साधन) करना होगा, तभी वे शु ह गी। जसने तका पालन नह कया है, ऐसी कोई भी ी मेरे समीप नह आ सकती ।। ४२ ।। स यव युवाच स ो यथा प ेते दे ौ गभ तथा कु ।। ४३ ।। ी े



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स यवतीने कहा—बेटा! ये दोन रा नयाँ जस कार शी गभ धारण कर, वह उपाय करो ।। ४३ ।। अराजकेषु रा ेषु जानाथा वन य त । न य त च याः सवा ना त वृ न दे वता ।। ४४ ।। रा यम इस समय कोई राजा नह है। बना राजाके रा यक जा अनाथ होकर न हो जाती है। य -दान आ द याएँ भी लु त हो जाती ह। उस रा यम न वषा होती है, न दे वता वास करते ह ।। ४४ ।। कथं चाराजंक रा ं श यं धार यतुं भो । त माद् गभ समाध व भी मः संवध य य त ।। ४५ ।। भो! तु ह सोचो, बना राजाका रा य कैसे सुर त और अनुशा सत रह सकता है। इस लये शी गभाधान करो। भी म बालकको पाल-पोसकर बड़ा कर लगे ।। ४५ ।।

ास उवाच य द पु ः दात ो मया ातुरका लकः । व पतां मे सहतां तयोरेतत् परं तम् ।। ४६ ।। ासजी बोले—माँ! य द मुझे समयका नयम न रखकर शी ही अपने भाईके लये पु दान करना है, तो उन दे वय के लये यह उ म त आव यक है क वे मेरे असु दर पको दे खकर शा त रह, डरे नह ।। ४६ ।। य द मे सहते ग धं पं वेषं तथा वपुः । अ ैव गभ कौस या व श ं तप ताम् ।। ४७ ।। य द कौस या (अ बका) मेरे ग ध, प, वेष और शरीरको सहन कर ले तो वह आज ही एक उ म बालकको अपने गभम पा सकती है ।। ४७ ।। वैश पायन उवाच एवमु वा महातेजा ासः स यवत तदा । शयने सा च कौस या शु चव ा लंकृता ।। ४८ ।। समागमनमाकाङ् े द त सोऽ त हतो मु नः । ततोऽ भग य सा दे वी नुषां रह स संगताम् ।। ४९ ।। ध यमथसमायु मुवाच वचनं हतम् । कौस ये धमत ं वां यद् वी म नबोध तत् ।। ५० ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! ऐसा कहनेके बाद महातेज वी मु न े ासजी स यवतीसे फर ‘अ छा तो कौस या (ऋतु- नानके प ात्) शु व और शृंगार धारण करके शयापर मलनक ती ा करे’ य कहकर अ तधान हो गये। तदन तर दे वी स यवतीने एका तम आयी ई अपनी पु वधू अ बकाके पास जाकर उससे (आपद्) धम और अथसे यु हतकारक वचन ‘ ौ







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कहा—‘कौस ये! म तुमसे जो धमसंगत बात कह रही ँ, उसे यान दे कर सुनो ।। ४८—५० ।। भरतानां समु छे दो ं म ा यसं यात् । थतां मां च स े य पतृवंशं च पी डतम् ।। ५१ ।। भी मो बु मदा म ं कुल या य ववृ ये । सा च बु व यधीना पु ापय मां तथा ।। ५२ ।। ‘मेरे भा यका नाश हो जानेसे अब भरतवंशका उ छे द हो चला है, यह प दखायी दे रहा है। इसके कारण मुझे थत और पतृकुलको पी ड़त दे ख भी मने इस कुलक वृ के लये मुझे एक स म त द है। बेट ! उस स म तक साथकता तु हारे अधीन है। तुम भी मके बताये अनुसार मुझे उस अव थाम प ँचाओ, जससे म अपने अभी क स दे ख सकूँ ।। ५१-५२ ।। न ं च भारतं वंशं पुनरेव समु र । पु ं जनय सु ो ण दे वराजसम भम् ।। ५३ ।। स ह रा यधुरं गुव मु य त कुल य नः । ‘सु ो ण! इस न होते ए भरतवंशका पुनः उ ार करो। तुम दे वराज इ के समान एक तेज वी पु को ज म दो। वही हमारे कुलके इस महान् रा यभारको वहन करेगा’ ।। ५३ ।। सा धमतोऽनुनीयैनां कथं चद् धमचा रणीम् । भोजयामास व ां दे वष न तथ तथा ।। ५४ ।। कौस या धमका आचरण करनेवाली थी। स यवतीने धमको सामने रखकर ही उसे कसी कार समझा-बुझाकर (बड़ी क ठनतासे) इस कायके लये तैयार कया। उसके बाद ा ण , दे व षय तथा अ त थय को भोजन कराया ।। ५४ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण स यव युपदे शे चतुर धकशततमोऽ यायः ।। १०४ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम स यवतीउपदे श वषयक एक सौ चारवाँ अ याय पूरा आ ।। १०४ ।। (दा णा य अ धक पाठक े २ ोक मलाकर कुल ५६ ोक ह)

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यहाँ गुणवान्का अथ है— नयोगक व धको जाननेवाला संयमी पु ष। मनु महाराजने य के आप मके संगम लखा है— वधवायां नयु तु घृता ो वा यतो न श । एकमु पादयेत् पु ं न तीयं कथंचन ।। (मनु मृ त ९।६१) वधवा ीके साथ सहवासके लये (प तप के गु जन ारा) नयु पु ष अपने सारे शरीरपर घी चुपड़कर (सौ दय बगाड़कर), वाणीको संयमम रखकर (चुपचाप रहकर) रा म सहवास करे। इस कार ी







वह एक ही पु उ प करे, सरा कभी न करे। वधवायां नयोगाथ नवृ े तु यथा व ध । गु व च नुषाव च वतयातां पर परम् ।।

(मनु मृ त ९।६३) वधवाम नयोगके लये व धके अनुसार (अथात् कामवश न होकर कत बु से) च को संय मत और इ य को अनास रखते ए नयोगका योजन स हो जानेपर दोन पर पर पता और पु वधूके समान बताव कर (अथात् ी उसको पताके समान समझकर बरते और पु ष उसे पु वधूके समान मानकर बताव करे)। क लयुगम मनु य के असंयमी और कामी होनेके कारण नयोग वजत है।

प चा धकशततमोऽ यायः ासजीके ारा व च वीयके े से धृतरा , पा डु और व रक उ प वैश पायन उवाच ततः स यवती काले वधूं नातामृतौ तदा । संवेशय ती शयने शनैवचनम वीत् ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर स यवती ठ क समयपर अपनी ऋतु नाता पु वधूको शयापर बैठाती ई धीरेसे बोली— ।। १ ।। कौस ये दे वर तेऽ त सोऽ वानु वे य त । अ म ा ती ैनं नशीथे ाग म य त ।। २ ।। ‘कौस पे! तु हारे एक दे वर ह, वे ही आज तु हारे पास गभाधानके लये आयगे। तुम सावधान होकर उनक ती ा करो। वे ठ क आधी रातके समय यहाँ पधारगे’ ।। २ ।। वा तद् वचनं ु वा शयाना शयने शुभे । सा च तयत् तदा भी मम यां कु पु वान् ।। ३ ।। सासक यह बात सुनकर कौस या प व शयापर शयन करके उस समय मन-ही-मन भी म तथा अ य े कु वं शय का च तन करने लगी ।। ३ ।। ततोऽ बकायां थमं नयु ः स यवागृ षः । द यमानेषु द पेषु शरणं ववेश ह ।। ४ ।। उस समय नयोग व धके अनुसार स यवाद मह ष ासने अ बकाके महलम (शरीरपर घी चुपड़े ए, संयत च , कु सत पम) वेश कया। उस समय ब त-से द पक वहाँ का शत हो रहे थे ।। ४ ।। त य कृ ण य क पलां जटां द ते च लोचने । ब ू ण चैव म ू ण ् वा दे वी यमीलयत् ।। ५ ।। ासजीके शरीरका रंग काला था, उनक जटाएँ पगलवणक और आँख चमक रही थ तथा दाढ़ -मूँछ भूरे रंगक दखायी दे ती थी। उ ह दे खकर दे वी कौस याने (भयके मारे) अपने दोन ने बंद कर लये ।। ५ ।। स बभूव तया साध मातुः य चक षया । भयात् का शसुता तं तु नाश नोद भवी तुम् ।। ६ ।। माताका य करनेक इ छासे ासजीने उसके साथ समागम कया; परंतु का शराजक क या भयके मारे उनक ओर अ छ तरह दे ख न सक ।। ६ ।। ततो न ा तमाग य माता पु मुवाच ह । अ य या गुणवान् पु राजपु ो भ व य त ।। ७ ।। ी







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जब ासजी उसके महलसे बाहर नकले, तब माता स यवतीने आकर उनसे पूछा —‘बेटा! या अ बकाके गभसे कोई गुणवान् राजकुमार उ प होगा?’ ।। ७ ।। नश य तद् वचो मातु ासः स यवतीसुतः । नागायुतसम ाणो व ान् राज षस मः ।। ८ ।। महाभागो महावीय महाबु भ व य त । त य चा प शतं पु ा भ व य त महा मनः ।। ९ ।। माताका यह वचन सुनकर स यवतीन दन ासजी बोले—‘माँ! वह दस हजार हा थय के समान बलवान्, व ान्, राज षय म े , परम सौभा यशाली, महापरा मी तथा अ य त बु मान् होगा। उस महामनाके भी सौ पु ह गे ।। ८-९ ।। क तु मातुः स वैगु याद ध एव भ व य त । त य तद् वचनं ु वा माता पु मथा वीत् ।। १० ।। ना धः कु णां नृप तरनु प तपोधन । ा तवंश य गो तारं पतॄणां वंशवधनम् ।। ११ ।। तीयं कु वंश य राजानं दातुमह स । ‘ कतु माताके दोषसे वह बालक अ धा ही होगा।’ ासजीक यह बात सुनकर माताने कहा—‘तपोधन! कु वंशका राजा अ धा हो यह उ चत नह है। अतः कु वंशके लये सरा राजा दो, जो जा तभाइय तथा सम त कुलका संर क और पताका वंश बढ़ानेवाला हो’ ।। १०-११ ।। स तथे त त ाय न ाम महायशाः ।। १२ ।। महायश वी ासजी ‘तथा तु’ कहकर वहाँसे नकल गये ।। १२ ।। सा प कालेन कौस या सुषुवेऽ धं तमा मजम् । पुनरेव तु सा दे वी प रभा य नुषां ततः ।। १३ ।। ऋ षमावाहयत् स या यथा पूवमरदम । तत तेनैव व धना मह ष तामप त ।। १४ ।। अ बा लकामथा यागा ष ् वा च सा प तम् । ववणा पा डु संकाशा समप त भारत ।। १५ ।। सवका समय आनेपर कौस याने उसी अ धे पु को ज म दया। जनमेजय! त प ात् दे वी स यवतीने अपनी सरी पु वधूको समझा-बुझाकर गभाधानके लये तैयार कया और इसके लये पूववत् मह ष ासका आवाहन कया। फर मह षने उसी ( नयोगक संयमपूण) व धसे दे वी अ बा लकाके साथ समागम कया। भारत! मह ष ासको दे खकर वह भी का तहीन तथा पा डु वणक -सी हो गयी ।। १३—१५ ।। तां भीतां पा डु संकाशां वष णां े य भारत । ासः स यवतीपु इदं वचनम वीत् ।। १६ ।। जनमेजय! उसे भयभीत, वषाद त तथा पा डु -वणक -सी दे ख स यवतीन दन ासने य कहा— ।। १६ ।। े

य मात् पा डु वमाप ा व पं े य मा मह । त मादे ष सुत ते वै पा डु रेव भ व य त ।। १७ ।। ‘अ बा लके! तुम मुझे व प दे खकर पा डु वणक सी हो गयी थ , इस लये तु हारा यह पु पा डु रंगका ही होगा ।। १७ ।। नाम चा यैतदे वेह भ व य त शुभानने । इ यु वा स नर ामद् भगवानृ षस मः ।। १८ ।। ‘शुभानने! इस बालकका नाम भी संसारम ‘पा डु ’ ही होगा।’ ऐसा कहकर मु न े भगवान् ास वहाँसे नकल गये ।। १८ ।। ततो न ा तमालो य स या पु मथा वीत् । शशंस स पुनमा े त य बाल य पा डु ताम् ।। १९ ।। उस महलसे नकलनेपर स यवतीने अपने पु से उसके वषयम पूछा। तब ासजीने मातासे भी उस बालकके पा डु वण होनेक बात बता द ।। १९ ।। तं माता पुनरेवा यमेकं पु मयाचत । तथे त च मह ष तां मातरं यभाषत ।। २० ।। उसके बाद स यवतीने पुनः एक सरे पु के लये उनसे याचना क । मह षने ‘ब त अ छा’ कहकर माताक आ ा वीकार कर ली ।। २० ।। ततः कुमारं सा दे वी ा तकालमजीजनत् । पा डु ं ल णस प ं द यमान मव या ।। २१ ।। तदन तर दे वी अ बा लकाने समय आनेपर एक पा डु वणके पु को ज म दया। वह अपनी द का तसे उ ा सत हो रहा था ।। २१ ।। य य पु ा महे वासा ज रे प च पा डवाः । ऋतुकाले ततो ये ां वधूं त मै ययोजयत् ।। २२ ।। यह वही बालक था, जसके पु महाधनुधारी पाँच पा डव ए। इसके बाद ऋतुकाल आनेपर स यवतीने अपनी बड़ी ब अ बकाको पुनः ासजीसे मलनेके लये नयु कया ।। २२ ।। सा तु पं च ग धं च महषः व च य तम् । नाकरोद् वचनं दे ा भयात् सुरसुतोपमा ।। २३ ।। परंतु दे वक याके समान सु दरी अ बकाने मह षके उस कु सत प और ग धका च तन करके भयके मारे दे वी स यवतीक आ ा नह मानी ।। २३ ।। ततः वैभूषणैदास भूष य वा सरोपमाम् । ेषयामास कृ णाय ततः का शपतेः सुता ।। २४ ।। का शराजक पु ी अ बकाने अ सराके समान सु दरी अपनी एक दासीको अपने ही आभूषण से वभू षत करके काले-कलूटे मह ष ासके पास भेज दया ।। २४ ।। सा तमृ षमनु ा तं युदग ् या भवा च । सं ववेशा यनु ाता स कृ योपचचार ह ।। २५ ।। े



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मह षके आनेपर उस दासीने आगे बढ़कर उनका वागत कया और उ ह णाम करके उनक आ ा मलनेपर वह शय ापर बैठ और स कारपूवक उनक सेवा-पूजा करने लगी ।। २५ ।। कामोपभोगेन रह त यां तु मगा षः । तया सहो षतो राजन् मह षः सं शत तः ।। २६ ।। उ वीदे नामभु ज या भ व य स । अयं च ते शुभे गभः ेयानुदरमागतः । धमा मा भ वता लोके सवबु मतां वरः ।। २७ ।। एका तम मलकर उसपर मह ष ास ब त संतु ए। राजन्! कठोर तका पालन करनेवाले मह ष जब उसके साथ शयन करके उठे , तब इस कार बोले—‘शुभे! अब तू दासी नह रहेगी। तेरे उदरम एक अ य त े बालक आया है। वह लोकम धमा मा तथा सम त बु मान म े होगा’ ।। २६-२७ ।।

स ज े व रो नाम कृ ण ै पायना मजः । धृतरा य वै ाता पा डो ैव महा मनः ।। २८ ।। वही बालक व र आ, जो ीकृ ण ै पायन ासका पु था। एक पताका होनेके कारण वह राजा धृतरा और महा मा पा ड ु का भाई था ।। २८ ।। े

धम व र पेण शापात् त य महा मनः । मा ड याथत व ः काम ोध वव जतः ।। २९ ।। महा मा मा ड के शापसे सा ात् धमराज ही व र पम उ प ए थे। वे अथत वके ाता और काम- ोधसे र हत थे ।। २९ ।। कृ ण ै पायनोऽ येतत् स यव यै यवेदयत् । ल भमा मन ैव शू ायाः पु ज म च ।। ३० ।। ीकृ ण ै पायन ासने स यवतीको भी सब बात बता द। उ ह ने यह रह य कट कर दया क अ बकाने अपनी दासीको भेजकर मेरे साथ छल कया है, अतः शू ा दासीके गभसे ही पु उ प होगा ।। ३० ।। स धम यानृणो भू वा पुनमा ा समे य च । त यै गभ समावे त ैवा तरधीयत ।। ३१ ।। इस तरह ासजी (मातृ-आ ापालन प) धमसे उऋण होकर फर अपनी माता स यवतीसे मले और उ ह गभका समाचार बताकर वह अ तधान हो गये ।। ३१ ।। एते व च वीय य े े ै पायनाद प । ज रे दे वगभाभाः कु वंश ववधनाः ।। ३२ ।। व च वीयके े म ासजीसे ये तीन पु उ प ए, जो दे वकुमार के समान तेज वी और कु वंशक वृ करनेवाले थे ।। ३२ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण व च वीयसुतो प ौ प चा धकशततमोऽ यायः ।। १०५ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम व च वीयके पु क उ प वषयक एक सौ पाँचवाँ अ याय पूरा आ ।। १०५ ।।

षड धकशततमोऽ यायः मह ष मा ड का शूलीपर चढ़ ाया जाना जनमेजय उवाच क कृतं कम धमण येन शापमुपे यवान् । क य शापा च षः शू योनावजायत ।। १ ।। जनमेजयने पूछा— न्! धमराजने ऐसा कौन-सा कम कया था, जससे उ ह शाप ा त आ? कस षके शापसे वे शू यो नम उ प ए ।। १ ।। वैश पायन उवाच बभूव ा णः क मा ड इ त व ुतः । धृ तमान् सवधम ः स ये तप स च थतः ।। २ ।। वैश पायनजीने कहा—राजन्! पूवकालम मा ड नामसे व यात एक ा ण थे, जो धैयवान्, सब धम के ाता, स य न एवं तप वी थे ।। २ ।। स आ मपद ा र वृ मूले महातपाः । ऊ वबा महायोगी त थौ मौन ता वतः ।। ३ ।। वे अपने आ मके ारपर एक वृ के नीचे दोन बाँह ऊपरको उठाये ए मौन त धारण करके खड़े रहकर बड़ी भारी तप या करते थे। मा ड जी ब त बड़े योगी थे ।। ३ ।। त य कालेन महता त मं तप स वततः । तमा ममनु ा ता द यवो लो हा रणः ।। ४ ।। उस कठोर तप याम लगे ए मह षके ब त दन तीत हो गये। एक दन उनके आ मपर चोरीका माल लये ए ब त-से लुटेरे आये ।। ४ ।। अनुसायमाणा ब भी र भभरतषभ । ते त यावसथे लो ं द यवः कु स म ।। ५ ।। नधाय च भया लीना त ैवानागते बले । तेषु लीने वथो शी ं तत तद् र णां बलम् ।। ६ ।। आजगाम ततोऽप यं तमृ ष त करानुगाः । तमपृ छं ततो राजं तथावृ ं तपोधनम् ।। ७ ।। कतमेन पथा याता द यवो जस म । तेन ग छामहे न् यथा शी तरं वयम् ।। ८ ।। जनमेजय! उन चोर का ब त-से सै नक पीछा कर रहे थे। कु े ! वे द यु वह चोरीका माल मह षके आ मम रखकर भयके मारे जा-र क सेनाके आनेके पहले वह कह छप गये। उनके छप जानेपर र क क सेना शी तापूवक वहाँ आ प ँची। राजन्! चोर का पीछा करनेवाले लोग ने इस कार तप याम लगे ए उन मह षको जब वहाँ दे खा, ो









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तो पूछा क ‘ ज े ! बताइये, चोर कस रा तेसे भगे ह? जससे वही माग पकड़कर हम ती ग तसे उनका पीछा कर’ ।। ५—८ ।। तथा तु र णां तेषां ुवतां स तपोधनः । न क चद् वचनं राज वीत् सा वसाधु वा ।। ९ ।। राजन्! उन र क के इस कार पूछनेपर तप याके धनी उन मह षने भला-बुरा कुछ भी नह कहा ।। ९ ।। तत ते राजपु षा व च वाना तमा मम् । द शु त लीनां तां ौरां तद् मेव च ।। १० ।। तब उन राजपु ष ने उस आ मम ही चोर को खोजना आर भ कया और वह छपे ए चोर तथा चोरीके मालको भी दे ख लया ।। १० ।। ततः शङ् का समभवद् र णां तं मु न त । संय यैनं ततो रा े द यूं ैव यवेदयन् ।। ११ ।। फर तो र क को मु नके त मनम संदेह उ प हो गया और वे उ ह बाँधकर राजाके पास ले गये। वहाँ प ँचकर उ ह ने राजासे सब बात बताय और उन चोर को भी राजाके हवाले कर दया ।। ११ ।। तं राजा सह तै ौरैर वशाद् व यता म त । स र भ तैर ातः शूले ोतो महातपाः ।। १२ ।। राजाने उन चोर के साथ मह षको भी ाणद डक आ ा दे द । र क ने उन महातप वी मु नको नह पहचाना और उ ह शूलीपर चढ़ा दया ।। १२ ।। तत ते शूलमारो य तं मु न र ण तदा । तज मुमहीपालं धना यादाय ता यथ ।। १३ ।। इस कार वे र क मा ड मु नको शूलीपर चढ़ाकर वह सारा धन साथ ले राजाके पास लौट गये ।। १३ ।। शूल थः स तु धमा मा कालेन महता ततः । नराहारोऽ प व षमरणं ना यप त ।। १४ ।। धमा मा ष मा ड द घकालतक उस शूलके अ भागपर बैठे रहे। वहाँ भोजन न मलनेपर भी उनक मृ यु नह ई ।। १४ ।। धारयामास च ाणानृष समुपानयत् । शूला े त यमानेन तप तेन महा मना ।। १५ ।। संतापं परमं ज मुमुनय तपसा वताः । ते रा ौ शकुना भू वा सं नप य तु भारत । दशय तो यथाश तमपृ छन् जो मम् ।। १६ ।। वे ाण धारण कये रहे और मरणमा करके ऋ षय को अपने पास बुलाने लगे। शूलीक नोकपर तप या करनेवाले उन महा मासे भा वत होकर सभी तप वी मु नय को बड़ा संताप आ। वे रातम प य का प धारण करके वहाँ उड़ते ए आये और अपनी े











श के अनुसार व पको का शत करते ए उन व वर मा ड मु नसे पूछने लगे — ।। १५-१६ ।। ोतु म छामहे न् क पापं कृतवान स । येनेह समनु ा तं शूले ःखभयं महत् ।। १७ ।। ‘ न्! हम सुनना चाहते ह क आपने कौन-सा पाप कया है, जससे यहाँ शूलपर बैठनेका यह महान् क आपको ा त आ है?’ ।। १७ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण अणीमा ड ोपा याने षड धकशततमोऽ यायः ।। १०६ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम अणीमा ड ोपा यान वषयक एक सौ छठा अ याय पूरा आ ।। १०६ ।।

स ता धकशततमोऽ यायः मा ड का धमराजको शाप दे ना वैश पायन उवाच ततः स मु नशा ल तानुवाच तपोधनान् । दोषतः कं ग म या म न ह मेऽ योऽपरा य त ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! तब उन मु न े ने उन तप वी मु नय से कहा—‘म कसपर दोष लगाऊँ; सरे कसीने मेरा अपराध नह कया है’ ।। १ ।। तं ् वा र ण त तथा ब तथेऽह न । यवेदयं तथा रा े यथावृ ं नरा धप ।। २ ।। महाराज! र क ने ब त दन तक उ ह शूलपर बैठे दे ख राजाके पास जा वह सब समाचार य -का- य नवेदन कया ।। २ ।। ु वा च वचनं तेषां न य सह म भः । सादयामास तथा शूल थमृ षस मम् ।। ३ ।। उनक बात सुनकर म य के साथ परामश करके राजाने शूलीपर बैठे ए उन मु न े को स करनेका य न कया ।। ३ ।।

धमराज और अणीमा ड

अणीमा ड

ऋ ष शूलीपर

राजोवाच य मयापकृतं मोहाद ाना षस म । सादये वां त ाहं न मे वं ो मह स ।। ४ ।। राजाने कहा—मु नवर! मने मोह अथवा अ ानवश जो अपराध कया है, उसके लये आप मुझपर ोध न कर। म आपसे स होनेके लये ाथना करता ँ ।। ४ ।। वैश पायन उवाच एवमु ततो रा ा सादमकरो मु नः । कृत सादं राजा तं ततः समवतारयत् ।। ५ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! राजाके य कहनेपर मु न उनपर स हो गये। राजाने उ ह स जानकर शूलीसे उतार दया ।। ५ ।। अवताय च शूला ात् त छू लं न कष ह । अश नुवं न ु ं शूलं मूले स च छदे ।। ६ ।। नीचे उतारकर उ ह ने शूलके अ भागके सहारे उनके शरीरके भीतरसे शूलको नकालनेके लये ख चा। ख चकर नकालनेम असफल होनेपर उ ह ने उस शूलको मूलभागम काट दया ।। ६ ।। स तथा तगतेनैव शूलेन चर मु नः । तेना ततपसा लोकान् व ज ये लभान् परैः ।। ७ ।। तबसे वे मु न शूला भागको अपने शरीरके भीतर लये ए ही वचरने लगे। उस अ य त घोर तप याके ारा मह षने ऐसे पु यलोक पर वजय पायी, जो सर के लये लभ ह ।। ७ ।। अणीमा ड इ त च ततो लोकेषु गीयते । स ग वा सदनं व ो धम य परमा म वत् ।। ८ ।। आसन थं ततो धम ् वोपालभत भुः । क नु तद् कृतं कम मया कृतमजानता ।। ९ ।। य येयं फल नवृ री यासा दता मया । शी माच व मे त वं प य मे तपसो बलम् ।। १० ।। अणी कहते ह शूलके अ भागको, उससे यु होनेके कारण वे मु न तभीसे सभी लोक म ‘अणी-मा ड ’ कहलाने लगे। एक समय परमा मत वके ाता व वर मा ड ने धमराजके भवनम जाकर उ ह द आसनपर बैठे दे खा। उस समय उन श शाली मह षने उ ह उलाहना दे ते ए पूछा—‘मने अनजानम कौन-सा ऐसा पाप कया था, जसके फलका भोग मुझे इस पम ा त आ? मुझे शी इसका रह य बताओ। फर मेरी तप याका बल दे खो’ ।। ८—१० ।। धम उवाच पत कानां पु छे षु वयेषीका वे शता । े





कमण त य ते ा तं फलमेतत् तपोधन ।। ११ ।। धमराज बोले—तपोधन! तुमने फ तग के पु छ-भागम स क घुसेड़ द थी। उसी कमका यह फल तु ह ा त आ है ।। ११ ।। व पमेव यथा द ं दानं ब गुणं भवेत् । अधम एवं व ष ब ःखफल दः ।। १२ ।। व ष! जैसे थोड़ा-सा भी कया आ दान कई गुना फल दे नेवाला होता है, वैसे ही अधम भी ब त ःख पी फल दे नेवाला होता है ।। १२ ।। अणीमा ड उवाच क मन् काले मया तत् तु कृतं ू ह यथातथम् । तेनो ो धमराजेन बालभावे वया कृतम् ।। १३ ।। अणीमा ड ने पूछा—अ छा, तो ठ क-ठ क बताओ, मने कस समय— कस आयुम वह पाप कया था? धमराजने उ र दया—‘बा याव थाम तु हारे ारा यह पाप आ था’ ।। १३ ।।

अणीमा ड उवाच बालो ह ादशाद् वषा ज मतो यत् क र य त । न भ व य यधम ऽ न ा य त वै दशः ।। १४ ।। ी









अणीमा ड ने कहा—धमशा के अनुसार ज मसे लेकर बारह वषक आयुतक बालक जो कुछ भी करेगा, उसम अधम नह होगा; य क उस समयतक बालकको धमशा के आदे शका ान नह हो सकेगा ।। अ पेऽपराधेऽ प महान् मम द ड वया कृतः । गरीयान् ा णवधः सवभूतवधाद प ।। १५ ।। धमराज! तुमने थोड़े-से अपराधके लये मुझे ब त बड़ा द ड दया है। ा णका वध स पूण ा णय के वधसे भी अ धक भयंकर है ।। १५ ।। शू योनावतो धम मानुषः स भ व य स । मयादां थापया य लोके धमफलोदयाम् ।। १६ ।। अतः धम! तुम मनु य होकर शू यो नम ज म लोगे। आजसे संसारम म धमके फलको कट करनेवाली मयादा था पत करता ँ ।। १६ ।। आ चतुदशकाद् वषा भ व य त पातकम् । परतः कुवतामेवं दोष एव भ व य त ।। १७ ।। चौदह वषक उतक कसीको पाप नह लगेगा। उससे अ धकक आयुम पाप करनेवाल को ही दोष लगेगा ।। १७ ।। वैश पायन उवाच एतेन वपराधेन शापात् त य महा मनः । धम व र पेण शू योनावजायत ।। १८ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! इसी अपराधके कारण महा मा मा ड के शापसे सा ात् धम ही व र पसे शू यो नम उ प ए ।। १८ ।। धम चाथ च कुशलो लोभ ोध वव जतः । द घदश शमपरः कु णां च हते रतः ।। १९ ।। वे धमशा एवं अथशा के प डत, लोभ और ोधसे र हत, द घदश , शा तपरायण तथा कौरव के हतम त पर रहनेवाले थे ।। १९ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण अणीमा ड ोपा याने स ता धकशततमोऽ यायः ।। १०७ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम अणीमा ड ोपा यान वषयक एक सौ सातवाँ अ याय पूरा आ ।। १०७ ।।

अ ा धकशततमोऽ यायः धृतरा आ दके ज म तथा भी मजीके धमपूण शासनसे कु दे शक सवागीण उ तका द दशन वैश पायन उवाच (धृतरा े च पा डौ च व रे च महा म न ।) तेषु षु कुमारेषु जातेषु कु जा लम् । कुरवोऽथ कु े ं यमेतदवधत ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! धृतरा, पा डु और महा मा व र—इन तीन कुमार के ज मसे कु वंश, कु जांगल दे श और कु े —इन तीन क बड़ी उ त ई ।। १ ।। ऊ वस याभवद् भू मः स या न रसव त च । यथतुवष पज यो ब पु पफला माः ।। २ ।। पृ वीपर खेतीक उपज ब त बढ़ गयी, सभी अ सरस होने लगे, बादल ठ क समयपर वषा करते थे, वृ म ब त-से फल और फूल लगने लगे ।। २ ।। वाहना न ा न मु दता मृगप णः । ग धव त च मा या न रसव त फला न च ।। ३ ।। घोड़े-हाथी आ द वाहन -पु रहते थे, मृग और प ी बड़े आन दसे दन बताते थे, फूल और माला म अनुपम सुग ध होती थी और फल म अनोखा रस होता था ।। ३ ।। व ण भ ा वक य त नगरा यथ श प भः । शूरा कृत व ा स त सुखनोऽभवन् ।। ४ ।। सभी नगर ापार-कुशल वै य तथा श पकलाम नपुण कारीगर से भरे रहते थे। शूर-वीर, व ान् और संत सुखी हो गये ।। ४ ।। नाभवन् द यवः के च ाधम चयो जनाः । दे शे व प रा ाणां कृतं युगमवतत ।। ५ ।। कोई भी मनु य डाकू नह था। पापम च रखनेवाले लोग का सवथा अभाव था। राक े व भ ा त म स ययुग छा रहा था ।। ५ ।। धम या य शीलाः स य तपरायणाः । अ यो य ी तसंयु ा वध त जा तदा ।। ६ ।। उस समयक जा स य- तके पालनम त पर हो वभावतः य -कमम लगी रहती और धमानुकूल कम म संल न रहकर एक- सरेको स रखती ई सदा उ तके पथपर बढ़ती जाती थी ।। ६ ।। मान ोध वहीना नरा लोभ वव जताः । अ यो यम यन द त धम रमवतत ।। ७ ।। ो



















सब लोग अ भमान और ोधसे र हत तथा लोभसे र रहनेवाले थे; सभी एकसरेको स रखनेक चे ा करते थे। लोग के आचार- वहारम धमक ही धानता थी ।। ७ ।। त महोद धवत् पूण नगरं वै रोचत । ारतोरण नयूहैयु म चयोपमैः ।। ८ ।। समु क भाँ त सब कारसे भरा-पूरा कौरवनगर मेघसमूह के समान बड़े-बड़े दरवाज , फाटक और गोपुर से सुशो भत था ।। ८ ।। ासादशतस बाधं महे पुरसं नभम् । नद षु वनख डेषु वापीप वलसानुषु । काननेषु च र येषु वजमु दता जनाः ।। ९ ।। सैकड़ महल से संयु वह पुरी दे वराज इ क अमरावतीके समान शोभा पाती थी। वहाँके लोग न दय , वनख ड , बाव लय , छोटे -छोटे जलाशय , पवत शखर तथा रमणीय कानन म स तापूवक वहार करते थे ।। ९ ।। उ रैः कु भः साध द णाः कुरव तथा । व पधमाना चरं तथा दे व षचारणैः ।। १० ।। उस समय द णकु दे शके नवासी उ रकु म रहनेवाले लोग , दे वता , ऋ षय तथा चारण के साथ होड़-सी लगाते ए व छ द वचरण करते थे ।। १० ।। नाभवत् कृपणः क ाभवन् वधवाः यः । त म नपदे र ये कु भब लीकृते ।। ११ ।। कौरव ारा बढ़ाये ए उस रमणीय जनपदम न तो कोई कंजूस था और न वधवा याँ दे खी जाती थ ।। ११ ।। कूपारामसभावा यो ा णावसथा तथा । बभूवुः सव युता त मन् रा े सदो सवाः ।। १२ ।। उस राक े कु , बगीच , सभाभवन , बाव लय तथा ा ण के घर म सब कारक समृ याँ भरी रहती थ और वहाँ न य-नूतन उ सव आ करते थे ।। १२ ।। भी मेण धमतो राजन् सवतः प रर ते । बभूव रमणीय चै ययूपशताङ् कतः ।। १३ ।। जनमेजय! भी मजीके ारा सब ओरसे धमपूवक सुर त भूम डलम वह कु दे श सैकड़ दे व थान और य त भ से च त होनेके कारण बड़ी शोभा पाता था ।। १३ ।। स दे शः पररा ा ण वमृ या भ व धतः । भी मेण व हतं रा े धमच मवतत ।। १४ ।। वह दे श सरे रा क ा भी शोधन करके नर तर उ तके पथपर अ सर हो रहा था। राम सब ओर भी मजीके ारा चलाया आ धमका शासन चल रहा था ।। १४ ।। यमाणेषु कृ येषु कुमाराणां महा मनाम् । पौरजानपदाः सव बभूवुः सततो सवाः ।। १५ ।। े







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उन महा मा कुमार के य ोपवीता द सं कार कये जानेके समय नगर और दे शके सभी लोग नर तर उ सव मनाते थे ।। १५ ।। गृहेषु कु मु यानां पौराणां च नरा धप । द यतां भु यतां चे त वाचोऽ ूय त सवशः ।। १६ ।। जनमेजय! कु कुलके धान- धान पु ष तथा अ य नगर नवा सय के घर म सदा सब ओर यही बात सुनायी दे ती थी क ‘दान दो और अ त थय को भोजन कराओ’ ।। १६ ।। धृतरा पा डु व र महाम तः । ज म भृ त भी मेण पु वत् प रपा लताः ।। १७ ।। धृतरा, पा डु तथा परम बु मान् व र—इन तीन भाइय का भी मजीने ज मसे ही पु क भाँ त पालन कया ।। १७ ।। सं कारैः सं कृता ते तु ता ययनसंयुताः । म ायामकुशलाः समप त यौवनम् ।। १८ ।। उ ह ने ही उनके सब सं कार कराये। फर वे चय तके पालन और वेद के वा यायम त पर हो गये। प र म और ायामम भी उ ह ने बड़ी कुशलता ा त क । फर धीरे-धीरे वे युवाव थाको ा त ए ।। १८ ।। धनुवदे ऽ पृ े च गदायु े ऽ सचम ण । तथैव गज श ायां नी तशा ेषु पारगाः ।। १९ ।। धनुवद, घोड़ेक सवारी, गदायु , ढाल-तलवारके योग, गज श ा तथा नी तशा म वे तीन भाई पारंगत हो गये ।। १९ ।। इ तहासपुराणेषु नाना श ासु बो धताः । वेदवेदा त व ाः सव कृत न याः ।। २० ।। उ ह इ तहास, पुराण तथा नाना कारके श ाचार का भी ान कराया गया। वे वेदवेदांग के त व तथा सव एक न त स ा तके माननेवाले थे ।। २० ।। पा डु धनु ष व ा तो नरे व य धकोऽभवत् । अ ये यो बलवानासीद् धृतरा ो महीप तः ।। २१ ।। पा डु धनु व ाम उस समयके मनु य म सबसे बढ़-चढ़कर परा मी थे। इसी कार राजा धृतरा सरे लोग क अपे ा शारी रक बलम ब त बढ़कर थे ।। २१ ।। षु लोकेषु न वासीत् क द् व रस मतः । धम न य तथा राजन् धम च परमं गतः ।। २२ ।। राजन्! तीन लोक म व रजीके समान सरा कोई भी मनु य धमपरायण तथा धमम ऊँची अव थाको ा त (आ म ा)* नह था ।। २२ ।। ण ं श तनोवशं समी य पुन द्धृतम् । ततो नवचनं लोके सवरा े ववतत ।। २३ ।। े









न ए शा तनुके वंशका पुनः उ ार आ दे खकर सम त राक े लोग पर पर कहने लगे— ।। २३ ।। वीरसूनां का शसुते दे शानां कु जा लम् । सवधम वदां भी मः पुराणां गजसा यम् ।। २४ ।। धृतरा वच ु ् वाद् रा यं न यप त । पारसव वाद् व रो राजा पा डु बभूव ह ।। २५ ।। ‘वीर पु को ज म दे नेवाली य म का शराजक दोन पु याँ सबसे े ह, दे श म कु जांगल दे श सबसे उ म है, स पूण धम म भी मजीका थान सबसे ऊँचा है तथा नगर म ह तनापुर सव म है।’ धृतरा अंधे होनेके कारण और व रजी पारशव (शू ाके गभसे ा ण ारा उ प ) होनेसे रा य न पा सके; अतः सबसे छोटे पा डु ही राजा ए ।। २४-२५ ।। कदा चदथ गा े यः सवनी तमतां वरः । व रं धमत व ं वा यमाह यथो चतम् ।। २६ ।। एक समयक बात है, स पूण नी त पु ष म े गंगान दन भी मजी धमके त वको जाननेवाले व रजीसे इस कार यायो चत वचन बोले ।। २६ ।। इ त ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण पा डु रा या भषेकेऽ ा धकशततमोऽ यायः ।। १०८ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम पा डु रा या भषेक वषयक एक सौ आठवाँ अ याय पूरा आ ।। १०८ ।। (दा णा य अ धक पाठका ोक मलाकर कुल २६ ोक ह)

* ‘अयं तु परमो धम यद् योगेना मदशनम्’ या व धम है।

य मृ तके इस कथनके अनुसार आ मदशन ही सबसे उ कृ

नवा धकशततमोऽ यायः राजा धृतरा का ववाह भी म उवाच गुणैः समु दतं स य गदं नः थतं कुलम् । अ य यान् पृ थवीपालान् पृ थ ाम धरा यभाक् ।। १ ।। भी मजीने कहा—बेटा व र! हमारा यह कुल अनेक सद्गुण से स प होकर इस जगत्म व यात हो रहा है। यह अ य भूपाल को जीतकर इस भूम डलके साा यका अ धकारी आ है ।। १ ।। र तं राज भः पूव धम व महा म भः । नो सादमगम चेदं कदा च दह नः कुलम् ।। २ ।। पहलेके धम एवं महा मा राजा ने इसक र ा क थी; अतः हमारा यह कुल इस भूतलपर कभी उ छ नह आ ।। २ ।। मया च स यव या च कृ णेन च महा मना । समव था पतं भूयो यु मासु कुलत तुषु ।। ३ ।। (बीचम संकटकाल उप थत आ था कतु) मने, माता स यवतीने तथा महा मा ीकृ ण ै पायन ासजीने मलकर पुनः इस कुलको था पत कया है। तुम तीन भाई इस कुलके तंतु हो और तु ह पर अब इसक त ा है ।। ३ ।। त चैतद् वधते भूयः कुलं सागरवद् यथा । तथा मया वधात ं वया चैव न संशयः ।। ४ ।। व स! यह हमारा वही कुल आगे भी जस कार समु क भाँ त बढ़ता रहे, नःसंदेह वही उपाय मुझे और तु ह भी करना चा हये ।। ४ ।। ूयते यादवी क या वनु पा कुल य नः । सुबल या मजा चैव तथा म े र य च ।। ५ ।। सुना जाता है, य वंशी शूरसेनक क या पृथा (जो अब राजा कु तभोजक गोद ली ई पु ी है) भलीभाँ त हमारे कुलके अनु प है। इसी कार गा धारराज सुबल और म नरेशके यहाँ भी एक-एक क या सुनी जाती है ।। ५ ।। कुलीना पव य ताः क याः पु सवशः । उ चता ैव स ब धे तेऽ माकं यषभाः ।। ६ ।। बेटा! वे सब क याएँ बड़ी सु दरी तथा उ म कुलम उ प ह। वे े यगण हमारे साथ ववाह-स ब धकरनेके सवथा यो य ह ।। ६ ।। म ये वर यत ा ता इ यहं धीमतां वर । संतानाथ कुल या य यद् वा व र म यसे ।। ७ ।। े

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बु मान म े व र! मेरी राय है क इस कुलक संतानपर पराको बढ़ानेके लये उ क या का वरण करना चा हये अथवा जैसी तु हारी स म त हो, वैसा कया जाय ।। ७ ।। व र उवाच भवान् पता भवान् माता भवान् नः परमो गु ः । त मात् वयं कुल या य वचाय कु य तम् ।। ८ ।। व र बोले— भो! आप हमारे पता ह, आप ही माता ह और आप ही परम गु ह; अतः वयं वचार करके जस बातम इस कुलका हत हो, वह क जये ।। ८ ।। वैश पायन उवाच अथ शु ाव व े यो गा धार सुबला मजाम् । आरा य वरदं दे वं भगने हरं हरम् ।। ९ ।। गा धारी कल पु ाणां शतं लेभे वरं शुभा । इ त शु ाव त वेन भी मः कु पतामहः ।। १० ।। ततो गा धारराज य ेषयामास भारत । अच ु र त त ासीत् सुबल य वचारणा ।। ११ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! इसके बाद भी मजीने ा ण से गा धारराज सुबलक पु ी शुभल णा गा धारीके वषयम सुना क वह भगदे वताके ने का नाश करनेवाले वरदायक भगवान् शंकरक आराधना करके अपने लये सौ पु होनेका वरदान ा त कर चुक है। भारत! जब इस बातका ठ क-ठ क पता लग गया, तब कु पतामह भी मने गा धारराजके पास अपना त भेजा। धृतरा अंधे ह, इस बातको लेकर सुबलके मनम बड़ा वचार आ ।। ९—११ ।। कुलं या त च वृ ं च बु या तु समी य सः । ददौ तां धृतरा ाय गा धार धमचा रणीम् ।। १२ ।। परंतु उनके कुल, स और आचार आ दके वषयम बु पूवक वचार करके उसने धमपरायणा गा धारीका धृतराक े लये वा दान कर दया ।। १२ ।। गा धारी वथ शु ाव धृतरा मच ुषम् । आ मानं द सतं चा मै प ा मा ा च भारत ।। १३ ।। ततः सा प मादाय कृ वा ब गुणं तदा । बब ध ने े वे राजन् प त तपरायणा ।। १४ ।। ना यसूयां प तमह म येवं कृत न या । ततो गा धारराज य पु ः शकु नर ययात् ।। १५ ।। वसारं वयसा ल या यु ामादाय कौरवान् । तां तदा धृतरा ाय ददौ परमस कृताम् । भी म यानुमते चैव ववाहं समकारयत् ।। १६ ।। े

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जनमेजय! गा धारीने जब सुना क धृतरा अंधे ह और पता-माता मेरा ववाह उ ह के साथ करना चाहते ह, तब उ ह ने रेशमी व लेकर उसके कई तह करके उसीसे अपनी आँख बाँध ल । राजन्! गा धारी बड़ी प त ता थ । उ ह ने न य कर लया था क म (सदा प तके अनुकूल र ँगी,) उनके दोष नह दे खूँगी। तदन तर एक दन गा धारराजकुमार शकु न युवाव था तथा ल मीके समान मनोहर शोभासे यु अपनी ब हन गा धारीको साथ लेकर कौरव के यहाँ गये और उ ह ने बड़े आदर-स कारके साथ धृतराको अपनी ब हन स प द । शकु नने भी मजीक स म तके अनुसार ववाह-काय स प कया ।। १३—१६ ।। द वा स भ गन वीरो यथाह च प र छदम् । पुनरायात् वनगरं भी मेण तपू जतः ।। १७ ।। वीरवर शकु नने अपनी ब हनका ववाह करके यथायो य दहेज दया। बदलेम भी मजीने भी उनका बड़ा स मान कया। त प ात् वे अपनी राजधानीको लौट आये ।। १७ ।। गा धाय प वरारोहा शीलाचार वचे तैः । तु कु णां सवषां जनयामास भारत ।। १८ ।। भारत! सु दर शरीरवाली गा धारीने अपने उ म वभाव, सदाचार तथा सद् वहार से सम त कौरव को स कर लया ।। १८ ।। वृ ेनारा य तान् सवान् गु न् प तपरायणा । वाचा प पु षान यान् सु ता ना यक तयत् ।। १९ ।। इस कार सु दर बतावसे सम त गु जन क स ता ा त करके उ म तका पालन करनेवाली प तपरायणा गा धारीने कभी सरे पु ष का नामतक नह लया ।। १९ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण धृतरा ववाहे नवा धकशततमोऽ यायः ।। १०९ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम धृतरा ववाह वषयक एक सौ नवाँ अ याय पूरा आ ।। १०९ ।।

दशा धकशततमोऽ यायः कु तीको वासासे म क ा त, सूयदे वका आवाहन तथा उनके संयोगसे कणका ज म एवं कणके ारा इ को कवच और कु डल का दान वैश पायन उवाच शूरो नाम य े ो वसुदेव पताभवत् । त य क या पृथा नाम पेणा तमा भु व ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! य वं शय म े शूरसेन हो गये ह, जो वसुदेवजीके पता थे। उ ह एक क या ई, जसका नाम पृथा रखा गया। इस भूम डलम उसके पक तुलनाम सरी कोई ी नह थी ।। १ ।। पतृ व ीयाय स तामनप याय भारत । अ यम े त ाय व याप यं स स यवाक् ।। २ ।। भारत! स यवाद शूरसेनने अपने फुफेरे भाई संतानहीन कु तभोजसे पहले ही यह त ा कर रखी थी क म तु ह अपनी पहली संतान भट कर ँ गा ।। २ ।। अ जामथ तां क यां शूरोऽनु हकाङ् णे । ददौ कु तभोजाय सखा स ये महा मने ।। ३ ।। उ ह पहले क या ही उ प ई। अतः कृपाकां ी महा मा सखा राजा कु तभोजको उनके म शूरसेनने वह क या दे द ।। ३ ।। सा नयु ा पतुगहे दे वताऽ त थपूजने । उ ं पयचरत् त ा णं सं शत तम् ।। ४ ।। नगूढ न यं धम यं तं वाससं व ः । तमु ं सं शता मानं सवय नैरतोषयत् ।। ५ ।। पता कु तभोजके घरपर पृथाको दे वता के पूजन और अ त थय के स कारका काय स पा गया था। एक समय वहाँ कठोर तका पालन करनेवाले तथा धमके वषयम अपने न यको सदा गु त रखनेवाले एक ा ण मह ष आये, ज ह लोग वासाके नामसे जानते ह। पृथा उनक सेवा करने लगी। वे बड़े उ वभावके थे। उनका दय बड़ा कठोर था; फर भी राजकुमारी पृथाने सब कारके य न से उ ह पूण संतु कर लया ।। ४-५ ।। त यै स ददौ म माप मा ववे या । अ भचारा भसंयु म वी चैव तां मु नः ।। ६ ।। वासाजीने पृथापर आनेवाले भावी संकटका वचार करके उनके धमक र ाके लये उसे एक वशीकरणम दया और उसके योगक व ध भी बता द । त प ात् वे मु न उससे बोले— ।। ६ ।। यं यं दे वं वमेतेन म ेणावाह य य स । े

त य त य सादे न पु तव भ व य त ।। ७ ।। ‘शुभे! तुम इस म ारा जस- जस दे वताका आवाहन करोगी, उसी-उसीके अनु हसे तु ह पु ा त होगा’ ।। ७ ।। तथो ा सा तु व ेण कु ती कौतूहला वता । क या सती दे वमकमाजुहाव यश वनी ।। ८ ।। ष वासाके य कहनेपर कु तीके मनम बड़ा कौतूहल आ। वह यश वनी राजक या य प अभी कुमारी थी, तो भी उसने म क परी ाके लये सूयदे वका आवाहन कया ।। ८ ।। सा ददश तमाया तं भा करं लोकभावनम् । व मता चानव ा ् वा त मह तम् ।। ९ ।। आवाहन करते ही उसने दे खा, स पूण जगत्क उ प और पालन करनेवाले भगवान् भा कर आ रहे ह। यह महान् आ यक बात दे खकर नद ष अंग वाली कु ती च कत हो उठ ।। ९ ।। तां समासा दे व तु वव वा नदम वीत् । अयम य सतापा ू ह क करवा ण ते ।। १० ।। इधर भगवान् सूय उसके पास आकर इस कार बोले—‘ याम ने वाली कु ती! यह म आ गया। बोलो, तु हारा कौन-सा य काय क ँ ? ।। १० ।। (आतोप थतं भ े ऋ षम ेण चो दतम् । व मां पु लाभाय दे वमक शु च मते ।।) ‘भ े ! म वासा ऋ षके दये ए म से े रत हो तु हारे बुलाते ही तु ह पु क ा त करानेके लये उप थत आ ँ। प व मुसकानवाली कु ती! तुम मुझे सूयदे व समझो।’ कु युवाच क मे ा णः ादाद् वरं व ां च श ुहन् । त ज ासयाऽऽ ानं कृतव य म ते वभो ।। ११ ।। कु तीने कहा—श ु का नाश करनेवाले भो! एक ा णने मुझे वरदानके पम दे वता के आवाहनका म दान कया है। उसीक परी ाके लये मने आपका आवाहन कया था ।। ११ ।। एत म पराधे वां शरसाहं सादये । यो षतो ह सदा र याः वापरा ा प न यशः ।। १२ ।। य प मुझसे यह अपराध आ है, तो भी इसके लये आपके चरण म म तक रखकर म यह ाथना करती ँ क आप मापूवक स हो जाइये। य से अपना अपराध हो जाय, तो भी े पु ष को सदा उनक र ा ही करनी चा हये ।। १२ ।। सूय उवाच वेदाहं सवमेवैतद् यद् वासा वरं ददौ । सं य य भयमेवेह यतां संगमो मम ।। १३ ।। े ो े े ँ े ै

सूयदे व बोले—शुभे! म यह सब जानता ँ क वासाने तु ह वर दया है। तुम भय छोड़कर यहाँ मेरे साथ समागम करो ।। १३ ।। अमोघं दशनं म मात ा म ते शुभे । वृथा ानेऽ प ते भी दोषः वा ा संशयः ।। १४ ।। शुभे! मेरा दशन अमोघ है और तुमने मेरा आवाहन कया है। भी ! य द यह आवाहन थ आ, तो भी नःसंदेह तु ह बड़ा दोष लगेगा ।। १४ ।।

वैश पायन उवाच एवमु ा ब वधं सा वपूव वव वता । सा तु नै छद् वरारोहा क याह म त भारत ।। १५ ।। वैश पायनजी कहते ह—भारत! भगवान् सूयने कु तीको समझाते ए इस तरहक ब त-सी बात कह ; कतु म अभी कुमारी क या ँ, यह सोचकर सु दरी कु तीने उनसे समागमक इ छा नह क ।। १५ ।। ब धुप भयाद् भीता ल जया च यश वनी । तामकः पुनरेवेदम वीद् भरतषभ ।। १६ ।। यश वनी कु ती भाई-ब धु म बदनामी फैलनेके डरसे भी डरी ई थी और नारीसुलभ ल जासे भी वह ववश थी। भरत े ! उस समय सूयदे वने पुनः उससे कहा — ।। १६ ।। (पु ते न मतः सु ु शृणु या छु भानने ।। आ द ये कु डले ब त् कवचं चैव मामकम् । श ा ाणामभे ं च भ व य त शु च मते ।। न न कचन दे यं तु ा णे यो भ व य त । चो मानो मया चा प ना मं च त य य त । दा य येव ह व े यो मानी चैव भ व य त ।।) ‘सु दर मुख एवं सु दर भ ह वाली राजकुमारी! तु हारे लये जैसे पु का नमाण होगा, वह सुनो—शु च मते! वह माता अ द तके दये ए द कु डल और मेरे कवचको धारण कये ए उ प होगा। उसका वह कवच क ह अ -श से टू ट न सकेगा। उसके पास कोई भी व तु ा ण के लये अदे य न होगी। मेरे कहनेपर भी वह कभी अयो य काय या वचारको अपने मनम थान न दे गा। ा ण के याचना करनेपर वह उ ह सब कारक व तुएँ दे गा ही। साथ ही वह बड़ा वा भमानी होगा। म सादा ते रा भ वता दोष इ युत । एवमु वा स भगवान् कु तराजसुतां तदा ।। १७ ।। काशकता तपनः स बभूव तया सह । त वीरः समभवत् सवश भृतां वरः । आमु कवचः ीमान् दे वगभः या वतः ।। १८ ।। ‘



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‘रानी! मेरी कृपासे तु ह दोष भी नह लगेगा।’ कु तराजकुमारी कु तीसे य कहकर काश और गरमी उ प करनेवाले भगवान् सूयने उसके साथ समागम कया। इससे उसी समय एक वीर पु उ प आ, जो स पूण श धा रय म े था। उसने ज मसे ही कवच पहन रखा था और वह दे वकुमारके समान तेज वी तथा शोभास प था ।। १७-१८ ।। सहजं कवचं ब त् कु डलो ो तताननः । अजायत सुतः कणः सवलोकेषु व ुतः ।। १९ ।। ज मके साथ ही कवच धारण कये उस बालकका मुख ज मजात कु डल से का शत हो रहा था। इस कार कण नामक पु उ प आ, जो सब लोक म व यात है ।। १९ ।। ादा च त यै क या वं पुनः स परम ु तः । द वा च तपतां े ो दवमाच मे ततः ।। २० ।। उ म काशवाले भगवान् सूयने कुलीको पुन: क या व दान कया। त प ात् तपनेवाल म े भगवान् सूय दे वलोकम चले गये ।। २० ।। ् वा कुमारं जातं सा वा णयी द नमानसा । एका ं च तयामास क कृ वा सुकृतं भवेत् ।। २१ ।। उस नवजात कुमारको दे खकर वृ णवंशक क या कुलीके दयम बड़ा ःख आ। उसने एका चतसे वचार कया क अब या करनेसे अ छा प रणाम नकलेगा ।। २१ ।। गूहमानापचारं सा ब धुप भयात् तदा । उ ससज कुमारं तं जले कु ती महाबलम् ।। २२ ।। उस समय कुटु बीजन के भयसे अपने उस अनु चत कृ यको छपाती ई कु तीने महाबली कुमार कणको जलम छोड़ दया ।। २२ ।। तमु सृ ं जले गभ राधाभता महायशाः । पु वे क पयामास सभायः सूतन दनः ।। २३ ।। जलम छोड़े ए उस नवजात शशुको महायश वी सूतपु अ धरथने, जसक प नीका नाम राधा था, ले लया। उसने और उसक प नीने उस बालकको अपना पु बना लया ।। २३ ।। नामधेयं च च ाते त य बाल य तायुभौ । वसुना सह जातोऽयं वसुषेणो भव व त ।। २४ ।। उन द प तने उस बालकका नामकरण इस कार कया; यह वसु (कवच-कु डला द धन)-के साथ उ प आ है, इस लये वसुषेण नामसे स हो ।। २४ ।। स वधमानो बलवान् सवा ेपू तोऽभवत् । आ पृ तापादा द यमुपा त त वीयवान् ।। २५ ।। वह बलवान् बालक बड़े होनेके साथ ही सब कारक अ व ाम नपुण आ। परा मी कण ातःकालसे लेकर जबतक सूय पृ भागक ओर न चले जाते, सूय प थान करता रहता था ।। २५ ।। त मन् काले तु जपत त य वीर य धीमतः । े े ी ी े

नादे यं ा णे वासीत् क चद् वसु महीतले ।। २६ ।। उस समय म -जपम लगे ए बु मान-वीर कणके लये इस पृ वीपर कोई ऐसी व तु नह थी, जसे वह ा ण के माँगनेपर न दे सके ।। २६ ।। (ततः काले तु क मं चत् व ा ते कणम वीत् । आ द यो ा णो भू वा शृणु वीर वचो मम ।। भातायां रज यां वामाग म य त वासवः । न त य भ ा दात ा व पी भ व य त ।। न योऽ यापहतु ते कवचं कु डले तथा । अत वां बोधया येष मता स वचनं मम ।। कसी समयक बात है, सूयदे वने ा णका प धारण करके कणको व म दशन दया और इस कार कहा—‘वीर! मेरी बात सुनो—आजक रात बीत जानेपर सबेरा होते ही इ तु हारे पास आयगे। उस समय वे ा ण-वेषम ह गे। यहाँ आकर इ य द तुमसे भ ा माँग तो उ ह दे ना मत। उ ह ने तु हारे कवच और कु डल का अपहरण करनेका न य कया है। अतः म तु ह सचेत कये दे ता ँ। तुम मेरी बात याद रखना।’ कण उवाच श ो मां व पेण य द वै याचते ज । कथं चा मै न दा या म यथा चा यवबो धतः ।। व ाः पू या तु दे वानां सततं य म छताम् । तं दे वदे वं जानन् वै न श नो यवम णे ।। कणने कहा— न्! इ य द ा णका प धारण करके सचमुच मुझसे याचना करगे, तो म आपक चेतावनीके अनुसार कैसे उ ह वह व तु नह ँ गा। ा ण तो सदा अपना य चाहनेवाले दे वता के लये भी पूजनीय ह। दे वा धदे व इ ही ा ण पम आये ह, यह जान लेनेपर भी म उनक अवहेलना नह कर सकूँगा । सूय उवाच य ेवं शृणु मे वीर वरं ते सोऽ प दा य त । श वम प याचेथाः सवश वबा धनीम् ।। सूय बोले—वीर! य द ऐसी बात है तो सुनो, बदलेम इ भी तु ह वर दगे। उस समय तुम उनसे स पूण अ -श का नराकरण करनेवाली बरछ माँग लेना। वैश पायन उवाच एवमु वा जः व ते त ैवा तरधीयत । कणः बु तं व ं च तयानोऽभवत् तदा ।।) वैश पायनजी कहते ह— व म य कहकर ा ण-वेषधारी सूय वह अ तधान हो गये। तब कण जाग गया और व क बात का च तन करने लगा। त म ो ा णो भू वा भ ाथ समुपागमत् । े

कु डले ाथयामास कवचं च महा ु तः ।। २७ ।। त प ात् एक दन महातेज वी दे वराज इ ा ण बनकर भ ाके लये कणके पास आये और उससे उ ह ने कवच और कु डल को माँगा ।। २७ ।। वशरीरात् समु कृ य कवचं वं नसगजम् । कण तु कु डले छ वा ाय छत् कृता लः ।। २८ ।। तब कणने हाथ जोड़कर दे वराज इ को अपने शरीरके साथ ही उ प ए कवचको शरीरसे उधेड़कर एवं दोन कु डल को भी काटकर दे दया ।। २८ ।। त ह तु दे वेश तु तेना य कमणा । (अहो साहस म येवं मनसा वासवो हसन् । दे वदानवय ाणां ग धव रगर साम् ।। न तं प या म को ेतत् कम कता भ व य त । ीतोऽ म कमणा तेन वरं वृणु य म छ स ।। कवच और कु डल को लेकर उसके इस कमसे संतु हो इ ने मन-ही-मन हँसते ए कहा—‘अहो! यह तो बड़े साहसका काम है। दे वता, दानव, य , ग धव, नाग और रा स —इनमसे कसीको भी म ऐसा साहसी नह दे खता। भला, कौन ऐसा काय कर सकता है।’ य कहकर वे प वाणीम बोले—‘वीर! म तु हारे इस कमसे स ँ, इस लये तुम जो चाहो, वही वर मुझसे माँग लो।’ कण उवाच इ छा म भगवह ां श श ु नबहणीम् ।) कणने कहा—भगवन्! म आपक द ई वह अमोघ बरछ चाहता ँ, जो श ु का संहार करनेवाली है। वैश पायन उवाच ददौ श सुरप तवा यं चेदमुवाच ह ।। २९ ।। वैश पायनजी कहते ह—तब दे वराज इ ने बदलेम उसे अपनी ओरसे एक बरछ दान क और कहा— ।। २९ ।। दे वासुरमनु याणां ग धव रगर साम् । यमेकं जेतु म छे थाः सोऽनया न भ व य त ।। ३० ।। ‘वीरवर! तुम दे वता, असुर, मनु य, ग धव, नाग तथा रा स मसे जस एकको जीतना चाहोगे, वही इस श के हारसे न हो जायगा’ ।। ३० ।। ाङ् नाम त य क थतं वसुषेण इ त तौ । कण वैकतन ैव कमणा तेन सोऽभवत् ।। ३१ ।। पहले इस पृ वीपर उसका नाम वसुषेण कहा जाता था। त प ात् अपने शरीरसे कवचको कतर डालनेके कारण वह कण और वैकतन नामसे भी स आ ।। ३१ ।। ी







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ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण कणस भवे दशा धकशततमोऽ यायः ।। ११० ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम कणक उ प से स ब ध रखनेवाला एक सौ दसवाँ अ याय पूरा आ ।। ११० ।। (दा णा य अ धक पाठक े १३ ोक मलाकर कुल ४४ ोक ह)

एकादशा धकशततमोऽ यायः कु ती ारा वयंवरम पा डु का वरण और उनके साथ ववाह वैश पायन उवाच स व पगुणोपेता धमारामा महा ता । हता कु तभोज य पृथा पृथुललोचना ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! राजा कु तभोजक पु ी वशाल ने वाली पृथा धम, सु दर प तथा उ म गुण से स प थी। वह एकमा धमम ही रत रहनेवाली और महान् त का पालन करनेवाली थी ।। १ ।। तां तु तेज वन क यां पयौवनशा लनीम् । वृ वन् पा थवाः के चदतीव ीगुणैयुताम् ।। २ ।। ीजनो चत सव म गुण अ धक मा ाम कट होकर उसक शोभा बढ़ा रहे थे। मनोहर प तथा युवाव थासे सुशो भत उस तेज वनी राजक याके लये कई राजा ने महाराज कु तभोजसे याचना क ।। २ ।। ततः सा कु तभोजेन रा ाऽऽय नरा धपान् । प ा वयंवरे द ा हता राजस म ।। ३ ।। राजे ! तब क याके पता राजा कु तभोजने उन सब राजा को बुलाकर अपनी पु ी पृथाको वयंवरम उप थत कया ।। ३ ।। ततः सा र म य थं तेषां रा ां मन वनी । ददश राजशा लं पा डु भरतस मम् ।। ४ ।। मन वनी कु तीने सब राजा के बीच रंगमंचपर बैठे ए भरतवंश शरोम ण नृप े पाएको दे खा ।। ४ ।। सहदप महोर कं वृषभा ं महाबलम् । आ द य मव सवषां रा ां छा वै भाः ।। ५ ।। उनम सहके समान अ भमान जाग रहा था। उनक छाती ब त चौड़ी थी। उनके ने बैलक आँख के समान बड़े-बड़े थे। उनका बल महान् था। वे सब राजा क भाको अपने तेजसे आ छा दत करके भगवान् सूयक भाँ त का शत हो रहे थे ।। ५ ।। त तं राजस मतौ पुर दर मवापरम् । तं वा सानव ा कु तभोजसुता शुभा ।। ६ ।। पा डु ं नरवरं र े दयेनाकुलाभवत् । ततः कामपरीता सकृ त् चलमानसा ।। ७ ।। उस राजसमाजम वे तीय इ के समान वराजमान थे। नद ष अंग वाली कु तभोजकुमारी शुभल णा कु ती वयंवरक रंगभू मम नर े पा डु को दे खकर मनी

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ही-मन उ ह पानेके लये ाकुल हो उठ । उसके सब अंग कामसे एकबारगी चंचल हो उठा ।। ६-७ ।। ीडमाना जं कु ती रा ः क धे समासजत् । तं नश य वृतं पा डु ं कु या सव नरा धपाः ।। ८ ।। यथागतं समाज मुगजैर ै रथै तथा । तत त याः पता राजन् ववाहमकरोत् भुः ।। ९ ।।

ा त हो गये और च

कु तीने लजाते-लजाते राजा पा डु के गलेम जयमाला डाल द । सब राजा ने जब सुना क कु तीने महाराज पा डु का वरण कर लया, तब वे हाथी, घोड़े एवं रथ आ द वाहन ारा जैसे आये थे, वैसे ही अपने अपने थानको लौट गये। राजन! तब उसके पताने (पा डु के साथ शा व धके अनुसार) कु तीका ववाह कर दया ।। ८-९ ।। स तया कु तभोज य ह ा कु न दनः । युयुजेऽ मतसौभा यः पौलो या मघवा नव ।। १० ।। अन त सौभा यशाली कु न दन पाए कु तभोज-कुमारी कु तीसे संयु हो शचीके साथ इ क भाँ त सुशो भत ए ।। १० ।। कु याः पा डो राजे कु तभोजो महीप तः । कृ वो ाहं तदा तं तु नानावसु भर चतम् । वपुरं ेषयामास स राजा कु स म ।। ११ ।। ो े

ततो बलेन महता नाना वजपता कना । तूयमानः स चाशी भ ा णै मह ष भः ।। १२ ।। स ा य नगर राजा पा डु ः कौरवन दनः । यवेशयत तां भाया कु त वभवने भुः ।। १३ ।। राजे ! महाराज कु तभोजने कु ती और पा डु का ववाहसं कार स प करके उस समय उ ह नाना कारके धन और र न ारा स मा नत कया। त प ात् पा डु को उनक राजधानीम भेज दया। कु े जनमेजय! तब कौरवन दन राजा पा डु नाना कारक वजापताका से सुशो भत वशाल सेनाके साथ चले। उस समय ब त-से ा ण एवं मह ष आशीवाद दे ते ए उनक तु त करवाते थे। ह तनापुरम आकर उन श शाली नरेशने अपनी यारी प नी कु तीको राजमहलम प ँचा दया ।। ११-१३ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण कु ती ववाहे एकादशा धकशततमोऽ यायः ।। १११ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम कु ती ववाह वषयक एक सौ यारहवाँ अ याय पूरा आ ।। १११ ।।

ादशा धकशततमोऽ यायः मा के साथ पा डु का ववाह तथा राजा पा डु क द वजय वैश पायन उवाच ततः शा तनवो भी मो रा ः पा डोयश वनः । ववाह यापर याथ चकार म तमान् म तम् ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर शा तनुन दन परम बु मान् भी मजीने यश वी राजा पा डु के तीय ववाहके लये वचार कया ।। १ ।। सोऽमा यैः थ वरैः साध ा णै मह ष भः । बलेन चतुर े ण ययौ म पतेः पुरम ।। २ ।। वे बूढ़े म य , ा ण , मह षय तथा चतुरं गणी सेनाके साथ म राजक राजधानीम गये ।। २ ।। तमागतम भ ु य भी मं बा कपु वः । युदग ् याच य वा च पुरं ावेशय ृपः ।। ३ ।। बा क शरोम ण राजा श य भी मजीका आगमन सुनकर उनक अगवानीके लये नगरसे बाहर आये और यथो चत वागत-स कार करके उ ह राजधानीके भीतर ले गये ।। ३ ।। द वा त यासनं शु ं पा म य तथैव च । मधुपक च महेशः प छागमनेऽ थताम् ।। ४ ।। वहाँ उनके लये सु दर आसन, पा , अ य तथा मधुपक अपण करके म राजने भी मजीसे उनके आगमनका योजन पूछा ।। ४ ।। तं भी मः युवाचेदं म राजं कु हः । आगतं मां वजानी ह क या थनम र दम ।। ५ ।। तब कु कुलका भार वहन करनेवाले भी मजीने म राजसे इस कार कहा —‘श ुदमन! तुम मुझे क याके लये आया आ समझो ।। ५ ।। ूयते भवतः सा वी वसा मा यश वनी । तामहं वर य या म पा डोरथ यश वनीम् ।। ६ ।। ‘सुना है, तु हारी एक यश वनी ब हन है, जो बड़े साधु वभावक है; उसका नाम मा है। म उस यश वनी मा का अपने पा डु के लये वरण करता ँ ।। ६ ।। यु पो ह स ब धे वं नो राजन् वयं तव । एतत् सं च य म े श गृहाणा मान् यथा व ध ।। ७ ।। ‘राजन्! तुम हमारे यहाँ स ब ध करनेके सवथा यो य हो और हम भी तु हारे यो य ह। म े र! य वचारकर तुम हम व धपूवक अपनाओ’ ।। ७ ।। े



तमेवंवा दनं भी मं यभाषत म पः । न ह मेऽ यो वर व ः ेया न त म तमम ।। ८ ।। भी मजीके य कहनेपर म राजने उ र दया—‘मेरा व ास है क आपलोग से े वर मुझे ढूँ ढ़नेसे भी नह मलेगा’ ।। ८ ।। पूवः व ततं क चत् कुलेऽ मन् नृपस मैः । साधु वा य द वासाधु त ा त ा तुमु सहे ।। ९ ।। ‘परंतु इस कुलम पहलेके े राजा ने कुछ शु क लेनेका नयम चला दया है। वह अ छा हो या बुरा, म उसका उ लंघन नह कर सकता ।। ९ ।। ं तद् भवत ा प व दतं ना संशयः । न च यु ं तथा व ुं भवान् दे ही त स म ।। १० ।। ‘यह बात सबपर कट है, नःसंदेह आप भी इसे जानते ह गे। साधु शरोमणे! इस दशाम आपके लये यह कहना उ चत नह है क मुझे क या दे दो’ ।। १० ।। कुलधमः स नो वीर माणं परमं च तत् । तेन वां न वी येतदसं द धं वचोऽ रहन् ।। ११ ।। ‘वीर! वह हमारा कुलधम है और हमारे लये वही परम माण है। श ुदमन! इसी लये म आपसे न त पसे यह नह कह पाता क क या दे ँ गा’ ।। ११ ।। तं भी मः युवाचेदं म राजं जना धपः । धम एष परो राजन् वयमु ः वय भुवा ।। १२ ।। यह सुनकर जने र भी मजीने म राजको इस कार उ र दया—‘राजन्! यह उ म धम है। वयं वय भू ाजीने इसे धम कहा है’ ।। १२ ।। ना क न दोषोऽ त पूव धरयं कृतः । व दतेय च ते श य मयादा साधुस मता ।। १३ ।। ‘य द तु हारे पूवज ने इस व धको वीकार कर लया है तो इसम कोई दोष नह है। श य! साधु पु ष ारा स मा नत तु हारी यह कुलमयादा हम सबको व दत है’ ।। १३ ।। इ यु वा स महातेजाः शातकु भं कृताकृतम् । र ना न च व च ा ण श यायादात् सह शः ।। १४ ।। गजान ान् रथां ैव वासां याभरणा न च । म णमु ा वालं च गा े यो सृज छू भम् ।। १५ ।। यह कहकर महातेज वी भी मजीने राजा श यको सोना और उसके बने ए आभूषण तथा सह व च कारके र न भट कये। ब त-से हाथी, घोड़े, रथ, व , अलंकार तथा म ण-मोती और मूँगे भी दये ।। १४-१५ ।। तत् गृ धनं सव श यः स ीतमानसः । ददौ तां समलंकृ य वसारं कौरवषभे ।। १६ ।। वह सारा धन लेकर श यका च स हो गया। उ ह ने अपनी ब हनको व ाभूषण से वभू षत करके राजा पा डु के लये कु े भी मजीको स प दया ।। १६ ।। ी

स तां मा मुपादाय भी मः सागरगासुतः । आजगाम पुर धीमान् व ो गजसा यम् ।। १७ ।। परम बु मान् गंगान दन भी म मा को लेकर ह तनापुरम आये ।। १७ ।। तत इ ेऽह न ा ते मुत साधुस मते । ज ाह व धवत् पा ण मा याः पा डु नरा धपः ।। १८ ।। तदन तर े ा ण के ारा अनुमो दत शुभ दन और सु दर मु त आनेपर राजा पा डु ने मा का व धपूवक पा ण हण कया ।। १८ ।। ततो ववाहे नवृ े स राजा कु न दनः । थापयामास तां भाया शुभे वे म न भा वनीम् ।। १९ ।। इस कार ववाह-काय स प हो जानेपर कु न दन राजा पा डु ने अपनी क याणमयी भायाको सु दर महलम ठहराया ।। १९ ।। स ता यां चरत् साध भाया यां राजस मः । कु या मा या च राजे ो यथाकामं यथासुखम् ।। २० ।। राजा म े महाराज पा डु अपनी दोन प नय कु ती और मा के साथ आन दपूवक यथे वहार करने लगे ।। २० ।। ततः स कौरवो राजा व य दशा नशाः । जगीषया मह पा डु नर ामत् पुरात् भो ।। २१ ।। जनमेजय! कु वंशी राजा पा डु तीस रा य तक वहार करके समूची पृ वीपर वजय ा त करनेक इ छा लेकर राजधानीसे बाहर नकले ।। २१ ।। स भी म मुखान् वृ ान भवा ण यच। धृतरा ं च कौर ं तथा यान् कु स मान् । आम य ययौ राजा तै ैवा यनुमो दतः ।। २२ ।। म लाचारयु ा भराशी भर भन दतः । गजवा जरथीघेन बलेन महतागमत् ।। २३ ।। उ ह ने भी म आ द बड़े-बूढ़ के चरण म म तक झुकाया। कुशन दन धृतरा तथा अ य े कुशवं शय को णाम करके उन सबक आ ा ली और उनका अनुमोदन मलनेपर मंगलाचारयु ह आशीवाद से अ भन दत हो हाथी, घोड़ तथा रथसमुदायसे यु वशाल सेनाके साथ थान कया ।। २२-२३ ।। स राजा दे वगभाभो व जगीषुवसुंधराम् । पु बलैः ायात् पा डु ः श ूननेकशः ।। २४ ।। राजा पा डु दे वकुमारके समान तेज वी थे। उ ह ने इस पृ वीपर वजय पानेक इ छासे -पु सै नक के साथ अनेक श ु पर धावा कया ।। २४ ।। पूवमाग कृतो ग वा दशाणाः समरे जताः । पा डु ना नर सहेन कौरवाणां यशोभृता ।। २५ ।। ौ















कौरवकुलके सुयशको बढ़ानेवाले, मनु य म सहके समान परा मी राजा पा डु ने सबसे पहले पूवके अपराधी दशाण पर* धावा करके उ ह यु म परा त कया ।। २५ ।। ततः सेनामुपादाय पा डु नाना वध वजाम् । भूतह य युतां पदा तरथसंकुलाम् ।। २६ ।। आग कारी महीपानां बनां बलद पतः । गो ता मगधरा य द घ राजगृहे हतः ।। २७ ।। त प ात् वे नाना कारक वजा-पताका से यु और ब सं यक हाथी, घोड़े, रथ एवं पैदल से भरी ई भारी सेना लेकर मगधदे शम गये। वहाँ राजगृहम अनेक राजा का अपराधी बला भमानी मगधराज द घ उनके हाथसे मारा गया ।। २६-२७ ।। ततः कोशं समादाय वाहना न च भू रशः । पा डु ना म थलां ग वा वदे हाः समरे जताः ।। २८ ।। उसके बाद भारी खजाना और वाहन आ द लेकर पा डु ने म थलापर चढ़ाई क और वदे हवंशी य को यु म परा त कया ।। २८ ।। तथा का शषु सु ेषु पु ेषु च नरषभ । वबा बलवीयण कु णामकरोद् यशः ।। २९ ।। नर े जनमेजय! इस कार वे पा डु काशी, सहा तथा पु दे श पर वजय पाते ए अपने बा बल और परा मसे कु कुलके यशका व तार करने लगे ।। २९ ।। तं शरौघमहा वालं श ा चषम र दमम् । पा डु पावकमासा द त नरा धपाः ।। ३० ।। उस समय श ुदमन राजा पा डु व लत अ नके समान सुशो भत थे। बाण का समुदाय उनक बढ़ती ई वालाके समान जान पड़ता था। खड् ग आ द श लपट के समान तीत होते थे। उनके पास आकर ब तसे राजा भ म हो गये ।। ३० ।। ते ससेनाः ससेनेन व वं सतबला तपाः । पा डु ना वशगाः कृ वा कु कमसु यो जताः ।। ३१ ।। सेनास हत राजा पा डु ने सामने आये ए सै यस हत नरप तय क सारी सेनाएँ न कर द और उ ह अपने अधीन करके कौरव के आ ापालनम नयु कर दया ।। ३१ ।। तेन ते न जताः सव पृ थ ां सवपा थवाः । तमेकं मे नरे शूरं दे वे वव पुरंदरम् ।। ३२ ।। पा डु के ारा परा त ए सम त भूपालगण दे वता म इ क भाँ त इस पृ वीपर सब मनु य म एकमा उ ह को शूरवीर मानने लगे ।। ३२ ।। तं कृता लयः सव णता वसुधा धपाः । उपाज मुधनं गृ र ना न व वधा न च ।। ३३ ।। भूतलके सम त राजा ने उनके सामने हाथ जोड़कर म तक टे क दये और नाना कारके र न एवं धन लेकर उनके पास आये ।। ३३ ।। म णमु ा वालं च सुवण रजतं ब । ो

गोर ना य र ना न रथर ना न कु रान् ।। ३४ ।। खरो म हषी ैव य च क चदजा वकम् । क बला जनर ना न राङ् कवा तरणा न च । तत् सव तज ाह राजा नागपुरा धपः ।। ३५ ।। राजा के दये ए ढे र-के-ढे र म ण, मोती, मूँगे, सुवण, चाँद , गोर न, अ र न, रथर न, हाथी, गदहे, ऊँट, भस, बकरे, भड़, क बल, मृगचम, र न, रंकु मृगके चमसे बने ए बछौने आ द जो कुछ भी सामान ा त ए, उन सबको ह तनापुराधीश राजा पा डु ने हण कर लया ।। ३४-३५ ।। तदादाय ययौ पा डु ः पुनमु दतवाहनः । हष य यन् वरा ा ण पुरं च गजसा यम् ।। ३६ ।। वह सब लेकर महाराज पा डु अपने राक े लोग का हष बढ़ाते ए पुनः ह तनापुर चले आये। उस समय उनक सवारीके अ आ द भी ब त स थे ।। ३६ ।। श तनो राज सह य भरत य च धीमतः । ण ः क तजः श दः पा डु ना पुनरा तः ।। ३७ ।। राजा म सहके समान परा मी श तनु तथा परम बु मान् भरतक क त-कथा जो न -सी हो गयी थी, उसे महाराज पा डु ने पुन जी वत कर दया ।। ३७ ।। ये पुरा कु रा ा ण जः क ु धना न च । ते नागपुर सहेन पा डु ना करद कृताः ।। ३८ ।। जन राजा ने पहले कु दे शके धन तथा कु राका अपहरण कया था, उनको ह तनापुरके सह पा डु ने करद बना दया ।। ३८ ।। इ यभाष त राजानो राजामा या संगताः । तीतमनसो ाः पौरजानपदै ः सह ।। ३९ ।। ब त-से राजा तथा राजम ी एक होकर इस तरहक बात कर रहे थे। उनके साथ नगर और जनपदके लोग भी इस चचाम स म लत थे। उन सबके दयम पा डु के त व ास तथा हष लास छा रहा था ।। ३९ ।। यु यु तं ा तं सव भी मपुरोगमाः । ते न र मवा वानं ग वा नागपुरालयात् ।। ४० ।। आवृतं द शु ा लोकं ब वधैधनैः । नानायानसमानीतै र नै चावचै तदा ।। ४१ ।। ह य रथर नै गो भ ै तथा व भः । ना तं द शुरासा भी मेण सह कौरवाः ।। ४२ ।। राजा पा डु जब नगरके नकट आये, तब भी म आ द सब कौरव उनक अगवानीके लये आगे बढ़ आये। उ ह ने स तापूवक दे खा, राजा पा डु और उनका दल बड़े उ साहके साथ आ रहे ह। उस समय ऐसा जान पड़ता था, मानो वे लोग ह तनापुरसे थोड़ी ही रतक जाकर वहाँसे लौट रहे ह । उनके साथ भाँ त-भाँ तके धन एवं नाना कारके वाहन पर लादकर लाये ए छोटे -बड़े र न, े हाथी, घोड़े, रथ, गौएँ, ऊँट तथा भड़ आ द ी े ी े ौ े ँ े ो ै

भी थे। भी मके साथ कौरव ने वहाँ जाकर दे खा, तो उस धन-वैभवका कह अ त नह दखायी दया ।। ४०—४२ ।। सोऽ भवा पतुः पादौ कौस यान दवधनः । यथाह मानयामास पौरजानपदान प ।। ४३ ।। कौस याका* आन द बढ़ानेवाले पा डु ने नकट आकर पतृ भी मके चरण म णाम कया और नगर तथा जनपदके लोग का भी यथायो य स मान कया ।। ४३ ।। मृ पररा ा ण कृताथ पुनरागतम् । पु मा य भी म तु हषाद ू यवतयत् ।। ४४ ।। श ु के रा य को धूलम मलाकर कृतकृ य होकर लौटे ए अपने पु पा डु का आ लगन करके भी मजी हषके आँसू बहाने लगे ।। ४४ ।। स तूयशतशङ् खानां भेरीणां च महा वनैः । हषयन् सवशः पौरान् ववेश गजसा यम् ।। ४५ ।। सैकड़ शंख, तुरही एवं नगार क तुमुल व नसे सम त पुरवा सय को आन दत करते ए पा डु ने ह तनापुरम वेश कया ।। ४५ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण पा डु द वजये ादशा धकशततमोऽ यायः ।। ११२ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम पा डु द वजय वषयक एक सौ बारहवाँ अ याय पूरा आ ।। ११२ ।।

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क यपवतके पूव-द णक ओर थत उस दे शका ाचीन नाम दशाण है, जससे होकर धसान नद बहती है। व दशा (आधु नक भलसा) इसी दे शक राजधानी थी। * का शराज कोसलक क या होनेसे अ बका और अ बा लका दोन ही कौस या कहलाती थ ।

योदशा धकशततमोऽ यायः राजा पा डु का प नय स हत वनम नवास तथा व रका ववाह वैश पायन उवाच धृतरा ा यनु ातः वबा व जतं धनम् । भी माय स यव यै च मा े चोपजहार सः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! बड़े भाई धृतराक आ ा लेकर राजा पा डु ने अपने बा बलसे जीते ए धनको भी म, स यवती तथा माता अ बका और अ बा लकाको भट कया ।। १ ।। व राय च वै पा डु ः ेषयामास तद् धनम् । सु द ा प धमा मा धनेन समतपयत् ।। २ ।। उ ह ने व रजीके लये भी वह धन भेजा। धमा मा पा डु ने अ य सु द को भी उस धनसे तृ त कया ।। २ ।। ततः स यवती भी मं कौस यां च यश वनीम् । शुभैः पा डु जतैरथ तोषयामास भारत ।। ३ ।। नन द माता कौस या तम तमतेजसम् । जय त मव पौलोमी प र व य नरषभम् ।। ४ ।। भारत! त प ात् स यवतीने पा डु ारा जीतकर लाये ए शुभ धनके ारा भी म और यश वनी कौस याको भी संतु कया। माता कौस याने अनुपम तेज वी नर े पा डु क उसी कार दयसे लगाकर उनका अ भन दन कया, जैसे शची अपने पु जय तका अ भन दन करती ह ।। ३-४ ।। त य वीर य व ा तैः सह शतद णैः । अ मेधशतैरीजे धृतरा ो महामखैः ।। ५ ।। वीरवर पा डु के परा मसे धृतराने बड़े-बड़े सौ अ मेध य कये तथा येक य म एक-एक लाख वणमु ा क द णा द ।। ५ ।। स यु तु कु या च मा य ् ा च भरतषभ । जतत तदा पा डु बभूव वनगोचरः ।। ६ ।। ह वा ासाद नलयं शुभा न शयना न च । अर य न यः सततं बभूव मृगयापरः ।। ७ ।। भरत े ! राजा पा डु ने आल यको जीत लया था। वे कु ती और मा क ेरणासे राजमहल का नवास और सु दर शया एँ छोड़कर वनम रहने लगे। पा डु सदा वनम रहकर शकार खेला करते थे ।। ६-७ ।। स चरन् द णं पा र यं हमवतो गरेः । े



उवास ग रपृ ेषु महाशालवनेषु च ।। ८ ।। वे हमालयके द ण भागक रमणीय भू मम वचरते ए पवतके शखर पर तथा ऊँचे शालवृ से सुशो भत वन म नवास करते थे ।। ८ ।। रराज कु या मा य ् ा च पा डु ः सह वने चरन् । करे वो रव म य थः ीमान् पौरंदरो गजः ।। ९ ।। कु ती और मा के साथ वनम वचरते ए महाराज पा डु दो ह थ नय के बीचम थत ऐरावत हाथीक भाँ त शोभा पाते थे ।। ९ ।। भारतं सह भाया यां खड् गबाणधनुधरम् । व च कवचं वीरं परमा वदं नृपम् । दे वोऽय म यम य त चर तं वनवा सनः ।। १० ।। तलवार, बाण, धनुष और व च कवच धारण करके अपनी दोन प नय के साथ मण करनेवाले महान् अ वे ा भरतवंशी राजा पा डु को दे खकर वनवासी मनु य यह समझते थे क ये कोई दे वता ह ।। १० ।। त य कामां भोगां नरा न यमत ताः । उपाजवना तेषु धृतरा ेण चो दताः ।। ११ ।। धृतराक आ ासे े रत हो ब त-से मनु य आल य छोड़कर वनम महाराज पा डु के लये इ छानुसार भोगसाम ी प ँचाया करते थे ।। ११ ।। अथ पारशव क यां दे वक य महीपतेः । पयौवनस प ां स शु ावापगासुतः ।। १२ ।। एक समय गंगान दन भी मजीने सुना क राजा दे वकके यहाँ एक क या है, जो शू जातीय ीके गभसे ा ण ारा उ प क गयी है। वह सु दर प और युवाव थासे स प है ।। १२ ।। तत तु वर य वा तामानीय भरतषभः । ववाहं कारयामास व र य महामतेः ।। १३ ।। तब इन भरत े ने उसका वरण कया और उसे अपने यहाँ ले आकर उसके साथ परम बु मान् व रजीका ववाह कर दया ।। १३ ।। त यां चो पादयामास व रः कु न दनः । पु ान् वनयस प ाना मनः स शान् गुणैः ।। १४ ।। कु न दन व रने उसके गभसे अपने ही समान गुणवान् और वनयशील अनेक पु उ प कये ।। १४ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण व रप रणये योदशा धकशततमोऽ यायः ।। ११३ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम व र ववाह वषयक एक सौ तेरहवाँ अ याय पूरा आ ।। ११३ ।।

चतुदशा धकशततमोऽ यायः धृतरा के गा धारीसे एक सौ पु तथा एक क याक तथा सेवा करनेवाली वै यजातीय युवतीसे युयु सु नामक एक पु क उ प वैश पायन उवाच ततः पु शतं ज े गा धाया जनमेजय । धृतरा य वै यायामेक ा प शतात् परः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर धृतराक े उनक प नी गा धारीके गभसे एक सौ पु उ प ए। धृतरा क एक सरी प नी वै यजा तक क या थी। उससे भी एक पु का ज म आ। यह पूव सौ पु से भ था ।। १ ।। पा डोः कु यां च मा य ् ां च पु ाः प च महारथाः । दे वे यः समप त संतानाय कुल य वै ।। २ ।। पा डु के कु ती और मा के गभसे पाँच महारथी पु उ प ए। वे सब कु कुलक संतानपर पराक र ाके लये दे वता के अंशसे कट ए थे ।। २ ।। जनमेजय उवाच कथं पु शतं ज े गा धाया जस म । कयता चैव कालेन तेषामायु क परम् ।। ३ ।। जनमेजयने पूछा— ज े ! गा धारीसे सौ पु कस कार और कतने समयम उ प ए? और उन सबक पूरी आयु कतनी थी? ।। ३ ।। कथं चैकः स वै यायां धृतरा सुतोऽभवत् । कथं च स श भाया गा धार धमचा रणीम् ।। ४ ।। आनुकू ये वतमानां धृतरा ोऽ यवतत । कथं च श त य सतः पा डो तेन महा मना ।। ५ ।। समु प ा दै वते यः पु ाः प च महारथाः । एतद् व न् यथा यायं व तरेण तपोधन ।। ६ ।। कथय व न मे तृ तः कयमानेषु ब धुषु । वै यजातीय ीके गभसे धृतराका वह एक पु कस कार उ प आ? राजा धृतरा सदा अपने अनुकूल चलनेवाली यो य प नी धमपरायणा गा धारीके साथ कैसा बताव करते थे? महा मा मु न- ारा शापको ा त ए राजा पा डु के वे पाँच महारथी पु दे वता के अंशसे कैसे उ प ए? व ान् तपोधन! ये सब बात यथो चत पसे व तारपूवक क हये। अपने ब धुजन क यह चचा सुनकर मुझे तृ त नह होती ।। ४-६ ।। ै

वैश पायन उवाच ु मा भप र लानं ै पायनमुप थतम् ।। ७ ।। तोषयामास गा धारी ास त यै वरं ददौ । सा व े स शं भतुः पु ाणां शतमा मनः ।। ८ ।। वैश पायनजीने कहा—राजन्! एक समयक बात है, मह ष ास भूख और प र मसे ख होकर धृतराक े यहाँ आये। उस समय गा धारीने भोजन और व ामक व था ारा उ ह संतु कया। तब ासजीने गा धारीको वर दे नेक इ छा कट क । गा धारीने अपने प तके समान ही सौ पु माँगे ।। ७-८ ।।

ततः कालेन सा गभ धृतरा ादथा हीत् । संव सर यं तं तु गा धारी गभमा हतम् ।। ९ ।। अ जा धारयामास तत तां ःखमा वशत् । ु वा कु तीसुतं जातं बालाकसमतेजसम् ।। १० ।। तदन तर समयानुसार गा धारीने धृतरासे गभ धारण कया। दो वष तीत हो गये, तबतक गा धारी उस गभको धारण कये रही। फर भी सव नह आ। इसी बीचम गा धारीने जब यह सुना क कु तीके गभसे ातःकालीन सूयके समान तेज वी पु का ज म आ है, तब उसे बड़ा ःख आ ।। ९-१० ।। उदर या मनः थैयमुपल या व च तयत् । े

अ ातं धृतरा य य नेन महता ततः ।। ११ ।। सोदरं घातयामास गा धारी ःखमू छता । ततो ज े मांसपेशी लोहा ीलेव संहता ।। १२ ।। उसे अपने उदरक थरतापर बड़ी च ता ई। गा धारी ःखसे मू छत हो रही थी। उसने धृतराक अनजानम ही महान् य न करके अपने उदरपर आघात कया। तब उसके गभसे एक मांसका प ड कट आ, जो लोहेके प डके समान कड़ा था ।। ११-१२ ।। वषस भृता कु ौ तामु ु ं च मे । अथ ै पायनो ा वा व रतः समुपागमत् ।। १३ ।। उसने दो वष तक उसे पेटम धारण कया था, तो भी उसने उसे इतना कड़ा दे खकर फक दे नेका वचार कया। इधर यह बात मह ष ासको मालूम ई। तब वे बड़ी उतावलीके साथ वहाँ आये ।। १३ ।। तां स मांसमय पेश ददश जपतां वरः । ततोऽ वीत् सौबलेय क मदं ते चक षतम् ।। १४ ।। जप करनेवाल म े ासजीने उस मांस प डको दे खा और गा धारीसे पूछा—‘तुम इसका या करना चाहती थ ?’ ।। १४ ।। सा चा मनो मतं स यं शशंस परमषये । और उसने मह षको अपने मनक बात सच-सच बता द ।

गा धायुवाच ये ं कु तीसुतं जातं ु वा र वसम भम् ।। १५ ।। ःखेन परमेणेदमुदरं घा ततं मया । शतं च कल पु ाणां वतीण मे वया पुरा ।। १६ ।। इयं च मे मांसपेशी जाता पु शताय वै । गा धारीने कहा—मुने! मने सुना है, कु तीके एक ये पु उ प आ है, जो सूयके समान तेज वी है। यह समाचार सुनकर अ य त ःखके कारण मने अपने उदरपर आघात करके गभ गराया है। आपने पहले मुझे ही सौ पु होनेका वरदान दया था; परंतु आज इतने दन बाद मेरे गभसे सौ पु क जगह यह मांस प ड पैदा आ है ।। १५-१६ ।। ास उवाच एवमेतत् सौबले य नैत जा व यथा भवेत् ।। १७ ।। ासजीने कहा—सुबलकुमारी! यह सब मेरे वरदानके अनुसार ही हो रहा है; वह कभी अ यथा नह हो सकता ।। १७ ।। वतथं नो पूव मे वैरे व प कुतोऽ यथा । घृतपूण कु डशतं मेव वधीयताम् ।। १८ ।। े











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मने कभी हास-प रहासके समय भी झूठ बात मुँहसे नह नकाली है। फर वरदान आ द अ य अवसर पर कही ई मेरी बात झूठ कैसे हो सकती है। तुम शी ही सौ मटके (कु ड) तैयार कराओ और उ ह घीसे भरवा दो ।। १८ ।। सुगु तेषु च दे शेषु र ा चैव वधीयताम् । शीता भर र ीला ममां च प रषेचय ।। १९ ।। फर अ य त गु त थान म रखकर उनक र ा क भी पूरी व था करो। इस मांस प डको ठं डे जलसे स चो ।। १९ ।। वैश पायन उवाच सा स यमाना व ीला बभूव शतधा तदा । अङ् गु पवमा ाणां गभाणां पृथगेव तु ।। २० ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! उस समय स चे जानेपर उस मांस प डके सौ टु कड़े हो गये। वे अलग-अलग अँगठ ू े के पो वे बराबर सौ गभ के पम प रणत हो गये ।। २० ।। एका धकशतं पूण यथायोगं वशा पते । मांसपे या तदा राजन् मशः कालपययात् ।। २१ ।। राजन्! कालके प रवतनसे मशः उस मांस प डके यथायो य पूरे एक सौ एक भाग ए ।। २१ ।। तत तां तेषु कु डेषु गभानवदधे तदा । वनुगु तेषु दे शेषु र ां वै दधात् ततः ।। २२ ।। त प ात् गा धारीने उन सभी गभ को उन पूव कु ड म रखा। वे सभी कु ड अ य त गु त थान म रखे ए थे। उनक र ाक ठ क-ठ क व था कर द गयी ।। २२ ।। शशंस चैव भगवान् कालेनैतावता पुनः । उद्घाटनीया येता न कु डानी त च सौबलीम् ।। २३ ।। तब भगवान् ासने गा धारीसे कहा—‘इतने ही दन अथात् पूरे दो वष तक ती ा करनेके बाद इन कु ड का ढ कन खोल दे ना चा हये’ ।। २३ ।। इ यु वा भगवान् ास तथा त नधाय च । जगाम तपसे धीमान् हमव तं शलो चयम् ।। २४ ।। य कहकर और पूव कारसे र ाक व था कराकर परम बु मान् भगवान् ास हमालय पवतपर तप याके लये चले गये ।। २४ ।। ज े मेण चैतेन तेषां य धनो नृपः । ज मत तु माणेन ये ो राजा यु ध रः ।। २५ ।। तदन तर दो वष बीतनेपर जस मसे वे गभ उन कु ड म था पत कये गये थे, उसी मसे उनम सबसे पहले राजा य धन उ प आ। ज मकालके माणसे राजा यु ध र उससे भी ये थे ।। २५ ।। ी





तदा यातं तु भी माय व राय च धीमते । य म ह न धष ज े य धन तदा ।। २६ ।। त म ेव महाबा ज े भीमोऽ प वीयवान् । स जातमा एवाथ धृतरा सुतो नृप ।। २७ ।। रासभारावस शं राव च ननाद च । तं खराः यभाष त गृ गोमायुवायसाः ।। २८ ।। य धनके ज मका समाचार परम बु मान् भी म तथा व रजीको बताया गया। जस दन धष वीर य धनका ज म आ, उसी दन परम परा मी महाबा भीमसेन भी उ प ए। राजन्! धृतराका वह पु ज म लेते ही गदहेके रकनेक -सी आवाजम रोने- च लाने लगा। उसक आवाज सुनकर बदलेम सरे गदहे भी रकने लगे। गीध, गीदड़ और कौए भी कोलाहल करने लगे ।। २६—२८ ।। वाता ववु ा प द दाह ाभवत् तदा । तत तु भीतवद् राजा धृतरा ोऽ वी ददम् ।। २९ ।। समानीय बन् व ान् भी मं व रमेव च । अ यां सु दो राजन् कु न् सवा तथैव च ।। ३० ।। बड़े जोरक आँधी चलने लगी। स पूण दशा म दाह-सा होने लगा। राजन्! तब राजा धृतरा भयभीत-से हो उठे और ब त-से ा ण को, भी मजी और व रजीको, सरे- सरे सु द तथा सम त कु वं शय को अपने समीप बुलवाकर उनसे इस कार बोले — ।। २९-३० ।। यु ध रो राजपु ो ये ो नः कुलवधनः । ा तः वगुणतो रा यं न त मन् वा यम त नः ।। ३१ ।। ‘आदरणीय गु जनो! हमारे कुलक क त बढ़ानेवाले राजकुमार यु ध र सबसे ये ह। वे अपने गुण से रा यको पानेके अ धकारी हो चुके ह। उनके वषयम हम कुछ नह कहना है ।। ३१ ।। अयं वन तर त माद प राजा भ व य त । एतद् व ूत मे तयं यद भ वता ुवम् ।। ३२ ।। ‘ कतु उनके बाद मेरा यह पु ही ये है। या यह भी राजा बन सकेगा? इस बातपर वचार करके आपलोग ठ क-ठ क बताय। जो बात अव य होनेवाली है, उसे प कह’ ।। ३२ ।। वा य यैत य नधने द ु सवासु भारत । ादाः ाणदन् घोराः शवा ा शवशं सनः ।। ३३ ।। जनमेजय! धृतरा क यह बात समा त होते ही चार दशा म भयंकर मांसाहारी जीव गजना करने लगे। गीदड़ अमंगलसूचक बोली बोलने लगे ।। ३३ ।। ल य वा न म ा न ता न घोरा ण सवशः । तेऽ ुवन् ा णा राजन् व र महाम तः ।। ३४ ।। यथेमा न न म ा न घोरा ण मनुजा धप । े े े े े

उ थता न सुते जाते ये े ते पु षषभ ।। ३५ ।। ं कुला तकरणो भ वतैष सुत तव । त य शा तः प र यागे गु तावपनयो महान् ।। ३६ ।। राजन्! सब ओर होनेवाले उन भयानक अप-शकुन को ल य करके ा णलोग तथा परम बु मान् व रजी इस कार बोले—‘नर े नरे र! आपके ये पु के ज म लेनेपर जस कार ये भयंकर अपशकुन कट हो रहे ह, उनसे प जान पड़ता है क आपका यह पु समूचे कुलका संहार करनेवाला होगा। य द इसका याग कर दया जाय तो सब व न क शा त हो जायगी और य द इसक र ा क गयी तो आगे चलकर बड़ा भारी उप व खड़ा होगा ।। ३४—३६ ।। शतमेकोनम य तु पु ाणां ते महीपते । यजैनमेकं शा तं चेत् कुल ये छ स भारत ।। ३७ ।। ‘महीपते! आपके न यानबे पु ही रह; भारत! य द आप अपने कुलक शा त चाहते ह तो इस एक पु को याग द ।। ३७ ।। एकेन कु वै ेमं कुल य जगत तथा । यजेदेकं कुल याथ ाम याथ कुलं यजेत् ।। ३८ ।। ामं जनपद याथ आ माथ पृ थव यजेत् । स तथा व रेणो तै सव जो मैः ।। ३९ ।। न चकार तथा राजा पु नेहसम वतः । ततः पु शतं पूण धृतरा य पा थव ।। ४० ।। ‘केवल एक पु के याग ारा इस स पूण कुलका तथा सम त जगत्का क याण क जये। नी त कहती है क समूचे कुलके हतके लये एक को याग दे , गाँवके हतके लये एक कुलको छोड़ दे , दे शके हतके लये एक गाँवका प र याग कर दे और आ माके क याणके लये सारे भूम डलको याग दे ।’ व र तथा उन सभी े ा ण के य कहनेपर भी पु नेहके ब धनम बँधे ए राजा धृतराने वैसा नह कया। जनमेजय! इस कार राजा धृतराक े पूरे सौ पु ए ।। ३८—४० ।। मासमा ेण संज े क या चैका शता धका । गा धाया ल यमानायामुदरेण ववधता ।। ४१ ।। धृतरा ं महाराजं वै या पयचरत् कल । त मन् संव सरे राजन् धृतरा ा महायशाः ।। ४२ ।। ज े धीमां तत त यां युयु सुः करणो नृप । एवं पु शतं ज े धृतरा य धीमतः ।। ४३ ।। महारथानां वीराणां क या चैका शता धका । युयु सु महातेजा वै यापु ः तापवान् ।। ४४ ।। तदन तर एक ही मासम गा धारीसे एक क या उ प ई, जो सौ पु के अ त र थी। जन दन गभ धारण करनेके कारण गा धारीका पेट बढ़ गया था और वह लेशम पड़ी रहती थी, उन दन महाराज धृतराक सेवाम एक वै यजातीय ी रहती थी। े े ै ी े ी

राजन्! उस वष धृतराक े अंशसे उस वै यजातीय भायाके ारा महायश वी बु मान् युयु सुका ज म आ। जनमेजय! युयु सु करण कहे जाते थे। इस कार बु मान् राजा धृतराक े एक सौ वीर महारथी पु ए। त प ात् एक क या ई, जो सौ पु के अ त र थी। इन सबके सवा महातेज वी परम तापी वै यापु युयु सु भी थे ।। ४१—४४ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण गा धारीपु ो प ौ चतुदशा धकशततमोऽ यायः ।। ११४ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम गा धारीपु ो प वषयक एक सौ चौदहवाँ अ याय पूरा आ ।। ११४ ।।

प चदशा धकशततमोऽ यायः ःशलाके ज मक कथा जनमेजय उवाच धृतरा य पु ाणामा दतः क थतं वया । ऋषेः सादात् तु शतं न च क या क तता ।। १ ।। जनमेजयने पूछा— न्! मह ष ासके सादसे धृतराक े सौ पु ए, यह बात आपने मुझे पहले ही बता द थी। परंतु उस समय यह नह कहा था क उ ह एक क या भी ई ।। १ ।। वै यापु ो युयु सु क या चैका शता धका । गा धारराज हता शतपु े त चानघ ।। २ ।। उ ा मह षणा तेन ासेना मततेजसा । कथं वदान भगवन् क यां वं तु वी ष मे ।। ३ ।। अनघ! इस समय आपने वै यापु युयु सु तथा सौ पु के अ त र एक क याक भी चचा क है। अ मततेज वी मह ष ासने गा धारराजकुमारीको सौ पु होनेका ही वरदान दया था। भगवन्! फर आप मुझसे यह कैसे कहते ह क एक क या भी ई ।। २-३ ।। य द भागशतं पेशी कृता तेन मह षणा । न जा य त चेद ् भूयः सौबलेयी कथंचन ।। ४ ।। कथं तु स भव त या ःशलाया वद व मे । यथाव दह व ष परं मेऽ कुतूहलम् ।। ५ ।। य द मह षने उ मांस प डके सौ भाग कये और य द सुबलपु ी गा धारीने कसी कार फर गभ धारण या सव नह कया, तो उस ःशला नामवाली क याका ज म कस कार आ? ष! यह सब यथाथ पसे मुझे बताइये। मुझे इस वषयम कौतूहल हो रहा है ।। ४-५ ।। वैश पायन उवाच सा वयं उ ः पा डवेय वी म ते । तां मांसपेश भगवान् वयमेव महातपाः ।। ६ ।। शीता भर रा स य भागं भागमक पयत् । यो यथा क पतो भाग तं तं धाया तथा नृप ।। ७ ।। घृतपूणषु कु डेषु एकैकं ा पत् तदा । एत म तरे सा वी गा धारी सु ढ ता ।। ८ ।। हतुः नेहसंयोगमनु याय वरा ना । मनसा च तयद् दे वी एतत् पु शतं मम ।। ९ ।। भ व य त न संदेहो न वी य यथा मु नः । े





ममेयं परमा तु हता मे भवेद ् य द ।। १० ।। वैश पायनजीने कहा—पा डवन दन! तुमने यह ब त अ छा पूछा है। म तु ह इसका उ र दे ता ँ। महातप वी भगवान् ासने वयं ही उस मांस प डको शीतल जलसे स चकर उसके सौ भाग कये। राजन्! उस समय जो भाग जैसा बना, उसे धाय ारा वे एक-एक करके घीसे भरे ए कु ड म डलवाते गये। इसी बीचम पूण ढ़तासे सती तका पालन करनेवाली सा वी एवं सु दरी गा धारी क याके नेह-स ब धका वचार करके मनही-मन सोचने लगी—इसम संदेह नह क इस मांस प डसे मेरे सौ पु उ प ह गे; य क ासमु न कभी झूठ नह बोलते; परंतु मुझे अ धक संतोष तो तब होता, य द एक पु ी भी हो जाती ।। ६—१० ।। एका शता धका बाला भ व य त कनीयसी । ततो दौ ह जा लोकादबा ोऽसौ प तमम ।। ११ ।। य द सौ पु के अ त र एक छोट क या हो जायगी तो मेरे ये प त दौ ह के पु यसे ा त होनेवाले उ म लोक से भी वं चत नह रहगे ।। ११ ।। अ धका कल नारीणां ी तजामातृजा भवेत् । य द नाम ममा प याद् हतैका शता धका ।। १२ ।। कृतकृ या भवेयं वै पु दौ ह संवृता । य द स यं तप त तं द ं वा यथवा तम् ।। १३ ।। गुरव तो षता वा प तथा तु हता मम । एत म ेव काले तु कृ ण ै पायनः वयम् ।। १४ ।। भजत् स तदा पेश भगवानृ षस मः । गण य वा शतं पूणमंशानामाह सौबलीम् ।। १५ ।। कहते ह, य का दामादम पु से भी अ धक नेह होता है। य द मुझे भी सौ पु के अ त र एक पु ी ा त हो जाय तो म पु और दौ ह दोन से घरी रहकर कृतकृ य हो जाऊँ। य द मने सचमुच तप, दान अथवा होम कया हो तथा गु जन को सेवा ारा स कर लया हो, तो मुझे पु ी अव य ा त हो। इसी बीचम मु न े भगवान् ीकृ ण ै पायन वेद ासने वयं ही उस मांस प डके वभाग कर दये और पूरे सौ अंश क गणना करके गा धारीसे कहा ।। १२—१५ ।। ास उवाच पूण पु शतं वेत मया वागुदा ता । दौ ह योगाय भाग एकः श ः शतात् परः । एषा ते सुभगा क या भ व य त यथे सता ।। १६ ।। ासजी बोले—गा धारी! मने झूठ बात नह कही थी; ये पूरे सौ पु ह। सौके अ त र एक भाग और बचा है, जससे दौ ह का योग होगा। इस अंशसे तु ह अपने मनके अनु प एक सौभा यशा लनी क या ा त होगी ।। १६ ।। ततोऽ यं घृतकु भं च समाना य महातपाः । ो

तं चा प ा पत् त क याभागं तपोधनः ।। १७ ।। एतत् ते क थतं राजन् ःशलाज म भारत । ू ह राजे क भूयो वत य या म तेऽनघ ।। १८ ।। य कहकर महातप वी ासजीने घीसे भरा आ एक और घड़ा मँगाया और उन तपोधन मु नने उस क याभागको उसीम डाल दया। भरतवंशी नरेश! इस कार मने तु ह ःशलाके ज मका संग सुना दया। अनघ! बोलो, अब पुनः और या क ँ ।। १७-१८ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण ःशलो प ौ प चदशा धकशततमोऽ यायः ।। ११५ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम ःशलाक उ प से स ब ध रखनेवाला एक सौ पं हवाँ अ याय पूरा आ ।। ११५ ।।

षोडशा धकशततमोऽ यायः धृतरा के सौ पु क नामावली जनमेजय उवाच ये ानु ये तां तेषां नामा न च पृथक् पृथक् । धृतरा य पु ाणामानुपू ात् क तय ।। १ ।। जनमेजयने पूछा— न्! धृतराक े पु म सबसे ये कौन था? फर उससे छोटा और उससे भी छोटा कौन था? उन सबके अलग-अलग नाम या थे? इन सब बात का मशः वणन क जये ।। १ ।। वैश पायन उवाच य धनो युयु सु राजन् ःशासन तथा । ःसहो ःशल ैव जलसंधः समः सहः ।। २ ।। व दानु व दौ धषः सुबा धषणः । मषणो मुख कणः कण एव च ।। ३ ।। व वश त वकण शलः स वः सुलोचनः । च ोप च ौ च ा ा च शरासनः ।। ४ ।। मदो वगाह व व सु वकटाननः । ऊणनाभः सुनाभ तथा न दोपन दकौ ।। ५ ।। च बाण वमा सुवमा वरोचनः । अयोबा महाबा ा कु डलः ।। भीमवेगो भीमबलो बलाक बलवधनः । उ ायुधः सुषेण कु डोदरमहोदरौ ।। ७ ।। च ायुधो नष च पाशी वृ दारक तथा । ढवमा ढ ः सोमक तरनूदरः ।। ढस धो जरास धः स यस धः सदःसुवाक् । उ वा उ सेनः सेनानी पराजयः ।। अपरा जतः प डतको वशाला ो राधरः । ढह तः सुह त वातवेगसुवचसौ ।। १० ।। आ द यकेतुब ाशी नागद ोऽ या य प । कवची थनः द डी द डधारो धनु हः ।। ११ ।। उ भीमरथौ वीरौ वीरबा रलोलुपः । अभयो रौ कमा च तथा ढरथा यः ।। १२ ।। अनाधृ यः कु डभेद वरावी च कु डलः । मथ माथी च द घरोम वीयवान् ।। १३ ।। ो

द घबा महाबा ूढो ः कनक वजः । कु डाशी वरजा ैव ःशला च शता धका ।। १४ ।। वैश पायनजीने कहा—(जनमेजय! धृतरा के पु के नाम मशः ये ह—) १. य धन, २. युयु सु, ३. शासन, ४. सह, ५. शल, ६. जलसंध, ७. सम, ८. सह, ९. व द, १०. अनु व द, ११. धष, १२. सुबा , १३. धषण, १४. मषण, १५. मुख, १६. कण, १७. कण, १८. व वश त, १९. वकण, २०. शल, २१. स व, २२. सुलोचन, २३. च , २४. उप च , २५. च ा , २६. चा च शरासन ( च -चाप), २७. मद, २८. वगाह, २९. व व सु, ३०. वकटानन ( वकट), ३१. ऊणनाभ, ३२. सुनाभ (प नाभ), ३३. न द, ३४. उपन द, ३५. च बाण ( च बा ), ३६. च वमा, ३७. सुवमा, ३८. वरोचन, ३९. अयोबा , ४०. महाबा च ांग ( च ांगद), ४१. च कु डल (सुकु डल), ४२. भीमवेग, ४३. भीमबल, ४४. बलाक , ४५. बलवधन ( व म), ४६. उ ायुध, ४७. सुषेण, ४८. कु डोदर, ४९. महोदर, ५०. च ायुध ( ढ़ायुध), ५१. नषंगी, ५२. पाशी, ५३. वृ दारक, ५४. ढ़वमा, ५५. ढ़ , ५६. सोमक त, ५७. अनूदर, ५८. ढ़स ध, ५९. जरास ध, ६०. स यस ध, ६१. सदःसुवाक् (सहवाक ् ), ६२. उ वा, ६३. उ सेन, ६४. सेनानी (सेनाप त), ६५. पराजय, ६६. अपरा जत, ६७. प डतक, ६८. वशाला , ६९. राधर ( राधन), ७०. ढ़ह त, ७१. सुह त, ७२. वातवेग, ७३. सुवचा, ७४. आ द यकेतु, ७५. ब ाशी, ७६. नागद , ७७. अ यायी (अनुयायी), ७८. कवची, ७९. थन, ८०. द डी, ८१. द डधार, ८२. धनु ह, ८३. उ , ८४. भीमरथ, ८५. वीरबा , ८६. अलोलुप, ८७. अभय, ८८. रौ कमा, ८९. ढ़रथा य ( ढ़रथ), ९०. अनाधृ य, ९१. कु डभेद , ९२. वरावी, ९३. व च कु डल से सुशो भत मथ, ९४. माथी, ९५. वीयवान् द घरोमा (द घलोचन), ९६. द घबा , ९७. महाबा ूढो , ९८. कनक वज (कनकांगद), ९९. कु डाशी (कु डज) तथा १००. वरजा—धृतराक े ये सौ पु थे। इनके सवा ःशला नामक एक क या थी, जो सौसे अ धक थी* ।। २—१४ ।। इ त पु शतं राजन् क या चैव शता धका । नामधेयानुपू ण व ज म मं नृप ।। १५ ।। राजन्! इस कार धृतराक े सौ पु और उन सौके अ त र एक क या बतायी गयी। राजन्! जस मसे इनके नाम लये गये ह, उसी मसे इनका ज म आ समझो ।। १५ ।। सव व तरथाः शूराः सव यु वशारदाः । सव वेद वद ैव सव सवा को वदाः ।। १६ ।। ये सभी अ तरथी शूरवीर थे। सबने यु व ाम नपुणता ा त कर ली थी। सब-केसब वेद के व ान् तथा स पूण अ व ाके मम थे ।। १६ ।। सवषामनु पा कृता दारा महीपते । धृतरा ेण समये परी य व धव ृप ।। १७ ।। ःशलां चा प समये धृतरा ो नरा धपः । ौ

जय थाय ददौ व धना भरतषभ ।। १८ ।। जनमेजय! राजा धृतराने समयपर भलीभाँ त जाँच-पड़ताल करके अपने सभी पु का उनके यो य य के साथ ववाह कर दया। भरत े ! महाराज धृतराने ववाहके यो य समय आनेपर अपनी पु ी ःशलाका राजा जय थके साथ व धपूवक ववाह कया ।। १७-१८ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण धृतरा पु नामकथने षोडशा धकशततमोऽ यायः ।। ११६ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम धृतरापु नामवणन वषयक एक सौ सोलहवाँ अ याय पूरा आ ।। ११६ ।।

* आ दपवके सरसठव अ यायम भी धृतराक े सौ पु के नाम आये ह। वहाँ जो नाम दये गये ह, उनमसे अ धकांश नाम इस अ यायम भी य -के- य ह। कुछ नाम म साधारण अ तर है, ज ह यहाँ को कम दे दया गया है। इस कार यहाँ और वहाँके नाम क एकता क गयी है। थोड़े-से नाम ऐसे भी ह, जनका मेल नह मलता। नाम के मम भी दोन थल म अ तर है। स भव है, उनके दो-दो नाम रहे ह और दोन थल म भ - भ नाम का उ लेख हो।

स तदशा धकशततमोऽ यायः राजा पा डु के ारा मृग पधारी मु नका वध तथा उनसे शापक ा त जनमेजय उवाच क थतो धातरा ाणामाषः स भव उ मः । अमनु यो मनु याणां भवता वा दना ।। १ ।। जनमेजयने कहा—भगवन्! आपने धृतराक े पु के ज मका उ म संग सुनाया है, जो मह ष ासक कृपासे स भव आ था। आप वाद ह। आपने य प यह मनु य के ज मका वृता त बताया है, तथा प यह सरे मनु य म कभी नह दे खा गया ।। १ ।। नामधेया न चा येषां कयमाना न भागशः । व ः ुता न मे न् पा डवानां च क तय ।। २ ।। न्! इन धृतरापु क े पृथक्-पृथक् नाम भी जो आपने कहे ह, वे मने अ छ तरह सुन लये। अब पा डव के ज मका वणन क जये ।। २ ।। ते ह सव महा मानो दे वराजपरा माः । वयैवांशावतरणे दे वभागाः क तताः ।। ३ ।। वे सब महा मा पा डव दे वराज इ के समान परा मी थे। आपने ही अंशावतरणके संगम उ ह दे वता का अंश बताया था ।। ३ ।। एत द छा यहं ोतुम तमानुषकमणाम् । तेषामाजननं सव वैश पायन क तय ।। ४ ।। वैश पायनजी! वे ऐसे परा म कर दखाते थे, जो मनु य क श के परे ह; अतः म उनके ज म-स ब धी वृ ा तको स पूणतासे सुनना चाहता ँ; कृपा करके क हये ।। ४ ।। वैश पायन उवाच राजा पा डु महार ये मृग ाल नषे वते । चरन् मैथुनधम थं ददश मृगयूथपम् ।। ५ ।। वैश पायनजी बोले—जनमेजय! एक समय राजा पा डु मृग और सप से से वत वशाल वनम वचर रहे थे। उ ह ने मृग के एक यूथप तको दे खा, जो मृगीके साथ मैथुन कर रहा था ।। ५ ।। तत तां च मृग तं च मपुङ्खैः सुप भः । न बभेद शरै ती णैः पा डु ः प च भराशुगैः ।। ६ ।। उसे दे खते ही राजा पा डु ने पाँच सु दर एवं सुनहरे पंख से यु तीखे तथा शी गामी बाण ारा, उस मृगी और मृगको भी ब ध डाला ।। ६ ।। स च राजन् महातेजा ऋ षपु तपोधनः । े





भायया सह तेज वी मृग पेण संगतः ।। ७ ।। राजन्! उस मृगके पम एक महातेज वी तपोधन ऋ षपु थे, जो अपनी मृगी पधा रणी प नीके साथ तेज वी मृग बनकर समागम कर रहे थे ।। ७ ।। संस तया मृ या मानुषीमीरयन् गरम् । णेन प ततो भूमौ वललापाकुले यः ।। ८ ।। वे उस मृगीसे सटे ए ही मनु य क -सी बोली बोलते ए णभरम पृ वीपर गर पड़े। उनक इ याँ ाकुल हो गय और वे वलाप करने लगे ।। ८ ।।

मृग उवाच कामम युपरीता ह बुा वर हता अ प । वजय त नृशंसा न पापे व प रता नराः ।। ९ ।। न वध सते ा ां तु सते व धः । व धपयागतानथान् ा ो न तप ते ।। १० ।। मृगने कहा—राजन्! जो मनु य काम और ोधसे घरे ए, बु शू य तथा पाप म संल न रहनेवाले ह, वे भी ऐसे ू रतापूण कमको याग दे ते ह। बु ार धको नह सती (नह लाँघ सकती) ार ध ही बु को अपना ास बना लेता है ( कर दे ता है)। ार धसे ा त होनेवाले पदाथ को बु मान् पु ष भी नह जान पाता ।। ९-१० ।। श मा मनां मु ये कुले जात य भारत । ो े

कामलोभा भभूत य कथं ते च लता म तः ।। ११ ।। भारत! सदा धमम मन लगानेवाले य के धान कुलम तु हारा ज म आ है, तो भी काम और लोभके वशीभूत होकर तु हारी बु धमसे कैसे वच लत ई? ।। ११ ।। पा डु वाच श ूणां या वधे वृ ः सा मृगाणां वधे मृता । रा ां मृग न मां मोहात् वं गह यतुमह स ।। १२ ।। पा डु बोले—श ु के वधम राजा क जैसी वृ बतायी गयी है, वैसी ही मृग के वधम भी मानी गयी है; अतः मृग! तु ह मोहवश मेरी न दा नह करनी चा हये ।। १२ ।। अ छना मायया च मृगाणां वध इ यते । स एव धम रा ां तु त वं क नु गहसे ।। १३ ।। कट या अ कट पसे मृग का वध हमारे लये अभी है। वह राजा के लये धम है, फर तुम उसक न दा कैसे करते हो? ।। १३ ।। अग यः स मासीन कार मृगयामृ षः । आर यान् सवदे वे यो मृगान् ेषन् महावने ।। १४ ।। माण धमण कथम मान् वगहसे । अग य या भचारेण यु माकं व हतो वधः ।। १५ ।। मह ष अग य एक स म द त थे, तब उ ह ने भी मृगया क थी। सभी दे वता के हतके लये उ ह ने स म व न करनेवाले पशु को महान् वनम खदे ड़ दया था। अग य ऋ षके उ हसाकमके अनुसार (मुझ यके लये तो) तु हारा वध करना ही उ चत है। म माण स धमके अनुकूल बताव करता ँ, तो भी तुम य मेरी न दा करते हो? ।। १४-१५ ।। मृग उवाच न रपून् वै समु य वमु च त नराः शरान् । र एषां वशेषेण वधः काले श यते ।। १६ ।। मृगने कहा—मनु य अपने श ु पर भी, वशेषतः जब वे संकटकालम ह , बाण नह छोड़ते। उपयु अवसर (सं ाम आ द)-म ही श ु के वधक शंसा क जाती है ।। १६ ।।

पा डु वाच म म म ं वा ववृ ं न त चौजसा । उपायै व वधै ती णैः क मा मृग वगहसे ।। १७ ।। पा डु बोले—मृग! राजालोग नाना कारके ती ण उपाय ारा बलपूवक खुले-आम मृगका वध करते ह; चाहे वह सावधान हो या असावधान। फर तुम मेरी न दा य करते हो? ।। १७ ।। मृग उवाच

नाहं न तं मृगान् राजन् वगह चा मकारणात् । मैथुनं तु ती यं मे वयेहा ानृशं यतः ।। १८ ।। मृगने कहा—राजन्! म अपने मारे जानेके कारण इस बातके लये तु हारी न दा नह करता क तुम मृग को मारते हो। मुझे तो इतना ही कहना है क तु ह दयाभावका आ य लेकर मेरे मैथुनकमसे नवृ होनेतक ती ा करनी चा हये थी ।। १८ ।। सवभूत हते काले सवभूते सते तथा । को ह व ान् मृगं ह या चर तं मैथुनं वने ।। १९ ।। जो स पूण भूत के लये हतकर और अभी है, उस समयम वनके भीतर मैथुन करनेवाले कसी मृगको कौन ववेकशील पु ष मार सकता है? ।। १९ ।। अ यां मृ यां च राजे हषा मैथुनमाचरम् । पु षाथफलं कतु तत् वया वफलीकृतम् ।। २० ।। राजे ! म बड़े हष और उ लासके साथ अपने काम पी पु षाथको सफल करनेके लये इस मृगीके साथ मैथुन कर रहा था; कतु तुमने उसे न फल कर दया ।। २० ।। पौरवाणां महाराज तेषाम ल कमणाम् । वंशे जात य कौर नानु प मदं तव ।। २१ ।। महाराज! लेशर हत कम करनेवाले कु वं शय के कुलम ज म लेकर तुमने जो यह काय कया है, यह तु हारे अनु प नह है ।। २१ ।। नृशंसं कम सुमहत् सवलोक वग हतम् । अ व यमयश यं चा यध म ं च भारत ।। २२ ।। भारत! अ य त कठोरतापूण कम स पूण लोक म न दत है। वह वग और यशको हा न प ँचानेवाला है। इसके सवा वह महान् पापकृ य है ।। २२ ।। ीभोगानां वशेष ः शा धमाथत व वत् । नाह वं सुरसंकाश कतुम व यमी शम् ।। २३ ।। दे वतु य महाराज! तुम ी-भोग के वशेष तथा शा ीय धम एवं अथके त वको जाननेवाले हो। तु ह ऐसा नरक द पापकाय नह करना चा हये था ।। २३ ।। वया नृशंसकतारः पापाचारा मानवाः । न ा ाः पा थव े वगप रव जताः ।। २४ ।। नृप शरोमणे! तु हारा कत तो यह है क धम, अथ और कामसे हीन जो पापाचारी मनु य कठोरतापूण कम करनेवाले ह , उ ह द ड दो ।। २४ ।। क कृतं ते नर े मा महानागसं नता । मु न मूलफलाहारं मृगवेषधरं नृप ।। २५ ।। वसमानमर येषु न यं शमपरायणम् । वयाहं ह सतो य मात् त मात् वाम यहं शपे ।। २६ ।। नर े ! म तो फल-मूलका आहार करनेवाला एक मु न ँ और मृगका प धारण करके शम-दमके पालनम त पर हो सदा जंगल म ही नवास करता ँ। मुझ नरपराधको ँ



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मारकर यहाँ तुमने या लाभ उठाया? तुमने मेरी ह या क है, इस लये बदलेम म भी तु ह शाप दे ता ँ ।। २५-२६ ।। योनृशंसकतारमवशं काममो हतम् । जी वता तकरो भाव एवमेवाग म य त ।। २७ ।। तुमने मैथुन-धमम आस दो ी-पु ष का न ु रता-पूवक वध कया है। तुम अ जते य एवं कामसे मो हत हो; अतः इसी कार मैथुनम आस होनेपर जीवनका अ त करनेवाली मृ यु न य ही तुमपर आ मण करेगी ।। २७ ।। अहं ह कदमो नाम तपसा भा वतो मु नः । प प मनु याणां मृ यां मैथुनमाचरम् ।। २८ ।। मृगो भू वा मृगैः साध चरा म गहने वने । न तु ते ह येयं भ व य य वजानतः ।। २९ ।। मेरा नाम कदम है। म तप याम संल न रहनेवाला मु न ँ, अतः मनु य म—मानवशरीरसे यह काम करनेम मुझे ल जाका अनुभव हो रहा था। इसी लये मृग बनकर अपनी मृगीके साथ मैथुन कर रहा था। म ायः इसी पम मृग के साथ घने वनम वचरता रहता ँ। तु ह मुझे मारनेसे ह या तो नह लगेगी; य क तुम यह बात नह जानते थे ( क यह मु न है) ।। २८-२९ ।। मृग पधरं ह वा मामेवं काममो हतम् । अ य तु वं फलं मूढ ा यसी शमेव ह ।। ३० ।। परंतु जब म मृग प धारण करके कामसे मो हत था, उस अव थाम तुमने अ य त ू रताके साथ मुझे मारा है; अतः मूढ़! तु ह अपने इस कमका ऐसा ही फल अव य मलेगा ।। ३० ।। यया सह संवासं ा य काम वमो हतः । वम य यामव थायां ेतलोकं ग म य स ।। ३१ ।। तुम भी जब कामसे सवथा मो हत होकर अपनी यारी प नीके साथ समागम करने लगोगे, तब इस—मेरी अव थाम ही यमलोक सधारोगे ।। ३१ ।। अ तकाले ह संवासं यया ग ता स का तया । ेतराजपुरं ा तं सवभूत र ययम् । भ या म तमतां े सैव वानुग म य त ।। ३२ ।। बु मान म े महाराज! अ तकाल आनेपर तुम जस यारी प नीके साथ समागम करोगे, वही सम त ा णय के लये गम यमलोकम जानेपर भ भावसे तु हारा अनुसरण करेगी ।। ३२ ।। वतमानः सुखे ःखं यथाहं ा पत वया । तथा वां च सुखं ा तं ःखम याग म य त ।। ३३ ।। म सुखम म न था, तथा प तुमने जस कार मुझे ःखम डाल दया, उसी कार तुम भी जब ेयसी प नीके संयोग-सुखका अनुभव करोगे, उसी समय तु हारे ऊपर ःख टू ट पड़ेगा ।। ३३ ।। ै

वैश पायन उवाच एवमु वा सु ःखात जी वतात् स मु यत । मृगः पा डु ःखातः णेन समप त ।। ३४ ।। वैश पायनजी कहते ह—य कहकर वे मृग प-धारी मु न अ य त ःखसे पी ड़त हो गये और उनका दे हा त हो गया तथा राजा पा डु भी णभरम ःखसे आतुर हो उठे ।। ३४ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण पा डु मृगशापे स तदशा धकशततमोऽ यायः ।। ११७ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम पा डु को मृगका शाप नामक एक सौ स हवाँ अ याय पूरा आ ।। ११७ ।।

अ ादशा धकशततमोऽ यायः पा डु का अनुताप, सं यास लेनेका न य तथा प नय के अनुरोधसे वान थ-आ मम वेश वैश पायन उवाच तं तीतम त य राजा व मव बा धवम् । सभायः शोक ःखातः पयदे वयदातुरः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! उन मृग पधारी मु नको मरा आ छोड़कर राजा पा डु जब आगे बढ़े , तब प नीस हत शोक और ःखसे आतुर हो अपने सगे भाईब धुक भाँ त उनके लये वलाप करने लगे तथा अपनी भूलपर प ा ाप करते ए कहने लगे ।। १ ।। पा डु वाच सताम प कुले जाताः कमणा बत ग तम् । ा ुव यकृता मानः कामजाल वमो हताः ।। २ ।। पा डु बोले—खेदक बात है क े पु ष के उ म कुलम उ प मनु य भी अपने अ तःकरणपर वश न होनेके कारण कामके फंदे म फँसकर ववेक खो बैठते ह और अनु चत कम करके उसके ारा भारी ग तम पड़ जाते ह ।। २ ।। श मा मना जातो बाल एव पता मम । जी वता तमनु ा तः कामा मैवे त नः ुतम् ।। ३ ।। हमने सुना है, सदा धमम मन लगाये रहनेवाले महाराज श तनुसे जनका ज म आ था, वे मेरे पता व च वीय भी कामभोगम आस च होनेके कारण ही छोट अव थाम ही मृ युको ा त ए थे ।। ३ ।। त य कामा मनः े े रा ः संयतवागृ षः । कृ ण ै पायनः सा ाद् भगवान् मामजीजनत् ।। ४ ।। उ ह कामास नरेशक प नीसे वाणीपर संयम रखनेवाले ऋ ष वर सा ात् भगवान् ीकृ ण ै पायनने मुझे उ प कया ।। ४ ।। त या सने बु ः संजातेयं ममाधमा । य य दे वैरनया मृगयां प रधावतः ।। ५ ।। म शकारके पीछे दौड़ता रहता ँ; मेरी इसी अनी तके कारण जान पड़ता है दे वता ने मुझे याग दया है। इसी लये तो ऐसे वशु वंशम उ प होनेपर भी आज सनम फँसकर मेरी यह बु इतनी नीच हो गयी ।। ५ ।। मो मेव व या म ब धो ह सनं महत् । सुवृ मनुव त ये तामहं पतुर याम् ।। ६ ।। ँ







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अतः अब म इस न यपर प ँच रहा ँ क मो के मागपर चलनेसे ही अपना क याण है। ी-पु आ दका ब धन ही सबसे महान् ःख है। आजसे म अपने पता वेद ासजीक उस उ म वृ का आ य लूँगा, जससे पु यका कभी नाश नह होता ।। ६ ।। अतीव तपसाऽऽ मानं योज य या यसंशयम् । त मादे कोऽहमेकाक एकैक मन् वन पतौ ।। ७ ।। चरन् भै यं मु नमु ड र या या मा नमान् । पांसुना समव छ ः शू यागारकृतालयः ।। ८ ।। म अपने शरीर और मनको नःसंदेह अ य त कठोर तप याम लगाऊँगा। इस लये अब अकेला ( ीर हत) और एकाक (सेवक आ दसे भी अलग) रहकर एक-एक वृ के नीचे फलक भ ा माँगँग ू ा। सर मुँड़ाकर मौनी सं यासी हो इन वान थय के आ म म वच ँ गा। उस समय मेरा शरीर धूलसे भरा होगा और नजन एका त थानम मेरा नवास होगा ।। ७-८ ।। वृ मूल नकेतो वा य सव या यः । न शोचन् न यं तु य न दा मसं तु तः ।। ९ ।। अथवा वृ का तल ही मेरा नवासगृह होगा। म य एवं अ य सब कारक व तु को याग ँ गा। न मुझे कसीके वयोगका शोक होगा और न कसीक ा त या संयोगसे हष ही होगा। न दा और तु त दोन मेरे लये समान ह गी ।। ९ ।। नराशी ननम कारो न ो न प र हः । न चा यवहसन् क च कुवन् ुकुट व चत् ।। १० ।। न मुझे आशीवादक इ छा होगी न नम कारक । म सुख- ःख आ द से र हत और सं ह-प र हसे र र ँगा। न तो कसीक हँसी उड़ाऊँगा और न ोधसे कसीपर भ ह टे ढ़ क ँ गा ।। १० ।। स वदनो न यं सवभूत हते रतः । ज माज मं सवम व हसं तु वधम् ।। ११ ।। मेरे मुखपर स ता छायी रहेगी तथा सदा सब भूत के हतसाधनम संल न र ँगा। ( वेदज, उ ज, अ डज, जरायुज—) चार कारके जो चराचर ाणी ह, उनमसे कसीक भी म हसा नह क ँ गा ।। ११ ।। वासु जा वव सदा समः ाणभृतां त । एककालं चरन् भै यं कुला न दश प च वा ।। १२ ।। जैसे पता अपनी अनेक संतान म सवदा समभाव रखता है, उसी कार सम त ा णय के त मेरा सदा समानभाव होगा। (पहले कहे अनुसार) म केवल एक समय वृ से भ ा माँगँग ू ा अथवा यह स भव न आ तो दस-पाँच घर म घूमकर (थोड़ी-थोड़ी) भ ा ले लूँगा ।। १२ ।। अस भवे वा भै य य चर नशना य प । अ पम पं च भु ानः पूवालाभे न जातु चत् ।। १३ ।। ँ ो े

अ या य प चरँ लोभादलाभे स त पूरयन् । अलाभे य द वा लाभे समदश महातपाः ।। १४ ।। अथवा य द भ ा मलनी अस भव हो जाय, तो कई दनतक उपवास ही करता चलूँगा। ( भ ा मल जानेपर भी) भोजन थोड़ा-थोड़ा ही क ँ गा। ऊपर बताये ए एक कारसे भ ा न मलनेपर ही सरे कारका आ य लूँगा। ऐसा तो कभी न होगा क लोभवश सरे- सरे ब त-से घर म जाकर भ ा लूँ। य द कह कुछ न मला तो भ ाक पू तके लये सात घर पर फेरी लगा लूँगा। य द मला तो और न मला तो, दोन ही दशा म समान रखते ए भारी तप याम लगा र ँगा ।। १३-१४ ।। वा यैकं त तो बा ं च दनेनैकमु तः । नाक याणं न क याणं च तय ुभयो तयोः ।। १५ ।। न जजी वषुवत् क च मुमूषुवदाचरन् । जी वतं मरणं चैव ना भन दन् न च षन् ।। १६ ।। एक आदमी बसूलेसे मेरी एक बाँह काटता हो और सरा मेरी सरी बाँहपर च दन छड़कता हो तो उन दोन मसे एकके अक याणका और सरेके क याणका च तन नह क ँ गा। जीने अथवा मरनेक इ छावाले मनु य जैसी चे ाएँ करते ह, वैसी कोई चे ा म नह क ँ गा। न जीवनका अ भन दन क ँ गा, न मृ युसे े ष ।। १५-१६ ।। याः का जीवता श याः कतुम युदय याः । ताः सवाः सम त य नमेषा द व थताः ।। १७ ।। तासु चा यनव थासु य सव य यः । स प र य धमाथः सु न ण ा मक मषः ।। १८ ।। जी वत पु ष ारा अपने अ युदयके लये जो-जो कम कये जा सकते ह, उन सम त सकाम कम को म याग ँ गा; य क वे सब कालसे सी मत ह। अ न य फल दे नेवाली या के लये जो स पूण इ य ारा चे ा क जाती है, उस चे ाको भी म सवथा याग ँ गा; धमके फलको भी छोड़ ँ गा। अपने अ तःकरणके मलको सवथा धोकर शु हो जाऊँगा ।। १७-१८ ।। नमु ः सवपापे यो तीतः सववागुराः । न वशे क य चत् त न् सधमा मात र नः ।। १९ ।। म सब पाप से सवथा मु हो अ व ाज नत सम त ब धन को लाँघ जाऊँगा। कसीके वशम न रहकर वायुके समान सव वच ँ गा ।। १९ ।। एतया सततं धृ या चर ेवं कारया । दे हं सं थाप य या म नभयं मागमा थतः ।। २० ।। सदा इस कारक धृ त (धारणा)- ारा उ पसे वहार करता आ भयर हत मो मागम थत होकर इस दे हका वसजन क ँ गा ।। २० ।। नाहं सुकृपणे माग ववीय यशो चते । वधमात् सततापेते चरेयं वीयव जतः ।। २१ ।। ो











म संतानो पादनक श से र हत हो गया ँ। मेरा गृह था म संतानो पादन आ द धमसे सवथा शू य है और मेरे लये अपने वीय यके कारण सवथा शोचनीय हो रहा है; अतः इस अ य त द नतापूण मागपर अब म नह चल सकता ।। २१ ।। स कृतोऽस कृतो वा प योऽ यं कृपणच ुषा । उपै त वृ कामा मा स शुनां वतते प थ ।। २२ ।। जो स कार या तर कार पाकर द नतापूण से दे खता आ कसी सरे पु षके पास जी वकाक आशासे जाता है, वह कामा मा मनु य तो कु के मागपर चलता है ।। २२ ।। वैश पायन उवाच एवमु वा सु ःखात नः ासपरमो नृपः । अवे माणः कु त च मा च समभाषत ।। २३ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! य कहकर राजा पा डु अ य त ःखसे आतुर हो लंबी साँस ख चते और कु ती-मा क ओर दे खते ए उन दोन से इस कार बोले — ।। २३ ।। कौस या व रः ा राजा च सह ब धु भः । आया स यवती भी म ते च राजपुरो हताः ।। २४ ।। ा णा महा मानः सोमपा: सं शत ताः । पौरवृ ा ये त नवस य मदा याः । सा सव व ाः पा डु ः जतो वनम् ।। २५ ।। ‘(दे वयो! तुम दोन ह तनापुरको लौट जाओ और) माता अ बका, अ बा लका, भाई व र, संजय, ब धु स हत राजा धृतरा, दाद स यवती, चाचा भी मजी, राजपुरो हतगण, कठोर तका पालन तथा सोमपान करनेवाले महा मा ा ण तथा वृ पुरवासीजन आ द जो लोग वहाँ हमलोग के आ त होकर नवास करते ह, उन सबको स करके कहना, ‘राजा पा डु सं यासी होकर वनम चले गये’ ।। २४-२५ ।। नश य वचनं भतुवनवासे धृता मनः । त समं वचनं कु ती मा च समभाषताम् ।। २६ ।। वनवासके लये ढ़ न य करनेवाले प तदे वका यह वचन सुनकर कु ती और मा ने उनके यो य बात कही— ।। २६ ।।

अ येऽ प ा माः स त ये श या भरतषभ । आवा यां धमप नी यां सह त तुं तपो महत् ।। २७ ।। ‘भरत े ! सं यासके सवा और भी तो आ म ह, जनम आप हम धमप नय के साथ रहकर भारी तप या कर सकते ह ।। २७ ।। शरीर या प मो ाय व य ा य महाफलम् । वमेव भ वता भता वग या प न संशयः ।। २८ ।। ‘आपक वह तप या वगदायक महान् फलक ा त कराकर इस शरीरसे भी मु दलानेम समथ हो सकती है। इसम संदेह नह क उस तपके भावसे आप ही वगलोकके वामी इ भी हो सकते ह ।। २८ ।। णधाये य ामं भतृलोकपरायणे । य कामसुखे ावां त यावो वपुलं तपः ।। २९ ।। ‘हम दोन कामसुखका प र याग करके प तलोकक ा तका ही परम ल य लेकर अपनी स पूण इ य को संयमम रखती ई भारी तप या करगी ।। २९ ।। य द चावां महा ा य य स वं वशा पते । अ ैवावां हा यावो जी वतं ना संशयः ।। ३० ।। ‘महा ा नरे र! य द आप हम दोन को याग दगे तो आज ही हम अपने ाण का प र याग कर दगी, इसम संशय नह है’ ।। ३० ।।

पा डु वाच य द व सतं ेतद् युवयोधमसं हतम् । ववृ मनुव त ये तामहं पतुर याम् ।। ३१ ।। पा डु ने कहा—दे वयो! य द तुम दोन का यही धमयु न य है तो (ठ क है, म सं यास न लेकर वान था मम ही र ँगा तथा) आजसे अपने पता वेद ासजीक अ य फलवाली जीवनचयाका अनुसरण क ँ गा ।। ३१ ।। य वा ा यसुखाहारं त यमानो महत् तपः । व कली फलमूलाशी च र या म महावने ।। ३२ ।। भो गय के सुख और आहारका प र याग करके भारी तप याम लग जाऊँगा। व कल पहनकर फल-मूलका भोजन करते ए महान् वनम वच ँ गा ।। ३२ ।। अ नौ जु ुभौ कालावुभौ कालावुप पृशन् । कृशः प र मताहार ीरचमजटाधरः ।। ३३ ।। दोन समय नान-सं या और अ नहो क ँ गा। चथड़े, मृगचम और जटा धारण क ँ गा। ब त थोड़ा आहार हण करके शरीरसे बल हो जाऊँगा ।। ३३ ।। शीतवातातपसहः ु पपासानवे कः । तपसा रेणेदं शरीरमुपशोषयन् ।। ३४ ।। एका तशीली वमृशन् प वाप वेन वतयन् । पतॄत् दे वां व येन वा भर तपयन् ।। ३५ ।। सद, गरमी और आँधीका वेग स ँगा। भूख- यासक परवा नह क ँ गा तथा कर तप या करके इस शरीरको सुखा डालूँगा। एका तम रहकर आ म- च तन क ँ गा। क चे (क द-मूल आ द) और पके (फल आ द)-से जीवन- नवाह क ँ गा। दे वता और पतर को जंगली फल-मूल, जल तथा म पाठ- ारा तृ त क ँ गा ।। ३४-३५ ।।

शतशृंग पवतपर पा डु का तप

वान थजन या प दशनं कुलवा सनाम् । ना या याच र या म क पुन ामवा सनाम् ।। ३६ ।। म वान थ आ मम रहनेवाल का तथा कुटु बी-जन का भी दशन और अ य नह क ँ गा; फर ामवा सय क तो बात ही या है? ।। ३६ ।। एवमार यशा ाणामु मु तरं व धम् । काङ् माणोऽहमा था ये दे ह या या समापनात् ।। ३७ ।। इस कार म वान थ-आ मस ब धी शा क कठोर-से-कठोर व धय के पालनक आकां ा करता आ तबतक वान थ-आ मम थत र ँगा जबतक क शरीरका अ त न हो जाय ।। ३७ ।। वैश पायन उवाच इ येवमु वा भाय ते राजा कौरवन दनः । तत डाम ण न कम दे कु डला न च ।। ३८ ।। वासां स च महाहा ण ीणामाभरणा न च । दाय सव व े यः पा डु ः पुनरभाषत ।। ३९ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! कु कुलको आन दत करनेवाले राजा पा डु ने अपनी दोन प नय से य कहकर अपने सरपच, न क (व ः थलके आभूषण), बाजूबंद, कु डल और ब मू य व तथा मा और कु तीके भी शरीरके गहने उतारकर सब ा ण को दे दये। फर सेवक से इस कार कहा— ।। ३८-३९ ।। ग वा नागपुरं वा यं पा डु ः जतो वनम् । अथ कामं सुखं चैव र त च परमा मकाम् ।। ४० ।। त थे सवमु सृ य सभायः कु न दनः । ‘तुमलोग ह तनापुरम जाकर कह दे ना क कु न दन राजा पा डु अथ, काम, वषयसुख और ी वषयक र त आ द सब कुछ छोड़कर अपनी प नय के साथ वान थ हो गये ह’ ।। ४० ।। तत त यानुयातार ते चैव प रचारकाः ।। ४१ ।। ु वा भरत सह य व वधाः क णा गरः । भीममात वरं कृ वा हाहे त प रचु ु शुः ।। ४२ ।। भरत सह पा डु क यह क णायु च - व च वाणी सुनकर उनके अनुचर और सेवक सभी हाय-हाय करके भयंकर आतनाद करने लगे ।। ४१-४२ ।। उ णम ु वमु च त तं वहाय महीप तम् । ययुनागपुरं तूण सवमादाय तद् धनम् ।। ४३ ।। उस समय ने से गरम-गरम आँसु क धारा बहाते ए वे सेवक राजा पा डु को छोड़कर और बचा आ सारा धन लेकर तुरंत ह तनापुरको चले गये ।। ४३ ।। ते ग वा नगरं रा ो यथावृ ं महा मनः । कथया च रे रा तद् धनं व वधं द ः ।। ४४ ।। े



उ ह ने ह तनापुरम जाकर महा मा राजा पा डु का सारा समाचार राजा धृतरासे य -का- य कह सुनाया और वह नाना कारका धन धृतराको ही स प दया ।। ४४ ।। ु वा ते य ततः सव यथावृ ं महावने । धृतरा ो नर े ः पा डु मेवा वशोचत ।। ४५ ।। फर उन सेवक से उस महान् वनम पा डु के साथ घ टत ई सारी घटना को यथावत् सुनकर नर े धृतरा सदा पा ड ु क ही च ताम ःखी रहने लगे ।। ४५ ।। न श यासनभोगेषु र त व द त क ह चत् । ातृशोकसमा व तमेवाथ व च तयन् ।। ४६ ।। शया, आसन और नाना कारके भोग म कभी उनक च नह होती थी। वे भाईके शोकम म न हो सदा उ ह क बात सोचते रहते थे ।। ४६ ।। राजपु तु कौर पा डु मूलफलाशनः । जगाम सह प नी यां ततो नागशतं ग रम् ।। ४७ ।। जनमेजय! राजकुमार पा डु फल-मूलका आहार करते ए अपनी दोन प नय के साथ वहाँसे नागशत नामक पवतपर चले गये ।। ४७ ।। स चै रथमासा कालकूटमती य च । हमव तम त य ययौ ग धमादनम् ।। ४८ ।। त प ात् चै रथ नामक वनम जाकर कालकूट और हमालय पवतको लाँघते ए वे ग धमादनपर चले गये ।। ४८ ।। र यमाणो महाभूतैः स ै परम ष भः । उवास स महाराज समेषु वषमेषु च ।। ४९ ।। इ ु नसरः ा य हंसकूटमती य च । शतशृ े महाराज तापसः समत यत ।। ५० ।। महाराज! उस समय महाभूत, स और मह षगण उनक र ा करते थे। वे ऊँचीनीची जमीनपर सो लेते थे। इ ु न सरोवरपर प ँचकर तथा उसके बाद हंसकूटको लाँघते ए वे शतशृंग पवतपर जा प ँचे। जनमेजय! वहाँ वे तप वी-जीवन बताते ए भारी तप याम संल न हो गये ।। ४९-५० ।। इ त ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण पा डु च रतेऽ ादशा धकशततमोऽ यायः ।। ११८ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम पा डु च रत वषयक एक सौ अठारहवाँ अ याय पूरा आ ।। ११८ ।।

एकोन वश य धकशततमोऽ यायः पा डु का कु तीको पु - ा तके लये य न करनेका आदे श वैश पायन उवाच त ा प तप स े े वतमानः स वीयवान् । स चारणसङ् घानां बभूव यदशनः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! वहाँ भी े तप याम लगे ए परा मी राजा पा डु स और चारण के समुदायको अ य त य लगने लगे—इ ह दे खते ही वे स हो जाते थे ।। १ ।। शु ूषुरनहंवाद संयता मा जते यः । वग ग तुं परा ा तः वेन वीयण भारत ।। २ ।। भारत! वे ऋ ष-मु नय क सेवा करते, अहंकारसे र रहते और मनको वशम रखते थे। उ ह ने स पूण इ य को जीत लया था। वे अपनी ही श से वगलोकम जानेके लये सदा सचे रहने लगे ।। २ ।। केषां चदभवद् ाता केषां चदभवत् सखा । ऋषय वपरे चैनं पु वत् पयपालयन् ।। ३ ।। कतने ही ऋ षय का उनपर भाईके समान ेम था। कतन के वे म हो गये थे और सरे ब त-से मह ष उ ह अपने पु के समान मानकर सदा उनक र ा करते थे ।। ३ ।। स तु कालेन महता ा य न क मषं तपः । षस शः पा डु बभूव भरतषभ ।। ४ ।। भरत े जनमेजय! राजा पा डु द घकालतक पापर हत तप याका अनु ान करके षय के समान भावशाली हो गये थे ।। ४ ।। अमावा यां तु स हता ऋषयः सं शत ताः । ाणं ु कामा ते स त थुमहषयः ।। ५ ।। एक दन अमावा या त थको कठोर तका पालन करनेवाले ब त-से ऋ ष-मह ष एक हो ाजीके दशनक इ छासे लोकके लये थत ए ।। ५ ।। स यातानृषीन् ् वा पा डु वचनम वीत् । भव तः व ग म य त ूत मे वदतां वराः ।। ६ ।। ऋ षय को थान करते दे ख पा डु ने उनसे पूछा—‘व ा म े मुनी रो! आपलोग कहाँ जायँगे? यह मुझे बताइये’ ।। ६ ।। ऋषय ऊचुः समवायो महान लोके महा मनाम् । े



दे वानां च ऋषीणां च पतॄणां च महा मनाम् । वयं त ग म यामो ु कामाः वय भुवम् ।। ७ ।। ऋ ष बोले—राजन्! आज लोकम महा मा दे वता , ऋ ष-मु नय तथा महामना पतर का ब त बड़ा समूह एक होनेवाला है। अतः हम वह वय भू ाजीका दशन करनेके लये जायँगे ।। ७ ।। वैश पायन उवाच पा डु थाय सहसा ग तुकामो मह ष भः । वगपारं ततीषुः स शतशृ ा दङ् मुखः ।। ८ ।। त थे सह प नी याम ुवं तं च तापसाः । उपयुप र ग छ तः शैलराजमुदङ् मुखाः ।। ९ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! यह सुनकर महाराज पा डु भी मह षय के साथ जानेके लये सहसा उठ खड़े ए। उनके मनम वगके पार जानेक इ छा जाग उठ और वे उ रक ओर मुँह करके अपनी दोन प नय के साथ शतशृंग पवतसे चल दये। यह दे ख ग रराज हमालयके ऊपर-ऊपर उ रा भमुख या ा करनेवाले तप वी मु नय ने कहा — ।। ८-९ ।। व तो गरौ र ये गान् दे शान् बन् वयम् । वमानशतस बाधां गीत वर नना दताम् ।। १० ।। आ डभूम द े वानां ग धवा सरसां तथा । उ ाना न कुबेर य समा न वषमा ण च ।। ११ ।। ‘भरत े ! इस रमणीय पवतपर हमने ब त-से ऐसे दे श दे खे ह, जहाँ जाना ब त क ठन है। वहाँ दे वता , ग धव तथा अ सरा क ड़ाभू म है, जहाँ सैकड़ वमान खचाखच भरे रहते ह और मधुर गीत के वर गूँजते रहते ह। इसी पवतपर कुबेरके अनेक उ ान ह, जहाँक भू म कह समतल है और कह नीची-ऊँची ।। १०-११ ।। महानद नत बां गहनान् ग रग रान् । स त न य हमा दे शा नवृ मृगप णः ।। १२ ।। ‘इस मागम हमने कई बड़ी-बड़ी न दय के गम तट और कतनी ही पवतीय घा टयाँ दे खी ह। यहाँ ब त-से ऐसे थल ह, जहाँ सदा बफ जमी रहती है तथा जहाँ वृ , पशु और प य का नाम भी नह है ।। १२ ।। स त व च महादय गाः का द् रासदाः । ना त ामेत प ी यान् कुत एवेतरे मृगाः ।। १३ ।। ‘कह -कह ब त बड़ी गुफाएँ ह, जनम वेश करना अ य त क ठन है। कइय के तो नकट भी प ँचना क ठन है। ऐसे थल को प ी भी नह पार कर सकता, फर मृग आ द अ य जीव क तो बात ही या है? ।। १३ ।। वायुरेको ह या य स ा परमषयः । ग छ यौ शैलराजेऽ मन् राजपुयौ कथं वमे ।। १४ ।। ी े



न सीदे ताम ःखाह मा गमो भरतषभ । ‘इस मागपर केवल वायु चल सकती है तथा स मह ष भी जा सकते ह। इस पवतराजपर चलती ई ये दोन राजकुमा रयाँ कैसे क न पायगी? भरतवंश शरोमणे! ये दोन रा नयाँ ःख सहन करनेके यो य नह ह; अतः आप न च लये’ ।। १४ ।। पा डु वाच अ ज य महाभागा न ारं प रच ते ।। १५ ।। वग तेना भत तोऽहम ज तु वी म वः । पया णाद नमु तेन त ये तपोधनाः ।। १६ ।। पा डु ने कहा—महाभाग मह षगण! संतानहीनके लये वगका दरवाजा बंद रहता है, ऐसा लोग कहते ह। म भी संतानहीन ँ, इस लये ःखसे संत त होकर आपलोग से कुछ नवेदन करता ँ। तपोधनो! म पतर के ऋणसे अबतक छू ट नह सका ँ, इस लये च तासे संत त हो रहा ँ ।। १५-१६ ।। दे हनाशे ुवो नाशः पतॄणामेष न यः । ऋणै तु भः संयु ा जाय ते मानवा भु व ।। १७ ।। नःसंतान-अव थाम मेरे इस शरीरका नाश होने-पर मेरे पतर का पतन अव य हो जायगा। मनु य इस पृ वीपर चार कारके ऋण से यु होकर ज म लेते ह ।। १७ ।। पतृदेव षमनुजैदयं ते य धमतः । एता न तु यथाकालं यो न बु य त मानवः ।। १८ ।। न त य लोकाः स ती त धम व ः त तम् । य ै तु दे वान् ीणा त वा यायतपसा मुनीन् ।। १९ ।। (उन ऋण के नाम ये ह—) पतृ-ऋण, दे व-ऋण, ऋ ष-ऋण और मनु य-ऋण। उन सबका ऋण धमतः हम चुकाना चा हये। जो मनु य यथासमय इन ऋण का यान नह रखता, उसके लये पु यलोक सुलभ नह होते। यह मयादा धम पु ष ने था पत क है। य ारा मनु य दे वता को तृ त करता है, वा याय और तप या ारा मु नय को संतोष दलाता है ।। १८-१९ ।। पु ैः ा ै ः पतॄं ा प आनृशं येन मानवान् । ऋ षदे वमनु याणां प रमु ोऽ म धमतः ।। २० ।। याणा मतरेषां तु नाश आ म न न य त । पया णाद नमु इदानीम म तापसाः ।। २१ ।। पु ो पादन और ा कम ारा पतर को तथा दयापूण बताव ारा वह मनु य को संतु करता है। म धमक से ऋ ष, दे व तथा मनु य—इन तीन ऋण से मु हो चुका ँ। अ य अथात् पतर के ऋणका नाश तो इस शरीरके नाश होनेपर भी शायद ही हो सके। तप वी मु नयो! म अबतक पतृ-ऋणसे मु न हो सका ।। २०-२१ ।। इह त मात् जाहेतोः जाय ते नरो माः । यथैवाहं पतुः े े जात तेन मह षणा ।। २२ ।। ै

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तथैवा मन् मम े े कथं वै स भवेत् जा । इस लोकम े पु ष पतृ-ऋणसे मु होनेके लये संतानो प का य न करते और वयं ही पु पम ज म लेते ह। जैसे म अपने पताके े म मह ष ास ारा उ प आ ँ, उसी कार मेरे इस े म भी कैसे संतानक उ प हो सकती है? ।। २२ ।। ऋषय ऊचुः अ त वै तव धमा मन् वो द े वोपमं शुभम् ।। २३ ।। अप यमनघं राजन् वयं द ेन च ुषा । दै वो ं नर ा कमणेहोपपादय ।। २४ ।। ऋ ष बोले—धमा मा नरेश! तु ह पापर हत दे वोपम शुभ संतान होनेका योग है, यह हम द से जानते ह। नर ा ! भा यने जसे दे रखा है, उस फलको य न ारा ा त क जये ।। २३-२४ ।। अ ल ं फलम ो व दते बु मान् नरः । त मन् े फले राजन् य नं कतुमह स ।। २५ ।। अप यं गुणस प ं लधा ी तकरं स । बु मान् मनु य ता छड़कर बना लेशके ही अभी फलको ा त कर लेता है। राजन्! आपको उस फलके लये य न करना चा हये। आप न य ही गुणवान् और हष पादक संतान ा त करगे ।। २५ ।। वैश पायन उवाच न छ वा तापसवचः पा डु तापरोऽभवत् ।। २६ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तप वी मु नय का यह वचन सुनकर राजा पा डु बड़े सोच- वचारम पड़ गये ।। २६ ।। आ मनो मृगशापेन जान ुपहतां याम् । सोऽ वीद् वजने कु त धमप न यश वनीम् । अप यो पादने य नमाप द वं समथय ।। २७ ।। वे जानते थे क मृग पधारी मु नके शापसे मेरा संतानो पादन- वषयक पु षाथ न हो चुका है। एक दन वे अपनी यश वनी धमप नी कु तीसे एका तम इस कार बोले —‘दे व! यह हमारे लये आप काल है, इस समय संतानो पादनके लये जो आव यक य न हो, उसका तुम समथन करो ।। २७ ।। अप यं नाम लोकेषु त ा धमसं हता । इ त कु त व ध राः शा तं धमवा दनः ।। २८ ।। इ ं द ं तप त तं नयम वनु तः । सवमेवानप य य न पावन महो यते ।। २९ ।। ‘स पूण लोक म संतान ही धममयी त ा है—कु ती! सदा धमका तपादन करनेवाले धीर पु ष ऐसा ही मानते ह। संतानहीन मनु य इस लोकम य , दान, तप और ी ँ













नयम का भलीभाँ त अनु ान कर ले, तो भी उसके कये ए सब कम प व नह कहे जाते ।। २८-२९ ।। सोऽहमेवं व द वैतत् प या म शु च मते । अनप यः शुभाँ लोकान् न ा यामी त च तयन् ।। ३० ।। ‘प व मुसकानवाली कु तभोजकुमारी! इस कार सोच-समझकर म तो यही दे ख रहा ँ क संतानहीन होनेके कारण मुझे शुभ लोक क ा त नह हो सकती। म नर तर इसी च ताम डू बा रहता ँ ।। ३० ।। मृगा भशापा ं मे जननं कृता मनः । नृशंसका रणो भी यथैवोपहतं पुरा ।। ३१ ।। ‘मेरा मन अपने वशम नह , म ू रतापूण कम करनेवाला ँ। भी ! इसी लये मृगके शापसे मेरी संतानो पादन-श उसी कार न हो गयी है, जस कार मने उस मृगका वध करके उसके मैथुनम बाधा डाली थी ।। ३१ ।। इमे वै ब धुदायादाः षट् पु ा धमदशने । षडेवाब धुदायादाः पु ा ता छृ णु मे पृथे ।। ३२ ।। ‘पृथे! धमशा म ये आगे बताये जानेवाले छः पु ‘ब धुदायाद’ कहे गये ह, जो कुटु बी होनेसे स प के उ रा धकारी होते ह और छः कारके पु ‘अब धुदायाद’ ह, जो कुटु बी न होनेपर भी उ रा धकारी बताये गये ह१। इन सबका वणन मुझसे सुनो ।। ३२ ।। वयंजातः णीत त समः पु कासुतः । पौनभव कानीनः भ ग यां य जायते ।। ३३ ।। ‘पहला पु वह है, जो ववा हता प नीसे अपने ारा उ प कया गया हो; उसे ‘ वयंजात’ कहते ह। सरा णीत कहलाता है, जो अपनी ही प नीके गभसे कसी उ म पु षके अनु हसे उ प होता है। तीसरा जो अपनी पु ीका पु हो, वह भी उसके ही समान माना गया है। चौथे कारके पु क पौनभव२ सं ा है, जो सरी बार याही ई ीसे उ प आ हो। पाँचव कारके पु क कानीन सं ा है ( ववाहसे पहले ही जस क याको इस शतके साथ दया जाता है क इसके गभसे उ प होनेवाला पु मेरा पु समझा जायगा उस क याके पु को ‘कानीन’ कहते ह)३। जो बहनका पु (भानजा) है, वह छठा कहा गया है ।। ३३ ।। द ः तः कृ म उपग छे त् वयं च यः । सहोढो ा तरेता हीनयो नधृत यः ।। ३४ ।। ‘अब छः कारके अब धुदायाद पु कहे जाते ह—द ( जसे माता- पताने वयं सम पत कर दया हो), त ( जसे धन आ द दे कर खरीद लया गया हो), कृ म—जो वयं म आपका पु ँ, य कहकर समीप आया हो, सहोढ (जो क याव थाम ही गभवती होकर याही गयी हो, उसके गभसे उ प पु सहोढ कहलाता है), ा तरेता (अपने कुलका पु ) तथा अपनेसे हीन जा तक ीके गभसे उ प आ पु । ये सभी अब धुदायाद ह ।। ३४ ।। े ै

पूवपूवतमाभावं म वा ल सेत वै सुतम् । उ मादवराः पुंसः काङ् ते पु माप द ।। ३५ ।। ‘इनमसे पूव-पूवके अभावम ही सरे- सरे पु क अ भलाषा करे। आप कालम नीची जा तके पु ष े पु षसे भी पु ो प क इ छा कर सकते ह ।। ३५ ।। अप यं धमफलदं े ं व द त मानवाः । आ मशु ाद प पृथे मनुः वाय भुवोऽ वीत् ।। ३६ ।। ‘पृथे! अपने वीयके बना भी मनु य कसी े पु षके स ब धसे े पु ा त कर लेते ह और वह धमका फल दे नेवाला होता है, यह बात वाय भुव मनुने कही है ।। ३६ ।। त मात् हे या य वां हीनः जननात् वयम् । स शा े यसो वा वं वप यं यश व न ।। ३७ ।। ‘अतः यश वनी कु ती! म वयं संतानो पादनक श से र हत होनेके कारण तु ह आज सरेके पास भेजूँगा। तुम मेरे स श अथवा मेरी अपे ा भी े पु षसे संतान ा त करो’ ।। ३७ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण पा डु पृथासंवादे ऊन वश य धकशततमोऽ यायः ।। ११९ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम पा डु -पृथा-संवाद वषयक एक सौ उ ीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ११९ ।।

१. ब धु श दका अथ सं कृत-श दाथकौ तुभम आ मब धु, पतृब धु, मातृब धु माना गया है, इस लये ब धुका अथ कुटु बी कया है। दायादका अथ उसी कोषम ‘उ रा धकारी’ है। इसी लये ब धुदायादका अथ ‘कुटु बी’ होनेसे ‘उ रा धकारी’ कया है। इसके वपरीत, अब धुदायादका अथ अब धु यानी कुटु बी न होनेपर उ रा धकारी कया है। २. ‘पौनभव’का अथ प च कोषके अनुसार सरी बार याही ई ीसे उ प पु लया गया है। ३. कानीन—यह अथ नीलक ठजीने अपनी ट काम कया है।

वश य धकशततमोऽ यायः कु तीका पा डु को ु षता के मृत शरीरसे उसक प त ता प नी भ ाके ारा पु - ा तका कथन वैश पायन उवाच एवमु ा महाराज कु ती पा डु मभाषत । कु णामृषभं वीरं तदा भू मप त प तम् ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—महाराज जनमेजय! इस कार कहे जानेपर कु ती अपने प त कु े वीरवर राजा पा डु से इस कार बोली— ।। १ ।। न मामह स धम व ु मेवं कथंचन । धमप नीम भरतां व य राजीवलोचने ।। २ ।। ‘धम ! आप मुझसे कसी तरह ऐसी बात न कह; म आपक धमप नी ँ और कमलके समान वशाल ने वाले आपम ही अनुराग रखती ँ ।। २ ।। वमेव तु महाबाहो म यप या न भारत । वीर वीय पप ा न धमतो जन य य स ।। ३ ।। ‘महाबा वीर भारत! आप ही मेरे गभसे धमपूवक अनेक परा मी पु उ प करगे ।। ३ ।। वग मनुजशा ल ग छे यं स हता वया । अप याय च मां ग छ वमेव कु न दन ।। ४ ।। ‘नर े ! म आपके साथ ही वगलोकम चलूँगी। कु न दन! पु क उ प के लये आप ही मेरे साथ समागम क जये ।। ४ ।। न हं मनसा य यं ग छे यं व ते नरम् । व ः तवश कोऽ योऽ त भु व मानवः ।। ५ ।। ‘म आपके सवा कसी सरे पु षसे समागम करनेक बात मनम भी नह ला सकती। फर इस पृ वीपर आपसे े सरा मनु य है भी कौन ।। ५ ।। इमां च तावद् धमा मन् पौराण शृणु मे कथाम् । प र ुतां वशाला क त य या म यामहम् ।। ६ ।। ‘धमा मन्! पहले आप मेरे मुँहसे यह पौरा णक कथा सुन ली जये। वशाला ! यह जो कथा म कहने जा रही ँ, सव व यात है ।। ६ ।। ु षता इ त यातो बभूव कल पा थवः । पुरा परमध म ः पूरोवश ववधनः ।। ७ ।। ‘कहते ह, पूवकालम एक परम धमा मा राजा हो गये ह। उनका नाम था ु षता । वे पू वंशक वृ करनेवाले थे ।। ७ ।। त मं यजमाने वै धमा म न महाभुजे । ो े





उपागमं ततो दे वाः से ा दे व ष भः सह ।। ८ ।। ‘एक समय वे महाबा धमा मा नरेश जब य करने लगे, उस समय इ आ द दे वता दे व षय के साथ उस य म पधारे थे ।। ८ ।। अमा द ः सोमेन द णा भ जातयः । ु षता य राजष ततो य े महा मनः ।। ९ ।। दे वा षय ैव च ु ः कम वयं तदा । ु षता ततो राज त म यान् रोचत ।। १० ।। ‘उसम दे वराज इ सोमपान करके उ म हो उठे थे तथा ा णलोग पया त द णा पाकर हषसे फूल उठे थे। महामना राज ष ु षता के य म उस समय दे वता और ष वयं सब काय कर रहे थे। राजन्! इससे ु षता सब मनु य से ऊँची थ तम प ँचकर बड़ी शोभा पा रहे थे ।। ९-१० ।। सवभूतान् त यथा तपनः श शरा यये । स व ज य गृही वा च नृपतीन् राजस मः ।। ११ ।। ा यानुद यान् पा ा यान् दा णा यानकालयत् । अ मेधे महाय े ु षता ः तापवान् ।। १२ ।। ‘राजा ु षता सम त भूत के ी तपा थे। राजा म े तापी ु षता ने अ मेध नामक महान् य म पूव, उ र, प म और द ण—चार दशा के राजा को जीतकर अपने वशम कर लया—ठ क जस कार श शरकालके अ तम भगवान् सूयदे व सभी ा णय पर वजय कर लेते ह—सबको तपाने लगते ह ।। ११-१२ ।। बभूव स ह राजे ो दशनागबला वतः । अ य गाथां गाय त ये पुराण वदो जनाः ।। १३ ।। ु षता े यशोवृ े मनु ये े कु म। ु षता ः समु ा तां व ज येमां वसुंधराम् ।। १४ ।। अपालयत् सववणान् पता पु ा नवौरसान् । यजमानो महाय ै ा णे यो धनं ददौ ।। १५ ।। ‘उन महाराजम दस हा थय का बल था। कु े ! पुराणवे ा व ान् यशम बढ़े -चढ़े ए नरे ु षता के वषयम यह यशोगाथा गाते ह—‘राजा ु षता समु पय त इस सारी पृ वीको जीतकर जैसे पता अपने औरस पु का पालन करता है, उसी कार सभी वणके लोग का पालन करते थे। उ ह ने बड़े-बड़े य का अनु ान करके ा ण को ब त धन दया ।। १३—१५ ।। अन तर ना यादाय स जहार महा तून् । सुषाव च बन् सोमान् सोमसं था ततान च ।। १६ ।। ‘अन त र न क भट लेकर उ ह ने बड़े-बड़े य कये। अनेक सोमयाग का आयोजन करके उनम ब त-सा सोमरस सं ह करके अ न ोम-अ य न ोम आ द सात कारक सोमयाग-सं था का भी अनु ान कया ।। १६ ।। आसीत् का ीवती चा य भाया परमस मता । े े ी

भ ा नाम मनु ये पेणास शी भु व ।। १७ ।। ‘नरे ! राजा क ीवान्क पु ी भ ा उनक अ य त यारी प नी थी। उन दन इस पृ वीपर उसके पक समानता करनेवाली सरी कोई ी न थी ।। १७ ।। कामयामासतु तौ च पर पर म त ुतम् । स त यां कामस प ो य मणा समप त ।। १८ ।। ‘मने सुना है, वे दोन प त-प नी एक- सरेको ब त चाहते थे। प नीके त अ य त कामास होनेके कारण राजा ु षता राजय माके शकार हो गये ।। १८ ।। तेना चरेण कालेन जगामा त मवांशुमान् । त मन् ेते मनु ये े भाया य भृश ःखता ।। १९ ।। ‘इस कारण वे थोड़े ही समयम सूयक भाँ त अ त हो गये। उन महाराजके परलोकवासी हो जानेपर उनक प नीको बड़ा ःख आ ।। १९ ।। अपु ा पु ष ा वललापे त नः ुतम् । भ ा परम ःखाता त बोध जना धप ।। २० ।। ‘नर ा जने र! हमने सुना है क भ ाके तबतक कोई पु नह आ था। इस कारण वह अ य त ःखसे आतुर होकर वलाप करने लगी; वह वलाप सु नये’ ।। २० ।। भ ोवाच नारी परमधम सवा भतृ वनाकृता । प त वना जीव त या न सा जीव त ःखता ।। २१ ।। भ ा बोली—परमधम महाराज! जो कोई भी वधवा ी प तके बना जीवन धारण करती है, वह नर तर ःखम डू बी रहनेके कारण वा तवम जीती नह , अ पतु मृततु या है ।। २१ ।। प त वना मृतं ेयो नायाः यपु व । वद्ग त ग तु म छा म सीद व नय व माम् ।। २२ ।। वया हीना णम प नाहं जी वतुमु सहे । सादं कु मे राज त तूण नय व माम् ।। २३ ।। य शरोमणे! प तके न रहनेपर नारीक मृ यु हो जाय, इसीम उसका क याण है। अतः म भी आपके ही मागपर चलना चाहती ँ, स होइये और मुझे अपने साथ ले च लये। आपके बना एक ण भी जी वत रहनेका मुझम उ साह नह है। राजन्! कृपा क जये और यहाँसे शी मुझे ले च लये ।। २२-२३ ।। पृ तोऽनुग म या म समेषु वषमेषु च । वामहं नरशा ल ग छ तम नव ततुम् ।। २४ ।। नर े ! आप जहाँ कभी न लौटनेके लये गये ह, वहाँका माग समतल हो या वषम, म आपके पीछे -पीछे अव य चली चलूँगी ।। २४ ।। छायेवानुगता राजन् सततं वशव तनी । भ व या म नर ा न यं य हते रता ।। २५ ।। ँ



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राजन्! म छायाक भाँ त आपके पीछे लगी र ँगी एवं सदा आपक आ ाके अधीन र ँगी। नर ा ! म सदा आपके य और हतम लगी र ँगी ।। २५ ।। अ भृ त मां राजन् क ा दयशोषणाः । आधयोऽ भभ व य त वामृते पु करे ण ।। २६ ।। कमलके समान ने वाले महाराज! आपके बना आजसे दयको सुखा दे नेवाले क और मान सक च ताएँ मुझे सताती रहगी ।। २६ ।। अभा यया मया नूनं वयु ाः सहचा रणः । तेन मे व योगोऽयमुपप वया सह ।। २७ ।। मुझ अभा गनीने न य ही कतने ही जीवनसं गय ( ी-पु ष )-म वछोह कराया होगा। इसी लये आज आपके साथ मेरा वयोग घ टत आ है ।। २७ ।। व यु ा तु या प या मुतम प जीव त । ःखं जीव त सा पापा नरक थेव पा थव ।। २८ ।। महाराज! जो ी प तसे बछु ड़ जानेपर दो घड़ी भी जीवन धारण करती है, वह पा पनी नरकम पड़ी ई-सी ःखमय जीवन बताती है ।। २८ ।। संयु ा व यु ा पूवदे हे कृता मया । त ददं कम भः पापैः पूवदे हेषु सं चतम् ।। २९ ।। ःखं मामनुस ा तं राजं व योगजम् । अ भृ यहं राजन् कुशसं तरशा यनी । भ व या यसुखा व ा व शनपरायणा ।। ३० ।। राजन्! पूवज मके शरीरम थत रहकर मने एक साथ रहनेवाले कुछ ी-पु ष म अव य वयोग कराया है। उ ह पापकम ारा मेरे पूवशरीर म जो बीज पसे सं चत हो रहा था, वही यह आपके वयोगका ःख आज मुझे ा त आ है। महाराज! म ःखम डू बी ई ँ, अतः आजसे आपके दशनक इ छा रखकर म कुशके बछौनेपर सोऊँगी ।। २९-३० ।। दशय व नर ा शा ध मामसुखा वताम् । कृपणां चाथ क णं वलप त नरे र ।। ३१ ।। नर े नरे र! क ण वलाप करती ई मुझ द न- ःखया अबलाको आज अपना दशन और कत का आदे श द जये ।। ३१ ।। कु युवाच एवं ब वधं त यां वलप यां पुनः पुनः । तं शवं स प र व य वाक् कला त हता वीत् ।। ३२ ।। कु तीने कहा—महाराज! इस कार जब राजाके शवका आ लगन करके वह बारबार अनेक कारसे वलाप करने लगी, तब आकाशवाणी बोली— ।। ३२ ।। उ भ े ग छ वं ददानीह वरं तव । जन य या यप या न व यहं चा हा स न ।। ३३ ।। ‘



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‘भ े ! उठो और जाओ, इस समय म तु ह वर दे ता ँ। चा हा स न! म तु हारे गभसे कई पु को ज म ँ गा ।। ३३ ।। आ मक ये वरारोहे शयनीये चतुदशीम् । अ म वा ऋतु नाता सं वशेथा मया सह ।। ३४ ।। ‘वरारोहे! तुम ऋतु नाता होनेपर चतुदशी या अ मीक रातम अपनी शयाप र मेरे इस शवके साथ सो जाना’ ।। ३४ ।। एवमु ा तु सा दे वी तथा च े प त ता । यथो मेव त ा यं भ ा पु ा थनी तदा ।। ३५ ।। आकाशवाणीके य कहनेपर पु क इ छा रखनेवाली प त ता भ ादे वीने प तक पूव आ ाका अ रशः पालन कया ।। ३५ ।। सा तेन सुषुवे दे वी शवेन भरतषभ । ीन् शा वां तुरो म ान् सुतान् भरतस म ।। ३६ ।। भरत े ! रानी भ ाने उस शवके ारा सात पु उ प कये, जनम तीन शा वदे शके और चार म दे शके शासक ए ।। ३६ ।। तथा वम प म येवं मनसा भरतषभ । श ो जन यतुं पु ां तपोयोगबला वतः ।। ३७ ।। भरतवंश शरोमणे! इसी कार आप भी मेरे गभसे मान सक संक प ारा अनेक पु उ प कर सकते ह; य क आप तप या और योगबलसे स प ह ।। ३७ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण ु षता ोपा याने वश य धकशततमोऽ यायः ।। १२० ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम ु षता ोपा यान वषयक एक सौ बीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १२० ।।

एक वश य धकशततमोऽ यायः पा डु का कु तीको समझाना और कु तीका प तक आ ासे पु ो प के लये धमदे वताका आवाहन करनेके लये उ त होना वैश पायन उवाच एवमु तया राजा तां दे व पुनर वीत् । धम वद् धमसंयु मदं वचनमु मम् ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! कु तीके य कहनेपर धम राजा पा डु ने दे वी कु तीसे पुनः यह धमयु बात कही ।। १ ।। पा डु वाच एवमेतत् पुरा कु त ु षता कार ह । यथा वयो ं क या ण स ासीदमरोपमः ।। २ ।। पा डु बोले—कु ती! तु हारा कहना ठ क है। पूवकालम राजा ु षता ने जैसा तुमने कहा है, वैसा ही कया था। क याणी! वे दे वता के समान तेज वी थे ।। २ ।। अथ वदं व या म धमत वं नबोध मे । पुराणमृ ष भ ं धम व महा म भः ।। ३ ।। अब म तु ह यह धमका त व बतलाता ँ, सुनो। यह पुरातन धमत व धम महा मा ऋ षय ने य कया है ।। ३ ।। धममेवं जनाः स तः पुराणं प रच ते । भता भाया राजपु ध य वाध यमेव वा ।। ४ ।। यद् ूयात् तत् तथा काय म त वेद वदो व ः । वशेषतः पु गृ यी हीनः जननात् वयम् ।। ५ ।। यथाहमनव ा पु दशनलालसः । तथा र ाङ् गु लतलः पप नभः शुभे ।। ६ ।। सादाथ मया तेऽयं शर य यु तोऽ लः । म योगात् सुकेशा ते जाते तपसा धकात् ।। ७ ।। पु ान् गुणसमायु ानु पाद यतुमह स । व कृतेऽहं पृथु ो ण ग छे यं पु णां ग तम् ।। ८ ।। साधु पु ष इसीको ाचीन धम कहते ह। राजक ये! प त अपनी प नीसे जो बात कहे, वह धमके अनुकूल हो या तकूल, उसे अव य पूण करना चा हये—ऐसा वेद पु ष का कथन है। वशेषतः ऐसा प त, जो पु क अ भलाषा रखता हो और वयं संतानो पादनक श से र हत हो, जो बात कहे, वह अव य माननी चा हये। नद ष अंग वाली शुभल णे! ँ





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म चूँ क पु का मुँह दे खनेके लये लाला यत ँ, अतएव तु हारी स ताके लये म तकके समीप यह अंज ल धारण करता ँ, जो लाल-लाल अंगु लय से यु तथा कमलदलके समान सुशो भत है। सु दर केश वाली ये! तुम मेरे आदे शसे तप याम बढ़े -चढ़े ए कसी े ा णके साथ समागम करके गुणवान् पु उ प करो। सु ो ण! तु हारे य नसे म पु वान क ग त ा त क ँ , ऐसी मेरी अ भलाषा है ।। ४—८ ।। वैश पायन उवाच एवमु ा ततः कु ती पा डु ं परपुरंजयम् । युवाच वरारोहा भतुः य हते रता ।। ९ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! इस कार कही जानेपर प तके य और हतम लगी रहनेवाली सु दरांगी कु ती श ु क राजधानीपर वजय पानेवाले महाराज पा डु से इस कार बोली— ।। ९ ।। (अधमः सुमहानेष ीणां भरतस म । यत् सादयते भता सा ः यषभ ।। भृणु चेदं महाबाहो मम ी तकरं वचः ।।) ‘भरत े ! य शरोमणे! य के लये यह बड़े अधमक बात है क प त ही उनसे स होनेके लये बार-बार अनुरोध करे; य क नारीका ही यह कत है क वह प तको स रखे। महाबाहो! आप मेरी यह बात सु नये। इससे आपको बड़ी स ता होगी। पतृवे म यहं बाला नयु ा त थपूजने । उ ं पयचरं त ा णं सं शत तम् ।। १० ।। नगूढ न यं धम यं तं वाससं व ः । तमहं सं शता मानं सवय नैरतोषयम् ।। ११ ।। ‘बा याव थाम जब म पताके घर थी, मुझे अ त थय के स कारका काम स पा गया था। वहाँ कठोर तका पालन करनेवाले एक उ वभावके ा णक , जनका धमके वषयम न य सर को अ ात है तथा ज ह लोग वासा कहते ह, मने बड़ी सेवा-शु ूषा क । अपने मनको संयमम रखनेवाले उन महा माको मने सब कारके य न ारा संतु कया ।। १०-११ ।।

स मेऽ भचारसंयु माच भगवान् वरम् । म ं वमं च मे ादाद वी चैव मा मदम् ।। १२ ।। ‘तब भगवान् वासाने वरदानके पम मुझे योग व धस हत एक म का उपदे श दया और मुझसे इस कार कहा— ।। १२ ।। यं यं दे वं वमेतेन म ेणावाह य य स । अकामो वा सकामो वा वशं ते समुपै य त ।। १३ ।। ‘तुम इस म से जस- जस दे वताका आवाहन करोगी, वह न काम हो या सकाम, न य ही तु हारे अधीन हो जायगा ।। १३ ।। त य त य सादात् ते रा पु ो भ व य त । इ यु ाहं तदानेन पतृवे म न भारत ।। १४ ।। ‘राजकुमारी! उस दे वताके सादसे तु ह पु ा त होगा।’ भारत! इस कार मेरे पताके घरम उस ा णने उस समय मुझसे यह बात कही थी ।। १४ ।। ा ण य वच तयं त य कालोऽयमागतः । अनु ाता वया दे वमा येयमहं नृप । तेन म ेण राजष यथा या ौ जा हता ।। १५ ।। ‘उस ा णक बात स य ही होगी। उसके उपयोगका यह अवसर आ गया है। महाराज! आपक आ ा होनेपर म उस म ारा कसी दे वताका आवाहन कर सकती ँ। े









जससे राजष! हम दोन के लये हतकर संतान ा त हो ।। १५ ।। (यां मे व ां महाराज अददात् स महायशाः । तयातः सुरः पु ं दा य त सुरोपमम् । अनप यकृतं य ते शोकं ह पने य त ।। अप यकाम एवं या ममाप यं भवे द त ।) ‘महाराज! उन महायश वी मह षने जो व ा मुझे द थी, उसके ारा आवाहन करनेपर कोई भी दे वता आकर दे वोपम पु दान करेगा, जो आपके संतानहीनताज नत शोकको र कर दे गा; इस कार मुझे संतान ा त होगी और आपक पु कामना सफल हो जायगी। आवाहया म कं दे वं ू ह स यवतां वर । व ोऽनु ा ती ां मां व मन् कम ण थताम् ।। १६ ।। ‘स यवान म े नरेश! बताइये, म कस दे वताका आवाहन क ँ । आप समझ ल, म (आपके संतोषाथ) इस कायके लये तैयार ँ। केवल आपसे आ ा मलनेक ती ाम ँ’ ।। १६ ।। पा डु वाच (ध योऽ यनुगृहीतोऽ म वं नो धा ी कुल य ह । नमो महषये त मै येन द ो वर तव ।। न चाधमण धम े श याः पाल यतुं जाः ।।) अ ैव वं वरारोहे यत व यथा व ध । धममावाहय शुभे स ह लोकेषु पु यभाक् ।। १७ ।। पा डु बोले— ये! म ध य ँ, तुमने मुझपर महान् अनु ह कया। तु ह मेरे कुलको धारण करनेवाली हो। उन मह षको नम कार है, ज ह ने तु ह वैसा वर दया। धम े! अधमसे जाका पालन नह हो सकता। इस लये वरारोहे! तुम आज ही व धपूवक इसके लये य न करो। शुभे! सबसे पहले धमका आवाहन करो, य क वे ही स पूण लोक म धमा मा ह ।। १७ ।। अधमण न नो धमः संयु य त कथंचन । लोक ायं वरारोहे धम ऽय म त म यते ।। १८ ।। धा मक कु णां स भ व य त न संशयः । धमण चा प द य नाधम रं यते मनः ।। १९ ।। त माद् धम पुर कृ य नयता वं शु च मते । उपचारा भचारा यां धममावाहय व वै ।। २० ।। (इस कार करनेपर) हमारा धम कभी कसी तरह अधमसे संयु नह हो सकता। वरारोहे! लोक भी उनको सा ात् धमका व प मानता है। धमसे उ प होनेवाला पु कु वं शय म सबसे अ धक धमा मा होगा—इसम संशय नह है। धमके ारा दया आ जो पु होगा, उसका मन अधमम नह लगेगा। अतः शु च मते! तुम मन और इ य को ो ी





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संयमम रखकर धमको भी सामने रखते ए उपचार (पूजा) और अ भचार ( योग व ध)-के ारा धमदे वताका आवाहन करो ।। १८—२० ।। वैश पायन उवाच सा तथो ा तथे यु वा तेन भ ा वरा ना । अ भवा ा यनु ाता द णमवतत ।। २१ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! अपने प त पा डु के य कहनेपर ना रय म े कु तीने ‘तथा तु’ कहकर उ ह णाम कया और आ ा लेकर उनक प र मा क ।। २१ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण कु तीपु ो प यनु ाने एक वश य धकशततमोऽ यायः ।। १२१ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम कु तीको पु ो प के लये आदे श वषयक एक सौ इ क सवाँ अ याय पूरा आ ।। १२१ ।।

ा वश य धकशततमोऽ यायः यु ध र, भीम और अजुनक उ प वैश पायन उवाच संव सरधृते गभ गा धाया जनमेजय । आ यामास वै कु ती गभाथ धमम युतम् ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! जब गा धारीको गभ धारण कये एक वष बीत गया, उस समय कु तीने गभ धारण करनेके लये अ युत व प भगवान् धमका आवाहन कया ।। १ ।। सा ब ल व रता दे वी धमायोपजहार ह । जजाप व धव ज यं द ं वाससा पुरा ।। २ ।। दे वी कु तीने बड़ी उतावलीके साथ धमदे वताके लये पूजाके उपहार अ पत कये। त प ात् पूवकालम मह ष वासाने जो म दया था, उसका व धपूवक जप कया ।। २ ।। आजगाम ततो दे वो धम म बलात् ततः । वमाने सूयसंकाशे कु ती य जप थता ।। ३ ।। तब म बलसे आकृ हो भगवान् धम सूयके समान तेज वी वमानपर बैठकर उस थानपर आये, जहाँ कु तीदे वी जपम लगी ई थ ।। ३ ।। वह य तां ततो ूयाः कु त क ते ददा यहम् । सा तं वह यमाना प पु ं दे वी ददम् ।। ४ ।। तब धमने हँसकर कहा—‘कु ती! बोलो, तु ह या ँ ?’ धमके ारा हा यपूवक इस कार पूछनेपर कु ती बोली—‘मुझे पु द जये’ ।। ४ ।। संयु ा सा ह धमण योगमू तधरेण ह । लेभे पु ं वरारोहा सव ाणभृतां हतम् ।। ५ ।। तदन तर योगमू त धारण कये ए धमके साथ समागम करके सु दरांगी कु तीने एक ऐसा पु ा त कया, जो सम त ा णय का हत करनेवाला था ।। ५ ।। ऐ े च समायु े मुतऽ भ जतेऽ मे । दवाम यगते सूय तथौ पूणऽ तपू जते ।। ६ ।। समृ यशसं कु ती सुषाव वरं सुतम् । जातमा े सुते त मन् वागुवाचाशरी रणी ।। ७ ।। तदन तर जब च मा ये ा न पर थे, सूय तुला रा शपर वराजमान थे, शु ल प क ‘पूणा’ नामवाली प चमी त थ थी और अ य त े अ भ जत् नामक आठवाँ मु त व मान था; उस समय कु तीदे वीने एक उ म पु को ज म दया, जो महान् यश वी था। उस पु के ज म लेते ही आकाशवाणी ई— ।। ६-७ ।। े ो



एष धमभृतां े ो भ व य त नरो मः । व ा तः स यवाक् वेव राजा पृ ां भ व य त ।। ८ ।। यु ध र इ त यातः पा डोः थमजः सुतः । भ वता थतो राजा षु लोकेषु व ुतः ।। ९ ।। यशसा तेजसा चैव वृ ेन च सम वतः । ‘यह े पु ष धमा मा म अ ग य होगा और इस पृ वीपर परा मी एवं स यवाद राजा होगा। पा डु का यह थम पु ‘यु ध र’ नामसे व यात हो तीन लोक म स एवं या त ा त करेगा; यह यश वी, तेज वी तथा सदाचारी होगा’ ।। ८-९ ।। धा मकं तं सुतं ल वा पा ड ु तां पुनर वीत् ।। १० ।। उस धमा मा पु को पाकर राजा पा डु ने पुनः (आ हपूवक) कु तीसे कहा — ।। १० ।। ा ः ं बल ये ं बल ये ं सुतं वृणु । (अ मेधः तु े ो यो त े ो दवाकरः । ा णो पदां े ो बल े तु मा तः ।। मा तं म तां े ं सव ा ण भरी डतम् । आवाहय वं नयमात् पु ाथ वरव ण न ।। स नो यं दा य त सुतं स ाणबलवान् नृषु ।) तत तथो ा भ ा तु वायुमेवाजुहाव सा ।। ११ ।। ‘ ये! यको बलसे ही बड़ा कहा गया है। अतः एक ऐसे पु का वरण करो, जो बलम सबसे े हो। जैसे अ मेध सब य म े है, सूयदे व स पूण काश करनेवाल म धान ह और ा ण मनु य म े है, उसी कार वायुदेव बलम सबसे बढ़-चढ़कर ह। अतः सु दरी! अबक बार तुम पु - ा तके उ े यसे सम त ा णय ारा शं सत दे व े वायुका व धपूवक आवाहन करो। वे हमलोग के लये जो पु दगे, वह मनु य म सबसे अ धक ाणश से स प और बलवान् होगा।’ वामीके इस कार कहनेपर कु तीने तब वायुदेवका ही आवाहन कया ।। ११ ।। तत तामागतो वायुमृगा ढो महाबलः । क ते कु त ददा य ू ह यत् ते द थतम् ।। १२ ।। तब महाबली वायु मृगपर आ ढ़ हो कु तीके पास आये और य बोले—‘कु ती! तु हारे मनम जो अ भलाषा हो, वह कहो। म तु ह या ँ ?’ ।। १२ ।। सा सल जा वह याह पु ं दे ह सुरो म । बलव तं महाकायं सवदप भ नम् ।। १३ ।। कु तीने ल जत होकर मुसकराते ए कहा—‘सुर े ! मुझे एक ऐसा पु द जये, जो महाबली और वशालकाय होनेके साथ ही सबके घमंडको चूर करनेवाला हो’ ।। १३ ।। त मा ज े महाबा भ मो भीमपरा मः । ी



तम य तबलं जातं वागुवाचाशरी रणी ।। १४ ।। सवषां ब लनां े ो जातोऽय म त भारत । इदम य तं चासी जातमा े वृकोदरे ।। १५ ।। यदङ् कात् प ततो मातुः शलां गा ै चूणयत् । (क ु ती तु सह पु ेण या वा सु चरं सरः । ना वा तु सुतमादाय दशमेऽह न यादवी ।। दै वता यच य य ती नजगामा मात् पृथा । शैला याशेन ग छ या तदा भरतस म ।। न ाम महान् ा ो जघांसन् ग रग रात् ।। तमापत तं शा लं वकृ याथ कु मः । न बभेद शरैः पा डु भ दश व मः ।। नादे न महता तां तु पूरय तं गरेगुहाम् ।) कु ती ा भयो ना सहसो प तता कल ।। १६ ।। वायुदेवसे भयंकर परा मी महाबा भीमका ज म आ। जनमेजय! उस महाबली पु को ल य करके आकाशवाणीने कहा—‘यह कुमार सम त बलवान म े है।’ भीमसेनके ज म लेते ही एक अ त घटना यह ई क अपनी माताक गोदसे गरनेपर उ ह ने अपने अंग से एक पवतक च ानको चूर-चूर कर दया। बात यह थी क य कुलन दनी कु ती सवके दसव दन पु को गोदम लये उसके साथ एक सु दर सरोवरके नकट गयी और नान करके लौटकर दे वता क पूजा करनेके लये कु टयासे बाहर नकली। भरतन दन! वह पवतके समीप होकर जा रही थी क इतनेम ही उसको मार डालनेक इ छासे एक ब त बड़ा ा उस पवतक क दरासे बाहर नकल आया। दे वता के समान परा मी कु े पा डु ने उस ा को दौड़कर आते दे ख धनुष ख च लया और तीन बाण से मारकर उसे वद ण कर दया। उस समय वह अपनी वकट गजनासे पवतक सारी गुफाको त व नत कर रहा था। कु ती बाघके भयसे सहसा उछल पड़ी ।। १४—१६ ।। ना वबु यत संसु तमु स े वे वृकोदरम् । ततः स व संघातः कुमारो यपतद् गरौ ।। १७ ।। उस समय उसे इस बातका यान नह रहा क मेरी गोदम भीमसेन सोया आ है। उतावलीम वह वक े समान शरीरवाला कुमार पवतके शखरपर गर पड़ा ।। १७ ।। पतता तेन शतधा शला गा ै वचू णता । तां शलां चू णतां ् वा पा डु व मयमागतः ।। १८ ।। गरते समय उसने अपने अंग से उस पवतक शलाको चूण- वचूण कर दया। प थरक च ानको चूर-चूर आ दे ख महाराज पा डु बड़े आ यम पड़ गये ।। १८ ।। (मघे च मसा यु े सहे चा यु दते गुरौ । दवाम यगते सूय तथौ पु ये योदशे ।। मै े मुत सा क ु ती सुषुवे भीमम युतम् ।।) ी े

य म ह न भीम तु ज े भरतस म । य धनोऽ प त ैव ज े वसुधा धप ।। १९ ।। जब च मा मघा न पर वराजमान थे, बृह प त सह ल नम सुशो भत थे, सूयदे व दोपहरके समय आकाशके म यभागम तप रहे थे, उस समय पु यमयी योदशी त थको मै मु तम कु तीदे वीने अ वचल श वाले भीमसेनको ज म दया था। भरत े भूपाल! जस दन भीमसेनका ज म आ था, उसी दन ह तनापुरम य धनक भी उ प ई ।। १९ ।। जाते वृकोदरे पा डु रदं भूयोऽ व च तयत् । कथं नु मे वरः पु ो लोक े ो भवे द त ।। २० ।। भीमसेनके ज म लेनेपर पा डु ने फर इस कार वचार कया क म कौन-सा उपाय क ँ , जससे मुझे सब लोग से े उ म पु ा त हो ।। २० ।। दै वे पु षकारे च लोकोऽयं स त तः । त दै वं तु व धना कालयु े न ल यते ।। २१ ।। यह संसार दै व तथा पु षाथपर अवल बत है। इनम दै व तभी सुलभ (सफल) होता है, जब समयपर उ ोग कया जाय ।। २१ ।। इ ो ह राजा दे वानां धान इ त नः ुतम् । अ मेयबलो साहो वीयवान मत ु तः ।। २२ ।। तं तोष य वा तपसा पु ं ल ये महाबलम् । यं दा य त स मे पु ं स वरीयान् भ व य त ।। २३ ।। अमानुषान् मानुषां सं ामे स ह न य त । कमणा मनसा वाचा त मात् त ये महत् तपः ।। २४ ।। मने सुना है क दे वराज इ ही सब दे वता म धान ह, उनम अथाह बल और उ साह है। वे बड़े परा मी एवं अपार तेज वी ह। म तप या ारा उ ह को संतु करके महाबली पु ा त क ँ गा। वे मुझे जो पु दगे, वह न य ही सबसे े होगा तथा सं ामम अपना सामना करनेवाले मनु य तथा मनु येतर ा णय (दै य-दानव आ द)-को भी मारनेम समथ होगा। अतः म मन, वाणी और या ारा बड़ी भारी तप या क ँ गा ।। २२—२४ ।।

बालक भीमके शरीरक चोटसे च ान टू ट गयी

ततः पा डु महाराजो म य वा मह ष भः । ददे श कु याः कौर ो तं सांव सरं शुभम् ।। २५ ।। ऐसा न य करके कु न दन महाराज पा डु ने मह षय से सलाह लेकर कु तीको शुभदायक सांव सर तका उपदे श दया ।। २५ ।। आ मना च महाबा रेकपाद थतोऽभवत् । उ ं स तप आ थाय परमेण समा धना ।। २६ ।। आ रराध यषुदवं दशानां तमी रम् । सूयण सह धमा मा पयत यत भारत ।। २७ ।। तं तु कालेन महता वासवः यप त । और भारत! वे महाबा धमा मा पा डु वयं दे वता के ई र इ दे वक आराधना करनेके लये च वृ य को अ य त एका करके एक पैरसे खड़े हो सूयके साथ-साथ उ तप करने लगे अथात् सूय दय होनेके समय एक पैरसे खड़े होते और सूया ततक उसी पम खड़े रहते। इस तरह द घकाल तीत हो जानेपर इ दे व उनपर स हो उनके समीप आये और इस कार बोले— ।। २६-२७ ।। श उवाच पु ं तव दा या म षु लोकेषु व ुतम् ।। २८ ।। इ ने कहा—राजन्! म तु ह ऐसा पु ँ गा, जो तीन लोक म व यात होगा ।। २८ ।। ा णानां गवां चैव सु दां चाथसाधकम् । दां शोकजननं सवबा धवन दनम् ।। २९ ।। सुतं तेऽ यं दा या म सवा म वनाशनम् । वह ा ण , गौ तथा सु द के अभी मनोरथक पू त करनेवाला, श ु को शोक दे नेवाला और सम त ब धु-बा धव को आन दत करनेवाला होगा, म तु ह स पूण श ु का वनाश करनेवाला सव े पु दान क ँ गा ।। २९ ।। इ यु ः कौरवो राजा वासवेन महा मना ।। ३० ।। उवाच कु त धमा मा दे वराजवचः मरन् । उदक तव क या ण तु ो दे वगणे रः ।। ३१ ।। दातु म छ त ते पु ं यथा संक पतं वया । अ तमानुषकमाणं यश वनमरदमम् ।। ३२ ।। नी तम तं महा मानमा द यसमतेजसम् । राधष याव तमतीवा तदशनम् ।। ३३ ।। महा मा इ के य कहनेपर धमा मा कु न दन महाराज पा डु बड़े स ए और दे वराजके वचन का मरण करते ए कु तीदे वीसे बोले—‘क या ण! तु हारे तका भावी प रणाम मंगलमय है। दे वता के वामी इ हमलोग पर संतु ह और तु ह तु हारे े













संक पके अनुसार े पु दे ना चाहते ह। वह अलौ कक कम करनेवाला, यश वी, श ुदमन, नी त , महामना, सूयके समान तेज वी, धष, कमठ तथा दे खनेम अ य त अ त होगा ।। ३०—३३ ।। पु ं जनय सु ो ण धाम यतेजसाम् । लधः सादो द े वे ात् तमा य शु च मते ।। ३४ ।। ‘सु ो ण! अब ऐसे पु को ज म दो, जो यो चत तेजका भंडार हो। प व मुसकानवाली कु ती! मने दे वे क कृपा ा त कर ली है। अब तुम उ ह का आवाहन करो’ ।। ३४ ।। वैश पायन उवाच एवमु ा ततः श माजुहाव यश वनी । अथाजगाम दे वे ो जनयामास चाजुनम् ।। ३५ ।। वैश पायनजी कहते ह—महाराज पा डु के य कहने-पर यश वनी कु तीने इ का आवाहन कया। तदन तर दे वराज इ आये और उ ह ने अजुनको ज म दया ।। ३५ ।।

(उ रा यां तु पूवा यां फ गुनी यां ततो दवा । जात तु फा गुने मा स तेनासौ फा गुनः मृतः ।।) े

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वह फा गुन मासम दनके समय पूवाफा गुनी और उ राफा गुनी न के सं धकालम उ प आ। फा गुनमास और फा गुनी न म ज म लेनेके कारण उस बालकका नाम ‘फा गुन’ आ। जातमा े कुमारे तु वागुवाचाशरी रणी । महाग भीर नघ षा नभो नादयती तदा ।। ३६ ।। शृ वतां सवभूतानां तेषां चा मवा सनाम् । कु तीमाभा य व प मुवाचेदं शु च मताम् ।। ३७ ।। कुमार अजुनके ज म लेते ही अ य त ग भीर नादसे समूचे आकाशको गुँजाती ई आकाशवाणीने प व मुसकानवाली कु तीदे वीको स बो धत करके सम त ा णय और आ मवा सय के सुनते ए अ य त प भाषाम इस कार कहा— ।। ३६-३७ ।। कातवीयसमः कु त शवतु यपरा मः । एष श इवाज यो यश ते थ य य त ।। ३८ ।। अ द या व णुना ी तयथाभूद भव धता । तथा व णुसमः ी त वध य य त तेऽजुनः ।। ३९ ।। ‘कु तभोजकुमारी! यह बालक कातवीय अजुनके समान तेज वी, भगवान् शवके समान परा मी और दे वराज इ के समान अजेय होकर तु हारे यशका व तार करेगा। जैसे भगवान् व णुने वामन पम कट होकर दे वमाता अ द तके हषको बढ़ाया था, उसी कार यह व णुतु य अजुन तु हारी स ताको बढ़ायेगा ।। ३८-३९ ।। एष म ान् वशे कृ वा कु ं सह सोमकैः । चे दका शक षां कु ल म व ह य त ।। ४० ।। ‘तु हारा यह वीर पु म , कु , सोमक, चे द, का श तथा क ष नामक दे श को वशम करके कु वंशक ल मीका पालन करेगा ।। ४० ।। (ग वो र दशं वीरो व ज य यु ध पा थवान् । धनर नौघम मतमान य य त पा डवः ।।) एत य भुजवीयण खा डवे ह वाहनः । मेदसा सवभूतानां तृ तं या य त वै पराम् ।। ४१ ।। ‘वीर अजुन उ र दशाम जाकर वहाँके राजा को यु म जीतकर असं य धनर न क रा श ले आयेगा। इसके बा बलसे खा डववनम अ नदे व सम त ा णय के मेदका आ वादन करके पूण तृ त लाभ करगे ।। ४१ ।। ामणी महीपालानेष ज वा महाबलः । ातृ भः स हतो वीर ीन् मेधानाह र य त ।। ४२ ।। ‘यह महाबली े वीर बालक सम त यसमूहका नायक होगा और यु म भू मपाल को जीतकर भाइय के साथ तीन अ मेध य का अनु ान करेगा ।। ४२ ।। जामद यसमः कु त व णुतु यपरा मः । एष वीयवतां े ो भ व य त महायशाः ।। ४३ ।। ‘













‘कु ती! यह परशुरामके समान वीर यो ा, भगवान् व णुके समान परा मी, बलवान म े और महान् यश वी होगा ।। ४३ ।। एष यु े महादे वं तोष य य त शंकरम् । अ ं पाशुपतं नाम त मात् तु ादवा य त ।। ४४ ।। नवातकवचा नाम दै या वबुध व षः । श ा या महाबा तान् व ध य त ते सुतः ।। ४५ ।। ‘यह यु म दे वा धदे व भगवान् शंकरको संतु करेगा और संतु ए उन महे रसे पाशुपत नामक अ ा त करेगा। नवातकवच नामक दै य दे वता से सदा े ष रखते ह। तु हारा यह महाबा पु इ क आ ासे उन सब दै य का संहार कर डालेगा ।। ४४-४५ ।। तथा द ा न चा ा ण नखलेनाह र य त । व ण ां यं चायमाहता पु षषभः ।। ४६ ।। ‘तथा पु ष म े यह अजुन स पूण द ा का पूण पसे ान ा त करेगा और अपनी खोयी ई स प को पुनः वापस ले आयेगा’ ।। ४६ ।। एताम य तां वाचं कु ती शु ाव सूतके । वाचमु चा रतामु चै तां नश य तप वनाम् ।। ४७ ।। बभूव परमो हषः शतशृ नवा सनाम् । तथा दे व नकायानां से ाणां च दवौकसाम् ।। ४८ ।। कु तीने सौरीमसे ही यह अ य त अ त बात सुनी। उ च वरम उ चा रत वह आकाशवाणी सुनकर शतशृंग नवासी तप वी मु नय तथा वमान पर थत इ आ द दे वसमूह को बड़ा हष आ ।। ४७-४८ ।। आकाशे भीनां च बभूव तुमुलः वनः । उद त महाघोषः पु पवृ भरावृतः ।। ४९ ।। तदन तर आकाशम फूल क वषाके साथ दे वभय का तुमुल नाद बड़े जोरसे गूँज उठा ।। ४९ ।। समवे य च दे वानां गणाः पाथमपूजयन् । का वेया वैनतेया ग धवा सरस तथा । जानां पतयः सव स त चैव महषयः ।। ५० ।। भर ाजः क यपो गौतम व ा म ो जमद नव स ः । य ो दतो भा करेऽभूत् ण े सोऽ य ा भगवानाजगाम ।। ५१ ।। फर झुंड-के-झुंड दे वता वहाँ एक होकर अजुनक शंसा करने लगे। क क ू े पु (नाग), वनताके पु (ग ड प ी), ग धव, अ सराएँ, जाप त, स त षगण—भर ाज, क यप, गौतम, व ा म , जमद न, व स तथा जो न के पम सूया त होनेके प ात् उ दत होते ह, वे भगवान् अ भी वहाँ आये ।। ५०-५१ ।। मरी चर रा ैव पुल यः पुलहः तुः । ै

द ः जाप त ैव ग धवा सरस तथा ।। ५२ ।। मरी च और अं गरा, पुल य, पुलह, तु एवं जाप त द , ग धव तथा अ सराएँ भी आय ।। ५२ ।। द मा या बरधराः सवालंकारभू षताः । उपगाय त बीभ सुं नृ य तेऽ सरसां गणाः ।। ५३ ।। उन सबने द हार और द व धारण कर रखे थे। वे सब कारके आभूषण से वभू षत थे। अ सरा का पूरा दल वहाँ जुट गया था। वे सभी अजुनके गुण गाने और नृ य करने लग ।। ५३ ।। तथा महषय ा प जेपु त सम ततः । ग धवः स हतः ीमान् ागायत च तु बु ः ।। ५४ ।। मह ष भी वहाँ सब ओर खड़े होकर मांग लक म का जप करने लगे। ग धव के साथ ीमान् तु बु ने मधुर वरसे गीत गाना ार भ कया ।। ५४ ।। भीमसेनो सेनौ च ऊणायुरनघ तथा । गोप तधृतरा सूयवचा तथा मः ।। ५५ ।। युगप तृणपः का णन द रथ तथा । योदशः शा ल शराः पज य चतुदशः ।। ५६ ।। क लः प चदश ैव नारद ा षोडशः । ऋ वा बृह वा बृहकः कराल महामनाः ।। ५७ ।। चारी ब गुणः सुवण े त व ुतः । व ावसुभुम यु सुच श तथा ।। ५८ ।। गीतमाधुयस प ौ व यातौ च हहा । इ येते दे वग धवा ज मु त नरा धप ।। ५९ ।। भीमसेन तथा उ सेन, ऊणायु और अनघ, गोप त एवं धृतरा, सूयवचा तथा आठव युगप, तृणप, का ण, न द एवं च रथ, तेरहव शा ल शरा और चौदहव पज य, पं हव क ल और सोलहव नारद, ऋ वा और बृह वा, बृहक एवं महामना कराल, चारी तथा व यात गुणवान् सुवण, व ावसु एवं भुम यु, सुच और श तथा गीतमाधुयसे स प सु व यात हाहा और —राजन्! ये सब दे वग धव वहाँ पधारे थे ।। ५५—५९ ।। तथैवा सरसो ाः सवालंकारभू षताः । ननृतुव महाभागा जगु ायतलोचनाः ।। ६० ।। इसी कार सम त आभूषण से वभू षत बड़े-बड़े ने वाली परम सौभा यशा लनी अ सराएँ भी हष लासम भरकर वहाँ नृ य करने लग ।। ६० ।। अनूचानानव ा च गुणमु या गुणावरा । अ का च तथा सोमा म केशी वल बुषा ।। ६१ ।। मरी चः शु चका चैव व ु पणा तलो मा । अ बका ल णा ेमा दे वी र भा मनोरमा ।। ६२ ।। अ सता च सुबा सु या च वपु तथा । ी ी

पु डरीका सुग धा च सुरसा च मा थनी ।। ६३ ।। का या शार ती चैव ननृतु त सङ् घशः । मेनका सहज या च क णका पु क थला ।। ६४ ।। ऋतु थला घृताची च व ाची पूव च य प । उ लोचे त च व याता लोचे त च ता दश ।। ६५ ।। उनके नाम इस कार ह—अनूचाना और अनव ा, गुणमु या एवं गुणावरा, अ का तथा सोमा, म केशी और अल बुषा, मरी च और शु चका, व ु पणा, तलो मा, अ बका, ल णा, ेमा, दे वी, र भा, मनोरमा, अ सता और सुबा , सु या एवं वपु, पु डरीका एवं सुग धा, सुरसा और मा थनी, का या तथा शार ती आ द। ये झुंड-क -झुंड अ सराएँ नाचने लग । इनम मेनका, सहज या, क णका और पुं जक थला, ऋतु थला एवं घृताची, व ाची और पूव च , उ लोचा और लोचा—ये दस व यात ह ।। ६१— ६५ ।। उव येकादशी तासां जगु ायतलोचनाः । धातायमा च म व ण ऽशो भग तथा ।। ६६ ।। इ ो वव वान् पूषा च व ा च स वता तथा । पज य ैव व णु आ द या ादश मृताः । म हमानं पा डव य वधय तोऽ बरे थताः ।। ६७ ।। इ ह धान अ सरा क ेणीम यारहव उवशी है। ये सभी वशाल ने वाली सु द रयाँ वहाँ गीत गाने लग । धाता और अयमा, म और व ण, अंश एवं भग, इ , वव वान् और पूषा, व ा एवं स वता, पज य तथा व णु—ये बारह आ द य* माने गये ह। ये सभी पा डु न दन अजुनका मह व बढ़ाते ए आकाशम खड़े थे ।। ६६-६७ ।। मृग ाध सप नऋ त महायशाः । अजैकपाद हबु यः पनाक च परंतप ।। ६८ ।। दहनोऽथे र ैव कपाली च वशा पते । थाणुभग भगवान् ा त ावत थरे ।। ६९ ।। श ुदमन महाराज! मृग ाध और सप, महा-यश वी नऋ त एवं अजैकपाद, अ हबु य और पनाक , दहन तथा ई र, कपाली एवं थाणु तथा भगवान् भग—ये यारह भी वहाँ आकाशम आकर खड़े थे ।। ६८-६९ ।। अ नौ वसव ा ौ म त महाबलाः । व ेदेवा तथा सा या त ासन् प रतः थताः ।। ७० ।। दोन अ नीकुमार तथा आठ वसु, महाबली म द्गण एवं व ेदेवगण तथा सा यगण वहाँ सब ओर व मान थे ।। ७० ।। कक टकोऽथ सप वासु क भुज मः । क यप ाथ कु ड त क महोरगः ।। ७१ ।। आययु तपसा यु ा महा ोधा महाबलाः । े



एते चा ये च बहव त नागा व थताः ।। ७२ ।। कक टक सप तथा वासु क नाग, क यप और कु ड, महानाग और त क—ये तथा और भी ब त-से महाबली, महा ोधी और तप वी नाग वहाँ आकर खड़े थे ।। ७१-७२ ।। ता य ा र ने म ग ड ा सत वजः । अ ण ा ण ैव वैनतेया व थताः ।। ७३ ।। ता य और अ र ने म, ग ड एवं अ सत वज, अ ण तथा आ ण— वनताके ये पु भी उस उ सवम उप थत थे ।। ७३ ।। तां दे वगणान् सवा तपः स ा महषयः । वमान गय गतान् द शुनतरे जनाः ।। ७४ ।। वे सब दे वगण वमान और पवतके शखरपर खड़े थे। उ ह तपः स मह ष ही दे ख पाते थे, सरे लोग नह ।। ७४ ।। तद् ् वा महदा य व मता मु नस माः । अ धकां म ततो वृ मवतन् पा डवान् त ।। ७५ ।। वह महान् आ य दे खकर वे े मु नगण बड़े व मयम पड़े। तबसे पा डव के त उनम अ धक ेम और आदरका भाव पैदा हो गया ।। ७५ ।। पा डु तु पुनरेवैनां पु लोभा महायशाः । व ु मै छद् धमप न कु ती वेनमथा वीत् ।। ७६ ।। तदन तर महायश वी राजा पा डु पु -लोभसे आकृ हो अपनी धमप नी कु तीसे फर कुछ कहना चाहते थे, कतु कु ती उ ह रोकती ई बोली— ।। ७६ ।। नात तुथ सवमाप व प वद युत । अतः परं वै रणी याद् ब धक प चमे भवेत् ।। ७७ ।। ‘आयपु ! आप कालम भी तीनसे अ धक चौथी संतान उ प करनेक आ ा शा ने नह द है। इस व धके ारा तीनसे अ धक चौथी संतान चाहनेवाली ी वै रणी होती है और पाँचव पु के उ प होनेपर तो वह कुलटा समझी जाती है ।। ७७ ।। स वं व न् धम ममम धग य कथं नु माम् । अप याथ समु य मादा दव भाषसे ।। ७८ ।। ‘ व न्! आप धमको जानते ए भी मादसे कहनेवालेके समान धमका लोप करके अब फर मुझे संतानो प के लये य े रत कर रहे ह’ ।। ७८ ।।

(पा डु वाच एवमेतद् धमशा ं यथा वद स तत् तथा ।) पा डु ने कहा— ये! वा तवम धमशा का ऐसा ही मत है। तुम जो कुछ कहती हो, वह ठ क है। इत



ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण पा डवो प ौ ा वश य धकशततमोऽ यायः ।। १२२ ।।



इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम पा डव क उ प वषयक एक सौ बाईसवाँ अ याय पूरा आ ।। १२२ ।। (दा णा य अ धक पाठक े १० ोक मलाकर कुल ८८ ोक ह)

* यहाँ आ द य के तेरह नाम ह। जान पड़ता है, बारह महीन के बारह आ द य और अ धमास या मलमासके काशक तेरहव व णु ह। इसी लये उसे पु षो ममास कहते ह। अ धमासक पृथक् गणना न होनेसे बारह मास के काशक आ द य बारह ही कहे गये ह।

यो वश य धकशततमोऽ यायः नकुल और सहदे वक उ प तथा पा डु -पु के नामकरण-सं कार वैश पायन उवाच कु तीपु ेषु जातेषु धृतरा ा मजेषु च । म राजसुता पा डु ं रहो वचनम वीत् ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! जब कु तीके तीन पु उ प हो गये और धृतराक े भी सौ पु हो गये, तब मा ने पा डु से एका तम कहा— ।। १ ।। न मेऽ त व य संतापो वगुणेऽ प परंतप । नावर वे वराहायाः थ वा चानघ न यदा ।। २ ।। गा धाया ैव नृपते जातं पु शतं तथा । ु वा न मे तथा ःखमभवत् कु न दन ।। ३ ।। ‘श ु को संताप दे नेवाले न पाप कु न दन! आप संतान उ प करनेक श से र हत हो गये, आपक इस यूनता या बलताको लेकर मेरे मनम कोई संताप नह है। य प म सदा कु तीदे वीक अपे ा े होनेके कारण पटरानीके पदपर बैठनेक अ धका रणी थी, तो भी जो सदा मुझे छोट बनकर रहना पड़ता है, इसके लये भी मुझे कोई ःख नह है। राजन्! गा धारी तथा राजा धृतराक े जो सौ पु ए ह, वह समाचार सुनकर भी मुझे वैसा ःख नह आ था ।। २-३ ।। इदं तु मे महद् ःखं तु यतायामपु ता । द ा वदान भतुम कु याम य त संत तः ।। ४ ।। ‘परंतु इस बातका मेरे मनम ब त ःख है क म और कु तीदे वी दोन समान पसे आपक प नयाँ ह, तो भी उ ह तो पु आ और म संतानहीन ही रह गयी। यह सौभा यक बात है क इस समय मेरे ाणनाथको कु तीके गभसे पु क ा त हो गयी है ।। ४ ।। य द वप यसंतानं कु तराजसुता म य । कुयादनु हो मे यात् तव चा प हतं भवेत् ।। ५ ।। ‘य द कु तराजकुमारी मेरे गभसे भी कोई संतान उ प करा सक, तो यह उनका मेरे ऊपर महान् अनु ह होगा और इससे आपका भी हत हो सकता है ।। ५ ।। संर भो ह सप नी वाद् व ुं कु तसुतां त । य द तु वं स ो मे वयमेनां चोदय ।। ६ ।। ‘सौत होनेके कारण मेरे मनम एक अ भमान है, जो कु तीदे वीसे कुछ नवेदन करनेम बाधक हो रहा है; अतः य द आप मुझपर स ह तो आप वयं ही मेरे लये कु तीदे वीको े रत क जये’ ।। ६ ।।

पा डु वाच ममा येष सदा मा थः प रवतते । न तु वां सहे व ु म ा न वव या ।। ७ ।। पा डु बोले—मा ! यह बात मेरे मनम भी नर तर घूमती रहती है, कतु इस वषयम तुमसे कुछ कहनेका साहस नह होता था; य क पता नह , तुम यह ताव सुनकर स होओगी या बुरा मान जाओगी। यह संदेह बराबर बना रहता था ।। ७ ।। तव वदं मतं म वा य त या यतः परम् । म ये ुवं मयो ा सा वचनं तप यते ।। ८ ।। परंतु आज इस वषयम तु हारी स म त जानकर अब म इसके लये य न क ँ गा। मुझे व ास है, मेरे कहनेपर कु तीदे वी न य ही मेरी बात मान लगी ।। ८ ।। वैश पायन उवाच ततः कु त पुनः पा डु व व इदम वीत् । कुल य मम संतानं लोक य च कु यम् ।। ९ ।। मम चा प डनाशाय पूवषाम प चा मनः । म याथ च क या ण कु क याणमु मम् ।। १० ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तब राजा पा डु ने एका तम कु तीसे यह बात कही—‘क या ण! मेरी कुलपर पराका व छे द न हो और स पूण जगत्का य हो, ऐसा काय करो। मेरे तथा अपने पूवज के लये प डका अभाव न हो और मेरा भी य हो, इसके लये तुम परम उ म क याणमय काय करो ।। ९-१० ।। यशसोऽथाय चैव वं कु कम सु करम् । ा या धप य म े ण य ै र ं यशोऽ थना ।। ११ ।। ‘अपने यशका व तार करनेके लये तुम अ य त कर कम करो, जैसे इ ने वगका साा य ा त कर लेनेके बाद भी केवल यशक कामनासे अनेकानेक य का अनु ान कया था ।। ११ ।। तथा म वदो व ा तप त वा सु करम् । गु न युपग छ त यशसोऽथाय भा व न ।। १२ ।। ‘भा म न! म वे ा ा ण अ य त कठोर तप या करके भी यशके लये गु जन क शरण हण करते ह ।। १२ ।। तथा राजषयः सव ा णा तपोधनाः । च ु चावचं कम यशसोऽथाय करम् ।। १३ ।। ‘स पूण राज षय तथा तप वी ा ण ने भी यशके लये छोटे -बड़े क ठन कम कये ह ।। १३ ।। सा वं मा लवेनैव तारयैनाम न दते । अप यसं वभागेन परां क तमवा ु ह ।। १४ ।। ‘







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‘अ न दते! इसी कार तुम भी इस मा को नौकापर बठाकर पार लगा दो; इसे भी संत त दे कर उ म यश ा त करो’ ।। १४ ।।

वैश पायन उवाच एवमु वा वी मा सकृ च तय दै वतम् । त मात् ते भ वताप यमनु पमसंशयम् ।। १५ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! महाराज पा डु के य कहनेपर कु तीने मा से कहा—‘तुम एक बार कसी दे वताका च तन करो, उससे तु ह यो य संतानक ा त होगी, इसम संशय नह है’ ।। १५ ।। ततो मा वचायवं जगाम मनसा नौ । तावाग य सुतौ त यां जनयामासतुयमौ ।। १६ ।। तब मा ने मन-ही-मन कुछ वचार करके दोन अ नीकुमार का मरण कया। तब उन दोन ने आकर मा के गभसे दो जुड़व पु उ प कये ।। १६ ।। नकुलं सहदे वं च पेणा तमौ भु व । तथैव ताव प यमौ वागुवाचाशरी रणी ।। १७ ।। उनमसे एकका नाम नकुल था और सरेका सहदे व। पृ वीपर सु दर पम उन दोन क समानता करनेवाला सरा कोई नह था। पहलेक तरह उन दोन यमल संतान के वषयम भी आकाशवाणीने कहा— ।। १७ ।। स व पगुणोपेतौ भवतोऽ य ना व त । भासत तेजसा यथ प वणस पदा ।। १८ ।। ‘ये दोन बालक अ नीकुमार से भी बढ़कर बु , प और गुण से स प ह गे। अपने तेज तथा बढ़ -चढ़ प-स प के ारा ये दोन सदा का शत रहगे’ ।। १८ ।। नामा न च रे तेषां शतशृ नवा सनः । भ या च कमणा चैव तथाशी भ वशा पते ।। १९ ।। तदन तर शतशृंग नवासी ऋ षय ने उन सबके नामकरण-सं कार कये। उ ह आशीवाद दे ते ए उनक भ और कमके अनुसार उनके नाम रखे ।। १९ ।। ये ं यु ध रे येवं भीमसेने त म यमम् । अजुने त तृतीयं च कु तीपु ानक पयन् ।। २० ।। कु तीके ये पु का नाम यु ध र, मझलेका नाम भीमसेन और तीसरेका नाम अजुन रखा गया ।। २० ।। पूवजं नकुले येवं सहदे वे त चापरम् । मा पु ावकथयं ते व ाः ीतमानसाः ।। २१ ।। उन स च ा ण ने मा पु मसे जो पहले उ प आ, उसका नाम नकुल और सरेका सहदे व न त कया ।। २१ ।। अनुसंव सरं जाता अ प ते कु स माः । पा डु पु ा राज त प च संव सरा इव ।। २२ ।। े







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वे कु े पा डवगण तवष एक-एक करके उ प ए थे, तो भी दे व व प होनेके कारण पाँच संव सर क भाँ त एक-से सुशो भत हो रहे थे ।। २२ ।। महास वा महावीया महाबलपरा माः । पा डु ् वा सुतां तां तु दे व पान् महौजसः ।। २३ ।। मुदं पर मकां लेभे नन द च नरा धपः । ऋषीणाम प सवषां शतशृ नवा सनाम् ।। २४ ।। या बभूवु तासां च तथैव मु नयो षताम् । कु तीमथ पुनः पा डु मा य ् थ समचोदयत् ।। २५ ।। वे सभी महान् धैयशाली, अ धक वीयवान्, महाबली और परा मी थे। उन दे व व प महान् तेज वी पु को दे खकर महाराज पा डु को बड़ी स ता ई। वे आन दम म न हो गये। वे सभी बालक शतशृंग नवासी सम त मु नय और मु नप नय के य थे। तदन तर पा डु ने मा से संतानक उ प करानेके लये कु तीको पुनः े रत कया ।। २३—२५ ।। तमुवाच पृथा राजन् रह यु ा तदा सती । उ ा सकृद् मेषा लेभे तेना म व चता ।। २६ ।। राजन्! जब एका तम पा डु ने कु तीसे वह बात कही, तब सती कु ती पा डु से इस कार बोली—‘महाराज! मने इसे एक पु के लये नयु कया था, कतु इसने दो पा लये। इससे म ठगी गयी ।। २६ ।। बभे य याः प रभवात् कु ीणां ग तरी शी । ना ा सषमहं मूढा ा ाने फल यम् ।। २७ ।। त मा ाहं नयो ा वयैषोऽ तु वरो मम । एवं पा डोः सुताः प च दे वद ा महाबलाः ।। २८ ।। स भूताः क तम त कु वंश ववधनाः । शुभल णस प ाः सोमवत् यदशनाः ।। २९ ।। ‘अब तो म इसके ारा मेरा तर कार न हो जाय, इस बातके लये डरती ँ। खोट य क ऐसी ही ग त होती है। म ऐसी मूखा ँ क मेरी समझम यह बात नह आयी क दो दे वता के आवाहनसे दो पु प फलक ा त होती है। अतः राजन्! अब मुझे इसके लये आप इस कायम नयु न क जये। म आपसे यही वर माँगती ँ।’ इस कार पा डु के दे वता के दये ए पाँच महाबली पु उ प ए, जो यश वी होनेके साथ ही कु कुलक वृ करनेवाले और उ म ल ण से स प थे। च माक भाँ त उनका दशन सबको य लगता था ।। २७—२९ ।। सहदपा महे वासाः सह व ा तगा मनः । सह ीवा मनु ये ा ववृधुदव व माः ।। ३० ।। ववधमाना ते त पु ये हैमवते गरौ । व मयं जनयामासुमहष णां समेयुषाम् ।। ३१ ।। उनका अ भमान सहके समान था, वे बड़े-बड़े धनुष धारण करते थे। उनक चालढाल भी सहके ही समान थी। दे वता के समान परा मी तथा सहक -सी गदनवाले वे े े े े ेऔ ो े े

नर े बढ़ने लगे। उस पु यमय हमालयके शखरपर पलते और पु होते ए वे पा डु पु वहाँ एक होनेवाले मह षय को आ यच कत कर दे ते थे ।। ३०-३१ ।। (जातमा ानुपादाय शतशृ नवा सनः । पा डोः पु ानम य त तापसाः वा नवा मजान् ।। तत तु वृ णयः सव वसुदेवपुरोगमाः । पा डु ः शापभयाद् भीतः शतशृ मुपे यवान् । त ैव मु न भः साध तापसोऽभूत् तप रन् ।। शाकमूलफलाहार तप वी नयते यः । यानयोगपरो राजा बभूवे त च वादकाः ।। ुव त म बहव त छ वा शोकक शताः । पा डोः ी तसमायु ाः कदा ो याम स कथाः ।। इ येवं कथय त ते वृ णयः सह बा धवैः । पा डोः पु ागमं ु वा सव हषसम वताः ।। सभाजय त तेऽ यो यं वसुदेवं वचोऽ ुवन् । शतशृंग नवासी तप वी मु न पा डु के पु को ज मकालसे ही संर णम लेकर अपने औरस पु क भाँ त उनका लाड़- यार करते थे। उधर ारकाम वसुदेव आ द सब वृ णवंशी राजा पा डु के वषयम इस कार वचार कर रहे थे—‘अहो! राजा पा डु कदम मु नके शापसे भयभीत हो शतशृंग पवतपर चले गये ह और वह ऋ ष-मु नय के साथ तप याम त पर हो पूरे तप वी बन गये ह। वे शाक, मूल और फल भोजन करते ह, तपम लगे रहते ह, इ य को काबूम रखते ह और सदा यानयोगका ही साधन करते ह। ये बात ब त-से संदेशवाहक मनु य बता रहे थे।’ यह समाचार सुनकर ायः सभी य वंशी उनके ेमी होनेके नाते शोकम न रहते थे। वे सोचते थे—‘कब हम महाराज पा डु का शुभ संवाद सुननेको मलेगा।’ एक दन अपने भाई-ब धु के साथ बैठकर सब वृ णवंशी जब इस कार पा डु के वषयम कुछ बात कर रहे थे, उसी समय उ ह ने पा डु के पु होनेका समाचार सुना। सुनते ही सब-के-सब हष वभोर हो उठे और पर पर स ाव कट करते ए वसुदेवजीसे इस कार बोले— वृ णय ऊचुः न भवेरन् याहीनाः पा डोः पु ा महायशः । पा डोः य हता वेषी ेषय वं पुरो हतम् ।। वृ णय ने कहा—महायश वी वसुदेवजी! हम चाहते ह क राजा पा डु के पु सं कारहीन न ह ; अतः आप पा डु के य और हतक इ छा रखकर उनके पास कसी पुरो हतको भे जये। वैश पायन उवाच वसुदेव तथे यु वा वससज पुरो हतम् । यु ा न च कुमाराणां पा रबहा यनेकशः ।। ी

कु त मा च सं द य दासीदासप र छदम् । गा रौ यं हर यं च ेषयामास भारत ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तब ‘ब त अ छा’ कहकर वसुदेवजीने पुरो हतको भेजा; साथ ही उन कुमार के लये उपयोगी अनेक कारक व ाभूषणसाम ी भी भेजी। कु ती और मा के लये भी दासी, दास, व ाभूषण आ द आव यक सामान, गौएँ, चाँद और सुवण भजवाये। ता न सवा ण संगृ ययौ स पुरो हतः । तमागतं ज े ं का यपं वै पुरो हतम् ।। पूजयामास व धवत् पा डु ः परपुर यः । पृथा मा च सं े वसुदेवं शंसताम् ।। उन सब साम य को एक करके अपने साथ ले पुरो हतने वनको थान कया। श ु क नगरीपर वजय पानेवाले राजा पा डु ने पुरो हत ज े का यपके आनेपर उनका व धपूवक पूजन कया। कु ती और मा ने स होकर वसुदेवजीक भू र-भू र शंसा क । ततः पा डु ः याः सवाः पा डवानामकारयत् । गभाधाना दकृ या न चौलोपनयना न च ।। का यपः कृतवान् सवमुपाकम च भारत । चौलोपनयना वमृषभा ा यश वनः ।। वै दका ययने सव समप त पारगाः । तब पा डु ने अपने पु के गभाधानसे लेकर चूडाकरण और उपनयनतक सभी सं कार-कम करवाये। भारत! पुरो हत का यपने उनके सब सं कार स प कये। बैल के समान बड़े-बड़े ने वाले वे यश वी पा डव चूडाकरण और उपनयनके प ात् उपाकम करके वेदा ययनम लगे और उसम पारंगत हो गये। शयातेः पृषतः पु ः शुको नाम परंतपः ।। येन सागरपय ता धनुषा न जता मही । अ मेधशतै र ् वा स महा मा महामखैः ।। आरा य दे वताः सवाः पतॄन प महाम तः । शतशृ े तप तेपे शाकमूलफलाशनः ।। तेनोपकरण े ैः श या चोपबृं हताः । त सादाद् धनुवदे समप त पारगाः ।। भारत! शया तवंशजके एक पु पृषत् थे, जनका नाम था शुक। वे अपने परा मसे श ु को संत त करनेवाले थे। उन शुकने कसी समय अपने धनुषके बलसे जीतकर समु पय त सारी पृ वीपर अ धकार कर लया था। अ मेध-जैसे सौ बड़े-बड़े य का अनु ान एवं स पूण दे वता तथा पतर क आराधना करके परम बु मान् महा मा राजा शुक शतशृंग पवतपर आकर शाक और फल-मूलका आहार करते ए तप या करने लगे। ी



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उ ह तप वी नरेशने े उपकरण और श ाके ारा पा डव क यो यता बढ़ायी। राज ष शुकके कृपा- सादसे सभी पा डव धनुवदम पारंगत हो गये। गदायां पारगो भीम तोमरेषु यु ध रः । अ सचम ण न णातौ यमौ स ववतां वरौ ।। धनुवदे गतः पारं स साची परंतपः । शुकेन समनु ातो म समोऽय म त भो । अनु ाय ततो राजा श खड् गं तथा शरान् ।। धनु ददतां े तालमा ं महा भम् । वपाठ ुरनाराचान् गृ प ानलंक ृ तान् ।। ददौ पाथाय सं ो महोरगसम भान् । अवा य सवश ा ण मु दतो वासवा मजः ।। मेने सवान् महीपालान् अपया तान् वतेजसः । भीमसेन गदा-संचालनम पारंगत ए और यु ध र तोमर फकनेम। धैयवान् और श शाली पु ष म े दोन मा पु ढाल-तलवार चलानेक कलाम नपुण ए। परंतप स साची अजुन धनुवदके पारगामी व ान् ए। राजन्! जब दाता म े शुकने जान लया क अजुन मेरे समान धनुवदके ाता हो गये, तब उ ह ने अ य त स होकर श , खड् ग, बाण, ताड़के समान वशाल अ य त चमक ला धनुष तथा वपाठ, ुर एवं नाराच अजुनको दये। वपाठ आ द सभी कारके बाण गीधक पाँख से यु तथा अलंकृत थे। वे दे खनेम बड़े-बड़े सप के समान जान पड़ते थे। इन सब अ -श को पाकर इ पु अजुनको बड़ी स ता ई। वे यह अनुभव करने लगे क भूम डलके कोई भी नरेश तेजम मेरी समानता नह कर सकते। (एकवषा तरा वेवं पर परमरदमाः । अ ववध त पाथा मा पु ौ तथैव च ।।) श ुदमन पा डव क आयुम पर पर एक-एक वषका अ तर था। कु ती और मा दोन दे वय के पु दन- दन बढ़ने लगे। ते च प च शतं चैव कु वंश ववधनाः । सव ववृधुर पेन कालेना वव नीरजाः ।। ३२ ।। फर तो जैसे जलम कमल बढ़ता है, उसी कार कु वंशक वृ करनेवाले जो एक सौ पाँच बालक ए थे, वे सब थोड़े ही समयम बढ़कर सयाने हो गये ।। ३२ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण पा डवो प ौ यो वश य धकशततमोऽ यायः ।। १२३ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम पा डव क उ प वषयक एक सौ तेईसवाँ अ याय पूरा आ ।। १२३ ।। (दा णा य अ धक पाठक े २३ ोक मलाकर कुल ५५ ोक ह)

चतु वश य धकशततमोऽ यायः राजा पा डु क मृ यु और मा का उनके साथ चतारोहण वैश पायन उवाच दशनीयां ततः पु ान् पा डु ः प च महावने । तान् प यन् पवते र ये वबा बलमा तः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! उस महान् वनम रमणीय पवत- शखरपर महाराज पा डु उन पाँच दशनीय पु को दे खते ए अपने बा बलके सहारे स तापूवक नवास करने लगे ।। १ ।। (पूण चतुद शे वष फा गुन य च धीमतः । तदा उ रफ गु यां वृ े व तवाचने ।। र णे व मृता कु ती ा ा णभोजने । पुरो हतेन स हता ा णान् पयवेषयत् ।। त मन् काले समाय मा मदनमो हतः ।) सुपु पतवने काले कदा च मधुमाधवे । भूतस मोहने राजा सभाय चरद् वनम् ।। २ ।। एक दनक बात है, बु मान् अजुनका चौदहवाँ वष पूरा आ था। उनक ज मत थको उ राफा गुनी न म ा णलोग ने व तवाचन ार भ कया। उस समय कु तीदे वीको महाराज पा डु क दे खभालका यान न रहा। वे ा ण को भोजन करानेम लग गय । पुरो हतके साथ वयं ही उनको रसोई परोसने लग । इसी समय काममो हत पा डु मा को बुलाकर अपने साथ ले गये। उस समय चै और वैशाखके महीन क सं धका समय था, समूचा वन भाँ त-भाँ तके सु दर पु प से अलंकृत हो अपनी अनुपम शोभासे सम त ा णय को मो हत कर रहा था, राजा पा डु अपनी छोट रानीके साथ वनम वचरने लगे ।। २ ।। पलाशै तलकै तै पकैः पा रभ कैः । अ यै ब भवृ ैः फलपु पसमृ भः ।। ३ ।। जल थानै व वधैः प नी भ शो भतम् । पा डोवनं तत् स े य ज े द म मथः ।। ४ ।। पलाश, तलक, आम, च पा, पा रभ क तथा और भी ब त-से वृ फल-फूल क समृ से भरे ए थे, जो उस वनक शोभा बढ़ा रहे थे। नाना कारके जलाशय तथा कमल से सुशो भत उस वनक मनोहर छटा दे खकर राजा पा डु के मनम कामका संचार हो गया ।। ३-४ ।। मनसं त वचर तं यथामरम् । तं मा य ् नुजगामैका वसनं ब ती शुभम् ।। ५ ।। े







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वे मनम हष लास भरकर दे वताक भाँ त वहाँ वचर रहे थे। उस समय मा सु दर व पहने अकेली उनके पीछे -पीछे जा रही थी ।। ५ ।। समी माणः स तु तां वयः थां तनुवाससम् । त य कामः ववृधे गहनेऽ न रवोद्गतः ।। ६ ।। वह युवाव थासे यु थी और उसके शरीरपर झीनी-झीनी साड़ी सुशो भत थी। उसक ओर दे खते ही पा डु के मनम कामनाक आग जल उठ , मानो घने वनम दावा न व लत हो उठ हो ।। ६ ।। रह येकां तु तां ् वा राजा राजीवलोचनाम् । न शशाक नय तुं तं कामं कामवशीकृतः ।। ७ ।। एका त दे शम कमलनयनी मा को अकेली दे खकर राजा कामका वेग रोक न सके, वे पूणतः कामदे वके अधीन हो गये थे ।। ७ ।। तत एनां बलाद् राजा नज ाह रहो गताम् । वायमाण तया दे ा व फुर या यथाबलम् ।। ८ ।। अतः एका तम मली ई मा को महाराज पा डु ने बलपूवक पकड़ लया। दे वी मा राजाक पकड़से छू टनेके लये यथाश चे ा करती ई उ ह बार-बार रोक रही थी ।। ८ ।। स तु कामपरीता मा तं शापं ना वबु यत । मा मैथुनधमण सोऽ वग छद् बला दव ।। ९ ।। जी वता ताय कौर म मथ य वशं गतः । शापजं भयमु सृ य व धना स चो दतः ।। १० ।। परंतु उनके मनपर तो कामका वेग सवार था; अतः उ ह ने मृग पधारी मु नसे ा त ए शापका वचार नह कया। कु न दन जनमेजय! वे कामके वशम हो गये थे, इस लये ार धसे े रत हो शापके भयक अवहेलना करके वयं ही अपने जीवनका अ त करनेके लये बलपूवक मैथुन करनेक इ छा रखकर मा से लपट गये ।। ९-१० ।। त य कामा मनो बु ः सा ात् कालेन मो हता । स मये य ामं ण ा सह चेतसा ।। ११ ।। सा ात् कालने कामा मा पा डु क बु मोह ली थी। उनक बु स पूण इ य को मथकर वचार-श के साथ-साथ वयं भी न हो गयी थी ।। ११ ।। स तया सह संग य भायया कु न दनः । पा डु ः परमधमा मा युयुजे कालधमणा ।। १२ ।। कु कुलको आन दत करनेवाले परम धमा मा महाराज पा डु इस कार अपनी धमप नी मा से समागम करके कालके गालम पड़ गये ।। १२ ।। ततो मा समा ल य राजानं गतचेतसम् । मुमोच ःखजं श दं पुनः पुनरतीव ह ।। १३ ।। तब मा राजाके शवसे लपटकर बार-बार अ य त ःखभरी वाणीम वलाप करने लगी ।। १३ ।। ै ी ौ ौ

सह पु ै ततः कु ती मा पु ौ च पा डवौ । आज मुः स हता त य राजा तथागतः ।। १४ ।। इतनेम ही पु स हत कु ती और दोन पा डु न दन मा कुमार एक साथ उस थानपर आ प ँचे, जहाँ राजा पा डु मृतकाव थाम पड़े थे ।। १४ ।। ततो मा य ् वीद् राज ाता कु ती मदं वचः । एकैव व महाग छ त व ैव दारकाः ।। १५ ।। जनमेजय! यह दे ख शोकातुर मा ने कु तीसे कहा—‘ब हन! आप अकेली ही यहाँ आय। ब च को वह रहने द’ ।। १५ ।। त छ वा वचनं त या त ैवाधाय दारकान् । हताह म त व ु य सहसैवाजगाम सा ।। १६ ।। मा का यह वचन सुनकर कु तीने सब बालक को वह रोक दया और ‘हाय! म मारी गयी’ इस कार आतनाद करती ई सहसा मा के पास आ प ँची ।। १६ ।। ् वा पा डु ं च मा च शयानौ धरणीतले । कु ती शोकपरीता वललाप सु ःखता ।। १७ ।। आकर उसने दे खा, पा डु और मा धरतीपर पड़े ए ह। यह दे ख कु तीके स पूण शरीरम शोका न ा त हो गयी और वह अ य त ःखी होकर वलाप करने लगी — ।। १७ ।। र यमाणो मया न यं वीरः सततमा मवान् । कथं वाम य त ा तः शापं जानन् वनौकसः ।। १८ ।। ‘मा ! म सदा वीर एवं जते य महाराजक र ा करती आ रही थी। उ ह ने मृगके शापक बात जानते ए भी तु हारे साथ बलपूवक समागम कैसे कया? ।। १८ ।। ननु नाम वया मा र त ो नरा धपः । सा कथं लो भतवती वजने वं नरा धपम् ।। १९ ।। ‘मा ! तु ह तो महाराजक र ा करनी चा हये थी। तुमने एका तम उ ह लुभाया य ? ।। १९ ।। कथं द न य सततं वामासा रहोगताम् । तं व च तयतः शापं हषः समजायत ।। २० ।। ‘वे तो उस शापका च तन करते ए सदा द न और उदास बने रहते थे, फर तुझको एका तम पाकर उनके मनम कामज नत हष कैसे उ प आ? ।। २० ।। ध या वम स बा क म ो भा यतरा तथा । व य स यद् व ं य महीपतेः ।। २१ ।। ‘बा कराजकुमारी! तुम ध य हो, मुझसे बड़भा गनी हो; य क तुमने हष लाससे भरे ए महाराजके मुखच का दशन कया है’ ।। २१ ।। मा य ् ुवाच वलप या मया दे व वायमाणेन चासकृत् । ो



आ मा न वा रतोऽनेन स यं द ं चक षुणा ।। २२ ।। मा बोली—महारानी! मने रोते- बलखते बार-बार महाराजको रोकनेक चे ा क ; परंतु वे तो उस शापज नत भा यको मोहके कारण मानो स य करना चाहते थे, इस लये अपने-आपको रोक न सके ।। २२ ।। वैश पायन उवाच (त या तद् वचनं ु वा कु ती शोका नता पता । पपात सहसा भूमौ छ मूल इव मः ।। न े ा प तता भूमौ मोहा ैव चचाल सा ।। कु तीमु था य मा च मोहेना व चेतनाम् । ए ेही त तां कु त दशयामास कौरवम् ।। पादयोः प तता कु ती पुन थाय भू मपम् । स मतेन तु व ेण गद त मव भारत । प रर य तदा मोहाद् वललापाकुले या ।। मा चा प समा ल य राजानं वललाप सा ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! मा का यह वचन सुनकर कु ती शोका नसे संत त हो जड़से कटे ए वृ क भाँ त सहसा पृ वीपर गर पड़ी और गरते ही मू छा आ जानेके कारण न े पड़ी रही, हल-डु ल भी न सक । वह मू छावश अचेत हो गयी थी। मा ने उसे उठाया और कहा—‘ब हन! आइये, आइये!’ य कहकर उसने कु तीको कु राज पा डु का दशन कराया। कु ती उठकर पुनः महाराज पा डु के चरण म गर पड़ी। महाराजके मुखपर मुसकराहट थी और ऐसा जान पड़ता था मानो वे अभी-अभी कोई बात कहने जा रहे ह। उस समय मोहवश उ ह दयसे लगाकर कु ती वलाप करने लगी। उसक सारी इ याँ ाकुल हो गयी थ । इसी कार मा भी राजाका आ लगन करके क ण वलाप करने लगी। तं तथा धगतं पा डु मृषयः सह चारणैः । अ ये य स हताः सव शोकाद ू यवतयन् ।। अ तं गत मवा द यं सुशु क मव सागरम् । ् वा पा डु ं नर ा ं शोच त म महषयः ।। समानशोका ऋषयः पा डवा बभू वरे । ते समा ा सते व ैः वलेपतुर न दते ।। इस कार मृ यु-शयापर पड़े ए पा डु के पास चारण स हत सभी ऋ ष-मु न जुट आये और शोकवश आँसू बहाने लगे। अ ताचलको प ँचे ए सूय तथा एकदम सूखे ए समु क भाँ त नर े पा डु को दे खकर सभी मह ष शोकम न हो गये। उस समय ऋ षय को तथा पा डु पु को समान पसे शोकका अनुभव हो रहा था। ा ण ने पा डु क दोन सती-सा वी रा नय को समझा-बुझाकर ब त आ ासन दया, तो भी उनका वलाप बंद नह आ।

कु युवाच हा राजन् क य नौ ह वा ग छ स दशालयम् ।। हा राजन् मम म दायाः कथं मा समे य वै । नधनं ा तवान् राजन् म ा यप रसं यात् ।। यु ध रं भीमसेनमजुनं च यमावुभौ । क य ह वा यान् पु ान् यातोऽ स वशा पते ।। नूनं वां दशा दे वाः तन द त भारत । यथा ह तप उ ं ते च रतं व संस द ।। आवा यां स हतो राजन् ग म य स दवं शुभम् । आजमीढाजमीढानां कमणा च रतां ग तम् ।। कु ती बोली—हा! महाराज! आप हम दोन को कसे स पकर वगलोकम जा रहे ह। हाय! म कतनी भा यहीना ँ। मेरे राजा! आप कस लये अकेली मा से मलकर सहसा कालके गालम चले गये। मेरा भा य न हो जानेके कारण ही आज यह दन दे खना पड़ा है। जानाथ! यु ध र, भीमसेन, अजुन तथा नकुल-सहदे व—इन यारे पु को कसके ज मे छोड़कर आप चले गये? भारत! न य ही दे वता आपका अ भन दन करते ह गे; य क आपने ा ण क म डलीम रहकर कठोर तप या क है। अजमीढकुलन दन! आपके पूवज ने पु य-कम ारा जस ग तको ा त कया है, उसी शुभ वग य ग तको आप हम दोन प नय के साथ ा त करगे। वैश पायन उवाच ( वल प वा भृशं वेवं नःसं े प तते भु व । यु ध रमुखाः सव पा डवा वेदपारगाः । तेऽ याग य पतुमूले नःसं ाः प तता भु व ।। पा डोः पादौ प र व य वलप त म पा डवाः ।।) वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! इस कार अ य त वलाप करके कु ती और मा दोन अचेत हो पृ वीपर गर पड़ । यु ध र आ द सभी पा डव वेद व ाम पारंगत हो चुके थे, वे भी पताके समीप आकर सं ाशू य हो पृ वीपर गर पड़े। सभी पा डव पा डु के चरण को दयसे लगाकर वलाप करने लगे। कु युवाच अहं ये ा धमप नी ये ं धमफलं मम । अव य भा वनो भावा मा मां मा नवतय ।। २३ ।। अ व यामीह भतारमहं ेतवशं गतम् । उ वं वसृ यैन ममान् पालय दारकान् ।। २४ ।। अवा य पु ाँ लधा मा वीरप नी वमथये । ी े



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कु तीने कहा—मा ! म इनक ये धमप नी ँ, अतः धमके ये फलपर भी मेरा ही अ धकार है। जो अव य भावी बात है, उससे मुझे मत रोको। म मृ युके वशम पड़े ए अपने वामीका अनुगमन क ँ गी। अब तुम इ ह छोड़कर उठो और इन ब च का पालन करो। पु को पाकर मेरा लौ कक मनोरथ पूण हो चुका है; अब म प तके साथ द ध होकर वीरप नीका पद पाना चाहती ँ ।। २३-२४ ।। मा य ् ुवाच अहमेवानुया या म भतारमपला यनम् । न ह तृ ता म कामानां ये ा मामनुम यताम् ।। २५ ।। मा बोली—रणभू मसे कभी पीठ न दखानेवाले अपने प तदे वके साथ म ही जाऊँगी; य क उनके साथ होनेवाले कामभोगसे म तृ त नह हो सक ँ। आप बड़ी ब हन ह, इस लये मुझे आपको आ ा दान करनी चा हये ।। २५ ।। मां चा भग य ीणोऽयं कामाद् भरतस मः । तमु छ ाम य कामं कथं नु यमसादने ।। २६ ।। ये भरत े मेरे त आस हो मुझसे समागम करके मृ युको ा त ए ह; अतः मुझे कसी कार परलोकम प ँचकर उनक उस कामवासनाक नवृ करनी चा हये ।। २६ ।। न चा यहं वतय ती न वशेषं सुनेषु ते । वृ माय च र या म पृशेदेन तथा च माम् ।। २७ ।। आय! म आपके पु के साथ अपने सगे पु क भाँ त बताव नह कर सकूँगी। उस दशाम मुझे पाप लगेगा ।। २७ ।। त मा मे सुतयोः कु त व तत ं वपु वत् । मां च कामयमानोऽयं राजा ेतवशं गतः ।। २८ ।। अतः आप ही जी वत रहकर मेरे पु का भी अपने पु के समान ही पालन क जयेगा। इसके सवा ये महाराज मेरी ही कामना रखकर मृ युके अधीन ए ह ।। २८ ।। वैश पायन उवाच (ऋषय तान् समा ा य पा डवान् स य व मान् । ऊचुः कु त च मा च समा ा य तप वनः ।। सुभगे बालपु े तु न मत ं कथंचन । पा डवां ा प ने यामः कु रा ं परंतपान् ।। अधम वथजातेषु धृतरा लोभवान् । स कदा च वतत पा डवेषु यथा व ध ।। कु या वृ णयो नाथाः कु तभोज तथैव च । मा य ् ा ब लनां े ः श यो ाता महारथः ।। भ ा तु मरणं साध फलव ा संशयः । युवा यां करं चैतद् वद त जपु वाः ।। े ी े

मृते भत र या सा वी चय ते थता । यमै नयमैः ा ता मनोवा कायजैः शुभैः ।। तोपवास नयमैः कृ ै ा ायणा द भः । भूश यां ारलवणवजनं चैकभोजनम् ।। येन केना प व धना दे हशोषणत परा । दे हपोषणसंयु ा वषयै तचेतना ।। दे ह येन नरकं महदा ो यसंशयः । त मा संशोषयेद ् दे हं वषया नाशमा ुयुः ।। भतारं च तय ती सा भतारं न तरे छु भा । ता रत ा प भता यादा मा पु तथैव च ।। त मा जी वतमेवैतद् युवयो व शोभनम् ।। वैश पायनजी कहते ह—तदन तर तप वी ऋ षय ने स यपरा मी पा डव को धीरज बँधाकर कु ती और मा को भी आ ासन दे ते ए कहा—‘सुभगे! तुम दोन के पु अभी बालक ह, अतः तु ह कसी कार दे ह- याग नह करना चा हये। हमलोग श ुदमन पा डव को कौरव राक राजधानीम प ँचा दगे। राजा धृतरा अधममय धनके लये लोभ रखता है, अतः वह कभी पा डव के साथ यथायो य बताव नह कर सकता। कु तीके र क एवं सहायक वृ णवंशी और राजा कु तभोज ह तथा मा के बलवान म े महारथी श य उसके भाई ह। इसम संदेह नह क प तके साथ मृ यु वीकार करना प नीके लये महान् फलदायक होता है; तथा प तुम दोन के लये यह काय अ य त कठोर है, यह बात सभी े ा ण कहते ह। जो ी सा वी होती है, वह अपने प तक मृ यु हो जानेके बाद चयके पालनम अ वचलभावसे लगी रहती है, यम और नयम के पालनका लेश सहन करती है और मन, वाणी एवं शरीर ारा कये जानेवाले शुभ कम तथा कृ चा ायणा द त, उपवास और नयम का अनु ान करती है। वह ार (पापड़ आ द) और लवणका याग करके एक बार ही भोजन करती और भू मपर शयन करती है। वह जस कसी कारसे अपने शरीरको सुखानेके य नम लगी रहती है। कतु वषय के ारा न ई बु वाली जो नारी दे हको पु करनेम ही लगी रहती है, वह तो इस ( लभ मनु य-) शरीरको थ ही न करके नःसंदेह महान् नरकको ा त होती है। अतः सा वी ीको उ चत है क वह अपने शरीरको सुखाये, जससे स पूण वषय-कामनाएँ न हो जायँ। इस कार उपयु धमका पालन करनेवाली जो शुभल णा नारी अपने प तदे वका च तन करती रहती है, वह अपने प तका भी उ ार कर दे ती है। इस तरह वह वयं अपनेको, अपने प तको एवं पु को भी संसारसे तार दे ती है। अतः हमलोग तो यही अ छा मानते ह क तुम दोन जीवन धारण करो’। कु युवाच यथा पा डो नदश तथा व गण य च । आ ा शर स न ता क र या म च तत् तथा ।। ो





यथाऽऽ भगव तो ह त म ये शोभनं परम् । भतु मम पु ाणां मम चैव न संशयः ।। कु ती बोली—महा माओ! हमारे लये महाराज पा डु क आ ा जैसे शरोधाय है, उसी कार आप सब ा ण क भी है। आपका आदे श म सर-माथे रखती ँ। आप जैसा कहगे, वैसा ही क ँ गी। पू यपाद व गण जैसा कहते ह, उसीको म अपने प त, पु तथा अपने-आपके लये भी परम क याणकारी समझती ँ—इसम त नक भी संशय नह है। मा य ् ुवाच कु ती समथा पु ाणां योग ेम य धारणे । अ या ह न समा बुा य प याद धती ।। कु या वृ णयो नाथाः कु तभोज तथैव च । नाहं व मव पु ाणां समथा धारणे तथा ।। साहं भतारम वे ये अतृ ता न वहं तथा । भतृलोक य तु ये ा दे वी मामनुम यताम् ।। धम य कृत य स यधम य धीमतः । पादौ प रच र या म तदाय नुम यताम् ।। मा ने कहा—कु तीदे वी सभी पु के योग- ेमके नवाहम—पालन-पोषणम समथ ह। कोई भी ी, चाहे वह अ धती ही य न हो, बु म इनक समानता नह कर सकती। वृ णवंशके लोग तथा महाराज कु तभोज भी कु तीके र क एवं सहायक ह। ब हन! पु के पालन-पोषणक श जैसी आपम है, वैसी मुझम नह है। अतः म प तका ही अनुगमन करना चाहती ँ। प तके संयोग-सुखसे मेरी तृ त भी नह ई है। अतः आप बड़ी महारानीसे मेरी ाथना है क मुझे प तलोकम जानेक आ ा द। म वह धम , कृत , स य त और बु मान् प तके चरण क सेवा क ँ गी। आय! आप मेरी इस इ छाका अनुमोदन कर।

वैश पायन उवाच एवमु वा महाराज म राजसुता शुभा । ददौ कु यै यमौ मा शरसा भ ण य च ।। अ भवा ऋषीन् सवान् प र व य च पा डवान् । मू युपा ाय ब शः पाथाना मसुतौ तथा ।। ह ते यु ध रं गृ मा वा यमभाषत ।। वैश पायनजी कहते ह—महाराज! य कहकर म दे शक राजकुमारी सती-सा वी मा ने कु तीको णाम करके अपने दोन जुड़व पु उ ह को स प दये। त प ात् उसने मह षय को म तक नवाकर पा डव को दयसे लगा लया और बारंबार कु तीके तथा अपने पु के म तक सूँघकर यु ध रका हाथ पकड़कर कहा। मा य ् ुवाच ी



कु ती माता अहं धा ी यु माकं तु पता मृतः । यु ध रः पता ये तुणा धमतः सदा ।। वृ ानुशासने स ाः स यधमपरायणाः । ता शा न वन य त नैव या त पराभवम् ।। त मात् सव कु वं वै गु वृ मत ताः ।। मा बोली—ब चो! कु तीदे वी ही तुम सब क असली माता ह, म तो केवल ध पलानेवाली धाय थी। तु हारे पता तो मर गये। अब बड़े भैया यु ध र ही धमतः तुम चार भाइय के पता ह। तुम सब बड़े-बूढ़ —गु जन क सेवाम संल न रहना और स य एवं धमके पालनसे कभी मुँह न मोड़ना। ऐसा करनेवाले लोग कभी न नह होते और न कभी उनक पराजय ही होती है। अतः तुम सब भाई आल य छोड़कर गु जन क सेवाम त पर रहना।

वैश पायन उवाच ऋषीणां च पृथाया नम कृ य पुनः पुनः । आयासकृपणा मा युवाच पृथां तथा ।। ध या वम स वा ण य ना त ी स शी वया । वीय तेज योगं च माहा यं च यश वनाम् ।। कु त य स पु ाणां प चानाम मतौजसाम् । ऋषीणां सं नधावेषां मया वाग युद रता ।। वग द माणाया ममैषा न वृथा भवेत् । आया चा य भवा ा च मम पू या च सवतः ।। ये ा व र ा वं दे व भू षता वगुणैः शुभैः । अ यनु ातु म छा म वया यादवन द न ।। धम वग च क त च व कृतेऽहमवा ुयाम् । यथा तथा वध वेह मा च काष वचारणाम् ।। वैश पायनजीने कहा—राजन्! त प ात् मा ने ऋ षय तथा कु तीको बारंबार नम कार करके, लेशसे ला त होकर कु तीदे वीसे द नतापूवक कहा —‘वृ णकुलन द न! आप ध य ह। आपक समानता करनेवाली सरी कोई ी नह है; य क आपको इन अ मततेज वी तथा यश वी पाँच पु के बल, परा म, तेज, योगबल तथा माहा य दे खनेका सौभा य ा त होगा। मने वगलोकम जानेक इ छा रखकर इन मह षय के समीप जो यह बात कही है, वह कदा प म या न हो। दे व! आप मेरी गु , व दनीया तथा पूजनीया ह; अव थाम बड़ी तथा गुण म भी े ह। सम त नैस गक सद्गुण आपक शोभा बढ़ाते ह। यादवन द न! अब म आपक आ ा चाहती ँ। आपके य न ारा जैसे भी मुझे धम, वग तथा क तक ा त हो, वैसा सहयोग आप इस अवसरपर कर। मनम कसी सरे वचारको थान न द’। बा पसं द धया वाचा कु युवाच यश वनी ।। े





अनु ाता स क या ण दवे संगमोऽ तु ते । भ ा सह वशाला म ैव भा म न ।। संगता वगलोके वं रमेथाः शा तीः समाः ।।) रा ः शरीरेण सह ममापीदं कलेवरम् । द ध ं सु त छ मेतदाय यं कु ।। २९ ।। तब यश वनी कु तीने बा पगद्गद वाणीम कहा—‘क या ण! मने तु ह आ ा दे द । वशाललोचने! तु ह आज ही वगलोकम प तका समागम ा त हो। भा म न! तुम वगम प तसे मलकर अन त वष तक स रहो।’ मा बोली—‘मेरे इस शरीरको महाराजके शरीरके साथ ही अ छ कार ढँ ककर द ध कर दे ना चा हये। बड़ी ब हन! आप मेरा यह य काय कर द ।। २९ ।। दारके व म ा च भवेथा हता मम । अतोऽ य प या म संदे ं ह कचन ।। ३० ।। ‘मेरे पु का हत चाहती ई सावधान रहकर उनका पालन-पोषण कर। इसके सवा सरी कोई बात मुझे आपसे कहनेयो य नह जान पड़ती’ ।। ३० ।। वैश पायन उवाच इ यु वा तं चता न थं धमप नी नरषभम् । म राजसुता तूणम वारोहद् यश वनी ।। ३१ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! कु तीसे यह कहकर पा डु क यश वनी धमप नी मा चताक आगपर रखे ए नर े पा डु के शवके साथ वयं भी चतापर जा बैठ ।। ३१ ।। (ततः पुरो हतः ना वा ेतकम ण पारगः । हर यशकला या यं तलान् द ध च त डु लान् ।। उदकु भं सपरशुं समानीय तप व भः । अ मेधा नमा य यथा यायं सम ततः ।। का यपः कारयामास पा डोः ेत य तां याम् ।। तदन तर ेतकमके पारंगत व ान् पुरो हत का यपने नान करके सुवणख ड, घृत, तल, दही, चावल, जलसे भरा घड़ा और फरसा आ द व तु को एक करके तप वी मु नय ारा अ मेधक अ न मँगवायी और उसे चार ओरसे चतासे छु लाकर यथायो य शा ीय व धसे पा डु का दाह-सं कार करवाया। अहता बरसंवीतो ातृ भः स हतोऽनघः । उदकं कृतवां त पुरो हतमते थतः ।। अहत त य कृ या न शतशृ नवा सनः । तापसा व धव च ु ारणा ऋ ष भः सह ।।) भाइय स हत न पाप यु ध रने नूतन व धारण करके पुरो हतक आ ाके अनुसार जलांज ल दे नेका काय पूरा कया। शतशृंग नवासी तप वी मु नय और चारण ने ी









आदरणीय राजा पा डु के परलोक-स ब धी सब काय व धपूवक स प इत

कये।

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण पा डू परमे चतु वश य धकशततमोऽ यायः ।। १२४ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम पा डु के परलोकगमन वषयक एक सौ चौबीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १२४ ।। (दा णा य अ धक पाठक े ५० ोक मलाकर कुल ८१ ोक ह)

प च वश य धकशततमोऽ यायः ऋ षय का कु ती और पा डव को लेकर ह तनापुर जाना और उ ह भी म आ दके हाथ स पना वैश पायन उवाच पा डो परमं ् वा दे वक पा महषयः । ततो म वदः सव म यांच रे मथः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! राजा पा डु क मृ यु ई दे ख वहाँ रहनेवाले, दे वता के समान तेज वी स पूण म मह षय ने आपसम सलाह क ।। १ ।। तापसा ऊचुः ह वा रा यं च रा ं च स महा मा महायशाः । अ मन् थाने तप त वा तापसा शरणं गतः ।। २ ।। तप वी बोले—महान् यश वी महा मा राजा पा डु अपना रा य तथा रा छोड़कर इस थानपर तप या करते ए तप वी मु नय क शरणम रहते थे ।। २ ।। स जातमा ान् पु ां दारां भवता मह । ादायोप नध राजा पा ड ु ः वग मतो गतः ।। ३ ।। वे राजा पा डु अपनी प नी और नवजात पु को आपलोग के पास धरोहर रखकर यहाँसे वगलोक चले गये ।। ३ ।। त येमाना मजान् दे हं भाया च सुमहा मनः । वरा ं गृ ग छामो धम एष ह नः मृतः ।। ४ ।। उनके इन पु को, पा डु और मा के शरीर क अ थय को तथा उन महा मा नरेशक महारानी कु तीको लेकर हमलोग उनक राजधानीम चल। इस समय हमारे लये यही धम तीत होता है ।। ४ ।। वैश पायन उवाच ते पर परमाम य द े वक पा महषयः । पा डोः पु ान् पुर कृ य नगरं नागसा यम् ।। ५ ।। उदारमनसः स ा गमने च रे मनः । भी माय पा डवान् दातुं धृतरा ाय चैव ह ।। ६ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! इस कार पर पर सलाह करके उन दे वतु य उदारचेता स मह षय ने पा डव को भी म एवं धृतराक े हाथ स प दे नेके लये पा डु पु को आगे करके ह तनापुर नगरम जानेका वचार कया ।। ५-६ ।। त म ेव णे सव तानादाय त थरे । पा डोदारां पु ां शरीरे ते च तापसाः ।। ७ ।। ी













उन सब तप वी मु नय ने पा डु प नी कु ती, पाँच पा डव तथा पा डु और मा के शरीरक अ थय को साथ लेकर उसी ण वहाँसे थान कर दया ।। ७ ।। सुखनी सा पुरा भू वा सततं पु व सला । प ा द घम वानं सं तं तदम यत ।। ८ ।। पु पर सदा नेह रखनेवाली कु ती पहले ब त सुख भोग चुक थी, परंतु अब वप म पड़कर ब त लंबे मागपर चल पड़ी; तो भी उसने वदे श जानेक उ क ठा अथवा मह षय के योगज नत भावसे उस मागको अ प ही माना ।। ८ ।। सा वद घण कालेन स ा ता कु जा लम् । वधमानपुर ारमाससाद यश वनी ।। ९ ।। यश वनी कु ती थोड़े ही समयम कु जांगल दे शम जा प ँची और नगरके वधमान नामक ारपर गयी ।। ९ ।। ा रणं तापसा ऊचू राजानं च काशय । ते तु ग वा णेनैव सभायां व नवे दताः ।। १० ।। तब तप वी मु नय ने ारपालसे कहा—‘राजाको हमारे आनेक सूचना दो!’ ारपालने सभाम जाकर णभरम समाचार दे दया ।। १० ।। तं चारणसह ाणां मुनीनामागमं तदा । ु वा नागपुरे नॄणां व मयः समप त ।। ११ ।। सह चारण स हत मु नय का ह तनापुरम आगमन सुनकर उस समय वहाँके लोग को बड़ा आ य आ ।। ११ ।। मुत दत आ द ये सव बालपुर कृताः । सदारा तापसान् ु ं नययुः पुरवा सनः ।। १२ ।। दो घड़ी दन चढ़ते-चढ़ते सम त पुरवासी य और बालक को साथ लये तप वी मु नय का दशन करनेके लये नगरसे बाहर नकल आये ।। १२ ।। ीसङ् घाः सङ् घा यानसङ् घसमा थताः । ा णैः सह नज मु ा णानां च यो षतः ।। १३ ।। झुंड-क -झुंड याँ और य के समुदाय अनेक सवा रय पर बैठकर बाहर नकले। ा ण के साथ उनक याँ भी नगरसे बाहर नकल ।। १३ ।। तथा वट् शू सङ् घानां महान् तकरोऽभवत् । न क दकरोद यामभवन् धमबु यः ।। १४ ।। शू और वै य के समुदायका ब त बड़ा मेला जुट गया। कसीके मनम ई याका भाव नह था। सबक बु धमम लगी ई थी ।। १४ ।। तथा भी मः शा तनवः सोमद ोऽथ बा कः । ाच ु राज षः ा च व रः वयम् ।। १५ ।। इसी कार श तनुन दन भी म, सोमद , बा क, ाच ु राज ष धृतरा, संजय तथा वयं व रजी भी वहाँ आ गये ।। १५ ।। सा च स यवती दे वी कौस या च यश वनी । ै ी ौ

राजदारैः प रवृता गा धारी चा प नययौ ।। १६ ।। दे वी स यवती, का शराजकुमारी यश वनी कौस या तथा राजघरानेक य से घरी ई गा धारी भी अ तःपुरसे नकलकर वहाँ आय ।। १६ ।। धृतरा य दायादा य धनपुरोगमाः । भू षता भूषणै ैः शतसं या व नययुः ।। १७ ।। धृतराक े य धन आ द सौ पु व च आभूषण से वभू षत हो नगरसे बाहर नकले ।। १७ ।। तान् मह षगणान् ् वा शरो भर भवा च । उपोप व वशुः सव कौर ाः सपुरो हताः ।। १८ ।। उन मह षय का दशन करके सबने म तक झुकाकर णाम कया। फर सभी कौरव पुरो हतके साथ उनके समीप बैठ गये ।। १८ ।। तथैव शरसा भूमाव भवा ण यच। उपोप व वशुः सव पौरा जानपदा अ प ।। १९ ।। इसी कार नगर तथा जनपदके सब लोग भी धरतीपर माथा टे ककर सबको अ भवादन और णाम करके आसपास बैठ गये ।। १९ ।। तमकूजम भ ाय जनौघं सवश तदा । पूज य वा यथा यायं पा ेना यण च भो ।। २० ।। भी मो रा यं च रा ं च मह ष यो यवेदयत् । तेषामथो वृ तमः यु थाय जटा जनी । ऋषीणां मतमा ाय मह ष रदम वीत् ।। २१ ।। राजन्! उस समय वहाँ आये ए सम त जनसमुदायको चुपचाप बैठे दे ख भी मजीने पा -अ य आ दके ारा सब मह षय क यथो चत पूजा करके उ ह अपने रा य तथा राका कुशल-समाचार नवेदन कया। तब उन मह षय म जो सबसे अ धक वृ थे, वे जटा और मृगचम धारण करनेवाले मु न अ य सब ऋ षय क अनुम त लेकर इस कार बोले— ।। २०-२१ ।। यः स कौर दायादः पा डु नाम नरा धपः । कामभोगान् प र य य शतशृ मतो गतः ।। २२ ।। (स यथो ं तप तेपे त मूलफलाशनः ।। प नी यां सह धमा मा कं चत् कालमत तः । तेन वृ समाचारै तपसा च तप वनः । तो षता तापसा त शतशृ नवा सनः ।।) चय त थ य त य द ेन हेतुना । सा ाद् धमादयं पु त जातो यु ध रः ।। २३ ।। ‘कु न दन भी मजी! वे जो आपके पु महाराज पा डु वषयभोग का प र याग करके यहाँसे शतशृंग पवतपर चले गये थे, उन धमा माने वहाँ फल-मूल खाकर रहते ए सावधान रहकर अपनी दोन प नय के साथ कुछ कालतक शा ो व धसे भारी तप या क । े े औ े ी ी ो

उ ह ने अपने उ म आचार- वहार और तप यासे शतशृंग नवासी तप वी मु नय को संतु कर लया था। वहाँ न य चय तका पालन करते ए महाराज पा डु को कसी द हेतुसे सा ात् धमराज ारा यह पु ा त आ है, जसका नाम यु ध र है ।। २२-२३ ।। तथैनं ब लनां े ं त य रा ो महा मनः । मात र ा ददौ पु ं भीमं नाम महाबलम् ।। २४ ।। ‘उसी कार उन महा मा राजाको सा ात् वायु दे वताने यह महाबली भीम नामक पु दान कया है, जो सम त बलवान म े है ।। २४ ।। पु तादयं ज े क ु यामेव धनंजयः । य य क तमहे वासान् सवान भभ व य त ।। २५ ।। ‘यह तीसरा पु धनंजय है, जो इ के अंशसे कु तीके ही गभसे उ प आ है। इसक क त सम त बड़े-बड़े धनुधर को तर कृत कर दे गी ।। २५ ।। यौ तु मा महे वासावसूत पु षोनमौ । अ यां पु ष ा ा वमौ ताव प प यत ।। २६ ।। ‘मा दे वीने अ नीकुमार से जन दो पु षर न को उ प कया है, वे ये ही दोन महाधनुधर नर े ह। इ ह भी आपलोग दे ख ।। २६ ।। (नक ु लः सहदे व ताव य मततेजसौ । पा डवौ नरशा ला वमाव यपरा जतौ ।।) चरता धम न येन वनवासं यश वना । न ः पैतामहो वंशः पा डु ना पुन द्धृतः ।। २७ ।। ‘इनके नाम ह नकुल और सहदे व। ये दोन भी अन त तेजसे स प ह। ये नर े पा डु कुमार भी कसीसे परा त होनेवाले नह ह। न य धमम त पर रहनेवाले यश वी राजा पा डु ने वनम नवास करते ए अपने पतामहके उ छ वंशका पुनः उ ार कया है ।। २७ ।। पु ाणां ज मवृ च वै दका ययना न च । प य तः सततं पा डोः परां ी तमवा यथ ।। २८ ।। ‘पा डु पु के ज म, उनक वृ तथा वेदा ययन आ द दे खकर आपलोग सदा अ य त स ह गे ।। २८ ।। वतमानः सतां वृ े पु लाभमवा य च । पतृलोकं गतः पा डु रतः स तदशेऽह न ।। २९ ।। ‘साधु पु ष के आचार- वहारका पालन करते ए राजा पा डु उ म पु क उपल ध करके आजसे स ह दन पहले पतृलोकवासी हो गये ।। २९ ।। तं चतागतमा ाय वै ानरमुखे तम् । व ा पावकं मा ह वा जी वतमा मनः ।। ३० ।। ‘जब वे चतापर सुलाये गये और उ ह अ नके मुखम होम दया गया, उस समय दे वी मा अपने जीवनका मोह छोड़कर उसी अ नम व हो गयी ।। ३० ।। े ै ो

सा गता सह तेनैव प तलोकमनु ता । त या त य च यत् काय यतां तदन तरम् ।। ३१ ।। ‘वह प त ता दे वी महाराज पा डु के साथ ही प तलोकको चली गयी। अब आपलोग मा और पा डु के लये जो काय आव यक समझ, वह कर ।। ३१ ।। (पृथां च शरणं ा तां पा डवां यश वनः । यथावदनुगृ तु धम ेष सनातनः ।।) इमे तयोः शरीरे े पु ा ेमे तयोवराः । या भरनुगृ तां सह मा ा परंतपाः ।। ३२ ।। ‘शरणम आयी ई कु ती तथा यश वी पा डव को आपलोग यथो चत पसे अपनाकर अनुगह ृ ीत कर; य क यही सनातन धम है। ये पा डु और मा दोन के शरीर क अ थयाँ ह और ये ही उनके े पु ह, जो श ु को संत त करनेक श रखते ह। आप मा और पा डु क ा - या करनेके साथ ही मातास हत इन पु को भी अनुगह ृ ीत कर ।। ३२ ।। ेतकाय नवृ े तु पतृमेधं महायशाः । लभतां सवधम ः पा डु ः कु कुलो हः ।। ३३ ।। ‘स प डीकरणपय त ेतकाय नवृ हो जानेपर कु वंशके े पु ष महायश वी एवं स पूण धम के ाता पा डु को पतृमेध (य )-का भी लाभ मलना चा हये’ ।। ३३ ।। वैश पायन उवाच एवमु वा कु न् सवान् कु णामेव प यताम् । णेना त हताः सव तापसा गु कैः सह ।। ३४ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! सम त कौरव से ऐसी बात कहकर उनके दे खते-दे खते वे सभी तप वी मु न गु क के साथ णभरम वहाँसे अ तधान हो गये ।। ३४ ।। ग धवनगराकारं तथैवा त हतं पुनः । ऋ ष स गणं ् वा व मयं ते परं ययुः ।। ३५ ।। (कौरवाः सहसो प य साधु सा व त व मताः ।।) ग धवनगरके समान उन मह षय और स के समुदायको इस कार अ तधान होते दे ख वे सभी कौरव सहसा उछलकर ‘साधु-साधु’ ऐसा कहते ए बड़े व मत ए ।। ३५ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण ऋ षसंवादे प च वश य धकशततमोऽ यायः ।। १२५ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम ऋ षसंवाद वषयक एक सौ पचीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १२५ ।। (दा णा य अ धक पाठक े ४ ोक मलाकर कुल ३९ ोक ह)

षड् वश य धकशततमोऽ यायः पा डु और मा क अ थय का दाह-सं कार तथा भाई ब धु ारा उनके लये जलांज लदान धृतरा उवाच पा डो व र सवा ण ेतकाया ण कारय । राजवद् राज सह य मा य ् ा ैव वशेषतः ।। १ ।। धृतरा बोले— व र! राजा म े पा डु के तथा वशेषतः मा के भी सम त ेतकाय राजो चत ढं गसे कराओ ।। १ ।। पशून् वासां स र ना न धना न व वधा न च । पा डोः य छ मा य ् ा ये यो याव च वा छतम् ।। २ ।। यथा च कु ती स कारं कुया मा य ् ा तथा कु । यथा न वायुना द यः प येतां तां सुसंवृताम् ।। ३ ।। पा डु और मा के लये नाना कारके पशु, व , र न और धन दान करो। इस अवसरपर जनको जतना चा हये, उतना धन दो। कु तीदे वी मा का जस कार स कार करना चाह, वैसी व था करो। मा क अ थय को व से अ छ कार ढँ क दो, जससे उसे वायु तथा सूय भी न दे ख सक ।। २-३ ।। न शो यः पा डु रनघः श यः स नरा धपः । य य प च सुता वीरा जाताः सुरसुतोपमाः ।। ४ ।। न पाप राजा पा डु शोचनीय नह , शंसनीय ह, ज ह दे वकुमार के समान पाँच वीर पु ा त ए ह ।। ४ ।। वैश पायन उवाच व र तं तथे यु वा भी मेण सह भारत । पा डु ं सं कारयामास दे शे परमपू जते ।। ५ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! व रने धृतरासे ‘तथा तु’ कहकर भी मजीके साथ परम प व थानम पा डु का अ तम-सं कार कराया ।। ५ ।। तत तु नगरात् तूणमा यग धपुर कृताः । न ताः पावका द ताः पा डो राजन् पुरो हतैः ।। ६ ।। राजन्! तदन तर शी ही पा डु का दाह-सं कार करनेके लये पुरो हतगण घृत और सुग ध आ दके साथ व लत अ न लये नगरसे बाहर नकले ।। ६ ।। अथैनामातवैः पु पैग धै व वधैवरैः । श बकां तामलंकृ य वाससाऽऽ छा सवशः ।। ७ ।। े







इसके बाद वस त-ऋतुम सुलभ नाना कारके सु दर पु प तथा े ध से एक श बका (वैकु ठ )-को सजाकर उसे सब ओरसे व ारा ढँ क दया गया ।। ७ ।। तां तथा शो भतां मा यैवासो भ महाधनैः । अमा या ातय ैनं सु द ोपत थरे ।। ८ ।। इस कार ब मू य व और पु पमाला से सुशो भत उस श बकाके समीप म ी, भाई-ब धु और सु द्-स ब धी—सब लोग उप थत ए ।। ८ ।। नृ सहं नरयु े न परमालंकृतेन तम् । अवहन् यानमु येन सह मा य ् ा सुसंयतम् ।। ९ ।। उसम मा के साथ पा डु क अ थयाँ भली-भाँ त बाँधकर रखी गयी थ । मनु य ारा ढोई जानेवाली और अ छ तरह सजायी ई उस श बकाके ारा वे सभी ब धु-बा धव मा स हत नर े पा डु क अ थय को ढोने लगे ।। ९ ।। पा डु रेणातप ेण चामर जनेन च । सववा द नादै समलंच रे ततः ।। १० ।। श बकाके ऊपर ेत छ तना आ था। चँवर डु लाये जा रहे थे। सब कारके बाज गाज से उसक शोभा और भी बढ़ गयी थी ।। १० ।। र ना न चा युपादाय ब न शतशो नराः । द ः काङ् माणे यः पा डो त यौ वदे हके ।। ११ ।। सैकड़ मनु य ने उन महाराज पा डु के दाह-सं कारके दन ब त-से र न लेकर याचक को दये ।। ११ ।। अथ छ ा ण शु ा ण चामरा ण बृह त च । आजः कौरव याथ वासां स चरा ण च ।। १२ ।। इसके बाद कु राज पा डु के लये अनेक ेत छ , ब तेरे बड़े-बड़े चँवर तथा कतने ही सु दर-सु दर व लोग वहाँ ले आये ।। १२ ।। याजकैः शु लवासो भयमाना ताशनाः । अग छ त त य द यमानाः वलंकृताः ।। १३ ।। ा णाः या वै याः शू ा ैव सह शः । द तः शोकसंत ता अनुज मुनरा धपम् ।। १४ ।। पुरो हतलोग सफेद व धारण करके अ नहो क अ नम आ त डालते जाते थे। वे अ नयाँ माला आ दसे अलंकृत एवं व लत हो पा डु क पालक के आगे-आगे चल रही थ । सह ा ण, य, वै य और शू शोकसे संत त हो रोते ए महाराज पा डु क श बकाके पीछे जा रहे थे ।। १३-१४ ।। अयम मानपाहाय ःखे चाधाय शा ते । कृ वा चा माननाथां व या य त नरा धपः ।। १५ ।। वे कहते जाते थे—‘हाय! ये महाराज हमलोग को छोड़कर, हम सदाके लये भारी ःखम डालकर और हम सबको अनाथ करके कहाँ जा रहे ह’ ।। १५ ।। ोश तः पा डवाः सव भी मो व र एव च । ी े ो े े ी े े े

रमणीये वनो े शे ग ातीरे समे शुभे ।। १६ ।। यासयामासुरथ तां श बकां स यवा दनः । सभाय य नृ सह य पा डोर ल कमणः ।। १७ ।। सम त पा डव, भी म तथा व रजी दन करते ए जा रहे थे। वनके रमणीय दे शम गंगाजीके शुभ एवं समतल तटपर उन लोग ने, अनायास ही महान् परा म करनेवाले स यवाद नर े पा डु और उनक प नी मा क उस श बकाको रखा ।। १६-१७ ।। तत त य शरीरं तु सवग धा धवा सतम् । शु चकालीयका द धं द च दन षतम् ।। १८ ।। पय ष च लेनाशु शातकु भमयैघटै ः । च दनेन च शु लेन सवतः समलेपयन् ।। १९ ।। कालागु व म ेण तथा तु रसेन च । अथैनं दे शजैः शु लैवासो भः समयोजयन् ।। २० ।। तदन तर राजा पा डु क अ थय को सब कारक सुग ध से सुवा सत करके उनपर प व काले अगरका लेप कया गया। फर उ ह द च दनसे चचत करके सोनेके कलश ारा लाये ए गंगाजलसे भाई-ब धु ने उसका अ भषेक कया। त प ात् उनपर सब ओरसे काले अगरसे म त तुंगरस नामक ध- का एवं ेत च दनका लेप कया गया। इसके बाद उ ह सफेद वदे शी व से ढक दया गया ।। १८—२० ।। संछ ः स तु वासो भज व व नरा धपः । शुशुभे स नर ा ो महाहशयनो चतः ।। २१ ।। इस कार ब मू य शयापर शयन करनेयो य नर े राजा पा डु क अ थयाँ व से आ छा दत हो जी वत मनु यक भाँ त शोभा पाने लग ।। २१ ।। (हयमेधा नना सव याजकाः सपुरो हताः । वेदो े न वधानेन या ु ः सम कम् ।।) याजकैर यनु ाते ेतकम यनु ते । घृताव स ं राजानं सह मा य ् ा वलंकृतम् ।। २२ ।। सम त याजक और पुरो हत ने अ मेधक अ नसे वेदो व धके अनुसार म ो चारणपूवक सारी याएँ स प क। याजक क आ ा लेकर ेतकम आर भ करते समय मा स हत अलंकारयु राजाका घृतसे अ भषेक कया गया ।। २२ ।। तु पक म ेण च दनेन सुग धना । अ यै व वधैग धै व धना समदाहयन् ।। २३ ।। फर तुंग और प क म त सुग धत च दन तथा अ य व वध कारके ग धसे भाई-ब धु ने यु ध र ारा व धपूवक उन दोन का दाह-सं कार कराया ।। २३ ।। तत तयोः शरीरे े ् वा मोहवशं गता । हा हा पु े त कौस या पपात सहसा भु व ।। २४ ।। ो

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उस समय उन दोन क अ थय को दे खकर माता कौस या (अ बा लका) ‘हा पु ! हा पु !’ कहती ई सहसा मू छत हो पृ वीपर गर पड़ी ।। २४ ।। तां े य प ततामाता पौरजानपदो जनः । रोद ःखसंत तो राजभ या कृपा वतः ।। २५ ।। उसे इस कार शोकातुर हो भू मपर पड़ी दे ख नगर और जनपदके लोग राजभ तथा दयासे वत एवं ःखसे संत त हो फूट-फूटकर रोने लगे ।। २५ ।। कु या ैवातनादे न सवा ण च वचु ु शुः । मानुषैः सह भूता न तय यो नगता य प ।। २६ ।। कु तीके आतनादसे मनु य स हत सम त पशु और प ी आ द ाणी भी क ण दन करने लगे ।। २६ ।। तथा भी मः शा तनवो व र महाम तः । सवशः कौरवा ैव ाणदन् भृश ःखताः ।। २७ ।। श तनुन दन भी म, परम बु मान् व र तथा स पूण कौरव भी अ य त ःखम नम न हो रोने लगे ।। २७ ।। ततो भी मोऽथ व रो राजा च सह पा डवैः । उदकं च रे त य सवा कु यो षतः ।। २८ ।। तदन तर भी म, व र, राजा धृतरा तथा पा डव के स हत कु कुलक सभी य ने राजा पा डु के लये जलांज ल द ।। २८ ।। चु ु शुः पा डवाः सव भी मः शा तनव तथा । व रो ातय ैव च ु ा युदक याः ।। २९ ।। उस समय सभी पा डव पताके लये रो रहे थे। श तनुन दन भी म, व र तथा अ य भाई-ब धु क भी यही दशा थी। सबने जलांज ल दे नेक या पूरी क ।। २९ ।। कृतोदकां तानादाय पा डवा छोकक शतान् । सवाः कृतयो राजन् शोचमाना यवारयन् ।। ३० ।। जलांज लदान करके शोकसे बल ए पा डव को साथ ले म ी आ द सब लोग वयं भी ःखी हो उन सबको समझा-बुझाकर शोक करनेसे रोकने लगे ।। ३० ।। यथैव पा डवा भूमौ सुषुपुः सह बा धवैः । तथैव नागरा राजन् श यरे ा णादयः ।। ३१ ।। तद्गतान दम व थमाकुमारम वत् । बभूव पा डवैः साध नगरं ादश पाः ।। ३२ ।। राजन्! बारह रा य तक जस कार ब धु-बा धव -स हत पा डव भू मपर सोये, उसी कार ा ण आ द नाग रक भी धरतीपर ही सोते रहे। उतने दन तक ह तनापुर नगर पा डव के साथ आन द और हष लाससे शू य रहा। बूढ़ से लेकर ब चेतक सभी वहाँ ःखम डू बे रहे। सारा नगर ही अ व थ च हो गया था ।। ३१-३२ ।। ी





इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण पा डु दाहे षड् वश य धकशततमोऽ यायः ।। १२६ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम पा डु के दाहसं कारसे स ब ध रखनेवाला एक सौ छ बीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १२६ ।। (दा णा य अ धक पाठका १ ोक मलाकर क ु ल ३३ ोक ह)

स त वश य धकशततमोऽ यायः पा डव तथा धृतरा पु क बाल ड़ ा, य धनका भीमसेनको वष खलाना तथा गंगाम ढकेलना और भीमका नागलोकम प ँचकर आठ कु ड के द रसका पान करना वैश पायन उवाच ततः कु ती च राजा च भी म सह ब धु भः । द ः ा ं तदा पा डोः वधामृतमयं तदा ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! तदन तर कु ती, राजा धृतरा तथा ब धु स हत भी मजीने पा डु के लये उस समय अमृत व प वधामय ा दान कया ।। १ ।। कु ं व मु यां भोज य वा सह शः । र नौघान् व मु ये यो द वा ामवरां तथा ।। २ ।। उ ह ने सम त कौरव तथा सह मु य-मु य ा ण को भोजन कराकर उ ह र न के ढे र तथा उ म-उ म गाँव दये ।। २ ।। कृतशौचां तत तां तु पा डवान् भरतषभान् । आदाय व वशुः सव पुरं वारणसा यम् ।। ३ ।। मरणाशौचसे नवृ होकर भरतवंश शरोम ण पा डव ने जब शु का नान कर लया, तब उ ह साथ लेकर सबने ह तनापुर नगरम वेश कया ।। ३ ।। सततं मानुशोच त तमेव भरतषभम् । पौरजानपदाः सव मृतं व मव बा धवम् ।। ४ ।। नगर और जनपदके सभी लोग मानो कोई अपना ही भाई-ब धु मर गया हो, इस कार उन भरतकुल तलक पा डु के लये नर तर शोकम न हो गये ।। ४ ।। ा ावसाने तु तदा ् वा तं ःखतं जनम् । स मूढां ःखशोकाता ासो मातरम वीत् ।। ५ ।। ा क समा तपर सब लोग को ःखी दे खकर ासजीने ःख-शोकसे आतुर एवं मोहम पड़ी ई माता स यवतीसे कहा— ।। ५ ।। अ त ा तसुखाः कालाः पयुप थतदा णाः । ः ः पा प दवसाः पृ थवी गतयौवना ।। ६ ।। ‘माँ! अब सुखके दन बीत गये। बड़ा भयंकर समय उप थत होनेवाला है। उ रो र बुरे दन आ रहे ह। पृ वीक जवानी चली गयी ।। ६ ।। ब मायासमाक ण नानादोषसमाकुलः । लु तधम याचारो घोरः कालो भ व य त ।। ७ ।। ‘











‘अब ऐसा भयंकर समय आयेगा, जसम सब ओर छल-कपट और मायाका बोलबाला होगा। संसारम अनेक कारके दोष कट ह गे और धम-कम तथा सदाचारका लोप हो जायगा’ ।। ७ ।। कु णामनया चा प पृ थवी न भ व य त । ग छ वं योगमा थाय यु ा वस तपोवने ।। ८ ।। ‘ य धन आ द कौरव के अ यायसे सारी पृ वी वीर से शू य हो जायगी; अतः तुम योगका आ य लेकर यहाँसे चली जाओ और योगपरायण हो तपोवनम नवास करो ।। ८ ।। मा ा ी वं कुल या य घोरं सं यमा मनः । तथे त समनु ाय सा व या वीत् नुषाम् ।। ९ ।। ‘तुम अपनी आँख से इस कुलका भयंकर संहार न दे खो।’ तब ासजीसे ‘तथा तु’ कहकर स यवती अंदर गयी और अपनी पु वधूसे बोली— ।। ९ ।। अ बके तव पौ य नयात् कल भारताः । सानुब धा वनङ् य त पौरा ैवे त नः ुतम् ।। १० ।। ‘अ बके! तु हारे पौ के अ यायसे भरतवंशी वीर तथा इस नगरके लोग सगेस ब धय स हत न हो जायँगे—ऐसी बात मने सुनी है ।। १० ।। तत् कौस या ममामाता पु शोका भपी डताम् । वनमादाय भ ं ते ग छा म य द म यसे ।। ११ ।। ‘अतः तु हारी राय हो, तो पु शोकसे पी ड़त इस ःखनी अ बा लकाको साथ ले म वनम चली जाऊँ। तु हारा क याण हो’ ।। ११ ।। तथे यु ा व बकया भी ममाम य सु ता । वनं ययौ स यवती नुषा यां सह भारत ।। १२ ।। अ बका भी ‘तथा तु’ कहकर साथ जानेको तैयार हो गयी। जनमेजय! फर उ म तका पालन करनेवाली स यवती भी मजीसे पूछकर अपनी दोन पतो को साथ ले वनको चली गयी ।। १२ ।। ताः सुघोरं तप त वा दे ो भरतस म । दे हं य वा महाराज ग त म ां ययु तदा ।। १३ ।। भरतवंश शरोम ण महाराज जनमेजय! तब वे दे वयाँ वनम अ य त घोर तप या करके शरीर यागकर अभी ग तको ा त हो गय ।। १३ ।। वैश पायन उवाच अथा तव तो वेदो ान् सं कारान् पा डवा तदा । सं वध त भोगां ते भु ानाः पतृवे म न ।। १४ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! उस समय पा डव के वेदो (समावतन आ द) सं कार ए। वे पताके घरम नाना कारके भोग भोगते ए पलने और पु होने लगे ।। १४ ।। ै



धातरा ै स हताः ड तो मु दताः सुखम् । बाल डासु सवासु व श ा तेजसाभवन् ।। १५ ।। धृतराक े पु के साथ सुखपूवक खेलते ए वे सदा स रहते थे। सब कारक बाल ड़ा म अपने तेजसे वे बढ़-चढ़कर स होते थे ।। १५ ।। जवे ल या भहरणे भो ये पांसु वकषणे । धातरा ान् भीमसेनः सवान् स प रमद त ।। १६ ।। दौड़नेम, र रखी ई कसी य व तुको सबसे पहले प ँचकर उठा लेनेम, खानपानम तथा धूल उछालनेके खेलम भीमसेन धृतराक े सभी पु का मानमदन कर डालते थे ।। १६ ।। हषात् डमानां तान् गृ राजन् नलीयते । शरःसु व नगृ ैतान् योधयामास पा डवैः ।। १७ ।। शतमेको रं तेषां कुमाराणां महौजसाम् । एक एव नगृ ा त ना तकृ ाद् वृकोदरः ।। १८ ।। कचेषु च नगृ ैनान् व नह य बलाद् बली । चकष ोशतो भूमौ घृ जानु शर ऽसकान् ।। १९ ।। राजन्! हषसे खेल-कूदम लगे ए उन कौरव को पकड़कर भीमसेन कह छप जाते थे। कभी उनके सर पकड़कर पा डव से लड़ा दे ते थे। धृतराक े एक सौ एक कुमार बड़े बलवान् थे; कतु भीमसेन बना अ धक क उठाये अकेले ही उन सबको अपने वशम कर लेते थे। बलवान् भीम उनके बाल पकड़कर बलपूवक उ ह एक- सरेसे टकरा दे ते और उनके चीखने- च लानेपर भी उ ह धरतीपर घसीटते रहते थे। उस समय उनके घुटने, म तक और कंधे छल जाया करते थे ।। १७—१९ ।। दश बाला ले डन् भुजा यां प रगृ सः । आ ते म स लले म नो मृतक पान् वमु च त ।। २० ।। वे जलम ड़ा करते समय अपनी दोन भुजा से धृतराक े दस बालक को पकड़ लेते और दे रतक पानीम गोते लगाते रहते थे। जब वे अधमरे-से हो जाते, तब उ ह छोड़ते थे ।। २० ।। फला न वृ मा व च व त च ते तदा । तदा पाद हारेण भीमः क पयते मान् ।। २१ ।। जब कौरव वृ पर चढ़कर फल तोड़ने लगते, तब भीमसेन पैरसे ठोकर मारकर उन पेड़ को हला दे ते थे ।। २१ ।। हारवेगा भहता मा ाघू णता ततः । सफलाः पत त म तं ताः कुमारकाः ।। २२ ।। उनके वेगपूवक हारसे आहत हो वे वृ हलने लगते और उनपर चढ़े ए धृतराक ु मार भयभीत हो फल स हत नीचे गर पड़ते थे ।। २२ ।। न ते नयु े न जवे न यो यासु कदाचन । कुमारा उ रं च ु ः पधमाना वृकोदरम् ।। २३ ।। ी ौ े े ँ े

कु तीम, दौड़ लगानेम तथा श ाके अ यासम धृतराक ु मार सदा लाग-डाँट रखते ए भी कभी भीमसेनक बराबरी नह कर पाते थे ।। २३ ।। एवं स धातरा ां पधमानो वृकोदरः । अ येऽ त द य तं बा या ोहचेतसा ।। २४ ।। इसी कार भीमसेन भी धृतरापु स े पधा रखते ए उनके अ य त अ य काय म ही लगे रहते थे। परंतु उनके मनम कौरव के त े ष नह था, वे बाल- वभावके कारण ही वैसा करते थे ।। २४ ।। ततो बलम त यातं धातरा ः तापवान् । भीमसेन य त ा वा भावमदशयत् ।। २५ ।। तब धृतराका तापी पु य धन यह जानकर क भीमसेनम अ य त व यात बल है, उनके त भाव द शत करने लगा ।। २५ ।। त य धमादपेत य पापा न प रप यतः । मोहादै यलोभा च पापा म तरजायत ।। २६ ।। वह सदा धमसे र रहता और पापकम पर ही रखता था। मोह और ऐ यके लोभसे उसके मनम पापपूण वचार भर गये थे ।। २६ ।। अयं बलवतां े ः कु तीपु ो वृकोदरः । म यमः पा डु पु ाणां नकृ या सं नगृ ताम् ।। २७ ।। वह अपने भाइय के साथ वचार करने लगा क ‘यह म यम पा डु पु कु तीन दन भीम बलवान म सबसे बढ़कर है। इसे धोखा दे कर कैद कर लेना चा हये ।। २७ ।। ाणवान् व मी चैव शौयण महता वतः । पधते चा प स हतान मानेको वृकोदरः ।। २८ ।। ‘यह बलवान् और परा मी तो है ही, महान् शौयसे भी स प है। भीमसेन अकेला ही हम सब लोग से होड़ बद लेता है ।। २८ ।। तं तु सु तं पुरो ाने ग ायां पामहे । अथ त मादवरजं े ं चैव यु ध रम् ।। २९ ।। स ब धने बद् वा शा स ये वसुंधराम् । एवं स न यं पापः कृ वा य धन तदा । न यमेवा तर े ी भीम यासी महा मनः ।। ३० ।। ‘इस लये नगरो ानम जब वह सो जाय, तब उसे उठाकर हमलोग गंगाजीम फक द। इसके बाद उसके छोटे भाई अजुन और बड़े भाई यु ध रको बलपूवक कैदम डालकर म अकेला ही सारी पृ वीका शासन क ँ गा।’ ऐसा न य करके पापी य धन महा मा भीमसेनका अ न करनेके लये सदा मौका ढूँ ढ़ता रहता था ।। २९-३० ।। ततो जल वहाराथ कारयामास भारत । चैलक बलवे मा न व च ा ण महा त च ।। ३१ ।। े







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जनमेजय! तदन तर य धनने गंगातटपर जल- वहारके लये ऊनी और सूती कपड़ के व च एवं वशाल गृह तैयार कराये ।। ३१ ।। सवकामैः सुपूणा न पताको ायव त च । त संजनयामास नानागारा यनेकशः ।। ३२ ।। वे गृह सब कारक अभी साम य से भरे-पूरे थे। उनके ऊपर ऊँची-ऊँची पताकाएँ फहरा रही थ । उनम उसने अलग-अलग अनेक कारके ब त-से कमरे बनवाये थे ।। ३२ ।। उदक डनं नाम कारयामास भारत । माणको ां तं दे शं थलं क च पे य ह ।। ३३ ।। भारत! गंगातटवत माणको ट तीथम कसी थानपर जाकर य धनने यह सारा आयोजन करवाया था। उसने उस थानका नाम रखा था उदक डन ।। ३३ ।। भ यं भो यं च पेयं च चो यं ले मथा प च । उपपा दतं नरै त कुशलैः सूदकम ण ।। ३४ ।। वहाँ रसोईके कामम कुशल कतने ही मनु य ने जुटकर खाने-पीनेके ब त-से भ य१, भो य२, पेय३, चो य४ और ले ५ पदाथ तैयार कये ।। ३४ ।। यवेदयं तत् पु षा धातरा ाय वै तदा । ततो य धन त पा डवानाह म तः ।। ३५ ।। तदन तर राजपु ष ने य धनको सूचना द क ‘सब तैयारी पूरी हो गयी है।’ तब खोट बु वाले य धनने पा डव से कहा— ।। ३५ ।। ग ां चैवानुया याम उ ानवनशो भताम् । स हता ातरः सव जल डामवा ुमः ।। ३६ ।। ‘आज हमलोग भाँ त-भाँ तके उ ान और वन से सुशो भत गंगाजीके तटपर चल। वहाँ हम सब भाई एक साथ जल वहार करगे’ ।। ३६ ।। एवम व त तं चा प युवाच यु ध रः । ते रथैनगराकारैदशजै गजो मैः ।। ३७ ।। नययुनगरा छू राः कौरवाः पा डवैः सह । उ ानवनमासा वसृ य च महाजनम् ।। ३८ ।। वश त म तदा वीराः सहा इव गरेगुहाम् । उ ानम भप य तो ातरः सव एव ते ।। ३९ ।। यह सुनकर यु ध रने ‘एवम तु’ कहकर य धनक बात मान ली। फर वे सभी शूरवीर कौरव पा डव के साथ नगराकार रथ तथा वदे शम उ प े हा थय पर सवार हो नगरसे नकले और उ ान-वनके समीप प ँचकर साथ आये ए जावगके बड़े-बड़े लोग को वदा करके जैसे सह पवतक गुफाम वेश करे, उसी कार वे सब वीर ाता उ ानक शोभा दे खते ए उसम व ए ।। ३७—३९ ।। उप थानगृहैः शु ैवलभी भ शो भतम् । ै







गवा कै तथा जालैय ैः सांचा रकैर प ।। ४० ।। स मा जतं सौधकारै कारै च तम् । द घका भ पूणा भ तथा पाकरैर प ।। ४१ ।। जलं त छु शुभे छ ं फु लैजल है तथा । उप छ ा वसुमती तथा पु पैयथतुकैः ।। ४२ ।। वह उ ान राजा क गो ी और बैठकके थान से, ेत वणके छ ज से, जा लय और झरोख से तथा इधर-उधर ले जानेयो य जलवषक य से सुशो भत हो रहा था। महल बनानेवाले श पय ने उस उ ान एवं ड़ाभवनको झाड़-प छकर साफ कर दया था। च कार ने वहाँ च कारी क थी। जलसे भरी बाव लय तथा तालाब ारा उसक बड़ी शोभा हो रही थी। खले ए कमल से आ छा दत वहाँका जल बड़ा सु दर तीत होता था। ऋतुके अनुकूल खलकर झड़ े ए फूल से वहाँक सारी पृ वी ढँ क गयी थी ।। ४०—४२ ।। त ोप व ा ते सव पा डवाः कौरवा ह । उपप ान् बन् कामां ते भु त तत ततः ।। ४३ ।। वहाँ प ँचकर सम त कौरव और पा डव यथायो य थान पर बैठ गये और वतः ा त ए नाना कारके भोग का उपभोग करने लगे ।। ४३ ।। अथो ानवरे त मं तथा डागता ते । पर पर य व े यो द भ यां तत ततः ।। ४४ ।। ततो य धनः पाप त ये कालकूटकम् । वषं ेपयामास भीमसेन जघांसया ।। ४५ ।। तदन तर उस सु दर उ ानम ड़ाके लये आये ए कौरव और पा डव एक- सरेके मुँहम खानेक व तुएँ डालने लगे। उस समय पापी य धनने भीमसेनको मार डालनेक इ छासे उनके भोजनम कालकूट नामक वष डलवा दया ।। ४४-४५ ।। वयमु थाय चैवाथ दयेन ुरोपमः । स वाचामृतक प ातृव च सु द् यथा ।। ४६ ।। वयं पते भ यं ब भीम य पापकृत् । ती छतं म भीमेन तं वै दोषमजानता ।। ४७ ।। ततो य धन त दयेन हस व । कृतकृ य मवा मानं म यते पु षाधमः ।। ४८ ।। उस पापा माका दय छू रेके समान तीखा था; परंतु बात वह ऐसी करता था, मानो उनसे अमृत झर रहा हो। वह सगे भाई और हतैषी सु द्क भाँ त वयं भीमसेनके लये भाँ त-भाँ तके भ य पदाथ परोसने लगा। भीमसेन भोजनके दोषसे अप र चत थे; अतः य धनने जतना परोसा, वह सब-का-सब खा गये। यह दे ख नीच य धन मन-ही-मन हँसता आ-सा अपने-आपको कृताथ मानने लगा ।। ४६—४८ ।। तत ते स हताः सव जल डामकुवत । पा डवा धातरा ा तदा मु दतमानसाः ।। ४९ ।। ो









तब भोजनके प ात् पा डव तथा धृतराक े पु जल ड़ा करने लगे ।। ४९ ।।

सभी

स च

हो एक साथ

डावसाने ते सव शु चव ाः वलंकृताः । दवसा ते प र ा ता व य च कु हाः ।। ५० ।। वहारावसथे वेव वीरा वासमरोचयन् । ख तु बलवान् भीमो ाय या य धकं तदा ।। ५१ ।। जल ड़ा समा त होनेपर दनके अ तम वहारसे थके ए वे सम त कु े वीर शु व धारणकर सु दर आभूषण से वभू षत हो उन ड़ाभवन म ही रात बतानेका वचार करने लगे। बलवान् भीमसेन उस समय अ धक प र म करनेके कारण ब त थक गये थे ।। ५०-५१ ।। वाह य वा कुमारां ता ल डागतां तदा । माणको ां वासाथ सु वापावा य तत् थलम् ।। ५२ ।। वे जल ड़ाके लये आये ए उन कुमार को साथ लेकर व ाम करनेक इ छासे माणको टके उस गृहम आये और वह एक थानम सो गये ।। ५२ ।। शीतं वातं समासा ा तो मद वमो हतः । वषेण च परीता ो न े ः पा डु न दनः ।। ५३ ।। ी



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पा डु न दन भीम थके तो थे ही, वषके मदसे भी अचेत हो रहे थे। उनके अंग-अंगम वषका भाव फैल गया था। अतः वहाँ ठं डी हवा पाकर ऐसे सोये क जडके समान न े तीत होने लगे ।। ५३ ।। ततो बद् वा लतापाशैभ मं य धनः वयम् । मृतक पं तदा वीरं थला जलमपातयत् ।। ५४ ।। तब य धनने वयं लता के पाशम वीरवर भीमको कसकर बाँधा। वे मुदके समान हो रहे थे। फर उसने गंगाजीके ऊँचे तटसे उ ह जलम ढकेल दया ।। ५४ ।। स नःस ो जल या तमथ वै पा डवोऽ वशत् । आ ाम ागभवने तदा नागकुमारकान् ।। ५५ ।। ततः समे य ब भ तदा नागैमहा वषैः । अद यत भृशं भीमो महादं ै वषो बणैः ।। ५६ ।। भीमसेन बेहोशीक ही दशाम जलके भीतर डू बकर नागलोकम जा प ँचे। उस समय कतने ही नागकुमार उनके शरीरसे दब गये। तब ब त-से महा वषधर नाग ने मलकर अपनी भयंकर वषवाली बड़ी-बड़ी दाढ़ से भीमसेनको खूब डँसा ।। ५५-५६ ।। ततोऽ य द यमान य तद् वषं कालकूटकम् । हतं सप वषेणैव थावरं ज मेन तु ।। ५७ ।। उनके ारा डँसे जानेसे कालकूट वषका भाव न हो गया। सप के जंगम वषने खाये ए थावर वषको हर लया ।। ५७ ।। दं ा दं णां तेषां मम व प नपा तताः । वचं नैवा य ब भ ः सार वात् पृथुव सः ।। ५८ ।। चौड़ी छातीवाले भीमसेनक वचा लोहेके समान कठोर थी; अतः य प उनके मम थान म सप ने दाँत गड़ाये थे, तो भी वे उनक वचाको भेद न सके ।। ५८ ।। ततः बु ः कौ तेयः सव सं छ ब धनम् । पोथयामास तान् सवान् के चद् भीताः वुः ।। ५९ ।। त प ात् कु तीन दन भीम जाग उठे । उ ह ने अपने सारे ब धन को तोड़कर उन सभी सप को पकड़-पकड़कर धरतीपर दे मारा। कतने ही सप भयके मारे भाग खड़े ए ।। ५९ ।। हतावशेषा भीमेन सव वासु कम ययुः । ऊचु सपराजानं वासु क वासवोपमम् ।। ६० ।। भीमके हाथ मरनेसे बचे ए सभी सप इ के समान तेज वी नागराज वासु कके समीप गये और इस कार बोले— ।। ६० ।। अयं नरो वै नागे सु बद् वा वे शतः । यथा च नो म तव र वषपीतो भ व य त ।। ६१ ।। ‘नागे ! एक मनु य है, जसे बाँधकर जलम डाल दया गया है। वीरवर! जैसा क हमारा व ास है, उसने वष पी लया होगा ।। ६१ ।। न े ोऽ माननु ा तः स च द ोऽ वबु यत ।

ससं ा प संवृ छ वा ब धनमाशु नः ।। ६२ ।। पोथय तं महाबा ं वं वै तं ातुमह स । ‘वह हमलोग के पास बेहोशीक हालतम आया था, कतु हमारे डँसनेपर जाग उठा और होशम आ गया। होशम आनेपर तो वह महाबा अपने सारे ब धन को शी तोड़कर हम पछाड़ने लगा है। आप चलकर उसे पहचान’ ।। ६२ ।। ततो वासु कर ये य नागैरनुगत तदा ।। ६३ ।। प य त म महाबा ं भीमं भीमपरा मम् । आयकेण च ः स पृथाया आयकेण च ।। ६४ ।। तदा दौ ह दौ ह ः प र व ः सुपी डतम् । सु ीत ाभवत् त य वासु कः स महायशाः ।। ६५ ।। अ वीत् तं च नागे ः कम य यतां यम् । धनौघो र न नचयो वसु चा य द यताम् ।। ६६ ।। तब वासु कने उन नाग के साथ आकर भयंकर परा मी महाबा भीमसेनको दे खा। उसी समय नागराज आयकने भी उ ह दे खा, जो पृथाके पता शूरसेनके नाना थे। उ ह ने अपने दौ ह के दौ ह को कसकर छातीसे लगा लया। महायश वी नागराज वासु क भी भीमसेनपर ब त स ए और बोले—‘इनका कौन-सा य काय कया जाय? इ ह धन, सोना और र न क रा श भट क जाय’ ।। ६३—६६ ।। एवमु तदा नागो वासु क यभाषत । य द नागे तु ोऽ स कम य धनसंचयैः ।। ६७ ।। उनके य कहनेपर आयक नागने वासु कसे कहा—‘नागराज! य द आप स ह तो यह धनरा श लेकर या करेगा’ ।। ६७ ।। रसं पबेत् कुमारोऽयं व य ीते महाबलः । बलं नागसह य य मन् कु डे त तम् ।। ६८ ।। ‘आपके संतु होनेपर तो इस महाबली राजकुमारको आपक आ ासे उस कु डका रस पीना चा हये, जससे एक हजार हा थय का बल ा त होता है ।। ६८ ।। यावत् पब त बालोऽयं तावद मै द यताम् । एवम व त तं नागं वासु कः यभाषत ।। ६९ ।। ‘यह बालक जतना रस पी सके, उतना इसे दया जाय।’ यह सुनकर वासु कने आयक नागसे कहा ‘ऐसा ही हो’ ।। ६९ ।। ततो भीम तदा नागैः कृत व ययनः शु चः । ाङ् मुख ोप व रसं पब त पा डवः ।। ७० ।। तब नाग ने भीमसेनके लये व तवाचन कया। फर वे पा डु कुमार प व हो पूवा भमुख बैठकर कु डका रस पीने लगे ।। ७० ।। एको छ् वासात् ततः कु डं पब त म महाबलः । एवम ौ स कु डा न पबत् पा डु न दनः ।। ७१ ।। े







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वे एक ही साँसम एक कु डका रस पी जाते थे। इस कार उन महाबली पा डु न दनने आठ कु ड का रस पी लया ।। ७१ ।। तत तु शयने द े नागद े महाभुजः । अशेत भीमसेन तु यथासुखमरदमः ।। ७२ ।। इसके बाद श ु का दमन करनेवाले महाबा भीमसेन नाग क द ई द शयापर सुखपूवक सो गये ।। ७२ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण भीमसेनरसपाने स त वश य धकशततमोऽ यायः ।। १२७ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम भीमसेनके रसपानसे स ब ध रखनेवाला एक सौ स ाईसवाँ अ याय पूरा आ ।। १२७ ।।

१. दाँत से काट-काटकर खाये जानेवाले मालपूए आ दको भ य कहते ह। २. दाँतका सहारा न लेकर केवल ज ाके ापारसे जसे भोजन कया जाता है, जैसे हलुआ, खीर आ द। ३. पीनेयो य ध आ द। ४. चूसनेयो य व तु जसका रसमा हण कया जाय और बाक चीजको याग दया जाय, वह चो य है, जैसे ईख-आम आ द। ५. ले — चाटनेयो य चटनी आ द।

अ ा वश य धकशततमोऽ यायः भीमसेनके न आनेसे कु ती आ दक च ता, नागलोकसे भीमसेनका आगमन तथा उनके त य धनक कुचे ा वैश पायन उवाच तत ते कौरवाः सव वना भीमं च पा डवाः । वृ डा वहारा तु त थुगजसा यम् ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर सम त कौरव और पा डव ड़ा और वहार समा त करके भीमसेनके बना ही ह तनापुरक ओर थत ए ।। १ ।। रथैगजै तथा चा ैयानै ा यैरनेकशः । ुव तो भीमसेन तु यातो त एव नः ।। २ ।। ततो य धनः पाप त ाप यन् वृकोदरम् । ातृ भः स हतो ो नगरं ववेश ह ।। ३ ।। रथ, हाथी, घोड़े तथा अ य अनेक कारक सवा रय ारा वहाँसे चलकर वे आपसम यह कह रहे थे क भीमसेन तो हमलोग से आगे ही चले गये ह। पापी य धनने भीमसेनको वहाँ न दे खकर अ य त स हो भाइय के साथ नगरम वेश कया ।। २-३ ।। यु ध र तु धमा मा वदन् पापमा म न । वेनानुमानेन परं साधुं समनुप य त ।। ४ ।। राजा यु ध र धमा मा थे, उनके प व दयम य धनके पापपूण वचारका भानतक न आ। वे अपने ही अनुमानसे सरेको भी साधु ही दे खते और समझते थे ।। ४ ।। सोऽ युपे य तदा पाथ मातरं ातृव सलः । अ भवा ा वीत् कु तीम ब भीम इहागतः ।। ५ ।। भाईपर नेह रखनेवाले कु तीन दन यु ध र उस समय माताके पास प ँचकर उ ह णाम करके बोले—‘माँ! भीमसेन यहाँ आया है या?’ ।। ५ ।। व गतो भ वता मातनह प या म तं शुभे । उ ाना न वनं चैव व चता न सम ततः ।। ६ ।। तदथ न च तं वीरं व तो वृकोदरम् । म यमाना ततः सव यातो नः पूवमेव सः ।। ७ ।। ‘मातः! वह कहाँ गया होगा? शुभे! यहाँ भी तो म उसे नह दे ख रहा ँ। वहाँ हमलोग ने भीमसेनके लये उ ान और वनका कोना-कोना खोज डाला। फर भी जब वीरवर भीमको हम दे ख न सके, तब सबने यही समझ लया क वह हमलोग से पहले ही चला गया होगा ।। ६-७ ।। आगताः म महाभागे ाकुलेना तरा मना । इहाग य व नु गत वया वा े षतः व नु ।। ८ ।। ‘















‘महाभागे! हम उसके लये अ य त ाकुल दयसे यहाँ आये ह। यहाँ आकर वह कह चला गया? अथवा तुमने उसे कह भेजा है?’ ।। ८ ।। कथय व महाबा ं भीमसेनं यश व न । न ह मे शु यते भाव तं वीरं त शोभने ।। ९ ।। ‘यश व न! महाबा भीमसेनका पता बताओ। शोभने! वीर भीमसेनके वषयम मेरा दय शं कत हो गया है ।। ९ ।। यतः सु तं म येऽहं भीमं ने त हत तु सः । इ यु ा च ततः कु ती धमराजेन धीमता ।। १० ।। हा हे त कृ वा स ा ता युवाच यु ध रम् । न पु भीमं प या म न माम ये यसा व त ।। ११ ।। ‘जहाँ म भीमसेनको सोया आ समझता था, वह कसीने उसे मार तो नह डाला?’ बु मान् धमराजके इस कार पूछनेपर कु ती ‘हाय-हाय’ करके घबरा उठ और यु ध रसे बोली—‘बेटा! मने भीमको नह दे खा है। वह मेरे पास आया ही नह ।। १०-११ ।। शी म वेषणे य नं कु त यानुजैः सह । इ यु वा तनयं ये ं दयेन व यता ।। १२ ।। ारमाना य तदा कु ती वचनम वीत् । य गतो भगवन् भ मसेनो न यते ।। १३ ।। ‘तुम अपने छोटे भाइय के साथ शी उसे ढूँ ढ़नेका य न करो।’ कु तीका दय पु क च तासे थत हो रहा था, उसने ये पु यु ध रसे उपयु बात कहकर व रजीको बुलवाया और इस कार कहा—‘भगवन्! भीमसेन नह दखायी दे ता, वह कहाँ चला गया? ।। १२-१३ ।। उ ाना गताः सव ातरो ातृ भः सह । त ैक तु महाबा भ मो ना ये त मा मह ।। १४ ।। ‘उ ानसे सब लोग अपने भाइय के साथ चलकर यहाँ आ गये, कतु अकेला महाबा भीम अबतक मेरे पास लौटकर नह आया! ।। १४ ।। न च ीणयते च ुः सदा य धन य सः । ू रोऽसौ म तः ु ो रा यलुधोऽनप पः ।। १५ ।। ‘वह सदा य धनक आँख म खटकता रहता है। य धन ू र, बु , ु , रा यका लोभी तथा नल ज है ।। १५ ।। नह याद प तं वीरं जातम युः सुयोधनः । तेन मे ाकुलं च ं दयं द तीव च ।। १६ ।। ‘अतः स भव है, वह ोधम वीर भीमसेनको धोखा दे कर मार भी डाले। इसी च तासे मेरा च ाकुल हो उठा है, दय द ध-सा हो रहा है’ ।। १६ ।। ै

व र उवाच े

मैवं वद व क या ण शेषसंर णं कु । या द ो ह ा मा शेषेऽ प हरेत् तव ।। १७ ।। व रजीने कहा—क याणी! ऐसी बात मुँहसे न नकालो, शेष पु क र ा करो। य द य धनको उलाहना दे कर इस वषयम पूछ-ताछ क जायगी तो वह ा मा तु हारे शेष पु पर भी हार कर सकता है ।। १७ ।। द घायुष तव सुता यथोवाच महामु नः । आग म य त ते पु ः ी त चो पाद य य त ।। १८ ।। महामु न ासने पहले जैसा कहा है, उसके अनुसार तु हारे ये सभी पु द घजीवी ह, अतः तु हारा पु भीमसेन कह भी य न गया हो, अव य लौटे गा और तु ह आन द दान करेगा ।। १८ ।।

वैश पायन उवाच एवमु वा ययौ व ान् व रः वं नवेशनम् । कु ती च तापरा भू वा सहासीना सुतैगृहे ।। १९ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! व ान् व र य कहकर अपने घरम चले गये। इधर कु ती च ताम न होकर अपने चार पु के साथ चुपचाप घरम बैठ रही ।। १९ ।। ततोऽ मे तु दवसे यबु यत पा डवः । त मं तदा रसे जीण सोऽ मेयबलो बली ।। २० ।। उधर, नागलोकम सोये ए बलवान् भीमसेन आठव दन, जब वह रस पच गया, जगे। उस समय उनके बलक कोई सीमा नह रही ।। २० ।। तं ् वा तबु य तं पा डवं ते भुज माः । सा वयामासुर ा वचनं चेदम ुवन् ।। २१ ।। पा डु न दन भीमको जगा आ दे ख सब नाग ने शा त- च से उ ह आ ासन दया और यह बात कही— ।। २१ ।। यत् ते पीतो महाबाहो रसोऽयं वीयस भृतः । त मा ागायुतबलो रणेऽधृ यो भ व य स ।। २२ ।। ‘महाबाहो! तुमने जो यह श पूण रस पीया है, इसके कारण तु हारा बल दस हजार हा थय के समान होगा और तुम यु म अजेय हो जाओगे ।। २२ ।। ग छा वं च वगृहं नातो द ै रमैजलैः । ातर तेऽनुत य त वां वना कु पु व ।। २३ ।। ‘आज तुम इस द जलसे नान करो और अपने घर लौट जाओ। कु े ! तु हारे बना तु हारे सब भाई नर तर ःख और च ताम डू बे रहते ह’ ।। २३ ।। ततः नातो महाबा ः शु चः शु ला बर जः । ततो नाग य भवने कृतकौतुकम लः ।। २४ ।। ओषधी भ वष नी भः सुरभी भ वशेषतः । भु वान् परमा ं च नागैद ं महाबलः ।। २५ ।। ी

















तब महाबा भीमसेन नान करके शु हो गये। उ ह ने ेत व और ेत पु प क माला धारण क । त प ात् नागराजके भवनम उनके लये कौतुक एवं मंगलाचार स प कये गये। फर उन महाबली भीमने वष-नाशक सुग धत ओष धय के साथ नाग क द ई खीर खायी ।। २४-२५ ।। पू जतो भुजगैव र आशी भ ा भन दतः । द ाभरणसंछ ो नागानाम य पा डवः ।। २६ ।। उद त त् ा मा नागलोकादरदमः । उ तः स तु नागेन जला जल हे णः ।। २७ ।। त म ेव वनो े शे था पतः कु न दनः । ते चा तद धरे नागाः पा डव यैव प यतः ।। २८ ।। इसके बाद नाग ने वीर भीमसेनका आदर-स कार करके उ ह शुभाशीवाद से स कया। द आभूषण से वभू षत श ुदमन भीमसेन नाग क आ ा ले स च हो नागलोकसे जानेको उ त ए। तब कसी नागने कमलनयन कु न दन भीमको जलसे ऊपर उठाकर उसी वनम (गंगातटवत माणको टम) रख दया। फर वे नाग पा डु पु भीमके दे खते-दे खते अ तधान हो गये ।। २६—२८ ।। तत उ थाय कौ तेयो भीमसेनो महाबलः । आजगाम महाबा मातुर तकम सा ।। २९ ।। तब महाबली कु तीकुमार महाबा भीमसेन वहाँसे उठकर शी ही अपनी माताके समीप आ गये ।। २९ ।। ततोऽ भवा जनन ये ं ातरमेव च । कनीयसः समा ाय शरः व र वमदनः ।। ३० ।। तदन तर श ुमदन भीमने माता और बड़े भाईको णाम करके नेहपूवक छोटे भाइय का सर सूँघा ।। ३० ।। तै ा प स प र व ः सह मा ा नरषभैः । अ यो यगतसौहादाद् द ा द े त चा ुवन् ।। ३१ ।। माता तथा उन नर े भाइय ने भी उ ह दयसे लगाया और एक- सरेके त नेहा ध यके कारण सबने भीमके आगमनसे अपने सौभा यक सराहना क —‘अहोभा य! अहोभा य!’ कहा ।। ३१ ।। तत तत् सवमाच य धन वचे तम् । ातॄणां भीमसेन महाबलपरा मः ।। ३२ ।। तदन तर महान् बल और परा मसे स प भीमसेनने य धनक वे सारी कुचे ाएँ अपने भाइय को बताय ।। ३२ ।। नागलोके च यद् वृ ं गुणदोषमशेषतः । त च सवमशेषेण कथयामास पा डवः ।। ३३ ।। और नागलोकम जो गुण-दोषपूण घटनाएँ घट थ , उन सबको भी पा डु न दन भीमने पूण पसे कह सुनाया ।। ३३ ।। ो ो ी ो

ततो यु ध रो राजा भीममाह वचोऽथवत् । तू ण भव न ते ज य मदं काय कथंचन ।। ३४ ।। तब राजा यु ध रने भीमसेनसे मतलबक बात कही—‘भैया भीम! तुम सवथा चुप हो जाओ। तु हारे साथ जो बताव कया गया है, वह कह कसी कार भी न कहना’ ।। ३४ ।। एवमु वा महाबा धमराजो यु ध रः । ातृ भः स हतः सवर म ोऽभवत् तदा ।। ३५ ।। य कहकर महाबा धमराज यु ध र अपने सब भाइय के साथ उस समयसे खूब सावधान रहने लगे ।। ३५ ।। सार थ चा य द यतमपह तेन ज नवान् । धमा मा व र तेषां पाथानां ददौ म तम् ।। ३६ ।। य धनने भीमसेनके य सार थको हाथसे गला घ टकर मार डाला। उस समय भी धमा मा व रने उन कु तीपु को यही सलाह द क वे चुपचाप सब कुछ सहन कर ल ।। ३६ ।। भोजने भीमसेन य पुनः ा ेपयद् वषम् । कालकूटं नवं ती णं स भृतं लोमहषणम् ।। ३७ ।। धृतराक ु मारने भीमसेनके भोजनम पुनः नया, तीखा और स वके पम प रणत र गटे खड़े कर दे नेवाला कालकूट नामक वष डलवा दया ।। ३७ ।। वै यापु तदाच पाथानां हतका यया । त चा प भु वाजरयद वकारं वृकोदरः ।। ३८ ।। वै यापु युयु सुने कु तीपु के हतक कामनासे यह बात उ ह बता द । परंतु भीमने उस वषको भी खाकर बना कसी वकारके पचा लया ।। ३८ ।। वकारं न जनयत् सुती णम प तद् वषम् । भीमसंहनने भीमे अजीयत वृकोदरे ।। ३९ ।। य प वह वष बड़ा तेज था, तो भी उनके लये कोई बगाड़ न कर सका। भयंकर शरीरवाले भीमसेनके उदरम वृक नामक अ न थी; अतः वहाँ जाकर वह वष पच गया ।। ३९ ।। एवं य धनः कणः शकु न ा प सौबलः । अनेकैर युपायै ता घांस त म पा डवान् ।। ४० ।। इस कार य धन, कण तथा सुबलपु शकु न अनेक उपाय ारा पा डव को मार डालना चाहते थे ।। ४० ।। पा डवा ा प तत् सव यजान म षताः । उ ावनमकुव तो व र य मते थताः ।। ४१ ।। पा डव भी यह सब जान लेते और ोधम भर जाते थे, तो भी व रक रायके अनुसार चलनेके कारण अपने अमषको कट नह करते थे ।। ४१ ।। कुमारान् डमानां तान् ् वा राजा त मदान् । ौ े

गु ं श ाथम व य गौतमं तान् यवेदयत् ।। ४२ ।। शर त बे समुदभू ् तं वेदशा ाथपारगम् । अ धज मु कुरवो धनुवदं कृपात् तु ते ।। ४३ ।। राजा धृतराने उन कुमार को खेल-कूदम लगे रहनेसे अ य त उ ड होते दे ख उ ह श ा दे नेके लये गौतम-गो ीय कृपाचायक खोज करायी, जो सरकंडेके समूहसे उ प ए और व वध शा के पारंगत व ान् थे। उ ह को गु बनाकर कु कुलके उन सभी कुमार को उ ह स प दया गया; फर वे कु वंशी बालक कृपाचायसे धनुवदका अ ययन करने लगे ।। ४२-४३ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण भीम यागमने अ ा वश य धकशततमोऽ यायः ।। १२८ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम भीमसेनके लौटनेसे स ब ध रखनेवाला एक सौ अाईसवाँ अ याय पूरा आ ।। १२८ ।।

एकोन शद धकशततमोऽ यायः कृपाचाय, ोण और अ थामाक उ प तथा ोणको परशुरामजीसे अ -श क ा तक कथा जनमेजय उवाच कृप या प मम न् स भवं व ु मह स । शर त बात् कथं ज े कथं वा ा यवा तवान् ।। १ ।। जनमेजयने पूछा— न्! कृपाचायका ज म कस कार आ? यह मुझे बतानेक कृपा कर। वे सरकंडेके समूहसे कस तरह उ प ए एवं उ ह ने कस कार अ श क श ा ा त क ? ।। १ ।। वैश पायन उवाच महषग तम यासी छर ान् नाम गौतमः । पु ः कल महाराज जातः सह शरै वभो ।। २ ।। न त य वेदा ययने तथा बु रजायत । यथा य बु रभवद् धनुवदे परंतप ।। ३ ।। वैश पायनजीने कहा—महाराज! मह ष गौतमके शर ान् गौतम* नामसे स एक पु थे। भो! कहते ह, वे सरकंड के साथ उ प ए थे। परंतप! उनक बु धनुवदम जतनी लगती थी, उतनी वेद के अ ययनम नह ।। २-३ ।। अ धज मुयथा वेदां तपसा चा रणः । तथा स तपसोपेतः सवा य ा यवाप ह ।। ४ ।। जैसे अ य चारी तप यापूवक वेद का ान ा त करते ह, उसी कार उ ह ने तप यायु होकर स पूण अ -श ा त कये ।। ४ ।। धनुवदपर वा च तपसा वपुलेन च । भृशं संतापयामास दे वराजं स गौतमः ।। ५ ।। वे धनुवदम पारंगत तो थे ही, उनक तप या भी बड़ी भारी थी; इससे गौतमने दे वराज इ को अ य त च ताम डाल दया था ।। ५ ।। ततो जानपद नाम द े वक यां सुरे रः । ा हणोत् तपसो व नं कु त ये त कौरव ।। ६ ।। कौरव! तब दे वराजने जानपद नामक एक दे वक याको उनके पास भेजा और यह आदे श दया क ‘तुम शर ान्क तप याम व न डालो’ ।। ६ ।। सा ह ग वाऽऽ मं त य रमणीयं शर तः । धनुबाणधरं बाला लोभयामास गौतमम् ।। ७ ।। े







वह जानपद शर ान्के रमणीय आ मपर जाकर धनुष-बाण धारण करनेवाले गौतमको लुभाने लगी ।। ७ ।। तामेकवसनां ् वा गौतमोऽ सरसं वने । लोकेऽ तमसं थानां ो फु लनयनोऽभवत् ।। ८ ।। गौतमने एक व धारण करनेवाली उस अ सराको वनम दे खा। संसारम उसके सु दर शरीरक कह तुलना नह थी। उसे दे खकर शर ान्के ने स तासे खल उठ े ।। ८ ।। धनु ह शरा त य करा यामपतन् भु व । वेपथु ा प तां ् वा शरीरे समजायत ।। ९ ।। उनके हाथ से धनुष और बाण छू टकर पृ वीपर गर पड़े तथा उसक ओर दे खनेसे उनके शरीरम क प हो आया ।। ९ ।। स तु ानगरीय वात् तपस समथनात् । अवत थे महा ा ो धैयण परमेण ह ।। १० ।। शर ान् ानम ब त बढ़े -चढ़े थे और उनम तप याक भी बल श थी। अतः वे महा ा मु न अ य त धीरतापूवक अपनी मयादाम थत रहे ।। १० ।। य त य सहसा राजन् वकारः सम यत । तेन सु ाव रेतोऽ य स च त ा वबु यत ।। ११ ।। राजन्! कतु उनके मनम सहसा जो वकार दे खा गया, इससे उनका वीय ख लत हो गया; परंतु इस बातका उ ह भान नह आ ।। ११ ।। धनु सशरं य वा तथा कृ णा जना न च । स वहाया मं तं च तां चैवा सरसं मु नः ।। १२ ।। जगाम रेत तत् त य शर त बे पपात च । शर त बे च प ततं धा तदभव ृप ।। १३ ।। वे मु न बाणस हत धनुष, काला मृगचम, वह आ म और वह अ सरा—सबको वह छोड़कर वहाँसे चल दये। उनका वह वीय सरकंडेके समुदाय-पर गर पड़ा। राजन्! वहाँ गरनेपर उनका वीय दो भाग म बँट गया ।। १२-१३ ।। त याथ मथुनं ज े गौतम य शर तः । मृगयां चरतो रा ः श तनो तु य छया ।। १४ ।। क त् सेनाचरोऽर ये मथुनं तदप यत । धनु सशरं ् वा तथा कृ णा जना न च ।। १५ ।। ा वा ज य चाप ये धनुवदा तग य ह । स रा े दशयामास मथुनं सशरं धनुः ।। १६ ।। स तदादाय मथुनं राजा च कृपया वतः । आजगाम गृहानेव मम पु ा व त ुवन् ।। १७ ।। तदन तर गौतमन दन शर ान्के उसी वीयसे एक पु और एक क याक उ प ई। उस दन दै वे छासे राजा श तनु वनम शकार खेलने आये थे। उनके कसी सै नकने वनम उन युगल संतान को दे खा। वहाँ बाणस हत धनुष और काला मृगचम दे खकर उसने यह ‘ े ो ी े ’ऐ

जान लया क ‘ये दोन कसी धनुवदके पारंगत व ान् ा णक संतान ह’ ऐसा न य होनेपर उसने राजाको वे दोन बालक और बाणस हत धनुष दखाया। राजा उ ह दे खते ही कृपाके वशीभूत हो गये और उन दोन को साथ ले अपने घर आ गये। वे कसीके पूछनेपर यही प रचय दे ते थे क ‘ये दोन मेरी ही संतान ह’ ।। १४—१७ ।। ततः संवधयामास सं कारै ा ययोजयत् । ातीपेयो नर े ो मथुनं गौतम य तत् ।। १८ ।। तदन तर नर े तीपन दन श तनुने शर ान्के उन दोन बालक का पालन-पोषण कया और यथासमय उ ह सब सं कार से स प कया ।। १८ ।। गौतमोऽ प ततोऽ ये य धनुवदपरोऽभवत् । कृपया य मया बाला वमौ संव धता व त ।। १९ ।। त मात् तयोनाम च े तदे व स महीप तः । गो पतौ गौतम त तपसा सम व दत ।। २० ।। गौतम (शर ान्) भी उस आ मसे अ य जाकर धनुवदके अ यासम त पर रहने लगे। राजा श तनुने यह सोचकर क मने इन बालक को कृपापूवक पाला-पोसा है, उन दोन के वे ही नाम रख दये—कृप और कृपी। राजाके ारा पा लत ई अपनी दोन संतान का हाल गौतमने तपोबलसे जान लया ।। १९-२० ।। आग य त मै गो ा द सवमा यातवां तदा । चतु वधं धनुवदं शा ा ण व वधा न च ।। २१ ।। नखलेना य तत् सव गु मा यातवां तदा । सोऽ चरेणैव कालेन परमाचायतां गतः ।। २२ ।। और वहाँ गु त पसे आकर अपने पु को गो आ द सब बात का पूरा प रचय दे दया। चार कारके* धनुवद, नाना कारके शा तथा उन सबके गूढ़ रह यका भी पूण पसे उसको उपदे श दया। इससे कृप थोड़े ही समयम धनुवदके उ कृ आचाय हो गये ।। २१-२२ ।। ततोऽ धज मुः सव ते धनुवदं महारथाः । धृतरा ा मजा ैव पा डवाः सह यादवैः ।। २३ ।। धृतराक े महारथी पु , पा डव तथा यादव—सबने उ ह कृपाचायसे धनुवदका अ ययन कया ।। २३ ।। वृ णय नृपा ा ये नानादे शसमागताः । वृ णवंशी तथा भ - भ दे श से आये ए अ य नरेश भी उनसे धनुवदक श ा लेते थे ।। २३ ।। वैश पायन उवाच वशेषाथ ततो भी मः पौ ाणां वनये सया ।। २४ ।। इव ान् पयपृ छदाचायान् वीयस मतान् । ना पधीना महाभाग तथा नाना को वदः ।। २५ ।। े ो े े

नादे वस वो वनयेत् कु न े महाबलान् । इ त सं च य गा े य तदा भरतस मः ।। २६ ।। ोणाय वेद व षे भार ाजाय धीमते । पा डवान् कौरवां ैव ददौ श यान् नरषभ ।। २७ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! कृपाचायके ारा पूणतः श ा मल जानेपर पतामह भी मने अपने पौ म व श यो यता लानेके लये उ ह और अ धक श ा दे नेक इ छासे ऐसे आचाय क खोज ार भ क , जो बाण-संचालनक कलाम नपुण और अपने परा मके लये स मा नत ह । उ ह ने सोचा—‘ जसक बु थोड़ी है, जो महान् भा यशाली नह है, जसने नाना कारक अ - व ाम नपुणता नह ा त क है तथा जो दे वता के समान श शाली नह है, वह इन महाबली कौरव को अ - व ाक श ा नह दे सकता।’ नर े ! य वचारकर भरत े गंगान दन भी मने भर ाजवंशी, वेदवे ा तथा बु मान् ोणको आचायके पदपर त त करके उनको श य पम पा डव तथा कौरव को सम पत कर दया ।। २४—२७ ।। शा तः पू जत ैव स यक् तेन महा मना । स भी मेण महाभाग तु ोऽ व षां वरः ।। २८ ।। अ - व ाके व ान म े महाभाग ोण महा मा भी मके ारा शा व धसे भलीभाँ त पू जत होनेपर ब त संतु ए ।। २८ ।। तज ाह तान् सवान् श य वेन महायशाः । श यामास च ोणो धनुवदमशेषतः ।। २९ ।। फर उन महायश वी आचाय ोणने उन सबको श य पम वीकार कया और स पूण धनुवदक श ा द ।। २९ ।। तेऽ चरेणैव कालेन सवश वशारदाः । बभूवुः कौरवा राजन् पा डवा ा मतौजसः ।। ३० ।। राजन्! अ मततेज वी पा डव तथा कौरव—सभी थोड़े ही समयम स पूण श व ाम परम वीण हो गये ।। ३० ।। जनमेजय उवाच कथं समभवद् ोणः कथं चा ा यवा तवान् । कथं चागात् कु न् न् क य पु ः स वीयवान् ।। ३१ ।। जनमेजयने पूछा— न्! ोणाचायक उ प कैसे ई? उ ह ने कस कार अ - व ा ा त क ? वे कु दे शम कैसे आये? तथा वे महापरा मी ोण कसके पु थे? ।। ३१ ।। कथं चा य सुतो जातः सोऽ थामा व मः । एत द छा यहं ोतुं व तरेण क तय ।। ३२ ।। साथ ही अ -श के व ान म े अ थामा, जो ोणका पु था, कैसे उ प आ? यह सब म सुनना चाहता ँ। आप व तारपूवक क हये ।। ३२ ।।



वैश पायन उवाच ग ा ारं त महान् बभूव भगवानृ षः । भर ाज इ त यातः सततं सं शत तः ।। ३३ ।। सोऽ भषे ुं ततो ग ां पूवमेवागम द म् । मह ष भभर ाजो ह वधाने चरन् पुरा ।। ३४ ।। ददशा सरसं सा ाद् घृताचीमा लुतामृ षः । पयौवनस प ां मद तां मदालसाम् ।। ३५ ।। त याः पुननद तीरे वसनं पयवतत । पकृ ा बरां ् वा तामृ ष कमे ततः ।। ३६ ।। वैश पायनजीने कहा—जनमेजय! गंगा ारम भगवान् भर ाज नामसे स एक मह ष रहते थे। वे सदा अ य त कठोर त का पालन करते थे। एक दन उ ह एक वशेष कारके य का अनु ान करना था। इस लये वे भर ाज मु न मह षय को साथ लेकर गंगाजीम नान करनेके लये गये। वहाँ प ँचकर मह षने य दे खा, घृताची अ सरा पहलेसे ही नान करके नद के तटपर खड़ी हो व बदल रही है। वह प और यौवनसे स प थी। जवानीके नशेम मदसे उ म ई जान पड़ती थी। उसका व खसक गया और उसे उस अव थाम दे खकर ऋ षके मनम कामवासना जाग उठ ।। ३३—३६ ।। त संस मनसो भर ाज य धीमतः । ततोऽ य रेत क द त ष ण आदधे ।। ३७ ।। परम बु मान् भर ाजजीका मन उस अ सराम आस आ; इससे उनका वीय ख लत हो गया। ऋ षने उस वीयको ोण (य कलश)-म रख दया ।। ३७ ।। ततः समभवद् ोणः कलशे त य धीमतः । अ यगी स वेदां वेदा ा न च सवशः ।। ३८ ।। तब उन बु मान् मह षको उस कलशसे जो पु उ प आ, वह ोणसे ज म लेनेके कारण ोण नामसे ही व यात आ। उसने स पूण वेद और वेदांग का अ ययन कया ।। ३८ ।। अ नवेशं महाभागं भर ाजः तापवान् । यपादयदा नेयम म वदां वरः ।। ३९ ।। तापी मह ष भर ाज अ वे ा म े थे। उ ह ने महाभाग अ नवेशको आ नेय अ क श ा द थी ।। ३९ ।। अ ने तु जातः स मु न ततो भरतस म । भार ाजं तदा नेयं महा ं यपादयत् ।। ४० ।। जनमेजय! अ नवेश मु न सा ात् अ नके पु थे। उ ह ने अपने गु पु भर ाजन दन ोणको उस आ नेय नामक महान् अ क श ा द ।। ४० ।। भर ाजसखा चासीत् पृषतो नाम पा थवः । त या प पदो नाम तदा समभवत् सुतः ।। ४१ ।। े









उन दन पृषत नामसे स एक भूपाल मह ष भर ाजके म थे। उ ह भी उसी समय एक पु आ, जसका नाम पद था ।। ४१ ।। स न यमा मं ग वा ोणेन सह पा थवः । च डा ययनं चैव चकार यषभः ।। ४२ ।। वह राजकुमार य म े था। वह त दन भर ाज मु नके आ मम जाकर ोणके साथ खेलता और अ ययन करता था ।। ४२ ।। ततो तीते पृषते स राजा पदोऽभवत् । प चालेषु महाबा रेषु नरे र ।। ४३ ।। नरे र जनमेजय! पृषतक मृ यु हो जानेपर महाबा पद उ र-पंचाल दे शके राजा ए ।। ४३ ।। भर ाजोऽ प भगवाना रोह दवं तदा । त ैव च वसन् ोण तप तेपे महातपाः ।। ४४ ।। कुछ दन बाद भगवान् भर ाज भी वगवासी हो गये और महातप वी ोण उसी आ मम रहकर तप या करने लगे ।। ४४ ।। वेदवेदा व ान् स तपसा द ध क बषः । ततः पतृ नयु ा मा पु लोभा महायशाः ।। ४५ ।। शार त ततो भाया कृप ोणोऽ व व दत । अ नहो े च धम च दमे च सततं रताम् ।। ४६ ।। वे वेद और वेदांग के व ान् तो थे ही, तप या ारा अपनी स पूण पापरा शको द ध कर चुके थे। उनका महान् यश सब ओर फैल चुका था। एक समय पतर ने उनके मनम पु उ प करनेक ेरणा द ; अतः ोणाचायने पु के लोभसे शर ान्क पु ी कृपीको धमप नीके पम हण कया। कृपी सदा अ नहो , धमानु ान तथा इ यसंयमम उनका साथ दे ती थी ।। ४५-४६ ।। अलभद् गौतमी पु म थामानमेव च । स जातमा ो नदद् यथैवो चैः वा हयः ।। ४७ ।। गौतमी कृपीने ोणसे अ थामा नामक पु ा त कया। उस बालकने ज म लेते ही उ चैः वा घोड़ेके समान श द कया ।। ४७ ।। त छ वा त हतं भूतम त र थम वीत् । अ येवा य यत् थाम नदतः दशो गतम् ।। ४८ ।। अ थामैव बालोऽयं त मा ा ना भ व य त । सुतेन तेन सु ीतो भार ाज ततोऽभवत् ।। ४९ ।। उसे सुनकर अ त र म थत कसी अ य चेतनने कहा—‘इस बालकके च लाते समय अ के समान श द स पूण दशा म गूँज उठा है; अतः यह अ थामा नामसे ही स होगा।’ उस पु से भर ाजन दन ोणको बड़ी स ता ई ।। ४८-४९ ।। त ैव च वसन् धीमान् धनुवदपरोऽभवत् । स शु ाव महा मानं जामद यं परंतपम् ।। ५० ।।

सव ान वदं व ं सवश भृतां वरम् । ा णे य तदा राजन् द स तं वसु सवशः ।। ५१ ।। बु मान् ोण उसी आ मम रहकर धनुवदका अ यास करने लगे। राजन्! कसी समय उ ह ने सुना क ‘महा मा जमद नन दन परशुरामजी इस समय सव एवं स पूण श धा रय म े ह तथा श ु को संताप दे नेवाले वे व वर ा ण को अपना सव व दान करना चाहते ह ।। ५०-५१ ।। स राम य धनुवदं द ा य ा ण चैव ह । ु वा तेषु मन े नी तशा े तथैव च ।। ५२ ।। ोणने यह सुनकर क परशुरामजीके पास स पूण धनुवद तथा द ा का ान है, उ ह ा त करनेक इ छा क । इसी कार उ ह ने उनसे नी त-शा क श ा लेनेका भी वचार कया ।। ५२ ।। ततः स त भः श यै तपोयु ै महातपाः । वृतः ाया महाबा महे ं पवतो मम् ।। ५३ ।। फर चय तका पालन करनेवाले तप वी श य से घरे ए महातप वी महाबा ोण परम उ म महे पवतपर गये ।। ५३ ।। ततो महे मासा भार ाजो महातपाः । ा तं दा तम म नमप यद् भृगुन दनम् ।। ५४ ।। महे पवतपर प ँचकर महान् तप वी ोणने मा एवं शम-दम आ द गुण से यु श ुनाशक भृगन ु दन परशुरामजीका दशन कया ।। ५४ ।। ततो ोणो वृतः श यै पग य भृगू हम् । आच यावा मनो नाम ज म चा रसः कुले ।। ५५ ।। त प ात् श य स हत ोणने भृगु े परशुरामजीके समीप जाकर अपना नाम बताया और यह भी कहा क ‘मेरा ज म आं गरस कुलम आ है’ ।। ५५ ।। नवे शरसा भूमौ पादौ चैवा यवादयत् । तत तं सवमु सृ य वनं जग मषुं तदा ।। ५६ ।। जामद यं महा मानं भार ाजोऽ वी ददम् । भर ाजात् समु प ं तथा वं मामयो नजम् ।। ५७ ।। आगतं व कामं मां व ोणं जषभ । इस कार नाम और गो बताकर उ ह ने पृ वीपर म तक टे क दया और परशुरामजीके चरण म णाम कया। तदन तर सव व यागकर वनम जानेक इ छा रखनेवाले महा मा जमद नकुमारसे ोणने इस कार कहा—‘ ज े ! म मह ष भर ाजसे उ प उनका अयो नज पु ँ। आपको यह ात हो क म धनक इ छासे आया ँ। मेरा नाम ोण है’ ।। ५६-५७ ।। तम वी महा मा स सव यमदनः ।। ५८ ।। े





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यह सुनकर सम त य का संहार करनेवाले महा मा परशुराम उनसे य बोले — ।। ५८ ।। वागतं ते ज े य द छ स वद व मे । एवमु तु रामेण भार ाजोऽ वीद् वचः ।। ५९ ।। रामं हरतां े ं द स तं व वधं वसु । अहं धनमन तं ह ाथये वपुल त ।। ६० ।। ‘ ज े ! तु हारा वागत है। तुम जो कुछ भी चाहते हो, मुझसे कहो।’ उनके इस कार पूछनेपर भर ाजकुमार ोणने नाना कारके धन-र न का दान करनेक इ छावाले, यो ा म े परशुरामसे कहा—‘महान् तका पालन करनेवाले महष! म आपसे ऐसे धनक याचना करता ँ, जसका कभी अ त न हो’ ।। ५९-६० ।।

राम उवाच हर यं मम य चा यद् वसु क च दह थतम् । ा णे यो मया द ं सवमेतत् तपोधन ।। ६१ ।। तथैवेयं धरा दे वी सागरा ता सप ना । क यपाय मया द ा कृ ना नगरमा लनी ।। ६२ ।। परशुरामजी बोले—तपोधन! मेरे पास यहाँ जो कुछ सुवण तथा अ य कारका धन था, वह सब मने ा ण को दे दया। इसी कार ाम और नगर क पं य से सुशो भत होनेवाली समु पय त यह सारी पृ वी मह ष क यपको दे द है ।। ६१-६२ ।। शरीरमा मेवा ममेदमवशे षतम् । अ ा ण च महाहा ण श ा ण व वधा न च ।। ६३ ।। अब मेरा यह शरीरमा बचा है। साथ ही नाना कारके ब मू य अ -श का ान अव श है ।। ६३ ।। अ ा ण वा शरीरं वा वरयैत मयो तम् । वृणी व क य छा म तु यं ोण वदाशु तत् ।। ६४ ।। अतः तुम अ -श का ान अथवा यह शरीर माँग लो। इसे दे नेके लये म सदा तुत ँ। ोण! बोलो, म तु ह या ँ ? शी उसे कहो ।। ६४ ।। ोण उवाच अ ा ण मे सम ा ण ससंहारा ण भागव । स योगरह या न दातुमह यशेषतः ।। ६५ ।। ोणने कहा—भृगन ु दन! आप मुझे योग, रह य तथा संहार व धस हत स पूण अ -श का ान दान कर ।। ६५ ।। तथे यु वा तत त मै ादाद ा ण भागवः । सरह य तं चैव धनुवदमशेषतः ।। ६६ ।। तब ‘तथा तु’ कहकर भृगव ु ंशी परशुरामजीने ोणको स पूण अ दान कये तथा रह य और तस हत स पूण धनुवदका भी उपदे श कया ।। ६६ ।। ो

तगृ तु त सव कृता ो जस मः । यं सखायं सु ीतो जगाम पदं त ।। ६७ ।। वह सब हण करके ज े ोण अ - व ाके पूरे प डत हो गये और अ य त स हो अपने य सखा पदके पास गये ।। ६७ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण ोण य भागवाद ा तौ ऊन शद धकशततमोऽ यायः ।। १२९ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम ोणको परशुरामजीसे अ व ाक ा त वषयक एक सौ उ तीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १२९ ।।

* गौतमगो ीय होनेके कारण शर ान्को भी गौतम कहा जाता था।

* धनुवदके चार भेद इस कार ह—मु , अमु , मु ामु तथा म मु । छोड़े जानेवाले बाण आ दको ‘मु ’ कहते ह। ज ह हाथम लेकर हार कया जाय, उन खड् ग आ दको ‘अमु ’ कहते ह। जस अ को चलाने और समेटनेक कला मालूम हो, वह अ ‘मु ामु ’ कहलाता है। जसे म पढ़कर चला तो दया जाय कतु उसके उपसंहारक व ध मालूम न हो, वह अ ‘म मु ’ कहा गया है, श , अ , य और परमा —ये भी धनुवदके चार भेद ह। इसी कार आदान, संधान, वमो और संहार—इन चार या के भेदसे भी धनुवदके चार भेद होते ह।

शद धकशततमोऽ यायः ोणका पदसे तर कृत हो ह तनापुरम आना, राजकुमार से उनक भट, उनक बीटा* और अँगूठ को कुएँमसे नकालना एवं भी मका उ ह अपने यहाँ स मानपूवक रखना वैश पायन उवाच ततो पदमासा भार ाजः तापवान् । अ वीत् पा थवं राजन् सखायं व मा मह ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तापी ोण राजा पदके यहाँ जाकर उनसे इस कार बोले—‘राजन्! तु ह ात होना चा हये क म तु हारा म ोण यहाँ तुमसे मलनेके लये आया ँ’ ।। १ ।। इ येवमु ः स या स ी तपूव जने रः । भार ाजेन पा चालो नामृ यत वचोऽ य तत् ।। २ ।। म ोणके ारा इस कार ेमपूवक कहे जानेपर पंचालदे शके नरेश पद उनक इस बातको सह न सके ।। २ ।। स ोधामष ज ूः कषायीकृतलोचनः । ऐ यमदस प ो ोणं राजा वी ददम् ।। ३ ।। ोध और अमषसे उनक भ ह टे ढ़ हो गय , आँख म लाली छा गयी; धन और ऐ यके मदसे उ म होकर वे राजा ोणसे य बोले ।। ३ ।। पद उवाच अकृतेयं तव ा न् ना तसम सा । य मां वी ष सभं सखा तेऽह म त ज ।। ४ ।। पदने कहा— न्! तु हारी बु सवथा सं कारशू य—अप रप व है। तु हारी यह बु यथाथ नह है। तभी तो तुम धृ तापूवक मुझसे कह रहे हो क ‘राजन्! म तु हारा सखा ँ’ ।। ४ ।। न ह रा ामुद णानामेव भूतैनरैः व चत् । स यं भव त म दा मन् या हीनैधन युतैः ।। ५ ।। ओ मूढ़! बड़े-बड़े राजा क तु हारे-जैसे ीहीन और नधन मनु य के साथ कभी म ता नह होती ।। ५ ।। सौ दा य प जीय ते कालेन प रजीयतः । सौ दं मे वया ासीत् पूव सामयब धनम् ।। ६ ।। े







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समयके अनुसार मनु य य - य बूढ़ा होता है, य -ही- य उसक मै ी भी ीण होती चली जाती है। पहले तु हारे साथ जो मेरी म ता थी, वह साम यको लेकर थी—उस समय म और तुम दोन समान श शाली थे ।। ६ ।। न स यमजरं लोके द त त क य चत् । कालो ेनं वहर त ोधो वैनं हर युत ।। ७ ।। लोकम कसी भी मनु यके दयम मै ी अ मट होकर नह रहती। समय एक म को सरेसे वलग कर दे ता है अथवा ोध मनु यको म तासे हटा दे ता है ।। ७ ।। मैवं जीणमुपा व वं स यं भव वपाकृ ध । आसीत् स यं ज े वया मेऽथ नब धनम् ।। ८ ।। इस कार ीण होनेवाली मै ीका भरोसा न करो। हम दोन एक- सरेके म थे— इस भावको दयसे नकाल दो। ज े ! तु हारे साथ पहले जो मेरी म ता थी, वह साथ-साथ खेलने और अ ययन करने आ द वाथको लेकर ई थी ।। ८ ।। न द र ो वसुमतो ना व ान् व षः सखा । न शूर य सखा लीबः सखपूव क म यते ।। ९ ।। स ची बात यह है क द र मनु य धनवान्का, मूख व ान्का और कायर शूरवीरका सखा नह हो सकता; अतः पहलेक म ताका या भरोसा करते हो ।। ९ ।। ययोरेव समं व ं ययोरेव समं ुतम् । तयो ववाहः स यं च न तु पु वपु योः ।। १० ।। जनका धन समान है, जनक व ा एक-सी है, उ ह म ववाह और मै ीका स ब ध हो सकता है। -पु और बलम (धनवान् और नधनम) कभी म ता नह हो सकती ।। १० ।। ना ो यः ो य य नारथी र थनः सखा । नाराजा पा थव या प सखपूव क म यते ।। ११ ।। जो ो य नह है, वह ो य (वेदवे ा)-का म नह हो सकता। जो रथी नह है, वह रथीका सखा नह हो सकता। इसी कार जो राजा नह है, वह कसी राजाका म कदा प नह हो सकता। फर तुम पुरानी म ताका य मरण करते हो? ।। ११ ।। वैश पायन उवाच पदे नैवमु तु भार ाजः तापवान् । मुत च त य वा तु म युना भप र लुतः ।। १२ ।। स व न य मनसा पा चालं त बु मान् । जगाम कु मु यानां नगरं नागसा यम् ।। १३ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! राजा पदके य कहनेपर तापी ोण ोधसे जल उठे और दो घड़ीतक गहरी च ताम डू बे रहे। वे बु मान् तो थे ही, पांचालनरेशसे बदला लेनेके वषयम मन-ही-मन कुछ न य करके कौरव क राजधानी ह तनापुर नगरम चले गये ।। १२-१३ ।। ौ





स नागपुरमाग य गौतम य नवेशने । भार ाजोऽवसत् त छ ं जस मः ।। १४ ।। ह तनापुरम प ँचकर ज े ोण गौतमगो ीय कृपाचायके घरम गु त पसे नवास करने लगे ।। १४ ।। ततोऽ य तनुजः पाथान् कृप यान तरं भुः । अ ा ण श यामास नाबु य त च तं जनाः ।। १५ ।। वहाँ उनके पु श शाली अ थामा कृपाचायके बाद पा डव को वयं ही अ व ाक श ा दे ने लगे; कतु लोग उ ह पहचान न सके ।। १५ ।। एवं स त गूढा मा कं चत् कालमुवास ह । कुमारा वथ न य समेता गजसा यात् ।। १६ ।। ड तो वीटया त वीराः पयचरन् मुदा । पपात कूपे सा वीटा तेषां वै डतां तदा ।। १७ ।। इस कार ोणने वहाँ अपने आपको छपाये रखकर कुछ कालतक नवास कया। तदन तर एक दन कौरव-पा डव सभी वीर कुमार ह तनापुरसे बाहर नकलकर बड़ी स ताके साथ मलकर वहाँ गु ली-डंडा खेलने लगे। उस समय खेलम लगे ए उन कुमार क वह बीटा कुएँम गर पड़ी ।। १६-१७ ।। तत ते य नमा त न् वीटामु तुमा ताः । न च ते यप त कम वीटोपलधये ।। १८ ।। तब वे उस बीटाको नकालनेके लये बड़ी त परताके साथ य नम लग गये; परंतु उसे ा त करनेका कोई भी उपाय उनके यानम नह आया ।। १८ ।। ततोऽ यो यमवै त ीडयावनताननाः । त या योगम व द तो भृशं चो क ठताभवन् ।। १९ ।। इस कारण ल जासे नतम तक होकर वे एक- सरेक ओर दे खने लगे। गु ली नकालनेका कोई उपाय न मलनेके कारण वे अ य त उ क ठत हो गये ।। १९ ।। तेऽप यन् ा णं याममाप ं प लतं कृशम् । कृ यव तम र थम नहो पुर कृतम् ।। २० ।। इसी समय उ ह ने एक याम वणके ा णको थोड़ी ही रपर बैठे दे खा, जो अ नहो करके कसी योजनसे वहाँ के ए थे। वे आप त जान पड़ते थे। उनके सरके बाल सफेद हो गये थे और शरीर अ य त बल था ।। २० ।। ते तं ् वा महा मानमुपग य कुमारकाः । भ नो साह या मानो ा णं पयवारयन् ।। २१ ।। उन महा मा ा णको दे खकर वे सभी कुमार उनके पास गये और उ ह घेरकर खड़े हो गये। उनका उ साह भंग हो गया था। कोई काम करनेक इ छा नह होती थी। मनम भारी नराशा भर गयी थी ।। २१ ।। अथ ोणः कुमारां तान् ् वा कृ यवत तदा । ह य म दं पैश याद यभाषत वीयवान् ।। २२ ।। ी ो े ी ै

तदन तर परा मी ोण यह दे खकर क इन कुमार का अभी काय पूण नह आ है —ये उसी योजनसे मेरे पास आये ह, उस समय म द मुसकराहटके साथ बड़े कौशलसे बोले— ।। २२ ।। अहो वो धग् बलं ा ं धगेतां वः कृता ाताम् । भरत या वये जाता ये वीटां ना धग छत ।। २३ ।। ‘अहो! तुमलोग के यबलको ध कार है और तुमलोग क इस अ - व ावषयक नपुणताको भी ध कार है; य क तुमलोग भरतवंशम ज म लेकर भी कुएँम गरी ई गु लीको नह नकाल पाते ।। २३ ।। वीटां च मु कां चैव हमेतद प यम् । उ रेय मषीका भभ जनं मे द यताम् ।। २४ ।। ‘दे खो, म तु हारी गु ली और अपनी इस अँगठ ू दोन को स क से नकाल सकता ँ। तुमलोग मेरी जी वकाक व था करो’ ।। २४ ।। एवमु वा कुमारां तान् ोणः वा लवे नम् । कूपे न दके त म पातयदरदमः ।। २५ ।। उन कुमार से य कहकर श ु का दमन करनेवाले ोणने उस नजल कुएँम अपनी अँगठ ू डाल द ।। २५ ।। ततोऽ वीत् तदा ोणं कु तीपु ो यु ध रः । उस समय कु तीन दन यु ध रने ोणसे कहा ।। २५ ।। यु ध र उवाच कृप यानुमते न् भ ामा ु ह शा तीम् ।। २६ ।। एवमु ः युवाच ह य भरता नदम् । यु ध र बोले— न्! आप कृपाचायक अनुम त ले सदा यह रहकर भ ा ा त कर। उनके य कहनेपर ोणने हँसकर उन भरतवंशी राजकुमार से कहा ।। २६ ।। ोण उवाच एषा मु रषीकाणां मया ेणा भम ता ।। २७ ।। ोण बोले—ये मु भर स क ह, ज ह मने अ -म के ारा अ भम त कया है ।। २७ ।। अ या वीय नरी वं यद य य न व ते । भे यामीषीकया वीटां ता मषीकां तथा यया ।। २८ ।। तुमलोग इसका बल दे खो, जो सरेम नह है। म पहले एक स कसे उस गु लीको ब ध ँ गा; फर सरी स कसे उस पहली स कको ब धूँगा ।। २८ ।। ताम यया समायोगे वीटाया हणं मम । ी

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इसी कार सरीको तीसरीसे ब धते ए अनेक स क का संयोग होनेपर मुझे गु ली मल जायगी ।। २८ ।। वैश पायन उवाच ततो यथो ं ोणेन तत् सव कृतम सा ।। २९ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर ोणने जैसा कहा था, वह सब कुछ अनायास ही कर दखाया ।। २९ ।। तदवे य कुमारा ते व मयो फु ललोचनाः । आ य मदम य त म त म वा वचोऽ ुवन् ।। ३० ।। यह अ त काय दे खकर उन कुमार के ने आ यसे खल उठे । इसे अ य त आ य मानकर वे इस कार बोले ।। ३० ।। कुमारा ऊचुः मु काम प व ष शी मेतां समु र । कुमार ने कहा— ष! अब आप शी ही इस अँगठ ू को भी नकाल द जये ।। ३० ।। वैश पायन उवाच ततः शरं समादाय धनु णो महायशाः ।। ३१ ।। शरेण वद् वा मु ां तामू वमावाहयत् भुः । सशरं समुपादाय कूपाद लवे नम् ।। ३२ ।। ददौ ततः कुमाराणां व मतानाम व मतः । मु कामुदधृ ् तां ् वा तमा ते कुमारकाः ।। ३३ ।। वैश पायनजी कहते ह—तब महायश वी ोणने धनुष-बाण लेकर बाणसे उस अँगठ ू को ब ध दया और उसे ऊपर नकाल लया। श शाली ोणने इस कार कुएँसे बाणस हत अँगठ ू नकालकर उन आ यच कत कुमार के हाथम दे द ; कतु वे वयं त नक भी व मत नह ए। उस अँगठ ू को कुएँसे नकाली ई दे खकर उन कुमार ने ोणसे कहा ।। ३१—३३ ।। कुमारा ऊचुः अ भवादयामहे न् नैतद येषु व ते । कोऽ स क या स जानीमो वयं क करवामहे ।। ३४ ।। कुमार बोले— न्! हम आपको णाम करते ह। यह अ त अ -कौशल सरे कसीम नह है। आप कौन ह, कसके पु ह—यह हम जानना चाहते ह। बताइये, हमलोग आपक या सेवा कर? ।। ३४ ।। वैश पायन उवाच एवमु ततो ोणः युवाच कुमारकान् । ै

















वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! कुमार के इस कार पूछनेपर ोणने उनसे कहा ।। ३४ ।। ोण उवाच आच वं च भी माय पेण च गुणै माम् ।। ३५ ।। स एव सुमहातेजाः सा तं तप यते । ोण बोले—तुम सब लोग भी मजीके पास जाकर मेरे प और गुण का प रचय दो। वे महातेज वी भी मजी ही मुझे इस समय पहचान सकते ह ।। ३५ ।।

वैश पायन उवाच तथे यु वा च ग वा च भी ममूचुः कुमारकाः ।। ३६ ।। ा ण य वच तयं त च कम तथा वधम् । भी मः ु वा कुमाराणां ोणं तं यजानत ।। ३७ ।। वैश पायनजी कहते ह—‘ब त अ छा’ कहकर वे कुमार भी मजीके पास गये और ा णक स ची बात तथा उनके उस अ त परा मको भी उ ह ने भी मजीसे कह सुनाया। कुमार क बात सुनकर भी मजी समझ गये क वे आचाय ोण ह ।। ३६-३७ ।। यु पः स ह गु र येवमनु च य च । अथैनमानीय तदा वयमेव सुस कृतम् ।। ३८ ।। प रप छ नपुणं भी मः श भृतां वरः । हेतुमागमने त च ोणः सव यवेदयत् ।। ३९ ।। फर यह सोचकर क ोणाचाय ही इन कुमार के उपयु गु हो सकते ह, भी मजी वयं ही आकर उ ह स कारपूवक घर ले गये। वहाँ श धा रय म े भी मने बड़ी बु म ाके साथ ोणाचायसे उनके आगमनका कारण पूछा और ोणने वह सब कारण इस कार नवेदन कया ।। ३८-३९ ।। ोण उवाच महषर नवेश य सकाशमहम युत । अ ाथमगमं पूव धनुवद जघृ या ।। ४० ।। ोणाचायने कहा—अपनी त ासे कभी युत न होनेवाले भी मजी! पहलेक बात है, म अ -श क श ा तथा धनुवदका ान ा त करनेके लये मह ष अ नवेशके समीप गया था ।। ४० ।। चारी वनीता मा ज टलो ब लाः समाः । अवसं सु चरं त गु शु ूषणे रतः ।। ४१ ।। वहाँ म वनीत दयसे चयका पालन करते ए सरपर जटा धारण कये ब त वष तक रहा। गु क सेवाम नर तर संल न रहकर मने द घकालतक उनके आ मम नवास कया ।। ४१ ।। पा चालो राजपु य सेनो महाबलः । े ो





इ व हेतो यवसत् त म ेव गुरौ भुः ।। ४२ ।। उन दन पंचालराजकुमार महाबली य सेन पद भी, जो बड़े श शाली थे, धनुवदक श ा पानेके लये उ ह गु दे व अ नवेशके समीप रहते थे ।। ४२ ।। स मे त सखा चासी पकारी य मे । तेनाहं सह संग य वतयन् सु चरं भो ।। ४३ ।। वे उस गु कुलम मेरे बड़े ही उपकारी और य म थे। भो! उनके साथ मलजुलकर म ब त दन तक आ मम रहा ।। ४३ ।। बा यात् भृ त कौर सहा ययनमेव च । स मे सखा सदा त यवाद यंकरः ।। ४४ ।। बचपनसे ही हम दोन का अ ययन साथ-साथ चलता था। पद वहाँ मेरे घ न म थे। वे सदा मुझसे य वचन बोलते और मेरा य काय करते थे ।। ४४ ।। अ वी द त मां भी म वचनं ी तवधनम् । अहं यतमः पु ः पतु ण महा मनः ।। ४५ ।। भी मजी! वे एक दन मुझसे मेरी स ताको बढ़ानेवाली यह बात बोले—‘ ोण! म अपने महा मा पताका अ य त य पु ँ ।। ४५ ।। अ भषे य त मां रा ये स पा चालो यदा तदा । व ो यं भ वता तात सखे स येन ते शपे ।। ४६ ।। मम भोगा व ं च वदधीनं सुखा न च । एवमु वाथ व ाज कृता ः पू जतो मया ।। ४७ ।। ‘तात! जब पांचालनरेश मुझे रा यपर अ भ ष करगे, उस समय मेरा रा य तु हारे उपभोगम आयेगा। सखे! म स यक सौगंध खाकर कहता ँ—मेरे भोग, वैभव और सुख सब तु हारे अधीन ह गे।’ य कहकर वे अ व ाम नपुण हो मुझसे स मा नत होकर अपने दे शको लौट गये ।। ४६-४७ ।। त च वा यमहं न यं मनसा धारयं तदा । सोऽहं पतृ नयोगेन पु लोभाद् यश वनीम् ।। ४८ ।। ना तकेश महा ामुपयेमे महा ताम् । अ नहो े च स े च दमे च सततं रताम् ।। ४९ ।। उनक उस समय कही ई इस बातको म अपने मनम सदा याद रखता था। कुछ दन के बाद पतर क ेरणासे मने पु - ा तके लोभसे परम बु मती, महान् तका पालन करनेवाली, अ नहो , स तथा शम-दमके पालनम मेरे साथ सदा संल न रहनेवाली शर ान्क पु ी यश वनी कृपीसे, जसके केश ब त बड़े नह थे, ववाह कया ।। ४८-४९ ।। अलभद् गौतमी पु म थामानमौरसम् । भीम व मकमाणमा द यसमतेजसम् ।। ५० ।। उस गौतमी कृपीने मुझसे मेरे औरस पु अ थामाको ा त कया, जो सूयके समान तेज वी तथा भयंकर परा म एवं पु षाथ करनेवाला है ।। ५० ।। े े ी ो ो

पु ेण तेन ीतोऽहं भर ाजो मया यथा । गो ीरं पबतो ् वा ध नन त पु कान् । अ थामा दद् बाल त मे संदेहयद् दशः ।। ५१ ।। उस पु से मुझे उतनी ही स ता ई, जतनी मुझसे मेरे पता भर ाजको ई थी। एक दनक बात है, गोधनके धनी ऋ षकुमार गायका ध पी रहे थे। उ ह दे खकर मेरा छोटा ब चा अ थामा भी बाल- वभावके कारण ध पीनेके लये मचल उठा और रोने लगा। इससे मेरी आँख के सामने अँधेरा छा गया—मुझे दशा के पहचाननेम भी संशय होने लगा ।। ५१ ।। न नातकोऽवसीदे त वतमानः वकमसु । इ त सं च य मनसा तं दे शं ब शो मन् ।। ५२ ।। वशु म छन् गा े य धम पेतं त हम् । अ ताद तं प र य ना यग छं पय वनीम् ।। ५३ ।। मने मन-ही-मन सोचा, य द म कसी कम गायवाले ा णसे गाय माँगता ँ तो कह ऐसा न हो क वह अपने अ नहो आ द कम म लगा आ नातक गो धके बना क म पड़ जाय; अतः जसके पास ब त-सी गौएँ ह , उसीसे धमानुकूल वशु दान लेनेक इ छा रखकर मने उस दे शम कई बार मण कया। गंगान दन! एक दे शसे सरे दे शम घूमनेपर भी मुझे ध दे नेवाली कोई गाय न मल सक ।। ५२-५३ ।। अथ प ोदकेनैनं लोभय त कुमारकाः । पी वा प रसं बालः ीरं पीतं मया प च ।। ५४ ।। ननत थाय कौर ो बा याद् वमो हतः । तं ् वा नृ यमानं तु बालैः प रवृतं सुतम् ।। ५५ ।। हा यतामुपस ा तं क मलं त मेऽभवत् । ोणं धग वध ननं यो धनं ना धग छ त ।। ५६ ।। म लौटकर आया तो दे खता ँ क छोटे -छोटे बालक आटे के पानीसे अ थामाको ललचा रहे ह और वह अ ानमो हत बालक उस आटे के जलको ही पीकर मारे हषके फूला नह समाता तथा यह कहता आ उठकर नाच रहा है क ‘मने ध पी लया’। कु न दन! बालक से घरे ए अपने पु को इस कार नाचते और उसक हँसी उड़ायी जाती दे ख मेरे मनम बड़ा ोभ आ। उस समय कुछ लोग इस कार कह रहे थे, ‘इस धनहीन ोणको ध कार है, जो धनका उपाजन नह करता ।। ५४—५६ ।। प ोदकं सुतो य य पी वा ीर य तृ णया । नृ य त म मुदा व ः ीरं पीतं मया युत ।। ५७ ।। इ त स भाषतां वाचं ु वा मे बु र यवत् । आ मानं चा मना गहन् मनसेदं च तयम् ।। ५८ ।। अ प चाहं पुरा व ैव जतो ग हतो वसे । परोपसेवां पा प ां न च कुया धने सया ।। ५९ ।। ‘









‘ जसका बेटा धक लालसासे आटा मला आ जल पीकर आन दम न हो यह कहता आ नाच रहा है क ‘मने भी ध पी लया।’ इस कारक बात करनेवाले लोग क आवाज मेरे कान म पड़ी तो मेरी बु थर न रह सक । म वयं ही अपने-आपक न दा करता आ मन-ही-मन इस कार सोचने लगा—‘मुझे द र जानकर पहलेसे ही ा ण ने मेरा साथ छोड़ दया। म धनाभावके कारण न दत होकर उपवास भले ही कर लूँगा, परंतु धनके लोभसे सर क सेवा, जो अ य त पापपूण कम है, कदा प नह कर सकता’ ।। ५७ —५९ ।। इ त म वा यं पु ं भी मादाय ततो हम् । पूव नेहानुरा ग वात् सदारः सौम क गतः ।। ६० ।। भी मजी! ऐसा न य करके म अपने य पु और प नीको साथ लेकर पहलेके नेह और अनुरागके कारण राजा पदके यहाँ गया ।। ६० ।। अ भ ष ं तु ु वैव कृताथ ऽ मी त च तयन् । यं सखायं सु ीतो रा य थं समुपागमम् ।। ६१ ।। मने सुन रखा था क पदका रा या भषेक हो चुका है, अतः म मन-ही-मन अपनेको कृताथ मानने लगा और बड़ी स ताके साथ रा य सहासनपर बैठे ए अपने य सखाके समीप गया ।। ६१ ।। सं मरन् संगमं चैव वचनं चैव त य तत् । ततो पदमाग य सखपूवमहं भो ।। ६२ ।। अ ुवं पु ष ा सखायं व मा म त । उप थत तु पदं सखव चा म संगतः ।। ६३ ।। उस समय मुझे पदक मै ी और उनक कही ई पूव बात का बारंबार मरण हो आता था। तदन तर अपने पहलेके सखा पदके पास प ँचकर मने कहा—‘नर े ! मुझ अपने म को पहचानो तो सही।’ भो! म पदके पास प ँचनेपर उनसे म क ही भाँ त मला ।। ६२-६३ ।। स मां नराकार मव हस दम वीत् । अकृतेयं तव ा न् ना तसम सा ।। ६४ ।। परंतु पदने मुझे नीच मनु यके समान समझकर उपहास करते ए इस कार कहा —‘ ा ण! तु हारी बु अ य त असंगत एवं अशु है ।। ६४ ।। यदा थ मां वं सभं सखा तेऽह म त ज । संगतानीह जीय त कालेन प रजीयतः ।। ६५ ।। ‘तभी तो तुम मुझसे यह कहनेक धृ ता कर रहे हो क ‘राजन्! म तु हारा सखा ँ!’ समयके अनुसार मनु य य - य बूढ़ा होता है, य - य उसक मै ी भी ीण होती चली जाती है ।। ६५ ।। सौ दं मे वया ासीत् पूव सामयब धनम् । ना ो यः ो य य नारथी र थनः सखा ।। ६६ ।। ‘





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‘पहले तु हारे साथ मेरी जो म ता थी, वह साम यको लेकर थी—उस समय हम दोन क श समान थी ( कतु अब वैसी बात नह है)। जो ो य नह है, वह ो य (वेदवे ा)-का, जो रथी नह है, वह रथीका सखा नह हो सकता ।। ६६ ।। सा या स यं भव त वैष या ोपप ते । न स यमजरं लोके व ते जातु क य चत् ।। ६७ ।। ‘सब बात म समानता होनेसे ही म ता होती है। वषमता होनेपर मै ीका होना अस भव है। फर लोकम कभी कसीक मै ी अजर-अमर नह होती ।। ६७ ।। कालो वैनं वहर त ोधो वैनं हर युत । मैवं जीणमुपा व वं स यं भव वपाकृ ध ।। ६८ ।। ‘समय एक म को सरेसे वलग कर दे ता है अथवा ोध मनु यको म तासे हटा दे ता है। इस कार ीण होनेवाली मै ीक उपासना (भरोसा) न करो। हम दोन एकसरेके म थे, इस भावको दयसे नकाल दो’ ।। ६८ ।। आसीत् स यं ज े वया मेऽथ नब धनम् । न नाः सखा य ना व ान् व षः सखा ।। ६९ ।। न शूर य सखा लीबः सखपूव क म यते । न ह रा ामुद णानामेव भूतैनरैः व चत् ।। ७० ।। स यं भव त म दा मन् याहीनैधन युतैः । ना ो यः ो य य नारथी र थनः सखा ।। ७१ ।। नाराजा पा थव या प सखपूव क म यते । अहं वया न जाना म रा याथ सं वदं कृताम् ।। ७२ ।। ‘ ज े ! तु हारे साथ पहले जो मेरी म ता थी, वह (साथ-साथ खेलने और अ ययन करने आ द) वाथको लेकर ई थी। स ची बात यह है क द र मनु य धनवान्का, मूख व ान्का और कायर शूरवीरका सखा नह हो सकता; अतः पहलेक म ताका या भरोसा करते हो? म दमते! बड़े-बड़े राजा क तु हारे-जैसे ीहीन और नधन मनु य के साथ कभी म ता हो सकती है? जो ो य नह है, वह ो यका; जो रथी नह है, वह रथीका तथा जो राजा नह है, वह राजाका म नह हो सकता। फर तुम मुझे जीण-शीण म ताका मरण य दलाते हो? मने अपने रा यके लये तुमसे कोई त ा क थी, इसका मुझे कुछ भी मरण नह है ।। ६९—७२ ।। एकरा ं तु ते न् कामं दा या म भोजनम् । एवमु वहं तेन सदारः थत तदा ।। ७३ ।। ‘ न्! तु हारी इ छा हो तो म तु ह एक रातके लये अ छ तरह भोजन दे सकता ँ।’ राजा पदके य कहनेपर म प नी और पु के साथ वहाँसे चल दया ।। ७३ ।। तां त ां त ाय यां कता य चरा दव । पदे नैवमु ोऽहं म युना भप र लुतः ।। ७४ ।। चलते समय मने एक त ा क थी, जसे शी पूण क ँ गा। पदके ारा जो इस कार तर कारपूण वचन मेरे त कहा गया है, उसके कारण म ोभसे अ य त ाकुल ो ँ

हो रहा ँ ।। ७४ ।। अ याग छं कु न् भी म श यैरथ गुणा वतैः । ततोऽहं भवतः कामं संवध यतुमागतः ।। ७५ ।। इदं नागपुरं र यं ू ह क करवा ण ते । भी मजी! म गुणवान् श य के ारा अपने अभी क स चाहता आ आपके मनोरथको पूण करनेके लये पंचालदे शसे कु रा यके भीतर इस रमणीय ह तनापुर नगरम आया ँ। बताइये, म आपका कौन-सा य काय क ँ ? ।। ७५ ।। वैश पायन उवाच एवमु तदा भी मो भार ाजमभाषत ।। ७६ ।। वैश पायनजी कहते ह— ोणाचायके य कहनेपर भी मने उनसे कहा ।। ७६ ।।

भी म उवाच अप यं यतां चापं सा व ं तपादय । भुङ् व भोगान् भृशं ीतः पू यमानः कु ये ।। ७७ ।। भी मजी बोले— व वर! अब आप अपने धनुषक डोरी उतार द जये और यहाँ रहकर राजकुमार को धनुवद एवं अ -श क अ छ श ा द जये। कौरव के घरम सदा स मा नत रहकर अ य त स ताके साथ मनोवां छत भोग का उपभोग क जये ।। ७७ ।। कु णाम त यद् व ं रा यं चेदं सरा कम् । वमेव परमो राजा सव च कुरव तव ।। ७८ ।। कौरव के पास जो धन, रा य-वैभव तथा रा है, उसके आप ही सबसे बड़े राजा ह। सम त कौरव आपके अधीन ह ।। ७८ ।। य च ते ा थतं न् कृतं त द त च यताम् । द ा ा तोऽ स व ष महान् मेऽनु हः कृतः ।। ७९ ।। न्! आपने जो माँग क है, उसे पूण ई सम झये। ष! आप आये, यह हमारे लये बड़े सौभा यक बात है। आपने यहाँ पधारकर मुझपर महान् अनु ह कया है ।। ७९ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण भी म ोणसमागमे शद धकशततमोऽ यायः ।। १३० ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम भी म- ोण-समागम वषयक एक सौ तीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १३० ।।

* जौके आकारक बनी ई काठक मोट गु लीको ‘बीटा’ कहते ह।

एक शद धकशततमोऽ यायः ोणाचाय ारा राजकुमार क श ा, एकल क गु भ तथा आचाय ारा श य क परी ा वैश पायन उवाच ततः स पू जतो ोणो भी मेण पदां वरः । वश ाम महातेजाः पू जतः कु वे म न ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर मनु य म े महातेज वी ोणाचायने भी मजीके ारा पू जत हो कौरव के घरम व ाम कया। वहाँ उनका बड़ा स मान कया गया ।। १ ।। व ा तेऽथ गुरौ त मन् पौ ानादाय कौरवान् । श य वेन ददौ भी मो वसू न व वधा न च ।। २ ।। गृहं च सुप र छ ं धनधा यसमाकुलम् । भार ाजाय सु ीतः यपादयत भुः ।। ३ ।। गु ोणाचाय जब व ाम कर चुके, तब साम यशाली भी मजीने अपने कु वंशी पौ को लेकर उ ह श य पम सम पत कया। साथ ही अ य त स होकर भर ाजन दन ोणको नाना कारके धन-र न और सु दर साम य से सुस जत तथा धन- धा यसे स प भवन दान कया ।। २-३ ।। स ता श यान् महे वासः तज ाह कौरवान् । पा डवान् धातरा ां ोणो मु दतमानसः ।। ४ ।। महाधनुधर आचाय ोणने स च होकर उन धृतरा-पु तथा पा डव को श य पम हण कया ।। ४ ।। तगृ च तान् सवान् ोणो वचनम वीत् । रह येकः तीता मा कृतोपसदनां तथा ।। ५ ।। उन सबको हण कर लेनेपर एक दन एका तम जब ोणाचाय पूण व ासयु मनसे अकेले बैठे थे, तब उ ह ने अपने पास बैठे ए सब श य से यह बात कही ।। ५ ।। ोण उवाच काय मे काङ् तं क चद्धृ द स प रवतते । कृता ै तत् दे यं मे तदे तद् वदतानघाः ।। ६ ।। ोण बोले— न पाप राजकुमारो! मेरे मनम एक काय करनेक इ छा है। अ श ा ा त कर लेनेके प ात् तुमलोग को मेरी वह इ छा पूण करनी होगी। इस वषयम तु हारे या वचार ह, बतलाओ ।। ६ ।। वैश पायन उवाच ौ









त छ वा कौरवेया ते तू णीमासन् वशा पते । अजुन तु ततः सव तज े परंतप ।। ७ ।। वैश पायनजी कहते ह—श ु को संताप दे नेवाले राजा जनमेजय! आचायक वह बात सुनकर सब कौरव चुप रह गये; परंतु अजुनने वह सब काय पूण करनेक त ा कर ली ।। ७ ।। ततोऽजुनं तदा मू न समा ाय पुनः पुनः । ी तपूव प र व य रोद मुदा तदा ।। ८ ।। तब आचायने बारंबार अजुनका म तक सूँघा और उ ह ेमपूवक दयसे लगाकर वे हषके आवेशम रो पड़े ।। ८ ।। ततो ोणः पा डु पु ान ा ण व वधा न च । ाहयामास द ा न मानुषा ण च वीयवान् ।। ९ ।। तब परा मी ोणाचाय पा डव (तथा अ य श य )-को नाना कारके द एवं मानव अ -श क श ा दे ने लगे ।। ९ ।। राजपु ा तथा चा ये समे य भरतषभ । अ भज मु ततो ोणम ाथ जस मम् ।। १० ।। भरत े ! उस समय सरे- सरे राजकुमार भी अ व ाक श ा लेनेके लये ज े ोणके पास आने लगे ।। १० ।। वृ णय ा धका ैव नानादे या पा थवाः । सूतपु राधेयो गु ं ोण मयात् तदा ।। ११ ।। वृ णवंशी तथा अ धकवंशी य, नाना दे श के राजकुमार तथा राधान दन सूतपु कण—ये सभी आचाय ोणके पास (अ - श ा लेनेके लये) आये ।। ११ ।। पधमान तु पाथन सूतपु ोऽ यमषणः । य धनं समा य सोऽवम यत पा डवान् ।। १२ ।। सूतपु कण सदा अजुनसे लाग-डाँट रखता और अ य त अमषम भरकर य धनका सहारा ले पा डव का अपमान कया करता था ।। १२ ।। अ ययात् स ततो ोणं धनुवद चक षया । श ाभुजबलो ोगै तेषु सवषु पा डवः । अ व ानुरागा च व श ोऽभवदजुनः ।। १३ ।। तु ये व योगेषु लाघवे सौ वेषु च । सवषामेव श याणां बभूवा य धकोऽजुनः ।। १४ ।। पा डु न दन अजुन (सदा अ यासम लगे रहनेसे) धनुवदक ज ासा, श ा, बा बल और उ ोगक से उन सभी श य म े एवं आचाय ोणक समानता करनेयो य हो गये। उनका अ - व ाम बड़ा अनुराग था, इस लये वे तु य अ के योग, फुत और सफाईम भी सबसे बढ़-चढ़कर नकले ।। १३-१४ ।। ऐ म तमं ोण उपदे शे वम यत । एवं सवकुमाराणा म व ं यपादयत् ।। १५ ।। ो े े ो ी े े

आचाय ोण उपदे श हण करनेम अजुनको अनुपम तभाशाली मानते थे। इस कार आचाय सब कुमार को अ - व ाक श ा दे ते रहे ।। १५ ।। कम डलुं च सवषां ाय छ चरकारणात् । पु ाय च ददौ कु भम वल बनकारणात् ।। १६ ।। यावत् ते नोपग छ त तावद मै परां याम् । ोण आच पु ाय तत् कम ज णुरौहत ।। १७ ।। वे अ य सब श य को तो पानी लानेके लये कम डलु दे ते, जससे उ ह लौटनेम कुछ वल ब हो जाय; परंतु अपने पु अ थामाको बड़े मुँहका घड़ा दे ते, जससे उसके लौटनेम वल ब न हो (अतः अ थामा सबसे पहले पानी भरकर उनके पास लौट आता था)। जबतक सरे श य लौट नह आते, तबतक वे अपने पु अ थामाको अ संचालनक कोई उ म व ध बतलाते थे। अजुनने उनके इस कायको जान लया ।। १६-१७ ।। ततः स वा णा ेण पूर य वा कम डलुम् । सममाचायपु ेण गु म ये त फा गुनः ।। १८ ।। आचायपु ात् त मात् तु वशेषोपचयेऽपृथक् । न हीयत मेधावी पाथ ऽ य वदां वरः ।। १९ ।। अजुनः परमं य नमा त द् गु पूजने । अ े च परमं योगं यो ोण य चाभवत् ।। २० ।। अतः वे वा णा से तुरंत ही अपना कम डलु भरकर आचायपु के साथ ही गु के समीप आ जाते थे, इस लये आचायपु से कसी भी गुणक वृ म वे अलग या पीछे न रहे। यही कारण था क मेधावी अजुन अ थामासे कसी बातम कम न रहे। वे अ वे ा म सबसे े थे। अजुन अपने गु दे वक सेवा-पूजाके लये भी उ म य न करते थे। अ के अ यासम भी उनक अ छ लगन थी। इसी लये वे ोणाचायके बड़े य हो गये ।। १८—२० ।। तं ् वा न यमु ु म व ं त फा गुनम् । आय वचनं ोणो रहः सूदमभाषत ।। २१ ।। अ धकारेऽजुनाया ं न दे यं ते कदाचन । न चा येय मदं चा प म ा यं वजये वया ।। २२ ।। अजुनको धनुष-बाणके अ यासम नर तर लगा आ दे ख ोणाचायने रसोइयेको एका तम बुलाकर कहा—‘तुम अजुनको कभी अँधेरेम भोजन न परोसना और मेरी यह बात भी अजुनसे कभी न कहना’ ।। २१-२२ ।। ततः कदा चद् भु ाने ववौ वायुरजुने । तेन त द पः स द यमानो वलो पतः ।। २३ ।। तदन तर एक दन जब अजुन भोजन कर रहे थे, बड़े जोरसे हवा चलने लगी; उससे वहाँका जलता आ द पक बुझ गया ।। २३ ।। भुङ् एव तु कौ तेयो ना याद य वतते । े

ह त तेज वन त य अनु हणकारणात् ।। २४ ।। उस समय भी कु तीन दन अजुन भोजन करते ही रहे। उन तेज वी अजुनका हाथ अ यासवश अँधेरेम भी मुखसे अ य नह जाता था ।। २४ ।। तद यासकृतं म वा रा ाव प स पा डवः । यो यां च े महाबा धनुषा पा डु न दनः ।। २५ ।। उसे अ यासका ही चम कार मानकर महाबा पा डु न दन अजुन रातम भी धनु व ाका अ यास करने लगे ।। २५ ।। त य यातल नघ षं ोणः शु ाव भारत । उपे य चैनमु थाय प र व येदम वीत् ।। २६ ।। भारत! उनके धनुषक यंचाका टं कार ोणने सोते समय सुना। तब वे उठकर उनके पास गये और उ ह दयसे लगाकर बोले ।। २६ ।। ोण उवाच य त ये तथा कतु यथा ना यो धनुधरः । व समो भ वता लोके स यमेतद् वी म ते ।। २७ ।। ोणने कहा—अजुन! म ऐसा करनेका य न क ँ गा, जससे इस संसारम सरा कोई धनुधर तु हारे समान न हो। म तुमसे यह स ची बात कहता ँ ।। २७ ।। वैश पायन उवाच ततो ोणोऽजुनं भूयो हयेषु च गजेषु च । रथेषु भूमाव प च रण श ाम श यत् ।। २८ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! तदन तर ोणाचाय अजुनको पुनः घोड़ , हा थय , रथ तथा भू मपर रहकर यु करनेक श ा दे ने लगे ।। २८ ।। गदायु े ऽ सचयायां तोमर ासश षु । ोणः संक णयु े च श यामास कौरवान् ।। २९ ।। उ ह ने कौरव को गदायु , खड् ग चलाने तथा तोमर, ास और श य के योगक कला एवं एक ही साथ अनेक श के योग अथवा अकेले ही अनेक श ु से यु करनेक श ा द ।। २९ ।। त य तत् कौशलं ु वा धनुवद जघृ वः । राजानो राजपु ा समाज मुः सह शः ।। ३० ।। ोणाचायका वह अ कौशल सुनकर सह राजा और राजकुमार धनुवदक श ा लेनेके लये वहाँ एक त हो गये ।। ३० ।। ततो नषादराज य हर यधनुषः सुतः । एकल ो महाराज ोणम याजगाम ह ।। ३१ ।। महाराज! तदन तर नषादराज हर यधनुका पु एकल ोणके पास आया ।। ३१ ।। न स तं तज ाह नैषा द र त च तयन् । े े े

श यं धनु ष धम तेषामेवा ववे या ।। ३२ ।। परंतु उसे नषादपु समझकर धम आचायने धनु व ा वषयक श य नह बनाया। कौरव क ओर रखकर ही उ ह ने ऐसा कया ।। ३२ ।। स तु ोण य शरसा पादौ गृ परंतपः । अर यमनुस ा य कृ वा ोणं महीमयम् ।। ३३ ।। त म ाचायवृ च परमामा थत तदा । इ व े योगमात थे परं नयममा थतः ।। ३४ ।। श ु को संताप दे नेवाले एकल ने ोणाचायके चरण म म तक रखकर णाम कया और वनम लौटकर उनक म क मू त बनायी तथा उसीम आचायक परमो च भावना रखकर उसने धनु व ाका अ यास ार भ कया। वह बड़े नयमके साथ रहता था ।। ३३-३४ ।। परया योपेतो योगेन परमेण च । वमो ादानसंधाने लघु वं परमाप सः ।। ३५ ।। आचायम उ म ा रखकर उ म और भारी अ यासके बलसे उसने बाण के छोड़ने, लौटाने और संधान करनेम बड़ी अ छ फुत ा त कर ली ।। ३५ ।। अथ ोणा यनु ाताः कदा चत् कु पा डवाः । रथै व नययुः सव मृगयाम रमदन ।। ३६ ।। श ु का दमन करनेवाले जनमेजय! तदन तर एक दन सम त कौरव और पा डव आचाय ोणक अनुम तसे रथ पर बैठकर ( हसक पशु का) शकार खेलनेके लये नकले ।। ३६ ।। त ोपकरणं गृ नरः क द् य छया । राज नुजगामैकः ानमादाय पा डवान् ।। ३७ ।। इस कायके लये आव यक साम ी लेकर कोई मनु य वे छानुसार अकेला ही उन पा डव के पीछे -पीछे चला। उसने साथम एक कु ा भी ले रखा था ।। ३७ ।। तेषां वचरतां त त कम चक षया । ा चरन् स वने मूढो नैषाद त ज मवान् ।। ३८ ।। वे सब अपना-अपना काम पूरा करनेक इ छासे वनम इधर-उधर वचर रहे थे। उनका वह मूढ़ कु ा वनम घूमता-घामता नषादपु एकल के पास जा प ँचा ।। ३८ ।। स कृ णं मल द धा ं कृ णा जनजटाधरम् । नैषाद ा समाल य भषं त थौ तद तके ।। ३९ ।। एकल के शरीरका रंग काला था। उसके अंग म मैल जम गया था और उसने काला मृगचम एवं जटा धारण कर रखी थी। नषादपु को इस पम दे खकर वह कु ा भ -भ करके भूँकता आ उसके पास खड़ा हो गया ।। ३९ ।। तदा त याथ भषतः शुनः स त शरान् मुखे । लाघवं दशय े मुमोच युगपद् यथा ।। ४० ।। े







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यह दे ख भीलने अपने अ लाघवका प रचय दे ते ए उस भूँकनेवाले कु ेके मुखम मानो एक ही साथ सात बाण मारे ।। ४० ।। स तु ा शरपूणा यः पा डवानाजगाम ह । तं ् वा पा डवा वीराः परं व मयमागताः ।। ४१ ।। उसका मुँह बाण से भर गया और वह उसी अव थाम पा डव के पास आया। उसे दे खकर पा डव वीर बड़े व मयम पड़े ।। ४१ ।।

लाघवं श दवे ध वं ् वा तत् परमं तदा । े य तं ी डता ासन् शशंसु सवशः ।। ४२ ।। वह हाथक फुत और श दके अनुसार ल य बेधनेक उ म श दे खकर उस समय सब राजकुमार उस कु ेक ओर डालकर ल जत हो गये और सब कारसे बाण मारनेवालेक शंसा करने लगे ।। ४२ ।। तं ततोऽ वेषमाणा ते वने वन नवा सनम् । द शुः पा डवा राज य तम नशं शरान् ।। ४३ ।। राजन्! त प ात् पा डव ने उस वनवासी वीरक वनम खोज करते ए उसे नर तर बाण चलाते ए दे खा ।। ४३ ।। न चैनम यजानं ते तदा वकृतदशनम् । अथैनं प रप छु ः को भवान् क य वे युत ।। ४४ ।। े े े े

उस समय उसका प बदल गया था। पा डव उसे पहचान न सके; अतः पूछने लगे —‘तुम कौन हो, कसके पु हो?’ ।। ४४ ।।

एकल उवाच नषादा धपतेव रा हर यधनुषः सुतम् । ोण श यं च मां व धनुवदकृत मम् ।। ४५ ।। एकल ने कहा—वीरो! आपलोग मुझे नषादराज हर यधनुका पु तथा ोणाचायका श य जान। मने धनुवदम वशेष प र म कया है ।। ४५ ।। वैश पायन उवाच ते तमा ाय त वेन पुनराग य पा डवाः । यथावृ ं वने सव ोणायाच युर तम् ।। ४६ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! वे पा डवलोग उस नषादका यथाथ प रचय पाकर लौट आये और वनम जो अ त घटना घट थी, वह सब उ ह ने ोणाचायसे कह सुनायी ।। ४६ ।। कौ तेय वजुनो राज ेकल मनु मरन् । रहो ोणं समासा णया ददम वीत् ।। ४७ ।। जनमेजय! कु तीन दन अजुन बार-बार एकल का मरण करते ए एका तम ोणसे मलकर ेमपूवक य बोले ।। ४७ ।। अजुन उवाच तदाहं प रर यैकः ी तपूव मदं वचः । भवतो ो न मे श य व श ो भ व य त ।। ४८ ।। अजुनने कहा—आचाय! उस दन तो आपने मुझ अकेलेको दयसे लगाकर बड़ी स ताके साथ यह बात कही थी क मेरा कोई भी श य तुमसे बढ़कर नह होगा ।। ४८ ।। अथ क मा म श ो लोकाद प च वीयवान् । अ योऽ त भवतः श यो नषादा धपतेः सुतः ।। ४९ ।। फर आपका यह अ य श य नषादराजका पु अ - व ाम मुझसे बढ़कर कुशल और स पूण लोकसे भी अ धक परा मी कैसे आ? ।। ४९ ।। वैश पायन उवाच मुत मव तं ोण त य वा व न यम् । स सा चनमादाय नैषाद त ज मवान् ।। ५० ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! आचाय ोण उस नषादपु के वषयम दो घड़ीतक मानो कुछ सोचते- वचारते रहे; फर कुछ न य करके वे स साची अजुनको साथ ले उसके पास गये ।। ५० ।। ददश मल द धा ं ज टलं चीरवाससम् ।

एकल ं धनु या णम य तम नशं शरान् ।। ५१ ।। वहाँ प ँचकर उ ह ने एकल को दे खा, जो हाथम धनुष ले नर तर बाण क वषा कर रहा था। उसके शरीरपर मैल जम गया था। उसने सरपर जटा धारण कर रखी थी और व के थानपर चथड़े लपेट रखे थे ।। ५१ ।। एकल तु तं ् वा ोणमाया तम तकात् । अ भग योपसंगृ जगाम शरसा महीम् ।। ५२ ।। इधर एकल ने आचाय ोणको समीप आते दे ख आगे बढ़कर उनक अगवानी क और उनके दोन चरण पकड़कर पृ वीपर माथा टे क दया ।। ५२ ।। पूज य वा ततो ोणं व धवत् स नषादजः । नवे श यमा मानं त थौ ा लर तः ।। ५३ ।। फर उस नषादकुमारने अपनेको श य पसे उनके चरण म सम पत करके गु ोणक व धपूवक पूजा क और हाथ जोड़कर उनके सामने खड़ा हो गया ।। ५३ ।। ततो ोणोऽ वीद् राज ेकल मदं वचः । य द श योऽ स मे वीर वेतनं द यतां मम ।। ५४ ।। एकल तु त छ वा ीयमाणोऽ वी ददम् । राजन्! तब ोणाचायने एकल से यह बात कही—‘वीर! य द तुम मेरे श य हो तो मुझे गु द णा दो’। यह सुनकर एकल ब त स आ और इस कार बोला ।। ५४ ।। एकल उवाच क य छा म भगव ा ापयतु मां गु ः ।। ५५ ।। न ह क चददे यं मे गुरवे व म। एकल ने कहा—भगवन्! म आपको या ँ ? वयं गु दे व ही मुझे इसके लये आ ा द। वे ा म े आचाय! मेरे पास कोई ऐसी व तु नह , जो गु के लये अदे य हो ।। ५५ ।। वैश पायन उवाच तम वीत् वया ो द णो द यता म त ।। ५६ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तब ोणाचायने उससे कहा—‘तुम मुझे दा हने हाथका अँगठ ू ा दे दो’ ।। ५६ ।। एकल तु त छ वा वचो ोण य दा णम् । त ामा मनो र न् स ये च नयतः सदा ।। ५७ ।। तथैव वदन तथैवाद नमानसः । छ वा वचाय तं ादाद् ोणायाङ् गु मा मनः ।। ५८ ।। ोणाचायका यह दा ण वचन सुनकर सदा स यपर अटल रहनेवाले एकल ने अपनी त ाक र ा करते ए पहलेक ही भाँ त स मुख और उदार च रहकर बना कुछ ो







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सोच- वचार कये अपना दा हना अँगठ ू ा काटकर ोणाचायको दे दया ।। ५७-५८ ।।

(स स यसंधं नैषाद ् वा ीतोऽ वी ददम् । एवं कत म त वा एकल मभाषत ।।) ततः शरं तु नैषा दर ली भ कषत । न तथा च स शी ोऽभूद ् यथा पूव नरा धप ।। ५९ ।। ोणाचाय नषादन दन एकल को स य त दे खकर ब त स ए। उ ह ने संकेतसे उसे यह बता दया क तजनी और म यमाके संयोगसे बाण पकड़कर कस कार धनुषक डोरी ख चनी चा हये। तबसे वह नषादकुमार अपनी अँगु लय ारा ही बाण का संधान करने लगा। राजन्! उस अव थाम वह उतनी शी तासे बाण नह चला पाता था, जैसे पहले चलाया करता था ।। ५९ ।। ततोऽजुनः ीतमना बभूव वगत वरः । ोण स यवागासी ा योऽ भभ वताजुनम् ।। ६० ।। इस घटनासे अजुनके मनम बड़ी स ता ई। उनक भारी च ता र हो गयी। ोणाचायका भी वह कथन स य हो गया क अजुनको सरा कोई परा जत नह कर सकता ।। ६० ।। ोण य तु तदा श यौ गदायो यौ बभूवतुः । य धन भीम सदा संरधमानसौ ।। ६१ ।। ो

















उस समय ोणके दो श य गदायु म सुयो य नकले— य धन और भीमसेन। ये दोन सदा एक- सरेके त मनम ोध ( प ा)-से भरे रहते थे ।। ६१ ।। अ थामा रह येषु सव व य धकोऽभवत् । तथा त पु षान यान् सा कौ यमजावुभौ ।। ६२ ।। अ थामा धनुवदके रह य क जानकारीम सबसे बढ़-चढ़कर आ। नकुल और सहदे व दोन भाई तलवारक मूठ पकड़कर यु करनेम अ य त कुशल ए। वे इस कलाम अ य सब पु ष से बढ़-चढ़कर थे ।। ६२ ।। यु ध रो रथ े ः सव तु धनंजयः । थतः सागरा तायां रथयूथपयूथपः ।। ६३ ।। यु ध र रथपर बैठकर यु करनेम े थे। परंतु अजुन सब कारक यु -कला म सबसे बढ़कर थे। वे समु पय त सारी पृ वीम रथयूथप तय के भी यूथप तके पम स थे ।। ६३ ।। बु योगबलो साहैः सवा ेषु च न तः । अ े गुवनुरागे च व श ोऽभवदजुनः ।। ६४ ।। बु , मनक एका ता, बल और उ साहके कारण वे स पूण अ - व ा म वीण ए। अ के अ यास तथा गु के त अनुरागम भी अजुनका थान सबसे ऊँचा था ।। ६४ ।। तु ये व ोपदे शेषु सौ वेन च वीयवान् । एकः सवकुमाराणां बभूवा तरथोऽजुनः ।। ६५ ।। य प सबको समान पसे अ - व ाका उपदे श ा त होता था तो भी परा मी अजुन अपनी व श तभाके कारण अकेले ही सम त कुमार म अ तरथी ए ।। ६५ ।। ाणा धकं भीमसेनं कृत व ं धनंजयम् । धातरा ा रा मानो नामृ य त पर परम् ।। ६६ ।। धृतराक े पु बड़े रा मा थे। वे भीमसेनको बलम अ धक और अजुनको अ व ाम वीण दे खकर पर पर सहन नह कर पाते थे ।। ६६ ।। तां तु सवान् समानीय सव व ा श तान् । ोणः हरण ाने ज ासुः पु षषभः ।। ६७ ।। जब स पूण धनु व ा तथा अ -संचालनक कलाम वे सभी कुमार सु श त हो गये, तब नर े ोणने उन सबको एक करके उनके अ ानक परी ा लेनेका वचार कया ।। ६७ ।। कृ मं भासमारो य वृ ा े श प भः कृतम् । अ व ातं कुमाराणां ल यभूतमुपा दशत् ।। ६८ ।। उ ह ने कारीगर से एक नकली गीध बनवाकर वृ के अ भागपर रखवा दया। राजकुमार को इसका पता नह था। आचायने उसी गीधको ब धनेयो य ल य बताया ।। ६८ ।।



ोण उवाच शी ं भव तः सवऽ प धनूं यादाय सवशः । भासमेतं समु य त वं सं धतेषवः ।। ६९ ।। ोण बोले—तुम सब लोग इस गीधको ब धनेके लये शी ही धनुष लेकर उसपर बाण चढ़ाकर खड़े हो जाओ ।। ६९ ।। म ा यसमकालं तु शरोऽ य व नपा यताम् । एकैकशो नयो या म तथा कु त पु काः ।। ७० ।। फर मेरी आ ा मलनेके साथ ही इसका सर काट गराओ। पु ो! म एक-एकको बारी-बारीसे इस कायम नयु क ँ गा; तुमलोग मेरे बताये अनुसार काय करो ।। ७० ।। वैश पायन उवाच ततो यु ध रं पूवमुवाचा रसां वरः । संध व बाणं धष म ा या ते वमु च तम् ।। ७१ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर अं गरागो वाले ा ण म सव े आचाय ोणने सबसे पहले यु ध रसे कहा—‘ धष वीर! तुम धनुषपर बाण चढ़ाओ और मेरी आ ा मलते ही उसे छोड़ दो’ ।। ७१ ।। ततो यु ध रः पूव धनुगृ परंतपः । त थौ भासं समु य गु वा य चो दतः ।। ७२ ।। तब श ु को संताप दे नेवाले यु ध र गु क आ ासे े रत हो सबसे पहले धनुष लेकर गीधको ब धनेके लये ल य बनाकर खड़े हो गये ।। ७२ ।। ततो वततध वानं ोण तं कु न दनम् । स मुता वाचेद ं वचनं भरतषभ ।। ७३ ।। भरत े ! तब धनुष तानकर खड़े ए कु न दन यु ध रसे दो घड़ी बाद आचाय ोणने इस कार कहा— ।। ७३ ।। प यैनं तं मा थं भासं नरवरा मज । प यामी येवमाचाय युवाच यु ध रः ।। ७४ ।। ‘राजकुमार! वृ क शखापर बैठे ए इस गीधको दे खो।’ तब यु ध रने आचायको उ र दया—‘भगवन्! म दे ख रहा ँ’ ।। ७४ ।। स मुता दव पुन ण तं यभाषत । मानो दो घड़ी और बताकर ोणाचाय फर उनसे बोले ।। ७४ ।। ोण उवाच अथ वृ ममं मां वा ातॄन् वा प प य स ।। ७५ ।। ोणने कहा— या तुम इस वृ को, मुझको अथवा अपने भाइय को भी दे खते हो? ।। ७५ ।। तमुवाच स कौ तेयः प या येनं वन प तम् । े

भव तं च तथा ातॄन् भासं चे त पुनः पुनः ।। ७६ ।। यह सुनकर कु तीन दन यु ध र उनसे इस कार बोले—‘हाँ, म इस वृ को, आपको, अपने भाइय को तथा गीधको भी बारंबार दे ख रहा ँ’ ।। ७६ ।। तमुवाचापसप त ोणोऽ ीतमना इव । नैत छ यं वया वेदधु ् ं ल य म येव कु सयन् ।। ७७ ।। उनका उ र सुनकर ोणाचाय मन-ही-मन अ स -से हो गये और उ ह झड़कते ए बोले, ‘हट जाओ यहाँसे, तुम इस ल यको नह ब ध सकते’ ।। ७७ ।। ततो य धनाद तान् धातरा ान् महायशाः । तेनैव मयोगेन ज ासुः पयपृ छत ।। ७८ ।। तदन तर महायश वी आचायने उसी मसे य धन आ द धृतरापु को भी उनक परी ा लेनेके लये बुलाया और उन सबसे उपयु बात पूछ ।। ७८ ।। अ यां श यान् भीमाद न् रा ैवा यदे शजान् । तथा च सव तत् सव प याम इ त कु सताः ।। ७९ ।। उ ह ने भीम आ द अ य श य तथा सरे दे शके राजा से भी, जो वहाँ श ा पा रहे थे, वैसा ही कया। के उ रम सभीने (यु ध रक भाँ त ही) कहा—‘हम सब कुछ दे ख रहे ह।’ यह सुनकर आचायने उन सबको झड़ककर हटा दया ।। ७९ ।। इ त ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण ोण श यपरी ायामेक शद धकशततमोऽ यायः ।। १३१ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम आचाय ोणके ारा श य क परी ासे स ब ध रखनेवाला एक सौ इकतीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १३१ ।। (दा णा य अ धक पाठका १ ोक मलाकर क ु ल ८० ोक ह।)

ा शद धकशततमोऽ यायः अजुनके ारा ल यवेध, ोणका ाहसे छु टकारा और अजुनको शर नामक अ क ा त वैश पायन उवाच ततो धनंजयं ोणः मयमानोऽ यभाषत । वयेदान हत मेत ल यं वलो यताम् ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर ोणाचायने अजुनसे मुसकराते ए कहा—‘अब तु ह इस ल यका वेध करना है। इसे अ छ तरह दे ख लो’ ।। १ ।। म ा यसमकालं ते मो ोऽ भवे छरः । वत य कामुकं पु त ताव मुतकम् ।। २ ।। ‘मेरी आ ा मलनेके साथ ही तु ह इसपर बाण छोड़ना होगा। बेटा! धनुष तानकर खड़े हो जाओ और दो घड़ी मेरे आदे शक ती ा करो’ ।। २ ।। एवमु ः स साची म डलीकृतकामुकः । त थौ भासं समु य गु वा य चो दतः ।। ३ ।। उनके ऐसा कहनेपर अजुनने धनुषको इस कार ख चा क वह म डलाकार (गोल) तीत होने लगा। फर वे गु क आ ासे े रत हो गीधक ओर ल य करके खड़े हो गये ।। ३ ।।

मुता दव तं ोण तथैव समभाषत । प य येनं थतं भासं मं माम प चाजुन ।। ४ ।। मानो दो घड़ी बाद ोणाचायने उनसे भी उसी कार कया—‘अजुन! या तुम उस वृ पर बैठे ए गीधको, वृ को और मुझे भी दे खते हो?’ ।। ४ ।। प या येकं भास म त ोणं पाथ ऽ यभाषत । न तु वृ ं भव तं वा प यामी त च भारत ।। ५ ।। जनमेजय! यह सुनकर अजुनने ोणाचायसे कहा—‘म केवल गीधको दे खता ँ। वृ को अथवा आपको नह दे खता’ ।। ५ ।। ततः ीतमना ोणो मुता दव तं पुनः । यभाषत धषः पा डवानां महारथम् ।। ६ ।। इस उ रसे ोणका मन स हो गया। मानो दो घड़ी बाद धष ोणाचायने पा डवमहारथी अजुनसे फर पूछा— ।। ६ ।। भासं प य स य ेनं तथा ू ह पुनवचः । शरः प या म भास य न गा म त सोऽ वीत् ।। ७ ।। ‘व स! य द तुम इस गीधको दे खते हो तो फर बताओ, उसके अंग कैसे ह?’ अजुन बोले—‘म गीधका म तकभर दे ख रहा ँ, उसके स पूण शरीरको नह ’ ।। ७ ।। अजुनेनैवमु तु ोणो तनू हः । मु च वे य वीत् पाथ स मुमोचा वचारयन् ।। ८ ।। े









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अजुनके य कहनेपर ोणाचायके शरीरम (हषा तरेकसे) रोमांच हो आया और वे अजुनसे बोले, ‘चलाओ बाण’! अजुनने बना सोचे- वचारे बाण छोड़ दया ।। ८ ।। तत त य नग थ य ुरेण न शतेन च । शर उ कृ य तरसा पातयामास पा डवः ।। ९ ।। फर तो पा डु न दन अजुनने अपने चलाये ए तीखे ुर नामक बाणसे वृ पर बैठे ए उस गीधका म तक वेगपूवक काट गराया ।। ९ ।। त मन् कम ण सं स े पय वजत पा डवम् । मेने च पदं सं ये सानुब धं परा जतम् ।। १० ।। इस कायम सफलता ा त होनेपर आचायने अजुनको दयसे लगा लया और उ ह यह व ास हो गया क राजा पद यु म अजुन ारा अपने भाई-ब धु स हत अव य परा जत हो जायँगे ।। १० ।। क य चत् वथ काल य स श योऽ रसां वरः । जगाम ग ाम भतो म जतुं भरतषभ ।। ११ ।। भरत े ! तदन तर कसी समय आं गरसवं शय म उ म आचाय ोण अपने श य के साथ गंगाजीम नान करनेके लये गये ।। ११ ।। अवगाढमथो ोणं स लले स ललेचरः । ाहो ज ाह बलवा ङ् घा ते कालचो दतः ।। १२ ।। वहाँ जलम गोता लगाते समय कालसे े रत हो एक बलवान् जलज तु ाहने ोणाचायक पडली पकड़ ली ।। १२ ।। स समथ ऽ प मो ाय श यान् सवानचोदयत् । ाहं ह वा मो य वं मा म त वरय व ।। १३ ।। वे अपनेको छु ड़ानेम समथ होते ए भी मानो हड़बड़ाये ए अपने सभी श य से बोले —‘इस ाहको मारकर मुझे बचाओ’ ।। १३ ।। त ा यसमकालं तु बीभ सु न शतैः शरैः । अवायः प च भ ाहं म नम भ यताडयत् ।। १४ ।। उनके इस आदे शके साथ ही बीभ सु (अजुन)-ने पाँच अमोघ एवं तीखे बाण ारा पानीम डू बे ए उस ाहपर हार कया ।। १४ ।। इतरे वथ स मूढा त त पे दरे । तं तु ् वा योपेतं ोणोऽम यत पा डवम् ।। १५ ।। व श ं सव श ये यः ी तमां ाभवत् तदा । स पाथबाणैब धा ख डशः प रक पतः ।। १६ ।। ाहः प च वमापेदे जङ् घां य वा महा मनः । अथा वी महा मानं भार ाजो महारथम् ।। १७ ।। परंतु सरे राजकुमार ह के-ब के-से होकर अपने-अपने थानपर ही खड़े रह गये। अजुनको त काल कायम त पर दे ख ोणाचायने उ ह अपने सब श य से बढ़कर माना और उस समय वे उनपर ब त स ए। अजुनके बाण से ाहके टु कड़े-टु कड़े हो गये औ ो ी ो ो े ी

और वह महा मा ोणक पडली छोड़कर मर गया। तब ोणाचायने महारथी महा मा अजुनसे कहा— ।। १५—१७ ।। गृहाणेदं महाबाहो व श म त धरम् । अ ं शरो नाम स योग नवतनम् ।। १८ ।। ‘महाबाहो! यह शर नामक अ म तु ह योग और उपसंहारके साथ बता रहा ँ। यह सब अ से बढ़कर है तथा इसे धारण करना भी अ य त क ठन है। तुम इसे हण करो’ ।। १८ ।। न च ते मानुषे वेतत् यो ं कथंचन । जगद् व नदहेदेतद पतेज स पा ततम् ।। १९ ।। ‘मनु य पर तु ह इस अ का योग कसी भी दशाम नह करना चा हये। य द कसी अ प तेजवाले पु षपर इसे चलाया गया तो यह उसके साथ ही सम त संसारको भ म कर सकता है ।। १९ ।। असामा य मदं तात लोके व ं नग ते । तद् धारयेथाः यतः शृणु चेदं वचो मम ।। २० ।। ‘तात! यह अ तीन लोक म असाधारण बताया गया है। तुम मन और इ य को संयमम रखकर इस अ को धारण करो और मेरी यह बात सुनो ।। २० ।। बाधेतामानुषः श ुय द वां वीर क न । त धाय यु ीथा तद मदमाहवे ।। २१ ।। ‘वीर! य द कोई अमानव श ु तु ह यु म पीड़ा दे ने लगे तो तुम उसका वध करनेके लये इस अ का योग कर सकते हो’ ।। २१ ।। तथे त स त ु य बीभ सुः स कृता लः । ज ाह परमा ं तदाह चैनं पुनगु ः । भ वता व समो ना यः पुमाँ लोके धनुधरः ।। २२ ।। तब अजुनने ‘तथा तु’ कहकर वैसा ही करनेक त ा क और हाथ जोड़कर उस उ म अ को हण कया। उस समय गु ोणने अजुनसे पुनः यह बात कही—‘संसारम सरा कोई पु ष तु हारे समान धनुधर न होगा’ ।। २२ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण ोण ाहमो णे ा शद धकशततमोऽ यायः ।। १३२ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम ोणाचायका ाहसे छु टकारा नामक एक सौ ब ीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १३२ ।।



ंशद धकशततमोऽ यायः

राजकुमार का रंगभू मम अ

-कौशल दखाना

वैश पायन उवाच कृता ान् धातरा ां पा डु पु ां भारत । ् वा ोणोऽ वीद् राजन् धृतरा ं जने रम् ।। १ ।। कृप य सोमद य बा क य च धीमतः । गा े य य च सां न ये ास य व र य च ।। २ ।। वैश पायनजी कहते ह—भारत! जब ोणने दे खा क धृतराक े पु तथा पा डव अ - व ाक श ा समा त कर चुके, तब उ ह ने कृपाचाय, सोमद , बु मान् बा क, गंगान दन भी म, मह ष ास तथा व रजीके नकट राजा धृतरासे कहा— ।। १-२ ।। राजन् स ा त व ा ते कुमाराः कु स म । ते दशयेयुः वां श ां राज नुमते तव ।। ३ ।। ततोऽ वी महाराजः ेना तरा मना । ‘राजन्! आपके कुमार अ - व ाक श ा ा त कर चुके ह। कु े ! य द आपक अनुम त हो तो वे अपनी सीखी ई अ -संचालनक कलाका दशन कर’। यह सुनकर महाराज धृतरा अ य त स च से बोले ।। ३ ।। धृतरा उवाच भार ाज महत् कम कृतं ते जस म ।। ४ ।। धृतरा ने कहा— ज े भर ाजन दन! आपने (राजकुमार को अ क श ा दे कर) ब त बड़ा काय कया है ।। ४ ।। यदानुम यसे कालं य मन् दे शे यथा यथा । तथा तथा वधानाय वयमा ापय व माम् ।। ५ ।। आप कुमार क अ - श ाके दशनके लये जब जो समय ठ क समझ, जस थानपर जस- जस कारका ब ध आव यक मान, उस-उस तरहक तैयारी करनेके लये वयं ही मुझे आ ा द ।। ५ ।। पृहया य नवदात् पु षाणां सच ुषाम् । अ हेतोः परा ा तान् ये मे य त पु कान् ।। ६ ।। आज म ने हीन होनेके कारण ःखी होकर, जनके पास आँख ह, उन मनु य के सुख और सौभा यको पानेके लये तरस रहा ँ; य क वे अ -कौशलका दशन करनेके लये भाँ त-भाँ तके परा म करनेवाले मेरे पु को दे खगे ।। ६ ।। यद् गु राचाय वी त कु तत् तथा । न ही शं यं म ये भ वता धमव सल ।। ७ ।। (





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(आचायसे इतना कहकर राजा धृतरा व रसे बोले—) ‘धमव सल! व र! गु ोणाचाय जो काम जैसे कहते ह, उसी कार उसे करो। मेरी रायम इसके समान य काय सरा नह होगा’ ।। ७ ।। ततो राजानमाम य नगतो व रो ब हः । भार ाजो महा ा ो मापयामास मे दनीम् ।। ८ ।। तदन तर राजाक आ ा लेकर व रजी (आचाय ोणके साथ) बाहर नकले। महाबु मान् भर ाजन दन ोणने रंगम डपके लये एक भू म पसंद क और उसका माप करवाया ।। ८ ।। समामवृ ां नगु मामुद वणा वताम् । त यां भूमौ ब ल च े तथौ न पू जते ।। ९ ।। अवघु े समाजे च तदथ वदतां वरः । र भूमौ सु वपुलं शा ं यथा व ध ।। १० ।। े ागारं सु व हतं च ु ते त य श पनः । रा ः सवायुधोपेतं ीणां चैव नरषभ ।। ११ ।। म चां कारयामासु त जानपदा जनाः । वपुलानु योपेतान् श बका महाधनाः ।। १२ ।। वह भू म समतल थी। उसम वृ या झाड़-झंखाड़ नह थे। वह उ र दशाक ओर नीची थी। व ा म े ोणने वा तुपूजन दे खनेके लये ड डम-घोष कराके वीरसमुदायको आम त कया और उ म न से यु त थम उस भू मपर वा तुपूजन कया। त प ात् उनके श पय ने उस रंगभू मम वा तु-शा के अनुसार व धपूवक एक अ त वशाल े ागृहक * न व डाली तथा राजा और राजघरानेक य के बैठनेके लये वहाँ सब कारके अ -श से स प ब त सु दर भवन बनाया। जनपदके लोग ने अपने बैठनेके लये वहाँ ऊँचे और वशाल मंच बनवाये तथा ( य को लानेके लये) ब मू य श बकाएँ तैयार कराय ।। ९—१२ ।। त मं ततोऽह न ा ते राजा सस चव तदा । भी मं मुखतः कृ वा कृपं चाचायस मम् ।। १३ ।। (बा क ं सोमद ं च भू र वसमेव च । कु न यां स चवानादाय नगराद् ब हः ।।) मु ाजालप र तं वै यम णशो भतम् । शातकु भमयं द ं े ागारमुपागमत् ।। १४ ।। त प ात् जब न त दन आया, तब म य स हत राजा धृतरा भी मजी तथा आचाय वर कृपको आगे करके बा क, सोमद , भू र वा तथा अ या य कौरव और म य को साथ ले नगरसे बाहर उस द े ागृहम आये। उसम मो तय क झालर लगी थ , वै यम णय से उस भवनको सजाया गया था तथा उसक द वार म वणख ड मढ़े गये थे ।। १३-१४ ।। ी



गा धारी च महाभागा कु ती च जयतां वर । य रा ः सवा ताः स े याः सप र छदाः ।। १५ ।। हषादा म चान् मे ं दे व यो यथा । ा ण या ं च चातुव य पुराद् तम् ।। १६ ।। दशने सु सम यागात् कुमाराणां कृता ताम् । णेनैक थतां त दशने सु जगाम ह ।। १७ ।। वजयी वीर म े जनमेजय! परम सौभा यशा लनी गा धारी, कु ती तथा राजभवनक सभी याँ व ाभूषण से सज-धजकर दास-दा सय और आव यक साम य के साथ उस भवनम आय तथा जैसे दे वांगनाएँ मे पवतपर चढ़ती ह, उसी कार वे हषपूवक मंच पर चढ़ गय । ा ण, य आ द चार वण के लोग कुमार का अ कौशल दे खनेक इ छासे तुरंत नगरसे नकलकर आ गये। णभरम वहाँ वशाल जनसमुदाय एक हो गया ।। १५—१७ ।। वा दतै वा द ैजनकौतूहलेन च । महाणव इव ुधः समाजः सोऽभवत् तदा ।। १८ ।। अनेक कारके बाज के बजनेसे तथा मनु य के बढ़ते ए कौतूहलसे वह जनसमूह उस समय ु ध महासागरके समान जान पड़ता था ।। १८ ।। ततः शु ला बरधरः शु लय ोपवीतवान् । शु लकेशः सत म ुः शु लमा यानुलेपनः ।। १९ ।। रंगम यं तदाऽऽचायः सपु ः ववेश ह । नभो जलधरैह नं सा ारक इवांशुमान् ।। २० ।। तदन तर ेत व और ेत य ोपवीत धारण कये आचाय ोणने अपने पु अ थामाके साथ रंगभू मम वेश कया; मानो मेघर हत आकाशम च माने मंगलके साथ पदापण कया हो। आचायके सर और दाढ़ -मूँछके बाल सफेद हो गये थे। वे ेत पु प क माला और ेत च दनसे सुशो भत हो रहे थे ।। १९-२० ।। स यथासमयं च े ब ल बलवतां वरः । ा णां तु सुम ान् कारयामास म लम् ।। २१ ।। बलवान म े ोणने यथासमय दे वपूजा क और े म वे ा ा ण से मंगलपाठ करवाया ।। २१ ।। (सुवणम णर ना न व ा ण व वधा न च । ददौ द णां राजा ोण य च कृप य च ।।) सुखपु याहघोष य पु य य समन तरम् । व वशु व वधं गृ श ोपकरणं नराः ।। २२ ।। उस समय राजा धृतराने सुवण, म ण, र न तथा नाना कारके व आचाय ोण और कृपको द णा पम दये। फर सुखमय पु याहवाचन तथा दान-होम आ द पु यकम के अन तर नाना कारक श -साम ी लेकर ब त-से मनु य ने उस रंगम डपम वेश कया ।। २२ ।। ो

ततो ब ाङ् गु ल ाणा ब क ा महारथाः । ब तूणाः सधनुषो व वशुभरतषभाः ।। २३ ।। उसके बाद भरतवं शय म े वे वीर राजकुमार बड़े-बड़े रथ के साथ द ताने पहने, कमर कसे, पीठपर तूणीर बाँधे और धनुष लये ए उस रंगम डपके भीतर आये ।। २३ ।। अनु ये ं तु ते त यु ध रपुरोगमाः । (रणम ये थतं ोणम भवा नरषभाः । पूजां च ु यथा यायं ोण य च कृप य च ।। नर े यु ध र आ द उन राजकुमार ने जेठे-छोटे के मसे थत हो उस रंगभू मके म यभागम बैठे ए आचाय ोणको णाम करके ोण और कृप दोन आचाय क यथो चत पूजा क । आशी भ यु ा भः सव सं मानसाः । अ भवा पुनः श ान् ब लपु पैः सम वतान् ।। र च दनस म ैः वयमाच त कौरवाः । र च दन द धा र मा यानुधा रणः ।। सव र पताका सव र ा तलोचनाः । ोणेन समनु ाता गृ श ं परंतपाः ।। धनूं ष पूव संगृ त तका चनभू षताः । स या न व वधाकारैः शरैः संधाय कौरवाः ।। याघोषं तलघोषं च कृ वा भूता यपूजयन् ।) च ु र ं महावीयाः कुमाराः परमा तम् ।। २४ ।। फर उनसे आशीवाद पाकर उन सबका मन स हो गया। त प ात् पूजाके पु प से आ छा दत अ -श को णाम करके कौरव ने र च दन और फूल ारा पुनः वयं उनका पूजन कया। वे सब-के-सब लाल च दनसे चचत तथा लाल रंगक माला से वभू षत थे। सबके रथ पर लाल रंगक पताकाएँ थ । सभीके ने के कोने लाल रंगके थे। तदन तर तपाये ए सुवणके आभूषण से वभू षत एवं श ु को संताप दे नेवाले कौरव राजकुमार ने आचाय ोणक आ ा पाकर पहले अपने अ एवं धनुष लेकर डोरी चढ़ायी और उसपर भाँ त-भाँ तक आकृ तके बाण का संधान करके यंचाका टं कार करते और ताल ठ कते ए सम त ा णय का आदर कया। त प ात् वे महापरा मी राजकुमार वहाँ परम अ त अ -कौशल कट करने लगे ।। २४ ।। के च छरा ेपभया छरां यवनना मरे । मनुजा धृ मपरे वी ा च ु ः सु व मताः ।। २५ ।। कतने ही मनु य बाण लग जानेके डरसे अपना म तक झुका दे ते थे। सरे लोग अ य त व मत होकर बना कसी भयके सब कुछ दे खते थे ।। २५ ।। ते म ल या ण ब भ बाणैनामाङ् कशो भतैः । व वधैलाघवो सृ ै तो वा ज भ तम् ।। २६ ।। े



















वे राजकुमार घोड़ पर सवार हो अपने नामके अ र से सुशो भत और बड़ी फुत के साथ छोड़े ए नाना कारके बाण ारा शी तापूवक ल यवेध करने लगे ।। २६ ।। तत् कुमारबलं त गृहीतशरकामुकम् । ग धवनगराकारं े य ते व मताभवन् ।। २७ ।। धनुष-बाण लये ए राजकुमार के उस समुदायको ग धवनगरके समान अ त दे ख वहाँ सम त दशक आ यच कत हो गये ।। २७ ।। सहसा चु ु शु ा ये नराः शतसह शः । व मयो फु लनयनाः साधु सा व त भारत ।। २८ ।। जनमेजय! सैकड़ और हजार क सं याम एक-एक जगह बैठे ए लोग आ यच कत ने से दे खते ए सहसा ‘साधु-साधु (वाह-वाह)’ कहकर कोलाहल मचा दे ते थे ।। २८ ।। कृ वा धनु ष ते मागान् रथचयासु चासकृत् । गजपृ ेऽ पृ े च नयु े च महाबलः ।। २९ ।। उन महाबली राजकुमार ने पहले धनुष-बाणके पतरे दखाये। तदन तर रथ-संचालनके व वध माग (शी ले जाना, लौटा लाना, दाय, बाय और म डलाकार चलाना आ द)-का अवलोकन कराया। फर कु ती लड़ने तथा हाथी और घोड़ेक पीठपर बैठकर यु करनेक चातुरीका प रचय दया ।। २९ ।। गृहीतखड् गचमाण ततो भूयः हा रणः । स मागान् यथो ां े ः सवासु भू मषु ।। ३० ।। इसके बाद वे ढाल और तलवार लेकर एक- सरेपर हार करते ए खड् ग चलानेके शा ो माग (ऊपर-नीचे और अगल-बगलम घुमानेक कला)-का दशन करने लगे। उ ह ने रथ, हाथी, घोड़े और भू म—इन सभी भू मय पर यह यु -कौशल दखाया ।। ३० ।। लाघवं सौ वं शोभां थर वं ढमु ताम् । द शु त सवषां योगं खड् गचमणोः ।। ३१ ।। दशक ने उन सबके ढाल-तलवारके योग को दे खा। उस कलाम उनक फुत , चतुरता, शोभा, थरता और मु क ढ़ताका अवलोकन कया ।। ३१ ।। अथ तौ न यसं ौ सुयोधनवृकोदरौ । अवतीण गदाह तावेकशृ ा ववाचलौ ।। ३२ ।। तदन तर सदा एक- सरेको जीतनेका उ साह रखनेवाले य धन और भीमसेन हाथम गदा लये रंगभू मम उतरे। उस समय वे एक-एक शखरवाले दो पवत क भाँ त शोभा पा रहे थे ।। ३२ ।। ब क ौ महाबा पौ षे पयव थतौ । बृंह तौ वा सताहेतोः समदा वव कु रौ ।। ३३ ।। वे दोन महाबा कमर कसकर पु षाथ दखानेके लये आमने-सामने डटकर खड़े थे और गजना कर रहे थे, मानो दो मतवाले गजराज कसी ह थनीके लये एक- सरेसे ेऔ े

भड़ना चाहते और च घाड़ते ह ।। ३३ ।। तौ द णस ा न म डला न महाबलौ । चेरतुम डलगतौ समदा वव कु रौ ।। ३४ ।। वे दोन महाबली यो ा अपनी-अपनी गदाको दाय-बाय म डलाकार घुमाते ए दो मदो म हा थय क भाँ त म डलके भीतर वचरने लगे ।। ३४ ।। व रो धृतरा ाय गा धायाः पा डवार णः । यवेदयेतां तत् सव कुमाराणां वचे तम् ।। ३५ ।। व र धृतराको और पा डव जननी क ु ती गा धारीको उन राजकुमार क सारी चे ाएँ बताती जाती थ ।। ३५ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव य दशने य ंशद धकशततमोऽ यायः ।। १३३ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम अ -कौशलदशन वषयक एक सौ ततीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १३३ ।। (दा णा य अ धक पाठक े ७ ोक मलाकर कुल ४२ ोक ह)

* जो उ सव या नाटक आ दको सु वधापूवक दे खनेके उ े यसे बनाया गया हो, उसे े ागृह या े ाभवन कहते ह।

चतु

ंशद धकशततमोऽ यायः

भीमसेन, य धन तथा अजुनके ारा अ दशन

-कौशलका

वैश पायन उवाच कु राजे ह र थे भीमे च ब लनां वरे । प पातकृत नेहः स धेवाभव जनः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! जब कु राज य धन और बलवान म े भीमसेन रंगभू मम उतरकर गदायु कर रहे थे, उस समय दशक जनता उनके त प पातपूण नेह करनेके कारण मानो दो दल म बँट गयी ।। १ ।। ही वीर कु राजे त ही भीम इ त ज पताम् । पु षाणां सु वपुलाः णादाः सहसो थताः ।। २ ।। कुछ कहते, ‘अहो! वीर कु राज कैसा अ त परा म दखा रहे ह।’ सरे बोल उठते, ‘वाह! भीमसेन तो गजबका हाथ मारते ह।’ इस तरहक बात करनेवाले लोग क भारी आवाज वहाँ सहसा सब ओर गूँजने लग ।। २ ।। ततः ुधाणव नभं रंगमालो य बु मान् । भार ाजः यं पु म थामानम वीत् ।। ३ ।। फर तो सारी रंगभू मम ु ध महासागरके समान हलचल मच गयी। यह दे ख बु मान् ोणाचायने अपने य पु अ थामासे कहा ।। ३ ।। ोण उवाच वारयैतौ महावीय कृतयो यावुभाव प । मा भूद ् र कोपोऽयं भीम य धनो वः ।। ४ ।। ोण बोले—व स! ये दोन महापरा मी वीर अ - व ाम अ य त अ य त ह। तुम इन दोन को यु से रोको, जससे भीमसेन और य धनको लेकर रंगभू मम सब ओर ोध न फैल जाय ।। ४ ।। वैश पायन उवाच (तत उ थाय वेगेन अ थामा यवारयत् । गुरोरा ा भीम इ त गा धारे गु शासनम् । अलं यो यकृतं वेगमलं साहस म युत ।।) तत तावु तगदौ गु पु ेण वा रतौ । युगा ता नलसं ुधौ महावेला ववाणवौ ।। ५ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर अ थामाने बड़े वेगसे उठकर भीमसेन और य धनको रोकते ए कहा—‘भीम! तु हारे गु क आ ा है, गा धारीन दन! े











ी ो



आचायका आदे श है, तुम दोन का यु बंद होना चा हये। तुम दोन ही यो य हो, तु हारा एक- सरेके त वेगपूवक आ मण अवांछनीय है। तुम दोन का यह ःसाहस अनु चत है। अतः इसे बंद करो।’ इस कार कहकर लयकालीन वायुसे व ु ध उ ाल तरंग वाले दो समु क भाँ त गदा उठाये ए य धन और भीमसेनको गु पु अ थामाने यु से रोक दया ।। ५ ।। ततो र ा णगतो ोणो वचनम वीत् । नवाय वा द गणं महामेघ नभ वनम् ।। ६ ।। त प ात् ोणाचायने महान् मेघ के समान कोलाहल करनेवाले बाज को बंद कराकर रंगभू मम उप थत हो यह बात कही— ।। ६ ।। यो मे पु ात् यतरः सवश वशारदः । ऐ र ानुजसमः स पाथ यता म त ।। ७ ।। ‘दशकगण! जो मुझे पु से भी अ धक य है, जसने स पूण श म नपुणता ा त क है तथा जो भगवान् नारायणके समान परा मी है, उस इ कुमार कु तीपु अजुनका कौशल आपलोग दे ख’ ।। ७ ।। आचायवचनेनाथ कृत व ययनो युवा । ब गोधा ल ाणः पूणतूणः सकामुकः ।। ८ ।। का चनं कवचं ब त् य यत फा गुनः । साकः से ायुधत डत् ससं य इव तोयदः ।। ९ ।। तदन तर आचायके कहनेसे व तवाचन कराकर त ण वीर अजुन गोहके चमड़ेके बने ए हाथके द ताने पहने, बाण से भरा तरकस लये धनुषस हत रंगभू मम दखायी दये। वे याम शरीरपर सोनेका कवच धारण कये ऐसे सुशो भत हो रहे थे, मानो सूय, इ धनुष, व ुत् और सं याकालसे यु मेघ शोभा पाता हो ।। ८-९ ।। ततः सव य र य समु प लकोऽभवत् । ावा त च वा ा न सशङ् खा न सम ततः ।। १० ।। फर तो समूचे रंगम डपम हष लास छा गया। सब ओर भाँ त-भाँ तके बाजे और शंख बजने लगे ।। १० ।। एष कु तीसुतः ीमानेष म यमपा डवः । एष पु ो महे य कु णामेष र ता ।। ११ ।। एषोऽ व षां े एष धमभृतां वरः । एष शीलवतां चा प शील ान न धः परः ।। १२ ।। इ येवं तुमुला वाचः शृ व याः े के रताः । कु याः वसंयु ै र ैः ल मुरोऽभवत् ।। १३ ।। ‘ये कु तीके तेज वी पु ह। ये ही पा डु के मझले बेटे ह। ये दे वराज इ क संतान ह। ये ही कु वंशके र क ह। अ - व ाके व ान म ये सबसे उ म ह। ये धमा मा और शीलवान म े ह। शील और ानक तो ये सव म न ध ह।’ उस समय दशक के मुखसे तुमुल व नके साथ नकली ई ये बात सुनकर कु तीके तन से ध और ने से नेहके ँ े े ँ े ी े ी ी

आँसू बहने लगे। उन ध म त आँसु से कु तीदे वीका व ः थल भीग गया ।। ११— १३ ।। तेन श दे न महता पूण ु तरथा वीत् । धृतरा ो नर े ो व रं मानसः ।। १४ ।। वह महान् कोलाहल धृतराक े कान म भी गूँज उठा। तब नर े धृतरा स च होकर व रसे पूछने लगे— ।। १४ ।। ः ुधाणव नभः कमेष सुमहा वनः । सहसैवो थतो र े भ द व नभ तलम् ।। १५ ।। ‘ व र! व ु ध महासागरके समान यह कैसा महान् कोलाहल हो रहा है? यह श द मानो आकाशको वद ण करता आ रंगभू मम सहसा हो उठा है’ ।। १५ ।।

व र उवाच एष पाथ महाराज फा गुनः पा डु न दनः । अवतीणः सकवच त ैष सुमहा वनः ।। १६ ।। व रने कहा—महाराज! ये पा डु न दन अजुन कवच बाँधकर रंगभू मम उतरे ह। इसी कारण यह भारी आवाज हो रही है ।। १६ ।। धृतरा उवाच ध योऽ यनुगृहीतोऽ म र तोऽ म महामते । पृथार णसमु तै भः पा डवव भः ।। १७ ।। धृतरा बोले—महामते! कु ती पी अर णसे कट ए इन तीन पा डव पी अ नय से म ध य हो गया। इन तीन के ारा म सवथा अनुगह ृ ीत और सुर त ँ ।। १७ ।। वैश पायन उवाच त मन् मु दते र े कथं चत् युप थते । दशयामास बीभ सुराचायाया लाघवम् ।। १८ ।। आ नेयेनासृजद् व वा णेनासृजत् पयः । वाय ेनासृजद् वायुं पाज येनासृजद् घनान् ।। १९ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! इस कार आन दा तरेकसे मुख रत आ वह रंगम डप जब कसी तरह कुछ शा त आ, तब अजुनने आचायको अपनी अ संचालनक फुत दखानी आर भ क । उ ह ने पहले आ नेया से आग पैदा क , फर वा णा से जल उ प करके उसे बुझा दया। वाय ा से आँधी चला द और पज या से बादल पैदा कर दये ।। १८-१९ ।। भौमेन ा वशद् भूम पावतेनासृजद ् गरीन् । अ तधानेन चा ेण पुनर त हतोऽभवत् ।। २० ।। उ ह ने भौमा से पृ वी और पावता से पवत को उ प कर दया; फर अ तधाना के ारा वे वयं अ य हो गये ।। २० ।।

णात् ांशुः णाद् वः णा च रथधूगतः । णेन रथम य थः णेनावतर महीम् ।। २१ ।। वे णभरम ब त लंबे हो जाते और णभरम ही ब त छोटे बन जाते थे। एक णम रथके धुरेपर खड़े होते तो सरे ण रथके बीचम दखायी दे ते थे। फर पलक मारते-मारते पृ वीपर उतरकर अ -कौशल दखाने लगते थे ।। २१ ।। सुकुमारं च सू मं च गु ं चा प गु यः । सौ वेना भसं तः सोऽ व यद् व वधैः शरैः ।। २२ ।। अपने गु के य श य अजुनने बड़ी फुत और खूबसूरतीके साथ सुकुमार, सू म और भारी नशानेको भी बना हलाये-डु लाये नाना कारके बाण ारा ब ध दया ।। २२ ।। मत वराह य लोह य मुखे समम् । प च बाणानसंयु ान् स मुमोचैकबाणवत् ।। २३ ।। रंगभू मम लोहेका बना आ सूअर इस कार रखा गया था क वह सब ओर च कर लगा रहा था। उस घूमते ए सूअरके मुखम अजुनने एक ही साथ एक बाणक भाँ त पाँच बाण मारे। वे पाँच बाण एक- सरेसे सटे ए नह थे ।। २३ ।। ग े वषाणकोषे च चले र ववल ब न । नचखान महावीयः सायकानेक वश तम् ।। २४ ।। एक जगह गायका स ग एक र सीम लटकाया गया था, जो हल रहा था। महापरा मी अजुनने उस स गके छे दम लगातार इ क स बाण गड़ा दये ।। २४ ।। इ येवमा द सुमहत् खड् गे धनु ष चानघ । गदायां श कुशलो म डला न दशयत् ।। २५ ।। न पाप जनमेजय! इस कार उ ह ने बड़ा भारी अ -कौशल दखाया। खड् ग, धनुष और गदा आ दके भी श -कुशल अजुनने अनेक पतरे और हाथ दखलाये ।। २५ ।। ततः समा तभू य े त मन् कम ण भारत । म द भूते समाजे च वा द य च नः वने ।। २६ ।। ारदे शात् समु तो माहा यबलसूचकः । व न पेषस शः शु ुवे भुज नः वनः ।। २७ ।। भारत! इस कार अ -कौशल दखानेका अ धकांश काय जब समा त हो चला, मनु य का कोलाहल और बाजे-गाजेका श द जब शा त होने लगा, उसी समय दरवाजेक ओरसे कसीका अपनी भुजा पर ताल ठ कनेका भारी श द सुनायी पड़ा; मानो व आपसम टकरा रहे ह । वह श द कसी वीरके माहा य तथा बलका सूचक था ।। २६-२७ ।। द य ते क नु गरयः क वद् भू म वद यते । क वदापूयते ोम जलधाराघनैघनैः ।। २८ ।। उसे सुनकर लोग कहने लगे, ‘कह पहाड़ तो नह फट गये! पृ वी तो नह वद ण हो गयी! अथवा जलक धारासे प रपूण घनीभूत बादल क ग भीर गजनासे आकाशम डल ो ँ ै ’

तो नह गूँज रहा है?’ ।। २८ ।। र यैवं म तरभूत् णेन वसुधा धप । ारं चा भमुखाः सव बभूवुः े का तदा ।। २९ ।। राजन्! उस रंगम डपम बैठे ए लोग के मनम णभरम उपयु वचार आने लगे। उस समय सभी दशक दरवाजेक ओर मुँह घुमाकर दे खने लगे ।। २९ ।। प च भ ातृ भः पाथ णः प रवृतो बभौ । प चतारेण संयु ः सा व ेणेव च माः ।। ३० ।। इधर कु तीकुमार पाँच भाइय से घरे ए आचाय ोण पाँच तार वाले ह त न से संयु च माक भाँ त शोभा पा रहे थे ।। ३० ।। अ था ना च स हतं ातॄणां शतमू जतम् । य धनम म नमु थतं पयवारयत् ।। ३१ ।। स तै तदा ातृ भ तायुधैगदा पा णः समव थतैवृतः । बभौ यथा दानवसं ये पुरा पुर दरो दे वगणैः समावृतः ।। ३२ ।। श ुह ता बलवान् य धन भी उठकर खड़ा हो गया। अ थामास हत उसके सौ भाइय ने आकर उसे चार ओरसे घेर लया। हाथ म आयुध उठाये खड़े ए अपने भाइय से घरा आ गदाधारी य धन पूवकालम दानवसंहारके समय दे वता से घरे दे वराज इ के समान शोभा पाने लगा ।। ३१-३२ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण अ दशने चतु ंशद धकशततमोऽ यायः ।। १३४ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम अ दशन वषयक एक सौ च तीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १३४ ।। (दा णा य अ धक पाठक े १ ोक मलाकर कुल ३३ ोक ह)

प च शद धकशततमोऽ यायः कणका रंगभू मम वेश तथा रा या भषेक वैश पायन उवाच द ेऽवकाशे पु षै व मयो फु ललोचनैः । ववेश र ं व तीण कणः परपुरंजयः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! आ यसे आँख फाड़-फाड़कर दे खते ए ारपाल ने जब भीतर जानेका माग दे दया, तब श ु क राजधानीपर वजय पानेवाले कणने उस वशाल रंगम डपम वेश कया ।। १ ।। सहजं कवचं ब त् कु डलो ो तताननः । सधनुब न ंशः पादचारीव पवतः ।। २ ।। उसने शरीरके साथ ही उ प ए द कवचको धारण कर रखा था। दोन कान के कु डल उसके मुखको उ ा सत कर रहे थे। हाथम धनुष लये और कमरम तलवार बाँधे वह वीर पैर से चलनेवाले पवतक भाँ त सुशो भत हो रहा था ।। २ ।। क यागभः पृथुयशाः पृथायाः पृथुलोचनः । ती णांशोभा कर यांशः कण ऽ रगणसूदनः ।। ३ ।। कु तीने क याव थाम ही उसे अपने गभम धारण कया था। उसका यश सव फैला आ था। उसके दोन ने बड़े-बड़े थे। श ुसमुदायका संहार करनेवाला कण च ड करण वाले भगवान् भा करका अंश था ।। ३ ।। सहषभगजे ाणां बलवीयपरा मः । द तका त ु तगुणैः सूय वलनोपमः ।। ४ ।। उसम सहके समान बल, साँड़के समान वीय तथा गजराजके समान परा म था, वह द तसे सूय, का तसे च मा तथा तेज पी गुणसे अ नके समान जान पड़ता था ।। ४ ।। ांशुः कनकतालाभः सहसंहननो युवा । असं येयगुणः ीमान् भा कर या मस भवः ।। ५ ।। उसका शरीर ब त ऊँचा था, अतः वह सुवणमय ताड़के वृ -सा तीत होता था। उसके अंग क गठन सह-जैसी जान पड़ती थी। उसम असं य गुण थे। उसक त ण अव था थी। वह सा ात् भगवान् सूयसे उ प आ था, अतः (उ ह के समान) द शोभासे स प था ।। ५ ।। स नरी य महाबा ः सवतो र म डलम् । णामं ोणकृपयोना या त मवाकरोत् ।। ६ ।। उस समय महाबा कणने रंगम डपम सब ओर डालकर ोणाचाय और कृपाचायको इस कार णाम कया, मानो उनके त उसके मनम अ धक आदरका भाव न हो ।। ६ ।। ो

स समाजजनः सव न लः थरलोचनः । कोऽय म यागत ोभः कौतूहलपरोऽभवत् ।। ७ ।। रंगभू मम जतने लोग थे, वे सब न ल होकर एकटक से दे खने लगे। यह कौन है, यह जाननेके लये उनका च चंचल हो उठा। वे सब-के-सब उ क ठत हो गये ।। ७ ।। सोऽ वी मेघग भीर वरेण वदतां वरः । ाता ातरम ातं सा व ः पाकशास नम् ।। ८ ।। इतनेम ही व ा म े सूयपु कण, जो पा डव का भाई लगता था, अपने अ ात ाता इ कुमार अजुनसे मेघके समान ग भीर वाणीम बोला— ।। ८ ।। पाथ यत् ते कृतं कम वशेषवदहं ततः । क र ये प यतां नॄणां माऽऽ मना व मयं गमः ।। ९ ।। ‘कु तीन दन! तुमने इन दशक के सम जो काय कया है, म उससे भी अ धक अ त कम कर दखाऊँगा। अतः तुम अपने परा मपर गव न करो’ ।। ९ ।। असमा ते तत त य वचने वदतां वर । य ो त इवो थौ ं वै सवतो जनः ।। १० ।। व ा म े जनमेजय! कणक बात अभी पूरी ही न हो पायी थी क सब ओरके मनु य तुरंत उठकर खड़े हो गये, मानो उ ह कसी य से एक साथ उठा दया गया हो ।। १० ।। ी त मनुज ा य धनमुपा वशत् । ी ोध बीभ सुं णेना वा ववेश ह ।। ११ ।। नर े ! उस समय य धनके मनम बड़ी स ता ई और अजुनके च म णभरम ल जा और ोधका संचार हो आया ।। ११ ।। ततो ोणा यनु ातः कणः यरणः सदा । यत् कृतं त पाथन त चकार महाबलः ।। १२ ।। तब सदा यु से ही ेम करनेवाले महाबली कणने ोणाचायक आ ा लेकर, अजुनने वहाँ जो-जो अ -कौशल कट कया था, वह सब कर दखाया ।। १२ ।। अथ य धन त ातृ भः सह भारत । कण प र व य मुदा ततो वचनम वीत् ।। १३ ।। भारत! तदन तर भाइय स हत य धनने वहाँ बड़ी स ताके साथ कणको दयसे लगाकर कहा ।। १३ ।। य धन उवाच वागतं ते महाबाहो द ा ा तोऽ स मानद । अहं च कु रा यं च यथे मुपभु यताम् ।। १४ ।। य धन बोला—महाबाहो! तु हारा वागत है। मानद! तुम यहाँ पधारे, यह हमारे लये बड़े सौभा यक बात है। म तथा कौरव का यह रा य सब तु हारे ह। तुम इनका यथे उपभोग करो ।। १४ ।।

कण उवाच कृतं सवमहं म ये सख वं च वया वृणे । यु ं च पाथन कतु म छा यहं भो ।। १५ ।। कणने कहा— भो! आपने जो कुछ कहा है, वह सब पूरा कर दया, ऐसा मेरा व ास है। म आपके साथ म ता चाहता ँ और अजुनके साथ मेरी -यु करनेक इ छा है ।। १५ ।। य धन उवाच भुङ् व भोगान् मया साध ब धूनां पयकृद् भव । दां कु सवषां मू न पादमरदम ।। १६ ।। य धन बोला—श ुदमन! तुम मेरे साथ उ म भोग भोगो। अपने भाई-ब धु का य करो और सम त श ु के म तकपर पैर रखो ।। १६ ।। वैश पायन उवाच ततः त मवा मानं म वा पाथ ऽ यभाषत । कण ातृसमूह य म येऽचल मव थतम् ।। १७ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! उस समय अजुनने अपने-आपको कण ारा तर कृत-सा मानकर य धन आ द सौ भाइय के बीचम अ वचल-से खड़े ए कणको स बो धत करके कहा ।। १७ ।। अजुन उवाच अनातोपसृ ानामनातोपज पनाम् । ये लोका तान् हतः कण मया वं तप यसे ।। १८ ।। अजुन बोले—कण! बना बुलाये आनेवाल और बना बुलाये बोलनेवाल को जो ( न दनीय) लोक ा त होते ह, मेरे ारा मारे जानेपर तुम उ ह लोक म जाओगे ।। १८ ।। कण उवाच र ोऽयं सवसामा यः कम तव फा गुन । वीय े ा राजानो बलं धम ऽनुवतते ।। १९ ।। कणने कहा—अजुन! यह रंगम डप तो सबके लये साधारण है, इसम तु हारा या लगा है? जो बल और परा मम े होते ह, वे ही राजा कहलानेयो य ह। धम भी बलका ही अनुसरण करता है ।। १९ ।। क ेपै बलायासैः शरैः कथय भारत । गुरोः सम ं यावत् ते हरा य शरः शरैः ।। २० ।। भारत! आ ेप करना तो बल का यास है। इससे या लाभ है? साहस हो तो बाण से बातचीत करो। म आज तु हारे गु के सामने ही बाण ारा तु हारा सर धड़से अलग कये दे ता ँ ।। २० ।। ै

वैश पायन उवाच ततो ोणा यनु ातः पाथः परपुरंजयः । ातृ भ वरयाऽऽ ो रणायोपजगाम तम् ।। २१ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! तदन तर श ु के नगरको जीतनेवाले कु तीन दन अजुन आचाय ोणक आ ा ले तुरंत अपने भाइय से गले मलकर यु के लये कणक ओर बढ़े ।। २१ ।। ततो य धनेना प स ा ा समरो तः । प र व ः थतः कणः गृ सशरं धनुः ।। २२ ।। तब भाइय स हत य धनने भी धनुष-बाण ले यु के लये तैयार खड़े ए कणका आ लगन कया ।। २२ ।। ततः स व ु य नतैः से ायुधपुरोगमैः । आवृतं गगनं मेघैबलाकापङ् हा स भः ।। २३ ।। उस समय बकपं य के ाजसे हा यक छटा बखेरनेवाले बादल ने बजलीक चमक, गड़गड़ाहट और इ धनुषके साथ समूचे आकाशको ढक लया ।। २३ ।। ततः नेहा रहयं ् वा र ावलो कनम् । भा करोऽ यनय ाशं समीपोपगतान् घनान् ।। २४ ।। त प ात् अजुनके त नेह होनेके कारण इ को रंगभू मका अवलोकन करते दे ख भगवान् सूयने भी अपने समीपके बादल को छ - भ कर दया ।। २४ ।। मेघ छायोपगूढ तु ततोऽ यत फा गुनः । सूयातपप र तः कण ऽ प सम यत ।। २५ ।। तब अजुन मेघक छायाम छपे ए दखायी दे ने लगे और कण भी सूयक भासे का शत द खने लगा ।। २५ ।। धातरा ा यतः कण त मन् दे शो व थताः । भार ाजः कृपो भी मो यतः पाथ ततोऽभवन् ।। २६ ।। धृतराक े पु जस ओर कण था, उसी ओर खड़े ए तथा ोणाचाय, कृपाचाय और भी म जधर अजुन थे, उस ओर खड़े थे ।। २६ ।। धा रंगः समभवत् ीणां ै धमजायत । कु तभोजसुता मोहं व ाताथा जगाम ह ।। २७ ।। रंगभू मके पु ष और य म भी कण और अजुनको लेकर दो दल हो गये। कु तभोजकुमारी कु तीदे वी वा त वक रह यको जानती थ ( क ये दोन मेरे ही पु ह), अतः च ताके कारण उ ह मू छा आ गयी ।। २७ ।। तां तथा मोहमाप ां व रः सवधम वत् । कु तीमा ासयामास े या भ दनोदकैः ।। २८ ।। उ ह इस कार मू छाम पड़ी ई दे ख सब धम के ाता व रजीने दा सय ारा च दन म त जल छड़कवाकर होशम लानेक चे ा क ।। २८ ।। ौ



ततः यागत ाणा तावुभौ प रदं शतौ । पु ौ ् वा सुस ा ता ना वप त कचन ।। २९ ।। इससे कु तीको होश तो आ गया; कतु अपने दोन पु को यु के लये कवच धारण कये दे ख वे ब त घबरा गय । उ ह रोकनेका कोई उपाय उनके यानम नह आया ।। २९ ।। तावु तमहाचापौ कृपः शार तोऽ वीत् । यु समाचारे कुशलः सवधम वत् ।। ३० ।। उन दोन को वशाल धनुष उठाये दे ख -यु क नी त-री तम कुशल और सम त धम के ाता शर ान्के पु कृपाचायने इस कार कहा— ।। ३० ।। अयं पृथाया तनयः कनीयान् पा डु न दनः । कौरवो भवता साध यु ं क र य त ।। ३१ ।। वम येवं महाबाहो मातरं पतरं कुलम् । कथय व नरे ाणां येषां वं कुलभूषणम् ।। ३२ ।। ‘कण! ये कु तीदे वीके सबसे छोटे पु पा डु -न दन अजुन कु वंशके र न ह, जो तु हारे साथ इ -यु करगे। महाबाहो! इसी कार तुम भी अपने माता- पता तथा कुलका प रचय दो और उन नरेशके नाम बताओ, जनका वंश तुमसे वभू षत आ है ।। ३१-३२ ।। ततो व द वा पाथ वां तयो य त वा न वा । वृथाकुलसमाचारैन यु य ते नृपा मजाः ।। ३३ ।। ‘इसे जान लेनेके बाद यह न य होगा क अजुन तु हारे साथ यु करगे या नह ; य क राजकुमार नीच कुल और हीन आचार- वचारवाले लोग के साथ यु नह करते’ ।। ३३ ।। वैश पायन उवाच एवमु य कण य ीडावनतमाननम् । बभौ वषा बु व ल ं पमाग लतं यथा ।। ३४ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! कृपाचायके य कहनेपर कणका मुख ल जासे नीचेको झुक गया। जैसे वषाके पानीसे भ गकर कमल मुरझा जाता है, उसी कार कणका मुँह लान हो गया ।। ३४ ।। य धन उवाच आचाय वधा योनी रा ां शा व न ये । स कुलीन शूर य सेनां कष त ।। ३५ ।। तब य धनने कहा—आचाय! शा ीय स ा तके अनुसार राजा क तीन यो नयाँ ह—उ म कुलम उ प पु ष, शूरवीर तथा सेनाप त (अतः शूरवीर होनेके कारण कण भी राजा ही ह) ।। ३५ ।। य यं फा गुनो यु े नारा ा योद्धु म छ त । े ो े े े

त मादे षोऽ वषये मया रा येऽ भ ष यते ।। ३६ ।। य द ये अजुन राजासे भ पु षके साथ रणभू मम लड़ना नह चाहते तो म कणको इसी समय अंगदे शके रा यपर अ भ ष करता ँ ।। ३६ ।। वैश पायन उवाच (ततो राजानमाम य गा े यं च पतामहम् । अ भषेक य स भारान् समानीय जा त भः ।।) तत त मन् णे कणः सलाजकुसुमैघटै ः । का चनैः का चने पीठ े म व महारथः ।। ३७ ।। अ भ ष ोऽ रा ये स या यु ो महाबलः । (समौ लहारक े यूरैः सह ताभरणा दै ः । राज ल ै तथा यै भू षतो भूषणैः शुभैः ।।) स छ वाल जनो जयश दो रेण च ।। ३८ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! तदन तर य धनने राजा धृतरा और गंगान दन भी मक आ ा ले ा ण ारा अ भषेकका सामान मँगवाया। फर उसी समय महाबली एवं महारथी कणको सोनेके सहासनपर बठाकर म वे ा ा ण ने लावा और फूल से यु सुवणमय कलश के जलसे अंगदे शके रा यपर अ भ ष कया। तब मुकुट, हार, केयूर, कंगन, अंगद, राजो चत च तथा अ य शुभ आभूषण से वभू षत हो वह छ , चँवर तथा जय-जयकारके साथ रा य ीसे सुशो भत होने लगा ।। ३७-३८ ।।

(सभा यमानो व ै द वा मतं वसु ।) उवाच कौरवं राजन् वचनं स वृष तदा । अ य रा य दान य स शं क ददा न ते ।। ३९ ।। ू ह राजशा ल कता म तथा नृप । अ य तं स य म छामी याह तं स सुयोधनः ।। ४० ।। फर ा ण से समा त हो राजा कणने उ ह असीम धन दान कया। राजन्! उस समय उसने कु े य धनसे कहा—‘नृप त शरोमणे! आपने मुझे जो यह रा य दान कया है, इसके अनु प म आपको या भट ँ ? बताइये, आप जैसा कहगे वैसा ही क ँ गा।’ यह सुनकर य धनने कहा—‘अंगराज! म तु हारे साथ ऐसी म ता चाहता ँ, जसका कभी अ त न हो’ ।। ३९-४० ।। एवमु ततः कण तथे त युवाच तम् । हषा चोभौ समा य परां मुदमवापतुः ।। ४१ ।। उसके य कहनेपर कणने ‘तथा तु’ कहकर उसके साथ मै ी कर ली। फर वे दोन बड़े हषसे एक- सरेको दयसे लगाकर आन दम न हो गये ।। ४१ ।। इत



ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण कणा भषेके प च शद धकशततमोऽ यायः ।। १३५ ।।









इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम कणके रा या भषेकसे स ब ध रखनेवाला एक सौ पतीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १३५ ।। (दा णा य अ धक पाठक े २ ोक मलाकर कुल ४३ ोक ह)

षट् शद धकशततमोऽ यायः भीमसेनके ारा कणका तर कार और य धन ारा उसका स मान वैश पायन उवाच ततः तो रपटः स वेदः सवेपथुः । ववेशा धरथो र ं य ाणो य व ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर लाठ ही जसका सहारा था, वह अ धरथ कणको पुकारता आ-सा काँपता-काँपता रंगभू मम आया। उसक चादर खसककर गर पड़ी थी और वह पसीनेसे लथपथ हो रहा था ।। १ ।। तमालो य धनु य वा पतृगौरवय तः । कण ऽ भषेका शराः शरसा समव दत ।। २ ।। पताके गौरवसे बँधा आ कण अ धरथको दे खते ही धनुष यागकर सहासनसे नीचे उतर आया। उसका म तक अ भषेकके जलसे भीगा आ था। उसी दशाम उसने अ धरथके चरण म सर रखकर णाम कया ।। २ ।। ततः पादावव छा पटा तेन सस मः । पु े त प रपूणाथम वीद् रथसार थः ।। ३ ।। अ धरथने अपने दोन पैर को कपड़ेके छोरसे छपा लया और ‘बेटा! बेटा!’ पुकारते ए अपनेको कृताथ समझा ।। ३ ।। प र व य च त याथ मूधानं नेह व लवः । अंगरा या भषेका म ु भः स षचे पुनः ।। ४ ।। उसने नेहसे व ल होकर कणको दयसे लगा लया और अंगदे शके रा यपर अ भषेक होनेसे भीगे ए उसके म तकको आँसु से पुनः अ भ ष कर दया ।। ४ ।। तं ् वा सूतपु ोऽय म त सं च य पा डवः । भीमसेन तदा वा यम वीत् हस व ।। ५ ।। अ धरथको दे खकर पा डु कुमार भीमसेन यह समझ गये क कण सूतपु है; फर तो वे हँसते ए-से बोले— ।। ५ ।। न वमह स पाथन सूतपु रणे वधम् । कुल य स श तूण तोदो गृ तां वया ।। ६ ।। ‘अरे ओ सूतपु ! तू तो अजुनके हाथसे मरने-यो य भी नह है। तुझे तो शी ही चाबुक हाथम लेना चा हये; य क यही तेरे कुलके अनु प है ।। ६ ।। अ रा यं च नाह वमुपभो ुं नराधम । ा ताशसमीप थं पुरोडाश मवा वरे ।। ७ ।। ‘

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‘नराधम! जैसे य म अ नके समीप रखे ए पुरोडाशको कु ा नह पा सकता, उसी कार तू भी अंगदे शका रा य भोगनेयो य नह है’ ।। ७ ।। एवमु ततः कणः क च फु रताधरः । गगन थं व नः य दवाकरमुदै त ।। ८ ।। भीमसेनके य कहनेपर ोधके मारे कणका होठ कुछ काँपने लगा और उसने लंबी साँस लेकर आकाशम डलम थत भगवान् सूयक ओर दे खा ।। ८ ।। ततो य धनः कोपा पपात महाबलः । ातृपवनात् त मा मदो कट इव पः ।। ९ ।। इसी समय महाबली य धन कु पत हो मदो म गजराजक भाँ त ातृसमूह पी कमलवनसे उछलकर बाहर नकल आया ।। ९ ।। सोऽ वीद् भीमकमाणं भीमसेनमव थतम् । वृकोदर न यु ं ते वचनं व ु मी शम् ।। १० ।। उसने वहाँ खड़े ए भयंकर कम करनेवाले भीमसेनसे कहा—‘वृकोदर! तु ह ऐसी बात नह कहनी चा हये’ ।। १० ।। याणां बलं ये ं यो ं ब धुना । शूराणां च नद नां च वदाः भवाः कल ।। ११ ।। ‘ य म बलक ही धानता है। बलवान् होनेपर ब धु (हीन य)-से भी यु करना चा हये (अथवा मुझ यका म होनेके कारण कणके साथ तु ह यु करना चा हये)। शूरवीर और न दय क उ प के वा त वक कारणको जान लेना ब त क ठन है ।। ११ ।। स लला थतो व यन ा तं चराचरम् । दधीच या थतो व ं कृतं दानवसूदनम् ।। १२ ।। ‘ जसने स पूण चराचर जगत्को ा त कर रखा है, वह तेज वी अ न जलसे कट आ है। दानव का संहार करनेवाला व मह ष दधी चक ह य से नमत आ है ।। १२ ।। आ नेयः कृ कापु ो रौ ो गा े य इ य प । ूयते भगवान् दे वः सवगु मयो गुहः ।। १३ ।। ‘सुना जाता है, सवगु व प भगवान् क ददे व अ न, कृ का, तथा गंगा—इन सबके पु ह ।। १३ ।। ये य ये जाता ा णा ते च ते ुताः । व ा म भृतयः ा ता वम यम् ।। १४ ।। ‘ कतने ही ा ण य से उ प ए ह, उनका नाम तुमने भी सुना ही होगा तथा व ाम आद य भी अ य ा ण वको ा त हो चुके ह ।। १४ ।। आचायः कलशा जातो ोणः श भृतां वरः । गौतम या ववाये च शर त बा च गौतमः ।। १५ ।। ‘











‘सम त श धा रय म े हमारे आचाय ोणका ज म कलशसे आ है। मह ष गौतमके कुलम कृपाचायक उ प भी सरकंड के समूहसे ई है ।। १५ ।। भवतां च यथा ज म तद याग मतं मया । सकु डलं सकवचं सवल णल तम् । कथमा द यस शं मृगी ा ं ज न य त ।। १६ ।। ‘तुम सब भाइय का ज म जस कार आ है, वह भी मुझे अ छ तरह मालूम है। सम त शुभ ल ण से सुशो भत तथा कु डल और कवचके साथ उ प आ सूयके समान तेज वी कण कसी सूत जा तक ीका पु कैसे हो सकता है। या कोई ह रणी अपने पेटसे बाघ पैदा कर सकती है? ।। १६ ।। (कथमा द यसंकाशं सूतोऽमुं जन य य त । एवं गुणैयु ं शूरं स म तशोभनम् ।।) पृ थवीरा यमह ऽयं ना रा यं नरे रः । अनेन बा वीयण मया चा ानुव तना ।। १७ ।। ‘इस सूय-स श तेज वी वीरको, जो इस कार यो चत गुण से स प तथा समरांगणको सुशो भत करनेवाला है, कोई सूत जा तका मनु य कैसे उ प कर सकता है? राजा कण अपने इस बा बलसे तथा मुझ-जैसे आ ापालक म क सहायतासे अंगदे शका ही नह , समूची पृ वीका रा य पानेका अ धकारी है ।। १७ ।। य य वा मनुज येदं न ा तं म चे तम् । रथमा प यां स वनामयतु कामुकम् ।। १८ ।। ‘ जस मनु यसे मेरा यह बताव नह सहा जाता हो, वह रथपर चढ़कर पैर से अपने धनुषको नवावे—हमारे साथ यु के लये तैयार हो जाय’ ।। १८ ।। ततः सव य र य हाहाकारो महानभूत् । साधुवादानुस ब ः सूय ा तमुपागमत् ।। १९ ।। यह सुनकर समूचे रंगम डपम य धनको मलने-वाले साधुवादके साथ ही (यु क स भावनासे) महान् हाहाकार मच गया। इतनेम ही सूयदे व अ ताचलको चले गये ।। १९ ।। ततो य धनः कणमाल या करे नृपः । द पका नकृतालोक त माद् र ाद् व नययौ ।। २० ।। तब य धन कणके हाथक अगुँ लयाँ पकड़कर मशालक रोशनी करा उस रंगभू मसे बाहर नकल गया ।। २० ।। पा डवा सह ोणाः सकृपा वशा पते । भी मेण स हताः सव ययुः वं वं नवेशनम् ।। २१ ।। राजन्! सम त पा डव भी ोण, कृपाचाय और भी मजीके साथ अपने-अपने नवास थानको चल दये ।। २१ ।। अजुने त जनः क त् क त् कण त भारत । क द् य धने येवं ुव तः थता तदा ।। २२ ।। े

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भारत! उस समय दशक मसे कोई अजुनक , कोई कणक और कोई य धनक शंसा करते ए चले गये ।। २२ ।। कु या य भ ाय द ल णसू चतम् । पु म े रं नेहा छ ा ी तरजायत ।। २३ ।। द ल ण से ल त अपने पु अंगराज कणको पहचानकर कु तीके मनम बड़ी स ता ई; कतु वह सर पर कट न ई ।। २३ ।। य धन या प तदा कणमासा पा थव । भयमजुनसंजातं म तरधीयत ।। २४ ।। जनमेजय! उस समय कणको म के पम पाकर य धनका भी अजुनसे होनेवाला भय शी र हो गया ।। २४ ।। स चा प वीरः कृतश न मः परेण सा ना यवदत् सुयोधनम् । यु ध र या यभवत् तदा म तन कणतु योऽ त धनुधरः तौ ।। २५ ।। वीरवर कणने श के अ यासम बड़ा प र म कया था, वह भी य धनके साथ परम नेह और सा वनापूण बात करने लगा। उस समय यु ध रको भी यह व ास हो गया क इस पृ वीपर कणके समान धनुधर कोई नह है ।। २५ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण अ दशने षट् शद धकशततमोऽ यायः ।। १३६ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम अ -कौशलदशन वषयक एक सौ छ ीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १३६ ।। (दा णा य अ धक पाठका १ ोक मलाकर क ु ल २६ ोक ह)

स त शद धकशततमोऽ यायः ोणका श य ारा पदपर आ मण करवाना, अजुनका पदको बंद बनाकर लाना और ोण ारा पदको आधा रा य दे कर मु कर दे ना वैश पायन उवाच पा डवान् धातरा ां कृता ान् समी य सः । गुवथ द णाकाले ा तेऽम यत वै गु ः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! पा डव तथा धृतराक े पु को अ - व ाम नपुण दे ख ोणाचायने गु -द णा लेनेका समय आया जान मन-ही-मन कुछ न य कया ।। १ ।। ततः श यात् समानीय आचाय ऽथमचोदयत् । ोणः सवानशेषेण द णाथ महीपते ।। २ ।। जनमेजय! तदन तर आचायने अपने श य को बुलाकर उन सबसे गु द णाके लये इस कार कहा— ।। २ ।। प चालराजं पदं गृही वा रणमूध न । पयानयत भ ं वः सा यात् परमद णा ।। ३ ।। ‘ श यो! पंचालराज पदको यु म कैद करके मेरे पास ले आओ। तु हारा क याण हो। यही मेरे लये सव म गु द णा होगी’ ।। ३ ।। तथे यु वा तु ते सव रथै तूण हा रणः । आचायधनदानाथ ोणेन स हता ययुः ।। ४ ।। तब ‘ब त अ छा’ कहकर शी तापूवक हार करनेवाले वे सब राजकुमार (यु के लये उ त हो) रथ म बैठकर गु द णा चुकानेके लये आचाय ोणके साथ ही वहाँसे थत ए ।। ४ ।। ततोऽ भज मुः प चालान् न न त ते नरषभाः । ममृ त य नगरं पद य महौजसः ।। ५ ।। य धन कण युयु सु महाबलः । ःशासनो वकण जलसंधः सुलोचनः ।। ६ ।। एते चा ये च बहवः कुमारा ब व माः । अहं पूवमहं पूव म येवं यषभाः ।। ७ ।। तदन तर य धन, कण, महाबली युयु सु, ःशासन, वकण, जलसंध तथा सुलोचन— ये और सरे भी ब त-से महापरा मी नर े य शरोम ण राजकुमार ‘पहले म यु क ँ गा, पहले म यु क ँ गा’ इस कार कहते ए पंचालदे शम जा प ँचे और वहाँके ो

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नवा सय को मारते-पीटते ए महाबली राजा पदक राजधानीको भी र दने लगे ।। ५— ७ ।। ततो वररथा ढाः कुमाराः सा द भः सह । व य नगरं सव राजमागमुपाययुः ।। ८ ।। उ म रथ पर बैठे ए वे सभी राजकुमार घुड़सवार के साथ नगरम घुसकर वहाँके राजपथपर चलने लगे ।। ८ ।। त मन् काले तु पा चालः ु वा ् वा महद् बलम् । ातृ भः स हतो राजं वरया नययौ गृहात् ।। ९ ।। जनमेजय! उस समय पंचालराज पद कौरव का आ मण सुनकर और उनक वशाल सेनाको अपनी आँख दे खकर बड़ी उतावलीके साथ भाइय स हत राजभवनसे बाहर नकले ।। ९ ।। तत तु कृतसंनाहा य सेनसहोदराः । शरवषा ण मु च तः णे ः सव एव ते ।। १० ।। महाराज य सेन ( पद) और उनके सब भाइय ने कवच धारण कये। फर वे सभी लोग बाण क बौछार करते ए जोर-जोरसे गजना करने लगे ।। १० ।। ततो रथेन शु ेण समासा तु कौरवान् । य सेनः शरान् घोरान् ववष यु ध जयः ।। ११ ।। राजा पदको यु म जीतना ब त क ठन था। वे चमक ले रथपर सवार हो कौरव के सामने जा प ँचे और भयानक बाण क वषा करने लगे ।। ११ ।। वैश पायन उवाच पूवमेव तु स म य पाथ ोणमथा वीत् । दप े कात् कुमाराणामाचाय जस मम् ।। १२ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! कौरव तथा अ य राजकुमार को अपने बल और परा मका बड़ा घमंड था; इस लये अजुनने पहले ही अ छ तरह सलाह करके व वर ोणाचायसे कहा— ।। १२ ।। एषां परा म या ते वयं कुयाम साहसम् । एतैरश यः पा चालो हीतुं रणमूध न ।। १३ ।। ‘गु दे व! इनके परा म दखानेके प ात् हमलोग यु करगे। हमारा व ास है, ये लोग यु म पंचालराजको बंद नह बना सकते’ ।। १३ ।। एवमु वा तु कौ तेयो ातृ भः स हतोऽनघः । अध ोशे तु नगराद त द् ब हरेव सः ।। १४ ।। य कहकर पापर हत कु तीन दन अजुन अपने भाइय के साथ नगरसे बाहर ही आधे कोसक रीपर ठहर गये थे ।। १४ ।। पदः कौरवान् ् वा ाधावत सम ततः । शरजालेन महता मोहयन् कौरव चमूम् ।। १५ ।। े ै



तमु तं रथेनैकमाशुका रणमाहवे । अनेक मव सं ासा मे नरे त कौरवाः ।। १६ ।। राजा पदने कौरव को दे खकर उनपर सब ओरसे धावा बोल दया और बाण का बड़ा भारी जाल-सा बछाकर कौरव-सेनाको मू छत कर दया। यु म फुत दखानेवाले राजा पद रथपर बैठकर य प अकेले ही बाण-वषा कर रहे थे, तो भी अ य त भयके कारण कौरव उ ह अनेक-सा मानने लगे ।। १५-१६ ।। पद य शरा घोरा वचे ः सवतो दशम् । ततः शङ् खा भेय मृद ा सह शः ।। १७ ।। ावा त महाराज पा चालानां नवेशने । सहनाद संज े पा चालानां महा मनाम् ।। १८ ।। धनु यातलश द सं पृ य गगनं महान् । पदके भयंकर बाण सब दशा म वचरने लगे। महाराज! उनक वजय होती दे ख पांचाल के घर म शंख, भेरी और मृदंग आ द सह बाजे एक साथ बज उठे । महान् आ मबलसे स प पांचाल-सै नक का सहनाद बड़े जोर से होने लगा। साथ ही उनके धनुष क यंचा का महान् टं कार आकाशम फैलकर गूँजने लगा ।। १७-१८ ।। य धनो वकण सुबा दघलोचनः ।। १९ ।। ःशासन सं ु ः शरवषरवा करन् । सोऽ त व ो महे वासः पाषतो यु ध जयः ।। २० ।। धमत् ता यनीका न त णादे व भारत । य धनं वकण च कण चा प महाबलम् ।। २१ ।। नानानृपसुतान् वीरान् सै या न व वधा न च । अलातच वत् सव चरन् बाणैरतपयत् ।। २२ ।। उस समय य धन, वकण, सुबा , द घलोचन और ःशासन बड़े ोधम भरकर बाण क वषा करने लगे। भारत! यु म परा त न होनेवाले महान् धनुधर पदने अ य त घायल होकर त काल ही उन सबक सेना को अ य त पी ड़त कर दया। वे अलातच क भाँ त सब ओर घूमकर य धन, वकण, महाबली कण, अनेक वीर राजकुमार तथा उनक व वध सेना को बाण से तृ त करने लगे ।। १९—२२ ।। ( ःशासनं च दश भ वकण वशक ै ः शरैः । शकु न वशकै ती णैदश भममभे द भः ।। कण य धनौ चोभौ शरैः सवा सं धषु । अ ा वश त भः सवः पृथक् पृथग र दमः ।। सुबा ं प च भ वद् वा तथा यान् व वधैः शरैः । व ाध सहसा भूयो ननाद बलव रम् ।। वन कोपात् पा चालः सवश भृतां वरः । धनूं ष रथय ं च हयां वजान प । े

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चकत सवपा चालाः णे ः सहसङ् घवत् ।।) तत तु नागराः सव मुसलैय भ तदा । अ यवष त कौर ान् वषमाणा घना इव ।। २३ ।। उ ह ने ःशासनको दस, वकणको बीस तथा शकु नको अ य त तीखे तीस ममभेद बाण मारकर घायल कर दया। त प ात् श ुदमन पदने कण और य धनके स पूण अंग क सं धय म पृथक्-पृथक् अाई स बाण मारे। सुबा को पाँच बाण से घायल करके अ य यो ा को भी अनेक कारके सायक ारा सहसा ब ध डाला और तब बड़े जोरसे सहनाद कया। इस कार ोधपूवक गजना करके स पूण श धा रय म े पंचालराज पदने श ु के धनुष, रथ, घोड़े तथा रंग- बरंगी वजा को भी काट दया। त प ात् सारे पांचाल सै नक सह-समूहके समान गजना करने लगे। फर तो उस नगरके सभी नवासी कौरव पर टू ट पड़े और बरसनेवाले बादल क भाँ त उनपर मूसल एवं डंड क वषा करने लगे ।। २३ ।। सबालवृ ा ते पौराः कौरवान यायु तदा । ु वा सुतुमुलं यु ं कौरवानेव भारत ।। २४ ।। व त म नद त म ोश तः पा डवान् त । (पा चालशर भ ा ो भयमासा वै वृषः । कण रथादव लु य पलायनपरोऽभवत् ।।) पा डवा तु वनं ु वा आतानां लोमहषणम् ।। २५ ।। अ भवा ततो ोणं रथाना तदा । यु ध रं नवायाशु मा यु य वे त पा डवम् ।। २६ ।। उस समय बालकसे लेकर बूढ़ेतक सभी पुरवासी कौरव का सामना कर रहे थे। जनमेजय! गु तचर के मुखसे यह समाचार सुनकर क वहाँ तुमुल यु हो रहा है, कौरव वहाँ नह के बराबर हो गये ह, पंचालराज पदके बाण से कणके स पूण अंग त- व त हो गये, वह भयभीत हो रथसे कूदकर भाग चला है तथा कौरव-सै नक चीखते- च लाते और कराहते ए हम पा डव क ओर भागते आ रहे ह; पा डवलोग पी ड़त सै नक का रोमांचकारी आतनाद कानम पड़ते ही आचाय ोणको णाम करके रथ पर जा बैठे और शी वहाँसे चल दये। अजुनने पा डु न दन यु ध रको यह कहकर रोक दया क ‘आप यु न क जये’ ।। २४—२६ ।। मा े यौ च र ौ तु फा गुन तदाकरोत् । सेना गो भीमसेनः सदाभूद ् गदया सह ।। २७ ।। उस समय अजुनने मा कुमार नकुल और सहदे वको अपने रथके प हय का र क बनाया, भीमसेन सदा गदा हाथम लेकर सेनाके आगे-आगे चलते थे ।। २७ ।। तदा श ु वनं ु वा ातृ भः स हतोऽनघः । अया जवेन कौ तेयो रथेनानादयन् दशः ।। २८ ।। तब श ु का सहनाद सुनकर भाइय स हत न पाप अजुन रथक घरघराहटसे स पूण दशा को त व नत करते ए बड़े वेगसे आगे बढ़े ।। २८ ।। े

पा चालानां ततः सेनामु ताणव नः वनाम् । भीमसेनो महाबा द डपा ण रवा तकः ।। २९ ।। ववेश महासेनां मकरः सागरं यथा । वयम य वद् भीमो नागानीकं गदाधरः ।। ३० ।। पांचाल क सेना उ ाल तरंग वाले व ु ध महासागरक भाँ त गजना कर रही थी। महाबा भीमसेन द डपा ण यमराजक भाँ त उस वशाल सेनाम घुस गये, ठ क उसी तरह जैसे समु म मगर वेश करता है। गदाधारी भीम वयं हा थय क सेनापर टू ट पड़े ।। २९-३० ।। स यु कुशलः पाथ बा वीयण चातुलः । अहनत् कु रानीकं गदया काल पधृत् ।। ३१ ।। कु तीकुमार भीम यु म कुशल तो थे ही, बा बलम भी उनक समानता करनेवाला कोई नह था। उ ह ने काल प धारणकर गदाक मारसे उस गजसेनाका संहार आर भ कया ।। ३१ ।। ते गजा ग रसंकाशाः र तो धरं ब । भीमसेन य गदया भ म तक प डकाः ।। ३२ ।। पत त रदा भूमौ व घाता दवाचलाः । गजान ान् रथां ैव पातयामास पा डवः ।। ३३ ।। पदात रथां ैव यवधीदजुना जः । गोपाल इव द डेन यथा पशुगणान् वने ।। ३४ ।। चालयन् रथनागां संचचाल वृकोदरः । भीमसेनक गदासे म तक फट जानेके कारण वे पवत के समान वशालकाय गजराज लो के झरने बहाते ए वक े आघातसे (पंख कटे ए) पहाड़ क भाँ त पृ वीपर गर पड़ते थे। अजुनके बड़े भाई पा डु न दन भीमने हा थय , घोड़ एवं रथ को धराशायी कर दया। पैदल तथा र थय का संहार कर डाला। जैसे वाला वनम डंडेसे पशु को हाँकता है, उसी कार भीमसेन र थय और हा थय को खदे ड़ते ए उनका पीछा करने लगे ।। ३२ —३४ ।। वैश पायन उवाच भार ाज यं कतुमु तः फा गुन तदा ।। ३५ ।। पाषतं शरजालेन प ागात् स पा डवः । हयौघां रथौघां गजौघां सम ततः ।। ३६ ।। पातयन् समरे राजन् युगा ता न रव वलन् । वैश पायनजी कहते ह—राजन्! उस समय ोणाचायका य करनेके लये उ त ए पा डु न दन अजुन पदपर बाणसमूह क वषा करते ए उनपर चढ़ आये। वे रणभू मम घोड़ , रथ और हा थय के झुंड का सब ओरसे संहार करते ए लयकालीन अ नके समान का शत हो रहे थे ।। ३५-३६ ।। े



तत ते ह यमाना वै पा चालाः सृ या तथा ।। ३७ ।। शरैनाना वधै तूण पाथ संछा सवशः । सहनादं मुखैः कृ वा समयु य त पा डवम् ।। ३८ ।। उनके बाण से घायल ए पांचाल और सृंजय वीर ने तुरंत ही नाना कारके बाण क वषा करके अजुनको सब ओरसे ढक दया और मुखसे सहनाद करते ए उनसे लोहा लेना आर भ कया ।। ३७-३८ ।। तद् यु मभवद् घोरं सुमहा तदशनम् । सहनाद वनं ु वा नामृ यत् पाकशास नः ।। ३९ ।। वह यु अ य त भयानक और दे खनेम बड़ा ही अ त था। श ु का सहनाद सुनकर इ कुमार अजुन उसे सहन न कर सके ।। ३९ ।। ततः करीट सहसा पा चालान् समरेऽ वत् । छादय षुजालेन महता मोहय व ।। ४० ।। उस यु म करीटधारी पाथने बाण का बड़ा भारी जाल-सा बछाकर पांचाल को आ छा दत और मो हत-सा करते ए उनपर सहसा आ मण कया ।। ४० ।। शी म य यतो बाणान् संदधान य चा नशम् । ना तरं द शे क चत् कौ तेय य यश वनः ।। ४१ ।। यश वी अजुन बड़ी फुत से बाण छोड़ते और नर तर नये-नये बाण का संधान करते थे। उनके धनुषपर बाण रखने और छोड़नेम थोड़ा-सा भी अ तर नह दखायी पड़ता था ।। ४१ ।। (न दशो ना त र ं च तदा नैव च मे दनी । अ यत महाराज त कचन संयुगे ।। बाणा धकारे ब लना कृते गा डीवध वना ।) महाराज! उस यु म न तो दशा का पता चलता था न आकाशका और न पृ वी अथवा और कुछ भी ही दखायी दे ता था। बलवान् वीर गा डीवधारी अजुनने अपने बाण ारा घोर अ धकार फैला दया था। सहनाद संज े साधुश दे न म तः । ततः प चालराज तु तथा स य जता सह ।। ४२ ।। वरमाणोऽ भ ाव महे ं श बरो यथा । महता शरवषण पाथः पा चालमावृणोत् ।। ४३ ।। उस समय पा डव-दलम साधुवादके साथ-साथ सहनाद हो रहा था। उधर पंचालराज पदने अपने भाई स य जत्को साथ लेकर ती ग तसे अजुनपर धावा कया, ठ क उसी तरह जैसे श बरासुरने दे वराज इ पर आ मण कया था। परंतु कु तीन दन अजुनने बाण क भारी बौछार करके पंचालनरेशको ढक दया ।। ४२-४३ ।। ततो हलहलाश द आसीत् पा चालके बले । जघृ त महा सहो गजाना मव यूथपम् ।। ४४ ।। औ

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और जैसे महा सह हा थय के यूथप तको पकड़नेक चे ा करता है, उसी कार अजुन पदको पकड़ना ही चाहते थे क पांचाल क सेनाम हाहाकार मच गया ।। ४४ ।। ् वा पाथ तदाऽऽया तं स य जत् स य व मः । पा चालं वै प र े सुधनंजयमुपा वत् ।। ४५ ।। तत वजुनपा चालौ यु ाय समुपागतौ । ोभयेतां तौ सै य म वैरोचना वव ।। ४६ ।। स यपरा मी स य जत्ने दे खा क कु तीपु धनंजय पंचालनरेशको पकड़नेके लये नकट बढ़े आ रहे ह, तो वे उनक र ाके लये अजुनपर चढ़ आये; फर तो इ और ब लक भाँ त अजुन और पांचाल स य जत्ने यु के लये आमने-सामने आकर सारी सेना को ोभम डाल दया ।। ४५-४६ ।। ततः स य जतं पाथ दश भममभे द भः । व ाध बलवद् गाढं तद त मवाभवत् ।। ४७ ।। तब अजुनने दस ममभेद बाण ारा स य जत्पर बलपूवक गहरा आघात करके उ ह घायल कर दया। यह अ त-सी बात ई ।। ४७ ।। ततः शरशतैः पाथ पा चालः शी मादयत् । पाथ तु शरवषण छा मानो महारथः ।। ४८ ।। वेगं च े महावेगो धनु यामवमृ य च । ततः स य जत ापं छ वा राजानम ययात् ।। ४९ ।। फर पांचाल वीर स य जत्ने भी शी ही सौ बाण मारकर अजुनको पी ड़त कर दया। उनके बाण क वषासे आ छा दत होकर महान् वेगशाली महारथी अजुनने धनुषक यंचाको झाड़-प छकर बड़े वेगसे बाण छोड़ना आर भ कया और स य जत्के धनुषको काटकर वे राजा पदपर चढ़ आये ।। ४८-४९ ।। अथा यद् धनुरादाय स य जद् वेगव रम् । सा ं ससूतं सरथं पाथ व ाध स वरः ।। ५० ।। तब स य जत्ने सरा अ य त वेगशाली धनुष लेकर तुरंत ही घोड़े, सार थ एवं रथस हत अजुनको ब ध डाला ।। ५० ।। स तं न ममृषे पाथः पा चालेना दतो यु ध । तत त य वनाशाथ स वरं सृज छरान् ।। ५१ ।। यु म पांचाल वीर स य जत्से पी ड़त हो अजुन उनके परा मको न सह सके और उनके वनाशके लये उ ह ने शी ही बाण क झड़ी लगा द ।। ५१ ।। हयान् वजं धनुमु मुभौ तौ पा णसारथी । स तथा भ मानेषु कामुकेषु पुनः पुनः ।। ५२ ।। हयेषु व नयु े षु वमुखोऽभवदाहवे । स स य जतमालो य तथा वमुखमाहवे ।। ५३ ।। वेगेन महता राज यवषत पा डवम् । तदा च े महद् यु मजुनो जयतां वरः ।। ५४ ।। े ो े ो ो े

स य जत्के घोड़े, वजा, धनुष, मु तथा पा र क एवं सार थ दोन को अजुनने त- व त कर दया। इस कार बार-बार धनुषके छ - भ होने और घोड़ के मारे जानेपर स य जत् समर-भू मसे भाग गये। राजन्! उ ह इस तरह यु से वमुख आ दे ख पंचालनरेश पदने पा डु न दन अजुनपर बड़े वेगसे बाण क वषा ार भ क । तब वजयी वीर म े अजुनने उनसे बड़ा भारी यु ार भ कया ।। ५२—५४ ।। त य पाथ धनु छ वा वजं चो ामपातयत् । प च भ त य व ाध हयान् सूतं च सायकैः ।। ५५ ।। उ ह ने पंचालराजका धनुष काटकर उनक वजाको भी धरतीपर काट गराया। फर पाँच बाण से उनके घोड़ और सार थको घायल कर दया ।। ५५ ।। तत उ सृ य त चापमाददानं शरावरम् । खड् गमुदधृ ् य कौ तेयः सहनादमथाकरोत् ।। ५६ ।। त प ात् उस कटे ए धनुषको यागकर जब वे सरा धनुष और तूणीर लेने लगे, उस समय अजुनने यानसे तलवार नकालकर सहके समान गजना क ।। ५६ ।। पा चाल य रथ येषामा लु य सहसापतत् । पा चालरथमा थाय अ व तो धनंजयः ।। ५७ ।। व ो या भो नध पाथ तं नाग मव सोऽ हीत् । तत तु सवपा चाला व व त दशो दश ।। ५८ ।। और सहसा पंचालनरेशके रथके डंडेपर कूद पड़े। इस कार पदके रथपर चढ़कर नभ क अजुनने जैसे ग ड़ समु को ु ध करके सपको पकड़ लेता है, उसी कार उ ह अपने काबूम कर लया। तब सम त पांचाल सै नक (भयभीत हो) दस दशा म भागने लगे ।। ५७-५८ ।। दशयन् सवसै यानां स बा ोबलमा मनः । सहनाद वनं कृ वा नजगाम धनंजयः ।। ५९ ।। सम त सै नक को अपना बा बल दखाते ए अजुन सहनाद करके वहाँसे लौटे ।। ५९ ।। आया तमजुनं ् वा कुमाराः स हता तदा । ममृ त य नगरं पद य महा मनः ।। ६० ।। अजुनको आते दे ख सब राजकुमार एक हो महा मा पदके नगरका व वंस करने लगे ।। ६० ।।

अजुन उवाच स ब धी कु वीराणां पदो राजस मः । मा वधी तलं भीम गु दानं द यताम् ।। ६१ ।। तब अजुनने कहा—भैया भीमसेन! राजा म े पद कौरववीर के स ब धी ह, अतः इनक सेनाका संहार न करो; केवल गु द णाके पम ोणके त महाराज पदको ही दे दो ।। ६१ ।। ै

वैश पायन उवाच भीमसेन तदा राज जुनेन नवा रतः । अतृ तो यु धमषु यवतत महाबलः ।। ६२ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! उस समय अजुनके मना करनेपर महाबली भीमसेन यु धमसे तृ त न होनेपर भी उससे नवृ हो गये ।। ६२ ।। ते य सेनं पदं गृही वा रणमूध न । उपाजः सहामा यं ोणाय भरतषभ ।। ६३ ।। भरत े जनमेजय! उन पा डवने य सेन पदको म य स हत सं ामभू मम बंद बनाकर ोणाचायको उपहारके पम दे दया ।। ६३ ।। भ नदप तधनं तं तथा वशमागतम् । स वैरं मनसा या वा ोणो पदम वीत् ।। ६४ ।। उनका अ भमान चूण हो गया था, धन छ न लया गया था और वे पूण पसे वशम आ चुके थे; उस समय ोणाचायने मन-ही-मन पछले वैरका मरण करके राजा पदसे कहा — ।। ६४ ।। वमृ तरसा रा ं पुरं ते मृ दतं मया । ा य जीवं रपुवशं सखपूव क म यते ।। ६५ ।। ‘राजन्! मने बलपूवक तु हारे राको र द डाला। तु हारी राजधानी म म मला द । अब तुम श ुके वशम पड़े ए जीवनको लेकर यहाँ आये हो। बोलो, अब पुरानी म ता चाहते हो या?’ ।। ६५ ।। एवमु वा ह यैनं क चत् स पुनर वीत् । मा भैः ाणभयाद् वीर मणो ा णा वयम् ।। ६६ ।। य कहकर ोणाचाय कुछ हँसे। उसके बाद फर उनसे इस कार बोले—‘वीर! ाण पर संकट आया जानकर भयभीत न होओ। हम माशील ा ण ह ।। ६६ ।। आ मे डतं यत् तु वया बा ये मया सह । तेन संव तः नेहः ी त यषभ ।। ६७ ।। ‘ य शरोमणे! तुम बचपनम मेरे साथ आ मम जो खेले-कूदे हो, उससे तु हारे ऊपर मेरा नेह एवं ेम ब त बढ़ गया है ।। ६७ ।। ाथयेयं वया स यं पुनरेव जना धप । वरं ददा म ते राजन् रा य याधमवा ु ह ।। ६८ ।। ‘नरे र! म पुनः तुमसे मै ीके लये ाथना करता ँ। राजन्! म तु ह वर दे ता ँ, तुम इस रा यका आधा भाग मुझसे ले लो ।। ६८ ।। अराजा कल नो रा ः सखा भ वतुमह स । अतः य ततं रा ये य सेन मया तव ।। ६९ ।। ‘य सेन! तुमने कहा था—जो राजा नह है, वह राजाका म नह हो सकता; इसी लये मने तु हारा रा य लेनेका य न कया है ।। ६९ ।। े







राजा स द णे कूले भागीरयाहमु रे । सखायं मां वजानी ह पा चाल य द म यसे ।। ७० ।। ‘गंगाके द ण दे शके तुम राजा हो और उ रके भूभागका राजा म ँ। पांचाल! अब य द उ चत समझो तो मुझे अपना म मानो’ ।। ७० ।। पद उवाच अना य मदं न् व ा तेषु महा मसु । ीये वयाहं व ी त म छा म शा तीम् ।। ७१ ।। पदने कहा— न्! आप-जैसे परा मी महा मा म ऐसी उदारताका होना आ यक बात नह है। म आपसे ब त स ँ और आपके साथ सदा बनी रहनेवाली मै ी एवं ेम चाहता ँ ।। ७१ ।।

वैश पायन उवाच एवमु ः स तं ोणो मो यामास भारत । स कृ य चैनं ीता मा रा याध यपादयत् ।। ७२ ।। वैश पायनजी कहते ह—भारत! पदके य कहनेपर ोणाचायने उ ह छोड़ दया और स च हो उनका आदर-स कार करके उ ह आधा रा य दे दया ।। ७२ ।। माक द मथ ग ाया तीरे जनपदायुताम् । सोऽ यावसद् द नमनाः का प यं च पुरो मम् ।। ७३ ।। द णां ा प प चालान् याव चम वती नद । ोणेन चैवं पदः प रभूयाथ पा लतः ।। ७४ ।। तदन तर राजा पद द नतापूण दयसे गंगा-तटवत अनेक जनपद से यु माक द पुरीम तथा नगर म े का प य नगरम नवास एवं चम वती नद के द णतटवत पंचालदे शका शासन करने लगे। इस कार ोणाचायने पदको परा त करके पुनः उनक र ा क ।। ७३-७४ ।। ा ेण च बलेना य नाप यत् स पराजयम् । हीनं व द वा चा मानं ा ेण स बलेन तु ।। ७५ ।। पु ज म परी सन् वै पृ थवीम वसंचरत् । अ ह छ ं च वषयं ोणः सम भप त ।। ७६ ।। पदको अपने ा बलके ारा ोणाचायक पराजय होती नह दखायी द । वे अपनेको ा ण-बलसे हीन जानकर ( ोणाचायको परा जत करनेके लये) श शाली पु ा त करनेक इ छासे पृ वीपर वचरने लगे। इधर ोणाचायने (उ र-पांचालवत ) अ ह छ नामक रा यको अपने अ धकारम कर लया ।। ७५-७६ ।। एवं राज ह छ ा पुरी जनपदायुता । यु ध न ज य पाथन ोणाय तपा दता ।। ७७ ।। राजन्! इस कार अनेक जनपद से स प अ ह छ ा नामवाली नगरीको यु म जीतकर अजुनने ोणाचायको गु -द णाम दे दया ।। ७७ ।। ी े े

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ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण पदशासने स त शद धकशततमोऽ यायः ।। १३७ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम पदपर ोणके शासनका वणन करनेवाला एक सौ सतीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १३७ ।। (दा णा य अ धक पाठक े ७ ोक मलाकर कुल ८४ ोक ह)

अ ा शद धकशततमोऽ यायः यु ध रका युवराजपदपर अ भषेक, पा डव के शौय, क त और बलके व तारसे धृतरा को च ता वैश पायन उवाच ततः संव सर या ते यौवरा याय पा थव । था पतो धृतरा ेण पा डु पु ो यु ध रः ।। १ ।। धृ त थैयस ह णु वादानृशं यात् तथाजवात् । भृ यानामनुक पाथ तथैव थरसौ दात् ।। २ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! तदन तर एक वष बीतनेपर धृतराने पा डु पु यु ध रको धृ त, थरता, स ह णुता, दयालुता, सरलता तथा अ वचल सौहाद आ द सद्गुण के कारण पालन करनेयो य जापर अनु ह करनेके लये युवराजपदपर अ भ ष कर दया ।। १-२ ।। ततोऽद घण कालेन कु तीपु ो यु ध रः । पतुर तदधे क त शीलवृ समा ध भः ।। ३ ।। इसके बाद थोड़े ही दन म कु तीकुमार यु ध रने अपने शील (उ म वभाव), वृ (सदाचार एवं सद् वहार) तथा समा ध (मनोयोगपूवक जापालनक वृ )-के ारा अपने पता महाराज पा डु क क तको भी ढक दया ।। ३ ।। अ सयु े गदायु े रथयु े च पा डवः । संकषणाद श द् वै श छ ां वृकोदरः ।। ४ ।। पा डु न दन भीमसेन बलरामजीसे न य त खड् गयु , गदायु तथा रथयु क श ा लेने लगे ।। ४ ।। समा त श ो भीम तु ुम सेनसमो बले । परा मेण स प ो ातॄणामचरद् वशे ।। ५ ।। श ा समा त होनेपर भीमसेन बलम राजा ुम सेनके समान हो गये और परा मसे स प हो अपने भाइय के अनुकूल रहने लगे ।। ५ ।। गाढ ढमु वे लाघवे वेधने तथा । ुरनाराचभ लानां वपाठानां च त व वत् ।। ६ ।। ऋजुव वशालानां यो ा फा गुनोऽभवत् । लाघवे सौ वे चैव ना यः क न व ते ।। ७ ।। बीभ सुस शो लोके इ त ोणो व थतः । ततोऽ वीद् गुडाकेशं ोणः कौरवसंस द ।। ८ ।। अजुन अ य त ढ़तापूवक मु से धनुषको पकड़नेम, हाथ क फुत म और ल यको ब धनेम बड़े चतुर नकले। वे ुर१, नाराच२, भ ल३ और वपाठ४ नामक ऋजु, व और

वशाल५ अ के संचालनका गूढ़ त व अ छ तरह जानते और उनका सफलतापूवक योग कर सकते थे। इस लये ोणाचायको यह ढ़ व ास हो गया था क फुत और सफाईम अजुनके समान सरा कोई यो ा इस जगत्म नह है। एक दन ोणने कौरव क भरी सभाम न ाको जीतनेवाले अजुनसे कहा— ।। ६—८ ।। अग य य धनुवदे श यो मम गु ः पुरा । अ नवेश इ त यात त य श योऽ म भारत ।। ९ ।। तीथात् तीथ गम यतुमहमेतत् समु तः । तपसा य मया ा तममोघमश न भम् ।। १० ।। अ ं शरो नाम यद् दहेत् पृ थवीम प । ददता गु णा चो ं न मनु ये वदं वया ।। ११ ।। भार ाज वमो म पवीय व प भो । वया ा त मदं वीर द ं ना योऽह त वदम् ।। १२ ।। समय तु वया र यो मु नसृ ो वशा पते । आचायद णां दे ह ा त ाम य प यतः ।। १३ ।। ‘भारत! मेरे गु अ नवेश नामसे व यात ह। उ ह ने पूवकालम मह ष अग यसे धनुवदक श ा ा त क थी। म उ ह महा मा अ नवेशका श य ँ। एक पा (गु )-से सरे (सुयो य श य)-को इसक ा त करानेके उ े यसे सवथा उ त होकर मने तु ह यह शर नामक अ दान कया, जो मुझे बड़ी तप यासे मला था। वह अमोघ अ वक े समान काशमान है। उसम समूची पृ वीको भी भ म कर डालनेक श है। मुझे वह अ दे ते समय गु अ नवेशजीने कहा था, ‘श शाली भार ाज! तुम यह अ मनु य पर न चलाना। मनु येतर ा णय म भी जो अ पवीय ह , उनपर भी इस अ को न छोड़ना।’ वीर अजुन! इस द अ को तुमने मुझसे पा लया है। सरा कोई इसे नह ा त कर सकता। राजकुमार! इस अ के स ब धम मु नके बताये ए इस नयमका तु ह भी पालन करना चा हये। अब तुम अपने भाई-ब धु के सामने ही मुझे एक गु -द णा दो’ ।। ९—१३ ।। ददानी त त ाते फा गुनेना वीद् गु ः । यु े ऽहं तयो ो यु यमान वयानघ ।। १४ ।। तब अजुनने त ा क —‘अव य ँ गा।’ उनके य कहनेपर गु ोण बोले—‘ न पाप अजुन! य द यु भू मम म भी तु हारे व लड़नेको आऊँ तो तुम (अव य) मेरा सामना करना’ ।। १४ ।। तथे त च त ाय ोणाय कु पु वः । उपसंगृ चरणौ स ाया रां दशम् ।। १५ ।। यह सुनकर कु े अजुनने ‘ब त अ छा’ कहते ए उनक इस आ ाका पालन करनेक त ा क और गु के दोन चरण पकड़कर उ ह ने सव म उपदे श ा त कर लया ।। १५ ।। ो



वभावादगम छ दो मह सागरमेखलाम् । अजुन य समो लोके ना त क द् धनुधरः ।। १६ ।। इस कार समु पय त पृ वीपर सब ओर अपने-आप ही यह बात फैल गयी क संसारम अजुनके समान सरा कोई धनुधर नह है ।। १६ ।। गदायु े ऽ सयु े च रथयु े च पा डवः । पारग धनुयु े बभूवाथ धनंजयः ।। १७ ।। पा डु न दन धनंजय गदा, खड् ग, रथ तथा धनुष ारा यु करनेक कलाम पारंगत ए ।। १७ ।। नी तमान् सकलां नी त वबुधा धपते तदा । अवा य सहदे वोऽ प ातॄणां ववृते वशे ।। १८ ।। ोणेनैव वनीत ातॄणां नकुलः यः । च योधी समा यातो बभूवा तरथो दतः ।। १९ ।। सहदे व भी उस समय ोणके पम अवतीण दे वता के आचाय बृह प तसे स पूण नी तशा क श ा पाकर नी तमान् हो अपने भाइय के अधीन (अनुकूल) होकर रहते थे। नकुलने भी ोणाचायसे ही अ -श क श ा पायी थी। वे अपने भाइय को ब त ही य थे और व च कारसे यु करनेम उनक बड़ी या त थी। वे अ तरथी वीर कहे जाते थे ।। १८-१९ ।। वषकृतय तु ग धवाणामुप लवे । अजुन मुखैः पाथः सौवीरः समरे हतः ।। २० ।। न शशाक वशे कतु यं पा डु र प वीयवान् । सोऽजुनेन वशं नीतो राजाऽऽसीद् यवना धपः ।। २१ ।। सौवीर दे शका राजा, जो ग धव के उप व करनेपर भी लगातार तीन वष तक बना कसी व न-बाधाके य का अनु ान करता रहा, यु म अजुन आ द पा डव के हाथ मारा गया। परा मी राजा पा डु भी जसे वशम न ला सके थे, उस यवनदे श (यूनान)-के राजाको भी जीतकर अजुनने अपने अधीन कर लया ।। २०-२१ ।। अतीव बलस प ः सदा मानी कु न् त । वपुलो नाम सौवीरः श तः पाथन धीमता ।। २२ ।। द ा म इ त यातं सं ामे कृत न यम् । सु म ं नाम सौवीरमजुनोऽदमय छरैः ।। २३ ।। जो अ य त बली तथा कौरव के त सदा अ भमान एवं उ डतापूण बताव करनेवाला था, वह सौवीरनरेश वपुल भी बु मान् अजुनके हाथसे सं ामभू मम मारा गया। जो सदा यु के लये ढ़ संक प कये रहता था, जसे लोग द ा म के नामसे जानते थे, उस सौवीर नवासी सु म का भी अजुनने अपने बाण से दमन कर दया ।। २२-२३ ।। भीमसेनसहाय रथानामयुतं च सः । अजुनः समरे ा यान् सवानेकरथोऽजयत् ।। २४ ।। े े े ी े े ो

इसके सवा अजुनने केवल भीमसेनक सहायतासे एकमा रथपर आ ढ़ हो यु म पूव दशाके स पूण यो ा तथा दस हजार र थय को जीत लया ।। २४ ।। तथैवैकरथो ग वा द णामजयद् दशम् । धनौघं ापयामास कु रा ं धनंजयः ।। २५ ।। इसी कार एकमा रथसे या ा करके धनंजयने द ण दशापर भी वजय पायी और अपने ‘धनंजय’ नामको साथक करते ए कु दे शक राजधनीम धनक रा श प ँचायी ।। २५ ।। एवं सव महा मानः पा डवा मनुजो माः । पररा ा ण न ज य वरा ं ववृधुः पुरा ।। २६ ।। जनमेजय! इस तरह नर े महामना पा डव ने ाचीन कालम सरे रा को जीतकर अपने राक अ भवृ क ।। २६ ।। ततो बलम त यातं व ाय ढध वनाम् । षतः सहसा भावो धृतरा य पा डु षु । स च तापरमो राजा न न ामलभ श ।। २७ ।। तब ढ़तापूवक धनुष धारण करनेवाले पा डव के अ य त व यात बल-परा मक बात जानकर उनके त राजा धृतराका भाव सहसा षत हो गया। अ य त च ताम नम न हो जानेके कारण उ ह रातम न द नह आती थी ।। २७ ।। इ त ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण धृतरा च तायाम ा शद धकशततमोऽ यायः ।। १३८ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम धृतराक च ता वषयक एक सौ अड़तीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १३८ ।।

१. ुर उस बाणको कहते ह, जसके बगलम तेज धार होती है, जैसे नाईका छू रा। २. नाराच सीधे बाणको कहते ह, जसका अ भाग तीखा होता है। ३. भ ल उस बाणको कहते ह, जसक नोकका पछला भाग चौड़ा और नोकदार होता है। ४. वपाठ नामक बाणक आकृ त खनतीक भाँ त होती है। यह सरे बाण से बड़ा होता है। ५. उपयु बाण म ुर और नाराच सीधा है, भ ल टे ढ़ा है और वपाठ वशाल है।

एकोनच वा रशद धकशततमोऽ यायः क णकका धृतरा को कूटनी तका उपदे श वैश पायन उवाच ु वा पा डु सुतान् वीरान् बलो ान् महौजसः । धृतरा ो महीपाल तामगमदातुरः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! पा डु के वीर पु को महान् तेज वी और बलम बढ़े -चढ़े सुनकर महाराज धृतरा ाक ु ल हो बड़ी च ताम पड़ गये ।। १ ।। तत आय म ं राजशा ाथ व मम् । क णकं म णां े ं धृतरा ोऽ वीद् वचः ।। २ ।। तब उ ह ने राजनी त और अथ-शा के प डत तथा उ म म के ाता म वर क णकको बुलाकर इस कार कहा ।। २ ।। धृतरा उवाच उ स ाः पा डवा न यं ते योऽसूये जो म । त मे न ततमं सं ध व हकारणम् । क णक वं ममाच व क र ये वचनं तव ।। ३ ।। धृतरा बोले— ज े ! पा डव क दन दन उ त और सव या त हो रही है। इस कारण म उनसे डाह रखने लगा ँ। क णक! तुम भलीभाँ त न य करके बतलाओ, मुझे उनके साथ सं ध करनी चा हये या व ह? म तु हारी बात मानूँगा ।। ३ ।। वैश पायन उवाच स स मना तेन प रपृ ो जो मः । उवाच वचनं ती णं राजशा ाथदशनम् ।। ४ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! राजा धृतराक े इस कार पूछनेपर व वर क णक मन-ही-मन ब त स ए तथा राजनी तके स ा तका प रचय दे नेवाली तीखी बात कहने लगे— ।। ४ ।। शृणु राज दं त ो यमानं मयानघ । न मेऽ यसूया कत ा ु वैतत् कु स म ।। ५ ।। ‘ न पाप नरेश! इस वषयम मेरी कही ई ये बात सु नये। कु वंश शरोमणे! इसे सुनकर आप मेरे त दोषन क जयेगा ।। ५ ।। न यमु तद डः या यं ववृतपौ षः । अ छ छ दश यात् परेषां ववरानुगः ।। ६ ।। ‘राजाको सवदा द ड दे नेके लये उ त रहना चा हये और सदा ही पु षाथ कट करना चा हये। राजा अपना छ —अपनी बलता कट न होने दे ; परंतु सर के छ या ी

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बलतापर सदा ही रखे और य द श ु क नबलताका पता चल जाय तो उनपर आ मण कर दे ।। ६ ।। न यमु तद डा भृशमु जते जनः । त मात् सवा ण काया ण द डेनैव वधारयेत् ।। ७ ।। ‘जो सदा द ड दे नेके लये उ त रहता है, उससे जाजन ब त डरते ह; इस लये सब काय द डके ारा ही स करे ।। ७ ।। ना य छ ं परः प ये छ े ण परम वयात् । गूहेत् कूम इवा ा न र ेद ् ववरमा मनः ।। ८ ।। नास य कृतकारी या प य कदाचन । क टको प छ आ ावं जनये चरम् ।। ९ ।। ‘राजाको इतनी सावधानी रखनी चा हये, जससे श ु उसक कमजोरी न दे ख सके और य द श ुक कमजोरी कट हो जाय तो उसपर अव य चढ़ाई करे। जैसे कछु आ अपने अंग क र ा करता है, उसी कार राजा अपने सब अंग (राजा, अमा य, रा, ग, कोष, बल और सु द्)-क र ा करे और अपनी कमजोरीको छपाये रखे। य द कोई काय शु कर दे तो उसे पूरा कये बना कभी न छोड़े; य क शरीरम गड़ा आ काँटा य द आधा टू टकर भीतर रह जाय तो वह ब त दन तक मवाद दे ता रहता है ।। ८-९ ।। वधमेव शंस त श ूणामपका रणाम् । सु वद ण सु व ा तं सुयु ं सुपला यतम् ।। १० ।। आप ाप द काले च कुव त न वचारयेत् । नाव ेयो रपु तात बलोऽ प कथंचन ।। ११ ।। ‘अपना अ न करनेवाले श ु का वध कर दया जाय, इसीक नी त पु ष शंसा करते ह। अ य त परा मी श ुको भी आप म पड़ा दे ख उसे सुगमतापूवक न कर दे । इसी कार जो अ छ तरह यु करनेवाला श ु है, उसे भी आप कालम ही अनायास ही मार भगाये। आप के समय श ुका संहार अव य ही करे। उस समय उसके स ब ध या सौहाद आ दका वचार कदा प न करे। तात! श ु बल हो, तो भी कसी कार उसक उपे ा न करे ।। १०-११ ।। अ पोऽ य नवनं कृ नं दह या यसं यात् । अ धः याद धवेलायां बा धयम प चा येत् ।। १२ ।। ‘ य क जैसे थोड़ी-सी भी आग धनका सहारा मल जानेपर समूचे वनको जला दे ती है, उसी कार छोटा श ु भी ग आ द बल आ यका सहारा लेकर वनाशकारी बन जाता है। अंधा बननेका अवसर आनेपर अंधा बन जाय—अथात् अपनी असमथताके समय श ुके दोष को न दे खे। उस समय सब ओरसे ध कार और न दा मलनेपर भी उसे अनसुनी कर दे अथात् उसक ओरसे कान बंद करके बहरा बन जाय ।। १२ ।। कुयात् तृणमयं चापं शयीत मृगशा यकाम् । सा वा द भ पायै तु ह या छ ुं वशे थतम् ।। १३ ।। ‘ऐ े





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‘ऐसे समयम अपने धनुषको तनकेके समान बना दे अथात् श ुक म सवथा द नहीन एवं असमथ बन जाय; परंतु ाधक भाँ त सोये—अथात् जैसे ाध झूठे ही न दका बहाना करके सो जाता है और जब मृग व त होकर आसपास चरने लगते ह, तब उठकर उ ह बाण से घायल कर दे ता है, उसी कार श ुको मारनेका अवसर दे खते ए ही अपने व प और मनोभावको छपाकर असमथ पु ष का-सा वहार करे। इस कार कपटपूण बतावसे वशम आये ए श ुको साम आ द उपाय से व ास उ प करके मार डाले’ ।। १३ ।। दया न त मन् कत ा शरणागत इ युत । न नो ह भव त नहता जायते भयम् ।। १४ ।। ‘यह मेरी शरणम आया है, यह सोचकर उसके त दया नह दखानी चा हये। श ुको मार दे नेसे ही राजा नभय हो सकता है। य द श ु मारा नह गया तो उससे सदा ही भय बना रहता है ।। १४ ।। ह याद म ं दानेन तथा पूवापका रणम् । ह यात् ीन् प च स ते त परप य सवशः ।। १५ ।। ‘जो सहज श ु है, उसे मुँहमाँगी व तु दे कर—दानके ारा व ास उ प करके मार डाले। इसी कार जो पहलेका अपकारी श ु हो और पीछे सेवक बन गया हो, उसे भी जी वत न छोड़े। श ुप के वग१, पंचवग२ और स तवगका३ सवथा नाश कर डाले ।। १५ ।। मूलमेवा दत छ ात् परप य न यशः । ततः सहायां त प ान् सवा तदन तरम् ।। १६ ।। ‘पहले तो सदा श ुप के मूलका ही उ छे द कर डाले। त प ात् उसके सहायक और श ुप से स ब ध रखनेवाले सभी लोग का संहार कर दे ।। १६ ।। छ मूले ध ाने सव त जी वनो हताः । कथं नु शाखा त ेरं छ मूले वन पतौ ।। १७ ।। ‘य द मूल आधार न हो जाय तो उसके आ यसे जीवन धारण करनेवाले सभी श ु वतः न हो जाते ह। य द वृ क जड़ काट द जाय तो उसक शाखाएँ कैसे रह सकती ह? ।। १७ ।। एका ः याद ववृतो न यं ववरदशकः । राजन् न यं सप नेषु न यो नः समाचरेत् ।। १८ ।। ‘राजा सदा श ुक ग त व धको जाननेके लये एका रहे। अपने रा यके सभी अंग को गु त रखे। राजन्! सदा अपने श ु क कमजोरीपर रखे और उनसे सदा सतक (सावधान) रहे ।। १८ ।। अ याधानेन य ेन काषायेण जटा जनैः । लोकान् व ास य वैव ततो लु पेद ् यथा वृकः ।। १९ ।। ‘

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‘अ नहो और य करके, गे ए व , जटा और मृगचम धारण करके पहले लोग म व ास उ प करे; फर अवसर दे खकर भे ड़येक भाँ त श ु पर टू ट पड़े और उ ह न कर दे ।। १९ ।। अङ् कुशं शौच म या रथानामुपधारणे । आना य फ लतां शाखां प वं प वं शातयेत् ।। २० ।। ‘काय स के लये शौच-सदाचार आ दका पालन एक कारका अंकुश (लोग को आकृ करनेका साधन) बताया गया है। फल से लद ई वृ क शाखाको अपनी ओर कुछ झुकाकर ही मनु य उसके पके-पके फलको तोड़े ।। २० ।। फलाथ ऽयं समार भो लोके पुंसां वप ताम् । वहेद म ं क धेन यावत् काल य पययः ।। २१ ।। ‘लोकम व ान् पु ष का यह सारा आयोजन ही अभी फलक स के लये होता है। जबतक समय बदलकर अपने अनुकूल न हो जाय, तबतक श ुको कंधेपर बठाकर ढोना पड़े, तो ढोये भी ।। २१ ।। ततः यागते काले भ ाद् घट मवा म न । अ म ो न वमो ः कृपणं ब प ुवन् ।। २२ ।। कृपा न त मन् कत ा ह यादे वापका रणम् । ह याद म ं सा वेन तथा दानेन वा पुनः ।। २३ ।। तथैव भेदद डा यां सव पायैः शातयेत् । ‘परंतु जब अपने अनुकूल समय आ जाय, तब उसे उसी कार न कर दे , जैसे घड़ेको प थरपर पटककर फोड़ डालते ह। श ु ब त द नतापूण वचन बोले, तो भी उसे जी वत नह छोड़ना चा हये। उसपर दया नह करनी चा हये। अपकारी श ुको मार ही डालना चा हये। साम अथवा दान तथा भेद एवं द ड सभी उपाय ारा श ुको मार डाले— उसे मटा दे ’ ।। २२-२३ ।। धृतरा उवाच कथं सा वेन दानेन भेदैद डेन वा पुनः ।। २४ ।। अ म ः श यते ह तुं त मे ू ह यथातथम् । धृतरा ने पूछा—क णक! साम, दान, भेद अथवा द डके ारा श ुका नाश कैसे कया जा सकता है, यह मुझे यथाथ पसे बताइये ।। २४ ।।

क णक उवाच शृणु राजन् यथावृ ं वने नवसतः पुरा ।। २५ ।। ज बुक य महाराज नी तशा ाथद शनः । क णकने कहा—महाराज! इस वषयम नी तशा के त वको जाननेवाले एक वनवासी गीदड़का ाचीन वृ ा त सुनाता ँ, सु नये ।। २५ ।। अथ क त् कृत ः शृगालः वाथप डतः ।। २६ ।। सख भ यवसत् साध ा ाखुवृकब ु भः । तेऽप यन् व पने त मन् ब लनं मृगयूथपम् ।। २७ ।। अश ा हणे त य ततो म मम यन् । एक वनम कोई बड़ा बु मान् और वाथ साधनेम कुशल गीदड़ अपने चार म — बाघ, चूहा, भे ड़या और नेवलेके साथ नवास करता था। एक दन उन सबने ह रण के एक सरदारको दे खा, जो बड़ा बलवान् था। वे सब उसे पकड़नेम सफल न हो सके, अतः सबने मलकर यह सलाह क ।। २६-२७ ।। ज बुक उवाच असकृद् य ततो ेष ह तुं ा वने वया ।। २८ ।। युवा वै जवस प ो बु शाली न श यते । ो



मू षकोऽ य शयान य चरणौ भ य वयम् ।। २९ ।। यथैनं भ तैः पादै ा ो गृ ातु वै ततः । ततो वै भ य यामः सव मु दतमानसाः ।। ३० ।। गीदड़ने कहा—भाई बाघ! तुमने वनम इस ह रणको मारनेके लये कई बार य न कया, परंतु यह बड़े वेगसे दौड़नेवाला, जवान और बु मान् है, इस लये पकड़म नह आता। मेरी राय है क जब यह ह रण सो रहा हो, उस समय यह चूहा इसके दोन पैर को काट खाये। ( फर कटे ए पैर से यह उतना तेज नह दौड़ सकता।) उस अव थाम बाघ उसे पकड़ ले; फर तो हम सब लोग स च होकर उसे खायँगे ।। २८—३० ।। ज बुक य तु तद् वा यं तथा च ु ः समा हताः । मू षकाभ तैः पादै मृगं ा ोऽवधीत् तदा ।। ३१ ।। गीदड़क वह बात सुनकर सबने सावधान होकर वैसा ही कया। चूहेके ारा काटे ए पैर से लड़खड़ाते ए मृगको बाघने त काल ही मार डाला ।। ३१ ।। ् वैवाचे मानं तु भूमौ मृगकलेवरम् । ना वाऽऽग छत भ ं वो र ामी याह ज बुकः ।। ३२ ।। पृ वीपर ह रणके शरीरको न े पड़ा दे ख गीदड़ने कहा—‘आपलोग का भला हो। नान करके आइये। तबतक म इसक रखवाली करता ँ’ ।। ३२ ।। शृगालवचनात् तेऽ प गताः सव नद ततः । स च तापरमो भू वा त थौ त ैव ज बुकः ।। ३३ ।। गीदड़के कहनेसे वे (बाघ आ द) सब साथी नद म (नहानेके लये) चले गये। इधर वह गीदड़ कसी च ताम नम न होकर वह खड़ा रहा ।। ३३ ।। अथाजगाम पूव तु ना वा ा ो महाबलः । ददश ज बुकं चैव च ताकु लतमानसम् ।। ३४ ।। इतनेम ही महाबली बाघ नान करके सबसे पहले वहाँ लौट आया। आनेपर उसने दे खा, गीदड़का च च तासे ाकुल हो रहा है ।। ३४ ।। ा उवाच क शोच स महा ा वं नो बु मतां वरः । अ श वा प शता य वह र यामहे वयम् ।। ३५ ।। तब बाघने पूछा—महामते! य सोचम पड़े हो? हमलोग म तु ह सबसे बड़े बु मान् हो। आज इस ह रणका मांस खाकर हमलोग मौजसे घूम- फरगे ।। ३५ ।। ज बुक उवाच शृणु मे वं महाबाहो यद् वा यं मू षकोऽ वीत् । धग् बलं मृगराज य मया ायं मृगो हतः ।। ३६ ।। गीदड़ बोला—महाबाहो! चूहेने (तु हारे वषयम) जो बात कही है, उसे तुम मुझसे सुनो। वह कहता था, ‘मृग के राजा बाघके बलको ध कार है! आज इस मृगको तो मने मारा है ।। ३६ ।।

मद्बा बलमा य तृ तम ग म य त । गजमान य त यैवमतो भ यं न रोचये ।। ३७ ।। ‘मेरे बा बलका आ य लेकर आज वह अपनी भूख बुझायेगा।’ उसने इस कार गरज-गरजकर (घमंडभरी) बात कह ह, अतः उसक सहायतासे ा त ए इस भोजनको हण करना मुझे अ छा नह लगता ।। ३७ ।। ा उवाच वी त य द स ेवं काले मन् बो धतः । वबा बलमा य ह न येऽहं वनेचरान् ।। ३८ ।। खा द ये त मांसा न इ यु वा थतो वनम् । एत म ेव काले तु मू षकोऽ याजगाम ह ।। ३९ ।। तमागतम भ े य शृगालोऽ य वीद् वचः । बाघने कहा—य द वह ऐसी बात कहता है, तब तो उसने इस समय मेरी आँख खोल द—मुझे सचेत कर दया। आजसे म अपने ही बा बलके भरोसे वन-ज तु का वध कया क ँ गा और उ ह का मांस खाऊँगा। य कहकर बाघ वनम चला गया। इसी समय चूहा भी (नहा-धोकर) वहाँ आ प ँचा। उसे आया दे ख गीदड़ने कहा ।। ३८-३९ ।। ज बुक उवाच शृणु मू षक भ ं ते नकुलो य दहा वीत् ।। ४० ।। गीदड़ बोला—चूहा भाई! तु हारा भला हो। नेवलेने यहाँ जो बात कही है, उसे सुन लो ।। ४० ।। मृगमांसं न खादे यं गरमेत रोचते । मू षकं भ य या म तद् भवाननुम यताम् ।। ४१ ।। वह कह रहा था क ‘बाघके काटनेसे इस ह रणका मांस जहरीला हो गया है, म तो इसे खाऊँगा नह ; य क यह मुझे पसंद नह है। य द तु हारी अनुम त हो तो म चूहेको ही खा लूँ’ ।। ४१ ।। त छ वा मू षको वा यं सं तः गतो बलम् । ततः ना वा स वै त आजगाम वृको नृप ।। ४२ ।। यह बात सुनकर चूहा अ य त भयभीत होकर बलम घुस गया। राजन्! त प ात् भे ड़या भी नान करके वहाँ आ प ँचा ।। ४२ ।। तमागत मदं वा यम वी ज बुक तदा । मृगराजो ह सं ु ो न ते साधु भ व य त ।। ४३ ।। सकल वहाया त कु व यदन तरम् । एवं संचो दत तेन ज बुकेन तदा वृकः ।। ४४ ।। ततोऽवलु पनं कृ वा यातः प शताशनः । े





एत म ेव काले तु नकुलोऽ याजगाम ह ।। ४५ ।। उसके आनेपर गीदड़ने इस कार कहा—‘भे ड़या भाई! आज बाघ तुमपर ब त नाराज हो गया है, अतः तु हारी खैर नह ; वह अभी बा घनको साथ लेकर यहाँ आ रहा है। इस लये अब तु ह जो उ चत जान पड़े, वह करो।’ गीदड़के इस कार कहनेपर क चा मांस खानेवाला वह भे ड़या म दबाकर भाग गया। इतनेम ही नेवला भी आ प ँचा ।। ४३ —४५ ।। तमुवाच महाराज नकुलं ज बुको वने । वबा बलमा य न जता तेऽ यतो गताः ।। ४६ ।। मम द वा नयु ं वं भुङ् व मांसं यथे सतम् । महाराज! उस नेवलेसे गीदड़ने वनम इस कार कहा—‘ओ नेवले! मने अपने बा बलका आ य ले उन सबको परा त कर दया है। वे हार मानकर अ य चले गये। य द तुझम ह मत हो तो पहले मुझसे लड़ ले; फर इ छानुसार मांस खाना’ ।। ४६ ।।

नकुल उवाच मृगराजो वृक ैव बु मान प मू षकः ।। ४७ ।। न जता यत् वया वीरा त माद् वीरतरो भवान् । न वया यु सहे यो म यु वा सोऽ युपागमत् ।। ४८ ।। नेवलेने कहा—जब बाघ, भे ड़या और बु मान् चूहा—ये सभी वीर तुमसे परा त हो गये, तब तो तुम वीर शरोम ण हो। म भी तु हारे साथ यु नह कर सकता। य कहकर नेवला भी चला गया ।। ४७-४८ ।। क णक उवाच एवं तेषु यातेषु ज बुको मानसः । खाद त म तदा मांसमेकः सन् म न यात् ।। ४९ ।। क णक कहते ह—इस कार उन सबके चले जानेपर अपनी यु म सफल हो जानेके कारण गीदड़का दय हषसे खल उठा। तब उसने अकेले ही वह मांस खाया ।। ४९ ।। एवं समाचर यं सुखमेधेत भूप तः । भयेन भेदयेद ् भी ं शूरम लकमणा ।। ५० ।। राजन्! ऐसा ही आचरण करनेवाला राजा सदा सुखसे रहता और उ तको ा त होता है। डरपोकको भय दखाकर फोड़ ले तथा जो अपनेसे शूरवीर हो, उसे हाथ जोड़कर वशम करे ।। ५० ।। लुधमथ दानेन समं यूनं तथौजसा । एवं ते क थतं राज शृणु चा यपरं तथा ।। ५१ ।। लोभीको धन दे कर तथा बराबर और कमजोरको परा मसे वशम करे। राजन्! इस कार आपसे नी तयु बतावका वणन कया गया। अब सरी बात सु नये ।। ५१ ।।

पु ः सखा वा ाता वा पता वा य द वा गु ः । रपु थानेषु वत तो ह त ा भू त म छता ।। ५२ ।। पु , म , भाई, पता अथवा गु —कोई भी य न हो, जो श ुके थानपर आ जायँ —श ुवत् बताव करने लग, तो उ ह वैभव चाहनेवाला राजा अव य मार डाले ।। ५२ ।। शपथेना यर ह यादथदानेन वा पुनः । वषेण मायया वा प नोपे ेत कथंचन । उभौ चेत् संशयोपेतौ ावां त व ते ।। ५३ ।। सौगंध खाकर, धन अथवा जहर दे कर या धोखेसे भी श ुको मार डाले। कसी तरह भी उसक उपे ा न करे। य द दोन राजा समान पसे वजयके लये य नशील ह और उनक जीत संदेहा पद जान पड़ती हो तो उनम भी जो मेरे इस नी तपूण कथनपर ाव ास रखता है, वही उ तको ा त होता है ।। ५३ ।। गुरोर यव ल त य कायाकायमजानतः । उ पथ तप य या यं भव त शासनम् ।। ५४ ।। य द गु भी घमंडम भरकर कत और अकत को न जानता हो तथा बुरे मागपर चलता हो तो उसे भी द ड दे ना उ चत माना जाता है ।। ५४ ।। ु ोऽ य ु पः यात् मतपूवा भभा षता । न चा य यमप वंसेत् कदा चत् कोपसंयुतः ।। ५५ ।। ह र यन् यं ूयात् हर प भारत । य च कृपायीत शोचेत च दे त च ।। ५६ ।। मनम ोध भरा हो, तो भी ऊपरसे ोधशू य बना रहे और मुसकराकर बातचीत करे। कभी ोधम आकर कसी सरेका तर कार न करे। भारत! श ुपर हार करनेसे पहले और हार करते समय भी उससे मीठे वचन ही बोले। श ुको मारकर भी उसके त दया दखाये, उसके लये शोक करे तथा रोये और आँसू बहाये ।। ५५-५६ ।। आ ासये चा प परं सा वधमाथवृ भः । अथा य हरेत् काले यदा वच लते प थ ।। ५७ ।। श ुको समझा-बुझाकर, धम बताकर, धन दे कर और सद् वहार करके आ ासन दे —अपने त उसके मनम व ास उ प करे; फर समय आनेपर य ही वह मागसे वच लत हो, य ही उसपर हार करे ।। ५७ ।। अ प घोरापराध य धममा य त तः । स ह छा ते दोषः शैलो मेघै रवा सतैः ।। ५८ ।। धमके आचरणका ढ ग करनेसे घोर अपराध करनेवालेका दोष भी उसी कार ढक जाता है, जैसे पवत काले मेघ क घटासे ढक जाता है ।। ५८ ।। यः यादनु ा तवध त यागारं द पयेत् । अधनान् ना तकां ौरान् वषये वे न वासयेत् ।। ५९ ।। जसे शी ही मार डालनेक इ छा हो, उसके घरम आग लगा दे । धनहीन , ना तक और चोर को अपने रा यम न रहने दे ।। ५९ ।। े े े

यु थानासना ेन स दानेन केन चत् । त व धघाती यात् ती णदं ो नम नकः ।। ६० ।। (श ुके) आनेपर उठकर अगवानी करे, आसन और भोजन दे और कोई य व तु भट करे। ऐसे बताव से अपने त जसका पूण व ास हो गया हो, उसे भी (अपने लाभके लये) मारनेम संकोच न करे। सपक भाँ त तीखे दाँत से काटे , जससे श ु फर उठकर बैठ न सके ।। ६० ।। अशङ् कते यः शङ् केत शङ् कते य सवशः । अशङ् याद् भयमु प म प मूलं नकृ त त ।। ६१ ।। जनसे भय ा त होनेका संदेह न हो, उनसे भी सशंक (चौक ा) ही रहे और जनसे भयक आशंका हो, उनक ओरसे तो सब कारसे सावधान रहे ही। जनसे भयक शंका नह है, ऐसे लोग से य द भय उ प होता है तो वह मूलो छे द कर डालता है ।। ६१ ।। न व सेद व ते व ते ना त व सेत् । व ासाद् भयमु प ं मूला य प नकृ त त ।। ६२ ।। जो व ासपा नह है, उसपर कभी व ास न करे; परंतु जो व ासपा है, उसपर भी अ त व ास न करे; य क अ त व ाससे उ प होनेवाला भय राजाक जड़मूलका भी नाश कर डालता है ।। ६२ ।। चारः सु व हतः काय आ मन पर य वा । पाष डां तापसाद पररा ेषु योजयेत् ।। ६३ ।। भलीभाँ त जाँच-परखकर अपने तथा श ुके रा यम गु तचर रखे। श ुके रा यम ऐसे गु तचर को नयु करे, जो पाख ड-वेशधारी अथवा तप वी आ द ह ।। ६३ ।। उ ानेषु वहारेषु दे वतायतनेषु च । पानागारेषु रयासु सवतीथषु चा यथ ।। ६४ ।। च वरेषु च कूपेषु पवतेषु वनेषु च । समवायेषु सवषु स र सु च वचारयेत् ।। ६५ ।। उ ान, घूमने- फरनेके थान, दे वालय, म पानके अ े, गली या सड़क, स पूण तीथ थान, चौराहे, कुएँ, पवत, वन, नद तथा जहाँ मनु य क भीड़ इक होती हो, उन सभी थान म अपने गु तचर को घुमाता रहे ।। ६४-६५ ।। वाचा भृशं वनीतः याद् दयेन तथा ुरः । मतपूवा भभाषी यात् सृ ो रौ ाय कमणे ।। ६६ ।। राजा बातचीतम अ य त वनयशील हो, परंतु दय छू रेके समान तीखा बनाये रखे। अ य त भयानक कम करनेके लये उ त हो तो भी मुसकराकर ही वातालाप करे ।। ६६ ।। अ लः शपथः सा वं शरसा पादव दनम् । आशाकरण म येवं कत ं भू त म छता ।। ६७ ।। अवसर दे खकर हाथ जोड़ना, शपथ खाना, आ ासन दे ना, पैर पर म तक रखकर णाम करना और आशा बँधाना—ये सब ऐ य- ा तक इ छावाले राजाके कत

ह ।। ६७ ।। सुपु पतः यादफलः फलवान् याद् रा हः । आमः यात् प वसंकाशो न च जीयत क ह चत् ।। ६८ ।। नी त राजा ऐसे वृ के समान रहे, जसम फूल तो खूब लगे ह परंतु फल न ह (वह बात से लोग को फलक आशा दलाये, उसक पू त न करे)। फल लगनेपर भी उसपर चढ़ना अ य त क ठन हो (लोग क वाथ स म वह व न डाले या वल ब करे)। वह रहे तो क चा, पर द खे पकेके समान (अथात् वाथ-साधक क राशाको पूण न होने दे )। कभी वयं जीण न हो (ता पय यह क अपना धन खच करके श ु का पोषण करते ए अपने-आपको नधन न बना दे ) ।। ६८ ।। वग वधा पीडा नुब ध तथैव च । अनुब धाः शुभा ेयाः पीडा तु प रवजयेत् ।। ६९ ।। धम, अथ और काम—इन वध पु षाथ के सेवनम तीन कारक बाधा—अड़चन उप थत होती है* । उसी कार उनके तीन ही कारके फल होते ह। (धमका फल है अथ एवं काम अथात् भोगक ा त, अथका फल है धमका सेवन एवं भोगक ा त और काम अथात् भोगका फल है—इ यतृ त।) इन (तीन कारके) फल को शुभ (वरणीय) जानना चा हये; परंतु (उ तीन कारक ) बाधा से य नपूवक बचना चा हये। ( वध पु षाथ का सेवन इस कार करना चा हये क तीन एक- सरेके बाधक न ह अथात् जीवनम तीन का सामंज य ही सुखदायक है।) ।। ६९ ।। धम वचरतः पीडा सा प ा यां नय छ त । अथ चा यथलुध य कामं चा त व तनः ।। ७० ।। धमका अनु ान करनेवाले धमा मा पु षके धमम काम और अथ—इन दोन के ारा ा त होनेवाली पीड़ा बाधा प ँचाती है। इसी कार अथलोभीके अथम और अ य त भोगास के कामम भी शेष दो वग ारा ा त होनेवाली पीड़ा बाधा उप थत करती है ।। ७० ।। अग वता मा यु सा वयु ोऽनसू यता । अवे ताथः शु ा मा म यीत जैः सह ।। ७१ ।। राजा अपने दयसे अहंकारको नकाल दे । च को एका रखे। सबसे मधुर बोले। सर के दोष का शत न करे। सब वषय पर रखे और शु च हो ज के साथ बैठकर म णा करे ।। ७१ ।। कमणा येन केनैव मृ ना दा णेन च । उ रेद ् द नमा मानं समथ धममाचरेत् ।। ७२ ।। राजा य द संकटम हो तो कोमल या भयंकर— जस कसी भी कमके ारा उस रव थासे अपना उ ार करे; फर समथ होनेपर धमका आचरण करे ।। ७२ ।। न संशयमना नरो भ ा ण प य त । संशयं पुनरा य द जीव त प य त ।। ७३ ।। े

क सहे बना मनु य क याणका दशन नह करता। ाण-संकटम पड़कर य द वह पुनः जी वत रह जाता है तो अपना भला दे खता है ।। ७३ ।। य य बु ः प रभवेत् तमतीतेन सा वयेत् । अनागतेन बु यु प ेन प डतम् ।। ७४ ।। जसक बु संकटम पड़कर शोका भभूत हो जाय, उसे भूतकालक बात (राजा नल तथा ीरामच जी आ दके जीवनका वृ ा त) सुनाकर सा वना दे । जसक बु अ छ नह है, उसे भ व यम लाभक आशा दलाकर तथा व ान् पु षको त काल ही धन आ द दे कर शा त करे ।। ७४ ।। योऽ रणा सह संधाय शयीत कृतकृ यवत् । स वृ ा े यथा सु तः प ततः तबु यते ।। ७५ ।। जैसे वृ के ऊपरक शाखापर सोया आ पु ष जब गरता है, तब होशम आता है उसी कार जो अपने श ुके साथ सं ध करके कृतकृ यक भाँ त सोता ( न त हो जाता) है, वह श ुसे धोखा खानेपर सचेत होता है ।। ७५ ।। म संवरणे य नः सदा काय ऽनसूयता । आकारम भर ेत चारेणा यनुपा लतः ।। ७६ ।। राजाको चा हये क वह सर के दोष का शत न करके अपनी गु त म णाको सदा छपाये रखनेक चे ा करे। सर के गु तचर से तो अपने आकारतकको ( ोध और हष आ दको सू चत करनेवाली चे ातकको) गु त रखे; परंतु अपने गु तचरसे भी सदा अपनी गु त म णाक र ा करे ।। ७६ ।। ना छ वा परममा ण नाकृ वा कम दा णम् । नाह वा म यघातीव ा ो त महत यम् ।। ७७ ।। राजा मछलीमार क भाँ त सर के मम वद ण कये बना, अ य त ू र कम कये बना तथा ब त के ाण लये बना बड़ी भारी स प नह पाता ।। ७७ ।। क शतं ा धतं ल मपानीयमघासकम् । प र व तम दं च हत मरेबलम् ।। ७८ ।। जब श ुक सेना बल, रोग त, जल या क चड़म फँसी, भूख- याससे पी ड़त और सब ओरसे व त होकर न े पड़ी हो, उस समय उसपर हार करना चा हये ।। ७८ ।। ना थकोऽ थनम ये त कृताथ ना त संगतम् । त मात् सवा ण सा या न सावशेषा ण कारयेत् ।। ७९ ।। धनवान् मनु य कसी धनीके पास नह जाता। जसके सब काम पूरे हो चुके ह, वह कसीके साथ मै ी नभानेक चे ा नह करता; अतः अपने ारा स होनेवाले सर के काय ही अधूरे रख दे ( जससे अपने कायके लये उनका आना-जाना बना रहे) ।। ७९ ।। सं हे व हे चैव य नः काय ऽनसूयता । उ साह ा प य नेन कत ो भू त म छता ।। ८० ।। ऐ यक इ छा रखनेवाले राजाको सर के दोष न बताकर सदा आव यक साम ीके सं ह और श ु के साथ व ह (यु ) करनेका य न करते रहना चा हये; साथ ही े ो े े

य नपूवक अपने उ साहको बनाये रखना चा हये ।। ८० ।। ना य कृ या न बु येरन् म ा ण रपव तथा । आरधा येव प येरन् सुपयव सता य प ।। ८१ ।। म और श ु— कसीको भी यह पता न चले क राजा कब या करना चाहता है। कायके आर भ अथवा समा त हो जानेपर ही (सब) लोग उसे दे ख ।। ८१ ।। भीतवत् सं वधात ं यावद् भयमनागतम् । आगतं तु भयं ् वा हत मभीतवत् ।। ८२ ।। जबतक अपने ऊपर भय आया न हो, तबतक डरे एक भाँ त उसको टालनेका य न करना चा हये; परंतु जब भयको सामने आया दे खे, तब नडर होकर श ुपर हार करना चा हये ।। ८२ ।। द डेनोपनतं श ुमनुगृ ा त यो नरः । स मृ युमुपगृ याद् गभम तरी यथा ।। ८३ ।। जो मनु य द डके ारा वशम कये ए श ुपर दया करता है, वह मौतको ही अपनाता है—ठ क उसी तरह जैसे ख चरी गभके पम अपनी मृ युको ही उदरम धारण करती है ।। ८३ ।। अनागतं ह बु येत य च काय पुरः थतम् । न तु बु यात् क चद त ामेत् योजनम् ।। ८४ ।। जो काय भ व यम करना हो, उसपर बु से वचार करे और वचारनेके प ात् तदनुकूल व था करे। इसी कार जो काय सामने उप थत हो, उसे भी बु से वचारकर ही करे। बु से न य कये बना कसी भी काय या उ े यका प र याग न करे ।। ८४ ।। उ साह ा प य नेन कत ो भू त म छता । वभ य दे शकालौ च दै वं धमादय यः । नैः ेयसौ तु तौ ेयौ दे शकाला व त थ तः ।। ८५ ।। ऐ यक इ छा रखनेवाले राजाको दे श और कालका वभाग करके ही य नपूवक उ साह एवं उ म करना चा हये। इसी कार दे श-कालके वभाग-पूवक ही ार धकम तथा धम, अथ और कामका सेवन करना चा हये। दे श और कालको ही मंगलके धान हेतु समझना चा हये। यही नी तशा का स ा त है ।। ८५ ।। तालवत् कु ते मूलं बालः श ु पे तः । गहनेऽ न रवो सृ ः ं संजायते महान् ।। ८६ ।। छोटे श ुक भी उपे ा कर द जाय, तो वह ताड़के वृ क भाँ त जड़ जमा लेता है और घने वनम छोड़ी ई आगक भाँ त शी ही महान् वनाशकारी बन जाता है ।। ८६ ।। अ नं तोक मवा मानं संधु य त यो नरः । स वधमानो सते महा तम प संचयम् ।। ८७ ।। जो मनु य थोड़ी-सी अ नक भाँ त अपने-आपको (सहायक साम य ारा धीरे-धीरे) व लत या समृ करता रहता है, वह एक दन ब त बड़ा होकर श ु पी धनक ब त ी ो ी े ै

बड़ी रा शको भी अपना ास बना लेता है ।। ८७ ।। आशां कालवत कुयात् कालं व नेन योजयेत् । व नं न म तो ूया म ं वा प हेतुतः ।। ८८ ।। य द कसीको कसी बातक आशा दे तो उसे शी पूरी न करके द घकालतक लटकाये रखे। जब उसे पूण करनेका समय आये, तब उसम कोई व न डाल दे और इस कार समयक अव धको बढ़ा दे । उस व नके पड़नेम कोई उपयु कारण बता दे और उस कारणको भी यु य से स कर दे ।। ८८ ।। ुरो भू वा हरेत् ाणान् न शतः कालसाधनः । त छ ो लोमहारी षतां प रकतनः ।। ८९ ।। लोहेका बना आ छू रा शानपर चढ़ाकर तेज कया जाता है और चमड़ेके स पुटम छपाकर रखा जाता है तो वह समय आनेपर ( सर आ द अंग के सम त) बाल को काट दे ता है। उसी कार राजा अनुकूल अवसरक अपे ा रखकर अपने मनोभावको छपाये ए अनुकूल साधन का सं ह करता रहे और छू रेक तरह ती ण या नदय होकर श ु के ाण ले ले—उनका मूलो छे द कर डाले ।। ८९ ।। पा डवेषु यथा यायम येषु च कु ह। वतमानो न म जे वं तथा कृ यं समाचर ।। ९० ।। सवक याणस प ो व श इ त न यः । त मात् वं पा डु पु े यो र ा मानं नरा धप ।। ९१ ।। कु े ! आप भी इसी नी तका अनुसरण करके पा डव तथा सरे लोग के साथ यथो चत बताव करते रह। परंतु ऐसा काय कर, जससे वयं संकटके समु म डू ब न जायँ। आप सम त क याणकारी साधन से स प और सबसे े ह, यही सबका न य है; अतः नरे र! आप पा डु के पु से अपनी र ा क जये ।। ९०-९१ ।। ातृ ा ब लनो य मात् पा डु पु ा नरा धप । प ा ापो यथा न यात् तथा नी त वधीयताम् ।। ९२ ।। राजन्! आपके भतीजे पा डव ब त बलवान् ह; अतः ऐसी नी त कामम लाइये, जससे आगे चलकर आपको पछताना न पड़े ।। ९२ ।। वैश पायन उवाच एवमु वा स त थे क णकः वगृहं ततः । धृतरा ोऽ प कौर ः शोकातः समप त ।। ९३ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! य कहकर क णक अपने घरको चले गये। इधर कु वंशी धृतरा शोकसे ाक ु ल हो गये ।। ९३ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण स भवपव ण क णकवा ये एकोनच वारशद धकशततमोऽ यायः ।। १३९ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत स भवपवम क णकवा य वषयक एक सौ उ तालीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १३९ ।।

१. तीन कारक श याँ ही यहाँ वग कही गयी ह। उनके नाम ये ह— भुश (ऐ यश ), उ साहश और म श । ग आ दपर आ मण करके श ुक ऐ यश का नाश करे। व सनीय य ारा अपने उ कषका वणन कराकर श ुको तेजोहीन बनाना, उसके उ साह एवं साहसको घटा दे ना ही उ साहश का नाश करना है। गु तचर ारा उनक गु त म णाको कट कर दे ना ही म श का नाश करना है। २. अमा य, रा, ग, कोष और सेना—ये पाँच क ृ तयाँ ही पंचवग ह। ३. साम, दान, भेद, द ड, उद्ब धन, वष योग और आग लगाना—श ुको वशम करने या दबानेके ये सात साधन ही स तवग ह। * इन बाधा को ोक ७० म प कया गया है।

(ज तुगृहपव) च वा रशद धकशततमोऽ यायः पा डव के

त पुरवा सय का अनुराग दे खकर य धनक च ता

वैश पायन उवाच ततः सुबलपु तु राजा य धन ह । ःशासन कण ं म मम यन् ।। १ ।। ते कौर मनु ा य धृतरा ं नरा धपम् । दहने तु सपु ायाः कु या बु मकारयन् ।। २ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर सुबलपु शकु न, राजा य धन, ःशासन और कणने (आपसम) एक तापूण गु त सलाह क । उ ह ने कु न दन महाराज धृतरास े आ ा लेकर पु स हत कु तीको आगम जला डालनेका वचार कया ।। १-२ ।। तेषा म तभाव ो व र त वद शवान् । आकारेण च तं म ं बुबुधे चेतसाम् ।। ३ ।। त व ानी व र उनक चे ा से उनके मनका भाव समझ गये और उनक आकृ तसे ही उन क गु त म णाका भी उ ह ने पता लगा लया ।। ३ ।। ततो व दतवे ा मा पा डवानां हते रतः । पलायने म त च े कु याः पु ैः सहानघः ।। ४ ।। व रजीने मन-ही-मन जाननेयो य सभी बात जान ल । वे सदा पा डव के हतम संल न रहते थे, अतः न पाप व रने यही न य कया क कु ती अपने पु के साथ यहाँसे भाग जाय ।। ४ ।। ततो वातसहां नावं य यु ां पता कनीम् । ऊ म मां ढां कृ वा कु ती मदमुवाच ह ।। ५ ।। उ ह ने एक सु ढ़ नाव बनवायी, जसे चलानेके लये उसम य * लगाया गया था। वह वायुके वेग और लहर के थपेड़ का सामना करनेम समथ थी। उसम झं डयाँ और पताकाएँ फहरा रही थ । उस नावको तैयार कराके व रजीने कु तीसे कहा— ।। ५ ।। एष जातः कुल या य क तवंश णाशनः । धृतरा ः परीता मा धम यज त शा तम् ।। ६ ।। इयं वा रपथे यु ा तर पवन मा । ौ ो े े

नौयया मृ युपाशात् वं सपु ा मो यसे शुभे ।। ७ ।। ‘दे व! राजा धृतरा इस कु कुलक क त एवं वंशपर पराका नाश करनेवाले पैदा ए ह। इनका च पु के त ममतासे ा त आ है, इस लये ये सनातन धमका याग कर रहे ह। शुभे! जलके मागम यह नाव तैयार है, जो हवा और लहर के वेगको भलीभाँ त सह सकती है। इसीके ारा (कह अ य जाकर) तुम पु स हत मौतक फाँसीसे छू ट सकोगी’ ।। ६-७ ।। त छ वा थता कु ती पु ैः सह यश वनी । नावमा ग ायां ययौ भरतषभ ।। ८ ।। भरत े ! यह बात सुनकर यश वनी कु तीको बड़ी था ई। वे पु स हत (वारणावतके ला ागृहसे बचकर) नावपर जा चढ़ और गंगाजीक धारापर या ा करने लग ।। ८ ।। ततो व रवा येन नावं व य पा डवाः । धनं चादाय तैद म र ं ा वशन् वनम् ।। ९ ।। तदन तर व रजीके कहनेसे पा डव ने नावको वह डु बा दया और उन कौरव के दये ए धनको लेकर व न-बाधा से र हत वनम वेश कया ।। ९ ।। नषाद प चपु ा तु जातुषे त वे म न । कारणा यागता द धा सह पु ैरनागसा ।। १० ।। वारणावतके उस ला ागृहम नषाद जा तक एक ी कसी कारणवश अपने पाँच पु के साथ आकर ठहर गयी थी। वह बेचारी नरपराध होनेपर भी उसम पु स हत जलकर भ म हो गयी ।। १० ।। स च ले छाधमः पापो द ध त पुरोचनः । व चता रा मानो धातरा ाः सहानुगाः ।। ११ ।। ले छ म (भी) नीच पापी पुरोचन भी उसी घरम जल मरा और धृतराक े रा मा पु अपने सेवक स हत धोखा खा गये ।। ११ ।। अ व ाता महा मानो जनानाम ता तथा । जन या सह कौ तेया मु ा व रम ताः ।। १२ ।। व रक सलाहके अनुसार काम करनेवाले महा मा कु तीपु अपनी माताके साथ मृ युसे बच गये। उ ह कसी कारक त नह प ँची। साधारण लोग को उनके जी वत रहनेक बात ात न हो सक ।। १२ ।। तत त मन् पुरे लोका नगरे वारणावते । ् वा जतुगृहं द धम वशोच त ःखताः ।। १३ ।। तदन तर वारणावत नगरम वहाँके लोग ने ला ागृहको द ध आ दे ख (अ य त) ःखी हो पा डव के लये (बड़ा) शोक कया ।। १३ ।। रा े च ेषयामासुयथावृ ं नवे दतुम् । संवृ ते महान् कामः पा डवान् द धवान स ।। १४ ।। सकामो भव कौर भुङ् व रा यं सपु कः । े ो

त छ वा धृतरा तु सह पु ेण शोचयन् ।। १५ ।। तथा राजा धृतराक े पास यथावत् समाचार कहनेके लये कसीको भेजकर कहलाया —‘कु न दन! तु हारा महान् मनोरथ पूरा हो गया। पा डव को तुमने जला दया। अब तुम कृताथ हो जाओ और पु के साथ रा य भोगो।’ यह सुनकर पु स हत धृतरा शोकम न हो गये ।। १४-१५ ।। ेतकाया ण च तथा चकार सह बा धवैः । पा डवानां तथा ा भी म कु स मः ।। १६ ।। उ ह ने, व रजीने तथा कु कुल शरोम ण भी मजीने भी भाई-ब धु के साथ (पु ल- व धसे) पा डव के ेतकाय (दाह और ा आ द) स प कये ।। १६ ।। जनमेजय उवाच पुन व तरशः ोतु म छा म जस म । दाहं जतुगृह यैव पा डवानां च मो णम् ।। १७ ।। जनमेजय बोले— व वर! म ला ागृहके जलने और पा डव के उससे बच जानेका वृ ा त पुनः व तारसे सुनना चाहता ँ ।। १७ ।। सुनृशंस मदं कम तेषां ू रोपसं हतम् । क तय व यथावृ ं परं कौतूहलं मम ।। १८ ।। ू र क णकके उपदे शसे कया आ कौरव का यह कम अ य त नदयतापूण था। आप उसका ठ क-ठ क वणन क जये। मुझे यह सब सुननेके लये बड़ी उ क ठा हो रही है ।। १८ ।। वैश पायन उवाच शृणु व तरशो राजन् वदतो मे परंतप । दाहं जतुगृह यैतत् पा डवानां च मो णम् ।। १९ ।। वैश पायनजीने कहा—श ु को संताप दे नेवाले नरेश! म ला ागृहके जलने और पा डव के उससे बच जानेका वृ ा त व तारपूवक कहता ँ, सुनो ।। १९ ।। ाणा धकं भीमसेनं कृत व ं धनंजयम् । य धनो ल य वा पयत यत मनाः ।। २० ।। भीमसेनको सबसे अ धक बलवान् और अजुनको अ - व ाम सबसे े दे खकर य धन सदा संत त होता रहता था। उसके मनम बड़ा ःख था ।। २० ।। ततो वैकतनः कणः शकु न ा प सौबलः । अनेकैर युपायै ते जघांस त म पा डवान् ।। २१ ।। तब सूयपु कण और सुबलकुमार शकु न आ द अनेक उपाय से पा डव को मार डालनेक इ छा करने लगे ।। २१ ।। पा डवा अ प तत् सव तच ु यथागतम् । उ ावनमकुव तो व र य मते थताः ।। २२ ।। े







पा डव ने भी जब जैसा संकट आया, सबका नवारण कया और व रक सलाह मानकर वे कौरव के षड् य का कभी भंडाफोड़ नह करते थे ।। २२ ।। गुणैः समु दतान् ् वा पौराः पा डु सुतां तदा । कथयांच रे तेषां गुणान् संस सु भारत ।। २३ ।। भारत! उन दन पा डव को सवगुणस प दे ख नगरके नवासी भरी सभा म उनके सद्गुण क शंसा करते थे ।। २३ ।। रा य ा तं च स ा तं ये ं पा डु सुतं तदा । कथय त म स भूय च वरेषु सभासु च ।। २४ ।। वे जहाँ कह चौराह पर और सभा म इक े होते वह पा डु के ये पु यु ध रको रा य ा तके यो य बताते थे ।। २४ ।। ाच ुरच ु ् वाद् धृतरा ो जने रः । रा यं न ा तवान् पूव स कथं नृप तभवेत् ।। २५ ।। वे कहते, ‘ ाच ु महाराज धृतरा ने हीन होनेके कारण जब पहले ही रा य न पा सके, तब (अब) वे कैसे राजा हो सकते ह ।। २५ ।। तथा शांतनवो भी मः स यसंधो महा तः । या याय पुरा रा यं न स जातु ही य त ।। २६ ।। ‘महान् तका पालन करनेवाले शंतनुन दन भी म तो स य त ह। वे पहले ही रा य ठु करा चुके ह, अतः अब उसे कदा प हण न करगे ।। २६ ।। ते वयं पा डव ये ं त णं वृ शी लनम् । अ भ ष चाम सा व स यका यवे दनम् ।। २७ ।। ‘पा डव के बड़े भाई यु ध र य प अभी त ण ह, तो भी उनका शील- वभाव वृ के समान है। वे स यवाद , दयालु और वेदवे ा ह; अतः अब हमलोग उ ह का व धपूवक रा या भषेक कर ।। २७ ।। स ह भी मं शांतनवं धृतरा ं च धम वत् । सपु ं व वधैभ गैय ज य य त पूजयन् ।। २८ ।। ‘महाराज यु ध र बड़े धम ह। वे शंतनुन दन भी म तथा पु स हत धृतराका आदर करते ए उ ह नाना कारके भोग से स प रखगे’ ।। २८ ।। तेषां य धनः ु वा ता न वा या न ज पताम् । यु ध रानुर ानां पयत यत म तः ।। २९ ।। यु ध रम अनुर हो उपयु उद्गार कट करनेवाले लोग क बात सुनकर खोट बु वाला य धन भीतर-ही-भीतर जलने लगा ।। २९ ।। स त यमानो ा मा तेषां वाचो न च मे । ई यया चा प संत तो धृतरा मुपागमत् ।। ३० ।। इस कार संत त आ वह ा मा लोग क बात को सहन न कर सका। वह ई याक आगसे जलता आ धृतराक े पास आया ।। ३० ।। ततो वर हतं ् वा पतरं तपू य सः । ौ

पौरानुरागसंत तः प ा ददमभाषत ।। ३१ ।। वहाँ अपने पताको अकेला पाकर पुरवा सय के यु ध र वषयक अनुरागसे ःखी ए य धनने पहले पताके त आदर द शत कया। त प ात् इस कार कहा ।। ३१ ।। य धन उवाच ुता मे ज पतां तात पौराणाम शवा गरः । वामना य भी मं च प त म छ त पा डवम् ।। ३२ ।। य धन बोला—‘ पताजी! मने पर पर वातालाप करते ए पुरवा सय के मुखसे (बड़ी) अशुभ बात सुनी ह। वे आपका और भी मजीका अनादर करके पा डु न दन यु ध रको राजा बनाना चाहते ह ।। ३२ ।। मतमेत च भी म य न स रा यं बुभु त । अ माकं तु परां पीडां चक ष त पुरे जनाः ।। ३३ ।। भी मजी तो इस बातको मान लगे; य क वे वयं रा य भोगना नह चाहते। परंतु नगरके लोग हमारे लये ब त बड़े क का आयोजन करना चाहते ह ।। ३३ ।। पतृतः ा तवान् रा यं पा डु रा मगुणैः पुरा । वम धगुणसंयोगात् ा तं रा यं न लधवान् ।। ३४ ।। पा डु ने अपने सद्गुण के कारण पतासे रा य ा त कर लया और आप अंधे होनेके कारण अ धकार ा त रा यको भी नह पा सके ।। ३४ ।। स एष पा डोदाया ं य द ा ो त पा डवः । त य पु ो ुवं ा त त य त या प चापरः ।। ३५ ।। य द ये पा डु कुमार यु ध र पा डु के रा यको, जसका उ रा धकारी पु ही होता है, ा त कर लेते ह तो न य ही उनके बाद उनका पु ही इस रा यका अ धकारी होगा और उसके बाद पुनः उसीक पु पर पराम सरे- सरे लोग इसके अ धकारी होते जायँगे ।। ३५ ।।

ते वयं राजवंशेन हीनाः सह सुतैर प । अव ाता भ व यामो लोक य जगतीपते ।। ३६ ।। महाराज! ऐसी दशाम हमलोग अपने पु स हत राजपर परासे वं चत होनेके कारण सब लोग क अव-हेलनाके पा बन जायँगे ।। ३६ ।। सततं नरयं ा ताः पर प डोपजी वनः । न भवेम यथा राजं तथा नी त वधीयताम् ।। ३७ ।। राजन्! आप कोई ऐसी नी त कामम लाइये, जससे हम सर के दये ए अ से गुजारा करके सदा नरकतु य क न भोगना पड़े ।। ३७ ।। य द वं ह पुरा राज दं रा यमवा तवान् । ुवं ा याम च वयं रा यम यवशे जने ।। ३८ ।। राजन्! य द पहले ही आपने यह रा य पा लया होता तो आज हम अव य ही इसे ा त कर लेते; फर तो लोग का कोई वश नह चलता ।। ३८ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण जतुगृहपव ण य धने यायां च वारशद धकशततमोऽ यायः ।। १४० ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत जतुगह ृ पवम य धनक ई या वषयक एक सौ चालीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १४० ।।

* इससे महाभारतकालम य यु

नौका

(जहाज )-का नमाण सू चत होता है।

एकच वा रशद धकशततमोऽ यायः य धनका धृतरा से पा डव को वारणावत भेज दे नेका ताव वैश पायन उवाच एवं ु वा तु पु य ाच ुनरा धपः । क णक य च वा या न ता न ु वा स सवशः ।। १ ।। धृतरा ो धा च ः शोकातः समप त । य धन कण शकु नः सौबल तथा ।। २ ।। ःशासनचतुथा ते म यामासुरेकतः । ततो य धनो राजा धृतरा मभाषत ।। ३ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! अपने पु क यह बात सुनकर तथा क णकके उन वचान का मरण करके ाच ु महाराज धृतराका च सब कारसे वधाम पड़ गया। वे शोकसे आतुर हो गये। य धन, कण, सुबलपु शकु न तथा चौथे ःशासन इन सबने एक जगह बैठकर सलाह क ; फर राजा य धनने धृतरासे कहा— ।। १—३ ।। पा डवे यो भयं न यात् तान् ववासयतां भवान् । नपुणेना युपायेन नगरं वारणावतम् ।। ४ ।। ‘ पताजी! हम पा डव से भय न हो, इस लये आप कसी उ म उपायसे उ ह यहाँसे हटाकर वारणावत नगरम भेज द जये’ ।। ४ ।। धृतरा तु पु ेण ु वा वचनमी रतम् । मुत मव सं च य य धनमथा वीत् ।। ५ ।। अपने पु क कही ई यह बात सुनकर धृतरा दो घड़ीतक भारी च ताम पड़े रहे; फर य धनसे बोले ।। ५ ।। धृतरा उवाच धम न यः सदा पा डु तथा धमपरायणः । सवषु ा तषु तथा म य वासीद् वशेषतः ।। ६ ।। धृतरा ने कहा—बेटा! पा डु अपने जीवनभर धमको ही न य मानकर स पूण ा तजन के साथ धमानुकूल वहार ही करते थे; मेरे त तो वशेष पसे ।। ६ ।। नासौ क चद् वजाना त भोजना द चक षतम् । नवेदय त न यं ह मम रा यं धृत तः ।। ७ ।। वे इतने भोले-भाले थे क अपने नान-भोजन आ द अभी कत के स ब धम भी कुछ नह जानते थे। वे उ म तका पालन करते ए त दन मुझसे यही कहते थे क ‘यह रा य तो आपका ही है’ ।। ७ ।। ो

त य पु ो यथा पा डु तथा धमपरायणः । गुणवाँ लोक व यातः पौरवाणां सुस मतः ।। ८ ।। उनके पु यु ध र भी वैसे ही धमपरायण ह, जैसे वयं पा डु थे। वे उ म गुण से स प , स पूण जगत्म व यात तथा पू वं शय के अ य त य ह ।। ८ ।। स कथं श यतेऽ मा भरपाकतु बला दतः । पतृपैतामहाद् रा यात् ससहायो वशेषतः ।। ९ ।। फर उ ह उनके बाप-दाद के रा यसे बलपूवक कैसे हटाया जा सकता है? वशेषतः ऐसे समयम, जब क उनके सहायक अ धक ह ।। ९ ।। भृता ह पा डु नामा या बलं च सततं भृतम् । भृताः पु ा पौ ा तेषाम प वशेषतः ।। १० ।। पा डु ने सभी म य तथा सै नक का सदा पालन-पोषण कया था। उनका ही नह , उनके पु -पौ के भी भरण-पोषणका वशेष यान रखा था ।। १० ।। ते पुरा स कृता तात पा डु ना नागरा जनाः । कथं यु ध र याथ न नो ह युः सबा धवान् ।। ११ ।। तात! पा डु ने पहले नाग रक के साथ बड़ा ही स ावपूण वहार कया है। अब वे व ोही होकर यु ध रके हतके लये भाई-ब धु के साथ हम सब लोग क ह या य न कर डालगे? ।। ११ ।। य धन उवाच एवमेत मया तात भा वतं दोषमा म न । ् वा कृतयः सवा अथमानेन पू जताः ।। १२ ।। य धन बोला— पताजी! मने भी अपने दयम इस दोष ( जाके वरोधी होने)-क स भावना क थी और इसीपर रखकर पहले ही अथ और स मानके ारा सम त जाका आदर-स कार कया है ।। १२ ।। ुवम म सहाया ते भ व य त धानतः । अथवगः सहामा यो म सं थोऽ महीपते ।। १३ ।। अब न य ही वे लोग मु यतासे हमारे सहायक ह गे। राजन्! इस समय खजाना और म म डल हमारे ही अधीन ह ।। १३ ।। स भवान् पा डवानाशु ववास यतुमह त । मृ नैवा युपायेन नगरं वारणावतम् ।। १४ ।। अतः आप कसी मृ ल उपायसे ही जतना शी स भाव हो, पा डव को वारणावत नगरम भेज द ।। १४ ।। यदा त तं रा यं म य राजन् भ व य त । तदा कु ती सहाप या पुनरे य त भारत ।। १५ ।। भरतवंशके महाराज! जब यह रा य पूरी तरहसे मेरे अ धकारम आ जायगा, उस समय कु तीदे वी अपने पु के साथ पुनः यहाँ आकर रह सकती ह ।। १५ ।।

धृतरा उवाच य धन ममा येतद् द स प रवतते । अ भ ाय य पाप वा ैवं तु ववृणो यहम् ।। १६ ।। धृतरा बोले— य धन! मेरे दयम भी यही बात घूम रही है; कतु हमलोग का यह अ भ ाय पापपूण है, इस लये म इसे खोलकर कह नह पाता ।। १६ ।। न च भी मो न च ोणो न च ा न गौतमः । ववा यमानान् कौ तेयाननुमं य त क ह चत् ।। १७ ।। मुझे यह भी व ास है क भी म, ोण, व र और कृपाचाय—इनमसे कोई भी कु तीपु को यहाँसे अ य भेजे जानेक कदा प अनुम त नह दगे ।। १७ ।। समा ह कौरवेयाणां वयं ते चैव पु क । नैते वषम म छे युधमयु ा मन वनः ।। १८ ।। बेटा! इन सभी कु वं शय के लये हमलोग और पा डव समान ह। ये धमपरायण मन वी महापु ष उनके त वषम वहार करना नह चाहगे ।। १८ ।। ते वयं कौरवेयाणामेतेषां च महा मनाम् । कथं न व यतां तात ग छाम जगत तथा ।। १९ ।। य धन! य द हम पा डव के साथ वषम वहार करगे तो स पूण कु वंशी और ये (भी म, ोण आ द) महा मा एवं स पूण जगत्के लोग हम वध करनेयो य य न समझगे ।। १९ ।। य धन उवाच म य थः सततं भी मो ोणपु ो म य थतः । यतः पु ततो ोणो भ वता ना संशयः ।। २० ।। य धन बोला— पताजी! भी म तो सदा ही म य थ ह, ोणपु अ थामा मेरे प म ह, ोणाचाय भी उधर ही रहगे, जधर उनका पु होगा—इसम त नक भी संशय नह है ।। २० ।। कृपः शार त ैव यत एतौ ततो भवेत् । ोणं च भा गनेयं च न स य य त क ह चत् ।। २१ ।। जस प म ये दोन ह गे, उसी ओर शर ान्के पु कृपाचाय भी रहगे। वे अपने बहनोई ोण और भानजे अ थामाको कभी छोड़ न सकगे ।। २१ ।। ाथब व माकं छ ं संयतः परैः । न चैकः स समथ ऽ मान् पा डवाथऽ धबा धतुम् ।। २२ ।। व र भी हमारे आ थक ब धनम ह, य प वे छपे- छपे हमारे श ु के नेहपाशम बँधे ह। परंतु वे अकेले पा डव के हतके लये हम बाधा प ँचानेम समथ न हो सकगे ।। २२ ।। स व धः पा ड ु पु ान् सह मा ा वासय । वारणावतम ैव यथा या त तथा कु ।। २३ ।। े ो ो े े

इस लये आप पूण न त होकर पा डव को उनक माताके साथ वारणावत भेज द जये और ऐसी व था क जये, जससे वे आज ही चले जायँ ।। २३ ।। व न करणं घोरं द श य मवा पतम् । शोकपावकमु तं कमणैतेन नाशय ।। २४ ।। मेरे दयम भयंकर काँटा-सा चुभ रहा है, जो मुझे न द नह लेने दे ता। शोकक आग व लत हो उठ है, आप (मेरे ारा ता वत) इस कायको पूरा करके मेरे दयक शोका नको बुझा द जये ।। २४ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण जतुगृहपव ण य धनपरामश एकच वारशद धकशततमोऽ यायः ।। १४१ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत जतुगह ृ पवम य धनपरामश वषयक एक सौ इकतालीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १४१ ।।

च वा रशद धकशततमोऽ यायः धृतरा के आदे शसे पा डव क वारणावत-या ा वैश पायन उवाच ततो य धनो राजा सवाः कृतयः शनैः । अथमान दाना यां संजहार सहानुजः ।। १ ।। धृतरा यु ा ते के चत् कुशलम णः । कथयांच रे र यं नगरं वारणावतम् ।। २ ।। अयं समाजः सुमहान् रमणीयतमो भु व । उप थतः पशुपतेनगरे वारणावते ।। ३ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर राजा य धन और उसके छोटे भाइय ने धन दे कर तथा आदर-स कार करके स पूण अमा य आ द कृ तय को धीरे-धीरे अपने वशम कर लया। कुछ चतुर म ी धृतराक आ ासे (चार ओर) इस बातक चचा करने लगे क ‘वारणावत नगर ब त सु दर है। उस नगरम इस समय भगवान् शवक पूजाके लये जो ब त बड़ा मेला लग रहा है, वह तो इस पृ वीपर सबसे अ धक मनोहर है’ ।। १—३ ।। सवर नसमाक ण पुंसां दे शे मनोरमे । इ येवं धृतरा य वचना च रे कथाः ।। ४ ।। ‘वह प व नगर सम त र न से भरा-पूरा तथा मनु य के मनको मोह लेनेवाला थान है।’ धृतराक े कहनेसे वह इस कारक बात करने लगे ।। ४ ।। कयमाने तथा र ये नगरे वारणावते । गमने पा डु पु ाणां ज े त म तनृप ।। ५ ।। राजन्! वारणावत नगरक रमणीयताका जब इस कार (य -त ) वणन होने लगा, तब पा डव के मनम वहाँ जानेका वचार उ प आ ।। ५ ।। यदा वम यत नृपो जातकौतूहला इ त । उवाचैताने य तदा पा डवान बकासुतः ।। ६ ।। जब अ बकान दन राजा धृतराको यह व ास हो गया क पा डव वहाँ जानेके लये उ सुक ह, तब वे उनके पास जाकर इस कार बोले— ।। ६ ।। (अधीता न च शा ा ण यु मा भ रह कृ नशः । अ ा ण च तथा ोणाद् गौतमा च वशेषतः ।। इदमेवंगते ताता तया म सम ततः । र णे वहारे च रा य य सततं हते ।।) ममैते पु षा न यं कथय त पुनः पुनः । रमणीयतमं लोके नगरं वारणावतम् ।। ७ ।। ‘ े ो







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‘बेटो! तुमलोग ने स पूण शा पढ़ लये। आचाय ोण और कृपसे अ -श क भी वशेष- पसे श ा ा त कर ली। य पा डवो! ऐसी दशाम म एक बात सोच रहा ँ। सब ओरसे रा यक र ा, राजक य वहार क र ा तथा रा यके नर तर हत-साधनम लगे रहनेवाले मेरे ये म ीलोग त दन बारंबार कहते ह क वारणावत नगर संसारम सबसे अ धक सु दर है ।। ७ ।। ते ताता य द म य वमु सवं वारणावते । सगणाः सा वया ैव वहर वं यथामराः ।। ८ ।। ‘पु ो! य द तुमलोग वारणावत नगरम उ सव दे खने जाना चाहो तो अपने कुटु बय और सेवकवगके साथ वहाँ जाकर दे वता क भाँ त वहार करो ।। ८ ।। ा णे य र ना न गायके य सवशः । य छ वं यथाकामं दे वा इव सुवचसः ।। ९ ।। कं चत् कालं व यैवमनुभूय परां मुदम् । इदं वै हा तनपुरं सुखनः पुनरे यथ ।। १० ।। ‘ ा ण और गायक को वशेष पसे र न एवं धन दो तथा अ य त तेज वी दे वता के समान कुछ कालतक वहाँ इ छानुसार वहार करते ए परम सुख ा त करो। त प ात् पुनः सुखपूवक इस ह तनापुर नगरम ही चले आना’ ।। ९-१० ।। वैश पायन उवाच धृतरा य तं काममनुबु य यु ध रः । आ मन ासहाय वं तथे त युवाच तम् ।। ११ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! यु ध र धृतराक उस इ छाका रह य समझ गये, परंतु अपनेको असहाय जानकर उ ह ने ‘ब त अ छा’ कहकर उनक बात मान ली ।। ११ ।। ततो भी मं शांतनवं व रं च महाम तम् । ोणं च बा कं चैव सोमद ं च कौरवम् ।। १२ ।। कृपमाचायपु ं च भू र वसमेव च । मा यान यानमा यां ा णां तपोधनान् ।। १३ ।। पुरो हतां पौरां गा धार च यश वनीम् । यु ध रः शनैदन उवाचेद ं वच तदा ।। १४ ।। तदन तर यु ध रने शंतनुन दन भी म, परम बु मान् व र, ोण, बा क, कु वंशी सोमद , कृपाचाय, अ थामा, भू र वा, अ या य माननीय म य , तप वी ा ण , पुरो हत , पुरवा सय तथा यश वनी गा धारीदे वीसे मलकर धीरे-धीरे द नभावसे इस कार कहा— ।। १२—१४ ।। रमणीये जनाक ण नगरे वारणावते । सगणा त या यामो धृतरा य शासनात् ।। १५ ।। ‘







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‘हम महाराज धृतराक आ ासे रमणीय वारणावत नगरम, जहाँ बड़ा भारी मेला लग रहा है, प रवारस हत जानेवाले ह ।। १५ ।। स मनसः सव पु या वाचो वमु चत । आशी भबृ हतान मान् न पापं स ह यते ।। १६ ।। ‘आप सब लोग स च होकर हम अपने पु यमय आशीवाद द जये। आपके आशीवादसे हमारी वृ होगी और पापका हमपर वश नह चल सकेगा’ ।। १६ ।। एवमु ा तु ते सव पा डु पु ेण कौरवाः । स वदना भू वा तेऽ ववत त पा डवान् ।। १७ ।। व य तु वः प थ सदा भूते य ैव सवशः । मा च वोऽ वशुभं क चत् सवशः पा डु न दनाः ।। १८ ।। पा डु न दन यु ध रके इस कार कहनेपर वे सम त कु वंशी स वदन होकर पा डव के अनुकूल हो कहने लगे—‘पा डु कुमारो! मागम सवदा सब ा णय से तु हारा क याण हो। तु ह कह से कसी कारका अशुभ न ा त हो’ ।। १७-१८ ।। ततः कृत व ययना रा यल भाय पा थवाः । कृ वा सवा ण काया ण ययुवारणावतम् ।। १९ ।। तब रा य-लाभके लये व तवाचन करा सम त आव यक काय पूण करके राजकुमार पा डव वारणावत नगरको गये ।। १९ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण जतुगृहपव ण वारणावतया ायां च वारशद धकशततमोऽ यायः ।। १४२ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत जतुगह ृ पवम वारणावतया ा वषयक एक सौ बयालीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १४२ ।। (दा णा य अ धक पाठक े २ ोक मलाकर कुल २१ ोक ह)

च वा रशद धकशततमोऽ यायः य धनके आदे शसे पुरोचनका वारणावत नगरम ला ागृह बनाना वैश पायन उवाच एवमु े षु रा ा तु पा डु पु ेषु भारत । य धनः परं हषमग छत् स रा मवान् ।। १ ।। स पुरोचनमेका तमानीय भरतषभ । गृही वा द णे पाणौ स चवं वा यम वीत् ।। २ ।। ममेयं वसुस पूणा पुरोचन वसुंधरा । यथेयं मम त त् ते स तां र तुमह स ।। ३ ।। न ह मे क द योऽ त व ा सकतर वया । सहायो येन संधाय म येयं यथा वया ।। ४ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! जब राजा धृतराने पा डव को इस कार वारणावत जानेक आ ा दे द , तब रा मा य धनको बड़ी स ता ई। भरत े ! उसने अपने म ी पुरोचनको एका तम बुलाया और उसका दा हना हाथ पकड़कर कहा, ‘पुरोचन! यह धन-धा यसे स प पृ वी जैसे मेरी है, वैसे ही तु हारी भी है; अतः तु ह इसक र ा करनी चा हये। मेरा तुमसे बढ़कर सरा कोई ऐसा व ासपा सहायक नह है, जससे मलकर इतनी गु त सलाह कर सकूँ, जैसे तु हारे साथ करता ँ ।। १—४ ।। संर तात म ं च सप नां ममो र । नपुणेना युपायेन यद् वी म तथा कु ।। ५ ।। ‘तात! तुम मेरी इस गु त म णाक र ा करो—इसे सर पर कट न होने दो और अ छे उपाय ारा मेरे श ु को उखाड़ फको। म तुमसे जो कहता ँ, वही करो ।। ५ ।।

पा डवा धृतरा ेण े षता वारणावतम् । उ सवे वह र य त धृतरा य शासनात् ।। ६ ।। ‘ पताजीने पा डव को वारणावत जानेक आ ा द है। वे उनके आदे शसे (कुछ दन तक) वहाँ रहकर उ सवम भाग लगे—मेलेम घूमे- फरगे ।। ६ ।। स वं रासभयु े न य दनेनाशुगा मना । वारणावतम ैव यथा या स तथा कु ।। ७ ।। ‘अतः तुम ख चर जुते ए शी गामी रथपर बैठकर आज ही वहाँ प ँच जाओ, ऐसी चे ा करो ।। ७ ।। त ग वा चतुःशालं गृहं परमसंवृतम् । नगरोपा तमा य कारयेथा महाधनम् ।। ८ ।। ‘वहाँ जाकर नगरके नकट ही एक ऐसा भवन तैयार कराओ जसम चार ओर कमरे ह तथा जो सब ओरसे सुर त हो। वह भवन ब त धन खच करके सु दर-से-सु दर बनवाना चा हये ।। ८ ।। शणसजरसाद न या न ा ण का न चत् । आ नेया युत स तीह ता न त दापय ।। ९ ।। ‘सन तथा राल आ द, जो कोई भी आग भड़कानेवाले संसारम ह, उन सबको उस मकानक द वार म लगवाना ।। ९ ।। ै

स प तैलवसा भ ला या चा यन पया । मृ कां म य वा वं लेपं कु ेषु दापय ।। १० ।। ‘घी, तेल, चब तथा ब त-सी लाह म म मलवाकर उसीसे द वार को लपवाना ।। १० ।। शणं तैलं घृतं चैव जतु दा ण चैव ह । त मन् वे म न सवा ण न पेथाः सम ततः ।। ११ ।। यथा च त प येरन् परी तोऽ प पा डवाः । आ नेय म त तत् कायम प चा येऽ प मानवाः ।। १२ ।। वे म येवं कृते त ग वा तान् परमा चतान् । वासयेथाः पा डवेयान् कु त च ससु जनाम् ।। १३ ।। ‘उस घरके चार ओर सन, तेल, घी, लाह और लकड़ी आ द सब व तुएँ सं ह करके रखना। अ छ तरह दे खभाल करनेपर भी पा डव तथा सरे लोग को भी इस बातक शंका न हो क यह घर आग भड़कानेवाले पदाथ से बना है, इस तरह पूरी सावधानीके साथ उस राजभवनका नमाण कराना चा हये। इस कार महल बन जानेपर जब पा डव वहाँ जायँ, तब उ ह तथा सु द स हत कु तीदे वीको भी बड़े आदर-स कारके साथ उसीम रखना ।। ११—१३ ।। आसना न च द ा न याना न शयना न च । वधात ा न पा डू नां यथा तु येत वै पता ।। १४ ।। यथा च त जान त नगरे वारणावते । तथा सव वधात ं यावत् काल य पययः ।। १५ ।। ‘वहाँ पा डव के लये द आसन, सवारी और शया आ दक ऐसी (सु दर) व था कर दे ना, जसे सुनकर मेरे पताजी संतु ह । जबतक समय बदलनेके साथ ही अपने अभी कायक स न हो जाय, तबतक सब काम इस तरह करना चा हये क वारणावत नगरके लोग को इसके वषयम कुछ भी ात न हो सके ।। १४-१५ ।। ा वा च तान् सु व ता शयानानकुतोभयान् । अ न वया ततो दे यो ारत त य वे मनः ।। १६ ।। ‘जब तु ह यह भलीभाँ त ात हो जाय क पा डवलोग यहाँ व त होकर रहने लगे ह, इनके मनम कह से कोई खटका नह रह गया है, तब उनके सो जानेपर घरके दरवाजेक ओरसे आग लगा दे ना ।। १६ ।। द माने वके गेहे द धा इ त ततो जनाः । न गहयेयुर मान् वै पा डवाथाय क ह चत् ।। १७ ।। ‘उस समय लोग यही समझगे क अपने ही घरम आग लगी थी, उसीम पा डव जल गये। अतः वे पा डव क मृ युके लये कभी हमारी न दा नह करगे’ ।। १७ ।। स तथे त त ाय कौरवाय पुरोचनः । ायाद् रासभयु े न य दनेनाशुगा मना ।। १८ ।। ो





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पुरोचनने य धनके सामने वैसा ही करनेक त ा क एवं ख चर जुते ए शी गामी रथपर आ ढ़ हो वहाँसे वारणावत नगरके लये थान कया ।। १८ ।। स ग वा व रतं राजन् य धनमते थतः । यथो ं राजपु ेण सव च े पुरोचनः ।। १९ ।। राजन्! पुरोचन य धनक रायके अनुसार चलता था। वारणावतम शी ही प ँचकर उसने राजकुमार य धनके कथनानुसार सब काम पूरा कर लया ।। १९ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण जतुगृहपव ण पुरोचनोपदे शे च वारशद धकशततमोऽ यायः ।। १४३ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत जतुगह ृ पवम पुरोचनके त य धनकृत उपदे श वषयक एक सौ ततालीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १४३ ।।

चतु

वा रशद धकशततमोऽ यायः

पा डव क वारणावत-या ा तथा उनको व रका गु तउपदे श वैश पायन उवाच पा डवा तु रथान् यु ान् सद ैर नलोपमैः । आरोहमाणा भी म य पादौ जगृ रातवत् ।। १ ।। रा धृतरा य ोण य च महा मनः । अ येषां चैव वृ ानां कृप य व र य च ।। २ ।। एवं सवान् कु न् वृ ान भवा यत ताः । समा ल य समानान् वै बालै ा य भवा दताः ।। ३ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! वायुके समान वेगशाली उ म घोड़ से जुते ए रथ पर चढ़नेके लये उ त हो उ म तको धारण करनेवाले पा डव ने अ य त ःखी-से होकर पतामह भी मके दोन चरण का पश कया। त प ात् राजा धृतरा, महा मा ोण, कृपाचाय, व र तथा सरे बड़े-बूढ़ को णाम कया। इस कार मशः सभी वृ कौरव को णाम करके समान अव थावाले लोग को दयसे लगाया। फर बालक ने आकर पा डव को णाम कया ।। १—३ ।। सवा मातॄ तथाऽऽपृ क ृ वा चैव द णम् । सवाः कृतय ैव ययुवारणावतम् ।। ४ ।। इसके बाद सब माता से आ ा ले उनक प र मा करके तथा सम त जा से भी वदा लेकर वे वारणावत नगरक ओर थत ए ।। ४ ।। व र महा ा तथा ये कु पु वाः । पौरा पु ष ा ान वीयुः शोकक शताः ।। ५ ।। त के चद् ुव त म ा णा नभया तदा । द नान् ् वा पा डु सुतानतीव भृश ःखताः ।। ६ ।। उस समय महा ानी व र तथा कु कुलके अ य े पु ष एवं पुरवासी मनु य शोकसे कातर हो नर े पा डव के पीछे -पीछे चलने लगे। तब कुछ नभय ा ण पा डव को अ य त द न-दशाम दे खकर ब त ःखी हो इस कार कहने लगे— ।। ५-६ ।। वषमं प यते राजा सवथा स सुम दधीः । कौर ो धृतरा तु न च धम प य त ।। ७ ।। ‘अ य त म दबु कु वंशी राजा धृतरा पा डव को सवथा वषम से दे खते ह। धमक ओर उनक नह है ।। ७ ।। न ह पापमपापा मा रोच य य त पा डवः । भीमो वा ब लनां े ः कौ तेयो वा धनंजयः ।। ८ ।। ‘









‘ न पाप अ तःकरणवाले पा डु कुमार यु ध र, बलवान म े भीमसेन अथवा कु तीन दन अजुन कभी पापसे ी त नह करगे ।। ८ ।। कुत एव महा मानौ मा पु ौ क र यतः । तान् रा यं पतृतः ा तान् धृतरा ो न मृ यते ।। ९ ।। ‘ फर महा मा दोन मा कुमार कैसे पाप कर सकगे। पा डव को अपने पतासे जो रा य ा त आ था, धृतरा उसे सहन नह कर रहे ह ।। ९ ।। अध य मदम य तं कथं भी मोऽनुम यते । ववा यमानान थाने नगरे योऽ भम यते ।। १० ।। ‘इस अ य त अधमयु कायके लये भी मजी कैसे अनुम त दे रहे ह? पा डव को अनु चत पसे यहाँसे नकालकर जो रहनेयो य थान नह , उस वारणावत नगरम भेजा जा रहा है! फर भी भी मजी चुपचाप य इसे मान लेते ह? ।। १० ।। पतेव ह नृपोऽ माकमभू छांतनवः पुरा । व च वीय राज षः पा डु कु न दनः ।। ११ ।। ‘पहले शंतनुकुमार राज ष व च वीय तथा कु कुलको आन द दे नेवाले महाराज पा डु हमारे राजा थे। केवल राजा ही नह , वे पताके समान हमारा पालन-पोषण करते थे ।। ११ ।। स त मन् पु ष ा े दे वभावं गते स त । राजपु ा नमान् बालान् धृतरा ो न मृ यते ।। १२ ।। ‘नर े पा डु जब दे वभाव ( वग)-को ा त हो गये ह, तब उनके इन छोटे -छोटे राजकुमार का भार धृतरा नह सहन कर पा रहे ह ।। १२ ।। वयमेतद न छ तः सव एव पुरो मात् । गृहान् वहाय ग छामो य ग ता यु ध रः ।। १३ ।। ‘हमलोग यह नह चाहते, इस लये हम सब घर- ार छोड़कर इस उ म नगरीसे वह चलगे, जहाँ यु ध र जा रहे ह’ ।। १३ ।। तां तथावा दनः पौरान् ःखतान् ःखक शतः । उवाच मनसा या वा धमराजो यु ध रः ।। १४ ।। शोकसे बल धमराज यु ध र अपने लये ःखी उन पुरवा सय को ऐसी बात करते दे ख मन-ही-मन कुछ सोचकर उनसे बोले— ।। १४ ।। पता मा यो गु ः े ो यदाह पृ थवीप तः । अशङ् कमानै तत् कायम मा भ र त नो तम् ।। १५ ।। ‘ब धुओ! राजा धृतरा मेरे माननीय पता, गु एवं े पु ष ह। वे जो आ ा द, उसका हम नःशंक होकर पालन करना चा हये; यही हमारा त है ।। १५ ।। भव तः सु दोऽ माकम मान् कृ या द णम् । तन तथाशी भ नवत वं यथा गृहम् ।। १६ ।। यदा तु कायम माकं भव पप यते । तदा क र यथा माकं या ण च हता न च ।। १७ ।। ‘ ो े े ी े औ

‘आपलोग हमारे हत च तक ह, अतः हम अपने आशीवादसे संतु कर और हम दा हने करते ए जैसे आये थे, वैसे ही अपने घरको लौट जायँ। जब आपलोग के ारा हमारा कोई काय स होनेवाला होगा, उस समय आप हमारे य और हतकारी काय क जयेगा’ ।। एवमु ा तदा पौराः कृ वा चा प द णम् । आशी भ ा भन ैता मुनगरमेव ह ।। १८ ।। उनके य कहनेपर पुरवासी उ ह आशीवादसे स करते ए दा हने करके नगरको ही लौट गये ।। १८ ।। पौरेषु व नवृ ेषु व रः स यधम वत् । बोधयन् पा डव े मदं वचनम वीत् ।। १९ ।। पुरवा सय के लौट जानेपर स यधमके ाता व रजी पा डव े यु ध रको य धनके कपटका बोध कराते ए इस कार बोले ।। १९ ।। ा ः ा लाप ः लाप मदं वचः । ा ं ा ः लाप ः लाप ं वचोऽ वीत् ।। २० ।। व रजी बु मान् तथा मूढ़ ले छ क नरथक-सी तीत होनेवाली भाषाके भी ाता थे। इसी कार यु ध र भी उस ले छभाषाको समझ लेनेवाले तथा बु मान् थे। अतः उ ह ने यु ध रसे ऐसी कहनेयो य बात कही, जो ले छभाषाके जानकार एवं बु मान् पु षको उस भाषाम कहे ए रह यका ान करा दे नेवाली थी, कतु जो उस भाषाके अन भ पु षको वा त वक अथका बोध नह कराती थी ।। २० ।। यो जाना त पर ां नी तशा ानुसा रणीम् । व ायेह तथा कुयादापदं न तरेद ् यथा ।। २१ ।। ‘जो श ुक नी त-शा का अनुसरण करनेवाली बु को समझ लेता है, वह उसे समझ लेनेपर कोई ऐसा उपाय करे, जससे वह यहाँ श ुज नत संकटसे बच सके ।। अलोहं न शतं श ं शरीरप रकतनम् । यो वे न तु तं न त तघात वदं षः ।। २२ ।। ‘एक ऐसा तीखा श है, जो लोहेका बना तो नह है, परंतु शरीरको न कर दे ता है। जो उसे जानता है, ऐसे उस श के आघातसे बचनेका उपाय जाननेवाले पु षको श ु नह मार सकते१ ।। २२ ।। क नः श शर न महाक े बलौकसः । न दहे द त चा मानं यो र त स जीव त ।। २३ ।। ‘घास-फूस तथा सूखे वृ वाले जंगलको जलाने और सदको न कर दे नेवाली आग वशाल वनम फैल जानेपर भी बलम रहनेवाले चूहे आ द ज तु को नह जला सकती— य समझकर जो अपनी र ाका उपाय करता है, वही जी वत रहता है२ ।। २३ ।। नाच ुव प थानं नाच ु व दते दशः । नाधृ तबु मा ो त बु य वैवं बो धतः ।। २४ ।। ‘





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‘ जसके आँख नह ह, वह माग नह जान पाता; अंधेको दशा का ान नह होता और जो धैय खो दे ता है, उसे सद्बु नह ा त होती। इस कार मेरे समझानेपर तुम मेरी बातको भलीभाँ त समझ लो३ ।। २४ ।। अना तैद माद े नरः श मलोहजम् । ा व छरणमासा मु येत ताशनात् ।। २५ ।। ‘श ु के दये ए बना लोहेके बने श को जो मनु य हण कर लेता है, वह साहीके बलम घुसकर आगसे बच जाता है४ ।। २५ ।। चरन् मागान् वजाना त न ै व दते दशः । आ मना चा मनः प च पीडयन् नानुपी ते ।। २६ ।। ‘मनु य घूम- फरकर रा तेका पता लगा लेता है, न से दशा को समझ लेता है तथा जो अपनी पाँच इ य का वयं ही दमन करता है, वह श ु से पी ड़त नह होता’५ ।। २६ ।। एवमु ः युवाच धमराजो यु ध रः । व रं व षां े ं ात म येव पा डवः ।। २७ ।। इस कार कहे जानेपर पा डु न दन धमराज यु ध रने व ान म े व रजीसे कहा —‘मने आपक बात अ छ तरह समझ ली’ ।। २७ ।। अनु श यानुग यैतान् कृ वा चैव द णम् । पा डवान यनु ाय व रः ययौ गृहान् ।। २८ ।। इस तरह पा डव को बारंबार कत क श ा दे ते ए कुछ रतक उनके पीछे -पीछे जाकर व रजी उनको जानेक आ ा दे उ ह अपने दा हने करके पुनः अपने घरको लौट गये ।। २८ ।। नवृ े व रे चा प भी मे पौरजने तथा । अजातश ुमासा कु ती वचनम वीत् ।। २९ ।। व र, भी मजी तथा नगर नवा सय के लौट जानेपर कु ती अजातश ु यु ध रके पास जाकर बोली— ।। २९ ।। ा यद वीद् वा यं जनम येऽ ुव व । वया च स तथे यु ो जानीमो न च तद् वयम् ।। ३० ।। ‘बेटा! व रजीने सब लोग के बीचम जो अ प -सी बात कही थी, उसे सुनकर तुमने ‘ब त अ छा’ कहकर वीकार कया था; परंतु हमलोग वह बात अबतक नह समझ पा रहे ह ।। ३० ।। यद दं श यम मा भ ातुं न च सदोषवत् । ोतु म छा म तत् सव संवादं तव त य च ।। ३१ ।। ‘य द उसे हम भी समझ सक और हमारे जाननेसे कोई दोष न आता हो तो तु हारी और उनक सारी बातचीतका रह य म सुनना चाहती ँ’ ।। ३१ ।। यु ध र उवाच ो ो ी

गृहाद न बो इ त मां व रोऽ वीत् । प था वो ना व दतः क त् या द त धमधीः ।। ३२ ।। यु ध रने कहा—माँ! जनक बु सदा धमम ही लगी रहती है, उन व रजीने (सांके तक भाषाम) मुझसे कहा था, ‘तुम जस घरम ठहरोगे, वहाँसे आगका भय है, यह बात अ छ तरह जान लेनी चा हये। साथ ही वहाँका कोई भी माग ऐसा न हो, जो तुमसे अप र चत रहे ।। ३२ ।। जते य वसुधां ा यती त च मेऽ वीत् । व ात म त तत् सव यु ो व रो मया ।। ३३ ।। ‘य द तुम अपनी इ य को वशम रखोगे तो सारी पृ वीका रा य ा त कर लोगे, यह बात भी उ ह ने मुझसे बतायी थी और इ ह बात के लये मने व रजीको उ र दया था क ‘म सब समझ गया’ ।। ३३ ।। वैश पायन उवाच अ मेऽह न रो ह यां याताः फा गुन य ते । वारणावतमासा द शुनागरं जनम् ।। ३४ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! पा डव ने फा गुन शु ला अ मीके दन रो हणी न म या ा क थी। वे यथासमय वारणावत प ँचकर वहाँके नाग रक से मले ।। ३४ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण जतुगृहपव ण वारणावतगमने चतु वारशद धकशततमोऽ यायः ।। १४४ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत जतुगह ृ पवम पा डव क वारणावतया ा वषयक एक सौ चौवालीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १४४ ।।

१. यहाँ संकेतसे यह बात बतायी गयी है क श ु ने तु हारे लये एक ऐसा भवन तैयार करवाया है, जो आगको भड़कानेवाले पदाथ से बना है। श का शु प स है, जसका अथ घर होता है। २. ता पय यह है, वहाँ जो तु हारा पा वत होगा, वह पुरोचन ही तु ह आगम जलाकर न करना चाहता है। तुम उस आगसे बचनेके लये एक सुरंग तैयार करा लेना। क नका शु प कु न है, जसका अथ है कु चर या पा वत । ३. अथात् दशा आ दका ठ क ान पहलेसे ही कर लेना, जससे रातम भटकना न पड़े। ४. ता पय यह क उस सुरंगसे य द तुम बाहर नकल जाओगे तो ला ागृहम लगी ई आगसे बच सकोगे। ५. अथात् य द तुम पाँच भाई एकमत रहोगे तो श ु तु हारा कुछ नह बगाड़ सकेगा।

प चच वा रशद धकशततमोऽ यायः वारणावतम पा डव का वागत, पुरोचनका स कारपूवक उ ह ठह राना, ला ागृहम नवासक व था और यु ध र एवं भीमसेनक बातचीत वैश पायन उवाच ततः सवाः कृतयो नगराद् वारणावतात् । सवम लसंयु ा यथाशा मत ताः ।। १ ।। ु वाऽऽगतान् पा डु पु ान् नानायानैः सह शः । अ भज मुनर े ान् ु वैव परया मुदा ।। २ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! नर े पा डव के शुभागमनका समाचार सुनकर वारणावत नगरसे वहाँके सम त जाजन अ य त स हो आल य छोड़कर शा व धके अनुसार सब तरहक मांग लक व तु क भट लेकर हजार क सं याम नाना कारक सवा रय के ारा उनक अगवानीके लये आये ।। १-२ ।। ते समासा कौ तेयान् वारणावतका जनाः । कृ वा जया शषः सव प रवायावत थरे ।। ३ ।। कु तीकुमार के नकट प ँचकर वारणावतके सब लोग उनक जय-जयकार करते और आशीवाद दे ते ए उ ह चार ओरसे घेरकर खड़े हो गये ।। ३ ।। तैवृतः पु ष ा ो धमराजो यु ध रः । वबभौ दे वसंकाशो व पा ण रवामरैः ।। ४ ।। उनसे घरे ए पु ष सह धमराज यु ध र, जो दे वता के समान तेज वी थे, इस कार शोभा पा रहे थे मानो दे वम डलीके बीच सा ात् वपा ण इ ह ।। ४ ।। स कृता ैव पौरै ते पौरान् स कृ य चानघ । अलंकृतं जनाक ण व वशुवारणावतम् ।। ५ ।। न पाप जनमेजय! पुरवा सय ने पा डव का बड़ा वागत-स कार कया। फर पा डव ने भी नाग रक को आदरपूवक अपनाकर जनसमुदायसे भरे ए सजे-सजाये वारणावत नगरम वेश कया ।। ५ ।। ते व य पुर वीरा तूण ज मुरथो गृहान् । ा णानां महीपाल रतानां वेषु कमसु ।। ६ ।। राजन्! नगरम वेश करके वीर पा डव सबसे पहले शी तापूवक वधमपरायण ा ण के घर म गये ।। ६ ।। नगरा धकृतानां च गृहा ण र थनां तदा । उपत थुनर े ा वै यशू गृहा य प ।। ७ ।। े



















त प ात् वे नर े कु तीकुमार नगरके अ धकारी य के यहाँ गये। इसी कार वे मशः वै य और शू के घर पर भी उप थत ए ।। ७ ।। अ चता नरैः पौरैः पा डवा भरतषभ । ज मुरावसथं प ात् पुरोचनपुर सराः ।। ८ ।। भरत े ! नगर नवासी मनु य ारा पू जत एवं स मा नत हो पा डवलोग पुरोचनको आगे करके डेरेपर गये ।। ८ ।। ते यो भ या ण पाना न शयना न शुभा न च । आसना न च मु या न ददौ स पुरोचनः ।। ९ ।। वहाँ पुरोचनने उनके लये खाने-पीनेक उ म व तुए,ँ सु दर शयाए ँ और े आसन तुत कये ।। ९ ।।

त ते स कृता तेन सुमहाहप र छदाः । उपा यमानाः पु षै षुः पुर नवा स भः ।। १० ।। उस भवनम पुरोचन ारा उनका बड़ा स कार आ। वे अ य त ब मू य साम य का उपयोग करते थे और ब त-से नगर नवासी े पु ष उनक सेवाम उप थत रहते थे। इस कार वे (बड़े आन दसे) वहाँ रहने लगे ।। १० ।। दशरा ो षतानां तु त तेषां पुरोचनः । नवेदयामास गृहं शवा यम शवं तदा ।। ११ ।। ँ

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दस दन तक वहाँ रह लेनेके प ात् पुरोचनने पा डव से उस नूतन गृहके स ब धम चचा क , जो कहनेको तो ‘ शवभवन’ था, परंतु वा तवम अ शव (अमंगलकारी) था ।। ११ ।। त ते पु ष ा ा व वशुः सप र छदाः । पुरोचन य वचनात् कैलास मव गु काः ।। १२ ।। पुरोचनके कहनेसे वे पु ष सह पा डव अपनी सब साम य और सेवक के साथ उस नये भवनम गये; मानो गु कगण कैलास पवतपर जा रहे ह ।। १२ ।। त चागारम भ े य सवधमभृतां वरः । उवाचा नेय म येवं भीमसेनं यु ध रः ।। १३ ।। उस घरको अ छ तरह दे खकर सम त धमा मा म े यु ध रने भीमसेनसे कहा —‘भाई! यह भवन तो आग भड़कानेवाली व तु से बना जान पड़ता है ।। १३ ।। ज ाणोऽ य वसाग धं स पजतु व म तम् । कृतं ह मा नेय मदं वे म परंतप ।। १४ ।। ‘श ु को संताप दे नेवाले भीमसेन! मुझे इस घरक द वार से घी और लाह मली ई चब क ग ध आ रही है। अतः प जान पड़ता है क इस घरका नमाण अ नद पक पदाथ से ही आ है ।। १४ ।। शणसजरसं मानीय गृहकम ण । मु ब वजवंशा द ं सव घृतो तम् ।। १५ ।। श प भः सुकृतं ा तै वनीतैव मकम ण । व तं मामयं पापो द धुकामः पुरोचनः ।। १६ ।। तथा ह वतते म दः सुयोधनवशे थतः । इमां तु तां महाबु व रो वां तथा ।। १७ ।। आपदं तेन मां पाथ स स बो धतवान् पुरा । ते वयं बो धता तेन न यम म तै षणा ।। १८ ।। प ा कनीयसा नेहाद् बु म तोऽ शवं गृहम् । अनायः सुकृतं गूढै य धनवशानुगैः ।। १९ ।। ‘गृह नमाणके कमम सु श त एवं व सनीय कारीगर ने अव य ही घर बनाते समय सन, राल, मूँज, ब वज (मोटे तनक वाली घास) और बाँस आ द सब को घीसे स चकर बड़ी खूबीके साथ इन सबके ारा इस सु दर भवनक रचना क है। यह म दबु पापी पुरोचन य धनक आ ाके अधीन हो सदा इस घातम लगा रहता है क जब हमलोग व त होकर सोये ह , तब वह आग लगाकर (घरके साथ ही) हम जला दे । यही उसक इ छा है। भीमसेन! परम बु मान् व रजीने हमारे ऊपर आनेवाली इस वप को यथाथ पम समझ लया था; इसी लये उ ह ने पहले ही मुझे सचेत कर दया। व रजी हमारे छोटे पता और सदा हमलोग का हत चाहनेवाले ह। अतः उ ह ने नेहवश हम बु मान को इस अ शव (अमंगलकारी) गृहके स ब धम, जसे य धनके वशवत कारीगर ने छपकर कौशलसे बनाया है, पहले ही सब कुछ समझा दया’ ।। १५—१९ ।। ी े

भीमसेन उवाच यद दं गृहमा नेयं व हतं म यते भवान् । तथैव साधु ग छामो य पूव षता वयम् ।। २० ।। भीमसेन बोले—भैया! य द आप यह मानते ह क इस घरका नमाण अ नको उ त करनेवाली व तु से आ है तो हमलोग जहाँ पहले रहते थे, कुशलपूवक पुनः उसी घरम य न लौट चल? ।। २० ।। यु ध र उवाच इह य ै नराकारैव त म त रोचये । अ म ै व च व ग त म ां ुवा मतः ।। २१ ।। यु ध र बोले—भाई! हमलोग को यहाँ अपनी बा चे ा से मनक बात कट न करते ए और यहाँसे भाग छू टनेके लये मनोऽनुकूल न त मागका पता लगाते ए पूरी सावधानीके साथ यह रहना चा हये। मुझे ऐसा करना ही अ छा लगता है ।। २१ ।। य द व दे त चाकारम माकं स पुरोचनः । कारी ततो भू वा द ाद प हेतुतः ।। २२ ।। य द पुरोचन हमारी कसी भी चे ासे हमारे भीतरी मनोभावको ताड़ लेगा तो वह शी तापूवक अपना काम बनानेके लये उ त हो हम कसी-न- कसी हेतुसे जला भी सकता है ।। २२ ।। नायं बभे युप ोशादधमाद् वा पुरोचनः । तथा ह वतते म दः सुयोधनवशे थतः ।। २३ ।। यह मूढ़ पुरोचन न दा अथवा अधमसे नह डरता एवं य धनके वशम होकर उसक आ ाके अनुसार आचरण करता है ।। २३ ।। अ प चेह द धेषु भी मोऽ मासु पतामहः । कोपं कुयात् कमथ वा कौरवान् कोपयीत सः ।। २४ ।। य द यहाँ हमारे जल जानेपर पतामह भी म कौरव पर ोध भी कर तो वह अनाव यक है; य क फर कस योजनक स के लये वे कौरव को कु पत करगे ।। २४ ।। अथवापीह द धेषु भी मोऽ माकं पतामहः । धम इ येव कु येरन् ये चा ये कु पु वाः ।। २५ ।। अथवा स भव है क यहाँ हमलोग के जल जानेपर हमारे पतामह भी म तथा कु कुलके सरे े पु ष धम समझकर ही उन आतता यय पर ोध कर (परंतु वह ोध हमारे कस कामका होगा?) ।। २५ ।। वयं तु य द दाह य ब यतः वेम ह । पशै नघातयेत् सवान् रा यलुधः सुयोधनः ।। २६ ।। य द हम जलनेके भयसे डरकर भाग चल तो भी रा यलोभी य धन हम सबको अपने गु तचर ारा मरवा सकता है ।। २६ ।। े

अपद थान् पदे त प ान् प सं थतः । हीनकोशान् महाकोशः योगैघातयेद ् ुवम् ।। २७ ।। इस समय वह अ धकारपूण पदपर त त है और हम उससे वं चत ह। वह सहायक के साथ है और हम असहाय ह। उसके पास ब त बड़ा खजाना है और हमारे पास उसका सवथा अभाव है। अतः न य ही वह अनेक कारके उपाय ारा हमारी ह या कर सकता है ।। २७ ।। तद मा भ रमं पापं तं च पापं सुयोधनम् । व चय नव त ं छ ावासं व चत् व चत् ।। २८ ।। इस लये इस पापा मा पुरोचन तथा पापी य धनको भी धोखेम रखते ए हम यह कह कसी गु त थानम नवास करना चा हये ।। २८ ।। ते वयं मृगयाशीला राम वसुधा ममाम् । तथा नो व दता मागा भ व य त पलायताम् ।। २९ ।। हम सब मृगयाम रत रहकर यहाँक भू मपर सब ओर वचर, इससे भाग नकलनेके लये हम ब त-से माग ात हो जायँगे ।। २९ ।। भौमं च बलम ैव करवाम सुसंवृतम् । गूढ ासा न त ताशः स ध य त ।। ३० ।। इसके सवा आजसे ही हम जमीनम एक सुरंग तैयार कर, जो ऊपरसे अ छ तरह ढक हो। वहाँ हमारी साँसतक छपी रहेगी ( फर हमारे काय क तो बात ही या है)। उस सुरंगम घुस जानेपर आग हम नह जला सकेगी ।। ३० ।। वसतोऽ यथा चा मा बु येत पुरोचनः । पौरो वा प जनः क त् तथा कायमत तैः ।। ३१ ।। हम आल य छोड़कर इस कार काय करना चा हये, जससे यहाँ रहते ए भी हमारे स ब धम पुरोचनको कुछ भी ात न हो सके और कसी पुरवासीको भी हमारी कान कान खबर न हो ।। ३१ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण जतुगृहपव ण भीमसेनयु ध रसंवादे प चच वारशद धकशततमोऽ यायः ।। १४५ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत जतुगह ृ पवम भीमसेन-यु ध र-संवाद वषयक एक सौ पतालीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १४५ ।।

षट् च वा रशद धकशततमोऽ यायः व रके भेजे ए खनक ारा ला ागृहम सुरंगका नमाण वैश पायन उवाच व र य सु त् क त् खनकः कुशलो नरः । व व े पा डवान् राज दं वचनम वीत् ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! एक सुरंग खोदनेवाला मनु य व रजीका हतैषी एवं व ास-पा था। वह अपने कामम बड़ा चतुर था। एक दन वह एका तम पा डव से मला और इस कार कहने लगा— ।। १ ।। हतो व रेणा म खनकः कुशलो हम् । पा डवानां यं काय म त क करवा ण वः ।। २ ।। छ ं व रेणो ः ेय व म त पा डवान् । तपादय व ासा द त क करवा ण वः ।। ३ ।। ‘मुझे व रजीने भेजा है। म सुरंग खोदनेके कामम बड़ा नपुण ँ। मुझे आप पा डव का य काय करना है, अतः आपलोग बताय, म आपक या सेवा क ँ ? व रने गु त पसे मुझसे यह कहा है क तुम वारणावतम जाकर व ासपूवक पा डव का हत स पादन करो। अतः आप आ ा क जये क म या क ँ ? ।। २-३ ।।

कृ णप े चतुद यां रा ाव यां पुरोचनः । भवन य तव ा र दा य त ताशनम् ।। ४ ।। ‘इसी कृ णप क चतुदशीक रातको पुरोचन आपके घरके दरवाजेपर आग लगा दे गा ।। ४ ।। मा ा सह द ध ाः पा डवाः पु षषभाः । इ त व सतं त य धातरा य मतेः ।। ५ ।। ‘ बु य धनक यह चे ा है क नर े पा डव अपनी माताके साथ जला दये जायँ ।। ५ ।। क च च व रेणो ो ले छवाचा स पा डव । वया च तत् तथे यु मेतद् व ासकारणम् ।। ६ ।। ‘पा डु न दन! व रजीने ले छभाषाम आपको कुछ संकेत कया था और आपने ‘तथा तु’ कहकर उसे वीकार कया था। यह बात म व ास दलानेके लये कहता ँ’ ।। ६ ।। उवाच तं स यधृ तः कु तीपु ो यु ध रः । अ भजाना म सौ य वां सु दं व र य वै ।। ७ ।। शु चमा तं यं चैव सदा च ढभ कम् । न व ते कवेः क चद व ातं योजनम् ।। ८ ।। ी





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तब स यवाद कु तीकुमार यु ध रने उससे कहा—‘सौ य! म तु ह पहचानता ँ। तुम व रजीके हतैषी, ईमानदार, व सनीय, य तथा उनके त सदा अ वचल भ रखनेवाले हो। हमारा कोई भी ऐसा योजन नह है, जो परम ानी व रजीको ात न हो ।। ७-८ ।। यथा त य तथा न वं न वशेषा वयं व य । भवत यथा त य पालया मान् यथा क वः ।। ९ ।। ‘तुम व रजीके लये जैसे आदरणीय और व सनीय हो, वैसे ही हमारे लये भी हो। तुमसे हमारा कोई अ तर नह है। हमलोग जस कार व रजीके पालनीय ह, वैसे ही तु हारे भी ह। जैसे वे हमारी र ा करते ह, वैसे ही तुम भी करो ।। ९ ।। इदं शरणमा नेयं मदथ म त मे म तः । पुरोचनेन व हतं धातरा य शासनात् ।। १० ।। ‘यह घर आग भड़कानेवाले पदाथ से बना है। हमारा व ास है क य धनके आदे शसे पुरोचनने हमारे लये ही इसे बनवाया है ।। १० ।। स पापः कोषवां ैव ससहाय म तः । अ मान प च पापा मा न यकालं बाधते ।। ११ ।। ‘पापी य धनके पास खजाना है और उसके ब त-से सहायक भी ह; इसी लये वह बु पापा मा सदा हम सताया करता है ।। ११ ।। स भवान् मो य व मान् य नेना माद् ताशनात् । अ मा वह ह द धेषु सकामः यात् सुयोधनः ।। १२ ।। ‘तुम य न करके हमलोग को इस आगसे बचा लो; अ यथा हमलोग के यहाँ द ध हो जानेपर य धनका मनोरथ सफल हो जायगा ।। १२ ।। समृ मायुधागार मदं त य रा मनः । व ा तं न तीकारमा येदं कृतं महत् ।। १३ ।। इदं तदशुभं नूनं त य कम चक षतम् । ागेव व रो वेद तेना मान वबोधयत् ।। १४ ।। ‘यह उस रा माका अ -श से भरा आ आयुधागार है। इसीके सहारे इस महान् गृहका नमाण कया गया है। इसम चहारद वारीके नकटतक कह कोई बाहर नकलनेका माग नह है। अव य ही य धनका यह अशुभ कम, जसे वह पूण करना चाहता है, पहले ही व रजीको मालूम हो गया था। इसी लये उ ह ने हम इसक जानकारी करा द ।। १३-१४ ।। सेयमापदनु ा ता ा यां वान् पुरा । पुरोचन या व दतान मां वं तमोचय ।। १५ ।। ‘ व रजीक म जो ब त पहले आ चुक थी, वही यह वप आज हमलोग पर आयी-क -आयी है। तुम हम इस संकटसे इस तरह मु करो, जससे पुरोचनको हमारे वषयम कुछ भी पता न चले’ ।। १५ ।। स तथे त त ु य खनको य नमा थतः ।

प रखामु कर ाम चकार च महा बलम् ।। १६ ।। तब उस सुरंग खोदनेवालेने ‘ब त अ छा, ऐसा ही होगा’, यह त ा क और काय स के य नम लग गया। खाईक सफाई करनेके ाजसे उसने एक ब त बड़ी सुरंग तैयार कर द ।। १६ ।। च े च वे मन त य म येना तमहद् बलम् । कपाटयु म ातं समं भू या भारत ।। १७ ।। भारत! उसने उस भवनके ठ क बीचसे वह महान् सुरंग नकाली। उसके मुहानेपर कवाड़ लगे थे। वह भू मके समान सतहम ही बनी थी; अतः कसीको ात नह हो पाती थी ।। १७ ।। पुरोचनभयादे व दधात् संवृतं मुखम् । स त य तु गृह ा र वस यशुभधीः सदा । त ते सायुधाः सव वस त म पां नृप ।। १८ ।। दवा चर त मृगयां पा डवेया वनाद् वनम् । व तवद व ता व चय तः पुरोचनम् । अतु ा तु वद् राज ूषुः परम व मताः ।। १९ ।। पुरोचनके भयसे उस सुरंग खोदनेवालेने उसके मुखको बंद कर दया था। बु पुरोचन सवदा मकानके ारपर ही नवास करता था और पा डवगण भी रा के समय श सँभाले सावधानीके साथ उस ारपर ही रहा करते थे। (इस लये पुरोचनको आग लगानेका अवसर नह मलता था।) वे दनम ह पशु के मारनेके बहाने एक वनसे सरे वनम वचरते रहते थे। पा डव भीतरसे तो व ास न करनेके कारण सदा चौक े रहते थे, परंतु ऊपरसे पुरोचनको ठगनेके लये व तक भाँ त वहार करते थे। राजन्! वे संतु न होते ए भी संतु क भाँ त नवास करते और अ य त व मययु रहते थे ।। १८-१९ ।। न चैनान वबु य त नरा नगरवा सनः । अ य व रामा यात् त मात् खनकस मात् ।। २० ।। व रके म ी और खोदाईके कामम े उस खनकको छोड़कर नगरके नवासी भी पा डव के वषयम कुछ नह जान पाते थे ।। २० ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण जतुगृहपव ण जतुगृहवासे षट् च वारशद धकशततमोऽ यायः ।। १४६ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत जतुगह ृ पवम जतुगह ृ वास वषयक एक सौ छयालीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १४६ ।।

स तच वा रशद धकशततमोऽ यायः ला ागृहका दाह और पा डव का सुरंगके रा ते नकल जाना वैश पायन उवाच तां तु ् वा सुमनसः प रसंव सरो षतान् । व ता नव संल य हष च े पुरोचनः ।। १ ।। पुरोचने तथा े कौ तेयोऽथ यु ध रः । भीमसेनाजुनौ चोभौ यमौ ोवाच धम वत् ।। २ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! पा डव को एक वषसे वहाँ स च हो व तक तरह रहते ए दे ख पुरोचनको बड़ा हष आ। उसके इस कार स होनेपर धमके ाता कु तीन दन यु ध रने भीमसेन, अजुन, नकुल और सहदे वसे इस कार कहा — ।। १-२ ।। अ मानयं सु व तान् वे पापः पुरोचनः । व चतोऽयं नृशंसा मा कालं म ये पलायने ।। ३ ।। ‘पापी पुरोचन हमलोग को पूण व त समझ रहा है। इस ू रको अबतक हमलोग ने धोखा दया है। अब मेरी रायम हमारे भाग नकलनेका यह उपयु अवसर आ गया है ।। ३ ।। आयुधागारमाद य द वा चैव पुरोचनम् । षट् ा णनो नधायेह वामोऽन भल ताः ।। ४ ।। ‘इस आयुधागारम आग लगाकर पुरोचनको जला करके इसके भीतर छः ा णय को रखकर हम इस तरह भाग नकल क कोई हम दे ख न सके’ ।। ४ ।। अथ दानापदे शेन कु ती ा णभोजनम् । च े न श महाराज आज मु त यो षतः ।। ५ ।। ता व य यथाकामं भु वा पी वा च भारत । ज मु न श गृहानेव समनु ा य माधवीम् ।। ६ ।। महाराज! तदन तर एक दन रा के समय कु तीने दान दे नेके न म ा ण-भोजन कराया। उसम ब त-सी याँ भी आयी थ । भारत! वे सब याँ इ छानुसार घूमफरकर खा-पी लेनेके बाद कु तीदे वीसे आ ा ले रातम फर अपने-अपने घर को ही लौट गय ।। ५-६ ।। नषाद प चपु ा तु त मन् भो ये य छया । अ ा थनी सम यागात् सपु ा कालचो दता ।। ७ ।। सा पी वा म दरां म ा सपु ा मद व ला । सह सवः सुतै राजं त म ेव नवेशने ।। ८ ।।

सु वाप वगत ाना मृतक पा नरा धप । अथ वाते तुमुले न श सु ते जने तदा ।। ९ ।। त पाद पयद् भीमः शेते य पुरोचनः । ततो जतुगृह ारं द पयामास पा डवः ।। १० ।। परंतु दै वे छासे उस भोजके समय एक भीलनी अपने पाँच बेट के साथ वहाँ भोजनक इ छासे आयी, मानो कालने ही उसे े रत करके वहाँ भेजा था। वह भीलनी म दरा पीकर मतवाली हो चुक थी। उसके पु भी शराब पीकर म त थे। राजन्! शराबके नशेम बेहोश होनेके कारण अपने सब पु के साथ वह उसी घरम सो गयी। उस समय वह अपनी सुधबुध खोकर मृतक-सी हो रही थी। रातम जब सब लोग सो गये, उस समय सहसा बड़े जोरक आँधी चली। तब भीमसेनने उस जगह आग लगा द , जहाँ पुरोचन सो रहा था। फर उ ह ने ला ागृहके मुख ारपर आग लगायी ।। ७—१० ।। सम ततो ददौ प ाद नं त नवेशने । ा वा तु तद् गृहं सवमाद तं पा डु न दनाः ।। ११ ।। सुर ां व वशु तूण मा ा साधमरदमाः । ततः तापः सुमहा छ द ैव वभावसोः ।। १२ ।। ा रासीत् तदा तेन बुबुधे स जन जः । तदवे य गृहं द तमा ः पौराः कृशाननाः ।। १३ ।। इसके प ात् उ ह ने उस घरके चार ओर आग लगा द । जब वह सारा घर अ नक लपेटम आ गया, तब यह जानकर श ु का दमन करनेवाले पा डव अपनी माताके साथ सुरंगम घुस गये; फर तो वहाँ अ नक भयंकर लपट उठने लग , भीषण ताप फैल गया। घरको जलानेवाली उस आगका महान् चट-चट श द सुनायी दे ने लगा। इससे उस नगरका जनसमूह जाग उठा। उस घरको जलता दे ख पुरवा सय के मुखपर द नता छा गयी। वे ाकुल होकर कहने लगे ।। ११—१३ ।। पौरा ऊचुः य धन यु े न पापेनाकृतबु ना । गृहमा म वनाशाय का रतं दा हतं च तत् ।। १४ ।। अहो धग् धृतरा य बु ना तसम सा । यः शुचीन् पा डु दायादान् दाहयामास श ुवत् ।। १५ ।। पुरवासी बोले—अहो! पुरोचनका अ तःकरण अपने वशम नह था। उस पापीने य धनक आ ासे अपने ही वनाशके लये इस घरको बनवाया और जला भी दया! अहो! ध कार है, धृतराक बु ब त बगड़ गयी है, जसने शु दयवाले पा डु पु को श ुक भाँ त आगम जला दया ।। १४-१५ ।। द ा वदान पापा मा द धोऽयम त म तः । अनागसः सु व तान् यो ददाह नरो मान् ।। १६ ।। ौ









सौभा यक बात है क यह अ य त खोट बु वाला पापा मा पुरोचन भी इस समय द ध हो गया है, जसने बना कसी अपराधके अपने ऊपर पूण व ास करनेवाले नर े पा डव को जला दया है ।। १६ ।। वैश पायन उवाच एवं ते वलप त म वारणावतका जनाः । प रवाय गृहं त च त थू रा ौ सम ततः ।। १७ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! इस कार वारणावतके लोग वलाप करने लगे। वे रातभर उस घरको चार ओरसे घेरकर खड़े रहे ।। १७ ।। पा डवा ा प ते सव सह मा ा सु ःखताः । बलेन तेन नग य ज मु तमल ताः ।। १८ ।। उधर सम त पा डव भी अ य त ःखी हो अपनी माताके साथ सुरंगके मागसे नकलकर तुरंत ही र चले गये। उ ह कोई भी दे ख न सका ।। १८ ।। तेन न ोपरोधेन सा वसेन च पा डवाः । न शेकुः सहसा ग तुं सह मा ा परंतपाः ।। १९ ।। न द न ले सकनेके कारण आल य और भयसे यु परंतप पा डव अपनी माताके साथ ज द -ज द चल नह पाते थे ।। १९ ।। भीमसेन तु राजे भीमवेगपरा मः । जगाम ातॄनादाय सवान् मातरमेव च ।। २० ।। क धमारो य जनन यमावङ् केन वीयवान् । पाथ गृही वा पा ण यां ातरौ सुमहाबलः ।। २१ ।। राजे ! भयंकर वेग और परा मवाले भीमसेन अपने सब भाइय तथा माताको भी साथ लये चल रहे थे। वे महान् बल और परा मसे स प थे। उ ह ने माताको तो कंधेपर चढ़ा लया और नकुल-सहदे वको गोदम उठा लया तथा शेष दोन भाइय को दोन हाथ से पकड़कर उ ह सहारा दे ते ए चलने लगे ।। २०-२१ ।। उरसा पादपान् भ न् मह पद् यां वदारयन् । स जगामाशु तेज वी वातरंहा वृकोदरः ।। २२ ।। तेज वी भीम वायुके समान वेगशाली थे। वे अपनी छातीके ध केसे वृ को तोड़ते और पैर क ठोकरसे पृ वीको वद ण करते ए ती ग तसे आगे बढ़े जा रहे थे ।। २२ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण जतुगृहपव ण जतुगृहदाहे स तच वारशद धकशततमोऽ यायः ।। १४७ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत जतुगह ृ पवम जतुगह ृ दाह वषयक एक सौ सतालीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १४७ ।।

अ च वा रशद धकशततमोऽ यायः व रजीके भेजे ए ना वकका पा डव को गंगाजीके पार उतारना वैश पायन उवाच एत म ेव काले तु यथास ययं क वः । व रः ेषयामास तद् वनं पु षं शु चम् ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! इसी समय परम ानी व रजीने अपने व ासके अनुसार एक शु वचारवाले पु षको उस वनम भेजा ।। १ ।।

सुरंग ारा मातास हत पा डव का ला ागृहसे नकलना

भीम अपने चार भाइय को तथा माताको उठाकर ले चले ो े े े

स ग वा तु यथो े शं पा डवान् द शे वने । जन या सह कौर मापयानान् नद जलम् ।। २ ।। कु न दन! उसने व रजीके बताये अनुसार ठ क थानपर प ँचकर वनम मातास हत पा डव को दे खा, जो नद म कतना जल है, इसका अनुमान लगा रहे थे ।। २ ।। व दतं त महाबु े व र य महा मनः । तत त या प चारेण चे तं पापचेतसः ।। ३ ।। ततः वा सतो व ान् व रेण नर तदा । पाथानां दशयामास मनोमा तगा मनीम् ।। ४ ।। सववातसहां नावं य यु ां पता कनीम् । शवे भागीरथीतीरे नरै व भ भः कृताम् ।। ५ ।। परम बु मान् महा मा व रको गु तचर ारा उस पापास पुरोचनक चे ा का भी पता चल गया था। इसी लये उ ह ने उस समय उस बु मान् मनु यको वहाँ भेजा था। उसने मन और वायुके समान वेगसे चलनेवाली एक नाव पा डव को दखायी, जो सब कारसे हवाका वेग सहनेम समथ और वजा-पताका से सुशो भत थी। उस नौकाको चलानेके लये य लगाया गया था। वह नाव गंगाजीके पावन तटपर व मान थी और उसे व ासी मनु य ने बनाकर तैयार कया था ।। ३—५ ।। ततः पुनरथोवाच ापकं पूवचो दतम् । यु ध र नबोधेदं सं ाथ वचनं कवेः ।। ६ ।। तदन तर उस मनु यने कहा—‘यु ध रजी! ानी व रजीके ारा पहले कही ई यह बात, जो मेरी व सनीयताको सू चत करनेवाली है, पुनः सु नये। म आपको संकेतके तौरपर मरण दलानेके लये इसे कहता ँ ।। ६ ।। क नः श शर न महाक े बलौकसः । न ह ती येवमा मानं यो र त स जीव त ।। ७ ।। ‘(तुमसे व रजीने कहा था—) ‘घास-फूस तथा सूखे वृ के जंगलको जलानेवाली और सद को न कर दे नेवाली आग वशाल वनम फैल जानेपर भी बलम रहनेवाले चूहे आ द ज तु को नह जला सकती। य समझकर जो अपनी र ाका उपाय करता है, वही जी वत रहता है’ ।। ७ ।। तेन मां े षतं व व तं सं यानया । भूय ैवाह मां ा व रः सवतोऽथ वत् ।। ८ ।। कण य धनं चैव ातृ भः स हतं रणे । शकु न चैव कौ तेय वजेता स न संशयः ।। ९ ।। ‘इस संकेतसे आप यह जान ल क ‘म व ास-पा ँ और व रजीने ही मुझे भेजा है।’ इसके सवा, सवतोभावेन अथ स का ान रखनेवाले व रजीने पुनः मुझसे आपके लये यह संदेश दया क ‘कु ती-न दन! तुम यु म भाइय स हत य धन, कण और शकु नको अव य परा त करोगे, इसम संशय नह है ।। ८-९ ।। इयं वा रपथे यु ा नौर सु सुखगा मनी । ो े

मोच य य त वः सवान माद् दे शा संशयः ।। १० ।। ‘यह नौका जलमागके लये उपयु है। जलम यह बड़ी सुगमतासे चलनेवाली है। यह नाव तुम सब लोग को इस दे शसे र छोड़ दे गी, इसम संदेह नह है’ ।। १० ।। अथ तान् थतान् ् वा सह मा ा नरो मान् । नावमारो य ग ायां थतान वीत् पुनः ।। ११ ।। इसके बाद मातास हत नर े पा डव को अ य त ःखी दे ख ना वकने उन सबको नावपर चढ़ाया और जब वे गंगाके मागसे थान करने लगे, तब फर इस कार कहा — ।। ११ ।। व रो मू युपा ाय प र व य वचो मु ः । अ र ं ग छता ाः प थान म त चा वीत् ।। १२ ।। ‘ व रजीने आप सभी पा डु पु को भावना ारा दयसे लगाकर और म तक सूँघकर यह आशीवाद फर कहलाया है क ‘तुम शा त च हो कुशलपूवक मागपर बढ़ते जाओ’ ।। १२ ।। इ यु वा स तु तान् वीरान् पुमान् व रचो दतः । तारयामास राजे ग ां नावा नरषभान् ।। १३ ।। राजे ! व रजीके भेजनेसे आये ए उस ना वकने उन शूरवीर नर े पा डव से ऐसी बात कहकर उसी नावसे उ ह गंगाजीके पार उतार दया ।। १३ ।। तार य वा ततो ग ां पारं ा तां सवशः । जया शषः यु याथ यथागतमगा सः ।। १४ ।। पार उतारनेके प ात् जब वे गंगाजीके सरे तटपर जा प ँचे, तब उन सबके लये ‘जय हो, जय हो’ यह आशीवाद सुनाकर वह ना वक जैसे आया था, उसी कार लौट गया ।। १४ ।। पा डवा महा मानः तसं द य वै कवेः । ग ामु ीय वेगेन ज मुगूढमल ताः ।। १५ ।। महा मा पा डव भी व ान् व रजीको उनके संदेशका उ र दे कर गंगापार हो अपनेको छपाते ए वेगपूवक वहाँसे चल दये। कोई भी उ ह दे ख या पहचान न सका ।। १५ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण जतुगृहपव ण ग ो रणे अ च वारशद धकशततमोऽ यायः ।। १४८ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत जतुगह ृ पवम पा डव के गंगापार होनेसे स ब ध रखनेवाला एक सौ अड़तालीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १४८ ।।

एकोनप चाशद धकशततमोऽ यायः धृतरा आ दके ारा पा डव के लये शोक काश एवं जलांज लदान तथा पा डव का वनम वेश वैश पायन उवाच अथ रायां तीतायामशेषो नागरो जनः । त ाजगाम व रतो द ुः पा डु न दनान् ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! उधर रात तीत होनेपर वारणावत नगरके सारे नाग रक बड़ी उतावलीके साथ पा डु कुमार क दशा दे खनेके लये उस ला ागृहके समीप आये ।। १ ।। नवापय तो वलनं ते जना द शु ततः । जातुषं तद् गृहं द धममा यं च पुरोचनम् ।। २ ।। आते ही वे (सब) लोग आग बुझानेम लग गये। उस समय उ ह ने दे खा क सारा घर लाखका बना था, जो जलकर खाक हो गया। उसीम म ी पुरोचन भी जल गया था ।। २ ।। नूनं य धनेनेदं व हतं पापकमणा । पा डवानां वनाशाये येवं ते चु ु शुजनाः ।। ३ ।। (यह दे ख) वे (सभी) नाग रक च ला- च लाकर कहने लगे क ‘अव य ही पापाचारी य धनने पा डव का वनाश करनेके लये इस भवनका नमाण करवाया था ।। ३ ।। व दते धृतरा य धातरा ो न संशयः । द धवान् पा डु दायादान् न ेनं त ष वान् ।। ४ ।। ‘इसम संदेह नह क धृतरापु य धनने धृतराक जानकारीम पा डु पु को जलाया है और धृतराने इसे मना नह कया ।। ४ ।। नूनं शांतनवोऽपीह न धममनुवतते । ोण व र ैव कृप ा ये च कौरवाः ।। ५ ।। ‘ न य ही इस वषयम शंतनुन दन भी मजी भी धमका अनुसरण नह कर रहे ह। ोण, व र, कृपाचाय तथा अ य कौरव क भी यही दशा है ।। ५ ।। ते वयं धृतरा य ेषयामो रा मनः । संवृ ते परः कामः पा डवान् द धवान स ।। ६ ।। ‘अब हमलोग रा मा धृतराक े पास यह संदेश भेज द क तु हारी सबसे बड़ी कामना पूरी हो गयी। तुम पा डव को जलानेम सफल हो गये’ ।। ६ ।। ततो पोहमाना ते पा डवाथ ताशनम् । नषाद द शुद धां प चपु ामनागसम् ।। ७ ।। े

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तदन तर उ ह ने पा डव को ढूँ ढ़नेके लये जब आगको इधर-उधर हटाया, तब पाँच पु के साथ नरपराध भीलनीक जली लाश दे खी ।। ७ ।। खनकेन तु तेनैव वे म शोधयता बलम् । पांसु भः प हतं त च पु षै तैन ल तम् ।। ८ ।। उसी सुरंग खोदनेवाले पु षने घरको साफ करते समय सुरंगके छे दको धूलसे ढक दया था। इससे सरे लोग क उसपर नह पड़ी ।। ८ ।। तत ते ापयामासुधृतरा य नागराः । पा डवान नना द धानमा यं च पुरोचनम् ।। ९ ।। तदन तर वारणावतके नाग रक ने धृतराको यह सू चत कर दया क पा डव तथा म ी पुरोचन आगम जल गये ।। ९ ।। ु वा तु धृतरा तद् राजा सुमहद यम् । वनाशं पा डु पु ाणां वललाप सु ःखतः ।। १० ।। महाराज धृतरा पा डु पु के वनाशका यह अ य त अ य समाचार सुनकर ब त ःखी हो वलाप करने लगे— ।। १० ।। अ पा डु मृतो राजा मम ाता महायशाः । तेषु वीरेषु द धेषु मा ा सह वशेषतः ।। ११ ।। ‘अहो! मातास हत इन शूरवीर पा डव के द ध हो जानेपर वशेष पसे ऐसा लगता है, मानो मेरे भाई महायश वी राजा पा डु क मृ यु आज ई है ।। ११ ।। ग छ तु पु षाः शी ं नगरं वारणावतम् । स कारय तु तान् वीरान् कु तराजसुतां च ताम् ।। १२ ।। ‘मेरे कुछ लोग शी ही वारणावत नगरम जायँ और कु तभोजकुमारी कु ती तथा वीरवर पा डव का आदरपूवक दाहसं कार कराय ।। १२ ।। कारय तु च कु या न शुभा न च बृह त च । ये च त मृता तेषां सु दो या तु तान प ।। १३ ।। ‘उन सबके कुलो चत शुभ और महान् सं कारक व था कर तथा जो-जो उस घरम जलकर मरे ह, उनके सु द् एवं सगे-स ब धी भी उन मृतक का दाह-सं कार करनेके लये वहाँ जायँ ।। १३ ।। एवं गते मया श यं यद् यत् कार यतुं हतम् । पा डवानां च कु या तत् सव यतां धनैः ।। १४ ।। एवमु वा तत े ा त भः प रवा रतः । उदकं पा डु पु ाणां धृतरा ोऽ बकासुतः ।। १५ ।। ‘इस दशाम मुझे पा डव तथा कु तीका हत करनेके लये जो-जो काय करना चा हये या जो-जो काय मुझसे हो सकता है, वह सब धन खच करके स प कया जाय।’ य कहकर अ बकान दन धृतराने जा तभाइय से घरे रहकर पा डव के लये जलांज ल दे नेका काय कया ।। १४-१५ ।। (समेता तु ततः सव भी मेण सह कौरवाः ।

धृतरा ः सपु ग ाम भमुखा ययुः ।। एकव ा नरान दा नराभरणवे नाः । उदकं कतुकामा वै पा डवानां महा मनाम् ।।) उस समय भी म, सब कौरव तथा पु स हत धृतरा एक हो महा मा पा डव को जलांज ल दे नेक इ छासे गंगाजीके नकट गये। उन सबके शरीरपर एक-एक ही व था। वे सभी आभूषण और पगड़ी आ द उतारकर आन दशू य हो रहे थे। ः स हताः सव भृशं शोकपरायणाः । हा यु ध र कौर हा भीम इ त चापरे ।। १६ ।। उस समय सब लोग अ य त शोकम न हो एक साथ रोने और वलाप करने लगे। कोई कहता—‘हा कु वंश- वभूषण यु ध र!’ सरे कहते—‘हा भीमसेन!’ ।। १६ ।। हा फा गुने त चा य ये हा यमा व त चापरे । कु तीमाता शोच त उदकं च रे जनाः ।। १७ ।। अ य कोई बोलते—‘हा अजुन!’ और इसी कार सरे लोग ‘हा नकुल-सहदे व!’ कहकर पुकार उठते थे। सब लोग ने कु तीदे वीके लये शोकात होकर जलांज ल द ।। १७ ।। अ ये पौरजना ैवम वशोच त पा डवान् । व र व पश े शोकं वेद परं ह सः ।। १८ ।। इसी कार सरे- सरे पुरवासीजन भी पा डव के लये ब त शोक करने लगे। व रजीने ब त थोड़ा शोक मनाया; य क वे वा त वक वृ ा तसे प र चत थे ।। १८ ।। (ततः थतो भी मः पा डु राजसुतान् मृतान् । सह मा े त त छ वा वललाप रोद च ।। भी म उवाच न ह तौ नो सहेयातां भीमसेनधनंजयौ । तरसा वे गता मानौ नभ ुम प म दरम् । परासु वं न प या म पृथायाः सह पा डवैः ।। सवथा वकृतं नीतं य द ते नधनं गताः । धमराजः स न द ो ननु व ैयु ध रः ।। स य तो धमद ः स यवा छु भल णः । कथं कालवशं ा तः पा डवेयो यु ध रः ।। आ मानमुपमां कृ वा परेषां वतते तु यः । सह मा ा तु कौर ः कथं कालवशं गतः ।। यौवरा येऽ भ ष े न पतुयना तं यशः । आ मन पतु ैव स यधम य वृ भः ।। कालेन स ह स भ नो धक् कृता तमनथकम् ।। य च सा वनवासेन ले शता ःखभा गनी । ी

पु गृ नुतया कु ती न भतारं मृता वनु ।। अ पकालं कुले जाता भतुः ी तमवाप या । द धा सह पु ैः सा अस पूणमनोरथा ।। पीन क ध ा बा म कूटसमो युवा । मृतो भीम इ त ु वा मनो न धा त मे ।। अ न ा न च यो ग छन् ह तो ढायुधः । प माँ लधल यो रथयान वशारदः ।। रपाती वस ा तो महावीय महा वत् । अद ना मा नर ा ः े ः सवधनु मताम् ।। येन ा याः ससौवीरा दा णा या न जताः । या पतं येन शूरेण षु लोकेषु पौ षम् ।। य म ाते वशोकाभूत् कु ती पा डु वीयवान् । पुर दरसमो ज णुः कथं कालवशं गतः ।। कथं तावृषभ क धौ सह व ा तगा मनौ । म यधममनु ा तौ यमाव र नबहणौ ।। तदन तर भी मजी यह सुनकर क राजा पा डु के पु अपनी माताके साथ जल मरे ह, अ य त थत हो उठे और रोने एवं वलाप करने लगे। भी मजी बोले—वे दोन भाई भीमसेन और अजुन उ साह-शू य हो गये ह , ऐसा तो नह तीत होता। य द वे वेगसे अपने शरीरका ध का दे ते तो सु ढ़ मकानको भी तोड़फोड़ सकते थे। अतः पा डव के साथ कु तीक मृ यु हो गयी है, ऐसा मुझे नह दखायी दे ता। य द सचमुच उन सबक मृ यु हो चुक है, तब तो यह सभी कारसे ब त बुरी बात ई है। ा ण ने तो धमराज यु ध रके वषयम यह कहा था क ये धमके दये ए राजकुमार स य ती, स यवाद एवं शुभ ल ण से स प ह गे। ऐसे वे पा डु न दन यु ध र कालके अधीन कैसे हो गये? जो अपने-आपको आदश बनाकर तदनु प सर के साथ बताव करते थे वे ही कु कुल शरोम ण यु ध र अपनी माताके साथ कालके अधीन कैसे हो गये? ज ह ने युवराजपदपर अ भ ष होते ही पताके समान ही अपने स य एवं धमपूण बतावके ारा अपना ही नह , राजा पा डु के भी यशका व तार कया था, वे यु ध र भी कालके अधीन हो गये। ऐसे नक मे कालको ध कार है। उ म कुलम उ प कु ती, जो पु क अ भलाषा रखनेके कारण ही वनवासका क भोगती और ःखपर ःख उठाती रही तथा प तके मरनेपर भी उनका अनुगमन न कर सक , जसे ब त थोड़े समयतक ही प तका ेम ा त आ था, वही कु तभोजकुमारी अभी अपने मनोरथ पूरे भी न कर पायी थी क पु के साथ द ध हो गयी! जनके भरे ए कंधे और मनोहर भुजाएँ थ , जो मे - शखरके समान सु दर एवं त ण थे, वे भीमसेन मर गये, यह सुनकर भी मनको व ास नह होता। जो सदा उ म माग पर चलते थे, जनके हाथ म बड़ी फुत थी, जनके आयुध अ य त ढ़ थे, जो गु जन के आ त रहते थे, जनका नशाना कभी चूकता नह था, जो रथ हाँकनेम कुशल, रतकका ल य बेधनेवाले, कभी ाकुल न ो े े ी औ े े े ी

होनेवाले, महापरा मी और महान् अ के ाता थे, जनके दयम कभी द नता नह आती थी, जो मनु य म सहके समान परा मी तथा स पूण धनुधर म े थे, ज ह ने ा य, सौवीर और दा णा य नरेश को परा त कया था, जस शूरवीरने तीन लोक म अपने पु षाथको स कया था और जनके ज म लेनेपर कु ती और महापरा मी पा डु भी शोकर हत हो गये थे, वे इ के समान वजयी वीर अजुन भी कालके अधीन कैसे हो गये? जो बैलके-से -पु कंध से सुशो भत थे तथा सहक -सी म तानी चालसे चलते थे, वे श ु का संहार करनेवाले नकुल-सहदे व सहसा मृ युको कैसे ा त हो गये? वैश पायन उवाच त य व दतं ु वा उदकं च स चतः । दे शकालं समा ाय व रः यभाषत ।। मा शोची वं नर ा ज ह शोकं महा त । न तेषां व ते पापं ा तकालं कृतं मया । एत च ते य उदकं व स च न भारत ।। सोऽ वीत् क च साय कौरवाणामशृ वताम् । ारमुपसंगृ बा पो पीडकल वरः ।। वैश पायनजी कहते ह—जलांज ल-दान दे ते समय भी मजीका यह वलाप सुनकर व रजीने दे श और कालका भलीभाँ त वचार करके कहा—‘नर े ! आप ःखी न ह । महा ती वीर! आप शोक याग द, पा डव क मृ यु नह ई है। मने उस अवसरपर जो उ चत था, वह काय कर दया है। भारत! आप उन पा डव के लये जलांज ल न द।’ तब भी मजी व रका हाथ पकड़कर उ ह कुछ र हटा ले गये, जहाँसे कौरवलोग उनक बात न सुन सक। फर वे आँसू बहाते ए गद्गद वाणीम बोले। भी म उवाच कथं ते तात जीव त पा डोः पु ा महारथाः । कथम म कृते प ः पा डोन ह नपा ततः ।। कथं म मुखाः सव मु ा महतो भयात् । जननी ग डेनेव कुमारा ते समुदधृ ् ताः ।। भी मजीने कहा—तात! पा डु के वे महारथी पु कैसे जी वत बच गये? पा डु का प कस तरह हमारे लये न होनेसे बच गया? जैसे ग ड़ने अपनी माताक र ा क थी, उसी कार तुमने कस तरह पा डु कुमार को बचाकर हम सब लोग क महान् भयसे र ा क है? वैश पायन उवाच एवमु तु कौर कौरवाणामशृ वताम् । आचच े स धमा मा भी माया तकमणे ।। ै













वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! इस कार पूछे जानेपर धमा मा व रने कौरव के न सुनते ए अ त कम करनेवाले भी मजीसे इस कार कहा— व र उवाच धृतरा य शकुने रा ो य धन य च । वनाशे पा डु पु ाणां कृतो म त व न यः ।। ततो जतुगृहं ग वा दहनेऽ मन् नयो जते । पृथाया सपु ाया धातरा य शासनात् ।। ततः खनकमाय सुर ां वै बले तदा । सगुहां कार य वा ते कु या पा डु सुता तदा ।। न ा मता मया पूव मा म शोके मनः कृथाः । नगताः पा डवा राजन् मा ा सह परंतपाः ।। अ नदाहा महाघोरा मया त मा पायतः । मा म शोक ममं काष ज व येव च पा डवाः ।। छ ा वच र य त यावत् काल य पययः ।। त मन् यु ध रं काले द य त भु व भू मपाः ।) व र बोले—धृतरा, शकु न तथा राजा य धनका यह प का वचार हो गया था क पा डव को न कर दया जाय। तदन तर ला ागृहम जानेपर जब य धनक आ ासे पु स हत कु तीको जला दे नेक योजना बन गयी, तब मने एक भू म खोदनेवालेको बुलाकर भूगभम गुफास हत सुरंग खुदवायी और कु तीस हत पा डव को घरम आग लगनेसे पहले ही नकाल लया, अतः आप अपने मनम शोकको थान न द जये। राजन्! श ु को संताप दे नेवाले पा डव अपनी माताके साथ उस महाभयंकर अ नदाहसे र नकल गये ह। मेरे पूव उपायसे ही यह काय स भव हो सका है। पा डव न य ही जी वत ह, अतः आप उनके लये शोक न क जये। जबतक यह समय बदलकर अनुकूल नह हो जाता, तबतक वे पा डव छपे रहकर इस भूतलपर वचरगे। अनुकूल समय आनेपर सब राजा इस पृ वीपर यु ध रको दे खगे। पा डवा ा प नग य नगराद् वारणावतात् । नद ग ामनु ा ता मातृष ा महाबलाः ।। १९ ।। (इधर) महाबली पा डव भी वारणावत नगरसे नकलकर माताके साथ गंगा नद के तटपर प ँचे ।। १९ ।। दाशानां भुजवेगेन न ाः ोतोजवेन च । वायुना चानुकूलेन तूण पारमवा ुवन् ।। २० ।। वे ना वक क भुजा तथा नद के वाहके वेगसे अनुकूल वायुक सहायता पाकर ज द ही पार उतर गये ।। २० ।। ततो नावं प र य य ययुद णां दशम् । व ाय न श प थानं न गणसू चतम् ।। २१ ।। ो





तदन तर नाव छोड़ रातम न ारा सू चत मागको पहचानकर वे द ण दशाक ओर चल दये ।। २१ ।। यतमाना वनं राजन् गहनं तपे दरे । ततः ा ताः पपासाता न ा धाः पा डु न दनाः ।। २२ ।। पुन चुमहावीय भीमसेन मदं वचः । इतः क तरं क नु यद् वयं गहने वने । दश न वजानीमो ग तुं चैव न श नुमः ।। २३ ।। राजन्! इस कार आगे बढ़नेक चे ा करते ए वे सब-के-सब एक घने जंगलम जा प ँचे। उस समय पा डवलोग थके-माँदे, याससे पी ड़त और (अ धक जगनेसे) न दम अंधे-से हो रहे थे। वे महापरा मी भीमसेनसे पुनः इस कार बोले—‘भारत! इससे बढ़कर महान् क या होगा क हमलोग इस घने जंगलम फँसकर दशा को भी नह जान पाते तथा चलने- फरनेम भी असमथ हो रहे ह ।। २२-२३ ।। तं च पापं न जानीमो य द द धः पुरोचनः । कथं तु व मु येम भयाद मादल ताः ।। २४ ।। ‘हम यह भी पता नह है क पापी पुरोचन जल गया या नह । हम सर से छपे रहकर कस कार इस महान् क से छु टकारा पा सकगे?’ ।। २४ ।। पुनर मानुपादाय तथैव ज भारत । वं ह नो बलवानेको यथा सततग तथा ।। २५ ।। ‘भैया! तुम पुनः पूववत् हम सबको लेकर चलो। हमलोग म एक तु ह अ धक बलवान् और उसी कार नर तर चलने- फरनेम भी समथ हो’ ।। २५ ।। इ यु ो धमराजेन भीमसेनो महाबलः । आदाय कु त ातॄं जगामाशु महाबलः ।। २६ ।। धमराजके य कहनेपर महाबली भीमसेन माता कु ती तथा भाइय को अपने ऊपर चढ़ाकर बड़ी शी ताके साथ चलने लगे ।। २६ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण जतुगृहपव ण पा डववन वेशे एकोनप चाशद धकशततमोऽ यायः ।। १४९ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत जतुगह ृ पवम पा डव का वनम वेश वषयक एक सौ उनचासवाँ अ याय पूरा आ ।। १४९ ।। (दा णा य अ धक पाठक े २९ ोक मलाकर कुल ५५ ोक ह)

प चाशद धकशततमोऽ यायः माता कु तीके लये भीमसेनका जल ले आना, माता और भाइय को भू मपर सोये दे खकर भीमका वषाद एवं य धनके त ोध वैश पायन उवाच तेन व ममाणेन ऊ वेगसमी रतम् । वनं सवृ वटपं ाघू णत मवाभवत् ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! भीमसेनके चलते समय उनके महान् वेगसे आ दो लत हो वृ और शाखा स हत वह स पूण वन घूमता-सा तीत होने लगा ।। १ ।। जङ् घावातो ववौ चा य शु चशु ागमे यथा । आव जतलतावृ ं माग च े महाबलः ।। २ ।। जैसे ये और आषाढ़ मासके सं धकालम जोर-जोरसे हवा चलने लगती है, उसी कार उनक पड लय के वेगपूवक संचालनसे आँधी-सी उठ रही थी। महाबली भीम जस मागसे चलते, वहाँक लता और वृ को पैर से र दकर जमीनके बराबर कर दे ते थे ।। २ ।। स मृदनन् ् पु पतां ैव फ लतां वन पतीन् । अव य ययौ गु मान् पथ त य समीपजान् ।। ३ ।। उनके मागके नकट जो फल और फूल से लदे ए वन प त एवं गु म आ द होते, उ ह तोड़कर वे पैर से र दते जाते थे ।। ३ ।। स रो षत इव ु ो वने भ न् महा मान् । ुतमदः शु मी ष वष मत राट् ।। ४ ।। जैसे तीन अंग से मद बहानेवाला साठ वषका तेज वी गजराज ( कसी कारणसे) कु पत हो वनके बड़े-बड़े वृ को तोड़ने लगता है, उसी कार महातेज वी भीमसेन उस वनके वशाल वृ को धराशायी करते ए आगे बढ़ रहे थे ।। ४ ।। ग छत त य वेगेन ता यमा तरंहसः । भीम य पा डु पु ाणां मू छव समजायत ।। ५ ।। ग ड़ और वायुके समान ती ग तवाले भीमसेनके चलते समय उनके (महान्) वेगसे अ य पा डु पु को मू छा-सी आ जाती थी ।। ५ ।। असकृ चा प संतीय रपारं भुज लवैः । प थ छ मासे धातरा भयात् तदा ।। ६ ।। मागम आये ए जल- वाहको, जसका पाट रतक फैला होता था, दोन भुजा के बेड़े ारा ही बारंबार पार करके वे सब पा डव य धनके भयसे कसी गु त थानम जाकर रहते थे ।। ६ ।। े ै ी

कृ े ण मातरं चैव सुकुमार यश वनीम् । अवहत् स तु पृ ेन रोध तु वषमेषु च ।। ७ ।। भीमसेन अपनी सुकुमारी एवं यश वनी माता कु तीको पीठपर बठाकर नद के ऊँचेनीचे कगार पर बड़ी क ठनाईसे ले जाते थे ।। ७ ।। अगम च वनो े शम पमूलफलोदकम् । ू रप मृगं घोरं साया े भरतषभ ।। ८ ।। भरत े ! वे सं या होते-होते वनके ऐसे भयंकर दे शम जा प ँचे, जहाँ फल-मूल और जलक ब त कमी थी। वहाँ ू र वभाववाले प ी और हसक पशु रहते थे ।। ८ ।। घोरा समभवत् सं या दा णा मृगप णः । अ काशा दशः सवा वातैरास नातवैः ।। ९ ।। वह सं या बड़ी भयानक तीत होती थी। ू र वभाववाले पशु और प ी वहाँ वास करते थे। बना ऋतुक च ड हवा के चलनेसे स पूण दशाएँ (धूलसे आ छा दत हो) अ धकारपूण हो रही थ ।। ९ ।। शीणपणफलै राजन् ब गु म ुपै मैः । भ नावभ नभू य ैनाना मसमाकुलैः ।। १० ।। राजन्! (हवाके झ क से) वनके ब सं यक छोटे -बड़े वृ और गु म-लता आ द झुकझुककर टू ट गये थे। उनके प े और फल इधर-उधर बखर गये थे और उनपर प ी श द कर रहे थे। इन सबके कारण स पूण दशा म अँधेरा छा रहा था ।। १० ।। ते मेण च कौर ा तृ णया च पी डताः । नाश नुवं तदा ग तुं न या च वृ या ।। ११ ।। वे कु कुलर न पा डव उस समय अ धक प र म और यासके कारण ब त क पा रहे थे। थकावटसे उनक न द भी ब त बढ़ गयी थी, जससे पी ड़त होकर वे आगे जानेम असमथ हो गये ।। ११ ।। य वश त ह ते सव नरा वादे महावने । तत तृषाप र ला ता कु ती पु ानथा वीत् ।। १२ ।। तब उन सबने उस नीरस वशाल जंगलम डेरा डाल दया। त प ात् याससे पी ड़त कु तीदे वी अपने पु से बोली— ।। १२ ।। माता सती पा डवानां प चानां म यतः थता । तृ णया ह परीता म पु ान् भृशमथा वीत् ।। १३ ।। ‘म पाँच पा डु पु क माता ँ और उ ह के बीचम थत ँ, तो भी याससे ाकुल ँ’ इस कार कु तीदे वीने अपने बेट के सम यह बात बार-बार हरायी ।। १३ ।। त छ वा भीमसेन य मातृ नेहात् ज पतम् । का येन मन त तं गमनायोपच मे ।। १४ ।। माताका वा स यसे कहा आ वह वचन सुनकर भीमसेनका दय क णासे भर आया। वे मन-ही-मन संत त हो उठे और वयं ही (पानी लानेके लये) जानेक तैयारी करने लगे ।। १४ ।। ो ी ो ो

ततो भीमो वनं घोरं व य वजनं महत् । य ोधं वपुल छायं रमणीयं ददश ह ।। १५ ।। उस समय भीमने उस वशाल, नजन एवं भयंकर वनम वेश करके एक ब त सु दर और व तृत छायावाला बरगदका पेड़ दे खा ।। १५ ।। त न य तान् सवानुवाच भरतषभः । पानीयं मृगयामीह व म व म त भो ।। १६ ।। राजन्! भरतवं शय म े भीमसेनने उन सबको वह बठाकर कहा—‘आपलोग यहाँ व ाम कर, तबतक म पानीका पता लगाता ँ’ ।। १६ ।। एते व त मधुरं सारसा जलचा रणः । ुवम जल थानं मह ये त म तमम ।। १७ ।। ‘ये जलचर सारस प ी बड़ी मीठ बोली बोल रहे ह; (अतः) यहाँ (पासम) अव य कोई महान् जलाशय होगा—ऐसा मेरा व ास है’ ।। १७ ।। अनु ातः स ग छे त ा ा ये ेन भारत । जगाम त य म सारसा जलचा रणः ।। १८ ।। भारत! तब बड़े भाई यु ध रने ‘जाओ!’ कहकर उ ह अनुम त दे द । आ ा पाकर भीमसेन वह गये, जहाँ ये जलचर सारस प ी कलरव कर रहे थे ।। १८ ।। स त पी वा पानीयं ना वा च भरतषभ । तेषामथ च ज ाह ातॄणां ातृव सलः । उ रीयेण पानीयमानयामास भारत ।। १९ ।। भरत े ! वहाँ पानी पीकर नान कर लेनेके प ात् भाइय पर नेह रखनेवाले भीम उनके लये भी चादरम पानी ले आये ।। १९ ।। ग ू तमा ादाग य व रतो मातरं त । शोक ःखपरीता मा नःश ासोरगो यथा ।। २० ।। दो कोस रसे ज द -ज द चलकर भीमसेन अपनी माताके पास आये। उनका मन शोक और ःखसे ा त था और वे सपक भाँ त लंबी सांस ख च रहे थे ।। २० ।। स सु तां मातरं ् वा ातॄं वसुधातले । भृशं शोकपरीता मा वललाप वृकोदरः ।। २१ ।। माता और भाइय को धरतीपर सोया दे ख भीमसेन मन-ही-मन अ य त शोकसे संत त हो गये और इस कार वलाप करने लगे— ।। २१ ।। अतः क तरं क नु ं हभव यत। यत् प या म महीसु तान् ातॄन सुम दभाक् ।। २२ ।। ‘हाय! म कतना भा यहीन ँ क आज अपने भाइय को पृ वीपर सोया दे ख रहा ँ। इससे महान् क क बात दे खनेम या आयेगी ।। २२ ।। शयनेषु परा यषु ये पुरा वारणावते । ना धज मु तदा न ां तेऽ सु ता महीतले ।। २३ ।। ‘









‘आजसे पहले जब हमलोग वारणावत नगरम थे, उस समय ज ह ब मू य शया पर भी न द नह आती थी, वे ही आज धरतीपर सो रहे ह! ।। २३ ।। वसारं वसुदेव य श ुसङ् घावम दनः । कु तराजसुतां कु त सवल णपू जताम् ।। २४ ।। नुषां व च वीय य भाया पा डोमहा मनः । तथैव चा म जनन पु डरीकोदर भाम् ।। २५ ।। सुकुमारतरामेनां महाहशयनो चताम् । शयानां प यता ेह पृ थ ामतथो चताम् ।। २६ ।। ‘जो श ुसमूहका संहार करनेवाले वसुदेवजीक ब हन तथा महाराज कु तभोजक क या ह, सम त शुभ ल ण के कारण जनका सदा समादर होता आया है, जो राजा व च वीयक पु वधू तथा महा मा पा डु क धमप नी ह, ज ह ने हम-जैसे पु को ज म दया है, जनक अंगका त कमलके भीतरी भागके समान है, जो अ य त सुकुमार और ब मू य शयापर शयन करनेके यो य ह, दे खो, आज वे ही कु तीदे वी यहाँ भू मपर सोयी ह! ये कदा प इस तरह शयन करनेके यो य नह ह ।। २४—२६ ।। धमा द ा च वाता च सुषुवे या सुता नमान् । सेयं भूमौ प र ा ता शेते ासादशा यनी ।। २७ ।। ‘ ज ह ने धम, इ और वायुके ारा हम-जैसे पु को उ प कया है, वे राजमहलम सोनेवाली महारानी कु ती आज प र मसे थककर यहाँ पृ वीपर पड़ी ह ।। २७ ।। क नु ःखतरं श यं मया ु मतः परम् । योऽहम नर ा ान् सु तान् प या म भूतले ।। २८ ।। ‘इससे बढ़कर ःख म और या दे ख सकता ँ जब क अपने नर े भाइय को आज मुझे धरतीपर सोते दे खना पड़ रहा है ।। २८ ।। षु लोकेषु यो रा यं धम न योऽहते नृपः । सोऽयं भूमौ प र ा तः शेते ाकृतवत् कथम् ।। २९ ।। ‘जो न य धमपरायण नरेश तीन लोक का रा य पानेके अ धकारी ह, वे ही आज साधारण मनु य क भाँ त थके-माँदे पृ वीपर कैसे पड़े ह ।। २९ ।। अयं नीला बुद यामो नरे व तमोऽजुनः । शेते ाकृतवद् भूमौ ततो ःखतरं नु कम् ।। ३० ।। ‘मनु य म जनक कह समता नह है, वे नील मेघके समान याम का तवाले अजुन आज ाकृत जन क भाँ त पृ वीपर सो रहे ह; इससे महान् ःख और या हो सकता है ।। ३० ।। अ ना वव दे वानां या वमौ पस पदा । तौ ाकृतवद ेमौ सु तौ धरणीतले ।। ३१ ।। ‘जो अपनी प-स प से दे वता म अ नीकुमार के समान जान पड़ते ह, वे ही ये दोन नकुल-सहदे व आज यहाँ साधारण मनु य के समान जमीनपर सोये पड़े ह ।। ३१ ।। ातयो य य नैव यु वषमाः कुलपांसनाः । ी े ो े ै

स जीवेत सुखं लोके ाम म इवैकजः ।। ३२ ।। ‘ जसके कुटु बी प पातयु और कुलको कलंक लगानेवाले नह होते, वह पु ष गाँवके अकेले वृ क भाँ त संसारम सुखपूवक जीवन धारण करता है ।। ३२ ।। एको वृ ो ह यो ामे भवेत् पणफला वतः । चै यो भव त न ा तरचनीयः सुपू जतः ।। ३३ ।। ‘गाँवम य द एक ही वृ प और फल-फूल से स प हो तो वह सरे सजातीय वृ से र हत होनेपर भी चै य (दे ववृ ) माना जाता है तथा उसे पू य मानकर उसक खूब पूजा क जाती है ।। ३३ ।। येषां च बहवः शूरा ातयो धममा ताः । ते जीव त सुखं लोके भव त च नरामयाः ।। ३४ ।। ‘ जनके ब त-से शूरवीर भाई-ब धु धम-परायण होते ह, वे भी संसारम नीरोग रहते और सुखसे जीते ह ।। ३४ ।। बलव तः समृ ाथा म बा धवन दनाः । जीव य यो यमा य माः काननजा इव ।। ३५ ।। ‘जो बलवान्, धनस प तथा म और भाई-ब धु को आन दत करनेवाले ह, वे जंगलके वृ क भाँ त एक- सरेके सहारे जीवन धारण करते ह ।। ३५ ।। वयं तु धृतरा ेण सपु ेण रा मना । ववा सता न द धा कथं चद् दै वसं यात् ।। ३६ ।। ‘ रा मा धृतरा और उसके पु ने तो हम घरसे नकाल दया और जलानेक भी चे ा क , परंतु कसी तरह भा यके भरोसे हम बच गये ह ।। ३६ ।। त मा मु ा वयं दाहा दमं वृ मुपा ताः । कां दशं तप यमः ा ताः लेशमनु मम् ।। ३७ ।। ‘आज उस अ नदाहसे मु हो हम इस वृ के नीचे आ य ले रहे ह। हम कस दशाम जाना है, इसका भी पता नह है। हम भारी-से-भारी क उठा रहे ह ।। ३७ ।। सकामो भव बु े धातरा ा पदशन । नूनं दे वाः स ा ते नानु ां मे यु ध रः ।। ३८ ।। य छ त वधे तु यं तेन जीव स मते । न व वां सहामा यं सकणानुजसौबलम् ।। ३९ ।। ग वा ोधसमा व ः ेष य ये यम यम् । क नु श यं मया कतु यत् ते न ु यते नृपः ।। ४० ।। धमा मा पा डव े ः पापाचार यु ध रः । एवमु वा महाबा ः ोधसंद तमानसः ।। ४१ ।। करं करेण न प य नः सन् द नमानसः । पुनदनमना भू वा शा ता च रव पावकः ।। ४२ ।। ातॄन् महीतले सु तानवै त वृकोदरः । व ता नव सं व ान् पृथ जनसमा नव ।। ४३ ।। ‘ओ े ी ी ई ी

‘ओ बु अ पदश धृतराक ु मार य धन! आज तेरी कामना पूरी ई। न य ही दे वता तुझपर स ह। तभी तो राजा यु ध र मुझे तेरा वध करनेक आ ा नह दे रहे ह। मते! यही कारण है क तू अबतक जी रहा है। रे पापाचारी! म आज ही जाकर कु पत हो म य , कण, छोटे भाई और शकु नस हत तुझे यमलोक भेज सकता ँ। कतु या क ँ , पा डव े धमा मा यु ध र तुझपर कोप नह कर रहे ह’। य कहकर महाबा भीम मन-ही-मन ोधसे जलते और हाथ-से-हाथ मलते ए द नभावसे लंबी साँस ख चने लगे। बुझी ई लपट वाली अ नक भाँ त द न दय होकर वे पुनः धरतीपर सोये ए भाइय क ओर दे खने लगे। उनके वे सभी भाई साधारण लोग क भाँ त भू मधर ही न ततापूवक सो रहे थे ।। ३८—४३ ।। ना त रेण नगरं वनाद मा ल ये । जागत े वप तीमे ह त जाग यहं वयम् ।। ४४ ।। पा य तीमे जलं प ात् तबु ा जत लमाः । इ त भीमो व यैव जजागार वयं तदा ।। ४५ ।। उस समय भीम इस कार वचार करने लगे—‘अहो! इस वनसे थोड़ी ही रीपर कोई नगर दखायी दे ता है। जब क जागना चा हये, ऐसे समय भी ये मेरे भाई सो रहे ह। अ छा, म वयं ही जागरण क ँ । थकावट र होनेपर जब ये न दसे उठगे, तभी पानी पयगे।’ ऐसा न य करके भीमसेन वयं उस समय जागरण करने लगे ।। ४४-४५ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण जतुगृहपव ण भीमजलाहरणे प चाशद धकशततमोऽ यायः ।। १५० ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत जतुगह ृ पवम भीमसेनके जल ले आनेसे स ब ध रखनेवाला एक सौ पचासवाँ अ याय पूरा आ ।। १५० ।।

( ह ड बवधपव) एकप चाशद धकशततमोऽ यायः ह ड बके भेजनेसे ह ड बा रा सीका पा डव के पास आना और भीमसेनसे उसका वातालाप वैश पायन उवाच त तेषु शयानेषु ह ड बो नाम रा सः । अ व रे वनात् त मा छालवृ ं समा तः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! जहाँ पा डव कु तीस हत सो रहे थे, उस वनसे थोड़ी रपर एक शालवृ का आ य ले ह ड ब नामक रा स रहता था ।। १ ।। ू रो मानुषमांसादो महावीयपरा मः । ावृड्जलधर यामः प ा ो दा णाकृ तः ।। २ ।। वह बड़ा ू र और मनु यमांस खानेवाला था। उसका बल और परा म महान् था। वह वषाकालके मेघक भाँ त काला था। उसक आँख भूरे रंगक थ और आकृ तसे ू रता टपक रही थी ।। २ ।। दं ाकरालवदनः प शते सुः ुधा दतः । ल ब फ ल बजठरो र म ु शरो हः ।। ३ ।। उसका मुख बड़ी-बड़ी दाढ़ के कारण वकराल दखायी दे ता था। वह भूखसे पी ड़त था और मांस मलनेक आशाम बैठा था। उसके नत ब और पेट ल बे थे। दाढ़ , मूँछ और सरके बाल लाल रंगके थे ।। ३ ।। महावृ गल क धः शङ् कुकण बभीषणः । य छया तानप यत् पा डु पु ान् महारथान् ।। ४ ।। उसका गला और कंधे महान् वृ के समान जान पड़ते थे। दोन कान भालेके समान ल बे और नुक ले थे। वह दे खनेम बड़ा भयानक था। दै वे छासे उसक उन महारथी पा डव पर पड़ी ।। ४ ।। व प पः प ा ः करालो घोरदशनः । प शते सुः ुधात तानप यद् य छया ।। ५ ।। बेडौल प तथा भूरी आँख वाला वह वकराल रा स दे खनेम बड़ा डरावना था। भूखसे ाकुल होकर वह क चा मांस खाना चाहता था। उसने अक मात् पा डव को दे ख लया ।। ५ ।।

ऊ वाङ् गु लः स क डू यन् धु वन् ान् शरो हान् । जृ भमाणो महाव ः पुनः पुनरवे य च ।। ६ ।। तब अंगु लय को ऊपर उठाकर सरके खे बाल को खुजलाता और फटकारता आ वह वशाल मुखवाला रा स पा डव क ओर बार-बार दे खकर जँभाई लेने लगा ।। ६ ।। ो मानुषमांस य महाकायो महाबलः । आ ाय मानुषं ग धं भ गनी मदम वीत् ।। ७ ।। मनु यका मांस मलनेक स भावनासे उसे बड़ा हष आ। उस महाबली वशालकाय रा सने मनु यक ग ध पाकर अपनी ब हनसे इस कार कहा— ।। ७ ।। उपप र या भ ोऽयं मम सु यः । नेह वान् व त ज ा पय त मे सुखम् ।। ८ ।। ‘आज ब त दन के बाद ऐसा भोजन मला है, जो मुझे ब त य है। इस समय मेरी जीभ लार टपका रही है और बड़े सुखसे लप-लप कर रही है ।। ८ ।। अ ौ दं ाः सुती णा ा र यापात सहाः । दे हेषु म ज य या म न धेषु प शतेषु च ।। ९ ।। ‘आज म अपनी आठ दाढ़ को, जनके अ भाग बड़े तीखे ह और जनक चोट ार भसे ही अ य त ःसह होती है, द घकालके प ात् मनु य के शरीर और चकने मांसम डु बाऊँगा ।। ९ ।। ी

आ य मानुषं क ठमा छ धमनीम प । उ णं नवं पा या म फे नलं धरं ब ।। १० ।। ‘म मनु यक गदनपर चढ़कर उसक ना ड़य को काट ँ गा और उसका गरम-गरम, फेनयु तथा ताजा खून खूब छककर पीऊँगा ।। १० ।। ग छ जानी ह के वेते शेरते वनमा ताः । मानुषो बलवान् ग धो ाणं तपयतीव मे ।। ११ ।। ‘ब हन! जाओ, पता तो लगाओ, ये कौन इस वनम आकर सो रहे ह? मनु यक ती ग ध आज मेरी ना सकाको मानो तृ त कये दे ती है ।। ११ ।। ह वैतान् मानुषान् सवानानय व ममा तकम् । अ म षयसु ते यो नैते यो भयम त ते ।। १२ ।। ‘तुम इन सब मनु य को मारकर मेरे पास ले आओ। ये हमारी हदम सो रहे ह, (इस लये) इनसे तु ह त नक भी खटका नह है ।। १२ ।। एषामु कृ य मांसा न मानुषाणां यथे तः । भ य याव स हतौ कु तूण वचो मम ।। १३ ।। ‘ फर हम दोन एक साथ बैठकर इन मनु य के मांस नोच-नोचकर जी-भर खायगे। तुम मेरी इस आ ाका तुरंत पालन करो ।। १३ ।। भ य वा च मांसा न मानुषाणां कामतः । नृ याव स हतावावां द तालावनेकशः ।। १४ ।। ‘इ छानुसार मनु यमांस खाकर हम दोन ताल दे ते ए साथ-साथ अनेक कारके नृ य कर’ ।। १४ ।। एवमु ा ह ड बा तु ह ड बेन तदा वने । ातुवचनमा ाय वरमाणेव रा सी ।। १५ ।। जगाम त य म पा डवा भरतषभ । ददश त सा ग वा पा डवान् पृथया सह । शयानान् भीमसेनं च जा तं वपरा जतम् ।। १६ ।। भरत े ! उस समय वनम ह ड बके य कहनेपर ह ड बा अपने भाईक बात मानकर मानो बड़ी उतावलीके साथ उस थानपर गयी, जहाँ पा डव थे। वहाँ जाकर उसने कु तीके साथ पा डव को सोते और कसीसे परा त न होनेवाले भीमसेनको जागते दे खा ।। १५-१६ ।। ् वैव भीमसेनं सा शालपोत मवोद्गतम् । रा सी कामयामास पेणा तमं भु व ।। १७ ।। धरतीपर उगे ए साखूके पौधेक भाँ त मनोहर भीमसेनको दे खते ही वह रा सी (मु ध हो) उ ह चाहने लगी। इस पृ वीपर वे अनुपम पवान् थे ।। १७ ।। अयं यामो महाबा ः सह क धो महा ु तः । क बु ीवः पु करा ो भता यु ो भवे मम ।। १८ ।। (







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(उसने मन-ही-मन सोचा—) ‘इन यामसु दर त ण वीरक भुजाएँ बड़ी-बड़ी ह, कंधे सहके-से ह, ये महान् तेज वी ह, इनक ीवा शंखके समान सु दर और ने कमलदलके स श वशाल ह। ये मेरे लये उपयु प त हो सकते ह ।। १८ ।। नाहं ातृवचो जातु कुया ू रोपसं हतम् । प त नेहोऽ तबलवान् न तथा ातृसौ दम् ।। १९ ।। मुतमेव तृ त भवेद ् ातुममैव च । हतैरेतैरह वा तु मो द ये शा तीः समाः ।। २० ।। ‘मेरे भाईक बात ू रतासे भरी है, अतः म कदा प उसका पालन नह क ँ गी। (नारीके दयम) प त ेम ही अ य त बल होता है। भाईका सौहाद उसके समान नह होता। इन सबको मार दे नेपर इनके मांससे मुझे और मेरे भाईको केवल दो घड़ीके लये तृ त मल सकती है और य द न मा ँ तो ब त वष तक इनके साथ आन द भोगूँगी’ ।। १९-२० ।। सा काम पणी पं कृ वा मानुषमु मम् । उपत थे महाबा ं भीमसेनं शनैः शनैः ।। २१ ।। ल जमानेव ललना द ाभरणभू षता । मतपूव मदं वा यं भीमसेनमथा वीत् ।। २२ ।। कुत वम स स ा तः क ा स पु षषभ । क इमे शेरते चेह पु षा दे व पणः ।। २३ ।। ह ड बा इ छानुसार प धारण करनेवाली थी। वह मानवजा तक ीके समान सु दर प बनाकर लजीली ललनाक भाँ त धीरे-धीरे महाबा भीमसेनके पास गयी। द आभूषण उसक शोभा बढ़ा रहे थे। तब उसने मुसकराकर भीमसेनसे इस कार पूछा —‘पु षर न! आप कौन ह और कहाँसे आये ह? ये दे वता के समान सु दर पवाले पु ष कौन ह, जो यहाँ सो रहे ह? ।। २१—२३ ।। केयं वै बृहती यामा सुकुमारी तवानघ । शेते वन मदं ा य व ता वगृहे यथा ।। २४ ।। ‘और अनघ! ये सबसे बड़ी उवाली यामा१ सुकुमारी दे वी आपक कौन लगती ह, जो इस वनम आकर भी ऐसी नःशंक होकर सो रही ह, मानो अपने घरम ही ह ।। २४ ।। नेदं जाना त गहनं वनं रा ससे वतम् । वस त पापा मा ह ड बो नाम रा सः ।। २५ ।। ‘इ ह यह पता नह है क यह गहन वन रा स का नवास थान है। यहाँ ह ड ब नामक पापा मा रा स रहता है ।। २५ ।। तेनाहं े षता ा ा भावेन र सा । बभ यषता मांसं यु माकममरोपम ।। २६ ।। ‘वह मेरा भाई है। उस रा सने भावसे मुझे यहाँ भेजा है। दे वोपम वीर! वह आपलोग का मांस खाना चाहता है ।। २६ ।। े



साहं वाम भस े य दे वगभसम भम् । ना यं भतार म छा म स यमेतद् वी म ते ।। २७ ।। ‘आपका तेज दे वकुमार का-सा है, म आपको दे खकर अब सरेको अपना प त बनाना नह चाहती। म यह स ची बात आपसे कह रही ँ ।। २७ ।। एतद् व ाय धम यु ं म य समाचर । कामोपहत च ा भजमानां भज व माम् ।। २८ ।। ‘धम ! इस बातको समझकर आप मेरे त उ चत बताव क जये। मेरे तन-मनको कामदे वने मथ डाला है। म आपक से वका ँ, आप मुझे वीकार क जये ।। २८ ।। ा या म वां महाबाहो रा सात् पु षादकात् । व यावो ग र गषु भता भव ममानघ ।। २९ ।। ‘महाबाहो! म इस नरभ ी रा ससे आपक र ा क ँ गी। हम दोन पवत क गम क दरा म नवास करगे। अनघ! आप मेरे प त हो जाइये ।। २९ ।। (इ छा म वीर भ ं ते मा मा ाणा वहा सषुः । वया हं प र य ा न जीवेयमरदम ।।) अ त र चरी म कामतो वचरा म च । अतुलामा ु ह ी त त त मया सह ।। ३० ।। ‘वीर! आपका भला चाहती ँ। कह ऐसा न हो क आपके ठु करानेसे मेरे ाण ही मुझे छोड़कर चले जायँ। श ुदमन! य द आपने मुझे याग दया तो म कदा प जी वत नह रह सकती। म आकाशम वचरनेवाली ँ। जहाँ इ छा हो, वह वचरण कर सकती ँ। आप मेरे साथ भ - भ लोक और दे श म वहार करके अनुपम स ता ा त क जये’ ।। ३० ।। भीमसेन उवाच (एष ये ो मम ाता मा यः परमको गु ः । अनव त माहं प र व ां कथंचन ।।) मातरं ातरं ये ं सुखसु तान् कथं वमान् । प र यजेत को व भव ह रा स ।। ३१ ।। भीमसेन बोले—रा सी! ये मेरे ये ाता ह, जो मेरे लये परम स माननीय गु ह; इ ह ने अभीतक ववाह नह कया है, ऐसी दशाम म तुझसे ववाह करके कसी कार क वता२ नह बनना चाहता। कौन ऐसा मनु य होगा, जो इस जगत्म साम यशाली होते ए भी, सुखपूवक सोये ए इन ब धु को, माताको तथा बड़े ाताको भी कसी कार अर त छोड़कर जा सके? ।। ३१ ।। को ह सु ता नमान् ातॄन् द वा रा सभोजनम् । मातरं च नरो ग छे त् कामात इव म धः ।। ३२ ।। मुझ-जैसा कौन पु ष कामपी ड़तक भाँ त इन सोये ए भाइय और माताको रा सका भोजन बनाकर (अ य ) जा सकता है? ।। ३२ ।।

रा युवाच यत् ते यं तत् क र ये सवानेतान् बोधय । मो य या यहं कामं रा सात् पु षादकात् ।। ३३ ।। रा सीने कहा—आपको जो य लगे, म वही क ँ गी। आप इन सब लोग को जगा द जये। म इ छानुसार उस मनु यभ ी रा ससे इन सबको छु ड़ा लूँगी ।। ३३ ।। भीमसेन उवाच सुखसु तान् वने ातॄन् मातरं चैव रा स । न भयाद् बोध य या म ातु तव रा मनः ।। ३४ ।। भीमसेनने कहा—रा सी! मेरे भाई और माता इस वनम सुखपूवक सो रहे ह, तु हारे रा मा भाईके भयसे म इ ह जगाऊँगा नह ।। ३४ ।। न ह मे रा सा भी सोढुं श ाः परा मम् । न मनु या न ग धवा न य ा ा लोचने ।। ३५ ।। भी ! सुलोचने! मेरे परा मको रा स, मनु य, ग धव तथा य भी नह सह सकते ह ।। ३५ ।। ग छ वा त वा भ े यद् वापी छ स तत् कु । तं वा ेषय त व ातरं पु षादकम् ।। ३६ ।। अतः भ े ! तुम जाओ या रहो; अथवा तु हारी जैसी इ छा हो, वही करो। त वं ग! अथवा य द तुम चाहो तो अपने नरमांसभ ी भाईको ही भेज दो ।। ३६ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण ह ड बवधपव ण भीम ह ड बासंवादे एकप चाशद धकशततमोऽ यायः ।। १५१ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत ह ड बवधपवम भीम- ह ड बासंवाद वषयक एक सौ इ यावनवाँ अ याय पूरा आ ।। १५१ ।। (दा णा य अ धक पाठक े २ ोक मलाकर कुल ३८ ोक ह)

१. तपाये ए सोनेके समान वणवाली ीको ‘ यामा’ कहा जाता है, जैसा क इस वचनसे स है —‘त तका चनवणाभा सा ी यामे त क यते ।’ २. जो नद ष बड़े भाईके अ ववा हत रहते ए ही अपना ववाह कर लेता है, वह ‘प रवे ा’ कहलाता है। शा म वह न दनीय माना गया है।

प चाशद धकशततमोऽ यायः ह ड बका आना, ह ड बाका उससे भयभीत होना और भीम तथा ह ड बासुरका यु वैश पायन उवाच तां व द वा चरगतां ह ड बो रा से रः । अवतीय मात् त मादाजगामाशु पा डवान् ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तब यह सोचकर क मेरी ब हनको गये ब त दे र हो गयी, रा सराज ह ड ब उस वृ से उतरा और शी ही पा डव के पास आ गया ।। १ ।। लो हता ो महाबा वकेशो महाननः । मेघसंघातव मा च ती णदं ो भयानकः ।। २ ।। उसक आँख ोधसे लाल हो रही थ , भुजाएँ बड़ी-बड़ी थ , केश ऊपरको उठे ए थे और वशाल मुख था। उसके शरीरका रंग ऐसा काला था, मानो मेघ क काली घटा छा रही हो। तीखे दाढ़ वाला वह रा स बड़ा भयंकर जान पड़ता था ।। २ ।। तमापत तं ् वैव तथा वकृतदशनम् । ह ड बोवाच व ता भीमसेन मदं वचः ।। ३ ।। दे खनेम वकराल उस रा स ह ड बको आते दे खकर ही ह ड बा भयसे थरा उठ और भीमसेनसे इस कार बोली— ।। ३ ।। आपत येष ा मा सं ु ः पु षादकः । साहं वां ातृ भः साध यद् वी म तथा कु ।। ४ ।। ‘(दे खये,) यह ा मा नरभ ी रा स ोधम भरा आ इधर ही आ रहा है, अतः म भाइय स हत आपसे जो कहती ँ, वैसा क जये ।। ४ ।। अहं कामगमा वीर र ोबलसम वता । आ हेमां मम ो ण ने या म वां वहायसा ।। ५ ।। ‘वीर! म इ छानुसार चल सकती ँ, मुझम रा स का स पूण बल है। आप मेरे इस क ट दे श या पीठपर बैठ जाइये। म आपको आकाशमागसे ले चलूँगी ।। ५ ।। बोधयैतान् संसु तान् मातरं च परंतप । सवानेव ग म या म गृही वा वो वहायसा ।। ६ ।। ‘परंतप! आप इन सोये ए भाइय और माताजीको भी जगा द जये। म आप सब लोग को लेकर आकाशमागसे उड़ चलूँगी’ ।। ६ ।। भीम उवाच मा भै वं पृथुसु ो ण नैष क म य थते । े







अहमेनं ह न या म े या ते सुम यमे ।। ७ ।। भीमसेन बोले—सु दरी! तुम डरो मत, मेरे सामने यह रा स कुछ भी नह है। सुम यमे! म तु हारे दे खते-दे खते इसे मार डालूँगा ।। ७ ।। नायं तबलो भी रा सापसदो मम । सोढुं यु ध प र प दमथवा सवरा साः ।। ८ ।। भी ! यह नीच रा स यु म मेरे आ मणका वेग सह सके, ऐसा बलवान् नह है। ये अथवा स पूण रा स भी मेरा सामना नह कर सकते ।। ८ ।। प य बा सुवृ ौ मे ह तह त नभा वमौ । ऊ प रघसंकाशौ संहतं चा युरो महत् ।। ९ ।। हाथीक सूँड़-जैसी मोट और सु दर गोलाकार मेरी इन दोन भुजा क ओर दे खो। मेरी ये जाँघ प रघके समान ह और मेरा वशाल व ः थल भी सु ढ़ एवं सुग ठत है ।। ९ ।। व मं मे यथे य सा य स शोभने । मावमं थाः पृथु ो ण म वा मा मह मानुषम् ।। १० ।। शोभने! मेरा परा म (भी) इ के समान है, जसे तुम अभी दे खोगी। वशाल नत ब वाली रा सी! तुम मुझे मनु य समझकर यहाँ मेरा तर कार न करो ।। १० ।। ह ड बोवाच नावम ये नर ा वामहं दे व पणम् । भाव तु मया मानुषे वेव रा सः ।। ११ ।। ह ड बाने कहा—नर े ! आपका व प तो दे वता के समान है ही। म आपका तर कार नह करती। म तो इस लये कहती थी क मनु य पर ही इस रा सका भाव म (कई बार) दे ख चुक ँ ।। ११ ।। वैश पायन उवाच तथा संज पत त य भीमसेन य भारत । वाचः शु ाव ताः ु ो रा सः पु षादकः ।। १२ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! उस नरभ ी रा स ह ड बने ोधम भरकर भीमसेनक कही ई उपयु बात सुन ।। १२ ।। अवे माण त या ह ड बो मानुषं वपुः । दामपू रत शखं सम े नभाननम् ।। १३ ।। सु ूनासा केशा तं सुकुमारनख वचम् । सवाभरणसंयु ं सुसू मा बरवाससम् ।। १४ ।। (त प ात्) उसने अपनी ब हनके मनु यो चत पक ओर पात कया। उसने अपनी चोट म फूल के गजरे लगा रखे थे। उसका मुख पूण च माके समान मनोहर जान पड़ता था। उसक भ ह, ना सका, ने और केशा तभाग—सभी सु दर थे। नख और वचा ब त ही सुकुमार थी। उसने अपने अंग को सम त आभूषण से वभू षत कर रखा था तथा शरीरपर अ य त सु दर महीन साड़ी शोभा पा रही थी ।। १३-१४ ।। ो

तां तथा मानुषं पं ब त सुमनोहरम् । पुं कामां शङ् कमान चु ोध पु षादकः ।। १५ ।। उसे इस कार सु दर एवं मनोहर मानव- प धारण कये दे ख रा सके मनम यह संदेह आ क हो-न-हो यह प त पम कसी पु षका वरण करना चाहती है। यह वचार मनम आते ही वह कु पत हो उठा ।। १५ ।। सं ु ो रा स त या भ ग याः कु स म । उ फा य वपुले ने े तत ता मदम वीत् ।। १६ ।। कु े ! अपनी ब हनपर उस रा सका ोध ब त बढ़ गया था। फर तो उसने बड़ीबड़ी आँख फाड़-फाड़कर उसक ओर दे खते ए कहा— ।। १६ ।। को ह मे भो ु काम य व नं चर त म तः । न बभे ष ह ड बे क म कोपाद् व मो हता ।। १७ ।। ‘ ह ड बे! म (भूखा ँ और) भोजन चाहता ँ। कौन बु मानव मेरे इस अभी क स म व न डाल रहा है। तू अ य त मोहके वशीभूत होकर या मेरे ोधसे नह डरती है? ।। १७ ।। धक् वामस त पुं कामे मम व यका र ण । पूवषां रा से ाणां सवषामयश क र ।। १८ ।। ‘मनु यको प त बनानेक इ छा रखकर मेरा अ य करनेवाली राचा रणी! तुझे ध कार है। तू पूववत स पूण रा सराज के कुलम कलंक लगानेवाली है ।। १८ ।। या नमाना ताकाष व यं सुमह मम । एष तान वै सवान् ह न या म वया सह ।। १९ ।। ‘ जन लोग का आ य लेकर तूने मेरा महान् अ य काय कया है, यह दे ख, म उन सबको आज तेरे साथ ही मार डालता ँ’ ।। १९ ।। एवमु वा ह ड बां स ह ड बो लो हते णः । वधाया भपपातैनान् द तैद तानुप पृशन् ।। २० ।। ह ड बासे य कहकर लाल-लाल आँख कये ह ड ब दाँत -से-दाँत पीसता आ ह ड बा और पा डव का वध करनेक इ छासे उनक ओर झपटा ।। २० ।। तमापत तं स े य भीमः हरतां वरः । भ सयामास तेज वी त त े त चा वीत् ।। २१ ।। यो ा म े तेज वी भीम उसे इस कार ह ड बापर टू टते दे ख उसक भ सना करते ए बोले—‘अरे खड़ा रह, खड़ा रह’ ।। २१ ।। वैश पायन उवाच भीमसेन तु तं ् वा रा सं हस व । भ गन त सं ु मदं वचनम वीत् ।। २२ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! अपनी ब हनपर अ य त ु ए उस रा सक ओर दे खकर भीमसेन हँसते ए-से इस कार बोले— ।। २२ ।। े









क ते ह ड ब एतैवा सुखसु तैः बो धतैः । मामासादय बु े तरसा वं नराशन ।। २३ ।। ‘ ह ड ब! सुखपूवक सोये ए मेरे इन भाइय को जगानेसे तेरा या योजन स होगा। खोट बु वाले नरभ ी रा स! तू पूरे वेगसे आकर मुझसे भड़ ।। २३ ।। म येव हरे ह वं न यं ह तुमह स । वशेषतोऽनपकृते परेणापकृते स त ।। २४ ।। ‘आ, मुझपर ही हार कर। ह ड बा ी है, इसे मारना उ चत नह है— वशेषतः इस दशाम, जब क इसने कोई अपराध नह कया है। तेरा अपराध तो सरेके ारा आ है ।। २४ ।। न हीयं ववशा बाला कामय य मा मह । चो दतैषा न े न शरीरा तरचा रणा ।। २५ ।। ‘यह भोली-भाली ी अपने वशम नह है। शरीरके भीतर वचरनेवाले कामदे वसे े रत होकर आज यह मुझे अपना प त बनाना चाहती है ।। २५ ।। भ गनी तव वृ र सां वै यशोहर । व योगेन चैवेयं पं मम समी य च ।। २६ ।। कामय य मां भी तव नैषापरा य त । अन े न कृते दोषे नेमां ग हतुमह स ।। २७ ।। ‘रा स क क तको न करनेवाले राचारी ह ड ब! तेरी यह ब हन तेरी आ ासे ही यहाँ आयी है; परंतु मेरा प दे खकर यह बेचारी अब मुझे चाहने लगी है, अतः तेरा कोई अपराध नह कर रही है। कामदे वके ारा कये ए अपराधके कारण तुझे इसक न दा नह करनी चा हये ।। २६-२७ ।। म य त त ा मन् न यं ह तुमह स । संग छ व मया साधमेकेनैको नराशन ।। २८ ।। ‘ ा मन्! तू मेरे रहते इस ीको नह मार सकता। नरभ ी रा स! तू मुझ अकेलेके साथ अकेला ही भड़ जा ।। २८ ।। अहमेको न य या म वाम यमसादनम् । अ मल न प ं शरो रा स द यताम् । कु र येव पादे न व न प ं बलीयसः ।। २९ ।। ‘आज म अकेला ही तुझे यमलोक भेज ँ गा। नशाचर! जैसे अ य त बलवान् हाथीके पैरसे दबकर कसीका भी म तक पस जाता है, उसी कार मेरे बलपूवक आघातसे कुचला जाकर तेरा सर फट जायगा ।। २९ ।। अ गा ा ण ते कङ् काः येना गोमायव तथा । कष तु भु व सं ा नहत य मया मृधे ।। ३० ।। ‘आज मेरे ारा यु म तेरा वध हो जानेपर हषम भरे ए गीध, बाज और गीदड़ धरतीपर पड़े ए तेरे अंग को इधर-उधर घसीटगे ।। ३० ।। णेना क र येऽह मदं वनमरा सम् ।

पुरा यद् षतं न यं वया भ यता नरान् ।। ३१ ।। ‘आजसे पहले सदा मनु य को खा-खाकर तूने जसे अप व कर दया है, उसी वनको आज म णभरम रा स से सूना कर ँ गा ।। ३१ ।। अ वां भ गनी र ः कृ यमाणं मयासकृत् । य य तीकाशं सहेनेव महा पम् ।। ३२ ।। ‘रा स! जैसे सह पवताकार महान् गजराजको घसीट ले जाता है, उसी कार आज मेरे ारा बार-बार घसीटे जानेवाले तुझको तेरी ब हन अपनी आँख दे खेगी ।। ३२ ।। नराबाधा व य हते मया रा सपांसन । वनमेत च र य त पु षा वनचा रणः ।। ३३ ।। ‘रा सकुलांगार! मेरे ारा तेरे मारे जानेपर वनवासी मनु य बना कसी व न-बाधाके इस वनम वचरण करगे’ ।। ३३ ।। ह ड ब उवाच ग जतेन वृथा क ते क थतेन च मानुष । कृ वैतत् कमणा सव क थेथा मा चरं कृथाः ।। ३४ ।। ह ड ब बोला—अरे ओ मनु य! थ गजने तथा बढ़-बढ़कर बात बनानेसे या लाभ? यह सब कुछ पहले करके दखा, फर ड ग हाँकना; अब दे र न कर ।। ३४ ।। ब लनं म यसे य चा या मानं सपरा मम् । ा य य समाग य मयाऽऽ मानं बला धकम् ।। ३५ ।। न तावदे तान् ह स ये वप वेते यथासुखम् । एष वामेव बु े नह य ा यंवदम् ।। ३६ ।। पी वा तवासृग् गा े य ततः प ा दमान प । ह न या म ततः प ा दमां व यका रणीम् ।। ३७ ।। तू अपने-आपको जो बड़ा बलवान् और परा मी समझ रहा है, उसक स चाईका पता तो तब लगेगा, जब आज मेरे साथ भड़ेगा। तभी तू जान सकेगा क मुझसे तुझम कतना अ धक बल है। बु े ! म पहले इन सबक हसा नह क ँ गा। ये थोड़ी दे रतक सुखपूवक सो ल। तू मुझे बड़ी कड़वी बात सुना रहा है, अतः सबसे पहले तुझे ही अभी मारे दे ता ँ। पहले तेरे अंग का ताजा खून पीकर उसके बाद तेरे इन भाइय का भी वध क ँ गा। तदन तर अपना अ य करनेवाली इस ह ड बाको भी मार डालूँगा ।। ३५— ३७ ।। वैश पायन उवाच एवमु वा ततो बा ं गृ पु षादकः । अ य वत सं ु ो भीमसेनमरदमम् ।। ३८ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! य कहकर ोधम भरा आ वह नरभ ी रा स अपनी एक बाँह ऊपर उठाये श ुदमन भीमसेनपर टू ट पड़ा ।। ३८ ।। त या भ वत तूण भीमो भीमपरा मः । े े

वेगेन हतं बा ं नज ाह हस व ।। ३९ ।। झपटते ही बड़े वेगसे उसने भीमसेनपर हाथ चलाया। तब तो भयंकर परा मी भीमसेनने तुरंत ही उसके हाथको हँसते ए-से पकड़ लया ।। ३९ ।। नगृ तं बलाद् भीमो व फुर तं चकष ह । त माद् दे शाद् धनूं य ौ सहः ु मृगं यथा ।। ४० ।। वह रा स उनके हाथसे छू टनेके लये छटपटाने और उछल-कूद मचाने लगा; परंतु भीमसेन उसे पकड़े ए ही बलपूवक उस थानसे आठ धनुष (ब ीस हाथ) र घसीट ले गये—उसी कार जैसे सह कसी छोटे मृगको घसीटकर ले जाय ।। ४० ।। ततः स रा सः ु ः पा डवेन बला दतः । भीमसेनं समा लङ् य नदद् भैरवं रवम् ।। ४१ ।। पा डु न दन भीमके ारा बलपूवक पी ड़त होनेपर वह रा स ोधम भर गया और भीमसेनको भुजा से कसकर भयंकर गजना करने लगा ।। ४१ ।। पुनभ मो बलादे नं वचकष महाबलः । मा श दः सुखसु तानां ातॄणां मे भवे द त ।। ४२ ।। तब महाबली भीमसेन यह सोचकर पुनः उसे बलपूवक कुछ र ख च ले गये क सुखपूवक सोये ए भाइय के कान म श द न प ँचे ।। ४२ ।। अ यो यं तौ समासा वचकषतुरोजसा । ह ड बो भीमसेन व मं च नुः परम् ।। ४३ ।। फर तो दोन एक- सरेसे गुथ गये और बलपूवक अपनी-अपनी ओर ख चने लगे। ह ड ब और भीमसेन दोन ने बड़ा भारी परा म कट कया ।। ४३ ।। बभ तु तदा वृ ाँ लता ाकषतु तदा । म ा वव च संरधौ वारणौ ष हायनौ ।। ४४ ।। जैसे साठ वषक अव थावाले दो मतवाले गजराज कु पत हो पर पर यु करते ह , उसी कार वे दोन एक- सरेसे भड़कर वृ को तोड़ने और लता को ख च-ख चकर उजाड़ने लगे ।। ४४ ।। (पादपानु ह तौ ताबु वेगेन वे गतौ । फोटय तौ लताजाला यू यां ा य सवतः ।। व ासय तौ श दे न सवतो मृगप णः । बलेन ब लनौ म ाव यो यवधकाङ् णौ ।। भीमरा सयोयु ं तदावतत दा णम् ।। ऊ बा प र लेशात् कष ता वतरेतरम् । ततः श दे न महता गज तौ तौ पर परम् ।। पाषाणसंघ नभैः हारैर भज नतुः । अ यो यं तौ समा लङ् य वकष तौ पर परम् ।।) वे दोन वृ उठाये बड़े वेगसे एक- सरेक ओर दौड़ते थे, अपनी जाँघ क ट करसे चार ओरक लता को छ - भ कये दे ते थे तथा गजन-तजनके ारा सब ओर पशुो े े े े े ो ी ो े ो

प य को आतं कत कर दे ते थे। बलसे उ म ए वे दोन महाबली यो ा एक- सरेको मार डालना चाहते थे। उस समय भीमसेन और ह ड बासुरम बड़ा भयंकर यु चल रहा था। वे दोन एक- सरेक भुजा को मरोड़ते और जाँघ को घुटन से दबाते ए दोन एकसरेको अपनी ओर ख चते थे। तदन तर वे बड़े जोरसे गजते ए पर पर इस कार हार करने लगे, मानो दो च ान आपसम टकरा रही ह । त प ात् वे एक- सरेसे गुथ गये और दोन दोन को भुजा म कसकर इधर-उधर ख च ले जानेक चे ा करने लगे। तयोः श दे न महता वबु ा ते नरषभाः । सह मा ा च द शु ह ड बाम तः थताम् ।। ४५ ।। उन दोन क भारी गजनासे वे नर े पा डव मातास हत जाग उठे और उ ह ने अपने सामने खड़ी ई ह ड बाको दे खा ।। ४५ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण ह ड बवधपव ण ह ड बयु े प चाशद धकशततमोऽ यायः ।। १५२ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत ह ड बवधपवम ह ड ब-यु वषयक एक सौ बावनवाँ अ याय पूरा आ ।। १५२ ।। (दा णा य अ धक पाठक े ५ ोक मलाकर कुल ५० ोक ह)

प चाशद धकशततमोऽ यायः ह ड बाका कु ती आ दसे अपना मनोभाव कट करना तथा भीमसेनके ारा ह ड बासुरका वध वैश पायन उवाच बु ा ते ह ड बाया पं ् वा तमानुषम् । व मताः पु ष ा ा बभूवुः पृथया सह ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! जागनेपर ह ड बाका अलौ कक प दे ख वे पु ष सह पा डव माता कु तीके साथ बड़े व मयम पड़े ।। १ ।। ततः कु ती समी यैनां व मता पस पदा । उवाच मधुरं वा यं सा वपूव मदं शनैः ।। २ ।। क य वं सुरगभाभे का वा स वरव णनी । केन कायण स ा ता कुत ागमनं तव ।। ३ ।। तदन तर कु तीने उसक प-स प से च कत हो उसक ओर दे खकर उसे सा वना दे ते ए मधुर वाणीम इस कार धीरे-धीरे पूछा—‘दे वक या क -सी का तवाली सु दरी! तुम कौन हो और कसक क या हो? तुम कस कामसे यहाँ आयी हो और कहाँसे तु हारा शुभागमन आ है? ।। २-३ ।। य द वा य वन य वं दे वता य द वा सराः । आच व मम तत् सव कमथ चेह त स ।। ४ ।। ‘य द तुम इस वनक दे वी अथवा अ सरा हो तो वह सब मुझे ठ क-ठ क बता दो; साथ ही यह भी कहो क कस कामके लये यहाँ खड़ी हो?’ ।। ४ ।।

ह ड बोवाच यदे तत् प य स वनं नीलमेघ नभं महत् । नवासो रा स यैष ह ड ब य ममैव च ।। ५ ।। ह ड बा बोली—दे व! यह जो नील मेघके समान वशाल वन आप दे ख रही ह, यह रा स ह ड बका और मेरा नवास थान है ।। ५ ।। त य मां रा से य भ गन व भा व न । ा ा स े षतामाय वां सपु ां जघांसता ।। ६ ।। महाभागे! आप मुझे उस रा सराज ह ड बक ब हन समझ। आय! मेरे भाईने मुझे आपक और आपके पु क ह या करनेक इ छासे भेजा था ।। ६ ।। ू रबु े रहं त य वचनादागता वह । अ ा ं नवहेमाभं तव पु ं महाबलम् ।। ७ ।। उसक बु बड़ी ू रतापूण है। उसके कहनेसे म यहाँ आयी और नूतन सुवणक -सी आभावाले आपके महाबली पु पर मेरी पड़ी ।। ७ ।। ततोऽहं सवभूतानां भावे वचरता शुभे । चो दता तव पु य म मथेन वशानुगा ।। ८ ।। शुभे! उ ह दे खते ही सम त ा णय के अ तःकरणम वचरनेवाले कामदे वसे े रत होकर म आपके पु क वशव तनी हो गयी ।। ८ ।। ो





ततो वृतो मया भता तव पु ो महाबलः । अपनेतुं च य ततो न चैव श कतो मया ।। ९ ।। तदन तर मने आपके महाबली पु को प त पम वरण कर लया और इस बातके लये य न कया क उ ह (तथा आप सब लोग को) लेकर यहाँसे अ य भाग चलूँ, परंतु आपके पु क वीकृ त न मलनेसे म इस कायम सफल न हो सक ।। ९ ।। चरायमाणां मां ा वा ततः स पु षादकः । वयमेवागतो ह तु ममान् सवा तवा मजान् ।। १० ।। मेरे लौटनेम दे र होती जान वह मनु यभ ी रा स वयं ही आपके इन सब पु को मार डालनेके लये आया ।। १० ।। स तेन मम का तेन तव पु ेण धीमता । बला दतो व न प य पनीतो महा मना ।। ११ ।। परंतु मेरे ाणव लभ तथा आपके बु मान् पु महा मा भीम उसे बलपूवक यहाँसे रगड़ते ए र हटा ले गये ह ।। ११ ।। वकष तौ महावेगौ गजमानौ पर परम् । प यैवं यु ध व ा तावेतौ च नररा सौ ।। १२ ।। दे खये, यु म परा म दखानेवाले वे दोन मनु य और रा स जोर-जोरसे गज रहे ह और बड़े वेगसे गु थम-गु थ होकर एक- सरेको अपनी ओर ख च रहे ह ।। १२ ।। वैश पायन उवाच त याः ु वैव वचनमु पपात यु ध रः । अजुनो नकुल ैव सहदे व वीयवान् ।। १३ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! ह ड बाक यह बात सुनते ही यु ध र उछलकर खड़े हो गये। अजुन, नकुल और परा मी सहदे वने भी ऐसा ही कया ।। १३ ।। तौ ते द शुरास ौ वकष तौ पर परम् । काङ् माणौ जयं चैव सहा वव बलो कटौ ।। १४ ।। तदन तर उ ह ने दे खा क वे दोन च ड बलशाली सह क भाँ त आपसम गुथ गये ह और अपनी-अपनी वजय चाहते ए एक- सरेको घसीट रहे ह ।। १४ ।। अथा यो यं समा य वकष तौ पुनः पुनः । दावा नधूमस शं च तुः पा थवं रजः ।। १५ ।। एक- सरेको भुजा म भरकर बार-बार ख चते ए उन दोन यो ा ने धरतीक धूलको दावानलके धूएक ँ े समान बना दया ।। १५ ।। वसुधारेणुसंवीतौ वसुधाधरसं नभौ । ब ाजतुयथा शैलौ नीहारेणा भसंवृतौ ।। १६ ।। दोन का शरीर पृ वीक धूलम सना आ था। दोन ही पवत के समान वशालकाय थे। उस समय वे दोन कुहरेसे ढँ के ए दो पहाड़ के समान सुशो भत हो रहे थे ।। १६ ।। रा सेन तदा भीमं ल यमानं नरी य च । े



उवाचेदं वचः पाथः हस छनकै रव ।। १७ ।। भीमसेनको रा स ारा पी ड़त दे ख अजुन धीरे-धीरे हँसते ए-से बोले— ।। १७ ।। भीम मा भैमहाबाहो न वां बु यामहे वयम् । समेतं भीम पेण र सा मक शतम् ।। १८ ।। ‘महाबा भैया भीमसेन! डरना मत; अबतक हमलोग नह जानते थे क तुम भयंकर रा ससे भड़कर अ य त प र मके कारण क पा रहे हो ।। १८ ।। साहा येऽ म थतः पाथ पात य या म रा सम् । नकुलः सहदे व मातरं गोप य यतः ।। १९ ।। ‘कु तीन दन! अब म तु हारी सहायताके लये उप थत ँ। इस रा सको अव य मार गराऊँगा। नकुल और सहदे व माताजीक र ा करगे’ ।। १९ ।। भीम उवाच उदासीनो नरी व न कायः स म वया । न जा वयं पुनज वे मा तरमागतः ।। २० ।। भीमसेनने कहा—अजुन! तट थ होकर चुपचाप दे खते रहो। तु ह घबरानेक आव यकता नह । मेरी दोन भुजा के बीचम आकर अब यह रा स कदा प जी वत नह रह सकता ।। २० ।। अजुन उवाच कमनेन चरं भीम जीवता पापर सा । ग त े न चरं थातु मह श यमरदम ।। २१ ।। अजुनने कहा—श ु का दमन करनेवाले भीम! इस पापी रा सको दे रतक जी वत रखनेसे या लाभ? हमलोग को आगे चलना है, अतः यहाँ अ धक समयतक ठहरना स भव नह है ।। २१ ।। पुरा संर यते ाची पुरा सं या वतते । रौ े मुत र ां स बला न भव युत ।। २२ ।। उधर सामने पूव दशाम अ णोदयक ला लमा फैल रही है। ातःसं याका समय होनेवाला है। इस रौ मु तम रा स बल हो जाते ह ।। २२ ।। वर व भीम मा ड ज ह र ो बभीषणम् । पुरा वकु ते मायां भुजयोः सारमपय ।। २३ ।। अतः भीमसेन! ज द करो। इसके साथ खलवाड़ न करो। इस भयानक रा सको मार डालो। यह अपनी माया फैलाये, इसके पहले ही इसपर अपनी भुजा क श का योग करो ।। २३ ।। वैश पायन उवाच अजुनेनैवमु तु भीमो रोषा वल व । बलमाहारयामास यद् वायोजगतः ये ।। २४ ।। ै















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वैश पायनजी कहते ह—अजुनके य कहनेपर भीम रोषसे जल उठे और लयकालम वायुका जो बल कट होता है, उसे उ ह ने अपने भीतर धारण कर लया ।। २४ ।। तत त या बुदाभ य भीमो रोषात् तु र सः । उ या ामयद् दे हं तूण शतगुणं तदा ।। २५ ।।

ह ड ब-वध

भीमसेन और घटो कच

त प ात् काले मेघके समान उस रा सके शरीरको भीमने ोधपूवक तुरंत ऊपर उठा लया और उसे सौ बार घुमाया ।। २५ ।। भीम उवाच वृथामांसैवृथापु ो वृथावृ ो वृथाम तः । वृथामरणमह वं वृथा न भ व य स ।। २६ ।। इसके बाद भीम उस रा ससे बोले—अरे नशाचर! तू थ मांससे थ ही पु होकर थ ही बड़ा आ है। तेरी बु भी थ है। इसीसे तू थ मृ युके यो य है। इस लये आज तू थ ही अपनी इहलीला समा त करेगा (बा यु म मृ यु होनेके कारण तू वग और क तसे वं चत हो जायगा) ।। २६ ।। ेमम क र या म यथा वनमक टकम् । न पुनमानुषान् ह वा भ य य स रा स ।। २७ ।। रा स! आज तुझे मारकर म इस वनको न क टक एवं मंगलमय बना ँ गा, जससे फर तू मनु य को मारकर नह खा सकेगा ।। २७ ।। अजुन उवाच य द वा म यसे भारं व ममं रा सं यु ध । करो म तव साहा यं शी मेष नपा यताम् ।। २८ ।। अजुन बोले—भैया! य द तुम यु म इस रा सको अपने लये भार समझ रहे हो तो म तु हारी सहायता करता ँ। तुम इसे शी मार गराओ ।। २८ ।। अथवा यहमेवैनं ह न या म वृकोदर । कृतकमा प र ा तः साधु ताव पारम ।। २९ ।। वृकोदर! अथवा म ही इसे मार डालूँगा। तुम अ धक यु करके थक गये हो। अतः कुछ दे र अ छ तरह व ाम कर लो ।। २९ ।। वैश पायन उवाच त य तद् वचनं ु वा भीमसेनोऽ यमषणः । न प यैनं बलाद् भूमौ पशुमारममारयत् ।। ३० ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! अजुनक यह बात सुनकर भीमसेन अ य त ोधम भर गये। उ ह ने बलपूवक रा सको पृ वीपर दे मारा और उसे रगड़ते ए पशुक तरह मारना आर भ कया ।। ३० ।। स मायमाणो भीमेन ननाद वपुलं वनम् । पूरयं तद् वनं सव जला इव भः ।। ३१ ।। इस कार भीमसेनक मार पड़नेपर वह रा स जलसे भीगे ए नगारेक -सी व नसे स पूण वनको गुँजाता आ जोर-जोरसे चीखने लगा ।। ३१ ।। बा यां यो य वा तं बलवान् पा डु न दनः । म ये भङ् वा महाबा हषयामास पा डवान् ।। ३२ ।। ी





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तब महाबा बलवान् पा डु न दन भीमसेनने उसे दोन भुजा से बाँधकर उलटा मोड़ दया और उसक कमर तोड़कर पा डव का हष बढ़ाया ।। ३२ ।। ह ड बं नहतं ् वा सं ा ते तर वनः । अपूजयन् नर ा ं भीमसेनमरदमम् ।। ३३ ।। ह ड बको मारा गया दे ख वे महान् वेगशाली पा डव अ य त हषसे उ ल सत हो उठे और उ ह ने श ु का दमन करनेवाले नर े भीमसेनक भू र-भू र शंसा क ।। ३३ ।। अ भपू य महा मानं भीमं भीमपरा मम् । पुनरेवाजुनो वा यमुवाचेदं वृकोदरम् ।। ३४ ।। इस कार भयंकर परा मी महा मा भीमक शंसा करके अजुनने पुनः उनसे यह बात कही— ।। ३४ ।। न रं नगरं म ये वनाद मादहं वभो । शी ं ग छाम भ ं ते न नो व ात् सुयोधनः ।। ३५ ।। ‘ भो! म समझता ँ, इस वनसे नगर अब र नह है। तु हारा क याण हो। अब हमलोग शी चल, जससे य धनको हमारा पता न लग सके’ ।। ३५ ।। ततः सव तथे यु वा सह मा ा महारथाः । ययुः पु ष ा ा ह ड बा चैव रा सी ।। ३६ ।। तब सभी पु ष सह महारथी पा डव ‘(ठ क है,) ऐसा ही कर’ य कहकर माताके साथ वहाँसे चल दये। ह ड बा रा सी भी उनके साथ हो ली ।। ३६ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण ह ड बवधपव ण ह ड बवधे प चाशद धकशततमोऽ यायः ।। १५३ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत ह ड बवधपवम ह ड बासुरके वधसे स ब ध रखनेवाला एक सौ तरपनवाँ अ याय पूरा आ ।। १५३ ।।

चतु प चाशद धकशततमोऽ यायः यु ध रका भीमसेनको ह ड बाके वधसे रोकना, ह ड बाक भीमसेनके लये ाथना, भीमसेन और ह ड बाका मलन तथा घटो कचक उ प (वैश पायन उवाच सा तानेवापतत् तूण भ गनी त य र सः । अ ुवाणा ह ड बा तु रा सी पा डवान् त ।। अ भवा ततः कु त धमराजं च पा डवम् । अ भपू य च तान् सवान् भीमसेनमभाषत ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! ह ड बा-सुरक ब हन रा सी ह ड बा बना कुछ कहे-सुने तुरंत पा डव के ही पास आयी और फर माता कु ती तथा पा डु न दन धमराज यु ध रको णाम करके उन सबके त समादरका भाव कट करती ई भीमसेनसे बोली। ह ड बोवाच अहं ते दशनादे व म मथ य वशं गता । ू रं ातृवचो ह वा सा वामेवानु धती ।। रा से रौ संकाशे तवाप यं वचे तम् । अहं शु ूषु र छे यं तव गा ं नषे वतुम् ।।) ह ड बाने कहा—(आयपु !) आपके दशनमा से म कामदे वके अधीन हो गयी और अपने भाईके ू रतापूण वचन क अवहेलना करके आपका ही अनुसरण करने लगी। उस भयंकर आकृ तवाले रा सपर आपने जो परा म कट कया है, उसे मने अपनी आँख दे खा है; अतः म से वका आपके शरीरक सेवा करना चाहती ँ। भीमसेन उवाच मर त वैरं र ां स मायामा य मो हनीम् । ह ड बे ज प थानं व ममं ातृसे वतम् ।। १ ।। भीमसेन बोले— ह ड बे! रा स मो हनी मायाका आ य लेकर ब त दन तक वैरका मरण रखते ह, अतः तू भी अपने भाईके ही मागपर चली जा ।। १ ।। यु ध र उवाच ु ोऽ प पु ष ा भीम मा म यं वधीः । शरीरगु य य धकं धम गोपाय पा डव ।। २ ।। े













यह सुनकर यु ध रने कहा—पु ष सह भीम! य प तुम ोधसे भरे ए हो, तो भी ीका वध न करो। पा डु न दन! शरीरक र ाक अपे ा भी अ धक त परतासे धमक र ा करो ।। २ ।। वधा भ ायमाया तमवधी वं महाबलम् । र स त य भ गनी क नः ु ा क र य त ।। ३ ।। महाबली ह ड ब हमलोग को मारनेके अ भ ायसे आ रहा था। अतः तुमने जो उसका वध कया, वह उ चत ही है। उस रा सक ब हन ह ड बा य द ोध भी करे तो हमारा या कर लेगी? ।। ३ ।। वैश पायन उवाच ह ड बा तु ततः कु तीम भवा कृता लः । यु ध रं तु कौ तेय मदं वचनम वीत् ।। ४ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर ह ड बाने हाथ जोड़कर कु तीदे वी तथा उनके पु यु ध रको णाम करके इस कार कहा— ।। ४ ।। आय जाना स यद् ःख मह ीणामन जम् । त ददं मामनु ा तं भीमसेनकृतं शुभे ।। ५ ।। ‘आय! य को इस जगत्म जो कामज नत पीड़ा होती है, उसे आप जानती ही ह। शुभे! आपके पु भीमसेनक ओरसे मुझे वही कामदे वज नत क ा त आ है ।। ५ ।। सोढं तत् परमं ःखं मया काल ती या । सोऽयम यागतः कालो भ वता मे सुखोदयः ।। ६ ।। ‘मने समयक ती ाम उस महान् ःखको सहन कया है। अब वह समय आ गया है। आशा है, मुझे अभी सुखक ा त होगी ।। ६ ।। मया सृ य सु दः वधम वजनं तथा । वृतोऽयं पु ष ा तव पु ः प तः शुभे ।। ७ ।। ‘शुभे! मने अपने हतैषी सु द , वजन तथा वधमका प र याग करके आपके पु पु ष सह भीमसेनको अपना प त चुना है ।। ७ ।। वीरेणाहं तथानेन वया चा प यश व न । या याता न जीवा म स यमेतद् वी म ते ।। ८ ।। ‘यश व न! य द ये वीरवर भीमसेन या आप मेरी इस ाथनाको ठु करा दगी तो म जी वत नह रह सकूँगी। यह म आपसे स य कहती ँ ।। ८ ।। तदह स कृपां कतु म य वं वरव ण न । म वा मूढे त त मा वं भ ा वानुगते त वा ।। ९ ।। ‘अतः वरव ण न! आपको मुझे एक मूढ़ वभावक ी मानकर या अपनी भ ा जानकर अथवा अनुचरी (से वका) समझकर मुझपर कृपा करनी चा हये ।। ९ ।। भ ानेन महाभागे संयोजय सुतेन ह । तमुपादाय ग छे यं यथे ं दे व पणम् । ै





पुन ैवान य या म व भं कु मे शुभे ।। १० ।। ‘महाभागे! मुझे अपने इस पु से, जो मेरे मनोनीत प त ह, मलनेका अवसर द जये। म इन दे व व प वामीको लेकर अपने अभी थानपर जाऊँगी और पुनः न त समयपर इ ह आपके समीप ले आऊँगी। शुभे! आप मेरा व ास क जये ।। १० ।। अहं ह मनसा याता सवान् ने या म वः सदा । (न यातुधा यहं वाय न चा म रजनीचरी । क या र सु सा म रा सालकटङ् कट ।। पु ेण तव संयु ा युव तदवव णनी । सवान् वोऽहमुप था ये पुर कृ य वृकोदरम् ।। अ म ा म ेषु शु ूषुरसकृत् वहम् ।) वृ जनात् तार य या म गषु वषमेषु च ।। ११ ।। पृ ेन वो व ह या म शी ं ग तमभी सतः । यूयं सादं कु त भीमसेनो भजेत माम् ।। १२ ।। ‘आप अपने मनसे जब-जब मेरा मरण करगे, तब-तब सदा ही (सेवाम उप थत हो) म आपलोग को अभी थान म प ँचा दया क ँ गी। आय! म न तो यातुधानी ँ और न नशाचरी ही ँ। महारानी! म रा स जा तक सुशीला क या ँ और मेरा नाम सालकटं कट है। म दे वोपम का तसे यु और युवाव थासे स प ँ। मेरे दयका संयोग आपके पु भीमसेनके साथ आ है। म वृकोदरको सामने रखकर आप सब लोग क सेवाम उप थत र ँगी। आपलोग असावधान ह , तो भी म पूरी सावधानी रखकर नर तर आपक सेवाम संल न र ँगी। आपको संकट से बचाऊँगी। गम एवं वषम थान म य द आप शी तापूवक अभी ल यतक जाना चाहते ह तो म आप सब लोग को अपनी पीठपर बठाकर वहाँ प ँचाऊँगी। आपलोग मुझपर कृपा कर, जससे भीमसेन मुझे वीकार कर ल ।। ११-१२ ।। आपद तरणे ाणान् धारयेद ् येन तेन वा । सवमावृ य कत ं तं धममनुवतता ।। १३ ।। ‘ जस उपायसे भी आप से छु टकारा मले और ाण क र ा हो सके, धमका अनुसरण करनेवाले पु षको वह सब वीकार करके उस उपायको कामम लाना चा हये ।। १३ ।। आप सु यो धारय त धम धम व मः । सनं ेव धम य ध मणामाप यते ।। १४ ।। ‘जो आप कालम धमको धारण करता है, वही धमा मा म े है। धमपालनम संकट उप थत होना ही धमा मा पु ष के लये आप कही जाती है ।। १४ ।। पु यं ाणान् धारय त पु यं ाणदमु यते । येन येनाचरेद ् धम त मन् गहा न व ते ।। १५ ।। ‘पु य ही ाण को धारण करता है, इस लये पु य ाणदाता कहलाता है; अतः जसजस उपायसे धमका आचरण हो सके, उसके करनेम कोई न दाक बात नह है ।। १५ ।। ( ो

(महतोऽ यं कामाद ् बा धतां ा ह माम प । धमाथकाममो ेषु दयां कुव त साधवः ।। तं तु धम म त ा मुनयो धमव सलाः । द ानेन प या म अतीतानागतानहम् ।। त माद् व या म वः ेय आस ं सर उ मम् । अ ासा सरः ना वा व य च वन पतौ ।। ासं कमलप ा ं ् वा शोकं वहा यथ ।। धातरा ाद् ववास दहनं वारणावते । ाणं च व रात् तु यं व दतं ानच ुषा ।। आवासे शा लहो य स च वासं वधा य त । वषवातातपसहः अयं पु यो वन प तः ।। पीतमा े तु पानीये ु पपासे वन यतः । तपसा शा लहो ेण सरो वृ न मतः ।। काद बाः सारसा हंसाः कुरयः कुररैः सह । व त मधुरं गीतं गा धव वन म तम् ।। ‘म महती कामवेदनासे पी ड़त एक नारी ँ, अतः आप मेरी भी र ा क जये। साधु पु ष धम, अथ, काम और मो क स के सभी पु षाथ के लये शरणागत पर दया करते ह। धमानुरागी मह ष दयाको ही े धम मानते ह। म द ानसे भूत और भ व यक घटना को दे खती ँ। अतः आपलोग के क याणक बात बता रही ँ। यहाँसे थोड़ी ही रपर एक उ म सरोवर है। आपलोग आज वहाँ जाकर उस सरोवरम नान करके वृ के नीचे व ाम कर। कुछ दन बाद कमलनयन ासजीका दशन पाकर आपलोग शोकमु हो जायँगे। य धनके ारा आपलोग का ह तनापुरसे नकाला जाना, वारणावत नगरम जलाया जाना और व रजीके य नसे आप सब लोग क र ा होनी आ द बात उ ह ान से ात हो गयी ह। वे महा मा ास शा लहो मु नके आ मम नवास करगे। उनके आ मका वह प व वृ सद, गम और वषाको अ छ तरह सहनेवाला है। वहाँ केवल जल पी लेनेसे भूख- यास र हो जाती है। शा लहो मु नने अपनी तप या ारा पूव सरोवर और वृ का नमाण कया है। वहाँ काद ब, सारस, हंस, कुररी और कुरर आ द प ी संगीतक व नसे म त मधुर गीत गाते रहते ह’। वैश पायन उवाच त या तद् वचनं ु वा कु ती वचनम वीत् । यु ध रं महा ा ं सवशा वशारदम् ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! ह ड बाका यह वचन सुनकर कु तीदे वीने स पूण शा म पारंगत परम बु मान् यु ध रसे इस कार कहा। कु युवाच वं ह धमभृतां े मयो ं शृणु भारत । े े ै

रा येषा ह वा येन धम वद त साधु वै ।। भावेन ा भीमं सा क क र य त रा सी । भजतां पा डवं वीरमप याथ यद छ स ।।) कु ती बोली—धमा मा म े भारत! म जो कहती ँ, उसे तुम सुनो; यह रा सी अपनी वाणी ारा तो उ म धमका ही तपादन करती है। य द इसक हादक भावना भीमसेनके त षत हो, तो भी यह उनका या बगाड़ लेगी? अतः य द तु हारी स म त हो तो यह संतानके लये कुछ कालतक मेरे वीर पु पा डु न दन भीमसेनक सेवाम रहे। यु ध र उवाच एवमेतद् यथाऽऽ थ वं ह ड बे ना संशयः । थात ं तु वया स ये यथा ूयां सुम यमे ।। १६ ।। यु ध र बोले— ह ड बे! तुम जैसा कह रही हो, वह सब ठ क है; इसम संशय नह है। परंतु सुम यमे! म जैसे क ँ, उसी कार तु ह स यपर थर रहना चा हये ।। १६ ।। नातं कृता कं भ े कृतकौतुकम लम् । भीमसेनं भजेथा वं ाग तगमनाद् रवेः ।। १७ ।। भ े ! जब भीमसेन नान, न यकम तथा मांग लक वेशभूषा आ द धारण कर ल, तब तुम त दन उनके साथ रहकर सूया त होनेसे पहलेतक ही उनक सेवा कर सकती हो ।। १७ ।। अह सु वहरानेन यथाकामं मनोजवा । अयं वान यत ते भीमसेनः सदा न श ।। १८ ।। तुम मनके समान वेगसे चलने- फरनेवाली हो, अतः दनभर तो तुम इनके साथ अपनी इ छाके अनुसार वहार करो, परंतु रातको सदा ही तु ह भीमसेनको (हमारे पास) प ँचा दे ना होगा ।। १८ ।। ( ाक ् सं यातो वमो ोर त न यशः । एवं रम व भीमेन यावद् गभ य वेदनम् ।। एष ते समयो भ े शु ू य ा म या । न यानुकूलया भू वा कत ं शोभनं वया ।। सं याकाल आनेसे पहले ही इ ह छोड़ दे ना होगा और न य- नर तर इनक र ा करनी होगी। इस शतपर तुम भीमसेनके साथ सुखपूवक तबतक रहो, जबतक क तु ह यह पता न चल जाय क तु हारे गभम बालक आ गया है। भ े ! यही तु हारे लये पालन करनेयो य नयम है। तु ह सावधान होकर भीमसेनक सेवा करनी चा हये और न य उनके अनुकूल होकर सदा उनक भलाईम संल न रहना चा हये।

यु ध रेणैवमु ा कु या चाङ् केऽ धरो पता । भीमाजुना तरगता यमा यां च पुर कृता ।। तयग् यु ध रे या त ह ड बा भीमगा मनी । शा लहो सरो र यमासे ते जला थनः ।। तत् तथे त त ाय ह ड बा रा सी तदा । वन प ततलं ग वा प रमृ य गृहं यथा ।। पा डवानां च वासं सा कृ वा पणमयं तथा । आ मन तथा कु या एको े शे चकार सा ।। पा डवा तु ततः ना वा शु ाः सं यामुपा य च । तृ षताः ु पपासाता जलमा ेण वतयन् ।। शा लहो ततो ा वा ुधातान् पा डवां तदा । मनसा च तयामास पानीयं भोजनं महत् । तत ते पा डवाः सव व ा ताः पृथया सह ।। यथा जतुगृहे वृ ं रा सेन कृतं च यत् । कृ वा कथा ब वधाः कथा ते पा डु न दनम् ।। कु तराजसुता वा यं भीमसेनमथा वीत् ।। े



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यु ध रके य कहनेपर कु तीने ह ड बाको अपने दयसे लगा लया। तदन तर वह यु ध रसे कुछ रीपर रहकर भीमके साथ चल पड़ी। वह चलते समय भीम और अजुनके बीचम रहती थी। नकुल और सहदे व सदा उसे आगे करके चलते थे। (इस कार) वे (सब) लोग जल पीनेक इ छासे शा लहो मु नके रमणीय सरोवरके तटपर जा प ँचे। वहाँ कु ती तथा यु ध रने पहले जो शत रखी थी, उसे वीकार करके ह ड बा रा सीने वैसा ही काय करनेक त ा क । त प ात् उसने वृ के नीचे जाकर घरक तरह झाड लगायी और पा डव के लये नवास- थानका नमाण कया। उन सबके लये पणशाला तैयार करनेके बाद उसने अपने और कु तीके लये एक सरी जगह कुट बनायी। तदन तर पा डव ने नान करके शु हो सं योपासना कया और भूख- याससे पी ड़त होनेपर भी केवल जलका आहार कया। उस समय शा लहो मु नने उ ह भूखसे ाकुल जान मन-ही-मन उनके लये चुर अ -पानक साम ीका च तन कया (और उससे पा डव को भोजन कराया)। तदन तर कु तीदे वीस हत सब पा डव व ाम करने लगे। व ामके समय उनम नाना कारक बात होने लग — कस कार ला ागृहम उ ह जलानेका य न कया गया तथा फर रा स ह ड बने उन लोग पर कस कार आ मण कया इ या द संग उनक चचाके वषय थे। बातचीत समा त होनेपर कु तराजकुमारी कु तीने पा डु न दन भीमसेनसे इस कार कहा। कु युवाच यथा पा डु तथा मा य तव ये ो यु ध रः । अहं धम वधानेन मा या गु तरा तव ।। त मात् पा डु हताथ मे युवराज हतं कु । नकृता धातरा ेण पापेनाकृतबु ना । कृत य तीकारं न प या म वृकोदर ।। त मात् क तपयाहेन योग ेमं भ व य त ।। ेमं ग ममं वासं व स यामो यथासुखम् । इदम महद् ःखं धमकृ ं वृकोदर ।। ् वैव वां महा ा अन ा भ चो दता । यु ध रं च मां चैव वरयामास धमतः ।। धमाथ दे ह पु ं वं स नः ेयः क र य त । तवा यं तु ने छा म ावा यां वचनं कु ।।) कु ती बोली—युवराज! तु हारे लये जैसे महाराज पा डु माननीय थे, वैसे ही बड़े भाई यु ध र भी ह। धमशा क से म उनक अपे ा भी अ धक गौरवक पा तथा स माननीय ँ। अतः तुम महाराज पा डु के हतके लये मेरी एक हतकर आ ाका पालन करो। वृकोदर! अप व बु वाले पापा मा य धनने हमारे साथ जो ता क है, उसके तशोधका उपाय मुझे कोई नह दखायी दे ता। अतः कुछ दन के बाद भले ही हमारा योग ेम स हो। यह नवास थान अ य त गम होनेके कारण हमारे लये क याणकारी ो













स होगा। हम यहाँ सुखपूवक रहगे। महा ा भीमसेन! आज यह हमारे सामने अ य त ःखद धमसंकट उप थत आ है क ह ड बा तु ह दे खते ही कामसे े रत हो मेरे और यु ध रके पास आकर धमतः तु ह प तके पम वरण कर चुक है। मेरी आ ा है क तुम उसे धमके लये एक पु दान करो। वह हमारे लये क याणकारी होगा। म इस वषयम तु हारा कोई तवाद नह सुनना चाहती। तुम हम दोन के सामने त ा करो।

वैश पायन उवाच तथे त तत् त ाय भीमसेनोऽ वी ददम् । शृणु रा स स येन समयं ते वदा यहम् ।। १९ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! ‘ब त अ छा’ कहकर भीमसेनने वैसा ही करनेक त ा क (और ह ड बाके साथ गा धव- ववाह कर लया)। त प ात् भीमसेन ह ड बासे इस कार बोले—‘रा सी! सुनो, म स यक शपथ खाकर तु हारे सामने एक शत रखता ँ ।। १९ ।। यावत् कालेन भव त पु यो पादनं शुभे । तावत् कालं ग म या म वया सह सुम यमे ।। २० ।। ‘शुभे! सुम यमे! जबतक तु ह पु क उ प न हो जाय तभीतक म तु हारे साथ वहारके लये चलूँगा’ ।। २० ।। वैश पायन उवाच तथे त तत् त ाय ह ड बा रा सी तदा । भीमसेनमुपादाय सो वमाच मे ततः ।। २१ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तब ‘ऐसा ही होगा’ यह त ा करके ह ड बा रा सी भीमसेनको साथ ले वहाँसे ऊपर आकाशम उड़ गयी ।। २१ ।। शैलशृ े षु र येषु दे वतायतनेषु च । मृगप वघु ेषु रमणीयेषु सवदा ।। २२ ।। कृ वा च परमं पं सवाभरणभू षता । संज प ती सुमधुरं रमयामास पा डवम् ।। २३ ।। तथैव वन गषु पु पत मव लषु । सर सु रमणीयेषु पो पलयुतेषु च ।। २४ ।। नद प दे शेषु वै य सकतासु च । सुतीथवनतोयासु तथा ग रनद षु च ।। २५ ।। काननेषु व च ेषु पु पत मव लषु । हमवद् ग रकु ेषु गुहासु व वधासु च ।। २६ ।। फु लशतप ेषु सर वमलवा रषु । सागर य दे शेषु म णहेम चतेषु च ।। २७ ।। प वलेषु च र येषु महाशालवनेषु च । दे वार येषु पु येषु तथा पवतसानुषु ।। २८ ।। े े

गु कानां नवासेषु तापसायतनेषु च । सवतुफलर येषु मानसेषु सर सु च ।। २९ ।। ब ती परमं पं रमयामास पा डवम् । रमय ती तथा भीमं त त मनोजवा ।। ३० ।। उसने रमणीय पवत शखर पर, दे वता के नवास- थान म तथा जहाँ ब त-से पशुप ी मधुर श द करते रहते ह, ऐसे सुर य दे श म सदा परम सु दर प धारण करके, सब कारके आभूषण से वभू षत हो मीठ -मीठ बात करके पा डु न दन भीमसेनको सुख प ँचाया। इसी कार पु पत वृ और लता से सुशो भत गम वन म, कमल और उ पल आ दसे अलंकृत रमणीय सरोवर म, न दय के प म तथा जहाँक वालुका वै यम णके समान है, जनके घाट, तटवत वन तथा जल सभी सु दर एवं प व ह, उन पवतीय न दय म, वक सत वृ और लता-व ल रय से वभू षत व च कानन म, हमवान् पवतके कुंज और भाँ त-भाँ तक गुफा म, खले ए कमलसमूहसे यु नमल जलवाले सरोवर म, म णय और सुवणसे स प समु -तटवत दे श म, छोटे -छोटे सु दर तालाब म, बड़े-बड़े शाल-वृ के जंगल म, प व दे ववन म, पवतीय शखर पर, गु क के नवास थान म, सभी ऋतु के फल से स प तप वी मु नय के सुर य आ म म तथा मानसरोवर एवं अ य जलाशय म घूम- फरकर ह ड बाने परम सु दर प धारण करके पा डु न दन भीमसेनके साथ रमण कया। वह मनके समान वेगसे चलनेवाली थी, अतः उन-उन थान म भीमसेनको आन द दान करती ई वचरती रहती थी ।। २२-३० ।। ज े रा सी पु ं भीमसेना महाबलम् । व पा ं महाव ं शङ् कुकण बभीषणम् ।। ३१ ।। कुछ कालके प ात् उस रा सीने भीमसेनसे एक महान् बलवान् पु उ प कया, जसक आँख वकराल, मुख वशाल और कान शंकुके समान थे। वह दे खनेम बड़ा भयंकर जान पड़ता था ।। ३१ ।। भीमनादं सुता ो ं ती णदं ं महाबलम् । महे वासं महावीय महास वं महाभुजम् ।। ३२ ।। महाजवं महाकायं महामायमरदमम् । द घघोणं महोर कं वकटो प डकम् ।। ३३ ।। उसक आवाज बड़ी भयानक थी। सु दर लाल-लाल ओठ, तीखी दाढ़, महान् बल, ब त बड़ा धनुष, महान् परा म, अ य त धैय और साहस, बड़ी-बड़ी भुजाएँ, महान् वेग और वशाल शरीर—ये उसक वशेषताएँ थ । वह महामायावी रा स अपने श ु का दमन करनेवाला था। उसक नाक ब त बड़ी, छाती चौड़ी तथा पैर क दोन पड लयाँ टे ढ़ और ऊँची थ ।। ३२-३३ ।। अमानुषं मानुषजं भीमवेगं महाबलम् । यः पशाचानती या यान् बभूवातीव रा सान् ।। ३४ ।। य प उसका ज म मनु यसे आ था तथा प उसक आकृ त और श अमानु षक थी। उसका वेग भयंकर और बल महान् था। वह सरे पशाच तथा रा स से ब त अ धक ी



शाली था ।। ३४ ।। बालोऽ प यौवनं ा तो मानुषेषु वशा पते । सवा ेषु परं वीरः कषमगमद् बली ।। ३५ ।। राजन्! अव थाम बालक होनेपर भी वह मनु य म युवक-सा तीत होता था। उस बलवान् वीरने स पूण अ -श म बड़ी नपुणता ा त क थी ।। ३५ ।। स ो ह गभान् रा यो लभ ते सव त च । काम पधरा ैव भव त ब पकाः ।। ३६ ।। रा सयाँ जब गभ धारण करती ह, तब त काल ही उसको ज म दे दे ती ह। वे इ छानुसार प धारण करनेवाली और नाना कारके प बदलनेवाली होती ह ।। ३६ ।। ण य वकचः पादावगृ ात् स पतु तदा । मातु परमे वास तौ च नामा य च तुः ।। ३७ ।। उस महान् धनुधर बालकने पैदा होते ही पता और माताके चरण म णाम कया। उसके सरम बाल नह उगे थे। उस समय पता और माताने उसका इस कार नामकरण कया ।। ३७ ।। घटो हा यो कच इ त माता तं यभाषत । अ वीत् तेन नामा य घटो कच इ त म ह ।। ३८ ।। बालकक माताने भीमसेनसे कहा—‘इसका घट ( सर) उ कच* अथात् केशर हत है।’ उसके इस कथनसे ही उसका नाम घटो कच हो गया ।। ३८ ।। अनुर तानासीत् पा डवान् स घटो कचः । तेषां च द यतो न यमा म न यो बभूव ह ।। ३९ ।। घटो कचका पा डव के त बड़ा अनुराग था और पा डव को भी वह ब त य था। वह सदा उनक आ ाके अधीन रहता था ।। ३९ ।। संवाससमयो जीण इ याभा य तत तु तान् । ह ड बा समयं कृ वा वां ग त यप त ।। ४० ।। तदन तर ह ड बा पा डव से यह कहकर क भीमसेनके साथ रहनेका मेरा समय समा त हो गया, आव यकताके समय पुनः मलनेक त ा करके अपने अभी थानको चली गयी ।। ४० ।। घटो कचो महाकायः पा डवान् पृथया सह । अ भवा यथा यायम वी च भा य तान् ।। ४१ ।। क करो यहमायाणां नःशङ् कं वदतानघाः । तं ुव तं भैमसे न कु ती वचनम वीत् ।। ४२ ।। त प ात् वशालकाय घटो कचने कु तीस हत पा डव को यथायो य णाम करके उ ह स बो धत करके कहा—‘ न पाप गु जन! आप नःशंक होकर बताय, म आपक या सेवा क ँ ?’ इस कार पूछनेवाले भीमसेनकुमारसे कु तीने कहा— ।। ४१-४२ ।। वं कु णां कुले जातः सा ाद् भीमसमो स । े



ये ः पु ोऽ स प चानां साहा यं कु पु क ।। ४३ ।। ‘बेटा! तु हारा ज म कु कुलम आ है। तुम मेरे लये सा ात् भीमसेनके समान हो। पाँच पा डव के ये पु हो, अतः हमारी सहायता करो’ ।। ४३ ।। वैश पायन उवाच पृथया येवमु तु ण यैव वचोऽ वीत् । यथा ह रावणो लोके इ ज च महाबलः । व मवीयसमो लोके व श ाभवं नृषु ।। ४४ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! कु तीके य कहनेपर घटो कचने णाम करके ही उनसे कहा—‘दाद जी! लोकम जैसे रावण और मेघनाद ब त बड़े बलवान् थे, उसी कार इस मानव-जगत्म म भी उ ह के समान वशालकाय और महापरा मी ँ; ब क उनसे भी बढ़कर ँ ।। ४४ ।।

कृ यकाल उप था ये पतॄ न त घटो कचः । आम य र सां े ः त थे चो रां दशम् ।। ४५ ।। ‘जब मेरी आव यकता होगी, उस समय म वयं अपने पतृवगक सेवाम उप थत हो जाऊँगा।’ य कहकर रा स े घटो कच पा डव से आ ा लेकर उ र दशाक ओर चला गया ।। ४५ ।।

पा डव क

धृ

ासजीसे भट

ु नक घोषणा

स ह सृ ो मघवता श हेतोमहा मना । कण या तवीय य तयो ा महारथः ।। ४६ ।। महामना इ ने अनुपम परा मी कणक श का आघात सहन करनेके लये घटो कचक सृ क थी। वह कणके स मुख यु करनेम समथ महारथी वीर था ।। ४६ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण ह ड बवधपव ण घटो कचो प ौ चतु प चाशद धकशततमोऽ यायः ।। १५४ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत ह ड बवधपवम घटो कचक उ प वषयक एक सौ चौवनवाँ अ याय पूरा आ ।। १५४ ।। (दा णा य अ धक पाठक े ३३ ोक मलाकर कुल ७९ ोक ह)

* कोई-कोई उ कचका अथ ‘ऊपर उठे ए बाल वाला’ भी करते ह।

प चप चाशद धकशततमोऽ यायः पा डव को

ासजीका दशन और उनका एकच ा नगरीम वेश

वैश पायन उवाच ते वनेन वनं ग वा न तो मृगगणान् बन् । अप य ययू राजं वरमाणा महारथाः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! वे महारथी पा डव उस थानसे हटकर एक वनसे सरे वनम जाकर ब त-से हसक पशु को मारते ए बड़ी उतावलीके साथ आगे बढ़े ।। १ ।। म यां गतान् प चालान् क चकान तरेण च । रमणीयान् वनो े शान् े माणाः सरां स च ।। २ ।। म य, गत, पंचाल तथा क चक—इन जनपद के भीतर होकर रमणीय वन थ लय और सरोवर को दे खते ए वे लोग या ा करने लगे ।। २ ।। जटाः कृ वाऽऽ मनः सव व कला जनवाससः । सह कु या महा मानो ब त तापसं वपुः ।। ३ ।। व चद् वह तो जनन वरमाणा महारथाः । व च छ दे न ग छ त ते ज मुः सभं पुनः ।। ४ ।। उन सबने अपने सरपर जटाएँ रख ली थ । व कल और मृगचमसे अपने शरीरको ढँ क लया था और तप वीका-सा वेष धारण कर रखा था। इस कार वे महारथी महा मा पा डव माता कु तीदे वीके साथ कह तो उ ह पीठपर ढोते ए ती ग तसे चलते थे, कह इ छानुसार धीरे-धीरे पाँव बढ़ाते थे और कह पुनः अपनी चाल तेज कर दे ते थे ।। ३-४ ।। बा ं वेदमधीयाना वेदा ा न च सवशः । नी तशा ं च सव ा द शु ते पतामहम् ।। ५ ।। पा डवलोग सब शा के ाता थे और त दन उप नषद्, वेद-वेदांग तथा नी तशा का वा याय कया करते थे। एक दन जब वे वा यायम लगे थे, पतामह ासजीका दशन आ ।। ५ ।। तेऽ भवा महा मानं कृ ण ै पायनं तदा । त थुः ा लयः सव सह मा ा परंतपाः ।। ६ ।। श ु को संताप दे नेवाले पा डव ने उस समय महा मा ीकृ ण ै पायनको णाम कया और अपनी माताके साथ वे सब लोग उनके आगे हाथ जोड़कर खड़े हो गये ।। ६ ।। ास उवाच मयेदं सनं पूव व दतं भरतषभाः । ै



यथा तु तैरधमण धातरा ै ववा सताः ।। ७ ।। तद् व द वा म स ा त क षुः परमं हतम् । न वषादोऽ कत ः सवमेतत् सुखाय वः ।। ८ ।। तब ासजीने कहा—भरत े पा डु कुमारो! मने पहले ही तुमलोग पर आये ए इस संकटको जान लया था। धृतराक े पु ने तु ह जस कार अधमपूवक रा यसे ब ह कृत कया है, वह सब जानकर तु हारा परम हत करनेके लये म यहाँ आया ँ। इसके लये तु ह वषाद नह करना चा हये; यह सब तु हारे भावी सुखके लये हो रहा है ।। ७-८ ।। समा ते चैव मे सव यूयं चैव न संशयः । द नतो बालत ैव नेहं कुव त मानवाः । त माद य धकः नेहो यु मासु मम सा तम् ।। ९ ।। इसम संदेह नह क मेरे लये तुमलोग और धृतराक े पु य धन आ द सब समान ही ह। फर भी जहाँ द नता और बचपन है, वह मनु य अ धक नेह करते ह; इसी कारण इस समय तुमलोग पर मेरा अ धक नेह है ।। ९ ।। नेहपूव चक षा म हतं व त बोधत । इदं नगरम याशे रमणीयं नरामयम् । वसतेह त छ ा ममागमनकाङ् णः ।। १० ।। म नेहपूवक तुमलोग का हत करना चाहता ँ। इस लये मेरी बात सुनो। यहाँ पास ही जो यह रमणीय नगर है, इसम रोग- ा धका भय नह है। अतः तुम सब लोग यह छपकर रहो और मेरे पुनः आनेक ती ा करो ।। १० ।। वैश पायन उवाच एवं स तान् समा ा य ासः स यवतीसुतः । एकच ाम भगतः कु तीमा ासयत् भुः ।। ११ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! इस कार पा डव को भलीभाँ त आ ासन दे कर स यवतीन दन भगवान् ास उन सबके साथ एकच ा नगरीके नकट गये। वहाँ उ ह ने कु तीको इस कार सा वना द ।। ११ ।। ास उवाच जीव पु सुत तेऽयं धम न यो यु ध रः । धमण पृ थव ज वा महा मा पु षषभः । पृ थ ां पा थवान् सवान् शा स य त धमराट् ।। १२ ।। ासजी बोले—जी वत पु वाली ब ! तु हारे ये पु नर े महा मा धमराज यु ध र सदा धमपरायण ह; अतः ये धमसे ही सारी पृ वीको जीतकर भूम डलके स पूण राजा पर शासन करगे ।। १२ ।। पृ थवीमखलां ज वा सवा सागरमेखलाम् । भीमसेनाजुनबलाद् भो यते ना संशयः ।। १३ ।। ी े औ े े ी ो े े े

भीमसेन और अजुनके बलसे समु पय त सारी वसुधाको अपने अ धकारम करके ये उसका उपभोग करगे; इसम संशय नह है ।। १३ ।। पु ा तव च मा या सव एव महारथाः । वरा े वह र य त सुखं सुमनसः सदा ।। १४ ।। तु हारे और मा के सभी महारथी पु सदा अपने रा यम स च हो सुखपूवक वचरगे ।। १४ ।। य य त च नर ा ा न ज य पृ थवी ममाम् । राजसूया मेधा ैः तु भभू रद णैः ।। १५ ।। पु ष म सहके समान बलवान् पा डव इस पृ वीको जीतकर चुर द णासे स प राजसूय तथा अ मेध आ द य ारा भगवान्का यजन करगे ।। १५ ।। अनुगृ सु द्वग भोगै यसुखेन च । पतृपैतामहं रा य ममे भो य त ते सुताः ।। १६ ।। तु हारे ये पु अपने सु द के समुदायको उ म भोग एवं ऐ य-सुखके ारा अनुगह ृ ीत करके बाप-दाद के रा यका पालन एवं उपभोग करगे ।। १६ ।।

वैश पायन उवाच एवमु वा नवे यैनान् ा ण य नवेशने । अ वीत् पा डव े मृ ष पायन तदा ।। १७ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! य कहकर मह ष ै पायनने इन सबको एक ा णके घरम ठहरा दया और पा डव े यु ध रसे कहा— ।। १७ ।। इह मासं ती वमाग म या यहं पुनः । दे शकालौ व द वैव ल य वं परमां मुदम् ।। १८ ।। ‘तुमलोग यहाँ एक मासतक मेरी ती ा करो। म पुनः आऊँगा। दे श और कालका वचार करके ही कोई काय करना चा हये; इससे तु ह बड़ा सुख मलेगा’ ।। १८ ।। स तैः ा ल भः सव तथे यु ो नरा धप । जगाम भगवान् ासो यथागतमृ षः भुः ।। १९ ।। राजन्! उस समय सबने हाथ जोड़कर उनक आ ा वीकार क । तदन तर श शाली मह ष भगवान् ास जैसे आये थे, वैसे ही चले गये ।। १९ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण ह ड बवधपव ण एकच ा वेशे ासदशने प चप चाशद धकशततमोऽ यायः ।। १५५ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत ह ड बवधपवम पा डव का एकच ानगरीम वेश और ासजीका दशन वषयक एक सौ पचपनवाँ अ याय पूरा आ ।। १५५ ।।

(ब कवधपव) षट् प चाशद धकशततमोऽ यायः ा णप रवारका क र करनेके लये कु तीक भीमसेनसे बातचीत तथा ा णके च तापूण उद्गार जनमेजय उवाच एकच ां गता ते तु कु तीपु ा महारथाः । अत ऊ व ज े कमकुवत पा डवाः ।। १ ।। जनमेजयने पूछा— ज े ! कु तीके महारथी पु पा डव जब एकच ा नगरीम प ँच गये, उसके बाद उ ह ने या कया? ।। १ ।। वैश पायन उवाच एकच ां गता ते तु कु तीपु ा महारथाः । ऊषुना त चरं कालं ा ण य नवेशने ।। २ ।। वैश पायनजीने कहा—राजन्! एकच ा नगरीम जाकर महारथी कु तीपु थोड़े दन तक एक ा णके घरम रहे ।। २ ।। रमणीया न प य तो वना न व वधा न च । पा थवान प चो े शान् स रत सरां स च ।। ३ ।। चे भ ं तदा ते तु सव एव वशा पते । बभूवुनागराणां च वैगुणैः यदशनाः ।। ४ ।। जनमेजय! उस समय वे सभी पा डव भाँ त-भाँ तके रमणीय वन , सु दर भूभाग , स रता और सरोवर का दशन करते ए भ ाके ारा जीवन- नवाह करते थे। अपने उ म गुण के कारण वे सभी नाग रक के ी त-पा हो गये थे ।। ३-४ ।। (दशनीया जाः शु ा द े वगभ पमाः शुभाः । भै ानहा रा याहाः सुकुमारा तप वनः ।। सवल णस प ा भै ं नाह त न यशः । काया थन र ती त तकय त इ त ुवन् ।। ब धूनामागमा यमुप च य तु नागराः । भाजना न च पूणा न भ यभो यैरकारयन् ।। मौन तेन संयु ा भै ं गृ त पा डवाः । माता चरगतान् ् वा शोच ती त च पा डवाः । े



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वरमाणा नवत ते मातृगौरवय ताः ।।) उ ह दे खकर नगर नवासी आपसम तक- वतक करते ए इस कारक बात करते थे —‘ये ा णलोग तो दे खने ही यो य ह। इनके आचार- वचार शु एवं सु दर ह। इनक आकृ त दे वकुमार के समान जान पड़ती है। ये भीख माँगनेयो य नह , रा य करनेके यो य ह। सुकुमार होते ए भी तप याम लगे ह। इनम सब कारके शुभ ल ण शोभा पाते ह। ये कदा प भ ा हण करनेयो य नह ह। शायद कसी कायवश भ ुक के वेशम वचर रहे ह।’ वे नाग रक पा डव के आगमनको अपने ब धुजन का ही आगमन मानकर उनके लये भ य-भो य पदाथ से भरे ए पा तैयार रखते थे और मौन तका पालन करनेवाले पा डव उनसे वह भ ा हण करते थे। हम आये ए ब त दे र हो गयी, इस लये माताजी च ताम पड़ी ह गी—यह सोचकर माताके गौरव-पाशम बँधे ए पा डव बड़ी उतावलीके साथ उनके पास लौट आते थे। नवेदय त म तदा कु या भै ं सदा न श । तया वभ ान् भागां ते भु ते म पृथक् पृथक् ।। ५ ।। त दन रा के आर भम भ ा लाकर वे माता कु तीको स प दे ते और वे बाँटकर जसके लये जतना ह सा दे त , उतना ही पृथक्-पृथक् लेकर पा डवलोग भोजन करते थे ।। ५ ।। अध ते भु ते वीराः सह मा ा परंतपाः । अध सव य भै य भीमो भुङ् े महाबलः ।। ६ ।। वे चार वीर परंतप पा डव अपनी माताके साथ आधी भ ाका उपयोग करते थे और स पूण भ ाका आधा भाग अकेले महाबली भीमसेन खाते थे ।। ६ ।। तथा तु तेषां वसतां त मन् रा े महा मनाम् । अ तच ाम सुमहान् कालोऽथ भरतषभ ।। ७ ।। भरतवंश शरोमणे! इस कार उस राम नवास करते ए महा मा पा डव का ब त समय बीत गया ।। ७ ।। ततः कदा चत् भै ाय गता ते पु षषभाः । संग या भीमसेन तु त ा ते पृथया सह ।। ८ ।। तदन तर एक दन नर े यु ध र आ द चार भाई भ ाके लये गये; कतु भीमसेन कसी काय वशेषके स ब धसे कु तीके साथ वहाँ घरपर ही रह गये थे ।। ८ ।। अथा तजं महाश दं ा ण य नवेशने । भृशमु प ततं घोरं कु ती शु ाव भारत ।। ९ ।। भारत! उस दन ा णके घरम सहसा बड़े जोरका भयानक आतनाद होने लगा, जसे कु तीने सुना ।। ९ ।। रो यमाणां तान् ् वा प रदे वयत सा । का यात् साधुभावा च कु ती राजन् न च मे ।। १० ।। राजन्! उन ा ण-प रवारके लोग को ब त रोते और वलाप करते दे ख कु तीदे वी अ य त दयालुता तथा साधु- वभावके कारण सहन न कर सक ।। १० ।। े े े

मयमानेन ःखेन दयेन पृथा तदा । उवाच भीमं क याणी कृपा वत मदं वचः ।। ११ ।। वसाम सुसुखं पु ा ण य नवेशने । अ ाता धातरा य स कृता वीतम यवः ।। १२ ।। उस समय उनका ःख मानो कु तीदे वीके दयको मथे डालता था। अतः क याणमयी कु ती भीमसेनसे इस कार क णायु वचन बोल —‘बेटा! हमलोग इस ा णके घरम य धनसे अ ात रहकर बड़े सुखसे नवास करते ह। यहाँ हमारा इतना स कार आ है क हम अपने ःख और दै यको भूल गये ह ।। ११-१२ ।। सा च तये सदा पु ा ण या य क वहम् । यं कुया म त गृहे यत् कुयु षताः सुखम् ।। १३ ।। ‘इस लये पु ! म सदा यही सोचती रहती ँ क इस ा णका म कौन-सा य काय क ँ , जसे कसीके घरम सुखपूवक रहनेवाले लोग कया करते ह ।। १३ ।। एतावान् पु ष तात कृतं य मन् न न य त । याव च कुयाद योऽ य कुयाद य धकं ततः ।। १४ ।। ‘तात! जसके त कया आ उपकार उसका बदला चुकाये बना न नह होता, वही पु ष है (और इतना ही उसका पौ ष—मानवता है क) सरा मनु य उसके त जतना उपकार करे, वह उससे भी अ धक उस मनु यका युपकार कर दे ।। १४ ।। त ददं ा ण या य ःखमाप ततं ुवम् । त ा य य द साहा यं कुयामुपकृतं भवेत् ।। १५ ।। ‘इस समय न य ही इस ा णपर कोई भारी ःख आ पड़ा है। य द उसम म इसक सहायता क ँ तो वा त वक उपकार हो सकता है’ ।। १५ ।। भीमसेन उवाच ायताम य यद् ःखं यत ैव समु थतम् । व द वा व स या म य प यात् सु करम् ।। १६ ।। भीमसेन बोले—माँ! पहले यह मालूम करो क इस ा णको या ःख है और वह कस कारणसे ा त आ है। जान लेनेपर अ य त कर होगा, तो भी म इसका क र करनेके लये उ ोग क ँ गा ।। १६ ।। वैश पायन उवाच एवं तौ कथय तौ च भूयः शु ुवतुः वनम् । आ तजं त य व य सभाय य वशा पते ।। १७ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! वे माँ-बेटे इस कार बात कर ही रहे थे क पुनः प नीस हत ा णका आतनाद उनके कान म पड़ा ।। १७ ।। अ तःपुरं तत त य ा ण य महा मनः । ववेश व रता कु ती ब व सेव सौरभी ।। १८ ।। ी े ी







तब कु तीदे वी तुरंत ही उस महा मा ा णके अ तःपुरम घुस गय —ठ क उसी तरह जैसे घरके भीतर बँधे ए बछड़ेवाली गाय वयं ही उसके पास प ँच जाती है ।। १८ ।। तत तं ा णं त भायया च सुतेन च । ह ा चैव स हतं ददशावनताननम् ।। १९ ।। भीतर जाकर कु तीने ा णको वहाँ प नी, पु और क याके साथ नीचे मुँह कये बैठे दे खा ।। १९ ।। ा ण उवाच ध गदं जी वतं लोके गतसारमनथकम् । ःखमूलं पराधीनं भृशम यभा ग च ।। २० ।। ा णदे वता कह रहे थे—जगत्के इस जीवनको ध कार है; य क यह सारहीन, नरथक, ःखक जड़, पराधीन और अ य त अ यका भागी है ।। २० ।। जी वते परमं ःखं जी वते परमो वरः । जी वते वतमान य ःखानामागमो ुवः ।। २१ ।। जीनेम महान् ःख है। जीवनकालम बड़ी भारी च ताका सामना करना पड़ता है। जसने जीवन धारण कर रखा है, उसे ःख क ा त अव य होती है ।। २१ ।। आ मा ेको ह धमाथ कामं चैव नषेवते । एतै व योगोऽ प ःखं परमन तकम् ।। २२ ।। जीवा मा अकेला ही धम, अथ और कामका सेवन करता है। इनका वयोग होना भी उसके लये महान् और अन त ःखका कारण होता है ।। २२ ।। आ ः के चत् परं मो ं स च ना त कथंचन । अथ ा तौ तु नरकः कृ न एवोपप ते ।। २३ ।। कुछ लोग चार पु षाथ म मो को ही सव म बतलाते ह, कतु वह भी मेरे लये कसी कार सुलभ नह है। अथक ा त होनेपर तो नरकका स पूण ःख भोगना ही पड़ता है ।। २३ ।। अथ सुता परं ःखमथ ा तौ ततोऽ धकम् । जात नेह य चाथषु व योगे मह रम् ।। २४ ।। धनक इ छा सबसे बड़ा ःख है, कतु धन ा त करनेम तो और भी अ धक ःख है और जसक धनम आस हो गयी है* , उसे उस धनका वयोग होनेपर इतना महान् ःख होता है, जसक कोई सीमा नह है ।। २४ ।। न ह योगं प या म येन मु येयमापदः । पु दारेण वा साध ा वेयमनामयम् ।। २५ ।। मुझे ऐसा कोई उपाय नह दखायी दे ता, जससे इस वप से छु टकारा पा सकूँ अथवा पु और ीके साथ कसी नरापद थानम भाग चलूँ ।। २५ ।। य ततं वै मया पूव वे थ ा ण तत् तथा । ेमं यत ततो ग तुं वया तु मम न ुतम् ।। २६ ।। ी ो ी ो े े ी ऐ े

ा णी! तुम इस बातको ठ क-ठ क जानती हो क पहले तु हारे साथ कसी ऐसे थानम चलनेके लये जहाँ सब कारसे अपना भला हो, मने य न कया था; परंतु उस समय तुमने मेरी बात नह सुनी ।। २६ ।। इह जाता ववृ ा म पता चा प ममे त वै । उ व य स मधे या यमाना मयासकृत् ।। २७ ।। मूढमते! म बार-बार तुमसे अ य चलनेके लये अनुरोध करता। उस समय तुम कहने लगती थ —‘यह मेरा ज म आ, यह बड़ी ई तथा मेरे पता भी यह रहते थे’ ।। २७ ।। वगतोऽ प पता वृ तथा माता चरं तव । बा धवा भूतपूवा त वासे तु का र तः ।। २८ ।। अरी! तु हारे बूढ़े माता- पता और पहलेके भाई-ब धु जसे छोड़कर ब त दन ए वगलोकको चले गये, वह नवास करनेके लये यह आस कैसी? ।। २८ ।। सोऽयं ते ब धुकामाया अशृ व या वचो मम । ब धु णाशः स ा तो भृशं ःखकरो मम ।। २९ ।। तुमने बंधु-बा धव के साथ रहनेक इ छा रखकर जो मेरी बात नह सुनी, उसीका यह फल है क आज सम त भाई-बंधु के वनाशक घड़ी आ प ँची है, जो मेरे लये अ य त ःखका कारण है ।। २९ ।। अथवा म नाशोऽयं न ह श या म कंचन । प र य ु महं ब धुं वयं जीवन् नृशंसवत् ।। ३० ।। अथवा यह मेरे ही वनाशका समय है; य क म वयं जी वत रहकर ू र मनु यक भाँ त सरे कसी भाई-बंधुका याग नह कर सकूँगा ।। ३० ।। सहधमचर दा तां न यं मातृसमां मम । सखायं व हतां दे वै न यं पर मकां ग तम् ।। ३१ ।। ये! तुम मेरी सहधमणी और इ य को संयमम रखनेवाली हो। सदा सावधान रहकर माताके समान मेरा पालन-पोषण करती हो। दे वता ने तु ह मेरी सखी (सहा यका) बनाया है। तुम सदा मेरी परम ग त (सबसे बड़ा सहारा) हो ।। ३१ ।। प ा मा ा च व हतां सदा गाह यभा गनीम् । वर य वा यथा यायं म वत् प रणीय च ।। ३२ ।। तु हारे पता-माताने तु ह सदाके लये मेरे गृह था मक अ धका रणी बनाया है। मने व धपूवक तु हारा वरण करके म ो चारणपूवक तु हारे साथ ववाह कया है ।। ३२ ।। कुलीनां शीलस प ामप यजननीम प । वामहं जी वत याथ सा वीमनपका रणीम् ।। ३३ ।। प र य ुं न श या म भाया न यमनु ताम् । कुत एव प र य ुं सुतं श या यहं वयम् ।। ३४ ।। बालम ा तवयसमजात नाकृ तम् । भतुरथाय न तां यासं धा ा महा मना ।। ३५ ।। यया दौ ह जाँ लोकानाशंसे पतृ भः सह । े

वयमु पा तां बालां कथमु ु मु सहे ।। ३६ ।। तुम कुलीन, सुशीला और संतानवती हो, सती-सा वी हो। तुमने कभी मेरा अपकार नह कया है। तुम न य मेरे अनुकूल चलनेवाली धमप नी हो। अतः म अपने जीवनक र ाके लये तु ह नह याग सकूँगा। फर वयं ही अपने उस पु का याग तो कैसे कर सकूँगा, जो अभी नरा ब चा है, जसने युवाव थाम वेश नह कया है तथा जसके शरीरम अभी जवानीके ल णतक नह कट ए ह। साथ ही अपनी इस क याको कैसे याग ँ , जसे महा मा ाजीने उसके भावी प तके लये धरोहरके पम मेरे यहाँ रख छोड़ा है? जसके होनेसे म पतर के साथ दौ ह ज नत पु यलोक को पानेक आशा रखता ँ, उसी अपनी बा लकाको वयं ही ज म दे कर म मौतके मुखम कैसे छोड़ सकता ँ? ।। ३३-३६ ।। म य ते के चद धकं नेहं पु े पतुनराः । क यायां के चदपरे मम तु यावुभौ मृतौ ।। ३७ ।। कुछ लोग ऐसा मानते ह क पताका अ धक नेह पु पर होता है तथा कुछ सरे लोग पु ीपर ही अ धक नेह बताते ह; कतु मेरे लये तो दोन ही समान ह ।। ३७ ।। य यां लोकाः सू त थता न यमथो सुखम् । अपापां तामहं बालां कथमु ु मु सहे ।। ३८ ।। जसपर पु यलोक, वंशपर परा और न य सुख—सब कुछ सदा नभर रहते ह, उस न पाप बा लकाका प र याग म कैसे कर सकता ँ ।। ३८ ।। आ मानम प चो सृ य त या म परलोकगः । य ा ेते मया ं नेह श य त जी वतुम् ।। ३९ ।। अपनेको भी यागकर परलोकम जानेपर म सदा इस बातके लये संत त होता र ँगा क मेरे ारा यागे ए ये ब चे अव य ही यहाँ जी वत नह रह सकगे ।। ३९ ।। एषां चा यतम यागो नृशंसो ग हतो बुधैः । आ म यागे कृते चेमे म र य त मया वना ।। ४० ।। इनमसे कसीका भी याग व ान ने नदयतापूण तथा न दनीय बताया है और मेरे मर जानेपर ये सभी मेरे बना मर जायँगे ।। ४० ।। स कृ ामहमाप ो न श ततुमापदम् । अहो धक् कां ग त व ग म या म सबा धवः । सवः सह मृतं ेयो न च मे जी वतं मम् ।। ४१ ।। अहो! म बड़ी क ठन वप म फँस गया ँ। इससे पार होनेक मुझम श नह है। ध कार है इस जीवनको। हाय! म ब धु-बा धव के साथ आज कस ग तको ा त होऊँगा? सबके साथ मर जाना ही अ छा है। मेरा जी वत रहना कदा प उ चत नह है ।। ४१ ।। इत



ीमहाभारते आ दपव ण बकवधपव ण ा ण च तायां षट् प चाशद धकशततमोऽ यायः ।। १५६ ।।



इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत बकवधपवम ा णक च ता वषयक एक सौ छ पनवाँ अ याय पूरा आ ।। १५६ ।। (दा णा य अ धक पाठक े ४ ोक मलाकर कुल ४५ ोक ह)

* याव तो य य संयोगा

ै र ैभव युत । ताव तोऽ य नख य ते दये शोकशङ् कवः ।।

स तप चाशद धकशततमोऽ यायः ा णीका वयं मरनेके लये उ त होकर प तसे जी वत रहनेके लये अनुरोध करना ा युवाच न संताप वया कायः ाकृतेनेव क ह चत् । न ह संतापकालोऽयं वै य तव व ते ।। १ ।। ा णी बोली— ाणनाथ! आपको साधारण मनु य क भाँ त कभी संताप नह करना चा हये। आप व ान् ह, आपके लये यह संतापका अवसर नह है ।। १ ।। अव यं नधनं सवग त मह मानवैः । अव य भा व यथ वै संतापो नेह व ते ।। २ ।। एक-न-एक दन संसारम सभी मनु य को अव य मरना पड़ेगा; अतः जो बात अव य होनेवाली है, उसके लये यहाँ शोक करनेक आव यकता नह है ।। २ ।। भाया पु ोऽथ हता सवमा माथ म यते । थां ज ह सुबु या वं वयं या या म त च ।। ३ ।। एत परमं नायाः काय लोके सनातनम् । ाणान प प र य य यद् भतृ हतमाचरेत् ।। ४ ।। प नी, पु और पु ी—ये सब अपने ही लये अभी होते ह। आप उ म बु ववेकका आ य लेकर शोक-संताप छो ड़ये। म वयं वहाँ (रा सके समीप) चली जाऊँगी। प नीके लये लोकम सबसे बढ़कर यही सनातन कत है क वह अपने ाण को भी नछावर करके प तक भलाई करे ।। ३-४ ।। त च त कृतं कम तवापीदं सुखावहम् । भव यमु चा यं लोकेऽ मं यश करम् ।। ५ ।। प तके हतके लये कया आ मेरा वह ाणो सग प कम आपके लये तो सुखकारक होगा ही, मेरे लये भी परलोकम अ य सुखका साधक और इस लोकम यशक ा त करानेवाला होगा ।। ५ ।। एष चैव गु धम यं व या यहं तव । अथ तव धम भूयान यते ।। ६ ।। यह सबसे बड़ा धम है, जो म आपसे बता रही ँ। इसम आपके लये अ धक-सेअ धक वाथ और धमका लाभ दखायी दे ता है ।। ६ ।। यदथ म यते भाया ा तः सोऽथ वया म य । क या चैका कुमार कृताहमनृणा वया ।। ७ ।। जस उ े यसे प नीक अ भलाषा क जाती है, आपने वह उ े य मुझसे स कर लया है। एक पु ी और एक पु आपके ारा मेरे गभसे उ प हो चुके ह। इस कार े

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आपने मुझे भी उऋण कर दया है ।। ७ ।। समथः पोषणे चा स सुतयो र णे तथा । न वहं सुतयोः श ा तथा र णपोषणे ।। ८ ।। इन दोन संतान का पालन-पोषण और संर ण करनेम आप समथ ह। आपक तरह म इन दोन के पालन-पोषण तथा र ाक व था नह कर सकूँगी ।। ८ ।। मम ह व हीनायाः सव ाणधने र । कथं यातां सुतौ बालौ भरेयं च कथं वहम् ।। ९ ।। मेरे सव वके वामी ाणे र! आपके न रहनेपर मेरे इन दोन ब च क या दशा होगी? म कस तरह इन बालक का भरण-पोषण क ँ गी? ।। ९ ।। कथं ह वधवानाथा बालपु ा वना वया । मथुनं जीव य या म थता साधुगते प थ ।। १० ।। मेरा पु अभी बालक है, आपके बना म अनाथ वधवा स मागपर थत रहकर इन दोन ब च को कैसे जलाऊँगी ।। १० ।। अहंकृताव ल तै ायमाना ममां सुताम् । अयु ै तव स ब धे कथं श या म र तुम् ।। ११ ।। जो आपके यहाँ स ब ध करनेके सवथा अयो य ह, ऐसे अहंकारी और घमंडीलोग जब मुझसे इस क याको माँगगे, तब म उनसे इसक र ा कैसे कर सकूँगी ।। ११ ।। उ सृ मा मषं भूमौ ाथय त यथा खगाः । ाथय त जनाः सव प तहीनां तथा यम् ।। १२ ।। साहं वचा यमाना वै ायमाना रा म भः । थातुं प थ न श या म स जने े जो म ।। १३ ।। जैसे प ी पृ वीपर डाले ए मांसके टु कड़ेको लेनेके लये झपटते ह, उसी कार सब लोग वधवा ीको वशम करना चाहते ह। ज े ! राचारी मनु य जब बार-बार मुझसे याचना करते ए मुझे मयादासे वच लत करनेक चे ा करगे, उस समय म े पु ष के ारा अ भल षत मागपर थर नह रह सकूँगी ।। १२-१३ ।। कथं तव कुल यैका ममां बालामनागसम् । पतृपैतामहे माग नयो ु महमु सहे ।। १४ ।। आपके कुलक इस एकमा नरपराध बा लकाको म बाप-दाद के ारा पा लत धममागपर लगाये रखनेम कैसे समथ होऊँगी ।। १४ ।। कथं श या म बालेऽ मन् गुणानाधातुमी सतान् । अनाथे सवतो लु ते यथा वं धमद शवान् ।। १५ ।। आप धमके ाता ह, आप जैसे अपने बालकको सद्गुणी बना सकते ह, उस कार म आपके न रहनेपर सब ओरसे आ यहीन ए इस अनाथ बालकम वांछनीय उ म गुण का आधान कैसे कर सकूँगी ।। १५ ।। इमाम प च ते बालामनाथां प रभूय माम् । अनहाः ाथ य य त शू ा वेद ु त यथा ।। १६ ।। ै े ी े ो ो ी ो

जैसे अन धकारी शू वेदक ु तको ा त करना चाहता हो, उसी कार अयो य पु ष मेरी अवहेलना करके आपक इस अनाथ बा लकाको भी हण करना चाहगे ।। १६ ।। तां चैदहं न द सेयं वद्गुणै पबृं हताम् । मयैनां हरेयु ते ह व वाङ् ा इवा वरात् ।। १७ ।। आपके ही उ म गुण से स प अपनी इस पु ीको य द म उन अयो य पु ष के हाथम न दे ना चा ँगी तो वे बलपूवक इसे उसी कार हर ले जायँगे, जैसे कौए य से ह व यका भाग लेकर उड़ जायँ ।। १७ ।। स े माणा पु ं ते नानु प मवा मनः । अनहवशमाप ा ममां चा प सुतां तव ।। १८ ।। अव ाता च लोकेषु तथाऽऽ मानमजानती । अव ल तैनरै न् म र या म न संशयः ।। १९ ।। न्! आपके इस पु को आपके अनु प न दे खकर और आपक इस पु ीको भी अयो य पु षके वशम पड़ी दे खकर तथा लोकम घमंडी मनु य ारा अपमा नत हो अपनेको पूववत् स मा नत अव थाम न पाकर म ाण याग ँ गी, इसम संशय नह है ।। १८-१९ ।। तौ च हीनौ मया बालौ वया चैव तथाऽऽ मजौ । वन येतां न संदेहो म या वव जल ये ।। २० ।। जैसे पानी सूख जानेपर वहाँक मछ लयाँ न हो जाती ह, उसी कार मुझसे और आपसे र हत होकर अपने ये दोन ब चे न संदेह न हो जायँगे ।। २० ।। तयं सवथा येवं वन श य यसंशयम् । वया वहीनं त मात् वं मां प र य ु मह स ।। २१ ।। नाथ! इस कार आपके बना म और ये दोन ब चे—तीन ही सवथा वन हो जायँगे —इसम त नक भी संशय नह है। इस लये आप केवल मुझे याग द जये ।। २१ ।। ु रेषा परा ीणां पूव भतुः परां ग तम् । ग तुं न् सपु ाणा म त धम वदो व ः ।। २२ ।। न्! पु वती याँ य द अपने प तसे पहले ही मृ युको ा त हो जायँ तो यह उनके लये परम सौभा यक बात है। धम व ान् ऐसा ही मानते ह ।। २२ ।। ( मतं ददा त ह पता मतं माता मतं सुतः । अ मत य ह दातारं का प त ना भन द त ।।) पता, माता और पु —ये सब प र मत मा ाम ही सुख दे ते ह, अप र मत सुखको दे नेवाला तो केवल प त है। ऐसे प तका कौन ी आदर नह करेगी? प र य ः सुत ायं हतेयं तथा मया । बा धवा प र य ा वदथ जी वतं च मे ।। २३ ।। आयपु ! आपके लये मने यह पु और पु ी भी छोड़ द , सम त ब धु-बा धव को भी छोड़ दया और अब अपना यह जीवन भी याग दे नेको उ त ँ ।। २३ ।। य ै तपो भ नयमैदानै व वधै तथा । े े

व श यते या भतु न यं य हते थ तः ।। २४ ।। ी य द सदा अपने वामीके य और हतम लगी रहे तो यह उसके लये बड़े-बड़े य , तप या , नयम और नाना कारके दान से भी बढ़कर है ।। २४ ।। त ददं य चक षा म धम परमस मतम् । इ ं चैव हतं चैव तव चैव कुल य च ।। २५ ।। अतः म जो यह काय करना चाहती ँ, यह े पु ष से स मत धम है और आपके तथा इस कुलके लये सवथा अनुकूल एवं हतकारक है ।। २५ ।। इ ा न चा यप या न ा ण सु दः याः । आप म मो ाय भाया चा प सतां मतम् ।। २६ ।। अनुकूल संतान, धन, य, सु द् तथा प नी—ये सभी आप मसे छू टनेके लये ही वांछनीय ह; ऐसा साधु पु ष का मत है ।। २६ ।। आपदथ धनं र ेद ् दारान् र ेद ् धनैर प । आ मानं सततं र ेद ् दारैर प धनैर प ।। २७ ।। आप के लये धनक र ा करे, धनके ारा ीक र ा करे और ी तथा धन दोन के ारा सदा अपनी र ा करे ।। २७ ।। ा फलाथ ह भाया पु ो धनं गृहम् । सवमेतद् वधात ं बुधानामेष न यः ।। २८ ।। प नी, पु , धन और घर—ये सब व तुएँ और अ फल (लौ कक और पारलौ कक लाभ)-के लये सं हणीय ह। व ान का यह न य है ।। २८ ।। एकतो वा कुलं कृ नमा मा वा कुलवधनः । न समं सवमेवे त बुधानामेष न यः ।। २९ ।। एक ओर स पूण कुल हो और सरी ओर उस कुलक वृ करनेवाला शरीर हो तो उन दोन क तुलना करनेपर वह सारा कुल उस शरीरके बराबर नह हो सकता; यह व ान का न य है ।। २९ ।। स कु व मया काय तारया मानमा मना । अनुजानी ह मामाय सुतौ मे प रपालय ।। ३० ।। आय! अतः आप मेरे ारा अभी कायक स क जये और वयं य न करके अपनेको इस संकटसे बचाइये। मुझे रा सके पास जानेक आ ा द जये और मेरे दोन ब च का पालन क जये ।। ३० ।। अव यां य म या धम ा धम न ये । धम ान् रा साना न ह यात् स च माम प ।। ३१ ।। धम व ान ने धम- नणयके संगम नारीको अव य बताया है। रा स को भी लोग धम कहते ह। इस लये स भव है, वह रा स भी मुझे ी समझकर न मारे ।। ३१ ।। न संशयं वधः पुंसां ीणां संश यतो वधः । अतो मामेव धम थाप यतुमह स ।। ३२ ।। ँ











पु ष वहाँ जायँ, तो वह रा स उनका वध कर ही डालेगा इसम संशय नह है; परंतु य के वधम संदेह है। (य द रा सने धमका वचार कया तो मेरे बच जानेक आशा है) अतः धम आयपु ! आप मुझे ही वहाँ भेज ।। ३२ ।। भु ं या यवा ता न धम च रतो महान् । वत् सू तः या ा ता न मां त य यजी वतम् ।। ३३ ।। मने सब कारके भोग भोग लये, मनको य लगनेवाली व तुएँ ा त कर ल , महान् धमका अनु ान भी पूरा कर लया और आपसे यारी संतान भी ा त कर ली। अब य द मेरी मृ यु भी हो जाय तो उससे मुझे ःख न होगा ।। ३३ ।। जातपु ा च वृ ा च यकामा च ते सदा । समी यैतदहं सव वसायं करो यतः ।। ३४ ।। मुझसे पु उ प हो गया, म बूढ़ भी हो चली और सदा आपका य करनेक इ छा रखती आयी ँ। इन सब बात पर वचार करके ही अब म मरनेका न य कर रही ँ ।। ३४ ।। उ सृ या प ह मामाय ा य य याम प यम् । ततः त तो धम भ व य त पुन तव ।। ३५ ।। आय! मुझे याग करके आप सरी ी भी ा त कर सकते ह। उससे आपका गृह थ-धम पुनः त त हो जायगा ।। ३५ ।। न चा यधमः क याण ब प नीकृतां नृणाम् । ीणामधमः सुमहान् भतुः पूव य लङ् घने ।। ३६ ।। क याण व प दये र! ब त-सी य से ववाह करनेवाले पु ष को भी पाप नह लगता। परंतु य को अपने पूवप तका उ लंघन करनेपर बड़ा भारी पाप लगता है ।। ३६ ।। एतत् सव समी य वमा म यागं च ग हतम् । आ मानं तारया ाशु कुलं चेमौ च दारकौ ।। ३७ ।। इन सब बात को वचार करके और अपने दे हके यागको न दत कम मानकर आप अब शी ही अपनेको, अपने कुलको और इन दोन ब च को भी संकटसे बचा ली जये ।। ३७ ।। वैश पायन उवाच एवमु तया भता तां समा लङ् य भारत । मुमोच बा पं शनकैः सभाय भृश ःखतः ।। ३८ ।। वैश पायनजी कहते ह—भारत! ा णीके य कहनेपर उसके प त ा णदे वता अ य त ःखी हो उसे दयसे लगाकर उसके साथ ही धीरे-धीरे आँसू बहाने लगे ।। ३८ ।। इत



ीमहाभारते आ दपव ण बकवधपव ण ा णीवा ये स तप चाशद धकशततमोऽ यायः ।। १५७ ।।







इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत बकवधपवम ा णीवा य वषयक एक सौ स ावनवाँ अ याय पूरा आ ।। १५७ ।। (दा णा य अ धक पाठका १ ोक मलाकर क ु ल ३९ ोक ह)

अ प चाशद धकशततमोऽ यायः ा ण-क याके याग और ववेकपूण वचन तथा कु तीका उन सबके पास जाना वैश पायन उवाच तयो ःखतयोवा यम तमा ं नश य तु । ततो ःखपरीता क या ताव यभाषत ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! ःखम डू बे ए माता- पताका यह (अ य त शोकपूण) वचन सुनकर क याके स पूण अंग म ःख ा त हो गया; उसने माता और पता दोन से कहा— ।। १ ।। कमेवं भृश ःखात रो येतामनाथवत् । ममा प ूयतां वा यं ु वा च यतां मम् ।। २ ।। ‘आप दोन इस कार अ य त ःखसे आतुर हो अनाथक भाँ त य बार-बार रो रहे ह? मेरी भी बात सु नये और उसे सुनकर जो उ चत जान पड़े, वह क जये ।। २ ।। धमतोऽहं प र या या युवयोना संशयः । य ां मां प र य य ा ह सव मयैकया ।। ३ ।। ‘इसम संदेह नह क एक-न-एक दन आप दोन को धमतः मेरा प र याग करना पड़ेगा। जब म या य ही ँ, तब आज ही मुझे यागकर मुझ अकेलीके ारा इस समूचे कुलक र ा कर ली जये ।। ३ ।। इ यथ म यतेऽप यं तार य य त मा म त । अ म ुप थते काले तर वं लवव मया ।। ४ ।। ‘संतानक इ छा इसी लये क जाती है क यह मुझे संकटसे उबारेगी। अतः इस समय जो संकट उप थत आ है, उसम नौकाक भाँ त मेरा उपयोग करके आपलोग शोकसागरसे पार हो जाइये ।। ४ ।। इह वा तारयेद ् गा त वा े य भारत । सवथा तारयेत् पु ः पु इ यु यते बुधैः ।। ५ ।। ‘जो पु इस लोकम गम संकटसे पार लगाये अथवा मृ युके प ात् परलोकम उ ार करे—सब कार पताको तार दे , उसे ही व ान ने वा तवम पु कहा है ।। ५ ।। आकाङ् ते च दौ ह ान् म य न यं पतामहाः । तत् वयं वै प र ा ये र ती जी वतं पतुः ।। ६ ।। ‘ पतरलोग मुझसे उ प होनेवाले दौ ह से अपने उ ारक सदा अ भलाषा रखते ह, इस लये म वयं ही पताके जीवनक र ा करती ई उन सबका उ ार क ँ गी ।। ६ ।। ाता च मम बालोऽयं गते लोकममुं व य । अ चरेणैव कालेन वन येत न संशयः ।। ७ ।। ‘



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‘य द आप परलोकवासी हो गये तो यह मेरा न हा-सा भाई थोड़े ही समयम न हो जायगा, इसम संशय नह है ।। ७ ।। तातेऽ प ह गते वग वन े च ममानुजे । प डः पतॄणां ु छ ेत् तत् तेषां व यं भवेत् ।। ८ ।। ‘ पता वगवासी हो जायँ और मेरा भैया भी न हो जाय, तो पतर का प ड ही लु त हो जायगा, जो उनके लये ब त ही अ य होगा ।। ८ ।। प ा य ा तथा मा ा ा ा चाहमसंशयम् । ःखाद् ःखतरं ा य येयमतथो चता ।। ९ ।। ‘ पता, माता और भाई—तीन से प र य होकर म एक ःखसे सरे महान् ःखम पड़कर न य ही मर जाऊँगी। य प म ऐसा ःख भोगनेके यो य नह ँ, तथा प आप लोग के बना मुझे वह सब भोगना ही पड़ेगा ।। ९ ।। व य वरोगे नमु े माता ाता च मे शशुः । संतान ैव प ड त ा य यसंशयम् ।। १० ।। ‘य द आप मृ युके संकटसे मु एवं नीरोग रहे तो मेरी माता, मेरा न हा-सा भाई, संतान-पर परा और प ड ( ा कम)—ये सब थर रहगे; इसम संशय नह है ।। १० ।। आ मा पु ः सखा भाया कृ ं तु हता कल । स कृ ा मोचया मानं मां च धम नयोजय ।। ११ ।। ‘कहते ह पु अपना आ मा है, प नी म है; कतु पु ी न य ही संकट है, अतः आप इस संकटसे अपनेको बचा ली जये और मुझे भी धमम लगाइये ।। ११ ।। अनाथा कृपणा बाला य वचनगा मनी । भ व या म वया तात वहीना कृपणा सदा ।। १२ ।। ‘ पताजी! आपके बना म सदाके लये द न और असहाय हो जाऊँगी, अनाथ और दयनीय समझी जाऊँगी। अर त बा लका होनेके कारण मुझे जहाँ कह भी जानेके लये ववश होना पड़ेगा ।। १२ ।। अथवाहं क र या म कुल या य वमोचनम् । फलसं था भ व या म कृ वा कम सु करम् ।। १३ ।। ‘अथवा म अपनेको मृ युके मुखम डालकर इस कुलको संकटसे छु ड़ाऊँगी। यह अ य त कर कम कर लेनेसे मेरी मृ यु सफल हो जायगी ।। १३ ।। अथवा या यसे त य वा मां जस म । पी डताहं भ व या म तदवे व माम प ।। १४ ।। ‘ ज े पताजी! य द आप मुझे यागकर वयं रा सके पास चले जायँगे तो म बड़े ःखम पड़ जाऊँगी। अतः मेरी ओर भी दे खये ।। १४ ।। तद मदथ धमाथ सवाथ स स म । आ मानं प रर व य ां मां च सं यज ।। १५ ।। ‘अतः हे साधु शरोमणे! आप मेरे लये, धमके लये तथा संतानक र ाके लये भी अपनी र ा क जये और मुझे, जसको एक दन छोड़ना ही है, आज ही याग े

द जये ।। १५ ।। अव यकरणीये च मा वां कालोऽ यगादयम् । क वतः परमं ःखं यद् वयं वगते व य ।। १६ ।। याचमानाः पराद ं प रधावेम ह वत् । व य वरोगे नमु े लेशाद मात् सबा धवे । अमृते वसती लोके भ व या म सुखा वता ।। १७ ।। ‘ पताजी! जो काम अव य करना है, उसका न य करनेम आपको अपना समय थ नह जाने दे ना चा हये (शी मेरा याग करके इस कुलक र ा करनी चा हये)। हमलोग के लये इससे बढ़कर महान् ःख और या होगा क आपके वगवासी हो जानेपर हम सर से अ क भीख माँगते ए कु क तरह इधर-उधर दौड़ते फर। य द मुझे यागकर आप अपने भाई-ब धु स हत इस लेशसे मु हो नीरोग बने रह तो म अमरलोकम नवास करती ई ब त सुखी होऊँगी ।। १६-१७ ।। इतः दाने दे वा पतर े त न ुतम् । वया द ेन तोयेन भ व य त हताय वै ।। १८ ।। ‘य प ऐसे दानसे दे वता और पतर स नह होते, ऐसा मने सुन रखा है, तथा प आपके ारा द ई जलांज लसे वे स होकर अव य हमारा हत-साधन करनेवाले ह गे’ ।। १८ ।। वैश पायन उवाच एवं ब वधं त या नश य प रदे वतम् । पता माता च सा चैव क या यः ।। १९ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! इस तरह उस क याके मुखसे नाना कारका वलाप सुनकर पता-माता और वह क या तीन फूट-फूटकर रोने लगे ।। १९ ।। ततः दतान् सवान् नश याथ सुत तदा । उ फु लनयनो बालः कलम म वीत् ।। २० ।। तब उन सबको रोते दे ख ा णका न हा-सा बालक उन सबक ओर फु ल ने से दे खता आ तोतली भाषाम अ प एवं मधुर वचन बोला— ।। २० ।। मा पता द मा मातमा वस व त चा वीत् । हस व सवा तानेकैकमनुसप त ।। २१ ।। ततः स तृणमादाय ः पुनर वीत् । अनेनाहं ह न या म रा सं पु षादकम् ।। २२ ।। ‘ पताजी! न रोओ, माँ! न रोओ, ब हन! न रोओ, वह हँसता आ-सा येकके पास जाता और सबसे यही बात कहता था। तदन तर उसने एक तनका उठा लया और अ य त हषम भरकर कहा—‘म इसीसे उस नरभ ी रा सको मार डालूँगा’ ।। २१-२२ ।। तथा प तेषां ःखेन परीतानां नश य तत् । बाल य वा यम ं हषः समभव महान् ।। २३ ।। े









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य प वे सब लोग ःखम डू बे ए थे, तथा प उस बालकक अ प तोतली बोली सुनकर उनके दयम सहसा अ य त स ताक लहर दौड़ गयी ।। २३ ।। अयं काल इ त ा वा कु ती समुपसृ य तान् । गतासूनमृतेनेव जीवय तीदम वीत् ।। २४ ।। ‘अब यही अपनेको कट करनेका अवसर है’ यह जानकर कु तीदे वी उन सबके नकट गय और अपनी अमृतमयी वाणीसे उन मृतक (तु य) मानव को जीवन दान करती ई-सी बोल ।। २४ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण बकवधपव ण ा णक यापु वा ये अ प चशद धकशततमोऽ यायः ।। १५८ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत बकवधपवम ा णक क या और पु के वचन-स ब धी एक सौ अावनवाँ अ याय पूरा आ ।। १५८ ।।

एकोनष

धकशततमोऽ यायः

कु तीके पूछनेपर ा णका उनसे अपने ःखका कारण बताना कु युवाच कुतोमूल मदं ःखं ातु म छा म त वतः । व द वा यपकषयं श यं चेदपक षतुम् ।। १ ।। कु तीने पूछा— न्! आपलोग के इस ःखका कारण या है? म यह ठ क-ठ क जानना चाहती ँ। उसे जानकर य द मटाया जा सकेगा तो मटानेक चे ा क ँ गी ।। १ ।। ा ण उवाच उपप ं सतामेतद् यद् वी ष तपोधने । न तु ःख मदं श यं मानुषेण पो हतुम् ।। २ ।। ा णने कहा—तपोधने! आप जो कुछ कह रही ह, वह आप-जैसे स जन के अनु प ही है; परंतु हमारे इस ःखको मनु य नह मटा सकता ।। २ ।। समीपे नगर या य बको वस त रा सः । (इतो ग ू तमा ेऽ त यमुनाग रे गुहा । त यां घोरः स वस त जघांसुः पु षादकः ।।) ईशो जनपद या य पुर य च महाबलः ।। ३ ।। पु ो मानुषमांसेन बु ः पु षादकः । (तेनेयं पु षाद े न भ यमाणा रा मना । अनाथा नगरी नाथं ातारं ना धग छ त ।।) र यसुररा न य ममं जनपदं बली ।। ४ ।। नगरं चैव दे शं च र ोबलसम वतः । त कृते परच ा च भूते य न नो भयम् ।। ५ ।। इस नगरके पास ही यहाँसे दो कोसक रीपर यमुनाके कनारे घने जंगलम एक गुफा है, उसीम एक भयंकर हसा य नरभ ी रा स रहता है। उसका नाम है बक। वह रा स अ य त बलवान् है। वही इस जनपद और नगरका वामी है। वह खोट बु वाला मनु यभ ी रा स मनु यके ही मांससे पु आ है। उस रा मा नरभ ी नशाचर ारा त दन खायी जाती ई यह नगरी अनाथ हो रही है। इसे कोई र क या वामी नह मल रहा है। रा सो चत-बलसे स प वह श शाली असुरराज सदा इस जनपद, नगर और दे शक र ा करता है। उसके कारण हम श ुरा य तथा हसक ा णय से कभी भय नह होता ।। ३—५ ।। वेतनं त य व हतं शा लवाह य भोजनम् । ौ

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म हषौ पु ष ैको य तदादाय ग छ त ।। ६ ।। उसके लये कर नयत कया गया है—बीस खारी अगहनीके चावलका भात, दो भसे और एक मनु य, जो वह सब सामान लेकर उसके पास जाता है ।। ६ ।। एकैक ा प पु ष तत् य छ त भोजनम् । स वारो ब भवषभव यसुकरो नरैः ।। ७ ।। येक गृह थ अपनी बारी आनेपर उसे भोजन दे ता है। य प यह बारी ब त वष के बाद आती है, तथा प लोग के लये उसक पू त ब त क ठन होती है ।। ७ ।। त मो ाय ये के चद् यत त पु षाः व चत् । सपु दारां तान् ह वा तद् र ो भ य युत ।। ८ ।। जो कोई पु ष कभी उससे छू टनेका य न करते ह, वह रा स उ ह पु और ीस हत मारकर खा जाता है ।। ८ ।। वे क यगृहे राजा नायं नय महा थतः । उपायं तं न कु ते य नाद प स म दधीः । अनामयं जन या य येन याद शा तम् ।। ९ ।। वा तवम जो यहाँका राजा है, वह वे क यगृह नामक थानम रहता है। परंतु वह यायके मागपर नह चलता। वह म दबु राजा य न करके भी ऐसा कोई उपाय नह करता, जससे सदाके लये जाका संकट र हो जाय ।। ९ ।। एतदहा वयं नूनं वसामो बल य ये । वषये न यवा त ाः कुराजानमुपा ताः ।। १० ।। न य ही हमलोग ऐसा ही ःख भोगनेके यो य ह; य क इस बल राजाके रा यम नवास करते ह, यहाँके न य नवासी हो गये ह और इस राजाके आ यम रहते ह ।। १० ।। ा णाः क य व ाः क य वा छ दचा रणः । गुणैरेते ह व य त कामगाः प णो यथा ।। ११ ।। ा ण को कौन आदे श दे सकता है अथवा वे कसके अधीन रह सकते ह। ये तो इ छानुसार वचरनेवाले प य क भाँ त दे श या राजाके गुण दे खकर ही कह भी नवास करते ह ।। ११ ।। राजानं थमं व दे त् ततो भाया ततो धनम् । य य संचयेना य ातीन् पु ां तारयेत् ।। १२ ।। नी त कहती है, पहले अ छे राजाको ा त करे। उसके बाद प नीक और फर धनक उपल ध करे। इन तीन के सं ह ारा अपने जा त-भाइय तथा पु को संकटसे बचाये ।। १२ ।। वपरीतं मया चेदं यं सवमुपा जतम् । त दमामापदं ा य भृशं त यामहे वयम् ।। १३ ।। मने इन तीन का वपरीत ढं गसे उपाजन कया है (अथात् राजाके रा यम नवास कया, कुरा यम ववाह कया और ववाहके प ात् धन नह कमाया); इस लये इस ो ी े

वप म पड़कर हमलोग भारी क पा रहे ह ।। १३ ।। सोऽयम माननु ा तो वारः कुल वनाशनः । भोजनं पु ष ैकः दे यं वेतनं मया ।। १४ ।। वही आज हमारी बारी आयी है, जो समूचे कुलका वनाश करनेवाली है। मुझे उस रा सको करके पम नयत भोजन और एक पु षक ब ल दे नी पड़ेगी ।। १४ ।। न च मे व ते व ं सं े तुं पु षं व चत् । सु जनं दातुं च न श या म कदाचन ।। १५ ।। मेरे पास धन नह है, जससे कह से कसी पु षको खरीद लाऊँ। अपने सु द एवं सगे-स ब धय को तो म कदा प उस रा सके हाथम नह दे सकूँगा ।। १५ ।। ग त चैव न प या म त मा मो ाय र सः । सोऽहं ःखाणवे म नो मह यसुकरे भृशम् ।। १६ ।। उस नशाचरसे छू टनेका कोई उपाय मुझे नह दखायी दे ता; अतः म अ य त तर ःखके महासागरम डू बा आ ँ ।। १६ ।। सहैवैतैग म या म बा धवैर रा सम् । ततो नः स हतान् ु ः सवानेवोपभो य त ।। १७ ।। अब इन बा धवजन के साथ ही म रा सके पास जाऊँगा; फर वह नीच नशाचर एक ही साथ हम सबको खा जायगा ।। १७ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण बकवधपव ण कु ती े एकोनष धकशततमोऽ यायः ।। १५९ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत बकवधपवम कु ती वषयक एक सौ उनसठवाँ अ याय पूरा आ ।। १५९ ।। (दा णा य अ धक पाठक े २ ोक मलाकर कुल १९ ोक ह)



धकशततमोऽ यायः

कु ती और ा णक बातचीत कु युवाच न वषाद वया काय भयाद मात् कथंचन । उपायः प र ोऽ त मा मो ाय र सः ।। १ ।। कु ती बोली— न्! आपको अपने ऊपर आये ए इस भयसे कसी कार वषाद नह करना चा हये। इस प र थ तम उस रा ससे छू टनेका उपाय मेरी समझम आ गया ।। १ ।। एक तव सुतो बालः क या चैका तप वनी । न चैतयो तथा प या गमनं तव रोचये ।। २ ।। आपके तो एक ही न हा-सा पु और एक ही तप वनी क या है, अतः इन दोन का तथा आपक प नीका भी वहाँ जाना मुझे अ छा नह लगता ।। २ ।। मम प च सुता ं तेषामेको ग म य त । वदथ ब लमादाय त य पाप य र सः ।। ३ ।।

कु ती ारा ा ण-द प तको सा वना

बकासुरपर भीमका हार

व वर! मेरे पाँच पु ह, उनमसे एक आपके लये उस पापी रा सक ब ल-साम ी लेकर चला जायगा ।। ३ ।। ा ण उवाच नाहमेतत् क र या म जी वताथ कथंचन । ा ण या तथे ैव वाथ ाणान् वयोजयन् ।। ४ ।। ा णने कहा—म अपने जीवनक र ाके लये कसी तरह ऐसा नह क ँ गा। एक तो ा ण, सरे अ त थके ाण का नाश म अपने तु छ वाथके लये कराऊँ! यह कदा प स भव नह है ।। ४ ।। न वेतदकुलीनासु नाध म ासु व ते । यद् ा णाथ वसृजेदा मानम प चा मजम् ।। ५ ।। ऐसा न दनीय काय नीच और अधम जनताम भी नह दे खा जाता। उ चत तो यह है क ा णके लये वयं अपनेको और अपने पु को भी नछावर कर दे ।। ५ ।। आ मन तु मया ेयो बो म त रोचते । व याऽऽ मव या वा ेयाना मवधो मम ।। ६ ।। व या परं पापं न कृ तना व ते । अबु पूव कृ वा प वरमा मवधो मम ।। ७ ।। इसीम मुझे अपना क याण समझना चा हये तथा यही मुझे अ छा लगता है। ह या और आ मह याम मुझे आ मह या ही े जान पड़ती है। ह या ब त बड़ा पाप है। इस जगत्म उससे छू टनेका कोई उपाय नह है। अनजानम भी ह या करनेक अपे ा मेरी म आ मह या कर लेना अ छा है ।। ६-७ ।। न वहं वधमाकाङ् े वयमेवा मनः शुभे । परैः कृते वधे पापं न क च म य व ते ।। ८ ।। क या ण! म वयं तो आ मह याक इ छा करता नह ; परंतु य द सर ने मेरा वध कर दया तो उसके लये मुझे कोई पाप नह लगेगा ।। ८ ।। अ भसं धकृते त मन् ा ण य वधे मया । न कृ त न प या म नृशंसं ु मेव च ।। ९ ।। आगत य गृहं याग तथैव शरणा थनः । याचमान य च वधो नृशंसो ग हतो बुधैः ।। १० ।। य द मने जान-बूझकर ा णका वध करा दया तो वह बड़ा ही नीच और ू रतापूण कम होगा। उससे छु टकारा पानेका कोई उपाय मुझे नह सूझता। घरपर आये ए तथा शरणाथ का याग और अपनी र ाके लये याचना करनेवालेका वध—यह व ान क रायम अ य त ू र एवं न दत कम है ।। ९-१० ।। कुया न दतं कम न नृशंसं कथंचन । इ त पूव महा मान आप म वदो व ः ।। ११ ।। ेयां तु सहदार य वनाशोऽ मम वयम् । े

ा ण य वधं नाहमनुमं ये कदाचन ।। १२ ।। आप मके ाता ाचीन महा मा ने कहा है क कसी कार भी ू र एवं न दत कम नह करना चा हये। अतः आज अपनी प नीके साथ वयं मेरा वनाश हो जाय, यह े है; कतु ा णवधक अनुम त म कदा प नह दे सकता ।। ११-१२ ।। कु युवाच ममा येषा म त न् व ा र या इ त थरा । न चा य न ः पु ो मे य द पु शतं भवेत् ।। १३ ।। न चासौ रा सः श ो मम पु वनाशने । वीयवान् म स तेज वी च सुतो मम ।। १४ ।। कु ती बोली— न्! मेरा भी यह थर वचार है क ा ण क र ा करनी चा हये। य तो मुझे भी अपना कोई पु अ य नह है, चाहे मेरे सौ पु ही य न ह । कतु वह रा स मेरे पु का वनाश करनेम समथ नह है; य क मेरा पु परा मी, म स और तेज वी है ।। १३-१४ ।। रा साय च तत् सव ाप य य त भोजनम् । मो य य त चा मान म त मे न ता म तः ।। १५ ।। मेरा यह न त व ास है क वह सारा भोजन रा सके पास प ँचा दे गा और उससे अपने-आपको भी छु ड़ा लेगा ।। १५ ।। समागता वीरेण पूवा रा साः । बलव तो महाकाया नहता ा यनेकशः ।। १६ ।। मने पहले भी ब त-से बलवान् और वशालकाय रा स दे खे ह, जो मेरे वीर पु से भड़कर अपने ाण से हाथ धो बैठे ह ।। १६ ।। न वदं केषु चद् न् ाहत ं कथंचन । व ा थनो ह मे पु ान् व कुयुः कुतूहलात् ।। १७ ।। परंतु न्! आपको कसीसे भी कसी तरह यह बात कहनी नह चा हये। नह तो लोग म सीखनेके लोभसे कौतूहलवश मेरे पु को तंग करगे ।। १७ ।। गु णा चाननु ातो ाहयेद ् यत् सुतो मम । न स कुयात् तथा काय व ये त सतां मतम् ।। १८ ।। और य द मेरा पु गु क आ ा लये बना अपना म कसीको सखा दे गा तो वह सीखनेवाला मनु य उस म से वैसा काय नह कर सकेगा, जैसा मेरा पु कर लेता है। इस वषयम साधु पु ष का ऐसा ही मत है ।। १८ ।। एवमु तु पृथया स व ो भायया सह । ः स पूजयामास त ा यममृतोपमम् ।। १९ ।। कु तीदे वीके य कहनेपर प नीस हत वह ा ण ब त स आ और उसने कु तीके अमृत-तु य जीवनदायक मधुर वचन क बड़ी शंसा क ।। १९ ।। ततः कु ती च व स हताव नला मजम् । े







तम ूतां कु वे त स तथे य वी च तौ ।। २० ।। तदन तर कु ती और ा णने मलकर वायु-न दन भीमसेनसे कहा—‘तुम यह काम कर दो।’ भीमसेनने उन दोन से ‘तथा तु’ कहा ।। २० ।।

इत

ीमहाभारते आ दपव ण बकवधपव ण भीमबकवधा कारे ष धकशततमोऽ यायः ।। १६० ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत बकवधपवम भीमके ारा बकवधक वीकृ त वषयक एक सौ साठवाँ अ याय पूरा आ ।। १६० ।।

एकष

धकशततमोऽ यायः

भीमसेनको रा सके पास भेजनेके वषयम यु ध र और कु तीक बातचीत वैश पायन उवाच क र य इ त भीमेन त ातेऽथ भारत । आज मु ते ततः सव भै मादाय पा डवाः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! जब भीमसेनने यह त ा कर ली क ‘म इस कायको पूरा क ँ गा’, उसी समय पूव सब पा डव भ ा लेकर वहाँ आये ।। १ ।। आकारेणैव तं ा वा पा डु पु ो यु ध रः । रहः समुप व यैक ततः प छ मातरम् ।। २ ।। पा डु न दन यु ध रने भीमसेनक आकृ तसे ही समझ लया क आज ये कुछ करनेवाले ह; फर उ ह ने एका तम अकेले बैठकर मातासे पूछा ।। २ ।। यु ध र उवाच क चक ष ययं कम भीमो भीमपरा मः । भव यनुमते क चत् वयं वा कतु म छ त ।। ३ ।। यु ध र बोले—माँ! ये भयंकर परा मी भीमसेन कौन-सा काय करना चाहते ह? वे आपक रायसे अथवा वयं ही कुछ करनेको उता हो रहे ह? ।। ३ ।। कु युवाच ममैव वचनादे ष क र य त परंतपः । ा णाथ महत् कृ यं मो ाय नगर य च ।। ४ ।। कु तीने कहा—बेटा! श ु को संत त करनेवाला भीमसेन मेरी ही आ ासे ा णके हतके लये तथा स पूण नगरको संकटसे छु ड़ानेके लये आज एक महान् काय करेगा ।। ४ ।। यु ध र उवाच क मदं साहसं ती णं भव या करं कृतम् । प र यागं ह पु य न शंस त साधवः ।। ५ ।। यु ध रने कहा—माँ! आपने यह अस और कर साहस य कया? साधु पु ष अपने पु के प र यागको अ छा नह बताते ।। ५ ।। कथं परसुत याथ वसुतं य ु म छ स । लोकवेद व ं ह पु यागात् कृतं वया ।। ६ ।। े े

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सरेके बेटेके लये आप अपने पु को य याग दे ना चाहती ह? पु का याग करके आपने लोक और वेद दोन के व काय कया है ।। ६ ।। य य बा समा य सुखं सव शयामहे । रा यं चाप तं ु ै रा जहीषामहे पुनः ।। ७ ।। जसके बा बलका भरोसा करके हम सब लोग सुखसे सोते ह और नीच श ु ने जस रा यको हड़प लया है, उसको पुनः वापस लेना चाहते ह, ।। ७ ।। य य य धनो वीय च तय मतौजसः । न शेते रजनीः सवा ःखा छकु नना सह ।। ८ ।। जस अ मततेज वी वीरके परा मका च तन करके शकु नस हत य धनको ःखके मारे सारी रात न द नह आती थी, ।। ८ ।। य य वीर य वीयण मु ा जतुगृहाद् वयम् । अ ये य ैव पापे यो नहत पुरोचनः ।। ९ ।। जस वीरके बलसे हमलोग ला ागृह तथा सरे- सरे पापपूण अ याचार से बच पाये और पुरोचन भी मारा गया, ।। ९ ।। य य वीय समा य वसुपूणा वसु धराम् । इमां म यामहे ा तां नह य धृतरा जान् ।। १० ।। त य व सत यागो बु मा थाय कां वया । क च ु ःखैबु ते वलु ता गतचेतसः ।। ११ ।। जसके बल-परा मका आ य लेकर हमलोग धृतरापु को मारकर धन-धा यसे स प इस (स पूण) पृ वीको अपने अ धकारम आयी ई ही मानते ह, उस बलवान् पु के यागका न य आपने कस बु से कया है? या आप अनेक ःख के कारण अपनी चेतना खो बैठ ह? आपक बु लु त हो गयी है ।। १०-११ ।। कु युवाच यु ध र न संताप वया काय वृकोदरे । न चायं बु दौब याद् वसायः कृतो मया ।। १२ ।। कु तीने कहा—यु ध र! तु ह भीमसेनके लये च ता नह करनी चा हये। मने जो यह न य कया है, वह बु क बलतासे नह कया है ।। १२ ।। इह व य भवने वयं पु सुखो षताः । अ ाता धातरा ाणां स कृता वीतम यवः ।। १३ ।। त य त या पाथ मयेयं समी ता । एतावानेव पु षः कृतं य मन् न न य त ।। १४ ।। बेटा! हमलोग यहाँ इस ा णके घरम बड़े सुखसे रहे ह। धृतराक े पु को हमारी कान -कान खबर नह होने पायी है। इस घरम हमारा इतना स कार आ है क हमने अपने पछले ःख और ोधको भुला दया है। पाथ! ा णके इस उपकारसे उऋण होनेका ी





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यही एक उपाय मुझे दखायी दया। मनु य वही है, जसके त कया आ उपकार न न हो (जो उपकारको भुला न दे ) ।। १३-१४ ।। याव च कुयाद योऽ य कुयाद् ब गुणं ततः । ् वा भीम य व ा तं तदा जतुगृहे महत् । ह ड ब य वधा चैवं व ासो मे वृकोदरे ।। १५ ।। सरा मनु य उसके लये जतना उपकार करे, उससे कई गुना अ धक युपकार वयं उसके त करना चा हये। मने उस दन ला ागृहम भीमसेनका महान् परा म दे खा तथा ह ड बवधक घटना भी मेरी आँख के सामने ई। इससे भीमसेनपर मेरा पूरा व ास हो गया है ।। १५ ।। बा ोबलं ह भीम य नागायुतसमं महत् । येन यूयं गज या न ूढा वारणावतात् ।। १६ ।। भीमका महान् बा बल दस हजार हा थय के समान है, जससे वह हाथीके समान बलशाली तुम सब भाइय को वारणावत नगरसे ढोकर लाया है ।। १६ ।। वृकोदरेण स शो बलेना यो न व ते । योऽ युद याद् यु ध े म प व धरं वयम् ।। १७ ।। भीमसेनके समान बलवान् सरा कोई नह है। वह यु म सव े वपा ण इ का भी सामना कर सकता है ।। १७ ।। जातमा ः पुरा चैव ममाङ् कात् प ततो गरौ । शरीरगौरवाद य शला गा ै वचू णता ।। १८ ।। पहलेक बात है, जब वह नवजात शशुके पम था, उसी समय मेरी गोदसे छू टकर पवतके शखरपर गर पड़ा था। जस च ानपर यह गरा, वह इसके शरीरक गु ताके कारण चूर-चूर हो गयी थी ।। १८ ।। तदहं या ा वा बलं भीम य पा डव । तकाय च व य ततः कृतवती म तम् ।। १९ ।। अतः पा डु न दन! मने भीमसेनके बलको अपनी बु से भलीभाँ त समझकर तब ा णके श ु पी रा ससे बदला लेनेका न य कया है ।। १९ ।। नेदं लोभा चा ाना च मोहाद् व न तम् । बु पूव तु धम य वसायः कृतो मया ।। २० ।। मने न लोभसे, न अ ानसे और न मोहसे ऐसा वचार कया है, अ पतु बु के ारा खूब सोच-समझकर वशु धमानुकूल न य कया है ।। २० ।। अथ ाव प न प ौ यु ध र भ व यतः । तीकार वास य धम च रतो महान् ।। २१ ।। यु ध र! मेरे इस न यसे दोन योजन स हो जायँगे। एक तो ा णके यहाँ नवास करनेका ऋण चुक जायगा और सरा लाभ यह है क ा ण और पुरवा सय क र ा होनेके कारण महान् धमका पालन हो जायगा ।। २१ ।। यो ा ण य साहा यं कुयादथषु क ह चत् । ँ ो े

यः स शुभाँ लोकाना ुया द त मे म तः ।। २२ ।। जो य कभी ा णके काय म सहायता करता है, वह उ म लोक को ा त होता है—यह मेरा व ास है ।। २२ ।। य यैव कुवाणः यो वधमो णम् । वपुलां क तमा ो त लोकेऽ मं पर च ।। २३ ।। यद य कसी यको ही ाणसंकटसे मु कर दे तो वह इस लोक और परलोकम भी महान् यशका भागी होता है ।। २३ ।। वै य याथ च साहा यं कुवाणः यो भु व । स सव व प लोकेषु जा र यते ुवम् ।। २४ ।। जो य इस भूतलपर वै यके कायम सहायता प ँचाता है, वह न य ही स पूण लोक म जाको स करनेवाला राजा होता है ।। २४ ।। शू ं तु मोचयेद ् राजा शरणा थनमागतम् । ा ोतीह कुले ज म सद् े राजपू जते ।। २५ ।। इसी कार जो राजा अपनी शरणम आये ए शू को ाणसंकटसे बचाता है, वह इस संसारम उ म धन-धा यसे स प एवं राजा ारा स मा नत े कुलम ज म लेता है ।। २५ ।। एवं मां भगवान् ासः पुरा पौरवन दन । ोवाचासुकर त मादे वं चक षतम् ।। २६ ।। पौरववंशको आन दत करनेवाले यु ध र! इस कार पूवकालम लभ ववेकव ानसे स प भगवान् ासने मुझसे कहा था; इसी लये मने ऐसी चे ा क है ।। २६ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण बकवधपव ण कु तीयु ध रसंवादे एकष धकशततमोऽ यायः ।। १६१ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत बकवधपवम कु ती-यु ध र-संवाद वषयक एक सौ इकसठवाँ अ याय पूरा आ ।। १६१ ।।



धकशततमोऽ यायः

भीमसेनका भोजन-साम ी लेकर बकासुरके पास जाना और वयं भोजन करना तथा यु करके उसे मार गराना यु ध र उवाच उपप मदं मात वया यद् बु पूवकम् । आत य ा ण यैतदनु ोशा ददं कृतम् ।। १ ।। यु ध र बोले—माँ! आपने समझ-बूझकर जो कुछ न य कया है, वह सब उ चत है। आपने संकटम पड़े ए ा णपर दया करके ही ऐसा वचार कया है ।। १ ।। ुवमे य त भीमोऽयं नह य पु षादकम् । सवथा ा ण याथ यदनु ोशव य स ।। २ ।। न य ही भीमसेन उस रा सको मारकर लौट आयगे; य क आप सवथा ा णक र ाके लये ही उसपर इतनी दयालु ई ह ।। २ ।। यथा वदं न व दे युनरा नगरवा सनः । तथायं ा णो वा यः प र ा य नतः ।। ३ ।। आपको य नपूवक ा णपर अनु ह तो करना ही चा हये; कतु ा णसे यह कह दे ना चा हये क वे इस कार मौन रह क नगर नवा सय को यह बात मालूम न होने पाये ।। ३ ।। वैश पायन उवाच (यु ध रेण स म य ा णाथमरदम । कु ती व य तान् सवान् सा वयामास भारत ।।) ततो रायां तीतायाम मादाय पा डवः । भीमसेनो ययौ त य ासौ पु षादकः ।। ४ ।। आसा तु वनं त य र सः पा डवो बली । आजुहाव ततो ना ना तद मुपपादयन् ।। ५ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! ा ण (क र ा)-के न म यु ध रसे इस कार सलाह करके कु तीदे वीने भीतर जाकर सम त ा ण-प रवारको सा वना द । तदन तर रात बीतनेपर पा डु न दन भीमसेन भोजनसाम ी लेकर उस थानपर गये, जहाँ वह नरभ ी रा स रहता था। बक रा सके वनम प ँचकर महाबली पा डु कुमार भीमसेन उसके लये लाये ए अ को वयं खाते ए रा सका नाम ले-लेकर उसे पुकारने लगे ।। ४-५ ।। ततः स रा सः ु ो भीम य वचनात् तदा । आजगाम सुसं ु ो य भीमो व थतः ।। ६ ।। ी



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भीमके इस कार पुकारनेसे वह रा स कु पत हो उठा और अ य त ोधम भरकर जहाँ भीमसेन बैठकर भोजन कर रहे थे, वहाँ आया ।। ६ ।। महाकायो महावेगो दारय व मे दनीम् । लो हता ः कराल लो हत म ुमूधजः ।। ७ ।। उसका शरीर ब त बड़ा था। वह इतने महान् वेगसे चलता था, मानो पृ वीको वद ण कर दे गा। उसक आँख रोषसे लाल हो रही थ । आकृ त बड़ी वकराल जान पड़ती थी। उसके दाढ़ , मूँछ और सरके बाल लाल रंगके थे ।। ७ ।। आकणाद् भ व शङ् कुण बभीषणः । शखां ुकुट कृ वा संद य दशन छदम् ।। ८ ।। मुँहका फैलाव कान के समीपतक था, कान भी शंकुके समान लंबे और नुक ले थे। बड़ा भयानक था वह रा स। उसने भ ह ऐसी टे ढ़ कर रखी थ क वहाँ तीन रेखाएँ उभड़ आयी थ और वह दाँत से ओठ चबा रहा था ।। ८ ।। भु ानम ं तं ् वा भीमसेनं स रा सः । ववृ य नयने ु इदं वचनम वीत् ।। ९ ।। भीमसेनको वह अ खाते दे ख रा सका ोध ब त बढ़ गया और उसने आँख तरेरकर कहा— ।। ९ ।। कोऽयम मदं भुङ् े मदथमुपक पतम् । प यतो मम बु ययासुयमसादनम् ।। १० ।। ‘यमलोकम जानेक इ छा रखनेवाला यह कौन बु मनु य है, जो मेरी आँख के सामने मेरे ही लये तैयार करके लाये ए इस अ को वयं खा रहा है?’ ।। १० ।। भीमसेन ततः ु वा हस व भारत । रा सं तमना य भुङ् एव पराङ् मुखः ।। ११ ।। भारत! उसक बात सुनकर भीमसेन मानो जोर-जोरसे हँसने लगे और उस रा सक अवहेलना करते ए मुँह फेरकर खाते ही रह गये ।। ११ ।। रवं स भैरवं कृ वा समु य करावुभौ । अ य वद् भीमसेनं जघांसुः पु षादकः ।। १२ ।। अब तो वह नरभ ी रा स भीमसेनको मार डालनेक इ छासे भयंकर गजना करता आ दोन हाथ ऊपर उठाकर उनक ओर दौड़ा ।। १२ ।। तथा प प रभूयैनं े माणो वृकोदरः । रा सं भुङ् एवा ं पा डवः परवीरहा ।। १३ ।। अमषण तु स पूणः कु तीपु ं वृकोदरम् । जघान पृ े पा ण यामुभा यां पृ तः थतः ।। १४ ।। तो भी श ुवीर का संहार करनेवाले पा डु न दन भीमसेन उस रा सक ओर दे खते ए उसका तर कार करके उस अ को खाते ही रहे। तब उसने अ य त अमषम भरकर कु तीन दन भीमसेनके पीछे खड़े हो अपने दोन हाथ से उनक पीठपर हार कया ।। १३-१४ ।। ी

तथा बलवता भीमः पा ण यां भृशमाहतः । नैवावलोकयामास रा सं भुङ् एव सः ।। १५ ।। इस कार बलवान् रा सके दोन हाथ से भयानक चोट खाकर भी भीमसेनने उसक ओर दे खातक नह , वे भोजन करनेम ही संल न रहे ।। १५ ।। ततः स भूयः सं ु ो वृ मादाय रा सः । ताड य यं तदा भीमं पुनर य वद् बली ।। १६ ।। तब उस बलवान् रा सने पुनः अ य त कु पत हो एक वृ उखाड़कर भीमसेनको मारनेके लये फर उनपर धावा कया ।। १६ ।। ततो भीमः शनैभु वा तद ं पु षषभः । वायुप पृ य सं त थौ यु ध महाबलः ।। १७ ।। तदन तर नर े महाबली भीमसेनने धीरे-धीरे वह सब अ खाकर, आचमन करके मुँह-हाथ धो लये, फर वे अ य त स हो यु के लये डट गये ।। १७ ।। तं ु े न तं वृ ं तज ाह वीयवान् । स ेन पा णना भीमः हस व भारत ।। १८ ।। जनमेजय! कु पत रा सके ारा चलाये ए उस वृ को परा मी भीमसेनने बाय हाथसे हँसते ए-से पकड़ लया ।। १८ ।। ततः स पुन य वृ ान् ब वधान् बली । ा हणोद् भीमसेनाय त मै भीम पा डवः ।। १९ ।। तब उस बलवान् नशाचरने पुनः ब त-से वृ को उखाड़ा और भीमसेनपर चला दया। पा डु न दन भीमने भी उसपर अनेक वृ ारा हार कया ।। १९ ।। तद् वृ यु मभव मही ह वनाशनम् । घोर पं महाराज नररा सराजयोः ।। २० ।। महाराज! नरराज तथा रा सराजका वह भयंकर वृ यु उस वनके सम त वृ के वनाशका कारण बन गया ।। २० ।। नाम व ा तु बकः सम भ य पा डवम् । भुजा यां प रज ाह भीमसेनं महाबलम् ।। २१ ।। तदन तर बकासुरने अपना नाम सुनाकर महाबली पा डु न दन भीमसेनक ओर दौड़कर दोन बाँह से उ ह पकड़ लया ।। २१ ।। भीमसेनोऽ प तद् र ः प रर य महाभुजः । व फुर तं महाबा ं वचकष बलाद् बली ।। २२ ।। महाबा बलवान् भीमसेनने भी उस वशाल भुजा वाले रा सको दोन भुजा से कसकर छातीसे लगा लया और बलपूवक उसे इधर-उधर ख चने लगे। उस समय बकासुर उनके बा पाशसे छू टनेके लये छटपटा रहा था ।। २२ ।। स कृ यमाणो भीमेन कषमाण पा डवम् । समयु यत ती ेण लमेन पु षादकः ।। २३ ।। ी





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भीमसेन उस रा सको ख चते थे तथा रा स भीमसेनको ख च रहा था। इस ख चाख चीम वह नरभ ी रा स ब त थक गया ।। २३ ।। तयोवगेन महता पृ थवी समक पत । पादपां महाकायां णयामासतु तदा ।। २४ ।। उन दोन के महान् वेगसे धरती जोरसे काँपने लगी। उन दोन ने उस समय बड़े-बड़े वृ के भी टु कड़े-टु कड़े कर डाले ।। २४ ।। हीयमानं तु तद् र ः समी य पु षादकम् । न प य भूमौ जानु यां समाज ने वृकोदरः ।। २५ ।। उस नरभ ी रा सको कमजोर पड़ते दे ख भीमसेन उसे पृ वीपर पटककर रगड़ने और दोन घुटन से मारने लगे ।। २५ ।। ततोऽ य जानुना पृ मवपी बला दव । बा ना प रज ाह द णेन शरोधराम् ।। २६ ।। स ेन च कट दे शे गृ वास स पा डवः । तद् र ो गुणं च े व तं भैरवं रवम् ।। २७ ।। तदन तर उ ह ने अपने एक घुटनेसे बल-पूवक रा सक पीठ दबाकर दा हने हाथसे उसक गदन पकड़ ली और बाय हाथसे कमरका लँगोट पकड़कर उस रा सको हरा मोड़ दया। उस समय वह बड़ी भयानक आवाजम ची कार कर रहा था ।। २६-२७ ।। ततोऽ य धरं व ात् ा रासीद् वशा पते । भ यमान य भीमेन त य घोर य र सः ।। २८ ।। राजन्! भीमसेनके ारा उस घोर रा सक जब कमर तोड़ी जा रही थी, उस समय उसके मुखसे (ब त-सा) खून गरा ।। २८ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण बकवधपव ण बकभीमसेनयु े ष धकशततमोऽ यायः ।। १६२ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत बकवधपवम बकासुर और भीमसेनका यु वषयक एक सौ बासठवाँ अ याय पूरा आ ।। १६२ ।। (दा णा य अ धक पाठका १ ोक मलाकर क ु ल २९ ोक ह)



धकशततमोऽ यायः

बकासुरके वधसे रा स का भयभीत होकर पलायन और नगर नवा सय क स ता वैश पायन उवाच ततः स भ नपा ा ो न द वा भैरवं रवम् । शैलराज तीकाशो गतासुरभवद् बकः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! पसलीक ह य क े टू ट जानेपर पवतके समान वशालकाय बकासुर भयंकर ची कार करके ाणर हत हो गया ।। १ ।। तेन श दे न व तो जन त याथ र सः । न पपात गृहाद् राजन् सहैव प रचा र भः ।। २ ।। तान् भीतान् वगत ानान् भीमः हरतां वरः । सा वयामास बलवान् समये च यवेशयत् ।। ३ ।। न ह या मानुषा भूयो यु मा भ र त क ह चत् । हसतां ह वधः शी मेवमेव भवे द त ।। ४ ।। जनमेजय! उस ची कारसे भयभीत हो उस रा सके प रवारके लोग अपने सेवक के साथ घरसे बाहर नकल आये। यो ा म े बलवान् भीमसेनने उ ह भयसे अचेत दे खकर ढाढ़स बँधाया और उनसे यह शत करा ली क ‘अबसे कभी तुमलोग मनु य क हसा न करना। जो हसा करगे, उनका शी ही इसी कार वध कर दया जायगा’ ।। २— ४ ।। त य तद् वचनं ु वा ता न र ां स भारत । एवम व त तं ा जगृ ः समयं च तम् ।। ५ ।। भारत! भीमक यह बात सुनकर उन रा स ने ‘एवम तु’ कहकर वह शत वीकार कर ली ।। ५ ।। ततः भृ त र ां स त सौ या न भारत । नगरे य य त नरैनगरवा स भः ।। ६ ।। भारत! तबसे नगर नवासी मनु य ने अपने नगरम रा स को बड़े सौ य वभावका दे खा ।। ६ ।। ततो भीम तमादाय गतासुं पु षादकम् । ारदे शे व न य जगामानुपल तः ।। ७ ।। तदन तर भीमसेनने उस रा सक लाश उठाकर नगरके दरवाजेपर गरा द और वयं सर क से अपनेको बचाते ए चले गये ।। ७ ।। ् वा भीमबलो तं बकं व नहतं तदा । ातयोऽ य भयो नाः तज मु तत ततः ।। ८ ।। ी















भीमसेनके बलसे बकासुरको पछाड़ा एवं मारा गया दे ख उस रा सके कुटु बीजन भयसे ाकुल हो इधर-उधर भाग गये ।। ८ ।। ततः स भीम तं ह वा ग वा ा णवे म तत् । आचच े यथावृ ं रा ः सवमशेषतः ।। ९ ।। उस रा सको मारनेके प ात् भीमसेन ा णके उसी घरम गये तथा वहाँ उ ह ने राजा यु ध रसे सारा वृ ा त ठ क-ठ क कह सुनाया ।। ९ ।। ततो नरा व न ा ता नगरात् क यमेव तु । द शु नहतं भूमौ रा सं धरो तम् ।। १० ।। त प ात् जब सबेरा आ और लोग नगरसे बाहर नकले, तब उ ह ने दे खा बकासुर खूनसे लथपथ हो पृ वीपर मरा पड़ा है ।। १० ।। तम कूटस शं व नक ण भयानकम् । ् वा सं रोमाणो बभूवु त नागराः ।। ११ ।। पवत शखरके समान भयानक उस रा सको नगरके दरवाजेपर फका आ दे खकर नगर नवासी मनु य के शरीरम रोमांच हो आया ।। ११ ।। एकच ां ततो ग वा वृ द ः पुरे । ततः सह शो राजन् नरा नगरवा सनः ।। १२ ।। त ाज मुबकं ु ं स ीवृ कुमारकाः । तत ते व मताः सव कम ् वा तमानुषम् । दै वता यचयांच ु ः सव एव वशा पते ।। १३ ।। राजन्! उ ह ने एकच ा नगरीम जाकर नगरभरम यह समाचार फैला दया; फर तो हजार नगर नवासी मनु य ी, ब च और बूढ़ के साथ बकासुरको दे खनेके लये वहाँ आये। उस समय वह अमानु षक कम दे खकर सबको बड़ा आ य आ। जनमेजय! उन सभी लोग ने दे वता क पूजा क ।। १२-१३ ।। ततः गणयामासुः क य वारोऽ भोजने । ा वा चाग य तं व ं प छु ः सव एव ते ।। १४ ।। इसके बाद उ ह ने यह जाननेके लये क आज भोजन प ँचानेक कसक बारी थी, दन आ दक गणना क । फर उस ा णक बारीका पता लगनेपर सब लोग उसके पास आकर पूछने लगे ।। १४ ।। एवं पृ ः स ब शो र माण पा डवान् । उवाच नागरान् सवा नदं व षभ तदा ।। १५ ।। इस कार उनके बार-बार पूछनेपर उस े ा णने पा डव को गु त रखते ए सम त नाग रक से इस कार कहा— ।। १५ ।। आ ा पतं मामशने द तं सह ब धु भः । ददश ा णः क म स ो महामनाः ।। १६ ।। ‘कल जब मुझे भोजन प ँचानेक आ ा मली, उस समय म अपने ब धुजन के साथ रो रहा था। इस दशाम मुझे एक वशाल दयवाले म स ा णने दे खा ।। १६ ।। े

प रपृ स मां पूव प र लेशं पुर य च । अ वीद् ा ण े ो व ा य हस व ।। १७ ।। ‘दे खकर उन े ा णदे वताने पहले मुझसे स पूण नगरके क का कारण पूछा। इसके बाद अपनी अलौ कक श का व ास दलाकर हँसते ए-से कहा— ।। १७ ।। ाप य या यहं त मा अ मेतद् रा मने । म म ं भयं चा प न काय म त चा वीत् ।। १८ ।। ‘ न्! आज म वयं ही उस रा मा रा सके लये भोजन ले जाऊँगा।’ उ ह ने यह भी बताया क ‘आपको मेरे लये भय नह करना चा हये’ ।। १८ ।। स तद मुपादाय गतो बकवनं त । तेन नूनं भवेदेतत् कम लोक हतं कृतम् ।। १९ ।। ‘वे वह भोजन-साम ी लेकर बकासुरके वनक ओर गये। अव य उ ह ने ही यह लोकहतकारी कम कया होगा’ ।। १९ ।। तत ते ा णाः सव या सु व मताः । वै याः शू ा मु दता ु महं तदा ।। २० ।। तब तो वे सब ा ण, य, वै य और शू आ यच कत हो आन दम नम न हो गये। उस समय उ ह ने ा ण के उपल यम महान् उ सव मनाया ।। २० ।। ततो जानपदाः सव आज मुनगरं त । तद ततमं ु ं पाथा त ैव चावसन् ।। २१ ।। इसके बाद उस अ त घटनाको दे खनेके लये जनपदम रहनेवाले सब लोग नगरम आये और पा डवलोग भी (पूववत्) वह नवास करने लगे ।। २१ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण बकवधपव ण बकवधे ष धकशततमोऽ यायः ।। १६३ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत बकवधपवम बकासुरवध वषयक एक सौ तरसठवाँ अ याय पूरा आ ।। १६३ ।।

(च ै रथपव) चतुःष

धकशततमोऽ यायः

पा डव का एक ा णसे व च कथाएँ सुनना जनमेजय उवाच ते तथा पु ष ा ा नह य बकरा सम् । अत ऊ व ततो न् कमकुवत पा डवाः ।। १ ।। जनमेजयने पूछा— न्! पु ष सह पा डव ने उस कार बकासुरका वध करनेके प ात् कौन-सा काय कया? ।। १ ।। वैश पायन उवाच त ैव यवसन् राजन् नह य बकरा सम् । अधीयानाः परं ा ण य नवेशने ।। २ ।। वैश पायनजीने कहा—राजन्! बकासुरका वध करनेके प ात् पा डवलोग त वका तपादन करनेवाले उप नषद का वा याय करते ए वह ा णके घरम रहने लगे ।। २ ।। ततः क तपयाह य ा णः सं शत तः । त याथ तद् वे म ा ण य जगाम ह ।। ३ ।। तदन तर कुछ दन के बाद एक कठोर नयम का पालन करनेवाला ा ण ठहरनेके लये उन ा णदे वताके घरपर आया ।। ३ ।। स स यक् पूज य वा तं व ं व षभ तदा । ददौ त यं त मै सदा सवा त थ तः ।। ४ ।। उन व वरका सदा घरपर आये ए सभी अ त थय क सेवा करनेका त था। उ ह ने आग तुक ा णक भलीभाँ त पूजा करके उसे ठहरनेके लये थान दया ।। ४ ।। तत ते पा डवाः सव सह कु या नरषभाः । उपासांच रे व ं कथय तं कथाः शुभाः ।। ५ ।। वह ा ण बड़ी सु दर एवं क याणमयी कथाएँ कह रहा था, (अतः उ ह सुननेके लये) सभी नर े पा डव माता कु तीके साथ उसके नकट जा बैठे ।। ५ ।। कथयामास दे शां तीथा न स रत तथा । रा व वधा यान् दे शां ैव पुरा ण च ।। ६ ।। उसने अनेक दे श , तीथ , न दय , राजा , नाना कारके आ यजनक थान तथा नगर का वणन कया ।। ६ ।। े



स त ाकथयद् व ः कथा ते जनमेजय । प चाले व ताकारं या से याः वयंवरम् ।। ७ ।। जनमेजय! बातचीतके अ तम उस ा णने वहाँ यह भी बताया क पंचालदे शम य सेनकुमारी ौपद का अ त वयंवर होने जा रहा है ।। ७ ।। धृ ु न य चो प मु प च शख डनः । अयो नज वं कृ णाया पद य महामखे ।। ८ ।। धृ ु न और शख डीक उ प तथा पदके महाय म कृ णा ( ौपद )-का बना माताके गभके ही (य क वेद से) ज म होना आ द बात भी उसने कह ।। ८ ।। तद ततमं ु वा लोके त य महा मनः । व तरेणैव प छु ः कथा ते पु षषभाः ।। ९ ।। उस महा मा ा णका इस लोकम अ य त अ त तीत होनेवाला यह वचन सुनकर कथाके अ तम पु ष शरोम ण पा डव ने व तारपूवक जाननेके लये पूछा ।। ९ ।। पा डवा ऊचुः कथं पदपु य धृ ु न य पावकात् । वेद म या च कृ णायाः स भवः कथम तः ।। १० ।। पा डव बोले— पदपु धृ ु नका य ा नसे और कृ णाका य वेद के म यभागसे अ त ज म कस कार आ? ।। १० ।। कथं ोणा महे वासात् सवा य ा य श त । कथं व सखायौ तौ भ ौ क य कृतेन वा ।। ११ ।। धृ ु नने महाधनुधर ोणसे सब अ क श ा कस कार ा त क ? न्! पद और ोणम कस कार मै ी ई? और कस कारणसे उनम वैर पड़ गया? ।। ११ ।। वैश पायन उवाच एवं तै ो दतो राजन् स व ः पु षषभैः । कथयामास तत् सव ौपद स भवं तदा ।। १२ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! पु ष शरोम ण पा डव के इस कार पूछनेपर आग तुक ा णने उस समय ौपद क उ प का सारा वृ ा त सुनाना आर भ कया ।। १२ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण चै रथपव ण ौपद स भवे चतुःष धकशततमोऽ यायः ।। १६४ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत चै रथपवम ा णकथा वषयक एक सौ च सठवाँ अ याय पूरा आ ।। १६४ ।।

प चष

धकशततमोऽ यायः

ोणके ारा पदके अपमा नत होनेका वृ ा त ा ण उवाच ग ा ारं त महान् बभूव षमहातपाः । भर ाजो महा ा ः सततं सं शत तः ।। १ ।। आग तुक ा णने कहा—गंगा ारम एक महाबु मान् और परम तप वी भर ाज नामक मह ष रहते थे, जो सदा कठोर तका पालन करते थे ।। १ ।। सोऽ भषे ुं गतो ग ां पूवमेवागतां सतीम् । ददशा सरसं त घृताचीमा लुतामृ षः ।। २ ।। एक दन वे गंगाजीम नान करनेके लये गये। वहाँ पहलेसे ही आकर सु दरी अ सरा घृताची नामवाली गंगाजीम गोते लगा रही थी। मह षने उसे दे खा ।। २ ।। त या वायुनद तीरे वसनं हरत् तदा । अपकृ ा बरां ् वा तामृ ष कमे तदा ।। ३ ।। जब नद के तटपर खड़ी हो वह व बदलने लगी, उस समय वायुने उसक साड़ी उड़ा द। व हट जानेसे उसे न नाव थाम दे खकर मह षने उसे ा त करनेक इ छा क ।। ३ ।। त यां संस मनसः कौमार चा रणः । चर य रेत क द त ष ण आदधे ।। ४ ।। मु नवर भर ाजने कुमाराव थासे ही द घकाल-तक चयका पालन कया था। घृताचीम च आस हो जानेके कारण उनका वीय ख लत हो गया। मह षने उस वीयको ोण (य कलश)-म रख दया ।। ४ ।। ततः समभवद् ोणः कुमार त य धीमतः । अ यगी स वेदां वेदा ा न च सवशः ।। ५ ।। उसीसे बु मान् भर ाजजीके ोण नामक पु आ। उसने स पूण वेद और वेदांग का भी अ ययन कर लया ।। ५ ।। भर ाज य तु सखा पृषतो नाम पा थवः । त या प पदो नाम तदा समभवत् सुतः ।। ६ ।। पृषत नामके एक राजा भर ाज मु नके म थे। उ ह दन राजा पृषतके भी पद नामक पु आ ।। ६ ।। स न यमा मं ग वा ोणेन सह पाषतः । च डा ययनं चैव चकार यषभः ।। ७ ।। य शरोम ण पृषतकुमार पद त दन भर ाज मु नके आ मपर जाकर ोणके साथ खेलते और अ ययन करते थे ।। ७ ।। े

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तत तु पृषतेऽतीते स राजा पदोऽभवत् । ोणोऽ प रामं शु ाव द स तं वसु सवशः ।। ८ ।। वनं तु थतं रामं भर ाजसुतोऽ वीत् । आगतं व कामं मां व ोणं जो म ।। ९ ।। पृषतक मृ युके प ात् पद राजा ए। इधर ोणने भी यह सुना क परशुरामजी अपना सारा धन दान कर दे ना चाहते ह और वनम जानेके लये उ त ह। तब वे भर ाजन दन ोण परशुरामजीके पास जाकर बोले—‘ ज े ! मुझे ोण जा नये। म धनक कामनासे यहाँ आया ँ’ ।। ८-९ ।। राम उवाच शरीरमा मेवा मया समवशे षतम् । अ ा ण वा शरीरं वा ेकतमं वृणु ।। १० ।। परशुरामजीने कहा— न्! अब तो केवल मने अपने शरीरको ही बचा रखा है (शरीरके सवा सब कुछ दान कर दया)। अतः अब तुम मेरे अ अथवा यह शरीर— दोन मसे कसी एकको माँग लो ।। १० ।। ोण उवाच अ ा ण चैव सवा ण तेषां संहारमेव च । योगं चैव सवषां दातुमह त मे भवान् ।। ११ ।। ोण बोले—भगवन्! आप मुझे स पूण अ तथा उन सबके योग और उपसंहारक व ध भी दान कर ।। ११ ।। ा ण उवाच तथे यु वा तत त मै ददौ भृगुन दनः । तगृ तदा ोणः कृतकृ योऽभवत् तदा ।। १२ ।। आग तुक ा णने कहा—तब भृगन ु दन परशुरामजीने ‘तथा तु’ कहकर अपने सब अ ोणको दे दये। उन सबको हण करके ोण उस समय कृताथ हो गये ।। १२ ।। स मना ोणो रामात् परमस मतम् । ा ं समनु ा य नरे व य धकोऽभवत् ।। १३ ।। उ ह ने परशुरामजीसे स च होकर परम स मा नत ा का ान ा त कया और मनु य म सबसे बढ़-चढ़कर हो गये ।। १३ ।। ततो पदमासा भार ाजः तापवान् । अ वीत् पु ष ा ः सखायं व मा म त ।। १४ ।। तब पु ष सह तापी ोणने राजा पदके पास जाकर कहा—‘राजन्! म तु हारा सखा ँ, मुझे पहचानो’ ।। १४ ।। पद उवाच ो ो ी

ना ो यः ो य य नारथी र थनः सखा । नाराजा पा थव या प सखपूव क म यते ।। १५ ।। पदने कहा—जो ो य नह है, वह ो यका; जो रथी नह है, वह रथी वीरका और इसी कार जो राजा नह है, वह कसी राजाका म होनेयो य नह है; फर तुम पहलेक म ताक अ भलाषा य करते हो? ।। १५ ।। ा ण उवाच स व न य मनसा पा चा यं त बु मान् । जगाम कु मु यानां नगरं नागसा यम् ।। १६ ।। आग तुक ा णने कहा—बु मान् ोणने पांचालराज पदसे बदला लेनेका मनही-मन न य कया। फर वे कु वंशी राजा क राजधानी ह तनापुरम गये ।। १६ ।। त मै पौ ान् समादाय वसू न व वधा न च । ा ताय ददौ भी मः श यान् ोणाय धीमते ।। १७ ।। वहाँ जानेपर बु मान् ोणको नाना कारके धन लेकर भी मजीने अपने सभी पौ को उ ह श य पम स प दया ।। १७ ।। ोणः श यां ततः पाथा नदं वचनम वीत् । समानीय तु ता श यान् पद यासुखाय वै ।। १८ ।। तब ोणने सब श य को एक करके, जनम कु तीके पु तथा अ य लोग भी थे, पदको क दे नेके उ े यसे इस कार कहा— ।। १८ ।। आचायवेतनं क चद् द यद् वतते मम । कृता ै तत् दे यं यात् त तं वदतानघाः । सोऽजुन मुखै तथा व त गु तदा ।। १९ ।। ‘ न पाप श यगण! मेरे मनम तुमलोग से कुछ गु द णा लेनेक इ छा है। अ व ाम पारंगत होनेपर तु ह वह द णा दे नी होगी। इसके लये स ची त ा करो।’ तब अजुन आ द श य ने अपने गु से कहा—‘तथा तु (ऐसा ही होगा)’ ।। १९ ।। यदा च पा डवाः सव कृता ाः कृत न याः । ततो ोणोऽ वीद् भूयो वेतनाथ मदं वचः ।। २० ।। जब सम त पा डव अ व ाम पारंगत हो गये और त ापालनके न यपर ढ़तापूवक डटे रहे, तब ोणाचायने गु द णा लेनेके लये पुनः यह बात कही — ।। २० ।। पाषतो पदो नाम छ व यां नरे रः । त मादाकृ य तद् रा यं मम शी ं द यताम् ।। २१ ।। ‘अ ह छ ा नगरीम पृषतके पु राजा पद रहते ह। उनसे उनका रा य छ नकर शी मुझे अ पत कर दो’ ।। २१ ।। (धातरा ै स हताः प चालान् पा डवा ययुः ।। य सेनेन संग य कण य धनादयः । े

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न जताः सं यवत त तथा ये यषभाः ।।) ततः पा डु सुताः प च न ज य पदं यु ध । ोणाय दशयामासुबद् वा सस चवं तदा ।। २२ ।। (गु क आ ा पाकर) धृतरापु स ह त पा डव पंचाल दे शम गये। वहाँ राजा पदके साथ यु होनेपर कण, य धन आ द कौरव तथा सरे- सरे मुख य वीर परा त होकर रणभू मसे भाग गये। तब पाँच पा डव ने पदको यु म परा त कर दया और म य -स हत उ ह कैद करके ोणके स मुख ला दया ।। २२ ।। (महे इव धष महे इव दानवम् । महे पु ः पा चालं जतवानजुन तदा ।। तद् ् वा तु महावीय फा गुन या मतौजसः । मय त जनाः सव य सेन य बा धवाः ।। ना यजुनसमो वीय राजपु इ त ुवन् ।।) महे पु अजुन महे पवतके समान धष थे। जैसे महे ने दानवराजको परा त कया था, उसी कार उ ह ने पांचालराजपर वजय पायी। अ मततेज वी अजुनका वह महान् परा म दे ख राजा पदके सम त बा धवजन बड़े व मत ए और मन-ही-मन कहने लगे—‘अजुनके समान श शाली सरा कोई राजकुमार नह है’। ोण उवाच ाथया म वया स यं पुनरेव नरा धप । अराजा कल नो रा ः सखा भ वतुमह त ।। २३ ।। अतः य ततं रा ये य सेन वया सह । राजा स द णे कूले भागीरयाहमु रे ।। २४ ।। ोणाचाय बोले—राजन्! म फर भी तुमसे म ताके लये ाथना करता ँ। य सेन! तुमने कहा था, जो राजा नह है, वह राजाका म नह हो सकता; अतः मने रा य ा तके लये तु हारे साथ यु का यास कया है। तुम गंगाके द णतटके राजा रहो और म उ रतटका ।। २३-२४ ।। ा ण उवाच एवमु ो ह पा चा यो भार ाजेन धीमता । उवाचा वदां े ो ोणं ा णस मम् ।। २५ ।। आग तुक ा ण कहता है—बु मान् भर ाज-न दन ोणके य कहनेपर अ वे ा म े पंचाल-नरेश पदने व वर ोणसे इस कार कहा— ।। २५ ।। एवं भवतु भ ं ते भार ाज महामते । स यं तदे व भवतु श द् यद भम यसे ।। २६ ।। ‘महामते ोण! एवम तु, आपका क याण हो। आपक जैसी राय है, उसके अनुसार हम दोन क वही पुरानी मै ी सदा बनी रहे’ ।। २६ ।। एवम यो यमु वा तौ कृ वा स यमनु मम् । ौ ौ

ज मतु णपा चा यौ यथागतमरदमौ ।। २७ ।। श ु का दमन करनेवाले ोणाचाय और पद एक सरेसे उपयु बात कहकर परम उ म मै ीभाव था पत करके इ छानुसार अपने-अपने थानको चले गये ।। २७ ।। अस कारः स तु महान् मुतम प त य तु । नापै त दयाद् रा ो मनाः स कृशोऽभवत् ।। २८ ।। उस समय उनका जो महान् अपमान आ, वह दो घड़ीके लये भी राजा पदके दयसे नकल नह पाया। वे मन-ही-मन ब त ःखी थे और उनका शरीर भी ब त बल हो गया ।। २८ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण चै रथपव ण ौपद स भवे प चष धकशततमोऽ यायः ।। १६५ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत चै रथपवम ौपद ज म वषयक एक सौ पसठवाँ अ याय पूरा आ ।। १६५ ।। (दा णा य अ धक पाठक े ४ ोक मलाकर कुल ३२ ोक ह)

षट् ष पदके य से धृ

धकशततमोऽ यायः ु न और ौपद क उ प

ा ण उवाच अमष पदो राजा कम स ान् जषभान् । अ व छन् प रच ाम ा णावसथान् बन् ।। १ ।। आग तुक ा ण कहता है—राजा पद अमषम भर गये थे, अतः उ ह ने कम स े ा ण को ढूँ ढ़नेके लये ब त-से षय के आ म म मण कया ।। १ ।। पु ज म परी सन् वै शोकोपहतचेतनः । ना त े मप यं मे इ त न यम च तयत् ।। २ ।। वे अपने लये एक े पु चाहते थे। उनका च शोकसे ाकुल रहता था। वे रातदन इसी च ताम पड़े रहते थे क मेरे कोई े संतान नह है ।। २ ।। जातान् पु ान् स नवदाद् धग् ब धू न त चा वीत् । नः ासपरम ासीद् ोणं त चक षया ।। ३ ।। जो पु या भाई-ब धु उ प हो चुके थे, उ ह वे खेदवश ध कारते रहते थे। ोणसे बदला लेनेक इ छा रखकर राजा पद सदा लंबी साँस ख चा करते थे ।। ३ ।। भावं वनयं श ां ोण य च रता न च । ा ेण च बलेना य च तयन् ना यग छत ।। ४ ।। तकतु नृप े ो यतमानोऽ प भारत । अ भतः सोऽथ क माष ग ाकूले प र मन् ।। ५ ।। ा णावसथं पु यमाससाद महीप तः । त ना नातकः क चासीद ती जः ।। ६ ।। जनमेजय! नृप े पद ोणाचायसे बदला लेनेके लये य न करनेपर भी उनके भाव, वनय, श ा एवं च र का च तन करके ा बलके ारा उ ह परा त करनेका कोई उपाय न जान सके। वे कृ णवणा यमुना तथा गंगा दोन के तट पर घूमते ए ा ण क एक प व ब तीम जा प ँचे। वहाँ उन महाभाग नरेशने एक भी ऐसा ा ण नह दे खा, जसने व धपूवक चयका पालन करके वेद-वेदांगक श ा न ा त क हो ।। ४—६ ।। तथैव च महाभागः सोऽप यत् सं शत तौ । याजोपयाजौ ष शा य तौ परमे नौ ।। ७ ।। इस कार उन महाभागने वहाँ कठोर तका पालन करनेवाले दो षय को दे खा, जनके नाम थे याज और उपयाज। वे दोन ही परम शा त और परमे ी ाके तु य भावशाली थे ।। ७ ।। सं हता ययने यु ौ गो त ा प का यपौ । े ौ





तारणेयौ यु पौ ा णावृ षस मौ ।। ८ ।। वे वै दक सं हताके अ ययनम सदा संल न रहते थे। उनका गो का यप था। वे दोन ा ण सूयदे वके भ , बड़े ही यो य तथा े ऋ ष थे ।। ८ ।। स तावाम यामास सवकामैरत तः । बुद ् वा बलं तयो त कनीयांसमुप रे ।। ९ ।। पेदे छ दयन् कामै पयाजं धृत तम् । पादशु ूषणे यु ः यवाक् सवकामदः ।। १० ।। अच य वा यथा यायमुपयाजमुवाच सः । येन मे कमणा न् पु ः याद् ोणमृ यवे ।। ११ ।। उपयाज कृते त मन् गवां दाता म तेऽबुदम् । यद् वा तेऽ यद् ज े मनसः सु यं भवेत् । सव तत् ते दाताहं न ह मेऽ ा त संशयः ।। १२ ।। उन दोन क श को समझकर आल यर हत राजा पदने उ ह स पूण मनोवां छत भोग-पदाथ अपण करनेका संक प लेकर नम त कया। उन दोन मसे जो छोटे उपयाज थे, वे अ य त उ म तका पालन करनेवाले थे। पद एका तम उनसे मले और इ छानुसार भो य व तुएँ अपण करके उ ह अपने अनुकूल बनानेक चे ा करने लगे। स पूण मनो भल षत पदाथ को दे नेक त ा करके य वचन बोलते ए पद मु नके चरण क सेवाम लग गये और यथायो य पूजन करके उपयाजसे बोले—‘ व वर उपयाज! जस कमसे मुझे ऐसा पु ा त हो, जो ोणाचायको मार सके। उस कमके पूरा होनेपर म आपको एक अबुद (दस करोड़) गाय ँ गा। ज े ! इसके सवा और भी जो आपके मनको अ य त य लगनेवाली व तु होगी, वह सब आपको अ पत क ँ गा, इसम कोई संशय नह है’ ।। ९—१२ ।। इ यु ो नाह म येवं तमृ षः यभाषत । आराध य यन् पदः स तं पयचरत् पुनः ।। १३ ।। पदके य कहनेपर ऋ ष उपयाजने उ ह जवाब दे दया, ‘म ऐसा काय नह क ँ गा।’ परंतु पद उ ह स करनेका न य करके पुनः उनक सेवाम लगे रहे ।। १३ ।। ततः संव सर या ते पदं स जो मः । उपयाजोऽ वीत् काले राजन् मधुरया गरा ।। १४ ।। ये ो ाता ममागृ ाद् वचरन् गहने वने । अप र ातशौचायां भूमौ नप ततं फलम् ।। १५ ।। तदन तर एक वष बीतनेपर ज े उपयाजने उपयु अवसरपर मधुर वाणीम पदसे कहा—‘राजन्! मेरे बड़े भाई याज एक समय घने वनम वचर रहे थे। उ ह ने एक ऐसी जमीनपर गरे ए फलको उठा लया, जसक शु के स ब धम कुछ भी पता नह था ।। १४-१५ ।। तदप यमहं ातुरसा तमनु जन् । वमश संकरादाने नायं कुयात् कदाचन ।। १६ ।। ‘ ी ई े ी े ी े े े ो ो े

‘म भी भाईके पीछे -पीछे जा रहा था; अतः मने उनके इस अयो य कायको दे ख लया और सोचा क ये अप व व तुको हण करनेम भी कभी कोई वचार नह करते ।। १६ ।। ् वा फल य नाप यद् दोषान् पापानुब धकान् । व वन न शौचं यः सोऽ य ा प कथं भवेत् ।। १७ ।। ‘ ज ह ने दे खकर भी फलके पापजनक दोष क ओर पात नह कया, जो कसी व तुको लेनेम शु -अशु का वचार नह करते, वे सरे काय म भी कैसा बताव करगे, कहा नह जा सकता ।। १७ ।। सं हता ययनं कुवन् वसन् गु कुले च यः । भै यमु सृ म येषां भुङ् े म च यदा तदा ।। १८ ।। क तयन् गुणम ानामघृणी च पुनः पुनः । तं वै फला थनं म ये ातरं तकच ुषा ।। १९ ।। ‘गु कुलम रहकर सं हताभागका अ ययन करते ए भी जो सर क यागी ई भ ाको जब-तब खा लया करते थे और घृणाशू य होकर बार-बार उस अ के गुण का वणन करते रहते थे, उन अपने भाईको जब म तकक से दे खता ँ तो वे मुझे फलके लोभी जान पड़ते ह ।। १८-१९ ।। तं वै ग छ व नृपते स वां संयाज य य त । जुगु समानो नृप तमनसेदं व च तयन् ।। २० ।। उपयाजवचः ु वा याज या मम यगात् । अ भस पू य पूजाहमथ याजमुवाच ह ।। २१ ।। ‘राजन्! तुम उ ह के पास जाओ। वे तु हारा य करा दगे।’ राजा पद उपयाजक बात सुनकर याजके इस च र क मन-ही-मन न दा करने लगे, तो भी अपने कायका वचार करके याजके आ मपर गये और पूजनीय याज मु नका पूजन करके तब उनसे इस कार बोले— ।। २०-२१ ।।

अयुता न ददा य ौ गवां याजय मां वभो । ोणवैरा भसंत तं ाद यतुमह स ।। २२ ।। ‘भगवन्! म आपको अ सी हजार गौएँ भट करता ँ। आप मेरा य करा द जये। म ोणके वैरसे संत त हो रहा ँ। आप मुझे स ता दान कर ।। २२ ।। स ह वदां े ो ा े चा यनु मः । त माद् ोणः पराजै मां वै स सख व हे ।। २३ ।। ‘ ोणाचाय वे ा म े और ा के योगम भी सव म ह; इस लये म मानने-न-माननेके को लेकर होनेवाले झगड़ेम उ ह ने मुझे परा जत कर दया है ।। २३ ।। यो ना त त या यां पृ थ ां क द णीः । कौरवाचायमु य य भार ाज य धीमतः ।। २४ ।। ‘परम बु मान् भर ाजन दन ोण इन दन कु वंशी राजकुमार के धान आचाय ह। इस पृ वीपर कोई भी ऐसा य नह है, जो अ - व ाम उनसे आगे बढ़ा हो ।। २४ ।। ोण य शरजाला न ा णदे हहरा ण च । षडर न धनु ा य यते परमं महत् ।। २५ ।। स ह ा णवेषेण ा ं वेगमसंशयम् । तह त महे वासो भार ाजो महामनाः ।। २६ ।। ‘ ो











‘ ोणाचायके बाणसमूह ा णय के शरीरका संहार करनेवाले ह। उनका छः हाथका लंबा धनुष ब त बड़ा दखायी दे ता है। इसम संदेह नह क महान् धनुधर महामना ोण ा ण-वेशम (अपने ा तेजके ारा) य-तेजको तहत कर दे ते ह ।। २५-२६ ।। ो छे दाय व हतो जामद य इवा थतः । त य बलं घोरम धृ यं नरैभु व ।। २७ ।। ‘मानो जमद नन दन परशुरामजीक भाँ त य का संहार करनेके लये उनक सृ ई है। उनका अ बल बड़ा भयंकर है। पृ वीके सब मनु य मलकर भी उसे दबा नह सकते ।। २७ ।। बा ं संधारयं तेजो ता त रवानलः । समे य स दह याजौ ा धमपुर सरः ।। २८ ।। ‘घीक आ तसे व लत ई अ नके समान वे च ड ा तेज धारण करते ह और यु म ा धमको आगे रखकर वप य से भड़ंत होनेपर वे उ ह भ म कर डालते ह ।। २८ ।। े च व हते ा ं तेजो व श यते । सोऽहं ा ाद् बला नो बा ं तेजः पे दवान् ।। २९ ।। ‘य प ोणाचायम ा तेजके साथ-साथ ा तेज भी व मान है, तथा प आपका ा तेज उनसे बढ़कर है। म केवल ा बलके कारण ोणाचायसे हीन ँ; अतः मने आपके ा तेजक शरण ली है ।। २९ ।। ोणाद् व श मासा भव तं व मम् । ोणा तकमहं पु ं लभेयं यु ध जयम् ।। ३० ।। ‘आप वेदवे ा म सबसे े होनेके कारण ोणाचायसे ब त बढ़े -चढ़े ह। म आपक शरण लेकर एक ऐसा पु पाना चाहता ँ, जो यु म जय और ोणाचायका वनाशक हो ।। ३० ।। तत् कम कु मे याज वतस यबुदं गवाम् । तथे यु वा तु तं याजो या याथमुपक पयत् ।। ३१ ।। ‘याजजी! मेरे इस मनोरथको पूण करनेवाला य कराइये। उसके लये म आपको एक अबुद गौएँ द णाम ँ गा।’ तब याजने ‘तथा तु’ कहकर यजमानक अभी - स के लये आव यक य और उसके साधन का मरण कया ।। ३१ ।। गुवथ इ त चाकाममुपयाजमचोदयत् । याजो ोण वनाशाय तज े तथा च सः ।। ३२ ।। तत त य नरे य उपयाजो महातपाः । आच यौ कम वैतानं तदा पु फलाय वै ।। ३३ ।। ‘यह ब त बड़ा काय है’ ऐसा वचार करके याजने इस कायके लये कसी कारक कामना न रखनेवाले उपयाजको भी े रत कया तथा याजने ोणके वनाशके लये वैसा े











पु उ प करनेक त ा कर ली। इसके बाद महातप वी उपयाजने राजा पदको अभी पु पी फलक स के लये आव यक य कमका उपदे श कया ।। ३२—३३ ।। स च पु ो महावीय महातेजा महाबलः । इ यते य धो राजन् भ वता ते तथा वधः ।। ३४ ।। और कहा—‘राजन्! इस य से तुम जैसा पु चाहते हो, वैसा ही तु ह होगा। तु हारा वह पु महान् परा मी, महातेज वी और महाबली होगा’ ।। ३४ ।। भार ाज य ह तारं सोऽ भसंधाय भूप तः । आज े तत् तथा सव पदः कम स ये ।। ३५ ।। तदन तर ोणके घातक पु का संक प लेकर राजा पदने कमक स के लये उपयाजके कथनानुसार सारी व था क ।। ३५ ।। याज तु हवन या ते दे वीमा ापयत् तदा । े ह मां रा पृष त मथुनं वामुप थतम् ।। ३६ ।। (क ु मार कुमारी च पतृवंश ववृ ये ।) हवनके अ तम याजने पदक रानीको आ ा द —‘पृषतक पु वधू! महारानी! शी मेरे पास ह व य हण करनेके लये आओ। तु ह एक पु और एक क याक ा त होनेवाली है, वे कुमार और कुमारी अपने पताके कुलक वृ करनेवाले ह गे’ ।। ३६ ।। रायुवाच अव ल तं मुखं न् द ान् ग धान् बभ म च । सुताथ नोपलधा म त याज मम ये ।। ३७ ।। रानी बोली— न्! अभी मेरे मुखम ता बूल आ दका रंग लगा है! म अपने अंग म द सुग धत अंगराग धारण कर रही ँ, अतः मुँह धोये और नान कये बना पु दायक ह व यका पश करनेके यो य नह ँ, इस लये याजजी! मेरे इस य कायके लये थोड़ी दे र ठहर जाइये ।। ३७ ।। याज उवाच याजेन पतं ह मुपयाजा भम तम् । कथं कामं न संद यात् सा वं व े ह त वा ।। ३८ ।। याजने कहा—इस ह व यको वयं याजने पकाकर तैयार कया है और उपयाजने इसे अ भम त कया है; अतः तुम आओ या वह खड़ी रहो, यह ह व य यजमानक कामनाको पूण कैसे नह करेगा? ।। ३८ ।।

ा ण उवाच एवमु वा तु याजेन ते ह व ष सं कृते । उ थौ पावकात् त मात् कुमारो दे वसं नभः ।। ३९ ।। ा ण कहता है—य कहकर याजने उस सं कारयु ह व यक आ त य ही अ नम डाली, य ही उस अ नसे दे वताके समान तेज वी एक कुमार कट

आ ।। ३९ ।। वालावण घोर पः करीट वम चो मम् । ब त् सखड् गः सशरो धनु मान् वनदन् मु ः ।। ४० ।। उसके अंग क का त अ नक वालाके समान उ ा सत हो रही थी। उसका प भय उ प करनेवाला था। उसके माथेपर करीट सुशो भत था। उसने अंग म उ म कवच धारण कर रखा था। हाथ म खड् ग, बाण और धनुष धारण कये वह बार-बार गजना कर रहा था ।। ४० ।। सोऽ यारोहद् रथवरं तेन च ययौ तदा । ततः णे ः प ालाः ाः साधु सा व त ।। ४१ ।। वह कुमार उसी समय एक े रथपर जा चढ़ा, मानो उसके ारा यु के लये या ा कर रहा हो। यह दे खकर पांचाल को बड़ा हष आ और वे जोर-जोरसे बोल उठे , ‘ब त अ छा’, ‘ब त अ छा’, ।। ४१ ।। हषा व ां तत ैतान् नेयं सेहे वसुंधरा । भयापहो राजपु ः पा चालानां यश करः ।। ४२ ।। रा ः शोकापहो जात एष ोणवधाय वै । इ युवाच महद् भूतम यं खेचरं तदा ।। ४३ ।। उस समय हष लाससे भरे ए इन पांचाल का भार यह पृ वी नह सह सक । आकाशम कोई अ य महाभूत इस कार कहने लगा—‘यह राजकुमार पांचाल के भयको र करके उनके यशक वृ करनेवाला होगा। यह राजा पदका शोक र करनेवाला है। ोणाचायके वधके लये ही इसका ज म आ है’ ।। ४२-४३ ।। कुमारी चा प पा चाली वेद म यात् समु थता । सुभगा दशनीय व सतायतलोचना ।। ४४ ।। त प ात् य क वेद मसे एक कुमारी क या भी कट ई, जो पांचाली कहलायी। वह बड़ी सु दरी एवं सौभा यशा लनी थी। उसका एक-एक अंग दे खने ही यो य था। उसक याम आँख बड़ी-बड़ी थ ।। ४४ ।। यामा पपलाशा ी नीलक ु चतमूधजा । ता तु नखी सु ू ा पीनपयोधरा ।। ४५ ।। उसके शरीरक का त याम थी। ने ऐसे जान पड़ते मानो खले ए कमलके दल ह । केश काले-काले और घुँघराले थे। नख उभरे ए और लाल रंगके थे। भ ह बड़ी सु दर थ । दोन उरोज थूल और मनोहर थे ।। ४५ ।। मानुषं व हं कृ वा सा ादमरव णनी । नीलो पलसमो ग धो य याः ोशात् धाव त ।। ४६ ।। वह ऐसी जान पड़ती मानो सा ात् दे वी गा ही मानवशरीर धारण करके कट ई ह । उसके अंग से नील कमलक -सी सुग ध कट होकर एक कोसतक चार ओर फैल रही थी ।। ४६ ।। या बभ त परं पं य या ना युपमा भु व । े ी े ी

दे वदानवय ाणामी सतां दे व पणीम् ।। ४७ ।। उसने परम सु दर प धारण कर रखा था। उस समय पृ वीपर उसके-जैसी सु दर ी सरी नह थी। दे वता, दानव और य भी उस दे वोपम क याको पानेके लये लाला यत थे ।। ४७ ।। तां चा प जातां सु ोण वागुवाचाशरी रणी । सवयो ष रा कृ णा ननीषुः यान् यम् ।। ४८ ।। सु दर क ट दे शवाली उस क याके कट होनेपर भी आकाशवाणी ई—‘इस क याका नाम कृ णा है। यह सम त युव तय म े एवं सु दरी है और य का संहार करनेके लये कट ई है ।। ४८ ।। सुरकाय मयं काले क र य त सुम यमा । अ या हेतोः कौरवाणां मह प यते भयम् ।। ४९ ।। ‘यह सुम यमा समयपर दे वता का काय स करेगी। इसके कारण कौरव को ब त बड़ा भय ा त होगा’ ।। ४९ ।। त छ वा सवपा चालाः णे ः सहसङ् घवत् । न चैतान् हषस पूणा नयं सेहे वसुंधरा ।। ५० ।। वह आकाशवाणी सुनकर सम त पांचाल सह के समुदायक भाँ त गजना करने लगे। उस समय हषम भरे ए उन पांचाल का वेग पृ वी नह सह सक ।। ५० ।। तौ ् वा पाषती याजं पेदे वै सुता थनी । न वै मद यां जनन जानीयाता ममा व त ।। ५१ ।। उन दोन पु और पु ीको दे खकर पु क इ छा रखनेवाली राजा पृषतक पु वधू मह ष याजक शरणम गयी और बोली—‘भगवन्! आप ऐसी कृपा कर, जससे ये दोन ब चे मेरे सवा और कसीको अपनी माता न समझ’ ।। ५१ ।। तथे युवाच तं याजो रा ः य चक षया । तयो नामनी च ु जाः स पूणमानसाः ।। ५२ ।। तब राजाका य करनेक इ छासे याजने कहा—‘ऐसा ही होगा।’ उस समय स पूण ज ने सफल-मनोरथ होकर उन बालक के नामकरण कये ।। ५२ ।। धृ वाद यम ष वाद् ु ना ु स भवाद प । धृ ु नः कुमारोऽयं पद य भव व त ।। ५३ ।। यह पदकुमार धृ , अमषशील तथा ु न (तेजोमय कवच-कु डल एवं ा तेज) आ दके साथ उ प होनेके कारण ‘धृ ु न’ नामसे स होगा ।। ५३ ।। कृ णे येवा ुवन् कृ णां कृ णाभूत् सा ह वणतः । तथा त मथुनं ज े पद य महामखे ।। ५४ ।। त प ात् उ ह ने कुमारीका नाम कृ णा रखा; य क वह शरीरसे कृ ण ( याम) वणक थी। इस कार पदके महान् य म वे जुड़व संतान उ प ।। ५४ ।। धृ ु नं तु पा चा यमानीय वं नवेशनम् । उपाकरोद हेतोभार ाजः तापवान् ।। ५५ ।। ो ी ै

अमो णीयं दै वं ह भा व म वा महाम तः । तथा तत् कृतवान् ोण आ मक यनुर णात् ।। ५६ ।। परम बु मान् तापी भर ाजन दन ोण यह सोचकर क ार धके भावी वधानको टालना अस भव है, पांचालराजकुमार धृ ु नको अपने घर ले आये और उ ह ने उसे अ - व ाक श ा दे कर उसका ब त बड़ा उपकार कया। ोणाचायने अपनी क तक र ाके लये वह उदारतापूण काय कया ।। ५५-५६ ।।

( ा ण उवाच ु वा जतुगृहे वृ ं ा णाः सपुरो हताः । पा चालराजं पद मदं वचनम ुवन् ।। धातरा ाः सहामा या म य वा पर परम् । पा डवानां वनाशाय म त च ु ः सु कराम् ।। य धनेन हतः पुरोचन इ त ुतः । वारणावतमासा कृ वा जतुगृहं महत् ।। त मन् गृहे सु व तान् पा डवान् पृथया सह । अधरा े महाराज द धवान् स पुरोचनः ।। अ नना तु वयम प द धः ु ो नृशंसकृत् । एत छ वा सुसं ो धृतरा ः सबा धवः ।। ु वा तु पा डवान् द धान् धृतरा ोऽ बकासुतः । एताव वा क णं धृतरा तु मा रषः ।। अ पशोकः ा मा शशास व रं तदा । पा डवानां महा ा कु प डोदक याम् ।। अ पा डु हतः ः पा डवानां वनाशने । त माद् भागीरथ ग वा कु प डोदक याम् ।। अहो व धवशादे व गता ते यमसादनम् । इ यु वा ा दत् त धृतरा ः ससौबलः ।। ु वा भी मेण व धवत् कृतवानौ वदे हकम् । पा डवानां वनाशाय कृतं कम रा मना ।। एत काय य कता तु न ो ुतः पुरा । एतद् वृ ं महाराज पा डवान् त नः ुतम् ।। ु वा तु वचनं तेषां य सेनो महाम तः । यथा त जनकः शोचेदौरस य वनाशने । तथात यत पा चालः पा डवानां वनाशने ।। समाय क ृ तयः स हताः सह बा धवैः । का यादे व पा चालः ोवाचेदं वच तदा ।। ै





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आग तुक ा ण कहता है—ला ागृहम पा डव के साथ जो घटना घ टत ई थी, उसे सुनकर ा ण तथा पुरो हत ने पांचालराज पदसे इस कार कहा—‘राजन्! धृतराक े पु ने अपने म य के साथ पर पर सलाह करके पा डव के वनाशका वचार कर लया था। ऐसा ू रतापूण वचार सर के लये अ य त क ठन है। य धनके भेजे ए उसके पुरोचन नामक सेवकने वारणावत नगरम जाकर एक वशाल ला ागृहका नमाण कराया था। उस भवनम पा डव अपनी माता कु तीके साथ पूण व त होकर रहते थे। महाराज! एक दन आधी रातके समय पुरोचनने ला ागृहम आग लगा द । वह नीच और नृशंस पुरोचन वयं भी उसी आगम जलकर भ म हो गया। यह समाचार सुनकर क ‘पा डव जल गये’ अ बकान दन धृतराको अपने भाई-ब धु के साथ बड़ा हष आ। धृतराक आ मा हषसे खल उठ थी, तो भी ऊपरसे कुछ शोकका दशन करते ए उ ह ने व रजीसे बड़ी क ण भाषाम यह वृ ा त बताया और उ ह आ ा द क ‘महामते! पा डव का ा और तपण करो। व र! पा डव के मरनेसे मुझे ऐसा ःख आ है मानो मेरे भाई पा डु आज ही वगवासी ए ह । अतः गंगाजीके तटपर चलकर उनके लये ा और तपणक व था करो। अहो! भा यवश ही बेचारे पा डव यमलोकको चले गये।’ य कहकर धृतरा और शकु न फूट-फूटकर रोने लगे। भी मजीने यह समाचार सुनकर उनका व धपूवक औ वदै हक सं कार स प कया है। इस कार रा मा य धनने पा डव के वनाशके लये यह भयंकर षड् य कया था। आजसे पहले हमने कसीको ऐसा नह दे खा या सुना था जो इस तरहका जघ य काय कर सके। महाराज! पा डव के स ब धम यह वृ ा त हमारे सुननेम आया है।’ ा ण और पुरो हतका यह वचन सुनकर परम बु मान् राजा पद शोकम डू ब गये। जैसे अपने सगे पु क मृ यु होनेपर उसके पताको शोक होता है उसी कार पा डव के न होनेका समाचार सुनकर पांचालराजको पीड़ा ई। उ ह ने अपने भाई-ब धु के साथ सम त जाको बुलवाया और बड़ी क णासे यह बात कही।

पद उवाच अहो पमहो धैयमहो वीय च श तम् । च तया म दवारा मजुनं त बा धवाः ।। ातृ भः स हतो मा ा सोऽद त ताशने । कमा य मदं लोके कालो ह र त मः ।। मया त ो लोक े षु क व द या म सा तम् । अ तगतेन ःखेन द मानो दवा नशम् । याजोपयाजौ स कृ य या चतौ तौ मयानघौ ।। भार ाज य ह तारं दे व चा यजुन य वै । लोक तद् वेद य चैव तथा याजेन वै ुतम् ।। याजेन पु कामीयं वा चो पा दतावुभौ । धृ ु न कृ णा च मम तु करावुभौ ।। े

क क र या म ते न ाः पा डवाः पृथया सह । पद बोले—ब धुओ! अजुनका प अ त था। उनका धैय आ यजनक था। उनका परा म और उनक अ - श ा भी अलौ कक थी। म दन-रात अजुनक ही च ताम डू बा रहता ँ। हाय! वे अपने भाइय और माताके साथ आगम जल गये। संसारम इससे बढ़कर आ यक बात और या हो सकती है? सच है, कालका उ लंघन करना अ य त क ठन है। मेरी तो त ा झूठ हो गयी। अब म लोग से या क ँगा। आ त रक ःखसे दन-रात द ध होता रहता ँ। मने न पाप याज और उपयाजका स कार करके उनसे दो संतान क याचना क थी। एक तो ऐसा पु माँगा, जो ोणाचायका वध कर सके और सरी ऐसी क याके लये ाथना क , जो वीर अजुनक पटरानी बन सके। मेरे इस उ े यको सब लोग जानते ह और मह ष याजने भी यही घो षत कया था। उ ह ने पु े य करके धृ ु न और कृ णाको उ प कया था। इन दोन संतान को पाकर मुझे बड़ा संतोष आ। अब या क ँ ? कु तीस हत पा डव तो न हो गये।

ा ण उवाच इ येवमु वा पा चालः शुशोच परमातुरः ।। ् वा शोच तम यथ पा चालगु र वीत् । पुरोधाः स वस प ः स यग् व ाशेषवान् ।। आग तुक ा ण कहता है—ऐसा कहकर पांचालराज पद अ य त ःखी एवं शोकातुर हो गये। पांचालराजके गु बड़े सा वक और व श व ान् थे। उ ह ने राजाको भारी शोकम डू बा दे खकर कहा। गु वाच वृ ानुशासने स ाः पा डवा धमचा रणः । ता शा न वन य त नैव या त पराभवम् ।। मया मदं स यं शृणु व मनुजा धप । ा णैः क थतं स यं वेदेषु च मया ुतम् ।। बृह प तमुखेनाथ पौलो या च पुरा ुतम् । न इ ो बस यामुप ु या तु द शतः ।। उप ु तमहाराज पा डवाथ मया ुता । य वा त जीव त पा डवा ते न संशयः ।। गु बोले—महाराज! पा डवलोग बड़े-बूढ़ के आ ापालनम त पर रहनेवाले तथा धमा मा ह। ऐसे लोग न तो न होते ह और न परा जत ही होते ह। नरे र! मने जस स यका सा ा कार कया है, वह सु नये। ा ण ने तो इस स यका तपादन कया ही है, वेदके म म भी मने इसका वण कया है। पूवकालम इ ाणीने बृह प तजीके मुखसे उप ु तक म हमा सुनी थी। उ रायणक अ ध ा ी दे वी उप ु तने ही अ ए इ का कमलनालक थम दशन कराया था। महाराज! इसी कार मने भी पा डव के वषयम उप ु त सुन रखी है। वे पा डव कह -न-कह अव य जी वत ह, इसम संशय नह है। े

मया ा न ल ा न ुवमे य त पा डवाः । य म महाया त त छृ णु व नरा धप ।। वयंवरः याणां क यादाने द शतः । वयंवर तु नगरे घु यतां राजस म ।। य वा नवस त ते पा डवाः पृथया सह । र था वा समीप थाः वग था वा प पा डवाः ।। ु वा वयंवरं राजन् समे य त न संशयः । त मात् वयंवरो राजन् घु यतां मा चरं कृथाः ।। मने ऐसे (शुभ) च दे खे ह, जनसे सू चत होता है क पा डव यहाँ अव य पधारगे। नरे र! वे जस न म से यहाँ आ सकते ह, वह सु नये— य के लये क यादानका े माग वयंवर बताया गया है। नृप े ! आप स पूण नगरम वयंवरक घोषणा करा द। फर पा डव अपनी माता कु तीके साथ र ह , नकट ह अथवा वगम ही य न ह —जहाँ कह भी ह गे, वयंवरका समाचार सुनकर यहाँ अव य आयगे, इसम संशय नह है। अतः राजन्! आप (सव ) वयंवरक सूवना करा द, इसम वल ब न कर। ा ण उवाच ु वा पुरो हतेनो ं पा चालः ी तमां तदा । घोषयामास नगरे ौप ा तु वयंवरम् ।। पु यमासे तु रो ह यां शु लप े शुभे तथौ । दवसैः प चस त या भ व य त वयंवरः ।। दे वग धवय ा ऋषय तपोधनाः । वयंवरं ु कामा ग छ येव न संशयः ।। तव पु ा महा मानो दशनीया वशेषतः । य छया तु पा चाली ग छे द ् वा म यमं प तम् ।। को ह जाना त लोकेषु जाप त वध परम् । त मात् सपु ा ग छे था ा यै य द रोचते ।। न यकालं सु भ ा ते प चाला तु तपोधने ।। य सेन तु राजासौ यः स यस रः । या नागरा ाथ ा णा ा त थ याः ।। न यकालं दा य त आम णमया चतम् ।। अहं च त ग छा म ममै भः सह श यकैः । एकसाथाः याताः मो ा यै य द रोचते ।। आग तुक ा ण कहता है—पुरो हतक बात सुनकर पंचालराजको बड़ी स ता ई। उ ह ने नगरम ौपद का वयंवर घो षत करा दया। पौषमासके शु लप म शुभ त थ (एकादशी)-को रो हणी न म वह वयंवर होगा, जसके लये आजसे पचह र दन शेष ह। ा णी (कु ती)! दे वता, ग धव, य और तप वी ऋ ष भी वयंवर दे खनेके लये े











अव य जाते ह। तु हारे सभी महा मा पु दे खनेम परम सु दर ह। पंचालराजपु ी कृ णा इनमसे कसीको अपनी इ छासे प त चुन सकती है अथवा तु हारे मँझले पु को अपना प त बना सकती है। संसारम वधाताके उ म वधानको कौन जान सकता है? अतः य द मेरी बात तु ह अ छ लगे, तो तुम अपने पु के साथ पंचालदे शम अव य जाओ। तपोधने! पंचालदे शम सदा सु भ रहता है। राजा य सेन स य त होनेके साथ ही ा ण के भ ह। वहाँके नाग रक भी ा ण के त ा-भ रखनेवाले ह। उस नगरके ा ण भी अ त थय के बड़े ेमी ह। वे त दन बना माँगे ही यौता दगे। म भी अपने इन श य के साथ वह जाता ँ। ा णी! य द ठ क जान पड़े तो चलो। हम सब लोग एक साथ ही वहाँ चले चलगे।

वैश पायन उवाच एताव वा वचनं ा णो वरराम ह ।) वैश पायनजी कहते ह—इतना कहकर वे ा ण चुप हो गये। इत

ीमहाभारते आ दपव ण चै रथपव ण ौपद स भवे षट् ष धकशततमोऽ यायः ।। १६६ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत चै रथपवम ौपद ा भाव वषयक एक सौ छाछठवाँ अ याय पूरा आ ।। १६६ ।। (दा णा य अ धक पाठक े ३८ ोक मलाकर कुल ९४ ोक ह)

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धकशततमोऽ यायः

कु तीक अपने पु से पूछकर पंचालदे शम जानेक तैयारी वैश पायन उवाच एत छ वा तु कौ तेया ा णात् सं शत तात् । सव चा व थमनसो बभूवु ते महाबलाः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! कठोर त-वाले उस ा णसे यह सुनकर उन सब महाबली कु तीपु का मन वच लत हो गया ।। १ ।। ततः कु ती सुतान् ् वा सवा तद्गतचेतसः । यु ध रमुवाचेदं वचनं स यवा दनी ।। २ ।। तब स यवा दनी कु तीने अपने सभी पु का मन उस वयंवरक ओर आकृ दे ख यु ध रसे इस कार कहा ।। २ ।। कु युवाच चररा ो षताः मेह ा ण य नवेशने । रममाणाः पुरे र ये लधभै ा महा मनः ।। ३ ।। कु ती बोली—बेटा! हमलोग यहाँ इन महा मा ा णके घरम ब त दन से रह रहे ह। इस रमणीय नगरम हम आन दपूवक घूमे- फरे और यहाँ हम (पया त) भ ा भी उपल ध ई ।। ३ ।। यानीह रमणीया न वना युपवना न च । सवा ण ता न ा न पुनः पुनररदम ।। ४ ।। श ुदमन! यहाँ जो रमणीय वन और उपवन ह, उन सबको हमने बार-बार दे ख लया ।। ४ ।। पुन ु ं ह तानीह ीणय त न न तथा । भै ं च न तथा वीर ल यते कु न दन ।। ५ ।। वीर! य द उ ह को हम फर दे खनेके लये जायँ तो वे हम उतनी स ता नह दे सकते। कु न दन! अब भ ा भी यहाँ हम पहले-जैसी नह मल रही है ।। ५ ।। ते वयं साधु प चालान् ग छाम य द म यसे । अपूवदशनं वीर रमणीयं भ व य त ।। ६ ।। य द तु हारी राय हो तो अब हमलोग सुखपूवक पंचालदे शम चल। वीर! उस दे शको हमने पहले कभी नह दे खा है, इस लये वह बड़ा रमणीय तीत होगा ।। ६ ।। सु भ ा ैव प चालाः ूय ते श ुकशन । य सेन राजासौ य इ त शु ुम ।। ७ ।। श ुनाशन! सुना जाता है, पंचालदे शम बड़ा सुकाल है (इस लये भ ा ब तायतसे मलती है)। हमने यह भी सुना है क राजा य सेन ा ण के बड़े भ ह ।। ७ ।। ो



एक चरवास मो न च मतो मम । ते त साधु ग छामो य द वं पु म यसे ।। ८ ।। बेटा! एक थानपर ब त दन तक रहना मुझे उ चत नह जान पड़ता; अतः य द तुम ठ क समझो तो हमलोग सुखपूवक वहाँ चल ।। ८ ।। यु ध र उवाच भव या य मतं काय तद माकं परं हतम् । अनुजां तु न जाना म ग छे युन त वा पुनः ।। ९ ।। यु ध रने कहा—माँ! आप जस कायको ठ क समझती ह, वह हमारे लये परम हतकर है; परंतु अपने छोटे भाइय के स ब धम म नह जानता क वे जानेके लये उ त ह या नह ।। ९ ।। वैश पायन उवाच ततः कु ती भीमसेनमजुनं यमजौ तथा । उवाच गमनं ते च तथे येवा ुवं तदा ।। १० ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तब कु तीने भीमसेन, अजुन, नकुल और सहदे वसे भी चलनेके वषयम पूछा। उन सबने भी ‘तथा तु’ कहकर वीकृ त दे द ।। १० ।। तत आम य तं व ं क ु ती राजन् सुतैः सह । त थे नगर र यां पद य महा मनः ।। ११ ।। राजन्! तब कु तीने उन ा णदे वतासे वदा लेकर अपने पु के साथ महा मा पदक रमणीय नगरीक ओर जानेक तैयारी क ।। ११ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण चै रथपव ण प चालदे शया ायां स तष धकशततमोऽ यायः ।। १६७ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत चै रथपवम पंचालदे शक या ा वषयक एक सौ सरसठवाँ अ याय पूरा आ ।। १६७ ।।

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धकशततमोऽ यायः

ासजीका पा डव को ौपद के पूवज मका वृ ा त सुनाना वैश पायन उवाच वस सु तेषु छ ं पा डवेषु महा मसु । आजगामाथ तान् ु ं ासः स यवतीसुतः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! महा मा पा डव जब गु त पसे वहाँ नवास कर रहे थे, उसी समय स यवतीन दन ासजी उनसे मलनेके लये वहाँ आये ।। १ ।। तमागतम भ े य युदग ् य परंतपाः । णप या भवा ैनं त थुः ा चलय तदा ।। २ ।। समनु ा य तान् सवानासीनान् मु नर वीत् । छ ं पू जतः पाथः ी तपूव मदं वचः ।। ३ ।। उ ह आया दे ख श ुसंतापन पा डव ने आगे बढ़कर उनक अगवानी क और णामपूवक उनका अ भवादन करके वे सब उनके आगे हाथ जोड़कर खड़े हो गये। कु तीपु ारा गु त पसे पू जत हो मु नवर ासने उन सबको आ ा दे कर बठाया और जब वे बैठ गये, तब उनसे स तापूवक इस कार पूछा— ।। २-३ ।।



अ प धमण वत वं शा ेण च परंतपाः । अ प व ेषु पूजा वः पूजाहषु न हीयते ।। ४ ।। ‘श ु को संत त करनेवाले वीरो! तुमलोग शा क आ ा और धमके अनुसार चलते हो न? पूजनीय ा ण क पूजा करनेम तो तु हारी ओरसे कभी भूल नह होती?’ ।। ४ ।। अथ धमाथवद् वा यमु वा स भगवानृ षः । व च ा कथा ता ताः पुनरेवेदम वीत् ।। ५ ।। तदन तर मह ष भगवान् ासने उनसे धम और अथयु बात कह । फर व च व च कथाएँ सुनाकर वे पुनः उनसे इस कार बोले ।। ५ ।। ास उवाच आसीत् तपोवने का च षेः क या महा मनः । वल नम या सु ोणी सु ूः सवगुणा वता ।। ६ ।। ासजीने कहा—पहलेक बात है, तपोवनम कसी महा मा ऋ षक कोई क या रहती थी, जसक क ट कृश तथा नत ब और भ ह सु दर थ । वह क या सम त सद्गुण से स प थी ।। ६ ।। कम भः वकृतैः सा तु भगा समप त । ना यग छत् प त सा तु क या पवती सती ।। ७ ।। परंतु अपने ही कये ए कम के कारण वह क या भा यके वश हो गयी, इस लये वह पवती और सदाचा रणी होनेपर भी कोई प त न पा सक ।। ७ ।। तत त तुमथारेभे प यथमसुखा ततः । तोषयामास तपसा सा कलो ेण शंकरम् ।। ८ ।। तब प तके लये ःखी होकर उसने तप या ार भ क और कहते ह उ तप याके ारा उसने भगवान् शंकरको स कर लया ।। ८ ।। त याः स भगवां तु तामुवाच यश वनीम् । वरं वरय भ ं ते वरदोऽ मी त शङ् करः ।। ९ ।। उसपर संतु हो भगवान् शंकरने उस यश वनी क यासे कहा—‘शुभे! तु हारा क याण हो। तुम कोई वर माँगो। म तु ह वर दे नेके लये आया ँ’ ।। ९ ।। अथे रमुवाचेदमा मनः सा वचो हतम् । प त सवगुणोपेत म छामी त पुनः पुनः ।। १० ।। तब उसने भगवान् शंकरसे अपने लये हतकर वचन कहा—‘ भो! म सवगुणस प प त चाहती ँ।’ इस वा यको उसने बार-बार हराया ।। १० ।। तामथ युवाचेदमीशानो वदतां वरः । प च ते पतयो भ े भ व य ती त भारताः ।। ११ ।। तब व ा म े भगवान् शवने उससे कहा—‘भ े ! तु हारे पाँच भरतवंशी प त ह गे’ ।। ११ ।। एवमु ा ततः क या दे वं वरदम वीत् । े



एक म छा यहं दे व व सादात् प त भो ।। १२ ।। उनके ऐसा कहनेपर वह क या उन वरदायक दे वता भगवान् शवसे इस कार बोली —‘दे व! भो! म आपक कृपासे एक ही प त चाहती ँ’ ।। १२ ।। पुनरेवा वीद् दे व इदं वचनमु मम् । प चकृ व वया ः प त दे ही यहं पुनः ।। १३ ।। तब भगवान्ने पुनः उससे यह उ म बात कही—‘भ े ! तुमने मुझसे पाँच बार कहा है क मुझे प त द जये ।। १३ ।। दे हम यं गताया ते यथो ं तद् भ व य त । पद य कुले ज े सा क या दे व पणी ।। १४ ।। ‘अतः सरा शरीर धारण करनेपर तु ह जैसा मने कहा है, वह वरदान ा त होगा।’ वही दे व पणी क या राजा पदके कुलम उ प ई है ।। १४ ।। न द ा भवतां प नी कृ णा पाष य न दता । पा चालनगरे त मा वस वं महाबलाः । सुखन तामनु ा य भ व यथ न संशयः ।। १५ ।। वह महाराज पृषतक पौ ी सती-सा वी कृ णा तुमलोग क प नी नयत क गयी है; अतः महाबली वीरो! अब तुम पंचालनगरम जाकर रहो। ौपद को पाकर तुम सब लोग सुखी होओगे, इसम संशय नह है ।। १५ ।। एवमु वा महाभागः पा डवान् स पतामहः । पाथानाम य क ु त च ा त त महातपाः ।। १६ ।। महान् सौभा यशाली और महातप वी पतामह ासजी पा डव से ऐसा कहकर उन सबसे और कु तीसे वदा ले वहाँसे चल दये ।। १६ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण चै रथपव ण ौपद ज मा तरकथने अ ष धकशततमोऽ यायः ।। १६८ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत चै रथपवम ौपद ज मा तरकथन वषयक एक सौ अड़सठवाँ अ याय पूरा आ ।। १६८ ।।

एकोनस त य धकशततमोऽ यायः पा डव क पंचाल-या ा और अजुनके ारा च रथ ग धवक पराजय एवं उन दोन क म ता वैश पायन उवाच गते भगव त ासे पा डवा मानसाः । ते त थुः पुर कृ य मातरं पु षषभाः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! भगवान् ासके चले जानेपर पु ष े पा डव स च हो अपनी माताको आगे करके वहाँसे पंचालदे शक ओर चल दये ।। १ ।। आम य ा णं पूवम भवा ानुमा य च । समै दङ् मुखैमागयथो ं परंतपाः ।। २ ।। परंतप! कु तीकुमार ने पहले ही अपने आ यदाता ा णसे पूछकर जानेक आ ा ले ली थी और चलते समय बड़े आदरके साथ उ ह णाम कया। वे सब लोग उ र दशाक ओर जानेवाले सीधे माग ारा उ रा भमुख हो अपने अभी थान पंचालदे शक ओर बढ़ने लगे ।। २ ।। ते वग छ होरा ात् तीथ सोमा यायणम् । आसे ः पु ष ा ा ग ायां पा डु न दनाः ।। ३ ।। एक दन और एक रात चलकर वे नर े पा डव गंगाजीके तटपर सोमा यायण नामक तीथम जा प ँचे ।। ३ ।। उ मुकं तु समु य तेषाम े धनंजयः । काशाथ ययौ त र ाथ च महारथः ।। ४ ।। उस समय उनके आगे-आगे महारथी अजुन उजाला तथा र ा करनेके लये जलती ई मशाल उठाये चल रहे थे ।। ४ ।। त ग ाजले र ये व व े डयन् यः । ई युग धवराजो वै जल डामुपागतः ।। ५ ।। उस तीथक गंगाके रमणीय तथा एका त जलम ग धवराज अंगारपण ( च रथ) अपनी य के साथ ड़ा कर रहा था। वह बड़ा ही ई यालु था और जल ड़ा करनेके लये ही वहाँ आया था ।। ५ ।। श दं तेषां स शु ाव नद समुपसपताम् । तेन श दे न चा व ोध बलवद् बली ।। ६ ।। उसने गंगाजीक ओर बढ़ते ए पा डव के पैर क धमक सुनी। उस श दको सुनते ही वह बलवान् ग धव ोधके आवेशम आकर बड़े जोरसे कु पत हो उठा ।। ६ ।। स ् वा पा डवां त सह मा ा परंतपान् । व फारयन् धनुघ र मदं वचनम वीत् ।। ७ ।। ो













परंतप पा डव को अपनी माताके साथ वहाँ दे ख वह अपने भयानक धनुषको टं कारता आ इस कार बोला— ।। ७ ।। सं या संर यते घोरा पूवरा ागमेषु या । अशी त भलवैह नं त मु त च ते ।। ८ ।। व हतं कामचाराणां य ग धवर साम् । शेषम य मनु याणां कमचारेषु वै मृतम् ।। ९ ।। ‘रा ार भ होनेके पहले जो प म दशाम भयंकर सं याक लाली छा जाती है, उस समय अ सी लवको छोड़कर सारा मु त इ छानुसार वचरनेवाले य , ग धव तथा रा स के लये न त बताया जाता है। शेष दनका सब समय मनु य के कायवश वचरनेके लये माना गया है ।। ८-९ ।। लोभात् चारं चरत तासु वेलासु वै नरान् । उप ा ता न गृ मो रा सैः सह बा लशान् ।। १० ।। ‘जो मनु य लोभवश हमलोग क वेलाम इधर घूमते ए आ जाते ह, उन मूख को हम ग धव और रा स कैद कर लेते ह ।। १० ।। अतो रा ौ ा ुव तो जलं वदो जनाः । गहय त नरान् सवान् बल थान् नृपतीन प ।। ११ ।। ‘इसी लये वेदवे ा पु ष रातके समय जलम वेश करनेवाले स पूण मनु य और बलवान् राजा क भी न दा करते ह ।। ११ ।। आरात् त त मा म ं समीपमुपसपत । क मा मां ना भजानीत ा तं भागीरथीजलम् ।। १२ ।। अ ारपण ग धव व मां वबला यम् । अहं ह मानी चे यु कुबेर य यः सखा ।। १३ ।। ‘अरे, ओ मनु यो! र ही खड़े रहो। मेरे समीप न आना। तु ह ात कैसे नह आ क म ग धवराज अंगारपण गंगाजीके जलम उतरा आ ँ। तुमलोग मुझे (अ छ तरह) जान लो, म अपने ही बलका भरोसा करनेवाला वा भमानी, ई यालु तथा कुबेरका य म ँ ।। १२-१३ ।। अ ारपण म येवं यातं चेदं वनं मम । अनुग ं चरन् कामां ं य रमा यहम् ।। १४ ।। ‘मेरा यह वन भी अंगारपण नामसे व यात है। म गंगाजीके तटपर वचरता आ इस वनम इ छानुसार व च ड़ाएँ करता रहता ँ ।। १४ ।। न कौणपाः शृ णो वा न दे वा न च मानुषाः । इदं समुपसप त तत् क समनुसपथ ।। १५ ।। ‘मेरी उप थ तम यहाँ रा स, य , दे वता अथवा मनु य—कोई भी नह आने पाते; फर तुमलोग कैसे आ रहे हो?’ ।। १५ ।। े

अजुन उवाच े

समु े हमव पा न ाम यां च मते । रा ावह न सं यायां क य गु तः प र हः ।। १६ ।। अजुन बोले— मते! समु , हमालयक तराई और गंगानद के तटपर रात, दन अथवा सं याके समय कसका अ धकार सुर त है? ।। १६ ।। भु ो वा यथवाभु ो रा ावह न खेचर । न काल नयमो त ग ां ा य स र राम् ।। १७ ।। आकाशचारी ग धव! स रता म े गंगाजीके तटपर आनेके लये यह नयम नह है क यहाँ कोई खाकर आये या बना खाये, रातम आये या दनम। इसी कार काल आ दका भी कोई नयम नह है ।। १७ ।। वयं च श स प ा अकाले वामधृ णुम । अश ा ह रणे ू र यु मानच त मानवाः ।। १८ ।। अरे, ओ ू र! हमलोग तो श स प ह। असमयम भी आकर तु ह कुचल सकते ह। जो यु करनेम असमथ ह, वे बल मनु य ही तुमलोग क पूजा करते ह ।। १८ ।। पुरा हमवत ैषा हेमशृ ाद् व न सृता । ग ा ग वा समु ा भः स तधा समप त ।। १९ ।। ग ां च यमुनां चैव ल जातां सर वतीम् । रथ थां सरयूं चैव गोमत ग डक तथा ।। २० ।। अपयु षतपापा ते नद ः स त पब त ये । इयं भू वा चैकव ा शु चराकाशगा पुनः ।। २१ ।। दे वेषु ग ा ग धव ा ो यलकन दताम् । तथा पतॄन् वैतरणी तरा पापकम भः । ग ा भव त वै ा य कृ ण ै पायनोऽ वीत् ।। २२ ।। ाचीन कालम हमालयके वण शखरसे नकली ई गंगा सात धारा म वभ हो समु म जाकर मल गयी ह। जो पु ष गंगा, यमुना, ल क जड़से कट ई सर वती, रथ था, सरयू, गोमती और ग डक —इन सात न दय का जल पीते ह, उनके पाप त काल न हो जाते ह। ये गंगा बड़ी प व नद ह। एकमा आकाश ही इनका तट है। ग धव! ये आकाशमागसे वचरती ई गंगा दे वलोकम अलकन दा नाम धारण करती ह। ये ही वैतरणी होकर पतृलोकम बहती ह। वहाँ पा पय के लये इनके पार जाना अ य त क ठन होता है। इस लोकम आकर इनका नाम गंगा होता है। यह ीकृ ण ै पायन ासजीका कथन है ।। १९—२२ ।। अस बाधा दे वनद वगस पादनी शुभा । कथ म छ स तां रो ं नैष धमः सनातनः ।। २३ ।। ये क याणमयी दे वनद सब कारक व न-बाधा से र हत एवं वगलोकक ा त करानेवाली ह। तुम उ ह गंगाजीपर कस लये रोक लगाना चाहते हो? यह सनातन धम नह है ।। २३ ।। अ नवायमस बाधं तव वाचा कथं वयम् । े ी ी

न पृशेम यथाकामं पु यं भागीरथीजलम् ।। २४ ।। जसे कोई रोक नह सकता, जहाँ प ँचनेम कोई बाधा नह है, भागीरथीके उस पावन जलका तु हारे कहनेसे हम अपने इ छानुसार पश य न कर? ।। २४ ।। वैश पायन उवाच अ ारपण त छ वा ु आन य कामुकम् । मुमोच बाणान् न शतानहीनाशी वषा नव ।। २५ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! अजुनक वह बात सुनकर अंगारपण ो धत हो गया और धनुष नवाकर वषैले साँप क भाँ त तीखे बाण छोड़ने लगा ।। २५ ।। उ मुकं ामयं तूण पा डव म चो रम् । पोहत शरां त य सवानेव धनंजयः ।। २६ ।। यह दे ख पा डु न दन धनंजयने तुरंत ही मशाल घुमाकर और उ म ढालसे रोककर उसके सभी बाण थ कर दये ।। २६ ।।

अजुन उवाच बभी षका वै ग धव ना ेषु यु यते । अ ेषु यु े यं फेनवत् वलीयते ।। २७ ।। अजुनने कहा—ग धव! जो अ - व ाके व ान् ह, उनपर तु हारी यह घुड़क नह चल सकती। अ - व ाके मम पर फैलायी ई तु हारी यह माया फेनक तरह वलीन हो ी

जायगी ।। २७ ।। मानुषान तग धवान् सवान् ग धव ल ये । त माद ेण द ेन यो येऽहं न तु मायया ।। २८ ।। ग धव! म जानता ँ क स पूण ग धव मनु य से अ धक श शाली होते ह, इस लये म तु हारे साथ मायासे नह , द ा से यु क ँ गा ।। २८ ।। पुरा मदमा नेयं ादात् कल बृह प तः । भर ाजाय ग धव गु मा यः शत तोः ।। २९ ।। ग धव! यह आ नेय अ पूवकालम इ के माननीय गु बृह प तजीने भर ाज मु नको दया था ।। २९ ।। भर ाजाद नवे य अ नवे याद् गु मम । सा वदं म मददद् ोणो ा णस मः ।। ३० ।। भर ाजसे इसे अ नवे यने और अ नवे यसे मेरे गु ोणाचायने ा त कया है। फर व वर ोणाचायने यह उ म अ मुझे दान कया ।। ३० ।। वैश पायन उवाच इ यु वा पा डवः ु ो ग धवाय मुमोच ह । द तम मा नेयं ददाहा य रथं तु तत् ।। ३१ ।। वरथं व लुतं तं तु स ग धव महाबलः । अ तेजः मूढं च पत तमवाङ् मुखम् ।। ३२ ।। शरो हेषु ज ाह मा यव सु धनंजयः । ातॄन् त चकषाथ सोऽ पातादचेतसम् ।। ३३ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! ऐसा कहकर पा डु न दन अजुनने कु पत हो ग धवपर वह व लत आ नेय अ चला दया। उस अ ने ग धवके रथको जलाकर भ म कर दया। वह रथहीन ग धव ाकुल हो गया और अ के तेजसे मूढ होकर नीचे मुँह कये गरने लगा। महाबली अजुनने उसके फूलक माला से सुशो भत केश पकड़ लये और घसीटकर अपने भाइय के पास ले आये। अ के आघातसे वह ग धव अचेत हो गया था ।। ३१-३३ ।। यु ध रं त य भाया पेदे शरणा थनी । ना ना कु भीनसी नाम प त ाणमभी सती ।। ३४ ।। उस ग धवक प नीका नाम कु भीनसी था। उसने अपने प तके जीवनक र ाके लये महाराज यु ध रक शरण ली ।। ३४ ।। ग ध ुवाच ाय व मां महाभाग प त चेमं वमु च मे । ग धव शरणं ा ता ना ना कु भीनसी भो ।। ३५ ।। ग धव बोली—महाभाग! मेरी र ा क जये और मेरे इन प तदे वको आप छोड़ द जये। भो! म ग धवप नी कु भीनसी आपक शरणम आयी ँ ।। ३५ ।।

यु ध र उवाच यु े जतं यशोहीनं ीनाथमपरा मम् । को नह याद् रपुं तात मु चेमं रपुसूदन ।। ३६ ।। यु ध रने कहा—तात! श ुसूदन अजुन! यह ग धव यु म हार गया और अपना यश खो चुका। अब ी इसक र का बनकर आयी है। यह वयं कोई परा म नह कर सकता। ऐसे द न-हीन श ुको कौन मारता है? इसे जी वत छोड़ दो ।। ३६ ।। अजुन उवाच जी वतं तप व ग छ ग धव मा शुचः । दश यभयं तेऽ कु राजो यु ध रः ।। ३७ ।। अजुन बोले—ग धव! जीवन धारण करो। जाओ, अब शोक न करो। इस समय कु राज यु ध र तु ह अभयदान दे रहे ह ।। ३७ ।। ग धव उवाच जतोऽहं पूवकं नाम मु चा य ारपणताम् । न च ाघे बलेना न ना ना जनसंस द ।। ३८ ।। ग धवने कहा—अजुन! म परा त हो गया, अतः अपने पहले नाम अंगारपणको छोड़ दे ता ँ। अब म जनसमुदायम अपने बलक ाघा नह क ँ गा और न इस नामसे अपना प रचय ही ँ गा ।। ३८ ।। सा वमं लधवाँ लाभं योऽहं द ा धा रणम् । गा ध ा मायये छा म संयोज यतुमजुनम् ।। ३९ ।। (आजक पराजयसे) मुझे सबसे बड़ा लाभ यह आ है क मने द ा धारी अजुनको ( म पम) ा त कया है और अब म इ ह ग धव क मायासे संयु करना चाहता ँ ।। ३९ ।। अ ा नना व च ोऽयं द धो मे रथ उ मः । सोऽहं च रथो भू वा ना ना द धरथोऽभवम् ।। ४० ।। इनके द ा क अ नसे मेरा यह व च एवं उ म रथ द ध हो गया है। पहले म व च रथके कारण ‘ च रथ’ कहलाता था; परंतु अब मेरा नाम ‘द धरथ’ हो गया ।। ४० ।। स भृता चैव व ेयं तपसेह मया पुरा । नवेद य ये ताम ाणदाय महा मने ।। ४१ ।। मने पूवकालम यहाँ तप या ारा जो यह व ा ा त क है, उसे आज अपने ाणदाता महा मा म को अ पत क ँ गा ।। ४१ ।। सं त भ य वा तरसा जतं शरणमागतम् । यो रपुं योजयेत् ाणैः क याणं क न सोऽह त ।। ४२ ।। े

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ज ह ने अपने वेगसे श ुक श को कु ठत करके उसपर वजय पायी और फर जब वह श ु शरणम आ गया, तब जो उसे ाणदान दे रहे ह, वे कस क याणक ा तके अ धकारी नह है? ।। ४२ ।। चा ुषी नाम व ेयं यां सोमाय ददौ मनुः । ददौ स व ावसवे मम व ावसुददौ ।। ४३ ।। यह चा ुषी नामक व ा है, जसे मनुने सोमको दया। सोमने व ावसुको दया और व ावसुने मुझे दान कया है ।। ४३ ।। सेयं कापु षं ा ता गु द ा ण य त । आगमोऽ या मया ो ो वीय त नबोध मे ।। ४४ ।। यह गु क द ई व ा य द कसी कायरको मल गयी तो न हो जाती है। (इस कार) मने इसके उपदे शक पर पराका वणन कया है। अब इसका बल भी मुझसे सुन ली जये ।। ४४ ।। य च ुषा ु म छे त् षु लोकेषु कचन । तत् प येद ् या शं चे छे त् ता शं ु मह त ।। ४५ ।। तीन लोक म जो कोई भी व तु है, उसमसे जस व तुको आँखसे दे खनेक इ छा हो, उसे इस व ाके भावसे कोई भी दे ख सकता है और जस पम दे खना चाहे, उसी पम दे ख सकता है ।। ४५ ।। एकपादे न ष मासान् थतो व ां लभे दमाम् । अनुने या यहं व ां वयं तु यं तेऽकृते ।। ४६ ।। जो एक पैरसे छः महीनेतक खड़ा रहकर तप या करे, वही इस व ाको पा सकता है। परंतु आपको इस तका पालन या तप या कये बना ही म वयं उ व ाक ा त कराऊँगा ।। ४६ ।। व या नया राजन् वयं नृ यो वशे षताः । अ व श ा दे वानामनुभाव द शनः ।। ४७ ।। राजन्! इस व ाके बलसे ही हमलोग मनु य से े माने जाते ह और दे वता के तु य भाव दखा सकते ह ।। ४७ ।। ग धवजानाम ानामहं पु षस म । ातृ य तव तु यं च पृथ दाता शतं शतम् ।। ४८ ।। पु ष शरोमणे! म आपको और आपके भाइय को अलग-अलग ग धवलोकके सौ-सौ घोड़े भट करता ँ ।। ४८ ।। दे वग धववाहा ते द वणा मनोजवाः । ीणा ीणा भव येते न हीय ते च रंहसः ।। ४९ ।। वे घोड़े दे वता और ग धव के वाहन ह। उनके शरीरक का त द है। वे मनके समान वेगशाली और आव यकताके अनुसार बले-मोटे होते ह; कतु उनका वेग कभी कम नह होता ।। ४९ ।। पुरा कृतं महे य व ं वृ नबहणम् । ै

दशधा शतधा चैव त छ ण वृ मूध न ।। ५० ।। पूवकालम वृ ासुरका संहार करनेके न म इ के लये जस वका नमाण कया गया था, वृ ासुरके म तकपर पड़ते ही उसके दस बड़े और सौ छोटे टु कड़े हो गये ।। ५० ।। ततो भागीकृतो दे वैव भाग उपा यते । लोके यशो धनं क चत् सैव व तनुः मृता ।। ५१ ।। तबसे अनेक भाग म बँटे ए उस वक े येक भागक दे वतालोग उपासना करते ह। लोकम उ कृ धन और यश आ द जो कुछ भी व तु है, उसे वका व प माना गया है ।। ५१ ।। व पा ण ा णः यात् ं व रथं मृतम् । वै या वै दानव ा कमव ा यवीयसः ।। ५२ ।। (अ नम आ त दे नेके कारण) ा णका दा हना हाथ व है। यका रथ व है। वै यलोग जो दान करते ह, वह भी व है और शू लोग जो सेवाकाय करते ह, उसे भी व ही समझना चा हये ।। ५२ ।। व य भागेन अव या वा जनः मृताः । रथा ं वडवा सूते शूरा ा ेषु ये मताः ।। ५३ ।। यके रथ पी वका एक व श अंग होनेसे घोड़ को अव य बताया गया है। ग धवदे शक घोड़ी रथको वहन करनेवाले रथांग व प (व व प) घोड़ेको ज म दे ती है। वे घोड़े सब अ म शूरवीर माने जाते ह ।। ५३ ।। कामवणाः कामजवाः कामतः समुप थताः । इ त ग धवजाः कामं पूर य य त मे हयाः ।। ५४ ।। ग धव-दे शके घोड़ क यह वशेषता है क वे इ छानुसार अपना रंग बदल लेते ह। सवारक इ छाके अनुसार अपने वेगको घटा-बढ़ा सकते ह। जब आव यकता या इ छा हो, तभी वे उप थत हो जाते ह। इस कार मेरे ग धवदे शीय घोड़े आपक इ छापूण करते रहगे ।। ५४ ।। अजुन उवाच य द ीतेन मे द ं संशये जी वत य वा । व ाधनं ुतं वा प न तद् ग धव रोचये ।। ५५ ।। अजुनने कहा—ग धव! य द तुमने स होकर अथवा ाणसंकटसे बचानेके कारण मुझे व ा, धन अथवा शा दान कया है तो म इस तरहका दान लेना पसंद नह करता ।। ५५ ।।

ग धव उवाच संयोगो वै ी तकरो मह सु त यते । जी वत य दानेन ीतो व ां ददा म ते ।। ५६ ।। ो

















ग धव बोला—महापु ष के साथ जो समागम होता है, वह ी तको बढ़ानेवाला होता है—ऐसा दे खनेम आता है। आपने मुझे जीवनदान दया है, इससे स होकर म आपको चा ुषी व ा भट करता ँ ।। ५६ ।। व ोऽ यहं ही या म अ मा नेयमु मम् । तथैव यो यं बीभ सो चराय भरतषभ ।। ५७ ।। साथ ही आपसे भी म उ म आ नेया हण क ँ गा। भरतकुलभूषण अजुन! ऐसा करनेसे ही हम दोन म द घकालतक समु चत सौहाद बना रहेगा ।। ५७ ।। अजुन उवाच व ोऽ ेण वृणो य ान् संयोगः शा तोऽ तु नौ । सखे तद् ू ह ग धव यु म यो यद् भयं भवेत् ।। ५८ ।। अजुनने कहा—ठ क है, म यह अ - व ा दे कर तुमसे घोड़े ले लूँगा। हम दोन क मै ी सदा बनी रहे। सखे ग धवराज! बताओ तो सही, तुमलोग से हम मनु य को य भय ा त होता है? ।। ५८ ।।

कारणं ू ह ग धव क तद् येन म ध षताः । या तो वेद वदः सव स तो रा ावरदमाः ।। ५९ ।। ो











ग धव! हम सब लोग वेदवे ा ह और श ु का दमन करनेक श रखते ह; फर भी रातम या ा करते समय जो तुमने हमलोग पर आ मण कया है, इसका या कारण है? इसपर भी काश डालो ।। ५९ ।।

ग धव उवाच अन नयोऽना तयो न च व पुर कृताः । यूयं ततो ध षताः थ मया वै पा डु न दनाः ।। ६० ।। ग धव बोला—पा डु कुमारो! आपलोग ( ववा हत न होनेके कारण) वध अ नय क सेवा नह करते। (अ ययन पूरा करके समावतन सं कारसे स प हो गये ह, अतः) त दन अ नको आ त भी नह दे ते। आपके आगे कोई ा ण पुरो हत भी नह है। इ ह कारण से मने आपपर आ मण कया है ।। ६० ।। (जानता च मया त मात् तेज ा भजनं च वः । इयं म तमतां े ध षतुं वै कृता म तः ।। को ह व षु लोकेषु न वेद भरतषभ । वैगुणै व तृतं ीमद् यशोऽयं भू रवचसाम् ।।) य रा सग धवाः पशाचोरगदानवाः । व तरं कु वंश य धीम तः कथय त ते ।। ६१ ।। बु मान म े अजुन! इसी लये मने आपलोग के तेज और कुलो चत भावको जानते ए भी आपपर आ मण करनेका वचार कया। भरत े ! आपलोग महान् तेज वी ह। आपने अपने गुण से जस शोभाशाली े यशका व तार कया है, उसे तीन लोक म कौन नह जानता। बु मान् य , रा स, ग धव, पशाच, नाग और दानव कु कुलक यशोगाथाका व तारपूवक वणन करते ह ।। ६१ ।। नारद भृतीनां तु दे वष णां मया ुतम् । गुणान् कथयतां वीर पूवषां तव धीमताम् ।। ६२ ।। वीर! नारद आ द दे व षय के मुखसे भी मने आपके बु मान् पूवज का गुणगान सुना है ।। ६२ ।। वयं चा प मया रता सागरा बराम् । इमां वसुमत कृ नां भावः सुकुल य ते ।। ६३ ।। तथा समु से घरी ई इस स पूण पृ वीपर वचरते ए मने वयं भी आपके उ म कुलका भाव य दे खा है ।। ६३ ।। वेदे धनु ष चाचायम भजाना म तेऽजुन । व ुतं षु लोकेषु भार ाजं यश वनम् ।। ६४ ।। अजुन! तीन लोक म व यात यश वी भर ाजन दन ोणको भी, जो आपके वेद और धनुवदके आचाय रहे ह, म अ छ तरह जानता ँ ।। ६४ ।। धम वायुं च श ं च वजाना य नौ तथा । पा डु ं च कु शा ल षडेतान् कु वधनान् । े



पतॄनेतानहं पाथ दे वमानुषस मान् ।। ६५ ।। कु े ! धम, वायु, इ , दोन अ नीकुमार तथा महाराज पा डु —ये छः महापु ष कु वंशक वृ करनेवाले ह। पाथ! ये दे वता तथा मनु य के सरमौर छह आपलोग के पता ह। म इन सबको जानता ँ ।। ६५ ।। द ा मानो महा मानः सवश भृतां वराः । भव तो ातरः शूराः सव सुच रत ताः ।। ६६ ।। आप सब भाई दे व व प, महा मा, सम त श धा रय म े शूरवीर ह तथा आपलोग ने चय तका भलीभाँ त पालन कया है ।। ६६ ।। उ मां च मनोबु भवतां भा वता मनाम् । जान प च वः पाथ कृतवा नह धषणाम् ।। ६७ ।। आपलोग का अ तःकरण शु है, मन और बु भी उ म है। पाथ! आपके वषयम यह सब कुछ जानते ए भी मने यहाँ आ मण कया था ।। ६७ ।। ीसकाशे च कौर न पुमान् तुमह त । धषणामा मनः प यन् बा वणमा तः ।। ६८ ।। कु न दन! इसका कारण यह है क अपने बा बलका भरोसा रखनेवाला कोई भी पु ष जब ीके समीप अपना तर कार होता दे खता है, तब उसे सहन नह कर पाता ।। ६८ ।। न ं च बलम माकं भूय एवा भवधते । यत ततो मां कौ तेय सदारं म युरा वशत् ।। ६९ ।। कु तीन दन! इसके सवा एक बात यह भी है क रातके समय हमलोग का बल ब त बढ़ जाता है। इसीसे ीके साथ रहनेके कारण मुझम ोधका आवेश हो गया था ।। ६९ ।। सोऽहं वयेह व जतः सं ये ताप यवधन । येन तेनेह व धना क यमानं नबोध मे ।। ७० ।। तपतीके कुलक वृ करनेवाले अजुन! आपने जस कारण यु म मुझे परा जत कया है, उसे (भी) बतलाता ँ; सु नये ।। ७० ।। चय परो धमः स चा प नयत व य । य मात् त मादहं पाथ रणेऽ म व जत वया ।। ७१ ।। चय! सबसे बड़ा धम है और वह तुमम न त पसे व मान है। कु तीन दन! इसी लये यु म म तुमसे हार गया ँ ।। ७१ ।। य तु यात् यः क त् कामवृ ः परंतप । न ं च यु ध यु येत न स जीवेत् कथंचन ।। ७२ ।। श ु को संताप दे नेवाले वीर! य द सरा कोई कामास य रातम मुझसे यु करने आता तो कसी कार जी वत नह बच सकता था ।। ७२ ।। य तु यात् कामवृ ोऽ प पाथ पुर कृतः । जये ं चरान् सवान् स पुरो हतधूगतः ।। ७३ ।। ी ो े ी ोई ी ो े े

कतु कु तीकुमार! कामास होनेपर भी य द कोई पु ष कसी ा णको आगे करके चले तो वह सम त नशाचर पर वजय पा सकता है; य क उस दशाम उसका सारा भार पुरो हतपर होता है ।। ७३ ।। त मात् ताप य य कं च ॄणां ेय इहे सतम् । त मन् कम ण यो ा दा ता मानः पुरो हताः ।। ७४ ।। अतः तपतीन दन! मनु य को इस लोकम जो भी क याणकारी काय करना अभी हो, उसम वह मन और इ य को वशम रखनेवाले पुरो हत को नयु करे ।। ७४ ।। वेदे षड े नरताः शुचयः स यवा दनः । धमा मानः कृता मानः युनृपाणां पुरो हताः ।। ७५ ।। जो छह अंग स हत वेदके वा यायम त पर, ईमानदार, स यवाद , धमा मा और मनको वशम रखनेवाले ह , ऐसे ही ा ण राजा के पुरो हत होने चा हये ।। ७५ ।। जय नयतो रा ः वग तदन तरम् । य य याद् धम वद् वा मी पुरोधाः शीलवान् शु चः ।। ७६ ।। जसके यहाँ धम , व ा, शीलवान् और ईमानदार ा ण पुरो हत हो, उस राजाको इस लोकम न य ही वजय ा त होती है और मरनेके बाद उसे वगलोक मलता है ।। ७६ ।। लाभं लधुमलधं वा लधं वा प रर तुम् । पुरो हतं कुव त राजा गुणसम वतम् ।। ७७ ।। राजाको कसी अ ा त व तु या धनको ा त करने अथवा उपल ध धन आ दक र ा करनेके लये गुणवान् ा णको पुरो हत बनाना चा हये ।। ७७ ।। पुरो हतमते त ेद ् य इ छे द ् भू तमा मनः । ा तुं वसुमत सवा सवशः सागरा बराम् ।। ७८ ।। जो समु से घरी ई स पूण पृ वीपर अपना अ धकार चाहे या अपने लये ऐ य पाना चाहे, उसे पुरो हतक आ ाके अधीन रहना चा हये ।। ७८ ।। न ह केवलशौयण ताप या भजनेन च । जयेद ा णः क द् भूम भू मप तः व चत् ।। ७९ ।। तपतीन दन! कोई भी राजा कह भी पुरो हतक सहायताके बना केवल अपने बल अथवा कुलीनताके भरोसे भू मपर वजय नह पाता ।। ७९ ।। त मादे वं वजानी ह कु णां वंशवधन । ा ण मुखं रा यं श यं पाल यतुं चरम् ।। ८० ।। अतः कौरव के कुलक वृ करनेवाले अजुन! आप यह जान ल क जहाँ व ान् ा ण क धानता हो, उसी रा यक द घकालतक र ा क जा सकती है ।। ८० ।। इत



ीमहाभारते आ दपव ण चै रथपव ण ग धवपराभवे एकोनस त य धकशततमोऽ यायः ।। १६९ ।।







इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत चै रथपवम ग धवपराभव वषयक एक सौ उनह रवाँ अ याय पूरा आ ।। १६९ ।। (दा णा य अ धक पाठक े २ ोक मलाकर कुल ८२ ोक ह)

स त य धकशततमोऽ यायः सूयक या तपतीको दे खकर राजा संवरणका मो हत होना अजुन उवाच ताप य इ त यद् वा यमु वान स मा मह । तदहं ातु म छा म ताप याथ व न तम् ।। १ ।। अजुनने कहा—ग धव! तुमने ‘तपतीन दन’ कहकर जो बात यहाँ मुझसे कही है, उसके स ब धम म यह जानना चाहता ँ क ताप यका न त अथ या है? ।। १ ।। तपती नाम का चैषा ताप या य कृते वयम् । कौ तेया ह वयं साधो त व म छा म वे दतुम् ।। २ ।। साधु वभाव ग धवराज! यह तपती कौन है, जसके कारण हमलोग ताप य कहलाते ह? हम तो अपनेको कु तीका पु समझते ह। अतः ‘ताप य’ का यथाथ रह य या है, यह जाननेक मुझे बड़ी इ छा हो रही है ।। २ ।। वैश पायन उवाच एवमु ः स ग धवः कु तीपु ं धनंजयम् । व ुतां षु लोकेषु ावयामास वै कथाम् ।। ३ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! उनके य कहनेपर ग धवने कु तीन दन धनंजयको वह कथा सुनानी ार भ क , जो तीन लोक म व यात है ।। ३ ।। ग धव उवाच ह त ते कथ य या म कथामेतां मनोरमाम् । यथावदखलां पाथ सवबु मतां वर ।। ४ ।। ग धव बोला—सम त बु मान म े कु तीकुमार! इस वषयम एक ब त मनोरम कथा है, जसे म यथाथ एवं पूण पसे आपको सुनाऊँगा ।। ४ ।। उ वान म येन वां ताप य इ त यद् वचः । तत् तेऽहं कथ य या म शृणु वैकमना भव ।। ५ ।। मने जस कारण अपने व म तु ह ‘ताप य’ कहा है, वह बता रहा ँ, एका च होकर सुनो ।। ५ ।। य एष द व ध येन नाकं ा ो त तेजसा । एत य तपती नाम बभूव स शी सुता ।। ६ ।। वव वतो वै दे व य सा वयवरजा वभो । व ुता षु लोकेषु तपती तपसा युता ।। ७ ।। ये जो आकाशम उ दत हो अपने तेजोम डलके ारा यहाँसे वगलोकतक ा त हो रहे ह, इ ह भगवान् सूयदे वके तपती नामक एक पु ी ई, जो पताके अनु प ही थी। ो

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भो! वह सा व ीदे वीक छोट ब हन थी। वह तप याम संल न रहनेके कारण तीन लोक म तपती नामसे व यात ई ।। ६-७ ।। न दे वी नासुरी चैव न य ी न च रा सी । ना सरा न च ग धव तथा पेण काचन ।। ८ ।। उस समय दे वता, असुर, य एवं रा स जा तक ी, कोई अ सरा तथा गधवप नी भी उसके समान पवती न थी ।। ८ ।। सु वभ ानव ा व सतायतलोचना । वाचारा चैव सा वी च सुवेषा चैव भा मनी ।। ९ ।। न त याः स शं कं चत् षु लोकेषु भारत । भतारं स वता मेने पशीलगुण ुतैः ।। १० ।। उसके शरीरका एक-एक अवयव ब त सु दर, सु वभ और नद ष था। उसक आँख बड़ी-बड़ी और कजरारी थ । वह सु दरी सदाचार, साधु- वभाव और मनोहर वेशसे सुशो भत थी। भारत! भगवान् सूयने तीन लोक म कसी भी पु षको ऐसा नह पाया, जो प, शील, गुण और शा ानक से उसका प त होनेयो य हो ।। ९-१० ।। स ा तयौवनां प यन् दे यां हतरं तु ताम् । नोपलेभे ततः शा तं स दानं व च तयन् ।। ११ ।। वह युवाव थाको ा त हो गयी। अब उसका कसीके साथ ववाह कर दे ना आव यक था। उसे उस अव थाम दे खकर भगवान् सूय इस च ताम पड़े क इसका ववाह कसके साथ कया जाय। यही सोचकर उ ह शा त नह मलती थी ।। ११ ।। अथ पु ः कौ तेय कु णामृषभो बली । सूयमाराधयामास नृपः संवरण तदा ।। १२ ।। कु तीन दन! उ ह दन महाराज ऋ के पु राजा संवरण कु कुलके े एवं बलवान् पु ष थे। उ ह ने भगवान् सूयक आराधना ार भ क ।। १२ ।। अ यमा योपहारा ैग धै नयतः शु चः । नयमै पवासै तपो भ व वधैर प ।। १३ ।। शु ूषुरनहंवाद शु चः पौरवन दन । अंशुम तं समु तं पूजयामास भ मान् ।। १४ ।। पौरवन दन! वे मन और इ य को संयमम रखकर प व हो अ य, पु प, ग ध एवं नैवे आ द साम य से तथा भाँ त-भाँ तके नयम, त एवं तप या ारा बड़े भ भावसे उदय होते ए सूयक पूजा करते थे। उनके दयम सेवाका भाव था। वे शु तथा अहंकारशू य थे ।। १३-१४ ।। ततः कृत ं धम ं पेणास शं भु व । तप याः स शं मेने सूयः संवरणं प तम् ।। १५ ।। पम इस पृ वीपर उनके समान सरा कोई पु ष नह था। वे कृत और धम थे। अतः सूयदे वने राजा संवरणको ही तपतीके यो य प त माना ।। १५ ।। दातुमै छत् ततः क यां त मै संवरणाय ताम् । ो ौ

नृपो माय कौर व ुता भजनाय च ।। १६ ।। कु न दन! उ ह ने नृप े संवरणको, जनका उ म कुल स पूण व म व यात था, अपनी क या दे नेक इ छा क ।। १६ ।। यथा ह द व द तांशुः भासय त तेजसा । तथा भु व महीपालो द या संवरणोऽभवत् ।। १७ ।। जैसे आकाशम उ त करण वाले सूयदे व अपने तेजसे का शत होते ह, उसी कार पृ वीपर राजा संवरण अपनी द का तसे का शत थे ।। १७ ।। यथाचय त चा द यमु तं वा दनः । तथा संवरणं पाथ ा णावरजाः जाः ।। १८ ।। पाथ! जैसे वाद मह ष उगते ए सूयक आराधना करते ह, उसी कार य, वै य आ द जाएँ महाराज संवरणक उपासना करती थ ।। १८ ।। स सोमम त का त वादा द यम त तेजसा । बभूव नृप तः ीमान् सु दां दाम प ।। १९ ।। वे अपनी कमनीय का तसे च माको और तेजसे सूयदे वको भी तर कृत करते थे। राजा संवरण म तथा श ु क म डलीम भी अपनी द शोभासे का शत होते थे ।। १९ ।। एवंगुण य नृपते तथावृ य कौरव । त मै दातुं मन े तपत तपनः वयम् ।। २० ।। कु न दन! ऐसे उ म गुण से वभू षत तथा े आचार- वहारसे यु राजा संवरणको भगवान् सूयने वयं ही अपनी पु ी तपतीको दे नेका न य कर लया ।। २० ।। स कदा चदथो राजा ीमान मत व मः । चचार मृगयां पाथ पवतोपवने कल ।। २१ ।। कु तीन दन! एक दन अ मतपरा मी ीमान् राजा संवरण पवतके समीपवत उपवनम हसक पशु का शकार कर रहे थे ।। २१ ।। चरतो मृगयां त य ु पपासासम वतः । ममार रा ः कौ तेय गराव तमो हयः ।। २२ ।। स मृता रन् पाथ पद् यामेव गरौ नृपः । ददशास श लोके क यामायतलोचनाम् ।। २३ ।। कु तीपु ! शकार खेलते समय ही राजाका अनुपम अ पवतपर भूख- याससे पी ड़त हो मर गया। पाथ! घोड़ेक मृ यु हो जानेसे राजा संवरण पैदल ही उस पवतशखरपर वचरने लगे। घूमते-घूमते उ ह ने एक वशाललोचना क या दे खी, जसक समता करनेवाली ी कह नह थी ।। २२-२३ ।। स एक एकामासा क यां परबलादनः । त थौ नृप तशा लः प य वचले णः ।। २४ ।। श ु क सेनाका संहार करनेवाले नृप े संवरण अकेले थे और वह क या भी अकेली ही थी। उसके पास प ँचकर राजा एकटक ने से उसक ओर दे खते ए खड़े रह े

गये ।। २४ ।। स ह तां तकयामास पतो नृप तः यम् । पुनः संतकयामास रवे ा मव भाम् ।। २५ ।। पहले तो उसका प दे खकर नरेशने अनुमान कया क हो-न-हो ये सा ात् ल मी ह; फर उनके यानम यह बात आयी क स भव है, भगवान् सूयक भा ही सूयम डलसे युत होकर इस क याके पम आकाशसे पृ वीपर आ गयी हो ।। २५ ।। वपुषा वचसा चैव शखा मव वभावसोः । स वेन का या च च रेखा मवामलाम् ।। २६ ।। शरीर और तेजसे वह आगक वाला-सी जान पड़ती थी। उसक स ता और कमनीय का तसे ऐसा तीत होता था, मानो वह नमल च कला हो ।। २६ ।। ग रपृ े तु सा य मन् थता व सतलोचना । व ाजमाना शुशुभे तमेव हर मयी ।। २७ ।। सु दर कजरारे ने वाली वह द क या जस पवत- शखरपर खड़ी थी, वहाँ वह सोनेक दमकती ई तमा-सी सुशो भत हो रही थी ।। २७ ।। त या पेण स ग रवषेण च वशेषतः । स सवृ ुपलतो हर मय इवाभवत् ।। २८ ।। वशेषतः उसके प और वेशसे वभू षत हो वृ , गु म और लता स हत वह पवत सुवणमय-सा जान पड़ता था ।। २८ ।। अवमेने च तां ् वा सवलोकेषु यो षतः । अवा तं चा मनो मेने स राजा च ुषः फलम् ।। २९ ।। उसे दे खकर राजा संवरणक सम त लोक क सु दरी युव तय म अनादर-बु हो गयी। राजा यह मानने लगे क आज मुझे अपने ने का फल मल गया ।। २९ ।। ज म भृ त यत् क चद् वान् स महीप तः । पं न स शं त या तकयामास कचन ।। ३० ।। भूपाल संवरणने ज मसे लेकर (उस दनतक) जो कुछ दे खा था, उसम कोई भी प उ ह उस ( द कशोरी)-के स श नह तीत आ ।। ३० ।। तया ब मन ुः पाशैगुणमयै तदा । न चचाल ततो दे शाद् बुबुधे न च कचन ।। ३१ ।। उस क याने उस समय अपने उ म गुणमय पाश से राजाके मन और ने को बाँध लया। वे अपने थानसे हल-डु लतक न सके। उ ह कसी बातक सुध-बुध (भी) न रही ।। ३१ ।। अ या नूनं वशाला याः सदे वासुरमानुषम् । लोकं नमय धा ेद ं पमा व कृतं कृतम् ।। ३२ ।। वे सोचने लगे, न य ही ाने दे वता, असुर और मनु य स हत स पूण लोक के सौ दय- स धुको मथकर इस वशाल ने वाली कशोरीके इस मनोहर पका आ व कार कया होगा ।। ३२ ।।

एवं संतकयामास प वणस पदा । क यामस श लोके नृपः संवरण तदा ।। ३३ ।। इस कार उस समय उसक प-स प से राजा संवरणने यही अनुमान कया क संसारम इस द क याक समता करनेवाली सरी कोई ी नह है ।। ३३ ।। तां च ् वैव क याण क याणा भजनो नृपः । जगाम मनसा च तां कामबाणेन पी डतः ।। ३४ ।। क याणमय कुलम उ प ए वे नरेश उस क याण व पा का मनीको दे खते ही काम-बाणसे पी ड़त हो गये। उनके मनम च ताक आग जल उठ ।। ३४ ।। द मानः स ती ेण नृप तम मथा नना । अ ग भां ग भ तां तदोवाच मनोहराम् ।। ३५ ।। तदन तर ती कामा नसे जलते ए राजा संवरणने ल जार हत होकर उस ल जाशीला एवं मनोहा रणी क यासे इस कार पूछा— ।। ३५ ।। का स क या स र भो कमथ चेह त स । कथं च नजनेऽर ये चर येका शु च मते ।। ३६ ।। ‘र भो ! तुम कौन हो? कसक पु ी हो? और कस लये यहाँ खड़ी हो? प व मुसकानवाली! तुम इस नजन वनम अकेली कैसे वचर रही हो? ।। ३६ ।। वं ह सवानव ा सवाभरणभू षता । वभूषण मवैतेषां भूषणानामभी सतम् ।। ३७ ।। ‘तु हारे सभी अंग परम सु दर एवं नद ष ह। तुम सब कारके ( द ) आभूषण से वभू षत हो। सु द र! इन आभूषण से तु हारी शोभा नह है, अ पतु तुम वयं ही इन आभूषण क शोभा बढ़ानेवाली अभी आभूषणके समान हो ।। ३७ ।। न दे व नासुर चैव न य न च रा सीम् । न च भोगवत म ये न ग धव न मानुषीम् ।। ३८ ।। ‘मुझे तो ऐसा जान पड़ता है, तुम न तो दे वांगना हो न असुरक या, न य कुलक ी हो न रा सवंशक , न नागक या हो न ग धवक या। म तु ह मानवी भी नह मानता ।। ३८ ।। या ह ा मया का छता वा प वरा नाः । न तासां स श म ये वामहं म का श न ।। ३९ ।। ‘यौवनके मदसे सुशो भत होनेवाली सु दरी! मने अबतक जो कोई भी सु दरी याँ दे खी अथवा सुनी ह, उनमसे कसीको भी म तु हारे समान नह मानता ।। ३९ ।। ् वैव चा वदने च ात् का ततरं तव । वदनं पप ा ं मां मनातीव म मथः ।। ४० ।। ‘सुमुख! जबसे मने च मासे भी बढ़कर कमनीय एवं कमलदलके समान वशाल ने से यु तु हारे मुखका दशन कया है, तभीसे म मथ मुझे मथ-सा रहा है’ ।। ४० ।। एवं तां स महीपालो बभाषे न तु सा तदा । कामात नजनेऽर ये यभाषत कचन ।। ४१ ।। ी े े े

इस कार राजा संवरण उस सु दरीसे ब त कुछ कह गये; परंतु उसने उस समय उस नजन वनम उन कामपी ड़त नरेशको कुछ भी उ र नह दया ।। ४१ ।। ततो लाल यमान य पा थव यायते णा । सौदा मनीव चा ेषु त ैवा तरधीयत ।। ४२ ।। राजा संवरण उ म क भाँ त लाप करते रह गये और वह वशाल ने वाली सु दरी वह उनके सामने ही बादल म बजलीक भाँ त अ तधान हो गयी ।। ४२ ।। ताम वे ु ं स नृप तः प रच ाम सवतः । वनं वनजप ा म ु म वत् तदा ।। ४३ ।। तब वे नरेश कमलदलके समान वशाल ने वाली उस ( द ) क याको ढूँ ढ़नेके लये वनम सब ओर उ म क भाँ त मण करने लगे ।। ४३ ।। अप यमानः स तु तां ब त वल य च । न े ः पा थव े ो मुत स त त ।। ४४ ।। जब कह भी उसे दे ख न सके, तब वे नृप े वहाँ ब त वलाप करते-करते मू छत हो दो घड़ीतक न े पड़े रहे ।। ४४ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण चै रथपव ण तप युपा याने स त य धकशततमोऽ यायः ।। १७० ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत चै रथपवम तपती-उपा यान वषयक एक सौ स रवाँ अ याय पूरा आ ।। १७० ।।

एकस त य धकशततमोऽ यायः तपती और संवरणक बातचीत ग धव उवाच अथ त याम यायां नृप तः काममो हतः । पातनः श ुसङ् घानां पपात धरणीतले ।। १ ।। ग धव कहता है—अजुन! जब तपती अ य हो गयी, तब काममो हत राजा संवरण, जो श ुसमुदायको मार गरानेवाले थे, वयं ही बेहोश होकर धरतीपर गर पड़े ।। १ ।। त मन् नप तते भूमावथ सा चा हा सनी । पुनः पीनायत ोणी दशयामास तं नृपम् ।। २ ।। जब वे इस कार मू छत होकर पृ वीपर गर पड़े, तब थूल एवं वशाल ोणी दे शवाली तपतीने म द-म द मुसकराते ए अपनेको राजा संवरणके सामने कट कर दया ।। २ ।। अथाबभाषे क याणी वाचा मधुरया नृपम् । तं कु णां कुलकरं कामा भहतचेतसम् ।। ३ ।। उवाच मधुरं वा यं तपती हस व । उ ो भ ं ते न वमह यरदम ।। ४ ।। मोहं नृप तशा ल ग तुमा व कृतः तौ । एवमु ोऽथ नृप तवाचा मधुरया तदा ।। ५ ।। ददश वपुल ोण तामेवा भमुखे थताम् । अथ ताम सतापा माबभाषे स पा थवः ।। ६ ।। म मथा नपरीता मा सं द धा रया गरा । साधु वम सतापा कामात म का श न ।। ७ ।। भज व भजमानं मां ाणा ह जह त माम् । वदथ ह वशाला मामयं न शतैः शरैः ।। ८ ।। कामः कमलगभाभे त व यन् न शा य त । द मेवमना दे भ े काममहा हना ।। ९ ।। कु वंशका व तार करनेवाले राजा संवरण कामा नसे पी ड़त हो अचेत हो गये थे। उस समय जैसे कोई हँसकर मधुर वचन बोलता हो, उसी कार क याणी तपती मीठ वाणीम उन नरेशसे बोली—‘श ुदमन! उ ठये, उ ठये; आपका क याण हो। राज सह! आप इस भूतलके व यात साट ् ह। आपको इस कार मोहके वशीभूत नह होना चा हये।’ तपतीने जब मधुर वाणीम इस कार कहा, तब राजा संवरणने आँख खोलकर दे खा। वही वशाल नत ब वाली सु दरी सामने खड़ी थी। राजाके अ तःकरणम कामज नत आग जल रही थी। वे उस कजरारे ने वाली सु दरीसे लड़खड़ाती वाणीम बोले ‘













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—‘ यामलोचने! तुम आ गय , अ छा आ। यौवनके मदसे सुशो भत होनेवाली सु दरी! म कामसे पी ड़त तु हारा सेवक ँ। तुम मुझे वीकार करो, अ यथा मेरे ाण मुझे छोड़कर चले जायँगे। वशाला ! कमलके भीतरी भागक -सी का तवाली सु द र! तु हारे लये कामदे व मुझे अपने तीखे बाण ारा बार-बार घायल कर रहा है। यह (एक णके लये भी) शा त नह होता। भ े ! ऐसे समयम जब मेरा कोई भी र क नह है, मुझे काम पी महासपने डस लया है ।। ३-९ ।। सा वं पीनायत ो ण मामा ु ह वरानने । वदधीना ह मे ाणाः क रोद्गीतभा ष ण ।। १० ।। ‘ थूल एवं वशाल नत ब वाली वरानने! मेरे समीप आओ। क र क -सी मीठ बोली बोलनेवाली! मेरे ाण तु हारे ही अधीन ह ।। १० ।। चा सवानव ा पे तमानने । न हं व ते भी श या म खलु जी वतुम् ।। ११ ।। ‘भी ! तु हारे सभी अंग मनोहर तथा अ न सौ दयसे सुशो भत ह। तु हारा मुख कमल और च माके समान सुशो भत होता है। म तु हारे बना जी वत नह रह सकूँगा ।। ११ ।। कामः कमलप ा त व य त मामयम् । त मात् कु वशाला म यनु ोशम ने ।। १२ ।। ‘कमलदलके समान सु दर ने वाली सु द र! यह कामदे व मुझे (अपने बाण से) घायल कर रहा है; वशाललोचने! इस लये तुम मुझपर दया करो ।। १२ ।। भ ं माम सतापा न प र य ु मह स । वं ह मां ी तयोगेन ातुमह स भा व न ।। १३ ।। ‘कजरारे ने वाली भा म न! म तु हारा भ ँ। तुम मेरा प र याग न करो। तु ह तो ेमपूवक मेरी र ा करनी चा हये ।। १३ ।। व शनकृत नेहं मन ल त मे भृशम् । न वां ् वा पुन ा यां ु ं क या ण रोचते ।। १४ ।। ‘मेरा मन तु हारे दशनके साथ ही तुमसे अनुर हो गया है। इस लये वह अ य त चंचल हो उठा है। क या ण! तु ह दे ख लेनेके बाद फर सरी ीक ओर दे खनेक च मुझे नह रह गयी है ।। १४ ।। सीद वशगोऽहं ते भ ं मां भज भा व न । ् वैव वां वरारोहे म मथो भृशम ने ।। १५ ।। अ तगतं वशाला व य त म पत भः । म मथा नसमु तं दाहं कमललोचने ।। १६ ।। ी तसंयोगयु ा भर ः ादय व मे । पु पायुधं राधष च डशरकामुकम् ।। १७ ।। व शनसमु तं व य तं सहैः शरैः । उपशामय क या ण आ मदानेन भा व न ।। १८ ।। ‘ े ी ँ ो ओ े ो

‘म सवथा तु हारे अधीन ँ, मुझपर स हो जाओ। महानुभावे! मुझ भ को अंगीकार करो। वरारोहे! वशाल ने वाली अंगने! जबसे मने तु ह दे खा है, तभीसे कामदे व मेरे अ तःकरणको अपने बाण ारा घायल कर रहा है। कमललोचने! तुम ेमपूवक समागमके जलसे मेरे कामा नज नत दाहको बुझाकर मुझे आ ाद दान करो। क या ण! तु हारे दशनसे उ प आ कामदे व फूल के आयुध लेकर भी अ य त धष हो रहा है। उसके धनुष और बाण दोन ही बड़े च ड ह। वह अपने सह बाण से मुझे ब ध रहा है। महानुभावे! तुम आ मदान दे कर मेरे उस कामको शा त करो ।। १५—१८ ।। गा धवण ववाहेन मामुपे ह वरा ने । ववाहानां ह र भो गा धवः े उ यते ।। १९ ।। ‘वरांगने! गा धव ववाह ारा तुम मुझे ा त होओ। सब ववाह म गा धव ववाह ही े बतलाया जाता है’ ।। १९ ।। तप युवाच नाहमीशाऽऽ मनो राजन् क या पतृमती हम् । म य चेद त ते ी तयाच व पतरं मम ।। २० ।। तपतीने कहा—राजन्! म ऐसी क या ँ, जसके पता व मान ह; अतः अपने इस शरीरपर मेरा कोई अ धकार नह है। य द आपका मुझपर ेम है तो मेरे पताजीसे मुझे माँग ली जये ।। २० ।। यथा ह ते मया ाणाः संगृहीता नरे र । दशनादे व भूय वं तथा ाणान् ममाहरः ।। २१ ।। नरे र! जैसे आपके ाण मेरे अधीन ह, उसी कार आपने भी दशनमा से ही मेरे ाण को हर लया है ।। २१ ।। न चाहमीशा दे ह य त मा ृप तस म । समीपं नोपग छा म न वत ा ह यो षतः ।। २२ ।। का ह सवषु लोकेषु व ुता भजनं नृपम् । क या ना भलषे ाथं भतारं भ व सलम् ।। २३ ।। नृप े ! म अपने शरीरक वा मनी नह ँ, इस लये आपके समीप नह आ सकती; कारण क याँ कभी वत नह होत । आपका कुल स पूण लोक म व यात है। आप-जैसे भ व सल नरेशको कौन क या अपना प त बनानेक इ छा नह करेगी? ।। २२-२३ ।। त मादे वं गते काले याच व पतरं मम । आ द यं णपातेन तपसा नयमेन च ।। २४ ।। ऐसी दशाम आप यथासमय नम कार, तप या और नयमके ारा मेरे पता भगवान् सूयको स करके उनसे मुझे माँग ली जये ।। २४ ।। स चेत् कामयते दातुं तव माम रसूदन । भ व या य ते राजन् सततं वशव तनी ।। २५ ।। े









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श ुसूदन नरेश! य द वे मुझे आपक सेवाम दे ना चाहगे तो म आजसे सदा आपक आ ाके अधीन र ँगी ।। २५ ।। अहं ह तपती नाम सा वयवरजा सुता । अ य लोक द प य स वतुः यषभ ।। २६ ।। य शरोमणे! म इ ह अखलभुवनभा कर भगवान् स वताक पु ी और सा व ीक छोट ब हन ँ। मेरा नाम तपती है ।। २६ ।।

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ीमहाभारते आ दपव ण चै रथपव ण तप युपा याने एकस त य धकशततमोऽ यायः ।। १७१ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत चै रथपवम तपती-उपा यान वषयक एक सौ इकह रवाँ अ याय पूरा आ ।। १७१ ।।

स त य धकशततमोऽ यायः व स जीक सहायतासे राजा संवरणको तपतीक

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ग धव उवाच एवमु वा तत तूण जगामो वम न दता । स तु राजा पुनभूमौ त ैव नपपात ह ।। १ ।। ग धव कहता है—अजुन! य कहकर वह अ न सु दरी तपती त काल ऊपर (आकाशम) चली गयी और वे राजा संवरण फर वह (मू छत हो) पृ वीपर गर पड़े ।। १ ।। अ वेषमाणः सबल तं राजानं नृपो मम् । अमा यः सानुया तं ददश महावने ।। २ ।। इधर उनके म ी सेना और अनुचर को साथ लये उन े नरेशको खोजते ए आ रहे थे। उस महान् वनम प ँचकर म ीने राजाको दे खा ।। २ ।। तौ नप ततं काले श वज मवो तम् । तं ह ् वा महे वासं नर तं प ततं भु व ।। ३ ।। बभूव सोऽ य स चवः स द त इवा नना । वरया चोपसंग य नेहादागतस मः ।। ४ ।। वे समय पाकर गरे ए ऊँचे इ वजक भाँ त पृ वीपर पड़े थे। तपतीसे वमु उन महान् धनुधर महाराजको इस कार पृ वीपर पड़ा दे ख राजम ी ऐसे ाकुल हो उठे मानो उनके शरीरम आग लग गयी हो। वे तुरंत उनके पास जा प ँचे। नेहवश उनके दयम घबराहट पैदा हो गयी थी ।। ३-४ ।। तं समु थापयामास नृप त काममो हतम् । भूतलाद् भू मपालेशं पतेव प ततं सुतम् ।। ५ ।। या वयसा चैव वृ ः क या नयेन च । अमा य तं समु था य बभूव वगत वरः ।। ६ ।। राजम ी अव थाम तो बड़े-बूढ़े थे ही, बु , क त और नी तम भी बढ़े -चढ़े थे। उ ह ने जैसे पता अपने गरे ए पु को धरतीसे उठा ले, उसी कार कामवेदनासे मू छत ए भू मपाल के भी वामी महाराज संवरणको शी तापूवक पृ वीपरसे उठा लया। राजाको उठाकर और उ ह जी वत पाकर उनक च ता र हो गयी ।। ५-६ ।। उवाच चैनं क या या वाचा मधुरयो थतम् । मा भैमनुजशा ल भ म तु तवानघ ।। ७ ।। वे उठकर बैठे ए महाराजसे क याणमयी मधुर वाणीम बोले—‘नर े ! आप डर नह । अनघ! आपका क याण हो’ ।। ७ ।। ु पपासाप र ा तं तकयामास वै नृपम् । े





प ततं पातनं सं ये शा वाणां महीतले ।। ८ ।। यु म श ुदलको पृ वीपर गरा दे नेवाले नरेशको भू मपर गरा दे ख म ीने यह अनुमान लगाया क ये भूख- याससे पी ड़त एवं थके-माँदे ह ।। ८ ।। वा रणा च सुशीतेन शर त या यषेचयत् । अ फुट मुकुटं रा ः पु डरीकसुग धना ।। ९ ।। गरनेपर राजाका मुकुट छ - भ नह आ था (इससे अनुमान होता था क राजा यु म घायल नह ए ह)। म ीने राजाके म तकको कमलक सुग धसे यु ठं डे जलसे स चा ।। ९ ।। ततः यागत ाण तद् बलं बलवान् नृपः । सव वसजयामास तमेकं स चवं वना ।। १० ।। उससे राजाको चेत हो आया। बलवान् नरेशने एकमा अपने म ीके सवा सारी सेनाको लौटा दया ।। १० ।। तत त या या रा ो व त थे महद् बलम् । स तु राजा ग र थे त मन् पुन पा वशत् ।। ११ ।। महाराजक आ ासे तुरंत वह वशाल सेना राजधानीक ओर चल द ; परंतु वे राजा संवरण फर उसी पवत- शखरपर जा बैठे ।। ११ ।। तत त मन् ग रवरे शु चभू वा कृता लः । आ रराध यषुः सूय त थावू वमुखः तौ ।। १२ ।। तदन तर उस े पवतपर नाना दसे प व हो भगवान् सूयक आराधना करनेके लये हाथ जोड़ ऊपरक ओर मुँह कये वे भू मपर खड़े हो गये ।। १२ ।। जगाम मनसा चैव व स मृ षस मम् । पुरो हतम म न तदा संवरणो नृपः ।। १३ ।। उस समय श ु का नाश करनेवाले राजा संवरणने अपने पुरो हत मु नवर व स का मन-ही-मन मरण कया ।। १३ ।। न ं दनमथैक थते त म ना धपे । अथाजगाम व ष तदा ादशमेऽह न ।। १४ ।। वे रात- दन एक ही जगह खड़े होकर तप याम लगे रहे। तब बारहव दन मह ष व स का (वहाँ) शुभागमन आ ।। १४ ।। स व द वैव नृप त तप या तमानसम् । द ेन व धना ा वा भा वता मा महानृ षः ।। १५ ।। वशु अ तःकरणवाले मह ष व स द ानसे पहले ही जान गये क सूयक या तपतीने राजाका च चुरा लया है ।। १५ ।। तथा तु नयता मानं तं नृपं मु नस मः । आबभाषे स धमा मा त यैवाथ चक षया ।। १६ ।। इस कार मन और इ य को संयमम रखकर तप याम लगे ए उ नरेशसे धमा मा मु नवर व स ने उ ह क काय स के लये कुछ बातचीत क ।। १६ ।। े ो

स त य मनुजे य प यतो भगवानृ षः । ऊ वमाच मे ु ं भा करं भा कर ु तः ।। १७ ।। उ महाराजके दे खते-दे खते सूयके समान तेज वी भगवान् व स मु न सूयदे वसे मलनेके लये ऊपरको गये ।। १७ ।। सह ांशुं ततो व ः कृता ल प थतः । व स ोऽह म त ी या स चा मानं यवेदयत् ।। १८ ।। ष व स दोन हाथ जोड़कर सह करण से सुशो भत भगवान् सूयदे वके समीप गये और ‘म व स ँ’ य कहकर उ ह ने बड़ी स तासे अपना समाचार नवे दत कया ।। १८ ।। (व स उवाच अजाय लोक यपावनाय भूता मने गोपतये वृषाय । सूयाय सग लयालयाय नमो महाका णको माय ।। वव वते ानभृद तरा मने जग द पाय जग तै षणे । वय भुवे द तसह च ुषे सुरो माया मततेजसे नमः ।। नमः स व े जगदे कच ुषे जग सू त थ तनाशहेतवे । यीमयाय गुणा मधा रणे व र चनारायणशङ् करा मने ।।) फर व स जी बोले—जो अज मा, तीन लोक को प व करनेवाले, सम त ा णय के अ तयामी, करण के अ धप त, धम व प, सृ और लयके अ ध ान तथा परम दयालु दे वता म सव े ह, उन भगवान् सूयको नम कार है। जो ा नय के अ तरा मा, जगत्को का शत करनेवाले, संसारके हतैषी, वय भू तथा सह उ त ने से सुशो भत ह, उन अ मततेज वी सुर े भगवन् सूयको नम कार है। जो जगत्के एकमा ने ह, संसारक सृ , पालन और संहारके हेतु ह, तीन वेद जनके व प ह, जो गुणा मक व प धारण करके ा, व णु और शव नामसे स ह, उन भगवान् स वताको नम कार है। तमुवाच महातेजा वव वान् मु नस मम् । महष वागतं तेऽ तु कथय व यथे सतम् ।। १९ ।। तब महातेज वी भगवान् सूयने मु नवर व स से कहा—‘महष! तु हारा वागत है! तु हारी जो अ भलाषा हो, उसे कहो ।। १९ ।। य द छ स महाभाग म ः वदतां वर । े



तत् ते द ाम भ ेतं य प यात् सु करम् ।। २० ।। ‘व ा म े महाभाग! तुम मुझसे जो कुछ चाहते हो, तु हारी वह अभी व तु कतनी ही लभ य न हो, तु ह अव य ँ गा ।। २० ।। ( तुतोऽ म वरद तेऽहं वरं वरय सु त । तु त वयो ा भ ानां ज येयं वरदोऽ यहम् ।।) ‘उ म तका पालन करनेवाले महष! तुमने जो मेरा तवन कया है, इसके लये म तु ह वर दे नेको उ त ँ, कोई वर माँगो। तु हारे ारा कही ई वह तु त भ के लये नर तर जप करनेयो य है। म तु ह वर दे ना चाहता ँ’। एवमु ः स तेन षव स ः यभाषत । णप य वव व तं भानुम तं महातपाः ।। २१ ।। उनके य कहनेपर महातप वी मु नवर व स मरी च-माली भगवान् भा करको णाम करके इस कार बोले ।। २१ ।। व स उवाच यैषा ते तपती नाम सा वयवरजा सुता । तां वां संवरण याथ वरया म वभावसो ।। २२ ।। व स जीने कहा— वभावसो! यह जो आपक तपती नामक पु ी एवं सा व ीक छोट ब हन है, इसे म आपसे राजा संवरणके लये माँगता ँ ।। २२ ।। स ह राजा बृह क तधमाथ व दारधीः । यु ः संवरणो भता हतु ते वहंगम ।। २३ ।। उस राजाक क त ब त रतक फैली ई है। वे धम और अथके ाता तथा उदार बु वाले ह; अतः आकाशचारी सूयदे व! महाराज संवरण आपक पु ीके लये सुयो य प त ह गे ।। २३ ।। इ यु ः स तदा तेन ददानी येव न तः । यभाषत तं व ं तन दवाकरः ।। २४ ।। व स जीके य कहनेपर अपनी क या दे नेका न य करके भगवान् सूयने षका अ भन दन कया और इस कार कहा— ।। २४ ।। वरः संवरणो रा ां वमृषीणां वरो मुने । तपती यो षतां े ा कम यदपवजनात् ।। २५ ।। ‘मुने! संवरण राजा म े ह, आप मह षय म उ म ह और तपती युव तय म सव े है; अतः उसके दानसे े और या हो सकता है’ ।। २५ ।। ततः सवानव ा तपत तपनः वयम् । ददौ संवरण याथ व स ाय महा मने ।। २६ ।। तदन तर सा ात् भगवान् सूयने अ न सु दरी तपतीको राजा संवरणक प नी होनेके लये महा मा व स को अ पत कर दया ।। २६ ।। तज ाह तां क यां मह ष तपत तदा । ो



व स ोऽथ वसृ तु पुनरेवाजगाम ह ।। २७ ।। य व यातक तः स कु णामृषभोऽभवत् । स राजा म मथा व तद्गतेना तरा मना ।। २८ ।। ष व स ने उस क याको हण कया और वहाँसे वदा होकर वे तपतीके साथ पुनः उस थानपर आये, जहाँ व यातक त, कु वं शय म े राजा संवरण कामके वशीभूत हो मन-ही-मन तपतीका च तन करते ए बैठे थे ।। २७-२८ ।। ् वा च दे वक यां तां तपत चा हा सनीम् । व स ेन सहाया त सं ोऽ य धकं बभौ ।। २९ ।। मनोहर मुसकानवाली दे वक या तपतीको व स जीके साथ आती दे ख राजा संवरण अ य त हष लाससे यु हो अ धक शोभा पाने लगे ।। २९ ।।

चे सा धकं सु ूरापत ती नभ तलात् । सौदा मनीव व ा ोतय ती दश वषा ।। ३० ।। सु दर भ ह वाली तपती आकाशसे पृ वीपर आते समय गरी ई बजलीके समान स पूण दशा को अपनी भासे का शत करती ई अ धक सुशो भत हो रही थी ।। ३० ।। कृ ाद् ादशरा े तु त य रा ः समा हते । आजगाम वशु ा मा व स ो भगवानृ षः ।। ३१ ।। े







राजाने लेश सहन करते ए बारह राततक एका च होकर यान लगाया था। तब वशु अ तःकरणवाले भगवान् व स मु न राजाके पास आये थे ।। ३१ ।। तपसाऽऽरा य वरदं दे वं गोप तमी रम् । लेभे संवरणो भाया व स यैव तेजसा ।। ३२ ।। सबके अधी र वरदायक दे व शरोम ण भगवान् सूयको तप या ारा स करके महाराज संवरणने व स जीके ही तेजसे तपतीको प नी पम ा त कया ।। ३२ ।। तत त मन् ग र े े दे वग धवसे वते । ज ाह व धवत् पा ण तप याः स नरषभः ।। ३३ ।। तदन तर उन नर े ने दे वता और ग धव से से वत उस उ म पवतपर व धपूवक तपतीका पा ण हण कया ।। ३३ ।। व स ेना यनु ात त म ेव धराधरे । सोऽकामयत राज ष वहतु सह भायया ।। ३४ ।। उसके बाद व स जीक आ ा लेकर राज ष संवरणने उसी पवतपर अपनी प नीके साथ वहार करनेक इ छा क ।। ३४ ।। ततः पुरे च रा े च वनेषूपवनेषु च । आ ददे श महीपाल तमेव स चवं तदा ।। ३५ ।। उन दन भूपालने नगर, रा, वन तथा उपवन क दे खभाल एवं र ाके लये म ीको ही आदे श दे कर वदा कया ।। ३५ ।। नृप त व यनु ा य व स ोऽथापच मे । सोऽथ राजा गरौ त मन् वजहारामरो यथा ।। ३६ ।। व स जी भी राजासे वदा ले अपने थानको चले गये। तदन तर राजा संवरण उस पवतपर दे वताक भाँ त वहार करने लगे ।। ३६ ।। ततो ादश वषा ण काननेषु वनेषु च । रेमे त मन् गरौ राजा तथैव सह भायया ।। ३७ ।। वे उसी पवतके वन और कानन म अपनी प नीके साथ उसी कार बारह वष तक रमण करते रहे ।। ३७ ।। त य रा ः पुरे त मन् समा ादश स म । न ववष सह ा ो रा े चैवा य भारत ।। ३८ ।। अजुन! उन दन महाराज संवरणके रा य और नगरम इ ने बारह वष तक वषा नह क ।। ३८ ।। तत त यामनावृ ां वृ ायामरदम । जाः यमुपाज मुः सवाः स थाणुज माः ।। ३९ ।। श ुसूदन! उस अनावृ के समय ायः थावर एवं जंगम सभी कारक जाका य होने लगा ।। ३९ ।। त मं तथा वधे काले वतमाने सुदा णे । नाव यायः पपातो ा ततः स या न ना हन् ।। ४० ।। ऐ े ी ओ ँ ी

ऐसे भयंकर समयम पृ वीपर ओसक एक बूँदतक न गरी। प रणाम यह आ क खेती उगती ही नह थी ।। ४० ।। ततो व ा तमनसो जनाः ु यपी डताः । गृहा ण स प र य य ब मुः दशो दशः ।। ४१ ।। तब सभी लोग का च ाकुल हो उठा। मनु य भूखके भयसे पी ड़त हो घर को छोड़कर दशा- व दशा म मारे-मारे फरने लगे ।। ४१ ।। तत त मन् पुरे रा े य दारप र हाः । पर परममयादाः ुधाता ज नरे जनाः ।। ४२ ।। तत् ुधात नरासहारैः शवभूतै तथा नरैः । अभवत् ेतराज य पुरं ेतै रवावृतम् ।। ४३ ।। फर तो उस नगर और राक े लोग ुधासे पी ड़त हो सनातन मयादाको छोड़कर ी, पु एवं प रवार आ दका याग करके पर पर एक- सरेको मारने और लूटने-खसोटने लगे। राजाका नगर ऐसे लोग से भर गया, जो भूखसे आतुर हो उपवास करते-करते मुद के समान हो रहे थे। उन नर-कंकाल से प रपूण वह नगर ेत से घरे ए यमराजके नवास थान-सा जान पड़ता था ।। ४२-४३ ।। तत तत् ता शं ् वा स एव भगवानृ षः । अ यवषत धमा मा व स ो मु नस मः ।। ४४ ।। जाक ऐसी रव था दे ख धमा मा मु न े भगवान् व स ने ही (अपने तपोबलसे) उस रा यम वषा क ।। ४४ ।। तं च पा थवशा लमानयामास तत् पुरम् । तप या स हतं राजन् ु षतं शा तीः समाः । ततः वृ त ासीद् यथापूव सुरा रहा ।। ४५ ।। साथ ही वे नृप े संवरणको, जो ब त वष से वासी हो रहे थे, तपतीके साथ नगरम ले आये। उनके आनेपर दै यह ता दे वराज इ वहाँ पूववत् वषा करने लगे ।। ४५ ।। त मन् नृप तशा ले व े नगरं पुनः । ववष सह ा ः स या न जनयन् भुः ।। ४६ ।। उन े राजाके नगरम वेश करनेपर भगवान् इ ने वहाँ अ का उ पादन बढ़ानेके लये पुनः अ छ वषा क ।। ४६ ।। ततः सरा ं मुमुदे तत् पुरं परया मुदा । तेन पा थवमु येन भा वतं भा वता मना ।। ४७ ।। तबसे शु अ तःकरणवाले नृप े संवरणके ारा पा लत सब लोग स रहने लगे। उस रा य और नगरम बड़ा आन द छा गया ।। ४७ ।। ततो ादश वषा ण पुनरीजे नरा धपः । तप या स हतः प या यथा श या म प तः ।। ४८ ।। तदन तर तपतीके स हत महाराज संवरणने शचीके साथ इ के समान सुशो भत होते ए बारह वष तक य कया ।। ४८ ।।

ग धव उवाच एवमासी महाभागा तपती नाम पौ वक । तव वैव वती पाथ ताप य वं यया मतः ।। ४९ ।। ग धव कहता है—कु तीन दन! इस कार भगवान् सूयक पु ी महाभागा तपती आपके पूवपु ष संवरणक प नी ई थी, जससे मने आपको तपतीन दन माना है ।। ४९ ।। त यां संजनयामास कु ं संवरणो नृपः । तप यां तपतां े ताप य वं ततोऽजुन ।। ५० ।। तप वीजन म े अजुन! महाराज संवरणने तपतीके गभसे कु को उ प कया था; अतः उसी वंशम ज म लेनेके कारण आपलोग ताप य ए ।। ५० ।। (क ु वा यतो यूयं कौरवाः कुरव तथा । पौरवा आजमीढा भारता भरतषभ ।। ताप यमखलं ो ं वृ ा तं तव पूवकम् । पुरो हतमुखा यूयं भुङ् वं वै पृ थवी ममाम् ।।) भरत े उ ह कु से उ प होनेके कारण आप सब लोग ‘कौरव’ तथा ‘कु वंशी’ कहलाते ह। इसी कार पु से उ प होनेके कारण ‘पौरव’, अजमीढकुलम ज म लेनेसे ‘आजमीढ’ तथा भरतकुलम उ प होनेसे ‘भारत’ कहलाते ह। इस कार आपलोग क वंशजननी तपतीका सारा पुरातन वृ ा त मने बता दया। अब आपलोग पुरो हतको आगे रखकर इस पृ वीका पालन एवं उपभोग कर। इत

ीमहाभारते आ दपव ण चै रथपव ण तप युपा यानसमा तौ स त य धकशततमोऽ यायः ।। १७२ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत चै रथपवम तपती-उपा यानक समा तसे स ब ध रखनेवाला एक सौ बह रवाँ अ याय पूरा आ ।। १७२ ।।

स त य धकशततमोऽ यायः ग धवका व स जीक मह ा बताते ए कसी े ा णको पुरो हत बनानेके लये आ ह करना वैश पायन उवाच स ग धववचः ु वा तत् तदा भरतषभ । अजुनः परया भ या पूणच इवाबभौ ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—भरत े जनमेजय! ग धवका यह कथन सुनकर अजुन अ य त भ भावके कारण पूण च माके समान शोभा पाने लगे ।। १ ।। उवाच च महे वासो ग धव कु स मः । जातकौतूहलोऽतीव व स य तपोबलात् ।। २ ।। फर महाधनुधर कु े अजुनने ग धवसे कहा—‘सखे! व स के तपोबलक बात सुनकर मेरे दयम बड़ी उ क ठा पैदा हो गयी है ।। २ ।। व स इ त त यैत षेनाम वये रतम् । एत द छा यहं ोतुं यथावत् तद् वद व मे ।। ३ ।। ‘तुमने उन मह षका नाम व स बताया था। उनका यह नाम य पड़ा? इसे म सुनना चाहता ँ। तुम यथाथ पसे मुझे बताओ ।। ३ ।। य एष ग धवपते पूवषां नः पुरो हतः । आसीदे त ममाच व क एष भगवानृ षः ।। ४ ।। ‘ग धवराज! ये जो हमारे पूवज के पुरो हत थे, वे भगवान् व स मु न कौन ह? यह मुझसे कहो’ ।। ४ ।। ग धव उवाच णो मानसः पु ो व स ोऽ धतीप तः । तपसा न जतौ श दजेयावमरैर प ।। ५ ।। काम ोधावुभौ य य चरणौ संववाहतुः । इ याणां वशकरो व स इ त चो यते ।। ६ ।। ग धवने कहा—व स जी ाजीके मानस पु ह। उनक प नीका नाम अ धती है। ज ह दे वता भी कभी जीत नह सके, वे काम और ोध नामक दोन श ु व स जीक तप यासे सदाके लये पराभूत होकर उनके चरण दबाते रहे ह। इ य को वशम करनेके कारण वे व स कहलाते ह ।। ५-६ ।। य तु नो छे दनं च े कु शकानामुदारधीः । व ा म ापराधेन धारयन् म युमु मम् ।। ७ ।। े











व ा म के अपराधसे मनम प व ोध धारण करते ए भी उन उदारबु मह षने कु शकवंशका समूलो छे द नह कया ।। ७ ।। पु सनसंत तः श मान यश वत् । व ा म वनाशाय न च े कम दा णम् ।। ८ ।। व ा म के ारा अपने सौ पु के मारे जानेसे वे संत त थे, उनम बदला लेनेक श भी थी, तो भी उ ह ने असमथक भाँ त सब कुछ सह लया एवं व ा म का वनाश करनेके लये कोई दा ण कम नह कया ।। ८ ।। मृतां पुनराहतु श ः पु ान् यम यात् । कृता तं ना तच ाम वेला मव महोद धः ।। ९ ।। वे अपने मरे ए पु को यमलोकसे वापस ला सकते थे; परंतु जैसे महासागर अपने तटका उ लंघन नह करता, उसी कार वे यमराजक मयादाको लाँघनेके लये उ त नह ए ।। ९ ।। यं ा य व जता मानं महा मानं नरा धपाः । इ वाकवो महीपाला ले भरे पृ थवी ममाम् ।। १० ।। उ ह जता मा महा मा व स मु नको (पुरो हत पम) पाकर इ वाकुवंशी भूपाल ने (द घ-कालतक) इस (समूची) पृ वीपर अ धकार ा त कया था ।। १० ।। पुरो हत ममं ा य व स मृ षस मम् । ई जरे तु भ ैव नृपा ते कु न दन ।। ११ ।। कु न दन! इ ह मु न े व स को पुरो हत- पम पाकर उन नरप तय ने ब त-से य भी कये थे ।। ११ ।। स ह तान् याजयामास सवान् नृप तस मान् । षः पा डव े बृह प त रवामरान् ।। १२ ।। पा डव े ! जैसे बृह प तजी स पूण दे वता का य कराते ह, उसी कार ष व स ने उन स पूण े राजा का य कराया था ।। १२ ।। त माद् धम धाना मा वेदधम वद सतः । ा णो गुणवान् क त् पुरोधाः त यताम् ।। १३ ।। इस लये जसके मनम धमक धानता हो, जो वेदो धमका ाता और मनके अनुकूल हो; ऐसे कसी गुणवान् ा णको आपलोग भी पुरो हत बनानेका न य कर ।। १३ ।। येणा भजातेन पृ थव जेतु म छता । पूव पुरो हतः कायः पाथ रा या भवृ ये ।। १४ ।। पाथ! पृ वीको जीतनेक इ छा रखनेवाले कुलीन यको अपने रा यक वृ के लये पहले ( कसी े ा णको) पुरो हत नयु कर लेना चा हये ।। १४ ।। मह जगीषता रा ा काय पुर सरम् । त मात् पुरो हतः क द् गुणवान् व जते यः । व ान् भवतु वो व ो धमकामाथत व वत् ।। १५ ।। ी ो ी े े ो ै ो े े े

पृ वीको जीतनेक इ छावाले राजाको उ चत है क वह ा णको अपने आगे रखे; अतः कोई गुणवान्, जते य, वेदा यासी, व ान् तथा धम, काम और अथका त व ा ण आपका पुरो हत हो ।। १५ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण चै रथपव ण पुरो हतकरणकथने स त य धकशततमोऽ यायः ।। १७३ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत चै रथपवम पुरो हत बनानेके लये कथनस ब धी एक सौ तह रवाँ अ याय पूरा आ ।। १७३ ।।

चतुःस त य धकशततमोऽ यायः व स जीके अ त

मा-बलके आगे व ा म जीका पराभव

अजुन उवाच क न म मभूद ् वैरं व ा म व स योः । वसतोरा मे द े शंस नः सवमेव तत् ।। १ ।। अजुनने पूछा—ग धवराज! व ा म और व स मु न तो अपने-अपने द आ मम नवास करते ह, फर उनम वैर कस कारण आ? ये सब बात मुझसे कहो ।। १ ।। ग धव उवाच इदं वा स मा यानं पुराणं प रच ते । पाथ सवषु लोकेषु यथावत् त बोध मे ।। २ ।। ग धवने कहा—पाथ! व स जीके इस उपा यानको सब लोक म ब त पुराना बतलाते ह। उसे यथाथ पसे कहता ँ, सु नये ।। २ ।। का यकु जे महानासीत् पा थवो भरतषभ । गाधी त व ुतो लोके कु शक या मस भवः ।। ३ ।। भरतवंश शरोमणे! का यकु ज दे शम एक ब त बड़े राजा थे, जो इस लोकम गा धके नामसे व यात थे। वे कु शकके औरस पु बताये जाते ह ।। ३ ।। त य धमा मनः पु ः समृ बलवाहनः । व ा म इ त यातो बभूव रपुमदनः ।। ४ ।। उ ह धमा मा नरेशके पु व ा म के नामसे स ह, जो सेना और वाहन से स प होकर श ु का मानमदन कया करते थे ।। ४ ।। स चचार सहामा यो मृगयां गहने वने । मृगान् व यन् वराहां र येषु म ध वसु ।। ५ ।। ायामक शतः सोऽथ मृग ल सुः पपा सतः । आजगाम नर े व स या मं त ।। ६ ।। तमागतम भ े य व स ः े भागृ षः । व ा म ं नर े ं तज ाह पूजया ।। ७ ।। एक दन वे अपने म य के साथ गहन वनम आखेटके लये गये। म दे शके सुर य वन म उ ह ने वराह और अ य हसक पशु को मारते ए एक हसक पशुको पकड़नेके लये उसका पीछा कया। अ धक प र मके कारण उ ह बड़ा क सहना पड़ा। नर े ! वे याससे पी ड़त हो मह ष व स के आ मम आये। मनु य म े महाराज व ा म को े











आया दे ख पूजनीय पु ष क पूजा करनेवाले मह ष व स ने उनका स कार करते ए आ त य हण करनेके लये आम त कया ।। ५—७ ।। पा ा याचमनीयै तं वागतेन च भारत । तथैव प रज ाह व येन ह वषा तदा ।। ८ ।। भारत! पा , अ य, आचमनीय, वागत-भाषण तथा व य ह व य आ दसे उ ह ने व ा म जीका स कार कया ।। ८ ।। त याथ कामधुग् धेनुव स य महा मनः । उ ा कामान् य छे त सा कामान् ते सदा ।। ९ ।। महा मा व स जीके यहाँ एक कामधेनु थी, जो ‘अमुक-अमुक मनोरथ को पूण करो’ यह कहने-पर सदा उन-उन कामना को पूण कर दया करती थी ।। ९ ।। ा यार या ौषधी हे पय एव च । षसं चामृत नभं रसायनमनु मम् ।। १० ।। भोजनीया न पेया न भ या ण व वधा न च । ले ा यमृतक पा न चो या ण च तथाजुन ।। ११ ।। र ना न च महाहा ण वासां स व वधा न च । तैः कामैः सवस पूणः पू जत महीप तः ।। १२ ।। ामीण तथा जंगली अ , फल-मूल, ध, षड् रस भोजन, अमृतके समान मधुर परम उ म रसायन, खाने, पीने और चबानेयो य भाँ त-भाँ तके पदाथ, अमृतके समान वा द चटनी आ द तथा चूसनेयो य ईख आ द व तुएँ तथा भाँ त-भाँ तके ब मू य र न एवं व आ द सब साम य को उस कामधेनुने तुत कर दया। सब कारसे उन स पूण मनोवां छत व तु के ारा हे अजुन! राजा व ा म भलीभाँ त पू जत ए ।। १०— १२ ।। सामा यः सबल ैव तुतोष स भृशं तदा । षडु तां सुपा ं पृथुप चसमावृताम् ।। १३ ।। उस समय वे अपनी सेना और म य के साथ ब त संतु ए। मह षक धेनुका म तक, ीवा, जाँघ, गलक बल, पूँछ और थन—ये छः अंग बड़े एवं व तृत थे।१ उसके पा भाग तथा ऊ बड़े सु दर थे। वह पाँच पृथुल अंग से सुशो भत थी२ ।। १३ ।। म डू कने ां वाकारां पीनोधसम न दताम् । सुवालध शङ ् कुकणा चा शृ ां मनोरमाम् ।। १४ ।। उसक आँख मेढक-जैसी थ । आकृ त बड़ी सु दर थी। चार थन मोटे और फैले ए थे। वह सवथा शंसाके यो य थी। सु दर पूँछ, नुक ले कान और मनोहर स ग के कारण वह बड़ी मनोरम जान पड़ती थी ।। १४ ।। पु ायत शरो ीवां व मतः सोऽ भवी य ताम् । अ भन स तां राजा न दन गा धन दनः ।। १५ ।। े







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उसके सर और गदन व तृत एवं पु थे। उसका नाम न दनी था। उसे दे खकर व मत ए गा धन दन व ा म ने उसका अ भन दन कया ।। १५ ।। अ वी च भृशं तु ः स राजा तमृ ष तदा । अबुदे न गवां न् मम रा येन वा पुनः ।। १६ ।। न दन स य छ व भुङ् व रा यं महामुने । और अ य त संतु होकर राजा व ा म ने उस समय उन मह षसे कहा—‘ न्! आप दस करोड़ गाय अथवा मेरा सारा रा य लेकर इस न दनी-को मुझे दे द। महामुने! इसे दे कर आप रा य भोग कर’ ।। १६ ।। व स उवाच दे वता त थ प थ या याथ च पय वनी ।। १७ ।। अदे या न दनीयं वै रा येना प तवानघ । व स जीने कहा—अनघ! दे वता, अ त थ और पतर क पूजा एवं य के ह व य आ दके लये यह धा गाय न दनी अपने यहाँ रहती है, इसे तु हारा रा य लेकर भी नह दया जा सकता ।। १७ ।। व ा म उवाच योऽहं भवान् व तप वा यायसाधनः ।। १८ ।। व ा म जी बोले—म य राजा ँ और आप तप या तथा वा यायका साधन करनेवाले ा ण ह ।। १८ ।।



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ा णेषु कुतो वीय शा तेषु धृता मसु । अबुदे न गवां य वं न ददा स ममे सतम् ।। १९ ।। वधम न हा या म ने या म च बलेन गाम् । ( योऽ म न व ोऽहं बा वीय ऽ म धमतः । त माद् भुजबलेनेमां ह र यामीह प यतः ।।) ा ण अ य धक शा त और जता मा होते ह। उनम बल और परा म कहाँसे आ सकता है; फर या बात है जो आप मेरी अभी व तुको एक अबुद गाय लेकर भी नह दे रहे ह। म अपना धम नह छोडँगा, इस गायको बलपूवक ले जाऊँगा। म य ँ, ा ण नह ँ। मुझे धमतः अपना बा बल कट करनेका अ धकार है; अतः बा बलसे ही आपके दे खते-दे खते इस गायको हर ले जाऊँगा ।। १९ ।। व स उवाच बल थ ा स राजा च बा वीय यः ।। २० ।। यथे छ स तथा ं कु मा वं वचारय । व स जीने कहा—तुम सेनाके साथ हो, राजा हो और अपने बा बलका भरोसा रखनेवाले य हो। जैसी तु हारी इ छा हो वैसा शी कर डालो, वचार न करो ।। २० ।। ग धव उवाच एवमु तथा पाथ व ा म ो बला दव ।। २१ ।। हंसच तीकाशां न दन तां जहार गाम् । कशाद ड णु दतां का यमाना मत ततः ।। २२ ।। ग धव कहता है—अजुन! व स जीके य कहनेपर व ा म ने मानो बलपूवक ही हंस और च माके समान ेत रंगवाली उस न दनी गायका अपहरण कर लया। उसे कोड़ और डंड से मार-मारकर इधर-उधर हाँका जा रहा था ।। २१-२२ ।। ह भायमाना क याणी व स याथ न दनी । आग या भमुखी पाथ त थौ भगव मुखी ।। २३ ।। भृशं च ता माना वै न जगामा मात् ततः । अजुन! उस समय क याणमयी न दनी डकराती ई मह ष व स के सामने आकर खड़ी हो गयी और उ ह क ओर मुँह करके दे खने लगी। उसके ऊपर जोर-जोरसे मार पड़ रही थी, तो भी वह आ मसे अ य नह गयी ।। २३ ।। व स उवाच शृणो म ते रवं भ े वनद याः पुनः पुनः ।। २४ ।। यसे वं बलाद् भ े व ा म ेण न द न । क कत ं मया त मावान् ा णो हम् ।। २५ ।। ी ो े



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व स जी बोले—भ े ! तुम बार-बार दन कर रही हो। म तु हारा आतनाद सुनता ँ, परंतु या क ँ ? क याणमयी न द न! व ा म तु ह बलपूवक हर ले जा रहे ह। इसम म या कर सकता ँ। म एक माशील ा ण ँ ।। २४-२५ ।। ग धव उवाच सा भया दनी तेषां बलानां भरतषभ । व ा म भयो ना व स ं समुपागमत् ।। २६ ।। ग धव कहता है—भरतवंश शरोमणे! न दनी व ा म के भयसे उ न हो उठ थी। वह उनके सै नक के भयसे मु नवर व स क शरणम गयी ।। २६ ।।

गौ वाच कशा द डा भहतां ोश त मामनाथवत् । व ा म बलैघ रैभगवन् कमुपे से ।। २७ ।। गौने कहा—भगवन्! व ा म के नदय सै नक मुझे कोड़ और डंड से पीट रहे ह। म अनाथक भाँ त दन कर रही ँ। आप य मेरी उपे ा कर रहे ह? ।। २७ ।। ग धव उवाच न द यामेवं द यां ध षतायां महामु नः । न चु ुभे तदा धैया चचाल धृत तः ।। २८ ।। ग धव कहता है—अजुन! न दनी इस कार अपमा नत होकर क ण दन कर रही थी, तो भी ढ़तापूवक तका पालन करनेवाले महामु न व स न तो ु ध ए और न धैयसे ही वच लत ए ।। २८ ।। व स उवाच याणां बलं तेजो ा णानां मा बलम् । मा मां भजते य माद् ग यतां य द रोचते ।। २९ ।। व स जी बोले—भ े ! य का बल उनका तेज है और ा ण का बल उनक मा है। चूँ क मुझे मा अपनाये ए है, अतः तु हारी च हो, तो जा सकती हो ।। २९ ।। न द युवाच क नु य ा म भगवन् यदे वं वं भाषसे । अ य ाहं वया न् नेतुं श या न वै बलात् ।। ३० ।। न दनीने कहा—भगवन्! या आपने मुझे याग दया, जो ऐसी बात कहते ह? न्! आपने याग न दया हो, तो कोई मुझे बलपूवक नह ले जा सकता ।। ३० ।। व स उवाच न वां यजा म क या ण थीयतां य द श यते । ढे न दा ना बद् वैष व स ते यते बलात् ।। ३१ ।। ी ो े

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व स जी बोले—क या ण! म तु हारा याग नह करता। तुम य द रह सको तो यह रहो। यह तु हारा बछड़ा मजबूत र सीसे बाँधकर बलपूवक ले जाया जा रहा है ।। ३१ ।। ग धव उवाच थीयता म त त छ वा व स य पय वनी । ऊ वा चत शरो ीवा बभौ रौ दशना ।। ३२ ।। ग धव कहता है—अजुन! ‘यह रहो’ व स जीका यह वचन सुनकर न दनीने अपने सर और गदनको ऊपरक ओर उठाया। उस समय वह दे खनेम बड़ी भयानक जान पड़ती थी ।। ३२ ।। ोधर े णा सा गौह भारवघन वना । व ा म य तत् सै यं ावयत सवशः ।। ३३ ।। ोधसे उसक आँख लाल हो गयी थ । उसके डकरानेक आवाज जोर-जोरसे सुनायी दे ने लगी। उसने व ा म क उस सेनाको चार ओर खदे ड़ना शु कया ।। ३३ ।। कशा द डा भहता का यमाना तत ततः । ोधर े णा ोधं भूय एव समाददे ।। ३४ ।। कोड़ के अ भाग और डंड से मार-मारकर इधर-उधर हाँके जानेके कारण उसके ने पहलेसे ही ोधके कारण र वणके हो गये थे। फर उसने और भी ोध धारण कया ।। ३४ ।।







आ द य इव म या े ोधद तवपुबभौ । अ ारवष मु च ती मु वाल धतो महत् ।। ३५ ।। असृजत् प वान् पु छात् वाद् वडा छकान् । यो नदे शा च यवनान् शकृतः शबरान् ब न् ।। ३६ ।। ोधके कारण उसके शरीरसे अपूव द त कट हो रही थी। वह दोपहरके सूयक भाँ त उ ा सत हो उठ । उसने अपनी पूँछसे बारंबार अंगारक भारी वषा करते ए पूँछसे स प व क सृ क , थन से वड और शक को उ प कया, यो नदे शसे यवन और गोबरसे ब तेरे शबर को ज म दया ।। ३५-३६ ।। मू त ासृजत् कां छबरां ैव पा तः । पौ ान् करातान् यवनान् सहलान् बबरान् खसान् ।। ३७ ।। कतने ही शबर उसके मू से कट ए। उसके पा भागसे पौ , करात, यवन, सहल, बबर और खस क सृ ई ।। ३७ ।। चबुकां पु ल दां चीनान् णान् सक े रलान् । ससज फेनतः सा गौ ल छान् ब वधान प ।। ३८ ।। इसी कार उस गौने फेनसे चबुक, पु ल द, चीन, ण, केरल आ द ब त कारके ले छ क सृ क ।। ३८ ।।

व ा म क सेनापर न दनीका कोप

तै वसृ ैमहासै यैनाना ले छगणै तदा । नानावरणसं छ ैनानायुधधरै तथा ।। ३९ ।। अवाक यत संरधै व ा म य प यतः । एकैक तदा योधः प च भः स त भवृतः ।। ४० ।। उसके ारा रचे गये नाना कारके ले छगण क वे वशाल सेनाएँ जो अनेक कारके कवच आ दसे आ छा दत थ । सबने भाँ त-भाँ तके आयुध धारण कर रखे थे और सभी सै नक ोधम भरे ए थे। उ ह ने व ा म के दे खते-दे खते उनक सेनाको ततर- बतर कर दया। व ा म के एक-एक सै नकको ले छ-सेनाके पाँच-पाँच, सात-सात यो ा ने घेर रखा था ।। ३९-४० ।। अ वषण महता व यमानं बलं तदा । भ नं सवत तं व ा म य प यतः ।। ४१ ।। उस समय अ -श क भारी वषासे घायल होकर व ा म क सेनाके पाँव उखड़ गये और उनके सामने ही वे सभी यो ा भयभीत हो सब ओर भाग चले ।। ४१ ।। न च ाणै वयु य ते के चत् त ा य सै नकाः । व ा म य सं ु ै वा स ैभरतषभ ।। ४२ ।। भरत े ! ोधम भरे ए होनेपर भी व स सेनाके सै नक व ा म के कसी भी यो ाका ाण नह लेते थे ।। ४२ ।। सा गौ तत् सकलं सै यं कालयामास रतः । व ा म य तत् सै यं का यमानं योजनम् ।। ४३ ।। ोशमानं भयो नं ातारं ना यग छत । इस कार न दनी गायने उनक सारी सेनाको र भगा दया। व ा म क वह सेना तीन योजनतक खदे ड़ी गयी। वह सेना भयसे ाकुल होकर चीखतीच लाती रही; कतु कोई भी संर क उसे नह मला ।। ४३ ।। ( व ा म ततो ् वा ोधा व ः स रोदसी । ववष शरवषा ण व स े मु नस मे ।। घोर पां नाराचान् ुरान् भ लान् महामु नः । व ा म यु ां तान् वैणवेन मोचयत् ।। व स य तदा ् वा कमकौशलमाहवे ।। व ा म ोऽ प कोपेन भूयः श ु नपातनः । द ा वष त मै तु ा हणो मुनये षा ।। आ नेयं वा णं चै ं या यं वाय मेव च । वससज महाभागे व स े णः सुते ।। अ ा ण सवतो वालां वसृज त पे दरे । े ो



युगा तसमये घोराः पत येव र मयः ।। व स ोऽ प महातेजा श यु या । य ा नवारयामास सवा य ा ण स मयन् ।। तत ते भ मसा ताः पत त म महीतले । अपो द ा य ा ण व स ो वा यम वीत् ।। यह दे खकर व ा म ोधसे ा त हो मु न- े व स को ल त करके पृ थवी और आकाशम बाण क वषा करने लगे; परंतु महामु न व स ने व ा म के चलाये ए भयंकर नाराच, ुर और भ ल नामक बाण का केवल बाँसक छड़ीसे नवारण कर दया। यु म व स मु नका वह काय-कौशल दे खकर श ु को मार गरानेवाले व ा म भी पुनः कु पत हो मह ष व स पर रोषपूवक द ा क वषा करने लगे। उ ह ने ाजीके पु महाभाग व स पर आ नेया , वा णा , ऐ ा , या या और वाय ा का योग कया। वे सब अ लयकालके सूयक च ड करण के समान सब ओरसे आगक लपट छोड़ते ए मह षपर टू ट पड़े; परंतु महातेज वी व स ने मुसकराते ए ा बलसे े रत ई छड़ीके ारा इन सब अ को पीछे लौटा दया। फर तो वे सभी अ भ मीभूत होकर पृ वीपर गर पड़े। इस कार उन द ा का नवारण करके व स जीने व ा म से यह बात कही। व स उवाच न जतोऽ स महाराज रा मन् गा धन दन । य द तेऽ त परं शौय तद् दशय म य थते ।। व स जी बोले—महाराज रा मा गा धन दन! अब तू परा त हो चुका है। य द तुझम और भी उ म परा म है तो मेरे ऊपर दखा। म तेरे सामने डटकर खड़ा ँ। ग धव उवाच व ा म तथा चो ो व स ेन नरा धप । नोवाच क चद् ीडाो व ा वतमहाबलः ।।) ग धव कहता है—राजन्! व ा म क वह वशाल सेना खदे ड़ी जा चुक थी। व स के ारा पूव पसे ललकारे जानेपर वे ल जत होकर कुछ भी उ र न दे सके। ् वा त महदा य तेजोभवे तदा ।। ४४ ।। व ाम ः भावा व णो वा यम वीत् । धग् बलं यबलं तेजोबलं बलम् ।। ४५ ।। तेजका यह अ य त आ यजनक चम कार दे खकर व ा म य वसे ख एवं उदासीन हो यह बात बोले—‘ य-बल तो नाममा का ी











ही बल है, उसे ध कार है। तेजज नत बल ही वा त वक बल है’ ।। ४४-४५ ।। बलाबलं व न य तप एव परं बलम् । स रा यं फ तमु सृ य तां च द तां नृप यम् ।। ४६ ।। भोगां पृ तः कृ वा तप येव मनो दधे । स ग वा तपसा स लोकान् व य तेजसा ।। ४७ ।। तताप सवान् द तौजा ा ण वमवा तवान् । अ पब च ततः सोम म े ण सह कौ शकः ।। ४८ ।। इस कार बलाबलका वचार करके उ ह ने तप याको ही सव म बल न त कया और अपने समृ शाली रा य तथा दे द यमान रा यल मीको छोड़कर, भोग को पीछे करके तप याम ही मन लगाया। इस तप यासे स को ा त हो उ त तेजवाले व ा म जीने अपने भावसे स पूण लोक को त ध एवं संत त कर दया और (अ ततोग वा) ा ण व ा त कर लया; फर वे इ के साथ सोमपान करने लगे ।। ४६—४८ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण चै रथपव ण वा स े व ा म पराभवे चतुःस त य धकशततमोऽ यायः ।। १७४ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत चै रथपवम व स जीके च र के संगम व ा म -पराभव वषयक एक सौ चौह रवाँ अ याय पूरा आ ।। १७४ ।। (दा णा य अ धक पाठक े १० ोक मलाकर कुल ५८ ोक ह)

१. गौ के म तक आ द छः अंग का बड़ा एवं व तृत होना शुभ माना गया है। जैसा क शा का वचन है— शरो ीवा स थनी च सा ना पु छमथ तनाः । शुभा येता न धेनूनामायता न च ते ।। २. गौ का ललाट, दोन ने और दोन कान—ये पाँच अंग पृथु (पु एवं व तृत) ह तो व ान ारा अ छे माने जाते ह। जैसा क शा का वचन है— ललाटं वणौ चैव नयन तयं तथा । पृथू येता न श य ते धेनूनां प च सू र भः ।। [नीलक ठ ट कासे]

प चस त य धकशततमोऽ यायः श के शापसे क माषपादका रा स होना, व ा म क ेरणासे रा स ारा व स के पु का भ ण और व स का शोक ग धव उवाच क माषपाद इ येवं लोके राजा बभूव ह । इ वाकुवंशजः पाथ तेजसास शो भु व ।। १ ।। ग धव कहता है—अजुन! इ वाकुवंशम एक राजा ए, जो लोकम क माषपादके नामसे स थे। इस पृ वीपर वे एक असाधारण तेज वी राजा थे ।। १ ।। स कदा चद् वनं राजा मृगयां नययौ पुरात् । मृगान् व यन् वराहां चचार रपुमदनः ।। २ ।। एक दन वे नगरसे नकलकर वनम हसक पशु को मारनेके लये गये। वहाँ वे रपुमदन नरेश वराह और अ य हसक पशु को मारते ए इधर-उधर वचरने लगे ।। २ ।। त मन् वने महाघोरे खड् गां ब शोऽहनत् । ह वा च सु चरं ा तो राजा नववृते ततः ।। ३ ।। उस महाभयानक वनम उ ह ने ब त-से गडे भी मारे। ब त दे रतक ह पशु को मारकर जब राजा थक गये, तब वहाँसे नगरक ओर लौटे ।। ३ ।। अकामयत् तं या याथ व ा म ः तापवान् । स तु राजा महा मानं वा स मृ षस मम् ।। ४ ।। तृषात ुधात एकायनगतः प थ । अप यद जतः सं ये मु न तमुखागतम् ।। ५ ।। तापी व ा म उ ह अपना यजमान बनाना चाहते थे। राजा क माषपाद यु म कभी परा जत नह होते थे। उस दन वे भूख- याससे पी ड़त थे और ऐसे तंग रा तेपर आ प ँचे थे, जहाँ एक ही आदमी आ-जा सकता था। वहाँ आनेपर उ ह ने दे खा, सामनेक ओरसे मु न े महामना व स कुमार आ रहे ह ।। ४-५ ।। श नाम महाभागं व स कुलवधनम् । ये ं पु ं पु शताद् व स य महा मनः ।। ६ ।। वे व स जीके वंशक वृ करनेवाले महाभाग श थे। महा मा व स जीके सौ पु म सबसे बड़े वे ही थे ।। ६ ।। अपग छ पथोऽ माक म येवं पा थवोऽ वीत् । तथा ऋ ष वाचैनं सा वय णया गरा ।। ७ ।। े







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ओ’





उ ह दे खकर राजाने कहा—‘हमारे रा तेसे हट जाओ।’ तब श मु नने मधुर वाणीम उ ह समझाते ए कहा— ।। ७ ।। मम प था महाराज धम एष सनातनः । रा ा सवषु धमषु दे यः प था जातये ।। ८ ।। ‘महाराज! माग तो मुझे ही मलना चा हये। यही सनातन धम है। सभी धम म राजाके लये यही उ चत है क ा णको माग दे ’ ।। ८ ।। एवं पर परं तौ तु पथोऽथ वा यमूचतुः । अपसपापसप त वागु रमकुवताम् ।। ९ ।। इस कार वे दोन आपसम रा तेके लये वा यु करने लगे। एक कहता, ‘तुम हटो’ तो सरा कहता, ‘नह , तुम हटो।’ इस कार वे उ र- यु र करने लगे ।। ९ ।। ऋ ष तु नापच ाम त मन् धमपथे थतः । ना प राजा मुनेमानात् ोधा चाथ जगाम ह ।। १० ।। अमु च तं तु प थानं तमृ ष नृपस मः । जघान कशया मोहात् तदा रा सव मु नम् ।। ११ ।। ऋ ष तो धमके मागम थत थे, अतः वे रा ता छोड़कर नह हटे । उधर राजा भी मान और ोधके वशीभूत हो मु नके मागसे इधर-उधर नह हट सके। राजा म े क माषपादने माग न छोड़नेवाले श मु नके ऊपर मोह-वश रा सक भाँ त कोड़ेसे आघात कया ।। १०-११ ।। कशा हारा भहत ततः स मु नस मः । तं शशाप नृप े ं वा स ः ोधमू छतः ।। १२ ।। कोड़ेक चोट खाकर मु न े श ने ोधसे मू छत हो उन उ म नरेशको शाप दे दया ।। १२ ।। हं स रा सवद् य माद् राजापसद तापसम् । त मात् वम भृ त पु षादो भ व य स ।। १३ ।। मनु य प शते स र य स मही ममाम् । ग छ राजाधमे यु ः श ना वीयश ना ।। १४ ।। तप याक बल श से स प श मु नने कहा—‘राजा म नीच क माषपाद! तू एक तप वी ा णको रा सक भाँ त मार रहा है, इस लये आजसे नरभ ी रा स हो जायगा तथा अबसे तू मनु य के मांसम आस होकर इस पृ वीपर वचरता रहेगा। नृपाधम! जा यहाँसे’ ।। १३-१४ ।।

ततो या य न म े तु व ा म व स योः । वैरमासीत् तदा तं तु व ा म ोऽ वप त ।। १५ ।। उ ह दन यजमानके लये व ा म और व स म वैर चल रहा था। उस समय व ा म राजा क माषपादके पास आये ।। १५ ।। तयो ववदतोरेवं समीपमुपच मे । ऋ ष तपाः पाथ व ा म ः तापवान् ।। १६ ।। अजुन! जब राजा तथा ऋ षपु दोन इस कार ववाद कर रहे थे, उ तप वी तापी व ा म मु न उनके नकट चले गये ।। १६ ।। ततः स बुबुधे प ात् तमृ ष नृपस मः । ऋषेः पु ं व स य व स मव तेजसा ।। १७ ।। तदन तर नृप े क माषपादने व स के समान तेज वी व स मु नके पु उन मह ष श को पहचाना ।। १७ ।। अ तधाय तदाऽऽ मानं व ा म ोऽ प भारत । तावुभाव तच ाम चक ष ा मनः यम् ।। १८ ।। भारत! तब व ा म जीने भी अपनेको अ य करके अपना य करनेक इ छासे राजा और श दोन को चकमा दया ।। १८ ।। स तु श त तदा तेन श ना वै नृपो मः ।

जगाम शरणं श साद यतुमहयन् ।। १९ ।। जब श ने शाप दे दया, तब नृप त शरोम ण क माषपाद उनक तु त करते ए उ ह स करनेके लये उनके शरण होने चले ।। १९ ।। त य भावं व द वा स नृपतेः कु स म । व ा म ततो र आ ददे श नृपं त ।। २० ।। कु े ! राजाके मनोभावको समझकर उ व ा म जीने एक रा सको राजाके भीतर वेश करनेके लये आ ा द ।। २० ।। शापात् त य तु व ष व ा म य चा या । रा सः ककरो नाम ववेश नृप त तदा ।। २१ ।। ष श के शाप तथा व ा म जीक आ ासे ककर नामक रा सने तब राजाके भीतर वेश कया ।। २१ ।। र सा तं गृहीतं तु व द वा मु नस मः । व ा म ोऽ यपा ामत् त माद् दे शादरदम ।। २२ ।। श ुसूदन! रा सने राजाको आ व कर लया है, यह जानकर मु नवर व ा म जी भी उस थानसे चले गये ।। २२ ।। ततः स नृप त तेन र सा तगतेन वै । बलवत् पी डतः पाथ ना यबु यत कचन ।। २३ ।। कु तीन दन! भीतर घुसे ए रा ससे अ य त पी ड़त हो उन नरेशको कसी भी बातक सुध-बुध न रही ।। २३ ।। ददशाथ जः क द् राजानं थतं वनम् । अयाचत ुधाप ः समांसं भोजनं तदा ।। २४ ।। एक दन कसी ा णने (रा ससे आ व ) राजाको वनक ओर जाते दे खा और भूखसे अ य त पी ड़त होनेके कारण उनसे मांसस हत भोजन माँगा ।। २४ ।। तमुवाचाथ राज ष जं म सह तदा । आ व ं वम ैव मुत तपालयन् ।। २५ ।। तब राज ष म सह (क माषपाद)-ने उस जसे कहा—‘ न्! आप यह बै ठये और दो घड़ीतक ती ा क जये ।। २५ ।। नवृ ः तदा या म भोजनं ते यथे सतम् । इ यु वा ययौ राजा त थौ च जस मः ।। २६ ।। ‘म वनसे लौटनेपर आपको यथे भोजन ँ गा।’ यह कहकर राजा चले गये और वह ा ण (वहाँ) ठहर गया ।। २६ ।। ततो राजा प र य यथाकामं यथासुखम् । नवृ ोऽ तःपुरं पाथ ववेश महामनाः ।। २७ ।। पाथ! त प ात् महामना राजा म सह इ छानुसार मौजसे घूम- फरकर जब लौटे , तब अ तःपुरम चले गये ।। २७ ।। ततोऽधरा उ थाय सूदमाना य स वरम् ।

उवाच राजा सं मृ य ा ण य त ुतम् ।। २८ ।। ग छामु मन् वनो े शे ा णो मां ती ते । अ ाथ तं वम ेन समांसेनोपपादय ।। २९ ।। वहाँ आधी रातके समय उ ह ा णको भोजन दे नेक त ाका मरण आ। फर तो वे उठ बैठे और तुरंत रसोइयेको बुलाकर बोले—‘जाओ, वनके अमुक दे शम एक ा ण भोजनके लये मेरी ती ा करता है। उसे तुम मांसयु भोजनसे तृ त करो’ ।। २८-२९ ।। ग धव उवाच एवमु ततः सूदः सोऽनासा ा मषं व चत् । नवेदयामास तदा त मै रा े था वतः ।। ३० ।। ग धव कहता है—उनके य कहनेपर रसोइयेने मांसके लये खोज क ; परंतु जब कह भी मांस नह मला, तब उसने ःखी होकर राजाको इस बातक सूचना द ।। ३० ।। राजा तु र साऽऽ व ः सूदमाह गत थः । अ येनं नरमांसेन भोजये त पुनः पुनः ।। ३१ ।। राजापर रा सका आवेश था, अतः उ ह ने रसोइयेसे न त होकर कहा—‘उस ा णको मनु यका मांस ही खला दो’ यह बात उ ह ने बार-बार हरायी ।। ३१ ।। तथे यु वा ततः सूदः सं थानं व यघा तनाम् । ग वाऽऽजहार व रतो नरमांसमपेतभीः ।। ३२ ।। तब रसोइया ‘तथा तु’ कहकर व यभू मम ज लाद के घर गया और (उनसे) नभय होकर तुरंत ही मनु यका मांस ले आया ।। ३२ ।। एतत् सं कृ य व धवद ोप हतमाशु वै । त मै ादाद् ा णाय ु धताय तप वने ।। ३३ ।। फर उसीको तुरंत व धपूवक राँधकर अ के साथ उसे उस तप वी एवं भूखे ा णको दे दया ।। ३३ ।। स स च ुषा ् वा तद ं जस मः । अभो य मद म याह ोधपयाकुले णः ।। ३४ ।। तब उस े ा णने तपः स से उस अ को दे खा और ‘यह खानेयो य नह है’ य समझकर ोधपूण ने से दे खते ए कहा ।। ३४ ।। ा ण उवाच य मादभो यम ं मे ददा त स नृपाधमः । त मात् त यैव मूढ य भ व य य लोलुपा ।। ३५ ।। ा णने कहा—वह नीच राजा मुझे न खाने-यो य अ दे रहा है, अतः उसी मूखक ज ा ऐसे अ के लये लाला यत रहेगी ।। ३५ ।। स ो मानुषमांसेषु यथो ः श ना तथा । उ े जनीयो भूतानां च र य त मही ममाम् ।। ३६ ।। ै े ै े ो

जैसा क श मु नने कहा है, वह मनु य के मांसम आस हो सम त ा णय का उ े गपा बनकर इस पृ वीपर वचरेगा ।। ३६ ।। रनु ा ते रा ः स शापो बलवानभूत् । र ोबलसमा व ो वसं ाभव ृपः ।। ३७ ।। दो बार इस तरहक बात कही जानेके कारण राजाका शाप बल हो गया। उसके साथ उनम रा सके बलका समावेश हो जानेके कारण राजाक ववेकश सवथा लु त हो गयी ।। ३७ ।। ततः स नृप त े ो र साप ते यः । उवाच श तं ् वा न चरा दव भारत ।। ३८ ।। भारत! रा सने राजाके मन और इ य को काबूम कर लया था, अतः उन नृप े ने कुछ ही दन बाद उ श मु नको अपने सामने दे खकर कहा— ।। ३८ ।। य मादस शः शापः यु ोऽयं म य वया । त मात् व ः व त ये खा दतुं पु षानहम् ।। ३९ ।। ‘चूँ क तुमने मुझे यह सवथा अयो य शाप दया है, अतः अब म तु ह से मनु य का भ ण आर भ क ँ गा’ ।। ३९ ।। एवमु वा ततः स तं ाणै व यु य च । श नं भ यामास ा ः पशु मवे सतम् ।। ४० ।। य कहकर राजाने त काल ही श के ाण ले लये और जैसे बाघ अपनी चके अनुकूल पशुको चबा जाता है, उसी कार वे भी श को खा गये ।। ४० ।। श नं तु मृतं ् वा व ा म ः पुनः पुनः । व स यैव पु ेषु तद् र ः सं ददे श ह ।। ४१ ।। श को मारा गया दे ख व ा म बार-बार व स के पु पर ही आ मण करनेके लये उस रा सको े रत करते थे ।। ४१ ।। स ता छ यवरान् पु ान् व स य महा मनः । भ यामास सं ु ः सहः ु मृगा नव ।। ४२ ।। जैसे ोधम भरा आ सह छोटे मृग को खा जाता है, उसी कार उन (रा सभावाप ) नरेशने महा मा व स के उन सब पु को भी, जो श से छोटे थे, (मारकर) खा लया ।। ४२ ।। व स ो घा तता छ वा व ा म ेण तान् सुतान् । धारयामास तं शोकं महा रव मे दनीम् ।। ४३ ।। व स ने यह सुनकर भी क व ा म ने मेरे पु को मरवा डाला है, अपने शोकके वेगको उसी कार धारण कर लया, जैसे महान् पवत सुमे इस पृ वीको ।। ४३ ।। च े चा म वनाशाय बु स मु नस मः । न वेव कौ शको छे दं मेने म तमतां वरः ।। ४४ ।। उस समय (अपनी पु वधु के ःखसे ःखत हो) व स ने अपने शरीरको याग दे नेका वचार कर लया; परंतु व ा म का मूलो छे द करनेक बात बु -मान म े े ी ी

मु नवर व स के मनम ही नह आयी ।। ४४ ।। स मे कूटादा मानं मुमोच भगवानृ षः । गरे त य शलायां तु तूलराशा ववापतत् ।। ४५ ।। मह ष भगवान् व स ने मे पवतके शखरसे अपने-आपको उसी पवतक शलापर गराया; परंतु उ ह ऐसा जान पड़ा मानो वे ईके ढे रपर गरे ह ।। ४५ ।। न ममार च पातेन स यदा तेन पा डव । तदा न म ं भगवान् सं ववेश महावने ।। ४६ ।। पा डु न दन! जब (इस कार) गरनेसे भी वे नह मरे, तब वे भगवान् व स महान् वनके भीतर धधकते ए दावानलम घुस गये ।। ४६ ।। तं तदा सुस म ोऽ प न ददाह ताशनः । द यमानोऽ य म न शीतोऽ नरभवत् ततः ।। ४७ ।। य प उस समय अ न च ड वेगसे व लत हो रही थी, तो भी उ ह जला न सक । श ुसूदन अजुन! उनके भावसे वह दहकती ई आग भी उनके लये शीतल हो गयी ।। ४७ ।। स समु म भ े य शोका व ो महामु नः । बद् वा क ठ े शलां गुव नपपात तदा भ स ।। ४८ ।। तब शोकके आवेशसे यु महामु न व स ने सामने समु दे खकर अपने क ठम बड़ी भारी शला बाँध ली और त काल जलम कूद पड़े ।। ४८ ।। स समु ो मवेगेन थले य तो महामु नः । न ममार यदा व ः कथं चत् सं शत तः । जगाम स ततः ख ः पुनरेवा मं त ।। ४९ ।। परंतु समु क लहर के वेगने उन महामु नको कनारे लाकर डाल दया। कठोर तका पालन करनेवाले ष व स जब कसी कार न मर सके, तब ख होकर अपने आ मपर ही लौट पड़े ।। ४९ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण चै रथपव ण वा स े व स शोके प चस त य धकशततमोऽ यायः ।। १७५ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत चै रथपवम व स च र के संगम व स शोक वषयक एक सौ पचह रवाँ अ याय पूरा आ ।। १७५ ।।

षट् स त य धकशततमोऽ यायः क माषपादका शापसे उ ार और व स जीके ारा उ ह अ मक नामक पु क ा त ग धव उवाच ततो ् वाऽऽ मपदं र हतं तैः सुतैमु नः । नजगाम सु ःखातः पुनर या मात् ततः ।। १ ।। ग धव कहता है—अजुन! तदन तर मु नवर व स आ मको अपने पु से सूना दे ख अ य त ःखसे पी ड़त हो गये और पुनः आ म छोड़कर चल दये ।। १ ।। सोऽप यत् स रतं पूणा ावृट्काले नवा भसा । वृ ान् ब वधान् पाथ हर त तीरजान् बन् ।। २ ।। कु तीन दन! वषाका समय था; उ ह ने दे खा, एक नद नूतन जलसे लबालब भरी है और तटवत ब त-से वृ को (अपने जलक धाराम) बहाये लये जाती है ।। २ ।। अथ च तां समापेदे पुनः कौरवन दन । अ भ य या नम जेय म त ःखसम वतः ।। ३ ।। कौरवन दन! (उसे दे खकर) ःखसे यु व स जीके मनम फर यह वचार आया क म इसी नद के जलम डू ब जाऊँ ।। ३ ।। ततः पाशै तदाऽऽ मानं गाढं बद् वा महामु नः । त या जले महान ा नमम ज सु ःखतः ।। ४ ।। तब अ य त ःखी ए महामु न व स अपने शरीरको पाश ारा अ छ तरह बाँधकर उस महानद के जलम कूद पड़े ।। ४ ।। अथ छ वा नद पाशां त या रबलसूदन । थल थं तमृ ष कृ वा वपाशं समवासृजत् ।। ५ ।। श ुसेनाका संहार करनेवाले अजुन! उस नद ने व स जीके ब धन काटकर उ ह थलम प ँचा दया और उ ह वपाश (ब धनर हत) करके छोड़ दया ।। ५ ।। उ तार ततः पाशै वमु ः स महानृ षः । वपाशे त च नामा या न ा े महानृ षः ।। ६ ।। तब पाशमु हो मह ष जलसे नकल आये और उ ह ने उस नद का नाम ‘ वपाशा’ ( ास) रख दया ।। ६ ।। शोकबु तदा च े न चैक त त। सोऽग छत् पवतां ैव स रत सरां स च ।। ७ ।। उस समय (पु वधु के संतोषके लये) उ ह ने शोकबु कर ली थी, इस लये वे कसी एक थानम नह ठहरते थे; पवत , न दय और सरोवर के तटपर च कर लगाते रहते थे ।। ७ ।। े



् वा स पुनरेव षनद हैमवत तदा । च ड ाहवत भीमां त याः ोत यपातयत् ।। ८ ।। (इस तरह घूमते-घूमते) मह षने पुनः हमालय पवतसे नकली ई एक भयंकर नद को दे खा, जसम बड़े च ड ाह रहते थे। उ ह ने फर उसीक खर धाराम अपने-आपको डाल दया ।। ८ ।। सा तम नसमं व मनु च य स र रा । शतधा व ता य मा छत र त व ुता ।। ९ ।। वह े नद ष व स को अ नके समान तेज वी जान सैकड़ धारा म फूटकर इधर-उधर भाग चली। इसी लये वह ‘शत ’ नामसे व यात ई ।। ९ ।। ततः थलगतं ् वा त ा या मानमा मना । मतु न श य म यु वा पुनरेवा मं ययौ ।। १० ।। वहाँ भी अपनेको वयं ही थलम पड़ा दे ख ‘म मर नह सकता’ य कहकर वे फर अपने आ मपर ही चले गये ।। १० ।। स ग वा व वधा छै लान् दे शान् ब वधां तथा । अ य या यया व वाथा मेऽनुसृतोऽभवत् ।। ११ ।। इस तरह नाना कारके पवत और ब सं यक दे श म मण करके वे पुनः जब अपने आ मके समीप आये, उस समय उनक पु वधू अ य ती उनके पीछे हो ली ।। ११ ।। अथ शु ाव संग या वेदा ययन नः वनम् । पृ तः प रपूणाथ षड् भर ै रलंकृतम् ।। १२ ।। मु नको पीछे क ओरसे संग तपूवक छह अंग से अलंकृत तथा फुट अथ से यु वेदम के अ ययनका श द सुन पड़ा ।। १२ ।। अनु ज त को वेष मा म येवाथ सोऽ वीत् । अह म य य तीमं सा नुषा यभाषत । श े भाया महाभाग तपोयु ा तप वनी ।। १३ ।। तब उ ह ने पूछा—‘मेरे पीछे -पीछे कौन आ रहा है?’ उ पु वधूने उ र दया, ‘महाभाग! म तपम ही संल न रहनेवाली मह ष श क अनाथ प नी अ य ती ँ’ ।। १३ ।। व स उवाच पु क यैष सा य वेद या ययन वनः । पुरा सा य वेद य श े रव मया ुतः ।। १४ ।। व स जीने पूछा—बेट ! पहले श के मुँहसे म अंग स हत वेदका जैसा पाठ सुना करता था, ठ क उसी कार यह कसके ारा कये ए सांग वेदके अ ययनक व न मेरे कान म आ रही है? ।। १४ ।। अ य युवाच अयं कु ौ समु प ः श े गभः सुत य ते । े े ो े

समा ादश त येह वेदान य यतो मुने ।। १५ ।। अ य ती बोली—भगवन्! यह मेरे उदरम उ प आ आपके पु श है। मुने! उसे मेरे गभम ही वेदा यास करते बारह वष हो गये ह ।। १५ ।।

का बालक

ग धव उवाच एवमु तया ो व स ः े भागृ षः । अ त संतान म यु वा मृ योः पाथ यवतत ।। १६ ।। ग धव कहता है—अजुन! अ य तीके य कहनेपर भगवान् पु षो मका भजन करनेवाले मह ष व स बड़े स ए और ‘मेरी वंशपर पराका लोप नह आ है,’ य कहकर मरनेके संक पसे वरत हो गये ।। १६ ।। ततः त नवृ ः स तया व वा सहानघ । क माषपादमासीनं ददश वजने वने ।। १७ ।। अनघ! तब वे अपनी पु वधूके साथ आ मक ओर लौटने लगे। इतनेम ही मु नने नजन वनम बैठे ए राजा क माषपादको दे खा ।। १७ ।। स तु ् वैव तं राजा ु उ थाय भारत । आ व ो र सो ेण इयेषा ुं तदा मु नम् ।। १८ ।। भारत! भयानक रा ससे आ व ए राजा क माषपाद मु नको दे खते ही ोधम भरकर उठे और उसी समय उ ह खा जानेक इ छा करने लगे ।। १८ ।। ी

अ य ती तु तं ् वा ू रकमाणम तः । भयसं व नया वाचा व स मदम वीत् ।। १९ ।। उस ू रकम रा सको सामने दे ख अ य तीने भयाकुल वाणीम व स जीसे यह कहा — ।। १९ ।। असौ मृ यु रवो ेण द डेन भगव तः । गृहीतेन का ेन रा सोऽ ये त दा णः ।। २० ।। ‘भगवन्! वह भयंकर रा स एक ब त बड़ा काठ लेकर इधर ही आ रहा है, मानो सा ात् यमराज भयानक द ड लये आ रहे ह ।। २० ।। तं नवार यतुं श ो ना योऽ त भु व क न । व तेऽ महाभाग सववेद वदां वर ।। २१ ।। ‘महाभाग! आप स पूण वेदवे ा म े ह। (इस समय) इस भूतलपर आपके सवा सरा कोई नह है, जो उस रा सका वेग रोक सके ।। २१ ।। पा ह मां भगवन् पापाद माद् दा णदशनात् । रा सोऽय महा ुं वै नूनमावां समीहते ।। २२ ।। ‘भगवन्! दे खनेम अ य त भयंकर इस पापीसे मेरी र ा क जये। न य ही यह रा स यहाँ हम दोन को खा जानेक घातम लगा है’ ।। २२ ।। व स उवाच मा भैः पु न भेत ं रा सात् तु कथंचन । नैतद् र ो भयं य मात् प य स वमुप थतम् ।। २३ ।। व स जीने कहा—बेट ! भयभीत न हो। इस रा ससे तो कसी कार न डरो। जससे तु ह भय उप थत दखायी दे ता है, यह वा तवम रा स नह है ।। २३ ।। राजा क माषपादोऽयं वीयवान् थतो भु व । स एषोऽ मन् वनो े शे नवस य तभीषणः ।। २४ ।। ये भूम डलम व यात परा मी राजा क माषपाद ह। ये ही इस वनम अ य त भीषण प धारण करके रहते ह ।। २४ ।। ग धव उवाच तमापत तं स े य व स ो भगवानृ षः । वारयामास तेज वी ंकारेणैव भारत ।। २५ ।। ग धव कहता है—भारत! उस रा सको आते दे ख तेज वी भगवान् व स मु नने ंकारमा से ही रोक दया ।। २५ ।।

म पूतेन च पुनः स तम यु य वा रणा । मो यामास वै शापात् त माद् योगा रा धपम् ।। २६ ।। और म पूत जलसे उसके छट े दे कर अपने योगके भावसे राजाको उस शापसे मु कर दया ।। २६ ।। स ह ादश वषा ण वा स यैव तेजसा । त आसीद् हेणेव पवकाले दवाकरः ।। २७ ।। जैसे पवकालम सूय रा ारा त हो जाता है, उसी कार राजा क माषपाद बारह वष तक व स जीके पु श के ही तेज (शापके भाव)-से त रहे ।। २७ ।। र सा व मु ोऽथ स नृप तद् वनं महत् । तेजसा र यामास सं या मव भा करः ।। २८ ।। उस (म पूत जलके भावसे) रा सने भी राजाको छोड़ दया। फर तो भगवान् भा कर जैसे सं याकालीन बादल को अपनी (अ ण) करण से रँग दे ते ह, उसी कार राजाने अपने (सहज) तेजसे उस महान् वनको अनुरं जत कर दया ।। २८ ।। तल य ततः सं ाम भवा कृता लः । उवाच नृप तः काले व स मृ षस मम् ।। २९ ।। तदन तर सचेत होनेपर राजा क माषपादने त काल ही मु न े व स को णाम कया और हाथ जोड़कर कहा— ।। २९ ।। सौदासोऽहं महाभाग या य ते मु नस म । े





अ मन् काले य द ं ते ू ह क करवा ण ते ।। ३० ।। ‘महाभाग मु न े ! म आपका यजमान सौदास ँ। इस समय आपक जो अ भलाषा हो, क हये—म आपक या सेवा क ँ ?’ ।। ३० ।। व स उवाच वृ मेतद् यथाकालं ग छ रा यं शा ध वै । ा णं तु मनु ये मावमं थाः कदाचन ।। ३१ ।। व स जीने कहा—नरे ! मेरी जो अ भलाषा थी, वह समयानुसार स हो गयी। अब जाओ, अपना रा य सँभालो। (आजसे फर) कभी ा णका अपमान न करना ।। ३१ ।। राजोवाच नावमं ये महाभाग कदा चद् ा णानहम् । व दे शे थतः स यक् पूज य या यहं जान् ।। ३२ ।। राजा बोले—महाभाग! म कभी ा ण का अपमान नह क ँ गा। आपक आ ाके पालनम संल न हो (सदा) ा ण क भलीभाँ त पूजा क ँ गा ।। ३२ ।। इ वाकूणां च येनाहमनृणः यां जो म । तत् व ः ा तु म छा म सववेद वदां वर ।। ३३ ।। सम त वेदवे ा म अ ग य ज े ! म आपसे एक पु ा त करना चाहता ँ, जसके ारा म अपने इ वाकुवंशी पतर के ऋणसे उऋण हो सकूँ ।। ३३ ।। अप यमी सतं म ं दातुमह स स म । शील पगुणोपेत म वाकुकुलवृ ये ।। ३४ ।। साधु शरोमणे! इ वाकुवंशक वृ के लये आप मुझे ऐसी अभी संतान द जये, जो उ म वभाव, सु दर प और े गुण से स प हो ।। ३४ ।। ग धव उवाच ददानी येव तं त राजानं युवाच ह । व स ः परमे वासं स यसंधो जो मः ।। ३५ ।। ग धव कहता है—कु तीन दन! तब स य त व वर व स ने महान् धनुधर राजा क माषपादसे उ रम कहा—‘म तु ह वैसा ही पु ँ गा’ ।। ३५ ।। ततः तययौ काले व स ः सह तेन वै । यातां पुरी ममां लोके वयो यां मनुजे र ।। ३६ ।। मनुजे र! तदन तर यथासमय राजाके साथ व स जी उनक राजधानीम गये, जो लोक म अयो या पुरीके नामसे स है ।। ३६ ।। तं जाः तमोद यः सवाः युदगता ् तदा । वपा मानं महा मानं दवौकस इवे रम् ।। ३७ ।। े







अपने पापर हत महा मा नरेशका आगमन सुनकर अयो याक सारी जा अ य त स हो उनक अगवानीके लये ठ क उसी तरह बाहर नकल आयी, जैसे दे वतालोग अपने वामी इ का वागत करते ह ।। ३७ ।। सु चराय मनु ये ो नगर पु यल णाम् । ववेश स हत तेन व स ेन मह षणा ।। ३८ ।। द शु तं महीपालमयो यावा सनो जनाः । पुरो हतेन स हतं दवाकर मवो दतम् ।। ३९ ।। ब त वष के बाद राजाने उस पु यमयी नगरीम स मह ष व स के साथ वेश कया। अयो या-वासी लोग ने पुरो हतके साथ आये ए राजा क माष-पादका उसी कार दशन कया, जैसे ( ातःकाल) जा उ दत ए भगवान् सूयका दशन करती है ।। ३८-३९ ।। स च तां पूरयामास ल या ल मीवतां वरः । अयो यां ोम शीतांशुः शर काल इवो दतः ।। ४० ।। जैसे शीतल करण वाले च मा शर कालम उ दत हो आकाशको अपनी यो नासे जगमग कर दे ते ह, उसी कार ल मीवान म े नरेशने उस अयो यापुरीको शोभासे प रपूण कर दया ।। ४० ।। सं स मृ प थानं पताका वजशो भतम् । मनः ादयामास त य तत् पुरमु मम् ।। ४१ ।। नगरक सड़क को झाड़-बुहारकर उनपर छड़काव कया गया था। सब ओर लगी ई वजा-पताकाएँ उस पुरीक शोभा बढ़ा रही थ । इस कार राजाक वह उ म नगरी दशक के मनको उ म आ ाद दान कर रही थी ।। ४१ ।। तु पु जनाक णा सा पुरी कु न दन । अशोभत तदा तेन श े णेवामरावती ।। ४२ ।। कु न दन! जैसे इ से अमरावतीक शोभा होती है, उसी कार संतु एवं पु मनु य से भरी ई अयो यापुरी उस समय महाराज क माषपादक उप थ तसे बड़ी शोभा पा रही थी ।। ४२ ।। ततः व े राजष त मं तत् पुरमु मम् । रा त या या दे वी व स मुपच मे ।। ४३ ।। राज ष क माषपादके उस उ म नगरीम वेश करनेके प ात् उ महाराजक आ ाके अनुसार महारानी (मदय ती) मह ष व स जीके समीप गय ।। ४३ ।। ऋतावथ मह षः स स बभूव तया सह । दे ा द ेन व धना व स ः े भागृ षः ।। ४४ ।। त प ात् भगव मह ष व स ने ऋतुकालम शा क अलौ कक व धके अनुसार महारानीके साथ नयोग कया ।। ४४ ।। तत त यां समु प े गभ स मु नस मः । रा ा भवा दत तेन जगाम मु नरा मम् ।। ४५ ।। ी ो े े ो( े

तदन तर रानीक कु म गभ था पत हो जानेपर उ राजासे व दत हो (उनसे वदा लेकर) मु नवर व स अपने आ मको लौट गये ।। ४५ ।। द घकालेन सा गभ सुषुवे न तु तं यदा । तदा दे मना कु न बभेद यश वनी ।। ४६ ।। जब ब त समय बीतनेके बाद (भी) वह गभ बाहर न नकला, तब यश वनी रानी (मदय ती)-ने अ म (प थर)-से अपने गभाशयपर हार कया ।। ४६ ।। ततोऽ प ादशे वष स ज े पु षषभः । अ मको नाम राज षः पौद यं यो यवेशयत् ।। ४७ ।। तदन तर बारहव वषम बालकका ज म आ। वही पु ष े राज ष अ मकके नामसे स आ, ज ह ने पौद य नामका नगर बसाया था ।। ४७ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण चै रथपव ण वा स े सौदाससुतो प ौ षट् स त य धकशततमोऽ यायः ।। १७६ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत चै रथपवम व स च र के संगम सौदासको पु - ा त वषयक एक सौ छह रवाँ अ याय पूरा आ ।। १७६ ।।

स तस त य धकशततमोऽ यायः श पु पराशरका ज म और पताक मृ युका हाल सुनकर कु पत ए पराशरको शा त करनेके लये व स जीका उ ह औव पा यान सुनाना ग धव उवाच आ म था ततः पु म य ती जायत । श े ः कुलकरं राजन् तीय मव श नम् ।। १ ।। ग धव कहता है—अजुन! तदन तर (व स जीके) आ मम रहती ई अ य तीने श के वंशको बढ़ानेवाले एक पु को ज म दया, मानो उस बालकके पम सरे श मु न ही ह ।। १ ।। जातकमा दका त य याः स मु नस मः । पौ य भरत े चकार भगवान् वयम् ।। २ ।। भरत े ! मु नवर भगवान् व स ने वयं अपने पौ के जातकम आ द सं कार कये ।। २ ।। परासुः स यत तेन व स ः था पतो मु नः । गभ थेन ततो लोके पराशर इ त मृतः ।। ३ ।। उस बालकने गभम आकर परासु (मरनेक इ छावाले) व स मु नको पुनः जी वत रहनेके लये उ सा हत कया था; इस लये वह लोकम ‘पराशर’ के नामसे व यात आ ।। ३ ।। अम यत स धमा मा व स ं पतरं मु नः । ज म भृ त त मं तु पतरीवा ववतत ।। ४ ।। धमा मा पराशर मु न व स को ही अपना पता मानते थे और ज मसे ही उनके त पतृभाव रखते थे ।। ४ ।। स तात इ त व षव स ं यभाषत । मातुः सम ं कौ तेय अ य याः परंतप ।। ५ ।। परंतप कु तीकुमार! एक दन ष पराशरने अपनी माता अ य तीके सामने ही व स जीको ‘तात’ कहकर पुकारा ।। ५ ।। ताते त प रपूणाथ त य त मधुरं वचः । अ य य ुपूणा ी शृ वती तमुवाच ह ।। ६ ।। बेटेके मुखसे प रपूण अथका बोधक ‘तात’ यह मधुर वचन सुनकर अ य तीके ने म आँसू भर आये और वह उससे बोली— ।। ६ ।। मा तात तात ताते त ू ेनं पतरं पतुः । र सा भ त तात तव तातो वना तरे ।। ७ ।। ‘ े े े े ी ‘ ’ ो

‘बेटा! ये तु हारे पताके भी पता ह। तुम इ ह ‘तात तात!’ कहकर न पुकारो। व स! तु हारे पताको तो वनके भीतर रा स खा गया ।। ७ ।। म यसे यं तु ताते त नैष तात तवानघ । आय एष पता त य पतु तव यश वनः ।। ८ ।। ‘अनघ! तुम ज ह तात मानते हो, ये तु हारे तात नह ह। ये तो तु हारे यश वी पताके भी पूजनीय पता ह’ ।। ८ ।। स एवमु ो ःखातः स यवागृ षस मः । सवलोक वनाशाय म त च े महामनाः ।। ९ ।। माताके य कहनेपर स यवाद मु न े महामना पराशर ःखसे आतुर हो उठे । उ ह ने उसी समय सब लोक को न कर डालनेका वचार कया ।। ९ ।। तं तथा न ता मानं स महा मा महातपाः । ऋष वदां े ो मै ाव णर यधीः ।। १० ।। व स ो वारयामास हेतुना येन त छृ णु । उनके मनका ऐसा न य जान वे ा म े महातप वी, महा मा एवं ता वक बु वाले म ाव णन दन व स जीने पराशरको ऐसा करनेसे रोक दया। जस हेतु और यु से वे उ ह रोकनेम सफल ए, वह (बताता ँ,) सु नये ।। १० ।। व स उवाच कृतवीय इ त यातो बभूव पृ थवीप तः ।। ११ ।। या यो वेद वदां लोके भृगूणां पा थवषभः । स तान भुज तात धा येन च धनेन च ।। १२ ।। सोमा ते तपयामास वपुलेन वशा प तः । त मन् नृप तशा ले वयातेऽथ कथंचन ।। १३ ।। बभूव त कुलेयानां कायमुप थतम् । भृगूणां तु धनं ा वा राजानः सव एव ते ।। १४ ।। या च णवोऽ भज मु तां ततो भागवस मान् । भूमौ तु नदधुः के चद् भृगवो धनम यम् ।। १५ ।। व स जीने (पराशरसे) कहा—व स! इस पृ वीपर कृतवीय नामसे स एक राजा थे। वे नृप े वेद भृगव ु ंशी ा ण के यजमान थे। तात! उन महाराजने सोमय करके उसके अ तम उन अ भोजी भागव को वपुल धन और धा य दे कर उसके ारा पूण संतु कया। राजा म े कृतवीयके वगवासी हो जानेपर उनके वंशज को कसी तरह क आव यकता आ पड़ी। भृगव ु ंशी ा ण के यहाँ धन है, यह जानकर वे सभी राजपु उन े भागव के पास याचक बनकर गये। उस समय कुछ भागव ने अपनी अ य धनरा शको धरतीम गाड़ दया ।। ११—१५ ।। द ः के चद् जा त यो ा वा यतो भयम् । भृगव तु द ः के चत् तेषां व ं यथे सतम् ।। १६ ।। े



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कुछने य से भय समझकर अपना धन ा ण को दे दया और कुछ भृगव ु ं शय ने उन य को यथे धन दे भी दया ।। १६ ।। याणां तदा तात कारणा तरदशनात् । ततो महीतलं तात येण य छया ।। १७ ।। खनता धगतं व ं केन चद् भृगुवे म न । तद् व ं द शुः सव समेताः यषभाः ।। १८ ।। तात! कुछ सरे- सरे कारण का वचार करके उस समय उ ह ने य को धन दान कया था। व स! तदन तर कसी यने अक मात् धरती खोदते-खोदते कसी भृगव ु ंशीके घरम गड़ा आ धन पा लया। तब सभी े य ने एक होकर उस धनको दे खा ।। १७-१८ ।। अवम य ततः ोधाद् भृगूं ता छरणागतान् । नज नुः परमे वासाः सवा तान् न शतैः शरैः ।। १९ ।। फर तो उ ह ने ोधम भरकर शरणम आये ए भृगव ु ं शय का भी अपमान कया। उन महान् धनुधर वीर ने (वहाँ आये ए) सम त भागव को तीखे बाण से मारकर यमलोक प ँचा दया ।। १९ ।। आगभादवकृ त त े ः सवा वसु धराम् । तत उ छ मानेषु भृगु वेवं भयात् तदा ।। २० ।। भृगुप यो गर ग हमव तं पे दरे । तासाम यतमा गभ भयाद् द े महौजसम् ।। २१ ।। ऊ णैकेन वामो भतुः कुल ववृ ये । तद् गभमुपल याशु ा णी या भया दता ।। २२ ।। ग वैका कथयामास याणामुप रे । तत ते या ज मु तं गभ ह तुमु ताः ।। २३ ।। तदन तर भृगव ु ं शय के गभ थ बालक क भी ह या करते ए वे ोधा ध य सारी पृ वीपर वचरने लगे। इस कार भृगव ु ंशका उ छे द आर भ होनेपर भृगव ु ं शय क प नयाँ उस समय भयके मारे हमालयक गम क दराम जा छप । उनमसे एक ीने अपने महान् तेज वी गभको भयके मारे एक ओरक जाँघको चीरकर उसम रख लया। उस वामो ने अपने प तके वंशक वृ के लये ऐसा साहस कया था। उस गभका समाचार जानकर कोई ा णी ब त डर गयी और उसने शी ही अकेली जाकर य के समीप उसक खबर प ँचा द । फर तो वे यलोग उस गभक ह या करनेके लये उ त हो वहाँ गये ।। २०—२३ ।। द शु ा ण तेऽथ द यमानां वतेजसा । अथ गभः स भ वो ं ा या नजगाम ह ।। २४ ।। उ ह ने दे खा, वह ा णी अपने तेजसे का शत हो रही है। उसी समय उस ा णीका वह गभ थ शशु उसक जाँघ फाड़कर बाहर नकल आया ।। २४ ।। मु णन् ीः याणां म या इव भा करः । ी े

तत ु वहीना ते ग र गषु ब मुः ।। २५ ।। बाहर नकलते ही दोपहरके च ड सूयक भाँ त उस तेज वी शशुने (अपने तेजसे) उन य क आँख क यो त छ न ली। तब वे अंधे होकर उस पवतके बीहड़ थान म भटकने लगे ।। २५ ।। तत ते मोहमाप ा राजानो न यः । ा ण शरणं ज मु थ ताम न दताम् ।। २६ ।। फर मोहके वशीभूत हो अपनी को खो दे नेवाले य ने पुनः ा त करनेके लये उसी सती-सा वी ा णीक शरण ली ।। २६ ।। ऊचु ैनां महाभागां या ते वचेतसः । यो तः हीणा ःखाताः शा ता चष इवा नयः ।। २७ ।। भगव याः सादे न ग छे त् ं सच ुषम् । उपार य च ग छे म स हताः पापक मणः ।। २८ ।। वे य उस समय आँखक यो तसे वं चत हो बुझी ई लपट वाली आगके समान अ य त ःखसे आतुर एवं अचेत हो रहे थे। अतः वे उस महान् सौभा यशा लनी दे वीसे इस कार बोले—‘दे व! य द आपक कृपा हो तो ने पाकर यह य का दल अब लौट जायगा, थोड़ी दे र व ाम करके हम सभी पापाचारी यहाँसे साथ ही चले जायँगे’ ।। २७-२८ ।। सपु ा वं सादं नः कतुमह स शोभने । पुन दानेन रा ः सं ातुमह स ।। २९ ।। ‘शोभने! तुम अपने पु के साथ हम सबपर स हो जाओ और पुनः नूतन दे कर हम सभी राजपु क र ा करो’ ।। २९ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण चै रथपव यौव पा याने स तस त य धकशततमोऽ यायः ।। १७७ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत चै रथपवम औव पा यान वषयक एक सौ सतह रवाँ अ याय पूरा आ ।। १७७ ।।

अ स त य धकशततमोऽ यायः पतर ारा औवके

ोधका नवारण



युवाच नाहं गृ ा म व ताता ीना म षा वता । अयं तु भागवो नूनमू जः कु पतोऽ वः ।। १ ।। ा णीने कहा—पु ो! मने तु हारी नह ली है; मुझे तुमपर ोध भी नह है। परंतु मेरी जाँघसे पैदा आ यह भृगव ु ंशी बालक न य ही तु हारे ऊपर आज कु पत आ है ।। १ ।। तेन च ूं ष व ताता ं कोपा महा मना । मरता नहतान् ब धूनाद ा न न संशयः ।। २ ।। पु ो! यह प जान पड़ता है क इस महा मा शशुने तुमलोग ारा मारे गये अपने ब धु-बा धव का मरण करके ोधवश तु हारी आँख ले ली ह, इसम संशय नह है ।। २ ।। गभान प यदा यूयं भृगूणां नत पु काः । तदायमू णा गभ मया वषशतं धृतः ।। ३ ।। ब चो! जबसे तुमलोग भृगव ु ं शय के गभ थ बालक क भी ह या करने लगे, तबसे मने अपने इस गभको सौ वष तक एक जाँघम छपाकर रखा था ।। ३ ।। षड ाखलो वेद इमं गभ थमेव ह । ववेश भृगुवंश य भूयः य चक षया ।। ४ ।। भृगक ु ु लका पुनः य करनेक इ छासे छह अंग स हत स पूण वेद इस बालकको गभम ही ा त हो गये थे ।। ४ ।। सोऽयं पतृवधाद् ं ोधाद् वो ह तु म छ त । तेजसा त य द ेन च ूं ष मु षता न वः ।। ५ ।। अतः यह बालक अपने पताके वधसे कु पत हो न य ही तुमलोग को मार डालना चाहता है। इसीके द तेजसे तु हारी ने - यो त छन गयी है ।। ५ ।। तमेव यूयं याच वमौव मम सुतो मम् । अयं वः णपातेन तु ो ीः मो य त ।। ६ ।। इस लये तुमलोग मेरे इस उ म पु औवसे ही याचना करो। यह तुमलोग के नतम तक होनेसे संतु होकर पुनः तु हारी खोयी ई ने क यो त दे दे गा ।। ६ ।। व स उवाच एवमु ा ततः सव राजान ते तमू जम् । ऊचुः सीदे त तदा सादं च चकार सः ।। ७ ।। ी



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व स जी कहते ह—पराशर! ा णीके य कहनेपर उन सब य ने तब औवको ( णाम करके) कहा—‘आप स होइये।’ तब (उनके वनययु वचन सुनकर) औवने स हो (अपने तपके भावसे) उनको ने क यो त दे द ।। ७ ।। अनेनैव च व यातो ना ना लोकेषु स मः । स औव इ त व ष ं भ वा जायत ।। ८ ।। वे साधु शरोम ण ष अपनी माताका ऊ भेदन करके उ प ए थे, इसी कारण लोकम ‘औव’ नामसे उनक या त ई ।। ८ ।। च ूं ष तल वा च तज मु ततो नृपाः । भागव तु मु नमने सवलोकपराभवम् ।। ९ ।। तदन तर अपनी खोयी ई आँख पाकर वे यलोग लौट गये; इधर भृगव ु ंशी औव मु नने स पूण लोक के पराभवका वचार कया ।। ९ ।। स च े तात लोकानां वनाशाय महामनाः । सवषामेव का यन मनः वणमा मनः ।। १० ।। व स पराशर! उन महामना मु नने सम त लोक का पूण पसे वनाश करनेक ओर अपना मन लगाया ।। १० ।। इ छ प च त कतु भृगूणां भृगुन दनः । सवलोक वनाशाय तपसा महतै धतः ।। ११ ।। भृगक ु ु लको आन दत करनेवाले उस कुमारने ( य ारा मारे गये) अपने भृगव ु ंशी पूवज का स मान करने (अथवा उनके वधका बदला लेने)-के लये सब लोक के वनाशका न य कया और ब त बड़ी तप या ारा अपनी श को बढ़ाया ।। ११ ।। तापयामास ताँ लोकान् सदे वासुरमानुषान् । तपसो ेण महता न द य यन् पतामहान् ।। १२ ।। उसने अपने पतर को आन दत करनेके लये अ य त उ तप या ारा दे वता, असुर और मनु य स हत उन सभी लोक को संत त कर दया ।। १२ ।। तत तं पतर तात व ाय कुलन दनम् । पतृलोका पाग य सव ऊचु रदं वचः ।। १३ ।। तात! तदन तर सभी पतर ने अपने कुलका आन द बढ़ानेवाले औव मु नका वह न य जानकर पतृलोकसे आकर यह बात कही ।। १३ ।। पतर ऊचुः औव ः भाव ते तपसो य पु क । सादं कु लोकानां नय छ ोधमा मनः ।। १४ ।। पतर बोले—बेटा औव! तु हारी उ तप याका भाव हमने दे ख लया। अब अपना ोध रोको और स पूण लोक पर स हो जाओ ।। १४ ।। नानीशै ह तदा तात भृगु भभा वता म भः । वधो पे तः सवः याणां व हसताम् ।। १५ ।। ो



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तात! यह न समझना क जस समय यलोग हमारी हसा कर रहे थे, उस समय शु अ तःकरणवाले हम भृगव ु ंशी ा ण ने असमथ होनेके कारण अपने कुलके वधको चुपचाप सह लया ।। १५ ।। आयुषा व कृ ेन यदा नः खेद आ वशत् । तदा मा भवध तात यैरी सतः वयम् ।। १६ ।। व स! जब हमारी आयु ब त बड़ी हो गयी (और तब भी मौत नह आयी), उस दशाम हमलोग को (बड़ा) खेद आ और हमने (जान-बूझकर) य से वयं अपना वध करानेक इ छा क ।। १६ ।। नखातं य च वै व ं केन चद् भृगुवे म न । वैरायैव तदा य तं यान् कोप य णु भः ।। १७ ।। कसी भृगव ु ंशीने अपने घरम जो धन गाड़ दया था, वह भी वैर बढ़ानेके लये ही कया गया था। हम चाहते थे क यलोग हमारे ऊपर कु पत हो जायँ ।। १७ ।। क ह व ेन नः काय वग सूनां जो म । यद माकं धना य ः भूतं धनमाहरत् ।। १८ ।। ज े ! (य द ऐसी बात न होती तो) वग-लोकक इ छावाले हम भागव को धनसे या काम था; य क सा ात् कुबेरने हम चुर धनरा श लाकर द थी ।। १८ ।। यदा तु मृ युरादातुं न नः श नो त सवशः । तदा मा भरयं उपाय तात स मतः ।। १९ ।। तात! जब मौत हम अपने अंकम न ले सक , तब हमलोग ने सवस म तसे यह उपाय ढूँ ढ़ नकाला था ।। १९ ।। आ महा च पुमां तात न लोकाँ लभते शुभान् । ततोऽ मा भः समी यैवं ना मनाऽऽ मा नपा ततः ।। २० ।। बेटा! आ मह या करनेवाला पु ष शुभ लोक को नह पाता, इसी लये हमने खूब सोच- वचारकर अपने ही हाथ अपना वध नह कया ।। २० ।। न चैत ः यं तात य ददं कतु म छ स । नय छे दं मनः पापात् सवलोकपराभवात् ।। २१ ।। व स! तुम जो यह (सब) करना चाहते हो, वह भी हम य नह है। स पूण लोक का पराभव ब त बड़ा पाप है, अतः उधरसे मनको रोको ।। २१ ।। मा वधीः यां तात न लोकान् स त पु क । षय तं तप तेजः ोधमु प ततं ज ह ।। २२ ।। तात! य को न मारो। बेटा! भू आ द सात लोक का भी संहार न करो। यह जो ोध उ प आ है, वह (तु हारे) तप याज नत तेजको षत करनेवाला है, अतः इसीको मारो ।। २२ ।। इत



ीमहाभारते आ दपव ण चै रथपव यौववारणे अ स त य धकशततमोऽ यायः ।। १७८ ।।









इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत चै रथपवम औव ोध नवारण- वषयक एक सौ अठह रवाँ अ याय पूरा आ ।। १७८ ।।

एकोनाशी य धकशततमोऽ यायः औव और पतर क बातचीत तथा औवका अपनी ोधा नको बडवानल पसे समु म यागना औव उवाच उ वान म यां ोधात् त ां पतर तदा । सवलोक वनाशाय न सा मे वतथा भवेत् ।। १ ।। औवने कहा— पतरो! मने ोधवश उस समय जो स पूण लोक के वनाशक त ा कर ली थी, वह झूठ नह होनी चा हये ।। १ ।। वृथारोष त ो वै नाहं भ वतुमु सहे । अ न तीण ह मां रोषो दे हेद न रवार णम् ।। २ ।। जसका ोध और त ा न फल होते ह , ऐसा बननेक मेरी इ छा नह है। य द मेरा ोध सफल नह आ तो वह मुझको उसी कार जला दे गा, जैसे आग अरणी का को जला दे ती है ।। २ ।। यो ह कारणतः ोधं संजातं तुमह त । नालं स मनुजः स यक् वग प रर तुम् ।। ३ ।। जो कसी कारणवश उ प ए ोधको सह लेता है, वह मनु य धम, अथ और कामक र ा करनेम समथ नह होता ।। ३ ।। अ श ानां नय ता ह श ानां प रर ता । थाने रोषः यु ः या ृपैः सव जगीषु भः ।। ४ ।। सबको जीतनेक इ छा रखनेवाले राजा ारा उ चत अवसरपर योगम लाया आ रोष का दमन और साधु पु ष क र ा करनेवाला हो ।। ४ ।। अ ौषमहमू थो गभश यागत तदा । आसवं मातृवग थ भृगूणां यैवधे ।। ५ ।। म जन दन माताक एक जाँघम गभ-शयापर सोता था, उन दन य ारा भागव का वध होनेपर माता का क ण दन मुझे प सुनायी दे ता था ।। ५ ।। संहारो ह यदा लोके भृगूणां याधमैः । आगभ छे दनात् ा त तदा मां म युरा वशत् ।। ६ ।। इन नीच य ने जब गभके ब च तकके सर काट-काटकर संसारम भृगव ु ंशी ा ण का संहार आर भ कर दया, तब मुझम ोधका आवेश आ ।। ६ ।। स पूणकोशाः कल मे मातरः पतर तथा । भयात् सवषु लोकेषु ना धज मुः परायणम् ।। ७ ।। जनक कोख भरी ई थी, वे मेरी माताएँ और पतृगण भी भयके मारे सम त लोक म भागते फरे; कतु उ ह कह भी शरण नह मली ।। ७ ।।

तान् भृगूणां यदा दारान् क ा युपप त । माता तदा दधारेयमू णैकेन मां शुभा ।। ८ ।। जब भागव क प नय का कोई भी र क नह मला, तब मेरी इस क याणमयी माताने मुझे अपनी एक जाँघम छपाकर रखा था ।। ८ ।। तषे ा ह पाप य यदा लोकेषु व ते । तदा सवषु लोकेषु पापकृ ोपप ते ।। ९ ।। जबतक जगत्म कोई भी पापकमको रोकनेवाला होता है, तबतक स पूण लोक म पा पय का होना स भव नह होता ।। ९ ।। यदा तु तषे ारं पाप न लभते व चत् । त त बहवो लोका तदा पापेषु कमसु ।। १० ।। जब पापी मनु यको कह कोई रोकनेवाला नह मलता, तब ब तेरे मनु य पाप करनेम लग जाते ह ।। १० ।। जान प च यः पापं श मान् न नय छ त । ईशः सन् सोऽ प तेनैव कमणा स यु यते ।। ११ ।। जो मनु य श मान् एवं समथ होते ए भी जान-बूझकर पापको नह रोकता, वह भी उसी पापकमसे ल त हो जाता है ।। ११ ।। राज भ े रै ैव य द वै पतरो मम । श ै न श कता ातु म ं म वेह जी वतम् ।। १२ ।। अत एषामहं ु ो लोकानामी रो हम् । भवतां च वचो नालमहं सम भव ततुम् ।। १३ ।। इस लोकम अपना जीवन सबको य है, यह समझकर सबका शासन करनेवाले राजालोग साम य होते ए भी मेरे पता क र ा न कर सके, इसी लये म भी इन सब लोक पर कु पत आ ँ। मुझम इ ह द ड दे नेक श है। अतः (इस वषयम) म आपलोग का वचन माननेम असमथ ँ ।। १२-१३ ।। ममा प चेद ् भवेदेवमी र य सतो महत् । उपे माण य पुनल कानां क बषाद् भयम् ।। १४ ।। य द म भी श रहते ए लोग के इस महान् पापाचारको उदासीनभावसे चुपचाप दे खता र ँ, तो मुझे भी उनलोग के पापसे भय हो सकता है ।। १४ ।। य ायं म युजो मेऽ नल कानादातु म छ त । दहेदेष च मामेव नगृहीतः वतेजसा ।। १५ ।। मेरे ोधसे उ प ई जो यह आग (स पूण) लोक को अपनी लपट से लपेट लेना चाहती है, य द म इसे रोक ँ तो यह मुझे ही अपने तेजसे जलाकर भ म कर डालेगी ।। १५ ।। भवतां च वजाना म सवलोक हते सुताम् । त माद् वध वं य े यो लोकानां मम चे राः ।। १६ ।। ी









म यह भी जानता ँ क आपलोग सम त जगत्का हत चाहनेवाले ह। अतः श शाली पतरो! आपलोग ऐसा कर, जससे इन लोक का और मेरा भी क याण हो ।। १६ ।। पतर ऊचुः य एष म युज तेऽ नल कानादातु म छ त । अ सु तं मु च भ ं ते लोका सु त ताः ।। १७ ।। पतर बोले—औव! तु हारे ोधसे उ प ई जो यह अ न सब लोक को अपना ास बनाना चाहती है, उसे तुम जलम छोड़ दो, तु हारा क याण हो; य क (सभी) लोक जलम त त ह ।। १७ ।। आपोमयाः सवरसाः सवमापोमयं जगत् । त माद सु वमु चेमं ोधा नं जस म ।। १८ ।। सभी रस जलके प रणाम ह तथा स पूण जगत् (भी) जलका प रणाम माना गया है। अतः ज े ! तुम अपनी इस ोधा नको जलम ही छोड़ दो ।। १८ ।। अयं त तु ते व यद छ स महोदधौ । म युजोऽ नदह ापो लोका ापोमयाः मृताः ।। १९ ।। व वर! य द तु हारी इ छा हो तो यह ोधा न जलको जलाती ई समु म थत रहे; य क सभी लोक जलके प रणाम माने गये ह ।। १९ ।। एवं त ा स येयं तवानघ भ व य त । न चैवं सामरा लोका ग म य त पराभवम् ।। २० ।। अनघ! ऐसा करनेसे तु हारी त ा भी स ची हो जायगी और दे वता स हत सम त लोक भी न नह ह गे ।। २० ।। व स उवाच तत तं ोधजं तात औव ऽ नं व णालये । उ ससज स चैवाप उपयुङ् े महोदधौ ।। २१ ।। मह य शरो भू वा यत् तद् वेद वदो व ः । तम नमुद ् गरद् व ात् पब यापो महोदधौ ।। २२ ।। व स जी कहते ह—पराशर! तब औवने (अपनी) उस ोधा नको समु म डाल दया। आज भी वह ब त बड़ी घोड़ीके मुखक -सी आकृ त धारण करके महासागरके जलका पान करती रहती है। वेद पु ष उससे (भली-भाँ त) प र चत ह। वह बड़वा अपने मुखसे वही आग उगलती ई महासागरका जल पीती रहती है ।। २१-२२ ।। त मात् वम प भ ं ते न लोकान् ह तुमह स । पराशर पराँ लोकान् जान ानवतां वर ।। २३ ।। ा नय म े पराशर! तु हारा क याण हो, तुम परलोकको भलीभाँ त जानते हो; अतः तु ह भी सम त लोक का वनाश नह करना चा हये ।। २३ ।। ी









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ीमहाभारते आ दपव ण चै रथपव यौव पा याने एकोनाशी य धकशततमोऽ यायः ।। १७९ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत चै रथपवम औव पा यान वषयक एक सौ उनासीवाँ अ याय पूरा आ ।। १७९ ।।

अशी य धकशततमोऽ यायः पुल य आ द मह षय के समझानेसे पराशरजीके ारा रा सस क समा त ग धव उवाच एवमु ः स व षव स ेन महा मना । यय छदा मनः ोधं सवलोकपराभवात् ।। १ ।। ग धव कहता है—अजुन! महा मा व स के य कहनेपर उन ष पराशरने अपने ोधको सम त लोक के पराभवसे रोक लया ।। १ ।। ईजे च स महातेजाः सववेद वदां वरः । ऋषी रा सस ेण शा े योऽथ पराशरः ।। २ ।। तब स पूण वेदवे ा म े महातेज वी श -न दन पराशरने रा सस का अनु ान कया ।। २ ।। ततो वृ ां बालां रा सान् स महामु नः । ददाह वतते य े श े वधमनु मरन् ।। ३ ।। उस व तृत य म अपने पता श के वधका बार-बार च तन करते ए महामु न पराशरने रा सजा तके बूढ़ तथा बालक को भी जलाना आर भ कया ।। ३ ।। न ह तं वारयामास व स ो र सां वधात् । तीयाम य मा भाङ् ं त ा म त न यात् ।। ४ ।। उस समय मह ष व स ने यह सोचकर क इसक सरी त ाको न तोडँ, उ ह रा स के वधसे नह रोका ।। ४ ।। याणां पावकानां च स े त मन् महामु नः । आसीत् पुर ताद् द तानां चतुथ इव पावकः ।। ५ ।। उस स म तीन व लत अ नय के सम महामु न पराशर चौथे अ नके समान का शत हो रहे थे ।। ५ ।। तेन य ेन शु ेण यमानेन श जः । त द पतमाकाशं सूयणेव घना यये ।। ६ ।। (पापी रा स का संहार करनेके कारण) वह य अ य त नमल एवं शु समझा जाता था। श न दन पराशर ारा उसम य साम ीका हवन आर भ होते ही (वह इतना व लत हो उठा क) उसके तेजसे स पूण आकाश ठ क उसी तरह उ ा सत होने लगा, जैसे वषा बीतनेपर सूयक भासे उ त हो उठता है ।। ६ ।। तं व स ादयः सव मुनय त मे नरे । तेजसा द यमानं वै तीय मव भा करम् ।। ७ ।। ी



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उस समय व स आ द सभी मु नय को वहाँ तेजसे काशमान मह ष पराशर सरे सूयके समान जान पड़ते थे ।। ७ ।। ततः परम ापम यैऋ ष दारधीः । समा पप यषुः स ं तम ः समुपागमत् ।। ८ ।। तदन तर सर के लये उस य को बंद करना अ य त क ठन जानकर उदारबु मह ष अ वयं उस य को समा त करानेक इ छासे पराशरके पास आये ।। ८ ।। तथा पुल यः पुलहः तु ैव महा तुः । त ाज मुर म न र सां जी वते सया ।। ९ ।। श ु का नाश करनेवाले अजुन! उसी कार पुल य, पुलह, तु और महा तुने भी रा स के जीवनक र ाके लये वहाँ पदापण कया ।। ९ ।। पुल य तु वधात् तेषां र सां भरतषभ । उवाचेदं वचः पाथ पराशरमरदमम् ।। १० ।। भरतकुलभूषण कु तीकुमार! उन रा स का वनाश होता दे ख मह ष पुल यने श ुसूदन पराशरसे यह बात कही— ।। १० ।। क चत् ताताप व नं ते क च द स पु क । अजानतामदोषाणां सवषां र सां वधात् ।। ११ ।। ‘तात! तु हारे इस य म कोई व न तो नह पड़ा? बेटा! तु हारे पताक ह याके वषयम कुछ भी न जाननेवाले इन सभी नद ष रा स का वध करके या तु ह स ता होती है? ।। ११ ।। जो छे द ममं म ं न ह कतु वमह स । नैष तात जातीनां धम तप वनाम् ।। १२ ।। ‘व स! मेरी संत तका तु ह इस कार उ छे द नह करना चा हये। तात! यह हसा तप वी ा ण का धम कभी नह मानी गयी ।। १२ ।। शम एव परो धम तमाचर पराशर । अध म ं व र ः सन् कु षे वं पराशर ।। १३ ।। ‘पराशर! शा त रहना ही ( ा ण का) े धम है, अतः उसीका आचरण करो। तुम े ा ण होकर भी यह पापकम करते हो? ।। १३ ।। श चा प ह धम ं ना त ा तु महाह स । जाया ममो छे दं न चैवं कतुमह स ।। १४ ।। ‘तु हारे पता श धमके ाता थे, तु ह (इस अधमकृ य ारा) उनक मयादाका उ लंघन नह करना चा हये। फर मेरी संतान का वनाश करना तु हारे लये कदा प उ चत नह है ।। १४ ।। शापा श े वा स तदा त पपा दतम् । आ मजेन स दोषेण श न त इतो दवम् ।। १५ ।। व स कुलभूषण! श के शापसे ही उस समय वैसी घटना हो गयी थी। वे अपने ही अपराधसे इस लोकको छोड़कर वगवासी ए ह (इसम रा स का कोई दोष नह ै)

है) ।। १५ ।। न ह तं रा सः क छ ो भ यतुं मुने । आ मनैवा मन तेन ो मृ यु तदाभवत् ।। १६ ।। ‘मुने! कोई भी रा स उ ह खा नह सकता था। अपने ही शापसे (राजाको नरभ ी रा स बना दे नेके कारण) उ ह उस समय अपनी मृ यु दे खनी पड़ी ।। १६ ।। न म भूत त ासीद् व ा म ः पराशर । राजा क माषपाद दवमा मोदते ।। १७ ।। ‘पराशर! व ा म तथा राजा क माषपाद भी इसम न म मा ही थे (तु हारे पूवज क मृ युम तो ार ध ही धान है)। इस समय तु हारे पता श वगम जाकर आन द भोगते ह ।। १७ ।। ये च श यवराः पु ा व स य महामुने । ते च सव मुदा यु ा मोद ते स हताः सुरैः ।। १८ ।। ‘महामुने! व स जीके श से छोटे जो पु थे, वे सभी दे वता के साथ स तापूवक सुख भोग रहे ह ।। १८ ।। सवमेतद् व स य व दतं वै महामुने । र सां च समु छे द एष तात तप वनाम् ।। १९ ।। न म भूत वं चा तौ वा स न दन । तत् स ं मु च भ ं ते समा त मदम तु ते ।। २० ।। ‘महष! तु हारे पतामह व स जीको ये सब बात व दत ह। तात श न दन! तेज वी रा स के वनाशके लये आयो जत इस य म तुम भी न म मा ही बने हो (वा तवम यह सब उ ह के पूवकम का फल है)। अतः अब इस य को छोड़ दो। तु हारा क याण हो, तु हारे इस स क समा त हो जानी चा हये’ ।। १९-२० ।।

ग धव उवाच एवमु ः पुल येन व स ेन च धीमता । तदा समापयामास स ं शा ो महामु नः ।। २१ ।। ग धव कहता है—अजुन! पुल यजी तथा परम बु मान् व स जीके य कहनेपर महामु न श पु पराशरने उसी समय य को समा त कर दया ।। २१ ।। सवरा सस ाय स भृतं पावकं तदा । उ रे हमव पा उ ससज महावने ।। २२ ।। स पूण रा स के वनाशके उ े यसे कये जाने-वाले उस स के लये जो अ न सं चत क गयी थी, उसे उ ह ने उ र दशाम हमालयके आस-पासके वशाल वनम छोड़ दया ।। २२ ।। स त ा ा प र ां स वृ ान मन एव च । भ यन् यते व ः सदा पव ण पव ण ।। २३ ।। ी











वह अ न आज भी वहाँ सदा जलाती ई दे खी जाती है ।। २३ ।। इत

येक पवके अवसरपर रा स , वृ

और प थर को

ीमहाभारते आ दपव ण चै रथपव यौव पा याने अशी य धकशततमोऽ यायः ।। १८० ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत चै रथपवम औव पा यान वषयक एक सौ अ सीवाँ अ याय पूरा आ ।। १८० ।।

एकाशी य धकशततमोऽ यायः राजा क माषपादको ा णी आं गरसीका शाप अजुन उवाच रा ा क माषपादे न गुरौ वदां वरे । कारणं क पुर कृ य भाया वै सं नयो जता ।। १ ।। अजुनने पूछा—ग धवराज! कस कारणको सामने रखकर राजा क माषपादने वे ा म े गु व स जीके साथ अपनी प नीका नयोग कराया था? ।। १ ।। जानता वै परं धम व स ेन महा मना । अग यागमनं क मात् कृतं तेन मह षणा ।। २ ।। तथा उ म धमके ाता महा मा मह ष व स ने यह पर ीगमनका पाप कैसे कया? ।। २ ।। अध म ं व स ेन कृतं चा प पुरा सखे । एत मे संशयं सव छे ुमह स पृ छतः ।। ३ ।। सखे! पूवकालम मह ष व स ने जो यह अधम-काय कया, उसका या कारण है? यह मेरा संशय है, जसे म पूछता ँ। आप मेरे इन सारे संशय का नवारण क जये ।। ३ ।। ग धव उवाच धनंजय नबोधेदं य मां वं प रपृ छ स । व स ं त धष तथा म सहं नृपम् ।। ४ ।। ग धवने कहा— धष वीर धनंजय! आप मह ष व स तथा राजा म सहके वषयम जो कुछ मुझसे पूछ रहे ह, उसका समाधान सु नये ।। ४ ।। क थतं ते मया सव यथा श तः स पा थवः । श ना भरत े वा स ेन महा मना ।। ५ ।। भरत े ! व स पु महा मा श से राजा क माषपादको जस कार शाप ा त आ, वह सब संग म आपसे कह चुका ँ ।। ५ ।। स तु शापवशं ा तः ोधपयाकुले णः । नजगाम पुराद् राजा सहदारः परंतपः ।। ६ ।। श ु को संताप दे नेवाले राजा क माषपाद शापके परवश हो अपनी प नीके साथ नगरसे बाहर नकल गये। उस समय उनक आँख ोधसे ा त हो रही थ ।। ६ ।। अर यं नजनं ग वा सदारः प रच मे । नानामृगगणाक ण नानास वसमाकुलम् ।। ७ ।। अपनी ीके साथ नजन वनम जाकर वे चार ओर च कर लगाने लगे। वह महान् वन भाँ त-भाँ तके मृग से भरा आ था। उसम नाना कारके जीव-ज तु नवास करते थे ।। ७ ।।

नानागु मलता छ ं नाना मसमावृतम् । अर यं घोरसंनादं शाप तः प र मन् ।। ८ ।। अनेक कारक लता तथा गु म से आ छा दत और व वध कारके वृ से आवृत वह (गहन) वन भयंकर श द से गूँजता रहता था। शाप त राजा क माषपाद उसीम मण करने लगे ।। ८ ।। स कदा चत् ुधा व ो मृगयन् भ यमा मनः । ददश सुप र ल ः क मं जने वने ।। ९ ।। ा णं ा ण चैव मथुनायोपसंगतौ । तौ तं वी य सु व तावकृताथ धा वतौ ।। १० ।। एक दन भूखसे ाकुल हो वे अपने लये भोजनक तलाश करने लगे। ब त लेश उठानेके बाद उ ह ने दे खा क उस वनके कसी नजन दे शम एक ा ण और ा णी मैथुनके लये एक ए ह। वे दोन अभी अपनी इ छा पूण नह कर पाये थे, इतनेहीम उन रा सा व क माषपादको दे खकर अ य त भयभीत हो (वहाँसे) भाग चले ।। ९-१० ।। तयोः वतो व ं ज ाह नृप तबलात् । ् वा गृहीतं भतारमथ ा यभाषत ।। ११ ।। उन भागते ए द प तमसे ा णको राजाने बलपूवक पकड़ लया। प तको रा सके हाथम पड़ा दे ख ा णी बोली— ।। ११ ।। शृणु राजन् मम वचो यत् वां व या म सु त । आ द यवंश भव वं ह लोके प र ुतः ।। १२ ।। ‘राजन्! म आपसे जो बात कहती ँ, उसे सु नये। उ म तका पालन करनेवाले नरेश! आपका ज म सूयवंशम आ है। आप स पूण जगत्म व यात ह ।। १२ ।। अ म ः थतो धम गु शु ूषणे रतः । शापोपहत धष न पापं कतुमह स ।। १३ ।। ‘आप सदा मादशू य होकर धमम थत रहनेवाले ह। गु जन क सेवाम सदा संल न रहते ह। धष वीर! य प आप इस समय शापसे त ह, तो भी आपको पापकम नह करना चा हये ।। १३ ।। ऋतुकाले तु स ा ते भतृ सनक शता । अकृताथा हं भ ा सवाथ समागता ।। १४ ।। सीद नृप त े भतायं मे वसृ यताम् । ‘मेरा ऋतुकाल ा त है, म प तके क से ःख पा रही ँ। म संतानक इ छासे प तके समीप आयी थी और उनसे मलकर अभी अपनी इ छा पूण नह कर पायी ँ। नृप े ! ऐसी दशाम आप मुझपर स होइये और मेरे इन प तदे वताको छोड़ द जये’ ।। १४ ।। एवं व ोशमानाया त या तु स नृशंसवत् ।। १५ ।। भतारं भ यामास ा ो मृग मवे सतम् । त याः ोधा भभूताया या य ू यपतन् भु व ।। १६ ।। ो



सोऽ नः समभवद् द त तं च दे शं द पयत् । ततः सा शोकसंत ता भतृ सनक शता ।। १७ ।। क माषपादं राज षमशपद् ा णी षा । य मा ममाकृताथाया वया ु नृशंसवत् ।। १८ ।। े या भ तो मेऽ यो भता महायशाः । त मात् वम प बु े म छापप र व तः ।। १९ ।। प नीमृतावनु ा य स य य स जी वतम् । य य चषव स य वया पु ा वना शताः ।। २० ।। तेन संग य ते भाया तनयं जन य य त । स ते वंशकरः पु ो भ व य त नृपाधम ।। २१ ।। इस कार ा णी क ण वलाप करती ई याचना कर रही थी, तो भी जैसे ा मनचाहे मृगको मारकर खा जाता है, उसी कार राजाने अ य त नदयीक भाँ त ा णीके प तको खा लया। उस समय ोधसे पी ड़त ई ा णीके ने से धरतीपर आँसु क जो बूँद गर , वे सब व लत अ न बन गय । उस अ नने उस थानको जलाकर भ म कर दया। तदन तर प तके वयोगसे थत एवं शोकसंत त ा णीने रोषम भरकर राज ष क माषपादको शाप दया—‘ओ नीच! मेरी प त वषयक कामना अभी पूण नह हो पायी थी, तभी तूने अ य त ू रक भाँ त मेरे दे खते-दे खते आज मेरे महायश वी यतम प तको अपना ास बना लया है; अतः बु े ! तू भी मेरे शापसे पी ड़त आ ऋतुकालम प नीके साथ समागम करते ही त काल ाण याग दे गा। जन मह ष व स के पु का तुमने संहार कया है, उ ह से समागम करके तेरी प नी पु पैदा करेगी। नृपाधम! वही पु तेरा वंश चलानेवाला होगा’ ।। १५—२१ ।। एवं श वा तु राजानं सा तमा रसी शुभा । त यैव सं नधौ द तं ववेश ताशनम् ।। २२ ।। इस कार राजाको शाप दे कर वह सती सा वी आं गरसी राजा क माषपादके समीप ही व लत अ नम वेश कर गयी ।। २२ ।। वस महाभागः सवमेतदवै त । ानयोगेन महता तपसा च परंतप ।। २३ ।। श ुसूदन अजुन! महाभाग व स जी अपनी बड़ी भारी तप या तथा ानयोगके भावसे ये सब बात जानते थे ।। २३ ।। मु शाप राज षः कालेन महता ततः । ऋतुकालेऽ भप ततो मदय या नवा रतः ।। २४ ।। द घकालके प ात् वे राज ष जब शापसे मु ए, तब ऋतुकालम अपनी प नीके पास गये। परंतु उनक रानी मदय तीने उ ह (उ शापक याद दलाकर) रोक दया ।। २४ ।। न ह स मार स नृप तं शापं काममो हतः । दे ाः सोऽथ वचः ु वा स ा तो नृपस मः ।। २५ ।। े ो ो े े े

राजा क माषपाद कामसे मो हत हो रहे थे। इस लये उ ह शापका मरण नह रहा। महारानी मदय तीक बात सुनकर वे नृप े बड़े स म (घबराहट)-म पड़ गये ।। २५ ।। तं शापमनुसं मृ य पयत यद् भृशं तदा । एत मात् कारणाद् राजा व स ं सं ययोजयत् । वदारेषु नर े शापदोषसम वतः ।। २६ ।। उस शापको बार-बार याद करके उ ह बड़ा संताप आ। नृप े ! इसी कारण शापदोषसे यु राजा क माषपादने मह ष व स का अपनी प नीके साथ नयोग कराया ।। २६ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण चै रथपव ण व स ोपा याने एकाशी य धकशततमोऽ यायः ।। १८१ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत चै रथपवम व स ोपा यान वषयक एक सौ इ यासीवाँ अ याय पूरा आ ।। १८१ ।।

यशी य धकशततमोऽ यायः पा डव का धौ यको अपना पुरो हत बनाना अजुन उवाच अ माकमनु पो वै यः याद् ग धव वेद वत् । पुरो हत तमाच व सव ह व दतं तव ।। १ ।। अजुनने कहा—ग धवराज! हमारे अनु प जो कोई वेदवे ा पुरो हत ह , उनका नाम बताओ; य क तु ह सब कुछ ात है ।। १ ।। ग धव उवाच यवीयान् दे वल यैष वने ाता तप य त । धौ य उ कोचके तीथ तं वृणु वं यद छथ ।। २ ।। ग धव बोला—कु तीन दन! इसी वनके उ कोचक तीथम मह ष दे वलके छोटे भाई धौ य मु न तप या करते ह। य द आपलोग चाह तो उ ह का पुरो हतके पदपर वरण कर ।। २ ।। वैश पायन उवाच ततोऽजुनोऽ मा नेयं ददौ तद् यथा व ध । ग धवाय तदा ीतो वचनं चेदम वीत् ।। ३ ।। वैश पायनजी कहते ह—तब अजुनने (ब त) स होकर ग धवको व धपूवक आ नेया दान कया और यह बात कही— ।। ३ ।। व येव तावत् त तु हया ग धवस म । कायकाले ही यामः व त तेऽ व त चा वीत् ।। ४ ।। तेऽ यो यम भस पू य ग धवः पा डवा ह । र याद् भागीरथीतीराद् यथाकामं त थरे ।। ५ ।। ‘ग धव वर! तुमने जो घोड़े दये ह, वे अभी तु हारे ही पास रह। आव यकताके समय हम तुमसे ले लगे, तु हारा क याण हो।’ अजुनक यह बात पूरी होनेपर ग धवराज और पा डव ने एक- सरेका बड़ा स कार कया। फर पा डवगण गंगाके रमणीय तटसे अपनी इ छाके अनुसार चल दये ।। ४-५ ।। तत उ कोचकं तीथ ग वा धौ या मं तु ते । तं व ुः पा डवा धौ यं पौरो ह याय भारत ।। ६ ।। जनमेजय! तदन तर उ कोचक तीथम धौ यके आ मपर जाकर पा डव ने धौ यका पौरो ह य-कमके लये वरण कया ।। ६ ।।

तान् धौ यः तज ाह सववेद वदां वरः । व येन फलमूलेन पौरो ह येन चैव ह ।। ७ ।। स पूण वेद के व ान म े धौ यने जंगली फल-मूल अपण करके तथा पुरो हतीके लये वीकृ त दे कर उन सबका स कार कया ।। ७ ।। ते समाशं सरे लधां यं रा यं च पा डवाः । ा णं तै पुर कृ य पा चाल च वयंवरे ।। ८ ।। पा डव ने उन ा णदे वताको पुरो हत बनाकर यह भलीभाँ त व ास कर लया क ‘हम अपना रा य और धन अब मले एके ही समान है।’ साथ ही उ ह यह भी भरोसा हो गया क ‘ वयंवरम ौपद हम मल जायगी’ ।। ८ ।। पुरो हतेन तेनाथ गु णा संगता तदा । नाथव त मवा मानं मे नरे भरतषभाः ।। ९ ।। उन गु एवं पुरो हतके साथ हो जानेसे उस समय भरतवं शय म े पा डव ने अपनेआपको सनाथ-सा समझा ।। ९ ।। स ह वेदाथत व तेषां गु दारधीः । तेन धम वदा पाथा या या धम वदः कृताः ।। १० ।। उदारबु धौ य वेदाथके त व थे, वे पा डव के गु ए। उन धम मु नने धम कु तीकुमार को अपना यजमान बना लया ।। १० ।। वीरां तु स हतान् मेने ा तरा यान् वधमतः । बु वीयबलो साहैयु ान् दे वा नव जः ।। ११ ।। ौ















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धौ यको भी यह व ास हो गया क ये बु , वीय, बल और उ साहसे यु दे वोपम वीर संग ठत होकर वधमके अनुसार अपना रा य अव य ा त कर लगे ।। ११ ।। कृत व ययना तेन तत ते मनुजा धपाः । मे नरे स हता ग तुं पा चा या तं वयंवरम् ।। १२ ।। धौ यने पा डव के लये व तवाचन कया। तदन तर उन नर े पा डव ने एक साथ ौपद के वयंवरम जानेका न य कया ।। १२ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण चै रथपव ण धौ यपुरो हतकरणे यशी य धकशततमोऽ यायः ।। १८२ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत चै रथपवम धौ यको पुरो हत बनानेसे स ब ध रखनेवाला एक सौ बयासीवाँ अ याय पूरा आ ।। १८२ ।।

( वयंवरपव) यशी य धकशततमोऽ यायः पा डव क पंचालया ा और मागम ा ण से बातचीत वैश पायन उवाच तत ते नरशा ला ातरः प च पा डवाः । ययु पद ु ं तं च दे शं महो सवम् ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तब वे नर े पाँच भाई पा डव राजकुमारी ौपद , उसके पंचालदे श और वहाँके महान् उ सवको दे खनेके लये वहाँसे चल दये ।। १ ।। ते याता नर ा ाः सह मा ा परंतपाः । ा णान् द शुमाग ग छतः संगतान् बन् ।। २ ।। मनु य म सहके समान वीर परंतप पा डव अपनी माताके साथ या ा कर रहे थे। उ ह ने मागम दे खा, ब त-से ा ण एक साथ जा रहे ह ।। २ ।। त ऊचु ा णा राजन् पा डवान् चा रणः । व भव तो ग म य त कुतो वा यागता इह ।। ३ ।। राजन्! उन चारी ा ण ने पा डव से पूछा—‘आपलोग कहाँ जायँगे और कहाँसे आ रहे ह?’ ।। ३ ।। यु ध र उवाच आगतानेकच ायाः सोदयानेकचा रणः । भव तो वै वजान तु सह मा ा जषभाः ।। ४ ।। यु ध र बोले— व वरो! आपलोग को मालूम हो क हमलोग एक साथ वचरनेवाले सहोदर भाई ह और अपनी माताके साथ एकच ा नगरीसे आ रहे ह ।। ४ ।। ा णा ऊचुः ग छता ैव प चालान् पद य नवेशने । वयंवरो महां त भ वता सुमहाधनः ।। ५ ।। ा ण ने कहा—आज ही पंचालदे शको च लये। वहाँ राजा पदके दरबारम महान् धन-धा यसे स प वयंवरका ब त बड़ा उ सव होनेवाला है ।। ५ ।। एकसाथ याताः म वयं त ैव गा मनः । त तसंकाशो भ वता सुमहो सवः ।। ६ ।। ो











हम सबलोग एक साथ चले ह और वह जा रहे ह। वहाँ अ य त अ त और ब त बड़ा उ सव होनेवाला है ।। ६ ।। य सेन य हता पद य महा मनः । वेद म यात् समु प ा पप नभे णा ।। ७ ।। य सेन नामवाले महाराज पदके एक पु ी है, जो य क वेद से कट ई है। उसके ने वक सत कमलदलके समान सु दर ह ।। ७ ।। दशनीयानव ा सुक ु मारी मन वनी । धृ ु न य भ गनी ोणश ोः ता पनः ।। ८ ।। उसका एक-एक अंग नद ष है। वह मन वनी सुकुमारी पदक या दे खने ही यो य है। ोणाचायके श ु तापी धृ ु नक वह ब हन है ।। ८ ।। यो जातः कवची खड् गी सशरः सशरासनः । सुस म े महाबा ः पावके पावकोपमः ।। ९ ।। धृ ु न वे ही ह, जो कवच, खड् ग, धनुष और बाणके साथ उ प ए ह। महाबा धृ ु न व लत अ नसे कट होनेके कारण अ नके समान ही तेज वी ह ।। ९ ।। वसा त यानव ा ौपद तनुम यमा । नीलो पलसमो ग धो य याः ोशात् वा त वै ।। १० ।। ौपद नद ष अंग तथा पतली कमरवाली है और उसके शरीरसे नीलकमलके समान सुग ध नकलकर एक कोसतक फैलती रहती है। वह उ ह धृ ु नक ब हन है ।। १० ।। य सेन य च सुतां वयंवरकृत णाम् । ग छामो वै वयं ु ं तं च द ं महो सवम् ।। ११ ।। य सेनक पु ी ौपद का वयंवर नयत आ है। अतः हमलोग उस राजकुमारीको तथा उस वयंवरके द महो सवको दे खनेके लये वहाँ जा रहे ह ।। ११ ।। राजानो राजपु ा य वानो भू रद णाः । वा यायव तः शुचयो महा मानो यत ताः ।। १२ ।। त णा दशनीया नानादे शसमागताः । महारथाः कृता ा समुपै य त भू मपाः ।। १३ ।। (वहाँ) कतने ही चुर द णा दे नेवाले, य करनेवाले, वा यायशील, प व , नयमपूवक तका पालन करनेवाले, महा मा एवं त ण अव थावाले दशनीय राजा और राजकुमार अनेक दे श से पधारगे। अ व ाम नपुण महारथी भू मपाल भी वहाँ आयगे ।। १२-१३ ।। ते त व वधान् दायान् वजयाथ नरे राः । दा य त धनं गा भ यं भो यं च सवशः ।। १४ ।। वे नरप तगण अपनी-अपनी वजयके उ े यसे वहाँ नाना कारके उपहार, धन, गौएँ, भ य और भो य आ द सब कारक व तुएँ दान करगे ।। १४ ।। तगृ च तत् सव ् वा चैव वयंवरम् । अनुभूयो सवं चैव ग म यामो यथे सतम् ।। १५ ।। ो े औ े

उनका वह सब दान हण कर, वयंवरको दे खकर और उ सवका आन द लेकर फर हमलोग अपने-अपने अभी थानको चले जायँगे ।। १५ ।। नटा वैता लका त नतकाः सूतमागधाः । नयोधका दे शे यः समे य त महाबलाः ।। १६ ।। वहाँ अनेक दे श के नट, वैता लक, नतक, सूत, मागध तथा अ य त बलवान् म ल आयगे ।। १६ ।। एवं कौतूहलं कृ वा ् वा च तगृ च । सहा मा भमहा मानः पुनः त नव यथ ।। १७ ।। महा माओ! इस कार हमारे साथ खेल करके, तमाशा दे खकर और नाना कारके दान हण करके फर आपलोग भी लौट आइयेगा ।। १७ ।। दशनीयां वः सवान् दे व पानव थतान् । समी य कृ णा वरयेत् संग यैकतमं वरम् ।। १८ ।। आप सब लोग का प तो दे वता के समान है, आप सभी दशनीय ह, आपलोग को (वहाँ उप थत) दे खकर ौपद दै वयोगसे आपमसे ही कसी एकको अपना वर चुन सकती है ।। १८ ।। अयं ाता तव ीमान् दशनीयो महाभुजः । नयु यमानो वजये संग या वणं ब । आह र य यं नूनं ी त वो वध य य त ।। १९ ।। आपलोग के ये भाई अजुन तो बड़े सु दर और दशनीय ह। इनक भुजाएँ ब त बड़ी ह। इ ह य द वजयके कायम नयु कर दया जाय, तो ये दै वात् ब त बड़ी धनरा श जीत लाकर न य ही आपलोग क स ता बढ़ायगे ।। १९ ।। यु ध र उवाच परमं भो ग म यामो ु ं चैव महो सवम् । भव ः स हताः सव क याया तं वयंवरम् ।। २० ।। यु ध र बोले— ा णो! हम भी पदक याके उस े वयंवर-महो सवको दे खनेके लये आपलोग के साथ चलगे ।। २० ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण वयंवरपव ण पा डवागमने यशी य धकशततमोऽ यायः ।। १८३ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत वयंवरपवम पा डवागमन वषयक एक सौ तरासीवाँ अ याय पूरा आ ।। १८३ ।।

चतुरशी य धकशततमोऽ यायः पा डव का पदक राजधानीम जाकर कु हारके यहाँ रहना, वयंवरसभाका वणन तथा धृ ु नक घोषणा वैश पायन उवाच एवमु ाः याता ते पा डवा जनमेजय । रा ा द णप चालान् पदे ना भर तान् ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! उन ा ण के य कहनेपर पा डवलोग (उ ह के साथ) राजा पदके ारा पा लत द णपांचाल दे शक ओर चले ।। १ ।। तत ते सुमहा मानं शु ा मानमक मषम् । द शुः पा डवा वीरा मु न ै पायनं तदा ।। २ ।। तदन तर उन पा डववीर को मागम पापर हत, शु - च एवं े महा मा ै पायन मु नका दशन आ ।। २ ।। त मै यथावत् स कारं कृ वा तेन च स कृताः । कथा ते चा यनु ाताः ययु पद यम् ।। ३ ।। पा डव ने उनका यथावत् स कार कया और उ ह ने पा डव का। फर उनम आव यक बातचीत ई। वातालाप समा त होनेपर ासजीक आ ा ले पा डव पुनः पदक राजधानीक ओर चल दये ।। ३ ।।





प य तो रमणीया न वना न च सरां स च । त त वस त शनैज मुमहारथाः ।। ४ ।। महारथी पा डव मागम अनेकानेक रमणीय वन और सरोवर दे खते तथा उन-उन थान म डेरा डालते ए धीरे-धीरे आगे बढ़ते गये ।। ४ ।। वा यायव तः शुचयो मधुराः यवा दनः । आनुपू ण स ा ताः प चालान् पा डु न दनाः ।। ५ ।। ( त दन) वा यायम त पर रहनेवाले, प व , मधुर कृ तवाले तथा यवाद पा डु कुमार इस तरह चलकर मशः पांचालदे शम जा प ँचे ।। ५ ।। ते तु ् वा पुरं त च क धावारं च पा डवाः । कु भकार य शालायां नवासं च रे तदा ।। ६ ।। पदके नगर और उसक चहारद वारीको दे खकर पा डव ने उस समय एक कु हारके घरम अपने रहनेक व था क ।। ६ ।। त भै ं समाज ा ण वृ मा ताः । तान् स ा तां तथा वीरा रे न नराः व चत् ।। ७ ।। वहाँ ा णवृ का आ य ले वे भ ा माँगकर लाते (और उसीसे नवाह करते) थे। इस कार वहाँ प ँचे ए पा डववीर को कह कोई भी मनु य पहचान न सके ।। ७ ।। य सेन य काम तु पा डवाय करी टने । कृ णां द ा म त सदा न चैतद् ववृणो त सः ।। ८ ।। राजा पदके मनम सदा यही इ छा रहती थी क म पा डु न दन अजुनके साथ ौपद का याह क ँ । परंतु वे अपने इस मनोभावको कसीपर कट नह करते थे ।। ८ ।। सोऽ वेषमाणः कौ तेयं पा चा यो जनमेजय । ढं धनुरनान यं कारयामास भारत ।। ९ ।। भरतवंशी जनमेजय! पांचालनरेशने कु तीकुमार अजुनको खोज नकालनेक इ छासे एक ऐसा ढ़ धनुष बनवाया, जसे सरा कोई झुका भी न सके ।। ९ ।। य ं वैहायसं चा प कारयामास कृ मम् । तेन य ेण स मतं राजा ल यं चकार सः ।। १० ।। राजाने एक कृ म आकाश-य भी बनवाया (जो ती वेगसे आकाशम घूमता रहता था)। उस य के छ के ऊपर उ ह ने उसीके बराबरका ल य तैयार कराकर रखवा दया। (इसके बाद उ ह ने यह घोषणा करा द ) ।। १० ।। पद उवाच इदं स यं धनुः कृ वा स जैरे भ सायकैः । अती य ल यं यो वे ा स लधा म सुता म त ।। ११ ।। पदने घोषणा क —जो वीर इस धनुषपर यंचा चढ़ाकर इन तुत बाण ारा ही य के छे दके भीतरसे इसे लाँघकर ल यवेध करेगा, वही मेरी पु ीको ा त कर सकेगा ।। ११ ।।



वैश पायन उवाच इ त स पदो राजा वयंवरमघोषयत् । त छ वा पा थवाः सव समीयु त भारत ।। १२ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! इस कार राजा पदने जब वयंवरक घोषणा करा द , तब उसे सुनकर सब राजा वहाँ उनक राजधानीम एक होने लगे ।। १२ ।। ऋषय महा मानः वयंवर द वः । य धनपुरोगा सकणाः कुरवो नृप ।। १३ ।। ब त-से महा मा ऋ ष-मु न भी वयंवर दे खनेके लये आये। राजन्! य धन आ द कु वंशी भी कणके साथ वहाँ आये थे ।। १३ ।। ा णा महाभागा दे शे यः समुपागमन् । ततोऽ चता राजगणा पदे न महा मना ।। १४ ।। उपोप व ा म चेषु ु कामाः वयंवरम् । ततः पौरजनाः सव सागरोद्धूत नः वनाः ।। १५ ।। भ - भ दे श से कतने ही महाभाग ा ण ने भी पदापण कया था। महामना राजा पदने (वहाँ पधारे ए) नरप तय का भलीभाँ त वागत-स कार एवं सेवा-पूजा क । त प ात् वे सभी नरेश वयंवर दे खनेक इ छासे वहाँ रखे ए मंच पर बैठे। उस नगरके सम त नवासी भी यथा थान आकर बैठ गये। उन सबका कोलाहल ु ध ए समु के भयंकर गजनके समान सुनायी पड़ता था ।। १४-१५ ।। शशुमार शरः ा य य वशं ते म पा थवाः । ागु रेण नगराद् भू मभागे समे शुभे । समाजवाटः शुशुभे भवनैः सवतो वृतः ।। १६ ।। वहाँक बैठक शशुमारक आकृ तम सजायी गयी थी। शशुमारके शरोभागम सब राजा अपने-अपने मंच पर बैठे थे। नगरसे ईशानकोणम सु दर एवं समतल भू मपर वयंवरसभाका रंगम डप सजाया गया था, जो सब ओरसे सु दर भवन ारा घरा होनेके कारण बड़ी शोभा पा रहा था ।। १६ ।। ाकारप रखोपेतो ारतोरणम डतः । वतानेन व च ेण सवतः समलंकृतः ।। १७ ।। उसके सब ओर चहारद वारी और खाई बनी थ । अनेक फाटक और दरवाजे उस म डपक शोभा बढ़ा रहे थे। व च चँदोवेसे उस सभाभवनको सब ओरसे सजाया गया था ।। १७ ।। तूय घशतसंक णः परा यागु धू पतः । च दनोदक स मा यदामोपशो भतः ।। १८ ।। वहाँ सैकड़ कारके बाजे बज रहे थे। ब मू य अगु धूपक सुग ध चार ओर फैल रही थी। फशपर च दनके जलका छड़काव कया गया था। सब ओर फूल क मालाएँ और हार टँ गे थे, जससे वहाँक शोभा ब त बढ़ गयी थी ।। १८ ।। ै





कैलास शखर यैनभ तल वलेख भः । सवतः संवृतः शु ैः ासादै ः सुकृतो यैः ।। १९ ।। उस रंगम डपके चार ओर कैलास शखरके समान ऊँचे और ेत रंगके गगनचु बी महल बने ए थे ।। १९ ।। सुवणजालसंवीतैम णकु मभूषणैः । सुखारोहणसोपानैमहासनप र छदै ः ।। २० ।। उ ह भीतरसे सोनेके जालीदार पद और झालर से सजाया गया था। फश और द वार म म ण एवं र न जड़े गये थे। उ म सुखपूवक चढ़नेयो य सी ढ़याँ बनी थ । बड़े-बड़े आसन और बछावन आ द बछाये गये थे ।। २० ।। दामसमव छ ैरगु मवा सतैः । हंसांशुवणब भरायोजनसुग ध भः ।। २१ ।। अनेक कारक मालाएँ और हार उन भवन क शोभा बढ़ा रहे थे। अगु क सुग ध छा रही थी। वे हंस और च माक करण के समान ेत दखायी दे ते थे। उनके भीतरसे नकली ई धूपक सुग ध चार ओर एक योजनतक फैल रही थी ।। २१ ।। अस बाधशत ारैः शयनासनशो भतैः । ब धा तु पन ा ै हमव छखरै रव ।। २२ ।। उन महल म सैकड़ दरवाजे थे। उनके भीतर आने-जानेके लये बलकुल रोक-टोक नह थी और वे भाँ त-भाँ तक शया तथा आसन से सुशो भत थे। उनक द वार को अनेक कारक धातु के रंग से रँगा गया था। अतः वे राजमहल हमालयके ब रंगे शखर के समान सुशो भत हो रहे थे ।। २२ ।। त नाना कारेषु वमानेषु वलंकृताः । पधमाना तदा यो यं नषे ः सवपा थवाः ।। २३ ।। उ ह सतमहले मकान या वमान म, जो अनेक कारके बने ए थे, सब राजालोग पर पर एक- सरेसे होड़ रखते ए सु दर-से-सु दर शृंगार धारण करके बैठे ।। २३ ।। त ोप व ान् द शुमहास वपरा मान् । राज सहान् महाभागान् कृ णागु वभू षतान् ।। २४ ।। महा सादान् यान् वरा प रर णः । यान् सव य लोक य सुकृतैः कम भः शुभैः ।। २५ ।। म चेषु च परा यषु पौरजानपदा जनाः । कृ णादशन स यथ सवतः समुपा वशन् ।। २६ ।। नगर और जनपदके लोग ने जब दे खा क उ वमान म ब मू य मंच के ऊपर महान् बल और परा मसे स प परम सौभा यशाली, कालागु से वभू षत, महान् कृपा सादसे यु , ा णभ , अपने-अपने रा के र क और शुभ पु यकम के भावसे स पूण जगत्के य े नरप तगण आकर बैठ गये ह, तब राजकुमारी ौपद के दशनका लाभ लेनेके लये वे भी सब ओर सुखपूवक जा बैठे ।। २४—२६ ।। ा णै ते च स हताः पा डवाः समुपा वशन् ।

ऋ पा चालराज य प य त तामनु माम् ।। २७ ।। वे पा डव भी पांचालनरेशक उस सव म समृ का अवलोकन करते ए ा ण के साथ उ ह क पं म बैठे थे ।। २७ ।। ततः समाजो ववृधे स राजन् दवसान् बन् । र न दानब लः शो भतो नटनतकैः ।। २८ ।। राजन्! नगरम ब त दन से लोग क भीड़ बढ़ रही थी। राजसमाजके ारा चुर धनर न का दान कया जा रहा था। ब तेरे नट और नतक अपनी कला दखाकर उस समाजक शोभा बढ़ा रहे थे ।। २८ ।। वतमाने समाजे तु रमणीयेऽ षोडशे । आ लुता सुवसना सवाभरणभू षता ।। २९ ।। मालां च समुपादाय का चन समलंकृताम् । अवतीणा ततो र ं ौपद भरतषभ ।। ३० ।। सोलहव दन अ य त मनोहर समाज जुटा। भरत े ! उसी दन नान करके सु दर व और सब कारके आभूषण से वभू षत हो हाथ म सोनेक बनी ई कामदार जयमाला लये पदराजकुमारी उस रंग-भू मम उतरी ।। २९-३० ।। पुरो हतः सोमकानां म वद् ा णः शु चः । प र तीय जुहावा नमा येन व धवत् तदा ।। ३१ ।। तब सोमकवंशी य के प व एवं म ा ण पुरो हतने अ नवेद के चार ओर कुशा बछाकर वेदो व धके अनुसार व लत अ नम घीक आ त डाली ।। ३१ ।। संतप य वा वलनं ा णान् व त वा य च । वारयामास सवा ण वा द ा ण सम ततः ।। ३२ ।। इस कार अ नदे वको तृ त करके ा ण से व तवाचन कराकर चार ओर बजनेवाले सब कारके बाजे बंद करा दये गये ।। ३२ ।। नःश दे तु कृते त मन् धृ ु नो वशा पते । कृ णामादाय व धव मेघ भ नः वनः ।। ३३ ।। र म ये गत त मेघग भीरया गरा । वा यमु चैजगादे दं णमथव मम् ।। ३४ ।। महाराज! बाज क आवाज बंद हो जानेपर जब वयंवरसभाम स ाटा छा गया, तब व धके अनुसार धृ ु न ौपद को (साथ) लेकर रंगम डपके बीचम खड़ा हो मेघ और भके समान वर तथा मेघ-गजनक -सी ग भीर वाणीम यह अथयु उ म एवं मधुर वचन बोला— ।। ३३-३४ ।।

इदं धनुल य ममे च बाणाः शृ व तु मे भूपतयः समेताः । छ े ण य य समपय वं शरैः शतै मचरैदशाधः ।। ३५ ।। ‘यहाँ आये ए भूपालगण! आपलोग ( यान दे कर) मेरी बात सुन। यह धनुष है, ये बाण ह और यह नशाना है। आपलोग आकाशम छोड़े ए पाँच पैने बाण ारा उस य के छे दके भीतरसे ल यको बेधकर गरा द ।। ३५ ।। एत महत् कम करो त यो वै कुलेन पेण बलेन यु ः । त या भाया भ गनी ममेयं कृ णा भ व ी न मृषा वी म ।। ३६ ।। ‘म सच कहता ँ, झूठ नह बोलता—जो उ म कुल, सु दर प और े बलसे स प वीर यह महान् कम कर दखायेगा, आज यह मेरी ब हन कृ णा उसीक धमप नी होगी’ ।। ३६ ।। तानेवमु वा पद य पु ः प ा ददं तां भ गनीमुवाच । ना ना च गो ेण च कमणा च संक तयन् भू मपतीन् समेतान् ।। ३७ ।। य कहकर पदकुमार धृ ु नने वहाँ आये ए राजा के नाम, गो और परा मका वणन करते ए अपनी ब हन ौपद से इस कार कहा ।। ३७ ।। ी े े

इत

ीमहाभारते आ दपव ण वयंवरपव ण धृ ु नवा ये चतुरशी य धकशततमोऽ यायः ।। १८४ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत वयंवरपवम धृ ु नवा य वषयक एक सौ चौरासीवाँ अ याय पूरा आ ।। १८४ ।।

प चाशी य धकशततमोऽ यायः धृ

ु नका ौपद को वयंवरम आये ए राजा प रचय दे ना

का

धृ ु न उवाच य धनो वषहो मुखो धषणः । व वश त वकण सहो ःशासन तथा ।। १ ।। युयु सुवायुवेग भीमवेगरव तथा । उ ायुधो बलाक च करकायु वरोचनः ।। २ ।। कु डक सेन सुवचाः कनक वजः । न दको बा शाली च तु डो वकट तथा ।। ३ ।। एते चा ये च बहवो धातरा ा महाबलाः । कणन स हता वीरा वदथ समुपागताः ।। ४ ।। धृ ु नने कहा—ब हन! यह दे खो— य धन, वषह, मुख, धषण, व वश त, वकण, सह, ःशासन, युयु सु, वायुवेग, भीमवेगरव, उ ायुध, बलाक , करकायु, वरोचन, कु डक, च सेन, सुवचा, कनक वज, न दक, बा शाली, तु ड तथा वकट—ये और सरे भी ब त-से महाबली धृतरापु जो सब-के-सब वीर ह, तु ह ा त करनेके लये कणके साथ यहाँ पधारे ह ।। १—४ ।। असं याता महा मानः पा थवाः यषभाः । शकु नः सौबल ैव वृषकोऽथ बृहलः ।। ५ ।। एते गा धारराज य सुताः सव समागताः । अ थामा च भोज सवश भृतां वरौ ।। ६ ।। समवेतौ महा मानौ वदथ समलंकृतौ । बृह तो म णमां ैव द डधार पा थवः ।। ७ ।। सहदे वजय सेनौ मेघसं ध पा थवः । वराटः सह पु ा यां शङ् खेनैवो रेण च ।। ८ ।। वा े मः सुशमा च सेना ब पा थवः । सुकेतुः सह पु ेण सुना ना च सुवचसा ।। ९ ।। सु च ः सुकुमार वृकः स यधृ त तथा । सूय वजो रोचमानो नील ायुध तथा ।। १० ।। अंशुमां े कतान े णमां महाबलः । समु सेनपु च सेनः तापवान् ।। ११ ।। जलसंधः पतापु ौ वद डो द ड एव च । पौ को वासुद े व भगद वीयवान् ।। १२ ।।

का ल ता ल त प ना धप त तथा । म राज तथा श यः सहपु ो महारथः ।। १३ ।। मा दे न वीरेण तथा मरथेन च । कौर ः सोमद पु ा ा य महारथाः ।। १४ ।। समवेता यः शूरा भू रभू र वाः शलः । सुद ण का बोजो ढध वा च पौरवः ।। १५ ।। इनके सवा और भी असं य महामना य शरोम ण भू मपाल यहाँ आये ह। उधर दे खो, गा धारराज सुबलके पु शकु न, वृषक और बृहल बैठे ह। गा धारराजके ये सभी पु यहाँ पधारे ह। अ थामा और भोज—ये दोन महान् तेज वी और स पूण श धा रय म े ह और तु हारे लये गहने-कपड़ से सज-धजकर यहाँ आये ह। राजा बृह त, म णमान्, द डधार, सहदे व, जय सेन, राजा मेघसं ध, अपने दोन पु शंख और उ रके साथ राजा वराट, वृ ेमके पु सुशमा, राजा सेना ब , सुकेतु और उनके पु सुवचा, सु च , सुकुमार, वृक, स यधृ त, सूय वज, रोचमान, नील, च ायुध, अंशुमान्, चे कतान, महाबली े णमान्, समु सेनके तापी पु च सेन, जलसंध, वद ड और उनके पु द ड, पौ क वासुदेव, परा मी भगद , क लगनरेश ता ल त नरेश, पाटनके राजा, अपने दो पु वीर मांगद तथा मरथके साथ महारथी म राज श य, कु वंशी सोमद तथा उनके तीन महारथी शूरवीर पु भू र, भू र वा और शल, का बोजदे शीय सुद ण, पू वंशी ढ़ध वा ।। ५—१५ ।। बृहलः सुषेण श बरौशीनर तथा । पट चर नह ता च का षा धप त तथा ।। १६ ।। संकषणो वासुदेवो रौ मणेय वीयवान् । सा ब चा दे ण ा ु नः सगद तथा ।। १७ ।। अ ू रः सा य क ैव उ व महाम तः । कृतकमा च हा द यः पृथु वपृथुरेव च ।। १८ ।। व रथ कङ् क शङ् कु सगवेषणः । आशावहोऽ न शमीकः सा रमेजयः ।। १९ ।। वीरो वातप त ैव झ ली प डारक तथा । उशीनर व ा तो वृ णय ते क तताः ।। २० ।। महाबली सुषेण, उशीनरदे शीय श ब तथा चोर-डाकु को मार डालनेवाले का षा धप त भी यहाँ आये ह। इधर संकषण, वासुदेव, (भगवान् ीकृ ण) मणीन दन परा मी ु न, सा ब, चा दे ण, ु नकुमार अ न , ीकृ णके बड़े भाई गद, अ ू र, सा य क, परम बु मान् उ व, दकपु कृतकमा, पृथु, वपृथु, व रथ, कंक, शंकु, गवेषण, आशावह, अ न , शमीक, सा रमेजय, वीर, वातप त, झ ली प डारक तथा परा मी उशीनर—ये सब वृ णवंशी कहे गये ह ।। १६—२० ।। भागीरथो बृह ः सै धव जय थः । बृह थो बा क ुतायु महारथः ।। २१ ।। ै ो ौ

उलूकः कैतवो राजा च ा दशुभा दौ । व सराज म तमान् कोसला धप त तथा ।। २२ ।। शशुपाल व ा तो जरासंध तथैव च । एते चा ये च बहवो नानाजनपदे राः ।। २३ ।। वदथमागता भ े याः थता भु व । एते भे य त व ा ता वदथ ल यमु मम् । व येत य इदं ल यं वरयेथाः शुभेऽ तम् ।। २४ ।। भगीरथवंशी बृह , स धुराज जय थ, बृह थ, बा क, महारथी ुतायु, उलूक, राजा कैतव, च ांगद, शुभांगद, बु मान् व सराज, कोसलनरेश, परा मी शशुपाल तथा जरासंध—ये तथा और भी अनेक जनपद के शासक भूम डलम व यात ब त-से य वीर तु हारे लये यहाँ पधारे ह। भ े ! ये परा मी नरेश तु ह पानेके उ े यसे इस उ म ल यका भेदन करगे। शुभे! जो इस नशानेको वेध डाले, उसीका आज तुम वरण करना ।। २१—२४ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण वयंवरपव ण राजनामक तने प चाशी य धकशततमोऽ यायः ।। १८५ ।। इस कार ीमहाभारत, आ दपवके अ तगत वयंवरपवम राजा के नामका प रचय वषयक एक सौ पचासीवाँ अ याय पूरा आ ।। १८५ ।।

षडशी य धकशततमोऽ यायः राजाका

ल यवेधके लये उ ोग और असफल होना

वैश पायन उवाच तेऽलंकृताः कु ड लनो युवानः पर परं पधमाना नरे ाः । अ ं बलं चा म न म यमानाः सव समु पेतु दायुधा ते ।। १ ।। पेण वीयण कुलेन चैव शीलेन व ेन च यौवनेन । स म दपा मदवेग भ ा म ा यथा हैमवता गजे ाः ।। २ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! वे सब नवयुवक राजा अनेक आभूषण से वभू षत हो कान म कु डल पहने और पर पर लाग-डाँट रखते ए हाथ म अ -श लये अपने-अपने आसन से उठने लगे। उ ह अपनेम ही सबसे अ धक अ व ा और बलके होनेका अ भमान था; सभीको अपने प, परा म, कुल, शील, धन और जवानीका बड़ा घमंड था। वे सभी म तकसे वेगपूवक मदक धारा बहानेवाले हमाचल- दे शके गजराज क भाँ त उ म हो रहे थे ।। १-२ ।। पर परं पधया े माणाः संक पजेना भप र लुता ाः । कृ णा ममैवे य भभाषमाणा नृपासने यः सहसोद त न् ।। ३ ।। वे एक- सरेको बड़ी पधासे दे ख रहे थे। उनके सभी अंग म कामो माद ा त हो रहा था। ‘कृ णा तो मेरी ही होनेवाली है’ यह कहते ए वे अपने राजो चत आसन से सहसा उठकर खड़े हो गये ।। ३ ।। ते या र गताः समेता जगीषमाणा पदा मजां ताम् । चका शरे पवतराजक यामुमां यथा दे वगणाः समेताः ।। ४ ।। पदकुमारीको पानेक इ छासे रंगम डपम एक ए वे यनरेश ग रराजन दनी उमाके ववाहम इक े ए दे वता क भाँ त शोभा पा रहे थे ।। ४ ।। क दपबाणा भ नपी डता ाः कृ णागतै ते दयैनरे ाः । र ावतीणा पदा मजाथ े



े षं च ु ः सु दोऽ प त ।। ५ ।। कामदे वके बाण क चोटसे उनके सभी अंग म नर तर पीड़ा हो रही थी। उनका मन ौपद म ही लगा आ था। पदकुमारीको पानेके लये रंगभू मम उतरे ए वे सभी नरेश वहाँ अपने सु द् राजा से भी ई या करने लगे ।। ५ ।। अथाययुदवगणा वमानै ा द या वसवोऽथा नौ च । सा या सव म त तथैव यमं पुर कृ य धने रं च ।। ६ ।। इसी समय , आ द य, वसु, अ नीकुमार, सम त सा यगण तथा म द्गण यमराज और कुबेरको आगे करके अपने-अपने वमान पर बैठकर वहाँ आये ।। ६ ।। दै याः सुपणा महोरगा दे वषयो गु का ारणा । व ावसुनारदपवतौ च ग धवमु याः सहसा सरो भः ।। ७ ।। दै य, सुपण, नाग, दे व ष, गु क, चारण तथा व ावसु, नारद और पवत आ द धानधान ग धव भी अ सरा को साथ लये सहसा आकाशम उप थत हो गये ।। ७ ।। हलायुध त जनादन वृ य धका ैव यथा धानम् । े ां म च ु य पु वा ते थता कृ ण य मते महा तः ।। ८ ।। (अ य राजालोग ौपद क ा तके लये ल य बेधनेके वचारम पड़े थे, कतु) भगवान् ीकृ णक स म तके अनुसार चलनेवाले महान् य े , जनम बलराम और ीकृ ण आ द वृ ण और अ धक वंशके मुख वहाँ उप थत थे, चुपचाप अपनी जगहपर बैठे-बैठे दे ख रहे थे ।। ८ ।। ् वा तु तान् म गजे पान् प चा भपा नव वारणे ान् । भ मावृता ा नव ह वाहान् कृ णः द यौ य वीरमु यः ।। ९ ।। य वंशी वीर के धान नेता ीकृ णने ल मीके स मुख वराजमान गजराज तथा राखम छपी ई आगके समान मतवाले हाथीक -सी आकृ तवाले पा डव को, जो अपने सब अंग म भ म लपेटे ए थे, दे खकर (तुरंत) पहचान लया ।। ९ ।। शशंस रामाय यु ध रं स भीमं स ज णुं च यमौ च वीरौ । शनैः शनै तान् समी य रामो जनादनं ीतमना ददश ह ।। १० ।। औ

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और बलरामजीसे धीरे-धीरे कहा—‘भैया! वह दे खये, यु ध र, भीम, अजुन और दोन जुड़वे वीर नकुल-सहदे व उधर बैठे ह।’ बलरामजीने उ ह दे खकर अ य त स च हो भगवान् ीकृ णक ओर पात कया ।। १० ।। अ ये तु वीरा नृपपु पौ ाः कृ णागतैन मनः वभावैः । ाय छमाना द शुन तान् वै संद द त छदता ने ाः ।। ११ ।। सरे- सरे वीर राजा, राजकुमार एवं राजा के पौ अपने ने , मन और वभावको ौपद क ओर लगाकर उसीको दे ख रहे थे, अतः पा डव क ओर उनक नह गयी। वे जोशम आकर दाँत से ओठ चबा रहे थे और रोषसे उनक आँख लाल हो रही थ ।। ११ ।। तथैव पाथाः पृथुबाहव ते वीरौ यमौ चैव महानुभावौ । तां ौपद े य तदा म सव क दपबाणा भहता बभूवुः ।। १२ ।। इसी कार वे महाबा कु तीपु तथा दोन महानुभाव वीर नकुल-सहदे व सब-के-सब ौपद को दे खकर तुरंत कामदे वके बाण से घायल हो गये ।। १२ ।। दे व षग धवसमाकुलं तत् सुपणनागासुर स जु म् । द ेन ग धेन समाकुलं च द ै पु पैरवक यमाणम् ।। १३ ।। राजन्! उस समय वहाँका आकाश दे व षय तथा ग धव से खचाखच भरा था। सुपण, नाग, असुर और स का समुदाय वहाँ जुट गया था। सब ओर द सुग ध ा त हो रही थी और द पु प क वषा क जा रही थी ।। १३ ।। महा वनै भना दतै बभूव तत् संकुलम त र म् । वमानस बाधमभूत् सम तात् सवेणुवीणापणवानुनादम् ।। १४ ।। बृहत् श द करनेवाली भय के नादसे सारा अ त र गूँज उठा था। चार ओरका आकाश वमान से ठसाठस भरा था और वहाँ बाँसुरी, वीणा तथा ढोलक मधुर व न हो रही थी ।। १४ ।। तत तु ते राजगणाः मेण कृ णा न म ं कृत व मा । सकण य धनशा वश यौणाय न ाथसुनीथव ाः ।। १५ ।। क ल व ा धपपा पौ ा वदे हराजो यवना धप । े ौ

अ ये च नानानृपपु पौ ा रा ा धपाः पङ् कजप ने ाः ।। १६ ।। करीटहारा दच वालैवभू षता ाः पृथुबाहव ते । अनु मं व मस वयु ा बलेन वीयण च नदमानाः ।। १७ ।। तदन तर वे नृप तगण ौपद के लये मशः अपना परा म कट करने लगे। कण, य धन, शा व, श य, अ थामा, ाथ, सुनीथ, व , क लगराज, वंगनरेश, पा नरेश, पौ दे शके अ धप त, वदे हके राजा, यवनदे शके अ धप त तथा अ या य अनेक रा क े वामी, ब तेरे राजा, राजपु तथा राजपौ , जनके ने फु ल कमलप के समान शोभा पा रहे थे, जनके व भ अंग म करीट, हार, अंगद (बाजूबंद) तथा कड़े आ द आभूषण शोभा दे रहे थे तथा जनक भुजाएँ बड़ी-बड़ी थ , वे सब-के-सब परा मी और धैयसे यु हो अपने बल और श पर गजते ए मशः उस धनुषपर अपना बल दखाने लगे ।। १५ —१७ ।। तत् कामुकं संहननोपप ं स यं न शेकुमनसा प कतुम् । ते व म तः फुरता ढे न व यमाणा धनुषा नरे ाः ।। १८ ।। वचे माना धरणीतल था यथाबलं शै यगुण मा । गतौजसः त करीटहारा व नः स तः शमया बभूवुः ।। १९ ।। परंतु वे उस सु ढ़ धनुषपर हाथसे कौन कहे, मनसे भी यंचा न चढ़ा सके। अपने बल, श ा और गुणके अनुसार उसपर जोर लगाते समय वे सभी नरे उस सु ढ़ एवं चमचमाते ए धनुषके झटकेसे र फक दये जाते और लड़खड़ाकर धरतीपर जा गरते थे। फर तो उनका उ साह समा त हो जाता, करीट और हार खसककर गर जाते और वे लंबी साँस ख चते ए शा त होकर बैठ जाते थे ।। १८-१९ ।। हाहाकृतं तद् धनुषा ढे न व तहारा च वालम् । कृ णा न म ं व नवृ कामं रा ां तदा म डलमातमासीत् ।। २० ।। उस सु ढ़ धनुषके झटकेसे जनके हार, बाजूबंद और कड़े आ द आभूषण र जा गरे थे, वे नरेश उस समय ौपद को पानेक आशा छोड़कर अ य त थत हो हाहाकार कर उठे ।। २० ।। सवान् नृपां तान् समी य कण धनुधराणां वरो जगाम ।

उद्धृ य तूण धनु तं तत् स यं चकाराशु युयोज बाणान् ।। २१ ।। उन सब राजा क यह अव था दे ख धनुधा रय म े कण उस धनुषके पास गया और तुरंत ही उसे उठाकर उसपर यंचा चढ़ा द तथा शी ही उस धनुषपर वे पाँच बाण जोड़ दये* ।। २१ ।। ् वा सूतं मे नरे पा डु पु ा भ वा नीतं ल यवरं धरायाम् । धनुधरा रागकृत त म य नसोमाकमथाकपु म् ।। २२ ।। अ न, च मा और सूयसे भी अ धक तेज वी सूयपु कण ौपद के त आस होनेके कारण जब ल य भेदनेक त ा करके उठा, तब उसे दे खकर महाधनुधर पा डव ने यह व ास कर लया क अब यह इस उ म ल यको भेदकर पृ वीपर गरा दे गा ।। २२ ।। ् वा तु तं ौपद वा यमु चैजगाद नाहं वरया म सूतम् । सामषहासं समी य सूय त याज कणः फु रतं धनु तत् ।। २३ ।। कणको दे खकर ौपद ने उ च वरसे यह बात कही—‘म सूत जा तके पु षका वरण नह क ँ गी।’ यह सुनकर कणने अमषयु हँसीके साथ भगवान् सूयक ओर दे खा और उस काशमान धनुषको डाल दया ।। २३ ।। एवं तेषु नवृ ेषु येषु सम ततः । चेद नाम धपो वीरो बलवान तकोपमः ।। २४ ।। दमघोषसुतो धीरः शशुपालो महाम तः । धनुरादायमान तु जानु यामगम महीम् ।। २५ ।। इस कार जब वे सभी य सब ओरसे हट गये, तब यमराजके समान बलवान्, धीर, वीर, चे दराज दमघोषपु महाबु मान् शशुपाल धनुष उठानेके लये चला। परंतु उसपर हाथ लगाते ही घुटन के बल पृ वीपर गर पड़ा ।। २४-२५ ।। ततो राजा महावीय जरासंधो महाबलः । धनुषोऽ याशमाग य त थौ ग र रवाचलः ।। २६ ।। तदन तर महापरा मी एवं महाबली राजा जरासंध धनुषके नकट आकर पवतक भाँ त अ वचलभावसे खड़ा हो गया ।। २६ ।। धनुषा पी मान तु जानु यामगम महीम् । तत उ थाय राजा स वरा ा य भज मवान् ।। २७ ।। परंतु उठाते समय धनुषका झटका खाकर वह भी घुटनेके बल गर पड़ा। तब वहाँसे उठकर राजा जरासंध अपने रा यको चला गया ।। २७ ।। ो

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ततः श यो महावीरो म राजो महाबलः । तद यारो यमाण तु जानु यामगम महीम् ।। २८ ।। त प ात् महावीर एवं महाबली म राज श य आये। पर उ ह ने भी उस धनुषको चढ़ाते समय धरतीपर घुटने टे क दये ।। २८ ।। (ततो य धनो राजा धातरा ः परंतपः । मानी ढा स प ः सव नृपल णैः ।। उ थतः सहसा त ातृम ये महाबलः । वलो य ौपद ो धनुषोऽ याशमागमत् ।। स बभौ धनुरादाय श ापधरो यथा । आरोपयं तु तद् राजा धनुषा ब लना तदा ।। उ ानश यमपतदङ् गु य तरता डतः । स ययौ ता डत तेन ीड व नरा धपः ।।) तदन तर श ु को संताप दे नेवाला धृतरापु महाबली राजा य धन सहसा अपने भाइय के बीचसे उठकर खड़ा हो गया। उसके अ -श बड़े मजबूत थे। वह वा भमानी होनेके साथ ही सम त राजो चत ल ण से स प था। ौपद को दे खकर उसका दय हषसे खल उठा और वह शी तापूवक धनुषके पास आया। उस धनुषको हाथम लेकर वह चापधारी इ के समान शोभा पाने लगा। राजा य धन उस मजबूत धनुषपर जब यंचा चढ़ाने लगा, उस समय उसके अँगु लय के बीचम झटकेसे ऐसी चोट लगी क वह च लोट गया। धनुषक चोट खाकर राजा य धन अ य त ल जत होता आ-सा अपने थानपर लौट गया। त मं तु स ा तजने समाजे न तवादे षु जना धपेषु । कु तीसुतो ज णु रयेष कतु स यं धनु तत् सशंर वीरः ।। २९ ।। (जब इस कार बड़े-बड़े भावशाली राजा ल यवेध न कर सके, तब) सारा समाज स म (घबराहट)-म पड़ गया और ल यवेधक बातचीततक बंद हो गयी, उसी समय मुख वीर कु तीन दन अजुनने उस धनुषपर यंचा चढ़ाकर उसपर बाण-संधान करनेक अ भलाषा क ।। २९ ।। (ततो व र ः सुरदानवानामुदारधीवृ णकुल वीरः । जहष रामेण स पी ह तं ह तं गतां पा डु सुत य म वा ।। न ज ुर ये नृपवीरमु याः संछ पानथ पा डु पु ान् ।) यह दे ख दे वता और दानव के आदरणीय, वृ ण-वंशके मुख वीर उदारबु भगवान् ीकृ ण बल-रामजीके साथ उनका हाथ दबाते ए बड़े स ए। उ ह यह व ास हो ौ े ी े

गया क ौपद अब पा डु न दन अजुनके हाथम आ गयी। पा डव ने अपना रखा था, अतः सरे कोई राजा या मुख वीर उ ह पहचान न सके।

प छपा

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ीमहाभारते आ दपव ण वयंवरपव ण राजपराङ् मुखीभवने षडशी य धकशततमोऽ यायः ।। १८६ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत वयंवरपवम स पूण राजा के वमुख होनेसे स ब ध रखनेवाला एक सौ छयासीवाँ अ याय पूरा आ ।। १८६ ।। (दा णा य अ धक पाठक े ५ ोक मलाकर कुल ३४ ोक ह)

* कणके ारा यंचा और बाण चढ़ानेक बात दा णा य पाठम कह नह है। भ डारकरक तम भी मु य पाठम यह वणन नह है। नीलक ठ पाठम भी इससे पूव ोक १५म तथा उ र अ० १८७ ोक ४ एवं १९म भी ऐसा ही उ लेख है क कण धनुषपर यंचा और बाण नह चढ़ा सका था; इससे यही स होता है क कणने बाण नह चढ़ाया था।

स ताशी य धकशततमोऽ यायः अजुनका ल यवेध करके ौपद को ा त करना वैश पायन उवाच यदा नवृ ा राजानो धनुषः स यकमणः । अथोद त द् व ाणां म या ज णु दारधीः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! जब सब राजा ने उस धनुषपर यंचा चढ़ानेके कायसे मुँह मोड़ लया, तब उदारबु अजुन ा णम डलीके बीचसे उठकर खड़े ए ।। १ ।। उद ोशन् व मु या वधु व तोऽ जना न च । ् वा स थतं पाथ म केतुसम भम् ।। २ ।। इ क वजाके समान (लंबे) अजुनको उठकर धनुषक ओर जाते दे ख बड़े-बड़े ा ण अपने-अपने मृगचम हलाते ए जोर-जोरसे कोलाहल करने लगे ।। २ ।। के चदासन् वमनसः के चदासन् मुदा वताः । आ ः पर परं के च पुणा बु जी वनः ।। ३ ।। कुछ ा ण उदास हो गये और कुछ स ताके मारे फूल उठे तथा कुछ चतुर एवं बु जीवी ा ण आपसम इस कार कहने लगे— ।। ३ ।। यत् कणश य मुखैः यैल क व ुतैः । नानतं बलव ह धनुवदपरायणैः ।। ४ ।। तत् कथं वकृता ेण ाणतो बलीयसा । वटु मा ेण श यं ह स यं कतु धनु जाः ।। ५ ।। ‘ ा णो! कण और श य आ द बलवान्, धनुवदपरायण तथा लोक व यात य जसे झुका (-तक) न सके, उसी धनुषपर अ - ानसे शू य और शारी रक बलक से अ य त बल यह नरा ा ण-बालक कैसे यंचा चढ़ा सकेगा ।। ४-५ ।। अवहा या भ व य त ा णाः सवराजसु । कम य म सं स े चापलादपरी ते ।। ६ ।। ‘इसने बालो चत चपलताके कारण इस कायक क ठनाईपर वचार नह कया है। य द इसम यह सफल न आ तो सम त राजा म ा ण क बड़ी हँसी होगी ।। ६ ।। य ेष दपा षाद् वा यथ ा णचापलात् । थतो धनुराय तुं वायतां साधु मा गमत् ।। ७ ।। ‘य द यह अ भमान, हष अथवा ा णसुलभ चंचलताके कारण धनुषपर डोरी चढ़ानेके लये आगे बढ़ा है तो इसे रोक दे ना चा हये; अ छा तो यही होगा क यह जाय ही नह ’ ।। ७ ।। ा णा ऊचुः ो

नावहा या भ व यामो न च लाघवमा थताः । नच व तां लोके ग म यामो मही ताम् ।। ८ ।। ा ण बोले—(भाइयो!) हमारी हँसी नह होगी। न हम कसीके सामने छोटा ही बनना पड़ेगा और लोकम हमलोग राजा के े षपा भी नह होगे। (अतः इन बात क च ता छोड़ दो) ।। ८ ।। के चदा युवा ीमान् नागराजकरोपमः । पीन क धो बा धैयण हमवा नव ।। ९ ।। कुछ ा ण ने कहा—‘यह सु दर युवक नागराज ऐरावतके शु ड-द डके समान पु दखायी दे ता है। इसके कंधे सुपु और भुजाएँ बड़ी-बड़ी ह। यह धैयम हमालयके समान जान पड़ता है ।। ९ ।। सहखेलग तः ीमान् म नागे व मः । स भा म मन् कमदमु साहा चानुमीयते ।। १० ।। ‘इसक सहके समान म तानी चाल है। यह शोभाशाली त ण मतवाले गजराजके समान परा मी तीत होता है। इस वीरके लये यह काय करना स भव है। इसका उ साह दे खकर भी ऐसा ही अनुमान होता है ।। १० ।। श र य महो साहा न श ः वयं जेत् । न च तद् व ते क चत् कम लोकेषु यद् भवेत् ।। ११ ।। ा णानामसा यं च नृषु सं थानचा रषु । अभ ा वायुभ ा फलाहारा ढ ताः ।। १२ ।। बला अ प व ा ह बलीयांसः वतेजसा । ा णो नावम त ः सदसद् वा समाचरन् ।। १३ ।। सुखं ःखं महद् वं कम यत् समुपागतम् । (धनुवद े च वेदे च योगेषु व वधेषु च । न तं प या म मे द यां ा णा य धको भवेत् ।। म योगबलेना प महताऽऽ मबलेन वा । जृ भयेयुरमुं लोकमथवा जस माः ।।) जामद येन रामेण न जताः या यु ध ।। १४ ।। इसम श और महान् उ साह है। य द यह असमथ होता तो वयं ही धनुषके पास जानेका साहस नह करता। स पूण लोक म दे वता, असुर आ दके पम वचरनेवाले पु ष का ऐसा कोई काय नह है, जो ा ण के लये असा य हो। ा णलोग जल पीकर, हवा खाकर अथवा फलाहार करके (भी) ढ़तापूवक तका पालन करते ह। अतः वे शरीरसे बले होनेपर भी अपने तेजके कारण अ य त बलवान् होते ह। ा ण भला-बुरा, सुखद- ःखद और छोटा-बड़ा जो भी कम ा त होता है, कर लेता है; अतः कसी भी कमको करते समय उस ा णका अपमान नह करना चा हये। म भूम डलम ऐसे कसी पु षको नह दे खता जो धनुवद, वेद तथा नाना कारके योग म ा णसे बढ़-चढ़कर हो। े ा ण म बल, योगबल अथवा महान् आ मबलसे इस स पूण जगत्को त ध कर े ( े ी े) े ो

सकते ह। (अतः उनके त तु छ बु नह रखनी चा हये।) दे खो, जमद नन दन परशुरामजीने अकेले ही (स पूण) य को यु म जीत लया था ।। ११—१४ ।। पीतः समु ोऽग येन गाधो तेजसा । त माद् ुव तु सवऽ बटु रेष धनुमहान् ।। १५ ।। आरोपयतु शी ं वै तथे यूचु जषभाः । ‘मह ष अग यने अपने तेजके भावसे अगाध समु को पी डाला। इस लये आप सब लोग यहाँ आशीवाद द क यह महान् चारी शी ही इस धनुषको चढ़ा दे (और ल य-वेध करनेम सफल हो)। यह सुनकर वे े ा ण उसी कार आशीवादक वषा करने लगे ।। १५ ।। एवं तेषां वलपतां व ाणां व वधा गरः ।। १६ ।। अजुनो धनुषोऽ याशे त थौ ग र रवाचलः । स तद् धनुः प र य द णमथाकरोत् ।। १७ ।। इस कार जब ा णलोग भाँ त-भाँ तक बात कर रहे थे, उसी समय अजुन धनुषके पास जाकर पवतके समान अ वचलभावसे खड़े हो गये। फर उ ह ने धनुषके चार ओर घूमकर उसक प र मा क ।। १६-१७ ।। ण य शरसा दे वमीशानं वरदं भुम् । कृ णं च मनसा कृ वा जगृहे चाजुनो धनुः ।। १८ ।। इसके बाद वरदायक भगवान् शंकरको म तक झुकाकर णाम कया और मन-ही-मन भगवान् ीकृ णका च तन करके अजुनने वह धनुष उठा लया ।। १८ ।। यत् पा थवै मसुनीथव ै ः राधेय य धनश यशा वैः । तदा धनुवदपरैनृ सहैः कृतं न स यं महतोऽ प य नात् ।। १९ ।। तदजुनो वीयवतां सदपतदै र ावरज भावः । स यं च च े न मषा तरेण शरां ज ाह दशाधसं यान् ।। २० ।। म, सुनीथ, व , कण, य धन, श य तथा शा व आ द धनुवदके पारंगत व ान् पु ष सह राजालोग महान् य न करके भी जस धनुषपर डोरी न चढ़ा सके, उसी धनुषपर व णुके समान भावशाली एवं परा मी वीर म े ताका अ भमान रखनेवाले इ कुमार अजुनने पलक मारते-मारते यंचा चढ़ा द । इसके बाद उ ह ने वे पाँच बाण भी अपने हाथम ले लये ।। १९-२० ।। व ाध ल यं नपपात त च छ े ण भूमौ सहसा त व म् । ततोऽ त र े च बभूव नादः े

समाजम ये च महान् ननादः ।। २१ ।। और उ ह चलाकर बात-क -बातम (ल य) वेध दया। वह बधा आ ल य अ य त छ - भ हो य के छे दसे सहसा पृ वीपर गर पड़ा। उस समय आकाशम बड़े जोरका हषनाद आ और सभाम डपम तो उससे भी महान् आन द-कोलाहल छा गया ।। २१ ।। पु पा ण द ा न ववष दे वः पाथ य मू न षतां नह तुः ।। २२ ।। दे वतालोग श ुह ता अजुनके म तकपर द फूल क वषा करने लगे ।। २२ ।। चैला न व धु त ा णा सह शः । वल ता तत ु हाहाकारां सवशः । यपतं ा नभसः सम तात् पु पवृ यः ।। २३ ।। शता ा न च तूया ण वादकाः समवादयन् । सूतमागधसङ् घा ा य तुवं त सु वराः ।। २४ ।। सह ा ण (हषम भरकर) वहाँ अपने पट् टे हलाने लगे (मानो अजुनक वजयवजा फहरा रहे ह ), फर तो जो लोग (ल यवेध करनेम असमथ हो, हार मान चुके थे) वे राजा लोग सब ओरसे हाहाकार करने लगे। उस रंगभू मम आकाशसे सब ओर फूल क वषा हो रही थी। बाजा बजानेवाले लोग सैकड़ अंग वाली तुरही आ द बजाने लगे। सूत और मागधगण वहाँ मीठे वरसे यशोगान करने लगे ।। २३-२४ ।। तं ् वा पदः ीतो बभूव रपुसूदनः । सह सै यै पाथ य साहा याथ मयेष सः ।। २५ ।। अजुनको दे खकर श ुसूदन पदके हषक सीमा न रही। उ ह ने अपनी सेनाके साथ उनक सहायता करनेका न य कया ।। २५ ।। त मं तु श दे मह त वृ े यु ध रो धमभृतां व र ः । आवासमेवोपजगाम शी ं साध यमा यां पु षो मा याम् ।। २६ ।। उस समय जब महान् कोलाहल बढ़ने लगा, धमा मा म े यु ध र पु षो म नकुल और सहदे वको साथ लेकर डेरेपर ही चले गये ।। २६ ।। व ं तु ल यं समी य कृ णा पाथ च श तमं नरी य । आदाय शु लं वरमा यदाम जगाम कु तीसुतमु मय ती ।। २७ ।। ( व य त पा प नवेव न यं वना प हासं हसतीव क या । मदा तेऽ प खलतीव भावैवाचा वना ाहरतीव ा ।। समे य त योप र सो ससज ो

समागतानां पुरतो नृपाणाम् । व य य मालां वनयेन त थौ वहाय रा ः सहसा नृपा मजा ।। शचीव दे वे मथा नदे वं वाहेव ल मी यथा मुकु दम् । उषेव सूय मदनं र त महे रं पवतराजपु ी । रामं यथा मै थलराजपु ी भैमी यथा राजवरं नलं ह ।।) ल यको बधंकर धरतीपर गरा दे ख इ के तु य परा मी अजुनपर डालकर हाथम सु दर ेत फूल क जयमाला लये ौपद म द-म द मुसकराती ई कु तीकुमारके समीप गयी। उसका प ज ह ने बार-बार दे खा था, उनके लये भी वह न य नयी-सी जान पड़ती थी। वह पदकुमारी बना हँसीके भी हँसती-सी तीत होती थी। मदसेवनके बना भी (आ त रक अनुराग-सूचक) भाव के ारा लड़खड़ाती-सी चलती थी और बना बोले भी केवल से ही बातचीत करती-सी जान पड़ती थी। नकट जाकर राजकुमारी ौपद ने वहाँ जुटे ए सम त राजा के सम उन सबक उपे ा करके सहसा वह माला अजुनके गलेम डाल द और वनयपूवक खड़ी हो गयी। जैसे शचीने दे वराज इ का, वाहाने अ नदे वका, ल मीने भगवान् व णुका, उषाने सूयदे वका, र तने कामदे वका, ग रराजकुमारी उमाने महे रका, वदे हराजन दनी सीताने ीरामका तथा भीमकुमारी दमय तीने नृप े नलका वरण कया था, उसी कार ौपद ने पा डु पु अजुनका वरण कर लया ।। २७ ।। स तामुपादाय व ज य र े जा त भ तैर भपू यमानः । र ा र ामद च यकमा प या तया चा यनुग यमानः ।। २८ ।। अ त कम करनेवाले अजुन इस कार उस वयंवरसभाम ( ीर न ौपद को जीतकर) उसे अपने साथ ले रंगभू मसे बाहर नकले। प नी ौपद उनके पीछे -पीछे चल रही थी। उस समय उप थत ा ण ने उनका बड़ा स कार कया ।। २८ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण वयंवरपव ण ल य छे दने स ताशी य धकशततमोऽ यायः ।। १८७ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत वयंवरपवम ल यछे दन वषयक एक सौ सतासीवाँ अ याय पूरा आ ।। १८७ ।। (दा णा य अ धक पाठक े ५ ोक मलाकर कुल ३३ ोक ह)

अ ाशी य धकशततमोऽ यायः पदको मारनेके लये उ त ए राजा का सामना करनेके लये भीम और अजुनका उ त होना और उनके वषयम भगवान् ीकृ णका बलरामजीसे वातालाप वैश पायन उवाच त मै द स त क यां तु ा णाय तदा नृपे । कोप आसी महीपानामालो या यो यम तकात् ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! राजा पद उस ा णको क या दे ना चाहते ह, यह जानकर उस समय राजा को बड़ा ोध आ और वे एक- सरेको दे खकर तथा समीप आकर इस कार कहने लगे— ।। १ ।। अ मानयम त य तृणीकृ य च संगतान् । दातु म छ त व ाय ौपद यो षतां वराम् ।। २ ।। ‘(अहो! दे खो तो सही,) यह राजा पद (यहाँ) एक ए हमलोग को तनकेक तरह तु छ समझकर और हमारा उ लंघन करके युव तय म े अपनी क याका ववाह एक ा णके साथ करना चाहता है ।। २ ।। अवरो येह वृ ं तु फलकाले नपा यते । नह मैनं रा मानं योऽयम मान् न म यते ।। ३ ।। ‘यह वृ लगाकर अब फल लगनेके समय उसे काटकर गरा रहा है। अतः हमलोग इस रा माको मार डाल; य क यह हम कुछ नह समझ रहा है ।। ३ ।। न ह येष स मानं ना प वृ मं गुणैः । ह मैनं सह पु ेण राचारं नृप षम् ।। ४ ।। ‘यह राजा पद गुण के कारण हमसे वृ ो चत स मान पानेका अ धकारी भी नह है; राजा से े ष करनेवाले इस राचारीको पु स हत हमलोग मार डाल ।। ४ ।। अयं ह सवानाय स कृ य च नरा धपान् । गुणवद् भोज य वा ं ततः प ा म यते ।। ५ ।। ‘पहले तो इसने हम सब राजा को बुलाकर स कार कया, उ म गुणयु भोजन कराया और ऐसा करनेके बाद यह हमारा अपमान कर रहा है ।। ५ ।। अ मन् राजसमावाये दे वाना मव संनये । कमयं स शं क च ृप त नैव वान् ।। ६ ।। ‘दे वता के समूहक भाँ त उ म नी तसे सुशो भत राजा के इस समुदायम या इसने कसी भी नरेशको अपनी पु ीके यो य नह दे खा है? ।। ६ ।। न च व े वधीकारो व ते वरणं त । वयंवरः याणा मतीयं थता ु तः ।। ७ ।। ‘ े ी ो ै ( ो )

‘ वयंवरम क या ारा वरण ा त करनेका अ धकार ही ा ण को नह है। (लोग म) यह बात स है क वयंवर य का ही होता है ।। ७ ।। अथवा य द क येयं न च क चद् बुभूष त । अ नावेनां प र य याम रा ा ण पा थवाः ।। ८ ।। ‘अथवा राजाओ! य द यह क या हमलोग मसे कसीको अपना प त बनाना न चाहे तो हम इसे जलती ई आगम झ ककर अपने-अपने रा यको चल द ।। ८ ।। ा णो य द चाप या लोभाद् वा कृतवा नदम् । व यं पा थवे ाणां नैष व यः कथंचन ।। ९ ।। ‘य प इस ा णने चपलताके कारण अथवा राजक याके त लोभ होनेसे हम राजा का अ य कया है, तथा प ा ण होनेके कारण हम कसी कार इसका वध नह करना चा हये ।। ९ ।। ा णाथ ह नो रा यं जी वतं ह वसू न च । पु पौ ं च य चा यद माकं व ते धनम् ।। १० ।। ‘ य क हमारा रा य, जीवन, र न, पु -पौ तथा और भी जो धन-वैभव है, वह सब ा ण के लये ही है। ( ा ण के लये हम इन सब चीज का याग कर सकते ह) ।। १० ।। अवमानभया चैव वधम य च र णात् । वयंवराणाम येषां मा भूदेवं वधा ग तः ।। ११ ।। ‘ पदको तो हम इस लये द ड दे ना चाहते ह क (हमारा) अपमान न हो, हमारे धमक र ा हो और सरे वयंवर क भी ऐसी ग त न हो’ ।। ११ ।। इ यु वा राजशा ला ाः प रघबाहवः । पदं तु जघांस तः सायुधाः समुपा वन् ।। १२ ।। य कहकर प रघ-जैसी मोट बाँह वाले वे े भूपाल हष (और उ साह)-म भरकर हाथ म अ -श लये पदको मारनेक इ छासे उनक ओर वेगसे दौड़े ।। १२ ।। तान् गृहीतशरावापान् ु ानापततो बन् । पदो वी य सं ासाद् ा णा छरणं गतः ।। १३ ।। उन ब त-से राजा को ोधम भरकर धनुष लये आते दे ख पद अ य त भयभीत हो ा ण क शरणम गये ।। १३ ।। वेगेनापतत तां तु भ ा नव वारणान् । पा डु पु ौ महे वासौ तयातावरदमौ ।। १४ ।। मदक धारा बहानेवाले मदो म गजराज क भाँ त उन नरेश को वेगसे आते दे ख श ुदमन महाधनुधर पा डु न दन भीम और अजुन उनका सामना करनेके लये आ गये ।। १४ ।। ततः समु पेतु दायुधा ते मही तो ब गोधाङ् गु ल ाः । जघांसमानाः कु राजपु ाो ी े ौ

वमषय तोऽजुनभीमसेनौ ।। १५ ।। तब हाथ म गोहके चमड़ेके द ताने पहने और आयुध को ऊपर उठाये अमषम भरे ए वे (सभी) नरेश कु राजकुमार अजुन और भीमसेनको मारनेके लये उनपर टू ट पड़े ।। १५ ।। तत तु भीमोऽ तभीमकमा महाबलो व समानसारः । उ पा दो या ममेकवीरो न प यामास यथा गजे ः ।। १६ ।। तब तो वक े समान श शाली तथा अ त एवं भयानक कम करनेवाले अ तीय वीर महाबली भीमसेनने गजराजक भाँ त अपने दोन हाथ से एक वृ को उखाड़ लया और उसके प े झाड़ दये ।। १६ ।। तं वृ मादाय रपु माथी द डीव द डं पतृराज उ म् । त थौ समीपे पु षषभ य पाथ य पाथः पृथुद घबा ः ।। १७ ।। फर मोट और वशाल भुजा वाले श ुनाशन कु तीकुमार भीमसेन उसी वृ को हाथम लेकर भयंकर द ड उठाये ए द डधारी यमराजक भाँ त पु षो म अजुनके समीप खड़े हो गये ।। १७ ।। तत् े य कमा तमनु यबु ज णुः स ह ातुर च यकमा । व स मये चा प भयं वहाय त थौ धनुगृ महे कमा ।। १८ ।। असाधारण बु वाले तथा दे वराज इ के समान महापरा मी, अ च यकमा अजुन अपने भाई भीमसेनके (अ त) कायको दे खकर च कत हो उठे और छोड़कर धनुष हाथम लये ए यु के लये गये ।। १८ ।।

तत् े य कमा तमनु यबु ज णोः सह ातुर च यकमा । दामोदरो ातरमु वीय हलायुधं वा य मदं बभाषे ।। १९ ।। जनक बु लोको र और कम अ च य ह, उन भगवान् ीकृ णने अजुन तथा उनके भाई भीमसेनका वह (साहसपूण) काय दे खकर भयंकर परा मी एवं हलको ही आयुधके पम धारण करनेवाले अपने ाता बलरामजीसे यह बात कही— ।। १९ ।। य एष सहषभखेलगामी मह नुः कष त तालमा म् । एषोऽजुनो ना वचायम त य म संकषण वासुदेवः ।। २० ।। य वेष वृ ं तरसावभ य रा ां नकारे सहसा वृ ः । वृकोदरा ा य इहैतद कतु समथः समरे पृ थ ाम् ।। २१ ।। ‘भैया संकषण! ये जो े सहके समान चालसे लीलापूवक चल रहे ह और तालके* बराबर वशाल धनुषको ख च रहे ह, ये अजुन ही ह; इसम वचार करनेक कोई बात नह है। य द म वासुदेव ँ तो मेरी यह बात झूठ नह है और ये जो बड़े वेगसे वृ उखाड़कर सहसा सम त राजा का सामना करनेके लये उ त ए ह, भीमसेन ह; य क इस समय ी







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पृ वीपर भीमसेनके सवा सरा कोई ऐसा वीर नह है, जो यु -भू मम यह अ त परा म कर सके ।। २०-२१ ।। योऽसौ पुर तात् कमलायता तनुमहा सहग त वनीतः । गौरः ल बो वलचा घोणो व नःसृतः सोऽ युत धमपु ः ।। २२ ।। ‘अ युत! जो वक सत कमलदलके समान वशाल ने वाले, बले-पतले, वनयशील, गोरे, महान् सहक -सी चालसे चलनेवाले तथा लंबी, सु दर एवं मनोहर नाकवाले पु ष (अभी यहाँसे) नकले ह, वे धमपु यु ध र ह ।। २२ ।। यौ तौ कुमारा वव का तकेयौ ाव नेया व त मे वतकः । मु ा ह त मा जतुवे मदाहामया ुताः पा डु सुताः पृथा च ।। २३ ।। ‘उनके साथ युगल का तकेय-जैसे जो दो कुमार थे, वे अ नीकुमार के पु नकुल और सहदे व रहे ह—ऐसा मेरा अनुमान है; य क मने सुन रखा है क उस ला ागृहके दाहसे पा डव और कु तीदे वी—सभी बचकर नकल गये थे ।। २३ ।। (यथा नृपाः पा डवमा जम ये तं ा वी च धरो हलायुधम् । बलं वजानन् पु षो म तदा न कायमायण च स म वया ।। भीमानुजो योध यतुं समथ एको ह पाथः ससुरासुरान् ब न् । अलं वजेतुं कमु मानुषान् नृपान् साहा यम मान् य द स साची । स वा छ त म यताम वीर पराभवः पा डु सुते न चा त ।।) राजालोग रणभू मम पा डु पु अजुनके त अपना ोध जैसे कट कर रहे थे, उसे सुनकर अजुनके बलको जानते ए च धारी पु षो म भगवान् ीकृ णने बलरामजीसे कहा—‘भैया! आपको घबराना नह चा हये। य द ब त-से दे वता और असुर एक हो जायँ, तो भी भीमके छोटे भाई कु तीकुमार अजुन उन सबके साथ अकेले ही यु करनेम समथ ह। फर इन मानव-भूपाल पर वजय पाना कौन बड़ी बात है। य द स साची अजुन हमारी सहायता लेना चाहगे तो हम इसके लये य न करगे। वीरवर! मेरा व ास है क पा डु पु अजुनक पराजय नह हो सकती।’ तम वी जलतोयदाभो हलायुधोऽन तरजं तीतः । ीतोऽ म ् वा ह पतृ वसारं ौ ै

पृथां वमु ां सह कौरवा यैः ।। २४ ।। जलहीन मेघके समान गौरवणवाले हलधर (बलरामजी)-ने अपने छोटे भाई ीकृ णक बातपर व ास करके उनसे कहा—‘भैया! कु कुलके े वीर पा डव स हत अपनी बुआ कु तीको ला ागृहसे बची ई दे खकर मुझे बड़ी स ता ई है’ ।। २४ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण वयंवरपव ण कृ णवा ये अ ाशी य धकशततमोऽ यायः ।। १८८ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत वयंवरपवम ीकृ णवा य वषयक एक सौ अासीवाँ अ याय पूरा आ ।। १८८ ।। (दा णा य अ धक पाठक े २ ोक मलाकर कुल २६ ोक ह।)

* ऊ व व तृतदोमाने ताल म य भधीयते। इस वचनके अनुसार एक मनु य अपनी बाँहको ऊपर उठाकर खड़ा हो तो उस हाथसे लेकर पैरतकक ल बाईको ‘ताल’ कहते ह।

एकोननव य धकशततमो यायः अजुन और भीमसेनके ारा कण तथा श यक पराजय और ौपद स हत भीम-अजुनका अपने डेरेपर जाना वैश पायन उवाच अ जना न वधु व तः करकां जषभाः । ऊचु ते भीन कत ा वयं यो यामहे परान् ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! उस समय अपने मृगचम और कम डलु को हलाते और उछालते ए वे े ा ण अजुनसे कहने लगे—‘तुम डरना नह , हम (सब)लोग (तु हारी ओरसे) श ु के साथ यु करगे’ ।। १ ।। तानेवं वदतो व ानजुनः हस व । उवाच े का भू वा यूयं त थ पा तः ।। २ ।। इस कारक बात करनेवाले उन ा ण से अजुनने हँसते ए-से कहा—‘आपलोग दशक होकर बगलम चुपचाप खड़े रह ।। २ ।। अहमेनान ज ा ैः शतशो व कर छरैः । वार य या म सं ु ान् म ैराशी वषा नव ।। ३ ।। ‘म (अकेला ही) सीधी नोकवाले सैकड़ बाण क वषा करके ोधम भरे ए इन श ु को उसी कार रोक ँ गा, जैसे म लोग अपने म (के बल)-से वषैले सप को कु ठत कर दे ते ह’ ।। ३ ।। इ त तद् धनुरान य शु कावा तं महाबलः । ा ा भीमेन स हत त थौ ग र रवाचलः ।। ४ ।। य कहकर महाबली अजुनने उसी वयंवरम ल यवेधके लये ा त ए धनुषको झुकाकर (उसपर यंचा चढ़ा द और उसे हाथम लेकर) भाई भीमसेनके साथ वे पवतके समान अ वचलभावसे खड़े हो गये ।। ४ ।। ततः कणमुखान् ् वा यान् यु मदान् । स पेततुरभीतौ तौ गजौ तगजा नव ।। ५ ।। तदन तर कण आ द रणो म य को आते दे ख वे दोन भाई नभय हो उनपर उसी तरह टू ट पड़े, जैसे दो (मतवाले) हाथी अपने वप ी हा थय क ओर बढ़े जा रहे ह ।। ५ ।। ऊचु वाचः प षा ते राजानो युयु सवः । आहवे ह ज या प वधो ो युयु सतः ।। ६ ।। तब यु के लये उ सुक उन राजा ने कठोर वरम ये बात कह —‘यु क इ छावाले ा णका भी रणभू मम वध शा ानुकूल दे खा गया है’ ।। ६ ।। इ येवमु वा राजानः सहसा वु जान् । े





ततः कण महातेजा ज णुं त ययौ रणे ।। ७ ।। य कहकर वे राजालोग सहसा ा ण क ओर दौड़े। महातेज वी कण अजुनक ओर यु के लये बढ़ा ।। ७ ।। यु ाथ वा सताहेतोगजः तगजं यथा । भीमसेनं ययौ श यो म ाणामी रो बली ।। ८ ।। ठ क उसी तरह, जैसे ह थनीके लये लड़नेक इ छा रखकर एक हाथी अपने त सरे हाथीसे भड़नेके लये जा रहा हो, महाबली म राज श य भीमसेनसे जा भड़े ।। ८ ।। य धनादयः सव ा णैः सह संगताः । मृ पूवमय नेन ययु यं तदाहवे ।। ९ ।। य धन आ द सभी (भूपाल) एक साथ अ या य ा ण के साथ उस यु भू मम बना कसी यासके (खेल-सा करते ए) कोमलतापूवक (शीत) यु करने लगे ।। ९ ।। ततोऽजुनः य व यदापत तं शतैः शरैः । कण वैकतनं ीमान् वकृ य बलवद् धनुः ।। १० ।। तब तेज वी अजुनने अपने धनुषको जोरसे ख चकर अपनी ओर वेगसे आते ए सूयपु कणको कई ती ण बाण मारे ।। १० ।। तेषां शराणां वेगेन शतानां त मतेजसाम् । वमु मानो राधेयो य नात् तमनुधाव त ।। ११ ।। उन ःसह तेजवाले तीखे बाण के वेगपूवक आघातसे राधान दन कणको मू छा आने लगी। वह बड़ी क ठनाईसे अजुनक ओर बढ़ा ।। ११ ।। तावुभाव य नद यौ लाघवा जयतां वरौ । अयु येतां सुसंरधाव यो य व जगी षणौ ।। १२ ।। वजयी वीर म े वे दोन यो ा हाथ क फुत दखानेम बेजोड़ थे, उनम कौन बड़ा है और कौन छोटा—यह बताना अस भव था। दोन ही एक- सरेको जीतनेक इ छा रखकर बड़े ोधसे लड़ रहे थे ।। १२ ।। कृते तकृतं प य प य बा बलं च मे । इ त शूराथवचनैरभाषेतां पर परम् ।। १३ ।। ‘दे खो, तुमने जस अ का योग कया था, उसे रोकनेके लये मने यह अ चलाया है। दे ख लो, मेरी भुजा का बल!’ इस कार शौयसूचक वचन ारा वे आपसम बात भी करते जाते थे ।। १३ ।। ततोऽजुन य भुजयोव यम तमं भु व । ा वा वैकतनः कणः संरधः समयोधयत् ।। १४ ।। तदन तर अजुनके बा बलक इस पृ वीपर कह समता नह है, यह जानकर सूयपु कण अ य त ोधपूवक जमकर यु करने लगा ।। १४ ।। अजुनेन यु ां तान् बाणान् वेगवत तदा । तह य ननादो चैः सै या न तदपूजयन् ।। १५ ।। े ी े ी ो े

उस समय अजुन ारा चलाये ए उन सभी वेगशाली बाण को काटकर कण बड़े जोरसे सहनाद करने लगा। सम त सै नक ने उसके इस अ त कायक सराहना क ।। १५ ।। कण उवाच तु या म ते व मु य भुजवीय य संयुगे । अ वषाद य चैवा य श ा वजय य च ।। १६ ।। कण बोला— व वर! यु म आपके बा बलसे म (ब त) संतु ँ। आपम थकावट या वषादका कोई च नह दखायी दे ता और आपने सभी अ -श को जीतकर मानो अपने काबूम कर लया है। (आपक यह सफलता दे खकर मुझे बड़ी स ता ई है) ।। १६ ।। क वं सा ाद् धनुवदो रामो वा व स म । अथ सा ा रहयः सा ाद् वा व णुर युतः ।। १७ ।। व शरोमणे! आप मू तमान् धनुवद ह? या परशुराम? अथवा आप वयं इ या अपनी म हमासे कभी युत न होनेवाले सा ात् भगवान् व णु ह? ।। १७ ।। आ म छादनाथ वै बा वीयमुपा तः । व पं वधायेदं म ये मां तयु यसे ।। १८ ।। म समझता ँ, आप इ ह मसे कोई ह और अपने व पको छपानेके लये यह ा णवेष धारण करके बा बलका आ य ले मेरे साथ यु कर रहे ह ।। १८ ।। न ह मामाहवे ु म यः सा ा छचीपतेः । पुमान् योध यतुं श ः पा डवाद् वा करी टनः ।। १९ ।। य क यु म मेरे कु पत होनेपर सा ात् शचीप त इ अथवा करीटधारी पा डु न दन अजुनके अ त र सरा कोई मेरा सामना नह कर सकता ।। १९ ।। तमेवं वा दनं त फा गुनः यभाषत । ना म कण धनुवदो ना म रामः तापवान् ।। २० ।। कणके ऐसा कहनेपर अजुनने उसे इस कार उ र दया—‘कण! न तो म धनुवद ँ और न तापी परशुराम’ ।। २० ।। ा णोऽ म युधां े ः सवश भृतां वरः । ा े पौरंदरे चा े न तो गु शासनात् ।। २१ ।। थतोऽ य रणे जेतुं वां वै वीर थरो भव । म तो स पूण श धा रय म उ म और यो ा म े एक ा ण ँ। गु का उपदे श पाकर ा तथा इ ा दोन म पारंगत हो गया ँ। वीर! आज म तु ह यु म जीतनेके लये खड़ा ँ, तुम भी थरतापूवक खड़े रहो ।। २१ ।। वैश पायन उवाच एवमु े

तु राधेयो यु ात् कण यवतत ।। २२ ।। ो

बा ं तेज तदाज यं म यमानो महारथः । वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! अजुनक यह बात सुनकर महारथी कण ा तेजको अजेय मानता आ उस समय यु छोड़कर हट गया ।। २२ ।। अपर मन् वनो े शे वीरौ श यवृकोदरौ ।। २३ ।। ब लनौ यु स प ौ व या च बलेन च । अ यो यमा य तौ तु म ा वव महागजौ ।। २४ ।। इसी समय सरे थानको अपना रण े बनाकर वह बलवान् वीर श य और भीमसेन एक- सरेको ललकारते ए दो मतवाले गजराज क भाँ त यु कर रहे थे। दोन ही व ा, बल और यु क कलासे स प थे ।। २३-२४ ।। मु भजानु भ ैव न न ता वतरेतरम् । कषणाकषणयोर याकष वकषणैः ।। २५ ।। वे घूँस और घुटन से एक- सरेको मारने लगे। दोन एक- सरेको रतक ठे ल ले जाते, नीचे गरानेका य न करते, कभी अपनी ओर ख चते और कभी अगल-बगलसे पैतर दे कर गरानेक चे ा करते थे ।। २५ ।। आचकषतुर यो यं मु भ ा प ज नतुः । तत टचटाश दः सुघोरो भवत् तयोः ।। २६ ।। पाषाणस पात नभैः हारैर भज नतुः । मुत तौ तदा यो यं समरे पयकषताम् ।। २७ ।। इस कार वे एक- सरेको ख चते और मु क से मारते थे। उस समय घूँस क मारसे दोन के शरीर पर अ य त भयंकर ‘चट-चट’ श द हो रहा था। वे पर पर इस कार हार कर रहे थे, मानो प थर टकरा रहे ह । लगभग दो घड़ीतक दोन उस यु म एक- सरेको ख चते और ठे लते रहे ।। २६-२७ ।। ततो भीमः समु य बा यां श यमाहवे । अपातयत् कु े ो ा णा जहसु तदा ।। २८ ।। तदन तर कु े भीमसेनने दोन हाथ से श यको ऊपर उठाकर उस यु भू मम पटक दया। यह दे ख ा णलोग हँसने लगे ।। २८ ।। त ा य भीमसेन कार पु षषभः । य छ यं पा ततं भूमौ नावधीद् ब लनं बली ।। २९ ।। कु े बलवान् भीमसेनने एक आ यक बात यह क क महाबली श यको पृ वीपर पटककर भी मार नह डाला ।। २९ ।। पा तते भीमसेनेन श ये कण च शङ् कते । शङ् कताः सवराजानः प रव ुवृकोदरम् ।। ३० ।। भीमसेनके ारा श यके पछाड़ दये जाने और अजुनसे कणके डर जानेपर सभी राजा (यु का वचार छोड़) शं कत हो भीमसेनको चार ओरसे घेरकर खड़े हो गये ।। ३० ।। ौ



ऊचु स हता त सा वमौ ा णषभौ । व ायेतां वज मानौ व नवासौ तथैव च ।। ३१ ।। और एक साथ ही बोल उठे —‘अहो! ये दोन े ा ण ध य ह। पता तो लगाओ, इनक ज मभू म कहाँ है तथा ये रहनेवाले कहाँके ह? ।। ३१ ।। को ह राधासुतं कण श ो योध यतुं रणे । अ य रामाद् ोणाद् वा पा डवाद् वा करी टनः ।। ३२ ।। ‘परशुराम, ोण अथवा पा डु न दन अजुनके सवा सरा ऐसा कौन है, जो यु म राधान दन कणका सामना कर सके ।। ३२ ।। कृ णाद् वा दे वक पु ात् कृपाद् वा प शर तः । को वा य धनं श ः तयोध यतुं रणे ।। ३३ ।। ‘(इसी कार) दे वक न दन ीकृ ण अथवा शर ान्के पु कृपाचायके सवा सरा कौन है, जो समरभू मम य धनके साथ लोहा ले सके ।। ३३ ।। तथैव म ा धप त श यं बलवतां वरम् । बलदे वा ते वीरात् पा डवाद् वा वृकोदरात् ।। ३४ ।। वीराद् य धनाद् वा यः श ः पात यतुं रणे । यतामवहारोऽ माद् यु ाद् ा णसंवृतात् ।। ३५ ।। ‘बलवान म े म राज श यको भी वीरवर बलदे व, पा डु न दन भीमसेन अथवा वीर य धनको छोड़कर सरा कौन रणभू मम गरा सकता है। अतः ा ण से घरे ए इस यु े से हमलोग को हट जाना चा हये ।। ३४-३५ ।। ा णा ह सदा र याः सापराधा प न यदा । अथैनानुपल येह पुनय याम वत् ।। ३६ ।। ‘ य क ा ण अपराधी ह , तो भी सदा ही उनक र ा करनी चा हये। पहले इनका ठ क-ठ क प रचय ले ल, फर (ये चाह तो) हम इनके साथ स तापूवक यु करगे’ ।। ३६ ।। तां तथावा दनः सवान् समी य ती रान् । अथा यान् पु षां ा प कृ वा तत् कम संयुगे ।। ३७ ।। उन सब राजा तथा अ य लोग को ऐसी बात करते दे ख और यु म वह महान् परा म दखाकर भीमसेन और अजुन बड़े स थे ।। ३७ ।। वैश पायन उवाच तत् कम भीम य समी य कृ णः कु तीसुतौ तौ प रशङ् कमानः । नवारयामास महीपत तान् धमण लधे यनुनीय सवान् ।। ३८ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! भीमसेनका वह अ त काय दे ख भगवान् ीकृ णने यह सोचते ए क ये दोन भाई कु तीकुमार भीमसेन और अजुन ही ह, उन सब ो









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राजा को यह समझाकर क ‘इ ह ने धमपूवक ौपद को ा त कया है’ अनुनयपूवक यु से रोका ।। ३८ ।। एवं ते व नवृ ा तु यु ाद् यु वशारदाः । यथावासं ययुः सव व मता राजस माः ।। ३९ ।। इस कार ीकृ णके समझानेसे वे सभी यु कुशल े नरेश यु से नवृ हो गये और व मत होकर अपने-अपने डेर को चले गये ।। ३९ ।। वृ ो ो रो र ः पा चाली ा णैवृता । इ त ुव तः ययुय त ासन् समागताः ।। ४० ।। वहाँ जो दशक एक ए थे, वे ‘इस रंग-म डपके उ सवसे ा ण क े ता स ई; पांचालराजकुमारी ौपद को ा ण ने ा त कया’, य कहते ए (अपने-अपने नवास थानको) चले गये ।। ४० ।। ा णै तु त छ ौ रौरवा जनवा स भः । कृ े ण ज मतु तौ तु भीमसेनधनंजयौ ।। ४१ ।। मृगके चमको व के पम धारण करनेवाले ा ण से घरे होनेके कारण भीमसेन और अजुन बड़ी क ठनाईसे आगे बढ़ पाते थे ।। ४१ ।। वमु ौ जनस बाधा छ ु भः प रवी तौ । कृ णयानुगतौ त नृवीरौ तौ वरेजतुः ।। ४२ ।। जनताक भीड़से बाहर नकलनेपर श ु ने उ ह अ छ तरह दे खा। आगे-आगे वे दोन नरवीर थे और उनके पीछे -पीछे ौपद चली जा रही थी। ौपद के साथ वहाँ उन दोन क बड़ी शोभा हो रही थी ।। ४२ ।। पौणमा यां घनैमु ौ च सूया ववो दतौ । तेषां माता ब वधं वनाशं पय च तयत् ।। ४३ ।। अनाग छ सु पु ेषु भै कालेऽ भग छ त । धातरा ैहता न यु व ाय कु पु वाः ।। ४४ ।। माया वतैवा र ो भः सुघोरै ढवै र भः । वपरीतं मतं जातं ास या प महा मनः ।। ४५ ।। वे ऐसे लगते थे, जैसे पूणमासी त थको मेघ क घटासे नकलकर च मा और सूय का शत हो रहे ह । इधर भ ाका समय बीत जानेपर भी जब पु नह लौटे , तब उनक माता कु तीदे वी नेहवश अनेक कारक च ता म डू बकर उनके वनाशक आशंका करने लग —‘कह ऐसा तो नह आ क धृतराक े पु ने कु े पा डव को पहचानकर उनक ह या कर डाली हो? अथवा ढ़तापूवक वैरभावको मनम रखनेवाले महाभयंकर मायावी रा स ने तो मेरे ब च को नह मार डाला? या महा मा ासके भी न त मतके वपरीत कोई बात हो गयी?’ ।। ४३—४५ ।। इ येवं च तयामास सुत नेहावृता पृथा । ततः सु तजन ाये दने मेघस लुते ।। ४६ ।। मह यथापरा े तु घनैः सूय इवावृतः । ै े

ा णैः ा वशत् त ज णुभागववे म तत् ।। ४७ ।। इस कार पु नेहम पगी कु तीदे वी जब च ताम म न हो रही थ , आकाशम मेघ क भारी घटा घर आनेके कारण जब दन-सा हो रहा था और जनता सब काम छोड़कर सोये एक भाँ त अपने-अपने घर पर न े होकर बैठ थी, उसी समय दनके तीसरे पहरम बादल से घरे ए सूयके समान ा णम डलीसे घरे ए अजुनने वहाँ उस कु हारके घरम वेश कया ।। ४६-४७ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण वयंवरपव ण पा डव यागमने एकोननव य धकशततमोऽ यायः ।। १८९ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत वयंवरपवम पा डव यागमन वषयक एक सौ नवासीवाँ अ याय पूरा आ ।। १८९ ।।

नव य धकशततमोऽ यायः कु ती, अजुन और यु ध रक बातचीत, पाँच पा डव का ौपद के साथ ववाहका वचार तथा बलराम और ीकृ णक पा डव से भट वैश पायन उवाच ग वा तु तां भागवकमशालां पाथ पृथां ा य महानुभावौ । तां या सेन परम तीतौ भ े यथावेदयतां नरा यौ ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! मनु य म े महानुभाव कु तीपु भीमसेन और अजुन कु हारके घरम वेश करके अ य त स हो माताको ौपद क ा त सू चत करते ए बोले—‘माँ! हमलोग भ ा लाये ह’ ।। १ ।। कुट गता सा वनवे य पु ौ ोवाच भुङ् े त समे य सव । प ा च कु ती समी य कृ णां क ं मया भा षत म युवाच ।। २ ।। उस समय कु तीदे वी कु टयाके भीतर थ । उ ह ने अपने पु को दे खे बना ही उ र दे दया—‘( भ ा लाये हो तो) तुम सभी भाई मलकर उसे पाओ।’ त प ात् ौपद को दे खकर कु तीने च तत होकर कहा—‘हाय! मेरे मुँहसे बड़ी अनु चत बात नकल गयी’ ।। २ ।। साधमभीता प र च तय ती तां या सेन परम तीताम् । पाणौ गृही वोपजगाम कु ती यु ध रं वा यमुवाच चेदम् ।। ३ ।। कु तीदे वी अधमके भयसे बड़ी च ताम पड़ गय ; (परंतु मनोनुकूल प तक ा तसे) ौपद के मनम बड़ी स ता थी। कु तीदे वी ौपद का हाथ पकड़कर यु ध रके पास गय और उनसे उ ह ने यह बात कही— ।। ३ ।। कु युवाच इयं तु क या पद य रा ः तवानुजा यां म य सं न व ा । यथो चतं पु मया प चो ं समे य भुङ् े त नृप मादात् ।। ४ ।। ी े









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कु तीने कहा—बेटा! यह राजा पदक क या ौपद है। तु हारे छोटे भाई भीमसेन और अजुनने इसे भ ा कहकर मुझे सम पत कया और मने भी (इसे दे खे बना ही) भूलसे ( भ ा ही समझकर) अनु प उ र दे दया—‘तुम सब लोग मलकर इसे पाओ’ ।। ४ ।।

मया कथं नानृतमु म भवेत् कु णामृषभ वी ह । पा चालराज य सुतामधम न चोपवतत न व मे च ।। ५ ।। कु े ! बताओ, अब कैसे मेरी बात झूठ न हो? और या कया जाय, जससे इस पांचालराज-कुमारी कृ णाको न तो पाप लगे और न नीच यो नय म ही भटकना पड़े ।। ५ ।। वैश पायन उवाच स एवमु ो म तमान् नृवीरो मा ा मुत तु व च य राजा । कु त समा ा य कु वीरो धनंजयं वा य मदं बभाषे ।। ६ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! कु े नरवीर राजा यु ध र बड़े बु मान् थे। उ ह ने माताक यह बात सुनकर दो घड़ीतक (मन-ही-मन) कुछ वचार कया। फर ी े ी ो

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कु तीदे वीको भलीभाँ त आ ासन दे कर उ ह ने धनंजयसे यह बात कही— ।। ६ ।। वया जता फा गुन या सेनी वयैव शो भ य त राजपु ी । वा यताम नर म साह गृहाण पा ण व धवत् वम याः ।। ७ ।। ‘अजुन! तुमने ौपद को जीता है, तु हारे ही साथ इस राजकुमारीक शोभा होगी। श ु का सामना करनेवाले वीर! तुम अ न व लत करो और (अ नदे वके सा यम) व धपूवक इस राजक याका पा ण हण करो’ ।। ७ ।।

अजुन उवाच मा मां नरे वमधमभाजं कृथा न धम ऽयम श ः। भवान् नवे यः थमं ततोऽयं भीमो महाबा र च यकमा ।। ८ ।। अहं ततो नकुलोऽन तरं मे प ादयं सहदे व तर वी । वृकोदरोऽहं च यमौ च राजयं च क या भवतो नयो याः ।। ९ ।। अजुन बोले—नरे ! आप मुझे अधमका भागी न बनाइये। (बड़े भाईके अ ववा हत रहते छोटे भाईका ववाह हो जाय,) यह धम नह है; ऐसा वहार तो अनाय म दे खा गया है। पहले आपका ववाह होना चा हये; त प ात् अ च यकमा महाबा भीमसेनका और फर मेरा। त प ात् नकुल फर वेगवान् सहदे व ववाह कर सकते ह। राजन्! भैया भीमसेन, म नकुल-सहदे व तथा यह राजक या—सभी आपक आ ाके अधीन ह ।। ८-९ ।। एवं गते यत् करणीयम ध य यश यं कु तद् व च य । पा चालराज य हतं च यत् यात् शा ध सव म वशे थता ते ।। १० ।। ऐसी दशाम आप यहाँ अपनी बु से वचार करके जो धम और यशके अनुकूल तथा पांचालराजके लये भी हतकर काय हो, वह क जये और उसके लये हम आ ा द जये। हम सब लोग आपके अधीन ह ।। १० ।। वैश पायन उवाच ज णोवचनमा ाय भ नेहसम वतम् । नवेशयामासुः पा चा यां पा डु न दनाः ।। ११ ।। वैश पायनजी कहते ह—अजुनके ये भ भाव तथा नेहसे भरे वचन सुननेके बाद सम त पा डव ने पांचालराजकुमारी ौपद क ओर दे खा ।। ११ ।। े ी

् वा ते त प य त सव कृ णां यश वनीम् । स े या यो यमासीना दयै तामधारयन् ।। १२ ।। यश वनी कृ णा भी उन सबको दे ख रही थी। वहाँ बैठे ए पा डव ने ौपद को दे खकर आपसम भी एक- सरेपर पात कया और सबने अपने दयम पदराजकुमारीको बसा लया ।। १२ ।। तेषां तु ौपद ् वा सवषाम मतौजसाम् । स मये य ामं ा रासी मनोभवः ।। १३ ।। पदकुमारीपर पड़ते ही उन सभी अ मततेज वी पा डु पु क स पूण इ य को मथकर म मथ कट हो गया ।। १३ ।। का यं ह पं पा चा या वधा ा व हतं वयम् । बभूवा धकम या यः सवभूतमनोहरम् ।। १४ ।। वधाताने पांचालीका कमनीय प वयं ही रचा और सँवारा था। वह संसारक अ य य से ब त अ धक आकषक और सम त ा णय के मनको मोह लेनेवाला था ।। १४ ।। तेषामाकारभाव ः कु तीपु ो यु ध रः । ै पायनवचः कृ नं स मार मनुजषभः ।। १५ ।। मनु य म े कु तीपु यु ध रने उनक आकृ त दे खकर ही उनके मनका भाव समझ लया। फर उ ह ै पायन वेद ासजीके सारे वचन का मरण हो आया ।। १५ ।। अ वीत् स हतान् ातॄन् मथोभेदभया ृपः । सवषां ौपद भाया भ व य त ह नः शुभा ।। १६ ।। ौपद को लेकर हम सब भाइय म फूट ना पड़ जाय, इस भयसे राजाने अपने सभी ब धु से कहा—‘क याणमयी ौपद हम सब लोग क प नी होगी’ ।। १६ ।। वैश पायन उवाच ातुवच तत् समी य सव ये य पा डो तनया तदानीम् । तमेवाथ यायमाना मनो भः सव च ते त थुरद नस वाः ।। १७ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! उस समय अपने बड़े भाईका यह वचन सुनकर उदार दयवाले सम त पा डव मन-ही-मन उसीका च तन करते ए चुपचाप बैठे रह गये ।। १७ ।। वृ ण वीर तु कु वीरानाशंसमानः सहरौ हणेयः । जगाम तां भागवकमशालां य ासते ते पु ष वीराः ।। १८ ।। इधर वृ णवं शय म े भगवान् ीकृ ण रो हणीन दन बलरामजीके साथ कु कुलके मुख वीर पा डव को पहचानकर कु हारके घरम, जहाँ वे नर े नवास करते थे, े े





मलनेके लये गये ।। १८ ।। त ोप व ं पृथुद घबा ं ददश कृ णः सहरौ हणेयः । अजातश ुं प रवाय तां ायुपोप व ा वलन काशान् ।। १९ ।। वहाँ बलरामस हत ीकृ णने मोट और वशाल भुजा से सुशो भत अजातश ु यु ध रको चार ओरसे घेरकर बैठे ए अ नके समान तेज वी अ य चार भाइय को दे खा ।। १९ ।। ततोऽ वीद् वासुदेवोऽ भग य कु तीसुतं धमभृतां व र म् । कृ णोऽहम मी त नपी पादौ यु ध र याजमीढ य रा ः ।। २० ।। वहाँ जाकर वसुदेवन दन ीकृ णने धमा मा म े कु तीकुमार यु ध रसे ‘म ीकृ ण ँ’ य कहकर अजमीढवंशी राजा यु ध रके दोन चरण का पश कया ।। २० ।। तथैव त या यनु रौ हणेयतौ चा प ाः कुरवोऽ यन दन् । पतृ वसु ा प य वीरावगृ तां भारतमु य पादौ ।। २१ ।। उ ह के साथ उसी कार बलरामजीने भी (अपना नाम बताकर) उनके चरण छू ए। पा डव भी उन दोन को दे खकर बड़े स ए। जनमेजय! फर उन य वीर ने अपनी बूआ कु तीके भी चरण का पश कया ।। २१ ।। अजातश ु कु वीरः प छ कृ णं कुशलं वलो य । कथं वयं वासुदेव वयेह गूढा वस तो व दता सव ।। २२ ।। कु कुलके े वीर अजातश ु यु ध रने ीकृ णको दे खकर कुशल-समाचार पूछा और कहा—‘वसुदेवन दन! हम तो यहाँ छपकर रहते ह, फर आपने हम सब लोग को कैसे पहचान लया?’ ।। २२ ।।

तम वीद् वासुदेवः ह य गूढोऽ य न ायत एव राजन् । तं व मं पा डवेयानती य कोऽ यः कता व ते मानुषेषु ।। २३ ।। तब भगवान् वासुदेवने हँसकर उ र दया—‘राजन्! आग कतनी ही छपी य न हो, वह पहचानम आ ही जाती है। भला, पा डव को छोड़कर मनु य म कौन ऐसा है, जो वैसा अ त कम कर दखाता ।। २३ ।। द ा सव पावकाद् व मु ा यूयं घोरात् पा डवाः श ुसाहाः । द ा पापो धृतरा य पु ः सहामा यो न सकामोऽभ व यत् ।। २४ ।। ‘बड़े सौभा यक बात है क श ु का सामना करनेक श रखनेवाले आप सभी पा डव उस भयंकर अ नका डसे जी वत बच गये। पापी धृतरापु य धन अपने म य स हत इस षड् य म सफल न हो सका, यह भी सौभा यक ही बात है ।। २४ ।। भ ं वोऽ तु न हतं यद् गुहायां ववध वं वलना इवैधमानाः । मा वो व ः पा थवाः के चदे व या यावहे श वरायैव तावत् ।। सोऽनु ातः पा डवेना य ीः े े

ाया छ ं बलदे वेन साधम् ।। २५ ।। ‘हमारे अ तःकरणम जो क याणक भावना न हत है, वह आपको ा त हो। आपलोग सदा व लत अ नक भाँ त बढ़ते रह। अभी आपलोग को कोई भी राजा पहचान न सक, इस लये हमलोग भी अपने श वरको ही लौट जायँगे।’ य कहकर यु ध रक आ ा ले अ य शोभासे स प भगवान् ीकृ ण बलदे वजीके साथ शी वहाँसे चल दये ।। २५ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण वयंवरपव ण रामकृ णागमने नव य धकशततमोऽ यायः ।। १९० ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत वयंवरपवम बलराम और ीकृ णका आगमन वषयक एक सौ न बेवाँ अ याय पूरा आ ।। १९० ।।

एकनव य धकशततमोऽ यायः धृ ु नका गु त पसे वहाँका सब हाल दे खकर राजा पदके पास आना तथा ौपद के वषयम पदका वैश पायन उवाच धृ ु न तु पा चा यः पृ तः कु न दनौ । अ वग छत् तदा या तौ भागव य नवेशने ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! जब कु -न दन भीमसेन और अजुन कु हारके घर जा रहे थे, उसी समय पांचालराजकुमार धृ ु न गु त पसे उनके पीछे लग गये ।। १ ।। सोऽ ायमानः पु षानवधाय सम ततः । वयमारा लीनोऽभूद ् भागव य नवेशने ।। २ ।। उ ह ने चार ओर अपने सेवक को बैठा दया और वयं भी अ ात पसे कु हारके घरके पास ही छपे रहे ।। २ ।। सायं च भीम तु रपु माथी ज णुयमौ चा प महानुभावौ । भै ं च र वा तु यु ध राय नवेदया च ु रद नस वाः ।। ३ ।। सायंकाल होनेपर श ु का मान मदन करनेवाले भीमसेन, अजुन और महानुभाव नकुल-सहदे वने भ ा लाकर यु ध रको नवेदन क । इन सबका अ तःकरण उदार था ।। ३ ।। तत तु कु ती पदा मजां तामुवाच काले वचनं वदा या । वम मादाय कु व भ े ब ल च व ाय च दे ह भ ाम् ।। ४ ।। तब उदार दया कु तीने उस समय ौपद से कहा—‘भ े ! तुम भोजनका थम भाग लेकर उससे दे वता को ब ल अपण करो तथा ा णको भ ा दो ।। ४ ।। ये चा म छ त दद व ते यः प र ता ये प रतो मनु याः । तत शेषं वभ य शी मध चतुधा मम चा मन ।। ५ ।। ‘तथा अपने आस-पास जो सरे मनु य आ तभावसे रहते और भोजन चाहते ह, उ ह भी अ परोसो। तदन तर जो शेष बच जाय, उसके शी ही इस कार वभाग करो। अ का आधा भाग एकके लये रखो, फर शेषके छः भाग करके चार भाइय के लये चार ो



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भाग अलग-अलग रख दो, उसके बाद मेरे लये और अपने लये भी एक-एक भाग पृथक्पृथक् परोस दो ।। ५ ।। अध तु भीमाय च दे ह भ े य एष नागषभतु य पः । गौरो युवा संहननोपप एषो ह वीरो ब भुक् सदै व ।। ६ ।। ‘क याणी! ये जो गजराजके समान शरीरवाले -पु गोरे युवक बैठे ह, इनका नाम भीम है, इ ह अ का आधा भाग दे दो। वीरवर भीम सदासे ही अ धक भोजन करनेवाले ह’ ।। ६ ।। सा पेव तु राजपु ी त या वचः साधु वशङ् कमाना । यथाव ं चकार सा वी ते चा प सव बुभुजु तद म् ।। ७ ।। सासक आ ाका पालन करनेम ही अपना क याण मानती ई सा वी राजकुमारी ौपद ने अ य त स होकर कु तीदे वीने जैसा कहा था, ठ क वैसा ही कया। सबने उस अ का भोजन कया ।। ७ ।। कुशै तु भूमौ शयनं चकार मा पु ः सहदे व तर वी । यथा वक या य जना न सव सं तीय वीराः सुषुपुधर याम् ।। ८ ।। तदन तर वेगवान् वीर मा कुमार सहदे वने धरतीपर कुशक शया बछा द । फर सम त पा डव वीर अपने-अपने मृगचम बछाकर भू मधर ही सोये ।। ८ ।। अग यशा ताम भतो दशं तु शरां स तेषां कु स मानाम् । कु ती पुर तात् तु बभूव तेषां पादा तरे चाथ बभूव कृ णा ।। ९ ।। अशेत भूमौ सह पा डु पु ैः पादोपधानीव कृता कुशेषु । न त ःखं मनसा प त या न चावमेने कु पु वां तान् ।। १० ।। उन कु े पा डव के सर द ण दशाक ओर थे। कु ती उनके म तकक ओर और ौपद पैर क ओर पृ वीपर ही पा डव के साथ सोयी, मानो उन कुशासन पर वह उनके पैर क त कया बन गयी। वहाँ उस प र थ तम रहकर भी ौपद के मनम त नक भी ःख नह आ और उसने उन कु े वीर का क च मा भी तर कार नह कया ।। ९-१० ।। ते त शूराः कथया बभूवुः

कथा व च ाः पृतना धकाराः । अ ा ण द ा न रथां नागान् खड् गान् गदा ा प पर धां ।। ११ ।। वे शूरवीर पा डव वहाँ सेनाप तय के यो य अ त कथाएँ कहने लगे। उ ह ने नाना कारके द ा , रथ , हा थय , तलवार , गदा और फरस के वषयम भी चचाएँ क ।। ११ ।। तेषां कथा ताः प रक यमानाः पा चालराज य सुत तदानीम् । शु ाव कृ णां च तदा वष णां ते चा प सव द शुमनु याः ।। १२ ।। उनक कही ई वे सभी बात उस समय पांचालराजकुमार धृ ु नने सुन और उन सभी लोग ने वहाँ सोयी ई ौपद को भी दे खा ।। १२ ।। धृ ु नो राजपु तु सव वृ ं तेषां क थतं चैव रा ौ । सव रा े पदायाखलेन नवेद य यं व रतो जगाम ।। १३ ।। तदन तर राजकुमार धृ ु न रातम पा डव का इ तहास तथा उनक कही ई सारी बात राजा पदको पूण पसे सुनानेके लये बड़ी उतावलीके साथ राजभवनम गये ।। १३ ।। पा चालराज तु वष ण पतान् पा डवान त व दमानः । धृ ु नं पयपृ छ महा मा व सा गता केन नीता च कृ णा ।। १४ ।। पांचालराज पद पा डव का पता न पानेके कारण ब त ख थे। धृ ु नके आनेपर महा मा पदने उससे पूछा—‘बेटा! मेरी पु ी कृ णा कहाँ गयी? कौन उसे ले गया? ।। १४ ।। क च शू े ण न हीनजेन वै येन वा करदे नोपप ा । क चत् पदं मू न न पङ् क द धं क च माला प तता मशाने ।। १५ ।। ‘कह कसी शू ने अथवा नीच जा तके पु ष ारा ऊँची जा तक ीसे उ प मनु यने या कर दे नेवाले वै यने तो मेरी पु ीको ा त नह कर लया? और इस कार उ ह ने मेरे सरपर अपना क चड़से सना पाँव तो नह रख दया? मालाके समान सुकुमारी और दयपर धारण करनेयो य मेरी लाडली पु ी मशानके समान अप व कसी पु षके हाथम तो नह पड़ गयी? ।। १५ ।। क चत् सवण वरो मनु य

उ वण ऽ युत एव क चत् । क च वामो मम मू न पादः कृ णा भमशन कृतोऽ पु ।। १६ ।। ‘ या ौपद को पानेवाला मनु य अपने समान वण ( यकुल)-का ही कोई े पु ष है? अथवा वह अपनेसे भी े ा णकुलका है?’ बेटा! मेरी कृ णाका पश कर कसी न नवणवाले मनु यने आज मेरे म तकपर अपना बायाँ पैर तो नह रख दया? ।। १६ ।। क च त ये परम तीतः संयु य पाथन नरषभेण । वद व त वेन महानुभाव कोऽसौ वजेता हतुममा ।। १७ ।। ‘ या ऐसा सौभा य होगा क म नर े अजुनसे ौपद का ववाह करके अ य त स होऊँ और कभी भी संत त न हो सकूँ? महानुभाव पु ! ठ क-ठ क बताओ, आज जसने मेरी पु ीको जीता है, वह पु ष कौन है? ।। १७ ।। व च वीय य सुत य क चत् कु वीर य य त पु ाः । क चत् तु पाथन यवीयसा धनुगृहीतं नहतं च ल यम् ।। १८ ।। ‘ या कु कुलके े वीर व च वीयकुमार पा डु के शूरवीर पु अभी जी वत ह? या आज कु तीके सबसे छोटे पु अजुनने ही उस धनुषको उठाया और ल यको मार गराया था?’ ।। १८ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण वयंवरपव ण धृ ु न यागमने एकनव य धकशततमोऽ यायः ।। १९१ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत वयंवरपवम धृ ु नका यागमन वषयक एक सौ इ यानबेवाँ अ याय पूरा आ ।। १९१ ।।

(व ैवा हकपव) नव य धकशततमोऽ यायः धृ ु नके ारा ौपद तथा पा डव का हाल सुनकर राजा पदका उनके पास पुरो हतको भेजना तथा पुरो हत और यु ध रक बातचीत वैश पायन उवाच तत तथो ः प र पः प े शशंसाथ स राजपु ः । धृ ु नः सोमकानां बह वृ ं यथा येन ता च कृ णा ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! राजा पदके य कहनेपर सोमक शरोम ण राजकुमार धृ ु न अ य त हषम भरकर वहाँ जो वृ ा त आ था एवं जो कृ णाको ले गया, वह कौन था, वह सब समाचार कहने लगे ।। १ ।। धृ ु न उवाच योऽसौ युवा ायतलो हता ः कृ णा जनी दे वसमान पः । यः कामुका यं कृतवान ध यं ल यं च यः पा ततवान् पृ थ ाम् ।। २ ।। अस जमान तत तर वी वृतो जा यैर भपू यमानः । च ाम व ीव दतेः सुतेषु सव दे वै ऋ ष भ जु ः ।। ३ ।। धृ ु न बोले—महाराज! जन वशाल एवं लाल ने वाले, कृ णमृगचमधारी तथा दे वताके समान मनोहर पवाले त ण वीरने े धनुषपर यंचा चढ़ायी और ल यको वेधकर पृ वीपर गराया था, वे कसीका भी साथ न करके अकेले ही बड़े वेगसे आगे बढ़े । उस समय ब त-से े ा ण उ ह घेरे ए थे और उनक भू र-भू र शंसा कर रहे थे। स पूण दे वता तथा ऋ षय से से वत दे वराज इ जैसे दै य क सेनाके भीतर नःशंक होकर वचरते ह, उसी कार वे नवयुवक वीर नभ क होकर राजा के बीचसे नकले ।। २-३ ।।

कृ णा गृ ा जनम वयात् तं नागं यथा नागवधूः ा। अमृ यमाणेषु नरा धपेषु ु े षु वै त समापत सु ।। ४ ।। ततोऽपरः पा थवसङ् घम ये वृ मा य मही रोहम् । कालय ेव स पा थवौघान् ु ोऽ तकः ाणभृतो यथैव ।। ५ ।। उस समय राजकुमारी कृ णा अ य त स हो उनका मृगचम थामकर ठ क उसी तरह उनके पीछे -पीछे जा रही थी, जैसे गजराजके पीछे ह थनी जा रही हो। यह दे ख राजा लोग सहन न कर सके और ोधम भरकर यु करनेके लये उसपर चार ओरसे टू ट पड़े। तब एक सरा वीर ब त बड़े वृ को उखाड़कर राजा क उस म डलीम कूद पड़ा और जैसे कोपम भरे ए यमराज सम त ा णय का संहार करते ह, उसी कार वह उन नरेश को मानो कालके गालम भेजने लगा ।। ४-५ ।। तौ पा थवानां मषतां नरे कृ णामुपादाय गतौ नरा यौ । व ाजमाना वव च सूय बा ां पुराद् भागवकमशालाम् ।। ६ ।। नरे ! च मा और सूयक भाँ त का शत होनेवाले वे दोन नर े सब राजा के दे खते-दे खते ौपद को साथ ले नगरसे बाहर कु हारके घरम चले गये ।। ६ ।। त ोप व ा च रवानल य तेषां ज न ी त मम तकः । तथा वधैरेव नर वीरैपोप व ै भर नक पैः ।। ७ ।। उस घरम अ न शखाके समान तेज वनी एक ी बैठ ई थ । मेरा अनुमान है क वे उन वीर क माता रही ह गी। उनके आस-पास अ नतु य तेज वी वैसे ही तीन े नरवीर और बैठे ए थे ।। ७ ।। त या तत ताव भवा पादौ उ ा च कृ णा व भवादये त । थतां च त ैव नवे कृ णां भ ा चाराय गता नरा याः ।। ८ ।। इन दोन वीर ने माताके चरण म णाम करके ौपद से भी उ ह णाम करनेके लये कहा। णाम करके वह खड़ी ई कृ णाको उ ह ने माताको स प दया और वयं वे नर े वीर भ ा लानेके लये चले गये ।। ८ ।। तेषां तु भै ं तगृ कृ णा द वा ब ल ा णसा च कृ वा । ै े

तां चैव वृ ां प रवे य तां नर वीरान् वयम यभुङ् ।। ९ ।। जब वे लौटे तब उनक भ ाम मले ए अ को लेकर (उनक माताके आ ानुसार) ौपद ने दे वता को ब ल सम पत क , ा ण को दया और उन वृ ा ी तथा उन मुख नरवीर को अलग-अलग भोजन परोसकर अ तम वयं भी बचे ए अ को खाया ।। ९ ।। सु ता तु ते पा थव सव एव कृ णा च तेषां चरणोपधाने । आसीत् पृ थ ां शयनं च तेषां दभा जना ा तरणोपप म् ।। १० ।। राजन्! भोजनके बाद वे सब सो गये। कृ णा उनके पैर के समीप सोयी। धरतीपर ही उनक शया बछ थी। नीचे कुशक चटाइयाँ थ और ऊपर मृगचम बछा आ था ।। १० ।। ते नदमाना इव कालमेघाः कथा व च ाः कथया बभूवुः । न वै यशू ौप यक ः कथा ता न च जानां कथय त वीराः ।। ११ ।। सोते समय वे वषाकालके मेघके समान ग भीर गजना करते ए आपसम बड़ी व च बात करने लगे। वे पाँच वीर जो बात कह रहे थे, वे वै य , शू तथा ा ण -जैसी नह थ ।। ११ ।। नःसंशयं यपु वा ते यथा ह यु ं कथय त राजन् । आशा ह नो मयं समृ ा मु ान् ह पाथा छृ णुमोऽ नदाहात् ।। १२ ।। राजन्! जस कार वे यु का वणन करते थे, उससे यह मान लेनेम त नक भी संदेह नह रह जाता क वे लोग य शरोम ण ह। हमने सुना है, कु तीके पु ला ागृहक आगम जलनेसे बच गये ह। अतः हमारे मनम जो पा डव से स ब ध करनेक अ भलाषा थी, अव य वही सफल ई जान पड़ती है ।। १२ ।। यथा ह ल यं नहतं धनु स यं कृतं तेन तथा स । यथा ह भाष त पर परं ते छ ा ुवं ते चर त पाथाः ।। १३ ।। जस कार उ ह ने धनुषपर बलपूवक यंचा चढ़ायी, जस तरह भ ल यको बेध गराया और जस कार वे सभी भाई आपसम बात करते ह, उससे यह न य हो जाता है क कु तीके पु ही ा णवेषम छपे ए वचर रहे ह ।। १३ ।। ततः स राजा पदः ः ो े े

पुरो हतं ेषयामास तेषाम् । व ाम यु मा न त भाषमाणो महा मानः पा डु सुता तु क चत् ।। १४ ।। जनमेजय! इस समाचारसे राजा पदको बड़ी स ता ई, उ ह ने उसी समय उनके पास अपने पुरो हतको भेजते ए कहा—‘आप उन लोग से क हयेगा क म आपलोग का प रचय जानना चाहता ँ। या आपलोग महा मा पा डु के पु ह?’ ।। १४ ।। गृहीतवा यो नृपतेः पुरोधा ग वा शंसाम भधाय तेषाम् । वा यं सम ं नृपतेयथाववाच चानु म व मेण ।। १५ ।। राजाका अनुरोध मानकर पुरो हतजी गये और उन सबक शंसा करके राजा पदके वचन को ठ क-ठ क एकके बाद एक करके मशः कहने लगे— ।। १५ ।। व ातु म छ यवनी रो वः पा चालराजो वरदो वराहाः । ल य य वे ार ममं ह ् वा हष य ना तं तप ते सः ।। १६ ।। ‘वरदानके यो य वीर पु षो! वर दे नेम समथ पांचालदे शके राजा पद आपलोग का प रचय जानना चाहते ह। इन वीर पु षको ल यवेध करते दे खकर उ ह हषक सीमा नह रह गयी है ।। १६ ।। आ यात च ा तकुलानुपूव पदं शर सु षतां कु वम् । ादय वं दयं ममेदं पा चालराज य च सानुग य ।। १७ ।। ‘आपलोग अपनी जा त और कुल आ दका यथावत् वणन कर, श ु के माथेपर पैर रख और मेरे तथा अनुचर स हत पांचालराजके दयको आन द दान कर ।। १७ ।। पा डु ह राजा पद य रा ः यः सखा चा मसमो बभूव । त यैष कामो हता ममेयं नुषां दा या म ह कौरवाय ।। १८ ।। ‘महाराज पा डु राजा पदके आ माके समान य म थे। इस लये उनक यह अ भलाषा थी क म अपनी इस पु ीका ववाह पा डु कुमारसे क ँ । इसे राजा पा डु को पु वधूके पम सम पत क ँ ।। १८ ।। अयं ह कामो पद य रा ो द थतो न यम न दता ाः । यदजुनो वै पृथुद घबा धमण व दे त सुतां ममैताम् ।। १९ ।। ी ो े ी ै ो

सवागसु दर शूरवीरो! राजा पदके दयम न य नर तर यह कामना रही है क मोट एवं वशाल भुजा वाले अजुन मेरी इस पु ीका धमपूवक पा ण- हण कर ।। १९ ।। कृतं ह तत् यात् सुकृतं ममेदं यश पु यं च हतं तदे तत् । ‘उनका यह कहना है क य द मेरा यह मनोरथ पूण हो जाय, तो म समझूँगा क यह मेरे शुभ कम का फल ा त आ है। यही मेरे लये यश, पु य और हतक बात होगी’ ।। १९ ।। अथो वा यं ह पुरो हतं थतं ततो वनीतं समुद य राजा ।। २० ।। समीपतो भीम मदं शशास द यतां पा म य तथा मै । मा यः पुरोधा पद य रा त मै यो या य धका ह पूजा ।। २१ ।। जब वनयशील पुरो हतजी यह बात कह चुके, तब राजा यु ध रने उनक ओर दे खकर पास बैठे ए भीमसेनको यह आ ा द क ‘इ ह पा और अ य सम पत करो। ये महाराज पदके माननीय पुरो हत ह। अतः इनका हम वशेष आदर-स कार करना चा हये’ ।। २०-२१ ।। भीम तत तत् कृतवान् नरे तां चैव पूजां तगृ हषात् । सुखोप व ं तु पुरो हतं तदा यु ध रो ा ण म युवाच ।। २२ ।। जनमेजय! तब भीमसेनने पा , अ य नवेदन करके उनका व धवत् पूजन कया। उनक द ई पूजाको स तापूवक हण करके पुरो हतजी जब बड़े सुखसे आसनपर बैठ गये, तब राजा यु ध रने उन ा णदे वतासे इस कार कहा— ।। २२ ।।

पा चालराजेन सुता नसृ ा वधम ेन यथा न कामात् । द शु का पदे न रा ा सा तेन वीरेण तथानुवृ ा ।। २३ ।। ‘ न्! पा चालराज पदने यह क या अपनी इ छासे नह द है, उ ह ने अपने धमके अनुसार ल यवेधक शत करके अपनी क या दे नेका न य कया था। उस वीर पु षने उसी शतको पूण करके यह क या ा त क है ।। २३ ।। न त वणषु कृता वव ा न चा प शीले न कुले न गो े ।। कृतेन स येन ह कामुकेण व े न ल येण ह सा वसृ ा ।। २४ ।। सेयं तथानेन महा मनेह कृ णा जता पा थवसङ् घम ये । नैवंगते सौम कर राजा संतापमह यसुखाय कतुम् ।। २५ ।। ‘राजाने वहाँ वण, शील, कुल और गो के वषयम कोई अ भ ाय नह कया था। धनुषपर यंचा चढ़ाकर ल यवेध कर दे नेपर ही क यादानक घोषणा क थी। इस महा मा वीरने उसी घोषणाके अनुसार राजा क म डलीम राजकुमारी कृ णापर वजय ी ै ऐ ी









पायी है। ऐसी दशाम सोमकवंशी राजा पदको अब सुखका अभाव करनेवाला संताप नह करना चा हये ।। २४-२५ ।। काम योऽसौ पद य रा ः स चा प स प य त पा थव य । स ा य पां ह नरे क याममामहं ा ण साधु म ये ।। २६ ।। ‘ ा ण! राजा पदक जो पहलेक अ भलाषा है, वह भी पूरी होगी। इस राजक याको हम सवथा हण करनेयो य एवं उ म मानते ह ।। २६ ।। न तद् धनुम दबलेन श यं मौ ा समायोज यतुं तथा ह । न चाकृता ेण न हीनजेन ल यं तथा पात यतुं ह श यम् ।। २७ ।। ‘कोई बलहीन पु ष उस वशाल धनुषपर यंचा नह चढ़ा सकता था। जसने अ व ाक पूण श ा न पायी हो, ऐसे पु षके अथवा कसी नीच कुलके मनु यके लये भी उस ल यको गराना अस भव था ।। २७ ।। त मा तापं हतु न म ं पा चालराजोऽह त कतुम । न चा प त पातनम यथेह कतु ह श यं भु व मानवेन ।। २८ ।। ‘अतः पांचालराजको अब अपनी पु ीके लये प ा ाप करना उ चत नह है। इस पृ वीपर उस वीरके सवा ऐसा कोई मनु य नह है, जो उस ल यको वेध सके’ ।। २८ ।। एवं ुव येव यु ध रे तु पा चालराज य समीपतोऽ यः । त ाजगामाशु नरो तीयो नवेद य य ह स म म् ।। २९ ।। राजा यु ध र य कह ही रहे थे क पांचालराज पदके पाससे एक सरा मनु य यह समाचार दे नेके लये शी तापूवक आया क ‘राजभवनम आपलोग के लये भोजन तैयार है’ ।। २९ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण वैवा हकपव ण पुरो हतयु ध रसंवादे नव य धकशततमोऽ यायः ।। १९२ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत वैवा हकपवम पुरो हतयु ध र वषयक एक सौ बानबेवाँ अ याय पूरा आ ।। १९२ ।।

नव य धकशततमोऽ यायः पा डव और कु तीका पदके घरम जाकर स मा नत होना और राजा पद ारा पा डव के शील- वभावक परी ा त उवाच ज याथम ं पदे न रा ा ववाहहेतो पसं कृतं च । तदा ुव वं कृतसवकायाः कृ णां च त ैव चरं न कायम् ।। १ ।। त बोला—महाराज पदने ववाहके न म बरा तय को जमानेके लये उ म भोजनसाम ी तैयार करायी है। अतः आपलोग स पूण दै नक काय से नवृ हो उसे पाय। राजकुमारी कृ णाको भी ववाह व धसे वह ा त कर। इसम वल ब नह करना चा हये ।। १ ।। इमे रथाः का चनप च ाः सद यु ा वसुधा धपाहाः । एतान् समा समेत सव पा चालराज य नवेशनं तत् ।। २ ।। ये सुवणमय कमल से सुशो भत तथा राजा क सवारीके यो य व च रथ खड़े ह, इनम उ म घोड़े जुते ए ह; इनपर सवार हो आप सब लोग महाराज पदके महलम पधार ।। २ ।। वैश पायन उवाच ततः याताः कु पु वा ते पुरो हतं तं प रया य सव । आ थाय याना न महा त ता न कु ती च कृ णा च सहैकयाने ।। ३ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! वहाँ वे सभी कु े पा डव पुरो हतजीको वदा करके उन वशाल रथ पर आ ढ़ हो (राजभवनक ओर) चले। उस समय कु ती और कृ णा एक साथ एक ही सवारीपर बैठ ई थ ।। ३ ।। ु वा तु वा या न पुरो हत य या यु वान् भारत धमराजः । ज ासयैवाथ कु मानां ा यनेका युपसंजहार ।। ४ ।। े











भारत! उस समय धमराज यु ध रने जो बात कही थ , उ ह पुरो हतके मुखसे सुनकर उन कु े वीर के शील वभावक परी ाके लये राजा पदने अनेक कारक व तु का सं ह कया ।। ४ ।। फला न मा या न च सं कृता न वमा ण चमा ण तथाऽऽसना न । गा ैव राज थ चैव र जूब जा न चा या न कृषी न म म् ।। ५ ।। अ येषु श पेषु च या य प युः सवा ण कृ या यखलेन त । डा न म ा य प या न त सवा ण त ोपजहार राजा ।। ६ ।। राजन्! (सब कारके) फल, सु दर ढं गसे बनायी ई मालाएँ, कवच, ढाल, आसन, गौएँ र सयाँ, बीज एवं खेतीके अ य सामान तथा अ य कारीग रय के सब सामान पूण पसे वहाँ संगह ृ ीत कये गये थे। इसके सवा, खेलके लये जो आव यक व तुएँ होती ह, उन सबको राजा पदने वहाँ जुटाकर रखा था ।। ५-६ ।। वमा ण चमा ण च भानुम ती खड् गा महा तोऽ रथा च ाः । धनूं ष चा या ण शरा च ाः श यृ यः का चनभूषणा ।। ७ ।। ासा भुशु पर धा सां ा मकं चैव तथैव सवम् । श यासना यु मव तुव त तथैव वासो व वधं च त ।। ८ ।। सरी ओर कवच, चमकती ई ढाल, तलवार, बड़े-बड़े व च घोड़े तथा रथ, े धनुष, व च बाण, सुवण-भू षत श याँ एवं ऋ याँ, ास, भुशु डयाँ, फरसे तथा सब कारक यु साम ी, उ म व तु से यु शया-आसन और नाना कारके व भी वहाँ सं ह करके रखे गये थे ।। ७-८ ।। कु ती तु कृ णां प रगृ सा वीम तःपुरं पद या ववेश । य तां कौरवराजप न यचयामासुरद नस वाः ।। ९ ।। कु तीदे वी सती-सा वी कृ णाको साथ ले पदके र नवासम गय । वहाँक उदार दया य ने कौरवराज पा डु क धमप नीका (बड़ा) आदर-स कार कया ।। ९ ।। तान् सह व ा तगतीन् नरी य महषभा ान जनो रीयान् । गूढो रांसान् भुजगे भोगी

ल बबान् पु ष वीरान् ।। १० ।। राजा च रा ः स चवा सव पु ा रा ः सु द तथैव । े या सव नखलेन राजन् हष समापेतुरतीव त ।। ११ ।। राजन्! पा डव क चाल-ढाल सहके समान परा मसूचक थी, उनक आँख साँड़के समान बड़ी-बड़ी थ , उ ह ने काले मृगचमके ही प े ओढ़ रखे थे, उनक हँसलीक ह याँ मांससे छपी ई थ और भुजाएँ नागराजके शरीरके समान मोट एवं वशाल थ । उन पु ष सह पा डव को दे खकर राजा पद, उनके सभी पु , म ी, इ - म और सम त नौकर-चाकर ये सब-के-सब वहाँ बड़े ही स ए ।। १०-११ ।। ते त वीराः परमासनेषु सपादपीठ े व वशङ् कमानाः । यथानुपूव व वशुनरा यातथा महाहषु न व मय तः ।। १२ ।। वे नर े वीर पा डव वहाँ लगे ए पादपीठस हत ब मू य े सहासन पर बना कसी हचक या संकोचके मनम त नक भी व मय न करते ए बड़े-छोटे के मसे जा बैठे ।। १२ ।। उ चावचं पा थवभोजनीयं पा ीषु जा बूनदराजतीषु । दासा दा य सुमृ वेषाः स भोजका ा युपजर म् ।। १३ ।। तब व छ और सु दर पोशाक पहने ए दास-दासी तथा रसोइय ने सोने-चाँद के बरतन म राजा के भोजन करनेयो य अनेक कारक सामा य और वशेष भोजनसाम ी लाकर परोसी ।। १३ ।।

ते त भु वा पु ष वीरा यथाऽऽ मकामं सुभृशं तीताः । उ य सवा ण वसू न राजन् सां ा मकं ते व वशुनृवीराः ।। १४ ।। मनु य म े पा डव वहाँ अपनी चके अनुसार उन सब व तु को खाकर ब त अ धक स ए। राजन्! (तदन तर वहाँ सं ह क ई अ य) सब वैभव-भोगक साम य को छोड़कर वे वीर पहले उसी थानपर गये, जहाँ यु क साम याँ रखी गयी थ ।। १४ ।। त ल य वा पद य पु ो राजा च सवः सह म मु यैः । समथयामासु पे य ाः कु तीसुतान् पा थव राजपु ान् ।। १५ ।। जनमेजय! यह सब दे खकर राजा पद, राजकुमार और सभी धान म ी बड़े स ए और उनके पास जाकर उ ह ने अपने मनम यही न य कया क ये राजकुमार कु तीदे वीके ही पु ह ।। १५ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण वैवा हकपव ण यु ध रा दपरी णे नव य धकशततमोऽ यायः ।। १९३ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत वैवा हकपवम यु ध र आ दक परी ा वषयक एक सौ तरानबेवाँ अ याय पूरा आ ।। १९३ ।।

चतुनव य धकशततमोऽ यायः पद और यु ध रक बातचीत तथा आगमन

ासजीका

वैश पायन उवाच तत आय पा चा यो राजपु ं यु ध रम् । प र हेण ा ेण प रगृ महा ु तः ।। १ ।। पयपृ छदद ना मा कु तीपु ं सुवचसम् । कथं जानीम भवतः यान् ा णानुत ।। २ ।। वै यान् वा गुणस प ानथवा शू यो नजान् । मायामा थाय वा व ां रतः सवतो दशम् ।। ३ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर महातेज वी, उदार च , पांचालराज पदने अ य त का तमान् कु तीपु राजकुमार यु ध रको (अपने पास) बुलाकर ा णो चत आ त य-स कारके ारा उ ह अपनाकर पूछा —‘हम कैसे ात हो क आपलोग कस वणके ह? हम आपको य, ा ण, गुणस प वै य अथवा शू या समझ? अथवा मायाका आ य लेकर ा ण पसे सब दशा म वचरनेवाले आपलोग को हम कोई दे वता मान? ।। १—३ ।। कृ णाहेतोरनु ा ता दे वाः संदशना थनः । वीतु नो भवान् स यं संदेहो नो महान् ।। ४ ।। जान पड़ता है, आप कृ णाको पानेके लये यहाँ दशक बनकर आये ए दे वता ही ह। आप स ची बात हम बता द; य क आपके वषयम हमको बड़ा संदेह हो रहा है ।। ४ ।। अ प नः संशय या ते मनः संतु मावहेत् । अ प नो भागधेया न शुभा न युः परंतप ।। ५ ।। परंतप! आपसे रह यक बात सुनकर या हमारे इस संशयका नाश और मनको संतोष होगा और या हमारा भा य उदय होगा? ।। ५ ।। इ छया ू ह तत् स यं स यं राजसु शोभते । इ ापूतन च तथा व मनृतं न तु ।। ६ ।। आप वे छासे ही स ची बात बताय, राजा म इ * और पूतक अपे ा स यक ही अ धक म हमा है; अतः अस य नह बोलना चा हये ।। ६ ।। ु वा मरसंकाश तव वा यमरदम । ुवं ववाहकरणमा था या म वधानतः ।। ७ ।। े









दे वता के समान तेज वी श ुसूदन! म आपक बात सुनकर न य ही व धपूवक ववाहक तैयारी क ँ गा ।। ७ ।। यु ध र उवाच मा राजन् वमना भू वं पा चा य ी तर तु ते । ई सत ते ुवः कामः संवृ ोऽयमसंशयम् ।। ८ ।। यु ध र बोले—पांचालराज! आप उदास न ह , आपको स होना चा हये। आपके मनम जो अभी कामना थी, वह न य ही आज पूरी ई है, इसम संशय नह है ।। ८ ।। वयं ह या राजन् पा डोः पु ा महा मनः । ये मां व कौ तेयं भीमसेनाजुना वमौ ।। ९ ।। राजन्! हमलोग य ही ह, महा मा पा डु के पु ह। मुझे कु तीका ये पु सम झये, ये दोन भीमसेन और अजुन ह ।। ९ ।। आ यां तव सुता राजन् न जता राजसंस द । यमौ च त कु ती च य कृ णा व थता ।। १० ।। राजन्! इ ह दोन ने सम त राजा के समूहम आपक पु ीको जीता है। उधर वे दोन नकुल और सहदे व ह। माता कु ती वह गयी ह, जहाँ राजकुमारी कृ णा है ।। १० ।। ेतु ते मानसं ःखं याः मो नरषभ । प नीव सुतेयं ते दाद य दं गता ।। ११ ।। नर े ! अब आपक मान सक च ता नकल जानी चा हये। हम सब लोग य ही ह। आपक यह पु ी कृ णा कम लनीक भाँ त एक सरोवरसे सरे सरोवरको ा त ई है ।। ११ ।। इ त तयं महाराज सवमेतद ् वी म ते । भवान् ह गु र माकं परमं च परायणम् ।। १२ ।। महाराज! यह सब म आपसे स ची बात कह रहा ँ। आप हमारे बड़े तथा परम आ य ह ।। १२ ।। वैश पायन उवाच ततः स पदो राजा हष ाकुललोचनः । तव ुं मुदा यु ो नाशकत् तं यु ध रम् ।। १३ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! राजा यु ध रक ये बात सुनकर महाराज पदक आँख म हषके आँसू छलक आये। वे आन दम म न हो गये और (गला भर आनेके कारण) उन यु ध रको त काल (कुछ) उ र न दे सके ।। १३ ।। य नेन तु स तं हष सं नगृ परंतपः । अनु पं तदा वाचा युवाच यु ध रम् ।। १४ ।। े ( े) े े ( े े ) ो ो औ

श ुसूदन पदने (बड़े) य नसे अपने (हषके आवेश)-को रोका और यु ध रको उनके कथनके अनु प ही उ र दया ।। १४ ।। प छ चैनं धमा मा यथा ते ताः पुरात् । स त मै सवमाच यावानुपू ण पा डवः ।। १५ ।। फर उन धमा मा पांचाल-नरेशने यह पूछा क ‘आपलोग वारणावत नगरसे कस कार भाग नकले?’ पा डु न दन यु ध रने वे सारी बात उ ह मशः कह सुनाय ।। १५ ।। त छ वा पदो राजा कु तीपु य भा षतम् । वगहयमास तदा धृतरा ं नरे रम् ।। १६ ।। आ ासयामास च तं कु तीपु ं यु ध रम् । तज े च रा याय पदो वदतां वरः ।। १७ ।। कु तीकुमारके मुखसे वह सारा समाचार सुनकर व ा म े महाराज पदने उस समय राजा धृतराक बड़ी न दा क और कु तीन दन यु ध रको आ ासन दया। साथ ही उ ह ने यह त ा भी क क ‘हम तु ह तु हारा रा य दलवाकर रहगे’ ।। १६-१७ ।। ततः कु ती च कृ णा च भीमसेनाजुनाव प । यमौ च रा ा सं द ं व वशुभवनं महत् ।। १८ ।। त ते यवसन् राजन् य सेनेन पू जताः । या त ततो राजा सह पु ै वाच तम् ।। १९ ।। राजन्! त प ात् कु ती, कृ णा, यु ध र, भीमसेन, अजुन, नकुल और सहदे व राजा पदके ारा नद कये ए वशाल भवनम गये और य सेन ( पद)-से स मा नत हो वह रहने लगे। इस कार व ास जम जानेपर महाराज पदने अपने पु के साथ जाकर यु ध रसे कहा— ।। १८-१९ ।। गृ ातु व धवत् पा णम ायं कु न दनः । पु येऽह न महाबा रजुनः कु तां णम् ।। २० ।। ‘ये कु कुलको आन दत करनेवाले महाबा अजुन आजके पु यमय दवसम मेरी पु ीका व धपूवक पा ण हण कर और (अपने कुलो चत) मंगलाचारका पालन ार भ कर द’ ।। २० ।।

वैश पायन उवाच तम वीत् ततो राजा धमा मा च यु ध रः । ममा प दारस ब धः काय तावद् वशा पते ।। २१ ।। वैश पायनजी कहते ह—तब धमा मा राजा यु ध रने उनसे कहा —‘राजन्! ववाह तो मेरा भी करना होगा’ ।। २१ ।। पद उवाच भवान् वा व धवत् पा ण गृ ातु हतुमम । े ी

य य वा म यसे वीर त य कृ णामुपा दश ।। २२ ।। पद बोले—वीर! तब आप ही व धपूवक मेरी पु ीका पा ण हण कर अथवा आप अपने भाइय मसे जसके साथ चाह, उसीके साथ कृ णाको ववाहक आ ा दे द ।। २२ ।। यु ध र उवाच सवषां म हषी राजन् ौपद नो भ व य त । एवं ा तं पूव मम मा ा वशा पते ।। २३ ।। यु ध रने कहा—राजन्! ौपद तो हम सभी भाइय क पटरानी होगी। मेरी माताने पहले हम सब लोग को ऐसी ही आ ा दे रखी है ।। २३ ।। अहं चा य न व ो वै भीमसेन पा डवः । पाथन व जता चैषा र नभूता सुता तव ।। २४ ।। म तथा पा डव भीमसेन भी अभीतक अ ववा हत ह और आपक इस र न व पा क याको अजुनने जीता है ।। २४ ।। एष नः समयो राजन् र न य सह भोजनम् । न च तं हातु म छामः समयं राजस म ।। २५ ।। महाराज! हम लोग म यह शत हो चुक है क र नको हम सब लोग बाँटकर एक साथ उपभोग करगे। नृप शरोमणे! हम अपनी उस (पुरानी) शतको छोड़ना या तोड़ना नह चाहते ।। २५ ।। सवषां धमतः कृ णा म हषी नो भ व य त । आनुपू ण सवषां गृ ातु वलने करान् ।। २६ ।। अतः कृ णा धमके अनुसार हम सभीक महारानी होगी। इस लये वह व लत अ नके सामने मशः हम सबका पा ण हण करे ।। २६ ।। पद उवाच एक य ब यो व हता म ह यः कु न दन । नैक या बहवः पुंसः ूय ते पतयः व चत् ।। २७ ।। पद बोले—‘कु न दन! एक राजा ब त-सी रा नयाँ (अथवा एक पु षक अनेक याँ) ह , ऐसा वधान तो वेद म दे खा गया है; परंतु एक ीके अनेक पु ष प त ह , ऐसा कह सुननेम नह आया है* ।। २७ ।। लोकवेद व ं वं नाधम धम व छु चः । कतुमह स कौ तेय क मात् ते बु री शी ।। २८ ।। ‘तुम धमके ाता और प व हो, अतः तु ह लोक और वेदके व यह अधम नह करना चा हये। तुम कु तीके पु हो; तु हारी बु ऐसी य हो रही है? ।। २८ ।। यु ध र उवाच ो



सू मो धम महाराज ना य वो वयं ग तम् । पूवषामानुपू ण यातं व मानुयामहे ।। २९ ।। यु ध रने कहा—महाराज! धमका व प अ य त सू म है, हम उसक ग तको नह जानते। पूवकालके चेता आ द जस मागसे गये ह, उसीका हमलोग मशः अनुसरण करते ह ।। २९ ।। न मे वागनृतं ाह नाधम धीयते म तः । एवं चैव वद य बा मम चैत मनोगतम् ।। ३० ।। मेरी वाणी कभी झूठ नह बोलती और मेरी बु भी कभी अधमम नह लगती। हमारी माताने हम ऐसा ही करनेक आ ा द है और मेरे मनम भी यही ठ क जँचा है ।। ३० ।। एष धम ुवो राजं रैनम वचारयम् । मा च शंका त ते यात् कथं चद प पा थव ।। ३१ ।। राजन्! यह अटल धम है। आप बना कसी सोच- वचारके इसका पालन कर। पृ वीपते! आपको इस वषयम कसी कारक आशंका नह होनी चा हये ।। ३१ ।। पद उवाच वं च कु ती च कौ तेय धृ ु न मे सुतः । कथय व त कत ं ः काले करवामहे ।। ३२ ।। पद बोले—कु तीन दन! तुम, कु तीदे वी और मेरा पु धृ ु न—ये सब लोग मलकर यह न य करके बताय क या करना चा हये? उसे ही कल ठ क समयपर हमलोग करगे ।। ३२ ।। वैश पायन उवाच ते समे य ततः सव कथय त म भारत । अथ ै पायनो राज याग छद् य छया ।। ३३ ।। वैश पायनजी कहते ह—भारत! तदन तर वे सब लोग मलकर इस वषयम सलाह करने लगे। राजन्! इसी समय भगवान् वेद ास वहाँ अक मात् आ प ँचे ।। ३३ ।। ीमहाभारते आ दपव ण वैवा हकपव ण ै पायनागमने चतुनव य धकशततमोऽ यायः ।। १९४ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत वैवा हकपवम वेद ासके आगमनसे स ब ध रखनेवाला एक सौ चौरानबेवाँ अ याय पूरा आ ।। १९४ ।।

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इत

मृ तय म इ और पूतका प रचय इस कार दया गया है— ो ं ं े ं ं ै े ं





अ नहो ं तपः स यं वेदानां चानुपालनम् । आ त यं वै दे वं च इ म य भधीयते ।। वापीकूपतडागा द दे वतायतना न च । अ दानमारामाः पूत म य भधीयते ।। ‘अ नहो , तप, स यभाषण, वेद क आ ाका नर तर पालन, अ त थय का स कार तथा ब लवै दे व कम—ये ‘इ ’ कहलाते ह। बावली, कुआँ, पोखरे आ द बनवाना, दे वम दर नमाण कराना, अ दान दे ना और बगीचे लगाना—इनका नाम पूत है।’ * इस वषयम यह ु तका वचन स है—‘एक य ब यो जाया भव त, नैक यै बहवः सहपतयः’ अथात् एक पु षक ब त-सी

याँ होती ह, कतु एक

ीके लये ब त-से प त नह होते।

प चनव य धकशततमोऽ यायः ासजीके सामने ौपद का पाँच पु ष से ववाह होनेके वषयम पद, धृ ु न और यु ध रका अपने-अपने वचार करना वैश पायन उवाच तत ते पा डवाः सव पा चा य महायशाः । यु थाय महा मानं कृ णं सवऽ यवादयन् ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर वे पा डव तथा महायश वी पांचालराज पद—सबने खड़े होकर महा मा ीकृ ण ै पायन ासजीको णाम कया ।। १ ।। तन स तां पूजां पृ ् वा कुशलम ततः । आसने का चने शु े नषसाद महामनाः ।। २ ।। उनके ारा क ई पूजाको स तापूवक वीकार करके अ तम सबसे कुशल-मंगल पूछकर महामना ासजी शु सुवणमय आसनपर वराजमान ए ।। २ ।। अनु ाता तु ते सव कृ णेना मततेजसा । आसनेषु महाहषु नषे पदां वराः ।। ३ ।। फर अ मत-तेज वी ासजीक आ ा पाकर वे सभी नर े ब मू य आसन पर बैठे ।। ३ ।।

ततो मुता मधुरां वाणीमु चाय पाषतः । प छ तं महा मानं ौप थ वशा पते ।। ४ ।। कथमेका बनां याद् धमप नी न संकरः । एत मे भगवान् सव वीतु यथातथम् ।। ५ ।। राजन्! तदन तर दो घड़ीके बाद राजा पदने मीठ वाणी बोलकर महा मा ासजीसे ौपद के वषयम पूछा—‘भगवन्! एक ही ी ब त-से पु ष क धमप नी कैसे हो सकती है? जससे संकरताका दोष न लगे, यह सब आप ठ क-ठ क बताव’ ।। ४-५ ।।

ास उवाच अ मन् धम व लधे लोकवेद वरोधक े । य य य य मतं यद् य ोतु म छा म त य तत् ।। ६ ।। ासजीने कहा—अ य त गहन होनेके कारण शा ीय आवरणके ारा ढके ए अतएव इस लोक-वेद- व धमके स ब धम तुममसे जसका- जसका जो-जो मत हो, उसे म सुनना चाहता ँ ।। ६ ।। पद उवाच अधम ऽयं मम मतो व ो लोकवेदयोः । न ेका व ते प नी बनां जस म ।। ७ ।। पद बोले— ज े ! मेरी रायम तो यह अधम ही है; य क यह लोक और वेद दोन के व है। ब त-से पु ष क एक ही प नी हो, ऐसा वहार कह भी नह है ।। ७ ।।

न चा याच रतः पूवरयं धम महा म भः । न चा यधम व रत ः कथंचन ।। ८ ।। पूववत महा मा पु ष ने भी ऐसे धमका आचरण नह कया है और व ान् पु ष को कसी कार भी अधमका आचरण नह करना चा हये ।। ८ ।। ततोऽहं न करो येनं वसायं यां त । धमः सदै व सं द धः तभा त ह मे वयम् ।। ९ ।। इस लये म इस धम वरोधी आचारको कामम नह लाना चाहता। मुझे तो इस कायके धमसंगत होनेम सदा ही संदेह जान पड़ता है ।। ९ ।।

धृ ु न उवाच यवीयसः कथं भाया ये ो ाता जषभ । न् सम भवतत सवृ ः सं तपोधन ।। १० ।। धृ ु न बोले— ज े ! आप ा ण ह, तपोधन ह; आप ही बताइये, बड़ा भाई सदाचारी होते ए भी अपने छोटे भाईक ीके साथ समागम कैसे कर सकता है? ।। १० ।। न तु धम य सू म वाद् ग त व कथंचन । अधम धम इ त वा वसायो न श यते ।। ११ ।। कतुम म धै ं ततोऽयं न व यते । प चानां म हषी कृ णा भव व त कथंचन ।। १२ ।। धमका व प अ य त सू म होनेके कारण हम उसक ग तको सवथा नह जानते; अतः यह काय अधम है या धम, इसका न य करना हम-जैसे लोग के लये अस भव है। न्! इसी लये हम कसी तरह भी ऐसी स म त नह दे सकते क राजकुमारी कृ णा पाँच पु ष क धमप नी हो ।। ११-१२ ।। यु ध र उवाच न मे वागनृतं ाह नाधम धीयते म तः । वतते ह मनो मेऽ नैषोऽधमः कथंचन ।। १३ ।। ूयते ह पुराणेऽ प ज टला नाम गौतमी । ऋषीन या सतवती स त धमभृतां वरा ।। १४ ।। यु ध रने कहा—मेरी वाणी कभी झूठ नह बोलती और मेरी बु भी कभी अधमम नह लगती; परंतु इस ववाहम मेरे मनक वृ हो रही है, इस लये यह कसी कार भी अधम नह है। पुराण म भी सुना जाता है क धमा मा म े ज टला नामवाली गौतम गो क क याने सात ऋ षय के साथ ववाह कया था ।। १३-१४ ।। तथैव मु नजा वा तपो भभा वता मनः । संगताभूद ् दश ातॄनेकना नः चेतसः ।। १५ ।। इसी कार क डु मु नक पु ी वा ने तप यासे प व अ तःकरणवाले दस चेता के साथ, जनका एक ही नाम था और जो आपसम भाई-भाई थे, ववाहस ब ध

था पत कया था ।। १५ ।। गुरो ह वचनं ा ध य धम स म । गु णां चैव सवषां माता परमको गु ः ।। १६ ।। धम म े ासजी! गु जन क आ ाको धमसंगत बताया गया है और सम त गु म माता परम गु मानी गयी है ।। १६ ।। सा चा यु वती वाचं भै वद् भु यता म त । त मादे तदहं म ये परं धम जो म ।। १७ ।। हमारी माताने भी यही बात कही है क तुम सब लोग भ ाक भाँ त इसका उपभोग करो; अतः ज े ! हम पाँच भाइय के साथ होनेवाले इस ववाहस ब धको परम धम मानते ह ।। १७ ।। कु युवाच एवमेतद् यथा ाह धमचारी यु ध रः । अनृता मे भयं ती ं मु येऽहमनृतात् कथम् ।। १८ ।। कु तीने कहा—धमका आचरण करनेवाले यु ध रने जैसा कहा है, वह ठ क है। (अव य मने ौपद के साथ पाँच भाइय के ववाहस ब धक आ ा दे द है।) मुझे झूठसे ब त भय लगता है; बताइये, म झूठके पापसे कैसे बच सकूँगी? ।। १८ ।। ास उवाच अनृता मो यसे भ े धम ैष सनातनः । न तु व या म सवषां पा चाल शृणु मे वयम् ।। १९ ।। ासजी बोले—भ े ! तुम झूठसे बच जाओगी। (पा डव के लये) यह सनातन धम है। (कु तीसे य कहकर वे पदसे बोले) पांचालराज! (इस ववाहम एक रह य है, जसे) म सबके सामने नह क ँगा। तुम वयं एका तम चलकर मुझसे सुन लो ।। १९ ।। यथायं व हतो धम यत ायं सनातनः । यथा च ाह कौ तेय तथा धम न संशयः ।। २० ।। जस कार और जस कारणसे यह सनातन धमके अनुकूल कहा गया है और कु तीन दन यु ध रने जस कार इसक धमानुकूलताका तपादन कया है, उसपर वचार करनेसे न संदेह यही स होता है क यह ववाह धमस मत है ।। २० ।। वैश पायन उवाच तत उ थाय भगवान् ासो ै पायनः भुः । करे गृही वा राजानं राजवे म समा वशत् ।। २१ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर श शाली ै पायन भगवान् ासजी अपने आसनसे उठे और राजा पदका हाथ पकड़कर राजभवनके भीतर चले गये ।। २१ ।। पा डवा ा प कु ती च धृ ु न पाषतः । ै







व वशुय त ैव ती ते म तावुभौ ।। २२ ।। पाँच पा डव, कु तीदे वी तथा पदकुमार धृ ु न—ये सब लोग जहाँ बैठे थे, वह उन दोन ( ास और पद)-क ती ा करने लगे ।। २२ ।। ततो ै पायन त मै नरे ाय महा मने । आच यौ तद् यथा धम बनामेकप नता ।। २३ ।। तदन तर ासजीने उन महा मा नरेशको वह कथा सुनायी, जसके अनुसार यहाँ ब त-से पु ष का एक ही प नीसे ववाह करना धमस मत माना गया ।। २३ ।। इत ीमहाभारते आ दपव ण वैवा हकपव ण ासवा ये प चनव य धकशततमोऽ यायः ।। १९५ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत वैवा हकपवम ास-वा य वषयक एक सौ पंचानबेवाँ अ याय पूरा आ ।। १९५ ।।

ष णव य धकशततमोऽ यायः ासजीका पदको पा डव तथा ौपद के पूवज मक कथा सुनाकर द दे ना और पदका उनके द प क झाँक करना ास उवाच पुरा वै नै मषार ये दे वाः स मुपासते । त वैव वतो राज शा म मकरोत् तदा ।। १ ।। ासजीने कहा—पांचालनरेश! पूव कालक बात है, नै मषार य े म दे वता लोग एक य कर रहे थे। उस समय वहाँ सूयपु यम शा म (य )-काय करते थे ।। १ ।। ततो यमो द त त राजन् नामारयत् कं चद प जानाम् । ततः जा ता ब ला बभूवुः काला तपाता मरण हीणाः ।। २ ।। राजन्! उस य क द ा लेनेके कारण यमराजने मानव जाक मृ युका काम बंद कर रखा था। इस कार मृ युका नयत समय बीत जानेसे सारी जा अमर होकर दन - दन बढ़ने लगी। धीरे-धीरे उसक सं या ब त बढ़ गयी ।। २ ।। सोम श ो व णः कुबेरः सा या ा वसवोऽथा नौ च । जाप तभुवन य णेता समाज मु त दे वा तथा ये ।। ३ ।। ततोऽ ुवन् लोकगु ं समेता भयात् ती ा मानुषाणां च वृ या । त माद् भया ज तः सुखे सवः याम सव शरणं भव तम् ।। ४ ।। च मा, इ , व ण, कुबेर, सा यगण, गण, वसुगण, दोन अ नीकुमार तथा अ य सब दे वता मलकर जहाँ सृ कता जाप त ाजी रहते थे, वहाँ गये। वहाँ जाकर वे सब दे वता लोकगु ाजीसे बोले—‘भगवन्! मनु य क सं या ब त बढ़ रही है। इससे हम बड़ा भय लगता है। उस भयसे हम सबलोग ाकुल हो उठे ह और सुख पानेक इ छासे आपक शरणम आये ह’ ।। ३-४ ।। पतामह उवाच क वो भयं मानुषे यो यूयं सव यदामराः । मा वो म यसकाशाद् वै भयं भ वतुमह त ।। ५ ।। ी े









ाजीने कहा—तु ह मनु य से य भय लगता है? जब क तुम सभी लोग अमर हो, तब तु ह मरणधमा मनु य से कभी भयभीत नह होना चा हये ।। ५ ।। दे वा ऊचुः म या अम याः संवृ ा न वशेषोऽ त क न । अ वशेषा ज तो वशेषाथ महागताः ।। ६ ।। दे वता बोले—जो मरणशील थे, वे अमर हो गये। अब हमम और उनम कोई अ तर नह रह गया। यह अ तर मट जानेसे ही हम अ धक घबराहट हो रही है। हमारी वशेषता बनी रहे, इसी लये हम यहाँ आये ह ।। ६ ।। ीभगवानुवाच वैव वतो ापृतः स हेतोतेन वमे न य ते मनु याः । त म ेका े कृतसवकाय तत एषां भ वतैवा तकालः ।। ७ ।। वैव वत यैव तनु वभ ा वीयण यु माकमुत यु ा । सैषाम तो भ वता तकाले न त वीय भ वता नरेषु ।। ८ ।। भगवान् ाजीने कहा—सूयपु यमराज य के कायम लगे ह, इसी लये ये मनु य मर नह रहे ह। जब वे य का सारा काम पूरा करके इधर यान दगे, तब इन मनु य का अ तकाल उप थत होगा। तुमलोग के बलके भावसे जब सूयन दन यमराजका शरीर य कायसे अलग होकर अपने कायम यु होगा, तब वही अ तकाल आनेपर मनु य क मृ युका कारण बनेगा। उस समय मनु य म इतनी श नह होगी क वे मृ युसे अपनेको बचा सक ।। ७-८ ।। ास उवाच तत तु ते पूवजदे ववा यं ु वा ज मुय दे वा यज ते । समासीना ते समेता महाबला भागीरयां द शुः पु डरीकम् ।। ९ ।। ासजी कहते ह—राजन्! तब वे अपने पूवज दे वता ाजीका वचन सुनकर फर वह चले गये, जहाँ सब दे वता य कर रहे थे। एक दन वे सभी महाबली दे वगण गंगाजीम नान करनेके लये गये और वहाँ तटपर बैठे। उसी समय उ ह भागीरथीके जलम बहता आ एक कमल दखायी दया ।। ९ ।। ् वा च तद् व मता ते बभूवुतेषा म त शूरो जगाम । ो



सोऽप यद् योषामथ पावक भां य दे वी ग ा सततं सूता ।। १० ।। उसे दे खकर वे सब दे वता च कत हो गये। उनम सबसे धान और शूरवीर इ उस कमलका पता लगानेके लये गंगाजीके मूल- थानक ओर गये। गंगो रीके पास, जहाँ गंगादे वीका जल सदा अ व छ पसे झरता रहता है, प ँचकर इ ने एक अ नके समान तेज वनी युवती दे खी ।। १० ।। सा त योषा दती जला थनी ग ां दे व वगा त त् । त या ु ब ः प ततो जले यतत् पमासीदथ त का चनम् ।। ११ ।। वह युवती वहाँ जलके लये आयी थी और भगवती गंगाक धाराम वेश करके रोती ई खड़ी थी। उसके आँसु का एक-एक ब , जो जलम गरता था, वहाँ सुवणमय कमल बन जाता था ।। ११ ।। तद तं े य व ी तदानीमपृ छत् तां यो षतम तकाद् वै । का वं भ े रो द ष क य हेतोवा यं तयं कामयेऽहं वी ह ।। १२ ।। यह अ त य दे खकर वधारी इ ने उस समय उस युवतीके नकट जाकर पूछा —‘भ े ! तुम कौन हो और कस लये रोती हो? बताओ, म तुमसे स ची बात जानना चाहता ँ’ ।। १२ ।।

युवाच वं वे यसे मा मह या म श यदथ चाहं रो द म म दभा या । आग छ राजन् पुरतो ग म ये ा स तद् रो द म य कृतेऽहम् ।। १३ ।। युवती बोली—दे वराज इ ! म एक भा यहीन अबला ँ; कौन ँ और कस लये रो रही ँ, यह सब तु ह ात हो जायगा। तुम मेरे पीछे -पीछे आओ, म आगे-आगे चल रही ँ। वहाँ चलकर वयं ही दे ख लोगे क म कस लये रोती ँ ।। १३ ।। ास उवाच तां ग छ तीम वग छत् तदान सोऽप यदारात् त णं दशनीयम् । स ासन थं युवतीसहायं ड तमै द् ग रराजमू न ।। १४ ।। ासजी कहते ह—राजन्! य कहकर आगे-आगे जाती ई उस ीके पीछे -पीछे उस समय इ भी गये। ग रराज हमालयके शखरपर प ँचकर उ ह ने दे खा—पास ही े ै े े ी ी ै े

एक परम सु दर त ण पु ष स ासनसे बैठे ह, उनके साथ एक युवती भी है। इ ने उस युवतीके साथ उ ह ड़ा- वनोद करते दे खा ।। १४ ।। तम वीद् दे वराजो ममेदं वं व व न् भुवनं वशे थतम् । ईशोऽहम मी त सम युर वीद् ् वा तम ैः सुभृशं म म् ।। १५ ।। वे अपनी स पूण इ य से ड़ाम अ य त त मय हो रहे थे, अतः इधर-उधर उनका यान नह जाता था। उ ह इस कार असावधान दे ख दे वराज इ ने कु पत होकर कहा —‘महानुभाव! यह सारा जगत् मेरे अ धकारम है, मेरी आ ाके अधीन है; म इस जगत्का ई र ँ’ ।। १५ ।। ु ं च श ं समी य दे वो जहास श ं च शनै दै त । सं त भतोऽभूदथ दे वराजतेने तः थाणु रवावत थे ।। १६ ।। इ को ोधम भरा दे ख वे दे वपु ष हँस पड़े। उ ह ने धीरेसे आँख उठाकर उनक ओर दे खा। उनक पड़ते ही दे वराज इ का शरीर त भत हो गया (अकड़ गया)। वे ठूँ ठे काठक भाँ त न े हो गये ।। १६ ।। यदा तु पया त महा य डया तदा दे व दत तामुवाच । आनीयतामेष यतोऽहमाराैनं दपः पुनर या वशेत ।। १७ ।। जब उनक वह ड़ा समा त ई, तब वे उस रोती ई दे वीसे बोले—‘इस इ को जहाँ म ँ, यह —मेरे समीप ले आओ, जससे फर इसके भीतर अ भमानका वेश न हो’ ।। १७ ।। ततः श ः पृ मा तया तु तैर ै ः प ततोऽभूद ् धर याम् । तम वीद् भगवानु तेजा मैवं पुनः श कृथाः कथं चत् ।। १८ ।। तदन तर उस ीने य ही इ का पश कया, उनके सारे अंग श थल हो गये और वे धरतीपर गर पड़े। तब उ तेज वी भगवान् ने उनसे कहा—‘इ ! फर कसी कार भी ऐसा घमंड न करना ।। १८ ।। नवतयैनं च महा राजं बलं च वीय च तवा मेयम् । छ य चैवा वश म यम य य ासते व धाः सूयभासः ।। १९ ।। ‘











‘तुमम अन त बल और परा म है, अतः इस गुफाके दरवाजेपर लगे ए इस महान् पवतराजको हटा दो और इसी गुफाके भीतर घुस जाओ, जहाँ सूयके समान तेज वी तु हारे-जैसे और भी इ रहते ह’ ।। १९ ।। स तद् ववृ य ववरं महा गरेतु य ुत तुरोऽ यान् ददश । स तान भ े य बभूव ःखतः क च ाहं भ वता वै यथेमे ।। २० ।। उ ह ने उस महान् पवतक क दराका ार खोलकर उसम अपने ही समान तेज वी अ य चार इ को भी दे खा। उ ह दे खकर वे ब त खी ए और सोचने लगे—‘कह ऐसा तो नह होगा क म भी इ ह के समान दशाम पड़ जाऊँ’ ।। २० ।। ततो दे वो ग रशो व पा ण ववृ य ने े कु पतोऽ युवाच । दरीमेतां वश वं शत तो य मां बा यादवमं थाः पुर तात् ।। २१ ।। तब पवतपर शयन करनेवाले महादे वजीने आँख तरेरकर कु पत हो वधारी इ से कहा—‘शत तो! तुमने मूखतावश पहले मेरा अपमान कया है, इस लये अब इस क दराम वेश करो’ ।। २१ ।। उ वेवं वभुना दे वराजः ावेपतात भृशमेवा भष ात् । तैर ै र नलेनेव नु म थप ं ग रराजमू न ।। २२ ।। उस पवत- शखरपर भगवान् के य कहनेपर दे वराज इ पराभवक आशंकासे अ य त ःखी हो गये, उनके सारे अंग श थल पड़ गये और हवासे हलनेवाले पीपलके प ेक तरह वे थर-थर काँपने लगे ।। २२ ।। स ा लव वृषवाहनेन वेपमानः सहसैवमु ः । उवाच दे वं ब पमु ाशेष य भुवन य वं भवा ः ।। २३ ।। वृषभवाहन भगवान् शंकरके ारा इस कार सहसा गुहा वेशक आ ा मलनेपर काँपते ए इ ने हाथ जोड़कर उन अनेक पधारी उ व प दे वसे कहा—‘जग ोने! आप ही सम त जगत्क उ प करनेवाले आ दपु ष ह’ ।। २३ ।। तम वी वचाः ह य नैवंशीलाः शेष महा ुव त । एतेऽ येवं भ वतारः पुर तात् त मादे तां दरीमा व य शे व ।। २४ ।। े



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तब भयंकर तेजवाले ने हँसकर कहा—‘तु हारे-जैसे शील- वभाववाले लोग को यहाँ सादक ा त नह होती। ये लोग भी पहले तु हारेही-जैसे थे, अतः तुम भी इस क दराम घुसकर शयन करो ।। २४ ।। त ेवं भ वतारो न संशयो यो न सव मानुषीमा वश वम् । त यूयं कम कृ वा वष ं बन यान् नधनं ाप य वा ।। २५ ।। आग तारः पुनरेवे लोकं वकमणा पूव जतं महाहम् । सव मया भा षतमेतदे वं कत म यद् व वधाथयु म् ।। २६ ।। ‘वहाँ भ व यम न य ही तुमलोग ऐसे ही होनेवाले हो—तुम सबको मनु ययो नम वेश करना पड़ेगा। उस ज मम तुम अनेक ःसह कम करके ब त को मौतके घाट उतारकर पुनः अपने शुभ कम ारा पहलेसे ही उपाजत पु या मा के नवासयो य इ लोकम आ जाओगे। मने जो कुछ कहा है, वह सब कुछ तु ह करना होगा। इसके सवा और भी नाना कारके योजन से यु काय तु हारे ारा स प ह गे’ ।। २५-२६ ।। पूव ा ऊचुः ग म यामो मानुषं दे वलोकाद् राधरो व हतो य मो ः ।

पा डव, पद और

ासजीम बातचीत

ासजी ारा पा डव के पूवज मके वृ ा तका वणन

दे वा व मानादधीर न यां धम वायुमघवान नौ च । अ ै द ैमानुषान् योध य वा आग तारः पुनरेवे लोकम् ।। २७ ।। पहलेके चार इ बोले—भगवन्! हम आपक आ ाके अनुसार दे वलोकसे मनु यलोकम जायँगे, जहाँ लभ मो का साधन भी सुलभ होता है। परंतु वहाँ हम धम, वायु, इ और दोन अ नीकुमार—ये ही दे वता माताके गभम था पत कर। तदन तर हम द ा ारा मानव-वीर से यु करके पुनः इ लोकम चले आयगे ।। २७ ।। ास उवाच एत छ वा व पा णवच तु दे व े ं पुनरेवेदमाह । वीयणाहं पु षं कायहेतोद ामेषां प चमं म सूतम् ।। २८ ।। व भुग् भूतधामा च श ब र ः तापवान् । शा त तुथ तेषां वै तेज वी प चमः मृतः ।। २९ ।। ासजी कहते ह—राजन्! पूववत इ का यह वचन सुनकर वधारी इ ने पुनः दे व े महादे वजीसे इस कार कहा—‘भगवन्! म अपने वीयसे अपने ही अंशभूत पु षको दे वता के कायके लये सम पत क ँ गा, जो इन चार के साथ पाँचवाँ होगा। उसे म वयं ही उ प क ँ गा। व भुक्, भूतधामा, तापी इ श ब, चौथे शा त और पाँचव तेज वी—ये ही उन पाँच के नाम ह ।। २८-२९ ।। तेषां कामं भगवानु ध वा ादा द ं सं नसगाद् यथो म् । तां चा येषां यो षतं लोकका तां यं भाया दधा मानुषेषु ।। ३० ।। उ धनुष धारण करनेवाले भगवान् ने उन सबको उनक अभी कामना पूण होनेका वरदान दया, जसे वे अपने साधु वभावके कारण भगवान्के सामने कट कर चुके थे। साथ ही उस लोककमनीया युवती ीको, जो वगलोकक ल मी थी, मनु यलोकम उनक प नी न त क ।। ३० ।। तैरेव साध तु ततः स दे वो जगाम नारायणम मेयम् । अन तम मजं पुराणं सनातनं व मन त पम् ।। ३१ ।। तदन तर उ ह के साथ महादे वजी अन त, अ मेय, अ , अज मा, पुराणपु ष, सनातन, व प एवं अन तमू त भगवान् नारायणके पास गये ।। ३१ ।। स चा प तद् दधात् सवमेव

ततः सव स बभूवुधर याम् । स चा प केशौ ह र बह शु लमेकमपरं चा प कृ णम् ।। ३२ ।। उ ह ने भी उ ह सब बात के लये आ ा द । त प ात् वे सब लोग पृ वीपर कट ए। उस समय भगवान् नारायणने अपने म तकसे दो केश नकाले, जनम एक ेत था और सरा याम ।। ३२ ।। तौ चा प केशौ न वशेतां य नां कुले यौ दे वक रो हण च । तयोरेको बलदे वो बभूव योऽसौ ेत त य दे व य केशः । कृ णो तीयः केशवः स बभूव केशो योऽसौ वणतः कृ ण उ ः ।। ३३ ।। वे दोन केश य वंशक दो य —दे वक तथा रो हणीके भीतर व ए। उनमसे रो हणीके बलदे व कट ए, जो भगवान् नारायणका ेत केश थे; सरा केश, जसे यामवणका बताया गया है, वही दे वक के गभसे भगवान् ीकृ णके पम कट आ* ।। ३३ ।। ये ते पूव श पा नब ात यां दया पवत यो र य । इहैव ते पा डवा वीयव तः श यांशः पा डवः स साची ।। ३४ ।। उ रवत हमालयक क दराम पहले जो इ व प पु ष बंद बनाकर रखे गये थे, वे ही चार परा मी पा डव यहाँ व मान ह और सा ात् इ का अंशभूत जो पाँचवाँ पु ष कट होनेवाला था, वही पा डु कुमार स साची अजुन है ।। ३४ ।। एवमेते पा डवाः स बभूवुय ते राजन् पूव म ा बभूवुः । ल मी ैषां पूवमेवोप द ा भाया यैषा ौपद द पा ।। ३५ ।। कथं ह ी कमणा ते महीतलात् समु ेद यतो दै वयोगात् । य या पं सोमसूय काशं ग ध ा याः ोशमा ात् वा त ।। ३६ ।। राजन्! इस कार ये पा डव कट ए ह, जो पहले इ रह चुके ह। यह द पा ौपद वही वगलोकक ल मी है, जो पहलेसे ही इनक प नी नयत हो चुक है। महाराज! य द इस कायम दे वता का सहयोग न होता तो तु हारे इस य कम ारा य वेद क भू मसे ऐसी द नारी कैसे कट हो सकती थी, जसका प सूय और े



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च माके समान काश बखेर रहा है और जसक सुग ध एक कोसतक फैलती रहती है ।। ३५-३६ ।। इदं चा यत् ी तपूव नरे ददा न ते वरम य तं च । द ं च ुः प य कु तीसुतां वं पु यै द ैः पूवदे है पेतान् ।। ३७ ।। नरे ! म तु ह स तापूवक एक और अ त वरके पम यह द दे ता ँ; इससे स प होकर तुम कु तीके पु को उनके पूवका लक पु यमय द शरीर से स प दे खो ।। ३७ ।। वैश पायन उवाच ततो ासः परमोदारकमा शु च व तपसा त य रा ः । च ु द ं ददौ तां सवान् राजाप यत् पूवदे हैयथावत् ।। ३८ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर परम उदारकमवाले प व ष ासजीने अपनी तप याके भावसे राजा पदको द दान क , जससे उ ह ने सम त पा डव को पूवशरीर से स प वा त वक पम दे खा ।। ३८ ।। ततो द ान् हेम करीटमा लनः श यान् पावका द यवणान् । ब ापीडां ा पां यूनो ूढोर कां तालमा ान् ददश ।। ३९ ।। वे द शरीरसे सुशो भत थे। उनके म तकपर सुवणमय करीट और गलेम सु दर सोनेक माला शोभा पा रही थी। उनक छ ब इ के ही समान थी। वे अ न और सूयके समान का तमान् थे। उ ह ने अपने अंग म सब तरहके द अलंकार धारण कर रखे थे। उनक युवाव था थी तथा प अ य त मनोहर था। उन सबक छाती चौड़ी थी और वे तालवृ के समान लंबे थे। इस पम राजा पदने उनका दशन कया ।। ३९ ।। द ैव ैररजो भः सुग धैमा यै ा यैः शोभमानानतीव । सा ात् य ान् वा वसूं ा प ाना द यान् वा सवगुणोपप ान् ।। ४० ।। वे द नमल व , उ म ग ध और सु दर माला से अ य त सुशो भत हो रहे थे तथा सा ात् ने महादे व, वसुगण, गण अथवा आ द यगण के समान तेज वी एवं सवगुणस प दखायी दे ते थे ।। ४० ।। तान् पूव ान भवी या भ पान् श ा मजं चे पं नश य । ी ो



ीतो राजा पदो व मत द ां मायां तामवे या मेयाम् ।। ४१ ।। चार पा डव को परम सु दर पूवका लक इ के पम तथा इ पु अजुनको भी इ के ही व पम दे खकर उस अ मेय द मायापर पात करके राजा पद अ य त स एवं आ यच कत हो उठे ।। ४१ ।। तां चैवा यां यम त पयु ां द ां सा ात् सोमव काशाम् । यो यां तेषां पतेजोयशो भः प न म वा वान् पा थवे ः ।। ४२ ।। उन राजराजे रने अपनी पु ीको भी सव े सु दरी, अ य त पवती और सा ात् च मा तथा अ नके समान का शत होनेवाली द नारीके पम दे खा। साथ ही यह मान लया क ौपद प, तेज और यशक से अव य उन पा डव क प नी होनेयो य है। इससे उ ह महान् हष आ ।। ४२ ।। स तद् वा महदा य पं ज ाह पादौ स यव याः सुत य । नैत च ं परमष वयी त स चेताः स उवाच चैनम् ।। ४३ ।। यह महान् आ य दे खकर पदने स यवतीन दन ासजीके चरण पकड़ लये और स च होकर उनसे कहा—‘महष! आपम ऐसी अ त श का होना आ यक बात नह है।’ तब ासजी स च हो पदसे बोले ।। ४३ ।। ास उवाच आसीत् तपोवने का च षेः क या महा मनः । ना यग छत् प त सा तु क या पवती सती ।। ४४ ।। ासजीने कहा—राजन्! (अपनी पु ीके एक और ज मका वृ ा त भी सुनो—) एक तपोवनम कसी महा मा मु नक कोई क या रहती थी। सती-सा वी एवं पवती होनेपर भी उसे यो य प तक ा त नह ई ।। ४४ ।। तोषयामास तपसा सा कलो ेण शंकरम् । तामुवाचे रः ीतो वृणु काम म त वयम् ।। ४५ ।। उसने कठोर तप या ारा भगवान् शंकरको संतु कया; महादे वजी स हो सा ात् कट होकर उस मु न-क यासे बोले—‘तुम मनोवां छत वर माँगो’ ।। ४५ ।। सैवमु ा वीत् क या दे वं वरदमी रम् । प त सवगुणोपेत म छामी त पुनः पुनः ।। ४६ ।। उनके य कहनेपर उस मु न-क याने वरदायक महे रसे बार-बार कहा—‘म सवगुणस प प त चाहती ँ’ ।। ४६ ।। ददौ त यै स दे वेश तं वरं ीतमानसः । े







प च ते पतयो भ े भ व य ती त शंकरः ।। ४७ ।। दे वे र भगवान् शंकर स च होकर उसे वर दे ते ए बोले—‘भ े ! तु हारे पाँच प त ह गे’ ।। ४७ ।। सा सादयती दे व मदं भूयोऽ यभाषत । एकं प त गुणोपेतं व ोऽहामी त शंकर ।। ४८ ।। यह सुनकर उसने महादे वजीको स करते ए पुनः यह बात कही—‘शंकरजी! म तो आपसे एक ही गुणवान् प त ा त करना चाहती ँ’ ।। ४८ ।। तां दे वदे वः ीता मा पुनः ाह शुभं वचः । प चकृ व वयो ोऽहं प त दे ही त वै पुनः ।। ४९ ।। तत् तथा भ वता भ े वच तद् भ म तु ते । दे हम यं गताया ते सवमेतद् भ व य त ।। ५० ।। तब दे वा धदे व महादे वजीने मन-ही-मन अ य त संतु होकर उससे यह शुभ वचन कहा—‘भ े ! तुमने ‘प त द जये’ इस वा यको पाँच बार हराया है; इस लये मने जो पहले कहा है, वैसा ही होगा, तु हारा क याण हो। कतु तु ह सरे शरीरम वेश करनेपर यह सब होगा’ ।। ४९-५० ।। पदै षा ह सा ज े सुता वै दे व पणी । प चानां व हता प नी कृ णा पाष य न दता ।। ५१ ।। पद! वही मु नक या तु हारी इस द पणी पु ीके पम फर उ प ई है। अतः यह पृषत-वंशक सती क या कृ णा पहलेसे ही पाँच प तय क प नी नयत क गयी है ।। ५१ ।। वग ीः पा डवाथ तु समु प ा महामखे । सेह त वा तपो घोरं हतृ वं तवागता ।। ५२ ।। यह वगलोकक ल मी है, जो पा डव के लये तु हारे महाय म कट ई है। इसने अ य त घोर तप या करके इस ज मम तु हारी पु ी होनेका सौभा य ा त कया है ।। ५२ ।। सैषा दे वी चरा दे वजु ा प चानामेका वकृतेनेह कमणा । सृ ा वयं दे वप नी वय भुवा ु वा राजन् पदे ं कु व ।। ५३ ।। महाराज पद! वही यह दे वसे वत सु दरी दे वी अपने ही कमसे पाँच पु ष क एक ही प नी नयत क गयी है। वयं ाजीने इसे दे व व प पा डव क प नी होनेके लये रचा है। यह सब सुनकर तु ह जो अ छा लगे, वह करो ।। ५३ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण वैवा हकपव ण प चे ोपा याने ष णव य धकशततमोऽ यायः ।। १९६ ।।











इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत वैवा हकपवम पाँच इ के उपा यानका वणन करनेवाला एक सौ छानबेवाँ अ याय पूरा आ ।। १९६ ।।

* भगवान् नारायण स चदान दघन ह; उनके नाम, प, लीला और धाम—सभी च मय ह। उ ह ने अपने याम और ेत केश को ारमा बनाकर वयं ही स पूण पसे अपनेको कट कया था।

स तनव य धकशततमोऽ यायः ौपद का पाँच पा डव के साथ ववाह पद उवाच अ ु वैवं वचनं ते महष मया पूव य ततं सं वधातुम् । न वै श यं व हत यापयानं तदे वेदमुपप ं वधानम् ।। १ ।। पद बोले—‘ ष! आपके इस वचनको न सुननेके कारण ही पहले मने वैसा करने (कृ णाको एक ही यो य प तसे याहने)-का य न कया था; परंतु वधाताने जो रच रखा है, उसे टाल दे ना अस भव है; अतः उसी पूव न त वधानका पालन करना उ चत है ।। १ ।। द य थर नवतनीयः वकमणा व हतं नेह क चत् । कृतं न म ं ह वरैकहेतोतदे वेदमुपप ं वधानम् ।। २ ।। भा यम जो लख दया है, उसे कोई भी बदल नह सकता। अपने य नसे यहाँ कुछ नह हो सकता। एक वरक ा तके लये जो साधन (तप) कया गया, वही पाँच प तय क ा तका कारण बन गया; अतः दै वके ारा पूव न त वधानका ही पालन करना उ चत है ।। २ ।। यथैव कृ णो वती पुर ताैकं प त मे भगवान् ददातु । स चा येवं वर म य वीत् तां दे वो ह वे ा परमं यद ।। ३ ।। पूवज मम कृ णाने अनेक बार भगवान् शंकरसे कहा—‘ भो! मुझे प त द।’ जैसा उसने कहा, वैसा ही वर उ ह ने भी उसे दे दया। अतः इसम कौन-सा उ म रह य छपा है, उसे वे भगवान् ही जानते ह ।। ३ ।। य द चैवं व हतः शंकरेण धम ऽधम वा ना ममापराधः । गृ वमे व धवत् पा णम या यथोपजोषं व हतैषां ह कृ णा ।। ४ ।। य द सा ात् शंकरने ऐसा वधान कया है तो यह धम हो या अधम, इसम मेरा कोई अपराध नह है। ये पा डवलोग व धपूवक स तासे इसका पा ण हण कर; वधाताने ही कृ णाको इन पा डव क प नी बनाया है ।। ४ ।।



वैश पायन उवाच ततोऽ वीद् भगवान् धमराजम ैव पु याहमुत वः पा डवेय । अ पौ यं योगमुपै त च माः पा ण कृ णाया वं गृहाणा पूवम् ।। ५ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर भगवान् ासने धमराज यु ध रसे कहा—‘पा डु न दन! आज ही तुम लोग के लये पु य- दवस है। आज च मा भरणपोषणकारक पु य न पर जा रहे ह; इस लये आज पहले तु ह कृ णाका पा ण हण करो’ ।। ५ ।। ततो राजा य सेनः सपु ो ज याथमु ं ब तत् तदयम् । समानयामास सुतां च कृ णामा ला र नैब भ वभू य ।। ६ ।। ासजीका यह आदे श सुनकर पु स हत राजा पदने वर-वधूके लये क थत सम त उ म व तु को मँगवाया और अपनी पु ी कृ णाको नान कराकर ब त-से र नमय आभूषण ारा वभू षत कया ।। ६ ।। तत तु सव सु दो नृप य समाज मुः स हता म ण । ु ं ववाहं परम तीता जा पौरा यथा धानाः ।। ७ ।। त प ात् राजाके सभी सु द्-स ब धी, म ी, ा ण और पुरवासी अ य त स हो ववाह दे खनेके लये आये और बड़ को आगे करके बैठे ।। ७ ।। ततोऽ य वे मायजनोपशो भतं व तीणपो पलभू षता जरम् । बलौघर नौघ व च माबभौ नभो यथा नमलतारका वतम् ।। ८ ।। तदन तर राजा पदका वह भवन े पु ष से सुशो भत होने लगा। उसके आँगनको व तृत कमल और उ पल आ दसे सजाया गया था। वहाँ एक ओर सेनाएँ खड़ी थ और सरी ओर र न का ढे र लगा था। इससे वह राजभवन नमल तारका से संयु आकाशक भाँ त व च शोभा धारण कर रहा था ।। ८ ।। तत तु ते कौरवराजपु ा वभू षताः कु ड लनो युवानः । महाहव ा बरच दनो ताः कृता भषेकाः कृतम ल याः ।। ९ ।। े







इधर युवाव थासे स प कौरव-राजकुमार पा डव व ाभूषण से वभू षत और कु डल से अलंकृत हो अ भषेक और मंगलाचार करके ब मू य कपड़ एवं केसर, च दनसे सुशो भत ए ।। ९ ।। पुरो हतेना नसमानवचसा सहैव धौ येन यथा व ध भो । मेण सव व वशु ततः सदो महषभा गो मवा भन दनः ।। १० ।। तब अ नके समान तेज वी अपने पुरो हत धौ यजीके साथ व धपूवक बड़े-छोटे के मसे वे सभी स तापूवक ववाहम डपम गये—ठ क उसी तरह, जैसे बड़े-बड़े साँड गोशालाम वेश कर ।। १० ।। ततः समाधाय स वेदपारगो जुहाव म ै व लतं ताशनम् । यु ध रं चा युपनीय म वयोजयामास सहैव कृ णया ।। ११ ।। त प ात् वेदके पारंगत व ान् म पुरो हत धौ यने (वेद पर) व लत अ नक थापना करके उसम म ारा आ त द और यु ध रको बुलाकर कृ णाके साथ उनका गँठब धन कर दया ।। ११ ।। द णं तौ गृहीतपाणी समानयामास स वेदपारगः । ततोऽ यनु ाय तमा जशो भनं पुरो हतो राजगृहाद् व नययौ ।। १२ ।। वेद के प रपूण व ान् पुरो हतने उन दोन द प तका पा ण हण कराकर उनसे अ नक प र मा करवायी, फर (अ य शा ो व धय का अनु ान करके) उनका ववाहकाय स प कर दया। इसके बाद सं ामम शोभा पानेवाले यु ध रको छु दे कर पुरो हतजी भी उस राजभवनसे बाहर चले गये ।। १२ ।। मेण चानेन नरा धपा मजा वर य ते जगृ तदा करम् । अह यह यु म पधा रणो महारथाः कौरववंशवधनाः ।। १३ ।। इसी मसे कौरव-कुलक वृ करनेवाले, उ म शोभा धारण करनेवाले महारथी राजकुमार पा डव ने एक-एक दन परम सु दरी ौपद का पा ण हण कया ।। १३ ।। इदं च त ा त पमु मं जगाद दे व षरतीतमानुषम् । महानुभावा कल सा सुम यमा बभूव क यैव गते गतेऽह न ।। १४ ।। े











दे व षने वहाँ घ टत ई इस अ त, उ म एवं अलौ कक घटनाका वणन कया है क सु दर क ट दे शवाली महानुभावा ौपद तवार ववाहके सरे दन क याभावको ही ा त हो जाती थी ।। १४ ।। कृते ववाहे पदो धनं ददौ महारथे यो ब पमु मम् । शतं रथानां वरहेममा लनां चतुयुजां हेमखलीनमा लनाम् ।। १५ ।। ववाह-काय स प हो जानेपर पदने महारथी पा डव को दहेजम ब त-सा धन और नाना कारक उ म व तुएँ सम पत क। सु दर सुवणक माला और सुवणज टत जु से सुशो भत सौ रथ दान कये, जनम चार-चार घोड़े जुते ए थे ।। १५ ।। शतं गजानाम प प नां तथा शतं गरीणा मव हेमशृ णाम् । तथैव दासीशतमययौवनं महाहवेषाभरणा बर जम् ।। १६ ।। प आ द उ म ल ण से यु सौ हाथी तथा पवत के समान ऊँचे और सुनहरे हौद से सुशो भत सौ हाथी और (साथ ही) ब मू य शृंगार-साम ी, व ाभूषण एवं हार धारण करनेवाली एक सौ नवयौवना दा सयाँ भी भट क ।। १६ ।। पृथक् पृथग् द शां पुनददौ तदा धनं सौम कर नसा कम् । तथैव व ा ण वभूषणा न भावयु ा न महानुभावः ।। १७ ।। सोमकवंशम उ प महानुभाव राजा पदने इस कार अ नको सा ी बनाकर येक सु दर वाले पा डव के लये अलग-अलग चुर धन तथा भु व-सूचक ब मू य व और आभूषण अ पत कये ।। १७ ।। कृते ववाहे च तत तु पा डवाः भूतर नामुपल य तां यम् । वज र तमा महाबलाः पुरे तु पा चालनृप य त य ह ।। १८ ।। ववाहके प ात् इ के समान महाबली पा डव चुर र नरा शके साथ ल मी व पा ौपद को पाकर पांचालराज पदके ही नगरम सुखपूवक वहार करने लगे ।। १८ ।। (सवऽ यतु यन् नृप पा डवेयात याः शुभैः शीलसमा धवृ ैः । सा चा येषा या सेनी तदान ववधयामास मुदं वसु तैः ।।) राजन्! सभी पा डव ौपद क सुशीलता, एका ता और सद् वहारसे ब त संतु थे (और ौपद को भी संतु रखनेका य न करते थे)। इसी कार पदकुमारी कृ णा भी े ी ी

उस समय अपने उ म नयम ारा पा डव का आन द बढ़ाती थी। इत

ीमहाभारते आ दपव ण वैवा हकपव ण ौपद ववाहे स तनव य धकशततमोऽ यायः ।। १९७ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत वैवा हकपवम ौपद ववाह वषयक एक सौ स ानबेवाँ अ याय पूरा आ ।। १९७ ।। (दा णा य अ धक पाठका १ ोक मलाकर क ु ल १९ ोक ह)

अ नव य धकशततमोऽ यायः कु तीका ौपद को उपदे श और आशीवाद तथा भगवान् ीकृ णका पा डव के लये उपहार भेजना वैश पायन उवाच पा डवैः सह संयोगं गत य पद य ह । न बभूव भयं क चद् दे वे योऽ प कथंचन ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! पा डव से स ब ध हो जानेपर राजा पदको दे वता से भी कसी कारका कुछ भी भय नह रहा, फर मनु य से तो हो ही कैसे सकता था ।। १ ।। कु तीमासा ता नाय पद य महा मनः । नाम संक तय योऽ या ज मुः पादौ वमूध भः ।। २ ।। महा मा पदके कुटु बक याँ कु तीके पास आकर अपने नाम ले-लेकर उनके चरण म म तक नवाकर णाम करने लग ।। २ ।। कृ णा च ौमसंवीता कृतकौतुकम ला । कृता भवादना वा त थौ ा कृता लः ।। ३ ।। कृ णा भी रेशमी साड़ी पहने मांग लक काय स प करनेके प ात् सासके चरण म णाम करके उनके सामने हाथ जोड़ वनीतभावसे खड़ी ई ।। ३ ।। पल णस प ां शीलाचारसम वताम् । ौपद मवदत् े णा पृथाऽऽशीवचनं नुषाम् ।। ४ ।। सु दर प तथा उ म ल ण से स प , शील और सदाचारसे सुशो भत अपनी ब ौपद को सामने दे ख कु तीदे वी उसे ेमपूवक आशीवाद दे ती ई बोल — ।। ४ ।। यथे ाणी ह रहये वाहा चैव वभावसौ । रो हणी च यथा सोमे दमय ती यथा नले ।। ५ ।। यथा वै वणे भ ा व स े चा य धती । यथा नारायणो ल मी तथा वं भव भतृषु ।। ६ ।। ‘बेट ! जैसे इ ाणी इ म, वाहा अ नम, रो हणी च माम, दमय ती नलम, भ ा कुबेरम, अ धती व स म तथा ल मी भगवान् नारायणम भ -भाव एवं ेम रखती ह, उसी कार तुम भी अपने प तय म अनुर रहो ।। ५-६ ।।

जीवसूव रसूभ े ब सौ यसम वता । सुभगा भोगस प ा य प नी प त ता ।। ७ ।। ‘भ े ! तुम अन त सौ यसे स प होकर द घजीवी तथा वीर पु क जननी बनो। सौभा यशा लनी, भोगसाम ीसे स प , प तके साथ य म बैठनेवाली तथा प त ता होओ ।। ७ ।। अ तथीनागतान् साधून् वृ ान् बालां तथा गु न् । पूजय या यथा यायं श द् ग छ तु ते समाः ।। ८ ।। ‘अपने घरपर आये ए अ त थय , साधु पु ष , बड़े-बूढ़ , बालक तथा गु जन का यथायो य स कार करनेम ही तु हारा येक वष बीते ।। ८ ।। कु जा लमु येषु रा ेषु नगरेषु च । अनु वम भ ष य व नृप त धमव सला ।। ९ ।। ‘तु हारे प त कु जांगल दे शके धान- धान रा तथा नगर के राजा ह और उनके साथ ही रानीके पदपर तु हारा अ भषेक हो। धमके त तु हारे दयम वाभा वक नेह हो ।। ९ ।। प त भ न जतामुव व मेण महाबलैः । कु ा णसात् सवाम मेधे महा तौ ।। १० ।। ‘तु हारे महाबली प तय ारा परा मसे जीती ई इस समूची पृ वीको तुम अ मेध नामक महाय म ा ण के हवाले कर दो ।। १० ।। पृ थ ां या न र ना न गुणव त गुणा वते । ी

ता या ु ह वं क या ण सुखनी शरदां शतम् ।। ११ ।। ‘क याणमयी गुणवती ब ! पृ वीपर जतने गुणवान् र न ह, वे सब तु ह ा त ह और तुम सौ वषतक सुखी रहो ।। ११ ।। यथा च वा भन दा म व व ौमसंवृताम् । तथा भूयोऽ भन द ये जातपु ां गुणा वताम् ।। १२ ।। ‘ब ! आज तु ह वैवा हक रेशमी व से सुशो भत दे खकर जस कार म तु हारा अ भन दन करती ँ, उसी कार जब तुम पु वती होओगी, उस समय भी अ भन दन क ँ गी; तुम सद्गुणस प हो’ ।। १२ ।।

वैश पायन उवाच तत तु कृतदारे यः पा डु यः ा हणो रः । वै यम ण च ा ण हैमा याभरणा न च ।। १३ ।। वासां स च महाहा ण नानादे या न माधवः । क बला जनर ना न पशव त शुभा न च ।। १४ ।। शयनासनयाना न व वधा न महा त च । वै यव च ा ण शतशो भाजना न च ।। १५ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर ववाह हो जानेपर पा डव के लये भगवान् ीकृ णने वै यम ण-ज टत सोनेके ब त-से आभूषण, ब मू य व , अनेक दे श के बने ए कोमल पशवाले क बल, मृगचम, सु दर र न, शयाए ,ँ आसन, भाँ तभाँ तके बड़े-बड़े वाहन तथा वै य और वम ण (हीरे)-से ख चत सैकड़ बतन भटके तौरपर भेजे ।। १३—१५ ।। पयौवनदा यै पेता वलंकृताः । े याः स ददौ कृ णो नानादे याः वलंकृताः ।। १६ ।। प-यौवन और चातुय आ द गुण से स प तथा व ाभूषण से अलंकृत अनेक दे श क सजी-धजी ब त सी सु दरी से वकाएँ भी सम पत क ।। १६ ।। गजान् वनीतान् भ ां सद ां वलंकृतान् । रथां दा तान् सौवणः शु ैः प ै रलंकृतान् ।। १७ ।। को टश सुवण च तेषामकृतकं तथा । वीथीकृतममेया मा ा हणो मधुसूदनः ।। १८ ।। इसके सवा अमेया मा मधुसूदनने सु श त और वशम रहनेवाले अ छ जा तके हाथी, गहन से सजे ए उ म घोड़े, चमकते ए सोनेके प से सुशो भत और सधे ए घोड़ से यु ब त-से सु दर रथ, करोड़ वणमु ाएँ तथा पं म रखी ई सुवणक ढे रयाँ उनके लये भेज ।। १७-१८ ।। तत् सव तज ाह धमराजो यु ध रः । मुदा परमया यु ो गो व द यका यया ।। १९ ।। े









धमराज यु ध रने अ य त स होकर भगवान् सारा उपहार हण कर लया ।। १९ ।। इत

ीकृ णक

स ताके लये वह

ीमहाभारते आ दपव ण वैवा हकपव ण अ नव य धकशततमोऽ यायः ।। १९८ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत वैवा हकपवम एक सौ अानबेवाँ अ याय पूरा आ ।। १९८ ।।

( व रागमनरा यल भपव) नवनव य धकशततमोऽ यायः पा डव के ववाहसे य धन आ दक च ता, धृतरा का पा डव के त ेमका दखावा और य धनक कुम णा वैश पायन उवाच ततो रा ां चरैरा तैः वृ पनीयत । पा डवै पस प ा ौपद प त भः शुभा ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर सब राजा को अपने व सनीय गु तचर ारा यह यथाथ समाचार मल गया क शुभल णा ौपद का ववाह पाँच पा डव के साथ आ है ।। १ ।। येन तद् धनुरादाय ल यं व ं महा मना । सोऽजुनो जयतां े ो महाबाणधनुधरः ।। २ ।। जन महा मा पु षने वह धनुष लेकर ल यको वेधा था, वे वजयी वीर म े तथा महान् धनुष-बाण धारण करनेवाले वयं अजुन थे ।। २ ।। यः श यं म राजं वै ो यापातयद् बली । ासयामास सं ु ो वृ ेण पु षान् रणे ।। ३ ।। न चा य स मः क दासीत् त महा मनः । स भीमो भीमसं पशः श ुसेना पातनः ।। ४ ।। जस बलवान् वीरने अ य त कु पत हो म राज श यको उठाकर पृ वीपर पटक दया था और हाथम वृ ले रणभू मम सम त यो ा को भयभीत कर डाला था तथा जस महातेज वी शूरवीरको उस समय त नक भी घबराहट नह ई थी, वह श ुसेनाके हाथी, घोड़े आ द अंग को मार गरानेवाला तथा पशमा से भय उ प करनेवाला महाबली भीमसेन था ।। ३-४ ।। पधरा छ वा शा तान् पा डु न दनान् । कौ तेयान् मनुजे ाणां व मयः समजायत ।। ५ ।। ा णका प धारण करके शा तभावसे बैठे ए वे वीर पु ष कु तीपु पा डव ही थे, यह सुनकर वहाँ आये ए राजा को बड़ा आ य आ ।। ५ ।। सपु ा ह पुरा कु ती द धा जतुगृहे ुता । पुनजाता नव च तां तेऽम य त नरा धपाः ।। ६ ।। े









उ ह ने पहले सुन रखा था क कु ती अपने पु स हत ला ागृहम जल गयी। अब उ ह जी वत सुनकर वे राजालोग यह मानने लगे क इन पा डव का फर नया ज म-सा आ है ।। ६ ।। धगकुव तदा भी मं धृतरा ं च कौरवम् । कमणा तनृशंसेन पुरोचनकृतेन वै ।। ७ ।। पुरोचनके कये ए अ य त ू रतापूण कमका मरण हो आनेसे उस समय सभी नरेश कु वंशी धृतरा तथा भी मको ध कारने लगे ।। ७ ।। (धा मकान् वृ स प ान् मातुः य हते रतान् । यदा तानी शान् पाथानु साद यतु म छ त ।। ‘दे खो न; धमा मा, सदाचारी तथा माताके य एवं हतम त पर रहनेवाले कु तीकुमार को भी यह धृतरा न करना चाहता है (भला, इससे बढ़कर न दनीय कौन होगा)।’ ततः वयंवरे वृ े धातरा ाः म भारत । म य ते ततः सव कणसौबल षताः ।। जनमेजय! उधर वयंवर समा त होनेपर धृतराक े सभी पु , ज ह कण और शकु नने बगाड़ रखा था, इस कार सलाह करने लगे। शकु न वाच क छ ुः कशनीयः पीडनीय तथापरः । उ सादनीयाः कौ तेयाः सव य मे मताः ।। शकु न बोला—संसारम कोई श ु तो ऐसा होता है, जसे सब कारसे बल कर दे ना उ चत है; सरा ऐसा होता है, जसे सदा पीड़ा द जाय। परंतु कु तीके ये सभी पु तो सम त य के लये समूल न कर दे नेयो य ह। इनके वषयम मेरा यही मत है। एवं परा जताः सव य द यूयं ग म यथ । अकृ वा सं वदं कां चत् तद् व त य यसंशयम् ।। य द इस कार परा जत होकर आप सब लोग इन (पा डव के वनाशक ) यु न त कये बना ही चले जायँगे, तो अव य ही यह भूल आपलोग को सदा संत त करती रहेगी। अयं दे श काल पा डवो रणाय नः । न चेदेवं क र य वं लोके हा या भ व यथ ।। पा डव को जड़मूलस हत वन करनेके लये हमारे सामने यही उपयु दे श और काल उप थत है। य द आपलोग ऐसा नह करगे तो संसारम उपहासके पा ह गे। यमेते सं ता व तुं कामय ते च भू मपम् । सोऽ पवीयबलो राजा पदो वै मतो मम ।। ये पा डव जस राजाके आ यम रहनेक इ छा रखते ह, उस पदका बल और परा म मेरी रायम ब त थोड़ा है। े





यावदे तान् न जान त जीवतो वृ णपु वाः । चै पु ष ा ः शशुपालः तापवान् ।। जबतक वृ णवंशके े वीर यह नह जानते क पा डव जी वत ह, पु ष सह चे दराज तापी शशुपाल भी जबतक इस बातसे अन भ है, तभीतक पा डव को मार डालना चा हये। एक भावं गता रा ा पदे न महा मना । राधषतरा राजन् भ व य त न संशयः ।। राजन्! जब ये महा मा राजा पदके साथ मलकर एक हो जायँगे, तब इ ह परा त करना अ य त क ठन हो जायगा, इसम संशय नह है। यावद वरतां सव ा ुव त नरा धपाः । तावदे व व यामः पा डवानां वधं त ।। जबतक सब राजा ढ ले पड़े ह, तभीतक हम पा डव के वधके लये पूरा य न कर लेना चा हये। मु ा जतुगृहाद् भीमाद् आशी वषमुखा दव । पुनयद ह मु य ते मह ो भयमा वशेत् ।। वषधर सपके मुख-स श भयंकर ला ागृहसे तो वे बच ही गये ह। य द फर यहाँ हमारे हाथसे छू ट जाते ह तो उनसे हमलोग को महान् भय ा त हो सकता है। तेषा महोपयातानामेषां च पुरवा सनाम् । अ तरे करं थातुं मेषयोमहतो रव ।। य द वे वृ णवंशी और चे दवंशी वीर यहाँ आ जायँ और यहाँके नाग रक भी अ श लेकर खड़े हो जायँ तो इनके बीचम खड़ा होना उतना ही क ठन होगा, जतना आपसम लड़ते ए दो वशाल मेढ के बीचम ठहरना। हलधृक् गृहीता न बला न ब लनां वयम् । याव कु सेनायां पत त पतगा इव ।। तावत् सवा भसारेण पुरमेतद् वना यताम् । एतद परं म ये ा तकालं नरषभाः ।। जबतक हल धारण करनेवाले बलरामजीके ारा संचा लत बलवान् यो ा क सेनाएँ वयं ही आकर कौरवसेना पी खेतीपर ट य क भाँ त न टू ट पड़, तबतक हम सब लोग एक साथ आ मण करके इस नगरको न कर द। नर े वीरो! म इस अवसरपर यही सव म कत मानता ँ! वैश पायन उवाच शकुनेवचनं ु वा भाषमाण य मतेः । सौमद रदं वा यं जगाद परमं ततः ।। वैश पायनजी कहते ह— बु शकु नका यह ताव सुनकर सोमदतकुमार भू र वाने यह उ म बात कही।



सौमद वाच कृतीः स त वै ा वा आ मन पर य च । तथा दे शं च कालं च षड् वधां नयेद ् गुणान् ।। भू र वा बोले—अपने प क और श ुप क भी सात १ कृ तय को ठ क-ठ क जानकर ही दे श और कालका ान रखते ए छः२ कारके गुण का यथावसर योग करना चा हये। थानं वृ यं चैव भूम म ा ण व मम् । समी याथा भयु ीत परं सनपी डतम् ।। थान, वृ , य, भू म, म तथा परा म—इन सबक ओर रखते ए य द श ु संकटसे पी ड़त हो तभी उसपर आ मण करना चा हये। ततोऽहं पा डवान् म ये म कोशसम वतान् । बल थान् व म थां वकृतैः कृ त यान् ।। इस से दे खनेपर म पा डव को म और खजाना दोन से स प समझता ँ। वे बलवान् तो ह ही, परा मी भी ह और अपने स कम ारा सम त जाके य हो रहे ह। वपुषा ह तु भूतानां ने ा ण दया न च । ो ं मधुरया वाचा रमय यजुनो नृणाम् ।। अजुन अपने शरीरक गठनसे (सभी) मनु य के ने तथा दयको आन द दान करते ह और मीठ -मीठ वाणी ारा सबके कान को सुख प ँचाते ह। न तु केवलदै वेन जा भावेन भे जरे । यद् बभूव मनःका तं कमणा च चकार तत् ।। केवल ार धसे ही जा उनक सेवा नह करती। जाके मनको जो य लगता है, उसक पू त अजुन अपने य न ारा करते रहते ह। न यु ं न चास ं नानृतं न च व यम् । भा षतं चा भाष य ज े पाथ य भारती ।। मनोहर वचन बोलनेवाले अजुनक वाणी कभी ऐसा वचन नह बोलती, जो अयु , आस पूण, म या तथा अ य हो। तानेवंगुणस प ान् स प ान् राजल णैः । न तान् प या म ये श ाः समु छे ुं यथा बलात् ।। सम त पा डव राजो चत ल ण से स प तथा उपयु गुण से वभू षत ह। म ऐसे क ह वीर को नह दे खता, जो अपने बलसे पा डव का वा तवम उ छे द कर सक। भावश वपुला म श पु कला । तथैवो साहश पाथ व य धका सदा ।। उनक भावश वपुल है, म श भी चुर है तथा उ साहश भी पा डव म सबसे अ धक है। मौल म बलानां च काल ो वै यु ध रः । े े े े े

सा ना दानेन भेदेन द डेने त यु ध रः ।। अ म ं यतते जेतुं न रोषेणे त मे म तः ।। यु ध र इस बातको अ छ तरह जानते ह क कब वाभा वक बलका योग करना चा हये तथा कब म और सै यबलका। राजा यु ध र साम, दान, भेद और द डनी तके ारा ही यथासमय श ुको जीतनेका य न करते ह, ोधके ारा नह —ऐसा मेरा व ास है। प र य धनैः श ून् म ा ण च बला न च । मूलं च सु ढं कृ वा ह यरीन् पा डव तदा ।। पा डु न दन यु ध र चुर धन दे कर श ु को, म को तथा सेना को भी खरीद लेते ह और अपनी न वको सु ढ़ करके श ु का नाश करते ह। अश यान् पा डवान् म ये दे वैर प सवासवैः । येषामथ सदा यु ौ कृ णसंकषणावुभौ ।। म ऐसा मानता ँ क इ आ द दे वता भी उन पा डव का कुछ नह बगाड़ सकते, जनक सहायताके लये कृ ण और बलराम दोन सदा कमर कसे रहते ह। ेय य द म य वं म मतं य द वो मतम् । सं वदं पा डवैः साध कृ वा याम यथागतम् ।। य द आपलोग मेरी बातको हतकर मानते ह , य द मेरे मतके अनुकूल ही आपलोग का मत हो, तो हमलोग पा डव से मेल करके जैसे आये ह, वैसे ही लौट चल। गोपुरा ालकै चै पत पशतैर प । गु तं पुरवर े मेतद संवृतम् ।। तृणधा ये धनरसै तथा य ायुधौषधैः । यु ं ब कपाटै ागारतुषा दकैः ।। यह े नगर गोपुर , ऊँची-ऊँची अ ा लका तथा सैकड़ उपत प से सुर त है। इसके चार ओर जलसे भरी खाई है। घास-चारा, अनाज, धन, रस, य , आयुध तथा औषध आ दक यहाँ ब तायत है। ब त-से कपाट, ागार और भूसा आ दसे भी यह नगर भरपूर है। भीमो तमहाच ं बृहद ालसंवृतम् । ढ ाकार नयूहं शत नीजालसंवृतम् ।। यहाँ बड़े भयंकर और ऊँचे वशाल च ह। बड़ी-बड़ी अट् टा लका क पं इस नगरको घेरे ए है। इसक चहारद वारी और छ जे सु ढ़ ह। शत नी (तोप) नामक अ के समुदायसे यह नगरी घरी ई है। ऐ को दारवो व ो मानुष े त यः मृतः । ाकारकतृ भव रैनॄगभ त पू जतः ।। इसक र ाके लये तीन कारका घेरा बना है—एक तो ट का, सरा काठका और तीसरा मानव-सै नक का। चहारद वारी बनानेवाले वीर ने यहाँ नरगभक पूजा क है। तदे त रगभण पा डरेण वराजते । े े े

सालेनानेकतालेन सवतः संवृतं पुरम् ।। अनुर ाः कृतयो पद य महा मनः । दानमाना चताः सव बा ा ा य तरा ये ।। इस कार यह नगर ेत नरगभसे शो भत है। अनेक ताड़के बराबर ऊँचे शालवृ क पं य ारा यह े नगरी सब ओरसे घरी ई है। महामना राजा पदक सभी जा और कृ तयाँ (म ी आ द) उनम अनुराग रखती ह। बाहर और भीतरके सभी कमचा रय का दान और मान ारा स कार कया जाता है। त ा नमा ा वा राज भभ म व मैः । उपया य त दाशाहाः समुद ो तायुधाः ।। भयानक परा मी राजा ारा पा डव को सब ओरसे घरा आ जानकर सम त य वंशी वीर च ड अ -श लये यहाँ उप थत हो जायँगे। त मात् संध वयं कृ वा धातरा य पापडवैः । वरा मेव ग छामो य ा तवचनं मम ।। एत मम मतं सवः यतां य द रोचते । एत सुकृतं म ये ेमं चा प मही ताम् ।।) अतः हम धृतरा-पु य धनक पा डव के साथ सं ध कराकर अपने रा यम ही लौट चल। य द आपलोग को मेरी बातपर व ास हो और मेरा यह मत सबको ठ क जँचता हो तो आप सब लोग इसे कामम लाय। हमारा यही सव म कत है और म इसीको राजा के लये क याणकारी मानता ँ। वृ े वयंवरे चैव राजानः सव एव ते । यथागतं व ज मु व द वा पा डवान् वृतान् ।। ८ ।। वयंवर समा त हो जानेपर जब यह ात हो गया क ौपद ने पा डव का वरण कया है, तब वे सभी राजा जैसे आये थे, वैसे ही (अपने-अपने) दे शको लौट गये ।। ८ ।। अथ य धनो राजा वमना ातृ भः सह । अ था ना मातुलेन कणन च कृपेण च ।। ९ ।। व नवृ ो वृतं ् वा ौप ा ेतवाहनम् । तं तु ःशासनो ीडन् म दं म द मवा वीत् ।। १० ।। पदकुमारी कृ णाने ेतवाहन अजुनको (जयमाला पहनाकर उनका) वरण कया है, यह अपनी आँख दे खकर राजा य धनके मनम बड़ा ःख आ। वह अ थामा, मामा शकु न, कण, कृपाचाय तथा अपने भाइय के साथ ( पदक राजधानीसे) ह तनापुरके लये लौट पड़ा। मागम ःशासनने ल जत होकर य धनसे धीरे-धीरे (इस कार) कहा — ।। ९-१० ।। य सौ ा णो न याद् व दे त ौपद न सः । न ह तं त वतो राजन् वेद क द् धनंजयम् ।। ११ ।। ‘भाईजी! य द अजुन ा णके वेशम न होता तो वह कदा प ौपद को न पा सकता था। राजन्! वा तवम कसीको यह पता ही नह चला क वह अजुन है ।। ११ ।। ै े ौ

दै वं च परमं म ये पौ षं चा यनथकम् । धग तु पौ षं तात य ते य पा डवाः ।। १२ ।। ‘म तो भा यको ही बल मानता ँ, पु षका य न नरथक है। तात! हमारे पु षाथको ध कार है, जब क पा डव अभीतक जी रहे ह’ ।। १२ ।। एवं स भाषमाणा ते न द त पुरोचनम् । व वशुहा तनपुरं द ना वगतचेतसः ।। १३ ।। इस कार पर पर बात करते और पुरोचनको कोसते ए वे सब कौरव ःखी होकर ह तनापुरम प ँचे। (पा डव क ) सफलता दे खकर, उनका च ठकाने न रहा ।। १३ ।। ता वगतसंक पा वा पाथान् महौजसः । मु ान् ह भुज ैव संयु ान् पदे न च ।। १४ ।। धृ ु नं तु सं च य तथैव च शख डनम् । पद या मजां ा यान् सवयु वशारदान् ।। १५ ।। महातेज वी कु तीकुमार ला ागृहक आगसे जी वत बचकर राजा पदके स ब धी हो गये, यह अपनी आँख दे खकर और धृ ु न, शख डी तथा पदके अ य पु यु क स पूण कला म द ह, इस बातका वचार करके कौरव ब त डर गये। उनक आशा नराशाम प रणत हो गयी ।। १४-१५ ।। व र वथ तां ु वा ौपद पा डवैवृतान् । ी डतान् धातरा ां भ नदपानुपागतान् ।। १६ ।। ततः ीतमनाः ा धृतरा ं वशा पते । उवाच द या कुरवो वध त इ त व मतः ।। १७ ।। व रजीने जब यह सुना क पा डव ने ौपद को ा त कया है और धृतराक े पु अपना अ भमान चूण हो जानेसे ल जत होकर लौट आये ह, तब वे मन-ही-मन बड़े स ए। राजन्! तब वे धृतराक े पास जाकर व मयसूचक वाणीम बोले—‘महाराज! हमारा अहोभा य है, जो कौरववंशक वृ हो रही है ।। १६-१७ ।।

वै च वीय तु वचो नश य व र य तत् । अ वीत् परम ीतो द या द ये त भारत ।। १८ ।। भारत! व च वीयन दन राजा धृतरा व रक यह बात सुनकर अ य त स हो सहसा बोल उठे —‘अहोभा य, अहोभा य’ ।। १८ ।। म यते स वृतं पु ं ये ं पदक यया । य धनम व ानात् ाच ुनरे रः ।। १९ ।। उस अंधे नरेशने अ ानवश यह समझ लया क ‘ पदक याने मेरे ये पु य धनका वरण कया है’ ।। १९ ।। अथ वा ापयामास ौप ा भूषणं ब । आनीयतां वै कृ णे त पु ं य धनं तदा ।। २० ।। इस लये उ ह ने आ ा द —‘ ौपद के लये ब त-से आभूषण मँगाओ और मेरे पु य धन तथा ौपद को बड़ी धूमधामसे नगरम ले आओ’ ।। २० ।। अथा य प ाद् व र आच यौ पा डवान् वृतान् । सवान् कुश लनो वीरान् पू जतान् पदे न ह ।। २१ ।। तब पीछे से व रने उ ह बताया क—‘ ौपद ने पा डव का वरण कया है। वे सभी वीर राजा पदके ारा पू जत होकर वहाँ कुशलपूवक रह रहे ह ।। २१ ।। तेषां स ब धन ा यान् बन् बलसम वतान् । समागतान् पा डवेयै त म ेव वयंवरे ।। २२ ।। उसी वयंवरम उनके ब त-से अ य स ब धी भी, जो भारी सै नकश से स प ह, पा डव से ेमपूवक मले ह ।। २२ ।। (

(एत छ वा तु वचनं व र य नरा धपः । आकार छादनाथ तु द या द ये त चा वीत् ।। व रका यह कथन सुनकर राजा धृतराने अपनी बदली ई आकृ तको छपानेके लये कहा—‘अहोभा य! अहोभा य!’

धृतरा उवाच एवं व र भ ं ते य द जीव त पा डवाः । सा वाचारा तथा कु ती स ब धो पदे न च ।। अ ववाये वसोजातः कृ े मा यके कुले । त व ातपोवृ ः पा थवानां धुर धरः ।। पु ा ा य तथा पौ ाः सव सुच रत ताः । तेषां स ब धन ा ये बहवः सुमहाबलाः ।।) धृतरा ( फर) बोले— व र! य द ऐसी बात है, य द (वा तवम) पा डव जी वत ह, तो बड़े आन दक बात है, तु हारा क याण हो। अव य ही कु ती बड़ी सा वी ह। पदके साथ जो स ब ध आ है, वह हमारे लये अ य त पृहणीय है। व र! राजा पद वसुके े और स माननीय कुलम उ प ए ह। त, व ा और तप—तीन म वे बढ़े -चढ़े ह। राजा म तो वे अ ग य ह ही। उनके सभी पु और पौ भी उ म तका पालन करनेवाले ह। पदके अ य ब त-से स ब धी भी अ य त बलवान् ह। यथैव पा डोः पु ा तु तथैवा य धका मम । यथा चा य धका बु मम तान् त त छृ णु ।। २३ ।। व र! यु ध र आ द जैसे पा डु के पु ह, वैसे ही या उससे भी अ धक मेरे ह। उनके त मेरे मनम अ धक अपनापनका भाव य है?, यह बताता ँ; सुनो ।। २३ ।। यत् ते कुश लनो वीरा म व त पा डवाः । तेषां स ब धन ा ये बहव महाबलाः ।। २४ ।। वे वीर पा डव कुशलपूवक जी वत बच गये ह और उ ह म का सहयोग भी ा त हो गया है। इतना ही नह और भी ब त-से महाबली नरेश उनके स ब धी होते जा रहे ह ।। २४ ।। को ह पदमासा म ं ः सबा धवम् । न बुभूषेद ् भवेनाथ गत ीर प पा थवः ।। २५ ।। व र! कौन ऐसा राजा है, जसक स प न हो जानेपर भी ब धु-बा धव स हत पदको म के पम पाकर जीना नह चाहेगा ।। २५ ।। वैश पायन उवाच तं तथा भाषमाणं तु व रः यभाषत । न यं भवतु ते बु रेषा राज छतं समाः । इ यु वा ययौ राजन् व रः वं नवेशनम् ।। २६ ।। ै







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वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! ऐसी बात कहनेवाले राजा धृतरासे व र (इस कार) बोले—‘महाराज! सौ वष तक आपक बु ऐसी ही बनी रहे।’ राजन्! इतना कहकर व रजी अपने घर चले गये ।। २६ ।। ततो य धन ा प राधेय वशा पते । धृतरा मुपाग य वचोऽ ूता मदं तदा ।। २७ ।। जनमेजय! तदन तर य धन और कणने धृतराक े पास आकर यह बात कही — ।। २७ ।। सं नधौ व र य वां दोषं व ुं न श नुवः । व व म त व यावः क तवेदं चक षतम् ।। २८ ।। सप नवृ यत् तात म यसे वृ मा मनः । अ भ ौ ष च यत् ुः समीपे षतां वर ।। २९ ।। ‘महाराज! व रके समीप हम आपसे आपका कोई दोष नह बता सकते। इस समय एका त है, इस लये कहते ह। आप यह या करना चाहते ह? पू य पताजी! आप तो श ु क उ तको ही अपनी उ त मानने लगे ह और व रजीके नकट हमारे वै रय क ही भू र-भू र शंसा करते ह ।। २८-२९ ।। अ य मन् नृप कत े वम यत् कु षेऽनघ । तेषां बल वघातो ह कत तात न यशः ।। ३० ।। न पाप नरेश! हम करना तो कुछ और चा हये, कतु आप करते कुछ और (ही) ह। तात! हमारे लये तो यही उ चत है क हम सदा पा डव क श का वनाश करते रह ।। ३० ।। ते वयं ा तकाल य चक षा म यामहे । यथा नो न सेयु ते सपु बलबा धवान् ।। ३१ ।। ‘इस समय जैसा अवसर उप थत है, इसम हम या करना चा हये—यही सोचवचारकर न य करना है, जससे वे पा डव पु , बा धव तथा सेनास हत हमारा सवनाश न कर बैठ’ ।। ३१ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण व रागमनरा यल भपव ण य धनवा ये नवनव य धकशततमोऽ यायः ।। १९९ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत व रागमन-रा यल भपवम य धनवचन वषयक एक सौ न यानबेवाँ अ याय पूरा आ ।। १९९ ।। ( ा णा य अ धक पाठक े ३९ द ोक मलाकर कुल ७० ोक ह)

१. रा यके वामी, अमा य, सु द्, कोष, रा, ग और सेना—इन सात अंग को सात क ृ तयाँ कहते ह। २. सं ध, व ह, यान, आसन, ै धीभाव और समा य—ये छः गुण ह। इनम श ुसे मेल रखना सं ध, उससे लड़ाई छे ड़ना व ह, आ मण करना यान, अवसरक ती ाम बैठे रहना आसन, रंगी नी त बतना ै धीभाव और अपनेसे े

बलवान् राजाक शरण लेना समा य कहलाता।

शततमोऽ यायः धृतरा और य धनक बातचीत, श ु उपाय

को वशम करनेके

धृतरा उवाच अहम येवमेवैत चक षा म यथा युवाम् । ववे ुं नाह म छा म वाकारं व रं त ।। १ ।। धृतरा ने कहा—बेटा! म भी तो वही करना चाहता ँ, जैसा तुम दोन चाहते हो; परंतु म अपनी आकृ तसे भी व रपर अपने मनका भाव कट होने दे ना नह चाहता ।। १ ।। तत तेषां गुणानेव क तया म वशेषतः । नावबु येत व रो ममा भ ाय म तैः ।। २ ।। इसी लये व रके सामने वशेषतः पा डव के गुण का ही बखान करता ँ, जससे वह इशारेसे भी मेरे मनोभावको न ताड़ सके ।। २ ।। य च वं म यसे ा तं तद् वी ह सुयोधन । राधेय म यसे य च ा तकालं वदाशु मे ।। ३ ।। सुयोधन और कण! तुम दोन समयके अनुसार जो काय करना आव यक समझते हो वह शी मुझे बताओ ।। ३ ।। य धन उवाच अ तान् कुशलै व ैः सुगु तैरा तका र भः । कु तीपु ान् भेदयामो मा पु ौ च पा डवौ ।। ४ ।। य धन बोला— पताजी! आज अ य त गु त पसे कुछ ऐसे चतुर ा ण को नयु करना चा हये, जनके काय पर हमारा पूण व ास हो। हम उनके ारा पा डव मसे कु ती और मा के पु म फूट डालनेक चे ा करनी चा हये ।। ४ ।। अथवा पदो राजा मह व संचयैः । पु ा ा य लो य ताममा या ैव सवशः ।। ५ ।। प र यजेद ् यथा राजा कु तीपु ं यु ध रम् । अथ त ैव वा तेषां नवासं रोचय तु ते ।। ६ ।। अथवा धनक ब त बड़ी रा श दे कर राजा पद, उनके पु तथा म य को सवथा लोभनम डालना चा हये, जससे पंचालनरेश कु तीन दन यु ध रको याग द—उ ह अपने घर और नगरसे नकाल द, अथवा वे ा नणलोग पा डव के मनम वह रहनेक च उ प कर ।। ५-६ ।। इहैषां दोषव ासं वणय तु पृथक् पृथक् । े



ते भ माना त ैव मनः कुव तु पा डवाः ।। ७ ।। वे अलग-अलग इन सभी पा डव से कह क ह तनापुरका नवास आपलोग के लये अ य त हा नकारक होगा। इस कार ा ण ारा बु भेद उ प कर दे नेपर स भव है, पा डवलोग अपने मनम वह (पंचालदे शम ही) रहनेका न य कर ल ।। ७ ।। अथवा कुशलाः के च पाय नपुणा नराः । इतरेतरतः पाथान् भेदय वनुरागतः ।। ८ ।। अथवा कुछ ऐसे मनु य भेजे जायँ, जो उपाय ढूँ ढ़ नकालनेम चतुर तथा कायकुशल ह और ेमपूवक बात करके कु तीपु म पर पर फूट डाल द ।। ८ ।। ु थापय तु वा कृ णां ब वात् सुकरं ह तत् । अथवा पा डवां त यां भेदय तु तत ताम् ।। ९ ।। अथवा कृ णाको ही इस कार बहका द क वह अपने प तय का प र याग कर दे । अनेक प त होनेके कारण (उसका कसीम भी सु ढ़ अनुराग नह हो सकता; अतः) उनका प र याग कराना सरल है। अथवा वे लोग पा डव को ही ौपद क ओरसे वलग कर द और ऐसा होनेपर ौपद को उनक ओरसे वर बना द ।। ९ ।। भीमसेन य वा राज ुपायकुशलैनरैः । मृ यु वधीयतां छ ैः स ह तेषां बला धकः ।। १० ।। अथवा राजन्! उपायकुशल मनु य छपे रहकर भीमसेनका ही वध कर डाल; य क वही पा डव म सबसे अ धक बलवान् है ।। १० ।। तमा य ह कौ तेयः पुरा चा मान् न म यते । स ह ती ण शूर तेषां चैव परायणम् ।। ११ ।। उसीका आ य लेकर कु तीन दन यु ध र पहलेसे ही हम कुछ नह समझते। वह बड़े तीखे वभावका और शूरवीर है। वही पा डव का सबसे बड़ा सहारा है ।। ११ ।। त मं व भहते राजन् हतो साहा हतौजसः । य त य ते न रा याय स ह तेषां पा यः ।। १२ ।। राजन्! उसके मारे जानेपर पा डव का बल और उ साह न हो जायगा। फर वे रा य लेनेका य न नह करगे। भीमसेन ही उनका सबसे बड़ा आ य है ।। १२ ।। अजेयो जुनः सं ये पृ गोपे वृकोदरे । तमृते फा गुनो यु े राधेय य न पादभाक् ।। १३ ।। भीमसेनको पृ र क पाकर ही अजुन यु म अजेय बने ए ह। य द भीम न ह तो वे रणभू मम कणक एक चौथाईके बराबर भी नह हो सकगे ।। १३ ।। ते जानाना तु दौब यं भीमसेनमृते महत् । अ मान् बलवतो ा वा न य त य त बलाः ।। १४ ।। भीमसेनके बना अपनी ब त बड़ी बलताका अनुभव करके वे बल पा डव हम अपनेसे बलवान् जानकर रा य लेनेका य न नह करगे ।। १४ ।। इहागतेषु वा तेषु नदे शवशव तषु । व त यामहे राजन् यथाशा ं नबहणम् ।। १५ ।। े ँ ी े ी ो े

राजन्! अथवा य द वे यहाँ आकर हमारी आ ाके अधीन होकर रहगे, तब हम नी तशा के अनुसार उनके वनाशके कायम लग जायँगे ।। १५ ।। अथवा दशनीया भः मदा भ वलो यताम् । एकैक त कौ तेय ततः कृ णा वर यताम् ।। १६ ।। अथवा दे खनेम सु दर युवती य ारा एक-एक पा डवको लुभाया जाय और इस कार कृ णाका मन उनक ओरसे फेर दया जाय ।। १६ ।। े यतां चैव राधेय तेषामागमनाय वै । तै तैः कारैः संनीय पा य तामा तका र भः ।। १७ ।। अथवा पा डव को यहाँ बुला लानेके लये राधान दन कणको भेजा जाय और यहाँ लाकर व सनीय कायकता ारा व भ उपाय से उन सबको मार गराया जाय ।। १७ ।। एतेषाम युपायानां य ते नद षवान् मतः । त य योगमा त पुरा कालोऽ तवतते ।। १८ ।। याव यकृत व ासा पदे पा थवषभे । तावदे व ह ते श या न श या तु ततः परम् ।। १९ ।। पताजी! इन उपाय मसे जो भी आपको नद ष जान पड़े, उसीसे पहले काम ली जये; य क समय बीता जा रहा है। जबतक वे राजा म े पदपर उनका पूरा व ास नह जम जाता, तभीतक उ ह मारा जा सकता है। पूरा व ास जम जानेपर तो उ ह मारना अस भव हो जायगा ।। १८-१९ ।। एषा मम म त तात न हाय वतते । सा वी वा य द वासा वी क वा राधेय म यसे ।। २० ।। पताजी! श ु को वशम करनेके लये ये ही उपाय मेरी बु म आते ह; मेरा यह वचार भला है या बुरा, यह आप जान। अथवा कण! तु हारी या राय है? ।। २० ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण व रागमनरा यल भपव ण य धनवा ये शततमोऽ यायः ।। २०० ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत व रागमन-रा यल भपवम य धनवा य वषयक दो सौवाँ अ याय पूरा आ ।। २०० ।।

एका धक शततमोऽ यायः पा डव को परा मसे दबानेके लये कणक स म त कण उवाच य धन तव ा न स य ग त मे म तः । न पायेन ते श याः पा डवाः कु वधन ।। १ ।। कणने कहा— य धन! मेरे वचारसे तु हारी यह सलाह ठ क नह है। कु वधन! ऐसे कसी भी उपायसे पा डव को वशम नह कया जा सकता ।। १ ।। पूवमेव ह ते सू मै पायैय तता वया । न हीतुं तदा वीर न चैव श कता वया ।। २ ।। इहैव वतमाना ते समीपे तव पा थव । अजातप ाः शशवः श कता नैव बा धतुम् ।। ३ ।। वीर! पहले भी तुमने अनेक गु त उपाय ारा पा डव को दबानेक चे ा क है, परंतु उनपर तु हारा वश नह चल सका। भूपाल! वे जब ब चे थे और यह तु हारे पास रहते थे, उस समय उनके प म कोई नह था, तब भी तुम उ ह बाधा प ँचानेम सफल न हो सके ।। २-३ ।। जातप ा वदे श था ववृ ाः सवशोऽ ते । नोपायसा याः कौ तेया ममैषा म तर युत ।। ४ ।। अब तो वे वदे शम ह, उनके प म ब त-से लोग हो गये ह और सब कारसे उनक बढ़ती हो गयी है। अतः अब वे कु तीकुमार तु हारे बताये ए उपाय ारा वशम आनेवाले नह ह। पु षाथसे कभी युत न होनेवाले वीर! मेरा तो यही वचार है ।। ४ ।। न च ते सनैय ुं श या द कृतेन च । श कता े सव ैव पतृपैतामहं पदम् ।। ५ ।। अब वे संकटम नह डाले जा सकते। भा यने उ ह श शाली बना दया है और उनम अपने बाप-दाद के रा यको ा त करनेक अ भलाषा जाग उठ है ।। ५ ।। पर परेण भेद नाधातुं तेषु श यते । एक यां ये रताः प यां न भ ते पर परम् ।। ६ ।। उनम आपसम भी फूट डालना स भव नह है। जो (एकराय होकर) एक ही प नीम अनुर ह, उनम पर पर वरोध नह हो सकता ।। ६ ।। न चा प कृ णा श येत ते यो भेद यतुं परः । प र ूनान् वृतवती कमुता मृजावतः ।। ७ ।। कृ णाको भी उनक ओरसे फूट डालकर वलग करना अस भव है; य क जब पा डवलोग भ ाभोजी होनेके कारण द न-हीन थे, उस अव थाम कृ णाने उनका वरण ै

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कया है; अब तो वे स प शाली होकर व छ एवं सु दर वेषम रहते ह, अब वह य उनक ओरसे वर होगी? ।। ७ ।। ई सत गुणः ीणामेक या ब भतृता । तं च ा तवती कृ णा न सा भेद यतुं मा ।। ८ ।। ायः य का यह अभी गुण है क एक ीम अनेक पु ष से स ब ध था पत करनेक च हो। पा डव के साथ रहनेम कृ णाको यह लाभ वतः ा त है; अतः उसके मनम भेद नह उ प कया जा सकता ।। ८ ।। आय त पा चा यो न स राजा धन यः । न सं य य त कौ तेयान् रा यदानैर प ुवम् ।। ९ ।। पांचालराज पद े तका पालन करनेवाले ह। वे धनके लोभी नह ह। अतः तुम अपना सारा रा य दे दो, तो भी यह न य है क वे कु ती-पु का प र याग नह करगे ।। ९ ।। यथा य पु ो गुणवाननुर पा डवान् । त मा ोपायसा यां तानहं म ये कथंचन ।। १० ।। इसी कार उनका पु धृ ु न भी गुणवान् तथा पा डव का ेमी है। अतः म उ ह पूव उपाय से वशम करनेयो य कदा प नह मान सकता ।। १० ।। इदं व मं कतुम माकं पु षषभ । याव कृतमूला ते पा डवेया वशा पते ।। ११ ।। तावत् हरणीया ते तत् तु यं तात रोचताम् । अ म प ो महान् यावद् यावत् पा चालको लघुः । तावत् हरणं तेषां यतां मा वचारय ।। १२ ।। ‘राजन्! इस समय हमारे लये एक ही उपाय कामम लानेयो य है; वे पु ष े पा डव जबतक अपनी जड़ नह जमा लेते, तभीतक उनपर हार करना चा हये। इसीसे वे काबूम आ सकते ह।’ तात! म समझता ँ, तु ह भी यह राय पसंद होगी। जबतक हमारा प बढ़ा-चढ़ा है और जबतक पांचालराजका बल हमसे कम है, तभीतक उनपर आ मण कर दया जाय। इसम सरा कुछ वचार न करो ।। ११-१२ ।। वाहना न भूता न म ा ण च कुला न च । याव तेषां गा धारे तावद् व म पा थव ।। १३ ।। राजन्! गा धारीन दन! जबतक पा डव के पास ब त-से वाहन, म और कुटु बी नह हो जाते, तभीतक तुम उनके ऊपर परा म कर लो ।। १३ ।। याव च राजा पा चा यो नो मे कु ते मनः । सह पु ैमहावीय तावद् व म पा थव ।। १४ ।। पृ वीपते! जबतक पांचालनरेश अपने महा-परा मी पु के साथ हमारे ऊपर चढ़ाई करनेका वचार नह कर रहे ह, तभीतक तुम अपना बल- व म कट कर लो ।। १४ ।। याव ाया त वा णयः कषन् यादववा हनीम् । रा याथ पा डवेयानां पा चा यसदनं त ।। १५ ।। े े ी ै ी

इसके लये तु ह तभीतक अवसर है, जबतक क वृ णकुलन दन ीकृ ण य वं शय क सेना साथ लये पा डव को रा य दलानेके उ े यसे पांचालराजके घरपर नह आ जाते ।। १५ ।। वसू न व वधान् भोगान् रा यमेव च केवलम् । ना या यम त कृ ण य पा डवाथ कथंचन ।। १६ ।। पा डव के लये ीकृ णक ओरसे धन-र न, भाँ त-भाँ तके भोग तथा सारा रा य— कुछ भी अदे य नह है ।। १६ ।। व मेण मही ा ता भरतेन महा मना । व मेण च लोकां ी तवान् पाकशासनः ।। १७ ।। महा मा भरतने परा मसे ही यह पृ वी ा त क । इ ने परा मसे ही तीन लोक पर वजय पायी ।। १७ ।। व मं च शंस त य य वशा पते । वको ह धमः शूराणां व मः पा थवषभ ।। १८ ।। राजन्! यके लये परा मक ही शंसा क जाती है। नृप े ! परा म करना ही शूरवीर का वधम है ।। १८ ।। ते बलेन वयं राजन् महता चतुर णा । मय पदं शी मानयामेह पा डवान् ।। १९ ।। राजन्! हमलोग वशाल चतुरं गणी सेनाके ारा राजा पदको कुचलकर शी ही यहाँ पा डव को कैद कर लाय ।। १९ ।। न ह सा ना न दानेन न भेदेन च पा डवाः । श याः साध यतुं त माद् व मेणैव ता ह ।। २० ।। न सामसे, न दानसे और न भेदक नी तसे पा डव को वशम कया जा सकता है। अतः उ ह परा मसे ही न करो ।। २० ।। तान् व मेण ज वेमामखलां भुङ ् व मे दनीम् । अतो ना यं प या म काय पायं जना धप ।। २१ ।। परा मसे पा डव को जीतकर इस सारी पृ वीका रा य भोगो। नरे र! इसके सवा सरा कोई काय स का उपाय म नह दे खता ।। २१ ।। वैश पायन उवाच ु वा तु राधेयवचो धृतरा ः तापवान् । अ भपू य ततः प ा ददं वचनम वीत् ।। २२ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! कणक बात सुनकर तापी धृतराने उसक बड़ी सराहना क और तदन तर इस कार कहा— ।। २२ ।। उपप ं महा ा े कृता े सूतन दने । व य व मस प मदं वचनमी शम् ।। २३ ।। ‘











‘कण! तुम परम बु मान्, अ -श के ाता और सूतकुलको आन दत करनेवाले हो। ऐसा परा मयु वचन तु हारे ही यो य है ।। २३ ।। भूय एव तु भी म ोणो व र एव च । युवां च कु तं बु भवेद ् या नः सुखोदया ।। २४ ।। ‘परंतु मेरा वचार है क भी म, ोण, व र और तुम दोन एक साथ बैठकर पुनः वचार कर लो तथा कोई ऐसी बात सोच नकालो, जो भ व यम भी हम सुख दे नेवाली हो’ ।। २४ ।। तत आना य तान् सवान् म णः सुमहायशाः । धृतरा ो महाराज म यामास वै तदा ।। २५ ।। महाराज! तदन तर महायश वी धृतराने भी म, ोण आ द स पूण म य को बुलवाकर उनके साथ उस समय वचार आर भ कया ।। २५ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण व रागमनरा यल भपव ण धृतरा म णे एका धक शततमोऽ यायः ।। २०१ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत व रागमन-रा यल भपवम धृतराम णास ब धी दो सौ पहला अ याय पूरा आ ।। २०१ ।।

य धक शततमोऽ यायः भी मक

य धनसे पा डव को आधा रा य दे नेक सलाह

भी म उवाच न रोचते व हो मे पा डु पु ैः कथंचन । यथैव धृतरा ो मे तथा पा डु रसंशयम् ।। १ ।। भी मजी बोले—मुझे पा डव के साथ वरोध या यु कसी कार भी पसंद नह है। मेरे लये जैसे धृतरा ह, वैसे ही पा ड ु —इसम संशय नह है ।। १ ।। गा धाया यथा पु ा तथा कु तीसुता मम । यथा च मम ते र या धृतरा तथा तव ।। २ ।। धृतरा! जैसे गा धारीके पु मेरे अपने ह, उसी कार कु तीके पु भी ह; इसी लये जैसे मुझे पा डव क र ा करनी चा हये, वैसे तु ह भी ।। २ ।। यथा च मम रा तथा य धन य ते । तथा कु णां सवषाम येषाम प पा थव ।। ३ ।। भूपाल! मेरे और तु हारे लये जैसे पा डव क र ा आव यक है, वैसे ही य धन तथा अ य सम त कौरव को भी उनक र ा करनी चा हये ।। ३ ।। एवं गते व हं तैन रोचे संधाय वीरैदयतामधभू मः । तेषामपीदं पतामहानां रा यं पतु ैव कु मानाम् ।। ४ ।। ऐसी दशाम म पा डव के साथ लड़ाई-झगड़ा पसंद नह करता। उन वीर के साथ सं ध करके उ ह आधा रा य दे दया जाय। ( य धनक ही भाँ त) उन कु े पा डव के भी बाप-दाद का यह रा य है ।। ४ ।। य धन यथा रा यं व मदं तात प य स । मम पैतृक म येवं तेऽ प प य त पा डवाः ।। ५ ।। तात य धन! जैसे तुम इस रा यको अपनी पैतृक स प के पम दे खते हो, उसी कार पा डव भी दे खते ह ।। ५ ।। य द रा यं न ते ा ताः पा डवेया यश वनः । कुत एव तवापीदं भारत या प क य चत् ।। ६ ।। य द यश वी पा डव इस रा यको नह पा सकते तो तु ह अथवा भरतवंशके कसी अ य पु षको भी वह कैसे ा त हो सकता है? ।। ६ ।। अधमण च रा यं वं ा तवान् भरतषभ । तेऽ प रा यमनु ा ताः पूवमेवे त मे म तः ।। ७ ।। े











भरत े ! तुमने अधमपूवक इस रा यको ह थया लया है; परंतु मेरा वचार यह है क तुमसे पहले ही वे भी इस रा यको पा चुके थे ।। ७ ।। मधुरेणैव रा य य तेषामध द यताम् । एत पु ष ा हतं सवजन य च ।। ८ ।। पु ष सह! ेमपूवक ही उ ह आधा रा य दे दो। इसीम सब लोग का हत है ।। ८ ।। अतोऽ यथा चेत् यते न हतं नो भ व य त । तवा यक तः सकला भ व य त न संशयः ।। ९ ।। य द इसके वपरीत कुछ कया जायगा तो हमारी भलाई नह हो सकती और तु ह भी पूरा-पूरा अपयश मलेगा—इसम संशय नह है ।। ९ ।। क तर णमा त क त ह परमं बलम् । न क तमनु य य जी वतं फलं मृतम् ।। १० ।। अतः अपनी क तक र ा करो, क त ही े बल है; जसक क त न हो जाती है, उस मनु यका जीवन न फल माना गया है ।। १० ।। याव क तमनु य य न ण य त कौरव । ताव जीव त गा धारे न क त तु न य त ।। ११ ।। ग धारीन दन! कु े ! मनु यक क त जबतक न नह होती, तभीतक वह जी वत है; जसक क त न हो गयी, उसका तो जीवन ही न हो जाता है ।। ११ ।। त ममं समुपा त धम कु कुलो चतम् । अनु पं महाबाहो पूवषामा मनः कु ।। १२ ।। महाबाहो! कु कुलके लये उ चत इस उ म धमका पालन करो। अपने पूवज के अनु प काय करते रहो ।। १२ ।। द या य ते पाथा ह द या जीव त सा पृथा । द या पुरोचनः पापो न सकामोऽ ययं गतः ।। १३ ।। सौभा यक बात है क कु तीके पु जी वत ह; यह भी सौभा यक ही बात है क कु ती भी मरी नह है और सबसे बड़े सौभा यका वषय यह है क पापी पुरोचन अपने (बुरे) इरादे म सफल न होकर वयं न हो गया ।। १३ ।। यदा भृ त द धा ते कु तभोजसुतासुताः । तदा भृ त गा धारे न श नो य भवी तुम् ।। १४ ।। लोके ाणभृतां कं च छ वा कु त तथागताम् । न चा प दोषेण तथा लोको म येत् पुरोचनम् । यथा वां पु ष ा लोको दोषेण ग छ त ।। १५ ।। गा धारीकुमार! जबसे मने सुना क कु तीके पु ला ागृहक आगम जल गये तथा कु ती भी उसी अव थाको ा त ई है, तभीसे म (ल जाके मारे) जगत्के कसी भी ाणीक ओर आँख उठाकर दे ख नह सकता था। नर े ! लोग इस कायके लये पुरोचनको उतना दोषी नह मानते, जतना तु ह दोषी समझते ह ।। १४-१५ ।। त ददं जी वतं तेषां तव क बषनाशनम् ।

स म त ं महाराज पा डवानां च दशनम् ।। १६ ।। अतः महाराज! पा डव का यह जी वत रहना और उनका दशन होना वा तवम तु हारे ऊपर लगे ए कलंकका नाश करनेवाला है, ऐसा मानना चा हये ।। १६ ।। न चा प तेषां वीराणां जीवतां कु न दन । पय ऽशः श य आदातुम प व भृता वयम् ।। १७ ।। कु न दन! पा डववीर के जीते-जी उनका पैतृक अंश सा ात् वधारी इ भी नह ले सकते ।। १७ ।। ते सवऽव थता धम सव चैवैकचेतसः । अधमण नर ता तु ये रा ये वशेषतः ।। १८ ।। वे सब धमम थत ह; उन सबका एक च —एक वचार है। इस रा यपर तु हारा और उनका समान व व है, तो भी उनके साथ वशेष अधमपूण बताव करके उ ह यहाँसे हटाया गया है ।। १८ ।। य द धम वया काय य द काय यं च मे । ेमं च य द कत ं तेषामध द यताम् ।। १९ ।। य द तु ह धमके अनुकूल चलना है, य द मेरा य करना है और य द (संसारम) भलाई करनी है, तो उ ह आधा रा य दे दो ।। १९ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण व रागमनरा यल भपव ण भी मवा ये य धक शततमोऽ यायः ।। २०२ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत व रागमन-रा यल भपवम भी मवा य वषयक दो सौ सरा अ याय पूरा आ ।। २०२ ।।

य धक शततमोऽ यायः ोणाचायक पा डव को उपहार भेजने और बुलानेक स म त तथा कणके ारा उनक स म तका वरोध करनेपर ोणाचायक फटकार ोण उवाच म ाय समुपानीतैधृतरा हतैनृप । ध यमय यश यं च वा य म यनुशु ुम ।। १ ।। ोणाचायने कहा—राजा धृतरा! सलाह लेनेके लये बुलाये ए हतै षय को उ चत है क वे ऐसी बात कह, जो धम, अथ और यशक ा त करानेवाली हो—यह हम पर परासे सुनते आये ह ।। १ ।। ममा येषा म त तात या भी म य महा मनः । सं वभ या तु कौ तेया धम एष सनातनः ।। २ ।। तात! मेरी भी वही स म त है, जो महा मा भी मक है। कु तीके पु को आधा रा य बाँट दे ना चा हये, यही पर परासे चला आनेवाला धम है ।। २ ।। े यतां पदायाशु नरः क त् यंवदः । ब लं र नमादाय तेषामथाय भारत ।। ३ ।। भारत! पदके पास शी ही कोई य वचन बोलनेवाला मनु य भेजा जाय और वह पा डव के लये ब त-से र न क भट लेकर जाय ।। ३ ।। मथः कृ यं च त मै स आदाय वसु ग छतु । वृ च परमां ूयात् व संयोगो वां तथा ।। ४ ।। स ीयमाणं वां ूयाद राजन् य धनं तथा । असकृद् पदे चैव धृ ु ने च भारत ।। ५ ।। राजा पदके पास ब के लये वरप क ओरसे उसे धन और र न लेकर जाना चा हये। भारत! उस पु षको राजा पद और धृ ु नके सामने बार-बार यह कहना चा हये क आपके साथ स ब ध हो जानेसे राजा धृतरा और य धन अपना बड़ा अ युदय मान रहे ह और उ ह इस वैवा हक स ब धसे बड़ी स ता ई है ।। ४-५ ।। उ चत वं य वं च योग या प च वणयेत् । पुनः पुन कौ तेयान् मा पु ौ च सा वयन् ।। ६ ।। इसी कार वह कु ती और मा के पु को सा वना दे ते ए बार-बार इस स ब धके उ चत और य होनेक चचा करे ।। ६ ।। हर मया न शु ा ण ब याभरणा न च । वचनात् तव राजे ौप ाः स य छतु ।। ७ ।। े

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राजे ! वह आपक आ ासे ौपद के लये ब त-से सु दर सुवणमय आभूषण अ पत करे ।। ७ ।। तथा पदपु ाणां सवषां भरतषभ । पा डवानां च सवषां कु या यु ा न या न च ।। ८ ।। भरत े ! पदके सभी पु , सम त पा डव और कु तीके लये भी जो उपयु आभूषण आ द ह , उ ह भी वह अ पत करे ।। ८ ।। एवं सा वसमायु ं पदं पा डवैः सह । उ वा सोऽन तरं ूयात् तेषामागमनं त ।। ९ ।। इस कार (उपहार दे नेके प ात्) पा डव स हत पदसे सा वनापूण वचन कहकर अ तम वह पा डव के ह तनापुरम आनेके वषयम ताव करे ।। ९ ।। अनु ातेषु वीरेषु बलं ग छतु शोभनम् । ःशासन वकण ा यानेतुं पा डवा नह ।। १० ।। जब पदक ओरसे पा डववीर को यहाँ आनेक अनुम त मल जाय, तब एक अ छ सी सेना साथ ले ःशासन और वकण पा डव को यहाँ ले आनेके लये जायँ ।। १० ।। तत ते पा डवाः े ाः पू यमानाः सदा वया । कृतीनामनुमते पदे था य त पैतृके ।। ११ ।। यहाँ आनेके प ात् वे े पा डव आपके ारा सदा आदर-स कार ा त करते ए जाक इ छाके अनुसार वे अपने पैतृक रा यपर त त ह गे ।। ११ ।। एतत् तव महाराज पु ेषु तेषु चैव ह । वृ मौप यकं म ये भी मेण सह भारत ।। १२ ।। भरतवंशी महाराज! आपको अपने पु और पा डव के त उपयु वहार ही करना चा हये—भी मजीके साथ म भी यही उ चत समझता ँ ।। १२ ।। कण उवाच यो जतावथमाना यां सवकाय वन तरौ । न म येतां व े यः कम ततरं ततः ।। १३ ।। कण बोला—महाराज! भी मजी और ोणाचायको आपक ओरसे सदा धन और स मान ा त होता रहता है। इ ह आप अपना अ तरंग सु द् समझकर सभी काय म इनक सलाह लेते ह। फर भी य द ये आपके भलेक सलाह न द तो इससे बढ़कर आ यक बात और या हो सकती है? ।। १३ ।। ेन मनसा यो वै छ ेना तरा मना । ूया ः ेयसं नाम कथं कुयात् सतां मतम् ।। १४ ।। जो अपने अ तःकरणके भावको छपाकर, दोषयु दयसे कोई सलाह दे ता है, वह अपने ऊपर व ास करनेवाले साधुपु ष के अभी क याणक स कैसे कर सकता है? ।। १४ ।। न म ा यथकृ े षु ेयसे चेतराय वा ।

व धपूव ह सव य ःखं वा य द वा सुखम् ।। १५ ।। म भी अथसंकटके समय अथवा कसी कामक क ठनाई आ पड़नेपर न तो क याण कर सकते ह और न अक याण ही। सभीके लये ःख या सुखक ा त भा यके अनुसार ही होती है ।। १५ ।। कृत ोऽकृत ो बालो वृ मानवः । ससहायोऽसहाय सव सव व द त ।। १६ ।। मनु य बु मान् हो या मूख, बालक हो या वृ तथा सहायक के साथ हो या असहाय, वह दै वयोगसे सव सब कुछ पा लेता है ।। १६ ।। ूयते ह पुरा क द बुवीच इती रः । आसीद् राजगृहे राजा मागधानां मही ताम् ।। १७ ।। सुना है, पहले राजगृहम अ बुवीच नामसे स एक राजा रा य करते थे। वे मागध राजा मसे एक थे ।। १७ ।। स हीनः करणैः सव छ् वासपरमो नृपः । अमा यसं थः सवषु काय वेवाभवत् तदा ।। १८ ।। उनक कोई भी इ य काय करनेम समथ नह थी, वे ( ासके रोगसे पी ड़त हो) एक थानपर पड़े-पड़े लंबी साँस ख चा करते थे; अतः येक कायम उ ह म ीके ही अधीन रहना पड़ता था ।। १८ ।। त यामा यो महाक णबभूवैके र तदा । स लधबलमा मानं म यमानोऽवम यते ।। १९ ।। उनके म ीका नाम था महाक ण। उन दन वही वहाँका एकमा राजा बन बैठा था। उसे सै नक बल ा त था, अतः अपनेको सबल मानकर राजाक अवहेलना करता था ।। १९ ।। स रा उपभो या न यो र नधना न च । आददे सवशो मूढ ऐ य च वयं तदा ।। २० ।। वह मूढ म ी राजाके उपभोगम आनेयो य ी, र न, धन तथा ऐ यको भी वयं ही भोगता था ।। २० ।। तदादाय च लुध य लोभा लोभोऽ यवधत । तथा ह सवमादाय रा यम य जहीष त ।। २१ ।। वह सब पाकर उस लोभीका लोभ उ रो र बढ़ता गया। इस कार सारी चीज लेकर वह उनके रा यको भी हड़प लेनेक इ छा करने लगा ।। २१ ।। हीन य करणैः सव छ् वासपरम य च । यतमानोऽ प तद् रा यं न शशाके त नः ुतम् ।। २२ ।। य प राजा स पूण इ य क श से र हत होनेके कारण केवल ऊपरको साँस ही ख चा करता था, तथा प अ य त य न करनेपर भी वह म ी उनका रा य न ले सका —यह बात हमने सुन रखी है ।। २२ ।। कम यद् व हता नूनं त य सा पु षे ता । े े

य द ते व हतं रा यं भ व य त वशा पते ।। २३ ।। मषतः सवलोक य था यते व य तद् ुवम् । अतोऽ यथा चेद ् व हतं यतमानो न ल यसे ।। २४ ।। राजाका राज व भा यसे ही सुर त था (उनके य नसे नह ;) (अतः) भा यसे बढ़कर सरा सहारा या हो सकता है? महाराज! य द आपके भा यम रा य बदा होगा तो सब लोग के दे खते-दे खते वह न य ही आपके पास रहेगा और य द भा यम रा यका वधान नह है, तो आप य न करके भी उसे नह पा सकगे ।। २३-२४ ।। एवं व ुपाद व म णां सा वसाधुताम् । ानां चैव बो म ानां च भा षतम् ।। २५ ।। राजन्! आप समझदार ह, अतः इसी कार वचार करके अपने म य क साधुता और असाधुताको समझ ली जये। कसने षत दयसे सलाह द है और कसने दोषशू य दयसे, इसे भी जान लेना चा हये ।। २५ ।। ोण उवाच व ते भावदोषेण यदथ मदमु यते । पा डवहेतो वं दोषमा यापय युत ।। २६ ।। ोणाचायने कहा—ओ ! तू य ऐसी बात कहता है, यह हम जानते ह। पा डव के लये तेरे दयम जो े ष सं चत है, उसीसे े रत होकर तू मेरी बात म दोष बता रहा है ।। २६ ।। हतं तु परमं कण वी म कुलवधनम् । अथ वं म यसे ं ू ह यत् परमं हतम् ।। २७ ।। कण! म अपनी समझसे कु कुलक वृ करनेवाली परम हतक बात कहता ँ। य द तू इसे दोषयु मानता है तो बता, या करनेसे कौरव का परम हत होगा? ।। २७ ।। अतोऽ यथा चेत् यते यद् वी म परं हतम् । कुरवो वै वनङ् य य त न चरेणैव मे म तः ।। २८ ।। म अ य त हतक बात बता रहा ँ। य द उसके वपरीत कुछ कया जायगा तो कौरव का शी ही नाश हो जायगा—ऐसा मेरा मत है ।। २८ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण व रागमनरा यल भपव ण ोणवा ये य धक शततमोऽ यायः ।। २०३ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत व रागमन-रा यल भपवम ोणवा य वषयक दो सौ तीसरा अ याय पूरा आ ।। २०३ ।।

चतुर धक शततमोऽ यायः व रजीक स म त— ोण और भी मके वचन का ही समथन व र उवाच राजन् नःसंशयं ेयो वा य वम स बा धवैः । न वशु ूषमाणे वै वा यं स त त त ।। १ ।। व रजी बोले—राजन्! आपके ( हतैषी) बा धव का यह कत है क वे आपको संदेहर हत हतक बात बताय। परंतु आप सुनना नह चाहते, इस लये आपके भीतर उनक कही ई हतक बात भी ठहर नह पा रही है ।। १ ।। यं हतं च तद् वा यमु वान् कु स मः । भी मः शांतनवो राजन् तगृ ा स त च ।। २ ।। तथा ोणेन ब धा भा षतं हतमु मम् । त च राधासुतः कण म यते न हतं तव ।। ३ ।। राजन्! कु े शंतनुन दन भी मने आपसे य और हतक बात कही है; परंतु आप उसे हण नह कर रहे ह। इसी कार आचाय ोणने अनेक कारसे आपके लये उ म हतक बात बतायी है; कतु राधान दन कण उसे आपके लये हतकर नह मानते ।। २-३ ।। च तयं न प या म राजं तव सु मम् । आ यां पु ष सहा यां यो वा यात् या धकः ।। ४ ।। महाराज! म ब त सोचने- वचारनेपर भी आपके कसी ऐसे परम सु द् को नह दे खता, जो इन दोन वीर महापु ष से बु या वचारश म अ धक हो ।। ४ ।। इमौ ह वृ ौ वयसा या च ुतेन च । समौ च व य राजे तथा पा डु सुतेषु च ।। ५ ।। राजे ! अव था, बु और शा ान—सभी बात म ये दोन बढ़े -चढ़े ह और आपम तथा पा डव म समानभाव रखते ह ।। ५ ।। धम चानवरौ राजन् स यतायां च भारत । रामाद् दाशरथे ैव गया चैव न संशयः ।। ६ ।। भरतवंशी नरेश! ये दोन धम और स यवा दताम दशरथन दन ीराम तथा राजा गयसे कम नह ह। मेरा यह कथन सवथा संशयर हत है ।। ६ ।। न चो व ताव ेयः पुर ताद प कचन । न चा यपकृतं क चदनयोल यते व य ।। ७ ।। उ ह ने आपके सामने भी (कभी) कोई ऐसी बात नह कही होगी, जो आपके लये अ न कारक स ई हो तथा इनके ारा आपका कुछ अपकार आ हो, ऐसा भी े



दे खनेम नह आता ।। ७ ।। तावुभौ पु ष ा ावनाग स नृपे व य । न म येतां व े यः कथं स यपरा मौ ।। ८ ।। महाराज! आपने भी इनका कोई अपराध नह कया है; फर ये दोन स यपरा मी पु ष सह आपको हतकारक सलाह न द, यह कैसे हो सकता है? ।। ८ ।। ाव तौ नर े ाव मँ लोके नरा धप । व म मतो नेमौ क च ज ं व द यतः ।। ९ ।। नरे र! ये दोन इस लोकम नर े और बु मान् ह, अतः आपके लये ये कोई कु टलतापूण बात नह कहगे ।। ९ ।। इ त मे नै क बु वतते कु न दन । न चाथहेतोधम ौ व यतः प सं तम् ।। १० ।। कु न दन! इनके वषयम मेरा यह न त वचार है क ये दोन धमके ाता महापु ष ह, अतः वाथके लये कसी एक ही प को लाभ प ँचाने-वाली बात नह कहगे ।। १० ।। एत परमं ेयो म येऽहं तव भारत । य धन भृतयः पु ा राजन् यथा तव ।। ११ ।। तथैव पा डवेया ते पु ा राजन् न संशयः । तेषु चेद हतं क च म येयुरत दः ।। १२ ।। म ण ते न च ेयः प य त वशेषतः । अथ ते दये राजन् वशेषः वेषु वतते । अ तर थं ववृ वानाः ेयः कुयुन ते ुवम् ।। १३ ।। भारत! इ ह ने जो स म त द है, इसीको म आपके लये परम क याणकारक मानता ँ। महाराज! जैसे य धन आ द आपके पु ह, वैसे ही पा डव भी आपके पु ह—इसम संशय नह है। इस बातको न जाननेवाले कुछ म ी य द आपको पा डव के अ हतक सलाह द तो यह कहना पड़ेगा क वे म ीलोग, आपका क याण कस बातम है, यह वशेष पम नह दे ख पा रहे ह। राजन्! य द आपके दयम अपने पु पर वशेष प पात है तो आपके भीतरके छपे ए भावको बाहर सबके सामने कट करनेवाले लोग न य ही आपका भला नह कर सकते ।। ११—१३ ।। एतदथ ममौ राजन् महा मानौ महा ुती । नोचतु ववृतं क च ेष तव न यः ।। १४ ।। महाराज! इसी लये ये दोन महातेज वी महा मा आपके सामने कुछ खोलकर नह कह सके ह। इ ह ने आपको ठ क ही सलाह द है; परंतु आप उसे न त पसे वीकार नह करते ह ।। १४ ।। य चा यश यतां तेषामाहतुः पु षषभौ । तत् तथा पु ष ा तव तद् भ म तु ते ।। १५ ।। इन पु ष शरोम णय ने जो पा डव के अजेय होनेक बात बतायी है, वह बलकुल ठ क है। पु ष सह! आपका क याण हो ।। १५ ।। ी ी

कथं ह पा डवः ीमान् स साची धनंजयः । श यो वजेतुं सं ामे राजन् मघवता प ह ।। १६ ।। राजन्! दाय-बाय दोन हाथ से बाण चलानेवाले ीमान् पा डु कुमार धनंजयको सा ात् इ भी यु म कैसे जीत सकते ह? ।। १६ ।। भीमसेनो महाबा नागायुतबलो महान् । कथं म यु ध श येत वजेतुममरैर प ।। १७ ।। दस हजार हा थय के समान महान् बलवान् महाबा भीमसेनको यु म दे वता भी कैसे जीत सकते ह? ।। १७ ।। तथैव कृ तनौ यु े यमौ यमसुता वव । कथं वजेतुं श यौ तौ रणे जी वतु म छता ।। १८ ।। इसी कार जो जी वत रहना चाहता है, उसके ारा यु म नपुण तथा यमराजके पु क भाँ त भयंकर दोन भाई नकुल-सहदे व कैसे जीते जा सकते ह? ।। १८ ।। य मन् धृ तरनु ोशः मा स यं परा मः । न या न पा डवे ये े स जीयेत रणे कथम् ।। १९ ।। जन ये पा डव यु ध रम धैय, दया, मा, स य और परा म आ द गुण न य नवास करते ह, उ ह रणभू मम कैसे हराया जा सकता है? ।। १९ ।। येषां प धरो रामो येषां म ी जनादनः । क नु तैर जतं सं ये येषां प े च सा य कः ।। २० ।। बलरामजी जनके प पाती ह, भगवान् ीकृ ण जनके सलाहकार ह तथा जनके प म सा य क-जैसा वीर है, वे पा डव यु म कसे नह परा त कर दगे? ।। २० ।। पदः शुरो येषां येषां याला पाषताः । धृ ु नमुखा वीरा ातरो पदा मजाः ।। २१ ।। सोऽश यतां च व ाय तेषाम े च भारत । दाया तां च धमण स यक् तेषु समाचर ।। २२ ।। पद जनके शुर ह और उनके पु पृषतवंशी धृ ु न आ द वीर ाता जनके साले ह, भारत! ऐसे पा डव को रणभू मम जीतना अस भव है। इस बातको जानकर तथा पहले उनके पताका रा य होनेके कारण वे ही धमपूवक इस रा यके उ रा धकारी ह, इस बातक ओर यान दे कर आप उनके साथ उ म बताव क जये ।। २१-२२ ।। इदं न द मयशः पुरोचनकृतं महत् । तेषामनु हेणा राजन् ालया मनः ।। २३ ।। राजन्! पुरोचनके हाथ जो कुछ कराया गया, उससे आपका ब त बड़ा अपयश सब ओर फैल गया है। अपने उस कलंकको आज आप पा डव पर अनु ह करके धो डा लये ।। २३ ।। तेषामनु ह ायं सवषां चैव नः कुले । जी वतं च परं ेयः य च ववधनम् ।। २४ ।। े



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पा डव पर कया आ यह अनु ह हमारे कुलके सभी लोग के जीवनका र क, परम हतकारक और स पूण य जा तका अ युदय करनेवाला होगा ।। २४ ।। पदोऽ प महान् राजा कृतवैर नः पुरा । त य सं हणं राजन् वप य ववधनम् ।। २५ ।। राजन्! पद भी ब त बड़े राजा ह और पहले हमारे साथ उनका वैर भी हो चुका है। अतः म के पम उनका सं ह हमारे अपने प क वृ का कारण होगा ।। २५ ।। बलव त दाशाहा बहव वशा पते । यतः कृ ण ततः सव यतः कृ ण ततो जयः ।। २६ ।। पृ वीपते! य वं शय क सं या ब त है और वे बलवान् भी ह। जस ओर ीकृ ण रहगे, उधर ही वे सभी रहगे। इस लये जस प म ीकृ ण ह गे, उस प क वजय अव य होगी ।। २६ ।। य च सा नैव श येत काय साध यतुं नृप । को दै वश त तत् काय व हेण समाचरेत् ।। २७ ।। महाराज! जो काय शा तपूवक समझाने-बुझानेसे ही स हो जा सकता है, उसीको कौन दै वका मारा आ मनु य यु के ारा स करेगा ।। २७ ।। ु वा च जीवतः पाथान् पौरजानपदा जनाः । बलवद् दशने ा तेषां राजन् यं कु ।। २८ ।। कु तीके पु को जी वत सुनकर नगर और जनपदके सभी लोग उ ह दे खनेके लये अ य त उ सुक हो रहे ह। राजन्! उन सबका य क जये ।। २८ ।। य धन कण शकु न ा प सौबलः । अधमयु ा ा बाला मैषां वचः कृथाः ।। २९ ।। य धन, कण और सुबलपु शकु न—ये अधमपरायण, खोट बु वाले और मूख ह; अतः इनका कहना न मा नये ।। २९ ।। उ मेतत् पुरा राजन् मया गुणवत तव । य धनापराधेन जेयं वै वनङ् य त ।। ३० ।। भूपाल! आप गुणवान् ह। आपसे तो मने पहले ही यह कह दया था क य धनके अपराधसे न य ही यह सम त जा न हो जायगी ।। ३० ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण व रागमनरा यल भपव ण व रवा ये चतुर धक शततमोऽ यायः ।। २०४ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत व रागमन-रा यल भपवम व रवा य वषयक दो सौ चौथा अ याय पूरा आ ।। २०४ ।।

प चा धक शततमोऽ यायः धृतरा क आ ासे व रका पदके यहाँ जाना और पा डव को ह तनापुर भेजनेका ताव करना धृतरा उवाच भी मः शांतनवो व ान् ोण भगवानृ षः । हतं च परमं वा यं वं च स यं वी ष माम् ।। १ ।। धृतरा बोले— व र! शंतनुन दन भी म ानी ह और भगवान् ोणाचाय तो ऋ ष ही ठहरे। अतः इनका वचन परम हतकारक है। तुम भी मुझसे जो कुछ कहते हो, वह स य ही है ।। १ ।। यथैव पा डो ते वीराः कु तीपु ा महारथाः । तथैव धमतः सव मम पु ा न संशयः ।। २ ।। कु तीके वीर महारथी पु जैसे पा डु के लड़के ह, उसी कार धमक से वे सब मेरे भी पु ह—इसम संशय नह है ।। २ ।। यथैव मम पु ाणा मदं रा यं वधीयते । तथैव पा डु पु ाणा मदं रा यं न संशयः ।। ३ ।। जैसे मेरे पु का यह रा य कहा जाता है, उसी कार पा डु पु का भी यह रा य है— इसम भी संशय नह है ।। ३ ।। रानय ग छै तान् सह मा ा सुस कृतान् । तया च दे व प या कृ णया सह भारत ।। ४ ।। भरतवंशी व र! अब तु ह जाओ और उनक माता कु ती तथा उस दे व पणी वधू कृ णाके साथ इन पा डव को स कारपूवक ले आओ ।। ४ ।। द या जीव त ते पाथा द या जीव त सा पृथा । द या पदक यां च लधव तो महारथाः ।। ५ ।। सौभा यक बात है क वे कु तीपु जी वत ह। सौभा यसे ही कु ती भी जी वत है और यह भी बड़े सौभा यक बात है क उन महार थय ने पदक याको ा त कर लया ।। ५ ।। द या वधामहे सव द या शा तः पुरोचनः । द या मम परं ःखमपनीतं महा ुते ।। ६ ।। महा ुते! सौभा यसे हम सबक वृ हो रही है। भा यक बात है क पापी पुरोचन शा त हो गया और सौभा यसे ही मेरा महान् ःख मट गया ।। ६ ।। वैश पायन उवाच ततो जगाम व रो धृतरा य शासनात् । सकाशं य सेन य पा डवानां च भारत ।। ७ ।।

समुपादाय र ना न वसू न व वधा न च । ौप ाः पा डवानां च य सेन य चैव ह ।। ८ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर धृतराक आ ासे व रजी ौपद , पा डव तथा महाराज य सेनके लये नाना कारके धन-र न क भट लेकर राजा पद और पा डव के समीप गये ।। ७-८ ।। त ग वा स धम ः सवशा वशारदः । पदं यायतो राजन् संयु मुपत थवान् ।। ९ ।। राजन्! वहाँ प ँचकर स पूण शा के व ान् एवं धम व र यायके अनुसार बड़ेछोटे के मसे पद और अ य लोग के साथ दयसे लगकर नम कार आ दपूवक मले ।। ९ ।। स चा प तज ाह धमण व रं ततः । च तु यथा यायं कुशल सं वदम् ।। १० ।। राजा पदने भी धमके अनुसार व रजीका आदर-स कार कया। फर वे दोन यथो चत री तसे एक- सरेके कुशल-समाचार पूछने और कहने लगे ।। १० ।। ददश पा डवां त वासुदेवं च भारत । नेहात् प र व य स तान् प छानामयं ततः ।। ११ ।। भारत! व रजीने वहाँ पा डव तथा वसुदेवन दन भगवान् ीकृ णको भी दे खा और नेहपूवक उ ह दयसे लगाकर उन सबक कुशल पूछ ।। ११ ।। तै ा य मतबु ः स पू जतो ह यथा मम् । वचनाद् धृतरा य नेहयु ं पुनः पुनः ।। १२ ।। प छानामयं राजं तत तान् पा डु न दनान् । ददौ चा प र ना न व वधा न वसू न च ।। १३ ।। पा डवानां च कु या ौप ा वशा पते । पद य च पु ाणां यथा द ा न कौरवैः ।। १४ ।। उ ह ने भी अ मत-बु मान् व रजीका मशः आदर-स कार कया। तदन तर व रजीने राजा धृतराक आ ाके अनुसार बारंबार नेहपूवक यु ध र आ द पा डु पु से कुशल-मंगल एवं वा य वषयक कया। जनमेजय! फर व रजीने कौरव क ओरसे जैसे दये गये थे, उसीके अनुसार पा डव , कु ती, ौपद तथा पदके पु के लये नाना कारके र न और धन भट कये ।। १२—१४ ।। ोवाच चा मतम तः तं वनया वतः । पदं पा डु पु ाणां सं नधौ केशव य च ।। १५ ।। अगाध बु वाले व रजी पा डव तथा भगवान् ीकृ णके समीप वनीतभावसे नतापूवक बोले— ।। १५ ।। व र उवाच राज छृ णु सहामा यः सपु वचो मम ।

धृतरा ः सपु वां सहामा यः सबा धवः ।। १६ ।। अ वीत् कुशलं राजन् ीयमाणः पुनः पुनः । ी तमां ते ढं चा प स ब धेन नरा धप ।। १७ ।। व रने कहा—राजन्! आप अपने म य और पु के साथ मेरी बात सुन। महाराज धृतराने अपने पु , म ी और ब धु के साथ अ य त स होकर बारंबार आपक कुशल पूछ है। महाराज! आपके साथ यह जो स ब ध आ है, इससे उनको बड़ी स ता ई है ।। १६-१७ ।।

तथा भी मः शांतनवः कौरवैः सह सवशः । कुशलं वां महा ा ः सवतः प रपृ छ त ।। १८ ।। इसी कार शंतनुन दन महा ा भी मजी भी सम त कौरव के साथ सब तरहसे आपक कुशल पूछते ह ।। १८ ।। भार ाजो महा ा ो ोणः यसख तव । समा ेषमुपे य वां कुशलं प रपृ छ त ।। १९ ।। आपके य म महाबु मान् भर ाजन दन ोणाचाय भी (मन-ही-मन) आपको दयसे लगाकर कुशल पूछ रहे ह ।। १९ ।। धृतरा पा चा य वया स ब धमी यवान् । कृताथ म यतेऽऽ मानं तथा सवऽ प कौरवाः ।। २० ।। पांचालनरेश! राजा धृतरा आपके स ब धी होकर अपने-आपको कृताथ मानते ह। यही दशा सम त कौरव क है ।। २० ।। े





न तथा रा यस ा त तेषां ी तकरी मता । यथा स ब धकं ा य य सेन वया सह ।। २१ ।। य सेन! उ ह रा यक ा त भी उतनी स ता दे नेवाली नह जान पड़ी, जतनी स ता आपके साथ स ब धका सौभा य पाकर ई है ।। २१ ।। एतद् व द वा तु भवान् थापयतु पा डवान् । ु ं ह पा डु पु ां वर त कुरवो भृशम् ।। २२ ।। यह जानकर आप पा डव को ह तनापुर भेज द। सम त कु वंशी पा डव को दे खने और मलनेके लये अ य त उतावले हो रहे ह ।। २२ ।। व ो षता द घकालमेते चा प नरषभाः । उ सुका नगरं ु ं भ व य त तथा पृथा ।। २३ ।। द घकालसे ये परदे शम रह रहे ह, अतः नर े पा डव तथा कु ती—सभी लोग अपना नगर दे खनेके लये उ सुक हो रहे ह गे ।। २३ ।। कृ णाम प च पा चाल सवाः कु वर यः । ु कामाः ती ते पुरं च वषया नः ।। २४ ।। कौरवकुलक सभी े याँ, हमारे ह तनापुर नगर तथा राक े सभी लोग पांचालराजकुमारी कृ णाको दे खनेक इ छा रखकर उसके शुभागमनक ती ा कर रहे ह ।। २४ ।। स भवान् पा डु पु ाणामा ापयतु मा चरम् । गमनं सहदाराणामेतद मतं मम ।। २५ ।। अतः आप प नीस हत पा डव को ह तनापुर चलनेके लये शी आ ा द जये। इस वषयम मेरी स म त यही है ।। २५ ।। नसृ ेषु वया राजन् पा डवेषु महा मसु । ततोऽहं ेष य या म धृतरा य शी गान् । आग म य त कौ तेयाः कु ती च सह कृ णया ।। २६ ।। राजन्! जब आप महामना पा डव को जानेक आ ा दे दगे, तब म यहाँसे राजा धृतराक े पास शी गामी त भेजूँगा और यह संदेश कहला ँ गा क कु ती तथा कृ णाके साथ सम त पा डव ह तनापुरम आयगे ।। २६ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण व रागमनरा यल भपव ण व र पदसंवादे प चा धक शततमोऽ यायः ।। २०५ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत व रागमनरा यल भपवम व रपदसंवाद वषयक दो सौ पाँचवाँ अ याय पूरा आ ।। २०५ ।।

षड धक शततमोऽ यायः पा डव का ह तनापुरम आना और आधा रा य पाकर इ थ नगरका नमाण करना एवं भगवान् ीकृ ण और बलरामजीका ारकाके लये थान पद उवाच एवमेत महा ा यथाऽऽ थ व रा माम् । ममा प परमो हषः स ब धेऽ मन् कृते भो ।। १ ।। पद बोले—महा ा व रजी! आज आपने जो कुछ मुझसे कहा है, सब ठ क है। भो! (कौरव के साथ) यह स ब ध हो जानेसे मुझे भी महान् हष आ है ।। १ ।। गमनं चा प यु ं याद् ढमेषां महा मनाम् । न तु ताव मया यु मेतद् व ुं वयं गरा ।। २ ।। यदा तु म यते वीरः कु तीपु ो यु ध रः । भीमसेनाजुनौ चैव यमौ च पु षषभौ ।। ३ ।। रामकृ णौ च धम ौ तदा ग छ तु पा डवाः । एतौ ह पु ष ा ावेषां य हते रतौ ।। ४ ।। महा मा पा डव का अपने नगरम जाना भी अ य त उ चत ही है। तथा प मेरे लये अपने मुखसे इ ह जानेके लये कहना उ चत नह है। य द कु तीकुमार वीरवर यु ध र, भीमसेन, अजुन और नर े नकुल-सहदे व जाना उ चत समझ तथा धम बलराम और ीकृ ण पा डव का वहाँ जाना उ चत समझते ह तो ये अव य वहाँ जायँ; य क ये दोन पु ष सह सदा इनके य और हतम लगे रहते ह ।। २—४ ।। यु ध र उवाच परव तो वयं राजं व य सव सहानुगाः । यथा व य स नः ी या तत् क र यामहे वयम् ।। ५ ।। यु ध रने कहा—राजन्! हम सब लोग अपने सेवक स हत सदा आपके अधीन ह। आप वयं स तापूवक हमसे जैसा कहगे, वही हम करगे ।। ५ ।। वैश पायन उवाच ततोऽ वीद् वासुदेवो गमनं रोचते मम । यथा वा म यते राजा पदः सवधम वत् ।। ६ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तब वसुदेवन दन भगवान् ीकृ णने कहा —‘मुझे तो इनका जाना ही ठ क जान पड़ता है अथवा सब धम के ाता महाराज पद जैसा उ चत समझ, वैसा कया जाय’ ।। ६ ।।

पद उवाच यथैव म यते वीरो दाशाहः पु षो मः । ा तकालं महाबा ः सा बु न ता मम ।। ७ ।। यथैव ह महाभागाः कौ तेया मम सा तम् । तथैव वासुदेव य पा डु पु ा न संशयः ।। ८ ।। पद बोले—दशाहकुलके र न वीरवर पु षो म महाबा ीकृ ण इस समय जो कत उ चत समझते ह , न य ही मेरी भी वही स म त है। महाभाग कु तीपु इस समय मेरे लये जैसे अपने ह, उसी कार इन भगवान् वासुदेवके लये भी सम त पा डव उतने ही य एवं आ मीय ह—इसम संशय नह है ।। ७-८ ।। न तद् याय त कौ तेयः पा डु पु ो यु ध रः । यथैषां पु ष ा ः ेयो याय त केशवः ।। ९ ।। पु षो म केशव जस कार इन पा डव के ेय (अ य त हत)-का यान रखते ह, उतना यान कु तीन दन पा डु पु यु ध र भी नह रखते ।। ९ ।। (वैश पायन उवाच पृथाया तु तथा वे म ववेश महा ु तः । पादौ पृ ् वा पृथाया तु शरसा च मह गतः । ् वा तु दे वरं कु ती शुशोच च मु मु ः ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! उसी कार महातेज वी व र कु तीके भवनम गये। वहाँ उ ह ने धरतीपर माथा टे ककर उनके चरण म णाम कया। व रको आया दे ख कु ती बार-बार शोक करने लगी। कु युवाच वै च वीय ते पु ाः कथं च जी वता वया । व सादा जतुगृहे ाताः यागता तव ।। कूम तयते पु ान् य वा त वा गतान् । च तया वधयेत् पु ान् यथा कुश लन तथा ।। तव पु ा तु जीव त वं ाता भरतषभ । यथा परभृतः पु ान र ा वधयेत् सदा । तथैव तव पु ा तु मया तात सुर ताः ।। ःखा तु बहवः ा ता तथा ाणा तका मया । अतः परं न जाना म कत ं ातुमह स ।। कु ती बोली— व रजी! आपके पु पा डव कसी कार आपके ही कृपा सादसे जी वत ह। ला ागृहम आपने इन सबके ाण बचाये ह और अब यह पुनः आपके समीप जीते-जागते लौट आये ह। कछु आ अपने पु का, वे कह भी य न हो, मनसे च तन करता रहता है। इस च तासे ही अपने पु का वह पालन-पोषण एवं संवधन करता है। ी े

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उसीके अनुसार जैसे वे सकुशल जी वत रहते ह, वैसे ही आपके पु पा डव (आपक ही मंगल-कामनासे) जी रहे ह! भरत े ! आप ही इनके र क ह। तात! जैसे कोयलके पु का पालन-पोषण सदा कौएक माता करती है, उसी कार आपके पु क र ा मने क है। अबतक मने ब त-से ाणा तक क उठाये ह; इसके बाद मेरा या कत है, यह म नह जानती। यह सब आप ही जान! वैश पायन उवाच इ येवमु ा ःखाता शुशोच परमातुरा । णप या वीत् ा मा शोच इ त भारत ।। वैश पायनजी कहते ह—य कहकर ःखसे पी ड़त ई कु ती अ य त आतुर होकर शोक करने लगी। उस समय व रने उ ह णाम करके कहा, तुम शोक न करो। व र उवाच न वन य त लोकेषु तव पु ा महाबलाः । न चरेणैव कालेन वरा य था भव त ते । बा धवैः स हताः सवमा शोकं कु माध व ।।) व र बोले—य कुलन दनी! तु हारे महाबली पु संसारम ( सर के सतानेसे) न नह हो सकते। अब वे थोड़े ही दन म सम त ब धु के साथ अपने रा यपर अ धकार करनेवाले ह। अतः तुम शोक मत करो।

वैश पायन उवाच तत ते समनु ाता पदे न महा मना । पा डवा ैव कृ ण व र महीपते ।। १० ।। आदाय ौपद कृ णां कु त चैव यश वनीम् । स वहारं सुखं ज मुनगरं नागसा यम् ।। ११ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! तदन तर महा मा पदक आ ा पाकर पा डव, ीकृ ण और व र पद-कुमारी कृ णा और यश वनी कु तीको साथ ले आमोद- मोद करते ए ह तनापुरक ओर चले ।। १०-११ ।। (सुवणक या ैवेयान् सुवणाङ ् कुशभू षतान् । जा बूनदप र कारान् भ करटामुखान् ।। अ ध तान् महामा ैः सवश सम वतान् । सह ं ददौ राजा गजानां वरव णनाम् ।। रथानां च सह ं वै सुवणम ण च तम् । चतुयुजां भानुम च प चानां ददौ तदा ।। सुवणप रबहाणां वरचामरमा लनाम् । जा य ानां च प चाश सह ं ददौ नृपः ।। दासीनामयुतं राजा ददौ वरभूषणम् । ौ

ततः सह ं दासानां ददौ वरध वनाम् ।। हैमा न श यासनभाजना न ा ण चा या न च गोधना न । पृथक् पृथक् चैव ददौ स कोट पा चालराजः परम ः ।। श बकानां शतं पूण वाहान् प चशतं नरान् । एवमेता न पा चालो क याथ ददौ धनम् ।। हरणं चा प पा चा या ा तदे यं तु सौम कः । धृ ु नो ययौ त भ गन गृ भारत ।। नान माने ब भ तूयश दै ः सह शः ।।) उस समय राजा पदने उ ह एक हजार सु दर हाथी दान कये, जनक पीठ पर सोनेके हौदे कसे ए थे और गलेम सोनेके आभूषण शोभा पा रहे थे। उनके अंकुश भी सोनेके ही थे। जा बूनद नामक सुवणसे उन सबको सजाया गया था। उनके ग ड थलसे मदक धारा बह रही थी। बड़े-बड़े महावत उन सबका संचालन करते थे। वे सभी गजराज स पूण अ -श से स प थे। राजाने पाँच पा डव के लये चार घोड़ से जुते ए एक हजार रथ दये, जो सुवण और म णय से वभू षत होनेके कारण व च शोभा धारण करते थे और सब ओर अपनी भा बखेर रहे थे। इतना ही नह , राजाने अ छ जा तके पचास हजार घोड़े भी दये, जो सुनहरे साज-बाजसे सुस जत और सु दर चँवर तथा माला से अलंकृत थे। इनके सवा सु दर आभूषण से वभू षत दस हजार दा सयाँ भी द। साथ ही उ म धनुष धारण करनेवाले एक हजार दास पा डव को भट कये। ब त-सी शयाए ,ँ आसन और पा भी दये जो सब-के-सब सुवणके बने ए थे। सरे- सरे और गोधन भी सम पत कये। इन सबक पृथक्-पृथक् सं या एक-एक करोड़ थी। इस कार पांचालराज पदने बड़े हष और उ लासके साथ पा डव को उपयु व तुएँ अ पत क। सौ पाल कयाँ और उनको ढोनेवाले पाँच सौ कहार दये। इस कार पांचालराजने अपनी क याके लये ये सभी व तुएँ तथा ब त-सा धन दहेजम दया। जनमेजय! धृ ु न वयं अपनी ब हनका हाथ पकड़कर सवारीपर बैठानेके लये ले गये। उस समय सह कारके बाजे एक साथ बज उठे । ु वा चा यागतान् वीरान् धृतरा ो जने रः । त हाय पा डू नां ेषयामास कौरवान् ।। १२ ।। राजा धृतराने पा डववीर का आगमन सुनकर उनक अगवानीके लये कौरव को भेजा ।। १२ ।। वकण च महे वासं च सेनं च भारत । ोणं च परमे वासं गौतमं कृपमेव च ।। १३ ।। भारत! वकण, महान् धनुधर च सेन, वशाल धनुषवाले ोणाचाय, गौतमवंशी कृपाचाय आ द भेजे गये थे ।। १३ ।। तै ते प रवृता वीराः शोभमाना महाबलाः । ै

नगरं हा तनपुरं शनैः व वशु तदा ।। १४ ।। (पा डवानागता छ वा नागरा तु कुतूहलात् । म डया च रे त नगरं नागसा यम् ।। मु पु पावक ण त जल स ं तु सवशः । धू पतं द धूपेन म डनै ा प संवृतम् ।। पताको तमा यं च पुरम तमं बभौ ।। शङ् खभेरी ननादै नानावा द नः वनैः ।) कौतूहलेन नगरं द यमान मवाभवत् । त ते पु ष ा ाः शोक ःख वनाशनाः ।। १५ ।। तत उ चावचा वाचः पौरैः य चक षु भः । उद रता अशृ वं ते पा डवा दयंगमाः ।। १६ ।। इन सबसे घरे ए शोभाशाली महाबली वीर पा डव ने तब धीरे-धीरे ह तनापुर नगरम वेश कया। पा डव का आगमन सुनकर नाग रक ने कौतूहलवश ह तनापुर नगरको (अ छ तरहसे) सजा रखा था। सड़क पर सब ओर फूल बखेरे गये थे, जलका छड़काव कया गया था, सारा नगर द धूपक सुग धसे महँ-महँ कर रहा था और भाँ त-भाँ तक साधन-साम य से सजाया गया था। पताकाएँ फहराती थ और ऊँचे गृह म पु पहार सुशो भत होते थे। शंख, भेरी तथा नाना कारके वा क व नसे वह अनुपम नगर बड़ी शोभा पा रहा था। उस समय कौतूहलवश सारा नगर दे द यमान-सा हो उठा। पु ष सह पा डव जाजन के शोक और ःखका नवारण करनेवाले थे; अतः वहाँ उनका य करनेक इ छावाले पुरवा सय ारा कही ई भ - भ कारक दयप शनी बात सुनायी पड़ — ।। १४—१६ ।। अयं स पु ष ा ः पुनराया त धम वत् । यो नः वा नव दायादान् धमण प रर त ।। १७ ।। (पुरवासी कह रहे थे—) ‘ये ही वे नर े धम यु ध र पुनः यहाँ पधार रहे ह, जो धमपूवक अपने पु क भाँ त हमलोग क र ा करते थे ।। १७ ।। अ पा डु महाराजो वना दव जन यः । आगतः यम माकं चक षुना संशयः ।। १८ ।। इनके आनेसे नःसंदेह ऐसा जान पड़ता है, आज जाजन के य महाराज पा डु ही मानो हमारा य करनेके लये वनसे चले आये ह ।। १८ ।। क नु ना कृतं तात सवषां नः परं यम् । य ः कु तीसुता वीरा नगरं पुनरागताः ।। १९ ।। तात! कु तीके वीर पु य द पुनः इस नगरम चले आये तो आज हम सब लोग का कौन-सा परम य काय नह स प हो गया ।। १९ ।। य द द ं य द तं व ते य द न तपः । तेन त तु नगरे पा डवाः शरदां शतम् ।। २० ।। े











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य द हमने दान और होम कया है, य द हमारी तप या शेष है तो उन सबके पु यसे ये पा डव सौ वषतक इसी नगरम नवास कर’ ।। २० ।। तत ते धृतरा य भी म य च महा मनः । अ येषां च तदहाणां च ु ः पादा भव दनम् ।। २१ ।। इतनेम ही पा डव ने धृतरा, महा मा भी म तथा अ य व दनीय पु ष के पास जाकर उन सबके चरण म णाम कया ।। २१ ।। कृ वा तु कुशल ं सवण नगरेण च । य वश ताथ वे मा न धृतरा य शासनात् ।। २२ ।। फर सम त नगरवा सय से कुशल करके वे राजा धृतराक आ ासे राजमहल म गये ।। २२ ।। ( य धन य म हषी का शराजसुता तदा । धृतरा य पु ाणां बधू भः स हता तदा ।। पा चाल तज ाह ौपद ी मवापराम् । पूजयामास पूजाहा शचीदे वी मवागताम् ।। वव दे त गा धार माधवी कृ णया सह । आ शष यु वा तु पा चाल प रष वजे ।। प र व य च गा धारी कृ णां कमललोचनाम् । पु ाणां मम पा चाली मृ युरेवे यम यत । सा च य व रं ाह यु तः सुबला मजा ।। उस समय य धनक रानीने, जो का शराजक पु ी थी, धृतरापु क अ य वधु के साथ आकर तीय ल मीके समान सु दरी पंचालराजकुमारी ौपद क अगवानी क । ौपद सवथा पूजाके यो य थी। उसे दे खकर ऐसा तीत होता था मानो सा ात् शचीदे वीने पदापण कया हो। य धन-प नीने उसका भलीभाँ त स कार कया। वहाँ प ँचकर कु तीने अपनी ब रानी ौपद के साथ गा धारीको णाम कया। गा धारीने आशीवाद दे कर ौपद को दयसे लगा लया। कमलस श ने वाली कृ णाको दयसे लगाकर गा धारी सोचने लगी क यह पा चाली तो मेरे पु क मृ यु ही है। यह सोचकर सुबलपु ी गा धारीने यु से व रको बुलाकर कहा— गा धायुवाच कु त राजसुतां ः सवधूं सप र छदाम् । पा डो नवेशनं शी ं नीयतां य द रोचते ।। करणेन मुतन न ेण शुभे तथौ । यथासुखं तथा कु ती रं यते वगृहे सुतैः ।। फर गा धारीने कहा— व र! य द तु ह जँचे तो राजकुमारी कु तीको पु वधूस हत शी ही पा डु के महलम ले जाओ और वह इनका सारा सामान भी प ँचा दो। उ म औ









करण, मु त और न स हत शुभ त थको उस महलम इ ह वेश करना चा हये, जससे कु तीदे वी अपने घरम पु के साथ सुखपूवक रह सक।

वैश पायन उवाच तथे येव तदा ा कारयामास त दा ।। पूजयामासुर यथ बा धवाः पा डवां तदा । नागराः े णमु या पूजय त म पा डवान् ।। भी मो ोण तथा कण बा कः ससुत तदा । शासनाद् धृतरा य अकुव त थ याम् ।। एवं वहरतां तेषां पा डवानां महा मनाम् । नेता सव य काय य व रो राजशासनात् ।।) वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! ‘ब त अ छा’ कहकर उसी समय व रने वैसी ही व था क । सभी ब धु-बा धव ने पा डव का उस समय अ य त आदर-स कार कया। मुख नाग रक तथा सेठ ने भी पा डव का पूजन कया। भी म, ोण, कण तथा पु स हत बा कने धृतराक े आदे शसे पा डव का आ त य-स कार कया। इस कार ह तनापुरम वहार करनेवाले महा मा पा डव के सभी काय म व रजी ही नेता थे। उ ह इसके लये राजाक ओरसे आदे श ा त आ था। व ा ता ते महा मानः कं चत् कालं महाबलाः । आता धृतरा ेण रा ा शांतनवेन च ।। २३ ।। कुछ कालतक व ाम कर लेनेपर उन महाबली महा मा पा डव को राजा धृतरा तथा भी मजीने बुलाया ।। २३ ।। धृतरा उवाच ातृ भः सह कौ तेय नबोध गदतो मम । (पा ड ु ना व धतं रा यं पा डु ना पा लतं जगत् ।। शासना मम कौ तेय मम ाता महाबलः । कृतवान् करं कम न यमेव वशा पते ।। त मात् वम प कौ तेय शासनं कु मा चरम् ।। मम पु ा रा मानो दपाहंकारसंयुताः । शासनं न क र य त मम न यं यु ध र ।। वकाय नरतै न यमव ल तै रा म भः ।) पुनव व हो मा भूत् खा डव थमा वश ।। २४ ।। धृतरा बोले—कु तीन दन यु ध र! म जो कुछ कह रहा ँ, उसे अपने भाइय स हत यान दे कर सुनो। कु तीन दन! मेरी आ ासे पा डु ने इस रा यको बढ़ाया और पा डु ने ही जगत्का पालन कया। मेरे भाई पा डु बड़े बलवान् थे। राजन्! मेरे कहनेसे सदा ही कर काय कया करते थे। कु तीकुमार! तुम भी यथास भव शी मेरी आ ाका पालन करो, वल ब न करो। मेरे रा मा पु दप और अहंकारसे भरे ए ह। यु ध र! वे सदा मेरी े े े ी े

आ ाका पालन नह करगे। अपने वाथसाधनम लगे ए उन बला भमानी रा मा के साथ तु हारा फर कोई झगड़ा न खड़ा हो जाय, इस लये तुम खा डव थम नवास करो ।। २४ ।।

न च वो वसत त क छ ः बा धतुम् । संर यमाणान् पाथन दशा नव व णा ।। २५ ।। अध रा य य स ा य खा डव थमा वश । वहाँ रहते समय कोई तु ह बाधा नह दे सकता; य क जैसे वधारी इ दे वता क र ा करते ह, उसी कार कु तीन दन अजुन वहाँ तुमलोग क भलीभाँ त र ा करगे। तुम आधा रा य लेकर खा डव थम चलकर रहो ।। २५ ।। (धृतरा उवाच अ भषेक य स भारान् रानय मा चरम् । अ भ ष ं क र या म अ वै कु न दनम् ।। ा णा नैगम े ाः ेणीमु या सवशः । आय तां कृतयो बा धवा वशेषतः ।। पु याहं वा यतां तात गोसह ं तु द यताम् । ाममु या व े यो द य तां सहद णाः ।। अ दे मुकुटं ः ह ताभरणमानय ।। मु ावली हारं च न काद न् कु डला न च । क टब ध सू ं च तथोदर नब धनम् ।। ो

अ ो रसह ं तु ा णा ध ता गजाः । जा वीस ललं शी मानय तु पुरो हतैः ।। अ भषेकोदक ल ं सवाभरणभू षतम् । औपवा ोप रगतं द चामरवी जतम् ।। सुवणम ण च ेण ेत छ ेण शो भतम् । जये त जवा येन तूयमानं नृपै तथा ।। वा क ु तीसुतं ये माजमीढं यु ध रम् । ीताः ीतेन मनसा शंस तु पुरे जनाः ।। पा डोः कृतोपकार य रा यं द वा ममैव च । त याकृत मदं भ व य त न संशयः ।। ( फर) धृतरा ने ( व रसे) कहा— व र! तुम रा या भषेकक साम ी लाओ, इसम वल ब नह होना चा हये। म आज ही कु कुलन दन यु ध रका अ भषेक क ँ गा। वेदवे ा व ान म े ा ण, नगरके सभी मुख ापारी, जावगके लोग और वशेषतः ब धु-बा धव बुलाये जायँ। तात! पु याहवाचन कराओ और ा ण को द णाके साथ एक सह गौएँ तथा मु य-मु य ाम दो। व र! दो भुजबंद, एक सु दर मुकुट तथा हाथके आभूषण मँगा । मोतीक कई मालाएँ, हार, पदक, कु डल, करधनी, क टसू तथा उदरब ध भी ले आओ। एक हजार आठ हाथी मँगाओ, जनपर ा ण सवार ह । पुरो हत के साथ जाकर वे हाथी शी गंगाजीका जल ले आय। यु ध र अ भषेकके जलसे भीगे ह , सम त आभूषण से उ ह वभू षत कया गया हो, वे राजाक सवारीके यो य गजराजपर बैठे ह , उनपर द चँवर ढु ल रहे ह और उनके म तकके ऊपर सुवण और म णय से व च शोभा धारण करनेवाला ेत छ सुशो भत हो, ा ण ारा क ई जयजयकारके साथ ब त-से नरेश उनक तु त करते ह । इस कार कु तीके ये पु अजमीढकुल तलक यु ध रका स मनसे दशन करके स ए पुरवासीजन इनक भू र-भू र शंसा कर। राजा पा डु ने मुझे ही अपना रा य दे कर जो उपकार कया था, उसका बदला इसीसे पूण होगा क यु ध रका रा या भषेक कर दया जाय; इसम संशय नह है। वैश पायन उवाच भी मो ोणः कृपः ा साधु सा व यभाषत । वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! यह सुनकर भी म, ोण, कृप तथा व रने कहा —‘ब त अ छा! ब त अ छा!’

ीवासुदेव उवाच यु मेत महाराज कौरवाणां यश करम् । शी म ैव राजे यथो ं कतुमह स ।। (तब) भगवान् ीकृ ण बोले—महाराज! आपका यह वचार सवथा उ म तथा कौरव का यश बढ़ानेवाला है। राजे ! आपने जैसा कहा है, उसे आज ही जतना शी ो े े

स भाव हो सके, पूण कर डा लये।

वैश पायन उवाच इ येवमु वा वा णय वरयामास तं तदा । यथो ं धृतरा य कारयामास कौरवः ।। त मन् णे महाराज कृ ण ै पायन तदा । आग य कु भः सवः पू जतः स सु द्गणैः ।। मूधाव स ै ः स हतो ा णैवदपारगैः । कारयामास व धवत् केशवानुमते तदा ।। कृपो ोण भी म धौ य ासकेशवौ । बा कः सोमद चातुव पुर कृताः ।। अ भषेकं तदा च ु भ पीठ े सुसंयतम् । ज वा तु पृ थव कृ नां वशे कृ वा नरषभान् ।। राजसूया द भय ैः तु भभू रद णैः । ना वा वभृथ नानं मोदतां बा धवैः सह ।। एवमु वा तु ते सव आशी भर भपूजयन् । मूधा भ ष ः कौर सवाभरणभू षतः ।। जये त सं तुतो राजा ददौ धनम यम् । सवमूधाव स ै पू जतः कु न दनः ।। औपवा मथा ेत छ ेण शो भतः । रराजानुगतो राजा महे इव दै वतैः ।। ततः द णीकृ य नगरं नागसा यम् । ववेश ततो राजा नागरैः पू जतो भृशम् ।। मूधा भ ष ं कौ तेयम यन द त बा धवाः । गा धा रपु ाः शोच तः सव ते सह बा धवैः ।। ा वा शोकं तु पु ाणां धृतरा ोऽ वी ृपम् । सम ं वासुदेव य कु णां च सम तः ।। वैश पायनजी कहते ह—इतना कहकर भगवान् ीकृ णने उ ह ज द करनेक ेरणा द । व रजीने धृतराक े कथनानुसार सब काय पूण कर दया। उसी समय, राजन्! वहाँ मह ष कृ ण ै पायन पधारे। सम त कौरव ने अपने सु द के साथ आकर उनक पूजा क । तब वेद के पारंगत व ान् ा ण तथा मूधा भ ष नरेश के साथ मलकर भगवान् ीकृ णक स म तके अनुसार ासजीने व धपूवक अ भषेक-काय स प कया। कृपाचाय, ोणाचाय, भी म, धौ य, ास, ीकृ ण, बा क और सोमद ने चार वेद के व ान को आगे रखकर भ पीठपर संयमपूवक बैठे ए यु ध रका उस समय अ भषेक कया और सबने यह आशीवाद दया क ‘राजन्! तुम सारी पृ वीको जीतकर स पूण नरेश को अपने अधीन करके चुर द णासे यु राजसूय आ द य -याग पूण करनेके े





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प ात् अवभृथ- नान करके ब धु-बा धव के साथ सुखी रहो।’ जनमेजय! य कहकर उन सबने अपने आशीवाद ारा यु ध रका स मान कया। सम त आभूषण से वभू षत, मूधा भ ष राजा यु ध रने अ य धनका दान कया। उस समय सब लोग ने जयजयकारपूवक उनक तु त क । सम त मूधा भ ष राजा ने भी कु न दन यु ध रका पूजन कया। फर वे राजो चत गजराजपर आ ढ़ हो ेत छ से सुशो भत ए। उनके पीछे -पीछे ब त-से मनु य चल रहे थे। उस समय दे वता से घरे ए इ क भाँ त उनक बड़ी शोभा हो रही थी। सम त ह तनापुर नगरक प र मा करके राजाने पुनः राजधानीम वेश कया। उस समय नाग रक ने उनका वशेष समादर कया। ब धु-बा धव ने भी मूधा भ ष राजा यु ध रका सादर अ भन दन कया। यह सब दे खकर वे गा धारीके य धन आ द सभी पु अपने भाइय के साथ शोकातुर हो रहे थे। अपने पु को शोक आ जानकर धृतराने भगवान् ीकृ ण तथा कौरव के सम राजा यु ध रसे (इस कार) कहा।

धृतरा उवाच अ भषेकं वया ा तं ापमकृता म भः । ग छ वम ैव नृप कृतकृ योऽ स कौरव ।। आयुः पु रवा राजन् न ष यया तना । त ैव नवस त म खा डवा े नृपो म ।। राजधानी तु सवषां पौरवाणां महाभुज । वना शतं मु नगणैल भाद् बुधसुत य च ।। त मात् वं खा डव थं पुरं रा ं च वधय । ा णाः या वै याः शू ा कृत न याः ।। वद्भ या ज तव ा ये भज वेव पुरं शुभम् । पुरं रा ं समृ ं वै धनधा यैः समावृतम् ।। त माद् ग छ व कौ तेय ातृ भः स हतोऽनघ ।) धृतरा बोले—कु न दन! तुमने वह रा या भषेक ा त कया है, जो अ जता मा पु ष के लये लभ है। राजन्! तुम रा य पाकर कृताथ हो गये। अतः आज ही खा डव थ चले जाओ। नृप े ! पु रवा, आयु, न ष तथा यया त खा डव थम ही नवास करते थे। महाबाहो! वह सम त पौरव नरेश क राजधानी थी। आगे चलकर मु नय ने बुधपु के लोभसे खा डव थको न कर दया था। इस लये तुम खा डव थ नगरको पुनः बसाओ और अपने राक वृ करो। ा ण, य, वै य तथा शू सबने तु हारे साथ वहाँ जानेका न य कया है। तुमम भ रखनेके कारण सरे लोग भी उस सु दर नगरका आ य लगे। न पाप कु तीकुमार! वह नगर तथा रा समृ शाली और धन-धा यसे स प है। अतः तुम भाइय स हत वह जाओ। वैश पायन उवाच तगृ तु तद् वा यं नृपं सव ण य च ।। २६ ।। े ो ो

त थरे ततो घोरं वनं त मनुजषभाः । अध रा य य स ा य खा डव थमा वशन् ।। २७ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! राजा धृतराक बात मानकर पा डव ने उ ह णाम कया और आधा रा य पाकर वे खा डव थक ओर चल दये, जो भयंकर वनके पम था। धीरे-धीरे वे खा डव थम जा प ँचे ।। २६-२७ ।। तत ते पा डवा त ग वा कृ णपुरोगमाः । म डयांच रे तद् वै परं वगवद युताः ।। २८ ।। तदन तर अपनी मयादासे कभी युत न होनेवाले पा डव ने ीकृ णस हत वहाँ जाकर उस थानको उ म वगलोकक भाँ त शोभायमान कर दया ।। २८ ।। (वासुद े वो जग ाथ तयामास वासवम् । महे ततो राजन् व कमाणमा दशत् ।। फर जगद र भगवान् वासुदेवने दे वराज इ का च तन कया। राजन्! उनके च तन करनेपर इ दे वने (उनके मनक बात जानकर) व कमाको इस कार आ ा द ।

महे उवाच व कमन् महा ा अ भृ त तत् पुरम् । इ थ म त यातं द ं र यं भ व य त ।। इ बोले— व कमन्! महामते! (आप जाकर खा डव थ नगरका नमाण कर।) आजसे वह द और रमणीय नगर इ थके नामसे व यात होगा। वैश पायन उवाच महे शासनाद् ग वा व कमा तु केशवम् । ण य णपातह क करोमी यभाषत ।। वासुदेव तु त छ वा व कमाणमू चवान् । वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! महे क आ ासे व कमाने खा डव थम जाकर व दनीय भगवान् ीकृ णको णाम करके कहा—मेरे लये या आ ा है? उनक बात सुनकर भगवान् ीकृ णने उनसे कहा। वासुदेव उवाच कु व कु राजाय महे पुरसं नभम् । इ े ण कृतनामान म थं महापुरम् ।।) ीकृ ण बोले— व कमन्! तुम कु राज यु ध रके लये महे पुरीके समान एक महानगरका नमाण करो। इ के न य कये ए नामके अनुसार वह इ थ कहलायेगा। ततः पु ये शवे दे शो शा तं कृ वा महारथाः । नगरं मापयामासुदपायनपुरोगमाः ।। २९ ।। े







त प ात् प व एवं क याणमय दे शम शा तकम कराके महारथी पा डव ने वेद ासजीको अगुआ बनाकर नगर बसानेके लये जमीनका नाप करवाया ।। २९ ।। सागर त पा भः प रखा भरलंकृतम् । ाकारेण च स प ं दवमावृ य त ता ।। ३० ।। पा डु रा काशेन हमर म नभेन च । शुशुभे तत् पुर े ं नागैभ गवती यथा ।। ३१ ।। उसके चार ओर समु क भाँ त व तृत एवं अगाध जलसे भरी ई खाइयाँ बनी थ , जो उस नगरक शोभा बढ़ा रही थ । ेत बादल तथा च माके समान उ वल चहारद वारी शोभा दे रही थी, जो अपनी ऊँचाईसे आकाशम डलको ा त करके खड़ी थी। जैसे नाग से भोगवती सुशो भत होती है, उसी कार उस चहारद वारीसे खाईस हत वह े नगर सुशो भत हो रहा था ।। ३०-३१ ।। प ग ड यै ारैः सौधै शो भतम् । गु तम चय यैग पुरैम दरोपमैः ।। ३२ ।। उस नगरके दरवाजे ऐसे जान पड़ते थे, मानो दो पाँख फैलाये ग ड़ ह । ऐसे अनेक बड़े-बड़े फाटक और अ ा लकाएँ उस नगरक ीवृ कर रही थ । मेघ क घटाके समान सुशो भत तथा म दराचलके समान ऊँचे गोपुर ारा वह नगर सब ओरसे सुर त था ।। ३२ ।। व वधैर प न व ै ः श ोपेतैः सुसंवृतैः । श भ ावृतं त ज ै रव प गैः ।। ३३ ।। नाना कारके अभे तथा सब ओरसे घरे ए श ागार म श सं ह करके रखे गये थे। नगरके चार ओर हाथसे चलायी जानेवाली लोहेक श याँ तैयार करके रखी गयी थ , जो दो जीभ वाले साँप के समान जान पड़ती थ । इन सबके ारा उस नगरक सुर ा क गयी थी ।। ३३ ।। त पै ा या सकैयु ं शुशुभे योधर तम् । ती णाङ् कुशशत नी भय जालै शो भतम् ।। ३४ ।। जनम अ -श का अ यास कया जाता था, ऐसी अनेक अट् टा लका से यु और यो ा से सुर त उस नगरक शोभा दे खते ही बनती थी। तीखे अंकुश (बछ ), शत नय (तोप ) और अ या य यु स ब धी य के जालसे वह नगर शोभा पा रहा था ।। ३४ ।। आयसै महाच ै ः शुशुभे तत् पुरो मम् । सु वभ महारयं द े वताबाधव जतम् ।। ३५ ।। लोहेके बने ए महान् च ारा उस उ म नगरक अवणनीय शोभा हो रही थी। वहाँ वभागपूवक व भ थान म जानेके लये वशाल एवं चौड़ी सड़क बनी ई थ । उस नगरम दै वी आप का नाम नह था ।। ३५ ।। वरोचमानं व वधैः पा डु रैभवनो मैः । तत् व पसंकाश म थं रोचत ।। ३६ ।। े े े े ो ो े

अनेक कारके े एवं शु सदन से शो भत वह नगर वगलोकके समान का शत हो रहा था। उसका नाम था इ थ ।। ३६ ।। मेघवृ द मवाकाशे व ं व ु समावृतम् । त र ये शवे दे शो कौर य नवेशनम् ।। ३७ ।। इ थके रमणीय एवं शुभ दे शम कु राज यु ध रका सु दर राजभवन बना आ था, जो आकाशम व ुतक ् भासे ा त मेघम डलक भाँ त दे द यमान था ।। ३७ ।। शुशुभे धनस पूण धना य योपमम् । त ाग छन् जा राजन् सववेद वदां वराः ।। ३८ ।। नवासं रोचय त म सवभाषा वद तथा । व णज ाययु त नाना द यो धना थनः ।। ३९ ।। अन त धनरा शसे प रपूण होनेके कारण वह भवन धना य कुबेरके नवास थानक समानता करता था। राजन्! स पूण वेदवे ा म े ा ण उस नगरम नवास करनेके लये आये, जो स पूण भाषा के जानकार थे। उन सबको वहाँका रहना ब त पसंद आया। अनेक दशा से धनोपाजनक इ छावाले व णक् भी उस नगरम आये ।। ३८-३९ ।। सव श प वद त वासाया यागमं तदा । उ ाना न च र या ण नगर य सम ततः ।। ४० ।। सब कारक श पकलाके जानकार मनु य भी उन दन इ थम नवास करनेके लये आ गये थे। नगरके चार ओर रमणीय उ ान थे ।। ४० ।। आ ैरा ातकैन पैरशोकै पकै तथा । पु ागैनागपु पै लकुचैः पनसै तथा ।। ४१ ।। शालतालतमालै बकुलै सकेतकैः । मनोहरः सुपु पै फलभारावना मतैः ।। ४२ ।। जो आम, आमड़ा, कद ब, अशोक, च पा, पु ाग, नागपु प, लकुच, कटहल, साल, ताल, तमाल, मौल सरी और केवड़ा आ द सु दर फूल से भरे और फल के भारसे झुके ए मनोहर वृ से सुशो भत थे ।। ४१-४२ ।। ाचीनामलकैल ैरङ् कोलै सुपु पतैः । ज बू भः पाटला भ कु जकैर तमु कैः ।। ४३ ।। करवीरैः पा रजातैर यै व वधै मैः । न यपु पफलोपेतैनाना जगणायुतैः ।। ४४ ।। ाचीन आँवले, लो , खले ए अंकोल, जामुन, पाटल, कु जक, अ तमु क लता, करवीर, पा रजात तथा अ य नाना कारके वृ , जनम सदा फल और फूल लगे रहते थे और जनके ऊपर भाँ त-भाँ तके सह प ी कलरव करते थे, उन उ ान क शोभा बढ़ा रहे थे ।। ४३-४४ ।। म ब हणसंघु को कलै सदामदै ः । गृहैरादश वमलै व वधै लतागृहैः ।। ४५ ।। े े े े ी ो ी ँ

मतवाले मयूर के केकारव तथा सदा उ म रहनेवाली को कल क काकली वहाँ गूँजती रहती थी। उन उ ान म दपणके समान व छ ड़ाभवन तथा नाना कारके लताम डप बनाये गये थे ।। ४५ ।। मनोहरै गृहै तथाजग तपवतैः । वापी भ व वधा भ पूणा भः परमा भसा ।। ४६ ।। सरो भर तर यै पो पलसुग ध भः । हंसकार डवयुतै वाकोपशो भतैः ।। ४७ ।। मनोहर च शाला तथा राजा क वहारया ाके लये नमत ए कृ म पवत से भी वे उ ान बड़ी शोभा पा रहे थे। उ म जलसे भरी ई अनेक कारक बाव लयाँ तथा कमल और उ पलक सुग धसे वा सत अ य त रमणीय सरोवर जहाँ हंस, कार डव तथा च वाक आ द प ी नवास करते थे, उन उ ान क शोभा बढ़ा रहे थे ।। ४६-४७ ।। र या व वधा त पु क र यो वनावृताः । तडागा न च र या ण बृह त सुब न च ।। ४८ ।। वहाँ वनसे घरी ई भाँ त-भाँ तक रमणीय पु क र णयाँ और सुर य एवं वशाल ब सं यक तड़ाग बड़े सु दर जान पड़ते थे ।। ४८ ।। (चातुव यसमाक ण मा यैः श प भरावृतम् । उपयोगसमथ सव ैः समावृतम् ।। न यमायजनोपेतं नरनारीगणैयुतम् । म वारणस पूण गो भ ैः खरैरजैः ।। सवदा भगतं स ः का रतं व कमणा । तत् व पसंकाश म थं रोचत ।। पुर सवगुणोपेतां न मतां व कमणा । पौरवाणाम धप तः कु तीपु ो यु ध रः ।। कृतम लस कारो ा णैवदपारगैः । ै पायनं पुर कृ य धौ य यानुमते थतः ।। ातृ भः स हतो राजन् केशवेन सहा भभूः । तोरण ारसुमुखं ा शद् ारसंयुतम् ।। वधमानपुर ारं ववेश महा ु तः । शङ् ख भ नघ षाः ूय ते बहवो भृशम् ।। जये त ा ण गरः ूय ते च सह शः । सं तूयमानो मु न भः सूतमागधव द भः ।। औपवा गतो राजा राजमागमती य च । कृतम लस कारं ववेश गृहो मम् ।। व य भवनं राजा स कारैर भपू जतः । पूजयामास व े ान् केशवेन यथा मम् ।। तत तु रा ं नगरं नरनारीगणायुतम् । ो ै )

गोधनै समाक ण स यवृ तदाभवत् ।।) वह नगर चार वण के लोग से ठसाठस भरा था। माननीय श पी वहाँ नवास करते थे। वह पुरी उपभोगम आनेवाली सम त साम य से स प थी। वहाँ सदा े पु ष रहा करते थे। असं य नर-नारी उस नगरक शोभा बढ़ाते थे। वहाँ मतवाले हाथी, ऊँट, गाय, बैल, गदहे और बकरे आ द पशु भी सदा मौजूद रहते थे। व कमा ारा बनायी ई उस पुरीम सदा साधु-महा मा का समागम होता था। वह इ थ नगर वगके समान शोभा पाता था। राजन्! कौरवराज महातेज वी कु तीन दन यु ध रने वेद के पारंगत व ान् ा ण ारा मंगल-कृ य कराकर ै पायन ासको आगे करके धौ य मु नक स म तके अनुसार भाइय तथा भगवान् ीकृ णके साथ ब ीस दरवाज से यु तोरण ारके सामने आकर वधमान नामक नगर ारम वेश कया। उस समय शंख और नगार क आवाज बड़े जोर-जोरसे सुनायी दे ती थी। सह ा ण के मुखसे नकले ए जयघोषका वण होता था। मु न तथा सूत, मागध और ब द जन राजाक तु त कर रहे थे। राजा यु ध र हाथीपर बैठे ए थे। उ ह ने राजमागको पार करके एक उ म भवनम वेश कया, जहाँ मांग लक कृ य स प कया गया था। उस भवनम वेश करके भाँ त-भाँ तके स कार से स मा नत हो राजा यु ध रने भगवान् ीकृ णके साथ मशः सभी शेष ा ण का पूजन कया। तदन तर अग णत नर-ना रय से सुशो भत वह रा और नगर गोधनसे स प हो गया और दन दन खेतीक वृ होने लगी। तेषां पु यजनोपेतं रा मा वशतां महत् । पा डवानां महाराज श त् ी तरवधत ।। ४९ ।। महाराज! पु या मा मनु य से भरे ए उस महान् राम वेश करनेके बाद पा डव क स ता नर तर बढ़ती गयी ।। ४९ ।। त भी मेण रा ा च धम णयने कृते । पा डवाः समप त खा डव थवा सनः ।। ५० ।। भी म तथा राजा धृतराक े ारा धमराज यु ध रको आधा रा य दे कर वहाँसे वदा कर दे नेपर सम त पा डव खा डव थके नवासी हो गये ।। ५० ।। प च भ तैमहे वासै र क पैः सम वतम् । शुशुभे तत् पुर े ं नागैभ गवती यथा ।। ५१ ।। इ के समान श शाली और महान् धनुधर पाँच पा डव के ारा वह े इ थ नगर नाग से यु भोगवतीपुरीक भाँ त सुशो भत होने लगा ।। ५१ ।। (तत तु व कमाणं पूज य वा वसृ य च । ै पायनं च स पू य वसृ य च नरा धप । वा णयम वीद् राजा ग तुकामं कृत णम् ।। तदन तर व कमाका पूजन करके राजाने उ ह वदा कर दया। फर ासजीको स मानपूवक वदा दे कर राजा यु ध रने जानेके लये उ त ए भगवान् ीकृ णसे कहा। यु ध र उवाच

तव सादाद् वा णय रा यं ा तं मयानघ । सादादे व ते वीर शू यं रा ं सु गमम् ।। तवैव तु सादे न रा य था महामते । ग त वम तकाले च पा डवानां तु माधव ।। माता माकं पता दे वो न पा डु ं व वै वयम् । ा वा तु कृ यं कत ं कारय व भवान् ह नः । य द मनुम त ं पा डवानां वयानघ ।। यु ध र बोले— न पाप वृ णन दन! आपक ही कृपासे मने रा य ा त कया है। वीर! आपके ही सादसे यह अ य त गम एवं नजन दे श आज धन-धा यसे स प रा बन गया। महामते! आपक ही दयासे हमलोग रा य सहासनपर आसीन ए ह। माधव! अ तकालम भी आप ही हम पा डव क ग त ह। आप ही हमारे माता- पता और इ दे व ह। हम पा डु को नह जानते। अनघ! आप वयं समझकर जो करनेयो य काय हो, वह हमसे कराय। पा डव के लये जो अभी हो, उसी कायको करनेके लये आप हम अनुम त द। ीवासुदेव उवाच व भावा महाभाग रा यं ा तं वधमतः । पतृपैतामहं रा यं कथं न यात् तव भो ।। धातरा ा राचाराः क क र य त पा डवान् । यथे ं पालय मह सदा धमधुरं वह ।। धम पदे शं सं ेपाद् ा णान् भज कौरव । अ ैव नारदः ीमानाग म य त स वरः । आ य त य वा या न शासनं कु त य वै ।। भगवान् ीकृ णने कहा—महाभाग! आपको अपने ही भावसे अपने ही धमके फल व प रा य ा त आ है। भो! जो रा य आपके बाप-दाद का ही है, वह आपको कैसे नह मलता। धृतराक े पु राचारी ह। वे पा डव का या कर लगे? आप इ छानुसार पृ वीका पालन क जये और सदा धममयादाक धुरी धारण क रये। कु न दन! सं ेपम आपके लये धमका उपदे श इतना ही है क ा ण क सेवा क रये। आज ही बड़ी ज द म आपके यहाँ ीनारदजी पधारगे, उनका आदर-स कार करके उनक बात सु नये और उनक आ ाका पालन क जये। वैश पायन उवाच एवमु वा ततः कु तीम भवा जनादनः । उवाच णया वाचा ग म या म नमोऽ तु ते ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! य कहकर भगवान् ीकृ ण कु तीदे वीके पास गये और उ ह णाम करके मधुर वाणीम बोले—‘बुआजी! नम कार। अब म जाऊँगा (आ ा द जये)।’

कु युवाच जातुषं गृहमासा मया ा तं च केशव । आयण चा प न ातं कु तभोजेन चानघ ।। वया नाथेन गो व द ःखं तीण मह रम् । वं ह नाथ वनाथानां द र ाणां वशेषतः ।। सव ःखा न शा य त तव संदशना मम । मर वैनान् महा ा तेन जीव त पा डवाः ।। कु ती बोली—केशव! ला ागृहम जाकर मने जो क भोगा है, उसे मेरे पू य पता कु तभोज भी नह जान सके ह। गो व द! तु हारी सहायतासे ही म इस महान् ःखसमु से पार ई ँ। भो! तुम अनाथ के, वशेषतः द न- ःखय के नाथ (र क) हो। तु हारे दशनसे हमारे सारे ःख र हो जाते ह। महामते! इन पा डव को सदा याद रखना। ये तु हारे शुभ च तनसे ही जीवन धारण करते ह। वैश पायन उवाच क र यामी त चाम य अ भवा पतृ वसाम् । गमनाय म त च े वासुदेवः सहानुगः ।।) वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर भगवान् ीकृ णने कु तीसे यह कहकर क म आपक आ ाका पालन क ँ गा, णाम करके, वदा ले सेवक स हत वहाँसे जानेका वचार कया। तां नवे य ततो वीरो रामेण सह केशवः । ययौ ारवत राजन् पा डवानुमते तदा ।। ५२ ।। राजन्! इस कार उस पुरीको बसाकर बलरामजीके साथ वीरवर ीकृ ण पा डव क अनुम त ले उस समय ारकापुरीको चले गये ।। ५२ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण व रागमनरा यल भपव ण पुर नमाणे षड धक शततमोऽ यायः ।। २०६ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत व रागमनरा यल भपवम नगर नमाण वषयक दो सौ छठा अ याय पूरा आ ।। २०६ ।। (दा णा य अ धक पाठक े ९९ ोक मलाकर कुल १५१ ोक ह)

स ता धक शततमोऽ यायः पा डव के यहाँ नारदजीका आगमन और उनम फूट न हो, इसके लये कुछ नयम बनानेके लये ेरणा करके सु द और उपसु दक कथाको ता वत करना जनमेजय उवाच एवं स ा य रा यं त द थं तपोधन । अत ऊ व महा मानः कमकुवत पा डवाः ।। १ ।। जनमेजयने पूछा—तपोधन! इस कार इ थका रा य ा त कर लेनेके प ात् महा मा पा डव ने कौन-सा काय कया? ।। १ ।। सव एव महास वा मम पूव पतामहाः । ौपद धमप नी च कथं तान ववतत ।। २ ।। मेरे पूव पतामह सभी पा डव महान् स व (मनोबल) से स प थे। उनक धमप नी ौपद ने कस कार उन सबका अनुसरण कया? ।। २ ।। कथं च प च कृ णायामेक यां ते नरा धपाः । वतमाना महाभागा ना भ त पर परम् ।। ३ ।। वे महान् सौभा यशाली नरेश जब एक ही कृ णाके त अनुर थे, तब उनम आपसम फूट कैसे नह ई? ।। ३ ।। ोतु म छा यहं सव व तरेण तपोधन । तेषां चे तम यो यं यु ानां कृ णया सह ।। ४ ।। तपोधन! ौपद से स ब ध रखनेवाले उन पा डव का आपसम कैसा बताव था, यह सब म व तारके साथ सुनना चाहता ँ ।। ४ ।। वैश पायन उवाच धृतरा ा यनु ाताः कृ णया सह पा डवाः । रे मरे खा डव थे ा तरा याः परंतपाः ।। ५ ।। वैश पायनजीने कहा—राजन्! धृतराक आ ासे रा य पाकर परंतप पा डव ौपद के साथ खा डव- थम वहार करने लगे ।। ५ ।। ा य रा यं महातेजाः स यसंधो यु ध रः । पालयामास धमण पृ थव ातृ भः सह ।। ६ ।। स य त महातेज वी राजा यु ध र उस रा यको पाकर अपने भाइय के साथ धमपूवक पृ वीका पालन करने लगे ।। ६ ।। जतारयो महा ाः स यधमपरायणाः । मुदं पर मकां ा ता त ोषुः पा डु न दनाः ।। ७ ।। े













वे सभी श ु पर वजय पा चुके थे, सभी महाबु मान् थे। सबने स यधमका आ य ले रखा था। इस कार वे पा डव वहाँ बड़े आन दके साथ रहते थे ।। ७ ।। कुवाणाः पौरकाया ण सवा ण पु षषभाः । आसांच ु महाहषु पा थवे वासनेषु च ।। ८ ।। नर े पा डव नगरवा सय के स पूण काय करते ए ब मू य तथा राजो चत सहासन पर बैठा करते थे ।। ८ ।। अथ तेषूप व ेषु सव वेव महा मसु । नारद वथ दे व षराजगाम य छया ।। ९ ।। एक दन जब वे सभी महामना पा डव अपने सहासन पर वराजमान थे, उसी समय दे व ष नारद अक मात् वहाँ आ प ँचे ।। ९ ।। (पथा न जु ेन सुपणच रतेन च ।। च सूय काशेन से वतेन मह ष भः । नभः थलेन द ेन लभेनातप वनाम् ।। उनका आगमन आकाशमागसे आ, जसका न सेवन करते ह, जसपर ग ड़ चलते ह, जहाँ च मा और सूयका काश फैलता है और जो मह षय से से वत है। जो लोग तप वी नह ह, उनके लये ोमम डलका वह द माग लभ है। भूता चतो भूतधरं रा ं नगरभू षतम् । अवे माणो ु तमानाजगाम महातपाः ।। सववेदा तगो व ः सव व ासु पारगः । परेण तपसा यु ो ा ेण तपसा वृतः ।। नये नीतौ च नरतो व ुत महामु नः । स पूण ा णय ारा पू जत महान् तप वी एवं तेज वी दे व ष नारद बड़े-बड़े नगर से वभू षत और स पूण ा णय के आ यभूत रा का अवलोकन करते ए वहाँ आये। व वर नारद स पूण वेदा तशा के ाता तथा सम त व ा के पारंगत प डत ह। वे परमतप वी तथा ा तेजसे स प ह; यायो चत बताव तथा नी तम नर तर नरत रहनेवाले सु व यात महामु न ह। परात् परतरं ा तो धमात् सम भज मवान् ।। भा वता मा गतरजाः शा तो मृ ऋजु जः । धमणा धगतः सवदवदानवमानुषैः ।। अ ीणवृ धम संसारभयव जतः । सवथा कृतमयादो वेदेषु व वधेषु च ।। ऋ सामयजुषां वे ा यायवृ ा तको वदः ।। ऋजुरारोहवा छु लो भू य प थकोऽनघः । णया शखयोपेतः स प ः परम वषा ।। अवदाते च सू मे च द े च चरे शुभे । महे द े महती ब त् परमवाससी ।। े

ाय ापम येन वचसमु मम् । भवने भू मपाल य बृह प त रवा लुतः ।। उ ह ने धम-बलसे परा पर परमा माका ान ा त कर लया है। वे शु ा मा, रजोगुणर हत, शा त, मृ तथा सरल वभावके ा ण ह। वे दे वता, दानव और मनु य सबको धमतः ा त होते ह। उनका धम और सदाचार कभी ख डत नह आ है। वे संसारभयसे सवथा र हत ह। उ ह ने सब कारसे व वध वै दक धम क मयादा था पत क है। वे ऋ वेद, सामवेद और यजुवदके व ान् ह। यायशा के पारंगत प डत ह। वे सीधे और ऊँचे कदके तथा शु ल वणके ह। वे न पाप नारद अ धकांश समय या ाम तीत करते ह। उनके म तकपर सु दर शखा शो भत है। वे उ म का तसे का शत होते ह। वे दे वराज इ के दये ए दो ब मू य व धारण करते ह। उनके वे दोन व उ वल, महीन, द , सु दर और शुभ ह। सर के लये लभ एवं उ म तेजसे यु वे बृह प तके समान बु मान् नारदजी राजा यु ध रके महलम उतरे। सं हतायां च सवषां थत योप थत य च । पद य च धम य मधम य पारगः ।। गाथासामानुधम ः सा नां परमव गुनाम् । आ मना सवमो यः कृ तमान् कृ य वत् तथा ।। यो ा धम ब वधे मनो म तमतां वरः । व दताथः सम ैव छे ा नगमसंशयान् ।। अथ नवचने न यं संशय छदसंशयः । कृ या धमकुशलो नानाधम वशारदः ।। लोपेनागमधमण सं मेण च वृ षु । एकश दां नानाथानेकाथा पृथ छमतीन् ।। पृथगथा भधानां योगाणामवे ता ।। सं हताशा म सबके लये थत और उप थत मानवधम तथा म ा त धमके वे पारगामी व ान् ह। वे गाथा और सामम म कहे ए आनुषं गक धम के भी ाता ह तथा अ य त मधुर सामगानके प डत ह। मु क इ छा रखनेवाले सब लोग के हतके लये नारदजी वयं ही य नशील रहते ह। कब कसका या कत है, इसका उ ह पूण ान है। वे बु मान म े ह और मनको नाना कारके धमम लगाये रखते ह। उ ह जानने यो य सभी अथ का ान है। वे सबम समभाव रखनेवाले ह और वेद वषयक स पूण संदेह का नवारण करनेवाले ह। अथक ा याके समय सदा संशय का उ छे द करते ह। उनके दयम संशयका लेश भी नह है। वे वभावतः धम नपुण तथा नाना धम के वशेष ह। लोप, आगमधम तथा वृ तसं मणके ारा योगम आये ए एक श दके अनेक अथ को, पृथक्-पृथक् वणगोचर होनेवाले अनेक श द के एक अथको तथा व भ श द के भ - भ अथ को वे पूण पसे दे खते और समझते ह। माणभूतो लोक य सवा धकरणेषु च । सववण वकारेषु न यं सकलपू जतः ।। े े े े े

वरेऽ वरे च व वधे वृ ेषु व वधेषु च । सम थानेषु सवषु समा नायेषु धातुषु ।। उ े यानां समा याता सवमा यातमु शन् । अ भसं धषु त व ः पदा य ा यनु मरन् ।। कालधमण न द ं यथाथ च वचारयन् । चक षतं च यो वे ा यथा लोकेन संवृतम् ।। वभा षतं च समयं भा षतं दय मम् । आ मने च पर मै च वरसं कारयोगवान् ।। एषां वराणां वे ा च बो ा च वचन वरान् । व ाता चो वा यानामेकतां ब तां तथा ।। बो ा ह परमाथा व वधां त मान् । अभेदत ब शो ब श ा प भेदतः ।। वचनानां च व वधानादे शां समी ता । नानाथकुशल त त तेषु च सवशः ।। प रभूष यता वाचां वणतः वरतोऽथतः । ययां समा याता नयतं तधातुकम् ।। प च चा रजाता न वरसं ा न या न च ।) सभी अ धकरण और सम त वण के वकार म नणय दे नेके न म वे सब लोग के लये माणभूत ह। सदा सब लोग उनक पूजा करते ह। नाना कारके वर, ंजन, भाँ त-भाँ तके छ द, समान थानवाले सभी वण, समा नाय तथा धातु—इन सबके उ े य क नारदजी ब त अ छ ा या करते ह। स पूण आ यात करण (धातु प तङ त आ द)-का तपादन कर सकते ह। सब कारक सं धय के स पूण रह य को जानते ह। पद और अंग का नर तर मरण रखते ह, काल-धमसे नद यथाथ त वका वचार करनेवाले ह तथा वे लोग के छपे ए मनोभावको—वे या करना चाहते ह, इस बातको भी अ छ तरह जानते ह। वभा षत (वैक पक), भा षत ( न यपूवक क थत) और दयंगम कये ए समयका उ ह यथाथ ान है। वे अपने तथा सरेके लये वरसं कार तथा योगसाधनम त पर रहते ह। वे इन य चलनेवाले वर को भी जानते ह, वचन- वर का भी ान रखते ह, कही ई बात के ममको जानते और उनक एकता तथा अनेकताको समझते ह। उ ह परमाथका यथाथ ान है। वे नाना कारके त म (अपराध )-को भी जानते ह। अभेद और भेद से भी बारंबार त व वचार करते रहते ह। वे शा ीय वा य के व वध आदे श क भी समी ा करनेवाले तथा नाना कारके अथ ानम कुशल ह, त त यय का उ ह पूरा ान है। वे वर, वण और अथ तीन से ही वाणीको वभू षत करते ह। येक धातुके यय का नयमपूवक तपादन करनेवाले ह। पाँच कारके जो अ रसमूह तथा वर ह* , उनको भी वे यथाथ पसे जानते ह। तमागतमृ ष वा युदग ् या भवा च । ै



आसनं चरं त मै ददौ वं यु ध रः । दे वष प व य वयम य यथा व ध ।। १० ।। ादाद् यु ध रो धीमान् रा यं त मै यवेदयत् । तगृ तु तां पूजामृ षः ीतमना तदा ।। ११ ।। उ ह आया दे ख राजा यु ध रने आगे बढ़कर उ ह णाम कया और अपना परम सु दर आसन उ ह बैठनेके लये दया। जब दे व ष उसपर बैठ गये, तब परम बु मान् यु ध रने वयं ही व धपूवक उ ह अ य नवेदन कया और उसीके साथ-साथ उ ह अपना रा य सम पत कर दया। उनक यह पूजा हण करके दे व ष उस समय मन-ही-मन बड़े स ए ।। १०-११ ।। आशी भवध य वा च तमुवाचा यता म त । नषसादा यनु ात ततो राजा यु ध रः ।। १२ ।। कथयामास कृ णायै भगव तमुप थतम् । ु वैतद् ौपद चा प शु चभू वा समा हता ।। १३ ।। जगाम त य ा ते नारदः पा डवैः सह । त या भवा चरणौ दे वषधमचा रणी ।। १४ ।। कृता लः सुसंवीता थताथ पदा मजा । त या ा प स धमा मा स यवागृ षस मः ।। १५ ।। आ शषो व वधाः ो य राजपुया तु नारदः । ग यता म त होवाच भगवां ताम न दताम् ।। १६ ।। गतायामथ कृ णायां यु ध रपुरोगमान् । व व े पा डवान् सवानुवाच भगवानृ षः ।। १७ ।। फर आशीवादसूचक वचन ारा उनके अ युदयक कामना करके बोले—‘तुम भी बैठो।’ नारदक आ ा पाकर राजा यु ध र बैठे और कृ णाको कहला दया क वयं भगवान् नारदजी पधारे ह। यह सुनकर ौपद भी प व एवं एका चत हो उसी थानपर गयी, जहाँ पा डव के साथ नारदजी वराजमान थे। धमका आचरण करनेवाली कृ णा दे व षके चरण म णाम करके अपने अंग को ढके ए हाथ जोड़कर खड़ी हो गयी। धमा मा एवं स यवाद मु न े भगवान् नारदने राजकुमारी ौपद को नाना कारके आशीवाद दे कर उस सती-सा वी दे वीसे कहा, ‘अब तुम भीतर जाओ।’ कृ णाके चले जानेपर भगवान् दे व षने एका तम यु ध र आ द सम त पा डव से कहा ।। १२—१७ ।। नारद उवाच पा चाली भवतामेका धमप नी यश वनी । यथा वो ना भेदः यात् तथा नी त वधीयताम् ।। १८ ।। नारदजी बोले—पा डवो! यश वनी पांचाली तुम सब लोग क एक ही धमप नी है; अतः तुमलोग ऐसी नी त बना लो, जससे तुमलोग म कभी पर पर फूट न हो ।। १८ ।। सु दोपसु दौ ह पुरा ातरौ स हतावुभौ । े

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आ तामव याव येषां षु लोकेषु व ुतौ ।। १९ ।। पहलेक बात है, सु द और उपसु द नामक दो असुर भाई-भाई थे। वे सदा साथ रहते थे एवं सरेके लये अव य थे (केवल आपसम ही लड़कर वे मर सकते थे)। उनक तीन लोक म बड़ी या त थी ।। १९ ।। एकरा यावेकगृहावेकश यासनाशनौ । तलो माया तौ हेतोर यो यम भज नतुः ।। २० ।। उनका एक ही रा य था और एक ही घर। वे एक ही शयापर सोते, एक ही आसनपर बैठते और एक साथ ही भोजन करते थे। इस कार आपसम अटू ट ेम होनेपर भी तलो मा अ सराके लये लड़कर उ ह ने एक- सरेको मार डाला ।। २० ।।

र यतां सौ दं त माद यो य ी तभावकम् । यथा वो ना भेदः यात् तत् कु व यु ध र ।। २१ ।। यु ध र! इस लये आपसक ी तको बढ़ानेवाले सौहादक र ा करो और ऐसा कोई नयम बनाओ, जससे यहाँ तुमलोग म वैर- वरोध न हो ।। २१ ।। यु ध र उवाच सु दोपसु दावसुरौ क य पु ौ महामुने । उप कथं भेदः कथं चा यो यम नताम् ।। २२ ।। यु ध रने पूछा—महामुने! सु द और उपसु द नामक असुर कसके पु थे? उनम कैसे वरोध उ प आ और कस कार उ ह ने एक- सरेको मार डाला? ।। २२ ।। अ सरा दे वक या वा क य चैषा तलो मा । े ौ ौ

य याः कामेन स म ौ ज नतु तौ पर परम् ।। २३ ।। यह तलो मा अ सरा थी? कसी दे वताक क या थी? तथा वह कसके अ धकारम थी, जसक कामनासे उ म होकर उ ह ने एक- सरेको मार डाला ।। २३ ।। एतत् सव यथावृ ं व तरेण तपोधन । ोतु म छामहे न् परं कौतूहलं ह नः ।। २४ ।। तपोधन! यह सब वृ ा त जस कार घ टत आ था, वह सब हम व तारपूवक सुनना चाहते ह। न्! उसे सुननेके लये हमारे मनम बड़ी उ क ठा है ।। २४ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण व रागमनरा यल भपव ण यु ध रनारदसंवादे स ता धक शततमोऽ यायः ।। २०७ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत व रागमनरा यल भपवम यु ध र-नारदसंवाद वषयक दो सौ सातवाँ अ याय पूरा आ ।। २०७ ।। (दा णा य अ धक पाठक े २५ ोक मलाकर कुल ४९ ोक ह)

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क ठ, तालू, मूधा, द त और ओ —इन पाँच थान अथवा पाँच आ य तर य न के भेदसे पाँच कारके अ रसमूह कहे गये ह। अ इ उ ऋ लृ ये पाँच ही मूल वर ह, अ य वर इ ह के द घ आ द भेद अथवा सं धज ह।

अ ा धक शततमोऽ यायः सु द-उपसु दक तप या, ाजीके ारा उ ह वर ा त होना और दै य के यहाँ आन दो सव नारद उवाच शृणु मे व तरेणेम म तहासं पुरातनम् । ातृ भः स हतः पाथ यथावृ ं यु ध र ।। १ ।। नारदजीने कहा—कु तीन दन यु ध र! यह वृ ा त जस कार संघ टत आ था, वह ाचीन इ तहास तुम मुझसे भाइय स हत व तारपूवक सुनो ।। १ ।। महासुर या ववाये हर यक शपोः पुरा । नकु भो नाम दै ये तेज वी बलवानभूत् ।। २ ।। ाचीनकालम महान् दै य हर यक शपुके कुलम नकु भ नामसे स एक दै यराज हो गया है, जो अ य त तेज वी और बलवान् था ।। २ ।। त य पु ौ महावीय जातौ भीमपरा मौ । सु दोपसु दौ दै ये ौ दा णौ ू रमानसौ ।। ३ ।। उसके महाबली और भयानक परा मी दो पु ए, जनका नाम था सु द और उपसु द। वे दोन दै यराज बड़े भयंकर और ू र दयके थे ।। ३ ।। तावेक न यो दै यावेककायाथस मतौ । नर तरमवततां सम ःखसुखावुभौ ।। ४ ।। उनका एक ही न य होता था और एक ही कायके लये वे सदा सहमत रहते थे। उनके सुख और ःख भी एक ही कारके थे। वे दोन सदा साथ रहते थे ।। ४ ।। वना यो यं न भु ाते वना यो यं न ज पतः । अ यो य य यकराव यो य य यंवदौ ।। ५ ।। उनमसे एकके बना सरा न तो खाता-पीता और न कसीसे कुछ बात-चीत ही करता था। वे दोन एक- सरेका य करते और पर पर मीठे वचन बोलते थे ।। ५ ।। एकशीलसमाचारौ धैवैकोऽभवत् कृतः । तौ ववृ ौ महावीय काय व येक न यौ ।। ६ ।। उनके शील और आचरण एक-से थे, मानो एक ही जीवा मा दो शरीर म वभ कर दया गया हो। वे महापरा मी दै य साथ-साथ बढ़ने लगे। वे येक कायम एक ही न यपर प ँचते थे ।। ६ ।। ैलो य वजयाथाय समाधायैक न यम् । द ां कृ वा गतौ व यं तावु ं तेपतु तपः ।। ७ ।। कसी समय वे तीन लोक पर वजय पानेक इ छासे एकमत होकर गु से द ा ले व य पवतपर आये और वहाँ कठोर तप या करने लगे ।। ७ ।। ौ







तौ तु द घण कालेन तपोयु ौ बभूवतुः । ु पपासाप र ा तौ जटाव कलधा रणौ ।। ८ ।। भूख और यासका क सहते ए सरपर जटा तथा शरीरपर व कल धारण कये वे दोन भाई द घकालतक भारी तप याम लगे रहे ।। ८ ।। मलोप चतसवा ौ वायुभ ौ बभूवतुः । आ ममांसा न जु तौ पादाङ् गु ा व तौ । ऊ वबा चा न मषौ द घकालं धृत तौ ।। ९ ।। उनके स पूण अंग म मैल जम गयी थी, वे हवा पीकर रहते थे और अपने ही शरीरके मांसख ड काट-काटकर अ नम आ त दे ते थे। तदन तर ब त समयतक पैर के अंगठ ू के अ भागके बलपर खड़े हो दोन भुजाएँ ऊपर उठाये एकटक से दे खते ए वे दोन त धारण करके तप याम संल न रहे ।। ९ ।। तयो तपः भावेण द घकालं ता पतः । धूमं मुमुचे व य तद त मवाभवत् ।। १० ।। उन दै य क तप याके भावसे द घकालतक संत त होनेके कारण व य पवत धुआँ छोड़ने लगा, यह एक अ त-सी बात ई ।। १० ।। ततो दे वा भयं ज मु ं ् वा तयो तपः । तपो वघाताथमथो दे वा व ना न च रे ।। ११ ।। उनक उ तप या दे खकर दे वता को बड़ा भय आ। वे दे वतागण उनके तपको भंग करनेके लये अनेक कारके व न डालने लगे ।। ११ ।। र नैः लोभयामासुः ी भ ोभौ पुनः पुनः । न च तौ च तुभ ं त य सुमहा तौ ।। १२ ।। उ ह ने बार-बार र न के ढे र तथा सु दरी य को भेज-भेजकर उन दोन को लोभनम डालनेक चे ा क ; कतु उन महान् तधारी दै य ने अपने तपको भंग नह कया ।। १२ ।। अथ मायां पुनदवा तयो ु महा मनोः । भ ग यो मातरो भाया तयो ा मजन तथा ।। १३ ।। पा यमाना व ताः शूलह तेन र सा । ाभरणकेशा ता ाभरणवाससः ।। १४ ।। अ भभा य ततः सवा तौ ाही त वचु ु शुः । न च तौ च तुभ ं त य सुमहा तौ ।। १५ ।। त प ात् दे वता ने महान् आ मबलसे स प उन दोन दै य के सामने पुनः मायाका योग कया। उनक माया नमत बहन, माताएँ, प नयाँ तथा अ य आ मीयजन वहाँ भागते ए आते और उ ह कोई शूलधारी रा स बार-बार खदे ड़ता तथा पृ वीपर पटक दे ता था। उनके आभूषण गर जाते, व खसक जाते और बाल क लट खुल जाती थ । वे सभी आ मीयजन सु द-उपसु दको पुकारकर चीखते ए कहते—‘बेटा! मुझे बचाओ, ै

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भैया! मेरी र ा करो।’ यह सब सुनकर भी वे दोन महान् तधारी तप वी अपनी तप यासे नह डगे; अपने तको नह तोड़ सके ।। १३—१५ ।। यदा ोभं नोपया त ना तम यतर तयोः । ततः य ता भूतं च सवम तरधीयत ।। १६ ।। जब उन दोन मसे एक भी न तो इन घटना से ु ध आ और न कसीके मनम क का ही अनुभव आ, तब वे मायामयी याँ और वह रा स सब-के-सब अ य हो गये ।। १६ ।। ततः पतामहः सा ाद भग य महासुरौ । वरेण छ दयामास सवलोक हतः भुः ।। १७ ।। तब स पूण लोक के हतैषी पतामह सा ात् भगवान् ाने उन दोन महादै य के नकट आकर उ ह इ छानुसार वर माँगनेको कहा ।। १७ ।। ततः सु दोपसु दौ तौ ातरौ ढ व मौ । ् वा पतामहं दे वं त थतुः ा ली तदा ।। १८ ।। ऊचतु भुं दे वं तत तौ स हतौ तदा । आवयो तपसानेन य द ीतः पतामहः ।। १९ ।। माया वदाव वदौ ब लनौ काम पणौ । उभाव यमरौ यावः स ो य द नौ भुः ।। २० ।। तदन तर सु ढ़ परा मी दोन भाई सु द और उपसु द भगवान् ाको उप थत दे ख हाथ जोड़कर खड़े हो गये और एक साथ भगवान् ासे बोले—‘भगवन्! य द आप हमारी तप यासे स ह तो हम दोन स पूण माया के ाता, अ -श के व ान्, बलवान्, इ छानुसार प धारण करनेवाले और अमर हो जायँ’ ।। १८—२० ।। ोवाच ऋतेऽमर वं युवयोः सवमु ं भ व य त । अ यद् वृणीतं मृ यो वधानममरैः समम् ।। २१ ।। ाजीने कहा—अमर वके सवा तु हारी माँगी ई सब व तुएँ तु ह ा त ह गी। तुम मृ युका कोई सरा ऐसा वधान माँग लो, जो तु ह दे वता के समान बनाये रख सके ।। २१ ।। भ व याव इ त य महद यु तं तपः । युवयोहतुनानेन नामर वं वधीयते ।। २२ ।। हम तीन लोक के ई र ह गे, ऐसा संक प करके जो तुमलोग ने यह बड़ी भारी तप या ार भ क थी, इसी लये तुमलोग को अमर नह बनाया जाता; य क अमर व तु हारी तप याका उ े य नह था ।। २२ ।। ैलो य वजयाथाय भवद् यामा थतं तपः । हेतुनानेन दै ये ौ न वा कामं करो यहम् ।। २३ ।। ै









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दै यप तयो! तुम दोन ने लोक पर वजय पानेके लये ही इस तप याका आ य लया था, इसी लये तु हारी अमर व वषयक कामनाक पू त म नह कर रहा ँ ।। २३ ।।

सु दोपसु दावूचतुः षु लोकेषु यद् भूतं क चत् थावरज मम् । सव मा ो भयं न या तेऽ यो यं पतामह ।। २४ ।। सु द और उपसु द बोले— पतामह! तब यह वर द जये क हम दोन मसे एकसरेको छोड़कर तीन लोक म जो कोई भी चर या अचर भूत ह, उनसे हम मृ युका भय न हो ।। २४ ।। पतामह उवाच यत् ा थतं यथो ं च काममेतद् ददा न वाम् । मृ यो वधानमेत च यथावद् वा भ व य त ।। २५ ।। ाजीने कहा—तुमने जैसी ाथना क है, तु हारी वह मुँहमाँगी व तु तु ह अव य ँ गा। तु हारी मृ युका वधान ठ क इसी कार होगा ।। २५ ।। नारद उवाच ततः पतामहो द वा वरमेतत् तदा तयोः । नव य तपस तौ च लोकं जगाम ह ।। २६ ।। नारदजी कहते ह—यु ध र! उस समय उन दोन दै य को यह वरदान दे कर और उ ह तप यासे नवृ करके ाजी लोकको चले गये ।। २६ ।। ै







ल वा वरा ण द ै ये ावथ तौ ातरावुभौ । अव यौ सवलोक य वमेव भवनं गतौ ।। २७ ।। फर वे दोन भाई दै यराज सु द और उपसु द यह अभी वर पाकर स पूण लोक के लये अव य हो पुनः अपने घरको ही लौट गये ।। २७ ।। तौ तु लधवरौ ् वा कृतकामौ मन वनौ । सवः सु जन ता यां हषमुपज मवान् ।। २८ ।। वरदान पाकर पूणकाम होकर लौटे ए उनदोन मन वी वीर को दे खकर उनके सभी सगे-स ब धी बड़े स ए ।। २८ ।। तत तौ तु जटा भ वा मौ लनौ स बभूवतुः । महाहाभरणोपेतौ वरजोऽ बरधा रणौ ।। २९ ।। अकालकौमुद चैव च तुः सावका लक म् । न य मु दतः सव तयो ैव सु जनः ।। ३० ।। तदन तर उ ह ने जटाएँ कटाकर म तकपर मुकुट धारण कर लये और ब मू य आभूषण तथा नमल व धारण करके ऐसा काश फैलाया, मानो असमयम ही चाँदनी छटक गयी हो और सवदा दन-रात एकरस रहने लगी हो। उनके सभी सगे-स ब धी सदा आमोद- मोदम डू बे रहते थे ।। २९-३० ।। भ यतां भु यतां न यं द यतां र यता म त । गीयतां पीयतां चे त श द ासीद् गृहे गृहे ।। ३१ ।। येक घरम सवदा ‘खाओ, भोग करो, लुटाओ, मौज करो, गाओ और पीओ’का श द गूँजता रहता था ।। ३१ ।। त त महानादै कृ तलना दतैः । ं मु दतं सव दै यानामभवत् पुरम् ।। ३२ ।। जहाँ-तहाँ जोर-जोरसे ता लयाँ पीटनेक ऊँची आवाजसे दै य का वह सारा नगर हष और आन दम म न जान पड़ता था ।। ३२ ।। तै तै वहारैब भद यानां काम पणाम् । समाः सं डतां तेषामहरेक मवाभवत् ।। ३३ ।। इ छानुसार प धारण करनेवाले वे दै य वष तक भाँ त-भाँ तके खेल-कूद और आमोद- मोद करनेम लगे रहे; कतु वह सारा समय उ ह एक दनके समान लगा ।। ३३ ।। इ त ीमहाभारते आ दपव ण व रागमनरा यल भपव ण सु दोपसु दोपा यानेऽ ा धक शततमोऽ यायः ।। २०८ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत व रागमनरा यल भपवम सु दोपसु दोपा यान वषयक दो सौ आठवाँ अ याय पूरा आ ।। २०८ ।।

नवा धक शततमोऽ यायः सु द और उपसु द ारा ू रतापूण कम से वजय ा त करना

लोक पर

नारद उवाच उ सवे वृ मा े तु ैलो याकाङ् णावुभौ । म य वा ततः सेनां तावा ापयतां तदा ।। १ ।। नारदजी कहते ह—यु ध र! उ सव समा त हो जानेपर तीन लोक को अपने अ धकारम करनेक इ छासे आपसम सलाह करके उन दोन दै य ने सेनाको कूच करनेक आ ा द ।। १ ।। सु र यनु ातौ दै यैवृ ै म भः । कृ वा ा था नकं रा ौ मघासु ययतु तदा ।। २ ।। सु द तथा दै यजातीय बूढ़े म य क अनुम त लेकर उ ह ने रातके समय मघा न म थान करके या ा ार भ क ।। २ ।। गदाप शधा र या शूलमुदगरह ् तया । थतौ सह व म या मह या दै यसेनया ।। ३ ।। म लैः तु त भ ा प वजय तसं हतैः । चारणैः तूयमानौ तौ ज मतुः परया मुदा ।। ४ ।। उनके साथ गदा, प श, शूल, मुदगर ् और कवचसे सुस जत दै य क वशाल सेना जा रही थी। वे दोन सेनाके साथ थान कर रहे थे। चारणलोग वजयसूचक मंगल और तु तपाठ करते ए उन दोन के गुण गाते जाते थे। इस कार उन दोन दै य ने बड़े आन दसे या ा क ।। ३-४ ।। ताव त र मु लु य दै यौ कामगमावुभौ । दे वानामेव भवनं ज मतुयु मदौ ।। ५ ।। यु के लये उ म रहनेवाले वे दोन दै य इ छानुसार सव जानेक श रखते थे; अतः आकाशम उछलकर पहले दे वता के ही घर पर जा चढ़े ।। ५ ।। तयोरागमनं ा वा वरदानं च तत् भोः । ह वा व पं ज मु लोकं ततः सुराः ।। ६ ।। उनका आगमन सुनकर और ाजीसे मले ए उनके वरदानका वचार करके दे वतालोग वग छोड़कर लोकम चले गये ।। ६ ।। ता व लोकं न ज य य र ोगणां तदा । खेचरा य प भूता न ज नतु ती व मौ ।। ७ ।। इस कार इ लोकपर वजय पाकर वे ती परा मी दै य य , रा स तथा अ या य आकाशचारी भूत को मारने और पीड़ा दे ने लगे ।। ७ ।। ौ



अ तभू मगतान् नागा वा तौ च महारथौ । समु वा सनीः सवा ले छजाती व ज यतुः ।। ८ ।। उन दोन महार थय ने भू मके अंदर पातालम रहनेवाले नाग को जीतकर समु के तटपर नवास करनेवाली स पूण ले छ जा तय को परा त कया ।। ८ ।। ततः सवा मह जेतुमारधावु शासनौ । सै नकां समाय सुती णं वा यमूचतुः ।। ९ ।। तदन तर भयंकर शासन करनेवाले वे दोन दै य सारी पृ वीको जीतनेके लये उ त हो गये और अपने सै नक को बुलाकर अ य त तीखे वचन बोले— ।। ९ ।। राजषयो महाय ैह क ै जातयः । तेजो बलं च दे वानां वधय त यं तथा ।। १० ।। ‘इस पृ वीपर ब तसे राज ष और ा ण रहते ह, जो बड़े-बड़े य करके ह क ारा दे वता के तेज, बल और ल मीक वृ कया करते ह’ ।। १० ।। तेषामेवं वृ ानां सवषामसुर षाम् । स भूय सवर मा भः कायः सवा मना वधः ।। ११ ।। ‘इस कार य ा द कम म लगे ए वे सभी लोग असुर के ोही ह। इस लये हम सबको संग ठत होकर उन सबका सब कारसे वध कर डालना चा हये’ ।। ११ ।। एवं सवान् समा द य पूवतीरे महोदधेः । ू रां म त समा थाय ज मतुः सवतोमुखौ ।। १२ ।। समु के पूवतटपर अपने सम त सै नक को ऐसा आदे श दे कर मनम ू र संक प लये वे दोन भाई सब ओर आ मण करने लगे ।। १२ ।। य ैयज त ये के चद् याजय त च ये जाः । तान् सवान् सभं ह वा ब लनौ ज मतु ततः ।। १३ ।। जो लोग य करते तथा जो ा ण आचाय बनकर य कराते थे, उन सबका बलपूवक वध करके वे महाबली दै य आगे बढ़ जाते थे ।। १३ ।। आ मे व नहो ा ण मुनीनां भा वता मनाम् । गृही वा प य सु व धं सै नका तयोः ।। १४ ।। उनके सै नक शु ा मा मु नय के आ म पर जाकर उनके अ नहो क साम ी उठाकर बना कसी डर-भयके पानीम फक दे ते थे ।। १४ ।। तपोधनै ये ु ै ः शापा उ ा महा म भः । ना ाम त तयो तेऽ प वरदान नराकृताः ।। १५ ।। कुछ तप याके धनी महा मा ने ोधम भरकर उ ह जो शाप दये, उनके शाप भी उन दै य के मले ए वरदानसे तहत होकर उनका कुछ बगाड़ नह सके ।। १५ ।। ना ाम त यदा शापा बाणा मु ाः शला वव । नयमान् स प र य य व त जातयः ।। १६ ।। प थरपर चलाये ए बाण क भाँ त जब शाप उ ह पी ड़त न कर सके, तब ा णलोग अपने सारे नयम छोड़कर वहाँसे भाग चले ।। १६ ।। े

पृ थ ां ये तपः स ा दा ताः शमपरायणाः । तयोभयाद् वु ते वैनतेया दवोरगाः ।। १७ ।। जैसे साँप ग ड़के डरसे भाग जाते ह, उसी कार भूम डलके जते य, शा तपरायण एवं तपः स महा मा भी उन दोन दै य के भयसे भाग जाते थे ।। १७ ।। म थतैरा मैभ नै वक णकलश ुवैः । शू यमासी जगत् सव कालेनेव हतं तदा ।। १८ ।। सारे आ म मथकर उजाड़ डाले गये। कलश और ुव तोड़-फोड़कर फक दये गये। उस समय सारा जगत् कालके ारा वन एक भाँ त सूना हो गया ।। १८ ।। ततो राज य ऋ ष भ महासुरौ । उभौ व न यं कृ वा वकुवाते वधै षणौ ।। १९ ।। राजन्! तदन तर जब गुफा म छपे ए ऋ ष दखायी न दये, तब उन दोन ने एक राय करके उनके वधक इ छासे अपने व पको अनेक जीव-ज तु के पम बदल लया ।। १९ ।। भ करटौ म ौ भू वा कु र पणौ । संलीनम प गषु न यतुयमसादनम् ।। २० ।। क ठन-से-क ठन थानम छपे ए मु नको भी वे मद बहानेवाले मतवाले हाथीका प धारण करके यमलोक प ँचा दे ते थे ।। २० ।। सहौ भू वा पुन ा ौ पुन ा त हतावुभौ । तै तै पायै तौ ू रावृषीन् ् वा नज नतुः ।। २१ ।। नवृ य वा याया ण नृप त जा । उ स ो सवय ा च बभूव वसुधा तदा ।। २२ ।। वे कभी सह होते, कभी बाघ बन जाते और कभी अ य हो जाते थे। इस कार वे ू र दै य व भ उपाय ारा ऋ षय को ढूँ ढ़-ढूँ ढ़कर मारने लगे। उस समय पृ वीपर य और वा याय बंद हो गये। राज ष और ा ण न हो गये और या ा, ववाह आ द उ सव तथा य क सवथा समा त हो गयी ।। २१-२२ ।। हाहाभूता भयाता च नवृ वपणापणा । नवृ दे वकाया च पु यो ाह वव जता ।। २३ ।। सव हाहाकार छा रहा था, भयका आतनाद सुनायी पड़ता था। बाजार म खरीदब का नाम नह था। दे वकाय बंद हो गये। पु य और ववाहा द कम छू ट गये थे ।। २३ ।। नवृ कृ षगोर ा व व तनगरा मा । अ थकङ् कालसंक णा भूबभूवो दशना ।। २४ ।। कृ ष और गोर ाका नाम नह था, नगर और आ म उजड़कर ख डहर हो गये थे। चार ओर ह याँ और कंकाल भरे पड़े थे। इस कार पृ वीक ओर दे खना भी भयानक तीत होता था ।। २४ ।। नवृ पतृकाय च नवषट् कारम लम् । े

जगत् तभयाकारं े यमभवत् तदा ।। २५ ।। ा कम लु त हो गया। वषट् कार और मंगलका कह नाम नह रह गया। सारा जगत् भयानक तीत होता था। इसक ओर दे खनातक क ठन हो गया था ।। २५ ।। च ा द यौ हा तारा न ा ण दवौकसः । ज मु वषादं तत् कम ् वा सु दोपसु दयोः ।। २६ ।। सु द और उपसु दका वह भयानक कम दे खकर च मा, सूय, ह, तारे, न और दे वता सभी अ य त ख हो उठ े ।। २६ ।। एवं सवा दशो दै यौ ज वा ू रेण कमणा । नःसप नौ कु े े नवेशम भच तुः ।। २७ ।। इस कार वे दोन दै य अपने ू र कम ारा स पूण दशा को जीतकर श ु से र हत हो कु े म नवास करने लगे ।। २७ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण व रागमनरा यल भपव ण सु दोपसु दोपा याने नवा धक शततमोऽ यायः ।। २०९ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत व रागमनरा यल भपवम सु दोपसु दोपा यान वषयक दो सौ नौवाँ अ याय पूरा आ ।। २०९ ।।

दशा धक शततमोऽ यायः तलो माक उ प , उसके पका आकषण तथा सु दोप-सु दको मो हत करनेके लये उसका थान नारद उवाच ततो दे वषयः सव स ा परमषयः । ज मु तदा परामा त ् वा तत् कदनं महत् ।। १ ।। नारदजी कहते ह—यु ध र! तदन तर स पूण दे व ष और स -मह ष वह महान् ह याका ड दे खकर ब त ःखी ए ।। १ ।। तेऽ भज मु जत ोधा जता मानो जते याः । पतामह य भवनं जगतः कृपया तदा ।। २ ।। उ ह ने अपने मन, इ यसमुदाय तथा ोधको जीत लया था। फर भी स पूण जगत्पर दया करके वे ाजीके धामम गये ।। २ ।। ततो द शुरासीनं सह दे वैः पतामहम् । स ै ष भ ैव सम तात् प रवा रतम् ।। ३ ।। वहाँ प ँचकर उ ह ने ाजीको दे वता , स और मह षय से सब ओर घरे ए बैठे दे खा ।। ३ ।। त दे वो महादे व त ा नवायुना सह । च ा द यौ च श पारमे या तथषयः ।। ४ ।। वैखानसा बालख या वान था मरी चपाः । अजा ैवा वमूढा तेजोगभा तप वनः ।। ५ ।। ऋषयः सव एवैते पतामहमुपागमन् । ततोऽ भग य ते द नाः सव एव महषयः ।। ६ ।। सु दोपसु दयो कम सवमेव शशं सरे । यथा तं यथा चैव कृतं येन मेण च ।। ७ ।। यवेदयं ततः सवमखलेन पतामहे । ततो दे वगणाः सव ते चैव परमषयः ।। ८ ।। तमेवाथ पुर कृ य पतामहमचोदयन् । ततः पतामहः ु वा सवषां तद् वच तदा ।। ९ ।। मुत मव सं च य कत य च न यम् । तयोवधं समु य व कमाणमा यत् ।। १० ।। वहाँ भगवान् महादे व, वायुस हत अ नदे व, च मा, सूय, इ , पु मह ष, वैखानस (वनवासी), बालख य, वान थ, मरी चप, अज मा, अ वमूढ़ तथा तेजोगभ आ द नाना कारके तप वी मु न ाजीके पास आये थे। उन सभी मह षय ने नकट े

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जाकर द नभावसे ाजीसे सु द-उपसु दके सारे ू र कम का वृ ा त कह सुनाया। दै य ने जस कार लूट-पाट क , जैसे-जैसे और जस मसे लोग क ह याएँ क, वह सब समाचार पूण पसे ाजीको बताया। तब स पूण दे वता और मह षय ने भी इस बातको लेकर ाजीको ेरणा क । ाजीने उन सबक बात सुनकर दो घड़ीतक कुछ वचार कया। फर उन दोन के वधके लये कत का न य करके व कमाको बुलाया ।। ४—१० ।। ् वा च व कमाणं ा ददे श पतामहः । स यतां ाथनीयैका मदे त महातपाः ।। ११ ।। उनको आया दे खकर महातप वी ाजीने यह आ ा द क तुम एक त णी ीके शरीरक रचना करो, जो सबका मन लुभा लेनेवाली हो ।। ११ ।। पतामहं नम कृ य त ा यम भन च । नममे यो षतं द ां च त य वा पुनः पुनः ।। १२ ।। ाजीक आ ाको शरोधाय करके व कमाने उ ह णाम कया और खूब सोचवचारकर एक द युवतीका नमाण कया ।। १२ ।। षु लोकेषु यत् क चद् भूतं थावरज मम् । समानयद् दशनीयं तत् तद स व वत् ।। १३ ।। तीन लोक म जो कुछ भी चर और अचर दशनीय पदाथ था, सव व कमाने उन सबके सारांशका उस सु दरीके शरीरम सं ह कया ।। १३ ।। को टश ैव र ना न त या गा े यवेशयत् । तां र नसंघातमयीमसृजद् दे व पणीम् ।। १४ ।। उ ह ने उस युवतीके अंग म करोड़ र न का समावेश कया और इस कार र नरा शमयी उस दे व पणी रमणीका नमाण कया ।। १४ ।। सा य नेन महता न मता व कमणा । षु लोकेषु नारीणां पेणा तमाभवत् ।। १५ ।। व कमा ारा बड़े य नसे बनायी ई वह द युवती अपने प-सौ दयके कारण तीन लोक क य म अनुपम थी ।। १५ ।। न त याः सू मम य त यद् गा े पस पदा । नयु ा य वा न स ज त नरी ताम् ।। १६ ।। उसके शरीरम कह तलभर भी ऐसी जगह नह थी, जहाँक पस प को दे खनेके लये लगी ई दशक क जम न जाती हो ।। १६ ।। सा व हवतीव ीः काम पा वपु मती । जहार सवभूतानां च ूं ष च मनां स च ।। १७ ।। वह मू तमती काम पणी ल मीक भाँ त सम त ा णय के ने और मनको हर लेती थी ।। १७ ।। तलं तलं समानीय र नानां यद् व न मता । तलो मे त तत् त या नाम च े पतामहः ।। १८ ।। े े े

उ म र न का तल- तलभर अंश लेकर उसके अंग का नमाण आ था, इस लये ाजीने उसका नाम ‘ तलो मा’ रख दया ।। १८ ।। ाणं सा नम कृ य ा लवा यम वीत् । क काय म य भूतेश येना य ेह न मता ।। १९ ।। तदन तर तलो मा ाजीको नम कार करके हाथ जोड़कर बोली—‘ जापते! मुझपर कस कायका भार रखा गया है? जसके लये आज मेरे शरीरका नमाण कया गया है’ ।। १९ ।। पतामह उवाच ग छ सु दोपसु दा यामसुरा यां तलो मे । ाथनीयेन पेण कु भ े लोभनम् ।। २० ।। ाजीने कहा—भ े तलो मे! तू सु द और उपसु द नामक असुर के पास जा और अपने अ य त कमनीय पके ारा उनको लुभा ।। २० ।। व कृते दशनादे व पस पत कृतेन वै । वरोधः याद् यथा ता याम यो येन तथा कु ।। २१ ।। तुझे दे खते ही तेरे लये—तेरी पस प के लये उन दोन दै य म पर पर वरोध हो जाय, ऐसा य न कर ।। २१ ।। नारद उवाच सा तथे त त ाय नम कृ य पतामहम् । चकार म डलं त वबुधानां द णम् ।। २२ ।। नारदजी कहते ह—यु ध र! तब तलो माने वैसा ही करनेक त ा करके ाजीके चरण म णाम कया। फर वह दे वम डलीक प र मा करने लगी ।। २२ ।। ाङ् मुखो भगवाना ते द णेन महे रः । दे वा ैवो रेणासन् सवत वृषयोऽभवन् ।। २३ ।। ाजीके द णभागम भगवान् महे र पूवा भमुख होकर बैठे थे, उ रभागम दे वतालोग थे तथा ऋ ष-मु न ाजीके चार ओर बैठे थे ।। २३ ।। कुव या तु तदा त म डलं तत् द णम् । इ ः थाणु भगवान् धैयण यव थतौ ।। २४ ।। वहाँ तलो माने जब दे वम डलीक द णा आर भ क , तब इ और भगवान् शंकर दोन धैयपूवक अपने थानपर ही बैठे रहे ।। २४ ।। ु काम य चा यथ गतया पा त तया । अ यद चतपा ं द णं नःसृतं मुखम् ।। २५ ।। जब वह द ण पा क ओर गयी, तब उसे दे खनेक इ छासे भगवान् शंकरके द णभागम एक और मुख कट हो गया, जो कमलस श ने से सुशो भत था ।। २५ ।। पृ तः प रवत या प मं नःसृतं मुखम् । गतया चो रं पा मु रं नःसृतं मुखम् ।। २६ ।। ी े ओ ी औ ओ

जब वह पीछे क ओर गयी, तब उनका प म मुख कट आ और उ र पा क ओर उसके जानेपर भगवान् शवके उ रवत मुखका ाक आ ।। २६ ।। महे या प ने ाणां पृ तः पा तोऽ तः । र ा तानां वशालानां सह ं सवतोऽभवत् ।। २७ ।। इसी कार इ के भी आगे, पीछे और पा -भागम सब ओर लाल कोनेवाले सह वशाल ने कट हो गये ।। २७ ।। एवं चतुमुखः थाणुमहादे वोऽभवत् पुरा । तथा सह ने बभूव बलसूदनः ।। २८ ।। इस कार पूवकालम अ वनाशी भगवान् महादे वजीके चार मुख कट ए और बलह ता इ के हजार ने ए ।। २८ ।। तथा दे व नकायानां महष णां च सवशः । मुखा न चा यवत त येन या त तलो मा ।। २९ ।। सरे- सरे दे वता और मह षय के मुख भी जस ओर तलो मा जाती थी, उसी ओर घूम जाते थे ।। २९ ।। त या गा े नप तता तेषां महा मनाम् । सवषामेव भू य मृते दे वं पतामहम् ।। ३० ।। उस समय दे वा धदे व ाजीको छोड़कर शेष सभी महानुभाव क तलो माके शरीरपर बार-बार पड़ने लगी ।। ३० ।। ग छ या तु तया सव दे वा परमषयः । कृत म येव तत् काय मे नरे पस पदा ।। ३१ ।। जब वह जाने लगी, तब सभी दे वता और मह षय को उसक पस प दे खकर यह व ास हो गया क अब वह सारा काय स ही है ।। ३१ ।।

सु द और उपसु दका अ याचार

तलो माके लये सु द और उपसु दका यु

तलो मायां त यां तु गतायां लोकभावनः । सवान् वसजयामास दे वानृ षगणां तान् ।। ३२ ।। तलो माके चले जानेपर लोक ा ाजीने उन स पूण दे वता वदा कया ।। ३२ ।। इत

और मह षय को

ीमहाभारते आ दपव ण व रागमनरा यल भपव ण सु दोपसु दोपा याने तलो मा थापने दशा धक शततमोऽ यायः ।। २१० ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत व रागमनरा यल भपवम सु दोपसु दोपा यानके संगम तलो मा थापन वषयक दो सौ दसवाँ अ याय पूरा आ ।। २१० ।।

एकादशा धक शततमोऽ यायः तलो मापर मो हत होकर सु द-उपसु दका आपसम लड़ ना और मारा जाना एवं तलो माको ाजी ारा वर ा त तथा पा डव का ौपद के वषयम नयमनधारण नारद उवाच ज वा तु पृ थव दै यौ नःसप नौ गत थौ । कृ वा ैलो यम ं कृतकृ यौ बभूवतुः ।। १ ।। नारदजी कहते ह—यु ध र! वे दोन दै य सु द और उपसु द सारी पृ वीको जीतकर श ु से र हत एवं थार हत हो तीन लोक को पूणतः अपने वशम करके कृतकृ य हो गये ।। १ ।। दे वग धवय ाणां नागपा थवर साम् । आदाय सवर ना न परां तु मुपागतौ ।। २ ।। दे वता, ग धव, य , नाग, मनु य तथा रा स के सभी र न को छ नकर उन दोन दै य को बड़ा हष ा त आ ।। २ ।। यदा न तषे ार तयोः स तीह केचन । न ोगौ तदा भू वा वज ातेऽमरा वव ।। ३ ।। जब लोक म उनका सामना करनेवाले कोई नह रह गये, तब वे दे वता के समान अकम य होकर भोग- वलासम लग गये ।। ३ ।। ी भमा यै ग धै भ यभो यैः सुपु कलैः । पानै व वधै ैः परां ी तमवापतुः ।। ४ ।। सु दरी य , मनोहर माला , भाँ त-भाँ तके सुग ध, पया त भोजनसाम य तथा मनको य लगनेवाले अनेक कारके पेय रस का सेवन करके वे बड़े आन दसे दन बताने लगे ।। ४ ।। अ तःपुरवनो ाने पवतेषु वनेषु च । यथे सतेषु दे शेषु वज ातेऽमरा वव ।। ५ ।। अ तःपुरके उपवन और उ ानम, पवत पर, वन म तथा अ य मनोवां छत दे श म भी वे दे वता क भाँ त वहार करने लगे ।। ५ ।। ततः कदा चद् व य य थे सम शलातले । पु पता ेषु शालेषु वहारम भज मतुः ।। ६ ।। तदन तर एक दन व यपवतके शखरपर जहाँक शलामयी भू म समतल थी और जहाँ ऊँचे शाल-वृ क शाखाएँ फूल से भरी ई थ , वहाँ वे दोन दै य वहार करनेके लये े

गये ।। ६ ।। द ेषु सवकामेषु समानीतेषु तावुभौ । वरासनेषु सं ौ सह ी भ नषीदतुः ।। ७ ।। वहाँ उनके लये स पूण द भोग तुत कये गये, तदन तर वे दोन भाई े आसन पर सु दरी य के साथ आन दम न होकर बैठे ।। ७ ।। ततो वा द नृ या यामुपा त त तौ यः । गीतै तु तसंयु ै ः ी या समुपज मरे ।। ८ ।। तदन तर ब त-सी याँ ेमपूवक उनके पास आय और वा , नृ य, गीत एवं तु तशंसा आ दके ारा उन दोन का मनोरंजन करने लग ।। ८ ।। तत तलो मा त वने पु पा ण च वती । वेशं साऽऽ तमाधाय र े नैकेन वाससा ।। ९ ।। इसी समय तलो मा वहाँ वनम फूल चुनती ई आयी। उसके शरीरपर एक ही लाल रंगक महीन साड़ी थी। उसने ऐसा वेश धारण कर रखा था, जो कसी भी पु षको उ म बना सकता था ।। ९ ।। नद तीरेषु जातान् सा क णकारान् च वती । शनैजगाम तं दे शं य ा तां तौ महासुरौ ।। १० ।। नद के कनारे उगे ए कनेरके फूल का सं ह करती ई वह धीरे-धीरे उसी थानक ओर गयी, जहाँ वे दोन महादै य बैठे थे ।। १० ।। तौ तु पी वा वरं पानं मदर ा तलोचनौ । ् वैव तां वरारोहां थतौ स बभूवतुः ।। ११ ।। उन दोन ने ब त अ छा मादक रस पी लया था, जससे उनके ने नशेके कारण कुछ लाल हो गये थे। उस सु दर अंग वाली तलो माको दे खते ही वे दोन दै य कामवेदनासे थत हो उठे ।। ११ ।। तावु थायासनं ह वा ज मतुय सा थता । उभौ च कामस म ावुभौ ाथयत ताम् ।। १२ ।। और अपना आसन छोड़कर खड़े हो उसी थानपर गये, जहाँ वह खड़ी थी। दोन ही कामसे उ म हो रहे थे, इस लये दोन ही उसे अपनी ी बनानेके लये उससे ेमक याचना करने लगे ।। १२ ।। द णे तां करे सु ूं सु दो ज ाह पा णना । उपसु दोऽ प ज ाह वामे पाणौ तलो माम् ।। १३ ।। सु दने सु दर भ ह वाली तलो माका दा हना हाथ पकड़ा और उपसु दने उसका बायाँ हाथ पकड़ लया ।। १३ ।। वर दानम ौ तावौरसेन बलेन च । धनर नमदा यां च सुरापानमदे न च ।। १४ ।। एक तो वे लभ वरदानके मदसे उ म थे, सरे उनपर अपने वाभा वक बलका नशा सवार था। इसके सवा धनमद, र नमद और सुरापानके मदसे भी वे उ म हो रहे े

थे ।। १४ ।। सवरेतैमदै म ाव यो यं ुकुट कृतौ । (तौ कटा ेण द ै ये ावाकष त मु मु ः । द णेन कटा ेण सु दं ज ाह का मनी ।। वामेनैव कटा ेण उपसु दं जघृ ती । ग धाभरण पै तौ ामोहं ज मतु तदा ।।) मदकामसमा व ौ पर परमथोचतुः ।। १५ ।। इन सभी मद से उ म होनेके कारण आपसम ही एक- सरेपर उनक भ ह तन गय । तलो मा कटा ारा उन दोन दै यराज को बार-बार अपनी ओर आकृ कर रही थी। उस का मनीने अपने दा हने कटा से सु दको आकृ कर लया और बाय कटा से वह उपसु दको वशम करनेक चे ा करने लगी। उसक द सुग ध, आभूषणरा श तथा पस प से वे दोन दै य त काल मो हत हो गये। उनम मद और कामका आवेश हो गया; अतः वे एक- सरेसे इस कार बोले— ।। १५ ।। मम भाया तव गु र त सु दोऽ यभाषत । मम भाया तव वधू पसु दोऽ यभाषत ।। १६ ।। सु दने कहा—‘अरे! यह मेरी प नी है, तु हारे लये माताके समान है।’ यह सुनकर उपसु द बोल उठा—‘नह -नह , यह मेरी भाया है, तु हारे लये तो पु वधूके समान है’ ।। १६ ।। नैषा तव ममैषे त तत तौ म युरा वशत् । त या पेण स म ौ वगत नेहसौ दौ ।। १७ ।। ‘यह तु हारी नह है, मेरी है’, यही कहते-कहते उन दोन को ोध चढ़ आया। तलो माके पसे मतवाले होकर वे दोन नेह और सौहादसे शू य हो गये ।। १७ ।। त या हेतोगदे भीमे संगृ तावुभौ तदा । गृ च गदे भीमे त यां तौ काममो हतौ ।। १८ ।। उस सु दरीको पानेके लये दोन भाइय ने उस समय हाथम भयंकर गदाएँ ले ल । दोन ही उसके त कामसे मो हत हो रहे थे ।। १८ ।। अहं पूवमहं पूव म य यो यं नज नतुः । तौ गदा भहतौ भीमौ पेततुधरणीतले ।। १९ ।। ‘पहले म इसे ा त क ँ गा’, ‘नह , पहले म’; ऐसा कहते ए दोन एक- सरेको मारने लगे। इस कार गदा क चोट खाकर वे दोन भयानक दै य धरतीपर गर पड़े ।। १९ ।। धरेणाव स ा ौ ा ववाक नभयुतौ । तत ता व ता नायः स च दै यगण तथा ।। २० ।। पातालमगमत् सव वषादभयक पतः । ततः पतामह त सह दे वैमह ष भः ।। २१ ।। आजगाम वशु ा मा पूजयं तलो माम् । वरेण छ दयामास भगवान् पतामहः ।। २२ ।। े े े ो े े ऐ ो े ो

उनके सारे अंग खूनसे लथपथ हो रहे थे। ऐसा जान पड़ता था, मानो आकाशसे दो सूय पृ वीपर गर गये ह । उनके मारे जानेपर वे सब याँ वहाँसे भाग गय और दै य का वह सारा समुदाय वषाद और भयसे क पत होकर पातालम चला गया। त प ात् वशु अ तःकरणवाले भगवान् ाजी दे वता और मह षय के साथ तलो माक शंसा करते ए वहाँ आये और भगवान् पतामहने उसे वरके ारा स कया ।। २०—२२ ।। वरं द सुः स त ैनां ीतः ाह पतामहः । आ द यच रताँ लोकान् वच र य स भा व न ।। २३ ।। तेजसा च सु ां वां न क र य त क न । एवं त यै वरं द वा सवलोक पतामहः ।। २४ ।। इ े ैलो यमाधाय लोकं गतः भुः । वर दे नेके लये उ सुक ए ाजी वयं ही स तापूवक बोले—‘भा म न! जहाँतक सूयक ग त है, उन सभी लोक म तू इ छानुसार वचर सकेगी। तुझम इतना तेज होगा क कोई आँख भरकर तुझे अ छ तरह दे ख भी न सकेगा।’ इस कार स पूण लोक के पतामह ाजी तलो माको वरदान दे कर तथा लोक क र ाका भार इ को स पकर पुनः लोकको चले गये ।। २३-२४ ।। नारद उवाच एवं तौ स हतौ भू वा सवाथ वेक न यौ ।। २५ ।। तलो माथ सं ु ाव यो यम भज नतुः । त माद् वी म वः नेहात् सवान् भरतस माः ।। २६ ।। यथा वो ना भेदः यात् सवषां ौपद कृते । तथा कु त भ ं वो मम चेत् य म छथ ।। २७ ।। नारदजी कहते ह—यु ध र! इस कार सु द और उपसु दने पर पर संग ठत और सभी बात म एकमत रहकर भी तलो माके लये कु पत हो एक- सरेको मार डाला। अतः भरतवंश शरोम णयो! म तुम सब लोग से नेहवश कहता ँ क य द मेरा य चाहते हो, तो ऐसा कुछ नयम बना लो, जससे ौपद के लये तुम सब लोग म फूट न होने पावे। तु हारा क याण हो ।। २५—२७ ।। वैश पायन उवाच एवमु ा महा मानो नारदे न मह षणा । समयं च रे राजं तेऽ यो यवशमागताः । सम ं त य दे वषनारद या मतौजसः ।। २८ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! दे व ष नारदके ऐसा कहनेपर एक- सरेके अधीन रहनेवाले उन अ मततेज वी महा मा पा डव ने दे व षके सामने ही यह नयम बनाया— ।। २८ ।। (एक ै क य गृहे कृ णा वसेद ् वषमक मषा ।) ौ









ौप ा नः सहासीनान यो यं योऽ भदशयेत् । स नो ादश वषा ण चारी वने वसेत् ।। २९ ।। ‘हममसे येकके घरम पापर हत ौपद एक-एक वष नवास करे। ौपद के साथ एका तम बैठे ए हममसे एक भाईको य द सरा दे ख ले, तो वह बारह वष तक चयपूवक वनम नवास करे’ ।। २९ ।। कृते तु समये त मन् पा डवैधमचा र भः । नारदोऽ यगमत् ीत इ ं दे शं महामु नः ।। ३० ।। धमका आचरण करनेवाले पा डव ारा यह नयम वीकार कर लये जानेपर महामु न नारदजी स हो अभी थानको चले गये ।। ३० ।। एवं तैः समयः पूव कृतो नारदचो दतैः । न चा भ त ते सव तदा यो येन भारत ।। ३१ ।। भारत! इस कार नारदजीक ेरणासे पा डव ने पहले ही नयम बना लया था। इसी लये वे सब आपसम कभी एक- सरेके वरोधी नह ए ।। ३१ ।। (एतद ् व तरशः सवमा यातं ते नरे र । काले च त मन् स प ं यथाव जनमेजय ।।) नरे र जनमेजय! उस समय जो बात जस कार घ टत ई थ , वे सब मने तु ह व तारपूवक बतायी ह। इत

ीमहाभारते आ दपव ण व रागमनरा यल भपव ण सु दोपसु दोपा याने एकादशा धक शततमोऽ यायः ।। २११ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत व रागमनरा य भपवम सु दोपसु दोपा यान वषयक दो सौ यारहवाँ अ याय पूरा आ ।। २११ ।। (दा णा य अ धक पाठक े ३ ोक मलाकर कुल ३४ ोक ह)

(अ जुनवनवासपव) ादशा धक शततमोऽ यायः अजुनके ारा ा णके गोधनक र ाके लये नयमभंग और वनक ओर थान वैश पायन उवाच एवं ते समयं कृ वा यवसं त पा डवाः । वशे श तापेन कुव तोऽ यान् मही तः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! इस कार नयम बनाकर पा डवलोग वहाँ रहने लगे। वे अपने अ -श के तापसे सरे राजा को अधीन करते रहते थे ।। १ ।। तेषां मनुज सहानां प चानाम मतौजसाम् । बभूव कृ णा सवषां पाथानां वशव तनी ।। २ ।। कृ णा मनु य म सहके समान वीर और अ मत तेज वी उन पाँच पा डव क आ ाके अधीन रहती थी ।। २ ।। ते तया तै सा वीरैः प त भः सह प च भः । बभूव परम ीता नागैभ गवती यथा ।। ३ ।। पा डव ौपद के साथ और ौपद उन पाँच वीर प तय के साथ ठ क उसी तरह अ य त स रहती थी जैसे नाग के रहनेसे भोगवतीपुरी परम शोभायु होती है ।। ३ ।। वतमानेषु धमण पा डवेषु महा मसु । वधन् कुरवः सव हीनदोषाः सुखा वताः ।। ४ ।। महा मा पा डव के धमानुसार बताव करनेके कारण सम त कु वंशी नद ष एवं सुखी रहकर नर तर उ त करने लगे ।। ४ ।। अथ द घण कालेन ा ण य वशा पते । क य चत् त करा जः क े चद् गा नृपस म ।। ५ ।। महाराज! तदन तर द घकालके प ात् एक दन कुछ चोर ने कसी ा णक गौएँ चुरा ल ।। ५ ।। यमाणे धने त मन् ा णः ोधमू छतः । आग य खा डव थमुद ोशत् स पा डवान् ।। ६ ।। अपने गोधनका अपहरण होता दे ख ा ण अ य त ु हो उठा और खा डव थम आकर उसने उ च वरसे पा डव को पुकारा— ।। ६ ।। यते गोधनं ु ै नृशंसैरकृता म भः ।

स चा म षयाद यधावत पा डवाः ।। ७ ।। ‘पा डवो! हमारे गाँवसे कुछ नीच, ू र और पापा मा चोर जबरद ती गोधन चुराकर लये जा रहे ह। उसक र ाके लये दौड़ो ।। ७ ।। ा ण य शा त य ह व वाङ् ैः लु यते । शा ल य गुहां शू यां नीचः ो ा भमद त ।। ८ ।। ‘आज एक शा त वभाव ा णका ह व य कौए लूटकर खा रहे ह। नीच सयार सहक सूनी गुफाको र द रहा है ।। ८ ।। अर तारं राजानं ब लषड् भागहा रणम् । तमा ः सवलोक य सम ं पापचा रणम् ।। ९ ।। ‘जो राजा जाक आयका छठा भाग करके पम वसूल करता है, कतु जाक र ाक कोई व था नह करता, उसे स पूण लोक म पूण पापाचारी कहा गया है ।। ९ ।। ा ण वे ते चौरैधमाथ च वलो पते । रो यमाणे च म य यताम धारणम् ।। १० ।। ‘मुझ ा णका धन चोर लये जा रहे ह, मेरे गौके न रहनेपर ध आ द ह व यके अभावसे धम और अथका लोप हो रहा है तथा म यहाँ आकर रो रहा ँ। पा डवो! (चोर को द ड दे नेके लये) अ धारण करो’ ।। १० ।। वैश पायन उवाच रो यमाण या याशे भृशं व य पा डवः । ता न वा या न शु ाव कु तीपु ो धनंजयः ।। ११ ।। ु वैव च महाबा मा भै र याह तं जम् । वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! वह ा ण नकट आकर ब त रो रहा था। पा डु पु कु तीन दन धनंजयने उसक कही ई सारी बात सुन और सुनकर उन महाबा ने उस ा णसे कहा—‘डरो मत’ ।। ११ ।। आयुधा न च य ासन् पा डवानां महा मनाम् ।। १२ ।। कृ णया सह त ा ते धमराजो यु ध रः । स वेशाय चाश ो गमनाय च पा डवः ।। १३ ।। महा मा पा डव के अ -श जहाँ रखे गये थे, वह धमराज यु ध र कृ णाके साथ एका तम बैठे थे। अतः पा डु पु अजुन न तो घरके भीतर वेश कर सकते थे और न खाली हाथ चोर का ही पीछा कर सकते थे ।। १२-१३ ।। त य चात य तैवा यै ो मानः पुनः पुनः । आ दे त कौ तेय तयामास ःखतः ।। १४ ।। इधर उस आत ा णक बात उ ह बार-बार श ले आनेको े रत कर रही थ । जब वह अ धक रोने- च लाने लगा, तब अजुनने ःखी होकर सोचा— ।। १४ ।। यमाणे धने त मन् ा ण य तप वनः । अ ु माजनं त य कत म त न यः ।। १५ ।। ‘











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‘इस तप वी ा णके गोधनका अपहरण हो रहा है; अतः ऐसे समयम इसके आँसू प छना मेरा कत है। यही मेरा न य है ।। १५ ।। उप ेपणजोऽधमः सुमहान् या महीपतेः । य य दतो ा र न करो य र णम् ।। १६ ।। ‘य द म राज ारपर रोते ए इस ा णक र ा आज नह क ँ गा, तो महाराज यु ध रको उपे ाज नत महान् अधमका भागी होना पड़ेगा ।। १६ ।। अना त यं च सवषाम माकम प र णे । त त ेत लोकेऽ म धम ैव नो भवेत् ।। १७ ।। ‘इसके सवा लोकम यह बात फैल जायगी क हम सब लोग कसी आतक र ा प धमके पालनम ा नह रखते। साथ ही हम अधम भी ा तहोगा ।। १७ ।। अना य तु राजानं गते म य न संशयः । अजातश ोनृपतेमम चैवानृतं भवेत् ।। १८ ।। ‘य द राजाका अनादर करके म घरके भीतर चला जाऊँ, तो महाराज अजातश ुके त मेरी त ा म या होगी ।। १८ ।। अनु वेशे रा तु वनवासो भवे मम । सवम यत् प र तं धषणात् तु महीपतेः ।। १९ ।। ‘राजाक उप थ तम घरके भीतर वेश करनेपर मुझको वनम नवास करना होगा। इसम महाराजके तर कारके सवा और सारी बात तु छ होनेके कारण उपे णीय ह ।। १९ ।। अधम वै महान तु वने वा मरणं मम । शरीर य वनाशेन धम एव व श यते ।। २० ।। ‘चाहे राजाके तर कारसे मुझे नयमभंगका महान् दोष ा त हो अथवा वनम ही मेरी मृ यु हो जाय तथा प शरीरको न करके भी गौ- ा ण-र ा प धमका पालन ही े है’ ।। २० ।।

एवं व न य ततः कु तीपु ो धनंजयः । अनु व य राजानमापृ च वशा पते ।। २१ ।। धनुरादाय सं ो ा णं यभाषत । जनमेजय! ऐसा न य करके कु तीकुमार धनंजयने राजासे पूछकर घरके भीतर वेश करके धनुष ले लया और (बाहर आकर) स तापूवक ा णसे कहा— ।। २१ ।। ा णाग यतां शी ं यावत् परधनै षणः ।। २२ ।। न रे ते गताः ु ा तावद् ग छावहे सह । याव वतया य चौरह ताद् धनं तव ।। २३ ।। ‘ व वर! शी आइये। जबतक सर के धन हड़पनेक इ छावाले वे ु चोर र नह चले जाते, तभीतक हम दोन एक साथ वहाँ प ँच जायँ। म अभी आपका गोधन चोर के हाथसे छ नकर आपको लौटा दे ता ँ’ ।। २२-२३ ।। सोऽनुसृ य महाबा ध वी वम रथी वजी । शरै व व य तां ौरानव ज य च तद् धनम् ।। २४ ।। ऐसा कहकर महाबा अजुनने धनुष और कवच धारण करके वजायु रथपर आ ढ़ हो उन चोर का पीछा कया और बाण से चोर का वनाश करके सारा गोधन जीत लया ।। २४ ।।

ा णं समुपाकृ य यशः ा य च पा डवः । तत तद् गोधनं पाथ द वा त मै जातये ।। २५ ।। आजगाम पुरं वीरः स साची धनंजयः । सोऽ भवा गु न् सवान् सव ा य भन दतः ।। २६ ।। फर ा णको वह सारा गोधन दे कर स करके अनुपम यशके भागी हो पा डु पु स साची वीर धनंजय पुनः अपने नगरम लौट आये। वहाँ आकर उ ह ने सम त गु जन को णाम कया और उन सभी गु जन ने उनक बड़ी शंसा एवं अ भन दन कया ।। २५-२६ ।। धमराजमुवाचेदं तमा दश मे भो । समयः सम त ा तो भव संदशने मया ।। २७ ।। वनवासो ग म या म समयो ेष नः कृतः । इसके बाद अजुनने धमराजसे कहा—‘ भो! मने आपको ौपद के साथ दे खकर पहलेके न त नयमको भंग कया है; अतः आप इसके लये मुझे ाय करनेक आ ा द जये। म वनवासके लये जाऊँगा; य क हमलोग म यह शत हो चुक है’ ।। २७ ।। इ यु ो धमराज तु सहसा वा यम यम् ।। २८ ।। कथ म य वीद् वाचा शोकातः स जमानया । यु ध रो गुडाकेशं ाता ातरम युतम् ।। २९ ।। उवाच द नो राजा च धनंजय मदं वचः । माणम म य द ते म ः शृणु वचोऽनघ ।। ३० ।। अजुनके मुखसे सहसा यह अ य वचन सुनकर धमराज शोकातुर होकर लड़खड़ाती ई वाणीम बोले—‘ऐसा य करते हो?’ इसके बाद राजा यु ध र धममयादासे कभी युत न होनेवाले अपने भाई गुडाकेश धनंजयसे फर द न होकर बोले—‘अनघ! य द तुम मुझको माण मानते हो, तो मेरी यह बात सुनो— ।। २८—३० ।। अनु वेशे यद् वीर कृतवां वं मम यम् । सव तदनुजाना म लीकं न च मे द ।। ३१ ।। ‘वीरवर! तुमने घरके भीतर वेश करके तो मेरा य काय कया है, अतः उसके लये म तु ह आ ा दे ता ँ; य क मेरे दयम वह अ य नह है ।। ३१ ।। गुरोरनु वेशो ह नोपघातो यवीयसः । यवीयसोऽनु वेशो ये य व धलोपकः ।। ३२ ।। ‘य द बड़ा भाई घरम ीके साथ बैठा हो, तो छोटे भाईका वहाँ जाना दोषक बात नह है; परंतु छोटा भाई घरम हो, तो बड़े भाईका वहाँ जाना उसके धमका नाश करनेवाला है ।। ३२ ।। नवत व महाबाहो कु व वचनं मम । न ह ते धमलोपोऽ त न च ते धषणा कृता ।। ३३ ।। ‘



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‘अतः महाबाहो! मेरी बात मानो; वनवासका वचार छोड़ दो। न तो तु हारे धमका लोप आ है और न तु हारे ारा मेरा तर कार ही कया गया है’ ।। ३३ ।। अजुन उवाच न ाजेन चरेद ् धम म त मे भवतः ुतम् । न स याद् वच ल या म स येनायुधमालभे ।। ३४ ।। अजुन बोले— भो! मने आपके ही मुखसे सुना है क धमाचरणम कभी बहानेबाजी नह करनी चा हये। अतः म स यक शपथ खाकर और श छू कर कहता ँ क स यसे वच लत नह होऊँगा ।। ३४ ।। (आ ा तु मम दात ा भवता क तवधन । भवदा ामृते क च काय म त न तम् ।।) यशोवधन! मुझे आप वनवासके लये आ ा द, मेरा यह न य है क म आपक आ ाके बना कोई काय नह क ँ गा ।। वैश पायन उवाच सोऽ यनु ाय राजानं वनचयाय द तः । वने ादश वषा ण वासायानुजगाम ह ।। ३५ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! राजाक आ ा लेकर अजुनने वनवासक द ा ली और वनम बारह वष तक रहनेके लये वे वहाँसे चल पड़े ।। ३५ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण अजुनवनवासपव ण अजुनतीथया ायां ादशा धक शततमोऽ यायः ।। २१२ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत अजुनवनवासपवम अजुनतीथया ा वषयक दो सौ बारहवाँ अ याय पूरा आ ।। २१२ ।। (दा णा य अ धक पाठका १ ोक मलकर क ु ल ३६ ोक ह)

योदशा धक शततमोऽ यायः अजुनका गंगा ारम ठह रना और वहाँ उनका उलूपीके साथ मलन वैश पायन उवाच तं या तं महाबा ं कौरवाणां यश करम् । अनुज मुमहा मानो ा णा वेदपारगाः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! कौरववंशका यश बढ़ानेवाले महाबा अजुन जब जाने लगे, उस समय ब त-से वेद महा मा ा ण उनके साथ हो लये ।। १ ।। वेदवेदा व ांस तथैवा या म च तकाः । भै ा भगवद्भ ाः सूताः पौरा णका ये ।। २ ।। कथका ापरे राजन् मणा वनौकसः । द ा याना न ये चा प पठ त मधुरं जाः ।। ३ ।। वेद-वेदांग के व ान्, अ या म च तन करनेवाले, भ ाजीवी चारी, भगवद्भ , पुराण के ाता सूत, अ य कथावाचक, सं यासी, वान थ तथा जो ा ण मधुर वरसे द कथा का पाठ करते ह, वे सब अजुनके साथ गये ।। २-३ ।। एतै ा यै ब भः सहायैः पा डु न दनः । वृतः णकथैः ाया म रव वासवः ।। ४ ।। जैसे इ दे वता के साथ चलते ह, उसी कार पा डु न दन अजुन पूव पु ष तथा अ य ब त-से मधुरभाषी सहायक के साथ या ा कर रहे थे ।। ४ ।। रमणीया न च ा ण वना न च सरां स च । स रतः सागरां ैव दे शान प च भारत ।। ५ ।। पु या य प च तीथा न ददश भरतषभः । स ग ा ारमा य नवेशमकरोत् भुः ।। ६ ।। भारत! नर े अजुनने मागम अनेक रमणीय एवं व च वन, सरोवर, नद , सागर, दे श और पु यतीथ दे खे। धीरे-धीरे गंगा ार (हर ार)-म प ँचकर श शाली पाथने वह डेरा डाल दया ।। ५-६ ।। त त या तं कम शृणु वं जनमेजय । कृतवान् यद् वशु ा मा पा डू नां वरो ह सः ।। ७ ।। जनमेजय! गंगा ारम अजुनका एक अ त काय सुनो, जो पा डव म े वशु च धनंजयने कया था ।। ७ ।। न व े त कौ तेये ा णेषु च भारत । अ नहो ा ण व ा ते ा ु रनेकशः ।। ८ ।। ी











भारत! जब कु तीकुमार और उनके साथी ा णलोग गंगा ारम ठहर गये, तब उन ा ण ने अनेक थान पर अ नहो के लये अ न कट क ।। ८ ।। तेषु बो यमानेषु व लतेषु तेषु च । कृतपु पोपहारेषु तीरा तरगतेषु च ।। ९ ।। कृता भषेकै व नयतैः स प थ थतैः । शुशुभेऽतीव तद् राजन् ग ा ारं महा म भः ।। १० ।। गंगाके तटपर जब अलग-अलग अ नयाँ व लत हो गय और स मागम थत एवं मन-इ य को वशम रखनेवाले व ान् ा णलोग नान करके फूल के उपहार चढ़ाकर जब पूव अ नय म आ त दे चुके, तब उन महा मा के ारा उस गंगा ार नामक तीथक शोभा ब त बढ़ गयी ।। ९-१० ।। तथा पयाकुले त मन् नवेशे पा डवषभः । अ भषेकाय कौ तेयो ग ामवततार ह ।। ११ ।। इस कार व ान् एवं महा मा ा ण से जब उनका आ म भरा-पूरा हो गया, उस समय कु तीन दन अजुन नान करनेके लये गंगाम उतरे ।। ११ ।। त ा भषेकं कृ वा स तप य वा पतामहान् । उ तीषुजलाद् राज नकाय चक षया ।। १२ ।। अपकृ ो महाबा नागराज य क यया । अ तजले महाराज उलू या कामयानया ।। १३ ।। राजन्! वहाँ नान करके पतर का तपण करनेके प ात् अ नहो करनेके लये वे जलसे नकलना ही चाहते थे क नागराजक पु ी उलूपीने उनके त आस हो पानीके भीतरसे ही महाबा अजुनको ख च लया ।। १२-१३ ।। ददश पा डव त पावकं सुसमा हतः । कौर याथ नाग य भवने परमा चते ।। १४ ।। नागराज कौर के परम सु दर भवनम प ँचकर पा डु न दन अजुनने एका च होकर दे खा, तो वहाँ अ न व लत हो रही थी ।। १४ ।। त ा नकाय कृतवान् कु तीपु ो धनंजयः । अशङ् कमानेन त तेनातु यद् ताशनः ।। १५ ।। उस समय कु तीपु धनंजयने नभ क होकर उसी अ नम अपना अ नहो काय स प कया। इससे अ नदे व ब त संतु ए ।। १५ ।। अ नकाय स कृ वा तु नागराजसुतां तदा । हस व कौ तेय इदं वचनम वीत् ।। १६ ।। अ नहो का काय कर लेनेके प ात् अजुनने नागराजक यासे हँसते ए-से यह बात कही— ।। १६ ।। क मदं साहसं भी कृतव य स भा व न । क ायं सुभगे दे शः का च वं क य वाऽऽ मजा ।। १७ ।। ‘ ी

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‘भी ! तुमने ऐसा साहस य कया है? भा व न! यह कौन-सा दे श है? सुभगे! तुम कौन हो? कसक पु ी हो?’ ।। १७ ।।

उलू युवाच ऐरावतक ु ले जातः कौर ो नाम प गः । त या म हता राज ुलूपी नाम प गी ।। १८ ।। उलूपीने कहा—राजन्! ऐरावत नागके कुलम कौर नामक नाग उ प ए ह, म उ ह क पु ी ना गन ँ। मेरा नाम उलूपी है ।। १८ ।। साहं वाम भषेकाथमवतीण समु गाम् । ् वैव पु ष ा क दपणा भमू छता ।। १९ ।। नर े ! जब आप नान करनेके लये समु गा मनी नद गंगाम उतरे थे, उस समय आपको दे खते ही म कामवेदनासे मू छत हो गयी थी ।। १९ ।। तां मामन ल पतां व कृते कु न दन । अन यां न दय वा दानेना मनोऽनघ ।। २० ।। न पाप कु न दन! म आपके ही लये कामदे वके तापसे जली जा रही ँ। मने आपके सवा सरेको अपना दय अपण नह कया है। अतः मुझे आ मदान दे कर आन दत क जये ।। २० ।। अजुन उवाच चय मदं भ े मम ादशवा षकम् । धमराजेन चा द ं नाहम म वयंवशः ।। २१ ।। अजुन बोले—भ े ! यह मेरे बारह वष तक चालू रहनेवाले चय तका समय है। धमराज यु ध रने मुझे इस तके पालनक आ ा द है। अतः म अपने वशम नह ँ ।। २१ ।। तव चा प यं कतु म छा म जलचा र ण । अनृतं नो पूव च मया कचन क ह चत् ।। २२ ।। जलचा र ण! म तु हारा भी य करना चाहता ँ। मने पहले कभी कोई अस य बात नह कही है ।। २२ ।। कथं च नानृतं मे यात् तव चा प यं भवेत् । न च पी ेत मे धम तथा कुया भुज मे ।। २३ ।। नागक ये! तुम ऐसा कोई उपाय करो, जससे मुझे झूठका दोष न लगे, तु हारा भी य हो और मेरे धमको भी हा न न प ँचे ।। २३ ।। उलू युवाच जाना यहं पा डवेय यथा चर स मे दनीम् । यथा च ते चय मदमा द वान् गु ः ।। २४ ।। ी े













उलूपीने कहा—पा डु न दन! आप जस उ े यसे पृ वीपर वचर रहे ह और आपके बड़े भाईने जस कार आपको चय-पालनका आदे श दया है, वह सब म जानती ँ ।। २४ ।। पर परं वतमानान् पद या मजां त । यो नोऽनु वशे मोहात् स वै ादशवा षकम् ।। २५ ।। वने चरेद ् चय म त वः समयः कृतः । आपलोग ने आपसम यह शत कर रखी है क हम लोग मसे कोई भी य द ौपद के पास रहे, उस दशाम य द सरा मोहवश उस घरम वेश करे, तो वह बारह वष तक वनम रहकर चयका पालन करे ।। २५ ।। त ददं ौपद हेतोर यो य य वासनम् ।। २६ ।। कृतवां त धमाथम धम न य त । प र ाणं च कत मातानां पृथुलोचन ।। २७ ।। अतः आपके बड़े भाईने वहाँ धमक र ाके लये केवल ौपद को न म बनाकर यह एक- सरेके वासका नयम बनाया है। यहाँ आपका धम षत नह होता। वशाल ने वाले अजुन! आपको आत ा णय क र ा करनी चा हये ।। २६-२७ ।। कृ वा मम प र ाणं तव धम न लु यते । य द वा य य धम य सू मोऽ प याद् त मः ।। २८ ।। स च ते धम एव याद् द वा ाणान् ममाजुन । भ ां च भज मां पाथ सतामेत मतं भो ।। २९ ।। मेरी र ा करनेसे आपके धमका लोप नह होगा। य द आपके इस धमका थोड़ा-सा त म भी हो जाय तो भी मुझे ाणदान दे नेसे तो आपको महान् धम होगा ही। अतः मेरे वामी कु तीकुमार अजुन! म आपक भ ँ, मुझे वीकार क जये; यह आतर ण स पु ष का मत है ।। २८-२९ ।। न क र य स चेदेवं मृतां मामुपधारय । ाणदाना महाबाहो चर धममनु मम् ।। ३० ।। महाबाहो! य द आप मेरी ाथना पूण नह करगे तो न य जा नये, म मर जाऊँगी। अतः मुझे ाणदान दे कर अ य त उ म धमका अनु ान क जये ।। ३० ।। शरणं च प ा म वाम पु षो म । द नाननाथान् कौ तेय प रर स न यशः ।। ३१ ।। पु षो म! आज म आपक शरणम आयी ँ। कु तीकुमार! आप त दन न जाने कतने द न और अनाथ क र ा करते ह ।। ३१ ।। साहं शरणम ये म रोरवी म च ःखता । याचे वां चा भकामाहं त मात् कु मम यम् । स वमा म दानेन सकामां कतुमह स ।। ३२ ।। ी





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म भी यही आशा लेकर शरणम आयी ँ और बार-बार ःखी होकर रोती- गड़ गड़ाती ँ। म आपके त अनुर ँ और आपसे समागमक याचना करती ँ। अतः मेरा य मनोरथ पूण क जये। मुझे आ मदान दे कर मेरी कामना सफल क जये ।। ३२ ।। वैश पायन उवाच एवमु तु कौ तेयः प गे रक यया । कृतवां तत् तथा सव धममु य कारणम् ।। ३३ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! नागराजक क या उलूपीके ऐसा कहनेपर कु तीकुमार अजुनने धमको ही सामने रखकर वह सब काय पूण कया ।। ३३ ।। स नागभवने रा तामु ष वा तापवान् । उ दतेऽ यु थतः सूय कौर य नवेशनात् ।। ३४ ।। तापी अजुनने नागराजके घरम ही वह रा तीत क । फर सूय दय होनेपर वे कौर के भवनसे ऊपरको उठे ।। ३४ ।। आगत तु पुन त ग ा ारं तया सह । प र य य गता सा वी उलूपी नजम दरम् ।। ३५ ।। उलूपीके साथ अजुन फर गंगा ारम आ प ँचे। सा वी उलूपी उ ह वहाँ छोड़कर पुनः अपने घरको लौट गयी ।। ३५ ।। द वा वरमजेय वं जले सव भारत । सा या जलचराः सव भ व य त न संशयः ।। ३६ ।। (पु मु पादयामास स त यां सुमनोहरम् । इराव तं महाभागं महाबलपरा मम् ।।) भारत! जाते समय उसने अजुनको यह वर दया ‘ क आप जलम सव अजेय ह गे और सभी जलचर आपके वशम रहगे, इसम संशय नह है।’ इस कार अजुनने उलूपीके गभसे अ य त मनोहर तथा महान् बल-परा मसे स प इरावान् नामक महा उ प कया ।। ३६ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण अजुनवनवासपव युलूपीस मे च योदशा धक शततमोऽ यायः ।। २१३ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत अजुनवनवासपवम उलूपी-समागम वषयक दो सौ तेरहवाँ अ याय पूरा आ ।। २१३ ।। (दा णा य अ धक पाठका १ ोक मलाकर क ु ल ३७ ोक ह)

चतुदशा धक शततमोऽ यायः अजुनका पूव दशाके तीथ म मण करते ए म णपूरम जाकर च ांगदाका पा ण हण करके उसके गभसे एक पु उ प करना वैश पायन उवाच कथ य वा च तत् सव ा णे यः स भारत । ययौ हमव पा ततो व धरा मजः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! रातक वह सारी घटना ा ण से कहकर इ पु अजुन हमालयके पास चले गये ।। १ ।। अग यवटमासा व स य च पवतम् । भृगुतु े च कौ तेयः कृतवा छौचमा मनः ।। २ ।। अग यवट, व स पवत तथा भृगत ु ुंगपर जाकर उ ह ने शौच- नान आ द कये ।। २ ।। ददौ गोसह ा ण सुब न च भारत । नवेशां जा त यः सोऽददत् कु स मः ।। ३ ।। भारत! कु े अजुनने उन तीथ म ा ण को कई हजार गौएँ दान क और जा तय के रहनेके लये घर एवं आ म बनवा दये ।। ३ ।। हर य व दो तीथ च ना वा पु षस मः । वान् पा डव े ः पु या यायतना न च ।। ४ ।। हर य ब तीथम नान करके पा डव े पु षो म अजुनने अनेक प व थान का दशन कया ।। ४ ।। अवतीय नर े ो ा णैः सह भारत । ाच दशम भ े सुजगाम भरतषभः ।। ५ ।। जनमेजय! त प ात् हमालयसे नीचे उतरकर भरत-कुलभूषण नर े अजुन पूव दशाक ओर चल दये ।। ५ ।। आनुपू ण तीथा न वान् कु स मः । नद चो प लन र यामर यं नै मषं त ।। ६ ।। न दामपरन दां च कौ शक च यश वनीम् । महानद गयां चैव ग ाम प च भारत ।। ७ ।। भारत! फर उस या ाम कु े धनंजयने मशः अनेक तीथ का तथा नै मषार यतीथम बहनेवाली रमणीय उ प लनी नद , न दा, अपरन दा, यश वनी कौ शक (कोसी), महानद , गयातीथ और गंगाजीका भी दशन कया ।। ६-७ ।। एवं तीथा न सवा ण प यमान तथाऽऽ मान् । आ मनः पावनं कुवन् ा णे यो ददौ च गाः ।। ८ ।। े ी औ ो े े े े ो

इस कार उ ह ने सब तीथ और आ म को दे खते ए नान आ दसे अपनेको प व करके ा ण के लये ब त-सी गौएँ दान क ।। ८ ।। अ व क ल े षु या न तीथा न का न चत् । जगाम ता न सवा ण पु या यायतना न च ।। ९ ।। तदन तर अंग, वंग और क लग दे श म जो कोई भी प व तीथ और म दर थे, उन सबम वे गये ।। ९ ।। ् वा च व धवत् ता न धनं चा प ददौ ततः । क ल रा ारेषु ा णाः पा डवानुगाः । अ यनु ाय कौ तेयमुपावत त भारत ।। १० ।। और उन तीथ का दशन करके उ ह ने व धपूवक वहाँ धन-दान कया। क लग राक े ारपर प ँचकर अजुनके साथ चलनेवाले ा ण उनक अनुम त लेकर वहाँसे लौट गये ।। १० ।। स तु तैर यनु ातः कु तीपु ो धनंजयः । सहायैर पकैः शूरः ययौ य सागरः ।। ११ ।। परंतु कु तीपु शूरवीर धनंजय उन ा ण क आ ा ले थोड़े-से सहायक के साथ उस थानक ओर गये, जहाँ समु लहराता था ।। ११ ।। स क ल ान त य दे शानायतना न च । ह या ण रमणीया न े माणो ययौ भुः ।। १२ ।। क लग दे शको लाँघकर श शाली अजुन अनेक दे श , म दर तथा रमणीय अ ा लका का दशन करते ए आगे बढ़े ।। १२ ।। महे पवतं ् वा तापसै पशो भतम् । समु तीरेण शनैम णपूरं जगाम ह ।। १३ ।। इस कार वे तप वी मु नय से सुशो भत महे पवतका दशन कर समु के कनारेकनारे या ा करते ए धीरे-धीरे म णपूर प ँच गये ।। १३ ।। त सवा ण तीथा न पु या यायतना न च । अ भग य महाबा र यग छ महीप तम् ।। १४ ।। वहाँके स पूण तीथ और प व म दर म जानेके बाद महाबा अजुन म णपूरनरेशके पास गये ।। १४ ।। म णपूरे रं राजन् धम ं च वाहनम् । त य च ा दा नाम हता चा दशना ।। १५ ।। राजन्! म णपूरके वामी धम च वाहन थे। उनके च ांगदा नामवाली एक परम सु दरी क या थी ।। १५ ।। तां ददश पुरे त मन् वचर त य छया । ् वा च तां वरारोहां चकमे चै वाहनीम् ।। १६ ।। उस नगरम वचरण करती ई उस सु दर अंग वाली च वाहनकुमारीको अक मात् दे खकर अजुनके मनम उसे ा त करनेक अ भलाषा ई ।। १६ ।। ो

अ भग य च राजानमवदत् वं योजनम् । दे ह मे ख वमां राजन् याय महा मने ।। १७ ।। अतः राजासे मलकर उ ह ने अपना अ भ ाय इस कार बताया—‘महाराज! मुझ महामन वी यको आप अपनी यह पु ी दान कर द जये’ ।। १७ ।।

त छ वा व वीद् राजा क य पु ोऽ स नाम कम् । उवाच तं पा डवोऽहं कु तीपु ो धनंजयः ।। १८ ।। यह सुनकर राजाने पूछा—‘आप कनके पु ह और आपका या नाम है?’ अजुनने उ र दया, ‘म महाराज पा डु तथा कु तीदे वीका पु ँ। मुझे लोग धनंजय कहते ह’ ।। १८ ।। तमुवाचाथ राजा स सा वपूव मदं वचः । राजा भ नो नाम कुलेऽ मन् स बभूव ह ।। १९ ।। तब राजाने उ ह सा वना दे ते ए कहा—‘इस कुलम पहले भंजन नामसे स एक राजा हो गये ह ।। १९ ।। अपु ः सवेनाथ तप तेपे स उ मम् । उ ेण तपसा तेन दे वदे वः पनाकधृक् ।। २० ।। ई र तो षतः पाथ दे वदे व उमाप तः । स त मै भगवान् ादादे कैकं सवं कुले ।। २१ ।। ‘उनके कोई पु नह था, अतः उ ह ने पु क इ छासे उ म तप या ार भ क । पाथ! उ ह ने उस उ तप यासे पनाकधारी दे वा धदे व महे रको संतु कर लया। तब दे वदे वे र े े

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भगवान् उमाप त उ ह वरदान दे ते ए बोले—‘तु हारे कुलम एक-एक संतान होती जायगी’ ।। २०-२१ ।। एकैकः सव त माद् भव य मन् कुले सदा । तेषां कुमाराः सवषां पूवषां मम ज रे ।। २२ ।। एका च मम क येयं कुल यो पा दनी भृशम् । पु ो ममाय म त मे भावना पु षषभ ।। २३ ।। ‘इस कारण हमारे इस कुलम सदासे एक-एक संतान ही होती चली आ रही है। मेरे अ य सभी पूवज के तो पु होते आये ह, परंतु मेरे यह एक क या ही ई है। यही इस कुलक पर पराको चलानेवाली है। अतः भरत े ! इसके त मेरी यही भावना रहती है क ‘यह मेरा पु है’ ।। २२-२३ ।। पु का हेतु व धना सं ता भरतषभ । त मादे कः सुतो योऽ यां जायते भारत वया ।। २४ ।। एत छु कं भव व याः कुलकृ जायता मह । एतेन समयेनेमां तगृ व पा डव ।। २५ ।। ‘य प यह पु ी है, तो भी हेतु व धसे (अथात् इससे जो थम पु होगा, वह मेरा ही पु माना जायगा, इस हेतुसे) मने इसे पु क सं ा दे रखी है। भरत े ! तु हारे ारा इसके गभसे जो एक पु उ प हो, वह यह रहकर इस कुलपर पराका वतक हो; इस क याके ववाहका यही शु क आपको दे ना होगा। पा डु न दन! इसी शतके अनुसार आप इसे हण कर’ ।। २४-२५ ।। स तथे त त ाय तां क यां तगृ च । उवास नगरे त मं त ः कु तीसुतः समाः ।। २६ ।। ‘तथा तु’ कहकर अजुनने वैसा ही करनेक त ा क और उस क याका पा ण हण करके उ ह ने तीन वष तक उसके साथ उस नगरम नवास कया ।। २६ ।। त यां सुते समु प े प र व य वरा नाम् । आम य नृप त तं तु जगाम प रव ततुम् ।। २७ ।। उसके गभसे पु उ प हो जानेपर उस सु दरीको दयसे लगाकर अजुनने वदा ली तथा राजा च वाहनसे पूछकर वे पुनः तीथ म मण करनेके लये चल दये ।। २७ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण अजुनवनवासपव ण च ा दास मे चतुदशा धक शततमोऽ यायः ।। २१४ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत अजुनवनवासपवम च ांगदासमागम वषयक दो सौ चौदहवाँ अ याय पूरा आ ।। २१४ ।।

प चदशा धक शततमोऽ यायः अजुनके ारा वगा अ सराका ाहयो नसे उ ार तथा वगाक आ मकथाका आर भ वैश पायन उवाच ततः समु े तीथा न द णे भरतषभ । अ यग छत् सुपु या न शो भता न तप व भः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—भरत े ! तदन तर अजुन द ण समु के तटपर तप वीजन से सुशो भत परम पु यमय तीथ म गये ।। १ ।। वजय त म तीथा न त प च म तापसाः । अवक णा न या यासन् पुर तात् तु तप व भः ।। २ ।। वहाँ उन दन तप वीलोग पाँच तीथ को छोड़ दे ते थे। ये वे ही तीथ थे, जहाँ पूवकालम ब तेरे तप वी महा मा भरे रहते थे ।। २ ।। अग यतीथ सौभ ं पौलोमं च सुपावनम् । कार धमं स ं च हयमेधफलं च तत् ।। ३ ।। भार ाज य तीथ तु पाप शमनं महत् । एता न प च तीथा न ददश कु स मः ।। ४ ।। उनके नाम इस कार ह—अग यतीथ, सौभ -तीथ, परम पावन पौलोमतीथ, अ मेध य का फल दे नेवाला व छ कार धमतीथ तथा पापनाशक महान् भार ाजतीथ। कु े अजुनने इन पाँच तीथ का दशन कया ।। ३-४ ।। व व ा युपल याथ ता न तीथा न पा डवः । ् वा च व यमाना न मु न भधमबु भः ।। ५ ।। पा डु पु अजुनने दे खा, ये सभी तीथ बड़े एका तम ह, तो भी एकमा धमम बु को लगाये रखनेवाले मु न भी उन तीथ को रसे ही छोड़ दे रहे ह ।। ५ ।। तप वन ततोऽपृ छत् ा लः कु न दनः । तीथानीमा न व य ते कमथ वा द भः ।। ६ ।। तब कु न दन धनंजयने दोन हाथ जोड़कर तप वी मु नय से पूछा—‘वेदव ा ऋ षगण इन तीथ का प र याग कस लये कर रहे ह?’ ।। ६ ।। तापसा ऊचुः ाहाः प च वस येषु हर त च तपोधनान् । तत एता न व य ते तीथा न कु न दन ।। ७ ।। तप वी बोले—कु न दन! उन तीथ म पाँच ाह रहते ह, जो नहानेवाले तपोधन ऋ षय को जलके भीतर ख च ले जाते ह; इसी लये ये तीथ मु नय ारा याग दये गये

ह ।। ७ ।।

वैश पायन उवाच तेषां ु वा महाबा वायमाण तपोधनैः । जगाम ता न तीथा न ु ं पु षस मः ।। ८ ।। वैश पायनजी कहते ह—उनक बात सुनकर कु े महाबा अजुन उन तपोधन के मना करनेपर भी उन तीथ का दशन करनेके लये गये ।। ८ ।। ततः सौभ मासा महष तीथमु मम् । वगा सहसा शूरः नानं च े परंतपः ।। ९ ।। तदन तर परंतप शूरवीर अजुन मह ष सुभ के उ म सौभ तीथम सहसा उतरकर नान करने लगे ।। ९ ।। अथ तं पु ष ा म तजलचरो महान् । ज ाह चरणे ाहः कु तीपु ं धनंजयम् ।। १० ।। इतनेम ही जलके भीतर वचरनेवाले एक महान् ाहने नर े कु तीकुमार धनंजयका एक पैर पकड़ लया ।। १० ।। स तमादाय कौ तेयो व फुर तं जलेचरम् । उद त महाबा बलेन ब लनां वरः ।। ११ ।। परंतु बलवान म े महाबा कु तीकुमार ब त उछल-कूद मचाते ए उस जलचर जीवको लये- दये पानीसे बाहर नकल आये ।। ११ ।। उ कृ एव ाह तु सोऽजुनेन यश वना । बभूव नारी क याणी सवाभरणभू षता ।। १२ ।। यश वी अजुन ारा पानीके ऊपर खच आनेपर वह ाह सम त आभूषण से वभू षत एक परम सु दरी नारीके पम प रणत हो गया ।। १२ ।। द यमाना या राजन् द पा मनोरमा । तद तं महद् ् वा कु तीपु ो धनंजयः ।। १३ ।। तां यं परम ीत इदं वचनम वीत् । का वै वम स क या ण कुतो वा स जलेचरी ।। १४ ।। कमथ च महत् पाप मदं कृतवती पुरा । राजन्! वह द पणी मनोरमा रमणी अपनी अ त का तसे का शत हो रही थी। यह महान् आ यक बात दे खकर कु तीन दन धनंजय बड़े स ए और उस ीसे इस कार बोले—‘क याणी! तुम कौन हो और कैसे जलचरयो नको ा त ई थी? तुमने पूवकालम ऐसा महान् पाप कस लये कया जससे तु हारी यह ग त ई?’ ।। १३-१४ ।। वग वाच अ सरा म महाबाहो दे वार य वहा रणी ।। १५ ।। ो ी









वगा बोली—महाबाहो! म न दनवनम वहार करनेवाली एक अ सरा ँ ।। १५ ।। इ ा धनपते न यं वगा नाम महाबल । मम स य त ोऽ याः सवाः कामगमाः शुभाः ।। १६ ।। महाबल! मेरा नाम वगा है। म कुबेरक न य ेयसी रही ँ। मेरी चार सरी सखयाँ भी ह। वे सब इ छानुसार गमन करनेवाली और सु दरी ह ।। १६ ।। ता भः साध याता म लोकपाल नवेशनम् । ततः प यामहे सवा ा णं सं शत तम् ।। १७ ।। उन सबके साथ एक दन म लोकपाल कुबेरके घरपर जा रही थी। मागम हम सबने उ म तका पालन करनेवाले एक ा णको दे खा ।। १७ ।। पव तमधीयानमेकमेका तचा रणम् । त यैव तपसा राजं तद् वनं तेजसाऽऽवृतम् ।। १८ ।। वे बड़े पवान् थे और अकेले एका तम रहकर वेद का वा याय करते थे। राजन्! उ ह क तप यासे वह सारा वन ा त तेजोमय हो रहा था ।। १८ ।। आ द य इव तं दे शं कृ नं सव काशयत् । त य ् वा तप ता ग् पं चा तमु मम् ।। १९ ।। अवतीणाः म तं दे शं तपो व न चक षया । वे सूयक भाँ त उस स पूण दे शको का शत कर रहे थे। उनक वैसी तप या और वह अ त एवं उ म प दे खकर हम सभी अ सराएँ उनके तपम व न डालनेक इ छासे उस थानम उतर पड़ ।। १९ ।। अहं च सौरभेयी च समीची बुदबु ् दा लता ।। २० ।। यौगप ेन तं व म यग छाम भारत । गाय योऽथ हस य लोभ य वा च तं जम् ।। २१ ।। भारत! म, सौरभेयी, समीची, बुदबु ् दा और लता—पाँच एक ही साथ उन ा णके समीप गय और उ ह लुभाती ई हँसने तथा गाने लग ।। २०-२१ ।। स च ना मासु कृतवान् मनो वीर कथंचन । नाक पत महातेजाः थत तप स नमले ।। २२ ।। परंतु वीरवर! उ ह ने कसी कार भी अपने मनको हमारी ओर नह खचने दया। वे महातेज वी ा ण नमल तप याम संल न थे। वे उससे त नक भी वच लत नह ए ।। २२ ।। सोऽशपत् कु पतोऽ मासु ा णः यषभ । ाहभूता जले यूयं च र यथ शतं समाः ।। २३ ।। य शरोमणे! हमारी उ डतासे कु पत होकर उन ा णने हम शाप दे दया —‘तुमलोग सौ वष तक जलम ाह बनकर रहोगी’ ।। २३ ।। इत



ीमहाभारते आ दपव यजुनवनवासपव ण तीथ ाह वमोचने प चदशा धक शततमोऽ यायः ।। २१५ ।।







इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत अजुनवनवासपवम तीथ ाह वमोचन वषयक दो सौ पं हवाँ अ याय पूरा आ ।। २१५ ।।

षोडशा धक शततमोऽ यायः वगाक शापमु

ाथनासे अजुनका शेष चार अ सरा को भी करके म णपूर जाना और च ांगदासे मलकर गोकणतीथको थान करना

वग वाच ततो वयं थताः सवा भारतस म । अयाम शरणं व ं तं तपोधनम युतम् ।। १ ।। वगा बोली—भरतवंशके महापु ष! उन ा णका शाप सुनकर हम बड़ा ःख आ। तब हम सब-क -सब अपने धमसे युत न होनेवाले उन तप वी व क शरणम गय ।। १ ।। पेण वयसा चैव क दपण च द पताः । अयु ं कृतव यः म तुमह स नो ज ।। २ ।। (और इस कार बोल —) ‘ न्! हम प, यौवन और कामसे उ म हो गयी थ । इसी लये यह अनु चत काय कर बैठ। आप कृ पापूवक हमारा अपराध मा कर ।। २ ।। एष एव वधोऽ माकं सुपया त तपोधन । यद् वयं सं शता मानं लोधुं वा महागताः ।। ३ ।। ‘तपोधन! हमारा तो पूण पसे यही मरण हो गया क हम आप-जैसे शु ा मा मु नको लुभानेके लये यहाँ आय ।। ३ ।। अव या तु यः सृ ा म य ते धमचा रणः । त माद् धमण वध वं ना मान् ह सतुमह स ।। ४ ।। ‘धमा मा पु ष ऐसा मानते ह क याँ अव य बनायी गयी ह। अतः आप अपने धमाचरण ारा नर तर उ त क जये। आपको हम अबला क ह या नह करनी चा हये ।। ४ ।। सवभूतेषु धम मै ो ा ण उ यते । स यो भवतु क याण एष वादो मनी षणाम् ।। ५ ।। ‘धम ! ा ण सम त ा णय पर मै ीभाव रखनेवाला कहा जाता है। भ पु ष! मनीषी पु ष का यह कथन स य होना चा हये ।। ५ ।। शरणं च प ानां श ाः कुव त पालनाम् । शरणं वां प ाः म त मात् वं तुमह स ।। ६ ।। ‘ े महा मा शरणागत क र ा करते ह। हम भी आपक शरणम आयी ह; अतः आप हमारे अपराध मा कर’ ।। ६ ।। वैश पायन उवाच

एवमु ः स धमा मा ा णः शुभकमकृत् । सादं कृतवान् वीर र वसोमसम भः ।। ७ ।। वैश पायनजी कहते ह—वीरवर! उनके ऐसा कहनेपर सूय और च माके समान तेज वी तथा शुभ कम करनेवाले उन धमा मा ा णने उन सबपर कृपा क ।। ७ ।। ा ण उवाच शतं शतसह ं तु सवम यवाचकम् । प रमाणं शतं वेत ेदम यवाचकम् ।। ८ ।। ा ण बोले—‘शत’ और ‘शतसह’ श द—ये सभी अन त सं याके वाचक ह, परंतु यहाँ जो मने ‘शतं समाः’ (तुमलोग को सौ वष तक ाह होनेके लये) कहा है, उसम शत श द सौ वषके प रमाणका ही वाचक है। अन तकालका वाचक नह है ।। ८ ।। यदा च वो ाहभूता गृ तीः पु षा ले । उ कष त जलात् त मात् थलं पु षस मः ।। ९ ।। तदा यूयं पुनः सवाः वं पं तप यथ । अनृतं नो पूव मे हसता प कदाचन ।। १० ।। जब जलम ाह बनकर लोग को पकड़नेवाली तुम सब अ सरा को कोई े पु ष जलसे बाहर थलपर ख च लायेगा, उस समय तुम सब लोग फर अपना द प ात कर लोगी। मने पहले कभी हँसीम भी झूठ नह कहा है ।। ९-१० ।। ता न सवा ण तीथा न ततः भृ त चैव ह । नारीतीथा न ना नेह या त या य त सवशः । पु या न च भ व य त पावना न मनी षणाम् ।। ११ ।। तुमलोग का उ ार हो जानेके बाद वे सभी तीथ इस जगत्म नारीतीथके नामसे व यात ह गे और मनीषी पु ष को भी प व करनेवाले पु यतीथ बन जायँगे ।। ११ ।। वग वाच ततोऽ भवा तं व ं कृ वा चा प द णम् । अ च तयामोऽपसृ य त माद् दे शात् सु ःखताः ।। १२ ।। व नु नाम वयं सवाः कालेना पेन तं नरम् । समाग छे म यो न तद् पमापादयेत् पुनः ।। १३ ।। वगा कहती है—भारत! तदन तर उन ा णको णाम और उनक द णा करके अ य त ःखी हो हम सब उस थानसे अ य चली आय और इस च ताम पड़ गय क कहाँ जाकर हम सब लोग रह, जससे थोड़े ही समयम हम वह मनु य मल जाय, जो हम पुनः हमारे पूव व पक ा त करायेगा ।। १२-१३ ।। ता वयं च त य वैव मुता दव भारत । व यो महाभागं दे व षमुत नारदम् ।। १४ ।। भरत े ! हमलोग दो घड़ीसे इस कार सोच- वचार कर ही रही थ क हमको महाभाग दे व ष नारदजीका दशन ा त आ ।। १४ ।। े

स ाः म तं ् वा दे व षम मत ु तम् । अ भवा च तं पाथ थताः म ी डताननाः ।। १५ ।। कु तीन दन! उन अ मततेज वी दे व षको दे खकर हम बड़ा हष आ और उ ह णाम करके हम ल जावश सर झुकाकर वहाँ खड़ी हो गय ।। १५ ।। स नोऽपृ छद् ःखमूलमु व यो वयं च तम् । ु वा त यथावृ मदं वचनम वीत् ।। १६ ।। फर उ ह ने हमारे ःखका कारण पूछा और हमने उनसे सब कुछ बता दया। सारा हाल सुनकर वे इस कार बोले— ।। १६ ।। द णे सागरानूपे प च तीथा न स त वै । पु या न रमणीया न ता न ग छत मा चरम् ।। १७ ।। ‘द ण समु के तटके समीप पाँच तीथ ह, जो परम पु यजनक तथा अ य त रमणीय ह। तुम सब उ हीम चली जाओ, दे र न करो ।। १७ ।। त ाशु पु ष ा ः पा डवेयो धनंजयः । मो य य त शु ा मा ःखाद मा संशयः ।। १८ ।। त य सवा वयं वीर ु वा वा य महागताः । त ददं स यमेवा मो ताहं वयानघ ।। १९ ।। ‘वहाँ पु ष म े शु ा मा पा डु कुमार धनंजय शी ही प ँचकर तु ह इस ःखसे छु ड़ायगे, इसम संशय नह है।’ वीर अजुन! नारदजीका यह वचन सुनकर हम सब सखयाँ यह चली आय । अनघ! आज सचमुच ही आपने मुझे उस शापसे मु कर दया ।। १८-१९ ।। एता तु मम ताः स य त ोऽ या जले ताः । कु कम शुभं वीर एताः सवा वमो य ।। २० ।। ये मेरी चार सखयाँ और ह, जो अभी जलम ही पड़ी ह। वीरवर! आप यह पु य कम क जये; इन सबको शापसे छु ड़ा द जये ।। २० ।।

वैश पायन उवाच तत ताः पा डव े ः सवा एव वशा पते । त मा छापादद ना मा मो यामास वीयवान् ।। २१ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तब उदार दय परा मी पा डव े अजुनने उन सभी अ सरा को उस शापसे मु कर दया ।। २१ ।। उ थाय च जलात् त मात् तल य वपुः वकम् । ता तदा सरसो राज य त यथा पुरा ।। २२ ।। राजन्! उस जलसे ऊपर नकलकर फर अपना पूव व प ा त कर लेनेपर वे अ सराएँ उस समय पहलेक भाँ त दखायी दे ने लग ।। २२ ।। तीथा न शोध य वा तु तथानु ाय ताः भुः । च ा दां पुन ु ं म णपूरं पुनययौ ।। २३ ।। ी













इस कार उन तीथ का शोधन करके उन अ सरा को जानेक आ ा दे श शाली अजुन च ांगदासे मलनेके लये पुनः म णपूर गये ।। २३ ।। त यामजनयत् पु ं राजानं ब ुवाहनम् । तं ् वा पा डवो राजं वाहनम वीत् ।। २४ ।। वहाँ उ ह ने च ांगदाके गभसे जो पु उ प कया था, उसका नाम ब ुवाहन रखा गया था। राजन्! अपने उस पु को दे खकर पा डु पु अजुनने राजा च वाहनसे कहा — ।। २४ ।। च ा दायाः शु कं वं गृहाण ब ुवाहनम् । अनेन च भ व या म ऋणा मु ो नरा धप ।। २५ ।। ‘महाराज! इस ब ुवाहनको आप च ांगदाके शु क पम हण क जये, इससे म आपके ऋणसे मु हो जाऊँगा’ ।। २५ ।। च ा दां पुनवा यम वीत् पा डु न दनः । इह वै भव भ ं ते वधथा ब ुवाहनम् ।। २६ ।। त प ात् पा डु कुमारने पुनः च ांगदासे कहा—‘ ये! तु हारा क याण हो। तुम यह रहो और ब ुवाहनका पालन-पोषण करो ।। २६ ।। इ थ नवासं मे वं त ाग य रं य स । कु त यु ध रं भीमं ातरौ मे कनीयसौ ।। २७ ।। आग य त प येथा अ यान प च बा धवान् । बा धवैः स हताः सवन दसे वम न दते ।। २८ ।। ‘ फर यथासमय हमारे नवास थान इ थम आकर तुम बड़े सुखसे रहोगी। वहाँ आनेपर माता कु ती, यु ध र, भीमसेन, मेरे छोटे भाई नकुल-सहदे व तथा अ य ब धुबा धव को दे खनेका तु ह अवसर मलेगा। अ न दते! इ थम मेरे सम त ब धुबा धव से मलकर तुम ब त स होओगी ।। २७-२८ ।। धम थतः स यधृ तः कौ तेयोऽथ यु ध रः । ज वा तु पृ थव सवा राजसूयं क र य त ।। २९ ।। ‘सदा धमपर थत रहनेवाले स यवाद कु तीन दन महाराज यु ध र सारी पृ वीको जीतकर राजसूयय करगे ।। २९ ।। त ाग छ त राजानः पृ थ ां नृपसं ताः । ब न र ना यादाय आग म य त ते पता ।। ३० ।। ‘उस समय वहाँ भूम डलके नरेशनामधारी सभी राजा आयगे। तु हारे पता भी ब तसे र न क भट लेकर उस समय उप थत ह गे ।। ३० ।। एकसाथ याता स च वाहनसेवया । या म राजसूये वां पु ं पालय मा शुचः ।। ३१ ।। ‘ च वाहनक सेवाके न म उ ह के साथ राजसूयय म तुम भी चली आना। म वह तुमसे मलूँगा। इस समय पु का पालन करो और शोक छोड़ दो ।। ३१ ।। ब ुवाहनना ना तु मम ाणो महीचरः । ै

त माद् भर व पु ं वै पु षं वंशवधनम् ।। ३२ ।। ‘ब ुवाहनके नामसे मेरा ाण ही इस भूतलपर व मान है, अतः तुम इस पु का भरण-पोषण करो। यह इस वंशको बढ़ानेवाला पु षर न है ।। ३२ ।। च वाहनदायादं धमात् पौरवन दनम् । पा डवानां यं पु ं त मात् पालय सवदा ।। ३३ ।। ‘यह धमतः च वाहनका पु है; कतु शरीरसे पू वंशको आन दत करनेवाला है। अतः पा डव के इस य पु का तुम सदा पालन करो ।। ३३ ।। व योगेन संतापं मा कृथा वम न दते । च ा दामेवमु वा गोकणम भतोऽगमत् ।। ३४ ।। ‘सती-सा वी ये! मेरे वयोगसे तुम संत त न होना।’ च ांगदासे ऐसा कहकर अजुन गोकणतीथक ओर चल दये ।। ३४ ।। आ ं पशुपतेः थानं दशनादे व मु दम् । य पापोऽ प मनुजः ा ो यभयदं पदम् ।। ३५ ।। वह भगवान् शंकरका आ द थान है और दशनमा से मो दे नेवाला है। पापी मनु य भी वहाँ जाकर नभय पद ा त कर लेता है ।। ३५ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव यजुनवनवासपव यजुनतीथया ायां षोडशा धक शततमोऽ यायः ।। २१६ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत अजुनवनवासपवम अजुनक तीथया ासे स ब ध रखनेवाला दो सौ सोलहवाँ अ याय पूरा आ ।। २१६ ।।

स तदशा धक शततमोऽ यायः अजुनका भासतीथम ीकृ णसे मलना और उ ह के साथ उनका रैवतक पवत एवं ारकापुरीम आना वैश पायन उवाच सोऽपरा तेषु तीथा न पु या यायतना न च । सवा येवानुपू ण जगामा मत व मः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर अ मत-परा मी अजुन मशः अपरा त (प म समु तटवत )-दे शके सम त पु य तीथ और म दर म गये ।। १ ।। समु े प मे या न तीथा यायतना न च । ता न सवा ण ग वा स भासमुपज मवान् ।। २ ।। प म समु के तटपर जतने तीथ और दे वालय थे, उन सबक या ा करके वे भास े म जा प ँचे ।। २ ।। भासदे शं स ा तं बीभ सुमपरा जतम् । सुपु यं रमणीयं च शु ाव मधुसूदनः ।। ३ ।। ततोऽ यग छत् कौ तेयं सखायं त माधवः । द शाते तदा यो यं भासे कृ णपा डवौ ।। ४ ।। भगवान् ीकृ णने गु तचर ारा यह सुना क कसीसे भी परा त न होनेवाले अजुन परम प व एवं रमणीय भास े म आ गये ह, तब वे अपने सखा कु तीन दनसे मलनेके लये वहाँ गये। उस समय भासम ीकृ ण और अजुनने एक- सरेको दे खा ।। ३-४ ।। ताव यो यं समा य पृ ् वा च कुशलं वने । आ तां यसखायौ तौ नरनारायणावृषी ।। ५ ।। दोन ही दोन को दयसे लगाकर कुशलपूछनेके प ात् वे पर पर य म सा ात् नर-नारायण ऋ ष वनम एक थानपर बैठ गये ।। ५ ।।

ततोऽजुनं वासुदेव तां चया पयपृ छत । कमथ पा डवैता न तीथा यनुचर युत ।। ६ ।। तब भगवान् वासुदेवने अजुनसे उनक जीवनचयाके स ब धम पूछा—‘पा डव! तुम कस लये तीथ म वचर रहे हो?’ ।। ६ ।। ततोऽजुनो यथावृ ं सवमा यातवां तदा । ु वोवाच च वा णय एवमेत द त भुः ।। ७ ।। यह सुनकर अजुनने उ ह सारा वृ ा त य -का- य सुना दया। सब कुछ सुनकर भगवान् ीकृ ण बोले—‘यह बात ऐसी ही है’ ।। ७ ।। तौ व य यथाकामं भासे कृ णपा डवौ । महीधरं रैवतकं वासायैवा भज मतुः ।। ८ ।। तदन तर ीकृ ण और अजुन दोन भास े म इ छानुसार घूम- फरकर रैवतक पवतपर चले गये। उ ह रातको वह ठहरना था ।। ८ ।। पूवमेव तु कृ ण य वचनात् तं महीधरम् । पु षा म डया च ु पज भोजनम् ।। ९ ।। भगवान् ीकृ णक आ ासे उनके सेवक ने पहलेसे ही आकर उस पवतको सजा रखा था और वहाँ भोजन भी तैयार करके रख लया था ।। ९ ।। तगृ ाजुनः सवमुपभु य च पा डवः । सहैव वासुदेवेन वान् नटनतकान् ।। १० ।।

अ यनु ाय तान् सवानच य वा च पा डवः । स कृतं शयनं द म यग छ महाम तः ।। ११ ।। पा डु कुमार अजुनने भगवान् वासुदेवके साथ तुत कये ए स पूण भो य पदाथ को यथा च खाकर नट और नतक के नृ य दे खे। त प ात् उन सबको उपहार आ दसे स मा नत करके जानेक आ ा दे महाबु मान् पा डु कुमार अजुन स कारपूवक बछ ई द शयापर सोनेक े लये गये ।। १०-११ ।। तत त महाबा ः शयानः शयने शुभे । तीथानां प वलानां च पवतानां च दशनम् । आपगानां वनानां च कथयामास सा वते ।। १२ ।। वहाँ सु दर शयापर सोये ए महाबा धनंजयने भगवान् ीकृ णसे अनेक तीथ , कु ड , पवत , न दय तथा वन के दशनस ब धी अनुभवक व च बात कह ।। १२ ।। एवं स कथय ेव न या जनमेजय । कौ तेयोऽ प त त मन् शयने वगसं नभे ।। १३ ।। जनमेजय! इस कार बात करते-करते अजुन उस वगस श सुखदा यनी शयापर सो गये ।। १३ ।। मधुरेणैव गीतेन वीणाश दे न चैव ह । बो यमानो बुबुधे तु त भम लै तथा ।। १४ ।। तदन तर ातःकाल मधुर गीत, वीणाक मीठ व न, तु त और मंगलपाठके श द ारा जगाये जानेपर उनक न द खुली ।। १४ ।। स कृ वाव यकाया ण वा णयेना भन दतः । रथेन का चना े न ारकाम भज मवान् ।। १५ ।। त प ात् आव यक काय करके ीकृ णके ारा अ भन दत हो उनके साथ सुवणमय रथपर बैठकर वे ारकापुरीको गये ।। १५ ।। अलंकृता ारका तु बभूव जनमेजय । कु तीपु य पूजाथम प न कुटके व प ।। १६ ।। जनमेजय! उस समय कु तीकुमारके वागतके लये समूची ारकापुरी सजायी गयी थी तथा वहाँके घर के बगीचेतक सजाये गये थे ।। १६ ।। द त कौ तेयं ारकावा सनो जनाः । नरे मागमाज मु तूण शतसह शः ।। १७ ।। कु तीन दन अजुनको दे खनेके लये ारका-वासी मनु य लाख क सं याम मु य सड़कपर चले आये थे ।। १७ ।। अवलोकेषु नारीणां सह ा ण शता न च । भोजवृ य धकानां च समवायो महानभूत् ।। १८ ।। जहाँसे अजुनका दशन हो सके, ऐसे थान पर सैकड़ -हजार याँ आँख लगाये खड़ी थ तथा भोज, वृ ण और अ धकवंशके पु ष क ब त बड़ी भीड़ एक हो गयी थी ।। १८ ।। ै

स तथा स कृतः सवभ जवृ य धका मजैः । अ भवा ा भवा ां सव तन दतः ।। १९ ।। भोज, वृ ण और अ धकवंशके सब लोग ारा इस कार आदर-स कार पाकर अजुनने व दनीय पु ष को णाम कया और उन सबने उनका वागत कया ।। १९ ।। कुमारैः सवशो वीरः स कारेणा भचो दतः । समानवयसः सवाना य स पुनः पुनः ।। २० ।। य कुलके सम त कुमार ने भी वीरवर अजुनका बड़ा स कार कया। अजुन अपने समान अव थावाले सब लोग से उ ह बारंबार दयसे लगाकर मले ।। २० ।। कृ ण य भवने र ये र नभो यसमावृते । उवास सह कृ णेन ब ला त शवरीः ।। २१ ।। इसके बाद नाना कारके र न तथा भाँ त-भाँ तके भो यपदाथ से भरपूर ीकृ णके रमणीय भवनम उ ह ने ीकृ णके साथ ही अनेक रा य तक नवास कया ।। २१ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण अजुनवनवासपव ण अजुन ारकागमने स तदशा धक शततमोऽ यायः ।। २१७ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत अजुनवनवासपवम अजुनका ारकागमन वषयक दो सौ स हवाँ अ याय पूरा आ ।। २१७ ।।

(स ुभ ाहरणपव) अ ादशा धक शततमोऽ यायः रैवतक पवतके उ सवम अजुनका सुभ ापर आस होना और ीकृ ण तथा यु ध रक अनुम तसे उसे हर ले जानेका न य करना वैश पायन उवाच ततः क तपयाह य त मन् रैवतके गरौ । वृ य धकानामभव सवो नृपस म ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—नृप े ! तदन तर कुछ दन बीतनेके बाद रैवतक पवतपर वृ ण और अ धकवंशके लोग का एक बड़ा भारी उ सव आ ।। १ ।। त दानं द व रा ा णे यः सह शः । भोजवृ य धका ैव महे त य गरे तदा ।। २ ।। पवतपर होनेवाले उस उ सवम भोज, वृ ण और अ धकवंशके वीर ने सह ा ण को दान दया ।। २ ।। ासादै र न च ै गरे त य सम ततः । स दे शः शो भतो राजन् क पवृ ै सवशः ।। ३ ।। राजन्! उस पवतके चार ओर र नज टत व च राजभवन और क पवृ थे, जनसे उस थानक बड़ी शोभा हो रही थी ।। ३ ।। वा द ा ण च त ा ये वादकाः समवादयन् । ननृतुनतका ैव जगुगया न गायनाः ।। ४ ।। वहाँ बाजे बजानेम कुशल मनु य अनेक कारके बाजे बजाते, नाचनेवाले नाचते और गायकगण गीत गाते थे ।। ४ ।। अलंकृताः कुमारा वृ णीनां सुमहौजसाम् । यानैहाटक च ै च चूय ते म सवशः ।। ५ ।। महान् तेज वी वृ णवं शय के बालक व ाभूषण से वभू षत हो सुवण च त सवा रय पर बैठकर दे द यमान होते ए चार ओर घूम रहे थे ।। ५ ।। पौरा पादचारेण यानै चावचै तथा । सदाराः सानुया ा शतशोऽथ सह शः ।। ६ ।। ततो हलधरः ीबो रेवतीस हतः भुः । अनुग यमानो ग धवरचरत् त भारत ।। ७ ।। ी े ी ै ी औ े े ै

ारकापुरीके नवासी सैकड़ -हजार मनु य अपनी य और सेवक के साथ पैदल चलकर अथवा छोट -बड़ी सवा रय के ारा आकर उस उ सवम स म लत ए थे। भारत! भगवान् बलराम हष म होकर वहाँ रेवतीके साथ वचर रहे थे। उनके पीछे -पीछे ग धव (गायक) चल रहे थे ।। ६-७ ।। तथैव राजा वृ णीनामु सेनः तापवान् । अनुगीयमानो ग धवः ीसह सहायवान् ।। ८ ।। वृ णवंशके तापी राजा उ सेन भी वहाँ आमोद- मोद कर रहे थे। उनके पास ब तसे ग धव गा रहे थे और सह याँ उनक सेवा कर रही थ ।। ८ ।। रौ मणेय सा ब ीबौ समर मदौ । द मा या बरधरौ वज ातेऽमरा वव ।। ९ ।। यु म मद वीरवर ु न और सा ब द मालाएँ तथा द व धारण करके आन दसे उ म हो दे वता क भाँ त वहार करते थे ।। ९ ।। अ ू रः सारण ैव गदो ब ु व रथः । नशठ ा द े ण पृथु वपृथुरेव च ।। १० ।। स यकः सा य क ैव भ कारमहारवौ । हा द य उ व ैव ये चा ये नानुक तताः ।। ११ ।। एते प रवृताः ी भग धव पृथक् पृथक् । तमु सवं रैवतके शोभया च रे तदा ।। १२ ।। अ ू र, सारण, गद, ब ु, व रथ, नशठ, चा दे ण, पृथु, वपृथु, स यक, सा य क, भंगकार, महारव, दकपु कृतवमा, उ व और जनका नाम यहाँ नह लया गया है, ऐसे अ य य वंशी भी सब-के-सब अलग-अलग य और ग धव से घरे ए रैवतक पवतके उस उ सवक शोभा बढ़ा रहे थे ।। १०—१२ ।। च कौतूहले त मन् वतमाने महा ते । वासुदेव पाथ स हतौ प रज मतुः ।। १३ ।। उस अ य त अ त व च कौतूहलपूण उ सवम भगवान् ीकृ ण और अजुन एक साथ घूम रहे थे ।। १३ ।। त चङ् ममाणौ तौ वसुदेवसुतां शुभाम् । अलंकृतां सखीम ये भ ां द शतु तदा ।। १४ ।। इसी समय वहाँ वसुदेवजीक सु दरी पु ी सुभ ा शृंगारसे सुस जत हो सखय से घरी ई उधर आ नकली। वहाँ टहलते ए ीकृ ण और अजुनने उसे दे खा ।। १४ ।। ् वैव तामजुन य क दपः समजायत । तं तदै का मनसं कृ णः पाथमल यत् ।। १५ ।। उसे दे खते ही अजुनके दयम कामा न व लत हो उठ । उनका च उसीके च तनम एका हो गया। भगवान् ीकृ णने अजुनक इस मनोदशाको भाँप लया ।। १५ ।। अ वीत् पु ष ा ः हस व भारत । े े ो े

वनेचर य क मदं कामेनालो ते मनः ।। १६ ।। फर वे पु षोतम हँसते ए-से बोले—‘भारत! यह या, वनवासीका मन भी इस तरह कामसे उ म थत हो रहा है? ।। १६ ।। ममैषा भ गनी पाथ सारण य सहोदरा । सुभ ा नाम भ ं ते पतुम द यता सुता । य द ते वतते बु व या म पतरं वयम् ।। १७ ।। ‘कु तीन दन! यह मेरी ब हन और सारणक सगी ब हन है, तु हारा क याण हो, इसका नाम सुभ ा है। यह मेरे पताक बड़ी ला ड़ली क या है। य द तु हारा वचार इससे याह करनेका हो तो म पतासे वयं क ँगा’ ।। १७ ।। अजुन उवाच हता वसुदेव य वासुदेव य च वसा । पेण चैषा स प ा क मवैषा न मोहयेत् ।। १८ ।। अजुनने कहा—यह वसुदेवजीक पु ी, सा ात् आप वासुदेवक ब हन और अनुपम पसे स प है, फर यह कसका मन न मोह लेगी ।। १८ ।। कृतमेव तु क याणं सव मम भवेद ् ुवम् । य द या मम वा णयी म हषीयं वसा तव ।। १९ ।। सखे! य द यह वृ णकुलक कुमारी और आपक ब हन सुभ ा मेरी रानी हो सके तो न य ही मेरा सम त क याणमय मनोरथ पूण हो जाय ।। १९ ।। ा तौ तु क उपायः यात् तं वी ह जनादन । आ था या म तदा सव य द श यं नरेण तत् ।। २० ।। जनादन! बताइये, इसे ा त करनेका या उपाय हो सकता है? य द मनु यके ारा कर सकने यो य होगा तो वह सारा य न म अव य क ँ गा ।। २० ।। वासुदेव उवाच वयंवरः याणां ववाहः पु षषभ । स च संश यतः पाथ वभाव या न म तः ।। २१ ।। भगवान् ीकृ ण बोले—नर े पाथ! य के ववाहका वयंवर एक कार है, परंतु उसका प रणाम सं द ध होता है; य क य का वभाव अ न त आ करता है (पता नह , वे वयंवरम कसका वरण कर) ।। २१ ।। स हरणं चा प याणां श यते । ववाहहेतुः शूराणा म त धम वदो व ः ।। २२ ।। बलपूवक क याका हरण भी शूरवीर य के लये ववाहका उ म हेतु कहा गया है; ऐसा धम पु ष का मत है ।। २२ ।। स वमजुन क याण स भ गन मम । हर वयंवरे याः को वै वेद चक षतम् ।। २३ ।। े ी



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अतः अजुन! मेरी राय तो यही है क तुम मेरी क याणमयी ब हनको बलपूवक हर ले जाओ। कौन जानता है, वयंवरम उसक या चे ा होगी—वह कसे वरण करना चाहेगी? ।। २३ ।। ततोऽजुन कृ ण व न ये त कृ यताम् । शी गान् पु षान याम् ेषयामासतु तदा ।। २४ ।। धमराजाय तत् सव म थगताय वै । ु वैव च महाबा रनुज े स पा डवः ।। २५ ।। तब अजुन और ीकृ णने कत का न य करके कुछ सरे शी गामी पु ष को इ थम धमराज यु ध रके पास भेजा और सब बात उ ह सू चत करके उनक स म त जाननेक इ छा कट क । महाबा यु ध रने यह सुनते ही अपनी ओरसे आ ा दे द ।। २४-२५ ।। (भीमसेन तु त छ वा कृतकृ योऽ यम यत । इ येवं मनुजैः साधमु वा ी तमुपे यवान् ।।) भीमसेन यह समाचार सुनकर अपनेको कृतकृ य मानने लगे और सरे लोग के साथ ये बात करके उनको बड़ी स ता ई। इ त ीमहाभारते आ दपव ण सुभ ाहरणपव ण यु ध रानु ायाम ादशा धक शततमोऽ यायः ।। २१८ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत सुभ ाहरणपवम यु ध रक आ ास ब धी दो सौ अठारहवाँ अ याय पूरा आ ।। २१८ ।। (दा णा य अ धक पाठका १ ोक मलाकर क ु ल २६ ोक ह)

एकोन वश य धक शततमोऽ यायः यादव क यु के लये तैयारी और अजुनके बलरामजीके ोधपूण उद्गार



वैश पायन उवाच ततः संवा दते त म नु ातो धनंजयः । गतां रैवतके क यां व द वा जनमेजय ।। १ ।। वासुदेवा यनु ातः कथ य वे तकृ यताम् । कृ ण य मतमादाय ययौ भरतषभः ।। २ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर उस ववाहस ब धी संदेशपर यु ध रक आ ा मल जानेके प ात् धनंजयको जब यह मालूम आ क सुभ ा रैवतक पवतपर गयी ई है, तब उ ह ने भगवान् ीकृ णसे सलाह ली। ीकृ णने उ ह आगे या करना है, यह बताकर सुभ ासे ववाह करने तथा उसे हर ले जानेक अनुम त दे द । ीकृ णक स म त पाकर भरत े अजुन अपने व ाम थानपर चले गये ।। १२ ।। रथेन का चना े न क पतेन यथा व ध । शै यसु ीवयु े न कङ् कणीजालमा लना ।। ३ ।। सवश ोपप ेन जीमूतरवना दना । व लता न काशेन षतां हषघा तना ।। ४ ।। संन ः कवची खड् गी ब गोधाङ् गु ल वान् । मृगया पदे शेन ययौ पु षषभः ।। ५ ।। (भगवान्क आ ासे दा कने) उनके सुवणमय रथको व धपूवक सजाकर तैयार कया था। उसम थान- थानपर छोट -छोट घं टकाएँ तथा झालर लगा द थ और शै य, सु ीव आ द अ भी उसम जोत दये थे। उस रथके भीतर सब कारके अ -श मौजूद थे। उसक घघराहटसे मेघक गजनाके समान आवाज होती थी। वह व लत अ नके समान तेज वी जान पड़ता था। उसे दे खते ही श ु का हष हवा हो जाता था। नर े धनंजय कवच और तलवार बाँधकर एवं हाथ म द ताने पहनकर उसी रथके ारा शकार खेलनेके बहाने रैवतक पवतपर गये ।। ३—५ ।। सुभ ा वथ शैले म य यव ह रैवतम् । दै वता न च सवा ण ा णान् व त वा य च ।। ६ ।। द णं गरेः कृ वा ययौ ारकां त । ताम भ य कौ तेयः स ारोपयद् रथम् । सुभ ां चा सवा कामबाण पी डतः ।। ७ ।। उधर सुभ ा ग रराज रैवतक तथा सब दे वता क पूजा करके ा ण से व तवाचन कराकर पवतक प र मा पूरी करके ारकाक ओर लौट रही थी। अजुन े





















कामदे वके बाण से अ य त पी ड़त हो रहे थे। उ ह ने दौड़कर सवागसु दरी सुभ ाको बलपूवक रथपर बठा लया ।। ६-७ ।।

ततः स पु ष ा तामादाय शु च मताम् । रथेन का चना े न ययौ वपुरं त ।। ८ ।। इसके बाद पु ष सह धनंजय प व मुसकानवाली सुभ ाको साथ ले उस सुवणमय रथ ारा अपने नगरक ओर चल दये ।। ८ ।। यमाणां तु तां ् वा सुभ ां सै नका जनाः । व ोश तोऽ वन् सव ारकाम भतः पुरीम् ।। ९ ।। सुभ ाका अपहरण होता दे ख सम त सै नकगण ह ला मचाते ए ारकापुरीक ओर दौड़े गये ।। ९ ।। ते समासा स हताः सुधमाम भतः सभाम् । सभापाल य तत् सवमाच युः पाथ व मम् ।। १० ।। उ ह ने एक साथ सुधमासभाम प ँचकर सभापालसे अजुनके उस साहसपूण परा मका सारा हाल कह सुनाया ।। १० ।। तेषां ु वा सभापालो भेर सांना हक ततः । समाज ने महाघोषां जा बूनदप र कृताम् ।। ११ ।। उनक बात सुनकर सभापालने सबको यु के लये तैयार होनेक सूवना दे नेके उ े यसे सुवणख चत नगाड़ा बजाया, जसक आवाज ब त ऊँची और रतक फैलनेवाली थी ।। ११ ।। ुधा तेनाथ श दे न भोजवृ य धका तदा । े

अ पानमपा याथ समापेतुः सम ततः ।। १२ ।। उसक आवाज सुनकर भोज, वृ ण और अ धकवंशके वीर ु ध हो उठे और खानापीना छोड़कर चार ओरसे दौड़े आये ।। १२ ।। त जा बूनदा ा न प या तरणव त च । म ण व म च ा ण व लता न भा ण च ।। १३ ।। भे जरे पु ष ा ा वृ य धकमहारथाः । सहासना न शतशो ध यानीव ताशनाः ।। १४ ।। उस सभाम सैकड़ सहासन रखे गये भै, जनम सुवण जड़ा गया था। उन सहासन पर ब मू य बछौने पड़े थे। वे सभी आसन म ण और मूँग से च त होनेके कारण व लत अ नके समान का शत हो रहे थे। भोज, वृ ण और अ धकवंशके पु ष सह महारथी वीर उ ह सहासन पर आकर बैठे, मानो य क वे दय पर व लत अ नदे व शोभा पा रहे ह ।। १३-१४ ।। तेषां समुप व ानां दे वाना मव संनये । आच यौ चे तं ज णोः सभापालः सहानुगः ।। १५ ।। दे वसमूहक भाँ त वहाँ बैठे ए उन य वं शय के समुदायम सेवक स हत सभापालने अजुनक वह सारी करतूत कह सुनायी ।। १५ ।। त छ वा वृ णवीरा ते मदसंर लोचनाः । अमृ यमाणाः पाथ य समु पेतुरहंकृताः ।। १६ ।। यह सुनते ही यु ो मादसे लाल ने वाले वृ ण-वंशी वीर अजुनके त अमषसे भर गये और गवसे उछल पड़े ।। १६ ।। योजय वं रथानाशु ासानाहरते त च । धनूं ष च महाहा ण कवचा न बृह त च ।। १७ ।। (वे बड़ी उतावलीसे कहने लगे—) ‘ज द रथ जोतो, फौरन ास ले आओ, धनुष तथा ब मू य एवं वशाल कवच लाओ’ ।। १७ ।। सूतानु चु ु शुः के चद् रथान् योजयते त च । वयं च तुरगान् के चदयु न् हेमभू षतान् ।। १८ ।। कोई सार थय को पुकारकर कहने लगे—‘अरे! ज द रथ जोतो।’ कुछ लोग वयं ही सोनेके आभूषण से वभू षत घोड़ को रथ म जोतने लगे ।। १८ ।। रथे वानीयमानेषु कवचेषु वजेषु च । अ भ दे नृवीराणां तदासीत् तुमुलं महत् ।। १९ ।। रथ, कवच और वजा के लाये जाते समय चार ओर उन नर-वीर के कोलाहलसे वहाँ बड़ी भारी तुमुल व न ा त हो गयी ।। १९ ।। वनमाली ततः ीबः कैलास शखरोपमः । नीलवासा मदो स इदं वचनम वीत् ।। २० ।। तदन तर कैलास शखरके समान गौरवणवाले नील व और वनमाला धारण करनेवाले बलरामजी उन यादव से इस कार बोले— ।। २० ।। े े

क मदं कु था ा तू ण भूते जनादने । अ य भावम व ाय सं ु ा मोघग जताः ।। २१ ।। ‘मूख ! ीकृ ण तो चुपचाप बैठे ह, तुम यह या कर रहे हो? इनका अ भ ाय जाने बना ही तुम इतने कु पत हो उठे । तुमलोग क यह गजना थ ही है ।। २१ ।। एष तावद भ ायमा यातु वं महाम तः । यद य चरं कतु तत् कु वमत ताः ।। २२ ।। ‘पहले परम बु मान् ीकृ ण अपना अ भ ाय बताव। तदन तर जो कत इ ह उ चत जान पड़े, उसीका आल य छोड़कर पालन करो’ ।। २२ ।। तत ते तद् वचः ु वा ा पं हलायुधात् । तू णी भूता ततः सव साधु सा व त चा ुवन् ।। २३ ।। बलरामजीक यह मानने यो य बात सुनकर सब यादव चुप हो गये और सब लोग उ ह साधुवाद दे ने लगे ।। २३ ।। समं वचो नश यैव बलदे व य धीमतः । पुनरेव सभाम ये सव ते समुपा वशन् ।। २४ ।। परम बु मान् बलरामजीके उस वचनको सुननेके साथ ही वे सभी वीर फर उस सभाम मौन होकर बैठ गये ।। २४ ।। ततोऽ वीद् वासुदेवं वचो रामः परंतपः । कमवागुप व ोऽ स े माणो जनादन ।। २५ ।। तदन तर परंतप बलरामजी भगवान् ीकृ णसे बोले—जनादन! यह सब कुछ दे खते ए भी तुम य मौन होकर बैठे हो? ।। २५ ।। स कृत व कृते पाथः सवर मा भर युत । न च सोऽह त तां पूजां बु ः कुलपांसनः ।। २६ ।। ‘अ युत! तु हारे संतोषके लये ही हम सब लोग ने अजुनका इतना स कार कया; परंतु वह खोट बु वाला कुलांगार उस स कारके यो य कदा प न था ।। २६ ।। को ह त ैव भु वा ं भाजनं भे ुमह त । म यमानः कुले जातमा मानं पु षः व चत् ।। २७ ।। ‘अपनेको कुलीन माननेवाला कौन ऐसा मनु य है, जो जस बतनम खाये, उसीम छे द करे ।। २७ ।। इ छ ेव ह स ब धं कृतं पूव च मानयन् । को ह नाम भवेनाथ साहसेन समाचरेत् ।। २८ ।। ‘स ब धक इ छा रहते ए भी कौन ऐसा क याणकामी पु ष होगा, जो पहलेके उपकारको मानते ए ऐसा ःसाहसपूण काय करे ।। २८ ।। सोऽवम य तथा माकमना य च केशवम् । स तवान सुभ ां मृ युमा मनः ।। २९ ।। ‘उसने हमलोग का अपमान और केशवका अनादर करके आज बलपूवक सुभ ाका अपहरण कया है, जो उसके लये अपनी मृ युके समान है ।। २९ ।। ो े े

कथं ह शरसो म ये कृतं तेन पदं मम । मष य या म गो व द पाद पश मवोरगः ।। ३० ।। ‘गो व द! जैसे सप पैरक ठोकर नह सह सकता, उसी कार म उसने जो मेरे सरपर पैर रख दया है, उसे कैसे सह सकूँगा? ।। ३० ।। अ न कौरवामेकः क र या म वसुंधराम् । न ह मे मषणीयोऽयमजुन य त मः ।। ३१ ।। ‘अजुनका यह अ याय मेरे लये अस है। आज म अकेला ही इस वसु धराको कु वं शय से वहीन कर ँ गा’ ।। ३१ ।। तं तथा गजमानं तु मेघ भ नः वनम् । अ वप त ते सव भोजवृ य धका तदा ।। ३२ ।। मेघ और भक ग भीर व नके समान बलरामजीक वैसी गजना सुनकर उस समय भोज, वृ ण और अ धकवंशके सम त वीर ने उ ह का अनुसरण कया ।। ३२ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण सुभ ाहरणपव ण बलदे व ोधे एकोन वश य धक शततमोऽ यायः ।। २१९ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत सुभ ाहरणपवम बलदे व ोध वषयक दो सौ उ ीसवाँ अ याय पूरा आ ।। २१९ ।।

(ह रणाहरणपव) वश य धक शततमोऽ यायः ारकाम अजुन और सुभ ाका ववाह, अजुनके इ थ प ँचनेपर ीकृ ण आ दका दहेज लेकर वहाँ जाना, ौपद के पु एवं अ भम युके ज म, सं कार और श ा वैश पायन उवाच उ व तो यथा वीयमसकृत् सववृ णयः । ततोऽ वीद् वासुदेवो वा यं धमाथसंयुतम् ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! उस समय सभी वृ णवं शय ने अपने-अपने परा मके अनुसार अजुनसे बदला लेनेक बात बार-बार हरायी। तब भगवान् वासुदेव यह धम और अथसे यु वचन बोले— ।। १ ।।

नावमानं कुल या य गुडाकेशः यु वान् । स मानोऽ य धक तेन यु ोऽयं न संशयः ।। २ ।। ‘













‘ न ा वजयी अजुनने इस कुलका अपमान नह कया है। अ पतु ऐसा करके उ ह ने इस कुलके त अ धक स मानका भाव ही कट कया है, इसम संशय नह है ।। २ ।। अथलुधान् न वः पाथ म यते सा वतान् सदा । वयंवरमनाधृ यं म यते चा प पा डवः ।। ३ ।। ‘पा डु पु अजुन यह जानते ह क सा वतवंशके लोग सदासे ही धनके लोभी नह ह, अतः धन दे कर क या नह ली जा सकती। साथ ही पा डु पु अजुनको यह भी मालूम है क वयंवरम क याके मल जानेका पूण न य नह रहता, अतः वह भी अ ा ही है ।। ३ ।। दानम प क यायाः पशुवत् कोऽनुम यते । व यं चा यप य य कः कुयात् पु षो भु व ।। ४ ।। ‘भला, कौन ऐसा वीर पु ष होगा, जो पशुक तरह परा मशू य होकर क यादानक ती ाम बैठा रहेगा एवं इस पृ वीपर कौन ऐसा अधम पु ष होगा, जो धन लेकर अपनी संतानको बेचेगा ।। ४ ।। एतान् दोषां तु कौ तेयो वा न त मे म तः । अतः स तवान् क यां धमण पा डवः ।। ५ ।। ‘मेरा व ास है क कु तीकुमारने इन सभी दोष क ओर पात कया है; इसी लये उ ह ने य-धमके अनुसार बलपूवक क याका अपहरण कया है ।। ५ ।। उ चत ैव स ब धः सुभ ां च यश वनीम् । एष चापी शः पाथः स तवा न त ।। ६ ।। ‘मेरी समझम यह स ब ध ब त उ चत है। सुभ ा यश वनी है और ये कु तीपु अजुन भी ऐसे ही यश वी ह; अतः इ ह ने सुभ ाका बलपूवक हरण कया है ।। ६ ।। भरत या वये जातं शा तनो यश वनः । कु तभोजा मजापु ं को बुभूषेत नाजुनम् ।। ७ ।। ‘महाराज भरत तथा महायश वी शा तनुके कुलम जनका ज म आ है, जो कु तभोजकुमारी कु तीके पु ह, ऐसे वीरवर अजुनको कौन अपना स ब धी बनाना न चाहेगा? ।। ७ ।। न च प या म यः पाथ वजयेत रणे बलात् । वज य वा व पा ं भगने हरं हरम् ।। ८ ।। अ प सवषु लोकेषु से े षु मा रष । ‘आय! इ लोक एवं लोकस हत स पूण लोक म भगदे वताके ने का नाश करनेवाले वकराल ने वाले भगवान् को छोड़कर सरे कसीको म ऐसा नह दे खता, जो सं ामम बलपूवक पाथको परा त कर सके ।। ८ ।। स च नाम रथ ता ङ् मद या ते च वा जनः ।। ९ ।। यो ा पाथ शी ा ः को नु तेन समो भवेत् । तम भ य सा वेन परमेण धनंजयम् ।। १० ।। ै

यवतयत सं ा ममैषा परमा म तः । ‘इस समय अजुनके पास मेरा सु स रथ है, मेरे ही अ त घोड़े ह और वयं अजुन शी ता-पूवक अ -श चलानेवाले यो ा ह। ऐसी दशाम अजुनक समानता कौन कर सकता है? आपलोग स ताके साथ दौड़े जाइये और बड़ी सा वनासे धनंजयको लौटा लाइये। मेरी तो यही परम स म त है ।। ९-१० ।। य द न ज य वः पाथ बलाद् ग छे त् वकं पुरम् ।। ११ ।। ण येद ् वो यशः स ो न तु सा वे पराजयः । ‘य द अजुन आपलोग को बलपूवक हराकर अपने नगरम चले गये, तब तो आपलोग का सारा यश त काल ही न हो जायगा और सा वनापूवक उ ह ले आनेम अपनी पराजय नह है’ ।। ११ ।। त छ वा वासुदेव य तथा च ु जना धप ।। १२ ।। जनमेजय! वासुदेवका यह वचन सुनकर यादव ने वैसा ही कया ।। १२ ।। नवृ ाजुन त ववाहं कृतवान् भुः । उ ष वा त कौ तेयः संव सरपराः पाः ।। १३ ।। श शाली अजुन ारकाम लौट आये। वहाँ उ ह ने सुभ ासे ववाह कया और एक सालसे कुछ अ धक दनतक वे वह रहे ।। १३ ।। व य च यथाकामं पू जतो वृ णन दनैः । पु करे तु ततः शेषं कालं व ततवान् भुः ।। १४ ।। ारकाम इ छानुसार वहार करके वृ णवं शय ारा पू जत होकर अजुन वहाँसे पु करतीथम चले गये और वनवासका शेष समय वह तीत कया ।। १४ ।। पूण तु ादशे वष खा डव थमागतः । (वव दे धौ यमासा मातरं च धनंजयः ।। बारहवाँ वष पूण होनेपर वे खा डव थम आये। उ ह ने धौ यजीके पास जाकर उनको तथा माता कु तीको णाम कया। पृ ् वा च चरणौ रा ो भीम य च धनंजयः । यमा यां व दतो ः स वजे तौ नन द च ।।) अ भग य च राजानं नयमेन समा हतः ।। १५ ।। अ य य ा णान् पाथ ौपद म भज मवान् । इसके बाद राजा यु ध र और भीमके चरण छु ये। तदन तर नकुल और सहदे वने आकर अजुनको णाम कया। अजुनने भी हषम भरकर उन दोन को दयसे लगा लया और उनसे मलकर बड़ी स ताका अनुभव कया। फर वहाँ राजासे मलकर नयमपूवक एका च हो उ ह ने ा ण का पूजन कया। त प ात् वे ौपद के समीप गये ।। १५ ।। तं ौपद युवाच णयात् कु न दनम् ।। १६ ।। त ैव ग छ कौ तेय य सा सा वता मजा । े

सुब या प भार य पूवब धः थायते ।। १७ ।। ौपद ने णयकोपवश कु न दन अजुनसे कहा—‘कु तीकुमार! यहाँ य आये हो, वह जाओ, जहाँ वह सा वतवंशक क या सुभ ा है। सच है, बोझको कतना ही कसकर बाँधा गया हो, जब उसे सरी बार बाँधते ह, तब पहला ब धन ढ ला पड़ जाता है (यही हालत मेरे त तु हारे ेमब धनक है) ।। १६-१७ ।। तथा ब वधं कृ णां वलप त धनंजयः । सा वयामास भूय मयामास चासकृत् ।। १८ ।। इस तरह नाना कारक बात कहकर कृ णा वलाप करने लगी। तब धनंजयने उसे पूण सा वना द और अपने अपराधके लये उससे बार-बार मा माँगी ।। १८ ।। सुभ ां वरमाण र कौशेयवा सनीम् । पाथः थापयामास कृ वा गोपा लकावपुः ।। १९ ।। इसके बाद अजुनने लाल रेशमी साड़ी पहनकर आयी ई अ न सु दरी सुभ ाका वा लनका-सा वेश बनाकर उसे बड़ी उतावलीके साथ महलम भेजा ।। १९ ।। सा धकं तेन पेण शोभमाना यश वनी । भवनं े मासा वीरप नी वरा ना ।। २० ।। वव दे पृथुता ा ी पृथां भ ा यश वनी । तां कु ती चा सवा मुपा ज त मूध न ।। २१ ।। वीरप नी, वरांगना एवं यश वनी सुभ ा उस वेशम और अ धक शोभा पाने लगी। उसक आँख वशाल और कुछ-कुछ लाल थ । उस यश वनीने सु दर राजभवनके भीतर जाकर राजमाता कु तीके चरण म णाम कया। कु ती उस सवागसु दरी पु -वधूको दयसे लगाकर उसका म तक सूँघने लगी ।। २०-२१ ।।

सुभ ाका कु ती और ौपद क सेवाम उप थत होना

ी या परमया यु ा आशी भयु तातुलाम् । ततोऽ भग य व रता पूण स शानना ।। २२ ।। वव दे ौपद भ ा े याह म त चा वीत् । और उसने बड़ी स ताके साथ उस अनुपम वधूको अनेक आशीवाद दये। तदन तर पूण च माके स श मनोहर मुखवाली सुभ ाने तुरंत जाकर महारानी ौपद के चरण छू ए और कहा—‘दे व! म आपक दासी ँ’ ।। २२ ।। यु थाय तदा कृ णा वसारं माधव य च ।। २३ ।। प र व यावदत् ी या नःसप नोऽ तु ते प तः । तथैव मु दता भ ा तामुवाचैवम व त ।। २४ ।। उस समय ौपद तुरंत उठकर खड़ी हो गयी और ीकृ णक ब हन सुभ ाको दयसे लगाकर बड़ी स तासे बोली—‘ब हन! तु हारे प त श ुर हत ह ।’ सुभ ाने भी आन दम न होकर कहा—‘ब हन! ऐसा ही हो’ ।। २३-२४ ।। तत ते मनसः पा डवेया महारथाः । कु ती च परम ीता बभूव जनमेजय ।। २५ ।। ु वा तु पु डरीका ः स ा तं वं पुरो मम् । अजुनं पा डव े म थगतं तदा ।। २६ ।। आजगाम वशु ा मा सह रामेण केशवः । वृ य धकमहामा ैः सह वीरैमहारथैः ।। २७ ।। जनमेजय! त प ात् महारथी पा डव मन-ही-मन हष वभोर हो उठे और कु तीदे वी भी ब त स । कमलनयन भगवान् ीकृ णने जब यह सुना क पा डव े अजुन े









अपने उ म नगर इ थ प ँच गये ह, तब वे शु ा मा ीकृ ण एवं बलराम तथा वृ ण और अ धकवंशके धान- धान वीर महार थय के साथ वहाँ आये ।। २५—२७ ।। ातृ भ कुमारै योधै ब भवृतः । सै येन महता शौ रर भगु तः परंतपः ।। २८ ।। श ु को संताप दे नेवाले ीकृ ण भाइय , पु और ब तेरे यो ा के साथ घरे ए तथा वशाल सेनासे सुर त होकर इ थम पधारे ।। २८ ।। त दानप तध मानाजगाम महायशाः । अ ू रो वृ णवीराणां सेनाप तररदमः ।। २९ ।। उस समय वहाँ वृ णवीर के सेनाप त श ुदमन महायश वी और परम बु मान् दानप त अ ू रजी भी आये थे ।। २९ ।। अनाधृ महातेजा उ व महायशाः । सा ाद् बृह पतेः श यो महाबु महामनाः ।। ३० ।। इनके सवा महातेज वी अनाधृ तथा सा ात् बृह प तके श य परम बु मान् महामन वी एवं परम यश वी उ व भी आये थे ।। ३० ।। स यकः सा य क ैव कृतवमा च सा वतः । ु न ैव सा ब नशठः शङ ् कुरेव च ।। ३१ ।। चा दे ण व ा तो झ ली वपृथुरेव च । सारण महाबा गद व षां वरः ।। ३२ ।। एते चा ये च बहवो वृ णभोजा धका तथा । आज मुः खा डव थमादाय हरणं ब ।। ३३ ।। स यक, सा य क, सा वतवंशी कृतवमा, ु न, सा ब, नशठ, शंकु, परा मी चा दे ण, झ ली, वपृथु, महाबा सारण तथा व ान म े गद—ये तथा और सरे भी ब त-से वृ ण, भोज और अ धकवंशके लोग दहेजक ब त-सी साम ी लेकर खा डव थम आये थे ।। ३१—३३ ।। ततो यु ध रो राजा ु वा माधवमागतम् । त हाथ कृ ण य यमौ ा थापयत् तदा ।। ३४ ।। महाराज यु ध रने भगवान् ीकृ णका आगमन सुनकर उ ह आदरपूवक लवा लानेके लये नकुल और सहदे वको भेजा ।। ३४ ।। ता यां तगृहीतं तु वृ णच ं मह मत् । ववेश खा डव थं पताका वजशो भतम् ।। ३५ ।। उन दोन के ारा वागतपूवक लाये ए वृ ण-वं शय के उस परम समृ शाली समुदायने खा डव थम वेश कया। उस समय वजा-पताका से सजाया आ वह नगर सुशो भत हो रहा था ।। ३५ ।। स मृ स प थानं पु प करशो भतम् । च दन य रसैः शीतैः पु यग धै नषे वतम् ।। ३६ ।। ी



नगरक सड़क झाड़-बुहारकर साफ क गयी थ । उनके ऊपर जलका छड़काव कया गया था। थान- थानपर फूल के गजर से नगरक सजावट क गयी थी। शीतल च दन, रस तथा अ य प व सुग धत पदाथ क सुवास सब ओर छा रही थी ।। ३६ ।। द तागु णा चैव दे शे दे शे सुग धना । पु जनाक ण व ण भ पशो भतम् ।। ३७ ।। जगह-जगह जलते ए अगु क सुग ध फैल रही थी, सारा नगर -पु मनु य से भरा था। कतने ही ापारी उसक शोभा बढ़ा रहे थे ।। ३७ ।। तपेदे महाबा ः सह रामेण केशवः । वृ य धकै तथा भोजैः समेतः पु षो मः ।। ३८ ।। महाबा पु षो म ीकृ णने बलरामजी तथा वृ ण, अ धक एवं भोजवंशी वीर के साथ नगरम वेश कया ।। ३८ ।। स पू यमानः पौरै ा णै सह शः । ववेश भवनं रा ः पुर दरगृहोपमम् ।। ३९ ।। पुरवासी मनु य तथा सह ा ण ारा स मा नत हो उ ह ने राजभवनके भीतर वेश कया। वह घर इ भवनक शोभाको भी तर कृत कर रहा था ।। ३९ ।। यु ध र तु रामेण समाग छद् यथा व ध । मू न केशवमा ाय बा यां प रष वजे ।। ४० ।। यु ध रजी बलरामजीके साथ व धपूवक मले और ीकृ णका म तक सूँघकर उ ह दोन भुजा म कस लया ।। ४० ।। तं ीयमाणो गो व दो वनयेना भपूजयन् । भीमं च पु ष ा ं व धवत् यपूजयत् ।। ४१ ।। भगवान् ीकृ णने स होकर वनीतभावसे यु ध रका स मान कया। नर े भीमसेनका भी उ ह ने व धवत् पूजन कया ।। ४१ ।। तां वृ य धक े ान् कु तीपु ो यु ध रः । तज ाह स कारैयथा व ध यथागतम् ।। ४२ ।। कु तीन दन यु ध रने वृ ण और अ धकवंशके े पु ष का व धपूवक यथायो य वागत-स कार कया ।। ४२ ।। गु वत् पूजयामास कां त् कां द् वय यवत् । कां द यवदत् े णा कै द य भवा दतः ।। ४३ ।। कुछ लोग का उ ह ने गु क भाँ त पूजन कया, कतन को समवय क म क भाँ त गलेसे लगाया, कुछ लोग से ेमपूवक वातालाप कया और कुछ लोग ने उ ह को णाम कया ।। ४३ ।। तेषां ददौ षीकेशो ज याथ धनमु मम् । हरणं वै सुभ ाया ा तदे यं महायशाः ।। ४४ ।। महायश वी भगवान् ीकृ णने वधू तथा वरप के लोग के लये उ म धन अ पत कया। वरके कुटु बीजन को दे नेयो य दहेज पहले नह दया गया था, उसीक पू त उ ह ने

इस समय क ।। ४४ ।। रथानां का चना ानां कङ् कणीजालमा लनाम् । चतुयुजामुपेतानां सूतैः कुशल श तैः ।। ४५ ।। सह ं ददौ कृ णो गवामयुतमेव च । ीमान् माथुरदे यानां दो ीणां पु यवचसाम् ।। ४६ ।। क कणी और झालर से सुशो भत सुवणख चत एक हजार रथ जनमसे येकम चार-चार घोड़े जुते ए थे और येकम पूण श त चतुर सार थ बैठा आ था, ीमान् कृ णने सम पत कये तथा मथुराम डलक प व तेजवाली दस हजार धा गौएँ द ।। ४५-४६ ।। वडवानां च शु ानां च ांशुसमवचसाम् । ददौ जनादनः ी या सह ं हेमभू षतम् ।। ४७ ।। च माके समान ेत का तवाली वशु जा तक एक हजार सुवणभू षत घो ड़याँ भी जनादनने ेमपूवक भट क ।। ४७ ।। तथैवा तरीणां च दा तानां वातरंहसाम् । शता य नकेशीनां ेतानां प च प च च ।। ४८ ।। इसी कार पाँच सौ काले अयालवाली और पाँच सौ सफेद रंगवाली ख च रयाँ सम पत क, जो सभी वशम क ई तथा वायुक े समान वेगवाली थ ।। ४८ ।। नानपानो सवे चैव यु ं वयसा वतम् । ीणां सह ं गौरीणां सुवेषाणां सुवचसाम् ।। ४९ ।। सुवणशतक ठनामरोमाणां वलंकृताम् । प रचयासु द ाणां ददौ पु करे णः ।। ५० ।। नान, पान और उ सवम जनका उपयोग कया गया था, जो वयः ा त थ , जनके वेष सु दर और का त मनोहर थी, ज ह ने सोनेके सौ-सौ म णय क क ठयाँ पहन रखी थ , जनके शरीरम रोमाव लयाँ नह कट ई थ , जो व ाभूषण से अलंकृत तथा सेवाके कामम पूण द थ , ऐसी एक हजार गौरवणा क याएँ भी कमलनयन भगवान् ीकृ णने भट क ।। ४९-५० ।। पृ ानाम प चा ानां बा कानां जनाद नः । ददौ शतसह ा यं क याधनमनु मम् ।। ५१ ।। जनादनने उ म दहेजके पम बा कदे शके एक लाख घोड़े दये, जो पीठपर सवारी ढोनेवाले थे ।। ५१ ।। कृताकृत य मु य थ कनक या नवचसः । मनु यभारान् दाशाह ददौ दश जनादनः ।। ५२ ।। दशाहवंशके र न भगवान् ीकृ णने अ नके समान दे द यमान कृ म सुवण (मोहर) और अकृ म वशु सुवणके (डले) दस भार उपहारम दये ।। ५२ ।। गजानां तु भ ानां धा वतां मदम् । ग रकूट नकाशानां समरे व नव तनाम् ।। ५३ ।। े

लृ तानां पटु घ टानां चा णां हेममा लनाम् । ह यारोहै पेतानां सह ं साहस यः ।। ५४ ।। रामः पा ण ह णकं ददौ पाथाय ला ली । ीयमाणो हलधरः स ब धं तमानयन् ।। ५५ ।। ज ह साहसका काम य है और जो हाथम हल धारण करते ह, उन बलरामने स होकर इस नूतन स ब धका आदर करते ए अजुनको पा ण हणके दहेजके पम एक हजार मतवाले हाथी भट कये, जो तीन अंग से मदक धारा बहानेवाले थे। वे हाथी यु म कभी पीछे नह हटते थे और दे खनेम पवत शखरके समान जान पड़ते थे। उनके म तक पर सु दर वेषरचना क गयी थी। उन सबके पा भागम मजबूत घ टे लटक रहे थे तथा गलेम सोनेके हार शोभा दे रहे थे। वे सभी हाथी बड़े सु दर लगते थे और उन सबके साथ महावत थे ।। ५३—५५ ।। स महाधनर नौघो व क बलफेनवान् । महागजमहा ाहः पताकाशैवलाकुलः ।। ५६ ।। पा डु सागरमा व ः ववेश महाधनः । पूणमापूरयं तेषां ष छोकावहोऽभवत् ।। ५७ ।। जैसे न दय के जलका महान् वाह समु म मलता है, उसी कार वह महान् धन और र न का भारी वाह, जसम व और क बल फेनके समान जान पड़ते थे, बड़े-बड़े हाथी महान् ाह का म उ प करते थे और जहाँ वजा-पताकाएँ सेवारका काम कर रही थ , पा डव पी महासागरम जा मला। य प पा डव-समु पहलेसे ही प रपूण था तथा प इस महान् धन वाहने उसे और भी पूणतर बना दया। यही कारण था क वह पा डवमहासागर श ु के लये शोकदायक तीत होने लगा ।। ५६-५७ ।। तज ाह तत् सव धमराजो यु ध रः । पूजयामास तां ैव वृ य धकमहारथान् ।। ५८ ।। धमराज यु ध रने वह सारा धन हण कया और वृ ण तथा अ धकवंशके उन सभी महार थय का भलीभाँ त आदर-स कार कया ।। ५८ ।। ते समेता महा मानः कु वृ य धको माः । वजरमरावासे नराः सुक ृ तनो यथा ।। ५९ ।। जैसे पु या मा मनु य दे वलोकम सुख भोगते ह, उसी कार कु , वृ ण और अ धकवंशके वे े महा मा पु ष एक होकर इ छानुसार वहार करने लगे ।। ५९ ।। त त महानादै कृ तलना दतैः । यथायोगं यथा ी त वजः क ु वृ णयः ।। ६० ।। वे कौरव और वृ णवंशके वीर जहाँ-तहाँ वीणाक उ म व नके साथ गाते-बजाते और संगीतका आन द लेते ए यथावसर अपनी-अपनी चके अनुसार वहार करने लगे ।। ६० ।। एवमु मवीया ते व य दवसान् बन् । पू जताः कु भज मुः पुन ारवत त ।। ६१ ।। े ी ी े

इस कार वे उ म परा मी य वंशी ब त दन तक इ थम वहार करते ए कौरव से स मा नत हो फर ारका चले गये ।। ६१ ।। रामं पुर कृ य ययुवृ य धकमहारथाः । र ना यादाय शु ा ण द ा न कु स मैः ।। ६२ ।। वृ ण और अ धकवंशके महारथी कु वर पा डव के दये ए उ वल र न क भट ले बलरामजीको आगे करके चले गये ।। ६२ ।। वासुदेव तु पाथन त ैव सह भारत । उवास नगरे र ये श थे महा मना ।। ६३ ।। जनमेजय! परंतु भगवान् वासुदेव महा मा अजुनके साथ रमणीय इ थम ही ठहर गये ।। ६३ ।। चरद् यमुनातीरे मृगयां स महायशाः । मृगान् व यन् वराहां रेमे साध करी टना ।। ६४ ।। महायश वी ीकृ ण अजुनके साथ शकार खेलते और जंगली वराह तथा ह पशु का वध करते ए यमुनाजीके तटपर वचरते थे। इस कार वे करीटधारी अजुनके साथ वहार करते थे ।। ६४ ।। ततः सुभ ा सौभ ं केशव य या वसा । जय त मव पौलोमी या तम तमजीजनत् ।। ६५ ।। तदन तर कुछ कालके प ात् ीकृ णक यारी ब हन सुभ ाने यश वी सौभ को ज म दया; ठ क वैसे ही, जैसे शचीने जय तको उ प कया था ।। ६५ ।। द घबा ं महोर कं वृषभा मरदमम् । सुभ ा सुषुवे वीरम भम युं नरषभम् ।। ६६ ।। सुभ ाने वीरवर नर े अ भम युको उ प कया, जसक बड़ी-बड़ी बाँह, वशाल व ः थल और बैल के समान वशाल ने थे। वह श ु का दमन करनेवाला था ।। ६६ ।। अ भ म युमां ैव तत तम रमदनम् । अ भम यु म त ा राजु न पु षषभम् ।। ६७ ।। वह अ भ ( नभय) एवं म युमान् ( ु होकर लड़नेवाला) था, इसी लये पु षोतम अजुनकुमारको ‘अ भम यु’ कहते ह ।। ६७ ।। स सा व याम तरथः स बभूव धनंजयात् । मखे नमथनेनेव शमीगभा ताशनः ।। ६८ ।। जैसे य म म थन करनेपर शमीके गभसे उ प अ थसे अ न कट होती है, उसी कार अजुनके ारा सुभ ाके गभसे उस अ तरथी वीरका ा भाव आ था ।। ६८ ।। य म ाते महातेजाः कु तीपु ो यु ध रः । अयुतं गा जा त यः ादा कां भारत ।। ६९ ।। भारत! उसके ज म लेनेपर महातेज वी कु तीपु यु ध रने ा ण को दस हजार गौएँ तथा ब त-सी वणमु ाएँ दानम द ।। ६९ ।। द यतो वासुदेव य बा यात् भृ त चाभवत् ।

पतॄणा मव सवषां जाना मव च माः ।। ७० ।। जैसे सम त पतर और जा को च मा य लगते ह, उसी कार अ भम यु बचपनसे ही भगवान् ीकृ णका अ य त य हो गया था ।। ७० ।। ज म भृ त कृ ण च े त य याः शुभाः । स चा प ववृधे बालः शु लप े यथा शशी ।। ७१ ।। ीकृ णने ज मसे ही उसके लालन-पालनक सु दर व थाएँ क थ । बालक अ भम यु शु लप के च माक भाँ त दन दन बढ़ने लगा ।। ७१ ।। चतु पादं दश वधं धनुवदमरदमः । अजुनाद् वेद वेद ः सकलं द मानुषम् ।। ७२ ।। उस श ुदमन बालकने वेद का ान ा त करके अपने पता अजुनसे चार पद १ और दश वध२ अंग से यु द एवं मानुष३ सब कारके धनुवदका ान ा त कर लया ।। ७२ ।। व ाने व प चा ाणां सौ वे च महाबलः । या व प च सवासु वशेषान य श यत् ।। ७३ ।। अ के व ान, सौ व ( योगपटु ता) तथा स पूण या म भी महाबली अजुनने उसे वशेष श ा द थी ।। ७३ ।। आगमे च योगे च च े तु य मवा मना । तुतोष पु ं सौभ ं े माणो धनंजयः ।। ७४ ।। धनंजयने अ भम युको (अ -श के) आगम और योगम अपने समान बना दया था। वे सुभ ाकुमारको दे खकर ब त संतु रहते थे ।। ७४ ।। सवसंहननोपेतं सवल णल तम् । धषमृषभ क धं ा ानन मवोरगम् ।। ७५ ।। वह सर को तर कृत करनेवाले सम त सद्गुण से स प , सभी उ म ल ण से सुशो भत एवं धष था। उसके कंधे वृषभके समान -पु थे तथा मुँह बाये ए सपक भाँ त वह श ु को भयानक तीत होता था ।। ७५ ।। सहदप महे वासं म मात व मम् । मेघ भ नघ षं पूणच नभाननम् ।। ७६ ।। उसम सहके समान गव तथा मतवाले गजराजक भाँ त परा म था। वह महाधनुधर वीर अपने ग भीर वरसे मेघ और भक व नको लजा दे ता था। उसका मुख पूण च माके समान मनम आ ाद उ प करता था ।। ७६ ।। कृ ण य स शं शौय वीय पे तथाऽऽकृतौ । ददश पु ं बीभ सुमघवा नव तं यथा ।। ७७ ।। वह शूरता, परा म, प तथा आकृ त—सभी बात म ीकृ णके समान ही जान पड़ता था। अजुन अपने उस पु को वैसी ही स तासे दे खते थे, जैसे इ उ ह दे खा करते थे ।। ७७ ।।

पा चा य प तु प च यः प त यः शुभल णा । लेभे प च सुतान् वीरा े ान् प चाचला नव ।। ७८ ।। शुभल णा पांचालीने भी अपने पाँच प तय से पाँच े पु को ा त कया। वे सबके-सब वीर और पवतके समान अ वचल थे ।। ७८ ।। यु ध रात् त व यं सुतसोमं वृकोदरात् । अजुना छतकमाणं शतानीकं च नाकु लम् ।। ७९ ।। सहदे वा छतसेनमेतान् प च महारथान् । पा चाली सुषुवे वीराना द यान द तयथा ।। ८० ।। यु ध रसे त व य, भीमसेनसे सुतसोम, अजुनसे ुतकमा, नकुलसे शतानीक और सहदे वसे ुतसेन उ प ए थे। इन पाँच वीर महारथी पु को पांचाली ( ौपद )-ने उसी कार ज म दया, जैसे अ द तने बारह आ द य को ।। ७९-८० ।। शा तः त व यं तमूचु व ा यु ध रम् । पर हरण ाने त व यो भव वयम् ।। ८१ ।। ा ण ने यु ध रसे उनके पु का नाम शा के अनुसार त व य बताया। उनका उ े य यह था क यह हारज नत वेदनाके ानम व यपवतके समान हो। (इसे श ु के हारसे त नक भी पीड़ा न हो) ।। ८१ ।। सुते सोमसह े तु सोमाकसमतेजसम् । सुतसोमं महे वासं सुषुवे भीमसेनतः ।। ८२ ।। भीमसेनके सह सोमयाग करनेके प ात् ौपद ने उनसे सोम और सूयके समान तेज वी महान् धनुधर पु को उ प कया था, इस लये उसका नाम सुतसोम रखा गया ।। ८२ ।। ुतं कम महत् कृ वा नवृ ेन करी टना । जातः पु तथे येवं ुतकमा ततोऽभवत् ।। ८३ ।। करीटधारी अजुनने महान् एवं व यात कम करनेके प ात् लौटकर ौपद से पु उ प कया था, इस लये उनके पु का नाम ुतकमा आ ।। ८३ ।। शतानीक य राजषः कौर य महा मनः । च े पु ं सनामानं नकुलः क तवधनम् ।। ८४ ।। कौरवकुलके महामना राज ष शतानीकके नामपर नकुलने अपने क तवधक पु का नाम शतानीक रख दया ।। ८४ ।। तत वजीजनत् कृ णा न े व दै वते । सहदे वात् सुतं त मा छतसेने त यं व ः ।। ८५ ।। तदन तर कृ णाने सहदे वसे अ नदे वतास ब धी कृ का न म एक पु उ प कया, इस लये उसका नाम ुतसेन रखा गया ( ुतसेन अ नका ही नामा तर है) ।। ८५ ।। एकवषा तरा वेते ौपदे या यश वनः । अ वजाय त राजे पर पर हतै षणः ।। ८६ ।। े



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राजे ! ये यश वी ौपद कुमार एक-एक वषके अ तरसे उ प ए थे और एकसरेका हत चाहनेवाले थे ।। ८६ ।। जातकमा यानुपू ा चूडोपनयना न च । चकार व धवद् धौ य तेषां भरतस म ।। ८७ ।। भरत े ! पुरो हत धौ यने मशः उन सभी बालक के जातकम, चूड़ाकरण और उपनयन आ द सं कार व धपूवक स प कये ।। ८७ ।। कृ वा च वेदा ययनं ततः सुच रत ताः । जगृ ः सव म व मजुनाद् द मानुषम् ।। ८८ ।। पूण पसे चय तका पालन करनेवाले उन बालक ने धौ य मु नसे वेदा ययन करनेके प ात् अजुनसे स पूण द एवं मानुष धनुवदका ान ा त कया ।। ८८ ।। द गभ पमैः पु ै ूढोर कैमहारथैः । अ वतो राजशा ल पा डवा मुदमा ुवन् ।। ८९ ।। राजे र! दे वपु के समान चौड़ी छातीवाले महारथी पु से संयु हो पा डव बड़े स ए ।। ८९ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण हरणाहरणपव ण वश य धक शततमोऽ यायः ।। २२० ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत हरणाहरणपवम दो सौ बीसवाँ अ याय पूरा आ ।। २२० ।। (दा णा य अ धक पाठक े १ ोक मलाकर कुल ९० ोक ह)

१. धनुवदम न नां कत चार पाद बताये गये ह—म मु , पा णमु , मु ामु और अमु । जैसा क वचन है— म मु ं पा णमु ं मु ामु ं तथैव च । अमु ं च धनुवदे चतु पा छ मी रतम् ।। जसका म ारा केवल योग होता है, उपसंहार नह , उसे म मु कहते ह। जसे हाथम लेकर धनुष ारा छोड़ा जाय, वह बाण आ द पा णमु कहा गया है। जसके योग और उपसंहार दोन ह , वह मु ामु है। जो व तुतः छोड़ा नह जाता, जैसे म ारा सा धत ( वजा आ द) है, जसको दे खनेमा से श ु भाग जाते ह, वह अमु कहलाता है। ये अथवा सू , श ा, योग तथा रह य—ये ही धनुवदके चार पाद ह। २. आदान, संधान, मो ण, नवतन, थान, मु , योग, ाय , म डल तथा रह य—धनुवदके ये दस अंग ह। यथा— आदानमथ संधानं मो णं व नवतनम् । थानं मु ः योग ाय ा न म डलम् ।। रह यं चे त दशधा धनुवदा म यते । ‘तरकससे बाणको नकालना आदान है। उसे धनुषक यंचापर रखना संधान है, ल यपर छोड़ना मो ण कहा गया है। य द बाण छोड़ दे नेके बाद यह मालूम हो जाय क हमारा वप ी नबल या श हीन है, तो वीर पु ष म श से उस बाणको लौटा लेते ह। इस कार छोड़े ए अ को लौटा लेना व नवतन कहलाता है। धनुष या उसक यंचाके धारण अथवा शरसंधानकालम धनुष और यंचाके म यदे शको थान कहा गया है। तीन या चार अंगु लय का सहयोग ही मु है। तजनी और म यमा अंगु लके अथवा म यमा और अंगु के म यसे बाणका संधान करना योग कहलाता है। वतः या सरेसे ा त होनेवाले याघात ( यंचाके आघात) और बाणके आघातको रोकनेके लये जो द तान आ दका योग कया जाता है, उसका नाम ाय है। च ाकार घूमते ए रथके साथ-साथ घूमनेवाले े













ल यका वेध म डल कहलाता है। श दके आधारपर ल य ब धना अथवा एक ही समय अनेक ल य को ब ध डालना, ये सब रह यके अ तगत ह।’ ३. ा आ दको द और खड् ग आ दको मानुष कहा गया है।

(ख ा डवदाहपव) एक वश य धक शततमोऽ यायः यु ध रके रा यक वशेषता, कृ ण और अजुनका खा डववनम जाना तथा उन दोन के पास ा णवेशधारी अ नदे वका आगमन वैश पायन उवाच इ थे वस त ते ज नुर यान् नरा धपान् । शासनाद् धृतरा य रा ः शा तनव य च ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! राजा धृतरा तथा शा तनुन दन भी मक आ ासे इ थम रहते ए पा डव ने अ य ब त-से राजा को, जो उनके श ु थे, मार दया ।। १ ।। आ य धमराजानं सवलोकोऽवसत् सुखम् । पु यल णकमाणं वदे ह मव दे हनः ।। २ ।। धमराज यु ध रका आसरा लेकर सब लोग सुखसे रहने लगे, जैसे जीवा मा पु यकम के फल व प अपने उ म शरीरको पाकर सुखसे रहता है ।। २ ।। स समं धमकामाथान् सषेवे भरतषभ । ी नवा मसमान् ब धून् नी तमा नव मानयन् ।। ३ ।। भरत े ! महाराज यु ध र नी त पु षक भाँ त धम, अथ और काम इन तीन को आ माके समान य ब धु मानते ए याय और समतापूवक इनका सेवन करते थे ।। ३ ।। तेषां सम वभ ानां तौ दे हवता मव । बभौ धमाथकामानां चतुथ इव पा थवः ।। ४ ।। इस कार तु य पसे बँटे ए धम, अथ और काम तीन पु षाथ भूतलपर मानो मू तमान् होकर कट हो रहे थे और राजा यु ध र चौथे पु षाथ मो क भाँ त सुशो भत होते थे ।। ४ ।। अ येतारं परं वेदान् यो ारं महा वरे । र तारं शुभाँ लोकान् ले भरे तं जना धपम् ।। ५ ।। जाने महाराज यु ध रके पम ऐसा राजा पाया था, जो परम परमा माका च तन करनेवाला, बड़े-बड़े य म वेद का उपयोग करनेवाला और शुभ लोक के संर णम त पर रहनेवाला था ।। ५ ।। अ ध ानवती ल मीः परायणवती म तः । ो ो े ी ी

वधमानोऽखलो धम तेनासीत् पृ थवी ताम् ।। ६ ।। राजा यु ध रके ारा सरे राजा क चंचल ल मी भी थर हो गयी, बु उ म न ावाली हो गयी और स पूण धमक दन दन वृ होने लगी ।। ६ ।। ातृ भः स हतो राजा चतु भर धकं बभौ । यु यमानै वततो वेदै रव महा वरः ।। ७ ।। जैसे यथावसर उपयोगम लाये जानेवाले चार वेद के ारा व तारपूवक आर भ कया आ महाय शोभा पाता है, उसी कार अपनी आ ाके अधीन रहनेवाले चार भाइय के साथ राजा यु ध र अ य त सुशो भत होते थे ।। ७ ।। तं तु धौ यादयो व ाः प रवाय पत थरे । बृह प तसमा मु याः जाप त मवामराः ।। ८ ।। जैसे बृह प त-स श मु य-मु य दे वता जाप तक सेवाम उप थत होते ह, उसी कार धौ य आ द ा ण राजा यु ध रको सब ओरसे घेरकर बैठते थे ।। ८ ।। धमराजे त ी या पूणच इवामले । जानां रे मरे तु यं ने ा ण दया न च ।। ९ ।। नमल एवं पूण च माके समान आन द द राजा यु ध रके त अ य त ी त होनेके कारण उ ह दे खकर जाके ने और मन एक साथ फु लत हो उठते थे ।। ९ ।। न तु केवलदै वेन जा भावेन रे मरे । यद् बभूव मनःका तं कमणा स चकार तत् ।। १० ।। जा केवल उनके पालन प राजो चत कमसे ही संतु नह थी, वह उनके त ा और भ भाव रखनेके कारण भी सदा आन दत रहती थी। राजाके त जाक भ इस लये थी क जाके मनको जो य लगता था, राजा यु ध र उसीको या ारा पूण करते थे ।। १० ।। न यु ं न चास यं नास ं न च वा यम् । भा षतं चा भाष य ज े पाथ य धीमतः ।। ११ ।। सदा मीठ बात करनेवाले बु मान् कु तीन दन राजा यु ध रके मुखसे कभी कोई अनु चत, अस य, अस और अ य बात नह नकलती थी ।। ११ ।। स ह सव य लोक य हतमा मन एव च । चक षन् सुमहातेजा रेमे भरतस म ।। १२ ।। भरत े ! महातेज वी राजा यु ध र सब लोग का और अपना भी हत करनेक चे ाम लगे रहकर सदा स तापूवक समय बताते थे ।। १२ ।। तथा तु मु दताः सव पा डवा वगत वराः । अवसन् पृ थवीपालां तापय तः वतेजसा ।। १३ ।। इस कार सभी पा डव अपने तेजसे सरे नरेश को संत त करते ए न त तथा आन दम न होकर वहाँ नवास करते थे ।। १३ ।। ततः क तपयाह य बीभ सुः कृ णम वीत् । उ णा न कृ ण वत ते ग छावो यमुनां त ।। १४ ।। े े ी े ‘ ी ी ी ै

तदन तर कुछ दन के बाद अजुनने ीकृ णसे कहा—‘कृ ण! बड़ी गरमी पड़ रही है। च लये, यमुनाजीम नानके लये चल ।। १४ ।। सु जनवृतौ त व य मधुसूदन । साया े पुनरे यावो रोचतां ते जनादन ।। १५ ।। ‘मधुसूदन! म के साथ वहाँ जल वहार करके हमलोग शामतक फर लौट आयगे। जनादन! य द आपक च हो, तो चल’ ।। १५ ।।

वासुदेव उवाच कु तीमातममा येतद् रोचते यद् वयं जले । सु जनवृताः पाथ वहरेम यथासुखम् ।। १६ ।। वासुदेव बोले—कु तीन दन! मेरी भी ऐसी ही इ छा हो रही है क हमलोग सु द के साथ वहाँ चलकर सुखपूवक जल वहार कर ।। १६ ।। वैश पायन उवाच आम य तौ धमराजमनु ा य च भारत । ज मतुः पाथगो व दौ सु जनवृतौ ततः ।। १७ ।। वैश पायनजी कहते ह—भारत! यह सलाह करके यु ध रक आ ा ले अजुन और ीकृ ण सु द के साथ वहाँ गये ।। १७ ।। वहारदे शं स ा य नाना ममनु मम् । गृहै चावचैयु ं पुर दरपुरोपमम् ।। १८ ।। भ यैभ यै पेयै रसव महाधनैः । मा यै व वधैग धैयु ं वा णयपाथयोः ।। १९ ।। ववेशा तःपुरं तूण र नै चावचैः शुभैः । यथोपजोषं सव जन ड भारत ।। २० ।। यमुनाके तटपर जहाँ वहार थान था, वहाँ प ँचकर ीकृ ण और अजुनके र नवासक याँ नाना कारके सु दर र न के साथ ड़ाभवनके भीतर चली गय । वह उ म वहारभू म नाना कारके वृ से सुशो भत थी। वहाँ बने ए अनेक छोटे -बड़े भवन के कारण वह थान इ पुरीके समान सुशो भत होता था। अ तःपुरक य के साथ अनेक कारके भ य, भो य, ब मू य सरस पेय, भाँ त-भाँ तके पु पहार और सुग धत भी थे। भारत! वहाँ जाकर सब लोग अपनी-अपनी चके अनुसार जल ड़ा करने लगे ।। १८—२० ।। य वपुल ो य ा पीनपयोधराः । मद ख लतगा म य डु वामलोचनाः ।। २१ ।। वशाल नत ब और मनोहर पीन उरोज वाली वामलोचना व नताएँ भी यौवनके मदके कारण डगमगाती चालसे चलकर इ छानुसार ड़ाएँ करने लग ।। २१ ।। वने का च जले का त् का द् वे मसु चा नाः । यथायो यं यथा ी त च डु ः पाथकृ णयोः ।। २२ ।। े ँ ी औ े औ

वे याँ ीकृ ण और अजुनक चके अनुसार कुछ वनम, कुछ जलम और कुछ घर म यथो चत पसे ड़ा करने लग ।। २२ ।। ौपद च सुभ ा च वासां याभरणा न च । ाय छतां महाराज ते तु त मन् मदो कटे ।। २३ ।। महाराज! उस समय यौवनमदसे यु ौपद और सुभ ाने ब त-से व और आभूषण बाँटे ।। २३ ।। का त् ा ननृतु ु शु तथापराः । जहसु परा नाय जगु ा या वर यः ।। २४ ।। वहाँ कुछ े याँ हष लासम भरकर नृ य करने लग । कुछ जोर-जोरसे कोलाहल करने लग । अ य ब त-सी याँ ठठाकर हँसने लग तथा कुछ सु दरी याँ गीत गाने लग ।। २४ ।। धु ापरा त ज नु पर परम् । म यामासुर या रह या न पर परम् ।। २५ ।। कुछ एक- सरीको पकड़कर रोकने और मृ हार करने लग तथा कुछ सरी याँ एका तम बैठकर आपसम कुछ गु त बात करने लग ।। २५ ।। वेणुवीणामृद ानां मनो ानां च सवशः । श दे न पूयते ह य तद् वनं सुमह मत् ।। २६ ।। वहाँका राजभवन और महान् समृ शाली वन वीणा, वेणु और मृदंग आ द मनोहर वा क सुमधुर व नसे सब ओर गूँजने लगा ।। २६ ।। त मं तदा वतमाने कु दाशाहन दनौ । समीपं ज मतुः कं च े शं सुमनोहरम् ।। २७ ।। इस कार जब वहाँ ड़ा- वहारका आन दमय उ सव चल रहा था, उसी समय ीकृ ण और अजुन पासके ही कसी अ य त मनोहर दे शम गये ।। २७ ।। त ग वा महा मानौ कृ णौ परपुरंजयौ । महाहासनयो राजं तत तौ सं नषीदतुः ।। २८ ।। त पूव तीता न व ा तानीतरा ण च । ब न कथ य वा तौ रेमाते पाथमाधवौ ।। २९ ।। राजन्! वहाँ जाकर श ु क राजधानीको जीतनेवाले वे दोन महा मा ीकृ ण और अजुन दो ब मू य सहासन पर बैठे और पहले कये ए परा म तथा अ य ब त-सी बात क चचा करके आमोद- मोद करने लगे ।। २८-२९ ।। त ोप व ौ मु दतौ नाकपृ ेऽ ना वव । अ याग छत् तदा व ो वासुदेवधनंजयौ ।। ३० ।। वहाँ स तापूवक बैठे ए धनंजय और वासुदेव वगलोकम थत अ नीकुमार क भाँ त सुशो भत हो रहे थे। उसी समय उन दोन के पास एक ा णदे वता आये ।। ३० ।। बृह छाल तीकाशः त तकनक भः । ह र प ो वल म ुः माणायामतः समः ।। ३१ ।। े े ँ े े े े ी

वे वशाल शालवृ के समान ऊँचे थे। उनक का त तपाये ए सुवणके समान थी। उनके सारे अंग नीले और पीले रंगके थे, दाढ़ -मूँछ अ न वालाके समान पीतवणक थ तथा ऊँचाईके अनुसार ही उनक मोटाई थी ।। ३१ ।। त णा द यसंकाश ीरवासा जटाधरः । पप ाननः प तेजसा वल व ।। ३२ ।। वे ातःका लक सूयके समान तेज वी जान पड़ते थे। वे चीरव पहने और म तकपर जटा धारण कये ए थे। उनका मुख कमलदलके समान शोभा पा रहा था। उनक भा पगलवणक थी और वे अपने तेजसे मानो व लत हो रहे थे ।। ३२ ।। उपसृ ं तु तं कृ णौ ाजमानं जो मम् । अजुनो वासुदेव तूणमु प य त थतुः ।। ३३ ।। वे तेज वी ज े जब नकट आ गये, तब अजुन और भगवान् ीकृ ण तुरंत ही आसनसे उठकर खड़े हो गये ।। ३३ ।।

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ीमहाभारते आ दपव ण खा डवदाहपव ण ा ण यनलागमने एक वश य धक शततमोऽ यायः ।। २२१ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत खा डवदाहपवम ा ण पी अ नदे वके आगमनसे स ब ध रखनेवाला दो सौ इ क सवाँ अ याय पूरा आ ।। २२१ ।।

ा वश य धक शततमोऽ यायः अ नदे वका खा डववनको जलानेके लये ीकृ ण और अजुनसे सहायताक याचना करना, अ नदे व उस वनको य जलाना चाहते थे, इसे बतानेके संगम राजा ेत कक कथा वैश पायन उवाच सोऽ वीदजुनं चैव वासुदेवं च सा वतम् । लोक वीरौ त तौ खा डव य समीपतः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! उन ा ण-दे वताने अजुन और सा वतवंशी भगवान् वासुदेवसे, जो व व यात वीर थे और खा डववनके समीप खड़े ए थे, कहा — ।। १ ।। ा णो ब भो ा म भु ेऽप र मतं सदा । भ े वा णयपाथ वामेकां तृ तं य छतम् ।। २ ।। ‘म अ धक भोजन करनेवाला एक ा ण ँ और सदा अप र मत अ भोजन करता ँ। वीर ीकृ ण और अजुन! आज म आप दोन से भ ा माँगता ँ। आपलोग एक बार पूण भोजन कराकर मुझे तृ त दान क जये’ ।। २ ।। एवमु ौ तम ूतां तत तौ कृ णपा डवौ । केना ेन भवां तृ येत् त या य यतावहे ।। ३ ।। उनके ऐसा कहनेपर ीकृ ण और अजुन बोले—‘ न्! बताइये, आप कस अ से तृ त ह गे? हम दोन उसीके लये य न करगे’ ।। ३ ।। एवमु ः स भगवान वीत् तायुभौ ततः । भाषमाणौ तदा वीरौ कम ं यता म त ।। ४ ।। जब वे दोन वीर ‘आपके लये कस अ क व था क जाय?’ इसी बातको बारबार हराने लगे, तब उनके ऐसा कहनेपर भगवान् अ नदे व उन दोन से इस कार बोले ।। ४ ।। ा ण उवाच नाहम ं बुभु े वै पावकं मां नबोधतम् । यद मनु पं मे तद् युवां स य छतम् ।। ५ ।। ा णदे वताने कहा—वीरो! मुझे अ क भूख नह है, आपलोग मुझे अ न समझ। जो अ मेरे अनु प हो, वही आप दोन मुझे द ।। ५ ।। इद म ः सदा दावं खा डवं प रर त । न च श नो यहं द धुं र यमाणं महा मना ।। ६ ।। े े ो े े

इ सदा इस खा डववनक र ा करते ह। उन महामनासे सुर त होनेके कारण म इसे जला नह पाता ।। ६ ।। वस य सखा त य त कः प गः सदा । सगण त कृते दावं प रर त व भृत् ।। ७ ।। इस वनम इ का सखा त क नाग अपने प रवारस हत सदा नवास करता है। उसीके लये वधारी इ सदा इसक र ा करते ह ।। ७ ।। त भूता यनेका न र तेऽ य स तः । तं दध ुन श नो म द धुं श य तेजसा ।। ८ ।। उस त क नागके संगसे ही यहाँ रहनेवाले और भी अनेक जीव क वे र ा करते ह, इस लये इ के भावसे म इस वनको जला नह पाता। परंतु म सदा ही इसे जलानेक इ छा रखता ँ ।। ८ ।। स मां व लतं ् वा मेघा भो भः वष त । ततो द धुं न श नो म दध ुदावमी सतम् ।। ९ ।। मुझे व लत दे खकर वे मेघ ारा जलक वषा करने लगते ह, यही कारण है क जलानेक इ छा रखते ए भी म इस खा डववनको द ध करनेम सफल नह हो पाता ।। ९ ।। स युवा यां सहाया याम वद् यां समागतः । दहेयं खा डवं दावमेतद ं वृतं मया ।। १० ।। आप दोन अ व ाके पूरे जानकार ह, अतः म इसी उ े यसे आपके पास आया ँ क आप दोन क सहायतासे इस खा डववनको जला सकूँ। म इसी अ क भ ा माँगता ँ ।। १० ।। युवां दकधारा ता भूता न च सम ततः । उ मा वदौ स यक् सवतो वार य यथः ।। ११ ।। आप दोन उ म अ के ाता ह, अतः जब म इस वनको जलाने लगूँ, उस समय आपलोग ऊपरसे बरसती ई जलक धारा तथा इस वनसे नकलकर चार ओर भागनेवाले ा णय को रो कयेगा ।। ११ ।। जनमेजय उवाच कमथ भगवान नः खा डवं द धु म छ त । र यमाणं महे े ण नानास वसमायुतम् ।। १२ ।। जनमेजयने पूछा— न्! भगवान् अ नदे व दे वराज इ के ारा सुर त और अनेक कारके जीव-ज तु से भरे ए खा डववनको कस लये जलाना चाहते थे? ।। १२ ।। न ेतत् कारणं पं स तभा त मे । यद् ददाह सुसं ु ः खा डवं ह वाहनः ।। १३ ।। े

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व वर! मुझे इसका कोई साधारण कारण नह जान पड़ता, जसके लये कु पत होकर ह वाहन अ नने समूचे खा डववनको भ म कर दया ।। १३ ।। एतद् व तरशो ोतु म छा म त वतः । खा डव य पुरा दाहो यथा समभव मुने ।। १४ ।। न्! मुने! पूवकालम खा डववनका दाह जस कार आ, वह सब व तारके साथ म ठ क-ठ क सुनना चाहता ँ ।। १४ ।।

वैश पायन उवाच शृणु मे ुवतो राजन् सवमेतद् यथातथम् । य म ं ददाहा नः खा डवं पृ थवीपते ।। १५ ।। वैश पायनजीने कहा—महाराज जनमेजय! अ नदे वने जस कारण खा डववनको जलाया, वह सब वृ ा त म यथावत् बतलाता ँ, सुनो ।। १५ ।। ह त ते कथ य या म पौराणीमृ षसं तुताम् । कथा ममां नर े खा डव य वना शनीम् ।। १६ ।। नर े ! खा डववनके वनाशसे स ब ध रखनेवाली यह ाचीन कथा मह षय ारा तुत क गयी है। उसीको म तुमसे क ँगा ।। १६ ।। पौराणः ूयते राजन् राजा ह रहयोपमः । ेत कनाम व यात बल व मसंयुतः ।। १७ ।। राजन्! सुना जाता है, ाचीनकालम इ के समान बल और परा मसे स प ेत क नामके एक राजा थे ।। १७ ।। य वा दानप तध मान् यथा ना योऽ त क न । ईजे च स महाय ैः तु भ ा तद णैः ।। १८ ।। उस समय उनके-जैसा य करनेवाला, दाता और बु मान् सरा कोई नह था। उ ह ने पया त द णावाले अनेक बड़े-बड़े य का अनु ान कया था ।। १८ ।। त य ना याभवद् बु दवसे दवसे नृप । स े यासमार भे दानेषु व वधेषु च ।। १९ ।। राजन्! त दन उनके मनम य और दानके सवा सरा कोई वचार ही नह उठता था। वे य कम के आर भ और नाना कारके दान म ही लगे रहते थे ।। १९ ।। ऋ व भः स हतो धीमानेवमीजे स भू मपः । तत तु ऋ वज ा य धूम ाकुललोचनाः ।। २० ।। इस कार वे बु मान् नरेश ऋ वज के साथ य कया करते थे। य करते-करते उनके ऋ वज क आँख धूएस ँ े ाकुल हो उठ ।। २० ।। कालेन महता ख ा त यजु ते नरा धपम् । ततः चोदयामास ऋ वज तान् महीप तः ।। २१ ।। च ु वकलतां ा ता न पे ते तुम् । तत तेषामनुमते तद् व ै तु नरा धपः ।। २२ ।। ै

स ं समापयामास ऋ व भरपरैः सह । द घकालतक आ त दे ते-दे ते वे सभी ख हो गये थे। इस लये राजाको छोड़कर चले गये। तब राजाने उन ऋ वज को पुनः य के लये े रत कया। परंतु जनके ने खने लगे थे, वे ऋ वज उनके य म नह आये। तब राजाने उनक अनुम त लेकर सरे ा ण को ऋ वज बनाया और उ ह के साथ अपने चालू कये ए य को पूरा कया ।। २१-२२ ।। त यैवं वतमान य कदा चत् कालपयये ।। २३ ।। स माहतुकाम य संव सरशतं कल । ऋ वजो ना यप त समाहतु महा मनः ।। २४ ।। इस कार य परायण राजाके मनम कसी समय यह संक प उठा क म सौ वष तक चालू रहनेवाला एक स ार भ क ँ ; परंतु उन महामनाको वह य आर य करनेके लये ऋ वज ही नह मले ।। २३-२४ ।। स च राजाकरोद् य नं महा तं ससु जनः । णपातेन सा वेन दानेन च महायशाः ।। २५ ।। ऋ वजोऽनुनयामास भूयो भूय वत तः । ते चा य तम भ ायं न च ु र मतौजसः ।। २६ ।। उन महायश वी नरेशने अपने सु द को साथ लेकर इस कायके लये ब त बड़ा य न कया। पैर पर पड़कर, सा वनापूण वचन कहकर और इ छानुसार दान दे कर बार-बार नराल यभावसे ऋ वज को मनाया, उनसे य करानेके लये अनुनय- वनय क ; परंतु उ ह ने अ मततेज वी नरेशके मनोरथको सफल नह कया ।। २५-२६ ।। स चा म थान् राज ष तानुवाच षा वतः । य हं प ततो व ाः शु ूषायां न च थतः ।। २७ ।। आशु या योऽ म यु मा भ ा णै जुगु सतः । त ाहथ तु ां ाघात यतुम ताम् ।। २८ ।। तब उन राज षने कुछ कु पत होकर आ मवासी मह षय से कहा—‘ ा णो! य द म प तत होऊँ और आपलोग क शु ूषासे मुँह मोड़ता होऊँ तो न दत होनेके कारण आप सभी ा ण के ारा शी ही याग दे नेयो य ँ, अ यथा नह ; अतः य करानेके लये मेरी इस बढ़ ई ाम आपलोग को बाधा नह डालनी चा हये ।। २७-२८ ।। अ थाने वा प र यागं कतु मे जस माः । प एव वो व ाः सादं कतुमहथ ।। २९ ।। ‘ व वरो! इस कार बना कसी अपराधके मेरा प र याग करना आपलोग के लये कदा प उ चत नह है। म आपक शरणम ँ। आपलोग कृपापूवक मुझपर स होइये ।। २९ ।। सा वदाना द भवा यै त वतः कायव या । साद य वा व या म य ः काय जो माः ।। ३० ।। ‘ े

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‘ े जगण! म कायाथ होनेके कारण सा वना दे कर दान आ द दे नेक बात कहकर यथाथ वचन ारा आपलोग को स करके आपक सेवाम अपना काय नवेदन कर रहा ँ ।। ३० ।। अथवाहं प र य ो भव षकारणात् । ऋ वजोऽ यान् ग म या म याजनाथ जो माः ।। ३१ ।। ‘ जो मो! य द आपलोग ने े षवश मुझे याग दया तो म यह य करानेके लये सरे ऋ वज के पास जाऊँगा’ ।। ३१ ।। एताव वा वचनं वरराम स पा थवः । यदा न शेकू राजानं याजनाथ परंतप ।। ३२ ।। तत ते याजकाः ु ा तमूचुनृपस मम् । तव कमा यज ं वै वत ते पा थवो म ।। ३३ ।। इतना कहकर राजा चुप हो गये। परंतप जनमेजय! जब वे ऋ वज राजाका य करानेके लये उ त न हो सके, तब वे होकर उन नृप े से बोले—‘भूपाल शरोमणे! आपके य कम तो नर तर चलते रहते ह ।। ३२-३३ ।। ततो वयं प र ा ताः सततं कमवा हनः । माद मात् प र ा तान् स वं न य ु मह स ।। ३४ ।। बु मोहं समा थाय वरास भा वतोऽनघ । ग छ सकाशं वं स ह वां याज य य त ।। ३५ ।। ‘अतः सदा कमम लगे रहनेके कारण हमलोग थक गये ह, पहलेके प र मसे हमारा क बढ़ गया है। ऐसी दशाम बु मो हत होनेके कारण उतावले होकर आप चाह तो हमारा याग कर सकते ह। न पाप नरेश! आप तो भगवान् के ही समीप जाइये। अब वे ही आपका य करायगे’ ।। ३४-३५ ।। सा ध ेपं वचः ु वा सं ु ः ेत कनृपः । कैलासं पवतं ग वा तप उ ं समा थतः ।। ३६ ।। ा ण का यह आ ेपयु वचन सुनकर राजा ेत कको बड़ा ोध आ। वे कैलास पवतपर जाकर उ तप याम लग गये ।। ३६ ।। आराधयन् महादे वं नयतः सं शत तः । उपवासपरो राजन् द घकालम त त ।। ३७ ।। राजन्! ती ण तका पालन करनेवाले राजा ेत क मन-इ य के संयमपूवक महादे वजीक आराधना करते ए ब त दन तक नराहार खड़े रहे ।। ३७ ।। कदा चद् ादशे काले कदा चद प षोडशे । आहारमकरोद् राजा मूला न च फला न च ।। ३८ ।। वे कभी बारहव दन और कभी सोलहव दन फल-मूलका आहार कर लेते थे ।। ३८ ।। ऊ वबा व न मष त न् थाणु रवाचलः । ष मासानभवद् राजा ेत कः सुसमा हतः ।। ३९ ।। ो े े े ो ी

दोन बाह ऊपर उठाकर एकटक दे खते ए राजा ेत क एका चत हो छः महीन तक ठूँ ठक तरह अ वचल भावसे खड़े रहे ।। ३९ ।। तं तथा नृपशा लं त यमानं महत् तपः । शंकरः परम ी या दशयामास भारत ।। ४० ।। भारत! उन नृप े को इस कार भारी तप या करते दे ख भगवान् शंकरने अ य त स होकर उ ह दशन दया ।। ४० ।। उवाच चैनं भगवान् न धग भीरया गरा । ीतोऽ म नरशा ल तपसा ते परंतप ।। ४१ ।। और नेहपूवक ग भीर वाणीम भगवान्ने उनसे कहा—‘परंतप! नर े ! म तु हारी तप यासे ब त स ँ ।। ४१ ।। वरं वृणी व भ ं ते यं व म छ स पा थव । एत छ वा तु वचनं या मततेजसः ।। ४२ ।। णप य महा मानं राज षः यभाषत । ‘भूपाल! तु हारा क याण हो। तुम जैसा चाहते हो, वैसा वर माँग लो।’ अ मततेज वी का यह वचन सुनकर राज ष ेत कने परमा मा शवके चरण म णाम कया और इस कार कहा— ।। ४२ ।। य द मे भगवान् ीतः सवलोकनम कृतः ।। ४३ ।। वयं मां दे वदे वेश याजय व सुरे र । एत छ वा तु वचनं रा ा तेन भा षतम् ।। ४४ ।। उवाच भगवान् ीतः मतपूव मदं वचः । ‘दे वदे वेश! सुरे र! य द मेरे ऊपर आप सवलोक-व दत भगवान् स ए ह तो वयं चलकर मेरा य कराय।’ राजाक कही ई यह बात सुनकर भगवान् शव स होकर मुसकराते ए बोले— ।। ४३-४४ ।। ना माकमेष वषयो वतते याजनं त ।। ४५ ।। वया च सुमहत् त तं तपो राजन् वरा थना । याज य या म राजं वां समयेन परंतप ।। ४६ ।। ‘राजन्! य कराना हमारा काम नह है; परंतु तुमने यही वर माँगनेके लये भारी तप या क है, अतः परंतप नरेश! म एक शतपर तु हारा य कराऊँगा’ ।। ४५-४६ ।। उवाच समा ादश राजे चारी समा हतः । सततं वा यधारा भय द तपयसेऽनलम् ।। ४७ ।। कामं ाथयसे यं वं म ः ा य स तं नृप । बोले—राजे ! य द तुम एका च हो चयका पालन करते ए बारह वष तक घृतक नर तर अ व छ धारा ारा अ नदे वको तृ त करो तो मुझसे जस कामनाके लये ाथना कर रहे हो, उसे पाओगे ।। ४७ ।। े े

एवमु े ण ेत कमनुजा धपः ।। ४८ ।। तथा चकार तत् सव यथो ं शूलपा णना । पूण तु ादशे वष पुनराया महे रः ।। ४९ ।। भगवान् के ऐसा कहनेपर राजा ेत कने शूलपा ण शवक आ ाके अनुसार सारा काय स प कया। बारहवाँ वष पूण होनेपर भगवान् महे र पुनः आये ।। ४८-४९ ।। ् वैव च स राजानं शंकरो लोकभावनः । उवाच परम ीतः ेत क नृपस मम् ।। ५० ।। स पूण लोक क उ प करनेवाले भगवान् शंकर नृप े ेत कको दे खते ही अ य त स होकर बोले— ।। ५० ।। तो षतोऽहं नृप े वयेहा ेन कमणा । याजनं ा णानां तु व ध ं परंतप ।। ५१ ।। ‘भूपाल शरोमणे! तुमने इस वेद व हत कमके ारा मुझे पूण संतु कया है, परंतु परंतप! शा ीय व धके अनुसार य करानेका अ धकार ा ण को ही है ।। ५१ ।। अतोऽहं वां वयं ना याजया म परंतप । ममांश तु ततले महाभागो जो मः ।। ५२ ।। ‘अतः परंतप! म वयं तु हारा य नह कराऊँगा। पृ वीपर मेरे ही अंशभूत एक महाभाग े ज ह ।। ५२ ।। वासा इ त व यातः स ह वां याज य य त । म योगा महातेजाः स भाराः स य तु ते ।। ५३ ।। ‘वे वासा नामसे व यात ह। महातेज वी वासा मेरी आ ासे तु हारा य करायगे; तुम साम ी जुटाओ’ ।। ५३ ।। एत छ वा तु वचनं े ण समुदा तम् । वपुरं पुनराग य स भारान् पुनराजयत् ।। ५४ ।। भगवान् का कहा आ यह वचन सुनकर राजा पुनः अपने नगरम आये और य साम ी जुटाने लगे ।। ५४ ।। ततः स भृतस भारो भूयो मुपागमत् । स भृता मम स भाराः सव पकरणा न च ।। ५५ ।। व सादा महादे व ो मे द ा भवे द त । एत छ वा तु वचनं त य रा ो महा मनः ।। ५६ ।। वाससं समाय ो वचनम वीत् । एष राजा महाभागः ेत क जस म ।। ५७ ।। एनं याजय व े म योगेन भू मपम् । बाढ म येव वचनं ं वृ ष वाच ह ।। ५८ ।। तदन तर साम ी जुटाकर वे पुनः भगवान् के पास गये और बोले—‘महादे व! आपक कृपासे मेरी य साम ी तथा अ य सभी आव यक उपकरण जुट गये। अब कल मुझे य क द ा मल जानी चा हये।’ महामना राजाका यह कथन सुनकर भगवान् ने ो औ ‘ े े े े े ी

वासाको बुलाया और कहा—‘ ज े ! ये महाभाग राजा ेत क ह। व े ! मेरी आ ासे तुम इन भू मपालका य कराओ।’ यह सुनकर मह षने ‘ब त अ छा’ कहकर उनक आ ा वीकार कर ली ।। ५५—५८ ।। ततः स ं समभवत् त य रा ो महा मनः । यथा व ध यथाकालं यथो ं ब द णम् ।। ५९ ।। तदन तर यथासमय व धपूवक उन महामना नरेशका य आर भ आ। शा म जैसा बताया गया है, उसी ढं गसे सब काय आ। उस य म ब त-सी द णा द गयी ।। ५९ ।। त मन् प रसमा ते तु रा ः स े महा मनः । वाससा यनु ाता व त थुः म याजकाः ।। ६० ।। ये त द ताः सव सद या महौजसः । सोऽ प राजन् महाभागः वपुरं ा वशत् तदा ।। ६१ ।। पू यमानो महाभागै ा णैवदपारगैः । व द भः तूयमान नागरै ा भन दतः ।। ६२ ।। उन महामना नरेशका वह य पूरा होनेपर उसम जो महातेज वी सद य और ऋ वज द त ए थे, वे सब वासाजीक आ ा ले अपने-अपने थानको चले गये। राजन्! वे महान् सौभा यशाली नरेश भी वेद के पारंगत महाभाग ा ण ारा स मा नत हो उस समय अपनी राजधानीम गये। उस समय व द जन ने उनका यश गाया और पुरवा सय ने अ भन दन कया ।। ६०—६२ ।। एवंवृ ः स राज षः ेत कनृपस मः । कालेन महता चा प ययौ वगम भ ु तः ।। ६३ ।। ऋ व भः स हतः सवः सद यै सम वतः । त य स े पपौ व ह व ादश व सरान् ।। ६४ ।। नृप े राज ष ेत कका आचार- वहार ऐसा ही था। वे द घकालके प ात् अपने य के स पूण सद य तथा ऋ वज स हत दे वता से शं सत हो वगलोकम गये। उनके य म अ नने लगातार बारह वष तक घृतपान कया था ।। ६३-६४ ।। सततं चा यधारा भरैका ये त कम ण । ह वषा च ततो व ः परां तृ तमग छत ।। ६५ ।। उस अ तीय य म नर तर घीक अ व छ धारा से अ नदे वको बड़ी तृ त ा त ई ।। ६५ ।। न चै छत् पुनरादातुं ह वर य य क य चत् । पा डु वण ववण न यथावत् काशते ।। ६६ ।। अब उ ह फर सरे कसीका ह व य हण करनेक इ छा नह रही। उनका रंग सफेद हो गया, का त फ क पड़ गयी तथा वे पहलेक भाँ त का शत नह होते थे ।। ६६ ।। ततो भगवतो वहने वकारः समजायत । तेजसा व हीण ला न ैनं समा वशत् ।। ६७ ।। े





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तब भगवान् अ नदे वके उदरम वकार हो गया। वे तेजसे हीन हो ला नको ा त होने लगे ।। ६७ ।। स ल य वा चा मानं तेजोहीनं ताशनः । जगाम सदनं पु यं णो लोकपू जतम् ।। ६८ ।। अपनेको तेजसे हीन दे ख अ नदे व ाजीके लोकपू जत पु यधामम गये ।। ६८ ।। त ाणमासीन मदं वचनम वीत् । भगवन् परमा ी तः कृ वा मे ेतकेतुना ।। ६९ ।। वहाँ बैठे ए ाजीसे वे यह वचन बोले—‘भगवन्! राजा ेत कने अपने य म मुझे परम संतु कर दया ।। ६९ ।। अ च ाभवत् ती ा तां न श नो यपो हतुम् । तेजसा व हीणोऽ म बलेन च जग पते ।। ७० ।। इ छे य व सादे न वा मनः कृ त थराम् । ‘परंतु मुझे अ य त अ च हो गयी है, जसे म कसी कार र नह कर पाता। जग पते! उस अ चके कारण म तेज और बलसे हीन होता जा रहा ँ। अतः म चाहता ँ क आपक कृपासे म व थ हो जाऊँ; मेरी वाभा वक थ त सु ढ़ बनी रहे’ ।। ७० ।। एत छ वा तवहाद् भगवान् सवलोककृत् ।। ७१ ।। ह वाह मदं वा यमुवाच हस व । वया ादश वषा ण वसोधारा तं ह वः ।। ७२ ।। उपयु ं महाभाग तेन वां ला नरा वशत् । तेजसा व हीण वात् सहसा ह वाहन ।। ७३ ।। मा गम वं यथा वहने कृ त थो भ व य स । अ च नाश य येऽहं समयं तप ते ।। ७४ ।। अ नदे वक यह बात सुनकर स पूण जगत्के ा भगवान् ाजी ह वाहन अ नसे हँसते ए-से इस कार बोले—‘महाभाग! तुमने बारह वष तक वसुधाराक आ तके पम ा त ई घृतधाराका उपभोग कया है। इसी लये तु ह ला न ा त ई है। ह वाहन! तेजसे हीन होनेके कारण तु ह सहसा अपने मनम ला न नह आने दे नी चा हये। वहने! तुम फर पूववत् व थ हो जाओगे। म समय पाकर तु हारी अ च न कर ँ गा ।। ७१—७४ ।। पुरा दे व नयोगेन यत् वया भ मसात् कृतम् । आलयं दे वश ूणां सुघोरं खा डवं वनम् ।। ७५ ।। त सवा ण स वा न नवस त वभावसो । तेषां वं मेदसा तृ तः कृ त थो भ व य स ।। ७६ ।। ‘पूवकालम दे वता के आदे शसे तुमने दै य के जस अ य त घोर नवास थान खा डववनको जलाया था, वहाँ इस समय सब कारके जीव-ज तु आकर नवास करते ह। वभावसो! उ ह के मेदसे तृ त होकर तुम व थ हो सकोगे ।। ७५-७६ ।। ी

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ग छ शी ं द धुं वं ततो मो य स क बषात् । एत छ वा तु वचनं परमे मुखा युतम् ।। ७७ ।। उ मं जवमा थाय ाव ताशनः । आग य खा डवं दावमु मं वीयमा थतः । सहसा ा वल चा नः ु ो वायुसमी रतः ।। ७८ ।। ‘उस वनको जलानेके लये तुम शी ही जाओ। तभी इस ला नसे छु टकारा पा सकोगे।’ परमे ी ाजीके मुखसे नकली ई यह बात सुनकर अ नदे व बड़े वेगसे वहाँ दौड़े गये। खा डववनम प ँचकर उ म बलका आ य ले वायुका सहारा पाकर कु पत अ नदे व सहसा व लत हो उठे ।। ७७-७८ ।। द तं खा डवं ् वा ये यु त नवा सनः । परमं य नमा त न् पावक य शा तये ।। ७९ ।। खा डववनको जलते दे ख वहाँ रहनेवाले ा णय ने उस आगको बुझानेके लये बड़ा य न कया ।। ७९ ।। करै तु क रणः शी ं जलमादाय स वराः । स षचुः पावकं ु ाः शतशोऽथ सह शः ।। ८० ।। सैकड़ और हजार क सं याम हाथी अपनी सूँड़ म जल लेकर शी तापूवक दौड़े आते और ोधपूवक उतावलीके साथ आगपर उस जलको उड़ेल दया करते थे ।। ८० ।। ब शीषा ततो नागाः शरो भजलसंत तम् । मुमुचुः पावका याशे स वराः ोधमू छताः ।। ८१ ।। अनेक सरवाले नाग भी ोधसे मू छत हो अपने म तक ारा अ नके समीप शी तापूवक जलक धारा बरसाने लगे ।। ८१ ।। तथैवा या न स वा न नाना हरणो मैः । वलयं पावकं शी मनयन् भरतषभ ।। ८२ ।। भरत े ! इसी कार सरे- सरे जीव ने भी अनेक कारके हार (धूल झ कने आ द) तथा उ म (जल छड़कने आ द)-के ारा शी तापूवक उस आगको बुझा दया ।। ८२ ।। अनेन तु कारेण भूयो भूय वलन् । स तकृ वः श मतः खा डवे ह वाहनः ।। ८३ ।। इस तरह खा डववनम अ नने बार-बार व लत होकर सात बार उसे जलानेका यास कया; परंतु तबार वहाँके नवा सय ने उ ह बुझा दया ।। ८३ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण खा डवदाहपव ण अ नपराभवे ा वश य धक शततमोऽ यायः ।। २२२ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत खा डवदाहपवम अ नपराभव वषयक दो सौ बाईसवाँ अ याय पूरा आ ।। २२२ ।।

यो वश य धक शततमोऽ यायः अजुनका अ नक ाथना वीकार करके उनसे द धनुष एवं रथ आ द माँगना वैश पायन उवाच स तु नैरा यमाप ः सदा ला नसम वतः । पतामहमुपाग छत् सं ु ो ह वाहनः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! अपनी असफलतासे अ नदे वको बड़ी नराशा ई। वे सदा ला नम डू बे रहने लगे और कु पत हो पतामह ाजीके पास गये ।। १ ।। त च सव यथा यायं णे सं यवेदयत् । उवाच चैनं भगवान् मुत स व च य तु ।। २ ।। वहाँ उ ह ने ाजीसे सब बात यथो चत री तसे कह सुनाय । तब भगवान् ाजी दो घड़ीतक वचार करके उनसे बोले— ।। २ ।। उपायः प र ो मे यथा वं ध यसेऽनघ । कालं च कं चत् मतां तत वं ध यसेऽनल ।। ३ ।। ‘अनघ! तुम जस कार खा डववनको जलाओगे, वह उपाय तो मुझे सूझ गया है; कतु उसके लये तु ह कुछ समयतक ती ा करनी पड़ेगी। अनल! इसके बाद तुम खा डववनको जला सकोगे ।। ३ ।। भ व यतः सहायौ ते नरनारायणौ तदा । ता यां वं स हतो दावं ध यसे ह वाहन ।। ४ ।। ‘ह वाहन! उस समय नर और नारायण तु हारे सहायक ह गे। उन दोन के साथ रहकर तुम उस वनको जला सकोगे’ ।। ४ ।। एवम व त तं व ाणं यभाषत । स भूतौ तौ व द वा तु नरनारायणावृषी ।। ५ ।। काल य महतो राजं त य वा यं वय भुवः । अनु मृ य जगामाथ पुनरेव पतामहम् ।। ६ ।। तब अ नने ाजीसे कहा—‘अ छा, ऐसा ही सही।’ तदन तर द घकालके प ात् नर-नारायण ऋ षय के अवतीण होनेक बात जानकर अ नदे वको ाजीक बातका मरण आ। राजन्! तब वे पुनः ाजीके पास गये ।। ५-६ ।। अ वी च तदा ा यथा वं ध यसेऽनल । खा डवं दावम ैव मषतोऽ य शचीपतेः ।। ७ ।। उस समय ाजीने कहा—‘अनल! अब जस कार तुम इ के दे खते-दे खते अभी खा डववन जला सकोगे, वह उपाय सुनो ।। ७ ।। नरनारायणौ यौ तौ पूवदे वौ वभावसो । ौ

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स ा तौ मानुषे लोके कायाथ ह दवौकसाम् ।। ८ ।। ‘ वभावसो! आ ददे व नर और नारायण मु न इस समय दे वता का काय स करनेके लये मनु यलोकम अवतीण ए ह ।। ८ ।। अजुनं वासुदेवं च यौ तौ लोकोऽ भम यते । तावेतौ स हतावे ह खा डव य समीपतः ।। ९ ।। ‘वहाँके लोग उ ह अजुन और वासुदेवके नामसे जानते ह। वे दोन इस समय खा डववनके पास ही एक साथ बैठे ह ।। ९ ।। तौ वं याच व साहा ये दाहाथ खा डव य च । ततो ध य स तं दावं र तं दशैर प ।। १० ।। ‘उन दोन से तुम खा डववन जलानेके कायम सहायताक याचना करो। तब तुम इ ा द दे वता से र त होनेपर भी उस वनको जला सकोगे ।। १० ।। तौ तु स वा न सवा ण य नतो वार य यतः । दे वराजं च स हतौ त मे ना त संशयः ।। ११ ।। ‘वे दोन वीर एक साथ होनेपर य नपूवक वनके सारे जीव को भी रोकगे और दे वराज इ का भी सामना करगे, मुझे इसम कोई संशय नह है’ ।। ११ ।। एत छ वा तु वचनं व रतो ह वाहनः । कृ णपाथावुपाग य यमथ व यभाषत ।। १२ ।। तं ते क थतवान म पूवमेव नृपो म । त छ वा वचनं व नेब भ सुजातवेदसम् ।। १३ ।। अ वी ृपशा ल त कालस शं वचः । दध ुं खा डवं दावमकाम य शत तोः ।। १४ ।। नृप े ! यह सुनकर ह वाहनने तुरंत ीकृ ण और अजुनके पास आकर जो काय नवेदन कया, वह म तु ह पहले ही बता चुका ँ। जनमेजय! अ नका वह कथन सुनकर अजुनने इ क इ छाके व खा डववन जलानेक अ भलाषा रखनेवाले जातवेदा अ नसे उस समयके अनुकूल यह बात कही ।। १२—१४ ।। अजुन उवाच उ मा ा ण मे स त द ा न च ब न च । यैरहं श नुयां यो म प व धरान् बन् ।। १५ ।। अजुन बोले—भगवन्! मेरे पास ब त-से द एवं उ म अ तो ह, जनके ारा म एक या, अनेक वधा रय से यु कर सकता ँ ।। १५ ।। धनुम ना त भगवन् बा वीयण स मतम् । कुवतः समरे य नं वेगं यद् वषहे मम ।। १६ ।। परंतु मेरे पास मेरे बा बलके अनु प धनुष नह है, जो समरभू मम यु के लये य न करते समय मेरा वेग सह सके ।। १६ ।। शरै मेऽथ ब भर यैः म यतः । ो



न ह वोढुं रथः श ः शरान् मम यथे सतान् ।। १७ ।। इसके सवा शी तापूवक बाण चलाते रहनेके लये मुझे इतने अ धक बाण क आव यकता होगी, जो कभी समा त न ह तथा मेरी इ छाके अनु प बाण को ढोनेके लये श शाली रथ भी मेरे पास नह है ।। १७ ।। अ ां द ा न छे यं पा डु रान् वातरंहसः । रथं च मेघ नघ षं सूय तमतेजसम् ।। १८ ।। तथा कृ ण य वीयण नायुधं व ते समम् । येन नागान् पशाचां नह या माधवो रणे ।। १९ ।। म वायुके समान वेगवान् ेत वणके द अ तथा मेघके समान ग भीर घोष करनेवाला एवं सूयके समान तेज वी रथ चाहता ँ। इसी कार इन भगवान् ीकृ णके बल-परा मके अनुसार कोई आयुध इनके पास भी नह है, जससे ये नाग और पशाच को यु म मार सक ।। १८-१९ ।। उपायं कम स ौ च भगवन् व ु मह स । नवारयेयं येने ं वषमाणं महावने ।। २० ।। भगवन्! इस कायक स के लये जो उपाय स भव हो, वह मुझे बताइये, जससे म इस महान् वनम जल बरसाते ए इ को रोक सकूँ ।। २० ।। पौ षेण तु यत् काय तत् कतारौ व पावक । करणा न समथा न भगवन् दातुमह स ।। २१ ।। भगवन् अ नदे व! पु षाथसे जो काय हो सकता है, उसे हमलोग करनेके लये तैयार ह; कतु इसके लये सु ढ़ साधन जुटा दे नेक कृपा आपको करनी चा हये ।। २१ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण खा डवदाहपव ण अजुना नसंवादे यो वश य धक शततमोऽ यायः ।। २२३ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत खा डवदाहपवम अजुन-अ नसंवाद वषयक दो सौ तेईसवाँ अ याय पूरा आ ।। २२३ ।।

चतु वश य धक शततमोऽ यायः अ नदे वका अजुन और ीकृ णको द धनुष, अ य तरकस, द रथ और च आ द दान करना तथा उन दोन क सहायतासे खा डववनको जलाना वैश पायन उवाच एवमु ः स भगवान् धूमकेतु ताशनः । च तयामास व णं लोकपालं द या ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! अजुनके ऐसा कहनेपर धूम पी वजासे सुशो भत होनेवाले भगवान् ताशनने दशनक इ छासे लोकपाल व णका च तन कया ।। १ ।। आ द यमुदके दे वं नवस तं जले रम् । स च त च ततं ा वा दशयामास पावकम् ।। २ ।। अ द तके पु , जलके वामी और सदा जलम ही नवास करनेवाले उन व णदे वने, अ नदे वने मेरा च तन कया है, यह जानकर त काल उ ह दशन दया ।। २ ।। तम वीद् धूमकेतुः तगृ जले रम् । चतुथ लोकपालानां दे वदे वं सनातनम् ।। ३ ।। चौथे लोकपाल सनातन दे वदे व जले र व णका वागत-स कार करके धूमकेतु अ नने उनसे कहा— ।। ३ ।। सोमेन रा ा यद् द ं धनु ैवेषुधी च ते । तत् य छोभयं शी ं रथं च क पल णम् ।। ४ ।। ‘व णदे व! राजा सोमने आपको जो द धनुष और अ य तरकस दये ह, वे दोन मुझे शी द जये। साथ ही क पयु वजासे सुशो भत रथ भी दान क जये’ ।। ४ ।। काय च सुमहत् पाथ गा डीवेन क र य त । च े ण वासुदेव त ममा द यताम् ।। ५ ।। ‘आज कु तीपु अजुन गा डीव धनुषके ारा और भगवान् वासुदेव च के ारा मेरा महान् काय स करगे; अतः वह सब आज मुझे दे द जये’ ।। ५ ।। ददानी येव व णः पावकं यभाषत । तद तं महावीय यशःक त ववधनम् ।। ६ ।। सवश ैरनाधृ यं सवश मा थ च । सवायुधमहामा ं परसै य धषणम् ।। ७ ।। एकं शतसह ेण स मतं रा वधनम् । च मु चावचैवणः शो भतं णम णम् ।। ८ ।। दे वदानवग धवः पू जतं शा तीः समाः । ै े े ी

ादा चैव धनूर नम ये च महेषुधी ।। ९ ।। तब व णने अ नदे वसे ‘अभी दे ता ँ’ ऐसा कहकर वह धनुष म र नके समान गा डीव तथा बाण से भरे ए दो अ य एवं बड़े तरकस भी दये। वह धनुष अ त था। उसम बड़ी श थी और वह यश एवं क तको बढ़ानेवाला था। कसी भी अ -श से वह टू ट नह सकता था और सरे सब श को न कर डालनेक श उसम मौजूद थी। उसका आकार सभी आयुध से बढ़कर था। श ु क सेनाको वद ण करनेवाला वह एक ही धनुष सरे लाख धनुष के बराबर था। वह अपने धारण करनेवालेके राको बढ़ानेवाला एवं व च था। अनेक कारके रंग से उसक शोभा होती थी। वह चकना और छ से र हत था। दे वता , दानव और ग धव ने अन त वष तक उसक पूजा क थी ।। ६— ९ ।। रथं च द ा युजं क प वरकेतनम् । उपेतं राजतैर ैगा धवहममा ल भः ।। १० ।। इसके सवा व णने द घोड़ से जुता आ एक रथ भी तुत कया, जसक वजापर े क प वराजमान था। उसम जुते ए अ का रंग चाँद के समान सफेद था। वे सभी घोड़े ग धवदे शम उ प तथा सोनेक माला से वभू षत थे ।। १० ।। पा डु रा तीकाशैमनोवायुसमैजवे । सव पकरणैयु मज यं दे वदानवैः ।। ११ ।। उनक का त सफेद बादल क -सी जान पड़ती थी। वे वेगम मन और वायुक समानता करते थे। वह रथ स पूण आव यक व तु से यु तथा दे वता और दानव के लये भी अजेय था ।। ११ ।। भानुम तं महाघोषं सवर नमनोरमम् । ससज यं सुतपसा भौमनो भुवन भुः ।। १२ ।। जाप तर नद यं य य पं रवे रव । यं म सोमः समा दानवानजयत् भुः ।। १३ ।। उससे तेजोमयी करण छटकती थ । उसके चलनेपर सब ओर बड़े जोरक आवाज गूँज उठती थी। वह रथ सब कारके र न से ज टत होनेके कारण बड़ा मनोरम जान पड़ता था। स पूण जगत्के वामी जाप त व कमाने बड़ी भारी तप याके ारा उस रथका नमाण कया था। उस सूयके समान तेज वी रथका ‘इद म थम्’ पसे वणन नह हो सकता था। पूवकालम श शाली सोम (च मा)-ने उसी रथपर आ ढ़ हो दानव पर वजय पायी थी ।। १२-१३ ।। नवमेघ तीकाशं वल त मव च या । आ तौ तं रथ े ं श ायुधसमावुभौ ।। १४ ।। वह रथ नूतन मेघके समान तीत होता था और अपनी द शोभासे व लत-सा हो रहा था। इ -धनुषके समान का तवाले ीकृ ण और अजुन उस े रथके समीप गये ।। १४ ।। तापनीया सु चरा वजय रनु मा । ो े

त यां तु वानरो द ः सहशा लकेतनः ।। १५ ।। उस रथका वजद ड बड़ा सु दर और सुवणमय था। उसके ऊपर सह और ा के समान भयंकर आकृ तवाला द वानर बैठा था ।। १५ ।। दध व त म सं थतो मू यशोभत । वजे भूता न त ासन् व वधा न महा त च ।। १६ ।। नादे न रपुसै यानां येषां सं ा ण य त । उस रथके शखरपर बैठा आ वह वानर ऐसा जान पड़ता था, मानो श ु को भ म कर डालना चाहता हो। उस वजम और भी नाना कारके बड़े भयंकर ाणी रहते थे, जनक आवाज सुनकर श ु-सै नक के होश उड़ जाते थे ।। १६ ।। स तं नानापताका भः शो भतं रथस मम् ।। १७ ।। द णमुपावृ य दै वते यः ण य च । संन ः कवची खड् गी ब गोधाङ् गु ल कः ।। १८ ।। आ रोह तदा पाथ वमानं सुकृती यथा । वह े रथ भाँ त-भाँ तक पताका से सुशो भत हो रहा था। अजुनने कमर कस ली, कवच और तलवार बाँध ली, द ताने पहन लये तथा रथक प र मा और दे वता को णाम करके वे उसपर आ ढ़ ए, ठ क वैसे ही, जैसे कोई पु या मा वमानपर बैठता है ।। १७-१८ ।। त च द ं धनुः े ं णा न मतं पुरा ।। १९ ।। गा डीवमुपसंगृ बभूव मु दतोऽजुनः । ताशनं पुर कृ य तत तद प वीयवान् ।। २० ।। ज ाह बलमा थाय यया च युयुजे धनुः । मौ ा तु यो यमानायां ब लना पा डवेन ह ।। २१ ।। येऽशृ वन् कू जतं त तेषां वै थतं मनः । तदन तर, पूवकालम ाजीने जसका नमाण कया था, उस द एवं े गा डीव धनुषको हाथम लेकर अजुन बड़े स ए। परा मी धनंजयने अ नदे वको सामने रखकर उस धनुषको हाथम उठाया और बल लगाकर उसपर यंचा चढ़ा द । महाबली पा डु कुमारके उस धनुषपर यंचा चढ़ाते समय जन लोग ने उसक टं कार सुनी, उनका दय थत हो उठा ।। १९—२१ ।। ल वा रथं धनु ैव तथा ये महेषुधी ।। २२ ।। बभूव क पः कौ तेयः ः सा कम ण । व नाभं तत ं ददौ कृ णाय पावकः ।। २३ ।। वह रथ, धनुष तथा अ य तरकस पाकर कु तीन दन अजुन अ य त स हो अ नक सहायता करनेम समथ हो गये। तदन तर पावकने भगवान् ीकृ णको एक च दया, जसका म यभाग वक े समान था ।। २२-२३ ।। आ नेयम ं द यतं स च क योऽभवत् तदा । ी



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अ वीत् पावक ैवमेतेन मधुसूदन ।। २४ ।। अमानुषान प रणे जे य स वमसंशयम् । अनेन तु मनु याणां दे वानाम प चाहवे ।। २५ ।। र ः पशाचदै यानां नागानां चा धक तथा । भ व य स न संदेहः वरोऽ प नबहणे ।। २६ ।। उस अ न द य अ च को पाकर भगवान् ीकृ ण भी उस समय सहायताके लये समथ हो गये। उनसे अ नदे वने कहा—‘मधुसूदन! इस च के ारा आप यु म अमानव ा णय को भी जीत लगे, इसम संशय नह है। इसके होनेसे आप यु म मनु य , दे वता , रा स , पशाच , दै य और नाग से भी अ धक श शाली ह गे तथा इन सबका संहार करनेम भी नःसंदेह सव े स ह गे ।। २४—२६ ।। तं तं रणे चैतत् वया माधव श ुषु । ह वा तहतं सं ये पा णमे य त ते पुनः ।। २७ ।। ‘माधव! यु म आप जब-जब इसे श ु पर चलायगे, तब-तब यह उ ह मारकर और वयं कसी अ से तहत न होकर पुनः आपके हाथम आ जायगा’ ।। २७ ।। व ण ददौ त मै गदामश न नः वनाम् । दै या तकरण घोरां ना ना कौमोदक भुः ।। २८ ।। त प ात् भगवान् व णने भी बजलीके समान कड़कड़ाहट पैदा करनेवाली कौमोदक नामक गदा भगवान्को भट क , जो दै य का वनाश करनेवाली और भयंकर थी ।। २८ ।। ततः पावकम ूतां ावजुना युतौ । कृता ौ श स प ो र थनौ व जनाव प ।। २९ ।। क यौ वो भगवन् योद्धुम प सवः सुरासुरैः । क पुनव णैकेन प गाथ युयु सता ।। ३० ।। इसके बाद अ व ाके ाता एवं श स प अजुन और ीकृ णने स होकर अ नदे वसे कहा—‘भगवन्! अब हम दोन रथ और वजासे यु हो स पूण दे वता तथा असुर से भी यु करनेम समथ हो गये ह; फर त क नागके लये यु क इ छा रखनेवाले अकेले वधारी इ से यु करना या बड़ी बात है?’ ।। २९-३० ।। अजुन उवाच च पा ण षीकेशो वचरन् यु ध वीयवान् । च े ण भ मसात् सव वसृ ेन तु वीयवान् । षु लोकेषु त ा त य कुया जनादनः ।। ३१ ।। अजुन बोले—अ नदे व! सबक इ य के ेरक ये महापरा मी जनादन जब हाथम च लेकर यु म वचरगे, उस समय लोक म ऐसी कोई भी व तु नह है, जसे ये च के हारसे भ म न कर सक ।। ३१ ।। गा डीवं धनुरादाय तथा ये महेषुधी । े ो



अहम यु सहे लोकान् वजेतुं यु ध पावक ।। ३२ ।। पावक! म भी यह गा डीव धनुष और ये दोन बड़े-बड़े अ य तरकस लेकर स पूण लोक को यु म जीत लेनेका उ साह रखता ँ ।। ३२ ।। सवतः प रवायवं दावमेतं महा भो । कामं स वला ैव क यौ वः सा कम ण ।। ३३ ।। महा भो! अब आप इस स पूण वनको चार ओरसे घेरकर आज ही इ छानुसार जलाइये। हम आपक सहायताके लये तैयार ह ।। ३३ ।। वैश पायन उवाच एवमु ः स भगवान् दाशाहणाजुनेन च । तैजसं पमा थाय दावं द धुं च मे ।। ३४ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! ीकृ ण और अजुनके ऐसा कहनेपर भगवान् अ नने तेजोमय प धारण करके खा डववनको सब ओरसे जलाना आर भ कर दया ।। ३४ ।। सवतः प रवायाथ स ता च वलन तथा । ददाह खा डवं दावं युगा त मव दशयन् ।। ३५ ।। सात वालामयी ज ा वाले अ नदे व खा डव-वनको सब ओरसे घेरकर महा लयका-सा य उप थत करते ए जलाने लगे ।। ३५ ।। तगृ समा व य तद् वनं भरतषभ । मेघ त नत नघ षः सवभूता यक पयत् ।। ३६ ।। भरत े ! उस वनको चार ओरसे अपनी लपट म लपेटकर और उसके भीतरी भागम भी ा त होकर अ नदे व मेघक गजनाके समान ग भीर घोष करते ए सम त ा णय को कँपाने लगे ।। ३६ ।। द त त य च बभौ पं दाव य भारत । मेरो रव नगे य क ण यांशुमत ऽशु भः ।। ३७ ।। भारत! उस जलते ए खा डववनका व प ऐसा जान पड़ता था, मानो सूयक करण से ा त पवतराज मे का स पूण कलेवर उ त हो उठा हो ।। ३७ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण खा डवदाहपव ण गा डीवा ददाने चतु वश य धक शततमोऽ यायः ।। २२४ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत खा डवदाहपवम गा डीवा ददान वषयक दो सौ चौबीसवाँ अ याय पूरा आ ।। २२४ ।।

प च वश य धक शततमोऽ यायः खा डववनम जलते ए ा णय क दशा और इ के ारा जल बरसाकर आग बुझानेक चे ा वैश पायन उवाच तौ रथा यां रथ े ौ दाव योभयतः थतौ । द ु सवासु भूतानां च ाते कदनं महत् ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! वे दोन र थय म े वीर दो रथ पर बैठकर खा डववनके दोन ओर खड़े हो गये और सब दशा म घूम-घूमकर ा णय का महान् संहार करने लगे ।। १ ।।

य य च य ते ा णनः खा डवालयाः । पलाय तः वीरौ तौ त त ा यधावताम् ।। २ ।। खा डववनम रहनेवाले ाणी जहाँ-जहाँ भागते दखायी दे ते, वह -वह वे दोन मुख वीर उनका पीछा करते ।। २ ।। छ ं न म प य त रथयोराशुचा रणोः । आ व ावेव येते र थनौ तौ रथो मौ ।। ३ ।। (खा डववनके ा णय को) शी तापूवक सब ओर दौड़नेवाले उन दोन महार थय का छ नह दखायी दे ता था, जससे वे भाग सक। र थय म े वे दोन रथा ढ़ वीर ँ







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अलातच क भाँ त सब ओर घूमते ए ही द ख पड़ते थे ।। ३ ।। खा डवे द माने तु भूताः शतसह शः । उ पेतुभरवान् नादान् वनद तः सम ततः ।। ४ ।। जब खा डववनम आग फैल गयी और वह अ छ तरह जलने लगा, उस समय लाख ाणी भयानक ची कार करते ए चार ओर उछलने-कूदने लगे ।। ४ ।। द धैकदे शा बहवो न ता तथापरे । फु टता ा वशीणा व लुता तथापरे ।। ५ ।। ब त-से ा णय के शरीरका एक ह सा जल गया था, ब तेरे आँचम झुलस गये थे, कतन क आँख फूट गयी थ और कतन के शरीर फट गये थे। ऐसी अव थाम भी सब भाग रहे थे ।। ५ ।। समा ल य सुतान ये पतॄन् ातॄनथापरे । य ं न शेकुः नेहेन त ैव नधनं गताः ।। ६ ।। कोई अपने पु को छातीसे चपकाये ए थे, कुछ ाणी अपने पता और भाइय से सटे ए थे। वे नेहवश एक- सरेको छोड़ न सके और वह कालके गालम समा गये ।। ६ ।। संद दशना ा ये समु पेतुरनेकशः । तत तेऽतीव घूण तः पुनर नौ पे दरे ।। ७ ।। कुछ जानवर दाँत कटकटाते, बार-बार उछलते-कूदते और अ य त च कर काटते ए फर आगम ही पड़ जाते थे ।। ७ ।। द धप ा चरणा वचे तो महीतले । त त म य ते वन य तः शरी रणः ।। ८ ।। कतने ही प ी पाँख, आँख और पंज के जल जानेसे धरतीपर गरकर छटपटा रहे थे। थान- थानपर मरणो मुख जीव-ज तु गोचर हो रहे थे ।। ८ ।। जलाशयेषु त तेषु वायमानेषु व ना । गतस वाः म य ते कूमम याः सम ततः ।। ९ ।। जलाशय आगसे तपकर काढ़े क भाँ त खौल रहे थे। उनम रहनेवाले कछु ए और मछली आ द जीव सब ओर नज व दखायी दे ते थे ।। ९ ।। शरीरैरपरे द तैदहव त इवा नयः । अ य त वने त ा णनः ा णसं ये ।। १० ।। ा णय के संहार थल बने ए उस वनम कतने ही ाणी अपने जलते ए अंग से मू तमान् अ नके समान द ख पड़ते थे ।। १० ।। कां पततः पाथः शरैः सं छ ख डशः । पातयामास वहगान् द ते वसुरेत स ।। ११ ।। अजुनने कतने ही उड़ते ए प य को अपने बाण से टु कड़े-टु कड़े करके व लत आगम झ क दया ।। ११ ।। ते शरा चतसवा ा ननद तो महारवान् । े े े े

ऊ वमु प य वेगेन नपेतुः खा डवे पुनः ।। १२ ।। पहले तो प ी बड़े वेगसे ऊपरको उड़ते, परंतु बाण से सारा अंग छद जानेपर जोरजोरसे आतनाद करते ए पुनः खा डववनम ही गर पड़ते थे ।। १२ ।। शरैर याहतानां च संघशः म वनौकसाम् । वरावः शु ुवे घोरः समु येव मयतः ।। १३ ।। बाण से घायल ए झुंड-के-झुंड वनवासी जीव का भयानक ची कार समु -म थनके समय होनेवाले जल-ज तु के क ण- दनके समान जान पड़ता था ।। १३ ।। वहने ा प द त य खमु पेतुमहा चषः । जनयामासु े गं सुमहा तं दवौकसाम् ।। १४ ।। व लत अ नक बड़ी-बड़ी लपट आकाशम ऊपरक ओर उठने और दे वता के मनम बड़ा भारी भय उ प करने लग ।। १४ ।। तेना चषा सुसंत ता दे वाः स षपुरोगमाः । ततो ज मुमहा मानः सव एव दवौकसः । शत तुं सह ा ं दे वेशमसुरादनम् ।। १५ ।। उस लपटसे संत त ए दे वता और मह ष आ द सभी दे वलोकवासी महा मा असुर का नाश करनेवाले दे वे र सहा इ के पास गये ।। १५ ।।

दे वा ऊचुः क वमे मानवाः सव द ते च भानुना । क च सं यः ा तो लोकानाममरे र ।। १६ ।। दे वता बोले—अमरे र! अ नदे व इन सब मनु य को य जला रहे ह? कह संसारका लय तो नह आ गया ।। १६ ।। वैश पायन उवाच त छ वा वृ हा ते यः वयमेवा ववे य च । खा डव य वमो ाथ ययौ ह रवाहनः ।। १७ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! दे वता से यह सुनकर वृ ासुरका नाश करनेवाले इ वयं वह घटना दे खकर खा डववनको आगके भयसे छु ड़ानेके लये चले ।। १७ ।। महता रथवृ दे न नाना पेण वासवः । आकाशं समवाक य ववष सुरे रः ।। १८ ।। उ ह ने अपने साथ अनेक कारके वशाल रथ ले लये और आकाशम थत हो दे वता के वामी वे इ जलक वषा करने लगे ।। १८ ।। ततोऽ मा ा सृजन् धाराः शतसह शः । चो दता दे वराजेन जलदाः खा डवं त ।। १९ ।। दे वराज इ से े रत होकर मेघ रथके धुरेके समान मोट -मोट असं य धाराएँ खा डववनम गराने लगे ।। १९ ।। े े

अस ा ता तु ता धारा तेजसा जातवेदसः । ख एव समशु य त न का त् पावकं गताः ।। २० ।। परंतु अ नके तेजसे वे धाराएँ वहाँ प ँचनेसे पहले आकाशम ही सूख जाती थ । अ नतक कोई धारा प ँची ही नह ।। २० ।। ततो नमु चहा ु भृशम च मत तदा । पुनरेव महामेघैर भां स सृजद् ब ।। २१ ।। तब नमु चनाशक इ दे व अ नपर अ य त कु पत हो पुनः बड़े-बड़े मेघ ारा ब त जलक वषा कराने लगे ।। २१ ।। अ चधारा भस ब ं धूम व ु समाकुलम् । बभूव तद् वनं घोरं तन य नुसमाकुलम् ।। २२ ।। आगक लपट और जलक धारा से संयु होनेपर उस वनम धुआँ उठने लगा। सब ओर बजली चमकने लगी और चार ओर मेघ क गड़गड़ाहटका श द गूँज उठा। इस कार खा डववनक दशा बड़ी भयंकर हो गयी ।। २२ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण खा डवदाहपव ण इ ोधे प च वश य धक शततमोऽ यायः ।। २२५ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत खा डवदाहपवम इ कोप वषयक दो सौ पचीसवाँ अ याय पूरा आ ।। २२५ ।।

षड् वश य धक शततमोऽ यायः दे वता

आ दके साथ

ीकृ ण और अजुनका यु

वैश पायन उवाच त याथ वषतो वा र पा डवः यवारयत् । शरवषण बीभ सु मा ा ण दशयन् ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! वषा करते ए इ क उस जलधाराको पा डु कुमार अजुनने अपने उ म अ का दशन करते ए बाण क बौछारसे रोक दया ।। १ ।। खा डवं च वनं सव पा डवो ब भः शरैः । आ छादयदमेया मा नीहारेणेव च माः ।। २ ।। अ मत आ मबलसे स प पा डव अजुनने ब त-से बाण क वषा करके सारे खा डववनको ढँ क दया, जैसे कुहरा च माको ढक दे ता है ।। २ ।। न च म क च छ नो त भूतं न रतुं ततः । संछा माने खे बाणैर यता स सा चना ।। ३ ।। स साची अजुनके चलाये ए बाण से सारा आकाश छा गया था; इस लये कोई भी ाणी उस वनसे नकल नह पाता था ।। ३ ।। त क तु न त ासी ागराजो महाबलः । द माने वने त मन् कु े ं गतो ह सः ।। ४ ।। जब खा डववन जलाया जा रहा था, उस समय महाबली नागराज त क वहाँ नह था, कु े चला गया था ।। ४ ।। अ सेनोऽभवत् त त क य सुतो बली । स य नमकरोत् ती ं मो ाथ जातवेदसः ।। ५ ।। परंतु त कका बलवान् पु अ सेन वह रह गया था। उसने उस आगसे अपनेको छु ड़ानेके लये बड़ा भारी य न कया ।। ५ ।। न शशाक स नग तुं न ोऽजुनप भः । मो यामास तं माता नगीय भुजगा मजा ।। ६ ।। कतु अजुनके बाण से ँ ध जानेके कारण वह बाहर नकल न सका। उसक माता स पणीने उसे नगलकर उस आगसे बचाया ।। ६ ।। त य पूव शरो तं पु छम य नगीय च । नगीयमाणा सा ामत् सुतं नागी मुमु या ।। ७ ।। उसने पहले उसका म तक नगल लया। फर धीरे-धीरे पूँछतकका भाग नगल गयी। नगलते- नगलते ही उस ना गनने पु को बचानेके लये आकाशम उड़कर नकल भागनेक चे ा क ।। ७ ।। े







त याः शरेण ती णेन पृथुधारेण पा डवः । शर छे द ग छ या तामप य छचीप तः ।। ८ ।। परंतु पा डु कुमार अजुनने मोट धारवाले तीखे बाणसे उस भागती ई स पणीका म तक काट दया। शचीप त इ ने उसक यह अव था अपनी आँख दे खी ।। ८ ।। तं मुमोच यषुव ी वातवषण पा डवम् । मोहयामास त कालम सेन वमु यत ।। ९ ।। तब उसे छु ड़ानेक इ छासे वधारी इ ने आँधी और वषा चलाकर पा डु कुमार अजुनको उस समय मो हत कर दया। इतनेहीम त कका पु अ सेन उस संकटसे मु हो गया ।। ९ ।। तां च मायां तदा ् वा घोरां नागेन व चतः । धा धा च खगतान् ा णनः पा डवोऽ छनत् ।। १० ।। तब उस भयानक मायाको दे खकर नागसे ठगे गये पा डु पु अजुनने आकाशम उड़नेवाले ा णय के दो-दो, तीन-तीन टु कड़े कर डाले ।। १० ।। शशाप तं च सं ु ो बीभ सु ज गा मनम् । पावको वासुदेव ा य त ो भ व य स ।। ११ ।। फर ोधम भरे ए अजुनने टे ढ़ चालसे चलनेवाले उस नागको शाप दया—‘अरे! तू आ यहीन हो जायगा।’ अ न और ीकृ णने भी उसका अनुमोदन कया ।। ११ ।। ततो ज णुः सह ा ं खं वत याशुगैः शरैः । योधयामास सं ु ो व चनां तामनु मरन् ।। १२ ।। तदन तर अपने साथ क ई वंचनाको बार-बार मरण करके ोधम भरे ए अजुनने शी गामी बाण ारा आकाशको आ छा दत करके इ के साथ यु छे ड़ दया ।। १२ ।। दे वराजोऽ प तं ् वा संरधं समरेऽजुनम् । वम मसृजत् ती ं छाद य वाखलं नभः ।। १३ ।। दे वराजने भी अजुनको यु म कु पत दे ख स पूण आकाशको आ छा दत करते ए अपने सह अ (ऐ ा )-को कट कया ।। १३ ।। ततो वायुमहाघोषः ोभयन् सवसागरान् । वय थो जनयन् मेघा लधारासमाकुलान् ।। १४ ।। फर तो बड़ी भारी आवाजके साथ च ड वायु चलने लगी। उसने सम त समु को ु ध करते ए आकाशम थत हो मूसलाधार पानी बरसानेवाले मेघ को उ प कया ।। १४ ।। ततोऽश नमुचो घोरां त ड त नत नः वनान् । त घाताथमसृजदजुनोऽ य मु मम् ।। १५ ।। वाय म भम याथ तप वशारदः । तेने ाश नमेघानां वीय ज तद् वना शतम् ।। १६ ।। वे भयंकर मेघ बजलीक कड़कड़ाहटके साथ धरतीपर व गराने लगे। उस अ के तीकारक व ाम कुशल अजुनने उन मेघ को न करनेके लये अ भम त करके ो े े ो े औ े

वाय नामक उ म अ का योग कया। उस अ ने इ के छोड़े ए व और मेघ का ओज एवं बल न कर दया ।। १५-१६ ।। जलधारा ताः शोषं ज मुनशु व ुतः । णेन चाभवद् ोम स शा तरज तमः ।। १७ ।। जलक वे सारी धाराएँ सूख गय और बज लयाँ भी न हो गय । णभरम आकाश धूल और अ धकारसे र हत हो गया ।। १७ ।। सुखशीता नलवहं कृ त थाकम डलम् । न तीकार तभुग् व वधाकृ तः ।। १८ ।। स यमानो वसौघै तैः ा णनां दे ह नःसृतैः । ज वालाथ सोऽ च मान् वनादै ः पूरय गत् ।। १९ ।। सुखदा यनी शीतल हवा चलने लगी। सूयम डल वाभा वक थ तम दखायी दे ने लगा। अ नदे व तीकारशू य होनेके कारण ब त स ए और अनेक प म कट हो ा णय के शरीरसे नकली ई वसाके समूहसे अ भ ष होकर बड़ी-बड़ी लपट के साथ व लत हो उठे । उस समय अपनी आवाजसे वे स पूण जगत्को ा त कर रहे थे ।। १८-१९ ।। कृ णा यां र तं ् वा तं च दावमहंकृताः । खमु पेतुमहाराज सुपणा ाः पत णः ।। २० ।। महाराज! उस खा डववनको ीकृ ण और अजुनसे सुर त दे ख अहंकारसे यु सु दर पंख आ द अंग वाले प ी आकाशम उड़ने लगे ।। २० ।। ग मान् व स शैः प तु डनखै तथा । हतुकामो यपतदाकाशात् कृ णपा डवौ ।। २१ ।। एक ग डजातीय प ी* वक े समान पाँख, च च और पंज से हार करनेक इ छा रखकर आकाशसे ीकृ ण और अजुनक ओर झपटा ।। २१ ।। तथैवोरगसङ् घाताः पा डव य समीपतः । उ सृज तो वषं घोरं नपेतु व लताननाः ।। २२ ।। इसी कार व लत मुखवाले नाग के समुदाय भी पा डव अजुनके समीप भयानक जहर उगलते ए उनक ओर टू ट पड़े ।। २२ ।। तां कत शरैः पाथः सरोषा नसमु तैः । व वशु ा प तं द तं दे हाभावाय पावकम् ।। २३ ।। यह दे ख अजुनने रोषा न े रत बाण ारा उन सबके टु कड़े-टु कड़े कर डाले और वे सभी अपने शरीरको भ म करनेके लये उस जलती ई आगम समा गये ।। २३ ।। ततोऽसुराः सग धवा य रा सप गाः । उ पेतुनादमतुलमु सृज तो रणा थनः ।। २४ ।। त प ात् असुर, ग धव, य , रा स और नाग यु के लये उ सुक हो अनुपम गजना करते ए वहाँ दौड़े आये ।। २४ ।।

अयःकणपच ा मभुशु ु तबाहवः । कृ णपाथ जघांस तः ोधस मू छतौजसः ।। २५ ।। क ह के हाथम लोहेक गोली छोड़नेवाले य (तोप, बं क आ द) थे और कुछ लोग ने हाथ म च , प थर एवं भुशु डी उठा रखी थी। ोधा नसे बढ़े ए तेजवाले वे सब-के-सब ीकृ ण और अजुनको मार डालना चाहते थे ।। २५ ।। तेषाम त ाहरतां श वष मु चताम् । ममाथो मा ा न बीभ सु न शतैः शरैः ।। २६ ।। वे लोग बड़ी-बड़ी ड ग हाँकते ए अ -श क वषा करने लगे। उस समय अजुनने अपने तीखे बाण से उन सबके सर उड़ा दये ।। २६ ।। कृ ण सुमहातेजा े णा र वनाशनः । दै यदानवसङ् घानां चकार कदनं महत् ।। २७ ।। श ु वनाशन महातेज वी ीकृ णने भी च ारा दै य और दानव के समुदायका महान् संहार कर दया ।। २७ ।। अथापरे शरै व ा वेगे रता तथा । वेला मव समासा त मतौजसः ।। २८ ।। फर सरे- सरे अ मत तेज वी दै य-दानव बाण से घायल और च वेगसे क पत हो तटपर आकर क जानेवाली समु क लहर के समान एक सीमातक ही ठहर गये—आगे न बढ़ सके ।। २८ ।। ततः श ोऽ तसं ु दशानां महे रः । पा डु रं गजमा थाय तायुभौ समुपा वत् ।। २९ ।। तब दे वता के महाराज इ ेत ऐरावतपर आ ढ़ हो अ य त ोधपूवक उन दोन क ओर दौड़े ।। २९ ।। वेगेनाश नमादाय व म ं च सोऽसृजत् । हतावेता व त ाह सुरानसुरसूदनः ।। ३० ।। असुरसूदन इ ने बड़े वेगसे अश न- प अपना वा उठाकर चला दया और दे वता से कहा—‘लो ये दोन मारे गये’ ।। ३० ।। ततः समु तां ् वा दे वे े ण महाश नम् । जगृ ः सवश ा ण वा न वा न सुरा तथा ।। ३१ ।। दे वराज इ को वह महान् व उठाये दे ख दे वता ने भी अपने-अपने स पूण अ श ले लये ।। ३१ ।। कालद डं यमो राजन् गदां चैव धने रः । पाशां त व णो व च ां च तथाश नम् ।। ३२ ।। राजन्! यमराजने कालद ड, कुबेरने गदा तथा व णने पाश और व च व हाथम ले लये ।। ३२ ।। क दः श समादाय त थौ मे रवाचलः । ओषधीद यमाना जगृहातेऽ नाव प ।। ३३ ।। े े े े े ँ े

दे वता के सेनाप त क द श हाथम लेकर मे पवतक भाँ त अ वचल भावसे खड़े हो गये। दोन अ नीकुमार ने भी चमक ली ओष धयाँ उठा ल ।। ३३ ।। जगृहे च धनुधाता मुसलं तु जय तथा । पवतं चा प ज ाह ु व ा महाबलः ।। ३४ ।। धाताने धनुष लया और जयने मुसल, ोधम भरे ए महाबली व ाने पवत उठा लया ।। ३४ ।। अंश तु श ज ाह मृ युदवः पर धम् । गृ प रघं घोरं वचचारायमा अ प ।। ३५ ।। अंशने श हाथम ले ली और मृ युदेवने फरसा। अयमा भी भयानक प रघ लेकर यु के लये वचरने लगे ।। ३५ ।। म ुरपय तं च मादाय त थवान् । पूषा भग सं ु ः स वता च वशा पते ।। ३६ ।। आ कामुक न ंशाः कृ णपाथ वुः । म दे वता जसके कनार पर छु रे लगे ए थे, वह च लेकर खड़े हो गये। महाराज! पूषा, भग और ोधम भरे ए स वता धनुष और तलवार लेकर ीकृ ण और अजुनपर टू ट पड़े ।। ३६ ।। ा वसव ैव म त महाबलाः ।। ३७ ।। व ेदेवा तथा सा या द यमानाः वतेजसा । एते चा ये च बहवो दे वा तौ पु षो मौ ।। ३८ ।। कृ णपाथ जघांस तः तीयु व वधायुधाः । , वसु, महाबली म द्गण, व ेदेव तथा अपने तेजसे का शत होनेवाले सा यगण —ये और सरे ब त-से दे वता नाना कारके अ -श लेकर उन पु षोतम ीकृ ण और अजुनको मार डालनेक इ छासे उनक ओर बढ़े ।। ३७-३८ ।। त ा ता य य त न म ा न महाहवे ।। ३९ ।। युगा तसम पा ण भूतस मोहना न च । तथा ् वा सुसंरधं श ं दे वैः सहा युतौ ।। ४० ।। अभीतौ यु ध धष त थतुः स जकामुकौ । उस महासं ामम लयकालके समान पवाले तथा ा णय को मोहम डाल दे नेवाले अ त अपशकुन दखायी दे ने लगे। दे वता स हत इ को रोषम भरा दे ख अपनी म हमासे युत न होनेवाले नभय तथा धष वीर ीकृ ण और अजुन धनुष तानकर यु के लये खड़े हो गये ।। ३९-४० ।। आग छत ततो दे वानुभौ यु वशारदौ ।। ४१ ।। ताडयेतां सं ु ौ शरैव ोपमै तदा । तदन तर वे दोन यु कुशल वीर कु पत हो अपने वोपम बाण ारा वहाँ आते ए दे वता को घायल करने लगे ।। ४१ ।।

असकृद् भ नसंक पाः सुरा ब शः कृताः ।। ४२ ।। भयाद् रणं प र य य श मेवा भ श युः । ब त-से दे वता बार-बार य न करनेपर भी कभी सफलमनोरथ न हो सके। उनक आशा टू ट गयी और वे भयके मारे यु छोड़कर इ क ही शरणम चले गये ।। ४२ ।। ् वा नवा रतान् दे वान् माधवेनाजुनेन च ।। ४३ ।। आ यमगमं त मुनयो नभ स थताः । ीकृ ण और अजुनके ारा दे वता क ग त कु ठत ई दे ख आकाशम खड़े ए मह षगण बड़े आ यम पड़ गये ।। ४३ ।। श ा प तयोव यमुपल यासकृद् रणे ।। ४४ ।। बभूव परम ीतो भूय ैतावयोधयत् । इ भी उस यु म बार-बार उन दोन वीर का परा म दे ख बड़े स ए और पुनः उन दोन के साथ यु करने लगे ।। ४४ ।। ततोऽ मवष सुमहद् सृजत् पाकशासनः ।। ४५ ।। भूय एव तदा वीय ज ासुः स सा चनः । तदन तर इ ने स साची अजुनके परा मक परी ा लेनेके लये पुनः उनपर प थर क बड़ी भारी वषा ार भ क ।। ४५ ।। त छरैरजुनो वष तज नेऽ यम षतः ।। ४६ ।। वफलं यमाणं तत् समवे य शत तुः । भूयः संवधयामास त ष पाकशासनः ।। ४७ ।। अजुनने अ य त अमषम भरकर अपने बाण ारा वह सारी वषा न कर द । सौ य का अनु ान करनेवाले पाकशासन इ ने उस प थर क वषाको वफल ई दे ख पुनः प थर क बड़ी भारी वषा क ।। ४६-४७ ।। सोऽ मवष महावेगै रषु भः पाकशास नः । वलयं गमयामास हषयन् पतरं तथा ।। ४८ ।। यह दे ख इ कुमार अजुनने अपने पताका हष बढ़ाते ए महान् वेगशाली बाण ारा प थर क उस वृ को फर वलीन कर दया ।। ४८ ।। तत उ पा पा ण यां म दरा छखरं महत् । स मं सृज छ ो जघांसुः पा डु न दनम् ।। ४९ ।। इसके बाद इ ने पा डु न दन अजुनको मारनेके लये अपने दोन हाथ से म दर पवतका महान् शखर वृ स हत उखाड़ लया और उसे उनके ऊपर चलाया ।। ४९ ।। ततोऽजुनो वेगव व लता ैर ज गैः । शरै व वंसयामास गरेः शृ ं सह धा ।। ५० ।। यह दे ख अजुनने व लत नोकवाले वेगवान् एवं सीधे जानेवाले बाण ारा उस पवत- शखरको हजार टु कड़े करके गरा दया ।। ५० ।। गरे वशीयमाण य त य पं तदा बभौ । े



साकच ह येव नभसः प रशीयतः ।। ५१ ।। छ - भ होकर गरता आ वह पवत शखर ऐसा जान पड़ता था मानो सूय-च मा आ द ह आकाशसे टू टकर गर रहे ह ।। ५१ ।। तेना भप तता दावं शैलेन महता भृशम् । शृ े ण नहता त ा णनः खा डवालयाः ।। ५२ ।। वहाँ गरे ए उस महान् पवत शखरके ारा खा डववनम नवास करनेवाले ब तसे ाणी मारे गये ।। ५२ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण खा डवदाहपव ण दे वकृ णाजुनयु े षड् वश य धक शततमोऽ यायः ।। २२६ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत खा डवदाहपवम दे वता के साथ ीकृ ण और अजुनके यु से स ब ध रखनेवाला दो सौ छ बीसवाँ अ याय पूरा आ ।। २२६ ।।

* यह व णुवाहन ग डसे भ था।

(म यदशनपव) स त वश य धक शततमोऽ यायः दे वताक

पराजय, खा डववनका वनाश और मयासुरक र ा

वैश पायन उवाच तथा शैल नपातेन भी षताः खा डवालयाः । दानवा रा सा नागा तर वृ वनौकसः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! इस कार पवत शखरके गरनेसे खा डववनम रहनेवाले दानव, रा स, नाग, चीते तथा रीछ आ द वनचर ाणी भयभीत हो उठे ।। १ ।। पाः भ ाः शा लाः सहाः केस रण तथा । मृगा म हषा ैव शतशः प ण तथा ।। २ ।। समु ना वससृपु तथा या भूतजातयः । मदक धारा बहानेवाले हाथी, शा ल, केसरी, सह, मृग, भस, सैकड़ प ी तथा सरी- सरी जा तके ाणी अ य त उ न हो इधर-उधर भागने लगे ।। २ ।। तं दावं समुदै त कृ णौ चा यु तायुधौ ।। ३ ।। उ पातनादश दे न ा सता इव च थताः । ते वनं समी याथ द मानमनेकधा ।। ४ ।। कृ णम यु ता ं च नादं मुमुचु बणम् । उ ह ने उस जलते ए वनको और मारनेके लये अ उठाये ए ीकृ ण तथा अजुनको दे खा। उ पात और आतनादके श दसे उस वनम खड़े ए वे सभी ाणी सं तसे हो उठे थे। उस वनको अनेक कारसे द ध होते दे ख और अ उठाये ए ीकृ णपर डाल भयानक आतनाद करने लगे ।। ३-४ ।। तेन नादे न रौ े ण नादे न च वभावसोः ।। ५ ।। ररास गगनं कृ नमु पातजलदै रव । उस भयंकर आतनाद और अ नदे वक गजनासे वहाँका स पूण आकाश मानो उ पातका लक मेघ क गजनासे गूँज रहा था ।। ५ ।। ततः कृ ण महाबा ः वतेजोभा वरं महत् ।। ६ ।। च ं सृजद यु ं तेषां नाशाय केशवः । तब महाबा ीकृ णने अपने तेजसे का शत होनेवाले उस अ य त भयंकर महान् च को उन दै य आ द ा णय के वनाशके लये छोड़ा ।। ६ ।। े

तेनाता जातयः

ु ाः सदानव नशाचराः ।। ७ ।।

ीकृ ण और अजुनका दे वतासे यु

अजुन और

ीकृ णको इ का वरदान

नकृ ाः शतशः सवा नपेतुरनलं णात् । उस च के हारसे पी ड़त हो दानव, नशाचर आ द सम त ु ाणी सौ-सौ टु कड़े होकर णभरम आगम गर गये ।। ७ ।। त ा य त ते दै याः कृ णच वदा रताः ।। ८ ।। वसा धरस पृ ाः सं याया मव तोयदाः । ीकृ णके च से वद ण ए दै य मेदा तथा र म सनकर सं याकालके मेघ क भाँ त दखायी दे ने लगे ।। ८ ।। पशाचान् प णो नागान् पशूं ैव सह शः ।। ९ ।। न नं र त वा णयः कालवत् त भारत । भारत! भगवान् ीकृ ण वहाँ सह पशाच , प य , नाग तथा पशु का वध करते ए कालके समान वचर रहे थे ।। ९ ।। तं तं पुन ं कृ ण या म घा तनः ।। १० ।। छ वानेका न स वा न पा णमे त पुनः पुनः । श ुघाती ीकृ णके ारा बार-बार चलाया आ वह च अनेक ा णय का संहार करके पुनः उनके हाथम चला आता था ।। १० ।। तथा तु न नत त य पशाचोरगरा सान् ।। ११ ।। बभूव पम यु ं सवभूता मन तदा । इस कार पशाच, नाग तथा रा स का संहार करनेवाले सवभूता मा भगवान् ीकृ णका व प उस समय बड़ा भयंकर जान पड़ता था ।। ११ ।। समेतानां च सवषां दानवानां च सवशः ।। १२ ।। वजेता नाभवत् क त् कृ णपा डवयोमृधे । वहाँ सब ओरसे स पूण दानव एक हो गये थे, तथा प उनमसे एक भी ऐसा नह नकला, जो यु म ीकृ ण और अजुनको जीत सके ।। १२ ।। तयोबलात् प र ातुं तं च दावं यदा सुराः ।। १३ ।। नाश नुव छम यतुं तदाभूवन् पराङ् मुखाः । जब दे वतालोग उन दोन के बलसे खा डववनक र ा करने और उस आगको बुझानेम सफल न हो सके, तब पीठ दखाकर चल दये ।। १३ ।। शत तु तु स े य वमुखानमरां तथा ।। १४ ।। बभूव मु दतो राजन् शंसन् केशवाजुनौ । राजन्! शत तु इ दे वता को वमुख आ दे ख ीकृ ण और अजुनक शंसा करते ए बड़े स ए ।। १४ ।। नवृ े वथ दे वेषु वागुवाचाशरी रणी ।। १५ ।। शत तुं समाभा य महाग भीर नः वना । दे वता के लौट जानेपर इ को स बो धत करके बड़े ग भीर वरसे आकाशवाणी ई — ।। १५ ।। े ो ो

न ते सखा सं न हत त को भुजगो मः ।। १६ ।। दाहकाले खा डव य कु े ं गतो सौ । ‘वासव! तु हारे सखा नाग वर त क इस समय यहाँ नह ह। वे खा डवदाहके समय कु े चले गये थे ।। १६ ।। न च श यौ युधा जेतुं कथं चद प वासव ।। १७ ।। वासुदेवाजुनावेतौ नबोध वचना मम । नरनारायणावेतौ पूवदे वौ द व ुतौ ।। १८ ।। भवान य भजाना त य य य परा मौ । नैतौ श यौ राधष वजेतुम जतौ यु ध ।। १९ ।। ‘भगवान् वासुदेव तथा अजुनको कसी कार यु से जीता नह जा सकता। मेरे कहनेसे तुम इस बातको समझ लो। ये दोन पहलेके दे वता नर और नारायण ह। दे वलोकम भी इनक या त है। इनका बल और परा म कैसा है, यह तुम भी जानते हो। ये अपरा जत और धष वीर ह। स पूण लोक म कसीके ारा भी ये यु म जीते नह जा सकते ।। १७—१९ ।। अ प सवषु लोकेषु पुराणावृ षस मौ । पूजनीयतमावेताव प सवः सुरासुरैः ।। २० ।। य रा सग धवनर क रप गैः । ‘ये दोन पुरातन ऋ ष े नर-नारायण स पूण दे वता , असुर , य , रा स , ग धव , मनु य , क र तथा नाग के लये भी परम पूजनीय ह ।। २० ।। त मा दतः सुरैः साध ग तुमह स वासव ।। २१ ।। द ं चा यनुप यैतत् खा डव य वनाशनम् । ‘अतः इ ! तु ह दे वता के साथ यहाँसे चले जाना ही उ चत है। खा डववनके इस वनाशको तुम ार धका ही काय समझो’ ।। २१ ।। इ त वा यमुप ु य तय म यमरे रः ।। २२ ।। ोधामष समु सृ य स त थे दवं तदा । यह आकाशवाणी सुनकर दे वराज इ ने इसे ही स य माना और ोध तथा अमष छोड़कर वे उसी समय वगलोकको लौट गये ।। २२ ।। तं थतं महा मानं समवे य दवौकसः ।। २३ ।। स हताः सेनया राज नुज मुः पुरंदरम् । राजन्! महा मा इ को वहाँसे थान करते दे ख सम त वगवासी दे वता सेनास हत उनके पीछे -पीछे चले गये ।। २३ ।। दे वराजं तदा या तं सह दे वैरवे य तु ।। २४ ।। वासुदेवाजुनौ वीरौ सहनादं वनेदतुः । उस समय दे वता स हत दे वराज इ को जाते दे ख वीरवर ीकृ ण और अजुनने सहनाद कया ।। २४ ।। े





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दे वराजे गते राजन् ौ केशवाजुनौ ।। २५ ।। न वशङ् कं वनं वीरौ दाहयामासतु तदा । राजन्! दे वराजके चले जानेपर वीरवर केशव तथा अजुन अ य त स हो उस समय बेखटके खा डववनका दाह कराने लगे ।। २५ ।। स मा त इवा ा ण नाश य वाजुनः सुरान् ।। २६ ।। धम छरसङ् घातैद हनः खा डवालयान् । जैसे बल वायु बादल को छ - भ कर दे ती है, उसी कार अजुनने दे वता को भगाकर अपने बाण के समुदायसे खा डववासी ा णय को मारना आर भ कया ।। २६ ।। न च म क च छ नो त भूतं न रतुं ततः ।। २७ ।। सं छ मान मषु भर यता स सा चना । स साची अजुनके बाण चलाते समय उनके बाण से कट जानेके कारण कोई भी जीव वहाँसे बाहर न नकल सका ।। २७ ।। नाश नुवं भूता न महा य प रणेऽजुनम् ।। २८ ।। नरी तुममोघा ं योद्धुं चा प कुतो रणे । शतं चैकेन व ाध शतेनैकं पत णाम् ।। २९ ।। अमोघ अ धारी अजुनको उस समय बड़े-से-बड़े ाणी दे ख भी न सके, फर रणभू मम यु तो कर ही कैसे सकते थे। वे कभी एक ही बाणसे सैकड़ को ब ध डालते थे और कभी एकहीको सौ बाण से घायल कर दे ते थे ।। २८-२९ ।। सव तेऽपत नौ सा ात् कालहता इव । न चालभ त ते शम रोध सु वषमेषु च ।। ३० ।। वे सभी ाणी ाणशू य होकर सा ात् कालसे मारे एक भाँ त आगम गर पड़ते थे। वे वनके कनारे ह या गम थान म ह , कह भी उ ह शा त नह मलती थी ।। ३० ।। पतृदेव नवासेषु संताप ा यजायत । भूतसङ् घा बहवो द ना ु महा वनम् ।। ३१ ।। पतर और दे वता के लोकम भी खा डववनके दाहक गम प ँचने लगी। ब तेरे ा णय के समुदाय कातर हो जोर-जोरसे ची कार करने लगे ।। ३१ ।। वारणा ैव तथा मृगतर वः । तेन श दे न व ेसुग ोद धचरा झषाः ।। ३२ ।। हाथी, मृग और चीते भी रोदन करते थे। उनके आतनादसे गंगा तथा समु के भीतर रहनेवाले म य भी थरा उठे ।। ३२ ।। व ाधरगणा ैव ये च त वनौकसः । न वजुनं महाबाहो ना प कृ णं जनादनम् ।। ३३ ।। नरी तुं वै श नो त क द् योद्धुं कुतः पुनः । े



















उस वनम रहनेवाले जो व ाधर-जा तके लोग थे, उनक भी यही दशा थी। महाबाहो! उस समय कोई ीकृ ण और अजुनक ओर आँख उठाकर दे ख भी नह सकता था; फर यु करनेक तो बात ही या है ।। ३३ ।। एकायनगता येऽ प न पेतु त केचन ।। ३४ ।। रा सा दानवा नागा ज ने च े ण तान् ह रः । जो कोई रा स, दानव और नाग वहाँ एक साथ संघ बनाकर नकलते थे, उन सबको भगवान् ीह र च ारा मार दे ते थे ।। ३४ ।। ते तु भ शरोदे हा वेगाद् गतासवः ।। ३५ ।। पेतुर ये महाकायाः द ते वसुरेत स । वे तथा सरे वशालकाय ाणी च के वेगसे शरीर और म तक छ - भ हो जानेके कारण नज व हो व लत आगम गर पड़ते थे ।। ३५ ।। स मांस धरौघै वसा भ ा प त पतः ।। ३६ ।। उपयाकाशगो भू वा वधूमः समप त । द ता ो द त ज स द तमहाननः ।। ३७ ।। इस कार वनज तु के मांस, धर और मेदेके समूहसे अ य त तृ त हो अ नदे व ऊपर आकाशचारी होकर धूमर हत हो गये। उनक आँख चमक उठ, ज ाम द त आ गयी और उनका वशाल मुख भी अ य त तेजसे का शत होने लगा ।। ३६-३७ ।। द तो वकेशः प ा ः पबन् ाणभृतां वसाम् । तां स कृ णाजुनकृतां सुधां ा य ताशनः ।। ३८ ।। बभूव मु दत तृ तः परां नवृ तमागतः । उनके चमक ले केश ऊपरक ओर उठे ए थे, आँख पगलवणक थ और वे ा णय के मेदेका रस पी रहे थे। ीकृ ण और अजुनका दया आ वह इ छानुसार भोजन पाकर अ नदे व बड़े स और पूण तृ त हो गये। उ ह बड़ी शा त मली ।। ३८ ।। तथासुरं मयं नाम त क य नवेशनात् ।। ३९ ।। व व तं सहसा ददश मधुसूदनः । इसी समय त कके नवास थानसे नकलकर सहसा भागते ए मयासुरपर भगवान् मधुसूदनक पड़ी ।। ३९ ।। तम नः ाथयामास दध ुवातसार थः ।। ४० ।। शरीरवा ट भू वा नद व बलाहकः । वातसार थ अ नदे व मू तमान् हो सरपर जटा धारण कये मेघके समान गजना करने लगे और उस असुरको जला डालनेक इ छासे माँगने लगे ।। ४० ।। व ाय दानवे ाणां मयं वै श पनां वरम् ।। ४१ ।। जघांसुवासुदेव तं च मु य ध तः । स च मु तं ् वा दध तं च पावकम् ।। ४२ ।। अ भधावाजुने येवं मय ाही त चा वीत् । े









मय दानवे के श पय म े था, उसे पहचानकर भगवान् वासुदेव उसका वध करनेके लये च लेकर खड़े हो गये। मयने दे खा एक ओर मुझे मारनेके लये च उठा है, सरी ओर अ नदे व मुझे भ म कर डालना चाहते ह; तब वह अजुनक शरणम गया और बोला—‘अजुन! दौड़ो मुझे बचाओ, बचाओ’ ।। ४१-४२ ।।

त य भीत वनं ु वा मा भै र त धनंजयः ।। ४३ ।। युवाच मयं पाथ जीवय व भारत । भारत! उसका भययु वर सुनकर कु तीकुमार धनंजयने उसे जीवनदान दे ते ए कहा—‘डरो मत’ ।। ४३ ।। तं न भेत म याह मयं पाथ दयापरः ।। ४४ ।। अजुनके मनम दया आ गयी थी, अतः उ ह ने मयासुरसे फर कहा—‘तु ह डरना नह चा हये’ ।। ४४ ।। तं पाथनाभये द े नमुचे ातरं मयम् । न ह तुमै छद् दाशाहः पावको न ददाह च ।। ४५ ।। अजुनके अभयदान दे नेपर भगवान् ीकृ णने नमु चके ाता मयासुरको मारनेक इ छा याग द और अ नदे वने भी उसे नह जलाया ।। ४५ ।। वैश पायन उवाच तद् वनं पावको धीमान् दना न दश प च च ।

ददाह कृ णपाथा यां र तः पाकशासनात् ।। ४६ ।। वैश पायनजी कहते ह—परम बु मान् अ नदे वने ीकृ ण और अजुनके ारा इ के आ मणसे सुर त रहकर खा डववनको पं ह दन तक जलाया ।। ४६ ।। त मन् वने द माने षड नन ददाह च । अ सेनं मयं चैव चतुरः शा कां तथा ।। ४७ ।। उस वनके जलाये जाते समय अ सेन नाग, मयासुर तथा चार शाङ् गक नामवाले प य को अ नने नह जलाया ।। ४७ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण मयदशनपव ण मयदानव ाणे स त वश य धक शततमोऽ यायः ।। २२७ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत मयदशनपवम मयदानवक र ा वषयक दो सौ स ाईसवाँ अ याय पूरा आ ।। २२७ ।।

अ ा वश य धक शततमोऽ यायः शा कोपा यान—म दपाल मु नके ारा ज रताशा कासे पु क उ प और उ ह बचानेके लये मु नका अ नदे वक तु त करना जनमेजय उवाच कमथ शा कान नन ददाह तथागते । त मन् वने द माने ेतत् च व मे ।। १ ।। जनमेजयने पूछा— न्! इस कार सारे वनके जलाये जानेपर भी अ नदे वने उन चार शाङ् गक को य द ध नह कया? यह मुझे बताइये ।। १ ।। अदाहे सेन य दानव य मय य च । कारणं क ततं छा काणां न क ततम् ।। २ ।। व वर! आपने अ सेन नाग तथा मयदानवके न जलनेका कारण तो बताया है; परंतु शाङ् गक के द ध न होनेका कारण नह कहा है ।। २ ।। तदे तदद्भुतं छा काणामनामयम् । क तय वा नस मद कथं ते न वना शताः ।। ३ ।। न्! उस भयानक अ नका डम उन शाङ् गक का सकुशल बच जाना, यह बड़े आ यक बात है। कृपया बताइये, उनका नाश कैसे नह आ? ।। ३ ।। वैश पायन उवाच यदथ शा कान नन ददाह तथागते । तत् ते सव व या म यथाभूतमरदम ।। ४ ।। वैश पायनजी कहते ह—श ुदमन जनमेजय! वैसे भयंकर अ नका डम भी अ नदे वने जस कारणसे शाङ् गक को द ध नह कया और जस कार वह घटना घ टत ई, वह सब म तु ह बताता ँ, सुनो ।। ४ ।। धम ानां मु यतम तप वी सं शत तः । आसी मह षः ुतवान् म दपाल इ त ुतः ।। ५ ।। म दपाल नामसे व यात एक व ान् मह ष थे। वे धम म े और कठोर तका पालन करनेवाले तप वी थे ।। ५ ।। स मागमा तो राज ृषीणामू वरेतसाम् । वा यायवान् धमरत तप वी व जते यः ।। ६ ।। राजन्! वे ऊ वरेता मु नय के माग ( चय)-का आ य लेकर सदा वेद के वा यायम संल न और धमपालनम त पर रहते थे। उ ह ने स पूण इ य को वशम कर लया था और वे सदा तप याम ही लगे रहते थे ।। ६ ।। े

स ग वा तपसः पारं दे हमु सृ य भारत । जगाम पतृलोकाय न लेभे त त फलम् ।। ७ ।। भारत! वे अपनी तप याको पूरी करके शरीरका याग करनेपर पतृलोकम गये; कतु वहाँ उ ह अपने तप एवं स कम का फल नह मला ।। ७ ।। स लोकानफलान् ् वा तपसा न जतान प । प छ धमराज य समीप थान् दवौकसः ।। ८ ।। उ ह ने तप या ारा वशम कये ए लोक को भी न फल दे खकर धमराजके पास बैठे ए दे वता से पूछा ।। ८ ।। म दपाल उवाच कमथमावृता लोका ममैते तपसा जताः । क मया न कृतं त य यैतत् कमणः फलम् ।। ९ ।। म दपाल बोले—दे वताओ! मेरी तप या ारा ा त ए ये लोक बंद य ह? (उपभोगके साधन से शू य य ह?) मने वहाँ कौन-सा स कम नह कया है, जसका फल मुझे इस पम मला है ।। ९ ।। त ाहं तत् क र या म यदथ मदमावृतम् । फलमेत य तपसः कथय वं दवौकसः ।। १० ।। जसके लये इस तप याका फल ढका आ है, म उस लोकम जाकर वह कम क ँ गा। आपलोग मुझसे उसको बताइये ।। १० ।। दे वा ऊचुः ऋ णनो मानवा न् जाय ते येन त छृ णु । या भ चयण जया च न संशयः ।। ११ ।। तदपा यते सव य ेन तपसा ुतैः । तप वी य कृ चा स न च ते व ते जा ।। १२ ।। दे वताने कहा— न्! मनु य जस ऋणसे ऋणी होकर ज म लेते ह, उसे सु नये। य कम, चयपालन और जाक उ प —इन तीन के लये सभी मनु य पर ऋण रहता है, इसम संशय नह है। य , तप या और वेदा ययनके ारा वह सारा ऋण र कया जाता है। आप तप वी और य कता तो ह ही, आपके कोई संतान नह है ।। ११-१२ ।। त इमे सव याथ तव लोकाः समावृताः । जाय व ततो लोकानुपभो य स पु कलान् ।। १३ ।। अतः संतानके लये ही आपके ये लोक ढके ए ह। इस लये पहले संतान उ प क जये, फर अपने चुर पु यलोक का फल भो गयेगा ।। १३ ।। पुंना नो नरकात् पु ायते पतरं ु तः । त मादप यसंताने यत व स म ।। १४ ।। ु तका कथन है क पु ‘पुत्’ नामक नरकसे पताका उ ार करता है। अतः व वर! आप अपनी वंशपर पराको अ व छ बनानेका य न क जये ।। १४ ।। ै

वैश पायन उवाच त छ वा म दपाल तु वच तेषां दवौकसाम् । व नु शी मप यं याद् ब लं चे य च तयत् ।। १५ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! दे वता का वह वचन सुनकर म दपालने ब त सोचा- वचारा क कहाँ जानेसे मुझे शी संतान होगी ।। १५ ।। स च तय यग छत् सुब सवान् खगान् । शा कां शा को भू वा ज रतां समुपे यवान् ।। १६ ।। यह सोचते ए वे अ धक ब चे दे नेवाले प य के यहाँ गये और शाक होकर ज रता नामवाली शाकासे स ब ध था पत कया ।। १६ ।। त यां पु ानजनय चतुरो वा दनः । तानपा य स त ैव जगाम ल पतां त ।। १७ ।। बालान् स तान डगतान् सह मा ा मु नवने । ज रताके गभसे चार वाद पु को मु नने ज म दया। अंडेम पड़े ए उन ब च को मातास हत वह छोड़कर वे मु न वनम ल पताके पास चले गये ।। १७ ।। त मन् गते महाभागे ल पतां त भारत ।। १८ ।। अप य नेहसंयु ा ज रता ब च तयत् । भारत! महाभाग म दपाल मु नके ल पताके पास चले जानेपर संतानके त नेहयु ज रताको बड़ी च ता ई ।। १८ ।। तेन य ानसं या यानृषीन डगतान् वने ।। १९ ।। न जहौ पु शोकाता ज रता खा डवे सुतान् । बभार चैतान् संजातान् ववृ या नेह व लवा ।। २० ।। अंडेम थत उन मु नय को य प म दपालने याग दया था, तो भी वे यागने यो य नह थे। अतः पु -शोकसे पी ड़त ई ज रताने खा डववनम अपने पु को नह छोड़ा। वह नेहसे व ल होकर अपनी वृ ारा उन नवजात शशु का भरण-पोषण करती रही ।। १९-२० ।। ततोऽ नं खा डवं द धुमाया तं वानृ षः । म दपाल रं त मन् वने ल पतया सह ।। २१ ।। उधर वनम ल पताके साथ वचरते ए म दपाल मु नने अ नदे वको खा डववनका दाह करनेके लये आते दे खा ।। २१ ।। तं संक पं व द वा ने ा वा पु ां बालकान् । सोऽ भतु ाव व ष ा णो जातवेदसम् ।। २२ ।। पु ान् त वदन् भीतो लोकपालं महौजसम् । अ नदे वके संक पको जानकर और अपने पु क बा याव थाका वचार करके ष म दपाल भयभीत होकर महातेज वी लोकपाल अ नसे अपने पु क र ाके लये नवेदन करते ए (ई रक भाँ त) उनक तु त करने लगे ।। २२ ।।

म दपाल उवाच वम ने सवलोकानां मुखं वम स ह वाट् ।। २३ ।। म दपालने कहा—अ नदे व! आप सब लोक के मुख ह, आप ही दे वता को ह व य प ँचाते ह ।। २३ ।। वम तः सवभूतानां गूढ र स पावक । वामेकमा ः कवय वामा वधं पुनः ।। २४ ।। पावक! आप सम त ा णय के अ त तलम गूढ़- पसे वचरते ह। व ान् पु ष आपको एक (अ तीय प) बताते ह। फर द , भौम और जठरानल पसे आपके वध व पका तपादन करते ह ।। २४ ।। वाम धा क प य वा य वाहमक पयन् । वया व मदं सृ ं वद त परमषयः ।। २५ ।। आपको ही पृ वी, जल, तेज, वायु, आकाश, सूय, च मा और यजमान—इन आठ मू तय म वभ करके ानी पु ष ने आपको य वाहन बनाया है। मह ष कहते ह क इस स पूण व क सृ आपने ही क है ।। २५ ।। व ते ह जगत् कृ नं स ो न येद ् ताशन । तु यं कृ वा नमो व ाः वकम व जतां ग तम् ।। २६ ।। ग छ त सह प नी भः सुतैर प च शा तीम् । ताशन! आपके बना स पूण जगत् त काल न हो जायगा। ा णलोग आपको नम कार करके अपनी प नय और पु के साथ कमानुसार ा त क ई सनातन ग तको ा त होते ह ।। २६ ।। वाम ने जलदाना ः खे वष ान् स व ुतः ।। २७ ।। अ ने! आकाशम व ुतक ् साथ मेघ क जो घटा घर आती है, उसे भी आपका ही व प कहते ह ।। २७ ।। दह त सवभूता न व ो न य हेतयः । जातवेद वयैवेदं व ं सृ ं महा ुते ।। २८ ।। लयकालम आपसे ही भयंकर वालाएँ नकलकर स पूण ा णय को भ म कर डालती ह। महान् तेज वी जातवेदा! आपसे ही यह स पूण व उ प आ है ।। २८ ।। तवैव कम व हतं भूतं सव चराचरम् । वयाऽऽपो व हताः पूव व य सव मदं जगत् ।। २९ ।। तथा आपके ही ारा कम का वधान कया गया है और स पूण चराचर ा णय क उ प भी आपसे ही ई है। आपसे ही पूवकालम जलक सृ ई है और आपम ही यह स पूण जगत् त त है ।। २९ ।। व य ह ं च क ं च यथावत् स त तम् । वमेव दहनो दे व वं धाता वं बृह प तः ।। ३० ।। वम नौ यमौ म ः सोम वम स चा नलः । ी











आपहीम ह और क यथावत् त त ह। दे व! आप ही द ध करनेवाले अ न, धारण-पोषण करनेवाले धाता और बु के वामी बृह प त ह। आप ही युगल अ नीकुमार, म (सूय), च मा और वायु ह ।। ३० ।। वैश पायन उवाच एवं तुत तदा तेन म दपालेन पावकः ।। ३१ ।। तुतोष त य नृपते मुनेर मततेजसः । उवाच चैनं ीता मा क म ं करवा ण ते ।। ३२ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! म दपाल मु नके इस कार तु त करनेपर अ नदे व उन अ मत-तेज वी मह षपर ब त स ए और स च होकर उनसे बोले —‘म आपके कस अभी कायक स क ँ ?’ ।। ३१-३२ ।। तम वी म दपालः ा लह वाहनम् । दहन् खा डवं दावं मम पु ान् वसजय ।। ३३ ।। तब म दपालने हाथ जोड़कर ह वाहन अ नसे कहा—‘भगवन्! आप खा डववनका दाह करते समय मेरे पु को बचा द’ ।। ३३ ।। तथे त तत् त ु य भगवान् ह वाहनः । खा डवे तेन कालेन ज वाल दध या ।। ३४ ।। ‘ब त अ छा’ कहकर भगवान् ह वाहनने वैसा करनेक त ा क और उस समय खा डववनको जलानेके लये वे व लत हो उठे ।। ३४ ।। इ त ीमहाभारते आ दपव ण मयदशनपव ण शा कोपा यानेऽ ा वश य धक शततमोऽ यायः ।। २२८ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत मयदशनपवम शा कोपा यान वषयक दो सौ अाईसवाँ अ याय पूरा आ ।। २२८ ।।

एकोन शद धक शततमोऽ यायः ज रताका अपने ब च क र ाके लये च तत होकर वलाप करना वैश पायन उवाच ततः व लते व ौ शा का ते सु ःखताः । थताः परमो ना ना धज मुः परायणम् ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर जब आग व लत ई, तब वे शाङ् गक शशु ब त ःखी, थत और अ य त उ न हो गये। उस समय उ ह अपना कोई र क नह जान पड़ता था ।। १ ।। नश य पु कान् बालान् माता तेषां तप वनी । ज रता शोक ःखाता वललाप सु ःखता ।। २ ।। उन ब च को छोटे जानकर उनक तप वनी माता शोक और ःखसे आतुर ई ज रता ब त ःखी होकर वलाप करने लगी ।। २ ।। ज रतोवाच अयम नदहन् क मत आया त भीषणः । जगत् संद पयन् भीमो मम ःख ववधनः ।। ३ ।। ज रता बोली—यह भयानक आग इस वनको जलाती ई इधर ही बढ़ आ रही है। जान पड़ता है, यह स पूण जगत्को भ म कर डालेगी। इसका व प भयंकर और मेरे ःखको बढ़ानेवाला है ।। ३ ।। इमे च मां कषय त शशवो म दचेतसः । अबहा रणैह नाः पूवषां नः परायणाः ।। ४ ।। ये सांसा रक ानसे शू य च वाले शशु मुझे अपनी ओर आक षत करते ह। इ ह पाँख नह नकल और अभीतक ये पैर से भी हीन ह, हमारे पतर के ये ही आधार ह ।। ४ ।। ासयं ायमाया त ले लहानो मही हान् । अजातप ा सुता न श ाः सरणे मम ।। ५ ।। सबको ास दे ती और वृ को चाटती ई यह आगक लपट इधर ही चली आ रही है। हाय! मेरे ब चे बना पंखके ह, मेरे साथ उड़ नह सकते ।। ५ ।। आदाय च न श नो म पु ां त रतुमा मना । न च य ु महं श ा दयं यतीव मे ।। ६ ।। म वयं भी इ ह लेकर इस आगसे पार नह हो सकूँगी। इ ह छोड़ भी नह सकती। मेरे दयम इनके लये बड़ी था हो रही है ।। ६ ।।

कं तु ज ामहं पु ं कमादाय जा यहम् । क नु मे यात् कृतं कृ वा म य वं पु काः कथम् ।। ७ ।। म कस ब चेको छोड़ ँ और कसे साथ लेकर जाऊँ? या करनेसे कृतकृ य हो सकती ँ? मेरे ब चो! तुमलोग क या राय है? ।। ७ ।। च तयाना वमो ं वो ना धग छा म कचन । छाद य या म वो गा ैः क र ये मरणं सह ।। ८ ।। म तुमलोग के छु टकारेका उपाय सोचती ँ; कतु कुछ भी समझम नह आता। अ छा; अपने अंग से तुमलोग को ढक लूँगी और तु हारे साथ ही म भी मर जाऊँगी ।। ८ ।। ज रतारौ कुलं ेत ये वेन त तम् । सा रसृ कः जायेत पतॄणां कुलवधनः ।। ९ ।। त ब म तपः कुयाद् ोणो वदां वरः । इ येवमु वा ययौ पता वो नघृणः पुरा ।। १० ।। पु ो! तु हारे नदयी पता पहले ही यह कहकर चल दये क ‘ज रता र ये है, अतः इस कुलक र ाका भार इसीपर होगा। सरा पु सा रसृ क अपने पतर के कुलक वृ करनेवाला होगा। त ब म तप या करेगा और ोण वे ा म े होगा’ ।। ९-१० ।। कमुपादाय श येयं ग तुं क ाप मा । क नु कृ वा कृतं काय भवे द त च व ला । नाप यत् व धया मो ं वसुतानां तदानलात् ।। ११ ।। हाय! मुझपर बड़ी भारी क दा यनी आप आ पड़ी। इन चार ब च मसे कसको लेकर म इस आगको पार कर सकूँगी। या करनेसे मेरा काय स हो सकता है? इस कार वचार करते-करते ज रता अ य त व ल हो गयी; परंतु अपने पु को उस आगसे बचानेका कोई उपाय उस समय उसके यानम नह आया ।। ११ ।। वैश पायन उवाच एवं ुवाणां शा ा ते यूचुरथ मातरम् । नेहमु सृ य मात वं पत य न ह वाट् ।। १२ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! इस कार बलखती ई अपनी मातासे वे शाङ् गप ीके ब चे बोले—‘माँ! तुम नेह छोड़कर जहाँ आग न हो, उधर उड़ जाओ ।। १२ ।। अ मा वह वन ेषु भ वतारः सुता तव । व य मात वन ायां न नः यात् कुलसंत तः ।। १३ ।। ‘माँ! य द हम यहाँ न हो जायँ तो भी तु हारे सरे ब चे हो सकते ह; परंतु तु हारे न हो जानेपर तो हमारे इस कुलक पर परा ही लु त हो जायगी ।। १३ ।। अ ववे यैत भयं ेमं याद् यत् कुल य नः । तद् वै कतु परः कालो मातरेष भवेत् तव ।। १४ ।। ‘ ँ











‘माँ! इन दोन बात पर वचार करके जस कार हमारे कुलका क याण हो, वही करनेको तु हारे लये यह उ म अवसर है ।। १४ ।। मा वं सव वनाशाय नेहं काष ः सुतेषु नः । न हीदं कम मोघं या लोककाम य नः पतुः ।। १५ ।। ‘तुम हम सब पु पर ऐसा नेह न करो, जससे सबका वनाश हो जाय। उ म लोकक इ छा रखनेवाले मेरे पताका यह कम थ न हो जाय’ ।। १५ ।।

ज रतोवाच इदमाखो बलं भूमौ वृ या य समीपतः । तदा वश वं व रता व े र न वो भयम् ।। १६ ।। ज रता बोली—मेरे ब चो! इस वृ के पास भू मम यह चूहेका बल है। तुमलोग ज द -से-ज द इसके भीतर घुस जाओ। इसके भीतर तु ह आगसे भय नह है ।। १६ ।। ततोऽहं पांसुना छ म पधा या म पु काः । एवं तकृतं म ये वलतः कृ णव मनः ।। १७ ।। तुमलोग के घुस जानेपर म इस बलका छे द धूलसे बंद कर ँ गी। ब चो! मेरा व ास है, ऐसा करनेसे इस जलती आगसे तु हारा बचाव हो सकेगा ।। १७ ।। तत ए या यतीतेऽ नौ वह तुं पांसुसंचयम् । रोचतामेष वो वादो मो ाथ च ताशनात् ।। १८ ।। फर आग बुझ जानेपर म धूल हटानेके लये यहाँ आ जाऊँगी। आगसे बचनेके लये मेरी यह बात तुमलोग को पसंद आनी चा हये ।। १८ ।। शाङ् गका ऊचुः अबहान् मांसभूतान् नः ादाखु वनाशयेत् । प यमाना भय मदं वे ु ं ना श नुमः ।। १९ ।। शाङ् गक बोले—अभी हम बना पंख के ब चे ह, हमारा शरीर मांसका लोथड़ामा है। चूहा मांसभ ी जीव है, वह हम न कर दे गा। इस भयको दे खते ए हम इस बलम वेश नह कर सकते ।। १९ ।। कथम नन नो ध येत् कथमाखुन नाशयेत् । कथं न यात् पता मोघः कथं माता येत नः ।। २० ।। हम तो यह सोचते ह क या उपाय हो, जससे अ न हम न जलावे, चूहा हम न मारे एवं हमारे पताका संतानो पादन वषयक य न न फल न हो और हमारी माता भी जी वत रहे? ।। २० ।। बल आखो वनाशः याद नेराकाशचा रणाम् । अ ववे यैत भयं ेयान् दाहो न भ णम् ।। २१ ।। बलम चूहेसे हमारा वनाश हो जायगा और आकाशम उड़नेपर अ नसे। इन दोन प रणाम पर वचार करनेसे हम आगसे जल जाना ही े जान पड़ता है, चूहेका भोजन बनना नह ।। २१ ।। े े

ग हतं मरणं नः यादाखुना भ ते बले । श ा द ः प र यागः शरीर य ताशनात् ।। २२ ।। य द हमलोग को बलम चूहेने खा लया तो वह हमारी न दत मृ यु होगी। आगसे जलकर शरीरका प र याग करनेके लये श पु ष क आ ा है ।। २२ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण मयदशनपव ण ज रता वलापे एकोन शद धक शततमोऽ यायः ।। २२९ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत मयदशनपवम ज रता वलाप वषयक दो सौ उ तीसवाँ अ याय पूरा आ ।। २२९ ।।

शद धक शततमोऽ यायः ज रता और उसके ब च का संवाद ज रतोवाच अ माद् बला प ततमाखुं येनो जहार तम् । ु ं प यां गृही वा च यातो ना भयं ह वः ।। १ ।। ज रताने कहा—ब चो! चूहा इस बलसे नकला था, उस समय उसे बाज उठा ले गया; उस छोटे से चूहेको वह अपने दोन पंज से पकड़कर उड़ गया। अतः अब इस बलम तु हारे लये भय नह है ।। १ ।। शाङ् गका ऊचुः न तं तं वयं वः येनेनाखुं कथंचन । अ येऽ प भ वतारोऽ ते योऽ प भयमेव नः ।। २ ।। शाङ् गक बोले—हम कसी तरह यह नह समझ सकते क बाज चूहेको उठा ले गया। उस बलम सरे चूहे भी तो हो सकते ह; हमारे लये तो उनसे भी भय ही है ।। २ ।। संशयो व राग छे द ् ं वायो नवतनम् । मृ युन बलवा स यो बले या ा संशयः ।। ३ ।। आग यहाँतक आयेगी, इसम संदेह है; य क वायुके वेगसे अ नका सरी ओर पलट जाना भी दे खा गया है। परंतु बलम तो उसके भीतर रहनेवाले जीव से हमारी मृ यु होनेम कोई संशय ही नह है ।। ३ ।। नःसंशयात् संश यतो मृ युमात व श यते । चर खे वं यथा यायं पु ाना य स शोभनान् ।। ४ ।। माँ! संशयर हत मृ युसे संशययु मृ यु अ छ है ( य क उसम बच जानेक भी आशा होती है); अतः तुम आकाशम उड़ जाओ। तु ह फर (धमानुकूल री तसे) सु दर पु क ा त हो जायगी ।। ४ ।। ज रतोवाच अहं वेगेन तं या तम ा ं पततां वरम् । बलादाखुं समादाय येनं पु ा महाबलम् ।। ५ ।। तं पत तं महावेगात् व रता पृ तोऽ वगाम् । आ शषोऽ य यु ाना हरतो मू षकं बलात् ।। ६ ।। ज रताने कहा—ब चो! जब प य म े महाबली बाज बलसे चूहेको लेकर वेगपूवक उड़ा जा रहा था, उस समय महान् वेगसे उड़नेवाले उस बाजके पीछे म भी बड़ी ती ग तसे गयी और बलसे चूहेको ले जानेके कारण उसे आशीवाद दे ती ई बोली — ।। ५-६ ।। ो ो े



यो नो े ारमादाय येनराज धाव स । भव वं दवमा थाय नर म ो हर मयः ।। ७ ।। ‘ येनराज! तुम मेरे श ुको लेकर उड़े जा रहे हो, इस लये वगम जानेपर तु हारा शरीर सोनेका हो जाय और तु हारे कोई श ु न रह जाय’ ।। ७ ।। स यदा भ त तेन येनेनाखुः पत णा । तदाहं तमनु ा य युपायां पुनगृहम् ।। ८ ।। जब उस प वर बाजने चूहेको खा लया, तब म उसक आ ा लेकर पुनः घर लौट आयी ।। ८ ।। वश वं बलं पु ा व धा ना त वो भयम् । येनेन मम प य या त आखुमहा मना ।। ९ ।। अतः ब चो! तुमलोग व ासपूवक बलम घुसो। वहाँ तु हारे लये भय नह है। महान् बाजने मेरी आँख के सामने ही चूहेका अपहरण कया था ।। ९ ।। शाङ् गका ऊचुः न वहे तं मातः येनेनाखुं कथंचन । अ व ाय न श यामः वे ु ं ववरं भुवः ।। १० ।। शाङ् गका बोले—माँ! बाजने चूहेको पकड़ लया, इसको हम नह जानते और जाने बना हम इस बलम कभी वेश नह कर सकते ।। १० ।। ज रतोवाच अहं तम भजाना म तं येनेन मू षकम् । ना त वोऽ भयं पु ाः यतां वचनं मम ।। ११ ।। ज रताने कहा—बेटो! म जानती ँ, बाजने अव य चूहेको पकड़ लया। तुमलोग मेरी बात मानो। इस बलम तु ह कोई भय नह है ।। ११ ।। शाङ् गका ऊचुः न वं मयोपचारेण मो येथा भया नः । समाकुलेषु ानेषु न बु कृतमेव तत् ।। १२ ।। शाङ् गका बोले—माँ! तुम झूठे बहाने बनाकर हम भयसे छु ड़ानेक चे ा न करो। सं द ध काय म वृ होना बु मानीका काम नह है ।। १२ ।। न चोपकृतम मा भन चा मान् वे थ ये वयम् । पी माना बभ य मान् का सती के वयं तव ।। १३ ।। हमने तु हारा कोई उपकार नह कया है और हम पहले कौन थे, इस बातको भी तुम नह जानत । फर तुम य क सहकर हमारी र ा करना चाहती हो? तुम हमारी कौन हो और हम तु हारे कौन ह? ।। १३ ।। त णी दशनीया स समथा भतुरेषणे । अनुग छ प त मातः पु ाना य स शोभनान् ।। १४ ।। ँ









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माँ! अभी तु हारी त ण अव था है, तुम दशनीय सु दरी हो और प तके अ वेषणम समथ भी हो। अतः प तका ही अनुसरण करो। तु ह फर सु दर पु मल जायँगे ।। १४ ।। वयम नं समा व य लोकाना याम शोभनान् । अथा मान् न दहेद नराया वं पुनरेव नः ।। १५ ।। हम आगम जलकर उ म लोक ा त करगे और य द अ नने हम नह जलाया तो तुम फर हमारे पास चली आना ।। १५ ।।

वैश पायन उवाच एवमु ा ततः शा पु ानु सृ य खा डवे । जगाम व रता दे शं ेमम नेरनामयम् ।। १६ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! ब च के ऐसा कहनेपर शाङ् ग उ ह खा डववनम छोड़कर तुरंत ऐसे थानम चली गयी, जहाँ आगसे कुशलपूवक बना कसी क के बच जानेक स भावना थी ।। १६ ।। तत ती णा चर यागात् व रतो ह वाहनः । य शा ा बभूवु ते म दपाल य पु काः ।। १७ ।। तदन तर तीखी लपट वाले अ नदे व तुरंत वहाँ आ प ँचे, जहाँ म दपालके पु शाङ् गक प ी मौजूद थे ।। १७ ।। तत तं व लतं ् वा वलनं ते वहंगमाः । ज रता र ततो वा यं ावयामास पावकम् ।। १८ ।। तब उस जलती ई आगको दे खकर वे प ी आपसम वातालाप करने लगे। उनमसे ज रता रने अ नदे वको यह बात सुनायी ।। १८ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण मयदशनपव ण शा कोपा याने शद धक शततमोऽ यायः ।। २३० ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत मयदशनपवम शाङ् गकोपा यान वषयक दो सौ तीसवाँ अ याय पूरा आ ।। २३० ।।

एक शद धक शततमोऽ यायः शा क के तवनसे स होकर अ नदे वका उ ह अभय दे ना ज रता र वाच पुरतः कृ काल य धीमा ाग त पू षः । स कृ कालं स ा य थां नैवै त क ह चत् ।। १ ।। ज रता र बोला—बु मान् पु ष संकटकाल आनेके पहले ही सजग हो जाता है, वह संकटका समय आ जानेपर कभी थत नह होता ।। १ ।। य तु कृ मनु ा तं वचेता नावबु यते । स कृ काले थतो न ेयो व दते महत् ।। २ ।। जो मूढ़ च जीव आनेवाले संकटको नह जानता, वह संकटके समय थत होनेके कारण महान् क याणसे वं चत रह जाता है ।। २ ।। सा रसृ क उवाच धीर वम स मेधावी ाणकृ मदं च नः । ा ः शूरो बनां ह भव येको न संशयः ।। ३ ।। सा रसृ कने कहा—भैया! तुम धीर और बु मान् हो और हमारे लये यह ाणसंकटका समय है (अतः इससे तु ह हमारी र ा कर सकते हो); य क ब त म कोई एक ही बु मान् और शूरवीर होता है, इसम संशय नह है ।। ३ ।। त ब म उवाच ये तातो भव त वै ये ो मु च त कृ तः । ये े जाना त कनीयान् क क र य त ।। ४ ।। त ब म बोला—बड़ा भाई पताके तु य है, बड़ा भाई ही संकटसे छु ड़ाता है। य द बड़ा भाई ही आनेवाले भय और उससे बचनेके उपायको न जाने तो छोटा भाई या करेगा? ।। ४ ।। ोण उवाच हर यरेता व रतो वल ाया त नः यम् । स त ज ाननः ू रो ले लहानो वसप त ।। ५ ।। ोणने कहा—यह जा व यमान अ न हमारे घ सलेक ओर ती वेगसे आ रहा है। इसके मुखम सात ज ाएँ ह और यह ू र अ न सम त वृ को चाटता आ सब ओर फैल रहा है ।। ५ ।। वैश पायन उवाच े



एवं स भा य तेऽ यो यं म दपाल य पु काः । तु ु वुः यता भू वा यथा नं शृणु पा थव ।। ६ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! इस कार आपसम बात करके म दपालके वे पु एका च हो अ नदे वक तु त करने लगे; वह तु त सुनो ।। ६ ।। ज रता र वाच आ मा स वायो वलन शरीरम स वी धाम् । यो नराप ते शु ं यो न वम स चा भसः ।। ७ ।। ज रता रने कहा—अ नदे व! आप वायुके आ म व प और वन प तय के शरीर ह। तृण-लता आ दक यो न पृ वी और जल तु हारे वीय ह, जलक यो न भी तु ह हो ।। ७ ।। ऊ व चाध सप त पृ तः पा त तथा । अ चष ते महावीय र मयः स वतुयथा ।। ८ ।। महावीय! आपक वालाएँ सूयक करण के समान ऊपर-नीचे, आगे-पीछे तथा अगल-बगल सब ओर फैल रही ह ।। ८ ।। सा रसृ क उवाच माता ण ा पतरं न वः प ा जाता नैव नो धूमकेतो । न न ाता व ते वै वद यत माद मां ा ह बालां वम ने ।। ९ ।। सा रसृ क बोला—धूममयी वजासे सुशो भत अ नदे व! हमारी माता चली गयी, पताका भी हम पता नह है और हमारे अभी पंखतक नह नकले ह। हमारा आपके सवा सरा कोई र क नह है; अतः आप ही हम बालक क र ा कर ।। ९ ।। यद ने ते शवं पं ये च ते स त हेतयः । तेन नः प रपा ह वमा ान् वै शरणै षणः ।। १० ।। अ ने! आपका जो क याणमय व प है तथा आपक जो सात वालाएँ ह, उन सबके ारा आप शरणम आनेक इ छावाले हम आत ा णय क र ा क जये ।। १० ।। वमेवैक तपसे जातवेदो ना य त ता व ते गोषु दे व । ऋषीन मान् बालकान् पालय व परेणा मान् े ह वै ह वाह ।। ११ ।। जातवेदा! एकमा आप ही सव तपते ह। दे व! सूयक करण म तपनेवाला पु ष भी आपसे भ नह है। ह वाहन! हम बालक ऋ ष ह; हमारी र ा क जये। हमसे र चले जाइये ।। ११ ।। त ब म उवाच सवम ने वमेवैक व य सव मदं जगत् ।

वं धारय स भूता न भुवनं वं बभ ष च ।। १२ ।। त ब म ने कहा—अ ने! एकमा आप ही सब कुछ ह, यह स पूण जगत् आपम ही त त है। आप ही ा णय का पालन और जगत्को धारण करते ह ।। १२ ।। वम नह वाह वं वमेव परमं ह वः । मनी षण वां जान त ब धा चैकधा प च ।। १३ ।। आप ही अ न, आप ही ह का वहन करनेवाले और आप ही उ म ह व य ह। मनीषी पु ष आपको ही अनेक और एक पम थत जानते ह ।। १३ ।। सृ ् वा लोकां ी नमान् ह वाह काले ा ते पच स पुनः स म ः । वं सव य भुवन य सू तवमेवा ने भव स पुनः त ा ।। १४ ।। ह वाह! आप इन तीन लोक क सृ करके लयकाल आनेपर पुनः व लत हो इन सबका संहार कर दे ते ह। अतः अ ने! आप स पूण जगत्के उ प थान ह और आप ही इसके लय थान भी ह ।। १४ ।।

ोण उवाच वम ं ा ण भभु म तभूतो जग पते । न य वृ ः पच स व य सव त तम् ।। १५ ।। ोण बोला—जग पते! आप ही शरीरके भीतर रहकर ा णय ारा खाये ए अ को सदा उ त होकर पचाते ह। स पूण व आपम ही त त है ।। १५ ।। सूय भू वा र म भजातवेदो भूमेर भो भू मजातान् रसां । व ानादाय पुन सृ य काले ् वा वृ ा भावयसीह शु ।। १६ ।। शु लवणवाले सव अ नदे व! आप ही सूय होकर अपनी करण ारा पृ वीसे जलको और स पूण पा थव रस को हण करते ह तथा पुनः समय आनेपर आव यकता दे खकर वषाके ारा इस पृ वीपर जल पम उन सब रस को तुत कर दे ते ह ।। १६ ।। व एताः पुनः शु वी ध ह रत छदाः । जाय ते पु क र य सुभ महोद धः ।। १७ ।। उ वलवणवाले अ ने! फर आपसे ही हरे-हरे प वाले वन प त उ प होते ह और आपसे ही पोख रयाँ तथा क याणमय महासागर पूण होते ह ।। १७ ।। इदं वै स त मांशो व ण य परायणम् । शव ाता भवा माकं मा मान वनाशय ।। १८ ।। च ड करण वाले अ नदे व! हमारा यह शरीर प घर रसने या धप त व णदे वका आल बन है। आप आज शीतल एवं क याणमय बनकर हमारे र क होइये; हम न न क जये ।। १८ ।। ो



प ा लो हत ीव कृ णव मन् ताशन । परेण े ह मु चा मान् सागर य गृहा नव ।। १९ ।। पगल ने तथा लो हत ीवावाले ताशन! आप कृ णव मा ह। समु तटवत गृह क भाँ त हम भी छोड़ द जये। रसे ही नकल जाइये ।। १९ ।। वैश पायन उवाच एवमु ो जातवेदा ोणेन वा दना । ोणमाह तीता मा म दपाल त या ।। २० ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! वाद ोणके ारा इस कार ाथना क जानेपर स च ए अ नने म दपालसे क ई त ाका मरण करके ोणसे कहा ।। २० ।। अ न वाच ऋ ष ण वम स वै तद् ा तं वया । ई सतं ते क र या म न च ते व ते भयम् ।। २१ ।। अ न बोले—जान पड़ता है, तुम ोण ऋ ष हो; य क तुमने उस का ही तपादन कया है। म तु हारा अभी स क ँ गा, तु ह कोई भय नह है ।। २१ ।। म दपालेन वै यूयं मम पूव नवे दताः । वजयेः पु कान् म ं दहन् दाव म त म ह ।। २२ ।। म दपाल मु नने पहले ही मुझसे तुमलोग के वषयम नवेदन कया था क ‘आप खा डववनका दाह करते समय मेरे पु को बचा द जयेगा’ ।। २२ ।। त य तद् वचनं ोण वया य चेह भा षतम् । उभयं मे गरीय तु ू ह क करवा ण ते । भृशं ीतोऽ म भ ं ते न् तो ेण स म ।। २३ ।। ोण! तु हारे पताका यह वचन और तुमने यहाँ जो कुछ कहा है, वह भी मेरे लये गौरवक व तु है। बोलो, तु हारी और कौन-सी इ छा पूण क ँ ? न्! साधु शरोमणे! तु हारा क याण हो। तु हारे इस तो से म ब त स ँ ।। २३ ।। ोण उवाच इमे माजारकाः शु न यमु े जय त नः । एतान् कु व द धां वं ताशन सबा धवान् ।। २४ ।। ोणने कहा—शु ल व प अ ने! ये बलाव हम त दन उ न करते रहते ह। ताशन! आप इ ह ब धु-बा धव स हत भ म कर डा लये ।। २४ ।। वैश पायन उवाच तथा तत् कृतवान नर यनु ाय शाङ् गकान् । ददाह खा डवं दावं स म ो जनमेजय ।। २५ ।। ै

















वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! शा क क अनुम तसे अ नदे वने वैसा ही कया और व लत होकर वे स पूण खा डववनको जलाने लगे ।। २५ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण मयदशनपव ण शा कोपा याने एक शद धक शततमोऽ यायः ।। २३१ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत मयदशनपवम शा कोपा यान वषयक दो सौ इकतीसवाँ अ याय पूरा आ ।। २३१ ।।

ा शद धक शततमोऽ यायः म दपालका अपने बाल-ब च से मलना वैश पायन उवाच म दपालोऽ प कौर च तयामास पु कान् । उ वा प च स त मांशुं नैव शमा धग छ त ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! म दपाल भी अपने पु क च ताम पड़े थे। य प वे (उनक र ाके लये) अ नदे वसे ाथना कर चुके थे, तो भी उ ह शा त नह मलती थी ।। १ ।। स त यमानः पु ाथ ल पता मदम वीत् । कथं नु श ाः शरणे ल पते मम पु काः ।। २ ।। पु के लये संत त होते ए वे ल पतासे बोले—‘ल पते! मेरे ब चे अपने घ सलेम कैसे बच सकगे? ।। २ ।। वधमाने तवहे वाते चाशु वाय त । असमथा वमो ाय भ व य त ममा मजाः ।। ३ ।। ‘जब अ नका वेग बढ़े गा और हवा ती ग तसे चलने लगेगी, उस समय मेरे ब चे अपनेको आगसे बचानेम असमथ हो जायँगे ।। ३ ।। कथं वश ा ाणाय माता तेषां तप वनी । भ व य त ह शोकाता पु ाणमप यती ।। ४ ।। ‘उनक तप वनी माता वयं असमथ है, वह बेचारी उनक र ा कैसे करेगी? अपने ब च के बचनेका कोई उपाय न दे खकर वह शोकसे आतुर हो जायगी ।। ४ ।। कथमुयनेऽश ान् पतने च ममा मजान् । संत यमाना ब धा वाशमाना धावती ।। ५ ।। ‘मेरे ब चे उड़ने और पंख फड़फड़ानेम असमथ ह। उ ह उस दशाम दे खकर संत त हो बार-बार ची कार करती और दौड़ती ई ज रता कस दशाम होगी? ।। ५ ।। ज रता रः कथं पु ः सा रसृ कः कथं च मे । त ब म ः कथं ोणः कथं सा च तप वनी ।। ६ ।। ‘मेरा बेटा ज रता र कैसे होगा, सा रसृ कक या अव था होगी, त ब म और ोण कैसे ह गे? तथा वह तप वनी ज रता कस हालतम होगी?’ ।। ६ ।। लाल यमानं तमृ ष म दपालं तथा वने । ल पता युवाचेदं सासूय मव भारत ।। ७ ।। भारत! म दपाल मु न जब इस कार वनम (अपनी ी एवं ब च के लये) वलाप कर रहे थे, उस समय ल पताने ई यापूवक कहा— ।। ७ ।। न ते पु े ववे ा त यानृषीनु वान स । े

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तेज वनो वीयव तो न तेषां वलनाद् भयम् ।। ८ ।। ‘तु ह पु को दे खनेक च ता नह है। तुमने जन ऋ षय के नाम लये ह, वे तेज वी और श शाली ह; उ ह अ नसे त नक भी भय नह है ।। ८ ।। वया नौ ते परीता वयं ह मम सं नधौ । त ुतं तथा चे त वलनेन महा मना ।। ९ ।। ‘मेरे पास ही तुमने अ नदे वको वयं अपने पु स पे थे और उन महा मा अ नने भी उनक र ाके लये त ा क थी ।। ९ ।। लोकपालो न तां वाचमु वा मया क र य त । सम ं ब धुकृ ये न तेन ते व थ मानसम् ।। १० ।। ‘वे लोकपाल ह। जब बात दे चुके ह, तब उसे झूठ नह करगे। अतः व थ पु ष! तु हारा मन अपने ब च क र ा प ब धुजनो चत कत के पालनेके लये उ सुक नह है ।। १० ।। तामेव तु ममा म ां च तयन् प रत यसे । ुवं म य न ते नेहो यथा त यां पुराभवत् ।। ११ ।। ‘तुम तो मेरी मन उसी ज रता सौतके लये च ता करते ए संत त हो रहे हो। पहले ज रताम तु हारा जैसा नेह था वैसा अव य ही मुझपर नह है ।। ११ ।। न ह प वता या यं नः नेहेन सु जने । पी मान उप ु ं श े ना मा कथंचन ।। १२ ।। ‘जो सहायक से स प और श शाली है’ वह मुझ-जैसे अपने सु द् पर नेह नह रखे और अपने आ मीय जनको पी ड़त दे खकर उसक उपे ा करे, यह कसी कार उ चत नह कहा जा सकता ।। १२ ।। ग छ वं ज रतामेव यदथ प रत यसे । च र या यहम येका यथा कुपु षा ता ।। १३ ।। ‘अतः अब तुम उस ज रताके ही पास जाओ, जसके लये तुम इतने संत त हो रहे हो। म भी पु षके आ यम पड़ी ई ीक भाँ त अकेली ही वच ँ गी’ ।। १३ ।। म दपाल उवाच नाहमेवं चरे लोके यथा वम भम यसे । अप यहेतो वचरे त च कृ गतं मम ।। १४ ।। म दपालने कहा—अरी! तू जैसा समझती है, उस भावसे म इस संसारम नह वचरता ँ। मेरा वचरना तो केवल संतानके लये होता है। मेरी वह संतान ही संकटम पड़ी ई है ।। १४ ।। भूतं ह वा च भा थ योऽवल बेत् स म दधीः । अवम येत तं लोको यथे छ स तथा कु ।। १५ ।। जो पैदा ए ब च का प र याग कर भ व यम होनेवाल का भरोसा करता है, वह मूख है; सब लोग उसका अनादर करते ह; तेरी जैसी इ छा हो, वैसा कर ।। १५ ।। ो



एष ह वल नल लहानो मही हान् । आ व ने द संतापं जनय य शवं मम ।। १६ ।। यह व लत आग सारे वृ को अपनी लपट म लपेटती अमंगलसूचक संताप उ प कर रही है ।। १६ ।।

ई मेरे उ



दयम

वैश पायन उवाच त माद् दे शाद त ा ते वलने ज रता पुनः । जगाम पु कानेव व रता पु गृ नी ।। १७ ।। वैश पायनजी कहते ह—जब अ नदे व उस थानसे हट गये, तब पु क लालसा रखनेवाली ज रता पुनः शी तापूवक अपने ब च के पास गयी ।। १७ ।। सा तान् कुश लनः सवान् वमु ा ातवेदसः । रो यमाणान् द शे वने पु ान् नरामयान् ।। १८ ।। उसने दे खा, सभी ब चे आगसे बच गये ह और सकुशल ह। उ ह कुछ भी क नह आ है और वे वनम जोर-जोरसे चहक रहे ह ।। १८ ।। अ ू ण मुमुचे तेषां दशनात् सा पुनः पुनः । एकैक येन तान् सवान् ोशमाना वप त ।। १९ ।। उ ह बार-बार दे खकर वह ने से आँसू बहाने लगी और बारी-बारीसे पुकारकर वह सभी ब च से मली ।। १९ ।। ततोऽ यग छत् सहसा म दपालोऽ प भारत । अथ ते सव एवैनं ना यन दं तदा सुताः ।। २० ।। भारत! इतनेम ही म दपाल मु न भी सहसा वहाँ आ प ँचे; कतु उन ब च मसे कसीने भी उस समय उनका अ भन दन नह कया ।। २० ।। लाल यमानमेकैकं ज रतां च पुनः पुनः । न चैवोचु तदा क चत् तमृ ष सा वसाधु वा ।। २१ ।। वे एक-एक ब चेसे बोलते और ज रताको भी बारबार बुलाते, परंतु वे लोग उन मु नसे भला या बुरा कुछ भी नह बोले ।। २१ ।। म दपाल उवाच ये ः सुत ते कतमः कतम त य चानुजः । म यमः कतम ैव कनीयान् कतम ते ।। २२ ।। म दपालने पूछा— ये! तु हारा ये पु कौन है, उससे छोटा कौन है, मझला कौन है और सबसे छोटा कौन है? ।। २२ ।। एवं ुव तं ःखात क मां न तभाषसे । कृतवान प ह यागं नैव शा त मतो लभे ।। २३ ।। म इस कार ःखसे आतुर होकर तुमसे पूछ रहा ँ, तुम मुझे उ र य नह दे ती? य प मने तु ह याग दया था, तो भी यहाँसे जानेपर मुझे शा त नह मलती थी ।। २३ ।। ो

ज रतोवाच क नु ये ेन ते काय कमन तरजेन ते । क वा म यमजातेन क क न ेन वा पुनः ।। २४ ।। ज रता बोली—तु ह ये पु से या काम है, उसके बादवालेसे भी या लेना है, मझले अथवा छोटे पु से भी तु ह या योजन है? ।। २४ ।। यां वं मां सवतो हीनामु सृ या स गतः पुरा । तामेव ल पतां ग छ त ण चा हा सनीम् ।। २५ ।। पहले तुम मुझे सबसे हीन समझकर यागकर जसके पास चले गये थे, उसी मनोहर मुसकानवाली त णी ल पताके पास जाओ ।। २५ ।। म दपाल उवाच न ीणां व ते क चदमु पु षा तरात् । साप नकमृते लोके ना यदथ वनाशनम् ।। २६ ।। म दपालने कहा—परलोकम य के लये परपु षसे स ब ध और सौ तयाडाहको छोड़कर सरा कोई दोष उनके परमाथका नाश करनेवाला नह है ।। २६ ।। वैरा नद पनं चैव भृशमु े गका र च । सु ता चा प क याणी सवभूतेषु व ुता ।। २७ ।। अ धती महा मानं व स ं पयशङ् कत । वशु भावम य तं सदा य हते रतम् ।। २८ ।। स त षम यगं धीरमवमेने च तं मु नम् । अप यानेन सा तेन धूमा णसम भा । ल याल या ना भ पा न म मव प य त ।। २९ ।। यह सौ तयाडाह वैरक आगको भड़कानेवाला और अ य त उ े गम डालनेवाला है। सम त ा णय म व यात और उ म तका पालन करनेवाली क याणमयी अ धतीने उन महा मा व स पर भी शंका क थी, जनका दय अ य त वशु है, जो सदा उनके य और हतम लगे रहते ह और स त षम डलके म यम वराजमान होते ह। ऐसे धैयवान् मु नका भी उ ह ने सौ तयाडाहके कारण तर कार कया था। इस अशुभ च तनके कारण उनक अंगका त धूम और अ णके समान (मंद) हो गयी। वे कभी ल य और कभी अल य रहकर छ वेषम मानो कोई न म दे खा करती ह ।। २७—२९ ।। अप यहेतोः स ा तं तथा वम प मा मह । इ मेवं गते ह वं सा तथैवा वतते ।। ३० ।। म पु से मलनेके लये आया ँ, तो भी तुम मेरा तर कार करती हो और इस कार अभी व तुक ा त हो जानेपर जैसे तुम मेरे साथ संदेहयु वहार करती हो, वैसा ही ल पता भी करती है ।। ३० ।। न ह भाय त व ासः कायः पुंसा कथंचन । न ह कायमनु या त नारी पु वती सती ।। ३१ ।। े ी ै ऐ ो ी ी ी

यह मेरी भाया है, ऐसा मानकर पु षको कसी कार भी ीपर व ास नह करना चा हये; य क नारी पु वती हो जानेपर प तसेवा आ द अपने कत पर यान नह दे ती ।। ३१ ।। वैश पायन उवाच तत ते सव एवैनं पु ाः स यगुपासते । स च ताना मजान् सवाना ास यतुमु तः ।। ३२ ।। वैश पायनजी कहते ह—तदन तर वे सभी पु यथो चत पसे अपने पताके पास आ बैठे और वे मु न भी उन सब पु को आ ासन दे नेके लये उ त ए ।। ३२ ।। इत

ीमहाभारते आ दपव ण मयदशनपव ण शा कोपा याने ा शद धक शततमोऽ यायः ।। २३२ ।। इस कार ीमहाभारत आ दपवके अ तगत मयदशनपवम शा कोपा यान वषयक दो सौ ब ीसवाँ अ याय पूरा आ ।। २३२ ।।



ंशद धक शततमोऽ यायः

इ दे वका ीकृ ण और अजुनको वरदान तथा ीकृ ण, अजुन और मयासुरका अ नसे वदा लेकर एक साथ यमुनातटपर बैठना म दपाल उवाच यु माकमपवगाथ व तो वलनो मया । अ नना च तथे येवं त ातं महा मना ।। १ ।। म दपाल बोले—मने अ नदे वसे यह ाथना क थी क वे तुमलोग को दाहसे मु कर द। महा मा अ नने भी वैसा करनेक त ा कर ली थी ।। १ ।। अ नेवचनमा ाय मातुधम ता च वः । भवतां च परं वीय पूव नाह महागतः ।। २ ।। अ नके दये ए वचनको मरण करके, तु हारी माताक धम ताको जानकर और तुमलोग म भी महान् श है, इस बातको समझकर ही म पहले यहाँ नह आया था ।। २ ।। न संतापो ह वः कायः पु का द मां त । ऋषीन् वेद ताशोऽ प तद् व दतं च वः ।। ३ ।। ब चो! तु ह मेरे त अपने दयम संताप नह करना चा हये। तुमलोग ऋ ष हो, यह बात अ नदे व भी जानते ह; य क तु ह त वका बोध हो चुका है ।। ३ ।। वैश पायन उवाच एवमा ा सतान् पु ान् भायामादाय स जः । म दपाल ततो दे शाद यं दे शं जगाम ह ।। ४ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! इस कार आ त कये ए अपने पु और प नी ज रताको साथ ले ज म दपाल उस दे शसे सरे दे शम चले गये ।। ४ ।। भगवान प त मांशुः स म ः खा डवं ततः । ददाह सह कृ णा यां जनय गतो हतम् ।। ५ ।। उधर व लत ए च ड वाला वाले भगवान् ताशनने भी जगत्का हत करनेके लये भगवान् ीकृ ण और अजुनक सहायतासे खा डववनको जला दया ।। ५ ।। वसामेदोवहाः कु या त पी वा च पावकः । जगाम परमां तृ तं दशयामास चाजुनम् ।। ६ ।। वहाँ म जा और मेदक कई नहर बह चल और उन सबको पीकर अ नदे व पूण तृ त हो गये। त प ात् उ ह ने अजुनको दशन दया ।। ६ ।। ो



ततोऽ त र ाद् भगवानवतीय पुरंदरः । म द्गणैवृतः पाथ केशवं चेदम वीत् ।। ७ ।। उसी समय भगवान् इ म द्गण एवं अ य दे वता के साथ आकाशसे उतरे और अजुन तथा ीकृ णसे इस कार बोले— ।। ७ ।। कृतं युवा यां कमदममरैर प करम् । वरं वृणीतं तु ोऽ म लभं पु षे वह ।। ८ ।। ‘आप दोन ने यह ऐसा काय कया है, जो दे वता के लये भी कर है। म ब त स ँ। इस लोकम मनु य के लये जो लभ हो ऐसा कोई वर आप दोन माँग ल’ ।। ८ ।। पाथ तु वरयामास श ाद ा ण सवशः । दातुं त च श तु कालं च े महा ु तः ।। ९ ।। तब अजुनने इ से सब कारके द ा माँगे। महातेज वी इ ने उन अ को दे नेके लये समय न त कर दया ।। ९ ।।

यदा स ो भगवान् महादे वो भ व य त । तदा तु यं दा या म पा डवा ा ण सवशः ।। १० ।। (वे बोले—) ‘पा डु न दन! जब तुमपर भगवान् महादे व स ह गे, तब म तु ह सब कारके अ -श दान क ँ गा ।। १० ।। अहमेव च तं कालं वे या म कु न दन । तपसा महता चा प दा या म भवतोऽ यहम् ।। ११ ।। आ नेया न च सवा ण वाय ा न च सवशः । ी

मद या न च सवा ण ही य स धनंजय ।। १२ ।। ‘कु न दन! वह समय कब आनेवाला है, इसे भी म जानता ँ। तु हारे महान् तपसे स होकर म तु ह स पूण आ नेय तथा सब कारके वाय अ दान क ँ गा। धनंजय! उसी समय तुम मेरे स पूण अ को हण करोगे’ ।। ११-१२ ।। वासुदेवोऽ प ज ाह ी त पाथन शा तीम् । ददौ सुरप त ैव वरं कृ णाय धीमते ।। १३ ।। भगवान् ीकृ णने भी यह वर माँगा क अजुनके साथ मेरा ेम नर तर बढ़ता रहे। इ ने परम बु मान् ीकृ णको वह वर दे दया ।। १३ ।। एवं द वा वर ता यां सह दे वैम प तः । ताशनमनु ा य जगाम दवं भुः ।। १४ ।। इस कार दोन को वर दे कर अ नदे वक आ ा ले दे वता स हत दे वराज भगवान् इ वगलोकको चले गये ।। १४ ।। पावक तदा दावं द वा समृगप णम् । अहा न प च चैकं च वरराम सुत पतः ।। १५ ।। अ नदे व भी मृग और प य स हत स पूण वनको जलाकर पूण तृ त हो छः दन तक व ाम करते रहे ।। १५ ।। ज वा मांसा न पी वा च मेदां स धरा ण च । यु ः परमया ी या तावुवाचा युताजुनौ ।। १६ ।। जीव-ज तु के मांस खाकर उनके मेद तथा र पीकर अ य त स हो अ नने ीकृ ण और अजुनसे कहा— ।। १६ ।। युवा यां पु षा या यां त पतोऽ म यथासुखम् । अनुजाना म वां वीरौ चरतं य वा छतम् ।। १७ ।। ‘वीरो! आप दोन पु षर न ने मुझे आन दपूवक तृ त कर दया। अब म आपको अनुम त दे ता ँ, जहाँ आपक इ छा हो, जाइये’ ।। १७ ।। एवं तौ समनु ातौ पावकेन महा मना । अजुनो वासुदेव दानव मय तथा ।। १८ ।। प र य ततः सव योऽ प भरतषभ । रमणीये नद कूले स हताः समुपा वशन् ।। १९ ।। भरत े ! महा मा अ नदे वके इस कार आ ा दे नेपर अजुन, ीकृ ण तथा मयासुर सबने उनक प र मा क । फर तीन ही यमुनानद के रमणीय तटपर जाकर एक साथ बैठे ।। १८-१९ ।। इत

ीमहाभारते शतसाह यां सं हतायां वैया स यामा दपव ण मयदशनपव ण वर दाने य ंशद धक शततमोऽ यायः ।। २३३ ।। इस कार ीमहाभारतम ास नमत एक लाख ोक क सं हताके अंतगत आ दपवके मयदशनपवम इ वरदान वषयक दो सौ ततीसवाँ अ याय पूरा आ ।। २३३ ।।

( आ दपव स पूणम्)



ीपरमा मने नमः

ीमहाभारतम् सभापव सभा

यापव

थमोऽ यायः भगवान्

ीकृ णक आ ाके अनुसार मयासुर ारा सभाभवन बनानेक तैयारी

नारायणं नम कृ य नरं चैव नरो मम् । दे व सर वत ासं ततो जयमुद रयेत् ।। १ ।। अ तयामी नारायण व प भगवान् ीकृ ण, उनके न यसखा-नर व प नर े अजुन, (उनक लीला कट करनेवाली) भगवती सर वती और (उन लीला का संकलन करनेवाले) मह ष वेद ासको नम कार करके जय (महाभारत)-का पाठ करना चा हये ।। १ ।।

वैश पायन उवाच ततोऽ वी मयः पाथ वासुदेव य सं नधौ । ा लः णया वाचा पूज य वा पुनः पुनः ।। २ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! खा डवदाहके अन तर मयासुरने भगवान् ीकृ णके पास बैठे ए अजुनक बारंबार शंसा करके हाथ जोड़कर मधुर वाणीम उनसे कहा ।। २ ।।

मय उवाच अ मात् कृ णात् सुसंरधात् पावका च दध तः । वया ातोऽ म कौ तेय ू ह क करवा ण ते ।। ३ ।। मयासुर बोला—कु तीन दन! आपने अ य त ोधम भरे ए इन भगवान् ीकृ णसे तथा जला डालनेक इ छावाले अ नदे वसे भी मेरी र ा क है। अतः बताइये, म (इस उपकारके बदले) आपक या सेवा क ँ ? ।। ३ ।। अजुन उवाच कृतमेव वया सव व त ग छ महासुर । ी तमान् भव मे न यं ी तम तो वयं च ते ।। ४ ।। अजुनने कहा—असुरराज! तुमने इस कार कृत ता कट करके मेरे उपकारका मानो सारा बदला चुका दया। तु हारा क याण हो। अब तुम जाओ। मुझपर ेम बनाये रखना। हम भी तु हारे त सदा नेहका भाव रखगे ।। ४ ।। मय उवाच यु मेतत् व य वभो यथाऽऽ थ पु षषभ । ी तपूवमहं क चत् कतु म छा म भारत ।। ५ ।। मयासुर बोला— भो! पु षोतम! आपने जो बात कही है, वह आप-जैसे महापु षके अनु प ही है; परंतु भारत! म बड़े ेमसे आपके लये कुछ करना चाहता ँ ।। ५ ।। ै

अहं ह व कमा वै दानवानां महाक वः । सोऽहं वै व कृते कतु क च द छा म पा डव ।। ६ ।। पा डु न दन! म दानव का व कमा एवं श प- व ाका महान् प डत ँ। अतः म आपके लये कसी व तुका नमाण करना चाहता ँ ।। ६ ।। (दानवानां पुरा पाथ ासादा ह मया क ृ ताः । र या ण सुखगभा ण भोगाा न सह शः ।। उ ाना न च र या ण सरां स व वधा न च । व च ा ण च श ा ण रथाः कामगमा तथा ।। नगरा ण वशाला न सा ाकारतोरणैः । वाहना न च मु या न व च ा ण सह शः ।। बला न रमणीया न सुखयु ा न वै भृशम् । एतत् कृतं मया सव त मा द छा म फा गुन ।।) कु तीन दन! पूवकालम मने दानव के ब त-से महल बनाये ह। इसके सवा दे खनेम रमणीय, सुख और भोगसाधन से स प अनेक कारके रमणीय उ ान , भाँ त-भाँ तके सरोवर , व च अ -श , इ छानुसार चलनेवाले रथ , अट् टा लका , चहारद वा रय और बड़े-बड़े फाटक स हत वशाल नगर , हजार अ त एवं े वाहन तथा ब त-सी मनोहर एवं अ य त सुखदायक सुरंग का मने नमाण कया है। अतः अजुन! म आपके लये भी कुछ बनाना चाहता ँ।

अजुन उवाच ाणकृ ाद् वमु ं वमा मानं म यसे मया । एवं गते न श या म क चत् कार यतुं वया ।। ७ ।। अजुन बोले—मयासुर! तुम मेरे ारा अपनेको ाणसंकटसे मु आ मानते हो और इसी लये कुछ करना चाहते हो। ऐसी दशाम म तुमसे कोई काम नह करा सकूँगा ।। ७ ।। न चा प तव संक पं मोघ म छा म दानव । कृ ण य यतां क चत् तथा तकृतं म य ।। ८ ।। दानव! साथ ही म यह भी नह चाहता क तु हारा यह संक प थ हो। इस लये तुम भगवान् ीकृ णका कोई काय कर दो, इससे मेरे त तु हारा कत पूण हो जायगा ।। ८ ।। चो दतो वासुदेव तु मयेन भरतषभ । मुत मव संद यौ कमयं चो ता म त ।। ९ ।। भरत े ! तब मयासुरने भगवान् ीकृ णसे काम बतानेका अनुरोध कया। उसके ेरणा करनेपर भगवान् ीकृ णने अनुमानतः दो घड़ीतक वचार कया क ‘इसे कौन-सा काम बताया जाय?’ ।। ९ ।। ततो व च य मनसा लोकनाथः जाप तः । चोदयामास तं कृ णः सभा वै यता म त ।। १० ।। ो

य द वं कतुकामोऽ स यं श पवतां वर । धमराज य दै तेय या शी मह म यसे ।। ११ ।। तदन तर मन-ही-मन कुछ सोचकर जापालक लोकनाथ भगवान् ीकृ णने उससे कहा—‘ श पय म े दै यराज मय! य द तुम मेरा कोई य काय करना चाहते हो तो तुम धमराज यु ध रके लये जैसा ठ क समझो, वैसा एक सभाभवन बना दो ।। १०-११ ।। यां कृतां नानुकुव त मानवाः े य व मताः । मनु यलोके सकले ता श कु वै सभाम् ।। १२ ।। ‘वह सभाभवन ऐसा बनाओ, जसके बन जानेपर स पूण मनु यलोकके मानव दे खकर व मत हो जायँ एवं कोई उसक नकल न कर सके ।। १२ ।। य द ान भ ायान् प येम ह कृतां वया । आसुरान् मानुषां ैव सभां तां कु वै मय ।। १३ ।। ‘मयासुर! तुम ऐसे सभाभवनका नमाण करो, जसम हम तु हारे ारा अं कत दे वता, असुर और मनु य क श प नपुणताका दशन कर सक’ ।। १३ ।। वैश पायन उवाच तगृ तु त ा यं स ो मय तदा । वमान तमां च े पा डव य शुभां सभाम् ।। १४ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! भगवान् ीकृ णक उस आ ाको शरोधाय करके मयासुर ब त स आ और उसने उस समय पा डु पु यु ध रके लये वमान-जैसी सु दर सभाभवन बनानेका न य कया ।। १४ ।। ततः कृ ण पाथ धमराजे यु ध रे । सवमेतत् समावे दशयामासतुमयम् ।। १५ ।। त प ात् भगवान् ीकृ ण और अजुनने धमराज यु ध रको ये सब बात बताकर मयासुरको उनसे मलाया ।। १५ ।। त मै यु ध रः पूजां यथाहमकरोत् तदा । स तु तां तज ाह मयः स कृ य भारत ।। १६ ।। भारत! राजा यु ध रने उस समय मयासुरका यथायो य स कार कया और मयासुरने भी बड़े आदरके साथ उनका वह स कार हण कया ।। १६ ।। स पूवदे वच रतं तदा त वशा पते । कथयामास दै तेयः पा डु पु ेषु भारत ।। १७ ।। जनमेजय! दै यराज मयने उस समय वहाँ पा डव को दै य के अ त च र सुनाये ।। १७ ।। स कालं कं चदा य व कमा व च य तु । सभां च मे कतु पा डवानां महा मनाम् ।। १८ ।। ँ











कुछ दन तक वहाँ आरामसे रहकर दै य के व कमा मयासुरने सोच- वचारकर महा मा पा डव के लये सभाभवन बनानेक तैयारी क ।। १८ ।। अ भ ायेण पाथानां कृ ण य च महा मनः । पु येऽह न महातेजाः कृतकौतुकम लः ।। १९ ।। तप य वा ज े ान् पायसेन सह शः । धनं ब वधं द वा ते य एव च वीयवान् ।। २० ।। सवतुगुणस प ां द पां मनोरमाम् । दश क कुसह ां तां मापयामास सवतः ।। २१ ।। उसने कु तीपु तथा महा मा ीकृ णक चके अनुसार सभाभवन बनानेका न य कया। कसी प व त थको (शुभ मु तम) मंगलानु ान, व तवाचन आ द करके महातेज वी और परा मी मयने हजार े ा ण को खीर खलाकर तृ त कया तथा उ ह अनेक कारका धन दान कया। इसके बाद उसने सभाभवन बनानेके लये सम त ऋतु के गुण से स प द पवाली मनोरम सब ओरसे दस हजार हाथक (अथात् दस हजार हाथ चौड़ी और दस हजार हाथ ल बी) धरती नपवायी ।। १९—२१ ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण सभा

यापव ण सभा थान नणये थमोऽ यायः ।। १ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत सभा यापवम सभा थान नणय वषयक पहला अ याय पूरा आ ।। १ ।। (दा णा य अ धक पाठक े ४ ोक मलाकर कुल २५ ोक ह)

तीयोऽ यायः ीकृ णक

ाराकाया ा

वैश पायन उवाच उ ष वा खा डव थे सुखवासं जनादनः । पाथः ी तसमायु ै ः पूजनाह ऽ भपू जतः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! परम पूजनीय भगवान् ीकृ ण खा डव थम सुखपूवक रहकर ेमी पा डव के ारा न य पू जत होते रहे ।। १ ।। गमनाय म त च े पतुदशनलालसः । धमराजमथाम य पृथां च पृथुलोचनः ।। २ ।। तदन तर पताके दशनके लये उ सुक होकर वशाल ने वाले ीकृ णने धमराज यु ध र और कु तीक आ ा लेकर वहाँसे ारका जानेका वचार कया ।। २ ।। वव दे चरणौ मू ना जग ः पतृ वसुः । स तया मू युपा ातः प र व केशवः ।। ३ ।। जग केशवने अपनी बुआ कु तीके चरण म म तक रखकर णाम कया और कु तीने उनका म तक सूँघकर उ ह दयसे लगा लया ।। ३ ।। ददशान तरं कृ णो भ गन वां महायशाः । तामुपे य षीकेशः ी या बा पसम वतः ।। ४ ।। त प ात् महायश वी षीकेश अपनी ब हन सुभ ासे मले। उसके पास जानेपर नेहवश उनके ने म आँसू भर आये ।। ४ ।। अय तयं हतं वा यं लघु यु मनु रम् । उवाच भगवान् भ ां सुभ ां भ भा षणीम् ।। ५ ।। भगवान्ने मंगलमय वचन बोलनेवाली क याणमयी सुभ ासे ब त थोड़े, स य, योजनपूण, हतकारी, यु यु एवं अका वचन ारा अपने जानेक आव यकता बतायी (और उसे ढाढ़स बँधाया) ।। ५ ।। तया वजनगामी न ा वतो वचना न सः । स पू जत ा यसकृ छरसा चा भवा दतः ।। ६ ।। सुभ ाने बार-बार भाईक पूजा करके म तक झुकाकर उ ह णाम कया और मातापता आ द वजन से कहनेके लये संदेश दये ।। ६ ।। तामनु ाय वा णयः तन च भा मनीम् । ददशान तरं कृ णां धौ यं चा प जनादनः ।। ७ ।। भा मनी सुभ ाको स करके उससे जानेक अनुम त लेकर वृ णकुलभूषण जनादन ौपद तथा धौ यमु नसे मले ।। ७ ।। वव दे च यथा यायं धौ यं पु षस मः । ौ

ौपद सा व य वा च आम य च जनाद नः ।। ८ ।। ातॄन यगमद् व ान् पाथन स हतो बली । ातृ भः प च भः कृ णो वृतः श इवामरैः ।। ९ ।। पु षो म ीकृ णने यथो चत री तसे धौ यजीको णाम कया और ौपद को सा वना दे उसक अनुम त लेकर वे अजुनके साथ अ य भाइय के पास गये। पाँच भाई पा डव से घरे ए व ान् एवं बलवान् ीकृ ण दे वता से घरे ए इ क भाँ त सुशो भत ए ।। ८-९ ।। या ाकाल य यो या न कमा ण ग ड वजः । कतुकामः शु चभू वा नातवान् समलंकृतः ।। १० ।। तदन तर ग ड वज ीकृ णने या ाकालो चत कम करनेके लये प व हो नान करके अलंकार धारण कया ।। १० ।। अचयामास दे वां जां य पु वः । मा यजा यनम कारैग धै चावचैर प ।। ११ ।। फर उन य े ने चुर पु प-माला, जप, नम कार और च दन आ द अनेक कारके सुग धत पदाथ ारा दे वता और ा ण क पूजा क ।। ११ ।। स कृ वा सवकाया ण त थे त थुषां वरः । उपे य स य े ो बा क ाद् व नगतः ।। १२ ।। त त पु ष म े य वर ीकृ ण या ाकालो चत सब काय पूण करके थत ए और भीतरसे चलकर बाहरी ोढ़ को पार करते ए राजभवनसे बाहर नकले ।। १२ ।। व तवा याहतो व ान् द धपा फला तैः । वसु दाय च ततः द णमथाकरोत् ।। १३ ।। उस समय सुयो य ा ण ने व तवाचन कया और भगवान्ने दहीसे भरे पा , अ त, फल आ दके साथ उन ा ण को धन दे कर उन सबक प र मा क ।। १३ ।। का चनं रथमा थाय ता यकेतनमाशुगम् । गदाच ा सशा ा ैरायुधैरावृतं शुभम् ।। १४ ।। तथाव यथ न े मुत च गुणा वते । ययौ पु डरीका ः शै यसु ीववाहनः ।। १५ ।। इसके बाद ग ड च त वजासे सुशो भत और गदा, च , खड् ग एवं शाङ् गधनुष आ द आयुध से स प शै य, सु ीव आ द घोड़ से यु शुभ सुवणमय रथपर आ ढ़ हो कमलनयन ीकृ णने उ म त थ, शुभ न एवं गुणयु मु तम या ा आर भ क ।। १४-१५ ।। अ वा रोह चा येनं े णा राजा यु ध रः । अपा य चा य य तारं दा कं य तृस मम् ।। १६ ।। उस समय ीकृ णका रथ हाँकनेवाले सार थय म े दा कको हटाकर उसके थानम राजा यु ध र ेमपूवक भगवान्के साथ रथपर जा बैठे ।। १६ ।। ी

अभीषून् स ज ाह वयं कु प त तदा । उपा ाजुन ा प चामर जनं सतम् ।। १७ ।। मद डं बृहा व धाव द णम् । कु राज यु ध रने घोड़ क बागडोर वयं अपने हाथम ले ली। फर महाबा अजुन भी रथपर बैठ गये और सुवणमय द डसे वभू षत ेत चँवर और जन लेकर दा हनी ओरसे उनके ऊपर डु लाने लगे ।। १७ ।।

तथैव भीमसेनोऽ प यमा यां स हतो बली ।। १८ ।। पृ तोऽनुययौ कृ णमृ व पौरजनैः सह । (छ ं शतशलाक ं च द मा योपशो भतम् । वैडूयम णद डं च चामीकर वभू षतम् ।। दधार तरसा भीम छ ं त छा ध वने । उपा रथं शी ं चामर जने सते ।। नकुलः सहदे व धूयमानौ जनादनम् ।) स तथा ातृ भः सवः केशवः परवीरहा ।। १९ ।। अ वीयमानः शुशुभे श यै रव गु ः यैः ।















इसी कार नकुल-सहदे वस हत बलवान् भीमसेन भी ऋ वज और पुरवा सय के साथ भगवान् ीकृ णके पीछे -पीछे चल रहे थे। उ ह ने वेगपूवक आगे बढ़कर शाङ् गधनुष धारण करनेवाले भगवान् ीकृ णके ऊपर द माला से सुशो भत एवं सौ शलाका ( त लय )-से यु वण वभू षत छ लगाया। उस छ म वै य-म णका डंडा लगा आ था। नकुल और सहदे व भी शी तापूवक रथपर आ ढ़ हो ेत चँवर और जन डु लाते ए जनादनक सेवा करने लगे। उस समय अपने सम त फुफेरे भाइय से संयु श ुदमन केशव ऐसी शोभा पाने लगे, मानो अपने य श य के साथ गु या ा कर रहे ह ।। १८-१९ ।। पाथमाम य गो व दः प र व य सुपी डतम् ।। २० ।। यु ध रं पूज य वा भीमसेनं यमौ तथा । प र व ो भृशं तै तु यमा याम भवा दतः ।। २१ ।। ीकृ णके बछोहसे अजुनको बड़ी था हो रही थी। गो व दने उ ह दयसे लगाकर उनसे जानेक अनुम त ली। फर उ ह ने यु ध र और भीमसेनका चरण पश कया। यु ध र, भीम और अजुनने भगवान्को छातीसे लगा लया और नकुल-सहदे वने उनके चरण म णाम कया (तब भगवान्ने भी उन दोन को छातीसे लगा लया) ।। २०-२१ ।। योजनाधमथो ग वा कृ णः परपुरंजयः । यु ध रं समाम य नवत वे त भारत ।। २२ ।। भारत! श ु वजयी ीकृ णने दो कोस र चले जानेपर यु ध रसे जानेक अनुम त ले यह अनुरोध कया क ‘अब आप लौट जाइये’ ।। २२ ।। ततोऽ भवा गो व दः पादौ ज ाह धम वत् । उ था य धमराज तु मू युपा ाय केशवम् ।। २३ ।। पा डवो यादव े ं कृ णं कमललोचनम् । ग यता म यनु ा य धमराजो यु ध रः ।। २४ ।। तदन तर धम गो व दने णाम करके यु ध रके पैर पकड़ लये। फर पा डु कुमार धमराज यु ध रने यादव े कमलनयन केशवको दोन हाथ से उठाकर उनका म तक सूँघा और ‘जाओ’ कहकर उ ह जानेक आ ा द ।। २३-२४ ।। तत तैः सं वदं कृ वा यथाव मधुसूदनः । नव य च तथा कृ ात् पा डवान् सपदानुगान् ।। २५ ।। वां पुर ययौ ो यथा श ोऽमरावतीम् । लोचनैरनुज मु ते तमा पथात् तदा ।। २६ ।। त प ात् उनके साथ पुनः आनेका न त वादा करके भगवान् मधुसूदनने पैदल आये ए नाग रक -स हत पा डव को बड़ी क ठनाईसे लौटाया और स तापूवक अपनी पुरी ारकाको गये, मानो इ अमरावतीको जा रहे ह । जबतक वे दखायी दये, तबतक पा डव अपने ने ारा उनका अनुसरण करते रहे ।। २५-२६ ।। मनो भरनुज मु ते कृ णं ी तसम वयात् । े







अतृ तमनसामेव तेषां केशवदशने ।। २७ ।। म तदधे शौ र ुषां यदशनः । अकामा एव पाथा ते गो व दगतमानसाः ।। २८ ।। अ य त ेमके कारण उनका मन ीकृ णके साथ ही चला गया। अभी केशवके दशनसे पा डव का मन तृ त नह आ था, तभी नयना भराम भगवान् ीकृ ण सहसा अ य हो गये। पा डव क ीकृ णदशन वषयक कामना अधूरी ही रह गयी। उन सबका मन भगवान् गो व दके साथ ही चला गया ।। २७-२८ ।। नवृ योपययु तण वं पुरं पु षषभाः । य दनेनाथ कृ णोऽ प व रतं ारकामगात् ।। २९ ।। अब वे पु ष े पा डव मागसे लौटकर तुरंत अपने नगरक ओर चल पड़े। उधर ीकृ ण भी रथके ारा शी ही ारका जा प ँचे ।। २९ ।। सा वतेन च वीरेण पृ तो या यना तदा । दा केण च सूतेन स हतो दे वक सुतः । स गतो ारकां व णुग मा नव वेगवान् ।। ३० ।। सा वतवंशी वीर सा य क भगवान् ीकृ णके पीछे बैठकर या ा कर रहे थे और सार थ दा क आगे था। उन दोन के साथ दे वक न दन भगवान् ीकृ ण वेगशाली ग डक भाँ त ारकाम प ँच गये ।। ३० ।। वैश पायन उवाच नवृ य धमराज तु सह ातृ भर युतः । सु प रवृतो राजा ववेश पुरो मम् ।। ३१ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! अपनी मयादासे युत न होनेवाले धमराज यु ध र भाइय -स हत मागसे लौटकर सु द के साथ अपने े नगरके भीतर व ए ।। ३१ ।। वसृ य सु दः सवान् ातॄन् पु ां धमराट् । मुमोद पु ष ा ो ौप ा स हतो नृप ।। ३२ ।। राजन! वहाँ पु ष सह धमराजने सम त सु द , भाइय और पु को वदा करके राजमहलम ौपद के साथ बैठकर स ताका अनुभव कया ।। ३२ ।। केशवोऽ प मुदा यु ः ववेश पुरो मम् । पू यमानो य े ै सेनमुखै तथा ।। ३३ ।। इधर भगवान् केशव भी उ सेन आ द े यादव से स मा नत हो स तापूवक ारकापुरीके भीतर गये ।। ३३ ।। आ कं पतरं वृ ं मातरं च यश वनीम् । अ भवा बलं चैव थतः कमललोचनः ।। ३४ ।। कमलनयन ीकृ णने राजा उ सेन, बूढ़े पता वसुदेव और यश वनी माता दे वक को णाम करके बलरामजीके चरण म म तक झुकाया ।। ३४ ।। े

ु नसा ब नशठां ा द े णं गदं तथा । अ न ं च भानुं च प र व य जनादनः ।। ३५ ।। स वृ ै र यनु ातो म या भवनं ययौ । त प ात् जनादनने ु न, सा ब, नशठ, चा दे ण, गद, अ न तथा भानु आ दको नेहपूवक दयसे लगाया और बड़े-बूढ़ क आ ा लेकर मणीजीके महलम वेश कया ।। ३५ ।। मयोऽ प स महाभागः सवर न वभू षताम् । व धवत् क पयामास सभां धमसुताय वै ।। ३६ ।। इधर महाभाग मयने भी धमपु यु ध रके लये व धपूवक स पूण र न से वभू षत सभाम डप बनानेक मन-ही-मन क पना क ।। ३६ ।। इ त ीमहाभारते सभापव ण सभा यापव ण भगव ाने तीयोऽ यायः ।। २ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत सभा यापवम भगवान् ीकृ णक ारकाया ा वषयक सरा अ याय पूरा आ ।। २ ।।

तृतीयोऽ यायः मयासुरका भीमसेन और अजुनको गदा और शंख लाकर दे ना तथा उसके ारा अ त सभाका नमाण वैश पायन उवाच अथा वी मयः पाथमजुनं जयतां वरम् । आपृ छे वां ग म या म पुनरे या म चा यहम् ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर मयासुरने वजयी वीर म े अजुनसे कहा—‘भारत! म आपक आ ा चाहता ँ। म एक जगह जाऊँगा और फर शी ही लौट आऊँगा ।। १ ।। ( व ुतां षु लोक े षु पाथ द ां सभां तव । ा णनां व मयकर तव ी त वव धनीम् । पा डवानां च सवषां क र या म धनंजय ।।) ‘कु तीकुमार धनंजय! म आपके लये तीन लोक म व यात एक द सभाभवनका नमाण क ँ गा। जो सम त ा णय को आ यम डालनेवाली तथा आपके साथ ही सम त पा डव क स ता बढ़ानेवाली होगी। उ रेण तु कैलासं मैनाकं पवतं त । यय माणेषु पुरा दानवेषु मया कृतम् ।। २ ।। च ं म णमयं भा डं र यं ब सरः त । सभायां स यसंध य यदासीद् वृषपवणः ।। ३ ।। ‘पूवकालम जब दै यलोग कैलास पवतसे उ र दशाम थत मैनाक पवतपर य करना चाहते थे, उस समय मने एक व च एवं रमणीय म णमय भा ड तैयार कया था, जो ब सरके समीप स य त राजा वृषपवाक सभाम रखा गया था ।। २-३ ।। आग म या म तद् गृ य द त त भारत । ततः सभां क र या म पा डव य यश वनीम् ।। ४ ।। ‘भारत! य द वह अबतक वह होगा तो उसे लेकर पुनः लौट आऊँगा। फर उसीसे पा डु न दन यु ध रके यशको बढ़ानेवाली सभा तैयार क ँ गा ।। ४ ।। मनः ा दन च ां सवर न वभू षताम् । अ त ब सर यु ा गदा च कु न दन ।। ५ ।। ‘जो सब कारके र न से वभू षत, व च एवं मनको आ ाद दान करनेवाली होगी। कु न दन! ब सरम एक भयंकर गदा भी है ।। ५ ।। न हता भावया येवं रा ा ह वा रणे रपून् । सुवण ब भ ा गुव भारसहा ढा ।। ६ ।। ‘







‘म समझता ँ, राजा वृषपवाने यु म श ु का संहार करके वह गदा वह रख द थी। वह गदा बड़ी भारी है, वशेष भार या आघात सहन करनेम समथ एवं सु ढ़ है। उसम सोनेक फू लयाँ लगी ई ह, जनसे वह बड़ी व च दखायी दे ती है ।। ६ ।। सा वै शतसह य स मता श ुघा तनी । अनु पा च भीम य गा डीवं भवतो यथा ।। ७ ।। ‘श ु का संहार करनेवाली वह गदा अकेली ही एक लाख गदा के बराबर है। जैसे गा डीव धनुष आपके यो य है, वैसे ही वह गदा भीमसेनके यो य होगी ।। ७ ।। वा ण महाशङ् खो दे वद ः सुघोषवान् । सवमेतत् दा या म भवते ना संशयः ।। ८ ।। ‘वहाँ व णदे वका दे वद नामक महान् शंख भी है, जो बड़ी भारी आवाज करनेवाला है। ये सब व तुएँ लाकर म आपको भट क ँ गा, इसम संशय नह है’ ।। ८ ।। इ यु वा सोऽसुरः पाथ ागुद च दशं गतः । अथो रेण कैलासा मैनाकं पवतं त ।। ९ ।। अजुनसे ऐसा कहकर मयासुर पूव र दशा (ईशानकोण)-म कैलाससे उ र मैनाक पवतके पास गया ।। ९ ।। हर यशृ ः सुमहान् महाम णमयो ग रः । र यं ब सरो नाम य राजा भगीरथः ।। १० ।। ु ं भागीरथ ग ामुवास ब लाः समाः । ‘वह हर यशृंग नामक महाम णमय वशाल पवत है, जहाँ रमणीय ब सर नामक तीथ है। वह राजा भगीरथने भागीरथी गंगाका दशन करनेके लये ब त वष तक (तप या करते ए) नवास कया था ।। १० ।। य े ं सवभूतानामी रेण महा मना ।। ११ ।। आ ताः तवो मु याः शतं भरतस म । य यूपा म णमया ै या ा प हर मयाः ।। १२ ।। भरत े ! वह स पूण भूत के वामी महा मा जाप तने मु य-मु य सौ य का अनु ान कया था, जनम सोनेक वे दयाँ और म णय के खंभे बने थे ।। ११-१२ ।। शोभाथ व हता त न तु ा ततः कृताः । अ े ् वा स गतः स सह ा ः शचीप तः ।। १३ ।। यह सब शोभाके लये बनाया गया था, शा ीय व ध अथवा स ा तके अनुसार नह । सह ने वाले शचीप त इ ने भी वह य करके स ा त क थी ।। १३ ।। य भूतप तः सृ ् वा सवान् लोकान् सनातनः । उपा यते त मतेजाः थतो भूतैः सह शः ।। १४ ।। स पूण लोक के ा और सम त ा णय के अ धप त उ तेज वी सनातन दे वता महादे वजी वह रहकर सह भूत से से वत होते ह ।। १४ ।। नरनारायणौ ा यमः थाणु प चमः । े



उपासते य स ं सह युगपयये ।। १५ ।। एक हजार युग बीतनेपर वह नर-नारायण ऋ ष, ा, यमराज और पाँचव महादे वजी य का अनु ान करते ह ।। १५ ।। य े ं वासुदेवेन स ैवषगणान् बन् । धानेन सततं धमस तप ये ।। १६ ।। यह वही थान है, जहाँ भगवान् वासुदेवने धमपर पराक र ाके लये ब त वष तक नरंतर ापूवक य कया था ।। १६ ।। सुवणमा लनो यूपा ै या ा य तभा वराः । ददौ य सह ा ण युता न च केशवः ।। १७ ।। उस य म वणमाला से म डत खंभे और अ य त चमक ली वे दयाँ बनी थ । भगवान् केशवने उस य म सह -लाख व तुए ँ दानम द थ ।। १७ ।। त ग वा स ज ाह गदां शङ् खं च भारत । फा टकं च सभा ं यदासीद् वृषपवणः ।। १८ ।। भारत! तदन तर मयासुरने वहाँ जाकर वह गदा, शंख और सभाभवन बनानेके लये फ टक म णमय ले लया, जो पहले वृषपवाके अ धकारम था ।। १८ ।। ककरैः सह र ो भयदर महद् धनम् । तदगृ ा मय त ग वा सव महासुरः ।। १९ ।। ब त-से ककर तथा रा स जस महान् धनक र ा करते थे, वहाँ जाकर महान् असुर मयने वह सब ले लया ।। १९ ।। तदा य च तां च े सोऽसुरोऽ तमां सभाम् । व ुतां षु लोकेषु द ां म णमय शुभाम् ।। २० ।। वे सब व तुएँ लाकर उस असुरने वह अनुपम सभाभवन तैयार क , जो तीन लोक म व यात, द , म णमयी और शुभ एवं सु दर थी ।। २० ।। गदां च भीमसेनाय वरां ददौ तदा । दे वद ं चाजुनाय शङ् ख वरमु मम् ।। २१ ।। उसने उस समय वह े गदा भीमसेनको और दे वद नामक उ म शंख अजुनको भट कर दया ।। २१ ।। य य शङ् ख य नादे न भूता न चक परे । सभा च सा महाराज शातकु भमय मा ।। २२ ।। उस शंखक आवाज सुनकर सम त ाणी काँप उठते थे। महाराज! उस सभाम सुवणमय वृ शोभा पाते थे ।। २२ ।। दश क कुसह ा ण सम तादायताभवत् । यथा व े यथाक य सोम य च यथा सभा ।। २३ ।। ाजमाना तथा यथ दधार परमं वपुः । ओ



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वह सब ओरसे दस हजार हाथ व तृत थी (अथात् उसक लंबाई और चौड़ाई भी दसदस हजार हाथ थी)। जैसे अ न, सूय और च माक सभाभवन का शत होती है, उसी कार अ य त उ ा सत होनेवाली उस सभाने बड़ा मनोहर प धारण कया ।। २३ ।। अ भ नतीव भया भामक य भा वराम् ।। २४ ।। वह अपनी भा ारा सूयदे वक तेजोमयी भासे ट कर लेती थी ।। २४ ।। बभौ वलमानेव द ा द ेन वचसा । नवमेघ तीकाशा दवमावृ य व ता । आयता वपुला र या वपा मा वगत लमा ।। २५ ।। वह द सभाभवन अपने अलौ कक तेजसे नरंतर द त-सी जान पड़ती थी। उसक ऊँचाई इतनी अ धक थी क नूतन मेघ क घटाके समान वह आकाशको घेरकर खड़ी थी। उसका व तार भी ब त था। वह रमणीय सभाभवन पाप-तापका नाश करनेवाली थी ।। २५ ।। उ म स प ा र न ाकारतोरणा । ब च ा ब धना सुकृता व कमणा ।। २६ ।। उ मो म से उसका नमाण कया गया था। उसके परकोटे और फाटक र न से बने ए थे। उसम अनेक कारके अद्भुत च अं कत थे। वह ब त धनसे पूण थी। दानव के व कमा मयासुरने उस सभाभवनको ब त सु दरतासे बनाया था ।। २६ ।। न दाशाह सुधमा वा णो वाथ ता शी । सभा पेण स प ा यां च े म तमान् मयः ।। २७ ।। बु मान् मयने जस सभाका नमाण कया था, उसके समान सु दर यादव क सुधमा सभा अथवा ाजीक सभा भी नह थी ।। २७ ।। तां म त मयेनो ा र त च वह त च । सभाम ौ सह ा ण ककरा नाम रा साः ।। २८ ।। मयासुरक आ ाके अनुसार आठ हजार ककर नामक रा स उस सभाक र ा करते और उसे एक थानसे सरे थानपर उठाकर ले जाते थे ।। २८ ।। अ त र चरा घोरा महाकाया महाबलाः । र ा ाः प ला ा शु कणाः हा रणः ।। २९ ।। वे रा स भयंकर आकृ तवाले, आकाशम वचरने-वाले, वशालकाय और महाबली थे। उनक आँख लाल और पगलवणक थ तथा कान सीपीके समान जान पड़ते थे। वे सब-के-सब हार करनेम कुशल थे ।। २९ ।। त यां सभायां न लन चकारा तमां मयः । वै यप वततां म णनालमया बुजाम् ।। ३० ।। मयासुरने उस सभाभवनके भीतर एक बड़ी सु दर पु क रणी बना रखी थी, जसक कह तुलना नह थी। उसम इ नीलम णमय कमलके प े फैले ए थे। उन कमल के मृणाल म णय के बने थे ।। ३० ।।

पसौग धकवत नाना जगणायुताम् । पु पतैः पङ् कजै ां कूमम यै का चनैः । च फ टकसोपानां न पङ् कस ललां शुभाम् ।। ३१ ।। उसम प रागम णमय कमल क मनोहर सुगंध छा रही थी। अनेक कारके प ी उसम रहते थे। खले ए कमल और सुनहली मछ लय तथा कछु से उसक व च शोभा हो रही थी। उस पोखरीम उतरनेके लये फ टकम णक व च सी ढ़याँ बनी थ । उसम पंकर हत व छ जल भरा आ था। वह दे खनेम बड़ी सु दर थी ।। ३१ ।। म दा नलसमुदधू ् तां मु ा ब भरा चताम् । महाम ण शलाप ब पय तवे दकाम् ।। ३२ ।। म द वायुसे उ े लत हो जब जलक बूँद उछलकर कमलके प पर बखर जाती थ , उस समय वह सारी पु क रणी मौ क ब से ा त जान पड़ती थी। उसके चार ओरके घाट पर बड़ी-बड़ी म णय क चौकोर शलाख ड से प क वे दयाँ बनायी गयी थ ।। ३२ ।। म णर न चतां तां तु के चद ये य पा थवाः । ् वा प ना यजान त तेऽ ानात् पत युत ।। ३३ ।। म णय तथा र न से ा त होनेके कारण कुछ राजालोग उस पु क रणीके पास आकर और उसे दे खकर भी उसक यथाथतापर व ास नह करते थे और मसे उसे थल समझकर उसम गर पड़ते थे ।। ३३ ।। तां सभाम भतो न यं पु पव तो महा माः । आसन् नाना वधा लोलाः शीत छाया मनोरमाः ।। ३४ ।। े ओ े े े े े े ो

उस सभाभवनके सब ओर अनेक कारके बड़े-बड़े वृ लहलहा रहे थे, जो सदा फूल से भरे रहते थे। उनक छाया बड़ी शीतल थी। वे मनोरम वृ सदा हवाके झ क से हलते रहते थे ।। ३४ ।। कानना न सुग धी न पु क र य सवशः । हंसकार डवोपेता वाकोपशो भताः ।। ३५ ।। केवल वृ ही नह ; उस भवनके चार ओर अनेक सुग धत वन, उपवन और बाव लयाँ भी थ , जो हंस, कार डव तथा च वाक आ द प य से यु होनेके कारण बड़ी शोभा पा रही थ ।। ३५ ।। जलजानां च पानां थलजानां च सवशः । मा तो ग धमादाय पा डवान् म नषेवते ।। ३६ ।। वहाँ जल और थलम होनेवाले कमल क सुग ध लेकर वायु सदा पा डव क सेवा कया करती थी ।। ३६ ।। ई श तां सभां क ृ वा मासैः प रचतुदशैः । न तां धमराजाय मयो राजन् यवेदयत् ।। ३७ ।। मयासुरने पूरे चौदह महीन म इस कारक उस अद्भुत सभाभवनका नमाण कया था। राजन्! जब वह बनकर तैयार हो गयी, तब उसने धमराजको इस बातक सूचना द ।। ३७ ।। इ त ीमहाभारते सभापव ण सभा यापव ण सभा नमाणे तृतीयोऽ यायः ।। ३ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत सभा यापवम सभा नमाण वषयक तीसरा अ याय पूरा आ ।। ३ ।। (दा णा य अ धक पाठक े १ ोक मलाकर कुल ३८ ोक ह)

चतुथ ऽ यायः मय ारा न मत सभाभवनम धमराज यु ध रका वेश तथा सभाम थत मह षय और राजा आ दका वणन (वैश पायन उवाच तां तु कृ वा सभां े ां मय ाजुनम वीत् । वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! उस े सभाभवनका नमाण करके मयासुरने अजुनसे कहा। मय उवाच एषा सभा स सा चन् वजो भ व य त ।। मयासुर बोला—स सा चन्! यह है आपक सभा, इसम एक वजा होगी। भूतानां च महावीय वजा े कङ् करो गणः । तव व फारघोषेण मेघव न द य त ।। उसके अ भागम भूत का महापरा मी ककर नामक गण नवास करेगा। जस समय तु हारे धनुषक टं कार व न होगी, उस समय उस व नके साथ ये भूत भी मेघ के समान गजना करगे। अयं ह सूयसंकाशो वलन य रथो मः । इमे च द वजाः ेता वीयव तो हयो माः ।। मायामयः कृतो ेष वजो वानरल णः । अस जमानो वृ ेषु धूमकेतु रवो तः ।। यह जो सूयके समान तेज वी अ नदे वका उ म रथ है और ये जो ेत वणवाले द एवं बलवान् अ र न ह तथा यह जो वानर च से उपल त वज है, इन सबका नमाण मायासे ही आ है। यह वज वृ म कह अटकता नह है तथा अ नक लपट के समान सदा ऊपरक ओर ही उठा रहता है। ब वण ह ल येत वजं वानरल णम् । वजो कटं नवमं यु े य स व तम् ।। आपका यह वानर च त वज अनेक रंगका दखायी दे ता है। आप यु म इस उ कट एवं थर वजको कभी झुकता नह दे खगे। इ यु वाऽऽ लङ् य बीभ सुं वसृ ः ययौ मयः ।) ऐसा कहकर मयासुरने अजुनको दयसे लगा लया और उनसे वदा लेकर (अभी थानको) चला गया। वैश पायन उवाच ततः वेशनं त यां च े राजा यु ध रः । ो

अयुतं भोज य वा तु ा णानां नरा धपः ।। १ ।। सा येन पायसेनैव मधुना म तेन च । कृसरेणाथ जीव या ह व येण च सवशः ।। २ ।। भ य कारै व वधैः फलै ा प तथा नृप । चो यै व वधै राजन् पेयै ब व तरैः ।। ३ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर राजा यु ध रने घी और मधु मलायी ई खीर, खचड़ी, जीव तकाके साग, सब कारके ह व य, भाँ त-भाँ तके भ य तथा फल, ईख आ द नाना कारके चो य और ब त अ धक पेय (शबत) आ द साम य - ारा दस हजार ा ण को भोजन कराकर उस सभा-भवनम वेश कया ।। १—३ ।। अहतै ैव वासो भमा यै चावचैर प । तपयामास व े ान् नाना द यः समागतान् ।। ४ ।। उ ह ने नये-नये व और छोटे -बड़े अनेक कारके हार आ दके उपहार दे कर अनेक दशा से आये ए े ा ण को तृ त कया ।। ४ ।। ददौ ते यः सह ा ण गवां येकशः पुनः । पु याहघोष त ासीद् दव पृ गव भारत ।। ५ ।। भारत! त प ात् उ ह ने येक ा णको एक-एक हजार गौएँ द। उस समय वहाँ ा ण के पु याह-वाचनका ग भीर घोष मानो वगलोकतक गूँज उठा ।। ५ ।। वा द ै व वधै द ैग धै चावचैर प । पूज य वा कु े ो दै वता न नवे य च ।। ६ ।। कु े यु ध रने अनेक कारके बाजे तथा भाँ त-भाँ तके द सुग धत पदाथ ारा उस भवनम दे वता क थापना एवं पूजा क । इसके बाद वे उस भवनम व ए ।। ६ ।। त म ला नटा झ लाः सूता वैता लका तथा । उपत थुमहा मानं धमपु ं यु ध रम् ।। ७ ।। वहाँ धमपु महा मा यु ध रक सेवाम कतने ही म ल (बा यु करनेवाले), नट, झ ल (लकु टय से यु करनेवाले), सूत और वैता लक उप थत ए ।। ७ ।। तथा स कृ वा पूजां तां ातृ भः सह पा डवः । त यां सभायां र यायां रेमे श ो यथा द व ।। ८ ।। इस कार पूजनका काय स प करके भाइय स हत पा डु न दन यु ध र वगम इ क भाँ त उस रमणीय सभाम आन दपूवक रहने लगे ।। ८ ।। सभायामृषय त यां पा डवैः सह आसते । आसांच ु नरे ा नानादे शसमागताः ।। ९ ।। उस सभाम ऋ ष तथा व भ दे श से आये ए नरेश पा डव के साथ बैठा करते थे ।। ९ ।। अ सतो दे वलः स यः स पमाली महा शराः । अवावसुः सु म मै ेयः शुनको ब लः ।। १० ।। ो ै

बको दा यः थूल शराः कृ ण ै पायनः शुकः । सुम तुज म नः पैलो ास श या तथा वयम् ।। ११ ।। त रया व य ससुतो लोमहषणः । अ सुहो य धौ य अणीमा ड कौ शकौ ।। १२ ।। दामो णीष ैब ल पणादो घटजानुकः । मौ ायनो वायुभ ः पाराशय सा रकः ।। १३ ।। ब लवाकः सनीवाकः स यपालः कृत मः । जातूकणः शखावां आल बः पा रजातकः ।। १४ ।। पवत महाभागो माक डेयो महामु नः । प व पा णः सावण भालु कगालव तथा ।। १५ ।। जङ् घाब धु रै य कोपवेग तथा भृगुः । ह रब ु कौ ड यो ब ुमाली सनातनः ।। १६ ।। का ीवानौ शज ैव ना चकेतोऽथ गौतमः । पै यो वराहः शुनकः शा ड य महातपाः ।। १७ ।। कु कुरो वेणुजङ् घोऽथ कालापः कठ एव च । मुनयो धम व ांसो धृता मानो जते याः ।। १८ ।। अ सत, दे वल, स य, स पमाली, महा शरा, अवावसु, सु म , मै ेय, शुनक, ब ल, बक, दा य, थूल शरा, कृ ण ै पायन, शुकदे व, ासजीके श य सुम तु, जै म न, पैल तथा हमलोग, त र, या व य, पु स हत लोमहषण, अ सुहो य, धौ य, अणीमा ड , कौ शक, दामो णीष, ैब ल, पणाद, घटजानुक, म जायन, वायुभ , पाराशय, सा रक, ब लवाक, सनीवाक, स यपाल, कृत म, जातूकण, शखावान्, आल ब, पा रजातक, महाभाग पवत, महामु न माक डेय, प व पा ण, सावण, भालु क, गालव, जंघाब धु, रै य, कोपवेग, भृग,ु ह रब ु, कौ ड य, ब ुमाली, सनातन, का ीवान्, औ शज, ना चकेत, गौतम, पगय, वराह, शुनक ( तीय), महातप वी शा ड य, कु कुर, वेणुजंघ, कालाप तथा कठ आ द धम , जता मा और जते य मु न उस सभाम वराजते थे ।। १०— १८ ।। एते चा ये च बहवो वेदवेदा पारगाः । उपासते महा मानं सभायामृ षस माः ।। १९ ।। ये तथा और भी वेद-वेदांग के पारंगत ब त-से मु न े उस सभाम महा मा यु ध रके पास बैठा करते थे ।। १९ ।। कथय तः कथाः पु या धम ाः शुचयोऽमलाः । तथैव य े ा धमराजमुपासते ।। २० ।। वे धम , प व ा मा और नमल मह ष राजा यु ध रको प व कथाएँ सुनाया करते थे। इसी कार य म े नरेश भी वहाँ धमराज यु ध रक उपासना करते थे ।। २० ।। ीमान् महा मा धमा मा मु केतु ववधनः । े ी

सं ाम जद् मुख उ सेन वीयवान् ।। २१ ।। क सेनः तप तः ेमक ापरा जतः । क बोजराजः कमठः क पन महाबलः ।। २२ ।। सततं क पयामास यवनानेक एव यः । बलपौ षस प ान् कृता ान मतौजसः । यथासुरान् कालकेयान् दे वो व धर तथा ।। २३ ।। ीमान् महामना धमा मा मुंजकेतु, ववधन, सं ाम जत्, मुख, परा मी उ सेन, राजा क सेन, अपरा जत ेमक, क बोजराज कमठ और महाबली क पन, जो अकेले ही बल-पौ षस प , अ व ाके ाता तथा अ मततेज वी यवन को सदा उसी कार कँपाते रहते थे, जैसे वध ारी इ ने कालकेय नामक असुर को क पत कया था। (ये सभी नरेश धमराज यु ध रक उपासना करते रहते थे) ।। २१—२३ ।। जटासुरो म काणां च राजा कु तः पु ल द करातराजः । तथाऽऽ वा ौ सह पु क े ण पा ोराजौ च सहा क े ण ।। २४ ।। अ ो व ः सु म शै य ा म कशनः । करातराजः सुमना यवना धप त तथा ।। २५ ।। चाणूरो दे वरात भोजो भीमरथ यः । ुतायुध का ल ो जयसेन मागधः ।। २६ ।। सुकमा चे कतान पु ा म कशनः । केतुमान् वसुदान वैदेहोऽथ कृत णः ।। २७ ।। सुधमा चा न ुतायु महाबलः । अनूपराजो धषः म ज च सुदशनः ।। २८ ।। शशुपालः सहसुतः क षा धप त तथा । वृ णीनां चैव धषाः कुमारा दे व पणः ।। २९ ।। आ को वपृथु ैव गदः सारण एव च । अ ू रः कृतवमा च स यक शनेः सुतः ।। ३० ।। भी मकोऽथाकृ त ैव ुम सेन वीयवान् । केकया महे वासा य सेन सौम कः ।। ३१ ।। केतुमान् वसुमां ैव कृता महाबलः । एते चा ये च बहवः या मु यस मताः ।। ३२ ।। उपासते सभायां म कु तीपु ं यु ध रम् ।





इनके सवा जटासुर, म राज श य, राजा कु तभोज, करातराज पु ल द, अंगराज, वंगराज, पु क, पा , उराज, आ नरेश, अंग, वंग, सु म , श ुसूदन शै य, करातराज सुमना, यवननरेश, चाणूर, दे वरात, भोज, भीमरथ, क लगराज ुतायुध, मगधदे शीय जयसेन, सुकमा, चे कतान, श ुसंहारक पु , केतुमान्, वसुदान, वदे हराज कृत ण, सुधमा, अ न , महाबली ुतायु, धष वीर अनूपराज, म जत्, सुदशन, पु स हत शशुपाल, क षराज द तव , वृ णवं शय के दे व व प धष राजकुमार, आ क, वपृथु, गद, सारण, अ ू र, कृतवमा, श नपु स यक, भी मक, आकृ त, परा मी ुम सेन, महान् धनुधर केकयराजकुमार, सोमक-पौ पद, केतुमान् ( तीय) तथा अ व ाम नपुण महाबली वसुमान्—ये तथा और भी ब त-से धान य उस सभाम कु तीन दन यु ध रक सेवाम बैठते थे ।। २४—३२ ।। अजुनं ये च सं य राजपु ा महाबलाः ।। ३३ ।। अ श त धनुवदं रौरवा जनवाससः । त ैव श ता राजन् कुमारा वृ णन दनाः ।। ३४ ।। जो महाबली राजकुमार अजुनके पास रहकर कृ णमृगचम धारण कये धनुवदक श ा लेते थे (वे भी उस सभाभवनम बैठकर राजा यु ध रक उपासना करते थे)। राजन्! वृ णवंशको आन दत करनेवाले राजकुमार को वह श ा मली थी ।। ३३-३४ ।। रौ मणेय सा ब युयुधान सा य कः । सुधमा चा न शै य नरपु वः ।। ३५ ।। एते चा ये च बहवो राजानः पृ थवीपते । धनंजयसखा चा न यमा ते म तु बु ः ।। ३६ ।। मणीन दन ु न, जा बवतीकुमार सा ब, स यकपु (सा य क) युयुधान, सुधमा, अ न , नर े शै य—ये और सरे भी ब त-से राजा उस सभाम बैठते थे। पृ वीपते! अजुनके सखा तु बु ग धव भी उस सभाम न य वराजमान होते थे ।। ३५-३६ ।। उपासते महा मानमासीनं स त वश तः । च सेनः सहामा यो ग धवा सरस तथा ।। ३७ ।। म ीस हत च सेन आ द स ाईस ग धव और अ सराएँ सभाम बैठे ए महा मा युा ध रक उपासना करती थ ।। ३७ ।। गीतवा द कुशलाः सा यताल वशारदाः । माणेऽथ लये थाने क राः कृत न माः ।। ३८ ।। संचो दता तु बु णा ग धवस हता तदा । गाय त द तानै ते यथा यायं मन वनः । पा डु पु ानृष ैव रमय त उपासते ।। ३९ ।। गाने-बजानेम कुशल, सा य१ और तालके२ वशेष तथा माण, लय और थानक जानकारीके लये वशेष प र म कये ए मन वी क र तु बु क आ ासे वहाँ अ य े











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ग धव के साथ द तान छे ड़ते ए यथो चत री तसे गाते और पा डव तथा मह षय का मनोरंजन करते ए धमराजक उपासना करते थे ।। ३८-३९ ।। त यां सभायामासीनाः सु ताः स यसंगराः । दवीव दे वा ाणं यु ध रमुपासते ।। ४० ।। जैसे दे वतालोग द लोकक सभाम ाजीक उपासना करते ह, उसी कार कतने ही स य त और उ म तका पालन करनेवाले महापु ष उस सभाम बैठकर महाराज यु ध रक आराधना करते थे ।। ४० ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण सभा

यापव ण सभा वेशो नाम चतुथ ऽ यायः ।। ४ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत सभा यापवम सभा वेश नामक चौथा अ याय पूरा आ ।। ४ ।। (दा णा य अ धक पाठक े ५ ोक मलाकर कुल ४५ ोक ह)

१. संगीतम नृ य, गीत और वा क समताको लय अथवा सा य कहते ह; जैसा क अमरकोषका वा य है—‘लयः सा यम्’। २. नृ य या गीतम उसके काल और याका प रमाण, जसे बीच-बीचम हाथपर हाथ मारकर सू चत करते जाते ह, ताल कहलाता है; जैसा क अमरकोषका वचन है—‘तालः काल यामानम्’।

(ल ोकपालसभा यानपव) प चमोऽ यायः नारदजीका यु ध रक सभाम आगमन और क े यु ध रको श ा दे ना

पम

वैश पायन उवाच अथ त ोप व ेषु पा डवेषु महा मसु । मह सु चोप व ेषु ग धवषु च भारत ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! एक दन उस सभाम महा मा पा डव अ या य महापु ष तथा ग धव आ दके साथ बैठे ए थे ।। १ ।। वेदोप नषदां वे ा ऋ षः सुरगणा चतः । इ तहासपुराण ः पुराक प वशेष वत् ।। २ ।। याय वद् धमत व ः षड वदनु मः । ऐ यसंयोगनाना वसमवाय वशारदः ।। ३ ।। व ा ग भो मेधावी मृ तमान् नय वत् क वः । परापर वभाग ः माणकृत न यः ।। ४ ।। प चावयवयु य वा य य गुणदोष वत् । उ रो रव ा च वदतोऽ प बृह पतेः ।। ५ ।। धमकामाथमो ेषु यथावत् कृत न यः । तथा भुवनकोश य सव या य महाम तः ।। ६ ।। य दश लोक य तयगू वमध तथा । सां ययोग वभाग ो न व व सुः सुरासुरान् ।। ७ ।। सं ध व हत व वनुमान वभाग वत् । षा य व धयु सवशा वशारदः ।। ८ ।। यु गा धवसेवी च सव ा तघ तथा । एतै ा यै ब भयु ो गुणगणैमु नः ।। ९ ।। लोकाननुचरन् सवानागमत् तां सभां नृप । नारदः सुमहातेजा ऋ ष भः स हत तदा ।। १० ।। पा रजातेन राजे पवतेन च धीमता । सुमुखेन च सौ येन दे व षर मत ु तः ।। ११ ।। सभा थान् पा डवान् ु ं ीयमाणो मनोजवः । ी



जयाशी भ तु तं व ो धमराजानमाचयत् ।। १२ ।। उसी समय वेद और उप नषद के ाता, ऋ ष, दे वता ारा पू जत, इ तहास-पुराणके मम , पूवक पक बात के वशेष , यायके व ान्, धमके त वको जाननेवाले, श ा, क प, ाकरण, न , छ द और यौ तष—इन छह अंग के प डत म शरोम ण, ऐ य३, संयोगनाना व४ और समवाय के५ ानम वशारद, ग भ व ा, मेधावी, मरणश स प , नी त , कालदश , अपर और पर को वभागपूवक जाननेवाले, माण ारा एक न त स ा तपर प ँचे ए, पंचावयवयु * वा यके गुणदोषको जाननेवाले, बृह प त-जैसे व ाके साथ भी उ र- यु र करनेम समथ, धम, अथ, काम और मो —चार पु षाथ के स ब धम यथाथ न य रखनेवाले तथा इन स पूण चौदह भुवन को ऊपर, नीचे और तरछे सब ओरसे य दे खनेवाले, महाबु मान्, सां य और योगके वभागपूवक ाता, दे वता और असुर म भी नवद (वैरा य) उ प करनेके इ छु क, सं ध और व हके त वको समझनेवाले, अपने और श ुप के बलाबलका अनुमानसे न य करके श ुप के म य आ दको फोड़नेके लये धन आ द बाँटनेके उपयु अवसरका ान रखनेवाले, सं ध (सुलह), व ह (कलह), यान (चढ़ाई करना), आसन (अपने थानपर ही चु पी मारकर बैठे रहना), ै धीभाव (श ु म फूट डालना) और समा य ( कसी बलवान् राजाका आ य हण करना)—राजनी तके इन छह अंग के उपयोगके जानकार, सम त शा के नपुण व ान्, यु और संगीतक कलाम कुशल, सव ोधर हत, इन उपयु गुण के सवा और भी असं य सद्गुण से स प , मननशील, परम का तमान् महातेज वी दे व ष नारद लोक-लोका तर म घूमतेफरते पा रजात, बु मान् पवत तथा सौ य, सुमुख आ द अ य अनेक ऋ षय के साथ सभाम थत पा डव से ेमपूवक मलनेके लये मनके समान वेगसे वहाँ आये और उन षने जयसूचक आशीवाद ारा धमराज यु ध रका अ य त स मान कया ।। २— १२ ।। तमागतमृ ष ् वा नारदं सवधम वत् । सहसा पा डव े ः यु थायानुजैः सह ।। १३ ।। अ यवादयत ी या वनयावनत तदा । तदहमासनं त मै स दाय यथा व ध ।। १४ ।। गां चैव मधुपक च स दाया यमेव च । अचयामास र नै सवकामै धम वत् ।। १५ ।। स पूण धम के ाता पा डव े राजा यु ध रने दे व ष नारदको आया दे ख भाइय स हत सहसा उठकर उ ह ेम, वनय और नतापूवक उस समय नम कार कया और उ ह उनके यो य आसन दे कर धम नरेशने गौ, मधुपक तथा अ य आ द उपचार अपण करते ए र न से उनका व धपूवक पूजन कया तथा उनक सब इ छा क पू त करके उ ह संतु कया ।। १३—१५ ।। तुतोष च यथाव च पूजां ा य यु ध रात् । ो



सोऽ चतः पा डवैः सवमह षवदपारगः । धमकामाथसंयु ं प छे दं यु ध रम् ।। १६ ।। राजा यु ध रसे यथो चत पूजा पाकर नारदजी भी ब त स ए। इस कार स पूण पा डव से पू जत होकर उन वेदवे ा मह षने यु ध रसे धम, काम और अथ तीन के उपदे शपूवक ये बात पूछ ।। १६ ।। नारद उवाच क चदथा क प ते धम च रमते मनः । सुखा न चानुभूय ते मन न वह यते ।। १७ ।। नारदजी बोले—राजन्! या तु हारा धन तु हारे (य , दान तथा कुटु बर ा आ द आव यक काय के) नवाहके लये पूरा पड़ जाता है? या धमम तु हारा मन स तापूवक लगता है? या तु ह इ छानुसार सुख-भोग ा त होते ह? (भाव च तनम लगे ए) तु हारे मनको ( क ह सरी वृ य ारा) आघात या व ेप तो नह प ँचता है? ।। १७ ।।

पा डव ारा दे व ष नारदका पूजन

क चदाच रतं पूवनरदे व पतामहैः । वतसे वृ म ु ां धमाथस हतां षु ।। १८ ।। नरदे व! या तुम ा ण, वै य और शू —इन तीन वण क जा के त अपने पता- पतामह ारा वहारम लायी ई धमाथयु उ म एवं उदार वृ का वहार करते हो? ।। १८ ।। क चदथन वा धम धमणाथमथा प वा । उभौ वा ी तसारेण न कामेन बाधसे ।। १९ ।। तुम धनके लोभम पड़कर धमको, केवल धमम ही संल न रहकर धनको अथवा आस ही जसका बल है, उस कामभोगके सेवन ारा धम और अथ दोन को ही हा न तो नह प ँचाते? ।। १९ ।। क चदथ च धम च कामं च जयतां वर । वभ य काले काल ः सदा वरद सेवसे ।। २० ।। वजयी वीर म े एवं वरदायक नरेश! तुम वगसेवनके उपयु समयका ान रखते हो; अतः कालका वभाग करके नयत और उ चत समयपर सदा धम, अथ एवं कामका सेवन करते हो न? ।। २० ।।१ क चद् राजगुणैः षड् भः स तोपायां तथानघ । बलाबलं तथा स यक् चतुदश परी से ।। २१ ।। न पाप यु ध र! या तुम राजो चत छः२ गुण के ारा सात३ उपाय क , अपने और श ुके बलाबलक तथा दे शपाल, गपाल आ द चौदह४ यक भलीभाँ त परख करते रहते हो? ।। २१ ।। क चदा मानम वी य परां जयतां वर । तथा संधाय कमा ण अ ौ भारत सेवसे ।। २२ ।। वजेता म े भरतवंशी यु ध र! या तुम अपनी और श ुक श को अ छ तरह समझकर य द श ु बल आ तो उसके साथ सं ध बनाये रखकर अपने धन और कोषक वृ के लये आठ५ कम का सेवन करते हो? ।। २२ ।। क चत् कृतयः स त न लु ता भरतषभ । आा तथा स ननः वनुर ा सवशः ।। २३ ।। भरत े ! तु हारी म ी आ द सात६ कृ तयाँ कह श ु म मल तो नह गयी ह? तु हारे रा यके धनीलोग बुरे सन से बचे रहकर सवथा तुमसे ेम करते ह न? ।। २३ ।। क च कृतकै तैय चा यप रशङ् कताः । व ो वा तव चामा यै भ ते म तं तथा ।। २४ ।। जनपर तु ह संदेह नह होता, ऐसे श ुके गु तचर कृ म म बनकर तु हारे म य ारा तु हारी गु त म णाको जानकर उसे का शत तो नह कर े े

दे ते? ।। २४ ।। म ोदासीनश ूणां क चद् वे स चक षतम् । क चत् संध यथाकालं व हं चोपसेवसे ।। २५ ।। या तुम म , श ु और उदासीन लोग के स ब धम यह ान रखते हो क वे कब या करना चाहते ह? उपयु समयका वचार करके ही सं ध और व हक नी तका सेवन करते हो न? ।। २५ ।। क चद् वृ मुदासीने म यमे चानुम यसे । क चदा मसमा वृ ाः शु ाः स बोधन माः ।। २६ ।। कुलीना ानुर ा कृता ते वीर म णः । वजयो म मूलो ह रा ो भव त भारत ।। २७ ।। या तु ह इस बातका अनुमान है क उदासीन एवं म यम य के त कैसा बताव करना चा हये? वीर! तुमने अपने वयंके समान व सनीय वृ , शु दयवाले, कसी बातको अ छ तरह समझानेम समथ, उ म कुलम उ प और अपने त अ य त अनुराग रखनेवाले पु ष को ही म ी बना रखा है न? य क भारत! राजाक वजय ा तका मूल कारण अ छ म णा (सलाह) और उसक सुर ा ही है, (जो सुयो य म ीके अधीन है) ।। २६-२७ ।। क चत् संवृतम ै तैरमा यैः शा को वदै ः । रा ं सुर तं तात श ु भन वलु यते ।। २८ ।। तात! म को गु त रखनेवाले उन शा स चव ारा तु हारा रा सुर त तो है न? श ु ारा उसका नाश तो नह हो रहा है? ।। २८ ।। क च ावशं नै ष क चत् काले वबु यसे । क च चापररा ेषु च तय यथमथ वत् ।। २९ ।। तुम असमयम ही न ाके वशीभूत तो नह होते? समयपर जग जाते हो न? अथशा के जानकार तो तुम हो ही। रा के पछले भागम जगकर अपने अथ (आव यक कत एवं हत)-के वषयम वचार तो करते हो न?* ।। २९ ।। क च म यसे नैकः क च ब भः सह । क चत् ते म तो म ो न रा ं प रधाव त ।। ३० ।। (कोई भी गु त म णा दोसे चार कान तक ही गु त रहती है, छः कान म जाते ही वह फूट जाती है, अतः म पूछता ँ,) तुम कसी गूढ़ वषयपर अकेले ही तो वचार नह करते अथवा ब त लोग के साथ बैठकर तो म णा नह करते? कह ऐसा तो नह होता क तु हारी न त क ई गु त म णा फूटकर श ुके रा यतक फैल जाती हो? ।। ३० ।। क चदथान् व न य लघुमूलान् महोदयान् । मारभसे कतु न व नय स ता शान् ।। ३१ ।। े ऐ े





धनक वृ के ऐसे उपाय का न य करके, जनम मूलधन तो कम लगाना पड़ता हो, कतु वृ अ धक होती हो, उनका शी तापूवक आर भ कर दे ते हो न? वैसे काय म अथवा वैसा काय करनेवाले लोग के मागम तुम व न तो नह डालते? ।। ३१ ।। क च सव कमा ताः परो ा ते वशङ् कताः । सव वा पुन सृ ाः संसृ ं चा कारणम् ।। ३२ ।। तु हारे रा यके कसान—मज र आ द मजीवी मनु य तुमसे अ ात तो नह ह? उनके काय और ग त व धपर तु हारी है न? वे तु हारे अ व ासके पा तो नह ह अथवा तुम उ ह बार-बार छोड़ते और पुनः कामपर लेते तो नह रहते? य क महान् अ युदय या उ तम उन सबका नेहपूण सहयोग ही कारण है। ( य क चरकालसे अनुगह ृ ीत होनेपर ही वे ात, व ासपा और वामीके त अनुर होते ह) ।। ३२ ।। आ तैरलुधैः मक ै ते च क चदनु ताः । क चद् राजन् कृता येव कृत ाया ण वा पुनः ।। ३३ ।। व ते वीर कमा ण नानवा ता न का न चत् । कृ ष आ दके काय व सनीय, लोभर हत और बड़े-बूढ़ के समयसे चले आनेवाले कायकता ारा ही कराते हो न? राजन्! वीर शरोमणे! या तु हारे काय के स हो जानेपर या स के नकट प ँच जानेपर ही लोग जान पाते ह? स होनेसे पहले ही तु हारे क ह काय को लोग जान तो नह लेते ।। ३३ ।। क चत् कार णका धम सवशा ेषु को वदाः । कारय त कुमारां योधमु यां सवशः ।। ३४ ।। तु हारे यहाँ जो श ा दे नेका काम करते ह, वे धम एवं स पूण शा के मम व ान् होकर ही राजकुमार तथा मु य-मु य यो ा को सब कारक आव यक श ाएँ दे ते ह न? ।। ३४ ।। क चत् सह ैमूखाणामेकं णा स प डतम् । प डतो थकृ े षु कुया ः ेयसं परम् ।। ३५ ।। तुम हजार मूख के बदले एक प डतको ही तो खरीदते हो न? अथात् आदरपूवक वीकार करते हो न? य क व ान् पु ष ही अथसंकटके समय महान् क याण कर सकता है ।। ३५ ।। क चद् गा ण सवा ण धनधा यायुधोदकैः । य ै प रपूणा न तथा श पधनुधरैः ।। ३६ ।। या तु हारे सभी ग ( कले) धन-धा य, अ -श , जल, य (मशीन), श पी और धनुधर सै नक से भरे-पूरे रहते ह? ।। ३६ ।। एकोऽ यमा यो मेधावी शूरो दा तो वच णः । े

राजानं राजपु ं वा ापये महत यम् ।। ३७ ।। य द एक भी म ी मेधावी, शौयस प , संयमी और चतुर हो तो राजा अथवा राजकुमारको वपुल स प क ा त करा दे ता है ।। ३७ ।। क चद ादशा येषु वप े दश प च च । भ भर व ातैव स तीथा न चारकैः ।। ३८ ।। या तुम श ुप के अठारह१ और अपने प के पं ह२ तीथ क तीन-तीन अ ात गु तचर ारा दे ख-भाल या जाँच-पड़ताल करते रहते हो? ।। ३८ ।। क चद् षाम व दतः तप सवदा । न ययु ो रपून् सवान् वी से रपुसूदन ।। ३९ ।। श ुसूदन! तुम श ु से अ ात, सतत सावधान और न य य नशील रहकर अपने स पूण श ु क ग त व धपर रखते हो न? ।। ३९ ।। क चद् वनयस प ः कुलपु ो ब ुतः । अनसूयुरनु ा स कृत ते पुरो हतः ।। ४० ।। या तु हारे पुरो हत वनयशील, कुलीन, ब , व ान्, दोष से र हत तथा शा चचाम कुशल ह? या तुम उनका पूण स कार करते हो? ।। ४० ।। क चद नषु ते यु ो व ध ो म तमानृजुः । तं च हो यमाणं च काले वेदयते सदा ।। ४१ ।। तुमने अ नहो के लये व ध , बु मान् और सरल वभावके ा णको नयु कया है न? वह सदा कये ए और कये जानेवाले हवनको तु ह ठ क समयपर सू चत कर दे ता है न? ।। ४१ ।। क चद े षु न णातो यो तषः तपादकः । उ पातेषु च सवषु दै व ः कुशल तव ।। ४२ ।। या तु हारे यहाँ ह त-पादा द अंग क परी ाम नपुण, ह क व तथा अ तचार आ द ग तय एवं उनके शुभाशुभ प रणाम आ दको बतानेवाला तथा द , भौम एवं शरीरस ब धी सब कारके उ पात को पहलेसे ही जान लेनेम कुशल यो तषी है? ।। ४२ ।। क च मु या मह वेव म यमेषु च म यमाः । जघ या जघ येषु भृ याः कमसु यो जताः ।। ४३ ।। तुमने धान- धान य को उनके यो य महान् काय म, म यम ेणीके कायकता को म यम काय म तथा न न ेणीके सेवक को उनक यो यताके अनुसार छोटे काम म ही लगा रखा है न? ।। ४३ ।। अमा यानुपधातीतान् पतृपैतामहा छु चीन् । े ा े ेषु क चत् वं नयोजय स कमसु ।। ४४ ।। या तुम न छल, बाप-दाद के मसे चले आये ए और प व आचारवचारवाले े म य को सदा े कम म लगाये रखते हो? ।। ४४ ।। ो े





क च ो ेण द डेन भृशमु जसे जाः । रा ं तवानुशास त म णो भरतषभ ।। ४५ ।। भरत े ! कठोर द डके ारा तुम जाजन को अ य त उ े गम तो नह डाल दे ते? म ीलोग तु हारे रा यका यायपूवक पालन करते ह न? ।। ४५ ।। क चत् वां नावजान त याजकाः प ततं यथा । उ त हीतारं कामयान मव यः ।। ४६ ।। जैसे प व याजक प तत यजमानका और याँ कामचारी पु षका तर कार कर दे ती ह, उसी कार जा कठोरतापूवक अ धक कर लेनेके कारण तु हारा अनादर तो नह करती? ।। ४६ ।। क चद्धृ शूर म तमान् धृ तमा छु चः । कुलीन ानुर द ः सेनाप त तथा ।। ४७ ।। या तु हारा सेनाप त हष और उ साहसे स प , शूरवीर, बु मान्, धैयवान्, प व , कुलीन, वा मभ तथा अपने कायम कुशल है? ।। ४७ ।। क चद् बल य ते मु याः सवयु वशारदाः । धृ ावदाता व ा ता वया स कृ य मा नताः ।। ४८ ।। तु हारी सेनाके मु य-मु य दलप त सब कारके यु म चतुर, धृ ( नभय), न कपट और परा मी ह न? तुम उनका यथो चत स कार एवं स मान करते हो न? ।। ४८ ।। क चद् बल य भ ं च वेतनं च यथो चतम् । स ा तकाले दात ं ददा स न वकष स ।। ४९ ।। अपनी सेनाके लये यथो चत भोजन और वेतन ठ क समयपर दे दे ते हो न? जो उ ह दया जाना चा हये, उसम कमी या वल ब तो नह कर दे ते? ।। ४९ ।। काला त मणादे ते भ वेतनयोभृताः । भतुः कु य त यद्भृ याः सोऽनथः सुमहान् मृतः ।। ५० ।। भोजन और वेतनम अ धक वल ब होनेपर भृ यगण अपने वामीपर कु पत हो जाते ह और उनका वह कोप महान् अनथका कारण बताया गया है ।। ५० ।। क चत् सवऽनुर ा वां कुलपु ाः धानतः । क चत् ाणां तवाथषु सं यज त सदा यु ध ।। ५१ ।। या उ म कुलम उ प म ी आ द सभी धान अ धकारी तुमसे ेम रखते ह? या वे यु म तु हारे हतके लये अपने ाण तकका याग करनेको सदा तैयार रहते ह? ।। ५१ ।। क चनैको बनथान् सवशः सा परा यकान् । अनुशा त यथाकामं कामा मा शासना तगः ।। ५२ ।। तु हारे कमचा रय म कोई ऐसा तो नह है, जो अपनी इ छाके अनुसार चलनेवाला और तु हारे शासनका उ लंघन करनेवाला हो तथा यु के सारे ो े ी ी े ो

साधन एवं काय को अकेला ही अपनी चके अनुसार चला रहा हो? ।। ५२ ।। क चत् पु षकारेण पु षः कम शोभयन् । लभते मानम धकं भूयो वा भ वेतनम् ।। ५३ ।। (तु हारे यहाँ काम करनेवाला) कोई पु ष अपने पु षाथसे जब कसी कायको अ छे ढं गसे स प करता है, तब वह आपसे अ धक स मान अथवा अ धक भ ा और वेतन पाता है न? ।। ५३ ।। क चद् व ा वनीतां नरा ान वशारदान् । यथाह गुणत ैव दानेना युपप से ।। ५४ ।। या तुम व ासे वनयशील एवं ान नपुण मनु य को उनके गुण के अनुसार यथायो य धन आ द दे कर उनका स मान करते हो? ।। ५४ ।। क चद् दारा मनु याणां तवाथ मृ युमीयुषाम् । सनं चा युपेतानां बभ ष भरतषभ ।। ५५ ।। भरत े ! जो लोग तु हारे हतके लये सहष मृ युका वरण कर लेते ह अथवा भारी संकटम पड़ जाते ह, उनके बाल-ब च क र ा तुम करते हो न? ।। ५५ ।। क चद् भया पगतं ीणं वा रपुमागतम् । यु े वा व जतं पाथ पु वत् प रर स ।। ५६ ।। कु तीन दन! जो भयसे अथवा अपनी धन-स प का नाश होनेसे तु हारी शरणम आया हो या यु म तुमसे परा त हो गया हो, ऐसे श ुका तुम पु के समान पालन करते हो या नह ? ।। ५६ ।। क चत् वमेव सव याः पृ थ ाः पृ थवीपते । सम ान भशङ् य यथा माता यथा पता ।। ५७ ।। पृ वीपते! या सम त भूम डलक जा तु ह ही समदश एवं मातापताके समान व सनीय मानती है? ।। ५७ ।। क चद् स ननं श ुं नश य भरतषभ । अ भया स जवेनैव समी य वधं बलम् ।। ५८ ।। भरतकुलभूषण! या तुम अपने श ुको ( ी- ूत आ द) सन म फँसा आ सुनकर उसके वध बल (म , कोष एवं भृ य-बल अथवा भुश , म श एवं उ साहश )-पर वचार करके य द वह बल हो तो उसके ऊपर बड़े वेगसे आ मण कर दे ते हो? ।। ५८ ।। या ामारभसे द ा ा तकालमरदम । पा णमूलं च व ाय वसायं पराजयम् । बल य च महाराज द वा वेतनम तः ।। ५९ ।। श ुदमन! या तुम पा ण ाह आ द बारह* य के म डल (समुदाय)को जानकर अपने कत का१ न य करके और पराजयमूलक सन का२ े





अपने प म अभाव तथा श ुप म आ ध य दे खकर उ चत अवसर आनेपर दै वका भरोसा करके अपने सै नक को अ म वेतन दे कर श ुपर चढ़ाई कर दे ते हो? ।। ५९ ।। क च च बलमु ये यः पररा े परंतप । उप छ ा न र ना न य छ स यथाहतः ।। ६० ।। परंतप! श ुके रा यम जो धान- धान यो ा ह, उ ह छपे- छपे यथायो य र न आ द भट करते रहते हो या नह ? ।। ६० ।। क चदा मानमेवा े व ज य व जते यः । परान् जगीषसे पाथ म ान जते यान् ।। ६१ ।। कु तीन दन! या तुम पहले अपनी इ य और मनको जीतकर ही मादम पड़े ए अ जते य श ु को जीतनेक इ छा करते हो? ।। ६१ ।। क चत् ते या यतः श ून् पूव या त वनु ताः । साम दानं च भेद द ड व धवद् गुणाः ।। ६२ ।। श ु पर तु हारे आ मण करनेसे पहले अ छ तरह योगम लाये ए तु हारे साम, दान, भेद और द ड—ये चार गुण व धपूवक उन श ु तक प ँच जाते ह न? ( य क श ु को वशम करनेके लये इनका योग आव यक है।) ।। ६२ ।। क च मूलं ढं कृ वा परान् या स वशा पते । तां व मसे जेतुं ज वा च प रर स ।। ६३ ।। महाराज! तुम अपने रा यक न वको ढ़ करके श ु पर धावा करते हो न? उन श ु को जीतनेके लये पूरा परा म कट करते हो न? और उ ह जीतकर उनक पूण पसे र ा तो करते रहते हो न? ।। ६३ ।। क चद ा संयु ा चतु वधबला चमूः । बलमु यैः सुनीता ते षतां तव धनी ।। ६४ ।। या धनर क, सं ाहक, च क सक, गु तचर, पाचक, सेवक, लेखक और हरी—इन आठ अंग और हाथी, घोड़े, रथ एवं पैदल—इन चार३ कारके बल से यु तु हारी सेना सुयो य सेनाप तय ारा अ छ तरह संचा लत होकर श ु का संहार करनेम समथ होती है? ।। क च लवं च मु च पररा े परंतप । अ वहाय महाराज नहं स समरे रपून् ।। ६५ ।। श ु को संत त करनेवाले महाराज! तुम श ु के रा यम अनाज काटने और भ के समयक उपे ा न करके रणभू मम श ु को मारते हो न? ।। ६५ ।। क चत् वपररा ेषु बहवोऽ धकृता तव । अथान् सम ध त त र त च पर परम् ।। ६६ ।। े औ









या अपने और श ुके रा म तु हारे ब त-से अ धकारी थान- थानम घूम- फरकर जाको वशम करने एवं कर लेने आ द योजन को स करते ह और पर पर मलकर रा एवं अपने प के लोग क र ाम लगे रहते ह? ।। ६६ ।। क चद यवहाया ण गा सं पशना न च । ेया ण च महाराज र यनुमता तव ।। ६७ ।। महाराज! तु हारे खा पदाथ, शरीरम धारण करनेके व आ द तथा सूँघनेके उपयोगम आनेवाले सुग धत क र ा व त पु ष ही करते ह न? ।। ६७ ।। क चत् कोष को ं च वाहनं ारमायुधम् । आय कृतक याणै तव भ ै रनु तः ।। ६८ ।। तु हारे क याणके लये सदा य नशील रहनेवाले, वा मभ मनु य ारा ही तु हारे धन-भ डार, अ -भ डार, वाहन, धान ार, अ -श तथा आयके साधन क र ा एवं दे ख-भाल क जाती है न? ।। ६८ ।। क चदा य तरे य बा े य वशा पते । र या मानमेवा े तां वे यो मथ तान् ।। ६९ ।। जापालक नरेश! या तुम रसोइये आ द भीतरी सेवक तथा सेनाप त आ द बा सेवक ारा भी पहले अपनी ही र ा करते हो, फर आ मीयजन ारा एवं पर पर एक- सरेसे उन सबक र ापर भी यान दे ते हो? ।। ६९ ।। क च पाने ूते वा डासु मदासु च । तजान त पूवा े यं सनजं तव ।। ७० ।। तु हारे सेवक पूवा कालम (जो क धमाचरणका समय है) तुमसे म पान, ूत, ड़ा और युवती ी आ द सन म तु हारा समय और धनको थ न करनेके लये ताव तो नह करते? ।। ७० ।। क चदाय य चाधन चतुभागेन वा पुनः । पादभागै भवा प यः संशु यते तव ।। ७१ ।। या तु हारी आयके एक चौथाई या आधे अथवा तीन चौथाई भागसे तु हारा सारा खच चल जाता है? ।। ७१ ।। क च ातीन् गु न् वृ ान् व णजः श पनः तान् । अभी णमनुगृ ा स धनधा येन गतान् ।। ७२ ।। तुम अपने आ त कुटु बके लोग , गु जन , बड़े-बूढ़ , ापा रय , श पय तथा द न- खय को धन-धा य दे कर उनपर सदा अनु ह करते रहते हो न? ।। ७२ ।। क च चाय ये यु ाः सव गणकलेखकाः । अनु त त पूवा े न यमायं यं तव ।। ७३ ।। ी ी औ ो े औ ो े े े

तु हारी आमदनी और खचको लखने और जोड़नेके कामम लगाये ए सभी लेखक और गणक त दन पूवाकालम तु हारे सामने अपना हसाब पेश करते ह न? ।। ७३ ।। क चदथषु स ौढान् हतकामाननु यान् । नापकष स कम यः पूवम ा य क बषम् ।। ७४ ।। क ह काय म नयु कये ए ौढ़, हतैषी एवं य कमचा रय को पहले उनके कसी अपराधको जाँच कये बना तुम कामसे अलग तो नह कर दे ते हो? ।। ७४ ।। क चद् व द वा पु षानु माधमम यमान् । वं कम वनु पेषु नयोजय स भारत ।। ७५ ।। भारत! तुम उ म, म यम और अधम ेणीके मनु य को पहचानकर उ ह उनके अनु प काय म ही लगाते हो न? ।। ७५ ।। क च लुधा ौरा वा वै रणो वा वशा पते । अ ा त वहारा वा तव कम वनु ताः ।। ७६ ।। राजन्! तुमने ऐसे लोग को तो अपने काम पर नह लगा रखा है? जो लोभी, चोर, श ु अथवा ावहा रक अनुभवसे सवथा शू य ह ? ।। ७६ ।। क च चौरैलुधैवा क ु मारैः ीबलेन वा । वया वा पी ते रा ं क चत् तु ाः कृषीवलाः ।। ७७ ।। चोर , लो भय , राजकुमार या राजकुलक य ारा अथवा वयं तुमसे ही तु हारे राको पीड़ा तो नह प ँच रही है? या तु हारे रा यके कसान संतु ह? ।। ७७ ।। क चद् रा े तडागा न पूणा न च बृह त च । भागशो व न व ा न न कृ षदवमातृका ।। ७८ ।। या तु हारे रा यके सभी भाग म जलसे भरे ए बड़े-बड़े तालाब बनवाये गये ह? केवल वषाके पानीके भरोसे ही तो खेती नह होती है? ।। ७८ ।। क च भ ं बीजं च कषक यावसीद त । येकं च शतं वृ या ददा यृणमनु हम् ।। ७९ ।। तु हारे रा यके कसानका अ या बीज तो न नह होता? या तुम येक कसानपर अनु ह करके उसे एक पया सैकड़े याजपर ऋण दे ते हो? ।। ७९ ।। क चत् वनु ता तात वाता ते साधु भजनैः । वातायां सं त तात लोकोऽयं सुखमेधते ।। ८० ।। तात! तु हारे राम अ छे पु ष ारा वाता—कृ ष, गोर ा तथा ापारका काम अ छ तरह कया जाता है न? य क उपयु वातावृ पर अवल बत रहनेवाले लोग ही सुखपूवक उ त करते ह ।। ८० ।। क च छू राः कृत ाः प च प च वनु ताः । े े

े ं कुव त संह य राज नपदे तव ।। ८१ ।। म राजन्! या तु हारे जनपदके येक गाँवम शूरवीर, बु मान् और कायकुशल पाँच-पाँच पंच मलकर सुचा पसे जन हतके काय करते ए सबका क याण करते ह? ।। ८१ ।। क च गरगु यथ ामा नगरवत् कृताः । ामव च कृताः ा ता ते च सव वदपणाः ।। ८२ ।। या नगर क र ाके लये गाँव को भी नगरके ही समान ब त-से शूरवीर ारा सुर त कर दया गया है? सीमावत गाँव को भी अ य गाँव क भाँ त सभी सु वधाएँ द गयी ह? तथा या वे सभी ा त, ाम और नगर तु ह (कर- पम एक कया आ) धन सम पत करते ह?१ ।। ८२ ।। क चद् बलेनानुगताः समा न वषमा ण च । पुरा ण चौरान् न न त र त वषये तव ।। ८३ ।। या तु हारे रा यम कुछ र क पु ष सेना साथ लेकर चोर-डाकु का दमन करते ए सुगम एवं गम नगर म वचरते रहते ह? ।। ८३ ।। क चत् यः सा वय स क चत् ता सुर ताः । क च धा यासां क चद् गु ं न भाषसे ।। ८४ ।। तुम य को सा वना दे कर संतु रखते हो न? या वे तु हारे यहाँ पूण पसे सुर त ह? तुम उनपर पूरा व ास तो नह करते? और व ास करके उ ह कोई गु त बात तो नह बता दे ते? ।। ८४ ।। क चदा य यकं ु वा तदथमनु च य च । या यनुभव छे षे न वम तःपुरे नृप ।। ८५ ।। राजन्! तुम कोई अमंगलसूचक समाचार सुनकर और उसके वषयम बारबार वचार करके भी य भोग- वलास का आन द लेते ए अ तःपुरम ही सोते तो नह रह जाते? ।। ८५ ।। क चद् ौ थमौ यामौ रा ेः सु वा वशा पते । सं च तय स धमाथ याम उ थाय प मे ।। ८६ ।। जानाथ! या तुम रा के (पहले पहरके बाद) जो थम दो ( सरे-तीसरे) याम ह, उ ह म सोकर अ तम पहरम उठकर बैठ जाते और धम एवं अथका च तन करते हो? ।। ८६ ।। क चदथयसे न यं मनु यान् समलंकृतः । उ थाय काले काल ैः सह पा डव म भः ।। ८७ ।। पा डु न दन! तुम त दन समयपर उठकर नान आ दके प ात् व ाभूषण से अलंकृत हो दे श-कालके ाता म य के साथ बैठकर ( ाथ या दशनाथ ) मनु य क इ छा पूण करते हो न? ।। ८७ ।। क चद् र ा बरधराः खड् गह ताः वलंकृताः । े



उपासते वाम भतो र णाथमरदम ।। ८८ ।। श ुदमन! या लाल व धारण करके अलंकार से अलंकृत ए यो ा अपने हाथ म तलवार लेकर तु हारी र ाके लये सब ओरसे सेवाम उप थत रहते ह? ।। ८८ ।। क चद् द ेषु यमव पू येषु च वशा पते । परी य वतसे स यग येषु येषु च ।। ८९ ।। महाराज! या तुम द डनीय अपरा धय के त यमराज और पूजनीय पु ष के त धमराजका-सा बताव करते हो? य एवं अ य यक भलीभाँ त परी ा करके ही वहार करते हो न? ।। ८९ ।। क च छारीरमाबाधमौषधै नयमेन वा । मानसं वृ सेवा भः सदा पाथापकष स ।। ९० ।। कु तीकुमार! या तुम ओष धसेवन या प य-भोजन आ द नयम के पालन ारा अपने शारी रक क को तथा वृ पु ष क सेवा प स संग ारा मान सक संतापको सदा र करते रहते हो? ।। ९० ।। क चद् वै ा क सायाम ा ायां वशारदाः । सु द ानुर ा शरीरे ते हताः सदा ।। ९१ ।। तु हारे वै अ ांग च क साम२ कुशल, हतैषी, ेमी एवं तु हारे शरीरको व थ रखनेके य नम सदा संल न रहनेवाले ह न? ।। ९१ ।। क च लोभा मोहाद् वा मानाद् वा प वशा पते । अ थ य थनः ा तान् न प य स कथंचन ।। ९२ ।। नरे र! कह ऐसा तो नह होता क तुम अपने यहाँ आये ए अथ (याचक) और यथ (राजाक ओरसे मली ई वृ बंद हो जानेसे ःखी हो पुनः उसीको पानेके लये ाथ )-क ओर लोभ, मोह अथवा अ भमानवश कसी कार आँख उठाकर दे खतेतक नह ? ।। ९२ ।। क च लोभा मोहाद् वा व भात् णयेन वा । आ तानां मनु याणां वृ वं सं ण स वै ।। ९३ ।। कह अपने आ तजन क जी वकावृ को तुम लोभ, मोह, आ म व ास अथवा आस से बंद तो नह कर दे ते? ।। ९३ ।। क चत् पौरा न स हता ये च ते रा वा सन । वया सह व य ते परैः ताः कथंचन ।। ९४ ।। तु हारे नगर तथा राक े नवासी मनु य संग ठत होकर तु हारे साथ वरोध तो नह करते? श ु ने उ ह कसी तरह घूस दे कर खरीद तो नह लया है? ।। ९४ ।। क च बलः श ुबलेन प रपी डतः । म ेण बलवान् क भा यां च कथंचन ।। ९५ ।। ोई









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कोई बल श ु जो तु हारे ारा पहले बलपूवक पी ड़त कया गया ( कतु मारा नह गया), अब म णाश से अथवा म णा और सेना दोन ही श य से कसी तरह बलवान् होकर सर तो नह उठा रहा है? ।। ९५ ।। क चत् सवऽनुर ा वां भू मपालाः धानतः । क चत् ाणां वदथषु सं यज त वयाऽऽ ताः ।। ९६ ।। या सभी मु य-मु य भूपाल तुमसे ेम रखते ह? या वे तु हारे ारा स मान पाकर तु हारे लये अपने ाण क ब ल दे सकते ह? ।। ९६ ।। क चत् ते सव व ासु गुणतोऽचा वतते । ा णानां च साधूनां तव नैः ेयसी शुभा । द णा वं ददा येषां न यं वगापवगदाः ।। ९७ ।। या तु हारे मनम सभी व ा के त गुणके अनुसार आदरका भाव है? या तुम ा ण तथा साधु-संत क सेवा-पूजा करते हो? जो तु हारे लये शुभ एवं क याणका रणी है। इन ा ण को तुम सदा द णा तो दे ते रहते हो न? य क वह वग और मो क ा त करानेवाली है ।। ९७ ।। क चद् धम यीमूले पूवराच रते जनैः । यतमान तथा कतु त मन् कम ण वतसे ।। ९८ ।। तीन वेद ही जसके मूल ह और पूवपु ष ने जसका आचरण कया है, उस धमका अनु ान करनेके लये तुम अपने पूवज क ही भाँ त य नशील तो रहते हो? धमानुकूल कमम ही तु हारी वृ तो रहती है? ।। ९८ ।। क च व गृहेऽ ा न वा य त वै जाः । गुणव त गुणोपेता तवा य ं सद णम् ।। ९९ ।। या तु हारे महलम तु हारी आँख के सामने गुणवान् ा ण वा द और गुणकारक अ भोजन करते ह? और भोजनके प ात् उ ह द णा द जाती है? ।। ९९ ।। क चत् तूनेक च ो वाजपेयां सवशः । पु डरीकां का यन यतसे कतुमा मवान् ।। १०० ।। अपने मनको वशम करके एका च हो वाजपेय और पु डरीक आ द सभी य -याग का तुम पूण पसे अनु ान करनेका य न तो करते हो न? ।। १०० ।। क च ातीन् गु न् वृ ान् दै वतां तापसान प । चै यां वृ ान् क याणान् ा णां नम य स ।। १०१ ।। जा त-भाई, गु जन, वृ पु ष, दे वता, तप वी, चै यवृ (पीपल) आ द तथा क याणकारी ा ण को नम कार तो करते हो न? ।। १०१ ।। क च छोको न म युवा वया ो पा तेऽनघ । अ प म लह त जनः पा नु त त ।। १०२ ।। े

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न पाप नरेश! तुम कसीके मनम शोक या ोध तो नह पैदा करते? तु हारे पास कोई मनु य हाथम मंगलसाम ी लेकर सदा उप थत रहता है न? ।। १०२ ।। क चदे षा च ते बु वृ रेषा च तेऽनघ । आयु या च यश या च धमकामाथद शनी ।। १०३ ।। पापर हत यु ध र! अबतक जैसा बतलाया गया है, उसके अनुसार ही तु हारी बु और वृ ( वचार और आचार) ह न? ऐसी धमानुकूल बु और वृ आयु तथा यशको बढ़ानेवाली एवं धम, अथ तथा कामको पूण करनेवाली है ।। १०३ ।। एतया वतमान य बु या रा ं न सीद त । व ज य च मह राजा सोऽ य तसुखमेधते ।। १०४ ।। जो ऐसी बु के अनुसार बताव करता है, उसका रा कभी संकटम नह पड़ता। वह राजा सारी पृ वीको जीतकर बड़े सुखसे दनो दन उ त करता है ।। १०४ ।। क चदाय वशु ा मा ा रत ौरकम ण । अ शा कुशलैन लोभाद् व यते शु चः ।। १०५ ।। कह ऐसा तो नह होता क शा कुशल व ान का संग न करनेवाले तु हारे मूख म य ने कसी वशु दयवाले े एवं प व पु षपर चोरीका अपराध लगाकर उसका सारा धन हड़प लया हो? और फर अ धक धनके लोभसे वे उसे ाणद ड दे ते ह ? ।। १०५ ।। ो गृहीत त कारी त ै ः सकारणः । क च मु यते तेनो लोभा रषभ ।। १०६ ।। नर े ! कोई ऐसा चोर जो चोरी करते समय गृहर क ारा दे ख लया गया और चोरीके मालस हत पकड़ लया गया हो, धनके लोभसे छोड़ तो नह दया जाता? ।। १०६ ।। उ प ान् क चदा य द र य च भारत । अथान् न मया प य त तवामा या ता जनैः ।। १०७ ।। भारत! तु हारे म ी चुगली करनेवाले लोग के बहकावेम आकर ववेकशू य हो कसी धनीके या द र के थोड़े समयम ही अचानक पैदा ए अ धक धनको म या से तो नह दे खते? या उनके बढ़े ए धनको चोरी आ दसे लाया आ तो नह मान लेते? ।। १०७ ।। ना त यमनृतं ोधं मादं द घसू ताम् । अदशनं ानवतामाल यं प चवृ ताम् । एक च तनमथानामनथ ै च तनम् ।। १०८ ।। न तानामनार भं म याप रर णम् । म ला योगं च यु थानं च सवतः ।। १०९ ।। े ो

क च वं वजय येतान् राजदोषां तुदश । ायशो यै वन य त कृतमूला प पा थवाः ।। ११० ।। यु ध र! तुम ना तकता, झूठ, ोध, माद, द घसू ता, ा नय का संग न करना, आल य, पाँच इ य के वषय म आस , जाजन पर अकेले ही वचार करना, अथशा को न जाननेवाले मूख के साथ वचार- वमश, न त काय के आर भ करनेम वल ब या टालमटोल, गु त म णाको सुर त न रखना, मांग लक उ सव आ द न करना तथा एक साथ ही सभी श ु पर चढ़ाई कर दे ना—इन राजस ब धी चौदह दोष का याग तो करते हो न? य क जनके रा यक जड़ जम गयी है, ऐसे राजा भी इन दोष के कारण न हो जाते ह ।। १०८—११० ।। क चत् ते सफला वेदाः क चत् ते सफलं धनम् । क चत् ते सफला दाराः क चत् ते सफलं ुतम् ।। १११ ।। या तु हारे वेद सफल ह? या तु हारा धन सफल है? या तु हारी ी सफल है? और या तु हारा शा ान सफल है? ।। १११ ।। यु ध र उवाच कथं वै सफला वेदाः कथं वै सफलं धनम् । कथं वै सफला दाराः कथं वै सफलं ुतम् ।। ११२ ।। यु ध रने पूछा—दे वष! वेद कैसे सफल होते ह, धनक सफलता कैसे होती है? ीक सफलता कैसे मानी गयी है तथा शा ान कैसे सफल होता है? ।। ११२ ।। नारद उवाच अ नहो फला वेदा द भु फलं धनम् । र तपु फला दाराः शीलवृ फलं ुतम् ।। ११३ ।। नारदजीने कहा—राजन्! वेद क सफलता अ नहो से होती है, दान और भोगसे ही धन सफल होता है, ीका फल है—र त और पु क ा त तथा शा ानका फल है, शील और सदाचार ।। ११३ ।। वैश पायन उवाच एतदा याय स मु ननारदो वै महातपाः । प छान तर मदं धमा मानं यु ध रम् ।। ११४ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! यह कहकर महातप वी नारद मु नने धमा मा यु ध रसे पुनः इस कार कया ।। ११४ ।। नारद उवाच क चद यागता राद् व णजो लाभकारणात् । यथो मवहाय ते शु कं शु कोपजी व भः ।। ११५ ।। ी े े े े े

नारदजीने पूछा—राजन्! कर वसूलनेका काम करनेवाले तु हारे कमचारीलोग रसे लाभ उठानेके लये आये ए ापा रय से ठ क-ठ क कर वसूल करते ह न? (अ धक तो नह लेते?) ।। ११५ ।। क चत् ते पु षा राजन् पुरे रा े च मा नताः । उपानय त प या न उपधा भरव चताः ।। ११६ ।। महाराज! वे ापारीलोग आपके नगर और राम स मा नत हो व के लये उपयोगी सामान लाते ह न! उ ह तु हारे कमचारी छलसे ठगते तो नह ? ।। ११६ ।। क च छृ णो ष वृ ानां धमाथस हता गरः । न यमथ वदां तात यथाधमाथद शनाम् ।। ११७ ।। तात! तुम सदा धम और अथके ाता एवं अथशा के पूरे प डत बड़े-बूढ़े लोग क धम और अथसे यु बात सुनते रहते हो न? ।। ११७ ।। क चत् ते कृ षत ेषु गोषु पु पफलेषु च । धमाथ च जा त यो द येते मधुस पषी ।। ११८ ।। या तु हारे यहाँ खेतीसे उ प होनेवाले अ तथा फल-फूल एवं गौ से ा त होनेवाले ध, घी आ दमसे मधु (अ ) और घृत आ द धमके लये ा ण को दये जाते ह? ।। ११८ ।। ोपकरणं क चत् सवदा सव श पनाम् । चातुमा यावरं स यङ् नयतं स य छ स ।। ११९ ।। नरे र! या तुम सदा नयमसे सभी श पय को व थापूवक एक साथ इतनी व तु- नमाणक साम ी दे दे ते हो, जो कम-से-कम चौमासे भर चल सके ।। ११९ ।। क चत् कृतं वजानीषे कतारं च शंस स । सतां म ये महाराज स करो ष च पूजयन् ।। १२० ।। महाराज! या तु ह कसीके कये ए उपकारका पता चलता है? या तुम उस उपकारीक शंसा करते हो और साधु पु ष से भरी ई सभाके बीच उस उपकारीके त कृत ता कट करते ए उसका आदर-स कार करते हो? ।। १२० ।। क चत् सू ा ण सवा ण गृ ा स भरतषभ । ह तसू ा सू ा ण रथसू ा ण वा वभो ।। १२१ ।। भरत े ! या तुम सं ेपसे स ा तका त-पादन करनेवाले सभी सू थ—ह तसू , अ सू एवं रथसू आ दका सं ह (पठन एवं अ यास) करते रहते हो? ।। १२१ ।। क चद य यते स यग् गृहे ते भरतषभ । धनुवद य सू ं वै य सू ं च नागरम् ।। १२२ ।।

भरतकुलभूषण! या तु हारे घरपर धनुवदसू , य सू १ और नाग रक२ सू का अ छ तरह अ यास कया जाता है? ।। १२२ ।। क चद ा ण सवा ण द ड तेऽनघ । वषयोगा तथा सव व दताः श ुनाशनाः ।। १२३ ।। न पाप नरेश! तु ह सब कारके अ (जो म बलसे यु होते ह), वेदो द ड- वधान तथा श ु का नाश करनेवाले सब कारके वष योग ात ह न? ।। १२३ ।। क चद नभया चैव सव ालभयात् तथा । रोगर ोभया चैव रा ं वं प रर स ।। १२४ ।। या तुम अ न, सप, रोग तथा रा स के भयसे अपने स पूण राक र ा करते हो? ।। १२४ ।। क चद धां मूकां प न् ानबा धवान् । पतेव पा स धम तथा जतान प ।। १२५ ।। धम ! या तुम अंध , गूँग , पंगु , अंगहीन और ब धु-बा धव से र हत अनाथ तथा सं या सय का भी पताक भाँ त पालन करते हो? ।। १२५ ।। षडनथा महाराज क चत् ते पृ तः कृताः । न ाऽऽल यं भयं ोधोऽमादवं द घसू ता ।। १२६ ।। महाराज! या तुमने न ा, आल य, भय, ोध, कठोरता और द घसू ता —इन छः दोष को पीछे कर दया ( याग दया) है? ।। १२६ ।। वैश पायन उवाच ततः कु णामृषभो महा मा ु वा गरो ा णस म य । ण य पादाव भवा तु ो राजा वी ारदं दे व पम् ।। १२७ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! कु े महा मा राजा यु ध रने ाके पु म े नारदजीका यह वचन सुनकर उनके दोन चरण म णाम एवं अ भवादन कया और अ य त संतु हो दे व व प नारदजीसे कहा ।।

यु ध र उवाच एवं क र या म यथा वयो ं ा ह मे भूय एवा भवृ ा । उ वा तथा चैव चकार राजा लेभे मह सागरमेखलां च ।। १२८ ।। यु ध र बोले—दे वष! आपने जैसा उपदे श दया है, वैसा ही क ँ गा। आपके इस वचनसे मेरी ा और भी बढ़ गयी है। ऐसा कहकर राजा े ै





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यु ध रने वैसा ही आचरण कया और इसीसे समु पय त पृ वीका रा य पा लया ।। १२८ ।। नारद उवाच एवं यो वतते राजा चातुव य य र णे । स व येह सुसुखी श यै त सलोकताम् ।। १२९ ।। नारदजीने कहा—जो राजा इस कार चार वण (और वणा मधम)-क र ाम संल न रहता है, वह इस लोकम अ य त सुखपूवक वहार करके अ तम दे वराज इ के लोकम जाता है ।। १२९ ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण लोकपालसभा यानपव ण नारद मुखेन राजधमानुशासने प चमोऽ यायः ।। ५ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत लोकपालसभा यानपवम नारदजीके ारा के ाजसे राजधमका उपदे श वषयक पाँचवाँ अ याय पूरा आ ।। ५ ।।

३. पर पर व तीत होनेवाले वेदके वचन क एकवा यता। ४. एकम मले ए वचन को योगके अनुसार अलग-अलग करना। ५. य के अनेक कम के एक साथ उप थत होनेपर अ धकारके अनुसार यजमानके साथ कमका जो स ब ध होता है, उसका नाम समवाय है। * सरेको कसी व तुका बोध करानेके लये वृ आ पु ष जस अनुमानवा यका योग करता है,

उसम पाँच अवयव होते ह— त ा, हेतु, उदाहरण, उपनय और नगमन। जैसे कसीने कहा—‘इस पवतपर आग है’ यह वा य त ा है। ‘ य क वहाँ धूम है’ यह हेतु है। ‘जैसे रसोईघरम धूआँ द खनेपर वहाँ आग दे खी जाती है’ यह ा त ही उदाहरण है। ‘चूँ क इस पवतपर धूआँ दखायी दे ता है’ हेतुक इस उपल धका नाम उपनय है। ‘इस लये वहाँ आग है’ यह न य ही नगमन है। इस वा यम अनुकूल तकका होना गुण है और तकूल तकका होना दोष है, जैसे ‘य द वहाँ आग न होती, तो धूआँ भी नह उठता’ यह अनुकूल तक है। जैसे कोई तालाबसे भाप उठती दे खकर यह कहे क इस तालाबम आग है, तो उसका वह अनुमान आ या स प हे वाभाससे यु होगा। १. द मृ तम वगसेवनका काल- वभाग इस कार बताया गया है— पूवा े वाचरेद ् धम म या े ऽथमुपाजयेत् । साया े चाचरेत् काम म येषा वै दक ु तः ।। पूवाकालम धमका आचरण करे, म या के समय धनोपाजनका काम दे खे और साया (रा )-के समय कामका सेवन करे। यह वै दक ु तका आदे श है। (नीलक ठ से उद्धृत) २. राजा म छः गुण होने चा हये— ा यानश , ग भता, तककुशलता, भूतकालक मृ त, भ व यपर तथा नी त नपुणता। ३. सात उपाय ये ह—म , औषध, इ जाल, साम, दान, द ड और भेद। ४. परी ाके यो य चौदह थान या नी तशा म इस कार बताये गये ह— दे शो ग रथो ह तवा जयोधा धका रणः । अ तःपुरा गणनाशा ले यधनासवः ।। दे श, ग, रथ, हाथी, घोड़े, शूर सै नक, अ धकारी, अ तःपुर, अ , गणना, शा , ले य, धन और असु (बल), इनके जो चौदह अ धकारी ह, राजा को उनक परी ा करते रहना चा हये। ५. राजाके कोष और धनक वृ के लये आठ कम ये ह— ो









कृ षव णक्पथो ग सेतुः कुरब धनम् । ख याकरकरादानं शू यानां च नवेशनम् ।। अ संधानकमा ण यु ा न मनी ष भः ।। खेतीका व तार, ापारक र ा, गक रचना एवं र ा, पुल का नमाण और उनक र ा, हाथी बाँधना, सोने-हीरे आ दक खान पर अ धकार करना, करक वसूली और उजाड़ ा त म लोग को बसाना —मनीषी पु ष ारा ये आठ संधानकम बताये गये ह। ६. वामी, म ी, म , कोष, रा, ग तथा सेना एवं पुरवासी—ये रा यके सात अंग ही सात कृ तयाँ ह। अथवा— गा य , बला य , धमा य , सेनाप त, पुरो हत, वै और यो तषी—ये भी सात कृ तयाँ कही गयी ह। * मृ तम कहा है क—‘ ा े मु त चो थाय च तयेदा मनो हतम् ।’ अथात् ा मु तम उठकर

अपने हतका च तन करे। (नीलक ठ ट कासे उद्धृत) १. श ुप के म ी, पुरो हत, युवराज, सेनाप त, ारपाल, अ तव शक (अ तःपुरका अ य ), कारागारा य , कोषा य , यथायो य काय म धनको य करनेवाला स चव, दे ा (पहरेदार को काम बतानेवाला), नगरा य (कोतवाल), काय नमाणकता ( श पय का प रचालक), धमा य , सभा य , द डपाल, गपाल, रासीमापाल तथा वनर क—ये अठारह तीथ ह, जनपर राजाको रखनी चा हये। २. उपयु ट पणीम अठारह तीथ मसे आ दके तीनको छोड़कर शेष पं ह तीथ अपने प के भी सदा परी णीय ह। * वजयके इ छु क राजाके आगे खड़े होनेवाले उसके श ुके श ु २, उन श ु के म २, उन म के

म २—ये छः यु म आगे खड़े होते ह। व जगीषुके पीछे पा ण ाह (पृ र क) और आ द (उ साह दलानेवाला)—ये दो खड़े होते ह। इन दोन क सहायता करनेवाले एक-एक इनके पीछे खड़े होते ह, जनक आसार सं ा है। ये मशः पा ण ाहासार और आ दासार कहे जाते ह। इस कार आगेके छः और पीछे के चार मलकर दस होते ह। व जगीषुके पा भागम म यम और उसके भी पा भागम उदासीन होता है। इन दोन को जोड़ लेनेसे इन सबक सं या बारह होती है। इ ह को ादश राजम डल अथवा ‘पा णमूल’ कहते ह। अपने और श ुप के इन य को जानना चा हये। १. नी तशा के अनुसार वजयक इ छा रखनेवाले राजाको चा हये क वह श ुप के सै नक मसे जो लोभी हो, कतु जसे वेतन न मला हो, जो मानी हो कतु कसी तरह अपमा नत हो गया हो, जो ोधी हो और उसे ोध दलाया गया हो, जो वभावसे ही डरनेवाला हो और उसे पुनः डरा दया गया हो—इन चार कारके लोग को फोड़ ले और अपने प म ऐसे लोग ह , तो उ ह उ चत स मान दे कर मला ले। २. सन दो कारके ह—दै व और मानुष। दै व सन पाँच कारके ह—अ न, जल, ा ध, भ और महामारी। मानुष सन भी पाँच कारका है—मूख पु ष से, चोर से, श ु से, राजाके य से तथा राजाके लोभसे जाको ा त भय। (नीलकंठ ट काके अनुसार) ३. आठ अंग और चार बल भारतकौमुद ट काके अनुसार लये गये ह। १. सीमावत गाँवका अ धप त अपने यहाँका राजक य कर एक करके ामा धप तको दे , ामा धप त नगरा धप तको, वह दे शा धप तको और दे शा धप त सा ात् राजाको वह धन अ पत करे। २. नाड़ी, मल, मू , ज ा, ने , प, श द तथा पश—ये आठ च क साके कार कहे जाते ह। १. लोहेक बनी ई उन मशीन को, जनके ारा बा दके बलसे शीशे, काँसे और प थरक गो लयाँ चलायी जाती ह—य कहते ह। उन य के योगक व धके तपादक सं त वा य ही य सू ह। २. नगरक र ा तथा उ तके साधन को बतानेवाले सं त वा य को ही यहाँ नाग रक सू कहा गया है।

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के वषयम ज ासा

वैश पायन उवाच स पू याथा यनु ातो महषवचनात् परम् । युवाचानुपू ण धमराजो यु ध रः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! दे व ष नारदका यह उपदे श पूण होनेपर धमराज यु ध रने भलीभाँ त उनक पूजा क ; तदन तर उनसे आ ा लेकर उनके का उ र दया ।। १ ।। यु ध र उवाच भगवन् या यमाहैतं यथावद् धम न यम् । यथाश यथा यायं यतेऽयं व धमया ।। २ ।। यु ध र बोले—भगवन्! आपने जो यह राजधमका यथाथ स ा त बताया है, वह सवथा यायो चत है। म आपके इस यायानुकूल आदे शका यथाश पालन करता ँ ।। २ ।। राज भयद् यथा काय पुरा वै त संशयः । यथा यायोपनीताथ कृतं हेतुमदथवत् ।। ३ ।। इसम संदेह नह क ाचीन कालके राजा ने जो काय जैसे स प कया, वह येक यायो चत, सकारण और कसी वशेष योजनसे यु होता था ।। ३ ।। वयं तु स पथं तेषां यातु म छामहे भो । न तु श यं तथा ग तुं यथा तै नयता म भः ।। ४ ।। भो! हम भी उ ह के उ म मागसे चलना चाहते ह, परंतु उस कार (सवथा) चल नह पाते; जैसे वे नयता मा महापु ष चला करते थे ।। ४ ।। वैश पायन उवाच एवमु वा स धमा मा वा यं तद भपू य च । मुतात् ा तकालं च ् वा लोकचरं मु नम् ।। ५ ।। नारदं सु थमासीनमुपासीनो यु ध रः । अपृ छत् पा डव त राजम ये महा ु तः ।। ६ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! ऐसा कहकर धमा मा यु ध रने नारदजीके पूव वचनक बड़ी शंसा क । फर स पूण लोक म वचरनेवाले नारद मु न जब शा तपूवक बैठ गये, तब दो घड़ीके बाद ठ क अवसर जानकर महातेज वी पा डु पु राजा यु ध र भी उनके नकट आ बैठे और स पूण राजा के बीच वहाँ उनसे इस कार पूछने लगे ।। ५-६ ।।

यु ध र उवाच भवान् संचरते लोकान् सदा नाना वधान् बन् । णा न मतान् पूव े माणो मनोजवः ।। ७ ।। यु ध रने पूछा—मु नवर! आप मनके समान वेगशाली ह, अतः ाजीने पूवकालम जनका नमाण कया है, उन अनेक कारके ब त-से लोक का दशन करते ए आप उनम सदा बेरोक-टोक वचरते रहते ह ।। ७ ।। ई शी भवता का चद ् पूवा सभा व चत् । इतो वा ेयसी ं त ममाच व पृ छतः ।। ८ ।। न्! या आपने पहले कह ऐसी या इससे भी अ छ कोई सभा दे खी है? म जानना चाहता ँ, अतः आप मुझसे यह बात बताव ।। ८ ।। वैश पायन उवाच त छ वा नारद त य धमराज य भा षतम् । पा डवं युवाचेदं मयन् मधुरया गरा ।। ९ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! धमराज यु ध रका यह सुनकर दे व ष नारदजी मुसकराने लगे और उन पा डु कुमारको इसका उ र दे ते ए मधुर वाणीम बोले ।। ९ ।। नारद उवाच मानुषेषु न मे तात पूवा न च ुता । सभा म णमयी राजन् यथेयं तव भारत ।। १० ।। नारदजीने कहा—तात! भरतवंशी नरेश! म ण एवं र न क बनी ई जैसी तु हारी यह सभा है, ऐसी सभा मने मनु यलोकम न तो पहले कभी दे खी है और न कान से ही सुनी है ।। १० ।। सभां तु पतृराज य व ण य च धीमतः । कथ य ये तथे य कैलास नलय य च ।। ११ ।। ण सभां द ां कथ य ये गत लमाम् । द ा द ैर भ ायै पेतां व पणीम् ।। १२ ।। दे वैः पतृगणैः सा यैय व भ नयता म भः । जु ां मु नगणैः शा तैवदय ैः सद णैः । य द ते वणे बु वतते भरतषभ ।। १३ ।। भरत े ! य द तु हारा मन द सभा का वणन सुननेको उ सुक हो तो म तु ह पतृराज यम, बु मान् व ण, वगवासी इ , कैलास नवासी कुबेर तथा ाजीक द सभाका वणन सुनाऊँगा, जहाँ कसी कारका लेश नह है एवं जो द और अ द भोग से स प तथा संसारके अनेक प से अलंकृत है। वह दे वता, पतृगण, सा यगण, ो















याजक तथा मनको वशम रखनेवाले शा त मु नगण से से वत है। वहाँ उ म द णा से यु वै दक य का अनु ान होता रहता है ।। ११—१३ ।। नारदे नैवमु तु धमराजो यु ध रः । ा ल ातृ भः साध तै सव जो मैः ।। १४ ।। नारदं युवाचेदं धमराजो महामनाः । सभाः कथय ताः सवाः ोतु म छामहे वयम् ।। १५ ।। नारदजीके ऐसा कहनेपर भाइय तथा स पूण े ा ण के साथ महामन वी धमराज यु ध रने हाथ जोड़कर उनसे इस कार कहा—‘महष! हम सभी द सभा का वणन सुनना चाहते ह। आप उनके वषयम सब बात बताइये ।। १४-१५ ।। क ा ताः सभा न् क व ताराः कमायताः । पतामहं च के त यां सभायां पयुपासते ।। १६ ।। ‘ न्! उन सभा का नमाण कस से आ है? उनक लंबाई-चौड़ाई कतनी है? ाजीक उस द -सभाम कौन-कौन सभासद् उ ह चार ओरसे घेरकर बैठते ह? ।। १६ ।। वासवं दे वराजं च यमं वैव वतं च के । व णं च कुबेरं च सभायां पयुपासते ।। १७ ।। ‘इसी कार दे वराज इ , वैव वत यम, व ण तथा कुबेरक सभाम कौन-कौन लोग उनक उपासना करते ह? ।। १७ ।। एतत् सव यथा यायं ष वदत तव । ोतु म छाम स हताः परं कौतूहलं ह नः ।। १८ ।। ‘ ष! हम सब लोग आपके मुखसे ये सब बात यथो चत री तसे सुनना चाहते ह। हमारे मनम उसके लये बड़ा कौतूहल है’ ।। १८ ।। एवमु ः पा डवेन नारदः यभाषत । मेण राजन् द ा ताः ूय ता मह नः सभाः ।। १९ ।। पा डु कुमार यु ध रके इस कार पूछनेपर नारदजीने उ र दया—‘राजन्! तुम हमसे यहाँ उन सभी द सभा का मशः वणन सुनो’ ।। १९ ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण लोकपालसभा यानपव ण यु ध रसभा ज ासायां ष ोऽ यायः ।। ६ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत लोकपालसभा यानपवम यु ध रक द सभा के वषयम ज ासा वषयक छठा अ याय पूरा आ ।। ६ ।।

स तमोऽ यायः इ सभाका वणन नारद उवाच श य तु सभा द ा भा वरा कम न मता । वयं श े ण कौर न जताकसम भा ।। १ ।। नारदजी कहते ह—कु न दन! इ क तेजोमयी द सभा सूयके समान का शत होती है। ( व कमाके) य न से उसका नमाण आ है। वयं इ ने (सौ य का अनु ान करके) उसपर वजय पायी है ।। १ ।। व तीणा योजनशतं शतम यधमायता । वैहायसी कामगमा प चयोजनमु ता ।। २ ।। उसक लंबाई डेढ़ सौ और चौड़ाई सौ योजनक है। वह आकाशम वचरनेवाली और इ छाके अनुसार ती या म द ग तसे चलनेवाली है। उसक ऊँचाई भी पाँच योजनक है ।। २ ।। जराशोक लमापेता नरातङ् का शवा शुभा । वे मासनवती र या द पादपशो भता ।। ३ ।। उसम जीणता, शोक और थकावट आ दका वेश नह है। वहाँ भय नह है, वह मंगलमयी और शोभास प है। उसम ठहरनेके लये सु दर-सु दर महल और बैठनेके लये उ मो म सहासन बने ए ह। वह रमणीय सभा द वृ से सुशो भत होती है ।। ३ ।। त यां दे वे रः पाथ सभायां परमासने । आ ते श या महे ा या या ल या च भारत ।। ४ ।। भारत! कु तीन दन! उस सभाम सव े सहासनपर दे वराज इ शोभाम ल मीके समान तीत होनेवाली इ ाणी शचीके साथ वराजते ह ।। ४ ।। ब द् वपुर नद यं करीट लो हता दः । वरजोऽ बर मा यो ीक त ु त भः सह ।। ५ ।। उस समय वे अवणनीय प धारण करते ह। उनके म तकपर करीट रहता है और दोन भुजा म लाल रंगके बाजूबंद शोभा पाते ह। उनके शरीरपर व छ व और क ठम व च माला सुशो भत होती है। वे ल जा, क त और का त—इन दे वय के साथ उस द सभाम वराजमान होते ह ।। ५ ।। त यामुपासते न यं महा मानं शत तुम् । म तः सवशो राजन् सव च गृहमे धनः ।। ६ ।। राजन्! उस द सभाम सभी म द्गण और गृहवासी दे वता सौ य का अनु ान पूण कर लेनेवाले महा मा इ क त दन सेवा करते ह ।। ६ ।। स ा दे वषय ैव सा या दे वगणा तथा । ो े

म व त स हता भा व तो हेममा लनः ।। ७ ।। एते सानुचराः सव द पाः वलंकृताः । उपासते महा मानं दे वराजमरदमम् ।। ८ ।। स , दे व ष, सा यदे वगण तथा म वान्—ये सभी सुवणमाला से सुशो भत हो तेज वी प धारण कये एक साथ उस द सभाम बैठकर श ुदमन महामना दे वराज इ क उपासना करते ह। वे सभी दे वता अपने अनुचर (सेवक )-के साथ वहाँ वराजमान होते ह। वे द पधारी होनेके साथ ही उ मो म अलंकार से अलंकृत रहते ह ।। ७-८ ।। तथा दे वषयः सव पाथ श मुपासते । अमला धूतपा मानो द यमाना इवा नयः ।। ९ ।। कु तीन दन! इसी कार जनके पाप धुल गये ह, वे अ नके समान उ त होनेवाले सभी नमल दे व ष वहाँ इ क उपासना करते ह ।। ९ ।। तेज वनः सोमसुतो वशोका वगत वराः । वे दे व षगण तेज वी, सोमयाग करनेवाले तथा शोक और च तासे शू य ह ।। ९ ।। पराशरः पवत तथा साव णगालवौ ।। १० ।। शङ् ख लखत ैव तथा गौर शरा मु नः । वासाः ोधनः येन तथा द घतमा मु नः ।। ११ ।। प व पा णः साव णया व योऽथ भालु कः । उ ालकः ेतकेतु ता ो भा डाय न तथा ।। १२ ।। ह व मां ग र हर पा थवः । ोदरशा ड यः पाराशयः कृषीवलः ।। १३ ।। वात क धो वशाख वधाता काल एव च । करालद त व ा च व कमा च तु बु ः ।। १४ ।। अयो नजा यो नजा वायुभ ा ता शनः । ईशानं सवलोक य व णं समुपासते ।। १५ ।। पराशर, पवत, साव ण, गालव, शंख, लखत, गौर शरा मु न, वासा, ोधन, येन, द घतमा मु न, प व पा ण, साव ण ( तीय), या व य, भालु क, उ ालक, ेतकेतु, ता , भा डाय न, ह व मान्, ग र , राजा ह र , , उदरशा ड य, पराशरन दन ास, कृषीवल, वात क ध, वशाख, वधाता, काल, करालद त, व ा, व कमा तथा तु बु —ये और सरे अयो नज या यो नज मु न एवं वायु पीकर रहनेवाले तथा ह व यपदाथ को खानेवाले मह ष स पूण लोक के अधी र वधारी इ क उपासना करते ह ।। १०—१५ ।। सहदे वः सुनीथ वा मी क महातपाः । शमीकः स यवाक् चैव चेताः स यसंगरः ।। १६ ।। मेधा त थवामदे वः पुल यः पुलहः तुः । म मरी च थाणु ा महातपाः ।। १७ ।। ी







क ीवान् गौतम ता य तथा वै ानरो मु नः । (षडतुः कवषो धू ो रै यो नलपरावसू । व या ेयो जर का ः कहोलः का यप तथा । वभा डक यशृ ौ च उ मुखो वमुख तथा ।।) मु नः कालकवृ ीय आ ा ोऽथ हर मयः ।। १८ ।। संवत दे वह व व सेन वीयवान् । (क वः का यायनो राजन् गा यः कौ शक एव च ।) द ा आप तथौष यः ा मेधा सर वती ।। १९ ।। अथ धम काम व ुत ैव पा डव । जलवाह तथा मेघा वायवः तन य नवः ।। २० ।। ाची द य वाहा पावकाः स त वश तः । अ नीषोमौ तथे ा नी म स वतायमा ।। २१ ।। भगो व े च सा या गु ः शु तथैव च । व ावसु सेनः सुमन त ण तथा ।। २२ ।। य ा द णा ैवं हा तारा भारत । य वाह ये म ाः सव त समासते ।। २३ ।। भरतवंशी नरेश पा डु न दन! सहदे व, सुनीथ, महातप वी वा मी क, स यवाद शमीक, सय त चेता, मेधा त थ, वामदे व, पुल य, पुलह, तु, म , मरी च, महातप वी थाणु, क ीवान्, गौतम, ता य, वै ानर मु न, षडतु, कवष, धू, रै य, नल, परावसु, व या ेय, जर का , कहोल, का यप, वभा डक, ऋ यशृंग, उ मुख, वमुख, कालकवृ ीय मु न, आ ा , हर मय, संवत, दे वह , परा मी व व सेन, क व, का यायन, गा य, कौ शक, द जल, ओष धयाँ, ा, मेधा, सर वती, अथ, धम, काम, व ुत्, जलधर मेघ, वायु, गजना करनेवाले बादल, ाची दशा, य के ह व यको वहन करनेवाले स ाईस पावक,* स म लत अ न और सोम, संयु इ और अ न, म , स वता, अयमा, भग, व ेदेव, सा य, बृह प त, शु , व ावसु, च सेन, सुमन, त ण, व वध य , द णा, ह, तारा और य नवाहक म —ये सभी वहाँ इ सभाम बैठते ह ।। १६—२३ ।। तथैवा सरसो राजन् ग धवा मनोरमाः । नृ यवा द गीतै हा यै व वधैर प ।। २४ ।। रमय त म नृपते दे वराजं शत तुम् । राजन्! इसी कार मनोहर अ सराएँ तथा सु दर ग धव नृ य, वा , गीत एवं नाना कारके हा य ारा दे वराज इ का मनोरंजन करते ह ।। २४ ।। तु त भम लै ैव तुव तः कम भ तथा ।। २५ ।। व मै महा मानं बलवृ नषूदनम् । ी









इतना ही नह , वे तु त, मंगलपाठ और परा म-सूचक कम के गायन ारा बल और वृ नामक असुर के नाशक महा मा इ का तवन करते ह ।। २५ ।। राजषय ैव सव दे वषय तथा ।। २६ ।। वमानै व वधै द ैद यमाना इवा नयः । वणो भू षताः सव या त चाया त चापरे ।। २७ ।। ष, राज ष तथा स पूण दे व ष माला पहने एवं व ाभूषण से वभू षत हो, नाना कारके द वमान ारा अ नके समान दे द यमान होते ए वहाँ आते-जाते रहते ह ।। २६-२७ ।। बृह प त शु न यमा तां ह त वै । एते चा ये च बहवो महा मानो यत ताः ।। २८ ।। वमानै संकाशैः सोमव यदशनाः । णः स शा राजन् भृगुः स तषय तथा ।। २९ ।। बृह प त और शु वहाँ न य वराजते ह। ये तथा और भी ब त-से संयमी महा मा जनका दशन च माके समान य है, च माक भाँ त चमक ले वमान ारा वहाँ उप थत होते ह। राजन्! भृगु और स त ष, जो सा ात् ाजीके समान भावशाली ह, ये भी इ -सभाक शोभा बढ़ाते ह ।। २८-२९ ।। एषा सभा मया राजन् ा पु करमा लनी । शत तोमहाबाहो या याम प सभां शृणु ।। ३० ।। महाबा नरेश! शत तु इ क यह कमल-माला से सुशो भत सभा मने अपनी आँख दे खी है। अब यमराजक सभाका वणन सुनो ।। ३० ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण लोकसभा यानपव ण इ सभावणनं नाम स तमोऽ यायः ।। ७ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत लोकपालसभा यानपवम इ सभा-वणन नामक सातवाँ अ याय पूरा आ ।। ७ ।। (दा णा य अ धक पाठक े २ ोक मलाकर कुल ३२ ोक ह)

अ मोऽ यायः यमराजक सभाका वणन नारद उवाच कथ य ये सभां या यां यु ध र नबोध ताम् । वैव वत य यां पाथ व कमा चकार ह ।। १ ।। नारदजी कहते ह—कु तीन दन यु ध र! अब म सूयपु यमक सभाका वणन करता ँ, सुनो। उसक रचना भी व कमाने ही क है ।। १ ।। तैजसी सा सभा राजन् बभूव शतयोजना । व तारायामस प ा भूयसी चा प पा डव ।। २ ।। राजन्! वह तेजोमयी वशाल सभा ल बाई और चौड़ाईम भी सौ योजन है तथा पा डु न दन! स भव है, इससे भी कुछ बड़ी हो ।। २ ।। अक काशा ा ज णुः सवतः काम पणी । ना तशीता न चा यु णा मनस ह षणी ।। ३ ।। उसका काश सूयके समान है। इ छानुसार प धारण करनेवाली वह सभा सब ओरसे का शत होती है। वह न तो अ धक शीतल है, न अ धक गम। मनको अ य त आन द दे नेवाली है ।। ३ ।। न शोको न जरा त यां ु पपासे न चा यम् । न च दै यं लमो वा प तकूलं न चा युत ।। ४ ।। उसके भीतर न शोक है, न जीणता; न भूख लगती है, न यास। वहाँ कोई भी अ य घटना नह घ टत होती। द नता, थकावट अथवा तकूलताका तो वहाँ नाम भी नह है ।। ४ ।। सव कामाः थता त यां ये द ा ये च मानुषाः । सारव च भूतं च भ यं भो यमरदम ।। ५ ।। श ुदमन! वहाँ द और मानुष, सभी कारके भोग उप थत रहते ह। सरस एवं वा द भ य-भो य पदाथ चुर मा ाम सं चत रहते ह ।। ५ ।। ले ं चो यं च पेयं च ं वा मनोहरम् । पु यग धाः ज त य न यं कामफला माः ।। ६ ।। इसके सवा चाटनेयो य, चूसनेयो य, पीनेयो य तथा दयको य लगनेवाली और भी वा द एवं मनोहर व तुएँ वहाँ सदा तुत रहती ह। उस सभाम प व सुग ध फैलानेवाली पु प-मालाएँ और सदा इ छानुसार फल दे नेवाले वृ लहलहाते रहते ह ।। ६ ।। रसव त च तोया न शीता यु णा न चैव ह । त यां राजषयः पु या तथा षयोऽमलाः ।। ७ ।। ै



यमं वैव वतं तात ाः पयुपासते । वहाँ ठं डे और गम वा द जल न य उपल ध होते ह। तात! वहाँ ब त-से पु या मा राज ष और नमल दयवाले ष स तापूवक बैठकर सूयपु यमक उपासना करते ह ।। ७ ।। यया तन षः पू मा धाता सोमको नृगः ।। ८ ।। स यु राज षः कृतवीयः ुत वाः । अ र ने मः स कृतवेगः कृ त न मः ।। ९ ।। तदनः श बम यः पृथुला ो बृह थः । वात म ः कु शकः सांका यः सांकृ त ुव ।। १० ।। चतुर ः सद ो मः कातवीय पा थवः । भरतः सुरथ ैव सुनीथो नशठो नलः ।। ११ ।। दवोदास सुमना अ बरीषो भगीरथः । ः सद ो व य ः पृथुवेगः पृथु वाः ।। १२ ।। पृषद ो वसुमनाः ुप सुमहाबलः । ष वृषसेन पु कु सो वजी रथी ।। १३ ।। आ षेणो दलीप महा मा चा युशीनरः । औशीन रः पु डरीकः शया तः शरभः शु चः ।। १४ ।। अ ोऽ र वेन य तः सृ यो जयः । भा ासु रः सुनीथ नषधोऽथ वहीनरः ।। १५ ।। कर धमो बा क सु ु नो बलवान् मधुः । ऐलो म तथा बलवान् पृ थवीप तः ।। १६ ।। कपोतरोमा तृणकः सहदे वाजुनौ तथा । ः सा ः कृशा शश ब पा थवः ।। १७ ।। राजा दशरथ ैव ककु थोऽथ वधनः । अलकः क सेन गयो गौरा एव च ।। १८ ।। जामद य राम नाभागसगरौ तथा । भू र ु नो महा पृथा ो जनक तथा ।। १९ ।। राजा वै यो वा रसेनः पु ज जनमेजयः । द गत राजोप रचर तथा ।। २० ।। इ ु नो भीमजानुग रपृ ोऽनघो लयः । पोऽथ मुचुक ु द भू र ु नः सेन जत् ।। २१ ।। अ र ने मः सु ु नः पृथुला ोऽ क तथा । शतं म या नृपतयः शतं नीपाः शतं गयाः ।। २२ ।। धृतरा ा ैकशतमशी तजनमेजयाः । शतं च द ानां वी रणामी रणां शतम् ।। २३ ।। ी







भी माणां े शतेऽ य भीमानां तु तथा शतम् । शतं च त व यानां शतं नागाः शतं हयाः ।। २४ ।। पलाशानां शतं ेयं शतं काशकुशादयः । शा तनु ैव राजे पा डु ैव पता तव ।। २५ ।। उश वः शतरथो दे वराजो जय थः । वृषदभ राज षबु मान् सह म भः ।। २६ ।। अथापरे सह ा ण ये गताः शश ब दवः । इ ् वा मेधैब भमह भू रद णैः ।। २७ ।। एते राजषयः पु याः क तम तो ब ुताः । त यां सभायां राजे वैव वतमुपासते ।। २८ ।। यया त, न ष, पू , मा धाता, सोमक, नृग, स यु, राज ष कृतवीय, ुत वा, अ र ने म, स , कृतवेग, कृ त, न म, तदन, श ब, म य, पृथुला , बृह थ, वात, म , कु शक, सांका य, सांकृ त, ुव, चतुर , सद ोम, राजा कातवीय अजुन, भरत, सुरथ, सुनीथ, नशठ, नल, दवोदास, सुमना, अ बरीष, भगीरथ, , सद , व य , पृथुवेग, पृथु वा, पृषद , वसुमना, महाबली ुप, ष , वृषसेन, रथ और वजासे यु पु कु स, आ षेण, दलीप, महा मा उशीनर, औशीन र, पु डरीक, शया त, शरभ, शु च, अंग, अ र , वेन, य त, सृंजय, जय, भांगासु र, सुनीथ, नषध, वहीनर, कर धम, बा क, सु ु न, बलवान् मधु, इला-न दन पु रवा, बलवान् राजा म , कपोतरोमा, तृणक, सहदे व, अजुन, , सा , कृशा , राजा शश ब , महाराज दशरथ, ककु थ, वधन, अलक, क सेन, गय, गौरा , जमद नन दन परशुराम, नाभाग, सगर, भू र ु न, महा , पृथा , जनक, राजा पृथु, वा रसेन, पु जत्, जनमेजय, द , गत, राजा उप रचर, इ ु न, भीमजानु, गौरपृ , अनघ, लय, प , मुचुकु द, भू र ु न, सेन जत्, अ र ने म, सु ु न, पृथुला , अ क, एक सौ म य, एक सौ नीप, एक सौ गय, एक सौ धृतरा, अ सी जनमेजय, सौ द , सौ वीरी, सौ ईरी, दो सौ भी म, एक सौ भीम, एक सौ त व य, एक सौ नाग तथा एक सौ हय, सौ पलाश, सौ काश और सौ कुश राजा एवं शा तनु, तु हारे पता पा डु , उशंगव, शतरथ, दे वराज, जय थ, म य स हत बु मान् राज ष वृषदभ तथा इनके सवा सह शश ब नामक राजा, जो अ धक द णावाले अनेक महान् अ मेधय ारा यजन करके धमराजके लोकम गये ए ह। राजे ! ये सभी पु या मा, क तमान् और ब ुत राज ष उस सभाम सूयपु यमक उपासना करते ह ।। ८ —२८ ।। अग योऽथ मत कालो मृ यु तथैव च । य वान ैव स ा ये च योगशरी रणः ।। २९ ।। अ न वा ा पतरः फेनपा ो मपा ये । वधाव तो ब हषदो मू तम त तथापरे ।। ३० ।। कालच ं च सा ा च भगवान् ह वाहनः । नरा कृतकमाणो द णायनमृ यवः ।। ३१ ।। े े

काल य नयने यु ा यम य पु षा ये । त यां शशपपालाशा तथा काशकुशादयः । उपासते धमराजं मू तम तो जना धप ।। ३२ ।। अग य, मतंग, काल, मृ यु, य कता, स , योगशरीरधारी, अ न वा पतर, फेनप, ऊ मप, वधावान्, ब हषद् तथा सरे मू तमान् पतर, सा ात् कालच (संव सर आ द काल वभागके अ भमानी दे वता), भगवान् ह वाहन (अ न), द णायनम मरनेवाले तथा सकामभावसे कर ( मसा य) कम करनेवाले मनु य, जने र कालक आ ाम त पर यम त, शशप एवं पलाश, काश और कुश आ दके अ भमानी दे वता मू तमान् होकर उस सभाम धमराजक उपासना करते ह ।। २९—३२ ।। एते चा ये च बहवः पतृराजसभासदः । न श याः प रसं यातुं नाम भः कम भ तथा ।। ३३ ।। ये तथा और भी ब त-से लोग पतृराज यमक सभाके सद य ह, जनके नाम और कम क गणना नह क जा सकती ।। ३३ ।। अस बाधा ह सा पाथ र या कामगमा सभा । द घकालं तप त वा न मता व कमणा ।। ३४ ।। कु तीन दन! वह सभा बाधार हत है। वह रमणीय तथा इ छानुसार गमन करनेवाली है। व कमाने द घ-कालतक तप या करके उसका नमाण कया है ।। ३४ ।। वल ती भासमाना च तेजसा वेन भारत । तामु तपसो या त सु ताः स यवा दनः ।। ३५ ।। शा ताः सं या सनः शु ाः पूताः पु येन कमणा । सव भा वरदे हा सव च वरजोऽ बराः ।। ३६ ।। भारत! वह सभा अपने तेजसे व लत तथा उ ा सत होती रहती है। कठोर तप या और उ म तका पालन करनेवाले, स यवाद , शा त, सं यासी तथा अपने पु यकमसे शु एवं प व ए पु ष उस सभाम जाते ह। उन सबके शरीर तेजसे का शत होते रहते ह। सभी नमल व धारण करते ह ।। ३५-३६ ।। च ा दा मा याः सव व लतकु डलाः । सुकृतैः कम भः पु यैः पा रबह भू षताः ।। ३७ ।। सभी अ त बाजूबंद, व च हार और जगमगाते ए कु डल धारण करते ह। वे अपने प व शुभ कम तथा व ाभूषण से भी वभू षत होते ह ।। ३७ ।। ग धवा महा मानः सङ् घश ा सरोगणाः । वा द ं नृ यगीतं च हा यं ला यं च सवशः ।। ३८ ।। कतने ही महामना ग धव और झुंड-क -झुंड अ सराएँ उस सभाम उप थत हो सब कारके वा , नृ य, गीत, हा य और ला यक उ म कलाका दशन करती ह ।। ३८ ।। पु या ग धाः श दा त यां पाथ सम ततः । द ा न चैव मा या न उप त त न यशः ।। ३९ ।। ी







कु तीकुमार! उस सभाम सदा सब ओर प व ग ध, मधुर श द और द माला के सुखद पश ा त होते रहते ह ।। ३९ ।। शतं शतसह ा ण ध मणां तं जे रम् । उपासते महा मानं पयु ा मन वनः ।। ४० ।। सु दर प धारण करनेवाले एक करोड़ धमा मा एवं मन वी पु ष महा मा यमक उपासना करते ह ।। ४० ।। ई शी सा सभा राजन् पतृरा ो महा मनः । व ण या प व या म सभां पु करमा लनीम् ।। ४१ ।। राजन्! पतृराज महा मा यमक सभा ऐसी ही है। अब म व णक मू तमान् पु कर आ द तीथमाला से सुशो भत सभाका भी वणन क ँ गा ।। ४१ ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण लोकपालसभा यानपव ण यमसभावणनं नामा मोऽ यायः ।। ८ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत लोकपालसभा यानपवम यमसभा-वणन नामक आठवाँ अ याय पूरा आ ।। ८ ।।

* नीलक ठने अपनी ट काम इन स ाईस पावक के नाम इस कार बताये ह—अं गरा, द णा न, गाहप या न, आहवनीया न, नम य, वै ुत, शूर, संवत, लौ कक, जठरा न, वषग, ात्, ेमवान्, वै णव, द युमान्, बलद, शा त, पु , वभावसु, यो त मान्, भरत, भ , व कृत्, वसुमान्, तु, सोम और पतृमान्।

नवमोऽ यायः व णक सभाका वणन नारद उवाच यु ध र सभा द ा व ण या मत भा । माणेन यथा या या शुभ ाकारतोरणा ।। १ ।। नारदजी कहते ह—यु ध र! व णदे वक द सभा अपनी अन त का तसे का शत होती रहती है। उसक भी लंबाई-चौड़ाईका मान वही है, जो यम-राजक सभाका है। उसके परकोटे और फाटक बड़े सु दर ह ।। १ ।। अ तःस ललमा थाय व हता व कमणा । द ै र नमयैवृ ैः फलपु प दै युता ।। २ ।। व कमाने उस सभाको जलके भीतर रहकर बनाया है। वह फल-फूल दे नेवाले द र नमय वृ से सुशो भत होती है ।। २ ।। नीलपीता सत यामैः सतैल हतकैर प । अवतानै तथा गु मैम रीजालधा र भः ।। ३ ।। उस सभाके भ - भ दे श नीले-पीले, काले, सफेद और लाल रंगके लतागु म से आ छा दत ह। उन लता ने मनोहर मंजरीपुंज धारण कर रखे ह ।। ३ ।। तथा शकुनय त यां व च ा मधुर वराः । अ नद या वपु म तः शतशोऽथ सह शः ।। ४ ।। सभाभवनके भीतर व च और मधुर वरसे बोलनेवाले सैकड़ -हजार प ी चहकते रहते ह। उनके वल ण प-सौ दयका वणन नह हो सकता। उनक आकृ त बड़ी सु दर है ।। ४ ।। सा सभा सुखसं पशा न शीता न च घमदा । वे मासनवती र या सता व णपा लता ।। ५ ।। व णक सभाका पश बड़ा ही सुखद है, वहाँ न सद है, न गम । उसका रंग ेत है, उसम कतने ही कमरे और आसन ( द मंच आ द) सजाये गये ह। व णजीके ारा सुर त वह सभा बड़ी रमणीय जान पड़ती है ।। ५ ।। य यामा ते स व णो वा या च सम वतः । द र ना बरधरो द ाभरणभू षतः ।। ६ ।। उसम द र न और व को धारण करनेवाले तथा द अलंकार से अलंकृत व णदे व वा णी दे वीके साथ वराजमान होते ह ।। ६ ।। वणो द ग धा द ग धानुलेपनाः । आ द या त व णं जले रमुपासते ।। ७ ।। े



उस सभाम द हार, द सुग ध तथा द च दनका अंगराग धारण करनेवाले आ द यगण जलके वामी व णक उपासना करते ह ।। ७ ।। वासु क त क ैव नाग ैरावत तथा । कृ ण लो हत ैव प वीयवान् ।। ८ ।। वासु क नाग, त क, ऐरावतनाग, कृ ण, लो हत, प और परा मी च , ।। ८ ।। क बला तरौ नागौ धृतरा बलाहकौ । (म णनाग नाग म णः शङ ् खनख तथा । कौर ः व तक ैव एलाप वामनः ।। अपरा जत दोष न दकः पूरण तथा । अभीकः श भकः ेतो भ ो भ े र तथा ।।) म णमान् कु डधार कक टकधनंजयौ ।। ९ ।। क बल, अ तर, धृतरा, बलाहक, म णनाग, नाग, म ण, शंखनख, कौर , व तक, एलाप , वामन, अपरा जत, दोष, न दक, पूरण, अभीक, श भक, ेत, भ , भ े र, म णमान्, कु डधार, कक टक, धनंजय, ।। ९ ।। पा णमान् कु डधार बलवान् पृ थवीपते । ादो मू षकाद तथैव जनमेजयः ।। १० ।। पता कनो म ड लनः फणाव त सवशः । (अन त महानागो यं स ् वा जले रः । अ यचय त स कारैरासनेन च तं वभुम् ।। वासु क मुखा ैव सव ा लयः थताः । अनु ाता शेषेण यथाहमुप व य च ।।) एते चा ये च बहवः सपा त यां यु ध र । उपासते महा मानं व ण वगत लमाः ।। ११ ।। पा णमान्, बलवान् कु डधार, ाद, मू षकाद, जनमेजय आ द नाग जो पताका, म डल और फण से सुशो भत वहाँ उप थत होते ह, महानाग भगवान् अन त भी वहाँ थत होते ह, ज ह दे खते ही जलके वामी व ण आसन आ द दे ते और स कारपूवक उनका पूजन करते ह। वासु क आ द सभी नाग हाथ जोड़कर उनके सामने खड़े होते और भगवान् शेषक आ ा पाकर यथायो य आसन पर बैठकर वहाँक शोभा बढ़ाते ह। यु ध र! ये तथा और भी ब तसे नाग उस सभाम लेशर हत हो महा मा व णक उपासना करते ह ।। १०-११ ।। ब लवरोचनो राजा नरकः पृ थव जयः । ादो व च कालख ा दानवाः ।। १२ ।। सुहनु मुखः शुङ्खः सुमनाः सुम त ततः । घटोदरो महापा ः थनः पठर तथा ।। १३ ।। व पः व प व पोऽथ महा शराः । दश ीव वाली च मेघवासा दशावरः ।। १४ ।। ो े

ट भो वटभूत सं ाद े तापनः । दै यदानवसङ् घा सव चरकु डलाः ।। १५ ।। वणो मौ लन ैव तथा द प र छदाः । सव लधवराः शूराः सव वगतमृ यवः ।। १६ ।। ते त यां व णं दे वं धमपाशधरं सदा । उपासते महा मानं सव सुच रत ताः ।। १७ ।। वरोचनपु राजा ब ल, पृ वी वजयी नरकासुर, ाद, व च , कालखंज दानव, सुहनु, मुख, शंख, सुमना, सुम त, घटोदर, महापा , थन, पठर, व प, व प, व प, महा शरा, दशमुख रावण, वाली, मेघवासा, दशावर, ट भ, वटभूत, संाद तथा इ तापन आ द सभी दै य और दानव के समुदाय मनोहर कु डल, सु दर हार, करीट तथा द व ाभूषण धारण कये उस सभाम धमपाशधारी महा मा व णदे वक सदा उपासना करते ह। वे सभी दै य वरदान पाकर शौयस प हो मृ युर हत हो गये ह। उनका च र एवं त ब त उ म है ।। १२—१७ ।। तथा समु ा वारो नद भागीरथी च सा । का ल द व दशा वेणा नमदा वेगवा हनी ।। १८ ।। चार समु , भागीरथी नद , का ल द , व दशा, वेणा, नमदा, वेगवा हनी, ।। १८ ।। वपाशा च शत च भागा सर वती । इरावती वत ता च स धुदवनद तथा ।। १९ ।। वपाशा, शत , च भागा, सर वती, इरावती, वत ता, स धु, दे वनद , ।। १९ ।। गोदावरी कृ णवेणा कावेरी च स र रा । क पुना च वश या च तथा वैतरणी नद ।। २० ।। गोदावरी, कृ णवेणा, स रता म े कावेरी, क पुना, वश या, वैतरणी नद , ।। २० ।। तृतीया ये ला चैव शोण ा प महानदः । चम वती तथा चैव पणाशा च महानद ।। २१ ।। तृतीया, ये ला, महानद शोण, चम वती, पणाशा, महानद , ।। २१ ।। सरयूवारव याथ ला ली च स र रा । करतोया तथा ेयी लौ ह य महानदः ।। २२ ।। सरयू, वारव या, स रता म े लांगली, करतोया, आ ेयी, महानद लौ ह य, ।। २२ ।। लङ् घती गोमती चैव सं या ः ोतसी तथा । एता ा या राजे सुतीथा लोक व ुताः ।। २३ ।। भरतवंशी राजे यु ध र! लंघती, गोमती, सं या और ोतसी, ये तथा सरे लोक व यात उ म तीथ (वहाँ व णक उपासना करते ह), ।। २३ ।। स रतः सवत ा या तीथा न च सरां स च । कूपा स वणा दे हव तो यु ध र ।। २४ ।। े

प वला न तडागा न दे हव यथ भारत । दश तथा मही चैव तथा सव महीधराः ।। २५ ।। उपासते महा मानं सव जलचरा तथा । सम त स रताएँ, जलाशय, सरोवर, कूप, झरने, पोखरे और तालाब, स पूण दशाएँ, पृ वी, पवत तथा स पूण जलचर जीव अपने-अपने व प धारण करके महा मा व णक उपासना करते ह ।। २४-२५ ।। गीतवा द व त ग धवा सरसां गणाः ।। २६ ।। तुव तो व णं त यां सव एव समासते । सभी ग धव और अ सरा के समुदाय भी गीत गाते और बाजे बजाते ए उस सभाम व णदे वताक तु त एवं उपासना करते ह ।। २६ ।। महीधरा र नव तो रसा ये च त ताः ।। २७ ।। कथय तः सुमधुराः कथा त समासते । र नयु पवत और त त रस (मू तमान् होकर) अ य त मधुर कथाएँ कहते ए वहाँ नवास करते ह ।। २७ ।। वा ण तथा म ी सुनाभः पयुपासते ।। २८ ।। पु पौ ैः प रवृतो गोना ना पु करेण च । व णका म ी सुनाभ अपने पु -पौ से घरा आ गौ तथा पु कर नामवाले तीथके साथ व णदे वक उपासना करता है ।। २८ ।। सव व हव त ते तमी रमुपासते ।। २९ ।। ये सभी शरीर धारण करके लोके र व णक उपासना करते रहते ह ।। २९ ।। एषा मया स पतता वा णी भरतषभ । पूवा सभा र या कुबेर य सभां शृणु ।। ३० ।। भरत े ! पहले सब ओर घूमते ए मने व णजीक इस रमणीय सभाका भी दशन कया है। अब तुम कुबेरक सभाका वणन सुनो ।। ३० ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण लोकपालसभा यानपव ण व णसभावणने नवमोऽ यायः ।। ९ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत लोकपालसभा यानपवम व णसभावणन वषयक नवाँ अ याय पूरा आ ।। ९ ।। (दा णा य अ धक पाठक े ४ ोक मलाकर कुल ३४ ोक ह)

दशमोऽ यायः कुबेरक सभाका वणन नारद उवाच सभा वै वणी राज छतयोजनमायता । व तीणा स त त ैव योजना न सत भा ।। १ ।। नारदजी कहते ह—राजन्! कुबेरक सभा सौ योजन लंबी और स र योजन चौड़ी है, वह अ य त ेत भासे यु है ।। १ ।। तपसा न जता राजन् वयं वै वणेन सा । श श भा ावरणा कैलास शखरोपमा ।। २ ।। यु ध र! व वाके पु कुबेरने वयं ही तप या करके उस सभाको ा त कया है। वह अपनी धवल का तसे च माक चाँदनीको भी तर कृत कर दे ती है और दे खनेम कैलास शखर-सी जान पड़ती है ।। २ ।। गु कै माना सा खे वष े व शोभते । द ा हेममयै चैः ासादै पशो भता ।। ३ ।। गु कगण जब उस सभाको उठाकर ले चलते ह, उस समय वह आकाशम सट ईसी सुशो भत होती है। यह द सभा ऊँचे सुवणमय महल से शोभायमान होती है ।। ३ ।। महार नवती च ा द ग धा मनोरमा । सता शखराकारा लवमानेव यते ।। ४ ।। महान् र न से उसका नमाण आ है। उसक झाँक बड़ी व च है। उससे द सुग ध फैलती रहती है और वह दशकके मनको अपनी ओर ख च लेती है। ेत बादल के शखर-सी तीत होनेवाली वह सभा आकाशम तैरती-सी दखायी दे ती है ।। ४ ।। द ा हेममयैर ै व ु रव च ता । उस द सभाक द वार व ुतक ् े समान उ त होनेवाले सुनहले रंग से च त क गयी ह ।। ४ ।। त यां वै वणो राजा व च ाभरणा बरः ।। ५ ।। ीसह ैवृतः ीमाना ते व लतकु डलः । दवाकर नभे पु य द ा तरणसंवृते । द पादोपधाने च नष णः परमासने ।। ६ ।। उस सभाम सूयके समान चमक ले द बछौन से ढके ए तथा द पादपीठ से सुशो भत े सहासनपर कान म यो तसे जगमगाते कु डल और अंग म व च व एवं आभूषण धारण करनेवाले ीमान् राजा वै वण (कुबेर) सह य से घरे ए बैठते ह ।। ५-६ ।। म दाराणामुदाराणां वना न प रलोडयन् । ौ



सौग धकवनानां च ग धं ग धवहो वहन् ।। ७ ।। न ल या ालका याया न दन य वन य च । शीतो दयसं ाद वायु तमुपसेवते ।। ८ ।। (अपने पास आये ए याचकक येक इ छा पूण करनेम अ य त) उदार म दार वृ के वन को आ दो लत करता तथा सौग धक कानन, अलका नामक पु क रणी और न दन वनक सुग धका भार वहन करता आ दयको आन द दान करनेवाला ग धवाही शीतल समीर उस सभाम कुबेरक सेवा करता है ।। ७-८ ।। त दे वाः सग धवा गणैर सरसां वृताः । द तानैमहाराज गाय त म सभागताः ।। ९ ।। महाराज! दे वता और ग धव अ सरा के साथ उस सभाम आकर द तान से यु गीत गाते ह ।। ९ ।। म केशी च र भा च च सेना शु च मता । चा ने ा घृताची च मेनका पु क थला ।। १० ।। व ाची सहज या च लोचा उवशी इरा । वगा च सौरभेयी च समीची बुदबु ् दा लता ।। ११ ।। एताः सह श ा या नृ यगीत वशारदाः । उप त त धनदं ग धवा सरसां गणाः ।। १२ ।। म केशी, र भा, च सेना, शु च मता, चा ने ा, घृताची, मेनका, पुं जक थला, व ाची, सहज या, लोचा, उवशी, इरा, वगा, सौरभेयी, समीची, बुदबु ् दा तथा लता आ द नृ य और गीतम कुशल सह अ सरा और ग धव के गण कुबेरक सेवाम उप थत होते ह ।। १०—१२ ।। अ नशं द वा द ैनृ यगीतै सा सभा । अशू या चरा भा त ग धवा सरसां गणैः ।। १३ ।। ग धव और अ सरा के समुदायसे भरी तथा द वा , नृ य एवं गीत से नर तर गूँजती ई कुबेरक वह सभा बड़ी मनोहर जान पड़ती है ।। १३ ।। क रा नाम ग धवा नरा नाम तथा परे ।। १४ ।। म णभ ोऽथ धनदः ेतभ गु कः । कशेरको ग डक डू ः ोत महाबलः ।। १५ ।। कु तु बु ः पशाच गजकण वशालकः । वराहकण ता ो ः फलक ः फलोदकः ।। १६ ।। हंसचूडः शखावत हेमने ो वभीषणः । पु पाननः प लकः शो णतोदः वालकः ।। १७ ।। वृ वा य नकेत चीरवासा भारत । एते चा ये च बहवो य ाः शतसह शः ।। १८ ।। क र तथा नर नामवाले ग धव, म णभ , धनद, ेतभ , गु क, कशेरक, ग डक डू , महाबली ोत, कु तु बु पशाच, गजकण, वशालक, वराहकण, ताो , ो े े ी ो ो

फलक , फलोदक, हंसचूड, शखावत, हेमने , वभीषण, पु पानन, पगलक, शो णतोद, वालक, वृ वासी, अ नकेत तथा चीरवासा, भारत! ये तथा सरे ब त-से य लाख क सं याम उप थत होकर उस सभाम कुबेरक सेवा करते ह ।। १४—१८ ।। सदा भगवती ल मी त ैव नलकूबरः । अहं च ब श त यां भव य ये च म धाः ।। १९ ।। धन-स प क अ ध ा ी दे वी भगवती ल मी, नलकूबर, म तथा मेरे-जैसे और भी ब त-से लोग ायः उस सभाम उप थत होते ह ।। १९ ।। षयो भव य तथा दे वषयोऽपरे । ादा तथैवा ये ग धवा महाबलाः ।। २० ।। उपासते महा मानं त यां धनदमी रम् । ष, दे व ष तथा अ य ऋ षगण उस सभाम वराजमान होते ह। इनके सवा ब तसे पशाच और महाबली ग धव वहाँ लोकपाल महा मा धनदक उपासना करते ह ।। २० ।। भगवान् भूतसङ् घै वृतः शतसह शः ।। २१ ।। उमाप तः पशुप तः शूलभृद ् भगने हा । य बको राजशा ल दे वी च वगत लमा ।। २२ ।। वामनै वकटै ः कु जैः तजा ैमहारवैः । मेदोमांसाशनै ै ध वा महाबलः ।। २३ ।। नाना हरणै ैवातै रव महाजवैः । वृतः सखायम वा ते सदै व धनदं नृप ।। २४ ।। नृप े ! लाख भूतसमूह से घरे ए उ धनुधर महाबली पशुप त (जीव के वामी), शूलधारी, भगदे वताके ने न करनेवाले तथा लोचन भगवान् उमाप त और लेशर हत दे वी पावती ये दोन , वामन, वकट, कु ज, लाल ने वाले, महान् कोलाहल करनेवाले, मेदा और मांस खानेवाले, अनेक कारके अ -श धारण करनेवाले तथा वायुके समान महान् वेगशाली भयानक भूत- ेता दके साथ उस सभाम सदै व धन दे नेवाले अपने म कुबेरके पास बैठते ह ।। २१—२४ ।। ाः शतश ा ये ब शः सप र छदाः । ग धवाणां च पतयो व ावसुहहा ः ।। २५ ।। तु बु ः पवत ैव शैलूष तथापरः । च सेन गीत तथा च रथोऽ प च ।। २६ ।। एते चा ये च ग धवा धने रमुपासते । इनके सवा और भी व वध व ाभूषण से वभू षत और स च सैकड़ ग धवप त व ावसु, हाहा, , तु बु , पवत, शैलूष, संगीत च सेन तथा च रथ—ये और अ य ग धव भी धना य कुबेरक उपासना करते ह ।। २५-२६ ।। व ाधरा धप ैव च धमा सहानुजैः ।। २७ ।। ी

उपाचर त त म धनानामी रं भुम् ।। २८ ।। व ाधर के अ धप त च धमा भी अपने छोटे भाइय के साथ वहाँ धने र भगवान् कुबेरक आराधना करते ह ।। २७-२८ ।। आसते चा प राजानो भगद पुरोगमाः । मः क पु षेश उपा ते धनदे रम् ।। २९ ।। भगद आ द राजा भी उस सभाम बैठते ह तथा क र के वामी म कुबेरक उपासना करते ह ।। २९ ।। रा सा धप त ैव महे ो ग धमादनः । सह य ैः सग धवः सह सव नशाचरैः ।। ३० ।। वभीषण ध म उपा ते ातरं भुम् । महे , ग धमादन एवं धम न रा सराज वभीषण भी य , ग धव तथा स पूण नशाचर के साथ अपने भाई भगवान् कुबेरक उपासना करते ह ।। ३० ।। हमवान् पा रया व यकैलासम दराः ।। ३१ ।। मलयो द र ैव महे ो ग धमादनः । इ क लः सुनाभ तथा द ौ च पवतौ ।। ३२ ।। एते चा ये च बहवः सव मे पुरोगमाः । उपासते महा मानं धनानामी रं भुम् ।। ३३ ।। हमवान्, पा रया , व य, कैलास, म दराचल, मलय, द र, महे , ग धमादन और इ क ल तथा सुनाभ नामवाले दोन द पवत—ये तथा अ य सब मे आ द ब त-से पवत धनके वामी महामना भु कुबेरक उपासना करते ह ।। ३१—३३ ।। न द र भगवान् महाकाल तथैव च । शङ् कुकणमुखाः सव द ाः पा रषदा तथा ।। ३४ ।। का ः कुट मुखो द ती वजय तपोऽ धकः । ेत वृषभ त नद ा ते महाबलः ।। ३५ ।। भगवान् न द र, महाकाल तथा शंकुकण आ द भगवान् शवके सभी द -पाषद का , कुट मुख, द ती, तप वी वजय तथा गजनशील महाबली ेत वृषभ वहाँ उप थत रहते ह ।। ३४-३५ ।। धनदं रा सा ा ये पशाचा उपासते । पा रषदै ः प रवृतमुपाया तं महे रम् ।। ३६ ।। सदा ह दे वदे वेशं शवं ैलो यभावनम् । ण य मू ना पौल यो ब पमुमाप तम् ।। ३७ ।। ततोऽ यनु ां स ा य महादे वाद् धने रः । आ ते कदा चत् भगवान् भवो धनपतेः सखा ।। ३८ ।। सरे- सरे रा स और पशाच भी धनदाता कुबेरक उपासना करते ह। पाषद से घरे ए दे वदे वे र, भुवनभावन, ब पधारी, क याण व प, उमाव लभ भगवान् महे र े





जब उस सभाम पधारते ह, तब पुल यन दन धना य कुबेर उनके चरण म म तक रखकर णाम करते और उनक आ ा ले उ ह के पास बैठ जाते ह। उनका सदाका यही नयम है। कुबेरके सखा भगवान् शंकर कभी-कभी उस सभाम पदापण कया करते ह ।। ३६—३८ ।। न ध वरमु यौ च शङ् खपौ धने रौ । सवान् नधीन् गृ ाथ उपासाते धने रम् ।। ३९ ।। े न धय म मुख और धनके अधी र शंख तथा प —ये दोन (मू तमान् हो) अ य सब न धय को साथ ले धना य कुबेरक उपासना करते ह ।। ३९ ।। सा सभा ता शी र या मया ा त र गा । पतामहसभां राजन् क त य ये नबोध ताम् ।। ४० ।। राजन्! कुबेरक वैसी रमणीय सभा जो आकाशम वचरनेवाली है, मने अपनी आँख दे खी है। अब म ाजीक सभाका वणन क ँ गा, उसे सुनो ।। ४० ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण लोकपालसभा यानपव ण धनदसभावणनं नाम दशमोऽ यायः ।। १० ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत लोकपालसभा यानपवम कुबेरसभा-वणन नामक दसवाँ अ याय पूरा आ ।। १० ।।

एकादशोऽ यायः ाजीक सभाका वणन नारद उवाच पतामहसभां तात कयमानां नबोध मे । श यते या न नद ु मेवं पे त भारत ।। १ ।। नारदजी कहते ह—तात भारत! अब तुम मेरे मुखसे कही ई पतामह ाजीक सभाका वणन सुनो! वह सभा ऐसी है, इस पसे नह बतलायी जा सकती ।। १ ।। पुरा दे वयुगे राज ा द यो भगवान् दवः । आग छ मानुषं लोकं द ु वगत लमः ।। २ ।। चरन् मानुष पेण सभां ् वा वय भुवः । स तामकथय म ं ा त वेन पा डव ।। ३ ।। राजन्! पहले स ययुगक बात है, भगवान् सूय ाजीक सभा दे खकर फर मनु यलोकको दे खनेके लये बना प र मके ही ुलोकसे उतरकर इस लोकम आये और मनु य पसे इधर-उधर वचरने लगे। पा डु न दन! सूयदे वने मुझसे उस ा ी सभाका यथाथतः वणन कया ।। २-३ ।। अ मेयां सभां द ां मानस भरतषभ । अ नद यां भावेण सवभूतमनोरमाम् ।। ४ ।। भरत े ! वह सभा अ मेय, द , ाजीके मान सक संक पसे कट ई तथा सम त ा णय के मनको मोह लेनेवाली है। उसका भाव अवणनीय है ।। ४ ।। ु वा गुणानहं त याः सभायाः पा डवषभ । दशने सु तथा राज ा द य मदम ुवम् ।। ५ ।। पा डु कुलभूषण यु ध र! उस सभाके अलौ कक गुण सुनकर मेरे मनम उसके दशनक इ छा जाग उठ और मने सूयदे वसे कहा— ।। ५ ।। भगवन् ु म छा म पतामहसभां शुभाम् । येन वा तपसा श या कमणा वा प गोपते ।। ६ ।। औषधैवा तथा यु ै मा पापना शनी । त ममाच व भगवन् प येयं तां सभां यथा ।। ७ ।। ‘भगवन्! म भी ाजीक क याणमयी सभाका दशन करना चाहता ँ। करण के वामी सूयदे व! जस तप यासे, स कमसे अथवा उपयु ओष धय के भावसे उस पापना शनी उ म सभाका दशन हो सके, वह मुझे बताइये। भगवन्! म जैसे भी उस सभाको दे ख सकूँ, उस उपायका वणन क जये’ ।। ६-७ ।। स त मम वचः ु वा सह ांशु दवाकरः । ोवाच भरत े तं वषसह कम् ।। ८ ।। े

तमुपा व वं यतेना तरा मना । ततोऽहं हमव पृ े समारधो महा तम् ।। ९ ।। भरत े ! मेरी वह बात सुनकर सह करण वाले भगवान् दवाकरने कहा—‘तुम एका च होकर ाजीके तका पालन करो। वह े त एक हजार वष म पूण होगा।’ तब मने हमालयके शखरपर आकर उस महान् तका अनु ान आर भ कर दया ।। ८-९ ।। ततः स भगवान् सूय मामुपादाय वीयवान् । आग छत् तां सभां ा वपा मा वगत लमः ।। १० ।। तदन तर मेरी तप या पूण होनेपर पापर हत, लेशशू य और परम श शाली भगवान् सूय मुझे साथ ले ाजीक उस सभाम गये ।। १० ।। एवं पे त सा श या न नद ु ं नरा धप । णेन ह बभ य यद नद यं वपु तथा ।। ११ ।। राजन्! वह सभा ‘ऐसी ही है’ इस कार नह बतायी जा सकती; य क वह एक-एक णम सरा अ नवचनीय व प धारण कर लेती है ।। ११ ।। न वेद प रमाणं वा सं थानं चा प भारत । न च पं मया ता ग् पूव कदाचन ।। १२ ।। भारत! उसक लंबाई-चौड़ाई कतनी है अथवा उसक थ त या है, यह सब म कुछ नह जानता। मने कसी भी सभाका वैसा व प पहले कभी नह दे खा था ।। १२ ।। सुसुखा सा सदा राजन् न शीता न च घमदा । न ु पपासे न ला न ा य तां ा ुव युत ।। १३ ।। राजन्! वह सदा उ म सुख दे नेवाली है। वहाँ न सदका अनुभव होता है, न गम का। उस सभाम प ँच जानेपर लोग को भूख, यास और ला नका अनुभव नह होता। । १३ ।। नाना पै रव कृता म ण भः सा सुभा वरैः । त भैन च धृता सा तु शा ती न च सा रा ।। १४ ।। वह सभा अनेक कारक अ य त काशमान म णय से नमत ई है। वह खंभ के आधारपर नह टक है और उसम कभी य प वकार न आनेके कारण वह न य मानी गयी है* ।। १४ ।। द ैनाना वधैभावैभास र मत भैः ।। १५ ।। अ त च ं च सूय च शखनं च वय भा । द यते नाकपृ था भ सय तीव भा करम् ।। १६ ।। अन त भावाले नाना कारके काशमान द पदाथ ारा अ न, च मा और सूयसे भी अ धक वयं ही का शत होनेवाली वह सभा अपने तेजसे सूयम डलको तर कृत करती ई-सी वगसे भी ऊपर थत ई का शत हो रही है ।। १५-१६ ।। त यां स भगवाना ते वदधद् दे वमायया । वयमेकोऽ नशं राजन् सवलोक पतामहः ।। १७ ।। ो



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राजन्! उस सभाम स पूण लोक के पतामह ाजी दे वमाया ारा सम त जगत्क वयं ही सृ करते ए सदा अकेले ही वराजमान होते ह ।। १७ ।। उप त त चा येनं जानां पतयः भुम् । द ः चेताः पुलहो मरी चः क यपः भुः ।। १८ ।। भारत! वहाँ द आ द जाप तगण उन भगवान् ाजीक सेवाम उप थत होते ह। द , चेता, पुलह, मरी च, भावशाली क यप, ।। १८ ।। भृगुर व स गौतमोऽथ तथा राः । पुल य तु ैव ादः कदम तथा ।। १९ ।। भृग,ु अ , व स , गौतम, अं गरा, पुल य, तु, ाद, कद म, ।। १९ ।। अथवा रस ैव बालख या मरी चपाः । मनोऽ त र ं व ा वायु तेजो जलं मही ।। २० ।। श द पश तथा पं रसो ग ध भारत । कृ त वकार य चा यत् कारणं भुवः ।। २१ ।। अथवा गरस, सूय करण का पान करनेवाले बालख य, मन, अ त र , व ा, वायु, तेज, जल, पृ वी, श द, पश, प, रस, ग ध, कृ त, वकृ त तथा पृ वीक रचनाके जो अ य कारण ह, इन सबके अ भमानी दे वता, ।। २०-२१ ।। अग य महातेजा माक डेय वीयवान् । जमद नभर ाजः संवतयवन तथा ।। २२ ।। महातेज वी अग य, श शाली माक डेय, जमद न, भर ाज, संवत, यवन, ।। २२ ।। वासा महाभाग ऋ यशृ धा मकः । सन कुमारो भगवान् योगाचाय महातपाः ।। २३ ।। महाभाग वासा, धमा मा ऋ यशृंग, महातप वी योगाचाय भगवान् सन कुमार, ।। २३ ।। अ सतो दे वल ैव जैगीष त व वत् । ऋषभो जतश ु महावीय तथा म णः ।। २४ ।। अ सत, दे वल, त व ानी जैगीष , श ु वजयी ऋषभ, महापरा मी म ण ।। २४ ।। आयुवद तथा ा ो दे हवां त भारत । च माः सह न ैरा द य गभ तमान् ।। २५ ।। तथा आठ अंग से यु मू तमान् आयुवद, न -स हत च मा, अंशुमाली सूय, ।। २५ ।। वायवः तव ैव संक पः ाण एव च । मू तम तो महा मानो महा तपरायणाः ।। २६ ।। एते चा ये च बहवो ाणं समुप थताः । औ











वायु, तु, संक प और ाण—ये तथा और भी ब त-से मू तमान् महान् तधारी महा मा ाजीक सेवाम उप थत होते ह ।। २६ ।। अथ धम काम हष े ष तपो दमः ।। २७ ।। अथ, धम, काम, हष, े ष, तप और दम—ये भी मू तमान् होकर ाजीक उपासना करते ह ।। २७ ।। आया त त यां स हता ग धवा सरसां गणाः । वश तः स त चैवा ये लोकपाला सवशः ।। २८ ।। शु ो बृह प त ैव बुधोऽ ारक एव च । शनै र रा हाः सव तथैव च ।। २९ ।। ग धव और अ सरा के बीस गण एक साथ उस सभाम आते ह। सात अ य ग धव भी जो धान ह, वहाँ उप थत होते ह। सम त लोकपाल, शु , बृह प त, बुध, मंगल, शनै र, रा तथा केतु—ये सभी ह, ।। २८-२९ ।। म ो रथ तरं चैव ह रमान् वसुमान प । आ द याः सा धराजानो नाम ै दा ताः ।। ३० ।। सामगानस ब धी म , रथ तरसाम, ह रमान्, वसुमान्, अपने वामी इ स हत बारह आ द य, अ न-सोम आ द युगल नाम से कहे जानेवाले दे वता, ।। ३० ।। म तो व कमा च वसव ैव भारत । तथा पतृगणाः सव सवा ण च हव यथ ।। ३१ ।। म द्गण, व कमा, वसुगण, सम त पतृगण, सभी ह व य, ।। ३१ ।। ऋ वेदः सामवेद यजुवद पा डव । अथववेद तथा सवशा ा ण चैव ह ।। ३२ ।। पा डु न दन! ऋ वेद, सामवेद, यजुवद, अथववेद तथा स पूण शा , ।। ३२ ।। इ तहासोपवेदा वेदा ा न च सवशः । हा य ा सोम दे वता ा प सवशः ।। ३३ ।। इ तहास, उपवेद१, स पूण वेदांग, ह, य , सोम और सम त दे वता, ।। ३३ ।। सा व ी गतरणी वाणी स त वधा तथा । मेधा धृ तः ु त ैव ा बु यशः मा ।। ३४ ।। सा व ी, गम ःखसे उबारनेवाली गा, सात कारक णव पा वाणी२, मेधा, धृ त, ु त, ा, बु , यश और मा, ।। ३४ ।। सामा न तु तगीता न गाथा व वधा तथा । भा या ण तकयु ा न दे हव त वशा पते ।। ३५ ।। नाटका व वधाः का ाः कथा या यकका रकाः । त त त ते पु या ये चा ये गु पूजकाः ।। ३६ ।। साम, तु त, गीत, व वध गाथा तथा तकयु भा य—ये सभी दे हधारी होकर एवं अनेक कारके नाटक, का , कथा, आ या यका तथा का रका आ द उस सभाम ो













मू तमान् होकर रहते ह। इसी कार गु जन क पूजा करनेवाले जो सरे पु या मा पु ष ह, वे सभी उस सभाम थत होते ह ।। ३५-३६ ।। णा लवा मुता दवारा तथैव च । अधमासा मासा ऋतवः षट् च भारत ।। ३७ ।। यु ध र! ण, लव, मु त, दन, रात, प , मास, छह ऋतुए,ँ ।। ३७ ।। संव सराः प च युगमहोरा तु वधः । कालच ं च तद् द ं न यम यम यम् ।। ३८ ।। धमच ं तथा चा प न यमा ते यु ध र । साठ संव सर, पाँच संव सर का युग, चार कारके दन-रात (मानव, पतर, दे वता और ाजीके दन-रात), न य, द , अ य एवं अ य कालच तथा धमच भी दे ह धारण करके सदा ाजीक सभाम उप थत रहते ह ।। ३८ ।। अ द त द तदनु ैव सुरसा वनता इरा ।। ३९ ।। का लका सुरभी दे वी सरमा चाथ गौतमी ।। ४० ।। भा क ू वै दे ौ दे वतानां च मातरः । ाणी ी ल मी भ ा ष ी तथापरा ।। ४१ ।। पृवी गां गता द े वी ीः वाहा क तरव च । सुरा दे वी शची चैव तथा पु र धती ।। ४२ ।। संवृ राशा नय तः सृ दवी र त तथा । एता ा या वै दे उपत थुः जाप तम् ।। ४३ ।। अ द त, द त, दनु, सुरसा, वनता, इरा, का लका, सुरभी दे वी, सरमा, गौतमी, भा और क — ू ये दो दे वयाँ, दे वमाताएँ, ाणी, ी, ल मी, भ ा तथा अपरा, ष ी, पृ वी, भूतलपर उतरी ई गंगादे वी, ल जा, वाहा, क त, सुरादे वी, शची, पु , अ धती संवृ , आशा, नय त, सृ दे वी, र त तथा अ य दे वयाँ भी उस सभाम जाप त ाजीक उपासना करती ह ।। ३९—४३ ।। आ द या वसवो ा म त ा नाव प । व ेदेवा सा या पतर मनोजवाः ।। ४४ ।। आ द य, वसु, , म द्गण, अ नीकुमार, व ेदेव, सा य तथा मनके समान वेगशाली पतर भी उस सभाम उप थत होते ह ।। ४४ ।। पतॄणां च गणान् व स तैव पु षषभ । मू तम तो ह च वार य ा यशरी रणः ।। ४५ ।। नर े ! तु ह मालूम होना चा हये क पतर के सात ही गण होते ह, जनम चार तो मू तमान् ह और तीन अमूत ।। ४५ ।। वैराजा महाभागा अ न वा ा भारत । गाहप या नाकचराः पतरो लोक व ुताः ।। ४६ ।। सोमपा एकशृ ा चतुवदाः कला तथा । े





एते चतुषु वणषु पू य ते पतरो नृप ।। ४७ ।। एतैरा या यतैः पूव सोम ा या यते पुनः । त एते पतरः सव जाप तमुप थताः ।। ४८ ।। उपासते च सं ा ाणम मतौजसम् । भारत! स पूण लोक म व यात वगलोकम वचरनेवाले महाभाग वैराज, अ न वा , सोमपा, गाहप य (ये चार मूत ह), एकशृंग, चतुवद तथा कला (ये तीन अमूत ह)। ये सात पतर मशः चार वण म पू जत होते ह। राजन्! पहले इन पतर के तृ त होनेसे फर सोम दे वता भी तृ त हो जाते ह। ये सभी पतर उ सभाम उप थत हो स तापूवक अ मत तेज वी जाप त ाजीक उपासना करते ह ।। ४६—४८ ।। रा सा पशाचा दानवा गु का तथा ।। ४९ ।। नागाः सुपणाः पशवः पतामहमुपासते । थावरा ज मा ैव महाभूता तथापरे ।। ५० ।। पुरंदर दे वे ो व णो धनदो यमः । महादे वः सहोमोऽ सदा ग छ त सवशः ।। ५१ ।। इसी कार रा स, पशाच, दानव, गु क, नाग, सुपण तथा े पशु भी वहाँ पतामह ाजीक उपासना करते ह। थावर और जंगम महाभूत, दे वराज इ , व ण, कुबेर, यम तथा पावतीस हत महादे वजी—ये सब सदा उस सभाम पधारते ह ।। ४९-५१ ।। महासेन राजे सदोपा ते पतामहम् । दे वो नारायण त यां तथा दे वषय ये ।। ५२ ।। ऋषयो बालख या यो नजायो नजा तथा । राजे ! वामी का तकेय भी वहाँ उप थत होकर सदा ाजीक सेवा करते ह। भगवान् नारायण, दे व षगण, बालख य ऋ ष तथा सरे यो नज और अयो नज ऋ ष उस सभाम ाजीक आराधना करते ह ।। ५२ ।। य च क चत् लोकेऽ मन् यते थाणु ज मम् । सव त यां मया म त व नरा धप ।। ५३ ।। नरे र! सं ेपम यह समझ लो क तीन लोक म थावर-जंगम भूत के पम जो कुछ भी दखायी दे ता है, वह सब मने उस सभाम दे खा था ।। ५३ ।। अ ाशी तसह ा ण ऋषीणामू वरेतसाम् । जावतां च प चाश षीणाम प पा डव ।। ५४ ।। पा डु न दन! अासी हजार ऊ वरेता ऋ ष और पचास संतानवान् मह ष उस सभाम उप थत होते ह ।। ५४ ।। ते म त यथाकामं ् वा सव दवौकसः । ण य शरसा त मै सव या त यथाऽऽगतम् ।। ५५ ।। वे सब मह ष तथा स पूण दे वता वहाँ इ छानुसार ाजीका दशन करके उ ह म तक झुकाकर णाम करते और आ ा लेकर जैसे आये होते ह, वैसे ही चले जाते ह ।। ५५ ।। ी





अ तथीनागतान् दे वान् दै यान् नागां तथा जान् । य ान् सुपणान् कालेयान् ग धवा सरस तथा ।। ५६ ।। महाभागान मतधी ा लोक पतामहः । दयावान् सवभूतेषु यथाह तप ते ।। ५७ ।। अगाध बु वाले दयालु लोक पतामह ाजी अपने यहाँ आये ए सभी महाभाग अ त थय —दे वता, दै य, नाग, प ी, य , सुपण, कालेय, ग धव तथा अ सरा एवं स पूण भूत से यथायो य मलते ह और उ ह अनुगह ृ ीत करते ह ।। ५६-५७ ।। तगृ तु व ा मा वय भूर मत ु तः । सा वमानाथस भोगैयुन मनुजा धप ।। ५८ ।। मनुजे र! अ मत तेज वी व ा मा वय भू उन सब अ त थय को अपनाकर उ ह सा वना दे ते, उनका स मान करते, उनके योजनक पू त करके उन सबको आव यकता तथा चके अनुसार भोगसाम ी दान करते ह ।। ५८ ।। तथा तै पयातै तय भारत । आकुला सा सभा तात भव त म सुख दा ।। ५९ ।। तात भारत! इस कार वहाँ आने-जानेवाले लोग से भरी ई वह सभा बड़ी सुखदा यनी जान पड़ती है ।। ५९ ।। सवतेजोमयी द ा षगणसे वता । ा या या द यमाना शुशुभे वगत लमा ।। ६० ।। सा सभा ता शी ा मया लोकेषु लभा । सभेयं राजशा ल मनु येषु यथा तव ।। ६१ ।। नृप े ! वह सभा स पूण तेजसे स प , द तथा षय के समुदायसे से वत और पापर हत एवं ा ी ीसे उ ा सत और सुशो भत होती रहती है। वैसी उस सभाका मने दशन कया है। जैसे मनु यलोकम तु हारी यह सभा लभ है, वैसे ही स पूण लोक म ाजीक सभा परम लभ है ।। ६०-६१ ।। एता मया पूवाः सभा दे वेषु भारत । सभेयं मानुषे लोके सव े तमा तव ।। ६२ ।। भारत! ये सभी सभाएँ मने पूवकालसे दे व-लोकम दे खी ह। मनु यलोकम तो तु हारी यह सभा ही सव े है ।। ६२ ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण लोकपालसभा यानपव ण सभावणनं नामैकादशोऽ यायः ।। ११ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत लोकपालसभा यानपवम सभा-वणन नामक यारहवाँ अ याय पूरा आ ।। ११ ।।

* ‘एतत् स यं

पुरम्’ इस ु तसे भी उसक न यता ही सू चत होती है। े औ े े े े

१. आयुवद, धनुवद, गा धववेद और अथशा —ये चार उपवेद माने गये ह। २. अकार, उकार, मकार, अधमा ा, नाद, ब और श —ये णवके सात पैशाची, अप ंश, ल लत, मागध और ग —ये वाणीके सात कार जानने चा हये।

कार ह अथवा सं कृत,

ाकृत,

ादशोऽ यायः राजा ह र

का माहा य तथा यु ध रके पा डु का संदेश

त राजा

यु ध र उवाच ायशो राजलोक ते क थतो वदतां वर । वैव वतसभायां तु यथा वद स मे भो ।। १ ।। यु ध र बोले—व ा म े भगवन्! जैसा आपने मुझसे वणन कया है, उसके अनुसार सूयपु यमक सभाम ही अ धकांश राजालोग क थ त बतायी गयी है ।। १ ।। व ण य सभायां तु नागा ते क थता वभो । दै ये ा ा प भू य ाः स रतः सागरा तथा ।। २ ।। भो! व णक सभाम तो अ धकांश नाग, दै ये , स रताएँ और समु ही बताये गये ह ।। २ ।। तथा धनपतेय ा गु का रा सा तथा । ग धवा सरस ैव भगवां वृष वजः ।। ३ ।। इसी कार धना य कुबेरक सभाम य , गु क, रा स, ग धव, अ सरा तथा भगवान् शंकरक उप थ तका वणन आ है ।। ३ ।। पतामहसभायां तु क थता ते महषयः । सव दे व नकाया सवशा ा ण चैव ह ।। ४ ।। ाजीक सभाम आपने मह षय , स पूण दे वगण तथा सम त शा क थ त बतायी है ।। ४ ।। श य तु सभायां तु दे वाः संक तता मुने । उ े शत ग धवा व वधा महषयः ।। ५ ।। परंतु मुने! इ क सभाम आपने अ धकांश दे वता क ही उप थ तका वणन कया है और थोड़े-से व भ गधव एवं मह षय क भी थ त बतायी है ।। ५ ।। एक एव तु राज षह र ो महामुने । क थत ते सभायां वै दे वे य महा मनः ।। ६ ।। महामुने! महा मा दे वराज इ क सभाम आपने राज षय मसे एकमा ह र का ही नाम लया है ।। ६ ।। क कम तेनाच रतं तपो वा नयत त । येनासौ सह श े ण प ते सुमहायशाः ।। ७ ।। नयमपूवक तका पालन करनेवाले महष! उ ह ने कौन-सा कम अथवा कौन-सी तप या क है, जससे वे महान् यश वी होकर दे वराज इ से पधा कर रहे ह ।। ७ ।। पतृलोकगत ैव वया व पता मम ।

ः पा डु महाभागः कथं वा प समागतः ।। ८ ।। कमु वां भगवं त ममाच व सु त । व ः ोतुं सव मदं परं कौतूहलं ह मे ।। ९ ।। व वर! आपने पतृलोकम जाकर मेरे पता महाभाग पा डु को भी दे खा था, कस कार वे आपसे मले थे? भगवन्! उ ह ने आपसे या कहा? यह मुझे बताइये। सु त! आपसे यह सब कुछ सुननेके लये मेरे मनम बड़ी उ क ठा है ।। ८-९ ।। नारद उवाच य मां पृ छ स राजे ह र ं त भो । तत् तेऽहं स व या म माहा यं त य धीमतः ।। १० ।। नारदजीने कहा—श शाली राजे ! तुमने जो राज ष ह र के वषयम मुझसे पूछा है, उसके उ रम म उन बु मान् नरेशका माहा य बता रहा ँ, सुनो ।। १० ।। (इ वाक ू णां कुले जात शङ् कुनाम पा थवः । अयो या धप तव रो व ा म ेण सं थतः ।। त य स यवती नाम प नी केकयवंशजा । त यां गभः समभवद् धमण कु न दन ।। सा च काले महाभागा ज ममासं व य वै । कुमारं जनयामास ह र मक मषम् ।। स वै राजा ह र ैशङ् कव इ त मृतः ।) इ वाकुकुलम शंकु नामसे स एक राजा हो गये ह। वीर शंकु अयो याके वामी थे और वहाँ व ा म मु नके साथ रहा करते थे। उनक प नीका नाम स यवती था, वह केकय-कुलम उ प ई थी। कु न दन! रानी स यवतीके धमानुकूल गभ रहा। फर समयानुसार ज ममास ा त होनेपर महाभागा रानीने एक न पाप पु को ज म दया, उसका नाम आ ह र । वे शंकुकुमार ही लोक व यात राजा ह र कहे गये ह। स राजा बलवानासीत् स ाट् सवमही ताम् । त य सव महीपालाः शासनावनताः थताः ।। ११ ।। राजा ह र बड़े बलवान् और सम त भूपाल के साट ् थे। भूम डलके सभी नरेश उनक आ ाका पालन करनेके लये सर झुकाये खड़े रहते थे ।। ११ ।। तेनैकं रथमा थाय जै ं हेम वभू षतम् । श तापेन जता पाः स त जने र ।। १२ ।। जने र! उ ह ने एकमा वण वभू षत जै नामक रथपर चढ़कर अपने श के तापसे सात प पर वजय ा त कर ली थी ।। १२ ।। स न ज य मह कृ नां सशैलवनकाननाम् । आजहार महाराज राजसूयं महा तुम् ।। १३ ।। महाराज! पवत और वन स हत इस सारी पृ वीको जीतकर राजा ह र ने राजसूय नामक महान् य का अनु ान कया ।। १३ ।। ी

त य सव महीपाला धना याजरा या । जानां प रवे ार त मन् य े च तेऽभवन् ।। १४ ।। राजाक आ ासे सम त भूपाल ने धन लाकर भट कये और उस य म ा ण को भोजन परोसनेका काय कया ।। १४ ।। ादा च वणं ी या याचकानां नरे रः । यथो व त ते त मं ततः प चगुणा धकम् ।। १५ ।। महाराज ह र ने बड़ी स ताके साथ उस य म याचक को, जतना उ ह ने माँगा, उससे पाँचगुना अ धक धन दान कया ।। १५ ।। अतपय च व वधैवसु भ ा णां तदा । सपकाले स ा ते नाना द यः समागतान् ।। १६ ।। जब अ नदे वके वसजनका अवसर आया, उस समय उ ह ने व भ दशा से आये ए ा ण को नाना कारके धन एवं र न दे कर तृ त कया ।। १६ ।। भ यभो यै व वधैयथाकामपुर कृतैः । र नौघत पतै तु ै जै समुदा तम् । तेज वी च यश वी च नृपे योऽ य धकोऽभवत् ।। १७ ।। नाना कारके भ य-भो य पदाथ, मनोवां छत व तु का पुर कार तथा र नरा शका दान दे कर तृ त एवं संतु कये ए ा ण ने राजा ह र को आशीवाद दये। इसी लये वे अ य राजा क अपे ा अ धक तेज वी और यश वी ए ह ।। १७ ।। एत मात् कारणाद् राजन् ह र ो वराजते । ते यो राजसह े य तद् व भरतषभ ।। १८ ।। राजन्! भरत े ! यही कारण है क उन सह राजा क अपे ा महाराज ह र अ धक स मानपूवक इ सभाम वराजमान होते ह—इस बातको तुम अ छ तरह जान लो ।। १८ ।। समा य च ह र ो महाय ं तापवान् । अभष शुशुभे सा ा येन नरा धप ।। १९ ।। नरे र! तापी ह र उस महाय को समा त करके जब साट ् के पदपर अ भ ष ए, उस समय उनक बड़ी शोभा ई ।। १९ ।। ये चा ये च महीपाला राजसूयं महा तुम् । यज ते ते सहे े ण मोद ते भरतषभ ।। २० ।। भरतकुलभूषण! सरे भी जो भूपाल राजसूय नामक महाय का अनु ान करते ह, वे दे वराज इ के साथ रहकर आन द भोगते ह ।। २० ।। ये चा प नधनं ा ताः सं ामे वपला यनः । ते तत् सदनमासा मोद ते भरतषभ ।। २१ ।। भरतषभ! जो लोग सं ामम पीठ न दखाकर वह मृ युका वरण कर लेते ह, वे भी दे वराज इ क उस सभाम जाकर वहाँ आन दका उपभोग करते ह ।। २१ ।। तपसा ये च ती ेण यज तीह कलेवरम् । े ी ो

ते तत् थानं समासा ीम तो भा त न यशः ।। २२ ।। तथा जो लोग कठोर तप याके ारा यहाँ अपने शरीरका याग करते ह, वे भी उस इ सभाम जाकर तेज वी प धारण करके सदा का शत होते रहते ह ।। २२ ।। पता च वाऽऽह कौ तेय पा डु ः कौरवन दन । हर े यं ् वा नृपतौ जात व मयः ।। २३ ।। कौरवन दन कु तीकुमार! तु हारे पता पा डु ने राजा ह र क स प दे खकर अ य त च कत हो तुमसे कहनेके लये संदेश दया है ।। २३ ।। व ाय मानुषं लोकमाया तं मां नरा धप । ोवाच णतो भू वा वदे था वं यु ध रम् ।। २४ ।। नरे र! मुझे मनु यलोकम आता जान उ ह ने णाम करके मुझसे कहा—‘दे वष! आप यु ध रसे यह क हयेगा— ।। २४ ।। समथ ऽ स मह जेतुं ातर ते थता वशे । राजसूयं तु े माहर वे त भारत ।। २५ ।। ‘भारत! तु हारे भाई तु हारी आ ाके अधीन ह, तुम सारी पृ वीको जीतनेम समथ हो; अतः राजसूय नामक े य का अनु ान करो ।। २५ ।। वयी व त पु ेऽहं ह र वदाशु वै । मो द ये ब लाः श त् समाः श य संस द ।। २६ ।। ‘तुम-जैसे पु के ारा वह य स प होनेपर म भी शी ही राजा ह र क भाँ त ब त वष तक इ भवनम आन द भोगूँगा’ ।। २६ ।। एवं भवतु व येऽहं तव पु ं नरा धपम् । भूलोकं य द ग छे य म त पा डु मथा ुवम् ।। २७ ।। तब मने पा डु से कहा—‘एवम तु, य द म भूलोकम जाऊँगा तो आपके पु राजा यु ध रसे कह ँ गा’ ।। २७ ।। त य वं पु ष ा संक पं कु पा डव । ग ता स वं महे य पूवः सह सलोकताम् ।। २८ ।। पु ष सह पा डु न दन! तुम अपने पताके संक पको पूरा करो। ऐसा करनेपर तुम पूवज के साथ दे वराज इ के लोकम जाओगे ।। २८ ।। ब व न नृपते तुरेष मृतो महान् । छ ा य य तु वा छ त य ना रा साः ।। २९ ।। राजन्! इस महान् य म ब त-से व न आनेक स भावना रहती है; य क य नाशक रा स इसका छ ढूँ ढ़ते रहते ह ।। २९ ।। यु ं च शमनं पृ थवी यकारणम् । क चदे व न म ं च भव य यावहम् ।। ३० ।। तथा इसका अनु ान होनेपर कोई एक ऐसा न म भी बन जाता है, जससे पृ वीपर वनाशकारी यु उप थत हो जाता है, जो य के संहार और भूम डलके वनाशका कारण होता है ।। ३० ।। े े

एतत् सं च य राजे यत् ेमं तत् समाचर । अ म ो थतो न यं चातुव य य र णे ।। ३१ ।। राजे ! यह सब सोच- वचारकर तु ह जो हतकर जान पड़े, वह करो। चार वण क र ाके लये सदा सावधान और उ त रहो ।। ३१ ।। भव एध व मोद व धनै तपय च जान् । एतत् ते व तरेणो ं य मां वं प रपृ छ स । आपृ छे वां ग म या म दाशाहनगर त ।। ३२ ।। संसारम तु हारा अ युदय हो, तुम आन दत रहो और धनसे ा ण को तृ त करो। तुमने मुझसे जो कुछ पूछा था, वह सब मने व तारपूवक बता दया। अब म यहाँसे ारका जाऊँगा, इसके लये तुमसे अनुम त चाहता ँ ।। ३२ ।। वैश पायन उवाच एवमा याय पाथ यो नारदो जनमेजय । जगाम तैवृतो राजनृ ष भयः समागतः ।। ३३ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! कु तीकुमार से ऐसा कहकर नारदजी जन ऋ षय के साथ आये थे, उ ह से घरे ए पुनः चले गये ।। ३३ ।। गते तु नारदे पाथ ातृ भः सह कौरवः । राजसूयं तु े ं च तयामास पा थवः ।। ३४ ।। नारदजीके चले जानेपर कु े कु तीन दन राजा यु ध र अपने भाइय के साथ राजसूय नामक े य के वषयम वचार करने लगे ।। ३४ ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण लोकपालसभा यान पव ण पा डु संदेशकथने ादशोऽ यायः ।। १२ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत लोकपालसभा यानपवम पा डु -संदेशकथन वषयक बारहवाँ अ याय पूरा आ ।। १२ ।। (दा णा य अ धक पाठक े ३ ोक मलाकर कुल ३७ ोक ह)

(र ाजसूयार भपव) योदशोऽ यायः यु ध रका राजसूय वषयक संक प और उसके वषयम भाइय , म य , मु नय तथा ीकृ णसे सलाह लेना वैश पायन उवाच ऋषे तद् वचनं ु वा नश ास यु ध रः । च तयन् राजसूये न लेभे शम भारत ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! दे व ष नारदका वह वचन सुनकर यु ध रने लंबी साँस ख ची। राजसूयय के स ब धम च तन करते ए उ ह शा त नह मली ।। १ ।। राजष णां च तं ु वा म हमानं महा मनाम् । य वनां कम भः पु यैल क ा तं समी य च ।। २ ।। हर ं च राज ष रोचमानं वशेषतः । य वानं य माहतु राजसूय मयेष सः ।। ३ ।। राजसूयय करनेवाले महा मा राज षय क वैसी म हमा सुनकर तथा पु यकम ारा उ म लोक क ा त होती दे खकर एवं य करनेवाले राज ष ह र का महान् तेज (तथा वशेष वैभव एवं आदर-स कार) सुनकर उनके मनम राजसूयय करनेक इ छा ई ।। २-३ ।। यु ध र ततः सवानच य वा सभासदः । य चत तैः सवय ायैव मनो दधे ।। ४ ।। तदन तर यु ध रने अपने सम त सभासद का स कार कया और उन सब सद य ने भी उनका बड़ा स मान कया। अ तम (सबक स म तसे) उनका मन य करनेके ही संक पपर ढ़ हो गया ।। ४ ।। स राजसूयं राजे कु णामृषभ तदा । आहतु वणं च े मनः सं च य चासकृत् ।। ५ ।। राजे ! कु े यु ध रने उस समय बार-बार वचार करके राजसूयय के अनु ानम ही मन लगाया ।। ५ ।। भूय ा तवीय जा धममेवानु च तयन् । क हतं सवलोकानां भवे द त मनो दधे ।। ६ ।। औ











अ त बल और परा मवाले धमराजने पुनः अपने धमका ही च तन कया और स पूण लोक का हत कैसे हो, इसी ओर वे यान दे ने लगे ।। ६ ।। अनुगृ न् जाः सवाः सवधमभृतां वरः । अ वशेषेण सवषां हतं च े यु ध रः ।। ७ ।। यु ध र सम त धमा मा म े थे। वे सारी जापर अनु ह करके सबका समान पसे हतसाधन करने लगे ।। ७ ।। सवषां द यतां दे यं मु चन् कोपमदावुभौ । साधु धम त धम त ना य छयेत भा षतम् ।। ८ ।। ोध और अ भमानसे र हत होकर राजा यु ध रने अपने सेवक से कह दया क ‘दे नेयो य व तुएँ सबको द जायँ अथवा सारी जनताका पावना (ऋण) चुका दया जाय।’ उनके रा यम ‘धमराज! आप ध य ह। धम व प यु ध र आपको साधुवाद!’ इसके सवा और कोई बात नह सुनी जाती थी ।। ८ ।। एवंगते तत त मन् पतरीवा स नाः । न त य व ते े ा ततोऽ याजातश ुता ।। ९ ।। उनका ऐसा वहार दे ख सारी जा उनके ऊपर पताके समान भरोसा रखने लगी। उनके त े ष रखनेवाला कोई नह रहा। इसी लये वे ‘अजातश ु’ नामसे स ए ।। ९ ।। प र हा रे य भीम य प रपालनात् । श ूणां पणा चैव बीभ सोः स सा चनः ।। १० ।। धीमतः सहदे व य धमाणामनुशासनात् । वैन यात् सवत ैव नकुल य वभावतः । अ व हा वीतभयाः वधम नरताः सदा ।। ११ ।। नकामवषाः फ ता आस नपदा तथा । महाराज यु ध र सबको आ मीयजन क भाँ त अपनाते, भीमसेन सबक र ा करते, स साची अजुन श ु के संहारम लगे रहते, बु मान् सहदे व सबको धमका उपदे श दया करते और नकुल वभावसे ही सबके साथ वनयपूण बताव करते थे। इससे उनके रा यके सभी जनपद कलहशू य, नभय, वधमपरायण तथा उ तशील थे। वहाँ उनक इ छाके अनुसार समयपर वषा होती थी ।। १०-११ ।। वाधुषी य स वा न गोर ं कषणं व णक् ।। १२ ।। वशेषात् सवमेवैतत् संज े राजकमणा । अनुकष च न कष ा धपावकमू छनम् ।। १३ ।। सवमेव न त ासीद् धम न ये यु ध रे ।











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उन दन राजाके सु ब धसे याजक आजी वका, य क साम ी, गोर ा, खेती और ापार—इन सबक वशेष उ त होने लगी। नधन जाजन से पछले वषका बाक कर नह लया जाता था तथा चालू वषका कर वसूल करनेके लये कसीको पीड़ा नह द जाती थी। सदा धमम त पर रहनेवाले यु ध रके शासनकालम रोग तथा अ नका कोप आ द कोई भी उप व नह था ।। १२-१३ ।। द यु यो व चके य रा ः त पर परम् ।। १४ ।। राजव लभत ैव ना ूयत मृषा कृतम् । लुटेर से, ठग से, राजासे तथा राजाके य य से जाके त अ याचार या म या वहार कभी नह सुना जाता था और आपसम भी सारी जा एक- सरेसे म या वहार नह करती थी ।। १४ ।। यं कतुमुप थातुं ब लकम वकमजम् ।। १५ ।। अ भहतु नृपाः षट् सु पृथग् जा यै नैगमैः । ववृधे वषय त धम न ये यु ध रे ।। १६ ।। कामतोऽ युपयु ानै राजसैल भजैजनैः । सरे राजालोग व भ दे शके कुलीन वै य के साथ धमराज यु ध रका य करने, उ ह कर दे ने, अपने उपाजत धन-र न आ दक भट दे ने तथा सं ध- व हा द छः काय म राजाको सहयोग दे नेके लये उनके पास आते थे। सदा धमम ही लगे रहनेवाले राजा यु ध रके शासनकालम राजस वभाववाले तथा लोभी मनु य ारा इ छानुसार धन आ दका उपभोग कये जानेपर भी उनका दे श दनो दन उ त करने लगा ।। १५-१६ ।। सव ापी सवगुणी सवसाहः स सवराट् ।। १७ ।। राजा यु ध रक या त सव फैल रही थी। सभी सद्गुण उनक शोभा बढ़ा रहे थे। वे शीत एवं उ ण आ द सभी को सहनेम समथ तथा अपने राजो चत गुण से सव सुशो भत होते थे ।। १७ ।। य म धकृतः स ाड् ाजमानो महायशाः । य राजन् दश दशः पतृतो मातृत तथा । अनुर ाः जा आस ागोपाला जातयः ।। १८ ।। राजन्! दस दशा म का शत होनेवाले वे महायश वी साट ् जस दे शपर अ धकार जमाते, वहाँ वाल से लेकर ा ण तक सारी जा उनके त पता-माताके समान भाव रखकर ेम करने लगती थी ।। १८ ।। वैश पायन उवाच स म णः समाना य ातॄं वदतां वरः । राजसूयं त तदा पुनः पुनरपृ छत ।। १९ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! व ा म े राजा यु ध रने उस समय अपने म य और भाइय को बुलाकर उनसे बार-बार पूछा—‘राजसूयय के स ब धम आपलोग क या स म त है?’ ।। १९ ।। े ो

ते पृ छमानाः स हता वचोऽय म ण तदा । यु ध रं महा ा ं यय ु मदम ुवन् ।। २० ।। इस कार पूछे जानेपर उन सब म य ने एक साथ य क इ छावाले परम बु मान् यु ध रसे उस समय यह अथयु बात कही— ।। २० ।। येना भ ष ो नृप तवा णं गुणमृ छ त । तेन राजा प तं कृ नं स ाड् गुणमभी स त ।। २१ ।। ‘महाराज! राजसूयय के ारा अ भ ष होनेपर राजा व णके गुण को ा त कर लेता है; इस लये येक नरेश उस य के ारा साट ् के सम त गुण को पानेक अ भलाषा रखता है ।। २१ ।। त य स ाड् गुणाह य भवतः कु न दन । राजसूय य समयं म य ते सु द तव ।। २२ ।। ‘कु न दन! आप तो साट ् के गुण को पानेके सवथा यो य ह; अतः आपके हतैषी सु द् आपके ारा राजसूयय के अनु ानका यह उ चत अवसर ा त आ मानते ह ।। २२ ।। त य य य समयः वाधीनः स पदा । सा ना षड नयो य मं ीय ते शं सत तैः ।। २३ ।। ‘उस य का समय स प यानी सेना आ दके अधीन है। उसम उ म तका आचरण करनेवाले ा ण सामवेदके म ारा अ नक थापनाके लये छः अ नवे दय का नमाण करते ह ।। २३ ।। दव होमानुपादाय सवान् यः ा ुते तून् । अ भषेकं च य या ते सव जत् तेन चो यते ।। २४ ।। ‘जो उस य का अनु ान करता है, वह ‘दव होम’ (अ नहो आ द)-से लेकर सम त य के फलको ा त कर लेता है एवं य के अ तम जो अ भषेक होता है, उससे वह य कता नरेश ‘सव जत् साट ् ’ कहलाने लगता है ।। २४ ।। समथ ऽ स महाबाहो सव ते वशगा वयम् । अ चरात् वं महाराज राजसूयमवा य स ।। २५ ।। ‘महाबाहो! आप उस य के स पादनम समथ ह। हम सब लोग आपक आ ाके अधीन ह। महाराज! आप शी ही राजसूयय पूण कर सकगे ।। २५ ।। अ वचाय महाराज राजसूये मनः कु । इ येवं सु दः सव पृथक् च सह चा ुवन् ।। २६ ।। ‘अतः कसी कारका सोच- वचार न करके आप राजसूयके अनु ानम मन लगाइये।’ इस कार उनके सभी सु द ने अलग-अलग और स म लत होकर अपनी यही स म त कट क ।। २६ ।। स ध य पा डव तेषां वचः ु वा वशा पते । धृ म ं व र ं च ज ाह मनसा रहा ।। २७ ।। े



जानाथ! श ुसूदन पा डु न दन यु ध रने उनका यह साहसपूण, य एवं े वचन सुनकर उसे मन-ही-मन हण कया ।। २७ ।। ु वा सु च त च जानं ा या मनः मम् । पुनः पुनमनो द े राजसूयाय भारत ।। २८ ।। भारत! उ ह ने सु द का वह स म तसूचक वचन सुनकर तथा यह भी जानते ए क राजसूयय अपने लये सा य है, उसके वषयम बार बार मन-ही-मन वचार कया ।। २८ ।। स ातृ भः पुनध मानृ व भ महा म भः । म भ ा प स हतो धमराजो यु ध रः । धौ य ै पायना ै म यामास म वत् ।। २९ ।। फर म णाका मह व जाननेवाले बु मान् धमराज यु ध र अपने भाइय , महा मा ऋ वज , म य तथा धौ य एवं ास आ द मह षय के साथ इस वषयपर पुनः वचार करने लगे ।। २९ ।। यु ध र उवाच इयं या राजसूय य स ाडह य सु तोः । धान य वदतः पृहा मे सा कथं भवेत् ।। ३० ।। यु ध रने कहा—महा माओ! राजसूय नामक उ म य कसी साट ् के ही यो य है, तो भी म उसके त ा रखने लगा ँ; अतः आपलोग बताइये, मेरे मनम जो यह राजसूयय करनेक अ भलाषा ई है, कैसी है? ।। ३० ।। वैश पायन उवाच एवमु ा तु ते तेन रा ा राजीवलोचन । इदमूचुवचः काले धमराजं यु ध रम् ।। ३१ ।। वैश पायनजी कहते ह—कमलनयन जनमेजय! राजाके इस कार पूछनेपर वे सब लोग उस समय धमराज यु ध रसे य बोले— ।। ३१ ।। अह वम स धम राजसूयं महा तुम् । अथैवमु े नृपतावृ व भऋ ष भ तथा ।। ३२ ।। म णो ातर ा ये त चः यपूजयन् । ‘धम ! आप राजसूय महाय करनेके सवथा यो य ह।’ ऋ वज तथा मह षय ने जब राजा यु ध रसे इस कार कहा, तब उनके म य और भाइय ने उन महा मा के वचनका बड़ा आदर कया ।। ३२ ।। स तु राजा महा ा ः पुनरेवा मनाऽऽ मवान् ।। ३३ ।। भूयो वममृशे पाथ लोकानां हतका यया । सामययोगं स े य द े शकालौ यागमौ ।। ३४ ।। वमृ य स यक् च धया कुवन् ा ो न सीद त । े

न ह य समार भः केवला म व न यात् ।। ३५ ।। भवती त समा ाय य नतः कायमु हन् । स न याथ काय य कृ णमेव जनादनम् ।। ३६ ।। सवलोकात् परं म वा जगाम मनसा ह रम् । अ मेयं महाबा ं कामा जातमजं नृषु ।। ३७ ।। तदन तर मनको वशम रखनेवाले महाबु मान् राजा यु ध रने स पूण लोक के हतक इ छासे पुनः इस वषयपर मन-ही-मन वचार कया—‘जो बु मान् अपनी श और साधन को दे खकर तथा दे श, काल, आय और यको बु के ारा भलीभाँ त समझ करके काय आर भ करता है, वह क म नह पड़ता। केवल अपने ही न यसे य का आर भ नह कया जाता।’ ऐसा समझकर य नपूवक कायभार वहन करनेवाले यु ध रने उस कायके वषयम पूण न य करनेके लये जनादन भगवान् ीकृ णको ही सब लोग से उ म माना और वे मन-ही-मन उन अ मेय महाबा ीह रक शरणम गये, जो अज मा होते ए भी धम एवं साधु पु ष क र ा आ दक इ छासे मनु यलोकम अवतीण ए थे ।। ३३-३७ ।। पा डव तकयामास कम भदवस मतैः । ना य क चद व ातं ना य क चदकमजम् ।। ३८ ।। पा डु न दन यु ध रने ीकृ णके दे वपू जत अलौ कक कम ारा यह अनुमान कया क ीकृ णके लये कुछ भी अ ात नह है तथा कोई भी ऐसा काय नह है, जसे वे कर न सक ।। ३८ ।। न स क च वषहे द त कृ णमम यत । स तु तां नै क बु क ृ वा पाथ यु ध रः ।। ३९ ।। गु वद् भूतगुरवे ा हणोद् तम सा । शी गेन रथेनाशु स तः ा य यादवान् ।। ४० ।। ारकावा सनं कृ णं ारव यां समासदत् । उनके लये कुछ भी अस नह है। इस तरह उ ह ने उ ह सवश मान् एवं सव माना। ऐसी न या मक बु करके कु तीन दन यु ध रने गु जन के त नवेदन करनेक भाँ त सम त ा णय के गु ीकृ णके पास शी ही एक त भेजा। वह त शी गामी रथके ारा तुरंत यादव के यहाँ प ँचकर ारकावासी ीकृ णसे ारकाम ही मला ।। ३९-४० ।। (स ः ा लभू वा ापयत माधवम् ।। उसने वनयपूवक हाथ जोड़ भगवान् ीकृ णसे इस कार नवेदन कया। त उवाच धमराजो षीकेश धौ य ासा द भः सह । पा चालमा यस हतै ातृ भ ैव सवशः ।। व शनं महाबाहो काङ् ते स यु ध रः । े

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तने कहा—महाबा षीकेश! धमराज यु ध र धौ य एवं ास आ द मह षय , पद और वराट आ द नरेश तथा अपने सम त भाइय के साथ आपका दशन करना चाहते ह। वैश पायन उवाच इ सेनवचः ु वा यादव वरो बली ।) दशनाकङ् णं पाथ दशनाकाङ् या युतः ।। ४१ ।। इ सेनेन स हत इ थमगात् तदा । वैश पायनजी कहते ह— त इ सेनक यह बात सुनकर य वंश शरोम ण महाबली भगवान् ीकृ ण दशना भलाषी यु ध रके पास वयं भी उनके दशनक अ भलाषासे त इ सेनके साथ इ थ नगरम आये ।। ४१ ।। ती य व वधान् दे शां वरावान् वाहनः ।। ४२ ।। मागम अनेक दे श को लाँघते ए वे बड़ी उतावलीके साथ आगे बढ़ रहे थे। उनके रथके घोड़े ब त तेज चलनेवाले थे ।। ४२ ।। इ थगतं पाथम यग छ जनादनः । स गृहे पतृवद् ा ा धमराजेन पू जतः । भीमेन च ततोऽप यत् वसारं ी तमान् पतुः ।। ४३ ।। भगवान् जनादन इ थम आकर राजा यु ध रसे मले। फुफेरे भाई धमराज यु ध र तथा भीमसेनने अपने घरम ीकृ णका पताक भाँ त पूजन कया। त प ात् ीकृ ण अपनी बुआ कु तीसे स तापूवक मले ।। ४३ ।। ीतः ीतेन सु दा रेमे स स हत तदा । अजुनेन यमा यां च गु वत् पयुपा सतः ।। ४४ ।। तदन तर ेमी सु द् अजुनसे मलकर वे ब त स ए। फर नकुल-सहदे वने गु क भाँ त उनक सेवा-पूजा क ।। ४४ ।। तं व ा तं शुभे दे शे णनं क पम युतम् । धमराजः समाग या ापयत् व योजनम् ।। ४५ ।। इसके बाद उ ह ने एक उ म भवनम व ाम कया। थोड़ी दे र बाद जब वे मलनेके यो य ए और इसके लये उ ह ने अवसर नकाल लया, तब धमराज यु ध रने आकर उनसे अपना सारा योजन बतलाया ।। ४५ ।।

यु ध र उवाच ा थतो राजसूयो मे न चासौ केवले सया । ा यते येन तत् ते ह व दतं कृ ण सवशः ।। ४६ ।। यु ध र बोले— ीकृ ण! म राजसूयय करना चाहता ;ँ परंतु वह केवल चाहनेभरसे ही पूरा नह हो सकता। जस उपायसे उस य क पू त हो सकती है, वह सब आपको ही ात है ।। ४६ ।। े

य मन् सव स भव त य सव पू यते । य सव रो राजा राजसूयं स व द त ।। ४७ ।। जसम सब कुछ स भव है अथात् जो सब कुछ कर सकता है, जसक सव पूजा होती है तथा जो सव र होता है, वही राजा राजसूयय स प कर सकता है ।। ४७ ।। तं राजसूयं सु दः कायमा ः समे य मे । त मे न ततमं तव कृ ण गरा भवेत् ।। ४८ ।। मेरे सब सु द् एक होकर मुझसे वही राजसूयय करनेके लये कहते ह; परंतु इसके वषयम अ तम न य तो आपके कहनेसे ही होगा ।। ४८ ।। के च सौ दादे व न दोषं प रच ते । वाथहेतो तथैवा ये यमेव वद युत ।। ४९ ।। कुछ लोग ेम-स ब धके नाते ही मेरे दोष या ु टय को नह बताते ह। सरे लोग वाथवश वही बात कहते ह, जो मुझे य लगे ।। ४९ ।। यमेव परी स ते के चदा म न य तम् । एव ाया य ते जनवादाः योजने ।। ५० ।। कुछ लोग जो अपने लये हतकर है, उसीको मेरे लये भी य एवं हतकर समझ बैठते ह। इस कार अपने-अपने योजनको लेकर ायः लोग क भ - भ बात दे खी जाती ह ।। ५० ।। वं तु हेतूनती यैतान् काम ोधौ ुद य च । परमं यत् मं लोके यथावद् व ु मह स ।। ५१ ।। परंतु आप उपयु सभी हेतु से एवं काम- ोधसे र हत होकर (अपने व पम थत ह। अतः) इस लोकम मेरे लये जो उ म एवं करनेयो य हो, उसको ठ क-ठ क बतानेक कृपा कर ।। ५१ ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण राजसूयार भपव ण वासुदेवागमने योदशोऽ यायः ।। १३ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत राजसूयार भपवम वासुदेवागमन वषयक तेरहवाँ अ याय पूरा आ ।। १३ ।। (दा णा य अ धक पाठक े २ ोक मलाकर कुल ५३ ोक ह)

चतुदशोऽ यायः ीकृ णक राजसूयय के लये स म त ीकृ ण उवाच सवगुणैमहाराज राजसूयं वमह स । जानत वेव ते सव क चद् व या म भारत ।। १ ।। ीकृ णने कहा—महाराज! आपम सभी सद्गुण व मान ह; अतः आप राजसूयय करनेके लये यो य ह। भारत! आप सब कुछ जानते ह, तो भी आपके पूछनेपर म इस वषयम कुछ नवेदन करता ँ ।। १ ।। जामद येन रामेण ं यदवशे षतम् । त मादवरजं लोके य ददं सं तम् ।। २ ।। जमद नन दन परशुरामने पूवकालम जब य का संहार कया था, उस समय लुकछपकर जो य शेष रह गये, वे पूववत य क अपे ा न नको टके ह। इस कार इस समय संसारम नाम-मा के य रह गये ह ।। २ ।।

कृतोऽयं कुलसंक पः यैवसुधा धप । नदे शवा भ तत् ते ह व दतं भरतषभ ।। ३ ।। पृ वीपते! इन य ने पूवज के कथनानुसार सामू हक पसे यह नयम बना लया है क हममसे जो सम त य को जीत लेगा, वही साट ् होगा। भरत े ! यह बात आपको भी मालूम ही होगी ।। ३ ।। ऐल ये वाकुवंश य कृ त प रच ते । े



राजानः े णब ा तथा ये या भु व ।। ४ ।। इस समय े णब (सब-के-सब) राजा तथा भूम डलके सरे य भी अपनेको साट ् पु रवा तथा इ वाकुक संतान कहते ह ।। ४ ।। ऐलवं या ये राजं तथैवे वाकवो नृपाः । ता न चैकशतं व कुला न भरतषभ ।। ५ ।। भरत े राजन्! पु रवा तथा इ वाकुके वंशम जो नरेश आजकल ह, उनके एक सौ कुल व मान ह; यह बात आप अ छ तरह जान ल ।। ५ ।। ययाते वेव भोजानां व तरो गुणतो महान् । भजतेऽ महाराज व तरं स चतु दशम् ।। ६ ।। तेषां तथैव तां ल म सव मुपासते । महाराज! आजकल राजा यया तके कुलम गुणक से भोजवं शय का ही अ धक व तार आ है। भोजवंशी बढ़कर चार दशा म फैल गये ह तथा आजके सभी य उ ह क धन-स प का आ य ले रहे ह ।। ६ ।। इदानीमेव वै राजन् जरासंधो महीप तः ।। ७ ।। अ भभूय यं तेषां कुलानाम भषे चतः । थतो मू न नरे ाणामोजसाऽऽ य सवशः ।। ८ ।। राजन्! अभी-अभी भूपाल जरासंध उन सम त यकुल क राजल मीको लाँघकर राजा ारा साट ् के पदपर अ भ ष आ है और वह अपने बल-परा मसे सबपर आ मण करके सम त राजा का सरमौर हो रहा है ।। ७-८ ।। सोऽव न म यमां भु वा मथोभेदमम यत । भुय तु परो राजा य म ेकवशे जगत् ।। ९ ।। जरासंध म यभू मका उपभोग करते ए सम त राजा म पर पर फूट डालनेक नी तको पसंद करता है। इस समय वही सबसे बल एवं उ कृ राजा है। यह सारा जगत् एकमा उसीके वशम है ।। ९ ।। स सा ा यं महाराज ा तो भव त योगतः । तं स राजा जरासंधं सं य कल सवशः ।। १० ।। राजन् सेनाप तजातः शशुपालः तापवान् । महाराज! वह अपनी राजनी तक यु य से इस समय साट ् बन बैठा है। राजन्! कहते ह, तापी राजा शशुपाल सब कारसे जरासंधका आ य लेकर ही उसका धान सेनाप त हो गया है ।। १० ।। तमेव च महाराज श यवत् समुप थतः ।। ११ ।। व ः क षा धप तमायायोधी महाबलः । यु ध र! मायायु करनेवाला महाबली क षराज द तव भी जरासंधके सामने श यक भाँ त हाथ जोड़े खड़ा रहता है ।। ११ ।। अपरौ च महावीय महा मानौ समा तौ ।। १२ ।। ी





जरासंधं महावीय तौ हंस ड भकावुभौ । वशालकाय अ य दो महापरा मी यो ा सु स हंस और ड भक भी महाबली जरासंधक शरण ले चुके थे ।। १२ ।। द तव ः क ष करभो मेघवाहनः । मू ना द म ण ब द् यम तम ण व ः ।। १३ ।। क षदे शका राजा द तव , करभ और मेघवाहन—ये सभी सरपर द म णमय मुकुट धारण करते ए भी जरासंधको अपने म तकक अ त म ण मानते ह (अथात् उसके चरण म सर झुकाते रहते ह) ।। १३ ।। मुरं च नरकं चैव शा त यो यवना धपः । अपय तबलो राजा ती यां व णो यथा ।। १४ ।। भगद ो महाराज वृ तव पतुः सखा । स वाचा णत त य कमणा च वशेषतः ।। १५ ।। नेहब मनसा पतृवद् भ मां व य । महाराज! जो मुर और नरक नामक दे शका शासन करते ह, जनक सेना अन त है, जो व णके समान प म दशाके अ धप त कहे जाते ह, जनक वृ ाव था हो चली है तथा जो आपके पताके म रहे ह, वे यवना धप त राजा भगद भी वाणी तथा या ारा भी जरासंधके सामने वशेष पसे नतम तक रहते ह; फर वे मन-ही-मन तु हारे नेहपाशम बँधे ह और जैसे पता अपने पु पर ेम रखता है, वैसे ही उनका तु हारे ऊपर वा स यभाव बना आ है ।। १४-१५ ।। ती यां द णं चा तं पृ थ ाः त यो नृपः ।। १६ ।। मातुलो भवतः शूरः पु जत् कु तवधनः । स ते स तमानेकः नेहतः श ुसूदनः ।। १७ ।। जो भारतभू मके प मसे लेकर द णतकके भागपर शासन करते ह, आपके मामा वे श ुसंहारक शूरवीर कु तभोजकुलव क पु जत् अकेले ही नेहवश आपके त ेम और आदरका भाव रखते ह ।। १६-१७ ।। जरासंधं गत वेव पुरा यो न मया हतः । पु षो म व ातो योऽसौ चे दषु म तः ।। १८ ।। आ मानं तजाना त लोकेऽ मन् पु षो मम् । आद े सततं मोहाद् यः स च ं च मामकम् ।। १९ ।। व पु करातेषु राजा बलसम वतः । पौ को वासुद े वे त योऽसौ लोकेऽ भ व ुतः ।। २० ।। जसे मने पहले मारा नह , उपे ावश छोड़ रखा है, जसक बु बड़ी खोट है, जो चे ददे शम पु षो म समझा जाता है, इस जगत्म जो अपने-आपको पु षोतम ही कहकर बताया करता है और मोहवश सदा मेरे शंख-च आ द च को धारण करता है; वंग, े















पु तथा करातदे शका जो राजा है तथा लोकम वासुदेवके नामसे जसक स हो रही है, वह बलवान् राजा पौ क भी जरासंधसे ही मला आ है ।। १८—२० ।। चतुथभाग् महाराज भोज इ सखो बली । व ाबलाद् यो जयत् सपा थकै शकान् ।। २१ ।। ाता य याकृ तः शूरो जामद यसमोऽभवत् । स भ ो मागधं राजा भी मकः परवीरहा ।। २२ ।। राजन्! जो पृ वीके एक चौथाई भागके वामी ह, इ के सखा ह, बलवान् ह, ज ह ने अ - व ाके बलसे पा , थ और कै शक दे श पर वजय पायी है, जनका भाई आकृ त जमद नन दन परशुरामके समान शौयस प है, वे भोजवंशी श ुह ता राजा भी मक (मेरे शुर होते ए) भी मगधराज जरासंधके भ ह ।। २१-२२ ।। या याचरतः ान् सदा स ब धन ततः । भजतो न भज य मान येषु व थतः ।। २३ ।। हम सदा उनका य करते रहते ह, उनके त नता दखाते ह और उनके सगेस ब धी ह; तो भी वे हम-जैसे अपने भ को तो नह अपनाते ह और हमारे श ु से मलते-जुलते ह ।। २३ ।। न कुलं स बलं राज यजानात् तथाऽऽ मनः । प यमानो यशो द तं जरासंधमुप थतः ।। २४ ।। राजन्! वे अपने बल और कुलक ओर भी यान नह दे ते, केवल जरासंधके उ वल यशक ओर दे खकर उसके आ त बन गये ह ।। २४ ।। उद या तथा भोजाः कुला य ादश भो । जरासंधभयादे व तीच दशमा थताः ।। २५ ।। भो! इसी कार उ र दशाम नवास करनेवाले भोजवं शय के अठारह कुल जरासंधके ही भयसे भागकर प म दशाम रहने लगे ह ।। २५ ।। शूरसेना भ कारा बोधाः शा वाः पट चराः । सु थला सुकुट् टा कु ल दाः कु त भः सह ।। २६ ।। शा वायना राजानः सोदयानुचरैः सह । द णा ये च प चालाः पूवाः कु तषु कोशलाः ।। २७ ।। तथो रां दशं चा प प र य य भया दताः । म याः सं य तपादा द णां दशमा ताः ।। २८ ।। शूरसेन, भ कार, बोध, शा व, पट चर, सु थल, सुकु , कु ल द, कु त तथा शा वायन आ द राजा भी अपने भाइय तथा सेवक के साथ द ण दशाम भाग गये ह। जो लोग द ण पंचाल एवं पूव कु त दे शम रहते थे, वे सभी य तथा कोशल, म य, सं य तपाद आ द राजपूत भी जरासंधके भयसे पी ड़त हो उ र दशाको छोड़कर द ण दशाका ही आ य ले चुके ह ।। २६—२८ ।। तथैव सवप चाला जरासंधभया दताः । वरा यं स प र य य व ताः सवतो दशम् ।। २९ ।। ी े ी े े ी ो

उसी कार सम त पंचालदे शीय य जरासंधके भयसे ःखी हो अपना रा य छोड़कर चार दशा म भाग गये ह ।। २९ ।। क य चत् वथ काल य कंसो नमय यादवान् । बाह थसुते दे ावुपाग छद् वृथाम तः ।। ३० ।। कुछ समय पहलेक बात है, थ बु वाले कंसने सम त यादव को कुचलकर जरासंधक दो पु य के साथ ववाह कया ।। ३० ।। अ तः ा त ना ना ते सहदे वानुजेऽबले । बलेन तेन व ातीन भभूय वृथाम तः ।। ३१ ।। ै ं ा तः स त यासीदतीवापनयो महान् । उनके नाम थे अ त और ा त। वे दोन अबलाएँ सहदे वक छोट ब हन थ । नःसार बु वाला कंस जरासंधके ही बलसे अपने जा त-भाइय को अपमा नत करके सबका धान बन बैठा था। यह उसका ब त बड़ा अ याचार था ।। ३१ ।। भोजराज यवृ ै पी मानै रा मना ।। ३२ ।। ा त ाणमभी स र म स भावना कृता । उस रा मासे पी ड़त हो भोजराजवंशके बड़े-बूढ़े लोग ने जा त-भाइय क र ाके लये हमसे ाथना क ।। ३२ ।। द वा ू राय सुतनुं तामा कसुतां तदा ।। ३३ ।। संकषण तीयेन ा तकाय मया कृतम् । हतौ कंससुनामानौ मया रामेण चा युत ।। ३४ ।। तब मने आ कक पु ी सुतनुका ववाह अ ू रसे करा दया और बलरामजीको साथी बनाकर जा त-भाइय का काय स कया। मने और बलरामजीने कंस और सुनामाको मार डाला ।। ३३-३४ ।। भये तु सम त ा ते जरासंधे समु ते । म ोऽयं म तो राजन् कुलैर ादशावरैः ।। ३५ ।। इससे कंसका भय तो जाता रहा; परंतु जरासंध कु पत हो हमसे बदला लेनेको उ त हो गया। राजन्! उस समय भोजवंशके अठारह कुल (म ी-पुरो हत आ द)-ने मलकर इस कार वचार- वमश कया— ।। ३५ ।। अनारभ तो न न तो महा ैः श ुघा त भः । न ह यामो वयं त य भवषशतैबलम् ।। ३६ ।। ‘य द हमलोग श ु का अ त करनेवाले बड़े-बड़े अ ारा नर तर आघात करते रह, तो भी तीन सौ वष म भी उसक सेनाका नाश नह कर सकते ।। ३६ ।। त य मरसंकाशौ बलेन ब लनां वरौ । नाम यां हंस ड भकावश नधनावुभौ ।। ३७ ।। ‘ य क बलवान म े हंस और ड भक उसके सहायक ह, जो बलम दे वता के समान ह। उन दोन को यह वरदान ा त है क वे कसी अ -श से नह मारे जा े’

सकते’ ।। ३७ ।। तावुभौ स हतौ वीरौ जरासंध वीयवान् । य याणां लोकानां पया ता इ त मे म तः ।। ३८ ।। भैया यु ध र! मेरा तो ऐसा व ास है क एक साथ रहनेवाले वे दोन वीर हंस और ड भक तथा परा मी जरासंध—ये तीन मलकर तीन लोक का सामना करनेके लये पया त थे ।। ३८ ।। न ह केवलम माकं याव तोऽ ये च पा थवाः । तथैव तेषामासी च बु बु मतां वर ।। ३९ ।। बु मान म े नरेश! यह केवल मेरा ही मत नह है, सरे भी जतने भू मपाल ह, उन सबका यही वचार रहा है ।। ३९ ।। अथ हंस इ त यातः क दासी महान् नृपः । रामेण स हत त सं ामेऽ ादशावरे ।। ४० ।। जरासंधके साथ जब स हव बार यु हो रहा था, उसम हंस नामसे स कोई सरा राजा भी लड़ने आया था, वह उस यु म बलरामजीके हाथसे मारा गया ।। ४० ।। हतो हंस इ त ो मथ केना प भारत । त छ वा ड भको राजन् यमुना भ यम जत ।। ४१ ।। भारत! यह दे ख कसी सै नकने च लाकर कहा—‘हंस मारा गया।’ राजन्! उसक वह बात कानम पड़ते ही ड भक अपने भाईको मरा आ जान यमुनाजीम कूद पड़ा ।। ४१ ।। वना हंसेन लोकेऽ मन् नाहं जी वतुमु सहे । इ येतां म तमा थाय ड भको नधनं गतः ।। ४२ ।। ‘म हंसके बना इस संसारम जी वत नह रह सकता।’ ऐसा न य करके ड भकने अपनी जान दे द ।। ४२ ।। तथा तु ड भकं ु वा हंसः परपुरंजयः । पेदे यमुनामेव सोऽ प त यां यम जत ।। ४३ ।। ड भकक इस कार मृ यु ई सुनकर श ु-नगरीको जीतनेवाला हंस भी भाईके शोकसे यमुनाम ही कूद पड़ा और उसीम डू बकर मर गया ।। ४३ ।। तौ स राजा जरासंधः ु वा च नधनं गतौ । पुरं शू येन मनसा ययौ भरतषभ ।। ४४ ।। भरत े ! उन दोन क मृ यु ई सुनकर राजा जरासंध हताश हो गया और उ साहशू य दयसे अपनी राजधानीको लौट गया ।। ४४ ।। ततो वयम म न त मन् तगते नृपे । पुनरान दनः सव मथुरायां वसामहे ।। ४५ ।। श ुसूदन! उसके इस कार लौट जानेपर हम सब लोग पुनः मथुराम आन दपूवक रहने लगे ।। ४५ ।। यदा व ये य पतरं सा वै राजीवलोचना ।

कंसभाया जरासंधं हता मागधं नृपम् । चोदय येव राजे प त सन ःखता ।। ४६ ।। प त नं मे जही येवं पुनः पुनररदम । श ुदमन राजे ! फर जब प तके शोकसे पी ड़त ई कंसक कमललोचना भाया अपने पता मगधनरेश जरासंधके पास जाकर उसे बार-बार उकसाने लगी क मेरे प तके घातकको मार डालो ।। ४६ ।। ततो वयं महाराज तं म ं पूवम तम् ।। ४७ ।। सं मर तो वमनसो पयाता नरा धप । तब हमलोग भी पहले क ई गु त म णाको मरण करके उदास हो गये। महाराज! फर तो हम मथुरासे भाग खड़े ए ।। ४७ ।। पृथ वेन महाराज सं य महत यम् ।। ४८ ।। पलायामो भयात् त य ससुत ा तबा धवाः । इ त सं च य सव म तीच दशमा ताः ।। ४९ ।। राजन्! उस समय हमने यही न य कया क ‘यहाँक वशाल स प को पृथक्पृथक् बाँटकर थोड़ी-थोड़ी करके पु एवं भाई-ब धु के साथ श ुके भयसे भाग चल।’ ऐसा वचार करके हम सबने प म दशाक शरण ली ।। ४८-४९ ।। कुश थल पुर र यां रैवतेनोपशो भताम् । ततो नवेशं त यां च कृतव तो वयं नृप ।। ५० ।। और राजन्! रैवतक पवतसे सुशो भत रमणीय कुश थली पुरीम जाकर हमलोग नवास करने लगे ।। ५० ।। तथैव गसं कारं दे वैर प रासदम् । योऽ प य यां यु येयुः कमु वृ णमहारथाः ।। ५१ ।। हमने कुश थली गक ऐसी मर मत करायी क दे वता के लये भी उसम वेश करना क ठन हो गया। अब तो उस गम रहकर याँ भी यु कर सकती ह, फर वृ णकुलके महार थय क तो बात ही या है? ।। ५१ ।। त यां वयम म न नवसामोऽकुतोभयाः । आलो य ग रमु यं तं मागधं तीणमेव च ।। ५२ ।। माधवाः कु शा ल परां मुदमवा ुवन् । श ुसूदन! हमलोग ारकापुरीम सब ओरसे नभय होकर रहते ह। कु े ! ग रराज रैवतकक गमताका वचार करके अपनेको जरासंधके संकटसे पार आ मानकर हम सभी मधुवं शय को बड़ी स ता ा त ई है ।। ५२ ।। एवं वयं जरासंधाद भतः कृत क बषाः ।। ५३ ।। सामयव तः स ब धाद् गोम तं समुपा ताः । राजन्! हम जरासंधके अपराधी ह, अतः श शाली होते ए भी जस थानसे हमारा स ब ध था, उसे छोड़कर गोमान् (रैवतक) पवतके आ यम आ गये ह ।। ५३ ।। ो



योजनायतं स क धं योजनाव ध ।। ५४ ।। योजना ते शत ारं वीर व मतोरणम् । अ ादशावरैन ं यैयु मदै ः ।। ५५ ।। रैवतक गक ल बाई तीन योजनक है। एक-एक योजनपर सेना के तीन-तीन दल क छावनी है। येक योजनके अ तम सौ-सौ ार ह, जो सेना से सुर त ह। वीर का परा म ही उस गढ़का धान फाटक है। यु म उ म होकर परा म दखानेवाले अठारह यादववंशी य से वह ग सुर त है ।। ५४-५५ ।। अ ादश सह ा ण ातॄणां स त नः कुले । आ क य शतं पु ा एकैक दशावरः ।। ५६ ।। हमारे कुलम अठारह हजार भाई ह। आ कके सौ पु ह, जनमसे एक-एक दे वता के समान परा मी ह ।। ५६ ।। चा दे णः सह ा ा च दे वोऽथ सा य कः । अहं च रौ हणेय सा बः ु न एव च ।। ५७ ।। एवम तरथाः स त राज यान् नबोध मे । कृतवमा नाधृ ः समीकः स म तजयः ।। ५८ ।। कङ् कः शङ् कु कु त स तैते वै महारथाः । पु ौ चा धकभोज य वृ ो राजा च ते दश ।। ५९ ।। अपने भाईके साथ चा दे ण, च दे व, सा य क, म, बलरामजी, सा ब और ु न— ये सात अ तरथी वीर ह। राजन्! अब मुझसे सर का प रचय सु नये। कृतवमा, अनाधृ , समीक, स म तजय, कंक, शंकु और कु त—ये सात महारथी ह। अ धक भोजके दो पु और बूढ़े राजा उ सेनको भी गन लेनेपर उन महार थय क सं या दस हो जाती है ।। ५७ —५९ ।। व संहनना वीरा वीयव तो महारथाः । मर तो म यमं दे शं वृ णम ये व थताः ।। ६० ।। ये सभी वीर वक े समान सु ढ़ शरीरवाले, परा मी और महारथी ह, जो म यदे शका मरण करते ए वृ णकुलम नवास करते ह ।। ६० ।। ( वत झ लब ू च उ वोऽथ व रथः । वसुदेवो सेनौ च स तैते म पु वाः ।। सेन ज च यमलो राजराजगुणा वतः । यम तको म णय य मं न वते ब ।।) वत , झ ल, ब ु, उ व, व रथ, वसुदेव तथा उ सेन—ये सात मु य म ी ह। सेन जत् और स ा जत्—ये दोन जुड़व ब धु कुबेरोपम सद्गुण से सुशो भत ह। उनके पास जो ‘ यम तक’ नामक म ण है, उससे चुरमा ाम सुवण झरता रहता है। स वं स ाड् गुणैयु ः सदा भरतस म । े स ाजमा मानं कतुमह स भारत ।। ६१ ।। ो











भरतवंश शरोमणे! आप सदा ही साट ् के गुण से यु ह। अतः भारत! आपको यसमाजम अपनेको साट ् बना लेना चा हये ।। ६१ ।। ( य धनं शा तनवं ोणं ौणाय न कृपम् । कण च शशुपालं च मणं च धनुधरम् ।। एकल ं मं ेतं शै यं शकु नमेव च । एतान ज वा सं ामे कथं श नो ष तं तुम् ।। अथैते गौरवेणैव न यो य त नरा धपाः ।) य धन, भी म, ोण, अ थामा, कृपाचाय, कण, शशुपाल, मी, धनुधर एकल , म, ेत, शै य तथा शकु न—इन सब वीर को सं ामम जीते बना आप कैसे वह य कर सकते ह? परंतु ये नर े आपका गौरव मानकर यु नह करगे। न तु श यं जरासंधे जीवमाने महाबले । राजसूय वयावा तुमेषा राजन् म तमम ।। ६२ ।। कतु राजन्! मेरी स म त यह है क जबतक महाबली जरासंध जी वत है, तबतक आप राजसूयय पूण नह कर सकते ।। ६२ ।। तेन ा ह राजानः सव ज वा ग र जे । क दरे पवते य सहेनेव महा पाः ।। ६३ ।। उसने सब राजा को जीतकर ग र जम इस कार कैद कर रखा है, मानो सहने कसी महान् पवतक गुफाम बड़े-बड़े गजराज को रोक रखा हो ।। ६३ ।। स ह राजा जरासंधो यय ुवसुधा धपैः । महादे वं महा मानमुमाप तमरदम ।। ६४ ।। आरा य तपसो ेण न जता तेन पा थवाः । त ाया पारं स गतः पा थवस म ।। ६५ ।। श ुदमन! राजा जरासंधने उमाव लभ महा मा महादे वजीक उ तप याके ारा आराधना करके एक वशेष कारक श ा त कर ली है; इसी लये वे सभी राजा उससे परा त हो गये ह। वह राजा क ब ल दे कर एक य करना चाहता है। नृप े ! वह अपनी त ा ायः पूरी कर चुका है ।। ६४-६५ ।। स ह न ज य न ज य पा थवान् पृतनागतान् । पुरमानीय बद् वा च चकार पु ष जम् ।। ६६ ।। य क उसने सेनाके साथ आये ए राजा को एक-एक करके जीता है और अपनी राजधानीम लाकर उ ह कैद करके राजा का ब त बड़ा समुदाय एक कर लया है ।। ६६ ।। वयं चैव महाराज जरासंधभयात् तदा । मथुरां स प र य य गता ारवत पुरीम् ।। ६७ ।। महाराज! उस समय हम भी जरासंधके भयसे ही पी ड़त हो मथुराको छोड़कर ारकापुरीम चले गये (और अबतक वह नवास करते ह) ।। ६७ ।। य द वेनं महाराज य ं ा तुमभी स स । े ो

यत व तेषां मो ाय जरासंधवधाय च ।। ६८ ।। राजन्! य द आप इस य को पूण पसे स प करना चाहते ह तो उन कैद राजा को छु ड़ाने और जरासंधको मारनेका य न क जये ।। ६८ ।। समार भो न श योऽयम यथा कु न दन । राजसूय का यन कतु म तमतां वर ।। ६९ ।। बु मान म े कु न दन! ऐसा कये बना राजसूयय का आयोजन पूण पसे सफल न हो सकेगा ।। ६९ ।। (जरासंधवधोपाय यतां भरतषभ । त मन् जते जतं सव सकलं पा थवं बलम् ।।) भरत े ! आप जरासंधके वधका उपाय सो चये। उसके जीत लये जानेपर सम त भूपाल क सेना पर वजय ा त हो जायगी। इ येषा मे मती राजन् यथा वा म यसेऽनघ । एवंगते ममाच व वयं न य हेतु भः ।। ७० ।। न पाप नरेश! मेरा मत तो यही है, फर आप जैसा उ चत समझ, कर। ऐसी दशाम वयं हेतु और यु य ारा कुछ न य करके मुझे बताइये ।। ७० ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण राजसूयार भपव ण कृ णवा ये चतुदशोऽ यायः ।। १४ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत राजसूयार भपवम ीकृ णवा य- वषयक चौदहवाँ अ याय पूरा आ ।। १४ ।। (दा णा य अ धक पाठक े ५ ोक मलाकर कुल ७५ ोक ह)

प चदशोऽ यायः जरासंधके वषयम राजा यु ध र, भीम और बातचीत

ीकृ णक

यु ध र उवाच उ ं वया बु मता य ा यो व ु मह त । संशयानां ह नम ा व ा यो व ते भु व ।। १ ।। यु ध र बोले— ीकृ ण! आप परम बु मान् ह, आपने जैसी बात कही है, वैसी सरा कोई नह कह सकता। इस पृ वीपर आपके सवा सम त संशय को मटानेवाला और कोई नह है ।। १ ।। गृहे गृहे ह राजानः व य व य यंकराः । न च सा ा यमा ता ते स ाट् छ दो ह कृ भाक् ।। २ ।। आजकल तो घर-घरम राजा ह और सभी अपना-अपना य काय करते ह, परंतु वे साट ् पदको नह ा त कर सके; य क साट ् क पदवी बड़ी क ठनाईसे मलती है ।। २ ।। कथं परानुभाव ः वं शं सतुमह त । परेण समवेत तु यः श यः स पू यते ।। ३ ।। जो सर के भावको जानता है, वह अपनी शंसा कैसे कर सकता है? सरेके साथ मुकाबला होनेपर भी जो शंसनीय बना रह जाय, उसीक सव पूजा होती है ।। ३ ।। वशाला ब ला भू मब र नसमा चता । रं ग वा वजाना त ेयो वृ णकुलो ह ।। ४ ।। वृ णकुलभूषण! यह पृ वी ब त वशाल है, अनेक कारके र न से भरी ई है, मनु य र जाकर (स पु ष का संग करके) यह समझ पाता है क अपना क याण कैसे होगा ।। ४ ।। शममेव परं म ये शमात् ेमं भवे मम । आर भे पारमे े तु न ा य म त मे म तः ।। ५ ।। म तो मन और इ य के संयमको ही सबसे उ म मानता ँ, उसीसे मेरा भला होगा। राजसूय-य का आर भ करनेपर भी उसके फल व प लोकक ा त अपने लये अस भव है—मेरी तो यही धारणा है ।। ५ ।। एवमेते ह जान त कुले जाता मन वनः । क त् कदा चदे तेषां भवे े ो जनादन ।। ६ ।। जनादन! ये उ म कुलम उ प मन वी सभासद् ऐसा जानते ह क इनम कभी कोई े (सव वजयी) भी हो सकता है ।। ६ ।। वयं चैव महाभाग जरासंधभयात् तदा । ौ

शङ् कताः म महाभाग दौरा यात् त य चानघ ।। ७ ।। अहं ह तव धष भुजवीया यः भो । ना मानं ब लनं म ये व य त माद् वशङ् कते ।। ८ ।। पापर हत महाभाग! हम भी जरासंधके भयसे तथा उसक तासे सदा शं कत रहते ह। कसीसे परा त न होनेवाले भो! म तो आपके ही बा बलका भरोसा रखता ँ। जब आप ही जरासंधसे शं कत ह, तब तो म अपनेको उसके सामने कदा प बलवान् नह मान सकता ।। ७-८ ।। व सकाशा च रामा च भीमसेना च माधव । अजुनाद् वा महाबाहो ह तुं श यो न वे त वै । एवं जानन् ह वा णय वमृशा म पुनः पुनः ।। ९ ।। महाबा माधव! आपसे, बलरामजीसे, भीमसेनसे अथवा अजुनसे वह मारा जा सकता है या नह ? वा णय! (आपक श अन त है,) यह जानते ए भी म बार-बार इसी बातपर वचार करता रहता ँ ।। ९ ।। वं मे माणभूतोऽ स सवकायषु केशव । त छ वा चा वीद् भीमो वा यं वा य वशारदः ।। १० ।। केशव! मेरे लये सभी काय म आप ही माण ह। यु ध रका यह वचन सुनकर बोलनेम चतुर भीमसेनने यह वचन कहा ।। १० ।। भीम उवाच अनार भपरो राजा व मीक इव सीद त । बल ानुपायेन ब लनं योऽ ध त त ।। ११ ।। भीमसेन बोले—महाराज! जो राजा उ ोग नह करता तथा जो बल होकर भी उ चत उपाय अथवा यु से काम न लेकर कसी बलवान्से भड़ जाता है, वे दोन द मक के बनाये ए म के ढे रके समान न हो जाते ह ।। ११ ।। अत त ायेण बलो ब लनं रपुम् । जयेत् स यक् योगेण नी याथाना मनो हतान् ।। १२ ।। परंतु जो आल य यागकर उ म यु एवं नी तसे काम लेता है, वह बल होनेपर भी बलवान् श ुको जीत लेता है और अपने लये हतकर एवं अभी अथ ा त करता है ।। १२ ।। कृ णे नयो म य बलं जयः पाथ धनंजये । मागधं साध य याम इ य इवा नयः ।। १३ ।। ीकृ णम नी त है, मुझम बल है और अजुनम वजयक श है। हम तीन मलकर मगधराज जरासंधके वधका काय पूरा कर लगे; ठ क उसी तरह, जैसे तीन अ नयाँ य क स कर दे ती ह ।। १३ ।। ( वद्बु बलमा य सव ा य त धमराट् । जयोऽ माकं ह गो व द येषां नाथो भवान् सदा ।।) ो







गो व द! आपके बु बलका आ य लेकर धमराज यु ध र सब कुछ पा सकते ह। जनक सदा र ा करनेवाले आप ह, उनक —हम पा डव क वजय न त है।

कृ ण उवाच अथानारभते बालो नानुब धमवे ते । त मादर न मृ य त बालमथपरायणम् ।। १४ ।। ज वा ज यान् यौवना ः पालना च भगीरथः । कातवीय तपोवीयाद् बलात् तु भरतो वभुः ।। १५ ।। ीकृ णने कहा—राजन्! अ ानी मनु य बड़े-बड़े काय का आर भ तो कर दे ता है, परंतु उनके प रणामक ओर नह दे खता। अतः केवल अपने वाथसाधनम लगे ए ववेकशू य श ुके वहारको वीर पु ष नह सह सकते। युवना के पु मा धाताने जीतनेयो य श ु को जीतकर साट ् का पद ा त कया था। भगीरथ जाका पालन करनेसे, कातवीय (सहबा अजुन) तपोबलसे तथा राजा भरत वाभा वक बलसे साट ् ए थे ।। १४-१५ ।। ऋ या म तान् प च स ाज वनुशु ुम । सा ा य म छत ते तु सवाकारं यु ध र ।। १६ ।। न ा ल णं ा तधमाथनयल णैः ।। १७ ।। इसी कार राजा म अपनी समृ के भावसे साट ् बने थे। अबतक उन पाँच साट का ही नाम हम सुनते आ रहे ह। यु ध र! वे मा धाता आ द एक-एक गुणसे ही साट ् हो सके थे; परंतु आप तो स पूण पसे साट ् पद ा त करना चाहते ह। साा या तके जो पाँच गुण—श ु वजय, जापालन, तपःश , धन-समृ और उ म नी त ह, उन सबसे आप स प ह ।। १६-१७ ।। बाह थो जरासंध तद् व भरतषभ । न चैनमनु य ते कुला येकशतं नृपाः । त मा दह बलादे व सा ा यं कु ते ह सः ।। १८ ।। परंतु भरत े ! आपके मागम बृह थका पु जरासंध बाधक है, यह आपको जान लेना चा हये। य के जो एक सौ कुल ह, वे कभी उसका अनुसरण नह करते, अतः वह बलसे ही अपना साा य था पत कर रहा है ।। १८ ।। र नभाजो ह राजानो जरासंधमुपासते । न च तु य त तेना प बा यादनयमा थतः ।। १९ ।। जो र न के अ धप त ह, ऐसे राजालोग (धन दे कर) जरासंधक उपासना करते ह, परंतु वह उससे भी संतु नह होता। अपनी ववेकशू यताके कारण अ यायका आ य ले उनपर अ याचार ही करता है ।। १९ ।। मूधा भ ष ं नृप त धानपु षो बलात् । आद े न च नो ोऽभागः पु षतः व चत् ।। २० ।। ो





आजकल वह धान पु ष बनकर मूधा भ ष राजाको बलपूवक बंद बना लेता है। जनका व ध-पूवक रा यपर अ भषेक आ है, ऐसे पु ष मसे कह कसी एकको भी हमने ऐसा नह दे खा, जसे उसने ब लका भाग न बना लया हो—कैदम न डाल रखा हो ।। २० ।। एवं सवान् वशे च े जरासंधः शतावरान् । तं बलतरो राजा कथं पाथ उपै य त ।। २१ ।। इस कार जरासंधने लगभग सौ राजकुल के राजा मसे कुछको छोड़कर सबको वशम कर लया है। कु तीन दन! कोई अ य त बल राजा उससे भड़नेका साहस कैसे करेगा ।। २१ ।। ो तानां मृ ानां रा ां पशुपतेगृहे । पशूना मव का ी तज वते भरतषभ ।। २२ ।। भरत े ! दे वताको ब ल दे नेके लये जल छड़ककर एवं माजन करके शु कये ए पशु क भाँ त जो पशुप तके म दरम कैद ह, उन राजा को अब अपने जीवनम या ी त रह गयी है? ।। २२ ।। यः श मरणो यदा भव त स कृतः । ततः म मागधं सं ये तबाधेम यद् वयम् ।। २३ ।। य जब यु म अ -श ारा मारा जाता है, तब यह उसका स कार है; अतः हमलोग जरासंधको -यु म मार डाल ।। २३ ।। षडशी तः समानीताः शेषा राजं तुदश । जरासंधेन राजान ततः ू रं व यते ।। २४ ।। राजन्! जरासंधने सौमसे छयासी ( तशत) राजा को तो कैद कर लया है, केवल चौदह ( तशत) बाक ह। उनको भी बंद बनानेके प ात् वह ू र कमम वृ होगा ।। २४ ।। ा ुयात् स यशो द तं त यो व नमाचरेत् । जयेद ् य जरासंधं स स ा नयतं भवेत् ।। २५ ।। जो उसके इस कमम व न डालेगा, वह उ वल यशका भागी होगा तथा जो जरासंधको जीत लेगा, वह न य ही साट ् होगा ।। २५ ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण राजसूयार भपव ण कृ णवा ये प चदशोऽ यायः ।। १५ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत राजसूयार भपवम ीकृ णवा य- वषयक पं हवाँ अ याय पूरा आ ।। १५ ।। (दा णा य अ धक पाठका १ ोक मलाकर क ु ल २६ ोक ह)

षोडशोऽ यायः जरासंधको जीतनेके वषयम यु ध रके उ साहहीन होनेपर अजुनका उ साहपूण उद्गार यु ध र उवाच स ाड् गुणमभी सन् वै यु मान् वाथपरायणः । कथं हणुयां कृ ण सोऽहं केवलसाहसात् ।। १ ।। यु ध र बोले— ीकृ ण! म साट ् के गुण को ा त करनेक इ छा रखकर वाथसाधनम त पर हो केवल साहसके भरोसे आपलोग को जरासंधके पास कैसे भेज ँ ? ।। १ ।। भीमाजुनावुभौ ने े मनो म ये जनादनम् । मन ु वहीन य क शं जी वतं भवेत् ।। २ ।। भीमसेन और अजुन मेरे दोन ने ह और जनादन आपको म अपना मन मानता ँ। अपने मन और ने को खो दे नेपर मेरा यह जीवन कैसा हो जायगा? ।। २ ।। जरासंधबलं ा य पारं भीम व मम् । यमोऽ प न वजेताऽऽजौ त वः क वचे तम् ।। ३ ।। जरासंधक सेनाका पार पाना क ठन है। उसका परा म भयानक है। यु म उस सेनाका सामना करके यमराज भी वजयी नह हो सकते, फर वहाँ आपलोग का य न या कर सकता है? ।। ३ ।। (कथं ज वा पुनयूयम मान् स त या यथ ।) अ मं वथा तरे यु मनथः तप ते । त मा तप तु काया यु ा मता मम ।। ४ ।। आपलोग कस कार उसे जीतकर फर हमारे पास लौट सकगे? यह काय हमारे लये इ फलके वपरीत फल दे नेवाला जान पड़ता है। इसम लगे ए मनु यको न य ही अनथक ा त होती है। इस लये अबतक हम जसे करना चाहते थे, उस राजसूयय क ओर यान दे ना उ चत नह जान पड़ता ।। ४ ।। यथाहं वमृशा येक तत् ताव छयतां मम । सं यासं रोचये साधु काय या य जनादन । तह त मनो मेऽ राजसूयो राहरः ।। ५ ।। जनादन! इस वषयम म अकेले जैसा सोचता ँ, मेरे उस वचारको आप सुन। मुझे तो इस कायको छोड़ दे ना ही अ छा लगता है। राजसूयका अनु ान ब त क ठन है। अब यह मेरे मनको न साह कर रहा है ।। ५ ।। वैश पायन उवाच े







पाथः ा य धनुः े म ये च महेषुधी । रथं वजं सभां चैव यु ध रमभाषत ।। ६ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! कु तीन दन अजुन उ म गा डीव धनुष, दो अ य तूणीर, द रथ, वजा और सभा ा त कर चुके थे; इससे उ सा हत होकर वे यु ध रसे बोले ।। ६ ।। अजुन उवाच धनुः श ं शरा वीय प ो भू मयशो बलम् । ा तमेत मया राजन् ापं यदभी सतम् ।। ७ ।। अजुनने कहा—राजन्! धनुष, श , बाण, परा म, े सहायक, भू म, यश और बलक ा त बड़ी क ठनाईसे होती है; कतु ये सभी लभ व तुएँ मुझे अपनी इ छाके अनुकूल ा त ई ह ।। ७ ।। कुले ज म शंस त वै ाः साधु सु न ताः । बलेन स शं ना त वीय तु मम रोचते ।। ८ ।। अनुभवी व ान् उ म कुलम ज मक बड़ी शंसा करते ह; परंतु बलके समान वह भी नह है। मुझे तो बल-परा म ही े जान पड़ता है ।। ८ ।। कृतवीयकुले जातो नव यः क क र य त । नव य तु कुले जातो वीयवां तु व श यते ।। ९ ।। महापरा मी राजा कृतवीयके कुलम उ प होकर भी जो वयं नबल है, वह या करेगा? नबल कुलम ज म लेकर भी जो बलवान् और परा मी है, वही े है ।। ९ ।। यः सवशो राजन् य य वृ ष जये । सवगुणै वहीनोऽ प वीयवान् ह तरेद ् रपून् ।। १० ।। महाराज! श ु को जीतनेम जसक वृ हो, वही सब कारसे े य है। बलवान् पु ष सब गुण से हीन हो, तो भी वह श ु के संकटसे पार हो सकता है ।। १० ।। सवर प गुणैयु ो नव यः क क र य त । गुणीभूता गुणाः सव त त ह परा मे ।। ११ ।। जो नबल है, वह सवगुणस प होकर भी या करेगा? परा मम सभी गुण उसके अंग बनकर रहते ह ।। ११ ।। जय य हेतुः स ह कम दै वं च सं तम् । संयु ो ह बलैः क त् मादा ोपयु यते ।। १२ ।। महाराज! स (मनोयोग) और ार धके अनुकूल पु षाथ ही वजयका हेतु है। कोई बलसे संयु होनेपर भी माद करे—कत म मन न लगावे, तो वह अपने उ े यम सफल नह हो सकता ।। १२ ।। तेन ारेण श ु यः ीयते सबलो रपुः ।। १३ ।। माद प छ के कारण बलवान् श ु भी अपने श ु ारा मारा जाता है ।। १३ ।। दै यं यथा बलव त तथा मोहो बला वते । ौ

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तावुभौ नाशकौ हेतू रा ा या यौ जया थना ।। १४ ।। बलवान् पु षम जैसे द नताका होना बड़ा भारी दोष है, वैसे ही ब ल पु षम मोहका होना भी महान् गुण है। द नता और मोह दोन वनाशके कारण ह; अतः वजय चाहनेवाले राजाके लये वे दोन ही या य ह ।। १४ ।। जरासंध वनाशं च रा ां च प रर णम् । य द कुयाम य ाथ क ततः परमं भवेत् ।। १५ ।। य द हम राजसूयय क स के लये जरासंधका वनाश तथा कैदम पड़े ए राजा क र ा कर सक तो इससे उ म और या हो सकता है? ।। १५ ।। अनार भे ह नयतो भवेदगुण न यः । गुणा ःसंशयाद् राजन् नैगु यं म यसे कथम् ।। १६ ।। य द हम य का आर भ नह करते ह तो न य ही हमारी अयो यता एवं बलता कट होती है; अतः राजन्! सु न त गुणक उपे ा करके आप नगुणताका कलंक य वीकार कर रहे ह? ।। १६ ।। काषायं सुलभं प ा मुनीनां शम म छताम् । सा ा यं तु भवे छ यं वयं यो यामहे परान् ।। १७ ।। ऐसा करनेपर तो शा तक इ छा रखनेवाले सं या सय का गे आ व ही हम सुलभ होगा, परंतु हमलोग साा यको ा त करनेम समथ ह; अतः हमलोग श ु से अव य यु करगे ।। १७ ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण राजसूयार भपव ण जरासंधवधम णे षोडशोऽ यायः ।। १६ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत राजसूयार भपवम जरासंधवधके लये म णा वषयक सोलहवाँ अ याय पूरा आ ।। १६ ।।

स तदशोऽ यायः ीकृ णके ारा अजुनक बातका अनुमोदन तथा यु ध रको जरासंधक उ प का संग सुनाना वासुदेव उवाच जात य भारते वंशे तथा कु याः सुत य च । या वै यु ा म तः सेयमजुनेन द शता ।। १ ।। भगवान् ीकृ णने कहा—राजन्! भरतवंशम उ प पु ष और कु ती-जैसी माताके पु क जैसी बु होनी चा हये, अजुनने यहाँ उसीका प रचय दया है ।। १ ।। न म मृ युं वयं व रा ौ वा य द वा दवा । न चा प कं चदमरमयु े नानुशु ुम ।। २ ।। महाराज! हमलोग यह नह जानते क मौत कब आयेगी? रातम आयेगी या दनम? ( य क उसके नयत समयका ान कसीको नह है।) हमने यह भी नह सुना है क यु न करनेके कारण कोई अमर हो गया हो ।। २ ।। एतावदे व पु षैः काय दयतोषणम् । नयेन व ध ेन य प मते परान् ।। ३ ।। अतः वीर पु ष का इतना ही कत है क वे अपने दयके संतोषके लये नी तशा म बतायी ई नी तके अनुसार श ु पर आ मण कर ।। ३ ।। सुनय यानपाय य संयोगे परमः मः । संग या जायतेऽसा यं सा यं च न भवेद ् योः ।। ४ ।। दै व आ दक तकूलतासे र हत अ छ नी त एवं सलाह ा त होनेपर आर भ कया आ काय पूण पसे सफल होता है। श ुके साथ भड़नेपर ही दोन प का अ तर ात होता है। दोन दल सभी बात म समान ही ह , ऐसा स भव नह ।। ४ ।। अनय यानुपाय य संयुगे परमः यः । संशयो जायते सा या जय न भवेद ् योः ।। ५ ।। जसने अ छ नी त नह अपनायी है और उ म उपायसे काम नह लया है, उसका यु म सवथा वनाश होता है। य द दोन प म समानता हो तो संशय ही रहता है तथा दोन मसे कसीक भी जय अथवा पराजय नह होती ।। ५ ।। ते वयं नयमा थाय श ुदेहसमीपगाः । कथम तं न ग छे म वृ येव नद रयाः । परर े परा ा ताः वर ावरणे थताः ।। ६ ।। जब हमलोग नी तका आ य लेकर श ुके शरीरके नकटतक प ँच जायँगे, तब जैसे नद का वेग कनारेके वृ को न कर दे ता है, उसी कार हम श ुका अ त य न कर े









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डालगे? हम अपने छ को छपाये रखकर श ुके छ को दे खगे और अवसर मलते ही उसपर बलपूवक आ मण कर दगे ।। ६ ।। ूढानीकैर तबलैन यु येद र भः सह । इ त बु मतां नी त त ममापीह रोचते ।। ७ ।। जनक सेनाएँ मोचा बाँधकर खड़ी ह और जो अ य त बलवान् ह , ऐसे श ु के साथ (स मुख होकर) यु नह करना चा हये; यह बु मान क नी त है। यही नी त यहाँ मुझे भी अ छ लगती है ।। ७ ।। अनव ा स बु ाः व ाः श ुस तत् । श ुदेहमुपा य तं कामं ा ुयामहे ।। ८ ।। य द हम छपे- छपे श ुके घरतक प ँच जायँ तो यह हमारे लये कोई न दाक बात नह होगी। फर हम श ुके शरीरपर आ मण करके अपना काम बना लगे ।। ८ ।। एको ेव यं न यं बभ त पु षषभः । अ तरा मेव भूतानां त यं नैव ल ये ।। ९ ।। यह पु ष म े जरासंध ा णय के भीतर थत आ माक भाँ त सदा अकेला ही साा यल मीका उपभोग करता है; अतः उसका और कसी उपायसे नाश होता नह दखायी दे ता (उसके वनाशके लये हम वयं य न करना होगा) ।। ९ ।। अथवैनं नह याजौ शेषेणा प समाहताः । ा ुयाम ततः वग ा त ाणपरायणाः ।। १० ।। अथवा य द जरासंधको यु म मारकर उसके प म रहनेवाले शेष सै नक ारा हम भी मारे गये तो भी हम कोई हा न नह है। अपने जा त-भाइय क र ाम संल न होनेके कारण हम वगक ही ा त होगी ।। १० ।। यु ध र उवाच कृ ण कोऽयं जरासंधः कवीयः क परा मः । य वां पृ ् वा नस शं न द धः शलभो यथा ।। ११ ।। यु ध रने पूछा— ीकृ ण! यह जरासंध कौन है? उसका बल और परा म कैसा है जो व लत अ नके समान आपका पश करके भी पतंगके समान जलकर भ म नह हो गया? ।। ११ ।। कृ ण उवाच शृणु राजन् जरासंधो य य य परा मः । यथा चोपे तोऽ मा भब शः कृत व यः ।। १२ ।। ीकृ णने कहा—राजन्! जरासंधका बल और परा म कैसा है तथा अनेक बार हमारा अ य करनेपर भी हमलोग ने य उसक उपे ा कर द , यह सब बता रहा ँ, सु नये ।। १२ ।। अ ौ हणीनां तसृणां प तः समरद पतः । राजा बृह थो नाम मगधा धप तबली ।। १३ ।। े े े े े ी ौ ी

मगधदे शम बृह थ नामसे स एक बलवान् राजा रा य करते थे। वे तीन अ ौ हणी सेना के वामी और यु म बड़े अ भमानके साथ लड़नेवाले थे ।। १३ ।। पवान् वीयस प ः ीमानतुल व मः । न यं द ाङ् कततनुः शत तु रवापरः ।। १४ ।। राजा बृह थ बड़े ही पवान्, बलवान्, धनवान् और अनुपम परा मी थे। उनका शरीर सरे इ क भाँ त सदा य क द ाके च से ही सुशो भत होता रहता था ।। १४ ।। तेजसा सूयसंकाशः मया पृ थवीसमः । यमा तकसमः ोधे या वै वणोपमः ।। १५ ।। वे तेजम सूय, माम पृ वी, ोधम यमराज और धन-स प म कुबेरके समान थे ।। १५ ।। त या भजनसंयु ै गुणैभरतस म । ा तेयं पृ थवी सवा सूय येव गभ त भः ।। १६ ।। भरत े ! जैसे सूयक करण से यह सारी पृ वी आ छा दत हो जाती है, उसी कार उनके उ म कुलो चत सद्गुण से सम त भूम डल ा त हो रहा था—सव उनके गुण क चचा एवं शंसा होती रहती थी ।। १६ ।। स का शराज य सुते यमजे भरतषभ । उपयेमे महावीय प वणसंयुते । तयो कार समयं मथः स पु षषभः ।। १७ ।। ना तव त य इ येवं प नी यां सं नधौ तदा । स ता यां शुशुभे राजा प नी यां वसुधा धपः ।। १८ ।। या यामनु पा यां करेणु या मव पः । भरतकुलभूषण! महापरा मी राजा बृह थने का शराजक दो जुड़व क या के साथ, जो अपनी प-स प से अपूव शोभा पा रही थ , ववाह कया और उन नर े ने एका तम अपनी दोन प नय के समीप यह त ा क क म तुम दोन के साथ कभी वषम वहार नह क ँ गा (अथात् दोन के त समान पसे मेरा ेमभाव बना रहेगा)। जैसे दो ह थ नय के साथ गजराज सुशो भत होता है, उसी कार वे महाराज बृह थ अपने मनके अनु प दोन य प नय के साथ शोभा पाने लगे ।। १७-१८ ।। तयोम यगत ा प रराज वसुधा धपः ।। १९ ।। ग ायमुनयोम ये मू तमा नव सागरः । जब वे दोन प नय के बीच वराजमान होते, उस समय ऐसा जान पड़ता, मानो गंगा और यमुनाके बीचम मू तमान् समु सुशो भत हो रहा है ।। १९ ।। वषयेषु नम न य त य यौवनम यगात् ।। २० ।। न च वंशकरः पु त याजायत क न । म लैब भह मैः पु कामा भ र भः । े

नाससाद नृप े ः पु ं कुल ववधनम् ।। २१ ।। वषय म डू बे ए राजाक सारी जवानी बीत गयी, परंतु उ ह कोई वंश चलानेवाला पु नह ा त आ। उन े नरेशने ब त-से मांग लक कृ य, होम और पु े य कराये, तो भी उ ह वंशक वृ करनेवाले पु क ा त नह ई ।। २०-२१ ।। अथ का ीवतः पु ं गौतम य महा मनः । शु ाव तप स ा तमुदारं च डकौ शकम् ।। २२ ।। य छयाऽऽगतं तं तु वृ मूलमुपा तम् । प नी यां स हतो राजा सवर नैरतोषयत् ।। २३ ।। एक दन उ ह ने सुना क गौतमगो ीय महा मा का ीवान्के पु परम उदार च डकौ शक मु न तप यासे उपरत होकर अक मात् इधर आ गये ह और एक वृ के नीचे बैठे ह। यह समाचार पाकर राजा बृह थ अपनी दोन प नय (एवं पुरवा सय )-के साथ उनके पास गये तथा सब कारके र न (मु नजनो चत उ कृ व तु )-क भट दे कर उ ह संतु कया ।। २२-२३ ।। (बृह थं च स ऋ षः यथावत् यन दत । उप व तेनाथ अनु ातो महा मना ।। तमपृ छत् तदा व ः कमागमन म यथ । पौरैरनुगत यैव प नी यां स हत य च ।। मह षने भी यथो चत बताव ारा बृह थको स कया। उन महा माक आ ा पाकर राजा उनके नकट बैठे। उस समय ष च डकौ शकने उनसे पूछा—‘राजन्! अपनी दोन प नय और पुरवा सय के साथ यहाँ तु हारा आगमन कस उ े यसे आ है?’। स उवाच मु न राजा भगवन् ना त मे सुतः । अपु य वृथा ज म इ या मु नस म ।। तब राजाने मु नसे कहा—‘भगवन्! मेरे कोई पु नह है। मु न े ! लोग कहते ह क पु हीन मनु यका ज म थ है। ता श य ह रा येन वृ वे क योजनम् । सोऽहं तप र या म प नी यां स हतो वने ।। ‘इस बुढ़ापेम पु हीन रहकर मुझे रा यसे या योजन है? इस लये अब म दोन प नय के साथ तपोवनम रहकर तप या क ँ गा। ना ज य मुने क तः वग ैवा यो भवेत् । एवमु य रा ा तु मुनेः का यमागतम् ।।) ‘मुने! संतानहीन मनु यको न तो इस लोकम क त ा त होती है और न परलोकम अ य वग ही ा त होता है।’ राजाके ऐसा कहनेपर मह षको दया आ गयी। तम वीत् स यधृ तः स यवागृ षस मः । प रतु ोऽ म राजे वरं वरय सु त ।। २४ ।। ततः सभायः णत तमुवाच बृह थः । पु दशननैरा याद् वा पसं द धया गरा ।। २५ ।। ै े औ ौ े े ‘

तब धैयसे स प और स यवाद मु नवर च डकौ शकने राजा बृह थसे कहा—‘उ म तका पालन करनेवाले राजे ! म तुमपर संतु ँ। तुम इ छानुसार वर माँगो।’ यह सुनकर राजा बृह थ अपनी दोन रा नय के साथ मु नके चरण म पड़ गये और पु दशनसे नराश होनेके कारण ने से आँसू बहाते ए गद्गद वाणीम बोले ।। २४-२५ ।। राजोवाच भगवन् रा यमु सृ य थतोऽहं तपोवनम् । क वरेणा पभा य य क रा येना ज य मे ।। २६ ।। राजाने कहा—भगवन्! म तो अब रा य छोड़कर तपोवनक ओर चल पड़ा ँ। मुझ अभागे और संतानहीनको वर अथवा रा यक या आव यकता? ।। २६ ।। ीकृ ण उवाच एत छ वा मु न यानमगमत् ु भते यः । त यैव चा वृ य छायायां समुपा वशत् ।। २७ ।। ीकृ ण कहते ह—राजाका यह कातर वचन सुनकर मु नक इ याँ ु ध हो गय (उनका दय पघल गया)। तब वे यान थ हो गये और उसी आवृ क छायाम बैठे रहे ।। २७ ।। त योप व य मुने स े नपपात ह । अवातमशुकाद मेकमा फलं कल ।। २८ ।। उसी समय वहाँ बैठे ए मु नक गोदम एक आमका फल गरा। वह न हवाके चलनेसे गरा था, न कसी तोतेने ही उस फलम अपनी च च गड़ायी थी ।। २८ ।। तत् गृ मु न े ो दयेना भम य च । रा े ददाव तमं पु स ा तकारणम् ।। २९ ।। मु न े च डकौ शकने उस अनुपम फलको हाथम ले लया और उसे मन-ही-मन अ भम त करके पु क ा त करानेके लये राजाको दे दया ।। २९ ।। उवाच च महा ा तं राजानं महामु नः । ग छ राजन् कृताथ ऽ स नवत व नरा धप ।। ३० ।। त प ात् उन महा ानी महामु नने राजासे कहा—‘राजन्! तु हारा मनोरथ पूण हो गया। नरे र! अब तुम अपनी राजधानीको लौट जाओ ।। ३० ।। (एष ते तनयो राजन् मा त सी वं तपो वने । जाः पालय धमण एष धम मही ताम् ।। महाराज! यह फल तु ह पु ा त करायेगा, अब तुम वनम जाकर तप या न करो; धमपूवक जाका पालन करो। यही राजा का धम है। यज व व वधैय ै र ं तपय चे ना । पु ं रा ये त ा य तत आ ममा ज ।। ‘नाना कारके य ारा भगवान्का यजन करो और दे वराज इ को सोमरससे तृ त करो। फर पु को रा य सहासनपर बठाकर वान था मम आ जाना। ौ

अ ौ वरान् य छा म तव पु य पा थव । यतामजेय वं यु े षु च तथा र तम् ।। ‘भूपाल! म तु हारे पु के लये आठ वर दे ता ँ—वह ा णभ होगा, यु म अजेय होगा, उसक यु वषयक च कभी कम न होगी’। या तथेयतां चैव द नानाम ववे णम् । तथा बलं च सुमह लोके क त च शा तीम् ।। अनुरागं जानां च ददौ त मै स कौ शकः ।) ‘वह अ त थय का ेमी होगा, द न- खय पर उसक सदा कृपाबनी रहेगी, उसका बल महान् होगा, लोकम उसक अ य क तका व तार होगा और जाजन पर उसका सदा नेह बना रहेगा।’ इस कार च डकौ शक मु नने उसके लये ये आठ वर दये। एत छ वा मुनेवा यं शरसा णप य च । मुनेः पादौ महा ा ः स नृपः वगृहं गतः ।। ३१ ।। मु नका यह वचन सुनकर उन परम बु मान् राजा बृह थने उनके दोन चरण म म तक रखकर णाम कया और अपने घरको लौट गये ।। ३१ ।। यथासमयमा ाय तदा स नृपस मः । ा यामेकं फलं ादात् प नी यां भरतषभ ।। ३२ ।। भरत े ! उन उ म नरेशने उ चत कालका वचार करके दोन प नय के लये वह एक फल दे दया ।। ३२ ।। ते तदा ं धा कृ वा भ यामासतुः शुभे । भा व वाद प चाथ य स यवा यतया मुनेः ।। ३३ ।। तयोः समभवद् गभः फल ाशनस भवः । ते च ् वा स नृप तः परां मुदमवाप ह ।। ३४ ।। उन दोन शुभ व पा रा नय ने उस आमके दो टु कड़े करके एक-एक टु कड़ा खा लया। होनेवाली बात होकर ही रहती है, इस लये तथा मु नक स यवा दताके भावसे वह फल खानेके कारण दोन रा नय को गभ रह गये। उ ह गभवती ई दे खकर राजाको बड़ी स ता ई ।। ३३-३४ ।। अथ काले महा ा यथासमयमागते । जायेतामुभे राज छरीरशकले तदा ।। ३५ ।। महा ा यु ध र! सवकाल पूण होनेपर उन दोन रा नय ने यथासमय अपने गभसे शरीरका एक-एक टु कड़ा पैदा कया ।। ३५ ।। एका बा चरणे अध दरमुख फचे । ् वा शरीरशकले वेपतु भे भृशम् ।। ३६ ।। येक टु कड़ेम एक आँख, एक हाथ, एक पैर, आधा पेट, आधा मुँह और क टके नीचेका आधा भाग था। एक शरीरके उन टु कड़ को दे खकर वे दोन भयके मारे थर-थर काँपने लग ।। ३६ ।।

उ ने सह स म य ते भ ग यौ तदाबले । सजीवे ा णशकले त यजाते सु ःखते ।। ३७ ।। उनका दय उ न हो उठा; अबला ही तो थ । उन दोन ब हन ने अ य त ःखी होकर पर पर सलाह करके उन दोन टु कड़ को, जनम जीव तथा ाण व मान थे, याग दया ।। ३७ ।। तयोधायौ सुसंवीते क ृ वा ते गभस लवे । नग या तःपुर ारात् समु सृ या भज मतुः ।। ३८ ।। उन दोन क धाय गभके उन टु कड़ को कपड़ेसे ढककर अ तःपुरके दरवाजेसे बाहर नकल और चौराहेपर फककर चली गय ।। ३८ ।। ते चतु पथ न ते जरा नामाथ रा सी । ज ाह मनुज ा मांसशो णतभोजना ।। ३९ ।। पु ष सह! चौराहेपर फके ए उन टु कड़ को र और मांस खानेवाली जरा नामक एक रा सीने उठा लया ।। ३९ ।। कतुकामा सुखवहे शकले सा तु रा सी । संयोजयामास तदा वधानबलचो दता ।। ४० ।। वधाताके वधानसे े रत होकर उस रा सीने उन दोन टु कड़ को सु वधापूवक ले जानेयो य बनानेक इ छासे उस समय जोड़ दया ।। ४० ।। ते समानीतमा े तु शकले पु षषभ । एकमू तधरो वीरः कुमारः समप त ।। ४१ ।। े



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नर े ! उन टु कड़ का पर पर संयोग होते ही एक शरीरधारी वीर कुमार बन गया ।। ४१ ।।

ततः सा रा सी राजन् व मयो फु ललोचना । न शशाक समु ोढुं व सारमयं शशुम् ।। ४२ ।। राजन्! यह दे खकर रा सीके ने आ यसे खल उठे । उसे वह शशु वक े सारत वका बना जान पड़ा। रा सी उसे उठाकर ले जानेम असमथ हो गयी ।। ४२ ।। बाल ता तलं मु कृ वा चा ये नधाय सः । ा ोशद तसंरधः सतोय इव तोयदः ।। ४३ ।। उस बालकने अपने लाल हथेलीवाले हाथ क मु बाँधकर मुँहम डाल ली और अ य त ु होकर जलसे भरे मेघक भाँ त ग भीर वरसे रोना शु कर दया ।। ४३ ।। तेन श दे न स ा तः सहसा तःपुरे जनः । नजगाम नर ा रा ा सह परंतप ।। ४४ ।। परंतप नर ा ! बालकके उस रोने- च लानेके श दसे र नवासक सब याँ घबरा उठ तथा राजाके साथ सहसा बाहर नकल ।। ४४ ।। ते चाबले प र लाने पयःपूणपयोधरे । नराशे पु लाभाय सहसैवा यग छताम् ।। ४५ ।। धसे भरे ए तन वाली वे दोन अबला रा नयाँ भी, जो पु ा तक आशा छोड़ चुक थ , म लन मुख हो सहसा बाहर नकल आय ।। ४५ ।। अथ ् वा तथाभूते राजानं चे संत तम् । तं च बालं सुब लनं च तयामास रा सी ।। ४६ ।। नाहा म वषये रा ो वस ती पु गृ नः ।

बालं पु ममं ह तुं धा मक य महा मनः ।। ४७ ।। उन दोन रा नय को उस कार उदास, राजाको संतान पानेके लये उ सुक तथा उस बालकको अ य त बलवान् दे खकर रा सीने सोचा, ‘म इस राजाके रा यम रहती ँ। यह पु क इ छा रखता है; अतः इस धमा मा तथा महा मा नरेशके बालक पु क ह या करना मेरे लये उ चत नह है’ ।। ४६-४७ ।। सा तं बालमुपादाय मेघलेखेव भा करम् । कृ वा च मानुषं पमुवाच वसुधा धपम् ।। ४८ ।। ऐसा वचारकर उस रा सीने मानवीका प धारण कया और जैसे मेघमाला सूयको धारण करे, उसी कार वह उस बालकको गोदम उठाकर भूपालसे बोली ।। ४८ ।।

रा युवाच बृह थ सुत तेऽयं मया द ः गृ ताम् । तव प नी ये जातो जा तवरशासनात् । धा ीजनप र य ो मयायं प रर तः ।। ४९ ।। रा सीने कहा—बृह थ! यह तु हारा पु है, जसे मने तु ह दया है। तुम इसे हण करो। षके वरदान एवं आशीवादसे तु हारी प नय के गभसे इसका ज म आ है। धाय ने इसे घरके बाहर लाकर डाल दया था; कतु मने इसक र ा क है ।। ४९ ।। ीकृ ण उवाच तत ते भरत े का शराजसुते शुभे । तं बालम भप ाशु वैर य ष चताम् ।। ५० ।। ीकृ ण कहते ह—भरतकुलभूषण! तब का शराजक उन दोन शुभल णा क या ने उस बालकको तुरंत गोदम लेकर उसे तन के धसे स च दया ।। ५० ।। ततः स राजा सं ः सव त पल य च । अपृ छ े मगभाभां रा स तामरा सीम् ।। ५१ ।। यह सब दे ख-सुनकर राजाके हषक सीमा न रही। उ ह ने सुवणक -सी का तवाली उस रा सीसे, जो व प-से रा सी नह जान पड़ती थी, इस कार पूछा ।। ५१ ।। राजोवाच का वं कमलगभाभे मम पु दा यनी । कामया ू ह क या ण दे वता तभा स मे ।। ५२ ।। राजाने कहा—कमलके भीतरी भागके समान मनोहर का तवाली क याणी! मुझे पु दान करनेवाली तुम कौन हो? बताओ। मुझे तो ऐसा जान पड़ता है क तुम इ छानुसार वचरनेवाली कोई दे वी हो ।। ५२ ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण राजसूयार भपव ण जरासंधो प ौ स तदशोऽ यायः ।। १७ ।।





इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत राजसूयार भपवम जरासंधक उ प वषयक स हवाँ अ याय पूरा आ ।। १७ ।। (दा णा य अ धक पाठक े ९ ोक मलाकर कुल ६१ ोक ह)

अ ादशोऽ यायः जरा रा सीका अपना प रचय दे ना और उसीके नामपर बालकका नामकरण होना रा युवाच जरा नामा म भ ं ते रा सी काम पणी । तव वे म न राजे पू जता यवसं सुखम् ।। १ ।। रा सीने कहा—राजे ! तु हारा क याण हो। मेरा नाम जरा है। म इ छानुसार प धारण करनेवाली रा सी ँ और तु हारे घरम पू जत हो सुखपूवक रहती चली आयी ँ ।। १ ।। गृहे गृहे मनु याणां न यं त ा म रा सी । गृहदे वी त ना ना वै पुरा सृ ा वयंभुवा ।। २ ।। म मनु य के घर-घरम सदा मौजूद रहती ँ। कहनेको म रा सी ही ँ; कतु पूवकालम ाजीने गृहदे वीके नामसे मेरी सृ क थी ।। २ ।। दानवानां वनाशाय था पता द पणी । यो मां भ या लखेत् कु े सपु ां यौवना वताम् ।। ३ ।। गृहे त य भवेद ् वृ र यथा यमा ुयात् । वद्गृहे त मानाहं पू जताहं सदा वभो ।। ४ ।। और उ ह ने मुझे दानव के वनाशके लये नयु कया था। म द प धारण करनेवाली ँ। जो अपने घरक द वारपर मुझे अनेक पु स हत युवती ीके पम भ पूवक लखता है (मेरा च अं कत करता है), उसके घरम सदा वृ होती है; अ यथा उसे हा न उठानी पड़ती है। भो! म तु हारे घरम रहकर सदा पू जत होती चली आयी ँ ।। ३-४ ।। लखता चैव कु ेषु पु ैब भरावृता । ग धपु पै तथा धूपैभ यभो यैः सुपू जता ।। ५ ।। एवं तु हारे घरक द वार पर मेरा ऐसा च अं कत कया गया है, जसम म अनेक पु से घरी ई खड़ी ँ। उस च के पम मेरा ग ध, पु प, धूप और भ य-भो य पदाथ ारा भलीभाँ त पूजन होता आ रहा है ।। ५ ।। साहं युपकाराथ च तया य नशं तव । तवेमे पु शकले व य म धा मक ।। ६ ।। सं े षते मया दै वात् कुमारः समप त । तव भा या महाराज हेतुमा महं वह ।। ७ ।। अतः म उस पूजनके बदले तु हारा कोई उपकार करनेक बात सदा सोचती रहती थी। धमा मन्! मने तु हारे पु के शरीरके इन दोन टु कड़ को दे खा और दोन को जोड़ दया। ै



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महाराज! दै ववश तु हारे भा यसे ही उन टु कड़ के जुड़नेसे यह राजकुमार कट हो गया है। म तो इसम केवल न म मा बन गयी ँ ।। ६-७ ।। (त य बाल य यत् कृ यं तत् कु व नरा धप । मम ना ना च लोकेऽ मन् यात एष भ व य त ।।) राजन्! अब इस बालकके लये जो आव यक सं कार ह, उ ह करो। यह इस संसारम मेरे ही नामसे व यात होगा। मे ं वा खा दतुं श ा क पुन तव बालकम् । गृहस पूजनात् तु ा मया य पत तव ।। ८ ।। मुझम सुमे पवतको भी नगल जानेक श है; फर तु हारे इस ब चेको खा जाना कौन बड़ी बात है? कतु तु हारे घरम जो मेरी भलीभाँ त पूजा होती आयी है, उसीसे संतु होकर मने तु ह यह बालक सम पत कया है ।। ८ ।। ीकृ ण उवाच एवमु वा तु सा राजं त ैवा तरधीयत । स संगृ कुमारं तं ववेश गृहं नृपः ।। ९ ।। ीकृ ण कहते ह—राजन्! ऐसा कहकर जरा रा सी वह अ तधान हो गयी और राजा उस बालकको लेकर अपने महलम चले आये ।। ९ ।। त य बाल य यत् कृ यं त चकार नृप तदा । आ ापय च रा या मगधेषु महो सवम् ।। १० ।। उस समय राजाने उस बालकके जातकम आ द सभी आव यक सं कार स प कये और मगधदे शम जरा रा सी (गृहदे वी)-के पूजनका महान् उ सव मनानेक आ ा द ।। १० ।। त य नामाकरो चैव पतामहसमः पता । जरया सं धतो य मा जरासंधो भव वयम् ।। ११ ।। ाजीके समान भावशाली राजा बृह थने उस बालकका नाम रखते ए कहा —‘इसको जराने सं धत कया (जोड़ा) है, इस लये इसका नाम जरासंध होगा’ ।। ११ ।। सोऽवधत महातेजा मगधा धपतेः सुतः । माणबलस प ो ता त रवानलः । माता प ोन दकरः शु लप े यथा शशी ।। १२ ।। मगधराजका वह महातेज वी बालक माता- पताको आन द दान करते ए आकार और बलसे स प हो घीक आ त द जानेसे व लत ई अ न और शु लप के च माक भाँ त दनो दन बढ़ने लगा ।। १२ ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण राजसूयार भपव ण जरासंधो प ौ अ ादशोऽ यायः ।। १८ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत राजसूयार भपवम जरासंधक उ प वषयक अठारहवाँ अ याय पूरा आ ।। १८ ।। ( ो ो )

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णा य अ धक पाठका १

ोक मलाकर क ु ल १३

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एकोन वशोऽ यायः च डकौ शक मु नके ारा जरासंधका भ व यकथन तथा पताके ारा उसका रा या भषेक करके वनम जाना ीकृ ण उवाच क य चत् वथ काल य पुनरेव महातपाः । मगधेषूपच ाम भगवां डकौ शकः ।। १ ।। ीकृ ण कहते ह—राजन्! कुछ कालके प ात् महातप वी भगवान् च डकौ शक मु न पुनः मगधदे शम घूमते ए आये ।। १ ।। त यागमनसं ः सामा यः सपुरःसरः । सभायः सह पु ेण नजगाम बृह थः ।। २ ।। उनके आगमनसे राजा बृह थको बड़ी स ता ई। वे म ी, अ गामी सेवक, रानी तथा पु के साथ मु नके पास गये ।। २ ।। पा ा याचमनीयै तमचयामास भारत । स नृपो रा यस हतं पु ं त मै यवेदयत् ।। ३ ।। भारत! पा , अ य और आचमनीय आ दके ारा राजाने मह षका पूजन कया और अपने सारे रा यके स हत पु को उ ह स प दया ।। ३ ।। तगृ च तां पूजां पा थवाद् भगवानृ षः । उवाच मागधं राजन् ेना तरा मना ।। ४ ।। सवमेत मया ातं राजन् द ेन च ुषा । पु तु शृणु राजे या शोऽयं भ व य त ।। ५ ।। महाराज! राजाक ओरसे ा त ई उस पूजाको वीकार करके ऐ यशाली मह षने मगधनरेशको स बो धत करके स च से कहा—‘राजन्! जरासंधके ज मसे लेकर अबतकक सारी बात मुझे द से ात हो चुक ह। राजे ! अब यह सुनो क तु हारा पु भ व यम कैसा होगा? ।। ४-५ ।। अ य पं च स वं च बलमू जतमेव च । एष या समु दतः पु तव न संशयः ।। ६ ।। ‘इसम प, स व, बल और ओजका वशेष आ वभाव होगा। इसम संदेह नह क तु हारा यह पु साा यल मीसे स प होगा ।। ६ ।। ाप य य त तत् सव व मेण सम वतः । अ य वीयवतो वीय नानुया य त पा थवाः ।। ७ ।। पततो वैनतेय य ग तम ये यथा खगाः । वनाशमुपया य त ये चा य प रप थनः ।। ८ ।। ‘









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‘यह परा मयु होकर स पूण अभी व तु को ा त कर लेगा। जैसे उड़ते ए ग डके वेगको सरे प ी नह पा सकते, उसी कार इस बलवान् राजकुमारके शौयका अनुसरण सरे राजा नह कर सकगे। जो लोग इससे श ुता करगे, वे न हो जायँगे ।। ७-८ ।। दे वैर प वसृ ा न श ा य य महीपते । न जं जन य य त गरे रव नद रयाः ।। ९ ।। ‘महीपते! जैसे नद का वेग कसी पवतको पीड़ा नह प ँचा सकता, उसी कार दे वता के छोड़े ए अ -श भी इसे चोट नह प ँचा सकगे ।। ९ ।। सवमूधा भ ष ानामेष मु न व ल य त । भाहरोऽयं सवषां यो तषा मव भा करः ।। १० ।। ‘ जनके म तकपर रा या भषेक आ है, उन सभी राजा के ऊपर रहकर यह अपने तेजसे का शत होता रहेगा। जैसे सूय सम त ह-न क का त हर लेते ह, उसी कार यह राजकुमार सम त राजा के तेजको तर कृत कर दे गा ।। १० ।। एनमासा राजानः समृ बलवाहनाः । वनाशमुपया य त शलभा इव पावकम् ।। ११ ।। ‘जैसे फ तगे आगम जलकर भ म हो जाते ह, उसी कार सेना और सवा रय से भरेपूरे समृ शाली नरेश भी इससे ट कर लेते ही न हो जायँगे ।। ११ ।। एष यः समु दताः सवरा ां ही य त । वषा ववोद णजला नद नदनद प तः ।। १२ ।। ‘यह सम त राजा क संगह ृ ीत स पदा को उसी कार अपने अ धकारम कर लेगा, जैसे नद और न दय का अ धप त समु वषा-ऋतुम बढ़े ए जलवाली न दय को अपनेम मला लेता है ।। १२ ।। एष धार यता स यक् चातुव य महाबलः । शुभाशुभ मव फ ता सवस यधरा धरा ।। १३ ।। ‘यह महाबली राजकुमार चार वण को भलीभाँ त धारण करेगा (उ ह आ य दे गा;) ठ क वैसे ही, जैसे सभी कारके धा य को धारण करनेवाली समृ शा लनी पृ वी शुभ और अशुभ सबको आ य दे ती है ।। १३ ।। अ या ावशगाः सव भ व य त नरा धपाः । सवभूता मभूत य वायो रव शरी रणः ।। १४ ।। ‘जैसे सब दे हधारी सम त ा णय के आ मा प वायुदेवके अधीन होते ह, उसी कार सभी नरेश इसक आ ाके अधीन ह गे ।। १४ ।। एष ं महादे वं पुरा तकरं हरम् । सवलोके व तबलः सा ाद् य त मागधः ।। १५ ।। ‘यह मगधराज स पूण लोक म अ य त बलवान् होगा और पुरासुरका नाश करनेवाले सव ःखहारी महादे व क आराधना करके उनका य दशन ा त करेगा’ ।। १५ ।। े

एवं ुव ेव मु नः वकाय मव च तयन् । वसजयामास नृपं बृह थमथा रहन् ।। १६ ।। श ुसूदन नरेश! ऐसा कहकर अपने कायके च तनम लगे ए मु नने राजा बृह थको वदा कर दया ।। १६ ।। व य नगर चा प ा तस ब ध भवृतः । अ भ ष य जरासंधं मगधा धप त तदा ।। १७ ।। बृह थो नरप तः परां नवृ तमाययौ । अ भ ष े जरासंधे तदा राजा बृह थः । प नी येनानुगत तपोवनचरोऽभवत् ।। १८ ।। राजधानीम वेश करके अपने जा त-भाइय और सगे-स ब धय से घरे ए मगधनरेश बृह थने उसी समय जरासंधका रा या भषेक कर दया। ऐसा करके उ ह बड़ा संतोष आ। जरासंधका अ भषेक हो जानेपर महाराज बृह थ अपनी दोन प नय के साथ तपोवनम चले गये ।। १७-१८ ।। ततो वन थे पत र मा ो ैव वशा पते । जरासंधः ववीयण पा थवानकरोद् वशे ।। १९ ।। महाराज! दोन माता और पताके वनवासी हो जानेपर जरासंधने अपने परा मसे सम त राजा को वशम कर लया ।। १९ ।। वैश पायन उवाच अथ द घ य काल य तपोवनचरो नृपः । सभायः वगमगमत् तप त वा बृह थः ।। २० ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर द घकालतक तपोवनम रहकर तप या करते ए महाराज बृह थ अपनी प नय के साथ वगवासी हो गये ।। २० ।। जरासंधोऽ प नृप तयथो ं कौ शकेन तत् । वर दानमखलं ा य रा यमपालयत् ।। २१ ।। इधर जरासंध भी च डकौ शक मु नके कथनानुसार भगवान् शंकरसे सारा वरदान पाकर रा यक र ा करने लगा ।। २१ ।। नहते वासुदेवेन तदा कंसे महीपतौ । जातो वै वैर नब धः कृ णेन सह त य वै ।। २२ ।। वसुदेवन दन ीकृ णके ारा अपने जामाता राजा कंसके मारे जानेपर ीकृ णके साथ उसका वैर ब त बढ़ गया ।। २२ ।। ाम य वा शतगुणमेकोनं येन भारत । गदा ता बलवता मागधेन ग र जात् ।। २३ ।। त तो मथुरायां वै कृ ण या तकमणः । एकोनयोजनशते सा पपात गदा शुभा ।। २४ ।। ी

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भारत! उसी वैरके कारण बलवान् मगधराजने अपनी गदा न यानबे बार घुमाकर ग र जसे मथुराक ओर फक । उन दन अ त कम करनेवाले ीकृ ण मथुराम ही रहते थे। वह उ म गदा न यानबे योजन र मथुराम जाकर गरी ।। २३-२४ ।। ् वा पौरै तदा स यग् गदा चैव नवे दता । गदावसानं तत् यातं मथुरायाः समीपतः ।। २५ ।। पुरवा सय ने उसे दे खकर उसक सूचना भगवान् ीकृ णको द । मथुराके समीपका वह थान, जहाँ गदा गरी थी, गदावसानके नामसे व यात आ ।। २५ ।। त या तां हंस ड भकावश नधनावुभौ । म े म तमतां े ौ नी तशा े वशारदौ ।। २६ ।। जरासंधको सलाह दे नेके लये बु मान म े तथा नी तशा म नपुण दो म ी थे, जो हंस और ड भकके नामसे व यात थे। वे दोन कसी भी श से मरनेवाले नह थे ।। २६ ।। यौ तौ मया ते क थतौ पूवमेव महाबलौ । य याणां लोकानां पया ता इ त मे म तः ।। २७ ।। जनमेजय! उन दोन महाबली वीर का प रचय मने तु ह पहले ही दे दया है। मेरा ऐसा व ास है, जरासंध और वे तीन मलकर तीन लोक का सामना करनेके लये पया त थे ।। २७ ।। एवमेव तदा वीर ब ल भः कुकुरा धकैः । वृ ण भ महाराज नी तहेतो पे तः ।। २८ ।। वीरवर महाराज! इस कार नी तका पालन करनेके लये ही उस समय बलवान् कुकुर, अ धक और वृ णवंशके यो ा ने जरासंधक उपे ा कर द ।। २८ ।। इ त ीमहाभारते सभापव ण राजसूयार भपव ण जरासंध शंसायामेकोन वश ततमोऽ यायः ।। १९ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत राजसूयार भपवम जरासंध शंसा वषयक उ ीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १९ ।।

(ज रासंधवधपव) वशोऽ यायः यु ध रके अनुमोदन करनेपर ीकृ ण, अजुन और भीमसेनक मगध-या ा वासुदेव उवाच प ततौ हंस ड भकौ कंस सगणो हतः । जरासंध य नधने कालोऽयं समुपागतः ।। १ ।। ीकृ ण कहते ह—धमराज! जरासंधके मु य सहायक हंस और ड भक यमुनाजीम डू ब मरे। कंस भी अपने सेवक और सहायक स हत कालके गालम चला गया। अब जरासंधके नाशका यह उ चत अवसर आ प ँचा है ।। १ ।। न श योऽसौ रणे जेतुं सवर प सुरासुरैः । बा यु े न जेत ः स इ युपलभामहे ।। २ ।। यु म तो स पूण दे वता और असुर भी उसे जीत नह सकते, अतः मेरी समझम यही आता है क उसे बा यु के ारा जीतना चा हये ।। २ ।। म य नी तबलं भीमे र ता चावयोजयः । मागधं साध य याम इ य इवा नयः ।। ३ ।। मुझम नी त है, भीमसेनम बल है और अजुन हम दोन क र ा करनेवाले ह; अतः जैसे तीन अ नयाँ य क स करती ह, उसी कार हम तीन मलकर जरासंधके वधका काम पूरा कर लगे ।। ३ ।। भरासा दतोऽ मा भ वजने स नरा धपः । न संदेहो यथा यु मेकेना युपया य त ।। ४ ।। अवमाना च लोभा च बा वीया च द पतः । भीमसेनेन यु ाय ुवम युपया य त ।। ५ ।। जब हम तीन एका तम राजा जरासंधसे मलगे, तब वह हम तीन मसे कसी एकके साथ यु करना वीकार कर लेगा; इसम संदेह नह है। अपमानके भयसे, बड़े यो ा भीमसेनके साथ लड़नेके लोभसे तथा अपने बा बलसे घमंडम चूर होनेसे जरासंध न य ही भीमसेनके साथ यु करनेको उ त होगा ।। ४-५ ।। अलं त य महाबा भ मसेनो महाबलः । लोक य समुद ण य नधनाया तको यथा ।। ६ ।। ै े











जैसे उ प ए स पूण जगत्के वनाशके लये एक ही यमराज काफ ह, उसी कार महाबली महाबा भीमसेन जरासंधके वधके लये पया त ह ।। ६ ।। य द मे दयं वे स य द ते ययो म य । भीमसेनाजुनौ शी ं यासभूतौ य छ मे ।। ७ ।। राजन्! य द आप मेरे दयको जानते ह और य द आपका मुझपर व ास है तो भीमसेन और अजुनको शी ही धरोहरके पम मुझे दे द जये ।। ७ ।। वैश पायन उवाच एवमु ो भगवता युवाच यु ध रः । भीमाजुनौ समालो य स मुखौ थतौ ।। ८ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! भगवान्के ऐसा कहनेपर वहाँ खड़े ए भीमसेन और अजुनका मुख स तासे खल उठा। उस समय उन दोन क ओर दे खकर यु ध रने इस कार उ र दया ।। ८ ।। यु ध र उवाच अ युता युत मा मैवं ाहरा म कशन । पा डवानां भवान् नाथो भव तं चा ता वयम् ।। ९ ।। यु ध र बोले—अपनी मयादासे कभी युत न होनेवाले श ुसूदन अ युत! आप ऐसी बात न कह, न कह। आप हम सब पा डव के वामी ह, र क ह; हम सब लोग आपक शरणम ह ।। ९ ।। यथा वद स गो व द सव त पप ते । न ह वम त तेषां येषां ल मीः पराङ् मुखी ।। १० ।। गो व द! आप जैसा कहते ह, वह सब ठ क है। जनक रा यल मी वमुख हो चुक है, उनके स मुख आप आते ही नह ह ।। १० ।। नहत जरासंधो मो ता मही तः । राजसूय मे लधो नद े शे तव त तः ।। ११ ।। आपक आ ाके अनुसार चलनेमा से म यह मानता ँ क जरासंध मारा गया। सम त राजा उसक कैदसे छु टकारा पा गये और मेरा राजसूयय भी पूरा हो गया ।। ११ ।। मेव यथा वेतत् काय समुपप ते । अ म ो जग ाथ तथा कु नरो म ।। १२ ।। भभव ह वना नाहं जी वतुमु सहे । धमकामाथर हतो रोगात इव ःखतः ।। १३ ।। न शौ रणा वना पाथ न शौ रः पा डवं वना । नाजेयोऽ यनयोल के कृ णयो र त मे म तः ।। १४ ।। जग ाथ! पु षो म! आप सावधान होकर वही उपाय क जये, जससे यह काय शी ही पूरा हो जाय। जैसे धम, काम और अथसे र हत रोगातुर मनु य अ य त ःखी हो जीवनसे हाथ धो बैठता है, उसी कार म भी आप तीन के बना जी वत नह रह सकता। ी े औ े ी े ो

ीकृ णके बना अजुन और पा डु पु अजुनके बना ीकृ ण नह रह सकते। इन दोन कृ णनामधारी वीर के लये लोकम कोई भी अजेय नह है; ऐसा मेरा व ास है ।। १२— १४ ।। अयं च ब लनां े ः ीमान प वृकोदरः । युवा यां स हतो वीरः क न कुया महायशाः ।। १५ ।। यह बलवान म े महायश वी का तमान् वीर भीमसेन भी आप दोन के साथ रहकर या नह कर सकता? ।। १५ ।। सु णीतो बलौघो ह कु ते कायमु मम् । अंधं बलं जडं ा ः णेत ं वच णैः ।। १६ ।। चतुर सेनाप तय ारा अ छ तरह संचा लत क ई सेना उ म काय करती है, अ यथा उस सेनाको अंधी और जड कहते ह; अतः नी त नपुण पु ष ारा ही सेनाका संचालन होना चा हये ।। १६ ।। यतो ह न नं भव त नय त ह ततो जलम् । यत छ ं तत ा प नय ते धीवरा जलम् ।। १७ ।। जधर नीची जमीन होती है, उधर ही लोग जल बहाकर ले जाते ह। जहाँ गा होता है, उधर ही धीवर भी जल बहाते ह (इसी कार आपलोग भी जैसे काय-साधनम सु वधा हो, वैसा ही कर) ।। १७ ।। त मा य वधान ं पु षं लोक व ुतम् । वयमा य गो व दं यतामः काय स ये ।। १८ ।। इसी लये हम नी त वधानके ाता लोक व यात महापु ष ीगो व दक शरण लेकर काय स के लये य न करते ह ।। १८ ।। एवं ानयबलं योपायसम वतम् । पुर कुव त कायषु कृ णं कायाथ स ये ।। १९ ।। इसी कार सबके लये यह उ चत है क काय और योजनक स के लये सभी काय म बु , नी त, बल, य न और उपायसे यु ीकृ णको ही आगे रखे ।। १९ ।। एवमेव य े याव कायाथ स ये । अजुनः कृ णम वेतु भीमोऽ वेतु धनंजयम् । नयो जयो बलं चैव व मे स मे य त ।। २० ।। य े ! इसी कार सम त काय क स के लये आपका आ य लेना परम आव यक है। अजुन आप ीकृ णका अनुसरण कर और भीमसेन अजुनका। नी त, वजय और बल तीन मलकर परा म कर तो उ ह अव य स ा त होगी ।। २० ।। वैश पायन उवाच एवमु ा ततः सव ातरो वपुलौजसः । वा णयः पा डवेयौ च त थुमागधं त ।। २१ ।। ै







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वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! यु ध रके ऐसा कहनेपर वे सब महातेज वी भाई— ीकृ ण, अजुन और भीमसेन मगधराज जरासंधसे भड़नेके लये उसक राजधानीक ओर चल दये ।। २१ ।। वच वनां ा णानां नातकानां प र छदम् । आ छा सु दां वा यैमनो ैर भन दताः ।। २२ ।। उ ह ने तेज वी नातक ा ण के-से व पहनकर उनके ारा अपने य पको छपाकर या ा क । उस समय हतैषी सु द ने मनोहर वचन ारा उन सबका अ भन दन कया ।। २२ ।। अमषाद भत तानां ा यथ मु यतेजसाम् । र वसोमा नवपुषां द तमासीत् तदा वपुः ।। २३ ।। हतं मेने जरासंधं ् वा भीमपुरोगमौ । एककायसमु तौ कृ णौ यु े ऽपरा जतौ ।। २४ ।। जरासंधके त रोषके कारण वे व लत-से हो रहे थे। जा त-भाइय के उ ारके लये उनका महान् तेज कट आ था। उस समय सूय, च मा और अ नके समान तेज वी शरीरवाले उन तीन का व प अ य त उ ा सत हो रहा था। एक ही कायके लये उ त ए और यु म कभी परा जत न होनेवाले उन दोन (कृ ण को अथात् नर-नारायण प कृ ण और अजुन)-को भीमसेनको आगे लये जाते दे ख यु ध रको न य हो गया क जरासंध अव य मारा जायगा ।। २३-२४ ।। ईशौ ह तौ महा मानौ सवकाय व तनौ । धमकामाथलोकानां कायाणां च वतकौ ।। २५ ।। य क वे दोन महा मा नमेष-उ मेषसे लेकर महा लयपय त सम त काय के नय ता तथा धम, काम और अथसाधनम लगे ए लोग को त स ब धी काय म लगानेवाले ई र (नर-नारायण) ह ।। २५ ।। कु यः थता ते तु म येन कु जा लम् । र यं पसरो ग वा कालकूटमती य च ।। २६ ।। ग डक च महाशोणं सदानीरां तथैव च । एकपवतके न ः मेणै या ज त ते ।। २७ ।। वे तीन कु दे शसे थत हो कु जांगलके बीचसे होते ए रमणीय प सरोवरपर प ँचे। फर कालकूट पवतको लाँघकर ग डक , महाशोण, सदानीरा एवं एकपवतक दे शक सब न दय को मशः पार करते ए आगे बढ़ते गये ।। २६-२७ ।। उ ीय सरयूं र यां ् वा पूवा कोसलान् । अती य ज मु म थलां प य तो वपुला नद ः ।। २८ ।। अती य ग ां शोणं च य ते ाङ् मुखा तदा । कुशचीर छदा ज मुमागधं े म युताः ।। २९ ।। इससे पहले मागम उ ह ने रमणीय सरयू नद पार करके पूव कोसल दे शम भी पदापण कया था। कोसल पार करके ब त-सी न दय का अवलोकन करते ए वे े औ ो ो े े ी ी ो

म थलाम गये। गंगा और शोणभ को पार करके वे तीन अ युत वीर पूवा भमुख होकर चलने लगे। उ ह ने कुश एवं चीरसे ही अपने शरीरको ढक रखा था। जाते-जाते वे मगध े क सीमाम प ँच गये ।। २८-२९ ।। ते श द् गोधनाक णम बुम तं शुभ मम् । गोरथं ग रमासा द शुमागधं पुरम् ।। ३० ।। फर सदा गोधनसे भरे-पूरे, जलसे प रपूण तथा सु दर वृ से सुशो भत गोरथ पवतपर प ँचकर उ ह ने मगधक राजधानीको दे खा ।। ३० ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण जरासंधवधपव ण कृ णपा डवमागधया ायां वशोऽ यायः ।। २० ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत जरासंधवधपवम कृ ण, अजुन एवं भीमसेनक मगधया ा वषयक बीसवाँ अ याय पूरा आ ।। २० ।।

एक वशोऽ यायः ीकृ ण ारा मगधक राजधानीक शंसा, चै यक पवत शखर और नगाड़ को तोड़ -फोड़ -कर तीन का नगर एवं राजभवनम वेश तथा ीकृ ण और जरासंधका संवाद वासुदेव उवाच एष पाथ महान् भा त पशुमान् न यम बुमान् । नरामयः सुवे माो नवेशो मागधः शुभः ।। १ ।। ीकृ ण बोले—कु तीन दन! दे खो, यह मगध-दे शक सु दर एवं वशाल राजधानी कैसी शोभा पा रही है। यहाँ पशु क अ धकता है। जलक भी सदा पूण सु वधा रहती है। यहाँ रोग- ा धका कोप नह होता। सु दर महल से भरा-पूरा यह नगर बड़ा मनोहर तीत होता है ।। १ ।। वैहारो वपुलः शैलो वराहो वृषभ तथा । तथा ऋ ष ग र तात शुभा ै यकप चमाः ।। २ ।। एते प च महाशृ ाः पवताः शीतल माः । र तीवा भसंह य संहता ा ग र जम् ।। ३ ।। तात! यहाँ वहारोपयोगी वपुल, वराह, वृषभ (ऋषभ), ऋ ष ग र (मातंग) तथा पाँचवाँ चै यक नामक पवत है। बड़े-बड़े शखर वाले ये पाँच सु दर पवत शीतल छायावाले वृ से सुशो भत ह और एक साथ मलकर एक- सरेके शरीरका पश करते ए मानो ग र ज नगरक र ा कर रहे ह ।। २-३ ।। पु पवे तशाखा ैग धव मनोहरैः । नगूढा इव लो ाणां वनैः का मजन यैः ।। ४ ।। वहाँ लोध नामक वृ के कई मनोहर वन ह, जनसे वे पाँच पवत ढके ए-से जान पड़ते ह। उनक शाखा के अ भागम फूल-ही-फूल दखायी दे ते ह। लोध के ये सुग धत वन कामीजन को ब त य ह ।। ४ ।। शू ायां गौतमो य महा मा सं शत तः । औशीनयामजनयत् का ीवा ान् सुतान् मु नः ।। ५ ।। यह अ य त कठोर तका पालन करनेवाले महामना गौतमने उशीनरदे शक शू जातीय क याके गभसे का ीवान् आ द पु को उ प कया था ।। ५ ।। गौतमः णयात् त माद् यथासौ त स न । भजते मागधं वंशं स नृपाणामनु हात् ।। ६ ।। ी











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इसी कारण वह गौतम मु न राजा के ेमसे वहाँ आ मम रहता तथा मगधदे शीय राजवंशक सेवा करता है ।। ६ ।। अ व ादय ैव राजानः सुमहाबलाः । गौतम यम ये य रम ते म पुराजुन ।। ७ ।। अजुन! पूवकालम अंग-वंग आ द महाबली राजा भी गौतमके घरम आकर आन दपूवक रहते थे ।। ७ ।। वनराजी तु प येमाः प पलानां मनोरमाः । लो ाणां च शुभाः पाथ गौतमौकः समीपजाः ।। ८ ।। पाथ! गौतमके आ मके नकट लहलहाती ई पीपल और लोध क इन सु दर एवं मनोरम वन-पं य को तो दे खो ।। ८ ।। अबुदः श वापी च प गौ श ुतापनौ । व तक यालय ा म णनाग य चो मः ।। ९ ।। यहाँ अबुद और श वापी नामवाले दो नाग रहते ह, जो अपने श ु को संत त करनेवाले ह। यह व तक नाग और म ण नागके भी उ म भवन ह ।। ९ ।। अप रहाया मेघानां मागधा मनुना कृताः । कौ शको म णमां ैव च ाते चा यनु हम् ।। १० ।। मनुने मगधदे शके नवा सय को मेघ के लये अप रहाय (अनु ा ) कर दया है; (अतः वहाँ सदा ही बादल समयपर यथे वषा करते ह।) च डकौ शक मु न और म णमान् नाग भी मगधदे शपर अनु ह कर चुके ह ।। १० ।। (पा डरे वपुले चैव तथा वाराहक े ऽ प च । चै यके च ग र े े मात े च शलो चये ।। एतेषु पवते े षु सव स महालयाः । यतीनामा मा चैव मुनीनां च महा मनाम् ।। ेतवणके वृषभ, वपुल, वाराह, ग र े चै यक तथा मातंग ग र—इन सभी े पवत पर स पूण स के वशाल भवन ह तथा य तय , मु नय और महा मा के ब त-से आ म ह। वृषभ य तमाल य महावीय य वै तथा । ग धवर सां चैव नागानां च तथाऽऽलयाः ।।) वृषभ, महापरा मी तमाल, ग धव , रा स तथा नाग के भी नवास थान उन पवत क शोभा बढ़ाते ह। एवं ा य पुरं र यं राधष सम ततः । अथ स वनुपमां जरासंधोऽ भम यते ।। ११ ।। इस कार चार ओरसे धष उस रमणीय नगरको पाकर जरासंधको यह अ भमान बना रहता है क मुझे अनुपम अथ स ा त होगी ।। ११ ।। वयमासादने त य दपम हरेम ह ।

आज हमलोग उसके घरपर ही चलकर उसका सारा घमंड हर लगे ।। ११ ।।

वैश पायन उवाच एवमु वा ततः सव ातरो वपुलौजसः ।। १२ ।। वा णयः पा डवौ चैव त थुमागधं पुरम् । पु जनोपेतं चातुव यसमाकुलम् ।। १३ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! ऐसी बात करते ए वे सभी महातेज वी भाई ीकृ ण, अजुन और भीमसेन मगधक राजधानीम वेश करनेके लये चल पड़े। वह नगर चार वण के लोग से भरा-पूरा था। उसम रहनेवाले सभी लोग -पु दखायी दे ते थे ।। १२-१३ ।। फ तो सवमनाधृ यमासे ग र जम् । ततो ारमनासा पुर य ग रमु तम् ।। १४ ।। बाह थैः पू यमानं तथा नगरवा स भः । मगधानां सु चरं चै यका तं समा वन् ।। १५ ।। वहाँ अ धका धक उ सव होते रहते थे। कोई भी उसको जीत नह सकता था। ऐसे ग र जके नकट वे तीन जा प ँचे। वे मु य फाटकपर न जाकर नगरके चै यक नामक ऊँचे पवतपर चले गये। उस नगरम नवास करनेवाले मनु य तथा बृह थ-प रवारके लोग उस पवतक पूजा कया करते थे। मगधदे शक जाको यह चै यक पवत ब त ही य था ।। १४-१५ ।। य मांसादमृषभमाससाद बृह थः । तं ह वा मासताला भ त ो भेरीरकारयत् ।। १६ ।। उस थानपर राजा बृह थने (वृषभ पधारी) ऋषभ नामक एक मांसभ ी रा ससे यु कया और उसे मारकर उसक खालसे तीन बड़े-बड़े नगाड़े तैयार कराये, जनपर चोट करनेसे महीनेभरतक आवाज होती रहती थी ।। १६ ।। वपुरे थापयामास तेन चान चमणा । य ताः ाणदन् भेय द पु पावचू णताः ।। १७ ।। राजाने उन नगाड़ को उस रा सके चमड़ेसे मढ़ाकर अपने नगरम रखवा दया। जहाँ वे नगाड़े बजते थे, वहाँ द फूल क वषा होने लगती थी ।। १७ ।। भङ् वा भेरी यं तेऽ प चै य ाकारमा वन् । ारतोऽ भमुखाः सव ययुनानाऽऽयुधा तदा ।। १८ ।। मागधानां सु चरं चै यकं तं समा वन् । शरसीव समा न तो जरासंधं जघांसवः ।। १९ ।। इन तीन वीर ने उपयु तीन नगाड़ को फोड़कर चै यक पवतके परकोटे पर आ मण कया। उन सबने अनेक कारके आयुध लेकर ारके सामने मगध- नवा सय के परम य उस चै यक पवतपर धावा कया था। जरासंधको मारनेक इ छा रखकर मानो वे उसके म तकपर आघात कर रहे थे ।। १८-१९ ।।

थरं सु वपुलं शृ ं सुमहत् तत् पुरातनम् । अ चतं ग धमा यै सततं सु त तम् ।। २० ।। वपुलैबा भव रा तेऽ भह या यपातयन् । तत ते मागधं ाः पुरं व वशु तदा ।। २१ ।। उस चै यकका वशाल शखर ब त पुराना, कतु सु ढ़ था। मगधदे शम उसक बड़ी त ा थी। ग ध और पु पक माला से उसक सदा पूजा क जाती थी। ीकृ ण आ द तीन वीर ने अपनी वशाल भुजा से ट कर मारकर उस चै यक पवतके शखरको गरा दया। तदन तर वे अ य त स होकर मगधक राजधानी ग र जके भीतर घुसे ।। २०-२१ ।। एत म ेव काले तु ा णा वेदपारगाः । ् वा तु न म ा न जरासंधमदशयन् ।। २२ ।। इसी समय वेद के पारगामी व ान् ा ण ने अनेक अपशकुन दे खकर राजा जरासंधको उनके वषयम सू चत कया ।। २२ ।। पय यकुव नृपं रद थं पुरो हताः । तत त छा तये राजा जरासंधः तापवान् । द तो नयम थोऽसावुपवासपरोऽभवत् ।। २३ ।। पुरो हत ने राजाको हाथीपर बठाकर उसके चार ओर व लत आग घुमायी। तापी राजा जरासंधने अ न क शा तके लये तक द ा ले नयम का पालन करते ए उपवास कया ।। २३ ।। नातक तन ते तु बा श ा नरायुधाः । युयु सवः व वशुजरासंधेन भारत ।। २४ ।। भारत! इधर भगवान् ीकृ ण, भीमसेन और अजुन नातक- तका पालन करनेवाले ा ण के वेषम अ -श का प र याग करके अपनी भुजा से ही आयुध का काम लेते ए जरासंधके साथ यु करनेक इ छा रखकर नगरम व ए ।। २४ ।। भ यमा यापणानां च द शुः यमु माम् । फ तां सवगुणोपेतां सवकामसमृ नीम् ।। २५ ।। तां तु ् वा समृ ते वीयां त यां नरो माः । राजमागण ग छ तः कृ णभीमधनंजयाः । बलाद् गृही वा मा या न मालाकारा महाबलाः ।। २६ ।। उ ह ने खाने-पीनेक व तु , फूल-माला तथा अ य आव यक पदाथ क कान से सजे ए हाट-बाटक अपूव शोभा और स पदा दे खी। नगरका वह वैभव ब त बढ़ा-चढ़ा, सवगुणस प तथा सम त कामना क पू त करनेवाला था। उस गलीक अ त समृ को दे खकर वे महाबली नर े ीकृ ण, भीम और अजुन एक मालीसे बलपूवक ब त-सी मालाएँ लेकर नगरक धान सड़कसे चलने लगे ।। २५-२६ ।। वरागवसनाः सव वणो मृ कु डलाः । नवेशनमथाज मुजरासंध य धीमतः ।। २७ ।। े े े े े े औ े

उन सबके व अनेक रंगके थे। उ ह ने गलेम हार और कान म चमक ले कु डल पहन रखे थे। वे मशः बु मान् राजा जरासंधके महलके समीप जा प ँचे ।। २७ ।। गोवास मव वी तः सहा हैमवता यथा । शाल त भ नभा तेषां च दनागु षताः ।। २८ ।। अशोभ त महाराज बाहवो यु शा लनाम् । जैसे हमालयक गुफा म रहनेवाले सह गौ का थान ढूँ ढ़ते ए आगे बढ़ते ह , उसी कार वे तीन वीर राजभवनक तलाश करते ए वहाँ प ँचे थे। महाराज! यु म वशेष शोभा पानेवाले उन तीन वीर क भुजाएँ साखूके ल े -जैसी सुशो भत हो रही थ । उनपर च दन और अगु का लेप कया गया था ।। २८ ।। तान् ् वा रद या शाल क धा नवोद्गतान् । ूढोर कान् मागधानां व मयः समप त ।। २९ ।। शालवृ के तनेके समान ऊँचे डील और चौड़ी छातीवाले गजराजस श उन बलवान् वीर को दे खकर मगध नवा सय को बड़ा आ य आ ।। २९ ।। ते वती य जनाक णाः क ा त ो नरषभाः । अहंकारेण राजानमुपत थुगत थाः ।। ३० ।। वे नर े लोग से भरी ई तीन ो ढ़य को पार करके नभय एवं न त हो बड़े अ भमानके साथ राजा जरासंधके नकट गये ।। ३० ।। तान् पा मधुपकाहान् गवाहान् स कृ त गतान् । यु थाय जरासंध उपत थे यथा व ध ।। ३१ ।। वे पा , मधुपक और गोदान पानेके यो य थे। उनका सव स कार होता था। उ ह आया दे ख जरासंध उठकर खड़ा हो गया और उसने व धपूवक उनका आ त य-स कार कया ।। ३१ ।। उवाच चैतान् राजासौ वागतं वोऽ व त भुः । मौनमासीत् तदा पाथभीमयोजनमेजय ।। ३२ ।। तेषां म ये महाबु ः कृ णो वचनम वीत् । व ुं नाया त राजे एतयो नयम थयोः ।। ३३ ।। अवाङ् नशीथात् परत वया साध व द यतः । तदन तर श शाली राजाने इन तीन अ त थय से कहा—‘आपलोग का वागत है।’ जनमेजय! उस समय अजुन और भीमसेन तो मौन थे। उनमसे महाबु मान् ीकृ णने यह बात कही—‘राजे ! ये दोन एक नयम ले चुके ह; अतः आधी रातसे पहले नह बोलते। आधी रातके बाद ये दोन आपसे बात करगे’ ।। ३२-३३ ।। य ागारे थाप य वा राजा राजगृहं गतः ।। ३४ ।। ततोऽधरा े स ा ते यातो य थता जाः । त य ेतद् तं राजन् बभूव भु व व ुतम् ।। ३५ ।। ी

तब राजा उ ह य शालाम ठहराकर वयं राजभवनम चला गया। फर आधी रात होनेपर जहाँ वे ा ण ठहरे थे, वहाँ वह गया। राजन्! उसका यह नयम भूम डलम व यात था ।। ३४-३५ ।। नातकान् ा णान् ा ता छ वा स स म तजयः । अ यधरा े नृप तः युदग ् छ त भारत ।। ३६ ।। भारत! यु वजयी राजा जरासंध नातक ा ण का आगमन सुनकर आधी रातके समय भी उनक आवभगतके लये उनके पास चला जाता था ।। ३६ ।। तां वपूवण वेषेण ् वा स नृपस मः । उपत थे जरासंधो व मत ाभवत् तदा ।। ३७ ।। उन तीन को अपूव वेषम दे खकर नृप े जरासंधको बड़ा व मय आ। वह उनके पास गया ।। ३७ ।। ते तु ् वैव राजानं जरासंधं नरषभाः । इदमूचुर म नाः सव भरतस म ।। ३८ ।। व य तु कुशलं राज त त व थताः । तं नृपं नृपशा ल े माणाः पर परम् ।। ३९ ।। भरतवंश शरोमणे! श ु का नाश करनेवाले वे सभी नर े राजा जरासंधको दे खते ही इस कार बोले—‘महाराज! आपका क याण हो।’ जनमेजय! ऐसा कहकर वे तीन खड़े हो गये तथा कभी राजा जरासंधको और कभी आपसम एक सरेको दे खने लगे ।। ३८-३९ ।। तान वी जरासंध तथा पा डवयादवान् । आ यता म त राजे ा ण छसंवृतान् ।। ४० ।। राजे ! ा ण के छ वेषम छपे ए उन पा डव तथा यादव वीर को ल य करके जरासंधने कहा—‘आपलोग बैठ जायँ’ ।। ४० ।। अथोप व वशुः सव य ते पु षषभाः । स द ता यो ल या महा वर इवा नयः ।। ४१ ।। फर वे सभी बैठ गये। वे तीन पु ष सह महान् य म व लत तीन अ नय क भाँ त अपनी अपूव शोभासे उ ा सत हो रहे थे ।। ४१ ।। तानुवाच जरासंधः स यसंधो नरा धपः । वगहमाणः कौर वेष हणवैकृतान् । न नातक ता व ा ब हमा यानुलेपनाः ।। ४२ ।। भव ती त नृलोकेऽ मन् व दतं मम सवशः । के यूयं पु पव त भुजै याकृतल णैः ।। ४३ ।। कु न दन! उस समय स य त राजा जरासंधने वेष हणके वपरीत आचरणवाले उन तीन क न दा करते ए कहा—‘ ा णो! इस मानव-जगत्म सव स है क नातक- तका पालन करनेवाले ा ण समावतन आ द वशेष न म के बना माला और च दन नह धारण करते। मुझे भी यह अ छ तरह मालूम है। आपलोग कौन ह? आपके े ैऔ ी

गलेम फूल क माला है और भुजा दे ता है ।। ४२-४३ ।।

म धनुषक

यंचाक रगड़का च



दखायी

महाभारत—

जरासंधके भवनम

ीकृ ण, भीमसेन और अजुन

भीमसेन और जरासंधका यु

ब तः ा मोज ा यं तजानथ । एवं वरागवसना ब हमा यानुलेपनाः । स यं वदत के यूयं स यं राजसु शोभते ।। ४४ ।। ‘आपलोग यो चत तेज धारण करते ह, परंतु ा ण होनेका प रचय दे रहे ह। इस कार भाँ त-भाँ तके रंगीन कपड़े पहने और अकारण माला तथा च दन लगाये ए आप कौन ह? सच बताइये। राजा म स यक ही शोभा होती है ।। ४४ ।। चै यक य गरेः शृ ं भ वा क मह छना । अ ारेण व ाः थ नभया राज क बषात् ।। ४५ ।। ‘चै यक पवतके शखरको तोड़कर राजाका अपराध करके भी उससे भयभीत न हो छ वेष धारण कये ारके बना ही इस नगरम जो आपलोग घुस आये ह, इसका या कारण है? ।। ४५ ।। वद वं वा च वीय च ा ण य वशेषतः । कम चैतद् व ल थं क वोऽ समी तम् ।। ४६ ।। ‘बताइये, ा णके तो ायः वचनम ही वीरता होती है, उसक याम नह । आपलोग ने जो यह पवत शखर तोड़नेका काम कया है, यह आपके वण तथा वेषके सवथा वपरीत है, बताइये आपने आज या सोच रखा है? ।। ४६ ।। एवं च मामुपा थाय क मा च व धनाहणाम् । तीतां नानुगृ त काय क वा मदागमे ।। ४७ ।। ‘इस कार मेरे यहाँ उप थत हो मेरे ारा व धपूवक अ पत क ई इस पूजाको आपलोग हण य नह करते ह? फर मेरे यहाँ आनेका योजन ही या है?’ ।। ४७ ।। एवमु े ततः कृ णः युवाच महामनाः । न धग भीरया वाचा वा यं वा य वशारदः ।। ४८ ।। जरासंधके ऐसा कहनेपर बोलनेम चतुर महामना ीकृ ण न ध एवं ग भीर वाणीम इस कार बोले ।। ४८ ।। ीकृ ण उवाच नातकान् ा णान् राजन् व य मां वं नरा धप । नातक तनो राजन् ा णाः या वशः ।। ४९ ।। ीकृ णने कहा—राजन्! तुम हम (वेषके अनुसार) नातक ा ण समझ सकते हो। वैसे तो नातक तका पालन करनेवाले ा ण, य और वै य तीन वण के लोग होते ह ।। ४९ ।। वशेष नयमा ैषाम वशेषा स युत । वशेषवां सततं यः यमृ छ त ।। ५० ।। इन नातक म कुछ वशेष नयमका पालन करनेवाले होते ह और कुछ साधारण। वशेष नयमका पालन करनेवाला य सदा ल मीको ा त करता है ।। ५० ।। पु पव सु ुवा ी पु पव त ततो वयम् । ो





यो बा वीय तु न तथा वा यवीयवान् । अ ग भं वच त य त माद् बाह थे रतम् ।। ५१ ।। जो पु प धारण करनेवाले ह, उनम ल मीका नवास ुव है, इसी लये हमलोग पु पमालाधारी ह। यका बल और परा म उसक भुजा म होता है, वह बोलनेम वैसा वीर नह होता। बृह थन दन! इसी लये यका वचन धृ तार हत ( वनययु ) बताया गया है ।। ५१ ।। ववीय याणां तु बा ोधाता यवेशयत् । तद् द स चेद ् राजन् ा य न संशयः ।। ५२ ।। वधाताने य का अपना बल उनक भुजा म ही भर दया है। राजन्! य द आज उसे दे खना चाहते हो तो न य ही दे ख लोगे ।। ५२ ।। अ ारेण रपोगहं ारेण सु दो गुहान् । वश त नरा धीरा ारा येता न धमतः ।। ५३ ।। धीर मनु य श ुके घरम बना दरवाजेके और म के घरम दरवाजेसे जाते ह। श ु और म के लये ये धमतः ार बतलाये गये ह ।। ५३ ।। कायव तो गृहाने य श ुतो नाहणां वयम् । तगृ म तद् व एत ः शा तं तम् ।। ५४ ।। हम अपने कायसे तु हारे घर आये ह; अतः श ुसे पूजा नह हण कर सकते। इस बातको तुम अ छ तरह समझ लो। यह हमारा सनातन त है ।। ५४ ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण जरासंधवधपव ण कृ णजरासंधसंवादे एक वशोऽ यायः ।। २१ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत जरासंधवधपवम ीकृ णजरासंधसंवाद वषयक इ क सवाँ अ याय पूरा आ ।। २१ ।। ( ा णा य अ धक पाठक े ३ ोक मलाकर कुल ५७ ोक ह) द

ा वशोऽ यायः जरासंध और ीकृ णका संवाद तथा जरासंधक यु के लये तैयारी एवं जरासंधका ीकृ णके साथ वैर होनेके कारणका वणन जरासंध उवाच न मरा म कदा वैरं कृतं यु मा भ र युत । च तयं न प या म भवतां त वैकृतम् ।। १ ।। जरासंध बोला— ा णो! मुझे याद नह आता क कब मने आपलोग के साथ वैर कया है? ब त सोचनेपर भी मुझे आपके त अपने ारा कया आ अपराध नह दखायी दे ता ।। १ ।। वैकृते वास त कथं म य वं मामनागसम् । अर वै ूत हे व ाः सतां समय एष ह ।। २ ।। व गण! जब मुझसे अपराध ही नह आ है, तब मुझ नरपराधको आपलोग श ु कैसे मान रहे ह? यह बताइये। या यही साधु पु ष का बताव है? ।। २ ।। अथ धम पघाता मनः समुपत यते । योऽनाग स सज त यो ह न संशयः ।। ३ ।। अतोऽ यथा चरँ लोके धम ः सन् महारथः । वृ जनां ग तमा ो त ेयसोऽ युपह त च ।। ४ ।। कसीके धम (और अथ)-म बाधा डालनेसे अव य ही मनको बड़ा संताप होता है। जो धम महारथी य लोकम धमके वपरीत आचरण करता आ कसी नरपराध पर सर के धन और धमके नाशका दोष लगाता है, वह क मयी ग तको ा त होता है और अपनेको क याणसे भी वं चत कर लेता है; इसम संशय नह है ।। ३-४ ।। ैलो ये धम ह ेयान् वै साधुचा रणाम् । ना यं धम शंस त ये च धम वदो जनाः ।। ५ ।। स कम करनेवाले य के लये तीन लोक म यधम ही े है। धम पु ष यके लये अ य धमक शंसा नह करते ।। ५ ।। त य मेऽ थत येह वधम नयता मनः । अनागसं जानां च मादा दव ज पथ ।। ६ ।। म अपने मनको वशम रखकर सदा वधम ( यधम)-म थत रहता ँ। जा का भी कोई अपराध नह करता, ऐसी दशाम भी आपलोग मादसे ही मुझे श ु या अपराधी बता रहे ह ।। ६ ।। ीकृ ण उवाच ो





कुलकाय महाबाहो क दे कः कुलो हः । वहते य त योगाद् वयम यु ता व य ।। ७ ।। ीकृ णने कहा—महाबाहो! समूचे कुलम कोई एक ही पु ष कुलका भार सँभालता है। उस कुलके सभी लोग क र ा आ दका काय स प करता है। जो वैसे महापु ष ह, उ ह क आ ासे हमलोग आज तु ह द ड दे नेको उ त ए ह ।। ७ ।। वया चोप ता राजन् या लोकवा सनः । तदागः ू रमु पा म यसे कमनागसम् ।। ८ ।। राजन्! तुमने भूलोक नवासी य को कैद कर लया है। ऐसे ू र अपराधका आयोजन करके भी तुम अपनेको नरपराध कैसे मानते हो? ।। ८ ।। राजा रा ः कथं साधून् ह या ृप तस म । तद् रा ः सं नगृ वं ायोप जहीष स ।। ९ ।। नृप े ! एक राजा सरे े राजा क ह या कैसे कर सकता है? तुम राजा को कैद करके उ ह दे वताक भट चढ़ाना चाहते हो? ।। ९ ।। अ मां तदे नो ग छे कृतं बाह थ वया । वयं ह श ा धम य र णे धमचा रणः ।। १० ।। बृह थकुमार! तु हारे ारा कया आ यह पाप हम सब लोग पर लागू होगा; य क हम धमक र ा करनेम समथ और धमका पालन करनेवाले ह ।। १० ।। मनु याणां समाल भो न च ः कदाचन । स कथं मानुषैदवं य ु म छ स शंकरम् ।। ११ ।। कसी दे वताक पूजाके लये मनु य का वध कभी नह दे खा गया। फर तुम क याणकारी दे वता भगवान् शवक पूजा मनु य क हसा ारा कैसे करना चाहते हो? ।। ११ ।। सवण ह सवणानां पशुसं ां क र य स । कोऽ य एवं यथा ह वं जरासंध वृथाम तः ।। १२ ।। जरासंध! तु हारी बु मारी गयी है, तुम भी उसी वणके हो, जस वणके वे राजालोग ह। या तुम अपने ही वणके लोग को पशुनाम दे कर उनक ह या करोगे? तु हारे-जैसा ू र सरा कौन है? ।। १२ ।। य यां य यामव थायां यद् यत् कम करो त यः । त यां त यामव थायां तत् फलं समवा ुयात् ।। १३ ।। जो जस- जस अव थाम जो-जो कम करता है, वह उसी-उसी अव थाम उसके फलको ा त करता है ।। १३ ।। ते वां ा त यकरं वयमातानुसा रणः । ा तवृ न म ाथ व नह तु महागताः ।। १४ ।। तुम अपने ही जा त-भाइय के ह यारे हो और हमलोग संकटम पड़े ए द नःखय क र ा करनेवाले ह; अतः सजातीय ब धु क वृ के उ े यसे हम तु हारा वध करनेके लये यहाँ आये ह ।। १४ ।। ो े े ै

ना त लोके पुमान यः ये व त चैव तत् । म यसे स च ते राजन् सुमहान् बु व लवः ।। १५ ।। राजन्! तुम जो यह मान बैठे हो क इस जगत्के य म मेरे समान सरा कोई नह है, यह तु हारी बु का ब त बड़ा म है ।। १५ ।। को ह जान भजनमा मवान् यो नृप । ना वशेत् वगमतुलं रणान तरम यम् ।। १६ ।। नरे र! कौन ऐसा वा भमानी य होगा जो अपने अ भजनको (जातीय ब धु क र ा परम धम है, इस बातको) जानते ए भी यु करके अनुपम एवं अ य वगलोकम जाना नह चाहेगा? ।। १६ ।। वग ेव समा थाय रणय ेषु द ताः । जय त या लोकां तद् व मनुजषभ ।। १७ ।। नर े ! वग ा तका ही उ े य रखकर रणय क द ा लेनेवाले य अपने अभी लोक पर वजय पाते ह, यह बात तु ह भलीभाँ त जाननी चा हये ।। १७ ।। वगयो नमहद् वगयो नमहद् यशः । वगयो न तपो यु े मृ युः सोऽ भचारवान् ।। १८ ।। वेदा ययन वग ा तका कारण है, परोपकार प महान् यश भी वगका हेतु है, तप याको भी वगलोकका साधन बताया गया है; परंतु यके लये इन तीन क अपे ा यु म मृ युका वरण करना ही वग ा तका अमोघ साधन है ।। १८ ।। एष ै ो वैजय तो गुणै न यं समा हतः । येनासुरान् परा ज य जगत् पा त शत तुः ।। १९ ।। यका यह यु म मरण इ का वैजय त नामक ासाद (राजमहल) है। यह सदा सभी गुण से प रपूण है। इसी यु के ारा शत तु इ असुर को परा त करके स पूण जगत्क र ा करते ह ।। १९ ।। वगमागाय क य याद् व हो वै यथा तव । मागधै वपुलैः सै यैबा यबलद पतः ।। २० ।। मावमं थाः परान् राज त वीय नरे नरे । समं तेज वया चैव व श ं वा नरे र ।। २१ ।। हमारे साथ जो तु हारा यु होनेवाला है, वह तु हारे लये जैसा वगलोकक ा तका साधक हो सकता है, वैसा यु और कसको सुलभ है? मेरे पास ब त बड़ी सेना एवं श है, इस घमंडम आकर मगधदे शक अग णत सेना ारा तुम सर का अपमान न करो। राजन्! येक मनु यम बल एवं परा म होता है। महाराज! कसीम तु हारे समान तेज है तो कसीम तुमसे अ धक भी है ।। २०-२१ ।। यावदे तदस बु ं तावदे व भवेत् तव । वष मेतद माकमतो राजन् वी म ते ।। २२ ।। भूपाल! जबतक तुम इस बातको नह जानते थे, तभीतक तु हारा घमंड बढ़ रहा था। अब तु हारा यह अ भमान हमलोग के लये अस हो उठा है, इस लये म तु ह यह सलाह े ँ

दे ता ँ ।। २२ ।। ज ह वं स शे वेव मानं दप च मागध । मा गमः ससुतामा यः सबल यम यम् ।। २३ ।। मगधराज! तुम अपने समान वीर के साथ अ भमान और घमंड करना छोड़ दो। इस घमंडको रखकर अपने पु , म ी और सेनाके साथ यमलोकम जानेक तैयारी न करो ।। २३ ।। द भो वः कातवीय उ र बृह थः । ेयसो वम येह वनेशुः सबला नृपाः ।। २४ ।। द भो व, कातवीय अजुन, उ र तथा बृह थ—ये सभी नरेश अपनेसे बड़ का अपमान करके अपनी सेनास हत न हो गये ।। २४ ।। युयु माणा व ो ह न वयं ा णा ुवम् । शौ रर म षीकेशो नृवीरौ पा डवा वमौ । अनयोमातुलेयं च कृ णं मां व ते रपुम् ।। २५ ।। तुमसे यु क इ छा रखनेवाले हमलोग अव य ही ा ण नह ह। म वसुदेवपु षीकेश ँ और ये दोन पा डु पु वीरवर भीमसेन और अजुन ह। म इन दोन के मामाका पु और तु हारा स श ु ीकृ ण ँ। मुझे अ छ तरह पहचान लो ।। २५ ।। वामा यामहे राजन् थरो यु य व मागध । मु च वा नृपतीन् सवान् ग छ वा वं यम यम् ।। २६ ।। मगधनरेश! हम तु ह यु के लये ललकारते ह। तुम डटकर यु करो। तुम या तो सम त राजा को छोड़ दो अथवा यमलोकक राह लो ।। २६ ।। जरासंध उवाच ना जतान् वै नरपतीनहमाद कां न । अ जतः पयव थाता कोऽ यो न मया जतः ।। २७ ।। जरासंधने कहा— ीकृ ण! म यु म जीते बना क ह राजा को कैद करके यहाँ नह लाता ँ। यहाँ कौन ऐसा श ु राजा है, जो सर से अजेय होनेपर भी मेरे ारा जीत न लया गया हो? ।। २७ ।। य यैतदे वा ध य कृ णोपजीवनम् । व य वशमानीय कामतो यत् समाचरेत् ।। २८ ।। ीकृ ण! यके लये तो यह धमानुकूल जी वका बतायी गयी है क वह परा म करके श ुको अपने वशम लाकर फर उसके साथ मनमाना बताव करे ।। २८ ।। दे वताथमुपा य रा ः कृ ण कथं भयात् । अहम वमु येयं ा ं तमनु मरन् ।। २९ ।। ीकृ ण! म यके तको सदा याद रखता आ दे वताको ब ल दे नेके लये उपहारके पम लाये ए इन राजा को आज तु हारे भयसे कैसे छोड़ सकता ँ? ।। २९ ।। ै

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सै यं सै येन ूढेन एक एकेन वा पुनः । ा यां भवा यो येऽहं युगपत् पृथगेव वा ।। ३० ।। तु हारी सेना मेरी ूहरचनायु सेनाके साथ लड़ ले अथवा तुममसे कोई एक मुझ अकेलेके साथ यु करे अथवा म अकेला ही तुममसे दो या तीन के साथ बारी-बारीसे या एक ही साथ यु कर सकता ँ ।। ३० ।। वैश पायन उवाच एवमु वा जरासंधः सहदे वा भषेचनम् । आ ापयत् तदा राजा युयु सुभ मकम भः ।। ३१ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! ऐसा कहकर भयानक कम करनेवाले उन तीन वीर के साथ यु क इ छा रखकर राजा जरासंधने अपने पु सहदे वके रा या भषेकक आ ा दे द ।। ३१ ।। स तु सेनाप त राजा स मार भरतषभ । कौ शकं च सेनं च त मन् यु उप थते ।। ३२ ।। भरत े ! तदन तर मगधनरेशने वह यु उप थत होनेपर अपने सेनाप त कौ शक और च सेनका मरण कया (जो उस समय जी वत नह थे) ।। ३२ ।। ययो ते नामनी राजन् हंसे त ड भके त च । पूव संक थतं पु भनृलोके लोकस कृते ।। ३३ ।। राजन्! ये वे ही थे, जनके नाम पहले तुमसे हंस और ड भक बताये ह। मनु यलोकके सभी पु ष उनके त बड़े आदरका भाव रखते थे ।। ३३ ।। तं तु राजन् वभुः शौरी राजानं ब लनां वरम् । मृ वा पु षशा लः शा लसम व मम् ।। ३४ ।। स यसंधो जरासंधं भु व भीमपरा मम् । भागम य य न द मव यं मधु भमृधे ।। ३५ ।। ना मनाऽऽ मवतां मु य इयेष मधुसूदनः । ा ीमा ां पुर कृ य ह तुं हलधरानुजः ।। ३६ ।। जनमेजय! मन वी पु ष म सव े , स य त , मनु य म सहके समान परा मी, वसुदेवपु एवं बलरामके छोटे भाई भगवान् मधुसूदनने द से मरण करके यह जान लया था क सहके समान परा मी, बलवान म े और भयानक पु षाथ कट करनेवाला यह राजा जरासंध यु म सरे वीरका भाग (व य) नयत कया गया है। य वं शय मसे कसीके हाथसे उसक मृ यु नह हो सकती, अतः ाजीके आदे शक र ा करनेके लये उ ह ने वयं उसे मारनेक इ छा नह क ।। ३४—३६ ।। (जनमेजय उवाच कमथ वै रणावा तामुभौ तौ कृ णमागधौ । कथं च न जतः सं ये जरासंधेन माधवः ।। े











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जनमेजयने पूछा—मुने! भगवान् ीकृ ण और मगधराज जरासंध दोन एक- सरेके श ु य हो गये थे? तथा जरासंधने य कुल तलक ीकृ णको यु म कैसे परा त कया?। क कंसो मागध य य य हेतोः स वैरवान् । एतदाच व मे सव वैश पायन त वतः ।। कंस मगधराज जरासंधका कौन था, जसके लये उसने भगवान्से वैर ठान लया। वैश पायनजी! ये सब बात मुझे यथाथ पसे बताइये। वैश पायन उवाच यादवानाम ववाये वसुदेवो महाम तः । उदप त वा णयो सेन य म भृत् ।। वैश पायनजीने कहा—राजन्! य कुलम परम बु मान् वसुदेव उ प ए, जो वृ णवंशके राजकुमार तथा राजा उ सेनके व सनीय म ी थे। उ सेन य कंस तु बभूव बलवान् सुतः । ये ो बनां कौर सवश वशारदः ।। उ सेनका पु बलवान् कंस आ, जो उनके अनेक पु म सबसे बड़ा था। कु न दन! कंसने स पूण अ -श क व ाम नपुणता ा त क थी। जरासंध य हता त य भाया त व ुता । रा यशु केन द ा सा जरासंधेन धीमता ।। जरासंधक पु ी उसक सु स प नी थी, जसे बु मान् जरासंधने इस शतके साथ दया था क इसके प तको त काल राजाके पदपर अ भ ष कया जाय। तदथमु सेन य मथुरायां सुत तदा । अ भ ष तदामा यैः स वै ती परा मः ।। इस शु कक पू तके लये उ सेनके उस ःसह परा मी पु को म य ने मथुराके रा यपर अ भ ष कर दया। ऐ यबलम तु स तदा बलमो हतः । नगृ पतरं भुङ् े तद् रा यं म भः सह ।। तब ऐ यके बलसे उ म और शारी रक श से मो हत हो कंस अपने पताको कैद करके म य के साथ उनका रा य भोगने लगा। वसुदेव य तत् कृ यं न शृणो त स म दधीः । स तेन सह तद् रा यं धमतः पयपालयत् ।। म दबु कंस वसुदेवजीके कत - वषयक उपदे शको नह सुनता था, तो भी उसके साथ रहकर वसुदेवजी मथुराके रा यका धमपूवक पालन करने लगे। ी तमान् स तु दै ये ो वसुदेव य दे वक म् । उवाह भाया स तदा हता दे वक य या ।। दै यराज कंसने अ य त स होकर वसुदेवजीके साथ दे वक का याह कर दया, जो उ सेनके भाई दे वकक पु ी थी। े



त यामु ा मानायां रथेन जनमेजय । उपा रोह वा णयं कंसो भू मप त तदा ।। जनमेजय! जब रथपर बैठकर दे वक वदा होने लगी, तब राजा कंस भी उसे प ँचानेके लये वृ णवंश- वभूषण वसुदेवजीके पास उस रथपर जा बैठा। ततोऽ त र े वागासीद् दे व त य क य चत् । वसुदेव शु ाव तां वाचं पा थव सः ।। इसी समय आकाशम कसी दे व तक वाणी प सुनायी दे ने लगी। वसुदेवजीने तो उसे सुना ही, राजा कंसने भी सुना। यामेतां वहमानोऽ कंसो ह स दे वक म् । अ या य ा मो गभः स ते मृ युभ व य त ।। दे व त कह रहा था—‘कंस! आज तू जस दे वक को रथपर बठाकर लये जा रहा है, उसका आठवाँ गभ तेरी मृ युका कारण होगा’। सोऽवतीय ततो राजा खड् गमुदधृ ् य नमलम् । इयेष त या मूधानं छे ुं परम म तः ।। यह आकाशवाणी सुनते ही अ य त खोट बु वाले राजा कंसने यानसे चमचमाती ई तलवार ख च ली और दे वक का सर काट लेनेका वचार कया। स सा वयं तदा कंसं हसन् ोधवशानुगम् । राज नुनयामास वसुदेवो महाम तः ।। राजन्! उस समय परम बु मान् वसुदेवजी हँसते ए ोधके वशीभूत ए कंसको सा वना दे उसक अनुनय- वनय करने लगे। अ ह यां मदामा ः सवधमषु पा थव । अक मादबलां नार ह तासीमामनागसीम् ।। ‘पृ वीपते! ायः सभी धम म नारीको अव य बताया गया है। या तुम इस नबल एवं नरपराध नारीको सहसा मार डालोगे?’ य च तेऽ भयं राजन् श यते बा धतुं वया । इयं च श या पाल यतुं समय ैव र तुम् ।। ‘राजन्! इससे जो तु ह भय ा त होनेवाला है, उसका तो तुम नवारण कर सकते हो। तु ह इसक र ा करनी चा हये और मुझे इसक ाणर ाके लये जो शत न त हो, उसका पालन करना चा हये। अ या वम मं गभ जातमा ं महीपते । व वंसय तदा ा तमेवं प र तं भवेत् ।। ‘राजन्! इसके आठव गभको तुम पैदा होते ही न कर दे ना। इस कार तुमपर आयी ई वप टल सकती है’। एवं स राजा क थतो वसुदेवेन भारत । त य तद् वचनं च े शूरसेना धप तदा ।। तत त यां स बभूवुः कुमाराः सूयवचसः । े

जाता ातां तु तान् सवा घान मधुरे रः ।। भरतन दन! वसुदेवजीके ऐसा कहनेपर शूरसेन-दे शके राजा कंसने उनक बात मान ली। तदन तर दे वक के गभसे सूयके समान तेज वी अनेक कुमार मशः उ प ए। मथुरानरेश कंसने ज म लेते ही उन सबको मार डालता था। अथ त यां समभवद् बलदे व तु स तमः । या यया मायया तं तु यमो राजा वशा पते ।। दे व या गभमतुलं रो ह या जठरेऽ पत् । आकृ य कषणात् स यक् संकषण इ त मृतः ।। बल े तया त य बलदे व इ त मृतः । तदन तर दे वक के उदरम सातव गभके पम बलदे वका आगमन आ। राजन्! यमराजने यमस ब धनी मायाके ारा उस अनुपम गभको दे वक के उदरसे नकालकर रो हणीक कु म था पत कर दया। आकषण होनेके कारण उस बालकका नाम संकषण आ। बलम धान होनेसे उसका नाम बलदे व आ। पुन त यां समभवद मो मधुसूदनः । त य गभ य र ां तु च े सोऽ य धकं नृपः ।। त प ात् दे वक के उदरम आठव गभके पम सा ात् भगवान् मधुसूदनका आ वभाव आ। राजा कंसने बड़े य नसे उस गभक र ा क । ततः काले र णाथ वसुदेव य सा वतः ।। उ ः यु ः कंसेन स चवः ू रकमकृत् । वमूढेषु भावेन बाल यो ीय त वै ।। उपाग य स घोषे तु जगाम स महा ु तः । जातमा ं वासुदेवमथाकृ य पता ततः ।। उपज े प र तां सुतां गोप य क य चत् । तदन तर सवकाल आनेपर सा वतवंशी वसुदेवपर कड़ी नजर रखनेके लये कंसने उ वभाववाले अपने ू रकमा म ीको नयु कया। परंतु बाल व प ीकृ णके भावसे र क के न ासे मो हत हो जानेपर वहाँसे उठकर महातेज वी वसुदेवजी बालकके साथ जम चले गये। नवजात वासुदेवको मथुरासे हटाकर पता वसुदेवने उसके बदलेम कसी गोपक पु ीको लाकर कंसको भट कर दया। मुमु माण तं श दं दे व त य पा थवः ।। जघान कंस तां क यां हस ती जगाम सा । आय त वाशती श दं त मादाय त क तता ।। दे व तके कहे ए पूव श दका मरण करके उसके भयसे छू टनेक इ छा रखनेवाले कंसने उस क याको भी पृ वीपर दे मारा। परंतु वह क या उसके हाथसे छू टकर हँसती और आय श दका उ चारण करती ई वहाँसे चली गयी। इसी लये उसका नाम ‘आया’ आ। एवं तं व च य वा च राजानं स महाम तः । वासुदेवं महा मानं वधयामास गोकुले ।। े े ो े ो े

परम बु मान् वसुदेवने इस कार राजा कंसको चकमा दे कर गोकुलम अपने महा मा पु वासुदेवका पालन कराया। वासुदेवोऽ प गोपेषु ववृधेऽ ज मवा भ स । अ ायमानः कंसेन गूढोऽ न रव दा षु ।। वासुदेव भी पानीम कमलक भाँ त गोप म रहकर बड़े ए। काठम छपी ई अ नक भाँ त वे अ ातभावसे वहाँ रहने लगे। कंसको उनका पता न चला। व च े ऽथ तान् सवान् व लवान् मधुरे रः । वधमानो महाबा तेजोबलसम वतः ।। मथुरानरेश कंस उन सब गोप को ब त सताया करता था। इधर महाबा ीकृ ण बड़े होकर तेज और बलसे स प हो गये। तत ते ल यमाना तु पु डरीका म युतम् । भयेन कामादपरे गणशः पयवारयन् ।। राजाके सताये ए गोपगण भय तथा कामनासे झुंड-के-झुंड एक हो कमलनयन भगवान् ीकृ णको घेरकर संग ठत होने लगे। स तु ल वा बलं राज ु सेन य स मतः । वसुदेवा मजः सव ातृ भः स हतं पुनः ।। न ज य यु ध भोजे ं ह वा कंसं महाबलः । अ य ष चत् ततो रा य उ सेनं वशा पते ।। राजन्! इस कार बलका सं ह करके महाबली वसुदेवन दन ीकृ णने उ सेनक स म तके अनुसार सम त भाइय स हत भोजराज कंसको मारकर पुनः उ सेनको ही मथुराके रा यपर अ भ ष कर दया। ततः ु वा जरासंधो माधवेन हतं यु ध । शूरसेना धपं च े कंसपु ं तदा नृपः ।। राजन्! जरासंधने जब यह सुना क ीकृ णने कंसको यु म मार डाला है, तब उसने कंसके पु को शूरसेनदे शका राजा बनाया। स सै यं मह था य वासुदेवं स च । अ य ष चत् सुतं त सुताया जनमेजय ।। जनमेजय! उसने बड़ी भारी सेना लेकर आ मण कया और वसुदेवन दन ीकृ णको हराकर अपनी पु ीके पु को वहाँ रा यपर अ भ ष कर दया। उ सेनं च वृ ण महाबलसम वतः । स त व कु ते जरासंधः तापवान् ।। एतद् वैरं कौरवेय जरासंध य माधवे । जनमेजय! तापी जरासंध महान् बल और सै नकश से स प था। वह उ सेन तथा वृ णवंशको सदा लेश प ँचाया करता था। कु न दन! जरासंध और ीकृ णके वैरका यही वृ ा त है। आशा सताथ राजे सं रोध व न जतान् । ै ै

पा थवै तैनृप त भय यमाणः समृ मान् ।। दे व े ं महादे वं कृ वासं य बकम् । एतत् सव यथा वृ ं क थतं भरतषभ ।। यथा तु स हतो राजा भीमसेनेन त छृ णु ।) राजे ! समृ शाली जरासंध कृ वासा और य बक नाम से स दे व े महादे वजीको भूम डलके राजा क ब ल दे कर उनका यजन करना चाहता था और इसी मनोवां छत योजनक स के लये उसने अपने जीते ए सम त राजा को कैदम डाल रखा था। भरत े ! यह सब वृ ा त तु ह यथावत् बताया गया। अब जस कार भीमसेनने राजा जरासंधका वध कया, वह संग सुनो। इत

ीमहाभारते सभापव ण जरासंधवधपव ण जरासंधयु ो ोगे ा वशोऽ यायः ।। २२ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत जरासंधवधपवम जरासंधका यु के लये उ ोग वषयक बाईसवाँ अ याय पूरा आ ।। २२ ।। (दा णा य अ धक पाठक े ३९ ोक मलाकर कुल ७५ ोक ह)

यो वशोऽ यायः जरासंधका भीमसेनके साथ यु करनेका न य, भीम और जरासंधका भयानक यु तथा जरासंधक थकावट वैश पायन उवाच तत तं न ता मानं यु ाय य न दनः । उवाच वा मी राजानं जरासंधमधो जः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! राजा जरासंधने अपने मनम यु का न य कर लया है, यह दे ख बोलनेम कुशल य न दन भगवान् ीकृ णने उससे कहा ।। १ ।। ीकृ ण उवाच याणां केन ते राजन् योद्धुमु सहते मनः । अ मद यतमेनेह स जीभवतु को यु ध ।। २ ।। ीकृ णने पूछा—राजन्! हम तीन मसे कस एक के साथ यु करनेके लये तु हारे मनम उ साह हो रहा है? हममसे कौन तु हारे साथ यु के लये तैयार हो? ।। २ ।। एवमु ः स नृप तयु ं व े महा ु तः । जरासंध ततो राजा भीमसेनेन मागधः ।। ३ ।। उनके इस कार पूछनेपर महातेज वी मगधनरेश राजा जरासंधने भीमसेनके साथ यु करना वीकार कया ।। ३ ।। आदाय रोचनां मा यं म या यपरा ण च । धारय गदान् मु यान् नवृतीवदना न च । उपत थे जरासंधं युयु सुं वै पुरो हतः ।। ४ ।। जरासंधको यु करनेके लये उ सुक दे ख उसके पुरो हत गोरोचन, माला, अ या य मांग लक व तुएँ तथा उ म-उ म ओष धयाँ, जो पीड़ाके समय भी सुख दे नेवाली और मू छाकालम भी होश बनाये रखनेवाली थ , लेकर उसके पास आये ।। ४ ।। कृत व ययनो राजा ा णेन यश वना । समन जरासंधः ा ं धममनु मरन् ।। ५ ।। यश वी ा णके ारा व तवाचन स प हो जानेपर जरासंध यधमका मरण करके यु के लये कमर कसकर तैयार हो गया ।। ५ ।। अवमु य करीटं स केशान् समनुगृ च । उद त जरासंधो वेला तग इवाणवः ।। ६ ।। जरासंधने करीट उतारकर केश को कसकर बाँध लया। त प ात् वह यु के लये उठकर खड़ा हो गया; मानो महासागर अपनी मयादा—तटव तनी भू मको लाँघ जानेको उ त हो गया हो ।। ६ ।। ी



उवाच म तमान् राजा भीमं भीमपरा मः । भीम यो ये वया साध ेयसा न जतं वरम् ।। ७ ।। उस समय भयानक परा म करनेवाले बु मान् राजा जरासंधने भीमसेनसे कहा —‘भीम! आओ, म तुमसे यु क ँ गा; य क े पु षसे लड़कर हारना भी अ छा है’ ।। ७ ।। एवमु वा जरासंधो भीमसेनमरदमः । यु यौ महातेजाः श ं बल इवासुरः ।। ८ ।। ऐसा कहकर महातेज वी श ुदमन जरासंध भीमसेनक ओर बढ़ा; मानो बल नामक असुर इ से भड़नेके लये बढ़ा जा रहा हो ।। ८ ।। ततः स म य क ृ णेन कृत व ययनो बली । भीमसेनो जरासंधमाससाद युयु सया ।। ९ ।। तदन तर बलवान् भीमसेन भी ीकृ णसे सलाह लेकर व तवाचनके अन तर यु क इ छासे जरासंधके पास आ धमके ।। ९ ।। तत तौ नरशा लौ बा श ौ समीयतुः । वीरौ परमसं ाव यो यजयकङ् णौ ।। १० ।। फर तो मनु य म सहके समान परा मी वे दोन वीर अ य त हष और उ साहम भरकर एक- सरेको जीतनेक इ छासे अपनी भुजा से ही आयुधका काम लेते ए पर पर भड़ गये ।। १० ।। कर हणपूव तु कृ वा पादा भव दनम् । क ैः क ां वधु वानावा फोटं त च तुः ।। ११ ।। पहले उन दोन ने हाथ मलाये। फर एक- सरेके चरण का अ भव दन कया। त प ात् भुजा के मूलभागके संचालनसे वहाँ बँधे ए बाजूबंदक डोरको हलाते ए वे दोन वीर वह ताल ठ कने लगे ।। ११ ।। क धे दो या समाह य नह य च मु मु ः । अ म ै ः समा य पुनरा फालनं वभो ।। १२ ।। राजन्! फर वे दोन हाथ से एक- सरेके कंधे-पर बार-बार चोट करते ए अंग-अंगसे भड़कर आपसम गुँथ गये तथा एक- सरेको बार-बार रगड़ने लगे ।। १२ ।। च ह ता दकं कृ वा क ाब धं च च तुः । गलग डा भघातेन स फु ल े न चाश नम् ।। १३ ।। वे कभी हाथ को बड़े वेगसे सकोड़ लेते, कभी फैला दे ते, कभी ऊपर-नीचे चलाते और कभी मु बाँध लेते। इस कार च ह त आ द दाँव दखाकर उन दोन ने क ाब धका योग कया अथात् एक- सरेक काख या कमरम दोन हाथ डालकर त को बाँध लेनेक चे ा क । फर गलेम और गालम ऐसे-ऐसे हाथ मारने लगे क आगक चनगारी-सी नकलने लगी और वपातका-सा श द होने लगा ।। १३ ।। बा पाशा दकं कृ वा पादाहत शरावुभौ । उरोह तं तत े पूणकु भौ यु य तौ ।। १४ ।। े‘ ’औ ‘ ’ ँ े े े े

त प ात् वे ‘बा पाश’ और ‘चरणपाश’ आ द दाँव-पच से काम लेते ए एक- सरेपर पैर से ऐसा भीषण हार करने लगे क शरीरक नस-ना ड़याँतक पी ड़त हो उठ। तदन तर दोन ने दोन पर ‘पूणकु भ’ नामक दाँव लगाया (दोन हाथ क अंगु लय को पर पर गूँथकर उन हाथ क हथे लय से श ुके सरको दबाया)। इसके बाद ‘उरोह त’ का योग कया (छातीपर थ पड़ मारना शु कर दया) ।। १४ ।। करस पीडनं कृ वा गज तौ वारणा वव । नद तौ मेघसंकाशौ बा हरणावुभौ ।। १५ ।। फर एक- सरेके हाथ दबाकर वे दोन दो गजराज क भाँ त गजने लगे। दोन ही भुजा से हार करते ए मेघके समान ग भीर वरसे सहनाद करने लगे ।। १५ ।। तलेनाह यमानौ तु अ यो यं कृतवी णौ । सहा वव सुसं ु ावाकृ याकृ य यु यताम् ।। १६ ।। थ पड़ क मार खाकर वे पर पर घूर-घूरकर दे खते और अ य त ोधम भरे ए दो सह के समान एक- सरेको ख च-ख चकर लड़ने लगे ।। १६ ।। अ े ना ं समापी बा यामुभयोर प । आवृ य बा भ ा प उदरं च च तुः ।। १७ ।। उस समय दोन अपने अंग और भुजा से त के शरीरको दबाकर श ुक पीठम अपने गलेक हँसली भड़ाकर उसके पेटको दोन बाँह से कस लेते और उठाकर र फकते थे ।। १७ ।। उभौ क ां सुपा तु त व तौ च श तौ । अधोह तं वक ठ े तूदर योर स चा पत् ।। १८ ।। इसी कार कमरम और बगलम भी हाथ लगाकर दोन त को पछाड़नेक चे ा करते थे। अपने शरीरको सकोड़कर श ुक पकड़से छू ट जानेक कला दोन जानते थे। दोन ही म लयु क श ाम वीण थे। वे उदरके नीचे हाथ लगाकर दोन हाथ से पेटको लपेट लेते और वप ीको क ठ एवं छातीतक ऊँचे उठाकर धरतीपर दे मारते थे ।। १८ ।।

सवा त ा तमयादं पृ भ ं च च तुः । स पूणमू छा बा यां पूणकु भं च तुः ।। १९ ।। फर वे सारी मयादा से ऊँचे उठे ए ‘पृ भंग’ नामक दाँव-पचसे काम लेने लगे (अथात् एक- सरेक पीठको धरतीसे लगा दे नेक चे ाम लग गये)। दोन भुजा से स पूण मू छा (उदर आ दम आघात करके मू छत करनेका य न) तथा पूव पूणकु भका योग करने लगे ।। १९ ।। तृणपीडं यथाकामं पूणयोगं समु कम् । एवमाद न यु ा न कुव तौ पर परम् ।। २० ।। तदन तर वे अपनी इ छाके अनुसार ‘तृणपीड’ (र सी बनानेके लये बटे जानेवाले तनक क भाँ त हाथ-पैर आ दको ठना) तथा मु काघातस हत पूणयोग (मु केको एक अंगम मारनेक चे ा दखाकर सरे अंगम आघात करना) आ द यु के दाँव-पच का योग एक- सरेपर करने लगे ।। २० ।। तयोयु ं ततो ु ं समेताः पुरवा सनः । ा णा व णज ैव या सह शः ।। २१ ।। शू ा नरशा ल यो वृ ा सवशः । नर तरमभूत् त जनौघैर भसंवृतम् ।। २२ ।। जनमेजय! उस समय उनका म लयु दे खनेके लये हजार पुरवासी ा ण, य, वै य, शू , याँ एवं वृ इक े हो गये। मनु य क अपार भीड़से वह थान ठसाठस भर गया ।। २१-२२ ।। तयोरथ भुजाघाता ह हात् तथा । ी







आसीत् सुभीमस पातो व पवतयो रव ।। २३ ।। उन दोन क भुजा के आघातसे तथा एक- सरेके न ह- हसे* ऐसा भयंकर चटचट श द होता था, मानो व और पवत पर पर टकरा रहे ह ।। २३ ।। उभौ परमसं ौ बलेन ब लनां वरौ । अ यो य या तरं े सू पर परजयै षणौ ।। २४ ।। बलवान म े वे दोन वीर अ य त हष एवं उ साहम भरे ए थे और एक- सरेक बलता या असावधानीपर रखते ए पर पर बलपूवक वजय पानेक इ छा रखते थे ।। २४ ।। तद् भीममु सायजनं यु मासी प लवे । ब लनोः संयुगे राजन् वृ वासवयो रव ।। २५ ।। राजन्! उस समरभू मम जहाँ वृ ासुर और इ क भाँ त उन दोन बलवान् वीर म संघष छड़ा था, ऐसा भयंकर यु आ क दशकलोग र भाग खड़े ए ।। २५ ।। कषणाकषणा यामनुकष वकषणैः । आचकषतुर यो यं जानु भ ावज नतुः ।। २६ ।। वे एक- सरेको पीछे ढकेलते और आगे ख चते थे। बार-बार ख चतान और छ नाझपट करते थे। दोन ने अपने हार से एक- सरेके शरीरम खर च एवं घाव पैदा कर दये और दोन दोन को पटककर घुटन से मारने तथा रगड़ने लगे ।। २६ ।। ततः श दे न महता भ सय तौ पर परम् । पाषाणसंघात नभैः हारैर भज नतुः ।। २७ ।। फर बड़े भारी गजन-तजनके ारा आपसम डाँट बताते ए एक- सरेपर ऐसे हार करने लगे मानो प थर क वषा कर रहे ह ।। २७ ।। ूढोर कौ द घभुजौ नयु कुशलावुभौ । बा भः समस जेतामायसैः प रघै रव ।। २८ ।। दोन क छाती चौड़ी और भुजाएँ बड़ी-बड़ी थ । दोन ही म लयु म कुशल थे और लोहेक प रघ-जैसी मोट भुजा को भड़ाकर आपसम गुँथ जाते थे ।। २८ ।। का तक य तु मास य वृ ं थमेऽह न । अनाहारं दवारा म व ा तमवतत ।। २९ ।। का तक मासके पहले दन उन दोन का यु ार भ आ और दन-रात बना खायेपये अ वरामग तसे चलता रहा ।। २९ ।। तद् वृ ं तु योद यां समवेतं महा मनोः । चतुद यां नशायां तु नवृ ो मागधः लमात् ।। ३० ।। उन महा मा का वह यु इसी पम योदशी-तक होता रहा। चतुदशीक रातम मगधनरेश जरासंध लेशसे थककर यु से नवृ -सा होने लगा ।। ३० ।। तं राजानं तथा ला तं ् वा राज नादनः । उवाच भीमकमाणं भीमं स बोधय व ।। ३१ ।। े









राजन्! उसे इस कार थका दे ख भगवान् ीकृ ण भयानक कम करनेवाले भीमसेनको समझाते ए-से बोले— ।। ३१ ।। ला तः श ुन कौ तेय ल यः पीड यतुं रणे । पी मानो ह का यन ज ा जी वतमा मनः ।। ३२ ।। ‘कु तीन दन! श ु थक गया हो तो यु म उसे अ धक पीड़ा दे ना उ चत नह है। य द उसे पूणतः पीड़ा द जाय तो वह अपने ाण याग दे गा ।। ३२ ।। त मात् ते नैव कौ तेय पीडनीयो जना धपः । सममेतेन यु य व बा यां भरतषभ ।। ३३ ।। ‘अतः पाथ! तु ह राजा जरासंधको अ धक पीड़ा नह दे नी चा हये। भरत े ! तुम अपनी भुजा ारा इनके साथ समभावसे ही यु करो’ ।। ३३ ।। एवमु ः स कृ णेन पा डवः परवीरहा । जरासंध य तद् पं ा वा च े म त वधे ।। ३४ ।। भगवान् ीकृ णके ऐसा कहनेपर श ुवीर का नाश करनेवाले पा डु कुमार भीमसेनने जरासंधको थका आ जानकर उसके वधका वचार कया ।। ३४ ।। तत तम जतं जेतुं जरासंधं वृकोदरः । संर भं ब लनां े ो ज ाह कु न दनः ।। ३५ ।। तदन तर कु कुलको आन दत करनेवाले बलवान म े वृकोदरने उस अपरा जत श ु जरासंधको जीतनेके लये भारी ोध धारण कया ।। ३५ ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण जरासंधवधपव ण जरासंध ला तौ यो वशोऽ यायः ।। २३ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत जरासंधवधपवम जरासंधक थकावटसे स ब ध रखनेवाला तेईसवाँ अ याय पूरा आ ।। २३ ।।

* दोन हाथ से श ुका कंधा पकड़कर ख चने और उसे नीचे मुख गरानेक चे ाका नाम ‘ न ह’ है तथा श ुको उ ान गरा दे नेके लये उसके पैर को पकड़कर ख चना ‘ ह’ कहलाता है।

चतु वशोऽ यायः भीमके ारा जरासंधका वध, बंद राजा क मु , ीकृ ण आ दका भट लेकर इ थम आना और वहाँसे ीकृ णका ारका जाना वैश पायन उवाच भीमसेन ततः कृ णमुवाच य न दनम् । बु मा थाय वपुलां जरासंधवधे सया ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर भीमसेनने वशाल बु का सहारा ले जरासंधके वधक इ छासे य न दन ीकृ णको स बो धत करके कहा— ।। १ ।। नायं पापो मया कृ ण यु ः यादनुरो धतुम् । ाणेन य शा ल ब क ेण वाससा ।। २ ।। ‘य े ीकृ ण! जरासंधने लंगोटसे अपनी कमर खूब कस ली है। यह पापी ाण रहते मेरे वशम आनेवाला नह जान पड़ता’ ।। २ ।। एवमु ततः कृ णः युवाच वृकोदरम् । वरयन् पु ष ा ो जरासंधवधे सया ।। ३ ।। उनके ऐसा कहनेपर पु षो म ीकृ णने जरासंधके वधके लये भीमसेनको उ े जत करते ए कहा— ।। ३ ।। यत् ते दै वं परं स वं य च ते मात र नः । बलं भीम जरासंधे दशयाशु तद नः ।। ४ ।। ‘भीम! तु हारा जो सव कृ दै वी व प है और तु ह वायुदेवतासे जो द बल ा त आ है, उसे आज हमारे सामने जरासंधपर शी तापूवक दखाओ ।। ४ ।। (तवैष व यो बु ः जरासंधो महारथः । इ य त र े व ौषं यदा वायुरपो ते ।। ‘यह खोट बु वाला महारथी जरासंध तु हारे हाथ से ही मारा जा सकता है। यह बात आकाशम मुझे उस समय सुनायी पड़ी थी जब क बलरामजीके ारा जरासंधके ाण लेनेक चे ा क जा रही थी। गोम ते पवत े े येनैष प रमो तः । बलदे वबलं ा य कोऽ यो जीवेत मागधात् ।। ‘इसी लये ग र े गोम तपर भैया बलरामने इसे जी वत छोड़ दया था; अ यथा बलदे वजीके काबूम आ जानेपर इस जरासंधके सवा सरा कौन जी वत बच सकता था? तद य मृ यु व हतः व ते न महाबल । वायुं च य महाबाहो जहीमं मगधा धपम् ।।) ‘









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‘महाबली भीम! तु हारे सवा और कसीके ारा इसक मृ यु नह होनेवाली है। महाबाहो! तुम वायुदेवका च तन करके इस मगधराजको मार डालो’। एवमु तदा भीमो जरासंधमरदमः । उ य ामयामास बलव तं महाबलः ।। ५ ।। उनके इस तरह संकेत करनेपर श ु का दमन करनेवाले महाबली भीमने उस समय बलवान् जरासंधको उठाकर आकाशम वेगसे घुमाना आर भ कया ।। ५ ।। (तत तु भगवान् कृ णो जरासंध जघांसया । भीमसेनं समालो य नलं ज ाह पा णना ।। धा च छे द वै तत् तु जरासंधवधं त ।) तब भगवान् ीकृ णने जरासंधका वध करानेक इ छासे भीमसेनक ओर दे खकर एक नरकट* हाथम ले लया और उसे (दातुनक भाँ त) दो टु कड़ म चीर डाला (तथा उसे फक दया)। यह जरासंधको मारनेके लये एक संकेत था। ाम य वा शतगुणं जानु यां भरतषभ । बभ पृ ं सं य न प य वननाद च ।। ६ ।। भरत े जनमेजय! (भीमने उनके संकेतको समझ लया और) उ ह ने सौ बार घुमाकर उसे धरतीपर पटक दया और उसक पीठको धनुषक तरह मोड़कर दोन घुटन क चोटसे उसक रीढ़ तोड़ डाली, फर अपने शरीरक रगड़से पीसते ए भीमने बड़े जोरसे सहनाद कया ।। ६ ।। करे गृही वा चरणं े धा च े महाबलः ।। ७ ।। इसके बाद अपने एक हाथसे उसका एक पैर पकड़कर और सरे पैरपर अपना पैर रखकर महाबली भीमने उसे दो ख ड म चीर डाला ।। ७ ।। (पुनः संधाय तु तदा जरासंधः तापवान् ।। भीमेन च समाग य बा यु ं चकार ह । तयोः समभवद् यु ं तुमुलं रोमहषणम् ।। सवलोक यकरं सवभूतभयावहम् । पुनः कृ ण त म रणं धा व छ माधवः ।। य य ा पत् तत् तु जरासंधवधे सया । तब वे दोन टु कड़े फरसे जुड़ गये और तापी जरासंध भीमसे भड़कर बा यु करने लगा। उन दोन वीर का वह यु अ य त भयंकर और रोमांचकारी था। उसे दे खकर ऐसा जान पड़ता था मानो स पूण जगत्का संहार हो जायगा। वह यु स पूण ा णय के भयको बढ़ानेवाला था। उस समय भगवान् ीकृ णने पुनः एक नरकट लेकर पहलेक ही भाँ त चीरकर उसके दो टु कड़े कर दये और उन दोन टु कड़ को अलग-अलग वपरीत दशाम फक दया। जरासंधके वधके लये यह सरा संकेत था। भीमसेन तदा ा वा न बभेद च मागधम् ।। धा य य पादे न ा प च ननाद ह । ी







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भीमसेनने उसे समझकर पुनः मगधराजको दो टु कड़ म चीर डाला और पैरसे ही उन दोन टु कड़ को वपरीत दशा म करके फक दया। इसके बाद वे वकट गजना करने लगे। शु कमांसा थमेद वग् भ म त क प डकः ।। शवभूत तदा राजन् प डीकृत इवाबभौ ।) राजन्! उस समय जरासंधका शरीर शव प होकर मांसके ल दे -सा जान पड़ने लगा। उसके शरीरके मांस, ह याँ, मेदा और चमड़ा सभी सूख गये थे। म त क और शरीर दो भाग म वद ण हो गये थे। त य न प यमाण य पा डव य च गजतः । अभवत् तुमुलो नादः सव ा णभयंकरः ।। ८ ।। व ेसुमागधाः सव ीणां गभा सु ुवुः । भीमसेन य नादे न जरासंध य चैव ह ।। ९ ।। जब जरासंध रगड़ा जा रहा था और पा डु कुमार गज-गजकर उसे पीसे डालते थे, उस समय भीमसेनक गजना और जरासंधक ची कारसे जो तुमुल नाद कट आ, वह सम त ा णय को भयभीत करनेवाला था। उसे सुनकर सभी मगध नवासी भयसे थरा उठे । य के तो गभतक गर गये ।। ८-९ ।। क नु या मवान् भ ः क नु वद् द यते मही । इ त वै मागधा ज ुभ मसेन य नः वनात् ।। १० ।। भीमसेनक गजना सुनकर मगधके लोग भयभीत होकर सोचने लगे क ‘कह हमालय पहाड़ तो नह फट पड़ा? कह पृ वी तो वद ण नह हो रही है? ।। १० ।। ततो रा ः कुल ा र सु त मव तं नृपम् । रा ौ गतासुमु सृ य न मुररदमाः ।। ११ ।। तदन तर श ु का दमन करनेवाले वे तीन वीर रातम राजा जरासंधके ाणहीन शरीरको सोते एके समान राजभवनके ारपर छोड़कर वहाँसे चल दये ।। ११ ।। जरासंधरथं कृ णो योज य वा पता कनम् । आरो य ातरौ चैव मो यामास बा धवान् ।। १२ ।। ीकृ णने जरासंधके वजा-पताकाम डत द रथको जोत लया और उसपर दोन भाई भीमसेन और अजुनको बठाकर पहाड़ी खोहके पास जा वहाँ कैदम पड़े ए अपने बा धव व प सम त राजा को छु ड़ाया ।। १२ ।। ते वै र नभुजं कृ णं र नाहाः पृ थवी राः । राजान ु रासा मो ता महतो भयात् ।। १३ ।। उस महान् भयसे छू टे ए र नभोगी नरेश ने भगवान् ीकृ णसे मलकर उ ह व वध र न से यु कर दया ।। १३ ।। अ तः श स प ो जता रः सह राज भः । रथमा थाय तं द ं नजगाम ग र जात् ।। १४ ।। ी













भगवान् ीकृ ण तर हत और अ -श से स प थे। वे श ुपर वजय पा चुके थे, उस अव थाम वे उस द रथपर आ ढ़ हो कैदसे छू टे ए राजा के साथ ग र ज नगरसे बाहर नकले ।। १४ ।। यः स सोदयवान् नाम योधी कृ णसार थः । अ यासघाती सं यो जयः सवराज भः ।। १५ ।। उस रथका नाम था सोदयवान्, उसम दो महारथी यो ा एक साथ बैठकर यु कर सकते थे, इस समय भगवान् ीकृ ण उसके सार थ थे। उस रथम बार-बार श ु पर आघात करनेक सु वधा थी तथा वह दशनीय होनेके साथ ही सम त राजा के लये जय था ।। १५ ।। भीमाजुना यां योधा यामा थतः कृ णसार थः । शुशुभे रथवय ऽसौ जयः सवध व भः ।। १६ ।। श व णू ह सं ामे चेरतु तारकामये । भीम और अजुन—से दो यो ा उस रथपर बैठे थे, ीकृ ण सार थका काम सँभाल रहे थे, स पूण धनुधर वीर के लये भी उसे जीतना क ठन था। इन दोन र थय के ारा उस े रथक ऐसी शोभा हो रही थी मानो इ और व णु एक साथ बैठकर तारकामय सं ामम वचर रहे ह ।। १६ ।। रथेन तेन वै कृ ण उपा ययौ तदा ।। १७ ।। त तचामीकराभेण कङ् कणीजालमा लना । मेघ नघ षनादे न जै ेणा म घा तना ।। १८ ।। वह रथ तपाये ए सुवणके समान का तमान् था। उसम ु घ टका से यु झालर लगी थ । उसक घघराहट मेघक ग भीर गजनाके समान जान पड़ती थी। वह श ु का वघातक और वजय दान करनेवाला था। उसी रथपर सवार हो उसके ारा ीकृ णने उस समय या ा क ।। १७-१८ ।। येन श ो दानवानां जघान नवतीनव । तं ा य सम य त रथं ते पु षषभाः ।। १९ ।। यह वही रथ था, जसके ारा इ ने न यानबे दानव का वध कया था। उस रथको पाकर वे तीन नर े ब त स ए ।। १९ ।। ततः कृ णं महाबा ं ातृ यां स हतं तदा । रथ थं मागधा ् वा समप त व मताः ।। २० ।। तदन तर दोन फुफेरे भाइय के साथ रथपर बैठे ए महाबा ीकृ णको दे खकर मगधके नवासी बड़े व मत ए ।। २० ।। हयै द ैः समायु ो रथो वायुसमो जवे । अ ध तः स शुशुभे कृ णेनातीव भारत ।। २१ ।। वह रथ वायुके समान वेगशाली था, उसम द घोड़े जुते ए थे। भारत! ीकृ णके बैठ जानेसे उस द रथक बड़ी शोभा हो रही थी ।। २१ ।। ो े



अस ो दे व व हत त मन् रथवरे वजः । योजनाद् द शे ीमा न ायुधसम भः ।। २२ ।। उस उ म रथपर दे व नमत वज फहराता रहता था, जो रथसे अछू ता था (रथके साथ उसका लगाव नह था, वह बना आधारके ही उसके ऊपर लहराया करता था)। इ धनुषके समान काशमान ब रंगी एवं शोभाशाली वह वज एक योजन रसे ही द खने लगता था ।। २२ ।। च तयामास कृ णोऽथ ग म तं स चा ययात् । णे त मन् स तेनासी चै यवृ इवो थतः ।। २३ ।। ा दता यैमहानादै ः सह भूतै वजालयैः । त मन् रथवरे त थौ ग मान् प गाशनः ।। २४ ।। उस समय भगवान् ीकृ णने ग डजीका मरण कया। ग डजी उसी ण वहाँ आ गये। उस रथक वजाम ब त-से भूत मुँह बाये ए वकट गजना करते रहते थे। उ ह के साथ सपभोजी ग डजी भी उस े रथपर थत हो गये। उनके ारा वह वज ऊँचे उठे ए चै य वृ के समान सुशो भत हो गया ।। २३-२४ ।। नरी यो ह भूतानां तेजसा य धकं बभौ । आ द य इव म या े सह करणावृतः ।। २५ ।। न स स ज त वृ ेषु श ै ा प न र यते । द ो वजवरो राजन् यते चेह मानुषैः ।। २६ ।। अब वह उ म वज सह करण से आवृत म या कालके सूयक भाँ त अपने तेजसे अ धक का शत होने लगा। ा णय के लये उसक ओर दे खना क ठन हो गया। वह वृ म कह अटकता नह था, अ -श ारा कटता नह था। राजन्! वह द और े वज इस लोकके मनु य को गोचर मा होता था ।। २५-२६ ।। तमा थाय रथं द ं पज यसम नः वनम् । नययौ पु ष ा ः पा डवा यां सहा युतः ।। २७ ।। मेघके समान ग भीर घघर व नसे प रपूण उसी द रथपर भीमसेन और अजुनके साथ बैठे ए पु ष सह भगवान् ीकृ ण नगरसे बाहर नकले ।। २७ ।। यं लेभे वासवाद् राजा वसु त माद् बृह थः । बृह थात् मेणैव ा तो बाह थं नृप ।। २८ ।। राजन्! इ से उस रथको राजा वसुने ा त कया था। फर मशः वसुसे बृह थको और बृह थसे जरासंधको वह रथ मला था ।। २८ ।। स नयाय महाबा ः पु डरीके ण ततः । ग र जाद् ब ह त थौ समदे शे महायशाः ।। २९ ।। महायश वी कमलनयन महाबा ीकृ ण ग र जसे बाहर आ समतल भू मपर खड़े ए ।। २९ ।। त ैनं नागराः सव स कारेणा ययु तदा । ा ण मुखा राजन् व ध ेन कमणा ।। ३० ।। े ँ ी े ी े

जनमेजय! वहाँ ा ण आ द सभी नाग रक ने शा ीय व धसे उनका स कार एवं पूजन कया ।। ३० ।। ब धनाद् व मु ा राजानो मधुसूदनम् । पूजयामासु चु तु तपूव मदं वचः ।। ३१ ।। कैदसे छू टे ए राजा ने भी मधुसूदनक पूजा क और उनक तु त करते ए इस कार कहा— ।। ३१ ।।

नैत च ं महाबाहो व य दे व कन दने । भीमाजुनबलोपेते धम य तपालनम् ।। ३२ ।। ‘महाबाहो! आप दे वक दे वीको आन दत करनेवाले सा ात् भगवान् ह, भीमसेन और अजुनका बल भी आपके साथ है। आपके ारा जो धमक र ा हो रही है, वह आप-सरीखे धमावतारके लये आ यक बात नह है ।। ३२ ।। जरासंध दे घोरे ःखपङ् के नम जताम् । रा ां सम यु रणं य ददं कृतम वै ।। ३३ ।। ‘ भो! हम सब राजा ःख पी पंकसे यु जरासंध- पी भयानक कु डम डू ब रहे थे, आपने जो आज हमारा यह उ ार कया है, वह आपके यो य ही है ।। ३३ ।। व णो समवस ानां ग र ग सुदा णे । द ा मो ाद् यशो द तमा तं ते य न दन ।। ३४ ।। ‘ व णो! अ य त भयंकर पहाड़ी कलेम कैद हो हम बड़े ःखसे दन काट रहे थे। य न दन! आपने हम इस संकटसे मु करके अ य त उ वल यश ा त कया है; यह बड़े सौभा यक बात है ।। ३४ ।।

क कुमः पु ष ा शा ध नः ण त थतान् । कृत म येव तद् व नृपैय प करम् ।। ३५ ।। ‘पु ष सह! हम आपके चरण म पड़े ह। आप हम आ ा द जये, हम या सेवा कर? कोई कर काय हो तो भी आपको यह समझना चा हये मानो हम सब राजा ने मलकर उसे पूण कर ही दया’ ।। ३५ ।। तानुवाच षीकेशः समा ा य महामनाः । यु ध रो राजसूयं तुमाहतु म छ त ।। ३६ ।। तब महामना भगवान् षीकेशने उन सबको आ ासन दे कर कहा—‘राजाओ! धमराज यु ध र राजसूयय करना चाहते ह ।। ३६ ।। त य धम वृ य पा थव वं चक षतः । सवभव व ाय साहा यं यता म त ।। ३७ ।। ‘धमम त पर रहते ए ही उ ह साट ् पद ा त करनेक इ छा ई है। इस कायम तुम सब लोग उनक सहायता करो’ ।। ३७ ।। ततः सु ीतमनस ते नृपा नृपस म । तथे येवा ुवन् सव तगृ ा य तां गरम् ।। ३८ ।। नृप े जनमेजय! तब उन सभी राजा ने स च हो ‘तथा तु’ कहकर भगवान्क वह आ ा शरोधाय कर ली ।। ३८ ।। र नभाजं च दाशाह च ु ते पृ थवी राः । कृ ा ज ाह गो व द तेषां तदनुक पया ।। ३९ ।। इतना ही नह , उन भूपाल ने दशाहकुलभूषण भगवान्को र न भट कये। भगवान् गो व दने बड़ी क ठनाईसे उन सबपर कृपा करनेके लये ही वह भट वीकार क ।। ३९ ।। जरासंधा मज ैव सहदे वो महामनाः । नययौ सजनामा यः पुर कृ य पुरो हतम् ।। ४० ।। तदन तर जरासंधका पु महामना सहदे व पुरो हतको आगे करके सेवक और म य के साथ नगरसे बाहर नकला ।। ४० ।। स नीचैः णतो भू वा ब र नपुरोगमः । सहदे वो नृणां दे वं वासुदेवमुप थतः ।। ४१ ।। उसके आगे र न का ब त बड़ा भ डार आ रहा था। सहदे व अ य त वनीतभावसे चरण म पड़कर नरदे व भगवान् वासुदेवक शरणम आया था ।। ४१ ।। (सहदे व उवाच यत् कृतं पु ष ा मम प ा जनादन । तत् ते द महाबाहो न काय पु षो म ।। सहदे व बोला—पु ष सह जनादन! महाबा पु षोतम! मेरे पताने जो अपराध कया है, उसे आप अपने दयसे नकाल द। वां प ोऽ म गो व द सादं कु मे भो । े

पतु र छा म सं कारं कतु दे व कन दन ।। गो व द! म आपक शरणम आया ँ। भो! आप मुझपर कृपा क जये। दे वक न दन! म अपने पताका दाह-सं कार करना चाहता ँ। व ोऽ यनु ां स ा य भीमसेनात् तथाजुनात् । नभयो वच र या म यथाकामं यथासुखम् ।। आपसे, भीमसेनसे तथा अजुनसे आ ा लेकर यह काय क ँ गा और आपक कृपासे नभय हो इ छानुसार सुखपूवक वच ँ गा।

वैश पायन उवाच एवं व ा यमान य सहदे व य मा रष । ो दे वक पु ः पा डवौ च महारथौ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! सहदे वके इस कार नवेदन करनेपर दे वक न दन भगवान् ीकृ ण तथा महारथी भीमसेन और अजुन बड़े स ए। यतां सं या राजन् पतु त इ त चा ुवन् । त छ वा वासुदेव य पाथयो स मागधः ।। व य नगरं तूण सह म भर युत । चतां च दनका ै कालेयसरलै तथा ।। कालागु सुग धै तैलै व वधैर प । घृतधारा तै ैव सुमनो भ मागधम् ।। सम तादवक य त द तं मगधा धपम् । उन सबने एक वरसे कहा—‘राजन्! तुम अपने पताका अ ये -सं कार करो।’ भगवान् ीकृ ण तथा दोन कु तीकुमार का यह आदे श सुनकर मगधराजकुमारने म य के साथ शी ही नगरम वेश कया। फर च दनक लकड़ी तथा केसर, दे वदा और काला अगु आ द सुग धत का से चता बनाकर उसपर मगधराजका शव रखा गया। त प ात् जलती चताम द ध होते ए मगधराजके शरीरपर नाना कारके च दना द सुग धत तैल और घीक धाराएँ गरायी गय । सब ओरसे अ त और फूल क वषा क गयी। उदकं त य च े ऽथ सहदे वः सहानुजः ।। कृ वा पतुः वगग त नययौ य केशवः । पा डवौ च महाभागौ भीमसेनाजुनावुभौ ।। स ः ा लभू वा व ापयत माधवम् । शवदाहके प ात् सहदे वने अपने छोटे भाईके साथ पताके लये जलांज ल द । इस कार पताका पारलौ कक काय करके राजकुमार सहदे व नगरसे नकलकर उस थानम गया, जहाँ भगवान् ीकृ ण तथा महाभाग पा डु पु भीमसेन और अजुन व मान थे। उसने नतापूवक हाथ जोड़कर भगवान् ीक ृ णसे कहा। सहदे व उवाच े ी ो

इमे र ना न भूरी ण गोऽजा वम हषादयः । ह तनोऽ ा गो व द वासां स व वधा न च ।। द यतां धमराजाय यथा वा म यते भवान् ।) सहदे वने कहा— भो! ये गाय, भस, भेड़-बकरे आ द पशु, ब त-से र न, हाथी-घोड़े और नाना कारके व आपक सेवाम तुत ह। गो व द! ये सब व तुएँ धमराज यु ध रको द जये अथवा आपक जैसी च हो, उसके अनुसार मुझे सेवाके लये आदे श द जये। भयाताय तत त मै कृ णो द वाभयं तदा । आददे ऽ य महाहा ण र ना न पु षो मः ।। ४२ ।। वह भयसे पी ड़त हो रहा था; पु षो म भगवान् ीकृ णने उसे अभयदान दे कर उसके लाये ए ब मू य र न क भट वीकार कर ली ।। ४२ ।। अ य ष चत त ैव जरासंधा मजं मुदा । ग वैक वं च कृ णेन पाथा यां चैव स कृतः ।। ४३ ।। त प ात् जरासंधकुमारको स तापूवक वह पताके रा यपर अ भ ष कर दया। ीकृ णने सहदे वको अपना अ भ सु द् बना लया, इस लये भीमसेन और अजुनने भी उसका बड़ा स कार कया ।। ४३ ।। ववेश राजा ु तमान् बाह थपुरं नृप । अ भ ष ो महाबा जारासं धमहा म भः ।। ४४ ।। राजन्! उन महा मा ारा अ भ ष हो महाबा जरासंधपु तेज वी राजा सहदे व अपने पताके नगरम लौट गया ।। ४४ ।। कृ ण तु सह पाथा यां या परमया युतः । र ना यादाय भूरी ण ययौ पु षषभः ।। ४५ ।। और पु षो म ीकृ णने सव म शोभासे स प हो चुर र न क भट ले दोन कु तीकुमार के साथ वहाँसे थान कया ।। ४५ ।। इ थमुपाग य पा डवा यां सहा युतः । समे य धमराजानं ीयमाणोऽ यभाषत ।। ४६ ।। भीमसेन और अजुनके साथ इ थम आकर भगवान् ीकृ ण धमराज यु ध रसे मले और अ य त स होकर बोले— ।। ४६ ।। द ा भीमेन बलवा रासंधो नपा ततः । राजानो मो ता ैव ब धना ृपस म ।। ४७ ।। ‘नृप े ! सौभा यक बात है क महाबली भीमसेनने जरासंधको मार गराया और सम त राजा को उसक कैदसे छु ड़ा दया ।। ४७ ।। द ा कुश लनौ चेमौ भीमसेनधनंजयौ । पुनः वनगरं ा ताव ता व त भारत ।। ४८ ।। ‘भारत! भा यसे ही ये दोन भाई भीमसेन और अजुन अपने नगरम पुनः सकुशल लौट आये और इ ह कोई त नह प ँची’ ।। ४८ ।। ो

ततो यु ध रः कृ णं पूज य वा यथाहतः । भीमसेनाजुनौ चैव ः प रष वजे ।। ४९ ।। तब यु ध रने ीकृ णका यथायो य स कार करके भीमसेन और अजुनको भी स तापूवक गले लगाया ।। ४९ ।। ततः ीणे जरासंधे ातृ यां व हतं जयम् । अजातश ुरासा मुमुदे ातृ भः सह ।। ५० ।। तदन तर जरासंधके न होनेपर अपने दोन भाइय ारा क ई वजयको पाकर अजातश ु राजा यु ध र भाइय स हत आन दम न हो गये ।। ५० ।। ( धमराड ् वा यं जनादनमभाषत । फर धमराजने हषम भरकर भगवान् ीकृ णसे कहा।

यु ध र उवाच वां ा य पु ष ा भीमसेनेन पा ततः । मागधोऽसौ बलो म ो जरासंधः तापवान् ।। यु ध र बोले—पु ष सह जनादन! आपका सहारा पाकर ही भीमसेनने बलके अ भमानसे उ म रहनेवाले तापी मगधराज जरासंधको मार गराया है। राजसूयं तु े ं ा या म वगत वरः । वद्बु बलमा य यागाह ऽ म जनादन ।। अब म न त होकर य म े राजसूयका शुभ अवसर ा त क ँ गा। भो! आपके बु -बलका सहारा पाकर म य करनेयो य हो गया। पीतं पृ थ ां यु े न यश ते पु षो म । जरासंधवधेनैव ा ता ते वपुलाः यः ।। पु षो म! इस यु से भूम डलम आपके यशका व तार आ। जरासंधके वधसे ही आपको चुर स प ा त ई है। वैश पायन उवाच एवं स भा य कौ तेयः ादाद् रथवरं भोः । तगृ तु गो व दो जरासंध य तं रथम् ।। त य मुमुदे फा गुनेन जनादनः । ी तमानभवद् राजन् धमराजपुर कृतः ।।) वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! ऐसा कहकर कु तीन दन यु ध रने भगवान्को े रथ दान कया। जरासंधके उस रथको पाकर गो व द बड़े स ए और अजुनके साथ उसम बैठकर बड़े हषका अनुभव करने लगे। धमराज यु ध रके उस भटको अंगीकार करके उ ह बड़ा संतोष आ। यथावयः समाग य ातृ भः सह पा डवः । स कृ य पूज य वा च वससज नरा धपान् ।। ५१ ।। े





पा डु न दन यु ध र भाइय के साथ जाकर सम त राजा से उनक अव थाके अनुसार मशः मले; फर उन सबका यथायो य स कार एवं पूजन करके उ ह ने सभी नरप तय को वदा कर दया ।। ५१ ।। यु ध रा यनु ाता ते नृपा मानसाः । ज मुः वदे शां व रता यानै चावचै ततः ।। ५२ ।। राजा यु ध रक आ ा ले वे सब नरेश मन-ही-मन अ य त स हो अनेक कारक सवा रय ारा शी तापूवक अपने-अपने दे शको चले गये ।। ५२ ।। एवं पु षशा लो महाबु जनादनः । पा डवैघातयामास जरासंधमर तदा ।। ५३ ।। जनमेजय! इस कार महाबु मान् पु ष सह जनादनने उस समय पा डव ारा अपने श ु जरासंधका वध करवाया ।। ५३ ।। घात य वा जरासंधं बु पूवमरदमः । धमराजमनु ा य पृथां कृ णां च भारत ।। ५४ ।। सुभ ां भीमसेनं च फा गुनं यमजौ तथा । धौ यमाम य वा च ययौ वां पुर त ।। ५५ ।। तेनैव रथमु येन मनस तु यगा मना । धमराज वसृ ेन द ेनानादयन् दशः ।। ५६ ।। भारत! जरासंधको बु पूवक मरवाकर श ुदमन ीकृ ण धमराज यु ध र, कु ती तथा ौपद से आ ा ले, सुभ ा, भीमसेन, अजुन, नकुल, सहदे व तथा धौ यजीसे भी पूछकर धमराजके दये ए उसी मनके समान वेगशाली द एवं उ म रथके ारा स पूण दशा को गुँजाते ए अपनी ारकापुरीको चले गये ।। ५४—५६ ।। ततो यु ध रमुखाः पा डवा भरतषभ । द णमकुव त कृ णम ल का रणम् ।। ५७ ।। भरत े ! जाते समय यु ध र आ द सम त पा डव ने अनायास ही सब काय करनेवाले भगवान् ीकृ णक प र मा क ।। ५७ ।। ततो गते भगव त कृ णे दे व कन दने । जयं ल वा सु वपुलं रा ां द वाभयं तदा ।। ५८ ।। संव धतं यशो भूयः कमणा तेन भारत । ौप ाः पा डवा राजन् परां ी तमवधयन् ।। ५९ ।। भारत! महान् वजयको ा त करके और जरासंधके ारा कैद कये ए उन राजा को अभयदान दे कर दे वक न दन भगवान् ीकृ णके चले जानेपर उ कमके ारा पा डव के यशका ब त व तार आ और वे पा डव ौपद क भी ी तको बढ़ाने लगे ।। ५८-५९ ।। त मन् काले तु यद् यु ं धमकामाथसं हतम् । तद् राजा धमत े जापालनक तनम् ।। ६० ।। औ







उस समय धम, अथ और कामक स के लये जो उ चत कत था, उसका राजा यु ध रने धमपूवक पालन कया। वे जा क र ा करनेके साथ ही उ ह धमका उपदे श भी दे ते रहते थे ।। ६० ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण जरासंधवधपव ण जरासंधवधे चतु वशोऽ यायः ।। २४ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत जरासंधवधपवम जरासंधवध वषयक चौबीसवाँ अ याय पूरा आ ।। २४ ।। (दा णा य अ धक पाठक े २६ ोक मलाकर कुल ८६ ोक ह)

* नरकट बतक तरह पोले डंठलका एक पौधा होता है, जो कलम बनानेके काम आता है।

( द वजयपव) प च वशोऽ यायः अजुन आ द चार भाइय क द वजयके लये या ा वैश पायन उवाच पाथः ा य धनुः े म यौ च महेषुधी । रथं वजं सभां चैव यु ध रमभाषत ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! अजुन े धनुष, दो वशाल एवं अ य तूणीर, द रथ, वज और अ त सभाभवन पहले ही ा त कर चुके थे; अब वे यु ध रसे बोले ।। १ ।। अजुन उवाच धनुर ं शरा वीय प ो भू मयशो बलम् । ा तमेत मया राजन् ापं यदभी सतम् ।। २ ।। अजुनने कहा—राजन्! मुझे धनुष, अ , बाण, परा म, ीकृ ण-जैसे सहायक, भू म (रा य एवं इ थका ग), यश और बल—ये सभी लभ एवं मनोवां छत व तुएँ ा त हो चुक ह ।। २ ।। त कृ यमहं म ये कोश य प रवधनम् । करमाहार य या म रा ः सवान् नृपो म ।। ३ ।। नृप े ! अब म अपने कोषको बढ़ाना ही आव यक काय समझता ँ। मेरी इ छा है क सम त राजा को जीतकर उनसे कर वसूल क ँ ।। ३ ।। वजयाय या या म दशं धनदपा लताम् । तथावथ मुत च न े चा भपू जते ।। ४ ।। आपक आ ा हो तो उ म त थ, मु त और न म कुबेर ारा पा लत उ र दशाको जीतनेके लये थान क ँ ।। ४ ।। (एत छ वा कु े ो धमराजः सहानुजः । ोम भ ैव ासधौ या द भः सह ।। ततो ासो महाबु वाचेदं वचोऽजुनम् । यह सुनकर भाइय स हत कु े धमराज यु ध रको बड़ी स ता ई। साथ ही म य तथा ास, धौ य आ द मह षय को बड़ा हष आ। त प ात् परम बु मान् ासजीने अजुनसे कहा। ास उवाच ौ े े ी ी

बु हो।

साधु सा व त कौ तेय द ा ते बु री शी । पृ थवीमखलां जेतुमेकोऽ यव सतो भवान् ।। ासजी बोले—कु तीन दन! म तु ह बारंबार साधुवाद दे ता ँ। सौभा यसे तु हारी म ऐसा संक प आ है। तुम सारी पृ वीको अकेले ही जीतनेके लये उ सा हत हो रहे

ध यः पा डु महीपालो य य पु वमी शः । सव ा य त राजे ो धमपु ो यु ध रः ।। व यण स धमा मा सावभौम वमे य त । राजा पा डु ध य थे, जनके पु तुम ऐसे परा मी नकले। तु हारे परा मसे धमपु धमा मा महाराज यु ध र सब कुछ पा लगे। सावभौम साट ् के पदपर त त ह गे। वा बलमा य राजसूयमवा य त ।। सुनयाद् वासुदेव य भीमाजुनबलेन च । यमयो ैव वीयण सव ा य त धमराट् ।। तु हारे बा बलका सहारा पाकर ये राजसूयय पूण कर लगे। भगवान् ीकृ णक उ म नी त, भीम और अजुनके बल तथा नकुल और सहदे वके परा मसे धमराज यु ध रको सब कुछ ा त हो जायगा। त माद् दशं दे वगु तामुद च ग छ फा गुन । श ो भवान् सुरा वा र ना याहतुमोजसा ।। इस लये अजुन! तुम तो दे वता ारा सुर त उ र दशाक या ा करो; य क दे वता को जीतकर वहाँसे बलपूवक र न ले आनेम तु ह समथ हो। ाच भीमो बल ाघी यातु भरतषभः । या यां त दशं यातु सहदे वो महारथः ।। तीच नकुलो ग ता व णेना भपा लताम् । एषा मे नै क बु ः यतां भरतषभाः ।। अपने बल ारा सर से होड़ लेनेवाले भरतकुल-भूषण भीमसेन पूव दशाक या ा कर। महारथी सहदे व द ण दशाक ओर थान कर और नकुल व णपा लत प म दशापर आ मण कर। भरत े पा डवो! मेरी बु का ऐसा ही न य है। तुमलोग इसका पालन करो। वैश पायन उवाच ु वा ासवचो ा तमूचुः पा डु न दनाः । वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! ासजीक यह बात सुनकर पा डव ने बड़े हषके साथ कहा। पा डवा ऊचुः एवम तु मु न े यथाऽऽ ापय स भो ।) पा डव बोले—मु न े ! आप जैसी आ ा दे ते ह वैसा ही हो। ै

वैश पायन उवाच धनंजयवचः ु वा धमराजो यु ध रः । न धग भीरना द या तं गरा यभाषत ।। ५ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! अजुनक पूव बात सुनकर धमराज यु ध र नेहयु ग भीर वाणीम उनसे इस कार बोले— ।। ५ ।। व तवा याहतो व ान् या ह भरतषभ । दाम हषाय सु दां न दनाय च ।। ६ ।। ‘भरतकुलभूषण! पूजनीय ा ण से व तवाचन कराकर या ा करो। तु हारी यह या ा श ु का शोक और सु द का आन द बढ़ानेवाली हो ।। ६ ।। वजय ते ुवं पाथ यं काममवा य स । ‘पाथ! तु हारी वजय सु न त है, तुम अभी कामना को ा त करोगे’ ।। ६ ।। इ यु ः ययौ पाथः सै येन महताऽऽवृतः ।। ७ ।। अ नद ेन द ेन रथेना तकमणा । तथैव भीमसेनोऽ प यमौ च पु षषभौ ।। ८ ।। ससै याः ययुः सव धमराजेन पू जताः । उनके इस कार आदे श दे नेपर कु तीपु अजुन वशाल सेनाके साथ अ नके दये ए अ तकमा द रथ ारा वहाँसे थत ए। इसी कार भीमसेन तथा नर े नकुलसहदे व—इन सभी भाइय ने धमराजसे स मा नत हो सेना के साथ द वजयके लये थान कया ।। ७-८ ।। दशं धनपते र ामजयत् पाकशास नः ।। ९ ।। भीमसेन तथा ाच सहदे व तु द णाम् । तीच नकुलो राजन् दशं जयता वत् ।। १० ।। राजन्! इ कुमार अजुनने कुबेरक य उ र दशापर वजय पायी। भीमसेनने पूव दशा, सहदे वने द ण दशा तथा अ वे ा नकुलने प म दशाको जीता ।। ९-१० ।। खा डव थम य थो धमराजो यु ध रः । आसीत् परमया ल या सु द्गणवृतः भुः ।। ११ ।। केवल धमराज यु ध र सु द से घरे ए अपनी उ म राजल मीके साथ खा डव थम रह गये थे ।। ११ ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण द वजयपव ण द वजयसं ेपकथने प च वशोऽ यायः ।। २५ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत द वजयपवम द वजयका सं त वणन वषयक पचीसवाँ अ याय पूरा आ ।। २५ ।। (दा णा य अ धक पाठक े ९ ोक मलाकर कुल २० ोक ह)

षड् वशोऽ यायः अजुनके ारा अनेक दे श , राजा पराजय

तथा भगद क

जनमेजय उवाच दशाम भजयं न् व तरेणानुक तय । न ह तृ या म पूवषां शृ वान रतं महत् ।। १ ।। जनमेजय बोले— न्! द वजयका व तार-पूवक वणन क जये। अपने पूवज के इस महान् च र को सुनते-सुनते मेरी तृ त नह हो रही है ।। १ ।। वैश पायन उवाच धनंजय य व या म वजयं पूवमेव ते । यौगप ेन पाथ ह न जतेयं वसु धरा ।। २ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! य प कु तीके चार पु ने एक ही समय इन चार दशा क पृ वीपर वजय ा त क थी, तो भी पहले तु ह अजुनका द वजयवृ ा त सुनाऊँगा ।। २ ।। पूव कु ल द वषये वशे च े महीपतीन् । धनंजयो महाबा ना तती ेण कमणा ।। ३ ।। महाबा धनंजयने अ य त ःसह परा म कट कये बना ही पहले कु ल द दे शके भू मपाल को अपने वशम कया ।। ३ ।। आनतान् कालकूटां कु ल दां व ज य सः । सुम डलं च व जतं कृतवान् सहसै नकम् ।। ४ ।। कु ल द के साथ-साथ कालकूट और आनत दे शके राजा को जीतकर सेनास हत राजा सुम डलको भी जीत लया ।। ४ ।। स तेन स हतो राजन् स साची परंतपः । व ज ये शाकलं पं त व यं च पा थवम् ।। ५ ।। राजन्! तदन तर श ु को संताप दे नेवाले स साची अजुनने सुम डलको साथी बना लया और उनके साथ जाकर शाकल प तथा राजा त व य-पर वजय ा त क ।। ५ ।। शाकल पवासा स त पेषु ये नृपाः । अजुन य च सै यै तै व ह तुमुलोऽभवत् ।। ६ ।। शाकल प तथा अ य सात प म जो राजा रहते थे, उनके साथ अजुनके सै नक का घमासान यु आ ।। ६ ।। स तान प महे वासान् व ज ये भरतषभ । ै े



तैरेव स हतः सवः ा यो तषमुपा वत् ।। ७ ।। भरतकुलभूषण जनमेजय! अजुनने उन महान् धनुधर को भी जीत लया और उन सबको साथ लेकर ा यो तषपुरपर धावा कया ।। ७ ।। त राजा महानासीद् भगद ो वशा पते । तेनासीत् सुमहद् यु ं पा डव य महा मनः ।। ८ ।। महाराज! ा यो तषपुरके धान राजा भगद थे। उनके साथ महा मा अजुनका बड़ा भारी यु आ ।। ८ ।। स करातै चीनै वृतः ा यो तषोऽभवत् । अ यै ब भय धैः सागरानूपवा स भः ।। ९ ।। ा यो तषपुरके नरेश करात, चीन तथा समु के टापु म रहनेवाले अ य ब तेरे यो ा से घरे ए थे ।। ९ ।। ततः स दवसान ौ योध य वा धनंजयम् । हस वीद् राजा सं ाम वगत लमम् ।। १० ।। राजा भगद ने अजुनके साथ आठ दन तक यु कया, तो भी उ ह यु से थकते न दे ख वे हँसते ए बोले— ।। १० ।। उपप ं महाबाहो व य कौरवन दन । पाकशासनदायादे वीयमाहवशो भ न ।। ११ ।। ‘महाबा कौरवन दन! तुम इ के पु और सं ामम शोभा पानेवाले शूरवीर हो। तुमम ऐसा बल और परा म उ चत ही है ।। ११ ।। अहं सखा महे य श ादनवरो रणे । न श या म च ते तात थातुं मुखतो यु ध ।। १२ ।। ‘म दे वराज इ का म ँ और यु म उनसे त नक भी कम नह ँ, बेटा! तो भी म सं ामम तु हारे सामने खड़ा नह हो सकूँगा ।। १२ ।। वमी सतं पा डवेय ू ह क करवा ण ते । यद् व य स महाबाहो तत् क र या म पु क ।। १३ ।। ‘पा डु न दन! तु हारी इ छा या है, बताओ? म तु हारा कौन-सा य काय क ँ ? व स! महाबाहो! तुम जो कहोगे, वही क ँ गा’ ।। १३ ।। अजुन उवाच कु णामृषभो राजा धमपु ो यु ध रः । धम ः स यसंध य वा वपुलद णः ।। १४ ।। त य पा थवतामी से कर त मै द यताम् । भवान् पतृसखा चैव ीयमाणो मया प च । ततो ना ापया म वां ी तपूव द यताम् ।। १५ ।। अजुन बोले—महाराज! धम स य त कु -कुलर न धमपु राजा यु ध र ब त द णा दे कर राजसूयय करनेवाले ह। म चाहता ँ वे च वत साट ् ह । आप उ ह कर े

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द जये। आप मेरे पताके म ह और मुझसे भी ेम रखते ह; अतः म आपको आ ा नह दे सकता। आप ेमभावसे ही उ ह भट द जये ।। १४-१५ ।।

भगद उवाच कु तीमातयथा मे वं तथा राजा यु ध रः । सवमेतत् क र या म क चा यत् करवा ण ते ।। १६ ।। भगद ने कहा—कु तीकुमार! मेरे लये जैसे तुम हो वैसे राजा यु ध र ह, म यह सब कुछ क ँ गा। बोलो, तु हारे लये और या क ँ ? ।। १६ ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण द वजयपव ण अजुन द वजये भगद पराजये षड् वशोऽ यायः ।। २६ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत द वजयपवम अजुन द वजय संगम भगद पराजयस ब धी छ बीसवाँ अ याय पूरा आ ।। २६ ।।

स त वशोऽ यायः अजुनका अनेक पवतीय दे श पर वजय पाना वैश पायन उवाच एवमु ः युवाच भगद ं धनंजयः । अनेनैव कृतं सवमनुजानी ह या यहम् ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! उनके ऐसा कहनेपर धनंजयने भगद से कहा —‘राजन्! आपने जो कर दे ना वीकार कर लया, इतनेसे ही मेरा सब स कार हो जायगा, अब आ ा द जये, म जाता ँ’ ।। १ ।। तं व ज य महाबा ः कु तीपु ो धनंजयः । ययावु रां त माद् दशं धनदपा लताम् ।। २ ।। भगद को जीतकर महाबा कु तीपु अजुन वहाँसे कुबेर ारा सुर त उ र दशाम गये ।। २ ।। अ त गर च कौ तेय तथैव च ब ह ग रम् । तथैवोप गर चैव व ज ये पु षषभः ।। ३ ।। कु े धनंजयने मशः अ त ग र, ब ह ग र और उप ग र नामक दे श पर वजय ा त क ।। ३ ।। व ज य पवतान् सवान् ये च त नरा धपाः । तान् वशे थाप य वा स धना यादाय सवशः ।। ४ ।। फर सम त पवत और वहाँ नवास करनेवाले राजा को अपने अधीन करके उ ह ने सबसे धन वसूल कये ।। ४ ।। तैरेव स हतः सवरनुर य च तान् नृपान् । उलूकवा सनं राजन् बृह तमुपज मवान् ।। ५ ।। त प ात् उन नरेश को स करके उन सबके साथ उलूकवासी राजा बृह तपर आ मण कया ।। ५ ।। मृद वरनादे न रथने म वनेन च । ह तनां च ननादे न क पयन् वसुधा ममाम् ।। ६ ।। जुझाऊ बाजे, े मृदंग आ दक व न, रथके प हय क घघराहट और हा थय क गजनासे वे इस पृ वीको कँपाते ए आगे बढ़ रहे थे ।। ६ ।। ततो बृह त व रतो बलेन चतुर णा । न य नगरात् त माद् योधयामास फा गुनम् ।। ७ ।। तब राजा बृह त तुरंत ही चतुरं गणी सेनाके साथ नगरसे बाहर नकले और अजुनसे यु करने लगे ।। ७ ।। सुमहान् सं नपातोऽभूद ् धनंजयबृह तयोः । ो

न शशाक बृह त तु सोढुं पा डव व मम् ।। ८ ।। उस समय अजुन और बृह तम बड़े जोरक मार-काट शु ई, परंतु बृह त पा डु पु अजुनके परा मको न सह सके ।। ८ ।। सोऽ वष तमं म वा कौ तेयं पवते रः । उपावतत धष र ना यादाय सवशः ।। ९ ।। कु तीकुमारको अस मानकर धष वीर पवतराज बृह त यु से हट गये और सब कारके र न क भट लेकर उनक सेवाम उप थत ए ।। ९ ।। स त ा यमव था य उलूकस हतो ययौ । सेना ब मथो राजन् रा यादाशु समा पत् ।। १० ।। जनमेजय! अजुनने बृह तका रा य पुनः उ ह के हाथम स पकर उलूकराजके साथ सेना ब पर आ मण कया और उ ह शी ही रा य युत कर दया ।। १० ।। मोदापुरं वामदे वं सुदामानं सुसंकुलम् । उलूकानु रां ैव तां रा ः समानयत् ।। ११ ।। तदन तर मोदापुर, वामदे व, सुदामा, सुसंकुल तथा उ र उलूक दे श और वहाँके राजा को अपने अधीन कया ।। ११ ।। त थः पु षैरेव धमराज य शासनात् । करीट जतवान् राजन् दे शान् प चगणां ततः ।। १२ ।। राजन्! धमराजक आ ासे करीटधारी अजुनने वह रहकर अपने सेवक ारा पंचगण नामक दे श को जीत लया ।। १२ ।। स दे व थमासा सेना ब दोः पुरं त । बलेन चतुर े ण नवेशमकरोत् भुः ।। १३ ।। वहाँसे सेना ब क राजधानी दे व थम आकर चतुरं गणी सेनाके साथ श शाली अजुनने वह पड़ाव डाला ।। १३ ।। स तैः प रवृतः सव व वग ं नरा धपम् । अ यग छ महातेजाः पौरवं पु षषभ ।। १४ ।। नर े ! उन सभी परा जत राजा से घरे ए महातेज वी अजुनने पौरव राजा व वग पर आ मण कया ।। १४ ।। व ज य चाहवे शूरान् पवतीयान् महारथान् । जगाय सेनया राजन् पुरं पौरवर तम् ।। १५ ।। वहाँ सं ामम शूरवीर पवतीय महार थय को परा त करके पौरव ारा सुर त उनक राजधानीको भी सेना ारा जीत लया ।। १५ ।। पौरवं यु ध न ज य द यून् पवतवा सनः । गणानु सवसंकेतानजयत् स त पा डवः ।। १६ ।। पौरवको यु म जीतकर पवत नवासी लुटेर के सात दल पर, जो ‘उ सवसंकेत’ कहलाते थे, पा डु कुमार अजुनने वजय ा त क ।। १६ ।। ततः का मीरकान् वीरान् यान् यषभः । ो ै ै

जय लो हतं चैव म डलैदश भः सह ।। १७ ।। इसके बाद य शरोम ण धनंजयने का मीरके यवीर को तथा दस म डल के साथ राजा लो हतको भी जीत लया ।। १७ ।। तत गताः कौ तेयं दावाः कोकनदा तथा । या बहवो राज ुपावत त सवशः ।। १८ ।। तदन तर गत, दाव और कोकनद आ द ब त-से यनरेशगण सब ओरसे कु तीन दन अजुनक शरणम आये ।। १८ ।। अ भसार ततो र यां व ज ये कु न दनः । उरगावा सनं चैव रोचमानं रणेऽजयत् ।। १९ ।। इसके बाद कु न दन धनंजयने रमणीय अ भसारी नगरीपर वजय पायी और उरगावासी राजा रोचमानको भी यु म परा त कया ।। १९ ।। ततः सहपुरं र यं च ायुधसुर तम् । ाधमद् बलमा थाय पाकशास नराहवे ।। २० ।। तदन तर इ कुमार अजुनने राजा च ायुधके ारा सुर त सुर य नगर सहपुरपर सेना लेकर आ मण कया और उसे यु म जीत लया ।। २० ।। ततः सु ां चोलां करीट पा डवषभः । स हतः सवसै येन ामथत् कु न दनः ।। २१ ।। इसके बाद पा डव वर कु कुलन दन करीट ने अपनी सारी सेनाके साथ धावा करके सु तथा चोल-दे शक सेना को मथ डाला ।। २१ ।। ततः परम व ा तो बा कान् पाकशास नः । महता प रमदन वशे च े रासदान् ।। २२ ।। त प ात् परम परा मी इ कुमारने बड़ी भारी मार-काट मचाकर धष वीर बा क को वशम कया ।। २२ ।। गृही वा तु बलं सारं फा गुनः पा डु न दनः । दरदान् सह का बोजैरजयत् पाकशास नः ।। २३ ।। पा डु न दन अजुनने अपने साथ श शा लनी सेना लेकर का बोज के साथ दरद को भी जीत लया ।। २३ ।। ागु रां दशं ये च वस या य द यवः । नवस त वने ये च तान् सवानजयत् भुः ।। २४ ।। ईशान कोणका आ य ले जो लुटेरे या डाकू वनम नवास करते थे, उन सबको श शाली धनंजयने जीतकर वशम कर लया ।। २४ ।। लोहान् परमका बोजानृ षकानु रान प । स हतां तान् महाराज जयत् पाकशास नः ।। २५ ।। महाराज! लोह, परमका बोज, ऋ षक तथा उ र दे श को भी अजुनने एक साथ जीत लया ।। २५ ।। ऋ षके व प सं ामो बभूवा तभयंकरः । ो

तारकामयसंकाशः पर वृ षकपाथयोः ।। २६ ।। ऋ षकदे शम भी ऋ षकराज और अजुनम तारकामय सं ामके समान बड़ा भयंकर यु आ ।। २६ ।। स व ज य ततो राज ृ षकान् रणमूध न । शुकोदरसमां त हयान ौ समानयत् ।। २७ ।। राजन्! यु के मुहानेपर ऋ षक को हराकर अजुनने तोतेके उदरके समान हरे रंगवाले आठ घोड़े उनसे भट लये ।। २७ ।। मयूरस शान यानु रानपरान प । जवनानाशुगां ैव कराथ समुपानयत् ।। २८ ।। इनके सवा मोरके समान रंगवाले उ म, ग तशील और शी गामी सरे भी ब त-से घोड़े वे करके पम वसूल कर लाये ।। २८ ।। स व न ज य सं ामे हमव तं स न कुटम् । ेतपवतमासा य वशत् पु षषभः ।। २९ ।। इसके बाद पु षो म अजुन सं ामम हमवान् और न कुट दे शके अ धप तय को जीतकर धवल ग रपर आये और वह सेनाका पड़ाव डाला ।। २९ ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण द वजयपव ण फा गुन द वजये नानाद े शजये स त वशोऽ यायः ।। २७ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत द वजयपवम अजुन द वजयके संगम अनेक दे श पर वजयस ब धी स ाईसवाँ अ याय पूरा आ ।। २७ ।।

अ ा वशोऽ यायः क पु ष, हाटक तथा उ रकु पर वजय ा त करके अजुनका इ थ लौटना वैश पायन उवाच स ेतपवतं वीरः सम त य वीयवान् । दे शं क पु षावासं मपु ेण र तम् ।। १ ।। महता सं नपातेन या तकरेण ह । अजयत् पा डव े ः करे चैनं यवेशयत् ।। २ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर परा मी वीर पा डव े अजुन धवल ग रको लाँघकर मपु के ारा सुर त क पु षदे शम गये, जहाँ क र का नवास था। वहाँ य का वनाश करनेवाले भारी सं ामके ारा उ ह ने उस दे शको जीत लया और कर दे ते रहनेक शतपर उस राजाको पुनः उसी रा यपर त त कर दया ।। १-२ ।। तं ज वा हाटकं नाम दे शं गु कर तम् । पाकशास नर ः सहसै यः समासदत् ।। ३ ।। क रदे शको जीतकर शा त च इ कुमारने सेनाके साथ गु क ारा सुर त हाटकदे शपर हमला कया ।। ३ ।। तां तु सा वेन न ज य मानसं सर उ मम् । ऋ षकु या तथा सवा ददश कु न दनः ।। ४ ।। और उन गु क को सामनी तसे समझा-बुझाकर ही वशम कर लेनेके प ात् वे परम उ म मानसरोवरपर गये। वहाँ कु न दन अजुनने सम त ऋ ष-कु या (ऋ षय के नामसे स जल-ोत )-का दशन कया ।। ४ ।। सरो मानसमासा हाटकान भतः भुः । ग धवर तं दे शमजयत् पा डव ततः ।। ५ ।। मानसरोवरपर प ँचकर श शाली पा डु कुमारने हाटकदे शके नकटवत ग धव ारा सुर त दे शपर भी अ धकार ा त कर लया ।। ५ ।। त त रक माषान् म डू का यान् हयो मान् । लेभे स करम य तं ग धवनगरात् तदा ।। ६ ।। वहाँ ग धवनगरसे उ ह ने उस समय करके पम त र, क माष और म डू क नामवाले ब त-से उ म घोड़े ा त कये ।। ६ ।। (हेमक ू टमथासा य वशत् फा गुन तथा । तं हेमकूटं राजे सम त य पा डवः ।। ह रवष ववेशाथ सै येन महताऽऽवृतः । त पाथ ददशाथ ब नह मनोरमान् ।। ै



नगरां वनां ैव नद वमलोदकाः । त प ात् अजुनने हेमकूट पवतपर जाकर पड़ाव डाला। राजे ! फर हेमकूटको भी लाँघकर वे पा डु न दन पाथ अपनी वशाल सेनाके साथ ह रवषम जा प ँचे। वहाँ उ ह ने ब त-से मनोरम नगर, सु दर वन तथा नमल जलसे भरी ई न दयाँ दे ख । पु षान् दे वक पां नारी यदशनाः ।। तान् सवा त ् वाथ मुदा यु ो धनंजयः । वहाँके पु ष दे वता के समान तेज वी थे। याँ भी परम सु दरी थ । उन सबका अवलोकन करके अजुनको वहाँ बड़ी स ता ई। वशे च े ऽथ र ना न लेभे च सुब न च ।। ततो नषधमासा ग र थानजयत् भुः । अथ राज त य नषधं शैलमायतम् ।। ववेश म यमं वष पाथ द मलावृतम् । उ ह ने ह रवषको अपने अधीन कर लया और वहाँसे ब तेरे र न ा त कये। इसके बाद नषधपवतपर जाकर श शाली अजुनने वहाँके नवा सय को परा जत कया। तदन तर वशाल नषधपवतको लाँघकर वे द इलावृतवषम प ँचे, जो ज बू पका म यवत भूभाग है। त दे वोपमान् द ान् पु षान् दे वदशनान् ।। अ पूवान् सुभगान् स ददश धनंजयः । वहाँ अजुनने दे वता -जैसे दखायी दे नेवाले दे वोपम श शाली द पु ष दे खे। वे सब-के-सब अ य त सौभा यशाली और अ त थे। उससे पहले अजुनने कभी वैसे द पु ष नह दे खे थे। सदना न च शु ा ण नारी ा सरसं नभाः ।। ् वा तानजयद् र यान् स तै द शे तदा । वहाँके भवन अ य त उ वल और भ थे तथा ना रयाँ अ सरा के समान तीत होती थ । अजुनने वहाँके रमणीय ी-पु ष को दे खा। इनपर भी वहाँके लोग क पड़ी। ज वा च तान् महाभागान् करे च व नवे य सः ।। र ना यादाय द ा न भूषणैवसनैः सह । उद चीमथ राजे ययौ पाथ मुदा वतः ।। त प ात् उस दे शके नवा सय को अजुनने यु म जीत लया, जीतकर उनपर कर लगाया और फर उ ह बड़भा गय को वहाँके रा यपर त त कर दया। फर व और आभूषण के साथ द र न क भट लेकर अजुन बड़ी स ताके साथ वहाँसे उ र दशाक ओर बढ़ गये। स ददश महामे ं शखराणां भुं महत् । तं का चनमयं द ं चतुवण रासदम् ।। आयतं शतसाह ं योजनानां तु सु थतम् । े े ो

वल तमचलं मे ं तेजोरा शमनु मम् ।। आ प तं भां भानोः वशृ ै ः का नो वलैः । का चनाभरणं द ं दे वग धवसे वतम् ।। न यपु पफलोपेतं स चारणसे वतम् । अ मेयमनाधृ यमधमब लैजनैः ।। आगे जाकर उ ह पवत के वामी ग र वर महामे का दशन आ, जो द तथा सुवणमय है। उसम चार कारके रंग दखायी पड़ते ह। वहाँतक प ँचना कसीके लये भी अ य त क ठन है। उसक ल बाई एक लाख योजन है। वह परम उ म मे पवत महान् तेजके पुंज-सा जगमगाता रहता है और अपने सुवणमय का तमान् शखर ारा सूयक भाको तर कृत करता है। वह सुवणभू षत द पवत दे वता तथा ग धव से से वत है। स और चारण भी वहाँ न य नवास करते ह। उस पवतपर सदा फल और फूल क ब तायत रहती है। उसक ऊँचाईका कोई माप नह है। अधमपरायण मनु य उस पवतका पश नह कर सकते। ालैराच रतं घोरै द ौष ध वद पतम् । वगमावृ य त तमु ायेण महा ग रम् ।। अग यं मनसा य यैनद वृ सम वतम् । नाना वहगसङ् घै ना दतं सुमनोहरैः ।। तं ् वा फा गुनो मे ं ी तमानभवत् तदा । बड़े भयंकर सप वहाँ वचरण करते ह। द ओष धयाँ उस पवतको का शत करती रहती ह। महा ग र मे ऊँचाई ारा वगलोकको भी घेरकर खड़ा है। सरे मनु य मनसे भी वहाँ नह प ँच सकते। कतनी ही न दयाँ और वृ उस शैल- शखरक शोभा बढ़ाते ह। भाँ त-भाँ तके मनोहर प ी वहाँ कलरव करते रहते ह। ऐसे मनोहर मे ग रको दे खकर उस समय अजुनको बड़ी स ता ई। मेरो रलावृतं वष सवतः प रम डलम् ।। मेरो तु द णे पा ज बूनाम वन प तः । न यपु पफलोपेतः स चारणसे वतः ।। मे के चार ओर म डलाकार इलावृतवष बसा आ है। मे के द ण पा म ज बू नामका एक वृ है, जो सदा फल और फूल से भरा रहता है। स और चारण उस वृ का सेवन करते ह। आ वगमु ता राजन् त य शाखा वन पतेः । य य ना ना वदं पं ज बू प म त ुतम् ।। राजन्! उ ज बूवृ क शाखा ऊँचाईम वग-लोकतक फैली ई है। उसीके नामपर इस पको ज बू प कहते ह। तां च ज बूं ददशाथ स साची परंतपः । तौ ् वा तमौ लोके ज बूं मे ं च सं थतौ ।। ी तमानभवद् राजन् सवतः स वलोकयन् । े े ो ै ै ै

त लेभे ततो ज णुः स ै द ै चारणैः ।। र ना न ब साह ं व ा याभरणा न च । अ या न च महाहा ण त ल वाजुन तदा ।। आम य वा तान् सवान् य मु य वै गुरोः । अथादाय बन् र नान् गमनायोपच मे ।। श ु को संताप दे नेवाले स साची अजुनने उस ज बूवृ को दे खा। ज बू और मे ग र दोन ही इस जगत्म अनुपम ह। उ ह दे खकर अजुनको बड़ी स ता ई। राजन्! वहाँ सब ओर पात करते ए अजुनने स और द चारण से कई सह र न, व , आभूषण तथा अ य ब त-सी ब मू य व तुएँ ा त क। तदन तर उन सबसे वदा ले बड़े भाईके य के उ े यसे ब त-से र न का सं ह करके वे वहाँसे जानेको उ त ए। मे ं द णं कृ वा पवत वरं भुः । ययौ ज बूनद तीरे नद े ां वलोकयन् ।। स तां मनोरमां द ां ज बू वा रसावहाम् । पवत े मे को अपने दा हने करके अजुन ज बूनद के तटपर गये। वे उस े स रताक शोभा दे खना चाहते थे। वह मनोरम द नद जलके पम ज बूवृ के फल का वा द रस बहाती थी ।। हैमप गणैजु ां सौवणजलजाकुलाम् ।। हैमपङ् कां हैमजलां शुभां सौवणवालुकाम् । सुनहरे पंख वाले प ी उसका सेवन करते थे। वह नद सुवणमय कमल से भरी ई थी। उसक क चड़ भी वणमय थी। उसके जलसे भी सुवणमयी आभा छटक रही थी। उस मंगलमयी नद क बालुका भी सुवणके चूण-सी शोभा पाती थी। व चत् सौवणपै संक ु लां हेमपु पकैः ।। व चत् सुपु पतैः क णा सुवणकुमुदो पलैः । व चत् तीर हैः क णा हैमवृ ैः सुपु पतैः ।। कह -कह सुवणमय कमल तथा वणमय पु प से वह ा त थी। कह सु दर खले ए सुवणमय कुमुद और उ पल छाये ए थे। कह उस नद के तटपर सु दर फूल से भरे ए वणमय वृ सब ओर फैले ए थे। तीथ मसोपानैः सवतः संकुलां शुभाम् । वमलैम णजालै नृ यगीतरवैयुताम् ।। उस सु दर स रताके घाट पर सब ओर सोनेक सी ढ़याँ बनी ई थ । नमल म णय के समूह उसक शोभा बढ़ाते थे। नृ य और गीतके मधुर श द उस दे शको मुख रत कर रहे थे। द तैहम वतानै सम ता छो भतां शुभाम् । तथा वधां नद ् वा पाथ तां शशंस ह ।। अ पूवा राजे ् वा हषमवाप च । े



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उसके दोन तट पर सुनहरे और चमक ले चँदोवे तने थे, जनके कारण ज बूनद क बड़ी शोभा हो रही थी। राजे ! ऐसी अ पूव नद का दशन करके अजुनने उसक भू रभू र शंसा क और वे मन-ही-मन बड़े स ए। दशनीयान् नद तीरे पु षान् सुमनोहरान् ।। तान् नद स ललाहारान् सदारानमरोपमान् । न यं सुखमुदा यु ान् सवालंकारशो भतान् ।। उस नद के तटपर ब त-से दे वोपम पु ष अपनी य के साथ वचर रहे थे। उनका सौ दय दे खने ही यो य था। वे सबके मनको मोह लेते थे। ज बूनद का जल ही उनका आहार था। वे सदा सुख और आन दम नम न रहनेवाले तथा सब कारके आभूषण से वभू षत थे। ते यो ब न र ना न तदा लेभे धनंजयः । द जा बूनदं हेमभूषणा न च पेशलम् ।। ल वा तान् लभान् पाथः तीच ययौ दशम् । उस समय अजुनने उनसे भी नाना कारके र न ा त कये। द जा बूनद नामक सुवण और भाँ त-भाँ तके आभूषण आ द लभ व तुएँ पाकर अजुन वहाँसे प म दशाक ओर चल दये। नागानां र तं दे शमजय चाजुन ततः ।। ततो ग वा महाराज वा ण पाकशास नः । ग धमादनमासा त थानजयत् भुः ।। तं ग धमादनं राज त य ततोऽजुनः । केतुमालं ववेशाथ वष र नसम वतम् । से वतं दे वक पै नारी भः यदशनैः ।। उधर जाकर अजुनने नाग ारा सुर त दे शपर वजय पायी। महाराज! वहाँसे और प म जाकर श शाली अजुन ग धमादन पवतपर प ँच गये और वहाँके रहनेवाल को जीतकर अपने अधीन बना लया। राजन्! इस कार ग धमादन पवतको लाँघकर अजुन र न से स प केतुमालवषम गये, जो दे वोपम पु ष और सु दरी य क नवासभू म है। तं ज वा चाजुनो राजन् करे च व नवे य च । आ य त र ना न लभा न तथाजुनः ।। पुन प रवृ याथ म यं दे श मलावृतम् । राजन्! उस वषको जीतकर अजुनने उसे कर दे नेवाला बना दया और वहाँसे लभ र न लेकर वे पुनः म यवत इलावृतवषम लौट आये। ग वा ाच दशं राजन् स साची परंतपः ।। मे म दरयोम ये शैलोदाम भतो नद म् । ये ते क चकवेणूनां छायां र यामुपासते ।। खशा झषां न ोतान् घसान् द घवे णकान् । पशुपां कु ल दां त णान् परत णान् ।। ो ो ौ

र ना यादाय सव यो मा यव तं ततो ययौ । तं मा यव तं शैले ं सम त य पा डवः ।। भ ा ं ववेशाथ वष वग पमं शुभम् । तदन तर श ुदमन स साची अजुनने पूव दशाम थान कया। मे और म दराचलके बीच शैलोदा नद के दोन तट पर जो लोग क चक और वेणु नामक बाँस क रमणीय छायाका आ य लेकर रहते ह, उन खश, झष, न ोत, घस, द घवे णक, पशुप, कु ल द, तंगण तथा परतंगण आ द जा तय को हराकर उन सबसे र न क भट ले अजुन मा यवान् पवतपर गये। त प ात् ग रराज मा यवान्को भी लाँघकर उन पा डु कुमारने भ ा वषम वेश कया, जो वगके समान सु दर है। त ामरोपमान् र यान् पु षान् सुखसंयुतान् ।। ज वा तान् ववशे कृ वा करे च व नवे य च । आ य सवर ना न असं या न तत ततः ।। नीलं नाम गर ग वा त थानजयत् भुः । उस दे शम दे वता के समान सु दर और सुखी पु ष नवास करते थे। अजुनने उन सबको जीतकर अपने अधीन कर लया और उनपर कर लगा दया। इस कार इधरउधरसे असं य र न का सं ह करके श शाली अजुनने नील ग रक या ा क और वहाँके नवा सय को परा जत कया। ततो ज णुर त य पवतं नीलमायतम् ।। ववेश र यकं वष संक ण मथुनैः शुभैः । तं दे शमथ ज वा च करे च व नवे य च ।। अजय चा प बीभ सुदशं गु कर तम् । त लेभे च राजे सौवणान् मृगप णः ।। अगृ ाद् य भू यथ रमणीयान् मनोरमान् । तदन तर वशाल नील ग रको भी लाँघकर सु दर नर-ना रय से भरे ए र यकवषम उ ह ने वेश कया। उस दे शको भी जीतकर अजुनने वहाँके नवा सय पर कर लगा दया। त प ात् गु क ारा सुर त दे शको जीतकर अपने अ धकारम कर लया। राजे ! वहाँ उ ह सोनेके मृग और प ी उपल ध ए, जो दे खनेम बड़े ही रमणीय और मनोरम थे। उ ह ने य -वैभवक समृ के लये उन मृग और प य को हण कर लया। अ या न ल वा र ना न पा डवोऽथ महाबलः ।। ग धवर तं दे शमजयत् सगणं तदा । त र ना न द ा न ल वा राज थाजुनः ।। ेतपवतमासा ज वा पवतवा सनः । स ेतं पवतं राजन् सम त य पा डवः ।। वष हर यकं नाम ववेशाथ महीपते । तदन तर महाबली पा डु न दन अ य ब त-से र न लेकर ग धव ारा सुर त दे शम गये और ग धवगण स हत उस दे शपर अ धकार जमा लया। राजन्! वहाँ भी अजुनको े े े ँ े ो

ब त-से द र न ा त ए। तदन तर उ ह ने ेत पवतपर जाकर वहाँके नवा सय को जीता। फर उस पवतको लाँघकर पा डु कुमार अजुनने हर यकवषम वेश कया। स तु दे शेषु र येषु ग तुं त ोपच मे ।। म ये ासादवृ दे षु न ाणां शशी यथा । महाराज! वहाँ प ँचकर वे उस दे शके रमणीय दे श म वचरने लगे। बड़े-बड़े महल क पं य म मण करते ए ेता अजुन न के बीच च माके समान सुशो भत होते थे। महापथेषु राजे सवतो या तमजुनम् ।। ासादवरशृ थाः परया वीयशोभया । द शु ताः यः सवाः पाथमा मयश करम् ।। तं कलापधरं शूरं सरथं सानुगं भुम् । सवमसु करीटं वै संन ं सप र छदम् ।। सुकुमारं महास वं तेजोरा शमनु मम् । श ोपमम म नं परवारणवारणम् ।। प य तः ीगणा त श पा ण म मे नरे । राजे ! जब अजुन उ म बल और शोभासे स प हो हर यकवषक वशाल सड़क पर चलते थे, उस समय ासाद शखर पर खड़ी ई वहाँक सु दरी याँ उनका दशन करती थ । कु तीन दन अजुन अपने यशको बढ़ानेवाले थे। उ ह ने आभूषण धारण कर रखा था। वे शूरवीर, रथयु , सेवक से स प और श शाली थे। उनके अंग म कवच और म तकपर सु दर करीट शोभा दे रहा था। वे कमर कसकर यु के लये तैयार थे और सब कारक आव यक साम ी उनके साथ थी। वे सुकुमार, अ य त धैयवान्, तेजके पुंज, परम उ म, इ -तु य परा मी, श ुह ता तथा श ु के गजराज क ग तको रोक दे नेवाले थे। उ ह दे खकर वहाँक य ने यही अनुमान लगाया क इस वीर पु षके पम सा ात् श धारी का तकेय पधारे ह। अयं स पु ष ा ो रणेऽ तपरा मः ।। अ य बा बलं ा य न भव यसु द्गणाः । वे आपसम इस कार बात करने लग —‘सखयो! ये जो पु ष सह दखायी दे रहे ह, सं ामम इनका परा म अ त है। इनके बा बलका आ मण होनेपर श ु के समुदाय अपना अ त व खो बैठते ह।’ इ त वाचो ुव य ताः यः े णा धनंजयम् ।। तु ु वुः पु पवृ च ससृजु त य मूध न । इस कारक बात करती ई याँ बड़े ेमसे अजुनक ओर दे खकर उनके गुण गात और उनके म तकपर फूल क वषा करती थ । ् वा ते तु मुदा यु ाः कौतूहलसम वताः ।। र नै वभूषणै ैव अ यवष त पा डवम् । ँ े













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वहाँके सभी नवासी बड़ी स ताके साथ कौतूहलवश उ ह दे खते और उनके नकट र न तथा आभूषण क वषा करते थे। अथ ज वा सम तां तान् करे च व नवे य च ।। म णहेम वाला न र ना याभरणा न च । एता न ल वा पाथ ऽ प शृ व तं गर ययौ ।। शृ व तं च कौ तेयः सम त य फा गुनः ।।) उ रं कु वष तु स समासा पा डवः । इयेष जेतुं तं दे शं पाकशासनन दनः ।। ७ ।। उन सबको जीतकर तथा उनके ऊपर कर लगाकर वहाँसे म ण, सुवण, मूँगे, र न तथा आभूषण ले अजुन शृंगवान् पवतपर चले गये। वहाँसे आगे बढ़कर पाकशासनपु पा डव अजुनने उ र कु वषम प ँचकर उस दे शको जीतनेका वचार कया ।। ७ ।। तत एनं महावीय महाकाया महाबलाः । ारपालाः समासा ा वचनम ुवन् ।। ८ ।। इतनेहीम महापरा मी अजुनके पास ब त-से वशालकाय महाबली ारपाल आ प ँचे और स तापूवक बोले— ।। ८ ।। पाथ नेदं वया श यं पुरं जेतुं कथंचन । उपावत व क याण पया त मदम युत ।। ९ ।। इदं पुरं यः वशेद ् ुवं न स भवे रः । ीयामहे वया वीर पया तो वजय तव ।। १० ।। ‘पाथ! इस नगरको तुम कसी तरह जीत नह सकते। क याण व प अजुन! यहाँसे लौट जाओ। अ युत! तुम यहाँतक आ गये, यही ब त आ। जो मनु य इस नगरम वेश करता है, न य ही उसक मृ यु हो जाती है। वीर! हम तुमसे ब त स ह। यहाँतक आ प ँचना ही तु हारी ब त बड़ी वजय है ।। ९-१० ।। न चा क च जेत मजुना यते । उ राः कुरवो ेते ना यु ं वतते ।। ११ ।। व ोऽ प ह कौ तेय नेह य स कचन । न ह मानुषदे हेन श यम ा भवी तुम् ।। १२ ।। ‘अजुन! यहाँ कोई जीतनेयो य व तु नह दखायी दे ती। यह उ र कु दे श है। यहाँ यु नह होता है। कु तीकुमार! इसके भीतर वेश करके भी तुम यहाँ कुछ दे ख नह सकोगे, य क मानव-शरीरसे यहाँक कोई व तु दे खी नह जा सकती ।। ११-१२ ।। अथेह पु ष ा क चद य चक ष स । तत् ू ह क र यामो वचनात् तव भारत ।। १३ ।। ‘भरतकुलभूषण पु ष सह! य द यहाँ तुम यु के सवा और कोई काम करना चाहते हो तो बताओ, तु हारे कहनेसे हम वयं ही उस कायको पूण कर दगे’ ।। १३ ।। तत तान वीद् राज जुनः हस व । पा थव वं चक षा म धमराज य धीमतः ।। १४ ।। े े ँ े ‘ े ई

राजन्! तब अजुनने उनसे हँसते ए कहा—‘म अपने भाई बु मान् धमराज यु ध रको सम त भूम डलका एकमा च वत साट ् बनाना चाहता ँ ।। १४ ।। न वे या म वो दे शं व ं य द मानुषैः । यु ध राय यत् क चत् करप यं द यताम् ।। १५ ।। ‘आपलोग का दे श य द मनु य के वपरीत पड़ता है तो म इसम वेश नह क ँ गा। महाराज यु ध रके लये करके पम कुछ धन द जये’ ।। १५ ।। ततो द ा न व ा ण द ा याभरणा न च । ौमा जना न द ा न त य ते द ः करम् ।। १६ ।। तब उन ारपाल ने अजुनको करके पम ब त-से द व , द आभूषण तथा द रेशमी व एवं मृगचम दये ।। १६ ।। एवं स पु ष ा ो व ज य दशमु राम् । सं ामान् सुबन् क ृ वा यैद यु भ तथा ।। १७ ।। स व न ज य रा तान् करे च व नवे य तु । धना यादाय सव यो र ना न व वधा न च ।। १८ ।। हयां त रक माषा छु कप नभान प । मयूरस शान यान् सवान नलरंहसः ।। १९ ।। वृतः सुमहता राजन् बलेन चतुर णाः । आजगाम पुनव रः श थं पुरो मम् ।। २० ।। इस कार पु ष सह अजुनने य राजा तथा लुटेर के साथ ब त-सी लड़ाइयाँ लड़ी और उ र दशापर वजय ा त क । राजा को जीतकर उनसे कर लेते और उ ह फर अपने रा यपर ही था पत कर दे ते थे। राजन्! वे वीर अजुन सबसे धन और भाँ तभाँ तके र न लेकर तथा भटम मले ए वायुके समान वेगवाले त र,* क माष, सु गापंखी एवं मोर-स श सभी घोड़ को साथ लये और वशाल चतुरं गणी सेनासे घरे ए फर अपने उ म नगर इ थम लौट आये ।। १७—२० ।।

धमराजाय तत् पाथ धनं सव सवाहनम् । यवेदयदनु ात तेन रा ा गृहान् ययौ ।। २१ ।। पाथने घोड़ स हत वह सारा धन धमराजको स प दया और उनक आ ा लेकर वे महलम चले गये ।। २१ ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण द वजयपव ण अजुनो र द वजये अ ा वशोऽ यायः ।। २८ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत द वजयपवम अजुनक उ र दशापर वजय वषयक अाईसवाँ अ याय पूरा आ ।। २८ ।। (दा णा य अ धक पाठक े ५८ ोक मलाकर कुल ७९ ोक ह)

* तीतरके समान चतकबरे रंगवाले।

एकोन शोऽ यायः भीमसेनका पूव दशाको जीतनेके लये थान और व भ दे श पर वजय पाना वैश पायन उवाच एत म ेव काले तु भीमसेनोऽ प वीयवान् । धमराजमनु ा य ययौ ाच दशं त ।। १ ।। महता बलच े ण पररा ावम दना । ह य रथपूणन दं शतेन तापवान् ।। २ ।। वृतो भरतशा लो ष छोक वव नः । वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! इसी समय श ु का शोक बढ़ानेवाले भरतवंश शरोम ण महा तापी एवं परा मी भीमसेन भी धमराजक आ ा ले, श ुके रा यको कुचल दे नेवाली और हाथी, घोड़े एवं रथसे भरी ई, कवच आ दसे सुस जत वशाल सेनाके साथ पूव दशाको जीतनेके लये चले ।। १-२ ।। स ग वा नरशा लः प चालानां पुरं महत् ।। ३ ।। प चालान् व वधोपायैः सा वयामास पा डवः । नर े भीमसेनने पहले पांचाल क महानगरी अ ह छ ाम जाकर भाँ त-भाँ तके उपाय से पांचाल वीर को समझा-बुझाकर वशम कया ।। ३ ।। ततः स ग डका छू रो वदे हान् भरतषभः ।। ४ ।। व ज या पेन कालेन दशाणानजयत् भुः । त दाशाणको राजा सुधमा लोमहषणम् । कृतवान् भीमसेनेन महद् यु ं नरायुधम् ।। ५ ।। वहाँसे आगे जाकर उन भरतवंश शरोम ण शूर-वीर भीमने ग डक (ग डक नद के तटवत ) और वदे ह ( म थला) दे श को थोड़े ही समयम जीतकर दशाण दे शको भी अपने अ धकारम कर लया। वहाँ दशाणनरेश सुधमाने भीमसेनके साथ बना अ -श के ही महान् यु कया। उन दोन का वह म लयु र गटे खड़े कर दे नेवाला था ।। ४-५ ।। भीमसेन तु तद् ् वा त य कम महा मनः । अ धसेनाप त च े सुधमाणं महाबलम् ।। ६ ।। भीमसेनने उस महामना राजाका यह अ त परा म दे खकर महाबली सुधमाको अपना धान सेनाप त बना दया ।। ६ ।। ततः ाच दशं भीमो ययौ भीमपरा मः । सै येन महता राजन् क पय व मे दनीम् ।। ७ ।। राजन्! इसके बाद भयानक परा मी भीमसेन पुनः वशाल सेनाके साथ पृ वीको कँपाते ए पूव दशाक ओर बढ़े ।। ७ ।। ो े े ो

सोऽ मेधे रं राजन् रोचमानं सहानुगम् । जगाय समरे वीरो बलेन ब लनां वरः ।। ८ ।। जनमेजय! बलवान म े वीरवर भीमने अ मेध-दे शके राजा रोचमानको उनके सेवक स हत बलपूवक जीत लया ।। ८ ।। स तं न ज य कौ तेयो ना तती ेण कमणा । पूवदे शं महावीय व ज ये कु न दनः ।। ९ ।। उ ह हराकर महापरा मी कु न दन कु तीकुमार भीमने कोमल बतावके ारा ही पूवदे शपर वजय ा त कर ली ।। ९ ।। ततो द णमाग य पु ल दनगरं महत् । सुकुमारं वशे च े सु म ं च नरा धपम् ।। १० ।। तदन तर द ण आकर पु ल द के महान् नगर सुकुमार और वहाँके राजा सु म को अपने अधीन कर लया ।। १० ।। तत तु धमराज य शासनाद् भरतषभः । शशुपालं महावीयम यगा जनमेजय ।। ११ ।। जनमेजय! त प ात् भरत े भीम धमराजक आ ासे महापरा मी शशुपालके यहाँ गये ।। ११ ।। चे दराजोऽ प त छ वा पा डव य चक षतम् । उप न य नगरात् यगृ ात् परंतप ।। १२ ।। परंतप! चे दराज शशुपालने भी पा डु कुमार भीमका अ भ ाय जानकर नगरसे बाहर आ वागत-स कारके साथ उ ह अपनाया ।। १२ ।। तौ समे य महाराज कु चे दवृषौ तदा । उभयोरा मकुलयोः कौश यं पयपृ छताम् ।। १३ ।। महाराज! कु कुल और चे दकुलके वे े पु ष पर पर मलकर दोन ने दोन कुल के कुशलपूछे ।। १३ ।। ततो नवे तद् रा ं चे दराजो वशा पते । उवाच भीमं हसन् क मदं कु षेऽनघ ।। १४ ।। राजन्! तदन तर चे दराजने अपना रा भीमसेनको स पकर हँसते ए पूछा—‘अनघ! यह या करते हो?’ ।। १४ ।। त य भीम तदाऽऽच यौ धमराज चक षतम् । स च तं तगृ ैव तथा च े नरा धपः ।। १५ ।। तब भीमने उससे धमराज जो कुछ करना चाहते थे, वह सब कह सुनाया। तदन तर राजा शशुपालने उनक बात मानकर कर दे ना वीकार कर लया ।। १५ ।। ततो भीम त राज ु ष वा दश पाः । स कृतः शशुपालेन ययौ सबलवाहनः ।। १६ ।। राजन्! उसके बाद शशुपालसे स मा नत हो भीमसेन अपनी सेना और सवा रय के साथ तेरह दन वहाँ रह गये। त प ात् वहाँसे वदा ए ।। १६ ।। ी े ी े ो ो

इत

ीमहाभारते सभापव ण द वजयपव ण भीम द वजये एकोन शोऽ यायः ।। २९ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत द वजयपवम भीम द वजय वषयक उ तीसवाँ अ याय पूरा आ ।। २९ ।।

शोऽ यायः भीमका पूव दशाके अनेक दे श तथा राजा को जीतकर भारी धन-स प के साथ इ थम लौटना वैश पायन उवाच ततः कुमार वषये े णम तमथाजयत् । कोसला धप त चैव बृहलमरदमः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर श ु का दमन करनेवाले भीमसेनने कुमारदे शके राजा े णमान् तथा कोसलराज बृहलको परा त कया ।। १ ।। अयो यायां तु धम ं द घय ं महाबलम् । अजयत् पा डव े ो ना तती ेण कमणा ।। २ ।। इसके बाद अयो याके धम नरेश महाबली द घय को पा डव े भीमने कोमलतापूण बतावसे वशम कर लया ।। २ ।। ततो गोपालक ं च सो रान प कोसलान् । म लानाम धपं चैव पा थवं चाजयत् भुः ।। ३ ।। त प ात् श शाली पा डु कुमारने गोपालक और उ र कोसल दे शको जीतकर म लराक े अ धप त पा थवको अपने अधीन कर लया ।। ३ ।। ततो हमवतः पा सम ये य जलो वम् । सवम पेन कालेन दे शं च े वशं बली ।। ४ ।। इसके बाद हमालयके पास जाकर बलवान् भीमने सारे जलो व दे शपर थोड़े ही समयम अ धकार ा त कर लया ।। ४ ।। एवं ब वधान् दे शान् व ज ये भरतषभः । भ लाटम भतो ज ये शु म तं च पवतम् ।। ५ ।। इस कार भरतवंशभूषण भीमसेनने अनेक दे श जीते और भ लाटके समीपवत दे श तथा शु मान् पवतपर भी वजय ा त क ।। ५ ।। पा डवः सुमहावीय बलेन ब लनां वरः । स का शराजं समरे सुबा म नव तनम् ।। ६ ।। वशे च े महाबा भ मो भीमपरा मः । बलवान म े महापरा मी तथा भयंकर पु षाथ कट करनेवाले पा डु कुमार महाबा भीमसेनने समरम पीठ न दखानेवाले का शराज सुबा को बलपूवक हराया ।। ६ ।। ततः सुपा म भत तथा राजप त थम् ।। ७ ।। यु यमानं बलात् सं ये व ज ये पा डवषभः । े













इसके बाद पा डु पु भीमने सुपा के नकट राजराजे र थको, जो यु म बलपूवक उनका सामना कर रहे थे, हरा दया ।। ७ ।। ततो म यान् महातेजा मलदां महाबलान् ।। ८ ।। अनघानभयां ैव पशुभूम च सवशः । नवृ य च महाबा मदधारं महीधरम् ।। ९ ।। सोमधेयां न ज य ययावु रामुखः । व सभूम च कौ तेयो व ज ये बलवान् बलात् ।। १० ।। त प ात् महातेज वी कु तीकुमारने म य, महाबली मलद, अनघ और अभय नामक दे श को जीतकर पशुभू म (पशुप तनाथके नकटवत थान—नेपाल)-को भी सब ओरसे जीत लया। वहाँसे लौटकर महाबा भीमने मदधार पवत और सोमधेय नवा सय -को परा त कया। इसके बाद बलवान् भीमने उ रा भमुख या ा क और व सभू मपर बलपूवक अ धकार जमा लया ।। ८—१० ।। भगाणाम धपं चैव नषादा धप त तथा । व ज ये भू मपालां म णम मुखान् बन् ।। ११ ।। ततो द णम लां भोगव तं च पवतम् । तरसैवाजयद् भीमो ना तती ेण कमणा ।। १२ ।। फर मशः भग के वामी, नषाद के अ धप त तथा म णमान् आ द ब त-से भूपाल को अपने अ धकारम कर लया। तदन तर द ण म लदे श तथा भोगवान् पवतको भीमसेनने अ धक यास कये बना ही वेगपूवक जीत लया ।। ११-१२ ।। शमकान् वमकां ैव जयत् सा वपूवकम् । वैदेहकं च राजानं जनकं जगतीप तम् ।। १३ ।। व ज ये पु ष ा ो ना तती ेण कमणा । शकां बबरां ैव अजय छपूवकम् ।। १४ ।। शमक और वमक को उ ह ने समझा-बुझाकर ही जीत लया। वदे ह दे शके राजा जनकको भी पु ष सह भीमने अ धक उ यास कये बना ही परा त कया। फर शक और बबर पर छलसे वजय ा त कर ली ।। १३-१४ ।। वैदेह थ तु कौ तेय इ पवतम तकात् । करातानाम धपतीनजयत् स त पा डवः ।। १५ ।। ततः सु ान् सु ां सप ान तवीयवान् । व ज य यु ध कौ तेयो मागधान यधाद् बली ।। १६ ।। वदे ह दे शम ही ठहरकर कु तीकुमार भीमने इ पवतके नकटवत सात करातराज को जीत लया। इसके बाद सु और सु दे शके राजा को, जनके प म ब त लोग थे, अ य त परा मी और बलवान् कु तीकुमार भीम यु म परा त करके मगधदे शको चल दये ।। १५-१६ ।। द डं च द डधारं च व ज य पृ थवीपतीन् । ै े



तैरेव स हतैः सव ग र जमुपा वत् ।। १७ ।। मागम द ड-द डधार तथा अ य राजा को जीतकर उन सबके साथ वे ग र ज नगरम आये ।। १७ ।। जारासंध सा व य वा करे च व नवे य ह । तैरेव स हतैः सवः कणम य वद् बली ।। १८ ।। स क पय व मह बलेन चतुर णा । युयुधे पा डव े ः कणना म घा तना ।। १९ ।। स कण यु ध न ज य वशे कृ वा च भारत । ततो व ज ये बलवान् रा ः पवतवा सनः ।। २० ।। अथ मोदा गरौ चैव राजानं बलव रम् । पा डवो बा वीयण नजघान महामृधे ।। २१ ।। वहाँ जरासंधकुमार सहदे वको सा वना दे कर उसे कर दे नेक शतपर उसी रा यपर त त कर दया और उन सबके साथ बलवान् भीमने कणपर चढ़ाई क । पा डव े भीमने पृ वीको क पत-सी करते ए चतुरं गणी सेना साथ ले श ुघाती कणके साथ यु छे ड़ दया। भारत! उस यु म कणको परा त करके अपने वशम कर लेनेके प ात् बलवान् भीमने पवतीय राजा पर वजय ा त क । तदन तर पा डु न दन भीमसेनने मोदा ग रके अ य त ब ल राजाको अपनी भुजा के बलसे महासमरम मार गराया ।। १८—२१ ।। ततः पु ा धपं वीरं वासुद े वं महाबलम् । कौ शक क छ नलयं राजानं च महौजसम् ।। २२ ।। उभौ बलभृतौ वीरावुभौ ती परा मौ । न ज याजौ महाराज व राजमुपा वत् ।। २३ ।। महाराज! त प ात् भीमसेन पु कद े शके अ धप त महाबली वीर राजा वासुदेवके साथ, जो कोसी नद के कछारम रहनेवाले तथा महान् तेज वी थे, जा भड़े। वे दोन ही बलवान् एवं ःसह परा मवाले वीर थे। भीमने वप ी वासुदेव (पौ क)-को यु म हराकर वंगदे शके राजापर आ मण कया ।। २२-२३ ।। समु सेनं न ज य च सेनं च पा थवम् । ता ल तं च राजानं कवटा धप त तथा ।। २४ ।। सु ानाम धपं चैव ये च सागरवा सनः । सवान् ले छगणां ैव व ज ये भरतषभः ।। २५ ।। तदन तर भरत े भीमसेनने समु सेन, भूपाल च सेन, राजा ता ल त, कवटा धप त तथा सु नरेशको जीतकर समु के तटपर नवास करनेवाले सम त ले छ को भी अपने अधीन कर लया ।। २४-२५ ।। एवं ब वधान् दे शान् व ज य पवना मजः । वसु ते य उपादाय लौ ह यमगमद् बली ।। २६ ।। इस कार पवनपु बलवान् भीमने ब त-से दे श पर अ धकार ा त करके उन सबसे धन लेकर लौ ह य दे शक या ा क ।। २६ ।। े ी

स सवान् ले छनृपतीन् सागरानूपवा सनः । करमाहारयामास र ना न व वधा न च ।। २७ ।। वहाँ उ ह ने समु के टापु म रहनेवाले ब त-से ले छ राजा को जीतकर उनसे करके पम भाँ त-भाँ तके र न वसूल कये ।। २७ ।। च दनागु व ा ण म णमौ कक बलम् । का चनं रजतं चैव व मं च महाधनम् ।। २८ ।। ते को टशतसं येन कौ तेयं महता तदा । अ यवषन् महा मानं धनवषण पा डवम् ।। २९ ।। इतना ही नह , उन राजा ने भीमसेनको च दन, अगु , व , म ण, मोती, क बल, सोना, चाँद और ब मू य मूँगे भट कये। कु ती और पा डु के पु महा मा भीमसेनके पास उ ह ने करोड़क सं याम धन-र न क वषा क (करके पम धन-र न दान कये) ।। २८-२९ ।।

इ थमुपाग य भीमो भीमपरा मः । नवेदयामास तदा धमराजाय तद् धनम् ।। ३० ।। तदन तर भयानक परा मी भीमने इ थम आकर वह सारा धन धमराजको स प दया ।। ३० ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण द वजयपव ण भीम ाची द वजये ३० ।।









शोऽ यायः ।।

इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत द वजयपवम भीमके ारा पूव दशाक वजयसे स ब ध रखनेवाला तीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ३० ।।

एक शोऽ यायः सहदे वके ारा द

ण दशाक वजय

वैश पायन उवाच तथैव सहदे वोऽ प धमराजेन पू जतः । मह या सेनया राजन् ययौ द णां दशम् ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! सहदे व भी धमराज यु ध रसे स मा नत हो द ण दशापर वजय पानेके लये वशाल सेनाके साथ थत ए ।। १ ।। स शूरसेनान् का यन पूवमेवाजयत् भुः । म यराजं च कौर ो वशे च े बलाद् बली ।। २ ।। श शाली सहदे वने सबसे पहले सम त शूरसेन नवा सय को पूण पसे जीत लया; फर म यराज वराटको अपने अधीन बनाया ।। २ ।। अ धराजा धपं चैव द तव ं महाबलम् । जगाय करदं चैव कृ वा रा ये यवेशयत् ।। ३ ।। राजा के अ धप त महाबली द तव को भी परा त कया और उसे कर दे नेवाला बनाकर फर उसी रा यपर त त कर दया ।। ३ ।। सुकुमारं वशे च े सु म ं च नरा धपम् । तथैवापरम यां जयत् स पट चरान् ।। ४ ।। नषादभूम गोशृ ं पवत वरं तथा । तरसैवाजयद् धीमान् े णम तं च पा थवम् ।। ५ ।। इसके बाद राजा सुकुमार तथा सु म को वशम कया। इसी कार अपर म य और लुटेर पर भी वजय ा त क । तदन तर नषाददे श तथा पवत वर गोशृंगको जीतकर बु मान् सहदे वने राजा े णमान्को वेगपूवक परा त कया ।। ४-५ ।। नररा ं च न ज य कु तभोजमुपा वत् । ी तपूव च त यासौ तज ाह शासनम् ।। ६ ।। फर नरराको जीतकर राजा कु तभोजपर धावा कया। परंतु कु तभोजने स ताके साथ ही उसका शासन वीकार कर लया ।। ६ ।। तत म वतीकूले ज भक या मजं नृपम् । ददश वासुदेवेन शे षतं पूववै रणा ।। ७ ।। इसके बाद चम वतीके तटपर सहदे वने ज भकके पु को दे खा, जसे पूववैरी वासुदेवने जी वत छोड़ दया था ।। ७ ।। च े तेन स सं ामं सहदे वेन भारत । स तमाजौ व न ज य द णा भमुखो ययौ ।। ८ ।। े











भारत! उस ज भकपु ने सहदे वके साथ घोर सं ाम कया; परंतु सहदे व उसे यु म जीतकर द ण दशाक ओर बढ़ गये ।। ८ ।। सेकानपरसेकां जयत् सुमहाबलः । करं ते य उपादाय र ना न व वधा न च ।। ९ ।। तत तेनैव स हतो नमदाम भतो ययौ । वहाँ महाबली मा कुमारने सेक और अपरसेक दे श पर वजय पायी और उन सबसे नाना कारके र न भटम लये। त प ात् सेका धप तको साथ ले उ ह ने नमदाक ओर थान कया ।। ९ ।। व दानु व दावाव यौ सै येन महताऽऽवृतौ । जगाय समरे वीरावा नेयः तापवान् ।। १० ।। अ नीकुमार के पु तापी सहदे वने वहाँ यु म वशाल सेनासे घरे ए अव तीके राजकुमार व द और अनु व दको परा त कया ।। १० ।। ततो र ना युपादाय पुरं भोजकटं ययौ । त यु मभूद ् राजन् दवस यम युत ।। ११ ।। वहाँसे र न क भट लेकर वे भोजकट नगरम गये। अपनी मयादासे कभी युत न होनेवाले राजन्! वहाँ दो दन तक यु होता रहा ।। ११ ।। स व ज य राधष भी मकं मा न दनः । कोसला धप त चैव तथा वेणातटा धपम् ।। १२ ।। का तारकां समरे तथा ा कोसलान् नृपान् । नाटकेयां समरे तथा हेर बकान् यु ध ।। १३ ।। मा न दनने उस सं ामम धष वीर भी मकको परा त करके कोसला धप त, वेणानद के तटवत दे श के वामी, का तारक तथा पूवकोसलके राजा को भी समरम परा जत कया। त प ात् नाटकेय और हेर बक को भी यु म हराया ।। १२-१३ ।। मा धं च व न ज य र य ाममथो बलात् । नाचीनानबुकां ैव रा ैव महाबलः ।। १४ ।। तां तानाट वकान् सवानजयत् पा डु न दनः । वाता धपं च नृप त वशे च े महाबलः ।। १५ ।। महाबली पा डु न दन सहदे वने मा ध तथा र य ामको बलपूवक परा त करके नाचीन, अबुक तथा सम त वनेचर राजा को जीत लया। तदन तर महाबली मा कुमारने राजा वाता धपको वशम कया ।। १४-१५ ।। पु ल दां रणे ज वा ययौ द णतः पुरः । युयुधे पा राजेन दवसं नकुलानुजः ।। १६ ।। फर पु ल द को सं ामम हराकर नकुलके छोटे भाई सहदे व द ण दशाम और आगे बढ़ गये। त प ात् उ ह ने पा -नरेशक े साथ एक दन यु कया ।। १६ ।। तं ज वा स महाबा ः ययौ द णापथम् । ो

गुहामासादयामास क क धां लोक व ुताम् ।। १७ ।। उ ह जीतकर महाबा सहदे व द णापथक ओर गये और लोक व यात क क धा नामक गुफाम जा प ँचे ।। १७ ।। त वानरराजा यां मै दे न वदे न च । युयुधे दवसान् स त न च तौ वकृ त गतौ ।। १८ ।। वहाँ वानरराज मै द और वदके साथ उ ह ने सात दन तक यु कया; कतु उन दोन का कुछ बगाड़ न हो सका ।। १८ ।। तत तु ौ महा मानौ सहदे वाय वानरौ । ऊचतु ैव सं ौ ी तपूव मदं वचः ।। १९ ।। तब वे दोन महा मा वानर अ य त स हो सहदे वसे ेमपूवक बोले— ।। १९ ।। ग छ पा डवशा ल र ना यादाय सवशः । अ व नम तु कायाय धमराजाय धीमते ।। २० ।। ‘पा डव वर! तुम सब कारके र न क भट लेकर जाओ। परम बु मान् धमराजके कायम कोई व न नह पड़ना चा हये’ ।। २० ।। ततो र ना युपादाय पुर मा ह मत ययौ । त नीलेन रा ा स च े यु ं नरषभः ।। २१ ।। तदन तर वे नर े वहाँसे र न क भट लेकर मा ह मतीपुरीको गये और वहाँ राजा नीलके* साथ घोर यु कया ।। २१ ।। पा डवः परवीर नः सहदे वः तापवान् । ततोऽ य सुमहद् यु मासीद् भी भयंकरम् ।। २२ ।। सै य यकरं चैव ाणानां संशयावहम् । च े त य ह साहा यं भगवान् ह वाहनः ।। २३ ।। श ुवीर का नाश करनेवाले पा डु पु सहदे व बड़े तापी थे। उनसे राजा नीलका जो महान् यु आ, वह कायर को भयभीत करनेवाला, सेना का वनाशक और ाण को संशयम डालनेवाला था। भगवान् अ नदे व राजा नीलक सहायता कर रहे थे ।। २२-२३ ।। ततो रथा हया नागाः पु षाः कवचा न च । द ता न य त सहदे वबले तदा ।। २४ ।। उस समय सहदे वक सेनाम रथ, घोड़े, हाथी, मनु य और कवच सभी आगसे जलते दखायी दे ने लगे ।। २४ ।। ततः सुस ा तमना बभूव कु न दनः । नो रं तव ुं च श ोऽभू जनमेजय ।। २५ ।। जनमेजय! इससे कु न दन सहदे वके मनम बड़ी घबराहट ई। वे इसका तीकार करनेम असमथ हो गये ।। २५ ।। जनमेजय उवाच कमथ भगवान् व ः य म ोऽभवद् यु ध । े ै

सहदे व य य ाथ घटमान य वै ज ।। २६ ।। जनमेजयने पूछा— न्! सहदे व तो य के लये ही चे ा कर रहे थे, फर भगवान् अ नदे व उस यु म उनके वरोधी कैसे हो गये? ।। २६ ।। वैश पायन उवाच त मा ह मतीवासी भगवान् ह वाहनः । ूयते ह गृहीतो वै पुर तात् पारदा रकः ।। २७ ।। वैश पायनजीने कहा—जनमेजय! सुननेम आया है क मा ह मती नगरीम नवास करनेवाले भगवान् अ नदे व कसी समय उस नील राजाक क या सुदशनाके त आस हो गये ।। २७ ।। नील य रा ो हता बभूवातीवशोभना । सा नहो मुपा त द् बोधनाय पतुः सदा ।। २८ ।। राजा नीलके एक क या थी, जो अनुपम सु दरी थी। वह सदा अपने पताके अ नहो गृहम अ नको व लत करनेके लये उप थत आ करती थी ।। २८ ।। जनैधूयमानोऽ प तावत् वलते न सः । याव चा पुटौ ेन वायुना न वधूयते ।। २९ ।। पंखेसे हवा करनेपर भी अ नदे व तबतक व लत नह होते थे, जबतक क वह सु दरी अपने मनोहर ओ स पुटसे फूँक मारकर हवा न दे ती थी ।। २९ ।। ततः स भगवान न कमे तां सुदशनाम् । नील य रा ः सवषामुपनीत सोऽभवत् ।। ३० ।। त प ात् भगवान् अ न उस सुदशना नामक राजक याको चाहने लगे। इस बातको राजा नील और सभी नाग रक जान गये ।। ३० ।। ततो ा ण पेण रममाणो य छया । चकमे तां वरारोहां क यामु पललोचनाम् । तं तु राजा यथाशा मशासद् धा मक तदा ।। ३१ ।। तदन तर एक दन ा णका प धारण करके इ छानुसार घूमते ए अ नदे व उस सवागसु दरी कमल-नयनी क याके पास आये और उसके त कामभाव कट करने लगे। धमा मा राजा नीलने शा के अनुसार उस ा णपर शासन कया ।। ३१ ।। ज वाल ततः कोपाद् भगवान् ह वाहनः । तं ् वा व मतो राजा जगाम शरसाव नम् ।। ३२ ।। तब ोधसे भगवान् अ नदे व अपने पम व लत हो उठे । उ ह इस पम दे खकर राजाको बड़ा आ य आ और उ ह ने पृ वीपर म तक रखकर अ नदे वको णाम कया ।। ३२ ।। ततः कालेन तां क यां तथैव ह तदा नृपः । ददौ व पाय व ये शरसा नतः ।। ३३ ।। तगृ च तां सु ूं नीलरा ः सुतां तदा । े



च े सादं भगवां त य रा ो वभावसुः ।। ३४ ।। त प ात् ववाहके यो य समय आनेपर राजाने उस क याको ा ण पधारी अ नदे वक सेवाम अ पत कर दया और उनके चरण म सर रखकर नम कार कया। राजा नीलक सु दरी क याको प नी पम हण करके भगवान् अ नने राजापर अपना कृपा साद कट कया ।। ३३-३४ ।। वरेण छ दयामास तं नृपं व कृ मः । अभयं च स ज ाह वसै ये वै महीप तः ।। ३५ ।। वे उनक अभी - स म सव म सहायक हो राजासे वर माँगनेका अनुरोध करने लगे। राजाने अपनी सेनाके त अभयदान माँगा ।। ३५ ।। ततः भृ त ये के चद ानात् तां पुर नृपाः । जगीष त बलाद् राजं ते द ते म व ना ।। ३६ ।। राजन्! तभीसे जो कोई नरेश अ ानवश उस पुरीको बलपूवक जीतना चाहते, उ ह अ नदे व जला दे ते थे ।। ३६ ।। त यां पुया तदा चैव मा ह म यां कु ह। बभूवुरन त ा ा यो षत छ दतः कल ।। ३७ ।। कु े जनमेजय! उस समय मा ह मतीपुरीम युवती याँ इ छानुसार हण करनेके यो य नह रह गयी थ ( य क वे वत तासे ही वरका वरण कया करती थ ) ।। ३७ ।। एवम नवरं ादात् ीणाम तवारणे । व र य त नाय ह यथे ं वचर युत ।। ३८ ।। अ नदे वने य के लये यह वर दे दया था क अपने तकूल होनेके कारण ही कोई य को वरका वयं ही वरण करनेसे रोक नह सकता। इससे वहाँक याँ वे छापूवक वरका वरण करनेके लये वचरण कया करती थ ।। ३८ ।। वजय त च राजान तत् पुरं भरतषभ । भयाद नेमहाराज तदा भृ त सवदा ।। ३९ ।। भरत े जनमेजय! तभीसे सब राजा (जो इस रह यसे प र चत थे) अ नके भयके कारण मा ह मती-पुरीपर चढ़ाई नह करते थे ।। ३९ ।। सहदे व तु धमा मा सै यं ् वा भया दतम् । परीतम नना राजन् नाक पत यथाचलः । उप पृ य शु चभू वा सोऽ वीत् पावकं ततः ।। ४० ।। राजन्! धमा मा सहदे व अ नसे ा त ई अपनी सेनाको भयसे पी ड़त दे ख पवतक भाँ त अ वचल भावसे खड़े रहे, भयसे क पत नह ए। उ ह ने आचमन करके प व हो अ नदे वसे इस कार कहा ।। ४० ।। सहदे व उवाच वदथ ऽयं समार भः कृ णव मन् नमोऽ तु ते । े

मुखं वम स दे वानां य वम स पावक ।। ४१ ।। सहदे व बोले—कृ णव मन्! हमारा यह आयोजन तो आपहीके लये है, आपको नम कार है। पावक! आप दे वता के मुख ह, य व प ह ।। ४१ ।। पावनात् पावक ा स वहना वाहनः । वेदा वदथ जाता वै जातवेदा ततो स ।। ४२ ।। आप सबको प व करनेके कारण पावक ह और ह (हवनीय पदाथ)-को वहन करनेके कारण ह वाहन कहलाते ह। वेद आपके लये ही जात अथात् कट ए ह, इसी लये आप जातवेदा ह ।। ४२ ।। च भानुः सुरेश अनल वं वभावसो । वग ार पृश ा स ताशो वलनः शखी ।। ४३ ।। वभावसो! आप ही च भानु, सुरेश और अनल कहलाते ह। आप सदा वग ारका पश करते ह। आप आ त दये ए पदाथ को खाते ह, इस लये ताशन ह। व लत होनेसे वलन और शखा (लपट) धारण करनेसे शखी ह ।। ४३ ।। वै ानर वं प े शः लव ो भू रतेजसः । कुमारसू वं भगवान् गभ हर यकृत् ।। ४४ ।। आप ही वै ानर, पगेश, लवंग और भू रतेजस् नाम धारण करते ह। आपने ही कुमार का तकेयको ज म दया है, आप ही ऐ यस प होनेके कारण भगवान् ह। ी का वीय धारण करनेसे आप गभ कहलाते ह। सुवणके उ पादक होनेसे आपका नाम हर यकृत् है ।। ४४ ।। अ नददातु मे तेजो वायुः ाणं ददातु मे । पृ थवी बलमाद या छवं चापो दश तु मे ।। ४५ ।। आप अ न मुझे तेज द, वायुदेव ाणश दान कर, पृ वी मुझम बलका आधान कर और जल मुझे क याण दान कर ।। ४५ ।। अपांगभ महास व जातवेदः सुरे र । दे वानां मुखम ने वं स येन वपुनी ह माम् ।। ४६ ।। जलको कट करनेवाले महान् श स प जातवेदा सुरे र अ नदे व! आप दे वता के मुख ह, अपने स यके भावसे आप मुझे प व क जये ।। ४६ ।। ऋ ष भ ा णै ैव दै वतैरसुरैर प । न यं सु त य ेषु स येन वपुनी ह माम् ।। ४७ ।। ऋ ष, ा ण, दे वता तथा असुर भी सदा य करते समय आपम आ त डालते ह, अपने स यके भावसे आप मुझे प व कर ।। ४७ ।। धूमकेतुः शखी च वं पापहा नलस भवः । सव ा णषु न य थः स येन वपुनी ह माम् ।। ४८ ।। दे व! धूम आपका वज है, आप शखा धारण करनेवाले ह, वायुसे आपका ाक आ है। आप सम त पाप के नाशक ह। स पूण ा णय के भीतर आप सदा वराजमान होते ह। अपने स यके भावसे आप मुझे प व क जये ।। ४८ ।। ो ी े

एवं तुतोऽ स भगवन् ीतेन शु चना मया । तु पु ु त चैव ी त चा ने य छ मे ।। ४९ ।। भगवन्! मने प व होकर ेमभावसे आपका इस कार तवन कया है। अ नदे व! आप मुझे तु , पु , वण-श एवं शा ान और ी त दान कर ।। ४९ ।। वैश पायन उवाच इ येवं म मा नेयं पठन् यो जु याद ् वभुम् । ऋ मान् सततं दा तः सवपापैः मु यते ।। ५० ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! जो ज इस कार इन ोक प आ नेय म का पाठ करते ए (अ तम ‘ वाहा’ बोलकर) भगवान् अ नदे वको आ त सम पत करता है, वह सदा समृ शाली और जते य होकर सब पाप से मु हो जाता है ।। ५० ।।

सहदे व उवाच य व न ममं कतु नाह वं ह वाहन । सहदे व बोले—ह वाहन! आपको य म यह व न नह डालना चा हये ।। ५० ।। एवमु वा तु मा े यः कुशैरा तीय मे दनीम् ।। ५१ ।। व धवत् पु ष ा ः पावकं युपा वशत् । मुखे त य सै य य भीतो न य भारत ।। ५२ ।। भारत! ऐसा कहकर नर े मा कुमार सहदे व धरतीपर कुश बछाकर अपनी भयभीत और उ न सेनाके अ भागम व धपूवक अ नके स मुख धरना दे कर बैठ गये ।। ५१-५२ ।। न चैनम यगाद् व वला मव महोद धः । तमुपे य शनैव वाच कु न दनम् ।। ५३ ।। सहदे वं नृणां दे वं सा वपूव मदं वचः । उ ो कौर ज ासेयं कृता मया । वे सवम भ ायं तव धमसुत य च ।। ५४ ।। जैसे महासागर अपनी तटभू मका उ लंघन नह करता, उसी कार अ नदे व सहदे वको लाँघकर उनक सेनाम नह गये। वे कु कुलको आन दत करनेवाले नरदे व सहदे वके पास धीरे-धीरे आकर उ ह सा वना दे ते ए यह वचन बोले—‘कौर ! उठो, उठो, मने यह तु हारी परी ा क है। तु हारे और धमपु यु ध रके स पूण अ भ ायको म जानता ँ ।। ५३-५४ ।। मया तु र त ेयं पुरी भरतस म । यावद् रा ो ह नील य कुले वंशधरा इ त ।। ५५ ।। ई सतं तु क र या म मनस तव पा डव ।। ५६ ।। ‘







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‘परंतु भरतस म! राजा नीलके कुलम जबतक उनक वंशपर परा चलती रहेगी, तबतक मुझे इस मा ह मतीपुरीक र ा करनी होगी। पा डु कुमार! साथ ही म तु हारा मनोरथ भी पूण क ँ गा’ ।। ५५-५६ ।। तत उ थाय ा मा ा लः शरसा नतः । पूजयामास मा े यः पावकं भरतषभ ।। ५७ ।। भरत े ! जनमेजय! यह सुनकर मा कुमार सहदे व स च हो वहाँसे उठे और हाथ जोड़कर एवं सर झुकाकर उ ह ने अ नदे वका पूजन कया ।। ५७ ।। पावके व नवृ े तु नीलो राजा यगात् तदा । पावक या या चैनमचयामास पा थवः ।। ५८ ।। स कारेण नर ा ं सहदे वं युधा प तम् । अ नके लौट जानेपर उ ह क आ ासे राजा नील उस समय वहाँ आये और उ ह ने यो ा के अ धप त पु ष सह सहदे वका स कारपूवक पूजन कया ।। ५८ ।। तगृ च तां पूजां करे च व नवे य च ।। ५९ ।। मा सुत ततः ायाद् वजयी द णां दशम् । राजा नीलक वह पूजा हणकर और उनपर कर लगाकर वजयी मा कुमार सहदे व द ण दशाक ओर बढ़ गये ।। ५९ ।। ैपुरं स वशे कृ वा राजानम मतौजसम् ।। ६० ।। नज ाह महाबा तरसा पौरवे रम् । आकृ त कौ शकाचाय य नेन महता ततः ।। ६१ ।। वशे च े महाबा ः सुरा ा धप त तदा । फर पुरीके राजा अ मतौजाको वशम करके महाबा सहदे वने पौरवे रको वेगपूवक बंद बना लया। तदन तर बड़े भारी य नके ारा वशाल भुजा वाले मा कुमारने सुराद े शके अ धप त कौ शकाचाय आकृ तको वशम कया ।। ६०-६१ ।। सुरा वषय थ ेषयामास मणे ।। ६२ ।। रा े भोजकट थाय महामा ाय धीमते । भी मकाय स धमा मा सा ा द सखाय वै ।। ६३ ।। स चा य तज ाह ससुतः शासनं तदा । ी तपूव महाराज वासुदेवमवे य च ।। ६४ ।। ततः स र ना यादाय पुनः ायाद् युधा प तः । महाराज! सुराम ही ठहरकर धमा मा सहदे वने भोजकट नवासी मी तथा वशाल रा यके अ धप त परम बु मान् सा ात् इ सखा भी मकके पास त भेजा। पु स हत भी मकने वसुदेवन दन ीकृ णक ओर रखकर ेमपूवक ही सहदे वका शासन वीकार कर लया। तदन तर यो ा के अ धप त सहदे व वहाँसे र न क भट लेकर पुनः आगे बढ़ गये ।। ६२—६४ ।। ततः शूपारकं चैव तालाकटमथा प च ।। ६५ ।। े





वशे च े महातेजा द डकां महाबलः । सागर पवासां नृपतीन् ले छयो नजान् ।। ६६ ।। नषादान् पु षादां कण ावरणान प । महाबलशाली महातेज वी मा कुमारने शूपारक और तालाकट नामक दे श को जीतते ए द डकार यको अपने अधीन कर लया। त प ात् समु के प म नवास करनेवाले ले छजातीय राजा , नषाद तथा रा स , कण ावरण को* भी परा त कया ।। ६५-६६ ।। ये च कालमुखा नाम नररा सयोनयः ।। ६७ ।। कालमुख नामसे स जो मनु य और रा स दोन के संयोगसे उ प ए यो ा थे, उनपर भी वजय ा त क ।। ६७ ।। कृ नं कोल गर चैव सुरभीप नं तथा । पं ता ा यं चैव पवतं रामकं तथा ।। ६८ ।। त म लं च स नृपं वशे कृ वा महाम तः । एकपादां पु षान् केरलान् वनवा सनः ।। ६९ ।। नगर संजय त च पाख डं करहाटकम् । तैरेव वशे च े करं चैनानदापयत् ।। ७० ।। समूचे कोल ग र, सुरभीप न, ता प, रामकपवत तथा तम गलनरेशको भी अपने वशम करके परम बु मान् सहदे वने एक पैरके पु ष , केरल , वनवा सय , संजय ती नगरी तथा पाख ड और करहाटक दे श को त ारा संदेश दे कर ही अपने अधीन कर लया और उन सबसे कर वसूल कया ।। ६८—७० ।। पा ां वडां ैव स हतां ो क े रलैः । आ ां तालवनां ैव क ल ानु क णकान् ।। ७१ ।। आटव च पुर र यां यवनानां पुरं तथा । तैरेव वशे च े करं चैनानदापयत् ।। ७२ ।। पा , वड, उ , क े रल, आ , तालवन, क लग, उक णक, रमणीय आटवीपुरी तथा यवन के नगर—इन सबको उ ह ने त ारा ही वशम कर लया और सबको कर दे नेके लये ववश कया ।। ७१-७२ ।। (समु तीरमासा य वशत् पा डु न दनः । सहदे व ततो राजन् म भः सह भारत । स धाय महाबा ः स चवैबु म रैः ।। वहाँसे समु के तटपर प ँचकर पा डु न दन सहदे वने सेनाका पड़ाव डाला। भारत! तदन तर महाबा सहदे वने अ य त बु मान् म णा दे नेम कुशल स चव के साथ बैठकर ब त दे रतक वचार वमश कया। अनुमा य स तां राजन् सहदे व वरा वतः । च तयामास राजे ातुः पु ं घटो कचम् ।। े





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राजे जनमेजय! उन सबक स म तको आदर दे ते ए मा कुमारने अपने भतीजे रा सराज घटो कचका तुरंत च तन कया। तत ततमा े तु रा सः य यत । अ तद घ महाकायः सवाभरणभू षतः ।। उनके च तन करते ही वह बड़े डील-डौलवाला वशालकाय रा स दखायी दया। उसने सब कारके आभूषण धारण कर रखे थे। नीलजीमूतसंकाश त तका चनकु डलः । व च हारकेयूरः कङ् कणीम णभू षतः ।। उसके शरीरका रंग मेघ क काली घटाके समान था। उसके कान म तपाये ए सुवणके कु डल झल मला रहे थे। उसके गलेम हार और भुजा म केयूरक व च शोभा हो रही थी। क टभागम वह क कणीक म णय से वभू षत था। हेममाली महादं ः करीट कु ब धनः । ता केशो ह र म ुभ मा ः कनका दः ।। उसके क ठम सुवणक माला, म तकपर करीट और कमरम करधनीक शोभा हो रही थी। उसक दाढ़ ब त बड़ी थ , सरके बाल ताँबेके समान लाल थे, मूँछ-दाढ़ के बाल हरे दखायी दे ते थे एवं आँख बड़ी भयंकर थ । उसक भुजा म सोनेके बाजूबंद चमक रहे थे। र च दन द धा ः सू मा बरधरो बली । जवेन स ययौ त चालय व मे दनीम् ।। उसने अपने सब अंग म लाल च दन लगा रखा था। उसके कपड़े ब त महीन थे। वह बलवान् रा स अपने वेगसे समूची पृ वीको हलाता आ-सा वहाँ प ँचा। ततो ् वा जना राज ाया तं पवतोपमम् । भया वुः सव सहात् ु मृगा यथा ।। राजन्! उस पवताकार घटो कचको आता दे ख वहाँके सब लोग भयके मारे भाग खड़े ए; मानो कसी सहके भयसे जंगलके मृग आ द ु पशु भाग रहे ह । आससाद च मा े यं पुल यं रावणो यथा । अ भवा ततो राजन् सहदे वं घटो कचः ।। ः कृता ल त थौ क काय म त चा वीत् । घटो कच मा न दन सहदे वके पास आया, मानो रावणने मह ष पुल यके पास पदापण कया हो। महाराज! तदन तर घटो कच सहदे वको णाम करके उनके सामने वनीतभावसे हाथ जोड़कर खड़ा हो गया और बोला—‘मेरे लये या आ ा है?’ तं मे शखराकारमागतं पा डु न दनः ।। स प र व य बा यां मू युपा ाय चासकृत् । पूज य वा सहामा यः ीतो वा यमुवाच ह ।। घटो कच मे पवतके शखर-जैसा जान पड़ता था। उसको आया दे ख पा डु न दन सहदे वने दोन भुजा म भरकर उसे दयसे लगा लया और बार-बार उसका म तक ँ े े े औ

सूँघा। त प ात् उसका वागत-स कार करके म य स हत सहदे व बड़े स इस कार बोले। सहदे व उवाच

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ग छ लङ् कां पुर व स कराथ मम शासनात् । त ् वा महा मानं रा से ं वभीषणम् ।। र ना न राजसूयाथ व वधा न ब न च । उपादाय च सवा ण याग छ महाबल ।। सहदे वने कहा—व स! तुम मेरी आ ासे कर लेनेके लये लंकापुरीम जाओ और वहाँ रा सराज महा मा वभीषणसे मलकर राजसूयय के लये भाँ त-भाँ तके ब त-से र न ा त करो। महाबली वीर! उनक ओरसे भटम मली ई सब व तुएँ लेकर शी यहाँ लौट आओ। नो चेदेवं वदे ः पु समथ मदमु रम् । व णोभुजबलं वी य राजसूयमथारभत् ।। कौ तेयोः ातृ भः साध सव जानी ह सा तम् । व त तेऽ तु ग म या म सव वै वणानुज ।। इ यु वा शी माग छ मा भूत् काल य पययः । बेटा! य द वभीषण तु ह भट न द, तो उ ह अपनी श का प रचय दे ते ए इस कार कहना—‘कुबेरके छोटे भाई लंके र! कु तीकुमार यु ध रने भगवान् ीकृ णके बा बलको दे खकर भाइय स हत राजसूयय आर भ कया है। आप इस समय इन बात को अ छ तरह जान ल। आपका क याण हो, अब म यहाँसे चला जाऊँगा।’ इतना कहकर तुम शी लौट आना; अ धक वल ब मत करना। वैश पायन उवाच पा डवेनैवमु तु मुदा यु ो घटो कचः । तथे यु वा महाराज त थे द णां दशम् ।। ययौ द णं कृ वा सहदे वं घटो कचः ।) वैश पायनजी कहते ह—महाराज जनमेजय! पा डु कुमार सहदे वके ऐसा कहनेपर घटो कच ब त स आ और ‘तथा तु’ कहकर सहदे वक प र मा करके द ण दशाक ओर चल दया। ततः क छगतो धीमान् तं मा वतीसुतः । ेषयामास है ड बं पौल याय महा मने । वभीषणाय धमा मा ी तपूवमरदमः ।। ७३ ।। इस कार समु के तटपर प ँचकर बु मान् श ुदमन धमा मा मा वतीकुमारने महा मा पुल यन दन वभीषणके पास ेमपूवक घटो कचको अपना त बनाकर भेजा ।। ७३ ।। (लङ ् काम भमुखो राजन् समु मवलोकयत् ।। ै ै

कूम ाहझषाक ण न ै म नै तथाऽऽकुलम् । शु ातैः समाक ण शङ् खानां नचयाकुलम् ।। राजन्! लंकाक ओर जाते ए घटो कचने समु को दे खा। वह कछु , मगर , नाक तथा म य आ द जल-ज तु से भरा आ था। उसम ढे र-के-ढे र शंख और सी पयाँ छा रही थ । स ् वा रामसेतुं च च तयन् राम व मम् । ण य तम त य या यां वेलामलोकयत् ।। भगवान् ीरामके ारा बनवाये ए पुलको दे खकर घटो कचको भगवान्के परा मका च तन हो आया और उस सेतुतीथको णाम करके उसने समु के द णतटक ओर पात कया। ग वा पारं समु य द णं स घटो कचः । ददश लङ् कां राजे नाकपृ ोपमां शुभाम् ।। राजे ! त प ात् द णतटपर प ँचकर घटो कचने लंकापुरी दे खी, जो वगके समान सु दर थी। ाकारेणावृतां र यां शुभ ारै शो भताम् । ासादै ब साह ैः ेतर ै संकुलाम् ।। उसके चार ओर चहारद वारी बनी थी। सु दर फाटक उस रमणीयपुरीक शोभा बढ़ाते थे। सफेद और लाल रंगके हजार महल से वह लंकापुरी भरी ई थी। तापनीयगवा ेण मु ाजाला तरेण च । हैमराजतजालेन दा तजालै शो भताम् ।। वहाँके गवा (जँगले) सोनेके बने ए थे और उनके भीतर मो तय क जाली लगी ई थी। कतने ही गवा सोने, चाँद तथा हाथीदाँतक जा लय से सुशो भत थे। ह यगोपुरस बाधां मतोरणसंकुलाम् । द भ न ादामु ानवनशो भताम् ।। कतनी ही अ ा लकाएँ तथा गोपुर उस नगरीक शोभा बढ़ाते थे। थान- थानपर सोनेके फाटक लगे ए थे। वहाँ द भय क ग भीर व न गूँजती रहती थी। ब त-से उ ान और वन उस नगरीक ीवृ कर रहे थे। पु पग धै संक णा रमणीयमहापथाम् । नानार नै स पूणा म येवामरावतीम् ।। उसम चार ओर फूल क सुग ध छा रही थी। वहाँक लंबी-चौड़ी सड़क ब त सु दर थ । भाँ त-भाँ तके र न से भरी-पुरी लंका इ क अमरावतीपुरीको भी ल जत कर रही थी। ववेश स पुर लङ् कां रा सै नषे वताम् । ददश रा स ाता छू ल ाशधरान् बन् ।। घटो कचने रा स से से वत उस लंकापुरीम वेश कया और दे खा, झुंड-के-झुंड रा स शूल और भाले लये वचर रहे ह। े ी

नानावेषधरान् द ान् नारी यदशनाः । द मा या बरधरा द ाभरणभू षताः ।। वे सभी यु म कुशल ह और नाना कारके वेष धारण करते ह। घटो कचने वहाँक ना रय को भी दे खा। वे सब-क -सब बड़ी सु दर थ । उनके अंग म द व , द आभूषण तथा द हार शोभा दे रहे थे। मदर ा तनयनाः पीन ो णपयोधराः । भैमसे न ततो ् वा ा ते व मयं गताः ।। उनके ने के कनारे म दराके नशेसे कुछ लाल हो रहे थे। उनके नत ब और उरोज उभरे ए तथा मांसल थे। भीमसेनपु घटो कचको वहाँ आया दे ख लंका नवासी रा स को बड़ा हष और व मय आ। आससाद गृहं रा इ य सदनोपमम् । स ारपालमासा वा यमेत वाच ह ।। इधर घटो कच इ भवनके समान मनोहर राजमहलके ारपर जा प ँचा और ारपालसे इस कार बोला।

घटो कच उवाच कु णामृषभो राजा पा डु नाम महाबलः । कनीयां त य दायादः सहदे व इ त ुतः ।। घटो कचने कहा—कु कुलम एक े राजा हो गये ह। वे महाबली नरेश ‘पा डु ’ के नामसे व यात थे। उनके सबसे छोटे पु का नाम ‘सहदे व’ है। कृ ण म य तु गुरो राजसूयाथमु तः । तेनाहं े षतो तः कराथ कौरव य च ।। वे अपने बड़े भाई यु ध रका राजसूयय स प करनेके लये क टब ह। धमराज यु ध रके सहायक भगवान् ीकृ ण ह। सहदे वने कु राज यु ध रके लये कर लेनेके न म मुझे त बनाकर यहाँ भेजा है। ु म छा म पौल यं वं ं मां नवेदय । म पुल यन दन महाराज वभीषणसे मलना चाहता ँ। तुम शी जाकर उ ह मेरे आगमनक सूचना दो। वैश पायन उवाच त य तद् वचनं ु वा ारपालो महीपते । तथे यु वा ववेशाथ भवनं स नवेदकः ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! घटो कचका वह वचन सुनकर वह ारपाल ‘ब त अ छा’ कहकर सूचना दे नेके लये राजभवनके भीतर गया। सा लः स समाच सवा त गरं तदा । ारपालवचः ु वा रा से ो वभीषणः ।। उवाच वा यं धमा मा समीपे मे वे यताम् । ँ े ो ी ई ी

वहाँ उसने हाथ जोड़कर तक कही ई सारी बात कह सुनाय । ारपालक बात सुनकर धमा मा रा सराज वभीषणने उससे कहा—‘ तको मेरे समीप ले आओ’। एवमु तु राजे धम ेन महा मना । अथ न य स ा तो ाः थो है ड बम वीत् ।। राजे ! धम महा मा वभीषणक ऐसी आ ा होनेपर ारपाल बड़ी उतावलीके साथ बाहर नकला और घटो कचसे बोला—। ए ह त नृपं ु ं ं वश च वयम् । ारपालवचः ु वा ववेश घटो कचः ।। ‘ त! आओ। महाराजसे मलनेके लये राजभवनम शी वेश करो।’ ारपालका कथन सुनकर घटो कचने राजभवनम वेश कया। स व य ददशाथ रा से य म दरम् । ततः कैलाससंकाशं त तका चनतोरणम् ।। तदन तर उसम वेश करके उसने रा सराज वभीषणका महल दे खा, जो अपनी उ वल आभासे कैलासके समान जान पड़ता था। उसका फाटक तपाकर शु कये ए सोनेसे तैयार कया गया था। ाकारेण प र तं गोपुरै ा प शो भतम् । ह य ासादस बाधं नानार नसम वतम् ।। चहारद वारीसे घरा आ वह राजम दर अनेक गोपुर से सुशो भत हो रहा था। उसम ब त-सी अ ा लकाएँ तथा महल बने ए थे। भाँ त-भाँ तके र न उस राजभवनक शोभा बढ़ाते थे। का चनै तापनीयै फा टकै राजतैर प । व वैडूयगभ त भे मनोहरैः । नाना वजपताका भः सुवणा भ च तम् । तपाये ए सुवण, रजत (चाँद ) तथा फ टकम णके बने ए ख भे ने और मनको बरबस अपनी ओर ख च लेते थे। उन ख भ म हीरे और वै य जड़े ए थे। सुनहरे रंगक व वध वजा-पताका से उस भ भवनक व च शोभा हो रही थी। च मा यावृतं र यं त तका चनवे दकम् ।। तान् ् वा त सवान् स भैमसे नमनोरमान् । वश ेव है ड बः शु ाव मुरज वनम् ।। व च माला से अलंकृत तथा वशु वणमय वे दका से वभू षत वह राजभवन बड़ा रमणीय दखायी दे रहा था। उस महलक इन सारी मनोरम वशेषता को दे खकर घटो कचने य ही भीतर वेश कया, य ही उसके कान म मृदंगक मधुर व न सुनायी पड़ी। त ीगीतसमाक ण समताल मता रम् । द भ न ादं वा द शतसंकुलम् ।। ँ ी





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वहाँ वीणाके तार झंकृत हो रहे थे और उसके लयपर गीत गाया जा रहा था, जसका एक-एक अ र समतालके अनुसार उ चा रत हो रहा था। सैकड़ वा के साथ द भय का मधुर घोष गूँज रहा था। स ु वा मधुरं श दं ी तमानभवत् तदा । ततो वगा है ड बो ब क ां मनोरमाम् ।। स ददश महा मानं ाः थेन भरतषभ । तं वभीषणमासीनं का चने परमासने ।। भरत े ! वह मधुर श द सुनकर घटो कचके मनम बड़ी स ता ई। उसने अनेक मनोरम क ा को पार करके ारपालके साथ जा सु दर वण सहासनपर बैठे ए महा मा वभीषणका दशन कया। द े भा करसंकाशे मु ाम ण वभू षते । द ाभरण च ा ं द पधरं वभुम् ।। उनका सहासन सूयके समान का शत हो रहा था और उसम मोती तथा म ण आ द र न जड़े ए थे। द आभूषण से रा सराज वभीषणके अंग क व च शोभा हो रही थी। उनका प द था। द मा या बरधरं द ग धो तं शुभम् । व ाजमानं वपुषा सूयवै ानर भम् ।। वे द माला और द व धारण करके द ग धसे अ भ ष हो बड़े सु दर दखायी दे रहे थे। उनक अंगका त सूय तथा अ नके समान उ ा सत हो रही थी। उपोप व ं स चवैदवै रव शत तुम् ।। य ैमहारथै द ैनारी भः यदशनैः । गी भम लयु ा भः पू यमानं यथा व ध ।। जैसे इ के पास ब त-से दे वता बैठते ह, उसी कार वभीषणके समीप उनके अनेक स चव बैठे थे। ब त-से द सु दर महारथी य अपनी य के साथ मंगलयु वाणी ारा वभीषणका व धपूवक पूजन कर रहे थे। चामरे जने चा ये हेमद डे महाधने । गृहीते वरनारी यां धूयमाने च मूध न ।। दो सु दरी ना रयाँ सुवणमय द डसे वभू षत ब मू य चँवर तथा जन लेकर उनके म तकपर डु ला रही थ । अ च म तं या जु ं कुबेरव णोपमम् । धम चैव थतं न यम तं रा से रम् ।। रा सराज वभीषण कुबेर और व णके समान राजल मीसे स प एवं अ त दखायी दे ते थे। उनके अंग से द भा छटक रही थी। वे सदा धमम थत रहते थे। राम म वाकुनाथं वै मर तं मनसा सदा । ् वा घटो कचो राजन् वव दे तं कृता लः ।। े













वे मन-ही-मन इ वाकुवंश शरोम ण ीरामच जीका मरण करते थे। राजन्! उन रा सराज वभीषणको दे ख घटो कचने हाथ जोड़कर उ ह णाम कया। त थौ महावीयः श ं च रथो यथा । तं तमागतं ् वा रा से ो वभीषणः ।। पूज य वा यथा यायं सा वपूव वचोऽ वीत् । और जैसे महापरा मी च रथ इ के सामने न रहते ह, उसी कार महाबली घटो कच भी वनीतभावसे उनके स मुख खड़ा हो गया। रा सराज वभीषणने उस तको आया आ दे ख उसका यथायो य स मान करके सा वनापूण वचन म कहा। वभीषण उवाच क य वंशे तु संजातः कर म छन् महीप तः ।। त यानुजान् सम तां पुरं दे शं च त य वै । वां च काय च तत् सव ोतु म छा म त वतः ।। व तरेण मम ू ह सवानेतान् पृथक्-पृथक् । वभीषणने पूछा— त! जो महाराज मुझसे कर लेना चाहते ह, वे कसके कुलम उ प ए ह। उनके सम त भाइय तथा ाम और दे शका प रचय दो। म तु हारे वषयम भी जानना चाहता ँ तथा तुम जस कायके लये कर लेने आये हो, उस सम त कायके वषयम भी म यथाथ पसे सुनना चाहता ँ। तुम मेरी पूछ ई इन सब बात को व तारपूवक पृथक्-पृथक् बताओ। वैश पायन उवाच एवमु तु है ड बः पौल येन महा मना ।। कृता ल वाचाथ सा वयन् रा सा धपम् । वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! महा मा वभीषणके इस कार पूछनेपर ह ड बाकुमार घटो कचने हाथ जोड़कर रा सराजको आ ासन दे ते ए कहा। घटो कच उवाच सोम य वंशे राजाऽऽसीत् पा डु नाम महाबलः । पा डोः पु ा प चास छ तु यपरा माः ।। तेषां ये तु ना नाभूद ् धमपु इ त ुतः । घटो कच बोला—महाराज! च वंशम पा डु नामसे स एक महाबली राजा हो गये ह। उनके पाँच पु ह, जो इ के समान परा मी ह। उन पाँच म जो बड़े ह, वे धमपु के नामसे व यात ह। अजातश ुधमा मा धम व हवा नव ।। ततो यु ध रो राजा ा य रा यमकारयत् । ग ाया द णे तीरे नगरे नागसा ये ।। े

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उनके मनम कसीके त श ुता नह है; इस लये लोग उ ह अजातश ु कहते ह। उनका मन सदा धमम ही लगा रहता है। वे धमके मू तमान् व प जान पड़ते ह। गंगाके द णतटपर ह तनापुर नामका एक नगर है। राजा यु ध र वह अपना पैतृक रा य ा त करके उसक र ा करते थे। तद् द वा धृतरा ाय श थं ययौ ततः । ातृ भ सह राजे श थे मोदते ।। रा सराज! कुछ कालके प ात् उ ह ने ह तनापुरका रा य धृतराको स प दया और वयं वे भाइय स हत इ थ चले गये। इन दन वे वह आन दपूवक रहते ह। ग ायमुनयोम ये तावुभौ नगरो मौ । न यं धम थतो राजा श थे शास त ।। वे दोन े नगर गंगा-यमुनाके बीचम बसे ए ह। न य धमपरायण राजा यु ध र इ थम ही रहकर शासन करते ह। त यानुजो महाबा ः भीमसेनो महाबलः । महातेजा महावीयः सहतु यः स पा डवः ।। उनके छोटे भाई पा डु कुमार महाबा भीमसेन भी बड़े बलवान् ह। वे सहके समान महापरा मी और अ य त तेज वी ह। दशनागसह ाणां बले तु यः स पा डवः । त यानुजोऽजुनो नाम महावीयपरा मः ।। सुकुमारो महास वो लोके वीयण व ुतः । उनम दस हजार हा थय का बल है। उनसे छोटे भाईका नाम अजुन है, जो महान् बलपरा मसे स प , सुकुमार तथा अ य त धैयवान् ह। उनका परा म व म व यात है। कातवीयसमो वीय सागर तमो बले ।। जामद यसमो े सं ये रामसमोऽजुनः । पे श समः पाथ तेजसा भा करोपमः ।। वे कु तीन दन अजुन कातवीय अजुनके समान परा मी, सगरपु के समान बलवान्, परशुरामजीके समान अ व ाके ाता, ीरामच जीके समान समर वजयी, इ के समान पवान् तथा भगवान् सूयके समान तेज वी ह। दे वदानवग धवः पशाचोरगरा सैः । मानुषै सम तै अजेयः फा गुनो रणे ।। दे वता, दानव, ग धव, पशाच, नाग, रा स और मनु य ये सब मलकर भी यु म अजुनको परा त नह कर सकते। तेन तत् खा डवं दावं त पतं जातवेदसे । तरसा धष य वा तं श ं दे वगणैः सह ।। लधा य ा ण द ा न तप य वा ताशनम् । उ ह ने खा डववनको जलाकर अ नदे वको तृ त कया है। दे वता स हत इ को वेगपूवक परा जत करके उ ह ने अ नदे वको संतु कया और उनसे द ा ा त कये

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तेन लधा महाराज लभा द े वतैर प । वासुदेव य भ गनी सुभ ा नाम व ुता ।। महाराज! उ ह ने भगवान् ीकृ णक ब हन सुभ ाको प नी पम ा त कया है, जो दे वता के लये भी लभ थी। अजुन यानुजो राजन् नकुल े त व ुतः ।। दशनीयतमो लोके मू तमा नव म मथः । राजन्! अजुनके छोटे भाई नकुल नामसे व यात ह, जो इस जगत्म मू तमान् कामदे वके समान दशनीय ह। त यानुजो महातेजाः सहदे व इ त ुतः । तेनाहं े षतो राजन् सहदे वेन मा रष ।। नकुलके छोटे भाई महातेज वी सहदे वके नामसे व यात ह। माननीय महाराज! उ ह सहदे वने मुझे यहाँ भेजा है। अहं घटो कचो नाम भीमसेनसुतो बली । मम माता महाभागा ह ड बा नाम रा सी ।। मेरा नाम घटो कच है। म भीमसेनका बलवान् पु ँ। मेरी सौभा यशा लनी माताका नाम ह ड बा है। वे रा सकुलक क या ह। पाथानामुपकाराथ चरा म पृ थवी ममाम् । आसीत् पृ थ ाः सव या महीपालो यु ध रः ।। म कु तीपु का उपकार करनेके लये ही इस पृ वीपर वचरता ँ। महाराज यु ध र स पूण भूम डलके शासक हो गये ह। राजसूयं तु े माहतुमुपच मे । सं ददे श च स ातॄन् कराथ सवतो दशम् ।। उ ह ने तु े राजसूयका अनु ान करनेक तैयारी क है। उ ह महाराजने अपने सब भाइय को कर वसूल करनेके लये सब दशा म भेजा है। वृ णवीरेण स हतः सं ददे शानुजान् नृपः । उद चीमजुन तूण कराथ समुपाययौ ।। वृ णवीर भगवान् ीकृ णके साथ धमराजने जब अपने भाइय को द वजयके लये आदे श दया, तब महाबली अजुन कर वसूल करनेके लये तुरंत उ र दशाक ओर चल दये। ग वा शतसह ा ण योजना न महाबलः । ज वा सवान् नृपान् यु े ह वा च तरसा वशी ।। वग ारमुपाग य र ना यादाय वै भृशम् । उ ह ने लाख योजनक या ा करके स पूण राजा को यु म हराया है और सामना करनेके लये आये ए वप य को वेगपूवक मारा है। जते य अजुनने वगके ारतक जाकर चुर र न-रा श ा त क है।

अ ां व वधान् द ान् सवानादाय फा गुनः ।। धनं ब वधं राजन् धमपु ाय वै ददौ । नाना कारके द अ उ ह भटम मले ह। इस कार भाँ त-भाँ तके धन लाकर उ ह ने धमपु यु ध रक सेवाम सम पत कये ह। भीमसेनो ह राजे ज वा ाच दशं बलात् ।। वशे कृ वा महीपालान् पा डवाय धनं ददौ । राजे ! यु ध रके सरे भाई भीमसेनने पूव दशाम जाकर उसे बलपूवक जीता है और वहाँके राजा को अपने वशम करके पा डु पु यु ध रको ब त धन अ पत कया है। दशं तीच नकुलः कराथ ययौ तथा ।। सहदे वो दशं या यां ज वा सवान् मही तः । नकुल कर लेनेके लये प म दशाक ओर गये ह और सहदे व स पूण राजा को जीतते ए द ण दशाम बढ़ते चले आये ह। मां सं ददे श राजे कराथ मह स कृतः ।। पाथानां च रतं तु यं सं ेपात् समुदा तम् । राजे ! उ ह ने बड़े स कारपूवक मुझे आपके यहाँ राजक य कर दे नेके लये संदेश भेजा है। महाराज! पा डव का यह च र मने अ य त सं ेपम आपके सम रखा है। तमवे य महाराज धमराजं यु ध रम् ।। पावकं राजसूयं च भगव तं हर भुम् । एतानवे य धम करं वं दातुमह स ।। आप धमराज यु ध रक ओर दे खये, प व करनेवाले राजसूयय तथा जगद र भगवान् ीह रक ओर भी यान द जये। धम नरेश! इन सबक ओर रखते ए आपको मुझे कर दे ना चा हये। वैश पायन उवाच तेन तद् भा षतं ु वा रा से ो वभीषणः । ी तमानभवद् राजन् धमा मा स चवैः सह ।।) वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! घटो कचक वह बात सुनकर धमा मा रा सराज वभीषण अपने म य के साथ बड़े स ए। स चा य तज ाह शासनं ी तपूवकम् । त च कालकृतं धीमान यम यत स भुः ।। ७४ ।। वभीषणने ेमपूवक ही उनका शासन वीकार कर लया। श शाली एवं बु मान् वभीषणने उसे कालका ही वधान समझा ।। ७४ ।। (ततो ददौ व च ा ण क बला न कुथा न च । द तका चनपयङ् कान् म णहेम व च तान् ।। े











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उ ह ने सहदे वके लये हाथीक पीठपर बछाने यो य व च क बल (कालीन) तथा हाथीदाँत और सुवणके बने ए पलंग दये, जनम सोने तथा र न जड़े ए थे। भूषणा न व च ा ण महाहा ण ब न च । वाला न च शु ा ण मण व वधान् बन् ।। का चना न च भा डा न कलशा न घटा न च । कटाहा य प च ा ण ो य ैव सह शः ।। इसके सवा ब त-से व च और ब मू य आभूषण भी भट कये। सु दर मूँगे, भाँ तभाँ तके म णर न, सोनेके बतन, कलश, घड़े, व च कड़ाहे और हजार जलपा सम पत कये। राजता न च भा डा न च ा ण च ब न च । श ाण म च ा ण म णमु ै व च तान् ।। इनके सवा चाँद के भी ब त-से ऐसे बतन दये, जनम च कारी क गयी थी। कुछ ऐसे श भट कये, जनम सुवण, म ण और मोती जड़े ए थे। य य तोरणे यु ान् ददौ तालां तुदश । मपङ् कजपु पा ण श बका म णभू षताः ।। य के फाटकपर लगानेयो य चौदह ताड़ दान कये। सुवणमय कमलपु प और म णज टत श बकाएँ भी द। मुकुटा न महाहा ण हेमवणा कु डलान् । हेमपु पा यनेका न ममा या न चापरान् ।। शङ् खां च संकाशा छतावतान् व च णः । ब मू य मुकुट, सुनहले कु डल, सोनेके बने ए अनेकानेक पु प, सोनेके ही हार तथा च माके समान उ वल एवं व च शतावत शंख भट कये। च दना न च मु या न मर ना यनेकशः ।। वासां स च महाहा ण क बला न ब य प । अ यां व वधान् राजन् र ना न च ब न च ।। स ददौ सहदे वाय तदा राजा वभीषणः ।) े च दन, अनेक कारके सुवण तथा र न, महँगे व , ब त-से क बल, अनेक जा तके र न तथा और भी भाँ त-भाँ तके ब मू य पदाथ राजा वभीषणने सहदे वको भट कये। ततः स ेषयामास र ना न व वधा न च । च दनागु का ा न द ा याभरणा न च ।। ७५ ।। वासां स च महाहा ण मण ैव महाधनान् । तथा उ ह ने नाना कारके र न, च दन, अगु के का , द आभूषण, ब मू य व और वशेष मू यवान् म ण-र न भी उसके साथ भजवाये ।। ७५ ।। ( वभीषणं च राजानम भवा क ृ ता लः ।। ी ै



द णं परी यैव नजगाम घटो कचः । तदन तर घटो कचने हाथ जोड़कर राजा वभीषणको णाम कया और उनक प र मा करके वहाँसे थान कया। ता न सवा ण र ना न अ ाशी त नशाचराः ।। आजः समुदा राजन् है ड बेन तदा सह । राजन्! घटो कचके साथ अासी नशाचर उन सब र न को प ँचानेके लये स तापूवक आये। र ना यादाय सवा ण त थे स घटो कचः ।। ततो र ना युपादाय है ड बो रा सैः सह । जगाम तूण लङ् कायाः सहदे वपदं त ।। आसे ः पा डवं सव लङ् घ य वा महोद धम् ।। इस कार उन सब र न को साथ ले घटो कचने रा स के साथ लंकासे सहदे वके पड़ावक ओर थान कया और समु लाँघकर वे सब-के-सब पा डु न दन सहदे वके नकट आ प ँचे। सहदे वो ददशाथ र नाहारान् नशाचरान् । आगतान् भीमसंकाशान् है ड बं च तथा नृप ।। राजन्! सहदे वने र न लेकर आये ए भयंकर नशाचर तथा घटो कचको भी दे खा। मला नैऋतान् ् वा वु ते भया दताः । भैमसे न ततो ग वा मा े यं ा लः थतः ।। उस समय उन रा स को दे खकर ा वड़ सै नक भयभीत हो सब ओर भागने लगे। इतनेम ही भीमसेनकुमार घटो कच मा न दन सहदे वके पास आ हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। ी तमानभवद् ् वा र नौघं तं च पा डवः । तं प र व य पा ण यां ् वा तान् ी तमानभूत् ।। वसृ य मलान् सवान् गमनायोपच मे ।) पा डु कुमार सहदे व वह र न-रा श दे खकर बड़े स ए। उ ह ने घटो कचको दोन हाथ से पकड़कर गले लगाया और सरे रा स क ओर दे खकर भी बड़ी स ता कट क । इसके बाद सम त ा वड़ सै नक को वदा करके सहदे व वहाँसे लौटनेक तैयारी करने लगे। यवतत ततो धीमान् सहदे वः तापवान् ।। ७६ ।। तैयारी पूरी हो जानेपर तापी और बु मान् सहदे व इ थक ओर चल दये ।। ७६ ।। एवं न ज य तरसा सा वेन वजयेन च । करदान् पा थवान् कृ वा याग छदरदमः ।। ७७ ।। इस कार बलपूवक जीतकर तथा सामनी तसे समझा-बुझाकर सब राजा को अपने अधीन करके उ ह करद बनाकर श ुदमन मा न दन इ थम वापस आ गये ।। ७७ ।। ( ौ ै

(र नभारमुपादाय ययौ सह नशाचरैः । इ थं ववेशाथ क पय व मे दनीम् ।। र न का वह भारी भार साथ लये नशाचर के साथ सहदे वने इ थ नगरम वेश कया। उस समय वे पैर क धमकसे सारी पृ वीको क पत करते ए-से चल रहे थे। ् वा यु ध रं राजन् सहदे वः कृता लः । ोऽ भवा त थौ स पू जत ैव तेन वै ।। राजन्! यु ध रको दे खते ही सहदे व हाथ जोड़ नतापूवक उनके चरण म पड़ गये। फर वनीतभावसे उनके समीप खड़े हो गये। उस समय यु ध रने भी उनका ब त स मान कया। लङ् का ा तान् धनौघां ् वा तान् लभान् बन् । ी तमानभवद् राजा व मयं च ययौ तदा ।। लंकासे ा त ई अ य त लभ एवं चुर धनरा शय को दे खकर राजा यु ध र बड़े स और व मत ए। कोट सह म धकं हर य य महा मने । व च ां तु मण ैव गोऽजा वम हषां तथा ।।) धमराजाय तत् सव नवे भरतषभ । कृतकमा सुखं राज ुवास जनमेजय ।। ७८ ।। भरत े जनमेजय! उस धनरा शम सह को टसे भी अ धक सुवण था। व च म ण एवं र न थे। गाय, भस, भेड़ और बक रय क सं या भी अ धक थी। राजन्! इन सबको महा मा धमराजक सेवाम सम पत करके कृतकृ य हो सहदे व सुखपूवक राजधानीम रहने लगे ।। ७८ ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण द वजयपव ण सहद े वद ण द वजये एक शोऽ यायः ।। ३१ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत द वजयपवम सहदे वके ारा द ण दशाक वजयसे स ब ध रखनेवाला इकतीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ३१ ।। (दा णा य अ धक पाठक े १०० ोक मलाकर कुल १७८ ोक ह)

* यह इ वाकुवंशीय जयका पु था। इसका सरा नाम य धन था। यह राजा बड़ा धमा मा था। इसक कथा अनुशासनपवके सरे अ यायम आती है। * जो अपने कान से ही शरीरको ढक ल उ ह ‘कण ावरण’ कहते ह। ाचीन कालम ऐसी जा तके लोग थे, जनके कान पैर तक लटकते थे।

ा शोऽ यायः नकुलके ारा प

म दशाक वजय

वैश पायन उवाच नकुल य तु व या म कमा ण वजयं तथा । वासुदेव जतामाशां यथासावजयत् भुः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! अब म नकुलके परा म और वजयका वणन क ँ गा। श शाली नकुलने जस कार भगवान् वासुदेव ारा अ धकृत प म दशापर वजय पायी थी, वह सुनो ।। १ ।। नयाय खा डव थात् तीचीम भतो दशम् । उ य म तमान् ाया मह या सेनया सह ।। २ ।। बु मान् मा कुमारने वशाल सेनाके साथ खा डव थसे नकलकर प म दशाम जानेके लये थान कया ।। २ ।। सहनादे न महता योधानां ग जतेन च । रथने म ननादै क पयन् वसुधा ममाम् ।। ३ ।। वे अपने सै नक के महान् सहनाद, गजना तथा रथके प हय क घघराहटक तुमुल व नसे इस पृ वीको क पत करते ए जा रहे थे ।। ३ ।। ततो ब धनं र यं गवां धनधा यवत् । का तकेय य द यतं रोहीतकमुपा वत् ।। ४ ।। जाते-जाते वे ब त धन-धा यसे स प , गौ क ब लतासे यु तथा वा मका तकेयके अ य त य रमणीय रोहीतक* पवत एवं उसके समीपवत दे शम जा प ँचे ।। ४ ।। त यु ं मह चासी छू रैम मयूरकैः । म भूम स का यन तथैव ब धा यकम् ।। ५ ।। शैरीषकं महो थं च वशे च े महा ु तः । आ ोशं चैव राज ष तेन यु मभू महत् ।। ६ ।। वहाँ उनका म मयूर नामवाले शूरवीर य के साथ घोर सं ाम आ। उसपर अ धकार करनेके प ात् महान् तेज वी नकुलने समूची म भू म (मारवाड़), चुर धनधा यपूण शैरीषक और महो थ नामक दे श पर अ धकार ा त कर लया। महो थ दे शके अ धप त राज ष आ ोशको भी जीत लया। आ ोशके साथ उनका बड़ा भारी यु आ था ।। ५-६ ।। तान् दशाणान् स ज वा च त थे पा डु न दनः । शब गतान ब ान् मालवान् प चकपटान् ।। ७ ।। तथा मा य मकां ैव वाटधानान् जानथ । े





त प ात् दशाणदे शपर वजय ा त करके पा डु न दन नकुलने श ब, गत, अ ब , मालव, पंचकपट एवं मा य मक दे श को थान कया और उन सबको जीतकर वाटधानदे शीय य को भी हराया ।। ७ ।। पुन प रवृ याथ पु करार यवा सनः ।। ८ ।। गणानु सवसंकेतान् जयत् पु षषभः । पुनः उधरसे लौटकर नर े नकुलने पु करार य- नवासी उ सवसंकेत नामक गण को परा त कया ।। ८ ।। स धुकूला ता ये च ामणीया महाबलाः ।। ९ ।। शू ाभीरगणा ैव ये चा य सर वतीम् । वतय त च ये म यैय च पवतवा सनः ।। १० ।। समु के तटपर रहनेवाले जो महाबली ामणीय ( ाम शासकके वंशज) य थे, सर वती नद के कनारे नवास करनेवाले जो शू आभीरगण थे, मछ लय से जी वका चलानेवाले जो धीवर जा तके लोग थे तथा जो पवत पर वास करनेवाले सरे- सरे मनु य थे, उन सबको नकुलने जीतकर अपने वशम कर लया ।। ९-१० ।। कृ नं प चनदं चैव तथैवामरपवतम् । उ र यो तषं चैव तथा द कटं पुरम् ।। ११ ।। ारपालं च तरसा वशे च े महा ु तः । फर स पूण पंचनददे श (पंजाब), अमरपवत, उ र यो तष, द कट नगर और ारपालपुरको अ य त का तमान् नकुलने शी ही अपने अ धकारम कर लया ।। ११ ।। रामठान् हारणां ती या ैव ये नृपाः ।। १२ ।। तान् सवान् स वशे च े शासनादे व पा डवः । त थः ेषयामास वासुदेवाय भारत ।। १३ ।। रामठ, हार, ण तथा अ य जो प मी नरेश थे, उन सबको पा डु कुमार नकुलने आ ामा से ही अपने अधीन कर लया। भारत! वह रहकर उ ह ने वसुदेवन दन भगवान् ीकृ णके पास त भेजा ।। १२-१३ ।। स चा य गतभी राजन् तज ाह शासनम् । ततः शाकलम ये य म ाणां पुटभेदनम् ।। १४ ।। मातुलं ी तपूवण श यं च े वशे बली । राजन्! उ ह ने केवल ेमके कारण नकुलका शासन वीकार कर लया। इसके बाद शाकलदे शको जीतकर बलवान् नकुलने म दे शक राजधानीम वेश कया और वहाँके शासक अपने मामा श यको ेमसे ही वशम कर लया ।। १४ ।। स तेन स कृतो रा ा स काराह वशा पते ।। १५ ।। र ना न भूरी यादाय स त थे युधा प तः । े







राजन्! राजा श यने स कारके यो य नकुलका यथावत् स कार कया। श यसे भटम ब त-से र न लेकर यो ा के अ धप त मा कुमार आगे बढ़ गये ।। १५ ।। ततः सागरकु थान् ले छान् परमदा णान् ।। १६ ।। प वान् बबरां ैव करातान् यवना छकान् । ततो र ना युपादाय वशे कृ वा च पा थवान् । यवतत कु े ो नकुल माग वत् ।। १७ ।। तदन तर समु टापु म रहनेवाले अ य त भयंकर ले छ, प व, बबर, करात, यवन और शक को जीतकर उनसे र न क भट ले वजयके व च उपाय के जाननेवाले कु े नकुल इ थक ओर लौटे ।। १६-१७ ।। करभाणां सह ा ण कोशं त य महा मनः । ऊ दश महाराज कृ ा दव महाधनम् ।। १८ ।। महाराज! उन महामना नकुलके ब मू य खजानेका बोझ दस हजार हाथी बड़ी क ठनाईसे ढो रहे थे ।। १८ ।। इ थगतं वीरम ये य स यु ध रम् । ततो मा सुतः ीमान् धनं त मै यवेदयेत् ।। १९ ।। तदन तर ीमान् मा कुमारने इ थम वराजमान वीरवर राजा यु ध रसे मलकर वह सारा धन उ ह सम पत कर दया ।। १९ ।। एवं व ज य नकुलो दशं व णपा लताम् । तीच वासुदेवेन न जतां भरतषभ ।। २० ।। भरत े ! इस कार भगवान् वासुदेवके ारा अपने अ धकारम क ई, व णपा लत प म दशापर वजय पाकर नकुल इ थ लौट आये ।। २० ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण द वजयपव ण नकु ल तीची वजये ा शोऽ यायः ।। ३२ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत द वजयपवम नकुलके ारा प म दशाक वजयसे स ब ध रखनेवाला ब ीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ३२ ।।

* इसीको आजकल रोहतक (पंजाब) कहते ह।

(र ाजसूयपव) य

ंशोऽ यायः

यु ध रके शासनक वशेषता, ीकृ णक आ ासे यु ध रका राजसूयय क द ा लेना तथा राजा , ा ण एवं सगे-स ब धय को बुलानेके लये नम ण भेजना वैश पायन उवाच (एवं न ज य पृ थव ातरः कु न दन । वतमानाः वधमण शशासुः पृ थवी ममाम् ।। वैश पायनजी कहते ह—कुशन दन! इस कार सारी पृ वीको जीतकर अपने धमके अनुसार बताव करते ए पाँच भाई पा डव इस भूम डलका शासन करने लगे। चतु भभ मसेना ै ातृ भः स हतो नृपः । अनुगृ जाः सवाः सववणानगोपयत् ।। भीमसेन आ द चार भाइय के साथ राजा यु ध र स पूण जापर अनु ह करते ए सब वणके लोग को संतु रखते थे। अ वरोधेन सवषां हतं च े यु ध रः । ीयतां द यतां सव मु वा कोषं बलं वना ।। साधु धम त पाथ य ना य छयेत भा षतम् । यु ध र कसीका भी वरोध न करके सबके हतसाधनम लगे रहते थे। ‘सबको तृ त एवं स कया जाय, खजाना खोलकर सबको खुले हाथ दान दया जाय, कसीपर बल योग न कया जाय, धम! तुम ध य हो।’ इ या द बात के सवा यु ध रके मुखसे और कुछ नह सुनायी पड़ता था। एवंवृ े जगत् त मन् पतरीवा वर यत ।। न त य व ते े ा ततोऽ याजातश ुता ।) उनके ऐसे बतावके कारण सारा जगत् उनके त वैसा ही अनुराग रखने लगा, जैसे पु पताके त अनुर होता है। राजा यु ध रसे े ष रखनेवाला कोई नह था, इसी लये वे ‘अजातश ु’ कहलाते थे। र णाद् धमराज य स य य प रपालनात् । श ूणां पणा चैव वकम नरताः जाः ।। १ ।। औ

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धमराज यु ध र जाक र ा, स यका पालन और श ु का संहार करते थे। उनके इन काय से न त एवं उ सा हत होकर जावगके सब लोग अपने-अपने वणा मो चत कम के पालनम संल न रहते थे ।। १ ।। बलीनां स यगादानाद् धमत ानुशासनात् । नकामवष पज यः फ तो जनपदोऽभवत् ।। २ ।। यायपूवक कर लेने और धमपूवक शासन करनेसे उनके रा यम मेघ इ छानुसार वषा करते थे। इस कार यु ध रका स पूण जनपद धन-धा यसे स प हो गया था ।। २ ।। सवार भाः सु वृ ा गोर ा कषणं व णक् । वशेषात् सवमेवैतत् संज े राजकमणः ।। ३ ।। गोर ा, खेती और ापार आ द सभी काय अ छे ढं गसे होने लगे। वशेषतः राजाक सु व थासे ही यह सब कुछ उ म पसे स प होता था ।। ३ ।। द यु यो व चके यो वा राजन् त पर परम् । राजव लभत ैव ना ूय त मृषा गरः ।। ४ ।। राजन्! और क तो बात ही या है, चोर , ठग , राजा अथवा राजाके व ासपा य के मुखसे भी वहाँ कोई झूठ बात नह सुनी जाती थी। केवल जाके साथ ही नह , आपसम भी वे लोग झूठ-कपटका बताव नह करते थे ।। ४ ।। अवष चा तवष च ा धपावकमू छनम् । सवमेतत् तदा नासीद् धम न ये यु ध रे ।। ५ ।। धमपरायण यु ध रके शासनकालम अनावृ , अ तवृ , रोग- ा ध तथा आग लगने आ द उप व का नाम भी नह था ।। ५ ।। यं कतुमुप थातुं ब लकम वभावजम् । अ भहतु नृपा ज मुना यैः कायः कथंचन ।। ६ ।। राजा लोग उनके यहाँ वाभा वक भट दे ने अथवा उनका कोई य काय करनेके लये ही आते थे, यु आ द सरे कसी कामसे नह ।। ६ ।। ध यधनागमै त य ववृधे नचयो महान् । कतु य य न श येत यो वषशतैर प ।। ७ ।। धमपूवक ा त होनेवाले धनक आयसे उनका महान् धन-भ डार इतना बढ़ गया था क सैकड़ वष तक खुले हाथ लुटानेपर भी उसे समा त नह कया जा सकता था ।। ७ ।। वको य परीमाणं कोश य च महीप तः । व ाय राजा कौ तेयो य ायैव मनो दधे ।। ८ ।। कु तीन दन राजा यु ध रने अपने अ -व के भंडार तथा खजानेका प रमाण जानकर य करनेका ही न य कया ।। ८ ।। सु द ैव ये सव पृथक् च सह चा ुवन् । य काल तव वभो यताम सा तम् ।। ९ ।। उनके जतने हतैषी सु द् थे, वे सभी अलग-अलग और एक साथ यही कहने लगे —‘ भो! यह आपके य करनेका उपयु समय आया है; अतः अब उसका आर भ े’

क जये’ ।। ९ ।। अथैवं ुवतामेव तेषाम याययौ ह रः । ऋ षः पुराणो वेदा मा य ैव वजानताम् ।। १० ।। वे सु द् इस तरहक बात कर ही रहे थे क उसी समय भगवान् ीह र आ प ँचे। वे पुराणपु ष, नारायण ऋ ष, वेदा मा एवं व ानीजन के लये भी अग य परमे र ह ।। १० ।। जगत त थुषां े ः भव ा यय ह । भूतभ भव ाथः केशवः के शसूदनः ।। ११ ।। वे ही थावर-जंगम ा णय के उ म उ प - थान और लयके अ ध ान ह। भूत, वतमान और भ व य—तीन काल के नय ता ह। वे ही केशी दै यको मारनेवाले केशव ह ।। ११ ।। ाकारः सववृ णीनामाप वभयदोऽ रहा । बला धकारे न य स यगानक भम् ।। १२ ।। उ चावचमुपादाय धमराजाय माधवः । धनौघं पु ष ा ो बलेन महताऽऽवृतः ।। १३ ।। वे स पूण वृ णवं शय के परकोटे क भाँ त संर क, आप म अभय दे नेवाले तथा उनके श ु का संहार करनेवाले ह। पु ष सह माधव अपने पता वसुदेवजीको ारकाक सेनाके आ धप यपर था पत करके धमराजके लये नाना कारके धन-र न क भट ले वशाल सेनाके साथ वहाँ आये थे ।। १२-१३ ।। तं धनौघमपय तं र नसागरम यम् । नादयन् रथघोषेण ववेश पुरो मम् ।। १४ ।। उस धनरा शक कह सीमा नह थी, मानो र न का अ य महासागर हो। उसे लेकर रथ क आवाजसे समूची दशा को त व नत करते ए वे उ म नगर इ थम व ए ।। १४ ।। पूणमापूरयं तेषां ष छोकावहोऽभवत् । असूय मव सूयण नवात मव वायुना । कृ णेन समुपेतेन ज षे भारतं पुरम् ।। १५ ।। पा डव का धन-भ डार तो य ही भरा-पूरा था, भगवान्ने (उ ह अ य धनक भट दे कर) उसे और भी पूण कर दया। उनका शुभागमन पा डव के श ु का शोक बढ़ानेवाला था। बना सूयका अ धकारपूण जगत् सूय दय होनेसे जस कार काशसे भर जाता है, बना वायुके थानम वायुके चलनेसे जैसे नूतन ाण-श का संचार हो उठता है, उसी कार भगवान् ीकृ णके पदापण करनेपर सम त इ थम हष लास छा गया ।। १५ ।। तं मुदा भसमाग य स कृ य च यथा व ध । स पृ ् वा कुशलं चैव सुखासीनं यु ध रः ।। १६ ।। धौ य ै पायनमुखैऋ व भः पु षषभ । ी ै ै ी

भीमाजुनयमै ैव स हतः कृ णम वीत् ।। १७ ।। नर े जनमेजय! राजा यु ध र बड़े स होकर उनसे मले। उनका व धपूवक वागत-स कार करके कुशलमंगल पूछा और जब वे सुखपूवक बैठ गये, तब धौ य, ै पायन आ द ऋ वज तथा भीम, अजुन, नकुल, सहदे व—चार भाइय के साथ नकट जाकर यु ध रने ीकृ णसे कहा ।। १६-१७ ।। यु ध र उवाच व कृते पृ थवी सवा म शे कृ ण वतते । धनं च ब वा णय व सादा पा जतम् ।। १८ ।। यु ध रने कहा— ीकृ ण! आपक दयासे आपक सेवाके लये सारी पृ वी इस समय मेरे अधीन हो गयी है। वा णय! मुझे धन भी ब त ा त हो गया है ।। १८ ।। सोऽह म छा म तत् सव व धवद् दे वक सुत । उपयो ुं जा ये यो ह वाहे च माधव ।। १९ ।। दे वक न दन माधव! वह सारा धन म व धपूवक े ा ण तथा ह वाहन अ नके उपयोगम लाना चाहता ँ ।। १९ ।। तदहं य ु म छा म दाशाह स हत वया । अनुजै महाबाहो त मानु ातुमह स ।। २० ।। महाबा दाशाह! अब म आप तथा अपने छोटे भाइय के साथ य करना चाहता ँ। इसके लये आप मुझे आ ा द ।। २० ।। तद् द ापय गो व द वमा मानं महाभुज । वयी व त दाशाह वपा मा भ वता हम् ।। २१ ।। वशाल भुजा वाले गो व द! आप वयं य क द ा हण क जये। दाशाह! आपके य करनेपर म पापर हत हो जाऊँगा ।। २१ ।। मां वा य यनुजानी ह सहै भरनुजै वभो । अनु ात वया कृ ण ा ुयां तुमु मम् ।। २२ ।। भो! अथवा मुझे अपने इन छोटे भाइय के साथ द ा हण करनेक आ ा द जये। ीकृ ण! आपक अनु ा मलनेपर ही म उस उ म य क द ा हण क ँ गा ।। २२ ।। वैश पायन उवाच तं कृ णः युवाचेदं ब वा गुण व तरम् । वमेव राजशा ल स ाडह महा तुम् । स ा ु ह वया ा ते कृतकृ या ततो वयम् ।। २३ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तब भगवान् ीकृ णने राजसूयय के गुण का व तारपूवक वणन करके उनसे इस कार कहा—‘राज सह! आप साट ् होने यो य ह, अतः आप ही इस महान् य क द ा हण क जये। आपके द ा लेनेपर हम सबलोग कृतकृ य हो जायँगे ।। २३ ।। यज वाभी सतं य ं म य ेय यव थते । े े

नयुङ् व वं च मां कृ ये सव कता म ते वचः ।। २४ ।। आप अपने इस अभी य को ार भ क जये। म आपका क याण करनेके लये सदा उ त ँ। मुझे आव यक कायम लगाइये, म आपक सब आ ा का पालन क ँ गा’ ।। २४ ।। यु ध र उवाच सफलः कृ ण संक पः स नयता मम । य य मे वं षीकेश यथे सतमुप थतः ।। २५ ।। यु ध र बोले— ीकृ ण मेरा संक प सफल हो गया, मेरी स सु न त है; य क षीकेश! आप मेरी इ छाके अनुसार वयं ही यहाँ उप थत हो गये ह ।। २५ ।। वैश पायन उवाच अनु ात तु कृ णेन पा डवो ातृ भः सह । ई जतुं राजसूयेन साधना युपच मे ।। २६ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! भगवान् ीकृ णसे आ ा लेकर भाइय स हत पा डु न दन यु ध रने राजसूयय करनेके लये साधन जुटाना आर भ कया ।। २६ ।। तत वा ापयामास पा डवोऽ र नबहणः । सहदे वं युधां े ं म ण ैव सवशः ।। २७ ।। उस समय श ु का संहार करनेवाले पा डु कुमारने यो ा म े सहदे व तथा स पूण म य को आ ा द ।। २७ ।। अ मन् तौ यथो ा न य ा ा न जा त भः । तथोपकरणं सव म ला न च सवशः ।। २८ ।। अ धय ां स भारान् धौ यो ान् मेव ह । समानय तु पु षा यथायोगं यथा मम् ।। २९ ।। ‘इस य के लये ा ण के बताये अनुसार य के अंगभूत सामान, आव यक उपकरण, सब कारक मांग लक व तुएँ तथा धौ यजीक बतायी ई य ोपयोगी साम ी —इन सभी व तु को मशः जैसे मल, वैसे शी ही अपने सेवक जाकर ले आव ।। २८-२९ ।। इ सेनो वशोक पू ाजुनसार थः । अ ा ाहरणे यु ाः स तु म यका यया ।। ३० ।। ‘इ सेन, वशोक और अजुनका सार थ पू , ये मेरा य करनेक इ छासे अ आ दके सं हके कामपर जुट जायँ ।। ३० ।। सवकामा काय तां रसग धसम वताः । मनोरथ ी तकरा जानां कु स म ।। ३१ ।। ‘कु े ! जनको खानेक ायः सभी इ छा करते ह, वे रस और ग धसे यु भाँ तभाँ तके म ा आ द तैयार कराये जाँय, जो ा ण को उनक इ छाके अनुसार ी त दान करनेवाले ह ’ ।। ३१ ।। े

त ा यसमकालं च कृतं सव यवेदयत् । सहदे वो युधां े ो धमराजे यु ध रे ।। ३२ ।। धमराज यु ध रक यह बात समा त होते ही यो ा म े सहदे वने उनसे नवेदन कया, ‘यह सब व था हो चुक है’ ।। ३२ ।। ततो ै पायनो राज ृ वजः समुपानयत् । वेदा नव महाभागान् सा ा मू तमतो जान् ।। ३३ ।। राजन्! तदन तर ै पायन ासजी ब त-से ऋ वज को ले आये। वे महाभाग ा ण मानो सा ात् मू तमान् वेद ही थे ।। ३३ ।। वयं वमकरोत् त य स यवतीसुतः । धनंजयानामृषभः सुसामा सामगोऽभवत् ।। ३४ ।। वयं स यवतीन दन ासने उस य म ाका काम सँभाला। धनंजयगो ीय ा ण म े सुसामा सामगान करनेवाले ए ।। ३४ ।। या व यो बभूवाथ ोऽ वयुस मः । पैलो होता वसोः पु ो धौ येन स हतोऽभवत् ।। ३५ ।। और न या व य उस य के े तम अ वयु थे। वसुपु पैल धौ य मु नके साथ होता बने थे ।। ३५ ।। एतेषां पु वगा श या भरतषभ । बभूवुह गाः सव वेदवेदा पारगाः ।। ३६ ।। भरत े ! इनके पु और श यवगके लोग, जो सब-के-सब वेद-वेदांग के पारंगत व ान् थे, ‘हो ग’ (स तहोता) ए ।। ३६ ।। ते वाच य वा पु याहमूह य वा च तं व धम् । शा ो ं पूजयामासु तद् दे वयजनं महत् ।। ३७ ।। उन सबने पु याहवाचन कराकर उस व धका ऊहन (अथा ‘राजसूयेनय ये, वारा यमवा वा न’ —म वारा य ा त क ँ , इस उ े यसे राजसूयय क ँ गा, इ या द पसे संक प) कराकर शा ो व धसे उस महान् य थानका पूजन कराया ।। ३७ ।। त च ु रनु ाताः शरणा युत श पनः । ग धव त वशाला न वे मानीव दवौकसाम् ।। ३८ ।। उस थानपर राजाक आ ासे श पय ने दे वम दर के समान वशाल एवं सुग धत भवन बनाये ।। ३८ ।। तत आ ापयामास स राजा राजस मः । सहदे वं तदा स ो म णं पु षषभः ।। ३९ ।। आम णाथ तां वं ेषय वाशुगान् तम् । उप ु य वचो रा ः स तान् ा हणोत् तदा ।। ४० ।। तदन तर राज शरोम ण नर े धमराज यु ध रने तुरंत ही म ी सहदे वको आ ा द , ‘सब राजा तथा ा ण को आम त करनेके लये तुरंत ही शी गामी त भेजो।’ े े ो े औ

राजाक यह बात सुनकर सहदे वने त को भेजा और कहा— ।। ३९-४० ।। आम य वं रा ेषु ा णान् भू मपानथ । वश मा यान् शू ां सवानानयते त च ।। ४१ ।। ‘तुमलोग सभी रा य म घूम-घूमकर वहाँके राजा , ा ण , वै य तथा सब माननीय शू को नम त कर दो और बुला ले आओ’ ।। ४१ ।। वैश पायन उवाच समा ता ततो ताः पा डवेय य शासनात् । आम या बभूवु आनयं ापरान् तम् । तथा परान प नराना मनः शी गा मनः ।। ४२ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! तदन तर पा डु पु राजा यु ध रके आदे शसे सहदे वक आ ा पाकर सब शी गामी त गये और उ ह ने ा ण आ द सब वण के लोग को नम त कया तथा ब त को वे अपने साथ ही शी बुला लाये। वे अपनेसे स ब ध रखनेवाले अ य य को भी साथ लाना न भूले ।। ४२ ।। तत ते तु यथाकालं कु तीपु ं यु ध रम् । द या च रे व ा राजसूयाय भारत ।। ४३ ।। भारत! तदन तर वहाँ आये ए सब ा ण ने ठ क समयपर कु तीपु यु ध रको राजसूयय क द ा द ।। ४३ ।। द तः स तु धमा मा धमराजो यु ध रः । जगाम य ायतनं वृतो व ैः सह शः ।। ४४ ।। य क द ा लेकर धमा मा धमराज यु ध र सह ा ण से घरे ए य म डपम गये ।। ४४ ।। ातृ भ ा त भ ैव सु ः स चवैः सह । यै मनु ये ै नानादे शसमागतैः ।। ४५ ।। अमा यै नर े ो धम व हवा नव । उस समय उनके सगे भाई, जा त-ब धु, सु द्, सहायक अनेक दे श से आये ए य-नरेश तथा म गण भी थे। नर े यु ध र मू तमान् धम ही जान पड़ते थे ।। ४५ ।। आज मु ा णा त वषये य तत ततः ।। ४६ ।। सव व ासु न णाता वेदवेदा पारगाः । त प ात् वहाँ भ - भ दे श से ा णलोग आये, जो स पूण व ा म न पात तथा वेद-वेदांग के पारंगत व ान् थे ।। ४६ ।। तेषामावसथां ु धमराज य शासनात् ।। ४७ ।। ब ा छादनैयु ान् सगणानां पृथक् पृथक् । सवतुगुणस प ान् श पनोऽथ सह शः ।। ४८ ।। े











धमराजक आ ासे हजार श पय ने आ मीयजन के साथ आये ए उन ा ण के ठहरनेके लये पृथक्-पृथक् घर बनाये थे, जो ब त-से अ और व से प रपूण थे और जनम सभी ऋतु म सुखपूवक रहनेक सु वधाएँ थ ।। ४७-४८ ।। तेषु ते यवसन् राजन् ा णा नृपस कृताः । कथय तः कथा ब ः प य तो नटनतकान् ।। ४९ ।। राजन्! उन गृह म वे ा णलोग राजासे स कार पाकर नवास करने लगे। वहाँ वे नाना कारक कथाएँ कहते और नट-नतक के खेल दे खते थे ।। ४९ ।। भु तां चैव व ाणां वदतां च महा वनः । अ नशं ूयते त मु दतानां महा मनाम् ।। ५० ।। वहाँ भोजन करते और बोलते ए आन दम न महा मा ा ण का नर तर महान् कोलाहल सुनायी पड़ता था ।। ५० ।। द यतां द यतामेषां भु यतां भु यता म त । एव काराः संज पाः ूय ते मा न यशः ।। ५१ ।। ‘इनको द जये, इ ह परो सये, भोजन क जये, भोजन क जये’ इसी कारके श द वहाँ त दन कान म पड़ते थे ।। ५१ ।। गवां शतसह ा ण शयनानां च भारत । म य यो षतां चैव धमराजः पृथग् ददौ ।। ५२ ।। भारत! धमराज यु ध रने एक लाख गौएँ, उतनी ही शयाए ,ँ एक लाख वणमु ाएँ तथा उतनी ही अ ववा हत युव तयाँ पृथक्-पृथक् ा ण को दान क ।। ५२ ।। ावततैवं य ः स पा डव य महा मनः । पृ थ ामेकवीर य श येव व पे ।। ५३ ।। इस कार वगम इ क भाँ त भूम डलम अ तीय वीर महा मा पा डु न दन यु ध रका वह य ार भ आ ।। ५३ ।। ततो यु ध रो राजा ेषयामास पा डवम् । नकुलं हा तनपुरं भी माय पु षषभः ।। ५४ ।। ोणाय धृतरा ाय व राय कृपाय च । ातॄणां चैव सवषां येऽनुर ा यु ध रे ।। ५५ ।। तदन तर पु षोतम राजा यु ध रने भी म, ोणाचाय, धृतरा, व र, कृपाचाय तथा य धन आ द सब भाइय एवं अपनेम अनुराग रखनेवाले अ य जो लोग वहाँ रहते थे, उन सबको बुलानेके लये पा डु पु नकुलको ह तनापुर भेजा ।। ५४-५५ ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण राजसूयपव ण राजसूयद ायां य ंशोऽ यायः ।। ३३ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत राजसूयपवम राजसूयद ा वषयक ततीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ३३ ।। (दा णा य अ धक पाठक े ४ ोक मलाकर कुल ५९ ोक ह)

चतु

ंशोऽ यायः

यु ध रके य म सब दे शके राजा , कौरव तथा यादव का आगमन और उन सबके भोजन- व ाम आ दक सु व था वैश पायन उवाच स ग वा हा तनपुरं नकुलः स म तजयः । भी ममाम या च े धृतरा ं च पा डवः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! यु वजयी पा डु कुमार नकुलने ह तनापुरम जाकर भी म और धृतराको नम त कया ।। १ ।। स कृ याम ता तेन आचाय मुखा ततः । ययुः ीतमनसो य ं पुरःसराः ।। २ ।। त प ात् उ ह ने बड़े स कारके साथ आचाय आ दको भी यौता दया। वे सब लोग बड़े स मनसे ा ण को आगे करके उस य म गये ।। २ ।। सं ु य धमराज य य ं य वद तदा । अ ये च शतश तु ैमनो भभरतषभ ।। ३ ।। भरतकुलभूषण! य वे ा धमराजका य सुनकर अ य सैकड़ मनु य भी संतु दयसे वहाँ गये ।। ३ ।। ु कामाः सभां चैव धमराजं च पा डवम् । द यः सव समापेतुः या त भारत ।। ४ ।। समुपादाय र ना न व वधा न महा त च । भारत! धमराज यु ध र और उनक सभाको दे खनेके लये स पूण दशा से सभी य वहाँ नाना कारके ब मू य र न क भट लेकर आये ।। ४ ।। धृतरा भी म व र महाम तः ।। ५ ।। य धनपुरोगा ातरः सव एव ते । गा धारराजः सुबलः शकु न महाबलः ।। ६ ।। अचलो वृषक ैव कण रा थनां वरः । तथा श य बलवान् बा क महाबलः ।। ७ ।। सोमद ोऽथ कौर ो भू रभू र वाः शलः । अ थामा कृपो ोणः सै धव जय थः ।। ८ ।। य सेनः सपु शा व वसुधा धपः । ा यो तष नृप तभगद ो महारथः ।। ९ ।। स तु सवः सह ले छै ः सागरानूपवा स भः । ी





पवतीया राजानो राजा चैव बृहलः ।। १० ।। पौ को वासुद े व व ः का ल क तथा । आकषाः कु तला ैव मालवा ा का तथा ।। ११ ।। ा वडाः सहला ैव राजा का मीरक तथा । कु तभोजो महातेजाः पा थवो गौरवाहनः ।। १२ ।। बा का ापरे शूरा राजानः सव एव ते । वराटः सह पु ा यां मावे ल महाबलः ।। १३ ।। राजानो राजपु ा नानाजनपदे राः । धृतरा, भी म, महाबु मान् व र, य धन आ द सभी भाई, गा धारराज सुबल, महाबली शकु न, अचल, वृषक, र थय म े कण, बलवान् राजा श य, महाबली बा क, सोमद , कु न दन भू र, भू र वा, शाल, अ थामा, कृपाचाय, ोणाचाय, स धुराज जय थ, पु स हत पद, राजा शा व, ा यो तषपुरके नरेश महारथी भगद , जनके साथ समु के टापु म रहनेवाले सब जा तय के ले छ भी थे, पवतीय नृप तगण, राजा बृहल, पौ क वासुदेव, वंगदे शके राजा, क लगनरेश, आकष, कु तल, मालव आ , ा वड और सहलदे शके नरेशगण, का मीरनरेश, महातेज वी कु तभोज, राजा गौरवाहन, बा क, सरे शूर नृप तगण, अपने दोन पु के साथ वराट, महाबली मावे ल तथा नाना जनपद के शासक राजा एवं राजकुमार उस य म पधारे थे ।। ५—१३ ।। शशुपालो महावीयः सह पु ेण भारत ।। १४ ।। आग छत् पा डवेय य य ं समर मदः । राम ैवा न कङ् क सहसारणः ।। १५ ।। गद ु नसा बा चा दे ण वीयवान् । उ मुको नशठ ैव वीर ा ावह तथा ।। १६ ।। वृ णयो नखला ा ये समाज मुमहारथाः । भारत! पा डु न दन यु ध रके उस य म रण मद महापरा मी राजा शशुपाल भी अपने पु के साथ आया था। इसके सवा बलराम, अ न , कंक, सारण, गद, ु न, सा ब, परा मी चा दे ण, उ मुक, नशठ, वीर अंगावह तथा अ य सभी वृ णवंशी महारथी उस य म आये थे ।। १४—१६ ।। एते चा ये च बहवो राजानो म यदे शजाः ।। १७ ।। आज मुः पा डु पु य राजसूयं महा तुम् । ये तथा सरे भी ब त-से-म यदे शीय नरेश पा डु न दन यु ध रके राजसूय महाय म स म लत ए थे ।। १७ ।। द तेषामावसथान् धमराज य शासनात् ।। १८ ।। ब भ या वतान् राजन् द घकावृ शो भतान् । तथा धमा मजः पूजां च े तेषां महा मनाम् ।। १९ ।। े





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धमराजक आ ासे ब धक ने उनके ठहरनेके लये उ म भवन दये, जो ब त अ धक भोजनसाम ीसे स प थे। राजन्! उन घर के भीतर नानके लये बाव लयाँ बनी थ और वे भाँ त-भाँ तके वृ से भी सुशो भत थे। धमपु यु ध र उन सभी महा मा नरेश का वागत-स कार करते थे ।। १८-१९ ।। स कृता यथो ा मुरावसथान् नृपाः । कैलास शखर यान् मनो ान् भू षतान् ।। २० ।। उनसे स मा नत हो उ ह के बताये ए व भ भवन म जाकर राजालोग ठहरते थे। वे सभी भवन कैलास शखरके समान ऊँचे और भ थे। नाना कारके से वभू षत एवं मनोहर थे ।। २० ।। सवतः संवृतानु चैः ाकारैः सुकृतैः सतैः । सुवणजालसंवीतान् म णकु मभू षतान् ।। २१ ।। वे भ भवन सब ओरसे सु दर, सफेद और ऊँचे परकोट ारा घरे ए थे। उनम सोनेक झालर लगी थ । उनके आँगनके फशम म ण एवं र न जड़े ए थे ।। २१ ।। सुखारोहणसोपानान् महासनप र छदान् । दामसमव छ ानु मागु ग धनः ।। २२ ।। उनम सुखपूवक ऊपर चढ़नेके लये सी ढ़याँ बनी ई थ । उन महल के भीतर ब मू य एवं बड़े-बड़े आसन तथा अ य आव यक सामान थे। उन घर को माला से सजाया गया था। उनम उ म अगु क सुग ध ा त हो रही थी ।। २२ ।। हंसे वणस शानायोजनसुदशनान् । अस बाधान् सम ारान् युतानु चावचैगुणैः ।। २३ ।। वे सभी अ त थभवन हंस और च माके समान सफेद थे। एक योजन रसे ही वे अ छ तरह दखायी दे ने लगते थे। उनम थानक संक णता या तंगी नह थी। सबके दरवाजे बराबर थे। वे सभी गृह व भ गुण (सुख-सु वधा )-से यु थे ।। २३ ।। ब धातु नब ा ान् हमव छखरा नव । उनक द वार अनेक कारक धातु से च त थ तथा वे हमालयके शखर क भाँ त सुशो भत हो रहे थे ।। २३ ।। व ा ता ते ततोऽप यन् भू मपा भू रद णम् ।। २४ ।। वृतं सद यैब भधमराजं यु ध रम् । तत् सदः पा थवै क ण ा णै मह ष भ । ाजते म तदा राजन् नाकपृ ं यथामरैः ।। २५ ।। वहाँ व ाम करनेके अन तर वे भू ममपाल ब त द णा दे नेवाले एवं ब तेरे सद य से घरे ए धमराज यु ध रसे मले। जनमेजय! उस समय राजा , ा ण तथा मह षय से भरा आ वह य म डप दे वता से भरे-पूरे वगलोकके समान शोभा पा रहा था ।। २४-२५ ।। ी







इत

ीमहाभारते सभापव ण राजसूयपव ण नम तराजागमने चतु ंशोऽ यायः ।। ३४ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत राजसूयपवम नम त राजा का आगमन वषयक च तीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ३४ ।।

प च शोऽ यायः राजसूयय का वणन वैश पायन उवाच पतामहं गु ं चैव युदग ् य यु ध रः । अ भवा ततो राज दं वचनम वीत् ।। १ ।। भी मं ोणं कृपं ौ ण य धन व वशती । अ मन् य े भव त मामनुगृ तु सवशः ।। २ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! पतामह भी म तथा गु ोणाचाय आ दक अगवानी करके यु ध रने उनके चरण म णाम कया और भी म, ोण, कृप, अ थामा, य धन और व वश तसे कहा—‘इस य म आपलोग सब कारसे मुझपर अनु ह कर ।। १-२ ।। इदं वः सुमह चैव य दहा त धनं मम । णय तु भव तो मां यथे म भम ताः ।। ३ ।। यहाँ मेरा जो यह महान् धन है, उसे आपलोग मेरी ाथना मानकर इ छानुसार स कम म लगाइये ।। ३ ।। एवमु वा स तान् सवान् द तः पा डवा जः । युयोज स यथायोगम धकारे वन तरम् ।। ४ ।। य द त यु ध रने ऐसा कहकर उन सबको यथायो य अ धकार म लगाया ।। ४ ।। भ यभो या धकारेषु ःशासनमयोजयत् । प र हे ा णानाम थामानमु वान् ।। ५ ।। भ य-भो य आ द साम ीक दे ख-रेख तथा उसके बाँटने परोसनेक व थाका अ धकार ःशासनको दया। ा ण के वागत-स कारका भार उ ह ने अ थामाको स प दया ।। ५ ।। रा ां तु तपूजाथ संजयं स ययोजयत् । कृताकृतप र ाने भी म ोणौ महामती ।। ६ ।। राजा क सेवा और स कारके लये धमराजने संजयको नयु कया। कौन काम आ और कौन नह आ, इसक दे ख-रेखका काम महाबु मान् भी म और ोणाचायको मला ।। ६ ।। हर य य सुवण य र नानां चा ववे णे । द णानां च वै दाने कृपं राजा ययोजयत् ।। ७ ।। तथा यान् पु ष ा ां त मं त मन् ययोजयत् । बा को धृतरा सोमद ो जय थः । नकुलेन समानीताः वा मवत् त रे मरे ।। ८ ।। े





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उ म वणके वण तथा र न को परखने, रखने और द णा दे नेके कायम राजाने कृपाचायक नयु क । इसी कार सरे- सरे े पु ष को यथायो य भ - भ काय म लगाया। नकुलके ारा स मानपूवक बुलाकर लाये ए बा क, धृतरा, सोमद और जय थ वहाँ घरके मा लकक तरह सुखपूवक रहने और इ छानुसार वचरने लगे ।। ७-८ ।। ा यकर वासीद् व रः सवधम वत् । य धन वहणा न तज ाह सवशः ।। ९ ।। स पूण धम के ाता व रजी धनको य करनेके कायम नयु कये गये थे तथा राजा य धन कर दे नेवाले राजा से सब कारक भट वीकार करने और व थापूवक रखनेका काम सँभाल रहे थे ।। ९ ।। चरण ालने कृ णो ा णानां वयं भूत् । सवलोकसमावृ ः प ीषुः फलमु मम् ।। १० ।। सब लोग से घरे ए भगवान् ीकृ ण सबको संतु करनेक इ छासे वयं ही ा ण के चरण पखारनेम लगे थे, जससे उ म फलक ा त होती है ।। १० ।।

ु कामाः सभां चैव धमराजं यु ध रम् । न क दाहरत् त सह ावरमहणम् ।। ११ ।। ोऔ

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धमराज यु ध रको और उनक सभाको दे खनेक इ छासे आये ए राजा मसे कोई भी ऐसा नह था, जो एक हजार वणमु ा से कम भट लाया हो ।। ११ ।। र नै ब भ त धमराजमवधयत् । कथं तु मम कौर ो र नदानैः समा ुयात् ।। १२ ।। य म येव राजानः पधमाना द धनम् । येक राजा ब सं यक र न क भट दे कर धमराज यु ध रके धनक वृ करने लगा। सभी राजा यह होड़ लगाकर धन दे रहे थे क कु न दन यु ध र कसी कार मेरे ही दये ए र न के दानसे अपना य स पूण कर ।। १२ ।। भवनैः स वमाना ैः सोदकबलसंवृतैः ।। १३ ।। लोकराज वमानै ा णावसथैः सह । कृतैरावसथै द ै वमान तमै तथा ।। १४ ।। व च ै र नव ऋ या परमया युतैः । राज भ समावृ ैरतीव ीसमृ भः । अशोभत सदो राजन् कौ तेय य महा मनः ।। १५ ।। राजन् ! जनके शखर य दे खनेके लये आये ए दे वता के वमान का पश कर रहे थे, जो जलाशय से प रपूण और सेना से घरे ए थे, उन सु दर भवन , इ ा द लोकपाल के वमान , ा ण के नवास थान तथा परम समृ से स प र न से प रपूण च एवं वमानके तु य बने ए द गृह से, समागत राजा से तथा असीम ीसमृ य से महा मा कु तीन दन यु ध रक वह सभा बड़ी शोभा पा रही थी ।। १३— १५ ।। ऋ या तु व णं दे वं पधमानो यु ध रः । षड ननाथ य ेन सोऽयजद् द णावता ।। १६ ।। महाराज यु ध र अपनी अनुपम समृ ारा व णदे वताक बराबरी कर रहे थे। उ ह ने य म छः अ नय क * थापना करके पया त द णा दे कर उस य के ारा भगवान्का यजन कया ।। १६ ।। सवा नान् सवकामैः समृ ै ः समतपयत् । अ वान् ब भ य भु व जनसंवृतः । र नोपहारस प ो बभूव स समागमः ।। १७ ।। राजाने उस य म आये ए सब लोग को उनक सभी कामनाएँ पूण करके संतु कया। वह य समारोह अ से भरापूरा था, उसम खाने-पीनेक सब साम याँ पया त मा ाम सदा तुत रहती थ । वह य खा-पीकर तृ त ए लोग से ही पूण था। वहाँ कोई भूखा नह रहने पाता था तथा उस उ सवसमारोहम सब ओर र न का ही उपहार दया जाता था ।। १७ ।। इडा यहोमा त भम श ा वशारदै ः । त मन् ह ततृपुदवा तते य े मह ष भः ।। १८ ।। े





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म श ाम नपुण मह षय ारा व तारपूवक कये जानेवाले उस य म इडा (म पाठ एवं तु त), घृतहोम तथा तल आ द शाक य पदाथ क आ तय से दे वतालोग तृ त हो गये ।। १८ ।। यथा दे वा तथा व ा द णा महाधनैः । ततृपुः सववणा त मन् य े मुदा वताः ।। १९ ।। जस कार दे वता तृ त ए उसी कार द णाम अ और महान् धन पाकर ा ण भी तृ त हो गये। अ धक या कहा जाय, उस य म सभी वणके लोग बड़े स थे, सबको पूण तृ त मली थी ।। १९ ।। इ त ीमहाभारते सभापव ण राजसूयपव ण य करणे प च शोऽ यायः ।। ३५ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत राजसूयपवम य करण वषयक पतीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ३५ ।।

* नीलक ठ क ट काम छः अ नयाँ इस कार बतायी गयी ह—आर भणीय,

, धृ त,

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रा और दशपेय।

(अ घा भहरणपव) षट् शोऽ यायः राजसूयय म ा ण तथा राजा का समागम, ीनारदजीके ारा ीकृ ण-म हमाका वणन और भी मजीक अनुम तसे ीकृ णक अ पूजा वैश पायन उवाच ततोऽ भषेचनीयेऽ ा णा राज भः सह । अ तवद व वशुः स काराहा महषयः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर अ भषेचनीय१ कमके दन स कारके यो य मह षगण और ा णलोग राजा के साथ य भवनम गये ।। १ ।। नारद मुखा त याम तव ां महा मनः । समासीनाः शुशु भरे सह राज ष भ तदा ।। २ ।। समेता भवने दे वा दे वषय तथा । कमा तरमुपास तो जज पुर मतौजसः ।। ३ ।। एवमेत चा येवमेवं चैत चा यथा । इ यूचुबहव त वत डा वै पर परम् ।। ४ ।। महा मा राजा यु ध रके उस य भवनम राज षय के साथ बैठे ए नारद आ द मह ष उस समय ाजीक सभाम एक ए दे वता और दे व षय के समान सुशो भत हो रहे थे। बीच-बीचम य स व धी एक-एक कमसे अवकाश पाकर अ य त तभाशाली व ान् आपसम ज प२ (वाद- ववाद) करते थे। ‘यह इसी कार होना चा हये’, ‘नह , ऐसे नह होना चा हये’, ‘यह बात ऐसी ही है, ऐसी ही है, इससे भ नह है।’ इस कार कहकहकर ब त-से वत डावाद ३ ज वहाँ वाद- ववाद करते थे ।। २—४ ।। कृशानथा ततः के चदकृशां त कुवते । अकृशां कृशां ु हतु भः शा न यैः ।। ५ ।। कुछ व ान् शा न त नाना कारके तक और यु य से बल प को पु और पु प को बल स कर दे ते थे ।। ५ ।। त मेधा वनः के चदथम यै द रतम् । व च पुयथा येना नभोगत मवा मषम् ।। ६ ।। े









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वह कुछ मेधावी प डत, जो सर के कथनम दोष दखानेके ही अ यासी थे, अ य लोग के कहे ए अनुमानसा धत वषयको उसी तरह बीचसे ही लोक लेते थे, जैसे बाज मांसके लोथड़ेको आकाशम ही एक- सरेसे छ न लेते ह ।। ६ ।। के चद् धमाथकुशलाः के चत् त महा ताः । रे मरे कथय त सवभा य वदां वराः ।। ७ ।। उ ह म कुछ लोग धम और अथके नणयम अ य त नपुण थे। कोई महान् तका पालन करनेवाले थे। इस कार स पूण भा यके व ान म े वे महा मा अ छ कथाएँ और श ा द बात कहकर वयं भी सुखी होते और सर को भी स करते थे ।। ७ ।। सा वे दवदस प ैदव जमह ष भः । आबभासे समाक णा न ै रवायता ।। ८ ।। जैसे न माला ारा म डत वशाल आकाश म डलक शोभा होती है, उसी कार वेद दे व षय , षय और मह षय से वह वेद सुशो भत हो रही थी ।। ८ ।। न त यां सं नधौ शू ः क दासी चा ती । अ तव ां तदा राजन् यु ध र नवेशने ।। ९ ।। राजन् यु ध रक य शालाके भीतर उस अ तवद के आस-पास उस समय न तो कोई शू था और न तहीन ज ही ।। ९ ।। तां तु ल मीवतो ल म तदा य वधानजाम् । तुतोष नारदः प यन् धमराज य धीमतः ।। १० ।। परम बु मान् राजल मीस प धमराज यु ध रके उस धन-वैभव और य व धको दे खकर दे व ष नारदको बड़ी स ता ई ।। १० ।। अथ च तां समापेदे स मु नमनुजा धप । नारद तु तदा प यन् सव समागमम् ।। ११ ।। जनमेजय! उस समय वहाँ सम त य का स मेलन दे खकर मु नवर नारदजी सहसा च तत हो उठे ।। ११ ।। स मार च पुरा वृ ां कथां तां पु षषभ । अंशावतरणे यासौ णो भवनेऽभवत् ।। १२ ।। नर े ! भगवान्के स पूण अंश (दे वता )-स हत अवतार लेनेके स ब धम लोकम पहले जो चचा ई थी, वह ाचीन घटना उ ह याद आ गयी ।। १२ ।। दे वानां संगमं तं तु व ाय कु न दन । नारदः पु डरीका ं स मार मनसा ह रम् ।। १३ ।। कु न दन! नारदजीने यह जानकर क राजा के इस समुदायके पम वा तवम दे वता का ही समागम आ है, मन-ही-मन कमलनयन भगवान् ीह रका च तन कया ।। १३ ।। सा ात् स वबुधा र नः े नारायणो वभुः । त ां पालयं ेमां जातः परपुरंजयः ।। १४ ।। े ो















वे सोचने लगे—‘अहो! सव ापक दे वश ु- वनाशक वै रनगर वजयी सा ात् भगवान् नारायणने ही अपनी इस त ाको पूण करनेके लये यकुलम अवतार हण कया है ।। १४ ।। सं ददे श पुरायोऽसौ वबुधान् भूतकृत् वयम् । अ यो यम भ न न तः पुनल कानवा यथ ।। १५ ।। ‘पूवकालम स पूण भूत के उ पादक सा ात् उ ह भगवान्ने दे वता को यह आदे श दया था क तुमलोग भूतलपर ज म हण करके अपना अभी साधन करते ए आपसम एक- सरेको मारकर फर दे वलोकम आ जाओगे ।। १५ ।। इ त नारायणः श भुभगवान् भूतभावनः । आ द य वबुधान् सवानजायत य ये ।। १६ ।। ‘क याण व प भूतभावन भगवान् नारायणने सब दे वता को यह आ ा दे नेके प ात् वयं भी य कुलम अवतार लया ।। १६ ।। ताव धकवृ णीनां वंशे वंशभृतां वरः । परया शुशुभे ल या न ाणा मवोडु राट् ।। १७ ।। ‘अ धक और वृ णय के कुलम वंशधा रय म े वे ही भगवान् इस पृ वीपर कट हो अपनी सव म का तसे उसी कार शोभायमान ह, जैसे न म च मा सुशो भत होते ह ।। १७ ।। य य बा बलं से ाः सुराः सव उपासते । सोऽयं मानुषव ाम ह ररा तेऽ रमदनः ।। १८ ।। ‘इ आ द स पूण दे वता जनके बा बलक उपासना करते ह, वे ही श ुमदन ीह र यहाँ मनु यके समान बैठे ह ।। १८ ।। अहो बत मह तं वयंभूय ददं वयम् । आदा य त पुनः मेवं बलसम वतम् ।। १९ ।। ‘अहो! ये वय भू महा व णु ऐसे बलस प यसमुदायको पुनः उ छ करना चाहते ह’ ।। १९ ।। इ येतां नारद तां च तयामास सव वत् । हर नारायणं या वा य ैरी य तमी रम् ।। २० ।। त मन् धम वदां े ो धमराज य धीमतः । महा वरे महाबु त थौ स ब मानतः ।। २१ ।। धम नारदजीने इसी पुरातन वृ ा तका मरण कया और ये भगवान् ीकृ ण ही सम त य के ारा आराधनीय, सव र नारायण ह; ऐसा समझकर वे धमवे ा म े परम बु मान् दे व ष मेधावी धमराजके उस महाय म बड़े आदरके साथ बैठे रहे ।। २०-२१ ।। ततो भी मोऽ वीद् राजन् धमराजं यु ध रम् । यतामहणं रा ां यथाह म त भारत ।। २२ ।। े



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जनमेजय! त प ात् भी मजीने धमराज यु ध रसे कहा—‘भरतकुलभूषण यु ध र! अब तुम यहाँ पधारे ए राजा का यथायो य स कार करो’ ।। २२ ।। आचायमृ वजं चैव संयुजं च यु ध र । नातकं च यं ा ः षड याहान् नृपं तथा ।। २३ ।। आचाय, ऋ वज्, स ब धी, नातक, य म तथा राजा—इन छह को अ य दे कर पूजनेयो य बताया गया है ।। २३ ।। एतान यान भगताना ः संव सरो षतान् । त इमे कालपूग य महतोऽ मानुपागताः ।। २४ ।। ‘ये य द एक वष बताकर अपने यहाँ आव तो इनके लये अ य नवेदन करके इनक पूजा करनी चा हये, ऐसा शा पु ष का कथन है। ये सभी नरेश हमारे यहाँ सुद घकालके प ात् पधारे ह ।। २४ ।। एषामेकैकशो राज यमानीयता म त । अथ चैषां व र ाय समथायोपनीयताम् ।। २५ ।। इस लये राजन्! तुम बारी-बारीसे इन सबके लये अ य दो और इन सबम जो े एवं श शाली हो, उसको सबसे पहले अ य सम पत करो’ ।। २५ ।। यु ध र उवाच क मै भवान् म यतेऽ यमेक मै कु न दन । उपनीयमानं यु ं च त मे ू ह पतामह ।। २६ ।। यु ध रने पूछा—कु न दन पतामह! इन समागत नरेश म कस एकको सबसे पहले अ य नवेदन करना आप उ चत समझते ह? यह मुझे बताइये ।। २६ ।। वैश पायन उवाच ततो भी मः शा तनवो बु या न य वीयवान् । अम यत तदा कृ णमहणीयतमं भु व ।। २७ ।। वैश पायनजी कहते ह—तब महापरा मी शा तनुन दन भी मने अपनी बु से न य करके भगवान् ीकृ णको ही भूम डलम सबसे अ धक पूजनीय माना ।। २७ ।। भी म उवाच एष ेषां सम तानां तेजोबलपरा मैः । म ये तप वाभा त यो तषा मव भा करः ।। २८ ।। असूय मव सूयण नवात मव वायुना । भा सतं ा दतं चैव कृ णेनेदं सदो ह नः ।। २९ ।। भी मने कहा—कु तीन दन! ये भगवान् ीकृ ण इन सब राजा के बीचम अपने तेज, बल और परा मसे उसी कार दे द यमान हो रहे ह, जैसे ह-न म भुवनभा कर भगवान् सूय। अ धकारपूण थान जैसे सूयका उदय होनेपर यो तसे जगमग हो उठता है और वायुहीन थान जैसे वायुके संचारसे सजीव-सा हो जाता है, उसी कार भगवान् ी











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ीकृ णके ारा हमारी यह सभा आ ा दत और का शत हो रही है (अतः ये ही अ पूजाके यो य ह) ।। २८-२९ ।। त मै भी मा यनु ातः सहदे वः तापवान् । उपज ेऽथ व धवद् वा णयाया यमु मम् ।। ३० ।। भी मजीक आ ा मल जानेपर तापी सहदे वने वृ णकुलभूषण भगवान् ीकृ णको व धपूवक उ म अ य नवेदन कया ।। ३० ।।

तज ाह तत् कृ णः शा ेन कमणा । शशुपाल तु तां पूजां वासुदेवे न च मे ।। ३१ ।। ीकृ णने शा ीय व धके अनुसार वह अ य वीकार कया। वसुदेवन दन भगवान् ीह रक वह पूजा राजा शशुपाल नह सह सका ।। ३१ ।। स उपाल य भी मं च धमराजं च संस द । अपा पद् वासुदेवं चे दराजो महाबलः ।। ३२ ।। महाबली चे दराज भरी सभाम भी म और धमराज यु ध रको उलाहना दे कर भगवान् वासुदेवपर आ ेप करने लगा ।। ३२ ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण अघा भहरणपव ण ीकृ णा यदाने षट् शोऽ यायः ।। ३६ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत अघा भहरणपवम ीकृ णको अ यदान वषयक छ ीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ३६ ।।

१. जसम पूजनीय पु ष का अ भषेक—अ य दे कर स मान कया जाता है, उस कमका नाम अ भषेचनीय है। यह राजसूयय का अंगभूत सोमयाग वशेष है। २. यह एक कारका वाद है, जसम वाद छल, जा त और न ह थानको लेकर अपने प का म डन और वप ीके प का ख डन करता है। इसम वाद का उ े य त व नणय नह होता, कतु वप थापन और परप ख डनमा होता है। वादके समान इसम भी त ा, हेतु आ द पाँच अवयव होते ह। ३. जस बहस या वाद- ववादका उ े य अपने प क थापना या परप का ख डन न होकर थक बकवादमा हो, उसका नाम ‘ वत डा’ है।

स त शोऽ यायः शशुपालके आ ेपपूण वचन शशुपाल उवाच नायमह त वा णय त वह महा मसु । महीप तषु कौर राजवत् पा थवाहणम् ।। १ ।। शशुपाल बोला—कौर ! यहाँ इन महा मा भू मप तय के रहते ए यह वृ णवंशी कृ ण राजा क भाँ त राजो चत पूजाका अ धकारी कदा प नह हो सकता ।। १ ।। नायं यु ः समाचारः पा डवेषु महा मसु । यत् कामात् पु डरीका ं पा डवा चतवान स ।। २ ।। बाला यूयं न जानी वं धमः सू मो ह पा डवाः । अयं च मृ य त ा तो ापगेयोऽ पदशनः ।। ३ ।। महा मा पा डव के लये यह वपरीत आचार कभी उ चत नह है। पा डु कुमार! तुमने वाथवश कमलनयन ीकृ णका पूजन कया है। पा डवो! अभी तुमलोग बालक हो। तु ह धमका पता नह है, य क धमका व प अ य त सू म है। ये गंगान दन भी म ब त बूढ़े हो गये ह। अब इनक मरणश जवाब दे चुक है। इनक सूझ और समझ भी ब त कम हो गयी है (तभी इ ह ने ीकृ णपूजाक स म त द है) ।। २-३ ।।

वा शो धमयु ो ह कुवाणः यका यया । भव य य धकं भी म लोके ववमतः सताम् ।। ४ ।। ी े ै ी



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भी म तु हारे-जैसा धमा मा पु ष भी जब मनमाना अथवा कसीका य करनेके लये मुँहदे खी करने लगता है, तब वह साधु पु ष के समाजम अ धक अपमानका पा बन जाता है ।। ४ ।। कथं राजा दाशाहो म ये सवमही ताम् । अहणामह त तथा यथा यु मा भर चतः ।। ५ ।। यह सभी जानते ह क य वंशी कृ ण राजा नह है, फर स पूण भूपाल के बीच तुमलोग ने जस कार इसक पूजा क है, वैसी पूजाका अ धकारी यह कैसे हो सकता है? ।। ५ ।। अथ वा म यसे कृ णं थ वरं कु पु व । वसुदेवे थते वृ े कथमह त त सुतः ।। ६ ।। कु पुंगव! अथवा य द तुम ीकृ णको बड़ा-बूढ़ा समझते हो तो इसके पता वृ वसुदेवजीके रहते ए उनका यह पु कैसे पूजाका पा हो सकता है? ।। ६ ।। अथ वा वासुदेवोऽ प यकामोऽनुवृ वान् । पदे त त कथं माधवोऽह त पूजनम् ।। ७ ।। आचाय म यसे कृ णमथ वा कु न दन । ोणे त त वा णयं क माद चतवान स ।। ८ ।। अथवा यह मान लया जाय क वासुदेव कृ ण तुमलोग का य चाहनेवाला और तु हारा अनुसरण करनेवाला सु द् है, इसी लये तुमने इसक पूजा क है, तो यह भी ठ क नह है, य क तु हारे सबसे बड़े सु द् तो राजा पद ह। उनके रहते यह माधव पूजा पानेका अ धकारी कैसे हो सकता है। कु न दन! अथवा यह समझ ल क तुम कृ णको आचाय मानते हो, फर भी आचाय म भी बड़े-बूढ़े ोणाचायके रहते ए इस य वंशीक पूजा तुमने य क है? ।। ७-८ ।।

भी मका यु ध रको

ीकृ णक म हमा बताना

शशुपालका यु के लये उ ोग

ऋ वजं म यसे कृ णमथ वा कु न दन । ै पायने थते वृ े कथं कृ णोऽ चत वया ।। ९ ।। कु कुलको आन दत करनेवाले यु ध र! अथवा य द यह कहा जाय क तुम कृ णको अपना ऋ वज् समझते हो तो ऋ वज म भी सबसे वृ ै पायन वेद ासके रहते ए तुमने कृ णक अ पूजा कैसे क ? ।। ९ ।। भी मे शा तनवे राजन् थते पु षस मे । व छ दमृ युके राजन् कथं कृ णोऽ चत वया ।। १० ।। अ था न थते वीरे सवशा वशारदे । कथं कृ ण वया राज चतः कु न दन ।। ११ ।। राजन्! शा तनुन दन भी म पु ष शरोम ण तथा व छ दमृ यु ह। इनके रहते तुमने कृ णक अचना कैसे क ? कु न दन यु ध र! स पूण शा के नपुण व ान् वीर अ थामाके रहते ए तुमने कृ णक पूजा कैसे कर डाली? ।। १०-११ ।। य धने च राजे े थते पु षस मे । कृपे च भारताचाय कथं कृ ण वया चतः ।। १२ ।। मं क पु षाचायम त य तथा चतः । भी मके चैव धष पा डु वत् कृतल णे ।। १३ ।। नृपे च म ण े े एकल े तथैव च । श ये म ा धपे चैव कथं कृ ण वया चतः ।। १४ ।। पु ष वर राजा धराज य धन और भरतवंशके आचाय महा मा कृपके रहते ए तुमने कृ णक पूजाका औ च य कैसे वीकार कया? तुमने क पु ष के आचाय मका उ लंघन करके कृ णक अ पूजा य क ? पा डु के समान धष वीर तथा राजो चत शुभल ण से स प भी मक, राजा मी और उसी कार े धनुधर एकल तथा म राज श यके रहते ए तु हारे ारा कृ णक पूजा कस से क गयी? ।। १२—१४ ।। अयं च सवरा ां वै बल ाघी महाबलः । जामद य य द यतः श यो व य भारत ।। १५ ।। येना मबलमा य राजानो यु ध न जताः । तं च कणम त य कथं कृ ण वया चतः ।। १६ ।। भारत! ये जो अपने बलके ारा सब राजा से होड़ लेते ह, व वर परशुरामजीके य श य ह तथा ज ह ने अपने बलका भरोसा करके यु म अनेक राजा को परा त कया है, उन महाबली कणको छोड़कर तुमने कृ णक आराधना कैसे क ? ।। १५-१६ ।। नैव वग् नैव चाचाय न राजा मधुसूदनः । अ चत कु े कम य यका यया ।। १७ ।। कु े ! मधुसूदन कृ ण न ऋ वज् है, न आचाय है और न राजा ही है; फर तुमने कस य कामनासे इसक पूजा क है? ।। १७ ।। अथ वा यचनीयोऽयं यु माकं मधुसूदनः । क राज भ रहानीतैरवमानाय भारत ।। १८ ।। ी ो ी े ै े ी

भारत! अथवा य द यह मधुसूदन ही तुमलोग का पूजनीय दे वता है, इस लये इसक ही पूजा तु ह करनी थी तो इन राजा को केवल अपमा नत करनेके लये बुलानेक या आव यकता थी? ।। १८ ।। वयं तु न भयाद य कौ तेय य महा मनः । य छामः करान् सव न लोभा च सा वनात् ।। १९ ।। राजाओ! हम सब लोग इन महा मा कु तीन दन यु ध रको जो कर दे रहे ह, वह भय, लोभ अथवा कोई वशेष आ ासन मलनेके कारण नह ।। १९ ।। अ य धम वृ य पा थव वं चक षतः । करान मै य छामः सोऽयम मान् न म यते ।। २० ।। हमने तो यही समझा था क यह धमाचरणम संल न रहनेवाला य साट ् का पद पाना चाहता है तो अ छा ही है। यही सोचकर हम उसे कर दे ते ह, परंतु यह राजा यु ध र हमलोग को नह मानता है ।। २० ।। कम यदवमाना यदे नं राजसंस द । अ ा तल णं कृ णम यणा चतवान स ।। २१ ।। यु ध र! इससे बढ़कर सरा अपमान और या हो सकता है क तुमने राजा क सभाम जसे राजो चत च छ -चँवर आ द ा त नह आ है, उस कृ णक अ यके ारा पूजा क है ।। २१ ।। अक माद् धमपु य धमा मे त यशो गतम् । को ह धम युते पूजामेवं यु ां नयोजयेत् ।। २२ ।। धमपु यु ध रको अक मात् ही धमा मा होनेका यश ा त हो गया है, अ यथा कौन ऐसा धम न पु ष होगा जो कसी धम युतक इस कार पूजा करेगा ।। २२ ।। योऽयं वृ णकुले जातो राजानं हतवान् पुरा । जरासंधं महा मानम यायेन रा मवान् ।। २३ ।। वृ णकुलम पैदा ए इस रा माने तो कुछ ही दन पहले महा मा राजा जरासंधका अ यायपूवक वध कया है ।। २३ ।। अ धमा मता चैव पकृ ा यु ध रात् । द शतं कृपण वं च कृ णेऽ य य नवेदनात् ।। २४ ।। आज यु ध रका धमा मापन र नकल गया, य क इ ह ने कृ णको अ य नवेदन करके अपनी कायरता ही दखायी है ।। २४ ।। य द भीता कौ तेयाः कृपणा तप वनः । ननु वया प बो ं यां पूजां माधवाह स ।। २५ ।। (अब शशुपालने भगवान् ीकृ णको दे खकर कहा—) माधव! कु तीके पु डरपोक, कायर और तप वी ह। इ ह ने तु ह ठ क-ठ क न जानकर य द तु हारी पूजा कर द तो तु ह तो समझना चा हये था क तुम कस पूजाके अ धकारी हो? ।। २५ ।। अथ वा कृपणैरेतामुपनीतां जनादन । पूजामनहः क मात् वम यनु ातवान स ।। २६ ।। ई ो े ो ो े

अथवा जनादन! इन कायर ारा उप थत क ई इस अ पूजाको उसके यो य न होते ए भी तुमने य वीकार कर लया? ।। २६ ।। अयु ामा मनः पूजां वं पुनब म यसे । ह वषः ा य न य दं ा शता ेव नजने ।। २७ ।। जैसे कु ा एका तम चूकर गरे ए थोड़े-से ह व य (घृत)-को चाट ले और अपनेको ध य ध य मानने लगे, उसी कार तुम अपने लये अयो य पूजा वीकार करके अपनेआपको ब त बड़ा मान रहे हो ।। २७ ।। न वयं पा थवे ाणामपमानः यु यते । वामेव कुरवो ं ल भ ते जनादन ।। २८ ।। कृ ण! तु हारी इस अ पूजासे हम राजा धराज का कोई अपमान नह होता, परंतु ये कु वंशी पा डव तु ह अ य दे कर वा तवम तु ह को ठग रहे ह ।। २८ ।। लीबे दार या या ग धे वा पदशनम् । अरा ो राजवत् पूजा तथा ते मधुसूदन ।। २९ ।। मधुसूदन! जैसे नपुंसकका याह रचाना और अंधेको प दखाना उनका उपहास ही करना है, उसी कार तुम-जैसे रा यहीनक यह राजा के समान पूजा भी वड बनामा ही है ।। २९ ।। ो यु ध रो राजा ो भी म या शः । वासुदेवोऽ ययं ः सवमेतद् यथातथम् ।। ३० ।। आज मने राजा यु ध रको दे ख लया; भी म भी जैसे ह, उनको भी दे ख लया और इस वासुदेव कृ णका भी वा त वक प या है, यह भी दे ख लया। वा तवम ये सब ऐसे ही ह ।। ३० ।। इ यु वा शशुपाल तानु थाय परमासनात् । नययौ सदस त मात् स हतो राज भ तदा ।। ३१ ।। उनसे ऐसा कहकर शशुपाल अपने उ म आसनसे उठकर कुछ राजा के साथ उस सभाभवनसे जानेको उ त हो गया ।। ३१ ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण अघा भहरणपव ण शशुपाल ोधे स त शोऽ यायः ।। ३७ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत अघा भहरणपवम शशुपालका ोध वषयक सतीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ३७ ।।

अ ा शोऽ यायः यु ध रका शशुपालको समझाना और भी मजीका उसके आ ेप का उ र दे ना वैश पायन उवाच ततो यु ध रो राजा शशुपालमुपा वत् । उवाच चैनं मधुरं सा वपूव मदं वचः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तब राजा यु ध र शशुपालके समीप दौड़े गये और उसे शा तपूवक समझाते ए मधुर वाणीम बोले— ।। १ ।। नेदं यु ं महीपाल या शं वै वमु वान् । अधम परो राजन् पा यं च नरथकम् ।। २ ।। ‘राजन्! तुमने जैसी बात कह डाली है, वह कदा प उ चत नह है। कसीके त इस कार थ कठोर बात कहना महान् अधम है ।। २ ।। न ह धम परं जातु नावबु येत पा थवः । भी मः शा तनव वेनं मावमं था वम यथा ।। ३ ।। ‘शा तनुन दन भी मजी धमके त वको न जानते ह ऐसी बात नह है, अतः तुम इनका अनादर न करो ।। ३ ।। प य चैतान् महीपालां व ो वृ तरान् बन् । मृ य ते चाहणां कृ णे त त् वं तुमह स ।। ४ ।। ‘दे खो! ये सभी नरेश, जनमसे कई तो तु हारी अपे ा ब त बड़ी अव थाके ह, ीकृ णक अ पूजाको चुपचाप सहन कर रहे ह, इसी कार तु ह भी इस वषयम कुछ नह बोलना चा हये ।। ४ ।। वेद त वेन कृ णं ह भी म े दपते भृशम् । न ेनं वं तथा वे थ यथैनं वेद कौरवः ।। ५ ।। ‘चे दराज! भगवान् ीकृ णको यथाथ पसे हमारे पतामह भी मजी ही जानते ह। कु न दन भी मजीको उनके त वका जैसा ान है, वैसा तु ह नह है’ ।। ५ ।। भी म उवाच ना मै दे यो नुनयो नायमह त सा वनम् । लोकवृ तमे कृ णे योऽहणां ना भम यते ।। ६ ।। भी मजीने कहा—धमराज! भगवान् ीकृ ण ही स पूण जगत्म सबसे बढ़कर ह । वे ही परम पूजनीय ह। जो उनक अ पूजा वीकार नह करता है, उसक अनुनय- वनय नह करनी चा हये। वह सा वना दे ने या समझाने-बुझानेके यो य भी नह है ।। ६ ।। यः यं ज वा रणे रणकृतां वरः । ो



यो मु च त वशे कृ वा गु भव त त य सः ।। ७ ।। जो यो ा म े य जसे यु म जीतकर अपने वशम करके छोड़ दे ता है, वह उस परा जत यके लये गु तु य पू य हो जाता है ।। ७ ।। अ यां ह स मतौ रा ामेकम य जतं यु ध । न प या म महीपालं सा वतीपु तेजसा ।। ८ ।। राजा के इस समुदायम एक भी भूपाल ऐसा नह दखायी दे ता, जो यु म दे वक न दन ीकृ णके तेजसे परा त न हो चुका हो ।। ८ ।। न ह केवलम माकमयम यतमोऽ युतः । याणाम प लोकानामचनीयो महाभुजः ।। ९ ।। महाबा ीकृ ण केवल हमारे लये ही परम पूजनीय ह , ऐसी बात नह है, ये तो तीन लोक के पूजनीय ह ।। ९ ।। कृ णेन ह जता यु े बहवः यषभाः । जगत् सव च वा णये नखलेन त तम् ।। १० ।। ीकृ णके ारा सं ामम अनेक य शरोम ण परा त ए ह । यह स पूण जगत् वृ णकुलभूषण भगवान् ीकृ णम ही पूण पसे त त है ।। १० ।। त मात् स व प वृ े षु कृ णमचाम नेतरान् । एवं व ुं न चाह वं मा ते भूद ् बु री शी ।। ११ ।। इसी लये हम सरे वृ पु ष के होते ए भी ीकृ णक ही पूजा करते ह, सर क नह । राजन्! तु ह ीकृ णके त वैसी बात मुँहसे नह नकालनी चा हये थ । उनके त तु ह ऐसी बु नह रखनी चा हये ।। ११ ।। ानवृ ा मया राजन् बहवः पयुपा सताः । तेषां कथयतां शौरेरहं गुणवतो गुणान् ।। १२ ।। समागतानाम ौषं ब न् ब मतान् सताम् । मने ब त-से ानवृ महा मा का संग कया है। अपने यहाँ पधारे ए उन संत के मुखसे अन तगुणशाली भगवान् ीकृ णके असं य ब स मत गुण का वणन सुना है ।। १२ ।। कमा य प च या य य ज म भृ त धीमतः ।। १३ ।। ब शः कयमाना न नरैभूयः ुता न मे । ज मकालसे लेकर अबतक इन बु मान् ीकृ णके जो-जो च र ब धा ब तेरे मनु य ारा कहे गये ह, उन सबको मने बार-बार सुना है ।। १३ ।। न केवलं वयं कामा चे दराज जनादनम् ।। १४ ।। न स ब धं पुर कृ य कृताथ वा कथंचन । अचामहेऽ चतं स भु व भूतसुखावहम् ।। १५ ।। चे दराज! हमलोग कसी कामनासे, अपना स ब धी मानकर अथवा इ ह ने हमारा कसी कारका उपकार कया है, इस से ीकृ णक पूजा नह कर रहे ह। हमारी ो























तो यह है क ये इस भूम डलके सभी ा णय को सुख प ँचानेवाले ह और बड़े-बड़े संतमहा मा ने इनक पूजा क है ।। १४-१५ ।। यशः शौय जयं चा य व ायाचा यु महे । न च क दहा मा भः सुबालोऽ यपरी तः ।। १६ ।। हम इनके यश, शौय और वजयको भलीभाँ त जानकर इनक पूजा कर रहे ह । यहाँ बैठे ए लोग मसे कोई छोटा-सा बालक भी ऐसा नह है, जसके गुण क हमलोग ने पूणतः परी ा न क हो ।। १६ ।। गुणैवृ ान त य ह रर यतमो मतः । ानवृ ो जातीनां याणां बला धकः ।। १७ ।। ीकृ णके गुण को ही म रखते ए हमने वयोवृ पु ष का उ लंघन करके इनको ही परम पूजनीय माना है। ा ण म वही पूजनीय समझा जाता है, जो ानम बड़ा हो तथा य म वही पूजाके यो य ह, जो बलम सबसे अ धक हो ।। १७ ।। वै यानां धा यधनवा छू ाणामेव ज मतः । पू यतायां च गो व दे हेतू ाव प सं थतौ ।। १८ ।। वै य म वही सवमा य है, जो धन-धा यम बढ़कर हो, केवल शू म ही ज मकालको यानम रखकर जो अव थाम बड़ा हो, उसको पूजनीय माना जाता है । ीकृ णके परम पूजनीय होनेम दोन ही कारण व मान ह ।। १८ ।। वेदवेदा व ानं बलं चा य धकं तथा । नृणां लोके ह कोऽ योऽ त व श ः केशवा ते ।। १९ ।। इनम वेद-वेदांग का ान तो है ही, बल भी सबसे अ धक है। ीकृ णके सवा संसारके मनु य म सरा कौन सबसे बढ़कर है? ।। १९ ।। दानं दा यं ुतं शौय ीः क तबु मा । स तः ीधृ त तु ः पु नयता युते ।। २० ।। दान, द ता; शा ान, शौय, ल जा, क त, उ म बु , वनय, ी, धृ त, तु और पु —ये सभी सद्गुण भगवान् ीकृ णम न य व मान ह ।। २० ।। त ममं गुणस प माय च पतरं गु म् । अ यम चतमचाह सव सं तुमहथ ।। २१ ।। जो अ य पानेके सवथा यो य और पूजनीय है, उन सकलगुणस प , े , पता और गु भगवान् ीकृ णक हमलोग ने पूजा क है, अतः सब राजालोग इसके लये हम मा कर ।। २१ ।। ऋ वग् गु तथाऽऽचायः नातको नृप तः यः । सवमेत षीकेश त माद य चतोऽ युतः ।। २२ ।। ीकृ ण हमारे ऋ वक्, गु , आचाय, नातक, राजा और य म सब कुछ ह। इसी लये हमने इनक अ पूजा क है ।। २२ ।। कृ ण एव ह लोकानामु प र प चा ययः । कृ ण य ह कृते व मदं भूतं चराचरम् ।। २३ ।। ी ी औ े

भगवान् ीकृ ण ही स पूण जगत्क उ प और लयके थान ह। यह सारा चराचर व इ ह के लये कट आ है ।। २३ ।। एष कृ तर ा कता चैव सनातनः । पर सवभूते य त मात् पू यतमोऽ युतः ।। २४ ।। ये ही अ कृ त, सनातन कता तथा स पूण भूत से परे ह; अतः भगवान् अ युत ही सबसे बढ़कर पूजनीय ह ।। २४ ।। बु मनो महद् वायु तेजोऽ भः खं मही च या । चतु वधं च यद् भूतं सव कृ णे त तम् ।। २५ ।। मह व, अहंकार, मनस हत यारह इ याँ, आकाश, वायु, तेज, जल, पृ वी तथा जरायुज, अ डज, वेदज और उ ज—ये चार कारके ाणी भगवान् ीकृ णम ही त त ह ।। २५ ।। आदय मा ैव न ा ण हा ये । दश व दश ैव सव कृ णे त तम् ।। २६ ।। अ नहो मुखा वेदा गाय ी छ दसां मुखम् । राजा मुखं मनु याणां नद नां सागरो मुखम् ।। २७ ।। न ाणां मुखं च आ द य तेजसां मुखम् । पवतानां मुखं मे ग डः पततां मुखम् ।। २८ ।। ऊ व तयगध ैव यावती जगतो ग तः । सदे वकेषु लोकेषु भगवान् केशवो मुखम् ।। २९ ।। सूय, च मा, न , ह, दशा और व दशा सब उ ह म थत ह। जैसे वेद म अ नहो कम, छ द म गाय ी, मनु य म राजा, न दय (जलाशय )-म समु , न म च मा, तेजोमय पदाथ म सूय, पवत म मे और प य म ग ड े ह, उसी कार दे वलोकस हत स पूण लोक म ऊपर-नीचे, दाय-बाय, जतने भी जगत्के आ य ह, उन सबम भगवान् ीकृ ण ही े ह ।। २६—२९ ।।

[भगवान् नारायणक म हमा और उनक े ारा मधु-कैटभका वध] (वैश पायन उवाच ततो भी म य त छ वा वचः काले यु ध रः । उवाच म तमान् भी मं ततः कौरवन दनः ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर भी मजीका वह समयो चत वचन सुनकर कौरवन दन बु मान् यु ध रने उनसे इस कार कहा। यु ध र उवाच व तरेणा य दे व य कमाणी छा म सवशः । ोतुं भगवत ता न वी ह पतामह ।। कमणामानुपू च ा भावां मे वभोः । यथा च कृ तः कृ णे त मे ू ह पतामह ।। यु ध र बोले— पतामह! म इन भगवान् ीकृ णके स पूण च र को व तारपूवक सुनना चाहता ँ। आप उ ह कृपापूवक बताव। पतामह! भगवान्के अवतार और च र का मशः वणन क जये। साथ ही मुझे यह भी बताइये क ीकृ णका शीलवभाव कैसा है? वैश पायन उवाच एवमु तदा भी मः ोवाच भरतषभम् । यु ध रम म नं त मन् समागमे ।। सम ं वासुदेव य दे व येव शत तोः । कमा यसुकरा य यैराचच े जना धप ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! उस समय यु ध रके इस कार अनुरोध करनेपर भी मने राजा के उस समुदायम दे वराज इ के समान सुशो भत होनेवाले भगवान् वासुदेवके सामने ही श ुह ता भरत े यु ध रसे भगवान् ीकृ णके अलौ कक कम का, ज ह सरा कोई कदा प नह कर सकता, वणन कया। शृ वतां पा थवानां च धमराज य चा तके । इदं म तमतां े ः कृ णं त वशा पते ।। सा नैवाम य राजे चे दराजमरदमम् । भीमकमा ततो भी मो भूयः स इदम वीत् ।। कु णां चा प राजानं यु ध रमुवाच ह । धमराजके समीप बैठे ए स पूण नरेश उनक यह बात सुन रहे थे। राजन्! बु मान म े भीमकमा भी मने श ुदमन चे दराज शशुपालको सा वनापूण श द म ही समझाकर कु राज यु ध रसे पुनः इस कार कहना आर भ कया। भी म उवाच ी

वतमानामतीतां च शृणु राजन् यु ध र । ई र यो म यैनां कमणां गहनां ग तम् । भी म बोले—राजा यु ध र! पु षो म भगवान् ीकृ णके द कम क ग त बड़ी गहन है। उ ह ने पूवकालम और इस समय भी जो महान् कम कये ह, उ ह बताता ँ; सुनो। अ ो ल थो य एष भगवान् भुः ।। पुरा नारायणो दे वः वय भूः पतामहः । ये सवश मान् भगवान् अ होते ए भी व प धारण करके थत ह। पूवकालम ये भगवान् ीकृ ण ही नारायण पम थत थे। ये ही वय भू एवं स पूण जगत्के पतामह ह। सह शीषः पु षो ुवोऽ ः सनातनः ।। सह ा ः सह ा यः सह चरणो वभुः । सह बा ः साह ो दे वो नामसह वान् ।। इनके सह म तक ह। ये ही पु ष, ुव, अ एवं सनातन परमा मा ह। इनके सह ने , सह मुख और सह चरण ह। ये सव ापी परमे र सह भुजा , सह प और सह नाम से यु ह। सह मुकुटो दे वो व पो महा ु तः । अनेकवण दे वा दर ाद् वै परे थतः ।। इनके म तक सह मुकुट से म डत ह। ये महान् तेज वी दे वता ह। स पूण व इ ह का व प है। इनके अनेक वण ह। ये दे वता के भी आ द कारण ह और अ कृ तसे परे (अपने स चदान दघन व पम थत) ह। असृजत् स ललं पूव स च नारायणः भुः । तत तु भगवां तोये ाणमसृजत् वयम् ।। उ ह साम यवान् भगवान् नारायणने सबसे पहले जलक सृ क है। फर उस जलम उ ह ने वयं ही ाजीको उ प कया। ा चतुमुखो लोकान् सवा तानसृजत् वयम् । आ दकाले पुरा ेवं सवलोक य चो वः ।। ाजीके चार मुख ह। उ ह ने वयं ही स पूण लोक क सृ क है। इस कार आ दकालम सम त जगत्क उ प ई। पुराथ लये ा ते न े थावरज मे । ा दषु लीनेषु न े लोके चराचरे ।। फर लयकाल आनेपर, जैसा क पहले आ था, सम त थावर-जंगम सृ का नाश हो जाता है एवं चराचर जगत्का नाश होनेके प ात् ा आ द दे वता भी अपने कारणत वम लीन हो जाते ह। आभूतस लवे ा ते लीने कृतौ महान् । एक त त सवा मा स तु नारायणः भुः ।। औ ी ो ै

और सम त भूत का वाह कृ तम वलीन हो जाता है, उस समय एकमा सवा मा भगवान् महानारायण शेष रह जाते ह। नारायण य चा ा न सवदै वा न भारत । शर त य दवं राजन् ना भः खं चरणौ मही ।। भरतन दन! भगवान् नारायणके सब अंग सवदे वमय ह। राजन्! ुलोक उनका म तक, आकाश ना भ और पृ वी चरण ह। अ नौ ाणयोदवो च ुषी श शभा करौ । इ वै ानरौ दे वौ मुखं त य महा मनः ।। दोन अ नीकुमार उनक ना सकाके थानम ह, च मा और सूय ने ह एवं इ और अ नदे वता उन परमा माके मुख ह। अ या न सवदै वा न त या ा न महा मनः । सव ा य ह र त थौ सू ं म णगणा नव ।। इसी कार अ य सब दे वता भी उन महा माके व भ अवयव ह। जैसे गुँथी ई मालाक सभी म णय म एक ही सू ा त रहता है, उसी कार भगवान् ीह र स पूण जगत्को ा त करके थत ह। आभूतस लवा तेऽथ ् वा सव तमोऽ वतम् । नारायणो महायोगी सव ः परमा मवान् ।। भूत तदाऽऽ मानं ाणमसृजत् वयम् । लयकालके अ तम सबको अ धकारसे ा त दे ख सव परमा मा भूत महायोगी नारायणने वयं अपने-आपको ही ा पम कट कया। सोऽ य ः सवभूतानां भूतः भवोऽ युतः ।। सन कुमारं ं च मनुं चैव तपोधनान् । सवमेवासृजद् ा ततो लोकान् जा तथा ।। इस कार अपनी म हमासे कभी युत न होनेवाले, सबक उ प के कारणभूत और स पूण भूत के अ य ीह रने ा पसे कट हो सन कुमार, , मनु तथा तप वी ऋ ष-मु नय को उ प कया। सबक सृ उ ह ने ही क । उ ह से स पूण लोक और जा क उ प ई। ते च तद् सृजं त ा ते काले यु ध र । ते योऽभव महा म यो ब धा शा तम् ।। यु ध र! समय आनेपर उन मनु आ दने भी सृ का व तार कया। उन सब महा मा से नाना कारक सृ कट ई। इस कार एक ही सनातन अनेक पमअभ हो गया। क पानां ब को समतीता ह भारत । आभूतस लवा ैव ब को ोऽ तच मुः ।। भरतन दन! अबतक कई करोड़ क प बीत चुके ह और कतने ही करोड़ लयकाल भी गत हो चुके ह। े

म व तरयुगेऽज ं सक पा भूतस लवा । च वत् प रवत ते सव व णुमयं जगत् ।। म व तर, युग, क प और लय—ये नर तर च क भाँ त घूमते रहते ह। यह स पूण जगत् व णुमय है। सृ ् वा चतुमुखं दे वं दे वो नारायणः भुः । स लोकानां हताथाय ीरोदे वस त भुः ।। दे वा धदे व भगवान् नारायण चतुमुख भगवान् ाक सृ करके स पूण लोक का हत करनेके लये ीरसागरम नवास करते ह। ा च सवदे वानां लोक य च पतामहः । ततो नारायणो दे वः सव य पतामहः ।। ाजी स पूण दे वता तथा लोक के पतामह ह, इस लये ीनारायणदे व सबके पतामह ह। अ ो ल थो य एष भगवान् भुः । नारायणो जग च े भवा ययसं हतः ।। जो अ होते ए शरीरम थत ह, सृ और लयकालम भी जो न य व मान रहते ह, उ ह सवश मान् भगवान् नारायणने इस जगत्क रचना क है। एष नारायणो भू वा ह ररासीद् यु ध र । ाणं श शसूय च धम चैवासृजत् वयम् ।। यु ध र! इन भगवान् ीकृ णने ही नारायण पम थत होकर वयं ा, सूय, च मा और धमक सृ क है। ब शः सवभूता मा ा भव त कायतः । ा भावां तु व या म द ान् दे वगणैयुतान् ।। ये सम त ा णय के अ तरा मा ह और कायवश अनेक प म अवतीण होते रहते ह। इनके सभी अवतार द ह और दे वगण से संयु भी ह। म उन सबका वणन करता ँ। सु वा युगसह ं स ा भव त कायवान् । पूण युगसह ेऽथ दे वदे वो जग प तः ।। ाणं क पलं चैव परमे नमेव च । दे वान् स त ऋष ैव शङ् करं च महायशाः ।। दे वा धदे व जगद र महायश वी भगवान् ीह र सह युग तक शयन करनेके प ात् क पा तक सहयुगा मक अव ध पूरी होनेपर कट होते और सृ कायम संल न हो परमे ी ा, क पल, दे वगण , स त षय तथा शंकरक उ प करते ह। सन कुमारं भगवान् मनुं चैव जाप तम् । पुरा च े ऽथ दे वाद न् द ता नसम भः ।। इसी कार भगवान् ीह र सन कुमार, मनु एवं जाप तको भी उ प करते ह। पूवकालम व लत अ नके समान तेज वी नारायणदे वने ही दे वता आ दक सृ क है। े ौ े े

येन चाणवम य थौ न े थावरज मे । न दे वासुरनरे ण ोरगरा से ।। यो कामौ सु धष ातरौ मधुकैटभौ । हतौ भगवता तेन तयोद वा वृतं वरम् ।। पहलेक बात है, लयकालम सम त चराचर ाणी, दे वता, असुर, मनु य, नाग तथा रा स सभी न हो चुके थे। उस समय एकाणव (महासागर)-क जलरा शम दो अ य त धष दै य रहते थे, जनके नाम थे—मधु और कैटभ। वे दोन भाई यु क इ छा रखते थे। उ ह भगवान् नारायणने उ ह मनोवां छत वर दे कर उन दोन दै य का वध कया था। भूम बद ् वा कृतौ पूव मृ मयौ ौ महासुरौ । कण ोतो वौ तौ तु व णो त य महा मनः ।। कहते ह, वे दोन महान् असुर महा मा भगवान् व णुके कान क मैलसे उ प ए थे। पहले भगवान्ने इस पृ वीको आब करके म से ही उनक आकृ त बनायी थी। महाणवे वपतः शैलराजसमौ थतौ । तौ ववेश वयं वायुः णा साधु चो दतः ।। वे पवतराज हमालयके समान वशाल शरीर लये महासागरके जलम सो रहे थे। उस समय ाजीक ेरणासे वयं वायुदेवने उनके भीतर वेश कया। तौ दवं छाद य वा तु ववृधाते महासुरौ । वायु ाणौ तु तौ ् वा ा पयामृश छनैः ।। फर तो वे दोन महान् असुर स पूण ुलोकको आ छा दत करके बढ़ने लगे। वायुदेव ही जनके ाण थे, उन दोन असुर को दे खकर ाजीने धीरे-धीरे उनके शरीरपर हाथ फेरा। एकं मृ तरं बुद ् वा क ठनं बु य चापरम् । नामनी तु तयो े स वभुः स ललो वः ।। एकका शरीर उ ह अ य त कोमल तीत आ और सरेका अ य त कठोर। तब जलसे उ प होनेवाले भगवान् ाने उन दोन का नामकरण कया। मृ वयं मधुनाम क ठनः क ै टभः वयम् । तौ दै यौ कृतनामानौ चेरतुबलग वतौ ।। यह जो मृ ल शरीरवाला असुर है, इसका नाम मधु होगा और जसका शरीर कठोर है, वह कैटभ कहलायेगा। इस कार नाम न त हो जानेपर वे दोन दै य बलसे उ म होकर सब ओर वचरने लगे। तौ पुराथ दवं सवा ा तौ राजन् महासुरौ । छा ाथ दवं सवा चेरतुमधुकैटभौ ।। राजन्! सबसे पहले वे दोन महादै य मधु और कैटभ ुलोकम प ँचे और उस सारे लोकको आ छा दत करके सब ओर वचरने लगे। सवमेकाणवं लोकं यो कामौ सु नभयौ । तौ गतावसुरौ ् वा ा लोक पतामहः ।। े ै ी

एकाणवा बु नचये त ैवा तरधीयत । उस समय सारा लोक जलमय हो रहा था। उसम यु क कामनासे अ य त नभय होकर आये ए उन दोन असुर को दे खकर लोक पतामह ाजी वह एकाणव प जलरा शम अ तधान हो गये। स पे पनाभ य ना भदे शात् समु थते ।। आसीदादौ वयंज म तत् पङ् कजमपङ् कजम् । पूजयामास वस त ा लोक पतामहः ।। वे भगवान् प नाभ ( व णु)-क ना भसे कट ए कमलम जा बैठे। वह कमल वहाँ पहले ही वयं कट आ था। कहनेको तो वह पंकज था, परंतु पंकसे उसक उ प नह ई थी। लोक पतामह ाने अपने नवासके लये उस कमलको ही पसंद कया और उसक भू र-भू र सराहना क । तावुभौ जलगभ थौ नारायणचतुमुखौ । बन् वषायुतान सु शयानौ न चक पतुः ।। अथ द घ य काल य तावुभौ मधुकैटभौ । आज मतु तौ तं दे शं य ा व थतः ।। भगवान् नारायण और ा दोन ही अनेक सह वष तक उस जलके भीतर सोते रहे; कतु कभी त नक भी क पायमान नह ए। तदन तर द घकालके प ात् वे दोन असुर मधु और कैटभ उसी थानपर आ प ँचे, जहाँ ाजी थत थे। तौ ् वा लोकनाथ तु कोपात् संर लोचनः । उ पपाताथ शयनात् पनाभो महा ु तः ।। तद् यु मभवद् घोरं तयो त य च वै तदा । एकाणवे तदा घोरे ैलो ये जलतां गते ।। तदभूत् तुमुलं यु ं वषसङ् घान् सह शः । न च तावसुरौ यु े तदा ममवापतुः ।। उन दोन को आया दे ख महातेज वी लोकनाथ भगवान् प नाभ अपनी शयासे खड़े हो गये। ोधसे उनक आँख लाल हो गय । फर तो उन दोन के साथ उनका बड़ा भयंकर यु आ। उस भयानक एकाणवम जहाँ लोक जल प हो गयी थी, सह वष तक उनका वह घमासान यु चलता रहा; परंतु उस समय उस यु म उन दोन दै य को त नक भी थकावट नह होती थी। अथ द घ य काल य तौ दै यौ यु मदौ । ऊचतुः ीतमनसौ दे वं नारायणं भुम् ।। ीतौ व तव यु े न ा य वं मृ युरावयोः । आवां ज ह न य ोव स ललेन प र लुता ।। त प ात् द घकाल तीत होनेपर वे दोन रणो म दै य स होकर सवश मान् भगवान् नारायणसे बोले—‘सुर े ! हम दोन तु हारे यु -कौशलसे ब त स ह। तुम हमारे लये पृहणीय मृ यु हो। हम ऐसी जगह मारो, जहाँक भू म पानीम डू बी ई न हो। ौ ो

हतौ च तव पु वं ा ुयाव सुरो म । यो ावां यु ध नजता त यावां व हतौ सुतौ ।। तयोः स वचनं ु वा तदा नारायणः भुः । तौ गृ मृधे दै यौ दो या तौ समपीडयत् ।। ऊ यां नधनं च े तावुभौ मधुकैटभौ । ‘तथा मरनेके प ात् हम दोन तु हारे पु ह । जो हम यु म जीत ले, हम उसीके पु ह —ऐसी हमारी इ छा है।’ उनक बात सुनकर भगवान् नारायणने उन दोन दै य को यु म पकड़कर उ ह दोन हाथ से दबाया और मधु तथा कैटभ दोन को अपनी जाँघ पर रखकर मार डाला। तौ हतौ चा लुतौ तोये वपु यामेकतां गतौ ।। मेदो मुमुचतुद यौ मयमानौ जलो म भः । मेदसा त जलं ा तं ता याम तदधे तदा ।। नारायण भगवानसृजद् व वधाः जाः । दै ययोमदसा छ ा सवा राजन् वसु धरा ।। तदा भृ त कौ तेय मे दनी त मृता मही । भावात् पनाभ य शा ती च कृता नृणाम् ।। मरनेपर उन दोन क लाश जलम डू बकर एक हो गय । जलक लहर से म थत होकर उन दोन दै य ने जो मेद छोड़ा, उससे आ छा दत होकर वहाँका जल अ य हो गया। उसीपर भगवान् नारायणने नाना कारके जीव क सृ क । राजन् कु तीकुमार! उन दोन दै य के मेदसे सारी वसुधा आ छा दत हो गयी, अतः तभीसे यह मही ‘मे दनी’ के नामसे स ई। भगवान् प नाभके भावसे यह मनु य के लये शा त आधार बन गयी। (दा णा य तम अ याय समा त)

[वराह, नृ सह, वामन, द ा ेय, परशुराम, ीराम, ीक ृ ण तथा क क अवतार क सं त कथा] भी म उवाच ा भावसह ा ण समतीता यनेकशः । यथाश तु व या म शृणु तान् कु न दन ।। भी मजी कहते ह—कु न दन! भगवान्के अब-तक कई सह अवतार हो चुके ह। म यहाँ कुछ अवतार का यथाश वणन क ँ गा। तुम यान दे कर उनका वृ ा त सुनो। पुरा कमलनाभ य वपतः सागरा भ स । पु करे य स भूता दे वा ऋ षगणैः सह ।। पूवकालम जब भगवान् प नाभ समु के जलम शयन कर रहे थे, पु करम उनसे अनेक दे वता और मह षय का ा भाव आ। एष पौ क रको नाम ा भावः क ततः । पुराणः कयते य वेद ु तसमा हतः ।। ‘यह भगवान्का ‘पौ क रक’ (पु करस ब धी) पुरातन अवतार कहा गया है, जो वै दक ु तय ारा अनुमो दत है। वाराह तु ु तमुखः ा भावो महा मनः । य व णुः सुर े ो वाराहं पमा थतः ।। उ जहार मह तोयात् सशैलवनकाननाम् । महा मा ीह रका जो वराह नामक अवतार है, उसम भी धानतः वै दक ु त ही माण है। उस अवतारके समय भगवान्ने वराह प धारण करके पवत और वन स हत सारी पृ वीको जलसे बाहर नकाला था। वेदपादो यूपदं ः तुद त तीमुखः ।। अ न ज ो दभरोमा शीष महातपाः । चार वेद ही भगवान् वराहके चार पैर थे। यूप ही उनक दाढ़ थे। तु (य ) ही दाँत और ‘ च त’ (इ काचयन) ही मुख थे। अ न ज ा, कुश रोम तथा म तक थे। वे महान् तपसे स प थे। अहोरा े णो द ो वेदा ः ु तभूषणः ।। आ यनासः ुवतु डः सामघोष वनो महान् । दन और रात ही उनके दो ने थे। उनका व प द था। वेदांग ही उनके व भ अंग थे। ु तयाँ ही उनके लये आभूषणका काम दे ती थ । घी उनक ना सका, ुवा उनक थूथन और सामवेदका वर ही उनक भीषण गजना थी। उनका शरीर ब त बड़ा था। धमस यमयः ीमान् कम व मस कृतः ।। ाय नखो धीरः पशुजानुमहावृषः । धम और स य उनका व प था, वे अलौ कक तेजसे स प थे। वे व भ कम पी व मसे सुशो भत हो रहे थे, ाय उनके नख थे, वे धीर वभावसे यु थे, पशु उनके े

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घुटन के थानम थे और महान् वृषभ (धम) ही उनका ी व ह था। औद्गा होम ल ोऽसौ फलबीजमहौष धः ।। बा ा तरा मा म ा थ वकृतः सौ यदशनः । उद्गाताका होम प कम उनका लग था, फल और बीज ही उनके लये महान् औषध थे, वे बा और आ य तर जगत्के आ मा थे, वै दक म ही उनके शारी रक अ थ वकार थे। दे खनेम उनका व प बड़ा ही सौ य था। वे द क धो ह वग धो ह क ा दवेगवान् ।। ा वंशकायो ु तमान् नानाद ा भरा चतः । य क वेद ही उनके कंधे, ह व य सुग ध और ह -क आ द उनके वेग थे। ा वंश (यजमानगृह एवं प नीशाला) उनका शरीर कहा गया है। वे महान् तेज वी और अनेक कारक द ा से ा त थे। द णा दयो योगी महाशा मयो महान् ।। उपाकम चकः व यावतभूषणः । द णा उनके दयके थानम थ , वे महान् योगी और महान् शा व प थे। ी तकारक उपाकम उनके ओ और व य कम ही उनके र न के आभूषण थे। छायाप नीसहायो वै म णशृ इवो तः ।। एवं य वराहो वै भू वा व णुः सनातनः । मह सागरपय तां सशैलवनकाननाम् ।। एकाणवजले ामेकाणवगतः भुः । म जतां स लले त मन् वदे व पृ थव तदा ।। उ जहार वषाणेन माक डेय य प यतः । जलम पड़नेवाली छाया (परछा) ही प नीक भाँ त उनक सहा यका थी। वे म णमय पवत- शखरक भाँ त ऊँचे जान पड़ते थे। इस कार य मय वराह प धारण करके एकाणवके जलम व हो सवश मान् सनातन भगवान् व णुने उस जलम गरकर डू बी ई पवत, वन और समु स हत अपनी महारानी भूदेवीका (दाढ़ या) स गक सहायतासे माक डेय मु नके दे खते-दे खते उ ार कया। शृ े णेमां समु य लोकानां हतका यया ।। सह शीष दे वो ह नममे जगत भुः । सह म तक से सुशो भत होनेवाले उन भगवान्ने स ग (या दाढ़)-के ारा स पूण जगत्के हतके लये इस पृ वीका उ ार करके उसे जगत्का एक सु ढ़ आ य बना दया। एवं य वराहेण भूतभ भवा मना ।। उद्धृता पृ थवी दे वी सागरा बुधरा पुरा । नहता दानवाः सव दे वदे वेन व णुना ।। इस कार भूत, भ व य और वतमान व प भगवान् य वराहने समु का जल हरण करनेवाली भूदेवीका पूवकालम उ ार कया था। उस समय उन दे वा धदे व व णुने सम त दानव का संहार कया था। ो े ो

वाराहः क थतो ेष नार सहमथो शृणु । य भू वा मृगे े ण हर यक शपुहतः ।। यह वराह अवतारका वृ ा त बतलाया गया। अब नृ सहावतारका वणन सुनो, जसम नर सह प धारण करके भगवान्ने हर यक शपु नामक दै यका वध कया था। दै ये ो बलवान् राजन् सुरा रबलग वतः । हर यक शपुनाम आसीत् ैलो यक टकः ।। राजन्! ाचीन कालम दे वता का श ु हर यक शपु सम त दै य का राजा था। वह बलवान् तो था ही, उसे अपने बलका घमंड भी ब त था। वह तीन लोक के लये क टक प हो रहा था। दै यानामा दपु षो वीयवान् धृ तमान् बली । व य स वनं राजं कार तप उ मम् ।। परा मी हर यक शपु धीर और बलवान् था। दै यकुलका आ दपु ष वही था। राजन्! उसने वनम जाकर बड़ी भारी तप या क । दशवषसह ा ण शता न दश प च च । जपोपवासै त यासीत् थाणुम न तो ढः ।। साढ़े यारह हजार वष तक पूव तप याके हेतुभूत जप और उपवासम संल न रहनेसे वह ठूँ ठे काठके समान अ वचल और ढ़तापूवक मौन तका पालन करनेवाला हो गया। ततो दमशमा यां च चयण चानघ । ा ीतमना त य तपसा नयमेन च ।। न पाप नरेश! उसके इ यसंयम, मनो न ह, चय, तप या तथा शौच-संतोषा द नयम के पालनसे ाजीके मनम बड़ी स ता ई। ततः वय भूभगवान् वयमाग य भूपते । वमानेनाकवणन हंसयु े न भा वता ।। भूपाल! तदन तर वय भू भगवान् ा हंस जुते ए सूयके समान तेज वी वमान ारा वयं वहाँ पधारे। आ द यैवसु भः सा यैः म दवतैः सह । ै व सहायै य रा स क रैः ।। दशा भ व दशा भ नद भः सागरै तथा । न ै मुत खेचरै ापरै हैः ।। दे व ष भ तपोयु ै ः स ै ः स त ष भ तथा । राज ष भः पु यतमैग धवर सरोगणैः ।। उनके साथ आ द य, वसु, सा य, म द्गण, दे वगण, गण, व ेदेव, य , रा स, क र, दशा, व दशा, नद , समु , न , मु त, अ या य आकाशचारी ह, तप वी दे व ष, स , स त ष, पु या मा राज ष, ग धव तथा अ सराएँ भी थ । चराचरगु ः ीमान् वृतः सवसुरै तथा । े ो ै ी

ा वदां े ो दै यमाग य चा वीत् ।। स पूण दे वता से घरे ए वे ा म े चराचरगु ीमान् ा उस दै यके पास आकर बोले। ोवाच ीतोऽ म तव भ य तपसानेन सु त । वरं वरय भ ं ते यथे ं काममा ु ह ।। ाजीने कहा—उ म तका पालन करनेवाले दै यराज! तुम मेरे भ हो। तु हारी इस तप यासे म ब त स ँ। तु हारा भला हो। तुम कोई वर माँगो और मनोवां छत व तु ा त करो। हर यक शपु वाच न दे वासुरग धवा न य ोरगरा साः । न मानुषाः पशाचा ह युमा दे वस म ।। हर यक शपु बोला—सुर े ! मुझे दे वता, असुर, ग धव, य , नाग, रा स, मनु य और पशाच—कोई भी न मार सके। ऋषयो वा न मां शापैः ु ा लोक पतामह । शपेयु तपसा यु ा वर एष वृतो मया ।। लोक पतामह! तप वी ऋ ष-मह ष कु पत होकर मुझे शाप भी न द यही वर मने माँगा है। न श ेण न चा ेण ग रणा पादपेन च । न शु केण न चा ण या वा येन मे वधः ।। न श से, न अ से, न पवतसे, न वृ से, न सूखेसे, न गीलेसे और न सरे ही कसी आयुधसे मेरा वध हो। नाकाशे वा न भूमौ वा रा ौ वा दवसेऽ प वा । ना तवा न ब हवा प याद् वधो मे पतामह ।। पतामह! न आकाशम, न पृ वीपर, न रातम, न दनम तथा न बाहर और न भीतर ही मेरा वध हो सके। पशु भवा मृगैन यात् प भवा सरीसृपैः । ददा स चेद ् वरानेतान् दे वदे व वृणो यहम् ।। पशु या मृग, प ी अथवा सरीसृप (सप- ब छू ) आ दसे भी मेरी मृ यु न हो। दे वदे व! य द आप वर दे रहे ह तो म इ ह वर को लेना चाहता ँ। ोवाच एते दे ा वरा तात मया द ा तवा ताः । सवकामान् वरां तात ा यसे वं न संशयः ।। ी े











ाजीने कहा—तात! ये द और अ त वर मने तु ह दे दये। व स! इसम संशय नह क स पूण कामना स हत इन मनोवां छत वर को तुम अव य ा त कर लोगे। भी म उवाच एवमु वा स भगवानाकाशेन जगाम ह । रराज लोके स षगणसे वतः ।। भी मजी कहते ह—यु ध र! ऐसा कहकर भगवान् ा आकाशमागसे चले गये और लोकम जाकर षगण से से वत होकर अ य त शोभा पाने लगे। ततो दे वा नागा ग धवा मुनय तथा । वर दानं ु वा ते ाणमुपत थरे ।। तदन तर दे वता, नाग, ग धव और मु न उस वरदानका समाचार सुनकर ाजीक सभाम उप थत ए। दे वा ऊचुः वरेणानेन भगवन् बा ध य त स नोऽसुरः । तत् सीद व भगवत् वधोऽ य व च यताम् ।। दे वता बोले—भगवन्! इस वरके भावसे वह असुर हमलोग को ब त क दे गा, अतः आप स होइये और उसके वधका कोई उपाय सो चये। भवान् ह सवभूतानां वय भूरा दकृद् वभुः । ा च ह क ानाम कृ त ुवः ।। य क आप ही स पूण भूत के आ द ा, वय भू, सव ापी, ह -क के नमाता तथा अ कृ त और ुव व प ह। भी म उवाच ततो लोक हतं वा यं ु वा दे वः जाप तः । ोवाच भगवान् वा यं सवदे वगणां तदा ।। भी मजी कहते ह—यु ध र दे वता का यह लोक हतकारी वचन सुनकर द श स प भगवान् जाप तने उन सब दे वगण से इस कार कहा। ोवाच अव यं दशा तेन ा त ं तपसः फलम् । तपसोऽ तेऽ य भगवान् वधं कृ णः क र य त ।। ाजीने कहा—दे वताओ! उस असुरको अपनी तप याका फल अव य ा त होगा। फलभोगके ारा जब तप याक समा त हो जायगी, तब भगवान् व णु वयं ही उसका वध करगे। भी म उवाच एक छ वा सुराः सव णा त य वै वधम् । े ै

वा न थाना न द ा न ज मु ते वै मुदा वताः ।। भी मजी कहते ह—यु ध र ाजीके ारा इस कार उसके वधक बात सुनकर सब दे वता स तापूवक अपने द धामको चले गये। लधमा े वरे चा प सवा ता बाधते जाः । हर यक शपुद यो वरदानेन द पतः ।। दै य हर यक शपु ाजीका वर पाते ही सम त जाको क प ँचाने लगा। वरदानसे उसका घम ड ब त बढ़ गया था। रा यं चकार दै ये ो दै यसङ् घैः समावृतः । स त पा वशे च े लोकान् लोका तरान् बलात् ।। वह दै य का राजा होकर रा य भोगने लगा। झुंड-के-झुंड दै य उसे घेरे रहते थे। उसने सात प और अनेक लोक-लोका तर को बलपूवक अपने वशम कर लया। द लोकान् सम तान् वै भोगान् द ानवाप सः । दे वां भुवन थां तान् परा ज य महासुरः ।। उस महान् असुरने तीन लोक म रहनेवाले सम त दे वता को जीतकर स पूण द लोक और वहाँके द भोग पर अ धकार ा त कर लया। ैलो यं वशमानीय वग वस त दानवः । यदा वरमदो म ो यवसद् दानवो द व ।। इस कार तीन लोक को अपने अधीन करके वह दै य वगलोकम नवास करने लगा। वरदानके मदसे उ म हो दानव हर यक शपु दे वलोकका नवासी बन बैठा। अथ लोकान् सम तां व ज य स महासुरः । भवेयमहमेवे ः सोमोऽ नमा तो र वः ।। स ललं चा त र ं च न ा ण दशो दश । अहं ोध काम व णो वसवोऽयमा ।। धनद धना य ो य ः क पु षा धपः । एते भवेय म यु वा वयं भू वा बलात् स च ।। तदन तर वह महान् असुर अ य सम त लोक को जीतकर यह सोचने लगा क म ही इ हो जाऊँ, च मा, अ न, वायु, सूय, जल, आकाश, न , दस दशाएँ, ोध, काम, व ण, वसुगण, अयमा, धन दे नेवाले धना य , य और क पु ष का वामी—ये सब म ही हो जाऊँ। ऐसा सोचकर उसने वयं ही बलपूवक उन-उन पद पर अ धकार जमा लया। तेषां गृही वा थाना न तेषां काया यवाप सः । इ य ासी मखवरैः स तैदव षस मैः ।। नरक थान् समानीय वग थां तां कार सः । एवमाद न कमा ण कृ वा दै यप तबली ।। आ मेषु महाभागान् मुनीन् वै सं शत तान् । स यधमपरान् दा तान् पुरा ध षतवां सः ।। े े े े े े े

उनके थान हण करके उन सबके काय वह वयं दे खने लगा। उ म दे व षगण े य ारा जन दे वता का यजन करते थे, उन सबके थानपर वह वयं ही य भागका अ धकारी बन बैठा। नरकम पड़े ए सब जीव को वहाँसे नकालकर उसने वगका नवासी बना दया। बलवान् दै यराजने ये सब काय करके मु नय के आ म पर धावा कया और कठोर तका पालन करनेवाले स यधमपरायण एवं जते य महाभाग मु नय को सताना आर भ कया। य ीयान् कृतवान् दै यानय ीयां दे वताः । य य सुरा ज मु त त ज युत ।। थाना न दे वतानां तु वा रा यमपालयत् । उसने दै य को य का अ धकारी बनाया और दे वता को उस अ धकारसे वं चत कर दया। जहाँ-जहाँ दे वता जाते थे, वहाँ-वहाँ वह उनका पीछा करता था। दे वता के सारे थान हड़पकर वह वयं ही लोक के रा यका पालन करने लगा। प च को वषा ण नयुता येकष च ।। ष ैव सह ाणां ज मु त य रा मनः । एतद् वष स दै ये ो भोगै यमवाप सः ।। उस रा माके रा य करते पाँच करोड़ इकसठ लाख साठ हजार वष तीत हो गये। इतने वष तक दै यराज हर यक शपुने द भोग और ऐ यका उपभोग कया। तेना तबा यमाना ते दै ये े ण बलीयसा । लोकं सुरा ज मुः सव श पुरोगमाः ।। पतामहं समासा ख ाः ा लयोऽ ुवन् । महाबली दै यराज हर यक शपुके ारा अ य त पी ड़त हो इ आ द सब दे वता लोकम गये और ाजीके पास प ँचकर खेद त हो हाथ जोड़कर बोले।

दे वा ऊचुः भगवन् भूतभ ेश न ाय व इहागतान् । भयं द तसुताद् घोरं भव य दवा नशम् ।। दे वताने कहा—भूत, वतमान और भ व यके वामी भगवान् पतामह! हम यहाँ आपक शरणम आये ह! आप हमारी र ा क जये। अब हम उस दै यसे दन-रात घोर भयक ा त हो रही है। भगवन् सवभूतानां वय भूरा दकृद् वभुः । ा वं ह क ानाम कृ त ुवः ।। भगवन्! आप स पूण भूत के आ द ा, वय भू, सव ापी, ह -क के नमाता, अ कृ त एवं न य व प ह। ोवाच ूयतामापदे वं ह व ेया मया प च । नारायण तु पु षो व पो महा ु तः ।। ो



ः सवभूतानाम च यो वभुर यः । ाजी बोले—दे वताओ! सुनो, ऐसी वप को समझना मेरे लये भी अ य त क ठन है। अ तयामी भगवान् नारायण ही हमारी सहायता कर सकते ह। वे व प, महातेज वी, अ व प, सव ापी, अ वनाशी तथा स पूण भूत के लये अ च य ह। ममा प स तु यु माकं सने परमा ग तः ।। नारायणः परोऽ ादहम स भवः । संकटकालम मेरे और तु हारे वे ही परम ग त ह। भगवान् नारायण अ से परे ह और मेरा आ वभाव अ से आ है। म ो ज ुः जा लोकाः सव दे वासुरा ते ।। दे वा यथाहं यु माकं तथा नारायणो मम । पतामहोऽहं सव य स व णुः पतामहः ।। त ममं वबुधा दै यं स व णुः संह र य त । त य ना त श यं च त माद् जत मा चरम् ।। मुझसे सम त जा, स पूण लोक तथा दे वता और असुर भी उ प ए ह। दे वताओ! जैसे म तुमलोग का जनक ँ, उसी कार भगवान् नारायण मेरे जनक ह। म सबका पतामह ँ और वे भगवान् व णु पतामह ह। दे वताओ! इस हर यक शपु नामक दै यका वे व णु ही संहार करगे। उनके लये कुछ भी अस भव नह है, अतः सब लोग उ ह क शरणम जाओ, वल ब न करो।

भी म उवाच पतामहवचः ु वा सव ते भरतषभ । वबुधा णा साध ज मुः ीरोदध त ।। भी मजी कहते ह—भरत े ! पतामह ाका यह वचन सुनकर सब दे वता उनके साथ ही ीरसमु के तटपर गये। आ द या म तः सा या व े च वसव तथा । ा महषय ैव अ नौ च सु पणौ ।। अ ये च द ा ये राजं ते सव सगणाः सुराः । चतुमुखं पुर कृ य ेत पमुप थताः ।। आ द य, म द्गण, सा य, व ेदेव, वसु, , मह ष, सु दर पवाले अ नीकुमार तथा अ या य जो द यो नके पु ष ह, वे सब अथात् अपने गण स हत सम त दे वता चतुमुख ाजीको आगे करके ेत पम उप थत ए। ग वा ीरसमु ं तं शा त परमां ग तम् । अन तशयनं दे वमन तं द ततेजसम् ।। शर यं दशा व णुमुपत थुः सनातनम् । दे वं मयं य ं दे वं महाबलम् ।। भूतं भ ं भ व य च भुं लोकनम कृतम् । े

नारायणं वभुं दे वं शर यं शरणं गताः ।। ीरसमु के तटपर प ँचकर सब दे वता अन त नामक शेषनागक शयापर शयन करनेवाले अन त एवं उ त तेजसे काशमान उन शरणागतव सल सनातन दे वता ी व णुके स मुख उप थत ए, जो सबके सनातन परम ग त ह। वे भु दे व व प, वेदमय, य प, ा णको दे वता माननेवाले, महान् बल और परा मके आ य, भूत, वतमान और भ व य प, सवसमथ, व व दत, सव ापी, द श स प तथा शरणागतर क ह। वे सब दे वता उ ह भगवान् नारायणक शरणम गये। दे वा ऊचुः ाय व नोऽ दे वेश हर यक शपोवधात् । वं ह नः परमो धाता ाद नां सुरो म ।। दे वता बोले—दे वे र! आज आप हर यक शपुका वध करके हमारी र ा क जये। सुर े ! आप ही हमारे और ा आ दके भी धारण-पोषण करनेवाले परमे र ह। उ फु लपप ा श ुप भयङ ् कर । याय द तवंश य शर य वं भवा नः ।। खले ए कमलदलके समान ने वाले नारायण! आप श ुप को भय दान करनेवाले ह। भो! आज आप दै य का वनाश करनेके लये उ त हो हमारे शरणदाता होइये।

भी म उवाच दे वानां वचनं ु वा तदा व णुः शु च वाः । अ यः सवभूतानां व ु मेवोपच मे ।। भी मजी कहते ह—यु ध र! दे वता क यह बात सुनकर प व क तवाले भगवान् व णुने उस समय स पूण भूत से अ य रहकर बोलना आर भ कया। ीभगवानुवाच भयं यज वममरा अभयं वो ददा यहम् । तदे वं दवं दे वाः तप त मा चरम् ।। ीभगवान् बोले—दे वताओ! भय छोड़ दो। म तु ह अभय दे ता ँ। दे वगण! तुमलोग अ वल ब वगलोकम जाओ और पहलेक ही भाँ त वहाँ नभय होकर रहो। एषोऽहं सगणं दै यं वरदानेन द पतम् । अव यममरे ाणां दानवे ं नह यहम् ।। म वरदान पाकर घमंडम भरे ए दानवराज हर यक शपुको, जो दे वे र के लये भी अव य हो रहा है, सेवक स हत अभी मार डालता ँ। ोवाच भगवन् भूतभ ेश ख ा ेते भृशं सुराः । त मात् वं ज ह दै ये ं ं कालोऽ य मा चरम् ।। ी े औ े ी े े ी

ाजीने कहा—भूत, भ व य और वतमानके वामी नारायण! ये दे वता ब त ःखी हो गये ह, अतः आप दै यराज हर यक शपुको शी मार डा लये। उसक मृ युका समय आ गया है, इसम वल ब नह होना चा हये।

ीभगवानुवाच ं दे वाः क र या म वरया दै यनाशनम् । त मात् वं वबुधा ैव तप त वै दवम् ।। ीभगवान् बोले— ा तथा दे वताओ! म शी ही उस दै यका नाश क ँ गा, अतः तुम सब लोग अपने-अपने द लोकम जाओ। भी म उवाच एवमु वा स भगवान् वसृ य दवे रान् । नर याधतनुं कृ वा सह याधतनुं तथा ।। नार सहेन वपुषा पा ण न प य पा णना । भीम पो महातेजा ा दता य इवा तकः ।। भी मजी कहते ह—यु ध र! ऐसा कहकर भगवान् व णुने दे वे र को वदा करके आधा शरीर मनु यका और आधा सहका-सा बनाकर नर सह व ह धारण करके एक हाथसे सरे हाथको रगड़ते ए बड़ा भयंकर प बना लया। वे महातेज वी नर सह मुँह बाये ए कालके समान जान पड़ते थे। हर यक शपुं राजन् जगाम ह ररी रः । दै या तमागतं ् वा नार सहं महाबलम् ।। ववषुः श वष ते सुसं ु ा तदा ह रम् । राजन्! तदन तर भगवान् व णु हर यक शपुके पास गये। नृ सह पधारी महाबली भगवान् ीह रको आया दे ख दै य ने कु पत होकर उनपर अ -श क वषा आर भ क । तै वसृ ा न श ा ण भ यामास वै ह रः ।। जघान च रणे दै यान् सह ा ण ब य प । उनके ारा चलाये ए सभी श को भगवान् खा गये, साथ ही उ ह ने उस यु म कई हजार दै य का संहार कर डाला। तान् नह य च दै ये ान् सवान् ु ान् महाबलान् ।। अ यधावत् सुसं ु ो दै ये ं बलग वतम् । ोधम भरे ए उन सभी महाबलवान्, दै ये र का वनाश करके अ य त कु पत हो भगवान्ने बलो म दै यराज हर यक शपुपर धावा कया। जीमूतघनसंकाशो जीमूतघन नः वनः ।। जीमूत इव द तौजा जीमूत इव वेगवान् । भगवान् नृ सहक अंगका त मेघ क घटाके समान याम थी। वे मेघ क ग भीर गजनाके समान दहाड़ रहे थे। उनका उ त तेज भी मेघ के ही समान शोभा पाता था और वे मेघ के ही समान महान् वेगशाली थे। े ो ो

दे वा र द तजो ो नृ सहं समुपा वत् ।। भगवान् नृ सहको आया दे ख दे वता से े ष रखनेवाला दै य हर यक शपु उनक ओर दौड़ा। दै यं सोऽ तबलं ् वा ु शा ल व मम् । द तैद यगणैगु तं खरैनखमुखै त ।। ततः कृ वा तु यु ं वै तेन दै येन वै ह रः । कु पत सहके समान परा मी उस अ य त बलशाली, दपयु एवं दै यगण से सुर त दै यको सामने आया दे ख महातेज वी भगवान् नृ सहने नख के तीखे अ भाग के ारा उस दै यके साथ घोर यु कया। सं याकाले महातेजाः घाणे च वरा वतः ।। ऊरौ नधाय दै ये ं न बभेद नखै ह तम् । फर सं याकाल आनेपर बड़ी उतावलीके साथ उसे पकड़कर वे राजभवनक दे हलीपर बैठ गये। तदन तर उ ह ने अपनी जाँघ पर दै यराजको रखकर नख से उसका व ः थल वद ण कर डाला। महाबलं महावीय वरदानेन द पतम् ।। दै य े ं सुर े ो जघान तरसा ह रः । सुर े ीह रने वरदानसे घमंडम भरे ए महाबली महापरा मी दै यराजको बड़े वेगसे मार डाला। हर यक शपुं ह वा सवदै यां वै तदा ।। वबुधानां जानां च हतं कृ वा महा ु तः । मुमोद ह रदवः था य धम तदा भु व ।। इस कार हर यक शपु तथा उसके अनुयायी सब दै य का संहार करके महातेज वी भगवान् ीह रने दे वता तथा जाजन का हतसाधन कया और इस पृ वीपर धमक थापना करके वे बड़े स ए। एष ते नार सहोऽ क थतः पा डु न दन । शृणु वं वामनं नाम ा भावं महा मनः ।। पा डु न दन! यह मने तु ह सं ेपसे नृ सहावतारक कथा सुनायी है। अब तुम परमा मा ीह रके वामन-अवतारका वृ ा त सुनो। पुरा ेतायुगे राजन् ब लवरोचनोऽभवत् । दै यानां पा थवो वीरो बलेना तमो बली ।। राजन्! ाचीन ेतायुगक बात है; वरोचनकुमार ब ल दै य के राजा थे। बलम उनके समान सरा कोई नह था। ब ल अ य त बलवान् होनेके साथ ही महान् वीर भी थे। तदा ब लमहाराज दै यसङ् घैः समावृतः । व ज य तरसा श म थानमवाप सः ।। महाराज! दै यसमूहसे घरे ए ब लने बड़े वेगसे इ पर आ मण कया और उ ह जीतकर इ लोकपर अ धकार ा त कर लया। े े

तेन व ा सता दे वा ब लनाऽऽख डलादयः । ाणं तु पुर कृ य ग वा ीरोदध तदा ।। तु ु वुः स हताः सव दे वं नारायणं भुम् । राजा ब लके आ मणसे अ य त त ए इ आ द दे वता ाजीको आगे करके ीरसागरके तटपर गये और सबने मलकर दे वा धदे व भगवान् नारायणका तवन कया। स तेषां दशनं च े वबुधानां ह रः तुतः ।। सादजं य वभोर द यां ज म चो यते । दे वता के तु त करनेपर ीह रने उ ह दशन दया और कहा जाता है, उनपर कृपा साद करनेके फल व प भगवान्का अ द तके गभसे ा भाव आ। अ दतेर प पु वमे य यादवन दनः ।। एष व णु र त यात इ यावरजोऽभवत् । जो इस समय य कुलको आन दत कर रहे ह, ये ही भगवान् ीकृ ण पहले अ द तके पु होकर इ के छोटे भाई व णु (या उपे )-के नामसे व यात ए। त म ेव च काले तु दै ये ो वीयवान् ब लः ।। अ मेधं तु े माहतुमुपच मे । उ ह दन महापरा मी दै यराज ब लने तु े अ मेधके अनु ानक तैयारी आर भ क । वतमाने तदा य े दै ये य यु ध र ।। स व णुवामनो भू वा छ ो वेषधृक् । मु डो य ोपवीती च कृ णा जनधरः शखी ।। पलाशद डं संगृ वामनोऽ तदशनः । व य स बलेय े वतमाने तु द णाम् ।। दे ही युवाच दै ये ं व मां ीन् ममैव ह । यु ध र! जब दै यराजका य आर भ हो गया, उस समय भगवान् व णु ा णवेषधारी वामन चारीके पम अपनेको छपाकर सर मुँड़ाये, य ोपवीत, काला मृगचम और शखा धारण कये, हाथम पलाशका डंडा लये उस य म गये। उस समय भगवान् वामनक अ त शोभा दखायी दे ती थी। ब लके वतमान य म वेश करके उ ह ने दै यराजसे कहा—‘मुझे तीन पग भू म द णा पम द जये।’ द यतां पद मा म ययाच महासुरम् ।। स तथे त त ु य ददौ व णवे तदा । ‘केवल तीन पग भू म मुझे दे द जये।’ ऐसा कहकर उ ह ने महान् असुर ब लसे याचना क । ब लने भी ‘तथा तु’ कहकर ी व णुको भू म दे द । तेन ल वा ह रभूम जृ भयामास वै भृशम् । स शशुः स दवं खं च पृ थव च वशा पते ।। भ व मणैरेतत् सवमा मता भभूः । बलेबलवतो य े ब लना व णुना पुरा ।। ै ो ो े

व मै भर ो याः ो भता ते महासुराः । ब लसे वह भू म पाकर भगवान् व णु बड़े वेगसे बढ़ने लगे। राजन्! वे पहले तो बालक-जैसे लगते थे; कतु उ ह ने बढ़कर तीन ही पग म वग, आकाश और पृ वी— सबको माप लया। इस कार बलवान् राजा ब लके य म जब महाबली भगवान् व णुने केवल तीन पग ारा लोक को नाप लया, तब कसीसे भी ु ध न कये जा सकनेवाले महान् असुर ु ध हो उठे । व च मुखाः ु ा दै यसङ् घा महाबलाः ।। नानाव ा महाकाया नानावेषधरा नृप । राजन्! उनम व च आ द दानव धान थे। ोधम भरे ए उन महाबली दै य के समुदाय अनेक कारके वेष धारण कये वहाँ उप थत थे। उनके मुख अनेक कारके दखायी दे ते थे। वे सब-के-सब वशालकाय थे। नाना हरणा रौ ा नानामा यानुलेपनाः ।। वा यायुधा न संगृ द ता इव तेजसा । ममाणं हर त उपावत त भारत ।। उनके हाथ म भाँ त-भाँ तके अ -श थे। उ ह ने व वध कारक मालाएँ तथा च दन धारण कर रखे थे। वे दे खनेम बड़े भयंकर थे और तेजसे मानो व लत हो रहे थे। भरतन दन! जब भगवान् व णुने तीन लोक को मापना आर भ कया, उस समय सभी दै य अपने-अपने आयुध लेकर उ ह चार ओरसे घेरकर खड़े हो गये। मय सवान् द ै तेयान् पादह ततलै तु तान् । पं कृ वा महाभीमं जहाराशु स मे दनीम् ।। स ा य पादमाकाशमा द यसदने थतः । अ यरोचत भूता मा भा करं वेन तेजसा ।। भगवान्ने महाभयंकर प धारण करके उन सब दै य को लात -थ पड़ से मारकर भूम डलका सारा रा य उनसे शी छ न लया। उनका एक पैर आकाशम प ँचकर आ द य-म डलम थत हो गया। भूता मा भगवान् ीह र उस समय अपने तेजसे सूयक अपे ा ब त बढ़-चढ़कर का शत हो रहे थे। काशयन् दशः सवाः दश महाबलः । शुशुभे स महाबा ः सवलोकान् काशयन् ।। त य व मतो भूम च ा द यौ तना तरे । नभः ममाण य ना यां कल तदा थतौ ।। महाबली महाबा भगवान् व णु स पूण दशा - व दशा तथा सम त लोक को का शत करते ए बड़ी शोभा पा रहे थे। जस समय वे वसुधाको अपने पैर से माप रहे थे, उस समय वे इतने बढ़े क च मा और सूय उनक छातीके सामने आ गये थे। जब वे आकाशको लाँघने लगे, तब वे ही च मा और सूय उनके ना भदे शम आ गये। परमा ममाण य जानु यां तौ व थतौ ।। व णोर मतवीय य वद येवं जातयः ।

अथासा कपालं स अ ड य तु यु ध र ।। त छ ात् य दनी त य पादाद् ा तु न नगा । ससार सागरं साऽऽशु पावनी सागर मा ।। जब वे आकाश या वगलोकसे भी ऊपरको पैर बढ़ाने लगे, उस समय उनका प इतना वशाल हो गया क सूय और च मा उनके घुटन म थत दखायी दे ने लगे। इस कार ा णलोग अ मतपरा मी भगवान् व णुके उस वशाल पका वणन करते ह। यु ध र! भगवान्का पैर ा डकपालतक प ँच गया और उसके आघातसे कपालम छ हो गया, जससे झर-झर करके एक नद कट हो गयी, जो शी ही नीचे उतरकर समु म जा मली। सागरम मलनेवाली वह पावन स रता ही गंगा है। जहार मे दन सवा ह वा दानवपु वान् । आसुर यमा य लोकान् स जनादनः ।। सपु दारानसुरान् पाताले तानपातयत् । नमु चः श बर ैव ाद महामनाः ।। पादपाता भ नधूताः पाताले व नपा तताः । महाभूता न भूता मा स वशेषेण वै ह रः ।। कालं च सकलं राजन् गा भूता यदशयत् । भगवान् ीह रने बड़े-बड़े दानव को मारकर सारी पृ वी उनके अ धकारसे छ न ली और तीन लोक के साथ सारी आसुरी-स पदाका अपहरण करके उन असुर को ीपु स हत पातालम भेज दया। नमु च, श बर और महामना ाद भगवान्के चरण के पशसे प व हो गये। भगवान्ने उनको भी पातालम भेज दया। राजन्! भूता मा भगवान् ीह रने अपने ीअंग म वशेष पसे पंचमहाभूत तथा भूत, भ व य और वतमान—सभी काल का दशन कराया। त य गा े जगत् सवमानीत मव यते ।। न क चद त लोकेषु यद ा तं महा मना । त पं महेश य दे वदानवमानवाः ।। ् वा तं मुमु ः सव व णुतेजोऽ भपी डताः । उनके शरीरम सारा संसार इस कार दखायी दे ता था, मानो उसम लाकर रख दया गया हो। संसारम कोई ऐसी व तु नह है, जो उन परमा मासे ा त न हो। परमे र भगवान् व णुके उस पको दे खकर उनके तेजसे तर कृत हो दे वता, दानव और मानव सभी मो हत हो गये। ब लब ोऽ भमानी च य वाटे महा मना ।। वरोचनकुलं सव पाताले व नपा ततम् ।। अ भमानी राजा ब लको भगवान्ने य म डपम ही बाँध लया और वरोचनके सम त कुलको वगसे पातालम भेज दया। एवं वधा न कमा ण कृ वा ग डवाहनः । न व मयमुपाग छत् पारमे ेन तेजसा ।। ो े े ी े े े ी

ग डवाहन भगवान् व णुको अपने परमे रीय तेजसे उपयु कम करके भी अहंकार नह आ। स सवममरै य स दाय शचीपतेः । ैलो यं च ददौ श े व णुदानवसूदनः ।। दानवसूदन ी व णुने शचीप त इ को सम त दे वता का आ धप य दे कर लोक का रा य भी उ ह दे दया। एष ते वामनो नाम ा भावो महा मनः । वेद व जैरेतत् कयते वै णवं यशः ।। मानुषेषु यथा व णोः ा भावं तथा शृणु ।। इस कार परमा मा ीह रके वामन-अवतारका वृ ा त सं ेपसे तु ह बताया गया। वेदवे ा ा ण भगवान् व णुके इस सुयशका वणन करते ह। यु ध र! अब तुम मनु य म ीह रके जो अवतार ए ह, उनका वृ ा त सुनो। व णोः पुनमहाराज ा भावो महा मनः । द ा ेय इ त यात ऋ षरासी महायशाः ।। महाराज! अब म पुनः भगवान् व णुके द ा ेय नामक अवतारका वणन करता ँ। द ा ेयजी महान् यश वी मह ष थे। तेन न ेषु वेदेषु यासु च मखेषु च । चातुव य च संक ण धम श थलतां गते ।। अ भवध त चाधम स ये न े थतेऽनृते । जासु ीयमाणासु धम चाकुलतां गते ।। सय ाः स या वेदाः यानीता तेन वै । चातुव यमसंक ण कृतं तेन महा मना ।। स एव वै यदा ादा ै हया धपतेवरम् । तं हैहयानाम धप वजुनोऽ भ सादयत् ।। एक समयक बात है, सारे वेद न -से हो गये। वै दक कम और य -यागा दक का लोप हो गया। चार वण एकम मल गये और सव वणसंकरता फैल गयी। धम श थल हो गया एवं अधम दनो दन बढ़ने लगा। स य दब गया और सब ओर अस यने स का जमा लया। जा ीण होने लगी और धमको अधम ारा हर तरहसे पीड़ा (हा न) प ँचने लगी। ऐसे समयम महा मा द ा ेयने य और कमानु ानक व धस हत स पूण वेद का पुन ार कया और पुनः चार वण को पृथक्- पृथक् अपनी-अपनी मयादाम था पत कया। इ ह ने ही हैहयराज अजुनको वर दान कया था। हैहयराज अजुनने अपनी सेवा ारा द ा ेयजीको स कर लया था। वने पयचरत् स यक् शु ूषुरनसूयकः । नममो नरहंकारो द घकालमतोषयत् ।। आरा य द ा ेयं ह अगृ ात् स वरा नमान् । आ तादा ततराद् व ाद् व ान् व षे वतात् ।। े े े े ी

ऋतेऽमर वं व ेण द ा ेयेण धीमता । वरै तु भः वृत इमां त ा यन दत ।। वह अ छ तरह सेवाम संल न हो वनम मु नवर द ा ेयक प रचयाम लगा रहता था। उसने सर का दोष दे खना छोड़ दया था। वह ममता और अहंकारसे र हत था। उसने द घकालतक द ा ेयजीक आराधना करके उ ह संतु कया। द ा ेयजी आ त पु ष से भी बढ़कर आ त पु ष थे। बड़े-बड़े व ान् उनक सेवाम रहते थे। व ान् सहबा अजुनने उन षसे ये न नां कत वर ा त कये। अमर व छोड़कर उसके माँगे ए सभी वर व ान् ा ण द ा ेयजीने दे दये। उसने चार वर के लये मह षसे ाथना क थी और उन चार का ही मह षने अ भन दन कया था। ीमान् मन वी बलवान् स यवागनसूयकः । सह बा भूयासमेष मे थमो वरः ।। जरायुजा डजं सव सव चैव चराचरम् । शा तु म छे धमण तीय वेष मे वरः ।। (वे वर इस कार ह—हैहयराज बोला—) ‘म ीमान्, मन वी, बलवान्, स यवाद , अदोषदश तथा सहभुजा से वभू षत होऊँ, यह मेरे लये पहला वर है। ‘म जरायुज और अ डज जीव के साथ-साथ सम त चराचर जगत्का धमपूवक शासन करना चाहता ँ’—मेरे लये सरा वर यही हो। पतॄन् दे वानृषीन् व ान् यजेयं वपुलैमखैः । अ म ान् न शतैबाणैघातयेयं रणा जरे ।। द ा ेयेह भगवं तृतीयो वर एष मे । य य नासी भ वता न चा त स शः पुमान् ।। इह वा द व वा लोके स मे ह ता भवे द त ।। ‘म अनेक कारके य ारा दे वता , ऋ षय , पतर तथा ा ण अ त थय का यजन क ँ और जो लोग मेरे श ु ह, उ ह समरांगणम तीखे बाण ारा मारकर यमलोक प ँचा ँ ।’ भगवन् द ा ेय! मेरे लये यही तीसरा वर हो। ‘ जसके समान इहलोक या वगलोकम कोई पु ष न था, न है और न होगा ही, वही मेरा वध करनेवाला हो’ (यह मेरे लये चौथा वर हो)। सोऽजुनः कृतवीय य वरः पु ोऽभवद् यु ध । स सह ं सह ाणां मा ह म यामवधत ।। वह अजुन राजा कृतवीयका ये पु था और यु म महान् शौयका प रचय दे ता था। उसने मा ह मती नगरीम दस लाख वष तक नर तर अ युदयशील होकर रा य कया। पृ थवीमखलां ज वा पां ा प समु णः । नभसीव वलन् सूयः पु यैः कम भरजुनः ।। जैसे आकाशम सूयदे व सदा काशमान होते ह, उसी कार कातवीय अजुन सारी पृ वी और समु प को जीतकर इस भूतलपर अपने पु यकम से का शत हो रहा था। इ पं कशे ं च ता पं गभ तमत् । ौ

गा धव वा णं पं सौ या म त च भुः ।। पूवर जतपूवा पानजयदजुनः ।। सौवण सवम यासीद् वमानवरमु मम् । चतुधा भजद् रा ं तद् वभ या वपालयत् ।। श शाली सहबा ने इ प, कशे प, ता प, गभ तमान् प, ग धव प, व ण प और सौ या पको, ज ह उसके पूवज ने भी नह जीता था, जीतकर अपने अ धकारम कर लया। उसका े राजभवन ब त ही सु दर और सारा-का-सारा सुवणमय था। उसने अपने रा यक आयको चार भाग म बाँट रखा था और इस वभाजनके अनुसार ही वह जाका पालन करता था। एकांशेनाहरत् सेनामेकांशेनावसद् गृहान् । य तु त य तृतीयांशो राजाऽऽसी जनसं हे ।। आ तः परमक याण तेन य ानक पयत् ।। वह उस आयके एक अंशके ारा सेनाका सं ह और संर ण करता था, सरे अंशके ारा गृह थीका खच चलाता था तथा उसका जो तीसरा अंश था, उसके ारा राजा अजुन जाजन क भलाईके लये य का अनु ान करता था। वह सबका व ासपा और परम क याणकारी था। ये द यवो ामचरा अर ये च वस त ये । चतुथन च स ऽशेन तान् सवान् यषेधयत् ।। सव य ा तवा स यः कातवीय ऽहरद् ब लम् । आ तं वबलैयत् तदजुन ा भम यते ।। काको वा मू षको वा प तं तमेव यबहयत् । ारा ण ना पधीय ते रा ेषु नगरेषु च ।। वह राजक य आयके चौथे अंशके ारा गाँव और जंगल म डाकु और लुटेर को शासनपूवक रोकता था। कृतवीयकुमार अजुन उसी धनको अ छा मानता था, जसे उसने अपने बल-परा म ारा ा त कया हो। काक या मूषकवृ से जो लोग जाके धनका अपहरण करते थे, उन सबको वह न कर दे ता था। उसके रा यके भीतर गाँव तथा नगर म घरके दरवाजे बंद नह कये जाते थे। स एव रा पालोऽभूत् ीपालोऽभवदजुनः । स एवासीदजापालः स गोपालो वशा पते ।। राजन्! कातवीय अजुन ही समूचे रा का पोषक, य का संर क, बक रय क र ा करनेवाला तथा गौ का पालक था। स मार ये मनु याणां राजा े ा ण र त । इदं तु कातवीय य बभूवास शं जनैः ।। वही जंगल म मनु य के खेत क र ा करता था। यह है कातवीयका अ त काय, जसक मनु य से तुलना नह हो सकती। न पूव नापरे त य ग म य त ग त नृपाः । े े

यदणवे यात य व ं न प र ष यते ।। शतं वषसह ाणामनु श याजुनो महीम् । द ा ेय सादे न एवं रा यं चकार सः ।। न पहलेका कोई राजा कातवीयक कसी मह ाको ा त कर सका और न भ व यम ही कोई ा त कर सकेगा। वह जब समु म चलता था, तब उसका व नह भीगता था। राजा अजुन द ा ेयजीके कृपा सादसे लाख वषतक पृ वीपर शासन करते ए इस कार रा यका पालन करता रहा। एवं ब न कमा ण च े लोक हताय सः । द ा ेय इ त यातः ा भाव तु वै णवः ।। क थतो भरत े शृणु भूयो महा मनः ।। यदा भृगुकुले ज म यदथ च महा मनः । जामद य इ त यातः ा भाव तु वै णवः ।। इस कार उसने लोक हतके लये ब त-से काय कये। भरत े ! यह मने भगवान् व णुके द ा ेय नामक अवतारका वणन कया। अब पुनः उन महा माके अ य अवतारका वणन सुनो। भगवान्का वह अवतार जामद य (परशुराम)-के नामसे व यात है। उ ह ने कस लये और कब भृगक ु ु लम अवतार हण कया, वह संग बतलाता ँ; सुनो। जगद नसुतो राजन् रामो नाम स वीयवान् । हैहया तकरो राजन् स रामो ब लनां वरः ।। कातवीय महावीय बलेना तम तथा । रामेण जामद येन हतो वषममाचरन् ।। महाराज यु ध र! मह ष जमद नके पु परशुराम बड़े परा मी ए ह। बलवान म े परशुरामजीने ही हैहयवंशका संहार कया था। महापरा मी कातवीय अजुन बलम अपना सानी नह रखता था; कतु अपने अनु चत बतावके कारण जमद नन दन परशुरामके ारा मारा गया। तं कातवीय राजानं हैहयानामरदमम् । रथ थं पा थवं रामः पात य वावधीद् रणे ।। श ुसूदन हैहयराज कातवीय अजुन रथपर बैठा था, परंतु यु म परशुरामजीने उसे नीचे गराकर मार डाला। ज भ य मू न भे ा च ह ता च शत भेः । स एष कृ णो गो व दो जातो भृगुषु वीयवान् ।। सह बा मु ु सह जतमाहवे ।। याणां चतु ष मयुतानां महायशाः । सर व यां समेता न एष वै धनुषाजयत् ।। षां वधे त मन् सह ा ण चतुदश । पुनज ाह शूराणाम तं च े नरषभः ।। ततो दशसह य ह ता पूवमरदमः । े

सह ं मुसलेनाहन् सह मुदकृ तत ।। ये भगवान् गो व द ही परा मी परशुराम पसे भृगव ु ंशम अवतीण ए। ये ही ज भासुरका म तक वद ण करनेवाले तथा शत भके घातक ह। इ ह ने सह पर वजय पानेवाले सहबा अजुनका यु म संहार करनेके लये ही अवतार लया था। महायश वी परशुरामने केवल धनुषक सहायतासे सर वती नद के तटपर एक त ए छः लाख चालीस हजार य पर वजय पायी थी। वे सभी य ा ण से े ष करनेवाले थे। उनका वध करते समय नर े परशुरामने और भी चौदह हजार शूरवीर का अ त कर डाला। तदन तर श ुदमन रामने दस हजार य का और वध कया। इसके बाद उ ह ने हजार वीर को मूसलसे मारकर यमलोक प ँचा दया तथा सह को फरसेसे काट डाला। चतुदश सह ा ण णमा मपातयत् । श ान् ष छ वा ततोऽ नायत भागवः ।। राम रामे य भ ु ो ा णैः या दतैः । य नद् दशसह ा ण रामः परशुना भभूः ।। भृगन ु दन परशुरामने चौदह हजार य को णमा म मार गराया तथा शेष ो हय का भी मूलो छे द करके नान कया। य से पी ड़त होकर ा ण ने ‘रामराम’ कहकर आतनाद कया था; इसी लये सव वजयी परशुरामने पुनः फरसेसे दस हजार य का अ त कया। न मृ यत तां वाचमातभृशमुद रताम् । भृगो रामा भधावे त यदा दन् जातयः ।। जस समय जलोग ‘भृगन ु दन परशुराम! दौड़ो, बचाओ’ इ या द बात कहकर क ण दन करते, उस समय उन पी ड़त ारा कही ई वह आतवाणी परशुरामजी नह सहन कर सके। का मीरान् दरदान् कु तीन् ु कान् मालवा छकान् । चे दका शक षां ऋ षकान् थकै शकान् ।। अ ान् ब ान् क ल ां मागधान् का शकोसलान् । रा ायणान् वी तहो ान् करातान् मा तकावतान् ।। एतान यां राजे ान् दे शे दे शे सह शः । नकृ य न शतैबाणैः स दाय वव वते ।। उ ह ने का मीर, दरद, कु तभोज, ु क, मालव, शक, चे द, का श, क ष, ऋ षक, थ, कै शक, अंग, वंग, क लग, मागध, काशी, कोसल, रा ायण, वी तहो , करात तथा मा तकावत—इनको तथा अ य सह राजे र को येक दे शम तीखे बाण से मारकर यमराजके भट कर दया। क णा यकोट भः मे म दरभूषणा । ःस तकृ वः पृ थवी तेन नः या कृता ।। मे और म दर पवत जसके आभूषण ह, वह पृ वी करोड़ य क लाश से पट गयी। एक-दो बार नह , इ क स बार परशुरामने यह पृ वी य से सूनी कर द । ै

एव म ् वा महाबा ः तु भभू रद णैः । अ यद् वषशतं रामः सौभे शा वमयोधयत् ।। ततः स भृगुशा ल तं सौभं योधयन् भुः । सुब धुरं रथं राज ा थाय भरतषभ ।। न नकानां कुमारीणां गाय तीनामुपाशृणोत् । तदन तर महाबा परशुरामने चुर द णावाले य का अनु ान करके सौ वष तक सौभ नामक वमानपर बैठे ए राजा शा वके साथ यु कया। भरत े यु ध र! तदन तर सु दर रथपर बैठकर सौभ वमानके साथ यु करनेवाले श शाली वीर भृगु े परशुरामने गीत गाती ई न नका* कुमा रय के मुखसे यह सुना— राम राम महाबाहो भृगूणां क तवधन । यज श ा ण सवा ण न वं सौभं व ध य स ।। च ह तो गदापा णभ तानामभयंकरः । यु ध ु नसा बा यां कृ णः सौभं व ध य त ।। ‘राम! राम! महाबाहो! तुम भृगव ु ंशक क त बढ़ानेवाले हो; अपने सारे अ -श नीचे डाल दो। तुम सौभ वमानका नाश नह कर सकोगे। भयभीत को अभय दे नेवाले च धारी गदापा ण भगवान् ी व णु ु न और सा बको साथ लेकर यु म सौभ वमानका नाश करगे’। त छ वा पु ष ा तत एव वनं ययौ । य य सवा ण श ा ण कालकाङ् ी महायशाः ।। रथं वमायुधं चैव शरान् परशुमेव च । धनूं य सु त ा य राजं तेपे परं तपः ।। यह सुनकर पु ष सह परशुराम उसी समय वनको चल दये। राजन्! वे महायश वी मु न कृ णावतारके समयक ती ा करते ए अपने सारे अ -श , रथ, कवच, आयुध बाण, परशु और धनुष जलम डालकर बड़ी भारी तप याम लग गये। यं ां यं क त ल म चा म कशनः । प चा ध ाय धमा मा तं रथं वससज ह ।। श ु का नाश करनेवाले धमा मा परशुरामने ल जा, ा, ी, क त और ल मी— इन पाँच का आ य लेकर अपने पूव रथको याग दया। आ दकाले वृ ं ह वभजन् कालमी रः । नाहन या सौभं न श ो महायशाः ।। जामद य इ त यातो य वसौ भगवानृ षः । सोऽ य भाग तप तेपे भागवो लोक व ुतः ।। शृणु राजं तथा व णोः ा भावं महा मनः । चतु वशे युगे चा प व ा म पुरःसरः ।। ई ी





आ दकालम जसक वृ ई थी, उस कालका वभाग करके भगवान् परशुरामने कुमा रय क बातपर ा होनेके कारण ही सौभ वमानका नाश नह कया, असमथताके कारण नह । जमद नन दन परशुरामके नामसे व यात वे मह ष, जो व व दत ऐ यशाली मह ष ह, वे इ ह ीकृ णके अंश ह, जो इस समय तप या कर रहे ह। राजन्! अब महा मा भगवान् व णुके सा ात् व प ीरामके अवतारका वणन सुनो, जो व ा म मु नको आगे करके चलनेवाले थे। तथौ नाव मके ज े तथा दशरथाद प । कृ वाऽऽ मानं महाबा तुधा व णुर यः ।। चै मासके शु लप क नवमी त थको अ वनाशी भगवान् महाबा व णुने अपनेआपको चार व प म वभ करके महाराज दशरथके सकाशसे अवतार हण कया था। लोके राम इ त यात तेजसा भा करोपमः । सादनाथ लोक य व णु त य सनातनः ।। धमाथमेव कौ तेय ज े त महायशाः । वे भगवान् सूयके समान तेज वी राजकुमार लोकम ीरामके नामसे व यात ए। कु तीन दन यु ध र! जगत्को स करने तथा धमक थापनाके लये ही महायश वी सनातन भगवान् व णु वहाँ कट ए थे। तम या मनु ये ं सवभूतपते तनुम् ।। य व नं तदा कृ वा व ा म य भारत । सुबा नहत तेन मारीच ता डतो भृशम् ।। मनु य के वामी भगवान् ीरामको सा ात् सवभूतप त ीह रका ही व प बतलाया जाता है। भारत! उस समय व ा म के य म व न डालनेके कारण रा स सुबा ीरामच जीके हाथ मारा गया और मारीच नामक रा सको भी बड़ी चोट प ँची। त मै द ा न श ा ण व ा म ेण धीमता । वधाथ दे वश ूणां वारा ण सुरैर प ।। परम बु मान् व ा म मु नने दे वश ु रा स का वध करनेके लये ीरामच जीको ऐसे-ऐसे द ा दान कये थे, जनका नवारण करना दे वता के लये भी अ य त क ठन था। वतमाने तदा य े जनक य महा मनः । भ नं माहे रं चापं डता लीलया परम् ।। ततो ववाहं सीतायाः कृ वा स रघुव लभः । नगर पुनरासा मुमुदे त सीतया ।। उ ह दन महा मा जनकके यहाँ धनुषय हो रहा था, उसम ीरामने भगवान् शंकरके महान् धनुषको खेल-खेलम ही तोड़ डाला। तदन तर सीताजीके साथ ववाह करके रघुनाथजी अयो यापुरीम लौट आये और वहाँ सीताजीके साथ आन दपूवक रहने लगे। ो

क य चत् वथ काल य प ा त ा भचो दतः । कैके याः यम व छन् वनम यवप त ।। कुछ कालके प ात् पताक आ ा पाकर वे अपनी वमाता महारानी कैकेयीका य करनेक इ छासे वनम चले गये। यः समाः सवधम तुदश वने वसन् । ल मणानुचरो रामः सवभूत हते रतः ।। चतुदश वने त वा तपो वषा ण भारत । पणी य य पा था सीते य भ हता जनैः ।। वहाँ सब धम के ाता और सम त ा णय के हतम त पर ीरामच जीने ल मणके साथ चौदह वष तक वनम नवास कया। भरतवंशी राजन्! चौदह वष तक उ ह ने वनम तप यापूवक जीवन बताया। उनके साथ उनक अ य त पवती धमप नी भी थ , ज ह लोग सीता कहते थे। पूव चत वात् सा ल मीभतारमनुग छ त । जन थाने वसन् काय दशानां चकार सः ।। मारीचं षणं ह वा खरं शरसं तथा । चतुदश सह ा ण र सां घोरकमणाम् ।। जघान रामो धमा मा जानां हतका यया । अवतारके पहले ी व णु पम रहते समय भगवान्के साथ उनक जो यो यतमा भाया ल मी रहा करती ह, उ ह ने ही उपयु होनेके कारण ीरामावतारके समय सीताके पम अवतीण हो अपने प तदे वका अनुसरण कया था। भगवान् ीराम जन थानम रहकर दे वता के काय स करते थे। धमा मा ीरामने जाजन के हतक कामनासे भयानक कम करनेवाले चौदह हजार रा स का वध कया। जनम मारीच, खर- षण और शरा आ द धान थे। वराधं च कब धं च रा सौ ू रक मणौ ।। जघान च तदा रामो ग धव शाप व तौ ।। उ ह दन दो शाप त ग धव ू रकमा रा स के पम वहाँ रहते थे, जनके नाम वराध और कब ध थे। ीरामने उन दोन का भी संहार कर डाला। स रावण य भ गनीनासा छे दं चकार ह । भाया वयोगं तं ा य मृगयन् चरद् वनम् ।। तत तमृ यमूकं स ग वा प पामती य च । सु ीवं मा त ् वा च े मै तयोः स वै ।। उ ह ने रावणक ब हन शूपणखाक नाक भी ल मणके ारा कटवा द ; इसीके कारण (रा स के षड् य से) उ ह प नीका वयोग दे खना पड़ा। तब वे सीताक खोज करते ए वनम वचरने लगे। तदन तर ऋ यमूक पवतपर जा प पासरोवरको लाँघकर ीरामजी सु ीव और हनुमान्जीसे मले और उन दोन के साथ उ ह ने मै ी था पत कर ली। अथ ग वा स क क धां सु ीवेण तदा सह । े े

नह य वा लनं यु े वानरे ं महाबलम् ।। अ य ष चत् तदा रामः सु ीवं वानरे रम् । ततः स वीयवान् राजं वरयन् वै समु सुकः । व च य वायुपु ेण लङ् कादे शं नवे दतम् ।। त प ात् ीरामच जीने सु ीवके साथ क क धाम जाकर महाबली वानरराज बालीको यु म मारा और सु ीवको वानर के राजाके पदपर अ भ ष कर दया। राजन्! तदन तर परा मी ीराम सीताजीके लये उ सुक हो बड़ी उतावलीके साथ उनक खोज कराने लगे। वायुपु हनुमान्जीने पता लगाकर यह बतलाया क सीताजी लंकाम ह। सेतुं बद् वा समु य वानरैः स हत तदा । सीतायाः पदम व छन् रामो लङ् कां ववेश ह ।। तब समु पर पुल बाँधकर वानर स हत ीरामने सीताजीके थानका पता लगाते ए लंकाम वेश कया। दे वोरगगणानां ह य रा सप णाम् । त ाव यं रा से ं रावणं यु ध जयम् ।। यु ं रा सकोट भ भ ा नचयोपमम् । वहाँ दे वता, नागगण, य , रा स तथा प य के लये अव य और यु म जय रा सराज रावण करोड़ रा स के साथ रहता था। वह दे खनेम खानसे खोदकर नकाले ए कोयलेके ढे रके समान जान पड़ता था। नरी यं सुरगणैवरदानेन द पतम् । जघान स चवैः साध सा वयं रावणं रणे । ैलो यक टकं वीरं महाकायं महाबलम् ।। रावणं सगणं ह वा रामो भूतप तः पुरा ।। लङ् कायां तं महा मानं रा से ं वभीषणम् । अ भ ष य च त ैव अमर वं ददौ तदा ।। दे वता के लये उसक ओर आँख उठाकर दे खना भी क ठन था। ाजीसे वरदान मलनेसे उसका घमंड ब त बढ़ गया था। ीरामने लोक के लये क टक प महाबली वशालकाय वीर रावणको उसके म य और वंशज स हत यु म मार डाला। इस कार स पूण भूत के वामी ीरघुनाथजीने ाचीन कालम रावणको सेवक स हत मारकर लंकाके रा यपर रा सप त महा मा वभीषणका अ भषेक करके उ ह वह अमर व दान कया। आ पु पकं रामः सीतामादाय पा डव । सबलः वपुरं ग वा धमरा यमपालयत् ।। दानवो लवणो नाम मधोः पु ो महाबलः । श ु नेन हतो राजं ततो राम य शासनात् ।। पा डु न दन! त प ात् ीरामने पु पक वमानपर आ ढ़ हो सीताको साथ ले दलबलस हत अपनी राजधानीम जाकर धमपूवक रा यका पालन कया। राजन्! उ ह े ी े

दन मथुराम मधुका पु लवण नामक दानव रा य करता था, जसे रामच जीक आ ासे श ु नने मार डाला। एवं ब न कमा ण क ृ वा लोक हताय सः । रा यं चकार व धवद् रामो धमभृतां वरः ।। इस कार धमा मा म े ीरामच जीने लोक हतके लये ब त-से काय करके व धपूवक रा यका पालन कया। दशा मेधानाज े जा ध थान् नरगलान् ।। ना ूय ताशुभा वाचो ना ययः ा णनां तदा । न व जं भयं चासीद् रामे रा यं शास त ।। ा णनां च भयं नासी जलानल वधानजम् । पयदे व वधवा नानाथाः का नाभवन् ।। उ ह ने दस अ मेध य का अनु ान कया और सरयूतटके जा ध दे शको व नबाधा से र हत कर दया। ीरामच जीके शासनकालम कभी कोई अमंगल-क बात नह सुनी गयी। उस समय ा णय क अकालमृ यु नह होती थी और कसीको भी धनक र ा आ दके न म भय नह ा त होता था। संसारके जीव को जल और अ न आ दसे भी भय नह होता था। वधवा का क ण दन नह सुना जाता था तथा याँ अनाथ नह होती थ । सवमासीत् तदा तृ तं रामे रा यं शास त । न संकरकरा वणा नाकृ करकृ जनः ।। ीरामच जीके रा यशासनकालम स पूण जगत् संतु था। कसी भी वणके लोग वणसंकर संतान नह उ प करते थे। कोई भी मनु य ऐसी जमीनके लये कर नह दे ता था, जो जोतने-बोनेके कामम न आती हो। न च म वृ ा बालानां ेतकाया ण कुवते ।। वशः पयचरन् ं ं नापीडयद् वशः । नरा ना यचरन् भाया भाया ना यचरन् पतीन् ।। नासीद पकृ षल के रामे रा यं शास त । आसन् वषसह ा ण तथा पु सह णः । अरोगाः ा णनोऽ यासन् रामे रा यं शास त ।। बूढ़ेलोग बालक का अ ये -सं कार नह करते थे (उनके सामने ऐसा अवसर ही नह आता था)। वै यलोग य क प रचया करते थे और यलोग भी वै य को क नह होने दे ते थे। पु ष अपनी प नय क अवहेलना नह करते थे और प नयाँ भी प तय क अवहेलना नह करती थ । ीरामच जीके रा य-शासन करते समय लोकम खेतीक उपज कम नह होती थी। लोग सह पु से यु होकर सह वष तक जी वत रहते थे। ीरामके रा य-शासनकालम सब ाणी नीरोग थे। ऋषीणां दे वतानां च मनु याणां तथैव च । पृ थ ां सहवासोऽभूद ् रामे रा यं शास त ।। े

सव ासं तृ त पा तदा त मन् वशा पते । धमण पृ थव सवामनुशास त भू मपे ।। ीरामच जीके रा यम इस पृ वीपर ऋ ष, दे वता और मनु य साथ-साथ रहते थे। राजन्! भू मपाल ीरघुनाथजी जन दन सारी पृ वीका शासन करते थे, उस समय उनके रा यम सब लोग पूणतः तृ तका अनुभव करते थे। तप येवाभवन् सव सव धममनु ताः । पृ थ ां धा मके त मन् रामे रा यं शास त ।। धमा मा राजा रामके रा यम पृ वीपर सब लोग तप याम ही लगे रहते थे और सब-केसब धमानुरागी थे। नाध म ो नरः क द् बभूव ा णनां व चत् । ाणापानौ समावा तां रामे रा यं शास त ।। ीरामके रा य-शासनकालम कोई भी मनु य अधमम वृ नह होता था। सबके ाण और अपान समवृ म थत थे। गाथाम य गाय त ये पुराण वदो जनाः । यामो युवा लो हता ो मात ाना मवषभः ।। आजानुबा ः सुमुखः सह क धो महाबलः । दश वषसह ा ण दश वषशता न च ।। रा यं भोगं च स ा य शशास पृ थवी ममाम् । जो पुराणवे ा व ान् ह, वे इस वषयम न नां कत गाथा गाया करते ह—‘भगवान् ीरामक अंगका त याम है, युवाव था है, उनके ने म कुछ-कुछ लाली है। वे गजराजजैसे परा मी ह। उनक भुजाएँ घुटन तक लंबी ह। मुख ब त सु दर है। कंधे सहके समान ह और वे महान् बलशाली ह। उ ह ने रा य और भोग पाकर यारह हजार वष तक इस पृ वीका शासन कया। रामो रामो राम इ त जानामभवन् कथाः ।। रामभूतं जग ददं रामे रा यं शास त । ऋ यजुःसामहीना न तदासन् जातयः ।। जाजन म ‘राम राम राम’ इस कार केवल रामक ही चचा होती थी। रामके रा यशासनकालम यह सारा जगत् राममय हो रहा था। उस समयके ज ऋ वेद, यजुवद और सामवेदके ानसे शू य नह थे। उ ष वा द डके काय दशानां चकार सः । पूवापका रणं सं ये पौल यं मनुजषभः ।। दे वग धवनागानामर स नजघान ह । स ववान् गुणस प ो द यमानः वतेजसा ।। एवमेव महाबा र वाकुकुलवधनः ।। इस कार मनु य म े ीरामच जीने द डकार यम नवास करके दे वता का काय स कया और पहलेके अपराधी पुल यन दन रावणको, जो दे वता , ग धव और े े ी

नाग का श ु था, यु म मार गराया। इ वाकुकुलका अ युदय करनेवाले महाबा ीराम महान् परा मी, सवगुणस प और अपने तेजसे दे द यमान थे। रावणं सगणं ह वा दवमा मता भभूः । इ त दाशरथेः यातः ा भावो महा मनः ।। वे इसी कार सेवक स हत रावणका वध करके रा यपालनके प ात् साकेतलोकम पधारे। इस कार परमा मा दशरथन दन ीरामके अवतारका वणन कया गया।

( ृ णावतारः) क ततः कृ णो महाबा भ तानामभयङ् करः । अ ा वशे युगे राजन् ज े ीव सल णः ।। राजन्! तदन तर अब अाईसव ापरम भय-भीत को अभय द े नेवाले ीव स वभू षत महाबा भगवान् ीकृ णके पम ी व णुका अवतार आ है। पेशल वदा य लोके ब मतो नृषु । मृ तमान् दे शकाल ः शङ् खच गदा सधृक् ।। ये इस लोकम परम सु दर, उदार, मनु य म अ य त स मा नत, मरणश से स प , दे शकालके ाता एवं शंख, च , गदा और खड् ग आ द आयुध धारण करनेवाले ह। वासुदेव इ त यातो लोकानां हतकृत् सदा । वृ णीनां च कुले जातो भूमेः य चक षया ।। वासुदेवके नामसे इनक स है। ये सदा सब लोग के हतम संल न रहते ह। भूदेवीका य काय करनेक इ छासे इ ह ने वृ णवंशम अवतार हण कया है। स नृणामभयं दाता मधुहे त स व ुतः । शकटाजुनरामाणां कल थाना यसूदयत् ।। ये ही मनु य को अभयदान करनेवाले ह। इ ह क मधुसूदन नामसे स है। इ ह ने ही शकटासुर, यमलाजुन और पूतनाके मम थान म आघात करके उनका संहार कया है। कंसाद न् नजघानाजौ दै यान् मानुष व हान् । अयं लोक हताथाय ा भावो महा मनः ।। मनु य-शरीरम कट ए कंस आ द दै य को यु म मार गराया। परमा माका यह अवतार भी लोक हतके लये ही आ है।

( क यवतारः) क क व णुयशा नाम भूय ो प यते ह रः । कलेयुगा ते स ा ते धम श थलतां गते ।। पाख डनां गणानां ह वधाथ भरतषभः । धम य च ववृ यथ व ाणां हतका यया ।। क लयुगके अ तम जब धम श थल हो जायगा, उस समय भगवान् ीह र पाख डय के वध तथा धमक वृ के लये और ा ण के हतक कामनासे पुनः अवतार लगे। उनके उस अवतारका नाम होगा ‘क क व णुयशा’। एते चा ये च बहवो द ा दे वगणैयुताः । ा भावाः पुराणेषु गीय ते वा द भः ।। भगवान्के ये तथा और भी ब त-से द अवतार दे वगण के साथ होते ह, जनका वाद पु ष पुराण म वणन करते ह। (दा णा य तम अ याय समा त)

[ ीक ृ णका ाक

तथा

ीकृ ण-बलरामक बाललीलाका वणन] वैश पायन उवाच एवमु ोऽथ कौ तेय ततः पौरवन दनः । आबभाषे पुनभ मं धमराजो यु ध रः ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! भी मजीके इस कार कहनेपर पू वंशको आन दत करनेवाले कु तीकुमार धमराज यु ध रने पुनः उनसे कहा। यु ध र उवाच भूय एव मनु ये उपे य यश वनः । ज म वृ णषु व ातु म छा म वदतां वर ।। यु ध र बोले—व ा म े नरे ! म यश वी भगवान् व णुके वृ णवंशम अवतार हण करनेका वृ ा त पुनः ( व तारपूवक) जानना चाहता ँ। यथैव भगवा ातः ता वह जनादनः । माधवेषु महाबु त मे ू ह पतामह ।। पतामह! परम बु मान् भगवान् जनादन इस पृ वीपर मधुवंशम जस कार उ प ए, वह सब संग मुझसे क हये। यदथ च महातेजा गा तु गोवृषभे णः । रर कंस य वधा लोकानाम भर ता ।। बैलके समान वशाल ने वाले लोकर क महा-तेज वी ीकृ णने कस लये कंसका वध करके गौ क र ा क ? डता चैव यद् बा ये गो व दे न वचे तम् । तदा म तमतां े त मे ू ह पतामह ।। बु मान म े पतामह! उस समय बा याव थाम बालको चत ड़ाएँ करते समय भगवान् गो व दने या- या लीलाएँ क? यह सब मुझे बताइये। वैश पायन उवाच एवमु ततो भी मः केशव य महा मनः । माधवेषु तदा ज म कथयामास वीयवान् ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! राजा यु ध रके इस कार पूछनेपर महापरा मी भी मने मधुवंशम भगवान् केशवके अवतार लेनेक कथा कहनी ार भ क । भी म उवाच ह त ते कथ य या म यु ध र यथातथम् । यतो नारायण येह ज म वृ णषु कौरव ।। भी मजी बोले—कु र न यु ध र! अब म वृ णवंशम भगवान् नारायणके अवतारहणका यथावत् वृ ा त क ँगा। ो



अजातश ो जात तु यथैष भु व भू मपः । क यमानं मया तात नबोध भरतषभ ।। भरतकुलभूषण तात अजातश ो! वसुधाक र ा करनेवाले ये भगवान् यहाँ कस कार कट ए? यह म बतला रहा ँ, यान दे कर सुनो। सागराः समक प त मुदा चेलु पवताः । ज वलु ा नयः शा ता जायमाने जनादने ।। भगवान्के ज मके समय आन दो े कके कारण समु म उ ाल तरंग उठने लग , पवत हलने लगे और बुझी ई अ नयाँ भी सहसा व लत हो उठ। शवाः स ववुवाताः शा तमभवद् रजः । योत ष स काश ते जायमाने जनादने ।। भगवान् जनादनके ज मकालम शीतल, म द एवं सुखद वायु चलने लगी। धरतीक धूल शा त हो गयी और न का शत होने लगे। दे व भय ा प स वनुभृशम बरे । अ यवष तदाऽऽग य दे वताः पु पवृ भः ।। आकाशम दे वलोकके नगाड़े जोर-जोरसे बजने लगे और दे वगण आ-आकर वहाँ फूल क वषा करने लगे। गी भम लयु ा भर तुवन् मधुसूदनम् । उपत थु तदा ीताः ा भावे महषयः ।। वे मंगलमयी वाणी ारा भगवान् मधुसूदनक तु त करने लगे। भगवान्के अवतारका समय जान मह षगण भी अ य त स होकर वहाँ आ प ँचे। तत तान भस े य नारद मुखानृषीन् । उपानृ य ुपजगुग धवा सरसां गणाः ।। नारद आ द दे व षय को उप थत दे ख ग धव और अ सराएँ नाचने और गाने लग । उपत थे च गो व दं सह ा ः शचीप तः । अ यभाषत तेज वी महष न् पूजयं तदा ।। उस समय सह ने वाले शचीव लभ तेज वी इ भगवान् गो व दक सेवाम उप थत ए और मह षय का आदर करते ए बोले। इ उवाच कृ या न दे वकाया ण कृ वा लोक हताय च । वलोकं लोककृद् दे व पुनग छ वतेजसा ।। इ ने कहा—दे व! आप स पूण जगत्के ा ह। दे वता के जो कत काय ह, उन सबको स पूण जगत्के हतके लये स करके आप अपने तेजस हत पुनः परमधामको पधा रये। भी म उवाच इ यु वा मु न भः साध जगाम दवे रः । ी ी े ऐ ो े ी े े े

भी मजी कहते ह—ऐसा कहकर वगलोकके वामी इ दे व षय के साथ अपने लोकको चले गये। वसुदेव ततो जातं बालमा द यसं नभम् । न दगोपकुले राजन् भयात् ा छादय रम् ।। राजन्! तदन तर वसुदेवजीने कंसके भयसे सूयके समान तेज वी अपने नवजात बालक ीह रको न दगोपके घरम छपा दया।

न दगोपकुले कृ ण उवास ब लाः समाः । ततः कदा चत् सु तं तं शकट य वधः शशुम् ।। यशोदा स प र य य जगाम यमुनां नद म् । ीकृ ण ब त वष तक न दगोपके ही घरम रहे। एक दन वहाँ शशु ीकृ ण एक छकड़ेके नीचे सोये थे। माता यशोदा उ ह वह छोड़कर यमुनाजीके तटपर चली गय । शशुलीलां ततः कुवन् वह तचरणौ पन् ।। रोद मधुरं कृ णः पादावू व सारयन् । पादाङ् गु ेन शकटं धारय थ केशवः ।। त ाथैकेन पादे न पात य वा तथा शशुः । उस समय ीकृ ण शशुलीलाका दशन करते ए अपने हाथ-पैर फक-फककर मधुर वरम रोने लगे। पैर को ऊपर फकते समय भगवान् केशवने अपने पैरके अंगठ ू े से े ो े औ ी ँ े े ो

छकड़ेको ध का दे दया और इस कार एक ही पाँवसे छकड़ेको उलटकर गरा दया। यु जः पयोधराकाङ् ी चकार च रोद च ।। पा ततं शकटं ् वा भ भा डघट घटम् । जना ते शशुना तेन व मयं परमं ययुः ।। उसके बाद वे वयं धे मुँह हो गये और माताका तन पीनेक इ छासे जोर-जोरसे रोने लगे। शशुके ही पदाघातसे छकड़ा उलटकर गर गया तथा उसपर रखे ए सभी मटके और घड़े आ द बतन चकनाचूर हो गये। यह दे खकर सब लोग को बड़ा आ य आ। य ं शूरसेनानां यते महद तम् । पूतना चा प नहता महाकाया महा तनी ।। प यतां सवदे वानां वासुदेवेन भारत । भरतन दन! शूरसेनदे श (मथुराम डल)-के नवा सय को यह अ य त अ त घटना य दखायी द तथा वसुदेवन दन ीकृ णने (आकाशम थत) सब दे वता के दे खतेदे खते महाकाय एवं वशाल तन वाली पूतनाको भी पहले मार डाला था। ततः काले महाराज संस ौ रामकेशवौ ।। व णुः सङ् कषण ोभौ र णौ समप ताम् । महाराज! तदन तर संकषण और व णुके व प बलराम और ीकृ ण दोन भाई कुछ कालके अन तर एक साथ ही घुटन के बल रगने लगे। अ यो य करण तौ च सूया ववा बरे ।। वसपयेतां सव सपभोगभुजौ तदा । जैसे च मा और सूय एक- सरेक करण से बँधकर आकाशम एक साथ वचरते ह , उसी कार बलराम और ीकृ ण सव एक साथ चलते- फरते थे। उनक भुजाएँ सपके शरीरक भाँ त सुशो भत होती थ । रेजतुः पांसु द धा ौ रामकृ णौ तदा नृप ।। व च च जानु भघृ ौ डमानौ व चद् वने । पब तौ द धकु या मयमाने च भारत ।। नरे र! बलराम और ीकृ ण दोन के अंग धू ल-धूस रत होकर बड़ी शोभा पाते। भारत! कभी वे दोन भाई घुटन के बल चलते थे, जससे उनम घ े पड़ गये थे। कभी वे वनम खेला करते और कभी मथते समय दहीक घोल लेकर पीया करते थे। ततः स बालो गो व दो नवनीतं तदा ये । समान तु त ायं गोपी भद शेऽथ वै ।। एक दन बालक ीकृ ण एका त गृहम छपकर माखन खा रहे थे। उस समय वहाँ उ ह कुछ गो पय ने दे ख लया। दा नाथोलूखले कृ णो गोप ी भ ब धतः । तदाथ शशुना तेन राजं तावजुनावुभौ ।। समूल वटपौ भ नौ तद त मवाभवत् । ो





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तब उन यशोदा आ द गोपांगना ने एक र सीसे ीकृ णको ऊखलम बाँध दया। राजन्! उस समय उ ह ने उस ऊखलको यमलाजुन वृ के बीचम अड़ाकर उ ह जड़ और शाखा स हत तोड़ डाला। वह एक अ त-सी घटना घ टत ई। त ासुरौ महाकायौ गत ाणौ बभूवतुः ।। उन वृ पर दो वशालकाय असुर रहा करते थे। वे भी वृ के टू टनेके साथ ही अपने ाण से हाथ धो बैठे। तत तौ बा यमु ीण कृ णसङ् कषणावुभौ । त म ेव ज थाने स तवष बभूवतुः ।। तदन तर वे दोन भाई ीकृ ण और बलराम बा याव थाक सीमाको पार करके उस जम डलम ही सात वषक अव थावाले हो गये। नीलपीता बरधरौ प त ेतानुलेपनौ । बभूवतुव सपालौ काकप धरावुभौ ।। बलराम नीले रंगके और ीकृ ण पीले रंगके व धारण करते थे। एकके ीअंग पर पीले रंगका अंगराग लगता था और सरेके ेत रंगका। दोन भाई काकप ( सरके पछले भागम बड़े-बड़े केश) धारण कये बछड़े चराने लगे। पणवा ं ु तसुखं वादय तौ वराननौ । शुशुभाते वनगतावुद णा वव प गौ ।। उन दोन क मुख छ व बड़ी मनोहा रणी थी। वे वनम जाकर वण-सुखद पणवा (प के बाजे— प पहरी आ द) बजाया करते थे। वहाँ दो त ण नागकुमार क भाँ त उन दोन क बड़ी शोभा होती थी। मयूरा जकण तौ प लवापीडधा रणौ । वनमालाप र तौ सालपोता ववोद्गतौ ।। वे अपने कान म मोरके पंख लगा लेते, म तकपर प लव के मुकुट धारण करते और गलेम वनमाला डाल लेते थे। उस समय शालके नये पौध क भाँ त उन दोन क बड़ी शोभा होती थी। अर व दकृतापीडौ र जुय ोपवी तनौ । श यतु बधरौ वीरौ गोपवेणु वादकौ ।। वे कभी कमलके फूल के शरोभूषण धारण करते और कभी बछड़ क र सय को य ोपवीतक भाँ त धारण कर लेते थे। वीरवर ीकृ ण और बलराम छके और तु बी लये वनम घूमते और गोपजनो चत वेणु बजाया करते थे। व चद् वस ताव यो यं डमानौ व चद् वने । पणश यासु संसु तौ व च ा तरै षणौ ।। वे दोन भाई कह ठहर जाते, कह वनम एक- सरेके साथ खेलने लगते और कह प क शया बछाकर सो जाते तथा न द लेने लगते थे। तौ व सान् पालय तौ ह शोभय तौ महद् वनम् । च चूय तौ रम तौ म राज ेवं तदा शुभौ ।। े औ ी े

राजन्! इस कार वे मंगलमय बलराम और ीकृ ण बछड़ क र ा करते तथा उस महान् वनक शोभा बढ़ाते ए सब ओर घूमते और भाँ त-भाँ तक ड़ाएँ करते थे। ततो वृ दावनं ग वा वसुदेवसुतावुभौ । गो जं त कौ तेय चारय तौ वज तुः ।। कु तीन दन! तदन तर वे दोन वसुदेवपु वृ दावनम जाकर गौएँ चराते ए लीलावहार करने लगे। (दा णा य तम अ याय समा त)

[का लयमद न एवं धेनुकासुर, अ र ासुर और कंस आ दका वध, ीकृ ण और बलरामका व ा यास तथा गु द णा पसे गु जीको उनके मरे ए पु को जी वत करके दे ना] भी म उवाच ततः कदा चद् गो व दो ये ं सङ् कषणं वना । चचार तद् वनं र यं र य पो वराननः ।। भी मजी कहते ह—यु ध र! तदन तर एक दन मनोहर प और सु दर मुखवाले भगवान् गो व द अपने बड़े भाई संकषणको साथ लये बना ही रमणीय वृ दावनम चले गये और वहाँ इधर-उधर मण करने लगे। काकप धरः ीमा ामः प नभे णः । ीव सेनोरसा यु ः शशाङ् क इव ल मणा ।। उ ह ने काकप धारण कर रखा था। वे परम शोभायमान, याम-वण तथा कमलके समान सु दर ने से सुशो भत थे। जैसे च मा कलंकसे यु होकर शोभा पाता है, उसी कार ीकृ णका व ः थल ीव स च से शोभा पा रहा था। र जुय ोपवीती स पीता बरधरो युवा । ेतग धेन ल ता ो नीलकु चतमूधजः ।। राजता ब हप ेण म दमा तक पना । व चद् गायन् व चत् डन् व च ृ यन् व च सन् ।। गोपवेषः स मधुरं गायन् वेणुं च वादयन् । ादनाथ तु गवां व चद् वनगतो युवा ।। गोकुले मेघकाले तु चचार ु तमान् भुः । ब र येषु दे शेषु वन य वनरा जषु ।। तासु कृ णो मुदं लेभे डया भरतषभ । स कदा चद् वने त मन् गो भः सह प र जन् ।। उ ह ने र सय को य ोपवीतक भाँ त पहन रखा था। उनके ीअंग पर पीता बर शोभा पा रहा था। व भ अंग म ेत च दनका अनुलेप कया गया था। उनके म तकपर काले-घुँघराले केश सुशो भत थे। सरपर मोरपंखका मुकुट शोभा पाता था, जो म द-म द वायुके झ क से लहरा रहा था। भगवान् कह गीत गाते, कह ड़ा करते, कह नाचते और कह हँसते थे। इस कार गोपालो चत वेष धारण कये मधुर गीत गाते और वेणु बजाते ए त ण ीकृ ण गौ को आन दत करनेके लये कभी-कभी वनम घूमते थे। अ य त का तमान् भगवान् ीकृ ण वषाके समय गोकुलम वहाँके अ तशय रमणीय दे श तथा वन े णय म वचरण करते थे। भरत े ! उन वन े णय म भाँ त-भाँ तके खेल करके यामसु दर बड़े स होते थे। एक दन वे गौ के साथ वनम घूम रहे थे। भा डीरं नाम ् वाथ य ोधं केशवो महान् । त छायायां नवासाय म त च े तदा भुः ।। े













घूमते-घूमते महा मा भगवान् केशवने भा डीर नामक वटवृ दे खा और उसक छायाम बैठनेका वचार कया। स त वयसा तु यैः व सपालैः सहानघ । रेमे स दवसान् कृ णः पुरा वगपुरे तथा ।। न पाप यु ध र! वहाँ ीकृ ण समान अव थावाले सरे गोपबालक के साथ बछड़े चराते थे, दनभर खेल-कूद करते थे और पहले द धामम जस कार वे आन दत होते थे, उसी कार वनम आन दपूवक दन बताते थे। तं डमानं गोपालाः कृ णं भा डीरवा सनः । रमय त म बहवो मा यैः डनकै तदा ।। अ ये म प रगाय त गोपा मु दतमानसाः । गोपालाः कृ णमेवा ये गाय त म वन याः ।। भा डीरवनम नवास करनेवाले ब त-से वाले वहाँ ड़ा करते ए ीकृ णको अ छे -अ छे खलौन ारा स रखते थे। सरे स च रहनेवाले गोप, ज ह वनम घूमना य था, सदा ीकृ णक म हमाका गान कया करते थे। तेषां संगायतामेव वादयामास केशवः । पणवा ा तरे वेणुं तु बं वीणां च त वै ।। एवं डा तरैः कृ णो गोपालै वजहार सः । जब वे गीत गाते, उस समय भगवान् ीकृ ण प के बाज के बीच-बीचम वेणु, तु बी और वीणा बजाया करते थे। इस कार व भ लीला ारा ीकृ ण गोपबालक के साथ खेलते थे। तेन बालेन कौ तेय कृतं लोक हतं तदा ।। प यतां सवभूतानां वासुदेवेन भारत । भरतन दन! उस समय बालक ीकृ णने स पूण भूत के दे खते-दे खते लोक हतके अनेक काय कये। दे नीपवने त डतं नागमूध न ।। का लयं शास य वा तु सवलोक य प यतः । वजहार ततः कृ णो बलदे वसहायवान् ।। वृ दावनम कद बवनके पास जो द (कु ड) था, उसम वेश करके उ ह ने का लयनागके म तक-पर नृ य ड़ा क थी। फर सब लोग के सामने ही का लयनागको अ य जानेका आदे श दे कर वे बलदे वजीके साथ वनम इधर-उधर वचरण करने लगे।

धेनुको दा णो दै यो राजन् रासभ व हः । तदा तालवने राजन् बलदे वेन वै हतः ।। राजन्! तालवनम धेनुक नामक भयंकर दै य नवास करता था, जो गधेका प धारण करके रहता था। उस समय वह बलदे वजीके हाथसे मारा गया। ततः कदा चत् कौ तेय रामकृ णौ वनं गतौ । चारय तौ वृ ा न गोधना न शुभाननौ ।। कु तीन दन! तदन तर कसी समय सु दर मुखवाले बलराम और ीकृ ण अपने बढ़े ए गोधनको चरानेके लये वनम गये। वहर तौ मुदा यु ौ वी माणौ वना न वै । वेलय तौ गाय तौ व च व तौ च पादपान् ।। वहाँ वनक शोभा नहारते ए वे दोन भाई घूमते, खेलते, गीत गाते और व भ वृ क खोज करते ए बड़े स होते थे। नाम भ ाहर तौ च व सान् गा परंतपौ । चेरतुल क स ा भः डा भरपरा जतौ ।। श ु को संताप दे नेवाले वे दोन अजेय वीर वहाँ गौ और बछड़ को नाम ले-लेकर बुलाते और लोक च लत बालो चत ड़ाएँ करते रहते थे। तौ दे वौ मानुष द ां वह तौ सुरपू जतौ । त जा तगुणयु ा भः डा भ ेरतुवनम् ।। वे दोन दे वव दत दे वता थे तो भी मानवी द ा हण करनेके कारण मानव-जा तके अनु प गुण वाली ड़ाएँ करते ए वनम वचरते थे। ो





ततः कृ णो महातेजा तदा ग वा तु गो जम् । ग रय ं तमेवैष कृतं गोपदारकैः ।। बुभुजे पायसं शौ ररी रः सवभूतकृत् । त प ात् महातेज वी ीकृ ण गौ के जम जाकर गोपबालक ारा कये जानेवाले ग रय म स म लत हो वहाँ सवभूत ा ई रके पम अपनेको कट करके ( ग रराजके लये सम पत) खीरको वयं ही खाने लगे। तं ् वा गोपकाः सव कृ णमेव समचयन् ।। पू यमान ततो गोपै द ं वपुरधारयत् । उ ह दे खकर सब गोप भगवद्बु से ीकृ णके उस व पक ही पूजा करने लगे। गोपाल ारा पू जत ीकृ णने द प धारण कर लया। धृतो गोवधनो नाम स ताहं पवत तदा ।। शशुना वासुदेवेन गवाथम रमदन । श ुमदन यु ध र! (जब इ वषा कर रहे थे, उस समय) बालक वासुदेवने गौ क र ाके लये एक स ताहतक गोवधन पवतको अपने हाथपर उठा रखा था। डमान तदा कृ णः कृतवान् कम करम् ।। तदद्भुत मवा ासीत् सवलोक य भारत । भरतन दन! उस समय ीकृ णने खेल-खेलम ही अ य त कर कम कर डाला, जो सब लोग के लये अ य त अद्भुत-सा था। दे वदे वः त ग वा कृ णं ् वा मुदा वतः ।। गो व द इ त तं वा य ष चत् पुरंदरः । इ यु वाऽऽ य गो व दं पु तोऽ ययाद् दवम् । दे वा धदे व इ ने भूतलपर जाकर जब ीकृ णको (गोवधन धारण कये) दे खा, तब उ ह बड़ी स ता ई। उ ह ने ीकृ णको ‘गो व द’ नाम दे कर उनका (‘गवे ’ पदपर) अ भषेक कया। दे वराज इ गो व दको दयसे लगाकर उनक अनुम त ले वगलोकको चले गये। अथा र इ त यातं दै यं वृषभ व हम् । जघान तरसा कृ णः पशूनां हतका यया ।। तदन तर ीकृ णने पशु के हतक कामनासे वृषभ पधारी अ र नामक दै यको वेगपूवक मार गराया। के शनं नाम दै तेयं राजन् वै हय व हम् । तथा वनगतं पाथ गजायुतबलं हयम् ।। हतं भोजपु ेण जघान पु षो मः । राजन्! जम केशी नामका एक दै य रहता था, जसका शरीर घोड़ेके समान था। उसम दस हजार हा थय का बल था। कु तीन दन! उस अ पधारी दै यको भोजकुलो प कंसने भेजा था। वृ दावनम आनेपर पु षो म ीकृ णने उसे भी अ र ासुरक भाँ त मार दया।

आ ं म लं च चाणूरं नजघान महासुरम् ।। कंसके दरबारम एक आ दे शीय म ल था, जसका नाम था चाणूर। वह एक महान् असुर था। ीकृ णने उसे भी मार डाला। सुनामानम म नं सवसै यपुर कृतम् । बाल पेण गो व दो नजघान च भारत ।। भरतन दन! (कंसका भाई) श ुनाशक सुनामा कंसक सारी सेनाका अगुआ— सेनाप त था। गो व द अभी बालक थे, तो भी उ ह ने सुनामाको मार दया। बलदे वेन चाय ः समाजे मु को हतः । भारत! (दं गल दे खनेके लये जुटे ए) जनसमाजम यु के लये तैयार खड़े ए मु क नामक पहलवानको बलरामजीने अखाड़ेम ही मार दया। ा सत तदा कंसः स ह कृ णेन भारत ।। यु ध र! उस समय ीकृ णने कंसके मनम भारी भय उ प कर दया। ऐरावतं युयु स तं मात ाना मवषभम् । कृ णः कुवलयापीडं हतवां त य प यतः ।। हा थय म े कुवलयापीडको, जो ऐरावतकुलम उ प आ था और ीकृ णको कुचल दे ना चाहता था, ीकृ णने कंसके दे खते-दे खते ही मार गराया।

ह वा कंसम म नः सवषां प यतां तदा । अ भ ष यो सेनं तं प ोः पादमव दत ।। फर श ुनाशन ीकृ णने सब लोग के सामने ही कंसको मारकर उ सेनको राजपदपर अ भ ष कर दया और अपने माता- पता दे वक -वसुदेवके चरण म णाम

कया। एवमाद न कमा ण कृतवान् वै जनादनः । उवास क त चत् त दना न सहलायुधः ।। इस कार जनादनने कतने ही अद्भुत काय कये और कुछ दन तक बलरामजीके साथ वे मथुराम ही रहे। तत तौ ज मतु तात गु ं सा द प न पुनः । गु शु ूषया यु ौ धम ौ धमचा रणौ ।। तात यु ध र! तदन तर वे दोन धम भाई गु सा द प नके यहाँ (उ ज यनीपुरीम) व ा ययनके लये गये। वहाँ वे गु सेवा-परायण हो सदा धमके ही अनु ानम लगे रहे। तमु ं महा मानौ वचर ताव त ताम् । अहोरा चतु ष ा षड ं वेदमापतुः ।। वे दोन महा मा कठोर तका पालन करते ए वहाँ रहते थे। उ ह ने च सठ दन-रातम ही छह अंग स हत स पूण वेद का ान ा त कर लया। ले यं च ग णतं चोभौ ा ुतां य न दनौ । गा धववेदं वै ं च सकलं समवापतुः ।। इतना ही नह , उन य कुलकुमार ने ले य ( च कला), ग णत, गा धववेद तथा सारे वेदको भी उतने ही समयके भीतर जान लया। ह त श ाम श ां ादशाहेन चापतुः । तावुभौ ज मतुव रौ गु ं सा द प न पुनः ।। धनुवद चक षाथ धम ौ धमचा रणौ । गज श ा तथा अ श ाको तो उ ह ने कुल बारह दन म ही ा त कर लया। इसके बाद वे दोन धम एवं धमपरायण वीर धनुवद सीखनेके लये पुनः सा द प न मु नके पास गये। ता व व वराचायम भग य ण य च ।। तेन तौ स कृतौ राजन् वचर तावव तषु । राजन्! धनुवदके े आचाय सा द प नके पास जाकर उन दोन ने णाम कया। सा द प नने उ ह स कारपूवक अपनाया एवं वे फर अव तीम वचरते ए वहाँ रहने लगे। प चाश रहोरा ैदशा ं सु त तम् ।। सरह यं धनुवदं सकलं ताववापतुः । पचास दन-रातम ही उन दोन ने दस अंग से यु , सु त त एवं रह यस हत स पूण धनुवदका ान ा त कर लया। ् वा कृता ौ व े ो गुवथ तावचोदयत् ।। अयाचताथ गो व दं ततः सा द प न वभुः । उन दोन भाइय को अ - व ाम नपुण दे खकर व वर सा द प नने उ ह गु द णा दे नेक आ ा द । सा द प नजी सब वषय म व ान् थे। उ ह ने ीकृ णसे अपने अभी मनोरथक याचना इस कार क ।

सा द प न वाच मम पु ः समु े ऽ मं त मना चापवा हतः ।। पु मानय भ ं ते भ तं त मना मम । सा द प नजी बोले—मेरा पु इस समु म नहा रहा था, उस समय ‘ त म’ नामक जलज तु उसे पकड़कर भीतर ले गया और उसके शरीरको खा गया। तुम दोन का भला हो। मेरे उस मरे ए पु को जी वत करके यहाँ ला दो। भी म उवाच आताय गुरवे त तशु ाव करम् ।। अश यं षु लोकेषु कतुम येन केन चत् । भी मजी कहते ह—यु ध र! इतना कहते-कहते गु सा द प न पु शोकसे आत हो गये। य प उनक माँग ब त क ठन थी, तीन लोक म सरे कसी पु षके लये इस कायका साधन करना अस भव था, तो भी ीकृ णने उसे पूण करनेक त ा कर ली। य सा द पनेः पु ं जघान भरतषभ ।। सोऽसुरः समरे ता यां समु े व नपा ततः । भरत े ! जसने सा द प नके पु को मारा था, उस असुरको उन दोन भाइय ने यु करके समु म मार गराया। ततः सा द पनेः पु ः सादाद मतौजसः ।। द घकालं गतः ेतं पुनरासी छरीरवान् । तदन तर अ मततेज वी भगवान् ीकृ णके कृपा सादसे सा द प नका पु , जो द घकालसे यमलोकम जा चुका था, पुनः पूववत् शरीर धारण करके जी उठा। तदश यम च यं च ् वा सुमहद तम् ।। सवषामेव भूतानां व मयः समजायत । वह अश य, अ च य और अ य त अद्भुत काय दे खकर सभी ा णय को बड़ा आ य आ। ऐ या ण च सवा ण गवा ं च धना न च ।। सव त पज ाते गुरवे रामकेशवौ । तत तं पु मादाय ददौ च गुरवे भुः ।। बलराम और ीकृ णने अपने गु को सब कारके ऐ य, गाय, घोड़े और चुर धन सब कुछ दये। त प ात् गु पु को लेकर भगवान्ने गु जीको स प दया। तं ् वा पु माया तं सा द प नपुरे जनाः । अश यमेतत् सवषाम च य म त मे नरे ।। क नारायणाद य तये ददम तम् । उस पु को आया दे ख सा द प नके नगरके लोग यह मान गये क ीकृ णके ारा यह ऐसा काय स प आ है, जो अ य सब लोग के लये अस भव और अ च य है। भगवान् े

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नारायणके सवा सरा कौन ऐसा पु ष है, जो इस अद्भुत कायको सोच भी सके (करना तो रक बात है)। गदाप रघयु े षु सवा ेषु च केशवः ।। परमां मु यतां ा तः सवलोकेषु व ुतः । भगवान् ीकृ णने गदा और प रघके यु म तथा स पूण अ -श के ानम सबसे े थान ा त कर लया। वे सम त लोक म व यात हो गये। भोजराजतनूजोऽ प कंस तात यु ध र ।। अ ाने बले वीय कातवीयसमोऽभवत् । तात यु ध र! भोजराजकुमार कंस भी अ ान, बल और परा मम कातवीय अजुनक समानता करता था। त य भोजपतेः पु ाद् भोजरा य ववधनात् ।। उ ज ते म राजानः सुपणा दव प गाः । भोजवंशके रा यक वृ करनेवाले भोजराजकुमार कंससे भूम डलके सब राजा उसी कार उ न रहते थे, जैसे ग ड़से सप। च कामुक न ंश वमल ासयो धनः ।। शतं शतसह ा ण पादाता त य भारत । भरतन दन! उसके यहाँ धनुष, खड् ग और चमचमाते ए भाले लेकर व च कारसे यु करनेवाले एक करोड़ पैदल सै नक थे। अ ौ शतसह ा ण शूराणाम नव तनाम् ।। अभवन् भोजराज य जा बूनदमय वजाः । भोजराजके रथी सै नक, जनके रथ पर सुवणमय वज फहराते रहते थे तथा जो शूरवीर होनेके साथ ही यु म कभी पीठ दखलानेवाले नह थे, आठ लाखक सं याम थे। फुर का चनक या तु गजा त य यु ध र ।। ताव येव सह ा ण गजानाम नव तनाम् । यु ध र! कंसके यहाँ यु से कभी पीछे न हटनेवाले हाथीसवार भी आठ ही लाख थे। उनके हा थय क पीठपर सुवणके चमक ले हौदे कसे होते थे। ते च पवतसङ् काशा वजपता कनः ।। बभूवुभ जराज य न यं मु दता गजाः । भोजराजके वे पवताकार गजराज व च वजा-पताका से सुशो भत होते थे और सदा संतु रहते थे। वलङ् कृतानां शी ाणां करेणूनां यु ध र । अभवद् भोजराज य ताव महद् बलम् ।। यु ध र! भोजराज कंसके यहाँ आभूषण से सजी ई शी गा मनी ह थ नय क वशाल सेना गजराज क अपे ा नी थी। षोडशा सह ा ण कशुकाभा न त य वै । अपर तु महा ूहः कशोराणां यु ध र ।। ो ो े

आरोहवरस प ो धषः केन चद् बलात् । स च षोडशसाह ः कंस ातृपुर सरः ।। उसके यहाँ सोलह हजार घोड़े ऐसे थे, जनका रंग पलासके फूलक भाँ त लाल था। राजन्! कशोर-अव थाके घोड़ का एक सरा दल भी मौजूद था, जसक सं या सोलह हजार थी। इन अ के सवार भी ब त अ छे थे। इस अ सेनाको कोई भी बलपूवक दबा नह सकता था। कंसका भाई सुनामा इन सबका सरदार था। सुनामा स श तेन स कंसं पयपालयत् । वह भी कंसके ही समान बलवान् था एवं सदा कंसक र ाके लये त पर रहता था। य आसन् सववणा तु हया त य यु ध र ।। स गणो म को नाम ष साह उ यते । यु ध र! कंसके यहाँ घोड़ का एक और भी ब त बड़ा दल था, जसम सभी रंगके घोड़े थे। उस दलका नाम था म क। म क क सं या साठ हजार बतलायी जाती है। कंसरोषमहावेगां वजानूपमहा माम् ।। म पमहा ाहां वैव वतवशानुगाम् । (कंसके साथ होनेवाला महान् समर एक भयंकर नद के समान था।) कंसका रोष ही उस नद का महान् वेग था। ऊँचे-ऊँचे वज तटवत वृ के समान जान पड़ते थे। मतवाले हाथी बड़े-बड़े ाह के समान थे। वह नद यमराजक आ ाके अधीन होकर चलती थी। श जालमहाफेनां सा दवेगमहाजलाम् ।। गदाप रघपाठनां नानाकवचशैवलाम् । अ -श के समूह उसम फेनका म उ प करते थे। सवार का वेग उसम महान् जल वाह-सा तीत होता था। गदा और प रघ पाठ न नामक मछ लय के स श जान पड़ते थे। नाना कारके कवच सेवारके समान थे। रथनागमहावता नाना धरकदमाम् ।। च कामुकक लोलां रथा क लल दाम् । रथ और हाथी उसम बड़ी-बड़ी भँवर का य उप थत करते थे। नाना कारका र ही क चड़का काम करता था। व च धनुष उठती ई लहर के समान जान पड़ते थे। रथ और अ का समूह दक े समान था। महामृधनद घोरां योधावतन नः वनाम् ।। को वा नारायणाद यः कंसह ता यु ध र । यो ा के इधर-उधर दौड़ने या बोलनेसे जो श द होता था, वही उस भयानक समरस रताका कलकल नाद था। यु ध र! भगवान् नारायणके सवा ऐसे कंसको कौन मार सकता था? एष श रथे त ं ता यनीका न भारत ।। धमद् भोजपु य महा ाणीव मा तः । भारत! जैसे हवा बड़े-बड़े बादल को छ - भ कर दे ती है, उसी कार इन भगवान् ीकृ णने इ के रथम बैठकर कंसक उपयु सारी सेना का संहार कर डाला।

तं सभा थं सहामा यं ह वा कंसं सहा वयम् ।। मानयामास मानाहा दे वक ससु द गणाम् ् । सभाम वराजमान कंसको म य और प रवारके साथ मारकर सु द स हत स माननीय माता दे वक का समादर कया।

ीकृ णने

यशोदां रो हण चैव अ भवा पुनः पुनः ।। उ सेनं च राजानम भ ष य जनादनः । अ चतो य मु यै भगवान् वासवानुजः ।। जनादनने यशोदा और रो हणीको भी बारंबार णाम करके उ सेनको राजाके पदपर अभष कया। उस समय य कुलके धान- धान पु ष ने इ के छोटे भाई भगवान् ीह रका पूजन कया। ततः पा थवमाया तं स हतं सवराज भः । सर व यां जरासंधमजयत् पु षो मः ।। तदन तर पु षो म ीकृ णने सम त राजा के स हत आ मण करनेवाले राजा जरासंधको सरोवर या द से सुशो भत यमुनाक े तटपर परा त कया। (दा णा य तम अ याय समा त)

[ रकासुरका सै नक स हत वध, द े वता आ दक सोलह हजार क याको न प नी पम वीकार करके ीकृ णका उ ह ारका भेजना तथा इ लोकम जाकर अ द तको कु डल अपणकर ारकापुरीम वापस आना] भी म उवाच शूरसेनपुरं य वा सवयादवन दनः । ारकां भगवान् कृ णः यप त केशवः ।। भी मजी कहते ह—यु ध र! तदन तर सम त य वं शय को आन दत करनेवाले भगवान् ीकृ ण शूरसेनपुरी मथुराको छोड़कर ारकाम चले गये। यप त याना न र ना न च ब न च । यथाह पु डरीका ो नैऋतान् तपालयन् ।। कमलनयन ीकृ णने असुर को परा जत करके जो ब त-से र न और वाहन ा त कये थे, उनका वे ारकाम यथो चत पसे संर ण करते थे। त व नं चर त म दै तेयाः सह दानवैः । ता घान महाबा ः वरम ान् महासुरान् ।। उनके इस कायम दै य और दानव व न डालने लगे। तब महाबा ीकृ णने वरदानसे उ म ए उन बड़े-बड़े असुर को मार डाला। स व नमकरोत् त नरको नाम नैऋतः । ासनः सुरसंघानां व दतो वः भावतः ।। त प ात् नरक नामक रा सने भगवान्के कायम व न डालना आर भ कया। वह सम त दे वता को भयभीत करनेवाला था। राजन्! तु ह तो उसका भाव व दत ही है। स भू यां मू त ल थः सवदे वासुरा तकः । मानुषाणामृषीणां च तीपमकरोत् तदा ।। सम त दे वता के लये अ तक प नरकासुर इस धरतीके भीतर मू त लगम* थत हो मनु य और ऋ षय के तकूल आचरण कया करता था। व ु हतरं भौमः कशे मगमत् तदा । गज पेण ज ाह चरा चतुद शीम् ।। भू मका पु होनेसे नरकको भौमासुर भी कहते ह। उसने हाथीका प धारण करके जाप त व ाक पु ी कशे के पास जाकर उसे पकड़ लया। कशे बड़ी सु दरी और चौदह वषक अव थावाली थी। मय च जहारैतां वा च नरकोऽ वीत् । न शोकभयाबाधः ा यो तषप त तदा ।। नरकासुर ा यो तषपुरका राजा था। उसके शोक, भय और बाधाएँ र हो गयी थ । उसने कशे को मू छत करके हर लया और अपने घर लाकर उससे इस कार कहा। नरक उवाच े



या न दे वमनु येषु र ना न व वधा न च । बभ त च मही कृ ना सागरेषु च यद् वसु ।। अ भृ त तद् दे व स हताः सवनैऋताः । तवैवोपह र य त दै या सह दानवैः ।। नरकासुर बोला—दे व! दे वता और मनु य के पास जो नाना कारके र न ह, सारी पृ वी जन र न को धारण करती है तथा समु म जो र न सं चत ह, उन सबको आजसे सभी रा स ला-लाकर तु ह ही अ पत कया करगे। दै य और दानव भी तु ह उ मो म र न क भट दगे। भी म उवाच एवमु मर ना न ब न व वधा न च । स जहार तदा भौमः ीर ना न च भारत ।। भी मजी कहते ह—भारत! इस कार भौमासुरने नाना कारके ब त-से उ म र न तथा ी-र न का भी अपहरण कया। ग धवाणां च याः क या जहार नरको बलात् । या दे वमनु याणां स त चा सरसां गणाः ।। ग धव क जो क याएँ थ , उ ह भी नरकासुर बलपूवक हर लाया। दे वता और मनु य क क या तथा अ सरा के सात समुदाय का भी उसने अपहरण कर लया। चतुदशसह ाणां चैक वश छता न च । एकवेणीधराः सवाः सतां मागमनु ताः ।। इस कार सोलह हजार एक सौ सु दरी कुमा रयाँ उसके घरम एक हो गय । वे सबक -सब स पु ष के मागका अनुसरण करके त और नयमके पालनम त पर हो एक वेणी धारण करती थ । तासाम तःपुरं भौमोऽकारय म णपवते । औदकायामद ना मा मुर य वषयं त ।। उ साहयु मनवाले भौमासुरने उनके रहनेके लये म णपवतपर अ तःपुरका नमाण कराया। उस थानका नाम था औदका (जलक सु वधासे स प भू म)। वह अ तःपुर मुर नामक दै यके अ धकृत दे शम बना था। ता ा यो तषो राजा मुर य दश चा मजाः । नैऋता यथा मु याः पालय त उपासते ।। ा यो तषपुरका राजा भौमासुर, मुरके दस पु तथा धान- धान रा स उस अ तःपुरक र ा करते ए सदा उसके समीप ही रहते थे। स एव तपसां पारे वरद ो महीसुतः । अ द त धषयामास कु डलाथ यु ध र ।। यु ध र! पृ वीपु भौमासुर तप याके अ तम वरदान पाकर इतना गव म हो गया था क इसने कु डलके लये दे वमाता अ द ततकका तर कार कर दया। ै



न चासुरगणैः सवः स हतैः कम तत् पुरा । कृतपूव महाघोरं यदकाष महासुरः ।। पूवकालम सम त महादै य ने एक साथ मलकर भी वैसा अ य त घोर पाप नह कया था, जैसा अकेले इस महान् असुरने कर डाला था। यं मही सुषुवे दे वी य य ा यो तषं पुरम् । वषया तपाला वारो य यासन् यु मदाः ।। पृ वीदे वीने उसे उ प कया था, ा यो तषपुर उसक राजधानी थी तथा चार यु ो म दै य उसके रा यक सीमाक र ा करनेवाले थे। आदे वयानमावृ य प थानं पयव थताः । ासनाः सुरसङ् घानां व पै रा सैः सह ।। वे पृ वीसे लेकर दे वयानतकके मागको रोककर खड़े रहते थे। भयानक पवाले रा स के साथ रहकर वे दे वसमुदायको भयभीत कया करते थे। हय ीवो नशु भ घोरः प चजन तथा । मुरः पु सह ै वरद ो महासुरः ।। उन चार दै य के नाम इस कार ह—हय ीव, नशु भ, भयंकर पंचजन तथा सह पु स हत महान् असुर मुर, जो वरदान ा त कर चुका था। त धाथ महाबा रेष च गदा सधृक् । जातो वृ णषु दे व यां वासुदेवो जनादनः ।। उसीके वधके लये च , गदा और खड् ग धारण करनेवाले ये महाबा ीकृ ण वृ णकुलम दे वक के गभसे उ प ए ह। वसुदेवजीके पु होनेसे ये जनादन ‘वासुदेव’ कहलाते ह। त या य पु षे य लोक थततेजसः । नवासो ारका तात व दतो वः धानतः ।। तात यु ध र! इनका तेज स पूण व म व यात है। इन पु षो म ीकृ णका नवास थान धानतः ारका ही है, यह तुम सब लोग जानते हो। अतीव ह पुरी र या ारका वासव यात् । अ त वै राजते पृ ां य ं ते यु ध र ।। ारकापुरी इ के नवास थान अमरावती पुरीसे भी अ य त रमणीय है। यु ध र! भूम डलम ारकाक शोभा सबसे अ धक है। यह तो तुम य ही दे ख चुके हो। त मन् दे वपुर ये सा सभा वृ युपा या । या दाशाह त व याता योजनायत व तृता ।। दे वपुरीके समान सुशो भत ारका नगरीम वृ णवं शय के बैठनेके लये एक सु दर सभा है, जो दाशाह के नामसे व यात है। उसक ल बाई और चौड़ाई एक-एक योजनक है। त वृ य धकाः सव रामकृ णपुरोगमाः । लोकया ा ममां कृ नां प रर त आसते ।। औ ी औ े ी ो ै े औ

उसम बलराम और ीकृ ण आ द वृ ण और अ धकवंशके सभी लोग बैठते ह और स पूण लोक-जीवनक र ाम द च रहते ह। त ासीनेषु सवषु कदा चद् भरतषभ । द ग धा ववुवाताः कुसुमानां च वृ यः ।। भरत े ! एक दनक बात है; सभी य वंशी उस सभाम वराजमान थे। इतनेम ही द सुग धसे भरी ई वायु चलने लगी और द कुसुम क वषा होने लगी। ततः सूयसह ाभ तेजोरा शमहा तः । मुतम त र ेऽभूत् ततो भूमौ त तः ।। तदन तर दो ही घड़ीके अंदर आकाशम सह सूय के समान महान् एवं अद्भुत तेजोरा श कट ई। वह धीरे-धीरे पृ वीपर आकर खड़ी हो गयी। म ये तु तेजस त य पा डरं गजमा थतः । वृतो दे वगणैः सववासवः य यत ।। उस तेजोम डलके भीतर ेत हाथीपर बैठे ए इ स पूण दे वता स हत दखायी दये। रामकृ णौ च राजा च वृ य धकगणैः सह । उ प य सहसा त मै नम कारमकुवत ।। बलराम, ीकृ ण तथा राजा उ सेन वृ ण और अ धकवंशके अ य लोग के साथ सहसा उठकर बाहर आये और सबने दे वराज इ को नम कार कया। सोऽवतीय गजात् तूण प र व य जनादनम् । स वजे बलदे वं च राजानं च तमा कम् ।। इ ने हाथीसे उतरकर शी ही भगवान् ीकृ णको दयसे लगाया। फर बलराम तथा राजा उ सेनसे भी उसी कार मले। उ वं वसुदेवं च वक ं च महाम तम् । ु नसा ब नशठान न ं ससा य कम् ।। गदं सारणम ू रं कृतवमाणमेव च । चा दे णं सुदे णं च अ यान प यथो चतम् ।। प र व य च ् वा च भगवान् भूतभावनः । भूतभावन ऐ यशाली इ ने वसुदेव, उ व, महाम त वक , ु न, सा ब, नशठ, अ न , सा य क, गद, सारण, अ ू र, कृतवमा, चा दे ण तथा सुदे ण आ द अ य यादव का भी यथो चत री तसे आ लगन करके उन सबक ओर पात कया। वृ य धकमहामा ान् प र व याथ वासवः ।। गृ पूजां तैद ामुवाचावनताननः । इस कार उ ह ने वृ ण और अ धकवंशके धान य को दयसे लगाकर उनक द ई पूजा हण क तथा मुखको नीचेक ओर झुकाकर वे इस कार बोले— इ उवाच ो

अ द या चो दतः कृ ण तव मा ाहमागतः ।। कु डलेऽप ते तात भौमेन नरकेण च । इ ने कहा—भैया कृ ण! तु हारी माता अ द तक आ ासे म यहाँ आया ँ। तात! भू मपु नरकासुरने उनके कु डल छ न लये ह। नदे शश दवा य वं लोकेऽ मन् मधुसूदन ।। त मा ज ह महाभाग भू मपु ं नरे र । मधुसूदन! इस लोकम माताका आदे श सुननेके पा केवल तु ह हो। अतः महाभाग नरे र! तुम भौमासुरको मार डालो। भी म उवाच तमुवाच महाबा ः ीयमाणो जनादनः । न ज य नरकं भौममाह र या म कु डले ।। भी मजी कहते ह—यु ध र! तब महाबा जनादन अ य त स होकर बोले —‘दे वराज! म भू मपु नरकासुरको परा जत करके माताजीके कु डल अव य ला ँ गा’। एवमु वा तु गो व दो राममेवा यभाषत । ु नम न ं च सा बं चा तमं बले ।। एतां ो वा तदा त वासुदेवो महायशाः । अथा सुपण वै शङ् खच गदा सधृक् ।। ययौ तदा षीकेशो दे वानां हतका यया । ऐसा कहकर भगवान् गो व दने बलरामजीसे बातचीत क । त प ात् ु न, अ न और अनुपम बलवान् सा बसे भी इसके वषयम वातालाप करके महायश वी इ याधी र भगवान् ीकृ ण शंख, च , गदा और खड् ग धारणकर ग ड़पर आ ढ़ हो दे वता का हत करनेक इ छासे वहाँसे चल दये।

तं या तम म नं दे वाः सहपुर दराः ।। पृ तोऽनुययुः ीताः तुव तो व णुम युतम् । श ुनाशन भगवान् ीकृ णको थान करते दे ख इ स हत स पूण दे वता बड़े स ए और अ युत भगवान् कृ णक तु त करते ए उ ह के पीछे -पीछे चले। सोऽ यान् र ोगणान् ह वा नरक य महासुरान् ।। ुरा तान् मौरवान् पाशान् षट् सह ं ददश सः । भगवान् ीकृ णने नरकासुरके उन मु य-मु य रा स को मारकर मुर दै यके बनाये ए छः हजार पाश को दे खा, जनके कनार के भाग म छु रे लगे ए थे। सं छ पाशां व ेण मुरं ह वा सहा वयम् ।। शलासङ् घान त य नशु भमवपोथयत् । भगवान्ने अपने अ (च )-से मुर दै यके पाश को काटकर मुर नामक असुरको उसके वंशज -स हत मार डाला और शला के समूह को लाँघकर नशु भको भी मार गराया। यः सह सम वेकः सवान् दे वानयोधयत् ।। तं जघान महावीय हय ीवं महाबलम् । त प ात् जो अकेला ही सह यो ा के समान था और स पूण दे वता के साथ अकेला ही यु कर सकता था, उस महाबली एवं महापरा मी हय ीवको भी मार दया। अपारतेजा धषः सवयादवन दनः ।। म ये लो हतग ायां भगवान् दे वक सुतः । औदकायां व पा ं जघान भरतषभ ।। ो

प च प चजनान् घोरान् नरक य महासुरान् । भरत े ! स पूण यादव को आन दत करनेवाले अ मत तेज वी धष वीर भगवान् दे वक न दनने औदकाके अ तगत लो हतगंगाके बीच व पा को तथा ‘पंचजन’ नामसे स नरकासुरके पाँच भयंकर रा स को भी मार गराया। ततः ा यो तषं नाम द यमान मव या ।। पुरमासादयामास त यु मवतत । फर भगवान् अपनी शोभासे उद्द त-से दखायी दे नेवाले ा यो तषपुरम जा प ँचे। वहाँ उनका दानव से फर यु छड़ गया। महद् दै वासुरं यु ं यद् वृ ं भरतषभ ।। यु ं न यात् समं तेन लोक व मयकारकम् । भरतकुलभूषण! वह यु महान् दे वासुर-सं ामके पम प रणत हो गया। उसके समान लोक व मयकारी यु सरा कोई नह हो सकता। च ला छनसं छ ाः श खड् गहता तदा ।। नपेतुदानवा त समासा जनादनम् । च धारी भगवान् ीकृ णसे भड़कर सभी दानव वहाँ च से छ - भ एवं श तथा खड् गसे आहत होकर धराशायी हो गये। अ ौ शतसह ा ण दानवानां परंतप । नह य पु ष ा ः पाताल ववरं ययौ ।। ासनं सुरसङ् घानां नरकं पु षो मः । योधय य ततेज वी मधुव मधुसूदनः ।। परंतप यु ध र! इस कार आठ लाख दानव का संहार करके पु ष सह पु षो म ीकृ ण पातालगुफाम गये, जहाँ दे वसमुदायको आतं कत करनेवाला नरकासुर रहता था। अ य त तेज वी भगवान् मधुसूदनने मधुक भाँ त परा मी नरकासुरसे यु ार भ कया। तद् यु मभवद् घोरं तेन भौमेन भारत । कु डलाथ सुरेश य नरकेण महा मना ।। भारत! दे वमाता अ द तके कु डल के लये भू मपु महाकाय नरकासुरके साथ छड़ा आ वह यु बड़ा भयंकर था। मुत लाल य वाथ नरकं मधुसूदनः । वृ च ं च े ण ममाथ बलाद् बली ।। बलवान् मधुसूदनने च हाथम लये ए नरकासुरके साथ दो घड़ीतक खलवाड़ करके बलपूवक च से उसके म तकको काट डाला। च म थतं त य पपात सहसा भु व । उ मा ं हता य वृ े व हते यथा ।। च से छ - भ होकर घायल ए शरीरवाले नरकासुरका म तक वक े मारे ए वृ ासुरके सरक भाँ त सहसा पृ वीपर गर पड़ा। भू म तु प ततं ् वा ते वै ादा च कु डले । ी

दाय च महाबा मदं वचनम वीत् ।। भू मने अपने पु को रणभू मम गरा दे ख अ द तके दोन कु डल लौटा दये और महाबा भगवान् ीकृ णसे इस कार कहा।

भू म वाच सृ वयैव मधुहं वयैव नहतः भो । यथे छ स तथा डन् जा त यानुपालय ।। भू म बोली— भो मधुसूदन! आपने ही इसे ज म दया था और आपने ही इसे मारा है। आपक जैसी इ छा हो, वैसी ही लीला करते ए नरकासुरक संतानका पालन क जये। ीभगवानुवाच दे वानां च मुनीनां च पतॄणां च महा मनाम् । उ े जनीयो भूतानां ट् पु षाधमः ।। लोक ः सुत ते तु दे वा रल कक टकः । ीभगवान्ने कहा—भा म न! तु हारा यह पु दे वता , मु नय , पतर , महा मा तथा स पूण भूत के उ े गका पा हो रहा था। यह पु षाधम ा ण से े ष रखनेवाला, दे वता का श ु तथा स पूण व का क टक था, इस लये सब लोग इससे े ष रखते थे। सवलोकनम कायाम द त बाधते बली ।। कु डले दपस पूण ततोऽसौ नहतोऽसुरः । े











इस बलवान् असुरने बलके घमंडम आकर स पूण व के लये व दनीय दे वमाता अ द तको भी क प ँचाया और उनके कु डल ले लये। इ ह सब कारण से यह मारा गया है। नैव म यु वया काय यत् कृतं म य भा म न ।। म भावा च ते पु ो लधवान् ग तमु माम् । त माद् ग छ महाभागे भारावतरणं कृतम् ।। भा म न! मने इस समय जो कुछ कया है, उसके लये तु ह मुझपर ोभ नह करना चा हये। महाभागे! तु हारे पु ने मेरे भावसे अ य त उ म ग त ा त क है; इस लये जाओ, मने तु हारा भार उतार दया है।

भू मका भगवान्को अ द तके कु डल दे ना

भी म उवाच नह य नरकं भौम स यभामासहायवान् । स हतो लोकपालै ददश नरकालयम् ।। भी मजी कहते ह—यु ध र! भू मपु नरकासुरको मारकर स यभामास हत भगवान् ीकृ णने लोकपाल के साथ जाकर नरकासुरके घरको दे खा। अथा य गृहमासा नरक य यश वनः । ददश धनम यं र ना न व वधा न च ।। यश वी नरकके घरम जाकर उ ह ने नाना कारके र न और अ य धन दे खा। म णमु ा वाला न वैडूय वकृता न च । अ मसारानकमणीन् वमलान् फा टकान प ।। म ण, मोती, मूँगे, वै यम णक बनी ई व तुए,ँ पुखराज, सूयका तम ण और नमल फ टकम णक व तुएँ भी वहाँ दे खनेम आय । जा बूनदमया येव शातकु भमया न च । द त वलनाभा न शीतर म भा ण च ।। जा बूनद तथा शातकु भसं क सुवणक बनी ई ब त-सी ऐसी व तुएँ वहाँ गोचर , जो व लत अ न और शीतर म च माके समान का शत हो रही थ । हर यवण चरं ेतम य तरं गृहम् । यद यं गृहे ं नरक य धनं ब ।। न ह रा ः कुबेर य तावद् धनसमु यः । पूवः पुरा सा ा महे सदने व प ।। नरकासुरका भीतरी भवन सुवणके समान सु दर, का तमान् एवं उ वल था। उसके घरम जो असं य एवं अ य धन दखायी दया, उतनी धनरा श राजा कुबेरके घरम भी नह है। दे वराज इ के भवनम भी पहले कभी उतना वैभव नह दे खा गया था। इ उवाच इमा न म णर ना न व वधा न वसू न च ।। हेमसू ा महाक या तोमरैव यशा लनः । भीम पा मात ाः वाल वकृताः कुथाः ।। वमला भः पताका भवासां स व वधा न च । ते च वश तसाह ा ताव यः करेणवः ।। इ बोले—जनादन! ये जो नाना कारके मा ण य, र न, धन तथा सोनेक जा लय से सुशो भत बड़े-बड़े हौद वाले, तोमरस हत परा मशाली बड़े भारी गजराज एवं उनपर बछानेके लये मूँगेसे वभू षत क बल, नमल पताका से यु नाना कारके व आ द ह, इन सबपर आपका अ धकार है। इन गजराज क सं या बीस हजार है तथा इससे नी ह थ नयाँ ह। अ ौ शतसह ा ण दे शजा ो मा हयाः । ो ै ै

गो भ ा वकृतैयानैः कामं तव जनादन ।। जनादन! यहाँ आठ लाख उ म दे शी घोड़े ह और बैल जुते ए नये-नये वाहन ह। इनमसे जनक आपको आव यकता हो, वे सब आपके यहाँ जा सकते ह। आ वका न च सू मा ण शयना यासना न च । काम ाहा रण ैव प णः यदशनाः ।। च दनागु म ा ण याना न व वधा न च । एतत् ते ाप य या म वृ यावासमरदम ।। श ुदमन! ये महीन ऊनी व , अनेक कारक शयाए ,ँ ब त-से आसन, इ छानुसार बोली बोलनेवाले दे खनेम सु दर प ी, च दन और अगु म त नाना कारके रथ—ये सब व तुएँ म आपके लये वृ णय के नवास थान ारकाम प ँचा ँ गा। भी म उवाच दे वग धवर ना न दै तेयासुरजा न च । या न स तीह र ना न नरक य नवेशने ।। एतत् तु ग डे सव मारो य वासवः । दाशाहप तना साधमुपाया म णपवतम् ।। भी मजी कहते ह—यु ध र! दे वता, ग धव, दै य और असुरस ब धी जतने भी र न नरकासुरके घरम उपल ध ए, उ ह शी ही ग ड़पर रखकर दे वराज इ दाशाहवंशके अ धप त भगवान् ीकृ णके साथ म णपवतपर गये। त पु या ववुवाताः भा ाः समु वलाः । े तां सुरसङ् घानां व मयः समप त ।। वहाँ बड़ी प व हवा बह रही थी तथा व च एवं उ वल भा सब ओर फैली ई थी। यह सब दे खकर दे वता को बड़ा व मय आ। दशा ऋषय ैव च ा द यौ यथा द व । भया त य शैल य न वशेष मवाभवत् ।। आकाशम डलम का शत होनेवाले दे वता, ऋ ष, च मा और सूयक भाँ त वहाँ आये ए दे वगण उस पवतक भासे तर कृत हो साधारण-से तीत हो रहे थे। अनु ात तु रामेण वासवेन च केशवः । ीयमाणो महाबा ववेश म णपवतम् ।। तदन तर बलरामजी तथा दे वराज इ क आ ासे महाबा भगवान् ीकृ णने नरकासुरके म णपवतपर बने ए अ तःपुरम स तापूवक वेश कया। त वैडूयवणा न ददश मधुसूदनः । सतोरणपताका न ारा ण शरणा न च ।। मधुसूदनने दे खा; उस अ तःपुरके ार और गृह वै यम णके समान का शत हो रहे ह। उनके फाटक पर पताकाएँ फहरा रही थ । च थतमेघाभः बभौ म णपवतः । े







हेम च पताकै ासादै पशो भतः ।। सुवणमय व च पताका वाले महल से सुशो भत वह म णपवत च लखत मेघ के समान तीत होता था। ह या ण च वशाला न म णसोपानव त च । त था वरवणाभा द शुमधुसूदनम् ।। ग धवसुरमु यानां या हतर तदा । व पसमे दे शे त तमपरा जतम् ।। उन महल म वशाल अट् टा लकाएँ बनी थ , जनपर चढ़नेके लये म ण नमत सी ढ़याँ सुशो भत हो रही थ । वहाँ रहनेवाली धान- धान ग धव और सुर क परम सु दरी यारी पु य ने उस वगके समान दे शम खड़े ए अपरा जत वीर भगवान् मधुसूदनको दे खा। प रव ुमहाबा मेकवेणीधराः यः । सवाः काषायवा स यः सवा नयते याः ।। दे खते-दे खते ही उन सबने महाबा ीकृ णको घेर लया। वे सभी याँ एक वेणी धारण कये गे ए व पहने इ यसंयमपूवक वहाँ तप या करती थ । तसंतापजः शोको ना का दपीडयत् । अरजां स च वासां स ब यः कौ शका य प ।। समे य य सह य च ु र या ल यः । ऊचु ैनं षीकेशं सवा ताः कमले णाः ।। उस समय त और संतापज नत शोक उनमसे कसीको पीड़ा नह दे सका। वे नमल रेशमी व पहने ए य वीर ीकृ णके पास जा उनके सामने हाथ जोड़कर खड़ी हो गय । उन कमलनयनी का म नय ने अपनी स पूण इ य के वामी ीह रसे इस कार कहा।

क यका ऊचुः नारदे न समा यातम माकं पु षो म । आग म य त गो व दः सुरकायाथ स ये ।। क याएँ बोल —पु षो म! दे व ष नारदने हमसे कह रखा था क ‘दे वता का काय स करनेके लये भगवान् गो व द यहाँ पधारगे। सोऽसुरं नरकं ह वा नशु भं मुरमेव च । भौमं च सपरीवारं हय ीवं च दानवम् ।। तथा प चजनं चैव ा यते धनम यम् । ‘एवं वे सप रवार नरकासुर, नशु भ, मुर, दानव हय ीव तथा पंचजनको मारकर अ य धन ा त करगे। सोऽ चरेणैव कालेन यु म मो ा भ व य त ।। एवमु वागमद् धीमान् दे व षनारद तथा । ‘थोड़े ही दन म भगवान् यहाँ पधारकर तुम सब लोग का इस संकटसे उ ार करगे।’ ऐसा कहकर परम बु मान् दे व ष नारद यहाँसे चले गये। वां च तयानाः सततं तपो घोरमुपा महे ।। कालेऽतीते महाबा ं कदा याम माधवम् । हम सदा आपका ही च तन करती ई घोर तप याम लग गय । हमारे मनम यह संक प उठता रहता था क कतना समय बीतनेपर हम महाबा माधवका दशन ा त होगा। इ येवं द संक पं कृ वा पु षस म ।। ै

ह।

तप राम सततं र यमाणा ह दानवैः । पु षो म! यही संक प लेकर दानव ारा सुर त हो हम सदा तप या करती आ रही

गा धवण ववाहेन ववाहं कु नः यम् ।। ततोऽ म यकामाथ भगवान् मा तोऽ वीत् । यथो ं नारदे ना न चरात् तद् भ व य त ।। भगवन्! आप गा धव ववाहक री तसे हमारे साथ ववाह करके हमारा य कर। हमारे पूव मनोरथको जानकर भगवान् वायुदेवने भी हम सबके य मनोरथक स के लये कहा था क ‘दे व ष नारदजीने जो कहा है, वह शी ही पूण होगा’। भी म उवाच तासां परमनारीणामृषभा ं पुर कृतम् । द शुदवग धवा गृ ीना मव गोप तम् ।। भी मजी कहते ह—यु ध र! दे वता तथा धव ने दे खा, वृषभके समान वशाल ने वाले भगवान् ीकृ ण उन परम सु दरी ना रय के सम वैसे ही खड़े थे, जैसे नयी गाय के आगे साँड़ हो। त य च ोपमं व मुद य मु दते याः । स ा महाबा मदं वचनम ुवन् ।। भगवान्के मुखच को दे खकर उन सबक इ याँ उ ल सत हो उठ और वे हषम भरकर महाबा ीकृ णसे पुनः इस कार बोल । क यका ऊचुः स यं बत पुरा वायु रदम मा नहा वीत् । सवभूतकृत मह षर प नारदः ।। क याने कहा—बड़े हषक बात है क पूव-कालम वायुदेवने तथा स पूण भूत के त कृत ता रखनेवाले मह ष नारदजीने जो बात कही थी, वह स य हो गयी। व णुनारायणो दे वः शङ् खच गदा सधृक् । स भौमं नरकं ह वा भता वो भ वता तः ।। उ ह ने कहा था क ‘शंख, च , गदा और खड् ग धारण करनेवाले सव ापी नारायण भगवान् व णु भू मपु नरकको मारकर तुमलोग के प त ह गे’। द ा त य षमु य य नारद य महा मनः । वचनं दशनादे व स यं भ वतुमह त ।। ऋ षय म धान महा मा नारदका वह वचन आज आपके दशनमा से स य होने जा रहा है, यह बड़े सौभा यक बात है। यत् यं बत प याम व ं च ोपमं तु ते । दशनेन कृताथाः मो वयम महा मनः ।। ी







तभी तो आज हम आपके परम य च तु य मुखका दशन कर रही ह। आप परमा माके दशनमा से ही हम कृताथ हो गय । भी म उवाच उवाच स य े ः सवा ता जातम मथाः । भी मजी कहते ह—यु ध र! भगवान्के त उन सबके दयम कामभावका संचार हो गया था। उस समय य े ीकृ णने उनसे कहा। ीभगवानुवाच यथा ूत वशाला य तत् सव वो भ व य त ।। ीभगवान् बोले— वशाल ने वाली सु द रयो! जैसा तुम कहती हो, उसके अनुसार तु हारी सारी अ भलाषा पूण हो जायगी। भी म उवाच ता न सवा ण र ना न गम य वाथ कङ् करैः । य गम य वाथ दे वतानृपक यकाः ।। वैनतेयभुजे कृ णो म णपवतमु मम् । मारोपया च े भगवान् दे वक सुतः ।। भी मजी कहते ह—यु ध र! सेवक ारा उन सब र न को तथा दे वता एवं राजा आ दक क या को ारका भेजकर दे वक न दन भगवान् ीकृ णने उस उ म म णपवतको शी ही ग ड़क बाँह (पंख या पीठ)-पर चढ़ा दया। सप गणमात ं स ालमृगप गम् । शाखामृगगणैजु ं स तर शलातलम् ।। यङ् कु भ वराहै भ नषे वतम् । स पातमहासानुं व च शखसंक ु लम् ।। तं महे ानुजः शौ र कार ग डोप र । प यतां सवभूतानामु पा म णपवतम् ।। केवल पवत ही नह , उसपर रहनेवाले जो प य के समुदाय, हाथी, सप, मृग, नाग, बंदर, प थर, शला, यंकु, वराह, मृग, झरने, बड़े-बड़े शखर तथा व च मोर आ द थे, उन सबके साथ म णपवतको उखाड़कर इ के छोटे भाई ीकृ णने सब ा णय के दे खते-दे खते ग ड़पर रख लया। उपे ं बलदे वं च वासवं च महाबलम् । तं च र नौघमतुलं पवतं च महाबलः ।। व ण यामृतं द ं छ ं च ोपमं शुभम् । वप बल व ेपैमहा शखरोपमः ।। द ु सवासु संरावं स च े ग डो वहन् । ी





महाबली ग ड़ ीकृ ण, बलराम तथा महाबलवान् इ को, उस अनुपम र नरा श तथा पवतको, व णदे वताके द अमृत तथा च तु य उ वल शुभकारक छ को वहन करते ए चल दये। उनका शरीर वशाल पवत शखरके समान था। वे अपनी पाँख को बलपूवक हला- हलाकर सब दशा म भारी शोर मचाते जा रहे थे। आ जन् पवता ा ण पादपां समु पन् ।। संजहार महा ा ण वै ानरपथं गतः । उड़ते समय ग ड़ पवत के शखर तोड़ डालते थे, पेड़ को उखाड़ फकते थे और यो त पथ (आकाश)-म चलते समय बड़े-बड़े बादल को अपने साथ उड़ा ले जाते थे। हन ताराणां स तष णां वतेजसा ।। भाजालम त य च सूयपथं ययौ । वे अपने तेजसे ह, न , तार और स त षय के काशपुंजको तर कृत करते ए च मा और सूयके मागपर जा प ँचे। मेरोः शखरमासा म यमं मधुसूदनः ।। दे व थाना न सवा ण ददश भरतषभ । भरत े ! तदन तर मधुसूदनने मे पवतके म यम शखरपर प ँचकर सम त दे वता के नवास थान का दशन कया। व ेषां म तां चैव सा यानां च यु ध र ।। ाजमाना य त य अ नो परंतप । ा य पु यतमं थानं दे वलोकमरदमः ।। यु ध र! उ ह ने व ेदेव , म द्गण और सा य के काशमान थान को लाँघकर अ नीकुमार के पु यतम लोकम पदापण कया। परंतप! त प ात् श ुह ता भगवान् ीकृ ण दे वलोकम जा प ँचे। श स समासा चाव जनाद नः । सोऽ भवा ा दतेः पादाव चतः सवदै वतैः ।। द पुरोगै जाप त भरेव च । इ भवनके नकट जाकर भगवान् जनादन ग ड़परसे उतर पड़े। वहाँ उ ह ने दे वमाता अ द तके चरण म णाम कया। फर ा और द आ द जाप तय ने तथा स पूण दे वता ने उनका भी वागत-स कार कया। अ दतेः कु डले द े ददावथ तदा वभुः ।। र ना न च परा या ण रामेण सह केशवः । उस समय बलरामस हत भगवान् केशवने माता अ द तको दोन द कु डल और ब मू य र न भट कये। तगृ च तत् सवम द तवासवानुजम् ।। पूजयामास दाशाह रामं च वगत वरा । वह सब हण करके माता अ द तका मान सक ःख र हो गया और उ ह ने इ के छोटे भाई य कुल तलक ीकृ ण और बलरामका ब त आदर-स कार कया। ी े ी

शची महे म हषी कृ ण य म हष तदा ।। स यभामां तु संगृ अ द यै वै यवेदयत् । इ क महारानी शचीने उस समय भगवान् ीकृ णक पटरानी स यभामाका हाथ पकड़कर उ ह माता अ द तक सेवाम प ँचाया। सा त याः स यभामायाः कृ ण य चक षया ।। वरं ादाद् दे वमाता स यायै वगत वरा । दे वमाताक सारी च ता र हो गयी थी। उ ह ने ीकृ णका य करनेक इ छासे स यभामाको उ म वर दान कया।

अ द त वाच जरां न या य स वधूयावद् वै कृ णमानुषम् ।। सवग धगुणोपेता भ व य स वरानने । अ द त बोल —सु दर मुखवाली ब ! जबतक ीकृ ण मानव-शरीरम रहगे, तबतक तू वृ ाव थाको ा त न होगी और सब कारक द सुग ध एवं उ म गुण से सुशो भत होती रहेगी। भी म उवाच व य स यभामा वै सह श या सुम यमा ।। श या प समनु ाता ययौ कृ ण नवेशनम् ।। भी मजी कहते ह—यु ध र! सु दरी स यभामा शचीदे वीके साथ घूम- फरकर उनक आ ा ले भगवान् ीकृ णके व ामगृहम चली गय । स पू यमान दशैमह षगणसे वतः । ारकां ययौ कृ णो दे वलोकादरदमः ।। तदन तर श ु का दमन करनेवाले भगवान् ीकृ ण मह षय से से वत और दे वता ारा पू जत होकर दे वलोकसे ारकाको चले गये। सोऽ तप य महाबा दघम वानम युतः । वधमानपुर ारमाससाद पुरो मम् ।। महाबा भगवान् ीकृ ण लंबा माग तय करके उ म ारका नगरीम, जसके धान ारका नाम वधमान था, जा प ँचे। (दा णा य तम अ याय समा त)

[ ारकापुरी एवं

मणी आ द रा नय क े महल का वणन, ीबलराम और ीकृ णका ारकाम वेश] भी म उवाच तां पुर ारकां ् वा वभुनारायणो ह रः । ः सवाथस प ां वे ु मुपच मे ।। भी मजी कहते ह—यु ध र! सव ापी नारायण व प भगवान् ीकृ णने सब कारके मनोवां छत पदाथ से भरी-पूरी ारकापुरीको दे खकर स तापूवक उसम वेश करनेक तैयारी क । सोऽप यद् वृ ष डां र यानारामजान् बन् । सम ततो ारव यां नानापु पफला वतान् ।। उ ह ने दे खा, ारकापुरीके सब ओर बगीच म ब त-से रमणीय वृ समूह शोभा पा रहे ह, जनम नाना कारके फल और फूल लगे ए ह। अकच तीकाशैम कुट नभैगृहैः । ारका र चता र यैः सुकृता व कमणा ।। वहाँके रमणीय राजसदन सूय और च माके समान काशमान तथा मे पवतके शखर क भाँ त गगनचु बी थे। उन भवन से वभू षत ारकापुरीक रचना सा ात् व कमाने क थी। पष डाक ु ला भ हंससे वतवा र भः । ग ा स धु काशा भः प रखा भरलंकृता ।। उस पुरीके चार ओर बनी ई चौड़ी खाइयाँ उसक शोभा बढ़ा रही थ । उनम कमलके फूल खले ए थे। हंस आ द प ी उनके जलका सेवन करते थे। वे दे खनेम गंगा और स धुके समान जान पड़ती थ । ाकारेणाकवणन पा डरेण वरा जता । वय मू न न व ेन ौ रवा प र छदा ।। सूयके समान का शत होनेवाली ऊँची गगनचु बनी ेत चहारद वारीसे सुशो भत ारकापुरी सफेद बादल से घरी ई दे वपुरी (अमरावती)-के समान जान पड़ती थी। न दन तमै ा प म क तमैवनैः । भा त चै रथं द ं पतामहवनं यथा ।। वै ाज तमै ैव सवतुकुसुमो कटै ः । भा त ताराप र ता ारका ौ रवा बरे ।। न दन और म क-जैसे वन उस पुरीक शोभा बढ़ा रहे थे। वहाँका द चै रथ वन ाजीके अलौ कक उ ानक भाँ त शो भत था। सभी ऋतु के फूल से भरे ए वै ाज नामक वनके स श मनोहर उपवन से घरी ई ारकापुरी ऐसी जान पड़ती थी, मानो आकाशम ता रका से ा त वगपुरी शोभा पा रही हो। भा त रैवतकः शैलो र यसानुमहा जरः ।

पूव यां द श र यायां ारकायां वभूषणम् ।। रमणीय ारकापुरीक पूव दशाम महाकाय रैवतक पवत, जो उस पुरीका आभूषण प था, सुशो भत हो रहा था। उसके शखर बड़े मनोहर थे। द ण यां लतावे ः प चवण वराजते । इ केतु तीकाशः प मां दशमा तः ।। सुक ो राजतः शैल पु पमहावनः । उ र यां द श तथा वेणुम तो वराजते ।। म दरा तीकाशः पा डरः पा डवषभ । पुरीके द ण भागम लतावे नामक पवत शोभा पा रहा था, जो पाँच रंगका होनेके कारण इ वज-सा तीत होता था। प म दशाम सुक नामक रजत-पवत था, जसके ऊपर व च पु प से सुशो भत महान् वन शोभा पा रहा था। पा डव े ! इसी कार उ र दशाम म दराचलके स श ेत वणवाला वेणुम त पवत शोभायमान था। च क बलवणाभं पा चज यवनं तथा ।। सवतुकवनं चैव भा त रैवतकं त । रैवतक पवतके पास च क बलके-से वणवाले पांचज यवन तथा सवतुकवनक भी बड़ी शोभा होती थी। लतावे ं सम तात् तु मे भवनं महत् ।। भा त तालवनं चैव पु पकं पु डरीकवत् । लतावे पवतके चार ओर मे भ नामक महान् वन, तालवन तथा कमल से सुशो भत पु पकवन शोभा पा रहे ह। सुक ं प रवायनं च पु पं महावनम् ।। शतप वनं चैव करवीरकुसु भ च । सुक पवतको चार ओरसे घेरकर च पु प नामक महावन, शतप वन, करवीरवन और कुसु भवन सुशो भत होते ह। भा त चै रथं चैव न दनं च महावनम् ।। रमणं भावनं चैव वेणुम तं सम ततः । वेणुम त पवतके सब ओर चै रथ, न दन, रमण और भावन नामक महान् वन शोभा पाते ह। भा त पु क रणी र या पूव यां द श भारत ।। धनुः शतपरीणाहा केशव य महा मनः । भारत! महा मा केशवक उस पुरीम पूव दशाक ओर एक रमणीय पु क रणी शोभा पाती है, जसका व तार सौ धनुष है। महापुर ारवत प चाश मुखैयुताम् । व ो ारकां र यां भासय त सम ततः ।। पचास दरवाज से सुशो भत और सब ओरसे काशमान उस सुर य महापुरी ारकाम ीकृ णने वेश कया। े ो े

अ मेयां महो सेधां महागाधप र लवाम् । ासादवरस प ां ेत ासादशा लनीम् ।। वह कतनी बड़ी है, इसका कोई माप नह था। उसक ऊँचाई भी ब त अ धक थी। वह पुरी चार ओर अ य त अगाध जलरा शसे घरी ई थी। सु दर-सु दर महल से भरी ई ारका ेत अ ा लका से सुशो भत होती थी। ती णय शत नी भय जालैः सम वताम् । आयसै महाच ै ददश ारकां पुरीम् ।। तीखे य , शत नी, व भ य के समुदाय और लोहेके बने ए बड़े-बड़े च से सुर त ारकापुरीको भगवान्ने दे खा। अ ौ रथसह ा ण ाकारे कङ् कणी कनः । समु तपताका न यथा दे वपुरे तथा ।। दे वपुरीक भाँ त उसक चहारद वारीके नकट ु घ टका से सुशो भत आठ हजार रथ शोभा पाते थे, जनम पताकाएँ फहराती रहती थ । अ योजन व तीणामचलां ादशायताम् । गुणोप नवेशां च ददश ारकां पुरीम् ।। ारकापुरीक चौड़ाई आठ योजन है एवं ल बाई बारह योजन है अथात् वह कुल ९६ योजन व तृत है। उसका उप नवेश (समीप थ दे श) उससे गुना अथात् १९२ योजन व तृत है। वह पुरी सब कारसे अ वचल है। ीकृ णने उस पुरीको दे खा। अ मागा महाक यां महाषोडशच वराम् । एवं मागप र तां सा ा शनसा कृताम् ।। उसम जानेके लये आठ माग ह, बड़ी-बड़ी ो ढ़याँ ह और सोलह बड़े-बड़े चौराहे ह। इस कार व भ माग से प र कृत ारकापुरी सा ात् शु ाचायक नी तके अनुसार बनायी गयी है। ूहानाम तरा मागाः स त चैव महापथाः । त सा व हता सा ा गरी व कमणा ।। ूह के बीच-बीचम माग बने ह, सात बड़ी-बड़ी सड़क ह। सा ात् व कमाने इस ारकानगरीका नमाण कया है। का चनैम णसोपानै पेता जनह षणी । गीतघोषमहाघोषैः ासाद वरैः शुभा ।। सोने और म णय क सी ढ़य से सुशो भत यह नगरी जन-जनको हष दान करनेवाली है। यहाँ गीतके मधुर वर तथा अ य कारके घोष गूँजते रहते ह। बड़ी-बड़ी अ ा लका के कारण वह पुरी परम सु दर तीत होती है। त मन् पुरवर े े दाशाहाणां यश वनाम् । वे मा न ज षे ् वा भगवान् पाकशासनः ।। नगर म े उस ारकाम यश वी दशाहवं शय के महल दे खकर भगवान् पाकशासन इ को बड़ी स ता ई।

समु तपताका न पा र लव नभा न च । का चनाभा न भा व त मे कूट नभा न च ।। उन महल के ऊपर ऊँची पताकाएँ फहरा रही थ । वे मनोहर भवन मेघ के समान जान पड़ते थे और सुवणमय होनेके कारण अ य त काशमान थे। वे मे पवतके उ ुंग शखर के समान आकाशको चूम रहे थे। सुधापा डरशृ ै शातकु भप र छदै ः । र नसानुगुहाशृ ै ः सवर न वभू षतैः ।। उन गृह के शखर चूनेसे लपे-पुते और सफेद थे। उनक छत सुवणक बनी ई थ । वहाँके शखर, गुफा और शृंग—सभी र नमय थे। उस पुरीके भवन सब कारके र न से वभू षत थे। सह यः साधच ै स नयूहैः सप रैः । सय गृहस बाधैः सधातु भ रवा भः ।। (भगवान्ने दे खा) वहाँ बड़े-बड़े महल, अटारी तथा छ जे ह और उन छ ज म लटकते ए प य के पजड़े शोभा पाते ह। कतने ही य गृह वहाँके महल क शोभा बढ़ाते ह। अनेक कारके र न से ज टत होनेके कारण ारकाके भवन व वध धातु से वभू षत पवत के समान शोभा धारण करते ह म णका चनभौमै सुधामृ तलै तथा । जा बूनदमयै ारैवडू य वकृतागलैः ।। कुछ गृह तो म णके बने ह, कुछ सुवणसे तैयार कये गये ह और कुछ पा थव पदाथ (ट, प थर आ द) ारा नमत ए ह। उन सबके न नभाग चूनेसे व छ कये गये ह। उनके दरवाजे (चौखट- कवाड़े) जा बूनद सुवणके बने ह और अगलाएँ ( सटक नयाँ) वै यम णसे तैयार क गयी ह। सवतुसुखसं पशमहाधनप र छदै ः । र यसानुगुहाशृ ै व च ै रव पवतैः ।। उन गृह का पश सभी ऋतु म सुख दे नेवाला है। वे सभी ब मू य सामान से भरे ह। उनक समतल भू म, गुफा और शखर सभी अ य त मनोहर ह। इससे उन भवन क शोभा व च पवत के समान जान पड़ती है। प चवणसुवण पु पवृ सम भैः । तु यपज य नघ षैनानावण रवा बुदैः ।। उन गृह म पाँच रंग के सुवण मढ़े गये ह। उनसे जो ब रंगी आभा फैलती है, वह फुलझड़ी-सी जान पड़ती है। उन गृह से मेघक ग भीर गजनाके समान श द होते रहते ह। वे दे खनेम अनेक वण के बादल के समान जान पड़ते ह। महे शखर यै व हतै व कमणा । आ लख रवाकाशम तच ाकभा वरैः ।। व कमाके बनाये ए वे (ऊँचे और वशाल) भवन महे पवतके शखर क शोभा धारण करते ह। उ ह दे खकर ऐसा जान पड़ता है, मानो वे आकाशम रेखा ख च रहे ह । औ े ी ै

उनका काश च मा और सूयसे भी बढ़कर है। तैदाशाहमहाभागैबभासे भवन दै ः । च डनागाकुलैघ रै दै भ गवती यथा ।। जैसे भोगवती गंगा च ड नागगण से भरे ए भयंकर कु ड से सुशो भत होती है, उसी कार ारकापुरी दशाहकुलके महान् सौभा यशाली पु ष से भरे ए उपयु भवन पी द क े ारा शोभा पा रही है। कृ ण वजोपवा ै दाशाहायुधरो हतैः । वृ णम मयूरै ीसह भाकुलैः ।। वासुदेवे पज यैगृहमेघैरलङ् कृता । द शे ारकातीव मेघै रव संवृता । जैसे आकाश मेघ क घटासे आ छा दत होता है, उसी कार ारकापुरी मनोहर भवन पी मेघ से अलंकृत दखायी दे ती है। ये भगवान् ीकृ ण ही वहाँ इ एवं पज य ( मुख मेघ)-के समान ह। वृ णवंशी युवक मतवाले मयूर के समान उन भवन पी मेघ को दे खकर हषसे नाच उठते ह। सह य क का त व ुतक ् भाके समान उनम ा त है। जैसे मेघ कृ ण वज (अ न या सूय करण)-के उपबा (आधेय अथवा काय) ह, उसी कार ारकाके भवन भी कृ ण वजसे वभू षत उपबा (वाहन )-से स प ह। य वं शय के व वध कारके अ -श उन मेघस श महल म इ धनुषक ब रंगी छटा छटकाते ह। सा ाद् भगवतो वे म व हतं व कमणा ।। द शुदवदे व य चतुय जनमायतम् । तावदे व च व तीणम मेयं महाधनैः ।। ासादवरस प ं यु ं जग त पवतैः । भारत! दे वा धदे व भगवान् ीकृ णका भवन, जसे सा ात् व कमाने अपने हाथ बनाया है, चार योजन ल बा और उतना ही चौड़ा दखायी दे ता है। उसम कतनी ब मू य साम याँ लगी ह! इसका अनुमान लगाना अस भव है। उस वशाल भवनके भीतर सु दरसु दर महल और अ ा लकाएँ बनी ई ह। वह ासाद जगत्के सभी पवतीय य से यु है। ीकृ ण, बलराम और इ ने उस ारकाको दे खा। यं चकार महाबा व ा वासवचो दतः ।। ासादं पनाभ य सवतो योजनायतम् । मेरो रव गरेः शृ मु तं का चनायुतम् । म याः वरो वासो व हतः सुमहा मना ।। महाबा व कमाने इ क ेरणासे भगवान् प नाभके लये जस मनोहर ासादका नमाण कया है, उसका व तार सब ओरसे एक-एक योजनका है। उसके ऊँचे शखरपर सुवण मढ़ा गया है, जससे वह मे पवतके उ ुंग शृंगक शोभा धारण कर रहा है। वह ासाद महा मा व कमाने महारानी मणीके रहनेके लये बनाया है। यह उनका सव म नवास है।

स यभामा पुनव म सदा वस त पा डरम् । व च म णसोपानं यं व ः शीतवा न त ।। ीकृ णक सरी पटरानी स यभामा सदा ेत-रंगके ासादम नवास करती ह, जसम व च म णय के सोपान बनाये गये ह। उसम वेश करनेपर लोग को ( ी म-ऋतुम भी) शीतलताका अनुभव होता है। वमला द यवणा भः पताका भरलङ् कृतम् । ब ं वनो े शे चतु द श महा वजम् ।। नमल सूयके समान तेज वनी पताकाएँ उस मनोरम ासादक शोभा बढ़ाती ह। एक सु दर उ ानम उस भवनका नमाण कया गया है। उसके चार ओर ऊँची-ऊँची वजाएँ फहराती रहती ह। स च ासादमु योऽ जा बव या वभू षतः । भया भूषणै ै ैलो य मव भासयन् ।। य तु पा डरवणाभ तयोर तरमा तः । व कमाकरोदे नं कैलास शखरोपमम् ।। इसके सवा वह मुख ासाद, जो मणी तथा स यभामाके महल के बीचम पड़ता है और जसक उ वल भा सब ओर फैली रहती है, जा बवतीदे वी ारा वभू षत कया गया है। वह अपनी द भा और व च सजावटसे मानो तीन लोक को का शत कर रहा है। उसे भी व कमाने ही बनाया है। जा बवतीका वह वशाल भवन कैलास- शखरके समान सुशो भत होता है। जा बूनद द ता ः द त वलनोपमः । सागर तमोऽ त मे र य भ व ुतः ।। ी

त मन् गा धारराज य हता कुलशा लनी । सुकेशी नाम व याता केशवेन नवे शता ।। जसका दरवाजा जा बूनद सुवणके समान उद्द त होता है, जो दे खनेम व लत अ नके समान जान पड़ता है। वशालताम समु से जसक उपमा द जाती है, जो मे के नामसे व यात है, उस महान् ासादम गा धारराजक कुलीन क या सुकेशीको भगवान् ीकृ णने ठहराया है। पक ू ट इ त यातः पवण महा भः । सु भाया महाबाहो नवासः परमा चतः ।। महाबाहो! प कूट नामसे व यात जो कमलके समान का तवाला ासाद है, वह महारानी सु भाका परम पू जत नवास थान है। य तु सूय भो नाम ासादवर उ यते । ल मणायाः कु े स द ः शा ध वना ।। कु े ! जस उ म ासादक भा सूयके समान है, उसे शा ध वा ीकृ णने महारानी ल मणाको दे रखा है। वैडूयवरवणाभः ासादो ह रत भः । यं व ः सवभूता न ह र र येव भारत । वासः स म व दाया दे व षगणपू जतः ।। म ह या वासुदेव य भूषणं सववे मनाम् । भारत! वै यम णके समान का तमान् हरे रंगका महल, जसे दे खकर सब ा णय को ‘ ीह र’ ही ह, ऐसा अनुभव होता है, वह म व दाका नवास थान है। उसक दे वगण भी सराहना करते ह। भगवान् वासुदेवक रानी म व दाका यह भवन अ य सब महल का आभूषण प है। य तु ासादमु योऽ व हतः सव श प भः ।। अतीव र यः सोऽ य हस व त त । सुद ायाः सुवास तु पू जतः सव श प भः ।। म ह या वासुदेव य केतुमा न त व ुतः । यु ध र! ारकाम जो सरा मुख ासाद है, उसे स पूण श पय ने मलकर बनाया है। वह अ य त रमणीय भवन हँसता-सा खड़ा है। सभी श पी उसके नमाण-कौशलक सराहना करते ह। उस ासादका नाम है केतुमान्। वह भगवान् वासुदेवक महारानी सुद ादे वीका सु दर नवास थान है। ासादो वरजो नाम वरज को महा मनः ।। उप थानगृहं तात केशव य महा मनः । वह ‘ वरज’ नामसे स एक ासाद है, जो नमल एवं रजोगुणके भावसे शू य है। वह परमा मा ीकृ णका उप थानगृह (खास रहनेका थान) है। य तु ासादमु योऽ यं व ा दधात् वयम् ।। योजनायत व कु भं सवर नमयं वभोः । ी ँ औ ी ै े े ै

इसी कार वहाँ एक और भी मुख ासाद है, जसे वयं व कमाने बनाया है। उसक लंबाई-चौड़ाई एक-एक योजनक है। भगवान्का वह भवन सब कारके र न ारा नमत आ है। तेषां तु व हताः सव मद डाः पता कनः । सदने वासुदेव य मागसंजनना वजाः ।। वसुदेवन दन ीकृ णके सु दर सदनम जो मागदशक वज ह, उन सबके द ड सुवणमय बनाये गये ह। उन सबपर पताकाएँ फहराती रहती ह। घ टाजाला न त ैव सवषां च नवेशने । आ य य सहेन वैजय यचलो महान् ।। ारकापुरीम सभीके घर म घंटा लगाया गया है। य सह ीकृ णने वहाँ लाकर वैजय ती पताका से यु पवत था पत कया है। हंसकूट य य छृ म ु नसरो महत् । ष तालसमु सेधमधयोजन व तृतम् ।। वहाँ हंसकूट पवतका शखर है, जो साठ ताड़के बराबर ऊँचा और आधा योजन चौड़ा है। वह इ ु नसरोवर भी है, जसका व तार ब त बड़ा है। स क रमहानादं तद य मततेजसः । प यतां सवभूतानां षु लोकेषु व ुतम् ।। वहाँ सब भूत के दे खते-दे खते क र के संगीतका महान् श द होता रहता है। वह भी अ मततेज वी भगवान् ीकृ णका ही लीला थल है। उसक तीन लोक म स है। आ द यपथगं यत् त मेरोः शखरमु मम् । जा बूनदमयं द ं षु लोकेषु व ुतम् ।। तद यु पा कृ े ण वं नवेशनमा तम् । ाजमानं पुरा त सव ष ध वभू षतम् ।। मे पवतका जो सूयके मागतक प ँचा आ जा बूनदमय द और भुवन व यात उ म शखर है, उसे उखाड़कर भगवान् ीकृ ण क ठनाई उठाकर भी अपने महलम ले आये ह। सब कारक ओष धय से अलंकृत वह मे शखर ारकाम पूववत् का शत है। य म भवना छौ रराजहार परंतपः । पा रजातः स त ैव केशवेन नवे शतः ।। श ु को संताप दे नेवाले भगवान् ीकृ ण जसे इ भवनसे हर ले आये थे, वह पा रजातवृ भी उ ह ने ारकाम ही लगा रखा है। व हता वासुदेवेन थलमहा माः ।। शालताला कणा शतशाखा रो हणाः । भ लातकक प था च वृ ा च पकाः ।। खजूराः केतका ैव सम तात् प ररो पताः । भगवान् वासुदेवने लोकके बड़े-बड़े वृ को भी लाकर ारकाम लगाया है। साल, ताल, अ कण (कनेर), सौ शाखा से सुशो भत वटवृ , भ लातक ( भलावा), क प थ ( ै ) ( ी ी े) औ े ( े ) े ँ

(कैथ), च (बड़ी इलायचीके) वृ , च पा, खजूर और केतक (केवड़ा)—ये वृ वहाँ सब ओर लगाये गये थे। पाक ु लजलोपेता र ाः सौग धको पलाः ।। म णमौ कवालूकाः पु क र यः सरां स च । तासां परमकूला न शोभय त महा माः ।। ारकाम जो पु क र णयाँ और सरोवर ह, वे कमलपु प से सुशो भत व छ जलसे भरे ए ह। उनक आभा लाल रंगक है। उनम सुग धयु उ पल खले ए ह। उनम थत बालूके कण म णय और मो तय के चूण-जैसे जान पड़ते ह। वहाँ लगाये ए बड़े-बड़े वृ उन सरोवर के सु दर तट क शोभा बढ़ाते ह। ये च हैमवता वृ ा ये च न दनजा तथा । आ य य सहेन तेऽ प त नवे शताः ।। जो वृ हमालयपर उगते ह तथा जो न दनवनम उ प होते ह, उ ह भी य वर ीकृ णने वहाँ लाकर लगाया है। र पीता ण याः सतपु पा पादपाः । सवतुफलपूणा ते तेषु काननसं धषु ।। कोई वृ लाल रंगके ह, कोई पीत वणके ह और कोई अ ण का तसे सुशो भत ह तथा ब त-से वृ ऐसे ह, जनम ेत रंगके पु प शोभा पाते ह। ारकाके उपवन म लगे ए पूव सभी वृ स पूण ऋतु के फल से प रपूण ह। सह प पा म दरा सह शः । अशोकाः क णकारा तलका नागम लकाः ।। कुरवा नागपु पा च पका तृणगु मकाः । स तपणाः कद बा नीपाः कुरबका तथा ।। केत यः केसरा ैव ह तालतलताटकाः । तालाः य वकुलाः प डका बीजपूरकाः ।। ा ामलकखजूरा मृ का ज बुका तथा । आ ाः पनसवृ ा अङ् कोला तल त काः ।। लकुचा ातका ैव ी रका क टक तथा । ना लकेरे दा ैव उ ोशकवना न च ।। वना न च कद या जा तम लकपाटलाः । भ लातकक प था तैतभा ब धुजीवकाः ।। वालाशोकका मयः ाचीना ैव सवशः । य बदरी भ यवैः प दनच दनैः ।। शमी ब वपलाशै पाटलावट प पलैः । उ बरै दलैः पालाशैः पा रभ कैः ।। इ वृ ाजुनै ैव अ थै र ब वकैः । सौभ नकवृ ै भ लटै र सा यैः ।। ी ै ै

सज ता बूलव ली भलव ै ः मुकै तथा । वंशै व वधै त सम तात् प ररो पतैः ।। सहदल कमल, सह म दार, अशोक, क णकार, तलक, नागम लका, कुरव (कटसरैया), नागपु प, च पक, तृण, गु म, स तपण ( छतवन), कद ब, नीप, कुरबक, केतक , केसर, हताल, तल, ताटक, ताल, यंग,ु वकुल (मौल सरी), प डका, बीजपूर ( बजौरा), दाख, आँवला, खजूर, मुन का, जामुन, आम, कटहल, अंकोल, तल, त क, लकुच (लीची), आमड़ा, ी रका (काकोली नामक जड़ी या पडखजूर), करटक (बेर), ना रयल, इंगद ु ( हगोट), उ ोशकवन, कदलीवन, जा त (चमेली), म लका (मो तया), पाटल, भ लातक, क प थ, तैतभ, ब धुजीव ( पह रया), वाल, अशोक और का मरी (गाँभारी) आ द सब कारके ाचीन वृ , यंगल ु ता, बेर, जौ, प दन, च दन, शमी, ब व, पलाश, पाटला, बड़, पीपल, गूलर, दल, पालाश, पा रभ क, इ वृ , अजुनवृ , अ थ, च र ब व, सौभंजन, भ लट, अ पु प, सज, ता बूललता, लवंग, सुपारी तथा नाना कारके बाँस—ये सब ारकापुरीम ीकृ णभवनके चार ओर लगाये ह। ये च न दनजा वृ ा ये च चै रथे वने । सव ते य नाथेन सम तात् प ररो पताः ।। न दनवनम और चै रथवनम जो-जो वृ होते ह, वे सभी य प त भगवान् ीकृ णने लाकर यहाँ सब ओर लगाये ह। कुमुदो पलपूणा वा यः कूपाः सह शः । समाकुलमहावा यः पीता लो हतवालुकाः ।। भगवान् ीकृ णके गृहो ानम कुमुद और कमल से भरी ई कतनी ही छोट बाव लयाँ ह। सह कुएँ बने ए ह। जलसे भरी ई बड़ी-बड़ी वा पकाएँ भी तैयार करायी गयी ह, जो दे खनेम पीत वणक ह और जनक बालुकाएँ लाल ह। त मन् गृहवने न ः स स लला दाः । फु लो पलजलोपेता नाना मसमाकुलाः ।। उनके गृहो ानम व छ जलसे भरे ए कु डवाली कतनी ही कृ म न दयाँ वा हत होती रहती ह, जो फु ल उ पलयु जलसे प रपूण ह तथा ज ह दोन ओरसे अनेक कारके वृ ने घेर रखा है। त मन् गृहवने न ो म णशकरवालुकाः । म ब हणसङ् घा को कला मदो हाः ।। उस भवनके उ ानक सीमाम म णमय कंकड़ और बालुका से सुशो भत न दयाँ नकाली गयी ह, जहाँ मतवाले मयूर के झुंड वचरते ह और मदो म को कलाएँ कु -कु कया करती ह। बभूवुः परमोपेताः सव जग तपवताः । त ैव गजयूथा न त गोम हषा तथा ।। नवासा कृता त वराहमृगप णाम् । ो













उस गृहो ानम जगत्के सभी े पवत अंशतः संगह ृ ीत ए ह। वहाँ हा थय के यूथ तथा गाय-भस के झुंड रहते ह। वह जंगली सूअर, मृग और प य के रहनेयो य नवास थान भी बनाये गये ह। व कमकृतः शैलः ाकार त य वे मनः ।। ं क कुशतो ामः सुधाकरसम भः । व कमा ारा नम त पवतमाला ही उस वशाल भवनक चहारद वारी है। उसक ऊँचाई सौ हाथक है और वह च माके समान अपनी ेत छटा छटकाती रहती है। तेन ते च महाशैलाः स रत सरां स च ।। प र ता न ह य य वना युपवना न च । पूव बड़े-बड़े पवत, स रताएँ, सरोवर और ासादके समीपवत वन-उपवन इस चहारद वारीसे घरे ए ह। एवं त छ पवयण व हतं व कमणा ।। वश ेव गो व दो ददश प रतो मु ः । इस कार श पय म े व कमा ारा बनाये ए ारकानगरम वेश करते समय भगवान् ीकृ णने बारंबार सब ओर पात कया। इ ः सहामरैः ीमां त त ावलोकयत् । दे वता के साथ ीमान् इ ने वहाँ ारकाको सब ओर दौड़ाते ए दे खा। एवमालोकयांच ु ारकामृषभा यः । उपे बलदे वौ च वासव महायशाः ।। इस कार उपे ( ीकृ ण), बलराम तथा महायश वी इ इन तीन े महापु ष ने ारकापुरीक शोभा दे खी। तत तं पा डरं शौ रमू न त न् ग मतः ।। ीतः शङ् खमुपाद मौ व षां रोमहषणम् । तदन तर ग डके ऊपर बैठे ए भगवान् ीकृ णने स तापूवक ेतवणवाले अपने उस पांचज य शंखको बजाया, जो श ु के र गटे खड़े कर दे नेवाला है। त य शङ् ख य श दे न सागर ुभे भृशम् ।। ररास च नभः सव त च मभवत् तदा । उस घोर शंख व नसे समु व ु ध हो उठा तथा सारा आकाशम डल गूँजने लगा। उस समय वहाँ यह अद्भुत बात ई। पा चज य य नघ षं नश य कुकुरा धकाः ।। वशोकाः समप त ग ड य च दशनात् । पांचज यका ग भीर घोष सुनकर और ग डका दशन कर कुकुर और अ धकवंशी यादव शोकर हत हो गये। शङ् खच गदापा ण सुपण शर स थतम् ।। ् वा ज षरे कृ णं भा करोदयतेजसम् । ी













भगवान् ीकृ णके हाथ म शंख, च और गदा आ द आयुध सुशो भत थे। वे ग डके ऊपर बैठे थे। उनका तेज सूय दयके समान नूतन चेतना और उ साह पैदा करनेवाला था। उ ह दे खकर सबको बड़ा हष आ। तत तूय णाद भेरीनां च महा वनः ।। सहनाद स े सवषां पुरवा सनाम् । तदन तर तुरही और भे रयाँ बज उठ। उनक आवाज ब त रतक फैल गयी। सम त पुरवासी भी सहनाद कर उठे । तत ते सवदाशाहाः सव च कुकुरा धकाः ।। ीयमाणाः समाज मुरालो य मधुसूदनम् । उस समय दाशाह, कुकुर और अ धकवंशके सब लोग भगवान् मधुसूदनका दशन करके बड़े स ए और सभी उनक अगवानीके लये आ गये। वासुदेवं पुर कृ य वेणुशंखरवैः सह ।। उ सेनो ययौ राजा वासुदेव नवेशनम् । राजा उ सेन भगवान् वासुदेवको आगे करके वेणुनाद और शंख व नके साथ उनके महलतक उ ह प ँचानेके लये गये। आन दतुं पयचरन् वेषु वे मसु दे वक ।। रो हणी च यथो े शमा क य च याः यः । दे वक , रो हणी तथा उ सेनक याँ अपने-अपने महल म भगवान् ीकृ णका अ भन दन करनेके लये यथा थान खड़ी थ । पास आनेपर उन सबने उनका यथावत् स कार कया। हता षः सव जय य धकवृ णयः ।। एवमु ः स ह ी भरी तो मधुसूदनः । वे आशीवाद दे ती ई इस कार बोल —‘सम त ा ण े षी असुर मारे गये; अ धक और वृ णवंशके वीर सव वजयी हो रहे ह।’ य ने भगवान् मधुसूदनसे ऐसा कहकर उनक ओर दे खा। ततः शौ रः सुपणन वं नवेशनम ययात् ।। चकाराथ यथो े शमी रो म णपवतम् । तदन तर ीकृ ण ग डके ारा ही अपने महलम गये। वहाँ उन परमे रने एक उपयु थानम म णपवतको था पत कर दया। ततो धना न र ना न सभायां मधुसूदनः ।। नधाय पु डरीका ः पतुदशनलालसः । इसके बाद कमलनयन मधुसूदनने सभाभवनम धन और र न को रखकर मन-ही-मन पताके दशनक अ भलाषा क । ततः सा द प न पूवमुप पृ ् वा महायशाः ।। वव दे पृथुता ा ः ीयमाणो महाभुजः । े











फर वशाल एवं कुछ लाल ने वाले उन महायश वी महाबा ने पहले मन-ही-मन गु सा द प नके चरण का पश कया। तथा ुप रपूणा मान दगतचेतसम् ।। वव दे सह रामेण पतरं वासवानुजः । त प ात् भाई बलरामजीके साथ जाकर ीकृ णने स तापूवक पताके चरण म णाम कया। उस समय पता वसुदेवके ने म ेमके आँसू भर आये और उनका दय आन दके समु के नम न हो गया। रामकृ णौ समा य सव चा धकवृ णयः ।। अ धक और वृ णवंशके सब लोग ने बलराम और ीकृ णको दयसे लगाया। तं तु कृ णः समा य र नौघधनसंचयम् ।। भजत् सववृ ण य आद व म त चा वीत् । भगवान् ीकृ णने र न और धनक उस रा शको एक करके अलग-अलग बाँट दया और स पूण वृ णवं शय से कहा—‘यह सब आपलोग हण कर’। यथा े मुपाग य सा वतान् य न दनः ।। सवषां नाम ज ाह दाशाहाणामधो जः । ततः सवा ण व ा न सवर नमया न च ।। भजत् ता न ते योऽथ सव यो य न दनः । तदन तर य न दन ीकृ णने य वं शय म जो े पु ष थे, उन सबसे मशः मलकर सब यादव को नाम ले-लेकर बुलाया और उन सबको वे सभी र नमय धन पृथक्पृथक् बाँट दये। सा केशवमहामा ैमहे मुखैः सह ।। शुशुभे वृ णशा लैः सहै रव गरेगुहा । जैसे पवतक क दरा सह से सुशो भत होती है, उसी कार ारकापुरी उस समय भगवान् ीकृ ण, दे वराज इ तथा वृ णवंशी वीर पु ष सह से अ य त शोभा पा रही थी। अथासनगतान् सवानुवाच वबुधा धपः ।। शुभया हषयन् वाचा महे तान् महायशाः । कुकुरा धकमु यां तं च राजानमा कम् ।। जब सभी य वंशी अपने-अपने आसन पर बैठ गये, उस समय दे वता के वामी महायश वी महे अपनी क याणमयी वाणी ारा कुकुर और अ धक आ द यादव तथा राजा उ सेनका हष बढ़ाते ए बोले। इ उवाच यदथ ज म कृ ण य मानुषेषु महा मनः । यत् कृतं वासुदेवेन तद् व या म समासतः ।। इ ने कहा—य वंशी वीरो! परमा मा ीकृ णका मनु य-यो नम जस उ े यको लेकर अवतार आ है और भगवान् वासुदेवने इस समय जो महान् पु षाथ कया है, वह े



सब म सं ेपम बताऊँगा। अयं शतसह ा ण दानवानामरदमः । नह य पु डरीका ः पाताल ववरं ययौ ।। य च ना धगतं पूवः ादब लश बरैः । त ददं शौ रणा व ं ा पतं भवता मह ।। श ु का दमन करनेवाले कमलनयन ीह रने एक लाख दानव का संहार करके उस पाताल- ववरम वेश कया था, जहाँ पहलेके ाद, ब ल और श बर आ द दै य भी नह प ँच सके थे। भगवान् आपलोग के लये यह धन वह से लाये ह। सपाशं मुरमा य पा चज यं च धीमता । शलासङ् घान त य नशु भः सगणो हतः । बु मान् ीकृ णने पाशस हत मुर नामक दै यको कुचलकर पंचजन नामवाले रा स का वनाश कया और शला-समूह को लाँघकर सेवकगण स हत नशु भको मौतके घाट उतार दया। हय ीव व ा तो नहतो दानवो बली ।। म थत मृधे भौमः कु डले चा ते पुनः । ा तं च द व दे वेषु केशवेन महद् यशः ।। त प ात् इ ह ने बलवान् एवं परा मी दानव हय ीवपर आ मण करके उसे मार गराया और भौमासुरका भी यु म संहार कर डाला। इसके बाद केशवने माता अ द तके कु डल ा त करके उ ह यथा थान प ँचाया और वगलोक तथा दे वता म अपने महान् यशका व तार कया। वीतशोकभयाबाधाः कृ णबा बला याः । यज तु व वधैः सोमैमखैर धकवृ णयः ।। अ धक और वृ णवंशके लोग ीकृ णके बा बलका आ य लेकर शोक, भय और बाधा से मु ह। अब ये सभी नाना कारके य तथा सोमरस ारा भगवान्का यजन कर। पुनबाणवधे शौ रमा द या वसु भः सह । म मुखा ह ग म य त सा या मधुसूदनम् ।। अब पुनः बाणासुरके वधका अवसर उप थत होनेपर म तथा सब दे वता, वसु और सा यगण मधुसूदन ीकृ णक सेवाम उप थत ह गे। भी म उवाच एवमु वा ततः सवानाम य क ु कुरा धकान् । स वजे रामकृ णौ च वसुदेवं च वासवः ।। भी मजी कहते ह—यु ध र! सम त कुकुर और अ धकवंशके लोग से ऐसा कहकर सबसे वदा ले दे वराज इ ने बलराम, ीकृ ण और वसुदेवको दयसे लगाया। ु नसा ब नशठान न ं च सारणम् । े

ब ंु झ लं गदं भानुं चा दे णं च वृ हा ।। स कृ य सारणा ू रौ पुनराभा य सा य कम् । स वजे वृ णराजानमा कं कुकुरा धपम् ।। ु न, सा ब, नशठ, अ न , सारण, ब ु, झ ल, गद, भानु, चा दे ण, सारण और अ ू रका भी स कार करके वृ ासुर नषुदन इ ने पुनः सा य कसे वातालाप कया। इसके बाद वृ ण और कुकुरवंशके अ धप त राजा उ सेनको गले लगाया। भोजं च कृतवमाणम यां ा धकवृ णषु । आम य द े व वरो वासवो वासवानुजम् ।। त प ात् भोज, कृतवमा तथा अ य अ धकवंशी एवं वृ णवं शय का आ लगन करके दे वराजने अपने छोटे भाई ीकृ णसे वदा ली। ततः ेताचल यं गजमैरावतं भुः । प यतां सवभूतानामा रोह शचीप तः ।। तदन तर शचीप त भगवान् इ सब ा णय के दे खते-दे खते ेतपवतके समान सुशो भत ऐरावत हाथीपर आ ढ़ ए। पृ थव चा त र ं च दवं च वरवारणम् । मुखाड बर नघ षैः पूरय त मवासकृत् ।। वह े गजराज अपनी ग भीर गजनासे पृ वी, अ त र और वगलोकको बारंबार नना दत-सा कर रहा था। हैमय महाक यं हर मय वषा णनम् । मनोहरकुथा तीण सवर न वभू षतम् ।। उसक पीठपर सोनेके खंभ से यु ब त बड़ा हौदा कसा आ था। उसके दाँत म सोना मढ़ा गया था। उसके ऊपर मनोहर झूल पड़ी ई थी। वह सब कारके र नमय आभूषण से वभू षत था। अनेकशतर ना भः पताका भरलङ् कृतम् । न य ुतमद ावं र त मव तोयदम् ।। सैकड़ र न से अलंकृत पताकाएँ उसक शोभा बढ़ा रही थ । उसके म तकसे नर तर मदक धारा इस कार बहती रहती थी, मानो मेघ पानी बरसा रहा हो। दशागजं महामा ं का चन जमा थतः । बभौ म दरा थः तपन् भानुमा नव ।। वह वशालकाय द गज सोनेक माला धारण कये ए था। उसपर बैठे ए दे वराज इ म दराचलके शखरपर तपते ए सूयदे वक भाँ त उ ा सत हो रहे थे। ततो व मयं भीमं गृ परमाङ् कुशम् । ययौ बलवता साध पावकेन शचीप तः ।। तदन तर शचीप त इ वमय भयंकर एवं वशाल अंकुश लेकर बलवान् अ नदे वके साथ वगलोकको चल दये। तं करेणुगज ातै वमानै म द्गणाः । ो ी े

पृ तोऽनुययुः ीताः कुबेरव ण हाः ।। उनके पीछे हाथी-ह थ नय के समुदाय और वमान ारा म द्गण, कुबेर तथा व ण आ द दे वता भी स तापूवक चल पड़े। स वायुपथमा थाय वै ानरपथं गतः । ा य सूयपथं दे व त ैवा तरधीयत ।। इ दे व पहले वायुपथम प ँचकर वै ानरपथ (तेजोमय लोक)-म जा प ँचे। त प ात् सूयदे वके मागम जाकर वहाँ अ तधान हो गये। ततः सवदशाहाणामा क य च याः यः । न दगोप य म हषी यशोदा लोक व ुता ।। रेवती च महाभागा मणी च प त ता । स या जा बवती चोभे गा धारी शशुमा प वा ।। वशोका ल मणा सा वी सु म ा केतुमा तथा । वासुदेवम ह योऽ याः या साध ययु तदा ।। वभू त ु मनसः केशव य वरा नाः । ीयमाणाः सभां ज मुरालोक यतुम युतम् ।। तदन तर सब दशाहकुलक याँ, राजा उ सेनक रा नयाँ, न दगोपक व व यात रानी यशोदा, महाभागा रेवती (बलभ -प नी) तथा प त ता मणी, स या, जा बवती, गा धारराजक या शशुमा, वशोका, ल मणा, सा वी सु म ा, केतुमा तथा भगवान् वासुदेवक अ य रा नयाँ—वे सब-क -सब ीजीके साथ भगवान् केशवक वभू त एवं नवागत सु दरी रा नय को दे खनेके लये और ीअ युतका दशन करनेके लये बड़ी स ताके साथ सभाभवनम गय । दे वक सवदे वीनां रो हणी च पुर कृता । द शुदवमासीनं कृ णं हलभृता सह ।। दे वक तथा रो हणीजी सब रा नय के आगे चल रही थ । सबने वहाँ जाकर ीबलरामजीके साथ बैठे ए ीकृ णको दे खा। तौ तु पूवमुप य रो हणीम भवा च । अ यवादयतां दे वौ दे वक रामके शवौ ।। दे वक स तद े वीनां यथा े ं च मातरः । उन दोन भाई बलराम और ीकृ णने उठकर पहले रो हणीजीको णाम कया। फर दे वक जीक तथा सात दे वय मसे े ताके मसे अ य सभी माता क चरणव दना क । वव दे सह रामेण भगवान् वासवानुजः ।। अथासनवरं ा य वृ णदारपुर कृता ।। उभावङ् कगतौ च े दे वक रामकेशवौ । बलरामस हत भगवान् उपे ने जब इस कार मातृचरण म णाम कया, तब वृ णकुलक म हला म अ णी माता दे वक जीने एक े आसनपर बैठकर बलराम और ीकृ ण दोन को गोदम ले लया। े

सा ता यामृषभा ा यां पु ा यां शुशुभे तदा ।। दे वक दे वमातेव म ेण व णेन च । वृषभके स श वशाल ने वाले उन दोन पु के साथ उस समय माता दे वक क वैसी ही शोभा ई, जैसी म और व णके साथ दे वमाता अ द तक होती है। ततः ा ता यशोदाया हता वै णेन ह ।। जा व यमाना वपुषा भयातीव भारत । इसी समय यशोदाजीक पु ी णभरम वहाँ आ प ँची। भारत! उसके ीअंग द भासे व लत-से हो रहे थे। एकान े त यामा ः क यां तां काम पणीम् ।। य कृते सगणं कंसं जघान पु षो मः । उस काम पणी क याका नाम था ‘एकानंगा’। जसके न म से पु षो म ीकृ णने सेवक स हत कंसका वध कया था। ततः स भगवान् सम तामुपा य भा मनीम् ।। मू युपा ाय स ेन प रज ाह पा णना । द णेन करा ेण प रज ाह माधवः ।। तब भगवान् बलरामने आगे बढ़कर उस मा ननी ब हनको बाय हाथसे पकड़ लया और वा स य- नेहसे उसका म तक सूँघा। तदन तर ीकृ णने भी उस क याको दा हने हाथसे पकड़ लया। द शु तां सभाम ये भ गन रामकृ णयोः ।। मपशयां पां ी मवो मनागयोः । लोग ने उस सभाम बलराम और ीकृ णक इस ब हनको दे खा; मानो दो े गजराज के बीचम सुवणमय कमलके आसनपर वराजमान भगवती ल मी ह । अथा तमहावृ ा लाजपु पघृतैर प ।। वृ णयोऽवा करन् ीताः संकषणजनादनौ । त प ात् वृ णवंशी पु ष ने स होकर बलराम और ीकृ णपर लाजा (खील), फूल और घीसे यु अ तक वषा क । सबालाः सहवृ ा स ा तकुलबा धवाः ।। उपोप व वशुः ीता वृ णयो मधुसूदनम् । उस समय बालक, वृ , ा त, कुल और ब धु-बा धव स हत सम त वृ णवंशी स तापूवक भगवान् मधुसूदनके समीप बैठ गये। पू यमानो महाबा ः पौराणां र तवधनः ।। ववेश पु ष ा ः ववे म मधुसूदनः । इसके बाद पुरवा सय क ी त बढ़ानेवाले पु ष सह महाबा मधुसूदनने सबसे पू जत हो अपने महलम वेश कया। म या स हतो दे ा मुमोद सुखी सुखम् । अन तरं च स याया जा बव या भारत । े

सवासां च य े ः सवकाल वहारवान् ।। वहाँ सदा स रहनेवाले ीकृ ण मणीदे वीके साथ बड़े सुखका अनुभव करने लगे। भारत! त प ात् सदा लीला- वहार करनेवाले य े ीकृ ण मशः स यभामा तथा जा बवती आ द सभी दे वय के नवास- थान म गये। जगाम च षीकेशो म याः वं नवेशनम् । फर अ तम ीकृ ण मणीदे वीके महलम पधारे। एष तात महाबाहो वजयः शा ध वनः ।। एतदथ च ज मा मानुषेषु महा मनः । तात! महाबा यु ध र! शा नामक धनुष धारण करनेवाले भगवान् ीकृ णक यह वजयगाथा कही गयी है। इसीके लये महा मा ीकृ णका मनु य म अवतार आ बताया जाता है। (दा णा य तम अ याय समा त)

[भगवान्

ीक ृ णके ारा बाणासुरपर वजय और भी मके ारा ीकृ णमाहा यका उपसंहार] भी म उवाच ारकायां ततः कृ णः वदारेषु दवा नशम् । सुखं ल वा महाराज मुमोद महायशाः ।। भी मजी कहते ह—महाराज यु ध र! तदन तर महायश वी भगवान् ीकृ ण अपनी रा नय के साथ दन-रात सुखका अनुभव करते ए ारकापुरीम आन दपूवक रहने लगे। पौ य कारणा च े वबुधानां हतं तदा । सवासवैः सुरैः सव करं भरतषभ ।। भरत े ! उ ह ने अपने पौ अ न को न म बनाकर दे वता का जो हत-साधन कया, वह इ स हत स पूण दे वता के लये अ य त कर था। बाणो नामाभवद् राजा बले य सुतो बली । वीयवान् भरत े स च बा सह वान् ।। भरतकुलभूषण! बाण नामक एक राजा आ था, जो ब लका ये पु था। वह महान् बलवान् और परा मी होनेके साथ ही सह भुजा से सुशो भत था। तत े तप ती ं स येन मनसा नृप । माराधयामास स च बाणः समा बः ।। राजन्! बाणासुरने स चे मनसे बड़ी कठोर तप या क । उसने ब त वष तक भगवान् शंकरक आराधना क । त मै ब वरा द ाः शङ् करेण महा मना । त मा ल वा वरान् बाणो लभान् ससुरैर प ।। स शो णतपुरे रा यं चकारा तमो बली । महा मा शंकरने उसे अनेक वरदान दये। भगवान् शंकरसे दे व लभ वरदान पाकर बाणासुर अनुपम बलशाली हो गया और शो णतपुरम रा य करने लगा। ा सता सुराः सव तेन बाणेन पा डव ।। व ज य वबुधान् सवान् से ान् बाणः समा बः । अशासत महद् रा यं कुबेर इव भारत ।। भरतवंशी पा डु न दन! बाणासुरने सब दे वता को आतं कत कर रखा था। उसने इ आ द सब दे वता को जीतकर कुबेरक भाँ त द घकालतक इस भूतलपर महान् रा यका शासन कया। ऋ यथ कु ते य नं त य चैवोशना क वः । ानी व ान् शु ाचाय उसक समृ बढ़ानेके लये य न करते रहते थे। ततो राज ुषा नाम बाण य हता तथा ।। पेणा तमा लोके मेनकायाः सुता यथा । े

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राजन्! बाणासुरके एक पु ी थी, जसका नाम उषा था। संसारम उसके पक तुलना करनेवाली सरी कोई ी नह थी। वह मेनका अ सराक पु ी-सी तीत होती थी। अथोपायेन कौ तेय अ न ो महा ु तः ।। ा ु न तामुषां ा य छ ः मुमोद ह । कु तीन दन! महान् तेज वी ु नपु अ न कसी उपायसे उषातक प ँचकर छपे रहकर उसके साथ आन दका उपभोग करने लगे। अथ बाणो महातेजा तदा त यु ध र ।। तं गु नलयं ा वा ा ु नं सुतया सह । गृही वा कारयामास व तुं कारागृहे बलात् ।। यु ध र! महातेज वी बाणासुरने गु त पसे छपे ए ु नकुमार अ न का अपनी पु ीके साथ रहना जान लया और उ ह अपनी पु ीस हत बलपूवक कारागारम ठूँ स दे नेके लये बंद बना लया। सुकुमारः सुखाह ऽथ तदा ःखमवाप सः । बाणेन खे दतो राज न ो मुमोह च ।। राजन्! वे सुकुमार एवं सुख भोगनेके यो य थे, तो भी उ ह उस समय ःख उठाना पड़ा। बाणासुरके ारा भाँ त-भाँ तके क दये जानेपर अ न मू छत हो गये। एत म ेव काले तु नारदो मु नपु वः । ारकां ा य कौ तेय कृ णं ् वा वचोऽ वीत् ।। कु तीकुमार! इसी समय मु न वर नारदजी ारकाम आकर ीकृ णसे मले और इस कार बोले। नारद उवाच कृ ण कृ ण महाबाहो य नां क तवधन । व पौ ो बा यमानोऽथ बाणेना मततेजसा ।। कृ ं ा तोऽ न ो वै शेते कारागृहे सदा । नारदजीने कहा—महाबा ीकृ ण! आप य वं शय क क त बढ़ानेवाले ह। इस समय अ मत-तेज वी बाणासुर आपके पौ अ न को ब त क दे रहा है। वे संकटम पड़े ह और सदा कारागारम नवास कर रहे ह। भी म उवाच एवमु वा सुर षव बाण याथ पुरं ययौ ।। नारद य वचः ु वा ततो राजन् जनादनः । आय बलद े वं वै ु नं च महा ु तम् ।। आ रोह ग म तं ता यां सह जनादनः । भी मजी कहते ह—राजन्! ऐसा कहकर दे व ष नारद बाणासुरक राजधानी शो णतपुरको चले गये। नारदजीक बात सुनकर भगवान् ीकृ णने बलरामजी तथा महातेज वी ु नको बुलाया और उन दोन के साथ वे ग ड़पर आ ढ़ ए। े

ततः सुपणमा य ते पु षषभाः ।। ज मुः ु ा महावीया बाण य नगरं त । तदन तर वे तीन महापरा मी पु षर न ग ड़पर आ ढ़ हो ोधम भरकर बाणासुरके नगरक ओर चल दये। अथासा महाराज त पुर द शु ते ।। ता ाकारसंवीतां य ारै शो भताम् । महाराज! वहाँ जाकर उ ह ने बाणासुरक पुरीको दे खा, जो ताँबेक चहारद वारीसे घरी ई थी। चाँद के बने ए दरवाजे उसक शोभा बढ़ा रहे थे। हेम ासादस बाधां मु ाम ण व च ताम् ।। उ ानवनस प ां नृ गीतै शो भताम् । वह पुरी सुवणमय ासाद से भरी ई थी और मु ाम णय से उसक व च शोभा हो रही थी। उसम थान- थानपर उ ान और वन शोभा पा रहे थे। वह नगरी नृ य और गीत से सुशो भत थी। तोरणैः प भः क णा पु क र या च शो भताम् ।। तां पुर वगसंकाशां पु जनाकुलाम् । ् वा मुदा युतां हैमां व मयं परमं ययुः ।। वहाँ अनेक सु दर फाटक बने थे। सब ओर भाँ त-भाँ तके प ी चहचहाते थे। कमल से भरी ई पु क रणी उस पुरीक शोभा बढ़ाती थी। उसम -पु ी-पु ष नवास करते थे और वह पुरी वगके समान मनोहर दखायी दे ती थी। स तासे भरी ई उस सुवणमयी नगरीको दे खकर ीकृ ण, बलराम और ु न तीन को बड़ा व मय आ। त य बाणपुर यासन् ार था दे वताः सदा । महे रो गुह ैव भ काली च पावकः ।। एता वै दे वता राजन् रर ु तां पुर सदा । बाणासुरक राजधानीम कतने ही दे वता सदा ारपर बैठकर पहरा दे ते थे। राजन्! भगवान् शंकर, का तकेय, भ कालीदे वी और अ न—ये दे वता सदा उस पुरीक र ा करते थे। अथ कृ णो बला ज वा ारपालान् यु ध र ।। सुसं ु ो महातेजाः शङ् खच गदाधरः । आससादो र ारं शङ् करेणा भपा लतम् ।। यु ध र! शंख, च और गदा धारण करनेवाले महातेज वी ीकृ णने अ य त कु पत हो पूव ारके र क को बलपूवक जीतकर भगवान् शंकरके ारा सुर त उ र ारपर आ मण कया। त त थौ महातेजाः शूलपा णमहे रः । पनाकं सशरं गृ बाण य हतका यया ।। ा वा तमागतं कृ णं ा दता य मवा तकम् । महे रो महाबा ः कृ णा भमुखमाययौ ।। ँ े ी े े े े

वहाँ महान् तेज वी भगवान् महे र हाथम शूल लये खड़े थे। जब उ ह मालूम आ क भगवान् ीकृ ण मुँह बाये कालक भाँ त आ रहे ह, तब वे महाबा महे र बाणासुरके हत-साधनक इ छासे बाणस हत पनाक नामक धनुष हाथम लेकर ीकृ णके स मुख आये। तत तौ च तुयु ं वासुदेवमहे रौ । तद् यु मभवद् घोरम च यं रोमहषणम् ।। तदन तर भगवान् वासुदेव और महे र पर पर यु करने लगे। उनका वह यु अ च य, रोमांचकारी तथा भयंकर था। अ यो यं तौ तत ाते अ यो यजयकाङ् णौ । द ा ा ण च तौ दे वौ ु ौ मुमुचतु तदा ।। वे दोन दे वता एक- सरेपर वजय पानेक इ छासे पर पर हार करने लगे। दोन ही ोधम भरकर एक- सरेपर द ा का योग करते थे। ततः कृ णो रणं कृ वा मुत शूलपा णना । व ज य तं महादे वं ततो यु े जनादनः ।। अ यां ज वा ार थान् ववेश पुरो मम् । तदन तर भगवान् ीकृ णने शूलपा ण भगवान् शंकरके साथ दो घड़ीतक यु करके महादे वजीको जीत लया तथा ारपर खड़े ए अ य शवगण को भी परा त करके उस उ म नगरम वेश कया। व य बाणमासा स त ाथ जनादनः ।। च े यु ं महा ु तेन बाणेन पा डव । पा डु न दन! पुरीम वेश करके अ य त ोधम भरे ए ीजनादनने बाणासुरके पास प ँचकर उसके साथ यु छे ड़ दया। बाणोऽ प सवश ा ण शता न भरतषभ ।। सुसं ु तदा यु े पातयामास केशवे । भरत े ! बाणासुर भी ोधसे आगबबूला हो रहा था। उसने भी यु म भगवान् केशवपर सभी तीखे-तीखे अ -श चलाये।

पुन य श ाणां सह ं सवबा भः ।। मुमोच बाणः सं ु ः कृ णं त रणा जरे । फर उसने उ ोगपूवक अपनी सभी भुजा से उस समरांगणम कु पत हो ीकृ णपर सह श का हार कया। ततः कृ ण तु स छ ता न सवा ण भारत ।। कृ वा मुत बाणेन यु ं राज धो जः । च मु य राजन् वै द ं श ो मं ततः ।। सह बां छ े द बाण या मततेजसः । भारत! परंतु ीकृ णने वे सभी श काट डाले। राजन्! तदन तर भगवान् अधो जने दो घड़ीतक बाणासुरके साथ यु करके अपना द उ म श च हाथम उठाया और अ मततेज वी बाणासुरक सह भुजा को काट दया। ततो बाणो महाराज कृ णेन भृशपी डतः ।। छ बा ः पपाताशु वशाख इव पादपः । महाराज! तब ीकृ ण ारा अ य त पी ड़त होकर बाणासुर भुजाएँ कट जानेपर शाखाहीन वृ क भाँ त धरतीपर गर पड़ा। स पात य वा बालेयं बाणं कृ ण वरा वतः ।। ा ु नं मो यामास तं कारागृहे तदा । इस कार ब लपु बाणासुरको रणभू मम गराकर ीकृ णने बड़ी उतावलीके साथ कैदम पड़े ए ु नकुमार अ न को छु ड़ा लया। मो य वाथ गो व दः ा ु नं सह भायया ।

बाण य सवर ना न असं या न जहार सः ।। प नीस हत अ न को छु ड़ाकर भगवान् गो व दने बाणासुरके सभी कारके असं य र न हर लये। गोधना यथ सव वं स बाण यालये बलात् । जहार च षीकेशो य नां क तवधनः ।। ततः स सवर ना न चा य मधुसूदनः । मारोपया च े तत् सव ग डोप र ।। उसके घरम जो भी गोधन अथवा अ य कसी कारके धन मौजूद थे, उन सबको भी य कुलक क त बढ़ानेवाले भगवान् षीकेशने हर लया। फर वे सब र न लेकर मधुसूदनने शी तापूवक ग ड़पर रख लये। वरयाथ स कौ तेय बलदे वं महाबलम् । ु नं च महावीयम न ं महा ु तम् ।। उषां च सु दर राजन् भृ यदासीगणैः सह । सवानेतान् समारो य र ना न व वधा न च ।। कु तीन दन! त प ात् उ ह ने महाबली बलदे व, अ मतपरा मी ु न, परम का तमान् अ न तथा सेवक और दा सय स हत सु दरी उषा—इन सबको और नाना कारके र न को भी ग ड़पर चढ़ाया। मुदा यु ो महातेजाः पीता बरधरो बली । द ाभरण च ा ः शङ् खच गदा सभृत् ।। आ रोह ग म तमुदयं भा करो यथा । इसके बाद शंख, च , गदा और खड् ग धारण करनेवाले, पीता बरधारी, महाबली एवं महातेज वी ीकृ ण बड़ी स ताके साथ वयं भी ग ड़पर आ ढ़ ए, मानो भगवान् भा कर उदयाचलपर आसीन ए ह । उस समय भगवान्के ीअंग द आभूषण से व च शोभा धारण कर रहे थे। अथा सुपण स ययौ ारकां त ।। व य वपुरं कृ णो यादवैः स हत ततः । मुमोद तदा राजन् वग थो वासवो यथा ।। ग ड़पर आ ढ़ हो ीकृ ण ारकाक ओर चल दये। राजन्! अपनी पुरी ारकाम प ँचकर वे य वं शय के साथ ठ क वैसे ही आन दपूवक रहने लगे, जैसे इ वगलोकम दे वता के साथ रहते ह। सू दता मौरवाः पाशा नशु भनरकौ हतौ । कृत ेमः पुनः प थाः पुरं ा यो तषं त ।। शौ रणा पृ थवीपाला ा सता भरतषभ । धनुष णादे न पा चज य वनेन च ।। भरत े ! भगवान् ीकृ णने मुरदै यके पाश काट दये, नशु भ और नरकासुरको मार डाला और ा यो तषपुरका माग सब लोग के लये न क टक बना दया। इ ह ने े औ े े ो

अपने धनुषक टं कार और पांचज य शंखके ंकारसे सम त भूपाल को आतं कत कर दया है। मेघ यैरनीकै दा णा यैः सुसंवृतम् । मणं ासयामास केशवो भरतषभ ।। भरतकुलभूषण! भगवान् केशवने उस मीको भी भयभीत कर दया, जसके पास मेघ क घटाके समान असं य सेनाएँ ह और जो दा णा य सेवक से सदा सुर त रहता है। ततः पज यघोषेण रथेना द यवचसा । उवाह म हष भो यामेष च गदाधरः ।। इन च और गदा धारण करनेवाले भगवान्ने मीको हराकर सूयके समान तेज वी तथा मेघके समान ग भीर घोष करनेवाले रथके ारा भोजकुलो प ा मणीका अपहरण कया, जो इस समय इनक महारानीके पदपर त त ह। जा यामा तः ाथः शशुपाल न जतः । व सह शै येन शतध वा च यः ।। ये जा थी नगरीम वहाँके राजा आ तको तथा ाथ एवं शशुपालको भी परा त कर चुके ह। इ ह ने शै य, द तव तथा शतध वा नामक य को भी हराया है। इ ु नो हतः ोधाद् यवन कशे मान् । इ ह ने इ ु न, कालयवन और कशे मान्का भी ोधपूवक वध कया है। पवतानां सह ं च च े ण पु षो मः ।। व भ पु डरीका ो ुम सेनमयोधयत् । कमलनयन पु षो म ीकृ णने च ारा सह पवत को वद ण करके ुम सेनके साथ यु कया। महे शखरे चैव नमेषा तरचा रणौ ।। ज ाह भरत े व ण या भत रौ । इराव यामुभौ चैताव नसूयसमौ बले ।। गोप त तालकेतु नहतौ शा ध वना । भरत े ! जो बलम अ न और सूयके समान थे और व णदे वताके उभय पा म वचरण करते तथा जनम पलक मारते-मारते एक थानसे सरे थानम प ँच जानेक श थी, वे गोप त और तालकेतु भगवान् ीकृ णके ारा महे पवतके शखरपर इरावती नद के कनारे पकड़े और मारे गये। अ पतने चैव ने महंसपथेषु च ।। उभौ ताव प कृ णेन वरा े व नपा ततौ । अ पतनके अ तगत ने महंसपथ नामक थानम, जो उनके अपने ही रा यम पड़ता था, उन दोन को भगवान् ीकृ णने मारा था। ा यो तषं पुर े मसुरैब भवृतम् । ा य लो हतकूटा न कृ णेन व णो जतः ।। े ो ो ो

अजेयो धष लोकपालो महा ु तः । ब तेरे असुर से घरे ए पुर े ा यो तषम प ँचकर वहाँक पवतमालाके लाल शखर पर जाकर ीकृ णने उन लोकपाल व णदे वतापर वजय पायी, जो सर के लये धष, अजेय एवं अ य त तेज वी ह। इ पो महे े ण गु तो मघवता वयम् ।। पा रजातो तः पाथ केशवेन बलीयसा । पाथ! य प इ पा रजातके लये प (र क) बने ए थे, वयं ही उसक र ा करते थे, तथा प महाबली केशवने उस वृ का अपहरण कर लया। पा ं पौ ं च मा यं च क ल ं च जनादनः ।। जघान स हतान् सवान राजं च माधवः । ल मीप त जनादनने पा , पौ , म य, क लग और अंग आ द दे श के सम त राजा को एक साथ परा जत कया। एष चैकशतं ह वा रथेन पु वान् ।। गा धारीमवहत् कृ णो म हष यादवषभः । य े ीकृ णने केवल एक रथपर चढ़कर अपने वरोधम खड़े ए सौ यनरेश को मौतके घाट उतारकर गा धारराजकुमारी शशुमाको अपनी महारानी बनाया। ब ो यम व छ ेष च गदाधरः ।। वेणुदा र तां भायामु ममाथ यु ध र । यु ध र! च और गदा धारण करनेवाले इन भगवान्ने ब ुका य करनेक इ छासे वेणुदा रके ारा अप त क ई उनक भायाका उ ार कया था। पया तां पृ थव सवा सा ां सरथकु राम् ।। वेणुदा रवशे यु ां जगाय मधुसूदनः । इतना ही नह ; मधुसूदनने वेणुदा रके वशम पड़ी ई घोड़ , हा थय एवं रथ स हत स पूण पृ वीको भी जीत लया। अवा य तपसा वीय बलमोज भारत ।। ा सताः सगणाः सव बाणेन वबुधा धपाः । व ाश नगदापाशै ासय रनेकशः ।। त य नासीद् रणे मृ युदवैर प सवासवैः । सोऽ भभूत कृ णेन नहत महा मना ।। छ वा बा सह ं तद् गो व दे न महा मना । भारत! जस बाणासुरने तप या ारा बल, वीय और ओज पाकर सम त दे वे र को उनके गण स हत भयभीत कर दया था, इ आ द दे वता के ारा बारंबार व, अश न, गदा और पाश का हार करके ास दये जानेपर भी समरांगणम जसक मृ यु न हो सक , उसी दै यराज बाणासुरको महामना भगवान् गो व दने उसक सह भुजाएँ काटकर परा जत एवं त- व त कर दया। ी

एष पीठ ं महाबा ः कंसं च मधुसूदनः ।। पैठक ं चा तलोमानं नजघान जनादनः । मधु दै यका वनाश करनेवाले इन महाबा जनादनने पीठ, कंस, पैठक और अ तलोमा नामक असुर को भी मार दया। ज भमैरावतं चैव व पं च महायशाः ।। जघान भरत े श बरं चा रमदनम् । भरत े ! इन महायश वी ीकृ णने ज भ, ऐरावत, व प और श ुमदन श बरासुरको भी (अपनी वभू तय - ारा) मरवा डाला। एष भोगवत ग वा वासु क भरतषभ ।। न ज य पु डरीका ो रौ हणेयममोचयत् । भरतकुलभूषण! इन कमलनयन ीह रने भोगवती-पुरीम जाकर वासु क नागको हराकर रो हणीन दनको* ब धनसे छु ड़ाया। एवं ब न कमा ण शशुरेव जनाद नः ।। कृतवान् पु डरीका ः संकषणसहायवान् । इस कार संकषणस हत कमलनयन भगवान् ीकृ णने बा याव थाम ही ब त-से अ त कम कये थे। एवमेषोऽसुराणां च सुराणां चा प सवशः ।। भयाभयकरः कृ णः सवलोके रः भुः । ये ही दे वता और असुर को सवथा अभय तथा भय दे नेवाले ह। भगवान् ीकृ ण ही स पूण लोक के अधी र ह। एवमेष महाबा ः शा ता सव रा मनाम् ।। कृ वा दे वाथम मतं व थानं तप यते । इस कार स पूण का दमन करनेवाले ये महाबा भगवान् ीह र अन त दे वकाय स करके अपने परमधामको पधारगे। एष भोगवत र यामृ षका तां महायशाः ।। ारकामा मसात् कृ वा सागरं गम य य त । ये महायश वी ीकृ ण मु नजनवां छत एवं भोग से स प रमणीय ारकापुरीको आ मसात् करके समु म वलीन कर दगे। ब पु यवत र यां चै ययूपवत शुभाम् ।। ारकां व णावासं वे य त सकाननाम् । ये चै य और यूप से स प , परम पु यवती, रमणीय एवं मंगलमयी ारकाको वनउपवन स हत व णालयम डु बा दगे। तां सूयसदन यां मनो ां शा ध वना ।। व ां वासुदेवेन सागरः लाव य य त । ो







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सूयलोकके समान का तमती एवं मनोरम ारकापुरीको जब शा ध वा वासुदेव याग दगे, उस समय समु इसे अपने भीतर ले लेगा। सुरासुरमनु येषु नाभू भ वता व चत् ।। य ताम यवसद् राजा अ य मधुसूदनात् । भगवान् मधुसूदनके सवा दे वता , असुर और मनु य म ऐसा कोई राजा न आ और न होगा ही, जो ारकापुरीम रहनेका संक प भी कर सके। ाजमाना तु शशवो वृ य धकमहारथाः ।। त जु ं तप य ते नाकपृ ं गतासवः । उस समय वृ ण और अ धकवंशके महारथी एवं उनके का तमान् शशु भी ाण यागकर भगव से वत परमधामको ा त करगे। एवमेव दशाहाणां वधाय व धना व धम् ।। व णुनारायणः सोमः सूय स वता वयम् । इस कार ये दशाहवं शय के सब काय व धपूवक स प करगे। ये वयं ही व णु, नारायण, सोम, सूय और स वता ह। अ मेयोऽ नयो य य कामगमो वशी ।। मोदते भगवान् भूतैबालः डनकै रव । ये अ मेय ह। इनपर कसीका नय ण नह चल सकता। ये इ छानुसार चलनेवाले और सबको अपने वशम रखनेवाले ह। जैसे बालक खलौनेसे खेलता है, उसी कार ये भगवान् स पूण ा णय के साथ आन दमयी ड़ा करते ह। नैष गभ वमापेदे न यो यामवसत् भुः ।। आ मन तेजसा कृ णः सवषां कु ते ग तम् । ये भु न तो कसीके गभम आते ह और न कसी यो न वशेषम ही इनका आवास आ है अथात् ये अपने-आप ही कट हो जाते ह। ीकृ ण अपने ही तेजसे सबक सद्ग त करते ह। यथा बुदबु ् द उ थाय त ैव वलीयते ।। चराचरा ण भूता न तथा नारायणे सदा । जैसे बुदबु ् द पानीसे उठकर फर उसीम वलीन हो जाता है, उसी कार सम त चराचर भूत सदा भगवान् नारायणसे कट होकर उ ह म वलीन हो जाते ह। न मातुं महाबा ः श यो भारत केशवः ।। परं परमेत माद् व पा व ते । भारत! इन महाबा केशवक कोई इ त ी नह बतायी जा सकती। इन व प परमे रसे भ पर और अपर कुछ भी नह है। अयं तु पु षो बालः शशुपालो न बु यते । सव सवदा कृ णं त मादे वं भाषते ।। ३० ।। यह शशुपाल मूढ़बु पु ष है, यह भगवान् ीकृ णको सव ापक तथा सवदा थर नह जानता है, इसी लये उनके स ब धम ऐसी बात कहता है ।। ३० ।। ो

यो ह धम व चनुया कृ ं म तमान् नरः । स वै प येद ् यथा धम न तथा चे दराडयम् ।। ३१ ।। जो बु मान् मनु य उ म धमक खोज करता है, वह धमके व पको जैसा समझता है, वैसा यह चे दराज शशुपाल नह समझता ।। ३१ ।। सवृ बाले वथवा पा थवेषु महा मसु । को नाह म यते कृ णं को वा येनं न पूजयेत् ।। अथवा वृ और बालक स हत यहाँ बैठे ए सम त महा मा राजा म ऐसा कौन है, जो ीकृ ण-को पू य न मानता हो या कौन है, जो इनक पूजा न करता हो? ।। ३२ ।। अथैनां कृतां पूजां शशुपालो व य त । कृतायां यथा यायं तथायं कतुमह त ।। ३३ ।। य द शशुपाल इस पूजाको अनु चत मानता है, तो अब उस अनु चत पूजाके वषयम उसे जो उ चत जान पड़े, वैसा करे ।। ३३ ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण अघा भहरणपव ण भी मवा ये अ ा शोऽ यायः ।। ३८ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत अघा भहरणपवम भी मवा य नामक अड़तीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ३८ ।। (दा णा य अ धक पाठक े ७२८ ोक मलाकर कुल ७६१ ोक ह)

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जनम ऋतुधम (रज वलाव था)-का ा भाव न आ हो, उ ह न नका कहते ह। * मू त या शव लगके आकारका कोई भ गृह, जो पृ वीके भीतर गुफाम बनाया गया हो। श ु से नरकासुरने ऐसे नवास थानका नमाण करा रखा था। * रो हणीके गद और सारण आ द कई पु थे।

से आ मर ाक

एकोनच वा रशोऽ यायः सहदे वक राजाको चुनौती तथा ु ध ए शशुपाल आ द नरेश का यु के लये उ त होना वैश पायन उवाच एवमु वा ततो भी मो वरराम महाबलः । ाजहारो रं त सहदे वोऽथवद् वचः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! ऐसा कहकर महाबली भी म चुप हो गये। त प ात् मा कुमार सहदे वने शशुपालक बात का मुँहतोड़ उ र दे ते ए यह साथक बात कही— ।। १ ।। केशवं के शह तारम मेयपरा मम् । पू यमानं मया यो वः कृ णं न सहते नृपाः ।। २ ।। सवषां ब लनां मू न मयेदं न हतं पदम् । एवमु े मया स यगु रं वीतु सः ।। ३ ।। स एव ह मया व यो भ व य त न संशयः । ‘राजाओ! केशी दै यका वध करनेवाले अन त-परा मी भगवान् ीकृ णक मेरे ारा जो पूजा क गयी है, उसे आपलोग मसे जो सहन न कर सक, उन सब बलवान के म तकपर मने यह पैर रख दया। मने खूब सोच-समझकर यह बात कही है। जो इसका उ र दे ना चाहे, वह सामने आ जाय। मेरे ारा वह वधके यो य होगा; इसम संशय नह है ।। २-३ ।। म तम त ये के चदाचाय पतरं गु म् ।। ४ ।। अ यम चतमघाहमनुजान तु ते नृपाः । ‘जो बु मान् राजा ह वे मेरे ारा क ई आचाय, पता, गु , पूजनीय तथा अ य नवेदनके सवथा यो य भगवान् ीकृ णक पूजाका दयसे अनुमोदन कर’ ।। ४ ।। ततो न ाजहारैषां क द् बु मतां सताम् ।। ५ ।। मा ननां ब लनां रा ां म ये वै द शते पदे । सहदे वने महामानी और बलवान् राजा के बीच खड़े होकर अपना पैर दखाया था, तो भी जो बु मान् एवं े नरेश थे, उनमसे कोई कुछ न बोला ।। ५ ।। ततोऽपतत् पु पवृ ः सहदे व य मूध न ।। ६ ।। अ य पा वाच ा य ुवन् साधु सा व त । उस समय सहदे वके म तकपर आकाशसे फूल क वषा होने लगी और अ य पसे खड़े ए दे वता ने ‘साधु’, ‘साधु’ कहकर उनके स साहसक शंसा क ।। ६ ।। आ व यद जतं कृ णं भ व यद्भूतज पकः ।। ७ ।। सवसंशय नम ा नारदः सवलोक वत् । े

उवाचाखलभूतानां म ये प तरं वचः ।। ८ ।। तदन तर कभी परा जत न होनेवाले भगवान् ीकृ णक म हमाके ाता, भूत, वतमान और भ व य—तीन काल क बात बतानेवाले, सब लोग के सभी संशय का नवारण करनेवाले तथा स पूण लोक से प र चत दे व ष नारद सम त उप थत ा णय के बीच प श द म बोले— ।। ७-८ ।। कृ णं कमलप ा ं नाच य य त ये नराः । जीव मृता तु ते ेया न स भा याः कदाचन ।। ९ ।। ‘जो मानव कमलनयन भगवान् ीकृ णक पूजा नह करगे, वे जीते-जी ही मृतकतु य समझे जायँगे। ऐसे लोग से कभी बातचीत नह करनी चा हये’ ।। ९ ।। वैश पायन उवाच पूज य वा च पूजाहान् वशेष वत् । सहदे वो नृणां दे वः समाप त कम तत् ।। १० ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! वहाँ आये ए ा ण और यम वश य को पहचानने-वाले नरदे व सहदे वने मशः पू य य क पूजा करके वह अ य नवेदनका काय पूरा कर दया ।। १० ।। त म य चते कृ णे सुनीथः श ुकषणः । अ तता े णः कोपा वाच मनुजा धपान् ।। ११ ।। इस कार ीकृ णका पूजन स प हो जानेपर श ु वजयी शशुपालने ोधसे अ य त लाल आँख करके सम त राजा से कहा— ।। ११ ।। थतः सेनाप तय ऽहं म य वं क तु सा तम् । यु ध त ाम संन समेतान् वृ णपा डवान् ।। १२ ।। ‘भू मपालो! म सबका सेनाप त बनकर खड़ा ँ। अब तुमलोग कस च ताम पड़े हो। आओ, हम सब लोग यु के लये सुस जत हो पा डव और यादव क स म लत सेनाका सामना करनेके लये डट जायँ’ ।। १२ ।। इ त सवान् समु सा रा तां े दपु वः । य ोपघाताय ततः सोऽम यत राज भः ।। १३ ।। त ाता गताः सव सुनीथ मुखा गणाः । सम य त सं ु ा ववणवदना तथा ।। १४ ।। इस कार उन सब राजा को यु के लये उ सा हत करके चे दराजने यु ध रके य म व न डालनेके उ े यसे राजा से सलाह क । शशुपालके इस कार बुलानेपर उसके सेनाप त वम सुनीथ आ द कुछ मुख नरेशगण चले आये। वे सब-के-सब अ य त ोधसे भर रहे थे एवं उनके मुखक का त बदली ई दखायी दे ती थी ।। १३-१४ ।। यु ध रा भषेकं च वासुदेव य चाहणम् । न याद् यथा तथा कायमेवं सव तदा ुवन् ।। १५ ।। े











उन सबने यह कहा क ‘यु ध रके अ भषेक और ीकृ णक पूजाका काय सफल न हो, वैसा य न करना चा हये’ ।। १५ ।। न कषा यात् सव राजानः ोधमू छताः । अ ुवं त राजानो नवदादा म न यात् ।। १६ ।। इस नणय एवं न कषपर प ँचकर वे सभी नरेश ोधसे मो हत हो गये। सहदे वक बात से अपमानका अनुभव करके अपनी श क बलताका व ास करके राजा ने उपयु बात कही थ ।। १६ ।। सु वायमाणानां तेषां ह वपुराबभौ । आ मषादपकृ ानां सहाना मव गजताम् ।। १७ ।। अपने सगे-स ब धय के मना करनेपर भी उनका ोधसे तमतमाता आ शरीर उन सह के समान सुशो भत आ, जो मांससे वं चत कर दये जानेके कारण दहाड़ रहे ह । तं बलौघमपय तं राजसागरम यम् । कुवाणं समयं कृ णो यु ाय बुबुधे तदा ।। १८ ।। राजा का वह समुदाय अ य समु क भाँ त उमड़ रहा था। उसका कह अ त नह दखायी दे ता था। सेनाएँ ही उसक अपार जलरा श थ । उसे इस कार शपथ करते दे ख भगवान् ीकृ णने यह समझ लया क अब ये नरेश यु के लये तैयार ह ।। १८ ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण अघा भहरणपव ण राजम णे एकोनच वारशोऽ यायः ।। ३९ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत अघा भहरणपवम राजा क म णा वषयक उ तालीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ३९ ।।

( शशुपालवधपव) च वा रशोऽ यायः यु ध रक च ता और भी मजीका उ ह सा वना दे ना वैश पायन उवाच ततः सागरसंकाशं ् वा नृप तम डलम् । संवतवाता भहतं भीमं ुध मवाणवम् ।। १ ।। रोषात् च लतं सव मदमाह यु ध रः । भी मं म तमतां मु यं वृ ं कु पतामहम् । बृह प त बृह ेजाः पु त इवा रहा ।। २ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर लयकालीन महावायुके थपेड़ से ु ध ए भयंकर महासागरक भाँ त राजा के उस समुदायको ोधसे चंचल आ दे ख धमराज यु ध र बु मान म े और कु कुलके वृ पतामह भी मजीसे उसी कार बोले, जैसे श ुह ता महातेज वी इ बृह प तजीसे कोई बात पूछते ह— ।। १-२ ।। असौ रोषात् च लतो महान् नृप तसागरः । अ यत् तप ं त मे ू ह पतामह ।। ३ ।। ‘ पतामह! यह दे खये, राजा का महासमु रोषसे अ य त चंचल हो उठा है। अब यहाँ इन सबको शा त करनेका जो उ चत उपाय जान पड़े, वह मुझे बताइये ।। ३ ।। य य च न व नः यात् जानां च हतं भवेत् । यथा सव तत् सव ू ह मेऽ पतामह ।। ४ ।। ‘दादाजी! य म व न न पड़े और जा का हत हो तथा जस कार सव शा त भी बनी रहे, वह सब उपाय अब मुझे बतानेक कृपा कर’ ।। ४ ।। इ यु व त धम े धमराजे यु ध रे । उवाचेदं वचो भी म ततः कु पतामहः ।। ५ ।। धमके ाता धमराज यु ध रके ऐसा कहनेपर कु कुल पतामह भी मजी इस कार बोले— ।। ५ ।। मा भै वं कु शा ल ा सहं ह तुमह त । शवः प थाः सुनीतोऽ मया पूवतरं वृतः ।। ६ ।। ‘कु वंशके वीर! तुम डरो मत, या कु ा कभी सहको मार सकता है? हमने क याणमय माग पहले ही चुन लया है ( ीकृ णका आ य ही वह माग है जसका मने वरण कर लया है) ।। ६ ।। े



सु ते ह यथा सहे ान त मन् समागताः । भषेयुः स हताः सव तथेमे वसुधा धपाः ।। ७ ।। वृ ण सह य सु त य तथामी मुखे थताः । ‘जैसे सहके सो जानेपर ब त-से कु े उसके नकट आकर एक साथ भूँकने लगते ह, उसी कार ये सामने खड़े ए राजा भी तभीतक भूँक रहे ह, जबतक वृ णवंशका सह सो रहा है ।। ७ ।। भष ते तात सं ु ाः ानः सह य सं नधौ ।। ८ ।। न ह स बु यते यावत् सु तः सह इवा युतः । तेन सहीकरो येतान् नृ सह े दपु वः ।। ९ ।। पा थवान् पा थव े ः शशुपालोऽ यचेतनः । सवान् सवा मना तात नेतुकामो यम यम् ।। १० ।। ‘ ोधम भरे ए कु के समान ये लोग सहके नकट तभीतक कोलाहल मचा रहे ह, जबतक भगवान् ीकृ ण सहक तरह जाग नह उठते—इ ह द ड दे नेके लये उ त नह हो जाते। राजा म े चे दकुलभूषण नृ सह शशुपाल भी अपनी ववेकश खो बैठा है, तभी इन सब नरेश को यमलोकम भेज दे नेक इ छासे कु ेसे सह बनानेक को शश कर रहा है ।। ८—१० ।। नूनमेतत् समादातुं पुन र छ यधो जः । यद य शशुपाल य तेज त त भारत ।। ११ ।। ‘भारत! अव य ही भगवान् ीकृ ण इस शशुपालके भीतर उनका जो तेज है, उसे पुनः समेट लेना चाहते ह ।। ११ ।। व लुता चा य भ ं ते बु बु मतां वर । चे दराज य कौ तेय सवषां च मही ताम् ।। १२ ।। ‘बु मान म े कु तीन दन यु ध र! तु हारा क याण हो। अव य ही इस चे दराज शशुपालक तथा इन सम त भूपाल क बु मारी गयी है ।। १२ ।। आदातुं च नर ा ो यं य म छ ययं तदा । त य व लवते बु रेवं चे दपतेयथा ।। १३ ।। ‘ य क नर े ीकृ ण जस- जसको अपनेम वलीन कर लेना चाहते ह, उस-उस मनु यक बु इसी कार न हो जाती है, जैसे इस चे दराज शशुपालक ।। १३ ।। चतु वधानां भूतानां षु लोकेषु माधवः । भव ैव सवषां नधनं च यु ध रः ।। १४ ।। ‘यु ध र! माधव ीकृ ण तीन लोक म जो वेदज, अ डज, उ ज और जरायुज —ये चार कारके ाणी ह, उन सबक उ प और लयके थान ह ।। १४ ।। वैश पायन उवाच इ त त य वचः ु वा तत े दप तनृपः । भी मं ा रा वाचः ावयामास भारत ।। १५ ।। ै













वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! भी मजीक यह बात सुनकर चे दराज शशुपाल उनको बड़ी कठोर बात सुनाने लगा ।। १५ ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण शशुपालवधपव ण यु ध रा ासने च वारशोऽ यायः ।। ४० ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत शशुपालवधपवम यु ध रको आ ासन नामक चालीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ४० ।।

एकच वा रशोऽ यायः शशुपाल ारा भी मक न दा शशुपाल उवाच वभी षका भब भभ षयन् सवपा थवान् । न प पसे क माद् वृ ः सन् कुलपांसन ।। १ ।। शशुपाल बोला—कुलको कलं कत करनेवाले भी म! तुम अनेक कारक वभी षका ारा इन सब राजा को डरानेक चे ा कर रहे हो। बड़े-बूढ़े होकर भी तु ह अपने इस कृ यपर ल जा य नह आती? ।। १ ।। यु मेतत् तृतीयायां कृतौ वतता वया । व ुं धमादपेताथ वं ह सवकु मः ।। २ ।। तुम तीसरी कृ तम थत (नपुंसक) हो, अतः तु हारे लये इस कार धम व बात कहना उ चत ही है। फर भी यह आ य है क तुम समूचे कु कुलके े पु ष कहे जाते हो ।। २ ।। ना व नौ रव स ब ा यथा धो बा धम वयात् । तथाभूता ह कौर ा येषां भी म वम णीः ।। ३ ।। भी म! जैसे एक नाव सरी नावम बाँध द जाय, एक अंधा सरे अंधेके पीछे चले; वही दशा इन सब कौरव क है, ज ह तुम-जैसा अगुआ मला है ।। ३ ।। पूतनाघातपूवा ण कमा य य वशेषतः । वया क तयता माकं भूयः थतं मनः ।। ४ ।। तुमने ीकृ णके पूतना-वध आ द कम का जो वशेष पसे वणन कया है, उससे हमारे मनको पुनः ब त बड़ी चोट प ँची है ।। ४ ।। अव ल त य मूख य केशवं तोतु म छतः । कथं भी म न ते ज ा शतधेयं वद यते ।। ५ ।। भी म! तु ह अपने ानीपनका बड़ा घमंड है, परंतु तुम हो वा तवम बड़े मूख! ओह! इस केशवक तु त करनेक इ छा होते ही तु हारी जीभके सैकड़ टु कड़े य नह हो जाते? ।। ५ ।। य कु सा यो ा भी म बालतरैनरैः । त ममं ानवृ ः सन् गोपं सं तोतु म छ स ।। ६ ।। भी म! जसके त मूख-से-मूख मनु य को भी घृणा करनी चा हये, उसी वा लयेक तुम ानवृ होकर भी तु त करना चाहते हो (यह आ य है!) ।। ६ ।। य नेन हतो बा ये शकु न म कम् । तौ वा वृषभौ भी म यौ न यु वशारदौ ।। ७ ।। ी



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भी म! य द इसने बचपनम एक प ी (बकासुर)-को अथवा जो यु क कलासे सवथा अन भ थे, उन अ (केशी) और वृषभ (अ र ासुर) नामक पशु को मार डाला तो इसम या आ यक बात हो गयी? ।। ७ ।। चेतनार हतं का ं य नेन नपा ततम् । पादे न शकटं भी म त क कृतम तम् ।। ८ ।। भी म! छकड़ा या है, चेतनाशू य लक ड़य का ढे र ही तो, य द इसने पैरसे उसको उलट ही दया तो कौन अनोखी करामात कर डाली? ।। ८ ।। (अक माणौ तौ वृ ौ य नेन नपा ततौ । नाग पा ततोऽनेन त को व मयः कृतः ।।) आकके पौध के बराबर दो अजुन वृ को य द ीकृ णने गरा दया अथवा एक नागको ही मार गराया तो कौन बड़े आ यका काम कर डाला?। व मीकमा ः स ताहं य नेन धृतोऽचलः । तदा गोवधनो भी म न त च ं मतं मम ।। ९ ।। भी म! य द इसने गोवधनपवतको सात दनतक अपने हाथपर उठाये रखा तो उसम भी मुझे कोई आ यक बात नह जान पड़ती; य क गोवधन तो द मक क खोद ई म का ढे रमा है ।। ९ ।। भु मेतेन ब ं डता नगमूध न । इ त ते भी म शृ वानाः परे व मयमागताः ।। १० ।। भी म! कृ णने गोवधनपवतके शखरपर खेलते ए अकेले ही ब त-सा अ खा लया, यह बात भी तु हारे मुँहसे सुनकर सरे लोग को ही आ य आ होगा (मुझे नह ) ।। १० ।। य य चानेन धम भु म ं बलीयसः । स चानेन हतः कंस इ येत महा तम् ।। ११ ।। धम भी म! जस महाबली कंसका अ खाकर यह पला था, उसीको इसने मार डाला। यह भी इसके लये कोई बड़ी अद्भुत बात नह है ।। ११ ।। न ते ुत मदं भी म नूनं कथयतां सताम् । यद् व ये वामधम ं वा यं कु कुलाधम ।। १२ ।। कु कुलाधम भी म! तुम धमको बलकुल नह जानते। म तुमसे धमक जो बात क ँगा, वह तुमने संत-महा मा के मुखसे भी नह सुनी होगी ।। १२ ।। ीषु गोषु न श ा ण पातयेद ् ा णेषु च । य य चा ा न भु ीत य च यात् त यः ।। १३ ।। ीपर, गौपर, ा ण पर तथा जसका अ खाय अथवा जनके यहाँ अपनेको आ य मला हो, उनपर भी ह थयार न चलाये ।। १३ ।। इ त स तोऽनुशास त स जनं ध मणः सदा । भी म लोके ह तत् सव वतथं व य यते ।। १४ ।। ी







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भी म! जगत्म साधु धमा मा पु ष स जन को सदा इसी धमका उपदे श दे ते रहते ह; कतु तु हारे नकट यह सब धम म या दखायी दे ता है ।। १४ ।। ानवृ ं च वृ ं च भूयांसं केशवं मम । अजानत इवा या स सं तुवन् कौरवाधम ।। १५ ।। कौरवाधम! तुम मेरे सामने इस कृ णक तु त करते ए इसे ानवृ और वयोवृ बता रहे हो, मानो म इसके वषयम कुछ जानता ही न होऊँ ।। १५ ।। गो नः ी न सन् भी म व ा याद् य द पू यते । एवंभूत यो भी म कथं सं तवमह त ।। १६ ।। भी म! य द तु हारे कहनेसे गोघाती और ीह ता होते ए भी इस कृ णक पूजा हो रही है तो तु हारी धम ताक हद हो गयी। तु ह बताओ, जो इन दोन ही कारक ह या का अपराधी है, वह तु तका अ धकारी कैसे हो सकता है? ।। १६ ।। असौ म तमतां े ो य एष जगतः भुः । स भावय त चा येवं व ा या च जनादनः । एवमेतत् सव म त तत् सव वतथं ुवम् ।। १७ ।। तुम कहते हो—‘ये बु मान म े ह, ये ही स पूण जगत्के ई र ह’ और तु हारे ही कहनेसे यह कृ ण अपनेको ऐसा ही समझने भी लगा है। वह इन सभी बात को य -क य ठ क मानता है; परंतु मेरी म कृ णके स ब धम तु हारे ारा जो कुछ कहा गया है, वह सब न य ही झूठा है ।। १७ ।। न गाथागा थनं शा त ब चेद प गाय त । कृ त या त भूता न भू लङ् गशकु नयथा ।। १८ ।। कोई भी गीत गानेवालेको कुछ सखा नह सकता, चाहे वह कतनी ही बार य न गाता हो। भू लग प ीक भाँ त सब ाणी अपनी कृ तका ही अनुसरण करते ह ।। १८ ।। नूनं कृ तरेषा ते जघ या ना संशयः । अ त पापीयसी चैषा पा डवानामपी यते ।। १९ ।। न य ही तु हारी यह कृ त बड़ी अधम है, इसम संशय नह है। अतएव इन पा डव क कृ त भी तु हारे ही समान अ य त पापमयी होती जा रही है ।। १९ ।। येषाम यतमः कृ ण वं च येषां दशकः । धमवां वमधम ः सतां मागादव लुतः ।। २० ।। अथवा य न हो, जनका परम पूजनीय कृ ण है और स पु ष के मागसे गरा आ तुम-जैसा धम ानशू य धमा मा जनका मागदशक है ।। २० ।। को ह ध मणमा मानं जानन् ान वदां वरः । कुयाद् यथा वया भी म कृतं धममवे ता ।। २१ ।। भी म! कौन ऐसा पु ष होगा, जो अपनेको ानवान म े और धमा मा जानते ए भी ऐसे नीच कम करेगा, जो धमपर रखते ए भी तु हारे ारा कये गये ह ।। २१ ।। चेत् वं धम वजाना स य द ा ा म त तव । अ यकामा ह धम ा क यका ा मा नना । े े

अ बा नामे त भ ं ते कथं साप ता वया ।। २२ ।। य द तुम धमको जानते हो, य द तु हारी बु उ म ान और ववेकसे स प है तो तु हारा भला हो, बताओ, का शराजक जो धम क या अ बा सरे पु षम अनुर थी, उसका अपनेको प डत माननेवाले तुमने य अपहरण कया? ।। २२ ।। तां वया प तां भी म क यां नै षतवान् यतः । ाता व च वीय ते सतां मागमनु तः ।। २३ ।। भी म! तु हारे ारा अपहरण क गयी उस का शराजक क याको तु हारे भाई व च वीयने अपनानेक इ छा नह क , य क वे स मागपर थत रहनेवाले थे ।। २३ ।। दारयोय य चा येन मषतः ा मा ननः । तव जाता यप या न स जनाच रते प थ ।। २४ ।। उ ह क दोन वधवा प नय के गभसे तुम-जैसे प डतमानीके दे खते-दे खते सरे पु ष ारा संतान उ प क गय , फर भी तुम अपनेको साधु पु ष के मागपर थर मानते हो ।। २४ ।। को ह धम ऽ त ते भी म चय मदं वृथा । यद् धारय स मोहाद् वा लीब वाद् वा न संशयः ।। २५ ।। भी म! तु हारा धम या है! तु हारा यह चय भी थका ढकोसलामा है, जसे तुमने मोहवश अथवा नपुंसकताके कारण धारण कर रखा है, इसम संशय नह ।। २५ ।। न वहं तव धम प या युपचयं व चत् । न ह ते से वता वृ ा य एवं धमम वीः ।। २६ ।। धम भी म! म तु हारी कह कोई उ त भी तो नह दे ख रहा ँ। मेरा तो व ास है, तुमने ानवृ पु ष का कभी संग नह कया है। तभी तो तुम ऐसे धमका उपदे श करते हो ।। २६ ।। इ ं द मधीतं च य ा ब द णाः । सवमेतदप य य कलां नाह त षोडशीम् ।। २७ ।। य , दान, वा याय तथा ब त द णावाले बड़े-बड़े य —ये सब संतानक सोलहव कलाके बराबर भी नह हो सकते ।। २७ ।। तोपवासैब भः कृतं भव त भी म यत् । सव तदनप य य मोघं भव त न यात् ।। २८ ।। भी म! अनेक त और उपवास ारा जो पु य काय कया जाता है, वह सब संतानहीन पु षके लये न य ही थ हो जाता है ।। २८ ।। सोऽनप य वृ मयाधमानुसारकः । हंसवत् वमपीदान ा त यः ा ुया वधम् ।। २९ ।। तुम संतानहीन, वृ और म याधमका अनुसरण करनेवाले हो; अतः इस समय हंसक भाँ त तुम भी अपने जा तभाइय के हाथसे ही मारे जाओगे ।। २९ ।। एवं ह कथय य ये नरा ान वदः पुरा । भी म यत् तदहं स यग् व या म तव शृ वतः ।। ३० ।। ी े े े ी े ी

भी म! पहलेके ववेक मनु य एक ाचीन वृ ा त सुनाया करते ह, वही म य -काय तु हारे सामने उप थत करता ँ, सुनो ।। ३० ।। वृ ः कल समु ा ते क ं सोऽभवत् पुरा । धमवाग यथावृ ः प णः सोऽनुशा त च ।। ३१ ।। धम चरत माधम म त त य वचः कल । प णः शु ुवुभ म सततं स यवा दनः ।। ३२ ।। पूवकालक बात है, समु के नकट कोई बूढ़ा हंस रहता था। वह धमक बात करता; परंतु उसका आचरण ठ क उसके वपरीत होता था। वह प य को सदा यह उपदे श कया करता क धम करो, अधमसे र रहो। सदा स य बोलनेवाले उस हंसके मुखसे सरे- सरे प ी यही उपदे श सुना करते थे ।। ३१-३२ ।। अथा य भ यमाजः समु जलचा रणः । अ डजा भी म त या ये धमाथ म त शु ुम ।। ३३ ।। भी म! ऐसा सुननेम आया है क वे समु के जलम वचरनेवाले प ी धम समझकर उसके लये भोजन जुटा दया करते थे ।। ३३ ।। ते च त य सम याशे न या डा न सवशः । समु ा भ यम ज त चर तो भी म प णः । तेषाम डा न सवषां भ यामास पापकृत् ।। ३४ ।। भी म! हंसपर व ास हो जानेके कारण वे सभी प ी अपने अ डे उसके पास ही रखकर समु के जलम गोते लगाते और वचरते थे; परंतु वह पापी हंस उन सबके अ डे खा जाता था ।। ३४ ।। स हंसः स म ानाम म ः वकम ण । ततः ीयमाणेषु तेषु ते व डजोऽपरः । अशङ् कत महा ा ः स कदा चद् ददश ह ।। ३५ ।। वे बेचारे प ी असावधान थे और वह अपना काम बनानेके लये सदा चौक ा रहता था। तदन तर जब वे अ डे न होने लगे, तब एक बु मान् प ीको हंसपर कुछ संदेह आ और एक दन उसने उसक सारी करतूत दे ख भी ली ।। ३५ ।। ततः स कथयामास ् वा हंस य क बषम् । तेषां परम ःखातः स प ी सवप णाम् ।। ३६ ।। हंसका यह पापपूण कृ य दे खकर वह प ी ःखसे अ य त आतुर हो उठा और उसने अ य सब प य से सारा हाल कह सुनाया ।। ३६ ।। ततः य तो ् वा प ण ते समीपगाः । नज नु तं तदा हंसं मयावृ ं क ु ह ।। ३७ ।। कु वंशी भी म! तब उन प य ने नकट जाकर सब कुछ य दे ख लया और धमा माका म या ढ ग बनाये ए उस हंसको मार डाला ।। ३७ ।। ते वां हंससधमाणमपीमे वसुधा धपाः । नह युभ म सं ु ाः प ण तं यथा डजम् ।। ३८ ।। े ो

गाथाम य गाय त ये पुराण वदो जनाः । भी म यां तां च ते स यक् कथ य या म भारत ।। ३९ ।। तुम भी उस हंसके ही समान हो, अतः ये सब नरेश अ य त कु पत होकर आज तु ह उसी तरह मार डालगे, जैसे उन प य ने हंसक ह या कर डाली थी। भी म! इस वषयम पुराणवे ा व ान् एक गाथा गाया करते ह। भरतकुलभूषण! म उसे भी तुमको भलीभाँ त सुनाये दे ता ँ ।। ३८-३९ ।। अ तरा म य भहते रौ ष प रथाशु च । अ डभ णकमतत् तव वाचमतीयते ।। ४० ।। ‘हंस! तु हारी अ तरा मा रागा द दोष से षत है, तु हारा यह अ डभ ण प अप व कम तु हारी इस धम पदे शमयी वाणीके सवथा व है’ ।। ४० ।। इत

ीमहाभारते समापव ण शशुपालवधपव ण शशुपालवा ये एकच वारशोऽ यायः ।। ४१ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत शशुपालवधपवम शशुपालवा य वषयक इकतालीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ४१ ।। (दा णा य अ धक पाठका १ ोक मलाकर क ु ल ४१ ोक ह)

च वा रशोऽ यायः शशुपालक बात पर भीमसेनका ोध और भी मजीका उ ह शा त करना शशुपाल उवाच स मे ब मतो राजा जरासंधो महाबलः । योऽनेन यु ं नेयेष दासोऽय म त संयुगे ।। १ ।। शशुपाल बोला—महाबली राजा जरासंध मेरे लये बड़े ही स माननीय थे। वे कृ णको दास समझकर इसके साथ यु म लड़ना ही नह चाहते थे ।। १ ।। केशवेन कृतं कम जरासंधवधे तदा । भीमसेनाजुना यां च क तत् सा व त म यते ।। २ ।। तब इस केशवने जरासंधके वधके लये भीमसेन और अजुनको साथ लेकर जो नीच कम कया है, उसे कौन अ छा मान सकता है? ।। २ ।। अ ारेण व ेन छना वा दना । ः भावः कृ णेन जरासंध य भूपतेः ।। ३ ।। पहले तो (चै यक ग रके शखरको तोड़कर) बना दरवाजेके ही इसने नगरम वेश कया। उसपर भी छ वेष बना लया और अपनेको ा ण स कर दया। इस कार इस कृ णने भूपाल जरासंधका भाव दे खा ।। ३ ।। येन धमा मनाऽऽ मानं यम वजानता । ने षतं पा म मै तद् दातुम े रा मने ।। ४ ।। उस धमा मा जरासंधने जब इस रा माके आगे ा ण अ त थके यो य पा आ द तुत कये, तब इसने यह जानकर क म ा ण नह ँ, उसे हण करनेक इ छा नह क ।। ४ ।। भु यता म त तेनो ाः कृ णभीमधनंजयाः । जरासंधेन कौर कृ णेन वकृतं कृतम् ।। ५ ।। कौर भी म! त प ात् जब उ ह ने कृ ण, भीम और अजुन तीन से भोजन करनेका आ ह कया, तब इस कृ णने ही उसका नषेध कया था ।। ५ ।। य यं जगतः कता यथैनं मूख म यसे । क मा ा णं स यगा मानमवग छ त ।। ६ ।। मूख भी म! य द यह कृ ण स पूण जगत्का कता-धता है, जैसा क तुम इसे मानते हो तो यह अपनेको भलीभाँ त ा ण भी य नह मानता? ।। ६ ।। इदं वा यभूतं मे य दमे पा डवा वया । अपकृ ाः सतां मागा म य ते त च सा व त ।। ७ ।। े





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मुझे सबसे बढ़कर आ यक बात तो यह जान पड़ती है क ये पा डव भी तु हारे ारा स मागसे र हटा दये गये ह; इस लये ये भी कृ णके इस कायको ठ क समझते ह ।। ७ ।। अथ वा नैतदा य येषां वम स भारत । ीसधमा च वृ सवाथानां दशकः ।। ८ ।। अथवा भारत! ीके समान धमवाले (नपुंसक) और बूढ़े तुम-जैसे लोग जनके सभी काय म पथ- दशन करते ह, उनका ऐसा समझना कोई आ यक बात नह है ।। ८ ।। वैश पायन उवाच त य तद् वचनं ु वा ं ा रं ब । चुकोप ब लनां े ो भीमसेनः तापवान् ।। ९ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! शशुपालक बात बड़ी खी थ । उनका एकएक अ र कटु तासे भरा आ था। उ ह सुनकर बलवान म े तापी भीमसेन ोधा नसे जल उठे ।। ९ ।। तथा प तीकाशे वभावायत व तृते । भूयः ोधा भता ा े र े ने े बभूवतुः ।। १० ।। उनक आँख वभावतः बड़ी-बड़ी और कमलके समान सु दर थ । वे ोधके कारण अ धक लाल हो गय ; मानो उनम खून उतर आया हो ।। १० ।। शखां ुकुट चा य द शुः सवपा थवाः । ललाट थां कूट थां ग ां पथगा मव ।। ११ ।। सब राजा ने दे खा, उनके ललाटम तीन रेखा से यु ुकुट तन गयी है; मानो कूटपवतपर पथगा मनी गंगा लहरा उठ ह ।। ११ ।। द तान् संदशत त य कोपाद् द शुराननम् । युगा ते सवभूता न काल येव जघ सतः ।। १२ ।। वे दाँत से दाँत पीसने लगे, रोषक अ धकतासे उनका मुख ऐसा भयंकर दखायी दे ने लगा; मानो लयकालम सम त ा णय को नगल जानेक इ छावाला वकराल काल ही कट हो गया हो ।। १२ ।। उ पत तं तु वेगेन ज ाहैनं मन वनम् । भी म एव महाबा महासेन मवे रः ।। १३ ।। वे उछलकर शशुपालके पास प ँचना ही चाहते थे क महाबा भी मने बड़े वेगसे उठकर उन मन वी भीमको पकड़ लया, मानो महे रने का तकेयको रोक लया हो ।। १३ ।। त य भीम य भी मेण वायमाण य भारत । गु णा व वधैवा यैः ोधः शममागतः ।। १४ ।। भारत! पतामह भी मके ारा अनेक कारक बात कहकर रोके जानेपर भीमसेनका ोध शा त हो गया ।। १४ ।। ना तच ाम भी म य स ह वा यमरदमः । ो

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समुदवृ ् ो घनापाये वेला मव महोद धः ।। १५ ।। श ुदमन भीम भी मजीक आ ाका उ लंघन उसी कार न कर सके, जैसे वषाके अ तम उमड़ा आ होनेपर भी महासागर अपनी तटभू मसे आगे नह बढ़ता है ।। १५ ।। शशुपाल तु सं ु े भीमसेने जना धप । नाक पत तदा वीरः पौ षे वे व थतः ।। १६ ।। राजन्! भीमसेनके कु पत होनेपर भी वीर शशुपाल भयभीत नह आ। उसे अपने पु षाथका पूरा भरोसा था ।। १६ ।। उ पत तं तु वेगेन पुनः पुनररदमः । न स तं च तयामास सहः ु ो मृगं यथा ।। १७ ।। भीमको बार-बार वेगसे उछलते दे ख श ुदमन शशुपालने उनक कुछ भी परवाह नह क , जैसे ोधम भरा आ सह मृगको कुछ भी नह समझता ।। १७ ।। हसं ा वीद् वा यं चे दराजः तापवान् । भीमसेनम भ ु ं ् वा भीमपरा मम् ।। १८ ।। उस समय भयानक परा मी भीमसेनको कु पत दे ख तापी चे दराज हँसते ए बोला — ।। १८ ।। मु चैनं भी म प य तु यावदे नं नरा धपाः । म भाव व नद धं पत मव व ना ।। १९ ।। ‘भी म! छोड़ दो इसे, ये सभी राजा दे ख ल क यह भीम मेरे भावसे उसी कार द ध हो जायगा जैसे फ तगा आगके पास जाते ही भ म हो जाता है’ ।। १९ ।। तत े दपतेवा यं ु वा तत् कु स मः । भीमसेनमुवाचेदं भी मो म तमतां वरः ।। २० ।। तब चे दराजक वह बात सुनकर बु मान म े कु कुल तलक भी मने भीमसे यह कहा ।। २० ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण शशुपालवधपव ण भीम ोधे च वारशोऽ यायः ।। ४२ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत शशुपालवधपवम भीम ोध वषयक बयालीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ४२ ।।

च वा रशोऽ यायः भी मजीके ारा शशुपालके ज मके वृ ा तका वणन भी म उवाच चे दराजकुले जात य एष चतुभुजः । रासभारावस शं ररास च ननाद च ।। १ ।। भी मजी बोले—भीमसेन! सुनो, चे दराज दमघोषके कुलम जब यह शशुपाल उ प आ, उस समय इसके तीन आँख और चार भुजाएँ थ । इसने रोनेक जगह गदहेके रकनेक भाँ त श द कया और जोर-जोरसे गजना भी क ।। १ ।।

तेना य माता पतरौ ेसतु तौ सबा धवौ । वैकृतं त य तौ ् वा यागायाकु तां म तम् ।। २ ।। इससे इसके माता- पता अ य भाई-ब धु स हत भयसे थरा उठे । इसक वह वकराल आकृ त दे ख उ ह ने इसे याग दे नेका न य कया ।। २ ।। ततः सभाय नृप त सामा यं सपुरो हतम् । च तास मूढ दयं वागुवाचाशरी रणी ।। ३ ।। प नी, पुरो हत तथा म य स हत चे दराजका दय च तासे मो हत हो रहा था। उस समय आकाशवाणी ई— ।। ३ ।। एष ते नृपते पु ः ीमान् जातो बला धकः । े



त माद मा भेत म ः पा ह वै शशुम् ।। ४ ।। ‘राजन्! तु हारा यह पु ीस प और महाबली है, अतः तु ह इससे डरना नह चा हये। तुम शा त च होकर इस शशुका पालन करो ।। ४ ।। न च वै त य मृ युव न कालः युप थतः । मृ युह ता य श ेण स चो प ो नरा धप ।। ५ ।। ‘नरे र! अभी इसक मृ यु नह आयी है और न काल ही उप थत आ है। जो इसक मृ युका कारण है तथा जो श ारा इसका वध करेगा, वह अ य उ प हो चुका है’ ।। ५ ।। सं ु योदा तं वा यं भूतम त हतं ततः । पु नेहा भसंत ता जननी वा यम वीत् ।। ६ ।। तदन तर यह आकाशवाणी सुनकर उस अ त हत भूतको ल य करके पु नेहसे संत त ई इसक माता बोली— ।। ६ ।। येनेदमी रतं वा यं ममैतं तनयं त । ा ल तं नम या म वीतु स पुनवचः ।। ७ ।। याथातयेन भगवान् द े वो वा य द वेतरः । ोतु म छा म पु य कोऽ य मृ युभ व य त ।। ८ ।। ‘मेरे इस पु के वषयम ज ह ने यह बात कही है, उ ह म हाथ जोड़कर णाम करती ँ। चाहे वे कोई दे वता ह अथवा और कोई ाणी? वे फर मेरे का उ र द। म यह यथाथ पसे सुनना चाहती ँ क मेरे इस पु क मृ युम कौन न म बनेगा?’ ।। ७-८ ।। अ तभूतं ततो भूतमुवाचेदं पुनवचः । य यो स े गृहीत य भुजाव य धकावुभौ ।। ९ ।। प त यतः ततले प चशीषा ववोरगौ । तृतीयमेतद् बाल य ललाट थं तु लोचनम् ।। १० ।। नम ज य त यं ् वा सोऽ य मृ युभ व य त । तब पुनः उसी अ य भूतने यह उ र दया—‘ जसके ारा गोदम लये जानेपर पाँच सरवाले दो सप क भाँ त इसक पाँच अँगु लय से यु दो अ धक भुजाएँ पृ वीपर गर जायँगी और जसे दे खकर इस बालकका ललाटवत तीसरा ने भी ललाटम लीन हो जायगा, वही इसक मृ युम न म बनेगा’ ।। ९-१० ।। य ं चतुभुजं ु वा तथा च समुदा तम् ।। ११ ।। पृ थ ां पा थवाः सव अ याग छन् द वः । चार बाँह और तीन आँखवाले बालकके ज मका समाचार सुनकर भूम डलके सभी नरेश उसे दे खनेके लये आये ।। ११ ।। तान् पूज य वा स ा तान् यथाह स महीप तः ।। १२ ।। एकैक य नृप याङ् के पु मारोपयत् तदा । े

















चे दराजने अपने घर पधारे ए उन सभी नरेश का यथायो य स कार करके अपने पु को हर एकक गोदम रखा ।। १२ ।। एवं राजसह ाणां पृथ वेन यथा मम् ।। १३ ।। शशुरङ् कसमा ढो न तत् ाप नदशनम् । इस कार वह शशु मशः सह राजा क गोदम अलग-अलग रखा गया, पर तु मृ युसूचक ल ण कह भी ा त नह आ ।। १३ ।। एतदे व तु सं ु य ारव यां महाबलौ ।। १४ ।। तत े दपुरं ा तौ संकषणजनादनौ । यादवौ यादव ु ं वसारं तौ पतु तदा ।। १५ ।। ारकाम यही समाचार सुनकर महाबली बलराम और ीकृ ण दोन य वंशी वीर अपनी बुआसे मलनेके लये उस समय चे दरा यक राजधानीम गये ।। १४-१५ ।। अ भवा यथा यायं यथा े ं नृपं च ताम् । कुशलानामयं पृ ् वा नष णौ रामकेशवौ ।। १६ ।। वहाँ बलराम और ीकृ णने बड़े-छोटे के मसे सबको यथायो य णाम कया एवं राजा दमघोष और अपनी बुआ ुत वासे कुशल और आरो य वषयक कया। त प ात् दोन भाई एक उ म आसनपर वराजमान ए ।। १६ ।। सा य य तौ तदा वीरौ ी या चा य धकं ततः । पु ं दामोदरो स े दे वी सं यदधात् वयम् ।। १७ ।। महादे वी ुत वाने बड़े ेमसे उन दोन वीर का स कार कया और वयं ही अपने पु को ीकृ णक गोदम डाल दया ।। १७ ।। य तमा य त याङ् के भुजाव य धकावुभौ । पेततु त च नयनं यम जत ललाटजम् ।। १८ ।। उनक गोदम रखते ही बालकक वे दोन बाँह गर गय और ललाटवत ने भी वह वलीन हो गया ।। १८ ।। तद् ् वा थता ता वरं कृ णमयाचत । दद व मे वरं कृ ण भयाताया महाभुज ।। १९ ।। यह दे खकर बालकक माता भयभीत हो मन-ही-मन थत हो गयी और ीकृ णसे वर माँगती ई बोली—‘महाबा ीकृ ण! म भयसे ाकुल हो रही ँ। मुझे इस पु क जीवनर ाके लये कोई वर दो ।। १९ ।। वं ातानां समा ासो भीतानामभय दः । एवमु ततः कृ णः सोऽ वीद् य न दनः ।। २० ।। ‘ य क तुम संकटम पड़े ए ा णय के सबसे बड़े सहारे और भयभीत मनु य को अभय दे नेवाले हो।’ अपनी बुआके ऐसा कहनेपर य न दन ीकृ णने कहा— ।। २० ।। मा भै वं दे व धम े न म ोऽ त भयं तव । ददा म कं वरं क च करवा ण पतृ वसः ।। २१ ।। ‘ े







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‘दे व! धम े! तुम डरो मत। तु ह मुझसे कोई भय नह है। बुआ! तु ह कहो, म तु ह कौन-सा वर ँ ? तु हारा कौन-सा काय स कर ँ ? ।। २१ ।। श यं वा य द वाश यं क र या म वच तव । एवमु ा ततः कृ णम वीद् य न दनम् ।। २२ ।। ‘स भव हो या अस भव, तु हारे वचनका म अव य पालन क ँ गा।’ इस कार आ ासन मलनेपर ुत वा य न दन ीकृ णसे बोली— ।। २२ ।। शशुपाल यापराधान् मेथा वं महाबल । म कृते य शा ल व येनं मे वरं भो ।। २३ ।। ‘महाबली य कुल तलक ीकृ ण! तुम मेरे लये शशुपालके सब अपराध मा कर दे ना। भो! यही मेरा मनोवां छत वर समझो’ ।। २३ ।। ीकृ ण उवाच अपराधशतं ा यं मया य पतृ वसः । पु य ते वधाह य मा वं शोके मनः कृथाः ।। २४ ।। ीकृ णने कहा—बुआ! तु हारा पु अपने दोष के कारण मेरे ारा य द वधके यो य होगा, तो भी म इसके सौ अपराध मा क ँ गा। तुम अपने मनम शोक न करो ।। २४ ।। भी म उवाच एवमेष नृपः पापः शशुपालः सुम दधीः । वां समा यते वीर गो व दवरद पतः ।। २५ ।। भी मजी कहते ह—वीरवर भीमसेन! इस कार यह म दबु पापी राजा शशुपाल भगवान् ीकृ णके दये ए वरदानसे उ म होकर तु ह यु के लये ललकार रहा है ।। २५ ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण शशुपालवधपव ण शशुपालवृ ा तकथने च वारशोऽ यायः ।। ४३ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत शशुपालवधपवम शशुपालवृ ा तवणन वषयक ततालीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ४३ ।।

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वा रशोऽ यायः

भी मक बात से चढ़ े ए शशुपालका उ ह फटकारना तथा भी मका ीकृ णसे यु करनेके लये सम त राजाको चुनौती दे ना भी म उवाच नैषा चे दपतेबु यया वाऽऽ यतेऽ युतम् । नूनमेष जग तुः कृ ण यैव व न यः ।। १ ।। भी मजी कहते ह—भीमसेन यह चे दराज शशुपालक बु नह है, जसके ारा वह यु से कभी पीछे न हटनेवाले तुम-जैसे महावीरको ललकार रहा है, अव य ही स पूण जगत्के वामी भगवान् ीकृ णका ही यह न त वधान है ।। १ ।। को ह मां भीमसेना तावह त पा थवः । े तुं कालपरीता मा यथैष कुलपांसनः ।। २ ।। भीमसेन! कालने ही इसके मन और बु को स लया है, अ यथा इस भूम डलम कौन ऐसा राजा होगा, जो मुझपर इस तरह आ ेप कर सके, जैसे यह कुलकलंक शशुपाल कर रहा है ।। २ ।। एष य महाबा तेज ऽश हरे ुवम् । तमेव पुनरादातु म छ युत तथा वभुः ।। ३ ।। यह महाबा चे दराज न य ही भगवान् ीकृ णके तेजका अंश है। ये सव ापी भगवान् अपने उस अंशको पुनः समेट लेना चाहते ह ।। ३ ।। येनैष कु शा ल शा ल इव चे दराट् । गज यतीव बु ः सवान मान च तयन् ।। ४ ।। कु सह भीम! यही कारण है क यह बु शशुपाल हम सबको कुछ न समझकर आज सहके समान गरज रहा है ।। ४ ।। वैश पायन उवाच ततो न ममृषे चै तद् भी मवचनं तदा । उवाच चैनं सं ु ः पुनभ ममथो रम् ।। ५ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! भी मक यह बात शशुपाल न सह सका। वह पुनः अ य त ोधम भरकर भी मको उनक बात का उ र दे ते ए बोला ।। ५ ।। शशुपाल उवाच षतां नोऽ तु भी मैष भावः केशव य यः । य य सं तवव ा वं व दवत् सततो थतः ।। ६ ।। े



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शशुपालने कहा—भी म! तुम सदा भाटक तरह खड़े होकर जसक तु त गाया करते हो, उस कृ णका जो भाव है, वह हमारे श ु के पास ही रहे ।। ६ ।। सं तवे च मनो भी म परेषां रमते य द । तदा सं तौ ष रा व ममं ह वा जनादनम् ।। ७ ।। भी म! य द तु हारा मन सदा सर क तु तम ही लगता है तो इस जनादनको छोड़कर इन राजा क ही तु त करो ।। ७ ।। दरदं तु ह बा क ममं पा थवस मम् । जायमानेन येनेयमभवद् दा रता मही ।। ८ ।। ये दरददे शके राजा ह, इनक तु त करो। ये भू मपाल म े बा क बैठे ह, इनके गुण गाओ। इ ह ने ज म लेते ही अपने शरीरके भारसे इस पृ वीको वद ण कर दया था ।। ८ ।। व ा वषया य ं सह ा समं बले । तु ह कण ममं भी म महाचाप वकषणम् ।। ९ ।। भी म! ये जो वंग और अंग दोन दे श के राजा ह, इ के समान बल-परा मसे स प ह तथा महान् धनुषक यंचा ख चनेवाले ह, इन वीरवर कणक क तका गान करो ।। ९ ।। य येमे कु डले द े सहजे दे व न मते । कवचं च महाबाहो बालाकस श भम् ।। १० ।। महाबाहो! इन कणके ये दोन द कु डल ज मके साथ ही कट ए ह। कसी दे वताने ही इन कु डल का नमाण कया है। कु डल के साथ-साथ इनके शरीरपर यह द कवच भी ज मसे ही पैदा आ है, जो ातःकालके सूयके समान का शत हो रहा है ।। १० ।। वासव तमो येन जरासंधोऽ त जयः । व जतो बा यु े न दे हभेदं च ल भतः ।। ११ ।। ज ह ने इ के तु य परा मी तथा अ य त जय जरासंधको बा यु के ारा केवल परा त ही नह कया, उनके शरीरको चीर भी डाला, उन भीमसेनक तु त करो ।। ११ ।। ोणं ौ ण च साधु वं पतापु ौ महारथौ । तु ह तु यावुभौ भी म सततं जस मौ ।। १२ ।। ोणाचाय और अ थामा दोन पता-पु महारथी ह तथा ा ण म े ह, अतएव तु य भी ह। भी म! तुम उन दोन क अ छ तरह तु त करो ।। १२ ।। ययोर यतरो भी म सं ु ः सचराचराम् । इमां वसुमत कुया ःशेषा म त मे म तः ।। १३ ।। भी म! इन दोन पता-पु मसे य द एक भी अ य त ोधम भर जाय, तो चराचर ा णय स हत इस सारी पृ वीको न कर सकता है, ऐसा मेरा व ास है ।। १३ ।। ोण य ह समं यु े न प या म नरा धपम् । ना था नः समं भी म न च तौ तोतु म छ स ।। १४ ।। ी े ो ोई ी ऐ ी े ो ो

भी म! मुझे तो कोई भी ऐसा राजा नह दखायी दे ता, जो यु म ोण अथवा अ थामाक बराबरी कर सके। तो भी तुम इन दोन क तु त करना नह चाहते ।। १४ ।। पृ थ ां सागरा तायां यो वै तसमो भवेत् । य धनं वं राजे म त य महाभुजम् ।। १५ ।। जय थं च राजानं कृता ं ढ व मम् । मं क पु षाचाय लोके थत व मम् । अ त य महावीय क शंस स केशवम् ।। १६ ।। इस समु पय त सारी पृ वीपर जो अ तीय अनुपम वीर ह, उन राजा धराज महाबा य धनको, अ व ाम नपुण और सु ढ़परा मी राजा जय थको और व व यात व मशाली महाबली क पु षा-चाय मको छोड़कर तुम कृ णक शंसा य करते हो? ।। १५-१६ ।। वृ ं च भारताचाय तथा शार तं कृपम् । अ त य महावीय क शंस स केशवम् ।। १७ ।। शर ान् मु नके पु महापरा मी कृप भरतवंशके वृ आचाय ह। इनका उ लंघन करके तुम कृ णका गुण य गाते हो? ।। १७ ।। धनुधराणां वरं मणं पु षो मम् । अ त य महावीय क शंस स केशवम् ।। १८ ।। धनुधर म े पु षर न महाबली मीक अवहेलना करके तुम केशवक शंसाके गीत य गाते हो? ।। १८ ।। भी मकं च महावीय द तव ं च भू मपम् । भगद ं यूपकेतुं जय सेनं च मागधम् ।। १९ ।। वराट पदौ चोभौ शकु न च बृहलम् । व दानु व दावाव यौ पा ं ेतमथो रम् ।। २० ।। शङ् खं च सुमहाभागं वृषसेनं च मा ननम् । एकल ं च व ा तं का ल ं च महारथम् ।। २१ ।। अ त य महावीय क शंस स केशवम् । महापरा मी भी मक, भू मपाल द तव , भगद , यूपकेतु, जय सेन, मगधराज सहदे व, वराट, पद, शकु न, बृहल, अव तीके राजकुमार व द-अनु व द, पा नरेश, ेत, उ र, महाभाग शंख, अ भमानी वृषसेन, परा मी एकल तथा महारथी एवं महाबली क लगनरेशक अवहेलना करके कृ णक शंसा य कर रहे हो? ।। १९—२१ ।। श याद न प क मात् वं न तौ ष वसुधा धपान् । तवाय य द ते बु वतते भी म सवदा ।। २२ ।। भी म! य द तु हारा मन सदा सर क तु त करनेम ही लगता है तो इन श य आ द े राजा क तु त य नह करते? ।। २२ ।।

क ह श यं मया कतु यद् वृ ानां वया नृप । पुरा कथयतां नूनं न ुतं धमवा दनाम् ।। २३ ।। भी म! तुमने पहले बड़े-बूढ़े धम पदे शक के मुखसे य द यह धमसंगत बात, जसे म अभी बताऊँगा नह सुनी, तो म या कर सकता ँ? ।। २३ ।। आ म न दाऽऽ मपूजा च पर न दा पर तवः । अनाच रतमायाणां वृ मेत चतु वधम् ।। २४ ।। भी म! अपनी न दा, अपनी शंसा, सरेक न दा और सरेक तु त—ये चार कारके काय पहलेके े पु ष ने कभी नह कये ह ।। २४ ।। यद त ममं श मोहात् सं तौ ष भ तः । केशवं त च ते भी म न क दनुम यते ।। २५ ।। भी म! जो तु तके सवथा अयो य है, उसी केशवक तुम मोहवश सदा भ भावसे जो तु त करते रहते हो, उसका कोई अनुमोदन नह करता ।। २५ ।। कथं भोज य पु षे वगपाले रा म न । समावेशयसे सव जगत् केवलका यया ।। २६ ।। रा मा कृ ण तो राजा कंसका सेवक है, उनक गौ का चरवाहा रहा है। तुम केवल वाथवश इसम सारे जगत्का समावेश कर रहे हो ।। २६ ।। अथ चैषा न ते बु ः कृ त या त भारत । मयैव क थतं पूव भू ल शकु नयथा ।। २७ ।। भारत! तु हारी बु ठकानेपर नह आ रही है। म यह बात पहले ही बता चुका ँ क तुम भू लग प ीके समान कहते कुछ और करते कुछ हो ।। २७ ।। भू ल शकु ननाम पा हमवतः परे । भी म त याः सदा वाचः ूय तेऽथ वग हताः ।। २८ ।। भी म! हमालयके सरे भागम भू लग नामसे स एक च ड़या रहती है। उसके मुखसे सदा ऐसी बात सुनायी पड़ती है, जो उसके कायके वपरीत भावक सूचक होनेके कारण अ य त न दनीय जान पड़ती है ।। २८ ।। मा साहस मतीदं सा सततं वाशते कल । साहसं चा मनातीव चर ती नावबु यते ।। २९ ।। वह च ड़या सदा यही बोला करती है—‘मा साहसम्’ (अथात् साहसका काम न करो), परंतु वह वयं ही भारी साहसका काम करती ई भी यह नह समझ पाती ।। २९ ।। सा ह मांसागलं भी म मुखात् सह य खादतः । द ता तर वल नं यत् तदाद ेऽ पचेतना ।। ३० ।। भी म! वह मूख च ड़या मांस खाते ए सहके दाँत म लगे ए मांसके टु कड़ेको अपनी च चसे चुगती रहती है ।। ३० ।। इ छतः सा ह सह य भी म जीव यसंशयम् । त त् वम यध म सदा वाचः भाषसे ।। ३१ ।। े

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नःसंदेह सहक इ छासे ही वह अबतक जी रही है। पापी भी म! इसी कार तुम भी सदा बढ़-बढ़कर बात करते हो ।। ३१ ।। इ छतां भू मपालानां भी म जीव यसंशयम् । लोक व कमा ह ना योऽ त भवता समः ।। ३२ ।। भी म! नःसंदेह तु हारा जीवन इन राजा क इ छासे ही बचा आ है; य क तु हारे समान सरा कोई राजा ऐसा नह है, जसके कम स पूण जगत्से े ष करनेवाले ह ।। ३२ ।। वैश पायन उवाच तत े दपतेः ु वा भी मः स कटु कं वचः । उवाचेदं वचो राजं े दराज य शृ वतः ।। ३३ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! शशुपालका यह कटु वचन सुनकर भी मजीने शशुपालके सुनते ए यह बात कही— ।। ३३ ।। इ छतां कल नामाहं जीवा येषां मही ताम् । सोऽहं न गणया येतां तृणेना प नरा धपान् ।। ३४ ।। ‘अहो! शशुपालके कथनानुसार म इन राजा क इ छापर जी रहा ँ; परंतु म तो इन सम त भूपाल को तनके-बराबर भी नह समझता’ ।। ३४ ।। एवमु े तु भी मेण ततः संचु ु शुनृपाः । के च ज षरे त के चद् भी मं जग हरे ।। ३५ ।। भी मके ऐसा कहनेपर ब त-से राजा कु पत हो उठे । कुछ लोग को हष आ तथा कुछ भी मजीक न दा करने लगे ।। ३५ ।। के च चुमहे वासाः ु वा भी म य तद् वचः । पापोऽव ल तो वृ नायं भी मोऽह त माम् ।। ३६ ।। कुछ महान् धनुधर नरेश भी मक वह बात सुनकर कहने लगे—‘यह बूढ़ा भी म पापी और घम डी है; अतः माके यो य नह है ।। ३६ ।। ह यतां म तभ मः पशुवत् सा वयं नृपाः । सवः समे य संरधैद तां वा कटा नना ।। ३७ ।। ‘राजाओ! ोधम भरे ए हम सब लोग मलकर इस खोट बु वाले भी मको पशुक भाँ त गला दबाकर मार डाल अथवा घास-फूसक आगम इसे जीते-जी जला द’ ।। ३७ ।। इ त तेषां वचः ु वा ततः कु पतामहः । उवाच म तमान् भी म तानेव वसुधा धपान् ।। ३८ ।। उन राजा क ये बात सुनकर कु कुलके पतामह बु मान् भी मजी फर उ ह नरेश से बोले— ।। ३८ ।। उ यो य नेहा तमहं समुपल ये । यत् तु व या म तत् सव शृणु वं वसुधा धपाः ।। ३९ ।। ‘



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‘राजाओ! य द म सबक बातका अलग-अलग उ र ँ तो यहाँ उसक समा त होती नह दखायी दे ती। अतः म जो कुछ कह रहा ँ, वह सब यान दे कर सुनो ।। ३९ ।। पशुवद् घातनं वा मे दहनं वा कटा नना । यतां मू न वो य तं मयेदं सकलं पदम् ।। ४० ।। ‘तुमलोग म साहस या श हो, तो पशुक भाँ त मेरी ह या कर दो अथवा घासफूसक आगम मुझे जला दो। मने तो तुमलोग के म तकपर अपना यह पूरा पैर रख दया ।। ४० ।। एष त त गो व दः पू जतोऽ मा भर युतः । य य व वरते बु मरणाय स माधवम् ।। ४१ ।। कृ णमा यताम यु े च गदाधरम् । यादव यैव दे व य दे हं वशतु पा ततः ।। ४२ ।। ‘हमने जनक पूजा क है, अपनी म हमासे कभी युत न होनेवाले वे भगवान् गो व द तुमलोग के सामने मौजूद ह। तुमलोग मसे जसक बु मृ युका आ लगन करनेके लये उतावली हो रही हो, वह इ ह य कुल- तलक च गदाधर ीकृ णको आज यु के लये ललकारे और इनके हाथ मारा जाकर इ ह भगवान्के शरीरम व हो जाय’ ।। ४१-४२ ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण शशुपालवधपव ण भी मवा ये चतु वारशोऽ यायः ।। ४४ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत शशुपालवधपवम भी मवा य वषयक चौवालीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ४४ ।।

प चच वा रशोऽ यायः ीकृ णके ारा शशुपालका वध, राजसूयय क समा त तथा सभी ा ण , राजा और ीकृ णका वदे शगमन वैश पायन उवाच ततः ु वैव भी म य चे दराडु व मः । युयु सुवासुदेवेन वासुदेवमुवाच ह ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! भी मक यह बात सुनते ही महापरा मी चे दराज शशुपाल भगवान् वासुदेवके साथ यु के लये उ सुक हो उनसे इस कार बोला — ।। १ ।। आ ये वां रणं ग छ मया साध जनादन । यावद नह म वां स हतं सवपा डवैः ।। २ ।। ‘जनादन! म तु ह बुला रहा ँ आओ, मेरे साथ यु करो, जससे आज म सम त पा डव स हत तु ह मार डालूँ ।। २ ।। सह वया ह मे व याः सवथा कृ ण पा डवाः । नृपतीन् सम त य यैरराजा वम चतः ।। ३ ।। ‘कृ ण! तु हारे साथ ये पा डव भी सवथा मेरे व य ह; य क इ ह ने सब राजा क अवहेलना करके राजा न होनेपर भी तु हारी पूजा क ।। ३ ।। ये वां दासमराजानं बा यादच त म तम् । अनहमहवत् कृ ण व या त इ त मे म तः ।। ४ ।। ‘तुम कंसके दास थे तथा राजा भी नह हो, इसी लये राजो चत पूजाके अन धकारी हो। तो भी कृ ण! जो लोग मूखतावश तुम-जैसे बु क पूजनीय पु षक भाँ त पूजा करते ह, वे अव य ही मेरे व य ह, म तो ऐसा ही मानता ँ’ ।। ४ ।। इ यु वा राजशा ल त थौ गज मषणः । ऐसा कहकर ोधम भरा आ राज सह शशुपाल दहाड़ता आ यु के लये डट गया ।। ४ ।। एवमु ततः कृ णो मृ पूव मदं वचः । उवाच पा थवान् सवान् स सम ं च वीयवान् ।। ५ ।। शशुपालके ऐसा कहनेपर अन तपरा मी भगवान् ीकृ णने उसके सामने सम त राजा से मधुर वाणीम कहा— ।। ५ ।। एष नः श ुर य तं पा थवाः सा वतीसुतः । सा वतानां नृशंसा मा न हतोऽनपका रणाम् ।। ६ ।। ‘भू मपालो! यह है तो य कुलक क याका पु , परंतु हमलोग से अ य त श ुता रखता है। य प यादव ने इसका कभी कोई अपराध नह कया है, तो भी यह ू रा मा े





उनके अ हतम ही लगा रहता है ।। ६ ।। ा यो तषपुरं यातान मान् ा वा नृशंसकृत् । अदहद् ारकामेष व ीयः सन् नरा धपाः ।। ७ ।। ‘नरे रो! हम ा यो तषपुरम गये थे, यह बात जब इसे मालूम ई, तब इस ू रकमाने मेरे पताजीका भानजा होकर भी ारकाम आग लगवा द ।। ७ ।। डतो भोजराज य एष रैवतके गरौ । ह वा बद् वा च तान् सवानुपायात् वपुरं पुरा ।। ८ ।। ‘एक बार भोजराज (उ सेन) रैवतक पवतपर ड़ा कर रहे थे। उस समय यह वह जा प ँचा और उनके सेवक को मारकर तथा शेष य को कैद करके उन सबको अपने नगरम ले गया ।। ८ ।। अ मेधे हयं मे यमु सृ ं र भवृतम् । पतुम य व नाथमहरत् पाप न यः ।। ९ ।। ‘मेरे पताजी अ मेधय क द ा ले चुके थे। उसम र क से घरा आ प व अ छोड़ा गया था। इस पापपूण वचारवाले ा माने पताजीके य म व न डालनेके लये उस अ को भी चुरा लया था ।। ९ ।। सौवीरान् त यातां च ब ोरेष तप वनः । भायाम यहर मोहादकामां ता मतो गताम् ।। १० ।। ‘इतना ही नह , इसने तप वी ब ुक प नीका, जो यहाँसे ारका जाते समय सौवीरदे श प ँची थी और इसके त जसके मनम त नक भी अनुराग नह था, मोहवश अपहरण कर लया ।। १० ।। एष माया त छ ः क षाथ तप वनीम् । जहार भ ां वैशाल मातुल य नृशंसकृत् ।। ११ ।। ‘इस ू रकमाने मायासे अपने असली पको छपाकर क षराजक ा तके लये तप या करनेवाली अपने मामा वशालानरेशक क या भ ाका (क षराजके ही वेषम उप थत हो उसे धोखा दे कर) अपहरण कर लया ।। ११ ।। पतृ वसुः कृते ःखं सुमह मषया यहम् । द ा हीदं सवरा ां सं नधाव वतते ।। १२ ।। ‘म अपनी बुआके संतोषके लये ही इसके बड़े ःखद अपराध को सहन कर रहा ँ; सौभा यक बात है क आज यह सम त राजा के समीप मौजूद है ।। १२ ।। प य त ह भव तोऽ म यतीव त मम् । कृता न तु परो ं मे या न ता न नबोधत ।। १३ ।। ‘आप सब लोग दे ख ही रहे ह क इस समय यह मेरे त कैसा अभ बताव कर रहा है। इसने परो म मेरे त जो अपराध कये ह, उ ह भी आप अ छ तरह जान ल ।। १३ ।। इमं व य न श या म तुम त मम् । अवलेपाद् वधाह य सम े राजम डले ।। १४ ।। ‘ े े े े े ो

‘परंतु आज इसने अहंकारवश सम त राजा के सामने मेरे साथ जो वहार कया है, उसे म कभी मा न कर सकूँगा ।। १४ ।। म याम य मूढ य ाथनाऽऽसी मुमूषतः । न च तां ा तवान् मूढः शू ो वेद ुती मव ।। १५ ।। ‘अब यह मरना ही चाहता है। इस मूखने पहले मणीके लये उसके ब धुबा धव से याचना क थी, परंतु जैसे शू वेदक ऋचा को वण नह कर सकता, उसी कार इस अ ानीको वह ा त न हो सक ’ ।। १५ ।। वैश पायन उवाच एवमा द ततः सव स हता ते नरा धपाः । वासुदेववचः ु वा चे दराजं गहयन् ।। १६ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! भगवान् ीकृ णक ये सब बात सुनकर उन सम त राजा ने एक वरसे चे दराज शशुपालको ध कारा और उसक न दा क ।। १६ ।। त य तद् वचनं ु वा शशुपालः तापवान् । जहास वनव ासं वा यं चेदमुवाच ह ।। १७ ।। ीकृ णका उपयु वचन सुनकर तापी शशुपाल खलखलाकर हँसने लगा और इस कार बोला— ।। १७ ।। म पूवा मण कृ ण संस सु प रक तयन् । वशेषतः पा थवेषु ीडां न कु षे कथम् ।। १८ ।। ‘कृ ण! तुम इस भरी सभाम, वशेषतः सभी राजा के सामने मणीको मेरी पहलेक मनोनीत प नी बताते ए ल जाका अनुभव कैसे नह करते? ।। १८ ।। म यमानो ह कः स सु पु षः प रक तयेत् । अ यपूवा यं जातु वद यो मधुसूदन ।। १९ ।। ‘मधुसूदन! तु हारे सवा सरा कौन ऐसा पु ष होगा, जो अपनी ीको पहले सरेक वा द ा प नी वीकार करते ए स पु ष क सभाम इसका वणन करेगा? ।। १९ ।। म वा य द ते ा मा वा कृ ण मम म । ु ाद् वा प स ाद् वा क मे व ो भ व य त ।। २० ।। ‘कृ ण! य द अपनी बुआक बात पर तु ह ा हो तो मेरे अपराध मा करो या न भी करो, तु हारे कु पत होने या स होनेसे मेरा या बनने- बगड़ने-वाला है?’ ।। २० ।। तथा ुवत एवा य भगवान् मधुसूदनः । मनसा च तय च ं दै यवग नषूदनम् ।। २१ ।। शशुपाल इस तरहक बात कर ही रहा था क भगवान् मधुसूदनने मन-ही-मन दै यवग वनाशक सुदशन च का मरण कया ।। २१ ।। एत म ेव काले तु च े ह तगते स त । उवाच भगवानु चैवा यं वा य वशारदः ।। २२ ।। े ी









च तन करते ही त काल च हाथम आ गया। तब बोलनेम कुशल भगवान् ीकृ णने उ च वरसे यह वचन कहा— ।। २२ ।। शृ व तु मे महीपाला येनैतत् मतं मया । अपराधशतं ा यं मातुर यैव याचने ।। २३ ।। द ं मया या चतं च ता न पूणा न पा थवाः । अधुना वध य या म प यतां वो मही ताम् ।। २४ ।। ‘यहाँ बैठे ए सब महीपाल यह सुन ल क मने य अबतक इसके अपराध मा कये ह? इसीक माताके याचना करनेपर मने उसे यह ा थत वर दया था क शशुपालके सौ अपराध मा कर ँ गा। राजाओ! वे सब अपराध अब पूरे हो गये ह; अतः आप सभी भू मप तय के दे खते-दे खते म अभी इसका वध कये दे ता ँ’ ।। २३-२४ ।। एवमु वा य े े दराज य त णात् । पाहर छरः ु े णा म कषणः ।। २५ ।। ऐसा कहकर कु पत ए श ुह ता य कुल तलक भगवान् ीकृ णने च से उसी ण चे दराज शशुपालका सर उड़ा दया ।। २५ ।।

स पपात महाबा व ाहत इवाचलः । तत े दपतेदहात् तेजोऽ यं द शुनृपाः ।। २६ ।। उ पत तं महाराज गगना दव भा करम् । ततः कमलप ा ं कृ णं लोकनम कृतम् । वव दे तत् तदा तेजो ववेश च नरा धप ।। २७ ।। े





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महाबा शशुपाल वक े मारे ए पवत- शखरक भाँ त धराशायी हो गया। महाराज! तदन तर सभी नरेश ने दे खा; चे दराजके शरीरसे एक उ कृ तेज नकलकर ऊपर उठ रहा है; मानो आकाशसे सूय उ दत आ हो। नरे र! उस तेजने व व दत कमलदललोचन ीकृ णको नम कार कया और उसी समय उनके भीतर व हो गया ।। २६-२७ ।। तद तमम य त ् वा सव मही तः । यद् ववेश महाबा ं तत् तेजः पु षो मम् ।। २८ ।। यह दे खकर सभी राजा को बड़ा आ य आ, य क उसका तेज महाबा पु षो मम व हो गया ।। २८ ।। अन े ववष ौः पपात व लताश नः । कृ णेन नहते चै े चचाल च वसुंधरा ।। २९ ।। ीकृ णके ारा शशुपालके मारे जानेपर सारी पृ वी हलने लगी, बना बादल के ही आकाशसे वषा होने लगी और व लत बजली टू ट-टू टकर गरने लगी ।। २९ ।। ततः के च महीपाला ना ुवं त कचन । अतीतवा पथे काले े माणा जनादनम् ।। ३० ।। वह समय वाणीक प ँचके परे था। उसका वणन करना क ठन था। उस समय कोई भूपाल वहाँ इस वषयम कुछ भी न बोल सके—मौन रह गये। वे बार-बार केवल ीकृ णके मुखक ओर दे खते रहे ।। ३० ।। ह तैह ता मपरे य पष म षताः । अपरे दशनैरो ानदशन् ोधमू छताः ।। ३१ ।। कुछ अ य नरेश अ य त अमषम भरकर हाथ से हाथ मसलने लगे तथा सरे लोग ोधसे मू छत होकर दाँत से ओठ चबाने लगे ।। ३१ ।। रह के चद् वा णयं शशंसुनरा धपाः । के चदे व सुसंरधा म य था वपरेऽभवन् ।। ३२ ।। कुछ राजा एका तम भगवान् ीकृ णक शंसा करने लगे। कुछ ही भूपाल अ य त ोधके वशीभूत हो रहे थे तथा कुछ लोग तट थ थे ।। ३२ ।।

शशुपालके वधके लये भगवान्का हाथम च

य धनका थलके

हण करना

मसे जलम गरना

ाः केशवं ज मुः सं तुव तो महषयः । ा णा महा मानः पा थवा महाबलाः ।। ३३ ।। शशंसु नवृताः सव ् वा कृ ण य व मम् । बड़े-बड़े ऋ ष, महा मा ा ण तथा महाबली भू मपाल ने भगवान् ीकृ णका वह परा म दे खकर अ य त स हो उनक तु त करते ए उ ह क शरण ली ।। ३३ ।। पा डव व वीद् ातॄन् स कारेण महीप तम् ।। ३४ ।। दमघोषा मजं वीरं सं कारयत मा चरम् । तथा च कृतव त ते ातुव शासनं तदा ।। ३५ ।। पा डु न दन यु ध रने अपने भाइय से कहा—‘दमघोष-पु वीर राजा शशुपालका अ ये सं कार बड़े स कारके साथ करो, इसम दे र न लगाओ।’ पा डव ने भाईक उस आ ाका यथाथ पसे पालन कया ।। ३४-३५ ।। चेद नामा धप ये च पु म य महीपतेः । अ य ष चत् तदा पाथः सह तैवसुधा धपैः ।। ३६ ।। उस समय कु तीन दन राजा यु ध रने वहाँ आये ए सभी भू मपाल के साथ चे ददे शके राज सहासनपर शशुपालके पु को अ भ ष कर दया ।। ३६ ।। ततः स कु राज य तुः सवसमृ मान् । यूनां ी तकरो राजन् स बभौ वपुलौजसः ।। ३७ ।। तदन तर महातेज वी कु राज यु ध रका वह स पूण समृ य से भरा-पूरा राजसूयय त ण राजा क स ताको बढ़ाता आ अनुपम शोभा पाने लगा ।। ३७ ।। शा त व नः सुखार भः भूतधनधा यवान् । अ वान् ब भ य केशवेन सुर तः ।। ३८ ।। उस य का व न शा त हो गया था; अतः उसका सुखपूवक आर भ आ। उसम अप र मत धन-धा यका सं ह एवं स पयोग कया गया था। भगवान् ीकृ णसे सुर त होनेके कारण उस य म कभी अ क कमी नह होने पायी। उसम सदा पया तमा ाम भ य-भो य आ दक साम ी तुत रहती थी ।। ३८ ।। (द शु तं नृपतयो य य व धमु मम् । उपे बु या व हतं सहदे वेन भारत ।। भरतन दन! राजा ने सहदे वके ारा व णु-बु से भगवान् ीकृ णक स ताके लये कये जानेवाले उस य का उ म व ध- वधान दे खा। द शु तोरणा य हेमतालमया न च । द तभा करतु या न द तानीव तेजसा । स य तोरणै तै है रव स बभौ ।। उस य म डपम सुवणमय तालके बने ए फाटक दखायी दे ते थे, जो अपनी भासे तेज वी सूयके समान दे द यमान हो रहे थे। उन तेज वी ार से वह वशाल य म डप ह से आकाशक भाँ त का शत हो रहा था।

श यासन वहारां सुबन् व स भृतान् । घटान् पा ीः कटाहा न कलशा न सम ततः । न ते क चदसौवणमप यं त पा थवाः ।। वहाँ शया, आसन और डाभवन क सं या ब त थी। उनके नमाणम चुर धन लगा था। चार ओर घड़े, भाँ त भाँ तके पा , कड़ाहे और कलश आ द सुवण नमत सामान गोचर हो रहे थे। वहाँ राजा ने कोई ऐसी व तु नह दे खी, जो सोनेक बनी ई न हो। ओदनानां वकारा ण वा न व वधा न च । सुब न च भ या ण पेया न मधुरा ण च । द जानां सततं राज े या महा वरे ।। उस महान् य म राजसेवकगण ा ण के आगे सदा नाना कारके वा द भात तथा चावलक बनी ई ब त-सी सरी भो य व तुएँ परोसते रहते थे। वे उनके लये मधुर पेय पदाथ भी अपण करते थे। पूण शतसह े तु व ाणां भु तां तदा । था पता त सं ाभू छङ् खोऽ मायत न यशः ।। भोजन करनेवाले ा ण क सं या जब एक लाख पूरी हो जाती थी, तब वहाँ त दन शंख बजाया जाता था। मु मु ः णाद तु त य शङ् ख य भारत । उ मं शङ् खश दं तं ु वा व मयमागताः ।। जनमेजय! दनम कई बार इस तरहक शंख- व न होती थी। वह उ म शंखनाद सुनकर लोग को बड़ा व मय होता था। एवं वृ े य े तु तु पु जनायुते । अ य बहवो राज ु सेधाः पवतोपमाः । द धकु या द शुः स पषां च दा नाः ।। इस कार सह -पु मनु य से भरे ए उस य का काय चलने लगा। राजन्! उसम अ के ब त-से ऊँचे ढे र लगाये गये थे, जो पवत के समान जान पड़ते थे। लोग ने दे खा, वहाँ दहीक नहर बह रही थ तथा घीके कतने ही कु ड भरे ए थे। ज बू पो ह सकलो नानाजनपदायुतः । राज यतैक थो रा त मन् महा तौ ।। राजन्! महाराज यु ध रके उस महान् य म नाना जनपद से यु सारा ज बू प ही एक आ-सा दखायी दे ता था। राजानः वण त सुमृ म णकु डलाः । व वधा य पाना न ले ा न व वधा न च । तेषां नृपोपभो या न ा णे यो द ः म ते ।। वहाँ वशु म णमय कु डल तथा हार धारण कये नरेश ा ण को राजा के उपभोगम आनेयो य नाना कारके अ -पान और भाँ त-भाँ तक चटनी परोसते थे। े

एता न सततं भु वा त मन् य े जातयः । परां ी त ययुः सव मोदमाना तदा भृशम् ।। उस य म नर तर उपयु पदाथ भोजन करके सब ा ण आन दम न हो बड़ी तृ त और स ताका अनुभव करते थे। एवं समु दतं सव ब गोधनधा यवत् । य वाटं नृपा ् वा व मयं परमं ययुः ।। इस कार ब त-सी गाय तथा धन-धा यसे स प उस समृ शाली य म डपको दे खकर सब राजा को बड़ा आ य होता था। ऋ वज यथाशा ं राजसूयं महा तुम् । पा डव य यथाकालं जु वुः सवयाजकाः ।। ऋ वज्लोग शा ीय व धके अनुसार राजा यु ध रके उस राजसूय नामक महाय का अनु ान करते थे और सम त याजक ठ क समयपर अ नम आ तयाँ दे ते थे। ासधौ यादयः सव व धवत् षोडश वजः । व वकमा ण च ु ते पा डव य महा तौ ।। ास और धौ य आ द जो सोलह ऋ वज् थे, वे यु ध रके उस महाय म व धपूवक अपने-अपने न त काय का स पादन करते थे। नाषड वद ासीत् सद यो नाब ुतः । ना तो नानुपा यायो नपापो ना मो जः ।। उस य म डपम कोई भी सद य ऐसा नह था, जो वेदके छह अंग का ाता, ब ुत, तशील, अ यापक, पापर हत, माशील एवं साम यशील न हो। न त कृपणः क द् द र ो न बभूव ह । ु धतो ःखतो वा प ाकृ तो वा प मानुषः ।। उस य म कोई भी मनु य द न, द र , ःखी, भूखा- यासा अथवा मूढ़ नह था। भोजनं भोजना थ यो दापयामास सवदा । सहदे वो महातेजाः सततं राजशासनात् ।। महातेज वी सहदे व महाराज यु ध रक आ ासे भोजना थय को सदा भोजन दलाया करते थे। स तरे कुशला ा प सवकमा ण याजकाः । दवसे दवसे च ु यथाशा ाथच ुषः ।। शा ो अथपर रखनेवाले य कुशल याजक त दन सब काय को व धवत् स प करते थे। ा णा वेदशा ाः कथा ु सवदा । रे मरे च कथा ते तु सव त मन् महा तौ ।। वेद-शा के ाता ा ण वहाँ सदा कथा- वचन कया करते थे। उस महाय म सब लोग कथाके अ तम बड़े सुखका अनुभव करते थे। दे वैर यै य ै उरगै द मानुषैः । ै

व ाधरगणैः क णः पा डव य महा मनः ।। स राजसूयः शुशुभे धमराज य धीमतः । दे वता, असुर, य , नाग, द मानव तथा व ाधरगण से भरा आ बु मान् पा डु न दन महा मा धमराजका वह राजसूयय बड़ी शोभा पाता था। ग धवगणसंक णः शो भतोऽ सरसां गणैः ।। दे वैमु नगणैय ैदवलोक इवापरः । स क पु षगीतै क रै पशो भतः ।। वह य म डप ग धव , अ सरा-समूह , दे वता , मु नगण तथा य से सुशो भत हो सरे दे वलोकके समान जान पड़ता था। क पु ष के गीत तथा क रगण उस थानक शोभा बढ़ा रहे थे। नारद जगौ त तु बु महा ु तः । व ावसु सेन तथा ये गीतको वदाः । रमय त म तान् सवान् य कमा तरे वथ ।। नारद, महातेज वी तु बु , व ावसु, च सेन तथा सरे गीतकुशल ग धव वहाँ गीत गाकर य काय के बीच-बीचम अवकाश मलनेपर सब लोग का मनोरंजन करते थे। इ तहासपुराणा न आ याना न च सवशः । ऊचुव श दशा ा न यं कमा तरे वथ ।। य स ब धी कम के बीचम अवसर मलनेपर ाकरणशा के ाता व ान् पु ष इ तहास, पुराण तथा सब कारके उपा यान सुनाया करते थे। भेय मुरजा ैव मड् डु का गोमुखा ये । शृ वंशा बुजा ैव ूय ते म सह शः ।। वहाँ सह भेरी, मृदंग, मड् डु क, गोमुख, शृंग, वंशी और शंख के श द सुनायी पड़ते थे। लोकेऽ मन् सव व ा वै याः शू ा सवशः । सव ले छाः सववणाः सा दम या तजा तथा ।। नानादे शसमु तैनानाजा त भरागतैः । पया त इव लोकोऽयं यु ध र नवेशने ।। इस जगत्म रहनेवाले सम त ा ण, ( य,) वै य, शू , सब कारके ले छ तथा अ ज, म यज और अ यज आ द सभी वण के लोग उस य म उप थत ए थे। अनेक दे श म उ प व भ जा तके लोग के शुभागमनसे यु ध रके उस राजभवनम ऐसा जान पड़ता था क यह सम त लोक वहाँ उप थत हो गया है। भी म ोणादयः सव कुरवः ससुयोधनाः । वृ णय सम ा प चाला ा प सवशः । यथाह सवकमा ण च ु दासा इव तौ ।। उस राजसूयय म भी म, ोण और य धन आ द सम त कौरव, सारे वृ णवंशी तथा स पूण पांचाल भी सेवक क भाँ त यथायो य सभी काय अपने हाथ करते थे। ो ी

एवं वृ ो य ः स धमराज य धीमतः । शुशुभे च महाबाहो सोम येव तुयथा ।। महाबा जनमेजय! इस कार बु मान् यु ध रका वह य च माके राजसूयय क भाँ त शोभा पाता था। व ा ण क बलां ैव ावारां ैव सवदा । न कहेमजभा डा न भूषणा न च सवशः । ददौ त सततं धमराजो यु ध रः ।। धमराज यु ध र उस य म हर समय व , क बल, चादर, वणपदक, सोनेके बतन और सब कारके आभूषण का दान करते रहते थे। या न त महीपे यो लधं वा धनमु मम् । ता न र ना न सवा ण व ाणां ददौ तदा ।। वहाँ राजा से जो-जो र न अथवा उ म धन भटके पम ा त ए, उन सबको यु ध रने ा ण क सेवाम सम पत कर दया। कोट सह ं ददौ ा णानां महा मनाम् । उ ह ने महा मा ा ण को द णाके पम सह को ट वणमु ाए ँ दान क। न क र य त तं लोके क द यो महीप तः ।। याजकाः सवकामै सततं ततृपुधनैः । उ ह ने संसारम वह काय कया जसे सरा कोई राजा नह कर सकेगा। य करानेवाले ा ण स पूण मनोवां छत व तुएँ और चुर धन पाकर सदाके लये तृ त हो गये। ासं धौ यं च यतो नारदं च महाम तम् ।। सुम तुं जै म न पैलं वैश पायनमेव च । या व यं कठ ं चैव कलापं च महौजसम् । सवा व वरान् पूजयामास स कृतान् ।। फर राजा यु ध रने ास, धौ य, महाम त नारद, सुम तु, जै म न, पैल, वैश पायन, या व य, कठ तथा महातेज वी कलाप—इन सब े ा ण का पूण मनोयोगके साथ स कार एवं पूजन कया। यु ध र उवाच यु म भावात् ा तोऽयं राजसूयो महा तुः । जनादन भावा च स पूण मे मनोरथः ।। यु ध र उनसे बोले—मह षयो! आपलोग के भावसे यह राजसूय महाय सांगोपांग स प आ। भगवान् ीकृ णके तापसे मेरा सारा मनोरथ पूण हो गया। वैश पायन उवाच अथ य ं समा या ते पूजयामास माधवम् । बलदे वं च दे वेशं भी मा ां कु मान् ।।) ै ी े े े े

वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! इस कार य समा तके समय राजा यु ध रने अ तम ल मीप त भगवान् ीकृ ण, दे वे र बलदे व तथा कु े भी म आ दका पूजन कया। समापयामास च तं राजसूयं महा तुम् । तं तु य ं महाबा रासमा तेजनादनः । रर भगवा छौ रः शा च गदाधरः ।। ३९ ।। तदन तर उस राजसूय महाय को व धपूवक समा त कया। शंख, च और गदा धारण करनेवाले महाबा भगवान् ीकृ णने आर भसे लेकर अ ततक उस य क र ा क ।। ३९ ।। तत ववभृथ नातं धमा मानं यु ध रम् । सम तं पा थवं मुपग येदम वीत् ।। ४० ।। तदन तर धमा मा यु ध र जब अवभृथ नान कर चुके, उस समय सम त यराजा का समुदाय उनके पास जाकर बोला— ।। ४० ।। द ा वध स धम सा ा यं ा तवान स । आजमीढाजमीढानां यशः संव धतं वया ।। ४१ ।। कमणैतेन राजे धम सुमहान् कृतः । आपृ छामो नर ा सवकामैः सुपू जताः ।। ४२ ।। ‘धम ! आपका अ युदय हो रहा है, यह बड़े सौभा यक बात है। आपने साट ् का पद ा त कर लया। अजमीढकुलन दन राजा धराज! आपने इस कम ारा अजमीढवंशी य के यशका व तार तो कया ही है, महान् धमका भी स पादन कया है। नर ा ! आपने हमारे लये सब कारके अभी पदाथ सुलभ करके हमारा बड़ा स मान कया है। अब हम आपसे जानेक अनुम त लेना चाहते ह ।। ४१-४२ ।। वरा ा ण ग म याम तदनु ातुमह स । ु वा तु वचनं रा ां धमराजो यु ध रः ।। ४३ ।। यथाह पू य नृपतीन् ातॄन् सवानुवाच ह । राजानः सव एवैते ी या मान् समुपागताः ।। ४४ ।। थताः वा न रा ा ण मामापृ परंतपाः । अनु जत भ ं वो वषया तं नृपो मान् ।। ४५ ।। ‘हम अपने-अपने राको जायँगे, आप हम आ ा द।’ राजा का यह वचन सुनकर धमराज यु ध रने उन पूजनीय नरेश का यथायो य स कार करके सब भाइय से कहा—‘ये सभी राजा ेमसे ही हमारे यहाँ पधारे थे। ये परंतप भूपाल अब मुझसे पूछकर अपने राको जानेके लये उ त ह। तुमलोग का भला हो। तुमलोग अपने रा यक सीमातक आदरपूवक इन े नरप तय को प ँचा आओ’ ।। ४३—४५ ।। ातुवचनमा ाय पा डवा धमचा रणः । यथाह नृपतीन् सवानेकैकं समनु जन् ।। ४६ ।। ई











भाईक बात मानकर वे धमा मा पा डव एक-एक करके यथायो य सभी राजा के साथ गये ।। ४६ ।। वराटम वयात् तूण धृ ु नः तापवान् । धनंजयो य सेनं महा मानं महारथम् ।। ४७ ।। तापी धृ ु न तुरंत ही राजा वराटके साथ गया। धनंजयने महारथी महा मा पदका अनुसरण कया ।। ४७ ।। भी मं च धृतरा ं च भीमसेनो महाबलः । ोणं च ससुतं वीरं सहदे वो युधा प तः ।। ४८ ।। महाबली भीमसेन भी म और धृतराक े साथ गये। यो ा म े सहदे वने ोणाचाय तथा उनके वीर पु अ थामाको प ँचाया ।। ४८ ।। नकुलः सुबलं राजन् सहपु ं सम वयात् । ौपदे याः ससौभ ाः पवतीयान् महारथान् ।। ४९ ।। राजन्! सुबल और उनके पु के साथ नकुल गये। ौपद के पाँच पु तथा अ भम युने पवतीय महार थय को अपने रा यक सीमातक प ँचाया ।। ४९ ।। अ वग छं तथैवा यान् यान् यषभाः । एवं सुपू जताः सव ज मु व ाः सह शः ।। ५० ।। गतेषु पा थवे े षु सवषु ा णेषु च । यु ध रमुवाचेदं वासुदेवः तापवान् ।। ५१ ।। इसी कार अ य य शरोम णय ने सरे- सरे य राजा का अनुगमन कया। इसी तरह सभी ा ण भी अ य त पू जत हो सह क सं याम वहाँसे वदा ए। राजा तथा ा ण के चले जानेपर तापी भगवान् ीकृ णने यु ध रसे कहा— ।। ५०-५१ ।। आपृ छे वां ग म या म ारकां कु न दन । राजसूयं तु े ं द ा वं ा तवान स ।। ५२ ।। ‘कु न दन! म आपक आ ा चाहता ँ, अब म ारकापुरीको जाऊँगा। सौभा यसे आपने सब य म उ म राजसूयका स पादन कर लया’ ।। ५२ ।। तमुवाचैवमु तु धमराजो जनादनम् । तव सादाद् गो व द ा तः तुवरो मया ।। ५३ ।। उनके ऐसा कहनेपर धमराज यु ध र जनादनसे बोले—‘गो व द! आपक ही कृपासे मने यह े य स प कया है ।। ५३ ।। ं सम म प च व सादाद् वशे थतम् । उपादाय ब ल मु यं मामेव समुप थतम् ।। ५४ ।। ‘तथा सारा यम डल भी आपके ही सादसे मेरे अधीन आ और उ मो म र न क भट ले मेरे पास आया ।। ५४ ।। कथं वद्गमनाथ मे वाणी वतरतेऽनघ । न हं वामृते वीर र त ा ो म क ह चत् ।। ५५ ।। ‘



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‘अनघ! आपको जानेके लये मेरी वाणी कैसे कह सकती है? वीर! म आपके बना कभी स नह रह सकूँगा ।। ५५ ।। अव यं चैव ग त ा भवता ारकापुरी । एवमु ः स धमा मा यु ध रसहायवान् ।। ५६ ।। अ भग या वीत् ीतः पृथां पृथुयशा ह रः । सा ा यं समनु ा ताः पु ा तेऽ पतृ वसः ।। ५७ ।। स ाथा वसुम त सा वं ी तमवा ु ह । अनु ात वया चाहं ारकां ग तुमु सहे ।। ५८ ।। ‘परंतु आपका ारकापुरी जाना भी आव यक ही है।’ उनके ऐसा कहनेपर महायश वी धमा मा ीह र यु ध रको साथ ले बुआ कु तीके पास गये और स तापूवक बोले—‘बुआजी! तु हारे पु ने अब साा य ा त कर लया, उनका मनोरथ पूण हो गया। वे सब-के-सब धन तथा र न से स प ह। अब तुम इनके साथ स तापूवक रहो। य द तु हारी आ ा हो तो म ारका जाना चाहता ँ’ ।। ५६—५८ ।। सुभ ां ौपद चैव सभाजयत के शवः । न या तःपुरात् त माद् यु ध रसहायवान् ।। ५९ ।। कु तीक आ ा ले ीकृ ण सुभ ा और ौपद से भी मले और मीठे वचन से उन दोन को स कया। त प ात् वे यु ध रके साथ अ तःपुरसे बाहर नकले ।। ५९ ।। नात कृतज य ा णान् व त वा य च । ततो मेघवपुः यं य दनं च सुक पतम् । योज य वा महाबा दा कः समुप थतः ।। ६० ।। उप थतं रथं ् वा ता य वरकेतनम् । द णमुपावृ य समा महामनाः ।। ६१ ।। ययौ पु डरीका ततो ारवत पुरीम् ।। ६२ ।। फर नान और जप करके उ ह ने ा ण से व तवाचन कराया। इसके बाद महाबा दा क मेघके समान नीले रंगका सु दर रथ जोतकर उनक सेवाम उप थत आ। ग ड वजसे सुशो भत उस सु दर रथको उप थत दे ख महामना कमलनयन ीकृ णने उसक द णावत द णा क और उसपर आ ढ़ हो वे ारकापुरीक ओर चल पड़े ।। ६०—६२ ।। (सा य कः कृतवमा च रथमा स वरौ । वीजयामासतु त चामरा यां हर तथा ।। बलदे व दे वेशो यादवा सह शः । ययू राजवत् सव धमपु ेण पू जताः । ततः स स मतं राजा ह वा सौवणमासनम् ।।) तं प यामनुव ाज धमराजो यु ध रः । ातृ भः स हतः ीमान् वासुदेवं महाबलम् ।। ६३ ।। औ













सा य क और कृतवमा शी तापूवक उस रथपर आ ढ़ हो ीह रक सेवाके लये चँवर डु लाने लगे। दे वे र बलदे वजी तथा सह य वंशी धमपु यु ध रसे पू जत हो राजाक भाँ त वहाँसे वदा ए। तदन तर सोनेके े सहासनको छोड़कर भाइय स हत ीमान् धमराज यु ध र पैदल ही महाबली भगवान् वासुदेवके पीछे -पीछे चलने लगे ।। ६३ ।। ततो मुत संगृ य दन वरं ह रः । अ वीत् पु डरीका ः कु तीपु ं यु ध रम् ।। ६४ ।। तब कमललोचन भगवान् ीह रने दो घड़ीतक अपने े रथको रोककर कु तीकुमार यु ध रसे कहा— ।। ६४ ।। अ म ः थतो न यं जाः पा ह वशा पते । पज य मव भूता न महा म मव जाः ।। ६५ ।। बा धवा वोपजीव तु सह ा मवामराः । कृ वा पर परेणैवं सं वदं कृ णपा डवौ ।। ६६ ।। अ यो यं समनु ा य ज मतुः वगृहान् त । ‘राजन्! आप सदा सावधान रहकर जाजन के पालनम लगे रह। जैसे सब ाणी मेघको, प ी महान् वृ को और स पूण दे वता इ को अपने जीवनका आधार मानकर उनका आ य लेते ह, उसी कार सभी ब धु-बा धव जीवन- नवाहके लये आपका आ य ल।’ ीकृ ण और यु ध र आपसम इस कार बात करके एक सरेक आ ा ले अपनेअपने थानको चल दये ।। ६५-६६ ।। गते ारवत कृ णे सा वत वरे नृप ।। ६७ ।। एको य धनो राजा शकु न ा प सौबलः । त यां सभायां द ायामूषतु तौ नरषभौ ।। ६८ ।। राजन्! य वंश शरोम ण ीकृ णके ारका चले जानेपर भी राजा य धन तथा सुबलपु शकु न—ये दोन नर े उस द सभाभवनम ही रहे ।। ६७-६८ ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण शशुपालवधपव ण शशुपालवधे प चच वारशोऽ यायः ।। ४५ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत शशुपालवधपवम शशुपालवध वषयक पतालीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ४५ ।। (दा णा य अ धक पाठक े ४२ ोक मलाकर कुल ११० ोक ह)

(

ूतपव)

षट् च वा रशोऽ यायः ासजीक भ व यवाणीसे यु ध रक च ता और सम वपूण बताव करनेक त ा वैश पायन उवाच समा ते राजसूये तु तु े े सु लभे । श यैः प रवृतो ासः पुर तात् समप त ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! य म े परम लभ राजसूयय के समा त हो जानेपर श य से घरे ए भगवान् ास राजा यु ध रके पास आये ।। १ ।। सोऽ ययादासनात् तूण ातृ भः प रवा रतः । पा ेनासनदानेन पतामहमपूजयत् ।। २ ।। उ ह दे खकर भाइय से घरे ए राजा यु ध र तुरंत आसनसे उठकर खड़े हो गये और आसन एवं पा आ द समपण करके उ ह ने पतामह ासजीका यथावत् पूजन कया ।। २ ।।

अथोप व य भगवान् का चने परमासने । आ यता म त चोवाच धमराजं यु ध रम् ।। ३ ।। त प ात् सुवणमय उ म आसनपर बैठकर भगवान् ासने धमराज यु ध रसे कहा —‘बैठ जाओ’ ।। ३ ।। अथोप व ं राजानं ातृ भः प रवा रतम् । उवाच भगवान् ास त ा य वशारदः ।। ४ ।। भाइय से घरे ए राजा यु ध रके बैठ जानेपर बातचीतम कुशल भगवान् ासने उनसे कहा— ।। ४ ।। द ा वध स कौ तेय सा ा यं ा य लभम् । व धताः कुरवः सव वया कु कुलो ह ।। ५ ।। ‘कु तीन दन! बड़े आन दक बात है क तुम परम लभ साट ् का पद पाकर सदा उ तशील हो रहे हो। कु कुलका भार वहन करनेवाले नरेश! तुमने सम त कु वं शय को समृ शाली बना दया ।। ५ ।। आपृ छे वां ग म या म पू जतोऽ म वशा पते । एवमु ः स कृ णेन धमराजो यु ध रः ।। ६ ।। अ भवा ोपसंगृ पतामहमथा वीत् । ‘











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‘राजन्! अब म जाऊँगा। इसके लये तु हारी अनुम त चाहता ँ। तुमने मेरा अ छ तरह स मान कया है।’ महा मा कृ ण ै पायन ासके ऐसा कहनेपर धमराज यु ध रने उन पतामहके दोन चरण को पकड़कर णाम कया और कहा ।। ६ ।।

यु ध र उवाच संशयो पदां े ममो प ः सु लभः ।। ७ ।। त य ना योऽ त व ा वै वामृते जपु व । यु ध र बोले—नर े ! मेरे मनम एक भारी संशय उ प हो गया है। व वर! आपके सवा सरा कोई ऐसा नह है, जो उसका समाधान कर सके ।। ७ ।। उ पातां वधान् ाह नारदो भगवानृ षः ।। ८ ।। द ां ैवा त र ां पा थवां पतामह । अ प चै य पतना छ मौ पा तकं महत् ।। ९ ।। पतामह! दे व ष भगवान् नारदने वग, अ त र और पृ वी वषयक तीन कारके उ पात बताये ह। या शशुपालके मारे जानेसे वे महान् उ पात शा त हो गये? ।। वैश पायन उवाच रा तु वचनं ु वा पराशरसुतः भुः । कृ ण ै पायनो ास इदं वचनम वीत् ।। १० ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! राजा यु ध रका यह सुनकर पराशरन दन कृ ण ै पायन भगवान् ासने इस कार कहा— ।। १० ।। योदश समा राज ु पातानां फलं महत् । सव वनाशाय भ व य त वशा पते ।। ११ ।। ‘राजन्! उ पात का महान् फल तेरह वष तक आ करता है। इस समय जो उ पात कट आ था, वह सम त य का वनाश करनेवाला होगा ।। ११ ।। वामेकं कारणं कृ वा कालेन भरतषभ । समेतं पा थवं ं यं या य त भारत । य धनापराधेन भीमाजुनबलेन च ।। १२ ।। ‘भरतकुल तलक! एकमा तु ह को न म बनाकर यथासमय सम त भू मपाल का समुदाय आपसम लड़कर न हो जायगा। भारत! य का यह वनाश य धनके अपराधसे तथा भीमसेन और अजुनके परा म ारा स प होगा ।। १२ ।। व े य स राजे पा ते वं वृष वजम् । नीलक ठ ं भवं थाणुं कपा ल पुरा तकम् ।। १३ ।। उ ं ं पशुप त महादे वमुमाप तम् । हरं शव वृषं शूलं पना क कृ वाससम् ।। १४ ।। ‘राजे ! तुम रातके अ तम व म उन वृषभ वज भगवान् शंकरका दशन करोगे, जो नीलक ठ, भव, थाणु, कपाली, पुरा तक, उ , , पशुप त, महादे व, उमाप त, हर, ी



शव, वृष, शूली, पनाक तथा कृ वासा कहलाते ह ।। १३-१४ ।। कैलासकूट तमं वृषभेऽव थतं शवम् । नरी माणं सततं पतृराजा तां दशम् ।। १५ ।। ‘उन भगवान् शवक का त कैलास शखरके समान उ वल होगी। वे वृषभपर आ ढ़ ए सदा द ण दशाक ओर दे ख रहे ह गे ।। १५ ।। एवमी शकं व ं य स वं वशा पते । मा त कृते नु या ह कालो ह र त मः ।। १६ ।। ‘राजन्! तु ह इस कार ऐसा व दखायी दे गा, कतु उसके लये तु ह च ता नह करनी चा हये; य क काल सबके लये लङ् घ है ।। १६ ।। व त तेऽ तु ग म या म कैलासं पवतं त । अ म ः थतो दा तः पृ थव प रपालय ।। १७ ।। ‘तु हारा क याण हो, अब म कैलासपवतपर जाऊँगा। तुम सावधान एवं जते य होकर पृ वीका पालन करो’ ।। १७ ।। वैश पायन उवाच एवमु वा स भगवान् कैलासं पवतं ययौ । कृ ण ै पायनो ासः सह श यैः ुतानुगैः ।। १८ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! ऐसा कहकर भगवान् कृ ण ै पायन ास वेदमागका अनुसरण करनेवाले अपने श य के साथ कैलासपवतपर चले गये ।। १८ ।। गते पतामहे राजा च ताशोकसम वतः । नः स ु णमसकृत् तमेवाथ व च तयन् ।। १९ ।। कथं तु दै वं श येत पौ षेण बा धतुम् । अव यमेव भ वता य ं परम षणा ।। २० ।। अपने पतामह ासजीके चले जानेपर च ता और शोकसे यु राजा यु ध र बारंबार गरम साँस लेते ए उसी बातका च तन करते रहे। अहो! दै वका वधान पु षाथसे कस कार टाला जा सकता है? मह षने जो कुछ कहा है, वह न य ही होगा ।। १९-२० ।। ततोऽ वी महातेजाः सवान् ातॄन् यु ध रः । ुतं वै पु ष ा ा य मां ै पायनोऽ वीत् ।। २१ ।। तदा त चनं ु वा मरणे न ता म तः । सव य नधने य हं हेतुरी सतः ।। २२ ।। कालेन न मत तात को ममाथ ऽ त जीवतः । एवं ुव तं राजानं फा गुनः यभाषत ।। २३ ।। यही सोचते-सोचते महातेज वी यु ध रने अपने सब भाइय से कहा—‘पु ष सहो! मह ष ासने मुझसे जो कहा है, उसे तुमलोग ने सुना है न? उनक वह बात सुनकर मने मरनेका न य कर लया है। तात! य द सम त य के वनाशम वधाताने मुझे ही े





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न म बनानेक इ छा क है, कालने मुझे ही इस अनथका कारण बनाया है तो मेरे जीवनका या योजन है?’ राजाक ऐसी बात सुनकर अजुनने उ र दया— ।। २१— २३ ।। मा राजन् क मलं घोरं वशो बु नाशनम् । स धाय महाराज यत् ेमं तत् समाचर ।। २४ ।। ‘राजन्! इस भयंकर मोहम न प ड़ये, यह बु को न करनेवाला है। महाराज! अ छ तरह सोच- वचारकर आपको जो क याण द जान पड़े, वह क जये’ ।। २४ ।। ततोऽ वीत् स यधृ त ातॄन् सवान् यु ध रः । ै पायन य वचनं ेवं समनु च तयन् ।। २५ ।। तब स यवाद यु ध रने अपने सब भाइय से ासजीक बात पर वचार करते ए कहा— ।। २५ ।। अ भृ त भ ं वः त ां मे नबोधत । योदश समा तात को ममाथ ऽ त जीवतः ।। २६ ।। ‘तात! तुमलोग का क याण हो, भाइय के वनाशका कारण बननेके लये मुझे तेरह वष तक जी वत रहनेसे या लाभ? य द जीना ही है तो आजसे मेरी यह त ा सुन लो — ।। २६ ।। न व या म प षं ातॄन यां पा थवान् । थतो नदे शे ातीनां यो ये तत् समुदाहरन् ।। २७ ।। ‘म अपने भाइय तथा सरे राजा से कभी कड़वी बात नह बोलूँगा। ब धुबा धव क आ ाम रहकर स तापूवक उनक मुँहमाँगी व तुएँ लानेम संल न र ँगा’ ।। २७ ।। एवं मे वतमान य वसुते वतरेषु च । भेदो न भ वता लोके भेदमूलो ह व हः ।। २८ ।। ‘इस कार समतापूण बताव करते ए मेरा अपने पु तथा सर के त भेदभाव न होगा; य क जगत्म लड़ाई-झगड़ेका मूल कारण भेदभाव ही है ।। २८ ।। व हं रतो र न् या येव समाचरन् । वा यतां न ग म या म लोकेषु मनुजषभाः ।। २९ ।। ‘नरर नो! व ह या वैर- वरोधको अपनेसे र ही रखकर सबका य करते ए म संसारम न दाका पा नह हो सकूँगा’ ।। २९ ।। ातु य य वचनं पा डवाः सं नश य तत् । तमेव समवत त धमराज हते रताः ।। ३० ।। अपने बड़े भाईक वह बात सुनकर सब पा डव उ ह के हतम त पर हो सदा उनका ही अनुसरण करने लगे ।। ३० ।। संस सु समयं कृ वा धमराड् ातृ भः सह । पतॄं त य यथा यायं दे वता वशा पते ।। ३१ ।। े











राजन्! धमराजने अपने भाइय के साथ भरी सभाम यह त ा करके दे वता तथा पतर का व धपूवक तपण कया ।। ३१ ।। कृतम लक याणो ातृ भः प रवा रतः । गतेषु ये े षु सवषु भरतषभ ।। ३२ ।। यु ध रः सहामा यः ववेश पुरो मम् । य धनो महाराज शकु न ा प सौबलः । सभायां रमणीयायां त ैवा ते नरा धप ।। ३३ ।। भरत े जनमेजय! सम त य के चले जानेपर क याणमय मांग लक कृ य पूण करके भाइय से घरे ए राजा यु ध रने म य के साथ अपने उ म नगरम वेश कया। महाराज! य धन तथा सुबलपु शकु न ये दोन उस रमणीय सभाम ही रह गये ।। ३२-३३ ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण

ूतपव ण यु ध रसमये षट् च वारशोऽ यायः ।। ४६ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत ूतपवम यु ध र- त ा वषयक छयालीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ४६ ।।

स तच वा रशोऽ यायः य धनका मय न मत सभाभवनको दे खना और पगपगपर मके कारण उपहासका पा बनना तथा यु ध रके वैभवको दे खकर उसका च तत होना वैश पायन उवाच वसन् य धन त यां सभायां पु षषभ । शनैददश तां सवा सभां शकु नना सह ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—नर े जनमेजय! राजा य धनने उस सभाभवनम नवास करते समय शकु नके साथ धीरे-धीरे उस सारी सभाका नरी ण कया ।। १ ।। त यां द ान भ ायान् ददश कु न दनः । न पूवा ये तेन नगरे नागसा ये ।। २ ।। कु न दन य धन उस सभाम उन द अ भ ाय ( य )-को दे खने लगा, ज ह उसने ह तनापुरम पहले कभी नह दे खा था ।। २ ।। स कदा चत् सभाम ये धातरा ो महीप तः । फा टकं थलमासा जल म य भशङ् कया ।। ३ ।। वव ो कषणं राजा कृतवान् बु मो हतः । मना वमुख ैव प रच ाम तां सभाम् ।। ४ ।। एक दनक बात है, राजा य धन उस सभाभवनम घूमता आ फ टक-म णमय थलपर जा प ँचा और वहाँ जलक आशंकासे उसने अपना व ऊपर उठा लया। इस कार बु -मोह हो जानेसे उसका मन उदास हो गया और वह उस थानसे लौटकर सभाम सरी ओर च कर लगाने लगा ।। ३-४ ।। ततः थले नप ततो मना ी डतो नृपः । नः सन् वमुख ा प प रच ाम तां सभाम् ।। ५ ।। तदन तर वह थलम ही गर पड़ा, इससे वह मन-ही-मन ःखी और ल जत हो गया तथा वहाँसे हटकर ल बी साँस लेता आ सभाभवनम घूमने लगा ।। ५ ।। ततः फा टकतोयां वै फा टका बुजशो भताम् । वाप म वा थल मव सवासाः ापत जले ।। ६ ।। त प ात् फ टकम णके समान व छ जलसे भरी और फ टकम णमय कमल से सुशो भत बावलीको थल मानकर वह व स हत जलम गर पड़ा ।। ६ ।। जले नप ततं ् वा भीमसेनो महाबलः । जहास जहसु ैव ककरा सुयोधनम् ।। ७ ।। वासां स च शुभा य मै द राजशासनात् । तथागतं तु तं ् वा भीमसेनो महाबलः ।। ८ ।। ौ ो ौ े

अजुन यमौ चोभौ सव ते ाहसं तदा । नामषयत् तत तेषामवहासममषणः ।। ९ ।। उसे जलम गरा दे ख महाबली भीमसेन हँसने लगे। उनके सेवक ने भी य धनक हँसी उड़ायी तथा राजा ासे उ ह ने य धनको सु दर व दये। य धनक यह रव था दे ख महाबली भीमसेन, अजुन और नकुल-सहदे व सभी उस समय जोर-जोरसे हँसने लगे। य धन वभावसे ही अमषशील था; अतः वह उनका उपहास न सह सका ।। आकारं र माण तु न स तान् समुदै त । पुनवसनमु य त र य व थलम् ।। १० ।। वह अपने चेहरेके भावको छपाये रखनेके लये उनक ओर नह डालता था। फर थलम ही जलका म हो जानेसे वह कपड़े उठाकर इस कार चलने लगा; मानो तैरनेक तैयारी कर रहा हो ।। १० ।। आ रोह ततः सव जहसु पुनजनाः । ारं तु प हताकारं फा टकं े य भू मपः । वश ाहतो मू न ाघू णत इव थतः ।। ११ ।। इस कार जब वह ऊपर चढ़ा, तब सब लोग उसक ा तपर हँसने लगे। उसके बाद राजा य धनने एक फ टकम णका बना आ दरवाजा दे खा, जो वा तवम बंद था, तो भी खुला द खता था। उसम वेश करते ही उसका सर टकरा गया और उसे च कर-सा आ गया ।। ता शं च परं ारं फा टको कपाटकम् । वघट् टयन् करा यां तु न या े पपात ह ।। १२ ।। ठ क उसी तरहका एक सरा दरवाजा मला, जसम फ टकम णके बड़े-बड़े कवाड़ लगे थे। य प वह खुला था, तो भी य धनने उसे बंद समझकर उसपर दोन हाथ से ध का दे ना चाहा। कतु ध केसे वह वयं ारके बाहर नकलकर गर पड़ा ।। १२ ।। ारं तु वतताकारं समापेदे पुन सः । त ं चे त म वानो ार थाना पारमत् ।। १३ ।। आगे जानेपर उसे एक ब त बड़ा फाटक और मला; परंतु कह पछले दरवाज क भाँ त यहाँ भी कोई अ य घटना न घ टत हो इस भयसे वह उस दरवाजेके इधरसे ही लौट आया ।। १३ ।। एवं ल भान् व वधान् ा य त वशा पते । पा डवेया यनु ात ततो य धनो नृपः ।। १४ ।। अ ेन मनसा राजसूये महा तौ । े य ताम तामृ जगाम गजसा यम् ।। १५ ।। राजन्! इस कार बार-बार धोखा खाकर राजा य धन राजसूय महाय म पा डव के पास आयी ई अद्भुत समृ पर डालकर पा डु न दन यु ध र-क आ ा ले अ स मनसे ह तनापुरको चला गया ।। १४-१५ ।। पा डव ी त त य यायमान य ग छतः । े

य धन य नृपतेः पापा म तरजायत ।। १६ ।। पा डव क राजल मीसे संत त हो उसीका च तन करते ए जानेवाले राजा य धनके मनम पापपूण वचारका उदय आ ।। १६ ।। पाथान् सुमनसो ् वा पा थवां वशानुगान् । कृ नं चा प हतं लोकमाकुमारं कु ह ।। १७ ।। म हमानं परं चा प पा डवानां महा मनाम् । य धनो धातरा ो ववणः समप त ।। १८ ।। कु े ! यह दे खकर क कु तीके पु का मन स है, भूम डलके सब नरेश उनके वशम ह तथा ब च से लेकर बूढ़ तक सारा जगत् उनका हतैषी है, इस कार महा मा पा डव क म हमा अ य त बढ़ ई दे खकर धृतरापु य धनका रंग फ का पड़ गया ।। १७-१८ ।। स तु ग छ नेका ः सभामेकोऽ व च तयत् । यं च तामनुपमां धमराज य धीमतः ।। १९ ।। रा तेम जाते समय वह नाना कारके वचार से च तातुर था। वह अकेला ही परम बु मान् धमराज यु ध रक अलौ कक सभा तथा अनुपम ल मीके वषयम सोच रहा था ।। १९ ।। म ो धृतरा य पु ो य धन तदा । ना यभाषत् सुबलजं भाषमाणं पुनः पुनः ।। २० ।। इस समय धृतरापु य धन उ म -सा हो रहा था। वह शकु नके बार-बार पूछनेपर भी उसे कोई उ र नह दे रहा था ।। २० ।। अनेका ं तु तं ् वा शकु नः यभाषत । य धन कुतोमूलं नः स व ग छ स ।। २१ ।। उसे नाना कारक च ता से यु दे ख शकु न-ने पूछा—‘ य धन! तु ह कहाँसे यह ःखका कारण ा त हो गया, जससे तुम लंबी साँस ख चते चल रहे हो’ ।। २१ ।।

य धन उवाच ् वेमां पृ थव कृ नां यु ध रवशानुगाम् । जताम तापेन ेता य महा मनः ।। २२ ।। तं च य ं तथाभूतं ् वा पाथ य मातुल । यथा श य दे वेषु तथाभूतं महा ुतेः ।। २३ ।। अमषण तु स पूण द मानो दवा नशम् । शु चशु ागमे काले शु येत् तोय मवा पकम् ।। २४ ।। य धनने कहा—मामाजी! मने दे खा है, ेतवाहन महा मा अजुनके अ के तापसे जीती ई यह सारी पृ वी यु ध रके वशम हो गयी है। महातेज वी यु ध रका वह राजसूयय उसी कार स प आ है, जैसे दे वता म दे वराज इ का य पूण आ था। यह सब दे खकर म दन-रात ई यासे भरा ठ क उसी कार जलता रहता ँ, जैसे ी मऋतुम थोड़ा-सा जल ज द सूख जाता है ।। २२—२४ ।। प य सा वतमु येन शशुपालो नपा ततः । न च त पुमानासीत् क त् त य पदानुगः ।। २५ ।। और भी दे खये, य वंश शरोम ण ीकृ णने शशुपालको मार गराया, परंतु वहाँ कोई भी वीर पु ष उसका बदला लेनेको तैयार नह आ ।। २५ ।। द माना ह राजानः पा डवो थेन व ना । ा तव तोऽपराधं ते को ह तत् तुमह त ।। २६ ।। पा डवज नत आगसे द ध होनेवाले राजा ने वह अपराध मा कर दया। अ यथा इतने बड़े अ यायको कौन सह सकता है? ।। २६ ।। वासुदेवेन तत् कम यथायु ं महत् कृतम् । े

स ं च पा डु पु ाणां तापेन महा मनाम् ।। २७ ।। वासुदेव ीकृ णने जैसा महान् अनु चत कम कया था, वह महामना पा डव के तापसे सफल हो गया ।। २७ ।। तथा ह र ना यादाय व वधा न नृपा नृपम् । उपा त त कौ तेयं वै या इव कर दाः ।। २८ ।। जैसे कर दे नेवाले ापारी वै य नाना कारके र न क भट लेकर राजाक सेवाम उप थत होते ह, उसी कार सब राजा अनेक कारके उ म र न लेकर राजा यु ध रक सेवाम उप थत ए थे ।। २८ ।। यं तथाऽऽगतां ् वा वल ती मव पा डवे । अमषवशमाप ो द ा म न तथो चतः ।। २९ ।। पा डु पु यु ध रके समीप ा त ई उस काश-मयी ल मीको दे खकर म ई यावश जल रहा ँ। य प मेरी यह रव था उ चत नह है ।। २९ ।। एवं स न यं कृ वा ततो वचनम वीत् । पुनगा धारनृप त द मान इवा नना ।। ३० ।। ऐसा न य करके य धन च ताक आगसे द ध-सा होता आ पुनः गा धारराज शकु नसे बोला ।। ३० ।। व मेव वे या म भ य या म वा वषम् । अपो वा प वे या म न ह श या म जी वतुम् ।। ३१ ।। म आगम वेश कर जाऊँगा, वष खा लूँगा अथवा जलम डू ब म ँ गा, अब म जी वत नह रह सकूँगा ।। ३१ ।। को ह नाम पुमाँ लोके मष य य त स ववान् । सप नानृ यतो ् वा हीनमा मानमेव च ।। ३२ ।। संसारम कौन ऐसा श शाली पु ष होगा, जो श ु क वृ और अपनी हीन दशा होती दे खकर भी चुपचाप सहन कर लेगा ।। ३२ ।। सोऽहं न ी न चा य ी न पुमा ापुमान प । योऽहं तां मषया य ता श यमागताम् ।। ३३ ।। म इस समय न तो ी ँ, न अ बलसे स प ँ, न पु ष ँ और न नपुंसक ही ँ, तो भी अपने श ु के पास आयी ई वैसी उ कृ स प को दे खकर भी चुपचाप सहन कर रहा ँ? ।। ३३ ।। ई र वं पृ थ ा वसुम ां च ता शीम् । य ं च ता शं ् वा मा शः को न सं वरेत् ।। ३४ ।। श ु के पास सम त भूम डलका वह साा य, वैसी धन-र न से भरी स पदा और उनका वैसा उ कृ राजसूयय दे खकर मेरे-जैसा कौन पु ष च तत न होगा? ।। ३४ ।। अश ैक एवाहं तामाहतु नृप यम् । सहायां न प या म तेन मृ युं व च तये ।। ३५ ।। े

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म अकेला उस राजल मीको हड़प लेनेम असमथ ँ और अपने पास यो य सहायक नह दे खता ँ, इसी लये मृ युका च तन करता ँ ।। ३५ ।। दै वमेव परं म ये पौ षं च नरथकम् । ् वा कु तीसुते शु ां यं तामहतां तथा ।। ३६ ।। कु तीपु यु ध रके पास उस अ य वशु ल मीका संचय दे ख म दै वको ही बल मानता ँ, पु षाथ तो नरथक जान पड़ता है ।। ३६ ।। कृतो य नो मया पूव वनाशे त य सौबल । त च सवम त य संवृ ोऽ वव पङ् कजम् ।। ३७ ।। सुबलपु ! मने पहले धमराज यु ध रको न कर दे नेका य न कया था, कतु उन सारे संकट को लाँघ करके वे जलम कमलक भाँ त उ रो र बढ़ते गये ।। ३७ ।। तेन दै वं परं म ये पौ षं च नरथकम् । धातरा ा हीय ते पाथा वध त न यशः ।। ३८ ।। इसीसे म दै वको उ म मानता ँ और पु षाथको नरथक; य क हम धृतरापु हा न उठा रहे ह और ये कु तीके पु त दन उ त करते जा रहे ह ।। ३८ ।। सोऽहं यं च तां ् वा सभां तां च तथा वधाम् । र भ ावहासं तं प रत ये यथा नना ।। ३९ ।। म उस राजल मीको, उस द सभाको तथा र क ारा कये गये अपने उपहासको दे खकर नर तर संत त हो रहा ँ, मानो आगम जलता होऊँ ।। ३९ ।। स माम यनुजानी ह मातुला सु ःखतम् । अमष च समा व ं धृतरा े नवेदय ।। ४० ।। मामाजी! अब मुझे (मरनेके लये) आ ा द जये, य क म ब त ःखी ँ और ई याक आगम जल रहा ँ। महाराज धृतराको मेरी यह अव था सू चत कर द जयेगा ।। ४० ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण

ूतपव ण य धनसंतापे स तच वारशोऽ यायः ।। ४७ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत ूतपवम य धनसंताप वषयक सतालीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ४७ ।।

अ च वा रशोऽ यायः पा डव पर वजय ा त करनेके लये शकु न और य धनक बातचीत शकु न वाच य धन न तेऽमषः कायः त यु ध रम् । भागधेया न ह वा न पा डवा भु ते सदा ।। १ ।। वधानं व वधाकारं परं तेषां वधानतः । अनेकैर युपायै वया न श कताः पुरा ।। २ ।। शकु न बोला— य धन! तु ह यु ध रके त ई या नह करनी चा हये; य क पा डव सदा अपने भा यका ही उपभोग करते आ रहे ह। तुमने उ ह वशम लानेके लये अनेक कारके उपाय का अवल बन कया, परंतु उनके ारा तुम उ ह अपने अधीन न कर सके ।। आरधा महाराज पुनः पुनररदम । वमु ा नर ा ा भागधेयपुर कृताः ।। ३ ।। श ु का दमन करनेवाले महाराज! तुमने बार-बार पा डव पर कुच चलाये, परंतु वे नर े अपने भा यसे उन सभी संकट से छु टकारा पाते गये ।। ३ ।। तैलधा ौपद भाया पद सुतैः सह । सहायः पृ थवीलाभे वासुदेव वीयवान् ।। ४ ।। उन पाँच ने प नी पम ौपद को तथा पु -स हत राजा पद एवं स पूण पृ वीक ा तम कारण महापरा मी वसुदेवन दन ीकृ णको सहायक पम ा त कया है ।। ४ ।। (अ जतः सोऽ प सव ह सद े वासुरमानुषैः । त ेजसा वृ ोऽसौ त का प रदे वना ।।) ीकृ णको सब दे वता, असुर और मनु य मलकर भी जीत नह सकते। उ ह के तेजसे राजा यु ध रक उ त ई है; इसके लये शोक करनेक या बात है? लध ान भभूताथः पय ऽशः पृ थवीपते । ववृ तेजसा तेषां त का प रदे वना ।। ५ ।। पृ वीपते! पा डव ने अपने उ े यसे वच लत न होकर नर तर य न करके रा यम अपना पैतृक अंश ा त कया है और वह पैतृक स प आज उ ह के तेजसे ब त बढ़ गयी है, अतः उसके लये च ता करनेक या आव यकता है? ।। ५ ।। धनंजयेन गा डीवम यौ च महेषुधी । लधा य ा ण द ा न तोष य वा ताशनम् ।। ६ ।। तेन कामुकमु येन बा वीयण चा मनः । े





कृता वशे महीपाला त का प रदे वना ।। ७ ।। अजुनने अ नदे वको संतु करके गा डीव धनुष, अ य तरकस तथा कतने ही द अ ा त कये ह। उस े धनुषके ारा तथा अपनी भुजा के बलसे उ ह ने सम त राजा को वशम कया है, अतः इसके लये शोकक या आव यकता है? ।। ६-७ ।। अ नदाहा मयं चा प मो य वा स दानवम् । सभां तां कारयामास स साची परंतपः ।। ८ ।। स साची परंतप अजुनने मय दानवको आगम जलनेसे बचाया और उसीके ारा उस द सभाका नमाण कराया ।। ८ ।। तेन चैव मयेनो ाः ककरा नाम रा साः । वह त तां सभां भीमा त का प रदे वना ।। ९ ।। य चासहायतां राज ु वान स भारत । त मया ातरो हीमे तव सव वशानुगाः ।। १० ।। उस मयके ही कहनेसे ककरनामधारी भयंकर रा सगण उस सभाको एक थानसे सरे थानपर ले जाते ह। अतः इसके लये भी शोक-संताप य कया जाय? भारत! तुमने जो अपनेको असहाय बताया है, वह म या है; य क तु हारे ये सब भाई तु हारी आ ाके अधीन ह ।। ोण तव महे वासः सह पु ेण वीयवान् । सूतपु राधेयो गौतम महारथः ।। ११ ।। अहं च सह सोदयः सौमद पा थवः । एतै वं स हतः सवजय कृ नां वसु धराम् ।। १२ ।। महान् धनुधर और परा मी ोणाचाय अपने पु अ थामाके साथ तु हारी सहायताके लये उ त ह। राधान दन सूतपु कण, महारथी कृपाचाय, भाइय स हत म तथा राजा भू र वा—इन सबके साथ तुम भी सारी पृ वीपर वजय ा त करो ।। ११-१२ ।। य धन उवाच वया च स हतो राज ेतै ा यैमहारथैः । एतानेव वजे या म य द वमनुम यसे ।। १३ ।। एतेषु व जते व भ व य त मही मम । सव च पृ थवीपालाः सभा सा च महाधना ।। १४ ।। य धनने कहा—राजन्! य द तु हारी अनुम त हो, तो तु हारे और इन ोण आ द अ य महार थय के साथ इन पा डव को ही यु म जीत लूँ। इनके परा जत हो जाने-पर अभी यह सारी पृ वी, सम त भूपाल और वह महाधन-स प सभा भी हमारे अधीन हो जायगी ।। १३-१४ ।। शकु न वाच धनंजयो वासुदेवो भीमसेनो यु ध रः । े ै

नकुलः सहदे व पद सहा मजैः ।। १५ ।। नैते यु ध पराजेतुं श या दे वगणैर प । महारथा महे वासाः कृता ा यु मदाः ।। १६ ।। शकु न बोला—राजन्! अजुन, ीकृ ण, भीमसेन, यु ध र, नकुल, सहदे व तथा पु स हत पद—इ ह दे वता भी यु म परा त नह कर सकते। ये सब-के-सब महारथी, महान् धनुधर, अ व ाम नपुण तथा यु म उ म होकर लड़नेवाले ह ।। १५-१६ ।। अहं तु तद् वजाना म वजेतुं येन श यते । यु ध रं वयं राजं त बोध जुष व च ।। १७ ।। राजन्! म वह उपाय जानता ँ, जससे यु ध र वयं परा जत हो सकते ह। तुम उसे सुनो और उसका सेवन करो ।। १७ ।।

य धन उवाच अ मादे न सु दाम येषां च महा मनाम् । य द श या वजेतुं ते त ममाच व मातुल ।। १८ ।। य धनने कहा—मामाजी! य द मेरे सगे-स ब धय तथा अ य महा मा क सतत सावधानीसे कसी उपाय ारा पा डव को जीता जा सके तो वह मुझे बताइये ।। १८ ।। शकु न वाच ूत य कौ तेयो न स जाना त दे वतुम् । समात राजे ो न श य त नव ततुम् ।। १९ ।। शकु न बोला—राजन्! कु तीन दन यु ध रको जुएका खेल ब त य है, कतु वे उसे खेलना नह जानते। य द महाराज यु ध रको ूत ड़ाके लये बुलाया जाय तो वे पीछे नह हट सकगे ।। १९ ।। दे वने कुशल ाहं न मेऽ त स शो भु व । षु लोकेषु कौर तं वं ूते समा य ।। २० ।। म जूआ खेलनेम ब त नपुण ँ। इस कलाम मेरी समानता करनेवाला पृ वीपर सरा कोई नह है। केवल यह नह , तीन लोक म मेरे-जैसा ूत व ाका जानकार नह है। अतः कु न दन! तुम ूत ड़ाके लये यु ध रको बुलाओ ।। २० ।। त या कुशलो राज ादा येऽहमसंशयम् । रा यं यं च तां द तां वदथ पु षषभ ।। २१ ।। नर े ! म पासा फकनेम कुशल ँ; अतः यु ध रके रा य तथा दे द यमान राजल मीको तु हारे लये अव य ा त कर लूँगा, इसम संशय नह है ।। २१ ।। इदं तु सव वं रा े य धन नवेदय । अनु ात तु ते प ा वजे ये तान् न संशयः ।। २२ ।। य धन! तुम ये सारी बात पताजीसे कहो। उनक आ ा मल जानेपर म नःसंदेह पा डव को जीत लूँगा ।।

य धन उवाच वमेव कु मु याय धृतरा ाय सौबल । नवेदय यथा यायं नाहं श ये नवे दतुम् ।। २३ ।। य धनने कहा—सुबलन दन! आप ही कु कुलके धान महाराज धृतरासे इन सब बात को यथो चत पसे क हये। म वयं कुछ नह कह सकूँगा ।। २३ ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण

ूतपव ण य धनसंतापे अ च वारशोऽ यायः ।। ४८ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत ूतपवम य धनसंताप वषयक अड़तालीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ४८ ।। (दा णा य अ धक पाठका १ ोक मलाकर क ु ल २४ ोक ह)

एकोनप चाश मोऽ यायः धृतरा के पूछनेपर य धनका अपनी च ता बताना और ूतके लये धृतरा से अनुरोध करना एवं धृतरा का व रको इ थ जानेका आदे श वैश पायन उवाच अनुभूय तु रा तं राजसूयं महा तुम् । यु ध र य नृपतेगा धारीपु संयुतः ।। १ ।। यकृ मतमा ाय पूव य धन य तत् । ाच ुषमासीनं शकु नः सौबल तदा ।। २ ।। य धनवचः ु वा धृतरा ं जना धपम् । उपग य महा ा ं शकु नवा यम वीत् ।। ३ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! गा धारीपु य धनके स हत सुबलन दन शकु न राजा यु ध रके राजसूय महाय का उ सव दे खकर जब लौटा, तब पहले य धनके अपने अनुकूल मतको जानकर और उसक पूरी बात सुनकर सहासनपर बैठे ए ाच ु महा ा राजा धृतराक े पास जाकर इस कार बोला ।। १—३ ।। शकु न वाच य धनो महाराज ववण ह रणः कृशः । द न तापर ैव तं व मनुजा धप ।। ४ ।। शकु नने कहा—महाराज! य धनक का त फ क पड़ती जा रही है! वह सफेद और बल हो गया है। उसक बड़ी दयनीय दशा है। वह नर तर च ताम डू बा रहता है। नरे र! उसके मनोभावको सम झये ।। ४ ।। न वै परी से स यगस ं श ुस भवम् । ये पु य छोकं कमथ नावबु यसे ।। ५ ।। उसे श ु क ओरसे कोई अस क ा त आ है। आप उसक अ छ तरह परी ा य नह करते? य धन आपका ये पु है। उसके दयम महान् शोक ा त है। आप उसका पता य नह लगाते? ।। ५ ।। धृतरा उवाच य धन कुतोमूलं भृशमात ऽ स पु क । ोत े मया सोऽथ ू ह मे कु न दन ।। ६ ।। धृतरा य धनके पास जाकर बोले—बेटा य धन! तु हारे ःखका कारण या है? सुना है, तुम बड़े क म हो। कु न दन! य द मेरे सुननेयो य हो तो वह बात मुझे बताओ ।। ६ ।।

अयं वां शकु नः ाह ववण ह रणं कृशम् । च तयं न प या म शोक य तव स भवम् ।। ७ ।। यह शकु न कहता है क तु हारी का त फ क पड़ गयी है। तुम सफेद और बले हो गये हो; परंतु म ब त सोचनेपर भी तु हारे शोकका कोई कारण नह दे खता ।। ऐ य ह महत् पु व य सव त तम् । ातरः सु द ैव नाचर त तवा यम् ।। ८ ।। बेटा! इस स पूण महान् ऐ यका भार तु हारे ही ऊपर है। तु हारे भाई और सु द् कभी तु हारे तकूल आचरण नह करते ।। ८ ।। आ छादय स ावाराना स वशदौदनम् । आजानेया वह य ाः केना स ह रणः कृशः ।। ९ ।। तुम ब मू य व ओढ़ते-पहनते हो, ब ढ़या वशु भात खाते हो तथा अ छ जा तके घोड़े तु हारी सवारीम रहते ह; फर कस ःखसे तुम सफेद और बले हो गये हो? ।। ९ ।। शयना न महाहा ण यो षत मनोरमाः । गुणव त च वे मा न वहारा यथासुखम् ।। १० ।। दे वाना मव ते सव वा च ब ं न संशयः । स द न इव धष क मा छोच स पु क ।। ११ ।। ब मू य शयाए ,ँ मनको य लगनेवाली युव तयाँ, सभी ऋतु म लाभदायक भवन और इ छानुसार सुख दे नेवाले वहार थान—दे वता क भाँ त ये सभी व तुएँ नःसंदेह तु ह वाणी ारा कहनेमा से सुलभ ह। मेरे धष पु ! फर तुम द नक भाँ त य शोक करते हो? ।। १०-११ ।। (उप थतः सवकामै दवे वासवो यथा । व वधैर पानै वरैः क नु शोच स ।। जैसे वगम इ को स पूण मनोवां छत भोग सुलभ ह, उसी कार सम त अ भल षत भोग और खाने-पीनेक व वध उ म व तुएँ तु हारे लये सदा तुत ह। फर तुम कस लये शोक करते हो? न ं नगमं छ दः सषड ाथशा वान् । अधीतः कृत व वम ाकरणैः कृपात् ।। तुमने कृपाचायसे न , नगम, छ द, वेदके छह अंग, अथशा तथा आठ कारके ाकरणशा का अ ययन कया है। हलायुधात् कृपाद् ोणाद व ामधीतवान् । भु वं भु से पु सं तुतः सूतमागधैः ।। त य ते व दत शोकमूल मदं कथम् । लोकेऽ म ये भागी वं त ममाच व पु क ।। हलायुध, कृपाचाय तथा ोणाचायसे तुमने अ व ा सीखी है। बेटा! तुम इस रा यके वामी होकर इ छानुसार सब व तु का उपभोग करते हो। सूत और मागध सदा तु हारी े े ी ै े े े

तु त करते रहते ह। तु हारी बु क खरता स है। तुम इस जगत्म ये पु के लये सुलभ सम त राजो चत सुख के भागी हो। फर भी तु ह कैसे च ता हो रही है? बेटा! तु हारे इस शोकका कारण या है? यह मुझे बताओ। वैश पायन उवाच त य तद् वचनं ु वा म दः ोधवशानुगः । पतरं युवाचेदं वम त स काशयन् ।।) वैश पायनजी कहते ह— पताका यह कथन सुनकर ोधके वशीभूत ए मूढ़ य धनने उ ह अपना वचार बताते ए इस कार उ र दया। य धन उवाच अा या छादये चाहं यथा कुपु ष तथा । अमष धारये चो ं ननीषुः कालपययम् ।। १२ ।। य धन बोला— पताजी! म अ छा खाता-पहनता तो ँ, परंतु कायर क भाँ त। म समयके प रवतनक ती ाम रहकर अपने दयम भारी ई या धारण करता ँ ।। १२ ।। अमषणः वाः कृतीर भभूय परं थतः । लेशान् मुमु ुः परजान् स वै पु ष उ यते ।। १३ ।। जो श ु के त अमष रख उ ह परा जत करके व ाम लेता है और अपनी जाको श ुज नत लेशसे छु ड़ानेक इ छा करता है, वही पु ष कहलाता है ।। १३ ।। संतोषो वै यं ह त भमानं च भारत । अनु ोशभये चोभे यैवृतो नाुते महत् ।। १४ ।। भारत! संतोष ल मी और अ भमानका नाश कर दे ता है। दया और भय—ये दोन भी वैसे ही ह। इन (संतोषा द)-से यु मनु य कभी ऊँचा पद नह पा सकता ।। न मां ीणा त म ं यं ् वा यु ध रे । अ त वल त कौ तेये ववणकरण मम ।। १५ ।। कु तीन दन यु ध रक वह अ य त काशमान राजल मी दे खकर मुझे भोजन अ छा नह लगता। वही मेरी का तको न करनेवाली है ।। १५ ।। सप नानृ यतोऽऽ मानं हीयमानं नश य च । अ याम प कौ तेय यं प य वो ताम् ।। १६ ।। त मादहं ववण द न ह रणः कृशः । श ु को बढ़ते और अपनेको हीन दशाम जाते दे ख तथा यु ध रक उस अ य ल मीपर भी य क भाँ त पात करके म च तत हो उठा ँ। यही कारण है क मेरी का त फ क पड़ गयी है तथा म द न, बल और सफेद हो गया ँ ।। १६ ।। अ ाशी तसह ा ण नातका गृहमे धनः ।। १७ ।। श ासीक एकैको यान् बभ त यु ध रः । े











राजा यु ध र अपने घरम बसनेवाले अासी हजार नातक का भरण-पोषण करते ह। उनमसे येकक सेवाके लये तीस-तीस दा सयाँ तुत रहती ह ।। १७ ।। दशा या न सह ा ण न यं त ा मु मम् । भु ते मपा ी भयु ध र नवेशने ।। १८ ।। इसके सवा यु ध रके महलम दस हजार अ य ा ण त दन सोनेक था लय म भोजन करते ह ।। १८ ।। कदलीमृगमोका न कृ ण यामा णा न च । का बोजः ा हणोत् त मै परा यान प क बलान् । का बोजराजने काले, नीले और लाल रंगके कदलीमृगके चम तथा अनेक ब मू य क बल यु ध रके लये भटम भेजे थे ।। १८ ।। गजयो षद्गवा य शतशोऽथ सह शः ।। १९ ।। शतं चो वामीनां शता न वचर युत । राज या ब लमादाय समेता ह नृप ये ।। २० ।। उ ह क भेजी ई सैकड़ ह थ नयाँ, सह गाय और घोड़े तथा तीस-तीस हजार ऊँट और घो ड़याँ वहाँ वचरती थ । सभी राजालोग भट लेकर यु ध रके भवनम एक ए थे ।। १९-२० ।। पृथ वधा न र ना न पा थवाः पृ थवीपते । आहरन् तुमु येऽ मन् कु तीपु ाय भू रशः ।। २१ ।। पृ वीपते! उस महान् य म भूपालगण कु तीपु यु ध रके लये भाँ त-भाँ तके ब तसे र न लाये थे ।। २१ ।। न व च मया ता ग् पूव न च ुतः । या ग् धनागमो य े पा डु पु य धीमतः ।। २२ ।। बु मान् पा डु कुमार यु ध रके य म धनक जैसी ा त ई है, वैसी मने पहले कह न तो दे खी है और न सुनी ही है ।। २२ ।। अपय तं धनौघं तं ् वा श ोरहं नृप । शमं नैवा भग छा म च तयानो वशा पते ।। २३ ।। महाराज! श ुक वह अन त धनरा श दे खकर म च तत हो रहा ँ; मुझे चैन नह मलता ।। २३ ।। ा णा वाटधाना गोम तः शतसङ् घशः । खव ब लमादाय ा र त त वा रताः ।। २४ ।। ा णलोग तथा हरी-भरी खेती उपजाकर जीवन- नवाह करनेवाले और ब त-से गाय-बैल रखनेवाले वै य सैकड़ दल म इक े होकर तीन खव भट लेकर राजाके ारपर रोके ए खड़े थे ।। २४ ।। कम डलूनुपादाय जात पमया छु भान् । एतद् धनं समादाय वेशं ले भरे न च ।। २५ ।। े



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वे सब लोग सोनेके सु दर कलश और इतना धन लेकर आये थे, तो भी वे सभी राज ारम वेश नह कर पाते थे अथात् उनमसे कोई-कोई ही वेश कर पाते थे ।। यथैव मधु श ाय धारय यमर यः । तद मै कां यमाहाष द् वा णं कलशोद धः ।। २६ ।। दे वांगनाएँ इ के लये कलश म जैसा मधु लये रहती ह, वैसा ही व णदे वताका दया आ और काँसके पा म रखा आ मधु समु ने यु ध रके लये उपहारम भेजा था ।। २६ ।। शै यं मसह य ब र न वभू षतम् । शङ् ख वरमादाय वासुदेवोऽ भ ष वान् ।। २७ ।। वहाँ छके पर रखकर लाया आ एक हजार वण-मु ा का बना आ कलश रखा था, जसम अनेक कारके र न जड़े ए थे। उस पा म थत समु जलको उ म शंखम लेकर ीकृ णने यु ध रका अ भषेक कया था ।। २७ ।। ् वा च मम तत् सव वर प मवाभवत् । गृही वा तत् तु ग छ त समु ौ पूवद णौ ।। २८ ।। तथैव प मं या त गृही वा भरतषभ । उ रं तु न ग छ त वना तात पत णः ।। २९ ।। त ग वाजुनो द डमाजहारा मतं धनम् । तात! वह सब दे खकर मुझे वर-सा आ गया। भरत े ! वैसे ही सुवणकलश को लेकर पा डवलोग जल लानेके लये पूव, द ण, प म समु तक तो जाया करते थे, कतु सुना जाता है क उ र समु के समीप, जहाँ प य के सवा मनु य नह जा सकते, वहाँ भी जाकर अजुन अपार धन करके पम वसूल कर लाये ।। इदं चा तम ासीत् त मे नगदतः शृणु ।। ३० ।। यु ध रके राजसूयय म एक यह अ त बात और भी ई थी, वह म बताता ँ; सु नये ।। ३० ।। पूण शतसह े तु व ाणां प र व यताम् । था पता त सं ाभू छङ् खो माय त न यशः ।। ३१ ।। जब एक लाख ा ण को रसोई परोस द जाती, तब उसके लये एक संकेत नयत कया गया था; त दन लाखक सं या पूरी होते ही बड़े जोरसे शंख बजाया जाता था ।। ३१ ।। मु मु ः णदत त य शङ् ख य भारत । अ नशं श दम ौषं ततो रोमा ण मेऽ षन् ।। ३२ ।। भारत! ऐसा शंख वहाँ बार-बार बजता था और म नर तर उस शंख- व नको सुना करता था; इससे मेरे शरीरम रोमांच हो आता था ।। ३२ ।। पा थवैब भः क णमुप थानं द ु भः । अशोभत महाराज न ै रवामला ।। ३३ ।। ँ



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महाराज! वहाँ य दे खनेके लये आये ए ब त-से राजा ारा भरी ई य म डपक बैठक तारा से ा त ए नमल आकाशक भाँ त शोभा पाती थी ।। ३३ ।। सवर ना युपादाय पा थवा वै जने र । य े त य महाराज पा डु पु य धीमतः ।। ३४ ।। जने र! बु मान् पा डु न दन यु ध रके उस य म भूपालगण सब र न क भट लेकर आये थे ।। ३४ ।। वै या इव महीपाला जा तप रवेषकाः । न सा ीदवराज य यम य व ण य च । गु का धपतेवा प या ी राजन् यु ध रे ।। ३५ ।। राजालोग वै य क भाँ त ा ण को भोजन परोसते थे। राजा यु ध रके पास जो ल मी है, वह दे वराज इ , यम, व ण अथवा य राज कुबेरके पास भी नह होगी ।। ३५ ।। तां ् वा पा डु पु य यं पर मकामहम् । शा तं न प रग छा म द मानेन चेतसा ।। ३६ ।। पा डु पु यु ध रक उस उ कृ ल मीको दे खकर मेरे दयम जलन पैदा हो गयी है; अतः मुझे णभर भी शा त नह मलती ।। ३६ ।। (अ ा य पा डवै य शमो मम न व ते । अवा ये वा रणं बाणैः श य ये वा हतः परैः ।। एता श य मे क नु जी वतेन परंतप । वध ते पा डवा राजन् वयं ह थतवृ यः ।।) पा डव का ऐ य य द मुझे नह ा त आ तो मेरे मनको शा त नह मलेगी। या तो म बाण ारा रण-भू मम उप थत होकर श ु क स प पर अ धकार ा त क ँ गा या श ु ारा मारा जाकर सं ामम सदाके लये सो जाऊँगा। परंतप! ऐसी थ तम मेरे इस जीवनसे या लाभ? पा डव दन - दन बढ़ रहे ह और हमारी उ त क गयी है। शकु न वाच यामेतामतुलां ल म वान स पा डवे । त याः ा तावुपायं मे शृणु स यपरा म ।। ३७ ।। शकु नने य धनसे पुनः कहा—स यपरा मी य धन! तुमने पा डु पु यु ध रके यहाँ जो अनुपम ल मी दे खी है, उसक ा तका उपाय मुझसे सुनो ।। ३७ ।। अहम े व भ ातः पृ थ ाम प भारत । दय ः पण वशेष दे वने ।। ३८ ।। भारत! म इस भूम डलम ूत व ाका वशेष जानकार ँ, ूत ड़ाका मम जानता ँ; दाव लगानेका भी मुझे ान है तथा पासे फकनेक कलाका भी म वशेष ँ ।। ूत य कौ तेयो न च जाना त दे वतुम् । ी















कु तीन दन यु ध रको जुआ खेलना ब त य है, परंतु वे उसे खेलना जानते नह ह ।। ३८ ।। आत ै य त ं ूताद प रणाद प ।। ३९ ।। ूत अथवा यु कसी भी उ े यसे य द उ ह बुलाया जाय, तो वे अव य पधारगे ।। ३९ ।। नयतं तं वजे या म कृ वा तु कपटं वभो । आनया म समृ तां द ां चोपा य व तम् ।। ४० ।। भो! म छल करके यु ध रको न य ही जीत लूँगा और उनक उस द समृ को यहाँ मँगा लूँगा; अतः तुम उ ह बुलाओ ।। ४० ।। वैश पायन उवाच एवमु ः शकु नना राजा य धन ततः । धृतरा मदं वा यमपदा तरम वीत् ।। ४१ ।। अयमु सहते राज यमाहतुम वत् । ूतेन पा डु पु य तदनु ातुमह स ।। ४२ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! शकु नके ऐसा कहनेपर राजा य धनने तुरंत ही धृतरासे इस कार कहा—‘राजन्! ये अ व ाका मम जाननेवाले ह और जूएके ारा पा डु पु यु ध रक राजल मीका अपहरण कर लेनेका उ साह रखते ह; अतः इसके लये इ ह आ ा द जये’ ।। ४१-४२ ।।

धृतरा उवाच ा म ी महा ा ः थतो य या म शासने । तेन संग य वे या म काय या य व न यम् ।। ४३ ।। धृतरा बोले—महाबु मान् व र मेरे म ी ह, जनके आदे शके अनुसार म चलता ँ। उनसे मलकर वचार करनेके प ात् म यह समझ सकूँगा क इस कायके स ब धम या न य कया जाय? ।। ४३ ।। स ह धम पुर कृ य द घदश परं हतम् । उभयोः प योयु ं व य यथ व न यम् ।। ४४ ।। व र रदश ह, वे धमको सामने रखकर दोन प के लये उ चत और परम हतक बात सोचकर उसके अनुकूल ही कायका न य बतायगे ।। ४४ ।। य धन उवाच नवत य य त वासौ य द ा समे य त । नवृ े व य राजे म र येऽहमसंशयम् ।। ४५ ।। य धनने कहा— व रजी जब आपसे मलगे, तब अव य ही आपको इस कायसे नवृ कर दगे। राजे ! य द आपने इस कायसे मुँह मोड़ लया तो म नःसंदेह ाण याग ँ गा ।। ४५ ।। े





स वं म य मृते राजन् व रेण सुखी भव । भो यसे पृ थव कृ नां क मया वं क र य स ।। ४६ ।। राजन्! मेरी मृ यु हो जानेपर आप व रके साथ सुखसे र हयेगा और सारी पृ वीका रा य भो गयेगा। मेरे जी वत रहनेसे आप या योजन स करगे? ।। ४६ ।। वैश पायन उवाच आतवा यं तु तत् त य णयो ं नश य सः । धृतरा ोऽ वीत् े यान् य धनमते थतः ।। ४७ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! अपने पु का यह ेमपूण आत वचन सुनकर राजा धृतरा य धनक े मतम आ गये और सेवक से इस कार बोले— ।। ४७ ।। थूणासह ैबृहत शत ारां सभां मम । मनोरमां दशनीयामाशु कुव तु श पनः ।। ४८ ।। ‘ब त-से श पी लगकर एक परम सु दर दशनीय एवं वशाल सभाभवनका शी नमाण कर। उसम सौ दरवाजे ह और एक हजार खंभे लगे ए ह ।। ४८ ।। ततः सं तीय र नै तां त ण आना य सवशः । सुकृतां सु वेशां च नवेदयत मे शनैः ।। ४९ ।। ‘ फर सब दे श से बढ़ई बुलाकर उस सभाभवनके खंभ और द वार म र न जड़वा दये जायँ। इस कार वह सु दर एवं सुस जत सभाभवन जब सुखपूवक वेशके यो य हो जाय, तब धीरे-से मेरे पास आकर इसक सूचना दो’ ।। ४९ ।। य धन य शा यथ म त न य भू मपः । धृतरा ो महाराज ा हणोद् व राय वै ।। ५० ।। महाराज! य धनक शा तके लये ऐसा न य करके राजा धृतराने व रके पास त भेजा ।। ५० ।। अपृ ् वा व रं व य नासीत् क द् व न यः । ूते दोषां जानन् स पु नेहादकृ यत ।। ५१ ।। व रसे पूछे बना उनका कोई भी न य नह होता था। जूएके दोष को जानते ए भी वे पु नेहसे उसक ओर आकृ हो गये थे ।। ५१ ।। त छ वा व रो धीमान् क ल ारमुप थतम् । वनाशमुखमु प ं धृतरा मुपा वत् ।। ५२ ।। बु मान् व र कलहके ार प जूएका अवसर उप थत आ सुनकर और वनाशका मुख कट आ जान धृतराक े पास दौड़े आये ।। ५२ ।। सोऽ भग य महा मानं ाता ातरम जम् । मू ना ण य चरणा वदं वचनम वीत् ।। ५३ ।। व रने अपने े ाता महामना धृतराक े पास जाकर उनके चरण म म तक रखकर णाम कया और इस कार कहा ।। ५३ ।। े

व र उवाच ो

ना भन दा म ते राजन् वसाय ममं भो । पु ैभदो यथा न याद् ूतहेतो तथा कु ।। ५४ ।। व र बोले—राजन्! म आपके इस न यको पसंद नह करता। भो! आप ऐसा य न क जये, जससे जूएके लये आपके और पा डु के पु म भेदभाव न हो ।। ५४ ।।

धृतरा उवाच ः पु ेषु पु ैम कलहो न भ व य त । य द दे वाः सादं नः क र य त न संशयः ।। ५५ ।। धृतरा ने कहा— व र! य द हमलोग पर दे वता क कृपा होगी तो मेरे पु का पा डु पु के साथ नःसंदेह कलह न होगा ।। ५५ ।। अशुभं वा शुभं वा प हतं वा य द वा हतम् । वततां सु द् ूतं द मेत संशयः ।। ५६ ।। अशुभ हो या शुभ, हतकर हो या अ हतकर, सु द म यह ूत ड़ा ार भ होनी ही चा हये। नःसंदेह यह भा यसे ही ा त ई है ।। ५६ ।। म य सं न हते ोणे भी मे व य च भारत । अनयो दै व व हतो न कथं चद् भ व य त ।। ५७ ।। भारत! जब म, ोणाचाय, भी मजी तथा तुम—ये सब लोग सं नकट रहगे, तब कसी कार दै व व हत अ याय नह होने पायेगा ।। ५७ ।। ग छ वं रथमा थाय हयैवातसमैजवे । खा डव थम ैव समानय यु ध रम् ।। ५८ ।। तुम वायुके समान वेगशाली घोड़ ारा जुते ए रथपर बैठकर अभी खा डव थको जाओ और यु ध रको बुला ले आओ ।। ५८ ।। न वा यो वसायो मे व रैतद् वी म ते । दै वमेव परं म ये येनैत पप ते ।। ५९ ।। व र! मेरा न य तुम यु ध रसे न बताना; यह बात म तुमसे कहे दे ता ँ। म दै वको भी बल मानता ँ, जसक ेरणासे यह ूत ड़ाका आर भ होने जा रहा है ।। इ यु ो व रो धीमान् नेदम ती त च तयन् । आपगेयं महा ा म यग छत् सु ःखतः ।। ६० ।। धृतराक े ऐसा कहनेपर बु मान् व रजी यह सोचते ए क यह ूत ड़ा अ छ नह है, अ य त ःखी हो महा ानी गंगान दन भी मजीके पास गये ।। ६९ ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण

ूतपव ण य धनसंतापे एकोनप चाश मोऽ यायः ।। ४९ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत ूतपवम य धनसंताप वषयक उनचासवाँ अ याय पूरा आ ।। ४९ ।। (दा णा य अ धक पाठक े ७ ोक मलाकर कुल ६७ ोक ह)

प चाश मोऽ यायः य धनका धृतरा को अपने ःख और च ताका कारण बताना जनमेजय उवाच कथं समभवद् ूतं ातॄणां त महा ययम् । य तद् सनं ा तं पा डवैम पतामहैः ।। १ ।। जनमेजयने पूछा—मुने! भाइय म वह महा वनाशकारी ूत कस कार आर भ आ; जसम मेरे पतामह पा डव को उस महान् संकटका सामना करना पड़ा? ।। १ ।। के च त सभा तारा राजानो व म। के चैनम वमोद त के चैनं यषेधयन् ।। २ ।। वे ा म े महष! वहाँ कौन-कौन-से राजा सभासद् थे? कसने ूत ड़ाका अनुमोदन कया और कसने नषेध? ।। २ ।। व तरेणैत द छा म कयमानं वया ज । मूलं ेतद् वनाश य पृ थ ा जस म ।। ३ ।। न्! म इस संगको आपके मुखसे व तारपूवक सुनना चाहता ँ। व वर! यह ूत ही सम त भूम डलके वनाशका मु य कारण है ।। ३ ।। सौ त वाच एवमु ततो रा ा ास श यः तापवान् । आचच ेऽथ यद् वृ ं तत् सव वेदत व वत् ।। ४ ।। सौ त कहते ह—राजाके इस कार पूछनेपर ासजीके तापी श य वेदत व वैश पायनजी वह सब संग सुनाने लगे ।। ४ ।। वैश पायन उवाच शृणु मे व तरेणेमां कथां भारतस म । भूय एव महाराज य द ते वणे म तः ।। ५ ।। वैश पायनजीने कहा—भरतवंश शरोमणे! महाराज जनमेजय! य द तु हारा मन यह सब सुननेम लगता है तो पुनः व तारके साथ इस कथाको सुनो ।। ५ ।। व र य म त ा वा धृतरा ोऽ बकासुतः । य धन मदं वा यमुवाच वजने पुनः ।। ६ ।। व रका वचार जानकर अ बकान दन राजा धृतराने एका तम य धनसे पुनः इस कार कहा— ।। ६ ।। अलं ूतेन गा धारे व रो न शंस त । न सौ सुमहाबु र हतं नो व द य त ।। ७ ।। ‘













‘गा धारीन दन! जूएका खेल नह होना चा हये, व र इसे अ छा नह बताते ह। महाबु मान् व र हम कोई ऐसी सलाह नह दगे, जससे हमलोग का अ हत होनेवाला हो ।। ७ ।। हतं ह परमं म ये व रो यत् भाषते । यतां पु तत् सवमेत म ये हतं तव ।। ८ ।। ‘ व र जो कहते ह, उसीको म अपना सव म हत मानता ँ। बेटा! तुम भी वही सब करो। मेरी समझम तु हारे लये यही हतकर है ।। ८ ।। दे व षवासवगु दवराजाय धीमते । यत् ाह शा ं भगवान् बृह प त दारधीः । तद् वेद व रः सव सरह यं महाक वः ।। ९ ।। थत तु वचने त य सदाहम प पु क । व रो वा प मेधावी कु णां वरो मतः ।। १० ।। उ वो वा महाबु वृ णीनाम चतो नृप । तदलं पु ूतेन ूते भेदो ह यते ।। ११ ।। ‘उदार बु वाले इ गु दे व ष भगवान् बृह प तने परम बु मान् दे वराज इ को जस शा का उपदे श दया था, वह सब उसके रह यस हत महा ानी व र जानते ह। बेटा! म भी सदा व रक बात मानता ँ। कु कुलम सबसे े और मेधावी व र माने गये ह तथा वृ णवंशम पू जत उ वको परम बु मान् बताया गया है। अतः बेटा! जूआ खेलनेसे कोई लाभ नह है। जूएम वैर- वरोधक स भावना दखायी दे ती है ।। ९—११ ।। भेदे वनाशो रा य य तत् पु प रवजय । प ा मा ा च पु य यद् वै काय परं मृतम् ।। १२ ।। ‘वैर- वरोध होनेसे रा यका नाश हो जाता है, अतः पु ! जूएका आ ह छोड़ दो। पता-माताको चा हये क वे पु को उ म कत क श ा द; इसी लये मने ऐसा कहा है ।। १२ ।। ा त वम स त ाम पतृपैतामहं पदम् । अधीतवान् कृती शा े ला लतः सततं गृहे ।। १३ ।। ‘बेटा! तुम अपने बाप-दाद के पदपर त त हो, तुमने वेद का वा याय कया है, शा क व ा ा त क है और घरम सदा तु हारा लालन-पालन आ है ।। १३ ।। ातृ ये ः थतो रा ये व दसे क न शोभनम् । पृथ जनैरल यं यद् भोजना छादनं परम् ।। १४ ।। तत् ा तोऽ स महाबाहो क मा छोच स पु क । फ तं रा ं महाबाहो पतृपैतामहं महत् ।। १५ ।। ‘महाबाहो! तुम अपने भाइय म बड़े हो, अतः राजाके पदपर थत हो, तु ह कस क याणमय व तुक ा त नह होती है? सरे लोग के लये जो अल य है, वह उ म भोजन और व तु ह ा त ह। फर तुम य शोक करते हो? महाबाहो! तु हारे बापदाद का यह महान् रा धन-धा यसे स प है ।। १४-१५ ।। े े ो

न यमा ापयन् भा स द व दे वे रो यथा । त य ते व दत शोकमूल मदं कथम् । समु थतं ःखकरं य मे शं सतुमह स ।। १६ ।। ‘ वगम दे वराज इ क भाँ त तुम इस लोकम सदा सबपर शासन करते ए शोभा पाते हो। तु हारी उ म बु स है। फर तु ह शोकक कारणभूत यह ःखदा यनी च ता कैसे ा त ई है? यह मुझसे बताओ’ ।। १६ ।।

य धन उवाच अा या छादयामी त प यन् पापपू षः । नामष कु ते य तु पु षः सोऽधमः मृतः ।। १७ ।। य धन बोला—म अ छा खाता ँ और अ छा प हनता ँ, इतना ही दे खते ए जो पापी पु ष श ु के त ई या नह करता, वह अधम बताया गया है ।। १७ ।। न मां ीणा त राजे ल मीः साधारणी वभो । व लतामेव कौ तेये यं ् वा च व थे ।। १८ ।। राजे ! यह साधारण ल मी मुझे स नह कर पाती। म तो कु तीन दन यु ध रक उस जगमगाती ई ल मीको दे खकर थत हो रहा ँ ।। १८ ।। सवा च पृ थव चैव यु ध रवशानुगाम् । थरोऽ म योऽहं जीवा म ःखादे तद् वी म ते ।। १९ ।। सारी पृ वी यु ध रके अधीन हो गयी है; फर भी म पाषाणतु य ँ, जो क ऐसा ःख ा त होनेपर भी जी वत ँ और आपसे बात करता ँ ।। १९ ।। आव जता इवाभा त नीपा ककौकुराः । कार कारा लोहजङ् घा यु ध र नवेशने ।। २० ।। नीप, च क, कुकुर, कार कर तथा लोहजंघ आ द यनरेश यु ध रके घरम सेवक क भाँ त सेवा करते ए शोभा पा रहे थे ।। २० ।। हमव सागरानूपाः सव र नाकरा तथा । अ याः सव पयुद ता यु ध र नवेशने ।। २१ ।। हमालय दे श तथा समु प के रहनेवाले और र न क खान के सभी अ धप त ले छजातीय नरेश यु ध रके घरम वेश करने नह पाते थे, उ ह महलसे र ही ठहराया गया था ।। २१ ।। ये ोऽय म त मां म वा े े त वशा पते । यु ध रेण स कृ य यु ो र नप र हे ।। २२ ।। महाराज! मुझे अ य सब भाइय से ये और े मानकर यु ध रने स कारपूवक र न क भट लेनेके कामपर नयु कर दया था ।। २२ ।। उप थतानां र नानां े ानामघहा रणाम् । ना यत परः पारो नापर त भारत ।। २३ ।। ँ







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भारत! वहाँ भट लाये ए नरेश के ारा उप थत े और ब मू य र न क जो रा श एक ई थी, उसका आरपार दखायी नह दे ता था ।। २३ ।। न मे ह तः समभवद् वसु तत् तगृ तः । अ त त म य ा ते गृ रा तं वसु ।। २४ ।। उस र नरा शको हण करते-करते जब मेरा हाथ थक गया, तब मेरे थक जानेपर राजालोग र नरा श लये ब त रतक खड़े दखायी दे ने लगते थे ।। २४ ।। कृतां व सरोर नैमयेन फा टक छदाम् । अप यं न लन पूणामुदक येव भारत ।। २५ ।। व मु कष त म य ाहसत् स वृकोदरः । श ोऋ वशेषेण वमूढं र नव जतम् ।। २६ ।। भारत! ब -सरोवरसे लाये ए र न ारा मयासुरने एक कृ म पु क रणीका नमाण कया था, जो फ टकम णक शला से आ छा दत है। वह मुझे जलसे भरी ई-सी दखायी द । भारत! जब म उसम उतरनेके लये व उठाने लगा, तब भीमसेन ठठाकर हँस पड़े। श ुक व श समृ से म मूढ़-सा हो रहा था और र न से र हत तो था ही ।। २५-२६ ।। त म य द श ः यां पातयेऽहं वृकोदरम् । य द कुया समार भं भीमं ह तुं नरा धप ।। २७ ।। शशुपाल इवा माकं ग तः या ा संशयः । सप नेनावहासो मे स मां दह त भारत ।। २८ ।। उस समय वहाँ य द म समथ होता तो भीमसेनको वह मार गराता। राजन्! य द म भीमसेनको मारनेका उ ोग करता तो मेरी भी शशुपालक -सी ही दशा हो जाती; इसम संशय नह है। भारत! श ुके ारा कया आ उपहास मुझे द ध कये दे ता है ।। २७-२८ ।। पुन ता शीमेव वाप जलजशा लनीम् । म वा शलासमां तोये प ततोऽ म नरा धप ।। २९ ।। नरे र! मने पुनः एक वैसी ही बावलीको दे खकर, जो कमल से सुशो भत हो रही थी, समझा क यह भी पहली पु क रणीक भाँ त फ टक शलासे पाटकर बराबर कर द गयी होगी; परंतु वह वा तवम जलसे प रपूण थी, इसी लये म मसे उसम गर पड़ा ।। २९ ।। त मां ाहसत् कृ णः पाथन सह सु वरम् । ौपद च सह ी भ थय ती मनो मम ।। ३० ।। वहाँ ीकृ ण अजुनके साथ मेरी ओर दे खकर जोर-जोरसे हँसने लगे। य स हत ौपद भी मेरे दयम चोट प ँचाती ई हँस रही थी ।। ३० ।। ल व य तु जले ककरा राजनो दताः । द वासां स मेऽ या न त च ःखं परं मम ।। ३१ ।। मेरे सब कपड़े जलम भीग गये थे; अतः राजाक आ ासे सेवक ने मुझे सरे व दये। यह मेरे लये बड़े ःखक बात ई ।। ३१ ।। ल भं च शृणु वा यद् वदतो मे नरा धप । े

अ ारेण व नग छन् ारसं थान पणा । अ भह य शलां भूयो ललाटे ना म व तः ।। ३२ ।। महाराज! एक और वंचना मुझे सहनी पड़ी, जसे बताता ँ, सु नये। एक जगह बना ारके ही ारक आकृ त बनी ई थी, म उसीसे नकलने लगा; अतः शलासे टकरा गया। जससे मेरे ललाटम बड़े जोरक चोट लगी ।। ३२ ।। त मां यमजौ रादालो या भहतं तदा । बा भः प रगृ तां शोच तौ स हतायुभौ ।। ३३ ।। उस समय नकुल और सहदे वने रसे मुझे टकराते दे ख नकट आकर अपने हाथ से मुझे पकड़ लया और दोन भाई साथ रहकर मेरे लये शोक करने लगे ।। ३३ ।। उवाच सहदे व तु त मां व मय व । इदं ार मतो ग छ राज त पुनः पुनः ।। ३४ ।। वहाँ सहदे वने मुझे आ यम डालते ए बार-बार यह कहा—‘राजन्! यह दरवाजा है, इधर च लये’ ।। ३४ ।। भीमसेनेन त ो ो धृतरा ा मजे त च । स बो य ह स वा च इतो ारं नरा धप ।। ३५ ।। महाराज! वहाँ भीमसेनने मुझे ‘धृतरापु ’ कहकर स बो धत कया और हँसते ए कहा—‘राजन्! इधर दरवाजा है’ ।। ३५ ।। नामधेया न र नानां पुर ता ुता न मे । या न ा न मे त यां मन तप त त च मे ।। ३६ ।। मने उस सभाम जो-जो र न दे खे ह, उनके पहले कभी नाम नह सुने थे; अतः इन सब बात के लये मेरे मनम बड़ा संताप हो रहा है ।। ३६ ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण

ूतपव ण य धनसंतापे प चाश मोऽ यायः ।। ५० ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत ूतपवम य धनसंताप वषयक पचासवाँ अ याय पूरा आ ।। ५० ।।

एकप चाश मोऽ यायः यु ध रको भटम मली ई व तु

का य धन ारा वणन

य धन उवाच य मया पा डवेयानां ं त छृ णु भारत । आ तं भू मपालै ह वसु मु यं तत ततः ।। १ ।। य धन बोला—भारत! मने पा डव के य म राजा के ारा भ - भ दे श से लाये ए जो उ म धनर न दे खे थे, उ ह बताता ँ, सु नये ।। १ ।। ना वदं मूढमा मानं ् वाहं तदरेधनम् । फलतो भू मतो वा प तप व भारत ।। २ ।। भरतकुलभूषण! आप सच मा नये, श ु का वह वैभव दे खकर मेरा मन मूढ़-सा हो गया था। म इस बातको न जान सका क यह धन कतना है और कस दे शसे लाया गया है ।। २ ।। औणान् बैलान् वाषदं शान् जात पप र कृतान् । ावारा जनमु यां का बोजः ददौ बन् ।। ३ ।। अ ां त रक माषां शतं शुकना सकान् । उ वामी शतं च पु ाः पीलुशमी दै ः ।। ४ ।। का बोजनरेशने भेड़के ऊन, बलम रहनेवाले चूहे आ दके रोएँ तथा ब लय क रोमाव लय से तैयार कये ए सुवण च त ब त-से सु दर व और मृगचम भटम दये थे। तीतर प ीक भाँ त चतकबरे और तोतेके समान नाकवाले तीन सौ घोड़े दये थे। इसके सवा तीन-तीन सौ ऊँट नयाँ और ख च रयाँ भी द थ , जो पीलु, शमी और इंगद ु खाकर मोट -ताजी ई थ ।। ३-४ ।। गोवासना ा णा दासनीया सवशः । ी यथ ते महाराज धमरा ो महा मनः ।। ५ ।। खव ब लमादाय ा र त त वा रताः । णा वाटधाना गोम तः शतसङ् घशः ।। ६ ।। कम डलूनुपादाय जात पमया छु भान् । एवं ब ल समादाय वेशं ले भरे न च ।। ७ ।। महाराज! ा णलोग तथा गाय-बैल का पोषण करनेवाले वै य और दास-कमके यो य शू आ द सभी महा मा धमराजक स ताके लये तीन खबके लागतक भट लेकर दरवाजेपर रोके ए खड़े थे। ा णलोग तथा हरी-भरी खेती उपजाकर जीवन- नवाह करनेवाले और ब त-से गाय-बैल रखनेवाले वै य सैकड़ दल म इक े होकर सोनेके बने ए सु दर कलश एवं अ य भट-साम ी लेकर ारपर खड़े थे। परंतु भीतर वेश नह कर पाते थे ।। ५—७ ।।

(य स जमु येन रा ः शङ् खो नवे दतः । ी या द ः कु ण दे न धमराजाय धीमते ।। ज म धान राजा कु ण दने परम बु मान् धमराज यु ध रको बड़े ेमसे एक शंख नवेदन कया। तं सव ातरो ा े द ः शङ् खं करी टने । तं यगृ ाद् बीभ सु तोयजं हेममा लनम् ।। चतं न कसह ेण ाजमानं वतेजसा । उस शंखको सब भाइय ने मलकर करीटधारी अजुनको दे दया। उसम सोनेका हार जड़ा आ था और एक हजार वणमु ाएँ मढ़ गयी थ । अजुनने उसे सादर हण कया। वह शंख अपने तेजसे का शत हो रहा था। चरं दशनीयं च भू षतं व कमणा ।। अधारय च धम तं नम य पुनः पुनः । सा ात् व कमाने उसे र न ारा वभू षत कया था। वह ब त ही सु दर और दशनीय था। सा ात् धमने उस शंखको बार-बार नम कार करके धारण कया था। यो अ दाने नद त स ननादा धकं तदा ।। णादाद् भू मपा त य पेतुह नाः वतेजसा ।। अ दान करनेपर वह शंख अपने-आप बज उठता था। उस समय उस शंखने बड़े जोरसे अपनी व नका व तार कया। उसके ग भीर नादसे सम त भू मपाल तेजोहीन होकर पृ वीपर गर पड़े। धृ ु नः पा डवा सा य कः केशवोऽ मः । स व थाः शौयस प ा अ यो य यका रणः ।। े













केवल धृ ु न, पाँच पा डव, सा य क तथा आठव ीकृ ण धैयपूवक खड़े रहे। ये सब-के-सब एक- सरेका य करनेवाले तथा शौयसे स प ह। वसं ान् भू मपान् ् वा मां च ते ाहसं तदा ।। ततः ो बीभ सुरददा े मशृ णः । शता यनडु हां प च जमु याय भारत ।। इ ह ने मुझको तथा सरे भू मपाल को मू छत आ दे ख जोर-जोरसे हँसना आर भ कया। उस समय अजुनने अ य त स होकर एक े ा णको पाँच सौ -पु बैल दये। वे बैल गाड़ीका बोझ ढोनेम समथ थे और उनके स ग म सोना मढ़ा गया था। सुमुखेन ब लमु यः े षतोऽजातश वे । कु ण दे न हर यं च वासां स व वधा न च ।। भारत! राजा सुमुखने अजातश ु यु ध रके पास भटक मुख व तुएँ भेजी थ । कु ण दने भाँ त-भाँ तके व और सुवण दये थे। का मीरराजो मा कं शु ं च रसव मधु । ब ल च कृ नमादाय पा डवाया युपाहरत् ।। का मीरनरेशने मीठे तथा रसीले शु अंगरू के गु छे भट कये थे। साथ ही सब कारक उपहार-साम ी लेकर उ ह ने पा डु न दन यु ध रक सेवाम उप थत क थी। यवना हयानुपादाय पवतीयान् मनोजवान् । आसना न महाहा ण क बलां महाधनान् ।। नवान् व च ान् सू मां परा यान् सु दशनान् । अ य च व वधं र नं ा र त त वा रताः ।। कतने ही यवन मनके समान वेगशाली पवतीय घोड़े, ब मू य आसन, नूतन, सू म, व च दशनीय और क मती क बल, भाँ त-भाँ तके र न तथा अ य व तुएँ लेकर राज ारपर खड़े थे, फर भी अंदर नह जाने पाते थे। ुतायुर प का ल ो म णर नमनु मम् । क लगनरेश ुतायुने उ म म णर न भट कये। द णात् सागरा याशात् ावारां परःशतान् ।। औदका न सर ना न ब ल चादाय भारत । अ ये यो भू मपाले यः पा डवाय यवेदयत् ।। इसके सवा, उ ह ने सरे भूपाल से द ण समु के नकटसे सैकड़ उ रीय व , शंख, र न तथा अ य उपहार-साम ी लेकर पा डु न दन यु ध रको सम पत क । दा रं च दनं मु यं भारान् ष णव त ुवम् । पा डवाय ददौ पा ः शङ् खां तावत एव च ।। पा नरेशने मलय और द रपवतके े च दनके छयानबे भार यु ध रको भट कये। फर उतने ही शंख भी सम पत कये। च दनाग चान तं मु ावै य च काः । चोल केरल ोभौ ददतुः पा डवाय वै ।। ो औ े े े े े ो ी ै

चोल और केरलदे शके नरेश ने असं य च दन, अगु तथा मोती, वै य तथा च क नामक र न धमराज यु ध रको अ पत कये। अ मको हेमशृ दो ीहम वभू षताः । सव साः कु भदोहा गाः सह ा यदाद् दश ।। राजा अ मकने बछड़ स हत दस हजार धा गौएँ भट क, जनके स ग म सोना मढ़ा आ था और गलेम सोनेके आभूषण पहनाये गये थे। उनके थन घड़ के समान दखायी दे ते थे। सै धवानां सह ा ण हयानां प च वश तम् । अददात् सै धवो राजा हेममा यैरलंकृतान् ।। स धुनरेशने सुवणमाला से अलंकृत पचीस हजार स धुदेशीय घोड़े उपहारम दये थे। सौवीरो ह त भयु ान् रथां शतावरान् । जात पप र कारान् म णर न वभू षतान् ।। म यं दनाक तमां तेजसा तमा नव । ब ल च कृ नमादाय पा डवाय यवेदयत् ।। सौवीरराजने हाथी जुते ए रथ दान कये, जो तीन सौसे कम न रहे ह गे। उन रथ को सुवण, म ण तथा र न से सजाया गया था। वे दोपहरके सूयक भाँ त जगमगा रहे थे। उनसे जो भा फैल रही थी, उसक कह भी उपमा न थी। इन रथ के सवा, उ ह ने अ य सब कारक भी उपहार-साम ी यु ध रको भट क थी। अव तराजो र ना न व वधा न सह शः । हारा दां मु यान् वै व वधं च वभूषणम् ।। दासीनामयुतं चैव ब लमादाय भारत । सभा ा र नर े द ुरव त ते ।। नर े भरतन दन! अव तीनरेश नाना कारके सह र न, हार, े अंगद (बाजूबंद), भाँ त-भाँ तके अ या य आभूषण, दस हजार दा सय तथा अ या य उपहारसाम ी साथ लेकर राजसभाके ारपर खड़े थे और भीतर जाकर यु ध रका दशन पानेके लये उ सुक हो रहे थे। दशाण े दराज शूरसेन वीयवान् । ब ल च कृ नमादाय पा डवाय यवेदयत् ।। दशाणनरेश, चे दराज तथा परा मी राजा शूरसेनने सब कारक उपहार-साम ी लाकर यु ध रको सम पत क । का शराजेन ेन बली राजन् नवे दतः ।। अशी तगोसह ा ण शता य ौ च द तनाम् । व वधा न च र ना न का शराजो ब ल ददौ ।। राजन्! काशीनरेशने भी बड़ी स ताके साथ अ सी हजार गौएँ, आठ सौ गजराज तथा नाना कारके र न भट कये। ै े ौ

थे।

कृत ण वैदेहः कौसल बृहलः । ददतुवा जमु यां सह ा ण चतुदश ।। वदे हराज कृत ण तथा कोसलनरेश बृहलने

चौदह-चौदह हजार उ म घोड़े दये

शै यो वसा द भः साध गत मालवैः सह । त मै र ना न ददतुरेकैको भू मपोऽ मतम् ।। हारां तु मु ान् मु यां व वधं च वभूषणम् ।) वस आ द नरेश स हत राजा शै य तथा मालव स हत गतराजने यु ध रको ब त-से र न भट कये, उनमसे एक-एक भूपालने असं य हार, े मोती तथा भाँ त-भाँ तके आभूषण सम पत कये थे। शतं दासीसह ाणां कापा सक नवा सनाम् ।। ८ ।। यामा त ो द घके यो हेमाभरणभू षताः । कापा सक दे शम नवास करनेवाली एक लाख दा सयाँ उस य म सेवा कर रही थ । वे सब-क -सब यामा तथा त वंगी थ । उन सबके केश बड़े-बड़े थे और वे सभी सोनेके आभूषण से वभू षत थ ।। ८ ।। शू ा व ो माहा ण राङ् कवा य जना न च ।। ९ ।। ब ल च कृ नमादाय भ क छ नवा सनः । उप न युमहाराज हयान् गा धारदे शजान् ।। १० ।। महाराज! भ क छ (भड़ च)- नवासी शू े ा ण के उपयोगम आनेयो य रंकुमृगके चम तथा अ य सब कारक भट-साम ी लेकर उप थत ए थे। वे अपने साथ गा धारदे शके ब त-से घोड़े भी लाये थे ।। ९-१० ।। इ कृ ैवतय त धा यैय च नद मुखैः । समु न कुटे जाताः पारे स धु च मानवाः ।। ११ ।। ते वैरामाः पारदा आभीराः कतवैः सह । व वधं ब लमादाय र ना न व वधा न च ।। १२ ।। अजा वकं गो हर यं खरो ं फलजं मधु । क बलान् व वधां ैव ा र त त वा रताः ।। १३ ।। जो समु तटवत गृहो ानम तथा स धुके उस पार रहते ह, वषा ारा इ के पैदा कये ए तथा नद के जलसे उ प ए नाना कारके धा य ारा जीवन- नवाह करते ह, वे वैराम, पारद, आभीर तथा कतव जा तके लोग नाना कारके र न एवं भाँ त-भाँ तक भट-साम ी—बकरी, भेड़, गाय, सुवण, गधे, ऊँट, फलसे तैयार कया आ मधु तथा अनेक कारके क बल लेकर राज ारपर रोक दये जानेके कारण (बाहर ही) खड़े थे और भीतर नह जाने पाते थे ।। ११—१३ ।। ा यो तषा धपः शूरो ले छानाम धपो बली । यवनैः स हतो राजा भगद ो महारथः ।। १४ ।। े

आजानेयान् हया छ ानादाया नलरंहसः । ब ल च कृ नमादाय ा र त त वा रतः ।। १५ ।। ा यो तषपुरके अ धप त तथा ले छ के वामी शूरवीर एवं बलवान् महारथी राजा भगद यवन के साथ पधारे थे और वायुके समान वेगवाले अ छ जा तके शी गामी घोड़े तथा सब कारक भट-साम ी लेकर राज ारपर खड़े थे। (अ धक भीड़के कारण) उनका वेश भी रोक दया गया था ।। १४-१५ ।।

अ मसारमयं भा डं शु द त स नसीन् । ा यो तषा धपो द वा भगद ोऽ जत् तदा ।। १६ ।। उस समय ा यो तषनरेश भगद हीरे और प राग आ द म णय के आभूषण तथा वशु हाथी-दाँतक मूँठवाले खड् ग दे कर भीतर गये थे ।। १६ ।। य ां य ाँ ललाटा ान् नाना द यः समागतान् । औ णीकान तवासां रोमकान् पु षादकान् ।। १७ ।। एकपादां त ाहमप यं ा र वा रतान् । राजानो ब लमादाय नानावणाननेकशः ।। १८ ।। कृ ण ीवान् महाकायान् रासभान् रपा तनः । आजद शसाह ान् वनीतान् द ु व ुतान् ।। १९ ।। य , य , ललाटा , औ णीक, अ तवास, रोमक, पु षादक तथा एकपाद—इन दे श के राजा नाना दशा से आकर राज ारपर रोक दये जानेके कारण खड़े थे, यह मने अपनी आँख दे खा था। ये राजालोग भट-साम ी लेकर आये थे और अपने साथ अनेक रंगवाले ब त-से रगामी गधे (ख चर) लाये थे, जनक गदन काली और शरीर वशाल थे। ी







उनक सं या दस हजार थी। वे सभी रासभ सखलाये ए तथा स पूण दशा म व यात थे ।। १७—१९ ।। माणरागस प ान् वङ् ुतीरसमु वान् । ब यथ ददत त मै हर यं रजतं ब ।। २० ।। द वा वेशं ा ता ते यु ध र नवेशने । उनक लंबाई, चौड़ाई और ऊँचाई जैसी होनी चा हये, वैसी ही थी। उनका रंग भी अ छा था। वे सम त रासभ वं ु नद के तटपर उ प ए थे। उ राजालोग यु ध रको भटके लये ब त-सा सोना और चाँद दे ते थे और दे कर यु ध रके य म डपम व होते थे ।। २० ।। इ गोपकवणाभा छु कवणान् मनोजवान् ।। २१ ।। तथैवे ायुध नभान् सं या स शान प । अनेकवणानार यान् गृही वा ान् महाजवान् ।। २२ ।। जात पमन य च द त यैकपादकाः । एकपाददे शीय राजा ने इ गोप (बीरब ट )-के समान लाल, तोतेके समान हरे, मनके समान वेगशाली, इ धनुषके तु य ब रंगे, सं याकालके बादल के स श लाल और अनेक वणवाले महावेगशाली जंगली घोड़े एवं ब मू य सुवण उ ह भटम दये ।। २१-२२ ।। चीना छकां तथा चौान् बबरान् वनवा सनः ।। २३ ।। वा णयान् हारणां क ृ णान् हैमवतां तथा । नीपानूपान धगतान् व वधान् ारवा रतान् ।। २४ ।। ब यथ ददत त य नाना पाननेकशः । कृ ण ीवान् महाकायान् रासभा छतपा तनः । अहाषुदशसाह ान् वनीतान् द ु व ुतान् ।। २५ ।। चीन, शक, ओ, वनवासी बबर, वा णय, हार, ण, कृ ण, हमालय दे श, नीप और अनूप दे श के नाना पधारी राजा वहाँ भट दे नेके लये आये थे, कतु रोक दये जानेके कारण दरवाजेपर ही खड़े थे। उ ह ने अनेक पवाले दस हजार गधे भटके लये वहाँ तुत कये थे, जनक गदन काली और शरीर वशाल थे, जो सौ कोसतक लगातार चल सकते थे। वे सभी सखलाये ए तथा सब दशा म व यात थे ।। २३—२५ ।। माणराग पशां बा चीनसमु वम् । औण च राङ् कवं चैव क टजं प जं तथा ।। २६ ।। कुट कृतं तथैवा कमलाभं सह शः । णं व मकापासमा वकं मृ चा जनम् ।। २७ ।। न शतां ैव द घासीनृ श पर धान् । अपरा तसमु तां तथैव परशू छतान् ।। २८ ।। रसान् ग धां व वधान् र ना न च सह शः ।

ब ल च कृ नमादाय ा र त त वा रताः ।। २९ ।। शका तुषाराः कङ् का रोमशाः शृ णो नराः । जनक लंबाई-चौड़ाई पूरी थी, जनका रंग सु दर और पश सुखद था, ऐसे बा क चीनके बने ए, ऊनी, हरनके रोमसमूहसे बने ए, रेशमी, पाटके, व च गु छे दार तथा कमलके तु य कोमल सह चकने व , जनम कपासका नाम भी नह था तथा मुलायम मृगचम—ये सभी व तुएँ भटके लये तुत थ । तीखी और लंबी तलवार, ऋ , श , फरसे, अपरा त (प म) दे शके बने ए तीखे परशु, भाँ त-भाँ तके रस और ग ध, सह र न तथा स पूण भट-साम ी लेकर शक, तुषार, कंक, रोमश तथा शृंगीदे शके लोग राज ारपर रोके जाकर खड़े थे ।। २६—२९ ।। महागजान् रगमान् ग णतानबुदान् हयान् ।। ३० ।। शतश ैव ब शः सुवण पस मतम् । ब लमादाय व वधं ा र त त वा रताः ।। ३१ ।। रतक जानेवाले बड़े-बड़े हाथी, जनक सं या एक अबुद थी एवं घोड़े, जनक सं या कई सौ अबुद थी और सुवण जो एक प क लागतका था—इन सबको तथा भाँ त-भाँ तक सरी उपहार-साम ीको साथ लेकर कतने ही नरेश राज ारपर रोके जाकर भट दे नेके लये खड़े थे ।। ३०-३१ ।। आसना न महाहा ण याना न शयना न च । म णका चन च ा ण गजद तमया न च ।। ३२ ।। कवचा न व च ा ण श ा ण व वधा न च । रथां व वधाकारा ात पप र कृतान् ।। ३३ ।। हयै वनीतैः स प ान् वैया प रवा रतान् । व च ां प र तोमान् र ना न व वधा न च ।। ३४ ।। नाराचानधनाराचा छ ा ण व वधा न च । एतद् द वा महद् ं पूवदे शा धपा तृपाः ।। व ा य सदनं पा डव य महा मनः ।। ३५ ।। ब मू य आसन, वाहन, र न तथा सुवणसे ज टत हाथीदाँतक बनी ए शयाए ,ँ व च कवच, भाँ त-भाँ तके श , सुवणभू षत, ा चमसे आ छा दत और सु श त घोड़ से जुते ए अनेक कारके रथ, हा थय पर बछाने यो य व च क बल, व भ कारके र न, नाराच, अधनाराच तथा अनेक तरहके श —इन सब ब मू य व तु को दे कर पूवदे शके नरप तगण महा मा पा डु न दन यु ध रके य म डपम व ए थे ।। ३२—३५ ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण

ूतपव ण य धनसंतापे एकप चाश मोऽ यायः ।। ५१ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत ूतपवम य धनसंताप वषयक इ यावनवाँ अ याय पूरा आ ।। ५१ ।। (







)

(दा

णा य अ धक पाठक े २६

ोक मलाकर कुल ६१

ोक ह)

प चाश मोऽ यायः यु ध रको भटम मली ई व तु

का य धन ारा वणन

य धन उवाच दायं तु व वधं त मै शृणु मे गदतोऽनघ । य ाथ राज भद ं महा तं धनसंचयम् ।। १ ।। य धन बोला—अनघ! राजा ारा यु ध रके य के लये दये ए जस महान् धनका सं ह वहाँ आ था, वह अनेक कारका था। म उसका वणन करता ँ, सु नये ।। मे म दरयोम ये शैलोदाम भतो नद म् । ये ते क चकवेणूनां छायां र यामुपासते ।। २ ।। खसा एकासना हाः दरा द घवेणवः । पारदा कु ल दा त णाः परत णाः ।। ३ ।। तद् वै पपी लकं नाम उद्धृतं यत् पपी लकैः । जात पं ोणमेयमहाषुः पु शो नृपाः ।। ४ ।। मे और म दराचलके बीचम वा हत होनेवाली शैलोदा नद के दोन तट पर छ म वायुके भर जानेसे वेणुक तरह बजनेवाले बाँस क रमणीय छायाम जो लोग बैठते और व ाम करते ह, वे खस, एकासन, अह, दर, द घवेणु, पारद, पु ल द, तंगण और परतंगण आ द नरेश भटम दे नेके लये पपी लका (च टय )- ारा नकाले ए पपी लक नामवाले सुवणके ढे र-के-ढे र उठा लाये थे। उसका माप ोणसे कया जाता था ।। २— ४ ।। कृ णाँ ललामां मरा छु लां ा या छ श भान् । हमव पु पजं चैव वा ौ ं तथा ब ।। ५ ।। उ रे यः कु य ा यपोढं मा यम बु भः । उ राद प कैलासादोषधीः सुमहाबलाः ।। ६ ।। पवतीया ब ल चा यमा य णताः थताः । अजातश ोनृपते ा र त त वा रताः ।। ७ ।। इतना ही नह , वे सु दर काले रंगके चँवर तथा च माके समान ेत सरे चामर एवं हमालयके पु प से उ प आ वा द मधु भी चुर मा ाम लाये थे। उ रकु दे शसे गंगाजल और मालाके यो य र न तथा उ र कैलाससे ा त ई अतीव बलस प औष धयाँ एवं अ य भटक साम ी साथ लेकर आये ए पवतीय भूपालगण अजातश ु राजा यु ध रके ारपर रोके जाकर वनीतभावसे खड़े थे ।। ये पराध हमवतः सूय दय गरौ नृपाः । का षे च समु ा ते लौ ह यम भत ये ।। ८ ।। फलमूलाशना ये च कराता मवाससः । ो

ू रश ाः ू रकृत तां प या यहं भो ।। ९ ।। पताजी! मने दे खा क जो राजा हमालयके पराधभागम नवास करते ह, जो उदय ग रके नवासी ह, जो समु -तटवत का षदे शम रहते ह तथा जो लौ ह यपवतके दोन ओर वास करते ह, फल और मूल ही जनका भोजन है, वे चमव धारी ू रतापूवक श चलानेवाले और ू रकमा करातनरेश भी वहाँ भट लेकर आये थे ।। ८-९ ।। च दनागु का ानां भारान् कालीयक य च । चमर नसुवणानां ग धानां चैव राशयः ।। १० ।। कैरातक नामयुतं दासीनां च वशा पते । आ य रमणीयाथान् रजान् मृगप णः ।। ११ ।। न चतं पवते य हर यं भू रवचसम् । ब ल च कृ नमादाय ा र त त वा रताः ।। १२ ।। राजन्! च दन और अगु का तथा कृ णागु का के अनेक भार, चम, र न, सुवण तथा सुग धत पदाथ क रा श और दस हजार करातदे शीय दा सयाँ, सु दर-सु दर पदाथ, र दे श के मृग और प ी तथा पवत से संगह ृ ीत तेज वी सुवण एवं स पूण भट-साम ी लेकर आये ए राजालोग ारपर रोके जानेके कारण खड़े थे ।। १०—१२ ।। कैराता दरदा दवाः शूरा वै यमका तथा । औ बरा वभागाः पारदा बा कैः सह ।। १३ ।। का मीरा कुमारा घोरका हंसकायनाः । श ब गतयौधेया राज या भ केकयाः ।। १४ ।। अ ब ाः कौकुरा ता या व पाः प वैः सह । वशातला मौलेयाः सह ु कमालवैः ।। १५ ।। शौ डकाः कुकुरा ैव शका ैव वशा पते । अ ा व ा पु ा शाणव या गया तथा ।। १६ ।। सुजातयः े णम तः ेयांसः श धा रणः । अहाषुः या व ं शतशोऽजातश वे ।। १७ ।। करात, दरद, दव, शूर, यमक, औ बर, वभाग, पारद, बा क, का मीर, कुमार, घोरक, हंसकायन, श ब, गत, यौधेय, भ , केकय, अ ब , कौकुर, ता य, व प, प व, वशातल, मौलेय, ु क, मालव, शौ डक, कु कुर, शक, अंग, वंग, पु , शाणव य तथा गय—ये उ म कुलम उ प े एवं श धारी य राजकुमार सैकड़ क सं याम पं ब खड़े होकर अजातश ु यु ध रको ब त धन अ पत कर रहे थे ।। १३— १७ ।। व ाः क ल ा मगधा ता ल ताः सपु काः । दौवा लकाः सागरकाः प ोणाः शैशवा तथा ।। १८ ।। कण ावरणा ैव बहव त भारत । त था ारपालै ते ो य ते राजशासनात् । कृतकालाः सुबलय ततो ारमवा यथ ।। १९ ।। ौ ो ै

भारत! वंग, क लग, मगध, ता ल त , पु क, दौवा लक, सागरक, प ोण, शैशव तथा कण ावरण आ द ब त-से यनरेश वहाँ दरवाजेपर खड़े थे तथा राजा ासे ारपालगण उन सबको यह संदेश दे ते थे क आपलोग अपने लये समय न त कर ल। फर उ म भट-साम ी अ पत कर। इसके बाद आपलोग को भीतर जानेका माग मल सकेगा ।। १८-१९ ।। ईषाद तान् हेमक ान् पवणान् क ु थावृतान् । शैलाभान् न यम ां ा य भतः का यकं सरः ।। २० ।। द वैकैको दश शतान् कु रान् कवचावृतान् । माव तः कुलीना ारेण ा वशं तदा ।। २१ ।। तदन तर एक-एक माशील और कुलीन राजाने का यक सरोवरके नकट उ प ए एक-एक हजार हा थय क भट दे कर ारके भीतर वेश कया। उन हा थय के दाँत हलद डके समान लंबे थे। उनको बाँधनेक र सी सोनेक बनी ई थी। उन हा थय का रंग कमलके समान सफेद था। उनक पीठपर झूल पड़ा आ था। वे दे खनेम पवताकार और उम तीत होते थे ।। २०-२१ ।। एते चा ये च बहवो गणा द यः समागताः । अ यै ोपा ता य र नानीह महा म भः ।। २२ ।। ये तथा और भी ब त-से भूपालगण अनेक दशा से भट लेकर आये थे। सरे- सरे महामना नरेश ने भी वहाँ र न क भट अ पत क थी ।। २२ ।। राजा च रथो नाम ग धव वासवानुगः । शता न च वायदद यानां वातरंहसाम् ।। २३ ।। इ के अनुगामी ग धवराज च रथने चार सौ द अ दये, जो वायुके समान वेगशाली थे ।। २३ ।। तु बु तु मु दतो ग धव वा जनां शतम् । आ प सवणानामददा े ममा लनाम् ।। २४ ।। तु बु नामक ग धवराजने स तापूवक सौ घोड़े भट कये, जो आमके प ेके समान हरे रंगवाले तथा सुवणक माला से वभू षत थे ।। २४ ।। कृती राजा च कौर शूकराणां वशा पते । अददाद् गजर नानां शता न सुब यथ ।। २५ ।। महाराज! शूकरदे शके पु या मा राजाने कई सौ गजर न भट कये ।। २५ ।। वराटे न तु म येन ब यथ हेममा लनाम् । कु राणां सह े े म ानां समुपा ते ।। २६ ।। म यदे शके राजा वराटने सुवणमाला से वभू षत दो हजार मतवाले हाथी उपहारके पम दये ।। २६ ।। पांशुरा ाद् वसुदानो राजा षड् वश त गजान् । अ ानां च सह े े राजन् का चनमा लनाम् ।। २७ ।। जवस वोपप ानां वय थानां नरा धप । े ो े

ब ल च कृ नमादाय पा डवे यो यवेदयत् ।। २८ ।। राजन्! राजा वसुदानने पांशुदेशसे छ बीस हाथी, वेग और श से स प दो हजार सुवणमालाभू षत जवान घोड़े और सब कारक सरी भट-साम ी भी पा डव को सम पत क ।। २७-२८ ।। य सेनेन दासीनां सह ा ण चतुदश । दासानामयुतं चैव सदाराणां वशा पते । गजयु ा महाराज रथाः षड् वश त तथा ।। २९ ।। रा यं च कृ नं पाथ यो य ाथ वै नवे दतम् । राजन्! राजा पदने चौदह हजार दा सयाँ, दस हजार सप नीक दास, हाथी जुते ए छ बीस रथ तथा अपना स पूण रा य कु तीपु को य के लये सम पत कया था ।। वासुदेवोऽ प वा णयो मानं कुवन् करी टनः ।। ३० ।। अददाद् गजमु यानां सह ा ण चतुदश । आ मा ह कृ णः पाथ य कृ ण या मा धनंजयः ।। ३१ ।। वृ णकुलभूषण वसुदेवन दन ीकृ णने भी अजुनका आदर करते ए चौदह हजार उ म हाथी दये। ीकृ ण अजुनके आ मा ह और अजुन ीकृ णके आ मा ह ।। यद् ूयादजुनः कृ णं सव कुयादसंशयम् । कृ णो धनंजय याथ वगलोकम प यजेत् ।। ३२ ।। अजुन ीकृ णसे जो कह दगे, वह सब वे नःसंदेह पूण करगे। ीकृ ण अजुनके लये परमधामको भी याग सकते ह ।। ३२ ।। तथैव पाथः कृ णाथ ाणान प प र यजेत् । सुरभ दनरसान् हेमकु भसमा थतान् ।। ३३ ।। मलयाद् द रा चैव च दनागु संचयान् । इसी कार अजुन भी ीकृ णके लये अपने ाण तकका याग कर सकते ह। मलय तथा द रपवतसे वहाँके राजालोग सोनेके घड़ म रखे ए सुग धत च दन-रस तथा च दन एवं अगु के ढे र भटके लये लेकर आये थे ।। ३३ ।। म णर ना न भा व त का चनं सू मव कम् ।। ३४ ।। चोलपा ाव प ारं न लेभाते प थतौ । चोल और पा द े श के नरेश चमक ले म ण-र न, सुवण तथा महीन व लेकर उप थत ए थे; परंतु उ ह भी भीतर जानेके लये रा ता नह मला ।। ३४ ।। समु सारं वै य मु ासङ् घां तथैव च ।। ३५ ।। शतश कुथां त सहलाः समुपाहरन् । सहलदे शके य ने समु का सारभूत वै य, मो तय के ढे र तथा हा थय के सैकड़ झूल अ पत कये ।। संवृता म णचीरै तु यामा ता ा तलोचनाः ।। ३६ ।। ता गृही वा नरा त ा र त त वा रताः । ी



ी यथ ा णा ैव या व न जताः ।। ३७ ।। उपाज वश ैव शू ाः शु ूषव तथा । वे सहलदे शीय वीर म णयु व से अपने शरीर को ढके ए थे। उनके शरीरका रंग काला था और उनक आँख के कोने लाल दखायी दे ते थे। उन भट-साम य को लेकर वे सब लोग दरवाजेपर रोके ए खड़े थे। ा ण, व जत य, वै य तथा सेवाक इ छावाले शू स ता-पूवक वहाँ उपहार अ पत करते थे ।। ३६-३७ ।। ी या च ब माना चा युपाग छन् यु ध रम् ।। ३८ ।। सव ले छाः सववणा आ दम या तजा तथा । सभी ले छ तथा आ द, म य और अ तम उ प सभी वणके लोग वशेष ेम और आदरके साथ यु ध रके पास भट लेकर आये थे ।। ३८ ।। नानादे शसमु थै नानाजा त भरेव च ।। ३९ ।। पय त इव लोकोऽयं यु ध र नवेशने । अनेक दे श म उ प और व भ जा तके लोग के आगमनसे यु ध रके य म डपम मानो यह स पूण लोक ही एक आ जान पड़ता था ।। ३९ ।। उ चावचानुप ाहान् राज भः ा पतान् बन् ।। ४० ।। श ूणां प यतो ःखा मुमूषा मे जायत । भृ या तु ये पा डवानां तां ते व या म पा थव ।। ४१ ।। येषामामं च प वं च सं वध े यु ध रः । मेरे श ु के घरम राजा ारा लाये ए ब त-से छोटे -बड़े उपहार को दे खकर ःखसे मुझे मरनेक इ छा होती थी। राजन्! पा डव के वहाँ जन लोग का भरण-पोषण होता है, उनक सं या म आपको बता रहा ँ। राजा यु ध र उन सबके लये क चे-प के भोजनक व था करते ह ।। ४०-४१ ।। अयुतं ी ण पा न गजारोहाः ससा दनः ।। ४२ ।। रथानामबुदं चा प पादाता बहव तथा । यु ध रके यहाँ तीन प दस हजार हाथीसवार और घुड़सवार, एक अबुद (दस करोड़) रथारोही तथा असं य पैदल सै नक ह ।। ४२ ।। मीयमाणमामं च प यमानं तथैव च ।। ४३ ।। वसृ यमानं चा य पु याह वन एव च । यु ध रके य म कह क चा अ तौला जा रहा था, कह पक रहा था, कह परोसा जाता था और कह ा ण के पु याहवाचनक व न सुनायी पड़ती थी ।। ४३ ।। नाभु व तं नापीतं नालङ् कृतमस कृतम् ।। ४४ ।। अप यं सववणानां यु ध र नवेशने । मने यु ध रके य म डपम सभी वणके लोग मसे कसीको ऐसा नह दे खा, जो खापीकर आभूषण से वभू षत और स कृत न आ हो ।। ४४ ।। अ ाशी तसह ा ण नातका गृहमे धनः ।। ४५ ।। ी





श ासीक एकैको यान् बभ त यु ध रः । राजा यु ध र घरम बसनेवाले जन अासी हजार नातक का भरण-पोषण करते ह, उनमसे येकक सेवाम तीस-तीस दास-दासी उप थत रहते ह ।। ४५ ।। सु ीताः प रतु ा ते ाशंस य र यम् ।। ४६ ।। वे सब ा ण भोजनसे अ य त तृ त एवं संतु हो राजा यु ध रको उनके (कामोधा द) श ु के वनाशके लये आशीवाद दे ते ह ।। ४६ ।। दशा या न सह ा ण यतीनामू वरेतसाम् । भु ते मपा ी भयु ध र नवेशने ।। ४७ ।। इसी कार यु ध रके महलम सरे दस हजार ऊ वरेता य त भी सोनेक था लय म भोजन करते ह ।। ४७ ।।

अभु ं भु वद् वा प सवमाकु जवामनम् । अभु ाना या सेनी यवै द् वशा पते ।। ४८ ।। राजन्! उस य म ौपद त दन वयं पहले भोजन न करके इस बातक दे खभाल करती थी क कुबड़े और बौन से लेकर सब मनु य म कसने खाया है और कसने अभीतक भोजन नह कया है ।। ४८ ।। ौ करौ न य छे तां कु तीपु ाय भारत । स ब धकेन प चालाः स येना धकवृ णयः ।। ४९ ।। भारत! कु तीन दन यु ध रको दो ही कुलके लोग कर नह दे ते थे। स ब धके कारण पांचाल और म ताके कारण अ धक एवं वृ ण ।। ४९ ।। ी







इत

ीमहाभारते सभापव ण

ूतपव ण य धनसंतापे प चाश मोऽ यायः ।। ५२ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत ूतपवम य धनसंताप वषयक बावनवाँ अ याय पूरा आ ।। ५२ ।।

प चाश मोऽ यायः य धन ारा यु ध रके अ भषेकका वणन य धन उवाच आया तु ये वै राजानः स यसंधा महा ताः । पया त व ा व ारो वेदो ावभृथ लुताः ।। १ ।। धृ तम तो ी नषेवा धमा मानो यश वनः । मूधा भ ष ा ते चैनं राजानः पयुपासते ।। २ ।। द णाथ समानीता राज भः कां यदोहनाः । आर या ब साह ा अप यं त त गाः ।। ३ ।। य धन बोला— पताजी! जो राजा आय, स य त , महा ती, व ान्, व ा, वेदो य के अ तम अवभृथ- नान करनेवाले, धैयवान्, ल जाशील, धमा मा, यश वी तथा मूधा भ ष थे, वे सभी इन धमराज यु ध रक उपासना करते थे। राजा ने द णाम दे नेके लये जो गौएँ मँगवायी थ , उन सबको मने जहाँ-तहाँ दे खा। उनके धपा काँसेके थे। वे सब-क -सब जंगल म खुली चरनेवाली थ तथा उनक सं या कई हजार थी ।। आज त स कृ य वयमु य भारत । अ भषेकाथम ा भा डमु चावचं नृपाः ।। ४ ।। बा को रथमाहाष जा बूनद वभू षतम् । सुद ण तु युयुजे ेतैः का बोजजैहयैः ।। ५ ।। भारत! राजालोग यु ध रके अ भषेकके लये वयं ही य न करके शा त च हो स कारपूवक छोटे -बड़े पा उठा-उठाकर ले आये थे। बा कनरेश रथ ले आये, जो सुवणसे सजाया गया था। सुद णने उस रथम का बोजदे शके सफेद घोड़े जोत दये ।। ४-५ ।। सुनीथः ी तमां ैव नुकष महाबलः । वजं चे दप त ैवमहाष त् वयमु तम् ।। ६ ।। दा णा यः संनहनं गु णीषे च मागधः । वसुदानो महे वासो गजे ं ष हायनम् ।। ७ ।। म य व ान् हेमन ानेकल उपानहौ । आव य व भषेकाथमापो ब वधा तथा ।। ८ ।। चे कतान उपास े धनुः का य उपाहरत् । अ स च सु स ं श यः शै यं का चनभूषणम् ।। ९ ।। महाबली सुनीथने बड़ी स ताके साथ उसम अनुकष (रथके नीचे लगनेयो य का ) लगा दया। चे दराजने वयं उस रथम वजा फहरा द । द णदे शके राजाने कवच दया। े









मगधनरेशने माला और पगड़ी तुत क । महान् धनुधर वसुदानने साठ वषक अव थाका एक गजराज उप थत कर दया। म यनरेशने सुवणज टत धुरी ला द । एकल ने पैर के समीप जूते लाकर रख दये। अव तीनरेशने अ भषेकके लये अनेक कारका जल एक कर दया। चे कतानने तूणीर और का शराजने धनुष अ पत कया। श यने अ छ मूठवाली तलवार तथा छके पर रखा आ सुवणभू षत कलश दान कया ।। ६—९ ।। अ य ष चत् ततो धौ यो ास सुमहातपाः । नारदं च पुर कृ य दे वलं चा सतं मु नम् ।। १० ।। तदन तर धौ य तथा महातप वी ासने दे व ष नारद, दे वल और अ सत मु नको आगे करके यु ध रका अ भषेक कया ।। १० ।। ी तम त उपा त भषेकं महषयः । जामद येन स हता तथा ये वेदपारगाः ।। ११ ।। परशुरामजीके साथ वेदके पारंगत सरे व ान् मह षय ने बड़ी स ताके साथ राजा यु ध रका अ भषेक कया ।। ११ ।। अ भज मुमहा मानो म वद् भू रद णम् । महे मव दे वे ं द व स तषयो यथा ।। १२ ।। जैसे वगम दे वराज इ के पास स त ष पधारते ह, उसी कार पया त द णा दे नेवाले महाराज यु ध रके पास ब त-से महा मा म ो चारण करते ए पधारे थे ।। अधारय छ म य सा य कः स य व मः । धनंजय जने भीमसेन पा डवः ।। १३ ।। स यपरा मी सा य कने यु ध रके लये छ धारण कया तथा अजुन और भीमसेनने जन डु लाये ।। चामरे चा प शु े े यमौ जगृहतु तथा । उपागृ ाद् य म ाय पुराक पे जाप तः ।। १४ ।। तम मै शङ् खमाहाष द् वा णं कलशोद धः । शै यं न कसह ेण सुकृतं व कमणा ।। १५ ।। तेना भ ष ः कृ णेन त मे क मलोऽभवत् । तथा नकुल और सहदे वने दो वशु चँवर हाथम ले लये। पूवकालम जाप तने इ के लये जस शंखको धारण कया था, वही व णदे वताका शंख समु ने यु ध रको भट कया था। व कमाने एक हजार वणमु ा से जस शै यपा (छके पर रखे ए सुवणकलश)-का नमाण कया था, उसम थत समु जलको शंखम लेकर ीकृ णने यु ध रका अ भषेक कया। उस समय वहाँ मुझे मू छा आ गयी थी ।। ग छ त पूवादपरं समु ं चा प द णम् ।। १६ ।। पताजी! लोग जल लानेके लये पूवसे प म समु तक जाते ह, द ण समु क भी या ा करते ह ।। उ रं तु न ग छ त वना तात पत भः । त म द मुः शतशः शङ् खान् म लकारकान् ।। १७ ।। ो ो े

ाणद त समा माता ततो रोमा ण मेऽ षन् । ापतन् भू मपाला ये तु हीनाः वतेजसा ।। १८ ।। परंतु उ र समु तक प य के सवा और कोई नह जाता; ( कतु वहाँ भी अजुन प ँच गये।) वहाँ अ भषेकके समय सैकड़ मंगलकारी शंख एक साथ ही जोर-जोरसे बजने लगे, जससे मेरे र गटे खड़े हो गये। उस समय वहाँ जो तेजोहीन भूपाल थे, वे भयके मारे मू छत होकर गर पड़े ।। १७-१८ ।। धृ ु नः पा डवा सा य कः केशवोऽ मः । स व था वीयस प ा यो य यदशनाः ।। १९ ।। धृ ु न, पाँच पा डव, सा य क और आठव ीकृ ण—ये ही धैयपूवक थर रहे। ये सभी परा मस प तथा एक- सरेका य करनेवाले ह ।। १९ ।।

वसं ान् भू मपान् ् वा मां च ते ाहसं तदा । ततः ो बीभ सुः ादा े म वषा णनाम् ।। २० ।। शता यनडु हां प च जमु येषु भारत । न र तदे वो नाभागो यौवना ो मनुन च ।। २१ ।। न च राजा पृथुव यो न चा यासीद् भगीरथः । यया तन षो वा प यथा राजा यु ध रः ।। २२ ।। वे मुझे तथा अ य राजा को अचेत ए दे खकर उस समय जोर-जोरसे हँस रहे थे। भारत! तदन तर अजुनने स होकर पाँच सौ बैल को, जनके स ग म सोना मँढ़ा आ था, मु य-मु य ा ण म बाँट दया। पताजी! न र तदे व, न नाभाग, न मा धाता, न मनु, े





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न वेनन दन राजा पृथु, न भगीरथ, न यया त और न न ष ही वैसे ऐ यस प साट ् थे, जैसे क आज राजा यु ध र ह ।। २०—२२ ।। यथा तमा ं कौ तेयः या परमया युतः । राजसूयमवा यैवं ह र इव भुः ।। २३ ।। कु तीन दन यु ध र राजसूयय पूण करके अ य त उ चको टक राजल मीसे स प हो गये ह। ये श शाली महाराज ह र क भाँ त सुशो भत होते ह ।। २३ ।। एतां ् वा यं पाथ ह र े यथा वभो । कथं तु जी वतं ेयो मम प य स भारत ।। २४ ।। भारत! ह र क भाँ त कु तीन दन यु ध रक इस राजल मीको दे खकर मेरा जी वत रहना आप कस से अ छा समझते ह? ।। २४ ।। अ धेनेव युगं न ं वपय तं नरा धप । कनीयांसो ववध ते ये ा हीय त एव च ।। २५ ।। राजन्! यह युग अंधे वधातासे बँधा आ है। इसी लये इसम सब बात उलट हो रही ह। छोटे बढ़ रहे ह और बड़े हीन दशाम गरते जा रहे ह ।। २५ ।। एवं ् वा ना भ व दा म शम समी माणोऽ प कु वीर । तेनाहमेवं कृशतां गत ववणतां चैव सशोकतां च ।। २६ ।। कु वीर! ऐसा दे खकर अ छ तरह वचार करनेपर भी मुझे चैन नह पड़ता। इसीसे म बल, का तहीन और शोकम न हो रहा ँ ।। २६ ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण

ूतपव ण य धनसंतापे प चाश मोऽ यायः ।। ५३ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत ूतपवम य धनसंताप वषयक तरपनवाँ अ याय पूरा आ ।। ५३ ।।

चतुःप चाश मोऽ यायः धृतरा का य धनको समझाना धृतरा उवाच वं वै ये ो यै नेयः पु मा पा डवान् षः । े ा सुखमाद े यथैव नधनं तथा ।। १ ।। धृतरा बोले— य धन! तुम मेरे ये पु हो, जेठ रानीके गभसे उ प ए हो। बेटा! पा डव से े ष मत करो; य क े ष करनेवाला मनु य मृ युके समान क पाता है ।। अ ु प ं समानाथ तु य म ं यु ध रम् । अ ष तं कथं यात् वा शो भरतषभ ।। २ ।। यु ध र कसीके साथ छल नह करते, उनका धन तु हारे ही जैसा है। जो तु हारे म ह, वे उनके भी म ह और यु ध र तुमसे कभी े ष नह करते। भरतकुल तलक! फर तु हारे-जैसे पु षको उनसे े ष य करना चा हये? ।। तु या भजनवीय कथं ातुः यं नृप । पु कामयसे मोहा मैवं भूः शा य मा शुचः ।। ३ ।। राजन्! तु हारा और यु ध रका कुल एवं परा म एक-सा है। बेटा! तुम मोहवश अपने भाईक ल मीक इ छा य करते हो? ऐसे अधम न बनो; शा तभावसे रहो। शोक न करो ।। ३ ।। अथ य वभू त तां काङ् से भरतषभ । ऋ वज तव त व तु स तत तुं महा वरम् ।। ४ ।। भरत े ! य द तुम उस य -वैभवको पानेक अ भलाषा रखते हो तो ऋ वजलोग तु हारे लये भी गाय ी आ द सात छ द पी त तु से यु राजसूय महाय का अनु ान करा दगे ।। ४ ।। आह र य त राजान तवा प वपुलं धनम् । ी या च ब माना च र ना याभरणा न च ।। ५ ।। उसम दे श-दे शके राजालोग तु हारे लये भी बड़े ेम और आदरसे र न, आभूषण तथा ब त धन ले आयगे ।। ५ ।। (मही काम घा सा ह वीरप नी त चो यते । तथा वीया ता भू म तनुते ह मनोरथम् ।। तवा य त ह चेद ् वीय भो यसे ह मही ममाम् ।।) बेटा! यह पृ वी कामधेनु है। इसे वीरप नी भी कहते ह। अपने परा मसे जीती ई भू म मनोवां छत फल दान करती है। य द तुमम भी बल और परा म हो तो तुम इस पृ वीका यथे उपभोग कर सकते हो।

अनायाच रतं तात पर व पृहणं भृशम् । वसंतु ः वधम थो यः स वै सुखमेधते ।। ६ ।। अ ापारः पराथषु न यो ोगः वकमसु । र णं समुपा ानामेतद् वैभवल णम् ।। ७ ।। तात! सरेके धनक पृहा रखना नीच पु ष का काम है। जो भलीभाँ त अपने धनसे संतु तथा अपने धमम ही थत है, वही सुखपूवक उ तशील होता है। सरेके धनको हड़पनेक कोई चे ा न करना, अपने कत को पूरा करनेके लये सदा य नशील रहना और अपनेको जो कुछ ा त है, उसक र ा करना—यही उ म वैभवका ल ण है ।। वप व थो द ो न यमु थानवान् नरः । अ म ो वनीता मा न यं भ ा ण प य त ।। ८ ।। जो वप म थत नह होता, सदा उ ोगशील बना रहता है, जसम मादका अभाव है तथा जसके दयम वनय प सद्गुण है, वह चतुर मनु य सदा क याण ही दे खता है ।। ८ ।। बा नवैतान् मा छ े सीः पा डु पु ा तथैव ते । ातॄणां त नाथ वै म ोहं च मा कु ।। ९ ।। ये पा डु पु तु हारी भुजा के समान ह, इ ह काटो मत। इसी कार तुम भाइय के धनके लये म ोह न करो ।। ९ ।। पा डोः पु ान् मा ष वेह राजंतथैव ते ातृधनं सम म् । म ोहे तात महानधमः पतामहा ये तव तेऽ प तेषाम् ।। १० ।। राजन्! तुम पा डव से े ष न करो। वे तु हारे भाई ह और भाइय का सारा धन तु हारा ही है। तात! म ोहसे ब त बड़ा पाप होता है। दे खो, जो तु हारे बाप-दादे ह, वे ही उनके भी ह ।। १० ।। अ तव ां ददद् व ं कामाननुभवन् यान् । डन् ी भ नरातङ् कः शा य भरतषभ ।। ११ ।। भरत े ! तुम य म धन दान करो, मनको य लगनेवाले भोग भोगो और नभय होकर य के साथ ड़ा करते ए शा त रहो ।। ११ ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण

ूतपव ण य धनसंतापे चतुःप चाश मोऽ यायः ।। ५४ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत ूतपवम य धनसंताप वषयक चौवनवाँ अ याय पूरा आ ।। ५४ ।। (दा णा य अ धक पाठक े १ ोक मलाकर कुल १२ ोक ह)

प चप चाश मोऽ यायः य धनका धृतरा को उकसाना य धन उवाच य य ना त नजा ा केवलं तु ब ुतः । न स जाना त शा ाथ दव सूपरसा नव ।। १ ।। य धन बोला— पताजी! जसके पास अपनी बु नह है, जसने केवल ब त-से शा का वणभर कया है, वह शा के ता पयको नह समझ सकता; ठ क उसी तरह, जैसे कलछ दालके रसको नह जानती ।। १ ।। जानन् वै मोहय स मां ना व नौ रव संयता । वाथ क नावधानं ते उताहो े मां भवान् ।। २ ।। एक नौकाम बँधी ई सरी नौकाके समान आप व रक बु के आ त ह। जानते ए भी मुझे मोहम य डालते ह, वाथसाधनके लये या आपम त नक भी सावधानी नह है अथवा आप मुझसे े ष रखते ह? ।। २ ।।

न स तीमे धातरा ा येषां वमनुशा सता । भ व यमथमा या स सवदा कृ यमा मनः ।। ३ ।। आप जनके शासक ह, वे धातरा नह के बराबर ह ( य क आप उ ह वे छासे उ तके पथपर बढ़ने नह दे ते)। आप सदा अपने वतमान कत को भ व यपर ही टालते रहते ह ।। ३ ।। परनेयोऽ णीय य स मागान् त मु त । े

प थानमनुग छे युः कथं त य पदानुगाः ।। ४ ।। जस दलका अगुआ सरेक बु पर चलता हो, वह अपने मागम सदा मो हत होता रहता है। फर उसके पीछे चलनेवाले लोग अपने मागका अनुसरण कैसे कर सकते ह? ।। ४ ।। राजन् प रणत ो वृ सेवी जते यः । तप ान् वकायषु स मोहय स नो भृशम् ।। ५ ।। राजन्! आपक बु प रप व है, आप वृ पु ष क सेवा करते रहते ह, आपने अपनी इ य पर वजय पा ली है, तो भी जब हमलोग अपने काय म त पर होते ह, उस समय आप हम बार-बार मोहम ही डाल दे ते ह ।। ५ ।। लोकवृ ाद् राजवृ म यदाह बृह प तः । त माद् रा ा म ेन वाथ यः सदै व ह ।। ६ ।। य य महाराज जये वृ ः समा हता । स वै धम वधम वा ववृ ौ का परी णा ।। ७ ।। बृह प तने राज वहारको लोक वहारसे भ बताया है; अतः राजाको सावधान होकर सदा अपने योजनका ही च तन करना चा हये। महाराज! यक वृ वजयम ही लगी रहती है, वह चाहे धम हो या अधम। अपनी वृ के वषयम या परी ा करनी है? ।। ६-७ ।। कालयेद ् दशः सवाः तोदे नेव सार थः । यम यं द तां जघृ ुभरतषभ ।। ८ ।। भरतकुलभूषण! श ुक जगमगाती ई राजल मीको अपने अ धकारम करनेक इ छावाला भूपाल स पूण दशा का उसी कार संचालन करे, जैसे सार थ चाबुकसे घोड़ को हाँककर अपनी चके अनुसार चलाता है ।। छ ो वा काशो वा योगो योऽर बाधते । तद् वै श ं श वदां न श ं छे दनं मृतम् ।। ९ ।। गु त या कट, जो उपाय श ुको संकटम डाल दे , वही श पु ष का श है। केवल काटनेवाला श ही श नह है ।। ९ ।। श ु ैव ह म ं च न ले यं न च मातृका । यो वै संतापय त यं स श ुः ो यते नृप ।। १० ।। राजन्! अमुक श ु है और अमुक म , इसका कोई लेखा नह है और न श ुम सूचक कोई अ र ही है। जो जसको संताप दे ता है, वही उसका श ु कहा जाता है ।। १० ।। असंतोषः यो मूलं त मात् तं कामया यहम् । समु ये यो यतते स राजन् परमो नयः ।। ११ ।। असंतोष ही ल मीक ा तका मूल कारण है; अतः म असंतोष चाहता ँ। राजन्! जो अपनी उ तके लये य न करता है, उसका वह य न ही सव म नी त है ।। मम वं ह न कत मै य वा धनेऽ प वा । े

पूवावा तं हर य ये राजधम ह तं व ः ।। १२ ।। ऐ य अथवा धनम ममता नह करनी चा हये, य क पहलेके उपाजत धनको सरे लोग बलात् छ न लेते ह। यही राजधम माना गया है ।। १२ ।। अ ोहसमयं कृ वा च छे द नमुचेः शरः । श ः सा भमता त य रपौ वृ ः सनातनी ।। १३ ।। इ ने नमु चसे कभी वैर न करनेक त ा करके उसपर व ास जमाया और मौका दे खकर उसका सर काट लया। तात! श ुके त इसी कारका वहार सदासे होता चला आया है। यह इ को भी मा य है ।। १३ ।। ावेतौ सते भू मः सप बलशया नव । राजानं चा वरो ारं ा णं चा वा सनम् ।। १४ ।। जैसे सप बलम रहनेवाले चूह आ दको नगल जाता है, उसी कार यह भू म वरोध न करनेवाले राजा तथा परदे शम न वचरनेवाले ा ण (सं यासी)-को स लेती है ।। १४ ।। ना त वै जा ततः श ुः पु ष य वशा पते । येन साधारणी वृ ः स श ुनतरो जनः ।। १५ ।। नरे र! मनु यका ज मसे कोई श ु नह होता, जसके साथ एक-सी जी वका होती है अथात् जो लोग एक ही वृ से जीवन नवाह करते ह, वे ही (ई याके कारण) आपसम एक- सरेके श ु होते ह, सरे नह ।। १५ ।। श ुप ं समृ य तं यो मोहात् समुपे ते । ा धरा या यत इव त य मूलं छन सः ।। १६ ।। जो नर तर बढ़ते ए श ुप क ओरसे मोहवश उदासीन हो जाता है, बढ़े ए रोगक भाँ त श ु उस उदासीन राजाक जड़ काट डालता है ।। १६ ।। अ पोऽ प रर यथ वधमानः परा मैः । व मीको मूलज इव सते वृ म तकात् ।। १७ ।। जैसे वृ क जड़म उ प ई द मक उसम लगी रहनेके कारण उस वृ को ही खा जाती है, वैसे ही छोटा-सा भी श ु य द परा मसे ब त बढ़ जाय, तो वह पहलेके बल श ुको भी न कर डालता है ।। १७ ।। आजमीढ रपोल मीमा ते रो च भारत । एष भारः स ववतां नयः शर स व तः ।। १८ ।। भरतकुलभूषण! अजमीढन दन! आपको श ुक ल मी अ छ नह लगनी चा हये। हर समय यायको सरपर चढ़ाये रखना भी बु मान के लये भार ही है ।। १८ ।। ज मवृ मवाथानां यो वृ म भकाङ् ते । एधते ा तषु स वै स ो वृ ह व मः ।। १९ ।। जो ज मकालसे शरीर आ दक वृ के समान धनवृ क भी अ भलाषा करता है, वह कुटु बीजन म ब त आगे बढ़ जाता है। परा म करना त काल उ तका कारण है ।। १९ ।। ै ो े

ना ा य पा डवै य संशयो मे भ व य त । अवा ये वा यं तां ह श य ये वा हतो यु ध ।। २० ।। जबतक म पा डव क स प को ा त न कर लूँ, तबतक मेरे मनम वधा ही रहेगी। इस लये या तो म पा डव क उस स प को ले लूँगा अथवा यु म मरकर सो जाऊँगा (तभी मेरी वधा मटे गी) ।। २० ।। एता श य क मेऽ जी वतेन वशा पते । वध ते पा डवा न यं वयं व थरवृ यः ।। २१ ।। महाराज! आज जो मेरी दशा है, इसम मेरे जी वत रहनेसे या लाभ? पा डव त दन उ त कर रहे ह और हम लोग क वृ (उ त) अ थर है—अ धक कालतक टकनेवाली नह जान पड़ती है ।। २१ ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण

ूतपव ण य धनसंतापे प चप चाश मोऽ यायः ।। ५५ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत ूतपवम य धनसंताप वषयक पचपनवाँ अ याय पूरा आ ।। ५५ ।।

षट् प चाश मोऽ यायः धृतरा और य धनक बातचीत, ूत ड़ ाके लये सभा नमाण और धृतरा का यु ध रको बुलानेके लये व रको आ ा दे ना शकु न वाच यां वमेतां यं ् वा पा डु पु े यु ध रे । त यसे तां ह र या म ूतेन जयतां वर ।। १ ।। शकु न बोला— वजयी वीर म े य धन! तुम पा डु पु यु ध रक जस ल मीको दे खकर संत त हो रहे हो, उसका म ूतके ारा अपहरण कर लूँगा ।। आयतां परं राजन् क ु तीपु ो यु ध रः । अग वा संशयमहमयुद ् वा च चमूमुखे ।। २ ।। अ ान् प तः सन् व ान व षो जये । लहान् धनूं ष मे व शरान ां भारत ।। ३ ।। परंतु राजन्! तुम कु तीपु यु ध रको बुला लो। म कसी संशयम पड़े बना, सेनाके सामने यु कये बना केवल पासे फककर वयं कसी कारक त उठाये बना ही पा डव को जीत लूँगा; य क म ूत व ाका ाता ँ और पा डव इस कलासे अन भ ह। भारत! दाव को मेरे धनुष समझो और पास को मेरे बाण ।। २-३ ।। अ ाणां दयं मे यां रथं व ममा तरम् ।। ४ ।। पास का जो दय (मम) है, उसीको मेरे धनुषक यंचा समझो और जहाँसे पासे फके जाते ह, वह थान ही मेरा रथ है ।। ४ ।। य धन उवाच अयमु सहते राज यमाहतुम वत् । ूतेन पा डु पु े य तदनु ातुमह स ।। ५ ।। य धन बोला—राजन्! ये मामाजी पासे फकनेक कलाम नपुण ह। ये ूतके ारा पा डव से उनक स प ले लेनेका उ साह रखते ह। उसके लये इ ह आ ा द जये ।। ५ ।। धृतरा उवाच थतोऽ म शासने ातु व र य महा मनः । तेन संग य वे या म काय या य व न यम् ।। ६ ।। धृतरा बोले—बेटा! म अपने भाई महा मा व रक स म तके अनुसार चलता ँ। उनसे मलकर यह जान सकूँगा क इस कायके वषयम या न य करना चा हये? ।। ६ ।।

य धन उवाच पने य त ते बु व रो मु संशयः । पा डवानां हते यु ो न तथा मम कौरव ।। ७ ।। य धन बोला— पताजी! व र सब कारसे संशयर हत ह। वे आपक बु को जूएके न यसे हटा दगे। कु न दन! वे जैसे पा डव के हतम संल न रहते ह, वैसे मेरे हतम नह ।। ७ ।। नारभेता यसामयात् पु षः कायमा मनः । म तसा यं योना त कायषु कु न दन ।। ८ ।। मनु यको चा हये क वह अपना काय सरेके बलपर न करे। कु राज! कसी भी कायम दो पु ष क राय पूण पसे नह मलती ।। ८ ।। भयं प रहरन् म द आ मानं प रपालयन् । वषासु ल कटवत् त ेवावसीद त ।। ९ ।। मूख मनु य भयका याग और आ मर ा करते ए भी य द चुपचाप बैठा रहे, उ ोग न करे, तो वह वषाकालम भ गी ई चटाईके समान न हो जाता है ।। ९ ।। न ाधयो ना प यमः ा तुं ेयः ती ते । यावदे व भवेत् क प ताव े यः समाचरेत् ।। १० ।। रोग अथवा यमराज इस बातक ती ा नह करते क इसने ेय ा त कर लया या नह । अतः जबतक अपनेम साम य हो, तभीतक अपने हतका साधन कर लेना चा हये ।। १० ।। धृतरा उवाच सवथा पु ब ल भ व हो मे न रोचते । वैरं वकारं सृज त तद् वै श मनायसम् ।। ११ ।। धृतरा ने कहा—बेटा! मुझे तो बलवान के साथ वरोध करना कसी कार भी अ छा नह लगता; य क वैर- वरोध बड़ा भारी झगड़ा खड़ा कर दे ता है, जो (कुलके वनाशके लये) बना लोहेका श है ।। ११ ।। अनथमथ म यसे राजपु सं थनं कलह या त घोरम् । तद् वै वृ ं तु यथा कथं चत् सृजेदसीन् न शतान् सायकां ।। १२ ।। राजकुमार! तुम ूत पी अनथको ही अथ मान रहे हो। यह जूआ कलहको ही गूँथनेवाला एवं अ य त भयंकर है। य द कसी कार यह शु हो गया तो तीखी तलवार और बाण क भी सृ कर दे गा ।। १२ ।। य धन उवाच ूते पुराणै वहारः णीतो

त ा ययो ना त न स हारः । तद् रोचतां शकुनेवा यम सभां ं व महा ापय व ।। १३ ।। य धन बोला— पताजी! पुराने लोग ने भी ूत ड़ाका वहार कया है। उसम न तो दोष है और न यु ही होता है। अतः आप शकु न मामाक बात मान ली जये और शी ही यहाँ ( ूतके लये) सभाम डप बन जानेक आ ा द जये ।। १३ ।। वग ारं द तां नो व श ं त तनां चा प तथैव यु म् । भवेदेवं ा मना तु यमेव रोदरं पा डवै वं कु व ।। १४ ।। यह जूआ हम खेलनेवाल के लये एक व श वग य सुखका ार है। उसके आसपास बैठनेवाले लोग के लये भी वह वैसा ही सुखद होता है। इस कार इसम पा डव को भी हमारे समान ही सुख ा त होगा। अतः आप पा डव के साथ ूत ड़ाक व था क जये ।।

धृतरा उवाच वा यं न मे रोचते यत् वयो ं यत् ते यं तत् यतां नरे । प ात् त यसे त पा य वा यं न ही शं भा व वचो ह ध यम् ।। १५ ।। धृतरा ने कहा—बेटा! तुमने जो बात कही है, वह मुझे अ छ नह लगती। नरे ! जैसी तु हारी च हो, वैसा करो। जूएका आर भ करनेपर मेरी बात को याद करके तुम पीछे पछताओगे; य क ऐसी बात जो तु हारे मुखसे नकली ह, धमानुकूल नह कही जा सकत ।। १५ ।। ं ेतद् व रेणैव सव वप ता बु व ानुगेन । तदे वैतदवश या युपै त महद् भयं यजीवघा त ।। १६ ।। बु और व ाका अनुसरण करनेवाले व ान् व रने यह सब प रणाम पहलेसे ही दे ख लया था। य के लये वनाशकारी वही यह महान् भय मुझ ववशके सामने आ रहा है ।। १६ ।। वैश पायन उवाच एवमु वा धृतरा ो मनीषी दै वं म वा परमं तरं च । शशासो चैः पु षान् पु वा ये थतो राजा दै वस मूढचेताः ।। १७ ।। े ै

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त भां हेमवै य च ां शत ारां तोरण फा टका याम् । सभाम यां ोशमा ायतां मे त तारामाशु कुव तु यु ाः ।। १८ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! ऐसा कहकर बु मान् राजा धृतराने दै वको परम तर माना और दै वके तापसे ही उनके च पर मोह छा गया। वे कत ाकत का नणय करनेम असमथ हो गये। फर पु क बात मानकर उ ह ने सेवक को आ ा द क शी ही त पर होकर तोरण फा टक नामक सभा तैयार कराओ। उसम सुवण तथा वै यसे ज टत एक हजार ख भे और सौ दरवाजे ह । उस सु दर सभाक लंबाई और चौड़ाई एकएक कोसक होनी चा हये ।। १७-१८ ।। ु वा त य व रता न वशङ् काः ा ा द ा तां तदा च ु राशु । सव ा युपजः सभायां सह शः श पन ैव यु ाः ।। १९ ।। उनक यह आ ा सुनकर तेज काम करनेवाले चतुर एवं बु मान् सह श पी नभ क होकर कामम लग गये। उ ह ने शी ही वह सभा तैयार कर द और उसम सब तरहक व तुएँ यथा थान सजा द ।। १९ ।। कालेना पेनाथ न ां गतां तां सभां र यां ब र नां व च ाम् । च ैहमैरासनैर युपेतामाच यु ते त य रा ः तीताः ।। २० ।। थोड़े ही समयम तैयार ई उस असं य र न से सुशो भत रमणीय एवं व च सभाको अ त सोनेके आसन ारा सजा दया गया। त प ात् व त सेवक ने राजा धृतराको उस सभाभवनके तैयार हो जानेक सूचना द ।। ततो व ान् व रं म मु यमुवाचेदं धृतरा ो नरे ः । यु ध रं राजपु ं च ग वा म ा येन महानय व ।। २१ ।। त प ात् व ान् राजा धृतराने म य म धान व रको यह आ ा द क तुम राजकुमार यु ध रके पास जाकर मेरी आ ासे उ ह शी यहाँ लवा लाओ ।। सभेयं मे ब र ना व च ा श यासनै पप ा महाहः । सा यतां ातृ भः साधमे य सु द् ूतं वतताम चे त ।। २२ ।। उनसे कहना, ‘मेरी यह व च सभा अनेक कारके र न से ज टत है। इसे ब मू य शया और आसन ारा सजाया गया है। यु ध र! तुम अपने भाइय के साथ यहाँ े े ोऔ ो’

आकर इसे दे खो और इसम सु द क इत

ीमहाभारते सभापव ण

ूत

ड़ा ार भ हो’ ।।

ूतपव ण यु ध रानयने षट् प चाश मोऽ यायः ।। ५६ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत ूतपवम यु ध रके बुलानेसे स ब ध रखनेवाला छ पनवाँ अ याय पूरा आ ।। ५६ ।।

स तप चाश मोऽ यायः व र और धृतरा क बातचीत वैश पायन उवाच मतमा ाय पु य धृतरा ो नरा धपः । म वा च तरं दै वमेतद् राजं कार ह ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! अपने पु य धनका मत जानकर राजा धृतराने द ै वको तर माना और यह काय कया ।। १ ।। अ यायेन तथो तु व रो व षां वरः । ना यन दद् वचो ातुवचनं चेदम वीत् ।। २ ।। व ान म े व रने धृतराका वह अ यायपूण आदे श सुनकर भाईक उस बातका अ भन दन नह कया और इस कार कहा ।। २ ।।

व र उवाच ना भन दे नृपते ैषमेतं मैवं कृथाः कुलनाशाद् बभे म । पु ै भ ैः कलह ते ुवं यादे त छङ् के ूतकृते नरे ।। ३ ।। व र बोले—महराज! म आपके इस आदे शका अ भन दन नह करता, आप ऐसा काम मत क जये। इससे मुझे सम त कुलके वनाशका भय है। नरे ! पु म भेद होनेपर ी







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न य ही आपको कलहका सामना करना पड़ेगा। इस जूएके कारण मुझे ऐसी आशंका हो रही है ।। ३ ।। धृतरा उवाच नेह ः कलह त यते मां न चेद ् दै वं तलोमं भ व यत् । धा ा तु द य वशे कलेदं सव जग चे त न वत म् ।। ४ ।। धृतरा ने कहा— व र! य द दै व तकूल न हो, तो मुझे कलह भी क नह दे सकेगा। वधाताका बनाया आ यह स पूण जगत् दै वके अधीन होकर ही चे ा कर रहा है, वत नह है ।। ४ ।। तद व र ा य राजानं मम शासनात् । मानय धष कु तीपु ं यु ध रम् ।। ५ ।। इस लये व र! तुम मेरी आ ासे आज राजा यु ध रके पास जाकर उन धष कु तीकुमार यु ध रको यहाँ शी बुला ले आओ ।। ५ ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण

ूतपव ण यु ध रानयने स तप चाश मोऽ यायः ।। ५७ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत ूतपवम यु ध रके बुलानेसे स ब ध रखनेवाला स ावनवाँ अ याय पूरा आ ।। ५७ ।।

अ प चाश मोऽ यायः व र और यु ध रक बातचीत तथा यु ध रका ह तनापुरम जाकर सबसे मलना वैश पायन उवाच ततः ायाद् व रोऽ ै दारैमहाजवैब ल भः साधुदा तैः । बला यु ो धृतरा ेण रा ा मनी षणां पा डवानां सकाशे ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर राजा धृतराक े बलपूवक भेजनेपर व रजी अ य त वेगशाली, बलवान् और अ छ कार काबूम कये ए महान् अ से जुते रथपर सवार हो परम बु मान् पा डव के समीप गये ।। १ ।। सोऽ भप य तद वानमासा नृपतेः पुरम् । ववेश महाबु ः पू यमानो जा त भः ।। २ ।। महाबु मान् व रजी उस मागको तय करके राजा यु ध रक राजधानीम जा प ँचे और वहाँ जा तय से स मा नत होकर उ ह ने नगरम वेश कया ।। २ ।। स राजगृहमासा कुबेरभवनोपमम् । अ याग छत धमा मा धमपु ं यु ध रम् ।। ३ ।। तं वै राजा स यधृ तमहा मा अजातश ु व रं यथावत् । पूजापव तगृ ाजमीढततोऽपृ छद् धृतरा ं सपु म् ।। ४ ।। कुबेरके भवनके समान सुशो भत राजमहलम जाकर धमा मा व र धमपु यु ध रसे मले। स यवाद महा मा अजमीढन दन अजातश ु राजा यु ध रने व रजीका यथावत् आदर-स कार करके उनसे पु स हत धृतराक क ु शल पूछ ।। ३-४ ।।

यु ध र उवाच व ायते ते मनसोऽ हषः क चत् ः कुशलेनागतोऽ स । क चत् पु ाः थ वर यानुलोमा वशानुगा ा प वशोऽथ क चत् ।। ५ ।। यु ध र बोले— व रजी! आपका मन स नह जान पड़ता। आप कुशलसे तो आये ह? बूढ़े राजा धृतराक े पु उनके अनुकूल चलते ह न? तथा सारी जा उनके वशम है न? ।। ५ ।।

व र उवाच राजा महा मा कुशली सपु आ ते वृतो ा त भ र क पः । ीतो राजन् पु गणै वनीतैवशोक एवा मर तमहा मा ।। ६ ।। व रने कहा—राजन्! इ के समान भावशाली महामना राजा धृतरा अपने जा तभाइय तथा पु स हत सकुशल ह। अपने वनीत पु से वे स रहते ह। उनम शोकका अभाव है। वे महामना अपनी आ माम ही अनुराग रखनेवाले ह ।। ६ ।। इदं तु वां कु राजोऽ युवाच पूव पृ ् वा कुशलं चा यं च । इयं सभा व सभातु य पा ातॄणां ते यतामे य पु ।। ७ ।। समाग य ातृ भः पाथ त यां सु द् ूतं यतां र यतां च । ीयामहे भवतां संगमेन समागताः कुरव ा प सव ।। ८ ।। कु राज धृतराने पहले तुमसे कुशल और आरो य पूछकर यह संदेश दया है क व स! मने तु हारी सभाके समान ही एक सभा तैयार करायी है। तुम अपने भाइय के साथ आकर अपने य धन आ द भाइय क इस सभाको दे खो। इसम सभी इ - म मलकर ूत ड़ा कर और मन बहलाव। हम सभी कौरव तुम सबसे मलकर ब त स ह गे ।। ७-८ ।। रोदरा व हता ये तु त महा मना धृतरा ेण रा ा । तान् यसे कतवान् सं न व ान यागतोऽहं नृपते त जुष व ।। ९ ।। महामना राजा धृतराने वहाँ जो जूएके थान बनवाये ह, उनको और वहाँ जुटकर बैठे ए धूत जुआ रय को तुम दे खोगे। राजन्! म इसी लये आया ँ। तुम चलकर उस सभा एवं ूत ड़ाका सेवन करो ।। ९ ।। यु ध र उवाच ूते ः कलहो व ते नः को वै ूतं रोचयेद ् बु यमानः । क वा भवान् म यते यु पं भव ा ये सव एव थताः म ।। १० ।। यु ध रने पूछा— व रजी! जूएम तो झगड़ा-फसाद होता है। कौन समझदार मनु य जूआ खेलना पसंद करेगा अथवा आप या ठ क समझते ह; हम सब लोग तो आपक े ी े े

आ ाके अनुसार ही चलनेवाले ह ।। १० ।। व र उवाच जाना यहं ूतमनथमूलं कृत य नोऽ य मया नवारणे । राजा च मां ा हणोत् व सकाशं ु वा व े य इहाचर व ।। ११ ।। व रजीने कहा— व न्! म जानता ँ, जूआ अनथक जड़ है; इसी लये मने उसे रोकनेका य न भी कया तथा प राजा धृतराने मुझे तु हारे पास भेजा है, यह सुनकर तु ह जो क याणकर जान पड़े, वह करो ।। ११ ।। यु ध र उवाच के त ा ये कतवा द माना वना रा ो धृतरा य पु ैः । पृ छा म वां व र ू ह न तान् यैद ामः शतशः सं नप य ।। १२ ।। यु ध रने पूछा— व रजी! वहाँ राजा धृतराक े पु को छोड़कर सरे कौन-कौन धूत जुआ खेलनेवाले ह? यह म आपसे पूछता ँ। आप उन सबको बताइये, जनके साथ मलकर और सैकड़ क बाजी लगाकर हम जुआ खेलना पड़ेगा ।। १२ ।।

व र उवाच गा धारराजः शकु न वशा पते राजा तदे वी कृतह तो मता ः । े

व वश त सेन राजा स य तः पु म ो जय ।। १३ ।। व रने कहा—राजन्! वहाँ गा धारराज शकु न है, जो जुएका ब त बड़ा खलाड़ी है। वह अपनी इ छाके अनुसार पासे फकनेम स ह त है। उसे ूत व ाके रह यका ान है। उसके सवा राजा व वश त, च सेन, राजा स य त, पु म और जय भी रहगे ।। १३ ।। यु ध र उवाच महाभयाः कतवाः सं न व ा मायोपधा दे वतारोऽ स त । धा ा तु द य वशे कलेदं सव जगत् त त न वत म् ।। १४ ।। यु ध र बोले—तब तो वहाँ बड़े भयंकर, कपट और धूत जुआरी जुटे ए ह। वधाताका रचा आ यह स पूण जगत् दै वके ही अधीन है; वत नह है ।। १४ ।। नाहं रा ो धृतरा य शासनाग तु म छा म कवे रोदरम् । इ ो ह पु य पता सदै व तद म कता व रा थ मां यथा ।। १५ ।। बु मान् व रजी! म राजा धृतराक आ ासे जूएम अव य चलना चाहता ँ। पु को पता सदै व य है; अतः आपने मुझे जैसा आदे श दया है, वैसा ही क ँ गा ।। न चाकामः शकु नना दे वताहं न चे मां ज णुरा यता सभायाम् । आतोऽहं न नवत कदा चत् तदा हतं शा तं वै तं मे ।। १६ ।। मेरे मनम जूआ खेलनेक इ छा नह है। य द मुझे वजयशील राजा धृतरा सभाम न बुलाते, तो म शकु नसे कभी जुआ न खेलता; कतु बुलानेपर म कभी पीछे नह हटूँ गा। यह मेरा सदाका नयम है ।। १६ ।। वैश पायन उवाच एवमु वा व रं धमराजः ाया कं सवमा ा य तूणम् । ाया छ् वोभूते सगणः सानुया ः सह ी भ पद मा द कृ वा ।। १७ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! व रसे ऐसा कहकर धमराज यु ध रने तुरंत ही या ाक सारी तैयारी करनेके लये आ ा दे द । फर सबेरा होनेपर उ ह ने अपने भाईब धु , सेवक तथा ौपद आ द य के साथ ह तनापुरक या ा क ।। १७ ।। दै वं ह ां मु णा त च ु तेज इवापतत् । े ै

धातु वशम वे त पाशै रव नरः सतः ।। १८ ।। जैसे उ कृ तेज सामने आनेपर आँखक यो तको हर लेता है, उसी कार दै व मनु यक बु को हर लेता है। दै वसे ही े रत होकर मनु य र सीम बँधे एक भाँ त वधाताके वशम घूमता रहता है ।। १८ ।। इ यु वा ययौ राजा सह ा यु ध रः । अमृ यमाण त याथ समा ानमरदमः ।। १९ ।। ऐसा कहकर श ुदमन राजा यु ध र जूएके लये राजा धृतराक े उस बुलावेको सहन न करते ए भी व रजीके साथ वहाँ जानेको उ त हो गये ।। १९ ।। बा केन रथं य मा थाय परवीरहा । प र छ ो ययौ पाथ ातृ भः सह पा डवः ।। २० ।। बा क ारा जोते ए रथपर बैठकर श ुसूदन पा डु कुमार यु ध रने अपने भाइय के साथ ह तनापुरक या ा ार भ क ।। २० ।। राज या द यमानो ययौ पुरःसरः । वे अपनी राजल मीसे दे द यमान हो रहे थे। उ ह ने ा णको आगे करके थान कया ।। २० ।। (सं दद े श ततः े यान् नागा यग त त । तत ते नरशा ला ु व नृपशासनम् ।। सबसे पहले राजा यु ध रने अपने सेवक को ह तनापुरक ओर चलनेका आदे श दया। वे नर े राजसेवक महाराजक आ ाका पालन करनेम त पर हो गये। ततो राजा महातेजाः सधौ यः सप र छदः । ा णैः व त वा यैव नदयौ म दराद् ब हः ।। त प ात् महातेज वी राजा यु ध र सम त साम य से सुस जत हो ा ण से व तवाचन कराकर पुरो हत धौ यके साथ राजभवनसे बाहर नकले। ा णे यो धनं द वा ग यथ स यथा व ध । अ ये यः स तु द वाथ ग तुमेवोपच मे ।। या ाक सफलताके लये उ ह ने ा ण को व धपूवक धन दे कर और सर को भी मनोवां छत व तुएँ अ पत करके या ा ार भ क । सवल णस प ं राजाह सप र छदम् । तमा महाराजो गजे ं ष हायनम् ।। नषसाद गज क धे का चने परमासने । हारी करीट हेमाभः सवाभरणभू षतः ।। रराज राजन् पाथ वै परया नृपशोभया । मवे दगतः ा यो वल व ताशनः ।। राजाके बैठनेयो य एक साठ वषका गजराज सब आव यक साम य से सुस जत करके लाया गया। वह सम त शुभ ल ण से स प था। उसक पीठपर सोनेका सु दर ौ

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)



हौदा कसा गया था। महाराज यु ध र (पूव रथसे उतर कर) उस गजराजपर आ ढ़ हो हौदे म बैठे। उस समय वे हार, करीट तथा अ य सभी आभूषण से वभू षत हो अपनी वणगौर-का त तथा उ कृ राजो चत शोभासे सुशो भत हो रहे थे। उ ह दे खकर ऐसा जान पड़ता था, मानो सोनेक वेद पर था पत अ नदे व घीक आ तसे व लत हो रहे ह। ततो जगाम राजा स नरवाहनः । रथघोषेण महता पूरयन् वै नभः थलम् ।। सं तूयमानः तु त भः सूतमागधव द भः । महासै येन संवीतो यथाऽऽ द यः वर म भः ।। तदन तर हषम भरे ए मनु य तथा वाहन के साथ राजा यु ध र वहाँसे चल पड़े। वे (राजप रवारके लोग से भरे ए पूव ) रथके महान् घोषसे सम त आकाशम डलको गुँजाते जा रहे थे। सूत, मागध और ब द जन नाना कारक तु तय ारा उनके गुण गाते थे। उस समय वशाल सेनासे घरे ए राजा यु ध र अपनी करण से आवृत ए सूयदे वक भाँ त शोभा पा रहे थे। पा डु रेणातप ेण यमाणेन मूध न । बभौ यु ध रो राजा पौणमा या मवोडु राट् ।। उनके म तकपर ेत छ तना आ था, जससे राजा यु ध र पू णमाके च माक भाँ त शोभा पाते थे। चामरैहमद डै धूयमानः सम ततः । जया शषः ाणां नराणां प थ पा डवः ।। यगृ ाद् यथा यायं यथावद् भरतषभ । उनके चार ओर वणद ड वभू षत चँवर डु लाये जाते थे। भरत े ! पा डु न दन यु ध रको मागम ब तेरे मनु य हष लासम भरकर ‘महाराजक जय हो’ कहते ए शुभाशीवाद दे ते थे और वे यथो चत पसे सर झुकाकर उन सबको वीकार करते थे। अपरे कु राजानं प थ या तं समा हताः ।। तुव त सततं सौ या मृगप वनैनराः । उस मागम सरे ब त-से मनु य एका च हो मृग और प य क -सी आवाजम नर तर सुखपूवक कु राज यु ध रक तु त करते थे। तथैव सै नका राजन् राजानमनुया त ये ।। तेषां हलहलाश दो दवं त वा त तः । जनमेजय! इसी कार जो सै नक राजा यु ध रके पीछे -पीछे जा रहे थे, उनका कोलाहल भी समूचे आकाशम डलको त ध करके गूँज रहा था। नृप या े ययौ भीमो गज क धगतो बली ।। उभौ पा गतौ रा ः सद ौ वै सुक पतौ । अ ध ढौ यमौ चा प ज मतुभरतषभ ।। शोभय तौ महासै यं तावुभौ पशा लनौ । ी ी ै े ी े े े े े े े ो

हाथीक पीठपर बैठे ए बलवान् भीमसेन राजाके आगे-आगे जा रहे थे। उनके दोन ओर सजे-सजाये दो े अ थे, जनपर नकुल और सहदे व बैठे थे। भरत े ! वे दोन भाई वयं तो अपने प-सौ दयसे सुशो भत थे ही, उस वशाल सेनाक भी शोभा बढ़ा रहे थे। पृ तोऽनुययौ धीमान् पाथः श भृतां वरः ।। ेता ो गा डवं गृ अ नद ं रथं गतः । श धा रय म े परम बु मान् ेतवाहन अजुन अ नदे वके दये ए रथपर बैठकर गा डीव धनुष धारण कये महाराजके पीछे -पीछे जा रहे थे। सै यम ये ययौ राजन् कु राजो यु ध रः ।। ौपद मुखा नायः सानुगाः सप र छदाः । आ ता व च ा ण श बकानां शता न च ।। मह या सेनया राज े रा ो ययु तदा । राजन्! कु राज यु ध र सेनाके बीचम चल रहे थे। ौपद आ द याँ अपनी से वका तथा आव यक साम य के साथ सैकड़ व च श बका (पाल कय )-पर आ ढ़ हो बड़ी भारी सेनाके साथ महाराजके आगे-आगे जा रही थ । समृ नरनागा ं सपताकरथ वजम् ।। समृ रथ न ंशं प भघ षत वनम् । पा डव क वह सेना हाथी-घोड़ तथा पैदल सै नक से भरी-पूरी थी। उसम ब त-से रथ भी थे, जनक वजा पर पताकाएँ फहरा रही थ । उन सभी रथ म खड् ग आ द अ -श संगह ृ ीत थे। पैदल सै नक का कोलाहल सब ओर फैल रहा था। शङ् ख भतालानां वेणुवीणानुना दतम् ।। शुशुभे पा डवं सै यं यातं तत् तदा नृप । राजन्! शंख, भ, ताल, वेणु और वीणा आ द वा क तुमुल व न वहाँ गूँज रही थी। उस समय ह तनापुरक ओर जाती ई पा डव क उस सेनाक बड़ी शोभा हो रही थी। स सरां स नद ैव वना युपवना न च ।। अ य ाम महाराज पुर चा यवप त । ह तीपुरसमीपे तु कु राजो यु ध रः ।। जनमेजय! कु राज यु ध र अनेक सरोवर, नद , वन और उपवन को लाँघते ए ह तनापुरके समीप जा प ँचे। च े नवेशनं त ततः स सहसै नकः । शवे दे शे समे चैव यवसत् पा डव तदा ।। वहाँ उ ह ने एक सुखद एवं समतल दे शम सै नक स हत पड़ाव डाल दया। उसी छावनीम पा डु न दन यु ध र वयं भी ठहर गये। ततो राजन् समाय शोक व लया गरा । एतद् वा यं च सव वं धृतरा चक षतम् । े ो )

आचच े यथावृ ं व रोऽथ तप य ह ।।) राजन्! तदन तर व रजीने शोकाकुल वाणीम महाराज यु ध रको वहाँका सारा वृ ा त ठ क-ठ क बता दया क धृतरा या करना चाहते ह और इस ूत डाके पीछे या रह य है? धृतरा ेण चातः काल य समयेन च ।। २१ ।। स हा तनपुरं ग वा धृतरा गृहं ययौ । स मयाय च धमा मा धृतरा ेण पा डवः ।। २२ ।। तब धृतराक े ारा बुलाये ए कालके समयानुसार धमा मा पा डु पु यु ध र ह तनापुरम प ँचकर धृतराक े भवनम गये और उनसे मले ।। २१-२२ ।। तथा भी मेण ोणेन कणन च कृपेण च । स मयाय यथा यायं ौ णना च वभुः सह ।। २३ ।। इसी कार महाराज यु ध र, भी म, ोण, कण, कृपाचाय और अ थामाके साथ भी यथायो य मले ।। २३ ।। समे य च महाबा ः सोमद ेन चैव ह । य धनेन श येन सौबलेन च वीयवान् ।। २४ ।। ये चा ये त राजानः पूवमेव समागताः । ःशासनेन वीरेण सव ातृ भरेव च ।। २५ ।। जय थेन च तथा कु भ ा प सवशः । ततः सवमहाबा ातृ भः प रवा रतः ।। २६ ।। ववेश गृहं रा ो धृतरा य धीमतः । ददश त गा धार दे व प तमनु ताम् ।। २७ ।। नुषा भः संवृतां श त् तारा भ रव रो हणीम् । अ भवा स गा धार तया च तन दतः ।। २८ ।। त प ात् परा मी महाबा यु ध र सोमद से मलकर य धन, श य, शकु न तथा जो राजा वहाँ पहलेसे ही आये ए थे, उन सबसे मले। फर वीर ःशासन, उसके सम त भाई, राजा जय थ तथा स पूण कौरव से मल करके भाइय स हत महाबा यु ध रने बु मान् राजा धृतराक े भवनम वेश कया और वहाँ सदा तारा से घरी रहनेवाली रो हणीदे वीके समान पु वधु के साथ बैठ ई प त ता गा धारीदे वीको दे खा। यु ध रने गा धारीको णाम कया और गा धारीने भी उ ह आशीवाद दे कर स कया ।। २४— २८ ।। ददश पतरं वृ ं ाच ुषमी रम् ।। २९ ।। त प ात् उ ह ने अपने बूढ़े चाचा ाच ु राजा धृतराका पुनः दशन कया ।। २९ ।। रा ा मूध युपा ाता ते च कौरवन दनाः । च वारः पा डवा राजन् भीमसेनपुरोगमाः ।। ३० ।। े











राजा धृतराने कु कुलको आन दत करनेवाले यु ध र तथा भीमसेन आ द अ य चार पा डव का म तक सूँघा ।। ततो हषः समभवत् कौरवाणां वशा पते । तान् द ् वा पु ष ा ान् पा डवान् यदशनान् ।। ३१ ।। जनमेजय! उन पु ष े यदशन पा डव को आये दे ख कौरव को बड़ा हष आ ।। ३१ ।। व वशु तेऽ यनु ाता र नव त गृहा ण च । द शु ोपयातां तान् ःशला मुखाः यः ।। ३२ ।। या से याः परामृ ् वा व लता मव । नुषा ता धृतरा य ना त मनसोऽभवन् ।। ३३ ।। त प ात् धृतराक आ ा ले पा डव ने र नमय गृह म वेश कया। ःशला आ द य ने वहाँ आये ए उन सबको दे खा। पदकुमारीक व लत अ नके समान उ म समृ दे खकर धृतराक पु वधुए ँ अ धक स नह ।। ३२-३३ ।। तत ते पु ष ा ा ग वा ी भ तु सं वदम् । कृ वा ायामपूवा ण कृ या न तकम च ।। ३४ ।। ततः कृता काः सव द च दनभू षताः । क याणमनस ैव ा णान् व त वा य च ।। ३५ ।। मनो मशनं भु वा व वशुः शरणा यथ । तदन तर वे नर े पा डव ौपद आ द अपनी य से बातचीत करके पहले ायाम एवं केश- साधन आ द काय कया। तदन तर न यकम करके सबने अपनेको द च दन आ दसे वभू षत कया। त प ात् मनम क याणक भावना रखनेवाले पा डव ा ण से व तवाचन कराकर मनोऽनुकूल भोजन करनेके प ात् शयनगृहम गये ।। ३४-३५ ।। उपगीयमाना नारी भर वपन् कु पु वाः ।। ३६ ।। वहाँ य ारा अपने सुयशका गान सुनते ए वे कु कुलके े पु ष सो गये ।। ३६ ।। जगाम तेषां सा रा ः पु या र त वहा रणाम् । तूयमाना व ा ताः काले न ामथा यजन् ।। ३७ ।। उनक वह पु यमयी रा र त- वलासपूवक समा त ई। ातःकाल ब द जन के ारा तु त सुनते ए पूण व ामके प ात् उ ह ने न ाका याग कया ।। ३७ ।। सुखो षता ते रजन ातः सव कृता काः । सभां र यां व वशुः कतवैर भन दताः ।। ३८ ।। इस कार सुखपूवक रात बताकर वे ातःकाल उठे और सं योपासना द न यकम करनेके अन तर उस रमणीय सभाम गये। वहाँ जुआ रय ने उनका अ भन दन कया ।। ी







इत

ीमहाभारते सभापव ण

ूतपव ण यु ध रसभागमनेऽ प चाश मोऽ यायः ।। ५८ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत ूतपवम यु ध रसभागमन वषयक अावनवाँ अ याय पूरा आ ।। ५८ ।। (दा णा य अ धक पाठक े २३ ोक मलाकर कुल ६१ ोक ह)

एकोनष तमोऽ यायः जूएके अनौ च यके स ब धम यु ध र और शकु नका संवाद वैश पायन उवाच व य तां सभां पाथा यु ध रपुरोगमाः । समे य पा थवान् सवान् पूजाहान भपू य च ।। १ ।। यथावयः समेयाना उप व ा यथाहतः । आसनेषु व च ेषु प या तरणव सु च ।। २ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! यु ध र आ द कु तीकुमार उस सभाम प ँचकर सब राजा से मले। अव था मके अनुसार सम त पूजनीय राजा का बारीबारीसे स मान करके सबसे मलने-जुलनेके प ात् वे यथायो य सु दर रमणीय गलीच से यु व च आसन पर बैठे ।। १-२ ।। तेषु त ोप व ेषु सव वथ नृपेषु च । शकु नः सौबल त यु ध रमभाषत ।। ३ ।। उनके एवं सब नरेश के बैठ जानेपर वहाँ सुबलकुमार शकु नने यु ध रसे कहा ।। ३ ।। शकु न वाच उप तीणा सभा राजन् सव व य कृत णाः । अ ानु वा दे वन य समयोऽ तु यु ध र ।। ४ ।। शकु न बोला—महाराज यु ध र! सभाम पासे फकनेवाला व बछा दया गया है, सब आपक ही ती ा कर रहे ह। अब पासे फककर जूआ खेलनेका अवसर मलना चा हये ।। ४ ।। यु ध र उवाच नकृ तदवनं पापं न ा ोऽ परा मः । न च नी त ुवा राजन् क वं ूतं शंस स ।। ५ ।। यु ध रने कहा—राजन्! जूआ तो एक कारका छल है तथा पापका कारण है! इसम न तो यो चत परा म दखाया जा सकता है और न इसक कोई न त नी त ही है। फर तुम ूतक शंसा य करते हो? ।। ५ ।। न ह मानं शंस त नकृतौ कतव य ह । शकुने मैव नो जैषीरमागण नृशंसवत् ।। ६ ।। शकुने! जुआ रय का छल-कपटम ही स मान होता है; स जन पु ष वैसे स मानक शंसा नह करते। अतः तुम ू र मनु यक भाँ त अनु चत मागसे हम जीतनेक चे ा न ो

करो ।। ६ ।।

शकु न वाच यो वे सं यां नकृतौ व ध े ा वख ः कतवोऽ जासु । महाम तय जाना त ूतं स वै सव सहते यासु ।। ७ ।। शकु न बोला— जस अंकपर पासा पड़ता है, उसे जो पहले ही समझ लेता है, जो शठताका तीकार करना जानता है एवं पासे फकने आ द सम त ापार म उ साहपूवक लगा रहता है तथा जो परम बु मान् पु ष ूत ड़ा वषयक सब बात क जानकारी रखता है, वही जूएका असली खलाड़ी है; वह ूत ड़ाम सर क सारी शठतापूण चे ा को सह लेता है ।। ७ ।। अ लहः सोऽ भभवेत् परं नतेनैव दोषो भवतीह पाथ । द ामहे पा थव मा वशङ् कां कु य पाणं च चरं च मा कृथाः ।। ८ ।। कु तीन दन! य द पासा वपरीत पड़ जाय तो हम खला ड़य मसे एक प को परा जत कर सकता है; अतः जय-पराजय दै वाधीन पास के ही आ त है। उसीसे पराजय प दोषक ा त होती है। हारनेक शंका तो हम भी है, फर भी हम खेलते ह। अतः भू मपाल! आप शंका न क जये, दाँव लगाइये, अब वल ब न क जये ।। यु ध र उवाच एवमाहायम सतो दे वलो मु नस मः । इमा न लोक ारा ण यो वै ा य त सवदा ।। ९ ।। इदं वै दे वनं पापं नकृ या कतवैः सह । धमण तु जयो यु े त परं न तु दे वनम् ।। १० ।। यु ध रने कहा—मु न े अ सत-दे वलने, जो सदा इन लोक ार म मण करते रहते ह, ऐसा कहा है क जुआ रय के साथ शठतापूवक जो जूआ खेला जाता है, पाप है। धमानुकूल वजय तो यु म ही ा त होती है; अतः य के लये यु ही उ म है, जूआ खेलना नह ।। ९-१० ।। नाया ले छ त भाषा भमायया न चर युत । अ ज मशठ ं यु मेतत् स पु ष तम् ।। ११ ।। े पु ष वाणी ारा कसीके त अनु चत श द नह नकालते तथा कपटपूण बताव नह करते। कु टलता और शठतासे र हत यु ही स पु ष का त है ।। ११ ।। श तो ा णान् नूनं र तुं यतामहे । तद् वै व ं मा तदे वीमा जैषीः शकुने परान् ।। १२ ।। े













शकुने! हमलोग जस धनसे अपनी श के अनुसार ा ण क र ा करनेका ही य न करते ह, उसको तुम जूआ खेलकर हमलोग से हड़पनेक चे ा न करो ।। नकृ या कामये नाहं सुखा युत धना न वा । कतव येह कृ तनो वृ मेत पू यते ।। १३ ।। म धूततापूण बतावके ारा सुख अथवा धन पानेक इ छा नह करता; य क जुआरीके कायको व ान् पु ष अ छा नह समझते ।। १३ ।।

शकु न वाच ो यः ो याने त नकृ यैव यु ध र । व ान व षोऽ ये त ना तां नकृ त जनाः ।। १४ ।। शकु न बोला—यु ध र! ो य व ान् सरे ो य व ान के पास जब उ ह जीतनेके लये जाता है, तब शठतासे ही काम लेता है। व ान् अ व ान को शठतासे ही परा जत करता है; परंतु इसे जनसाधारण शठता नह कहते ।। १४ ।। अ ै ह श तोऽ ये त नकृ यैव यु ध र । व ान व षोऽ ये त ना तां नकृ त जनाः ।। १५ ।। धमराज! जो ूत व ाम पूण श त है, वह अ श त पर शठतासे ही वजय पाता है। व ान् पु ष अ व ान को जो परा त करता है, वह भी शठता ही है; कतु लोग उसे शठता नह कहते ।। १५ ।। अकृता ं कृता बलं बलव रः । एवं कमसु सवषु नकृ यैव यु ध र । व ान व षोऽ ये त ना तां नकृ त जनाः ।। १६ ।। धमराज यु ध र! अ व ाम नपुण यो ा अनाड़ीको एवं ब ल पु ष बलको शठतासे ही जीतना चाहता है। इस कार सब काय म व ान् पु ष अ व ान को शठतासे ही जीतते ह; कतु लोग उसे शठता नह कहते ।। १६ ।। एवं वं मा महा ये य नकृ त य द म यसे । दे वनाद् व नवत व य द ते व ते भयम् ।। १७ ।। इसी कार आप य द मेरे पास आकर यह मानते ह क आपके साथ शठता क जायगी एवं य द आपको भय मालूम होता है तो इस जूएके खेलसे नवृ हो जाइये ।। यु ध र उवाच आतो न नवतय म त मे तमा हतम् । व ध बलवान् राजन् द या म वशे थतः ।। १८ ।। यु ध रने कहा—राजन्! म बुलानेपर पीछे नह हटता, यह मेरा न त त है। दै व बलवान् है। म दै वके वशम ँ ।। १८ ।। अ मन् समागमे केन दे वनं मे भ व य त । तपाण कोऽ योऽ त ततो ूतं वतताम् ।। १९ ।। ो













अ छा तो यहाँ जन लोग का जमाव आ है, उनम कसके साथ मुझे जूआ खेलना होगा? मेरे मुकाबलेम बैठकर सरा कौन पु ष दाँव लगायेगा? इसका न य हो जाय, तो जूएका खेल ार भ हो ।। १९ ।। य धन उवाच अहं दाता म र नानां धनानां च वशा पते ।। २० ।। मदथ दे वता चायं शकु नमातुलो मम । य धन बोला—महाराज! दाँवपर लगानेके लये धन और र न तो म ँ गा; परंतु मेरी ओरसे खेलगे ये मेरे मामा शकु न ।। २० ।। यु ध र उवाच अ येना य य वै ूतं वषमं तभा त मे । एतद् व ुपाद व काममेवं वतताम् ।। २१ ।। यु ध रने कहा— सरेके लये सरेका जूआ खेलना मुझे तो अनु चत ही तीत होता है। व न्! इस बातको समझ लो, फर इ छानुसार जूएका खेल ार भ हो ।। २१ ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण ूतपव ण यु ध रशकु नसंवादे एकोनष तमोऽ यायः ।। ५९ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत ूतपवम यु ध रशकु नसंवाद वषयक उनसठवाँ अ याय पूरा आ ।। ५९ ।।

ष तमोऽ यायः ूत

ड़ ाका आर भ

वैश पायन उवाच उपो माने ूते तु राजानः सव एव ते । धृतरा ं पुर कृ य व वशु तां सभां ततः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! जब जूएका खेल आर भ होने लगा, उस समय सब राजालोग धृतराको आगे करक े उस सभाम आये ।। १ ।। भी मो ोणः कृप ैव व र महाम तः । ना त ीतेन मनसा तेऽ ववत त भारत ।। २ ।। भारत! भी म, ोण, कृप और परम बु मान् व र—ये सब लोग असंतु च से ही धृतराक े पीछे -पीछे वहाँ आये ।। २ ।। ते शः पृथक् चैव सह ीवा महौजसः । सहासना न भूरी ण व च ा ण च भे जरे ।। ३ ।। सहके समान ीवावाले वे महातेज वी राजालोग कह एक-एक आसनपर दो-दो तथा कह पृथक्-पृथक् एक-एक आसनपर एक ही बैठे। इस कार उ ह ने वहाँ रखे ए ब सं यक व च सहासन को हण कया ।। शुशुभे सा सभा राजन् राज भ तैः समागतैः । दे वै रव महाभागैः समवेतै व पम् ।। ४ ।। राजन्! जैसे महाभाग दे वता के एक होनेसे वगलोक सुशो भत होता है, उसी कार उन आग तुक नरेश से उस सभाक बड़ी शोभा हो रही थी ।। ४ ।। सव वेद वदः शूराः सव भा वरमूतयः । ावतत महाराज सु द् ूतमन तरम् ।। ५ ।। महाराज! वे सब-के-सब वेदवे ा एवं शूरवीर थे तथा उनके शरीर तेजोयु थे। उनके बैठ जानेके अन तर वहाँ सु द क ूत ड़ा आर भ ई ।। ५ ।। यु ध र उवाच अयं ब धनो राजन् सागरावतस भवः । म णहारो रः ीमान् कनको मभूषणः ।। ६ ।। यु ध रने कहा—राजन्! यह समु के आवतम उ प आ का तमान् म णर न ब त बड़े मू यका है। मेरे हार म यह सव म है तथा इसपर उ म सुवण जड़ा गया है ।। ६ ।। एतद् राजन् मम धनं तपाणोऽ त क तव । येन मां वं महाराज धनेन तद से ।। ७ ।।

राजन्! मेरी ओरसे यही धन दाँवपर रखा गया है। इसके बदलेम तु हारी ओरसे कौनसा धन दाँवपर रखा जाता है, जस धनके ारा तुम मेरे साथ खेलना चाहते हो ।।

य धन उवाच स त मे मणय ैव धना न सुब न च । म सर न मेऽथषु जय वैनं रोदरम् ।। ८ ।। य धन बोला—मेरे पास भी म णयाँ और ब त-सा धन है, मुझे अपने धनपर अहंकार नह है। आप इस जूएको जी तये ।। ८ ।। वैश पायन उवाच ततो ज ाह शकु न तान ान त व वत् । जत म येव शकु नयु ध रमभाषत ।। ९ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर पासे फकनेक कलाम अ य त नपुण शकु नने उन पास को हाथम लया और उ ह फककर यु ध रसे कहा—‘लो, यह दाँव मने जीता’ ।। ९ ।। इ त ीमहाभारते सभापव ण ूतपव ण ूतार भे ष तमोऽ यायः ।। ६० ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत ूतपवम ूतार भ वषयक साठवाँ अ याय पूरा आ ।। ६० ।।

एकष तमोऽ यायः जूएम शकु नके छलसे

येक दाँवपर यु ध रक हार

यु ध र उवाच म ः कैतवकेनैव य जतोऽ म रोदरे । शकुने ह त द ामो लहमानाः पर परम् ।। १ ।। यु ध रने कहा—शकुने! तुमने छलसे इस दाँवम मुझे हरा दया, इसीपर तुम ग वत हो उठे हो; आओ, हमलोग पुनः पर पर पासे फककर जूआ खेल ।। १ ।। स त न कसह य भा ड यो भ रताः शुभाः । कोशो हर यम यं जात पमनेकशः । एतद् राजन् मम धनं तेन द ा यहं वया ।। २ ।। मेरे पास हजार न क से* भरी ई ब त-सी सु दर पे टयाँ रखी ह। इसके सवा खजाना है, अ य धन है और अनेक कारके सुवण ह। राजन्! मेरा यह सब धन दाँवपर लगा दया गया। म इसीके ारा तु हारे साथ खेलता ँ ।। वैश पायन उवाच कौरवाणां कुलकरं ये ं पा डवम युतम् । इ यु ः शकु नः ाह जत म येव तं नृपम् ।। ३ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! यह सुनकर मयादासे कभी युत न होनेवाले कौरव के वंशधर एवं पा डु के ये पु राजा यु ध रसे शकु नने फर कहा—‘लो, यह दाँव भी मने ही जीता’ ।। ३ ।। यु ध र उवाच अयं सह स मतो वैया ः सु त तः । सुच ोप करः ीमान् कङ् कणीजालम डतः ।। ४ ।। सं ादनो राजरथो य इहा मानुपावहत् । जै ो रथवरः पु यो मेघसागर नः वनः ।। अ ौ यं कुरर छायाः सद ा रा स मताः ।। ५ ।। वह त नैषां मु येत पदाद् भू ममुप पृशन् । एतद् राजन् धनं म ं तेन द ा यहं वया ।। ६ ।। यु ध रने कहा—यह जो परमान ददायक राजरथ है, जो हमलोग को यहाँतक ले आया है, रथ म े जै नामक पु यमय े रथ है। चलते समय इससे मेघ और समु क गजनाके समान ग भीर व न होती रहती है। यह अकेला ही एक हजार रथ के समान है। इसके ऊपर बाघका चमड़ा लगा आ है। यह अ य त सु ढ़ है। इसके प हये तथा अ य आव यक साम ी ब त सु दर है। यह परम शोभायमान रथ ु घ टका से सजाया ै







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गया है। कुरर प ीक -सी का तवाले आठ अ छे घोड़े, जो समूचे राम स मा नत ह, इस रथको वहन करते ह। भू मका पश करनेवाला कोई भी ाणी इन घोड़ के सामने पड़ जानेपर बच नह सकता। राजन्! इन घोड़ स हत यह रथ मेरा धन है, जसे दाँवपर रखकर म तु हारे साथ जूआ खेलता ँ ।। वैश पायन उवाच एवं ु वा व सतो नकृ त समुपा तः । जत म येव शकु नयु ध रमभाषत ।। ७ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! यह सुनकर छलका आ य लेनेवाले शकु नने पुनः पासे फके और जीतका न य करके यु ध रसे कहा—‘लो, यह भी जीत लया’ ।। ७ ।। यु ध र उवाच शतं दासीसह ा ण त यो हेमभ काः । क बुकेयूरधा र यो न कक ः वलंकृताः ।। ८ ।। महाहमा याभरणाः सुव ा दनो ताः । मणीन् हेम च ब य तुःष वशारदाः ।। ९ ।। अनुसेवां चर तीमाः कुशला नृ यसामसु । नातकानाममा यानां रा ां च मम शासनात् । एतद् राजन् मम धनं तेन द ा यहं वया ।। १० ।। यु ध रने कहा—मेरे पास एक लाख त णी दा सयाँ ह, जो सुवणमय मांग लक आभूषण धारण करती ह। जनके हाथ म शंखक चू ड़याँ, बाँह म भुजबंद, क ठम न क का हार तथा अ य अंग म भी सु दर आभूषण ह। ब मू य हार उनक शोभा बढ़ाते ह। उनके व ब त ही सु दर ह। वे अपने शरीरम च दनका लेप लगाती ह, म ण और सुवण धारण करती ह तथा चौसठ कला म नपुण ह। नृ य और गानम भी वे कुशल ह। ये सब-क -सब मेरे आदे शसे नातक , म य तथा राजा क सेवा-प रचया करती ह। राजन्! यह मेरा धन है, जसे दाँवपर लगाकर म तु हारे साथ खेलता ँ ।। ८—१० ।। वैश पायन उवाच एत छ वा व सतो नकृ त समुपा तः । जत म येव शकु नयु ध रमभाषत ।। ११ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! यह सुनकर कपट शकु नने पुनः जीतका न य करके पासे फके और यु ध रसे कहा—‘यह दाँव भी मने ही जीता’ ।। ११ ।। यु ध र उवाच एताव त च दासानां सह ा युत स त मे । द णानुलोमा ावारवसनाः सदा ।। १२ ।। े

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यु ध रने कहा—दा सय क तरह ही मेरे यहाँ एक लाख दास ह। वे कायकुशल तथा अनुकूल रहनेवाले ह। उनके शरीरपर सदा सु दर उ रीय व सुशो भत होते ह ।। १२ ।। ा ा मेधा वनो दा ता युवानो मृ कु डलाः । पा ीह ता दवारा म तथीन् भोजय युत । एतद् राजन् मम धनं तेन द ा यहं वया ।। १३ ।। वे चतुर, बु मान्, संयमी और त ण अव थावाले ह। उनके कान म कु डल झल मलाते रहते ह। वे हाथ म भोजनपा लये दन-रात अ त थय को भोजन परोसते रहते ह। राजन्! यह मेरा धन है, जसे दाँवपर लगाकर म तु हारे साथ खेलता ँ ।। १३ ।।

वैश पायन उवाच एत छ वा व सतो नकृ त समुपा तः । जत म येव शकु नयु ध रमभाषत ।। १४ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! यह सुनकर पुनः शठताका आ य लेनेवाले शकु नने अपनी ही जीतका न य करके यु ध रसे कहा—‘लो, यह दाँव भी मने जीत लया’ ।। १४ ।। यु ध र उवाच सह सं या नागा मे म ा त त सौबल । हेमक ाः कृतापीडाः प नो हेममा लनः ।। १५ ।। यु ध रने कहा—सुबलकुमार! मेरे यहाँ एक हजार मतवाले हाथी ह, जनके बाँधनेके र से सुवणमय ह। वे सदा आभूषण से वभू षत रहते ह। उनके कपोल और म तक आ द अंग पर कमलके च बने ए ह। उनके गलेम सोनेके हार सुशो भत होते ह ।। १५ ।। सुदा ता राजवहनाः सवश द मा यु ध । ईषाद ता महाकायाः सव चा करेणवः ।। १६ ।। वे अ छ तरह वशम कये ए ह और राजा क सवारीके कामम आते ह। यु म वे सब कारके श द सहन करनेवाले ह। उनके दाँत हलद डके समान लंबे ह और शरीर वशाल है। उनमसे येकके आठ-आठ ह थ नयाँ ह ।। १६ ।। सव च पुरभे ारो नवमेघ नभा गजाः । एतद् राजन् मम धनं तेन द ा यहं वया ।। १७ ।। उनक का त नूतन मेघ क घटाके समान है। वे सब-के-सब बड़े-बड़े नगर को भी नाश कर दे नेक श रखते ह। राजन्! यह मेरा धन है, जसे दाँवपर लगाकर म तु हारे साथ खेलता ँ ।। १७ ।। वैश पायन उवाच इ येवंवा दनं पाथ हस व सौबलः । जत म येव शकु नयु ध रमभाषत ।। १८ ।। ै







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वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! ऐसी बात कहते ए कु तीपु यु ध रसे शकु नने हँसकर कहा—‘इस दाँवको भी मने ही जीता’ ।। १८ ।। यु ध र उवाच रथा ताव त एवेमे हेमद डाः पता कनः । हयै वनीतैः स प ा र थ भ यो ध भः ।। १९ ।। एकैको लभते सह परमां भृ तम् । यु यतोऽयु यतो वा प वेतनं मासका लकम् । एतद् राजन् मम धनं तेन द ा यहं वया ।। २० ।। यु ध रने कहा—मेरे पास उतने ही अथात् एक हजार रथ ह, जनक वजा म सोनेके डंडे लगे ह। उन रथ पर पताकाएँ फहराती रहती ह। उनम सधे ए घोड़े जोते जाते ह और व च यु करनेवाले रथी उनम बैठते ह। उन र थय मसे येकको अ धक-सेअ धक एक सह वणमु ाएँतक वेतनम मलती ह। वे यु कर रहे ह या न कर रहे ह , येक मासम उ ह यह वेतन ा त होता रहता है। राजन्! यह मेरा धन है, इसे दाँवपर लगाकर म तु हारे साथ खेलता ँ ।। १९-२० ।। वैश पायन उवाच इ येवमु े वचने कृतवैरो रा मवान् । जत म येव शकु नयु ध रमभाषत ।। २१ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! उनके ऐसा कहनेपर वैरी रा मा शकु नने यु ध रसे कहा—‘लो, यह भी जीत लया’ ।। २१ ।। यु ध र उवाच अ ां त रक माषान् गा धवान् हेममा लनः । ददौ च रथ तु ो यां तान् गा डीवध वने ।। २२ ।। यु े जतः पराभूतः ी तपूवमरदमः । एतद् राजन् मम धनं तेन द ा यहं वया ।। २३ ।। यु ध रने कहा—मेरे यहाँ तीतर प ीके समान व च वणवाले ग धवदे शके घोड़े ह, जो सोनेके हारसे वभू षत ह। श ुदमन च रथ ग धवने यु म परा जत एवं तर कृत होनेके प ात् संतु हो गा डीवधारी अजुनको ेमपूवक वे घोड़े भट कये थे। राजन्! यह मेरा धन है जसे दाँवपर लगाकर म तु हारे साथ खेलता ँ ।। वैश पायन उवाच एत छ वा व सतो नकृ त समुपा तः । जत म येव शकु नयु ध रमभाषत ।। २४ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! यह सुनकर छलका आ य लेनेवाले शकु नने पुनः अपनी ही जीतका न य करके यु ध रसे कहा—‘यह दाँव भी मने ही जीता है’ ।।

यु ध र उवाच रथानां शकटानां च े ानां चायुता न मे । यु ा येव ह त त वाहै चावचै तथा ।। २५ ।। यु ध रने कहा—मेरे पास दस हजार े रथ और छकड़े ह। जनम छोटे -बड़े वाहन सदा जुटे ही रहते ह ।। एवं वण य वण य समु चीय सह शः । यथा समु दता वीराः सव वीरपरा माः ।। २६ ।। इसी कार येक वणके हजार चुने ए यो ा मेरे यहाँ एक साथ रहते ह। वे सब-केसब वीरो चत परा मसे स प एवं शूरवीर ह ।। २६ ।। ीरं पब त त त भु ानाः शा लत डु लान् । ष ता न सह ा ण सव वपुलव सः । एतद् राजन् मम धनं तेन द ा यहं वया ।। २७ ।। उनक सं या साठ हजार है। वे ध पीते और शा लके चावलका भात खाकर रहते ह। उन सबक छाती ब त चौड़ी है। राजन्! यह मेरा धन है, जसे दाँवपर रखकर म तु हारे साथ खेलता ँ ।। २७ ।। वैश पायन उवाच एत छ वा व सतो नकृ त समुपा तः । जत म येव शकु नयु ध रमभाषत ।। २८ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! यह सुनकर शठताके उपासक शकु नने पुनः यु ध रसे पूण न यके साथ कहा—‘यह दाँव भी मने ही जीता है’ ।। २८ ।। यु ध र उवाच ता लोहैः प रवृता नधयो ये चतुःशताः । प च ौ णक एकैकः सुवण याहत य वै ।। २९ ।। जात प य मु य य अनघय य भारत । एतद् राजन् मम धनं तेन द ा यहं वया ।। ३० ।। यु ध रने कहा—मेरे पास ताँबे और लोहेक चार सौ न धयाँ यानी खजानेसे भरी ई पे टयाँ ह। येकम पाँच-पाँच ोण वशु सोना भरा आ है, वह सारा सोना तपाकर शु कया आ है, उसक क मत आँक नह जा सकती। भारत! यह मेरा धन है, जसे दाँवपर रखकर म तु हारे साथ खेलता ँ ।। २९-३० ।। वैश पायन उवाच एत छ वा व सतो नकृ त समुपा तः । जत म येव शकु नयु ध रमभाषत ।। ३१ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! ऐसा सुनकर छलका आ य लेनेवाले शकु नने पूववत् पूण न यके साथ यु ध रसे कहा—‘यह दाँव भी मने ही जीता’ ।। ३१ ।। ी े े े ो

इ त ीमहाभारते सभापव ण ूतपव ण दे वने एकष तमोऽ यायः ।। ६१ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत ूतपवम ूत ड़ा वषयक इकसठवाँ अ याय पूरा आ ।। ६१ ।।

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ाचीनकालम च लत एक स का, जो एक कष अथवा सोलह मासे सोनेका बना होता था।

ष तमोऽ यायः धृतरा को व रक चेतावनी वैश पायन उवाच एवं व तते ूते घोरे सवापहा र ण । सवसंशय नम ा व रो वा यम वीत् ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! इस कार जब सव वका अपहरण करनेवाली वह भयानक ूत ड़ा चल रही थी, उसी समय सम त संशय का नवारण करनेवाले व रजी बोल उठे ।। १ ।। व र उवाच महाराज वजानी ह यत् वां व या म भारत । मुमूष रौषध मव न रोचेता प ते ुतम् ।। २ ।। व रजीने कहा—भरतकुल तलक महाराज धृतरा! मरणास रोगीको जैसे ओष ध अ छ नह लगती, उसी कार आपलोग को मेरी शा स मत बात भी अ छ नह लगेगी। फर भी म आपसे जो कुछ कह रहा ँ, उसे अ छ तरह सु नये और सम झये ।। २ ।। यद् वै पुरा जातमा ो राव गोमायुवद् व वरं पापचेताः । य धनो भरतानां कुल नः सोऽयं यु ो भवतां कालहेतुः ।। ३ ।। यह भरतवंशका वनाश करनेवाला पापी य धन पहले जब गभसे बाहर नकला था, गीदड़के समान जोर-जोरसे च लाने लगा था; अतः यह न य ही आप सब लोग के वनाशका कारण बनेगा ।। ३ ।। गृहे वस तं गोमायुं वं वै मोहा बु यसे । य धन य पेण शृणु का ां गरं मम ।। ४ ।। राजन्! य धनके पम आपके घरके भीतर एक गीदड़ नवास कर रहा है; परंतु आप मोहवश इस बातको समझ नह पाते। सु नये, म आपको शु ाचायक कही ई नी तक बात बतलाता ँ ।। ४ ।। मधु वै मा वको ल वा पातं नैव बु यते । आ तं म ज त वा पतनं चा धग छ त ।। ५ ।। मधु बेचनेवाला मनु य जब कह ऊँचे वृ आ दपर मधुका छ ा दे ख लेता है, तब वहाँसे गरनेक स भावनाक ओर यान नह दे ता। वह ऊँचे थानपर चढ़कर या तो मधु पाकर म न हो जाता है अथवा उस थानसे नीचे गर जाता है ।। ५ ।। सोऽयं म ोऽ ूतेन मधुव परी ते । पातं बु यते नैव वैरं कृ वा महारथैः ।। ६ ।। ै े ी











वैसे ही यह य धन जूएके नशेम इतना उ म हो गया है क मधुम पु षक भाँ त अपने ऊपर आनेवाले संकटको नह दे खता। महारथी पा डव के साथ वैर करके हम पतनके गतम गरकर मरना पड़ेगा, इस बातको समझ नह पा रहा है ।। ६ ।। व दतं मे महा ा भोजे वेवासम सम् । पु ं सं य वान् पूव पौराणां हतका यया ।। ७ ।। महा ा ! मुझे मालूम है क भोजवंशके एक नरेशने पूवकालम पुरवा सय के हतक इ छासे अपने कुमागगामी पु का प र याग कर दया था ।। ७ ।। अ धका यादवा भोजाः समेताः कंसम यजन् । नयोगात् तु हते त मन् कृ णेना म घा तना ।। ८ ।। अ धक , यादव और भोज ने मलकर कंसको याग दया तथा उ ह के आदे शसे श ुघाती ीकृ णने उसको मार डाला ।। ८ ।। एवं ते ातयः सव मोदमानाः शतं समाः । व यु ः स साची नगृ ातु सुयोधनम् ।। ९ ।। इस कार उसके मारे जानेसे सम त ब धु-बा धव सदाके लये सुखी हो गये ह। आप भी आ ा द तो ये स साची अजुन इस य धनको बंद बना ले सकते ह ।। न हाद य पाप य मोद तां कुरवः सुखम् । काकेनेमां बहान् शा लान् ो ु केन च । णी व पा डवान् राजन् मा म जीः शोकसागरे ।। १० ।। इसी पापीके कैद हो जानेसे सम त कौरव सुख और आन दसे रह सकते ह। राजन्! य धन कौवा है और पा डव मोर। इस कौवेको दे कर आप व च पंखवाले मयूर को खरीद ली जये। इस गीदड़के ारा इन पा डव पी शेर को अपनाइये। शोकके समु म डू बकर ाण न द जये ।। १० ।। यजेत् कुलाथ पु षं ाम याथ कुलं यजेत् । ामं जनपद याथ आ माथ पृ थव यजेत् ।। ११ ।। समूचे कुलक भलाईके लये एक मनु यको याग दे , गाँवके हतके लये एक कुलको छोड़ दे , दे शक भलाईके लये एक गाँवको याग दे और आ माके उ ारके लये सारी पृ वीका ही प र याग कर दे ।। ११ ।। सव ः सवभाव ः सवश ुभयंकरः । इ त म भाषते का ो ज भ यागे महासुरान् ।। १२ ।। सबके मनोभाव को जाननेवाले तथा सब श ु के लये भयंकर सव शु ाचायने ज भ दै यको याग करनेके समय सम त बड़े-बड़े असुर से यह कथा सुनायी थी ।। १२ ।। हर य ी वनः कां त् प णो वनगोचरान् । गृहे कल कृतावासान् लोभाद् राजा यपीडयत् । स चोपभोगलोभा धो हर याथ परंतप ।। १३ ।। एक वनम कुछ प ी रहते थे, जो अपने मुखसे सोना उगला करते थे। एक दन जब वे अपने घ सल म आरामसे बैठे थे, उस दे शके राजाने उ ह लोभवश मरवा डाला। श ु को े े े ो े े ी

संताप दे नवाले नरेश! उस राजाको एक साथ ब त-सा सुवण पा लेनेक इ छा थी। उपभोगके लोभने उसे अंधा बना दया था ।। १३ ।। आय त च तदा वं च उभे स ो नाशयत् । तदथकाम त त् वं मा हः पा डवान् नृप ।। १४ ।। अतः उसने उस धनके लोभसे उन प य का वध करके वतमान और भ व य दोन लाभ का त काल नाश कर दया। राजन्! इसी कार आप पा डव का सारा धन हड़प लेनेके लोभसे उनके साथ ोह न कर ।। १४ ।। मोहा मा त यसे प ात् प हा पु षो यथा । (एतेन तव नाशः याद् ब डशा छफरो यथा ।) जातं जातं पा डवे यः पु पमाद व भारत ।। १५ ।। मालाकार इवारामे नेहं कुवन् पुनः पुनः । अ यथा उन प य क हसा करनेवाले राजाक भाँ त आपको भी मोहवश प ा ाप करना पड़ेगा। इस ोहसे आपका उसी तरह सवनाश हो जायगा, जैसे बंसीका काँटा नगल लेनेसे मछलीका नाश हो जाता है। भरतकुलभूषण! जैसे माली उ ानके वृ को बार-बार स चता रहता है और समय-समयपर उनसे खले पु प को चुनता भी रहता है, उसी कार आप पा डव पी वृ को नेहजलसे स चते ए उनसे उ प होनेवाले धन पी पु प को लेते र हये ।। १५ ।। वृ ान ारकारीव मैनान् धा ीः समूलकान् । मा गमः ससुतामा यः सबल यम यम् ।। १६ ।। जैसे कोयला बनानेवाला वृ को जलाकर भ म कर दे ता है, उसी कार आप इ ह जड़मूलस हत जलानेक चे ा न क जये। कह ऐसा न हो क पा डव के साथ वरोध करनेके कारण आपको पु , म ी और सेनाके साथ यमलोकम जाना पड़े ।। १६ ।। समवेतान् ह कः पाथान् तयु येत भारत । म ः स हतो राज प सा ा म प तः ।। १७ ।। भरतवंशीय राजन्! दे वता स हत सा ात् दे वराज इ ही य न ह , जब कु तीपु संग ठत होकर यु के लये तैयार ह गे, उनका मुकाबला कौन कर सकता है? ।। १७ ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण

ूतपव ण व र हतवा ये ष तमोऽ यायः ।। ६२ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत ूतपवम व रके हतकारक वचनस ब धी बासठवाँ अ याय पूरा आ ।। ६२ ।। (दा णा य अ धक पाठका ोक मलाकर कुल १७ ोक ह)

ष तमोऽ यायः व रजीके ारा जूएका घोर वरोध व र उवाच ूतं मूलं कलह या युपै त मथो भेदं महते दा णाय । यदा थतोऽयं धृतरा य पु ो य धनः सृजते वैरमु म् ।। १ ।। व रजी बोले—महाराज! जूआ खेलना झगड़ेक जड़ है। इससे आपसम फूट पैदा होती है, जो बड़े भयंकर संकटक सृ करती है। यह धृतरापु य धन उसीका आ य लेकर इस समय भयानक वैरक सृ कर रहा है ।। १ ।। ातीपेयाः शा तनवा भैमसेनाः सबा काः । य धनापराधेन कृ ं ा य त सवशः ।। २ ।। य धनके अपराधसे तीप, श तनु, भीमसेन* तथा बा कके वंशज सब कारसे घोर संकटम पड़ जायँगे ।। २ ।। य धनो मदे नैष ेमं रा ादपोह त । वषाणं गौ रव मदात् वयमा जतेऽऽ मनः ।। ३ ।। जैसे मतवाला बैल मदो म होकर वयं ही अपने स ग को तोड़ लेता है, उसी कार यह य धन मदा धताके कारण वयं अपने रा यसे मंगलका ब ह कार कर रहा है ।। ३ ।। य म वे त पर य राजन् वीरः क वः वामवम य म् । नावं समु े इव बालने ामा घोरे सने नम जेत् ।। ४ ।। राजन्! जो वीर और व ान् मनु य अपनी क अवहेलना करके सरेके च के अनुसार चलता है, वह समु म मूख ना वक ारा चलायी जाती ई नावपर बैठे ए मनु यके समान भयंकर वप म पड़ जाता है ।। ४ ।। य धनो लहते पा डवेन यायसे वं जयती त त च । अ तनमा जायते स हारो यतो वनाशः समुपै त पुंसाम् ।। ५ ।। य धन पा डु न दन यु ध रके साथ दाँव लगाकर जूआ खेल रहा है, साथ ही वह जीत भी रहा है; यह सोचकर तुम ब त स हो रहे हो; कतु आजका यह अ तशय वनोद शी ही भयंकर यु के पम प रणत होनेवाला है, जससे (अग णत) मनु य का संहार होगा ।। ५ ।। े

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आकष तेऽवा फलः सु णीतो द ौढो म पदः समा धः । यु ध रेण कलह तवायम च ततोऽन भमतः वब धुना ।। ६ ।। जूआ अधःपतन करनेवाला है; परंतु शकु नने इसे उ म मानकर यहाँ उप थत कया है। यह जूएका न य आपलोग के दयम गु त म णाके प ात् थर आ है। परंतु यह जूएका खेल आपके अपने ही ब धु यु ध रके साथ आपके वचार और इ छाके व कलहके पम प रणत हो जायगा ।। ६ ।। ातीपेयाः शा तनवाः शृणु वं का ां वाचं संस द कौरवाणाम् । वै ानरं व लतं सुघोरं मा या य वं म दमनु प ाः ।। ७ ।। तीप और श तनुके वंशजो! कौरव क सभाम मेरी कही ई बात यानसे सुनो। यह व ान को भी मा य है। तुमलोग इस मूख य धनके पीछे चलकर वैरक धधकती ई भयानक आगम न कूदो ।। ७ ।। यदा म युं पा डवोऽजातश ुन संय छे द मदा भभूतः । वृकोदरः स साची यमौ च कोऽ पः यात् तुमुले व तदानीम् ।। ८ ।। जूएके मदम भूले ए अजातश ु यु ध र जब अपना ोध न रोक सकगे तथा भीमसेन, अजुन एवं नकुल-सहदे व भी जब ु हो उठगे, उस समय घमासान यु छड़ जानेपर वप के महासागरम डू बते ए तुमलोग का कौन आ यदाता होगा? ।। ८ ।। महाराज भव वं धनानां पुरा ूता मनसा याव द छे ः । ब व ान् पा डवां े जय वं क ते तत् याद् वसु व दे ह पाथान् ।। ९ ।। महाराज! आप जूएसे पहले भी मनसे जतना धन चाहते, उतना धन पा सकते थे; य द अ य त धनवान् पा डव को आपने जूएके ारा जीत ही लया तो इससे आपका या होगा? कु तीके पु वयं ही धन व प ह। आप इ ह को अपनाइये ।। ९ ।। जानीमहे दे वतं सौबल य वेद ूते नकृ त पवतीयः । यतः ा तः शकु न त यातु मा यूयुधो भारत पा डवेयान् ।। १० ।। म सुबलपु शकु नका जूआ खेलना कैसा है, यह जानता ँ। यह पवतीय नरेश जूएक सारी कपट व ाको जानता है। मेरी इ छा है क यह शकु न जहाँसे आया है, वह लौट जाय। भारत! इस तरह कौरव तथा पा डव म यु क आग न भड़काओ ।। १० ।। ी े े ो

इ त ीमहाभारते सभापव ण ूतपव ण व रवा ये ष तमोऽ यायः ।। ६३ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत ूतपवम व रवा य वषयक तरसठवाँ अ याय पूरा आ ।। ६३ ।।

* कु कुलके एक पूवपु ष ।

चतु ष तमोऽ यायः य धनका व रको फटकारना और व रका उसे चेतावनी दे ना य धन उवाच परेषामेव यशसा ाघसे वं सदा ः कु सयन् धातरा ान् । जानीमहे व र यत् य वं बाला नवा मानवम यसे न यमेव ।। १ ।। य धन बोला— व र! तुम सदा हमारे श ु के ही सुयशक ड ग हाँकते रहते हो और हम सभी धृतराक े पु क न दा कया करते हो। तुम कसके ेमी हो, यह हम जानते ह, हम मूख समझकर तुम सदा हमारा अपमान ही करते रहते हो ।। १ ।। स व ेयः पु षोऽ य कामो न दा शंसे ह तथा युन । ज ा कथं ते दयं न यो न यायसः कृथा मनसः ा तकू यम् ।। २ ।। जो सर को चाहनेवाला है, वह मनु य पहचानम आ जाता है; य क वह जसके त े ष होता है, उसक न दा और जसके त राग होता है, उसक शंसाम संल न रहता है। तु हारा दय हमारे त कस कार े षसे प रपूण है, यह बात तु हारी ज ा कट कर दे ती है। तुम अपनेसे े पु ष के त इस कार दयका े ष न कट करो ।। २ ।। उ स े च ाल इवा हतोऽ स माजारवत् पोषकं चोपहं स । भतृ नं वां न ह पापीय आ त मात् ः क न बभे ष पापात् ।। ३ ।। हमारे लये तुम गोदम बैठे साँपके समान हो और बलावक भाँ त पालनेवालेका ही गला घ ट रहे हो। तुम वा म ोह रखते हो, फर भी तु ह लोग पापी नह कहते? व र! तुम इस पापसे डरते य नह ? ।। ३ ।। ज वा श ून् फलमा तं महद् वै मा मान् ः प षाणीह वोचः । ष वं स योगा भन द मु षं या स नः स योगात् ।। ४ ।। हमने श ु को जीतकर (धन प) महान् फल ा त कया है। व र! तुम हमसे यहाँ कटु वचन न बोलो। तुम श ु के साथ मेल करके स हो रहे हो और हमारे साथ मेल े



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करके भी अब (हमारे श ु क शंसा करके) हमलोग के बारंबार े षके पा बन रहे हो ।। ४ ।। अ म तां या त नरोऽ मं ुवन् नगूहते गु म म सं तवे । तदा तोऽप प क नु बाधसे य द छ स वं त दहा भभाषसे ।। ५ ।। अ य कटु वचन बोलनेवाला मनु य श ु बन जाता है। श ुक शंसा करते समय भी लोग अपने गूढ़ मनोभावको छपाये रखते ह। नल ज व र! तुम भी उसी नी तका आ य लेकर चुप य नह रहते? हमारे कामम बाधा य डालते हो? तुम जो मनम आता है, वही बक जाते हो ।। ५ ।। मा नोऽवमं था व मन तवेदं श व बु थ वराणां सकाशात् । यशो र व व र स णीतं मा ापृतः परकायषु भू वम् ।। ६ ।। व र! तुम हमलोग का अपमान न करो, तु हारे इस मनको हम जान चुके ह। तुम बड़े-बूढ़ के नकट बैठकर बु सीखो। अपने पूवाजत यशक र ा करो। सर के काम म ह त ेप न करो ।। ६ ।। अहं कत त व र मा च मं था मा नो न यं प षाणीह वोचः । न वां पृ छा म व र य तं मे व त मा त त ून् णु वम् ।। ७ ।। व र! ‘म ही कता-धता ँ’ ऐसा न समझो और हम त दन कड़वी बात न कहो। म अपने हतके स ब धम तुमसे कोई सलाह नह पूछता ँ। तु हारा भला हो। हम तु हारी कठोर बात सहते चले जाते ह, इस लये हम माशील को तुम अपने वचन पी बाण से छे दो मत ।। एकः शा ता न तीयोऽ त शा ता गभ शयानं पु षं शा त शा ता । तेनानु श ः वणा दवा भो यथा नयु ोऽ म तथा भवा म ।। ८ ।। दे खो, इस जगत्का शासन करनेवाला एक ही है, सरा नह । वही शासक माताके गभम सोये ए शशुपर भी शासन करता है; उसीके ारा म भी अनुशा सत ँ। अतः जैसे जल वाभा वक ही नीचेक ओर जाता है, वैसे ही वह जग य ता मुझे जस कामम लगाता है, म वैसे ही उसी कामम लगता ँ ।। ८ ।। भन शरसा शैलम ह भोजयते च यः । धीरेव कु ते त य कायाणामनुशासनम् । यो बलादनुशा तीह सोऽ म ं तेन व द त ।। ९ ।। े े ो े े ो ै

जनसे े रत होकर मनु य अपने सरसे पवतको वद ण करना चाहता है—अथात् प थरपर सर पटककर वयं ही अपनेको पीड़ा दे ता है तथा जनक ेरणासे मनु य सपको भी ध पलाकर पालता है, उसी सव नय ताक बु सम त जगत्के काय का अनुशासन करती है। जो बलपूवक कसीपर अपना उपदे श लादता है, वह अपने उस वहारके ारा उसे अपना श ु बना लेता है ।। ९ ।। म तामनुवृ ं तु समुपे ेत प डतः । द य यः द ता नं ाक् चरं ना भधाव त । भ मा प न स व दे त श ं वचन भारत ।। १० ।। इस कार म ताका अनुसरण करनेवाले मनु यको व ान् पु ष याग दे । भारत! जो पहले कपूरम आग लगाकर उसके व लत हो जानेपर दे रतक उसे बुझानेके लये नह दौड़ता, वह कह उसक बची ई राख भी नह पाता ।। १० ।। न वासयेत् पारव य ष तं वशेषतः र हतं मनु यम् । सय े छस व रत ग छ सुसा वता सती ी जहा त ।। ११ ।। व र! जो श ुका प पाती हो, अपनेसे े ष रखता हो और अ हत करनेवाला हो, ऐसे मनु यको घरम नह रहने दे ना चा हये। अतः तु हारी जहाँ इ छा हो, चले जाओ। कुलटा ीको मीठ -मीठ बात ारा कतनी ही सा वना द जाय, वह प तको छोड़ ही दे ती है ।। ११ ।। व र उवाच एतावता पु षं ये यज त तेषां वृ ं सा वद् ू ह राजन् । रा ां ह च ा न प र लुता न सा वं द वा मुसलैघातय त ।। १२ ।। व रने कहा—राजन्! जो इस कार मनके तकूल कतु हतभरी श ा दे नेमा से अपने हतैषी पु षको याग दे ते ह, उनका वह बताव कैसा है, यह आप सा ीक भाँ त प पातर हत होकर बताइये; य क राजा के च े षसे भरे होते ह, इस लये वे सामने मीठे वचन ारा सा वना दे कर पीठ-पीछे मूसल से आघात करवाते ह ।। १२ ।। अबाल वं म यसे राजपु बालोऽह म येव सुम दबु े । यः सौ दे पु षं थाप य वा प ादे नं षयते स बालः ।। १३ ।।

राजकुमार य धन! तु हारी बु बड़ी म द है। तुम अपनेको व ान् और मुझे मूख समझते हो। जो कसी पु षको सु द्के पदपर था पत करके फर वयं ही उसपर दोषारोपण करता है, वही मूख है ।। १३ ।। न ेयसे नीयते म दबु ः ी ो य येव गृहे ा। ुवं न रोचेद ् भरतषभ य प तः कुमाया इव ष वषः ।। १४ ।। जैसे ो यके घरम राचा रणी ी क याणमय अ नहो आ द काय म नह लगायी जा सकती, उसी कार म दबु पु षको क याणके मागपर नह लगाया जा सकता। जैसे कुमारी क याको साठ वषका बूढ़ा प त नह पसंद आ सकता, उसी कार भरतवंश शरोम ण य धनको न य ही मेरा उपदे श चकर नह तीत होता ।। १४ ।। अतः यं चेदनुकाङ् से वं सवषु कायषु हता हतेषु । य राजन् जडप कां पृ छ वं वै ता शां ैव सवान् ।। १५ ।। राजन्! य द तुम भले-बुरे सभी काय म केवल चकनी-चुपड़ी बात ही सुनना चाहते हो, तो य , मूख , पंगु तथा उसी तरहके अ य सब मनु य से सलाह लया करो ।। १५ ।। ल यते खलु पापीयान् नरो नु यवा गह । अ य य ह पय य व ा ोता च लभः ।। १६ ।। ो













इस संसारम सदा मनको य लगनेवाले वचन बोलनेवाला महापापी मनु य भी अव य मल सकता है; परंतु हतकर होते ए भी अ य वचनको कहने और सुननेवाले दोन लभ ह ।। १६ ।। य तु धमपर या वा भतुः या ये । अ या याह पया न तेन राजा सहायवान् ।। १७ ।। जो धमम त पर रहकर वामीके य-अ यका वचार छोड़कर अ य होनेपर भी हतकर वचन बोलता है, वही राजाका स चा सहायक है ।। १७ ।। अ ा धजं कटु जं ती णमु णं यशोमुषं प षं पू तग ध । सतां पेयं य पब यस तो म युं महाराज पब शा य ।। १८ ।। महाराज! जो पी लेनेपर मान सक रोग का नाश करनेवाला है, कड़वी बात से जसक उ प होती है, जो तीखा, तापदायक, क तनाशक, कठोर और षत तीत होता है, जसे लोग नह पी सकते तथा जो स पु ष के पीनेक व तु है, उस ोधको पीकर शा त हो जाइये ।। १८ ।। वै च वीय य यशो धनं च वा छा यहं सहपु य श त् । यथा तथा तेऽ तु नम तेऽ तु ममा प च व त दश तु व ाः ।। १९ ।। म तो चाहता ँ क व च वीयन दन धृतरा और उनके पु को सदा यश और धन दोन ा त हो, परंतु य धन! तुम जैसे रहना चाहते हो, वैसे रहो, तु ह नम कार है। ा णलोग मेरे लये भी क याणका आशीवाद द ।। १९ ।। आशी वषान् ने वषान् कोपये च प डतः । एवं तेऽहं वदामीदं यतः कु न दन ।। २० ।। कु न दन! म एका दयसे तुमसे यह बात बता रहा ँ, ‘ व ान् पु ष उन सप को कु पत न कर, जो दाँत और ने से भी वष उगलते रहते ह (अथात् ये पा डव तु हारे लये सप से भी अ धक भयंकर ह, इ ह मत छे ड़ो)’ ।। २० ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण

ूतपव ण व र हतवा ये चतु ष तमोऽ यायः ।। ६४ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत ूतपवम व रके हतकारक वचन वषयक चौसठवाँ अ याय पूरा आ ।। ६४ ।।

प चष तमोऽ यायः यु ध रका धन, रा य, भाइय तथा ौपद स हत अपनेको भी हारना शकु न वाच ब व ं पराजैषीः पा डवानां यु ध र । आच व व ं कौ तेय य द तेऽ यपरा जतम् ।। १ ।। शकु न बोला—कु तीन दन यु ध र! आप अबतक पा डव का ब त-सा धन हार चुके। य द आपके पास बना हारा आ कोई धन शेष हो तो बताइये ।। १ ।। यु ध र उवाच मम व मसं येयं यदहं वेद सौबल । अथ वं शकुने क माद् व ं समनुपृ छ स ।। २ ।। यु ध र बोले—सुबलपु ! मेरे पास असं य धन है, जसे म जानता ँ। शकुने! तुम मेरे धनका प रमाण य पूछते हो? ।। २ ।। अयुतं युतं चैव शङ् कुं पं तथाबुदम् । खव शङ् खं नखव च महापं च कोटयः ।। ३ ।। म यं चैव पराथ च सपरं चा प यताम् । एत मम धनं राजं तेन द ा यहं वया ।। ४ ।। अयुत, युत, शंकु, प , अबुद, खव, शंख, नखव, महाप , को ट, म य, पराध और पर इतना धन मेरे पास है। राजन्! खेलो, म इसीको दाँवपर रखकर तु हारे साथ खेलता ँ ।। ३-४ ।। वैश पायन उवाच एत छ वा व सतो नकृ त समुपा तः । जत म येव शकु नयु ध रमभाषत ।। ५ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! यह सुनकर शकु नने छलका आ य ले पुनः इसी न यके साथ यु ध रसे कहा—‘लो, यह धन भी मने जीत लया’ ।। ५ ।। यु ध र उवाच गवा ं ब धेनूकमसं येयमजा वकम् । यत् क चदनुपणाशां ाक् स धोर प सौबल । एत मम धनं सव तेन द ा यहं वया ।। ६ ।। यु ध र बोले—सुबलपु ! मेरे पास स धु नद के पूव तटसे लेकर पणाशा नद के कनारेतक जो भी बैल, घोड़े, गाय, भेड़ एवं बकरी आ द पशुधन ह, वह असं य है। उनम ी

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भी ध दे नेवाली गौ क सं या अ धक है। यह सारा मेरा धन है, जसे म दाँवपर रखकर तु हारे साथ खेलता ँ ।। ६ ।। वैश पायन उवाच एत छ वा व सतो नकृ त समुपा तः । जत म येव शकु नयु ध रमभाषत ।। ७ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! यह सुनकर शठताके आ त ए शकु नने अपनी ही जीत घो षत करते ए यु ध रसे कहा—‘लो, यह दाँव भी मने ही जीता’ ।। ७ ।। यु ध र उवाच पुरं जनपदो भू मर ा णधनैः सह । अ ा णा पु षा राज छ ं धनं मम । एतद् राजन् मम धनं तेन द ा यहं वया ।। ८ ।। यु ध र बोले—राजन्! ा ण को जी वका पम जो ामा द दये गये ह, उ ह छोड़कर शेष जो नगर, जनपद तथा भू म मेरे अ धकारम है तथा जो ा णेतर मनु य मेरे यहाँ रहते ह, वे सब मेरे शेष धन ह। शकुने! म इसी धनको दाँवपर रखकर तु हारे साथ जूआ खेलता ँ ।। ८ ।। वैश पायन उवाच एत छ वा व सतो नकृ त समुपा तः । जत म येव शकु नयु ध रमभाषत ।। ९ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! यह सुनकर कपटका आ य हण करके शकु नने पुनः अपनी ही जीतका न य करके यु ध रसे कहा—‘इस दाँवपर भी मेरी ही वजय ई’ ।। ९ ।। यु ध र उवाच राजपु ा इमे राज छोभ ते यै वभू षताः । कु डला न च न का सव राज वभूषणम् । एत मम धनं राजं तेन द ा यहं वया ।। १० ।। यु ध र बोले—राजन्! ये राजपु जन आभूषण से वभू षत होकर शो भत हो रहे ह, वे कु डल और गलेके वणभूषण आ द सम त राजक य आभूषण मेरे धन ह। इ ह दाँवपर लगाकर म तु हारे साथ खेलता ँ ।। १० ।। वैश पायन उवाच एत छ वा व सतो नकृ त समुपा तः । जत म येव शकु नयु ध रमभाषत ।। ११ ।। ै







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वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! यह सुनकर छल-कपटका आ य लेनेवाले शकु नने यु ध रसे न यपूवक कहा—‘लो, यह भी मने जीता’ ।। ११ ।।

यु ध र उवाच यामो युवा लो हता ः सह क धो महाभुजः । नकुलो लह एवैको व येत मम त नम् ।। १२ ।। यु ध र बोले— यामवण, त ण, लाल ने और सहके समान कंध वाले महाबा नकुलको ही इस समय म दाँवपर रखता ँ, इ ह को मेरे दाँवका धन समझो ।। १२ ।। शकु न वाच य ते नकुलो राजन् राजपु ो यु ध र । अ माकं वशतां ा तो भूयः केनेह द से ।। १३ ।। शकु न बोला—धमराज यु ध र! आपके परम य राजकुमार नकुल तो हमारे अधीन हो गये, अब कस धनसे आप यहाँ खेल रहे ह? ।। १३ ।। वैश पायन उवाच एवमु वा तु तान ा छकु नः यद त । जत म येव शकु नयु ध रमभाषत ।। १४ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! ऐसा कहकर शकु नने पासे फके और यु ध रसे कहा—‘लो, इस दाँवपर भी मेरी ही वजय ई’ ।। १४ ।। यु ध र उवाच अयं धमान् सहदे वोऽनुशा त लोके मन् प डता यां गत । अनहता राजपु ेण तेन द ा यहं चा यवत् येण ।। १५ ।। यु ध र बोले—ये सहदे व धम का उपदे श करते ह। संसारम प डतके पम इनक या त है। मेरे य राजकुमार सहदे व य प दाँवपर लगानेके यो य नह ह, तो भी म अ य व तुक भाँ त इ ह दाँवपर रखकर खेलता ँ ।। १५ ।। वैश पायन उवाच एत छ वा व सतो नकृ त समुपा तः । जत म येव शकु नयु ध रमभाषत ।। १६ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! यह सुनकर छली शकु नने उसी न यके साथ यु ध रसे कहा—‘यह दाँव भी मने ही जीता’ ।। १६ ।। शकु न वाच मा पु ौ यौ राजं तवेमौ व जतौ मया । गरीयांसौ तु ते म ये भीमसेनधनंजयौ ।। १७ ।। ो े े ो ई े े ो े े

शकु न बोला—राजन्! आपके ये दोन य भाई मा के पु नकुल-सहदे व तो मेरे ारा जीत लये गये, अब रहे भीमसेन और अजुन। म समझता ँ, ये दोन आपके लये अ धक गौरवक व तु ह (इसी लये आप इ ह दाँवपर नह लगाते) ।। १७ ।। यु ध र उवाच अधम चरसे नूनं यो नावे स वै नयम् । यो नः सुमनसां मूढ वभेदं कतु म छ स ।। १८ ।। यु ध र बोले—ओ मूढ़! तू न य ही अधमका आचरण कर रहा है, जो यायक ओर नह दे खता। तू शु दयवाले हमारे भाइय म फूट डालना चाहता है ।। शकु न वाच गत म ः पतते म ः थाणुमृ छ त । ये ो राजन् व र ोऽ स नम ते भरतषभ ।। १९ ।। शकु न बोला—राजन्! धनके लोभसे अधम करनेवाला मतवाला मनु य नरककु डम स रता है। अ धक उ म आ ठूँ ठा काठ हो जाता है। आप तो आयुम बड़े और गुण म े ह। भरतवंश वभूषण! आपको नम कार है ।। व े ता न न य ते जा तो वा यु ध र । कतवा या न द तः लप यु कटा इव ।। २० ।। धमराज यु ध र! जुआरी जूआ खेलते समय पागल होकर जो अनाप-शनाप बात बक जाया करते ह, वे न कभी व म दखायी दे ती ह और न जा कालम ही ।। २० ।। यु ध र उवाच यो नः सं ये नौ रव पारनेता जेता रपूणां राजपु तर वी । अनहता लोकवीरेण तेन द ा यहं शकुने फा गुनेन ।। २१ ।। यु ध रने कहा—शकुने! जो यु पी समु म हमलोग को नौकाक भाँ त पार लगानेवाले ह तथा श ु पर वजय पाते ह, वे लोक व यात वेगशाली वीर राजकुमार अजुन य प दाँवपर लगानेयो य नह ह, तो भी उनको दाँवपर लगाकर म तु हारे साथ खेलता ँ ।। २१ ।।

वैश पायन उवाच एत छ वा व सतो नकृ त समुपा तः । जत म येव शकु नयु ध रमभाषत ।। २२ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! यह सुनकर कपट शकु नने पूववत् वजयका न य करके यु ध रसे कहा—‘यह भी मने ही जीता’ ।। २२ ।। शकु न वाच

अयं मया पा डवानां धनुधरः परा जतः पा डवः स साची । भीमेन राजन् द यतेन द यत् कैतवं पा डव तेऽव श म् ।। २३ ।। शकु न फर बोला—राजन्! ये पा डव म धनुधर वीर स साची अजुन मेरे ारा जीत लये गये। पा डु न दन! अब आपके पास भीमसेन ही जुआ रय को ा त होनेवाले धनके पम शेष ह, अतः उ ह को दाँवपर रखकर खे लये ।। २३ ।। यु ध र उवाच यो नो नेता यु ध नः णेता यथा व ी दानवश ुरेकः । तय े ी संनत ूमहा मा सह क धो य सदा यमष ।। २४ ।। बलेन तु यो य य पुमान् न व ते गदाभृताम य इहा रमदनः । अनहता राजपु ेण तेन द ा यहं भीमसेनेन राजन् ।। २५ ।। यु ध रने कहा—राजन्! जो यु म हमारे सेनाप त और दानवश ु वधारी इ के समान अकेले ही आगे बढ़नेवाले ह; जो तरछ से दे खते ह, जनक भ ह धनुषक भाँ त झुक ई ह, जनका दय वशाल और कंधे सहके समान ह, जो सदा अ य त अमषम भरे रहते ह, बलम जनक समानता करनेवाला कोई पु ष नह है, जो गदाधा रय म अ ग य तथा अपने श ु को कुचल डालनेवाले ह, उ ह राजकुमार भीमसेनको दाँवपर लगाकर म जूआ खेलता ँ। य प वे इसके यो य नह ह ।। २४-२५ ।। वैश पायन उवाच एत छ वा व सतो नकृ त समुपा तः । जत म येव शकु नयु ध रमभाषत ।। २६ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! यह सुनकर शठताका आ य लेकर शकु नने उसी न यके साथ यु ध रसे कहा, ‘यह दाँव भी मने ही जीता’ ।। २६ ।। शकु न वाच ब व ं पराजैषी ातॄं सहय पान् । आच व व ं कौ तेय य द तेऽ यपरा जतम् ।। २७ ।। शकु न बोला—कु तीन दन! आप अपने भाइय और हाथी-घोड़ स हत ब त धन हार चुके, अब आपके पास बना हारा आ धन कोई अव श हो, तो बतलाइये ।। यु ध र उवाच अहं व श ः सवषां ातॄणां द यत तथा । े

ॄ कुयामहं जतः कम वयमा म युप लुते ।। २८ ।। यु ध रने कहा—म अपने सब भाइय म बड़ा और सबका य ँ; अतः अपनेको ही दाँवपर लगाता ँ। य द म हार गया तो परा जत दासक भाँ त सब काय क ँ गा ।। २८ ।। वैश पायन उवाच एत छ वा व सतो नकृ त समुपा तः । जत म येव शकु नयु ध रमभाषत ।। २९ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! यह सुनकर कपट शकु नने न यपूवक अपनी जीत घो षत करते ए यु ध रसे कहा—‘ये दाँव भी मने ही जीता’ ।। २९ ।। शकु न वाच एतत् पा प मकरोयदा मानमहारयः । श े स त धने राजन् पाप आ मपराजयः ।। ३० ।। शकु न फर बोला—राजन्! आप अपनेको दाँवपर लगाकर जो हार गये, यह आपके ारा बड़ा अधम-काय आ। धनके शेष रहते ए अपने-आपको हार जाना महान् पाप है ।। ३० ।। वैश पायन उवाच एवमु वा मता तान् लहे सवानव थतान् । पराजयं लोकवीरानु वा रा ां पृथक्-पृथक् ।। ३१ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! पासा फकनेक व ाम नपुण शकु नने राजा यु ध रसे दाँव लगानेके वषयम उ बात कहकर सभाम बैठे ए लोक- स वीर राजा को पृथक्-पृथक् पा डव क पराजय सू चत क ।। ३१ ।। शकु न वाच अ त ते वै या राजन् लह एकोऽपरा जतः । पण व कृ णां पा चाल तयाऽऽ मानं पुनजय ।। ३२ ।। त प ात् शकु नने फर कहा—राजन्! आपक यतमा ौपद एक ऐसा दाँव है, जसे आप अबतक नह हारे ह; अतः पांचालराजकुमारी कृ णाको आप दाँवपर रखये और उसके ारा फर अपनेको जीत ली जये ।। ३२ ।। यु ध र उवाच नैव वा न महती न कृ णा ना तरो हणी । नीलकु चतकेशी च तया द ा यहं वया ।। ३३ ।। यु ध रने कहा—जो न नाट है न लंबी, न कृ णवणा है न अ धक र वणा तथा जसके केश नीले और घुँघराले ह, उस ौपद को दाँवपर लगाकर म तु हारे साथ जूआ खेलता ँ ।। ३३ ।। शारदो पलप ा या शारदो पलग धया । ो







शारदो पलसे व या पेण ीसमानया ।। ३४ ।। उसके ने शरद्-ऋतुके फु ल कमलदलके समान सु दर एवं वशाल ह। उसके शरीरसे शारद य कमलके समान सुग ध फैलती रहती है। वह शरद्-ऋतुके कमल का सेवन करती है तथा पम सा ात् ल मीके समान है ।। ३४ ।। तथैव यादानृशं यात् तथा याद् पस पदा । तथा या छ लस प या या म छे त् पु षः यम् ।। ३५ ।। पु ष जैसी ी ा त करनेक अ भलाषा रखता है, उसम वैसा ही दयाभाव है, वैसी ही पस प है तथा वैसे ही शील- वभाव ह ।। ३५ ।। सवगुणै ह स प ामनुकूलां यंवदाम् । या श धमकामाथ स म छे रः यम् ।। ३६ ।। वह सम त सद्गुण से स प तथा मनके अनुकूल और य वचन बोलनेवाली है। मनु य धम, काम और अथक स के लये जैसी प नीक इ छा रखता है, ौपद वैसी ही है ।। ३६ ।। चरमं सं वश त या थमं तबु यते । आगोपाला वपाले यः सव वेद कृताकृतम् ।। ३७ ।। वह वाल और भेड़ के चरवाह से भी पीछे सोती और सबसे पहले जागती है। कौनसा काय आ और कौन-सा नह आ, इन सबक वह जानकारी रखती है ।। ३७ ।। आभा त पवद ् व ं स वेदं म लकेव च । वे दम या द घकेशी ता ा या ना तलोमशा ।। ३८ ।। उसका वेद ब से वभू षत मुख कमलके समान सु दर और म लकाके समान सुग धत है। उसका म यभाग वेद के समान कृश दखायी दे ता है। उसके सरके केश बड़ेबड़े ह, मुख और ओ अ णवणके ह तथा उसके अंग म अ धक रोमाव लयाँ नह ह ।। ३८ ।। तयैवं वधया राजन् पा चा याहं सुम यया । लहं द ा म चाव या ौप ा ह त सौबल ।। ३९ ।। सुबलपु ! ऐसी सवागसु दरी सुम यमा पांचाल-राजकुमारी ौपद को दाँवपर रखकर म तु हारे साथ जूआ खेलता ँ; य प ऐसा करते ए मुझे महान् क हो रहा है ।। ३९ ।।

वैश पायन उवाच एवमु े तु वचने धमराजेन धीमता । ध ध ग येव वृ ानां स यानां नःसृता गरः ।। ४० ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! बु मान् धमराजके ऐसा कहते ही उस सभाम बैठे ए बड़े-बूढ़े लोग के मुखसे ‘ ध कार है, ध कार है’ क आवाज आने लगी ।। ४० ।। चु ुभे सा सभा राजन् रा ां संज रे शुचः । भी म ोणकृपाद नां वेद समजायत ।। ४१ ।। ी









राजन्! उस समय सारी सभाम हलचल मच गयी। राजा को बड़ा शोक आ। भी म, ोण और कृपाचाय आ दके शरीरसे पसीना छू टने लगा ।। ४१ ।। शरो गृही वा व रो गतस व इवाभवत् । आ ते याय धोव ो नः स व प गः ।। ४२ ।। व रजी तो दोन हाथ से अपना सर थामकर बेहोश-से हो गये। वे फुँफकारते ए सपक भाँ त उ छ् वास लेकर मुँह नीचे कये ए ग भीर च ताम नम न हो बैठे रह गये ।। ४२ ।। (बा कः सोमद ातीपेयः ससंजयः । ौ णभू र वा ैव युयु सुधृतरा जः ।। ह तौ पष धोव ा नः स त इवोरगाः ।।) बा क, तीपके पौ सोमद , भी म, संजय, अ थामा, भू र वा तथा धृतरापु युयु सु—ये सब मुँह नीचे कये सप के समान लंबी साँस ख चते ए अपने दोन हाथ मलने लगे। धृतरा तु तं ः पयपृ छत् पुनः पुनः । क जतं क जत म त ाकारं ना यर त ।। ४३ ।। धृतरा मन-ही-मन स हो उनसे बार-बार पूछ रहे थे, ‘ या हमारे प क जीत हो रही है?’ वे अपनी स ताक आकृ तको न छपा सके ।। ४३ ।। जहष कण ऽ तभृशं सह ःशासना द भः । इतरेषां तु स यानां ने े यः ापत जलम् ।। ४४ ।। ःशासन आ दके साथ कणको तो बड़ा हष आ; परंतु अ य सभासद क आँख से आँसू गरने लगे ।। ४४ ।। सौबल व भधायैवं जतकाशी मदो कटः । जत म येव तान ान् पुनरेवा वप त ।। ४५ ।। सुबलपु शकु नने मने यह भी जीत लया, ऐसा कहकर पास को पुनः उठा लया। उस समय वह वजयो लाससे सुशो भत और मदो म हो रहा था ।। ४५ ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण

ूतपव ण ौपद पराजये प चष तमोऽ यायः ।। ६५ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत ूतपवम ौपद पराजय वषयक पसठवाँ अ याय पूरा आ ।। ६५ ।। (दा णा य अ धक पाठक े १ ोक मलाकर कुल ४६ ोक ह)

षट् ष तमोऽ यायः व रका य धनको फटकारना य धन उवाच एह

पद मानय व यां भाया स मतां पा डवानाम् । स माजतां वे म परैतु शी ं त ा तु दासी भरपु यशीला ।। १ ।। य धन बोला— व र! यहाँ आओ। तुम जाकर पा डव क यारी और मनोनुकूल प नी ौपद को यहाँ ले आओ। वह पापाचा रणी शी यहाँ आये और मेरे महलम झाड लगाये। उसे वह दा सय के साथ रहना होगा ।। १ ।।

व र उवाच वभाषं भा षतं वा शेन न म द स बु य स पाशब ः । पाते वं ल बमानो न वे स ा ान् मृगः कोपयसेऽ तवेलम् ।। २ ।। व र बोले—ओ मूख! तेरे-जैसे नीचके मुखसे ही ऐसा वचन नकल सकता है। अरे! तू कालपाशसे बँधा आ है, इसी लये कुछ समझ नह पाता। तू ऐसे ऊँचे थानम लटक रहा है जहाँसे गरकर ाण जानेम अ धक वल ब नह ; कतु तुझे इस बातका पता नह है। तू एक साधारण मृग होकर ा को अ य त ु कर रहा है ।। आशी वषा ते शर स पूणकोपा महा वषाः । मा को प ाः सुम दा मन् मा गम वं यम यम् ।। ३ ।। म दा मन्! तेरे सरपर कोपम भरे ए महान् वषधर सप चढ़ आये ह। तू उनका ोध न बढ़ा, यमलोकम जानेको उ त न हो ।। ३ ।। न ह दासी वमाप ा कृ णा भ वतुमह त । अनीशेन ह रा ैषा पणे य ते त मे म तः ।। ४ ।। ौपद कभी दासी नह हो सकती, य क राजा यु ध र जब पहले अपनेको हारकर ौपद को दाँवपर लगानेका अ धकार खो चुके थे, उस दशाम उ ह ने इसे दाँवपर रखा है (अतः मेरा व ास है क ौपद हारी नह गयी) ।। अयं ध े वेणु रवा मघाती फलं राजा धृतरा य पु ः । ूतं ह वैराय महाभयाय म ो न बु य ययम तकालम् ।। ५ ।। ै े







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जैसे बाँस अपने नाशके लये ही फल धारण करता है, उसी कार धृतराक े पु इस राजा य धनने महान् भयदायक वैरक सृ के लये इस जूएके खेलको अपनाया है। यह ऐसा मतवाला हो गया है क मौत सरपर नाच रही है; कतु इसे उसका पता ही नह है ।। ना तुदः या नृशंसवाद न हीनतः परम यादद त । यया य वाचा पर उ जेत न तां वदे षत पापलो याम् ।। ६ ।। कसीको ममभेद बात न कहे, कसीसे कठोर वचन न बोले। नीच कमके ारा श ुको वशम करनेक चे ा न करे। जस बातसे सरेको उ े ग हो, जो जलन पैदा करनेवाली और नरकक ा त करानेवाली हो, वैसी बात मुँहसे कभी न नकाले ।। ६ ।। समु चर य तवादा व ाद् यैराहतः शोच त रायहा न । पर य नाममसु ते पत त तान् प डतो नावसृजेत् परेषु ।। ७ ।। मुँहसे जो कटु वचन पी बाण नकलते ह, उनसे आहत आ मनु य रात- दन शोक और च ताम डू बा रहता है। वे सरेके ममपर ही आघात करते ह; अतः व ान् पु षको सर के त न ु र वचन का योग नह करना चा हये ।। ७ ।।

ूत-

डाम यु ध रक पराजय

ःशासनका ौपद के केश पकड़कर ख चना

अजो ह श म गलत् कलैकः श े वप े शरसा य भूमौ । नकृ तनं व य क ठ य घोरं त द् वैरं मा कृथाः पा डु पु ैः ।। ८ ।। कहते ह, एक बकरा कोई श नगलने लगा; कतु जब वह नगला न जा सका, तब उसने पृ वीपर अपना सर पटक-पटककर उस श को नगल जानेका य न कया। जसका प रणाम यह आ क वह भयानक श उस बकरेका ही गला काटनेवाला हो गया। इसी कार तुम पा डव से वैर न ठानो ।। ८ ।। न क च द थं वद त पाथा वनेचरं वा गृहमे धनं वा । तप वनं वा प रपूण व ं भष त हैवं नराः सदै व ।। ९ ।। कु तीके पु कसी वनवासी, गृह थ, तप वी अथवा व ान्से ऐसी कड़ी बात कभी नह बोलते। तु हारे-जैसे कु ेके-से वभाववाले मनु य ही सदा इस तरह सर को भूँका करते ह ।। ९ ।। ारं सुघोरं नरक य ज ं न बु यते धृतरा य पु ः । तम वेतारो बहवः कु णां ूतोदये सह ःशासनेन ।। १० ।। धृतराका पु नरकके अ य त भयंकर एवं कु टल ारको नह दे ख रहा है। ःशासनके साथ कौरव मसे ब त-से लोग य धनक इस ूत ड़ाम उसके साथी बन गये ।। म ज यलाबू न शलाः लव ते मु त नावोऽ भ स श दे व । मूढो राजा धृतरा य पु ो न मे वाचः पय पाः शृणो त ।। ११ ।। चाहे तूँबी जलम डू ब जाय, प थर तैरने लग जाय तथा नौकाएँ भी सदा ही जलम डू ब जाया कर; परंतु धृतराका यह मूख पु राजा य धन मेरी हतकर बात नह सुन सकता ।। ११ ।। अ तो नूनं भ वतायं कु णां सुदा णः सवहरो वनाशः । वाचः का ाः सु दां पय पा न ूय ते वधते लोभ एव ।। १२ ।। यह य धन न य ही कु कुलका नाश करनेवाला होगा। इसके ारा अ य त भयंकर सवनाशका अवसर उप थत होगा। यह अपने सु द का पा ड यपूण हतकर वचन भी नह सुनता; इसका लोभ बढ़ता ही जा रहा है ।। ी े े ो

इ त ीमहाभारते सभापव ण ूतपव ण व रवा ये षट् ष तमोऽ यायः ।। ६६ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत ूतपवम व रवा य वषयक छाछठवाँ अ याय पूरा आ ।। ६६ ।।

स तष तमोऽ यायः ा तकामीके बुलानेसे न आनेपर ःशासनका सभाम ौपद को केश पकड़ कर घसीटकर लाना एवं सभासद से ौपद का वैश पायन उवाच धग तु ार म त ुवाणो दपण म ो धृतरा य पु ः । अवै त ा तकाम सभायामुवाच चैनं परमायम ये ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! धृतरापु य धन गवसे उ म हो रहा था। उसने ‘ व रको ध कार है’ ऐसा कहकर ा तकामीक ओर दे खा और सभाम बैठे ए े पु ष के बीच उससे कहा ।। १ ।। य धन उवाच ा तका मन् ौपद मानय व न ते भयं व ते पा डवे यः । ा यं ववद येव भीतो न चा माकं वृ कामः सदै व ।। २ ।। य धन बोला— ा तका मन्! तुम ौपद को यहाँ ले आओ। तु ह पा डव से कोई भय नह है। ये व र तो डरपोक ह, अतः सदा ऐसी ही बात कहा करते ह। ये कभी हमलोग क वृ नह चाहते ।। २ ।। वैश पायन उवाच एवमु ः ा तकामी स सूतः ाया छ ं राजवचो नश य । व य च ेव ह सहगो ं समासद म हष पा डवानाम् ।। ३ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! य धनके ऐसा कहनेपर राजाक आ ा शरोधाय करके वह सूत ा तकामी शी चला गया एवं जैसे कु ा सहक माँदम घुसे, उसी कार उस राजभवनम वेश करके वह पा डव क महारानीके पास गया ।। ३ ।। ा तका युवाच यु ध रो ूतमदे न म ो य धनो ौप द वामजैषीत् । े

सा वं प व धृतरा य वे म नया म वां कमणे या से न ।। ४ ।। ा तकामी बोला— पदकुमारी! धमराज यु ध र जूएके मदसे उ म हो गये थे। उ ह ने सव व हारकर आपको दाँवपर लगा दया। तब य धनने आपको जीत लया। या सेनी! अब आप धृतराक े महलम पधार। म आपको वहाँ दासीका काम करवानेके लये ले चलता ँ ।। ४ ।। ौप ुवाच कथं वेवं वद स ा तका मन् को ह द ेद ् भायया राजपु ः । मूढो राजा ूतमदे न म ो भू ा यत् कैतवम य क चत् ।। ५ ।। ौपद ने कहा— ा तका मन्! तू ऐसी बात कैसे कहता है? कौन राजकुमार अपनी प नीको दाँवपर रखकर जूआ खेलेगा? या राजा यु ध र जूएके नशेम इतने पागल हो गये क उनके पास जुआ रय को दे नेके लये सरा कोई धन नह रह गया? ।। ५ ।। ा तका युवाच यदा नाभूत् कैतवम यद य तदादे वीत् पा डवोऽजातश ुः । य ताः पूव ातर तेन रा ा वयं चा मा वमथो राजपु ।। ६ ।। ा तकामी बोला—राजकुमारी! जब जुआ रय को दे नेके लये सरा कोई धन नह रह गया, तब अजातश ु पा डु न दन यु ध र इस कार जूआ खेलने लगे। पहले तो उ ह ने अपने भाइय को दाँवपर लगाया, उसके बाद अपनेको और अ तम आपको भी दाँवपर रख दया ।। ६ ।। ौप ुवाच ग छ वं कतवं ग वा सभायां पृ छ सूतज । क नु पूव पराजैषीरा मानमथवा नु माम् ।। ७ ।। ौपद ने कहा—सूतपु ! तुम सभाम उन जुआरी महाराजके पास जाओ और जाकर यह पूछो क ‘आप पहले अपनेको हारे थे या मुझे?’ ।। ७ ।। एत ा वा समाग छ ततो मां नय सूतज । ा वा चक षतमहं रा ो या या म ःखता ।। ८ ।। सूतन दन! यह जानकर आओ। तब मुझे ले चलो। राजा या करना चाहते ह? यह जानकर ही म ःखनी अबला उस सभाम चलूँगी ।। ८ ।। वैश पायन उवाच सभां ग वा स चोवाच ौप ा तद् वच तदा । े े

यु ध रं नरे ाणां म ये थत मदं वचः ।। ९ ।। क येशो नः पराजैषी र त वामाह ौपद । क नु पूव पराजैषीरा मानमथवा प माम् ।। १० ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! ा तकामीने सभाम जाकर राजा के बीचम बैठे ए यु ध रसे ौपद क वह बात कह सुनायी। उसने कहा—‘ ौपद आपसे पूछना चाहती है क कस- कस व तुके वामी रहते ए आप मुझे हारे ह? आप पहले अपनेको हारे ह या मुझे?’ ।। ९-१० ।। यु ध र तु न ेता गतस व इवाभवत् । न तं सूतं युवाच वचनं सा वसाधु वा ।। ११ ।। राजन्! उस समय यु ध र अचेत और न ाण-से हो रहे थे, अतः उ ह ने ा तकामीको भला-बुरा कुछ भी उ र नह दया ।। ११ ।। य धन उवाच इहैवाग य पा चाली मेनं भाषताम् । इहैव सव शृ व तु त या ैत य यद् वचः ।। १२ ।। तब य धन बोला—सूतपु ! जाकर कह दो, ौपद यह आकर अपने इस को पूछे। यह सब सभासद् उसके और यु ध रके उ रको सुन ।। वैश पायन उवाच स ग वा राजभवनं य धनवशानुगः । उवाच ौपद सूतः ा तकामी था वतः ।। १३ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! ा तकामी य धनके वशम था, इस लये वह राजभवनम जाकर ौपद से थत होकर बोला ।। १३ ।।

ा तका युवाच स या वमी राजपुया य त म ये ा तः सं यः कौरवाणाम् । न वै समृ पालयते लघीयान् य वां सभां ने य त राजपु ।। १४ ।। ा तकामीने कहा—राजकुमारी! वे ( य धन आ द) सभासद् तु ह सभाम ही बुला रहे ह। मुझे तो ऐसा जान पड़ता है, अब कौरव के वनाशका समय आ गया है। जो ( य धन) इतना गर गया है क तु ह सभाम बुलानेका साहस करता है, वह कभी अपने धन-वैभवक र ा नह कर सकता ।। १४ ।। ौप ुवाच एवं नूनं दधात् सं वधाता पशावुभौ पृशतो वृ बालौ । धम वेकं परमं ाह लोके ो

स नः शमं धा य त गो यमानः ।। १५ ।। ौपद ने कहा—सूतपु ! न य ही वधाताका ऐसा ही वधान है। बालक और वृ सबको सुख- ःख ा त होते ह। जगत्म एकमा धमको ही े बतलाया जाता है। य द हम उसका पालन कर तो वह हमारा क याण करेगा ।। १५ ।। सोऽयं धम मा यगात् कौरवान् वै स यान् ग वा पृ छ ध य वचो मे । ते मां ूयु न तं तत् क र ये धमा मानो नी तम तो व र ाः ।। १६ ।। मेरे इस धमका उ लंघन न हो, इस लये तुम सभाम बैठे ए कु वं शय के पास जाकर मेरी यह धमानुकूल बात पूछो—‘इस समय मुझे या करना चा हये?’ वे धमा मा, नी त और े महापु ष मुझे जैसी आ ा दगे, म न य ही वैसा क ँ गी ।। १६ ।। ु वा सूत त चो या से याः सभां ग वा ाह वा यं तदानीम् । अधोमुखा ते न च क च चुनब धं तं धातरा य बुद ् वा ।। १७ ।। ौपद का यह कथन सुनकर सूत ा तकामीने पुनः सभाम जाकर ौपद के को हराया; कतु उस समय य धनके उस रा हको जानकर सभी नीचे मुँह कये बैठे रहे, कोई कुछ भी नह बोला ।। १७ ।। वैश पायन उवाच यु ध र तु त छ वा य धन चक षतम् । ौप ाः स मतं तं ा हणोद् भरतषभ ।। १८ ।। एकव ा वधोनीवी रोदमाना रज वला । सभामाग य पा चा ल शुर या तो भव ।। १९ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! य धन या करना चाहता है, यह सुनकर यु ध रने ौपद के पास एक ऐसा त भेजा, जसे वह पहचानती थी और उसीके ारा यह संदेश कहलाया, ‘पांचालराजकुमारी! य प तुम रज वला और नीवीको नीचे रखकर एक ही व धारण कर रही हो, तो भी उसी दशाम रोती ई सभाम आकर अपने शुरके सामने खड़ी हो जाओ ।। १८-१९ ।। अथ वामागतां ् वा राजपु सभां तदा । स याः सव व न दे रन् मनो भधृतरा जम् ।। २० ।। ‘तुम-जैसी राजकुमारीको सभाम आयी दे ख सभी सभासद् मन-ही-मन इस य धनक न दा करगे’ ।। २० ।। स ग वा व रतं तः कृ णाया भवनं नृप । यवेदय मतं धीमान् धमराज य न तम् ।। २१ ।। ौ







राजन्! वह बु मान् त तुरंत ौपद के भवनम गया। वहाँ उसने धमराजका न त मत उसे बता दया ।। २१ ।। पा डवा महा मानो द ना ःखसम वताः । स येना तपरीता ा नोद ते म कचन ।। २२ ।। इधर महा मा पा डव स यके ब धनसे बँधकर अ य त द न और ःखम न हो गये। उ ह कुछ भी सूझ नह पड़ता था ।। २२ ।। तत वेषां मुखमालो य राजा य धनः सूतमुवाच ः । इहैवैतामानय ा तका मन् य म याः कुरवो ुव तु ।। २३ ।। उनके द न मुँहक ओर दे खकर राजा य धन अ य त स हो सूतसे बोला —‘ ा तका मन्! तुम ौपद को यह ले आओ। उसके सामने ही धमा मा कौरव उसके का उ र दगे’ ।। २३ ।। ततः सूत त य वशानुगामी भीत कोपाद् पदा मजायाः । वहाय मानं पुनरेव स यानुवाच कृ णां कमहं वी म ।। २४ ।। तदन तर य धनके वशम रहनेवाले ा तकामीने ौपद के ोधसे डरते ए अपने मान-स मानक परवा न करके पुनः सभासद से पूछा—‘म ौपद को या उ र ँ ?’ ।। य धन उवाच ःशासनैष मम सूतपु ो वृकोदरा जतेऽ पचेताः । वयं गृ ानय या सेन क ते क र य यवशाः सप नाः ।। २५ ।। य धन बोला— ःशासन! यह मेरा सेवक सूतपु ा तकामी बड़ा मूख है। इसे भीमसेनका डर लगा आ है। तुम वयं ौपद को यहाँ पकड़ लाओ। हमारे श ु पा डव इस समय हमलोग के वशम ह। वे तु हारा या कर लगे ।। २५ ।। ततः समु थाय स राजपु ः ु वा ातुः शासनं र ः। व य तद् वे म महारथानाम य वीद् ौपद राजपु ीम् ।। २६ ।। भाईका यह आदे श सुनकर राजकुमार ःशासन उठ खड़ा आ और लाल आँख कये वहाँसे चल दया। महारथी पा डव के महलम वेश करके उसने राजकुमारी ौपद से इस कार कहा— ।। २६ ।। ए े ह पा चा ल जता स कृ णे

य धनं प य वमु ल जा । कु न् भज वायतप ने े धमण लधा स सभां परै ह ।। २७ ।। ‘पांचा ल! आओ, आओ, तुम जूएम जीती जा चुक हो। कृ णे! अब ल जा छोड़कर य धनक ओर दे खो। कमलके समान वशाल ने वाली ौपद ! हमने धमके अनुसार तु ह ा त कया है, अतः तुम कौरव क सेवा करो। अभी राजसभाम चली चलो’ ।। २७ ।। ततः समु थाय सु मनाः सा ववणमामृ य मुखं करेण । आता ाव यतः य ता वृ य रा ः कु पु व य ।। २८ ।। यह सुनकर ौपद का दय अ य त ःखत होने लगा। उसने अपने म लन मुखको हाथसे प छा। फर उठकर वह आत अबला उसी ओर भागी, जहाँ बूढ़े महाराज धृतराक याँ बैठ ई थ ।। २८ ।। ततो जवेना भससार रोषाद् ःशासन ताम भगजमानः । द घषु नीले वथ चो मम सु ज ाह केशेषु नरे प नीम् ।। २९ ।। तब ःशासन भी रोषसे गजता आ बड़े वेगसे उसके पीछे दौड़ा। उसने महाराज यु ध रक प नी ौपद के ल बे, नीले और लहराते ए केश को पकड़ लया ।। ये राजसूयावभृथे जलेन महा तौ म पूतेन स ाः । ते पा डवानां प रभूय वीय बलात् मृ ा धृतरा जेन ।। ३० ।। जो केश राजसूय महाय के अवभृथ नानम म पूत जलसे स चे गये थे, उ ह को ःशासनने पा डव के परा मक अवहेलना करके बलपूवक पकड़ लया ।। स तां पराकृ य सभासमीपमानीय कृ णाम तद घकेशीम् । ःशासनो नाथवतीमनाथवचकष वायुः कदली मवाताम् ।। ३१ ।। लंबे-लंबे केश वाली वह ौपद य प सनाथा थी, तो भी ःशासन उस बेचारी आत अबलाको अनाथक भाँ त घसीटता आ सभाके समीप ले आया और जैसे वायु केलेके वृ को झकझोरकर झुका दे ता है, उसी कार वह ौपद को बलपूवक ख चने लगा ।। सा कृ यमाणा न मता य ः शनै वाचाथ रज वला म । एकं च वासो मम म दबु े सभां नेतुं नाह स मामनाय ।। ३२ ।। े े े ौ ी े ी े े ‘ओ

ःशासनके ख चनेसे ौपद का शरीर झुक गया। उसने धीरेसे कहा—‘ओ म दबु ा मा ःशासन! म रज वला ँ तथा मेरे शरीरपर एक ही व है। इस दशाम मुझे सभाम ले जाना अनु चत है’ ।। ३२ ।। ततोऽ वीत् तां सभं नगृ केशेषु कृ णेषु तदा स कृ णाम् । कृ णं च ज णुं च हर नरं च ाणाय व ोश त या सेनी ।। ३३ ।। यह सुनकर ःशासन उसके काले-काले केश को और जोरसे पकड़कर कुछ बकने लगा; इधर य सेनकुमारी कृ णाने अपनी र ाके लये सवपापहारी, सव वजयी, नर व प भगवान् ीकृ णको पुकारने लगी ।। ३३ ।।

ःशासन उवाच रज वला वा भव या से न एका बरा वा यथवा वव ा । ूते जता चा स कृता स दासी दासीषु वास यथोपजोषम् ।। ३४ ।। ःशासन बोला— ौपद ! तू रज वला, एकव ा अथवा नंगी ही य न हो, हमने तुझे जूएम जीता है; अतः तू हमारी दासी हो चुक है, इस लये अब तुझे हमारी इ छाके अनुसार दा सय म रहना पड़ेगा ।। ३४ ।। वैश पायन उवाच क णकेशी प तताधव ा ःशासनेन वधूयमाना । ीम यमषण च द माना शनै रदं वा यमुवाच कृ णा ।। ३५ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! उस समय ौपद के केश बखर गये थे। ःशासनके झकझोरनेसे उसका आधा व भी खसककर गर गया था। वह लाजसे गड़ी जाती थी और भीतर-ही-भीतर ोधसे द ध हो रही थी। उसी दशाम वह धीरेसे इस कार बोली ।। ३५ ।।

ौप ुवाच इमे सभायामुपनीतशा ाः याव तः सव एवे क पाः । गु थाना गुरव ैव सव तेषाम े नो सहे थातुमेवम् ।। ३६ ।। ौपद ने कहा—अरे ! ये सभाम शा के व ान्, कमठ और इ के समान तेज वी मेरे पताके समान सभी गु जन बैठे ए ह। म उनके सामने इस पम खड़ी होना ी

नह चाहती ।। ३६ ।। नृशंसकम वमनायवृ मा मा वव ां कु मा वकष ः । न मषयेयु तव राजपु ाः से ा दे वा य द ते सहायाः ।। ३७ ।। ू रकमा राचारी ःशासन! तू इस कार मुझे न ख च, न ख च, मुझे व हीन मत कर। इ आ द दे वता भी तेरी सहायताके लये आ जायँ, तो भी मेरे प त राजकुमार पा डव तेरे इस अ याचारको सहन नह कर सकगे ।। ३७ ।। धम थतो धमसुतो महा मा धम सू मो नपुणोपल यः । वाचा प भतुः परमाणुमा म छा म दोषं न गुणान् वसृ य ।। ३८ ।। धमपु महा मा यु ध र धमम ही थत ह। धमका व प बड़ा सू म है। सू म बु वाले धमपालनम नपुण महापु ष ही उसे समझ सकते ह। म अपने प तके गुण को छोड़कर वाणी ारा उनके परमाणुतु य छोटे -से-छोटे दोषको भी कहना नह चाहती ।। ३८ ।। इदं वकाय कु वीरम ये रज वलां यत् प रकषसे माम् । न चा प क त् कु तेऽ कु सां ुवं तवेदं मतम युपेताः ।। ३९ ।। अरे! तू इन कौरववीर के बीचम जो मुझ रज वला ीको ख चकर लये जा रहा है, यह अ य त पापपूण कृ य है। म दे खती ँ यहाँ कोई भी मनु य तेरे इस कुकमक न दा नह कर रहा है। न य ही ये सब लोग तेरे मतम हो गये ।। ३९ ।। धग तु न ः खलु भारतानां धम तथा वदां च वृ म् । य तीतां कु धमवेलां े त सव कुरवः सभायाम् ।। ४० ।। अहो! ध कार है! भरतवंशके नरेश का धम न य ही न हो गया तथा यधमके जाननेवाले इन महापु ष का सदाचार भी लु त हो गया; य क यहाँ कौरव क धममयादाका उ लंघन हो रहा है, तो भी सभाम बैठे ए सभी कु वंशी चुपचाप दे ख रहे ह ।। ४० ।। ोण य भी म य च ना त स वं ु तथैवा य महा मनोऽ प । रा तथा हीममधममु ं न ल य ते कु वृ मु याः ।। ४१ ।। ै ो



जान पड़ता है ोणाचाय, पतामह भी म, महा मा व र तथा राजा धृतराम अब कोई श नह रह गयी है; तभी तो ये कु वंशके, बड़े-बूढ़े महापु ष राजा य धनके इस भयानक पापाचारक ओर पात नह कर रहे ह ।। ४१ ।। (इमं ममे ूत सव एव सभासदः । जतां वा य जतां वा मां म य वे सवभू मपाः ।।) मेरे इस का सभी सभासद् उ र द। राजाओ! आपलोग या समझते ह? धमके अनुसार म जीती गयी ँ या नह ? वैश पायन उवाच तथा ुव ती क णं सुम यमा भतॄन् कटा ैः कु पतानप यत् । सा पा डवान् कोपपरीतदे हान् संद पयामास कटा पातैः ।। ४२ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! इस कार क ण वरम वलाप करती सुम यमा ौपद ने ोधम भरे ए अपने प तय क ओर तरछ से दे खा। पा डव के अंग-अंगम ोधक अ न ा त हो गयी थी। ौपद ने अपने कटा ारा दे खकर उनक ोधा नको और भी उ त कर दया ।। ४२ ।। तेन रा येन तथा धनेन र नै मु यैन तथा बभूव । यथा पाकोपसमी रतेन कृ णाकटा ेण बभूव ःखम् ।। ४३ ।। रा य, धन तथा मु य-मु य र न को हार जानेपर भी पा डव को उतना ःख नह आ था, जतना क ौपद के ल जा एवं ोधयु कटा पातसे आ था ।। ४३ ।। ःशासन ा प समी य कृ णामवे माणां कृपणान् पत तान् । आधूय वेगेन वसं क पामुवाच दासी त हसन् सश दम् ।। ४४ ।। ौपद को अपने द न प तय क ओर दे खती दे ख ःशासन उसे बड़े वेगसे झकझोरकर जोर-जोरसे हँसते ए ‘दासी’ कहकर पुकारने लगा। उस समय ौपद मू छत-सी हो रही थी ।। ४४ ।। कण तु त ा यमतीव ः स पूजयामास हसन् सश दम् । गा धारराजः सुबल य पु तथैव ःशासनम यन दत् ।। ४५ ।। कणको बड़ी स ता ई। उसने खलखलाकर हँसते ए ःशासनके उस कथनक बड़ी सराहना क । सुबलपु गा धारराज शकु नने भी ःशासनका अ भन दन

कया ।। ४५ ।। स या तु ये त बभूवुर ये ता यामृते धातरा ेण चैव । तेषामभूद ् ःखमतीव कृ णां ् वा सभायां प रकृ यमाणाम् ।। ४६ ।। उस समय वहाँ जतने सभासद् उप थत थे, उनमसे कण, शकु न और य धनको छोड़कर अ य सब लोग को सभाम इस कार घसीट जाती ई ौपद क दशा दे खकर बड़ा ःख आ ।। ४६ ।।

भी म उवाच न धमसौ यात् सुभगे ववे ु श नो म ते ममं यथावत् । अ वा यश ः प णतुं पर वं या भतुवशतां समी य ।। ४७ ।। उस समय भी मने कहा—सौभा यशा लनी ब ! धमका व प अ य त सू म होनेके कारण म तु हारे इस का ठ क-ठ क ववेचन नह कर सकता। जो वामी नह है वह पराये धनको दाँवपर नह लगा सकता, परंतु ीको सदा अपने वामीके अधीन दे खा जाता है, अतः इन सब बात पर वचार करनेसे मुझसे कुछ कहते नह बनता ।। ४७ ।। यजेत सवा पृ थव समृ ां यु ध रो धममथो न ज ात् । उ ं जतोऽ मी त च पा डवेन त मा श नो म ववे ु मेतत् ।। ४८ ।। मेरा व ास है क धमराज यु ध र धन-समृ से भरी ई इस सारी पृ वीको याग सकते ह, कतु धमको नह छोड़ सकते। इन पा डु न दनने वयं कहा है क म अपनेको हार गया; अतः म इस का ववेचन नह कर सकता ।। ४८ ।। ूतेऽ तीयः शकु ननरेषु कु तीसुत तेन नसृ कामः । न म यते तां नकृ त यु ध रत मा ते ममं वी म ।। ४९ ।। यह शकु न मनु य म ूत व ाका अ तीय जानकार है। इसीने कु तीन दन यु ध रको े रत करके उनके मनम तु ह दाँवपर रखनेक इ छा उ प क है, परंतु यु ध र इसे शकु नका छल नह मानते; इसी लये म तु हारे इस का ववेचन नह कर पाता ँ ।। ४९ ।। ौप ुवाच आय राजा क ु शलैरनाया म भनकृ तकैः सभायाम् । ै

ूत यैना तकृत य नः क मादयं नाम नसृ कामः ।। ५० ।। ौपद ने कहा—जूआ खेलनेम नपुण, अनाय, ा मा, कपट तथा ूत ेमी धूत ने राजा यु ध रको सभाम बुलाकर जूएका खेल आर भ कर दया। इ ह जूआ खेलनेका अ धक अ यास नह है। फर इनके मनम जूएक इ छा य उ प क गयी? ।। ५० ।। अशु भावै नकृ त वृ ैरबु यमानः कु पा डवा यः । स भूय सव जतोऽ प य मात् प ादयं कैतवम युपेतः ।। ५१ ।। जनके दयक भावना शु नह है, जो सदा छल और कपटम लगे रहते ह, उन सम त रा मा ने मलकर इन भोले-भाले कु -पा डव- शरोम ण महाराज यु ध रको पहले जूएम जीत लया है, त प ात् ये मुझे दाँवपर लगानेके लये ववश कये गये ह ।। ५१ ।। त त चेमे कुरवः सभायामीशाः सुतानां च तथा नुषाणाम् । समी य सव मम चा प वा यं व ूत मे ममं यथावत् ।। ५२ ।। ये कु वंशी महापु ष जो सभाम बैठे ए ह, सभी पु और पु वधु के वामी ह (सभीके घरम पु और पु वधुएँ ह), अतः ये सब लोग मेरे कथनपर अ छ तरह वचार करके इस का ठ क-ठ क ववेचन कर ।। ५२ ।। (न सा सभा य न स त वृ ा न ते वृ ा ये न वद त धमम् । नासौ धम य न स यम त न तत् स यं य छलेनानु व म् ।।) वह सभा नह है जहाँ वृ पु ष न ह , वे वृ नह ह जो धमक बात न बताव, वह धम नह है जसम स य न हो और वह स य नह है जो छलसे यु हो। वैश पायन उवाच तथा ुव त क णं द तीमवे माणां कृपणान् पत तान् । ःशासनः प षा य या ण वा या युवाचामधुरा ण चैव ।। ५३ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! इस कार ौपद क ण वरम बोलकर रोती ई अपने द न प तय क ओर दे खने लगी। उस समय ःशासनने उसके त कतने ही अ य कठोर एवं कटु वचन कहे ।। ५३ ।। तां कृ यमाणां च रज वलां च ो



तो रीयामतदहमाणाम् । वृकोदरः े य यु ध रं च चकार कोपं परमात पः ।। ५४ ।। कृ णा रज वलाव थाम घसीट जा रही थी, उसके सरका कपड़ा सरक गया था, वह इस तर कारके यो य कदा प नह थी। उसक यह रव था दे खकर भीमसेनको बड़ी पीड़ा ई। वे यु ध रक ओर दे खकर अ य त कु पत हो उठे ।। ५४ ।। इ त ीमहाभारते सभापव ण ूतपव ण ौपद े स तष तमोऽ यायः ।। ६७ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत ूतपवम ौपद वषयक सरसठवाँ अ याय पूरा आ ।। ६७ ।। (दा णा य अ धक पाठक े २ ोक मलाकर कुल ५६ ोक ह)

अ ष तमोऽ यायः भीमसेनका ोध एवं अजुनका उ ह शा त करना, वकणक धमसंगत बातका कणके ारा वरोध, ौपद का चीरहरण एवं भगवान् ारा उसक ल जार ा तथा व रके ारा ादका उदाहरण दे कर सभासद को वरोधके लये े रत करना भीम उवाच भव त गेहे ब ध यः कतवानां यु ध र । न ता भ त द त दया चैवा त ता व प ।। १ ।। भीमसेन बोले—भैया यु ध र! जुआ रय के घरम ायः कुलटा याँ रहती ह, कतु वे भी उ ह दाँवपर लगाकर जूआ नह खेलते। उन कुलटा के त भी उनके दयम दया रहती है ।। १ ।। का यो यद् धनमाहाष द् ं य चा य मम् । तथा ये पृ थवीपाला या न र ना युपाहरन् ।। २ ।। वाहना न धनं चैव कवचा यायुधा न च । रा यमा मा वयं चैव कैतवेन तं परैः ।। ३ ।। का शराजने जो धन उपहारम दया था एवं और भी जो उ म वे हमारे लये लाये थे तथा अ य राजा ने भी जो र न हम भट कये थे, उन सबको और हमारे वाहन , वैभव , कवच , आयुध , रा य, आपके शरीर तथा हम सब भाइय को भी श ु ने जूएके दाँवपर रखवाकर अपने अ धकारम कर लया ।। २-३ ।। न च मे त कोपोऽभूत् सव येशो ह नो भवान् । इमं व त मं म ये ौपद य प यते ।। ४ ।। कतु इसके लये मेरे मनम ोध नह आ; य क आप हमारे सव वके वामी ह। पर ौपद को जो दाँवपर लगाया गया, इसे म ब त ही अनु चत मानता ँ ।। ४ ।। एषा नहती बाला पा डवान् ा य कौरवैः । व कृते ल यते ु ै नृशंसैरकृता म भः ।। ५ ।। यह भोली-भाली अबला पा डव को प त पम पाकर इस कार अपमा नत होनेके यो य नह थी, परंतु आपके कारण ये नीच, नृशंस और अ जते य कौरव इसे नाना कारके क दे रहे ह ।। ५ ।। अ याः कृते म युरयं व य राजन् नपा यते । बा ते स ध या म सहद े वा नमानय ।। ६ ।। ौ













राजन्! ौपद क इस दशाके लये म आपपर ही अपना ोध छोड़ता ँ। आपक दोन बाह जला डालूँगा। सहदे व! आग ले आओ ।। ६ ।। अजुन उवाच न पुरा भीमसेन वमी शीव दता गरः । परै ते ना शतं नूनं नृशंसैधमगौरवम् ।। ७ ।। अजुन बोले—भैया भीमसेन! तुमने पहले कभी ऐसी बात नह कही थ । न य ही ू रकमा श ु ने तु हारी धम वषयक गौरवबु को न कर दया है ।। ७ ।। न सकामाः परे काया धममेवाचरो मम् । ातरं धा मकं ये ं कोऽ तव ततुमह त ।। ८ ।। भैया! श ु क कामना सफल न करो; उ म धमका ही आचरण करो। भला, अपने धमा मा ये ाताका अपमान कौन कर सकता है? ।। ८ ।। आतो ह परै राजा ा ं तमनु मरन् । द ते परकामेन त ः क तकरं महत् ।। ९ ।। महाराज यु ध रको श ु ने ूतके लये बुलाया है; अतः ये य तको यानम रखकर सर क इ छासे जूआ खेलते ह। यह हमारे महान् यशका व तार करनेवाला है ।। ९ ।। भीमसेन उवाच एवम मन् कृतं व ां य द नाहं धनंजय । द तेऽ नौ स हतौ बा नद हेयं बला दव ।। १० ।। भीमसेनने कहा—अजुन! य द म इस वषयम यह न जानता क इनका यह काय यधमके अनुकूल ही है, तो बलपूवक व लत अ नम इनक दोन बाँह को एक साथ ही जलाकर राख कर डालता ।। १० ।। वैश पायन उवाच तथा तान् ःखतान् ् वा पा डवान् धृतरा जः । कृ यमाणां च पा चाल वकण इदम वीत् ।। ११ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! पा डव को ःखी और पांचालराजकुमारी ौपद को घसीट जाती ई दे ख धृतरान दन वकणने यह कहा— ।। ११ ।। या से या य ं तद् वा यं व ूत पा थवाः । अ ववेकेन वा य य नरकः स एव नः ।। १२ ।। ‘भू मपालो! ौपद ने जो उप थत कया है, उसका आपलोग उ र द। य द इसके का ठ क-ठ क ववेचन नह कया गया, तो हम शी ही नरक भोगना पड़ेगा ।। १२ ।। भी म धृतरा कु वृ तमावुभौ । समे य नाहतुः क चद् व र महाम तः ।। १३ ।। ‘





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‘ पतामह भी म और पता धृतरा— ये दोन कु वंशके सबसे वृ पु ष ह। ये तथा परम बु मान् व रजी मलकर कुछ उ र य नह दे ते?’ ।। १३ ।। भार ाज सवषामाचायः कृप एव च । कुत एताव प ं नाहतु जस मौ ।। १४ ।। ‘हम सबके आचाय भर ाजन दन ोणाचाय और कृपाचाय ये दोन ा णकुलके े पु ष ह। ये दोन भी इस पर अपने वचार य नह कट करते? ।। ये व ये पृ थवीपालाः समेताः सवतो दशः । काम ोधौ समु सृ य ते ुव तु यथाम त ।। १५ ।। ‘जो सरे राजालोग चार दशा से यहाँ पधारे ह, वे सभी काम और ोधको यागकर अपनी बु के अनुसार इस का उ र द ।। १५ ।। य ददं ौपद वा यमु व यसकृ छु भा । वमृ य क य कः प ः पा थवा वदतो रम् ।। १६ ।। राजाओ! क याणी ौपद ने बार-बार जस को हराया है, उसपर वचार करके आपलोग उ र द, जससे मालूम हो जाय क इस वषयम कसका या प ( वचार) है’ ।। १६ ।। एवं स ब शः सवानु वां तान् सभासदः । न च ते पृ थवीपाला तमूचुः सा वसाधु वा ।। १७ ।। इस कार वकणने उन सब सभासद से बार-बार अनुरोध कया; परंतु उन नरेश ने उस वषयम उससे भला-बुरा कुछ नह कहा ।। १७ ।। उ वा सकृत् तथा सवान् वकणः पृ थवीपतीन् । पाणौ पा ण व न प य नः स दम वीत् ।। १८ ।। उन सब राजा से बार-बार आ ह करनेपर भी जब कुछ उ र नह मला, तब वकणने हाथ-पर-हाथ मलते ए लंबी साँस ख चकर कहा— ।। १८ ।। व ूत पृ थवीपाला वा यं मा वा कथंचन । म ये या यं यद ाहं त व या म कौरवाः ।। १९ ।। ‘कौरवो तथा अ य भू मपालो! आपलोग ौपद के पर कसी कारका वचार कट कर या न कर, म इस वषयम जो यायसंगत समझता ँ, वह कहता ँ ।। च वाया नर े ा सना न मही ताम् । मृगयां पानम ां ा ये चैवा तर ताम् ।। २० ।। ‘नर े भूपालो! राजा के चार सन बताये गये ह— शकार, म दरापान, जूआ तथा वषयभोगम अ य त आस ।। २० ।। एतेषु ह नरः स ो धममु सृ य वतते । यथायु े न च कृतां यां लोको न म यते ।। २१ ।। ‘इन सन म आस मनु य धमक अवहेलना करके मनमाना बताव करने लगता है। इस कार सनास पु षके ारा कये ए कसी भी कायको लोग स मान नह दे ते ह ।। २१ ।। े े

तदयं पा डु पु ेण सने वतता भृशम् । समातेन कतवैरा थतो ौपद पणः ।। २२ ।। ‘ये पा डु न दन यु ध र ूत पी सनम अ य त आस ह। इ ह ने धूत जुआ रय से े रत होकर ौपद को दाँवपर लगा दया है ।। २२ ।। साधारणी च सवषां पा डवानाम न दता । जतेन पूव चानेन पा डवेन कृतः पणः ।। २३ ।। ‘सती-सा वी ौपद सम त पा डव क समान पसे प नी है, केवल यु ध रक ही नह है। इसके सवा, पा डु कुमार यु ध र पहले अपने-आपको हार चुके थे, उसके बाद उ ह ने ौपद को दाँवपर रखा है ।। २३ ।। इयं च क तता कृ णा सौबलेन पणा थना । एतत् सव वचायाहं म ये न व जता ममाम् ।। २४ ।। ‘सब दाँव को जीतनेक इ छावाले सुबलपु शकु नने ही ौपद को दाँवपर लगानेक बात उठायी है। इन सब बात पर वचार करके म पदकुमारी कृ णाको जीती ई नह मानता’ ।। २४ ।। एत छ वा महान् नादः स यानामुद त त । वकण शंसमानानां सौबलं चा प न दतान् ।। २५ ।। यह सुनकर सभी सभासद वकणक शंसा और सुबलपु शकु नक न दा करने लगे। उस समय वहाँ बड़ा कोलाहल मच गया ।। २५ ।। त म ुपरते श दे राधेयः ोधमू छतः । गृ चरं बा मदं वचनम वीत् ।। २६ ।। उस कोलाहलके शा त होनेपर राधान दन कण ोधसे मू छत हो उसक सु दर बाँह पकड़कर इस कार बोला ।। कण उवाच य ते वै वकणह वैकृता न ब य प । त जात त नाशाय यथा नरर ण जः ।। २७ ।। कणने कहा— वकण! इस जगत्म ब त-सी व तुएँ वपरीत प रणाम उ प करनेवाली दे खी जाती ह। जैसे अर णसे उ प ई अ न उसीको जला दे ती है, उसी कार कोई-कोई मनु य जस कुलम उ प होता है, उसीका वनाश करनेवाला बन जाता है ।। २७ ।। ( ा धबलं नाशयते शरीर थोऽ प स भृतः । तृणा न पशवो न त वप ं चैव कौरवः ।। ोणो भी मः कृपो ौ ण व र महाम तः । धृतरा म गा धारी भवतः ा व राः ।।) रोग य प शरीरम ही पलता है, तथा प वह शरीरके ही बलका नाश करता है। पशु घासको ही चरते ह, फर भी उसे पैर से कुचल डालते ह। उसी कार कु कुलम उ प ो



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होकर भी तुम अपने ही प को हा न प ँचाना चाहते हो। वकण! ोण, भी म, कृप, अ थामा, महाबु मान् व र, धृतरा तथा गा धारी—ये तुमसे अ धक बु मान् ह। एते न क चद या ो दता प कृ णया । धमण व जतामेतां म य ते पदा मजाम् ।। २८ ।। ौपद ने बार-बार े रत कया है, तो भी ये सभासद कुछ भी नह बोलते ह; य क ये सब लोग पदकुमारीको धमके अनुसार जीती ई समझते ह ।। वं तु केवलबा येन धातरा वद यसे । यद् वी ष सभाम ये बालः थ वरभा षतम् ।। २९ ।। धृतराक ु मार! तुम केवल अपनी मूखताके कारण आप ही अपने पैर म कु हाड़ी मार रहे हो; य क तुम बालक होकर भी भरी सभाम वृ क -सी बात करते हो ।। न च धम यथावत् वं वे स य धनावर । यद् वी ष जतां कृ णां न जते त सुम दधीः ।। ३० ।। य धनके छोटे भाई! तु ह धमके वषयम यथाथ ान नह है। तुम जो जीती ई ौपद को नह जीती ई बता रहे हो, इससे तु हारे म दबु होनेका प रचय मलता है ।। कथं व जतां कृ णां म यसे धृतरा ज । यदा सभायां सव वं य तवान् पा डवा जः ।। ३१ ।। धृतराक ु मार! तुम कृ णाको नह जीती ई कैसे मानते हो? जब क पा डव के बड़े भाई यु ध रने ूतसभाके बीच अपना सव व दाँवपर लगा दया है ।। अ य तरा च सव वे ौपद भरतषभ । एवं धम जतां कृ णां म यसे न जतां कथम् ।। ३२ ।। भरत े ! ौपद भी तो सव वके भीतर ही है। इस कार जब कृ णाको धमपूवक जीत लया गया है, तब तुम उसे नह जीती ई य समझते हो? ।। ३२ ।। क तता ौपद वाचा अनु ाता च पा डवैः । भव य व जता केन हेतुनैषा मता तव ।। ३३ ।। यु ध रने अपनी वाणी ारा कहकर ौपद को दाँवपर रखा और शेष पा डव ने मौन रहकर उसका अनुमोदन कया। फर कस कारणसे तुम उसे नह जीती ई मानते हो? ।। म यसे वा सभामेतामानीतामेकवाससम् । अधमणे त त ा प शृणु मे वा यमु मम् ।। ३४ ।। अथवा य द तु हारी यह राय हो क एकव ा ौपद को इस सभाम अधमपूवक लाया गया है तो इसके उ रम भी मेरी उ म बात सुनो ।। ३४ ।। एको भता या दे वै व हतः कु न दन । इयं वनेकवशगा ब धक त व न ता ।। ३५ ।। अ याः सभामानयनं न च म त मे म तः । एका बरधर वं वा यथ वा प वव ता ।। ३६ ।। कु न दन! दे वता ने ीके लये एक ही प तका वधान कया है; परंतु यह ौपद अनेक प तय के अधीन है, अतः यह न य ही वे या है। इसका सभाम लाया जाना कोई ो ी ै ी ो ो ी ँ ी ी ै

अनोखी बात नह है। यह एकव ा अथवा नंगी हो तो भी यहाँ लायी जा सकती है, यह मेरा प मत है ।। ३५-३६ ।। य चैषां वणं क चद् या चैषा ये च पा डवाः । सौबलेनेह तत् सव धमण व जतं वसु ।। ३७ ।। इन पा डव के पास जो कुछ धन है, जो यह ौपद है तथा जो ये पा डव ह, इन सबको सुबलपु शकु नने यहाँ जूएके धनके पम धमपूवक जीता है ।। ३७ ।। ःशासन सुबालोऽयं वकणः ा वा दकः । पा डवानां च वासां स ौप ा ा युपाहर ।। ३८ ।। ःशासन! यह वकण अ य त मूढ़ है, तथा प व ान क -सी बात बनाता है। तुम पा डव के और ौपद के भी व उतार लो ।। ३८ ।। त छ वा पा डवाः सव वा न वासां स भारत । अवक य रीया ण सभायां समुपा वशन् ।। ३९ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! कणक बात सुनकर सम त पा डव अपनेअपने उ रीय व उतारकर सभाम बैठ गये ।। ३९ ।। ततो ःशासनो राजन् ौप ा वसनं बलात् । सभाम ये समा य पा ु ं च मे ।। ४० ।। राजन्! तब ःशासनने उस भरी सभाम ौपद का व बलपूवक पकड़कर ख चना ार भ कया ।। ४० ।।

वैश पायन उवाच आकृ यमाणे वसने ौप ा ततो ह रः । वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! जब व ख चा जाने लगा, तब ौपद ने भगवान् ीकृ णका मरण कया ।। ( ौप ुवाच ातं मया व स ेन पुरा गीतं महा मना । मह याप द स ा ते मत ो भगवान् ह रः ।। ौपद ने मन-ही-मन कहा—मने पूवकालम महा मा व स जीक बतायी ई इस बातको अ छ तरह समझा है क भारी वप पड़नेपर भगवान् ीह रका मरण करना चा हये। वैश पायन उवाच गो व दे त समाभा य कृ णे त च पुनः पुनः । मनसा च तयामास दे वं नारायणं भुम् ।। आप वभयदं कृ णं लोकानां पतामहम् ।) वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! ऐसा वचारकर ौपद ने बारंबार ‘गो व द’ और ‘कृ ण’ का नाम लेकर पुकारा और आप कालम अभय दे नेवाले लोक पतामह ी



नारायण- व प भगवान् ीकृ णका मन-ही-मन च तन कया। गो व द ारकावा सन् कृ ण गोपीजन य ।। ४१ ।। कौरवैः प रभूतां मां क न जाना स केशव । हे नाथ हे रमानाथ जनाथा तनाशन । कौरवाणवम नां मामु र व जनादन ।। ४२ ।। ‘हे गो व द! हे ारकावासी ीकृ ण! हे गोपांगना के ाणव लभ केशव! कौरव मेरा अपमान कर रहे ह, या आप नह जानते? हे नाथ! हे रमानाथ! हे जनाथ! हे संकटनाशन जनादन! म कौरव प समु म डू बी जा रही ँ, मेरा उ ार क जये ।। ४१-४२ ।। कृ ण कृ ण महायो गन् व ा मन् व भावन । प ां पा ह गो व द कु म येऽवसीदतीम् ।। ४३ ।। ‘स चदान द व प ीकृ ण! महायो गन्! व ा मन्! व भावन! गो व द! कौरव के बीचम क पाती ई मुझ शरणागत अबलाक र ा क जये’ ।। ४३ ।। इ यनु मृ य कृ णं सा हर भुवने रम् । ा दद् ःखता राजन् मुखमा छा भा मनी ।। ४४ ।। राजन्! इस कार तीन लोक के वामी यामसु दर ीकृ णका बार-बार च तन करके मा ननी ौपद ःखी हो अंचलसे मुँह ढककर जोर-जोरसे रोने लगी ।। ४४ ।। या से या वचः ु वा कृ णो ग रतोऽभवत् । य वा श याऽऽसनं पद् यां कृपालुः कृपया यगात् ।। ४५ ।। कृ णं च व णुं च हर नरं च ाणाय व ोश त या सेनी । तत तु धम ऽ त रतो महा मा समावृणोद् वै व वधैः सुव ैः ।। ४६ ।। पदन दनीक वह क ण पुकार सुनकर कृपालु ीकृ ण गद्गद हो गये तथा शया और आसन छोड़कर दयासे वत हो पैदल ही दौड़ पड़े। य सेनकुमारी कृ णा अपनी र ाके लये ीकृ ण, व णु ह र और नर आ द भगव ाम को जोर-जोरसे पुकार रही थी। इसी समय धम व प महा मा ीकृ णने अ पसे उसके व म वेश करके भाँ तभाँ तके सु दर व ारा ौपद को आ छा दत कर लया ।। ४५-४६ ।। आकृ यमाणे वसने ौप ा तु वशा पते । त प ू मपरं व ं ा रासीदनेकशः ।। ४७ ।। जनमेजय! ौपद के व ख चे जाते समय उसी तरहके सरे- सरे अनेक व कट होने लगे ।। ४७ ।। नानाराग वरागा ण वसना यथ वै भो । ा भव त शतशो धम य प रपालनात् ।। ४८ ।। राजन्! धमपालनके भावसे वहाँ भाँ त-भाँ तके सैकड़ रंग- बरंगे व कट होते रहे ।। ४८ ।। ो ी ो

ततो हलहलाश द त ासीद् घोरदशनः । तद ततमं लोको वी य सव महीभृतः । शशंसु पद त कु स तो धृतरा जम् ।। ४९ ।। शशाप त भीम तु राजम ये बृह वनः । ोधाद् व फुरमाणौ ो व न प य करे करम् ।। ५० ।। उस समय वहाँ बड़ा भयंकर कोलाहल मच गया। जगत्म यह अ त य दे खकर सब राजा ौपद क शंसा और ःशासनक न दा करने लगे। उस समय वहाँ सम त राजा के बीच हाथ-पर-हाथ मलते ए भीमसेनने ोधसे फड़कते ए ओठ ारा भयंकर गजनाके साथ यह शाप दया ( त ा क ) ।। ४९-५० ।। भीम उवाच इदं मे वा यमाद वं या लोकवा सनः । नो पूव नरैर यैन चा यो यद् व द य त ।। ५१ ।। भीमसेनने कहा—दे श-दे शा तरके नवासी यो! आपलोग मेरी इस बातपर यान द। ऐसी बात आजसे पहले न तो कसीने कही होगी और न सरा कोई कहेगा ही ।।

य ेतदे वमु वाहं न कुया पृ थवी राः । पतामहानां पूवषां नाहं ग तमवा ुयाम् ।। ५२ ।। अ य पाप य बु े भारतापसद य च । न पबेयं बलाद् व ो भ वा चेद ् धरं यु ध ।। ५३ ।। भू मपालो! यह खोट बु वाला ःशासन भरतवंशके लये कलंक है। म यु म बलपूवक इस पापीक छाती फाड़कर इसका र पीऊँगा। य द न पीऊँ अथात्—अपनी ी ई ो ँ ो े े े

कही ई उस बातको पूरा न क ँ , तो मुझे अपने पूवज बाप-दाद क मले ।। ५२-५३ ।। वैश पायन उवाच



गत न

त य ते तद् वचः ु वा रौ ं लोम हषणम् । च ु ब लां पूजां कु स तो धृतरा जम् ।। ५४ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! भीमसेनक यह र गटे खड़े कर दे नेवाली भयंकर बात सुनकर वहाँ बैठे ए राजा ने धृतरापु ःशासनक न दा करते ए भीमसेनक भू र-भू र शंसा क ।। ५४ ।। यदा तु वाससां रा शः सभाम ये समा चतः । ततो ःशासनः ा तो ी डतः समुपा वशत् ।। ५५ ।। जब सभाम व का ढे र लग गया, तब ःशासन थककर ल जत हो चुपचाप बैठ गया ।। ५५ ।। ध श द तु तत त समभू लोमहषणः । स यानां नरदे वानां ् वा कु तीसुतां तथा ।। ५६ ।। उस समय कु तीपु क ओर दे खकर सभाम उप थत नरेश क ओरसे ःशासनपर रोमांचकारी श द म ध कारक बौछार होने लगी ।। ५६ ।। न व ुव त कौर ाः मेत म त म ह । स जनः ोश त मा धृतरा ं वगहयन् ।। ५७ ।। कौरव ौपद के पूव पर प ववेचन नह कर रहे थे, अतः वहाँ बैठे ए लोग राजा धृतराक न दा करते ए उ ह कोसने लगे ।। ५७ ।। ततो बा समु य नवाय च सभासदः । व रः सवधम इदं वचनम वीत् ।। ५८ ।। तब स पूण धम के ाता व रजीने अपनी दोन भुजाएँ ऊपर उठाकर सभासद को चुप कराया और इस कार कहा ।।

व र उवाच ौपद मु वैवं रोरवी त नाथवत् । न च व ूत तं ं स या धम ऽ पी ते ।। ५९ ।। व रजी बोले—इस सभाम पधारे ए भूपालगण! पदकुमारी कृ णा यहाँ अपना उप थत करके इस तरह अनाथक भाँ त रो रही है; परंतु आपलोग उसका ववेचन नह करते, अतः यहाँ धमक हा न हो रही है ।। सभां प ते ातः वल व ह वाट् । तं वै स येन धमण स याः शमय युत ।। ६० ।। संकटम पड़ा आ मनु य अ नक भाँ त च तासे व लत आ सभाक शरण लेता है, उस समय सभासदगण धम और स यका आ य लेकर अपने वचन ारा उसे शा त करते ह ।। ो े

धम मतो ूयादायः स येन मानवः । व ूयु त तं ं काम ोधबला तगाः ।। ६१ ।। अतः े मनु यको उ चत है क वह धमानुकूल को सचाईके साथ उप थत करे और सभासद को चा हये क वे काम- ोधके वेगसे ऊपर उठकर उस का ठ क-ठ क ववेचन कर ।। ६१ ।। वकणन यथा मु ः ो नरा धपाः । भव तोऽ प ह तं ं व ुव तु यथाम त ।। ६२ ।।

ौपद -चीर-हरण

राजाओ! वकणने अपनी बु के अनुसार इस का उ र दया है, अब आपलोग भी अपनी-अपनी बु के अनुसार उस का नणय कर ।। ६२ ।। यो ह ं न व ूयाद ् धमदश सभां गतः । अनृते या फलावा त त याः सोऽध समुते ।। ६३ ।। जो धम पु ष सभाम जाकर वहाँ उप थत ए का उ र नह दे ता, वह झूठ बोलनेके आधे फलका भागी होता है ।। ६३ ।। यः पुन वतथं ूयाद् धमदश सभां गतः । अनृत य फलं कृ नं स ा ोती त न यः ।। ६४ ।। इसी कार जो धम मानव सभाम जाकर कसी पर झूठा नणय दे ता है, वह न य ही अस यभाषण-का पूरा फल (द ड) पाता है ।। ६४ ।। अ ा युदाहर तीम म तहासं पुरातनम् । ाद य च संवादं मुनेरा रस य च ।। ६५ ।। इस वषयम व पु ष ाद और अं गराकुमार मु न सुध वाके संवाद प इस ाचीन इ तहासका उदाहरण दया करते ह ।। ६५ ।। ादो नाम दै ये त य पु ो वरोचनः । क याहेतोरा रसं सुध वानमुपा वत् ।। ६६ ।। दै यराज ादके एक पु था वरोचन। उसका के शनी नामवाली एक क याक ा तके लये अं गराके पु सुध वाके साथ ववाद हो गया ।। ६६ ।। अहं यायानहं याया न त क ये सया तदा । तयोदवनम ासीत् ाणयो र त नः ुतम् ।। ६७ ।। दोन ही उस क याको पानेक इ छासे ‘म े ँ, म े ँ’ ऐसा कहने लगे। मेरे सुननेम आया है क उन दोन ने अपनी बात स य करनेके लये ाण क बाजी लगा द ।। तयोः ववादोऽभूत् ाद ं तावपृ छताम् । यायान् क आवयोरेकः ं ू ह मा मृषा ।। ६८ ।। े ताके को लेकर जब उनका ववाद ब त बढ़ गया, तब उ ह ने दै यराज ादसे जाकर पूछा—‘हम दोन म कौन े है? आप इस का ठ क-ठ क उ र द जये, झूठ न बो लयेगा’ ।। ६८ ।। स वै ववदनाद् भीतः सुध वानं वलोकयन् । तं सुध वा वीत् ु ो द ड इव वलन् ।। ६९ ।। ाद उस ववादसे भयभीत हो सुध वाक ओर दे खने लगे, तब सुध वाने व लत द डके समान कु पत होकर कहा— ।। ६९ ।। य द वै व य स मृषा ादाथ न व य स । शतधा ते शरो व ी व ेण ह र य त ।। ७० ।। ‘ ाद! य द तुम इस के उ रम झूठ बोलोगे अथवा मौन रह जाओगे तो वधारी इ अपने व ारा तु हारे सरक े सैकड़ टु कड़े कर दे गा’ ।। ७० ।। सुध वना तथो ः सन् थतोऽ थपणवत् । ै ौ

जगाम क यपं दै यः प र ु ं महौजसम् ।। ७१ ।। सुध वाके ऐसा कहनेपर ाद थत हो पीपलके प ेक तरह काँपने लगे और इसके वषयम कुछ पूछनेके लये वे महातेज वी क यपजीके पास गये ।। ७१ ।। ाद उवाच वं वै धम य व ाता दै व येहासुर य च । ा ण य महाभाग धमकृ मदं शृणु ।। ७२ ।। ाद बोले—महाभाग! आप दे वता , असुर तथा ा णके भी धमको जानते ह। मुझपर एक धमसंकट उप थत आ है, उसे सु नये ।। ७२ ।। यो वै ं न व ूयाद ् वतथं चैव न दशेत् । के वै त य परे लोका त ममाच व पृ छतः ।। ७३ ।। म पूछता ँ क जो का उ र ही न दे अथवा अस य उ र दे दे , उसे परलोकम कौन-से लोक ा त होते ह? यह मुझे बताइये ।। ७३ ।। क यप उवाच जान व ुवन् ान् कामात् ोधाद ् भयात् तथा । सह ं वा णान् पाशाना म न तमु च त ।। ७४ ।। क यपजीने कहा—जो जानते ए भी काम, ोध तथा भयसे का उ र नह दे ता, वह अपने ऊपर व णदे वताके सह पाश डाल लेता है ।। ७४ ।। सा ी वा व ुवन् सा यं गोकण श थल रन् । सह ं वा णान् पाशाना म न तमु च त ।। ७५ ।। जो गवाह गाय-बैलके ढ ले-ढाले कान क तरह श थल हो दोन प से स ब ध बनाये रखकर गवाही नह दे ता, वह भी अपनेको व णदे वताके सह पाश से बाँध लेता है ।। ७५ ।। त य संव सरे पूण पाश एकः मु यते । त मात् स यं तु व ं जानता स यम सा ।। ७६ ।। एक वष पूरा होनेपर उसका एक पाश खुलता है, अतः स ची बात जाननेवाले पु षको यथाथ पसे स य ही बोलना चा हये ।। ७६ ।। व ो धम धमण सभां य ोपप ते । न चा य श यं कृ त त व ा त सभासदः ।। ७७ ।। जहाँ धम अधमसे व होकर सभाम उप थत होता है, उसके काँटेको उससे बधे ए सभासदलोग नह काट पाते (अथात् उनको पापका फल भोगना ही पड़ता है) ।। अध हर त वै े ः पादो भव त कतृषु । पाद ैव सभास सु ये न न द त न दतम् ।। ७८ ।। सभाम जो अधम होता है, उसका आधा भाग वयं सभाप त ले लेता है, एक चौथाई भाग करनेवाल को मलता है और एक चतुथाश उन सभासद को ा त होता है जो ी े

न दनीय पु षक न दा नह करते ।। ७८ ।। अनेना भव त े ो मु य ते च सभासदः । एनो ग छ त कतारं न दाह य न ते ।। ७९ ।। जस सभाम न दाके यो य मनु यक न दा क जाती है, वहाँ सभाप त न पाप हो जाता है, सभासद भी पापसे मु हो जाते ह और सारा पाप करनेवालेको ही लगता है ।। वतथं तु वदे युय धम ाद पृ छते । इ ापूत च ते न त स त स त परावरान् ।। ८० ।। ाद! जो लोग धम वषयक पूछनेवालेको झूठा उ र दे ते ह, वे अपने इ ापूत धमका नाश तो करते ही ह आगे-पीछे क सात-सात पी ढ़य के भी पु य का वे हनन करते ह ।। ८० ।। त व य ह यद् ःखं हतपु य चैव यत् । ऋ णनः त य चैव वाथाद् य चैव यत् ।। ८१ ।। याः प या वहीनाया रा ा त य चैव यत् । अपु ाया यद् ःखं ा ा ात य चैव यत् ।। ८२ ।। अ यूढाया यद् ःखं सा भ वहत य च । एता न वै समा या ःखा न दवे राः ।। ८३ ।। जसका सव व छ न लया गया हो, उसे जो ःख होता है, जसका पु मर गया हो, उसे जो शोक होता है, ऋण त और वाथसे वं चत मनु यको जो लेश होता है, प तसे वहीन होनेपर ीको तथा राजाके कोपभाजन मनु यको जो क उठाना पड़ता है, पु हीना नारीको जो संताप होता है, शेरके चंगल ु म फँसे ए ाणीको जो ाकुलता होती है, सौतवाली ीको जो ःख होता है, सा य ने जसे धोखा दया हो, उस मनु यको जो महान् लेश होता है—इन सभी कारके ःख को दे वता ने समान बतलाया है ।। ८१— ८३ ।। ता न सवा ण ःखा न ा ो त वतथं ुवन् । सम दशनात् सा ी वणा चे त धारणात् ।। ८४ ।। त मात् स यं ुवन् सा ी धमाथा यां न हीयते । झूठ बोलनेवाला मनु य उन सभी ःख का भागी होता है। सम दशन, वण और धारणसे सा ी सं ा होती है, अतः स य बोलनेवाला सा ी कभी धम और अथसे वं चत नह होता ।। ८४ ।। क यप य वचः ु वा ादः पु म वीत् ।। ८५ ।। क यपजीक यह बात सुनकर ादने अपने पु से कहा— ।। ८५ ।। ेयान् सुध वा व ो वै म ः ेयां तथा राः । माता सुध वन ा प मातृतः ेयसी तव । वरोचन सुध वायं ाणानामी र तव ।। ८६ ।। ‘

















‘ वरोचन! सुध वा तुमसे े है, उसके पता अं गरा मुझसे े ह और सुध वाक माता तु हारी मातासे े है। अब यह सुध वा ही तु हारे ाण का वामी है’ ।। ८६ ।। सुध वोवाच पु नेहं प र य य य वं धम व थतः । अनुजाना म ते पु ं जीव वेष शतं समाः ।। ८७ ।। सुध वाने कहा—दै यराज! तुम पु नेहक परवा न करके जो धमपर डटे रह गये, इससे स होकर म तु हारे पु को यह आ ा दे ता ँ क यह सौ वष तक जी वत रहे ।। व र उवाच एवं वै परमं धम ु वा सव सभासदः । यथा ं तु क ृ णाया म य वं त क परम् ।। ८८ ।। व रजी कहते ह—सभासदो! इस कार इस उ म धममय संगको सुनकर आप सब लोग ौपद के के अनुसार यह बताव क उसके स ब धम आपक या मा यता है? ।। ८८ ।। वैश पायन उवाच व र य वचः ु वा नोचुः कचन पा थवाः । कण ःशासनं वाह कृ णां दास गृहान् नय ।। ८९ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! व रक यह बात सुनकर भी सब राजालोग कुछ न बोले। उस समय कणने ःशासनसे कहा—‘इस दासी ौपद को अपने घर ले जाओ’ ।। ८९ ।। तां वेपमानां स ीडां लप त म पा डवान् । ःशासनः सभाम ये वचकष तप वनीम् ।। ९० ।। ौपद ल जाम डू बी ई थर-थर काँपती और पा डव को पुकारती थी। उस दशाम ःशासनने उस भरी सभाके बीच उस बेचारी ःखया तप वनीको घसीटना आर भ कया ।। इ त ीमहाभारते सभापव ण ूतपव ण ौप ाकषणेऽ ष तमोऽ यायः ।। ६८ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत ूतपवम ‘ ौपद को भरी सभाम ख चना’ इस वषयसे स ब ध रखनेवाला अड़सठवाँ अ याय पूरा आ ।। ६८ ।। (दा णा य अ धक पाठक े ४ ोक मलाकर कुल ९४ ोक ह)

एकोनस त ततमोऽ यायः ौपद का चेतावनीयु

वलाप एवं भी मका वचन

ौप ुवाच पुर तात् करणीयं मे न कृतं कायमु रम् । व ला म कृतानेन कषता ब लना बलात् ।। १ ।। ौपद बोली—हाय! मेरा जो काय सबसे पहले करनेका था, वह अभीतक नह आ। मुझे अब वह काय कर लेना चा हये। इस बलवान् रा मा ःशासनने मुझे बलपूवक घसीटकर ाकुल कर दया है ।। १ ।। अ भवादं करो येषां कु णां कु संस द । न मे यादपराधोऽयं य ददं न कृतं मया ।। २ ।। कौरव क सभाम म सम त कु वंशी महा मा को णाम करती ँ। मने घबराहटके कारण पहले णाम नह कया; अतः यह मेरा अपराध न माना जाय ।। २ ।। वैश पायन उवाच सा तेन च समाधूता ःखेन च तप वनी । प तता वललापेदं सभायामतथो चता ।। ३ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! शासनके बार-बार ख चनेसे तप वनी ौपद पृ वीपर गर पड़ी और उस सभाम अ य त ःखत हो वलाप करने लगी। वह जस रव थाम पड़ी थी, उसके यो य कदा प न थी ।। ३ ।। ौप ुवाच वयंवरे या म नृपै ा र े समागतैः । न पूवा चा य साहम सभां गता ।। ४ ।। ौपद ने कहा—हा! म वयंवरके समय सभाम आयी थी और उस समय रंगभू मम पधारे ए राजा ने मुझे दे खा था। उसके सवा, अ य अवसर पर कह भी आजसे पहले कसीने मुझे नह दे खा। वही म आज सभाम बलपूवक लायी गयी ँ ।। ४ ।। यां न वायुन चा द यो व तौ पुरा गृहे । साहम सभाम ये या म जनसंस द ।। ५ ।। पहले राजभवनम रहते ए जसे वायु तथा सूय भी नह दे ख पाते थे, वही म आज इस सभाके भीतर महान् जनसमुदायम आकर सबके ने क ल य बन गयी ँ ।। यां न मृ य त वातेन पृ यमानां गृहे पुरा । पृ यमानां सह तेऽ पा डवा तां रा मना ।। ६ ।। पहले अपने महलम रहते समय जसका वायु ारा पश भी पा डव को सहन नह होता था, उसी मुझ ौपद का यह रा मा ःशासन भरी सभाम पश कर रहा है, तो भी े



आज ये पा डु कुमार सह रहे ह ।। ६ ।। मृ य त कुरव ेमे म ये काल य पययम् । नुषां हतरं चैव ल यमानामनहतीम् ।। ७ ।। म कु कुलक पु वधू एवं पु ीतु य ँ। सताये जानेके यो य नह ँ, फर भी मुझे यह दा ण लेश दया जा रहा है और ये सम त कु वंशी इसे सहन करते ह। म समझती ँ, बड़ा वपरीत समय आ गया है ।। ७ ।। क वतः कृपणं भूयो यदहं ी सती शुभा । सभाम यं वगाहेऽ व नु धम मही ताम् ।। ८ ।। इससे बढ़कर दयनीय दशा और या हो सकती है क मुझ-जैसी शुभकमपरायणा सती-सा वी ी भरी सभाम ववश करके लायी गयी है। आज राजा का धम कहाँ चला गया? ।। ८ ।। ध या यं सभां पूव न नय ती त नः ुतम् । स न ः कौरवेयेषु पूव धमः सनातनः ।। ९ ।। मने सुना है, पहले लोग धमपरायणा ीको कभी सभाम नह लाते थे, कतु इन कौरव के समाजम वह ाचीन सनातनधम न हो गया है ।। ९ ।। कथं ह भाया पा डू नां पाषत य वसा सती । वासुदेव य च सखी पा थवानां सभा मयाम् ।। १० ।। अ यथा म पा डव क प नी, धृ ु नक सुशीला बहन और भगवान् ीकृ णक सखी होकर राजा क इस सभाम कैसे लायी जा सकती थी? ।। १० ।। ता ममां धमराज य भाया स शवणजाम् । ूत दासीमदास वा तत् क र या म कौरवाः ।। ११ ।। कौरवो! म धमराज यु ध रक धमप नी तथा उनके समान वणक क या ँ। आपलोग बताव, म दासी ँ या अदासी? आप जैसा कहगे म वैसा ही क ँ गी ।। ११ ।। अयं मां सु ढं ु ः कौरवाणां यशोहरः । ला त नाहं तत् सोढ ुं चरं श या म कौरवाः ।। १२ ।। कु वंशी यो! यह कु कुलक क तम कलंक लगानेवाला नीच ःशासन मुझे ब त क दे रहा है। म इस लेशको दे रतक नह सह सकूँगी ।। १२ ।। जतां वा य जतां वा प म य वं मां यथा नृपाः । तथा यु म छा म तत् क र या म कौरवाः ।। १३ ।। कु वं शयो! आप या मानते ह? म जीती गयी ँ या नह । म आपके मुँहसे इसका ठ क-ठ क उ र सुनना चाहती ँ। फर उसीके अनुसार काय क ँ गी ।। १३ ।। भी म उवाच उ वान म क या ण धम य परमा ग तः । लोके न श यते ातुम प व ैमहा म भः ।। १४ ।। ी

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भी मजीने कहा—क या ण! म पहले ही कह चुका ँ क धमक ग त बड़ी सू म है। लोकम व महा मा भी उसे ठ क-ठ क नह जान सकते ।। १४ ।। बलवां यथा धम लोके प य त पू षः । स धम धमवेलायां भव य भहतः परः ।। १५ ।। संसारम बलवान् मनु य जसको धम समझता है, धम वचारके समय लोग उसीको धम मान लेते ह और बलहीन पु ष जो धम बतलाता है, वह बलवान् पु षके बताये धमसे दब जाता है (अतः इस समय कण और य धनका बताया आ धम ही सव प र हो रहा है।) ।। न ववे ुं च ते ममं श नो म न यात् । सू म वाद् गहन वा च काय या य च गौरवात् ।। १६ ।। म तो धमका व प सू म और गहन होनेके कारण तथा इस धम नणयके कायके अ य त गु तर होनेसे तु हारे इस का न त पसे यथाथ ववेचन नह कर सकता ।। नूनम तः कुल यायं भ वता न चरा दव । तथा ह कुरवः सव लोभमोहपरायणाः ।। १७ ।। अव य ही ब त शी इस कुलका नाश होनेवाला है; य क सम त कौरव लोभ और मोहके वशीभूत हो गये ह ।। १७ ।। कुलेषु जाताः क या ण सनैराहता भृशम् । ध या मागा यव ते येषां न वं वधूः थता ।। १८ ।। क या ण! तुम जनक प नी हो, वे पा डव हमारे उ म कुलम उ प ह और भारीसे-भारी संकटम पड़कर भी धमके मागसे वच लत नह होते ह ।। १८ ।। उपप ं च पा चा ल तवेदं वृ मी शम् । यत् कृ म प स ा ता धममेवा ववे से ।। १९ ।। पांचालराजकुमारी! तु हारा यह आचार- वहार तु हारे यो य ही है; य क भारी संकटम पड़कर भी तुम धमक ओर ही दे ख रही हो ।। १९ ।। एते ोणादय ैव वृ ा धम वदो जनाः । शू यैः शरीरै त त गतासव इवानताः ।। २० ।। यु ध र तु ेऽ मन् माण म त मे म तः । अ जतां वा जतां वे त वयं ाहतुमह त ।। २१ ।। ये ोणाचाय आ द वृ एवं धम पु ष भी सर लटकाये शू य शरीरसे इस कार बैठे ह; मानो न ाण हो गये ह । मेरी राय यह है क इस का नणय करनेके लये धमराज यु ध र ही सबसे ामा णक ह। तुम जीती गयी हो या नह ? यह बात वयं इ ह बतलानी चा हये ।। २०-२१ ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण

ूतपव ण भी मवा ये एकोनस त ततमोऽ यायः ।। ६९ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत ूतपवम भी मवा य वषयक उनह रवाँ अ याय पूरा आ ।। ६९ ।।

स त ततमोऽ यायः य धनके छल-कपटयु

वचन और भीमसेनका रोषपूण उद्गार वैश पायन उवाच

तथा तु ् वा ब त दे व रो यमाणां कुररी मवाताम् । नोचुवचः सा वथ वा यसाधु मही तो धातरा य भीताः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! महारानी ौपद को वहाँ आत होकर कुररीक भाँ त ब त वलाप करती दे खकर भी सभाम बैठे ए राजालोग य धनके भयसे भला या बुरा कुछ भी नह कह सके ।। १ ।। ् वा तथा पा थवपु पौ ांतू ण भूतान् धृतरा य पु ः । मय वेदं वचनं बभाषे पा चालराज य सुतां तदानीम् ।। २ ।। राजा के बेट और पोत को मौन दे खकर धृतरापु य धनने उस समय मुसकराते ए पांचालराजकुमारी ौपद से यह बात कही ।। २ ।। य धन उवाच त वयं उदारस वे भीमेऽजुने सहदे वे तथैव । प यौ च ते नकुले या से न वद वेते वचनं व सूतम् ।। ३ ।। य धन बोला— ौपद ! तु हारा यह तु हारे ही प त महाबली भीम, अजुन, सहदे व और नकुलपर छोड़ दया जाता है। ये ही तु हारी पूछ ई बातका उ र द ।। अनी रं व ुव वायम ये यु ध रं तव पा चा ल हेतोः । कुव तु सव चानृतं धमराजं पा चा ल वं मो यसे दासभावात् ।। ४ ।। पांचा ल! इन े राजा के बीच ये लोग यह प कह द क यु ध रको तु ह दाँवपर रखनेका कोई अ धकार नह था। सभी पा डव मलकर धमराज यु ध रको झूठा ठहरा द। फर पांचा ल! तुम दा यभावसे मु कर द जाओगी ।। ४ ।। धम थतो धमसुतो महा मा े

वयं चेदं कथय व क पः । ईशो वा ते नीशोऽथ वैष वा याद य मेकं भज व ।। ५ ।। ये धमपु महा मा यु ध र इ के समान तेज वी तथा सदा धमम थत रहनेवाले ह। तुमको दाँवपर रखनेका इ ह अ धकार था या नह ? ये वयं ही कह द; फर इ ह के कथनानुसार तुम शी दासीपन या अदासीपन कसी एकका आ य लो ।। ५ ।। सव हीमे कौरवेयाः सभायां ःखा तरे वतमाना तवैव । न व ुव यायस वा यथावत् पत ते समवे या पभा यान् ।। ६ ।। ौपद ! ये सभी उ म वभाववाले कु वंशी इस सभाम तु हारे लये ही ःखी ह और तु हारे म दभा य प तय को दे खकर तु हारे का ठ क-ठ क उ र नह दे पाते ह ।। ६ ।। वैश पायन उवाच ततः स याः कु राज य त य वा यं सव शशंसु तथो चैः । चेलावेधां ा प च ु नद तो हाहे यासीद प चैवातनादः ।। ७ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर एक ओर सभी सभासद ने कु राज य धनके उस कथनक उ च वरसे भू र-भू र शंसा क और गजना करते ए वे व हलाने लगे तथा वह सरी ओर हाहाकार और आतनाद होने लगा ।। ७ ।। ु वा तु वा यं सुमनोहरं तष ासीत् कौरवाणां सभायाम् । सव चासन् पा थवाः ी तम तः कु े ं धा मकं पूजय तः ।। ८ ।। य धनका वह मनोहर वचन सुनकर उस समय सभाम कौरव को बड़ा हष आ। अ य सब राजा भी बड़े स ए तथा य धनको कौरव म े और धाम क कहते ए उसका आदर करने लगे ।। ८ ।। यु ध रं च ते सव समुदै त पा थवाः । क नु व य त धम इ त साचीकृताननाः ।। ९ ।। फर वे सब नरेश मुँह घुमाकर राजा यु ध रक ओर इस आशासे दे खने लगे क दे ख, ये धम पा डु कुमार या कहते ह? ।। ९ ।। क नु व य त बीभ सुर जतो यु ध पा डवः । भीमसेनो यमौ चोभौ भृशं कौतूहला वताः ।। १० ।। यु म कभी परा जत न होनेवाले पा डु न दन अजुन कस कार अपना मत करते ह? भीमसेन, नकुल तथा सहदे व भी या कहते ह? इसके लये उन राजा के मनम ी



बड़ी उ क ठा थी ।। १० ।। त म ुपरते श दे भीमसेनोऽ वी ददम् । गृ चरं द ं भुजं च दनच चतम् ।। ११ ।। वह कोलाहल शा त होनेपर भीमसेन अपनी च दनचचत सु दर द भुजा उठाकर इस कार बोले ।। ११ ।। भीमसेन उवाच य ेष गु र माकं धमराजो महामनाः । न भुः यात् कुल या य न वयं मषयेम ह ।। १२ ।। भीमसेनने कहा—य द ये महामना धमराज यु ध र हमारे पतृतु य तथा इस पा डु कुलके वामी न होते तो हम कौरव का यह अ याचार कदा प सहन नह करते ।। ईशो नः पु यतपसां ाणानाम प चे रः । म यतेऽ जतमा मानं य ेष व जता वयम् ।। १३ ।। न ह मु येत मे जीवन् पदा भू ममुप पृशन् । म यधमा परामृ य पा चा या मूधजा नमान् ।। १४ ।। प य वं ायतौ वृ ौ भुजौ मे प रघा वव । नैतयोर तरं ा य मु येता प शत तुः ।। १५ ।। ये हमारे पु य, तप और ाण के भी भु ह। य द ये ौपद को दाँवपर लगानेसे पूव अपनेको हारा आ नह मानते ह तो हम सब लोग इनके ारा दाँवपर रखे जानेके कारण हारे जा चुके ह। य द म हारा गया न होता तो अपने पैर से पृ वीका पश करनेवाला कोई भी मरणधमा मनु य ौपद के इन केश को छू लेनेपर मेरे हाथसे जी वत नह बच सकता था। राजाओ! प रघके समान मोट और गोलाकार मेरी इन वशाल भुजा क ओर तो दे खो। इनके बीचम आकर इ भी जी वत नह बच सकता ।। १३—१५ ।। धमपाश सत वेवं ना धग छा म संकटम् । गौरवेण व न हादजुन य च ।। १६ ।। म धमके ब धनम बँधा ँ, बड़े भाईके गौरवने मुझे रोक रखा है और अजुन भी मना कर रहा है, इसी लये म इस संकटसे पार नह हो पाता ।। १६ ।। धमराज नसृ तु सहः ु मृगा नव । धातरा ा नमान् पापान् न पषेयं तला स भः ।। १७ ।। य द धमराज मुझे आ ा दे द तो जैसे सह छोटे मृग को दबोच लेता है, उसी कार म धृतराक े इन पापी पु को तलवारक जगह हाथ के तलव से ही मसल डालूँ ।। १७ ।। वैश पायन उवाच तमुवाच तदा भी मो ोणो व र एव च । यता मद म येवं सव स भा ते व य ।। १८ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! तब भी म, ोण और व रने भीमसेनको शा त करते ए कहा—‘भीम! मा करो, तुम सब कुछ कर सकते हो’ ।। १८ ।। ी े ी े ो

इ त ीमहाभारते सभापव ण ूतपव ण भीमवा ये स त ततमोऽ यायः ।। ७० ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत ूतपवम भीमवा य वषयक स रवाँ अ याय पूरा आ ।। ७० ।।

एकस त ततमोऽ यायः कण और य धनके वचन, भीमसेनक त ा, व रक चेतावनी और ौपद को धृतरा से वर ा त कण उवाच यः कलेमे धना भव त दासः पु ा वत ा च नारी । दास य प नी वधन य भ े हीने रा दासधनं च सवम् ।। १ ।। कण बोला—भ े ौपद ! दास, पु और सदा पराधीन रहनेवाली ी—ये तीन धनके वामी नह होते। जसका प त अपने ऐ यसे हो गया है, ऐसी नधन दासक प नी और दासका सारा धन—इन सबपर उस दासके वामीका ही अ धकार होता है ।। १ ।। व य रा ः प रवारं भज व तत् ते काय श मा द यतेऽ । ईशा तु सव तव राजपु भव त वै धातरा ा न पाथाः ।। २ ।। राजकुमारी! अतः अब तुम राजा य धनके प रवारम जाकर सबक सेवा करो। यही काय तु हारे लये शेष बचा है, जसके लये तु ह यहाँ आदे श दया जा रहा है। आजसे धृतराक े सम त पु ही तु हारे वामी ह, कु तीके पु नह ।। २ ।। अ यं वृणी व प तमाशु भा व न य माद् दा यं न लभ स दे वनेन । अवा या वै प तषु कामवृ न यं दा ये व दतं तत् तवा तु ।। ३ ।। सु दरी। अब तुम शी ही सरा प त चुन लो, जससे ूत ड़ाके ारा तु ह फर कसीक दासी न बनना पड़े। प तय के त इ छानुसार बताव तुम-जैसी ीके लये न दनीय नह है। दासीपनम तो ीक वे छाचा रता स है ही, अतः यह दा यभाव ही तु ह ा त हो ।। ३ ।। परा जतो नकुलो भीमसेनो यु ध रः सहदे वाजुनौ च । दासीभूता वं ह वै या से न परा जता ते पतयो नैव स त ।। ४ ।। य सेनकुमारी! नकुल हार गये, भीमसेन, यु ध र, सहदे व तथा अजुन भी परा जत होकर दास बन गये। अब तुम दासी हो चुक हो। वे हारे ए पा डव अब तु हारे प त नह

ह ।। ४ ।। योजनं ज म न क न म यते परा मं पौ षं चैव पाथः । पा चा य य पद या मजा ममां सभाम ये यो दे वीद् लहेषु ।। ५ ।। या कु तीकुमार यु ध र इस जीवनम परा म और पु षाथक आव यकता नह समझते, ज ह ने सभाम इस पदराजकुमारी कृ णाको दाँवपर लगाकर जूएका खेल कया? ।। ५ ।। वैश पायन उवाच तद् वै ु वा भीमसेनोऽ यमष भृशं नश ास तदाऽऽत पः । राजानुगो धमपाशानुब ो दह वैनं ोधसंर ः ।। ६ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! कणक वह बात सुनकर अ य त अमषम भरे ए भीमसेन बड़ी वेदनाका अनुभव करते ए उस समय जोर-जोरसे उ छ् वास लेने लगे। वे राजा यु ध रके अनुगामी होकर धमके पाशम बँधे ए थे। ोधसे उनके ने र वण हो रहे थे। वे यु ध रको द ध करते ए-से बोले ।। ६ ।। भीम उवाच नाहं कु ये सूतपु य राजेष स यं दासधमः द ः । क व षो वै मामेवं ाहरेयुनादे वी वं य नया नरे ।। ७ ।। भीमसेनने कहा—राजन्! मुझे सूतपु कणपर ोध नह आता। सचमुच ही दासधम वही है, जो उसने बताया है। महाराज! य द आप इस ौपद को दाँवपर लगाकर जूआ न खेलते तो या ये श ु हमलोग से ऐसी बात कह सकते थे? ।। ७ ।। वैश पायन उवाच भीमसेनवचः ु वा राजा य धन तदा । यु ध रमुवाचेदं तू णी भूतमचेतनम् ।। ८ ।। वैश पायनजी कहते ह—भीमसेनका यह कथन सुनकर उस समय राजा य धनने मौन एवं अचेतक -सी दशाम बैठे ए यु ध रसे इस कार कहा— ।। ८ ।। भीमाजुनौ यमौ चैव थतौ ते नृप शासने । ं ू ह च क ृ णां वम जतां य द म यसे ।। ९ ।। ‘नरेश! भीमसेन, अजुन, नकुल और सहदे व आपक आ ाके अधीन ह। आप ही ौपद के पर कुछ बो लये। या आप कृ णाको हारी ई नह मानते ह?’ ।। ९ ।। ौ े



एवमु वा तु कौ तेयमपो वसनं वकम् । मय वे य पा चालीमै यमदमो हतः ।। १० ।। कदली त भस शं सवल णसंयुतम् । गजह त तीकाशं व तमगौरवम् ।। ११ ।। अ यु म य वा राधेयं भीममाधषय व । ौप ाः े माणायाः स मू मदशयत् ।। १२ ।। कु तीकुमार यु ध रसे ऐसा कहकर ऐ यमदसे मो हत ए य धनने इशारेसे राधान दन कणको बढ़ावा दे ते और भीमसेनका तर कार-सा करते ए अपनी जाँघका व हटाकर ौपद क ओर मुसकराते ए दे खा। उसने केलेके खंभेके समान मोट , सम त ल ण से सुशो भत, हाथीक सूँडके स श चढ़ाव-उतारवाली और वक े समान कठोर अपनी बाय जाँघ ौपद क के सामने करके दखायी ।। १०—१२ ।। भीमसेन तमालो य ने े उ फा य लो हते । ोवाच राजम ये तं सभां व ावय व ।। १३ ।। उसे दे खकर भीमसेनक आँख ोधसे लाल हो गय । वे आँख फाड़-फाड़कर दे खते और सारी सभाको सुनाते ए-से राजा के बीचम बोले— ।। १३ ।। पतृ भः सह सालो यं मा म ग छे द ् वृकोदरः । य ेतमू ं गदया न भ ां ते महाहवे ।। १४ ।। ‘ य धन! य द महासमरम तेरी इस जाँघको म अपनी गदासे न तोड़ डालूँ तो मुझ भीमसेनको अपने पूवज के साथ उ ह के समान पु यलोक क ा त न हो’ ।। १४ ।। ु य त य सव यः ोतो यः पावक चषः । वृ येव व न े ः कोटरे यः द तः ।। १५ ।। उस समय ोधम भरे ए भीमसेनके रोम-रोमसे आगक चनगा रयाँ नकल रही थ ; ठ क उसी तरह, जैसे जलते ए वृ के कोटर से आगक लपट नकलती दखायी दे ती ह ।। १५ ।।

व र उवाच परं भयं प यत भीमसेनात् तद् बु य वं धृतरा य पु ाः । दै वे रतो नूनमयं पुर तात् परोऽनयो भरतेषूदपा द ।। १६ ।। व रजीने कहा—धृतराक े पु ो! दे खो, भीमसेनसे यह बड़ा भारी भय उप थत हो गया है। इसपर यान दो। न य ही ार धक ेरणासे ही भरतवं शय के सम यह महान् अ याय उ प आ है ।। १६ ।। अ त ूतं कृत मदं धातरा ा य मात् यं ववद वं सभायाम् । योग ेमौ न यतो वः सम ौ ो

पापान् म ान् कुरवो म य त ।। १७ ।। धृतराक े पु ो! तुमलोग ने मयादाका उ लंघन करके यह जूएका खेल कया है। तभी तो तुम भरी सभाम ीको लाकर उसके लये ववाद कर रहे हो। तु हारे योग और ेम दोन पूणतया न हो रहे ह। आज सब लोग को मालूम हो गया क कौरव पापपूण म णा ही करते ह ।। १७ ।। इमं धम कुरवो जानताशु व ते धम प रषत् स येत् । इमां चेत् पूव कतवोऽ ल ह यद शोऽभ व यदपरा जता मा ।। १८ ।। कौरवो! तुम धमक इस मह ाको शी ही समझ लो; य क धमका नाश होनेपर सारी सभाको दोष लगता है। य द जूआ खेलनेवाले राजा यु ध र अपने शरीरको हारे बना पहले ही इस ौपद को दाँवपर लगाते तो वे ऐसा करनेके अ धकारी हो सकते थे ।। १८ ।। व े यथैतद् व जतं धनं यादे वं म ये य य द यनीशः । गा धारराज य वचो नश य धमाद मात् कुरवो मापयात ।। १९ ।। (परंतु जब वे पहले अपनेको हारकर उसे दाँवपर लगानेका अ धकार ही खो बैठे थे, तब उसका मू य ही या रहा?) अन धकारी पु ष जस धनको दाँवपर लगाता है, उसक हार-जीत म वैसी ही मानता ँ जैसे कोई व म कसी धनको हारता या जीतता है। कौरवो! तुमलोग गा धारराज शकु नक बात सुनकर अपने धमसे न होओ ।। १९ ।। य धन उवाच भीम य वा ये त दे वाजुन य थतोऽहं वै यमयो ैवमेव । यु ध रं ते वद वनीशमथो दा या मो यसे या से न ।। २० ।। य धन बोला— ौपद ! म भीम, अजुन एवं नकुल-सहदे वक बात माननेके लये तैयार ँ। ये सब लोग कह द क यु ध रको तु ह हारनेका कोई अ धकार नह था, फर तुम दासीपनसे मु कर द जाओगी ।। २० ।।

अजुन उवाच ईशो राजा पूवमासीद ् लहे नः कु तीसुतो धमराजो महा मा । ईश वयं क य परा जता मा त जानी वं कुरवः सव एव ।। २१ ।। अजुनने कहा—कु तीन दन महा मा धमराज राजा यु ध र पहले तो हम दाँवपर लगानेके अ धकारी थे ही, कतु जब वे अपने शरीरको ही हार गये, तब कसके वामी रहे? ौ

इस बातपर सब कौरव वचार कर ।। २१ ।। वैश पायन उवाच ततो रा ो धृतरा य गेहे गोमायु चै ाहरद नहो े । तं रासभाः यभाष त राजन् सम ततः प ण ैव रौ ाः ।। २२ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! त प ात् राजा धृतराक अ नशालाके भीतर एक गीदड़ आकर जोर-जोरसे ँआ- ँआ करने लगा। उस श दको ल य करके सब ओर गदहे रकने लगे तथा गृ आ द भयंकर प ी भी चार ओर अशुभसूचक कोलाहल करने लगे ।। २२ ।।

तं वै श दं व र त ववेद शु ाव घोरं सुबला मजा च । भी मो ोणो गौतम ा प व ान् व त व ती य प चैवा चैः ।। २३ ।। त व ानी व र तथा सुबलपु ी गा धारीने भी उस भयानक श दको सुना। भी म, ोण और गौतमवंशीय व ान् कृपाचायके कान म भी वह अमंगलकारी श द सुन पड़ा। फर तो वे सभी लोग उ च वरसे ‘ व त’, ‘ व त’ ऐसा कहने लगे ।। २३ ।। ततो गा धारी व र ा प व ांतमु पातं घोरमाल य राजे । नवेदयामासतुरातवत् तदा ो



ततो राजा वा य मदं बभाषे ।। २४ ।। तदन तर गा धारी और व ान् व रने उस उ पात-सूचक भयंकर श दको ल य करके अ य त ःखी हो राजा धृतरासे उसके वषयम नवेदन कया, तब राजाने इस कार कहा ।। २४ ।। धृतरा उवाच हतोऽ स य धन म दबु े य वं सभायां कु पु वानाम् । यं समाभाष स वनीत वशेषतो ौपद धमप नीम् ।। २५ ।। धृतरा बोले—रे म दबु य धन! तू तो जीता ही मारा गया। वनीत! तू े कु वं शय क सभाम अपने ही कुलक म हला एवं वशेषतः पा डव क धमप नीको ले आकर उससे पापपूण बात कर रहा है ।। २५ ।। एवमु वा धृतरा ो मनीषी हता वेषी बा धवानामपायात् । कृ णां पा चालीम वीत् सा वपूव वमृ यैतत् या त वबु ः ।। २६ ।। ऐसा कहकर ब धु-बा धव को वनाशसे बचाकर उनके हतक इ छा रखनेवाले त वदश एवं मेधावी राजा धृतरान े अपनी बु से इस ःखद संगपर वचार करके पांचालराजकुमारी कृ णाको सा वना दे ते ए इस कार कहा— ।। २६ ।। धृतरा उवाच वरं वृणी व पा चा ल म ो यद भवा छ स । वधूनां ह व श ा मे वं धमपरमा सती ।। २७ ।। धृतरा ने कहा—ब ौपद ! तुम मेरी पु वधु म सबसे े एवं धमपरायणा सती हो। तु हारी जो इ छा हो, उसके अनुसार मुझसे वर माँग लो ।। २७ ।। ौप ुवाच ददा स चेद ् वरं म ं वृणो म भरतषभ । सवधमानुगः ीमानदासोऽ तु यु ध रः ।। २८ ।। मन वनमजान तो मैवं ूयुः कुमारकाः । एष वै दासपु ो ह त व यं ममा मजम् ।। २९ ।। ौपद बोली—भरतवंश शरोमणे! य द आप मुझे वर दे ते ह तो म यही माँगती ँ क स पूण धमका आचरण करनेवाले राजा यु ध र दासभावसे मु हो जायँ। जससे मेरे मन वी पु त व यको अ ानवश सरे राजकुमार ऐसा न कह सक क यह ‘दासपु ’ है ।। राजपु ः पुरा भू वा यथा ना यः पुमान् व चत् ।

राज भला लत या य न यु ा दासपु ता ।। ३० ।। जैसे पहले राजकुमार होकर फर कोई मनु य कभी दासपु नह आ है, उसी कार राजा के ारा जसका लालन-पालन आ है, उस मेरे पु त व यका दासपु होना कदा प उ चत नह है ।। ३० ।। धृतरा उवाच एवं भवतु क या ण यथा वम भभाषसे । तीयं ते वरं भ े ददा न वरय व ह । मनो ह मे वतर त नैकं वं वरमह स ।। ३१ ।। धृतरा ने कहा—क या ण! तुम जैसा कहती हो, वैसे ही हो। भ े ! अब म तु ह सरा वर दे ता ँ, वह भी माँग लो। मेरा मन मुझे वर दे नेके लये े रत कर रहा है क तुम एक ही वर पानेके यो य नह हो ।। ३१ ।।

ौप ुवाच सरथौ सधनु कौ च भीमसेनधनंजयौ । यमौ च वरये राज दासान् ववशानहम् ।। ३२ ।। ौपद बोली—राजन्! म सरा वर यह माँगती ँ क भीमसेन, अजुन, नकुल और सहदे व अपने रथ और धनुष-बाणस हत दासभावसे र हत एवं वत हो जायँ ।। ३२ ।। धृतरा उवाच तथा तु ते महाभागे यथा वं न दनी छ स । तृतीयं वरया म ो ना स ा यां सुस कृता । वं ह सव नुषाणां मे ेयसी धमचा रणी ।। ३३ ।। धृतरा ने कहा—महाभागे! तुम अपने कुलको आन द दान करनेवाली हो। तुम जैसा चाहती हो, वैसा ही हो। अब तुम तीसरा वर और माँगो। तुम मेरी सब पु वधु म े एवं धमका पालन करनेवाली हो। म समझता ँ, केवल दो वर से तु हारा पूरा स कार नह आ ।। ३३ ।। ौप ुवाच लोभो धम य नाशाय भगवन् नाहमु सहे । अनहा वरमादातुं तृतीयं राजस म ।। ३४ ।। ौपद बोली—भगवन्! लोभ धमका नाशक होता है, अतः अब मेरे मनम वर माँगनेका उ साह नह है। राज शरोमणे! तीसरा वर लेनेका मुझे अ धकार भी नह है ।। एकमा व यवरं ौ तु या वरौ । य तु रा ो राजे ा ण य शतं वराः ।। ३५ ।। राजे ! वै यको एक वर माँगनेका अ धकार बताया गया है, यक ी दो वर माँग सकती है, यको तीन वर तथा ा णको सौ वर लेनेका अ धकार है ।। पापीयांस इमे भू वा संतीणाः पतयो मम । े ै े

वे य त चैव भ ा ण राजन् पु येन कमणा ।। ३६ ।। राजन्! ये मेरे प त दासभावको ा त होकर भारी वप म फँस गये थे। अब उससे पार हो गये। इसके बाद पु यकम के अनु ान ारा ये लोग वयं क याण ा त कर लगे ।। ३६ ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण

ूतपव ण ौपद वरलाभे एकस त ततमोऽ यायः ।। ७१ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत ूतपवम ौपद वरलाभ वषयक इकह रवाँ अ याय पूरा आ ।। ७१ ।।

स त ततमोऽ यायः श ुको

मारनेके लये उ त ए भीमको यु ध रका शा त करना

कण उवाच या नः ुता मनु येषु यो पेण स मताः । तासामेता शं कम न क या न शु ुम ।। १ ।। कण बोला—मने मनु य म जन सु दरी य के नाम सुने ह, उनमसे कसीने भी ऐसा अद्भुत काय कया हो, यह मेरे सुननेम नह आया ।। १ ।। ोधा व ेषु पाथषु धातरा ेषु चा य त । ौपद पा डु पु ाणां कृ णा शा त रहाभवत् ।। २ ।। कु तीके पु तथा धृतराक े पु सभी एक- सरेके त अ य त ोधसे भरे ए थे, ऐसे समयम यह पदकुमारी कृ णा इन पा डव को परम शा त दे नेवाली बन गयी ।। २ ।। अ लवेऽ भ स म नानाम त े नम जताम् । पा चाली पा डु पु ाणां नौरेषा पारगाभवत् ।। ३ ।। पा डवलोग नौका और आधारसे र हत जलम गोते खा रहे थे अथात् संकटके अथाह सागरम डू ब रहे थे, कतु यह पांचालराजकुमारी इनके लये पार लगानेवाली नौका बन गयी ।। ३ ।। वैश पायन उवाच तद् वै ु वा भीमसेनः कु म येऽ यमषणः । ीग तः पा डु पु ाणा म युवाच सु मनाः ।। ४ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! कौरव के बीचम कणक वह बात सुनकर अ य त असहनशील भीमसेन मन-ही-मन ब त ःखी होकर बोले—‘हाय! पा डव को उबारनेवाली एक ी ई’ ।। ४ ।। भीम उवाच ी ण योत ष पु ष इ त वै दे वलोऽ वीत् । अप यं कम व ा च यतः सृ ाः जा ततः ।। ५ ।। भीमसेनने कहा—मह ष दे वलका कथन है क पु षम तीन कारक यो तयाँ ह— संतान, कम और ान; य क इ ह से सारी जाक सृ ई ।। ५ ।। अमे ये वै गत ाणे शू ये ा त भ झते । दे हे तयमेवैतत् पु ष योपयु यते ।। ६ ।। जब यह शरीर ाणर हत होकर शू य एवं अप व हो जाता है तथा सम त ब धुबा धव उसे याग दे ते ह, तब ये ही ान आ द तीन यो तयाँ (परलोकगत) पु षके ो



उपयोगम आती ह ।। ६ ।। त ो यो तर भहतं दाराणाम भमशनात् । धनंजय कथं वत् यादप यम भमृ जम् ।। ७ ।। धनंजय! हमारी धमप नी ौपद के शरीरका बल-पूवक पश करके ःशासनने उसे अप व कर दया है, इससे हमारी संतान प यो त न हो गयी। जो पराये पु षसे छू गयी, उस ीसे उ प संतान कस कामक होगी? ।। ७ ।। अजुन उवाच न चैवो ा न चानु ा हीनतः प षा गरः । भारत तज प त सदा तू मपू षाः ।। ८ ।। अजुन बोले—भारत! ( ौपद सती है। उसके वषयम आप ऐसी बात न कह। ःशासनने अव य नीचता क है, कतु) े पु ष नीच पु ष ारा कही या न कही गयी कड़वी बात का कभी उ र नह दे ते ।। ८ ।। मर त सुकृता येव न वैरा ण कृता य प । स तः त वजान तो लधस भावनाः वयम् ।। ९ ।। तशोधका उपाय जानते ए भी स पु ष सर के उपकार को ही याद रखते ह, उनके ारा कये ए वैरको नह । उन साधु पु ष को वयं सबसे स मान ा त होता रहता है ।। ९ ।। भीम उवाच इहैवैतां वहं सवान् ह म श ून् समागतान् । अथ न य राजे समूलान् ह म भारत ।। १० ।। भीमसेनने (राजा यु ध रसे) कहा—भरतवंशी राजराजे र! (य द आपक आ ा हो, तो) यहाँ आये ए इन सब श ु को म यह समा त कर ँ और यहाँसे बाहर नकलकर इनके मूलका भी नाश कर डालूँ ।। १० ।। क नो वव दतेनेह कमु े न च भारत । अ ैवैतान् नह मीह शा ध पृ थवी ममाम् ।। ११ ।। भारत! अब यहाँ ववाद या उ र- यु र करनेक हम या आव यकता है? म आज ही इन सबको यमलोक भेज दे ता ँ, आप इस सारी पृ वीका शासन क जये ।। इ यु वा भीमसेन तु क न ै ातृ भः सह । मृगम ये यथा सहो मु मु दै त ।। १२ ।। अपने छोटे भाइय के साथ खड़े ए भीमसेन उपयु बात कहकर श ु क ओर बार-बार दे खने लगे; मानो सह मृग के समूहम खड़ा हो उ ह क ओर दे ख रहा हो ।। सा मानो वी माणः पाथना ल कमणा । ख येव महाबा र तदाहेन वीयवान् ।। १३ ।। अनायास ही महान् परा म कर दखानेवाले अजुन श ु क ओर दे खनेवाले भीमसेनको बार-बार शा त कर रहे थे, परंतु परा मी महाबा भीमसेन अपने भीतर ी ई ो े े े

धधकती ई ोधा नसे जल रहे थे ।। १३ ।। ु य त य ोतो यः कणा द यो नरा धप । सधूमः स फु ल ा चः पावकः समजायत ।। १४ ।। राजन्! उस समय ोधम भरे ए भीमसेनक वणा द इ य के छ तथा रोमकूप से धूम और चनगा रय स हत आगक लपट नकल रह थ ।। १४ ।। ुकुट कृत े यमभवत् त य त मुखम् । युगा तकाले स ा ते कृता त येव पणः ।। १५ ।। भ ह तनी होनेके कारण लयकालम मू तमान् यमराजक भाँ त उनके भयानक मुखक ओर दे खना भी क ठन हो रहा था ।। १५ ।। यु ध र तमावाय बा ना बा शा लनम् । मैव म य वी चैनं जोषमा वे त भारत ।। १६ ।। भारत! तब वशाल भुजा से सुशो भत होनेवाले भीमसेनको अपने एक हाथसे रोकते ए यु ध रने कहा—‘ऐसा न करो, शा तपूवक बैठ जाओ’ ।। १६ ।। नवाय च महाबा ं कोपसंर लोचनम् । पतरं समुपा त द् धृतरा ं कृता लः ।। १७ ।। उस समय महाबा भीमके ने ोधसे लाल हो रहे थे। उ ह रोककर राजा यु ध र हाथ जोड़े ए अपने ताऊ महाराज धृतराक े पास गये ।। १७ ।। इ त ीमहाभारते सभापव ण ूतपव ण भीम ोधे स त ततमोऽ यायः ।। ७२ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत ूतपवम भीमसेनका ोध वषयक बह रवाँ अ याय पूरा आ ।। ७२ ।।

स त ततमोऽ यायः धृतरा का यु ध रको सारा धन लौटाकर एवं समझाबुझाकर इ थ जानेका आदे श दे ना यु ध र उवाच राजन् क करवाम ते शा य मां वमी रः । न यं ह थातु म छाम तव भारत शासने ।। १ ।। यु ध र बोले—राजन्! आप हमारे वामी ह। आ ा द जये, हम या कर। भारत! हमलोग सदा आपक आ ाके अधीन रहना चाहते ह ।। १ ।। धृतरा उवाच अजातश ो भ ं ते अ र ं व त ग छत । अनु ाताः सहधनाः वरा यमनुशासत ।। २ ।। धृतरा ने कहा—अजातश ो! तु हारा क याण हो। तुम मेरी आ ासे हारे ए धनके साथ बना कसी व न-बाधाके कुशलपूवक अपनी राजधानीको जाओ और अपने रा यका शासन करो ।। २ ।। इदं चैवावबो ं वृ य मम शासनम् । मया नग दतं सव पयं नः ेयसं परम् ।। ३ ।। मुझ वृ क यही आ ा है। एक बात और है, उसपर भी यान दे ना। मेरी कही ई सारी बात तु हारे हत और परम मंगलके लये ह गी ।। ३ ।। वे थ वं तात धमाणां ग त सू मां यु ध र । वनीतोऽ स महा ा वृ ानां पयुपा सता ।। ४ ।। तात यु ध र! तुम धमक सू म ग तको जानते हो। महामते! तुमम वनय है। तुमने बड़े-बूढ़ क उपासना क है ।। यतो बु ततः शा तः शमं ग छ भारत । नादा ण पते छ ं दा येत पा यते ।। ५ ।। जहाँ बु है, वह शा त है। भारत! तुम शा त हो जाओ। (जो कुछ आ है, उसे भूल जाओ।) प थर या लोहेपर कु हाड़ी नह पड़ती। लोग उसे लकड़ीपर ही चलाते ह ।। ५ ।। न वैरा य भजान त गुणान् प य त नागुणान् । वरोधं ना धग छ त ये त उ मपू षाः ।। ६ ।। मर त सुकृता येव न वैरा ण कृता य प । स तः पराथ कुवाणा नावे ते त याम् ।। ७ ।। जो पु ष वैरको याद नह रखते, गुण को ही दे खते ह, अवगुण को नह तथा कसीसे वरोध नह रखते, वे ही उ म पु ष कहे गये ह। साधु पु ष सर के स कम (उपकारा द)ो ी













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को ही याद रखते ह, उनके कये ए वैरको नह । वे सर क भलाई तो करते ह; परंतु उनसे बदला लेनेक भावना नह रखते ।। ६-७ ।। संवादे प षा या यु ध र नराधमाः । या म यमा वेतेऽनु ाः प षमु रम् ।। ८ ।। न चो ा नैव चानु ा व हताः प षा गरः । तज प त वै धीराः सदा तू मपू षाः ।। ९ ।। यु ध र! नीच मनु य साधारण बातचीतम भी कटु वचन बोलने लगते ह। जो वयं पहले कटु वचन न कहकर यु रम कठोर बात कहते ह, वे म यम ेणीके पु ष ह। परंतु जो धीर एवं े पु ष ह, वे कसीके कटु वचन बोलने या न बोलनेपर भी अपने मुखसे कभी कठोर एवं अ हतकर बात नह नकालते ।। ८-९ ।। मर त सुकृता येव न वैरा ण कृता य प । स तः त वजान तो ल वा ययमा मनः ।। १० ।। महा मा पु ष अपने अनुभवको सामने रखकर सर के सुख- ःखको भी अपने समान जानते ए उनके अ छे बताव को ही याद रखते ह, उनके ारा कये ए वैर- वरोधको नह ।। १० ।। अस भ ाथमयादाः साधवः यदशनाः । तथा च रतमायण वया मन् स समागमे ।। ११ ।। स पु ष आयमयादाको कभी भंग नह करते। उनके दशनसे सभी लोग स हो जाते ह। यु ध र! कौरव-पा डव के समागमम तुमने े पु ष के समान ही आचरण कया है ।। ११ ।। य धन य पा यं तत् तात द मा कृथाः । मातरं चैव गा धार मां च वं गुणकाङ् या ।। १२ ।। उप थतं वृ म धं पतरं प य भारत । तात! य धनने जो कठोर बताव कया है, उसे तुम अपने दयम मत लाना। भारत! तुम तो उ म गुण हण करनेक इ छासे अपनी माता गा धारी तथा यहाँ बैठे ए मुझ अंधे बूढ़े ताऊक ओर दे खो ।। १२ ।। े ापूव मया ूत मदमासी पे तम् ।। १३ ।। म ा ण ु कामेन पु ाणां च बलाबलम् । अशो याः कुरवो राजन् येषां वमनुशा सता ।। १४ ।। म ी च व रो धीमान् सवशा वशारदः । मने सोच-समझकर भी इस जूएक इस लये उपे ा कर द —उसे रोकनेक चे ा नह क क म म और सु द से मलना चाहता था और अपने पु के बलाबलको दे खना चाहता था। राजन्! जनके तुम शासक हो और सब शा म नपुण परम बु मान् व र जनके म ी ह, वे कु वंशी कदा प शोकके यो य नह ह ।। व य धम ऽजुने धैय भीमसेने परा मः ।। १५ ।। ो



ा च गु शु ूषा यमयोः पु षा ययोः । अजातश ो भ ं ते खा डव थमा वश । ातृ भ तेऽ तु सौ ा ं धम ते धीयतां मनः ।। १६ ।। तुमम धम है, अजुनम धैय है, भीमसेनम परा म है और नर े नकुल-सहदे वम ा एवं वशु गु सेवाका भाव है। अजातश ो! तु हारा भला हो। अब तुम खा डव थको जाओ। य धन आ द ब धु के त तु ह अ छे भाईका-सा नेहभाव रहे और तु हारा मन सदा धमम लगा रहे ।। १५-१६ ।। वैश पायन उवाच इ यु ो भरत े धमराजो यु ध रः । कृ वाऽऽयसमयं सव त थे ातृ भः सह ।। १७ ।। वैश पायनजी कहते ह—भरत े ! राजा धृतराक े इस कार कहनेपर धमराज यु ध र पू यवर धृतराक े आदे शको वीकार करके भाइय के स हत वहाँसे वदा हो गये ।। १७ ।। ते रथान् मेघसंकाशाना थाय सह कृ णया । ययु मनस इ थं पुरो मम् ।। १८ ।। वे मेघके समान श द करनेवाले रथ पर ौपद के साथ बैठकर स मनसे नगर म उ मइ थको चल दये ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण ूतपव ण धृतरा वर दानपूवक म थं त यु ध रगमने स त ततमोऽ यायः ।। ७३ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत ूतपवम धृतरावरदानपूवक यु ध रका इ थगमन वषयक तह रवाँ अ याय पूरा आ ।। ७३ ।।

(अ नु ूतपव) चतुःस त ततमोऽ यायः य धनका धृतरा से अजुनक वीरता बतलाकर पुनः ूत ड़ ाके लये पा डव को बुलानेका अनुरोध और उनक वीकृ त जनमेजय उवाच अनु ातां तान् व द वा सर नधनसंचयान् । पा डवान् धातरा ाणां कथमासी मन तदा ।। १ ।। जनमेजयने पूछा— न्! जब कौरव को यह मालूम आ क पा डव को रथ और धनके सं हस हत खा डव थ जानेक आ ा मल गयी, तब उनके मनक अव था कैसी ई? ।। १ ।। वैश पायन उवाच अनु ातां तान् व द वा धृतरा ेण धीमता । राजन् ःशासनः ं जगाम ातरं त ।। २ ।। य धनं समासा सामा यं भरतषभ । ःखात भरत े मदं वचनम वीत् ।। ३ ।। वैश पायनजीने कहा—भरतकुलभूषण जनमेजय! परम बु मान् राजा धृतराने पा डव को जानेक आ ा दे द , यह जानकर ःशासन शी ही अपने भाई भरत े य धनके पास, जो अपने म य (कण एवं शकु न)-के साथ बैठा था, गया और ःखसे पी ड़त होकर इस कार बोला ।। २-३ ।। ःशासन उवाच ःखेनैतत् समानीतं थ वरो नाशय यसौ । श ुसाद् गमयद् ं तद् बु य वं महारथाः ।। ४ ।। ःशासनने कहा—महार थयो! आपलोग को यह मालूम होना चा हये क हमने बड़े ःखसे जस धनरा शको ा त कया था, उसे हमारा बूढ़ा बाप न कर रहा है। उसने सारा धन श ु के अधीन कर दया ।। ४ ।। अथ य धनः कणः शकु न ा प सौबलः । मथः संग य स हताः पा डवान् त मा ननः ।। ५ ।। वै च वीय राजानं धृतरा ं मनी षणम् ।

अ भग य वरायु ाः णं वचनम ुवन् ।। ६ ।। यह सुनकर य धन, कण और सुबलपु शकु न, जो बड़े ही अ भमानी थे, पा डव से बदला लेनेके लये पर पर मलकर सलाह करने लगे। फर उन सबने बड़ी उतावलीके साथ व च वीयन दन मनीषी राजा धृतराक े पास जाकर मधुर वाणीम कहा ।। ५-६ ।। ( य धन उवाच अजुनेन समो वीय ना त लोके धनुधरः । योऽजुनेनाजुन तु यो बा ब बा ना ।। य धन बोला— पताजी! संसारम अजुनके समान परा मी धनुधर सरा कोई नह है। ये दो बा वाले अजुन सह भुजा वाले कातवीय अजुनक े समान श शाली ह। शृणु राजन् पुरा च यानजुन य च साहसान् । अजुनो ध वनां े ो कृतं कृतवान् पुरा ।। पद य पुरे राजन् ौप ा वयंवरे । महाराज! अजुनने पहले जो-जो अ च य साहसपूण काय कये ह, उनका वणन करता ँ, सु नये। राजन्! पहले राजा पदके नगरम ौपद के वयंवरके समय धनुधर म े अजुनने वह परा म कर दखाया था, जो सर के लये अ य त क ठन है। स ् वा पा थवान् सवान् ु ान् पाथ महाबलः ।। वार य वा शरै ती णैरजयत् त स वयम् । ज वा तु तान् महीपालान् सवान् कणपुरोगमान् ।। लेभे कृ णां शुभां पाथ युद ् वा वीयबलात् तदा । सव समूहेषु अ बां भी मो यथा पुरा ।। उस समय महाबली अजुनने सब राजा को कु पत दे ख तीखे बाण के हारसे उ ह जहाँके तहाँ रोक दया और वयं ही सबपर वजय पायी। कण आ द सभी राजा को अपने बल और परा मसे यु म जीतकर कु तीकुमार अजुनने उस समय शुभल णा ौपद को ा त कया; ठ क वैसे ही, जैसे पूवकालम भी मजीने स पूण यसमुदायम अपने बल-परा मसे का शराजक क या अ बा आ दको ा त कया था। ततः कदा चद् बीभ सु तीथया ां ययौ वयम् । अथोलूप शुभां जातां नागराजसुतां तदा ।। नागे ववाप चा येषु ा थतोऽथ यथातथम् । ततो गोदावर वे णां कावेर चावगाहत । तदन तर अजुन कसी समय वयं तीथया ाके लये गये। उस या ाम ही उ ह ने नागलोकम प ँचकर परम सु दरी नागराजक या उलूपीको उसके ाथना करनेपर व धपूवक प नी पम हण कया। फर मशः अ य तीथ म मण करते ए द ण दशाम जाकर गोदावरी, वे णा तथा कावेरी आ द न दय म नान कया। स द णं समु ा तं ग वा चा सरसां च वै । कुमारीतीथमासा मो यामास चाजुनः ।। ौ



ाह पा वताः प च अ तशौयण वै बलात् । द णसमु के तटपर कुमारीतीथम प ँचकर अजुनने अ य त शौयका प रचय दे ते ए ाह पधा रणी पाँच अ सरा का बलपूवक उ ार कया। क यातीथ सम ये य ततो ारवत ययौ ।। त कृ ण नदे शात् स सुभ ां ा य फा गुनः । तामारो य रथोप थे ययौ वपुर त ।। त प ात् क याकुमारीतीथक या ा करके वे द णसे लौट आये और अनेक तीथ म मण करते ए ारकापुरी जा प ँचे। वहाँ भगवान् ीकृ णके आदे शसे अजुनने सुभ ाको लेकर रथपर बठा लया और अपनी नगरी इ थक ओर थान कया। भूयः शृणु महाराज फा गुन य तु साहसम् । ददौ च व े ब भ सुः ा थतं खा डवं वनम् ।। लधमा े तु तेनाथ भगवान् ह वाहनः । भ तुं खा डवं राजं ततः समुपच मे ।। महाराज! अजुनके साहसका और भी वणन सु नये; उ ह ने अ नदे वको उनके माँगनेपर खा डववन सम पत कया था। राजन्! उनके ारा उपल ध होते ही भगवान् अ नदे वने उस वनको अपना आहार बनाना आर भ कया। तत तं भ य तं वै स साची वभावसुम् । रथी ध वी शरान् गृ स कलापयुतः भुः ।। पालयामास राजे ववीयण महाबलः ।। राजे ! जब अ नदे व खा डववनको जलाने लगे, उस समय (अ नदे वसे) रथ, धनुष, बाण और कवच आ द लेकर महान् बल तथा भावसे यु स साची अजुन अपने परा मसे उसक र ा करने लगे। ततः ु वा महे तं मेघां तान् सं ददे श ह । तेनो ा मेघसङ् घा ते ववषुर तवृ भः ।। खा डववनके दाहका समाचार सुनकर दे वराज इ ने मेघ को आग बुझानेक आ ा द । उनक ेरणासे मेघ ने बड़ी भारी वषा ार भ क । ततो मेघगणान् पाथः शर ातैः सम ततः । खगमैवारयामास तदा य मवाभवत् ।। यह दे ख अजुनने आकाशगामी बाणसमूह ारा सब ओरसे बादल को रोक दया। वह एक अद्भुत-सी घटना ई।

वा रतान् मेघसङ् घां ु वा ु ः पुरंदरः । पा डरं गजमा थाय सवदे वगणैवृतः ।। ययौ पाथन संयो ं र ाथ खा डव य च ।। मेघ को रोका गया सुनकर इ दे व कु पत हो उठे । ेतवणवाले ऐरावत हाथीपर आ ढ हो वे सम त दे वता के साथ खा डववनक र ाके न म अजुनसे यु करनेके लये गये। ा म त ैव वसव ा नौ तदा । आ द या ैव सा या व ेदेवा भारत ।। ग धवा ैव स हता अ ये सुरगणा ये । ते सव श स प ा द यमानाः वतेजसा । धनंजयं जघांस तः पेतु वबुधा धपाः ।। भारत! उस समय , म द्गण, वसु, अ नीकुमार, आ द य, सा यगण, व ेदेव, ग धव तथा अ य दे वगण अपने-अपने तेजसे दे द यमान एवं अ -श से स प हो यु के लये गये। वे सभी दे वे र अजुनको मार डालनेक इ छासे उनपर टू ट पड़े। ततो दे वगणाः सव युद ् वा पाथन वै मु ः । रणे जेतुमश यं तं ा वा ते भरतषभ ।। शा ता ते वबुधाः सव पाथबाणा भपी डताः । भरत े ! कु तीकुमार अजुनके साथ बारंबार यु करके जब दे वता ने यह समझ लया क इ ह समरांगणम परा जत करना अस भव है, तब वे अजुनके बाण से अ य त पी ड़त होनेके कारण यु से वरत हो गये (भाग खड़े ए)। े



युगा ते या न य ते न म ा न महा य प । सवा ण त य ते सुघोरा ण महीपते ।। महाराज! लयकालम जो वनाशसूचक अ य त भयंकर अपशकुन दखायी दे ते ह, वे सभी उस समय य द खने लगे। ततो दे वगणाः सव पाथ सम भ वुः । अस ा त तु तान् ् वा स तां दे वमय चमूम् । व रतः फा गुनो गृ ती णां तानाशुगां तदा ।। श ं दे वां स े य त थौ काल इवा यये ।। तदन तर सब दे वता ने एक साथ अजुनपर धावा कया; परंतु उस दे वसेनाको दे खकर अजुनके मनम घबराहट नह ई। वे तुरंत ही तीखे बाण हाथम लेकर इ और दे वता क ओर दे खते ए लयकालम सवसंहारक कालक भाँ त अ वचलभावसे खड़े हो गये। ततो दे वगणाः सव बीभ सुं सपुरंदराः । अवा कर छर ातैमानुषं तं महीपते ।। राजन्! अजुनको मानव समझकर इ स हत सब दे वता उनपर बाणसमूह क बौछार करने लगे। ततः पाथ महातेजा गा डीवं गृ स वरः ।। वारयामास दे वानां शर ातैः शरां तदा । परंतु महातेज वी पाथने शी तापूवक गा डीव धनुष लेकर अपने बाणसमूह क वषासे दे वता के बाण को रोक दया। पुनः ु ाः सुराः सव म य सं ये महाबलाः ।। नानाश ैववषु तं स साच महीपते ।। पताजी! यह दे ख सम त महाबली दे वता पुनः कु पत हो गये और उस यु म मरणधमा अजुनपर नाना कारके अ -श क बौछार करने लगे। तान् पाथः श वषान् वै वसृ ान् वबुधै तदा । धा धा च च छे द ख एव न शतैः शरैः ।। अजुनने अपने तीखे बाण ारा दे वता के छोड़े ए उन अ -श के आकाशम ही दो-दो तीन-तीन टु कड़े कर दये। पुन पाथः सं ु ो म डलीकृतकामुकः । दे वसङ् घा छरै ती णैरापयद् वै सम ततः ।। फर अ धक ोधम भरकर अजुनने अपने धनुषको इस कार ख चा क वह म डलाकार दखायी दे ने लगा और उसके ारा सब ओर तीखे सायक क वृ करके सब दे वता को घायल कर दया। व तान् दे वसङ् घां तान् रणे ् वा पुरंदरः । ततः ु ो महातेजाः पाथ बाणैरवा करत् ।। े















दे वता को यु से भागा आ दे ख महातेज वी इ ने अ य त कु पत हो पाथपर बाण क झड़ी लगा द । पाथ ऽ प श ं व ाध मानुषो वबुधा धपम् ।। ततः सोऽ ममयं वष सृजद् वबुधा धपः । त छरैरजुनो वष तज नेऽ यमषणः ।। अथ संवधयामास तद् वष दे वराड प । भूय एव तदा वीय ज ासुः स सा चनः ।। पाथने मनु य होकर भी दे वता के वामी इ को अपने सायक से ब ध डाला। तब दे वे रने अजुनपर प थर क वषा आर भ क । यह दे ख अजुन अ य त अमषम भर गये और अपने बाण ारा उ ह ने इ क उस पाषाण-वषाका नवारण कर दया। तदन तर दे वराज इ ने स साची अजुनके परा मक परी ा लेनेके लये पुनः उस पाषाण-वषाको पहलेसे भी अ धक बढ़ा दया। सोऽ मवष महावेग मषु भः पा डवोऽ प च । वलयं गमयामास हषयन् पाकशासनम् ।। यह दे ख पा डु न दन अजुनने इ का हष बढ़ाते ए उस अ य त वेगशा लनी पाषाणवषाको अपने बाण से वलीन कर दया। उपादाय तु पा ण याम दं नाम पवतम् । स मं सृज छ ो जघांसुः ेतवाहनम् ।। ततोऽजुनो वेगव वलमानैर ज गैः । बाणै व वंसयामास ग रराजं सह शः ।। श ं च वारयामास शरैः पाथ बलाद् यु ध । तब इ ने ेतवाहन अजुनको कुचल डालनेक इ छासे वृ स हत अंगद नामक पवत (जो म दराचलका एक शखर है)-को दोन हाथ से उठाकर उनके ऊपर छोड़ दया। यह दे ख अजुनने अ नके समान व लत और सीधे ल यतक प ँचनेवाले सह वेगशाली बाण ारा उस पवतराजको ख ड-ख ड कर दया। साथ ही पाथने उस यु म बलपूवक बाण मारकर इ को त ध कर दया। ततः श ो महाराज रणे वीरं धनंजयम् ।। ा वा जेतुमश यं तं तेजोबलसम वतम् ।। परां ी त ययौ त पु शौयण वासवः । महाराज! तदन तर तेज और बलसे स प वीर धनंजयको यु म जीतना अस भव जानकर इ को अपने पु के परा मसे वहाँ बड़ी स ता ा त ई। तदा त न त यासीद् द व क महायशाः ।। समथ नजये राज प सा ात् जाप तः ।। राजन्! उस समय वहाँ वगका कोई भी महायश वी वीर, चाहे सा ात् जाप त ही य न ह , ऐसा नह था, जो अजुनको जीतनेम समथ हो सके। ततः पाथः शरैह वा य रा सप गान् । े ौ े

द ते चा नौ महातेजाः पातयामास संततम् ।। त े यतुं पाथ न शेकु त केचन । ् वा नवा रतं श ं द व दे वगणैः सह ।। तदन तर महातेज वी अजुन अपने बाण से य , रा स और नाग को मारकर उ ह लगातार व लत अ नम गराने लगे। वगवासी दे वता स हत इ को अजुनने यु से वरत कर दया, यह दे ख उस समय कोई भी उनक ओर पात नह कर पाते थे। यथा सुपणः सोमाथ वबुधानजयत् पुरा । तथा ज वा सुरान् पाथ तपयामास पावकम् ।। ततोऽजुनः ववीयण तप य वा वभावसुम् । रथं वजं हयां ैव द ा ा ण सभां च वै ।। गा डीवं च धनुः े ं तूणी चा यसायकौ । एता यवाप बीभ सुलभे क त च भारत ।। भारत! जैसे पूवकालम ग ड़ने अमृतके लये दे वता को जीत लया था, उसी कार कु तीपु अजुनने भी दे वता को जीतकर खा डववनके ारा अ नदे वको तृ त कया। इस कार पाथने अपने परा मसे अ नदे वको तृ त करके उनसे रथ, वजा, अ , द ा , उ म धनुष गा डीव तथा अ य बाण से भरे ए दो तूणीर ा त कये। इनके सवा अनुपम यश और मयासुरसे एक सभाभवन भी उ ह ा त आ। भूयोऽ प शृणु राजे पाथ ग वो रां दशम् । व ज य नववषा सपुरां सपवतान् ।। ज बू पं वशे कृ वा सव तद् भरतषभ । बला ज वा नृपान् सवान् करे च व नवे य च ।। र ना यादाय सवा ण ग वा चैव पुनः पुरीम् । ततो ये ं महा मानं धमराजं यु ध रम् ।। राजसूयं तु े ं कारयामास भारत ।। राजे ! अजुनके परा मक कथा अभी और सु नये। उ ह ने उ र दशाम जाकर नगर और पवत स हत ज बू पके नौ वष पर वजय पायी। भरत े ! उ ह ने सम त ज बू पको वशम करके सब राजा को बलपूवक जीत लया और सबपर कर लगाकर उनसे सब कारके र न क भट ले वे पुनः अपनी पुरीको लौट आये। भारत! तदन तर अजुनने अपने बड़े भाई महा मा धमराज यु ध रसे तु े राजसूयका अनु ान करवाया। स ता य या न कमा ण कृतवानजुनः पुरा । अजुनेन समो वीय ना त लोके पुमान् व चत् ।। पताजी! इस कार अजुनने पूवकालम ये तथा और भी ब त-से परा म कर दखाये ह। संसारम कह कोई ऐसा पु ष नह है, जो बल और परा मम अजुनक समानता कर सके। दे वदानवय ा पशाचोरगरा साः । ी ो

भी म ोणादयः सव कुरव महारथाः ।। लोके सवनृपा ैव वीरा ा ये धनुधराः । एते चा ये च बहवः प रवाय महीपते ।। एकं पाथ रणे य ाः तयोद्धुं न श नुयुः ।। दे वता, दानव, य , पशाच, नाग, रा स एवं भी म, ोण आ द सम त कौरव महारथी, भूम डलके स पूण नरेश तथा अ य धनुधर वीर—ये तथा अ य ब त-से शूरवीर यु भू मम अकेले अजुनको चार ओरसे घेरकर पूरी सावधानीके साथ खड़े हो जायँ तो भी उनका सामना नह कर सकते। अहं ह न यं कौर फा गुनं त स मम् । अ नशं च त य वा तं समु नोऽ म त यात् ।। कु े ! म साधु शरोम ण अजुनके वषयम न य- नर तर च तन करते ए उनके भयसे अ य त उ न हो जाता ँ। गृहे गृहे च प या म तात पाथमहं सदा । शरगा डीवसंयु ं पाशह त मवा तकम् ।। अ प पाथसह ा ण भीतः प या म भारत । पाथभूत मदं सव नगरं तभा त मे ।। पताजी! मुझे येक घरम सदा हाथम पाश लये यमराजक भाँ त गा डीव धनुषपर बाण चढ़ाये अजुन दखायी दे ते ह। भारत! म इतना डर गया ँ क मुझे सह अजुन गोचर होते ह। यह सारा नगर मुझे अजुन प ही तीत होता है। पाथमेव ह प या म र हते तात भारत । ् वा व गतं पाथमुद ् मा म चेतनः ।। भारत! म एका तम अजुनको ही दे खता ँ। व म भी अजुनको दे खकर म अचेत और उद् ा त हो उठता ँ। अकाराद न नामा न अजुन तचेतसः । अ ा ाथा जा ैव ासं संजनय त मे ।। मेरा दय अजुनसे इतना भयभीत हो गया है क अ , अथ और अज आ द अकारा द नाम मेरे मनम ास उ प कर दे ते ह। ना त पाथा ते तात परवीराद् भयं मम । ादं वा ब ल वा प ह या वजयो रणे ।। त मात् तेन महाराज यु म म जन यम् । अहं त य भाव ो न यं ःखं वहा म च ।। तात! अजुनके सवा श ुप के सरे कसी वीरसे मुझे डर नह लगता है। महाराज! मेरा व ास है क अजुन यु म ाद अथवा ब लको भी मार सकते ह; अतः उनके साथ कया आ यु हमारे सै नक के ही संहारका कारण होगा। म अजुनके भावको जानता ँ। इसी लये सदा ःखके भारसे दबा रहता ँ। पुरा ह द डकार ये मारीच य यथा भयम् । े े ी

भवेद ् रामे महावीय तथा पाथ भयं मम ।। जैसे पूवकालम द डकार यवासी महापरा मी गया था, उसी कार अजुनसे मुझे भय हो रहा है।

ीरामच जीसे मारीचको भय हो

धृतरा उवाच जाना येव महद् वीय ज णोरेतद् रासदम् । तात वीर य पाथ य मा काष वं तु व यम् ।। ूतं वा श यु ं वा वा यं वा कदाचन । एते वेवं कृते त य व ह ैव वो भवेत् ।। त मात् वं पु पाथन न यं नेहेन वतय ।। य पाथन स ब धाद् वतते च नरो भु व । त य ना त भयं क चत् षु लोकेषु भारत ।। त मात् वं ज णुना व स न यं नेहेन वतय ।। धृतरा बोले—बेटा! अजुनके महान् परा मको तो म जानता ही ँ। उनके इस परा मका सामना करना अ य त क ठन है। अतः तुम वीर अजुनका कोई अपराध न करो। उनके साथ ूत ड़ा, श यु अथवा कटु वचनका योग कभी न करो; य क इ ह के कारण उनका तुमलोग के साथ ववाद हो सकता है। अतः बेटा! तुम अजुनके साथ सदा नेहपूण बताव करो। भारत! जो मनु य इस पृ वीपर अजुनके साथ ेमपूण स ब ध रखते ए उनसे सद् वहार करता है, उसे तीन लोक म त नक भी भय नह है; अतः व स! तुम अजुनके साथ सदा नेहपूण बताव करो। य धन उवाच ूते पाथ य कौर मायया नकृ तः कृता । त मा तं ज ह सदा व योपायेन नो भवेत् ।। य धन बोला—कु े ! जूएम हमलोग ने अजुनके त छल-कपटका बताव कया था, अतः आप कसी सरे उपायसे उ ह मार डाल। इसीसे हमलोग का सदा भला होगा। धृतरा उवाच उपाय न कत ः पा डवान् त भारत । पाथान् त पुरा व स बपायाः क ृ ता वया ।। तानुपायान् ह कौ तेया ब शो तच मुः ।। त मा तं जी वताय नः कुल य जन य च । वं चक ष स चेद ् व स स म ः सहबा धवः । स ातृक वं पाथन न यं नेहेन वतय ।। धृतरा ने कहा—भारत! पा डव के त कसी अनु चत उपायका योग नह करना चा हये। बेटा! तुमने उन सबको मारनेके लये पहले ब त-से उपाय कये ह। कु तीके पु तु हारे उन सभी य न का उ लंघन करके ब त बार आगे बढ़ गये ह; अतः व स! य द तुम े













अपने कुल और आ मीयजन क जीवनर ाके लये कसी हतकर उपायका अवल बन करना चाहते हो तो म , ब धु-बा धव तथा भाइय स हत तुम अजुनके साथ सदा नेहपूण बताव करो।

वैश पायन उवाच धृतरा वचः ु वा राजा य धन तदा । च त य वा मुत तु व धना चो दतोऽ वीत् ।।) वैश पायनजी कहते ह—धृतराक यह बात सुनकर राजा य धन दो घड़ीतक कुछ सोच- वचार करके वधातासे े रत हो इस कार बोला। य धन उवाच न वयेदं ुतं राजन् य जगाद बृह प तः । श य नी त वदन् व ान् दे वपुरो हतः ।। ७ ।। य धन बोला—राजन्! दे वगु व ान् बृह प तजीने इ को नी तका उपदे श करते ए जो बात कही है, उसे शायद आपने नह सुना है ।। ७ ।। सव पायै नह त ाः श वः श ुसूदन । पुरा यु ाद् बलाद् वा प कुव त तवा हतम् ।। ८ ।। श ुसूदन! जो आपका अ हत करते ह, उन श ु को बना यु के अथवा यु करके —सभी उपाय से मार डालना चा हये ।। ८ ।। ते वयं पा डवधनैः सवान् स पू य पा थवान् । य द तान् योध य यामः क वै नः प रहा य त ।। ९ ।। महाराज! य द हम पा डव के धनसे सब राजा का स कार करके उ ह साथ ले पा डव से यु कर, तो हमारा या बगड़ जायगा? ।। ९ ।। अहीनाशी वषान् ु ान् नाशाय समुप थतान् । कृ वा क ठ े च पृ े च कः समु ु मह त ।। १० ।। ोधम भरकर काटनेके लये उ त ए वषधर सप को अपने गलेम लटकाकर अथवा पीठपर चढ़ाकर कौन मनु य उ ह उसी अव थाम छोड़ सकता है? ।। १० ।। आ श ा रथगताः कु पता तात पा डवाः । नःशेषं वः क र य त ु ा ाशी वषा इव ।। ११ ।। तात! अ -श को लेकर रथम बैठे ए पा डव कु पत होकर ु वषधर सप क भाँ त आपके कुलका संहार कर डालगे ।। ११ ।। संन ो जुनो या त वधृ य परमेषुधी । गा डीवं मु राद े नः सं नरी ते ।। १२ ।। गदां गुव समु य व रत वृकोदरः । वरथं योज य वाऽऽशु नयात इ त नः ुतम् ।। १३ ।। हमने सुना है, अजुन कवच धारण करके दो उ म तूणीर पीठपर लटकाये ए जाते ह। वे बार-बार गा डीव धनुष हाथम लेते ह और ल बी साँस ख चकर इधर-उधर दे खते ह। ी ी े ी ी ो ी े ी ी े

इसी कार भीमसेन शी ही अपना रथ जोतकर भारी गदा उठाये बड़ी उतावलीके साथ यहाँसे नकलकर गये ह ।। १२-१३ ।। नकुलः खड् गमादाय चम चा यधच वत् । सहदे व राजा च च ु राकार म तैः ।। १४ ।। नकुल अधच वभू षत ढाल एवं तलवार लेकर जा रहे ह। सहदे व तथा राजा यु ध रने भी व भ चे ा ारा यह कर दया है क वे लोग या करना चाहते ह? ।। १४ ।। ते वा थाय रथान् सव ब श प र छदान् । अ भ न तो रथ ातान् सेनायोगाय नययुः ।। १५ ।। वे सब लोग अनेक श आ द साम य से स प रथ पर बैठकर श ुप के र थय का संहार करनेके उ े यसे सेना एक करनेके लये गये ह ।। १५ ।। न ं य ते तथा मा भजातु व कृता ह ते । ौप ा प र लेशं क तेषां तुमह त ।। १६ ।। हमने उनका तर कार कया है, अतः वे इसके लये हम कभी मा न करगे। ौपद को जो क दया गया है, उसे उनमसे कौन चुपचाप सह लेगा? ।। १६ ।। पुनद ाम भ ं ते वनवासाय पा डवैः । एवमेतान् वशे कतु श यामः पु षषभ ।। १७ ।। पु ष े ! आपका भला हो, हम चाहते ह क वनवासक शत रखकर पा डव के साथ फर एक बार जूआ खेल। इस कार इ ह हम अपने वशम कर सकगे ।। १७ ।। ते वा ादश वषा ण वयं वा ूत न जताः । वशेम महार यम जनैः तवा सताः ।। १८ ।। जूएम हार जानेपर वे या हम मृगचम धारण करके महान् वनम वेश कर और बारह वषतक वनम ही नवास कर ।। १८ ।। योदशं च सजने अ ाताः प रव सरम् । ाता पुनर या न वने वषा ण ादश ।। १९ ।। नवसेम वयं ते वा तथा ूतं वतताम् । अ ानु वा पुन ूत मदं कुव तु पा डवाः ।। २० ।। तेरहव वषम लोग क जानकारीसे र कसी नगरम रह। य द तेरहव वष कसीक जानकारीम आ जायँ तो फर बारा बारह वषतक वनवास कर। हम हार तो हम ऐसा कर और उनक हार हो तो वे। इसी शतपर फर जूएका खेल आर भ हो। पा डव पासे फककर जूआ खेल ।। एतत् कृ यतमं राज माकं भरतषभ । अयं ह शकु नवद स व ाम स पदम् ।। २१ ।। भरतकुलभूषण महाराज! यही हमारा सबसे महान् काय है। ये शकु न मामा व ास हत पासे फकनेक कलाको अ छ तरह जानते ह ।। २१ ।। ढमूला वयं रा ये म ा ण प रगृ च । ै

सारवद् वपुलं सै यं स कृ य च रासदम् ।। २२ ।। (हमारी वजय होनेपर) हमलोग ब त-से म का सं ह करके बलशाली, धष एवं वशाल सेनाका पुर कार आ दके ारा स कार करते ए इस रा यपर अपनी जड़ जमा लगे ।। २२ ।। ते च योदशं वष पार य य त चेद ् तम् । जे याम तान् वयं राजन् रोचतां ते परंतप ।। २३ ।। य द वे तेरहव वषके अ ातवासक त ा पूण कर लगे तो हम उ ह यु म परा त कर दगे। श ु को संताप दे नेवाले नरेश! आप हमारे इस तावको पसंद कर ।। २३ ।।

धृतरा उवाच तूण यानय वैतान् कामं वगतान प । आग छ तु पुन ूत मदं कुव तु पा डवाः ।। २४ ।। धृतरा ने कहा—बेटा! पा डवलोग र चले गये ह , तो भी तु हारी इ छा हो, तो उ ह तुरंत बुला लो। सम त पा डव यहाँ आय और इस नये दाँवपर फर जूआ खेल ।। २४ ।। वैश पायन उवाच ततो ोणः सोमद ो बा क ैव गौतमः । व रो ोणपु वै यापु वीयवान् ।। २५ ।। भू र वाः शा तनवो वकण महारथः । मा ूत म यभाष त शमोऽ व त च सवशः ।। २६ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तब ोणाचाय, सोमद , बा क, कृपाचाय, व र, अ थामा, परा मी युयु सु, भू र वा, पतामह भी म तथा महारथी वकण सबने एक वरसे इस नणयका वरोध करते ए कहा—‘अब जूआ नह होना चा हये, तभी सव शा त बनी रह सकती है’ ।। २५-२६ ।। अकामानां च सवषां सु दामथद शनाम् । अकरोत् पा डवा ानं धृतरा ः सुत यः ।। २७ ।। भावी अथको दे खने और समझनेवाले सु द् अपनी अ न छा कट करते ही रह गये; कतु य धना द पु के ेमम आकर धृतराने पा डव को बुलानेका आदे श दे ही दया ।। २७ ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण अनु ूतपव ण यु ध र यानयने चतुःस त ततमोऽ यायः ।। ७४ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत अनु ूतपवम यु ध र यानयन वषयक चौह रवाँ अ याय पूरा आ ।। ७४ ।। [दा णा य अ धक पाठक े ६७ ोक मलाकर कुल ९४ ोक ह।]

प चस त ततमोऽ यायः गा धारीक धृतरा को चेतावनी और धृतरा का अ वीकार करना वैश पायन उवाच अथा वी महाराज धृतरा ं जने रम् । पु हादाद् धमयु ा गा धारी शोकक षता ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! उस समय भावी अ न क आशंकासे धमपरायणा गा धारी पु - नेहवश शोकसे कातर हो उठ और राजा धृतरासे इस कार बोली— ।। १ ।। जाते य धने ा महाम तरभाषत । नीयतां परलोकाय सा वयं कुलपांसनः ।। २ ।। ‘आयपु ! य धनके ज म लेनेपर परम बु मान् व रजीने कहा था—यह बालक अपने कुलका नाश करनेवाला होगा; अतः इसे याग दे ना चा हये ।। २ ।। नद जातमा ो ह गोमायु रव भारत । अ तो नूनं कुल या य कुरव त बोधत ।। ३ ।। ‘भारत! इसने ज म लेते ही गीदड़क भाँ त ‘ ँआ- ँआ’ का श द कया था; अतः यह अव य ही इस कुलका अ त करनेवाला होगा। कौरवो! आपलोग भी इस बातको अ छ तरह समझ ल ।। ३ ।। मा नम जीः वदोषेण महा सु वं ह भारत । मा बालानाम श ानाम भमं था म त भो ।। ४ ।। ‘भरतकुल तलक! आप अपने ही दोषसे इस कुलको वप के महासागरम न डु बाइये। भो! इन उ ड बालक क हाँ-म-हाँ न मलाइये ।। ४ ।। मा कुल य ये घोरे कारणं वं भ व य स । ब ं सेतुं को नु भ ाद् धमे छा तं च पावकम् ।। ५ ।। शमे थतान् को नु पाथान् कोपयेद ् भरतषभ । मर तं वामाजमीढ मार य या यहं पुनः ।। ६ ।। ‘इस कुलके भयंकर वनाशम वयं ही कारण न ब नये। भरत े ! बँधे ए पुलको कौन तोड़ेगा? बुझी ई वैरक आगको फर कौन भड़कायेगा? कु तीके शा तपरायण पु को फर कु पत करनेका साहस कौन करेगा? अजमीढकुलके र न! आप सब कुछ जानते और याद रखते ह, तो भी म पुनः आपको मरण दलाती र ँगी ।। ५-६ ।। शा ं न शा त बु ेयसे चेतराय च । न वै वृ ो बालम तभवेद ् राजन् कथंचन ।। ७ ।। ‘









‘राजन्! जसक बु खोट है, उसे शा भी भला-बुरा कुछ नह सखा सकता। म दबु बालक वृ -जैसा ववेकशील कसी कार नह हो सकता ।। ७ ।। व े ाः स तु ते पु ा मा वां द णाः हा सषुः । त मादयं म चनात् य यतां कुलपांसनः ।। ८ ।। ‘आपके पु आपके ही नय णम रह, ऐसी चे ा क जये। ऐसा न हो क वे सभी मयादाका याग करके ाण से हाथ धो बैठ और आपको इस बुढ़ापेम छोड़कर चल बस। इस लये आप मेरी बात मानकर इस कुलांगार य धनको याग द ।। ८ ।।

गा धारीका धृतरा को समझाना

तथा ते न कृतं राजन् पु नेहा रा धप । त य ा तं फलं व कुला तकरणाय यत् ।। ९ ।। ‘महाराज! आपको जो करना चा हये था, वह आपने पु नेहवश नह कया। अतः समझ ली जये, उसीका यह फल ा त आ है, जो समूचे कुलके वनाशका कारण होने जा रहा है ।। ९ ।। शमेन धमण नयेन यु ा या ते बु ः सा तु ते मा माद ः । वं सनी ू रसमा हता ीमृ ौढा ग छ त पु पौ ान् ।। १० ।। ‘शा त, धम तथा उ म नी तसे यु जो आपक बु थी, वह बनी रहे। आप माद मत क जये। ू रतापूण कम से ा त क ई ल मी वनाशशील होती है और कोमलतापूण बतावसे बढ़ ई धन-स प पु -पौ तक चली जाती है’ ।। १० ।। अथा वी महाराजो गा धार धमद शनीम् । अ तः कामं कुल या तु न श नो म नवा रतुम् ।। ११ ।। तब महाराज धृतराने धमपर रखनेवाली गा धारीसे कहा—‘दे व! इस कुलका अ त भले ही हो जाय, परंतु म य धनको रोक नह सकता ।। ११ ।। यथे छ त तथैवा तु याग छ तु पा डवाः । पुन ूतं च कुव तु मामकाः पा डवैः सह ।। १२ ।। ‘ये सब जैसा चाहते ह, वैसा ही हो। पा डव लौट आय और मेरे पु उनके साथ फर जूआ खेल’ ।। १२ ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण अनु ूतपव ण गा धारीवा ये प चस त ततमोऽ यायः ।। ७५ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत अनु ूतपवम गा धारीवा य वषयक पचह रवाँ अ याय पूरा आ ।। ७५ ।।

षट् स त ततमोऽ यायः सबके मना करनेपर भी धृतरा क आ ासे यु ध रका पुनः जूआ खेलना और हारना वैश पायन उवाच ततो वगतं पाथ ा तकामी यु ध रम् । उवाच वचनाद् रा ो धृतरा य धीमतः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! धमराज यु ध र इ थके मागम ब त रतक चले गये थे। उस समय बु मान् राजा धृतराक आ ासे ा तकामी उनके पास गया और इस कार बोला— ।। १ ।।

उपा तीणा सभा राज ानु वा यु ध र । ए ह पा डव द े त पता वाहे त भारत ।। २ ।। ‘भरतकुलभूषण पा डु न दन यु ध र! आपके पता राजा धृतराने यह आदे श दया है क तुम लौट आओ। हमारी सभा फर सद य से भर गयी है और तु हारी ती ा कर रही है। तुम पासे फककर जूआ खेलो’ ।। २ ।। यु ध र उवाच धातु नयोगाद् भूता न ा ुव त शुभाशुभम् । न नवृ तयोर त दे वत ं पुनय द ।। ३ ।। े









यु ध रने कहा—सम त ाणी वधाताक ेरणासे शुभ और अशुभ फल ा त करते ह। उ ह कोई टाल नह सकता। जान पड़ता है, मुझे फर जूआ खेलना पड़ेगा ।। ३ ।। अ ूते समा ानं नयोगात् थ वर य च । जान प यकरं ना त मतुमु सहे ।। ४ ।। वृ राजा धृतराक आ ासे जूएके लये यह बुलावा हमारे कुलके वनाशका कारण है, यह जानते ए भी म उनक आ ाका उ लंघन नह कर सकता ।। ४ ।। वैश पायन उवाच अस भवे हेममय य ज तोतथा प रामो लुलुभे मृगाय । ायः समास पराभवाणां धयो वपय ततरा भव त ।। ५ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! कसी जानवरका शरीर सुवणका हो, यह स भव नह ; तथा प ीराम वणमय तीत होनेवाले मृगके लये लुभा गये। जनका पतन या पराभव नकट होता है, उनक बु ायः अ य त वपरीत हो जाती है ।। ५ ।। इ त ुवन् नववृते ातृ भः सह पा डवः । जानं शकुनेमायां पाथ ूत मयात् पुनः ।। ६ ।। ऐसा कहते ए पा डु न दन यु ध र भाइय के साथ पुनः लौट पड़े। वे शकु नक मायाको जानते थे, तो भी जूआ खेलनेके लये चले आये ।। ६ ।। व वशु ते सभां तां तु पुनरेव महारथाः । थय त म चेतां स सु दां भरतषभाः ।। ७ ।। यथोपजोषमासीनाः पुन ूत वृ ये । सवलोक वनाशाय दै वेनोप नपी डताः ।। ८ ।। महारथी भरत े पा डव पुनः उस सभाम व ए। उ ह दे खकर सु द के मनम बड़ी पीड़ा होने लगी। ार धके वशीभूत ए कु तीकुमार स पूण लोक के वनाशके लये पुनः ूत ड़ा आर भ करनेके उ े यसे चुपचाप वहाँ जाकर बैठ गये ।। ७-८ ।। शकु न वाच अमु चत् थ वरो यद् वो धनं पू जतमेव तत् । महाधनं लहं वेकं शृणु भो भरतषभ ।। ९ ।। शकु नने कहा—राजन्! भरत े ! हमारे बूढ़े महाराजने आपको जो सारा धन लौटा दया है, वह ब त अ छा कया है। अब जूएके लये एक ही दाँव रखा जायगा उसे सु नये — ।। ९ ।। वयं वा ादशा दा न यु मा भ ूत न जताः । वशेम महार यं रौरवा जनवाससः ।। १० ।। ‘











‘य द आपने हमलोग को जूएम हरा दया तो हम मृगचम धारण करके महान् वनम वेश करगे ।। १० ।। योदशं च सजने अ ाताः प रव सरम् । ाता पुनर या न वने वषा ण ादश ।। ११ ।। ‘और बारह वष वहाँ रहगे एवं तेरहवाँ वष हम जनसमूहम लोग से अ ात रहकर पूरा करगे और य द हम तेरहव वषम लोग क जानकारीम आ जायँ तो फर बारा बारह वष वनम रहगे ।। ११ ।। अ मा भ न जता यूयं वने ादश व सरान् । वस वं कृ णया साधम जनैः तवा सताः ।। १२ ।। ‘य द हम जीत गये तो आपलोग ौपद के साथ बारह वष तक मृगचम धारण करते ए वनम रह ।। १२ ।। योदशं च सजने अ ाताः प रव सरम् । ाता पुनर या न वने वषा ण ादश ।। १३ ।। ‘आपको भी तेरहवाँ वष जनसमूहम लोग से अ ात रहकर तीत करना पड़ेगा और य द ात हो गये तो फर बारा बारह वष वनम रहना होगा ।। १३ ।। योदशे च नवृ े पुनरेव यथो चतम् । वरा यं तप मतरैरथवेतरैः ।। १४ ।। ‘तेरहवाँ वष पूण होनेपर हम या आप फर वनसे आकर यथो चत री तसे अपनाअपना रा य ा त कर सकते ह’ ।। १४ ।। अनेन वसायेन सहा मा भयु ध र । अ ानु वा पुन ूतमे ह द व भारत ।। १५ ।। भरतवंशी यु ध र! इसी न यके साथ आप आइये और पुनः पासा फककर हमलोग के साथ जूआ खे लये ।। १५ ।। अथ स याः सभाम ये समु तकरा तदा । ऊचु नमनसः संवेगात् सव एव ह ।। १६ ।। यह सुनकर सब सभासद ने सभाम अपने हाथ ऊपर उठाकर अ य त उ न च हो बड़ी घबराहटके साथ कहा ।। स या ऊचुः अहो धग् बा धवा नैनं बोधय त महद् भयम् । बु या बु ये वा बु येदयं वै भरतषभः ।। १७ ।। सभासद् बोले—अहो ध कार है! ये भाई-ब धु भी यु ध रको उनके ऊपर आनेवाले महान् भयक बात नह समझाते। पता नह , ये भरत े यु ध र अपनी बु के ारा इस भयको समझ या न समझ ।। १७ ।। वैश पायन उवाच जन वादान् सुब छ ृ व प नरा धपः । ो

या च धमसंयोगात् पाथ ूत मयात् पुनः ।। १८ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! लोग क तरह-तरहक बात सुनते ए भी राजा यु ध र ल जाके कारण तथा धृतराक े आ ापालन प धमक से पुनः जूआ खेलनेके लये उ त हो गये ।। १८ ।। जान प महाबु ः पुन ूतमवतयत् । अ यास ो वनाशः यात् कु णा म त च तयन् ।। १९ ।। परम बु मान् यु ध र जूएका प रणाम जानते थे, तो भी यह सोचकर क स भवतः कु कुलका वनाश ब त नकट है, वे ूत ड़ाम वृ हो गये ।। १९ ।। यु ध र उवाच कथं वै म धो राजा वधममनुपालयन् । आतो व नवतत द ा म शक ु ने वया ।। २० ।। यु ध र बोले—शकुने! वधमपालनम संल न रहनेवाला मेरे-जैसा राजा जूएके लये बुलाये जानेपर कैसे पीछे हट सकता था, अतः म तु हारे साथ खेलता ँ ।। २० ।। (वैश पायन उवाच एवं दै वबला व ो धमराजो यु ध रः । भी म ोणैवायमाणो व रेण च धीमता ।। युयु सुना कृपेणाथ स येन च भारत । गा धाया पृथया चैव भीमाजुनयमै तथा ।। वकणन च वीरेण ौप ा ौ णना तथा । सोमद ेन च तथा बा केन च धीमता ।। वायमाणोऽ प सततं न च राजा नय छ त ।) वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! उस समय धमराज यु ध र ार धके वशीभूत हो गये थे। महाराज! उ ह भी म, ोण और बु मान् व रजी बारा जूआ खेलनेसे रोक रहे थे। युयु सु, कृपाचाय तथा संजय भी मना कर रहे थे। गा धारी, कु ती, भीम, अजुन, नकुल, सहदे व, वीर वकण, ौपद , अ थामा, सोमद तथा बु मान् बा क भी बारंबार रोक रहे थे तो भी राजा यु ध र भावीके वश होनेके कारण जूएसे नह हटे । शकु न वाच गवा ं ब धेनूकमपय तमजा वकम् । गजाः कोशो हर यं च दासीदासा सवशः ।। २१ ।। शकु नने कहा—राजन्! हमलोग के पास बैल, घोड़े और ब त-सी धा गौएँ ह। भेड़ और बक रय क तो गनती ही नह है। हाथी, खजाना, दास-दासी तथा सुवण सब कुछ ह ।। २१ ।। एष नो लह एवैको वनवासाय पा डवाः । यूयं वयं वा व जता वसेम वनमा ताः ।। २२ ।। ी (



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फर भी (इ ह छोड़कर) एकमा वनवासका न य ही हमारा दाँव है। पा डवो! आपलोग या हम, जो भी हारगे, उ ह वनम जाकर रहना होगा ।। २२ ।। योदशं च वै वषम ाताः सजने तथा । अनेन वसायेन द ाम पु षषभाः ।। २३ ।। केवल तेरहव वष हम कसी जनसमूहम अ ात-भावसे रहना होगा। नर े गण! हम इसी न यके साथ जूआ खेल ।। २३ ।। समु ेपेण चैकेन वनवासाय भारत । तज ाह तं पाथ लहं ज ाह सौबलः । जत म येव शकु नयु ध रमभाषत ।। २४ ।। भारत! वनवासक शत रखकर केवल एक ही बार पासा फकनेसे जूएका खेल पूरा हो जायगा। यु ध रने उसक बात वीकार कर ली। त प ात् सुबलपु शकु नने पासा हाथम उठाया और उसे फककर यु ध रसे कहा—मेरी जीत हो गयी ।। २४ ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण अनु ूतपव ण पुनयु ध रपराभवे षट् स त ततमोऽ यायः ।। ७६ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत अनु ूतपवम यु ध रपराभव वषयक छह रवाँ अ याय पूरा आ ।। ७६ ।। (दा णा य अ धक पाठक े ३ ोक मलाकर कुल २७ ोक ह)

स तस त ततमोऽ यायः ःशासन ारा पा डव का उपहास एवं भीम, अजुन, नकुल और सहदे वक श ुको मारनेके लये भीषण त ा वैश पायन उवाच ततः परा जताः पाथा वनवासाय द ताः । अ जना यु रीया ण जगृ यथा मम् ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! तदन तर जूएम हारे ए कु तीके पु ने वनवासक द ा ली और मशः सबने मृगचमको उ रीय व के पम धारण कया ।। १ ।। अ जनैः संवृतान् ् वा तरा यानरदमान् । थतान् वनवासाय ततो ःशासनोऽ वीत् ।। २ ।। जनका रा य छन गया था, वे श ुदमन पा डव जब मृगचमसे अपने अंग को ढँ ककर वनवासके लये थत ए, उस समय ःशासनने सभाम उनको ल य करके कहा — ।। २ ।। वृ ं धातरा य च ं रा ो महा मनः । परा जताः पा डवेया वप परमां गताः ।। ३ ।। ‘धृतरापु महामना राजा य धनका सम त भूम डलपर एकछ रा य हो गया। पा डव परा जत होकर बड़ी भारी वप म पड़ गये ।। ३ ।। अ ैव ते स याताः समैव म भर थलैः । गुण ये ा तथा े ाः ेयांसो यद् वयं परैः ।। ४ ।। ‘आज वे पा डव समान माग से, जनपर आये क भीड़के कारण जगह नह रही है, वनको चले जा रहे ह। हमलोग अपने तप य से गुण और अव था दोन म बड़े ह। अतः हमारा थान उनसे ब त ऊँचा है ।। ४ ।। नरकं पा तताः पाथा द घकालमन तकम् । सुखा च हीना रा या च वन ाः शा तीः समाः ।। ५ ।। धनेन म ा ये ते म धातरा ान् हा सषुः । ते न जता तधना वनमे य त पा डवा ।। ६ ।। ‘कु तीके पु द घकालतकके लये अन त ःख प नरकम गरा दये गये। ये सदाके लये सुखसे वं चत तथा रा यसे हीन हो गये ह। जो लोग पहले अपने धनसे उ म हो धृतरापु क हँसी उड़ाया करते थे, वे ही पा डव आज परा जत हो अपने धन-वैभवसे हाथ धोकर वनम जा रहे ह ।। ५-६ ।। च ान् स ाहानवमु य पाथा वासां स द ा न च भानुम त । ववा य तां चमा ण सव ौ



यथा लहं सौबल या युपेताः ।। ७ ।। ‘सभी पा डव अपने शरीरपर जो व च कवच और चमक ले द व ह, उन सबको उतारकर मृगचम धारण कर ल; जैसा क सुबलपु शकु नके भावको वीकार करके ये लोग जूआ खेले ह ।। ७ ।। न स त लोकेषु पुमांस ई शा इ येव ये भा वतबु यः सदा । ा य त तेऽऽ मान ममेऽ पा डवा वपयये ष ढ तला इवाफलाः ।। ८ ।। ‘जो अपनी बु म सदा यही अ भमान लये बैठे थे क हमारे-जैसे पु ष तीन लोक म नह ह, वे ही पा डव आज वपरीत अव थाम प ँचकर थोथे तल -क भाँ त नःस व हो गये ह। अब इ ह अपनी थ तका ान होगा ।। ८ ।। इदं ह वासो य द वे शानां मन वनां रौरवमाहवेषु । अद तानाम जना न य द् बलीयसां प यत पा डवानाम् ।। ९ ।। ‘इन मन वी और बलवान् पा डव का यह मृगचममय व तो दे खो, जसे य म महा मालोग धारण करते ह। मुझे तो इनके शरीरपर ये मृगचम य क द ाके अ धकारसे र हत जंगली कोलभील के चममय व के समान ही तीत होते ह ।। ९ ।। महा ा ः सौम कय सेनः क यां पा चाल पा डवे यः दाय । अकाष द् वै सुकृतं नेह क चत् लीबाः पाथाः पतयो या से याः ।। १० ।। ‘महाबु मान् सोमकवंशी राजा पदने अपनी क या पांचालीको पा डव के लये दे कर कोई अ छा काम नह कया। ौपद के प त ये कु तीपु नरे नपुंसक ही ह ।। १० ।। सू म ावारान जनो रीयान् ् वार ये नधनान त ान् । कां वं ी त ल यसे या से न प त वृणी वेह यम य म छ स ।। ११ ।। ‘ ौपद ! जो सु दर महीन कपड़े पहना करते थे, उ ह पा डव को वनम नधन, अ त त और मृगचमक चादर ओढ़े दे ख तु ह या स ता होगी? अब तुम कसी अ य पु षको, जसे चाहो, अपना प त बना लो ।। ११ ।। एते ह सव कुरवः समेताः ा ता दा ताः सु वणोपप ाः । एषां वृणी वैकतमं प त वे न वां तपेत् काल वपययोऽयम् ।। १२ ।। ‘ े













‘ये सम त कौरव माशील, जते य तथा उ म धन-वैभवसे स प ह। इ ह मसे कसीको अपना प त चुन लो, जससे यह वपरीत काल ( नधनाव था) तु ह संत त न करे ।। १२ ।। यथाफलाः ष ढ तला यथा चममया मृगाः । तथैव पा डवाः सव यथा काकयवा अ प ।। १३ ।। ‘जैसे थोथे तल बोनेपर फल नह दे ते ह, जैसे केवल चममय मृग थ ह तथा जैसे काकयव (तं लर हत तृणधा य) न योजन होते ह, उसी कार सम त पा डव का जीवन नरथक हो गया है ।। १३ ।। क पा डवां ते प ततानुपा य मोघः मः ष ढ तलानुपा य । एवं नृशंसः प षा ण पाथान ावयद् धृतरा य पु ः ।। १४ ।। ‘थोथे तल क भाँ त इन प तत और नपुंसक पा डव क सेवा करनेसे तु ह या लाभ होगा, थका प र म ही तो उठाना पड़ेगा।’ इस कार धृतराक े नृशंस पु ःशासनने पा डव को ब त-से कठोर वचन सुनाये ।। १४ ।। तद् वै ु वा भीमसेनोऽ यमष नभ य चैः सं नगृ ैव रोषात् । उवाच चैनं सहसैवोपग य सहो यथा हैमवतः शृगालम् ।। १५ ।। यह सब सुनकर भीमसेनको बड़ा ोध आ। जैसे हमालयक गुफाम रहनेवाला सह गीदड़के पास जाय, उसी कार वे सहसा ःशासनके पास जा प ँचे और रोषपूवक उसे रोककर जोर-जोरसे फटकारते ए बोले ।। १५ ।। भीमसेन उवाच ू र पापजनैजु मकृताथ भाषसे । गा धार व या ह वं राजम ये वक थसे ।। १६ ।। भीमसेनने कहा— ू र एवं नीच ःशासन! तू पापी मनु य ारा यु होनेवाली ओछ बात बक रहा है। अरे! तू अपने बा बलसे नह , शकु नक छल- व ाके भावसे आज राजा क म डलीम अपने मुँहसे अपनी बड़ाई कर रहा है ।। १६ ।। यथा तुद स ममा ण वा शरै रह नो भृशम् । तथा मार यता तेऽहं कृ तन् ममा ण संयुगे ।। १७ ।। जैसे यहाँ तू अपने वचन पी बाण से हमारे मम थान म अ य त पीड़ा प ँचा रहा है, उसी कार जब यु म म तेरा दय वद ण करने लगूँगा, उस समय तेरी कही ई इन बात क याद दलाऊँगा ।। १७ ।। ये च वामनुवत ते ोधलोभवशानुगाः । ो



गो तारः सानुब धां तान् नेता म यमसादनम् ।। १८ ।। जो लोग ोध और लोभके वशीभूत हो तु हारे र क बनकर पीछे -पीछे चलते ह, उ ह उनके स ब धय स हत यमलोक भेज ँ गा ।। १८ ।। वैश पायन उवाच एवं ुवाणम जनै ववा सतं ःशासन तं प रनृ य त म । म ये कु णां धम नब माग गौग र त मा यन् मु ल जः ।। १९ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! मृगचम धारण कये भीमसेनको ऐसी बात करते दे ख नल ज ःशासन कौरव के बीचम उनक हँसी उड़ाते ए नाचने लगा और ‘ओ बैल! ओ बैल’ कहकर उ ह पुकारने लगा। उस समय भीमका माग धमराज यु ध रने रोक रखा था (अ यथा वे ःशासनको जीता न छोड़ते) ।। १९ ।। भीमसेन उवाच नृशंस प षं व ुं श यं ःशासन वया । नकृ या ह धनं ल वा को वक थतुमह त ।। २० ।। भीमसेन बोले—ओ नृशंस ःशासन! तेरे ही मुखसे ऐसी कठोर बात नकल सकती ह, तेरे सवा सरा कौन है, जो छल-कपटसे धन पाकर इस तरह आप ही अपनी शंसा करेगा ।। २० ।। मैव म सुकृताँ लोकान् ग छे त् पाथ वृकोदरः । य द व ो ह ते भ वा न पबे छो णतं रणे ।। २१ ।। मेरी बात सुन ले। यह कु तीपु भीमसेन य द यु म तेरी छाती फाड़कर तेरा र न पीये तो इसे पु यलोक क ा त न हो ।। २१ ।। धातरा ान् रणे ह वा मषतां सवध वनाम् । शमं ग ता म न चरात् स यमेतद् वी म ते ।। २२ ।। म तुझसे स ची बात कह रहा ँ, शी ही वह समय आनेवाला है, जब क सम त धनुधर के दे खते-दे खते म यु म धृतराक े सभी पु का वध करके शा त ा त क ँ गा ।। २२ ।। वैश पायन उवाच त य राजा सहगतेः सखेलं य धनो भीमसेन य हषात् । ग त वग यानुचकार म दो नग छतां पा डवानां सभायाः ।। २३ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! जब पा डवलोग सभाभवनसे नकले, उस समय म दबु राजा य धन हषम भरकर सहके समान म तानी चालसे चलनेवाले ी









भीमसेनक ख ली उड़ाते ए उनक चालक नकल करने लगा ।। २३ ।। नैतावता कृत म य वीत् तं वृकोदरः सं नवृ ाधकायः । शी ं ह वां नहतं सानुब धं सं मायाहं तव या म मूढ ।। २४ ।। यह दे ख भीमसेनने अपने आधे शरीरको पीछे क ओर मोड़कर कहा—‘ओ मूढ़! केवल ःशासनके र पान- ारा ही मेरा कत पूरा नह हो जाता है। तुझे भी स ब धय स हत शी ही यमलोक भेजकर तेरे इस प रहासक याद दलाते ए इसका समु चत उ र ँ गा’ ।। २४ ।। एवं समी या म न चावमानं नय य म युं बलवान् स मानी । राजानुगः संस द कौरवाणां व न ामन् वा यमुवाच भीमः ।। २५ ।। इस कार अपना अपमान होता दे ख बलवान् एवं मानी भीमसेन ोधको कसी कार रोककर राजा यु ध रके पीछे कौरवसभासे नकलते ए इस कार बोले ।। २५ ।। भीमसेन उवाच अहं य धनं ह ता कण ह ता धनंजयः । शकु न चा कतवं सहदे वो ह न य त ।। २६ ।। भीमसेनने कहा—म य धनका वध क ँ गा, अजुन कणका संहार करगे और इस जुआरी शकु नको सहदे व मार डालगे ।। २६ ।। इदं च भूयो व या म सभाम ये बृहद् वचः । स यं दे वाः क र य त य ो यु ं भ व य त ।। २७ ।। सुयोधन ममं पापं ह ता म गदया यु ध । शरः पादे न चा याहम ध ा या म भूतले ।। २८ ।। साथ ही इस भरी सभाम म पुनः एक ब त बड़ी बात कह रहा ँ। मेरा यह व ास है क दे वतालोग मेरी यह बात स य कर दखायगे। जब हम कौरव और पा डव म यु होगा, उस समय इस पापी य धनको म गदासे मार गराऊँगा तथा रणभू मम पड़े ए इस पापीके म तकको पैरसे ठु कराऊँगा ।। २७-२८ ।। वा यशूर य चैवा य प ष य रा मनः । ःशासन य धरं पाता म मृगरा डव ।। २९ ।। और यह जो केवल बात बनानेम बहा र ू र- वभाववाला रा मा ःशासन है, इसक छातीका खून उसी कार पी लूँगा, जैसे सह कसी मृगका र पान करता है ।। २९ ।। अजुन उवाच नैवं वाचा व सतं भीम व ायते सताम् । इत तुदशे वष ारो यद् भ व य त ।। ३० ।। े ी े ो े े

अजुनने कहा—आय भीमसेन! साधु पु ष जो कुछ करना चाहते ह, उसे इस कार वाणी ारा सू चत नह करते। आजसे चौदहव वषम जो घटना घ टत होगी, उसे वयं ही लोग दे खगे ।। ३० ।। भीमसेन उवाच य धन य कण य शकुने रा मनः । ःशासनचतुथानां भू मः पा य त शो णतम् ।। ३१ ।। भीमसेन बोले—यह भू म य धन, कण, रा मा शकु न तथा चौथे ःशासनके र का न य ही पान करेगी ।। अजुन उवाच असू यतारं ारं व ारं वक थनम् । भीमसेन नयोगात् ते ह ताहं कणमाहवे ।। ३२ ।। अजुनने कहा—भैया भीमसेन! जो हमलोग के दोष ही ढूँ ढ़ा करता है, हमारे ःख दे खकर स होता है, कौरव को बुरी सलाह दे ता है और थ बढ़-बढ़कर बात बनाता है, उस कणको म आपक आ ासे अव य यु म मार डालूँगा ।। ३२ ।। अजुनः तजानीते भीम य यका यया । कण कणानुगां ैव रणे ह ता म प भः ।। ३३ ।। अपने भाई भीमसेनका य करनेक इ छासे अजुन यह त ा करता है क ‘म यु म कण और उसके अनुगा मय को भी बाण ारा मार डालूँगा’ ।। ३३ ।। ये चा ये तयो य त बु मोहेन मां नृपाः । तां सवानहं बाणैनता म यमसादनम् ।। ३४ ।। सरे भी जो नरेश बु के ामोहवश हमारे वप म होकर यु करगे, उन सबको अपने ती ण सायक ारा म यमलोक प ँचा ँ गा ।। ३४ ।। चले हमवान् थाना भः याद् दवाकरः । शै यं सोमात् ण येत म स यं वचलेद ् य द ।। ३५ ।। य द मेरा स य वच लत हो जाय तो हमालय पवत अपने थानसे हट जाय, सूयक भा न हो जाय और च मासे उसक शीतलता र हो जाय (अथात् जैसे हमालय अपने थानसे नह हट सकता, सूयक भा न नह हो सकती, च मासे उसक शीतलता र नह हो सकती, वैसे ही मेरे वचन म या नह हो सकते) ।। ३५ ।। न दा य त भेद ् रा य मतो वष चतुदशे । य धनोऽ भस कृ य स यमेतद् भ व य त ।। ३६ ।। य द आजसे चौदहव वषम य धन स कारपूवक हमारा रा य हम वापस न दे दे गा तो ये सब बात स य होकर रहगी ।। ३६ ।। वैश पायन उवाच इ यु व त पाथ तु ीमान् मा वतीसुतः । े

गृ वपुलं बा ं सहदे वः तापवान् ।। ३७ ।। सौबल य वधं े सु रदं वचनम वीत् । ोधसंर नयनो नः स व प गः ।। ३८ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! अजुनके ऐसा कहनेपर परम सु दर तापी वीर मा न दन सहदे वने अपनी वशाल भुजा ऊपर उठाकर शकु नके वधक इ छासे इस कार कहा; उस समय उनके ने ोधसे लाल हो रहे थे और वे फुँफकारते ए सपक भाँ त उ छ् वास ले रहे थे ।। ३७-३८ ।। सहदे व उवाच अ ान् यान् म यसे मूढ गा धाराणां यशोहर । नैतेऽ ा न शता बाणा वयैते समरे वृताः ।। ३९ ।। सहदे वने कहा—ओ गा धार नवासी यकुलके कलंक मूख शकुने! ज ह तू पासे समझ रहा है, वे पासे नह ह, उनके पम तूने यु म तीखे बाण का वरण कया है ।। ३९ ।। यथा चैवो वान् भीम वामु य सबा धवम् । कताहं कमण त य कु काया ण सवशः ।। ४० ।। आय भीमसेनने ब धु-बा धव स हत तेरे वषयम जो बात कही है, म उसे अव य पूण क ँ गा। तुझे अपने बचावके लये जो कुछ करना हो, वह सब कर डाल ।। ४० ।। ह ता म तरसा यु े वामेवेह सबा धवम् । य द था य स सं ामे धमण सौबल ।। ४१ ।। सुबलकुमार! य द तू यधमके अनुसार सं ामम डटा रह जायगा, तो म वेगपूवक तुझे तेरे ब धु-बा धव स हत अव य मार डालूँगा ।। ४१ ।। सहदे ववचः ु वा नकुलोऽ प वशा पते । दशनीयतमो नॄणा मदं वचनम वीत् ।। ४२ ।। राजन्! सहदे वक बात सुनकर मनु य म परम दशनीय पवाले नकुलने भी यह बात कही ।। ४२ ।। नकुल उवाच सुतेयं य सेन य ूतेऽ मन् धृतरा जैः । यैवाचः ा वता ाः थतै य धन ये ।। ४३ ।। तान् धातरा ान् वृ ान् मुमूषून् कालनो दतान् । गम य या म भू य ानहं वैव वत यम् ।। ४४ ।। नकुल बोले— य धनके यसाधनम लगे ए जन धृतरापु ने इस ूतसभाम पदकुमारी कृ णाको कठोर बात सुनायी ह, कालसे े रत हो मौतके मुँहम जानेक इ छा रखनेवाले उन राचारी ब सं यक धृतराक ु मार को म यमलोकका अ त थ बना ँ गा ।। नदे शाद् धमराज य ौप ाः पदव चरन् । नधातरा ां पृ थव कता म न चरा दव ।। ४५ ।। े ौ े ी ी ो े ी

धमराजक आ ासे ौपद का य करते ए म सारी पृ थवीको धृतरापु कर ँ गा; इसम अ धक दे र नह है ।। ४५ ।।

से सूनी

वैश पायन उवाच एवं ते पु ष ा ाः सव ायतबाहवः । त ा ब लाः कृ वा धृतरा मुपागमन् ।। ४६ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! इस कार वे सभी पु ष सह महाबा पा डव ब त-सी त ाएँ करके राजा धृतराक े पास गये ।। ४६ ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण अनु ूतपव ण पा डव त ाकरणे स तस त ततमो यायः ।। ७७ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत अनु ूतपवम पा डव क त ासे स ब ध रखनेवाला सतह रवाँ अ याय पूरा आ ।। ७७ ।।

अ स त ततमोऽ यायः यु ध रका धृतरा आ दसे वदा लेना, व रका कु तीको अपने यहाँ रखनेका ताव और पा डव को धमपूवक रहनेका उपदे श दे ना यु ध र उवाच आम या म भरतां तथा वृ ं पतामहम् । राजानं सोमद ं च महाराजं च बा कम् ।। १ ।। ोणं कृपं नृपां ा यान थामानमेव च । व रं धृतरा ं च धातरा ां सवशः ।। २ ।। युयु सुं संजयं चैव तथैवा यान् सभासदः । सवानाम य ग छा म ा म पुनरे य वः ।। ३ ।। यु ध र बोले—म भरतवंशके सम त गु जन से वनम जानेक आ ा चाहता ँ। बड़े-बूढ़े पतामह भी म, राजा सोमद , महाराज बा क, गु वर ोण और कृपाचाय, अ थामा, अ या य नृप तगण, व र, राजा धृतरा, उनके सभी पु , युयु सु, संजय तथा सरे सब सद य से पूछकर सबक आ ा लेकर वनम जाता ँ, फर लौटकर आप लोग का दशन क ँ गा ।। १—३ ।। वैश पायन उवाच न च क चदथोचु तं या स ा यु ध रम् । मनो भरेव क याणं द यु ते त य धीमतः ।। ४ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! यु ध रके इस कार पूछनेपर सब कौरव लाजके मारे स रह गये, कुछ भी उ र न दे सके। उ ह ने मन-ही-मन उन बु मान् यु ध रके क याणका च तन कया ।। ४ ।। व र उवाच आया पृथा राजपु ी नार यं ग तुमह त । सुकुमारी च वृ ा च न यं चैव सुखो चता ।। ५ ।। इह व य त क याणी स कृता मम वे म न । इ त पाथा वजानी वमगदं वोऽ तु सवशः ।। ६ ।। व र बोले—कु तीकुमारो! राजपु ी आया कु ती वनम जाने लायक नह ह। वे कोमल अंग वाली और वृ ा ह, सदा सुख और आरामके ही यो य ह; अतः वे मेरे ही घरम स कारपूवक रहगी। यह बात तुम सब लोग जान लो। मेरी शुभ कामना है क तुम वहाँ सवथा नीरोग एवं सुखसे रहो ।। ५-६ ।।

पा डवा ऊचुः तथे यु वा ुवन् सव यथा नो वदसेऽनघ । वं पतृ ः पतृसमो वयं च व परायणाः ।। ७ ।। पा डव ने कहा—ब त अ छा, ऐसा ही हो। इतना कहकर वे सब फर बोले —‘अनघ! आप हम जैसा कह—जैसी आ ा द, वही शरोधाय है। आप हमारे पतृ ( पताके भाई) ह, अतः पताके ही तु य ह। हम सब भाई आपक शरणम ह ।। ७ ।। यथाऽऽ ापयसे व ं वं ह नः परमो गु ः । य चा यद प कत ं तद् वध व महामते ।। ८ ।। ‘ व न्! आप जैसी आ ा द, वही हम मा य है; य क आप हमारे परम गु ह। महामते! इसके सवा और भी जो कुछ हमारा कत हो, वह हम बताइये’ ।। ८ ।। व र उवाच यु ध र वजानी ह ममेदं भरतषभ । नाधमण जतः क द् थते वै पराजये ।। ९ ।। व र बोले—भरतकुलभूषण यु ध र! तुम मुझसे यह जान लो क अधमसे परा जत होनेवाला कोई भी पु ष अपनी उस पराजयके लये ःखी नह होता ।। ९ ।। वं वै धम वजानीषे यु े जेता धनंजयः । ह तारीणां भीमसेनो नकुल वथसं ही ।। १० ।। तुम धमके ाता हो। अजुन यु म वजय पानेवाले ह। भीमसेन श ु का नाश करनेम समथ ह। नकुल आव यक व तु को जुटानेम कुशल ह ।। १० ।। संय ता सहदे व तु धौ यो व मः । धमाथकुशला चैव ौपद धमचा रणी ।। ११ ।। सहदे व संयमी ह तथा ष धौ यजी वे ा के शरोम ण ह। एवं धमपरायणा ौपद भी धम और अथके स पादनम कुशल है ।। ११ ।। अ यो य य याः सव तथैव यदशनाः । परैरभे ाः संतु ाः को वो न पृहये दह ।। १२ ।। तुम सब लोग आपसम एक- सरेके य हो, तु ह दे खकर सबको स ता होती है। श ु तुमम भेद या फूट नह डाल सकते, इस जगत्म कौन है जो तुमलोग को न चाहता हो ।। १२ ।। एष वै सवक याणः समा ध तव भारत । नैनं श ु वषहते श े णा प समोऽ युत ।। १३ ।। भारत! तु हारा यह माशीलताका नयम सब कारसे क याणकारी है। इ के समान परा मी श ु भी इसका सामना नह कर सकता ।। १३ ।। हमव यनु श ोऽ स मे साव णना पुरा । ै पायनेन कृ णेन नगरे वारणावते ।। १४ ।। भृगुतु े च रामेण ष यां च श भुना । ौ ी

अ ौषीर सत या प महषर नं त ।। १५ ।। पूवकालम मे साव णने हमालयपर तु ह धम और ानका उपदे श दया है, वारणावत नगरम ीकृ ण ै पायन ासजीने, भृगत ु ुंग पवतपर परशुरामजीने तथा ष तीके तटपर सा ात् भगवान् शंकरने तु ह अपने स पदे शसे कृताथ कया है। अंजन पवतपर तुमने मह ष अ सतका भी उपदे श सुना है ।। १४-१५ ।। क माषीतीरसं थ य गत वं श यतां भृगोः । ा सदा नारद ते धौ य तेऽयं पुरो हतः ।। १६ ।। क माषी नद के कनारे नवास करनेवाले मह ष भृगन ु े भी तु ह उपदे श दे कर अनुगह ृ ीत कया है। दे व ष नारदजी सदा तु हारी दे खभाल करते ह और तु हारे ये पुरो हत धौ यजी तो सदा साथ ही रहते ह ।। १६ ।। मा हासीः सा पराये वं बु तामृ षपू जताम् । पु रवसमैलं वं बु या जय स पा डव ।। १७ ।। ऋ षय ारा स मा नत उस परलोक वषयक व ानका तुम कभी याग न करना। पा डु न दन! तुम अपनी बु से इलान दन पु रवाको भी परा जत करते हो ।। १७ ।। श या जय स रा ोऽ यानृषीन् धम पसेवया । ऐ े जये धृतमना या ये कोप वधारणे ।। १८ ।। श से सम त राजा को तथा धमसेवन ारा ऋ षय को भी जीत लेते हो। तुम इ से मनम वजयका उ साह ा त करो। ोधको काबूम रखनेका पाठ यमराजसे सीखो। तथा वसग कौबेरे वा णे चैव संयमे । आ म दानं सौ य वम य ैवोपजीवनम् ।। १९ ।। उदारता एवं दानम कुबेरका और संयमम व णका आदश हण करो। सर के हतके लये अपने-आपको नछावर करना, सौ यभाव (शीतलता) तथा सर को जीवन-दान दे ना —इन सब बात क श ा तु ह जलसे लेनी चा हये ।। १९ ।। भूमेः मा च तेज सम ं सूयम डलात् । वायोबलं ा ु ह वं भूते य ा मस पदम् ।। २० ।। तुम भू मसे मा, सूयम डलसे तेज, वायुसे बल तथा स पूण भूत से अपनी स प ा त करो ।। २० ।। अगदं वोऽ तु भ ं वो ा म पुनरागतान् । आप माथकृ े षु सवकायषु वा पुनः ।। २१ ।। यथावत् तप ेथाः काले काले यु ध र । आपृ ोऽसीह कौ तेय व त ा ु ह भारत ।। २२ ।। तु ह कभी कोई रोग न हो, सदा मंगल-ही-मंगल दखायी दे । कुशलपूवक वनसे लौटनेपर म फर तु ह दे खूँगा। यु ध र! आप कालम, धम तथा अथका संकट उप थत होनेपर अथवा सभी काय म समय-समयपर अपने उ चत कत का पालन करना। कु तीन दन! भारत! तुमसे आव यक बात कर ल । तु ह क याण ा त हो ।। २१-२२ ।। कृताथ व तम तं वां यामः पुनरागतम् । ो े

न ह वो वृ जनं क चद् वेद क त् पुरा कृतम् ।। २३ ।। जब वनसे कुशलपूवक कृताथ होकर लौटोगे, तब यहाँ आनेपर फर तुमसे मलूँगा। तु हारे पहलेके कसी दोषको सरा कोई न जाने, इसक चे ा रखना ।। २३ ।। वैश पायन उवाच एवमु तथे यु वा पा डवः स य व मः । भी म ोणौ नम कृ य ा त त यु ध रः ।। २४ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! व रके ऐसा कहनेपर स यपरा मी पा डु न दन यु ध र भी म और ोणको नम कार करके वहाँसे थत ए ।। २४ ।। इ त ीमहाभारते सभापव ण अनु ूतपव ण यु ध रवन थानेऽ स त ततमोऽ यायः ।। ७८ ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत अनु ूतपवम यु ध रका वनको थान वषयक अठह रवाँ अ याय पूरा आ ।। ७८ ।।

एकोनाशी ततमोऽ यायः ौपद का कु तीसे वदा लेना तथा कु तीका वलाप एवं नगरके नर-ना रय का शोकातुर होना वैश पायन उवाच त मन् स थते कृ णा पृथां ा य यश वनीम् । अपृ छद् भृश ःखाता या ा या त यो षतः ।। १ ।। यथाह व दना ेषान् कृ वा ग तु मयेष सा । ततो ननादः सुमहान् पा डवा तःपुरेऽभवत् ।। २ ।। वैश पायनजी कहते ह—यु ध रके थान करनेपर कृ णाने यश वनी कु तीके पास जाकर अ य त ःखसे आतुर हो वनम जानेक आ ा माँगी। वहाँ जो सरी याँ बैठ थ , उन सबक यथायो य व दना करके सबसे गले मलकर उसने वनम जानेक इ छा कट क । फर तो पा डव के अ तःपुरम महान् आतनाद होने लगा ।। कु ती च भृशसंत ता ौपद े य ग छतीम् । शोक व लया वाचा कृ ाद् वचनम वीत् ।। ३ ।। ौपद को जाती दे ख कु ती अ य त संत त हो उठ और शोकाकुल वाणी ारा बड़ी क ठनाईसे इस कार बोल — ।। ३ ।।

व से शोको न ते कायः ा येदं सनं महत् । ीधमाणाम भ ा स शीलाचारवती तथा ।। ४ ।। ‘ े







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‘बेट ! इस महान् संकटको पाकर तु ह शोक नह करना चा हये। तुम ीके धम को जानती हो, शील और सदाचारका पालन करनेवाली हो ।। ४ ।। न वां संदे ु महा म भतॄन् त शु च मते । सा वीगुणसमाप ा भू षतं ते कुल यम् ।। ५ ।। ‘प व मुसकानवाली ब ! इसी लये प तय के त तु हारा या कत है, यह तु ह बतानेक आव यकता म नह समझती। तुम सती य के सद्गुण से स प हो; तुमने प त और पता—दोन के कुल क शोभा बढ़ायी है ।। ५ ।। सभा याः कुरव ेमे ये न द धा वयानघे । अ र ं ज प थानं मदनु यानबृं हता ।। ६ ।। ‘ न पाप ौपद ! ये कौरव बड़े भा यशाली ह, ज ह तुमने अपनी ोधा नसे जलाकर भ म नह कर दया। जाओ, तु हारा माग व न-बाधा से र हत हो; मेरे कये ए शुभ च तनसे तु हारा अ युदय हो ।। ६ ।। भा व यथ ह स ीणां वैकृतं नोपजायते । गु धमा भगु ता च ेयः मवा य स ।। ७ ।। ‘जो बात अव य होनेवाली है उसके होनेपर सा वी य के मनम ाकुलता नह होती। तुम अपने े धमसे सुर त रहकर शी ही क याण ा त करोगी ।। ७ ।। सहदे व मे पु ः सदावे यो वने वसन् । यथेदं सनं ा य नायं सीदे महाम तः ।। ८ ।। ‘बेट ! वनम रहते ए मेरे पु सहदे वक तुम सदा दे खभाल रखना, जससे यह परम बु मान् सहदे व इस भारी संकटम पड़कर ःखी न होने पावे’ ।। ८ ।। तथे यु वा तु सा दे वी व े जला वला । शो णता ै कवसना मु केशी व नययौ ।। ९ ।। कु तीके ऐसा कहनेपर ने से आँसू बहाती ई ौपद ने ‘तथा तु’ कहकर उनक आ ा शरोधाय क । उस समय उसके शरीरपर एक ही व था, उसका भी कुछ भाग रजसे सना आ था और उसके सरके बाल बखरे ए थे। उसी दशाम वह अ तःपुरसे बाहर नकली ।। ९ ।। तां ोश त पृथा ःखादनुव ाज ग छतीम् । अथाप यत् सुतान् सवान् ताभरणवाससः ।। १० ।। रोती- बलखती, वनको जाती ई ौपद के पीछे -पीछे कु ती भी ःखसे ाकुल हो कुछ रतक गय , इतनेहीम उ ह ने अपने सभी पु को दे खा, जनके व और आभूषण उतार लये गये थे ।। १० ।। चमावृततनून् या क चदवाङ् मुखान् । परैः परीतान् सं ैः सु ानुशो चतान् ।। ११ ।। उनके सभी अंग मृगचमसे ढँ के ए थे और वे ल जावश नीचे मुख कये चले जा रहे थे। हषम भरे ए श ु ने उ ह सब ओरसे घेर रखा था और हतैषी सु द् उनके लये शोक कर रहे थे ।। ११ ।।

तदव थान् सुतान् सवानुपसृ या तव सला । वजमानावद छोकात् त द् वलपती ब ।। १२ ।। उस अव थाम उन सभी पु के नकट प ँचकर कु तीके दयम अ य त वा स य उमड़ आया। वे उ ह दयसे लगाकर शोकवश ब त वलाप करती ई बोल ।। १२ ।।

कु युवाच कथं स मचा र ान् वृ थ त वभू षतान् । अ ु ान् ढभ ां दै वते यापरान् सदा ।। १३ ।। सनं वः सम यागात् कोऽयं व ध वपययः । क याप यानजं चेदं धया प या म नैव तत् ।। १४ ।। कु तीने कहा—पु ो! तुम उ म धमका पालन करनेवाले तथा सदाचारक मयादासे वभू षत हो। तुमम ु ताका अभाव है। तुम भगवान्के सु ढ़ भ और दे वाराधनम सदा त पर रहनेवाले हो, तो भी तु हारे ऊपर यह वप का पहाड़ टू ट पड़ा है। वधाताका यह कैसा वपरीत वधान है। कसके अ न च तनसे तु हारे ऊपर यह महान् ःख आया है, यह बु से बार-बार वचार करनेपर भी मुझे कुछ सूझ नह पड़ता ।। १३-१४ ।। यात् तु म ा यदोषोऽयं याहं यु मानजीजनम् । ःखायासभुजोऽ यथ यु ान यु मैगुणैः ।। १५ ।। यह मेरे ही भा यका दोष हो सकता है। तुम तो उ म गुण से यु हो तो भी अ य त ःख और क भोगनेके लये ही मने तु ह ज म दया है ।। १५ ।। कथं व यथ गषु वने ऋ वनाकृताः । वीयस वबलो साहतेजो भरकृशाः कृशाः ।। १६ ।। इस कार स प से वं चत होकर तुम वनके गम थान म कैसे रह सकोगे? वीय, धैय, बल, उ साह और तेजसे प रपु होते ए भी तुम बल हो ।। १६ ।। य ेतदे वम ा यं वने वासो ह वो ुवम् । शतशृ ा मृते पा डौ नाग म यं गजा यम् ।। १७ ।। य द म यह जानती क नगरम आनेपर तु ह न य ही वनवासका क भोगना पड़ेगा तो महाराज पा डु के परलोकवासी हो जानेपर शतशृंगपुरसे ह तनापुर नह आती ।। १७ ।। ध यं वः पतरं म ये तपोमेधा वतं तथा । यः पु ा धमस ा य वग छामकरोत् याम् ।। १८ ।। म तो तु हारे तप वी एवं मेधावी पताको ही ध य मानती ँ, ज ह ने पु के ःखसे ःखी होनेका अवसर न पाकर वगलोकक अ भलाषाको ही य समझा ।। १८ ।। ध यां चाती य ाना ममां ा तां परां ग तम् । म ये तु मा धम ां क याण सवथैव तु ।। १९ ।। र या म या च ग या च ययाहम भस धता । जी वत यतां म ं ध मां सं लेशभा गनीम् ।। २० ।। ी











इसी कार अती य ानसे स प एवं परमग तको ा त ई क याणमयी इस धम ा मा को भी सवथा ध य मानती ँ। जसने अपने अनुराग, उ म बु और सद् वहार ारा मुझे भुलाकर जी वत रहनेके लये ववश कर दया। मुझको और जीवनके त मेरी इस आस को ध कार है! जसके कारण मुझे यह महान् लेश भोगना पड़ता है ।। १९-२० ।। पु का न वहा ये वः कृ लधान् यान् सतः । साहं या या म ह वनं हा कृ णे क जहा स माम् ।। २१ ।। पु ो! तुम सदाचारी और मेरे लये ाण से भी अ धक यारे हो। मने बड़े क से तु ह पाया है; अतः तु ह छोड़कर अलग नह र ँगी। म भी तु हारे साथ वनम चलूँगी। हाय कृ णे! तुम य मुझे छोड़े जाती हो? ।। अ तव यसुधमऽ मन् धा ा क नु मादतः । ममा तो नैव व हत तेनायुन जहा त माम् ।। २२ ।। यह ाणधारण पी धम अ न य है, एक-न-एक दन इसका अ त होना न त है, फर भी वधाताने न जाने य मादवश मेरे जीवनका भी शी ही अ त नह नयत कर दया। तभी तो आयु मुझे छोड़ नह रही है ।। हा कृ ण ारकावा सन् वा स संकषणानुज । क मा ायसे ःखा मां चेमां नरो मान् ।। २३ ।। हा ारकावासी ीकृ ण! तुम कहाँ हो! बलरामजीके छोटे भैया! मुझको तथा इन नर े पा डव को इस ःखसे य नह बचाते? ।। २३ ।। अना द नधनं ये वामनु याय त वै नराः । तां वं पासी ययं वादः स गतो थतां कथम् ।। २४ ।। ‘ भो! तुम आ द-अ तसे र हत हो, जो मनु य तु हारा नर तर मरण करते ह, उ ह तुम अव य संकटसे बचाते हो।’ तु हारी यह वरद थ कैसे हो रही है? ।। २४ ।। इमे स ममाहा ययशोवीयानुव तनः । नाह त सनं भो ुं न वेषां यतां दया ।। २५ ।। ये मेरे पु उ म धम, महा मा पु ष के शील- वभाव, यश और परा मका अनुसरण करनेवाले ह, अतः क भोगनेके यो य नह ह; भगवन्! इनपर तो दया करो ।। २५ ।। सेयं नी यथ व ेषु भी म ोणकृपा दषु । थतेषु कुलनाथेषु कथमाप पागता ।। २६ ।। नी तके अथको जाननेवाले परम व ान् भी म, ोण और कृपाचाय आ दके, जो इस कुलके र क ह, उनके रहते ए यह वप हमपर य आयी? ।। २६ ।। हा पा डो हा महाराज वा स क समुपे से । पु ान् ववा यतः साधून र भ ूत न जतान् ।। २७ ।। हा महाराज पा डु ! कहाँ हो? आज तु हारे े पु को श ु ने जूएम जीतकर वनवास दे दया है, तुम य इनक रव थाक उपे ा कर रहे हो? ।। २७ ।। सहदे व नवत व ननु वम स मे यः । ी े ी

शरीराद प मा े य मा मा या ीः कुपु वत् ।। २८ ।। मा न दन सहदे व! तुम मुझे अपने शरीरसे भी अ धक य हो। बेटा! लौट आओ। कुपु क भाँ त मेरा याग न करो ।। २८ ।। ज तु ातर तेऽमी य द स या भसं धनः । म प र ाणजं धम महैव वमवा ु ह ।। २९ ।। तु हारे ये भाई य द स यधमके पालनका आ ह रखकर वनम जा रहे ह तो जायँ; तुम यह रहकर मेरी र ाज नत धमका लाभ लो ।। २९ ।। वैश पायन उवाच एवं वलपत कु तीम भवा ण यच। पा डवा वगतान दा वनायैव व जुः ।। ३० ।। वैश पायनजी कहते ह—इस कार वलाप करती ई माता कु तीको अ भवादन एवं णाम करके पा डवलोग ःखी हो वनको चले गये ।। ३० ।। व र ा प तामाता कु तीमा ा य हेतु भः । ावेशयद् गृहं ा वयमाततरः शनैः ।। ३१ ।। व रजी शोकाकुला कु तीको अनेक कारक यु य ारा धीरज बँधाकर उ ह धीरेधीरे अपने घर ले गये। उस समय वे वयं भी ब त ःखी थे ।। ३१ ।।

(ततः स थते त धमराजे तदा नृपे । जनाः सम ता तं ु ं समा रातुराः ।। ततः ासादवया ण वमान शखरा ण च । ो

गोपुरा ण च सवा ण वृ ान यां सवशः ।। अध जनः ीमानुदासीनो लोकयत् । तदन तर धमराज यु ध र जब वनक ओर थत ए, तब उस नगरके सम त नवासी ःखसे आतुर हो उ ह दे खनेके लये महल , मकानक छत , सम त गोपुर और वृ पर चढ़ गये। वहाँसे सब लोग उदास होकर उ ह दे खने लगे। न ह रया ततः श या ग तुं ब जनाकुलाः ।। आ ते म ता य द नाः प य त पा डवम् । उस समय सड़क मनु य क भारी भीड़से इतनी भर गयी थ क उनपर चलना अस भव हो गया था। इसी लये लोग ऊँचे चढ़कर अ य त द नभावसे पा डु न दन यु ध रको दे ख रहे थे ।। पदा त व जत छ ं चेलभूषणव जतम् ।। व कला जनसंवीतं पाथ ् वा जना तदा । ऊचुब वधा वाचो भृशोपहतचेतसः ।। कु तीन दन यु ध र छ र हत एवं पैदल ही चल रहे थे। उनके शरीरपर राजो चत व और आभूषण का भी अभाव था। वे व कल और मृगचम पहने ए थे। उ ह इस दशाम दे खकर लोग के दयम गहरी चोट प ँची और वे सब लोग नाना कारक बात करने लगे। जना ऊचुः यं या तमनुया त म चतुर बलं महत् । तमेवं कृ णया साधमनुया त म पा डवाः ।। च वारो ातर ैव पुरोधा वशा प तम् । नगर नवासी मनु य बोले—अहो! या ा करते समय जनके पीछे वशाल चतुरं गणी सेना चलती थी, आज वे ही राजा यु ध र इस कार जा रहे ह और उनके पीछे ौपद के साथ केवल चार भाई पा डव तथा पुरो हत चल रहे ह। या न श या पुरा ु ं भूतैराकाशगैर प ।। ताम कृ णां प य त राजमागगता जनाः । जसे आजसे पहले आकाशचारी ाणीतक नह दे ख पाते थे, उसी पदकुमारी कृ णाको अब सड़कपर चलनेवाले साधारण लोग भी दे ख रहे ह। अ रागो चतां कृ णां र च दनसे वनीम् ।। वषमु णं च शीतं च ने य याशु ववणताम् । सुकुमारी ौपद के अंग म द अंगराग शोभा पाता था। वह लाल च दनका सेवन करती थी, परंतु अब वनम सद, गम और वषा लगनेसे उसक अंगका त शी ही फ क पड़ जायगी। अ नूनं पृथा दे वी स वमा व य भाषते ।। पु ान् तुषां च दे वी तु ु म ाथ नाह त ।। ी

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न य ही आज कु तीदे वी बड़े भारी धैयका आ य लेकर अपने पु और पु वधूसे वातालाप करती ह; अ यथा इस दशाम वे इनक ओर दे ख भी नह सकत । नगुण या प पु य कथं याद् ःखदशनम् । क पुनय य लोकोऽयं जतो वृ ेन केवलम् ।। गुणहीन पु का भी ःख मातासे कैसे दे खा जायगा; फर जस पु के सदाचारमा से यह सारा संसार वशीभूत हो जाता है, उसपर कोई ःख आये तो उसक माता वह कैसे दे ख सकती है? आनृशं यमनु ोशो धृ तः शीलं दमः शमः । पा डवं शोभय येते षड् गुणाः पु षो मम् ।। त मात् त योपघातेन जाः परमपी डताः । पु षर न पा डु न दन यु ध रको कोमलता, दया, धैय, शील, इ यसंयम और मनो न ह—ये छः सद्गुण सुशो भत करते ह। अतः उनक हा नसे आज सारी जाको बड़ी पीड़ा हो रही है। औदकानीव स वा न ी मे स ललसं यात् ।। पीडया पी डतं सव जगत् त य जग पतेः । मूल यैवोपघातेन वृ ः पु पफलोपगः ।। जैसे गम म जलाशयका पानी घट जानेसे जलचर जीव-ज तु थत हो उठते ह एवं जड़ कट जानेसे फल और फूल से यु वृ सूखने लगता है, उसी कार स पूण जगत्के पालक महाराज यु ध रक पीड़ासे सारा संसार पी ड़त हो गया है। मूलं ेष मनु याणां धमराजो महा ु तः । पु पं फलं च प ं च शाखा त येतरे जनाः ।। ते ातर इव ं सपु ाः सहबा धवाः । ग छ तमनुग छामो येन ग छ त पा डवः ।। महातेज वी धमराज यु ध र मनु य के मूल ह। जगत्के सरे लोग उ ह क शाखा, प , पु प और फल ह। आज हम अपने पु और भाई-ब धु को साथ लेकर चार भाई पा डव क भाँ त शी उसी मागसे उनके पीछे -पीछे चल, जससे पा डु पु यु ध र जा रहे ह। उ ाना न प र य य े ा ण च गृहा ण च । एक ःखसुखाः पाथमनुयाम सुधा मकम् ।। आज हम अपने खेत, बाग-बगीचे और घर- ार छोड़कर परम धमा मा कु तीन दन यु ध रके साथ चल द और उ ह के सुख- ःखको अपना सुख- ःख समझ। समुदधृ ् त नधाना न प र व ता जरा ण च । उपा धनधा या न तसारा ण सवशः ।। रजसा यवक णा न प र य ा न दै वतैः । मूषकैः प रधाव लैरावृता न च ।। अपेतोदकधूमा न हीनस माजना न च । ो

ण ब लकम याम होमजपा न च ।। कालेनेव भ ना न भ भाजनव त च । अ म य ा न वे मा न सौबलः तप ताम् ।। हम अपने घर क गड़ी ई न ध नकाल ल। आँगनक फश खोद डाल। सारा धन धा य साथ ले ल। सारी आव यक व तुएँ हटा ल। इनम चार ओर धूल भर जाय। दे वता इन घर को छोड़कर भाग जायँ। चूहे बलसे बाहर नकलकर इनम चार ओर दौड़ लगाने लग। इनम न कभी आग जले, न पानी रहे और न झाड ही लगे। यहाँ ब लवै दे व, य , म पाठ, होम और जप बंद हो जाय। मानो बड़ा भारी अकाल पड़ गया हो, इस कार ये सारे घर ढह जायँ। इनम टू टे बतन बखरे पड़े ह और हम सदाके लये इ ह छोड़ द—ऐसी दशाम इन घर पर कपट सुबलपु शकु न आकर अ धकार कर ले। वनं नगरम ा तु य ग छ त पा डवाः । अ मा भ प र य ं पुरं स प तां वनम् ।। अब जहाँ पा डव जा रहे ह, वह वन ही नगर हो जाय और हमारे छोड़ दे नेपर यह नगर ही वनके पम प रणत हो जाय। बला न दं णः सव वना न मृगप णः । यज व म याद् भीता गजाः सहा वना य प ।। वनम हमलोग के भयसे साँप अपने बल छोड़कर भाग जायँ, मृग और प ी जंगल को छोड़ द तथा हाथी और सह भी वहाँसे र चले जायँ। अना ा तं प तु से मानं यज तु च । तृणमाषफलादानां दे शां य वा मृग जाः ।। वयं पाथवने स यक् सह व याम नवृताः । हमलोग तृण (साग-पात), अ और फलका उपयोग करनेवाले ह। जंगलके हसक पशु और प ी हमारे रहनेके थान को छोड़कर चले जायँ। वे ऐसे थानका आ य ल, जहाँ हम न जायँ और वे उन थान को छोड़ द, जनका हम सेवन कर। हमलोग वनम कु तीपु के साथ बड़े सुखसे रहगे। वैश पायन उवाच इ येवं व वधा वाचो नानाजनसमी रताः । शु ाव पाथः ु वा च न वच े ऽ य मानसम् ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! इस कार भ - भ मनु य क कही भाँ त-भाँ तक बात यु ध रने सुन । सुनकर भी उनके मनम कोई वकार नह आया। ततः ासादसं था तु सम ताद् वै गृहे गृहे । ा ण य वशां शू ाणां चैव यो षतः ।। ततः ासादजालानामु पा ावरणा न च । द शुः पा डवान् द नान् रौरवा जनवाससः ।। कृ णां व पूवा तां ज त प रेव च । े



एकव ां द त तां मु केश रज वलाम् ।। ् वा तदा यः सवा ववणवदना भृशम् । वल य ब धा मोहाद् ःखशोकेन पी डताः ।। हा हा धग् धग् ध ग यु वा ने ैर ू यवतयन् ।) तदन तर चार ओर महल म रहनेवाली ा ण, य, वै य और शू क याँ अपने-अपने भवन क खड़ कय के पद हटाकर द न पा डव को दे खने लग । सब पा डव ने मृगचममय व धारण कर रखा था। उनके साथ ौपद भी पैदल ही चली जा रही थी। उसे उन य ने पहले कभी नह दे खा था। उसके शरीरपर एक ही व था, केश खुले ए थे, वह रज वला थी और रोती चली जा रही थी। उसे दे खकर उस समय सब य का मुख उदास हो गया। वे ोभ एवं मोहके कारण नाना कारसे वलाप करती ई ःख-शोकसे पी ड़त हो गय और ‘हाय हाय! इन धृतरापु को बार-बार ध कार है, ध कार है’ ऐसा कहकर ने से आँसू बहाने लग । धातरा य ता नखलेनोपल य तत् । गमनं प रकष च कृ णाया ूतम डले ।। ३२ ।। ः सु वनं सवा व न द यः कु न् भृशम् । द यु सु चरं कालं करास मुखा बुजाः ।। ३३ ।। धृतरापु क याँ ौपद के ूतसभाम जाने और उसके व ख चे जाने (एवं वनम जाने) आ दका सारा वृ ा त सुनकर कौरव क अ य त न दा करती ई फूट-फूटकर रोने लग और अपने मुखार व दको हथेलीपर रखकर ब त दे रतक गहरी च ताम डू बी रह ।। राजा च धृतरा तु पु ाणामनयं तदा । याय ु न दयो न शा तम धज मवान् ।। ३४ ।। उस समय अपने पु के अ यायका च तन करके राजा धृतराका भी दय उ न हो उठा। उ ह त नक भी शा त नह मली ।। ३४ ।। स च तय नेका ः शोक ाकुलचेतनः । ुः स ेषयामास शी माग यता म त ।। ३५ ।। च ताम पड़े-पड़े उनक एका ता न हो गयी। उनका च शोकसे ाकुल हो रहा था। उ ह ने व रके पास संदेश भेजा क तुम शी मेरे पास चले आओ ।। ३५ ।। ततो जगाम व रो धृतरा नवेशनम् । तं पयपृ छत् सं व नो धृतरा ो जना धपः ।। ३६ ।। तब व र राजा धृतराक े महलम गये। उस समय महाराज धृतराने अ य त उ न होकर उनसे पूछा ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण अनु ूतपव ण ौपद कु तीसंवादे एकोनाशी ततमोऽ यायः ।। ७९ ।।









इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत अनु ूतपवम ौपद कु तीसंवाद वषयक उनासीवाँ अ याय पूरा आ ।। ७९ ।। (दा णा य अ धक पाठक े २९ ोक मलाकर कुल ६५ ोक ह)

अशी ततमोऽ यायः वनगमनके समय पा डव क चे ा और जाजन क शोकातुरताके वषयम धृतरा तथा व रका संवाद और शरणागत कौरव को ोणाचायका आ ासन वैश पायन उवाच तमागतमथो राजा व रं द घद शनम् । साशङ् क इव प छ धृतरा ोऽ बकासुतः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! रदश व रजीके आनेपर अ बकान दन राजा धृतराने शं कत-सा होकर पूछा ।। १ ।। धृतरा उवाच कथं ग छ त कौ तेयो धमपु ो यु ध रः । भीमसेनः स साची मा पु ौ च पा डवौ ।। २ ।। धृतरा बोले— व र! कु तीन दन धमपु यु ध र कस कार जा रहे ह? भीमसेन, अजुन, नकुल और सहदे व—ये चार पा डव भी कस कार या ा करते ह? ।। २ ।। धौ य ैव कथं पद च यश वनी । ोतु म छा यहं सव तेषां शंस वचे तम् ।। ३ ।। पुरो हत धौ य तथा यश वनी ौपद भी कैसे जा रही है? म उन सबक पृथक्-पृथक् चे ा को सुनना चाहता ँ, तुम मुझसे कहो ।। ३ ।। व र उवाच व ेण संवृ य मुखं कु तीपु ो यु ध रः । बा वशालौ स प यन् भीमो ग छ त पा डवः ।। ४ ।। व र बोले—कु तीन दन यु ध र व से मुँह ढँ ककर जा रहे ह। पा डु कुमार भीमसेन अपनी वशाल भुजा क ओर दे खते ए जाते ह ।। ४ ।। सकता वपन् स साची राजानमनुग छ त । मा पु ः सहदे वो मुखमा ल य ग छ त ।। ५ ।। स साची अजुन बालू बखेरते ए राजा यु ध रके पीछे -पीछे जा रहे ह। मा कुमार सहदे व अपने मुँहपर म पोतकर जाते ह ।। ५ ।। पांसूप ल तसवा ो नकुल व लः । दशनीयतमो लोके राजानमनुग छ त ।। ६ ।। लोकम अ य त दशनीय मनोहर पवाले नकुल अपने सब अंग म धूल लपेटकर ाकुल चत हो राजा यु ध रका अनुसरण कर रहे ह ।। ६ ।। कृ णा तु केशौः छा मुखमायतलोचना । ी ी

दशनीया दती राजानमनुग छ त ।। ७ ।। परम सु दरी वशाललोचना कृ णा अपने केश से ही मुँह ढँ ककर रोती ई राजाके पीछे -पीछे जा रही है ।। ७ ।। धौ यौ रौ ा ण सामा न या या न च वशा पते । गायन् ग छ त मागषु कुशानादाय पा णना ।। ८ ।। महाराज! पुरो हत धौ यजी हाथम कुश लेकर तथा यमदे वतास ब धी सामम का गान करते ए आगे-आगे मागपर चल रहे ह ।। ८ ।। धृतरा उवाच व वधानीह पा ण कृ वा ग छ त पा डवाः । त ममाच व व र क मादे वं ज त ते ।। ९ ।। धृतरा ने पूछा— व र! पा डवलोग यहाँ जो भ - भ कारक चे ाएँ करते ए या ा कर रहे ह, उसका या रह य है, यह बताओ। वे य इस कार जा रहे ह? ।। व र उवाच नकृत या प ते पु ै ते रा ये धनेषु च । न धमा चलते बु धमराज य धीमतः ।। १० ।। व र बोले—महाराज! य प आपके पु ने छलपूण बताव कया है। पा डव का रा य और धन सब कुछ चला गया है तो भी परम बु मान् धमराज यु ध रक बु धमसे वच लत नह हो रही है ।। १० ।। योऽसौ राजा घृणी न यं धातरा ेषु भारत । नकृ या ं शतः ोधा ो मीलय त लोचने ।। ११ ।। भारत! राजा यु ध र आपके पु पर सदा दयाभाव बनाये रखते थे, कतु इ ह ने छलपूण जूएका आ य लेकर उ ह रा यसे वं चत कया है, इससे उनके मनम बड़ा ोध है और इसी लये वे अपनी आँख को नह खोलते ह ।। नाहं जनं नदहेयं ् वा घोरेण च ुषा । स पधाय मुखं राजा त माद् ग छ त पा डवः ।। १२ ।। ‘म भयानक से दे खकर कसी ( नरपराधी) मनु यको भ म न कर डालूँ’ इसी भयसे पा डु पु राजा यु ध र अपना मुँह ढँ ककर जा रहे ह ।। १२ ।। यथा च भीमो ज त त मे नगदतः शृणु । बा ोबले ना त समो ममे त भरतषभ ।। १३ ।। अब भीमसेन जस कार चल रहे ह, उसका रह य बताता ँ, सु नये! भरत े ! उ ह इस बातका अ भमान है क बा बलम मेरे समान सरा कोई नह है ।। १३ ।। बा वशालौ क ृ वासौ तेन भीमोऽ प ग छ त । बा वदशयन् राजन् बा वणद पतः ।। १४ ।। चक षन् कम श ु यो बा ानु पतः । ी

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इसी लये वे अपनी वशाल भुजा क ओर दे खते ए या ा करते ह। राजन्! अपने बा बल पी वैभवपर उ ह गव है। अतः वे अपनी दोन भुजाएँ दखाते ए श ु से बदला लेनेके लये अपने बा बलके अनु प ही परा म करना चाहते ह ।। १४ ।। दश छरस पातान् कु तीपु ोऽजुन तदा ।। १५ ।। सकता वपन् स साची राजानमनुग छ त । अस ाः सकता त य यथा स त भारत । अस ं शरवषा ण तथा मो य त श ुषु ।। १६ ।। कु तीपु स साची अजुन उस समय राजाके पीछे -पीछे जो बालू बखेरते ए या ा कर रहे थे, उसके ारा वे श ु पर बाण बरसानेक अ भलाषा करते थे। भारत! इस समय उनके गराये ए बालूके कण जैसे आपसम संस न होते ए लगातार गरते ह, उसी कार वे श ु पर पर पर संस न होनेवाले असं य बाण क वषा करगे ।। १५-१६ ।। न मे क द् वजानीया मुखम े त भारत । मुखमा ल य तेनासौ सहदे वोऽ प ग छ त ।। १७ ।। भारत! ‘आज इस दनम कोई मेरे मुँहको पहचान न ले’ यही सोचकर सहदे व अपने मुँहम म पोतकर जा रहे ह ।। १७ ।। नाहं मनां याददे यं माग ीणा म त भो । पांसू ल तसवा ो नकुल तेन ग छ त ।। १८ ।। भो! ‘मागम म य का च न चुरा लूँ’ इस भयसे नकुल अपने सारे अंग म धूल लगाकर या ा करते ह ।। १८ ।। एकव ा दती मु केशी रज वला । शो णतेना वसना ौपद वा यम वीत् ।। १९ ।। ौपद के शरीरपर एक ही व था, उसके बाल खुले ए थे, वह रज वला थी और उसके कपड़ म र (रज)-का दाग लगा आ था, उसने रोते ए यह बात कही थी ।। १९ ।। य कृतेऽह मदं ा ता तेषां वष चतुदशे । हतप यो हतसुता हतब धुजन याः ।। २० ।। ब शो णत द धा यो मु केशयो रज वलाः । एवं कृतोदका भायाः वे य त गजा यम् ।। २१ ।। ‘ जनके अ यायसे आज म इस दशाको प ँची ँ, आजके चौदहव वषम उनक याँ भी अपने प त, पु और ब धु-बा धव के मारे जानेसे उनक लाश के पास लोट-लोटकर रोयगी और अपने अंग म र तथा धूल लपेटे, बाल खोले ए, अपने सगे-स ब धय को तलांज ल दे इसी कार ह तनापुरम वेश करगी’ ।। २०-२१ ।। कृ वा तु नैऋतान् दभान् धीरो धौ यः पुरो हतः । सामा न गायन् या या न पुरतो या त भारत ।। २२ ।। ी















भारत! धीर वभाववाले पुरो हत धौ यजी कुश का अ भाग नैऋ यकोणक ओर करके यमदे वतास ब धी साम-म का गान करते ए पा डव के आगे-आगे जा रहे ह ।। हतेषु भारते वाजौ कु णां गुरव तदा । एवं सामा न गा य ती यु वा धौ योऽ प ग छ त ।। २३ ।। धौ यजी यह कहकर गये थे क यु म कौरव के मारे जानेपर उनके गु भी इसी कार कभी सामगान करगे ।। हा हा ग छ त नो नाथाः समवे वमी शम् । अहो धक् कु वृ ानां बालाना मव चे तम् ।। २४ ।। रा े यः पा डु दायादाँ लोभा वासय त ये । अनाथाः म वयं सव वयु ाः पा डु न दनैः ।। २५ ।। वनीतेषु लुधेषु का ी तः कौरवेषु नः । इ त पौराः सु ःखाताः ोश त म पुनः पुनः ।। २६ ।। महाराज! उस समय नगरके लोग अ य त ःखसे आतुर हो बार-बार च लाकर कह रहे थे क ‘हाय! हाय! हमारे वामी पा डव चले जा रहे ह। अहो! कौरव म जो बड़े-बूढ़े लोग ह, उनक यह बालक क -सी चे ा तो दे खो। ध कार है उनके इस बतावको! ये कौरव लोभवश महाराज पा डु के पु को रा यसे नकाल रहे ह। इन पा डु पु से वयु होकर हम सब लोग आज अनाथ हो गये। इन लोभी और उ ड कौरव के त हमारा ेम कैसे हो सकता है? ।। २४—२६ ।। एवमाकार ल ै ते वसायं मनोगतम् । कथय त कौ तेया वनं ज मुमन वनः ।। २७ ।। महाराज! इस कार मन वी कु तीपु अपनी आकृ त एवं च के ारा अपने आ त रक न यको कट करते ए वनको गये ह ।। २७ ।। एवं तेषु नरायेषु नय सु गजसा यात् । अन े व ुत ासन् भू म समक पत ।। २८ ।। रा र सदा द यमपव ण वशा पते । उ का चा यपस ेन पुरं कृ वा शीयत ।। २९ ।। ह तनापुरसे उन नर े पा डव के नकलते ही बना बादलके बजली गरने लगी, पृ वी काँप उठ । राजन्! बना पव (अमाव या)-के ही रा ने सूयको स लया था और नगरको दाय रखकर उ का गरी थी ।। याहर त ादा गृ गोमायुवायसाः । दे वायतनचै येषु ाकारा ालकेषु च ।। ३० ।। गीध, गीदड़ और कौवे आ द मांसाहारी ज तु नगरके म दर , दे ववृ , चहारद वारी तथा अट् टा लका पर मांस और ही आ द लाकर गराने लगे थे ।। ३० ।। एवमेते महो पाताः ा रासन् रासदाः । भरतानामभावाय राजन् म ते तव ।। ३१ ।। े

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राजन्! इस कार आपक म णाके कारण ऐसे-ऐसे अपशकुन प द य एवं महान् उ पात कट ए ह, जो भरतवं शय के वनाशक सूचना दे रहे ह ।। ३१ ।। वैश पायन उवाच एवं वदतोरेव तयो त वशा पते । धृतरा य रा व र य च धीमतः ।। ३२ ।। नारद सभाम ये कु णाम तः थतः । मह ष भः प रवृतो रौ ं वा यमुवाच ह ।। ३३ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! इस कार राजा धृतरा और बु मान् व र जब दोन वहाँ बातचीत कर रहे थे, उसी समय सभाम मह षय से घरे ए दे व ष नारद कौरव के सामने आकर खड़े हो गये और यह भयंकर वचन बोले— ।। ३२-३३ ।। इत तुदशे वष वन य तीह कौरवाः । य धनापराधेन भीमाजुनबलेन च ।। ३४ ।। ‘आजसे चौदहव वषम य धनके अपराधसे भीम और अजुनके परा म ारा कौरवकुलका नाश हो जायगा’ ।। इ यु वा दवमा य म तरधीयत । ा यं सु वपुलां ब द् दे व षस मः ।। ३५ ।। ऐसा कहकर वशाल तेज धारण करनेवाले दे व ष- वर नारद आकाशम जाकर सहसा अ तधान हो गये ।। (धृतरा उवाच कम ुवन् नाग रकाः क वै जानपदा जनाः । म ं त वेन चाच व ः सवमशेषतः ।। धृतरा ने पूछा— व र! जब पा डव वनको जाने लगे, उस समय नगर और दे शके लोग या कह रहे थे, ये सब बात मुझे पूण पसे ठ क-ठ क बताओ। व र उवाच ा णाः या वै याः शू ा येऽ ये वद यथ । त छृ णु व महाराज व यते च मया तव ।। व र बोले—महाराज! ा ण, य, वै य, शू तथा अ यलोग इस घटनाके स ब धम जो कुछ कहते ह, वह सु नये, म आपसे सब बात बता रहा ँ। हा हा ग छ त नो नाथाः समवे वमी शम् । इ त पौराः सु ःखाताः शोच त म सम ततः ।। पा डव के जाते समय सम त पुरवासी ःखसे आतुर हो सब ओर शोकम डू बे ए थे और इस कार कह रहे थे—‘हाय! हाय! हमारे वामी, हमारे र क वनम चले जा रहे ह। भाइयो! दे खो, धृतराक े पु का यह कैसा अ याय है?’ तद मवाकूजं गतो सव मवाभवत् । ी

नगरं हा तनपुरं स ीवृ कुमारकम् ।। ी, बालक और वृ स हत सारा ह तनापुर नगर हषर हत, श दशू य तथा उ सवहीन-सा हो गया। सव चासन् न साहा ा धना बा धता यथा ।। पाथात् त नरा न यं च ताशोकपरायणाः । त त कथां च ु ः समासा पर परम् ।। सब लोग कु तीपु के लये नर तर च ता एवं शोकम नम न हो उ साह खो बैठे थे। सबक दशा रो गय के समान हो गयी थी। सब एक- सरेसे मलकर जहाँ-तहाँ पा डव के वषयम ही वातालाप करते थे। वनं गते धमराजे ःखशोकपरायणाः । बभूवुः कौरवा वृ ा भृशं शोकेन पी डताः ।। धमराजके वनम चले जानेपर सम त वृ कौरव भी अ य त शोकसे थत हो ःख और च ताम नम न हो गये। ततः पौरजनः सवः शोच ा ते जना धपम् । कुवाणा कथा त ा णाः पा थवं त ।। तदन तर सम त पुरवासी राजा यु ध रके लये शोकाकुल हो गये। उस समय वहाँ ा णलोग राजा यु ध रके वषयम न नां कत बात करने लगे। ा णा ऊचुः कथं नु राजा धमा मा वने वस त नजने । त यानुजा ते न यं कृ णा च पदा मजा ।। सुखाहा प च ःखाता कथं वस त सा वने ।। ा ण ने कहा—हाय! धमा मा राजा यु ध र और उनके भाई नजन वनम कैसे रहगे? तथा पदकुमारी कृ णा तो सुख भोगनेके ही यो य है, वह ःखसे आतुर हो वनम कैसे रहेगी। व र उवाच एवं पौरा व ा सदाराः सहपु काः । मर तः पा डवान् सव बभूवुभृश ःखताः ।। व रजी कहते ह—राजन्! इस कार पुरवासी ा ण अपनी य और पु के साथ पा डव का मरण करते ए ब त ःखी हो गये। आ व ा इव श ेण ना यन दन् कथंचन । स भा यमाणा अ प ते न कं चत् यपूजयन् ।। श के आघातसे घायल ए मनु य क भाँ त वे कसी कार सुखी न हो सके। बात कहनेपर भी वे कसीको आदरपूवक उ र नह दे ते थे। न भु वा न श य वा ते दवा वा य द वा न श । शोकोपहत व ाना न सं ा इवाभवन् ।। े ो ो औ ी ी ो े

उ ह ने दन अथवा रातम न तो भोजन कया और न न द ही ली; शोकके कारण उनका सारा व ान आ छा दत हो गया था। वे सब-के-सब अचेत-से हो रहे थे। यदव था बभूवाता यो या नगरी पुरा । रामे वनं गते ःखाद्धृतरा ये सल मणे ।। तदव थं बभूवातम ेदं गजसा यम् । गते पाथ वनं ःखाद्धृतरा ये सहानुजैः ।। जैसे ेतायुगम रा यका अपहरण हो जानेपर ल मणस हत ीरामच जीके वनम चले जानेके बाद अयो या नगरी ःखसे अ य त आतुर हो बड़ी रव थाको प ँच गयी थी, वही दशा रा यके अपहरण हो जानेपर भाइय स हत यु ध रके वनम चले जानेसे आज हमारे इस ह तनापुरक हो गयी है।

वैश पायन उवाच व र य वचः ु वा नागर य गरं च वै । भूयो मुमोह शोका च धृतरा ः सबा धवः ।।) वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! व रका कथन और पुरवा सय क कही ई बात सुनकर ब धु-बा धव स हत राजा धृतरा पुनः शोकसे मू छ त हो गये। ततो य धनः कणः शकु न ा प सौबलः । ोणं पमम य त रा यं चा मै यवेदयन् ।। ३६ ।। तब य धन, कण और सुबलपु शकु नने ोणको अपना प (आ य) माना और स पूण रा य उनके चरण म सम पत कर दया ।। ३६ ।। अथा वीत् ततो ोणो य धनममषणम् । ःशासनं च कण च सवानेव च भारतान् ।। ३७ ।। उस समय ोणाचायने अमषशील य धन, ःशासन, कण तथा अ य सब भरतवं शय से कहा— ।। ३७ ।। अव यान् पा डवान् ा दवपु ान् जातयः । अहं वै शरणं ा तान् वतमानो यथाबलम् ।। ३८ ।। ग ता सवा मना भ या धा रा ान् सराजकान् । नो सहेयं प र य ुं दै वं ह बलव रम् ।। ३९ ।। ‘पा डव दे वता के पु ह, अतः ा णलोग उ ह अव य बतलाते ह। म यथाश स पूण दयसे तु हारे अनुकूल य न करता आ तु हारा साथ ँ गा। भ पूवक अपनी शरणम आये ए इन राजा स हत धृतरापु का प र याग करनेका साहस नह कर सकता। दै व ही सबसे बल है ।। ३८-३९ ।। धमतः पा डु पु ा वै वनं ग छ त न जताः । ते च ादश वषा ण वने व य त पा डवाः ।। ४० ।। ‘पा डव जूएम परा जत होकर धमके अनुसार वनम गये ह। वे वहाँ बारह वष तक रहगे ।। ४० ।। ो

च रत चया ोधामषवशानुगाः । वैरं नयात य य त महद् ःखाय पा डवाः ।। ४१ ।। ‘वनम पूण पसे चयका पालन करके जब वे ोध और अमषके वशीभूत हो यहाँ लौटगे, उस समय वैरका बदला अव य लगे। उनका वह तीकार हमारे लये महान् ःखका कारण होगा ।। ४१ ।। मया च ं शतो राजन् पदः सख व हे । पु ाथमयजद् राजा वधाय मम भारत ।। ४२ ।। ‘राजन्! मने मै ीके वषयको लेकर कलह ार भ होनेपर राजा पदको उनके रा यसे कया था; भारत! इससे ःखी होकर उ ह ने मेरे वधके लये पु ा त करनेक इ छासे एक य का आयोजन कया ।। ४२ ।। याजोपयाजतपसा पु ं लेभे स पावकात् । धृ ु नं ौपद च वेद म यात् सुम यमाम् ।। ४३ ।। ‘याज और उपयाजक तप यासे उ ह ने अ नसे धृ ु न और वेद के म यभागसे सु दरी ौपद को ा त कया ।। धृ ु न तु पाथानां यालः स ब धतो मतः । पा डवानां यरत त मा मां भयमा वशत् ।। ४४ ।। ‘धृ ु न तो स ब धक से कु तीपु का साला ही है, अतः सदा उनका य करनेम लगा रहता है, उसीसे मुझे भय है’ ।। ४४ ।। वालावण दे वद ो धनु मान् कवची शरी । म यधमतया त माद मे सा वसो महान् ।। ४५ ।। ‘उसके शरीरक का त अ नक वालाके समान उ ा सत होती है। वह दे वताका दया आ पु है और धनुष, बाण तथा कवचके साथ कट आ है। मरणधमा मनु य होनेके कारण मुझे अब उससे महान् भय लगता है ।। ४५ ।। गतो ह प तां तेषां पाषतः परवीरहा । रथा तरथसं यायां योऽ णीरजुनो युवा ।। ४६ ।। सृ ाणो भृशतरं तेन चेत् संगमो मम । कम यद् ःखम धकं परमं भु व कौरवाः ।। ४७ ।। ‘श ुवीर का संहार करनेवाला पदकुमार धृ ु न पा डव के प का पोषक हो गया है। र थय और अ तर थय क गणनाम जसका नाम सबसे पहले लया जाता है, वह त ण वीर अजुन धृ ु नके लये, य द मेरे साथ उसका यु आ तो, लड़कर ाणतक दे नेके लये उ त हो जायगा। कौरवो! (अजुनके साथ मुझे लड़ना पड़े) इस पृ वीपर इससे बढ़कर महान् ःख मेरे लये और या हो सकता है? ।। ४६-४७ ।। धृ ु नो ोणमृ यु र त व थतं वचः । म धाय ुतोऽ येष लोके चा य त व ुतः ।। ४८ ।। ‘धृ ु न ोणक मौत है, यह बात सव फैल चुक है। मेरे वधके लये ही उसका ज म आ है। यह भी सब लोग ने सुन रखा है। धृ ु न वयं भी संसारम अपनी वीरताके े ै

लये व यात है ।। ४८ ।। सोऽयं नूनमनु ा त व कृते काल उ मः । व रतं कु त ेयो नैतदे तावता कृतम् ।। ४९ ।। ‘तु हारे लये यह न य ही ब त उ म अवसर ा त आ है। शी ही अपने क याण-साधनम लग जाओ। पा डव को वनवास दे दे नेमा से तु हारा अभी स नह हो सकता ।। ४९ ।। मुत सुखमेवैतत् ताल छायेव हैमनी । यज वं च महाय ैभ गानीत द च ।। ५० ।। इत तुदशे वष महत् ा य यथ वैशसम् । ‘यह रा य तुमलोग के लये शीतकालम होनेवाली ताड़के पेड़क छायाके समान दो ही घड़ीतक सुख दे नेवाला है। अब तुम बड़े-बड़े य करो, मनमाने भोग भोगो और इ छानुसार दान कर लो। आजसे चौदहव वषम तु ह ब त बड़ी मार-काटका सामना करना पड़ेगा’ ।। ५० ।। ोण य वचनं ु वा धृतरा ोऽ वी ददम् ।। ५१ ।। ोणाचायक यह बात सुनकर धृतराने कहा— ।। ५१ ।। स यगाह गु ः पावतय पा डवान् । य द ते न नवत ते स कृता या तु पा डवाः । सश रथपादाता भोगव त पु काः ।। ५२ ।। ‘ व र! गु ोणाचायने ठ क कहा है। तुम पा डव को लौटा लाओ। य द वे न लौट तो वे अ -श से यु र थय और पैदल सेना से सुर त और भोग-साम ीसे स प हो स कारपूवक वनम मणके लये जायँ; य क वे भी मेरे पु ही ह’ ।। ५२ ।। इत

ीमहाभारते सभापव ण अनु ूतपव ण व रधृतरा ोणवा ये अशी ततमोऽ यायः ।। ८० ।। इस कार ीमहाभारत सभापवके अ तगत अनु ूतपवम व र, धृतरा और ोणक े वचन वषयक अ सीवाँ अ याय पूरा आ ।। ८० ।। (दा णा य अ धक पाठक े १५ ोक मलाकर कुल ६७ ोक ह)

एकाशी ततमोऽ यायः धृतरा क च ता और उनका संजयके साथ वातालाप वैश पायन उवाच वनं गतेषु पाथषु न जतेषु रोदरे । धृतरा ं महाराज तदा च ता समा वशत् ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! जब पा डव जूएम हारकर वनम चले गये, तब राजा धृतराको बड़ी च ता ई ।। १ ।। तं च तयानमासीनं धृतरा जने रम् । नः स तमनेका म त होवाच संजयः ।। २ ।। महाराज धृतराको लंबी साँस ख चते और उ न च होकर च ताम डू बे ए दे ख संजयने इस कार कहा ।। २ ।। संजय उवाच अवा य वसुस पूणा वसुधां वसुधा धप । ा य पा डवान् रा याद् राजन् कमनुशोच स ।। ३ ।। संजय बोले—पृ वीनाथ! यह धन-र न से स प वसुधाका रा य पाकर और पा डव को अपने दे शसे नकालकर अब आप य शोकम न हो रहे ह? ।। ३ ।। धृतरा उवाच अशो य वं कुत तेषां येषां वैरं भ व य त । पा डवैयु शौ डै ह बलव महारथैः ।। ४ ।। धृतरा ने कहा— जन लोग का यु कुशल बलवान् महारथी पा डव से वैर होगा, वे शोकम न ए बना कैसे रह सकते ह? ।। ४ ।। संजय उवाच तवेदं वकृतं राजन् महद् वैरमुप थतम् । वनाशो येन लोक य सानुब धो भ व य त ।। ५ ।। संजय बोले—राजन्! यह आपक अपनी ही क ई करतूत है, जससे यह महान् वैर उप थत आ है और इसीके कारण स पूण जगत्का सगे-स ब धय -स हत वनाश हो जायगा ।। ५ ।। वायमाणो ह भी मेण ोणेन व रेण च । पा डवानां यां भाया ौपद धमचा रणीम् ।। ६ ।। ा हणोदानयेहे त पु ो य धन तव । सूतपु ं सुम दा मा नल जः ा तका मनम् ।। ७ ।। ी















भी म, ोण और व रने बार-बार मना कया तो भी आपके मूढ़ और नल ज पु य धनने सूतपु ा तकामी-को यह आदे श दे कर भेजा क तुम पा डव क यारी प नी धमचा रणी ौपद को सभाम ले आओ ।। ६-७ ।। य मै दे वाः य छ त पु षाय पराभवम् । बु त यापकष त सोऽवाचीना न प य त ।। ८ ।। बु ौ कलुषभूतायां वनाशे समुप थते । अनयो नयसंकाशो दया ापसप त ।। ९ ।। दे वतालोग जस पु षको पराजय दे ना चाहते ह, उसक बु ही पहले हर लेते ह, इससे वह सब कुछ उलटा ही दे खने लगता है। वनाशकाल उप थत होनेपर जब बु म लन हो जाती है, उस समय अ याय ही यायके समान जान पड़ता है और वह दयसे कसी कार नह नकलता ।। ८-९ ।। अनथा ाथ पेण अथा ानथ पणः । उ त वनाशाय नूनं त चा य रोचते ।। १० ।। उस समय उस पु षके वनाशके लये अनथ ही अथ पसे और अथ भी अनथ पसे उसके सामने उप थत होते ह और न य ही अथ पम आया आ अनथ ही उसे अ छा लगता है ।। १० ।। न कालो द डमु य शरः कृ त त क य चत् । काल य बलमेतावद् वपरीताथदशनम् ।। ११ ।। काल डंडा या तलवार लेकर कसीका सर नह काटता। कालका बल इतना ही है क वह येक व तुके वषयम मनु यक वपरीत बु कर दे ता है ।। ११ ।। आसा दत मदं घोरं तुमुलं लोमहषणम् । पा चालीमपकष ः सभाम ये तप वनीम् ।। १२ ।। अयो नजां पवत कुले जातां वभावसोः । को नु तां सवधम ां प रभूय यश वनीम् ।। १३ ।। पयानयेत् सभाम ये वना ूतदे वनम् । ीध मणी वरारोहा शो णतेन प र लुता ।। १४ ।। एकव ाथ पा चाली पा डवान यवै त । हत वान् तरा यां तव ान् त यः ।। १५ ।। वहीनान् सवकामे यो दासभावमुपागतान् । धमपाशप र तानश ा नव व मे ।। १६ ।। पांचालराजकुमारी ौपद तप वनी है। उसका ज म कसी मानवी ीके गभसे नह आ है, वह अ नके कुलम उ प ई और अनुपम सु दरी है। वह सब धम को जाननेवाली तथा यश वनी है। उसे भरी सभाम ख चकर लानेवाले ने भयंकर तथा र गटे खड़े कर दे नेवाले घमासान यु क स भावना उ प कर द है। अधमपूवक जूआ खेलनेवाले य धनके सवा कौन है, जो ौपद को सभाम बुला सके। सु दर शरीरवाली पांचालराजकुमारी ीधमसे यु (रज वला) थी। उसका व र से सना आ था। वह ी ी े ी े ो े े

एक ही साड़ी पहने ए थी। उसने सभाम आकर पा डव को दे खा। उन पा डव के धन, रा य, व और ल मी सबका अपहरण हो चुका था। वे स पूण मनोवां छत भोग से वं चत हो दासभावको ा त हो गये थे। धमके ब धनम बँधे रहनेके कारण वे परा म दखानेम भी असमथ-से हो रहे थे ।। १२—१६ ।। ु ां चानहत कृ णां ःखतां कु संस द । य धन कण कटु का य यभाषताम् ।। १७ ।। उनक यह दशा दे खकर कृ णा ोध और ःखम डू ब गयी। वह तर कारके यो य कदा प न थी, तो भी कौरव क सभाम य धन और कणने उसे कटु वचन सुनाये ।। इ त सव मदं राज ाकुलं तभा त मे । राजन्! ये सारी बात मुझे महान् ःखको नम ण दे नेवाली जान पड़ती ह ।। १७ ।। धृतरा उवाच त याः कृपणच ु या द ेता प मे दनी ।। १८ ।। धृतरा ने कहा—संजय! ौपद के उन द नतापूण ने ारा यह सारी पृ वी द ध हो सकती थी ।। १८ ।। अ प शेषं भवेद पु ाणां मम संजय । भरतानां यः सवा गा धाया सह संगताः ।। १९ ।। ा ोशन् भैरवं त ् वा कृ णां सभागताम् । ध म ां धमप न च पयौवनशा लनीम् ।। २० ।। संजय! उसके अ भशापसे मेरे सभी पु का आज ही संहार हो जाता, परंतु उसने सब कुछ चुपचाप सह लया। जस समय प और यौवनसे सुशो भत होनेवाली पा डव क धमपरायणा धमप नी कृ णा सभाम लायी गयी, उस समय वहाँ उसे दे खकर भरतवंशक सभी याँ गा धारीके साथ मलकर बड़े भयानक वरसे वलाप एवं ची कार करने लग ।। १९-२० ।। जा भः सह संग य नुशोच त न यशः । अ नहो ा ण साया े न चाय त सवशः ।। २१ ।। ा णाः कु पता ासन् ौप ाः प रकषणे । ये सारी याँ जावगक य के साथ मलकर रात- दन सदा इसीके लये शोक करती रहती ह। उस दन ौपद का व ख चे जानेके कारण सब ा ण कु पत हो उठे थे, अतः सायंकाल हमारे घर म उ ह ने अ नहो तक नह कया ।। २१ ।। आसी ानको घोरो नघात महानभूत् ।। २२ ।। दव उ का ापत त रा ाकमुपा सत् । अपव ण महाघोरं जानां जनयन् भयम् ।। २३ ।। उस समय लयकालीन मेघ क भयानक गजनाके समान भारी आवाजके साथ बड़े जोरक आँधी चलने लगी। वपातका-सा अ य त ककश श द होने लगा। आकाशसे ँ

















उ काएँ गरने लग तथा रा ने बना पवके ही सूयको स लया और जाके लये अ य त घोर भय उप थत कर दया ।। २२-२३ ।। तथैव रथशालासु ा रासी ताशनः । वजा ा प शीय त भरतानामभूतये ।। २४ ।। इसी कार हमारी रथशाला म आग लग गयी और रथ क वजाएँ जलकर खाक हो गय , जो भरत-वं शय के लये अमंगलक सूवना दे नेवाली थ ।। २४ ।। य धन या नहो े ा ोशन् भैरवं शवाः । ता तदा यभाष त रासभाः सवतो दशः ।। २५ ।। य धनके अ नहो गृहम गीद ड़याँ आकर भयंकर वरसे ँआ- ँआ करने लग । उनक आवाज सुनते ही चार दशा म गधे रकने लगे ।। २५ ।। ा त त ततो भी मो ोणेन सह संजय । कृप सोमद बा क महामनाः ।। २६ ।। ततोऽहम ुवं त व रेण चो दतः । वरं ददा न कृ णायै काङ् तं यद् य द छ त ।। २७ ।। संजय! यह सब दे खकर ोणके साथ भी म, कृपाचाय, सोमद और महामना बा क वहाँसे उठकर चले गये। तब मने व रक ेरणासे वहाँ यह बात कही—‘म कृ णाको मनोवां छत वर ँ गा। वह जो कुछ चाहे, माँग सकती है’ ।। २६-२७ ।। अवृणोत् त पा चाली पा डवानामदासताम् । सरथान् सधनु कां ा यनु ा सषम यहम् ।। २८ ।। तब वहाँ पांचालीने यह वर माँगा क पा डवलोग दासभावसे मु हो जायँ। मने भी रथ और धनुष आ दके स हत पा डव को उनक सम त स प के साथ इ थ लौट जानेक आ ा दे द थी ।। २८ ।। अथा वी महा ा ो व रः सवधम वत् । एतद ता तु भरता यद् वः कृ णा सभां गता ।। २९ ।। यैषा पा चालराज य सुता सा ीरनु मा । पा चाली पा डवानेतान् दै वसृ ोपसप त ।। ३० ।। तदन तर सब धम के ाता परम बु मान् व रने कहा—‘भरतवं शयो! यह कृ णा जो तु हारी सभाम लायी गयी, यही तु हारे वनाशका कारण होगा। यह जो पांचालराजक पु ी है, वह परम उ म ल मी ही है। दे वता क आ ासे ही पांचाली इन पा डव क सेवा करती है ।। २९-३० ।। त याः पाथाः प र लेशं न ं य ते मषणाः । वृ णयो वा महे वासाः पा चाला वा महारथाः ।। ३१ ।। तेन स या भसंधेन वासुदेवेन र ताः । आग म य त बीभ सुः पा चालैः प रवा रतः ।। ३२ ।। ‘कु तीके पु अमषम भरे ए ह। ौपद को जो यहाँ इस कार लेश दया गया है, इसे वे कदा प सहन नह करगे। स य त भगवान् ीकृ णसे सुर त महान् धनुधर ी ी ी ी े े ी े े

वृ णवंशी अथवा महारथी पांचाल वीर भी इसे नह सहगे। अजुन पांचाल वीर से घरे ए अव य आयगे ।। ३१-३२ ।। तेषां म ये महे वासो भीमसेनो महाबलः । आग म य त धु वानो गदां द ड मवा तकः ।। ३३ ।। ‘उनके बीचम महाधनुधर महाबली भीमसेन ह गे, जो द डपा ण यमराजक भाँ त गदा घुमाते ए यु के लये आयगे ।। ३३ ।। ततो गा डीव नघ षं ु वा पाथ य धीमतः । गदावेगं च भीम य नालं सोढुं नरा धपाः ।। ३४ ।। ‘उस समय परम बु मान् अजुनके गा डीव धनुषक टं कार सुनकर और भीमसेनक गदाका महान् वेग दे खकर कोई भी राजा उनका सामना करनेम समथ न हो सकगे ।। ३४ ।। त मे रोचते न यं पाथः साम न व हः । कु यो ह सदा म ये पा डवान् बलव रान् ।। ३५ ।। ‘अतः मुझे तो पा डव के साथ सदा शा त बनाये रखनेक ही नी त अ छ लगती है। उनके साथ यु करना मुझे पसंद नह है। म पा डव को सदा ही कौरव से अ धक बलवान् मानता ँ ।। ३५ ।। तथा ह बलवान् राजा जरासंधो महा ु तः । बा हरणेनैव भीमेन नहतो यु ध ।। ३६ ।। ‘ य क महान् तेज वी और बलवान् राजा जरासंधको भीमसेनने बा पी श से ही यु म मार गराया था ।। त य ते शम एवा तु पा डवैभरतषभ । उभयोः प योयु ं यताम वशङ् कया ।। ३७ ।। ‘भरतवंश शरोमणे! अतः पा डव के साथ आपको शा त ही बनाये रखनी चा हये। दोन प के लये यही उ चत है। आप नःशंक होकर यही उपाय कर ।। ३७ ।। एवं कृते महाराज परं ेय वमा य स । एवं गाव गणे ा धमाथस हतं वचः ।। ३८ ।। उ वान् न गृहीतं वै मया पु हतै षणा ।। ३९ ।। ‘महाराज! ऐसा करनेपर आप परम क याणके भागी ह गे।’ संजय! इस कार व रने मुझसे धम और अथयु बात कही थ ; कतु पु का हत चाहनेवाला होकर भी मने उनक बात नह मानी ।। ३८-३९ ।। इत

ीमहाभारते शतसाहयां सं हतायां वैया स यां सभापव ण अनु ूतपव ण धृतरा संजयसंवादे एकाशी ततमोऽ यायः ।। ८१ ।। इस कार ास नमत ीमहाभारतनामक एक लाख ोक क सं हताम सभापवके अ तगत अनु ूतपवम धृतरासंजयसंवाद वषयक इ यासीवाँ अ याय पूरा आ ।। ८१ ।।

(

)

( सभापव स पूणम्)

।। ॐ

ीपरमा मने नमः

।।

नवेदन ‘महाभारत मा सक प ’ के इस प चम अङ् कम सभापव समा त होकर वनपवका आर भ हो रहा है। आ दपवक भाँ त सभापवम भी दा णा य पाठके उपयोगी ोक लये गये ह। वशेषतः अड़तीसव अ यायम भगवान्के अवतार का जो सं त और ीकृ णावतारका वशेष वणन दा णा य तय म उपल ध होता है, उस समे एक ही थलपर ७६१ ोक लये गये ह। भगवान्के च र -वणनके ये ोक अ य त उपयोगी, आव यक तथा मह वपूण ह। राजसूय य म भगवान् ीकृ णक अ पूजाके सम जब भी मजीने ब तसे संत-महा मा के मुखसे सुनी ई ीकृ णक म हमा बतायी, उस समय यु ध रके मनम उनके लीला-च र को सुननेक अ भलाषा जा त् हो उठ और उ ह के पूछनेपर भी मजीने व तारपूवक भगवान्क लीला का वणन कया। इकतालीसव अ यायके शशुपालके कथनपर यान दे नेसे भी उ स क अ नवाय आव यकता स होती है। य द भी मजीने भगवान्क पूतनावध, शकट-भंजन, तृणावत-उ ार, यमलाजुनभ, बकासुरवध, का लयदमन, केशी-अ र ासुर-वध और कंस-संहार आ द बाल-लीला का वणन न कया होता तो शशुपाल उनका नामो लेख कैसे कर सकता था; इससे स है क भी मजीने उस समय अव य ही व तारपूवक ीकृ णच रत सुनाये थे। वनपवके स भी बड़े ही मामक और उपादे य ह। पा डव क क स ह णुता, साहस, उ साह, धैय और संकटकालम भी धम-पालनक ढ़ता आ द बात सदा ही पढ़ने, मनन करने और जीवनम उतारने यो य ह। इस पवम अनेकानेक राज षय -मह षय के याग एवं तप यामय जीवनक झाँक दे खनेको मलती है। इसम तीथसेवन, दान, य , परोपकार, धमाचरण, स यपरायणता, याग, वैरा य, पा त य, तप या तथा स स आ दके मह वका ब त सु दर न पण है। शा तपवक भाँ त यह पव भी समादरणीय स पदे श से ही भरा है। नल-दमय ती स यवान्-सा व ी तथा रामायणक कथा भी इसीम आयी है। सभी य म यह पव पठनीय और माननीय है। स पादक—महाभारत

।। ॐ

ीपरमा मने नमः

।।

महाभारत-सार माता पतृसह ा ण पु दारशता न च । संसारे वनुभूता न या त या य त चापरे ।। ‘मनु य इस जगत्म हजार माता- पता तथा सैकड़ ी-पु के संयोग- वयोगका अनुभव कर चुके ह, करते ह और करते रहगे।’ हष थानसह ा ण भय थानशता न च । दवसे दवसे मूढमा वश त न प डतम् ।। ‘अ ानी पु षको त दन हषके हजार और भयके सैकड़ अवसर ा त होते रहते ह; क तु व ान् पु षके मनपर उनका कोई भाव नह पड़ता है।’ ऊ वबा वरौ येष न च क छृ णो त मे । धमादथ काम स कमथ न से ते ।। ‘म दोन हाथ ऊपर उठाकर पुकार-पुकारकर कह रहा ँ, पर मेरी बात कोई नह सुनता। धमसे मो तो स होता ही है; अथ और काम भी स होते ह तो भी लोग उसका सेवन य नह करते!’ न जातु कामा भया लोभाद् धम यजे जी वत या प हेतोः । न यो धमः सुख ःखे व न ये जीवो न यो हेतुर य व न यः ।। ‘कामनासे, भयसे, लोभसे अथवा ाण बचानेके लये भी धमका याग न करे। धम न य है और सुख- ःख अ न य। इसी कार जीवा मा न य है और उसके ब धनका हेतु अ न य।’ इमां भारतसा व ात थाय यः पठ े त् । स भारतफलं ा य परं ा धग छ त ।। ‘यह महाभारतका सारभूत उपदे श ‘भारत-सा व ी’ के नामसे स है। जो त दन सबेरे उठकर इसका पाठ करता है, वह स पूण महाभारतके अ ययनका फल पाकर पर परमा माको ा त कर लेता है।’ —महाभारत, वगारोहण० ५।६०—६४

3 3 ।।

ीह रः ।।

ीम मह ष वेद ास णीत (

महाभारत तीय ख ड)

[ वनपव और वराटपव] [ स च , सरल हद -अनुवादस हत]

वमेव माता च पता वमेव वमेव ब धु सखा वमेव । वमेव व ा वणं वमेव वमेव सव मम दे वदे व ।।

सं० २०७२ कुल मु ण

पं हवाँ पुनमु ण

३,२००

७७,६००

काशक—

गीता ेस, गोरखपुर—२७३००५

(गो ब फोन : web : गीता

दभवन-कायालय, कोलकाता का सं थान) (०५५१) २३३४७२१, २३३१२५०; फै स : (०५५१) २३३६९९७ gitapress. org e-mail : booksales@gitapress. org ेस काशन gitapressbookshop. in से online खरीद।

।। ीह रः ।।

वषय-सूची वनपव अ याय

वषय

( अर यपव) १- पा डव का वनगमन, पुरवा सय ारा उनका अनुगमन और यु ध रके अनुरोध करनेपर उनमसे ब त का लौटना तथा पा डव का माणको टतीथम रा वास २- धनके दोष, अ त थ-स कारक मह ा तथा क याणके उपाय के वषयम धमराज यु ध रसे ा ण तथा शौनकजीक बातचीत ३- यु ध रके ारा अ के लये भगवान् सूयक उपासना और उनसे अ यपा क ा त ४- व रजीका धृतरा को हतक सलाह दे ना और धृतराका होकर महलम चला जाना ५- पा डव का का यकवनम वेश और व रजीका वहाँ जाकर उनसे मलना और बातचीत करना ६- धृतराका संजयको भेजकर व रको वनसे बुलवाना और उनसे मा- ाथना ७- य धन, ःशासन, शकु न और कणक सलाह, पा डव का वध करनेके लये उनका वनम जानेक तैयारी तथा ासजीका आकर उनको रोकना ८ासजीका धृतरासे य धनक े अ यायको रोकनेके लये अनुरोध ९ासजीके ारा सुर भ और इ के उपा यानका वणन तथा उनका पा डव के त दया दखलाना १०ासजीका जाना, मै ेयजीका धृतरा और य धनसे पा डव के त स ावका अनुरोध तथा य धनके अ श वहारसे होकर उसे शाप दे ना

( कम रवधपव) ११- भीमसेनके ारा कम रके वधक कथा

( अजुना भगमनपव) १२- अजुन और ौपद के ारा भगवान् ीकृ णक तु त, ौपद का भगवान् ीकृ णसे अपने त कये गये अपमान और ःखका वणन और भगवान् ीकृ ण, अजुन एवं धृ ु नका उसे आ ासन दे ना १३- ीकृ णका जूएके दोष बताते ए पा डव पर आयी ई वप म अपनी अनुप थ तको कारण मानना े











े औ

१४-

ू के समय न प ँचनेम ीकृ णके ारा शा वके साथ यु करने और त सौभ वमानस हत उसे न करनेका सं त वणन १५- सौभनाशक व तृत कथाके संगम ारकाम यु स ब धी र ा मक तैया रय का वणन १६- शा वक वशाल सेनाके आ मणका यादव-सेना ारा तरोध, सा ब ारा ेमवृ क पराजय, वेगवान्का वध तथा चा दे ण ारा व व यदै यका वध एवं ु न ारा सेनाको आ ासन १७ु न और शा वका घोर यु १८- मू छाव थाम सार थके ारा रणभू मसे बाहर लाये जानेपर ु नका अनुताप और इसके लये सार थको उपाल भ दे ना १९ु नके ारा शा वक पराजय २०- ीकृ ण और शा वका भीषण यु २१- ीकृ णका शा वक मायासे मो हत होकर पुनः सजग होना २२- शा ववधोपा यानक समा त और यु ध रक आ ा लेकर ीकृ ण, धृ ु न तथा अ य सब राजा का अपने-अपने नगरको थान २३- पा डव का ै तवनम जानेके लये उ त होना और जावगक ाकुलता २४- पा डव का ै तवनम जाना २५- मह ष माक डेयका पा डव को धमका आदे श दे कर उ र दशाक ओर थान २६- द भपु बकका यु ध रको ा ण का मह व बतलाना २७- ौपद का यु ध रसे उनके श ु वषयक ोधको उभाड़नेके लये संतापपूण वचन २८- ौपद ारा ाद-ब ल-संवादका वणन—तेज और माके अवसर २९- यु ध रके ारा ोधक न दा और मा-भावक वशेष शंसा ३०- ःखसे मो हत ौपद का यु ध रक बु , धम एवं ई रके यायपर आ ेप ३१- यु ध र ारा ौपद के आ ेपका समाधान तथा ई र, धम और महापु ष के आदरसे लाभ और अनादरसे हा न ३२- ौपद का पु षाथको धान मानकर पु षाथ करनेके लये जोर दे ना ३३- भीमसेनका पु षाथक शंसा करना और यु ध रको उ े जत करते ए यधमके अनुसार यु छे ड़नेका अनुरोध ३४- धम और नी तक बात कहते ए यु ध रक अपनी त ाके पालन प धमपर ही डटे रहनेक घोषणा ३५- ःखत भीमसेनका यु ध रको यु के लये उ सा हत करना ३६- यु ध रका भीमसेनको समझाना, ासजीका आगमन और यु ध रको त मृ त व ा दान तथा पा डव का पुनः का यकवनगमन ३७- अजुनका सब भाई आ दसे मलकर इ क ल पवतपर जाना एवं इ का दशन करना

( ै

)

( कैरातपव) ३८- अजुनक उ तप या और उसके वषयम ऋ षय का भगवान् शंकरके साथ वातालाप ३९- भगवान् शंकर और अजुनका यु , अजुनपर उनका स होना एवं अजुनके ारा भगवान् शंकरक तु त ४०- भगवान् शंकरका अजुनको वरदान दे कर अपने धामको थान ४१- अजुनके पास द पाल का आगमन एवं उ ह द ा - दान तथा इ का उ ह वगम चलनेका आदे श दे ना

( इ लोका भगमनपव) ४२४३४४४५४६-

अजुनका हमालयसे वदा होकर मात लके साथ वगलोकको थान अजुन ारा दे वराज इ का दशन तथा इ सभाम उनका वागत अजुनको अ और संगीतक श ा च सेन और उवशीका वातालाप उवशीका कामपी ड़त होकर अजुनके पास जाना और उनके अ वीकार करनेपर उ ह शाप दे कर लौट आना ४७- लोमश मु नका वगम इ और अजुनसे मलकर उनका संदेश ले का यकवनम आना ४८- ःखत धृतराका संजयक े स मुख अपने पु के लये च ता करना ४९- संजयके ारा धृतराक बात का अनुमोदन और धृतराका संताप ५०- वनम पा डव का आहार ५१- संजयका धृतराक े त ीकृ णा दके ारा क ई य धना दके वधक त ाका वृ ा त सुनाना

( नलोपा यानपव) ५२- भीमसेन-यु ध र-संवाद, बृहद का आगमन तथा यु ध रके पूछनेपर बृहद के ारा नलोपा यानक तावना ५३- नल-दमय तीके गुण का वणन, उनका पर पर अनुराग और हंसका दमय ती और नलको एक- सरेके संदेश सुनाना ५४- वगम नारद और इ क बातचीत, दमय तीके वयंवरके लये राजा तथा लोकपाल का थान ५५- नलका त बनकर राजमहलम जाना और दमय तीको दे वता का संदेश सुनाना ५६- नलका दमय तीसे वातालाप करना और लौटकर दे वता को उसका स दे श सुनाना ी











५७- वयंवरम दमय ती ारा नलका वरण, दे वता का नलको वर दे ना, दे वता और राजा का थान, नल-दमय तीका ववाह एवं नलका य ानु ान और संतानो पादन ५८- दे वता के ारा नलके गुण का गान और उनके नषेध करनेपर भी नलके व क लयुगका कोप ५९- नलम क लयुगका वेश एवं नल और पु करक ूत डा, जा और दमय तीके नवारण करनेपर भी राजाका ूतसे नवृ नह होना ६०- ःखत दमय तीका वा णयके ारा कुमार-कुमारीको कु डनपुर भेजना ६१- नलका जूएम हारकर दमय तीके साथ वनको जाना और प य ारा आपद् त नलके व का अपहरण ६२- राजा नलक च ता और दमय तीको अकेली सोती छोड़कर उनका अ य थान ६३- दमय तीका वलाप तथा अजगर एवं ाधसे उसके ाण एवं सती वक र ा तथा दमय तीके पा त यधमके भावसे ाधका वनाश ६४- दमय तीका वलाप और लाप, तप वय ारा दमय तीको आ ासन तथा उसक ापा रय -के दलसे भट ६५- जंगली हा थय ारा ापा रय के दलका सवनाश तथा ःखत दमय तीका चे दराजके भवनम सुखपूवक नवास ६६- राजा नलके ारा दावानलसे कक टक नागक र ा तथा नाग ारा नलको आ ासन ६७- राजा नलका ऋतुपणके यहाँ अ ा य के पदपर नयु होना और वहाँ दमय तीके लये नर तर च तत रहना तथा उनक जीवलसे बातचीत ६८- वदभराजका नल-दमय तीक खोजके लये ा ण को भेजना, सुदेव ा णका चे दराजके भवनम जाकर मन-ही-मन दमय तीके गुण का च तन और उससे भट करना ६९- दमय तीका अपने पताके यहाँ जाना और वहाँसे नलको ढूँ ढ़नेके लये अपना संदेश दे कर ा ण को भेजना ७०- पणादका दमय तीसे बा क पधारी नलका समाचार बताना और दमय तीका ऋतुपणके यहाँ सुदेव नामक ा णको वयंवरका संदेश दे कर भेजना ७१- राजा ऋतुपणका वदभदे शको थान, राजा नलके वषयम वा णयका वचार और बा कक अ त अ संचालन-कलासे वा णय और ऋतुपणका भा वत होना ७२- ऋतुपणके उ रीय व गरने और बहेड़ेके वृ के फल को गननेके वषयम नलके साथ ऋतुपणक बातचीत, ऋतुपणसे नलको ूत- व ाके रह यक ा त और उनके शरीरसे क लयुगका नकलना े







७३- ऋतुपणका कु डनपुरम वेश, दमय तीका वचार तथा भीमके ारा ऋतुपणका वागत ७४- बा क-के शनी-संवाद ७५- दमय तीके आदे शसे के शनी ारा बा कक परी ा तथा बा कका अपने लड़केलड़ कय को दे खकर उनसे ेम करना ७६- दमय ती और बा कक बातचीत, नलका ाक और नल-दमय ती- मलन ७७- नलके कट होनेपर वदभनगरम महान् उ सवका आयोजन, ऋतुपणके साथ नलका वातालाप और ऋतुपणका नलसे अ व ा सीखकर अयो या जाना ७८- राजा नलका पु करको जुएम हराना और उसको राजधानीम भेजकर अपने नगरम वेश करना ७९- राजा नलके आ यानके क तनका मह व, बृहद मु नका यु ध रको आ ासन दे ना तथा ूत व ा और अ व ाका रह य बताकर जाना

( तीथया ापव) ८०- अजुनके लये ौपद स हत पा डव क च ता ८१- यु ध रके पास दे व ष नारदका आगमन और तीथया ाके फलके स ब धम पूछनेपर नारदजी- ारा भी म-पुल य-संवादक तावना ८२- भी मजीके पूछनेपर पुल यजीका उ ह व भ तीथ क या ाका माहा य बताना ८३- कु े क सीमाम थत अनेक तीथ क मह ाका वणन ८४- नाना कारके तीथ क म हमा ८५- गंगासागर, अयो या, च कूट, याग आ द व भ तीथ क म हमाका वणन और गंगाका माहा य ८६- यु ध रका धौ य मु नसे पु य तपोवन, आ म एवं नद आ दके वषयम पूछना ८७- धौ य ारा पूव दशाके तीथ का वणन ८८- धौ यमु नके ारा द ण दशावत तीथ का वणन ८९- धौ य ारा प म दशाके तीथ का वणन ९०- धौ य ारा उ र दशाके तीथ का वणन ९१- मह ष लोमशका आगमन और यु ध रसे अजुनके पाशुपत आ द द ा क ा तका वणन तथा इ का संदेश सुनाना ९२- मह ष लोमशके मुखसे इ और अजुनका संदेश सुनकर यु ध रका स होना और तीथया ाके लये उ त हो अपने अ धक सा थय को वदा करना ९३- ऋ षय को नम कार करके पा डव का तीथ-या ाके लये वदा होना ९४- दे वता और धमा मा राजा का उदाहरण दे कर मह ष लोमशका यु ध रको अधमसे हा न बताना और तीथया ाज नत पु यक म हमाका वणन करते ए आ ासन दे ना ै ी ी औ

९५- पा डव का नै मषार य आ द तीथ म जाकर याग तथा गयातीथम जाना और गय राजाके महान् य क म हमा सुनना ९६- इ वल और वाता पका वणन, मह ष अग यका पतर के उ ारके लये ववाह करनेका वचार तथा वदभराजका मह ष अग यसे एक क या पाना ९७- मह ष अग यका लोपामु ासे ववाह, गंगा ारम तप या एवं प नीक इ छासे धनसं हके लये थान ९८- धन ा त करनेके लये अग यका ुतवा, न और सद यु आ दके पास जाना ९९- अग यजीका इ वलके यहाँ धनके लये जाना, वाता प तथा इ वलका वध, लोपामु ाको पु क ा त तथा ीरामके ारा हरे ए तेजक परशुरामजीको तीथ नान ारा पुनः ा त १००- वृ ासुरसे त दे वता को मह ष दधीचका अ थदान एवं वका नमाण १०१- वृ ासुरका वध और असुर क भयंकर म णा १०२- कालेय ारा तप वय , मु नय और चा रय आ दका संहार तथा दे वता ारा भगवान् व णुक तु त १०३- भगवान् व णुके आदे शसे दे वता का मह ष अग यके आ मपर जाकर उनक तु त करना १०४- अग यजीका व यपवतको बढ़नेसे रोकना और दे वता के साथ सागर-तटपर जाना १०५- अग यजीके ारा समु पान और दे वता का कालेय दै य का वध करके ाजीसे समु को पुनः भरनेका उपाय पूछना १०६- राजा सगरका स तानके लये तप या करना और शवजीके ारा वरदान पाना १०७- सगरके पु क उ प , साठ हजार सगरपु का क पलक ोधा नसे भ म होना, असमंजसका प र याग, अंशुमान्के य नसे सगरके य क पू त, अंशुमान्से दलीपको और दलीपसे भगीरथको रा यक ा त १०८- भगीरथका हमालयपर तप या ारा गंगा और महादे वजीको स करके उनसे वर ा त करना १०९- पृ वीपर गंगाजीके उतरने और समु को जलसे भरनेका ववरण तथा सगरपु का उ ार ११०- न दा तथा कौ शक का माहा य, ऋ यशृंग मु नका उपा यान और उनको अपने रा यम लानेके लये राजा लोमपादका य न १११- वे याका ऋ यशृंगको लुभाना और वभा डक मु नका आ मपर आकर अपने पु क च ताका कारण पूछना ११२- ऋ यशृंगका पताको अपनी च ताका कारण बताते ए चारी पधारी वे याके व प और आचरणका वणन ो









११३- ऋ यशृंगका अंगराज लोमपादके यहाँ जाना, राजाका उ ह अपनी क या दे ना, राजा ारा वभा डक मु नका स कार तथा उनपर मु नका स होना ११४- यु ध रका कौ शक , गंगासागर एवं वैतरणी नद होते ए महे पवतपर गमन ११५- अकृत णके ारा यु ध रसे परशुरामजीके उपा यानके संगम ऋचीक मु नका गा ध-क याके साथ ववाह और भृगऋ ु षक कृपासे जमद नक उ प का वणन ११६- पताक आ ासे परशुरामजीका अपनी माताका म तक काटना और उ ह के वरदानसे पुनः जलाना, परशुरामजी ारा कातवीय-अजुनका वध और उसके पु ारा जमद न मु नक ह या ११७- परशुरामजीका पताके लये वलाप और पृ वीको इ क स बार नः य करना एवं महाराज यु ध रके ारा परशुरामजीका पूजन ११८- यु ध रका व भ तीथ म होते ए भास े म प ँचकर तप याम वृ होना और यादव का पा डव से मलना ११९- भासतीथम बलरामजीके पा डव के त सहानुभू तसूचक ःखपूण उद्गार १२०- सा य कके शौयपूण उद्गार तथा यु ध र ारा ीकृ णके वचन का अनुमोदन एवं पा डव का पयो णी नद के तटपर नवास १२१- राजा गयके य क शंसा, पयो णी, वै य पवत और नमदाके माहा य तथा यवन-सुक याके च र का आर भ १२२- मह ष यवनको सुक याक ा त १२३- अ नीकुमार क कृपासे मह ष यवनको सु दर प और युवाव थाक ा त १२४- शया तके य म यवनका इ पर कोप करके वको त भत करना और उसे मारनेके लये मदासुरको उ प करना १२५- अ नीकुमार का य म भाग वीकार कर लेनेपर इ का संकटमु होना तथा लोमशजीके ारा अ या य तीथ के मह वका वणन १२६- राजा मा धाताक उ प और सं त च र १२७- सोमक और ज तुका उपा यान १२८- सोमकको सौ पु क ा त तथा सोमक और पुरो हतका समान पसे नरक और पु यलोक का उपभोग करना १२९- कु े के ारभूत ल वण नामक यमुना-तीथ एवं सर वतीतीथक म हमा १३०- व भ तीथ क म हमा और राजा उशीनरक कथाका आर भ १३१- राजा उशीनर ारा बाजको अपने शरीरका मांस दे कर शरणम आये ए कबूतरके ाण क र ा करना १३२- अ ाव के ज मका वृ ा त और उनका राजा जनकके दरबारम जाना १३३- अ ाव का ारपाल तथा राजा जनकसे वातालाप १३४- ब द और अ ाव का शा ाथ, ब द क पराजय तथा समंगाम नानसे अ ाव के अंग का सीधा होना े ी ै

१३५- कद मल े आ द तीथ क म हमा, रै य एवं भर ाजपु यव त मु नक कथा तथा ऋ षय का अ न करनेके कारण मेधावीक मृ यु १३६- यव तका रै यमु नक पु वधूके साथ भचार और रै यमु नके ोधसे उ प रा सके ारा उसक मृ यु १३७- भर ाजका पु शोकसे वलाप करना, रै यमु नको शाप दे ना एवं वयं अ नम वेश करना १३८- अवावसुक तप याके भावसे परावसुका ह यासे मु होना और रै य, भर ाज तथा यव त आ दका पुनज वत होना १३९- पा डव क उ राख ड-या ा और लोमशजी- ारा उसक गमताका कथन १४०- भीमसेनका उ साह तथा पा डव का कु ल दराज सुबा के रा यम होते ए ग धमादन और हमालय पवतको थान १४१- यु ध रका भीमसेनसे अजुनको न दे खनेके कारण मान सक च ता कट करना एवं उनके गुण का मरण करते ए ग धमादन पवतपर जानेका ढ़ न य करना १४२- पा डव ारा गंगाजीक व दना, लोमशजीका नरकासुरके वध और भगवान् वाराह ारा वसुधाके उ ारक कथा कहना १४३- ग धमादनक या ाके समय पा डव का आँधी-पानीसे सामना १४४- ौपद क मूछा, पा डव के उपचारसे उसका सचेत होना तथा भीमसेनके मरण करनेपर घटो कचका आगमन १४५- घटो कच और उसके सा थय क सहायतासे पा डव का ग धमादन पवत एवं बद रका मम वेश तथा बदरीवृ , नर-नारायणा म और गंगाका वणन १४६- भीमसेनका सौग धक कमल लानेके लये जाना और कदलीवनम उनक हनुमान्जीसे भट १४७- ीहनुमान् और भीमसेनका संवाद १४८- हनुमान्जीका भीमसेनको सं ेपसे ीरामका च र सुनाना १४९- हनुमान्जीके ारा चार युग के धम का वणन १५०- ीहनुमान्जीके ारा भीमसेनको अपने वशाल पका दशन और चार वण के धम का तपादन १५१- ीहनुमान्जीका भीमसेनको आ ासन और वदा दे कर अ तधान होना १५२- भीमसेनका सौग धक वनम प ँचना १५३- ोधवश नामक रा स का भीमसेनसे सरोवरके नकट आनेका कारण पूछना १५४- भीमसेनके ारा ोधवश नामक रा स क पराजय और ौपद के लये सौग धक कमल का सं ह करना १५५- भयंकर उ पात दे खकर यु ध र आ दक च ता और सबका ग धमादनपवतपर सौग धकवनम भीमसेनके पास प ँचना १५६- पा डव का आकाशवाणीके आदे शसे पुनः नर-नारायणा मम लौटना

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( जटासुरवधपव) १५७- जटासुरके ारा ौपद स हत यु ध र, नकुल, सहदे वका हरण तथा भीमसेन ारा जटासुर-का वध

( य यु पव) १५८- नर-नारायण-आ मसे वृषपवाके यहाँ होते ए राज ष आ षेणके आ मपर जाना १५९के पम आ षेणका यु ध रके त उपदे श १६०- पा डव का आ षेणके आ मपर नवास, ौपद के अनुरोधसे भीमसेनका पवतके शखरपर जाना और य तथा रा स से यु करके म णमान्का वध करना १६१- कुबेरका ग धमादन पवतपर आगमन और यु ध रसे उनक भट १६२- कुबेरका यु ध र आ दको उपदे श और सा वना दे कर अपने भवनको थान १६३- धौ यका यु ध रको मे पवत तथा उसके शखर पर थत ा, व णु आ दके थान का ल य कराना और सूय-च माक ग त एवं भावका वणन १६४- पा डव क अजुनके लये उ क ठा और अजुनका आगमन

( नवातकवचयु पव) १६५- अजुनका ग धमादन पवतपर आकर अपने भाइय से मलना १६६- इ का पा डव के पास आना और यु ध रको सा वना दे कर वगको लौटना १६७- अजुनके ारा अपनी तप या-या ाके वृ ा तका वणन, भगवान् शवके साथ सं ाम और पाशुपता - ा तक कथा १६८- अजुन ारा वगलोकम अपनी अ श ा और नवातकवच दानव के साथ यु क तैयारीका कथन १६९- अजुनका पातालम वेश और नवातकवच के साथ यु ार भ १७०- अजुन और नवातकवच का यु १७१- दानव के मायामय यु का वणन १७२- नवातकवच का संहार १७३- अजुन ारा हर यपुरवासी पौलोम तथा कालकेय का वध और इ ारा अजुनका अ भन दन १७४- अजुनके मुखसे या ाका वृ ा त सुनकर यु ध र ारा उनका अ भन दन और द ा -दशनक इ छा कट करना १७५- नारद आ दका अजुनको द ा के दशनसे रोकना

( आजगरपव) ी





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१७६- भीमसनेक यु ध रसे बातचीत और पा डव का ग धमादनसे थान १७७- पा डव का ग धमादनसे बद रका म, सुबा नगर और वशाखयूप वनम होते ए सर वती-तटवत ै तवनम वेश १७८- महाबली भीमसेनका हसक पशु को मारना और अजगर ारा पकड़ा जाना १७९- भीमसेन और सप पधारी न षक बातचीत, भीमसेनक च ता तथा यु ध र ारा भीमक खोज १८०- यु ध रका भीमसेनके पास प ँचना और सप पधारी न षके का उ र दे ना १८१- यु ध र ारा अपने का उ चत उ र पाकर संतु ए सप पधारी न षका भीमसेनको छोड़ दे ना तथा यु ध रके साथ वातालाप करनेके भावसे सपयो नसे मु होकर वग जाना

( माक डेयसमा यापव) १८२- वषा और शरद्-ऋतुका वणन एवं यु ध र आ दका पुनः ै तवनसे का यकवनम वेश १८३- का यकवनम पा डव के पास भगवान् ीकृ ण, मु नवर मा क डेय तथा नारदजीका आगमन एवं यु ध रके पूछनेपर माक डेयजीके ारा कमफलभोगका ववेचन १८४- तप वी तथा वधमपरायण ा ण का माहा य १८५- ा णक म हमाके वषयम अ मु न तथा राजा पृथुक शंसा १८६- ता यमु न और सर वतीका संवाद १८७- वैव वत मनुका च र तथा म यावतारक कथा १८८- चार युग क वष-सं या एवं क लयुगके भावका वणन, लयकालका य और माक डेयजीको बालमुकु दजीके दशन, माक डेयजीका भगवान्के उदरम वेश कर ा डदशन करना और फर बाहर नकलकर उनसे वातालाप करना १८९- भगवान् बालमुकु दका माक डेयको अपने व पका प रचय दे ना तथा माक डेय ारा ीकृ णक म हमाका तपादन और पा डव का ीकृ णक शरणम जाना १९०- युगा तका लक क लयुगके समयके बतावका तथा क क-अवतारका वणन १९१- भगवान् क कके ारा स ययुगक थापना और माक डेयजीका यु ध रके लये धम पदे श १९२- इ वाकुवंशी परी त्का म डू कराजक क यासे ववाह, शल और दलके च र तथा वामदे व मु नक मह ा १९३- इ और बक मु नका संवाद १९४य राजा का मह व—सुहो और श बक शंसा १९५- राजा यया त ारा ा णको सह गौ का दान े औ

१९६- से क और वृषदभका च र १९७- इ और अ न ारा राजा श बक परी ा १९८- दे व ष नारद ारा श बक मह ाका तपादन १९९- राजा इ ु न तथा अ य चरजीवी ा णय क कथा २००- न दत दान, न दत ज म, यो य दानपा , ा म ा और अ ा ा ण, दानपा के ल ण, अ त थ-स कार, व वध दान का मह व, वाणीक शु , गाय ी-जप, च -शु तथा इ य- न ह आ द व वध वषय का वणन २०१- उ ंकक तप यासे स होकर भगवान्का उ ह वरदान दे ना तथा इ वाकुवंशी राजा कुवला का धु धुमार नाम पड़नेका कारण बताना २०२- उ ंकका राजा बृहद से धु धुका वध करनेके लये आ ह २०३ाजीक उ प और भगवान् व णुके ारा मधु-कैटभका वध २०४- धु धुक तप या और वर ा त, कुवला ारा धु धुका वध और दे वता का कुवला को वर दे ना २०५- प त ता ी तथा पता-माताक सेवाका माहा य २०६- कौ शक ा ण और प त ताके उपा यानके अ तगत ा ण के धमका वणन २०७- कौ शकका धम ाधके पास जाना, धम ाधके ारा प त तासे े षत जान लेनेपर कौ शकको आ य होना, धम ाधके ारा वणधमका वणन, जनकरा यक शंसा और श ाचारका वणन २०८- धम ाध ारा हसा और अ हसाका ववेचन २०९- धमक सू मता, शुभाशुभ कम और उनके फल तथा क ा तके उपाय का वणन २१०- वषयसेवनसे हा न, स संगसे लाभ और ा ी व ाका वणन २११- पंचमहाभूत के गुण का और इ य न हका वणन २१२- तीन गुण के व प और फलका वणन २१३- ाणवायुक थ तका वणन तथा परमा म-सा ा कारके उपाय २१४- माता- पताक सेवाका द दशन २१५- धम ाधका कौ शक ा णको माता- पताक सेवाका उपदे श दे कर अपने पूवज मक कथा कहते ए ाध होनेका कारण बताना २१६- कौ शक-धम ाध-संवादका उपसंहार तथा कौ शकका अपने घरको थान २१७- अ नका अं गराको अपना थम पु वीकार करना तथा अं गरासे बृह प तक उप २१८- अं गराक संत तका वणन २१९- बृह प तक संत तका वणन २२०- पांचज य अ नक उ प तथा उसक संत तका वणन २२१- अ न व प तप और भानु (मनुक ) संत तका वणन २२२- सह नामक अ नका जलम वेश और अथवा अं गरा ारा पुनः उनका ाक े े ी े े े े

२२३- इ के ारा केशीके हाथसे दे वसेनाका उ ार २२४- इ का दे वसेनाके साथ ाजीके पास तथा षय के आ मपर जाना, अ नका मोह और वनगमन २२५- वाहाका मु नप नय के प म अ नके साथ समागम, क दक उ प तथा उनके ारा च आ द पवत का वदारण २२६- व ा म का क दके जातकमा द तेरह सं कार करना और व ा म के समझानेपर भी ऋ षय का अपनी प नय को वीकार न करना तथा अ नदे व आ दके ारा बालक क दक र ा करना २२७- परा जत होकर शरणम आये ए इ स हत दे वता को क दका अभयदान २२८- क दके पाषद का वणन २२९- क दका इ के साथ वातालाप, दे वसेनाप तके पदपर अ भषेक तथा दे वसेनाके साथ उनका ववाह २३०- कृ का को न म डलम थानक ा त तथा मनु य को क दे नेवाले व वध ह का वणन २३१- क द ारा वाहादे वीका स कार, दे वके साथ क द और दे वता क भ वट-या ा, दे वासुर-सं ाम, म हषासुर-वध तथा क दक शंसा २३२- का तकेयके स नाम का वणन तथा उनका तवन

( ौपद स यभामासंवादपव) २३३- ौपद का स यभामाको सती ीके कत क श ा दे ना २३४- प तदे वको अनुकूल करनेका उपाय—प तक अन यभावसे सेवा २३५- स यभामाका ौपद को आ ासन दे कर ीकृ णके साथ ारकाको

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( घोषया ापव) २३६- पा डव का समाचार सुनकर धृतराका खेद और च तापूण उद्गार २३७- शकु न और कणका य धनक शंसा करते ए उसे वनम पा डव के पास चलनेके लये उभाड़ना २३८- य धनके ारा कण और शकु नक म णा वीकार करना तथा कण आ दका घोषया ाको न म बनाकर ै तवनम जानेके लये धृतरासे आ ा लेने जाना २३९- कण आ दके ारा ै तवनम जानेका ताव, राजा धृतराक अ वीकृ त, शकु नका समझाना, धृतराका अनुम त द े ना तथा य धनका थान २४०- य धनका सेनास हत वनम जाकर गौ क दे खभाल करना और उसके सै नक एवं ग धव म पर पर कटु संवाद २४१- कौरव का ग धव के साथ यु और कणक पराजय २४२- ग धव ारा य धन आ दक पराजय और उनका अपहरण ी





















२४३- यु ध रका भीमसेनको ग धव के हाथसे कौरव को छु ड़ानेका आदे श और इसके लये अजुनक त ा २४४- पा डव का ग धव के साथ यु २४५- पा डव के ारा ग धव क पराजय २४६- च सेन, अजुन तथा यु ध रका संवाद और य धनका छु टकारा २४७- सेनास हत य धनका मागम ठहरना और कणके ारा उसका अ भन दन २४८- य धनका कणको अपनी पराजयका समाचार बताना २४९- य धनका कणसे अपनी ला नका वणन करते ए आमरण अनशनका न य, ःशासनको राजा बननेका आदे श, ःशासनका ःख और कणका य धनको समझाना २५०- कणके समझानेपर भी य धनका आमरण अनशन करनेका ही न य २५१- शकु नके समझानेपर भी य धनको ायोप-वेशनसे वच लत होते न दे खकर दै य का कृ या ारा उसे रसातलम बुलाना २५२- दानव का य धनको समझाना और कणके अनुरोध करनेपर य धनका अनशन याग करके ह तनापुरको थान २५३- भी मका कणक न दा करते ए य धनको पा डव से सं ध करनेका परामश दे ना, कणके ोभपूण वचन और द वजयके लये थान २५४- कणके ारा सारी पृ वीपर द वजय और ह तनापुरम उसका स कार २५५- कण और पुरो हतक सलाहसे य धनक वै णवय के लये तैयारी २५६- य धनके य का आर भ एवं समा त २५७- य धनके य के वषयम लोग का मत, कण ारा अजुनके वधक त ा, यु ध रक च ता तथा य धनक शासननी त

( मृग व ो वपव) २५८- पा डव का का यकवनम गमन

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ी ह ौ णकपव)

२५९- यु ध रक च ता, ासजीका पा डव के पास आगमन और दानक मह ाका तपादन २६०- वासा ारा मह ष मुलक े दानधम एवं धैयक परी ा तथा मुलका दे व तसे कुछ करना २६१- दे व त ारा वगलोकके गुण-दोष का तथा दोषर हत व णुधामका वणन सुनकर मुदगलका ् दे व तको लौटा दे ना एवं ासजीका यु ध रको समझाकर अपने आ मको लौट जाना

( ौपद हरणपव) ो







२६२- य धनका मह ष वासाको आ त यस कारसे संतु करके उ ह यु ध रके पास भेजकर स होना २६३- वासाका पा डव के आ मपर असमयम आ त यके लये जाना, ौपद के ारा मरण कये जानेपर भगवान्का कट होना तथा पा डव को वासाके भयसे मु करना और उनको आ ासन दे कर ारका जाना २६४- जय थका ौपद को दे खकर मो हत होना और उसके पास को टका यको भेजना २६५- को टका यका ौपद से जय थ और उसके सा थय का प रचय दे ते ए उसका भी प रचय पूछना २६६- ौपद का को टका यको उ र २६७- जय थ और ौपद का संवाद २६८- ौपद का जय थको फटकारना और जय थ- ारा उसका अपहरण २६९- पा डव का आ मपर लौटना और धा े यकासे ौपद हरणका वृ ा त जानकर जय थका पीछा करना २७०- ौपद ारा जय थके सामने पा डव के परा मका वणन २७१- पा डव ारा जय थक सेनाका संहार, जय थका पलायन, ौपद तथा नकुलसहदे वके साथ यु ध रका आ मपर लौटना तथा भीम और अजुनका वनम जय थका पीछा करना

( जय थ वमो णपव) २७२- भीम ारा बंद होकर जय थका यु ध रके सामने उप थत होना, उनक आ ासे छू टकर उसका गंगा ारम तप करके भगवान् शवसे वरदान पाना तथा भगवान् शव ारा अजुनके सहायक भगवान् ीकृ णक म हमाका वणन

( रामोपा यानपव) २७३- अपनी रव थासे ःखी ए यु ध रका माक डेय मु नसे करना २७४- ीराम आ दका ज म तथा कुबेरक उ प और उ ह ऐ यक ा त २७५- रावण, कु भकण, वभीषण, खर और शूपणखाक उ प , तप या और वरा त तथा कुबेरका रावणको शाप दे ना २७६- दे वता का ाजीके पास जाकर रावणके अ याचारसे बचानेके लये ाथना करना तथा ाजीक आ ासे दे वता का रीछ और वानरयो नम संतान उ प करना एवं भी ग धव का म थरा बनकर आना २७७- ीरामके रा या भषेकक तैयारी, रामवनगमन, भरतक च कूटया ा, रामके ारा खर- षण आ द रा स का नाश तथा रावणका मारीचके पास जाना २७८- मृग पधारी मारीचका वध तथा सीताका अपहरण ी



२७९- रावण ारा जटायुका वध, ीराम ारा उसका अ ये -सं कार, कब धका वध तथा उसके द व पसे वातालाप २८०- राम और सु ीवक म ता, वाली और सु ीवका यु , ीरामके ारा वालीका वध तथा लंकाक अशोकवा टकाम रा सय ारा डरायी ई सीताको जटाका आ ासन २८१- रावण और सीताका संवाद २८२- ीरामका सु ीवपर कोप, सु ीवका सीताक खोजम वानर को भेजना तथा ीहनुमान्जीका लौटकर अपनी लंकाया ाका वृ ा त नवेदन करना २८३- वानर-सेनाका संगठन, सेतुका नमाण, वभीषणका अ भषेक और लंकाक सीमाम सेनाका वेश तथा अंगदको रावणके पास त बनाकर भेजना २८४- अंगदका रावणके पास जाकर रामका संदेश सुनाकर लौटना तथा रा स और वानर का घोर सं ाम २८५- ीराम और रावणक सेना का यु २८६- ह त और धूा क े वधसे ःखी ए रावणका कु भकणको जगाना और उसे यु म भेजना २८७- कु भकण, ववेग और माथीका वध २८८- इ जत्का मायामय यु तथा ीराम और ल मणक मू छा २८९- ीराम-ल मणका सचेत होकर कुबेरके भेजे ए अ भम त जलसे मुख वानर स हत अपने ने धोना, ल मण ारा इ जतका वध एवं सीताको मारनेके लये उ त ए रावणका अ व यके ारा नवारण करना २९०- राम और रावणका यु तथा रावणका वध २९१- ीरामका सीताके त संदेह, दे वता ारा सीताक शु का समथन, ीरामका दल-बलस हत लंकासे थान एवं क क धा होते ए अयो याम प ँचकर भरतसे मलना तथा रा यपर अ भ ष होना २९२- माक डेयजीके ारा राजा यु ध रको आ ासन

( प त तामाहा यपव) २९३- राजा अ प तको दे वी सा व ीके वरदानसे सा व ी नामक क याक ा त तथा सा व ीका प तवरणके लये व भ दे श म मण २९४- सा व ीका स यवान्के साथ ववाह करनेका ढ़ न य २९५- स यवान् और सा व ीका ववाह तथा सा व ीका अपनी सेवा ारा सबको संतु करना २९६- सा व ीक तचया तथा सास-ससुर और प तक आ ा लेकर स यवान्के साथ उसका वनम जाना २९७- सा व ी और यमका संवाद, यमराजका संतु होकर सा व ीको अनेक वरदान दे ते ए मरे ए स यवान्को भी जी वत कर दे ना तथा स यवान् और सा व ीका ओ

वातालाप एवं आ मक ओर थान २९८- प नीस हत राजा ुम सेनक स यवान्के लये च ता, ऋ षय का उ ह आ ासन दे ना, सा व ी और स यवान्का आगमन तथा सा व ी ारा वल बसे आनेके कारणपर काश डालते ए वर- ा तका ववरण बताना २९९- शा वदे शक जाके अनुरोधसे महाराज ुम सेनका रा या भषेक कराना तथा सा व ीको सौ पु और सौ भाइय क ा त

( कु डलाहरणपव) ३००- सूयका व म कणको दशन दे कर उसे इ को कु डल और कवच न दे नेके लये सचेत करना तथा कणका आ हपूवक कु डल और कवच दे नेका ही न य रखना ३०१- सूयका कणको समझाते ए उसे इ को कु डल न दे नेका आदे श दे ना ३०२- सूय-कण-संवाद, सूयक आ ाके अनुसार कणका इ से श लेकर ही उ ह कु डल और कवच दे नेका न य ३०३- कु तभोजके यहाँ ष वासाका आगमन तथा राजाका उनक सेवाके लये पृथाको आव यक उपदे श दे ना ३०४- कु तीका पतासे वातालाप और ा णक प रचया ३०५- कु तीक सेवासे संतु होकर तप वी ा णका उसको म का उपदे श दे ना ३०६- कु तीके ारा सूयदे वताका आवाहन तथा कु ती-सूय-संवाद ३०७- सूय ारा कु तीके उदरम गभ थापन ३०८- कणका ज म, कु तीका उसे पटारीम रखकर जलम बहा दे ना और वलाप करना ३०९- अ धरथ सूत तथा उसक प नी राधाको बालक कणक ा त, राधाके ारा उसका पालन, ह तनापुरम उसक श ा-द ा तथा कणके पास इ का आगमन ३१०- इ का कणको अमोघ श दे कर बदलेम उसके कवच-कु डल लेना

( आरणेयपव) ३११- ा णक अर ण एवं म थन-का का पता लगानेके लये पा डव का मृगके पीछे दौड़ना और ःखी होना ३१२- पानी लानेके लये गये ए नकुल आ द चार भाइय का सरोवरके तटपर अचेत होकर गरना ३१३- य और यु ध रका ो र तथा यु ध रके उ रसे संतु ए य का चार भाइय के जी वत होनेका वरदान दे ना ३१४- य का चार भाइय को जलाकर धमके पम कट हो यु ध रको वरदान दे ना ३१५- अ ातवासके लये अनुम त लेते समय शोका-कुल ए यु ध रको मह ष धौ यका समझाना, भीमसेनका उ साह दे ना तथा आ मसे र जाकर पा डव का पर पर परामशके लये बैठना

३१६- वनपव- वण-म हमा

वराटपव ( पा डव वेशपव) १- वराटनगरम अ ातवास करनेके लये पा डव क गु त म णा तथा यु ध रके ारा अपने भावी काय मका द दशन २- भीमसेन और अजुन ारा वराटनगरम कये जानेवाले अपने अनुकूल काय का नदश ३- नकुल, सहदे व तथा ौपद ारा अपने-अपने भावी कत का द दशन ४- धौ यका पा डव को राजाके यहाँ रहनेका ढं ग बताना और सबका अपने-अपने अभी थान को जाना ५- पा डव का वराटनगरके समीप प ँचकर मशानम एक शमीवृ पर अपने अ श रखना ६- यु ध र ारा गादे वीक तु त और दे वीका य कट होकर उ ह वर दे ना ७- यु ध रका राजसभाम जाकर वराटसे मलना और वहाँ आदरपूवक नवास पाना ८- भीमसेनका राजा वराटक सभाम वेश और राजाके ारा आ ासन पान ९- ौपद का सैर ीके वेशम वराटके र नवासम जाकर रानी सुदे णासे वातालाप करना और वहाँ नवास पाना १०- सहदे वका राजा वराटके साथ वातालाप और गौ क दे खभालके लये उनक नयु ११- अजुनका राजा वराटसे मलना और राजाके ारा क या को नृ य आ दक श ा दे नेके लये उनको नयु करना १२- नकुलका वराटके अ क दे ख-रेखम नयु होना

( समयपालनपव) १३- भीमसेनके ारा जीमूत नामक व व यात म लका वध

( क चकवधपव) १४- क चकका ौपद पर आस हो उससे णय-याचना करना और ौपद का उसे फटकारना १५- रानी सुदे णाका ौपद को क चकके घर भेजना १६- क चक ारा ौपद का अपमान १७- ौपद का भीमसेनके समीप जाना १८- ौपद का भीमसेनके त अपने ःखके उद्गार कट करना १९- पा डव के ःखसे ःखत ौपद का भीमसेनके स मुख वलाप २०- ौपद ारा भीमसेनसे अपना ःख नवेदन करना ी

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२१- भीमसेन और ौपद का संवाद २२- क चक और भीमसेनका यु तथा क चक-वध २३- उपक चक का सैर ीको बाँधकर मशान-भू मम ले जाना और भीमसेनका उन सबको मारकर सैर ीको छु ड़ाना २४- ौपद का राजमहलम लौटकर आना और बृह ला एवं सुदे णासे उसक बातचीत

( गोहरणपव) २५-

य धनके पास उसके गु तचर का आना और उनका पा डव के वषयम कुछ पता न लगा, यह बताकर क चकवधका वृ ा त सुनाना २६- य धनका सभासद से पा डव का पता लगानेके लये परामश तथा इस वषयम कण और ःशासनक स म त २७- आचाय ोणक स म त २८- यु ध रक म हमा कहते ए भी मक पा डव के अ वेषणके वषयम स म त २९- कृपाचायक स म त और य धनका न य ३०- सुशमाके तावके अनुसार गत और कौरव का म यदे शपर धावा ३१- चार पा डव स हत राजा वराटक सेनाका यु के लये थान ३२- म य तथा गतदे शीय सेना का पर पर यु ३३- सुशमाका वराटको पकड़कर ले जाना, पा डव के य नसे उनका छु टकारा, भीम ारा सुशमाका न ह और यु ध रका अनु ह करके उसे छोड़ दे ना ३४- राजा वराट ारा पा डव का स मान, यु ध र ारा राजाका अ भन दन तथा वराटनगरम राजाक वजयघोषणा ३५- कौरव ारा उ र दशाक ओरसे आकर वराटक गौ का अपहरण और गोपा य का उ रकुमारको यु के लये उ साह दलाना ३६- उ रका अपने लये सार थ ढूँ ढ़नेका ताव, अजुनक स म तसे ौपद का बृह लाको सार थ बनानेके लये सुझाव दे ना ३७- बृह लाको सार थ बनाकर राजकुमार उ रका रणभू मक ओर थान ३८- उ रकुमारका भय और अजुनका उसे आ ासन दे कर रथपर चढ़ाना ३१- ोणाचाय ारा अजुनके अलौ कक परा मक शंसा ४०- अजुनका उ रको शमीवृ से अ उतारनेके लये आदे श ४१- उ रका अजुनके आदे शके अनुसार शमीवृ से पा डव के द धनुष आ द उतारना ४२- उ रका बृह लासे पा डव के अ -श के वषयम करना ४३- बृह ला ारा उ रको पा डव के आयुध का प रचय कराना ४४- अजुनका उ रकुमारसे अपना और अपने भाइय का यथाथ प रचय दे ना ४५- अजुन ारा यु क तैयारी, अ -श का मरण, उनसे वातालाप तथा उ रके भयका नवारण े ो औ ो

४६- उ रके रथपर अजुनको वजक ा त, अजुनका शंखनाद और ोणाचायका कौरव से उ पातसूचक अपशकुन का वणन ४७- य धनके ारा यु का न य तथा कणक उ ४८- कणक आ म शंसापूण अहंकारो ४१- कृपाचायका कणको फटकारते ए यु के वषयम अपना वचार बताना ५०- अ थामाके उद्गार ५१- भी मजीके ारा सेनाम शा त और एकता बनाये रखनेक चे ा तथा ोणाचायके ारा य धनक र ाके लये य न ५२- पतामह भी मक स म त ५३- अजुनका य धनक सेनापर आ मण करके गौ को लौटा लेना ५४- अजुनका कणपर आ मण, वकणक पराजय, श ुंतप और सं ाम जत्का वध, कण और अजुनका यु तथा कणका पलायन ५५- अजुन ारा कौरवसेनाका संहार और उ रका उनके रथको कृपाचायके पास ले जाना ५६- अजुन और कृपाचायका यु दे खनेके लये दे वता का आकाशम वमान पर आगमन ५७- कृपाचाय और अजुनका यु तथा कौरवप के सै नक ारा कृपाचायको हटा ले जाना ५८- अजुनका ोणाचायके साथ यु और आचायका पलायन ५९- अ थामाके साथ अजुनका यु ६०- अजुन और कणका संवाद तथा कणका अजुनसे हारकर भागना ६१- अजुनका उ रकुमारको आ थासन तथा अजुनसे ःशासन आ दक पराजय ६२- अजुनका सब यो ा और महार थय के साथ यु ६३- अजुनपर सम त कौरवप ीय महार थय का आ मण और सबका यु भू मसे पीठ दखाकर भागना ६४- अजुन और भी मका अ त यु तथा मूछत भी मका सार थ ारा रणभू मसे हटाया जाना ६५- अजुन और य धनका यु , वकण आ द यो ा -स हत य धनका यु के मैदानसे भागना ६६- अजुनके ारा सम त कौरवदलक पराजय तथा कौरव का वदे शको थान ६७- वजयी अजुन और उ रका राजधानीक ओर थान ६८- राजा वराटक उ रके वषयम च ता, वजयी उ रका नगरम वेश, जा ारा उनका वागत, वराट ारा यु ध रका तर कार और मा- ाथना एवं उ रसे यु का समाचार पूछना ६९- राजा वराट और उ रक वजयके वषयम बातचीत

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)

( वैवा हकपव) ७०- अजुनका राजा वराटको महाराज यु ध रका प रचय दे ना ७१- वराटको अ य पा डव का भी प रचय ा त होना तथा वराटके ारा यु ध रको रा य समपण करके अजुनके साथ उ राके ववाहका ताव करना ७२- अजुनका अपनी पु वधूके पम उ राको हण करना एवं अ भम यु और उ राका ववाह

च -सूची सादा १२३४५६७८९१०१११२१३१४१५-

ीकृ णके ारा ौपद को आ ासन ौपद और भीमसेनका यु ध रसे संवाद अजुनक तप या अजुनका करातवेषधारी भगवान् शवपर बाण चलाना नलक पहचानके लये दमय तीक लोक-पाल से ाथना सती दमय तीके तेजसे पापी ाधका वनाश भगवान् शंकरका मंकणक मु नको नृ य करनेसे रोकना दे वता ारा वृ ासुरके वधके लये दधी चसे उनक अ थय क याचना दे वराज इ का वक े हारसे वृ ासुरका वध करना मह ष क पलक ोधा नसे सगरपु का भ म होना मह ष अग यका समु पान भगवान् परशुराम ारा सहाजुनका वध भास े म पा डव क यादव से भट राजा श बका कबूतरक र ाके लये बाजको अपने शरीरका मांस काटकर दे ना ौपद का भीमसेनको सौग धक पु प भट करके वैसे ही और पु प लानेका आ ह १६- वगसे लौटकर अजुन धमराजको णाम कर रहे ह १७- वनम पा डव से ीकृ ण-स यभामाका मलना १८- तप वीके वेशम म डू कराजका राजाको आ ासन १९- यया तसे ा णक याचना २०- भगवान् व णुके ारा मधुकैटभका जाँघ पर वध २१- कौ शक ा ण और माता- पताके भ धम ाध २२- का तकेयके ारा म हषासुरका वध २३- ौपद -स यभामा-संवाद २४- अजुन- च सेन-यु २५- सीताजीका रावणको फटकारना २६- हनुमान्जीक ीसीताजीसे भट २७- यम-सा व ी २८- कणको इ का श -दान २९- यु ध र और बगुला पधारी य ३०- वराटके यहाँ पा डव ३१- वराटक राजसभाम क चक ारा सैर ीका अपमान

३२- अजुनका शंखनाद

।। ॐ

ीपरमा मने नमः

।।

ीमहाभारतम् वनपव अर यपव थमोऽ यायः पा डव का वनगमन, पुरवा सय ारा उनका अनुगमन और यु ध रके अनुरोध करनेपर उनमसे ब त का लौटना तथा पा डव का माणको टतीथम रा वास नारायणं नम कृ य नरं चैव नरो मम् । दे व सर वत ासं ततो जयमुद रयेत् ।। ‘अ तयामी नारायण व प भगवान् ीकृ ण, (उनके न यसखा) नर व प नर े अजुन, (उनक लीला कट करनेवाली) भगवती सर वती और (उन लीला का संकलन करनेवाले) मह ष वेद ासको नम कार करके जय (महाभारत)-का पाठ करना चा हये। जनमेजय उवाच एवं ूत जताः पाथाः को पता रा म भः । धातरा ैः सहामा यै नकृ या जस म ।। १ ।। ा वताः प षा वाचः सृज वरमु मम् । कमकुवत कौर ा मम पूव पतामहाः ।। २ ।। जनमेजयने पूछा— व वर! म य स हत धृतराक े रा मा पु ने जब इस कार कपटपूवक कु तीकुमार को जूएम हराकर कु पत कर दया और घोर वैरक न व डालते ए उ ह अ य त कठोर बात सुनाय , तब मेरे पूव पतामह यु ध र आ द कु वं शय ने या कया? ।। १-२ ।। कथं चै य व ाः सहसा ःखमेयुषः । वने वज रे पाथाः श तमतेजसः ।। ३ ।। ो







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तथा जो सहसा ऐ यसे वं चत हो जानेके कारण महान् ःखम पड़ गये थे, उन इ के तु य तेज वी पा डव ने वनम कस कार वचरण कया? ।। ३ ।। के वै तान ववत त ा तान् सनमु मम् । कमाचाराः कमाहाराः व च वासो महा मनाम् ।। ४ ।। उस भारी संकटम पड़े ए पा डव के साथ वनम कौन-कौन गये थे? वनम वे कस आचार- वहारसे रहते थे? या खाते थे? और उन महा मा का नवास- थान कहाँ था? ।। ४ ।। कथं च ादश समा वने तेषां महामुने । तीयु ा ण े शूराणाम रघा तनाम् ।। ५ ।। महामुने! ा ण े ! श ु का संहार करनेवाले उन शूरवीर महार थय के बारह वष वनम कस कार बीते? ।। ५ ।। कथं च राजपु ी सा वरा सवयो षताम् । प त ता महाभागा सततं स यवा दनी ।। ६ ।। वनवासम ःखाहा दा णं यप त । एतदाच व मे सव व तरेण तपोधन ।। ७ ।। तपोधन! संसारक सम त सु द रय म े , प त ता एवं सदा स य बोलनेवाली वह महाभागा राजकुमारी ौपद , जो ःख भोगनेके यो य कदा प नह थी, वनवासके भयंकर क को कैसे सह सक ? यह सब मुझे व तारपूवक बतलाइये ।। ६-७ ।। ोतु म छा म च रतं भू र वणतेजसाम् । कयमानं वया व परं कौतूहलं ह मे ।। ८ ।। न्! म आपके ारा कहे जाते ए महान् परा म और तेजसे स प पा डव के च र को सुनना चाहता ँ। इसके लये मेरे मनम अ य त कौतूहल हो रहा है ।। ८ ।। वैश पायन उवाच एवं ूत जताः पाथाः को पता रा म भः । धातरा ैः सहामा यै नययुगजसा यात् ।। ९ ।। वैश पायनजीने कहा—राजन्! इस कार म य स हत रा मा धृतरापु ारा जूएम परा जत करके ु कये ए कु तीकुमार ह तनापुरसे बाहर नकले ।। ९ ।। वधमानपुर ाराद भ न य पा डवाः । उदङ् मुखाः श भृतः ययुः सह कृ णया ।। १० ।। वधमानपुरक दशाम थत नगर ारसे नकलकर श धारी पा डव ने ौपद के साथ उ रा भमुख होकर या ा आर भ क ।। १० ।।

इ सेनादय ैव भृ याः प र चतुदश । रथैरनुययुः शी ैः य आदाय सवशः ।। ११ ।। इ सेन आ द चौदहसे अ धक सेवक सारी य को शी गामी रथ पर बठाकर उनके पीछे -पीछे चले ।। ११ ।। गतानेतान् व द वा तु पौराः शोका भपी डताः । गहय तोऽसकृद् भी म व र ोणगौतमान् ।। १२ ।। ऊचु वगतसं ासाः समाग य पर परम् । पा डव वनक ओर गये ह, यह जानकर ह तनापुरके नवासी शोकसे पी डत हो बना कसी भयके भी म, व र, ोण और कृपाचायक बारंबार न दा करते ए एक- सरेसे मलकर इस कार कहने लगे ।। १२ ।।

पौरा ऊचुः नेदम त कुलं सव न वयं न च नो गृहाः ।। १३ ।। य य धनः पापः सौबलेना भपा लतः । कण ःशासना यां च रा यमेत चक ष त ।। १४ ।। पुरवासी बोले—अहो! हमारा यह सम त कुल, हम तथा हमारे घर- ार अब सुर त नह ह; य क यहाँ पापा मा य धन सुबलपु शकु नसे पा लत हो कण और ःशासनक स म तसे इस रा यका शासन करना चाहता है ।। १३-१४ ।। ो

न तत् कुलं न चाचारो न धम ऽथः कुतः सुखम् । य पापसहायोऽयं पापो रा यं चक ष त ।। १५ ।। जहाँ पा पय क ही सहायतासे यह पापाचारी रा य करना चाहता है वहाँ हमलोग के कुल, आचार, धम और अथ भी नह रह सकते, फर सुख तो रह ही कैसे सकता है? ।। १५ ।। य धनो गु े षी य ाचारसु जनः । अथलुधोऽ भमानी च नीचः क ृ त नघृणः ।। १६ ।। य धन गु जन से े ष रखनेवाला है। उसने सदाचार और पा डव -जैसे सु द को याग दया है। वह अथलोलुप, अ भमानी, नीच और वभावतः ही न ु र है ।। १६ ।। नेयम त मही कृ ना य य धनो नृपः । साधु ग छामहे सव य ग छ त पा डवाः ।। १७ ।। जहाँ य धन राजा है, वहाँक यह सारी पृ वी नह के बराबर है, अतः यही ठ क होगा क हम सब लोग वह चल जहाँ पा डव जा रहे ह ।। १७ ।। सानु ोशा महा मानो व जते यश वः । ीम तः क तम त धमाचारपरायणाः ।। १८ ।। पा डवगण दयालु, महा मा, जते य, श ु वजयी, ल जाशील, यश वी, धमा मा तथा सदाचारपरायण ह ।। १८ ।। वैश पायन उवाच एवमु वानुज मु ते पा डवां तान् समे य च । ऊचुः ा लयः सव कौ तेयान् मा न दनान् ।। १९ ।। वैश पायनजी कहते ह—ऐसा कहकर वे पुरवासी पा डव के पास गये और उन कु तीकुमार तथा मा पु से मलकर वे सब-के-सब हाथ जोड़कर इस कार बोले — ।। १९ ।। व ग म यथ भ ं व य वा मान् ःखभा गनः । वयम यनुया यामो य यूयं ग म यथ ।। २० ।। ‘पा डवो! आपलोग का क याण हो। हम आपके वयोगसे ब त ःखी ह। आपलोग हम छोड़कर कहाँ जा रहे ह? आप जहाँ जायँगे वह हम भी आपके साथ चलगे ।। २० ।। अधमण जतान् ु वा यु मां य घृणैः परैः । उ नाः मो भृशं सव ना मान् हातु महाहथ ।। २१ ।। भ ानुर ान् सु दः सदा य हते रतान् । कुराजा ध ते रा ये न वन येम सवशः ।। २२ ।। ‘ नदयी श ु ने आपको अधमपूवक जूएम हराया है, यह सुनकर हम सब लोग अ य त उ न हो उठे ह। आपलोग हमारा याग न कर; य क हम आपके सेवक ह, ेमी ह, सु द् ह और सदा आपके य एवं हतम संल न रहनेवाले ह। आपके बना इस राजाके रा यम रहकर हम न होना नह चाहते ।। २१-२२ ।। ो



ू तां चा भधा यामो गुणदोषान् नरषभाः । य शुभाशुभा धवासेन संसगः कु ते यथा ।। २३ ।। ‘नर े पा डवो! शुभ और अशुभ आ यम रहनेपर वहाँका संसग मनु यम जैसे गुणदोष क सृ करता है, उनका हम वणन करते ह, सु नये ।। २३ ।। व माप तलान् भूम ग धो वासयते यथा । पु पाणाम धवासेन तथा संसगजा गुणाः ।। २४ ।। ‘जैसे फूल के संसगम रहनेपर उनक सुग ध व , जल, तल और भू मको भी सुवा सत कर दे ती है, उसी कार संसगज नत गुण भी अपना भाव डालते ह ।। २४ ।। मोहजाल य यो न ह मूढैरेव समागमः । अह यह न धम य यो नः साधुसमागमः ।। २५ ।। ‘मूढ मनु य से मलना-जुलना मोहजालक उ प का कारण होता है। इसी कार साधु-महा मा का रंग त दन धमक ा त करानेवाला है ।। २५ ।। त मात् ा ै वृ ै सु वभावै तप व भः । स सह संसगः कायः शमपरायणैः ।। २६ ।। ‘इस लये व ान , वृ पु ष तथा उ म वभाववाले शा तपरायण तप वी स पु ष का संग करना चा हये ।। २६ ।। येषां ी यवदाता न व ा यो न कम च । ते से ा तैः समा या ह शा े योऽ प गरीयसी ।। २७ ।। नरार भा प वयं पु यशीलेषु साधुषु । पु यमेवा ुयामेह पापं पापोपसेवनात् ।। २८ ।। ‘ जन पु ष के व ा, जा त और कम—ये तीन उ वल ह , उनका सेवन करना चा हये; य क उन महापु ष के साथ बैठना शा के वा यायसे भी बढ़कर है। हमलोग अ नहो आ द शुभ कम का अनु ान नह करते, तो भी पु या मा साधुपु ष के समुदायम रहनेसे हम पु यक ही ा त होगी। इसी कार पापीजन के सेवनसे हम पापके ही भागी ह गे ।। २७-२८ ।। असतां दशनात् पशात् संज पा च सहासनात् । धमाचाराः हीय ते स य त च न मानवाः ।। २९ ।। ‘ मनु य के दशन, पश, उनके साथ वातालाप अथवा उठने-बैठनेसे धामक आचार क हा न होती है। इस लये वैसे मनु य को कभी स नह ा त होती ।। २९ ।। बु हीयते पुंसां नीचैः सह समागमात् । म यमैम यतां या त े तां या त चो मैः ।। ३० ।। ‘नीच पु ष का साथ करनेसे मनु य क बु न होती है। म यम ेणीके मनु य का साथ करनेसे म यम होती है और उ म पु ष का संग करनेसे उ रो र े होती है ।। ३० ।। अनीचैना य वषयैनाध म ै वशेषतः । ये गुणाः क तता लोके धमकामाथस भवाः । ो े े ो

लोकाचारेषु स भूता वेदो ाः श स मताः ।। ३१ ।। ‘उ म, स एवं वशेषतः धम मनु य ने लोकम धम, अथ और कामक उ प के हेतुभूत जो वेदो गुण (साधन) बताये ह वे ही लोकाचारम कट होते ह—लोग ारा कामम लाये जाते ह और श पु ष उ ह का आदर करते ह ।। ३१ ।।

ते यु मासु सम ता ता ैवेह सद्गुणाः । इ छामो गुणव म ये व तुं ेयोऽ भकाङ् णः ।। ३२ ।। ‘वे सभी सद्गुण पृथक्-पृथक् और एक साथ आपलोग म व मान ह, अतः हमलोग क याणक इ छासे आप-जैसे गुणवान् पु ष के बीचम रहना चाहते ह’ ।। ३२ ।। यु ध र उवाच ध या वयं यद माकं नेहका यय ताः । असतोऽ प गुणाना ा ण मुखाः जाः ।। ३३ ।। यु ध रने कहा—हमलोग ध य ह; य क ा ण आ द जावगके लोग हमारे त नेह और क णाके पाशम बँधकर जो गुण हमारे अंदर नह ह, उन गुण को भी हमम बतला रहे ह ।। ३३ ।। तदहं ातृस हतः सवान् व ापया म वः । ना यथा त कत म म नेहानुक पया ।। ३४ ।। ो









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भाइय स हत म आप सब लोग से कुछ नवेदन करता ँ। आपलोग हमपर नेह और कृपा करके उसके पालनसे मुख न मोड़ ।। ३४ ।। भी मः पतामहो राजा व रो जननी च मे । सु जन ायो मे नगरे नागसा ये ।। ३५ ।। (आपलोग को मालूम होना चा हये क) हमारे पतामह भी म, राजा धृतरा, व रजी, मेरी माता तथा ायः अ य सगे-स ब धी भी ह तनापुरम ही ह ।। ३५ ।। ते व म तकामाथ पालनीयाः य नतः । यु मा भः स हताः सव शोकसंताप व लाः ।। ३६ ।। वे सब लोग आपलोग के साथ ही शोक और संतापसे ाकुल ह, अतः आपलोग हमारे हतक इ छा रखकर उन सबका य नपूवक पालन कर ।। ३६ ।। नवततागता रं समागमनशा पताः । वजने यासभूते मे काया नेहा वता म तः ।। ३७ ।। अ छा, अब लौट जाइये, आपलोग ब त र चले आये ह। म अपनी शपथ दलाकर अनुरोध करता ँ क आपलोग मेरे साथ न चल। मेरे वजन आपके पास धरोहरके पम ह। उनके त आपलोग के दयम नेहभाव रहना चा हये ।। ३७ ।। एत मम कायाणां परमं द सं थतम् । कृता तेन तु तु म स कार भ व य त ।। ३८ ।। मेरे दयम थत सब काय म यही काय सबसे उ म है, आपके ारा इसके कये जानेपर मुझे महान् संतोष ा त होगा और इसीसे मेरा स कार भी हो जायगा ।। ३८ ।।

वैश पायन उवाच तथानुम ता तेन धमराजेन ताः जाः । च ु रात वरं घोरं हा राज त संहताः ।। ३९ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! धमराजके ारा इस कार वनयपूवक अनुरोध कये जानेपर उन सम त जा ने ‘हा! महाराज!’ ऐसा कहकर एक ही साथ भयंकर आतनाद कया ।। ३९ ।। गुणान् पाथ य सं मृ य ःखाताः परमातुराः । अकामाः सं यवत त समाग याथ पा डवान् ।। ४० ।। कु तीपु यु ध रके गुण का मरण करके जावगके लोग ःखसे पी डत और अ य त आतुर हो गये। उनक पा डव के साथ जानेक इ छा पूण नह हो सक । वे केवल उनसे मलकर लौट आये ।। ४० ।। नवृ ेषु तु पौरेषु रथाना थाय पा डवाः । आज मुजा वीतीरे माणा यं महावटम् ।। ४१ ।। पुरवा सय के लौट जानेपर पा डवगण रथ पर बैठकर गंगाजीके कनारे माणको ट नामक महान् वटके समीप आये ।। ४१ ।। ते तं दवसशेषेण वटं ग वा तु पा डवाः । ी

ऊषु तां रजन वीराः सं पृ य स ललं शु च ।। ४२ ।। सं या होते-होते उस वटके नकट प ँचकर शूरवीर पा डव ने प व जलका पश (आचमन और सं याव दन आ द) करके वह रात वह तीत क ।। ४२ ।। उदकेनैव तां रा मूषु ते ःखक षताः । अनुज मु त ैतान् नेहात् के चद् जातयः ।। ४३ ।। ःखसे पी ड़त ए वे पाँच पा डु कुमार उस रातम केवल जल पीकर ही रह गये। कुछ ा ण-लोग भी इन पा डव के साथ नेहवश वहाँतक चले आये थे ।। ४३ ।। सा नयोऽन नय ैव स श यगणबा धवाः । स तैः प रवृतो राजा शुशुभे वा द भः ।। ४४ ।। उनमसे कुछ सा न (अ नहो ी) थे और कुछ नर न। उ ह ने अपने श य तथा भाईब धु को भी साथ ले लया था। वेद का वा याय करनेवाले उन ा ण से घरे ए राजा यु ध रक बड़ी शोभा हो रही थी ।। ४४ ।। तेषां ा कृता नीनां मु त र यदा णे । घोषपुर कारः संज पः समजायत ।। ४५ ।। सं याकालक नैस गक शोभासे रमणीय तथा रा स- पशाचा दके संचरणका समय होनेसे अ य त भयंकर तीत होनेवाले उस मु तम अ न व लत करके वेद-म के घोषपूवक अ नहो करनेके बाद उन ा ण म पर पर संवाद होने लगा ।। ४५ ।। राजानं तु कु े ं ते हंसमधुर वराः । आ ासय तो व ा याः पां सवा नोदयन् ।। ४६ ।। हंसके समान मधुर वरम बोलनेवाले उन े ा ण ने कु कुलर न राजा यु ध रको आ ासन दे ते ए सारी रात उनका मनोरंजन कया ।। ४६ ।। इ त ीमहाभारते वनपव ण अर यपव ण पौर यागमने थमोऽ यायः ।। १ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत अर यपवम पुरवा सय के लौटनेसे स ब ध रखनेवाला पहला अ याय पूरा आ ।। १ ।।

तीयोऽ यायः धनके दोष, अ त थस कारक मह ा तथा क याणके उपाय के वषयम धमराज यु ध रसे ा ण तथा शौनकजीक बातचीत वैश पायन उवाच भातायां तु शवया तेषाम ल कमणाम् । वनं ययासतां व ा त थु भ ाभुजोऽ तः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! जब रात बीती और भातका उदय आ तथा अनायास ही महान् परा म करनेवाले पा डव वनक ओर जानेके लये उ त ए, उस समय भ ा भोजी ा ण साथ चलनेके लये उनके सामने खड़े हो गये ।। १ ।। तानुवाच ततो राजा कु तीपु ो यु ध रः । वयं ह तसव वा तरा या त यः ।। २ ।। फलमूलाशनाहारा वनं ग छाम ःखताः । वनं च दोषब लं ब ालसरीसृपम् ।। ३ ।। तब कु तीपु राजा यु ध रने उनसे कहा—‘ ा णो! हमारा रा य, ल मी और सव व जूएम हरण कर लया गया है। हम फल, मूल तथा अ के आहार-पर रहनेका न य करके ःखी होकर वनम जा रहे ह। वनम ब त-से दोष ह। वहाँ सप- ब छू आ द असं य भयंकर ज तु ह ।। २-३ ।। प र लेश वो म ये ुवं त भ व य त । ा णानां प र लेशो दै वता य प सादयेत् । क पुनमा मतो व ा नवत वं यथे तः ।। ४ ।। ‘म समझता ँ, वहाँ आपलोग को अव य ही महान् क का सामना करना पड़ेगा। ा ण को दया आ लेश तो दे वता का भी वनाश कर सकता है, फर मेरी तो बात ही या है? अतः ा णो! आपलोग यहाँसे अपने अभी थानको लौट जायँ’ ।। ४ ।। ा णा ऊचुः ग तया भवतां राजं तां वयं ग तुमु ताः । नाह य मान् प र य ुं भ ान् स मद शनः ।। ५ ।। ा ण ने कहा—राजन्! आपक जो ग त होगी उसे भुगतनेके लये हम भी उ त ह। हम आपके भ तथा उ म धमपर रखनेवाले ह। इस लये आपको हमारा प र याग नह करना चा हये ।। ५ ।। अनुक पां ह भ े षु दे वता प कुवते । वशेषतो ा णेषु सदाचारावल बषु ।। ६ ।। े











दे वता भी अपने भ करते ह ।। ६ ।।

पर वशेषतः सदाचारपरायण ा ण पर तो अव य ही दया

यु ध र उवाच ममा प परमा भ ा णेषु सदा जाः । सहाय वप र ंश वयं सादयतीव माम् ।। ७ ।। आहरेयु रमे येऽ प फलमूलमधू न च । त इमे शोकजै ःखै ातरो मे वमो हताः ।। ८ ।। यु ध र बोले— व गण! मेरे मनम भी ा ण के त उ म भ है, कतु यह सब कारके सहायक साधन का अभाव ही मुझे ःखम न-सा कये दे ता है। जो फल-मूल एवं शहद आ द आहार जुटाकर ला सकते थे वे ही ये मेरे भाई शोकज नत ःखसे मो हत हो रहे ह ।। ७-८ ।। ौप ा व कषण रा यापहरणेन च । ःखा दता नमान् लेशैनाहं यो ु महो सहे ।। ९ ।। ौपद के अपमान तथा रा यके अपहरणके कारण ये ःखसे पी डत हो रहे ह, अतः म इ ह (आहार जुटानेका आदे श दे कर) अ धक लेशम नह डालना चाहता ।। ९ ।। ा णा ऊचुः अ म पोषणजा च ता मा भूत् ते द पा थव । वयमा य चा ा न वानुया यामहे वयम् ।। १० ।। ा ण बोले—पृ वीनाथ! आपके दयम हमारे पालन-पोषणक च ता नह होनी चा हये। हम वयं ही अपने लये अ आ दक व था करके आपके साथ चलगे ।। १० ।। अनु यानेन ज येन वधा यामः शवं तव । कथा भ ा भर या भः सह रं यामहे वयम् ।। ११ ।। हम आपके अभी च तन और जपके ारा आपका क याण करगे तथा आपको सु दर-सु दर कथाएँ सुनाकर आपके साथ ही स तापूवक वनम वचरगे ।। ११ ।। यु ध र उवाच एवमेत संदेहो रमेऽहं सततं जैः । यूनभावात् तु प या म यादे श मवा मनः ।। १२ ।। यु ध रने कहा—महा माओ! आपका कहना ठ क है। इसम संदेह नह क म सदा ा ण के साथ रहनेम ही स ताका अनुभव करता ँ, कतु इस समय धन आ दसे हीन होनेके कारण म दे ख रहा ँ क मेरे लये यह अपक तक -सी बात है ।। १२ ।। कथं या म वः सवान् वयमा तभोजनान् । म या ल यतोऽनहान् धक् पापान् धृतरा जान् ।। १३ ।। ो





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आप सब लोग वयं ही आहार जुटाकर भोजन कर, यह म कैसे दे ख सकूँगा? आपलोग क भोगनेके यो य नह ह, तो भी मेरे त नेह होनेके कारण इतना लेश उठा रहे ह। धृतराक े पापी पु को ध कार है ।। १३ ।। वैश पायन उवाच इ यु वा स नृपः शोचन् नषसाद महीतले । तम या मरतो व ान् शौनको नाम वै जः ।। १४ ।। योगे सां ये च कुशलो राजान मदम वीत् ।। १५ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! इतना कहकर धमराज यु ध र शोकम न हो चुपचाप पृ वीपर बैठ गये। उस समय अ या म वषयम रत अथात् परमा म- च तनम त पर व ान् ा ण शौनकने, जो कमयोग और सां ययोग—दोन ही न ा के वचारम वीण थे, राजासे इस कार कहा— ।। १४—१५ ।। शोक थानसह ा ण भय थानशता न च । दवसे दवसे मूढमा वश त न प डतम् ।। १६ ।। ‘शोकके सह और भयके सैकड़ थान ह। वे मूढ़ मनु यपर त दन अपना भाव डालते ह; परंतु ानी पु षपर वे भाव नह डाल सकते ।। १६ ।। न ह ान व े षु ब दोषेषु कमसु । ेयोघा तषु स ज ते बु म तो भव धाः ।। १७ ।। ‘अनेक दोष से यु , ान व एवं क याणनाशक कम म आप-जैसे ानवान् पु ष नह फँसते ह ।। १७ ।। अ ा ां बु मा या सवा ेयोऽ भघा तनीम् । ु त मृ तसमायु ां राजन् सा व यव थता ।। १८ ।। ‘राजन्! योगके आठ अंग—यम, नयम, आसन, ाणायाम, याहार, धारणा, यान और समा धसे स प , सम त अमंगल का नाश करनेवाली तथा ु तय और मृ तय के वा यायसे भलीभाँ त ढ़ क ई जो उ म बु कही गयी है, वह आपम थत है ।। १८ ।। अथकृ े षु गषु ाप सु वजन य च । शारीरमानसै ःखैन सीद त भव धाः ।। १९ ।। ‘अथसंकट, तर ःख तथा वजन पर आयी ई वप य म आप-जैसे ानी शारी रक और मान सक ःख से पी डत नह होते ।। १९ ।। ूयतां चा भधा या म जनकेन यथा पुरा । आ म व थानकरा गीताः ोका महा मना ।। २० ।। ‘पूवकालम महा मा राजा जनकने अ तःकरणको थर करनेवाले कुछ ोक का गान कया था। म उन ोक का वणन करता ँ, आप सु नये— ।। २० ।। मनोदे हसमु था यां ःखा याम दतं जगत् । तयो ाससमासा यां शमोपाय ममं शृणु ।। २१ ।। ‘





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‘सारा जगत् मान सक और शारी रक ःख से पी डत है। उन दोन कारके ःख क शा तका यह उपाय सं ेप और व तारसे सु नये ।। २१ ।। ाधेर न सं पशा मा द ववजनात् । ःखं चतु भः शारीरं कारणैः स वतते ।। २२ ।। ‘रोग, अ य घटना क ा त, अ धक प र म तथा य व तु का वयोग—इन चार कारण से शारी रक ःख ा त होता है ।। २२ ।। तदा त तकारा च सततं चा व च तनात् । आ ध ा ध शमनं यायोग येन तु ।। २३ ।। ‘समयपर इन चार कारण का तीकार करना एवं कभी भी उसका च तन न करना —ये दो यायोग ( ःख नवारक उपाय) ह। इ ह से आ ध- ा धक शा त होती है ।। २३ ।। म तम तो तो वै ाः शमं ागेव कुवते । मानस य या यानैः स भोगोपनयैनृणाम् ।। २४ ।। ‘अतः बु मान् तथा व ान् पु ष य वचन बोलकर तथा हतकर भोग क ा त कराकर पहले मनु य के मान सक ःख का ही नवारण कया करते ह ।। २४ ।। मानसेन ह ःखेन शरीरमुपत यते । अयः प डेन त तेन कु भसं थ मवोदकम् ।। २५ ।। ‘ य क मनम ःख होनेपर शरीर भी संत त होने लगता है; ठ क वैसे ही, जैसे तपाया आ लोहेका गोला डाल दे नेपर घड़ेम रखा आ शीतल जल भी गरम हो जाता है ।। २५ ।। मानसं शमयेत् त मा ानेना न मवा बुना । शा ते मानसे य शारीरमुपशा य त ।। २६ ।। ‘इस लये जलसे अ नको शा त करनेक भाँ त ानके ारा मान सक ःखको शा त करना चा हये। मनका ःख मट जानेपर मनु यके शरीरका ःख भी र हो जाता है ।। २६ ।। मनसो ःखमूलं तु नेह इ युपल यते । नेहात् तु स जते ज तु ःखयोगमुपै त च ।। २७ ।। ‘मनके ःखका मूल कारण या है? इसका पता लगानेपर ‘ नेह’ (संसारम आस )क ही उपल ध होती है। इसी नेहके कारण ही जीव कह आस होता और ःख पाता है ।। २७ ।। नेहमूला न ःखा न नेहजा न भया न च । शोकहष तथाऽऽयासः सव नेहात् वतते ।। २८ ।। नेहाद् भावोऽनुराग ज े वषये तथा । अ ेय कावुभावेतौ पूव त गु ः मृतः ।। २९ ।। ‘ ःखका मूल कारण है आस । आस से ही भय होता है। शोक, हष तथा लेश —इन सबक ा त भी आस के कारण ही होती है। आस से ही वषय म भाव और ो े े ो ी ी ी े

अनुराग होते ह। ये दोन ही अमंगलकारी ह। इनम भी पहला अथात् वषय के त भाव महान् अनथकारक माना गया है ।। २८-२९ ।। कोटरा नयथाशेषं समूलं पादपं दहेत् । धमाथ तु तथा पोऽ प रागदोषो वनाशयेत् ।। ३० ।। ‘जैसे खोखलेम लगी ई आग स पूण वृ को जड़-मूलस हत जलाकर भ म कर दे ती है, उसी कार वषय के त थोड़ी-सी भी आस धम और अथ दोन का नाश कर दे ती है ।। ३० ।। व योगे न तु यागी दोषदश समागमे । वरागं भजते ज तु नवरो नरव हः ।। ३१ ।। ‘ वषय के ा त न होनेपर जो उनका याग करता है, वह यागी नह है; अ पतु जो वषय के ा त होनेपर भी उनम दोष दे खकर उनका प र याग करता है, व तुतः वही यागी है—वही वैरा यको ा त होता है। उसके मनम कसीके त े षभाव न होनेके कारण वह नवर तथा ब धनमु होता है ।। ३१ ।। त मात् नेहं न ल सेत म े यो धनसंचयात् । वशरीरसमु थं च ानेन व नवतयेत् ।। ३२ ।। ‘इस लये म तथा धनरा शको पाकर इनके त नेह (आस ) न करे। अपने शरीरसे उ प ई आस को ानसे नवृ करे ।। ३२ ।। ाना वतेषु यु े षु शा ेषु कृता मसु । न तेषु स जते नेहः पप े ववोदकम् ।। ३३ ।। ‘जो ानी, योगयु , शा तथा मनको वशम रखनेवाले ह, उनपर आस का भाव उसी कार नह पड़ता, जैसे कमलके प ेपर जल नह ठहरता ।। ३३ ।। रागा भभूतः पु षः कामेन प रकृ यते । इ छा संजायते त य तत तृ णा ववधते ।। ३४ ।। तृ णा ह सवपा प ा न यो े गकरी मृता । अधमब ला चैव घोरा पापानुब धनी ।। ३५ ।। ‘रागके वशीभूत ए पु षको काम अपनी ओर आकृ कर लेता है। फर उसके मनम कामभोगक इ छा जाग उठती है। त प ात् तृ णा बढ़ने लगती है। तृ णा सबसे बढ़कर पा प (पापम वृ करनेवाली) तथा न य उ े ग करनेवाली बतायी गयी है। उसके ारा ायः अधम ही होता है। वह अ य त भयंकर पापाब धनम डालनेवाली है ।। ३४-३५ ।। या यजा म त भया न जीय त जीयतः । योऽसौ ाणा तको रोग तां तृ णां यजतः सुखम् ।। ३६ ।। ‘खोट बु वाले मनु य के लये जसे यागना अ य त क ठन है, जो शरीरके जरासे जीण हो जानेपर भी वयं जीण नह होती तथा जसे ाणनाशक रोग बताया गया है, उस तृ णाको जो याग दे ता है, उसीको सुख मलता है ।। ३६ ।। अना ता तु सा तृ णा अ तदहगता नृणाम् । वनाशय त भूता न अयो नज इवानलः ।। ३७ ।। ‘ े ी े ी ी ी ै ो ी

‘यह तृ णा य प मनु य के शरीरके भीतर ही रहती है, तो भी इसका कह आ दअ त नह है। लोहेके प डक आगके समान यह तृ णा ा णय का वनाश कर दे ती है ।। ३७ ।। यथैधः वसमु थेन व ना नाशमृ छ त । तथाकृता मा लोभेन सहजेन वन य त ।। ३८ ।। ‘जैसे का अपनेसे ही उ प ई आगसे जलकर भ म हो जाता है, उसी कार जसका मन वशम नह है, वह मनु य अपने शरीरके साथ उ प ए लोभके ारा वयं न हो जाता है ।। ३८ ।। राजतः स ललाद ने ोरतः वजनाद प । भयमथवतां न यं मृ योः ाणभृता मव ।। ३९ ।। ‘धनवान् मनु य को राजा, जल, अ न, चोर तथा वजन से भी सदा उसी कार भय बना रहता है, जैसे सब ा णय को मृ युसे ।। ३९ ।। यथा ा मषमाकाशे प भः ापदै भु व । भ यते स लले म यै तथा सव व वान् ।। ४० ।। ‘जैसे मांसके टु कड़ेको आकाशम प ी, पृ वीपर ह ज तु तथा जलम मछ लयाँ खा जाती ह, उसी कार धनवान् पु षको सब लोग सव नोचते रहते ह ।। ४० ।। अथ एव ह केषां चदनथ भजते नृणाम् । अथ ेय स चास ो न ेयो व दते नरः ।। ४१ ।। ‘ कतने ही मनु य के लये अथ ही अनथका कारण बन जाता है; य क अथ ारा स होनेवाले ेय (सांसा रक भोग)-म आस मनु य वा त वक क याणको नह ा त होता ।। ४१ ।। त मादथागमाः सव मनोमोह ववधनाः । काप यं दपमानौ च भयमु े ग एव च ।। ४२ ।। अथजा न व ः ा ाः ःखा येता न दे हनाम् । अथ यो पादने चैव पालने च तथा ये ।। ४३ ।। सह त च महद् ःखं न त चैवाथकारणात् । अथा ःखं प र य ुं पा लता ैव श वः ।। ४४ ।। ‘इस लये धन- ा तके सभी उपाय मनम मोह बढ़ानेवाले ह। कृपणता, घम ड, अ भमान, भय और उ े ग इ ह व ान ने दे हधा रय के लये धनज नत ःख माना है। धनके उपाजन, संर ण तथा यम मनु य महान् ःख सहन करते ह और धनके ही कारण एकसरेको मार डालते ह। धनको यागनेम भी महान् ःख होता है और य द उसक र ा क जाय तो वह श ुका-सा काम करता है* ।। ४२—४४ ।। ःखेन चा धग य ते त मा ाशं न च तयेत् । असंतोषपरा मूढाः संतोषं या त प डताः ।। ४५ ।। ‘



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‘धनक ा त भी ःखसे ही होती है। इस लये उसका च तन न करे; य क धनक च ता करना अपना नाश करना है। मूख मनु य सदा असंतु रहते ह और व ान् पु ष संतु ।। ४५ ।। अ तो ना त पपासायाः संतोषः परमं सुखम् । त मात् संतोषमेवेह परं प य त प डताः ।। ४६ ।। ‘धनक यास कभी बुझती नह है; अतः संतोष ही परम सुख है। इसी लये ानीजन संतोषको ही सबसे उ म समझते ह ।। ४६ ।। अ न यं यौवनं पं जी वतं र नसंचयः । ऐ य यसंवासो गृ येत् त न प डतः ।। ४७ ।। ‘यौवन, प, जीवन, र न का सं ह, ऐ य तथा यजन का एक नवास—ये सभी अ न य ह; अतः व ान् पु ष उनक अ भलाषा न करे ।। ४७ ।। यजेत संचयां त मा जान् लेशान् सहेत च । न ह संचयवान् क द् यते न प वः । अत धा मकैः पुं भरनीहाथः श यते ।। ४८ ।। ‘इस लये धन-सं हका याग करे और उसके यागसे जो लेश हो, उसे धैयपूवक सह ले। जनके पास धनका सं ह है, ऐसा कोई भी मनु य उप वर हत नह दे खा जाता। अतः धमा मा पु ष उसी धनक शंसा करते ह जो दै वे छासे यायपूवक वतः ा त हो गया हो ।। ४८ ।। धमाथ य य व ेहा वरं त य नरीहता । ालना पंक य ेयो न पशनं नृणाम् ।। ४९ ।। ‘जो धम करनेके लये धनोपाजनक इ छा करता है उसका धनक इ छा न करना ही अ छा है। क चड़ लगाकर धोनेक अपे ा मनु य के लये उसका पश न करना ही े है ।। ४९ ।। यु ध रैवं सवषु न पृहां कतुमह स । धमण य द ते काय वमु े छो भवाथतः ।। ५० ।। ‘यु ध र! इस कार आपके लये कसी भी व तुक अ भलाषा करनी उ चत नह है। य द आपको धमसे ही योजन हो तो धनक इ छाका सवथा याग कर द’ ।। ५० ।।

यु ध र उवाच नाथ पभोग ल साथ मयमथ सुता मम । भरणाथ तु व ाणां न् काङ् े न लोभतः ।। ५१ ।। यु ध रने कहा— न्! म जो धन चाहता ँ वह इस लये नह क मुझे धनस बधी भोग भोगनेक इ छा है। म तो ा ण के भरण-पोषणके लये ही धनक इ छा रखता ँ, लोभवश नह ।। ५१ ।। कथं म धो न् वतमानो गृहा मे । भरणं पालनं चा प न कुयादनुया यनाम् ।। ५२ ।। े

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व वर! गृह थ-आ मम रहनेवाला मेरे-जैसा पु ष अपने अनुया यय का भरणपोषण भी न करे, यह कैसे उ चत हो सकता है? ।। ५२ ।। सं वभागो ह भूतानां सवषामेव यते । तथैवापचमाने यः दे यं गृहमे धना ।। ५३ ।। गृह थके भोजनम दे वता, पतर, मनु य एवं सम त ा णय का ह सा दे खा जाता है। गृह थका यह धम है क वह अपने हाथसे भोजन न बनानेवाले सं यासी आ दको अव य पका-पकाया अ दे ।। ५३ ।। तृणा न भू म दकं वाक् चतुथ च सूनृता । सतामेता न गेहेषु नो छ ते कदाचन ।। ५४ ।। आसनके लये तृण (कुश), बैठनेके लये थान, जल और चौथी मधुर वाणी, स पु ष के घरम इन चार व तु का अभाव कभी नह होता ।। ५४ ।। दे यमात य शयनं थत ा त य चासनम् । तृ षत य च पानीयं ु धत य च भोजनम् ।। ५५ ।। रोग आ दसे पी ड़त मनु यको सोनेके लये शया, थके-माँदे एको बैठनेके लये आसन, यासेको पानी और भूखेको भोजन तो दे ना ही चा हये ।। ५५ ।। च ुद ा मनो द ाद् वाचं द ात् सुभा षताम् । उ थाय चासनं द ादे ष धमः सनातनः । यु थाया भगमनं कुया यायेन चाचनम् ।। ५६ ।। जो अपने घरपर आ जाय, उसे ेमभरी से दे खे, मनसे उसके त उ म भाव रखे, उससे मीठे वचन बोले और उठकर उसके लये आसन दे । यह गृह थका सनातन धम है। अ त थको आते दे ख उठकर उसक अगवानी और यथो चत री तसे उसका आदर-स कार करे ।। ५६ ।। अ नहो मनड् वां ातयोऽ त थबा धवाः । पु ा दारा भृ या नदहेयुरपू जताः ।। ५७ ।। य द गृह थ मनु य अ नहो , साँड, जा त-भाई, अ त थ-अ यागत, ब धु-बा धव, ी-पु तथा भृ यजन का आदर-स कार न करे तो वे अपनी ोधा नसे उसे जला सकते ह ।। ५७ ।। आ माथ पाचये ा ं न वृथा घातयेत् पशून् । न च तत् वयमीयाद ् व धवद् य नवपेत् ।। ५८ ।। केवल अपने लये अ न पकावे (दे वता- पतर एवं अ त थय के उद्दे यसे ही भोजन बनानेका वधान है), नक मे पशु क भी हसा न करे और जस व तुको व धपूवक दे वता आ दके लये अ पत न करे, उसे वयं भी न खाय ।। ५८ ।। य पचे य वयो य ावपेद ् भु व । वै दे वं ह नामैतत् सायं ात द यते ।। ५९ ।। कु , चा डाल और कौव के लये पृ वीपर अ डाल दे । यह वै दे व नामक महान् य है, जसका अनु ान ातःकाल और सायंकालम भी कया जाता है ।। ५९ ।। ी े ो

वघसाशी भवेत् त मा यं चामृतभोजनः । वघसो भु शेषं तु य शेषं तथामृतम् ।। ६० ।। अतः गृह थ मनु य त दन वघस एवं अमृत भोजन करे। घरके सब लोग के भोजन कर लेनेपर जो अ शेष रह जाय उसे ‘ वघस’ कहते ह तथा ब ल-वै दे वसे बचे ए अ का नाम ‘अमृत’ है ।। ६० ।। च ुद ा मनो द ाद् वाचं द ा च सूनृताम् । अनु जे पासीत स य ः प चद णः ।। ६१ ।। अ त थको ने दे (उसे ेमभरी से दे खे), मन दे (मनसे हत- च तन करे) तथा मधुर वाणी दान करे (स य, य, हतक बात कहे)। जब वह जाने लगे तब कुछ रतक उसके पीछे -पीछे जाय और जबतक वह घरपर रहे तबतक उसके पास बैठे (उसक सेवाम लगा रहे)। यह पाँच कारक द णा से यु अ त थ-य है ।। ६१ ।। यो द ादप र ल म म व न वतते । ा ताया पूवाय त य पु यफलं महत् ।। ६२ ।। जो गृह थ अप र चत थके-माँदे प थकको स तापूवक भोजन दे ता है, उसे महान् पु यफलक ा त होती है ।। ६२ ।। एवं यो वतते वृ वतमानो गृहा मे । त य धम परं ा ः कथं वा व म यसे ।। ६३ ।। न्! जो गृह थ इस वृ से रहता है, उसके लये उ म धमक ा त बतायी गयी है, अथवा इस वषयम आपक या स म त है? ।। ६३ ।।

शौनक उवाच अहो बत महत् क ं वपरीत मदं जगत् । येनाप पते साधुरसाधु तेन तु य त ।। ६४ ।। शौनकजीने कहा—अहो! ब त ःखक बात है, इस जगत्म वपरीत बात दखायी दे ती ह। साधु पु ष जस कमसे ल जत होते ह, मनु य को उसीसे स ता ा त होती है ।। ६४ ।। शोदरक ृ तेऽ ा ः करो त वघसं ब । मोहरागवशा ा त इ याथवशानुगः ।। ६५ ।। अ ानी मनु य अपनी जनने य तथा उदरक तृ तके लये मोह एवं रागके वशीभूत हो वषय का अनुसरण करता आ नाना कारक वषय-साम ीको य ावशेष मानकर उसका सं ह करता है ।। ६५ ।। यते बु यमानोऽ प नरो हा र भ र यैः । वमूढसं ो ा ै द् ा तै रव सार थः ।। ६६ ।। समझदार मनु य भी मनको हर लेनेवाली इ य ारा वषय क ओर ख च लया जाता है। उस समय उसक वचारश मो हत हो जाती है। जैसे घोड़े वशम न होनेपर ो













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सार थको कुमागम घसीट ले जाते ह, यही दशा उस अ जते य पु षक भी होती है ।। ६६ ।। ष ड या ण वषयं समाग छ त वै यदा । तदा ा भव येषां पूवसंक पजं मनः ।। ६७ ।। जब मन और पाँच इ याँ अपने वषय म वृ होती ह, उस समय ा णय के पूवसंक पके अनुसार उसीक वासनासे वा सत मन वच लत हो उठता है ।। ६७ ।। मनो य ये य येह वषयान् या त से वतुम् । त यौ सु यं स भव त वृ ोपजायते ।। ६८ ।। मन जस इ यके वषय का सेवन करने जाता है, उसीम उस वषयके त उ सुकता भर जाती है और वह इ य उस वषयके उपभोगम वृ हो जाती है ।। ६८ ।। ततः संक पबीजेन कामेन वषयेषु भः । व ः पत त लोभा नौ यो तल भात् पत वत् ।। ६९ ।। तदन तर संक प ही जसका बीज है, उस कामके ारा वषय पी बाण से बधकर मनु य यो तके लोभसे पतंगक भाँ त लोभक आगम गर पड़ता है ।। ६९ ।। ततो वहारैराहारैम हत यथे सया । महामोहे सुखे म नो ना मानमवबु यते ।। ७० ।। इसके बाद इ छानुसार आहार- वहारसे मो हत हो महामोहमय सुखम नम न रहकर वह मनु य अपने आ माके ानसे वं चत हो जाता है ।। ७० ।। एवं पत त संसारे तासु ता वह यो नषु । अ व ाकमतृ णा भ ा यमाणोऽथ च वत् ।। ७१ ।। इस कार अ व ा, कम और तृ णा ारा च क भाँ त मण करता आ मनु य संसारक व भ यो नय म गरता है ।। ७१ ।। ा दषु तृणा तेषु भूतेषु प रवतते । जले भु व तथाऽऽकाशे जायमानः पुनः पुनः ।। ७२ ।। फर तो ासे लेकर तृणपय त सभी ा णय म तथा जल, भू म और आकाशम वह मनु य बारंबार ज म लेकर च कर लगाता रहता है ।। ७२ ।। अबुधानां ग त वेषा बुधानाम प मे शृणु । ये धम ेय स रता वमो रतयो जनाः ।। ७३ ।। यह अ ववेक पु ष क ग त बतायी गयी है। अब आप मुझसे ववेक पु ष क ग तका वणन सुन। जो धम एवं क याणमागम त पर ह और मो के वषयम जनका नर तर अनुराग है, वे ववेक ह ।। ७३ ।। त ददं वेदवचनं कु कम यजे त च । त माद् धमा नमान् सवान् ना भमानात् समाचरेत् ।। ७४ ।। वेदक यह आ ा है क कम करो और कम छोड़ो; अतः आगे बताये जानेवाले इन सभी धम का अहंकारशू य होकर अनु ान करना चा हये ।। ७४ ।। इ या ययनदाना न तपः स यं मा दमः । ो

अलोभ इ त माग ऽयं धम या वधः मृतः ।। ७५ ।। य , अ ययन, दान, तप, स य, मा, मन और इ य का संयम तथा लोभका प र याग—ये धमके आठ माग ह ।। ७५ ।। अ पूव तुवगः पतृयाणपथे थतः । कत म त यत् काय ना भमानात् समाचरेत् ।। ७६ ।। इनम पहले बताये ए चार धम पतृयानके मागम थत ह; अथात् इन चार का सकामभावसे अनु ान करनेपर ये पतृयानमागसे ले जाते ह। अ नहो और सं योपासना द जो अव य करनेयो य कम ह, उ ह कत -बु से ही अ भमान छोड़कर करे ।। ७६ ।। उ रो दे वयान तु स राच रतः सदा । अ ा े नैव मागण वशु ा मा समाचरेत् ।। ७७ ।। अ तम चार धम को दे वयानमागका व प बताया गया है। साधु पु ष सदा उसी मागका आ य लेते ह। आगे बताये जानेवाले आठ अंग से यु माग ारा अपने अ तःकरणको शु करके कत -कम का कतृ वके अ भमानसे र हत होकर पालन करे ।। ७७ ।। स य संक पसंब धात् स यक् चे य न हात् । स य त वशेषा च स यक् च गु सेवनात् ।। ७८ ।। स यगाहारयोगा च स यक् चा ययनागमात् । स य कम पसं यासात् स यक् च नरोधनात् ।। ७९ ।। पूणतया संक प को एक येयम लगा दे नेसे, इ य को भली कार वशम कर लेनेसे, अ हसा द त का अ छ कार पालन करनेसे, भली कार गु क सेवा करनेसे, यथायो य योगसाधनोपयोगी आहार करनेसे, वेदा दका भली कार अ ययन करनेसे, कम को भलीभाँ त भगव समपण करनेसे और च का भली कार नरोध करनेसे मनु य परम क याणको ा त होता है ।। ७८-७९ ।। एवं कमा ण कुव त संसार व जगीषवः । राग े ष व नमु ा ऐ य द े वता गताः ।। ८० ।। संसारको जीतनेक इ छावाले बु मान् पु ष इसी कार राग- े षसे मु होकर कम करते ह। इ ह नयम के पालनसे दे वतालोग ऐ यको ा त ए ह ।। ८० ।। ाः सा या तथाऽऽ द या वसवोऽथ तथा नौ । योगै यण संयु ा धारय त जा इमाः ।। ८१ ।। , सा य, आ द य, वसु तथा दोन अ नीकुमार योगज नत ऐ यसे यु होकर इन जाजन का धारण-पोषण करते ह ।। ८१ ।। तथा वम प कौ तेय शममा थाय पु कलम् । तपसा स म व छ योग स च भारत ।। ८२ ।। कु तीन दन! इसी कार आप भी मन और इ य को भलीभाँ त वशम करके तप या ारा स तथा योगज नत ऐ य ा त करनेक चे ा क जये ।। ८२ ।। ी ी े

पतृमातृमयी स ः ा ता कममयी च ते । तपसा स म व छ जानां भरणाय वै ।। ८३ ।। य , यु ा द कम से ा त होनेवाली स पतृ-मातृमयी (परलोक और इहलोकम भी लाभ प ँचानेवाली) है, जो आपको ा त हो चुक है। अब तप या ारा वह योग स ा त करनेका य न क जये जससे ा ण का भरण-पोषण हो सके ।। ८३ ।। स ा ह यद् य द छ त कुवते तदनु हात् । त मा पः समा थाय कु वा ममनोरथम् ।। ८४ ।। स पु ष जो-जो व तु चाहते ह, उसे अपने तपके भावसे ा त कर लेते ह। अतः आप तप याका आ य लेकर अपने मनोरथक पू त क जये ।। ८४ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण अर यपव ण पा डवानां जने तीयोऽ यायः ।। २ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत अर यपवम पा डव का जन (वनगमन)वषयक सरा अ याय पूरा आ ।। २ ।।

* धनके लोभसे मनु य धनके र कक ह या कर डालते ह।

तृतीयोऽ यायः यु ध रके ारा अ के लये भगवान् सूयक उपासना और उनसे अ यपा क ा त वैश पायन उवाच शौनकेनैवमु तु कु तीपु ो यु ध रः । पुरो हतमुपाग य ातृम येऽ वी ददम् ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! शौनकके ऐसा कहनेपर कु तीन दन यु ध र अपने पुरो हतके पास आकर भाइय के बीचम इस कार बोले— ।। १ ।। थतं मानुया तीमे ा णा वेदपारगाः । न चा म पोषणे श ो ब ःखसम वतः ।। २ ।। ‘ व वर! ये वेद के पारंगत व ान् ा ण मेरे साथ वनम चल रहे ह। परंतु म इनका पालन-पोषण करनेम असमथ ँ, यह सोचकर मुझे बड़ा ःख हो रहा है ।। २ ।। प र य ुं न श ोऽ म दानश ना त मे । कथम मया काय तद् ू ह भगवन् मम ।। ३ ।। ‘भगवन्! म इन सबका याग नह कर सकता; परंतु इस समय मुझम इ ह अ दे नेक श नह है। ऐसी अव थाम मुझे या करना चा हये? यह कृपा करके बताइये’ ।। ३ ।। वैश पायन उवाच मुत मव स या वा धमणा व य तां ग तम् । यु ध रमुवाचेदं धौ यो धमभृतां वरः ।। ४ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! धमा मा म े धौ य मु नने यु ध रका सुनकर दो घड़ीतक यान-सा लगाया और धमपूवक उस उपायका अ वेषण करनेके प ात् उनसे इस कार कहा ।। ४ ।। धौ य उवाच पुरा सृ ा न भूता न पी ते ुधया भृशम् । ततोऽनुक पया तेषां स वता व पता यथा ।। ५ ।। ग वो रायणं तेजो रसानुदधृ ् य र म भः । द णायनमावृ ो मह न वशते र वः ।। ६ ।। धौ य बोले—राजन्! सृ के ार भकालम जब सभी ाणी भूखसे अ य त ाकुल हो रहे थे, तब भगवान् सूयने पताक भाँ त उन सबपर दया करके उ रायणम जाकर अपनी करण से पृ वीका रस (जल) ख चा और द णायनम लौटकर पृ वीको उस रससे आ व कया ।। ५-६ ।। े भूते तत त म ोषधीरोषधीप तः । े

दव तेजः समुदधृ ् य जनयामास वा रणा ।। ७ ।। इस कार जब सारे भूम डलम े तैयार हो गया, तब ओष धय के वामी च माने अ त र म मेघ के पम प रणत ए सूयके तेजको कट करके उसके ारा बरसाये ए जलसे अ आ द ओष धय को उ प कया ।। ७ ।। नष तेजो भः वयोनौ नगते र वः । ओष यः षसा मे या तद ं ा णनां भु व ।। ८ ।। च माक करण से अ भ ष आ सूय जब अपनी कृ तम थत हो जाता है, तब छः कारके रस से यु प व ओष धयाँ उ प होती ह। वही पृ वीम ा णय के लये अ होता है ।। ८ ।। एवं भानुमयं ं भूतानां ाणधारणम् । पतैष सवभूतानां त मात् तं शरणं ज ।। ९ ।। इस कार सभी जीव के ाण क र ा करनेवाला अ सूय प ही है। अतः भगवान् सूय ही सम त ा णय के पता ह, इस लये तुम उ ह क शरणम जाओ ।। ९ ।। राजानो ह महा मानो यो नकम वशो धताः । उ र त जाः सवा तप आ थाय पु कलम् ।। १० ।। जो ज म और कम दोन ही य से परम उ वल ह, ऐसे महा मा राजा भारी तप याका आ य लेकर स पूण जाजन का संकटसे उ ार करते ह ।। १० ।। भीमेन कातवीयण वै येन न षेण च । तपोयोगसमा ध थै ता ापदः जाः ।। ११ ।। भीम, कातवीय अजुन, वेनपु पृथु तथा न ष आ द नरेश ने तप या, योग और समा धम थत होकर भारी आप य से जाको उबारा है ।। ११ ।। तथा वम प धमा मन् कमणा च वशो धतः । तप आ थाय धमण जातीन् भर भारत ।। १२ ।। धमा मा भारत! इसी कार तुम भी स कमसे शु होकर तप याका आ य ले धमानुसार जा तय का भरण-पोषण करो ।। १२ ।। जनमेजय उवाच कथं कु णामृषभः स तु राजा यु ध रः । व ाथमारा धतवान् सूयम तदशनम् ।। १३ ।। जनमेजयने पूछा—भगवन्! पु ष े राजा यु ध रने ा ण के भरण-पोषणके लये, जनका दशन अ य त अद्भुत है, उन भगवान् सूयक आराधना कस कार क ? ।। १३ ।। वैश पायन उवाच शृणु वाव हतो राजन् शु चभू वा समा हतः । णं च कु राजे स व या यशेषतः ।। १४ ।। ै

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वैश पायनजीने कहा—राजे ! म सब बात बता रहा ँ। तुम सावधान, प व और एका च होकर सुनो और धैय रखो ।। १४ ।। धौ येन तु यथा पूव पाथाय सुमहा मने । नामा शतमा यातं त छृ णु व महामते ।। १५ ।। महामते! धौ यने जस कार महा मा यु ध रको पहले भगवान् सूयके एक सौ आठ नाम बताये थे, उनका वणन करता ँ, सुनो ।। १५ ।।

धौ य उवाच सूय ऽयमा भग व ा पूषाकः स वता र वः । गभ तमानजः कालो मृ युधाता भाकरः ।। १६ ।। पृ थ ाप तेज खं वायु परायणम् । सोमो बृह प तः शू ो बुधोऽ ारक एव च ।। १७ ।। इ ो वव वान् द तांशुः शु चः शौ रः शनै रः । ा व णु क दो वै व णो यमः ।। १८ ।। वै ुतो जाठर ा नरै धन तेजसां प तः । धम वजो वेदकता वेदा ो वेदवाहनः ।। १९ ।। कृतं ेता ापर क लः सवमला यः । कला का ा मुता पा याम तथा णः ।। २० ।। संव सरकरोऽ थः कालच ो वभावसुः । पु षः शा तो योगी ा ः सनातनः ।। २१ ।। काला य ः जा य ो व कमा तमोनुदः । व णः सागर ऽशु जीमूतो जीवनोऽ रहा ।। २२ ।। भूता यो भूतप तः सवलोकनम कृतः । ा संवतको व ः सव या दरलोलुपः ।। २३ ।। अन तः क पलो भानुः कामदः सवतोमुखः । जयो वशालो वरदः सवधातु नषे चता ।। २४ ।। मनःसुपण भूता दः शी गः ाणधारकः । ध व त रधूमकेतुरा ददे वोऽ दतेः सुतः ।। २५ ।। ादशा मार व दा ः पता माता पतामहः । वग ारं जा ारं मो ारं व पम् ।। २६ ।। दे हकता शा ता मा व ा मा व तोमुखः । चराचरा मा सू मा मा मै ेयः क णा वतः ।। २७ ।। एतद् वै क तनीय य सूय या मततेजसः । नामा शतकं चेदं ो मेतत् वयंभुवा ।। २८ ।। धौ य बोले—१ सूय, २ अयमा, ३ भग, ४ व ा, ५ पूषा, ६ अक, ७ स वता, ८ र व, ९ गभ तमान्, १० अज, ११ काल, १२ मृ यु, १३ धाता, १४ भाकर, १५ पृ थवी, १६ आप, े

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१७ तेज, १८ ख (आकाश), १९ वायु, २० परायण, २१ सोम, २२ बृह प त, २३ शु , २४ बुध, २५ अंगारक (मंगल) २६ इ , २७ वव वान्, २८ द तांशु, २९ शु च, ३० शौ र, ३१ शनै र, ३२ ा, ३३ व णु, ३४ , ३५ क द, ३६ व ण, ३७ यम, ३८ वै ुता न, ३९ जाठरा न, ४० ऐ धना न, ४१ तेजःप त, ४२ धम वज, ४३ वेदकता, ४४ वेदांग, ४५ वेदवाहन, ४६ कृत, ४७ ेता, ४८ ापर, ४९ सवमला य क ल, ५० कला-का ा-मु त प समय, ५१ पा (रा ), ५२ याम, ५३ ण, ५४ संव सरकर ५५ अ थ, ५६ कालच वतक वभावसु, ५७ शा त पु ष, ५८ योगी, ५९ ा , ६० सनातन, ६१ काला य , ६२ जा य , ६३ व कमा, ६४ तमोनुद, ६५ व ण, ६६ सागर, ६७ अंशु, ६८ जीमूत, ६९ जीवन, ७० अ रहा, ७१ भूता य, ७२ भूतप त, ७३ सवलोक-नम कृत, ७४ ा, ७५ संवतक, ७६ व , ७७ सवा द, ७८ अलोलुप, ७९ अन त, ८० क पल, ८१ भानु, ८२ कामद, ८३ सवतोमुख, ८४ जय, ८५ वशाल, ८६ वरद, ८७ सवधातु नषे चता, ८८ मनःसुपण, ८९-भूता द, ९० शी ग, ९१ ाणधारक, ९२ ध व त र, ९३ धूमकेतु, ९४ आ ददे व, ९५ अ द तसुत, ९६ ादशा मा, ९७ अर व दा , ९८ पता-माता- पतामह, ९९ वग ार- जा ार, १०० मो ार- व प, १०१ दे हकता, १०२ शा ता मा, १०३ व ा मा, १०४ व तोमुख, १०५ चराचरा मा, १०६ सू मा मा, १०७ मै ेय तथा १०८ क णा वत—ये अ मततेज वी भगवान् सूयके क तन करनेयो य एक सौ आठ नाम ह, जनका उपदे श सा ात् ाजीने कया है ।। १६—२८ ।। सुरगण पतृय से वतं सुर नशाचर स व दतम् । वरकनक ताशन भं णप ततोऽ म हताय भा करम् ।। २९ ।। (इन नाम का उ चारण करके भगवान् सूयको इस कार नम कार करना चा हये।) सम त दे वता, पतर और य जनक सेवा करते ह, असुर, रा स तथा स जनक व दना करते ह तथा जो उ म सुवण और अ नके समान का तमान् ह, उन भगवान् भा करको म अपने हतके लये णाम करता ँ ।। २९ ।। सूय दये यः सुसमा हतः पठ े त् स पु दारान् धनर नसंचयान् । लभेत जा त मरतां नरः सदा धृ त च मेधां च स व दते पुमान् ।। ३० ।। जो मनु य सूय दयके समय भलीभाँ त एका च हो इन नाम का पाठ करता है वह ी, पु , धन, र नरा श, पूवज मक मृ त, धैय तथा उ म बु ा त कर लेता है ।। ३० ।। इमं तवं दे ववर य यो नरः क तये छु चसुमनाः समा हतः । वमु यते शोकदवा नसागरालभेत कामान् मनसा यथे सतान् ।। ३१ ।। ो े ो े े ‘ ’ े

जो मानव नान आ द करके प व , शु च एवं एका हो दे वे र ‘भगवान्’ सूयके इस नामा मक तो का क तन करता है वह शोक पी दावानलसे यु तर संसारसागरसे मु हो मनचाही व तु को ा त कर लेता है ।। ३१ ।। वैश पायन उवाच एवमु तु धौ येन त कालस शं वचः । व यागसमा ध थः संयता मा ढ तः ।। ३२ ।। धमराजो वशु ा मा तप आ त मम् । पु पोपहारैब ल भरच य वा दवाकरम् ।। ३३ ।। सोऽवगा जलं राजा दे व या भमुखोऽभवत् । योगमा थाय धमा मा वायुभ ो जते यः ।। ३४ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! पुरो हत धौ यके इस कार समयो चत बात कहनेपर ा ण को दे नेके लये अ क ा तके उ े यसे नयमम थत हो मनको वशम रखकर ढ़तापूवक तका पालन करते ए शु चेता धमराज यु ध रने उ म तप याका अनु ान आर भ कया। राजा यु ध रने गंगाजीके जलम नान करके पु प और नैवे आ द उपहार ारा भगवान् दवाकरक पूजा क और उनके स मुख मुँह करके खड़े हो गये। धमा मा पा डु कुमार च को एका करके इ य को संयमम रखते ए केवल वायु पीकर रहने लगे ।। ३२—३४ ।। गा े यं वायुप पृ य ाणायामेन त थवान् । शु चः यतवाग् भू वा तो मारधवां ततः ।। ३५ ।। गंगाजलका आचमन करके प व हो वाणीको वशम रखकर तथा ाणायामपूवक थत रहकर उ ह ने पूव अ ो रशतनामा मक तो का जप कया ।। ३५ ।। यु ध र उवाच वं भानो जगत ु वमा मा सवदे हनाम् । वं यो नः सवभूतानां वमाचारः यावताम् ।। ३६ ।। यु ध र बोले—सूयदे व! आप स पूण जगत्के ने तथा सम त ा णय के आ मा ह। आप ही सब जीव के उ प थान और कमानु ानम लगे ए पु ष के सदाचार ह ।। ३६ ।। वं ग तः सवसां यानां यो गनां वं परायणम् । अनावृतागल ारं वं ग त वं मुमु ताम् ।। ३७ ।। स पूण सां ययो गय के ा त थान आप ही ह। आप ही सब कमयो गय के आ य ह। आप ही मो के उ मु ार ह और आप ही मुमु ु क ग त ह ।। ३७ ।। वया संधायते लोक वया लोकः का यते । वया प व ी यते न ाजं पा यते वया ।। ३८ ।। आप ही स पूण जगत्को धारण करते ह। आपसे ही यह का शत होता है। आप ही इसे प व करते ह और आपके ही ारा नः वाथभावसे इसका पालन कया जाता ै

है ।। ३८ ।। वामुप थाय काले तु ा णा वेदपारगाः । वशाखा व हतैम ैरच यृ षगणा चतम् ।। ३९ ।। सूयदे व! आप ऋ षगण ारा पू जत ह। वेदके त व ा णलोग अपनी-अपनी वेदशाखा म व णत म ारा उ चत समयपर उप थान करके आपका पूजन कया करते ह ।। ३९ ।। तव द ं रथं या तमनुया त वरा थनः । स चारणग धवा य गु कप गाः ।। ४० ।। स , चारण, ग धव, य , गु क और नाग आपसे वर पानेक अ भलाषासे आपके ग तशील द रथके पीछे -पीछे चलते ह ।। ४० ।। य ंश च वै दे वा तथा वैमा नका गणाः । सोपे ाः समहे ा वा म ् वा स मागताः ।। ४१ ।। ततीस१ दे वता एवं वमानचारी स गण भी उपे तथा महे स हत आपक आराधना करके स को ा त ए ह ।। ४१ ।। उपया यच य वा तु वां वै ा तमनोरथाः । द म दारमाला भ तूण व ाधरो माः ।। ४२ ।। गु ाः पतृगणाः स त ये द ा ये च मानुषाः । ते पूज य वा वामेव ग छ याशु धानताम् ।। ४३ ।। वसवो म तो ा ये च सा या मरी चपाः । वालख यादयः स ाः े वं ा णनां गताः ।। ४४ ।। े व ाधरगण द म दार-कुसुम क माला से आपक पूजा करके सफलमनोरथ हो तुरंत आपके समीप प ँच जाते ह। गु क, सात२ कारके पतृगण तथा द मानव (सनका द) आपक ही पूजा करके े पदको ा त करते ह। वसुगण, म द्गण, , सा य तथा आपक करण का पान करनेवाले वालख य आ द स मह ष आपक ही आराधनासे सब ा णय म े ए ह ।। ४२-४४ ।। स केषु लोकेषु स त व यखलेषु च । न त तमहं म ये यदकाद त र यते ।। ४५ ।। स त चा या न स वा न वीयव त महा त च । न तु तेषां तथा द तः भावो वा यथा तव ।। ४६ ।। योत ष व य सवा ण वं सव यो तषां प तः । व य स यं च स वं च सव भावा सा वकाः ।। ४७ ।। व ेजसा कृतं च ं सुनाभं व कमणा । दे वारीणां मदो येन ना शतः शा ध वना ।। ४८ ।। लोकस हत ऊपरके सात लोक म तथा अ य सब लोक म भी ऐसा कोई ाणी नह द खता जो आप भगवान् सूयसे बढ़कर हो। भगवन्! जगत्म और भी ब त-से महान् ी







श शाली ाणी ह; परंतु उनक का त और भाव आपके समान नह ह। स पूण यो तमय पदाथ आपके ही अ तगत ह। आप ही सम त यो तय के वामी ह। स य, स व तथा सम त सा वक भाव आपम ही त त ह। ‘शा ’ नामक धनुष धारण करनेवाले भगवान् व णुने जसके ारा दै य का घमंड चूण कया है उस सुदशन च को व कमाने आपके ही तेजसे बनाया है ।। ४५—४८ ।। वमादायांशु भ तेजो नदाघे सवदे हनाम् । सव ष धरसानां च पुनवषासु मु च स ।। ४९ ।। आप ी म-ऋतुम अपनी करण से सम त दे हधा रय के तेज और स पूण ओष धय के रसका सार ख चकर पुनः वषाकालम उसे बरसा दे ते ह ।। ४९ ।। तप य ये दह य ये गज य ये तथा घनाः । व ोत ते वष त तव ावृ ष र मयः ।। ५० ।। वषा-ऋतुम आपक कुछ करण तपती ह, कुछ जलाती ह, कुछ मेघ बनकर गरजती, बजली बनकर चमकती तथा वषा भी करती ह ।। ५० ।। न तथा सुखय य नन ावारा न क बलाः । शीतवाता दतं लोकं यथा तव मरीचयः ।। ५१ ।। शीतकालक वायुसे पी ड़त जगत्को अ न, क बल और व भी उतना सुख नह दे ते जतना आपक करण दे ती ह ।। ५१ ।। योदश पवत गो भभासयसे महीम् । याणाम प लोकानां हतायैकः वतसे ।। ५२ ।। आप अपनी करण ारा तेरह* प से यु स पूण पृ वीको का शत करते ह; और अकेले ही तीन लोक के हतके लये त पर रहते ह ।। ५२ ।। तव य ुदयो न याद धं जग ददं भवेत् । न च धमाथकामेषु वतरन् मनी षणः ।। ५३ ।। य द आपका उदय न हो तो यह सारा जगत् अंधा हो जाय और मनीषी पु ष धम, अथ एवं कामस ब धी कम म वृ ही न ह ।। ५३ ।। आधानपशुब धे म य तपः याः । व सादादवा य ते वशां गणैः ।। ५४ ।। गभाधान या अ नक थापना, पशु को बाँधना, इ (पूजा), म , य ानु ान और तप आ द सम त याएँ आपक ही कृपासे ा ण, य और वै यगण ारा स प क जाती ह ।। ५४ ।। यदह णः ो ं सह युगस मतम् । त य वमा दर त काल ैः प रक ततः ।। ५५ ।। ाजीका जो एक सह युग का दन बताया गया है, कालमानके जाननेवाले व ान ने उसका आ द और अ त आपको ही बताया है ।। ५५ ।। मनूनां मनुपु ाणां जगतोऽमानव य च । ी



म व तराणां सवषामी राणां वमी रः ।। ५६ ।। मनु और मनुपु के, जगत्के, ( लोकक ा त करानेवाले) अमानव पु षके, सम त म व तर के तथा ई र के भी ई र आप ही ह ।। ५६ ।। संहारकाले स ा ते तव ोध व नःसृतः । संवतका न ैलो यं भ मीकृ याव त ते ।। ५७ ।। लयकाल आनेपर आपके ही ोधसे कट ई संवतक नामक अ न तीन लोक को भ म करके फर आपम ही थत हो जाती है ।। ५७ ।। व ध तसमु प ा नानावणा महाघनाः । सैरावताः साशनयः कुव याभूतस लवम् ।। ५८ ।। आपक ही करण से उ प ए रंग- बरंगे ऐरावत आ द महामेघ और बज लयाँ स पूण भूत का संहार करती ह ।। ५८ ।। कृ वा ादशधाऽऽ मानं ादशा द यतां गतः । सं यैकाणवं सव वं शोषय स र म भः ।। ५९ ।। फर आप ही अपनेको बारह व प म वभ करके बारह सूय के पम उ दत हो अपनी करण ारा लोक का संहार करते ए एकाणवके सम त जलको सोख लेते ह ।। ५९ ।। वा म मा वं वं व णु वं जाप तः । वम न वं मनः सू मं भु वं शा तम् ।। ६० ।। आपको ही इ कहते ह। आप ही , आप ही व णु और आप ही जाप त ह। अ न, सू म मन, भु तथा सनातन भी आप ही ह ।। ६० ।। वं हंसः स वता भानुरंशुमाली वृषाक पः । वव वान् म हरः पूषा म ो धम तथैव च ।। ६१ ।। सह र मरा द य तपन वं गवा प तः । मात डोऽक र वः सूयः शर यो दनकृत् तथा ।। ६२ ।। दवाकरः स तस तधामकेशी वरोचनः । आशुगामी तमो न ह रता क यसे ।। ६३ ।। आप ही हंस (शु व प), स वता (जगत्क उ प करनेवाले), भानु ( काशमान), अंशुमाली ( करणसमूहसे सुशो भत), वृषाक प (धमर क), वव वान् (सव ापी), म हर (जलक वृ करनेवाले), पूषा (पोषक), म (सबके सु द्), धम (धारण करनेवाले), सहर म (हजार करण वाले), आ द य (अ द तपु ), तपन (तापकारी), गवा प त ( करण के वामी), मात ड, अक (अचनीय), र व, सूय (उ पादक), शर य (शरणागतक र ा करनेवाले), दनकृत् ( दनके कता), दवाकर ( दनको कट करनेवाले), स तस त (सात घोड़ वाले), धामकेशी ( यो तमय करण वाले), वरोचन (दे द यमान), आशुगामी (शी गामी), तमो न (अ धकारनाशक) तथा ह रता (हरे रंगके घोड़ वाले) कहे जाते ह ।। ६१—६३ ।। स त यामथवा ष ां भ या पूजां करो त यः । ो ी ी े

अ न व णोऽनहंकारी तं ल मीभजते नरम् ।। ६४ ।। जो स तमी अथवा ष ीको खेद और अहंकारसे र हत हो भ भावसे आपक पूजा करता है, उस मनु यको ल मी ा त होती है ।। ६४ ।। न तेषामापदः स त नाधयो ाधय तथा । ये तवान यमनसः कुव यचनव दनम् ।। ६५ ।। भगवन्! जो अन य च से आपक अचना और व दना करते ह, उनपर कभी आप नह आती। वे मान सक च ता तथा रोग से भी त नह होते ।। ६५ ।। सवरोगै वर हताः सवपाप वव जताः । व ावभ ाः सुखनो भव त चरजी वनः ।। ६६ ।। जो ेमपूवक आपके त भ रखते ह वे सम त रोग तथा स पूण पाप से र हत हो चरंजीवी एवं सुखी होते ह ।। ६६ ।। वं ममाप काम य सवा तयं चक षतः । अ म पते दातुम भतः याह स ।। ६७ ।। अ पते! म ापूवक सबका आ त य करनेक इ छासे अ ा त करना चाहता ँ। आप मुझे अ दे नेक कृपा कर ।। ६७ ।। ये च तेऽनुचराः सव पादोपा तं समा ताः । माठरा णद डा ा तां तान् व दे ऽश न ुभान् ।। ६८ ।। आपके चरण के नकट रहनेवाले जो माठर, अ ण तथा द ड आ द अनुचर (गण) ह, वे व ुत्के वतक ह। म उन सबक व दना करता ँ ।। ६८ ।। ुभया स हता मै ी या ा या भूतमातरः । ता सवा नम या म पा तु मां शरणागतम् ।। ६९ ।। ुभाके साथ जो मै ीदे वी तथा गौरी, प ा आ द अ य भूतमाताएँ ह, उन सबको म नम कार करता ँ। वे सभी मुझ शरणागतक र ा कर ।। ६९ ।। वैश पायन उवाच एवं तुतो महाराज भा करो लोकभावनः । ततो दवाकरः ीतो दशयामास पा डवम् । द यमानः ववपुषा वल व ताशनः ।। ७० ।। वैश पायनजी कहते ह—महाराज! जब यु ध रने लोकभावन भगवान् भा करका इस कार तवन कया, तब दवाकरने स होकर उन पा डु कुमारको दशन दया। उस समय उनके ीअंग व लत अ नके समान उद्भा सत हो रहे थे ।। ७० ।।

वव वानुवाच यत् तेऽ भल षतं क चत् तत् वं सवमवा य स । अहम ं दा या म स त प च च ते समाः ।। ७१ ।। भगवान् सूय बोले—धमराज! तुम जो कुछ चाहते हो, वह सब तु ह ा त होगा। म बारह वष तक तु ह अ दान क ँ गा ।। ७१ ।।

पा डव का वनगमन

उवशीका अजुनको शाप दे ना

नलका अपने पूव पम कट होकर दमय तीसे मलना

जमद नका परशुरामसे कातवीय-अजुनका अपराध बताना

महा लयके समय भगवान् म यके स गम बँधी ई मनु और स त षय स हत नौका

माक डेय मु नको अ यवटक शाखापर बालमुकु दका दशन

इ के ारा दे वसेनाका क दको समपण

कौरव ारा वराटक गाय का हरण गृ

व पठरं ता ं मया द नरा धप । ी े े

यावद् व य त पा चाली पा ेणानेन सु त ।। ७२ ।। फलमूला मषं शाकं सं कृतं य महानसे । चतु वधं तद ा म यं ते भ व य त ।। ७३ ।। राजन्! यह मेरी द ई ताँबेक बटलोई लो। सु त! तु हारे रसोईघरम इस पा ारा फल, मूल, भोजन करनेके यो य अ य पदाथ तथा साग आ द जो चार कारक भोजनसाम ी तैयार होगी, वह तबतक अ य बनी रहेगी, जबतक ौपद वयं भोजन न करके परोसती रहेगी ।। ७२-७३ ।। इत तुदशे वष भूयो रा यमवा य स । आजसे चौदहव वषम तुम अपना रा य पुनः ा त कर लोगे ।। ७३ ।। वैश पायन उवाच एवमु वा तु भगवां त ैवा तरधीयत ।। ७४ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! इतना कहकर भगवान् सूय वह अ तधान हो गये ।। ७४ ।। इमं तवं यतमनाः समा धना पठ े दहा योऽ प वरं समथयन् । तत् त य द ा च र वमनी षतं तदा ुयाद् य प तत् सु लभम् ।। ७५ ।। जो कोई अ य पु ष भी मनको संयमम रखकर च वृ य को एका करके इस तो का पाठ करेगा, वह य द कोई अ य त लभ वर भी माँगे तो भगवान् सूय उसक उस मनोवां छत व तुको दे सकते ह ।। ७५ ।। य ेदं धारये यं शृणुयाद् वा यभी णशः । पु ाथ लभते पु ं धनाथ लभते धनम् । व ाथ लभते व ां पु षोऽ यथवा यः ।। ७६ ।। जो त दन इस तो को धारण करता अथवा बार-बार सुनता है, वह य द पु ाथ हो तो पु पाता है, धन चाहता हो तो धन पाता है, व ाक अ भलाषा रखता हो तो उसे व ा ा त होती है और प नीक इ छा रखनेवाले पु षको प नी सुलभ होती है ।। ७६ ।। उभे सं ये पठ े यं नारी वा पु षो य द । आपदं ा य मु येत ब ो मु येत ब धनात् ।। ७७ ।। ी हो या पु ष य द दोन सं या के समय इस तो का पाठ करता है तो आप म पड़कर भी उससे मु हो जाता है। ब धनम पड़ा आ मनु य ब धनसे मु हो जाता है ।। ७७ ।। एतद् ा ददौ पूव श ाय सुमहा मने । श ा च नारदः ा तो धौ य तु तदन तरम् । धौ याद् यु ध रः ा य सवान् कामानवा तवान् ।। ७८ ।। े



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यह तु त सबसे पहले ाजीने महा मा इ को द , इ से नारदजीने और नारदजीसे धौ यने इसे ा त कया। धौ यसे इसका उपदे श पाकर राजा यु ध रने अपनी सब कामनाएँ ा त कर ल ।। ७८ ।। सं ामे च जये यं वपुलं चा ुयाद् वसु । मु यते सवपापे यः सूयलोकं स ग छ त ।। ७९ ।। जो इसका अनु ान करता है वह सदा सं ामम वजयी होता है, ब त धन पाता है, सब पाप से मु होता और अ तम सूयलोकको जाता है ।। ७९ ।। वैश पायन उवाच ल वा वरं तु कौ तेयो जला ीय धम वत् । ज ाह पादौ धौ य य ातॄं प रष वजे ।। ८० ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! पूव वर पाकर धमके ाता कु तीन दन यु ध र गंगाजीके जलसे बाहर नकले। उ ह ने धौ यजीके दोन चरण पकड़े और भाइय को दयसे लगा लया ।। ८० ।। ौप ा सह संग य व मान तया भुः । महानसे तदान तु साधयामास पा डवः ।। ८१ ।। ौपद ने उ ह णाम कया और वे उससे ेमपूवक मले। फर उसी समय पा डु न दन यु ध रने चू हेपर बटलोई रखकर रसोई तैयार करायी ।। ८१ ।। सं कृतं सवं या त व पम ं चतु वधम् । अ यं वधते चा ं तेन भोजयते जान् ।। ८२ ।। उसम तैयार क ई चार कारक थोड़ी-सी भी रसोई उस पा के भावसे बढ़ जाती और अ य हो जाती थी। उसीसे वे ा ण को भोजन कराने लगे ।। ८२ ।। भु व सु च व ेषु भोज य वानुजान प । शेषं वघससं ं तु प ाद् भुङ् े यु ध रः ।। ८३ ।। ा ण के भोजन कर लेनेपर अपने छोटे भाइय को भी भोजन करानेके प ात् ‘ वघस’ सं क अव श अ को यु ध र सबसे पीछे खाते थे ।। ८३ ।। यु ध रं भोज य वा शेषमा त पाषती । ौप ां भु यमानायां तद ं यमे त च । एवं दवाकरात् ा य दवाकरसम भः ।। ८४ ।। कामान् मनोऽ भल षतान् बा णे योऽददात् भुः । पुरो हतपुरोगा त थन पवसु । य याथाः वत ते व धम माणतः ।। ८५ ।। यु ध रको भोजन कराकर ौपद शेष अ वयं खाती थी। ौपद के भोजन कर लेनेपर उस पा का अ समा त हो जाता था। इस कार सूयसे मनोवां छत वर को पाकर उ ह के समान तेज वी भावशाली राजा यु ध र ा ण को नयमपूवक अ दान करने े















लगे। पुरो हत को आगे करके उ म त थ, न एवं पव पर व ध और म के माणके अनुसार उनके य स ब धी काय होने लगे ।। ८४-८५ ।। ततः कृत व ययना धौ येन सह पा डवाः । जसङ् घैः प रवृताः ययुः का यकं वनम् ।। ८६ ।। तदन तर व तवाचन कराकर ा णसमुदायसे घरे ए पा डव धौ यजीके साथ का यकवनको चले गये ।। ८६ ।। इ त ीमहाभारते वनपव ण अर यपव ण का यकवन वेशे तृतीयोऽ यायः ।। ३ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत अर यपवम का यकवन वेश वषयक तीसरा अ याय पूरा आ ।। ३ ।।

१. बारह आ द य, यारह , आठ वसु, इ और जाप त—ये ततीस दे वता ह। २. सभापवके ११ व अ याय ोक ४६, ४७ म सात पतर के नाम इस कार बताये ह—वैराज, अ न वा , सोमपा, गाहप य, एकशृंग, चतुवद और कला। * ज बू, ल , शा म ल, कुश, च, शाक और पु कर—ये सात धान प माने गये ह। इनके सवा, कई उप प ह। उनको लेकर यहाँ १३

प बताये गये ह।

चतुथ ऽ यायः व रजीका धृतरा को हतक सलाह दे ना और धृतरा का होकर महलम चला जाना वैश पायन उवाच वनं

व े वथ पा डवेषु ाच ु त यमानोऽ बकेयः । धमा मानं व रमगाधबु सुखासीनो वा यमुवाच राजा ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! जब पा डव वनम चले गये, तब ाच ु अ बकान दन राजा धृतरा मन-ही-मन संत त हो उठे । उ ह ने अगाधबु धमा मा व रको बुलाकर वयं सुखद आसनपर बैठे ए उनसे इस कार कहा ।। १ ।। धृतरा उवाच ा च ते भागव येव शु ा धम च वं परमं वे थ सू मम् । सम वं स मतः कौरवाणां पयं चैषां मम चैव वी ह ।। २ ।। धृतरा बोले— व र! तु हारी बु शु ाचायके समान शु है। तुम सू म-से-सू म े धमको जानते हो। तु हारी सबके त समान है और कौरव तथा पा डव सभी तु हारा स मान करते ह। अतः मेरे तथा इन पा डव के लये जो हतकर काय हो, वह मुझे बताओ ।। २ ।। एवंगते व र यद काय पौरा मे कथम मान् भजेरन् । ते चा य मान् नो रेयुः समूलांत वं ूयाः साधुकाया ण वे स ।। ३ ।। व र! ऐसी दशाम अब हमारा जो कत हो वह बताओ। ये पुरवासी कैसे हमलोग से ेम करगे। तुम ऐसा कोई उपाय बताओ जससे वे पा डव हमलोग को जड़-मूलस हत उखाड़ न फके। तुम अ छे काय को जानते हो। अतः हम ठ क-ठ क कत का नदश करो ।। ३ ।। व र उवाच वग ऽयं धममूलो नरे रा यं चेदं धममूलं वद त । धम राजन् वतमानः वश या ो

पु ान् सवान् पा ह पा डोःसुतां ।। ४ ।। व रजीने कहा—नरे ! धम, अथ और काम इन तीन क ा तका मूल कारण धम ही है। धमा मा पु ष इस रा यक जड़ भी धमको ही बतलाते ह, अतः महाराज! आप धमके मागपर थर रहकर यथाश अपने तथा पा डु के सब पु का पालन क जये ।। ४ ।। स वै धम व लधः सभायां पापा म भः सौबलेय धानैः । आय क ु तीसुतम व यां पराजैषीत् स यसंधं सुत ते ।। ५ ।। शकु न आ द पापा मा ने ूतसभाम उस धमके साथ व ासघात कया; य क आपके पु ने स य- त कु तीन दन यु ध रको बुलाकर उ ह कपटपूवक परा जत कया है ।। ५ ।। एत य ते णीत य राजन् शेष याहं प रप या युपायम् । यथा पु तव कौर पापामु ो लोके त त ेत साधु ।। ६ ।। कु राज! रा मा ारा पा डव के त कये ए इस वहारक शा तका उपाय म जानता ँ, जससे आपका पु य धन पापसे मु हो लोकम भलीभाँ त त ा ा त करे ।। ६ ।। तद् वै सव पा डु पु ा लभ तां यत् तद् राज भसृ ं वयाऽऽसीत् । एष धमः परमो यत् वकेन राजा तु ये पर वेषु गृ येत् ।। ७ ।। आपने पा डव को जो रा य दया था, वह सब उ ह मल जाना चा हये। राजाके लये यह सबसे बड़ा धम है क वह अपने धनसे संतु रहे। सरेके धनपर लोभभरी न डाले ।। ७ ।। यशो न न ये ा तभेद न याद् धम न या ैव चैवं कृते वाम् । एतत् काय तव सव धानं तेषां तु ः शकुने ावमानः ।। ८ ।। ऐसा कर लेनेपर आपके यशका नाश नह होगा, भाइय म फूट नह होगी और आपको धमक भी ा त होगी। आपके लये सबसे मुख काय यह है क पा डव को संतु कर और शकु नका तर कार कर ।। ८ ।। एवं शेषं य द पु ेषु ते यादे तद् राजं वरमाणः कु व । तथैतदे वं न करो ष राजन्

ु ं कु णां भ वता वनाशः ।। ९ ।। व राजन्! ऐसा करनेपर भी य द आपके पु का भा य शेष होगा तो उनका रा य उनके पास रह जायगा; अतः आप शी ही यह काम कर डा लये। महाराज! य द आप ऐसा न करगे तो कौरवकुलका न य ही नाश हो जायगा ।। ९ ।। न ह ु ो भीमसेनोऽजुनो वा शेषं कुया छा वाणामनीके । येषां यो ा स साची कृता ो धनुयषां गा डवं लोकसारम् ।। १० ।। येषां भीमो बा शाली च यो ा तेषां लोके क नु न ा यम त । उ ं पूव जातमा े सुते ते मया यत् ते हतमासीत् तदानीम् ।। ११ ।। ोधम भरे ए भीमसेन अथवा अजुन अपने श ु क सेनाम कसीको जी वत नह छोड़गे। अ व ाम नपुण स साची अजुन जनके यो ा ह, स पूण लोक का सारभूत गा डीव जनका धनुष है तथा अपने बा बलसे सुशो भत होनेवाले भीमसेन जनक ओरसे यु करनेवाले ह, उन पा डव के लये संसारम ऐसी कौन-सी व तु है जो ा त न हो सके। आपके पु य धनके ज म लेते ही मुझे उस समय जो हतक बात जान पड़ी, वह मने पहले ही बता द थी ।। १०-११ ।। पु ं यजेमम हतं कुल य हतं परं न च तत् वं चकथ । इदं च राजन् हतमु ं न चेत् वमेवं कता प रत ता स प ात् ।। १२ ।। मने साफ कह दया था क आपका यह पु सम त कुलका अ हत करनेवाला है, अतः इसको याग द जये; परंतु आपने मेरी उ म और सा वक सलाहके अनुसार काय नह कया। राजन्! इस समय भी मने जो यह आपके हतक बात बतायी है य द उसे आप नह करगे तो आपको ब त प ा ाप करना पड़ेगा ।। १२ ।। य ेतदे वमनुम ता सुत ते स ीयमाणः पा डवैरेकरा यम् । तापो न ते भ वता ी तयोगाचे गृ व सुतं सुखाय ।। १३ ।। य द आपका पु य धन स तापूवक पा डव के साथ एक रा य बनानेक बात मान ले तो आपको प ा ाप नह होगा, स ता ही ा त होगी। य द य धन आपक बात न माने तो सम त कुलको सुख प ँचानेके लये आप अपने उस पु पर नय ण क जये ।। १३ ।। य धनं व हतं वै नगृ पा डोः पु ं कु वा धप ये । ो

अजातश ु ह वमु रागो धमणेमां पृ थव शा तु राजन् ।। १४ ।। इस कार अ हतकारक य धनको काबूम करके आप पा डु पु यु ध रको रा यपर अ भ ष कर द जये; य क वे अजातश ु ह। उनका कसीसे राग या े ष नह है। राजन्! वे ही इस पृ वीका धमपूवक पालन करगे ।। १४ ।। ततो राजन् पा थवाः सव एव वै या इवा मानुप त तु स ः । य धनः शकु नः सूतपु ः ी या राजन् पा डु पु ान् भज तु ।। १५ ।। महाराज! य द ऐसा आ तो भूम डलके सम त राजा वै य क भाँ त उपहार ले हम कौरव क सेवाम शी उप थत ह गे। राजराजे र! य धन, शकु न तथा सूतपु कण ेमपूवक पा डव को अपनाव ।। १५ ।। ःशासनो याचतु भीमसेनं सभाम ये पद या मजां च । यु ध रं वं प रसा वय व रा ये चैनं थापय वा भपू य ।। १६ ।। ःशासन भरी सभाम भीमसेन तथा ौपद से मा माँगे और आप यु ध रको भलीभाँ त सा वना दे स मानपूवक इस रा यपर बठा द जये ।। १६ ।। वया पृ ः कमहम यद् वदे यमेतत् कृ वा कृतकृ योऽ स राजन् ।। १७ ।। कु राज! आपने हतक बात पूछ है तो म इसके सवा और या बताऊँ। यह सब कर लेनेपर आप कृतकृ य हो जायँगे ।। १७ ।। धृतरा उवाच एतद् वा यं व र यत् ते सभायामह ो ं पा डवान् ा य मां च । हतं तेषाम हतं मामकानामेतत् सव मम नावै त चेतः ।। १८ ।। धृतरा ने कहा— व र! तुमने यहाँ सभाम पा डव के तथा मेरे वषयम जो बात कही है वह पा डव के लये तो हतकर है, पर मेरे पु के लये अ हतकारक है, अतः यह सब मेरा मन वीकार नह करता है ।। १८ ।। इदं वदान गत एव न तं तेषामथ पा डवानां यदा थ । तेना म ये ना स हतो ममे त कथं ह पु ं पा डवाथ यजेयम् ।। १९ ।। ो

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इस समय तुम जो कुछ कह रहे हो इससे यह भलीभाँ त न य होता है क तुम पा डव के हतके लये ही यहाँ आये थे। तु हारे आजके ही वहारसे म समझ गया क तुम मेरे हतैषी नह हो। म पा डव के लये अपने पु को कैसे याग ँ ।। १९ ।। असंशयं तेऽ प ममैव पु ा य धन तु मम दे हात् सूतः । वं वै दे हं परहेतो यजे त को नु ूयात् समताम ववे य ।। २० ।। इसम संदेह नह क पा डव भी मेरे पु ह, पर य धन सा ात् मेरे शरीरसे उ प आ है। समताक ओर रखते ए भी कौन कसको ऐसी बात कहेगा क तुम सरेके हतके लये अपने शरीरका याग कर दो ।। २० ।। स मां ज ं व र सव वी ष मानं च तेऽहम धकं धारया म । यथे छकं ग छ वा त वा वं सुसा माना यसती ी जहा त ।। २१ ।। व र! म तु हारा अ धक स मान करता ँ; कतु तुम मुझे सब कु टलतापूण सलाह दे रहे हो। अब तु हारी जैसी इ छा हो, चले जाओ या रहो। तुमसे मेरा कोई योजन नह है। कुलटा ीको कतनी ही सा वना द जाय, वह वामीको याग ही दे ती है ।। २१ ।। वैश पायन उवाच एताव वा धृतरा ोऽ वप द तव म सहसो थाय राजन् । नेदम ती यथ व रो भाषमाणः स ा वद् य पाथा बभूवुः ।। २२ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! ऐसा कहकर राजा धृतरा सहसा उठकर महलके भीतर चले गये। तब व रने यह कहकर क अब इस कुलका नाश अव य भावी है, जहाँ पा डव थे वहाँ चले गये ।। २२ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण अर यपव ण व रवा य या याने चतुथ ऽ यायः ।। ४ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत अर यपवम व रवा य या यान- वषयक चौथा अ याय पूरा आ ।। ४ ।।

प चमोऽ यायः पा डव का का यकवनम वेश और व रजीका वहाँ जाकर उनसे मलना और बातचीत करना वैश पायन उवाच पा डवा तु वने वासमु य भरतषभाः । ययुजा वीकूलात् कु े ं सहानुगाः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! भरतवंश- शरोम ण पा डव वनवासके लये गंगाजीके तटसे अपने सा थय स हत कु े म गये ।। १ ।। सर वती ष यौ यमुनां च नषे ते । ययुवनेनैव वनं सततं प मां दशम् ।। २ ।। उ ह ने मशः सर वती, ष ती और यमुना नद का सेवन करते ए एक वनसे सरे वनम वेश कया। इस कार वे नर तर प म दशाक ओर बढ़ते गये ।। २ ।। ततः सर वतीकूले समेषु म ध वसु । का यकं नाम द शुवनं मु नजन यम् ।। ३ ।। तदन तर सर वती-तट तथा म भू म एवं व य दे श क या ा करते ए उ ह ने का यकवनका दशन कया, जो ऋ ष-मु नय के समुदायको ब त ही य था ।। ३ ।। त ते यवसन् वीरा वने ब मृग जे । अ वा यमाना मु न भः सा माना भारत ।। ४ ।। भारत! उस वनम ब त-से पशु-प ी नवास करते थे। वहाँ मु नय ने उ ह बठाया और ब त सा वना द । फर वे वीर पा डव वह रहने लगे ।। ४ ।। व र वथ पा डू नां सदा दशनलालसः । जगामैकरथेनैव का यकं वनमृ मत् ।। ५ ।। इधर व रजी सदा पा डव को दे खनेके लये उ सुक रहा करते थे। वे एकमा रथके ारा का यकवनम गये, जो वनो चत स प य से भरा-पूरा था ।। ५ ।। ततो ग वा व रः का यकं तछ ैर ैवा हना य दनेन । ददशासीनं धमा मानं व व े साध ौप ा ातृ भ ा णै ।। ६ ।। शी गामी अ ारा ख चे जानेवाले रथसे का यक-वनम प ँचकर व रजीने दे खा धमा मा यु ध र एका त दे शम ौपद , भाइय तथा ा ण के साथ बैठे ह ।। ६ ।। ततोऽप यद् व रं तूणमाराद याया तं स यसंधः स राजा । अथा वीद् ातरं भीमसेनं े

क नु ा व य त नः समे य ।। ७ ।। स य त राजा यु ध रने जब बड़ी उतावलीके साथ व रजीको अपने नकट आते दे खा तब भाई भीमसेनसे कहा—‘ये व रजी हमारे पास आकर न जाने या कहगे ।। ७ ।। क च ायं वचनात् सौबल य समा ाता दे वनायोपयातः । क चत् ु ः शकु ननायुधा न जे य य मान् पुनरेवा व याम् ।। ८ ।। ‘ये शकु नके कहनेसे हम फर जूआ खेलनेके लये बुलाने तो नह आ रहे ह। कह नीच शकु न हम फर ूत-सभाम बुलाकर हमारे आयुध को तो जीत नह लेगा ।। ८ ।। समातः क े न चदा वे त नाहं श ो भीमसेनापयातुम् । गा डीवे च संश यते कथं नु रा य ा तः संश यता भवे ः ।। ९ ।। ‘भीमसेन! आओ, कहकर य द कोई मुझे (यु या ूतके लये) बुलावे तो म पीछे नह हट सकता। ऐसी दशाम य द हम गा डीव धनुष कसी तरह जूएम हार गये तो हमारी रा य- ा त संशयम पड़ जायगी’ ।। ९ ।। वैश पायन उवाच तत उ थाय व रं पा डवेयाः यगृ न् नृपते सव एव । तैः स कृतः स च तानाजमीढो यथो चतं पा डु पु ान् समेयात् ।। १० ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! तदन तर सब पा डव ने उठकर व रजीक अगवानी क । उनके ारा कया आ यथो चत वागत-स कार हण करके अजमीढवंशी व र पा डव से मले ।। १० ।। समा तं व रं ते नरषभाततोऽपृ छ ागमनाय हेतुम् ।

स चा प ते यो व तरतः शशंस यथावृ ो धृतरा ोऽ बकेयः ।। ११ ।। व रजीके आदर-स कार पानेपर नर े पा डव ने उनसे वनम आनेका कारण पूछा। उनके पूछनेपर व रने भी अ बकान दन राजा धृतराने जैसा बताव कया था, वह सब व तारपूवक कह सुनाया ।। ११ ।। व र उवाच अवोच मां धृतरा ोऽनुगु तमजातश ो प रगृ ा भपू य । एवं गते समताम युपे य पयं तेषां मम चैव वी ह ।। १२ ।। व रजी बोले—अजातश ो! राजा धृतराने मुझे अपना र क समझकर बुलाया और मेरा आदर करके कहा—‘ व र! आजक प र थ तम समभाव रखकर तुम ऐसा कोई उपाय बताओ जो मेरे और पा डव के लये हतकर हो’ ।। १२ ।। मया यु ं यत् ेमं कौरवाणां हतं पयं धृतरा य चैव । तद् वै त मै न चाम युपै त े



तत ाहं ेमम य म ये ।। १३ ।। तब मने भी ऐसी बात बताय जो सवथा उ चत तथा कौरववंश एवं धृतराक े लये भी हतकर और लाभदायक थ । वह बात उनको नह ची और म उसके सवा सरी कोई बात उ चत नह समझता था ।। १३ ।। परं ेयः पा डवेया मयो ं न मे त च ुतवाना बकेयः । यथाऽऽतुर येव ह पयम ं न रोचते मा य त यमानम् ।। १४ ।। पा डवो! मने दोन प के लये परम क याणक बात बतायी थी, परंतु अ बकान दन महाराज धृतराने मेरी वह बात नह सुनी। जैसे रोगीको हतकर भोजन अ छा नह लगता, उसी कार राजा धृतराको मेरी कही ई हतकर बात भी पसंद नह आती ।। १४ ।। न ेयसे नीयतेऽजातश ो ी ो य येव गृहे ा। ुवं न रोचेद ् भरतषभ य प तः कुमाया इव ष वषः ।। १५ ।। अजातश ो! जैसे ो यके घरक ा ी ेयके मागपर नह लायी जा सकती, उसी कार राजा धृतराको क याणके मागपर लाना अस भव है। जैसे कुमारी क याको साठ वषका बूढ़ा प त अ छा नह लगता, उसी कार भरत े धृतराको मेरी कही ई बात न य ही नह चती ।। १५ ।। ुवं वनाशो नृप कौरवाणां न वै ेयो धृतरा ः परै त । यथा च पण पु कर याव स ं जलं न त ेत् पयमु ं तथा मन् ।। १६ ।। राजन्! राजा धृतरा क याणकारी उपाय नह हण करते ह, अतः यह न य जान पड़ता है क कौरवकुलका वनाश अव य भावी है। जैसे कमलके प ेपर डाला आ जल नह ठहर सकता, उसी कार कही ई हतकर बात राजा धृतराक े मनम थान नह पाती है ।। १६ ।। ततः ु ो धृतरा ोऽ वी मां य मन् ा भारत त या ह । नाहं भूयः कामये वां सहायं मही ममां पाल यतुं पुरं वा ।। १७ ।। उस समय राजा धृतराने कु पत होकर मुझसे कहा—‘भारत! जसपर तु हारी ा हो वह चले जाओ। अब म इस रा य अथवा नगरका पालन करनेके लये तु हारी सहायता नह चाहता’ ।। १७ ।। सोऽहं य ो धृतरा ेण रा ा ो े

शा सतुं वामुपयातो नरे । तद् वै सव य मयो ं सभायां तद् धायतां यत् व या म भूयः ।। १८ ।। नरे ! इस कार राजा धृतराने मुझे याग दया है; अतः म तु ह उपदे श दे नेके लये आया ँ। मने सभाम जो कुछ कहा था और पुनः इस समय जो कुछ कह रहा ँ, वह सब तुम धारण करो ।। १८ ।। लेशै ती ैयु यमानः सप नैः मां कुवन् कालमुपासते यः । संवधयन् तोक मवा नमा मवान् स वै भुङ् े पृ थवीमेक एव ।। १९ ।। जो श ु ारा ःसह क दये जानेपर भी मा करते ए अनुकूल अवसरक ती ा करता है; तथा जस कार थोड़ी-सी आगको भी लोग घास-फूसके ारा व लत करके बढ़ा लेते ह, वैसे ही जो मनको वशम रखकर अपनी श और सहायक को बढ़ाता है, वह अकेला ही सारी पृ वीका उपभोग करता है ।। १९ ।। य या वभ ं वसु राजन् सहायैत य ःखेऽ यंशभाजः सहायाः । सहायानामेष सं हणेऽ युपायः सहाया तौ पृ थवी ा तमा ः ।। २० ।। राजन्! जसका धन सहायक के लये बँटा नह है; अथात् जसके धनको सहायक भी अपना ही समझकर भोगते ह, उसके ःखम भी वे सब लोग ह सा बँटाते ह। सहायक के सं हका यही उपाय है। सहायक क ा त हो जानेपर पृ वीक ही ा त हो गयी, ऐसा कहा जाता है ।। २० ।। स यं े ं पा डव व लापं तु यं चा ं सह भो यं सहायैः । आ मा चैषाम तो न म पू य एवंवृ वधते भू मपालः ।। २१ ।। पा डु न दन! थक बकवादसे र हत स य बोलना ही े है। अपने सहायक भाईब धु के साथ बैठकर समान अ का भोजन करना चा हये। उन सबके आगे अपनी मानबड़ाई तथा पूजाक बात नह करनी चा हये। ऐसा बताव करनेवाला भूपाल सदा उ तशील होता है ।। २१ ।। यु ध र उवाच एवं क र या म यथा वी ष परां बु मुपग या म ः । य चा य य े शकालोपप ं तद् वै वा यं तत् क र या म कृ नम् ।। २२ ।। ो े





यु ध र बोले— व रजी! म उ म बु का आ य ले सतत सावधान रहकर आप जैसा कहते ह वैसा ही क ँ गा। और भी दे श-कालके अनुसार आप जो कत उ चत समझ, वह बताव। म उसका पूण पसे पालन क ँ गा ।। २२ ।। इ त ीमहाभारते वनपव ण अर यपव ण व र नवासे प चमोऽ यायः ।। ५ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत अर यपवम व र नवासन वषयक पाँचवाँ अ याय पूरा आ ।। ५ ।।

ष ोऽ यायः धृतरा का संजयको भेजकर व रको वनसे बुलवाना और उनसे मा- ाथना वैश पायन उवाच गते तु व रे राज ा मं पा डवान् त । धृतरा ो महा ा ः पयत यत भारत ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! जब व रजी पा डव के आ मपर चले गये, तब महाबु मान् राजा धृतराको बड़ा प ा ाप आ ।। १ ।। व र य भावं च सं ध व हका रतम् । ववृ च परां म वा पा डवानां भ व य त ।। २ ।। उ ह ने सोचा, व र सं ध और व ह आ दक नी तको अ छ तरह जानते ह, जसके कारण उनका ब त बड़ा भाव है। वे पा डव के प म हो गये तो भ व यम उनका महान् अ युदय होगा ।। २ ।। स सभा ारमाग य व र मारमो हतः । सम ं पा थवे ाणां पपाता व चेतनः ।। ३ ।। व रका मरण करके वे मो हत-से हो गये और सभाभवनके ारपर आकर सब राजा के दे खते-दे खते अचेत होकर पृ वीपर गर पड़े ।। ३ ।। स तु ल वा पुनः सं ां समु थाय महीतलात् । समीपोप थतं राजा संजयं वा यम वीत् ।। ४ ।। फर होशम आनेपर वे पृ वीसे उठ खड़े ए और समीप आये ए संजयसे इस कार बोले— ।। ४ ।। ाता मम सु चैव सा ाद् धम इवापरः । त य मृ या सुभृशं दयं द यतीव मे ।। ५ ।। ‘संजय! व र मेरे भाई और सु द् ह। वे सा ात् सरे धमके समान ह। उनक याद आनेसे आज मेरा दय अ य त वद ण-सा होने लगा है ।। ५ ।। तमानय व धम ं मम ातरमाशु वै । इ त ुवन् स नृप तः कृपणं पयदे वयत् ।। ६ ।। ‘तुम मेरे धम ाता व रको शी यहाँ बुला लाओ।’ ऐसा कहते ए राजा धृतरा द नभावसे फूट-फूटकर रोने लगे ।। ६ ।। प ा ापा भसंत तो व र मारमो हतः । ातृ नेहा ददं राजा संजयं वा यम वीत् ।। ७ ।। महाराज धृतरा व रक याद आनेसे मो हत हो प ा ापसे ख हो उठे और ातृ नेहवश संजयसे पुनः इस कार बोले— ।। ७ ।। ी

ग छ संजय जानी ह ातरं व रं मम । य द जीव त रोषेण मया पापेन नधुतः ।। ८ ।। संजय! जाओ, मेरे भाई व रका पता लगाओ। मुझ पापीने ोधवश उ ह नकाल दया। वे जी वत तो ह न? ।। ८ ।। न ह तेन मम ा ा सुसू मम प कचन । लीकं कृतपूव वै ा ेना मतबु ना ।। ९ ।। ‘अप र मत बु वाले मेरे उन व ान् भाईने पहले कभी कोई छोटा-सा भी अपराध नह कया है ।। ९ ।। स लीकं परं ा तो म ः परमबु मान् । य या म जी वतं ा तं ग छानय संजय ।। १० ।। ‘बु मान् संजय! मुझसे परम मेधावी व रका बड़ा अपराध आ। तुम जाकर उ ह ले आओ, नह तो म ाण याग ँ गा’ ।। १० ।। त य तद् वचनं ु वा रा तमनुमा य च । संजयो बाढ म यु वा ा वत् का यकं त ।। ११ ।। सोऽ चरेण समासा तद् वनं य पा डवाः । रौरवा जनसंवीतं ददशाथ यु ध रम् ।। १२ ।। व रेण सहासीनं ा णै सह शः । ातृ भ ा भसंगु तं दे वै रव पुरंदरम् ।। १३ ।। राजाका यह वचन सुनकर संजयने उनका आदर करते ए ‘ब त अ छा’ कहकर का यकवनको थान कया। जहाँ पा डव रहते थे, उस वनम शी ही प ँचकर संजयने दे खा, राजा यु ध र मृगचम धारण करके व रजी तथा सह ा ण के साथ बैठे ए ह। और दे वता से घरे ए इ क भाँ त अपने भाइय से सुर त ह ।। ११—१३ ।। यु ध रमुपाग य पूजयामास संजयः । भीमाजुनयमा ा प त ु ं तपे दरे ।। १४ ।। यु ध रके पास प ँचकर संजयने उनका स मान कया। फर भीम, अजुन और नकुल-सहदे वने संजयका यथो चत स कार कया ।। १४ ।। रा ा पृ ः स कुशलं सुखासीन संजयः । शशंसागमने हेतु मदं चैवा वीद् वचः ।। १५ ।। राजा यु ध रके कुशलकरनेके प ात् जब संजय सुखपूवक बैठ गया, तब अपने आनेका कारण बताते ए उसने इस कार कहा ।। १५ ।। संजय उवाच राजा मर त ते धृतरा ोऽ बकासुतः । तं प य ग वा वं ं संजीवय च पा थवम् ।। १६ ।। संजयने कहा— व रजी! अ बकान दन महाराज धृतरा आपको मरण करते ह। आप ज द चलकर उनसे म लये और उ ह जीवनदान द जये ।। १६ ।। ो



सोऽनुमा य नर े ान् पा डवान् कु न दनान् । नयोगाद् राज सह य ग तुमह स स म ।। १७ ।। साधु शरोमणे! आप कु कुलको आन दत करनेवाले इन नर े आदरपूवक वदा लेकर महाराजके आदे शसे शी उनके पास चल ।। १७ ।।

पा डव से

वैश पायन उवाच एवमु तु व रो धीमान् वजनव लभः । यु ध र यानुमते पुनरायाद् गजा यम् ।। १८ ।। तम वी महातेजा धृतरा ोऽ बकासुतः । द ा ा तोऽ स धम द ा मर स मेऽनघ ।। १९ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! वजन के परम य बु मान् व रजीसे जब संजयने इस कार कहा, तब वे यु ध रक अनुम त लेकर फर ह तनापुरम आये। वहाँ महातेज वी अ बकान दन धृतराने उनसे कहा—‘धम व र! तुम आ गये, यह मेरे बड़े सौभा यक बात है। अनघ! यह भी मेरे सौभा यक बात है क तुम मुझे भूले नह ।। १८-१९ ।। अ रा ौ दवा चाहं व कृते भरतषभ । जागरे प या म व च ं दे हमा मनः ।। २० ।। ‘भरतकुलभूषण! म आज दन-रात तु हारे लये जागते रहनेके कारण अपने शरीरक व च दशा दे ख रहा ँ’ ।। २० ।। सोऽङ् कमानीय व रं मूध या ाय चैव ह । यता म त चोवाच य ोऽ स मयानघ ।। २१ ।। ऐसा कहकर राजा धृतराने व रको अपने दयसे लगा लया और उनका म तक सूँघते ए कहा—‘ न पाप व र! मने तुमसे जो अ य बात कह द है, उसके लये मुझे मा करो’ ।। २१ ।।

व र उवाच ा तमेव मया राजन् गु म परमो भवान् । एषोऽहमागतः शी ं वद्दशनपरायणः ।। २२ ।। भव त ह नर ा पु षा धमचेतसः । द ना भपा तनो राजन् ना काया वचारणा ।। २३ ।। व रने कहा—राजन्! मने तो सब मा कर ही दया है। आप मेरे परम गु ह। म शी तापूवक आपके दशनके लये आया ँ। नर े ! धमा मा पु ष द न जन क ओर अ धक झुकते ह। आपको इसके लये मनम वचार नह करना चा हये ।। २२-२३ ।। पा डोः सुता या शा मे ता शा तव भारत । द ना इतीव मे बु र भप ा तान् त ।। २४ ।। भारत! मेरे लये जैसे पा डु के पु ह, वैसे ही आपके भी। परंतु पा डव इन दन द न दशाम ह, अतः उनके त मेरे दयका झुकाव हो गया ।। २४ ।। वैश पायन उवाच अ यो यमनुनीयैवं ातरौ ौ महा ुती । व रो धृतरा लेभाते परमां मुदम् ।। २५ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! वे दोन महातेज वी भाई व र और धृतरा एक- सरेसे अनुनय- वनय करके अ य त स हो गये ।। २५ ।। ी







इ त ीमहाभारते वनपव ण अर यपव ण व र यागमने ष ोऽ यायः ।। ६ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत अर यपवम व र यागमन वषयक छठा अ याय पूरा आ ।। ६ ।।

स तमोऽ यायः य धन, ःशासन, शकु न और कणक सलाह, पा डव का वध करनेके लये उनका वनम जानेक तैयारी तथा ासजीका आकर उनको रोकना वैश पायन उवाच ु वा च व रं ा तं रा ा च प रसा वतम् । धृतरा ा मजो राजा पयत यत म तः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! व र आ गये और राजा धृतराने उ ह सा वना दे कर रख लया, यह सुनकर बु वाला धृतराक ु मार राजा य धन संत त हो उठा ।। १ ।। स सौबलेयमाना य कण ःशासनौ तथा । अ वीद् वचनं राजा व याबु जं तमः ।। २ ।। उसने शकु न, कण और ःशासनको बुलाकर अ ानज नत मोहम म न हो इस कार कहा— ।। २ ।। एष यागतो म ो धृतरा य धीमतः । व रः पा डु पु ाणां सु द् व ान् हते रतः ।। ३ ।। ‘बु मान् पताजीका यह म ी व र फर लौट आया। व र व ान् होनेके साथ ही पा डव का सु द् और उ ह के हतसाधनम संल न रहनेवाला है ।। ३ ।। यावद य पुनबु व रो नापकष त । पा डवानयने ताव म य वं हतं मम ।। ४ ।। ‘यह पताजीके वचारको पुनः पा डव के लौटा लानेक ओर जबतक नह ख चता, तभीतक मेरे हत-साधनके वषयम तुमलोग कोई उ म सलाह दो ।। ४ ।। अथ प या यहं पाथान् ा ता नह कथंचन । पुनः शोषं ग म या म नर बु नरव हः ।। ५ ।। ‘य द म कसी कार पा डव को यहाँ आया दे ख लूँगा तो जलका भी प र याग करके वे छासे अपने शरीरको सुखा डालूँगा ।। ५ ।। वषमु धनं चैव श म न वेशनम् । क र ये न ह तानृ ान् पुन ु महो सहे ।। ६ ।। ‘म जहर खा लूँगा, फाँसी लगा लूँगा, अपने-आपको ही श से मार ँ गा अथवा जलती आगम वेश कर जाऊँगा; परंतु पा डव को फर बढ़ते या फलते-फूलते नह दे ख सकूँगा’ ।। ६ ।। शकु न वाच ो



क बा लशम त राज ा थतोऽ स वशा पते । गता ते समयं कृ वा नैतदे वं भ व य त ।। ७ ।। शकु न बोला—राजन्! तुम भी या नादान ब च के-से वचार रखते हो? पा डव त ा करके वनम गये ह। वे उस त ाको तोड़कर लौट आव, ऐसा कभी नह होगा ।। ७ ।। स यवा य थताः सव पा डवा भरतषभ । पतु ते वचनं तात न ही य त क ह चत् ।। ८ ।। भरतवंश शरोमणे! सब पा डव स य वचनका पालन करनेम संल न ह। तात! वे तु हारे पताक बात कभी वीकार नह करगे ।। ८ ।। अथवा ते ही य त पुनरे य त वा पुरम् । नर य समयं सव पणोऽ माकं भ व य त ।। ९ ।। अथवा य द वे तु हारे पताक बात मान लगे और त ा तोड़कर इस नगरम आ जायँगे तो हमारा वहार इस कार होगा ।। ९ ।। सव भवामो म य था रा छ दानुव तनः । छ ं ब प य तः पा डवानां सुसंवृताः ।। १० ।। हम सब लोग राजाक आ ाका पालन करते ए म य थ हो जायँगे और छपे- छपे पा डव के ब त-से छ दे खते रहगे ।। १० ।। ःशासन उवाच एवमेत महा ा यथा वद स मातुल । न यं ह मे कथयत तव बु वरोचते ।। ११ ।। ःशासनने कहा—महाबु मान् मामाजी! आप जैसा कहते ह, वही मुझे भी ठ क जान पड़ता है। आपके मुखसे जो वचार कट होता है, वह मुझे सदा अ छा लगता है ।। ११ ।। कण उवाच काममी ामहे सव य धन तवे सतम् । ऐकम यं ह नो राजन् सवषामेव ल ये ।। १२ ।। कण बोला— य धन! हम सब लोग तु हारी अ भल षत कामनाक पू तके लये सचे ह। राजन्! इस वषयम हम सभीका एक मत दखायी दे ता है ।। १२ ।। नाग म य त ते धीरा अकृ वा कालसं वदम् । आग म य त चे मोहात् पुन ूतेन तान् जय ।। १३ ।। धीरबु पा डव न त समयक अव धको पूण कये बना यहाँ नह आयँगे; और य द वे मोहवश आ भी जायँ तो तुम पुनः जूएके ारा उ ह जीत लेना ।। १३ ।। वैश पायन उवाच एवमु तु कणन राजा य धन तदा ।

ना त मनाः मभवत् स पराङ् मुखः ।। १४ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! कणके ऐसा कहनेपर उस समय राजा य धनको अ धक स ता नह ई। उसने तुरंत ही अपना मुँह फेर लया ।। १४ ।। उपल य ततः कण ववृ य नयने शुभे । रोषाद् ःशासनं चैव सौबलं च तमेव च ।। १५ ।। उवाच परम ु उ या मानमा मना । अथो मम मतं यत् तु त बोधत भू मपाः ।। १६ ।। तब उसके आशयको समझकर कणने रोषसे अपनी सु दर आँख फाड़कर ःशासन, शकु न और य धनक ओर दे खते ए वयं ही उ साहम भरकर अ य त ोधपूवक कहा —‘भू मपालो! इस वषयम मेरा जो मत है, उसे सुन लो ।। १५-१६ ।। यं सव क र यामो रा ः कङ् करपाणयः । न चा य श नुमः थातुं ये सव त ताः ।। १७ ।। ‘हम सब लोग राजा य धनके ककर और भुजाएँ ह; अतः हम सब मलकर इनका य काय करगे; परंतु हम आल य छोड़कर इनके यसाधनम लग नह पाते ।। १७ ।। वयं तु श ा यादाय रथाना थाय दं शताः । ग छामः स हता ह तुं पा डवान् वनगोचरान् ।। १८ ।। ‘मेरी राय यह है क हम कवच पहनकर अपने-अपने रथपर आ ढ़ हो अ -श लेकर वनवासी पा डव को मारनेके लये एक साथ उनपर धावा कर ।। १८ ।। तेषु सवषु शा तेषु गते व व दतां ग तम् । न ववादा भ व य त धातरा ा तथा वयम् ।। १९ ।। ‘जब वे सभी मरकर शा त जो जायँ और अ ात ग तको अथा परलोकको प ँच जायँ, तब धृतराक े पु तथा हम सब लोग सारे झगड़ से र हो जायँगे ।। १९ ।। यावदे व प र ूना याव छोकपरायणाः । याव म वहीना ताव छ या मतं मम ।। २० ।। ‘वे जबतक लेशम पड़े ह, जबतक शोकम डू बे ए ह और जबतक म एवं सहायक से वं चत ह, तभीतक यु म जीते जा सकते ह, मेरा तो यही मत है’ ।। २० ।। त य तद् वचनं ु वा पूजय तः पुनः पुनः । बाढ म येव ते सव यूचुः सूतजं तदा ।। २१ ।। कणक यह बात सुनकर सबने बार-बार उसक सराहना क और कणक बातके उ रम सबके मुखसे यही नकला—‘ब त अ छा, ब त अ छा’ ।। २१ ।। एवमु वा सुसंरधा रथैः सव पृथ पृथक् । नययुः पा डवान् ह तुं स हताः कृत न याः ।। २२ ।। इस कार आपसम बातचीत करके रोष और जोशम भरे ए वे सब पृथक्-पृथक् रथ पर बैठकर पा डव के वधका न य करके एक साथ नगरसे बाहर नकले ।। २२ ।। तान् थतान् प र ाय कृ ण ै पायनः भुः । आजगाम वशु ा मा ् वा द ेन च ुषा ।। २३ ।। ओ े ी ी ै

उ ह वनक ओर थान करते जान श शाली मह ष शु ा मा ीकृ ण ै पायन ास द से सब कुछ दे खकर सहसा वहाँ आये ।। २३ ।। त ष याथ तान् सवान् भगवाँ लोकपू जतः । ाच ुषमासीनमुवाचा ये य स वरम् ।। २४ ।। उन लोकपू जत भगवान् ासने उन सबको रोका और सहासनपर बैठे ए ाच ु धृतराक े पास शी आकर कहा ।। २४ ।। इ त ीमहाभारते वनपव ण अर यपव ण ासागमने स तमोऽ यायः ।। ७ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत अर यपवम ासजीके आगमनसे स ब ध रखनेवाला सातवाँ अ याय पूरा आ ।। ७ ।।

अ मोऽ यायः ासजीका धृतरा से य धनके अ यायको रोकनेके लये अनुरोध ास उवाच धृतरा महा ा नबोध वचनं मम । व या म वां कौरवाणां सवषां हतमु मम् ।। १ ।। ासजीने कहा—महा ा धृतरा! तुम मेरी बात सुनो, म तु ह सम त कौरव के हतक उ म बात बताता ँ ।। १ ।। न मे यं महाबाहो यद् गताः पा डवा वनम् । नकृ या नकृता ैव य धनपुरोगमैः ।। २ ।। महाबाहो! पा डवलोग जो वनम भेजे गये ह, यह मुझे अ छा नह लगा है। य धन आ दने उ ह छलपूवक जूएम हराया है ।। २ ।। ते मर तः प र लेशान् वष पूण योदशे । वमो य त वषं ु ाः कौरवेयेषु भारत ।। ३ ।। भारत! वे तेरहवाँ वष पूण होनेपर अपनेको दये ए लेश याद करके कु पत हो कौरव पर वष उगलगे, अथात् वषके समान घातक अ -श का हार करगे ।। ३ ।। तदयं क नु पापा मा तव पु ः सुम दधीः । पा डवान् न यसं ु ो रा यहेतो जघांस त ।। ४ ।। ऐसा जानते ए भी तु हारा यह पापा मा एवं मूख पु य सदा रोषम भरा रहकर रा यके लये पा डव का वध करना चाहता है ।। ४ ।। वायतां सा वयं मूढः शमं ग छतु ते सुतः । वन थां तानयं ह तु म छन् ाणान् वमो य त ।। ५ ।। तुम इस मूढ़को रोको। तु हारा यह पु शा त हो जाय। य द इसने वनवासी पा डव को मार डालनेक इ छा क तो यह वयं ही अपने ाण को खो बैठेगा ।। ५ ।। यथा ह व रः ा ो यथा भी मो यथा वयम् । यथा कृप ोण तथा साधुभवान प ।। ६ ।। जैसे ानी व र, भी म, म, कृपाचाय तथा ोणाचाय ह, वैसे ही साधु वभाव तुम भी हो ।। ६ ।। व हो ह महा ा वजनेन वग हतः । अध यमयश यं च मा राजन् तप ताम् ।। ७ ।। महा ा ! वजन के साथ कलह अ य त न दत माना गया है। वह अधम एवं अयश बढ़ानेवाला है; अतः राजन्! तुम वजन के साथ कलहम न पड़ो ।। ७ ।। समी ा या शी य पा डवान् त भारत । े



उपे यमाणा सा राजन् महा तमनयं पृशेत् ।। ८ ।। भारत! पा डव के त इस य धनका जैसा वचार है, य द उसक उपे ा क गयी— उसका शमन न कया गया तो उसका वह वचार महान् अ याचारक सृ कर सकता है ।। ८ ।। अथवायं सुम दा मा वनं ग छतु ते सुतः । पा डवैः स हतो राज ेक एवासहायवान् ।। ९ ।। अथवा तु हारा यह म दबु पु अकेला ही सरे कसी सहायकको लये बना पा डव के साथ वनम जाय ।। ९ ।। ततः संसगजः नेहः पु य तव पा डवैः । य द यात् कृतकाय ऽ भवे वं मनुजे र ।। १० ।। मनुजे र! वहाँ पा डव के संसगम रहनेसे तु हारे पु के त उनके दयम नेह हो जाय, तो तुम आज ही कृताथ हो जाओगे ।। १० ।। अथवा जायमान य य छ लमनुजायते । ूयते त महाराज नामृत यापसप त ।। ११ ।। कथं वा म यते भी मो ोणोऽथ व रोऽ प वा। भवान् वा मं काय पुरा वोऽथ ऽ भवधते ।। १२ ।। कतु महाराज! ज मके समय कसी व तुका जैसा वभाव बन जाता है वह र नह होता। भले ही वह व तु अमृत ही य न हो? यह बात मेरे सुननेम आयी है। अथवा इस वषयम भी म, ोण, व र या तु हारी या स म त है? यहाँ जो उ चत हो, वह काय पहले करना चा हये, उसीसे तु हारे योजनक स हो सकती है ।। ११-१२ ।। इ त ीमहाभारते वनपव ण अर यपव ण ासवा ये अ मोऽ यायः ।। ८ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत अर यपवम ासवा य वषयक आठवाँ अ याय पूरा आ ।। ८ ।।

नवमोऽ यायः ासजीके ारा सुर भ और इ के उपा यानका वणन तथा उनका पा डव के त दया दखलाना धृतरा उवाच भगवन् नाहम येतद् रोचये ूतस भवम् । म ये त धनाऽऽकृ य का रतोऽ मी त वै मुने ।। १ ।। धृतरा ने कहा—भगवन्! यह जूएका खेल मुझे भी पसंद नह था। मुने! म तो ऐसा समझता ँ क वधाताने मुझे बलपूवक ख चकर इस कायम लगा दया ।। १ ।। नैतद् रोचयते भी मो न ोणो व रो न च । गा धारी ने छ त ूतं त मोहात् व ततम् ।। २ ।। भी म, ोण और व रको भी यह ूतका आयोजन अ छा नह लगता था। गा धारी भी नह चाहती थी क जूआ खेला जाय; परंतु मने मोहवश सबको जूएम लगा दया ।। २ ।। प र य ुं न श नो म य धनमचेतनम् । पु नेहेन भगवन् जान प य त ।। ३ ।। भगवन्! य त! म यह जानता ँ क य धन अ ववेक है, तो भी पु नेहके कारण म उसका याग नह कर सकता ।। ३ ।। ास उवाच वै च वीय नृपते स यमाह यथा भवान् । ढं वः परं पु ं परं पु ा व ते ।। ४ ।। ासजी बोले—राजन्! व च वीयन दन! तुम ठ क कहते हो, हम अ छ तरह जानते ह क पु परम य व तु है। पु से बढ़कर संसारम और कुछ नह है ।। ४ ।। इ ोऽ य ु नपातेन सुर या तबो धतः । अ यैः समृ ै र यथन सुता म यते परम् ।। ५ ।। सुर भने पु के लये आँसू बहाकर इ को भी यह बात समझायी थी, जससे वे अ य समृ शाली पदाथ से स प होनेपर भी पु से बढ़कर सरी कसी व तुको नह मानते ह ।। ५ ।। अ ते क त य या म महदा यानमु मम् । सुर या ैव संवाद म य च वशा पते ।। ६ ।। जने र! इस वषयम म तु ह एक परम उ म इ तहास सुनाता ँ; जो सुर भ तथा इ के संवादके पम है ।। ६ ।। व पगता राजन् सुरभी ा दत् कल । ो

गवां माता पुरा तात ता म ोऽ वकृपायत ।। ७ ।। राजन्! पहलेक बात है, गोमाता सुर भ वगलोकम जाकर फूट-फूटकर रोने लगी। तात! उस समय इ को उसपर बड़ी दया आयी ।। ७ ।। इ उवाच क मदं रो द ष शुभे क चत् ेमं दवौकसाम् । मानुषे वथ वा गोषु नैतद पं भ व य त ।। ८ ।। इ ने पूछा—शुभे! तुम य इस तरह रो रही हो? दे वलोकवा सय क कुशल तो है न? मनु य तथा गौ म तो सब लोग कुशलसे ह न? तु हारा यह रोदन कसी अ प कारणसे नह हो सकता? ।। ८ ।। सुर भ वाच व नपातो न वः क द् यते दशा धप । अहं तु पु ं शोचा म तेन रो द म कौ शक ।। ९ ।। सुर भने कहा—दे वे र! आपलोग क अवन त नह दखायी दे ती। इ ! मुझे तो अपने पु के लये शोक हो रहा है, इसीसे रोती ँ ।। ९ ।। प यैनं कषकं ु ं बलं मम पु कम् । तोदे ना भ न न तं ला लेन च पी डतम् ।। १० ।। दे खो, इस नीच कसानको जो मेरे बल बेटेको बार-बार कोड़ेसे पीट रहा है और वह हलसे जुतकर अ य त पी ड़त हो रहा है ।। १० ।। नषीदमानं सो क ठ ं व यमानं सुरा धप । कृपा व ा म दे वे मन ो जते मम । एक त बलोपेतो धुरमु हतेऽ धकाम् ।। ११ ।। अपरोऽ यबल ाणः कृशो धम नसंततः । कृ ा हते भारं तं वै शोचा म वासव ।। १२ ।। व यमानः तोदे न तु मानः पुनः पुनः । नैव श नो त तं भारमु ोढुं प य वासव ।। १३ ।। सुरे र! वह तो व ामके लये उ सुक होकर बैठ रहा है और वह कसान उसे डंडे मारता है। दे वे ! यह दे खकर मुझे अपने ब चेके त बड़ी दया हो आयी है और मेरा मन उ न हो उठा है। वहाँ दो बैल मसे एक तो बलवान् है जो भारयु जूएको ख च सकता है; परंतु सरा नबल है, ाणशू य-सा जान पड़ता है। वह इतना बला-पतला हो गया है क उसके सारे शरीरम फैली ई ना ड़याँ द ख रही ह। वह बड़े क से उस भारयु जूएको ख च पाता ह। वासव! मुझे उसीके लये शोक हो रहा है। इ ! दे खो-दे खो, चाबुकसे मारमारकर उसे बार-बार पीड़ा द जा रही है, तो भी उस जूएके भारको वहन करनेम वह असमथ हो रहा है ।। ११—१३ ।। ततोऽहं त य शोकाता वरौ म भृश ःखता । अ ू यावतय ती च ने ा यां क णायती ।। १४ ।। ी े ो े ी ो ी ो ी ँऔ ो ो

यही दे खकर म शोकसे पी ड़त हो अ य त ःखी हो गयी ँ और क णाम न हो दोन ने से आँसू बहाती ई रो रही ँ ।। १४ ।।

श उवाच तव पु सह ेषु पी मानेषु शोभने । क कृपा यतव य पु एक ह य त ।। १५ ।। इ ने कहा—क याणी! तु हारे तो सह पु इसी कार पी ड़त हो रहे ह, फर तुमने एक ही पु के मार खानेपर यहाँ इतनी क णा य दखायी? ।। १५ ।। सुर भ वाच य द पु सह ा ण सव समतैव मे । द न य तु सतः श पु या य धका कृपा ।। १६ ।। सुर भ बोली—दे वे ! य द मेरे सह पु ह, तो म उन सबके त समानभाव ही रखती ँ; परंतु द न- ःखी पु के त अ धक दया उमड़ आती है ।। १६ ।। ास उवाच त द ः सुरभीवा यं नश य भृश व मतः । जी वतेना प कौर मेनेऽ य धकमा मजम् ।। १७ ।। ासजी कहते ह—कु राज! सुर भक यह बात सुनकर इ बड़े व मत हो गये। तबसे वे पु को ाण से भी अ धक य मानने लगे ।। १७ ।। ववष च त ैव सहसा तोयमु बणम् । कषक याचरन् व नं भगवान् पाकशासनः ।। १८ ।। उस समय वहाँ पाकशासन भगवान् इ ने कसानके कायम व न डालते ए सहसा भयंकर वषा क ।। १८ ।। तद् यथा सुर भः ाह समवेता तु ते तथा । सुतेषु राजन् सवषु हीने व य धका कृपा ।। १९ ।। इस संगम सुर भने जैसा कहा है, वह ठ क है, कौरव और पा डव सभी मलकर तु हारे ही पु ह। परंतु राजन्! सब पु म जो हीन ह , दयनीय दशाम पड़े ह , उ ह पर अ धक कृपा होनी चा हये ।। १९ ।। या शो मे सुतः पा डु ता शो मेऽ स पु क । व र महा ा ः नेहादे तद् वी यहम् ।। २० ।। व स! जैसे पा डु मेरे पु ह, वैसे ही तुम भी हो, उसी कार महा ानी व र भी ह। मने नेहवश ही तुमसे ये बात कही ह ।। २० ।। चराय तव पु ाणां शतमेक भारत । पा डोः प चैव ल य ते तेऽ प म दाः सु ःखताः ।। २१ ।। भारत! द घकालसे तु हारे एक सौ एक पु ह, कतु पा डु के पाँच ही पु दे खे जाते ह। वे भी भोले-भाले, छल-कपटसे र हत ह और अ य त ःख उठा रहे ह ।। २१ ।। ी े

कथं जीवेयुर य तं कथं वधयु र य प । इ त द नेषु पाथषु मनो मे प रत यते ।। २२ ।। ‘वे कैसे जी वत रहगे और कैसे वृ को ा त ह गे?’ इस कार कु तीके उन द न पु के त सोचते ए मेरे मनम बड़ा संताप होता है ।। २२ ।। य द पा थव कौर ा ीवमाना नहे छ स । य धन तव सुतः शमं ग छतु पा डवैः ।। २३ ।। राजन्! य द तुम चाहते हो क सम त कौरव यहाँ जी वत रह तो तु हारा पु य धन पा डव से मेल करके शा तपूवक रहे ।। २३ ।। इ त ीमहाभारते वनपव ण अर यपव ण सुर युपा याने नवमोऽ यायः ।। ९ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत अर यपवम सुर भ-उपा यान वषयक नवाँ अ याय पूरा आ ।। ९ ।।

दशमोऽ यायः ासजीका जाना, मै ेयजीका धृतरा और य धनसे पा डव के त स ावका अनुरोध तथा य धनके अ श वहारसे होकर उसे शाप दे ना धृतरा उवाच एवमेत महा ा यथा वद स नो मुने । अहं चैव वजाना म सव चेमे नरा धपाः ।। १ ।। धृतरा बोले—महा ा मुने! आप जैसा कहते ह, यही ठ क है। म भी इसे ही ठ क मानता ँ तथा ये सब राजालोग भी इसीका अनुमोदन करते ह ।। १ ।। भवां म यते साधु यत् कु णां महोदयम् । तदे व व रोऽ याह भी मो ोण मां मुने ।। २ ।। मुने! आप भी वही उ म मानते ह जो कु वंशके महान् अ युदयका कारण है। मुने! यही बात व र, भी म और ोणाचायने भी मुझे कही है ।। २ ।। य द वहमनु ा ः कौर ेषु दया य द । अ वशा ध रा मानं पु ं य धनं मम ।। ३ ।। य द आपका मुझपर अनु ह है और य द कौरव-कुलपर आपक दया है तो आप मेरे रा मा पु य धनको वयं ही श ा द जये ।। ३ ।। ास उवाच अयमाया त वै राजन् मै ेयो भगवानृ षः । अ व य पा डवान् ातॄ नहै य म या ।। ४ ।। ासजीने कहा—राजन्! ये मह ष भगवान् मै ेय आ रहे ह। पाँच पा डवब धु से मलकर अब ये हमलोग से मलनेके लये यहाँ आते ह ।। ४ ।। एष य धनं पु ं तव राजन् महानृ षः । अनुशा ता यथा यायं शमाया य कुल य च ।। ५ ।। महाराज! ये मह ष ही इस कुलक शा तके लये तु हारे पु य धनको यथायो य श ा दगे ।। ५ ।। ूयाद् यदे ष कौर तत् कायम वशङ् कया । अ यायां तु काय य पु ं ते श यते षा ।। ६ ।। कु न दन! मै ेय जो कुछ कह, उसे नःशंक होकर करना चा हये। य द उनके बताये ए कायक अवहेलना क गयी तो वे कु पत होकर तु हारे पु को शाप दे दगे ।। ६ ।। वैश पायन उवाच एवमु वा ययौ ासो मै ेयः य यत ।

पूजया तज ाह सपु तं नरा धपः ।। ७ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! ऐसा कहकर ासजी चले गये और मै ेयजी आते ए दखायी दये। राजा धृतराने पु स हत उनक अगवानी क और वागतस कारके साथ उ ह अपनाया ।। ७ ।। अ या ा भः या भव व ा तं मु नस मम् । येणा वीद् राजा धृतरा ोऽ बकासुतः ।। ८ ।। पा , अ य आ द उपचार ारा पू जत हो जब मु न े मै ेय व ाम कर चुके, तब अ बकान दन राजा धृतराने नतापूवक पूछा— ।। ८ ।। सुखेनागमनं क चद् भगवन् कु जा लान् । क चत् कुश लनो वीरा ातरः प च पा डवाः ।। ९ ।। ‘भगवन्! इस कु दे शम आपका आगमन सुख-पूवक तो आ है न? वीर ाता पाँच पा डव तो कुशलसे ह न? ।। ९ ।। समये थातु म छ त क च च भरतषभाः । क चत् कु णां सौ ा म ु छ ं भ व य त ।। १० ।। ‘ या वे भरत े पा डव अपनी त ापर थर रहना चाहते ह? या कौरव म उ म ातृभाव अख ड बना रहेगा?’ ।। १० ।। मै ेय उवाच तीथया ामनु ामन् ा तोऽ म कु जा लान् । य छया धमराजं वान् का यके वने ।। ११ ।। मै ेयजीने कहा—राजन्! म तीथया ाके संगसे घूमता आ अक मात् कु जांगल दे शम चला आया ँ। का यकवनम धमराज यु ध रसे भी मेरी भट ई थी ।। ११ ।। तं जटा जनसंवीतं तपोवन नवा सनम् । समाज मुमहा मानं ु ं मु नगणाः भो ।। १२ ।। भो! जटा और मृगचम धारण करके तपोवनम नवास करनेवाले उन महा मा धमराजको दे खनेके लये वहाँ ब त-से मु न पधारे थे ।। १२ ।। त ा ौषं महाराज पु ाणां तव व मम् । अनयं ूत पेण महाभयमुप थतम् ।। १३ ।। महाराज! वह मने सुना क तु हारे पु क बु ा त हो गयी है। वे ूत पी अनी तम वृ हो गये और इस कार जूएके पम उनके ऊपर बड़ा भारी भय उप थत हो गया है ।। १३ ।। ततोऽहं वामनु ा तः कौरवाणामवे या । सदा य धकः नेहः ी त व य मे भो ।। १४ ।। यह सुनकर म कौरव क दशा दे खनेके लये तु हारे पास आया ँ। राजन्! तु हारे ऊपर सदासे ही मेरा नेह और ेम अ धक रहा है ।। १४ ।। नैतदौप यकं राजं व य भी मे च जीव त । ो े





यद यो येन ते पु ा व य ते कथंचन ।। १५ ।। महाराज! तु हारे और भी मके जीते-जी यह उ चत नह जान पड़ता क तु हारे पु कसी कार आपसम वरोध कर ।। १५ ।। मेढ भूतः वयं राजन् न हे हे भवान् । कमथमनयं घोरमु प तमुपे से ।। १६ ।। महाराज! तुम वयं इन सबको बाँधकर नय णम रखनेके लये खंभेके समान हो; फर पैदा होते ए इस घोर अ यायक य उपे ा कर रहे हो ।। १६ ।। द यूना मव यद् वृ ं सभायां कु न दन । तेन न ाजसे राजं तापसानां समागमे ।। १७ ।। कु न दन! तु हारी सभाम डाकु क भाँ त जो बताव कया गया है, उसके कारण तुम तप वी मु नय के समुदायम शोभा नह पा रहे हो ।। १७ ।। वैश पायन उवाच ततो ावृ य राजानं य धनममषणम् । उवाच णया वाचा मै ेयो भगवानृ षः ।। १८ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर मह ष भगवान् मै ेय अमषशील राजा य धनक ओर मुड़कर उससे मधुर वाणीम इस कार बोले ।। १८ ।। मै ेय उवाच य धन महाबाहो नबोध वदतां वर । वचनं मे महाभाग ुवतो य तं तव ।। १९ ।। मै ेयजीने कहा—महाबा य धन! तुम व ा म े हो; मेरी एक बात सुनो। महाभाग! म तु हारे हतक बात बता रहा ँ ।। १९ ।। मा हः पा डवान् राजन् कु व यमा मनः । पा डवानां कु णां च लोक य च नरषभ ।। २० ।। राजन्! तुम पा डव से ोह न करो। नर े ! अपना, पा डव का, कु कुलका तथा स पूण जगत्का य साधन करो ।। २० ।। ते ह सव नर ा ाः शूरा व ा तयो धनः । सव नागायुत ाणा व संहनना ढाः ।। २१ ।। मनु य म े सब पा डव शूरवीर, परा मी और यु कुशल ह। उन सबम दस हजार हा थय का बल है। उनका शरीर वक े समान ढ़ है ।। २१ ।। स य तधराः सव सव पु षमा ननः । ह तारो दे वश ूणां र सां काम पणाम् ।। २२ ।। ह ड बबकमु यानां कम र य च र सः ।





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वे सब-के-सब स य तधारी और अपने पौ षपर अ भमान रखनेवाले ह। इ छानुसार प धारण करनेवाले दे व ोही ह ड ब आ द रा स का तथा रा सजातीय कम रका वध भी उ ह ने ही कया है ।। २२ ।। इतः वतां रा ौ यः स तेषां महा मनाम् ।। २३ ।। आवृ य माग रौ ा मा त थौ ग र रवाचलः । तं भीमः समर ाघी बलेन ब लनां वरः ।। २४ ।। जघान पशुमारेण ा ः ु मृगं यथा । प य द वजये राजन् यथा भीमेन पा ततः ।। २५ ।। जरासंधो महे वासो नागायुतबलो यु ध । स ब धी वासुदेव यालाः सव च पाषताः ।। २६ ।। यहाँसे रातम जब वे महा मा पा डव चले जा रहे थे, उस समय उनका माग रोककर भयंकर और पवतके समान वशालकाय कम र उनके सामने खड़ा हो गया। यु क ाघा रखनेवाले बलवान म े भीमसेनने उस रा सको बलपूवक पकड़कर पशुक तरह वैसे ही मार डाला, जैसे ा छोटे मृगको मार डालता है। राजन्! दे खो, द वजयके समय भीमसेनने उस महान् धनुधर राजा जरासंधको भी यु म मार गराया, जसम दस हजार हा थय का बल था। (यह भी मरण रखना चा हये क) वसुदेवन दन भगवान् ीकृ ण उनके स ब धी ह तथा पदके सभी पु उनके साले ह ।। २३—२६ ।। क तान् यु ध समासीत जरामरणवान् नरः । त य ते शम एवा तु पा डवैभरतषभ ।। २७ ।। जरा और मृ युके वशम रहनेवाला कौन मनु य यु म उन पा डव का सामना कर सकता है। भरतकुल-भूषण! ऐसे महापरा मी पा डव के साथ तु ह शा तपूवक मलकर ही रहना चा हये ।। २७ ।। कु मे वचनं राजन् मा म युवशम वगाः । राजन्! तुम मेरी बात मानो; ोधके वशम न होओ ।। २७ ।। वैश पायन उवाच एवं तु ुवत त य मै ेय य वशा पते ।। २८ ।। ऊ ं गजकराकारं करेणा भजघान सः । य धनः मतं कृ वा चरणेनो लखन् महीम् ।। २९ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! मै ेयजी जब इस कार कह रहे थे, उस समय य धनने मुसकराकर हाथीके सूँड़के समान अपनी जाँघको हाथसे ठ का और पैरसे पृ वीको कुरेदने लगा ।। २८-२९ ।। न कच वा मधा त थौ क चदवाङ् मुखः । तमशु ूषमाणं तु व लख तं वसुंधराम् ।। ३० ।। ् वा य धनं राजन् मै ेयं कोप आ वशत् । स कोपवशमाप ो मै ेयो मु नस मः ।। ३१ ।। े ै े

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उस बु ने मै ेयजीको कुछ भी उ र न दया। वह अपने मुँहको कुछ नीचा कये चुपचाप खड़ा रहा। राजन्! मै ेयजीने दे खा, य धन सुनना नह चाहता, वह पैर से धरतीको कुरेद रहा है। यह दे ख उनके मनम ोध जाग उठा। फर तो वे मु न े मै ेय कोपके वशीभूत हो गये ।। ३०-३१ ।। व धना स णु दतः शापाया य मनो दधे । ततः स वायुप पृ य कोपसंर लोचनः । मै ेयो धातरा ं तमशपद् चेतसम् ।। ३२ ।। वधातासे े रत होकर उ ह ने य धनको शाप दे नेका वचार कया। तदन तर मै ेयने ोधसे लाल आँख करके जलका आचमन कया और उस च वाले धृतरापु को इस कार शाप दया— ।। ३२ ।। य मात् वं मामना य नेमां वाचं चक ष स । त माद या भमान य स ः फलमवा ु ह ।। ३३ ।। ‘ य धन! तू मेरा अनादर करके मेरी बात मानना नह चाहता; अतः तू इस अ भमानका तुरंत फल पा ले ।। ३३ ।।

वद भ ोहसंयु ं यु मु प यते महत् । त भीमो गदाघातै तवो ं भे यते बली ।। ३४ ।। ‘तेरे ोहके कारण बड़ा भारी यु छड़ेगा, उसम बलवान् भीमसेन अपनी गदाक चोटसे तेरी जाँघ तोड़ डालगे’ ।। ३४ ।। े









इ येवमु े वचने धृतरा ो महीप तः । सादयामास मु न नैतदे वं भवे द त ।। ३५ ।। उनके ऐसा कहनेपर महाराज धृतराने मु नको स कया और कहा—‘भगवन्! ऐसा न हो’ ।। ३५ ।। मै ेय उवाच शमं या य त चेत् पु तव राजन् यदा तदा । शापो न भ वता तात वपरीते भ व य त ।। ३६ ।। मै ेयजीने कहा—राजन्! जब तु हारा पु शा त धारण करेगा (पा डव से वैरवरोध न करके मेल- मलाप कर लेगा), तब यह शाप इसपर लागू न होगा। तात! य द इसने वपरीत बताव कया तो यह शाप इसे अव य भोगना पड़ेगा ।। ३६ ।। वैश पायन उवाच वल यं तु राजे ो य धन पता तदा । मै ेयं ाह कम रः कथं भीमेन पा ततः ।। ३७ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तब य धनके पता महाराज धृतराने भीमसेनके बलका वशेष प रचय पानेके लये मै ेयजीसे पूछा—‘मुने! भीमने कम रको कैसे मारा?’ ।। ३७ ।। मै ेय उवाच नाहं व या म ते भूयो न ते शु ूषते सुतः । एष ते व रः सवमा या य त गते म य ।। ३८ ।। मै ेयजीने कहा—राजन्! तु हारा पु मेरी बात सुनना नह चाहता, अतः म तुमसे इस समय फर कुछ नह क ँगा। ये व रजी मेरे चले जानेपर वह सारा संग तु ह बतायगे ।। ३८ ।। वैश पायन उवाच इ येवमु वा मै ेयः ा त त यथाऽऽगतम् । कम रवधसं व नो ब ह य धनो ययौ ।। ३९ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! ऐसा कहकर मै ेयजी जैसे आये थे वैसे ही चले गये। कम रवधका समाचार सुनकर उ न हो य धन भी बाहर नकल गया ।। ३९ ।। इ त ीमहाभारते वनपव ण अर यपव ण मै ेयशापे दशमोऽ यायः ।। १० ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत अर यपवम मै ेयशाप वषयक दसवाँ अ याय पूरा आ ।। १० ।।

( कम रवधपव) एकादशोऽ यायः भीमसेनके ारा कम रके वधक कथा धृतरा उवाच कम र य वधं ः ोतु म छा म कयताम् । र सा भीमसेन य कथमासीत् समागमः ।। १ ।। धृतरा ने पूछा— व र! म कम रवधका वृ ा त सुनना चाहता ँ, कहो। उस रा सके साथ भीमसेनक मुठभेड़ कैसे ई? ।। १ ।। व र उवाच शृणु भीम य कमदम तमानुषकमणः । ुतपूव मया तेषां कथा तेषु पुनः पुनः ।। २ ।। व रजीने कहा—राजन्! मानवश से अतीत कम करनेवाले भीमसेनके इस भयानक कमको आप सु नये, जसे मने उन पा डव के कथा संगम ( ा ण से) बार-बार सुना है ।। २ ।। इतः याता राजे पा डवा ूत न जताः । ज मु भरहोरा ैः का यकं नाम तद् वनम् ।। ३ ।। राजे ! पा डव जूएम परा जत होकर जब यहाँसे गये, तब तीन दन और तीन रातम का यकवनम जा प ँचे ।। ३ ।। रा ौ नशीथे वाभीले गतेऽधसमये नृप । चारे पु षादानां र सां घोरकमणाम् ।। ४ ।। तद् वनं तापसा न यं गोपा वनचा रणः । रात् प रहर त म पु षादभयात् कल ।। ५ ।। आधी रातके भयंकर समयम, जब क भयानक कम करनेवाले नरभ ी रा स वचरते रहते ह, तप वी मु न और वनचारी गोपगण भी उस रा सके भयसे उस वनको रसे ही याग दे ते थे ।। ४-५ ।। तेषां वशतां त मागमावृ य भारत । द ता ं भीषणं र ः सो मुकं यप त ।। ६ ।। भारत! उस वनम वेश करते ही वह रा स उनका माग रोककर खड़ा हो गया। उसक आँख चमक रही थ । वह भयानक रा स मशाल लये आया था ।। ६ ।। बा महा तौ कृ वा तु तथाऽऽ यं च भयानकम् । े

थतमावृ य प थानं येन या त कु हाः ।। ७ ।। अपनी दोन भुजा को ब त बड़ी करके मुँहको भयानक पसे फैलाकर वह उसी मागको घेरकर खड़ा हो गया, जससे वे कु वंश शरोम ण पा डव या ा कर रहे थे ।। ७ ।। प ा दं ं ता ा ं द तो व शरो हम् । साकर मत ड च ं सबलाक मवा बुदम् ।। ८ ।। उसक आठ दाढ़ प दखायी दे ती थ , आँख ोधसे लाल हो रही थ एवं सरके बाल ऊपरक ओर उठे ए और व लत-से जान पड़ते थे। उसे दे खकर ऐसा मालूम होता था, मानो सूयक करण , व ु म डल और बकपं य के साथ मेघ शोभा पा रहा हो ।। ८ ।। सृज तं रा स मायां महानाद नना दतम् । मु च तं वपुलान् नादान् सतोय मव तोयदम् ।। ९ ।। वह भयंकर गजनाके साथ रा सी मायाक सृ कर रहा था। सजल जलधरके समान जोर-जोरसे सहनाद करता था ।। ९ ।। त य नादे न सं ताः प णः सवतो दशम् । वमु नादाः स पेतुः थलजा जलजैः सह ।। १० ।। उसक गजनासे भयभीत ए थलचर प ी जलचर प य के साथ च -च करते ए सब दशा म भाग चले ।। १० ।। स तमृग पम हष समाकुलम् । तद् वनं त य नादे न स थत मवाभवत् ।। ११ ।। भागते ए मृग, भे ड़ये, भसे तथा रीछ से भरा आ वह वन उस रा सक गजनासे ऐसा हो गया, मानो वह वन ही भाग रहा हो ।। ११ ।। त यो वाता भहता ता प लवबाहवः । व रजाता लताः समा य त पादपान् ।। १२ ।। उसक जाँघ क हवाके वेगसे आहत हो तावणक े प लव पी बाँह ारा सुशो भत रक लताएँ भी मानो वृ से लपट जाती थ ।। १२ ।। त मन् णेऽथ ववौ मा तो भृशदा णः । रजसा संवृतं तेन न यो तरभू भः ।। १३ ।। इसी समय बड़ी च ड वायु चलने लगी। उसक उड़ायी ई धूलसे आ छा दत हो आकाशके तारे भी अ त हो गये-से जान पड़ते थे ।। १३ ।। प चानां पा डु पु ाणाम व ातो महा रपुः । प चाना म याणां तु शोकावेश इवातुलः ।। १४ ।। जैसे पाँच इ य को अक मात् अतु लत शोकावेश ा त हो जाय, उसी कार पाँच पा डव का वह तुलनार हत महान् श ु सहसा उनके पास आ प ँचा; पर पा डव को उस रा सका पता नह था ।। १४ ।। स ् वा पा डवान् रात् कृ णा जनसमावृतान् । आवृणोत् त न ारं मैनाक इव पवतः ।। १५ ।। े े ी ो े े े ै ँ

उसने रसे ही पा डव को कृ ण-मृगचम धारण कये आते दे ख मैनाक पवतक भाँ त उस वनके वेश- ारको घेर लया ।। १५ ।। तं समासा व ता कृ णा कमललोचना । अ पूव सं ासा यमीलयत लोचने ।। १६ ।। उस अ पूव रा सके नकट प ँचकर कमल-लोचना कृ णाने भयभीत हो अपने दोन ने बंद कर लये ।। १६ ।। ःशासनकरो सृ व क ण शरो हा । प चपवतम य था नद वाकुलतां गता ।। १७ ।। ःशासनके हाथ से खुले ए उसके केश सब ओर बखरे ए थे। वह पाँच पवत के बीचम पड़ी ई नद क भाँ त ाकुल हो उठ ।। १७ ।। मोमु मानां तां त जगृ ः प च पा डवाः । इ या ण स ा न वषयेषु यथा र तम् ।। १८ ।। उसे मूछत होती ई दे ख पाँच पा डव ने सहारा दे कर उसी तरह थाम लया, जैसे वषय म आस ई इ याँ त स ब धी अनुर को धारण कये रहती ह ।। १८ ।। अथ तां रा स मायामु थतां घोरदशनाम् । र ो नै व वधैम ैध यः स य यो जतैः ।। १९ ।। प यतां पा डु पु ाणां नाशयामास वीयवान् । स न मायोऽ तबलः ोध व फा रते णः ।। २० ।। काममू तधरः ू रः कालक पो यत । तमुवाच ततो राजा द घ ो यु ध रः ।। २१ ।। तदन तर वहाँ कट ई अ य त भयानक रा सी मायाको दे ख श शाली धौ य मु नने अ छ तरह योगम लाये ए रा स वनाशक व वध म ारा पा डव के दे खतेदे खते उस मायाका नाश कर दया। माया न होते ही वह अ य त बलवान् एवं इ छानुसार प धारण करनेवाला ू र रा स ोधसे आँख फाड़-फाड़कर दे खता आ कालके समान दखायी दे ने लगा। उस समय परम बु मान् राजा यु ध रने उससे पूछा— ।। १९— २१ ।। को भवान् क य वा क ते यतां कायमु यताम् । युवाचाथ तद् र ो धमराजं यु ध रम् ।। २२ ।। ‘तुम कौन हो, कसके पु हो अथवा तु हारा कौन-सा काय स पादन कया जाय? यह सब बताओ।’ तब उस रा सने धमराज यु ध रसे कहा— ।। २२ ।। अहं बक य वै ाता कम र इ त व ुतः । वनेऽ मन् का यके शू ये नवसा म गत वरः ।। २३ ।। ‘म बकका भाई ँ, मेरा नाम कम र है, इस नजन का यकवनम नवास करता ँ। यहाँ मुझे कसी कारक च ता नह है ।। २३ ।। यु ध न ज य पु षानाहारं न यमाचरन् । के यूयम भस ा ता भ यभूता ममा तकम् । े

यु ध न ज य वः सवान् भ य ये गत वरः ।। २४ ।। ‘यहाँ आये ए मनु य को यु म जीतकर सदा उ ह को खाया करता ँ। तुमलोग कौन हो? जो वयं ही मेरा आहार बननेके लये मेरे नकट आ गये? म तुम सबको यु म परा त करके न त हो अपना आहार बनाऊँगा’ ।। २४ ।। वैश पायन उवाच यु ध र तु त छ वा वच त य रा मनः । आचच े ततः सव गो नामा द भारत ।। २५ ।। वैश पायनजी कहते ह—भारत! उस रा माक बात सुनकर धमराज यु ध रने उसे गो एवं नाम आ द सब बात का प रचय दया ।। २५ ।। यु ध र उवाच पा डवो धमराजोऽहं य द ते ो मागतः । स हतो ातृ भः सवभ मसेनाजुना द भः ।। २६ ।। तरा यो वने वासं व तुं कृतम त ततः । वनम यागतो घोर मदं तव प र हम् ।। २७ ।। यु ध र बोले—म पा डु पु यु ध र ँ। स भव है, मेरा नाम तु हारे कान म भी पड़ा हो। इस समय मेरा रा य श ु ने जूएम हरण कर लया है। अतः म भीमसेन, अजुन आ द सब भाइय के साथ वनम रहनेका न य करके तु हारे नवास थान इस घोर का यकवनम आया ँ ।। २६-२७ ।। व र उवाच कम र व वीदे नं द ा दे वै रदं मम । उपपा दतम ेह चरकाला मनोगतम् ।। २८ ।। व रजी कहते ह—राजन्! तब कम रने यु ध रसे कहा—‘आज सौभा यवश दे वता ने यहाँ मेरे ब त दन के मनोरथक पू त कर द ।। २८ ।। भीमसेनवधाथ ह न यम यु तायुधः । चरा म पृ थव कृ नां नैनं चासादया यहम् ।। २९ ।। ‘म त दन ह थयार उठाये भीमसेनका वध करनेके लये सारी पृ वीपर वचरता था; कतु यह मुझे मल नह रहा था ।। २९ ।। सोऽयमासा दतो द ा ातृहा काङ् त रम् । अनेन ह मम ाता बको व नहतः यः ।। ३० ।। वै क यवने राजन् ा ण छ पणा । व ाबलमुपा य न य यौरसं बलम् ।। ३१ ।। ‘आज सौभा यवश यह वयं मेरे यहाँ आ प ँचा। भीम मेरे भाईका ह यारा है, म ब त दन से इसक खोजम था। राजन्! इसने (एकच ा नगरीके पास) वै क यवनम ा णका े



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कपटवेष धारण करके वेदो म प व ाबलका आ य ले मेरे यारे भाई बकासुरका वध कया था; वह इसका अपना बल नह था ।। ३०-३१ ।। ह ड ब सखा म ं द यतो वनगोचरः । हतो रा मनानेन वसा चा य ता पुरा ।। ३२ ।। ‘इसी कार वनम रहनेवाले मेरे य म ह ड बको भी इस रा माने मार डाला और उसक ब हनका अपहरण कर लया। ये सब ब त पहलेक बात ह ।। ३२ ।। सोऽयम यागतो मूढो ममेदं गहनं वनम् । चारसमयेऽ माकमधरा े थते स मे ।। ३३ ।। ‘वही यह मूढ़ भीमसेन हमलोग के घूमने- फरनेक बेलाम आधी रातके समय मेरे इस गहन वनम आ गया है ।। ३३ ।। अ ा य यात य या म तद् वैरं चरस भृतम् । तप य या म च बकं धरेणा य भू रणा ।। ३४ ।। ‘आज इससे म उस पुराने वैरका बदला लूँगा और इसके चुर र से बकासुरका तपण क ँ गा ।। ३४ ।। अ ाहमनृणो भू वा ातुः स यु तथैव च । शा तं लधा म परमां ह वा रा सक टकम् ।। ३५ ।। ‘आज म रा स के लये क टक प इस भीमसेनको मारकर अपने भाई तथा म के ऋणसे उऋण हो परम शा त ा त क ँ गा ।। ३५ ।। य द तेन पुरा मु ो भीमसेनो बकेन वै । अ ैनं भ य या म प यत ते यु ध र ।। ३६ ।। ‘यु ध र! य द पहले बकासुरने भीमसेनको छोड़ दया, तो आज म तु हारे दे खतेदे खते इसे खा जाऊँगा ।। ३६ ।। एनं ह वपुल ाणम ह वा वृकोदरम् । स भ य जर य या म यथाग यो महासुरम् ।। ३७ ।। ‘जैसे मह ष अग यने वाता प नामक महान् रा सको खाकर पचा लया, उसी कार म भी इस महाबली भीमको मारकर खा जाऊँगा और पचा लूँगा’ ।। ३७ ।। एवमु तु धमा मा स यसंधो यु ध रः । नैतद ती त स ोधो भ सयामास रा सम् ।। ३८ ।। उसके ऐसा कहनेपर धमा मा एवं स य त यु ध रने कु पत हो उस रा सको फटकारते ए कहा—‘ऐसा कभी नह हो सकता’ ।। ३८ ।। ततो भीमो महाबा रा य तरसा मम् । दश ाममथो ं न प मकरोत् तदा ।। ३९ ।। तदन तर महाबा भीमसेनने बड़े वेगसे हलाकर एक दस ाम* ल बे वृ को उखाड़ लया और उसके प े झाड़ दये ।। ३९ ।। चकार स यं गा डीवं व न पेषगौरवम् । े







नमेषा तरमा ेण तथैव वजयोऽजुनः ।। ४० ।। इधर वजयी अजुनने भी पलक मारते-मारते अपने उस गा डीव धनुषपर यंचा चढ़ा द , जसे वको भी पीस डालनेका गौरव ा त था ।। ४० ।। नवाय भीमो ज णुं तं तद् र ो मेघ नः वनम् । अ भ या वीद् वा यं त त े त भारत ।। ४१ ।। भारत! भीमसेनने अजुनको रोक दया और मेघके समान गजना करनेवाले उस रा सपर आ मण करते ए कहा—‘अरे! खड़ा रह, खड़ा रह’ ।। ४१ ।। इ यु वैनम त ु ः क यामु पी पा डवः । न प य पा णना पा ण संद ौ पुटो बली ।। ४२ ।। तम यधावद् वेगेन भीमो वृ ायुध तदा । यमद ड तीकाशं तत तं त य मूध न ।। ४३ ।। पातयामास वेगेन कु लशं मघवा नव । अस ा तं तु तद् र ः समरे य यत ।। ४४ ।। ऐसा कहकर अ य त ोधम भरे ए बलवान् पा डु न दन भीमने व से अ छ तरह अपनी कमर कस ली और हाथ-से-हाथ रगड़कर दाँत से ठ चबाते ए वृ को ही आयुध बनाकर बड़े वेगसे उसक तरफ दौड़े और जैसे इ वका हार करते ह, उसी कार यमद डके समान उस भयंकर वृ को रा सके म तकपर उ ह ने बड़े जोरसे दे मारा। तो भी वह नशाचर यु म अ वचलभावसे खड़ा दखायी दया ।। ४२—४४ ।। च ेप चो मुकं द तमश न व लता मव । त द तमलातं तु भीमः हरतां वरः ।। ४५ ।। पदा स ेन च ेप तद् र ः पुनरा जत् । कम र ा प सहसा वृ मु पा पा डवम् ।। ४६ ।। द डपा ण रव ु ः समरे यधावत । तद् वृ यु मभव मही ह वनाशनम् ।। ४७ ।। वा लसु ीवयो ा ोयथा ीकाङ् णोः पुरा । त प ात् उसने भी व लत वक े समान जलता आ काठ भीमके ऊपर फका, परंतु यो ा म े भीमने उस जलते काठको अपने बाँय पैरसे मारकर इस तरह फका क वह पुनः उस रा सपर ही जा गरा। फर तो कम रने भी सहसा एक वृ उखाड़ लया और ोधम भरे ए द डपा ण यमराजक भाँ त उस यु म पा डु कुमार भीमपर आ मण कया। जैसे पूवकालम ीक अ भलाषा रखनेवाले वाली और सु ीव दोन भाइय म भारी यु आ था, उसी कार उन दोन का वह वृ यु वनके वृ का वनाशक था ।। ४५— ४७ ।। शीषयोः प तता वृ ा ब भ नकधा तयोः ।। ४८ ।। यथैवौ पलप ा ण म यो पयो तथा । ै े ो









जैसे दो मतवाले गजराज के म तकपर पड़े ए कमलप णभरम छ - भ होकर बखर जाते ह, वैसे ही उन दोन के म तकपर पड़े ए वृ के अनेक टु कड़े हो जाते थे ।। ४८ ।। मु व जजरीभूता बहव त पादपाः ।। ४९ ।। चीराणीव ुद ता न रेजु त महावने । तद् वृ यु मभव मुत भरतषभ । रा सानां च मु य य नराणामु म य च ।। ५० ।। वहाँ उस महान् वनम ब त-से वृ मूँजक भाँ त जजर हो गये थे। वे फटे चीथड़ क तरह इधर-उधर फैले ए सुशो भत होते थे। भरत े ! रा सराज कम र और मनु य म े भीमसेनका वह वृ यु दो घड़ीतक चलता रहा ।। ४९-५० ।। ततः शलां समु य भीम य यु ध त तः । ा हणोद् रा सः ु ो भीम न चचाल ह ।। ५१ ।। तदन तर रा सने कु पत हो एक प थरक च ान लेकर यु म खड़े ए भीमसेनपर चलायी। भीम उसके हारसे जडवत् हो गये ।। ५१ ।। तं शलाताडनजडं पयधावत रा सः । बा व त करणः वभानु रव भा करम् ।। ५२ ।। वे शलाके आघातसे जडवत् हो रहे थे। उस अव थाम वह रा स भीमसेनक ओर उसी तरह दौड़ा जैसे रा अपनी भुजा से सूयक करण का नवारण करते ए उनपर आ मण करता है ।। ५२ ।। ताव यो यं समा य कष तौ पर परम् । उभाव प चकाशेते वृ ौ वृषभा वव ।। ५३ ।। वे दोन वीर पर पर भड़ गये और दोन दोन को ख चने लगे। दो -पु साँड़ क भाँ त पर पर भड़े ए उन दोन यो ा क बड़ी शोभा हो रही थी ।। ५३ ।। तयोरासीत् सुतुमुलः स हारः सुदा णः । नखदं ायुधवतो ा यो रव तयोः ।। ५४ ।। नख और दाढ़ से ही आयुधका काम लेनेवाले दो उ म ा क भाँ त उन दोन म अ य त भयंकर एवं घमासान यु छड़ा आ था ।। ५४ ।। य धन नकारा च बा वीया च द पतः । कृ णानयन वधत वृकोदरः ।। ५५ ।। य धनके ारा ा त ए तर कारसे तथा अपने बा बलसे भीमसेनका शौय एवं अ भमान जाग उठा था। इधर ौपद भी ेमपूण से उनक ओर दे ख रही थी; अतः वे उस यु म उ रो र उ सा हत हो रहे थे ।। ५५ ।। अ भप च बा यां यगृ ादम षतः । मात मव मात ः भ करटामुखम् ।। ५६ ।। े











उ ह ने अमषम भरकर सहसा आ मण करके दोन भुजा से उस रा सको उसी तरह पकड़ लया, जैसे मतवाला गजराज ग ड थलसे मदक धारा बहानेवाले सरे हाथीसे भड़ जाता है ।। ५६ ।। स चा येनं ततो र ः तज ाह वीयवान् । तमा पद् भीमसेनो बलेन ब लनां वरः ।। ५७ ।। उस बलवान् रा सने भी भीमसेनको दोन भुजा से पकड़ लया; तब बलवान म े भीमसेनने उसे बलपूवक र फक दया ।। ५७ ।। तयोभुज व न पेषा भयोब लनो तदा । श दः समभवद् घोरो वेणु फोटसमो यु ध ।। ५८ ।। अथैनमा य बलाद् गृ म ये वृकोदरः । धूनयामास वेगेन वायु ड इव मम् ।। ५९ ।। यु म उन दोन बलवान क भुजा क रगड़से बाँसके फटनेके समान भयंकर श द हो रहा था। जैसे च ड वायु अपने वेगसे वृ को झकझोर दे ती है, उसी कार भीमसेनने बलपूवक उछलकर उसक कमर पकड़ ली और उस रा सको बड़े वेगसे घुमाना आर भ कया ।। ५८-५९ ।। स भीमेन परामृ ो बलो ब लना रणे । प दत यथा ाणं वचकष च पा डवम् ।। ६० ।। बलवान् भीमक पकड़म आकर वह बल रा स अपनी श के अनुसार उनसे छू टनेक चे ा करने लगा। उसने भी पा डु न दन भीमसेनको इधर-उधर ख चा ।। ६० ।। तत एनं प र ा तमुपल य वृकोदरः । यो यामास बा यां पशुं रशनया यथा ।। ६१ ।। तदन तर उसे थका आ दे ख भीमसेनने अपनी दोन भुजा से उसे उसी तरह कस लया, जैसे पशुको डोरीसे बाँध दे ते ह ।। ६१ ।। वनद तं महानादं भ भेरी वनं बली । ामयामास सु चरं व फुर तमचेतसम् ।। ६२ ।। रा स कम र फूटे ए नगारेक -सी आवाजम बड़े जोर-जोरसे ची कार करने और छटपटाने लगा। बलवान् भीम उसे दे रतक घुमाते रहे, इससे वह मूछत हो गया ।। ६२ ।। तं वषीद तमा ाय रा सं पा डु न दनः । गृ तरसा दो या पशुमारममारयत् ।। ६३ ।। उस रा सको वषादम डू बा आ जान पा डु न दन भीमने दोन भुजा से वेगपूवक दबाते ए पशुक तरह उसे मारना आर भ कया ।। ६३ ।। आ य च कट दे शे जानुना रा साधमम् । पीडयामास पा ण यां क ठ ं त य वृकोदरः ।। ६४ ।। भीमने उस रा सके क ट दे शको अपने घुटनेसे दबाकर दोन हाथ से उसका गला मरोड़ दया ।। ६४ ।। अथ जजरसवाङ् गं ावृ नयनो बणम् । े े

भूतले ामयामास वा यं चेदमुवाच ह ।। ६५ ।। कम रका सारा अंग जजर हो गया और उसक आँख घूमने लग , इससे वह और भी भयंकर तीत होता था। भीमने उसी अव थाम उसे पृ वीपर घुमाया और यह बात कही — ।। ६५ ।।

ह ड बबकयोः पाप न वम ु माजनम् । क र य स गत ा प यम य सदनं त ।। ६६ ।। ‘ओ पापी! अब तू यमलोकम जाकर भी ह ड ब और बकासुरके आँसू न प छ सकेगा’ ।। ६६ ।। इ येवमु वा पु ष वीरतं रा सं ोधपरीतचेताः । व तव ाभरणं फुर तमुद ् ा त च ं सुमु ससज ।। ६७ ।। ऐसा कहकर ोधसे भरे दयवाले नरवीर भीमने उस रा सको, जसके व और आभूषण खसककर इधर-उधर गर गये थे और च ा त हो रहा था, ाण नकल जानेपर छोड़ दया ।। ६७ ।। े ो



त मन् हते तोयदतु य पे कृ णां पुर कृ य नरे पु ाः । भीमं श याथ गुणैरनेकैा ततो ै तवनाय ज मुः ।। ६८ ।। उस रा सका प-रंग मेघके समान काला था। उसके मारे जानेपर राजकुमार पा डव बड़े स ए और भीमसेनके अनेक गुण क शंसा करते ए ौपद को आगे करके वहाँसे ै तवनक ओर चल दये ।। ६८ ।।

व र उवाच एवं व नहतः सं ये कम रो मनुजा धप । भीमेन वचनात् त य धमराज य कौरव ।। ६९ ।। व रजी कहते ह—नरे र! इस कार धमराज यु ध रक आ ासे भीमसेनने कम रको यु म मार गराया ।। ६९ ।। ततो न क टकं कृ वा वनं तदपरा जतः । ौप ा सह धम ो वस त तामुवास ह ।। ७० ।। तदन तर वजयी एवं धम पा डु कुमार उस वनको न क टक (रा सर हत) बनाकर ौपद के साथ वहाँ रहने लगे ।। ७० ।। समा ा य च ते सव ौप भरतषभाः । मनसः ी या शशंसुवृकोदरम् ।। ७१ ।। भरतकुलके भूषण प उन सभी वीर ने ौपद को आ ासन दे कर स च हो ेमपूवक भीमसेनक सराहना क ।। ७१ ।। भीमबा बलो प े वन े रा से ततः । व वशु ते वनं वीराः ेमं नहतक टकम् ।। ७२ ।। भीमसेनके बा बलसे पसकर जब वह रा स न हो गया, तब उस अक टक एवं क याणमय वनम उन सभी वीर ने वेश कया ।। ७२ ।। स मया ग छता माग व नक ण भयावहः । वने मह त ा मा ो भीमबला तः ।। ७३ ।। मने महान् वनम जाते और आते समय रा तेम मरकर गरे ए उस भयानक एवं ा मा रा सके शवको अपनी आँख दे खा था, जो भीमसेनके बलसे मारा गया था ।। ७३ ।। त ा ौषमहं चैतत् कम भीम य भारत । ा णानां कथयतां ये त ासन् समागताः ।। ७४ ।। भारत! मने वनम उन ा ण के मुखसे, जो वहाँ आये ए थे, भीमसेनके इस महान् कमका वणन सुना ।। ७४ ।। वैश पायन उवाच एवं व नहतं सं ये कम रं र सां वरम् । ो

ु वा यानपरो राजा नश ासातवत् तदा ।। ७५ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! इस कार रा स वर कम रका यु म मारा जाना सुनकर राजा धृतरा कसी भारी च ताम डू ब गये और शोकातुर मनु यक भाँ त लंबी साँस ख चने लगे ।। ७५ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण कम रवधपव ण व रवा ये एकादशोऽ यायः ।। ११ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत कम रवधपवम व रवा यस ब धी यारहवाँ अ याय पूरा आ ।। ११ ।।

* दोन भुजा को दोन ओर फैलानेपर एक हाथक अँगु लय के सरेसे सरे हाथक अँगु लय के सरेतक जतनी री होती है, उसे ‘ ाम’ कहते ह। यही पु ष माण है। इसक ल बाई लगभग ३ हाथक होती है।

(अ जुना भगमनपव) ादशोऽ यायः अजुन और ौपद के ारा भगवान् ीकृ णक तु त, ौपद का भगवान् ीकृ णसे अपने त कये गये अपमान और ःखका वणन और भगवान् ीकृ ण, अजुन एवं धृ ु नका उसे आ ासन दे ना वैश पायन उवाच भोजाः जता छ वा वृ णय ा धकैः सह । पा डवान् ःखसंत तान् समाज मुमहावने ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! जब भोज, वृ ण और अ धकवंशके वीर ने सुना क पा डव अ य त ःखसे संत त हो राजधानीसे नकलकर चले गये, तब वे उनसे मलनेके लये महान् वनम गये ।। १ ।। पा चाल य च दायादो धृ केतु चे दपः । केकया महावीया ातरो लोक व ुताः ।। २ ।। वने ु ं ययुः पाथान् ोधामषसम वताः । गहय तो धातरा ान् क कुम इ त चा ुवन् ।। ३ ।। पांचालराजकुमार धृ ु न, चे दराज धृ केतु तथा महापरा मी लोक व यात केकयराजकुमार सभी भाई ोध और अमषम भरकर धृतरापु क न दा करते ए कु तीकुमार से मलनेके लये वनम गये और आपसम इस कार कहने लगे, ‘हम या करना चा हये’ ।। २-३ ।। वासुदेवं पुर कृ य सव ते यषभाः । प रवाय प व वशुधमराजं यु ध रम् । अ भवा कु े ं वष णः केशवोऽ वीत् ।। ४ ।। भगवान् ीकृ णको आगे करके वे सभी य शरोम ण धमराज यु ध रको चार ओरसे घेरकर बैठे। उस समय भगवान् ीकृ ण वषाद त हो कु वर यु ध रको नम कार करके इस कार बोले ।। ४ ।। वासुदेव उवाच य धन य कण य शकुने रा मनः । ःशासनचतुथानां भू मः पा य त शो णतम् ।। ५ ।। ी े ओ ै ी

ीकृ णने कहा—राजाओ! जान पड़ता है, यह पृ वी य धन, कण, रा मा शकु न और चौथे ःशासन—इन सबके र का पान करेगी ।। ५ ।। एतान् नह य समरे ये च त य पदानुगाः । तां सवान् व न ज य स हतान् सनरा धपान् ।। ६ ।। ततः सवऽ भ ष चामो धमराजं यु ध रम् । नकृ योपचरन् व य एष धमः सनातनः ।। ७ ।। यु म इनको और इनके सब सेवक को अ य राजा स हत परा त करके हम सब लोग धमराज यु ध रको पुनः च वत नरेशके पदपर अ भ ष कर। जो सरेके साथ छल-कपट अथवा धोखा करके सुख भोग रहा हो उसे मार डालना चा हये, यह सनातन धम है ।। ६-७ ।। वैश पायन उवाच पाथानाम भष े ण तथा ु ं जनादनम् । अजुनः शमयामास दध त मव जाः ।। ८ ।। सं ु ं केशवं ् वा पूवदे हेषु फा गुनः । क तयामास कमा ण स यक तमहा मनः ।। ९ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! कु तीपु के अपमानसे भगवान् ीकृ ण ऐसे कु पत हो उठे , मानो वे सम त जाको जलाकर भ म कर दगे। उ ह इस कार ोध करते दे ख अजुनने उ ह शा त कया और उन स यक त महा मा ारा पूव शरीर म कये ए कम का क तन आर भ कया ।। ८-९ ।। पु ष या मेय य स य या मततेजसः । जाप तपते व णोल कनाथ य धीमतः ।। १० ।। भगवान् ीकृ ण अ तयामी, अ मेय, स य व प, अ मततेज वी, जाप तय के भी प त, स पूण लोक के र क तथा परम बु मान् ी व णु ही ह (अजुनने उनक इस कार तु त क ) ।। १० ।। अजुन उवाच दश वषसह ा ण य सायंगृहो मु नः । चर वं पुरा कृ ण पवते ग धमादने ।। ११ ।। अजुन बोले— ीकृ ण! पूवकालम ग धमादन पवतपर आपने य सायंगह ृ * मु नके पम दस हजार वष तक वचरण कया है; अथात् नारायण ऋ षके पम नवास कया है ।। ११ ।। दश वषसह ा ण दश वषशता न च । पु करे ववसः कृ ण वमपो भ यन् पुरा ।। १२ ।। स चदान द व प ीकृ ण! पूवकालम कभी इस धराधामम अवतीण हो आपने यारह हजार वष -तक केवल जल पीकर रहते ए पु करतीथम नवास कया है ।। १२ ।।

ऊ वबा वशालायां बदया मधुसूदन । अ त एकपादे न वायुभ ः शतं समाः ।। १३ ।। मधुसूदन! आप वशालापुरीके बद रका मम दोन भुजाएँ ऊपर उठाये केवल वायुका आहार करते ए सौ वष तक एक पैरसे खड़े रहे ह ।। १३ ।। अवकृ ो रास ः कृशो धम नसंततः । आसीः कृ ण सर व यां स े ादशवा षके ।। १४ ।। कृ ण! आप सर वती नद के तटपर उ रीय व तकका याग करके ादशवा षक य करते समयतक शरीरसे अ य त बल हो गये थे। आपके सारे शरीरम फैली ई नसना ड़याँ प दखायी दे ती थ ।। १४ ।। भासम यथासा तीथ पु यजनो चतम् । तथा कृ ण महातेजा द ं वषसह कम् ।। १५ ।। अ त वमथैकेन पादे न नयम थतः । लोक वृ हेतु व म त ासो ममा वीत् ।। १६ ।। गो व द! आप पु या मा पु ष के नवासयो य भासतीथम जाकर लोग को तपम वृ करनेके लये शौच-संतोषा द नयम म थत हो महातेज वी व पसे एक सह द वष तक एक ही पैरसे खड़े रहे। ये सब बात मुझसे ी ासजीने बतायी ह ।। १५-१६ ।। े ः सवभूतानामा दर त केशव । नधानं तपसां कृ ण य वं च सनातनः ।। १७ ।। केशव! आप े (सबके आ मा), स पूण भूत के आ द और अ त, तप याके अ ध ान, य और सनातन पु ष ह ।। १७ ।। नह य नरकं भौममा य म णकु डले । थमो प ततं कृ ण मे यम मवासृजः ।। १८ ।। आप भू मपु नरकासुरको मारकर अ द तके दोन म णमय कु डल को ले आये थे; एवं आपने ही सृ के आ दम उ प होनेवाले य के उपयु घोड़ेक रचना क थी ।। १८ ।। कृ वा तत् कम लोकानामृषभः सवलोक जत् । अवधी वं रणे सवान् समेतान् दै यदानवान् ।। १९ ।। स पूण लोक पर वजय पानेवाले आप लोके र भुने वह कम करके सामना करनेके लये आये ए सम त दै य और दानव का यु थलम वध कया ।। १९ ।। ततः सव र वं च स दाय शचीपतेः । मानुषेषु महाबाहो ा भूतोऽ स केशव ।। २० ।। महाबा केशव! तदन तर शचीप तको सव र-पद दान करके आप इस समय मनु य म कट ए ह ।। २० ।। स वं नारायणो भू वा ह ररासीः परंतप । ा सोम सूय धम धाता यमोऽनलः ।। २१ ।। ो ी

वायुव वणो ः कालः खं पृ थवी दशः । अज राचरगु ः ा वं पु षो म ।। २२ ।। परंतप! पु षो म! आप ही पहले नारायण होकर फर ह र पम कट ए। ा, सोम, सूय, धम, धाता, यम, अनल, वायु, कुबेर, , काल, आकाश, पृ वी, दशाएँ, चराचरगु तथा सृ कता एवं अज मा आप ही ह ।। २१-२२ ।। परायणं दे वमूधा तु भमधुसूदन । अयजो भू रतेजा वै कृ ण चै रथे वने ।। २३ ।। मधुसूदन ीकृ ण! आपने चै रथवनम अनेक य का अनु ान कया है। आप सबके उ म आ य, दे व शरोम ण और महातेज वी ह ।। २३ ।। शतं शतसह ा ण सुवण य जनादन । एकैक मं तदा य े प रपूणा न भागशः ।। २४ ।। जनादन! उस समय आपने येक य म पृथक्-पृथक् एक-एक करोड़ वणमु ाएँ द णाके पम द ।। २४ ।। अ दतेर प पु वमे य यादवन दन । वं व णु र त व यात इ ादवरजो वभुः ।। २५ ।। य न दन! आप अ द तके पु हो, इ के छोटे भाई होकर सव ापी व णुके नामसे व यात ह ।। २५ ।। शशुभू वा दवं खं च पृ थव च परंतप । भ व मणैः कृ ण ा तवान स तेजसा ।। २६ ।। परंतप ीकृ ण! आपने वामनावतारके समय छोटे -से बालक होकर भी अपने तेजसे तीन डग ारा ुलोक, अ त र और भूलोक—तीन को नाप लया ।। २६ ।। स ा य दवमाकाशमा द य य दने थतः । अ यरोच भूता मन् भा करं वेन तेजसा ।। २७ ।। भूता मन्! आपने सूयके रथपर थत हो ुलोक और आकाशम ा त होकर अपने तेजसे भगवान् भा करको भी अ य त का शत कया है ।। २७ ।। ा भावसह ेषु तेषु तेषु वया वभो । अधम चयः कृ ण नहताः शतशोऽसुराः ।। २८ ।। वभो! आपने सह अवतार धारण कये ह और उन अवतार म सैकड़ असुर का, जो अधमम च रखनेवाले थे, वध कया है ।। २८ ।। सा दता मौरवाः पाशा नसु दनरकौ हतौ । कृतः ेमः पुनः प थाः पुरं ा यो तषं त ।। २९ ।। आपने मुर दै यके लोहमय पाश काट दये, नसु द और नरकासुरको मार डाला और पुनः ा यो तषपुरका माग सकुशल या ा करनेयो य बना दया ।। २९ ।। जा यामा तः ाथः शशुपालो जनैः सह । जरासंध शै य शतध वा च न जतः ।। ३० ।। े





भगवन्! आपने जा थी नगरीम आ त, ाथ, सा थय स हत शशुपाल, जरासंध, शै य और शतध वाको परा त कया ।। ३० ।। तथा पज यघोषेण रथेना द यवचसा । अवा सीम हष भो यां रणे न ज य मणम् ।। ३१ ।। इसी कार मेघके समान घघर श द करनेवाले सूयतु य तेज वी रथके ारा कु डनपुरम जाकर आपने मीको यु म जीता और भोजवंशक क या मणीको अपनी पटरानीके पम ा त कया ।। ३१ ।। इ ु नो हतः कोपाद् यवन कसे मान् । हतः सौभप तः शा व वया सौभं च पा ततम् ।। ३२ ।। भो! आपने ोधसे इ ु नको मारा और यवनजातीय कसे मान् एवं सौभप त शा वको भी यमलोक प ँचा दया। साथ ही शा वके सौभ वमानको भी छ - भ करके धरतीपर गरा दया ।। ३२ ।। एवमेते यु ध हता भूय ा या छृ णु व ह । इराव यां हतो भोजः कातवीयसमो यु ध ।। ३३ ।। इस कार इन पूव राजा को आपने यु म मारा है। अब आपके ारा मारे ए और के भी नाम सु नये। इरावतीके तटपर आपने कातवीय अजुनके स श परा मी भोजको यु म मार गराया ।। ३३ ।। गोप त तालकेतु वया व नहतावुभौ । तां च भोगवत पु यामृ षका तां जनादन ।। ३४ ।। ारकामा मसात् कृ वा समु ं गम य य स । गोप त और तालकेतु—ये दोन भी आपके ही हाथसे मारे गये। जनादन! भोगसाम य से स प तथा ऋ ष-मु नय क य अपने अधीन क ई पु यमयी ारका नगरीको आप अ तम समु म वलीन कर दगे ।। ३४ ।। न ोधो न च मा सय नानृतं मधुसूदन । व य त त दाशाह न नृशं यं कुतोऽनृजु ।। ३५ ।। आसीनं चै यम ये वां द यमानं वतेजसा । आग य ऋषयः सवऽयाच ताभयम युत ।। ३६ ।। मधुसूदन! वा तवम आपम न तो ोध है, न मा सय है, न अस य है, न नदयता ही है। दाशाह! फर आपम कठोरता तो हो ही कैसे सकती है? अ युत! महलके म यभागम बैठे और अपने तेजसे उद्भा सत ए आपके पास आकर स पूण ऋ षय ने अभयक याचना क ।। ३५-३६ ।। युगा ते सवभूता न सं य मधुसूदन । आ मनैवा मसात् कृ वा जगदासीः परंतप ।। ३७ ।। परंतप मधुसूदन! लयकालम सम त भूत का संहार करके इस जगत्को वयं ही अपने भीतर रखकर आप अकेले ही रहते ह ।। ३७ ।। ौ

युगादौ तव वा णय ना भपादजायत । ा चराचरगु य येदं सकलं जगत् ।। ३८ ।। वा णय! सृ के ार भकालम आपके ना भ-कमलसे चराचरगु ा उप ए, जनका रचा आ यह स पूण जगत् है ।। ३८ ।। तं ह तुमु तौ घोरौ दानवौ मधुकैटभौ । तयो त मं ् वा ु य भवतो हरेः ।। ३९ ।। ललाटा जातवा छ भुः शूलपा ण लोचनः । इ थं ताव प दे वेशौ व छरीरसमु वौ ।। ४० ।। जब ाजी उ प ए, उस समय दो भयंकर दानव मधु और कैटभ उनके ाण लेनेको उ त हो गये। उनका यह अ याचार दे खकर ोधम भरे ए आप ीह रके ललाटसे भगवान् शंकरका ा भाव आ, जनके हाथ म शूल शोभा पा रहा था। उनके तीन ने थे। इस कार वे दोन दे व ा और शव आपके ही शरीरसे उ प ए ह ।। ३९-४० ।। व योगकरावेता व त मे नारदोऽ वीत् । तथा नारायण पुरा तु भभू रद णैः ।। ४१ ।। इ वां वं महास ं कृ ण चै रथे वने । नैवं परे नापरे वा क र य त कृता न वा ।। ४२ ।। या न कमा ण दे व वं बाल एव महाबलः । कृतवान् पु डरीका बलदे वसहायवान् । कैलासभवने चा प ा णै यवसः सह ।। ४३ ।। वे दोन आपक ही आ ाका पालन करनेवाले ह, यह बात मुझे नारदजीने बतलायी थी। नारायण ीकृ ण! इसी कार पूवकालम चै रथवनके भीतर आपने चुर द णा से स प अनेक य तथा महास का अनु ान कया था। भगवान् पु डरीका ! आप महान् बलवान् ह। बलदे वजी आपके न य सहायक ह। आपने बचपनम ही जो-जो महान् कम कये ह, उ ह पूववत अथवा परवत पु ष ने न तो कया है और न करगे। आप ा ण के साथ कुछ कालतक कैलास पवतपर भी रहे ह ।। ४१— ४३ ।।

वैश पायन उवाच एवमु वा महा मानमा मा कृ ण य पा डवः । तू णीमासीत् ततः पाथ म युवाच जनादनः ।। ४४ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! ीकृ णके आ म व प पा डु न दन अजुन उन महा मासे ऐसा कहकर चुप हो गये। तब भगवान् जनादनने कु तीकुमारसे इस कार कहा — ।। ४४ ।। ममैव वं तवैवाहं ये मद या तवैव ते । य वां े स मां े य वामनु स मामनु ।। ४५ ।। ‘

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‘पाथ! तुम मेरे ही हो, म तु हारा ही ँ। जो मेरे ह, वे तु हारे ही ह। जो तुमसे े ष रखता है, वह मुझसे भी रखता है। जो तु हारे अनुकूल है, वह मेरे भी अनुकूल है ।। ४५ ।। नर वम स धष ह रनारायणो हम् । काले लोक ममं ा तौ नरनारायणावृषी ।। ४६ ।। ‘ ष वीर! तुम नर हो और म नारायण ीह र ँ। इस समय हम दोन नर-नारायण ऋ ष ही इस लोकम आये ह ।। ४६ ।। अन यः पाथ म वं व ाहं तथैव च । नावयोर तरं श यं वे दतुं भरतषभ ।। ४७ ।। ‘कु तीकुमार! तुम मुझसे अ भ हो और म तुमसे पृथक् नह ँ। भरत े ! हम दोन का भेद जाना नह जा सकता’ ।। ४७ ।।

वैश पायन उवाच एवमु े तु वचने केशवेन महा मना । त मन् वीरसमावाये संरधे वथ राजसु ।। ४८ ।। धृ ु नमुखैव रै ातृ भः प रवा रता । पा चाली पु डरीका मासीनं ातृ भः सह । अ भग या वीत् ु ा शर यं शरणै षणी ।। ४९ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! रोषावेशसे भरे ए राजा क म डलीम उस वीरसमुदायके म य महा मा केशवके ऐसा कहनेपर धृ ु न आ द भाइय से घरी और कु पत ई पांचालराजकुमारी ौपद भाइय के साथ बैठे ए शरणागतव सल ीकृ णके पास जा उनक शरणक इ छा रखती ई उनसे बोली ।। ४८-४९ ।। ौप ुवाच पूव जा भसग वामा रेकं जाप तम् । ारं सवलोकानाम सतो दे वलोऽ वीत् ।। ५० ।। ौपद ने कहा— भो! ऋ षलोग जासृ के ार भकालम एकमा आपको ही स पूण जगत्का ा एवं जाप त कहते ह। मह ष अ सत-द े वलका यही मत है ।। ५० ।। व णु वम स धष वं य ो मधुसूदन । य ा वम स य ो जामद यो यथा वीत् ।। ५१ ।। ष मधुसूदन! आप ही व णु ह, आप ही य ह, आप ही यजमान ह और आप ही यजन करने यो य ीह र ह, जैसा क जमद नन दन परशुरामका कथन है ।। ५१ ।। ऋषय वां मामा ः स यं च पु षो म । स याद् य ोऽ स स भूतः क यप वां यथा वीत् ।। ५२ ।। पु षो म! क यपजीका कहना है क मह षगण आपको मा और स यका व प कहते ह। स यसे कट ए य भी आप ही ह ।। ५२ ।। सा यानाम प दे वानां शवानामी रे र । भूतभावन भूतेश यथा वां नारदोऽ वीत् ।। ५३ ।। े े ी े ी

भूतभावन भूते र! आप सा य दे वता तथा क याणकारी के अधी र ह। नारदजीने आपके वषयम यही वचार कट कया है ।। ५३ ।। शंकरश ा ैदववृ दै ः पुनः पुनः । डसे वं नर ा बालः डनकै रव ।। ५४ ।। नर े ! जैसे बालक खलौन से खेलता है, उसी कार आप ा, शव तथा इ आ द दे वता से बारंबार डा करते रहते ह ।। ५४ ।। ौ ते शरसा ा ता प यां च पृ थवी भो । जठरं त इमे लोकाः पु षोऽ स सनातनः ।। ५५ ।। भो! वगलोक आपके म तकसे और पृ वी आपके चरण से ा त है। ये सब लोक आपके उदर व प ह। आप सनातन पु ष ह ।। ५५ ।। व ातपोऽ भत तानां तपसा भा वता मनाम् । आ मदशनतृ तानामृषीणाम स स मः ।। ५६ ।। व ा और तप यासे स प तथा तपके ारा शो धत अ तःकरणवाले आ म ानसे तृ त मह षय म आप ही परम े ह ।। ५६ ।। राजष णां पु यकृतामाहवे व नव तनाम् । सवधम पप ानां वं ग तः पु षषभ । वं भु वं वभु वं भूता मा वं वचे से ।। ५७ ।। पु षो म! यु म कभी पीठ न दखानेवाले, सब धम से स प पु या मा राज षय के आप ही आ य ह। आप ही भु (सबके वामी), आप ही वभु (सव ापी) और आप ही स पूण भूत के आ मा ह। आप ही व वध ा णय के पम नाना कारक चे ाएँ कर रहे ह ।। ५७ ।। लोकपाला लोका न ा ण दशो दश । नभ सूय व य सव त तम् ।। ५८ ।। लोक, लोकपाल, न , दस दशाएँ, आकाश, च मा और सूय सब आपम त त ह ।। ५८ ।। म यता चैव भूतानाममर वं दवौकसाम् । व य सव महाबाहो लोककाय त तम् ।। ५९ ।। महाबाहो! भूलोकके ा णय क मृ युपरवशता, दे वता क अमरता तथा स पूण जगत्का काय सब कुछ आपम ही त त है ।। ५९ ।। सा तेऽहं ःखमा या ये णया मधुसूदन । ईश वं सवभूतानां ये द ा ये च मानुषाः ।। ६० ।। मधुसूदन! म आपके त ेम होनेके कारण आपसे अपना ःख नवेदन क ँ गी; य क द और मानव जगत्म जतने भी ाणी ह, उन सबके ई र आप ही ह ।। ६० ।। कथं नु भाया पाथानां तव कृ ण सखी वभो । धृ ु न य भ गनी सभां कृ येत मा शी ।। ६१ ।। े े

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भगवन् कृ ण! मेरे-जैसी ी जो कु तीपु क प नी, आपक सखी और धृ ु नजैसे वीरक ब हन हो, या कसी तरह सभाम (केश पकड़कर) घसीटकर लायी जा सकती है? ।। ६१ ।। ीध मणी वेपमाना शो णतेन समु ता । एकव ा वकृ ा म ःखता कु संस द ।। ६२ ।। म रज वला थी, मेरे कपड़ पर र के छट े लगे थे, शरीरपर एक ही व था और ल जा एवं भयसे म थरथर काँप रही थी। उस दशाम मुझ ःखनी अबलाको कौरव क सभाम घसीटकर लाया गया था ।। ६२ ।। रा ां म ये सभायां तु रजसा तप र लुता । ् वा च मां धातरा ा ाहसन् पापचेतसः ।। ६३ ।। भरी सभाम राजा क म डलीके बीच अ य त रजाव होनेके कारण म र से भ गी जा रही थी। उस अव थाम मुझे दे खकर धृतराक े पापा मा पु ने जोर-जोरसे हँसकर मेरी हँसी उड़ायी ।। ६३ ।। दासीभावेन मां भो ु मीषु ते मधुसूदन । जीव सु पा डु पु ेषु प चालेषु च वृ णषु ।। ६४ ।। मधुसूदन! पा डव , पांचाल और वृ णवंशी वीर के जीते-जी धृतराक े पु ने दासीभावसे मेरा उपभोग करनेक इ छा कट क ।। ६४ ।। न वहं कृ ण भी म य धृतरा य चोभयोः । नुषा भवा म धमण साहं दासीकृता बलात् ।। ६५ ।। ीकृ ण! म धमतः भी म और धृतरा दोन क पु वधू ँ, तो भी उनके सामने ही बलपूवक दासी बनायी गयी ।। ६५ ।। गहये पा डवां वेव यु ध े ान् महाबलान् । य ल यमानां े ते धमप न यश वनीम् ।। ६६ ।। म तो सं ामम े इन महाबली पा डव क ही न दा करती ँ; जो अपनी यश वनी धमप नीको श ु ारा सतायी जाती ई दे ख रहे थे ।। ६६ ।। धग् बलं भीमसेन य धक् पाथ य च गा डवम् । यौ मां व कृतां ु ै मषयेतां जनादन ।। ६७ ।। जनादन! भीमसेनके बलको ध कार है, अजुनके गा डीव धनुषको भी ध कार है, जो उन नराधम ारा मुझे अपमा नत होती दे खकर भी सहन करते रहे ।। ६७ ।। शा तोऽयं धमपथः स राच रतः सदा । यद् भाया प रर त भतारोऽ पबला अ प ।। ६८ ।। स पु ष ारा सदा आचरणम लाया आ यह धमका सनातन माग है क नबल प त भी अपनी प नीक र ा करते ह ।। ६८ ।। भायायां र यमाणायां जा भव त र ता । जायां र यमाणायामा मा भव त र तः ।। ६९ ।। ी

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प नीक र ा करनेसे अपनी संतान सुर त होती है और संतानक र ा होनेपर अपने आ माक र ा होती है ।। ६९ ।। आ मा ह जायते त यां त मा जाया भव युत । भता च भायया र यः कथं जाया ममोदरे ।। ७० ।। अपना आ मा ही ीके गभसे ज म लेता है; इसी लये वह जाया कहलाती है। प नीको भी अपने प तक र ा इसी लये करनी चा हये क यह कसी कार मेरे उदरसे ज म हण करे ।। ७० ।। न वमे शरणं ा तं न यज त कदाचन । ते मां शरणमाप ां ना वप त पा डवाः ।। ७१ ।। ये अपनी शरणम आनेपर कभी कसीका भी याग नह करते; कतु इ ह पा डव ने मुझ शरणागत अबलापर त नक भी दया नह क ।। ७१ ।। प च भः प त भजाताः कुमारा मे महौजसः । एतेषाम यवे ाथ ात ा म जनादन ।। ७२ ।। जनादन! इन पाँच प तय से उ प ए मेरे महाबली पाँच पु ह। उनक दे खभालके लये भी मेरी र ा आव यक थी ।। ७२ ।। त व यो यु ध रात् सुतसोमो वृकोदरात् । अजुना छतक त शतानीक तु नाकु लः ।। ७३ ।। क न ा छतकमा च सव स यपरा माः । ु नो या शः कृ ण ता शा ते महारथाः ।। ७४ ।। यु ध रसे त व य, भीमसेनसे सुतसोम, अजुनसे ुतक त, नकुलसे शतानीक और छोटे पा डव सहदे वसे ुतकमाका ज म आ है। ये सभी कुमार स चे परा मी ह। ीकृ ण! आपका पु ु न जैसा शूरवीर है, वैसे ही वे मेरे महारथी पु भी ह ।। ७३-७४ ।। न वमे धनु ष े ा अजेया यु ध शा वैः । कमथ धातरा ाणां सह ते बलीयसाम् ।। ७५ ।। ये धनु व ाम े तथा श ु ारा यु म अजेय ह तो भी बल धृतरा -पु का अ याचार कैसे सहन करते ह? ।। ७५ ।। अधमण तं रा यं सव दासाः कृता तथा । सभायां प रकृ ाहमेकव ा रज वला ।। ७६ ।। अधमसे सारा रा य हरण कर लया गया, सब पा डव दास बना दये गये और म एकव धा रणी रज वला होनेपर भी सभाम घसीटकर लायी गयी ।। ७६ ।। ना ध यम प य छ यं कतुम येन गा डवम् । अ य ाजुनभीमा यां वया वा मधुसूदन ।। ७७ ।। मधुसूदन! अजुनके पास जो गा डीव धनुष है, उसपर अजुन, भीम अथवा आपके सवा सरा कोई यंचा भी नह चढ़ा सकता (तो भी ये मेरी र ा न कर सके) ।। ७७ ।। धग् बलं भीमसेन य धक् पाथ य च पौ षम् । ी

य य धनः कृ ण मुतम प जीव त ।। ७८ ।। कृ ण! भीमसेनके बलको ध कार है, अजुनके पु षाथको भी ध कार है, जसके होते ए य धन इतना बड़ा अ याचार करके दो घड़ी भी जी वत रह रहा है ।। ७८ ।। य एताना पद् रा ात् सह मा ा व हसकान् । अधीयानान् पुरा बालान् त थान् मधुसूदन ।। ७९ ।। मधुसूदन! पहले बा याव थाम, जब क पा डव चय तका पालन करते ए अ ययनम लगे थे, कसीक हसा नह करते थे, जन ने इ ह इनक माताके साथ रा यसे बाहर नकाल दया था ।। ७९ ।। भोजने भीमसेन य पापः ा ेपयद् वषम् । कालकूटं नवं ती णं स भूतं लोमहषणम् ।। ८० ।। जस पापीने भीमसेनके भोजनम नूतन, ती ण, प रमाणम अ धक एवं रोमांचकारी कालकूट नामक वष डलवा दया था ।। ८० ।। त जीणम वकारेण सहा ेन जनादन । सशेष वा महाबाहो भीम य पु षो म ।। ८१ ।। महाबा नर े जनादन! भीमसेनक आयु शेष थी, इसी लये वह घातक वष अ के साथ ही पच गया और उसने कोई वकार नह उ प कया (इस कार उस य धनके अ याचार को कहाँतक गनाया जाय) ।। ८१ ।। माणको ां व तं तथा सु तं वृकोदरम् । बद् वैनं कृ ण ग ायां य पुरमा जत् ।। ८२ ।। ीकृ ण! माणको टतीथम, जब भीमसेन व त होकर सो रहे थे, उस समय य धनने इ ह बाँधकर गंगाम फक दया और वयं चुपचाप राजधानीम लौट आया ।। ८२ ।। यदा वबु ः कौ तेय तदा सं छ ब धनम् । उद त महाबा भ मसेनो महाबलः ।। ८३ ।। जब इनक आँख खुली तो ये महाबली महाबा भीमसेन सारे ब धन को तोड़कर जलसे ऊपर उठे ।। ८३ ।। आशी वषैः कृ णसपभ मसेनमदं शयत् । सव वेवा दे शेषु न ममार च श ुहा ।। ८४ ।। इनके सारे अंग म वषैले काले सप से डँसवाया; परंतु श ुह ता भीमसेन मर न सके ।। ८४ ।। तबु तु कौ तेयः सवान् सपानपोथयत् । सार थ चा य द यतमपह तेन ज नवान् ।। ८५ ।। जागनेपर कु तीन दन भीमने सब सप को उठा-उठाकर पटक दया। य धनने भीमसेनके य सार थको भी उलटे हाथसे मार डाला ।। ८५ ।। पुनः सु तानुपाधा ीद् बालकान् वारणावते । शयानानायया साध को नु तत् कतुमह त ।। ८६ ।। ी ी े े ो े े

इतना ही नह , वारणावतम आया कु तीके साथम ये बालक पा डव सो रहे थे, उस समय उसने घरम आग लगवा द । ऐसा कम सरा कौन कर सकता है? ।। ८६ ।। य ाया दती भीता पा डवा नदम वीत् । महद् सनमाप ा शखना प रवा रता ।। ८७ ।। उस समय वहाँ आया कु ती भयभीत हो रोती ई पा डव से इस कार बोल —‘म बड़े भारी संकटम पड़ी, आगसे घर गयी ।। ८७ ।। हा हता म कुतो व भवे छा त रहानलात् । अनाथा वन श या म बालकैः पु कैः सह ।। ८८ ।। ‘हाय! हाय! म मारी गयी, अब इस आगसे कैसे शा त ा त होगी? म अनाथक तरह अपने बालक पु के साथ न हो जाऊँगी’ ।। ८८ ।। त भीमो महाबा वायुवेगपरा मः । आयामा ासयामास ातॄं ा प वृकोदरः ।। ८९ ।। वैनतेयो यथा प ी ग मान् पततां वरः । तथैवा भप त या म भयं वो नेह व ते ।। ९० ।। उस समय वहाँ वायुके समान वेग और परा मवाले महाबा भीमसेनने आया कु ती तथा भाइय को आ ासन दे ते ए कहा—‘प य म े वनतान दन ग ड जैसे उड़ा करते ह, उसी कार म भी तुम सबको लेकर यहाँसे चल ँ गा। अतः तु ह यहाँ त नक भी भय नह है’ ।। ८९-९० ।। आयामङ् केन वामेन राजानं द णेन च । अंसयो यमौ कृ वा पृ े बीभ सुमेव च ।। ९१ ।। सहसो प य वेगेन सवानादाय वीयवान् । ातॄनाया च बलवान् मो यामास पावकात् ।। ९२ ।। ऐसा कहकर परा मी एवं बलवान् भीमने आया कु तीको बाय अंकम, धमराजको दा हने अंकम, नकुल और सहदे वको दोन कंध पर तथा अजुनको पीठपर चढ़ा लया और सबको लये- दये सहसा वेगसे उछलकर इ ह ने उस भयंकर अ नसे भाइय तथा माताक र ा क * ।। ९१-९२ ।। ते रा ौ थताः सव सह मा ा यश वनः । अ यग छ महार ये ह ड बवनम तकात् ।। ९३ ।। फर वे सब यश वी पा डव माताके साथ रातम ही वहाँसे चल दये और ह ड बवनके पास एक भारी वनम जा प ँचे ।। ९३ ।। ा ताः सु ता त ेमे मा ा सह सु ःखताः । सु तां ैनान यग छ ड बा नाम रा सी ।। ९४ ।। वहाँ मातास हत ये ःखी पा डव थककर सो गये। सो जानेपर इनके नकट ह ड बा नामक रा सी आयी ।। ९४ ।। सा ् वा पा डवां त सु तान् मा ा सह तौ । े





छयेना भभूता मा भीमसेनमकामयत् ।। ९५ ।। मातास हत पा डव को वहाँ धरतीपर सोते दे ख कामसे पी ड़त हो उस रा सीने भीमसेनक कामना क ।। ९५ ।। भीम य पादौ कृ वा तु व उ स े ततोऽबला । पयमदत सं ा क याणी मृ पा णना ।। ९६ ।। भीमके पैर को अपनी गोदम लेकर वह क याणमयी अबला अपने कोमल हाथ से स तापूवक दबाने लगी ।। ९६ ।। तामबु यदमेया मा बलवान् स य व मः । पयपृ छत तां भीमः क महे छ य न दते ।। ९७ ।। उसका पश पाकर बलवान् स यपरा मी तथा अमेया मा भीमसेन जाग उठे । जागनेपर उ ह ने पूछा—‘सु दरी! तुम यहाँ या चाहती हो?’ ।। ९७ ।। एवमु ा तु भीमेन रा सी काम पणी । भीमसेनं महा मानमाह चैवम न दता ।। ९८ ।। इस कार पूछनेपर इ छानुसार प धारण करनेवाली उस अ न सु दरी रा सक याने महा मा भीमसे कहा— ।। ९८ ।। पलाय व मतः ं मम ातैष वीयवान् । आग म य त वो ह तुं त माद् ग छत मा चरम् ।। ९९ ।। ‘आपलोग यहाँसे ज द भाग जायँ, मेरा यह बलवान् भाई ह ड ब आपको मारनेके लये आयेगा; अतः आपलोग ज द चले जाइये, दे र न क जये’ ।। ९९ ।। अथ भीमोऽ युवाचैनां सा भमान मदं वचः । नो जेयमहं त मा ह न येऽहमागतम् ।। १०० ।। यह सुनकर भीमने अ भमानपूवक कहा—‘म उस रा ससे नह डरता। य द यहाँ आयेगा तो म ही उसे मार डालूँगा’ ।। १०० ।। तयोः ु वा तु संज पमाग छद् रा साधमः । भीम पो महानादान् वसृजन् भीमदशनः ।। १०१ ।। उन दोन क बातचीत सुनकर वह भीम पधारी भयंकर एवं नीच रा स बड़े जोरसे गजना करता आ वहाँ आ प ँचा ।। १०१ ।।

रा स उवाच केन साध कथय स आनयैनं ममा तकम् । ह ड बे भ य यामो न चरं कतुमह स ।। १०२ ।। रा स बोला— ह ड बे! ‘तू कससे बात कर रही है? लाओ इसे मेरे पास। हमलोग खायँगे। अब तु ह दे र नह करनी चा हये ।। १०२ ।। सा कृपासंगृहीतेन दयेन मन वनी । नैनमै छत् तदा यातुमनु ोशाद न दता ।। १०३ ।। ी







मन वनी एवं अ न दता ह ड बाने नेहयु दयके कारण दयावश यह ू रतापूण संदेश भीमसेनसे कहना उ चत न समझा ।। १०३ ।। स नादान् वनदन् घोरान् रा सः पु षादकः । अ य वत वेगेन भीमसेनं तदा कल ।। १०४ ।। इतनेहीम वह नरभ ी रा स घोर गजना करता आ बड़े वेगसे भीमसेनक ओर दौड़ा ।। १०४ ।। तम भ य सं ु ो वेगेन महता बली । अगृ ात् पा णना पा ण भीमसेन य रा सः ।। १०५ ।। इ ाश नसम पश व संहननं ढम् । संह य भीमसेनाय ा पत् सहसा करम् ।। १०६ ।। ोधम भरे ए उस बलवान् रा सने बड़े वेगसे नकट जाकर अपने हाथसे भीमसेनका हाथ पकड़ लया। भीमसेनके हाथका पश इ के वक े समान था। उनका शरीर भी वैसा ही सु ढ़ था। रा सने भीमसेनसे भड़कर उनके हाथको सहसा झटक दया ।। १०५-१०६ ।। गृहीतं पा णना पा ण भीमसेन य र सा । नामृ यत महाबा त ा ु यद् वृकोदरः ।। १०७ ।। रा सने भीमसेनके हाथको अपने हाथसे पकड़ लया; यह बात महाबा भीमसेन नह सह सके। वे वह कु पत हो गये ।। १०७ ।। तदाऽऽसीत् तुमुलं यु ं भीमसेन ह ड बयोः । सवा व षोघ रं वृ वासवयो रव ।। १०८ ।। उस समय स पूण अ -श के ाता भीमसेन और ह ड बम इ और वृ ासुरके समान भयानक एवं घमासान यु होने लगा ।। १०८ ।। व सु चरं भीमो रा सेन सहानघ । नजघान महावीय तं तदा नबलं बली ।। १०९ ।। न पाप ीकृ ण! महापरा मी और बलवान् भीमसेनने उस रा सके साथ ब त दे रतक खलवाड़ करके उसके नबल हो जानेपर उसे मार डाला ।। १०९ ।। ह वा ह ड बं भीमोऽथ थतो ातृ भः सह । ह ड बाम तः कृ वा य यां जातो घटो कचः ।। ११० ।। इस कार ह ड बको मारकर ह ड बाको आगे कये भीमसेन अपने भाइय के साथ आगे बढ़े । उसी ह ड बासे घटो कचका ज म आ ।। ११० ।। ततः स ा वन् सव सह मा ा परंतपाः । एकच ाम भमुखाः संवृता ा ण जैः ।। १११ ।। तदन तर सब परंतप पा डव अपनी माताके साथ आगे बढ़े । ा ण से घरे ए ये लोग एकच ा नगरीक ओर चल दये ।। १११ ।। थाने ास एषां च म ी य हते रतः । ततोऽग छ ेकच ां पा डवाः सं शत ताः ।। ११२ ।। े े ी ी े

उस या ाम इनके य एवं हतम लगे ए ासजी ही इनके परामशदाता ए। उ म तका पालन करनेवाले पा डव उ ह क स म तसे एकच ापुरीम गये ।। ११२ ।। त ा यासादयामासुबकं नाम महाबलम् । पु षादं तभयं ह ड बेनैव स मतम् ।। ११३ ।। वहाँ जानेपर भी इ ह नरभ ी रा स महाबली बकासुर मला। वह भी ह ड बके ही समान भयंकर था ।। ११३ ।। तं चा प व नह यो ं भीमः हरतां वरः । स हतो ातृ भः सव पद य पुरं ययौ ।। ११४ ।। यो ा म े भीम उस भयंकर रा सको मारकर अपने सब भाइय के साथ मेरे पता पदक राजधानीम गये ।। ११४ ।। लधाहम प त ैव वसता स सा चना । यथा वया जता कृ ण मणी भी मका मजा ।। ११५ ।। ीकृ ण! जैसे आपने भी मकन दनी मणीको जीता था, उसी कार मेरे पताक राजधानीम रहते समय स साची अजुनने मुझे जीता ।। ११५ ।। एवं सुयु े पाथन जताहं मधुसूदन । वयंवरे महत् कम कृ वा न सुकरं परैः ।। ११६ ।। मधुसूदन! वयंवरम, जो महान् कम सर के लये कर था, वह करके भारी यु म भी अजुनने मुझे जीत लया था ।। ११६ ।। एवं लेशैः सुब भः ल यमाना सु ःखता । नवसा यायया हीना कृ ण धौ यपुरःसरा ।। ११७ ।। परंतु आज म इन सबके होते ए भी अनेक कारके लेश भोगती और अ य त ःखम डू बी रहकर अपनी सास कु तीसे अलग हो धौ यजीको आगे रखकर वनम नवास करती ँ ।। ११७ ।। त इमे सह व ा ता वीयणा य धकाः परैः । वहीनैः प र ल य त समुपै त मां कथम् ।। ११८ ।। ये सहके समान परा मी पा डव बल-वीयम श ु से बढ़े -चढ़े ह, इनसे सवथा हीन कौरव मुझे भरी सभाम क दे रहे थे, तो भी इ ह ने य मेरी उपे ा क ? ।। ११८ ।। एता शा न ःखा न सह ती बलीयसाम् । द घकालं द ता म पापानां पापकमणाम् ।। ११९ ।। पापकम म लगे ए अ य त बल पापी श ु के दये ए ऐसे-ऐसे ःख म सह रही ँ और द घकालसे च ताक आगम जल रही ँ ।। ११९ ।। कुले मह त जाता म द ेन व धना कल । पा डवानां या भाया नुषा पा डोमहा मनः ।। १२० ।। यह स है क म द व धसे एक महान् कुलम उ प ई ँ। पा डव क यारी प नी और महाराज पा डु क पु वधू ँ ।। १२० ।। कच हमनु ा ता सा म कृ ण वरा सती । े

प चानां पा डु पु ाणां े तां मधुसूदन ।। १२१ ।। मधुसूदन ीकृ ण! म े और सती-सा वी होती ई भी इन पाँच पा डव के दे खतेदे खते केश पकड़कर घसीट गयी ।। १२१ ।। इ यु वा ा दत् कृ णा मुखं छा पा णना । पकोश काशेन मृ ना मृ भा षणी ।। १२२ ।। ऐसा कहकर मृ भा षणी ौपद कमलकोशके समान का तमान् एवं कोमल हाथसे अपना मुँह ढककर फूट-फूटकर रोने लगी ।। १२२ ।। तनावप ततौ पीनौ सुजातौ शुभल णौ । अ यवषत पा चाली ःखजैर ु ब भः ।। १२३ ।। पांचालराजकुमारी कृ णा अपने कठोर, उभरे ए, शुभल ण तथा सु दर तन पर ःखज नत अ ु ब क वषा करने लगी ।। १२३ ।। च ुषी प रमाज ती नः स ती पुनः पुनः । बा पपूणन क ठ े न ु ा वचनम वीत् ।। १२४ ।। कु पत ई ौपद बार-बार ससकती और आँसू प छती ई आँसूभरे क ठसे बोली — ।। १२४ ।। नैव मे पतयः स त न पु ा न च बा धवाः । न ातरो न च पता नैव वं मधुसूदन ।। १२५ ।। ‘मधुसूदन! मेरे लये न प त ह, न पु ह, न बा धव ह, न भाई ह, न पता ह और न आप ही ह ।। १२५ ।। ये मां व कृतां ु ै पे वं वशोकवत् । न च मे शा यते ःखं कण यत् ाहसत् तदा ।। १२६ ।। ‘ य क आप सब लोग, नीच मनु य ारा जो मेरा अपमान आ था, उसक उपे ा कर रहे ह, मानो इसके लये आपके दयम त नक भी ःख नह है। उस समय कणने जो मेरी हँसी उड़ायी थी, उससे उ प आ ःख मेरे दयसे र नह होता है ।। १२६ ।। चतु भः कारणैः कृ ण वया र या म न यशः । स ब धाद् गौरवात् स यात् भु वेनैव केशव ।। १२७ ।। ‘ ीकृ ण! चार कारण से आपको सदा मेरी र ा करनी चा हये। एक तो आप मेरे स ब धी ह, सरे अ नकु डम उ प होनेके कारण म गौरवशा लनी ँ, तीसरे आपक स ची सखी ँ और चौथे आप मेरी र ा करनेम समथ ह’ ।। १२७ ।। वैश पायन उवाच अथ ताम वीत् कृ ण त मन् वीरसमागमे । वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! यह सुनकर भगवान् ीकृ णने वीर के उस समुदायम ौपद से इस कार कहा ।। १२७ ।। वासुदेव उवाच ो







रो द य त यो ेवं येषां ु ा स भा व न । बीभ सुशरसं छ ा छो णतौघप र लुतान् ।। १२८ ।। नहतान् व लभान् वी य शयानान् वसुधातले । यत् समथ पा डवानां तत् क र या म मा शुचः ।। १२९ ।। ीकृ ण बोले—भा व न! तुम जनपर ु ई हो, उनक याँ भी अपने ाण यारे प तय को अजुनके बाण से छ - भ और खूनसे लथपथ हो मरकर धरतीपर पड़ा दे ख इसी कार रोयगी। पा डव के हतके लये जो कुछ भी स भव है, वह सब क ँ गा, शोक न करो ।। १२८-१२९ ।।

स यं ते तजाना म रा ां रा ी भ व य स । पतेद ् ौ हमवा छ यत् पृ थवी शकलीभवेत् ।। १३० ।। शु येत् तोय न धः कृ णे न मे मोघं वचो भवेत् । त छ वा ौपद वा यं तवा यमथा युतात् ।। १३१ ।। साचीकृतमवे त् सा पा चाली म यमं प तम् । आबभाषे महाराज ौपद मजुन तदा ।। १३२ ।। म स य त ापूवक कह रहा ँ क तुम राजरानी बनोगी। कृ णे! आसमान फट पड़े, हमालय पवत वद ण हो जाय, पृ वीके टु कड़े-टु कड़े हो जायँ और समु सूख जाय, कतु मेरी यह बात झूठ नह हो सकती। ौपद ने अपनी बात के उ रम भगवान् ीकृ णके े ऐ ी











मुखसे ऐसी बात सुनकर तरछ चतवनसे अपने मझले प त अजुनक ओर दे खा। महाराज! तब अजुनने ौपद से कहा— ।। १३०—१३२ ।। मा रोद ः शुभता ा यदाह मधुसूदनः । तथा तद् भ वता दे व ना यथा वरव ण न ।। १३३ ।। ‘ला लमायु सु दर ने वाली दे व! वरव ण न! रोओ मत। भगवान् मधुसूदन जो कुछ कह रहे ह, वह अव य होकर रहेगा; टल नह सकता’ ।। १३३ ।। धृ ु न उवाच अहं ोणं ह न या म शख डी तु पतामहम् । य धनं भीमसेनः कण ह ता धनंजयः ।। १३४ ।। रामकृ णौ पा य अजेयाः म रणे वसः । अ प वृ हणा यु े क पुनधृतरा जे ।। १३५ ।। धृ ु नने कहा—ब हन! म ोणको मार डालूँगा, शख डी भी मका वध करगे, भीमसेन य धनको मार गरायगे और अजुन कणको यमलोक भेज दगे। भगवान् ीकृ ण और बलरामका आ य पाकर हमलोग यु म श ु के लये अजेय ह। इ भी हम रणम परा त नह कर सकते। फर धृतराक े पु क तो बात ही या है? ।। १३४-१३५ ।। वैश पायन उवाच इ यु े ऽ भमुखा वीरा वासुदेवमुपा थताः । तेषां म ये महाबा ः केशवो वा यम वीत् ।। १३६ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! धृ ु नके ऐसा कहनेपर वहाँ बैठे ए वीर भगवान् ीकृ णक ओर दे खने लगे। उनके बीचम बैठे ए महाबा केशवने उनसे ऐसा कहा ।। १३६ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण अजुना भगमनपव ण ौप ा ासने ादशोऽ यायः ।। १२ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत अजुना भगमनपवम ौपद -आ ासन वषयक बारहवाँ अ याय पूरा आ ।। १२ ।।

* य सायंगह ृ मु न वे होते ह, जो जहाँ सायंकाल हो जाता है वह घरक तरह रातभर नवास करते ह।

* आ दपवके १४७व अ यायके ला ागृहदाह संगम बतलाया है क ‘भीमसेनने माताको तो कंधेपर चढ़ा लया और नकुल-सहदे वको गोदम उठा लया तथा शेष दोन भाइय को दोन हाथ से पकड़कर उ ह सहारा दे ते ए चलने लगे।’ इस कथनसे ौपद के वचन भ ह; य क ौपद का उस समय ववाह नह आ था, अतः ौपद इस बातको ठ क-ठ क नह जानती थी, इसीसे वह लोग के मुखसे सुनी-सुनायी बात अनुमानसे कह रही है; अतः ला ागृहदाहके संगक बात ही ठ क है।

योदशोऽ यायः ीकृ णका जूएके दोष बताते ए पा डव पर आयी ई वप म अपनी अनुप थ तको कारण मानना वासुदेव उवाच नैतत् कृ मनु ा तो भवान् याद् वसुधा धप । य हं ारकायां यां राजन् सं न हतः पुरा ।। १ ।। भगवान् ीकृ ण बोले—राजन्! य द म पहले ारकाम या उसके नकट होता तो आप इस भारी संकटम नह पड़ते ।। १ ।। आग छे यमहं ूतमनातोऽ प कौरवैः । आ बकेयेन धष रा ा य धनेन च । वारयेयमहं ूतं बन् दोषान् दशयन् ।। २ ।। जय वीर! अ बकान दन धृतरा, राजा य धन तथा अ य कौरव के बना बुलाये भी म उस ूतसभाम आता और जूएके अनेक दोष दखाकर उसे रोकनेक चे ा करता ।। २ ।। भी म ोणौ समाना य कृपं बा कमेव च । वै च वीय राजानमलं ूतेन कौरव ।। ३ ।। पु ाणां तव राजे व म म त भो । त ाच महं दोषान् यैभवान् तरो पतः ।। ४ ।। भो! म आपके लये भी म, ोण, कृप, बा क तथा राजा धृतराको बुलाकर कहता—‘कु वंशके महाराज! आपके पु को जूआ नह खेलना चा हये।’ राजन्! म ूतसभाम जूएके उन दोष को प पसे बताता, जनके कारण आपको अपने रा यसे वं चत होना पड़ा है ।। ३-४ ।। वीरसेनसुतो यै तु रा यात् ं शतः पुरा । अत कत वनाश दे वनेन वशा पते ।। ५ ।। तथा जन दोष ने पूवकालम वीरसेनपु महाराज नलको राज सहासनसे युत कया। नरे र! जूआ खेलनेसे सहसा ऐसा सवनाश उप थत हो जाता है, जो क पनाम भी नह आ सकता ।। ५ ।। सात यं च स य वणयेयं यथातथम् ।। ६ ।। इसके सवा उससे सदा जूआ खेलनेक आदत बन जाती है। यह सब बात म ठ कठ क बता रहा ँ ।। ६ ।। योऽ ा मृगया पानमेतत् कामसमु थतम् । ःखं चतु यं ो ं यैनरो यते यः ।। ७ ।। त सव व ं म य ते शा को वदाः । े



वशेषत व ं ूते प य त त दः ।। ८ ।। य के त आस , जूआ खेलना, शकार खेलनेका शौक और म पान—ये चार कारके भोग कामनाज नत ःख बताये गये ह, जनके कारण मनु य अपने धन-ऐ यसे हो जाता है। शा के नपुण व ान् सभी प र थ तय म इन चार को न दनीय मानते ह; परंतु ूत डाको तो जूएके दोष जाननेवाले लोग वशेष पसे न दनीय समझते ह ।। ७-८ ।। एकाहाद् नाशोऽ ुवं सनमेव च । अभु नाश ाथानां वा पा यं च केवलम् ।। ९ ।। एत चा य च कौर स कटु कोदयम् । ूते ूयां महाबाहो समासा ा बकासुतम् ।। १० ।। जूएसे एक ही दनम सारे धनका नाश हो जाता है। साथ ही जूआ खेलनेसे उसके त आस होनी न त है। सम त भोग-पदाथ का बना भोगे ही नाश हो जाता है और बदलेम केवल कटु वचन सुननेको मलते ह। कु न दन! ये तथा और भी ब त-से दोष ह, जो जूएके संगसे कटु प रणाम उ प करनेवाले ह। महाबाहो! म धृतरासे मलकर जूएके ये सभी दोष बतलाता ।। ९-१० ।। एवमु ो य द मया गृ याद् वचनं मम । अनामयं याद् धम कु णां कु वधन ।। ११ ।। कु वधन! मेरे इस कार समझाने-बुझानेपर य द वे मेरी बात मान लेते तो कौरव म शा त बनी रहती और धमका भी पालन होता ।। ११ ।। न चेत् स मम राजे गृ या मधुंर वचः । पयं च भरत े नगृ यां बलेन तम् ।। १२ ।। राजे ! भरत े ! य द वे मेरे मधुर एवं हतकर वचनको सुनकर उसे न मानते तो म उ ह बलपूवक रोक दे ता ।। १२ ।। अथैनमपनीतेन सु दो नाम दः । सभासदोऽनुवतरं तां ह यां रोदरान् ।। १३ ।। य द वहाँ सु द्नामधारी श ु अ यायका आ य ले इस धृतराका साथ दे ते तो म उन सभासद जुआ रय को मार डालता ।। १३ ।। असां न यं तु कौर ममानत वभूत् तदा । येनेदं सनं ा ता भव तो ूतका रतम् ।। १४ ।। कु े ! म उन दन आनतदे शम ही नह था, इसी लये आपलोग पर यह ूतज नत संकट आ गया ।। १४ ।। सोऽहमे य कु े ारकां पा डु न दन । अ ौषं वां स ननं युयुधानाद् यथातथम् ।। १५ ।। कु वर पा डु न दन! जब म ारकाम आया, तब सा य कसे आपके संकटम पड़नेका यथावत् समाचार सुना ।। १५ ।। ु वैव चाहं राजे परमो नमानसः । ो ो े

तूणम यागतोऽ म वां ु कामो वशा पते ।। १६ ।। राजे ! वह सुनते ही मेरा मन अ य त उ न हो उठा और जे र! म तुरंत ही आपसे मलनेके लये चला आया ।। १६ ।। अहो कृ मनु ा ताः सव म भरतषभ । सोऽहं वां सने म नं प या म सह सोदरैः ।। १७ ।। भरतकुलभूषण! अहो! आप सब लोग बड़ी क ठनाईम पड़ गये ह। म तो आपको सब भाइय स हत वप के समु म डू बा आ दे ख रहा ँ ।। १७ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण अजुना भगमनपव ण वासुदेववा ये योदशोऽ यायः ।। १३ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत अजुना भगमनपवम वासुदेववा य वषयक तेरहवाँ अ याय पूरा आ ।। १३ ।।

चतुदशोऽ यायः ू के समय न प ँचनेम ीकृ णके ारा शा वके साथ त यु करने और सौभ वमानस हत उसे न करनेका सं त वणन यु ध र उवाच असां न यं कथं कृ ण तवासीद् वृ णन दन । व चासीद् व वास ते क चाकाष ः वासतः ।। १ ।। यु ध रने कहा—वृ णकुलको आन दत करनेवाले ीकृ ण! जब यहाँ ूत डाका आयोजन हो रहा था, उस समय तुम ारकाम य अनुप थत रहे? उन दन तु हारा नवास कहाँ था और उस वासके ारा तुमने कौन-सा काय स कया? ।। १ ।। ीकृ ण उवाच शा व य नगरं सौभं गतोऽहं भरतषभ । नह तुं कौरव े त मे शृणु कारणम् ।। २ ।। महातेजा महाबा यः स राजा महायशाः । दमघोषा मजो वीरः शशुपालो मया हतः ।। ३ ।। य े ते भरत े राजसूयेऽहणां त । स रोषवशमाप ो नामृ यत रा मवान् ।। ४ ।। ु वा तं नहतं शा व ती रोषसम वतः । उपायाद् ारकां शू या मह थे म य भारत ।। ५ ।। ीकृ णने कहा—भरतवंश शरोमणे! कु कुलभूषण! म उन दन शा वके सौभ नामक नगराकार वमानको न करनेके लये गया आ था। इसका या कारण था, वह बतलाता ँ, सु नये। भरत े ! आपके राजसूयय म अ पूजाके को लेकर जो ोधके वशीभूत हो इस कायको नह सह सका था और इसी लये जस रा मा, महातेज वी, महाबा एवं महायश वी दमघोषन दन वीर राजा शशुपालको मने मार डाला था; उसक मृ युका समाचार सुनकर शा व च ड रोषसे भर गया। भारत! म तो यहाँ ह तनापुरम था और वह हमलोग से सूनी ारकापुरीम जा प ँचा ।। २—५ ।। स त यो धतो राजन् कुमारैवृ णपु वैः । आगतः कामगं सौभमा ैव नृशंसवत् ।। ६ ।। राजन्! वहाँ वृ णवंशके े कुमार ने उसके साथ यु कया। वह इ छानुसार चलनेवाले सौभ नामक वमानपर बैठकर आया और ू र मनु यक भाँ त यादव क ह या करने लगा ।। ६ ।। ततो वृ ण वीरां तान् बालान् ह वा बं तदा । ो



पुरो ाना न सवा ण भेदयामास म तः ।। ७ ।। उस खोट बु वाले शा वने वृ णवंशके ब तेरे बालक का वध करके नगरके सब बगीच को उजाड़ डाला ।। ७ ।। उ वां महाबाहो वासौ वृ णकुलाधमः । वासुदेवः स म दा मा वसुदेवसुतो गतः ।। ८ ।। महाबाहो! उसने यादव से पूछा—‘वह वृ णकुलका कलंक म दा मा वसुदेवपु वासुदेव कहाँ है? ।। ८ ।। त य यु ा थनो दप यु े नाश यता यहम् । आनताः स यमा यात त ग ता म य सः ।। ९ ।। तं ह वा व नव त ये कंसके श नषूदनम् । अह वा न नव त ये स येनायुधमालभे ।। १० ।। ‘उसे यु क बड़ी इ छा रहती है, आज उसके घमंडको म चूर कर ँ गा। आनत नवा सयो! सच-सच बतला दो। वह कहाँ है? जहाँ होगा, वह जाऊँगा और कंस तथा केशीका संहार करनेवाले उस कृ णको मारकर ही लौटूँ गा। म अपने अ -श को छू कर स यक सौग ध खाता ँ क अब कृ णको मारे बना नह लौटूँ गा’ ।। ९-१० ।। वासौ वासा व त पुन त त धाव त । मया कल रणे यो ं काङ् माणः स सौभराट् ।। ११ ।। सौभ वमानका वामी शा व सं ामभू मम मेरे साथ यु क इ छा रखकर चार ओर दौड़ता और सबसे यही पूछता था क ‘वह कहाँ है, कहाँ है?’ ।। ११ ।। अ तं पापकमाणं ु ं व ासघा तनम् । शशुपालवधामषाद् गम य ये यम यम् ।। १२ ।। मम पाप वभावेन ाता येन नपा ततः । शशुपालो महीपाल तं व ध ये महीपते ।। १३ ।। राजन्! साथ ही वह यह भी कहता था क ‘आज उस नीच पापाचारी और व ासघाती कृ णको शशुपालवधके अमषके कारण म यमलोक भेज ँ गा। उस पापीने मेरे भाई राजा शशुपालको मार गराया है, अतः म भी उसका वध क ँ गा ।। १२-१३ ।। ाता बाल राजा च न च सं ाममूध न । म हतो वीर तं ह न ये जनादनम् ।। १४ ।। ‘मेरा भाई शशुपाल अभी छोट अव थाका था, सरे वह राजा था, तीसरे यु के मुहानेपर खड़ा नह था, चौथे असावधान था, ऐसी दशाम उस वीरक जसने ह या क है, उस जनादनको म अव य मा ँ गा’ ।। १४ ।। एवमा द महाराज वल य दवमा थतः । कामगेन स सौभेन वा मां कु न दन ।। १५ ।। कु न दन! महाराज! इस कार शशुपालके लये वलाप करके मुझपर आ ेप करता आ वह इ छानुसार चलनेवाले सौभ वमान ारा आकाशम ठहरा आ था ।। १५ ।। तम ौषमहं ग वा यथावृ ः स म तः । ौ ो

म य कौर ा मा मा तकावतको नृपः ।। १६ ।। कु े ! यहाँसे ारका जानेपर मने, मा तकावतक दे शके नवासी ा मा एवं बु राजा शा वने मेरे त जो तापूण बताव कया था (आ ेपपूण बात कही थ ), वह सब कुछ सुना ।। १६ ।। ततोऽहम प कौर रोष ाकुलमानसः । न य मनसा राजन् वधाया य मनो दधे ।। १७ ।। कु न दन! तब मेरा मन भी रोषसे ाकुल हो उठा। राजन्! फर मन-ही-मन कुछ न य करके मने शा वके वधका वचार कया ।। १७ ।। आनतषु वमद च ेपं चा म न कौरव । वृ मवलेपं च त य कृतकमणः ।। १८ ।। ततः सौभवधायाहं त थे पृ थवीपते । स मया सागरावत आसीत् परी सता ।। १९ ।। कु वर! पृ वीपते! उसने आनत दे शम जो महान् संहार मचा रखा था, वह मुझपर जो आ ेप करता था तथा उस पापाचारीका घमंड जो ब त बढ़ गया था, वह सब सोचकर म सौभनगरका नाश करनेके लये थत आ। मने सब ओर उसक खोज क तो वह मुझे समु के एक पम दखायी दया ।। १८-१९ ।। ततः मा य जलजं पा चज यमहं नृप । आय शा वं समरे यु ाय समव थतः ।। २० ।। नरे र! तदन तर मने पा चज य शंख बजाकर शा वको समरभू मम बुलाया और वयं भी यु के लये उप थत आ ।। २० ।। त मुतमभूद ् यु ं त मे दानवैः सह । वशीभूता मे सव भूतले च नपा तताः ।। २१ ।। वहाँ सौभ नवासी दानव के साथ दो घड़ीतक मेरा यु आ और मने सबको वशम करके पृ वीपर मार गराया ।। २१ ।। एतत् काय महाबाहो येनाहं नागमं तदा । ु वैव हा तनपुरं ूतं चा वनयो थतम् । तमागतवान् यु मान् ु कामः सु ःखतान् ।। २२ ।। महाबाहो! यही काय उप थत हो गया था, जससे म उस समय न आ सका। लौटनेपर य ही सुना क ह तनापुरम य धनक उ डताके कारण जूआ खेला गया (और पा डव उसम सब कुछ हारकर वनको चले गये); तब अ य त ःखम पड़े ए आपलोग को दे खनेके लये म तुरंत यहाँ चला आया ।। २२ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण अजुना भगमनपव ण सौभवधोपा याने चतुदशोऽ यायः ।। १४ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत अजुना भगमनपवम सौभवधोपा यान वषयक चौदहवाँ अ याय पूरा आ ।। १४ ।।

प चदशोऽ यायः सौभनाशक व तृत कथाके संगम ारकाम यु स ब धी र ा मक तैया रय का वणन यु ध र उवाच वासुदेव महाबाहो व तरेण महामते । सौभ य वधमाच व न ह तृ या म कयतः ।। १ ।। यु ध रने कहा—महाबाहो! वसुदेवन दन! महामते! तुम सौभ- वमानके न होनेका समाचार व तारपूवक कहो। म तु हारे मुखसे इस संगको सुनते-सुनते तृ त नह हो रहा ँ ।। १ ।। वासुदेव उवाच हतं ु वा महाबाहो मया ौत वं नृप । उपायाद् भरत े शा वो ारवत पुरीम् ।। २ ।। भगवान् ीकृ ण बोले—महाबाहो! नरे र! भरत े ! ुत वा* के पु शशुपालके मारे जानेका समाचार सुनकर शा वने ारकापुरीपर चढ़ाई क ।। २ ।। अ ध ां सु ा मा सवतः पा डु न दन । शा वो वैहायसं चा प तत् पुरं ू व तः ।। ३ ।। पा डु न दन! उस ा मा शा वने सेना ारा ारकापुरीको सब ओरसे घेर लया था। वह वयं आकाशचारी वमान सौभपर ूहरचनापूवक वराजमान हो रहा था ।। ३ ।। त थोऽथ महीपालो योधयामास तां पुरीम् । अ भसारेण सवण त यु मवतत ।। ४ ।। उसीपर रहकर राजा शा व ारकापुरीके लोग से यु करता था। वहाँ भारी यु छड़ा आ था और उसम सभी दशा से अ -श के हार हो रहे थे ।। ४ ।। पुरी सम ताद् व हता सपताका सतोरणा । सच ा स डा चैव सय खनका तथा ।। ५ ।। ारकापुरीम सब ओर पताकाएँ फहरा रही थ । ऊँचे-ऊँचे गोपुर वहाँ चार दशा म सुशो भत थे। जगह-जगह सै नक के समुदाय यु के लये तुत थे। सै नक के आ मर ापूवक यु क सु वधाके लये थान- थानपर बुज बने ए थे। यु ोपयोगी य वहाँ बैठाये गये थे; तथा सुरंग ारा नये-नये माग नकालनेके कामम भी ब त-से लोग जुटे ए थे ।। ५ ।। सोपश य तोलीका सा ा ालकगोपुरा । सच हणी चैव सो कालातावपो थका ।। ६ ।।

सड़क पर लोहेके वषा काँटे अ य पसे बछाये गये थे। अ ा लका और गोपुर म पया त अ का सं ह कया गया था। श ुप के हार को रोकनेके लये जगहजगह मोचब द क गयी थी। श ु के चलाये ए जलते गोले और अलात ( व लत लौहमय अ )-को भी वफल करके नीचे गरा दे नेवाली श याँ सुस जत थ ।। ६ ।। सो का भरत े सभेरीपणवानका । सतोमराङ् कुशा राजन् सशत नीकला ला ।। ७ ।। सभुशु ड् य मगुडका सायुधा सपर धा । लोहचमवती चा प सा नः सगुडशृ का ।। ८ ।। अ से भरे ए म और चमड़ेके असं य पा रखे गये थे। भरत े ! ढोल, नगारे और मृदंग आ द जुझाऊ बाजे भी बज रहे थे। राजन्! तोमर, अंकुश, शत नी, लांगल, भुशु डी, प थरके गोले, अ या य अ -श , फरसे, ब त-सी सु ढ़ ढाल और गोलाबा दसे भरी ई तोप यथा थान तैयार रखी गयी थ ।। ७-८ ।। शा ेन व धना सुयु ा भरतषभ । रथैरनेकै व वधैगदसा बो वा द भः ।। ९ ।। पु षैः कु शा ल समथः तवारणे । अ त यातकुलैव रै वीय संयुगे ।। १० ।। म यमेन च गु मेन र भः सा सुर ता । उ तगु मै तथा हयै सपता क भः ।। ११ ।। ो







आघो षतं च नगरे न पात ा सुरे त वै । मादं प रर सेनो वा द भः ।। १२ ।। भरतकुलभूषण! शा ो व धसे ारकापुरीको र ाके सभी उ म उपाय से स प कया गया था। कु े ! श ु का सामना करनेम समथ गद, सा ब और उ व आ द अनेक वीर पु ष नाना कारके ब सं यक रथ ारा पुरीक र ाम द चत थे। जो अ य त व यात कुल म उ प थे तथा यु के अवसर पर जनके बल-वीयका प रचय मल चुका था, ऐसे वीर र क म यम गु म (नगरके म यवत ग)-म थत हो पुरीक पूणतः र ा कर रहे थे। सबको मादसे बचानेवाले उ सेन और उ व आ दने श ु के गु म को न करनेक श रखनेवाले घुड़सवार के हाथम झंडे दे कर समूचे नगरम यह घोषणा करा द थी क कसीको भी म पान नह करना चा हये ।। ९—१२ ।। म े व भघातं ह कुया छा वो नरा धपः । इ त कृ वा म ा ते सव वृ य धकाः थताः ।। १३ ।। य क म दरासे उ म ए लोग पर राजा शा व घातक हार कर सकता है। यह सोचकर वृ ण और अ धकवंशके सभी यो ा पूरी सावधानीके साथ यु म डटे ए थे ।। १३ ।। आनता तथा सव नटा नतकगायनाः । ब ह नवा सताः ंर व संचयम् ।। १४ ।। धनसं हक र ा करनेवाले यादव ने आनतदे शीय नट , नतक तथा गायक को शी ही नगरसे बाहर कर दया था ।। १४ ।। सं मा भे दताः सव नाव तषे धताः । प रखा ा प कौर कालैः सु न चताः कृताः ।। १५ ।। कु न दन! ारकापुरीम आनेके लये जो पुल मागम पड़ते थे वे सब तोड़ दये गये। नौकाएँ रोक द गयी थ और खाइय म काँटे बछा दये गये थे ।। १५ ।। उदपानाः कु े तथैवा य बरीषकाः । सम तात् ोशमा ं च का रता वषमा च भूः ।। १६ ।। कु े ! ारकापुरीके चार ओर एक कोसतकके चार ओरके कुएँ इस कार जलशू य कर दये गये थे मानो भाड़ ह और उतनी रक भू म भी लौहक टक आ दसे ा त कर द गयी थी ।। १६ ।। कृ या वषमं ग कृ या च सुर तम् । कृ या चायुधोपेतं वशेषेण तदानघ ।। १७ ।। न पाप नरेश! ारका एक तो वभावसे ही ग य, सुर त और अ -श से स प है, तथा प उस समय इसक वशेष व था कर द गयी थी ।। १७ ।। सुर तं सुगु तं च सवायुधसम वतम् । तत् पुरं भरत े यथे भवनं तथा ।। १८ ।। भरत े ! ारकानगर इ भवनक भाँ त ही सुर त, सुगु त और स पूण आयुध से भरा-पूरा है ।। १८ ।। ो े े

न चामु ोऽ भ नया त न चामु ः वे यते । वृ य धकपुरे राजं तदा सौभसमागमे ।। १९ ।। राजन्! सौभ नवा सय के साथ यु होते समय वृ ण और अ धकवंशी वीर के उस नगरम कोई भी राजमु ा (पास)-के बना न तो बाहर नकल सकता था और न बाहरसे नगरके भीतर ही आ सकता था ।। १९ ।। अनुरयासु सवासु च वरेषु च कौरव । बलं बभूव राजे भूतगजवा जमत् ।। २० ।। कु न दन राजे ! वहाँ येक सड़क और चौराहेपर ब त-से हाथीसवार और घुड़सवार से यु वशाल सेना उप थत रहती थी ।। २० ।। द वेतनभ ं च द ायुधप र छदम् । कृतोपधानं च तदा बलमासी महाभुज ।। २१ ।। महाबाहो! उस समय सेनाके येक सै नकको पूरा-पूरा वेतन और भ ा चुका दया गया था। सबको नये-नये ह थयार और पोशाक द गयी थ और उ ह वशेष पुर कार आ द दे कर उनका ेम और व ास ा त कर लया गया था ।। २१ ।। न कु यवेतनी क चा त ा तवेतनी । नानु हभृतः क चा परा मः ।। २२ ।। कोई भी सै नक ऐसा नह था जसे सोने-चाँद के सवा ताँबा आ द वेतनके पम दया जाता हो अथवा जसे समयपर वेतन न ा त आ हो। कसी भी सै नकको दयावश सेनाम भत नह कया गया था तथा कोई भी ऐसा न था जसका परा म ब त दन से दे खा न गया हो ।। २२ ।। एवं सु व हता राजन् ारका भू रद णा । आ केन सुगु ता च रा ा राजीवलोचन ।। २३ ।। कमलनयन राजन्! जसम ब त-से द मनु य नवास करते थे उस ारकानगरीक र ाके लये इस कारक व था क गयी थी। वह राजा उ सेनके ारा भलीभाँ त सुर त थी ।। २३ ।। ीमहाभारते वनपव ण अजुना भगमनपव ण सौभवधोपा याने प चदशोऽ यायः ।। १५ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत अजुना भगमनपवम सौभवध वषयक पं हवाँ अ याय पूरा आ ।। १५ ।।

*

इत

ुत वा शशुपालक माताका नाम है। यह वसुदेवजीक ब हन थी।

षोडशोऽ यायः शा वक वशाल सेनाके आ मणका यादवसेना ारा तरोध, सा ब ारा ेमवृ क पराजय, वेगवान्का वध तथा चा दे ण ारा व व य दै यका वध एवं ु न ारा सेनाको आ ासन वासुदेव उवाच तां तूपयातो राजे शा वः सौभप त तदा । भूतनरनागेन बलेनोप ववेश ह ।। १ ।। भगवान् ीकृ ण कहते ह—राजे ! सौभ वमानका वामी राजा शा व अपनी ब त बड़ी सेनाके साथ, जसम हाथीसवार तथा पैदल क सं या अ धक थी, ारकापुरीपर चढ़ आया और उसके नकट आकर ठहरा ।। १ ।। समे न व ा सा सेना भूतस ललाशये । चतुर बलोपेता शा वराजा भपा लता ।। २ ।। जहाँ अ धक जलसे भरा आ जलाशय था, वह समतल भू मम उसक सेनाने पड़ाव डाला। उसम हाथीसवार, घुड़सवार, रथी और पैदल चार कारके सै नक थे। वयं राजा शा व उसका संर क था ।। २ ।। वज य वा मशाना न दे वताऽऽयतना न च । व मीकां ै यवृ ां त व मभूद ् बलम् ।। ३ ।। मशानभू म, दे वम दर, बाँबी और चै यवृ को छोड़कर सभी थान म उसक सेना फैलकर ठहरी ई थी ।। ३ ।। अनीकानां वभागेन प थानः संवृताऽभवन् । वणाय च नैवास छा व य श वरे नृप ।। ४ ।। सेना के वभागपूवक पड़ाव डालनेसे सारे रा ते घर गये थे। राजन्! शा वके श वरम वेश करनेका कोई माग नह रह गया था ।। ४ ।। सवायुधसमोपेतं सवश वशारदम् । रथनागा क ललं पदा त वजसंकुलम् ।। ५ ।। तु पु बलोपेतं वीरल णल तम् । व च वजस ाहं व च रथकामुकम् ।। ६ ।। सं नवे य च कौर ारकायां नरषभ । अ भसारयामास तदा वेगेन पतगे वत् ।। ७ ।। नर े ! राजा शा वक वह सेना सब कारके आयुध से स प , स पूण अ श के संचालनम नपुण, रथ, हाथी और घोड़ से भरी ई तथा पैदल सपा हय और े







वजा-पताका से ा त थी। उसका येक सै नक -पु एवं बलवान् था। सबम वीरो चत ल ण दखायी दे ते थे। उस सेनाके सपाही व च वजा तथा कवच धारण करते थे। उनके रथ और धनुष भी व च थे। कु न दन! ारकाके समीप उस सेनाको ठहराकर राजा शा वने उसे वेगपूवक ारकाक ओर बढ़ाया; मानो प राज ग ड़ अपने ल यक ओर उड़े जा रहे ह ।। ५—७ ।। तदापत तं सं य बलं शा वपते तदा । नयाय योधयामासुः कुमारा वृ णन दनाः ।। ८ ।। शा वराजक उस सेनाको आती दे ख उस समय वृ णकुलको आन दत करनेवाले कुमार नगरसे बाहर नकलकर यु करने लगे ।। ८ ।। असह तोऽ भयानं त छा वराज य कौरव । चा दे ण सा ब ु न महारथः ।। ९ ।। ते रथैद शताः सव व च ाभरण वजाः । संस ाः शा वराज य ब भय धपु वैः ।। १० ।। कु न दन! शा वराजके उस आ मणको वे सहन न कर सके। चा दे ण, सा ब और महारथी ु न—ये सब कवच, व च आभूषण तथा वजा धारण करके रथ पर बैठकर शा वराजके अनेक े यो ा के साथ भड़ गये ।। ९-१० ।। गृही वा कामुकं सा बः शा व य स चवं रणे । योधयामास सं ः ेमवृ चमूप तम् ।। ११ ।। हषम भरे ए सा बने धनुष धारण करके शा वके म ी तथा सेनाप त ेमवृ के साथ यु कया ।। ११ ।। त य बाणमयं वष जा बव याः सुतो महत् । मुमोच भरत े यथा वष सह क् ।। १२ ।। तद् बाणवष तुमुलं वषेहे स चमूप तः । ेमवृ महाराज हमवा नव न लः ।। १३ ।। भरत े ! जा बवतीकुमारने उसके ऊपर भारी बाणवषा क , मानो इ जलक वषा कर रहे ह । महाराज! सेनाप त ेमवृ ने सा बक उस भयंकर बाणवषाको हमालयक भाँ त अ वचल रहकर सहन कया ।। १२-१३ ।।

ततः सा बाय राजे ेमवृ र प वयम् । मुमोच माया व हतं शरजालं मह रम् ।। १४ ।। राजे ! तदन तर ेमवृ ने वयं भी सा बके ऊपर माया नमत बाण क भारी वषा ार भ क ।। १४ ।। ततो मायामयं जालं माययैव वद य सः । सा बः शरसह ेण रथम या यवषत ।। १५ ।। सा बने उस मायामय बाणजालको मायासे ही छ - भ करके ेमवृ के रथपर सह बाण क झड़ी लगा द ।। १५ ।। ततः स व ः सा बेन ेमवृ मूप तः । अपाया जवनैर ैः सा बबाण पी डतः ।। १६ ।। सा बने सेनाप त ेमवृ को अपने बाण से घायल कर दया। वह सा बक बाणवषासे पी ड़त हो शी गामी अ क सहायतासे (लड़ाईका मैदान छोड़कर) भाग गया ।। १६ ।। त मन् व ते ू रे शा व याथ चमूपतौ । वेगवान् नाम दै तेयः सुतं मेऽ य वद् बली ।। १७ ।। े













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शा वके ू र सेनाप त ेमवृ के भाग जाने-पर वेगवान् नामक बलवान् दै यने मेरे पु पर आ मण कया ।। १७ ।। अ भप तु राजे सा बो वृ णकुलो हः । वेगं वेगवतो राजं त थौ वीरो वधारयन् ।। १८ ।। राजे ! वृ णवंशका भार वहन करनेवाला वीर सा ब वेगवान्के वेगको सहन करते ए धैयपूवक उसका सामना करने लगा ।। १८ ।। स वेगव त कौ तेय सा बो वेगवत गदाम् । च ेप तरसा वीरो ा व य स य व मः ।। १९ ।। कु तीन दन! स यपरा मी वीर सा बने अपनी वेगशा लनी गदाको बड़े वेगसे घुमाकर वेगवान् दै यके सरपर दे मारा ।। १९ ।। तया व भहतो राजन् वेगवान् यपतद् भु व । वात ण इव ु णो जीणमूलो वन प तः ।। २० ।। राजन्! उस गदासे आहत होकर वेगवान् इस कार पृ वीपर गर पड़ा, मानो जीण ई जड़वाला पुराना वृ हवाके वेगसे टू टकर धराशायी हो गया हो ।। २० ।। त मन् व नहते वीरे गदानु े महासुरे । व य महत सेनां योधयामास मे सुतः ।। २१ ।। गदासे घायल ए उस वीर महादै यके मारे जानेपर मेरा पु सा ब शा वक वशाल सेनाम घुसकर यु करने लगा ।। २१ ।। चा दे णेन संस ो व व यो नाम दानवः । महारथः समा ातो महाराज महाधनुः ।। २२ ।। महाराज! चा दे णके साथ महारथी एवं महान् धनुधर व व य नामक दानव शा वक आ ासे यु कर रहा था ।। २२ ।। ततः सुतुमुलं यु ं चा दे ण व व ययोः । वृ वासवयो राजन् यथा पूव तथाभवत् ।। २३ ।। राजन्! तदन तर चा दे ण और व व यम वैसा ही भयंकर यु होने लगा, जैसा पहले इ और वृ ासुरम आ था ।। २३ ।। अ यो य या भसं ु ाव यो यं ज नतुः शरैः । वनद तौ महारावान् सहा वव महाबलौ ।। २४ ।। वे दोन एक- सरेपर कु पत हो बाण से पर पर आघात कर रहे थे और महाबली सह क भाँ त जोर-जोरसे गजना करते थे ।। २४ ।। रौ मणेय ततो बाणम यक पमवचसम् । अ भम य महा ेण संदधे श ुनाशनम् ।। २५ ।। तदन तर मणीन दन चा दे णने अ न और सूयके समान तेज वी श ुनाशक बाणको महान् ( द ) अ से अ भम त करके अपने धनुषपर संधान कया ।। २५ ।। स व व याय स ोधः समाय महारथः । च ेप मे सुतो राजन् स गतासुरथापतत् ।। २६ ।। े े ी े ो

राजन्! त प ात् मेरे उस महारथी पु ने ोधम भरकर व व यपर वह बाण चलाया। उसके लगते ही व व य ाणशू य होकर पृ वीपर गर पड़ा ।। २६ ।। व व यं नहतं ् वा तां च व ो भतां चमूम् । कामगेन स सौभेन शा वः पुन पागमत् ।। २७ ।। व व यको मारा गया और सेनाको तहस-नहस ई दे ख शा व इ छानुसार चलनेवाले सौभ वमान ारा फर वहाँ आया ।। २७ ।। ततो ाकु लतं सव ारकावा स तद् बलम् । ् वा शा वं महाबाहो सौभ थं नृपते तदा ।। २८ ।। महाबा नरे र! उस समय सौभ वमानपर बैठे ए शा वको दे खकर ारकाक सारी सेना भयसे ाकुल हो उठ ।। २८ ।। ततो नयाय कौर अव था य च तद् बलम् । आनतानां महाराज ु नो वा यम वीत् ।। २९ ।। महाराज कु न दन! तब ु नने नकलकर आनतवा सय क उस सेनाको धीरज बँधाया और इस कार कहा— ।। २९ ।। सव भव त त तु सव प य तु मां यु ध । नवारय तं सं ामे बलात् सौभं सराजकम् ।। ३० ।। ‘यादवो! आप सब लोग (चुपचाप) खड़े रह और मेरे परा मको दे ख; म कस कार यु म राजा शा वके स हत सौभ वमानक ग तको रोक दे ता ँ ।। ३० ।। अहं सौभपतेः सेनामायसैभुजगै रव । धनुभुज व नमु ै नाशया य यादवाः ।। ३१ ।। ‘य वं शयो! म अपने धनुद डसे छू टे ए लोहेके सपतु य बाण ारा सौभप त शा वक सेनाको अभी न कये दे ता ँ’ ।। ३१ ।। आ स वं न भीः काया सौभराड न य त । मया भप ो ा मा ससौभो वन श य त ।। ३२ ।। ‘आप धैय धारण कर, भयभीत न ह , सौभराज अभी न हो रहा है। ा मा शा व मेरा सामना होते ही सौभ वमानस हत न हो जायगा’ ।। ३२ ।। एवं ुव त सं े ु ने पा डु न दन । व तं तद् बलं वीर युयुधे च यथासुखम् ।। ३३ ।। वीर पा डु न दन! हषम भरे ए ु नके ऐसा कहने पर वह सारी सेना थर हो पूववत् स ता और उ साहके साथ यु करने लगी ।। ३३ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण अजुना भगमनपव ण सौभवधोपा याने षोडशोऽ यायः ।। १६ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत अजुना भगमनपवम सौभवधोपा यान वषयक सोलहवाँ अ याय पूरा आ ।। १६ ।।

ीकृ णके ारा ौपद को आ ासन

स तदशोऽ यायः ु न और शा वका घोर यु वासुदेव उवाच एवमु वा रौ मणेयो यादवान् भरतषभ । दं शतैह र भयु ं रथमा थाय का चनम् ।। १ ।। उ य मकरं केतुं ा ानन मवा तकम् । उ पत रवाकाशं तैहयैर वयात् परान् ।। २ ।। व पन् नादयं ा प धनुः े ं महाबलः । तूणखड् गधरः शूरो ब गोधाङ् गु ल वान् ।। ३ ।। भगवान् ीकृ ण कहते ह—भरत े ! यादव से ऐसा कहकर मणीन दन ुन एक सुवणमय रथपर आ ढ़ ए, जसम ब तर पहनाये ए घोड़े जुते थे। उ ह ने अपनी मकर च त वजाको ऊँचा कया, जो मुँह बाये ए कालके समान तीत होती थी। उनके रथके घोड़े ऐसे चलते थे, मानो आकाशम उड़े जा रहे ह । ऐसे अ से जुते ए रथके ारा महाबली ु नने श ु पर आ मण कया। वे अपने े धनुषको बारंबार ख चकर उसक टं कार फैलाते ए आगे बढ़े । उ ह ने पीठपर तरकस और कमरम तलवार बाँध ली थी। उनम शौय भरा था और उ ह ने गोहके चमड़ेके बने ए द ताने पहन रखे थे ।। १— ३ ।। स व ु छु रतं चापं वहरन् वै तलात् तलम् । मोहयामास दै तेयान् सवान् सौभ नवा सनः ।। ४ ।। वे अपने धनुषको एक हाथसे सरे हाथम ले लया करते थे। उस समय वह धनुष बजलीके समान चमक रहा था। उ ह ने उस धनुषके ारा सौभ वमानम रहनेवाले सम त दै य को मू छत कर दया ।। ४ ।। त य व पत ापं संदधान य चासकृत् । ना तरं द शे क नतः शा वान् रणे ।। ५ ।। वे बारंबार धनुषको ख चते, उसपर बाण रखते और उसके ारा श ुसै नक को यु म मार डालते थे। उनक उ या म कसीको थोड़ा-सा भी अ तर नह दखायी दे ता था ।। ५ ।। मुख य वण न वक पतेऽ य चेलु गा ा ण न चा प त य । सहो तं चा य भगजतोऽ य शु ाव लोकोऽ तवीयम यम् ।। ६ ।। उनके मुखका रंग त नक भी नह बदलता था। उनके अंग भी वच लत नह होते थे। सब ओर गजना करते ए ु नका उ म एवं अद्भुत बल-परा मका सूचक सहनाद ो



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सब लोग को सुनायी दे ता था ।। ६ ।। जलेचरः का चनय सं थो ा ाननः सव त म माथी । व ासयन् राज त वाहमु ये शा व य सेना मुखे वजा यः ।। ७ ।। शा वक सेनाके ठ क सामने ु नके े रथपर उनक उ म वजा फहराती ई शोभा पा रही थी। उस वजाके सुवणमय द डके ऊपर सब त म नामक जल-ज तु का मथन करनेवाले मुँह बाये एक मगरम छका च था। वह श ुसै नक को अ य त भयभीत कर रहा था ।। ७ ।। तत तूण व न प य ु नः श ुकषणः । शा वमेवा भ ाव व ध सुः कलहं नृप ।। ८ ।। नरे र! तदन तर श ुह ता ु न तुरंत आगे बढ़कर राजा शा वके साथ यु करनेक इ छासे उसीक ओर दौड़े ।। ८ ।। अ भयानं तु वीरेण ु नेन महारणे । नामषयत सं ु ः शा वः कु कुलो ह ।। ९ ।। कु कुल तलक! उस महासं ामम वीर ु नके ारा कया आ वह आ मण ु आ राजा शा व न सह सका ।। ९ ।। स रोषमदम ो वै कामगादव च। ु नं योधयामास शा वः परपुरंजयः ।। १० ।। श ुक राजधानीपर वजय पानेवाले शा वने रोष एवं बलके मदसे उ म हो इ छानुसार चलनेवाले वमानसे उतरकर ु नसे यु आर भ कया ।। १० ।। तयोः सुतुमुलं यु ं शा ववृ ण वीरयोः । समेता द शुल का ब लवासवयो रव ।। ११ ।। शा व तथा वृ णवंशी वीर ु नम ब ल और इ के समान घोर यु होने लगा। उस समय सब लोग एक होकर उन दोन का यु दे खने लगे ।। ११ ।। त य मायामयो वीर रथो हेमप र कृतः । सपताकः स वज सानुकषः स तूणवान् ।। १२ ।। वीर! शा वके पास सुवणभू षत मायामय रथ था। वह रथ वजा, पताका, अनुकष (हरसा)* और तरकससे यु था ।। १२ ।। स तं रथवरं ीमान् समा कल भो । मुमोच बाणान् कौर ु नाय महाबलः ।। १३ ।। भो कु न दन! ीमान् महाबली शा वने उस े रथपर आ ढ़ हो ु नपर बाण क वषा आर भ क ।। १३ ।। ततो बाणमयं वष सृजत् तरसा रणे । ु नो भुजवेगेन शा वं स मोहय व ।। १४ ।। ी

















तब ु न भी यु भू मम अपनी भुजा के वेगसे शा वको मो हत करते ए-से उसके ऊपर शी तापूवक बाण क बौछार करने लगे ।। १४ ।। स तैर भहतः सं ये नामषयत सौभराट् । शरान् द ता नसंकाशान् मुमोच तनये मम ।। १५ ।। सौभ वमानका वामी राजा शा व यु म ु नके बाण से घायल होनेपर यह सहन नह कर सका—अमषम भर गया और मेरे पु पर व लत अ नके समान तेज वी बाण छोड़ने लगा ।। १५ ।। तमापत तं बाणौघं स च छे द महाबलः । तत ा या छरान् द तान् च ेप सुते मम ।। १६ ।। महाबली ु नने उन बाण को आते ही काट गराया। त प ात् शा वने मेरे पु पर और भी ब त-से व लत बाण छोड़े ।। १६ ।। स शा वबाणै राजे व ो म णन दनः । मुमोच बाणं व रतो ममभे दनमाहवे ।। १७ ।। राजे ! शा वके बाण से घायल होकर मणी-न दन ु नने तुरंत ही उस यु भू मम शा वपर एक ऐसा बाण चलाया, जो मम थलको वद ण कर दे नेवाला था ।। १७ ।। त य वम व भ ाशु स बाणो म सुते रतः । व ाध दयं प ी स मुमोह पपात च ।। १८ ।। मेरे पु के चलाये ए उस बाणने शा वके कवचको छे दकर उसके दयको ब ध डाला। इससे वह मू छत होकर गर पड़ा ।। १८ ।। त मन् नप तते वीरे शा वराजे वचेत स । स ा वन् दानवे ा दारय तो वसुंधराम् ।। १९ ।। वीर शा वराजके अचेत होकर गर जानेपर उसक सेनाके सम त दानवराज पृ वीको वद ण करके पातालम पलायन कर गये ।। १९ ।। हाहाकृतमभूत् सै यं शा व य पृ थवीपते । न सं े नप तते तदा सौभपतौ नृपे ।। २० ।। पृ वीपते! उस समय सौभ वमानका वामी राजा शा व जब सं ाशू य होकर धराशायी हो गया, तब उसक सम त सेनाम हाहाकार मच गया ।। २० ।। तत उ थाय कौर तल य च चेतनाम् । मुमोच बाणान् सहसा ु नाय महाबलः ।। २१ ।। कु े ! त प ात् जब चेत आ, तब महाबली शा व सहसा उठकर ु नपर बाण क वषा करने लगा ।। २१ ।। तैः स व ो महाबा ः ु नः समरे थतः । ज ुदेशे भृशं वीरो वासीदद् रथे तदा ।। २२ ।। शा वके उन बाण ारा क ठके मूलभागम गहरा आघात लगनेसे अ य त घायल होकर समरम थत महाबा वीर ु न उस समय रथपर मू छत हो गये ।। २२ ।। ो

तं स व वा महाराज शा वो म णन दनम् । ननाद सहनादं वै नादे नापूरयन् महीम् ।। २३ ।। महाराज! मणीन दन ु नको घायल करके शा व बड़े जोर-जोरसे सहनाद करने लगा। उसक आवाजसे वहाँक सारी पृ वी गूँज उठ ।। २३ ।। ततो मोहं समाप े तनये मम भारत । मुमोच बाणां व रतः पुनर यान् रासदान् ।। २४ ।। भारत! मेरे पु के मू छत हो जानेपर भी शा वने उनपर और भी ब त-से धष बाण शी तापूवक छोड़े ।। २४ ।। स तैर भहतो बाणैब भ तेन मो हतः । न े ः कौरव े ु नोऽभूद ् रणा जरे ।। २५ ।। कौरव े ! इस कार ब त-से बाण से आहत होनेके कारण ु न उस रणांगणम मू छत एवं न े हो गये ।। २५ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण अजुना भगमनपव ण सौभवधोपा याने स तदशोऽ यायः ।। १७ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत अजुना भगमनपवम सौभवधोपा यान वषयक स हवाँ अ याय पूरा आ ।। १७ ।।

* रथके नीचे प हयेके ऊपर लगा रहनेवाला का ।

अ ादशोऽ यायः मू छाव थाम सार थके ारा रणभू मसे बाहर लाये जानेपर ु नका अनुताप और इसके लये सार थको उपाल भ दे ना वासुदेव उवाच शा वबाणा दते त मन् ु ने ब लनां वरे । वृ णयो भ नसंक पा व थुः पृतनागताः ।। १ ।। भगवान् ीकृ ण कहते ह—बलवान म े ु न जब शा वके बाण से पी ड़त हो (मू छत हो) गये, तब सेनाम आये ए वृ णवंशी वीर का उ साह भंग हो गया। उन सबको बड़ा ःख आ ।। १ ।। हाहाकृतमभूत् सव वृ य धकबलं ततः । ु ने मो हते राजन् परे च मु दता भृशम् ।। २ ।। राजन्! ु नके मो हत होनेपर वृ ण और अ धकवंशक सारी सेनाम हाहाकार मच गया और श ुलोग अ य त स तासे खल उठ े ।। २ ।। तं तथा मो हतं ् वा सार थजवनैहयैः । रणादपाहरत् तूण श तो दा क तदा ।। ३ ।। दा कका पु ु नका सु श त सार थ था। वह ु नको इस कार मू छत दे ख वेगशाली अ ारा उ ह तुरंत रणभू मसे बाहर ले गया ।। ३ ।। ना त रापयाते तु रथे रथवर णुत् । धनुगृही वा य तारं लधसं ोऽ वी ददम् ।। ४ ।। अभी वह रथ अ धक र नह जाने पाया था, तभी बड़े-बड़े र थय को परा त करनेवाले ु न सचेत हो गये और हाथम धनुष लेकर सार थसे इस कार बोले — ।। ४ ।। सौते क ते व सतं क माद् या स पराङ् मुखः । नैष वृ ण वीराणामाहवे धम उ यते ।। ५ ।। ‘सूतपु ! आज तूने या सोचा है? य यु से मुँह मोड़कर भागा जा रहा है? यु से पलायन करना वृ णवंशी वीर का धम नह है ।। ५ ।। क चत् सौते न ते मोहः शा वं ् वा महाहवे । वषादो वा रणं ् वा ू ह मे वं यथातथम् ।। ६ ।। ‘सूतन दन! इस महासं ामम राजा शा वको दे खकर तुझे मोह तो नह हो गया है? अथवा यु दे खकर तुझे वषाद तो नह होता है? मुझसे ठ क-ठ क बता (तेरे इस कार भागनेका या कारण है?)’ ।। ६ ।। ौ

सौ त वाच जानादने न मे मोहो ना प मां भयमा वशत् । अ तभारं तु ते म ये शा वं केशवन दन ।। ७ ।। सूतपु ने कहा—जनादनकुमार! न मुझे मोह आ है और न मेरे मनम भय ही समाया है। केशवन दन! मुझे ऐसा मालूम होता है क यह राजा शा व आपके लये अ य त भारसा हो रहा है ।। ७ ।। सोऽपया म शनैव र बलवानेष पापकृत् । मो हत रणे शूरो र यः सार थना रथी ।। ८ ।। वीरवर! म धीरे-धीरे रणभू मसे र इस लये जा रहा ँ क यह पापी शा व बड़ा बलवान् है। सार थका यह धम है क य द शूरवीर रथी सं ामम मू छत हो जाय तो वह कसी कार उसके ाण क र ा करे ।। ८ ।। आयु मं वं मया न यं र त वया यहम् । र त ो रथी न य म त कृ वापया यहम् ।। ९ ।। आयु मन्! मुझे आपक और आपको मेरी सदा र ा करनी चा हये। रथी सार थके ारा सदा र णीय है, इस कत का वचार करके ही म रणभू मसे लौट रहा ँ ।। ९ ।। एक ा स महाबाहो बहव ा प दानवाः । न समं रौ मणेयाहं रणे म वापया म वै ।। १० ।। महाबाहो! आप अकेले ह और इन दानव क सं या ब त है। मणीन दन! इस यु म इतने वप य का सामना करना अकेले आपके लये क ठन है; यह सोचकर ही म यु से हट रहा ँ ।। १० ।। एवं ुव त सूते तु तदा मकरकेतुमान् । उवाच सूतं कौर नवतय रथं पुनः ।। ११ ।। दा का मज मैवं वं पुनः काष ः कथंचन । पयानं रणात् सौते जीवतो मम क ह चत् ।। १२ ।। कु न दन! सूतके ऐसा कहनेपर मकर वज ु नने उससे कहा—‘दा ककुमार! तू रथको पुनः यु भू मक ओर लौटा ले चल। सूतपु ! आजसे फर कभी कसी कार भी मेरे जीते-जी रथको रणभू मसे न लौटाना ।। ११-१२ ।। न स वृ णकुले जातो यो वै यज त संगरम् । यो वा नप ततं ह त तवा मी त च वा दनम् ।। १३ ।। ‘वृ णवंशम ऐसा कोई (वीर पु ष) नह पैदा आ है, जो यु छोड़कर भाग जाय अथवा गरे एको तथा ‘म आपका ँ’ यह कहनेवालेको मारे ।। १३ ।। तथा यं च यो ह त बालं वृ ं तथैव च । वरथं व क ण च भ नश ायुधं तथा ।। १४ ।। ‘इसी कार ी, बालक, वृ , रथहीन, अपने प से बछु ड़े ए तथा जसके अ श न हो गये ह , ऐसे लोग पर जो ह थयार उठाता हो, ऐसा मनु य भी वृ णकुलम नह ै

उप

आ है ।। १४ ।। वं च सूतकुले जातो वनीतः सूतकम ण । धम ा स वृ णीनामाहवे व प दा के ।। १५ ।। ‘दा ककुमार! तू सूतकुलम उ प होनेके साथ ही सूतकमक अ छ तरह श ा पा चुका है। वृ णवंशी वीर का यु म या धम है, यह भी भली-भाँ त जानता है ।। १५ ।। स जानं रतं कृ नं वृ णीनां पृतनामुखे । अपयानं पुनः सौते मैवं काष ः कथंचन ।। १६ ।। ‘सूतन दन! यु के मुहानेपर डटे ए वृ णकुलके वीर का स पूण च र तुझसे अ ात नह है; अतः तू फर कभी कसी तरह भी यु से न लौटना ।। १६ ।। अपयातं हतं पृ े ा तं रणपला यतम् । गदा जो राधषः क मां व य त माधवः ।। १७ ।। ‘यु से लौटने या ा त च होकर भागनेपर जब मेरी पीठम श ुके बाण का आघात लगा हो, उस समय कसीसे परा त न होनेवाले मेरे पता गदा ज भगवान् माधव मुझसे या कहगे? ।। १७ ।। केशव या जो वा प नीलवासा मदो कटः । क व य त महाबा बलदे वः समागतः ।। १८ ।। ‘अथवा पताजीके बड़े भाई नीला बरधारी मदो कट महाबा बलरामजी जब यहाँ पधारगे, तब वे मुझसे या कहगे? ।। १८ ।। क व य त शनेन ता नर सहो महाधनुः । अपयातं रणात् सूत सा ब स म तजयः ।। १९ ।। ‘सूत! यु से भागनेपर मनु य म सहके समान परा मी महाधनुधर सा य क तथा समर वजयी सा ब मुझसे या कहगे? ।। १९ ।। चा दे ण धष तथैव गदसारणौ । अ ू र महाबा ः क मां व य त सारथे ।। २० ।। ‘सारथे! धष वीर चा दे ण, गद, सारण और महाबा अ ू र मुझसे या कहगे? ।। २० ।। शूरं स भा वतं शा तं न यं पु षमा ननम् । य वृ णवीराणां क मां व य त संहताः ।। २१ ।। ‘म शूरवीर, स भा वत (स मा नत), शा त वभाव तथा सदा अपनेको वीर पु ष माननेवाला समझा जाता ँ। (यु से भागनेपर) मुझे दे खकर झुंड-क -झुंड एक ई वृ णवीर क याँ मुझे या कहगी? ।। २१ ।। ु नोऽयमुपाया त भीत य वा महाहवम् । धगेन म त व य त न तु व य त सा व त ।। २२ ।। ‘सब लोग यही कहगे—‘यह ु न भयभीत हो महान् सं ाम छोड़कर भागा आ रहा है; इसे ध कार है।’ उस अव थाम कसीके मुखसे मेरे लये अ छे श द नह नकलगे ।। २२ ।। ो

ध वाचा प रहासोऽ प मम वा म ध य वा । मृ युना य धकः सौते स वं मा पयाः पुनः ।। २३ ।। ‘सूतकुमार! मेरे अथवा मेरे-जैसे कसी भी पु षके लये ध कारयु वाणी ारा कोई प रहास भी कर दे तो वह मृ युसे भी अ धक क दे नेवाला है; अतः तू फर कभी यु छोड़कर न भागना ।। २३ ।। भारं ह म य सं य य यातो मधु नहा ह रः । य ं भारत सह य न ह श योऽ म षतुम् ।। २४ ।। ‘मेरे पता मधुसूदन भगवान् ीह र यहाँक र ाका सारा भार मुझपर रखकर भरतवंश शरोम ण धमराज यु ध रके य म गये ह। (आज मुझसे जो अपराध हो गया है,) इसे वे कभी मा नह कर सकगे ।। २४ ।। कृतवमा मया वीरो नया य ेव वा रतः । शा वं नवार य येऽहं त व म त सूतज ।। २५ ।। ‘सूतपु ! वीर कृतवमा शा वका सामना करनेके लये पुरीसे बाहर आ रहे थे; कतु मने उ ह रोक दया और कहा—‘आप यह र हये। म शा वको परा त क ँ गा’ ।। २५ ।। स च स भावयन् मां वै नवृ ो दका मजः । तं समे य रणं य वा क व या म महारथम् ।। २६ ।। ‘कृतवमा मुझे इस कायके लये समथ जानकर यु से नवृ हो गये। आज यु छोड़कर जब म उन महारथी वीरसे मलूँगा, तब उ ह या जवाब ँ गा? ।। २६ ।। उपया तं राधष शङ् खच गदाधरम् । पु षं पु डरीका ं क व या म महाभुजम् ।। २७ ।। ‘शंख, च और गदा धारण करनेवाले कमलनयन महाबा एवं अजेय वीर भगवान् पु षो म जब यहाँ मेरे नकट पदापण करगे, उस समय म उ ह या उ र ँ गा? ।। २७ ।। सा य क बलदे वं च ये चा येऽ धकवृ णयः । मया पध त सततं क नु व या म तानहम् ।। २८ ।। ‘सा य कसे, बलरामजीसे तथा अ धक और वृ णवंशके अ य वीर से, जो सदा मुझसे पधा रखते ह, म या क ँगा? ।। २८ ।। य वा रण ममं सौते पृ तोऽ याहतः शरैः । वयापनीतो ववशो न जीवेयं कथंचन ।। २९ ।। ‘सूतपु ! तेरे ारा रणसे र लाया आ म इस यु को छोड़कर और पीठपर बाण क चोट खाकर ववशतापूण जीवन कसी कार भी नह धारण क ँ गा ।। २९ ।। स नवत रथेनाशु पुनदा कन दन । न चैतदे वं कत मथाप सु कथंचन ।। ३० ।। ‘दा कन दन! अतः तू शी ही रथके ारा पुनः सं ामभू मक ओर लौट। आजसे मुझपर आप आनेपर भी तू कसी तरह ऐसा बताव न करना ।। ३० ।। न जी वतमहं सौते ब म ये कथंचन । अपयातो रणाद् भीतः पृ तोऽ याहतः शरैः ।। ३१ ।। ‘ ी ो ी ो े े े े ी ो

‘सूतपु ! पीठपर बाण क चोट खाकर भयभीत हो यु से भागनेवालेके जीवनको म कसी कार भी अ धक आदर नह दे ता ।। ३१ ।। कदा प सूतपु वं जानीषे मां भया दतम् । अपयातं रणं ह वा यथा कापु षं तथा ।। ३२ ।। ‘सूतपु ! या तू मुझे कायर क तरह भयसे पी ड़त और यु छोड़कर भागा आ समझता है? ।। ३२ ।। न यु ं भवता य ुं सं ामं दा का मज । म य यु ा थ न भृशं स वं या ह यतो रणम् ।। ३३ ।। ‘दा ककुमार! तुझे सं ामभू मका प र याग करना कदा प उ चत नह था। वशेषतः उस अव थाम, जब क म यु क अ भलाषा रखता था। अतः जहाँ यु हो रहा है, वहाँ चल’ ।। ३३ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण अजुना भगमनपव ण सौभवधोपा याने अ ादशोऽ यायः ।। १८ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत अजुना भगमनपवम सौभवधोपा यान वषयक अठारहवाँ अ याय पूरा आ ।। १८ ।।

एकोन वशोऽ यायः ु नके ारा शा वक पराजय वासुदेव उवाच एवमु तु कौ तेय सूतपु ततोऽ वीत् । ु नं ब लनां े ं मधुरं णम सा ।। १ ।। भगवान् ीकृ ण कहते ह—कु तीन दन! ु नके ऐसा कहनेपर सूतपु ने शी ही बलवान म े ु नसे थोड़े श द म मधुरतापूवक कहा— ।। १ ।। न मे भयं रौ मणेय सं ामे य छतो हयान् । यु ोऽ म च वृ णीनां ना क चदतोऽ यथा ।। २ ।। ‘ मणीन दन! सं ामभू मम घोड़ क बागडोर सँभालते ए मुझे त नक भी भय नह होता। म वृ णवं शय के यु धमको भी जानता ँ। आपने जो कुछ कहा है, उसम कुछ भी अ यथा नह है ।। २ ।। आयु म ुपदे श तु सारये वततां मृतः । सवाथषु रथी र य वं चा प भृशपी डतः ।। ३ ।। ‘आयु मन्! मने तो सार यम त पर रहनेवाले लोग के इस उपदे शका मरण कया था क सभी दशा म रथीक र ा करनी चा हये। उस समय आप भी अ धक पी ड़त थे ।। ३ ।। वं ह शा व यु े न शरेणा भहतो भृशम् । क मला भहतो वीर ततोऽहमपयातवान् ।। ४ ।। ‘वीर! शा वके चलाये ए बाण से अ धक घायल होनेके कारण आपको मू छा आ गयी थी, इसी लये म आपको लेकर रणभू मसे हटा था ।। ४ ।। स वं सा वतमु या लधसं ो य छया । प य मे हयसंयाने श ां केशवन दन ।। ५ ।। ‘सा वतवीर म धान केशवन दन! अब दै वे छासे आप सचेत हो गये ह, अतः घोड़े हाँकनेक कलाम मुझे कैसी उ म श ा मली है, उसे दे खये ।। ५ ।। दा केणाहमु प ो यथाव चैव श तः । वीतभीः वशा येतां शा व य थतां चमूम् ।। ६ ।। ‘म दा कका पु ँ और उ ह ने ही मुझे सार यकमक यथावत् श ा द है। दे खये! अब म नभय होकर राजा शा वक इस व यात सेनाम वेश करता ँ’ ।। ६ ।। वासुदेव उवाच एवमु वा ततो वीर हयान् संचो संगरे । र म भ तु समु य जवेना यपतत् तदा ।। ७ ।। ी







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भगवान् ीकृ ण कहते ह—वीरवर! ऐसा कहकर उस सूतपु ने घोड़ क बागडोर हाथम लेकर उ ह यु भू मक ओर हाँका और शी तापूवक वहाँ जा प ँचा ।। ७ ।। म डला न व च ा ण यमकानीतरा ण च । स ा न च व च ा ण द णा न च सवशः ।। ८ ।। उसने समान-असमान और वाम-द ण आ द सब कारक व च म डलाकार ग तसे रथका संचालन कया ।। ८ ।। तोदे नाहता राजन् र म भ समु ताः । उ पत त इवाकाशे चरं ते हयो माः ।। ९ ।। राजन्! वे े घोड़े चाबुकक मार खाकर बागडोर हलानेसे ती ग तसे दौड़ने लगे, मानो आकाशम उड़ रहे ह ।। ९ ।। ते ह तलाघवोपेतं व ाय नृप दा कम् । द माना इव तदा ना पृशं रणैमहीम् ।। १० ।। महाराज! दा कपु के ह तलाघवको समझकर वे घोड़े व लत अ नक भाँ त दमकते ए इस कार जा रहे थे, मानो अपने पैर से पृ वीका पश भी न कर रहे ह ।। १० ।। सोऽपस ां चमूं त य शा व य भरतषभ । चकार ना तय नेन तद त मवाभवत् ।। ११ ।। भरतकुलभूषण! दा कके पु ने अनायास ही शा वक उस सेनाको अपस (दा हने) कर दया। यह एक अद्भुत बात ई ।। ११ ।। अमृ यमाणोऽपस ं ु नेन च सौभराट् । य तारम य सहसा भबाणैः समादयत् ।। १२ ।। सौभराज शा व ु नके ारा अपनी सेनाका अपस कया जाना न सह सका। उसने सहसा तीन बाण चलाकर ु नके सार थको घायल कर दया ।। १२ ।। दा क य सुत त बाणवेगम च तयन् । भूय एव महाबाहो ययावपस तः ।। १३ ।। ततो बाणान् ब वधान् पुनरेव स सौभराट् । मुमोच तनये वीर मम म णन दने ।। १४ ।। तान ा ता छतैबाणै छे द परवीरहा । रौ मणेयः मतं कृ वा दशयन् ह तलाघवम् ।। १५ ।। छ ान् ् वा तु तान् बाणान् ु नेन च सौभराट् । आसुर दा ण मायामा थाय सृज छरान् ।। १६ ।। महाबाहो! परंतु दा ककुमारने वहाँ बाण के वेगपूवक हारक कोई च ता न करते ए शा वक सेनाको अपस (दा हने) करते ए ही रथको आगे बढ़ाया। वीरवर! तब सौभराज शा वने पुनः मेरे पु मणीन दन ु नपर अनेक कारके बाण चलाये। श ुवीर का संहार करनेवाले मणीन दन ु न अपने हाथ क फुत दखाते ए शा वके बाण को अपने पास आनेसे पहले ही ती ण बाण से मुसकराकर काट दे ते थे। े े ो ो े े ौ े ी

ु नके ारा अपने बाण को छ - भ होते दे ख सौभराजने भयंकर आसुरी मायाका सहारा लेकर ब त-से बाण बरसाये ।। १३—१६ ।। यु यमानमा ाय दै तेया ं महाबलम् । ा ेणा तरा छ वा मुमोचा यान् पत णः ।। १७ ।। ु नने शा वको अ त श शाली दै या का योग करता जानकर ा के ारा उसे बीचम ही काट डाला और अ य ब त-से बाण बरसाये ।। १७ ।। ते तद ं वधूयाशु व धू धराशनाः । शर युर स व े च स मुमोह पपात च ।। १८ ।। वे सभी बाण श ु का र पीनेवाले थे। उन बाण ने शा वके अ का नाश करके उसके म तक, छाती और मुखको ब ध डाला, जससे वह मू छत होकर गर पड़ा ।। १८ ।। त मन् नप तते ु े शा वे बाण पी डते । रौ मणेयो परं बाणं संदधे श ुनाशनम् ।। १९ ।। ु वभाववाले राजा शा वके बाण व होकर गर जानेपर मणीन दन ु नने अपने धनुषपर एक उ म बाणका संधान कया, जो श ुका नाश कर दे नेवाला था ।। १९ ।। तम चतं सवदशाहपूगैराशी वषा न वलन काशम् । ् वा शरं याम भनीयमानं बभूव हाहाकृतम त र म् ।। २० ।। वह बाण सम त यादवसमुदायके ारा स मा नत, वषैले सपके समान वषा तथा व लत अ नके समान काशमान था। उस बाणको यंचापर रखा जाता आ दे ख अ त र लोकम हाहाकार मच गया ।। २० ।। ततो दे वगणाः सव से ाः सहधने राः । नारदं ेषयामासुः सनं च मनोजवम् ।। २१ ।। तब इ और कुबेरस हत स पूण दे वता ने दे व ष नारद तथा मनके समान वेगवाले वायुदेवको भेजा ।। २१ ।। तौ रौ मणेयमाग य वचोऽ ूतां दवौकसाम् । नैष व य वया वीर शा वराजः कथंचन ।। २२ ।। उन दोन ने मणीन दन ु नके पास आकर दे वता का यह संदेश सुनाया —‘वीरवर! यह राजा शा व यु म कदा प तु हारा व य नह है’ ।। २२ ।। संहर व पुनबाणमव योऽयं वया रणे । एत य च शर याजौ नाव योऽ त पुमान् व चत् ।। २३ ।। ‘तुम अपने इस बाणको फरसे लौटा लो; य क यह शा व तु हारे ारा अव य है। तु हारे इस बाणका योग होनेपर यु म कोई भी पु ष बना मरे नह रह सकता ।। २३ ।। मृ युर य महाबाहो रणे दे व कन दनः । ो े

कृ णः संक पतो धा ा त मया न भवे द त ।। २४ ।। ‘महाबाहो! वधाताने यु म दे वक न दन भगवान् ीकृ णके हाथसे ही इसक मृ यु न त क है। उनका वह संक प म या नह होना चा हये’ ।। २४ ।। ततः परमसं ः ु नः शरमु मम् । संजहार धनुः े ात् तूणे चैव यवेशयत् ।। २५ ।। यह सुनकर ु न बड़े स ए। उ ह ने अपने े धनुषसे उस उ म बाणको उतार लया और पुनः तरकसम रख दया ।। २५ ।। तत उ थाय राजे शा वः परम मनाः । पायात् सबल तूण ु नशरपी डतः ।। २६ ।। राजे ! तदन तर शा व उठकर अ य त ःखत च हो ु नके बाण से पी ड़त होनेके कारण अपनी सेनाके साथ तुरंत भाग गया ।। २६ ।। स ारकां प र य य ू रो वृ ण भरा दतः । सौभमा थाय राजे दवमाच मे तदा ।। २७ ।। महाराज! उस समय वृ णवं शय से पी ड़त हो ू र वभाववाला शा व ारकाको छोड़कर अपने सौभ नामक वमानका आ य ले आकाशम जा प ँचा ।। २७ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण अजुना भगमनपव ण सौभवधोपा याने एकोन वशोऽ यायः ।। १९ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत अजुना भगमनपवम सौभवधोपा यान वषयक उ ीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १९ ।।

वशोऽ यायः ीकृ ण और शा वका भीषण यु वासुदेव उवाच आनतनगरं मु ं ततोऽहमगमं तदा । महा तौ राजसूये नवृ े नृपते तव ।। १ ।। भगवान् ीकृ ण कहते ह—राजन्! आपका राजसूय महाय समा त होनेपर म शा वसे वमु आनतनगर ( ारका)-म गया ।। १ ।। अप यं ारकां चाहं महाराज हत वषम् । नः वा यायवषट् कारां नभूषणवर यम् ।। २ ।। महाराज! मने वहाँ प ँचकर दे खा, ारका ीहीन हो रही है। वहाँ न तो वा याय होता है, न वषट् कार। वह पुरी आभूषण से र हत सु दरी नारीक भाँ त उदास लग रही थी ।। २ ।। अन भ ेय पा ण ारकोपवना न च । ् वा शङ् कोपप ोऽहमपृ छं दका मजम् ।। ३ ।। ारकाके वन-उपवन तो ऐसे हो रहे थे, मानो पहचाने ही न जाते ह । यह सब दे खकर मेरे मनम बड़ी शंका ई और मने कृतवमासे पूछा— ।। ३ ।। अ व थनरनारीक मदं वृ णकुलं भृशम् । क मदं नरशा ल ोतु म छा म त वतः ।। ४ ।। ‘नर े ! इस वृ णवंशके ायः सभी ी-पु ष अ व थ दखायी दे ते ह, इसका या कारण है? यह म ठ क-ठ क सुनना चाहता ँ’ ।। ४ ।। एवमु ः स तु मया व तरेणेदम वीत् । रोधं मो ं च शा वेन हा द यो राजस म ।। ५ ।। नृप े ! मेरे इस कार पूछनेपर कृतवमाने शा वके ारकापुरीपर घेरा डालने और फर छोड़कर भाग जानेका सब समाचार व तारपूवक कह सुनाया ।। ५ ।। ततोऽहं भरत े ु वा सवमशेषतः । वनाशे शा वराज य तदै वाकरवं म तम् ।। ६ ।। भरतवंश शरोमणे! यह सब वृ ा त पूण पसे सुनकर मने शा वराजके वनाशका पूण न य कर लया ।। ६ ।। ततोऽहं भरत े समा ा य पुरे जनम् । राजानमा कं चैव तथैवानक भम् ।। ७ ।। सवान् वृ ण वीरां हषय ुवं तदा । अ मादः सदा काय नगरे यादवषभाः ।। ८ ।। े









भरत े ! तदन तर म नगर नवा सय को आ ासन दे कर राजा उ सेन, पता वसुदेव तथा स पूण वृ णवं शय का हष बढ़ाते ए बोला—‘य कुलके े पु षो! आपलोग नगरक र ाके लये सदा सावधान रह ।। ७-८ ।। शा वराज वनाशाय यातं मां नबोधत । नाह वा तं नव त ये पुर ारवत त ।। ९ ।। ‘म शा वराजका नाश करनेके लये यहाँसे थान करता ँ। आप यह न य जान; म शा वका वध कये बना ारकापुरीको नह लौटूँ गा ।। ९ ।। सशा वं सौभनगरं ह वा ा म वः पुनः । ःसामा ह यतामेषा भः श ुभीषणा ।। १० ।। ‘शा वस हत सौभनगरका नाश कर लेनेपर ही म पुनः आपलोग का दशन क ँ गा। अब श ु को भयभीत करनेवाले इस नगाड़ेको तीन बार बजाइये’ ।। १० ।। ते मयाऽऽ ा सता वीरा यथावद् भरतषभ । सव माम ुवन् ाः या ह ज ह शा वान् ।। ११ ।। भरतकुलभूषण! मेरे इस कार आ ासन दे नेपर सभी य वंशी वीर ने स होकर मुझसे कहा—‘जाइये और श ु का वनाश क जये’ ।। ११ ।। तैः ा म भव रैराशी भर भन दतः । वाच य वा ज े ान् ण य शरसाभवम् ।। १२ ।। शै यसु ीवयु े न रथेनानादयन् दशः । माय शङ् ख वरं पा चज यमहं नृप ।। १३ ।। यातोऽ म नर ा बलेन महता वृतः । लृ तेन चतुर े ण य ेन जतका शना ।। १४ ।। स च वाले उन वीर के ारा आशीवादसे अ भन दत होकर मने े ा ण से व तवाचन कराया और म तक झुकाकर भगवान् शवको णाम कया। नर े ! तदन तर शै य और सु ीव नामक घोड़ से जुते ए अपने रथके ारा स पूण दशा को त व नत करते ए े शंख पांचज यको बजाकर मने वशाल सेनाके साथ रणके लये थान कया। मेरी उस ूहरचनासे यु और नय त सेनाम हाथी, घोड़े, रथी और पैदल—चार ही अंग मौजूद थे। उस समय वह सेना वजयसे सुशो भत हो रही थी ।। १२ —१४ ।। समती य ब न् दे शान् गर ब पादपान् । सरां स स रत ैव मा तकावतमासदम् ।। १५ ।। तब म ब त-से दे श और असं य वृ से हरे-भरे पवत , सरोवर और स रता को लाँघता आ मा तकावतम जा प ँचा ।। १५ ।। त ा ौषं नर ा शा वं सागरम तकात् । या तं सौभमा थाय तमहं पृ तोऽ वयाम् ।। १६ ।। नर ा ! वहाँ मने सुना क शा व सौभ वमानपर बैठकर समु के नकट जा रहा है। तब म उसीके पीछे लग गया ।। १६ ।। ौ ो

ततः सागरमासा कु ौ त य महो मणः । समु ना यां शा वोऽभूत् सौभमा थाय श ुहन् ।। १७ ।। श ुनाशन! फर समु के नकट प ँचकर उ ाल तरंग वाले महासागरक कु के अ तगत उसके ना भदे श (एक प)-म जाकर राजा शा व सौभ वमानपर ठहरा आ था ।। १७ ।। स समालो य रा मां मय व यु ध र । आ यामास ा मा यु ायैव मु मु ः ।। १८ ।। यु ध र! वह ा मा रसे ही मुझे दे खकर मुसकराता आ-सा बारंबार यु के लये ललकारने लगा ।। १८ ।। त य शा व नमु ै ब भममभे द भः । पुंर नासा त शरै ततो मां रोष आ वशत् ।। १९ ।। मेरे शा धनुषसे छू टे ए ब त-से ममभेद बाण शा वके वमानतक नह प ँच सके। इससे म रोषम भर गया ।। १९ ।। स चा प पाप कृ तदतेयापसदो नृप । म यवषत धषः शरधाराः सह शः ।। २० ।। राजन्! नीच दै य धष राजा शा व वभावसे ही पापाचारी था। उसने मेरे ऊपर सह बाणधाराए ँ बरसाय ।। २० ।। सै नकान् मम सूतं च हयां समवा करत् । अ च तय त तु शरान् वयं यु याम भारत ।। २१ ।। मेरे सार थ, घोड़ तथा सै नक पर उसने भी बाण क झड़ी लगा द । भारत! उसके बाण क बौछारको कुछ न समझकर म यु म ही लगा रहा ।। २१ ।। ततः शतसह ा ण शराणां नतपवणाम् । च पुः समरे वीरा म य शा वपदानुगाः ।। २२ ।। तदन तर शा वके अनुगामी वीर ने यु म मेरे ऊपर झुक ई गाँठवाले लाख बाण बरसाये ।। २२ ।। ते हयां रथं चैव तदा दा कमेव च । छादयामासुरसुरा तैबाणैममभे द भः ।। २३ ।। उस समय उन असुर ने अपने ममवेधी बाण ारा मेरे घोड़ को, रथको और दा कको भी ढक दया ।। २३ ।। न हया न रथो वीर न य ता मम दा कः । अ य त शरै छ ा तथाहं सै नका मे ।। २४ ।। वीरवर! उस समय मेरे घोड़े, रथ, मेरा सार थ दा क, म तथा मेरे सारे सै नक—सभी बाण से आ छा दत होकर अ य हो गये ।। २४ ।। ततोऽहम प कौ तेय शराणामयुतान् बन् । आम तानां धनुषा द ेन व धना पम् ।। २५ ।। ी













कु तीन दन! तब मने भी अपने धनुष ारा द व धसे अ भम त कये ए कई हजार बाण बरसाये ।। २५ ।। न त वषय वासी मम सै य य भारत । खे वष ं ह तत् सौभं ोशमा इवाभवत् ।। २६ ।। भारत! शा वका सौभ वमान आकाशम इस कार वेश कर गया था क मेरे सै नक क म आता ही नह था, मानो एक कोस र चला गया हो ।। २६ ।। तत ते े काः सव र वाद इव थताः । हषयामासु चैमा सहनादतल वनैः ।। २७ ।। तब वे सै नक रंगशालाम बैठे ए दशक क भाँ त केवल मेरे यु का य दे खते ए जोर-जोरसे सहनाद और करतल व न करके मेरा हष बढ़ाने लगे ।। २७ ।। म करा व नमु ा दानवानां शरा तथा । अ े षु चरापा ा व वशुः शलभा इव ।। २८ ।। तब मेरे हाथ से छू टे ए मनोहर पंखवाले बाण दानव के अंग म शलभ क भाँ त घुसने लगे ।। २८ ।। ततो हलहलाश दः सौभम ये वधत । व यतां व शखै ती णैः पततां च महाणवे ।। २९ ।। इससे सौभ वमानम मेरे तीखे बाण से मरकर महासागरम गरनेवाले दानव का कोलाहल बढ़ने लगा ।। २९ ।। ते नकृ भुज क धाः कब धाकृ तदशनाः । नद तो भैरवान् नादान् नपत त म दानवाः ।। ३० ।। कंधे और भुजा के कट जानेसे कब धक आकृ तम दखायी दे नेवाले वे दानव भयंकर नाद करते ए समु म गरने लगे ।। ३० ।। प तता तेऽ प भ य ते समु ा भो नवा स भः । ततो गो ीरकु दे मृणालरजत भम् ।। ३१ ।। जलजं पा चज यं वै ाणेनाहमपूरयम् । तान् ् वा प ततां त शा वः सौभप त ततः ।। ३२ ।। मायायु े न महता योधयामास मां यु ध । ततो गदा हलाः ासाः शूलश पर धाः ।। ३३ ।। असयः श कु लशपाश कनपाः शराः । प शा भुशु पत य नशं म य ।। ३४ ।। जो गरते थे, उ ह समु म रहनेवाले जीव-ज तु नगल जाते थे। त प ात् मने गो ध, कु दपु प, च मा, मृणाल तथा चाँद क -सी का तवाले पांचज य नामक शंखको बड़े जोरसे फूँका। उन दानव को समु म गरते दे ख सौभराज शा व महान् मायायु के ारा मेरा सामना करने लगा। फर तो मेरे ऊपर गदा, हल, ास, शूल, श , फरसे, खड् ग, श , व , पाश, ऋ , कनप, बाण, प श और भुशु डी आ द श ा क नर तर वषा होने लगी ।। ३१—३४ ।। ै

तामहं माययैवाशु तगृ नाशयम् । त यां हतायां मायायां ग रशृ ै रयोधयत् ।। ३५ ।। शा वक उस मायाको मने माया ारा ही नय त करके न कर दया। उस मायाका नाश होनेपर वह पवतके शखर ारा यु करने लगा ।। ३५ ।। ततोऽभवत् तम इव काश इव चाभवत् । दनं सु दनं चैव शीतमु णं च भारत ।। ३६ ।। अ ारपांशुवष च श वष च भारत । एवं मायां कुवाणो योधयामास मां रपुः ।। ३७ ।। तदन तर कभी अ धकार-सा हो जाता, कभी काश-सा हो जाता, कभी मेघ से आकाश घर जाता और कभी बादल के छ - भ होनेसे सु दर दन कट हो जाता था। कभी सद और कभी गरमी पड़ने लगती थी। अंगार और धू लक वषाके साथ-साथ श क भी वृ होने लगती। इस कार श ुने मेरे साथ मायाका योग करते ए यु आर भ कया ।। ३६—३७ ।। व ाय तदहं सव माययैव नाशयम् । यथाकालं तु यु े न धमं सवतः शरैः ।। ३८ ।। वह सब जानकर मने माया ारा ही उसक मायाका नाश कर दया। यथासमय यु करते ए मने बाण ारा शा वक सेनाको सब ओरसे संत त कर दया ।। ३८ ।। ततो ोम महाराज शतसूय मवाभवत् । शतच ं च कौ तेय सह ायुततारकम् ।। ३९ ।। कु तीपु महाराज यु ध र! इसके बाद आकाश सौ सूय से उद्भा सत-सा दखायी दे ने लगा। उसम सैकड़ च मा और करोड़ तारे दखायी दे ने लगे ।। ३९ ।। ततो ना ायत तदा दवारा ं तथा दशः । ततोऽहं मोहमाप ः ा ं समयोजयम् ।। ४० ।। उस समय यह नह जान पड़ता था क यह दन है या रा ! दशा का भी ान नह होता था; इससे मो हत होकर मने ा का संधान कया ।। ४० ।। तत तद ं कौ तेय धूतं तूल मवा नलैः । तथा तदभवद् यु ं तुमुलं लोमहषणम् । लधालोक तु राजे पुनः श ुमयोधयम् ।। ४१ ।। कु तीकुमार! तब उस अ ने उस सारी मायाको उसी कार उड़ा दया, जैसे हवा ईको उड़ा दे ती है। इसके बाद शा वके साथ हमलोग का अ य त भयंकर तथा रोमांचकारी यु होने लगा। राजे ! सब ओर काश हो जानेपर मने पुनः श ुसे यु ार भ कर दया ।। ४१ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण अजुना भगमनपव ण सौभवधोपा याने वशोऽ यायः ।। २० ।।









इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत अजुना भगमनपवम सौभवधोपा यान वषयक बीसवाँ अ याय पूरा आ ।। २० ।।

एक वशोऽ यायः ीकृ णका शा वक मायासे मो हत होकर पुनः सजग होना वासुदेव उवाच एवं स पु ष ा शा वराजो महा रपुः । यु यमानो मया सं ये वयद यगमत् पुनः ।। १ ।। भगवान् ीकृ ण कहते ह—पु ष सह! इस कार मेरे साथ यु करनेवाला महाश ु शा वराज पुनः आकाशम चला गया ।। १ ।। ततः शत नी महागदा द तां शूलान् मुसलानस । च ेप रोषा म य म दबु ः शा वो महाराज जया भकाङ् ी ।। २ ।। महाराज! वहाँसे वजयक इ छा रखनेवाले म दबु शा वने ोधम भरकर मेरे ऊपर शत नयाँ, बड़ी-बड़ी गदाएँ, व लत शूल, मुसल और खड् ग फके ।। २ ।। तानाशुगैरापततोऽहमाशु नवाय ह तुं खगमान् ख एव । धा धा चा छदमाशुमु ै ततोऽ त र े ननदो बभूव ।। ३ ।। उनके आते ही मने तुरंत शी गामी बाण ारा उ ह रोककर उन गगनचारी श ु को आकाशम ही मार डालनेका न य कया और शी छोड़े ए बाण ारा उन सबके दो-दो तीन-तीन टु कड़े कर डाले। इससे अ त र म बड़ा भारी आ नाद आ ।। ३ ।। ततः शतसह ेण शराणां नतपवणाम् । दा कं वा जन ैव रथं च समवा करत् ।। ४ ।। तदन तर शा वने झुक ई गाँठ वाले लाख बाण का हार करके मेरे सार थ दा क, घोड़ तथा रथको आ छा दत कर दया ।। ४ ।। ततो माम वीद् वीर दा को व ल व । थात म त त ा म शा वबाण पी डतः । अव थातुं न श नो म अ ं मे वसीद त ।। ५ ।। वीरवर! तब दा क ाकुल-सा होकर मुझसे बोला—‘ भो! यु म डटे रहना चा हये’ इस कत का मरण करके ही म यहाँ ठहरा आ ँ; कतु शा वके बाण से अ य त पी ड़त होनेके कारण मुझम खड़े रहनेक भी श नह रह गयी है। मेरा अंग श थल होता जा रहा है’ ।। ५ ।। इ त त य नश याहं सारथेः क णं वचः । े





अवे माणो य तारमप यं शरपी डतम् ।। ६ ।। सार थका यह क ण वचन सुनकर मने उसक ओर दे खा। उसे बाण ारा बड़ी पीड़ा हो रही थी ।। ६ ।। न त योर स नो मू न न काये न भुज ये । अ तरं पा डव े प या य न चतं शरैः ।। ७ ।। स तु बाणवरो पीडाद् व व यसृगु बणम् । अ भवृ े यथा मेघे ग रग रकधातुमान् ।। ८ ।। पा डव े ! उसक छातीम, म तकपर, शरीरके अ य अवयव म तथा दोन भुजा म थोड़ा-सा भी ऐसा थान नह दखायी दे ता था, जसम बाण न चुभे ए ह । जैसे मेघके वषा करनेपर गे आ द धातु से यु पवत लाल पानीक धारा बहाने लगता है, वैसे ही वह बाण से छदे ए अपने अंग से भयंकर र क धारा बहा रहा था ।। ७-८ ।। अभीषु ह तं तं ् वा सीद तं सार थ रणे । अ त भयं महाबाहो शा वबाण पी डतम् ।। ९ ।। महाबाहो! उस यु म हाथम बागडोर लये सार थको शा वके बाण से पी ड़त होकर क पाते दे ख मने उसे ढाढ़स बँधाया ।। ९ ।। अथ मां पु षः क द् ारका नलयोऽ वीत् । व रतो रथम ये य सौ दा दव भारत ।। १० ।। आ क य वचो वीर त यैव प रचारकः । वष णः स क ठ े न त बोध यु ध र ।। ११ ।। भरतवंशी वीरवर! इतनेम ही कोई ारकावासी पु ष आकर तुरंत मेरे रथपर चढ़ गया और सौहाद दखाता आ-सा बोला। वह राजा उ सेनका सेवक था और ःखी होकर उसने गद्गदक ठसे उनका जो संदेश सुनाया, उसे बताता ँ, सु नये ।। १०-११ ।। ारका धप तव र आह वामा को वचः । केशवै ह वजानी व यत् वां पतृसखोऽ वीत् ।। १२ ।। ( त बोला—) ‘वीर! ारकानरेश उ सेनने आपको यह एक संदेश दया है। केशव! वे आपके पताके सखा ह; उ ह ने आपसे कहा है क यहाँ आ जाओ और जान लो ।। १२ ।। उपायाया शा वेन ारकां वृ णन दन । वष े व य धष हतः शूरसुतो बलात् ।। १३ ।। ‘ धष वृ णन दन! आपके यु म आस होनेपर शा वने अभी ारकापुरीम आकर शूरन दन वसुदेवजीको बलपूवक मार डाला है ।। १३ ।। तदलं साधु यु े न नवत व जनादन । ारकामेव र व कायमेत महत् तव ।। १४ ।। ‘जनादन! अब यु करके या लेना है? लौट आओ। ारकाक ही र ा करो। तु हारे लये यही सबसे महान् काय है’ ।। १४ ।। इ यहं त य वचनं ु वा परम मनाः । े

न यं ना धग छा म कत येतर य च ।। १५ ।। तका यह वचन सुनकर मेरा मन उदास हो गया। म कत और अकत के वषयम कोई न य नह कर पाता था ।। १५ ।। सा य क बलदे वं च ु नं च महारथम् । जगह मनसा वीर त छ वा महद यम् ।। १६ ।। वीर यु ध र! वह महान् अ य वृ ा त सुनकर म मन-ही-मन सा य क, बलरामजी तथा महारथी ु नक न दा करने लगा ।। १६ ।। अहं ह ारकाया पतु कु न दन । तेषु र ां समाधाय यातः सौभपातने ।। १७ ।। कु न दन! म ारका तथा पताजीक र ाका भार उ ह लोग पर रखकर सौभ वमानका नाश करनेके लये चला था ।। १७ ।। बलदे वो महाबा ः क च जीव त श ुहा । सा यक रौ मणेय चा दे ण वीयवान् ।। १८ ।। सा ब भृतय ैवे यहमासं सु मनाः । एतेषु ह नर ा जीव सु न कथंचन ।। १९ ।। श यः शूरसुतो ह तुम प व भृता वयम् । हतः शूरसुतो ं ं चैते परासवः ।। २० ।। बलदे वमुखाः सव इ त मे न ता म तः । सोऽहं सव वनाशं तं च तयानो मु मु ः । अ व लो महाराज पुनः शा वमयोधयम् ।। २१ ।। या श ुह ता महाबली बलरामजी जी वत ह? या सा य क, मणीन दन ु न, महाबली चा दे ण तथा सा ब आ द जीवन धारण करते ह? इन बात का वचार करतेकरते मेरा मन ब त उदास हो गया। नर े ! इन वीर के जीते-जी सा ात् इ भी मेरे पता वसुदेवजीको कसी कार मार नह सकते थे। अव य ही शूरन दन वसुदेवजी मारे गये और यह भी प है क बलरामजी आ द सभी मुख वीर ाण याग कर चुके ह—यह मेरा न त वचार हो गया। महाराज! इस कार सबके वनाशका बारंबार च तन करके भी म ाकुल न होकर राजा शा वसे पुनः यु करने लगा ।। १८—२१ ।। ततोऽप यं महाराज पत तमहं तदा । सौभा छू रसुतं वीर ततो मां मोह आ वशत् ।। २२ ।। वीर महाराज! इसी समय मने दे खा, सौभ वमानसे मेरे पता वसुदेवजी नीचे गर रहे ह। इससे शा वक मायासे मुझे मू छा-सी आ गयी ।। २२ ।। त य पं पततः पतुमम नरा धप । ययातेः ीणपु य य वगा दव महीतलम् ।। २३ ।। नरे र! उस वमानसे गरते ए मेरे पताका व प ऐसा जान पड़ता था, मानो पु य य होनेपर वगसे पृ वीतलपर गरनेवाले राजा यया तका शरीर हो ।। २३ ।। वशीणम लनो णीषः क णा बरमूधजः । े ी

पतन् यते ह म ीणपु य इव हः ।। २४ ।। उनक म लन पगड़ी बखर गयी थी, शरीरके व अ त- त हो गये थे और बाल बखर गये थे। वे गरते समय पु यहीन हक भाँ त दखायी दे ते थे ।। २४ ।। ततः शा धनुः े ं करात् प ततं मम । मोहाप कौ तेय रथोप थ उपा वशम् ।। २५ ।। कु तीन दन! उनक यह अव था दे ख धनुष म े शा मेरे हाथसे छू टकर गर गया और म शा वक मायासे मो हत-सा होकर रथके पछले भागम चुपचाप बैठ गया ।। २५ ।। ततो हाहाकृतं सव सै यं मे गतचेतनम् । मां ् वा रथनीड थं गतासु मव भारत ।। २६ ।। भारत! फर तो मुझे रथके पछले भागम ाणर हतके समान पड़ा दे ख मेरी सारी सेना हाहाकार कर उठ । सबक चेतना लु त-सी हो गयी ।। २६ ।। साय बा पततः साय चरणाव प । पं पतुम वबभौ शकुनेः पततो यथा ।। २७ ।। हाथ और पैर को फैलाकर गरते ए मेरे पताका शरीर मरकर गरनेवाले प ीके समान जान पड़ता था ।। २७ ।। तं पत तं महाबाहो शूलप शपाणयः । अ भ न तो भृशं वीर मम चेतो क पयन् ।। २८ ।। वीरवर महाबाहो! गरते समय श ु-सै नक हाथ म शूल और प श लये उनके ऊपर बारंबार हार कर रहे थे। उनके इस ू र कृ यने मेरे दयको क पत-सा कर दया ।। २८ ।। ततो मुतात् तल य सं ामहं तदा वीर महा वमद । न त सौभं न रपुं च शा वं प या म वृ ं पतरं न चा प ।। २९ ।। वीरवर! तदन तर दो घड़ीके बाद जब म सचेत होकर दे खता ँ, तब उस महासमरम न तो सौभ वमानका पता है, न मेरा श ु शा व ही दखायी दे ता है और न मेरे बूढ़े पता ही गोचर होते ह ।। २९ ।। ततो ममासी मन स मायेय म त न तम् । बु ोऽ म ततो भूयः शतशोऽवा करं शरान् ।। ३० ।। तब मेरे मनम यह न य हो गया क यह वा तवम माया ही थी। तब मने सजग होकर सैकड़ बाण क वषा ार भ क ।। ३० ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण अजुना भगमनपव ण सौभवधोपा याने एक वशोऽ यायः ।। २१ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत अजुना भगमनपवम सौभवधोपा यान वषयक इ क सवाँ अ याय पूरा आ ।। २१ ।।

ा वशोऽ यायः शा ववधोपा यानक समा त और यु ध रक आ ा लेकर ीकृ ण, धृ ु न तथा अ य सब राजा का अपनेअपने नगरको थान वासुदेव उवाच ततोऽहं भरत े गृ चरं धनुः । शरैरपातयं सौभा छरां स वबुध षाम् ।। १ ।। भगवान् ीकृ ण कहते ह—भरत े ! तब म अपना सु दर धनुष उठाकर बाण ारा सौभ वमानसे दे व ोही दानव के म तक काट-काटकर गराने लगा ।। १ ।। शरां ाशी वषाकारानू वगां त मतेजसः । ैषयं शा वराजाय शा मु ान् सुवाससः ।। २ ।। त प ात् शा धनुषसे छू टे ए वषैले सप के समान तीत होनेवाले, सु दर पंख से सुशो भत, च ड तेज वी तथा अनेक ऊ वगामी बाण मने राजा शा वपर चलाये ।। २ ।। ततो ना यत तदा सौभं कु कुलो ह । अ त हतं माययाभूत् ततोऽहं व मतोऽभवम् ।। ३ ।। कु कुल शरोमणे! परंतु उस समय सौभ वमान मायासे अ य हो गया, अतः कसी कार दखायी नह दे ता था। इससे मुझे बड़ा आ य आ ।। ३ ।। अथ दानवसङ् घा ते वकृताननमूधजाः । उद ोशन् महाराज व ते म य भारत ।। ४ ।। भरतवंशी महराज! तदन तर जब म नभय और अचलभावसे थत आ तथा उनपर श हार करने लगा, तब वकृत मुख और केशवाले सौभ नवासी दानवगण जोर-जोरसे च लाने लगे ।। ४ ।। ततोऽ ं श दसाहं वै वरमाणो महारणे । अयोजयं त धाय ततः श द उपारमत् ।। ५ ।। तब मने उनके वधके लये उस महान् सं ामम बड़ी उतावलीके साथ श दवेधी बाणका संधान कया। यह दे ख उनका कोलाहल शा त हो गया ।। ५ ।। हता ते दानवाः सव यैः स श द उद रतः । शरैरा द यसंकाशै व लतैः श दसाधनैः ।। ६ ।। जन दानव ने पहले कोलाहल कया था, वे सब सूयके समान तेज वी श दवेधी बाण ारा मारे गये ।। ६ ।। त म ुपरते श दे पुनरेवा यतोऽभवत् । श दोऽपरो महाराज त ा प ाहरं शरैः ।। ७ ।। ो

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महाराज! वह कोलाहल शा त होनेपर फर सरी ओर उनका श द सुनायी दया। तब मने उधर भी बाण का हार कया ।। ७ ।। एवं दश दशः सवा तयगू व च भारत । नादयामासुरसुरा ते चा प नहता मया ।। ८ ।। भारत! इस तरह वे असुर इधर-उधर ऊपर-नीचे दस दशा म कोलाहल करते और मेरे हाथसे मारे जाते थे ।। ८ ।। ततः ा यो तषं ग वा पुनरेव यत । सौभं कामगमं वीर मोहय मम च ुषी ।। ९ ।। तदन तर इ छानुसार चलनेवाला सौभ वमान ा यो तषपुरके नकट जाकर मेरे ने को मम डालता आ फर दखायी दया ।। ९ ।। ततो लोका तकरणो दानवो दा णाकृ तः । शलावषण महता सहसा मां समावृणोत् ।। १० ।। त प ात् लोका तकारी भयंकर आकृ तवाले दानवने आकर सहसा प थर क भारी वषाके ारा मुझे आवृत कर दया ।। १० ।। सोऽहं पवतवषण व यमानः पुनः पुनः । व मीक इव राजे पवतोप चतोऽभवम् ।। ११ ।। राजे ! शलाख ड क उस नर तर वृ से बार-बार आहत होकर म पवत से आ छा दत बाँबी-सा तीत होने लगा ।। ११ ।। ततोऽहं पवत चतः सहयः सहसार थः । अ या त मयां राजन् सवतः पवतै तः ।। १२ ।। राजन्! मेरे चार ओर शलाख ड जमा हो गये थे। म घोड़ और सार थस हत तरख ड से चुना-सा गया था, जससे दखायी नह दे ता था ।। १२ ।। ततो वृ ण वीरा ये ममासन् सै नका तदा । ते भयाता दशः सव सहसा व वुः ।। १३ ।। यह दे ख वृ णकुलके े वीर जो मेरे सै नक थे, भयसे आत हो सहसा चार दशा म भाग चले ।। १३ ।। ततो हाहाकृतमभूत् सव कल वशा पते । ौ भू म खं चैवा यमाने तथा म य ।। १४ ।। जानाथ! मेरे अ य हो जानेपर भूलोक, अ त र तथा वगलोक—सभी थान म हाहाकार मच गया ।। १४ ।। ततो वष णमनसो मम राजन् सु जनाः । ु शु ैव ःखशोकसम वताः ।। १५ ।। राजन्! उस समय मेरे सभी सु द् ख च हो ःख-शोकम डू बकर रोने- च लाने लगे ।। १५ ।। षतां च हष ऽभूदा त ा षताम प । एवं व जतवान् वीर प ाद ौषम युत ।। १६ ।। औ ो ी े ो े े ी

श ु म उ लास छा गया और म म शोक। अपनी मयादासे युत न होनेवाले वीर यु ध र! इस कार राजा शा व एक बार मुझपर वजयी हो चुका था। यह बात मने सचेत होनेपर पीछे सार थके मुँहसे सुनी थी ।। १६ ।। ततोऽह म द यतं सवपाषाणभेदनम् । व मु य तान् सवान् पवतान् समशातयम् ।। १७ ।। तब मने सब कारके तर को वद ण करनेवाले इ के य आयुध वका हार करके उन सम त शलाख ड को चूर-चूर कर दया ।। १७ ।। ततः पवतभारा ा म द ाण वचे ताः । हया मम महाराज वेपमाना इवाभवन् ।। १८ ।। महाराज! उस समय पवतख ड के भारसे पी ड़त ए मेरे घोड़े क पत-से हो रहे थे। उनक बलसा य चे ाएँ ब त कम हो गयी थ ।। १८ ।। मेघजाल मवाकाशे वदाया यु दतं र वम् । ् वा मां बा धवाः सव हषमाहारयन् पुनः ।। १९ ।। जैसे आकाशम बादल के समुदायको छ - भ करके सूय उ दत होता है, उसी कार शलाख ड को हटाकर मुझे कट आ दे ख मेरे सभी ब धु-बा धब पुनः हषसे खल उठे ।। १९ ।। ततः पवतभारा ान् म द ाण वचे तान् । हयान् सं य मां सूतः ाह ता का लकं वचः ।। २० ।। तब तरख ड के भारसे पी ड़त तथा धीरे-धीरे ाणसा य चे ा करनेवाले घोड़ को दे खकर सार थने मुझसे यह समयो चत बात कही— ।। २० ।। साधु स प य वा णय शा वं सौभप त थतम् । अलं कृ णावम यैनं साधु य नं समाचर ।। २१ ।। ‘वा णय! वह दे खये, सौभराज शा व वहाँ खड़ा है। ीकृ ण! इसक उपे ा करनेसे कोई लाभ नह । इसके वधका कोई उ चत उपाय क जये ।। २१ ।। मादवं सखतां चैव शा वाद पाहर । ज ह शा वं महाबाहो मैनं जीवय केशव ।। २२ ।। ‘महाबा केशव! अब शा वक ओरसे कोमलता और म भाव हटा ली जये। इसे मार डा लये, जी वत न रहने द जये ।। २२ ।। सवः परा मैव र व यः श ुर म हन् । न श ुरवम त ो बलोऽ प बलीयसा ।। २३ ।। ‘श ुह ता वीरवर! आपको सारा परा म लगाकर इस श ुका वध कर डालना चा हये। कोई कतना ही बलवान् य न हो, उसे अपने बल श ुक भी अवहेलना नह करनी चा हये ।। २३ ।। योऽ प यात् पीठगः क त् क पुनः समरे थतः । स वं पु षशा ल सवय नै रमं भो ।। २४ ।। ज ह वृ णकुल े मा वां कालोऽ यगात् पुनः । ै ो ै ो

नैष मादवसा यो वै मतो ना प सखा तव ।। २५ ।। येन वं यो धतो वीर ारका चावम दता । एवमा द तु कौ तेय ु वाहं सारथेवचः ।। २६ ।। त वमेत द त ा वा यु े म तमधारयम् । वधाय शा वराज य सौभ य च नपातने ।। २७ ।। ‘कोई श ु अपने घरम आसनपर बैठा हो (यु न करना चाहता हो), तो भी उसे न करनेम नह चूकना चा हये; फर जो सं ामम यु करनेके लये खड़ा हो, उसक तो बात ही या है? अतः पु ष सह! भो! आप सभी उपाय से इस श ुको मार डा लये। वृ णवंशावतंस! इस कायम आपको पुनः वल ब नह करना चा हये। यह मृ तापूण उपायसे वशम आनेवाला नह । वा तवम यह आपका म भी नह है; य क वीर! इसने आपके साथ यु कया और ारकापुरीको तहस-नहस कर दया, अतः इसको शी मार डालना चा हये।’ कु तीन दन! सार थके मुखसे इस तरहक बात सुनकर मने सोचा, यह ठ क ही तो कहता है। यह वचारकर मने शा वराजका वध करने और सौभ वमानको मार गरानेके लये यु म मन लगा दया ।। २४—२७ ।। दा कं चा ुवं वीर मुत थीयता म त । ततोऽ तहतं द मभे म तवीयवत् ।। २८ ।। आ नेयम ं द यतं सवसाहं महा भम् । योजयं त धनुषा दानवा तकरं रणे ।। २९ ।। वीर! त प ात् मने दा कसे कहा—‘सारथे! दो घड़ी और ठहरो ( फर तु हारी इ छा पूरी हो जायगी)।’ तदन तर मने कह भी कु ठत न होनेवाले द , अभे , अ य त श शाली, सब कुछ सहन करनेम समथ, य तथा परम का तमान् आ नेया का अपने धनुषपर संधान कया। वह अ यु म दानव का अ त करनेवाला था ।। २८-२९ ।। य ाणां रा सानां च दानवानां च संयुगे । रा ां च तलोमानां भ मा तकरणं महत् ।। ३० ।। इतना ही नह , वह य , रा स , दानव तथा वप ी राजा को भी भ म कर डालनेवाला और महान् था ।। ३० ।। ुरा तममलं च ं काला तकयमोपमम् । अनुम याहमतुलं षतां व नबहणम् ।। ३१ ।। ज ह सौभं ववीयण ये चा रपवो मम । इ यु वा भुजवीयण त मै ा हणवं षा ।। ३२ ।। वह आ नेया (सुदशन) च के पम था। उसके प र धभागम सब ओर तीखे छु रे लगे ए थे। वह उ वल अ काल, यम और अ तकके समान भयंकर था। उस श ुनाशक अनुपम अ को अ भम त करके मने कहा—‘तुम अपनी श से सौभ वमान और उसपर रहनेवाले मेरे श ु को मार डालो।’ ऐसा कहकर अपने बा बलसे रोषपूवक मने वह अ सौभ- वमानक ओर चलाया ।। ३१-३२ ।। पं सुदशन यासीदाकाशे पतत तदा । ी े े

तीय येव सूय य युगा ते प त यतः ।। ३३ ।। आकाशम जाते ही उस सुदशन च का व प लयकालम उगनेवाले तीय सूयके समान का शत हो उठा ।। ३३ ।। तत् समासा नगरं सौभं पगत वषम् । म येन पाटयामास कचो दा ववो तम् ।। ३४ ।। उस द ा ने सौभनगरम प ँचकर उसे ीहीन कर दया और जैसे आरा ऊँचे काठको चीर डालता है, उसी कार सौभ वमानको बीचसे काट डाला ।। ३४ ।। धा कृतं ततः सौभं सुदशनबला तम् । महे रशरो तं पपात पुरं यथा ।। ३५ ।। सुदशन च क श से कटकर दो टु कड़ म बँटा आ सौभ वमान महादे वजीके बाण से छ - भ ए पुरक भाँ त पृ वीपर गर पड़ा ।। ३५ ।। त मन् नप तते सौभे च मागात् करं मम । पुन ादाय वेगेन शा वाये यहम ुवम् ।। ३६ ।। सौभ वमानके गरनेपर च फर मेरे हाथम आ गया। मने फर उसे लेकर वेगपूवक चलाया और कहा—‘अबक बार शा वको मारनेके लये तु ह छोड़ रहा ँ’ ।। ३६ ।। ततः शा वं गदां गुव मा व य तं महाहवे । धा चकार सहसा ज वाल च तेजसा ।। ३७ ।। तब उस च ने महासमरम बड़ी भारी गदा घुमानेवाले शा वके सहसा दो टु कड़े कर दये और वह तेजसे व लत हो उठा ।। ३७ ।।

त मन् व नहते वीरे दानवा तचेतसः । हाहाभूता दशो ज मुर दता मम सायकैः ।। ३८ ।। वीर शा वके मारे जानेपर दानव के मनम भय समा गया। वे मेरे बाण से पी ड़त हो हाहाकार करते ए सब दशा म भाग गये ।। ३८ ।। ततोऽहं समव था य रथं सौभसमीपतः । शङ् खं मा य हषण सु दः पयहषयम् ।। ३९ ।। तब मने सौभ वमानके समीप अपने रथको खड़ा करके स तापूवक शंख बजाकर सभी सु द को हषम नम न कर दया ।। ३९ ।। त मे शखराकारं व व ता ालगोपुरम् । द मानम भ े य य ताः स वुः ।। ४० ।। मे पवतके शखरके समान आकृ तवाले सौभ-नगरक अ ा लका और गोपुर सभी न हो गये। उसे जलते दे ख उसपर रहनेवाली याँ इधर-उधर भाग गय ।। ४० ।। एवं नह य समरे सौभं शा वं नपा य च । आनतान् पुनराग य सु दां ी तमावहम् ।। ४१ ।। धमराज! इस कार यु म सौभ वमान तथा राजा शा वको न करके म पुनः आनतनगर ( ारका)-म लौट आया और सु द का हष बढ़ाया ।। ४१ ।। े

तदे तत् कारणं राजन् यदहं नागसा यम् । नागमं परवीर न न ह जीवेत् सुयोधनः ।। ४२ ।। म यागतेऽथवा वीर ूतं न भ वता तथा । अ ाहं क क र या म भ सेतु रवोदकम् ।। ४३ ।। राजन्! यही कारण है, जससे म उन दन ह तनापुरम न आ सका। श ुवीर का नाश करनेवाले धमराज! मेरे आनेपर या तो जूआ नह होता या य धन जी वत नह रह पाता। जैसे बाँध टू ट जानेपर पानीको कोई नह रोक सकता, उसी कार आज जब क सब कुछ बगड़ चुका है, तब म या कर सकूँगा ।। ४२-४३ ।। वैश पायन उवाच एवमु वा महाबा ः कौरवं पु षो मः । आम य ययौ ीमान् पा डवान् मधुसूदनः ।। ४४ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! ऐसा कहकर पु ष म े महाबा ीमान् मधुसूदन कु न दन यु ध रक आ ा लेकर ारकाक ओर चले ।। ४४ ।। अ भवा महाबा धमराजं यु ध रम् । रा ा मूध युपा ातो भीमेन च महाभुजः ।। ४५ ।। महाबा ीकृ णने धमराज यु ध रको णाम कया। राजा यु ध र तथा भीमने बड़ी-बड़ी भुजा वाले ीकृ णका सर सूँघा ।। ४५ ।। परव ाजुनेन यमा यां चा भवा दतः । स मा नत धौ येन ौप ा चा चतोऽ ु भः ।। ४६ ।। अजुनने उनको दयसे लगाया और नकुल-सहदे वने उनके चरण म णाम कया। पुरो हत धौ यजीने उनका स मान कया तथा ौपद ने अपने आँसु से उनक अचना क ।। ४६ ।। सुभ ाम भम युं च रथमारो य का चनम् । आ रोह रथं कृ णः पा डवैर भपू जतः ।। ४७ ।। पा डव से स मा नत ीकृ ण सुभ ा और अ भम युको अपने सुवणमय रथपर बैठाकर वयं भी उसपर आ ढ़ ए ।। ४७ ।। शै यसु ीवयु े न रथेना द यवचसा । ारकां ययौ कृ णः समा ा य यु ध रम् ।। ४८ ।। उस रथम शै य और सु ीव नामक घोड़े जुते ए थे और वह सूयके समान तेज वी तीत होता था। यु ध रको आ ासन दे कर ीकृ ण उसी रथके ारा ारकापुरीक ओर चल दये ।। ४८ ।। ततः याते दाशाह धृ ु नोऽ प पाषतः । ौपदे यानुपादाय ययौ वपुरं तदा ।। ४९ ।। ीकृ णके चले जानेपर पदपु धृ ु नने भी ौपद कुमार को साथ ले अपनी राजधानीको थान कया ।। ४९ ।। े



धृ केतुः वसारं च समादायाथ चे दराट् । जगाम पा डवान् ् वा र यां शु मत पुरीम् ।। ५० ।। चे दराज धृ केतु भी अपनी ब हन करेणुमतीको, जो नकुलक भाया थी, साथ ले पा डव से मल-जुलकर अपनी सुर य राजधानी शु मतीपुरीको चले गये ।। ५० ।। केकया ा यनु ाताः कौ तेयेना मतौजसा । आम य पा डवान् सवान् ययु तेऽ प भारत ।। ५१ ।। भारत! केकयराजकुमार भी अ मत तेज वी कु तीन दन यु ध रक आ ा पा सम त पा डव से वदा लेकर अपने नगरको चले गये ।। ५१ ।। ा णा वश ैव तथा वषयवा सनः । वसृ यमानाः सुभृशं न यज त म पा डवान् ।। ५२ ।। यु ध रके रा यम रहनेवाले ा ण तथा वै य बारंबार वदा करनेपर भी पा डव को छोड़कर जाना नह चाहते थे ।। ५२ ।। समवायः स राजे सुमहा तदशनः । आसी महा मनां तेषां का यके भरतषभ ।। ५३ ।। भरतवंशभूषण महाराज जनमेजय! उस समय का यकवनम उन महा मा का बड़ा अ त स मेलन जुटा था ।। ५३ ।। यु ध र तु व ां ताननुमा य महामनाः । शशास पु षान् काले रथान् योजयते त वै ।। ५४ ।। तदन तर महामना यु ध रने सब ा ण क अनुम तसे अपने सेवक को समयपर आ ा द —‘रथ को जोतकर तैयार करो’ ।। ५४ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण अजुना भगमनपव ण सौभवधोपा याने ा वशोऽ यायः ।। २२ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत अजुना भगमनपवम सौभवधोपा यान वषयक बाईसवाँ अ याय पूरा आ ।। २२ ।।

यो वशोऽ यायः पा डव का ै तवनम जानेके लये उ त होना और जावगक ाकुलता वैश पायन उवाच त मन् दशाहा धपतौ याते यु ध रो भीमसेनाजुनौ च । यमौ च कृ णा च पुरो हत रथान् महाहान् परमा यु ान् ।। १ ।। आ थाय वीराः स हता वनाय त थरे भूतप त काशाः । हर य न कान् वसना न गा दाय श ा रम व यः ।। २ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! यादवकुलके अ धप त भगवान् ीकृ णके चले जानेपर यु ध र, भीमसेन, अजुन, नकुल, सहदे व, ौपद और पुरो हत धौ य उ म घोड़ से जुते ए ब मू य रथ पर बैठे। फर भूतनाथ भगवान् शंकरके समान सुशो भत होनेवाले वे सभी वीर एक साथ सरे वनम जानेके लये उ त ए। वेद-वेदांग और म के जाननेवाले ा ण को सोनेक मु ाएँ, व तथा गौएँ दान करके उ ह ने या ा ार भ क ।। १-२ ।। े याः पुरो वश तरा श ा धनूं ष श ा ण शरां द तान् । मौव य ा ण च सायकां सव समादाय जघ यमीयुः ।। ३ ।। भगवान् ीकृ णके साथ बीस सेवक अ -श से सुस जत हो धनुष, तेज वी बाण, श , डोरी, य और अनेक कारके सायक लेकर पहले ही प म दशाम थत ारकापुरीक ओर चले गये थे ।। ३ ।। तत तु वासां स च राजपुया धाय दा य वभूषणं च । त द सेन व रतः गृ जघ यमेवोपययौ रथेन ।। ४ ।। तदन तर सार थ इ सेन राजकुमारी सुभ ाके व , आभूषण, धाय तथा दा सय को लेकर तुरंत ही रथके ारा ारकापुरीको चल दया ।। ४ ।। ततः कु े मुपे य पौराः द णं च ु रद नस वाः ।

तं ा णा ा यवदन् स ा मु या सव कु जा लानाम् ।। ५ ।। इसके बाद उदार दयवाले पुरवा सय ने कु े यु ध रके पास जा उनक प र मा क । कु जांगलदे शके ा ण तथा सभी मुख लोग ने उनसे स तापूवक बातचीत क ।। ५ ।। स चा प तान यवदत् स ः सहैव तै ातृ भधमराजः । त थौ च त ा धप तमहा मा ् वा जनौघं कु जा लानाम् ।। ६ ।। अपने भाइय स हत धमराज यु ध रने भी स होकर उन सबसे वातालाप कया। कु जांगलदे शके उस जनसमुदायको दे खकर महा मा राजा यु ध र थोड़ी दे रके लये वहाँ ठहर गये ।। ६ ।। पतेव पु ेषु स तेषु भावं च े कु णामृषभो महा मा । ते चा प त मन् भरत बह तदा बभूवुः पतरीव पु ाः ।। ७ ।। जैसे पताका अपने पु पर वा स यभाव होता है, उसी कार कु े महा मा यु ध रने उन सबके त अपने आ त रक नेहका प रचय दया। वे भी उन भरत े यु ध रके त वैसे ही अनुर थे, जैसे पु अपने पतापर ।। ७ ।। तत तमासा महाजनौघाः कु वीरं प रवाय त थुः । हा नाथ हा धम इ त ुवाणा भीता सवऽ ुमुखा राजन् ।। ८ ।। वरः कु णाम धपः जानां पतेव पु ानपहाय चा मान् । पौरा नमा ानपदां सवान् ह वा यातः व नु धमराजः ।। ९ ।। उस महान् जनसमुदाय ( जा)-के लोग कु कुलके मुख वीर यु ध रके पास जा उ ह चार ओरसे घेरकर खड़े हो गये। राजन्! उस समय उन सबके मुखपर आँसु क धारा बह रही थी और वे वयोगके भयसे भीत हो हा नाथ! हा धम! इस कार पुकारते ए कह रहे थे—‘कु वंशके े अ धप त, जाजन पर पताका-सा नेह रखनेवाले धमराज यु ध र हम सब पु , पुरवा सय तथा सम त दे शवा सय को छोड़कर अब कहाँ चले जा रहे ह? ।। ८-९ ।। धग् धातरा ं सुनृशंसबु धक् सौबलं पापम त च कणम् । अनथ म छ त नरे पापा े ै

ये धम न य य सत तवैवम् ।। १० ।। ‘ ू रबु धृतराप ु य धनको ध कार है। सुबलपु शकु न तथा पापपूण वचार रखनेवाले कणको भी ध कार है, जो पापी सदा धमम त पर रहनेवाले आपका इस कार अनथ करना चाहते ह ।। १० ।। वयं नवे या तमं महा मा पुरं महादे वपुर काशम् । शत तु थममेयकमा ह वा यातः व नु धमराजः ।। ११ ।। ‘ जन महा माने वयं ही पु षाथ करके महादे वजीके नगर कैलासक -सी सुषमावाले अनुपम इ थ नामक नगरको बसाया था, वे अ च यकमा धमराज यु ध र अपनी उस पुरीको छोड़कर अब कहाँ जा रहे ह? ।। ११ ।। चकार याम तमां महा मा सभां मयो दे वसभा काशाम् । तां दे वगु ता मव दे वमायां ह वा यातः व नु धमराजः ।। १२ ।। ‘महामना मयदानवने दे वता क सभाके समान सुशो भत होनेवाली जस अनुपम सभाका नमाण कया था, दे वता ारा र त दे वमायाके समान उस सभाका प र याग करके धमराज यु ध र कहाँ चले जा रहे ह?’ ।। १२ ।। तान् धमकामाथ व मौजा बीभ सु चैः स हतानुवाच । आदा यते वास ममं न य वनेषु राजा षतां यशां स ।। १३ ।। धम, अथ और कामके ाता उ म परा मी अजुनने उन सब जाजन को स बो धत करके उ च वरसे कहा—‘राजा यु ध र इस वनवासक अव ध पूण करके श ु का यश छ न लगे ।। १३ ।। जा तमु याः स हताः पृथक् च भव रासा तप वन । सा धमाथ वद वा या यथाथ स ः परमा भवे ः ।। १४ ।। ‘आपलोग एक साथ या अलग-अलग े ा ण , तप वय तथा धम-अथके ाता महापु ष को स करके उन सबसे यह ाथना कर, जससे हमलोग के अभी मनोरथक उ म स हो’ ।। १४ ।। इ येवमु े वचनेऽजुनेन ते ा णाः सववणा राजन् । मुदा यन दन् स हता च ु ः द णं धमभृतां व र म् ।। १५ ।। े ऐ े े ो े े

राजन्! अजुनके ऐसा कहनेपर ा ण तथा अ य सब वणके लोग ने एक वरसे स तापूवक उनक बातका अ भन दन कया तथा धमा मा म े यु ध रक प र मा क ।। १५ ।। आम य पाथ च वृकोदरं च धनंजयं या सेन यमौ च । त थरे रा मपेतहषा यु ध रेणानुमता यथा वम् ।। १६ ।। तदन तर सब लोग कु तीपु यु ध र, भीमसेन, अजुन, ौपद तथा नकुल-सहदे वसे वदा ले एवं यु ध रक अनुम त ा त करके उदास होकर अपने राको थत ए ।। १६ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण अजुना भगमनपव ण ै तवन वेशे यो वशोऽ यायः ।। २३ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत अजुना भगमनपवम ै तवन वेश वषयक तेईसवाँ अ याय पूरा आ ।। २३ ।।

चतु वशोऽ यायः पा डव का ै तवनम जाना वैश पायन उवाच तत तेषु यातेषु कौ तेयः स यसंगरः । अ यभाषत धमा मा ातॄन् सवान् यु ध रः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर जाजन के चले जानेपर स य त एवं धमा मा कु तीन दन यु ध रने अपने सब भाइय से कहा— ।। १ ।। ादशेमा न वषा ण व त ं नजने वने । समी वं महार ये दे शं ब मृग जम् ।। २ ।। ‘हमलोग को इन आगामी बारह वष तक नजन वनम नवास करना है, अतः इस महान् वनम कोई ऐसा थान ढूँ ढ़ो, जहाँ ब त-से पशु-प ी नवास करते ह ।। २ ।। ब पु पफलं र यं शवं पु यजनावृतम् । य ेमाः शरदः सवाः सुखं तवसेम ह ।। ३ ।। ‘जहाँ फल-फूल क अ धकता हो, जो दे खनेम रमणीय एवं क याणकारी हो तथा जहाँ ब त-से पु या मा पु ष रहते ह । वह थान इस यो य होना चा हये, जहाँ हम सब लोग इन बारह वष तक सुखपूवक रह सक’ ।। ३ ।। एवमु े युवाच धमराजं धनंजयः । गु व मानवगु ं मान य वा मन वनम् ।। ४ ।। धमराजके ऐसा कहनेपर अजुनने उन मन वी मानवगु यु ध रका गु तु य स मान करके उनसे इस कार कहा ।। ४ ।। अजुन उवाच भवानेव महष णां वृ ानां पयुपा सता । अ ातं मानुषे लोके भवतो ना त कचन ।। ५ ।। अजुन बोले—आय! आप वयं ही बड़े-बड़े ऋ षय तथा वृ पु ष का संग करनेवाले ह। इस मनु यलोकम कोई ऐसी व तु नह है, जो आपको ात न हो ।। ५ ।। वया पा सता न यं ा णा भरतषभ । ै पायन भृतयो नारद महातपाः ।। ६ ।। भरत े ! आपने सदा ै पायन आ द ब त-से ा ण तथा महातप वी नारदजीक उपासना क है ।। ६ ।। यः सवलोक ारा ण न यं संचरते वशी । दे वलोकाद् लोकं ग धवा सरसाम प ।। ७ ।। जो मन और इ य को वशम रखकर सदा स पूण लोक म वचरते रहते ह। दे वलोकसे लेकर लोक तथा ग धव और अ सरा के लोक म भी उनक प ँच ै

है ।। ७ ।। अनुभावां जाना स ा णानां न संशयः । भावां ैव वे थ वं सवषामेव पा थव ।। ८ ।। राजन्! आप सभी ा ण के अनुभाव और भावको जानते ह, इसम संशय नह है ।। ८ ।। वमेव राजन् जाना स ेयःकारणमेव च । य े छ स महाराज नवासं त कुमहे ।। ९ ।। राजन्! आप ही ेय (मो )-के कारणका ान रखते ह। महाराज! आपक जहाँ इ छा हो वह हमलोग नवास करगे ।। ९ ।। इदं ै तवनं नाम सरः पु यजलो चतम् । ब पु पफलं र यं नाना ज नषे वतम् ।। १० ।। यह जो प व जलसे भरा आ सरोवर है, इसका नाम ै तवन है। यहाँ फल और फूल क ब लता है। दे खनेम यह थान रमणीय तथा अनेक ा ण से से वत है ।। १० ।। अ ेमा ादश समा वहरेमे त रोचये । य द तेऽनुमतं राजन् कम य म यते भवान् ।। ११ ।। मेरी इ छा है क यह हमलोग इन बारह वष तक नवास कर। राजन्! य द आपक अनुम त हो तो ै तवनके समीप रहा जाय। अथवा आप सरे कस थानको उ म मानते ह ।। ११ ।। यु ध र उवाच ममा येत मतं पाथ वया यत् समुदा तम् । ग छामः पु य व यातं महद् ै तवनं सरः ।। १२ ।। यु ध रने कहा—पाथ! तुमने जैसा बताया है, वही मेरा भी मत है। हमलोग प व जलके कारण स ै तवन नामक वशाल सरोवरके समीप चल ।। १२ ।। वैश पायन उवाच तत ते ययुः सव पा डवा धमचा रणः । ा णैब भः साध पु यं ै तवनं सरः ।। १३ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर वे सभी धमा मा पा डव ब त-से ा ण के साथ प व ै तवन नामक सरोवरको चले गये ।। १३ ।। ा णाः सा नहो ा तथैव च नर नयः । वा या यनो भ व तथैव वनवा सनः ।। १४ ।। बहवो ा णा त प रव ुयु ध रम् । तपः स ा महा मानः शतशः सं शत ताः ।। १५ ।। वहाँ ब त-से अ नहो ी ा ण , नर नक , वा यायपरायण चा रय , वान थय , सं या सय , सैकड़ कठोर तका पालन करनेवाले तपः स महा मा तथा अ य अनेक ा ण ने महाराज यु ध रको घेर लया ।। १४-१५ ।। े ै

ते या वा पा डवा त ा णैब भः सह । पु यं ै तवनं र यं व वशुभरतषभाः ।। १६ ।। वहाँ प ँचकर भरत े पा डव ने ब त-से ा ण के साथ प व एवं रमणीय ै तवनम वेश कया ।। १६ ।। तमालताला मधूकनीपकद बसजाजुनक णकारैः । तपा यये पु पधरै पेतं महावनं रा प तददश ।। १७ ।। राप त यु ध रने दे खा, वह महान् वन तमाल, ताल, आम, म आ, नीप, कद ब, साल, अजुन और कनेर आ द वृ से, जो ी म-ऋतु बीतनेपर फूल धारण करते ह, स प है ।। १७ ।। महा माणां शखरेषु त थुमनोरमां वाचमुद रय तः । मयूरदा यूहचकोरसङ् घात मन् वने ब हणको कला ।। १८ ।। उस वनम बड़े-बड़े वृ क ऊँची शाखा -पर मयूर, चातक, चकोर, ब हण तथा को कल आ द प ी मनको भानेवाली मीठ बोली बोलते ए बैठे थे ।। १८ ।। करेणुयूथैः सह यूथपानां मदो कटानामचल भाणाम् । महा त यूथा न महा पानां त मन् वने रा प तददश ।। १९ ।। राप त यु ध रको उस वनम पवत के समान तीत होनेवाले मदो म गजराज के, जो एक-एक यूथके अ धप त थे, ह थ नय के साथ वचरनेवाले कतने ही भारी-भारी झुंड दखायी दये ।। १९ ।। मनोरमां भोगवतीमुपे य पूता मनां चीरजटाधराणाम् । त मन् वने धमभृतां नवासे ददश स षगणाननेकान् ।। २० ।। मनोरम भोगवती (सर वती) नद म नान करके जनके अ तःकरण प व हो गये ह, जो व कल और जटा धारण करते ह, ऐसे धमा मा के नवासभूत उस वनम राजाने स मह षय के अनेक समुदाय दे खे ।। २० ।। ततः स यानादव राजा स ातृकः सजनः काननं तत् । ववेश धमा मवतां व र व पं श इवा मतौजाः ।। २१ ।। े













तदन तर धमा मा म े एवं अ मत तेज वी राजा यु ध रने अपने सेवक और भाइय स हत रथसे उतरकर वगम इ के समान उस वनम वेश कया ।। २१ ।। तं स यसंधं सहसा भपेतुद व ारण स सङ् घाः । वनौकस ा प नरे सहं मन वनं तं प रवाय त थुः ।। २२ ।। उस समय उन स य त मन वी राज सह यु ध रको दे खनेक इ छासे सहसा ब तसे चारण, स एवं वनवासी मह ष आये और उ ह घेरकर खड़े हो गये ।। २२ ।। स त स ान भवा सवान् य चतो राजवद् दे वव च । ववेश सवः स हतो जा यैः कृता लधमभृतां व र ः ।। २३ ।। वहाँ आये ए सम त स को णाम करके धमा मा म े यु ध र उनके ारा भी राजा तथा दे वताके समान पू जत ए एवं दोन हाथ जोड़कर उ ह ने उन सम त े ा ण के साथ वनके भीतर पदापण कया ।। २३ ।। स पु यशीलः पतृव महा मा तप व भधमपरै पे य । य चतः पु पधर य मूले महा म योप ववेश राजा ।। २४ ।। उस वनम रहनेवाले धमपरायण तप वय ने उन पु यशील महा मा राजाके पास जाकर उनका पताक भाँ त स मान कया। त प ात् राजा यु ध र फूल से लदे ए एक महान् वृ के नीचे उसक जड़के समीप बैठे ।। २४ ।।

भीम कृ णा च धनंजय यमौ च ते चानुचरा नरे म् । वमु य वाहानवशा सव त ोपत थुभरत बहाः ।। २५ ।। तदन तर पराधीन-दशाम पड़े ए भीम, ौपद , अजुन, नकुल, सहदे व तथा सेवकगण सवारी छोड़कर उतर गये। वे सभी भरत े वीर महाराज यु ध रके समीप जा बैठे ।। २५ ।। लतावतानावनतः स पा डवैमहा मः प च भरेव ध व भः । बभौ नवासोपगतैमहा म भमहा ग रवारणयूथपै रव ।। २६ ।। जैसे महान् पवत यूथप त गजराज से सुशो भत होता है, उसी कार, लतासमूहसे झुका आ वह महान् वृ वहाँ नवासके लये आये ए पाँच धनुधर महा मा पा डव ारा शोभा पाने लगा ।। २६ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण अजुना भगमनपव ण ै तवन वेशे चतु वशोऽ यायः ।। २४ ।।









इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत अजुना भगमनपवम ै तवन वेश वषयक चौबीसवाँ अ याय पूरा आ ।। २४ ।।

प च वशोऽ यायः मह ष माक डेयका पा डव को धमका आदे श दे कर उ र दशाक ओर थान वैश पायन उवाच तत् काननं ा य नरे पु ाः सुखो चता वासमुपे य कृ म् । वज र तमाः शवेषु सर वतीशालवनेषु तेषु ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! सुख भोगनेके यो य राजकुमार पा डव इ के समान तेज वी थे। वे वनवासके संकटम पड़कर ै तवनम वेश करके वहाँ सर वतीतटवत सुखद शालवन म वहार करने लगे ।। १ ।। यत राजा स मुन सवात मन् वने मूलफलै द ैः । जा तमु यानृषभः कु णां संतपयामास महानुभावः ।। २ ।। इ ी पया ण तथा या महावने वसतां पा डवानाम् । पुरो हत त समृ तेजाकार धौ यः पतृव ृपाणाम् ।। ३ ।। कु े महानुभाव राजा यु ध रने उस वनम रहनेवाले स पूण य तय , मु नय और े ा ण को उ म फल-मूल के ारा तृ त कया। अ य त तेज वी पुरो हत धौ य पताक भाँ त उस महावनम रहनेवाले राजकुमार पा डव के य -याग, पतृ- ा तथा अ य स कम करते-कराते रहते थे ।। २-३ ।। अपे य रा ाद् वसतां तु तेषामृ षः पुराणोऽ त थराजगाम । तमा मं ती समृ तेजा माक डेयः ीमतां पा डवानाम् ।। ४ ।। रा यसे र होकर वनम नवास करनेवाले ीमान् पा डव के उस आ मपर उद्द त तेज वी पुरातन मह ष माक डेयजी अ त थके पम आये ।। ४ ।। तमागतं व लत ताशन भं महामनाः कु वृषभो यु ध रः । अपूजयत् सुरऋ षमानवा चतं महामु न नुपमस ववीयवान् ।। ५ ।। े



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उनक अंग-का त व लत अ नके समान उद्भा सत हो रही थी। दे वता , ऋ षय तथा मनु य ारा पू जत महामु न माक डेयको आया दे ख अनुपम धैय और परा मसे स प महामन वी कु े यु ध रने उनक यथावत् पूजा क ।। ५ ।। स सव वद् ौपद वी य कृ णां यु ध रं भीमसेनाजुनौ च । सं मृ य रामं मनसा महा मा तप वम येऽ मयता मतौजाः ।। ६ ।। अ मत तेज वी तथा सव महा मा माक डेयजी पदकुमारी कृ णा, यु ध र, भीमसेन, अजुन (और नकुल-सहदे व)-को दे खकर मन-ही-मन ीरामच जीका मरण करके तप वय के बीचम मुसकराने लगे ।। ६ ।। तं धमराजो वमना इवा वीत् सव या स त तप वनोऽमी । भवा नदं क मयतीव तप वनां प यतां मामुद य ।। ७ ।। तब धमराज यु ध रने उदासीन-से होकर पूछा—‘मुने! ये सब तप वी तो मेरी अव था दे खकर कुछ संकु चत-से हो रहे ह, परंतु या कारण है क आप इन सब महा मा के सामने मेरी ओर दे खकर स तापूवक य मुसकराते-से दखायी दे ते ह?’ ।। ७ ।। माक डेय उवाच न तात या म न च मया म हषजो मां भजते न दपः । तवापदं व समी य रामं स य तं दाशर थ मरा म ।। ८ ।। माक डेयजी बोले—तात! न तो म ह षत होता ँ और न मुसकराता ही ँ। हषज नत अ भमान कभी मेरा पश नह कर सकता। आज तु हारी यह वप दे खकर मुझे स य त दशरथन दन ीरामच जीका मरण हो आया ।। ८ ।। स चा प राजा सह ल मणेन वने नवासं पतुरेव शासनात् । ध वी चरन् पाथ मयैव ो गरेः पुरा ऋ यमूक य सानौ ।। ९ ।। कु तीन दन! ाचीनकालक बात है राजा रामच जी भी अपने पताक आ ासे ही केवल धनुष हाथम लये ल मणके साथ वनम नवास एवं मण करते थे। उस समय ऋ यमूकपवतके शखरपर मने ही उनका भी दशन कया था ।। ९ ।। सह ने तमो महा मा यम य नेता नमुचे ह ता । े

पतु नदे शादनघः वधम वासं वने दाशर थ कार ।। १० ।। दशरथन दन ीराम सवथा न पाप थे। इ उनके सरे व प थे। वे यमराजके भी नय ता और नमु च-जैसे दानव के नाशक थे, तो भी उन महा माने पताक आ ासे अपना धम समझकर वनम नवास कया ।। १० ।। स चा प श य सम भावो महानुभावः समरे वजेयः । वहाय भोगानचरद् वनेषु नेशे बल ये त चरेदधमम् ।। ११ ।। जो इ के समान भावशाली थे, जनका अनुभव महान् था तथा जो यु म सवदा अजेय थे, उ ह ने भी स पूण भोग का प र याग करके वनम नवास कया था। इस लये अपनेको बलका वामी समझकर अधम नह करना चा हये ।। ११ ।। भूपा नाभागभगीरथादयो मही ममां सागरा तां व ज य । स येन तेऽ यजयं तात लोकान् नेशे बल ये त चरेदधमम् ।। १२ ।। नाभाग और भगीरथ आ द राजा ने भी समु पय त पृ वीको जीतकर स यके ारा उ म लोक पर वजय पायी। इस लये तात! अपनेको बलका वामी मानकर अधमका आचरण नह करना चा हये ।। १२ ।। अलकमा नरवय स तं स य तं का शक षराजम् । वहाय रा या न वसू न चैव नेशे बल ये त चरेदधमम् ।। १३ ।। नर े ! काशी और क षदे शके राजा अलकको स य त संत बताया गया है। उ ह ने रा य और धन यागकर धमका आ य लया है। अतः अपनेको अ धक श शाली समझकर अधमका आचरण नह करना चा हये ।। १३ ।। धा ा व धय व हतः पुराणैतं पूजय तो नरवय स तः । स तषयः पाथ द व भा त नेशे बल ये त चरेदधमम् ।। १४ ।। मनु य म े कु तीकुमार! वधाताने पुरातन वेदवा य ारा जो अ नहो आ द कम का वधान कया है, उसका समादर करनेके कारण ही साधु स त षगण दे वलोकम का शत हो रहे ह। अतः अपनेको श शाली मानकर कभी अधमका आचरण नह करना चा हये ।। १४ ।। महाबलान् पवतकूटमा ान् वषा णनः प य गजान् नरे । े े

थतान् नदे शे नरवय धातुनशे बल ये त चरेदधमम् ।। १५ ।। कु तीन दन महाराज यु ध र! पवत शखरके समान ऊँचे और बड़े-बड़े दाँत वाले इन महाबली गजराज क ओर तो दे खो। ये भी वधाताके आदे शका पालन करनेम लगे ह। इस लये म श का वामी ँ ऐसा समझकर कभी अधमाचरण न करे ।। १५ ।। सवा ण भूता न नरे प य तथा यथावद् व हतं वधा ा । वयो नतः कम सदा चर त नेशे बल ये त चरेदधमम् ।। १६ ।। नरे ! दे खो, ये सम त ाणी वधाताके वधानके अनुसार अपनी यो नके अनु प सदा काय करते रहते ह, अतः अपनेको बलका वामी समझकर अधम न करे ।। १६ ।। स येन धमण यथाहवृ या या तथा सवभूता यती य । यश तेज तवा प द तं वभावसोभा कर येव पाथ ।। १७ ।। कु तीन दन! तुम अपने स य, धम, यथायो य बताव तथा ल जा आ द सद्गुण के कारण सम त ा णय से ऊँचे उठे ए हो। तु हारा यश और तेज अ न तथा सूयके समान का शत हो रहा है ।। १७ ।। यथा त ं च महानुभाव कृ ं वने वास ममं न य । ततः यं तेजसा तेन द तामादा यसे पा थव कौरवे यः ।। १८ ।। महानुभाव नरेश! तुम अपनी त ाके अनुसार इस क सा य वनवासक अव ध पूरी करके कौरव के हाथसे अपनी तेज वनी राजल मीको ा त कर लोगे ।। १८ ।। वैश पायन उवाच तमेवमु वा वचनं मह षतप वम ये स हतं सु ः। आम य धौ यं स हतां पाथाततः त थे दशमु रां सः ।। १९ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तप वी महा मा के बीचम अपने सु द के साथ बैठे ए धमराज यु ध रसे पूव बात कहकर मह ष माक डेय धौ य एवं सम त पा डव से वदा ले उ र दशाक ओर चल दये ।। १९ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण अजुना भगमनपव ण ै तवन वेशे प च वशोऽ यायः ।। २५ ।।









इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत अजुना भगमनपवम ै तवन वेश वषयक पचीसवाँ अ याय पूरा आ ।। २५ ।।

षड् वशोऽ यायः द भपु बकका यु ध रको ा ण का मह व बतलाना वैश पायन उवाच वस सु वै ै तवने पा डवेषु महा मसु । अनुक ण महार यं ा णैः समप त ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! ै तवनम जब महा मा पा डव नवास करने लगे, उस समय वह वशाल वन ा ण से भर गया ।। १ ।। ईयमाणेन सततं घोषेण सवशः । लोकसमं पु यमासीद् ै तवनं सरः ।। २ ।। सरोवरस हत ै तवन सदा और सब ओर उ चा रत होनेवाले वेदम के घोषसे लोकके समान जान पड़ता था ।। २ ।। यजुषामृचां सा नां च ग ानां चैव सवशः । आसी चायमाणानां नः वनो दय मः ।। ३ ।। यजुवद, ऋ वेद और सामवेद तथा ग -भागके उ चारणसे जो व न होती थी, वह दयको य जान पड़ती थी ।। ३ ।। याघोष ैव पाथानां घोष धीमताम् । संसृ ं णा ं भूय एव रोचत ।। ४ ।। कु तीपु के धनुषक यंचाका टं कार-श द और बु मान् ा ण के वेदम का घोष दोन मलकर ऐसे तीत होते थे, मानो ा ण व और य वका सु दर संयोग हो रहा था ।। ४ ।। अथा वीद् बको दा यो धमराजं यु ध रम् । सं यां कौ तेयमासीनमृ ष भः प रवा रतम् ।। ५ ।। एक दन कु तीकुमार धमराज यु ध र ऋ षय से घरे ए सं योपासना कर रहे थे। उस समय द भके पु बक नामक मह षने उनसे कहा— ।। ५ ।। प य ै तवने पाथ ा णानां तप वनाम् । होमवेलां कु े स व लतपावकाम् ।। ६ ।। ‘कु े कु तीकुमार! दे खो, ै तवनम तप वी ा ण क होमवेलाका कैसा सु दर य है। सब ओर वे दय पर अ न व लत हो रही है ।। ६ ।। चर त धम पु येऽ मं वया गु ता धृत ताः । भृगवोऽ रस ैव वा स ाः का यपैः सह ।। ७ ।। आग या महाभागा आ ेया ो म ताः । सव य जगतः े ा ा णाः संगता वया ।। ८ ।। ‘









‘आपके ारा सुर त हो त धारण करनेवाले ा ण इस पु य वनम धमका अनु ान कर रहे ह। भागव, अं गरस, वा स , का यप, महान् सौभा यशाली अग य वंशी तथा े तका पालन करनेवाले आ ेय आ द स पूण जगत्के े ा ण यहाँ आकर तुमसे मले ह ।। ७-८ ।। इदं तु वचनं पाथ शृणु व गदतो मम । ातृ भः सह कौ तेय यत् वां व या म कौरव ।। ९ ।। ‘कु तीन दन! कु े ! भाइय स हत तुमसे म जो एक बात कह रहा ँ, इसे यान दे कर सुनो ।। ९ ।। ेण संसृ ं ंच णा सह । उद ण दहतः श ून् वनानीवा नमा तौ ।। १० ।। ‘जब ा ण यसे और य ा णसे मल जाय तो दोन च ड श शाली होकर उसी कार अपने श ु को भ म कर दे ते ह, जैसे अ न और वायु मलकर सारे वनको जला दे ते ह ।। १० ।। ना ा ण तात चरं बुभूषेद छ मं लोकममुं च जेतुम् । वनीतधमाथमपेतमोहं ल वा जं नुद त नृपः सप नान् ।। ११ ।। ‘तात! इहलोक और परलोकपर वजय पानेक इ छा रखनेवाला राजा कसी ा णको साथ लये बना अ धक कालतक न रहे। जसे धम और अथक श ा मली हो तथा जसका मोह र हो गया हो, ऐसे ा णको पाकर राजा अपने श ु का नाश कर दे ता है ।। ११ ।। चरन् नैः ेयसं धम जापालनका रतम् । ना यग छद् ब लल के तीथम य वै जात् ।। १२ ।। ‘राजा ब लको जापालनज नत क याणकारी धमका आचरण करनेके लये ा णका आ य लेनेके सवा सरा कोई उपाय नह जान पड़ा था ।। १२ ।। अनूनमासीदसुर य कामैवरोचनेः ीर प चा याऽऽसीत् । ल वा मह ा णस योगात् ते वाचरन् मथो न यत् ।। १३ ।। ‘ ा णके सहयोगसे पृ वीका रा य पाकर वरोचन-पु ब ल नामक असुरका जीवन स पूण आव यक कामोपभोगक साम ीसे स प हो गया और अ य रा यल मी भी ा त हो गयी। परंतु वह उन ा ण के साथ वहार करनेपर न हो गया—उसका रा यल मीसे वयोग हो गया* ।। १३ ।। ना ा णं भू म रयं सभू तवण तीयं भजते चराय । े





समु ने मनमते तु त मै यं ा णः शा त नयै वनीतम् ।। १४ ।। ‘ जसे ा णका सहयोग नह ा त है, ऐसे यके पास यह ऐ यपूण भू म द घ कालतक नह रहती। जस नी त राजाको े ा णका उपदे श ा त है, उसके सामने समु पय त पृ थवी नतम तक होती है ।। १४ ।। कु र येव सं ामे प रगृ ाङ् कुश हम् । ा णै व हीण य य ीयते बलम् ।। १५ ।। ‘जैसे सं ामम हाथीसे महावतको अलग कर दे नेपर उसक सारी श थ हो जाती है, उसी कार ा णर हत यका सारा बल ीण हो जाता है ।। १५ ।। ा यनुपमा ः ा म तमं बलम् । तौ यदा चरतः साध तदा लोकः सीद त ।। १६ ।। ‘ ा ण के पास अनुपम ( वचारश ) होती है और यके पास अनुपम बल होता है। ये दोन जब साथ-साथ काय करते ह, तब सारा जगत् सुखी होता है ।। १६ ।। यथा ह सुमहान नः क ं दह त सा नलः । तथा दह त राज यो ा णेन समं रपुम् ।। १७ ।। ‘जैसे च ड अ न वायुका सहारा पाकर सूखे जंगलको जला डालती है, उसी कार ा णक सहायतासे राजा अपने श ुको भ म कर दे ता है ।। १७ ।। ा णे वेव मेधावी बु पयषणं चरेत् । अलध थ च लाभाय लध थ प रवृ ये ।। १८ ।। ‘बु मान् पु षको चा हये क वह अ ा तक ा त और ा तक वृ के लये ा ण से बु हण करे ।। १८ ।। अलधलाभाय च लधवृ ये यथाहतीथ तपादनाय । यश वनं वेद वदं वप तं ब ुतं ा णमेव वासय ।। १९ ।। ‘राजन्! अ ा तक ा त और ा तक वृ के लये यथायो य उपाय बतानेके न म तुम अपने यहाँ यश वी, ब ुत एवं वेद व ान् ा णको बसाओ ।। १९ ।। ा णेषू मा वृ तव न यं यु ध र । तेन ते सवलोकेषु द यते थतं यशः ।। २० ।। ‘यु ध र! ा ण के त तु हारे दयम सदा उ म भाव है, इसी लये सब लोक म तु हारा यश व यात एवं का शत है’ ।। २० ।। वैश पायन उवाच तत ते ा णाः सव बकं दा यमपूजयन् । यु ध रे तूयमाने भूयः सुमनसोऽभवन् ।। २१ ।। ै











वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर यु ध रक बड़ाई करनेपर उन सब ा ण ने बकका आदर-स कार कया और उन सब ा ण का च स हो गया ।। २१ ।। ै पायनो नारद जामद यः पृथु वाः । इ ु नो भालु क कृतचेताः सह पात् ।। २२ ।। कण वा मु लवणा का यपः । हारीतः थूणकण अ नवे योऽथ शौनकः ।। २३ ।। कृतवाक् च सुवाक् चैव बृहद ो वभावसुः । ऊ व रेता वृषा म ः सुहो ो हो वाहनः ।। २४ ।। एते चा ये च बहवो ा णाः सं शत ताः । अजातश ुमानचुः पुरंदर मवषयः ।। २५ ।। ै पायन ास, नारद, परशुराम, पृथु वा, इ ु न, भालु क, कृतचेता, सहपात्, कण वा, मुंज, लवणा , का यप, हारीत, थूणकण, अ नवे य, शौनक, कृतवाक्, सुवाक्, बृहद , वभावसु, ऊ वरेता, वृषा म , सुहो तथा हो वाहन—ये सब ष तथा राज षगण और सरे कठोर तका पालन करनेवाले ब त-से ा ण अजातश ु यु ध रका उसी कार आदर करते थे, जैसे मह ष लोग दे वराज इ का ।। २२—२५ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण अजुना भगमनपव ण ै तवन वेशे षड् वशोऽ यायः ।। २६ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवम अजुना भगमनपवम ै तवन वेश वषयक छ बीसवाँ अ याय पूरा आ ।। २६ ।।

* ब लके ारा ा ण के साथ अ यायम आता है।

वहार करनेपर उसका रा यल मीसे वयोग होनेका संग शा तपवके २२५ व

स त वशोऽ यायः ौपद का यु ध रसे उनके श ु वषयक ोधको उभाड़ नेके लये संतापपूण वचन वैश पायन उवाच ततो वनगताः पाथाः साया े सह कृ णया । उप व ाः कथा ु ःखशोकपरायणाः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर वनम गये ए पा डव एक दन सायंकालम ौपद के साथ बैठकर ःख और शोकम म न हो कुछ बातचीत करने लगे ।। १ ।। या च दशनीया च प डता च प त ता । अथ कृ णा धमराज मदं वचनम वीत् ।। २ ।। प त ता ौपद पा डव क या, दशनीया और व षी थी। उसने धमराजसे इस कार कहा ।। २ ।। ौप ुवाच न नूनं त य पाप य ःखम मासु कचन । व ते धातरा य नृशंस य रा मनः ।। ३ ।। ौपद बोली—राजन्! म समझती ँ, उस ू र वभाववाले रा मा धृतरापु पापी य धनके मनम हमलोग के लये त नक भी ःख नह आ होगा ।। ३ ।। य वां राजन् मया साधम जनैः तवा सतम् । वनं था य ा मा ना वत यत म तः ।। ४ ।। महाराज! उस नीच बु वाले ा माने आपको भी मृगछाला पहनाकर मेरे साथ वनम भेज दया; कतु इसके लये उसे थोड़ा भी प ा ाप नह आ ।। ४ ।। आयसं दयं नूनं त य कृतकमणः । य वां धमपरं े ं ा य ावयत् तदा ।। ५ ।। अव य ही उस कुकम का दय लोहेका बना है, य क उसने आप-जैसे धमपरायण े पु षको भी उस समय कटु वचन सुनाये थे ।। ५ ।। सुखो चतम ःखाह रा मा ससु द्गणः । ई शं ःखमानीय मोदते पापपू षः ।। ६ ।। आप सुख भोगनेके यो य ह। ःखके यो य कदा प नह ह, तो भी आपको ऐसे ःखम डालकर वह पापाचारी रा मा अपने म के साथ आन दत हो रहा है ।। ६ ।। चतुणामेव पापानाम ं न प ततं तदा । व य भारत न ा ते वनाया जनवास स ।। ७ ।। े

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भारत! जब आप व कल-व धारण करके वनम जानेके लये नकले, उस समय केवल चार ही पापा मा के ने से आँसू नह गरा था ।। ७ ।। य धन य कण य शकुने रा मनः । ातु त य चो य राजन् ःशासन य च ।। ८ ।। य धन, कण, रा मा शकु न तथा उ वभाव-वाले ाता ःशासन—इ ह क आँख म आँसू नह थे ।। ८ ।। इतरेषां तु सवषां कु णां कु स म । ःखेना भपरीतानां ने े यः ापत जलम् ।। ९ ।। कु े ! अ य सभी कु वंशी ःखम डू बे ए थे और उनके ने से अ ुवषा हो रही थी ।। ९ ।। इदं च शयनं ् वा य चासीत् ते पुरातनम् । शोचा म वां महाराज ःखानह सुखो चतम् ।। १० ।। महाराज! आज आपक यह शया दे खकर मुझे पहलेक राजो चत शयाका मरण हो आता है और म आपके लये शोकम म न हो जाती ँ; य क आप ःखके अयो य और सुखके ही यो य ह ।। १० ।। दा तं य च सभाम य आसनं र नभू षतम् । ् वा कुशवृष चेमां शोको मां दह ययम् ।। ११ ।। सभाभवनम जो र नज टत हाथीदाँतका सहासन है, उसका मरण करके जब म इस कुशक चटाईको दे खती ँ, तब शोक मुझे द ध कये दे ता है ।। ११ ।। यदप यं सभायां वां राज भः प रवा रतम् । त च राज प य याः का शा त दय य मे ।। १२ ।। राजन्! म इ थक सभाम आपको राजा से घरा आ दे ख चुक ँ, अतः आज वैसी अव थाम आपको न दे खकर मेरे दयको या शा त मल सकती है? ।। १२ ।। या वाहं च दना द धमप यं सूयवचसम् । सा वां पङ् कमला द धं ् वा मु ा म भारत ।। १३ ।। भारत! जो पहले आपको च दनचचत एवं सूयके समान तेज वी दे खती रही ँ, वही म आपको क चड़ एवं मैलसे म लन दे खकर मोहके कारण ःखत हो रही ँ ।। १३ ।। या वाहं कौ शकैव ैः शु ैरा छा दतं पुरा । व य म राजे सा वां प या म ची रणम् ।। १४ ।। राजे ! जो म पहले आपको उ वल रेशमी व से आ छा दत दे ख चुक ँ, वही आज व कल-व पहने दे खती ँ ।। १४ ।। य च त मपा ी भ ा णे यः सह शः । यते ते गृहाद ं सं कृतं सावका मकम् ।। १५ ।। एक दन वह था क आपके घरसे सह ा ण के लये सोनेक था लय म सब कारक चके अनुकूल तैयार कया आ सु दर भोजन परोसा जाता था ।। १५ ।। यतीनामगृहाणां ते तथैव गृहमे धनाम् । े ो ी ो

द यते भोजनं राज तीवगुणवत् भो ।। १६ ।। श शाली महाराज! उन दन त दन य तय , चा रय और गृह थ ा ण को भी अ य त गुणकारी भोजन अ पत कया जाता था ।। १६ ।। स कृता न सह ा ण सवकामैः पुरा गृहे । सवकामैः सु व हतैयदपूजयथा जान् ।। १७ ।। पहले आपके राजभवनम सह (सुवणमय) पा थे, जो स पूण इ छानुकूल भो य पदाथ से भरे-पूरे रहते थे और उनके ारा आप सम त अभी मनोरथ क पू त करते ए त दन ा ण का स कार करते थे ।। १७ ।। त च राज प य याः का शा त दय य मे । यत् ते ातॄन् महाराज युवानो मृ कु डलाः ।। १८ ।। अभोजय त म ा ैः सूदाः परमसं कृतैः । सवा तान प या म वने व येन जी वनः ।। १९ ।। राजन्! आज वह सब न दे खनेके कारण मेरे दयको या शा त मलेगी? महाराज! आपके जन भाइय को कान म सु दर कु डल पहने ए त ण रसोइये अ छे कारसे बनाये ए वा द अ परोसकर भोजन कराया करते थे, उन सबको आज वनम जंगली फल-मूलसे जीवन- नवाह करते दे ख रही ँ ।। १८-१९ ।। अ ःखाहान् मनु ये नोपशा य त मे मनः । भीमसेन ममं चा प ःखतं वनवा सनम् ।। २० ।। यायतः क न म यु ते ा ते काले ववधते । भीमसेनं ह कमा ण वयं कुवाणम युतम् ।। २१ ।। सुखा ःखतं ् वा क मा म युन वधते । नरे ! आपके भाई ःख भोगनेके यो य नह ह; आज इ ह ःखम दे खकर मेरा च कसी कार शा त नह हो पाता है। महाराज! वनम रहकर ःख भोगते ए इन अपने भाई भीमसेनका मरण करके समय आनेपर या श ु के त आपका ोध नह बढ़े गा? म पूछती ँ—यु से कभी पीछे न हटनेवाले और सुख भोगनेके यो य भीमसेनको वयं अपने हाथ से सब काम करते और ःख उठाते दे खकर श ु पर आपका ोध य नह भड़क उठता? ।। २०-२१ ।। स कृतं व वधैयानैव ै चावचै तथा ।। २२ ।। तं ते वनगतं ् वा क मा म युन वधते । व वध सवा रयाँ और नाना कारके व से जनका स कार होता था, उ ह भीमसेनको वनम क उठाते दे ख श ु के त आपका ोध व लत य नह होता? ।। २२ ।। अयं कु न् रणे सवान् ह तुमु सहते भुः ।। २३ ।। व त ां ती ं तु सहतेऽयं वृकोदरः । े

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ये श शाली भीमसेन यु म सम त कौरव को न कर दे नेका उ साह रखते ह, परंतु आपक त ा-पू तक ती ा करनेके कारण अबतक श ु के अपराधको सहन करते ह ।। २३ ।। योऽजुनेनाजुन तु यो बा ब बा ना ।। २४ ।। शरावमद शी वात् काला तकयमोपमः । य यश तापेन णताः सवपा थवाः ।। २५ ।। य े तव महाराज ा णानुपत थरे । त ममं पु ष ा ं पू जतं दे वदानवैः ।। २६ ।। याय तमजुनं ् वा क माद् राजन् न कु य स । राजन्! आपके जो भाई अजुन दो ही भुजा से यु होनेपर भी सह भुजा से वभू षत कातवीय अजुनके समान परा मी ह, बाण चलानेम अ य त फुत रखनेके कारण जो श ु के लये काल, अ तक और यमके समान भयंकर ह; महाराज! जनके श के तापसे सम त भूपाल नतम तक हो आपके य म ा ण क सेवाके लये उप थत ए थे, उ ह इन दे व-दानवपू जत पु ष सह अजुनको च ताम न दे खकर आप श ु पर ोध य नह करते? ।। २४—२६ ।। ् वा वनगतं पाथम ःखाह सुखो चतम् ।। २७ ।। न च ते वधते म यु तेन मु म भारत । भारत! ःखके अयो य और सुख भोगनेके यो य अजुनको वनम ःख भोगते दे खकर भी जो श ु के त आपका ोध नह उमड़ता, इससे म मो हत हो रही ँ ।। २७ ।। यो दे वां मनु यां सपा ैकरथोऽजयत् ।। २८ ।। तं ते वनगतं ् वा क मा म युन वधते । ज ह ने एकमा रथक सहायतासे दे वता , मनु य और नाग पर वजय पायी है, उ ह अजुनको वनवासका ःख भोगते दे ख आपका ोध य नह बढ़ता? ।। २८ ।। यो यानैर ताकारैहयैनागै संवृतः ।। २९ ।। स व ा याद पा थवे यः परंतप । प येकेन वेगेन प चबाणशता न यः ।। ३० ।। तं ते वनगतं ् वा क मा म युन वधते । परंतप! ज ह ने परा जत नरेश के दये ए अ त आकारवाले रथ , घोड़ और हा थय से घरे ए कतने ही राजा से बलपूवक धन लये थे, जो एक ही वेगसे पाँच सौ बाण का हार करते ह, उ ह अजुनको वनवासका क भोगते दे ख श ु पर आपका ोध य नह बढ़ता? ।। २९-३० ।। यामं बृह तं त णं च मणामु मं रणे ।। ३१ ।। नकुलं ते वने ् वा क मा म युन वधते ।









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जो यु म ढाल और तलवारसे लड़नेवाले वीर म सव े है, जनक कद ऊँची है तथा जो यामवणके त ण ह, उ ह नकुलको आज वनम क उठाते दे खकर आपको ोध य नह होता? ।। ३१ ।। दशनीयं च शूरं च मा पु ं यु ध र ।। ३२ ।। सहदे वं वने ् वा क मात् म स पा थव । महाराज यु ध र! मा के परम सु दर पु शूरवीर सहदे वको वनवासका ःख भोगते दे खकर आप श ु को मा कैसे कर रहे ह? ।। ३२ ।। नकुलं सहदे वं च ् वा ते ःखतावुभौ ।। ३३ ।। अ ःखाह मनु ये क मा म युन वधते । नरे ! नकुल और सहदे व ःख भोगनेके यो य नह ह। इन दोन को आज ःखी दे खकर आपका ोध य नह बढ़ रहा है? ।। ३३ ।। पद य कुले जातां नुषां पा डोमहा मनः ।। ३४ ।। धृ ु न य भ गन वीरप नीमनु ताम् । मां वै वनगतां ् वा क मात् म स पा थव ।। ३५ ।। म पदके कुलम उ प ई महा मा पा डु क पु वधू, वीर धृ ु नक ब हन तथा वीर शरोम ण पा डव क प त ता प नी ँ। महाराज! मुझे इस कार वनम क उठाती दे खकर भी आप श ु के त माभाव कैसे धारण करते ह? ।। ३४-३५ ।। नूनं च तव वै ना त म युभरतस म । यत् ते ातॄं मां चैव ् वा न थते मनः ।। ३६ ।। भरत े ! न य ही आपके दयम ोध नह है, य क मुझे और अपने भाइय को भी क म पड़ा दे ख आपके मनम था नह होती है! ।। ३६ ।। न नम युः योऽ त लोके नवचनं मृतम् । तद व य प या म ये वपरीतवत् ।। ३७ ।। संसारम कोई भी य ोधर हत नह होता, य श दक ु प ही ऐसी है, जससे उसका स ोध होना सू चत होता है।* परंतु आज आप-जैसे यम मुझे यह ोधका अभाव य वके वपरीत-सा दखायी दे ता है ।। ३७ ।। यो न दशयते तेजः यः काल आगते । सवभूता न तं पाथ सदा प रभव युत ।। ३८ ।। कु तीन दन! जो य समय आनेपर अपने भावको नह दखाता, उसका सब ाणी सदा तर कार करते ह ।। ३८ ।। तत् वया न मा काया श ून् त कथंचन । तेजसैव ह ते श या नह तुं ना संशयः ।। ३९ ।। महाराज! आपको श ु के त कसी कार भी माभाव नह धारण करना चा हये। तेजसे ही उन सबका वध कया जा सकता है, इसम त नक भी संशय नह है ।। ३९ ।। ै



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तथैव यः माकाले यो नोपशा य त । अ यः सवभूतानां सोऽमु ेह च न य त ।। ४० ।। इसी कार जो य मा करनेके यो य समय आनेपर शा त नह होता, वह सब ा णय के लये अ य हो जाता है और इहलोक तथा परलोकम भी उसका वनाश ही होता है ।। ४० ।। ीमहाभारते वनपव ण अजुना भगमनपव ण ौपद प रतापवा ये स त वशोऽ यायः ।। २७ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत अजुना भगमनपवम ौपद के अनुतापपूणवचन वषयक स ाईसवाँ अ याय पूरा आ ।। २७ ।।

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का रण—नाश करता है, वह

य है।

अ ा वशोऽ यायः ौपद ारा

ाद-ब ल-संवादका वणन—तेज और माके अवसर

ौप ुवाच अ ा युदाहर तीम म तहासं पुरातनम् । ाद य च संवादं बलेवरोचन य च ।। १ ।। ौपद कहती है—महाराज! इस वषयम ाद तथा वरोचनपु ब लके संवाद प इस ाचीन इ तहासका उदाहरण दया करते ह ।। १ ।। असुरे ं महा ा ं धमाणामागतागमम् । ब लः प छ दै ये ं ादं पतरं पतुः ।। २ ।। असुर के वामी परम बु मान् दै यराज ाद सभी धम के रह यको जाननेवाले थे। एक समय ब लने उन अपने पतामह ादजीसे पूछा ।। २ ।। ब ल वाच मा व े यसी तात उताहो तेज इ युत । एत मे संशयं तात यथावद् ू ह पृ छते ।। ३ ।। ब लने पूछा—तात! मा और तेजमसे मा े है अथवा तेज? यह मेरा संशय है। म इसका समाधान पूछता ँ। आप इस का यथाथ नणय क जये ।। ३ ।। ेयो यद धम ू ह मे तदसंशयम् । क र या म ह तत् सव यथावदनुशासनम् ।। ४ ।। धम ! इनम जो े है, वह मुझे अव य बताइये, म आपके सब आदे श का यथावत् पालन क ँ गा ।। ४ ।। त मै ोवाच तत् सवमेवं पृ ः पतामहः । सव न य वत् ा ः संशयं प रपृ छते ।। ५ ।। ब लके इस कार पूछनेपर सम त स ा त के ाता व ान् पतामह ादने संदेह नवारण करनेके लये पूछनेवाले पौ के त इस कार कहा ।। ५ ।। ाद उवाच न ेयः सततं तेजो न न यं ेयसी मा । इ त तात वजानी ह यमेतदसंशयम् ।। ६ ।। ाद बोले—तात! न तो तेज ही सदा े है और न मा ही। इन दोन के वषयम मेरा ऐसा ही न य जानो, इसम संशय नह है ।। ६ ।। यो न यं मते तात बन् दोषान् स व द त । भृ याः प रभव येनमुदासीना तथारयः ।। ७ ।।

सवभूता न चा य य न नम त कदाचन । त मा यं मा तात प डतैर प व जता ।। ८ ।। व स! जो सदा मा ही करता है, उसे अनेक दोष ा त होते ह। उसके भृ य, श ु तथा उदासीन सभी उसका तर कार करते ह। कोई भी ाणी कभी उसके सामने वनयपूण बताव नह करते, अतः तात! सदा मा करना व ान के लये भी वजत है ।। ७-८ ।। अव ाय ह तं भृ या भज ते ब दोषताम् । आदातुं चा य व ा न ाथय तेऽ पचेतसः ।। ९ ।। सेवकगण उसक अवहेलना करके ब त-से अपराध करते रहते ह। इतना ही नह , वे मूख भृ यगण उसके धनको भी हड़प लेनेका हौसला रखते ह ।। ९ ।। यानं व ा यलंकारा छयना यासना न च । भोजना यथ पाना न सव पकरणा न च ।। १० ।। आदद र धकृता यथाकाममचेतसः । द ा न च दे या न न द ुभतृशासनात् ।। ११ ।। व भ काय म नयु कये ए मूख सेवक अपने इ छानुसार माशील वामीके रथ, व , अलंकार, शया, आसन, भोजन, पान तथा सम त साम य का उपयोग करते रहते ह तथा वामीक आ ा होनेपर भी कसीको दे नेयो य व तुएँ नह दे ते ह ।। १०-११ ।। न चैनं भतृपूजा भः पूजय त कथंचन । अव ानं ह लोकेऽ मन् मरणाद प ग हतम् ।। १२ ।। वामीका जतना आदर होना चा हये, उतना आदर वे कसी कार भी नह करते। इस संसारम सेवक ारा अपमान तो मृ युसे भी अ धक न दत है ।। १२ ।। मणं ता शं तात ुव त कटु का य प । े याः पु ा भृ या तथोदासीनवृ यः ।। १३ ।। तात! उपयु माशीलको अपने सेवक, पु , भृ य तथा उदासीनवृ के लोग कटु वचन भी सुनाया करते ह ।। १३ ।। अथा य दारा न छ त प रभूय मावतः । दारा ा य वत ते यथाकाममचेतसः ।। १४ ।। इतना ही नह , वे माशील वामीक अवहेलना करके उसक य को भी ह तगत करना चाहते ह और वैसे पु षक मूख याँ भी वे छाचारम वृ हो जाती ह ।। १४ ।। तथा च न यमु दता य द ना पमपी रात् । द डमह त य त ा ा यपकुवते ।। १५ ।। य द उ ह अपने वामीसे त नक भी द ड नह मलता तो वे सदा मौज उड़ाती ह और आचारसे षत हो जाती ह। ा होनेपर वे अपने वामीका अपकार भी कर बैठती ह ।। १५ ।। एते चा ये च बहवो न यं दोषाः मावताम् । ै ो े ो

अथ वैरोचने दोषा नमान् व मावताम् ।। १६ ।। सदा मा करनेवाले पु ष को ये तथा और भी ब त-से दोष ा त होते ह। वरोचनकुमार! अब मा न करनेवाल के दोष को सुनो ।। १६ ।। अ थाने य द वा थाने सततं रजसाऽऽवृतः । ु ो द डान् णय त व वधान् वेन तेजसा ।। १७ ।। ोधी मनु य रजोगुणसे आवृत होकर यो य या अयो य अवसरका वचार कये बना ही अपने उ े जत वभावसे लोग को नाना कारके द ड दे ता रहता है ।। १७ ।। म ैः सह वरोधं च ा ुते तेजसाऽऽवृतः । आ ो त े यतां चैव लोकात् वजनत तथा ।। १८ ।। तेज (उ ेजना)-से ा त मनु य म से वरोध पैदा कर लेता है तथा साधारण लोग और वजन का े षपा बन जाता है ।। १८ ।। सोऽवमानादथहा नमुपाल भमनादरम् । संताप े षमोहां श ूं लभते नरः ।। १९ ।। वह मनु य सर का अपमान करनेके कारण सदा धनक हा न उठाता है। उपाल भ सुनता और अनादर पाता है। इतना ही नह , वह संताप, े ष, मोह तथा नये-नये श ु पैदा कर लेता है ।। १९ ।। ोधाद् द डा मनु येषु व वधान् पु षोऽनयात् । यते शी मै यात् ाणे यः वजनाद प ।। २० ।। मनु य ोधवश अ यायपूवक सरे लोग पर नाना कारके द डका योग करके अपने ऐ य, ाण और वजन से भी हाथ धो बैठता है ।। २० ।। योपकतॄ हतॄ तेजसैवोपग छ त । त मा जते लोकः सपाद् वे मगता दव ।। २१ ।। जो उपकारी मनु य और चोर के साथ भी उ ेजनायु बताव ही करता है, उससे सब लोग उसी कार उ न होते ह, जैसे घरम रहनेवाले सपसे ।। २१ ।। य मा जते लोकः कथं त य भवो भवेत् । अ तरं त य ् वैव लोको वकु ते ुवम् ।। २२ ।। जससे सब लोग उ न होते ह, उसे ऐ यक ा त कैसे हो सकती है? उसका थोड़ा-सा भी छ दे खकर लोग न य ही उसक बुराई करने लगते ह ।। २२ ।। त मा ा यु सृजेत् तेजो न च न यं मृ भवेत् । काले काले तु स ा ते मृ ती णोऽ प वा भवेत् ।। २३ ।। इस लये न तो सदा उ ेजनाका ही योग करे और न सवदा कोमल ही बना रहे। समय-समयपर आव यकताके अनुसार कभी कोमल और कभी तेज वभाववाला बन जाय ।। २३ ।। काले मृ य भव त काले भव त दा णः । स वै सुखमवा ो त लोकेऽमु म हैव च ।। २४ ।। ो ौ







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जो मौका दे खकर कोमल होता है और उपयु अवसर आनेपर भयंकर भी बन जाता है, वही इहलोक और परलोकम सुख पाता है ।। २४ ।। माकालां तु व या म शृणु मे व तरेण तान् । ये ते न यमसं या या यथा ा मनी षणः ।। २५ ।। अब म तु ह माके यो य अवसर बताता ँ, उ ह व तारपूवक सुनो, जैसा क मनीषी पु ष कहते ह, उन अवसर का तु ह कभी याग नह करना चा हये ।। २५ ।। पूव पकारी य ते यादपराधे गरीय स । उपकारेण तत् त य त मपरा धनः ।। २६ ।। जसने पहले कभी तु हारा उपकार कया हो, उससे य द कोई भारी अपराध हो जाय, तो भी पहलेके उपकारका मरण करके उस अपराधीके अपराधको तु ह मा कर दे ना चा हये ।। २६ ।। अबु मा तानां तु त मपरा धनाम् । न ह सव पा ड यं सुलभं पु षेण वै ।। २७ ।। ज ह ने अनजानम अपराध कर डाला हो, उनका वह अपराध माके ही यो य है; य क कसी भी पु षके लये सव व ा (बु मानी) ही सुलभ हो, यह स भव नह है ।। २७ ।। अथ चेद ् बु जं कृ वा ूयु ते तदबु जम् । पापान् व पेऽ प तान् ह यादपराधे तथानृजून् ।। २८ ।। परंतु जो जान-बूझकर कये ए अपराधको भी उसे कर लेनेके बाद अनजानम कया आ बताते ह , उन उद्द ड पा पय को थोड़े-से अपराधके लये भी अव य द ड दे ना चा हये ।। २८ ।। सव यैकोऽपराध ते त ः ा णनो भवेत् । तीये स त व य तु व पेऽ यपकृते भवेत् ।। २९ ।। सभी ा णय का एक अपराध तो तु ह मा ही कर दे ना चा हये। य द उससे फर बारा अपराध बन जाय तो थोड़े-से अपराधके लये भी उसे द ड दे ना आव यक है ।। २९ ।। अजानता भवेत् क दपराधः कृतो य द । त मेव त या ः सुपरी य परी या ।। ३० ।। अ छ तरह जाँच-पड़ताल करनेपर य द यह स हो जाय क अमुक अपराध अनजानम ही हो गया है, तो उसे माके ही यो य बताया गया है ।। ३० ।। मृ ना दा णं ह त मृ ना ह यदा णम् । नासा यं मृ ना क चत् त मात् ती तरं मृ ।। ३१ ।। मनु य कोमलभाव (सामनी त)-के ारा उ वभाव तथा शा त वभावके श ुका भी नाश कर दे ता है; मृ तासे कुछ भी असा य नह है। अतः मृ तापूण नी तको ती तर (उ म) समझे ।। ३१ ।। दे शकालौ तु स े य बलाबलमथा मनः । े े े ौ ी

नादे शकाले क चत् याद् दे शकालौ ती ताम् । तथा लोकभया चैव त मपरा धनः ।। ३२ ।। दे श, काल तथा अपने बलाबलका वचार करके ही मृ ता (सामनी त)-का योग करना चा हये। अयो य दे श अथवा अनुपयु कालम उसके योगसे कुछ भी स नह हो सकता; अतः उपयु दे श, कालक ती ा करनी चा हये। कह लोकके भयसे भी अपराधीको मादान दे नेक आव यकता होती है ।। ३२ ।। एत एवं वधाः कालाः मायाः प रक तताः । अतोऽ यथानुवत सु तेजसः काल उ यते ।। ३३ ।। इस कार ये माके अवसर बताये गये ह। इनके वपरीत बताव करनेवाल को राहपर लानेके लये तेज (उ ेजनापूण बताव)-का अवसर कहा गया है ।। ३३ ।। तदहं तेजसः कालं तव म ये नरा धप । धातरा ेषु लुधेषु सततं चापका रषु ।। ३४ ।। ( ौपद कहती है—) नरे र! धृतराक े पु लोभी तथा सदा आपका अपकार करनेवाले ह; अतः उनके त आपके तेजके योगका यह अवसर आया है, ऐसा मेरा मत है ।। ३४ ।। न ह क त् माकालो व तेऽ कु न् त । तेजस ागते काले तेज उ ु मह स ।। ३५ ।। कौरव के त अब माका कोई अवसर नह है। अब तेज कट करनेका अवसर ा त है; अतः उनपर आपको अपने तेजका ही योग करना चा हये ।। ३५ ।। मृ भव यव ात ती णा जते जनः । काले ा ते यं चैतद् यो वेद स महीप तः ।। ३६ ।। कोमलतापूण बताव करनेवालेक सब लोग अवहेलना करते ह और ती ण वभाववाले पु षसे सबको उ े ग ा त होता है। जो उ चत अवसर आनेपर इन दोन का योग करना जानता है, वही सफल भूपाल है ।। ३६ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण अजुना भगमनपव ण ौपद वा येऽ ा वशोऽ यायः ।। २८ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत अजुना भगमनपवम ौपद वा य वषयक अाईसवाँ अ याय पूरा आ ।। २८ ।।

एकोन शोऽ यायः यु ध रके ारा

ोधक न दा और शंसा

माभावक वशेष

यु ध र उवाच ोधो ह ता मनु याणां ोधो भाव यता पुनः । इ त व महा ा े ोधमूलौ भवाभवौ ।। १ ।। यु ध र बोले—परम बु मती ौपद ! ोध ही मनु य को मारनेवाला है और ोध ही य द जीत लया जाय तो अ युदय करनेवाला है। तुम यह जान लो क उ त और अवन त दोन ोधमूलक ही ह ( ोधको जीतनेसे उ त और उसके वशीभूत होनेसे अवन त होती है) ।। १ ।। यो ह संहरते ोधं भव त य सुशोभने । यः पुनः पु षः ोधं न यं न सहते शुभे । त याभावाय भव त ोधः परमदा णः ।। २ ।। सुशोभने! जो ोधको रोक लेता है, उसक उ त होती है और जो मनु य ोधके वेगको कभी सहन नह कर पाता, उसके लये वह परम भयंकर ोध वनाशकारी बन जाता है ।। २ ।। ोधमूलो वनाशो ह जाना मह यते । तत् कथं मा शः ोधमु सृजे लोकनाशनम् ।। ३ ।। इस जगत्म ोधके कारण लोग का नाश होता दखायी दे ता है; इस लये मेरे-जैसा मनु य लोक वनाशक ोधका उपयोग सर पर कैसे करेगा? ।। ३ ।। ु ः पापं नरः कुयात् ु ो ह याद् गु न प । ु ः प षया वाचा ेयसोऽ यवम यते ।। ४ ।। ोधी मनु य पाप कर सकता है, ोधके वशीभूत मानव गु जन क भी ह या कर सकता है और ोधम भरा आ पु ष अपनी कठोर वाणी ारा े मनु य का भी अपमान कर दे ता है ।। ४ ।। वा यावा ये ह कु पतो न जाना त क ह चत् । नाकायम त ु य नावा यं व ते तथा ।। ५ ।। ोधी मनु य कभी यह नह समझ पाता क या कहना चा हये और या नह । ोधीके लये कुछ भी अकाय अथवा अवा य नह है ।। ५ ।। ह यात् ोधादव यां तु व यान् स पूजयीत च । आ मानम प च ु ः ेषयेद ् यमसादनम् ।। ६ ।। ोधवश वह अव य पु ष क भी ह या कर सकता है और वधके यो य मनु य क भी पूजाम त पर हो सकता है। इतना ही नह , ोधी मानव (आ मह या ारा) अपने-आपको ी





भी यमलोकका अ त थ बना सकता है ।। ६ ।। एतान् दोषान् प य जतः ोधो मनी ष भः । इ छ ः परमं ेय इह चामु चो मम् ।। ७ ।। इन दोष को दे खनेवाले मन वी पु ष ने, जो इहलोक और परलोकम भी परम उ म क याणक इ छा रखते ह, ोधको जीत लया है ।। ७ ।। तं ोधं व जतं धीरैः कथम म ध रेत् । एतद् ौप द संधाय न मे म युः वधते ।। ८ ।। अतः धीर पु ष ने जसका प र याग कर दया है। उस ोधको मेरे-जैसा मनु य कैसे उपयोगम ला सकता है? पदकुमारी! यही सोचकर मेरा ोध कभी बढ़ता नह है ।। ८ ।। आ मानं च परां ैव ायते महतो भयात् । ु य तम त ु यन् योरेष च क सकः ।। ९ ।। ोध करनेवाले पु षके त जो बदलेम ोध नह करता, वह अपनेको और सर को भी महान् भयसे बचा लेता है। वह अपने और पराये दोन के दोष को र करनेके लये च क सक बन जाता है ।। ९ ।। मूढो य द ल यमानः ु यतेऽश मान् नरः । बलीयसां मनु याणां यज या मानमा मना ।। १० ।। य द मूढ़ एवं असमथ मनु य सर के ारा लेश दये जानेपर वयं भी ब ल मनु य पर ोध करता है तो वह अपने ही ारा अपने-आपका वनाश कर दे ता है ।। १० ।। त या मानं सं यजतो लोका न य यना मनः । त माद् ौप श य म यो नयमनं मृतम् ।। ११ ।। अपने च को वशम न रखनेके कारण ोधवश दे ह याग करनेवाले उस मनु यके लोक और परलोक दोन न हो जाते ह। अतः पदकुमारी! असमथके लये अपने ोधको रोकना ही अ छा माना गया है ।। ११ ।। व ां तथैव यः श ः ल यमानो न कु य त । अनाश य वा ले ारं परलोके च न द त ।। १२ ।। इसी कार जो व ान् पु ष श शाली होकर भी सर ारा लेश दये जानेपर वयं ोध नह करता, वह लेश दे नेवालेका नाश न करके परलोकम भी आन दका भागी होता है ।। १२ ।। त माद् बलवता चैव बलेन च न यदा । त ं पु षेणा राप व प वजानता ।। १३ ।। इस लये बलवान् या नबल सभी व मनु य को सदा आप कालम भी माभावका ही आ य लेना चा हये ।। १३ ।। म यो ह वजयं कृ णे शंस तीह साधवः । मावतो जयो न यं साधो रह सतां मतम् ।। १४ ।। े















कृ णे! साधु पु ष ोधको जीतनेक ही शंसा करते ह। संत का यह मत है क इस जगत्म माशील साधु पु षक सदा जय होती है ।। १४ ।। स यं चानृततः ेयो नृशं या चानृशंसता । तमेवं ब दोषं तु ोधं साधु वव जतम् ।। १५ ।। मा शः सृजेत् क मात् सुयोधनवधाद प । झूठसे स य े है। ू रतासे दयालुता े है, अतः य धन मेरा वध कर डाले तो भी इस कार अनेक दोष से भरे ए और स पु ष ारा प र य ोधका मेरे-जैसा पु ष कैसे उपयोग कर सकता है? ।। १५ ।। तेज वी त यमा व प डता द घद शनः ।। १६ ।। न ोधोऽ य तर त य भवती त व न तम् । रदश व ान् जसे तेज वी कहते ह, उसके भीतर ोध नह होता; यह न त बात है ।। १६ ।। य तु ोधं समु प ं या तबाधते ।। १७ ।। तेज वनं तं व ांसो म य ते त वद शनः । जो उ प ए ोधको अपनी बु से दबा दे ता है, उसे त वदश व ान् तेज वी मानते ह ।। १७ ।। ु ो ह काय सु ो ण न यथावत् प य त । नाकाय न च मयादां नरः ु ोऽनुप य त ।। १८ ।। सु दरी! ोधी मनु य कसी कायको ठ क-ठ क नह समझ पाता। वह यह भी नह जानता क मयादा या है (अथात् या करना चा हये) और या नह करना चा हये ।। १८ ।। ह यव यान प ु ो गु न् ु तुद य प । त मात् तेज स कत ः ोधो रे त तः ।। १९ ।। ोधी मनु य अव य पु ष का वध कर दे ता है। ोधी मनु य गु जन को कटु वचन ारा पीड़ा प ँचाता है। इस लये जसम तेज हो, उस पु षको चा हये क वह ोधको अपनेसे र रखे ।। १९ ।। दा यं मषः शौय च शी व म त तेजसः । गुणा! ोधा भभूतेन न श याः ा तुम सा ।। २० ।। द ता, अमष, शौय और शी ता—ये तेजके गुण ह। जो मनु य ोधसे दबा आ है, वह इन गुण को सहजम ही नह पा सकता ।। २० ।। ोधं य वा तु पु षः स यक् तेजोऽ भप ते । कालयु ं महा ा े ु ै तेजः सु ःसहम् ।। २१ ।। ोधका याग करके मनु य भलीभाँ त तेज ा त कर लेता है। महा ा े! ोधी पु ष के लये समयके उपयु तेज अ य त ःसह है ।। २१ ।। ोध वप डतैः श त् तेज इ य भ न तम् । ो

रज तु लोकनाशाय व हतं मानुषं त ।। २२ ।। मूखलोग ोधको ही सदा तेज मानते ह। पर तु रजोगुणज नत ोधका य द मनु य के त योग हो तो वह लोग के नाशका कारण होता है ।। २२ ।। त मा छ त् यजेत् ोधं पु षः स यगाचरन् । ेयान् वधमानपगो न ु इ त न तम् ।। २३ ।। अतः सदाचारी पु ष सदा ोधका प र याग करे। अपने वणधमके अनुसार न चलनेवाला मनु य (अपे ाकृत) अ छा, कतु ोधी नह अ छा—यह न य है ।। २३ ।। य द सवमबु नाम त ा तमचेतसाम् । अ त मो म ध य कथं वत् याद न दते ।। २४ ।। सा वी ौपद ! य द मूख और अ ववेक मनु य मा आ द सद्गुण का उ लंघन कर जाते ह तो मेरे-जैसा व पु ष उनका अ त मण कैसे कर सकता है? ।। २४ ।। य द न युमानुषेषु मणः पृ थवीसमाः । न यात् सं धमनु याणां ोधमूलो ह व हः ।। २५ ।। य द मनु य म पृ वीके समान माशील पु ष न ह तो मानव म कभी स ध हो ही नह सकती; य क झगड़ेक जड़ तो ोध ही है ।। २५ ।। अ भष ो भषजेदाह याद् गु णा हतः । एवं वनाशो भूतानामधमः थतो भवेत् ।। २६ ।। य द कोई अपनेको सतावे तो वयं भी उसको सतावे। और क तो बात ही या है, य द गु जन अपनेको मार तो उ ह भी मारे बना न छोड़े; ऐसी धारणा रखनेके कारण सब ा णय का ही वनाश हो जाता है और अधम बढ़ जाता है ।। २६ ।। आ ु ः पु षः सव या ोशेदन तरम् । तह या त ैव तथा ह या च ह सतः ।। २७ ।। य द सभी ोधके वशीभूत हो जायँ तो एक मनु य सरेके ारा गाली खाकर वयं भी बदलेम उसे गाली दे सकता है। मार खानेवाला मनु य बदलेम मार सकता है। एकका अ न होनेपर वह सरेका भी अ न कर सकता है ।। २७ ।। ह यु ह पतरः पु ान् पु ा ा प तथा पतॄन् । ह यु पतयो भायाः पतीन् भाया तथैव च ।। २८ ।। पता पु को मारगे और पु पताको, प त प नय को मारगे और प नयाँ प तको ।। २८ ।। एवं संकु पते लोके शमः कृ णे न व ते । जानां सं धमूलं ह शमं व शुभानने ।। २९ ।। कृ णे! इस कार स पूण जगत्के ोधका शकार हो जानेपर तो कह शा त नह रहती। शुभानने! तुम यह जान लो क स पूण जाक शा त स धमूलक ही है ।। २९ ।। ताः पेरन् जाः सवाः ं ौप द ता शे । त मा म यु वनाशाय जानामभवाय च ।। ३० ।। ौ



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ौपद ! य द राजा तु हारे कथनानुसार ोधी हो जाय तो सारी जा का शी ही नाश हो जायगा। अतः यह समझ लो क ोध जावगके नाश और अवन तका कारण है ।। ३० ।। य मात् तु लोके य ते मणः पृ थवीसमाः । त मा ज म च भूतानां भव तप ते ।। ३१ ।। इस जगत्म पृ वीके समान माशील पु ष भी दे खे जाते ह, इसी लये ा णय क उ प और वृ होती रहती है ।। ३१ ।। त ं पु षेणेह सवाप सु सुशोभने । मावतो ह भूतानां ज म चैव क ततम् ।। ३२ ।। सुशोभने! पु षको सभी आप य म माभाव रखना चा हये। माशील पु षसे ही सम त ा णय का जीवन बताया गया है ।। ३२ ।। आ ु ता डतः ु ः मते यो बलीयसा । य न यं जत ोधो व ानु मपू षः ।। ३३ ।। जो बलवान् पु षके गाली दे ने या कु पत होकर मारनेपर भी मा कर जाता है तथा जो सदा अपने ोधको काबूम रखता है, वही व ान् है और वही े पु ष है ।। ३३ ।। भाववान प नर त य लोकाः सनातनाः । ोधन व प व ानः े य चेह च न य त ।। ३४ ।। वही मनु य भावशाली कहा जाता है। उसीको सनातन लोक ा त होते ह। ोधी मनु य अ प होता है। वह इस लोक और परलोक दोन म वनाशका ही भागी होता है ।। ३४ ।। अ ा युदाहर तीमा गाथा न यं मावताम् । गीताः मावता कृ णे का यपेन महा मना ।। ३५ ।। इस वषयम जानकार लोग मावान् पु ष क गाथाका उदाहरण दे ते ह। कृ णे! मावान् महा मा का यपने इस गाथाका गान कया है ।। ३५ ।। मा धमः मा य ः मा वेदाः माः ुतम् । य एतदे वं जाना त स सव तुमह त ।। ३६ ।। मा धम है, मा य है, मा वेद है और मा शा है। जो इस कार जानता है, वह सब कुछ मा करनेके यो य हो जाता है ।। ३६ ।। मा मा स यं मा भूतं च भा व च । मा तपः मा शौचं मयेदं धृतं जगत् ।। ३७ ।। मा है, मा स य है, मा भूत है, मा भ व य है, मा तप है और मा शौच है। माने ही स पूण जगत्को धारण कर रखा है ।। ३७ ।। अ त य वदां लोकान् मणः ा ुव त च । अत वदां लोकान त चा प तप वनाम् ।। ३८ ।। माशील मनु य य वे ा, वे ा और तप वी पु ष से भी ऊँचे लोक ा त करते ह ।। ३८ ।। े ै ो े

अ ये वै यजुषां लोकाः क मणामपरे तथा । मावतां लोके लोकाः परमपू जताः ।। ३९ ।। (सकामभावसे) य कम का अनु ान करनेवाले पु ष के लोक सरे ह एवं (सकामभावसे) वापी, कूप, तडाग और दान आ द कम करनेवाले मनु य के लोक सरे ह। परंतु मावान के लोक लोकके अ तगत ह; जो अ य त पू जत ह ।। ३९ ।। मा तेज वनां तेजः मा तप वनाम् । मा स यं स यवतां मा य ः मा शमः ।। ४० ।। मा तेज वी पु ष का तेज है, मा तप वय का है, मा स यवाद पु ष का स य है। मा य है और मा शम (मनो न ह) है ।। ४० ।। तां मां ता श कृ णे कथम म ध यजेत् । य यां च स यं च य ा लोका ध ताः ।। ४१ ।। कृ णे! जसका मह व ऐसा बताया गया है, जसम , स य, य और लोक सभी त त ह, उस माको मेरे-जैसा मनु य कैसे छोड़ सकता है ।। ४१ ।। त मेव सततं पु षेण वजानता । यदा ह मते सव स प ते तदा ।। ४२ ।। व ान् पु षको सदा माका ही आ य लेना चा हये। जब मनु य सब कुछ सहन कर लेता है, तब वह भावको ा त हो जाता है ।। ४२ ।। मावतामयं लोकः पर ैव मावताम् । इह स मानमृ छ त पर च शुभां ग तम् ।। ४३ ।। मावान के लये ही यह लोक है। मावान के लये ही परलोक है। माशील पु ष इस जगत्म स मान और परलोकम उ म ग त पाते ह ।। ४३ ।। येषां म युमनु याणां मया भहतः सदा । तेषां परतरे लोका त मात् ा तः परा मता ।। ४४ ।। जन मनु य का ोध सदा माभावसे दबा रहता है, उ ह सव म लोक ा त होते ह। अतः मा सबसे उ कृ मानी गयी है ।। ४४ ।। इ त गीताः का यपेन गाथा न यं मावताम् । ु वा गाथाः माया वं तु य ौप द मा ु धः ।। ४५ ।। इस कार का यपजीने न य माशील पु ष क इस गाथाका गान कया है। ौपद ! माक यह गाथा सुनकर संतु हो जाओ, ोध न करो ।। ४५ ।। पतामहः शा तनवः शमं स पूज य य त । कृ ण दे वक पु ः शमं स पूज य य त ।। ४६ ।। मेरे पतामह शा तनुन दन भी म शा तभावका ही आदर करगे। दे वक न दन ीकृ ण भी शा तभावका ही आदर करगे ।। ४६ ।। आचाय व रः ा शममेव व द यतः । कृप संजय ैव शममेव व द यतः ।। ४७ ।। ो





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आचाय ोण और व र भी शा तको ही अ छा कहगे। कृपाचाय और संजय भी शा त रहना ही अ छा बतायगे ।। ४७ ।। सोमद ो युयु सु ोणपु तथैव च । पतामह नो ासः शमं वद त न यशः ।। ४८ ।। सोमद , युयु सु, अ थामा तथा हमारे पतामह ास भी सदा शा तका ही उपदे श दे ते ह ।। ४८ ।। एतै ह राजा नयतं चो मानः शमं त । रा यं दाते त मे बु न चे लोभा श य त ।। ४९ ।। ये सब लोग य द राजा धृतराको सदा शा तके लये े रत करते रहगे तो वे अव य मुझे रा य दे दगे, ऐसा मुझे व ास है। य द नह दगे तो लोभके कारण न हो जायँगे ।। ४९ ।। कालोऽयं दा णः ा तो भरतानामभूतये । न तं मे सदै वैतत् पुर ताद प भा व न ।। ५० ।। सुयोधनो नाहती त मामेवं न व द त । अह त ाह म येवं त मा मां व दते मा ।। ५१ ।। इस समय भरतवंशके वनाशके लये यह बड़ा भयंकर समय आ गया है। भा म न! मेरा पहलेसे ही ऐसा न त मत है क सुयोधन कभी भी इस कार मा-भावको नह अपना सकता, वह इसके यो य नह है। म इसके यो य ँ, इस लये मा मेरा ही आ य लेती है ।। एतदा मवतां वृ मेष धमः सनातनः । मा चैवानृशं यं च तत् कता यहम सा ।। ५२ ।। मा और दया यही जता मा पु ष का सदाचार है और यही सनातनधम है, अतः म यथाथ पसे मा और दयाको ही अपनाऊँगा ।। ५२ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण अजुना भगमनपव ण ौपद यु ध रसंवादे एकोन शोऽ यायः ।। २९ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत अजुना भगमनपवम ौपद यु ध रसंवाद वषयक उनतीसवाँ अ याय पूरा आ ।। २९ ।।

शोऽ यायः ःखसे मो हत ौपद का यु ध रक बु यायपर आ ेप

, धम एवं ई

रके

ौप ुवाच नमो था े वधा े च यौ मोहं च तु तव । पतृपैतामहे वृ े वोढ े तेऽ यथा म तः ।। १ ।। ौपद ने कहा—राजन्! उस धाता (ई र) और वधाता ( ार ध)-को नम कार ह, ज ह ने आपक बु म मोह उ प कर दया। पता- पतामह के आचारका भार वहन करनेम भी आपका वचार दखायी दे ता है ।। १ ।। कम भ ततो लोको ग यां ग यां पृथ वधः । त मात् कमा ण न या न लोभा मो ं ययास त ।। २ ।। नेह धमानृशं या यां न ा या नाजवेन च । पु षः यमा ो त न घृ ण वेन क ह चत् ।। ३ ।। कम के अनुसार उ म, म यम, अधम यो नम भ - भ लोक क ा त बतलायी गयी है, अतः कम न य ह (भोगे बना उन कम का य नह होता)। मूख लोग लोभसे ही मो पानेक इ छा रखते ह। इस जगत्म धम, कोमलता, मा, वनय और दयासे कोई भी मनु य कभी धन और ऐ यक ा त नह कर सकता ।। २-३ ।।

ौपद और भीमसेनका यु ध रसे संवाद वां च

सनम यागा ददं भारत ःसहम् । ी े े ौ

यत् वं नाह स नापीमे ातर ते महौजसः ।। ४ ।। भारत! इसी कारण तो आपपर भी यह ःसह संकट आ गया, जसके यो य न तो आप ह और न आपके महातेज वी ये भाई ही ह ।। ४ ।। न ह तेऽ यगम ातु तदान ना भारत । धमात् यतरं क चद प चे जी वता दह ।। ५ ।। भरतकुल तलक! आपके भाइय ने न तो पहले कभी और न आज ही धमसे अ धक य सरी कसी व तुको समझा है। अ पतु धमको जीवनसे भी बढ़कर माना है ।। ५ ।। धमाथमेव ते रा यं धमाथ जी वतं च ते । ा णा गुरव ैव जान या प च दे वताः ।। ६ ।। आपका रा य धमके लये ही है, आपका जीवन भी धमके लये ही है। ा ण, गु जन और दे वता सभी इस बातको जानते ह ।। ६ ।। भीमसेनाजुनौ चोभौ मा े यौ च मया सह । यजे व म त मे बु न तु धम प र यजेः ।। ७ ।। मुझे व ास है क आप मेरेस हत भीमसेन, अजुन और नकुल-सहदे वको भी याग दगे; कतु धमका याग नह करगे ।। ७ ।। राजानं धमगो तारं धम र त र तः । इ त मे ुतमायाणां वां तु म ये न र त ।। ८ ।। मने आय के मुँहसे सुना है क य द धमक र ा क जाय तो वह धमर क राजाक वयं भी र ा करता है। कतु मुझे मालूम होता है क वह आपक र ा नह कर रहा है ।। ८ ।। अन या ह नर ा न यदा धममेव ते । बु ः सततम वे त छायेव पु षं नजा ।। ९ ।। नर े ! जैसे अपनी छाया सदा मनु यके पीछे चलती है, उसी कार आपक बु सदा अन यभावसे धमका ही अनुसरण करती है ।। ९ ।। नावमं था ह स शान् नावरा े यसः कुतः । अवा य पृ थव कृ नां न ते शृ मवधत ।। १० ।। आपने अपने समान और अपनेसे छोट का भी कभी अपमान नह कया। फर अपनेसे बड़ का तो करते ही कैसे? सारी पृ वीका रा य पाकर भी आपका भुता वषयक अहंकार कभी नह बढ़ा ।। १० ।। वाहाकारैः वधा भ पूजा भर प च जान् । दै वता न पतॄं ैव सततं पाथ सेवसे ।। ११ ।। कु तीन दन! आप वाहा, वधा और पूजाके ारा दे वता , पतर और ा ण क सदा सेवा करते रहते ह ।। ११ ।। ा णाः सवकामै ते सततं पाथ त पताः । यतयो मो ण ैव गृह था ैव भारत ।। १२ ।। भु ते मपा ी भय ाहं प रचा रका । े ो ौ

आर यके यो लौहा न भाजना न य छ स । नादे यं ा णे य ते गृहे कचन व ते ।। १३ ।। पाथ! आपने ा ण क सम त कामनाएँ पूरी करके सदा उ ह तृ त कया है। भारत! आपके यहाँ मो ा भलाषी सं यासी तथा गृह थ ा ण सोनेके पा म भोजन करते थे। जहाँ वयं म अपने हाथ उनक सेवा-टहल करती थी। वान थ को भी आप सोनेके पा दया करते थे। आपके घरम कोई ऐसी व तु नह थी, जो ा ण के लये अदे य हो ।। १२-१३ ।। य ददं वै दे वं ते शा तये यते गृहे । तद् द वा त थभूते यो राज छ ेन जीव स ।। १४ ।। राजन्! आपके ारा शा तके लये जो घरम यह वै दे व कम कया जाता है, उसम अ त थय और ा णय के लये अ दे कर आप अव श अ के ारा जीवन- नवाह करते ह ।। १४ ।। इ यः पशुब धा का यनै म का ये । वत ते पाकय ा य कम च न यदा ।। १५ ।। इ (पूजा), पशुब ध (पशु को बाँधना), का य याग, नै म क याग, पाकय तथा न यय —ये सब भी आपके यहाँ बराबर चलते रहते ह ।। १५ ।। अ म प महार ये वजने द युसे वते । रा ादपे य वसतो धम ते नावसीद त ।। १६ ।। आप रा यसे नकलकर लुटेर ारा से वत इस नजन महावनम नवास कर रहे ह, तो भी आपका धमकाय कभी श थल नह आ है ।। १६ ।। अ मेधो राजसूयः पु डरीकोऽथ गोसवः । एतैर प महाय ै र ं ते भू रद णैः ।। १७ ।। अ मेध, राजसूय, पु डरीक तथा गोसव—इन सभी महाय का आपने चुर द णादानपूवक अनु ान कया है ।। १७ ।। राजन् परीतया बुा वषमेऽ पराजये । रा यं वसू यायुधा न ातॄन् मां चा स न जतः ।। १८ ।। परंतु महाराज! उस कपट ूतज नत पराजयके समय आपक बु वपरीत हो गयी, जसके कारण आप रा य, धन, आयुध तथा भाइय को और मुझे भी दावँपर रखकर हार गये ।। १८ ।। ऋजोमृदोवदा य य ीमतः स यवा दनः । कथम सनजा बु राप तता तव ।। १९ ।। आप सरल, कोमल, उदार, ल जाशील और स यवाद ह। न जाने कैसे आपक बु म जूआ खेलनेका सन आ गया ।। १९ ।। अतीव मोहमाया त मन प रभूयते । नशा य ते ःख मद ममां चापदमी शीम् ।। २० ।। े













आपके इस ःख और भयंकर वप को वचारकर मुझे अ य त मोह ा त हो रहा है और मेरा मन ःखसे पी ड़त हो रहा है ।। २० ।। अ ा युदाहर तीम म तहासं पुरातनम् । ई र य वशे लोका त ते ना मनो यथा ।। २१ ।। इस वषयम लोग इस ाचीन इ तहासका उदाहरण दे ते ह, जसम यह कहा गया है क सब लोग ई रके वशम ह, कोई भी वाधीन नह है ।। २१ ।। धातैव खलु भूतानां सुख ःखे या ये । दधा त सवमीशानः पुर ता छु मु चरन् ।। २२ ।। वधाता ई र ही सबके पूवकम के अनुसार ा णय के लये सुख- ःख, यअ यक व था करते ह ।। २२ ।। यथा दा मयी योषा नरवीर समा हता । ईरय य म ा न तथा राज माः जाः ।। २३ ।। नरवीर नरेश! जैसे कठपुतली सू धारसे े रत हो अपने अंग का संचालन करती है, उसी कार यह सारी जा ई रक ेरणासे अपने ह त-पाद आ द अंग ारा व वध चे ाएँ करती ह ।। २३ ।। आकाश इव भूता न ा य सवा ण भारत । ई रो वदधातीह क याणं य च पापकम् ।। २४ ।। भारत! ई र आकाशके समान स पूण ा णय म ा त होकर उनके कमानुसार सुखःखका वधान करते ह ।। २४ ।। शकु न त तुब ो वा नयतोऽयमनी रः । ई र य वशे त े ा येषां ना मनः भुः ।। २५ ।। जीव वत नह है, वह डोरेम बँधे ए प ीक भाँ त कमके ब धनम बँधा होनेसे परत है। वह ई रके ही वशम होता है। उसका न सर पर वश चलता है, न अपने ऊपर ।। २५ ।। म णः सू इव ोतो न योत इव गोवृषः । ोतसो म यमाप ः कूलाद् वृ इव युतः ।। २६ ।। धातुरादे शम वे त त मयो ह तदपणः । ना माधीनो मनु योऽयं कालं भज त कंचन ।। २७ ।। सूतम परोयी ई म ण, नाकम नथे ए बैल और कनारेसे टू टकर धाराके बीचम गरे ए वृ क भाँ त यह जीव सदा ई रके आदे शका ही अनुसरण करता है; य क वह उसीसे ा त और उसीके अधीन है। यह मनु य वाधीन होकर समयको नह बताता ।। अ ो ज तुरनीशोऽयमा मनः सुख ःखयोः । ई र े रतो ग छ े त् वग नरकमेव च ।। २८ ।। यह जीव अ ानी तथा अपने सुख- ःखके वधानम भी असमथ है। यह ई रसे े रत होकर ही वग एवं नरकम जाता है ।। २८ ।। यथा वायो तृणा ा ण वशं या त बलीयसः । े

धातुरेवं वशं या त सवभूता न भारत ।। २९ ।। भारत! जैसे ु तनके बलवान् वायुके वशम हो उड़ते- फरते ह, उसी कार सम त ाणी ई रके अधीन हो आवागमन करते ह ।। २९ ।। आय कम ण यु ानः पापे वा पुनरी रः । ा य भूता न चरते न चाय म त ल यते ।। ३० ।। कोई े कमम लगा आ हो चाहे पापकमम, ई र सभी ा णय म ा त होकर वचरते ह; कतु वे यही ह इस कार उनका ल य नह होता ।। ३० ।। हेतुमा मदं धातुः शरीरं े सं तम् । येन कारयते कम शुभाशुभफलं वभुः ।। ३१ ।। यह े सं क शरीर ई रका साधनमा है, जसके ारा वे सव ापी परमे र ा णय से वे छा- ार ध प शुभाशुभ फल भुगतानेवाले कम का अनु ान करवाते ह ।। ३१ ।। प य माया भावोऽयमी रेण यथा कृतः । यो ह त भूतैभूता न मोह य वाऽऽ ममायया ।। ३२ ।। ई रने जस कार इस मायाके भावका व तार कया है, उसे दे खये। वे अपनी माया ारा मो हत करके ा णय से ही ा णय का वध करवाते ह ।। ३२ ।। अ यथा प र ा न मु न भ त वद श भः । अ यथा प रवत ते वेगा इव नभ वतः ।। ३३ ।। त वदश मु नय ने व तु के व प कुछ और कारसे दे खे ह; कतु अ ा नय के सामने कसी और ही पम भा सत होते ह। जैसे आकाशचारी सूयक करण म भू मम पड़कर जलके पम तीत होने लगती ह ।। ३३ ।। अ यथैव ह म य ते पु षा ता न ता न च । अ यथैव भु ता न करो त वकरो त च ।। ३४ ।। लोग भ - भ व तु को भ - भ प म मानते ह; परंतु श शाली परमे र उ ह और ही पम बनाते और बगाड़ते ह ।। ३४ ।। यथा का ेन वा का म मानं चा मना पुनः । अयसा चा यय छ ा वचे मचेतनम् ।। ३५ ।। एवं स भगवान् दे वः वय भूः पतामहः । हन त भूतैभूता न छ क ृ वा यु ध र ।। ३६ ।। महाराज यु ध र! जैसे अचेतन एवं चे ार हत काठ, प थर और लोहेको मनु य काठ, प थर और लोहेसे ही काट दे ता है, उसी कार सबके पतामह वय भू भगवान् ीह र मायाक आड़ लेकर ा णय से ही ा णय का वनाश करते ह ।। ३५-३६ ।। स यो य वयो यायं कामकारकरः भुः । डते भगवान् भूतैबालः डनकै रव ।। ३७ ।। जैसे बालक खलौन से खेलता है, उसी कार वे छानुसार कम (भाँ त-भाँ तक लीलाएँ) करने-वाले श शाली भगवान् सब ा णय के साथ उनका पर पर संयोग- वयोग े ी े े

कराते ए लीला करते रहते ह ।। ३७ ।। न मातृ पतृवद् राजन् धाता भूतेषु वतते । रोषा दव वृ ोऽयं यथाय मतरो जनः ।। ३८ ।। राजन्! म समझती ँ, ई र सम त ा णय के त माता- पताके समान दया एवं नेहयु बताव नह कर रहे ह, वे तो सरे लोग क भाँ त मानो रोषसे ही वहार कर रहे ह ।। ३८ ।। आया छ लवतो ् वा ीमतो वृ क शतान् । अनायान् सुखन ैव व लामीव च तया ।। ३९ ।। य क जो लोग े , शीलवान् और संकोची ह, वे तो जी वकाके लये क पा रहे ह; कतु जो अनाय ( ) ह, वे सुख भोगते ह; यह सब दे खकर मेरी उ धारणा पु होती है और म च तासे व ल-सी हो रही ँ ।। ३९ ।। तवेमामापदं ् वा समृ च सुयोधने । धातारं गहये पाथ वषमं योऽनुप य त ।। ४० ।। कु तीन दन! आपक इस आप को तथा य धनक समृ को दे खकर म उस वधाताक न दा करती ँ, जो वषम से दे ख रहा है अथात् स जनको ःख और जनको सुख दे कर उ चत वचार नह कर रहा है ।। ४० ।। आयशा ा तगे ू रे लुधे धमापचा य न । धातरा े यं द वा धाता क फलमुते ।। ४१ ।। जो आयशा क आ ाका उ लंघन करनेवाला, ू र, लोभी तथा धमक हा न करनेवाला है, उस धृतरापु य धनको धन द े कर वधाता या फल पाता है? ।। ४१ ।। कम चेत् कृतम वे त कतारं ना यमृ छ त । कमणा तेन पापेन ल यते नूनमी रः ।। ४२ ।। य द कया आ कम कताका ही पीछा करता है, सरेके पास नह जाता, तब तो ई र भी उस पापकमसे अव य ल त ह गे ।। ४२ ।। अथ कम कृतं पापं न चेत् कतारमृ छ त । कारणं बलमेवेह जना छोचा म बलान् ।। ४३ ।। इसके वपरीत, य द कया आ पाप-कम कताको नह ा त होता तो इसका कारण यहाँ बल ही है (ई र श शाली ह, इसी लये उ ह पापकमका फल नह मलता होगा)। उस दशाम मुझे बल मनु य के लये शोक हो रहा है ।। ४३ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण अजुना भगमनपव ण ौपद वा ये शोऽ यायः ।। ३० ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत अजुना भगमनपवम ौपद वा य वषयक तीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ३० ।।

एक शोऽ यायः यु ध र ारा ौपद के आ ेपका समाधान तथा ई र, धम और महापु ष के आदरसे लाभ और अनादरसे हा न यु ध र उवाच व गु च पदं णं या से न वया वचः । उ ं त छतम मा भना त यं तु भाषसे ।। १ ।। यु ध र बोले—य सेनकुमारी! तुमने जो बात कही है, वह सुननेम बड़ी मनोहर, व च पदावलीसे सुशो भत तथा ब त सु दर है, मने उसे बड़े यानसे सुना है। परंतु इस समय तुम (अ ानसे) ना तक मतका तपादन कर रही हो ।। १ ।। नाहं कमफला वेषी राजपु चरा युत । ददा म दे य म येव यजे य म युत ।। २ ।। राजकुमारी! म कम के फलक इ छा रखकर उनका अनु ान नह करता; अ पतु ‘दे ना कत है’ यह समझकर दान दे ता ँ और य को भी कत मानकर ही उसका अनु ान करता ँ ।। २ ।। अ तु वा फलं मा वा कत ं पु षेण यत् । गृहे वा वसता कृ णे यथाश करो म तत् ।। ३ ।। कृ णे! यहाँ उस कमका फल हो या न हो, गृह थ-आ मम रहनेवाले पु षका जो कत है, म उसीका यथाश कत बु से पालन करता ँ ।। ३ ।। धम चरा म सु ो ण न धमफलकारणात् । आगमानन त य सतां वृ मवे य च ।। ४ ।। धम एव मनः कृ णे वभावा चैव मे धृतम् । धमवा ण यको हीनो जघ यो धमवा दनाम् ।। ५ ।। सु ो ण! म धमका फल पानेके लोभसे धमका आचरण नह करता, अ पतु साधु पु ष के आचार- वहारको दे खकर शा ीय मयादाका उ लंघन न करके वभावसे ही मेरा मन धमपालनम लगा है। ौपद ! जो मनु य कुछ पानेक इ छासे धमका ापार करता है, वह धमवाद पु ष क म हीन और न दनीय है ।। ४-५ ।। न धमफलमा ो त यो धम दो धु म छ त । य ैनं शङ् कते कृ वा ना त यात् पापचेतनः ।। ६ ।। जो पापा मा मनु य ना तकतावश धमका अनु ान करके उसके वषयम शंका करता है अथवा धमको हना चाहता है अथात् धमके नामपर वाथ स करना चाहता है, उसे धमका फल बलकुल नह मलता ।। ६ ।। अ तवादाद् वदा येष मा धमम भशङ् कथाः । धमा भशङ् क पु ष तय ग तपरायणः ।। ७ ।। े













म सारे माण से ऊपर उठकर केवल शा के आधारपर यह जोर दे कर कह रहा ँ क तुम धमके वषयम शंका न करो; य क धमपर संदेह करनेवाला मानव पशु-प य क यो नम ज म लेता है ।। ७ ।। धम य या भशङ् यः यादाष वा बला मनः । वेदा छू इवापेयात् स लोकादजरामरात् ।। ८ ।। जो धमके वषयम संदेह रखता है अथवा जो बला मा पु ष वेदा द शा पर अ व ास करता है, वह जरा-मृ युर हत परमधामसे उसी कार वं चत रहता है, जैसे शू वेद के अ ययनसे ।। ८ ।। वेदा यायी धमपरः कुले जातो मन व न । थ वरेषु स यो ो राज षधमचा र भः ।। ९ ।। मन व न! जो वेदका अ ययन करनेवाला, धमपरायण और कुलीन हो, उस राज षक गणना धमा मा पु ष को वृ म करनी चा हये (वह आयुम छोटा हो तो भी उसका वृ पु षके समान आदर करना चा हये) ।। ९ ।। पापीयान् स ह शू े य त करे यो व श यते । शा ा तगो म दबु य धमम भशङ् कते ।। १० ।। जो म दबु पु ष शा क मयादाका उ लंघन करके धमके वषयम आशंका करता है, वह शू और चोर से भी बढ़कर पापी है ।। १० ।। य ं ह वया ऋ षग छन् महातपाः । माक डेयोऽ मेया मा धमण चरजी वता ।। ११ ।। तुमने अमेया मा महातप वी माक डेयजीको जो अभी यहाँसे गये ह, य दे खा है। उ ह धमपालनसे ही चरजी वता ा त ई है ।। ११ ।। ासो व स ो मै ेयो नारदो लोमशः शुकः । अ ये च ऋषयः सव धमणैव सुचेतसः ।। १२ ।। ास, व स , मै ेय, नारद, लोमश, शुक तथा अ य सब मह ष धमके पालनसे ही शु दयवाले ए ह ।। १२ ।। य ं प य स ेतान् द योगसम वतान् । शापानु हणे श ान् दे वे योऽ प गरीयसः ।। १३ ।। तुम अपनी आँख इन सबको दे खती हो, ये द योगश से स प , शाप और अनु हम समथ तथा दे वता से भी अ धक गौरवशाली ह ।। १३ ।। एते ह धममेवादौ वणय त सदानघे । कत ममर याः य ागमबु यः ।। १४ ।। अनघे! ये अमर के समान व यात तथा वेदग य वषयको भी य दे खनेवाले मह ष धमको ही सबसे थम आचरणम लानेयो य बताते ह ।। १४ ।। अतो नाह स क या ण धातारं धममेव च । रा मूढेन मनसा े तुं शङ् कतुमेव च ।। १५ ।। ी

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अतः क याणमयी महारानी ौपद ! तु ह मूखतायु मनके ारा ई र और धमपर आ ेप एवं आशंका नह करनी चा हये ।। १५ ।। उ म ान् म यते बालः सवानागत न यान् । धमा भशङ् को ना य मात् माणम धग छ त ।। १६ ।। धमके वषयम संशय रखनेवाला बालबु मानव ज ह धमके त वका न य हो गया है, उन सम त ानीजन को उ म समझता है; अतः वह बालबु सरे कसीसे कोई शा - माण नह हण करता ।। १६ ।। आ म माण उ ः ेयसो वम यकः । इ य ी तस ब ं य ददं लोकसा कम् । एताव म यते बालो मोहम य ग छ त ।। १७ ।। केवल अपनी बु को ही माण माननेवाला उद्द ड मानव े पु ष एवं उ म धमक अवहेलना करता है; य क वह मूढ़ इ य क आस से स ब ध रखनेवाले इस लोक- य य जगत्क ही स ा वीकार करता है। अ य व तुके वषयम उसक बु मोहम पड़ जाती है ।। १७ ।। ाय ं न त या त यो धमम भशङ् कते । यायन् स कृपणः पापो न लोकान् तप ते ।। १८ ।। जो धमके त संदेह करता है, उसक शु के लये कोई ाय नह है। वह धम वरोधी च तन करनेवाला द न पापा मा पु ष उ म लोक को नह पाता अथात् अधोग तको ा त होता है ।। १८ ।। माणा नवृ ो ह वेदशा ाथ न दकः । कामलोभा तगो मूढो नरकं तप ते ।। १९ ।। जो मूख माण क ओरसे मुँह मोड़ लेता है, वेद और शा के स ा तक न दा करता है तथा काम एवं लोभके अ य त परायण है, वह नरकम पड़ता है ।। १९ ।। य तु न यं कृतम तधममेवा भप ते । अशङ् कमानः क या ण सोऽमु ान यमुते ।। २० ।। क याणी! जो सदा धमके वषयम पूण न य रखनेवाला है और सब कारक आशंकाएँ छोड़कर धमक ही शरण लेता है, वह परलोकम अ य अन त सुखका भागी होता है अथात् परमा माको ा त हो जाता है ।। २० ।। आष माणमु य धम न तपालयन् । सवशा ा तगो मूढः शं ज मसु न व द त ।। २१ ।। जो मूढ़ मानव आष- थ के माणक अवहेलना करके सम त शा के वपरीत आचरण करते ए धमका पालन नह करता, वह ज म-ज मा तर म भी कभी क याणका भागी नह होता ।। २१ ।। य य नाष माणं या छ ाचार भा व न । न वै त य परो लोको नायम ती त न यः ।। २२ ।। े





भा व न! जसक म ऋ षय के वचन और श पु ष के आचार माणभूत नह ह, उसके लये न यह लोक है और न परलोक, यह त ववे ा महापु ष का न य है ।। २२ ।। श ैराच रतं धम कृ णे मा मा भशङ् कथाः । पुराणमृ ष भः ो ं सव ैः सवद श भः ।। २३ ।। कृ णे! सव और सव ा मह षय ारा तपा दत तथा श पु ष ारा आच रत पुरातन धमपर शंका नह करनी चा हये ।। २३ ।। धम एव लवो ना यः वग ौप द ग छताम् । सैव नौः सागर येव व णजः पार म छतः ।। २४ ।। पदकुमारी! जैसे समु के पार जानेक इ छा-वाले व णक्के लये जहाजक आव यकता है, वैसे ही वगम जानेवाल के लये धमाचरण ही जहाज है, सरा नह ।। २४ ।। अफलो य द धमः या च रतो धमचा र भः । अ त े तम येत जग म जेद न दते ।। २५ ।। सा वी ौपद ! य द धमपरायण पु ष ारा पा लत धम न फल होता तो स पूण जगत् असीम अ धकारम नम न हो जाता ।। २५ ।। नवाणं ना धग छे युज वेयुः पशुजी वकाम् । व ां ते नैव यु येयुन चाथ के चदा ुयुः ।। २६ ।। य द धम न फल होता तो धमा मा पु ष मो नह पाते, कोई व ाक ा तम नह लगते, कोई भी योजन स के लये य न नह करते और सभी पशु का-सा जीवन तीत करते ।। २६ ।। तप चय च य ः वा याय एव च । दानमाजवमेता न य द युरफला न वै ।। २७ ।। नाच र यन् परे धम परे परतरे च ये । व ल भोऽयम य तं य द युरफलाः याः ।। २८ ।। ऋषय ैव दे वा ग धवासुररा साः । ई राः क य हेतो ते चरेयुधममा ताः ।। २९ ।। य द तप, चय, य , वा याय, दान और सरलता आ द धम न फल होते तो पहले जो े और े तर पु ष ए ह वे धमका आचरण नह करते। य द धामक या का कुछ फल नह होता, वे सब नरी ठग व ा होत तो ऋ ष, दे वता, ग धव, असुर तथा रा स भावशाली होते ए भी कस लये आदरपूवक धमका आचरण करते ।। २७—२९ ।। फलदं वह व ाय धातारं ेय स ुवम् । धम ते चरन् कृ णे त ेयः सनातनम् ।। ३० ।। कृ णे! यहाँ धमका फल दे नेवाले ई र अव य ह, यह बात जानकर ही उन ऋ ष आ दक ने धमका आचरण कया है। धम ही सनातन ेय है ।। ३० ।। स नायमफलो धम नाधम ऽफलवान प । े

य तेऽ प ह व ानां फला न तपसां तथा ।। ३१ ।। वमा मनो वजानी ह ज म कृ णे यथा ुतम् । वे थ चा प यथा जातो धृ ु नः तापवान् ।। ३२ ।। धम न फल नह होता। अधम भी अपना फल दये बना नह रहता। व ा और तप याके भी फल दे खे जाते ह। कृ णे! तुम अपने ज मके स वृ ा तको ही मरण करो। तु हारा तापी भाई धृ ु न जस कार उ प आ है, यह भी तुम जानती हो ।। ३१-३२ ।। एतावदे व पया तमुपमानं शु च मते । कमणां फलमा ो त धीरोऽ पेना प तु य त ।। ३३ ।। प व मुसकानवाली ौपद ! इतना ही ा त दे ना पया त है। धीर पु ष कम का फल पाता है और थोड़े-से फलसे भी संतु हो जाता है ।। ३३ ।। ब ना प व ांसो नैव तु य यबु यः । तेषां न धमजं क चत् े य शमा त वा पुनः ।। ३४ ।। परंतु बु हीन अ ानी मनु य ब त पाकर भी संतु नह होते। उ ह परलोकम धमज नत थोड़ा-सा भी सुख नह मलता ।। ३४ ।। कमणां ुतपु यानां पापानां च फलोदयः । भव ा यय ैव दे वगु ा न भा व न ।। ३५ ।। भा म न! वेदो पु य दे नेवाले स कम और अ न कारी पापकम का फलोदय तथा उ प और लय—ये सब दे वगु ह (दे वता ही उ ह जानते ह) ।। ३५ ।। नैता न वेद यः क मु तेऽ जा इमाः । अ प क पसह ेण न स ेयोऽ धग छ त ।। ३६ ।। इन दे वगु वषय म साधारण लोग मो हत हो जाते ह। जो इन सबको ता वक पसे नह जानता है, वह सह क प म भी क याणका भागी नह हो सकता ।। ३६ ।। र या येता न दे वानां गूढमाया ह दे वताः । कृताशा ताशा तपसा द ध क बषाः । सादै मानसैयु ाः प य येता न वै जाः ।। ३७ ।। इन सब वषय को दे वतालोग गु त रखते ह। दे वता क माया भी गूढ़ ( ब ध) है। जो आशाका प र याग करके सा वक हतकर एवं प व आहार करनेवाले ह। तप यासे जनके सारे पाप द ध हो गये ह तथा जो मान सक स तासे यु ह, वे ज ही इन दे वगु वषय को दे ख पाते ह ।। ३७ ।। न फलादशनाद् धमः शङ् कत ो न दे वताः । य ं च य नेन दात ं चानसूयता ।। ३८ ।। धमका फल तुरंत दखायी न दे तो इसके कारण धम एवं दे वता पर आशंका नह करनी चा हये। दोष न रखते ए य नपूवक य और दान करते रहना चा हये ।। ३८ ।। कमणां फलम तीह तथैतद् धमशासनम् । ा ोवाच पु ाणां य षवद क यपः ।। ३९ ।। ँ ो ै ै

कम का फल यहाँ अव य ा त होता है, यह धमशा का वधान है। यह बात ाजीने अपने पु से कही है, जसे क यप ऋ ष जानते ह ।। ३९ ।। त मात् ते संशयः कृ णे नीहार इव न यतु । व य सवम ती त ना त यं भावमु सृज ।। ४० ।। इस लये कृ णे! सब कुछ स य है, ऐसा न य करके तु हारा धम वषयक संदेह कुहरेक भाँ त न हो जाना चा हये। तुम अपने इस ना तकतापूण वचारको याग दो ।। ४० ।। ई रं चा प भूतानां धातारं मा च वै प । श वैनं नम वैनं मा तेऽभूद ् बु री शी ।। ४१ ।। और सम त ा णय का भरण-पोषण करनेवाले ई रपर आ ेप बलकुल न करो। तुम शा और गु जन के उपदे शानुसार ई रको समझनेक चे ा करो और उ ह को नम कार करो। आज जैसी तु हारी बु है, वैसी नह रहनी चा हये ।। ४१ ।। य य सादात् त ो म य ग छ यम यताम् । उ मां दे वतां कृ णे मावमं थाः कथंचन ।। ४२ ।। कृ णे! जनके कृपा सादसे उनके त भ भाव रखनेवाला मरणधमा मनु य अमर वको ा त हो जाता है, उन परमदे व परमे रक तुमको कसी कार अवहेलना नह करनी चा हये ।। ४२ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण अजुना भगमनपव ण यु ध रवा ये एक शोऽ यायः ।। ३१ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत अजुना भगमनपवम यु ध रवा य वषयक इकतीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ३१ ।।

ा शोऽ यायः ौपद का पु षाथको धान मानकर पु षाथ करनेके लये जोर दे ना ौप ुवाच नावम ये न गह च धम पाथ कथंचन । ई रं क ु त एवाहमवमं ये जाप तम् ।। १ ।। ौपद बोली—कु तीन दन! म धमक अवहेलना तथा न दा कसी कार नह कर सकती। फर सम त जा का पालन करनेवाले परमे रक अवहेलना तो कर ही कैसे सकती ँ ।। १ ।। आताहं लपामीद म त मां व भारत । भूय वल प या म सुमना वं नबोध मे ।। २ ।। भारत! आप ऐसा समझ ल क म शोकसे आत होकर लाप कर रही ँ। म इतनेसे ही चुप नह र ँगी और भी वलाप क ँ गी। आप स च होकर मेरी बात सु नये ।। २ ।। कम ख वह कत ं जानता म कशन । अकमाणो ह जीव त थावरा नेतरे जनाः ।। ३ ।। श ुनाशन! ानी पु षको भी इस संसारम कम अव य करना चा हये। पवत और वृ आ द थावर भूत ही बना कम कये जी सकते ह, सरे लोग नह ।। ३ ।। यावद्गो तनपाना च याव छायोपसेवनात् । ज तवः कमणा वृ मा ुव त यु ध र ।। ४ ।। महाराज यु ध र! गौ के बछड़े भी माताका ध पीते और छायाम जाकर व ाम करते ह। इस कार सभी जीव कम करके ही जीवन- नवाह करते ह ।। ४ ।। ज मेषु वशेषेण मनु या भरतषभ । इ छ त कमणा वृ मवा तुं े य चेह च ।। ५ ।। भरत े ! जंगम जीव म वशेष पसे मनु य कमके ारा ही इहलोक और परलोकम जी वका ा त करना चाहते ह ।। ५ ।। उ थानम भजान त सवभूता न भारत । य ं फलम त कमणां लोकसा कम् ।। ६ ।। भारत! सभी ाणी अपने उ थानको समझते ह और कम के य फलका उपभोग करते ह, जसका सा ी सारा जगत् है ।। ६ ।। सव ह वं समु थानमुपजीव त ज तवः । अ प धाता वधाता च यथायमुदके बकः ।। ७ ।। यह जलके समीप जो बगुला बैठकर (मछलीके लये) यान लगा रहा है, उसीके समान ये सभी ाणी अपने उ ोगका आ य लेकर जीवन धारण करते ह। धाता और ी









वधाता भी सदा सृ पालनके उ ोगम लगे रहते ह ।। ७ ।। अकमणां वै भूतानां वृ ः या ह काचन । तदे वा भ प ेत न वह यात् कदाचन ।। ८ ।। कम न करनेवाले ा णय क कोई जी वका भी स नह होती। अतः ( ार धका भरोसा करके) कभी कमका प र याग न करे। सदा कमका ही आ य ले ।। ८ ।। वकम कु मा लासीः कमणा भव दं शतः । कृतं ह योऽ भजाना त सह े सोऽ त ना त च ।। ९ ।। अतः आप अपना कम कर। उसम ला न न कर, कमका कवच पहने रह। जो कम करना अ छ तरह जानता है, ऐसा मनु य हजार म एक भी है या नह ? यह बताना क ठन है ।। ९ ।। त य चा प भवेत् काय ववृ ौ र णे तथा । भ यमाणो नादानात् ीयेत हमवान प ।। १० ।। धनक वृ और र ाके लये भी कमक आव यकता है। य द धनका उपभोग ( य) होता रहे और आय न हो तो हमालय-जैसी धनरा शका भी य हो सकता है ।। १० ।। उ सीदे रन् जाः सवा न कुयुः कम चेद ् भु व । तथा ेता न वधरन् कम चेदफलं भवेत् ।। ११ ।। य द सम त जा इस भूतलपर कम करना छोड़ दे तो सबका संहार हो जाय। य द कमका कुछ फल न हो तो इन जा क वृ ही न हो ।। ११ ।। अ प चा यफलं कम प यामः कुवतो जनान् । ना यथा प ग छ त वृ लोकाः कथंचन ।। १२ ।। हम दे खती ह क लोग थ कमम भी लगे रहते ह, कम न करनेपर तो लोग क कसी कार जी वका ही नह चल सकती ।। १२ ।। य द परो लोके य ा प हठवा दकः । उभाव प शठावेतौ कमबु ः श यते ।। १३ ।। संसारम जो केवल भा यके भरोसे कम नह करता अथात् जो ऐसा मानता है क पहले जैसा कया है वैसा ही फल अपने-आप ही ा त होगा तथा जो हठवाद है— बना कसी यु के हठपूवक यह मानता है क कम करना अनाव यक है, जो कुछ मलना होगा, अपने-आप मल जायगा, वे दोन ही मूख ह। जसक बु कम (पु षाथ)-म च रखती है, वही शंसाका पा है ।। १३ ।। यो ह द मुपासीनो न वचे ःसुखं शयेत् । अवसीदे त् स बु रामो घट इवोदके ।। १४ ।। जो खोट बु वाला मनु य ार ध (भा य)-का भरोसा रखकर उ ोगसे मुँह मोड़ लेता और सुखसे सोता रहता है, उसका जलम रखे ए क चे घड़ेक भाँ त वनाश हो जाता है ।। १४ ।। तथैव हठ बु ः श ः कम यकमक ृ त् । आसीत न चरं जीवेदनाथ इव बलः ।। १५ ।। ी ो औ े ो ी

इसी कार जो हठ और बु मानव कम करनेम समथ होकर भी कम नह करता, बैठा रहता है, वह बल एवं अनाथक भाँ त द घजीवी नह होता ।। १५ ।। अक मा दह यः क दथ ा ो त पू षः । तं हठ े ने त म य ते स ह य नो न क य चत् ।। १६ ।। जो कोई पु ष इस जगत्म अक मात् कह से धन पा लेता है, उसे लोग हठसे मला आ मान लेते ह; य क उसके लये कसीके ारा य न कया आ नह द खता ।। १६ ।। य चा प क चत् पु षो द ं नाम भज युत । दै वेन व धना पाथ तद् दै व म त न तम् ।। १७ ।। कु तीन दन! मनु य जो कुछ भी दे वाराधनक व धसे अपने भा यके अनुसार पाता है, उसे न त पसे दै व ( ार ध) कहा गया है ।। १७ ।। यत् वयं कमणा क चत् फलमा ो त पू षः । य मेत लोकेषु तत् पौ ष म त ुतम् ।। १८ ।। तथा मनु य वयं कम करके जो कुछ फल ा त करता है, उसे पु षाथ कहते ह। यह सब लोग को य दखायी दे ता है ।। १८ ।। वभावतः वृ ो यः ा ो यथ न कारणात् । तत् वभावा मकं व फलं पु षस म ।। १९ ।। नर े ! जो वभावसे ही कमम वृ होकर धन ा त करता है, कसी कारणवश नह , उसके उस धनको वाभा वक फल समझना चा हये ।। १९ ।। एवं हठा च द ै वा च वभावात् कमण तथा । या न ा ो त पु ष तत् फलं पूवकमणाम् ।। २० ।। इस कार हठ, दै व, वभाव तथा कमसे मनु य जन- जन व तु को पाता है, वे सब उसके पूवकम के ही फल ह ।। २० ।। धाता प ह वकमव तै तैहतु भरी रः । वदधा त वभ येह फलं पूवकृतं नृणाम् ।। २१ ।। जगदाधार परमे र भी उपयु हठ आ द हेतु से जीव के अपने-अपने कमको ही वभ करके मनु य को उनके पूवज मम कये ए कमके फल पसे यहाँ ा त कराता है ।। २१ ।। ययं पु षः क चत् क ु ते वै शुभाशुभम् । तद् धातृ व हतं व पूवकमफलोदयम् ।। २२ ।। पु ष यहाँ जो कुछ भी शुभ-अशुभ कम करता है, उसे ई र ारा व हत उसके पूवकम के फलका उदय सम झये ।। २२ ।। कारणं त य दे होऽयं धातुः कम ण वतते । स यथा ेरय येनं तथायं कु तेऽवशः ।। २३ ।। यह मानव-शरीर जो कमम वृ होता है, वह ई रके कमफलस पादन-कायका साधन है। वे इसे जैसी ेरणा दे ते ह, यह ववश होकर ( वे छा— ार धभोगके लये) वैसा ी ै

ही करता है ।। २३ ।। तेषु तेषु ह कृ येषु व नयो ा महे रः । सवभूता न कौ तेय कारय यवशा य प ।। २४ ।। कु तीन दन! परमे र ही सम त ा णय को व भ काय म लगाते और वभावके परवश ए उन ा णय से कम कराते ह ।। २४ ।। मनसाथान् व न य प ात् ा ो त कमणा । बु पूव वयं वीर पु ष त कारणम् ।। २५ ।। कतु वीर! मनसे अभी व तु का न य करके फर कम ारा मनु य वयं बु पूवक उ ह ा त करता है। अतः पु ष ही उसम कारण है ।। २५ ।। सं यातुं नैव श या न कमा ण पु षषभ । अगारनगराणां ह स ः पु षहैतुक ।। २६ ।। तले तैलं ग व ीरं का े पावकम ततः । धया धीरो वजानीया पायं चा य स ये ।। २७ ।। नर े ! कम क गणना नह क जा सकती। गृह एवं नगर आ द सभीक ा तम पु ष ही कारण है। व ान् पु ष पहले बु ारा यह न य करे क तलम तेल है, गायके भीतर ध है और का म अ न है, त प ात् उसक स के उपायका न य करे ।। २६-२७ ।। ततः वतते प ात् कारणै त य स ये । तां स मुपजीव त कमजा मह ज तवः ।। २८ ।। तदन तर उ ह उपाय ारा उस कायक स के लये वृ होना चा हये। सभी ाणी इस जगत्म उस कमज नत स का सहारा लेते ह ।। २८ ।। कुशलेन कृतं कम क ा साधु वनु तम् । इदं वकुशलेने त वशेषा पल यते ।। २९ ।। यो य कताके ारा कया गया कम अ छे ढं गसे स पा दत होता है। यह काय कसी अयो य कताके ारा कया गया है, यह बात कायक वशेषतासे अथात् प रणामसे जानी जाती है ।। २९ ।। इ ापूतफलं न या श यो न गु भवेत् । पु षः कमसा येषु या चेदयमकारणम् ।। ३० ।। य द कमसा य फल म पु ष (एवं उसका य न) कारण न होता अथात् वह कता नह बनता तो कसीको य और कूप नमाण आ द कम का फल नह मलता। फर तो न कोई कसीका श य होता और न गु ही ।। ३० ।। कतृ वादे व पु षः कम स ौ श यते । अ स ौ न ते चा प कमनाशात् कथं वह ।। ३१ ।। कता होनेके कारण ही कायक स म पु षक शंसा क जाती है और जब कायक स नह होती, तब उसक न दा क जाती है। य द कमका सवथा नाश ही हो जाय, तो यहाँ कायक स ही कैसे हो ।। ३१ ।। े े ै े ै े ै े

सवमेव हठ े नैके दै वेनैके वद युत । पुंसः य नजं के च ैधमेत यते ।। ३२ ।। कोई तो सब काय को हठसे ही स होनेवाला बतलाते ह। कुछ लोग दै वसे कायक स का तपादन करते ह तथा कुछ लोग पु षाथको ही काय स का कारण बताते ह। इस तरह ये तीन कारके कारण बताये जाते ह ।। ३२ ।। न चैवैतावता काय म य त इ त चापरे । अ त सवम यं तु द ं चैव तथा हठः ।। ३३ ।। सरे लोग क मा यता इस कार है क मनु यके य नक कोई आव यकता नह है। अ य दै व ( ार ध) तथा हठ—ये दो ही सब काय के कारण ह ।। ३३ ।। यते ह हठा चैव द ा चाथ य संत तः । क चद् दै वा ठात् क चत् क चद े व वभावतः ।। ३४ ।। पु षः फलमा ो त चतुथ ना कारणम् । कुशलाः तजान त ये वै त व वदो जनाः ।। ३५ ।। य क यह दे खा जाता है क हठ तथा दै वसे सब काय क धारावा हक पसे स हो रही है। जो लोग त व एवं कुशल ह, वे त ापूवक कहते ह क मनु य कुछ फल दै वसे, कुछ हठसे और कुछ वभावसे ा त करता है। इस वषयम इन तीन के सवा कोई चौथा कारण नह है ।। ३४-३५ ।। तथैव धाता भूताना म ा न फल दः । य द न या भूतानां कृपणो नाम क न ।। ३६ ।। य क य द ई र सब ा णय को इ -अ न प फल नह दे ते तो उन ा णय मसे कोई भी द न नह होता ।। ३६ ।। यं यमथम भ े सुः कु ते कम पू षः । त त् सफलमेव याद् य द न यात् पुरा कृतम् ।। ३७ ।। य द पूवकृत ार धकम भाव डालनेवाला न होता तो मनु य जस- जस योजनके अ भ ायसे कम करता, वह सब सफल ही हो जाता ।। ३७ ।। ारामथ स तु नानुप य त ये नराः । तथैवानथ स च यथा लोका तथैव ते ।। ३८ ।। अतः जो लोग अथ स तथा अनथक ा तम दै व, हठ और वभाव—इन तीन को कारण नह समझते, वे वैसे ही ह, जैसे क साधारण अ लोग होते ह ।। ३८ ।। कत मेव कम त मनोरेष व न यः । एका तेन नीहोऽयं पराभव त पू षः ।। ३९ ।। कतु मनुका यह स ा त है क कम करना ही चा हये, जो बलकुल कम छोड़कर न े हो बैठ रहता है, वह पु ष पराभवको ा त होता है ।। ३९ ।। कुवतो ह भव येव ायेणेह यु ध र । एका तफल स तु न व द यलसः व चत् ।। ४० ।। (

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(इस लये मेरा तो कहना यह है क) महाराज यु ध र! कम करनेवाले पु षको यहाँ ायः फलक स ा त होती ही है। परंतु जो आलसी है, जससे ठ क-ठ क कत का पालन नह हो पाता, उसे कभी फलक स नह ा त होती ।। ४० ।। अस भवे व य हेतुः ाय ं तु ल येत् । कृते कम ण राजे तथानृ यमवा ुते ।। ४१ ।। य द कम करनेपर भी फलक उ प न हो तो कोई-न-कोई कारण है; ऐसा मानकर ाय (उसके दोषके समाधान)-पर डाले। राजे ! कमको सांगोपांग कर लेनेपर कता उऋण ( नद ष) हो जाता है ।। ४१ ।। अल मीरा वश येनं शयानमलसं नरम् । नःसंशयं फलं ल वा द ो भू तमुपाुते ।। ४२ ।। जो मनु य आल यके वशम पड़कर सोता रहता है, उसे द र ता ा त होती है और कायकुशल मानव न य ही अभी फल पाकर ऐ यका उपभोग करता है ।। ४२ ।। अनथाः संशयाव थाः स य ते मु संशयाः । धीरा नराः कमरता ननु नःसंशयाः व चत् ।। ४३ ।। कमका फल होगा या नह , इस संशयम पड़े ए मनु य अथ स से वं चत रह जाते ह और जो संशयर हत ह, उ ह स ा त होती है। कमपरायण और संशयर हत धीर मनु य न य ही कह बरले दे खे जाते ह ।। ४३ ।। एका तेन नथ ऽयं वततेऽ मासु सा तम् । स तु नःसंशयं न यात् व य कम यव थते ।। ४४ ।। इस समय हमलोग पर रा यापहरण प भारी वपद् आ पड़ी है, य द आप कम (पु षाथ)–म त परतासे लग जायँ तो न य ही यह आप टल सकती है ।। ४४ ।। अथवा स रेव याद भमानं तदे व ते । वृकोदर य बीभ सो ा ो यमयोर प ।। ४५ ।। अथवा य द कायक स ही हो जाय, तो वह आपके, भीमसेन और अजुनके तथा नकुल-सहदे वके लये भी वशेष गौरवक बात होगी ।। ४५ ।। अ येषां कम सफलम माकम प वा पुनः । व कषण बु येत कृतकमा यथाफलम् ।। ४६ ।। कम के कर लेनेपर अ तम कताको जैसा फल मलता है, उसके अनुसार ही यह जाना जा सकता है क सर का कम सफल आ है या हमारा ।। ४६ ।। पृ थव ला लेनेह भ वा बीजं वप युत । आ तेऽथ कषक तू ण पज य त कारणम् ।। ४७ ।। वृ े ानुगृ यादनेना त कषकः । यद यः पु षः कुयात् तत् कृतं सफलं मया ।। ४८ ।। त चेदं फलम माकमपराधो न मे व चत् । इ त धीरोऽ ववे यैव ना मानं त गहयेत् ।। ४९ ।। े

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कसान हलसे पृ वीको चीरकर उसम बीज बोता है और फर चुपचाप बैठा रहता है; य क उसे सफल बनानेम मेघ कारण ह। य द वृ ने अनु ह नह कया तो उसम कसानका कोई दोष नह है। वह कसान मन-ही-मन यह सोचता है क सरे लोग जोतनेबोनेका जो सफल काय जैसे करते ह, वह सब मने भी कया है। उस दशाम य द मुझे ऐसा तकूल फल मला तो इसम मेरा कोई अपराध नह है—ऐसा वचार करके उस असफलताके लये वह बु मान् कसान अपनी न दा नह करता ।। ४७—४९ ।। कुवतो नाथ स म भवती त ह भारत । नवदो ना कत ो ाव यौ कारणम् ।। ५० ।। भारत! पु षाथ करनेपर भी य द अपनेको स न ा त हो तो इस बातको लेकर मन-ही-मन ख नह होना चा हये; य क फलक स म पु षाथके सवा दो और भी कारण ह— ार ध और ई रकृपा ।। ५० ।। स वा यथवा स र वृ रतोऽ यथा । बनां समवाये ह भावानां कम स त ।। ५१ ।। महाराज! कायम स ा त होगी या अ स , ऐसा संदेह मनम लेकर आप कमम वृ ही न ह , यह उ चत नह है; य क ब त-से कारण एक होनेपर ही कमम सफलता मलती है ।। ५१ ।। गुणाभावे फलं यूनं भव यफलमेव च । अनार भे ह न फलं न गुणो यते व चत् ।। ५२ ।। कम म कसी अंगक कमी रह जानेपर थोड़ा फल हो सकता है। यह भी स भव है क फल हो ही नह । परंतु कमका आर भ ही न कया जाय तब तो न कह फल दखायी दे गा और न कताका कोई गुण (शौय आ द) ही गोचर होगा ।। ५२ ।। दे शकालावुपायां म लं व तवृ ये । युन मेधया धीरो यथाश यथाबलम् ।। ५३ ।। धीर मनु य मंगलमय क याणक वृ के लये अपनी बु के ारा श तथा बलका वचार करते ए दे श-कालके अनुसार साम-दाम आ द उपाय का योग करे ।। ५३ ।। अ म ेन तत् कायमुपदे ा परा मः । भू य ं कमयोगेषु एव परा मः ।। ५४ ।। सावधान होकर दे श-कालके अनु प काय करे। इसम परा म ही उपदे शक ( धान) है। कायक सम त यु य म परा म ही सबसे े समझा गया है ।। ५४ ।। य धीमानवे ेत ेयांसं ब भगुणैः । सा नैवाथ ततो ल सेत् कम चा मै योजयेत् ।। ५५ ।। जहाँ बु मान् पु ष श ुको अनेक गुण से े दे खे, वहाँ सामनी तसे ही काम बनानेक इ छा करे और उसके लये जो स ध आ द आव यक कत हो, करे ।। ५५ ।। सनं वा य काङ् ेत ववासं वा यु ध र । अ प स धो गरेवा प क पुनम यध मणः ।। ५६ ।। ोई













महाराज यु ध र! अथवा श ुपर कोई भारी संकट आने या दे शसे उसके नकाले जानेक ती ा करे; य क अपना वरोधी य द समु अथवा पवत हो तो उसपर भी वप लानेक इ छा रखनी चा हये, फर जो मरणधमा मनु य है, उसके लये तो कहना ही या है? ।। ५६ ।। उ थानयु ः सततं परेषाम तरैषणे । आनृ यमा ो त नरः पर या मन एव च ।। ५७ ।। श ु के छ का अ वेषण करनेके लये सदा य नशील रहे। ऐसा करनेसे वह अपनी और सरे लोग क म भी नद ष होता है ।। ५७ ।। न वेवा मावम त ः पु षेण कदाचन । न ा मप रभूत य भू तभव त शोभना ।। ५८ ।। मनु य कभी अपने-आपका अनादर न करे—अपने-आपको छोटा न समझे। जो वयं ही अपना अनादर करता है, उसे उ म ऐ यक ा त नह होती ।। ५८ ।। एवं सं थ तका स रयं लोक य भारत । त स ग तः ो ा कालाव था वभागतः ।। ५९ ।। भारत! लोकको इसी कार काय स ा त होती है—काय स क यही व था है। काल और अव थाके वभागके अनुसार श ुक बलताके अ वेषणका य न ही स का मूल कारण है ।। ५९ ।। ा णं मे पता पूव वासयामास प डतम् । सोऽ प सवा ममां ाह प े मे भरतषभ ।। ६० ।। नी त बृह प त ो ां ातॄन् मेऽ ाहयत् पुरा । तेषां सकाशाद ौषमहमेतां तदा गृहे ।। ६१ ।। भरत े ! पूवकालम मेरे पताजीने अपने घरपर एक व ान् ा णको ठहराया था। उ ह ने ही पताजीसे बृह प तजीक बतायी ई इस स पूण नी तका तपादन कया था और मेरे भाइय को भी इसीक श ा द थी। उस समय अपने भाइय के नकट रहकर घरम ही मने भी उस नी तको सुना था ।। ६०-६१ ।। स मां राजन् कमवतीमागतामाह सा वयन् । शु ूषमाणामासीनां पतुरङ् के यु ध र ।। ६२ ।। महाराज यु ध र! म उस समय कसी कायसे पताके पास आयी थी और यह सब सुननेक इ छासे उनक गोदम बैठ गयी थी। तभी उन ा ण दे वताने मुझे सा वना दे ते ए इस नी तका उपदे श कया था ।। ६२ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण अजुना भगमनपव ण ौपद वा ये ा शोऽ यायः ।। ३२ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत अजुना भगमनपवम ौपद वा य वषयक ब ीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ३२ ।।



ंशोऽ यायः

भीमसेनका पु षाथक शंसा करना और यु ध रको उ े जत करते ए य-धमके अनुसार यु छे ड़ नेका अनुरोध वैश पायन उवाच या से या वचः ु वा भीमसेनो मषणः । नः स ुपसंग य ु ो राजानम वीत् ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! पदकुमारीका वचन सुनकर अमषम भरे ए भीमसेन ोधपूवक उ छ् वास लेते ए राजाके पास आये और इस कार कहने लगे — ।। १ ।। रा य य पदव ध या ज स पु षो चताम् । धमकामाथहीनानां क नो व तुं तपोवने ।। २ ।। ‘महाराज! े पु ष के लये उ चत और धमके अनुकूल जो रा य- ा तका माग (उपाय) हो, उसका आ य ली जये। धम, अथ और काम—इन तीन से वं चत होकर इस तपोवनम नवास करनेपर हमारा कौन-सा योजन स होगा ।। २ ।। नैव धमण तद् रा यं नाजवेन न चौजसा । अ कूटम ध ाय तं य धनेन वै ।। ३ ।। ‘ य धनने धमसे, सरलतासे और बलसे भी हमारे रा यको नह लया है; उसने तो कपटपूण जूएका आ य लेकर उसका हरण कर लया है ।। ३ ।। गोमायुनेव सहानां बलेन बलीयसाम् । आ मषं वघसाशेन त द् रा यं ह नो तम् ।। ४ ।। ‘बचे ए अ को खानेवाले बल गीदड़ जैसे अ य त ब ल सह का भोजन हर ल, उसी कार श ु ने हमारे रा यका अपहरण कया है ।। ४ ।। धमलेश त छ ः भवं धमकामयोः । अथमु सृ य क राजन् ःखेषु प रत यसे ।। ५ ।। ‘महाराज! धम और कामके उ पादक रा य और धनको खोकर लेशमा धमसे आवृत ए अब आप य ःखसे संत त हो रहे ह? ।। ५ ।। भवतोऽनवधानेन रा यं नः प यतां तम् । अहायम प श े ण गु तं गा डीवध वना ।। ६ ।। ‘गा डीवधारी अजुनके ारा सुर त हमारे रा यको इ भी नह छ न सकते थे, परंतु आपक असावधानीसे वह हमारे दे खते-दे खते छन गया ।। ६ ।। कुणीना मव ब वा न पङ् गूना मव धेनवः । तमै यम माकं जीवतां भवतः कृते ।। ७ ।। ‘ ै े े े े े औ े े ी

‘जैसे लूल के पाससे उनके बेलफल और पंगु के नकटसे उनक गाय छन जाती ह और वे जी वत रहकर भी कुछ कर नह पाते, उसी कार आपके कारण जीते-जी हमारे रा यका अपहरण कर लया गया ।। ७ ।। भवतः य म येवं महद् सनमी शम् । धमकामे तीत य तप ाः म भारत ।। ८ ।। भारत! आप धमक इ छा रखनेवाले ह; इस पम आपक स है। अतः आपक य अ भलाषा स हो, इसी लये हमलोग ऐसे महान् संकटम पड़ गये ह ।। ८ ।। कशयामः व म ा ण न दयाम शा वान् । आ मानं भवतां शा ै नय य भरतषभ ।। ९ ।। ‘भरतकुलभूषण! आपके शासनसे अपने-आपको नय णम रखकर आज हमलोग अपने म को ःखी और श ु को सुखी बना रहे ह ।। ९ ।। यद् वयं न तदै वैतान् धातरा ान् नह म ह । भवतः शा मादाय त तप त कृतम् ।। १० ।। ‘आपके शासनको मानकर जो हमलोग ने उसी समय इन धृतरापु को मार नह डाला, वह कम हम आज भी संताप दे रहा है ।। १० ।। अथैनाम ववे व मृगचया मवा मनः । बलाच रतां राजन् न बल थै नषे वताम् ।। ११ ।। ‘राजन्! मृग के समान अपनी इस वनचयापर ही पात क जये। बल मनु य ही इस कार वनम रहकर समय बताते ह। बलवान् मनु य वनवासका सेवन नह करते ।। ११ ।। यां न कृ णो न बीभ सुना भम युन सृंजयाः । न चाहम भन दा म न च मा सुतावुभौ ।। १२ ।। ‘ ीकृ ण, अजुन, अ भम यु, सृंजयवंशी वीर, म और ये नकुल-सहदे व—कोई भी इस वनचयाको पसंद नह करते ।। १२ ।। भवान् धम धम इ त सततं तक शतः । क चद् राजन् न नवदादाप ः लीबजी वकाम् ।। १३ ।। ‘राजन्! आप ‘यह धम है, यह धम है’, ऐसा कहकर सदा त का पालन करके क उठाते रहते ह। कह ऐसा तो नह है क आप वैरा यके कारण साहसशू य हो नपुंसक कासा जीवन तीत करने लगे ह ? ।। १३ ।। मनु या ह नवदमफलं वाथघातकम् । अश ाः यमाहतुमा मनः कुवते यम् ।। १४ ।। ‘अपनी खोयी ई रा यल मीका उ ार करनेम असमथ बल मनु य ही न फल और वाथनाशक वैरा यका आ य लेते ह और उसीको य मानते ह ।। १४ ।। स भवान् मा छ ः प य मासु पौ षम् । आनृशं यपरो राजन् नानथमवबु यसे ।। १५ ।। ‘







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‘राजन्! आप समझदार, रदश और श शाली ह, हमारे पु षाथको दे ख चुके ह; तो भी इस कार दयाको अपनाकर इससे होनेवाले अनथको नह समझ रहे ह ।। १५ ।। अ मानमी धातरा ाः ममाणानलं सतः । अश ा नव म य ते तद् ःखं नाहवे वधः ।। १६ ।। ‘हम श ु के अपराधको मा करते जा रहे ह, इस लये समथ होते ए भी हम ये धृतराक े पु नबल-से मानने लगे ह, यही हमारे लये महान् ःख है; यु म मारा जाना कोई ःख नह है ।। १६ ।। त चेद ् यु यमानानाम ज म नव तनाम् । सवशो ह वधः ेयान् े य लोकान् लभेम ह ।। १७ ।। ‘ऐसी दशाम य द हम पीठ न दखाकर यु म न कपटभावसे लड़ते रह और उसम हमारा वध भी हो जाय तो वह क याणकारक है; य क यु म मरनेसे हम उ म लोक क ा त होगी ।। १७ ।। अथवा वयमेवैतान् नह य भरतषभ । आदद म ह गां सवा तथा प ेय एव नः ।। १८ ।। ‘अथवा भरत े ! य द हम ही इन श ु को मारकर सारी पृ वी ले ल तो वही हमारे लये क याणकर है ।। १८ ।। सवथा कायमेत ः वधममनु त ताम् । काङ् तां वपुलां क त वैरं त चक षताम् ।। १९ ।। ‘हम अपने य-धमके अनु ानम संल न हो वैरका बदला लेना चाहते ह और संसारम महान् यशका व तार करनेक अ भलाषा रखते ह, अतः हमारे लये सब कारसे यु करना ही उ चत है ।। १९ ।। आ माथ यु यमानानां व दते कृ यल णे । अ यैर प ते रा ये शंसैव न गहणा ।। २० ।। ‘श ु ने हमारे रा यको छ न लया है, ऐसे अवसरपर य द हम अपने कत को समझकर अपने लाभके लये ही यु कर तो भी इसके लये जगत्म हमारी शंसा ही होगी, न दा नह होगी ।। २० ।। कशनाथ ह यो धम म ाणामा मन तथा । सनं नाम तद् राजन् न धमः स कुधम तत् ।। २१ ।। ‘महाराज! जो धम अपने तथा म के लये लेश उ प करनेवाला हो, वह तो संकट ही है। वह धम नह , कुधम है ।। २१ ।। सवथा धम न यं तु पु षं धम बलम् । यजत तात धमाथ ेतं ःखसुखे यथा ।। २२ ।। ‘तात! जैसे मुद को ःख और सुख दोन नह होते, उसी कार जो सवथा और सवदा धमम ही त पर रहकर उसके अनु ानसे बल हो गया है, उसे धम और अथ दोन याग दे ते ह ।। २२ ।। य य धम ह धमाथ लेशभाङ् न स प डतः । े

न स धम य वेदाथ सूय या धः भा मव ।। २३ ।। जसका धम केवल धमके लये ही होता है, वह धमके नामपर केवल लेश उठानेवाला मानव बु मान् नह है। जैसे अ धा सूयक भाको नह जानता, उसी कार वह धमके अथको नह समझता है ।। २३ ।। य य चाथाथमेवाथः स च नाथ य को वदः । र ेत भृतकोऽर ये यथा गा ता गेव सः ।। २४ ।। ‘ जसका धन केवल धनके ही लये है, दान आ दके लये नह है, वह धनके त वको नह जानता। जैसे सेवक ( वा लया) वनम गौ क र ा करता है, उसी कार वह भी उस धनका सरेके लये र कमा है ।। २४ ।। अ तवेलं ह योऽथाथ नेतरावनु त त । स व यः सवभूतानां हेव जुगु सतः ।। २५ ।। ‘जो केवल अथके ही सं हक अ य त इ छा रखनेवाला है और धम एवं कामका अनु ान नह करता है, वह ह यारेके समान घृणाका पा है और सभी ा णय के लये व य है ।। २५ ।। सततं य कामाथ नेतरावनु त त । म ा ण त य न य त धमाथा यां च हीयते ।। २६ ।। ‘इसी कार जो नर तर कामक ही अ भलाषा रखकर धम और अथका स पादन नह करता, उसके म न हो जाते ह (उसको यागकर चल दे ते ह) और वह धम एवं अथ दोन से वं चत ही रह जाता है ।। २६ ।। त य धमाथहीन य कामा ते नधनं ुवम् । कामतो रममाण य मीन येवा भसः ये ।। २७ ।। ‘जैसे पानी सूख जानेपर उसम रहनेवाली मछलीक मृ यु न त है, उसी कार जो धम-अथसे हीन होकर केवल कामम ही रमण करता है, उस काम (भोगसाम ी)-क समा त होनेपर उसक भी अव य मृ यु हो जाती है ।। २७ ।। त माद् धमाथयो न यं न मा त प डताः । कृ तः सा ह काम य पावक यार णयथा ।। २८ ।। ‘इस लये व ान् पु ष कभी धम और अथके स पादनम माद नह करते ह। धम और अथ कामक उ प के थान ह (अथात् धम और अथसे ही कामक स होती है) जैसे अर ण अ नका उ प थान है ।। २८ ।। सवथा धममूलोऽथ धम ाथप र हः । इतरेतरयोन तौ व मेघोदधी यथा ।। २९ ।। ‘अथका कारण है धम और धम स होता है अथसं हसे। जैसे मेघसे समु क पु होती है और समु से मेघक पू त। इस कार धम और अथको एक- सरेके आ त समझना चा हये ।। २९ ।। ाथ पशसंयोगे या ी त पजायते । स काम संक पः शरीरं ना य यते ।। ३० ।। ‘ ी े औ े े ो

‘ ी, माला, च दन आ द के पश और सुवण आ द धनके लाभसे जो स ता होती है, उसके लये जो च म संक प उठता है, उसीका नाम काम है। उस कामका शरीर नह दे खा जाता (इसी लये वह ‘अनंग’ कहलाता है) ।। ३० ।। अथाथ पु षो राजन् बृह तं धम म छ त । अथ म छ त कामाथ न कामाद य म छ त ।। ३१ ।। ‘राजन्! धनक इ छा रखनेवाला पु ष महान् धमक अ भलाषा रखता है और कामाथ मनु य धन चाहता है। जैसे धमसे धनक और धनसे कामक इ छा करता है, उस कार वह कामसे कसी सरी व तुक इ छा नह करता है ।। ३१ ।। न ह कामेन कामोऽ यः सा यते फलमेव तत् । उपयोगात् फल यैव का ाद् भ मेव प डतैः ।। ३२ ।। ‘जैसे फल उपभोगम आकर कृताथ हो जाता है, उससे सरा फल नह ा त हो सकता तथा जस कार का से भ म बन सकता है, परंतु उस भ मसे सरा कोई पदाथ नह बन सकता; इसी तरह बु मान् पु ष एक कामसे कसी सरे कामक स नह मानते, य क वह साधन नह , फल ही है ।। ३२ ।। इमा छकुनकान् राजन् ह त वैतं सको यथा । एतद् पमधम य भूतेषु ह व हसता ।। ३३ ।। कामा लोभा च धम य कृ त यो न प य त । स व यः सवभूतानां े य चेह च म तः ।। ३४ ।। ‘राजन्! जैसे प य को मारनेवाला ाध इन प य को मारता है, यह वशेष कारक हसा ही अधमका व प है (अतः वह हसक सबके लये व य है)। वैसे ही जो खोट बु वाला मनु य काम और लोभके वशीभूत होकर धमके व पको नह जानता, वह इहलोक और परलोकम भी सब ा णय का व य होता है ।। ३३-३४ ।। ं ते व दतो राज थ प र हः । कृ त चा प वे था य वकृ त चा प भूयसीम् ।। ३५ ।। ‘राजन्! आपको यह अ छ तरह ात है क धनसे ही भो य-साम ीका सं ह होता है। धनका जो कारण है, उससे भी आप प र चत ह और धनके ारा जो ब त-से काय स होते ह, उसे भी आप जानते ह ।। ३५ ।। त य नाशे वनाशे वा जरया मरणेन वा । अनथ इ त म य ते सोऽयम मासु वतते ।। ३६ ।। ‘उस धनका अभाव होनेपर अथवा ा त ए धनका नाश होनेपर अथवा ी आ द धनके जरा-जीण एवं मृ यु त होनेपर मनु यक जो दशा होती है, उसीको सब लोग अनथ मानते ह। वही इस समय हमलोग को भी ा त आ है ।। ३६ ।। इ याणां च प चानां मनसो दय य च । वषये वतमानानां या ी त पजायते ।। ३७ ।। स काम इ त मे बु ः कमणां फलमु मम् । ‘ ँ







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‘पाँच ाने य , मन और बु क अपने वषय म वृ होनेके समय जो ी त होती है, वही मेरी समझम काम है। वह कम का उ म फल है ।। ३७ ।। एवमेव पृथग् ् वा धमाथ काममेव च ।। ३८ ।। न धमपर एव या चाथपरमो नरः । न कामपरमो वा यात् सवान् सेवेत सवदा ।। ३९ ।। धम पूव धनं म ये जघ ये काममाचरेत् । अह यनुचरेदेवमेष शा कृतो व धः ।। ४० ।। ‘इस कार धम, अथ और काम तीन को पृथक्-पृथक् समझकर मनु य केवल धम, केवल अथ अथवा केवल कामके ही सेवनम त पर न रहे। उन सबका सदा इस कार सेवन करे, जससे इनम वरोध न हो। इस वषयम शा का यह वधान है क दनके पूवभागम धमका, सरे भागम अथका और अ तम भागम कामका सेवन करे ।। ३८— ४० ।। कामं पूव धनं म ये जघ ये धममाचरेत् । वय यनुचरेदेवमेष शा कृतो व धः ।। ४१ ।। ‘इसी कार अव था- मम शा का वधान यह है क आयुके पूवभागम (युवाव थाम) कामका, म यभाग ( ौढ़ाव था)-म धनका तथा अ तम भाग (वृ ाव था)-म धमका पालन करे ।। ४१ ।। धम चाथ च कामं च यथावद् वदतां वर । वभ य काले काल ः सवान् सेवेत प डतः ।। ४२ ।। ‘व ा म े ! उ चत कालका ान रखनेवाला व ान् पु ष धम, अथ और काम तीन का यथावत् वभाग करके उपयु समयपर उन सबका सेवन करे ।। ४२ ।। मो ो वा परमं ेय एष राजन् सुखा थनाम् । ा तवा बु मा थाय सोपायां कु न दन ।। ४३ ।। तद् वाऽऽशु यतां राजन् ा तवा य धग यताम् । जी वतं ातुर येव ःखम तरव तनः ।। ४४ ।। ‘कु न दन! नर तशय सुखक इ छा रखनेवाले मुमु ु के लये यह मो ही परम क याण द है। राजन्! इसी कार लौ कक सुखक इ छावाल के लये धम, अथ, काम प वगक ा त ही परम ेय है। अतः महाराज! भ और योगस हत ानका आ य लेकर आप शी ही या तो मो क ा त कर ली जये अथवा धम, अथ, काम प वगक ा तके उपायका अवल बन क जये। जो इन दोन के बीचम रहता है, उसका जीवन तो आत मनु यके समान ःखमय ही है ।। ४३-४४ ।। व दत ैव मे धमः सततं च रत ते । जान त व य शंस त सु दः कमचोदनाम् ।। ४५ ।। ‘मुझे मालूम है क आपने सदा धमका ही आचरण कया है, इस बातको जानते ए भी आपके हतैषी, सगे-स ब धी आपको (धमयु ) कम एवं पु षाथके लये ही े रत े

करते ह ।। ४५ ।। दानं य ाः सतां पूजा वेदधारणमाजवम् । एष धमः परो राजन् बलवान् े य चेह च ।। ४६ ।। ‘महाराज! इहलोक और परलोकम भी दान, य , संत का आदर, वेद का वा याय और सरलता आ द ही उ म एवं बल धम माने गये ह ।। ४६ ।। एष नाथ वहीनेन श यो राजन् नषे वतुम् । अखलाः पु ष ा गुणाः युय पीतरे ।। ४७ ।। ‘पु ष सह राजन्! य प मनु यम सरे सभी गुण मौजूद ह तो भी यह य आ द प धम धनहीन पु षके ारा नह स पा दत कया जा सकता ।। ४७ ।। धममूलं जगद् राजन् ना यद् धमाद् व श यते । धम ाथन महता श यो राजन् नषे वतुम् ।। ४८ ।। ‘महाराज! इस जगत्का मूल कारण धम ही है। इस जगत्म धमसे बढ़कर सरी कोई व तु नह है। उस धमका अनु ान भी महान् धनसे ही हो सकता है ।। ४८ ।। न चाथ भै यचयण ना प लै येन क ह चत् । वे ुं श यः सदा राजन् केवलं धमबु ना ।। ४९ ।। ‘राजन्! भीख माँगनेसे, कायरता दखानेसे अथवा केवल धमम ही मन लगाये रहनेसे धनक ा त कदा प नह हो सकती ।। ४९ ।। त ष ा ह ते या ञा यया स य त वै जः । तेजसैवाथ ल सायां यत व पु षषभ ।। ५० ।। ‘नर े ! ा ण जस याचनाके ारा काय स कर लेता है वह तो आप कर नह सकते, य क यके लये उसका नषेध है। अतः आप अपने तेजके ारा ही धन पानेका य न क जये ।। ५० ।। भै यचया न व हता न च वट् शू जी वका । य य वशेषेण धम तु बलमौरसम् ।। ५१ ।। ‘ यके लये न तो भीख माँगनेका वधान है और न वै य और शू क जी वका करनेका ही। उसके लये तो बल और उ साह ही वशेष धम ह ।। ५१ ।। वधम तप व ज ह श ून् समागतान् । धातरा मवनं पाथ मया पाथन नाशय ।। ५२ ।। ‘पाथ! अपने धमका आ य ली जये, ा त ए श ु का वध क जये। मेरे तथा अजुनके ारा धृतरापु पी जंगलको कटवा डा लये ।। ५२ ।। उदारमेव व ांसो धम ा मनी षणः । उदारं तप व नावरे थातुमह स ।। ५३ ।। ‘मनीषी व ान् दानशीलताको ही धम कहते ह, अतः आप उस दानशीलताको ही ा त क जये। आपको इस दयनीय अव थाम नह रहना चा हये ।। ५३ ।। अनुबु य व राजे वे थ धमान् सनातनात् । ू रकमा भजातोऽ स य मा जते जनः ।। ५४ ।। ‘ ो े ो े े

‘महाराज! आप सनातनधम को जानते ह, आप कठोर कम करनेवाले यकुलम उ प ए ह, जससे सब लोग भयभीत रहते ह; अतः अपने व प और कत क ओर यान द जये ।। ५४ ।। जापालनस भूतं फलं तव न ग हतम् । एष ते व हतो राजन् धा ा धमः सनातनः ।। ५५ ।। ‘जब आप रा य ा त कर लगे, उस समय जापालन प धमसे आपको जस पु यफलक ा त होगी, वह आपके लये ग हत नह होगा। महाराज! वधाताने आपजैसे यका यही सनातनधम नयत कया है ।। ५५ ।। त मादप चतः पाथ लोके हा यं ग म य स । वधमा मनु याणां चलनं न श यते ।। ५६ ।। ‘पाथ! उस धमसे हीन होनेपर तो संसारम आप उपहासके पा हो जायँगे। मनु य का अपने धमसे होना कुछ शंसाक बात नह है ।। ५६ ।। स ा ं दयं कृ वा य वेदं श थलं मनः । वीयमा थाय कौर धुरमु ह धुयवत् ।। ५७ ।। ‘कु न दन! अपने दयको यो चत उ साहसे भरकर मनक इस श थलताको र करके परा मका आ य ले आप एक धुर धर वीर पु षक भाँ त यु का भार वहन क जये ।। ५७ ।। न ह केवलधमा मा पृ थव जातु क न । पा थवो जयद् राजन् न भू त न पुनः यम् ।। ५८ ।। ‘महाराज! केवल धमम ही लगे रहनेवाले कसी भी नरेशने आजतक न तो कभी पृ वीपर वजय पायी है और न ऐ य तथा ल मीको ही ा त कया है ।। ५८ ।। ज ां द वा बनां ह ु ाणां लुधचेतसाम् । नकृ या लभते रा यमाहार मव श यकः ।। ५९ ।। ‘जैसे बहे लया लु ध दयवाले छोटे -छोटे मृग को कुछ खानेक व तु का लोभ दे कर छलसे उ ह पकड़ लेता है, उसी कार नी त राजा श ु के त कूटनी तका योग करके उनसे रा यको ा त कर लेता है ।। ५९ ।। ातरः पूवजाता सुसमृ ा सवशः । नकृ या न जता दे वैरसुराः पा थवषभ ।। ६० ।। ‘नृप े ! आप जानते ह क असुरगण दे वता के बड़े भाई ह, उनसे पहले उ प ए ह और सब कारसे समृ शाली ह तो भी दे वता ने छलसे उ ह जीत लया ।। ६० ।। एवं बलवतः सव म त बुद ् वा महीपते । ज ह श ून् महाबाहो परां नकृ तमा थतः ।। ६१ ।। ‘महाराज! महाबाहो! इस कार बलवान्का ही सबपर अ धकार होता है, यह समझकर आप भी कूटनी तका आ य ले अपने श ु को मार डा लये ।। ६१ ।। न जुनसमः क द् यु ध यो ा धनुधरः । भ वता वा पुमान् क म समो वा गदाधरः ।। ६२ ।। ‘ े ोई े े ी ो ो ैऔ

‘यु म अजुनके समान कोई धनुधर अथवा मेरे समान गदाधारी यो ा न तो है और न आगे होनेक ही स भावना है ।। ६२ ।। स वेन कु ते यु ं राजन् सुबलवान प । अ माद महो साही स व थो भव पा डव ।। ६३ ।। ‘पा डु न दन! अ य त बलवान् पु ष भी आ मबलसे ही यु करता है, इस लये आप सावधानीपूवक महान् उ साह और आ मबलका आ य ली जये ।। ६३ ।। स वं ह मूलमथ य वतथं यदतोऽ यथा । न तु स ं भव त वृ छायेव हैमनी ।। ६४ ।। ‘आ मबल ही धनका मूल है, इसके वपरीत जो कुछ है, वह म या है; य क हेम तऋतुम वृ क छायाके समान वह आ माक बलता कसी भी कामक नह है ।। ६४ ।। अथ यागोऽ प कायः वादथ ेयांस म छता । बीजौप येन कौ तेय मा ते भूद संशयः ।। ६५ ।। ‘कु तीकुमार! जैसे कसान अ धक अ रा श उपजानेक लालसासे धा य आ दके अ प बीज का भू मम प र याग कर दे ता है, उसी कार े अथ पानेक इ छासे अ प अथका याग कया जा सकता है। आपको इस वषयम संशय नह करना चा हये ।। ६५ ।। अथन तु समो नाथ य ल येत नोदयः । न त वपणः कायः खरक डू यनं ह तत् ।। ६६ ।। ‘जहाँ अथका उपयोग करनेपर उससे अ धक या समान अथक ा त न हो वहाँ उस अथको नह लगाना चा हये, य क वह (पर पर) गध के शरीरको खुजलानेके समान थ है ।। ६६ ।। एवमेव मनु ये धम य वा पकं नरः । बृह तं धममा ो त स बु इ त न तम् ।। ६७ ।। ‘नरे र! इसी कार जो मनु य अ प धमका प र याग करके महान् धमक ा त करता है, वह न य ही बु मान् है ।। ६७ ।। अ म ं म स प ं म ै भ द त प डताः । भ ै म ैः प र य ं बलं कुवते वशम् ।। ६८ ।। ‘ म से स प श ुको व ान् पु ष अपने म ारा भेदनी तसे उसम और उसके म म फूट डाल दे ते ह, फर भेदभाव होनेपर म जब उसको याग दे ते ह, तब वे उस बल श ुको अपने वशम कर लेते ह ।। ६८ ।। स वेन कु ते यु ं राजन् सुबलवान प । नो मेन न हो ा भः सवाः वीकु ते जाः ।। ६९ ।। ‘राजन्! अ य त बलवान् पु ष भी आ मबलसे ही यु करता है, वह कसी अ य य नसे या शंसा ारा सब जाको अपने वशम नह करता ।। ६९ ।। सवथा संहतैरेव बलैबलवान प । अ म ः श यते ह तुं मधुहा मरै रव ।। ७० ।। ‘ ै े ँ ो े े ो ी ी

‘जैसे मधुम खयाँ संग ठत होकर मधु नकालने-वालेको मार डालती ह, उसी कार सवथा संग ठत रहनेवाले बल मनु य ारा बलवान् श ु भी मारा जा सकता है ।। ७० ।। यथा राजन् जाः सवाः सूयः पा त गभ त भः । अ चैव तथैव वं स शः स वतुभव ।। ७१ ।। राजन्! जैसे भगवान् सूय पृ वीके रसको हण करते और अपनी करण ारा वषा करके उन सबक र ा करते ह, उसी कार आप भी जा से कर लेकर उनक र ा करते ए सूयके ही समान हो जाइये ।। ७१ ।। एत चा प तपो राजन् पुराण म त नः ुतम् । व धना पालनं भूमेयत् कृतं नः पतामहैः ।। ७२ ।। ‘राजे ! हमारे बाप-दाद ने जो कया है, वह धमपूवक पृ वीका पालन भी ाचीनकालसे चला आनेवाला तप ही है; ऐसा हमने सुना है ।। ७२ ।। न तथा तपसा राजँ लोकान् ा ो त यः । यथा सृ ेन यु े न वजयेनेतरेण वा ।। ७३ ।। ‘धमराज! य तप याके ारा वैसे पु य-लोक को नह ा त होता, ज ह वह अपने लये व हत यु के ारा वजय अथवा मृ युको अंगीकार करनेसे ा त करता है ।। ७३ ।। अपेयात् कल भाः सूया ल मी मस तथा । इ त लोको व सतो ् वेमां भवतो थाम् ।। ७४ ।। ‘आपपर जो यह संकट आया है, इस अस भव-सी घटनाको दे खकर लोग यह न यपूवक मानने लगे ह क सूयसे उसक भा और च मासे उसक चाँदनी भी र हो सकती है ।। ७४ ।। भवत शंसा भ न दा भ रतर य च । कथायु ाः प रषदः पृथग् राजन् समागताः ।। ७५ ।। ‘राजन्! साधारण लोग भ - भ सभा म स म लत होकर अथवा अलग-अलग समूह-के-समूह इक े होकर आपक शंसा और य धनक न दासे ही स ब ध रखनेवाली बात करते ह ।। ७५ ।। इदम य धकं राजन् ा णाः कुरव ते । समेताः कथय तीह मु दताः स यसंधताम् ।। ७६ ।। ‘महाराज! इसके सवा, यह भी सुननेम आया है क ा ण और कु वंशी एक होकर बड़ी स ताके साथ आपक स य त ताका वणन करते ह ।। ७६ ।। य मोहा काप या लोभा भयाद प । अनृतं क च ं ते न कामा ाथकारणात् ।। ७७ ।। ‘उनका कहना है क आपने कभी न तो मोहसे, न द नतासे, न लोभसे, न भयसे, न कामनासे और न धनके ही कारणसे क च मा भी अस य भाषण कया है ।। ७७ ।। यदे नः कु ते क चद् राजा भू ममवा ुवन् । सव त ुदते प ाद् य ै वपुलद णैः ।। ७८ ।। ‘

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‘राजा पृ वीको अपने अ धकारम करते समय यु ज नत हसा आ दके ारा जो कुछ पाप करता है, वह सब रा य ा तके प ात् भारी द णावाले य ारा न कर दे ता है ।। ७८ ।। ा णे यो ददद् ामान् गा राजन् सह शः । मु यते सवपापे य तमो य इव च माः ।। ७९ ।। ‘जने र! ा ण को ब त-से गाँव और सह गौएँ दानम दे कर राजा अपने सम त पाप से उसी कार मु हो जाता है, जैसे च मा अ धकारसे ।। ७९ ।। पौरजानपदाः सव ायशः कु न दन । सवृ बालस हताः शंस त वां यु ध र ।। ८० ।। ‘कु न दन यु ध र! ायः नगर और जनपदम नवास करनेवाले आबालवृ सब लोग आपक शंसा करते ह ।। ८० ।। तौ ीरमास ं वा वृषले यथा । स यं तेने बलं नाया रा यं य धने तथा ।। ८१ ।। ‘कु ेके चमड़ेक कु पीम रखा आ ध, शू म थत वेद, चोरम स य और नारीम थत बल जैसे अनु चत है, उसी कार य धनम थत राज व भी संगत नह है ।। ८१ ।। इ त लोके नवचनं पुर र त भारत । अ प चैताः यो बालाः वा यायम धकुवते ।। ८२ ।। ‘भारत! लोकम यह उपयु स य वाद पहलेसे चला आ रहा है । याँ और ब चेतक इसे न य कये जानेवाले पाठक तरह हराते रहते ह ।। ८२ ।। इमामव थां च गते सहा मा भररदम । ह त न ाः म सव वै भवतोप वे स त ।। ८३ ।। ‘श ुदमन! बड़े ःखक बात है क हमारे साथ ही आज आप इस रव थाम प ँच गये ह और आपहीके कारण ऐसा उप व आया क हम सब लोग न हो गये ।। ८३ ।। स भवान् रथमा थाय सव पकरणा वतम् । वरमाणोऽ भ नयातु व े योऽथ वभावकः ।। ८४ ।। ‘महाराज! आप वजयम ा त ए धनका ा ण को दान करनेके लये अ -श आ द सभी आव यक साम य से सुस जत रथपर बैठकर शी यहाँसे यु के लये नक लये ।। ८४ ।। वाच य वा ज े ान ैव गजसा यम् । अ व ः प रवृतो ातृ भ ढध व भः ।। ८५ ।। आशी वषसमैव रैम रव वृ हा । अ म ां तेजसा मृदन ् सुरा नव वृ हा । यमाद व कौ तेय धातरा ान् महाबल ।। ८६ ।। ‘जैसे सप के समान भयंकर शूरवीर दे वता से घरे ए वृ नाशक इ असुर पर आ मण करते ह, उसी कार अ - व ाके ाता और सु ढ़ धनुष धारण करनेवाले हम सब भाइय से घरे ए आप े ा ण से व तवाचन कराकर आज ही ह तनापुरपर ई े ी ी ै े े े े ै ो े े

चढ़ाई क जये। महाबली कु तीकुमार! जैसे इ अपने तेजसे दै य को म म मला दे ते ह, उसी कार आप अपने भावसे श ु को म म मलाकर धृतरापु य धनसे अपनी राजल मीको ले ली जये ।। ८५-८६ ।। न ह गा डीवमु ानां शराणां गा वाससाम् । पशमाशी वषाभानां म यः क न संसहेत् ।। ८७ ।। ‘मनु य म कोई ऐसा नह है, जो गा डीव धनुषसे छू टे ए वषैले सप के समान भयंकर गृ पंखयु बाण का पश सह सके ।। ८७ ।। न स वीरो न मात ो न च सोऽ ोऽ त भारत । यः सहेत गदावेगं मम ु य संयुगे ।। ८८ ।। ‘भारत! इसी कार जगत्म ऐसा कोई अ या गजराज या कोई वीर पु ष भी नह है, जो रणभू मम ोधपूवक वचरनेवाले मुझ भीमसेनक गदाका वेग सह सके ।। ८८ ।। सृ यैः सह कैकेयैवृ णीनां वृषभेण च । कथं वद् यु ध कौ तेय न रा यं ा ुयामहे ।। ८९ ।। ‘कु तीन दन! सृंजय और कैकयवंशी वीर तथा वृ णवंशावतंस भगवान् ीकृ णके साथ होकर हम सं ामम अपना रा य कैसे नह ा त कर लगे? ।। ८९ ।। श ुह तगतां राजन् कथं व ाहरेमहीम् । इह य नमुपा य बलेन महता वतः ।। ९० ।। ‘राजन्! आप वशाल सेनासे स प हो यहाँ य नपूवक यु ठानकर श ु के हाथम गयी ई पृ वीको उनसे छ न य नह लेते?’ ।। ९० ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण अजुना भगमनपव ण भीमवा ये य ंशोऽ यायः ।। ३३ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत अजुना भगमनपवम भीमवा य वषयक ततीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ३३ ।।

चतु

ंशोऽ यायः

धम और नी तक बात कहते ए यु ध रक अपनी त ाके पालन प धमपर ही डटे रहनेक घोषणा वैश पायन उवाच स एवमु तु महानुभावः स य तो भीमसेनेन राजा । अजातश ु तदन तरं वै धैया वतो वा य मदं बभाषे ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! भीमसेन जब इस कार अपनी बात पूरी कर चुके, तब महानुभाव, स य त एवं अजातश ु राजा यु ध रने धैयपूवक उनसे यह बात कही— ।। १ ।। यु ध र उवाच असंशयं भारत स यमेतद् य मां तुदन् वा यश यैः णो ष । न वां वगह तकूलमेव ममानया सनं व आगात् ।। २ ।। यु ध र बोले—भरतकुलन दन! तुम मुझे पीड़ा दे ते ए अपने वाग्बाण ारा मेरे दयको जो वद ण कर रहे हो, यह नःसंदेह ठ क ही है। मेरे तकूल होनेपर भी इन बात के लये म तु हारी न दा नह करता; य क मेरे ही अ यायसे तुमलोग पर यह वप आयी है ।। २ ।। अहं ान वप ं जहीषन् रा यं सरा ं धृतरा य पु ात् । त मां शठः कतवः यदे वीत् सुयोधनाथ सुबल य पु ः ।। ३ ।। उन दन धृतरापु य धनके हाथसे उसके रा तथा राजपदका अपहरण करनेक इ छा रखकर ही म ूत ड़ाम वृ आ था; कतु उस समय धूत जुआरी सुबलपु शकु न य धनके लये उसक ओरसे मेरे वप म आकर जूआ खेलने लगा ।। ३ ।। महामायः शकु नः पवतीयः सभाम ये वप पूगान् । अमा यनं मायया यजैषीत् ततोऽप यं वृ जनं भीमसेन ।। ४ ।। ी









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भीमसेन! पवतीय दे शका नवासी शकु न बड़ा मायावी है। उसने ूतसभाम पासे फककर अपनी माया ारा मुझे जीत लया; य क म माया नह जानता था; इसी लये मुझे यह संकट दे खना पड़ा है ।। ४ ।। अ ां ् वा शकुनेयथावत् कामानुकूलानयुजो युज । श यो नय तुमभ व यदा मा म यु तु ह यात् पु ष य धैयम् ।। ५ ।। शकु नके सम और वषम सभी पास को उसक इ छाके अनुसार ही ठ क-ठ क पड़ते दे खकर य द अपने मनको जूएक ओरसे रोका जा सकता तो यह अनथ न होता, परंतु ोधावेश मनु यके धैयको न कर दे ता है (इसी लये म जूएसे अलग न हो सका) ।। ५ ।। य तुं ना मा श यते पौ षेण मानेन वीयण च तात न ः । न ते वाचो भीमसेना यसूये म ये तथा तद् भ वत मासीत् ।। ६ ।। तात भीमसेन! कसी वषयम आस ए च को पु षाथ, अ भमान अथवा परा मसे नह रोका जा सकता (अथा उसे रोकना ब त ही क ठन है), अतः म तु हारी बात के लये बुरा नह मानता। म समझता ँ, वैसी ही भ वत ता थी ।। ६ ।। स नो राजा धृतरा य पु ो यपातयद् सने रा य म छन् । दा यं च नोऽगमयद् भीमसेन य ाभव छरणं ौपद नः ।। ७ ।। भीमसेन! धृतराक े पु राजा य धनने रा य पानेक इ छासे हमलोग को वप म डाल दया। हम दासतक बना लया था, कतु उस समय ौपद हमलोग क र क ई ।। ७ ।। वं चा प तद् वे थ धनंजय पुन ूतायागतानां सभां नः । य माऽ वीद् धृतरा य पु एक लहाथ भरतानां सम म् ।। ८ ।। तुम और अजुन दोन इस बातको जानते हो क जब हम पुनः ूतके लये बुलाये जानेपर उस सभाम आये तो उस समय सम त भरतवं शय के सम धृतरापु य धनने मुझसे एक ही दाँव लगानेके लये इस कार कहा— ।। ८ ।। वने समा ादश राजपु यथाकामं व दतमजातश ो । अथापरं चा व दतं चरेथाः सवः सह ातृ भ छगूढः ।। ९ ।। ‘

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‘राजकुमार अजातश ो! (य द आप हार जायँ तो) आपको बारह वष तक इ छानुसार सबक जानकारीम और पुनः एक वषतक गु त वेषम छपे रहकर अपने भाइय के साथ वनम नवास करना पड़ेगा ।। ९ ।। वां चे छ वा तात तथा चर तमवभो य ते भरतानां चरा । अ यां रेथा तावतोऽ दां तथा वं न य तत् तजानी ह पाथ ।। १० ।। ‘कु तीकुमार! य द भरतवं शय के गु तचर आपके गु त नवासका समाचार सुनकर पता लगाने लग और उ ह यह मालूम हो जाय क आपलोग अमुक जगह अमुक पम रह रहे ह, तब आपको पुनः उतने (बारह) ही वष तक वनम रहना पड़ेगा। इस बातको न य करके इसके वषयम त ा क जये ।। १० ।। चरे े ोऽ व दतः कालमेतं यु ो राजन् मोह य वा मद यान् । वी म स यं कु संसद ह तवैव ता भारत प च न ः ।। ११ ।। ‘भरतवंशी नरेश! य द आप सावधान रहकर इतने समयतक मेरे गु तचर को मो हत करके अ ात-भावसे ही वचरते रह तो म यहाँ कौरव क सभाम यह स य त ा करता ँ क उस सारे पंचनद दे शपर फर तु हारा ही अ धकार होगा ।। ११ ।। वयं चैतद् भारत सव एव वया जताः कालमपा य भोगान् । वसेम इ याह पुरा स राजा म ये कु णां स मयो तथे त ।। १२ ।। ‘भारत! य द आपने ही हम सब लोग को जीत लया तो हम भी उतने ही समयतक सारे भोग का प र याग करके उसी कार वास करगे।’ राजा य धनने जब सम त कौरव के बीच इस कार कहा, तब मने भी ‘तथा तु’ कहकर उसक बात मान ली ।। १२ ।। त ूतमभव ो जघ यं त म ताः जता सव । इ थं तु दे शाननुसंचरामो वना न कृ ा ण च कृ पाः ।। १३ ।। फर वहाँ हमलोग का अ तम बार न दनीय जूआ आ। उसम हम सब लोग हार गये और घर छोड़कर वनम नकल आये। इस कार हम क द वेष धारण करके क दायक वन और व भ दे श म घूम रहे ह ।। १३ ।। सुयोधन ा प न शा त म छन् भूयः स म योवशम वग छत् । उ ोजयामास कु ं सवान् े े

ये चा य के चद् वशम वग छन् ।। १४ ।। उधर य धन भी शा तक इ छा न रखकर और भी ोधके वशीभूत हो गया है। उसने हम तो क म डाल दया और सरे सम त कौरव को जो उसके वशम होकर उसीका अनुसरण करते रहे ह, (दे शशासक और गर क आ द) ऊँचे पद पर त त कर दया है ।। १४ ।। तं सं धमा थाय सतां सकाशे को नाम ज ा दह रा यहेतोः । आय य म ये मरणाद् गरीयो य ममु य मह शासेत् ।। १५ ।। कौरव-सभाम साधु पु ष के समीप वैसी स धका आ य लेकर यानी त ा करके अब यहाँ रा यके लये उसे कौन तोड़े? धमका उ लंघन करके पृ वीका शासन करना तो कसी े पु षके लये मृ युसे भी बढ़कर ःखदायक है—ऐसा मेरा मत है ।। १५ ।। तदै व चेद ् वीर कमाक र यो यदा ूते प रघं पयमृ ः । बा दध न् वा रतः फा गुनेन क कृतं भीम तदाभ व यत् ।। १६ ।। ागेव चैवं समय यायाः क ना वीः पौ षमा वदानः । ा तं तु कालं व भप प ात् क मा मदानीम तवेलमा थ ।। १७ ।। वीर भीमसेन! ूतके समय जब तुमने मेरी दोन बाँह को जला दे नेक इ छा कट क और अजुनने तु ह रोका, उस समय तुम श ु पर आघात करनेके लये अपनी गदापर हाथ फेरने लगे थे। य द उसी समय तुमने श ु पर आघात कर दया होता तो कतना अनथ हो जाता। तुम अपना पु षाथ तो जानते ही थे। जब म पूव कारक त ा करने लगा उससे पहले ही तुमने ऐसी बात य नह कही? जब त ाके अनुसार वनवासका समय वीकार कर लया, तब पीछे चलकर इस समय य मुझसे अ य त कठोर बात कहते हो? ।। १६-१७ ।। भूयोऽ प ःखं मम भीमसेन ये वष येव रसं ह पी वा । यद् या सेन प र ल यमानां सं य तत् ा त म त म भीम ।। १८ ।। भीमसेन! मुझे इस बातका भी बड़ा ःख है क ौपद को श ु ारा लेश दया जा रहा था और हमने अपनी आँख दे खकर भी उसे चुपचाप सह लया। जैसे कोई वष घोलकर पी ले और उसक पीड़ासे कराहने लगे, वैसी ही वेदना इस समय मुझे हो रही है ।। १८ ।। न व श यं भरत वीर ी े

कृ वा य ं कु वीरम ये । कालं ती व सुखोदय य प फलाना मव बीजवापः ।। १९ ।। भरतवंशके मुख वीर! कौरव वीर के बीच मने जो त ा क है, उसे वीकार कर लेनेके बाद अब इस समय आ मण नह कया जा सकता। जैसे बीज बोनेवाला कसान अपनी खेतीके फल के पकनेक बाट जोहता रहता है, उसी कार तुम भी उस समयक ती ा करो, जो हमारे लये सुखक ा त करानेवाला है ।। १९ ।। यदा ह पूव नकृतो नकृ तेद ् वैरं सपु पं सफलं व द वा । महागुणं हर त ह पौ षेण तदा वीरो जीव त जीवलोके ।। २० ।। जब पहले श ुके ारा धोखा खाया आ वीर पु ष उसे फूलता-फलता जानकर अपने पु षाथके ारा उसका मूलो छे द कर डालता है, तभी उस श ुके महान् गुण का अपहरण कर लेता है और इस जगत्म सुखपूवक जी वत रहता है ।। २० ।। यं च लोके लभते सम ां म ये चा मै श वः संनम ते । म ा ण चैनम चराद् भज ते दे वा इवे मुपजीव त चैनम् ।। २१ ।। वह वीर पु ष लोकम स पूण ल मीको ा त कर लेता है। म यह भी मानता ँ क सभी श ु उसके सामने नतम तक हो जाते ह। फर थोड़े ही दन म उसके ब त-से म बन जाते ह और जैसे दे वता इ के सहारे जीवन धारण करते ह, उसी कार वे म गण उस वीरक छ छायाम रहकर जीवन- नवाह करते ह ।। २१ ।। मम त ां च नबोध स यां वृणे धमममृता जी वता च । रा यं च पु ा यशो धनं च सव न स य य कलामुपै त ।। २२ ।। कतु भीमसेन! मेरी यह स ची त ा सुनो। म जीवन और अमर वक अपे ा भी धमको ही बढ़कर समझता ँ। रा य, पु , यश और धन—ये सब-के-सब स यधमक सोलहव कलाको भी नह पा सकते ।। २२ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण अजुना भगमनपव ण यु ध रवा ये चतु श ं ोऽ यायः ।। ३४ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत अजुना भगमनपवम यु ध रवा य वषयक च तीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ३४ ।।

प च शोऽ यायः ः खत भीमसेनका यु ध रको यु के लये उ सा हत करना भीमसेन उवाच संध कृ वैव कालेन तकेन पत णा । अन तेना मेयेण ोतसा सवहा रणा ।। १ ।। य ं म यसे कालं म यः सन् कालब धनः । फेनधमा महाराज फलधमा तथैव च ।। २ ।। भीमसेन बोले—महाराज! आप फेनके समान न र, फलके समान पतनशील तथा कालके ब धनम बँधे ए मरणधमा मनु य ह तो भी आपने सबका अ त और संहार करनेवाले, बाणके समान वेगवान्, अन त, अ मेय एवं जलोतक े समान वाहशील लंबे कालको बीचम दे कर य धनके साथ स ध करके उस कालको अपनी आँख के सामने आया आ मानते ह ।। १-२ ।। नमेषाद प कौ तेय य यायुरपचीयते । सू येवा नचूण य क म त तपालयेत् ।। ३ ।। कतु कु तीकुमार! सलाईसे थोड़ा-थोड़ा करके उठाये जानेवाले अंजनचूण (सुरमे)-क भाँ त एक-एक नमेषम जसक आयु ीण हो रही है, वह णभंगरु मानव समयक ती ा या कर सकता है? ।। ३ ।। यो नूनम मतायुः वादथवा प माण वत् । स कालं वै ती ेत सव य द शवान् ।। ४ ।। अव य ही जसक आयुक कोई माप नह है अथवा जो आयुक न त सं याको जानता है तथा जसने सब कुछ य दे ख लया है। वही समयक ती ा कर सकता है ।। ४ ।। ती यमाणः कालो नः समा राजं योदश । आयुषोऽपचयं कृ वा मरणायोपने य त ।। ५ ।। राजन्! तेरह वष तक हम जसक ती ा करनी है, वह काल हमारी आयुको ीण करके हम सबको मृ युके नकट प ँचा दे गा ।। ५ ।। शरी रणां ह मरणं शरीरे न यमा तम् । ागेव मरणात् त माद् रा यायैव घटामहे ।। ६ ।। दे हधारीक मृ यु सदा उसके शरीरम ही नवास करती है, अतः मृ युके पहले ही हम रा य- ा तके लये चे ा करनी चा हये ।। ६ ।। यो न या त सं यानम प ो भू मवधनः । अयात य वा वैरा ण सोऽवसीद त गौ रव ।। ७ ।। ै









जसका भाव छपा आ है, वह भू मके लये भार प ही है, य क वह जनसाधारणम या त नह ा त कर सकता। वह वैरका तशोध न लेनेके कारण बैलक भाँ त ःख उठाता रहता है ।। ७ ।। यो न यातयते वैरम पस वो मः पुमान् । अफलं ज म त याहं म ये जातजा यनः ।। ८ ।। जसका बल और उ म ब त कम है, जो वैरका बदला नह ले सकता, उस पु षका ज म अ य त घृ णत है। म तो उसके ज मको न फल मानता ँ ।। ८ ।। हैर यौ भवतो बा ु तभव त पा थवी । ह वा ष तं सं ामे भुङ् व बा जतं वसु ।। ९ ।। महाराज! आपक दोन भुजाएँ सुवणक अ धका रणी ह। आपक क त राजा पृथुके समान है। आप यु म श ुका संहार करके अपने बा बलसे उपाजत धनका उपभोग क जये ।। ९ ।। ह वा वै पु षो राजन् नकतारमरदम । अ ाय नरकं ग छे त् वगणा य स स मतः ।। १० ।। श ुदमन नरेश! य द मनु य अपनेको धोखा दे नेवाले श ुका वध करके तुरंत ही नरकम पड़ जाय तो उसके लये वह नरक भी वगके तु य है ।। १० ।। अमषजो ह संतापः पावकाद् द तम रः । येनाहम भसंत तो न न ं न दवा शये ।। ११ ।। अमषसे जो संताप होता है, वह आगसे भी बढ़कर जलानेवाला है। जससे संत त होकर मुझे न तो रातम न द आती है और न दनम ।। ११ ।। अयं च पाथ बीभ सुव र ो या वकषणे । आ ते परमसंत तो नूनं सह इवाशये ।। १२ ।। ये हमारे भाई अजुन धनुषक यंचा ख चनेम सबसे े ह; परंतु ये भी न य ही अपनी गुफाम ःखी होकर बैठे ए सहक भाँ त सदा अ य त संत त होते रहते ह ।। १२ ।। योऽयमेकोऽ भमनुते सवान् लोके धनुभृतः । सोऽयमा मजमू माणं महाह तीव य छ त ।। १३ ।। जो अकेले ही संसारके सम त धनुधर वीर का सामना कर सकते ह, वे ही अजुन महान् गजराजक भाँ त अपने मान सक ोधज नत संतापको कसी कार रोक रहे ह ।। १३ ।। नकुलः सहदे व वृ ा माता च वीरसूः । तवैव य म छ त आसते जडमूकवत् ।। १४ ।। नकुल, सहदे व तथा वीरपु को ज म दे नेवाली हमारी बूढ़ माता कु ती—ये सब-केसब आपका य करनेक इ छा रखकर ही मूख और गूँग क भाँ त चुप रहते ह ।। १४ ।। सव ते य म छ त बा धवाः सह सृ यैः । अहमेक संत तो माता च त व यतः ।। १५ ।। े ी औ ी ो ी े

आपके सभी ब धु-बा धव और सृंजयवंशी यो ा भी आपका य करना चाहते ह। केवल हम दो य को ही वशेष क है। एक तो म संत त होता ँ और सरी त व यक माता ौपद ।। १५ ।। यमेव तु सवषां यद् वी युत कचन । सव ह सनं ा ताः सव यु ा भन दनः ।। १६ ।। म जो कुछ कहता ँ, वह सबको य है। हम सब लोग संकटम पड़े ह और सभी यु का अ भन दन करते ह ।। १६ ।। नातः पापीयसी का चदापद् राजन् भ व य त । य ो नीचैर पबलै रा यमा छ भु यते ।। १७ ।। राजन्! इससे बढ़कर अ य त ःखदा यनी वप और या होगी क नीच और बल श ु हम बलवान का रा य छ नकर उसका उपभोग कर रहे ह ।। १७ ।। शीलदोषाद् घृणा व आनृशं यात् परंतप । लेशां त त से राजन् ना यः क चत् शंस त ।। १८ ।। परंतप यु ध र! आप शील- वभावके दोष और कोमलतासे एवं दयाभावसे यु होनेके कारण इतने लेश सह रहे ह, परंतु महाराज! इसके लये आपक कोई शंसा नह करता है ।। १८ ।। ो य येव ते राजन् म दक या वप तः । अनुवाकहता बु नषा त वाथद शनी ।। १९ ।। राजन्! आपक बु अथ ानसे र हत वेद के अ रमा को रटनेवाले म दबु ो यक तरह केवल गु क वाणीका अनुसरण करनेके कारण न हो गयी है। यह ता वक अथको समझने या समझानेवाली नह है ।। १९ ।। घृणी ा ण पोऽ स कथं ेऽ यजायथाः । अ यां ह योनौ जाय ते ायशः ू रबु यः ।। २० ।। आप दयालु ा ण प ह। पता नह , यकुलम कैसे आपका ज म हो गया; य क य यो नम तो ायः ू र बु के ही पु ष उ प होते ह ।। २० ।। अ ौषी वं राजधमान् यथा वै मनुर वीत् । ू रान् नकृ तस प ान् व हतानशमा मकान् ।। २१ ।। धातरा ान् महाराज मसे क रा मनः । कत े पु ष ा कमा से पीठसपवत् ।। २२ ।। बु या वीयण संयु ः ुतेना भजनेन च । महाराज! आपने राजधमका वणन तो सुना ही होगा, जैसा मनुजीने कहा है। फर ू र, मायावी, हमारे हतके वपरीत आचरण करनेवाले तथा अशा त च वाले रा मा धृतरापु का अपराध आप य मा करते ह? पु ष सह! आप बु , परा म, शा ान तथा उ म कुलसे स प होकर भी जहाँ कुछ काम करना है, वहाँ अजगरक भाँ त चुपचाप य बैठे ह? ।। २१-२२ ।। ै े

तृणानां मु नैकेन हमव तं च पवतम् ।। २३ ।। छ म छ स कौ तेय योऽ मात् संवतु म छ स । कु तीन दन! आप अ ातवासके समय जो हम-लोग को छपाकर रखना चाहते ह, इससे जान पड़ता है क आप एक मु तनकेसे हमालय पवतको ढक दे ना चाहते ह ।। २३ ।। अ ातचया गूढेन पृ थ ां व ुतेन च ।। २४ ।। दवीव पाथ सूयण न श याच रतुं वया । पाथ! आप इस भूम डलम व यात ह, जैसे सूय आकाशम छपकर नह रह सकते, उसी कार आप भी कह छपे रहकर अ ातवासका नयम नह पूरा कर सकते ।। २४ ।। बृह छाल इवानूपे शाखापु पपलाशवान् ।। २५ ।। ह ती ेत इवा ातः कथं ज णु र य त । जहाँ जलक अ धकता हो, ऐसे दे शम शाखा, पु प और प से सुशो भत वशाल शालवृ के समान अथवा ेत गजराज ऐरावतके स श ये अजुन कह भी अ ात कैसे रह सकगे? ।। २५ ।। इमौ च सहसंकाशौ ातरौ स हतौ शशू ।। २६ ।। नकुलः सहदे व कथं पाथ च र यतः । कु तीकुमार! ये दोन भाई बालक नकुल-सहदे व सहके समान परा मी ह। ये दोन कैसे छपकर वचर सकगे? ।। २६ ।। पु यक त राजपु ी ौपद वीरसू रयम् ।। २७ ।। व ुता कथम ाता कृ णा पाथ च र य त । पाथ! यह वीरजननी प व क त राजकुमारी ौपद सारे संसारम व यात है। भला, यह अ ातवासके नयम कैसे नभा सकेगी ।। २७ ।। मां चा प राज ान त ाकुमार ममाः जाः ।। २८ ।। ना ातचया प या म मेरो रव नगूहनम् । महाराज! मुझे भी जावगके ब चेतक पहचानते ह, जैसे मे पवतको छपाना अस भव है, उसी कार मुझे अपनी अ ातचया भी स भव नह दखायी दे ती ।। २८ ।। तथैव बहवोऽ माभी रा े यो व वा सताः ।। २९ ।। राजानो राजपु ा धृतरा मनु ताः । न ह तेऽ युपशा य त नकृता वा नराकृताः ।। ३० ।। राजन्! इसके सवा एक बात और है, हमलोग ने भी ब त-से राजा तथा राजकुमार को उनके रा यसे नकाल दया है। वे सब आकर राजा धृतरासे मल गये ह गे, हमने जनको रा यसे वं चत कया अथवा नकाला है, वे कदा प हमारे त शा तभाव नह धारण कर सकते ।। २९-३० ।। अव यं तै नकत म माकं त यै ष भः । े



तेऽ य मासु यु ीरन् छ ान् सुबं रान् । आच ीरं नो ा वा ततः यात् सुमहत् भयम् ।। ३१ ।। अव य ही य धनका य करनेक इ छा रखकर वे राजालोग भी हमलोग को धोखा दे ना उ चत समझकर हमलोग क खोज करनेके लये ब त-से छपे ए गु तचर नयु करगे और पता लग जानेपर न य ही य धनको सू चत कर दगे। उस दशाम हमलोग पर बड़ा भारी भय उप थत हो जायगा ।। ३१ ।। अ मा भ षताः स यग्वने मासा योदश । प रमाणेन तान् प य तावतः प रव सरान् ।। ३२ ।। हमने अबतक वनम ठ क-ठ क तेरह महीने तीत कर लये ह, आप इ ह को प रमाणम तेरह वष समझ ली जये ।। ३२ ।। अ त मासः त न धयथा ा मनी षणः । पू तका मव सोम य तथेदं यता म त ।। ३३ ।। मनीषी पु ष का कहना है क मास संव सरका त न ध है। जैसे पू तका सोमलताके थानपर य म काम दे ती है, उसी कार आप इन तेरह मास को ही तेरह वष का त न ध वीकार कर ली जये ।। ३३ ।। अथवानडु हे राजन् साधवे साधुवा हने । सौ ह यदानादे त मादे नसः तमु यते ।। ३४ ।। राजन्! अथवा अ छ तरह बोझ ढोनेवाले उ म बैलको भरपेट भोजन दे दे नेपर इस पापसे आपको छु टकारा मल सकता है ।। ३४ ।। त मा छ ुवधे राजन् यतां न य वया । य य ह सव य ना यो धम ऽ त संयुगात् ।। ३५ ।। अतः महाराज! आप श ु का वध करनेका न य क जये; य क सम त य के लये यु से बढ़कर सरा कोई धम नह है ।। ३५ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण अजुना भगमनपव ण भीमवा ये प च शोऽ यायः ।। ३५ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत अजुना भगमनपवम भीमवा य वषयक पतीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ३५ ।।

षट् शोऽ यायः यु ध रका भीमसेनको समझाना, ासजीका आगमन और यु ध रको त मृ त व ा दान तथा पा डव का पुनः का यकवनगमन वैश पायन उवाच भीमसेनवचः ु वा कु तीपु ो यु ध रः । नः य पु ष ा ः स द यौ परंतपः ।। १ ।। ुता मे राजधमा वणानां च व न याः । आय यां च तदा वे च यः प य त स प य त ।। २ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! भीमसेन-क बात सुनकर श ु को संताप दे नेवाले पु ष सह कु तीपु यु ध र ल बी साँस लेकर मन-ही-मन वचार करने लगे —‘मने राजा के धम एवं वण के सु न त स ा त भी सुने ह, परंतु जो भ व य और वतमान दोन पर रखता है, वही यथाथदश है ।। १-२ ।। धम य जानमानोऽहं ग तम यां सु वदाम् । कथं बलात् क र या म मेरो रव वमदनम् ।। ३ ।। ‘धमक े ग त अ य त ब ध है, उसे जानता आ भी म कैसे बलपूवक मे पवतके समान महान् उस धमका मदन क ँ गा’ ।। ३ ।। स मुत मव या वा व न ये तकृ यताम् । भीमसेन मदं वा यमपदा तरम वीत् ।। ४ ।। इस कार दो घड़ीतक वचार करनेके प ात् अपनेको या करना है, इसका न य करके यु ध रने भीमसेनसे अ वल ब यह बात कही ।। ४ ।। यु ध र उवाच एवमेत महाबाहो यथा वद स भारत । इदम यत् समाद व वा यं मे वा यको वद ।। ५ ।। यु ध र बोले—महाबा भरतकुल तलक वा य वशारद भीम! तुम जैसा कह रहे हो, वह ठ क है, तथा प मेरी यह सरी बात भी मानो ।। ५ ।। महापापा न कमा ण या न केवलसाहसात् । आर य ते भीमसेन थ ते ता न भारत ।। ६ ।। भरतन दन भीमसेन! जो महान् पापमय कम केवल साहसके भरोसे आर भ कये जाते ह, वे सभी क दायक होते ह ।। ६ ।। सुम ते सु व ा ते सुकृते सु वचा रते । स य यथा महाबाहो दै वं चा द णम् ।। ७ ।। ो









महाबाहो! अ छ तरहसे सलाह और वचार करके पूरा परा म कट करते ए सु दर पसे जो काय कये जाते ह, वे सफल होते ह और उसम दै व भी अनुकूल हो जाता है ।। ७ ।। यत् तु केवलचाप याद् बलदप थतः वयम् । आरध मद ं काय म यसे शृणु त मे ।। ८ ।। तुम वयं बलके घम डसे उ म हो जो केवल चपलतावश वयं इस यु पी कायको अभी आर भ करनेके यो य मान रहे हो, उसके वषयम मेरी बात सुनो ।। ८ ।। भू र वाः शल ैव जलसंध वीयवान् । भी मो ोण कण ोणपु वीयवान् ।। ९ ।। धातरा ा राधषा य धनपुरोगमाः । सव एव कृता ा सततं चातता यनः ।। १० ।। राजानः पा थवा ैव येऽ मा भ पता पताः । सं ताः कौरवं प ं जात नेहा तं त ।। ११ ।। भू र वा, शल, परा मी जलसंध, भी म, ोण, कण, बलवान् अ थामा तथा सदाके आततायी य धन आ द धष धृतरा पु —ये सभी अ - व ाके ाता ह एवं हमने जन राजा तथा भू मपाल को यु म क प ँचाया है, वे सभी कौरवप म मल गये ह और उधर ही उनका नेह हो गया है ।। ९—११ ।। य धन हते यु ा न तथा मासु भारत । पूणकोशा बलोपेताः य त य त संगरे ।। १२ ।। भारत! वे य धनके हतम ही संल न ह गे; हमलोग के त उनका वैसा स ाव नह हो सकता। उनका खजाना भरा-पूरा है और वे सै नक-श से भी स प ह, अतः वे यु छड़नेपर हमारे व ही य न करगे ।। १२ ।। सव कौरवसै य य सपु ामा यसै नकाः । सं वभ ा ह मा ा भभ गैर प च सवशः ।। १३ ।। म य और पु के स हत कौरवसेनाके सभी सै नक को य धनक ओरसे पूरे वेतन और सब कारक उपभोग-साम ीका वतरण कया गया है ।। १३ ।। य धनेन ते वीरा मा नता वशेषतः । ाणां य य त सं ामे इ त मे न ता म तः ।। १४ ।। इतना ही नह , य धनने उन वीर का वशेष आदर-स कार भी कया है। अतः मेरा यह व ास है क वे उसके लये सं ामम (हँसते-हँसते) ाण दे दगे ।। १४ ।। समा य प भी म य वृ र मासु तेषु च । ोण य च महाबाहो कृप य च महा मनः ।। १५ ।। अव यं राज प ड तै नव य इ त मे म तः । त मात् य य त सं ामे ाणान प सु यजान् ।। १६ ।। महाबाहो! य प पतामह भी म, आचाय ोण तथा महामना कृपाचायका आ त रक नेह धृतराक े पु तथा हमलोग पर एक-सा ही है, तथा प वे राजा य धनका दया आ े े ऐ े ी ो ै े

अ खाते ह, अतः उसका ऋण अव य चुकायगे, ऐसा मुझे तीत होता है। यु छड़नेपर वे भी य धनके प से ही लड़कर अपने यज ाण का भी प र याग कर दगे ।। १५-१६ ।। सव द ा व ांसः सव धमपरायणाः । अजेया े त मे बु र प दे वैः सवासवैः ।। १७ ।। वे सब-के-सब द ा के ाता और धमपरायण ह। मेरी बु म तो यहाँतक आता है क इ आ द स पूण दे वता भी उ ह परा त नह कर सकते ।। १७ ।। अमष न यसंरध त कण महारथः । सवा वदनाधृ यो भे कवचावृतः ।। १८ ।। उस प म महारथी कण भी है, जो हमारे त सदा अमष और ोधसे भरा रहता है। वह सब अ का ाता, अजेय तथा अभे कवचसे सुर त है ।। १८ ।। अ न ज य रणे सवानेतान् पु षस मान् । अश यो सहायेन ह तुं य धन वया ।। १९ ।। इन सम त वीर पु ष को यु म परा त कये बना तुम अकेले य धनको नह मार सकते ।। १९ ।। न न ाम धग छा म च तयानो वृकोदर । अ तसवान् धनु ाहान् सूतपु य लाघवम् ।। २० ।। वृकोदर! सूतपु कणके हाथ क फुत सम त धनुधर से बढ़-चढ़कर है। उसका मरण करके मुझे अ छ तरह न द नह आती है ।। २० ।। वैश पायन उवाच एतद् वचनमा ाय भीमसेनोऽ यमषणः । बभूव वमना तो न चैवोवाच कचन ।। २१ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! यु ध रका यह वचन सुनकर अ य त ोधी भीमसेन उदास और शंकायु हो गये। फर उनके मुँहसे कोई बात नह नकली ।। २१ ।। तयोः संवदतोरेवं तदा पा डवयो योः । आजगाम महायोगी ासः स यवतीसुतः ।। २२ ।। दोन पा डव म इस कार बातचीत हो ही रही थी क महायोगी स यवतीन दन ास वहाँ आ प ँचे ।। २२ ।। सोऽ भग य यथा यायं पा डवैः तपू जतः । यु ध र मदं वा यमुवाच वदतां वरः ।। २३ ।। पा डव ने उठकर उनक अगवानी क और यथायो य पूजन कया। त प ात् व ा म े ासजी यु ध रसे इस कार बोले— ।। २३ ।। ास उवाच यु ध र महाबाहो वे ते दय थतम् । मनीषया ततः मागतोऽ म नरषभ ।। २४ ।। ी े े े े

ासजीने कहा—नर े महाबा यु ध र! म यानके ारा तु हारे मनका भाव जान चुका ँ। इस लये शी तापूवक यहाँ आया ँ ।। २४ ।। भी माद् ोणात् कृपात् कणाद् ोणपु ा च भारत । य धना ृपसुतात् तथा ःशासनाद प ।। २५ ।। यत् ते भयम म न द स प रवतते । तत् तेऽहं नाश य या म व ध ेन कमणा ।। २६ ।। श ुह ता भारत! भी म, ोण, कृपाचाय, कण, अ थामा, धृतरापु य धन और ःशासनसे भी जो तु हारे मनम भय समा गया है, उसे म शा ीय उपायसे न कर ँ गा ।। २५-२६ ।। त छ वा धृ तमा थाय कमणा तपादय । तपा तु राजे ततः ं वरं ज ह ।। २७ ।। राजे ! उस उपायको सुनकर धैयपूवक य न ारा उसका अनु ान करो। उसका अनु ान करके शी ही अपनी मान सक च ताका प र याग कर दो ।। २७ ।। तत एका तमु ीय पाराशय यु ध रम् । अ वी पप ाथ मदं वा य वशारदः ।। २८ ।। तदन तर वचनकुशल पराशरन दन ासजी यु ध रको एका तम ले गये और उनसे यह यु यु वचन बोले— ।। २८ ।। ेयस ते परः कालः ा तो भरतस म । येना भभ वता श ून् रणे पाथ धनुधरः ।। २९ ।। ‘भरत े ! तु हारे क याणका सव े समय आया है, जससे धनुधर अजुन यु म श ु को परा जत कर दगे ।। २९ ।। गृहाणेमां मया ो ां स मू तमती मव । व ां त मृ त नाम प ाय वी म ते ।। ३० ।। ‘मेरी द ई इस त मृ त नामक व ाको हण करो, जो मू तमती स के समान है। तुम मेरे शरणागत हो, इस लये म तु ह इस व ाका उपदे श करता ँ ।। ३० ।। यामवा य महाबा रजुनः साध य य त । अ हेतोमहे ं च ं चैवा भग छतु ।। ३१ ।। व णं च कुबेरं च धमराजं च पा डव । श ो ेष सुरान् ु ं तपसा व मेण च ।। ३२ ।। ‘ जसे तुमसे पाकर महाबा अजुन अपना सब काय स करगे। पा डु न दन! ये अजुन द ा क ा तके लये दे वराज इ , , व ण, कुबेर तथा धमराजके पास जायँ। ये अपनी तप या और परा मसे दे वता को य दे खनेम समथ ह गे ।। ३१-३२ ।। ऋ षरेष महातेजा नारायणसहायवान् । पुराणः शा तो दे व वजेयो ज णुर युतः ।। ३३ ।। अ ाणी ा च ा च लोकपाले य एव च ।

समादाय महाबा महत् कम क र य त ।। ३४ ।। ‘भगवान् नारायण जनके सखा ह, वे पुरातन मह ष महातेज वी नर ही अजुन ह। सनातन दे व, अजेय, वजयशील तथा अपनी मयादासे कभी युत न होनेवाले ह। महाबा अजुन इ , तथा अ य लोकपाल से द ा ा त करके महान् काय करगे ।। ३३-३४ ।। वनाद मा च कौ तेय वनम यद् व च यताम् । नवासाथाय यत् यु ं भवेद ् वः पृ थवीपते ।। ३५ ।। ‘कु तीकुमार! पृ थवीपते! अब तुम अपने नवासके लये इस वनसे कसी सरे वनम, जो तु हारे लये उपयोगी हो, जानेक बात सोचो ।। ३५ ।। एक चरवासो ह न ी तजननो भवेत् । तापसानां च सवषां भवे े गकारकः ।। ३६ ।। ‘एक ही थानपर अ धक दन तक रहना ायः चकर नह होता। इसके सवा, यहाँ तु हारा चर नवास सम त तप वी महा मा के लये तपम व न पड़नेके कारण उ े गकारक होगा ।। ३६ ।। मृगाणामुपयोग वी दौष धसं यः । बभ ष च बन् व ान् वेदवेदा पारगान् ।। ३७ ।। ‘यहाँके हसक पशु के उपयोग—मारनेका काम हो चुका है तथा तुम ब त-से वेदवेदांग के पारगामी व ान् ा ण का भरण-पोषण करते हो (और हवन करते हो), इस लये यहाँ लता-गु म और ओष धय का य हो गया है’ ।। ३७ ।। वैश पायन उवाच एवमु वा प ाय शुचये भगवान् भुः । ोवाच लोकत व ो योगी व ामनु माम् ।। ३८ ।। धमराजाय धीमान् स ासः स यवतीसुतः । अनु ाय च कौ तेयं त ैवा तरधीयत ।। ३९ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! ऐसा कहकर लोकत वके ाता एवं श शाली योगी परम बु मान् स यवतीन दन भगवान् ासजीने अपनी शरणम आये ए प व धमराज यु ध रको उस अ यु म व ाका उपदे श कया और कु तीकुमारक अनुम त लेकर फर वह अ तधान हो गये ।। ३८-३९ ।। यु ध र तु धमा मा तद् मनसा यतः । धारयामास मेधावी काले काले सदा यसन् ।। ४० ।। धमा मा मेधावी संयत च यु ध रने उस वेदो म को मनसे धारण कया और समय-समयपर सदा उसका अ यास करने लगे ।। ४० ।। स ासवा यमु दतो वनाद् ै तवनात् ततः । ययौ सर वतीकूले का यकं नाम काननम् ।। ४१ ।। े















तदन तर वे ासजीक आ ासे स तापूवक ै तवनसे का यकवनम चले गये, जो सर वतीके तटपर सुशो भत है ।। ४१ ।। तम वयुमहाराज श ा र वशारदाः । ा णा तपसा यु ा दे वे मृषयो यथा ।। ४२ ।। महाराज! जैसे मह षगण दे वराज इ का अनुसरण करते ह, वैसे ही वेदा द शा क श ा तथा अ र त वके ानम नपुण ब त-से तप वी ा ण राजा यु ध रके साथ उस वनम गये ।। ४२ ।। ततः का यकमासा पुन ते भरतषभ । य वश त महा मानः सामा याः सप र छदाः ।। ४३ ।। भरत े ! वहाँसे का यकवनम आकर म य और सेवक स हत वे महा मा पा डव पुनः वह बस गये ।। ४३ ।। त ते यवसन् राजन् क चत् कालं मन वनः । धनुवदपरा वीराः शृ व तो वेदमु मम् ।। ४४ ।। राजन्! वहाँ धनुवदके अ यासम त पर हो उ म वेदम का उद्घोष सुनते ए उन मन वी पा डव ने कुछ कालतक नवास कया ।। ४४ ।। चर तो मृगयां न यं शु ै बाणैमृगा थनः । पतृदैवत व े यो नवप तो यथा व ध ।। ४५ ।। वे त दन हसक पशु को मारनेके लये शु (शा ानुकूल) बाण ारा शकार खेलते थे एवं शा क व धके अनुसार न य पतर तथा दे वता को अपना-अपना भाग दे ते थे अथात् न य ा और न य होम करते थे ।। ४५ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण अजुना भगमनपव ण का यकवनगमने षट् शोऽ यायः ।। ३६ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत अजुना भगमनपवम का यकवनगमन वषयक छ ीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ३६ ।।

स त शोऽ यायः अजुनका सब भाई आ दसे मलकर इ क ल पवतपर जाना एवं इ का दशन करना वैश पायन उवाच क य चत् वथ काल य धमराजो यु ध रः । सं मृ य मु नसंदेश मदं वचनम वीत् ।। १ ।। व व े व दत मजुनं पु षषभ । सा वपूव मतं कृ वा पा णना प रसं पृशन् ।। २ ।। स मुत मव या वा वनवासमरदमः । धनंजयं धमराजो रहसीदमुवाच ह ।। ३ ।। वैश पायनजी कहते ह—नर े जनमेजय! कुछ कालके अन तर धमराज यु ध रको ासजीके संदेशका मरण हो आया। तब उ ह ने परम बु मान् अजुनसे एका तम वातालाप कया। श ु का दमन करनेवाले धमराज यु ध रने दो घड़ीतक वनवासके वषयम च तन करके क चत् मुसकराते ए अजुनके शरीरको हाथसे पश कया और एका तम उ ह सा वना दे ते ए इस कार कहा ।। १—३ ।। यु ध र उवाच भी मे ोणे कृपे कण ोणपु े च भारत । धनुवद तु पाद एते व त तः ।। ४ ।। यु ध रने कहा—भारत! आजकल पतामह भी म, ोणाचाय, कृपाचाय, कण और अ थामा—इन सबम चार पाद से यु स पूण धनुवद त त है ।। ४ ।। दै वं बा ं मानुषं च सय नं स च क सतम् । सवा ाणां योगं च अ भजान त कृ नशः ।। ५ ।। वे दै व, ा और मानुष तीन प तय के अनुसार स पूण अ के योगक सारी कलाएँ जानते ह। उन अ के हण और धारण प य नसे तो वे प र चत ह ही, श ु ारा यु ए अ क च क सा ( नवारणके उपाय)-को भी जानते ह ।। ५ ।। ते सव धृतरा य पु ेण प रसा वताः । सं वभ ा तु ा गु वत् तेषु वतते ।। ६ ।। उन सबको धृतरापु य धनने बड़े आ ासनके साथ रखा है और उपभोगक साम ी दे कर संतु कया है। इतना ही नह , वह उनके त गु जनो चत बताव करता है ।। ६ ।। सवयोधेषु चैवा य सदा ी तरनु मा । आचाया मा नता तु ाः शा तं वहर युत ।। ७ ।। ो











अ य स पूण यो ा पर भी य धन सदा ही ब त ेम रखता है। उसके ारा स मा नत और संतु कये ए आचायगण उसके लये सदा शा तका य न करते ह ।। ७ ।। श न हाप य य त ते काले तपू जताः । अ चेयं मही कृ ना य धनवशानुगा ।। ८ ।। स ामनगरा पाथ ससागरवनाकरा । भवानेव योऽ माकं व य भारः समा हतः ।। ९ ।। जो लोग उसके ारा समय-समयपर समा त ए ह, वे कभी उसक श ीण नह होने दगे । पाथ! आज यह सारी पृ वी ाम, नगर, समु , वन तथा खान स हत य धनके वशम है। तु ह हम सब लोग के अ य त य हो। हमारे उ ारका सारा भार तुमपर ही है ।। ८-९ ।। अ कृ यं प या म ा तकालमरदम । कृ ण ै पायनात् तात गृहीतोप नष मया ।। १० ।। श ुदमन! अब इस समयके यो य जो कत मुझे उ चत दखायी दे ता है, उसे सुनो। तात! मने ीकृ ण ै पायन ासजीसे एक रह यमयी व ा ा त क है ।। १० ।। तया यु या स यग् जगत् सव काशते । तेन वं णा तात संयु ः सुसमा हतः ।। ११ ।। दे वतानां यथाकालं सादं तपालय । तपसा योजया मानमु ेण भरतषभ ।। १२ ।। धनु मात् कवची खड् गी मु नः साधु ते थतः । न क य चत् दद माग ग छ तातो रां दशम् ।। १३ ।। उसका व धवत् योग करनेपर सम त जगत् अ छ कारसे य -का- य प द खने लगता है। तात! उस म - व ासे यु एवं एका च होकर तुम यथासमय दे वता क स ता ा त करो। भरत े ! अपने-आपको उ तप याम लगाओ। धनुष, कवच और खड् ग धारण कये साधु- तके पालनम थत हो मौनावल बनपूवक कसीको आ मणका माग न दे ते ए उ र दशाक ओर जाओ ।। ११—१३ ।। इ े ा ण द ा न सम ता न धनंजय । वृ ाद् भीतैबलं दे वै तदा श े सम पतम् ।। १४ ।। धनंजय! इ को सम त द ा का ान है। वृ ासुरसे डरे ए स पूण दे वता ने उस समय अपनी सारी श इ को ही सम पत कर द थी ।। १४ ।। ता येक था न सवा ण तत वं तप यसे । श मेव प व स तेऽ ा ण दा य त ।। १५ ।। द तोऽ ैव ग छ वं ु ं दे व पुरंदरम् ।







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वे सब द ा एक ही थानम ह, तुम उ ह वह से ा त कर लोगे; अतः तुम इ क ही शरण लो। वही तु ह सब अ दान करगे। आज ही द ा हण करके तुम दे वराज इ के दशनक इ छासे या ा करो ।। १५ ।।

वैश पायन उवाच एवमु वा धमराज तम यापयत भुः ।। १६ ।। द तं व धनानेन धृतवा कायमानसम् । अनुज े तदा वीरं ाता ातरम जः ।। १७ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! ऐसा कहकर श शाली धमराज यु ध रने मन, वाणी और शरीरको संयमम रखकर द ा हण करनेवाले अजुनको व धपूवक पूव त मृ त- व ाका उपदे श कया। तदन तर बड़े भाई यु ध रने अपने वीर भाई अजुनको वहाँसे थान करनेक आ ा द ।। १६-१७ ।। नदे शाद् धमराज य ु कामः पुरंदरम् । धनुगा डीवमादाय तथा ये महेषुधी ।। १८ ।। कवची सतल ाणो ब गोधाङ् गु ल वान् । वा नं ा णा कैः व त वा य महाभुजः ।। १९ ।। ा त त महाबा ः गृहीतशरासनः । वधाय धातरा ाणां नः यो वमुद य च ।। २० ।। धमराजक आ ासे दे वराज इ का दशन करनेक इ छा मनम रखकर महाबा धनंजयने अ नम आ त द और वणमु ा क द णा दे कर ा ण से व त-वाचन कराया तथा गा डीव धनुष और दो महान् अ य तूणीर साथ ले कवच, तल ाण (जूते) तथा अंगु लय क र ाके लये गोहके चमड़ेका बना आ अंगु ल धारण कया। इसके बाद ऊपरक ओर दे ख लंबी साँस ख चकर धृतरापु क े वधके लये महाबा अजुन धनुष हाथम लये वहाँसे थत ए ।। १८—२० ।। तं ् वा त कौ तेयं गृहीतशरासनम् । अ ुवन् ा णाः स ा भूता य त हता न च ।। २१ ।। कु तीन दन अजुनको वहाँ धनुष लये जाते दे ख स , ा ण तथा अ य भूत ने कहा— ।। २१ ।। मा ु ह कौ तेय मनसा यद् य द छ स । अ ुवन् ा णाः पाथ म त कृ वा जया शषः ।। २२ ।। संसाधय व कौ तेय ुवोऽ तु वजय तव । ‘कु तीकुमार! तुम अपने मनम जो-जो इ छा रखते हो, वह सब तु ह शी ा त हो।’ इसके बाद ा ण ने अजुनको वजयसूचक आशीवाद दे ते ए कहा—‘कु तीपु ! तुम अपना अभी साधन करो, तु ह अव य वजय ा त हो’ ।। २२ ।। तं तथा थतं वीरं शाल क धो मजुनम् ।। २३ ।। मनां यादाय सवषां कृ णा वचनम वीत् । े

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शालवृ के समान कंधे और जाँघ से सुशो भत वीर अजुनको इस कार सबके च को चुराकर थान करते दे ख ौपद इस कार बोली ।। २३ ।। कृ णोवाच यत् ते कु ती महाबाहो जात यै छद् धनंजय ।। २४ ।। तत् तेऽ तु सव कौ तेय यथा च वय म छ स । ौपद ने कहा—कु तीकुमार महाबा धनंजय! आपके ज म लेनेके समय आया कु तीने अपने मनम आपके लये जो-जो इ छाएँ क थ तथा आप वयं भी अपने दयम जो-जो मनोरथ रखते ह , वे सब आपको ा त ह ।। २४ ।। मा माकं यकुले ज म क दवा ुयात् ।। २५ ।। ा णे यो नमो न यं येषां भै येण जी वका । हमलोग मसे कोई भी य-कुलम उ प न हो। उन ा ण को नम कार है, जनका भ ासे ही नवाह हो जाता है ।। २५ ।। इदं मे परमं ःखं यः स पापः सुयोधनः ।। २६ ।। ् वा मां गौ र त ाह हसन् राजसंस द । नाथ! मुझे सबसे बढ़कर ःख इस बातसे आ है क उस पापी य धनने राजा से भरी ई सभाम मेरी ओर दे खकर और मुझे ‘गाय’ (अनेक पु ष के उपभोगम आनेवाली) कहकर मेरा उपहास कया ।। २६ ।। त माद् ःखा ददं ःखं गरीय इ त मे म तः ।। २७ ।। यत् तत् प रषदो म ये ब यु मभाषत । उस ःखसे भी बढ़कर महान् क मुझे इस बातसे आ क उसने भरी सभाम मेरे त ब त-सी अनु चत बात कह ।। २७ ।। नूनं ते ातरः सव व कथा भः जागरे ।। २८ ।। रं य ते वीर कमा ण कथय तः पुनः पुनः । नैव नः पाथ भोगेषु न धने नोत जी वते ।। २९ ।। तु बु भ व ी वा व य द घ वा स न । व य नः पाथ सवषां सुख ःखे समा हते ।। ३० ।। जी वतं मरणं चैव रा यमै यमेव च । आपृ ो मेऽ स कौ तेय व त ा ु ह भारत ।। ३१ ।। वीरवर! न य ही आपके चले जानेके बाद आपके सभी भाई जागते समय आपहीके परा मक चचा बार-बार करते ए अपना मन बहलायगे। पाथ! द घकालके लये आपके वासी हो जानेपर हमारा मन न तो भोग म लगेगा और न धनम ही। इस जीवनम भी कोई रस नह रह जायगा। आपके बना हम इन व तु से संतोष नह पा सकगे। पाथ! हम सबके सुख- ःख, जीवन-मरण तथा रा य-ऐ य आपपर ही नभर ह। भरतकुल तलक! कु तीकुमार! मने आपको वदा द ; आप क याणको ा त ह ।। २८—३१ ।। बलवद् भ व ं न कायमेतत् वयानघ । े ै

या व नेनैवाशु वजयाय महाबल । नमो धा े वधा े च व त ग छ नामयम् ।। ३२ ।। न पाप महाबली आयपु ! आप बलवान से वरोध न कर, यह मेरा अनुरोध है। व नबाधा से र हत हो वजय ा तके लये शी या ा क जये। धाता और वधाताको नम कार है। आप कुशल और व थतापूवक थान क जये ।। ३२ ।। ीः ीः क त ु तः पु मा ल मीः सर वती । इमा वै तव पा थ य पालय तु धनंजय ।। ३३ ।। धनंजय! ी, ी, क त, ु त, पु , उमा, ल मी और सर वती—ये सब दे वयाँ मागम जाते समय आपक र ा कर ।। ३३ ।। ये ापचायी ये य ातुवचनकारकः । प ेऽहं वसून् ाना द यान् सम द्गणान् ।। ३४ ।। व ेदेवां तथा सा या छा यथ भरतषभ । व त तेऽ वा त र े यः पा थवे य भारत ।। ३५ ।। द े य ैव भूते यो ये चा ये प रप थनः । आप बड़े भाईका आदर करनेवाले ह, उनक आ ाके पालक ह। भरत े ! म आपक शा तके लये वसु, , आ द य, म द्गण, व ेदेव तथा सा य दे वता क शरण लेती ँ। भारत! भौम, आ त र तथा द भूत से और सरे भी जो मागम व न डालनेवाले ाणी ह, उन सबसे आपका क याण हो ।। ३४-३५ ।। वैश पायन उवाच एवमु वाऽऽ शषः कृ णा वरराम यश वनी ।। ३६ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! ऐसी मंगलकामना करके यश वनी ौपद चुप हो गयी ।। ३६ ।। ततः द णं कृ वा ातॄन् धौ यं च पा डवः । ा त त महाबा ः गृ चरं धनुः ।। ३७ ।। तदन तर पा डु न दन महाबा अजुनने अपना सु दर धनुष हाथम लेकर सभी भाइय और धौ य मु नको दा हने करके वहाँसे थान कया ।। ३७ ।। त य मागादपा ामन् सवभूता न ग छतः । यु यै े ण योगेन परा ा त य शु मणः ।। ३८ ।। महान् परा मी और महाबली अजुनके या ा करते समय उनके मागसे सम त ाणी र हट जाते थे; य क वे इ से मला दे नेवाली त मृ त नामक योग व ासे यु थे ।। ३८ ।। सोऽग छत् पवतां तात तपोधन नषे वतान् । द ं हैमवतं पु यं दे वजु ं परंतपः ।। ३९ ।। परंतप अजुन तप वी महा मा ारा से वत पवत के मागसे होते ए द , प व तथा दे वसे वत हमालय पवतपर जा प ँचे ।। ३९ ।। े



अग छत् पवतं पु यमेका ै व महामनाः । मनोजवग तभू वा योगयु ो यथा नलः ।। ४० ।। महामना अजुन योगयु होनेके कारण मनके समान ती वेगसे चलनेम समथ हो गये थे, अतः वे वायुके समान एक ही दनम उस पु य पवतपर प ँच गये ।। ४० ।। हमव तम त य ग धमादनमेव च । अ य ामत् स गा ण दवारा मत तः ।। ४१ ।। हमालय और ग धमादन पवतको लाँघकर उ ह ने आल यर हत हो दन-रात चलते ए और भी ब त-से गम थान को पार कया ।। ४१ ।। इ क लं समासा ततोऽ त द् धनंजयः । अ त र ेऽ तशु ाव त े त स वच तदा ।। ४२ ।। तदन तर इ क ल पवतपर प ँचकर अजुनने आकाशम उ च वरसे गूँजती ई एक वाणी सुनी—‘ त ’ (यह ठहर जाओ)। तब वे वह ठहर गये ।। ४२ ।। त छ वा सवतो चारयामास पा डवः । अथाप यत् स साची वृ मूले तप वनम् ।। ४३ ।। वह वाणी सुनकर पा डु न दन अजुनने चार ओर पात कया। इतनेहीम उ ह वृ के मूलभागम बैठे ए एक तप वी महा मा दखायी दये ।। ४३ ।। ा या या द यमानं प लं ज टलं कृशम् । सोऽ वीदजुनं त थतं ् वा महातपाः ।। ४४ ।। वे अपने तेजसे उद्भा सत हो रहे थे। उनक अंगका त पगलवणक थी। सरपर जटा बढ़ ई थी और शरीर अ य त कृश था। उन महातप वीने अजुनको वहाँ खड़े ए दे खकर पूछा— ।। ४४ ।। क वं तातेह स ा तो धनु मान् कवची शरी । नब ा सतल ाणः धममनु तः ।। ४५ ।। नेह श ेण कत ं शा तानामेष आलयः । वनीत ोधहषाणां ा णानां तप वनाम् ।। ४६ ।। ‘तात! तुम कौन हो? जो धनुष-बाण, कवच, तलवार तथा द तानेसे सुस जत हो यधमका अनुगमन करते ए यहाँ आये हो। यहाँ अ -श क आव यकता नह है। यह तो ोध और हषको जीते ए तप याम त पर शा त ा ण का थान है ।। ४५-४६ ।। नेहा त धनुषा काय न सं ामोऽ क ह चत् । न पैतद् धनु तात ा तोऽ स परमां ग तम् ।। ४७ ।। ‘यहाँ कभी कोई यु नह होता, इस लये यहाँ तु हारे धनुषका कोई काम नह है। तात! यह धनुष यह फक दो, अब तुम उ म ग तको ा त हो चुके हो ।। ४७ ।। ओजसा तेजसा वीर यथा ना यः पुमान् व चत् । तथा हस वाभी णं ा णोऽजुनम वीत् । न चैनं चालयामास धैयात् सुधृत न यम् ।। ४८ ।। ‘ ी











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‘वीर! ओज और तेजम तु हारे-जैसा सरा कोई पु ष नह है!’ इस कार उन षने हँसते ए-से बार-बार अजुनसे धनुषको याग दे नेक बात कही। परंतु अजुन धनुष न यागनेका ढ़ न य कर चुके थे; अतः ष उ ह धैयसे वच लत नह कर सके ।। तमुवाच ततः ीतः स जः हस व । वरं वृणी व भ ं ते श ोऽहम रसूदन ।। ४९ ।। तब उन ा ण दे वताने पुनः स होकर उनसे हँसते ए-से कहा—‘श ुसूदन! तु हारा भला हो, म सा ात् इ ँ, मुझसे कोई वर माँगो’ ।। ४९ ।। एवमु ः सह ा ं युवाच धनंजयः । ा लः णतो भू वा शूरः कु कुलो हः ।। ५० ।। यह सुनकर कु कुलर न शूरवीर अजुनने सह ने धारी इ से हाथ जोड़कर णामपूवक कहा— ।। ५० ।। ई सतो ेष वै कामो वरं चैनं य छ मे । व ोऽ भगव त ं कृ न म छा म वे दतुम् ।। ५१ ।। ‘भगवन्! म आपसे स पूण अ का ान ा त करना चाहता ँ, यही मेरा अभी मनोरथ है; अतः मुझे यही वर द जये’ ।। ५१ ।। युवाच महे तं ीता मा हस व । इह ा त य क कायम ै तव धनंजय ।। ५२ ।। कामान् वृणी य लोकां वं ा तोऽ स परमां ग तम् । एवमु ः युवाच सह ा ं धनंजयः ।। ५३ ।। न लोभा पुनः कामा दे व वं पुनः सुखम् । न च सवामरै य कामये दशा धप ।। ५४ ।। ातॄं तान् व पने य वा वैरम तया य च । अक त सवलोकेषु ग छे यं शा तीः समाः ।। ५५ ।। तब महे ने स च हो हँसते ए-से कहा—‘धनंजय! जब तुम यहाँतक आ प ँचे, तब तु ह अ को लेकर या करना है? अब इ छानुसार उ म लोक माँग लो; य क तु ह उ म ग त ा त ई है।’ यह सुनकर धनंजयने पुनः दे वराजसे कहा—‘दे वे र! म अपने भाइय को वनम छोड़कर (श ु से) वैरका बदला लये बना लोभ अथवा कामनाके वशीभूत हो न तो दे व व चाहता ँ, न सुख और न स पूण दे वता का ऐ य ा त कर लेनेक ही मेरी इ छा है। य द मने वैसा कया तो सदाके लये स पूण लोक म मुझे महान् अपयश ा त होगा’ ।। ५२—५५ ।। एवमु ः युवाच वृ हा पा डु न दनम् । सा वय छ् ल णया वाचा सवलोकनम कृतः ।। ५६ ।। अजुनके ऐसा कहनेपर व व दत, वृ - वनाशक इ ने मधुर वाणीम अजुनको सा वना दे ते ए कहा— ।। ५६ ।। यदा य स भूतेशं य ं शूलधरं शवम् । े

तदा दाता म ते तात द ा य ा ण सवशः ।। ५७ ।। ‘तात! जब तु ह तीन ने से वभू षत शूलधारी भूतनाथ भगवान् शवका दशन होगा, तब म तु ह स पूण द ा दान क ँ गा ।। ५७ ।। यतां दशने य नो दे व य परमे नः । दशनात् त य कौ तेय सं स ः वगमे य स ।। ५८ ।। ‘कु तीकुमार! तुम उन परमे र महादे वजीका दशन पानेके लये य न करो। उनके दशनसे पूणतः स हो जानेपर तुम वगलोकम पधारोगे’ ।। ५८ ।। इ यु वा फा गुनं श ो जगामादशनं पुनः । अजुनोऽ यथ त ैव त थौ योगसम वतः ।। ५९ ।। अजुनसे ऐसा कहकर इ पुनः अ य हो गये। त प ात् अजुन योगयु ए वह रहने लगे ।। ५९ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण अजुना भगमनपव ण इ दशने स त शोऽ यायः ।। ३७ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत अजुना भगमनपवम इ दशन वषयक सतीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ३७ ।।

(क ै रातपव) अ ा शोऽ यायः अजुनक उ तप या और उसके वषयम ऋ षय का भगवान् शंकरके साथ वातालाप जनमेजय उवाच भगव ोतु म छा म पाथ या ल कमणः । व तरेण कथामेतां यथा ा युपलधवान् ।। १ ।। जनमेजय बोले—भगवन्! अनायास ही महान् कम करनेवाले कु तीन दन अजुनक यह कथा म व तारपूवक सुनना चाहता ँ; उ ह ने कस कार अ ा त कये? ।। १ ।। यथा च पु ष ा ो द घबा धनंजयः । वनं व तेज वी नमनु यमभीतवत् ।। २ ।। पु ष सह महाबा तेज वी धनंजय उस नजन वनम नभयके समान कैसे चले गये थे? ।। २ ।। क च तेन कृतं त वसता व म। कथं च भगवान् थाणुदवराज तो षतः ।। ३ ।। वे ा म े महष! उस वनम रहकर पाथने या कया? भगवान् शंकर तथा दे वराज इ को कैसे संतु कया? ।। ३ ।। एत द छा यहं ीतुं व सादाद् जो म । वं ह सव द ं च मानुषं चैव वे थ ह ।। ४ ।। व वर! म आपक कृपासे ये सब बात सुनना चाहता ँ। सव ! आप द और मानुष सभी वृ ा त -को जानते ह ।। ४ ।। अ य ततमं न् रोमहषणमजुनः । भवेन सह सं ामं चकारा तमं कल ।। ५ ।। पुरा हरतां े ः सं ामे वपरा जतः । य छ वा नर सहाना दै यहषा त व मयात् ।। ६ ।। शूराणाम प पाथानां दया न चक परे । यद् य च कृतवान यत् पाथ तदखलं वद ।। ७ ।। न्! मने सुना है, कभी सं ामम परा त न होनेवाले, यो ा म े अजुनने पूवकालम भगवान् शंकरके साथ अ य त अ त, अनुपम और रोमांचकारी यु कया था, जसे सुनकर मनु य म े शूरवीर कु तीपु के दय म भी दै य, हष और व मयके ँ

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कारण कँपकँपी छा गयी थी। अजुनने और भी जो-जो काय कये ह , वे सब भी मुझे बताइये ।। ५—७ ।। न य न दतं ज णोः सुसू मम प ल ये । च रतं त य शूर य त मे सव क तय ।। ८ ।। शूरवीर अजुनका अ य त सू म च र भी ऐसा नह दखायी दे ता है, जसम थोड़ी-सी भी न दाके लये थान हो; अतः वह सब मुझसे क हये ।। ८ ।। वैश पायन उवाच कथ य या म ते तात कथामेतां महा मनः । द ां पौरवशा ल महतीम तोपमाम् ।। ९ ।। वैश पायनजीने कहा—तात! पौरव े ! महा मा अजुनक यह कथा द , अद्भुत और मह वपूण है; इसे म तु ह सुनाता ँ ।। ९ ।। गा सं पशस ब ां य बकेण सहानघ । पाथ य दे वदे वेन शृणु स यक् समागमम् ।। १० ।। अनघ! दे वदे व महादे वजीके साथ अजुनके शरीरका जो पश आ था, उससे स ब ध रखनेवाली यह कथा है। तुम उन दोन के मलनका यह वृ ा त भलीभाँ त सुनो ।। १० ।। यु ध र नयोगात् स जगामा मत व मः । श ं सुरे रं ु ं दे वदे वं च शंकरम् ।। ११ ।। द ं तद् धनुरादाय खड् गं च कनक स म् । महाबलो महाबा रजुनः काय स ये ।। १२ ।। दशं द च कौर ो हमव छखरं त । ऐ ः थरमना राजन् सवलोकमहारथः ।। १३ ।। राजन्! अ मत परा मी, महाबली, महाबा , कु कुलभूषण, इ पु अजुन, जो स पूण व म व यात महारथी और सु थर च वाले थे, यु ध रक आ ासे दे वराज इ तथा दे वा धदे व भगवान् शंकरका दशन करनेके लये कायक स का उ े य लेकर अपने उस द (गा डीव) धनुष और सोनेक मूँठवाले खड् गको हाथम लये उ र दशाम हमालय पवतक ओर चले ।। ११—१३ ।। वरया परया यु तपसे धृत न यः । वनं क ट कतं घोरमेक एवा वप त ।। १४ ।। तप याके लये ढ़ न य करके बड़ी उतावलीके साथ जाते ए वे अकेले ही एक भयंकर क टकाक ण वनम प ँचे ।। १४ ।। नानापु पफलोपेतं नानाप नषे वतम् । नानामृगगणाक ण स चारणसे वतम् ।। १५ ।। जो नाना कारके फल-फूल से भरा था, भाँ त-भाँ तके प ी जहाँ कलरव कर रहे थे, अनेक जा तय के मृग उस वनम सब ओर वचरते रहते थे तथा कतने ही स और चारण नवास कर रहे थे ।। १५ ।। े

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ततः याते कौ तेये वनं मानुषव जतम् । शङ् खानां पटहानां च श दः समभवद् द व ।। १६ ।। तदन तर कु तीन दन अजुनके उस नजन वनम प ँचते ही आकाशम शंख और नगाड़ का ग भीर घोष गूँज उठा ।। १६ ।। पु पवष च सुमह पपात महीतले । मेघजालं च वततं छादयामास सवतः ।। १७ ।। सोऽती य वन गा ण सं नकष महा गरेः । शुशुभे हमव पृ े वसमानोऽजुन तदा ।। १८ ।। पृ वीपर फूल क बड़ी भारी वषा होने लगी। मेघ क घटा घरकर आकाशम सब ओर छा गयी। उन गम वन थ लय को लाँघकर अजुन हमालयके पृ भागम एक महान् पवतके नकट नवास करते ए शोभा पाने लगे ।। १७-१८ ।। त ाप यद् मान् फु लान् वहगैव गुना दतान् । नद वपुलावता वै य वमल भाः ।। १९ ।। वहाँ उ ह ने फूल से सुशो भत ब त-से वृ दे खे, जो प य के मधुर श दसे गुंजायमान हो रहे थे। उ ह ने वै यम णके समान व छ जलसे भरी ई शोभामयी कतनी ही न दयाँ दे ख , जनम ब त-सी भँवर उठ रही थ ।। १९ ।। हंसकार डवोद्गीताः सारसा भ ता तथा । पुं को कल ता ैव ौ चब हणना दताः ।। २० ।। हंस, कार डव तथा सारस आ द प ी वहाँ मीठ बोली बोलते थे। तटवत वृ पर कोयल मनोहर श द बोल रही थी। चके कलरव और मयूर क केका व न भी वहाँ सब ओर गूँजती रहती थी ।। २० ।। मनोहरवनोपेता त म तरथोऽजुनः । पु यशीतामलजलाः प यन् ीतमनाभवत् ।। २१ ।। उन न दय के आस-पास मनोहर वन ेणी सुशो भत होती थी। हमालयके उस शखरपर प व , शीतल और नमल जलसे भरी ई उन सु दर स रता का दशन करके अ तरथी अजुनका मन स तासे खल उठा ।। २१ ।। रमणीये वनो े शे रममाणोऽजुन तदा । तप यु े वतमान उ तेजा महामनाः ।। २२ ।। उ तेज वी महामना अजुन वहाँ वनके रमणीय दे श म घूम- फरकर बड़ी कठोर तप याम संल न हो गये ।। २२ ।। दभचीरं नव याथ द डा जन वभू षतः । शीण च प ततं भूमौ पण समुपयु वान् ।। २३ ।। कुशाका ही चीर धारण कये तथा द ड और मृगचमसे वभू षत अजुन पृ वीपर गरे ए सूखे प का ही भोजनके थानम उपयोग करते थे ।। २३ ।। पूण पूण रा े तु मासमेकं फलाशनः । गुणेन ह कालेन तीयं मासम ययात् ।। २४ ।। े ी ी े े े े े ो े

एक मासतक वे तीन-तीन रातके बाद केवल फलाहार करके रहे। सरे मासको उ ह ने पहलेक अपे ा ने- ने समयपर अथात् छः-छः रातके बाद फलाहार करके तीत कया ।। २४ ।। तृतीयम प मासं स प ेणाहारमाचरन् । चतुथ वथ स ा ते मासे भरतस मः ।। २५ ।। वायुभ ो महाबा रभवत् पा डु न दनः । ऊ वबा नराल बः पादाङ् गु ा व तः ।। २६ ।। तीसरा महीना पं ह-पं ह दनम भोजन करके बताया। चौथा महीना आनेपर भरत े पा डु न दन महाबा अजुन केवल वायु पीकर रहने लगे। वे दोन भुजाएँ ऊपर उठाये बना कसी सहारेके पैरके अंगठ ू े के अ भागके बलपर खड़े रहे ।। २५-२६ ।। सदोप पशना चा य बभूवुर मतौजसः । व ुद भो ह नभा जटा त य महा मनः ।। २७ ।। अ मत तेज वी महा मा अजुनके सरक जटाएँ न य नान करनेके कारण व ुत् और कमल के समान हो गयी थ ।। २७ ।। ततो महषयः सव ज मुदवं पना कनम् । नवेद यषवः पाथ तप यु े समा थतम् ।। २८ ।। तदन तर भयंकर तप याम लगे ए अजुनके वषयम कुछ नवेदन करनेक इ छासे वहाँ रहनेवाले सभी मह ष पनाकधारी महादे वजीक सेवाम गये ।। २८ ।। तं ण य महादे वं शशंसुः पाथकम तत् । एष पाथ महातेजा हमव पृ मा थतः ।। २९ ।। उ े तप स पारे थतो धूमाययन् दशः । त य दे वेश न वयं वः सव चक षतम् ।। ३० ।। उ ह ने महादे वजीको णाम करके अजुनका वह तप प कम कह सुनाया। वे बोले —‘भगवन्! ये महातेज वी कु तीपु अजुन हमालयके पृ भागम थत हो अपार एवं उ तप याम संल न ह और स पूण दशा को धूमा छा दत कर रहे ह। दे वे र! वे या करना चाहते ह, इस वषयम हमलोग मसे कोई कुछ नह जानता है ।। २९-३० ।। संतापय त नः सवानसौ साधु नवायताम् । तेषां तद्वचनं ु वा मुनीनां भा वता मनाम् ।। ३१ ।। उमाप तभूतप तवा यमेत वाच ह । ‘वे अपनी तप याके संतापसे हम सब मह षय को संत त कर रहे ह। अतः आप उ ह तप यासे स ावपूवक नवृ क जये।’ प व च वाले उन मह षय का यह वचन सुनकर भूतनाथ भगवान् शंकर इस कार बोले— ।। ३१ ।। महादे व उवाच न वो वषादः कत ः फा गुनं त सवशः ।। ३२ ।। शी ं ग छत सं ा यथागतमत ताः ।

अहम य वजाना म संक पं मन स थतम् ।। ३३ ।। महादे वजीने कहा—मह षयो! तु ह अजुनके वषयम कसी कारका वषाद करनेक आव यकता नह है। तुर त आल यर हत हो शी ही स तापूवक जैसे आये हो, वैसे ही लौट जाओ। अजुनके मनम जो संक प है, म उसे भलीभाँ त जानता ँ ।। ३२-३३ ।। ना य वग पृहा का च ै य य तथाऽऽयुषः । यत् त य काङ् तं सव तत् क र येऽहम वै ।। ३४ ।। उ ह वगलोकक कोई इ छा नह है, वे ऐ य तथा आयु भी नह चाहते। वे जो कुछ पाना चाहते ह, वह सब म आज ही पूण क ँ गा ।। ३४ ।। वैश पायन उवाच त छ वा शववचनमृषयः स यवा दनः । मनसो ज मुयथा वान् पुनरालयान् ।। ३५ ।। वैश पायनजी कहते ह—भगवान् शंकरका यह वचन सुनकर वे स यवाद मह ष स च हो फर अपने आ म को लौट गये ।। ३५ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण कैरातपव ण मु नशङ् करसंवादे अ ा शोऽ यायः ।। ३८ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत कैरातपवम मह षय तथा भगवान् शंकरके संवादसे स ब ध रखनेवाला अड़तीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ३८ ।।

एकोनच वा रशोऽ यायः भगवान् शंकर और अजुनका यु , अजुनपर उनका स होना एवं अजुनके ारा भगवान् शंकरक तु त वैश पायन उवाच गतेषु तेषु सवषु तप वषु महा मसु । पनाकपा णभगवान् सवपापहरो हरः ।। १ ।। कैरातं वेषमा थाय का चन मसं नभम् । व ाजमानो वपुलो ग रम रवापरः ।। २ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! उन सब तप वी महा मा के चले जानेपर सवपापहारी, पनाक-पा ण, भगवान् शंकर करातवेष धारण करके सुवणमय वृ के स श द का तसे उ ा सत होने लगे। उनका शरीर सरे मे पवतके समान द तमान् और वशाल था ।। १-२ ।। ीमद् धनु पादाय शरां ाशी वषोपमान् । न पपात महावेगो दहनो दे हवा नव ।। ३ ।। वे एक शोभायमान धनुष और सप के समान वषा बाण लेकर बड़े वेगसे चले। मानो सा ात् अ नदे व ही दे ह धारण करके नकले ह ।। ३ ।। दे ा सहोमया ीमान् समान तवेषया । नानावेषधरै ैभूतैरनुगत तदा ।। ४ ।। करातवेषसं छ ः ी भ ा प सह शः । अशोभत तदा राजन् स दे शोऽतीव भारत ।। ५ ।। उनके साथ भगवती उमा भी थ , जनका त और वेष भी उ ह के समान था। अनेक कारके वेष धारण कये भूतगण भी स तापूवक उनके पीछे हो लये थे। इस कार करातवेषम छपे ए ीमान् शव सह य से घरकर बड़ी शोभा पा रहे थे। भरतवंशी राजन्! उस समय वह दे श उन सबके चलने- फरनेसे अ य त सुशो भत हो रहा था ।। ४-५ ।। णेन तद् वनं सव नःश दमभवत् तदा । नादः वणानां च प णां चा युपारमत् ।। ६ ।। एक ही णम वह सारा वन श दर हत हो गया। झरन और प य तकक आवाज बंद हो गयी ।। ६ ।। स सं नकषमाग य पाथ या ल कमणः । मूकं नाम दनोः पु ं ददशा तदशनम् ।। ७ ।। वाराहं पमा थाय तकय त मवाजुनम् । ह तुं परं द यमानं तमुवाचाथ फा गुनः ।। ८ ।। ी





गा डीवं धनुरादाय शरां ाशी वषोपमान् । स यं धनुवरं कृ वा याघोषेण ननादयन् ।। ९ ।। अनायास ही महान् परा म करनेवाले कु तीपु अजुनके नकट आकर भगवान् शंकरने अ त द खनेवाले मूक नामक अद्भुत दानवको दे खा, जो सूअरका प धारण करके अ य त तेज वी अजुनको मार डालनेका उपाय सोच रहा था; उस समय अजुनने गा डीव धनुष और वषैले सप के समान भयंकर बाण हाथम ले धनुषपर यंचा चढ़ाकर उसक टं कारसे दशा को त व नत करके कहा— ।। ७—९ ।। य मां ाथयसे ह तुमनागस महागतम् । त मात् वां पूवमेवाहं नेता यमसादनम् ।। १० ।। ‘अरे! तू यहाँ आये ए मुझ नरपराधको मारनेक घातम लगा है, इसी लये म आज पहले ही तुझे यमलोक भेज ँ गा’ ।। १० ।। ् वा तं ह र य तं फा गुनं ढध वनम् । करात पी सहसा वारयामास शङ् करः ।। ११ ।। सु ढ़ धनुषवाले अजुनको हारके लये उ त दे ख करात पधारी भगवान् शंकरने उ ह सहसा रोका ।। ११ ।। मयैष ा थतः पूव म क लसम भः । अना य च तद् वा यं जहाराथ फा गुनः ।। १२ ।। और कहा—‘इ क ल पवतके समान का तवाले इस सूअरको पहलेसे ही मने अपना ल य बना रखा है, अतः तुम न मारो।’ परंतु अजुनने करातके वचनक अवहेलना करके उसपर हार कर ही दया ।। १२ ।। करात समं त म ेकल ये महा ु तः । मुमोचाश न यं शरम न शखोपमम् ।। १३ ।। साथ ही महातेज वी करातने भी उसी एकमा ल यपर बजली और अ न शखाके समान तेज वी बाण छोड़ा ।। १३ ।। तौ मु ौ सायकौ ता यां समं त नपेततुः । मूक य गा े व तीण शैलसंहनने तदा ।। १४ ।। उन दोन के छोड़े ए वे दोन बाण एक ही साथ मूक दानवके पवत-स श वशाल शरीरम लगे ।। १४ ।। यथाशने व नघ षो व येव च पवते । तथा तयोः सं नपातः शरयोरभवत् तदा ।। १५ ।। जैसे पवतपर बजलीक गड़गड़ाहट और वपातका भयंकर श द होता है, उसी कार उन दोन बाण के आघातका श द आ ।। १५ ।। स व ो ब भबाणैद ता यैः प गै रव । ममार रा सं पं भूयः कृ वा वभीषणम् ।। १६ ।। इस कार व लत मुखवाले सप के समान अनेक बाण से घायल होकर वह दानव फर अपने भयानक रा स पको कट करते ए मर गया ।। १६ ।। ो

स ददश ततो ज णुः पु षं का चन भम् । करातवेषसं छ ं ीसहायम म हा ।। १७ ।। तम वीत् ीतमनाः कौ तेयः हस व । को भवानटते शू ये वने ीगणसंवृतः ।। १८ ।। इसी समय श ुनाशक अजुनने सुवणके समान का तमान् एक तेज वी पु षको दे खा, जो य के साथ आकर अपनेको करातवेषम छपाये ए थे। तब कु तीकुमारने स च होकर हँसते ए-से कहा—‘आप कौन ह जो इस सूने वनम य से घरे ए घूम रहे ह? ।। १७-१८ ।। न वम मन् वने घोरे बभे ष कनक भ । कमथ च वया व ो वराहो म प र हः ।। १९ ।। ‘सुवणके समान द तमान् पु ष! या आपको इस भयानक वनम भय नह लगता? यह सूअर तो मेरा ल य था, आपने य उसपर बाण मारा? ।। १९ ।। मया भप ः पूव ह रा सोऽय महागतः । कामात् प रभवाद् वा प न मे जीवन् वमो यसे ।। २० ।। ‘यह रा स पहले यह मेरे पास आया था और मने इसे काबूम कर लया था। आपने कसी कामनासे इस शूकरको मारा हो या मेरा तर कार करनेके लये। कसी दशाम भी म आपको जी वत नह छोडँगा ।। २० ।। न ेष मृगयाधम य वया कृतो म य । तेन वां ंश य या म जी वतात् पवता यम् ।। २१ ।। ‘यह मृगयाका धम नह है, जो आज आपने मेरे साथ कया है। आप पवतके नवासी ह तो भी उस अपराधके कारण म आपको जीवनसे वं चत कर ँ गा’ ।। २१ ।। इ यु ः पा डवेयेन करातः हस व । उवाच णया वाचा पा डवं स सा चनम् ।। २२ ।। पा डु न दन अजुनके इस कार कहनेपर करात-वेषधारी भगवान् शंकर जोर-जोरसे हँस पड़े और स साची पा डवसे मधुर वाणीम बोले— ।। २२ ।। न म कृते वया वीर भीः काया वनम तकात् । इयं भू मः सदा माकमु चता वसतां वने ।। २३ ।। ‘वीर! तुम हमारे लये वनके नकट आनेके कारण भय न करो। हम तो वनवासी ह, अतः हमारे लये इस भू मपर वचरना सदा उ चत ही है ।। २३ ।। वया तु करः क मा दह वासः रो चतः । वयं तु ब स वेऽ मन् नवसाम तपोधन ।। २४ ।। ‘ कतु तुमने यहाँका कर नवास कैसे पसंद कया? तपोधन! हम तो अनेक कारके जीव-ज तु से भरे ए इस वनम सदा ही रहते ह ।। २४ ।। भवां तु कृ णव माभः सुकुमारः सुखो चतः । कथं शू य ममं दे शमेकाक वच र य त ।। २५ ।। ‘





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‘तु हारे अंग क भा व लत अ नके समान जान पड़ती है। तुम सुकुमार हो और सुख भोगनेके यो य तीत होते हो। इस नजन दे शम कस लये अकेले वचर रहे हो?’ ।। २५ ।। अजुन उवाच गा डीवमा यं कृ वा नाराचां ा नसं नभान् । नवसा म महार ये तीय इव पाव कः ।। २६ ।। अजुनने कहा—म गा डीव धनुष और अ नके समान तेज वी बाण का आ य लेकर इस महान् वनम तीय का तकेयक भाँ त ( नभय) नवास करता ँ ।। २६ ।। एष चा प मया ज तुमृग पं समा तः । रा सो नहतो घोरो ह तुं मा मह चागतः ।। २७ ।। यह ाणी हसक पशुका प धारण करके मुझे ही मारनेके लये यहाँ आया था, अतः इस भयंकर रा सको मने मार गराया है ।। २७ ।। करात उवाच मयैष ध व नमु ै ता डतः पूवमेव ह । बाणैर भहतः शेते नीत यमसादनम् ।। २८ ।। करात पधारी शव बोले—मने अपने धनुष ारा छोड़े ए बाण से पहले ही इसे घायल कर दया था। मेरे ही बाण क चोट खाकर यह सदाके लये सो रहा है और यमलोकम प ँच गया ।। २८ ।। ममैष ल यभूतो ह मम पूवप र हः । ममैव च हारेण जी वताद् परो पतः ।। २९ ।। मने ही पहले इसे अपने बाण का नशाना बनाया, अतः तुमसे पहले इसपर मेरा अ धकार था पत हो चुका था। मेरे ही ती हारसे इस दानवको अपने ाण से हाथ धोना पड़ा है ।। २९ ।। दोषान् वान् नाहसेऽ य मै व ुं वबलद पतः । अव ल तोऽ स म दा मन् न मे जीवन् वमो यसे ।। ३० ।। म दबु े ! तुम अपने बलके घमंडम आकर अपने दोष सरेपर नह मढ़ सकते। तु ह अपनी श पर बड़ा गव है; अतः अब तुम मेरे हाथसे जी वत नह बच सकते ।। ३० ।। थरो भव व मो या म सायकानशनी नव । घट व परया श या मु च वम प सायकान् ।। ३१ ।। धैयपूवक सामने खड़े रहो, म वक े समान भयानक बाण छोडँगा। तुम भी अपनी पूरी श लगाकर मुझे जीतनेका यास करो। मेरे ऊपर अपने बाण छोड़ो ।। ३१ ।। त य तद् वचनं ु वा करात याजुन तदा । रोषमाहारयामास ताडयामास चेषु भः ।। ३२ ।। करातक वह बात सुनकर उस समय अजुनको बड़ा ोध आ। उ ह ने बाण से उसपर हार आर भ कया ।। ३२ ।। ो े

ततो ेन मनसा तज ाह सायकान् । भूयो भूय इ त ाह म दम दे युवाच ह ।। ३३ ।। हर व शरानेतान् नाराचान् ममभे दनः । तब करातने स च से अजुनके छोड़े ए सभी बाण को पकड़ लया और कहा —‘ओ मूख! और बाण मार और बाण मार, इन ममभेद नाराच का हार कर’ ।। ३३ ।। इ यु ो बाणवष स मुमोच सहसाजुनः ।। ३४ ।। उसके ऐसा कहनेपर अजुनने सहसा बाण क झड़ी लगा द ।। ३४ ।। तत तौ त संरधौ राजमानौ मु मु ः । शरैराशी वषाकारै तत ाते पर परम् ।। ३५ ।। तदन तर वे दोन ोधम भरकर बारंबार सपाकार बाण ारा एक- सरेको घायल करने लगे। उस समय उन दोन क बड़ी शोभा होने लगी ।। ३५ ।। ततोऽजुनः शरवष कराते समवासृजत् । तत् स ेन मनसा तज ाह शङ् करः ।। ३६ ।। त प ात् अजुनने करातपर बाण क वषा ार भ क ; परंतु भगवान् शंकरने स च से उन सब बाण को हण कर लया ।। ३६ ।। मुत शरवष तत् तगृ पनाकधृक ् । अ तेन शरीरेण त थौ ग र रवाचलः ।। ३७ ।। पनाकधारी शव दो ही घड़ीम सारी बाण-वषाको अपनेम लीन करके पवतक भाँ त अ वचल भावसे खड़े रहे। उनके शरीरपर त नक भी चोट या त नह प ँची थी ।। ३७ ।। स ् वा बाणवष तु मोघीभूतं धनंजयः । परमं व मयं च े साधु सा व त चा वीत् ।। ३८ ।। अपनी क ई सारी बाण-वषा थ ई दे ख धनंजयको बड़ा आ य आ। वे करातको साधुवाद दे ने लगे और बोले— ।। ३८ ।। अहोऽयं सुकुमारा ो हमव छखरा यः । गा डीवमु ान् नाराचान् तगृ ा य व लः ।। ३९ ।। ‘अहो! हमालयके शखरपर नवास करनेवाले इस करातके अंग तो बड़े सुकुमार ह, तो भी यह गा डीव धनुषसे छू टे ए बाण को हण कर लेता है और त नक भी ाकुल नह होता ।। ३९ ।। कोऽयं दे वो भवेत् सा ाद् ो य ः सुरोऽसुरः । व ते ह ग र े े दशानां समागमः ।। ४० ।। ‘यह कौन है? सा ात् भगवान् दे व, य , दे वता अथवा असुर तो नह है। इस े पवतपर दे वता का आना-जाना होता रहता है ।। ४० ।। न ह मद्बाणजालानामु सृ ानां सह शः । श ोऽ यः स हतुं वेगमृते दे वं पना कनम् ।। ४१ ।। ‘









‘मने सह बार जन बाण-समूह क वृ क है, उनका वेग पनाकधारी भगवान् शंकरके सवा सरा कोई नह सह सकता ।। ४१ ।। दे वो वा य द वा य ो ाद यो व थतः । अहमेनं शरै ती णैनया म यमसादनम् ।। ४२ ।। ‘य द यह दे वसे भ है तो यह दे वता हो या य —म इसे तीखे बाण से मारकर अभी यमलोक भेजता ँ’ ।। ४२ ।। ततो मना ज णुनाराचान् ममभे दनः । सृज छतधा राजन् मयूखा नव भा करः ।। ४३ ।। राजन्! यह सोचकर स च अजुनने सह करण को फैलानेवाले भगवान् भा करक भाँ त सैकड़ ममभेद नाराच का हार कया ।। ४३ ।। तान् स ेन मनसा भगवाँ लोकभावनः । शूलपा णः यगृ ा छलावष मवाचलः ।। ४४ ।। परंतु शूलधारी भूतभावन भगवान् भवने हषभरे दयसे उन सब नाराच को उसी कार आ मसात् कर लया, जैसे पवत प थर क वषाको ।। ४४ ।।

अजुनक तप या

अजुनका करातवेषधारी भगवान् शवपर बाण चलाना

णेन ीणबाणोऽथ संवृ ः फा गुन तदा । भी ैनमा वशत् ती ा तं ् वा शरसं यम् ।। ४५ ।। उस समय एक ही णम अजुनके सारे बाण समा त हो चले। उन बाण का इस कार वनाश दे खकर उनके मनम बड़ा भय समा गया ।। ४५ ।। च तयामास ज णु तु भगव तं ताशनम् । पुर ताद यौ द ौ तूणौ येना य खा डवे ।। ४६ ।। वजयी अजुनने उस समय भगवान् अ नदे वका च तन कया, ज ह ने खा डववनम य दशन दे कर उ ह दो अ य तूणीर दान कये थे ।। ४६ ।। क नु मो या म धनुषा य मे बाणाः यं गताः । अयं च पु षः कोऽ प बाणान् स त सवशः ।। ४७ ।। ह वा चैनं धनु को ा शूला ेणेव कु रम् । नया म द डधार य यम य सदनं त ।। ४८ ।। वे मन-ही-मन सोचने लगे, ‘मेरे सारे बाण न हो गये, अब म धनुषसे या चलाऊँगा। यह कोई अद्भुत पु ष है, जो मेरे सारे बाण को खाये जा रहा है। अ छा, अब म शूलके अ भागसे घायल कये जानेवाले हाथीक भाँ त इसे धनुषक को ट (नोक)-से मारकर द डधारी यमराजके लोकम प ँचा दे ता ँ’ ।। ४७-४८ ।। गृ ाथ धनु को ा यापाशेनावकृ य च । मु भ ा प हतवान् व क पैमहा ु तः ।। ४९ ।। ऐ















ऐसा वचारकर महातेज वी अजुनने करातको अपने धनुषक को टसे पकड़कर उसक यंचाम उसके शरीरको फँसाकर ख चा और वक े समान ःसह मु हारसे पी ड़त करना ार भ कया ।। ४९ ।। स यु ो धनु को ा कौ तेयः परवीरहा । तद य य धनु द ं ज ाह ग रगोचरः ।। ५० ।। श ु-वीर का संहार करनेवाले कु तीकुमार अजुनने जब धनुषक को टसे हार कया, तब उस पवतीय करातने अजुनके उस द धनुषको भी अपनेम लीन कर लया ।। ५० ।। ततोऽजुनो तधनुः खड् गपा णर त त । यु या तमभी सन् वै वेगेना भजगाम तम् ।। ५१ ।। तदन तर धनुषके त हो जानेपर अजुन हाथम तलवार लेकर खड़े हो गये और यु का अ त कर दे नेक इ छासे वेगपूवक उसपर आ मण कया ।। ५१ ।। त य मू न शतं खड् गमस ं पवते व प । मुमोच भुजवीयण व य कु न दनः ।। ५२ ।। उनक वह तलवार पवत पर भी कु ठत नह होती थी। कु न दन अजुनने अपने भुजा क पूरी श लगाकर करातके म तकपर उस ती ण धारवाली तलवारसे वार कया ।। ५२ ।। त य मूधानमासा पफाला सवरो ह सः । ततो वृ ैः शला भ योधयामास फा गुनः ।। ५३ ।। परंतु उसके म तकसे टकराते ही वह उ म तलवार टू क-टू क हो गयी। तब अजुनने वृ और शला से यु करना आर भ कया ।। ५३ ।। तदा वृ ान् महाकायः यगृ ादथो शलाः । करात पी भगवां ततः पाथ महाबलः ।। ५४ ।। मु भव संकाशैधूममु पादयन् मुखे । जहार राधष करातसम प ण ।। ५५ ।। तब वशालकाय करात पी भगवान् शंकरने उन वृ और शला को भी हण कर लया। यह दे खकर महाबली कु तीकुमार अपने वतु य मु क से धष करात-स श पवाले भगवान् शवपर हार करने लगे। उस समय ोधके आवेशसे अजुनके मुखसे धूम कट हो रहा था ।। ५४-५५ ।। ततः श ाश नसमैमु भभृशदा णैः । करात पी भगवानदयामास फा गुनम् ।। ५६ ।। तदन तर करात पी भगवान् शव भी अ य त दा ण और इ के वक े समान ःसह मु क से मारकर अजुनको पीड़ा दे ने लगे ।। ५६ ।। तत टचटाश दः सुघोरः समप त । पा डव य च मु ीनां करात य च यु यतः ।। ५७ ।। ो







फर तो घमासान यु म लगे ए पा डु न दन अजुन तथा करात पी शवके मु क का एक- सरेके शरीरपर हार होनेसे बड़ा भयंकर ‘चट-चट’ श द होने लगा ।। ५७ ।। सुमुत तु तद ् यु मभव लोमहषणम् । भुज हारसंयु ं वृ वासवयो रव ।। ५८ ।। वृ ासुर और इ के समान उन दोन का वह रोमांचकारी बा यु दो घड़ीतक चलता रहा ।। ५८ ।। जघानाथ ततो ज णुः करातमुरसा बली । पा डवं च वचे ं तं करातोऽ यहनद् बली ।। ५९ ।। त प ात् बलवान् वीर अजुनने अपनी छातीसे करातको बड़े जोरसे मारा, तब महाबली करातने भी वपरीत चे ा करनेवाले पा डु न दन अजुनपर आघात कया ।। ५९ ।। तयोभुज व न पेषात् संघषणोरसो तथा । समजायत गा ेषु पावकोऽ ारधूमवान् ।। ६० ।। उन दोन क भुजा के टकराने और व ः थल के संघषसे उनके अंग म धूम और चनगा रय के साथ आग कट हो जाती थी ।। ६० ।। तत एनं महादे वः पी गा ैः सुपी डतम् । तेजसा मद् रोषा चेत त य वमोहयन् ।। ६१ ।। तदन तर! महादे वजीने अपने अंग से दबाकर अजुनको अ छ तरह पीड़ा द और उनके च को मू छत-सा करते ए उ ह ने तेज तथा रोषसे उनके ऊपर अपना परा म कट कया ।। ६१ ।। ततोऽ भपी डतैगा ैः प डीकृत इवाबभौ । फा गुनो गा सं ो दे वदे वेन भारत ।। ६२ ।। भारत! तदन तर दे वा धदे व महादे वजीके अंग से अव हो अजुन अपने पी ड़त अवयव के साथ म के ल दे -से दखायी दे ने लगे ।। ६२ ।। न छ् वासोऽभव चैव सं न ो महा मना । पपात भू यां न े ो गतस व इवाभवत् ।। ६३ ।। महा मा भगवान् शंकरके ारा भलीभाँ त नय त हो जानेके कारण अजुनक ास या बंद हो गयी। वे न ाणक भाँ त चे ाहीन होकर पृ वीपर गर पड़े ।। ६३ ।। स मुत तथा भू वा सचेताः पुन थतः । धरेणा लुता तु पा डवो भृश ःखतः ।। ६४ ।। दो घड़ीतक उसी अव थाम पड़े रहनेके प ात् जब अजुनको चेत आ, तब वे उठकर खड़े हो गये। उस समय उनका सारा शरीर खूनसे लथपथ हो रहा था और वे ब त ःखी हो गये थे ।। ६४ ।। शर यं शरणं ग वा भगव तं पना कनम् । मृ मयं थ डलं कृ वा मा येनापूजयद् भवम् ।। ६५ ।। े ी ेऔ े

तब वे शरणागतव सल पनाकधारी भगवान् शवक शरणम गये और म क वेद बनाकर उसीपर पा थव शवक थापना करके पु पमालाके ारा उनका पूजन कया ।। ६५ ।। त च मा यं तदा पाथः करात शर स थतम् । अप यत् पा डव े ो हषण कृ त गतः ।। ६६ ।। कु तीकुमारने जो माला पा थव शवपर चढ़ायी थी, वह उ ह करातके म तकपर पड़ी दखायी द । यह दे खकर पा डव े अजुन हषसे उ ल सत हो अपने आपेम आ गये ।। ६६ ।। पपात पादयो त य ततः ीतोऽभवद् भवः । उवाच चैनं वचसा मेघग भीरगीहरः । जात व मयमालो य तपः ीणा संह तम् ।। ६७ ।। और करात पी भगवान् शंकरके चरण म गर पड़े। उस समय तप याके कारण उनके सम त अवयव ीण हो रहे थे और वे महान् आ यम पड़ गये थे, उ ह इस अव थाम दे खकर सवपापहारी भगवान् भव उनपर ब त स ए और मेघके समान ग भीर वाणीम बोले ।। ६७ ।। भव उवाच भो भोः फा गुन तु ोऽ म कमणा तमेन ते । शौयणानेन धृ या च यो ना त ते समः ।। ६८ ।। भगवान् शवने कहा—फा गुन! म तु हारे इस अनुपम परा म, शौय और धैयसे ब त संतु ँ। तु हारे समान सरा कोई य नह है ।। ६८ ।। समं तेज वीय च ममा तव चानघ । ीत तेऽहं महाबाहो प य मां भरतषभ ।। ६९ ।। अनघ! तु हारा तेज और परा म आज मेरे समान स आ है। महाबा भरत े ! म तुमपर ब त स ँ। मेरी ओर दे खो ।। ६९ ।। ददा म ते वशाला च ुः पूवऋ षभवान् । वजे य स रणे श ून प सवान् दवौकसः ।। ७० ।। वशाललोचन! म तु ह द दे ता ँ। तुम पहलेके ‘नर’ नामक ऋ ष हो। तुम यु म अपने श ु पर, वे चाहे स पूण दे वता ही य न ह , वजय पाओगे ।। ७० ।। ी या च तेऽहं दा या म यद म नवा रतम् । वं ह श ो मद यं तद ं धार यतुं णात् ।। ७१ ।। म तु हारे ेमवश तु ह अपना पाशुपता ँ गा, जसक ग तको कोई रोक नह सकता। तुम णभरम मेरे उस अ को धारण करनेम समथ हो जाओगे ।। ७१ ।। वैश पायन उवाच ततो दे वं महादे वं ग रशं शूलपा णनम् । ददश फा गुन त सह दे ा महा ु तम् ।। ७२ ।। ै ी े े े े ी

वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर अजुनने शूलपा ण महातेज वी महादे वजीका दे वी पावती-स हत दशन कया ।। ७२ ।। स जानु यां मह ग वा शरसा णप य च । सादयामास हरं पाथः परपुरंजयः ।। ७३ ।। श ु क राजधानीपर वजय पानेवाले कु तीकुमारने उनके आगे पृ वीपर घुटने टे क दये और सरसे णाम करके शवजीको स कया ।। ७३ ।। अजुन उवाच कप दन् सवदे वेश भगने नपातन । दे वदे व महादे व नील ीव जटाधर ।। ७४ ।। अजुन बोले—जटाजूटधारी सवदे वे र दे वदे व महादे व! आप भगदे वताके ने का वनाश करनेवाले ह। आपक ीवाम नील च शोभा पा रहा है। आप अपने म तकपर सु दर जटा धारण करते ह ।। ७४ ।। कारणानां च परमं जाने वां य बकं वभुम् । दे वानां च ग त दे व व सूत मदं जगत् ।। ७५ ।। भो! म आपको सम त कारण म सव े कारण मानता ँ। आप ने धारी तथा सव ापी ह। स पूण दे वता के आ य ह। दे व! यह स पूण जगत् आपसे ही उ प आ है ।। ७५ ।। अजेय वं भल कैः सदे वासुरमानुषैः । शवाय व णु पाय व णवे शव पणे ।। ७६ ।। दे वता, असुर और मनु य स हत तीन लोक भी आपको परा जत नह कर सकते। आप ही व णु प शव तथा शव व प व णु ह, आपको नम कार है ।। ७६ ।। द य वनाशाय ह र ाय वै नमः । ललाटा ाय शवाय मीढु षे शूलपाणये ।। ७७ ।। द य का वनाश करनेवाले ह रहर प आप भगवान्को नम कार है। आपके ललाटम तृतीय ने शोभा पाता है। आप जगत्का संहारक होनेके कारण शव कहलाते ह। भ क अभी कामना क वषा करनेके कारण आपका नाम मीढ् वान् (वषणशील) है। अपने हाथम शूल धारण करनेवाले आपको नम कार है ।। ७७ ।। पनाकगो े सूयाय मंग याय च वेधसे । सादये वां भगवन् सवभूतमहे र ।। ७८ ।। पनाकर क, सूय व प, मंगलकारक और सृ कता आप परमे रको नम कार है। भगवन्! सवभूत-महे र! म आपको स करना चाहता ँ ।। ७८ ।। गणेशं जगतः श भुं लोककारणकारणम् । धानपु षातीतं परं सू मतरं हरम् ।। ७९ ।। आप भूतगण के वामी, स पूण जगत्का क याण करनेवाले तथा जगत्के कारणके भी कारण ह। कृ त और पु ष दोन से परे अ य त सू म व प तथा भ के पाप को े



हरनेवाले ह ।। ७९ ।। त मं मे भगवन् तुमह स शंकर । भगवन् दशनाकाङ् ी ा तोऽ मीमं महा ग रम् ।। ८० ।। क याणकारी भगवन्! मेरा अपराध मा क जये। भगवन्! म आपहीके दशनक इ छा लेकर इस महान् पवतपर आया ँ ।। ८० ।। द यतं तव दे वेश तापसालयमु मम् । सादये वां भगवन् सवलोकनम कृतम् ।। ८१ ।। दे वे र! यह शैल- शखर तप वय का उ म आ य तथा आपका य नवास थान है। भो! स पूण जगत् आपके चरण म व दना करता है। म आपसे यह ाथना करता ँ क आप मुझपर स ह ।। ८१ ।।

न मे यादपराधोऽयं महादे वा तसाहसात् । कृतो मयायम ानाद् वमद य वया सह । शरणं तप ाय तत् म वा शंकर ।। ८२ ।। महादे व! अ य त साहसवश मने जो आपके साथ यह यु कया है, इसम मेरा अपराध नह है। यह अनजानम मुझसे बन गया है। शंकर! म अब आपक शरणम आया ँ। आप मेरी उस धृ ताको मा कर ।।



वैश पायन उवाच तमुवाच महातेजाः ह य वृषभ वजः । गृ चरं बा ं ा त म येव फा गुनम् ।। ८३ ।। वैश पायनजीने कहा—जनमेजय! तब महातेज वी भगवान् वृषभ वजने अजुनका सु दर हाथ पकड़कर उनसे हँसते ए कहा—‘मने तु हारा अपराध पहलेसे ही मा कर दया’ ।। ८३ ।। प र व य च बा यां ीता मा भगवान् हरः । पुनः पाथ सा वपूवमुवाच वृषभ वजः ।। ८४ ।। फर उ ह दोन भुजा से ख चकर दयसे लगाया और स च हो वृषके च से अं कत वजा धारण करनेवाले भगवान् ने पुनः कु तीकुमारको सा वना दे ते ए कहा ।। ८४ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण कैरातपव ण महादे व तवे एकोनच वारशोऽ यायः ।। ३९ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत कैरातपवम महादे वजीक तु तसे स ब ध रखनेवाला उनतालीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ३९ ।।

च वा रशोऽ यायः भगवान् शंकरका अजुनको वरदान दे कर अपने धामको थान दे वदे व उवाच नर वं पूवदे हे वै नारायणसहायवान् । बदया त तवानु ं तपो वषायुतान् बन् ।। १ ।। दे वदे व महादे वजी बोले—अजुन! तुम पूव-शरीरम ‘नर’ नामक सु स ऋ ष थे। नारायण तु हारे सखा ह। तुमने बद रका मम अनेक सह वष तक उ तप या क है ।। १ ।। व य वा परमं तेजो व णौ वा पु षो मे । युवा यां पु षा या यां तेजसा धायते जगत् ।। २ ।। तुमम अथवा पु षो म भगवान् व णुम उ कृ तेज है। तुम दोन पु षर न ने अपने तेजसे इस स पूण जगत्को धारण कर रखा है ।। २ ।। श ा भषेके सुमह नुजलद नः वनम् । गृ दानवाः श ता वया कृ णेन च भो ।। ३ ।। भो! तुमने और ीकृ णने इ के अ भषेकके समय मेघके समान ग भीर घोष करनेवाले महान् धनुषको हाथम लेकर ब त-से दानव का वध कया था ।। ३ ।। तदे तदे व गा डीवं तव पाथ करो चतम् । मायामा थाय यद् तं मया पु षस म ।। ४ ।। पु ष वर पाथ! तु हारे हाथम रहनेयो य यही वह गा डीव धनुष है, जसे मने मायाका आ य लेकर अपनेम वलीन कर लया था ।। ४ ।। तूणौ चा य यौ भूय तव पाथ यथो चतौ । भ व य त शरीरं च नी जं कु न दन ।। ५ ।। कु न दन! और ये रहे तु हारे दोन अ य तूणीर, जो सवथा तु हारे ही यो य ह। कु तीकुमार! तु हारे शरीरम जो चोट प ँची है, वह सब र होकर तुम नीरोग हो जाओगे ।। ५ ।। ी तमान म ते पाथ भवान् स यपरा मः । गृहाण वरम म ः काङ् तं पु षो म ।। ६ ।। पाथ! तु हारा परा म यथाथ है, इस लये म तुमपर ब त स ँ। पु षो म! तुम मुझसे मनोवां छत वर हण करो ।। ६ ।। न वया पु षः क त् पुमान् म यषु मानद । द व वा वतते ं व धानमरदम ।। ७ ।। ो





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मानद! म यलोक अथवा वगलोकम भी कोई पु ष तु हारे समान नह है। श ुदमन! य-जा तम तु ह सबसे े हो ।। ७ ।। अजुन उवाच भगवन् ददा स चे म ं कामं ी या वृष वज । कामये द म ं तद् घोरं पाशुपतं भो ।। ८ ।। अजुन बोले—भगवन्! वृष वज! य द आप स तापूवक मुझे इ छानुसार वर दे ते ह तो भो! म उस भयंकर द ा पाशुपतको ा त करना चाहता ँ ।। ८ ।। यत् तद् शरो नाम रौ ं भीमपरा मम् । चुगा ते दा णे ा ते कृ नं संहरते जगत् ।। ९ ।। जसका नाम शर है, आप भगवान् ही जसके दे वता ह, जो भयानक परा म कट करनेवाला तथा दा ण लयकालम स पूण जगत्का संहारक है ।। ९ ।। कणभी मकृप ोणैभ वता तु महाहवः । व सादा महादे व जयेयं तान् यथा यु ध ।। १० ।। महादे व! कण, भी म, कृप, ोणाचाय आ दके साथ मेरा महान् यु होनेवाला है, उस यु म म आपक कृपासे उन सबपर वजय पा सकूँ, इसीके लये द ा चाहता ँ ।। १० ।। दहेयं येन सं ामे दानवान् रा सां तथा । भूता न च पशाचां ग धवानथ प गान् ।। ११ ।। य म छु लसह ा ण गदा ो दशनाः । शरा ाशी वषाकाराः स भव यनुम ते ।। १२ ।। मुझे वह अ दान क जये, जससे सं ामम दानव , रा स , भूत , पशाच , ग धव तथा नाग को भ म कर सकूँ। जस अ के अ भम त करते ही सह शूल, दे खनेम भयंकर गदाएँ और वषैले सप के समान बाण कट ह ।। ११-१२ ।। यु येयं येन भी मेण ोणेन च कृपेण च । सूतपु ेण च रणे न यं कटु कभा षणा ।। १३ ।। उस अ को पाकर म भी म, ोण, कृपाचाय तथा सदा कटु भाषण करनेवाले सूतपु कणके साथ भी यु म लड़ सकूँ ।। १३ ।। एष मे थमः कामो भगवन् भगने हन् । व सादाद् व नवृ ः समथः यामहं यथा ।। १४ ।। भगदे वताक आँख न करनेवाले भगवन्! आपके सम यह मेरा सबसे पहला मनोरथ है, जो आपहीके कृपा सादसे पूण हो सकता है। आप ऐसा कर, जससे म सवथा श ु को परा त करनेम समथ हो सकूँ ।। १४ ।। भव उवाच ददा म तेऽ ं द यतमहं पाशुपतं वभो । समथ धारणे मो े संहारे चा स पा डव ।। १५ ।। े ी े ी

महादे वजीने कहा—परा मशाली पा डु कुमार! म अपना परम य पाशुपता तु ह दान करता ँ। तुम इसके धारण, योग और उपसंहारम समथ हो ।। १५ ।। नैतद् वेद महे ोऽ प न यमो न च य राट् । व णोऽ यथवा वायुः कुतो वे य त मानवाः ।। १६ ।। इसे दे वराज इ , यम, य राज कुबेर, व ण अथवा वायुदेवता भी नह जानते। फर साधारण मानव तो जान ही कैसे सकगे? ।। १६ ।। न वेतत् सहसा पाथ मो ं पु षे व चत् । जगद् वनाशयेत् सवम पतेज स पा ततम् ।। १७ ।। परंतु कु तीकुमार! तुम सहसा कसी पु षपर इसका योग न करना। य द कसी अ पश यो ापर इसका योग कया गया तो यह स पूण जगत्का नाश कर डालेगा ।। १७ ।। अव यो नाम ना य ैलो ये सचराचरे । मनसा च ुषा वाचा धनुषा च नपातयेत् ।। १८ ।। चराचर ा णय स हत सम त लोक म कोई ऐसा पु ष नह है जो इस अ ारा मारा न जा सके। इसका योग करनेवाला पु ष अपने मान सक संक पसे, से, वाणीसे तथा धनुष-बाण ारा भी श ु को न कर सकता है ।। १८ ।।

वैश पायन उवाच त छ वा व रतः पाथः शु चभू वा समा हतः । उपसंग य व ेशमधी वे यथ सोऽ वीत् ।। १९ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! यह सुनकर कु तीपु अजुन तुरंत ही प व एवं एका च हो श यभावसे भगवान् व े रक शरण गये और बोले—‘भगवन्! मुझे इस पाशुपता का उपदे श क जये’ ।। १९ ।। तत व यापयामास सरह य नवतनम् । तद ं पा डव े ं मू तम त मवा तकम् ।। २० ।। उपत थे च तत् पाथ यथा य मुमाप तम् । तज ाह त चा प ी तमानजुन तदा ।। २१ ।। तब भगवान् शवने रह य और उपसंहारस हत पाशुपता का उ ह उपदे श दया। उस समय वह अ जैसे पहले ने धारी उमाप त शवक सेवाम उप थत आ था, उसी कार मू तमान् यमराजतु य पा डव े अजुनके पास आ गया। तब अजुनने ब त स होकर उसे हण कया ।। २०-२१ ।। तत चाल पृ थवी सपवतवन मा । ससागरवनो े शा स ामनगराकरा ।। २२ ।। अजुनके पाशुपता हण करते ही पवत, वन, वृ , समु , वन थली, ाम, नगर तथा आकर (खान ) स हत सारी पृ वी काँप उठ ।। २२ ।। शङ् ख भघोषा भेरीणां च सह शः । े

त मन् मुत स ा ते नघात महानभूत् ।। २३ ।। उस शुभ मु के आते ही शंख और भय के श द होने लगे। सह भे रयाँ बज उठ। आकाशम वायुक े टकरानेका महान् श द होने लगा ।। २३ ।। अथा ं जा वलद् घोरं पा डव या मतौजसः । मू तमद् वै थतं पा द शुदवदानवाः ।। २४ ।। तदन तर वह भयंकर अ मू तमान् हो अ नके समान व लत तेज वी पसे अ मत परा मी पा डु न दन अजुनके पा भागम खड़ा हो गया। यह बात दे वता और दानव ने य दे खी ।। २४ ।। पृ य य बकेणाथ फा गुन या मतौजसः । यत् क चदशुभं दे हे तत् सव नाशमी यवत् ।। २५ ।। भगवान् शंकरके पश करनेसे अ मत तेज वी अजुनके शरीरम जो कुछ भी अशुभ था, वह न हो गया ।। २५ ।। वग ग छे यनु ात य बकेण तदाजुनः । ण य शरसा राजन् ा लदवमै त ।। २६ ।। उस समय भगवान् लोचनने अजुनको यह आ ा द क ‘तुम वगलोकको जाओ।’ राजन्! तब अजुनने भगवान्के चरण म म तक रखकर णाम कया और हाथ जोड़कर उनक ओर दे खने लगे ।। २६ ।। ततः भु दव नवा सनां वशी महाम त ग रश उमाप तः शवः । धनुमहद् द तज पशाचसूदनं ददौ भवः पु षवराय गा डवम् ।। २७ ।। त प ात् दे वता के वामी, जते य एवं परम बु मान् कैलासवासी उमाव लभ भगवान् शवने पु ष वर अजुनको वह महान् गा डीवधनुष दे दया, जो दै य और पशाच का संहार करनेवाला था ।। २७ ।। ततः शुभं ग रवरमी र तदा सहोमया सततटसानुक दरम् । वहाय तं पतगमह षसे वतं जगाम खं पु षवर य प यतः ।। २८ ।। जसके तट, शखर और क दराएँ हमा छा दत होनेके कारण ेत दखायी दे ती ह, प ी और मह षगण सदा जसका सेवन करते ह, उस मंगलमय ग र े इ क लको छोड़कर भगवान् शंकर भगवती उमादे वीके साथ अजुनके दे खते-दे खते आकाशमागसे चले गये ।। २८ ।। इ त ीमहाभारते वनपव ण कैरातपव ण शव थाने च वारशोऽ यायः ।। ४० ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत कैरातपवम शव थान वषयक चालीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ४० ।।

एकच वा रशोऽ यायः अजुनके पास द पाल का आगमन एवं उ ह द ा दान तथा इ का उ ह वगम चलनेका आदे श दे ना वैश पायन उवाच त य स प यत वेव पनाक वृषभ वजः । जगामादशनं भानुल क येवा तमी यवान् ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! अजुनके दे खते-दे खते पनाकधारी भगवान् वृषभ वज अ य हो गये, मानो भुवनभा कर भगवान् सूय अ त हो गये ह ।। १ ।। ततोऽजुनः परं च े व मयं परवीरहा । मया सा ा महादे वो इ येव भारत ।। २ ।। भारत! तदन तर श ुवीर का संहार करनेवाले अजुनको यह सोचकर बड़ा आ य आ क आज मुझे महादे वजीका य दशन ा त आ है ।। २ ।। ध योऽ यनुगृहीतोऽ म य मया य बको हरः । पनाक वरदो पी ः पृ पा णना ।। ३ ।। म ध य ँ! भगवान्का मुझपर बड़ा अनु ह है क ने धारी, सवपापहारी एवं अभी वर दे नेवाले पनाक-पा ण भगवान् शंकरने मू तमान् होकर मुझे दशन दया और अपने करकमल से मेरे अंग का पश कया ।। ३ ।। कृताथ चावग छा म परमा मानमाहवे । श ूं व जतान् सवान् नवृ ं च योजनम् ।। ४ ।। आज म अपने-आपको परम कृताथ मानता ँ, साथ ही यह व ास करता ँ क महासमरम अपने सम त श ु पर वजय ा त क ँ गा। अब मेरा अभी योजन स हो गया ।। ४ ।। इ येवं च तयान य पाथ या मततेजसः । ततो वै यवणाभो भासयन् सवतो दशः । यादोगणवृतः ीमानाजगाम जले रः ।। ५ ।। इस कार च तन करते ए अ मत तेज वी कु तीकुमार अजुनके पास जलके वामी ीमान् व णदे व जल-ज तु से घरे ए आ प ँचे। उनक अंगका त वै यम णके समान थी और वे स पूण दशा को का शत कर रहे थे ।। ५ ।। नागैनदै नद भ दै यैः सा यै दै वतैः । व णो यादसां भता वशी तं दे शमागमत् ।। ६ ।। नाग , नद और न दय के दे वता , दै य तथा सा यदे वता के साथ जल-ज तु के वामी जते य व णदे वने उस थानको अपने शुभागमनसे सुशो भत कया ।। ६ ।। अथ जा बूनदवपु वमानेन महा चषा । े





कुबेरः समनु ा तो य ैरनुगतः भुः ।। ७ ।। तदन तर वणके समान शरीरवाले भगवान् कुबेर महातेज वी वमान ारा वहाँ आये। उनके साथ ब त-से य भी थे ।। ७ ।। व ोतय वाकाशम तोपमदशनः । धनानामी रः ीमानजुनं ु मागतः ।। ८ ।। वे अपने तेजसे आकाशम डलको का शत-से कर रहे थे। उनका दशन अ त एवं अनुपम था। परम सु दर ीमान् धना य कुबेर अजुनको दे खनेके लये वहाँ पधारे थे ।। ८ ।। तथा लोका तकृ मान् यमः सा ात् तापवान् । म यमू तधरैः साध पतृ भल कभावनैः ।। ९ ।। इसी कार सम त जगत्का अ त करनेवाले ीमान् तापी यमराजने य पम वहाँ दशन दया। उनके साथ मानव-शरीरधारी व भावन पतृगण भी थे ।। ९ ।। द डपा णर च या मा सवभूत वनाशकृत् । वैव वतो धमराजो वमानेनावभासयन् ।। १० ।। लोकान् गु कां ैव ग धवा सप गान् । तीय इव मात डो युगा ते समुप थते ।। ११ ।। उनके हाथम द ड शोभा पा रहा था। स पूण भूत का वनाश करनेवाले अ च या मा सूयपु धमराज अपने (तेज वी) वमानसे तीन लोक , गु क , ग धव तथा नाग को का शत कर रहे थे। लयकाल उप थत होनेपर दखायी दे नेवाले तीय सूयक भाँ त उनक अ त शोभा हो रही थी ।। १०-११ ।। ते भानुम त च ा ण शखरा ण महा गरेः । समा थायाजुनं त द शु तपसा वतम् ।। १२ ।। उन सब दे वता ने उस महापवतके व च एवं तेज वी शखर पर प ँचकर वहाँ तप वी अजुनको दे खा ।। ततो मुताद ् भगवानैरावत शरोगतः । आजगाम सहे ा या श ः सुरगणैवृतः ।। १३ ।। त प ात् दो ही घड़ीके बाद भगवान् इ इ ाणीके साथ ऐरावतक पीठपर बैठकर वहाँ आये। दे वता के समुदायने उ ह सब ओरसे घेर रखा था ।। पा डु रेणातप ेण यमाणेन मूध न । शुशुभे तारकाराजः सतम मव थतः ।। १४ ।। सं तूयमानो ग धवऋ ष भ तपोधनैः । शृ ं गरेः समासा त थौ सूय इवो दतः ।। १५ ।। उनके म तकपर ेत छ तना आ था, जससे वे शु वणके मेघख डसे आ छा दत च माके समान सुशो भत हो रहे थे। ब त-से तप वी-ऋ ष तथा ग धवगण उनक तु त करते थे। वे उस पवतके शखरपर आकर ठहर गये, मानो वहाँ सूय कट हो गये ह ।। १४-१५ ।। े ो ी

अथ मेघ वनो धीमान् ाजहार शुभां गरम् । यमः परमधम ो द णां दशमा थतः ।। १६ ।। तदन तर मेघके समान ग भीर वरवाले परम धम एवं बु मान् यमराज द ण दशाम थत हो यह शुभ वचन बोले— ।। १६ ।। अजुनाजुन प या माँ लोकपालान् समागतान् । ते वतरामोऽ भवानह त दशनम् ।। १७ ।। पूव षर मता मा वं नरो नाम महाबलः । नयोगाद् ण तात म यतां समुपागतः ।। १८ ।। अजुन! हम सब लोकपाल यहाँ आये ए ह। तुम हम दे खो। हम तु ह द दे ते ह। तुम हमारे दशनके अ धकारी हो। तुम महामना एवं महाबली पुरातन मह ष नर हो। तात! ाजीक आ ासे तुमने मानव-शरीर हण कया है ।। १७-१८ ।। वया च वसुस भूतो महावीयः पतामहः । भी मः परमधमा मा संसा य रणेऽनघ ।। १९ ।। ं चा नसम पश भार ाजेन र तम् । दानवा महावीया ये मनु य वमागताः ।। २० ।। नवातकवचा ैव दानवाः कु न दन । पतुममांशो दे व य सवलोक ता पनः ।। २१ ।। कण सुमहावीय वया व यो धनंजय । ‘अनघ! वसु के अंशसे उ प महापरा मी और परम धमा मा पतामह भी मको तुम सं ामम जीत लोगे। भर ाजपु ोणाचायके ारा सुर त य-समुदाय भी, जसका पश अ नके समान भयंकर है, तु हारे ारा परा जत होगा। कु न दन! मानवशरीरम उ प ए महाबली दानव तथा नवातकवच नामक दै य भी तु हारे हाथसे मारे जायँगे। धनंजय! स पूण जगत्को उ णता दान करनेवाले मेरे पता भगवान् सूयदे वके अंशसे उ प महापरा मी कण भी तु हारा व य होगा ।। १९—२१ ।। अंशा तस ा ता दे वदानवर साम् ।। २२ ।। वया नपा तता यु े वकमफल न जताम् । ग त ा य त कौ तेय यथा वम रकषण ।। २३ ।। ‘श ु का संहार करनेवाले कु तीकुमार! दे वता , दानव तथा रा स के जो अंश पृ वीपर उ प ए ह, वे यु म तु हारे ारा मारे जाकर अपने कमफलके अनुसार यथो चत ग त ा त करगे ।। २२-२३ ।। अ या तव क त लोके था य त फा गुन । वया सा ा महादे व तो षतो ह महामृधे ।। २४ ।। ‘फा गुन! संसारम तु हारी अ य क त था पत होगी। तुमने यहाँ महासमरम सा ात् महादे वजीको संतु कया है ।। २४ ।। ल वी वसुमती चा प कत ा व णुना सह । ो

गृहाणा ं महाबाहो द डम तवारणम् । अनेना ेण सुमहत् वं ह कम क र य स ।। २५ ।। ‘महाबाहो! भगवान् ीकृ णके साथ मलकर तु ह इस पृ वीका भार भी हलका करना है, अतः यह मेरा द डा हण करो। इसका वेग कह भी कु ठत नह होता। इसी अ के ारा तुम बड़े-बड़े काय स करोगे’ ।। २५ ।। वैश पायन उवाच तज ाह तत् पाथ व धवत् कु न दनः । सम ं सोपचारं च समो व नवतनम् ।। २६ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! कु न दन कु तीकुमार अजुनने व धपूवक म , उपचार, योग और उपसंहारस हत उस अ को हण कया ।। २६ ।। ततो जलधर यामो व णो यादसां प तः । प मां दशमा थाय गरमु चारयन् भुः ।। २७ ।। इसके बाद जल-ज तु के वामी मेघके समान यामका तवाले भावशाली व ण प म दशाम खड़े हो इस कार बोले— ।। २७ ।। पाथ यमु य वं धम व थतः । प य मां पृथुता ा व णोऽ म जले रः ।। २८ ।। ‘पाथ! तुम य म धान एवं य-धमम थत हो। वशाल तथा लाल ने वाले अजुन! मेरी ओर दे खो। म जलका वामी व ण ँ ।। २८ ।। मया समु तान् पाशान् वा णान नवा रतान् । तगृ व कौ तेय सरह य नवतनम् ।। २९ ।। ‘कु तीकुमार! मेरे दये ए इन व ण-पाश को रह य और उपसंहारस हत हण करो। इनके वेगको कोई भी रोक नह सकता ।। २९ ।। ए भ तदा मया वीर सं ामे तारकामये । दै तेयानां सह ा ण संयता न महा मनाम् ।। ३० ।। ‘वीर! मने इन पाश ारा तारकामय सं ामम सह महाकाय दै य को बाँध लया था ।। ३० ।। त मा दमान् महास व म सादसमु थतान् । गृहाण न ह ते मु येद तकोऽ यातता यनः ।। ३१ ।। ‘अतः महाबली पाथ! मेरे कृपा सादसे कट ए इन पाश को तुम हण करो। इनके ारा आ मण करनेपर मृ यु भी तु हारे हाथसे नह छू ट सकती ।। ३१ ।। अनेन वं यदा ेण सं ामे वच र य स । तदा नः या भू मभ व य त न संशयः ।। ३२ ।। ‘इस अ के ारा जब तुम सं ामभू मम वचरण करोगे, उस समय यह सारी वसु धरा य से शू य हो जायगी, इसम संशय नह है’ ।। ३२ ।। वैश पायन उवाच ै ो ो

ततः कैलास नलयो धना य ोऽ यभाषत । द े व ेषु द ेषु व णेन यमेन च ।। ३३ ।। ीतोऽहम प ते ा पा डवेय महाबल । वया सह समाग य अ जतेन तथैव च ।। ३४ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! व ण और यमके द ा दान कर चुकनेपर कैलास नवासी धना य कुबेरने कहा—‘महाबली बु मान् पा डु न दन! म भी तुमपर स ँ। तुम अपरा जत वीर हो। तुमसे मलकर मुझे बड़ी स ता ई है’ ।। ३३-३४ ।। स सा चन् महाबाहो पूवदे व सनातन । सहा मा भभवा ा तः पुराक पेषु न यशः ।। ३५ ।। दशनात् ते वदं द ं दशा म नरषभ । अमनु यान् महाबाहो जयान प जे य स ।। ३६ ।। ‘स सा चन्! महाबाहो! पुरातन दे व! सनातनपु ष! पूवक प म मेरे साथ तुमने सदा तपके ारा प र म उठाया है। नर े ! आज तु ह दे खकर यह द ा दान करता ँ। महाबाहो! इसके ारा तुम जय मानवेतर ा णय को भी जीत लोगे ।। ३५-३६ ।। म ैव भवानाशु गृ ा व मनु मम् । अनेन वमनीका न धातरा य ध य स ।। ३७ ।। ‘तुम मुझसे शी ही इस अ यु म अ को हण कर लो। तुम इसके ारा य धनक सारी सेना को जलाकर भ म कर डालोगे ।। ३७ ।। त ददं तगृ व अ तधानं यं मम । ओज तेजो ु तकरं वापनमरा तनुत् ।। ३८ ।। ‘यह मेरा परम य अ तधान नामक अ है। इसे हण करो। यह ओज, तेज और का त दान करनेवाला, श ुसेनाको सुला दे नेवाला और सम त वै रय का वनाश करनेवाला है ।। ३८ ।। महा मना शङ् करेण पुरं नहतं यदा । तदै तद ं नमु ं येन द धा महासुराः ।। ३९ ।। ‘परमा मा शंकरने जब पुरासुरके तीन नगर का वनाश कया था, उस समय इस अ का उनके ारा योग कया गया था; जससे बड़े-बड़े असुर द ध हो गये थे ।। ३९ ।। वदथमु तं चेदं मया स यपरा म । वमह धारणे चा य मे तमगौरव ।। ४० ।। ‘स यपरा मी और मे के समान गौरवशाली पाथ! तु हारे लये यह अ मने उप थत कया है। तुम इसे धारण करनेके यो य हो’ ।। ४० ।। ततोऽजुनो महाबा व धवत् कु न दनः । कौबेरम धज ाह द म ं महाबलः ।। ४१ ।। तब कु कुलका आन द बढ़ानेवाले महाबा महाबली अजुनने कुबेरके उस ‘अ तधान’ नामक द अ को हण कया ।। ४१ ।। ततोऽ वीद् दे वराजः पाथम ल का रणम् । े

सा वय णया वाचा मेघ भ नः वनः ।। ४२ ।। तदन तर दे वराज इ ने अनायास ही महान् कम करनेवाले कु तीकुमार अजुनको मीठे वचन ारा सा वना दे ते ए मेघ और भके समान ग भीर वरसे कहा— ।। ४२ ।। कु तीमातमहाबाहो वमीशानः पुरातनः । परां स मनु ा तः सा ाद् दे वग त गतः ।। ४३ ।। ‘महाबा कु तीकुमार! तुम पुरातन शासक हो। तु ह उ म स ा त ई है। तुम सा ात् दे वग तको ा त ए हो ।। ४३ ।। दे वकाय तु सुमहत् वया कायमरदम । आरोढ वया वगः स जीभव महा ुते ।। ४४ ।। ‘श ुदमन! तु ह दे वता का बड़ा भारी काय स करना है। महा ुते! तैयार हो जाओ। तु ह वगलोकम चलना है ।। ४४ ।। रथो मात लसंयु आग ता व कृते महीम् । त तेऽहं दा या म द ा य ा ण कौरव ।। ४५ ।। ‘मात लके ारा जोता आ द रथ तु ह लेनेके लये पृ वीपर आनेवाला है। कु न दन! वह ( वगम) म तु ह द ा दान क ँ गा’ ।। ४५ ।। तान् ् वा लोकपालां तु समेतान् ग रमूध न । जगाम व मयं धीमान् कु तीपु ो धनंजयः ।। ४६ ।। उस पवत शखरपर एक ए उन सभी लोक-पाल का दशन करके परम बु मान् धनंजयको बड़ा व मय आ ।। ४६ ।। ततोऽजुनो महातेजा लोकपालान् समागतान् । पूजयामास व धवद् वा भर ः फलैर प ।। ४७ ।। त प ात् महातेज वी अजुनने वहाँ पधारे ए लोकपाल का मीठे वचन, जल और फल के ारा भी व धपूवक पूजन कया ।। ४७ ।। ततः तययुदवाः तमा य धनंजयम् । यथागतेन वबुधाः सव काममनोजवाः ।। ४८ ।। इसके बाद इ छानुसार मनके समान वेगवाले सम त दे वता अजुनके त स मान कट करके जैसे आये थे वैसे ही चले गये ।। ४८ ।। ततोऽजुनो मुदं लेभे लधा ः पु षषभः । कृताथमथ चा मानं स मेने पूणमानसम् ।। ४९ ।। तदन तर दे वता से द ा ा त करके पु षो म अजुनको बड़ी स ता ई; उ ह ने अपने-आपको कृताथ एवं पूणमनोरथ माना ।। ४९ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण कैरातपव ण दे व थाने एकच वारशोऽ यायः ।। ४१ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत कैरातपवम दे व थान वषयक इकतालीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ४१ ।।

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लोका भगमनपव) च वा रशोऽ यायः

अजुनका हमालयसे वदा होकर मात लके साथ वगलोकको थान वैश पायन उवाच गतेषु लोकपालेषु पाथः श ु नबहणः । च तयामास राजे दे वराजरथं त ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! लोकपाल के चले जानेपर श ुसंहारक अजुनने दे वराज इ के रथका च तन कया ।। १ ।। तत तयमान य गुडाकेश य धीमतः । रथो मात लसंयु आजगाम महा भः ।। २ ।। न ा वजयी बु मान् पाथके च तन करते ही मात लस हत महातेज वी रथ वहाँ आ गया ।। २ ।। नभो व त मरं कुव लदान् पाटय व । दशः स पूरयन् नादै महामेघरवोपमैः ।। ३ ।। वह रथ आकाशको अ धकारशू य मेघ क घटाको वद ण और महान् मेघक गजनाके समान ग भीर श दसे दशा को प रपूण-सा कर रहा था ।। ३ ।। असयः श यो भीमा गदा ो दशनाः । द भावाः ासा व ुत महा भाः ।। ४ ।। तथैवाशनय ैव च यु ा तुलागुडाः । वायु फोटाः स नघाता महामेघ वना तथा ।। ५ ।। उस रथम तलवार, भयंकर श , उ गदा, द भावशाली ास, अ य त का तमती व ुत्, अश न एवं च यु भारी वजनवाले तरके गोले रखे ए थे, जो चलाते समय हवाम सनसनाहट पैदा करते थे। तथा जनसे वगजन और महामेघ क ग भीर व नके समान श द होते थे ।। ४-५ ।। त नागा महाकाया व लता याः सुदा णाः । सता कूट तमाः संहता तथोपलाः ।। ६ ।। उस थानम अ य त भयंकर तथा व लत मुखवाले वशालकाय सप मौजूद थे। ेत बादल के समूहक भाँ त ढे र-के-ढे र यु म फकनेयो य प थर भी रखे ए थे ।। ६ ।। दशवा जसह ा ण हरीणां वातरंहसाम् । े

वह त यं ने मुषं द ं मायामयं रथम् ।। ७ ।। वायुके समान वेगशाली दस हजार ेत-पीत रंगवाले घोड़े ने म चकाच ध पैदा करनेवाले उस द मायामय रथको वहन करते थे ।। ७ ।। त ाप य महानीलं वैजय तं महा भम् । वज म द वर यामं वंशं कनकभूषणम् ।। ८ ।। अजुनने उस रथपर अ य त नीलवणवाले महातेज वी ‘वैजय त’ नामक इ वजको फहराता दे खा। उसक याम सुषमा नील कमलक शोभाको तर कृत कर रही थी। उस वजके द डम सुवण मढ़ा आ था ।। ८ ।। त मन् रथे थतं सूतं त तहेम वभू षतम् । ् वा पाथ महाबा दवमेवा वतकयत् ।। ९ ।। महाबा कु तीकुमारने उस रथपर बैठे ए सार थक ओर दे खा, जो तपाये ए सुवणके आभूषण से वभू षत था। उसे दे खकर उ ह ने कोई दे वता ही समझा ।। ९ ।। तथा तकयत त य फा गुन याथ मात लः । संनतः थतो भू वा वा यमजुनम वीत् ।। १० ।। इस कार वचार करते ए अजुनके स मुख उप थत हो मात लने वनीतभावसे कहा ।। १० ।। मात ल वाच भो भोः श ा मज ीमा छ वां ु म छ त । आरोहतु भवा छ ं रथ म य स मतम् ।। ११ ।। मात ल बोला—इ कुमार! ीमान् दे वराज इ आपको दे खना चाहते ह। यह उनका य रथ है। आप इसपर शी आ ढ़ होइये ।। ११ ।। आह माममर े ः पता तव शत तुः । कु तीसुत मह ा तं प य तु दशालयाः ।। १२ ।। एष श ः प रवृतो दे वैऋ षगणै तथा । ग धवर सरो भ वां द ुः ती ते ।। १३ ।। आपके पता दे वे र शत तुने मुझसे कहा है क ‘तुम कु तीन दन अजुनको यहाँ ले आओ, जससे सब दे वता उ ह दे ख।’ दे वता , मह षय , ग धव तथा अ सरा से घरे ए इ आपको दे खनेके लये ती ा कर रहे ह ।। १२-१३ ।। अ मा लोकाद् दे वलोकं पाकशासनशासनात् । आरोह वं मया साध लधा ः पुनरे य स ।। १४ ।। आप दे वराजक आ ासे इस लोकसे मेरे साथ दे वलोकको च लये। वहाँसे द ा ा त करके लौट आइयेगा ।। १४ ।। अजुन उवाच मातले ग छ शी ं वमारोह व रथो मम् । राजसूया मेधानां शतैर प सु लभम् ।। १५ ।। े े े े े

अजुनने कहा—मातले! आप ज द च लये। अपने इस उ म रथपर पहले आप च ढ़ये। यह सैकड़ राजसूय और अ मेधय ारा भी अ य त लभ है ।। पा थवैः सुमहाभागैय व भभू रद णैः । दै वतैवा समारोढुं दानवैवा रथो मम् ।। १६ ।। चुर द णा दे नेवाले, महान् सौभा यशाली, य परायण भू मपाल , दे वता अथवा दानव के लये भी इस उ म रथपर आ ढ़ होना क ठन है ।। १६ ।। नात ततपसा श य एष द ो महारथः । ु ं वा यथवा ु मारोढुं कुत एव च ।। १७ ।। ज ह ने तप या नह क है, वे इस महान् द रथका दशन या पश भी नह कर सकते, फर इसपर आ ढ़ होनेक तो बात ही या है? ।। १७ ।। व य त ते साधो रथ थे थरवा ज न । प ादहमथारो ये सुकृती स पथं यथा ।। १८ ।। साधु सारथे! आप इस रथपर थरतापूवक बैठकर जब घोड़ को काबूम कर ल, तब जैसे पु या मा स मागपर आ ढ़ होता है, उसी कार पीछे म भी इस रथपर आ ढ़ होऊँगा ।। १८ ।। वैश पायन उवाच त य तद् वचनं ु वा मात लः श सार थः । आ रोह रथं शी ं हयान् येमे च र म भः ।। १९ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! अजुनका यह वचन सुनकर इ सार थ मात ल शी ही रथपर जा बैठा और बागडोर ख चकर घोड़ को काबूम कया ।। १९ ।। ततोऽजुनो मना ग ायामा लुतः शु चः । जजाप ज यं कौ तेयो व धवत् कु न दनः ।। २० ।। तदन तर कु न दन कु तीकुमार अजुनने स मनसे गंगाम नान कया और प व हो व धपूवक जपने-यो य म का जप कया ।। २० ।। ततः पतॄन् यथा यायं तप य वा यथा व ध । म दरं शैलराजं तमा ु मुपच मे ।। २१ ।। फर व धपूवक यायो चत री तसे पतर का तपण करके व तृत शैलराज हमालयसे वदा लेनेका उप म कया ।। २१ ।। साधूनां पु यशीलानां मुनीनां पु यकमणाम् । वं सदा सं यः शैल वगमागा भकाङ् णाम् ।। २२ ।। ‘ ग रराज! तुम साधु-महा मा , पु या मा मु नय तथा वगमागक अ भलाषा रखनेवाले पु यकमा मनु य के सदा शुभ आ य हो ।। २२ ।। व सादात् सदा शैल ा णाः या वशः । वग ा ता र त म दे वैः सह गत थाः ।। २३ ।। ‘













‘ ग रराज! तु हारे कृपा सादसे सदा कतने ही ा ण, य और वै य वगम जाकर थार हत हो दे वता के साथ वचरते ह ।। २३ ।। अ राज महाशैल मु नसं य तीथवन् । ग छा याम या म वां सुखम यु षत व य ।। २४ ।। ‘अ राज! महाशैल! मु नय के नवास थान! तीथ से वभू षत हमालय! म तु हारे शखरपर सुखपूवक रहा ँ, अतः तुमसे आ ा माँगकर यहाँसे जा रहा ँ ।। २४ ।। तव सानू न कु ा न ः वणा न च । तीथा न च सुपु या न मया ा यनेकशः ।। २५ ।। ‘तु हारे शखर, कुंजवन, न दयाँ, झरने और परम पु यमय तीथ थान मने अनेक बार दे खे ह ।। २५ ।। फला न च सुग धी न भ ता न तत ततः । सुसुग धा वाय घा व छरीर व नःसृताः ।। २६ ।। अमृता वादनीया मे पीताः वणोदकाः । ‘यहाँके व भ थान से सुग धत फल लेकर भोजन कये ह। तु हारे शरीरसे कट ए परम सुग धत चुर जलका सेवन कया है। तु हारे झरनेका अमृतके समान वा द जल मने त दन पान कया है ।। २६ ।। शशुयथा पतुरङ् के सुसुखं वतते नग ।। २७ ।। तथा तवाङ् के ल लतं शैलराज मया भो । ‘ भो नगराज! जैसे शशु अपने पताके अंकम बड़े सुखसे रहता है, उसी कार मने भी तु हारी गोदम आमोदपूवक ड़ाएँ क ह ।। २७ ।। अ सरोगणसंक ण घोषानुना दते ।। २८ ।। सुखम यु षतः शैल तव सानुषु न यदा । ‘शैलराज! अ सरा से ा त और वै दक म के उ चघोषसे त व नत तु हारे शखर पर मने त दन बड़े सुखसे नवास कया है’ ।। २८ ।। एवमु वाजुनः शैलमाम य परवीरहा ।। २९ ।। आ रोह रथं द ं ोतय व भा करः । ऐसा कहकर श ुवीर का संहार करनेवाले अजुन शैलराजसे आ ा माँगकर उस द रथको दे द यमान करते ए-से उसपर आ ढ़ हो गये, मानो सूय स पूण दशा को का शत कर रहे ह ।। २९ ।। स तेना द य पेण द ेना तकमणा ।। ३० ।। ऊ वमाच मे धीमान् ः कु न दनः । सोऽदशनपथं यातो म यानां धमचा रणाम् ।। ३१ ।। परम बु मान् कु न दन अजुन बड़े स होकर उस अद्भुत चालसे चलनेवाले सूय व प द रथके ारा ऊपरक ओर जाने लगे। धीरे-धीरे धमा मा मनु य के पथसे र हो गये ।। ३०-३१ ।।

ददशा त पा ण वमाना न सह शः । न त सूयः सोमो वा ोतते न च पावकः ।। ३२ ।। ऊपर जाकर उ ह ने सह अद्भुत वमान दे खे। वहाँ न सूय का शत होते ह, न च मा। अ नक भा भी वहाँ काम नह दे ती है ।। ३२ ।। वयैव भया त ोत ते पु यलधया । तारा पा ण यानीह य ते ु तम त वै ।। ३३ ।। द पवद् व कृ वात् तनू न सुमहा य प । ता न त भा व त पव त च पा डवः ।। ३४ ।। ददश वेषु ध येषु द तम तः वया चषा । त राजषयः स ा वीरा नहता यु ध ।। ३५ ।। वहाँ वगके नवासी अपने पु यकम से ा त ई अपनी ही भासे का शत होते ह। यहाँ काशमान तार के पम जो र होनेके कारण द पकक भाँ त छोटे और बड़े काशपुंज दखायी दे ते ह, उन सभी काशमान व प को पा डु न दन अजुनने दे खा। जो अपने-अपने अ ध ान म अपनी ही यो तसे दे द यमान हो रहे थे। उन लोक म वे स राज ष वीर नवास करते थे, जो यु म ाण दे कर वहाँ प ँचे थे ।। ३३—३५ ।। तपसा च जतं वग स पेतुः शतसङ् घशः । ग धवाणां सह ा ण सूय व लततेजसाम् ।। ३६ ।। गु कानामृषीणां च तथैवा सरसां गणान् । लोकाना म भान् प यन् फा गुनो व मया वतः ।। ३७ ।। ै े ी े े े

सैकड़ झुंड-के-झुंड तप वी पु ष वगम जा रहे थे, ज ह ने तप या ारा उसपर वजय पायी थी। सूयके समान काशमान सह ग धव , गु क , ऋ षय तथा अ सरा के समूह को और उनके वतः का शत होनेवाले लोक को दे खकर अजुनको बड़ा आ य होता था ।। ३६-३७ ।। प छ मात ल ी या स चा येनमुवाच ह । एते सुकृ तनः पाथ वेषु ध ये वव थताः ।। ३८ ।। तान् वान स वभो तारा पा ण भूतले । अजुनने स तापूवक मात लसे उनके वषयम पूछा, तब मात लने उनसे कहा —‘कु तीकुमार! ये वे ही पु या मा पु ष ह, जो अपने-अपने लोक म नवास करते ह। वभो! उ ह को भूतलपर आपने तार के पम चमकते दे खा है’ ।। ३८ ।। ततोऽप यत् थतं ा र शुभं वैज यनं गजम् ।। ३९ ।। ऐरावतं चतुद तं कैलास मव शृ णम् । स स मागमा य कु पा डवस मः ।। ४० ।। रोचत यथापूव मा धाता पा थवो मः । अ भच ाम लोकान् स रा ां राजीवलोचनः ।। ४१ ।। तदन तर अजुनने वग ारपर खड़े ए सु दर वजयी गजराज ऐरावतको दे खा, जसके चार दाँत बाहर नकले ए थे। वह ऐसा जान पड़ता था, मानो अनेक शखर से सुशो भत कैलास पवत हो। कु -पा डव- शरोम ण अजुन स के मागपर आकर वैसे ही शोभा पाने लगे, जैसे पूवकालम भूपाल शरोम ण मा धाता सुशो भत होते थे। कमलनयन अजुनने उन पु या मा राजा के लोक म मण कया ।। ३९—४१ ।। एवं स सं मं त वगलोके महायशाः । ततो ददश श य पुर ताममरावतीम् ।। ४२ ।। इस कार महायश वी पाथने वगलोकम वचरते ए आगे जाकर इ पुरी अमरावतीका दशन कया ।। ४२ ।। इ त ीमहाभारते वनपव ण इ लोका भगमनपव ण च वारशोऽ यायः ।। ४२ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत इ लोका भगमनपवम बयालीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ४२ ।।

च वा रशोऽ यायः अजुन ारा दे वराज इ का दशन तथा इ सभाम उनका वागत वैश पायन उवाच ददश स पुर र यां स चारणसे वताम् । सवतुकुसुमैः पु यैः पादपै पशो भताम् ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! अजुनने स और चारण से से वत उस र य अमरावतीपुरीको दे खा, जो सभी ऋतु के कुसुम से वभू षत पु यमय वृ से सुशो भत थी ।। १ ।। त सौग धकानां च पु पाणां पु यग धनाम् । उ यमानो म ेण वायुना पु यग धना ।। २ ।। वहाँ सुग धयु कमल तथा प व ग धवाले अ य पु प क प व ग धसे मली ई वायु मानो जन डु ला रही थी ।। २ ।। न दनं च वनं द म सरोगणसे वतम् । ददश द कुसुमैरा य रव मैः ।। ३ ।। अ सरा से से वत द न दनवनका भी उ ह ने दशन कया, जो द पु प से भरे ए वृ ारा मानो उ ह अपने पास बुला रहा था ।। ३ ।। नात ततपसा श यो ु ं नाना हता नना । स लोकः पु यकतॄणां ना प यु े पराङ् मुखैः ।। ४ ।। ज ह ने तप या नह क है, जो अ नहो से र रहे ह तथा ज ह ने यु म पीठ दखा द है, वैसे लोग पु या मा के उस लोकका दशन भी नह कर सकते ।। ४ ।। नाय व भना तकैन वेद ु तव जतैः । नाना लुता ै तीथषु य दानब ह कृतैः ।। ५ ।। ज ह ने य नह कया है, तका पालन नह कया है, जो वेद और ु तय के वा यायसे र रहे ह, ज ह ने तीथ म नान नह कया है तथा जो य और दान आ द स कम से वं चत रहे ह, ऐसे लोग को भी उस पु यलोकका दशन नह हो सकता ।। ५ ।। ना प य हनैः ु ै ु ं श यः कथंचन । पानपैगु त पै मांसादै वा रा म भः ।। ६ ।। जो य म व न डालनेवाले नीच, शराबी, गु प नीगामी, मांसाहारी तथा रा मा ह, वे तो कसी भी कार उस द लोकका दशन नह पा सकते ।। ६ ।। स तद् द ं वनं प यन् द गीत नना दतम् । ववेश महाबा ः श य द यतां पुरीम् ।। ७ ।। ँ









जहाँ सब ओर द संगीत गूँज रहा था, उस द वनका दशन करते ए महाबा अजुनने दे वराज इ क य नगरी अमरावतीम वेश कया ।। ७ ।। त दे व वमाना न कामगा न सह शः । सं थता य भयाता न ददशायुतश तदा ।। ८ ।। सं तूयमानो ग धवर सरो भ पा डवः । पु पग धवहैः पु यैवायु भ ानुवी जतः ।। ९ ।। वहाँ वे छानुसार गमन करनेवाले दे वता के सह वमान थरभावसे खड़े थे और हजार इधर-उधर आते-जाते थे। उन सबको पा डु न दन अजुनने दे खा। उस समय ग धव और अ सराएँ उनक तु त कर रही थ । फूल क सुग धका भार वहन करनेवाली प व म द-म द वायु मानो उनके लये चँवर डु ला रही थी ।। ८-९ ।। ततो दे वाः सग धवाः स ा परमषयः । ाः स पूजयामासुः पाथम ल का रणम् ।। १० ।। तदन तर दे वता , ग धव , स और मह षय ने अ य त स होकर अनायास ही महान् कम करनेवाले कु तीकुमार अजुनका वागत-स कार कया ।। १० ।। आशीवादै ः तूयमानो द वा द नः वनैः । तपेदे महाबा ः शङ् ख भना दतम् ।। ११ ।। न माग वपुलं सुरवीथी त व ुतम् । इ ा या ययौ पाथः तूयमानः सम ततः ।। १२ ।। कह उ ह आशीवाद मलता और कह तु त- शंसा ा त होती थी। थान- थानपर द वा क मधुर व नसे उनका वागत हो रहा था। इस कार महाबा अजुन शंख और भय के ग भीर नादसे गूँजते ए ‘सुरवीथी’ नामसे स व तृत न -मागपर चलने लगे। इ क आ ासे कु तीकुमारका सब ओर तवन हो रहा था और इस कार वे ग त मागपर बढ़ते चले जा रहे थे ।। ११-१२ ।। त सा या तथा व े म तोऽथा नौ तथा । आ द या वसवो ा तथा षयोऽमलाः ।। १३ ।। राजषय बहवो दलीप मुखा नृपाः । तु बु नारद ैव ग धव च हहा ः ।। १४ ।। वहाँ सा य, व ेदेव, म द्गण, अ नीकुमार, आ द य, वसु, तथा वशु षगण और अनेक राज षगण एवं दलीप आ द ब त-से राजा, तु बु , नारद, हाहा, आ द ग धवगण वराजमान थे ।। १३-१४ ।। तान् स सवान् समाग य व धवत् कु न दनः । ततोऽप यद् दे वराजं शत तुमरदमः ।। १५ ।। श ु का दमन करनेवाले कु न दन अजुनने उन सबसे व धपूवक मलकर अ तम सौ य का अनु ान करनेवाले दे वराज इ का दशन कया ।। १५ ।। ततः पाथ महाबा रवतीय रथो मात् । ददश सा ाद् दे वेशं पतरं पाकशासनम् ।। १६ ।। े े ी े ेऔ े े

उ ह दे खते ही महाबा पाथ उस उ म रथसे उतर पड़े और दे वे र पता पाकशासन (इ )-को उ ह ने य दे खा ।। १६ ।। पा डु रेणातप ेण हेमद डेन चा णा । द ग धा धवासेन जनेन वधूयता ।। १७ ।। उनके म तकपर ेत छ तना आ था, जसम मनोहर वणमय द ड शोभा पा रहा था। उनके उभय पा म द सुग धसे वा सत चँवर डु लाये जा रहे थे ।। १७ ।। व ावसु भृ त भग धवः तु तव दनैः । तूयमानं जा यै ऋ यजुःसामस भवैः ।। १८ ।। व ावसु आ द ग धव तु त और व दनापूवक उनके गुण गाते थे। े षगण ऋ वेद, यजुवद और सामवेदके इ दे वतास ब धी म ारा उनका तवन कर रहे थे ।। १८ ।। ततोऽ भग य कौ तेयः शरसा यगमद् बली । स चैनं वृ पीना यां बा यां यगृ त ।। १९ ।। तदन तर बलवान् कु तीकुमारने नकट जाकर दे वे के चरण म म तक रख दया और उ ह ने अपनी गोल-गोल मोट भुजा से उठाकर अजुनको दयसे लगा लया ।। १९ ।। ततः श ासने पु ये दे व षगणसे वते । श ः पाणौ गृही वैनमुपावेशयद तके ।। २० ।। त प ात् इ ने अजुनका हाथ पकड़कर अपने दे व षगणसे वत प व सहासनपर उ ह पास ही बठा लया ।। २० ।। मू न चैनमुपा ाय दे वे ः परवीरहा । अङ् कमारोपयामास यावनतं तदा ।। २१ ।। तब श ुवीर का संहार करनेवाले दे वराजने वनीतभावसे आये ए अजुनका म तक सूँघा और उ ह अपनी गोदम बठा लया ।। २१ ।।

सह ा नयोगात् स पाथः श ासनं गतः । अ य ामदमेया मा तीय इव वासवः ।। २२ ।। उस समय सहने धारी दे वे के आदे शसे उनके सहासनपर बैठे ए अप र मत भावशाली कु तीकुमार सरे इ क भाँ त शोभा पा रहे थे ।। २२ ।। ततः े णा वृ श ुरजुन य शुभं मुखम् । प पश पु यग धेन करेण प रसा वयन् ।। २३ ।। इसके बाद वृ ासुरके श ु इ ने प व ग धयु हाथसे बड़े ेमके साथ अजुनको सब कारसे आ ासन दे ते ए उनके सु दर मुखका पश कया ।। २३ ।। माजमानः शनकैबा चा यायतौ शुभौ । याशर ेपक ठनौ त भा वव हरणमयौ ।। २४ ।। अजुनक सु दर वशाल भुजाएँ यंचा ख चकर बाण चलानेक रगड़से कठोर हो गयी थ । वे दे खनेम सोनेके खंभे-जैसी जान पड़ती थ । दे वराज उन भुजा पर धीरे-धीरे हाथ फेरने लगे ।। २४ ।। व हण च े न करेण प रसा वयन् । मु मु व धरो बा चा फोटय छनैः ।। २५ ।। वधारी इ वधारणज नत च से सुशो भत दा हने हाथसे अजुनको बार-बार सा वना दे ते ए उनक भुजा को धीरे-धीरे थपथपाने लगे ।। २५ ।। मय व गुडाकेशं े माणः सह क् । ो



हषणो फु लनयनो न चातृ यत वृ हा ।। २६ ।। सह नयन से सुशो भत वृ सूदन इ न ा वजयी अजुनको मुसकराते ए-से दे ख रहे थे। उस समय इ क आँख हषसे खल उठ थ । वे उ ह दे खनेसे तृ त नह होते थे ।। २६ ।। एकासनोप व ौ तौ शोभयांच तुः सभाम् । सूयाच मसौ ोम चतुद या मवो दतौ ।। २७ ।। जैसे कृ णप क चतुदशीको उ दत ए सूय और च मा आकाशक शोभा बढ़ाते ह, उसी कार एक सहासनपर बैठे ए दे वराज इ और कु तीकुमार अजुन दे वसभाको सुशो भत कर रहे थे ।। २७ ।। त म गाथा गाय त सा ना परमव गुना । ग धवा तु बु े ाः कुशला गीतसामसु ।। २८ ।। उस समय वहाँ सामगानम नपुण तु बु आ द े ग धवगण सामगानके नयमानुसार अ य त मधुर वरम गाथागान करने लगे ।। २८ ।। घृताची मेनका र भा पूव च ः वयं भा । उवशी म केशी च द डगौरी व थनी ।। २९ ।। गोपाली सहज या च कु भयो नः जागरा । च सेना च लेखा सहा च मधुर वरा ।। ३० ।। एता ा या ननृतु त त सह शः । च सादने यु ाः स ानां पलोचनाः ।। ३१ ।। महाक टतट ो यः क पमानैः पयोधरैः । कटा हावमाधुय ेतोबु मनोहरैः ।। ३२ ।। घृताची, मेनका, र भा, पूव च , वयं भा, उवशी, म केशी, द डगौरी, व थनी, गोपाली, सहज या, कु भयो न, जागरा, च सेना, च लेखा, सहा और मधुर वरा—ये तथा और भी सह अ सराएँ वहाँ इ सभाम भ - भ थान पर नृ य करने लग । वे कमललोचना अ सराएँ स पु ष के भी च को स करनेम संल न थ । उनके क टदे श और नत ब वशाल थे। नृ य करते समय उनके उ त तन क पमान हो रहे थे। उनके कटा , हाव-भाव तथा माधुय आ द मन, बु एवं च क स पूण वृ य का अपहरण कर लेते थे ।। २९—३२ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण इ लोका भगमनपव ण इ सभादशने च वारशोऽ यायः ।। ४३ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत इ लोका भगमनपवम इ सभादशन वषयक ततालीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ४३ ।।

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वा रशोऽ यायः

अजुनको अ

और संगीतक श ा

वैश पायन उवाच ततो दे वाः सग धवाः समादाया यमु मम् । श य मतमा ाय पाथमानचुर सा ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर दे वराज इ का अ भ ाय जानकर दे वता और ग धव ने उ म अ य लेकर कु तीकुमार अजुनका यथो चत पूजन कया ।। १ ।। पा माचमनीयं च त ा नृपा मजम् । वेशयामासुरथो पुर दर नवेशनम् ।। २ ।। राजकुमार अजुनको पा , (अ य), आचमनीय आ द उपचार अ पत करके दे वता ने उ ह इ भवनम प ँचा दया ।। २ ।। एवं स पू जतो ज णु वास भवने पतुः । उप श न् महा ा ण ससंहारा ण पा डवः ।। ३ ।। इस कार दे वसमुदायसे पू जत हो पा डु कुमार अजुन अपने पताके घरम रहने और उनसे उपसंहारस हत महान् अ क श ा हण करने लगे ।। ३ ।। श य ह ताद् द यतं व म ं च ःसहम् । अशनी महानादा मेघब हणल णाः ।। ४ ।। उ ह ने इ के हाथसे उनके य एवं ःसह अ व और भारी गड़गड़ाहट पैदा करनेवाली उन अश नय को हण कया, जनका योग करनेपर जगत्म मेघ क घटा घर आती और मयूर नृ य करने लगते ह ।। ४ ।। गृहीता तु कौ तेयो ातॄन् स मार पा डवः । पुर दर नयोगा च प चा दानवसत् सुखी ।। ५ ।। सब अ क श ा हण कर लेनेपर पा डु पु पाथने अपने भाइय का मरण कया। परंतु पुर दरके वशेष अनुरोधसे वे (मानव-गणनाके अनुसार) पाँच वष तक वहाँ सुखपूवक ठहरे रहे ।। ५ ।। ततः श ोऽ वीत् पाथ कृता ं काल आगते । नृ यं गीतं च कौ तेय च सेनादवा ु ह ।। ६ ।। तदन तर इ ने अ श ाम नपुण कु ती-कुमारसे उपयु अवसर आनेपर कहा —‘कु तीन दन! तुम च सेनसे नृ य और गीतक श ा हण कर लो’ ।। ६ ।। वा द ं दे व व हतं नृलोके य व ते । तदजय व कौ तेय ेयो वै ते भ व य त ।। ७ ।। ‘











‘कु तीन दन! मनु यलोकम जो अबतक च लत नह है, दे वता क उस वा कलाका ान ा त कर लो। इससे तु हारा भला होगा’ ।। ७ ।। सखायं ददौ चा य च सेनं पुर दरः । स तेन सह संग य रेमे पाथ नरामयः ।। ८ ।। पुर दरने अजुनको संगीतक श ा दे नेके लये उ ह के म च सेनको नयु कर दया। म से मलकर ःख-शोकसे र हत अजुन बड़े स ए ।। ८ ।। गीतवा द नृ या न भूय एवा ददे श ह । तथा प नालभ छम तप वी ूतका रतम् ।। ९ ।। च सेनने उ ह गीत, वा और नृ यक बार-बार श ा द तो भी ूतज नत अपमानका मरण करके तप वी अजुनको त नक भी शा त नह मली ।। ९ ।। ःशासनवधामष शकुनेः सौबल य च । तत तेनातुलां ी तमुपाग य व चत् व चत् । गा धवमतुलं नृ यं वा द ं चोपलधवान् ।। १० ।। उ ह ःशासन तथा सुबलपु शकु नके वधके लये मनम बड़ा रोष होता था तथा च सेनके सहवाससे कभी-कभी उ ह अनुपम स ता ा त होती थी, जससे उ ह ने गीत, नृ य और वा क उस अनुपम कलाको (पूण पसे) उपल ध कर लया ।। १० ।। स श तो नृ यगुणाननेकान् वा द गीताथगुणां सवान् । न शम लेभे परवीरह ता ातॄन् मरन् मातरं चैव कु तीम् ।। ११ ।। श ुवीर का हनन करनेवाले वीर अजुनने नृ य-स ब धी अनेक गुण क श ा पायी। वा और गीत- वषयक सभी गुण सीख लये। तथा प भाइय और माता कु तीका मरण करके उ ह कभी चैन नह पड़ता था ।। ११ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण इ लोका भगमनपव ण चतु वारशोऽ यायः ।। ४४ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत इ लोका भगमनपवम अजुनक अ ा द श ासे स ब ध रखनेवाला चौवालीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ४४ ।।

प चच वा रशोऽ यायः च सेन और उवशीका वातालाप वैश पायन उवाच आदावेवाथ तं श सेनं रहोऽ वीत् । पाथ य च ु व यां स ं व ाय वासवः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! एक समय इ ने अजुनके ने उवशीके त आस जानकर च सेन ग धवको बुलाया और थम ही एका तम उनसे यह बात कही — ।। १ ।। ग धवराज ग छा हतोऽ सरसां वराम् । उवश पु ष ा सोपा त तु फा गुनम् ।। २ ।। ‘ग धवराज! तुम मेरे भेजनेसे आज अ सरा म े उवशीके पास जाओ। पु ष े ! तु ह वहाँ भेजनेका उ े य यह है क उवशी अजुनक सेवाम उप थत हो ।। २ ।। यथा चतो गृहीता ो व या म योगतः । तथा वया वधात ं ीषु संग वशारदः ।। ३ ।।

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‘जैसे अ व ा सीख लेनेके प ात् अजुनको मेरी आ ासे तुमने संगीत व ा ारा स मा नत कया है, उसी कार वे ीसंग वशारद हो सक, ऐसा य न करो’ ।। ३ ।। एवमु तथे यु वा सोऽनु ां ा य वासवात् । ग धवराजोऽ सरसम यगा वश वराम् ।। ४ ।। इ के इस कार कहनेपर ‘तथा तु’ कहकर उनसे आ ा ले ग धवराज च सेन सु दरी अ सरा उवशीके पास गये ।। ४ ।। तां ् वा व दतो ः वागतेना चत तया । सुखासीनः सुखासीनां मतपूव वचोऽ वीत् ।। ५ ।। उससे मलकर वे ब त स ए। उवशीने च सेनको आया जान वागतपूवक उनका स कार कया। जब वे आरामसे बैठ गये, तब सुखपूवक सु दर आसनपर बैठ ई उवशीसे मुसकराकर बोले— ।। ५ ।। व दतं तेऽ तु सु ो ण हतोऽह महागतः । दव यैकराजेन व सादा भन दना ।। ६ ।। ‘सु ो ण! तु ह मालूम होना चा हये क वगके एकमा साट ् इ ने, जो तु हारे कृपा सादका अ भन दन करते ह, मुझे तु हारे पास भेजा है। उ ह क आ ासे म यहाँ आया ँ ।। ६ ।। य तु दे वमनु येषु यातः सहजैगुणैः । या शीलेन पेण तेन च दमेन च । यातो बलवीयण स मतः तभानवान् ।। ७ ।। वच वी तेजसा यु ः मावान् वीतम सरः । सा ोप नषदान् वेदां तुरा यानप चमान् ।। ८ ।। योऽधीते गु शु ूषां मेधां चा गुणा याम् । चयण दा येण सवैवयसा प च ।। ९ ।। एको वै र ता चैव दवं मघवा नव । अक थनो मान यता थूलल यः यंवदः ।। १० ।। सु द ा पानेन व वधेना भवष त । स यवाक् पू जतो व ा पवाननहंकृतः ।। ११ ।। भ ानुक पी का त य थरसंगरः । ाथनीयैगुणगणैमहे व णोपमः ।। १२ ।। व दत तेऽजुनो वीरः स वगफलमा ुयात् । वं तु श ा यनु ाता त य पादा तकं ज । तदे वं कु क या ण स वां धनंजयः ।। १३ ।। ‘सु दरी! जो अपने वाभा वक सद्गुण, ी, शील ( वभाव), मनोहर प, उ म त और इ यसंयमके कारण दे वता तथा मनु य म व यात ह। बल और परा मके ारा जनक सव स है; जो सबके य, तभाशाली, वच वी, तेज वी, माशील तथा ई यार हत ह, ज ह ने छह अंग स हत चार वेद , उप नषद और पंचम वेद (इ तहास-

पुराण)-का अ ययन कया है। ज ह गु शु ूषा तथा आठ गुण से* यु मेधाश ात है, जो चयपालन, काय-द ता, संतान तथा युवाव थाके ारा अकेले ही दे वराज इ क भाँ त वगलोकक र ा करनेम समथ ह, जो अपने मुँहसे अपने गुण क कभी शंसा नह करते, सर को स मान दे ते, अ य त सू म वषयको भी थूलक भाँ त शी ही समझ लेते और सबसे य वचन बोलते ह, जो अपने सु द के लये नाना कारके अ -पानक वषा करते और सदा स य बोलते ह, जनका सव आदर होता है, जो अ छे व ा तथा मनोहर पवाले होकर भी अहंकारशू य ह, जनके दयम अपने ेमी भ के लये अ य त कृपा भरी ई है, जो का तमान्, य तथा त ापालन एवं यु म थरतापूवक डटे रहनेवाले ह, जनके सद्गुण क सरे लोग पृहा रखते ह और उ ह गुण के कारण जो महे और व णके समान आदरणीय माने जाते ह, उन वीरवर अजुनको तुम अ छ तरह जानती हो। उ ह वगम आनेका फल अव य मलना चा हये। तुम दे वराजक आ ाके अनुसार आज अजुनके चरण के समीप जाओ। क या ण! तुम ऐसा य न करो, जससे कु तीकुमार धनंजय तुमपर स ह ’ ।। एवमु ा मतं कृ वा स मानं ब म य च । युवाचोवशी ीता च सेनम न दता ।। १४ ।। च सेनके ऐसा कहनेपर उवशीके अधर पर मुसकान दौड़ गयी। उसने इस आदे शको अपने लये बड़ा स मान समझा। अ न सु दरी उवशी उस समय अ य त स होकर च सेनसे इस कार बोली— ।। १४ ।। य व य क थतः स यो गुणो े श वया मम । तं ु वा थयं पुंसो वृणुयां कमतोऽजुनम् ।। १५ ।। ‘ग धवराज! तुमने जो अजुनके लेशमा गुण का मेरे सामने वणन कया है, वह सब स य है। म सरे लोग के मुखसे भी उनक शंसा सुनकर उनके लये थत हो उठ ँ। अतः इससे अ धक म अजुनका या वरण क ँ ?’ ।। १५ ।। महे य नयोगेन व ः स णयेन च । त य चाहं गुणौघेन फा गुने जातम मथा । ग छ वं ह यथाकाममाग म या यहं सुखम् ।। १६ ।। ‘महे क आ ासे, तु हारे ेमपूण बतावसे तथा अजुनके सद्गुणसमुदायसे मेरा उनके त कामभाव हो गया है। अतः अब तुम जाओ। म इ छानुसार सुखपूवक उनके थानपर यथासमय आऊँगी’ ।। १६ ।। ीमहाभारते वनपव ण इ लोका भगमनपव ण च सेनोवशीसंवादे प चच वारशोऽ यायः ।। ४५ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत इ लोका भगमनपवम च सेनउवशीसंवाद वषयक पतालीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ४५ ।।

*

इत

* शु ूषा, वण, हण, धारण, ऊह, अपोह, अथ व ान तथा त व व ान—ये बु

के आठ गुण ह।

षट् च वा रशोऽ यायः उवशीका कामपी ड़ त होकर अजुनके पास जाना और उनके अ वीकार करनेपर उ ह शाप दे कर लौट आना वैश पायन उवाच ततो वसृ य ग धव कृतकृ यं शु च मता । उवशी चाकरोत् नानं पाथदशनलालसा ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर कृतकृ य ए ग धवराज च सेनको वदा करके प व मुसकानवाली उवशीने अजुनसे मलनेके लये उ सुक हो नान कया ।। १ ।। नानालंकरणै ैग धमा यै सु भैः । धनंजय य पेण शरैम मथचो दतैः ।। २ ।। अ त व े न मनसा म मथेन द पता । द ा तरणसं तीण व तीण शयनो मे ।। ३ ।। च संक पभावेन सु च ान यमानसा । मनोरथेन स ा तं रम येनं ह फा गुनम् ।। ४ ।। धनंजयके प-सौ दयसे भा वत उसका दय कामदे वके बाण ारा अ य त घायल हो चुका था। वह मदना नसे द ध हो रही थी। नानके प ात् उसने चमक ले और मनो भराम आभूषण धारण कये। सुग धत द पु प के हार से अपनेको अलंकृत कया। फर उसने मन-ही-मन संक प कया— द बछौन से सजी ई एक सु दर वशाल शया बछ ई है। उसका दय सु दर तथा यतमके च तनम एका था। उसने मनक भावना ारा ही यह दे खा क कु तीकुमार अजुन उसके पास आ गये ह और वह उनके साथ रमण कर रही है ।। २—४ ।। नग य च ोदयने वगाढे रजनीमुखे । थता सा पृथु ोणी पाथ य भवनं त ।। ५ ।। सं याको च ोदय होनेपर जब चार ओर चाँदनी छटक गयी, उस समय वह वशाल नत ब वाली अ सरा अपने भवनसे नकलकर अजुनके नवास थानक ओर चली ।। ५ ।। मृ कु चतद घण कुमुदो रधा रणा । केशह तेन ललना जगामाथ वराजती ।। ६ ।। उसके कोमल, घुँघराले और ल बे केश का समूह वेणीके पम आब था। उनम कुमुद-पु प के गु छे लगे ए थे। इस कार सुशो भत वह ललना अजुनके गृहक ओर बढ़ जा रही थी ।। ६ ।। ू ेपालापमाधुयः का या सौ यतया प च । श शनं व च े ण साऽऽ य तीव ग छ त ।। ७ ।। औ





भ ह क भं गमा, वातालापक मधु रमा, उ वल का त और सौ यभावसे स प अपने मनोहर मुखच - ारा वह च माको चुनौती-सी दे ती ई इ भवनके पथपर चल रही थी ।। ७ ।। द ा रागौ सुमुखौ द च दन षतौ । ग छ या हार चरौ तनौ त या वव गतुः ।। ८ ।। चलते समय सु दर हार से वभू षत उवशीके उठे ए तन जोर-जोरसे हल रहे थे। उनपर द अंगराग लगाये गये थे। उनके अ भाग अ य त मनोहर थे। वे द च दनसे चचत हो रहे थे ।। ८ ।। तनो हनसं ोभा यमाना पदे पदे । वलीदाम च ेण म येनातीवशो भना ।। ९ ।। तन के भारी भारको वहन करनेके कारण थककर वह पग-पगपर झुक जाती थी। उसका अ य त सु दर म यभाग (उदर) वली रेखासे व च शोभा धारण करता था ।। ९ ।। अधो भूधर व तीण नत बो तपीवरम् । म मथायतनं शु ं रसनादामभू षतम् ।। १० ।। ऋषीणाम प द ानां मनो ाघातकारणम् । सू मव धरं रेजे जघनं नरव वत् ।। ११ ।। सु दर महीन व से आ छा दत उसका जघन दे श अ न सौ दयसे सुशो भत हो रहा था। वह कामदे वका उ वल म दर जान पड़ता था। ना भके नीचेके भागम पवतके समान वशाल नत ब ऊँचा और थूल तीत होता था। क टम बँधी ई करधनीक ल ड़याँ उस जघन दे शको सुशो भत कर रही थ । वह मनोहर अंग (जघन) दे वलोकवासी मह षय के भी च को ु ध कर दे नेवाला था ।। १०-११ ।। गूढगु फधरौ पादौ ता ायततलाङ् गुली । कूमपृ ो तौ चा प शोभेते कङ् कणी कणौ ।। १२ ।। उसके दोन चरण के गु फ (टखने) मांससे छपे ए थे। उसके व तृत तलवे और अँगु लयाँ लाल रंगक थ । वे दोन पैर कछु एक पीठके समान ऊँचे होनेके साथ ही घुँघु के च से सुशो भत थे ।। १२ ।। सीधुपानेन चा पेन तु ाथ मदनेन च । वलासनै व वधैः े णीयतराभवत् ।। १३ ।। वह अ प सुरापानसे, संतोषसे, कामसे और नाना कारक वला सता से यु होनेके कारण अ य त दशनीय हो रही थी ।। १३ ।। स चारणग धवः सा याता वला सनी । ब ा यऽ प वै वग दशनीयतमाकृ तः ।। १४ ।। सुसू मेणो रीयेण मेघवणन राजता । तनुर ावृता ो न च लेखेव ग छ त ।। १५ ।। ी ई













जाती ई उस वला सनी अ सराक आकृ त अनेक आ य से भरे ए वगलोकम भी स , चारण और ग धव के लये दे खनेके ही यो य हो रही थी। अ य त महीन मेघके समान याम रंगक सु दर ओढ़नी ओढ़े त वंगी उवशी आकाशम बादल से ढक ई च लेखा-सी चली जा रही थी ।। १४-१५ ।। ततः ा ता णेनैव मनःपवनगा मनी । भवनं पा डु पु य फा गुन य शु च मता ।। १६ ।। मन और वायुके समान ती वेगसे चलनेवाली वह प व मुसकानसे सुशो भत अ सरा णभरम पा डु कुमार अजुनके महलम जा प ँची ।। १६ ।। त ारमनु ा ता ार थै नवे दता । अजुन य नर े उवशी शुभलोचना ।। १७ ।। उपा त त तद् वे म नमलं सुमनोहरम् । सशङ् कतमना राजन् युदग ् छत तां न श ।। १८ ।। नर े जनमेजय! महलके ारपर प ँचकर वह ठहर गयी। उस समय ारपाल ने अजुनको उसके आगमनक सूचना द । तब सु दर ने वाली उवशी रा म अजुनके अ य त मनोहर तथा उ वल भवनम उप थत ई। राजन्! अजुन सशंक दयसे उसके सामने गये ।। १७-१८ ।। ् वैव चोवश पाथ ल जासंवृतलोचनः । तदा भवादनं कृ वा गु पूजां यु वान् ।। १९ ।। उवशीको आयी दे ख अजुनके ने ल जासे मुँद गये। उस समय उ ह ने उसके चरण म णाम करके उसका गु जनो चत स कार कया ।। १९ ।।

अजुन उवाच अ भवादये वां शरसा वरा सरसां वरे । कमा ापयसे दे व े य तेऽहमुप थतः ।। २० ।। अजुन बोले—दे व! े अ सरा म भी तु हारा सबसे ऊँचा थान है। म तु हारे चरण म म तक रखकर णाम करता ँ। बताओ, मेरे लये या आ ा है? म तु हारा सेवक ँ और तु हारी आ ाका पालन करनेके लये उप थत ँ ।। २० ।। फा गुन य वचः ु वा गतसं ा तदोवशी । ग धववचनं सव ावयामास तं तदा ।। २१ ।। अजुनक यह बात सुनकर उवशीके होश-हवास गुम हो गये, उस समय उसने ग धवराज च सेनक कही ई सारी बात कह सुनाय ।। २१ ।। उव युवाच यथा मे च सेनेन क थतं मनुजो म । तत् तेऽहं स व या म यथा चाह महागता ।। २२ ।। उवशीने कहा—पु षो म! च सेनने मुझे जैसा संदेश दया है और उसके अनुसार जस उ े यको लेकर म यहाँ आयी ँ, वह सब म तु ह बता रही ँ ।। २२ ।। े े े ो े

उप थाने महे य वतमाने मनोरमे । तवागमनतो वृ े वग य परमो सवे ।। २३ ।। ाणां चैव सां न यमा द यानां च सवशः । समागमेऽ नो ैव वसूनां च नरो म ।। २४ ।। महष णां च संघेषु राज ष वरेषु च । स चारणय ेषु महोरगगणेषु च ।। २५ ।। उप व ेषु सवषु थानमान भावतः । ऋ या वलमानेषु अ नसोमाकव मसु ।। २६ ।। वीणासु वा मानासु ग धवः श न दन । द े मनोरमे गेये वृ े पृथुलोचन ।। २७ ।। सवा सरःसु मु यासु नृ ासु कु ह। वं कला न मषः पाथ मामेकां त वान् ।। २८ ।। दे वराज इ के इस मनोरम नवास थानम तु हारे शुभागमनके उपल यम एक महान् उ सव मनाया गया। यह उ सव वगलोकका सबसे बड़ा उ सव था। उसम , आ द य, अ नीकुमार और वसुगण—इन सबका सब ओरसे समागम आ था। नर े ! मह षसमुदाय, राज ष वर, स , चारण, य तथा बड़े-बड़े नाग—ये सभी अपने पद, स मान और भावके अनुसार यो य आसन पर बैठे थे। इन सबके शरीर अ न, च मा और सूयके समान तेज वी थे और ये सम त दे वता अपनी अ त समृ से का शत हो रहे थे। वशाल ने वाले इ कुमार! उस समय ग धव ारा अनेक वीणाएँ बजायी जा रही थ । द मनोरम संगीत छड़ा आ था और सभी मुख अ सराएँ नृ य कर रही थ । कु कुलन दन पाथ! उस समय तुम मेरी ओर न नमेष नयन से नहार रहे थे ।। २३— २८ ।। त चावभृथे त म ुप थाने दवौकसाम् । तव प ा यनु ाता गताः वं वं गृहं सुराः ।। २९ ।। तथैवा सरसः सवा व श ाः वगृहं गताः । अ प चा या श ु न तव प ा वस जताः ।। ३० ।। दे वसभाम जब उस महो सवक समा त ई, तब तु हारे पताक आ ा लेकर सब दे वता अपने-अपने भवनको चले गये। श ुदमन! इसी कार आपके पतासे वदा लेकर सभी मुख अ सराएँ तथा सरी साधारण अ सराएँ भी अपने-अपने घरको चली गय ।। ततः श े ण सं द सेनो ममा तकम् । ा तः कमलप ा स च माम वीदथ ।। ३१ ।। कमलनयन! तदन तर दे वराज इ का संदेश लेकर ग धव वर च सेन मेरे पास आये और इस कार बोले— ।। ३१ ।। व कृतेऽहं सुरेशेन े षतो वरव ण न । यं कु महे य मम चैवा मन ह ।। ३२ ।। ‘

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‘वरव ण न! दे वे र इ ने तु हारे लये एक संदेश दे कर मुझे भेजा है। तुम उसे सुनकर महे का, मेरा तथा मुझसे अपना भी य काय करो’ ।। ३२ ।। श तु यं रणे शूरं सदौदायगुणा वतम् । पाथ ाथय सु ो ण व म येवं तदा वीत् ।। ३३ ।। ‘सु ो ण! जो सं ामम इ के समान परा मी और उदारता आ द गुण से सदा स प ह, उन कु तीन दन अजुनक सेवा तुम वीकार करो।’ इस कार च सेनने मुझसे कहा था ।। ३३ ।। ततोऽहं समनु ाता तेन प ा च तेऽनघ । तवा तकमनु ा ता शु ू षतुमरदम ।। ३४ ।। अनघ! श ुदमन! तदन तर च सेन और तु हारे पताक आ ा शरोधाय करके म तु हारी सेवाके लये तु हारे पास आयी ँ ।। ३४ ।। वद्गुणाकृ च ाहमन वशमागता । चरा भल षतो वीर ममा येष मनोरथः ।। ३५ ।। तु हारे गुण ने मेरे च को अपनी ओर ख च लया है। म कामदे वके वशम हो गयी ँ। वीर! मेरे दयम भी चरकालसे यह मनोरथ चला आ रहा था ।। ३५ ।। वैश पायन उवाच तां तथा ुवत ु वा भृशं ल जाऽऽवृतोऽजुनः । उवाच कण ह ता यां पधाय दशालये ।। ३६ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! वगलोकम उवशीक यह बात सुनकर अजुन अ य त ल जासे गड़ गये और हाथ से दोन कान मूँदकर बोले— ।। ३६ ।। ः ुतं मेऽ तु सुभगे य मां वद स भा व न । गु दारैः समाना मे न येन वरानने ।। ३७ ।। ‘सौभा यशा ल न! भा व न! तुम जैसी बात कह रही हो, उसे सुनना भी मेरे लये बड़े ःखक बात है। वरानने! न य ही तुम मेरी म गु प नय के समान पूजनीया हो ।। ३७ ।। यथा कु ती महाभागा यथे ाणी शची मम । तथा वम प क या ण ना काया वचारणा ।। ३८ ।। ‘क या ण! मेरे लये जैसी महाभागा कु ती और इ ाणी शची ह, वैसी ही तुम भी हो। इस वषयम कोई अ यथा वचार नह करना चा हये ।। ३८ ।। य चे ता स व प ं वशेषेण मया शुभे । त च कारणपूव ह शृणु स यं शु च मते ।। ३९ ।। ‘शुभे! प व मुसकानवाली उवशी! मने जो उस समय सभाम तु हारी ओर एकटक से दे खा था, उसका एक वशेष कारण था, उसे स य बताता ँ सुनो— ।। ३९ ।। इयं पौरववंश य जननी मु दते त ह । वामहं वां त व ायो फु ललोचनः ।। ४० ।।

न मामह स क या ण अ यथा यातुम सरः । गुरोगु तरा मे वं मम वं वंशव धनी ।। ४१ ।। ‘यह आन दमयी उवशी ही पू वंशक जननी है, ऐसा समझकर मेरे ने खल उठे और इस पू य भावको लेकर ही मने तु ह वहाँ दे खा था। क याणमयी अ सरा! तुम मेरे वषयम कोई अ यथा भाव मनम न लाओ। तुम मेरे वंशक वृ करनेवाली हो, अतः गु से भी अ धक गौरवशा लनी हो’ ।। ४०-४१ ।। उव युवाच अनावृता सवाः म दे वराजा भन दन । गु थाने न मां वीर नयो ुं व महाह स ।। ४२ ।। उवशीने कहा—वीर दे वराजन दन! हम सब अ सराएँ वगवा सय के लये अनावृत ह —हमारा कसीके साथ कोई पदा नह है। अतः तुम मुझे गु जनके थानपर नयु न करो ।। ४२ ।। पूरोवशे ह ये पु ा न तारो वा वहागताः । तपसा रमय य मा च तेषां त मः ।। ४३ ।। तद् सीद न मामाता वसज यतुमह स । छयेन च संत तं भ ां च भज मानद ।। ४४ ।। पू वंशके कतने ही पोते-नाती तप या करके यहाँ आते ह और वे हम सब अ सरा के साथ रमण करते ह। इसम उनका कोई अपराध नह समझा जाता। मानद! मुझपर स होओ। म कामवेदनासे पी ड़त ँ, मेरा याग न करो। म तु हारी भ ँ और मदना नसे द ध हो रही ँ; अतः मुझे अंगीकार करो ।। ४३-४४ ।। अजुन उवाच शृणु स यं वरारोहे यत् वां व या य न दते । शृ व तु मे दश ैव व दश सदे वताः ।। ४५ ।। अजुनने कहा—वरारोहे! अ न दते! म तुमसे जो कुछ कहता ँ, मेरे उस स य वचनको सुनो। ये दशा, व दशा तथा उनक अ ध ा ी दे वयाँ भी सुन ल ।। ४५ ।। यथा कु ती च मा च शची चैव ममानघे । तथा च वंशजननी वं ह मेऽ गरीयसी ।। ४६ ।। अनघे! मेरी म कु ती, मा और शचीका जो थान है, वही तु हारा भी है। तुम पू वंशक जननी होनेके कारण आज मेरे लये परम गु व प हो ।। ४६ ।। ग छ मू ना प ोऽ म पादौ ते वरव ण न । वं ह मे मातृवत् पू या र योऽहं पु वत् वया ।। ४७ ।। वरव ण न! म तु हारे चरण म म तक रखकर तु हारी शरणम आया ँ। तुम लौट जाओ। मेरी म तुम माताके समान पूजनीया हो और तु ह पु के समान मानकर मेरी र ा करनी चा हये ।। ४७ ।।



वैश पायन उवाच एवमु ा तु पाथन उवशी ोधमू छता । वेप ती ुकुट व ा शशापाथ धनंजयम् ।। ४८ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! कु तीकुमार अजुनके ऐसा कहनेपर उवशी ोधसे ाकुल हो उठ । उसका शरीर काँपने लगा और भ ह टे ढ़ हो गय । उसने अजुनको शाप दे ते ए कहा ।। ४८ ।।

उव युवाच तव प ा यनु ातां वयं च गृहमागताम् । य मा मां ना भन दे थाः कामबाणवशंगताम् ।। ४९ ।। त मात् वं नतनः पाथ ीम ये मानव जतः । अपुमा न त व यातः ष ढवद् वच र य स ।। ५० ।। उवशी बोली—अजुन! तु हारे पता इ के कहनेसे म वयं तु हारे घरपर आयी और कामबाणसे घायल हो रही ँ, फर भी तुम मेरा आदर नह करते। अतः तु ह य के बीचम स मानर हत होकर नतक बनकर रहना पड़ेगा। तुम नपुंसक कहलाओगे और तु हारा सारा आचार- वहार हजड़ के ही समान होगा ।। ४९-५० ।। एवं द वाजुने शापं फुरदो ी स यथ । पुनः यागता मुवशी गृहमा मनः ।। ५१ ।। े













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फड़कते ए ओठ से इस कार शाप दे कर उवशी लंबी साँस ख चती ई पुनः शी ही अपने घरको लौट गयी ।। ५१ ।। ततोऽजुन वरमाण सेनमरदमः । स ा य रजनीवृ ं त व या यथातथम् ।। ५२ ।। नवेदयामास तदा च सेनाय पा डवः । त चैवं यथावृ ं शापं चैव पुनः पुनः ।। ५३ ।। तदन तर श ुदमन पा डु कुमार अजुन बड़ी उतावलीके साथ च सेनके समीप गये तथा रातम उवशीके साथ जो घटना जस कार घ टत ई, वह सब उ ह ने उस समय च सेनको य -क - य कह सुनायी। साथ ही उसके शाप दे नेक बात भी उ ह ने बार-बार हरायी ।। ५२-५३ ।। अवेदय च श य च सेनोऽ प सवशः । तत आना य तनयं व व े ह रवाहनः ।। ५४ ।। सा व य वा शुभैवा यैः मयमानोऽ यभाषत । सुपु ा पृथा तात वया पु ेण स म ।। ५५ ।। च सेनने भी सारी घटना दे वराज इ से नवेदन क । तब इ ने अपने पु अजुनको बुलाकर एका तम क याणमय वचन ारा सा वना दे ते ए मुसकराकर उनसे कहा —‘तात! तुम स पु ष के शरोम ण हो, तुम-जैसे पु को पाकर कु ती वा तवम े पु वाली है’ ।। ऋषयोऽ प ह धैयण जता वै ते महाभुज । यत् तु द वती शापमुवशी तव मानद ।। ५६ ।। स चा प तेऽथकृत् तात साधक भ व य त ।। ५७ ।। अ ातवासो व त ो भव भूतलेऽनघ । वष योदशे वीर त वं प य य स ।। ५८ ।। ‘महाबाहो! तुमने अपने धैय (इ यसंयम)-के ारा ऋ षय को भी परा जत कर दया है। मानद! उवशीने जो तु ह शाप दया है, वह तु हारे अभी अथका साधक होगा। अनघ! तु ह भूतलपर तेरहव वषम अ ातवास करना है। वीर! उवशीके दये ए शापको तुम उसी वषम पूण कर दोगे’ ।। ५६—५८ ।। तेन नतनवेषेण अपुं वेन तथैव च । वषमेकं व यैव ततः पुं वमवा य स ।। ५९ ।। ‘नतक वेष और नपुंसक भावसे एक वषतक इ छानुसार वचरण करके तुम फर अपना पु ष व ा त कर लोगे’ ।। ५९ ।। एवमु तु श े ण फा गुनः परवीरहा । मुदं पर मकां लेभे न च शापं च तयत् ।। ६० ।। इ के ऐसा कहनेपर श ुवीर का संहार करनेवाले अजुनको बड़ी स ता ई। फर तो उ ह शापक च ता छू ट गयी ।। ६० ।। च सेनेन स हतो ग धवण यश वना । े े े ो

रेमे स वगभवने पा डु पु ो धनंजयः ।। ६१ ।। पा डु पु धनंजय महायश वी ग धव च सेनके साथ वगलोकम सुखपूवक रहने लगे ।। ६१ ।। इदं यः शृणुयाद् वृ ं न यं पा डु सुत य वै । न त य कामः कामेषु पापकेषु वतते ।। ६२ ।। जो मनु य पा डु न दन अजुनके इस च र को त दन सुनता है, उसके मनम पापपूण वषयभोग क इ छा नह होती ।। ६२ ।। इदममरवरा मज य घोरं शु च च रतं व नश य फा गुन य । पगतमदद भरागदोषादवगता वरम त मानवे ाः ।। ६३ ।। दे वराज इ के पु अजुनके इस अ य त कर प व च र को सुनकर मद, द भ तथा वषयास आ द दोष से र हत े मानव वगलोकम जाकर वहाँ सुखपूवक नवास करते ह ।। ६३ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण इ लोका भगमनपव ण उवशीशापो नाम षट् च वारशोऽ यायः ।। ४६ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत इ लोका भगमनपवम उवशीशाप नामक छयालीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ४६ ।।

स तच वा रशोऽ यायः लोमश मु नका वगम इ और अजुनसे मलकर उनका संदेश ले का यकवनम आना वैश पायन उवाच कदा चदटमान तु मह ष त लोमशः । जगाम श भवनं पुर दर द या ।। १ ।। स समे य नम कृ य दे वराजं महामु नः । ददशाधासनगतं पा डवं वासव य ह ।। २ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! एक समयक बात है, मह ष लोमश इधर-उधर घूमते ए इ से मलनेक इ छा लेकर वगलोकम गये। उन महामु नने दे वराज इ से मलकर उ ह नम कार कया और दे खा, पा डु न दन अजुन इ के आधे सहासनपर बैठे ह ।। ततः श ा यनु ात आसने व रो रे । नषसाद ज े ः पू यमानो मह ष भः ।। ३ ।। तदन तर इ क आ ासे एक उ म सहासनपर, जहाँ ऊपर कुशका आसन बछा आ था, मह षय से पू जत जवर लोमशजी बैठे ।। ३ ।। त य ् वाभवद् बु ः पाथ म ासने थतम् । कथं नु यः पाथः श ासनमवा तवान् ।। ४ ।। इ के सहासनपर बैठे ए कु तीकुमार अजुनको दे खकर लोमशजीके मनम यह वचार आ क ‘ य होकर भी कु तीकुमारने इ का आसन कैसे ा त कर लया? ।। ४ ।। क व य सुकृतं कम के लोका वै व न जताः । स एवमनुस ा तः थानं दे वनम कृतम् ।। ५ ।। ‘इनका पु य-कम या है? इ ह ने कन- कन लोक पर वजय पायी है? कस पु यके भावसे इ ह ने यह दे वव दत थान ा त कया है?’ ।। ५ ।। त य व ाय संक पं श ो वृ नषूदनः । लोमशं हसन् वा य मदमाह शचीप तः ।। ६ ।। लोमश मु नके संक पको जानकर वृ ह ता शचीप त इ ने हँसते ए उनसे कहा — ।। ६ ।। ष ूयतां यत् ते मनसैतद् वव तम् । नायं केवलम य वै मानुष वमुपागतः ।। ७ ।। ‘ ष! आपके मनम जो उठा है’ उसका समाधान कर रहा ँ, सु नये। ये अजुन मानवयो नम उ प ए केवल मरणधमा मनु य नह ह ।। ७ ।। ो



महष मम पु ोऽयं कु यां जातो महाभुजः । अ हेतो रह ा तः क मा चत् कारणा तरात् ।। ८ ।। अहो नैनं भवान् वे पुराणमृ षस मम् । शृणु मे वदतो न् योऽयं य चा य कारणम् ।। ९ ।। ‘महष! ये महाबा धनंजय कु तीके गभसे उ प ए मेरे पु ह और कुछ कारणवश अ व ा सीखनेके लये यहाँ आये ह। आ य है क आप इन पुरातन ऋ ष वरको नह जानते ह। न्! इनका जो व प है और इनके अवतार- हणका जो कारण है, वह सब म बता रहा ँ। आप मेरे मुँहसे यह सब सु नये ।। ८-९ ।। नरनारायणौ यौ तौ पुराणावृ षस मौ । ता वमावनुजानी ह षीकेशधनंजयौ ।। १० ।। ‘नर-नारायण नामसे स जो पुरातन मुनी र ह’ वे ही ीकृ ण और अजुनके पम अवतीण ए ह, यह बात आप जान ल ।। १० ।। व यातौ षु लोकेषु नरनारायणावृषी । कायाथमवतीण तौ पृव पु य त याम् ।। ११ ।। ‘तीन लोक म व यात नर-नारायण ऋ ष ही दे वता का काय स करनेके लये पु यके आधार प भूतलपर अवतीण ए ह ।। ११ ।। य श यं सुरै ु मृ ष भवा महा म भः । तदा मपदं पु यं बदरीनाम व ुतम् ।। १२ ।। स नवासोऽभवद् व व णो ज णो तथैव च । यतः ववृते ग ा स चारणसे वता ।। १३ ।। ‘दे वता अथवा महा मा मह ष भी जसे दे खनेम समथ नह , वह बदरी नामसे व यात पु यतीथ इनका आ म है; वही पूवकालम इन ीकृ ण और अजुनका (नारायण और नरका) नवास थान था। जहाँसे स -चारणसे वत गंगाका ाक आ है ।। १२-१३ ।। तौ म योगाद् ष तौ जातौ महा ुती । भूमेभारावतरणं महावीय क र यतः ।। १४ ।। ‘ ष! ये दोन महातेज वी नर और नारायण मेरे अनुरोधसे पृ वीपर उ प ए ह। इनक श महान् है, ये दोन इस पृ वीका भार उतारगे ।। १४ ।। उद्वृ ा सुराः के च वातकवचा इ त । व येषु थता माकं वरदानेन मो हताः ।। १५ ।। ‘इन दन नवातकवच नामसे स कुछ असुरगण बड़े उ ड हो रहे ह, वे वरदानसे मो हत होकर हमारा अ न करनेम लगे ए ह ।। १५ ।। तकय ते सुरान् ह तुं बलदपसम वताः । दे वान् न गणय येते तथा द वरा ह ते ।। १६ ।। ‘उनम बल तो है ही, बली होनेका अ भमान भी है। वे दे वता को मार डालनेका वचार करते ह। दे वता को तो वे लोग कुछ गनते ही नह ; य क उ ह वैसा ही वरदान ा त हो चुका है ।। १६ ।। ो ौ ो

पातालवा सनो रौ ा दनोः पु ा महाबलाः । सवदे व नकाया ह नालं योध यतुं ह तान् ।। १७ ।। योऽसौ भू मगतः ीमान् व णुमधु नषूदनः । क पलो नाम दे वोऽसौ भगवान जतो ह रः ।। १८ ।। ‘वे महाबली भयंकर दानव पातालम नवास करते ह। स पूण दे वता मलकर भी उनके साथ यु नह कर सकते। इस समय भूतलपर जनका अवतार आ है वे ीमान् मधुसूदन व णु ही क पल नामसे स दे वता ए ह। वे ही भगवान् अपरा जत ह र ह ।। १७-१८ ।। येन पूव महा मानः खनमाना रसातलम् । दशनादे व नहताः सगर या मजा वभो ।। १९ ।। ‘महष! पूवकालम रसातलको खोदनेवाले सगरके महामना पु उ ह क पलक मा पड़नेसे भ म हो गये थे ।। १९ ।। तेन काय महत् कायम माकं जस म । पाथन च महायु े समेता यां न संशयः ।। २० ।। ‘ ज े ! वे भगवान् ीह र हमारा महान् काय स कर सकते ह। कु तीकुमार अजुनसे भी हमारा काय स हो सकता है। य द ीकृ ण और अजुन कसी महायु म एक- सरेसे मल जायँ तो वे दोन एक साथ होकर महान्-से-महान् काय स कर सकते ह’ इसम संशय नह है ।। २० ।। सोऽसुरान् दशनादे व श ो ह तुं सहानुगान् । नवातकवचान् सवान् नागा नव महा दे ।। २१ ।। भगवान् ीकृ ण तो न ेपमा से ही महान् कु डम नवास करनेवाले नाग क भाँ त सम त ‘ नवातकवच’ नामक दानव को उनके अनुया यय स हत मार डालनेम समथ ह ।। २१ ।। क तु ना पेन कायण बो यो मधुसूदनः । तेजसः सुमहारा शः बु ः दहे जगत् ।। २२ ।। ‘परंतु कसी छोटे कायके लये भगवान् मधुसूदनको सूचना दे नी उ चत नह जान पड़ती। वे तेजके महान् रा श ह; य द व लत ह तो स पूण जगत्को भ म कर सकते ह ।। २२ ।। अयं तेषां सम तानां श ः तसमासने । तान् नह य रणे शूरः पुनया य त मानुषान् ।। २३ ।। ‘ये शूरवीर अजुन अकेले ही उन सम त नवात-कवच का संहार करनेम समथ ह। उन सबको यु म मारकर ये फर मनु यलोकको लौट जायँगे ।। २३ ।। भवान म योगेन यातु ताव महीतलम् । का यके यसे वीरं नवस तं यु ध रम् ।। २४ ।। ‘मुने! आप मेरे अनुरोधसे कृपया भूलोकम जाइये और का यकवनम नवास करनेवाले यु ध रसे म लये ।। २४ ।। ो े

स वा यो मम संदेशाद् धमा मा स यसंगरः । नो क ठा फा गुने काया क ृ ता ः शी मे य त ।। २५ ।। ‘वे बड़े धमा मा और स य त ह। उनसे मेरा यह संदेश क हयेगा—‘राजन्! आप अजुनके वापस लौटनेके वषयम उ क ठत न ह । वे अ व ा सीखकर शी ही लौट आयगे ।। २५ ।। नाशु बा वीयण नाकृता ेण वा रणे । भी म ोणादयो यु े श याः तसमा सतुम् ।। २६ ।। ‘ जसका बा बल पूण अ श ाके अभावसे ु टपूण हो तथा जसने अ व ाका पूण ान न ा त कया हो, वह यु म भी म- ोण आ दका सामना नह कर सकता ।। २६ ।। गृहीता ो गुडाकेशो महाबा महामनाः । नृ यवा द गीतानां द ानां पारमी यवान् ।। २७ ।। ‘महाबा महामना अजुन अ व ाक पूरी श ा पा चुके ह। वे द नृ य, वा एवं गीतक कलाम भी पारंगत हो गये ह ।। २७ ।। भवान प व व ा न तीथा न मनुजे र । ातृ भः स हतः सव ु मह यरदम ।। २८ ।। तीथ वा लु य पु येषु वपा मा वगत वरः । रा यं भो य स राजे सुखी वगतक मषः ।। २९ ।। ‘मनुजे र! श ुदमन! आप भी अपने सभी भाइय के साथ प व तीथ का दशन क जये। राजे ! पु यतीथ म नान करके पाप-तापसे र हत हो सुखी एवं न कलंक जीवन बताते ए आप रा यभोग करगे’ ।। भवां ैनं ज े पयट तं महीतलम् । ातुमह त व ा य तपोबलसम वतः ।। ३० ।। ‘ ज े ! आप भी भूतलपर वचरनेवाले राजा यु ध रक र ा करते रह; य क आप तपोबलसे स प ह ।। ३० ।। ग र गषु च सदा दे शेषु वषमेषु च । वस त रा सा रौ ा ते यो र ां वधा य त ।। ३१ ।। ‘पवत के गम थान म तथा ऊँची-नीची भू मय म भयंकर रा स नवास करते ह; उनसे आप भाइय स हत यु ध रक र ा क जयेगा’ ।। ३१ ।। एवमु ो महे े ण बीभ सुर प लोमशम् । उवाच यतो वा यं र ेथाः पा डु न दनम् ।। ३२ ।। महे के ऐसा कहनेपर अजुनने भी वनीत होकर लोमश मु नसे कहा—‘मुने! पा डु न दन यु ध रक भाइय स हत र ा क जये ।। ३२ ।। यथा गु त वया राजा चरेत् तीथा न स म । दानं द ाद् यथा चैव तथा कु महामुने ।। ३३ ।। ‘











‘साधु शरोमणे! महामुने! आपसे सुर त रहकर राजा यु ध र तीथ म मण कर और दान द—ऐसी कृपा क जये’ ।। ३३ ।। वैश पायन उवाच तथे त स त ाय लोमशः सुमहातपाः । का यकं वनमु य समुपाया महीतलम् ।। ३४ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! ‘ब त अ छा’ कहकर महातप वी लोमशजीने उनका अनुरोध मान लया और का यकवनम जानेके लये भूलोकक ओर थान कया ।। ३४ ।। ददश त कौ तेयं धमराजमरदमम् । तापसै ातृ भ ैव सवतः प रवा रतम् ।। ३५ ।। वहाँ प ँचकर उ ह ने श ुदमन कु तीकुमार धमराज यु ध रको भाइय तथा तप वी मु नय से घरा आ दे खा ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण इ लोका भगमनपव ण लोमशगमने स तच वारशोऽ यायः ।। ४७ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत इ लोका भगमनपवम लोमशगमन वषयक सतालीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ४७ ।।

अ च वा रशोऽ यायः ः खत धृतरा का संजयके स मुख अपने पु के लये च ता करना जनमेजय उवाच अ य त मदं कम पाथ या मततेजसः । धृतरा ो महा ा ः ु वा व कम वीत् ।। १ ।। जनमेजयने पूछा— न्! अ मत तेज वी कु तीकुमार अजुनका यह कम तो अ य त अ त है। परम बु मान् राजा धृतराने भी यह सब अव य सुना होगा। उसे सुनकर उ ह ने या कहा था? यह बतलाइये ।। १ ।। वैश पायन उवाच श लोकगतं पाथ ु वा राजा बकासुतः । ै पायना ष े ात् संजयं वा यम वीत् ।। २ ।। वैश पायनजीने कहा—जनमेजय! अ बकान दन राजा धृतराने ऋ ष ै पायन ासके मुखसे अजुनके इ लोकगमनका समाचार सुनकर संजयसे यह बात कही ।। २ ।। धृतरा उवाच ुतं मे सूत का यन कम पाथ य धीमतः । क चत् तवा प व दतं याथातयेन सारथे ।। ३ ।। धृतरा बोले—सूत! मने परम बु मान् कु तीकुमार अजुनका सारा वृ ा त सुना है। सारथे! या तु ह भी इस वषयम यथाथ बात ात ई ह? ।। ३ ।। म ो ा यधमषु म दा मा पाप न यः । मम पु ः सु बु ः पृ थव घात य य त ।। ४ ।। मेरा मूढ़बु पु तो वषयभोग म फँसा आ है। उसका वचार सदा पापपूण ही बना रहता है। मादम पड़ा आ वह अ य त बु य धन एक दन सारे भूम डलका नाश करा दे गा ।। ४ ।।

य य न यमृता वाचः वैरे व प महा मनः । ैलो यम प त य याद् यो ा य य धनंजयः ।। ५ ।। जन महा माके मुखसे हँसीम भी सदा स य ही बात नकलती ह और जनक ओरसे लड़नेवाले धनंजय-जैसे यो ा ह, उन धमराज यु ध रके लये इस कौरव-रा यको जीतनेक तो बात ही या है, वे तीन लोक पर अ धकार ा त कर सकते ह ।। ५ ।। अ यतः क णनाराचां ती णा ां शला शतान् । कोऽजुन या त त ेद प मृ युजरा तगः ।। ६ ।। जो प थरपर रगड़कर तेज कये गये ह, जनके अ भाग बड़े तीखे ह, उन क ण नामक नाराच का हार करनेवाले अजुनके आगे कौन यो ा ठहर सकता है? जरा वजयी मृ यु भी उनका सामना नह कर सकती ।। ६ ।। मम पु ा रा मानः सव मृ युवशानुगाः । येषां यु ं राधषः पा डवैः युप थतम् ।। ७ ।। मेरे सभी रा मा पु मृ युके वशम हो गये ह; य क उनके सामने धष वीर पा डव के साथ यु करनेका अवसर उप थत आ है ।। ७ ।। तथैव च न प या म यु ध गा डीवध वनः । अ नशं च तयानोऽ प य एनमु दयाद् रथी ।। ८ ।। े









म दन-रात वचार करनेपर भी यह नह समझ पाता क यु म ‘गा डीवध वा’ अजुनका सामना कौन रथी कर सकता है? ।। ८ ।। ोणकण तीयातां य द भी मोऽ प वा रणे । महान् यात् संशयो लोके त प या म नो जयम् ।। ९ ।। ोण और कण उस अजुनका सामना कर सकते ह। भी म भी यु म उनसे लोहा ले सकते ह; परंतु तो भी मेरे मनम महान् संशय ही बना आ है। मुझे इस लोकम अपने प क जीत नह दखायी दे ती ।। ९ ।। घृणी कणः माद च आचायः थ वरो गु ः । अमष बलवान् पाथः संर भी ढ व मः ।। १० ।। स भवेत् तुमुलं यु ं सवशोऽ यपरा जतम् । सव वदः शूराः सव ा ता महद् यशः ।। ११ ।। कण दयालु और माद है। आचाय ोण वृ एवं गु ह। उधर कु तीकुमार अजुन अ य त अमषम भरे ए और बलवान् ह। उ ोगी और ढ़ परा मी ह। सब ओरसे घमासान यु छड़नेक स भावना हो गयी है। यु म पा डव क पराजय नह हो सकती; य क उनक ओर सभी अ व ाके व ान् शूरवीर और महान् यश वी ह ।। १०-११ ।। अ प सव र वं ह ते वा छ यपरा जताः । वधे नूनं भवे छा तरेतेषां फा गुन य वा ।। १२ ।। और वे परा जत न होकर सव र साट ् बननेक इ छा रखते ह। इन कण आ द यो ा का वध हो जाय अथवा अजुन ही मारे जायँ तो इस ववादक शा त हो सकती है ।। १२ ।। न तु ह ताजुन या त जेता वा य न व ते। म यु त य कथं शा ये म दान् त समु थतः ।। १३ ।। परंतु अजुनको मारनेवाला या जीतनेवाला कोई नह है। मेरे म दबु पु के त उनका बढ़ा आ ोध कैसे शा त हो सकता है? ।। १३ ।। दशेशसमो वीरः खा डवेऽ नमतपयत् । जगाय पा थवान् सवान् राजसूये महा तौ ।। १४ ।। अजुन इ के समान वीर ह। उ ह ने खा डववनम अ नको तृ त कया तथा राजसूय महाय म सम त राजा पर वजय पायी ।। १४ ।। शेषं कुयाद् गरेव ो नपतन् मू न संजय । न तु कुयुः शराः शेषं ता तात करी टना ।। १५ ।। संजय! पवतके शखरपर गरनेवाला व भले ही कुछ बाक छोड़ दे ; कतु तात! करीटधारी अजुनके चलाये ए बाण कुछ भी शेष नह छोड़गे ।। १५ ।। यथा ह करणा भानो तप तीह चराचरम् । तथा पाथभुजो सृ ाः शरा त य त म सुतान् ।। १६ ।। जैसे सूयक करण चराचर जगत्को संत त करती ह, उसी कार अजुनक भुजा ारा चलाये गये बाण मेरे पु को संत त कर दगे ।। १६ ।। ो े

अ प त थघोषेण भयाता स सा चनः । तभा त वद णव सवतो भारती चमूः ।। १७ ।। मुझे तो आज भी स साची अजुनके रथक घरघराहटसे सारी कौरव-सेना भयातुर हो छ - भ -सी होती तीत हो रही है ।। १७ ।। यदो हन् वपं ैव बाणान् थाताऽऽततायी समरे करीट । सृ ोऽ तकः सवहरो वधा ा भवेद ् यथा त दपारणीयः ।। १८ ।। जब करीटधारी अजुन हाथ म अ -श लये (तूणीरसे) बाण नकालते और चलाते ए समरभू मम खड़े ह गे, उस समय उनसे पार पाना अस भव हो जायगा। वे ऐसे जान पड़गे, मानो वधाताने कसी सरे सवसंहारकारी यमराजक सृ कर द हो ।। १८ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण इ लोका भगमनपव ण धृतरा वलापेऽ च वारशोऽ यायः ।। ४८ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत इ लोका भगमनपवम धृतरा वलाप वषयक अड़तालीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ४८ ।।

एकोनप चाश मोऽ यायः संजयके ारा धृतरा क बात का अनुमोदन और धृतरा का संताप संजय उवाच यदे तत् क थतं राजं वया य धनं त । सवमेतद् यथात वं नैत मया महीपते ।। १ ।। संजय बोला—राजन्! आपने य धनके वषयम जो बात कही ह, वे सभी यथाथ ह। महीपते! आपका वचन म या नह है ।। १ ।। म युना ह समा व ाः पा डवा ते महौजसः । ् वा कृ णां सभां नीतां धमप न यश वनीम् ।। २ ।। ःशासन य ता वाचः ु वा ते दा णोदयाः । कण य च महाराज जुगु स ती त मे म तः ।। ३ ।। महातेज वी वे पा डव अपनी धमप नी यश वनी कृ णाको सभाम लायी गयी दे खकर ोधसे भरे ए ह और महाराज! ःशासन तथा कणक वे कठोर बात सुनकर पा डव आपलोग क न दा करते ह, ऐसा मुझे व ास है ।। २-३ ।। ुतं ह मे महाराज यथा पाथन संयुगे । एकादशतनुः थाणुधनुषा प रतो षतः ।। ४ ।। राजे ! मने यह भी सुना है क कु तीकुमार अजुनने एकादश मू तधारी भगवान् शंकरको भी अपने धनुष-बाणक कला ारा संतु कया है ।। ४ ।। कैरातं वेषमा थाय योधयामास फा गुनम् । ज ासुः सवदे वेशः कपद भगवान् वयम् ।। ५ ।। जटाजूटधारी सवदे वे र भगवान् शंकरने वयं ही अजुनके बलक परी ा लेनेके लये करातवेष धारण करके उनके साथ यु कया था ।। ५ ।। त ैनं लोकपाला ते दशयामासुरजुनम् । अ हेतोः परा ा तं तपसा कौरवषभम् ।। ६ ।। वहाँ अ ा तके लये वशेष उ ोगशील कु -कुलर न अजुनको उनक तप यासे स होकर उन लोकपाल ने भी दशन दया था ।। ६ ।। नैत सहते चा यो लधुम य फा गुनात् । सा ाद् दशनमेतेषामी राणां नरो भु व ।। ७ ।। इस संसारम अजुनको छोड़कर सरा कोई मनु य ऐसा नह है, जो इन लोके र का सा ात् दशन ा त कर सके ।। ७ ।। महे रेण यो राजन् न जीण मू तना । े ी ो



क तमु सहते वीरो यु े जर यतुं पुमान् ।। ८ ।। राजन्! अ मू त* भगवान् महे र भी जसे यु म परा जत न कर सके, उ ह वीरवर अजुनको सरा कौन वीर पु ष जीतनेका साहस कर सकता है ।। ८ ।। आसा दत मदं घोरं तुमुलं लोमहषणम् । ौपद प रकष ः कोपय पा डवान् ।। ९ ।। भरी सभाम ौपद का व ख चकर पा डव को कु पत करनेवाले आपके पु ने वयं ही इस रोमांचकारी, अ य त भयंकर एवं घमासान यु को नम त कया है ।। ९ ।। यत् तु फुरमाणौ ो भीमः ाह वचोऽथवत् । ् वा य धनेनो ौप ा द शतावुभौ ।। १० ।। जब य धनने ौपद को अपनी दोन जाँघ दखायी थ , उस समय यह दे खकर भीमसेनने फड़कते ए ओठ से जो बात कही थी, वह थ नह हो सकती ।। ऊ भे या म ते पाप गदया भीमवेगया । योदशानां वषाणाम ते ूतदे वनः ।। ११ ।। उ ह ने कहा था—‘पापी य धन! म तेरहव वषके अ तम अपनी भयानक वेगवाली गदासे तुझ कपट जुआरीक दोन जाँघ तोड़ डालूँगा’ ।। ११ ।। सव हरतां े ाः सव चा मततेजसः । सव सवा व ांसो दे वैर प सु जयाः ।। १२ ।। सभी पा डव हार करनेवाले यो ा म े ह। सभी अप र मत तेजसे स प ह तथा सबको सभी अ का प र ान है, अतः वे दे वता के लये भी अ य त जय ह ।। १२ ।। म ये म युसमुदधू ् ताः पु ाणां तव संयुगे । अ तं पाथाः क र य त भायामषसम वताः ।। १३ ।। मेरा तो ऐसा व ास है क अपनी प नीके अपमानज नत अमषसे यु और रोषसे उ े जत हो सम त कु तीपु सं ामम आपके पु का संहार कर डालगे ।। १३ ।। धृतरा उवाच क कृतं सूत कणन वदता प षं वचः । पया तं वैरमेतावद् यत् कृ णा सा सभां गता ।। १४ ।। धृतरा ने कहा—सूत! कणने कठोर बात कहकर या कया, पूरा वैर तो इतनेसे ही बढ़ गया क ौपद को सभाम (केश पकड़कर) लाया गया ।। १४ ।। अपीदान मम सुता त ेरन् म दचेतसः । येषां ाता गु य ो वनये नाव त ते ।। १५ ।। ी े े ै े ई

अब भी मेरे मूख पु चुपचाप बैठे ह। उनका बड़ा भाई य धन वनय एवं नी तके मागपर नह चलता ।। १५ ।। ममा प वचनं सूत न शु ूष त म दभाक् । ् वा मां च ुषा हीनं न वचे मचेतसम् ।। १६ ।। सूत! वह म दभागी य धन मुझे अ धा, अकम य और अ ववेक समझकर मेरी बात भी नह सुनना चाहता ।। १६ ।। ये चा य स चवा म दाः कणसौबलकादयः । ते त य भूयसो दोषान् वधय त वचेतसः ।। १७ ।। कण और शकु न आ द जो उसके मूख म ी ह, वे भी वचारशू य होकर उसके अ धक-से-अ धक दोष बढ़ानेक ही चे ा करते ह ।। १७ ।। वैरमु ा प शराः पाथना मततेजसा । नदहेयुमम सुतान् क पुनम युने रताः ।। १८ ।। अ मत तेज वी अजुनके ारा वे छापूवक छोड़े ए बाण भी मेरे पु को जलाकर भ म कर सकते ह, फर ोधपूवक छोड़े ए बाण के लये तो कहना ही या है? ।। १८ ।। पाथबा बलो सृ ा महाचाप व नःसृताः । द ा म मु दताः सादयेयुः सुरान प ।। १९ ।। अजुनके बा -बल ारा चलाये और उनके महान् धनुषसे छू टे ए द ा म ारा अ भम त बाण दे वता का भी संहार कर सकते ह ।। १९ ।। य य म ी च गो ता च सु चैव जनादनः । ह र ैलो यनाथः स क नु त य न न जतम् ।। २० ।। जनके म ी, संर क और सु द् भुवननाथ, जनादन ीह र ह, वे कसे नह जीत सकते? ।। २० ।। इदं ह सुमह च मजुन येह संजय । महादे वेन बा यां यत् समेत इ त ु तः ।। २१ ।। संजय! अजुनका यह परा म तो बड़े ही आ यका वषय है क उ ह ने महादे वजीके साथ बा यु कया, यह मेरे सुननेम आया है ।। २१ ।। य ं सवलोक य खा डवे यत् कृतं पुरा । फा गुनेन सहायाथ व े दामोदरेण च ।। २२ ।। आजसे पहले खा डववनम अ नदे वक सहायताके लये ीकृ ण और अजुनने जो कुछ कया है, वह तो स पूण जगत्क आँख के सामने है ।। २२ ।। सवथा न ह मे पु ाः सहामा याः ससौबलाः । ु े पाथ च भीमे च वासुदेवे च सा वते ।। २३ ।। जब कु तीपु अजुन, भीमसेन और य कुल तलक वासुदेव ीकृ ण ोधम भरे ए ह, तब मुझे यह व ास कर लेना चा हये क शकु न तथा अ य े े ी ी े



य स हत मेरे सभी पु सवथा जी वत नह रह सकते ।। २३ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण इ लोका भगमनपव ण धृतरा खेदे एकोनप चाश मोऽ यायः ।। ४९ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत इ लोका भगमनपवम धृतराखेद वषयक उनचासवाँ अ याय पूरा आ ।। ४९ ।।

* सूय, जल, पृ वी, अ न, वायु, आकाश, द

त ा ण तथा च मा—ये शवजीक आठ मू तयाँ ह। ( व णुपुराण १।८।८)

प चाश मोऽ यायः वनम पा डव का आहार जनमेजय उवाच य ददं शो चतं रा ा धृतरा ेण वै मुने । ा य पा डवान् वीरान् सवमेत रथकम् ।। १ ।। जनमेजय बोले—मुने! वीर पा डव को वनम नवा सत करके राजा धृतराने जो इतना शोक कया, यह सब थ था ।। १ ।। कथं च राजा पु ं तमुपे ेता पचेतसम् । य धनं पा डु पु ान् कोपयानं महारथान् ।। २ ।। उस म दबु राजकुमार य धनको ही कसी तरह याग दे ना उनके लये सवथा उ चत था जो महारथी पा डव को अपने वहारसे कु पत करता जा रहा था ।। २ ।। कमासीत् पा डु पु ाणां वने भोजनमु यताम् । वानेयमथवा कृ मेतदा यातु नो भवान् ।। ३ ।। व वर! बताइये, पा डवलोग वनम या भोजन करते थे? जंगली फल-मूल या खेतीसे पैदा आ ामीण अ ? इसका आप प वणन क जये ।। ३ ।। वैश पायन उवाच वानेयां मृगां ैव शु ै बाणै नपा ततान् । ा णानां नवे ा मभु न् पु षषभाः ।। ४ ।। वैश पायनजीने कहा—राजन्! पु ष े पा डव जंगली फल-मूल और खेतीसे पैदा ए अ ा द भी पहले ा ण को नवेदन करके फर वयं खाते थे एवं सब लोग क र ाके लये केवल बाण के ारा ही हसक पशु को मारा करते थे ।। ४ ।। तां तु शूरान् महे वासां तदा नवसतो वने । अ वयु ा णा राजन् सा नयोऽन नय तथा ।। ५ ।। राजन्! उन दन वनम नवास करनेवाले महाधनुधर शूरवीर पा डव के साथ ब त-से सा नक (अ नहो ी) और नर नक (अ नहो र हत) ा ण भी रहते थे ।। ५ ।। ा णानां सह ा ण नातकानां महा मनाम् । दश मो वदां त यान् बभ त यु ध रः ।। ६ ।। राजा यु ध र जनका पालन करते थे, वे महा मा, नातक, मो वे ा ा ण दस हजारक सं याम थे ।। ६ ।। न् कृ णमृगां ैव मे यां ा यान् वनेचरान् । बाणै मय व वधै ा णे यो यवेदयत् ।। ७ ।। वे मृग, कृ णमृग तथा अ य जो मे य (प व )* हसक वनज तु थे, उन सबको व वध बाण ारा मारकर उनके चम ा ण को आसना द बनानेके लये अ पत कर दे ते े

थे ।। ७ ।। न त क द् वण ा धतो वा प यते । कृशो वा बलो वा प द नो भीतोऽ प वा पुनः ।। ८ ।। वहाँ उन ा ण मसे कोई भी ऐसा नह दखायी दे ता था, जसके शरीरका रंग षत हो अथवा जो कसी रोगसे त हो। उनमसे कोई कृशकाय, बल, द न अथवा भयभीत भी नह जान पड़ता था ।। ८ ।। पु ा नव यान् ातॄ ाती नव सहोदरान् । पुपोष कौरव े ो धमराजो यु ध रः ।। ९ ।। कु कुल तलक धमराज यु ध र अपने भाइय का य पु क भाँ त तथा ा तजन का सहोदर भाइय के समान पालन-पोषण करते थे ।। ९ ।। पत ौपद सवान् जात यश वनी । मातृवद् भोज य वा े श माहारयत् तदा ।। १० ।। इसी कार यश वनी ौपद भी प तय तथा सम त जा तय को माताके समान पहले भोजन कराकर पीछे बचा-खुचा आप खाती थी ।। १० ।। ाच राजा द णां भीमसेनो यमौ तीचीमथ वा युद चीम् । धनुधराणां स हतो मृगाणां यं च ु न यमेवोपग य ।। ११ ।। राजा यु ध र पूव दशाम, भीमसेन द ण दशाम तथा नकुल-सहदे व प म एवं उ र दशाम और कभी सब मलकर न य वनम नकल जाते और धनुषधारी (डाकु ) तथा हसक पशु का संहार कया करते थे ।। ११ ।। तथा तेषां वसतां का यके वै वहीनानामजुनेनो सुकानाम् । प चैव वषा ण तथा तीयुरधीयतां जपतां जु तां च ।। १२ ।। इस कार का यकवनम अजुनसे वयु एवं उनके लये उ क ठत होकर नवास करनेवाले पा डव के पाँच वष तीत हो गये। इतने समयतक उनका वा याय, जप और होम सदा पूववत् चलता रहा ।। १२ ।। ीमहाभारते वनपव ण इ लोका भगमनपव ण पाथाहारकथने प चाश मोऽ यायः ।। ५० ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत इ लोका भगमनपवम पा डव के भोजनका वणन वषयक पचासवाँ अ याय पूरा आ ।। ५० ।।

*

इत

* है।

सह- ा ा द हसक जानवर को मार दे नेसे वे मारनेवालेको प व करनेवाले ह; इस लये उनको प व कहा गया

एकप चाश मोऽ यायः संजयका धृतरा के त ीकृ णा दके ारा क ई य धना दके वधक त ाका वृ ा त सुनाना वैश पायन उवाच तेषां त च रतं ु वा मनु यातीतम तम् । च ताशोकपरीता मा म युना भप र लुतः ।। १ ।। द घमु णं च नः य धृतरा ोऽ बकासुतः । अ वीत् संजयं सूतमाम य पु षषभ ।। २ ।। वैश पायनजी कहते ह—पु षर न जनमेजय! पा डव का वह अ त एवं अलौ कक च र सुनकर अ बकान दन राजा धृतराका मन च ता और शोकम डू ब गया। वे अ य त ख हो उठे और लंबी एवं गरम साँस ख चकर अपने सार थ संजयको नकट बुलाकर बोले— ।। १-२ ।। न रा ौ न दवा सूत शा तं ा ो म वै णम् । सं च य नयं घोरमतीतं ूतजं ह तत् ।। ३ ।। ‘सूत! म बीते ए ूतज नत घोर अ यायका मरण करके दन तथा रातम णभर भी शा त नह पाता ।। तेषामस वीयाणां शौय धैय धृ त पराम् । अ यो यमनुरागं च ातॄणाम तमानुषम् ।। ४ ।। ‘म दे खता ँ, पा डव के परा म अस ह। उनम शौय, धैय तथा उ म धारणाश है। उन सब भाइय म पर पर अलौ कक ेम है ।। ४ ।। दे वपु ौ महाभागौ दे वराजसम ुती । नकुलः सहदे व पा डवौ यु मदौ ।। ५ ।। ‘दे वपु महाभाग नकुल-सहदे व दे वराज इ के समान तेज वी ह। वे दोन ही पा डव यु म च ड ह ।। ५ ।। ढायुधौ रपातौ यु े च कृत न यौ । शी ह तौ ढकोधौ न ययु ो तर वनौ ।। ६ ।। ‘उनके आयुध ढ़ ह। वे रतक नशाना मारते ह। यु के लये उनका भी ढ़ न य है। वे दोन ही बड़ी शी तासे ह तसंचालन करते ह। उनका ोध भी अ य त ढ़ है। वे सदा उ ोगशील और बड़े वेगवान् ह ।। ६ ।। भीमाजुनौ पुरोधाय यदा तौ रणमूध न । था येते सह व ा ताव ना वव ःसहौ ।। ७ ।। न शेष मह प या म मम सै य य संजय । तौ तरथौ यु े दे वपु ौ महारथौ ।। ८ ।। ‘



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‘ जस समय भीमसेन और अजुनको आगे रखकर वे दोन सहके समान परा मी और अ नीकुमार के समान ःसह वीर यु के मुहानेपर खड़े ह गे, उस समय मुझे अपनी सेनाका कोई वीर शेष रहता नह दखायी दे ता है। संजय! दे वपु महारथी नकुल-सहदे व यु म अनुपम ह। कोई भी रथी उनका सामना नह कर सकता ।। ७-८ ।। ौप ा तं प र लेशं न ं येते वम षणौ । वृ णयोऽथ महे वासाः प चाला वा महौजसः ।। ९ ।। यु ध स या भसंधेन वासुदेवेन र ताः । ध य त रणे पाथाः पु ाणां मम वा हनीम् ।। १० ।। ‘अमषम भरे ए मा कुमार ौपद को दये गये उस क को कभी मा नह करगे। महान् धनुधर वृ णवंशी, महातेज वी पांचाल यो ा और यु म स य त वासुदेव ीकृ णसे सुर त कु तीपु न य ही मेरे पु क सेनाको भ म कर डालगे ।। ९-१० ।। रामकृ ण णीतानां वृ णीनां सूतन दन । न श यः स हतुं वेगः सव तैर प संयुगे ।। ११ ।। ‘सूतन दन! बलराम और ीकृ णसे े रत वृ ण-वंशी यो ा के वेगको यु म सम त कौरव मलकर भी नह सह सकते ।। ११ ।। तेषां म ये महे वासो भीमो भीमपरा मः । शै यया वीरघा त या गदया वच र य त ।। १२ ।। तथा गा डीव नघ षं व फू जत मवाशनेः । गदावेगं च भीम य नालं सोढुं नरा धपाः ।। १३ ।। ‘उनके बीचम जब भयानक परा मी महान् धनुधर भीमसेन बड़े-बड़े वीर का संहार करनेवाली आकाशम ऊपर उठ ई गदा लये वचरगे तब उन भीमक गदाके वेगको तथा वगजनक े समान गा डीव धनुषक टं कारको भी कोई नरेश नह सह सकता ।। १२-१३ ।। ततोऽहं सु दां वाचो य धनवशानुगः । मरणीयाः म र या म मया या न कृताः पुरा ।। १४ ।। ‘उस समय म य धनके वशम होनेके कारण अपने हतैषी सु द क उन याद रखनेयो य बात को याद क ँ गा, जनका पालन मने पहले नह कया’ ।। १४ ।। संजय उवाच त मोऽयं सुमहां वया राज ुपे तः । समथना प य मोहात् पु ते न नवा रतः ।। १५ ।। संजयने कहा—राजन्! आपके ारा यह ब त बड़ा अ याय आ है, जसक आपने जान-बूझकर उपे ा क है (उसे रोकनेक चे ा नह क है); वह यह है क आपने समथ होते ए भी मोहवश अपने पु को कभी रोका नह ।। १५ ।। ु वा ह न जतान् ूते पा डवान् मधुसूदनः । व रतः का यके पाथान् समभावयद युतः ।। १६ ।। े











भगवान् मधुसूदनने य ही सुना क पा डव ूतम परा जत हो गये, य ही वे का यकवनम प ँचकर कु तीपु से मले और उ ह आ ासन दया ।। १६ ।। पद य तथा पु ा धृ ु नपुरोगमाः । वराटो धृ केतु केकया महारथाः ।। १७ ।। इसी कार पदके धृ ु न आ द पु , वराट, धृ केतु और महारथी कैकय—इन सबने पा डव से भट क ।। १७ ।। तै यत् क थतं राजन् ् वा पाथान् परा जतान् । चारेण व दतं सव त मयाऽऽवे दतं च ते ।। १८ ।। राजन्! पा डव को जूएम परा जत दे खकर उन सबने जो बात कह , उ ह गु तचर ारा जानकर मने आपक सेवाम नवेदन कर दया था ।। १८ ।। समाग य वृत त पा डवैमधुसूदनः । सारये फा गुन याजौ तथे याह च तान् ह रः ।। १९ ।। पा डव ने मलकर मधुसूदन ीकृ णको यु म अजुनका सार थ होनेके लये वरण कया और ीह रने ‘तथा तु’ कहकर उनका अनुरोध वीकार कर लया ।। १९ ।। अम षतो ह कृ णोऽ प ् वा पाथा तथा गतान् । कृ णा जनो रासंगान वी च यु ध रम् ।। २० ।। भगवान् ीकृ ण भी कु तीपु को उस अव थाम काला मृगचम ओढ़कर आये ए दे ख उस समय अमषम भर गये और यु ध रसे इस कार बोले— ।। २० ।। या सा समृ ः पाथाना म थे बभूव ह । राजसूये मया ा नृपैर यैः सु लभा ।। २१ ।। ‘इ थम कु तीकुमार के पास जो समृ थी तथा राजसूयय के समय जसे मने अपनी आँख दे खा था, वह अ य नरेश के लये अ य त लभ थी ।। २१ ।। य सवान् महीपाला छ तेजोभया दतान् । सव ा ान् सपौ ोान् सचोल ा वडा कान् ।। २२ ।। सागरानूपकां ैव ये च ा ता भवा सनः । सहलान् बबरान् ले छान् ये च लङ् का नवा सनः ।। २३ ।। प मा न च रा ा ण शतशः सागरा तकान् । प वान् दरदान् सवान् करातान् यवना छकान् ।। २४ ।। हारणां चीनां तुषारान् सै धवां तथा । जागुडान् रामठान् मु डान् ीरा यमथ त णान् ।। २५ ।। केकयान् मालवां ैव तथा का मीरकान प । अ ा महमातान् य े ते प रवेषकान् ।। २६ ।। ‘उस समय सब भू मपाल पा डव के श के तेजसे भयभीत थे। अंग, वंग, पु , उ, चोल, ा वड़, आ , सागरतटवत प तथा समु के समीप नवास करनेवाले जो राजा थे, वे सभी राजसूयय म उप थत थे। सहल, बबर, ले छ, लंका नवासी, प मके रा, सागरके नकटवत सैकड़ दे श, प व, दरद, सम त करात, यवन, शक, हार ण, ी ै ी े

चीन, तुषार, सै धव, जागुड़, रामठ, मु ड, ीरा य, तंगण, केकय, मालव तथा का मीरदे शके नरेश भी राजसूयय म बुलाये गये थे और मने उन सबको आपके य म रसोई परोसते दे खा था ।। २२—२६ ।। सा ते समृ यरा ा चपला तसा रणी । आदाय जी वतं तेषामाह र या म तामहम् ।। २७ ।। ‘सब ओर फैली ई आपक उस चंचल समृ को जन लोग ने छलसे छ न लया है, उनके ाण लेकर भी म उसे पुनः वापस लाऊँगा ।। २७ ।। रामेण सह कौर भीमाजुनयमै तथा । अ ू रगदसा बै ु नेना केन च ।। २८ ।। धृ ु नेन वीरेण शशुपाला मजेन च । य धनं रणे ह वा स ः कण च भारत ।। २९ ।। ःशासनं सौबलेयं य ा यः तयो यते । तत वं हा तनपुरे ातृ भः स हतो वसन् ।। ३० ।। धातरा यं ा य शा ध पृ थवी ममाम् । ‘कु न दन! भरतकुल तलक! बलराम, भीमसेन, अजुन, नकुल-सहदे व, अ ू र, गद, सा ब, ु न, आ क, वीर धृ ु न और शशुपालपु धृ केतुके साथ आ मण करके यु म य धन, कण, ःशासन एवं शकु नको तथा और जो कोई यो ा सामना करने आयेगा, उसे भी शी ही मारकर म आपक स प लौटा लाऊँगा। तदन तर आप भाइय स हत ह तनापुरम नवास करते ए धृतराक रा यल मीको पाकर इस सारी पृ वीका शासन क जये’ ।। २८—३० ।। अथैनम वीद् राजा त मन् वीरसमागमे ।। ३१ ।। शृ व वेतेषु वीरेषु धृ ु नमुखेषु च । तब राजा यु ध रने उस वीरसमुदायम इन धृ ु न आ द शूरवीर के सुनते ए ीकृ णसे कहा ।। ३१ ।। यु ध र उवाच तगृ ा म ते वाच ममां स यां जनादन ।। ३२ ।। यु ध र बोले—जनादन! म आपक स य वाणीको शरोधाय करता ँ ।। ३२ ।। अ म ान् मे महाबाहो सानुब धान् ह न य स । वषात् योदशा व स यं मां कु केशव ।। ३३ ।। त ातो वने वासो राजम ये मया यम् । महाबाहो! केशव! तेरहव वषके बाद आप मेरे स पूण श ु को उनके ब धुबा धव स हत न क जयेगा। ऐसा करके आप मेरे स य (वनवासके लये क गयी त ा)-क र ा क जये। मने राजा क म डलीम वनवासक त ा क है ।। ३३ ।। तद् धमराजवचनं त ु य सभासदः ।। ३४ ।। धृ ु नपुरोगा ते शमयामासुर सा । े ै ै ै

केशवं मधुरैवा यैः कालयु ै रम षतम् ।। ३५ ।। धमराजक वह बात सुनकर धृ ु न आ द सभासद ने समयो चत मधुर वचन ारा अमषम भरे ए ीकृ णको शी ही शा त कया ।। ३४-३५ ।। पा चाल ा र ल ां वासुदेव य शृ वतः । य धन तव ोधाद् दे व य य त जी वतम् ।। ३६ ।। त प ात् उ ह ने लेशर हत ई ौपद से भगवान् ीकृ णके सुनते ए कहा—‘दे व! य धन तु हारे ोधसे न य ही ाण याग दे गा ।। ३६ ।। तजानीमहे स यं मा शुचो वरव ण न । ये म तेऽ जतां कृ णे ् वा वां ाहसं तदा । मांसा न तेषां खाद तो ह र य त वृक जाः ।। ३७ ।। ‘वरव ण न! हम यह स ची त ा करते ह, तुम शोक न करो। कृ णे! उस समय तु ह जूएम जीती ई दे खकर जन लोग ने हँसी उड़ायी है, उनके मांस भे ड़ये और गीध खायँगे और नोच-नोचकर ले जायँगे ।। ३७ ।। पा य त धर तेषां गृ ा गोमायव तथा । उ मा ा न कष तो यैः कृ ा स सभातले ।। ३८ ।। ‘इसी कार ज ह ने तु ह सभाभवनम घसीटा है, उनके कटे ए सर को घसीटते ए गीध और गीदड़ उनके र पीयगे ।। ३८ ।। तेषां य स पा चा ल गा ा ण पृ थवीतले । ादै ः कृ यमाणा न भ यमाणा न चासकृत् ।। ३९ ।। ‘पांचालराजकुमा र! तुम दे खोगी क उन के शरीर इस पृ वीपर मांसाहारी गीदड़गीध आ द पशु-प य ारा बार-बार घसीटे और खाये जा रहे ह ।। ३९ ।। प र ल ा स यै त यै ा स समुपे ता । तेषामु कृ शरसां भू मः पा य त शो णतम् ।। ४० ।। ‘ जन लोग ने तु ह सभाम लेश प ँचाया और ज ह ने चुपचाप रहकर उस अ यायक उपे ा क है, उन सबके कटे ए म तक का र यह पृ वी पीयेगी’ ।। ४० ।। एवं ब वधा वाच त ऊचुभरतषभ । सव तेज वनः शूराः सव चाहतल णाः ।। ४१ ।। भरतकुल तलक! इस कार उन वीर ने अनेक कारक बात कही थ । वे सब-के-सब तेज वी और शूरवीर ह। उनके शुभ ल ण अ मट ह ।। ४१ ।। ते धमराजेन वृता वषा व योदशात् । पुर कृ योपया य त वासुदेवं महारथाः ।। ४२ ।। धमराजने तेरहव वषके बाद यु करनेके लये उनका वरण कया है। वे महारथी वीर भगवान् ीकृ णको आगे रखकर आ मण करगे ।। ४२ ।। राम कृ ण धनंजय ु नसा बौ युयुधानभीमौ । मा सुतौ केकयराजपु ाः

पा चालपु ाः सह म यरा ा ।। ४३ ।। एतान् सवान् लोकवीरानजेयान् महा मनः सानुब धान् ससै यान् । को जी वताथ समरेऽ युद यात् ु ान् सहान् केस रणो यथैव ।। ४४ ।। बलराम, ीकृ ण, अजुन, ु न, सा ब, सा य क, भीमसेन, नकुल, सहदे व, केकयराजकुमार, पद और उनके पु तथा म यनरेश वराट—ये सब-के-सब व व यात अजेय वीर ह। ये महामना जब अपने सगे-स ब धय और सेनाके साथ धावा करगे, उस समय ोधम भरे ए केसरी सह के समान उन महावीर का समरम जीवनक इ छा रखनेवाला कौन पु ष सामना करेगा? ।। ४३-४४ ।। धृतरा उवाच य मा वीद् व रो ूतकाले वं पा डवा े य स चे रे । ुवं कु णामयम तकालो महाभयो भ वता शो णतौघः ।। ४५ ।। धृतरा बोले—संजय! जब जूआ खेला जा रहा था, उस समय व रने मुझसे जो यह बात कही थी क नरे ! य द आप पा डव को जूएम जीतगे तो न य ही यह कौरव के लये खूनक धारासे भरा आ अ य त भयंकर वनाशकाल होगा ।। ४५ ।। म ये तथा तद् भ वते त सूत यथा ा ाह वचः पुरा माम् । असंशयं भ वता यु मेतद् गते काले पा डवानां यथो म् ।। ४६ ।। सूत! व रने पहले जो बात कही थी, वह अव य ही उसी कार होगी, ऐसा मेरा व ास है। वनवासका समय तीत होनेपर पा डव के कथनानुसार यह घोर यु होकर ही रहेगा, इसम संशय नह ।। ४६ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण इ लोका भगमनपव ण धृतरा वलापे एकप चाश मोऽ यायः ।। ५१ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत इ लोका भगमनपवम धृतरा वलाप वषयक इ यावनवाँ अ याय पूरा आ ।। ५१ ।।

(नल ोपा यानपव) प चाश मोऽ यायः भीमसेन-यु ध र-संवाद, बृहद का आगमन तथा यु ध रके पूछनेपर बृहद के ारा नलोपा यानक तावना जनमेजय उवाच अ हेतोगते पाथ श लोकं महा म न । यु ध र भृतयः कमकुवत पा डवाः ।। १ ।। जनमेजयने पूछा— न्! अ व ाक ा तके लये महा मा अजुनके इ लोक चले जानेपर यु ध र आ द पा डव ने या कया? ।। १ ।। वैश पायन उवाच अ हेतोगते पाथ श लोकं महा म न । आवसन् कृ णया साध का यके भरतषभाः ।। २ ।। वैश पायनजीने कहा—राजन्! अ व ाके लये महा मा अजुनके इ लोक जानेपर भरतकुलभूषण पा डव ौपद के साथ का यकवनम नवास करने लगे ।। २ ।। ततः कदा चदे का ते व व इव शा ले । ःखाता भरत े ा नषे ः सह कृ णया ।। ३ ।। धनंजयं शोचमानाः सा ुक ठाः सु ःखताः । त योगा दतान् सवा छोकः सम भपु लुवे ।। ४ ।। तदन तर एक दन एका त एवं प व थानम, जहाँ छोट -छोट हरी वा आ द घास उगी ई थी, वे भरतवंशके े पु ष ःखसे पी ड़त हो ौपद के साथ बैठे और धनंजय अजुनके लये च ता करते ए अ य त ःखम भरे अ ुगद्गद क ठसे उ ह क बात करने लगे। अजुनके वयोगसे पी ड़त उन सम त पा डव को शोकसागरने अपनी लहर म डु बो दया ।। ३-४ ।। धनंजय वयोगा च रा य ंशा च ःखताः । अथ भीमो महाबा यु ध रमभाषत ।। ५ ।। पा डव रा य छन जानेसे तो ःखी थे ही। अजुनके वरहसे वे और भी लेशम पड़ गये थे। उस समय महाबा भीमने यु ध रसे कहा— ।। ५ ।। नदे शात् ते महाराज गतोऽसौ भरतषभः ।

अजुनः पा डु पु ाणां य मन् ाणाः त ताः ।। ६ ।। ‘महाराज! आपक आ ासे भरतवंशका र न अजुन तप याके लये चला गया। हम सब पा डव के ाण उसीम बसते ह ।। ६ ।। य मन् वन े पा चालाः सह पु ै तथा वयम् । सा य कवासुदेव वन येयुन संशयः ।। ७ ।। ‘य द कह अजुनका नाश आ तो पु स हत पांचाल, हम पा डव, सा य क और वसुदेवन दन ीकृ ण—ये सब-के-सब न हो जायँगे ।। ७ ।। योऽसौ ग छ त धमा मा बन् लेशान् व च तयन् । भव योगाद् बीभ सु ततो ःखतरं नु कम् ।। ८ ।। ‘जो धमा मा अजुन अनेक कारके लेश का च तन करते ए आपक आ ासे तप याके लये गया, उससे बढ़कर ःख और या होगा? ।। ८ ।। य य बा समा य वयं सव महा मनः । म यामहे जतानाजौ परान् ा तां च मे दनीम् ।। ९ ।। ‘ जस महापरा मी अजुनके बा बलका आ य लेकर हम सं ामम श ु को परा जत और इस पृ वीको अपने अ धकारम आयी ई समझते ह ।। ९ ।। य य भावा मया सभाम ये धनु मतः । नीता लोकममुं सव धातरा ाः ससौबलाः ।। १० ।। ‘ जस धनुधर वीरके भावसे भा वत होकर मने सभाम शकु नस हत सम त धृतरापु को तुरंत ही यमलोक नह भेज दया ।। १० ।। ते वयं बा ब लनः ोधमु थतमा मनः । सहामहे भव मूलं वासुदेवेन पा लताः ।। ११ ।। ‘हम सब लोग बा बलसे स प ह और भगवान् वासुदेव हमारे र क ह तो भी हम आपके कारण अपने उठे ए ोधको चुपचाप सह लेते ह ।। ११ ।। वयं ह सह कृ णेन ह वा कणमुखान् परान् । वबा व जतां कृ नां शासेम वसु धराम् ।। १२ ।। ‘भगवान् ीकृ णके साथ हमलोग कण आ द श ु को मारकर अपने बा बलसे जीती ई स पूण पृ वीका शासन कर सकते ह ।। १२ ।। भवतो ूतदोषेण सव वयमुप लुताः । अहीनपौ षा बाला ब ल भबलव राः ।। १३ ।। ‘आपके जूएके दोषसे हमलोग पु षाथयु होकर भी द न बन गये ह और वे मूख य धन आ द भटम मले ए हमारे धनसे स प हो इस समय अ धक बलशाली बन गये ह ।। १३ ।। ा ं धम महाराज वमवे तुमह स । न ह धम महाराज य य वना यः ।। १४ ।। ‘महाराज! आप यधमक ओर तो दे खये। इस कार वनम रहना कदा प य का धम नह है ।। १४ ।। े

रा यमेव परं धम य य व बुधाः । स धम वद् राजा मा ध या ीनशः पथः ।। १५ ।। ‘ व ान ने रा यको ही यका सव म धम माना है। आप यधमके ाता नरेश ह। धमके मागसे वच लत न होइये ।। १५ ।। ाग् ादशसमा राजन् धातरा ान् नह म ह । नव य च वनात् पाथमाना य च जनादनम् ।। १६ ।। ‘राजन्! हमलोग बारह वष बीतनेके पहले ही अजुनको वनसे लौटाकर और भगवान् ीकृ णको बुलाकर धृतराक े पु का संहार कर सकते ह ।। १६ ।। ूढानीकान् महाराज जवेनैव महामते । धातरा ानमुं लोकं गमया म वशा पते ।। १७ ।। सवानहं ह न या म धातरा ान् ससौबलान् । य धनं च कण च यो वा यः तयो यते ।। १८ ।। ‘महाराज! महामते! धृतराक े पु कतनी ही सेना क मोचाब द य न कर ल, हम उ ह शी यमलोकका प थक बनाकर ही छोड़गे। म वयं ही शकु नस हत सम त धृतरापु को मार डालूँगा। य धन, कण अथवा सरा जो कोई यो ा मेरा सामना करेगा, उसे भी अव य मा ँ गा ।। १७-१८ ।। मया श मते प ात् वमे य स वनात् पुनः । एवं कृते न ते दोषा भ व य त वशा पते ।। १९ ।। ‘मेरे ारा श ु का संहार हो जानेपर आप फर तेरह वषके बाद वनसे चले आइयेगा। जानाथ! ऐसा करनेपर आपको दोष नह लगेगा ।। १९ ।। य ै व वधै तात कृतं पापमरदम । अवधूय महाराज ग छे म वगमु मम् ।। २० ।। ‘तात! श ुदमन! महाराज! हम नाना कारके य का अनु ान करके अपने कये ए पापको धो-बहाकर उ म वगलोकम चलगे ।। २० ।। एवमेतद् भवेद ् राजन् य द राजा न बा लशः । अ माकं द घसू ः याद् भवान् धमपरायणः ।। २१ ।। ‘राजन्! य द ऐसा हो तो आप हमारे धमपरायण राजा अ ववेक और द घसू ी नह समझे जायँगे ।। २१ ।। नकृ या नकृ त ा ह त ा इ त न यः । न ह नैकृ तकं ह वा नकृ या पापमु यते ।। २२ ।। ‘शठता करने या जाननेवाले श ु को शठताके ारा ही मारना चा हये, यह एक स ा त है। जो वयं सर पर छल-कपटका योग करता है, उसे छलसे भी मार डालनेम पाप नह बताया गया है ।। २२ ।। तथा भारत धमषु धम ै रह यते । अहोरा ं महाराज तु यं संव सरेण ह ।। २३ ।। ‘







‘भरतवंशी महाराज! धमशा म इसी कार धमपरायण धम पु ष ारा यहाँ एक दन-रात एक संव सरके समान दे खा जाता है ।। २३ ।। तथैव वेदवचनं ूयते न यदा वभो । संव सरो महाराज पूण भव त कृ तः ।। २४ ।। ‘ भो! महाराज! इसी कार सदा यह वै दक वचन सुना जाता है क कृ तक े अनु ानसे एक वषक पू त हो जाती है ।। २४ ।। य द वेदाः माणा ते दवसा वम युत । योदश समाः कालो ायतां प र न तः ।। २५ ।। ‘अ युत! य द आप वेदको माण मानते ह तो तेरहव दनके बाद ही तेरह वष का समय बीत गया, ऐसा समझ ली जये ।। २५ ।। कालो य धनं ह तुं सानुब धमरदम । एका ां पृ थव सवा पुरा राजन् करो त सः ।। २६ ।। ‘श ुदमन! यह य धनको उसके सगे-स ब धय -स हत मार डालनेका अवसर आया है। राजन्! वह सारी पृ वीको जबतक एक सू म बाँध ले, उसके पहले ही यह काय कर लेना चा हये ।। २६ ।। ूत येण राजे तथा तद् भवता कृतम् । ायेणा ातचयायां वयं सव नपा तताः ।। २७ ।। ‘राजे ! जूएके खेलम आस होकर आपने ऐसा अनथ कर डाला क ायः हम सब लोग को अ ातवासके संकटम लाकर पटक दया ।। २७ ।। न तं दे शं प या म य सोऽ मान् सु जनः । न व ा य त ा मा चारै र त सुयोधनः ।। २८ ।। अ धग य च सवान् नो वनवास ममं ततः । ाज य य त पुन नकृ याधमपू षः ।। २९ ।। ‘म ऐसा कोई दे श या थान नह दे खता, जहाँ अ य त च , रा मा य धन अपने गु तचर ारा हमलोग का पता न लगा ले। वह नीच नराधम हम सब लोग का गु त नवास जान लेनेपर पुनः अपनी कपटपूण नी त ारा हम इस वनवासम ही डाल दे गा ।। २८-२९ ।। य मान भग छे त पापः स ह कथंचन । अ ातचयामु ीणान् ् वा च पुनरा येत् ।। ३० ।। ‘य द वह पापी कसी कार यह समझ ले क हम अ ातवासक अव ध पार कर गये ह, तो वह उस दशाम हम दे खकर पुनः आपको ही जूआ खेलनेके लये बुलायेगा ।। ३० ।। ूतेन ते महाराज पुन ूतमवतत । भवां पुनरातो ूते नैवापने य त ।। ३१ ।। ‘महाराज! आप एक बार जूएके संकटसे बचकर बारा ूत डाम वृ हो गये थे, अतः म समझता ँ, य द पुनः आपका ूतके लये आवाहन हो तो आप उससे पीछे न हटगे ।। ३१ ।। स तथा ेषु कुशलो न तो गतचेतनः । े ी

च र य स महाराज वनेषु वसतीः पुनः ।। ३२ ।। ‘नरे र! वह ववेकशू य शकु न जूआ फकनेक कलाम कतना कुशल है, यह आप अ छ तरह जानते ह, फर तो उसम हारकर आप पुनः वनवास ही भोगगे ।। य मान् सुमहाराज कृपणान् कतुमह स । याव जीवमवे व वेदधमा कृ नशः ।। ३३ ।। ‘महाराज! य द आप हम द न, हीन, कृपण ही बनाना चाहते ह तो जबतक जीवन है, तबतक स पूण वेदो धम के पालनपर ही रखये ।। ३३ ।। नकृ या नकृ त ो ह त इ त न यः । अनु ात वया ग वा याव छ सुयोधनम् ।। ३४ ।। यथैव क मु सृ ो दहेद नलसार थः । ह न या म तथा म दमनुजानातु मे भवान् ।। ३५ ।। ‘अपना न य तो यही है क कपट को कपटसे ही मारना चा हये। य द आपक आ ा हो तो जैसे तृणक रा शम डाली ई आग हवाका सहारा पाकर उसे भ म कर डालती है, वैसे ही म जाकर अपनी श के अनुसार उस मूढ़ य धनका वध कर डालूँ, अतः आप मुझे आ ा द जये ।। ३४-३५ ।। वैश पायन उवाच एवं ुवाणं भीमं तु धमराजो यु ध रः । उवाच सा वयन् राजा मू युपा ाय पा डवम् ।। ३६ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! धमराज राजा यु ध रने उपयु बात कहनेवाले पा डु न दन भीमसेनका म तक सूँघकर उ ह सा वना दे ते ए कहा — ।। ३६ ।। असंशयं महाबाहो ह न य स सुयोधनम् । वषात् योदशा व सह गा डीवध वना ।। ३७ ।। ‘महाबाहो! इसम त नक भी संदेह नह है क तुम तेरहव वषके बाद गा डीवधारी अजुनके साथ जाकर यु म सुयोधनको मार डालोगे ।। ३७ ।। यत् वमाभाषसे पाथ ा तः काल इ त भो । अनृतं नो सहे व ुं न ेत मम व ते ।। ३८ ।। ‘ कतु श शाली वीर कु तीकुमार! तुम जो यह कहते हो क सुयोधनके वधका अवसर आ गया है, वह ठ क नह है। म झूठ नह बोल सकता, मुझम यह आदत नह है ।। ३८ ।। अ तरेणा प कौ तेय नकृ त पाप न यम् । ह ता वम स धष सानुब धं सुयोधनम् ।। ३९ ।। ‘कु तीन दन! तुम धष वीर हो, छल-कपटका आ य लये बना भी पापपूण वचार रखनेवाले सुयोधनको सगे-स ब धय स हत न कर सकते हो’ ।। ३९ ।। एवं ुव त भीमं तु धमराजे यु ध रे । ो



आजगाम महाभागो बृहद ो महानृ षः ।। ४० ।। धमराज यु ध र जब भीमसेनसे ऐसी बात कह रहे थे, उसी समय महाभाग मह ष बृहद वहाँ आ प ँचे ।। ४० ।। तम भ े य धमा मा स ा तं धमचा रणम् । शा व मधुपकण पूजयामास धमराट् ।। ४१ ।। धमा मा धमराज यु ध रने धमानु ान करनेवाले उन महा माको आया दे ख शा ीय व धके अनुसार मधुपक ारा उनका पूजन कया ।। ४१ ।। आ तं चैनमासीनमुपासीनो यु ध रः । अ भ े य महाबा ः कृपणं ब भाषत ।। ४२ ।। जब वे आसनपर बैठकर थकावटसे नवृ हो चुके अथात् व ाम कर चुके, तब महाबा यु ध र उनके पास ही बैठकर उ ह क ओर दे खते ए अ य त द नतापूण वचन बोले— ।। ४२ ।। अ ूते च भगवन् धनं रा यं च मे तम् । आय नक ृ त ैः कतवैर को वदै ः ।। ४३ ।। ‘भगवन्! पासे फककर खेले जानेवाले जूएके लये मुझे बुलाकर छल-कपटम कुशल तथा पासा डालनेक कलाम नपुण धूत जुआ रय ने मेरे सारे धन तथा रा यका अपहरण कर लया है ।। ४३ ।। अन य ह सतो नकृ या पाप न यैः । भाया च मे सभां नीता ाणे योऽ प गरीयसी ।। ४४ ।। ‘म जूएका मम नह ँ। फर भी पापपूण वचार रखनेवाले उन के ारा मेरी ाण से भी अ धक गौरवशा लनी प नी ौपद केश पकड़कर भरी सभाम लायी गयी ।। ४४ ।। पुन ूतेन मां ज वा वनवासं सुदा णम् । ा ाजयन् महार यम जनैः प रवा रतम् ।। ४५ ।। ‘एक बार जूएके संकटसे बच जानेपर पुनः ूतका आयोजन करके उ ह ने मुझे जीत लया और मृगचम पहनाकर वनवासका अ य त दा ण क भोगनेके लये इस महान् वनम नवा सत कर दया ।। ४५ ।। अहं वने वसतीवसन् परम ःखतः । अ ूता धकारे च गरः शृ वन् सुदा णाः ।। ४६ ।। आतानां सु दां वाचो ूत भृ त शंसताम् । अहं द ताः मृ वा सवरा ी व च तयन् ।। ४७ ।। ‘म अ य त ःखी हो बड़ी क ठनाईसे वनम नवास करता ँ। जस सभाम जूआ खेलनेका आयोजन कया गया था, वहाँ तप ी पु ष के मुखसे मुझे अ य त कठोर बात सुननी पड़ी ह। इसके सवा ूत आ द काय का उ लेख करते ए मेरे ःखातुर सु द ने जो संतापसूचक बात कही ह, वे सब मेरे दयम थत ह। म उन सब बात को याद करके सारी रात च ताम नम न रहता ँ ।। ४६-४७ ।। ै ी

य मं ैव सम तानां ाणा गा डीवध व न । वना महा मना तेन गतस व इवाभवम् ।। ४८ ।। ‘इधर जस गा डीव धनुषधारी अजुनम हम सबके ाण बसते ह, वह भी हमसे अलग है। महा मा अजुनके बना म न ाण-सा हो गया ँ ।। ४८ ।। कदा या म बीभ सुं कृता ं पुनरागतम् । यवा दनम ु ं दयायु मत तः ।। ४९ ।। ‘म सदा नराल यभावसे यही सोचा करता ँ क े , दयालु और यवाद अजुन कब अ व ा सीखकर फर यहाँ आयेगा और म उसे भर आँख दे खूँगा ।। ४९ ।। अ त राजा मया क द पभा यतरो भु व । भवता पूव वा ुतपूव ऽ प वा व चत् । न म ो ःखततरः पुमान ती त मे म तः ।। ५० ।। ‘ या मेरे-जैसा अ य त भा यहीन राजा इस पृ वीपर कोई सरा भी है? अथवा आपने कह मेरे-जैसे कसी राजाको पहले कभी दे खा या सुना है। मेरा तो यह व ास है क मुझसे बढ़कर अ य त ःखी मनु य सरा कोई नह है’ ।। ५० ।।

बृहद उवाच यद् वी ष महाराज न म ो व ते व चत् । अ पभा यतरः क त् युमान ती त पा डव ।। ५१ ।। अ ते वण य या म य द शु ूषसेऽनघ । य व ो ःखततरो राजाऽऽसीत् पृ थवीपते ।। ५२ ।। बृहद बोले—महाराज पा डु न दन! तुम जो यह कह रहे हो क मुझसे बढ़कर अ य त भा यहीन कोई पु ष कह भी नह है, उसके वषयम म तु ह एक ाचीन इ तहास सुनाऊँगा। अनघ! पृ वीपते! य द तुम सुनना चाहो तो म उस का प रचय ँ गा, जो इस पृ वीपर तुमसे भी अ धक ःखी राजा था ।। ५१-५२ ।। वैश पायन उवाच अथैनम वीद् राजा वीतु भगवा न त । इमामव थां स ा तं ोतु म छा म पा थवम् ।। ५३ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तब राजा यु ध रने मु नसे कहा—‘भगवन्! अव य क हये। जो मेरी-जैसी संकटपूण थ तम प ँचा आ हो, उस राजाका च र म सुनना चाहता ँ’ ।। ५३ ।। बृहद उवाच शृणू राज व हतः सह ातृ भर युत । य व ो ःखततरो राजाऽऽसीत् पृ थवीपते ।। ५४ ।। बृहद ने कहा—राजन्! अपने धमसे कभी युत न होनेवाले भूपाल! तुम भाइय स हत सावधान होकर सुनो। इस पृ वीपर जो तुमसे भी अ धक ःखी राजा था, े



उसका प रचय दे ता ँ ।। ५४ ।। नषधेषु महीपालो वीरसेन इ त ुतः । त य पु ोऽभव ा ना नलो धमाथको वदः ।। ५५ ।। नषधदे शम वीरसेन नामसे स एक भूपाल हो गये ह। उ ह के पु का नाम नल था। जो धम और अथके त व थे ।। ५५ ।। स नकृ या जतो राजा पु करेणे त नः ुतम् । वनवासं सु ःखात भायया यवसत् सह ।। ५६ ।। हमने सुना है क राजा नलको उनके भाई पु करने छलसे ही जूएके ारा जीत लया था और वे अ य त ःखसे आतुर हो अपनी प नीके साथ वनवासका ःख भोगने लगे थे ।। ५६ ।। न त य दासा न रथो न ाता न च बा धवाः । वने नवसतो राज छ य ते म कदाचन ।। ५७ ।। राजन्! उनके साथ न सेवक थे न रथ, न भाई थे न बा धव। वनम रहते समय उनके पास ये व तुएँ कदा प शेष नह थ ।। ५७ ।। भवान् ह संवृतो वीरै ातृ भदवस मतैः । क पै जा यै त मा ाह स शो चतुम् ।। ५८ ।। तुम तो दे वतु य परा मी वीर भाइय से घरे ए हो। ाजीके समान तेज वी े ा ण तु हारे चार ओर बैठे ए ह। अतः तु ह शोक नह करना चा हये ।।

यु ध र उवाच व तरेणाह म छा म नल य सुमहा मनः । च रतं वदतां े त ममा यातुमह स ।। ५९ ।। यु ध र बोले—व ा म े मुने! म उ म महामना राजा नलका च र साथ सुनना चाहता ँ। आप मुझे बतानेक कृपा कर ।। ५९ ।। इत

व तारके

ीमहाभारते वनपव ण नलोपा यानपव ण प चाश मोऽ यायः ।। ५२ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत नलोपा यानपवम बृहद यु ध रसंवाद वषयक बावनवाँ अ याय पूरा आ ।। ५२ ।।

प चाश मोऽ यायः नल-दमय तीके गुण का वणन, उनका पर पर अनुराग और हंसका दमय ती और नलको एक- सरेके संदेश सुनाना बृहद उवाच आसीद् राजा नलो नाम वीरसेनसुतो बली । उपप ो गुणै र ै पवान को वदः ।। १ ।। बृहद ने कहा—धमराज! नषधदे शम वीरसेनके पु नल नामसे स एक बलवान् राजा हो गये ह। वे उ म गुण से स प , पवान् और अ संचालनक कलाम कुशल थे ।। १ ।। अ त मनुजे ाणां मू न दे वप तयथा । उपयुप र सवषामा द य इव तेजसा ।। २ ।। यो वेद व छू रो नषधेषु महीप तः । अ यः स यवाद महान ौ हणीप तः ।। ३ ।। जैसे दे वराज इ स पूण दे वता के शरमौर ह, उसी कार राजा नलका थान सम त राजा के ऊपर था। वे तेजम भगवान् सूयके समान सव प र थे। नषधदे शके महाराज नल बड़े ा णभ , वेदवे ा, शूरवीर, ूत- ड़ाके ेमी, स यवाद , महान् और एक अ ौ हणी सेनाके वामी थे ।। २-३ ।। ई सतो वरनारीणामुदारः संयते यः । र ता ध वनां े ः सा ा दव मनुः वयम् ।। ४ ।। वे े य को य थे और उदार, जते य, जाजन के र क तथा सा ात् मनुके समान धनुधर म उ म थे ।। ४ ।। तथैवासीद् वदभषु भीमो भीमपरा मः । शूरः सवगुणैयु ः जाकामः स चा जः ।। ५ ।। इसी कार उन दन वदभदे शम भयानक परा मी भीम नामक राजा रा य करते थे। वे शूरवीर और सव-सद्गुणस प थे। उ ह कोई संतान नह थी। अतः संतान ा तक कामना उनके दयम सदा बनी रहती थी ।। स जाथ परं य नमकरोत् सुसमा हतः । तम यग छद् षदमनो नाम भारत ।। ६ ।। भारत! राजा भीमने अ य त एका च होकर संतान ा तके लये महान् य न कया। उ ह दन उनके यहाँ दमन नामक ष पधारे ।। ६ ।। तं स भीमः जाकाम तोषयामास धम वत् । म ह या सह राजे स कारेण सुवचसम् ।। ७ ।। ै ो ौ

त मै स ो दमनः सभायाय वरं ददौ । क यार नं कुमारां ीनुदारान् महायशाः ।। ८ ।। राजे ! धम तथा संतानक इ छावाले उस भीमने अपनी रानीस हत उन महातेज वी मु नको पूण स कार करके संतु कया। महायश वी दमन मु नने स होकर प नीस हत राजा भीमको एक क या और तीन उदार पु दान कये ।। ७-८ ।। दमय त दमं दा तं दमनं च सुवचसम् । उपप ान् गुणैः सवभ मान् भीमपरा मान् ।। ९ ।। क याका नाम था दमय ती और पु के नाम थे—दम, दा त तथा दमन। ये सभी बड़े तेज वी थे। राजाके तीन पु गुणस प , भयंकर वीर और भयानक परा मी थे ।। ९ ।। दमय ती तु पेण तेजसा यशसा या । सौभा येन च लोकेषु यशः ाप सुम यमा ।। १० ।। सु दर क ट दे शवाली दमय ती प, तेज, यश, ी और सौभा यके ारा तीन लोक म व यात यश वनी ई ।। १० ।। अथ तां वय स ा ते दासीनां समलंकृताम् । शतं शतं सखीनां च पयुपास छची मव ।। ११ ।। जब उसने युवाव थाम वेश कया, उस समय सौ दा सयाँ और सौ सखयाँ व ाभूषण से अलंकृत हो सदा उसक सेवाम उप थत रहती थ । मानो दे वांगनाएँ शचीक उपासना करती ह ।। ११ ।। त म राजते भैमी सवाभरणभू षता । सखीम येऽनव ा व ु सौदामनी यथा ।। १२ ।। अ न सु दर अंग वाली भीमकुमारी दमय ती सब कारके आभूषण से वभू षत हो सखय क म डलीम वैसी ही शोभा पाती थी, जैसे मेघमालाके बीच व ुत् का शत हो रही हो ।। १२ ।। अतीव पस प ा ी रवायतलोचना । न दे वेषु न य ेषु ता ग् पवती व चत् ।। १३ ।। वह ल मीके समान अ य त सु दर पसे सुशो भत थी। उसके ने वशाल थे। दे वता और य म भी वैसी सु दरी क या कह दे खनेम नह आती थी ।। १३ ।। मानुषे व प चा येषु पूवाथवा ुता । च सादनी बाला दे वानाम प सु दरी ।। १४ ।। मनु य तथा अ य वगके लोग म भी वैसी सु दरी पहले न तो कभी दे खी गयी थी और न सुननेम ही आयी थी। उस बालाको दे खते ही च स हो जाता था। वह दे ववगम भी े सु दरी समझी जाती थी ।। १४ ।। नल नरशा लो लोके व तमो भु व । क दप इव पेण मू तमानभवत् वयम् ।। १५ ।। नर े नल भी इस भूतलके मनु य म अनुपम सु दर थे। उनका प दे खकर ऐसा जान पड़ता था, मानो नलके आकारम वयं मू तमान् कामदे व ही उ प आ हो ।। १५ ।। ी े

त याः समीपे तु नलं शशंसुः कुतूहलात् । नैषध य समीपे तु दमय त पुनः पुनः ।। १६ ।। लोग कौतूहलवश दमय तीके समीप नलक शंसा करते थे और नषधराज नलके नकट बार-बार दमय तीके सौ दयक सराहना कया करते थे ।। १६ ।। तयोर ः कामोऽभू छृ वतोः सततं गुणान् । अ यो यं त कौ तेय स वधत छयः ।। १७ ।। कु तीन दन! इस कार नर तर एक- सरेके गुण को सुनते-सुनते उन दोन म बना दे खे ही पर पर काम (अनुराग) उ प हो गया। उनक वह कामना दन- दन बढ़ती ही चली गयी ।। १७ ।। अश नुवन् नलः कामं तदा धार यतुं दा । अ तःपुरसमीप थे वन आ ते रहोगतः ।। १८ ।। जब राजा नल उस कामवेदनाको दयके भीतर छपाये रखनेम असमथ हो गये, तब वे अ तःपुरके समीपवत उपवनम जाकर एका तम बैठ गये ।। १८ ।। स ददश ततो हंसान् जात पप र कृतान् । वने वचरतां तेषामेकं ज ाह प णम् ।। १९ ।। इतनेहीम उनक कुछ हंस पर पड़ी, जो सुवणमय पंख से वभू षत थे। वे उसी उपवनम वचर रहे थे। राजाने उनमसे एक हंसको पकड़ लया ।। १९ ।। ततोऽ त र गो वाचं ाजहार नलं तदा । ह त ोऽ म न ते राजन् क र या म तव यम् ।। २० ।। तब आकाशचारी हंसने उस समय नलसे कहा—‘राजन्! आप मुझे न मार। म आपका य काय क ँ गा ।।

दमय तीसकाशे वां कथ य या म नैषध । यथा वद यं पु षं न सा मं य त क ह चत् ।। २१ ।। ‘ नषधनरेश! म दमय तीके नकट आपक ऐसी शंसा क ँ गा, जससे वह आपके सवा सरे कसी पु षको मनम कभी थान न दे गी’ ।। २१ ।। एवमु ततो हंसमु ससज महीप तः । ते तु हंसाः समु प य वदभानगमं ततः ।। २२ ।। हंसके ऐसा कहनेपर राजा नलने उसे छोड़ दया। फर वे हंस वहाँसे उड़कर वदभदे शम गये ।। २२ ।। वदभनगर ग वा दमय या तदा तके । नपेतु ते ग म तः सा ददश च तान् खगान् ।। २३ ।। तब वदभनगरीम जाकर वे सभी हंस दमय तीके नकट उतरे। दमय तीने भी उन अ त प य को दे खा ।। २३ ।। सा तान त पान् वै ् वा सखगणावृता । ा हीतुं खगमां वरमाणोपच मे ।। २४ ।। सखय से घरी ई राजकुमारी दमय ती उन अपूव प य को दे खकर ब त स ई और तुरंत ही उ ह पकड़नेक चे ा करने लगी ।। २४ ।। अथ हंसा वससृपुः सवतः मदावने । ै

एकैकश तदा क या तान् हंसान् समुपा वन् ।। २५ ।। तब हंस उस मदावनम सब ओर वचरण करने लगे। उस समय सभी राजक या ने एक-एक करके उन सभी हंस का पीछा कया ।। २५ ।। दमय ती तु यं हंसं समुपाधावद तके । स मानुष गरं कृ वा दमय तीमथा वीत् ।। २६ ।। दमय ती जस हंसके नकट दौड़ रही थी, उसने उससे मानवी वाणीम कहा — ।। २६ ।। दमय त नलो नाम नषधेषु महीप तः । अ नोः स शो पे न समा त य मानुषाः ।। २७ ।। ‘राजकुमारी दमय ती! सुनो, नषधदे शम नल नामसे स एक राजा ह, जो अ नीकुमार के समान सु दर ह। मनु य म तो कोई उनके समान है ही नह ।। २७ ।। क दप इव पेण मू तमानभवत् वयम् । त य वै य द भाया वं भवेथा वरव ण न ।। २८ ।। सफलं ते भवे ज म पं चेदं सुम यमे । वयं ह दे वग धवमनु योरगरा सान् ।। २९ ।। व तो न चा मा भ पूव तथा वधः । वं चा प र नं नारीणां नरेषु च नलो वरः ।। ३० ।। व श या व श ेन संगमो गुणवान् भवेत् । ‘सु द र! पक से तो वे मानो वयं मू तमान् कामदे व-से ही तीत होते ह। सुम यमे! य द तुम उनक प नी हो जाओ तो तु हारा ज म और यह मनोहर प सफल हो जाय। हमलोग ने दे वता, ग धव, मनु य, नाग तथा रा स को भी दे खा है; परंतु हमारी म अबतक उनके-जैसा कोई भी पु ष पहले कभी नह आया है। तुम रम णय म र न व पा हो और नल पु ष के मुकुटम ण ह। य द कसी व श नारीका व श पु षके साथ संयोग हो तो वह वशेष गुणकारी होता है’ ।। २८—३० ।।

एवमु ा तु हंसेन दमय ती वशा पते ।। ३१ ।। अ वीत् त तं हंसं वम येवं नले वद । तथे यु वा डजः क यां वदभ य वशा पते । पुनराग य नषधान् नले सव यवेदयत् ।। ३२ ।। राजन्! हंसके इस कार कहनेपर दमय तीने उससे कहा—‘प राज! तुम नलके नकट भी ऐसी ही बात कहना’। राजन्! वदभराजकुमारी दमय तीसे ‘तथा तु’ कहकर वह हंस पुनः नषधदे शम आया और उसने नलसे सब बात नवेदन क ।। ३१-३२ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण नलोपा यानपव ण हंसदमय तीसंवादे प चाश मोऽ यायः ।। ५३ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत नलोपा यानपवम हंसदमय तीसंवाद वषयक तरपनवाँ अ याय पूरा आ ।। ५३ ।।

चतु प चाश मोऽ यायः वगम नारद और इ क बातचीत, दमय तीके वयंवरके लये राजा तथा लोकपाल का थान बृहद उवाच दमय ती तु त छ वा वचो हंस य भारत । ततः भृ त न व था नलं त बभूव सा ।। १ ।। बृहद मु न कहते ह—भारत! दमय तीने जबसे हंसक बात सुन , तबसे राजा नलके त अनुर हो जानेके कारण वह अ व थ रहने लगी ।। १ ।। तत तापरा द ना ववणवदना कृशा । बभूव दमय ती तु नः ासपरमा तदा ।। २ ।। तदन तर उसके मनम सदा च ता बनी रहती थी। वभावम दै य आ गया। चेहरेका रंग फ का पड़ गया और दमय ती दन- दन बली होने लगी। उस समय वह ायः लंबी साँस ख चती रहती थी ।। २ ।। ऊ व यानपरा बभूवो म दशना । पा डु वणा णेनाथ छया व चेतना ।। ३ ।। ऊपरक ओर नहारती ई सदा नलके यानम परायण रहती थी। दे खनेम उ म -सी जान पड़ती थी। उसका शरीर पा डु वणका हो गया। कामवेदनाक अ धकतासे उसक चेतना ण- णम वलु त-सी हो जाती थी ।। ३ ।। न श यासनभोगेषु र त व द त क ह चत् । न न ं न दवा शेते हाहे त दती पुनः ।। ४ ।। उसक शया, आसन तथा भोग-साम य म कह भी ी त नह होती थी। वह न तो रातम सोती और न दनम ही। बारंबार ‘हाय-हाय’ करके रोती ही रहती थी ।। ४ ।। ताम व थां तदाकारां स य ता ज ु र तैः । ततो वदभपतये दमय याः सखीजनः ।। ५ ।। यवेदयत् ताम व थां दमय त नरे रे । त छ वा नृप तभ मो दमय त सखीगणात् ।। ६ ।। च तयामास तत् काय सुमहत् वां सुतां त । कमथ हता मेऽ ना त व थेव ल यते ।। ७ ।। उसक वैसी आकृ त और अ व थ-अव थाका या कारण है, यह सखय ने संकेतसे जान लया। तदन तर दमय तीक सखय ने वदभनरेशको उसक उस अ व थ-अव थाके वषयम सूचना द । सखय के मुखसे दमय तीके वषयम वैसी बात सुनकर राजा भीमने ब त सोचा- वचारा, परंतु अपनी पु ीके लये कोई वशेष मह वपूण काय उ ह नह सूझ े









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पड़ा। वे सोचने लगे क ‘ य मेरी पु ी आजकल व थ नह दखायी दे ती है?’ ।। ५— ७ ।। स समी य महीपालः वां सुतां ा तयौवनाम् । अप यदा मना काय दमय याः वयंवरम् ।। ८ ।। राजाने ब त सोचने- वचारनेके बाद यह न य कया क मेरी पु ी अब युवाव थाम वेश कर चुक , अतः दमय तीके लये वयंवर रचाना ही उ ह अपना वशेष कत दखायी दया ।। ८ ।। स सं नम यामास महीपालान् वशा प तः । एषोऽनुभूयतां वीराः वयंवर इ त भो ।। ९ ।। राजन्! वदभनरेशने सब राजा को इस कार नम त कया—‘वीरो! मेरे यहाँ क याका वयंवर है। आपलोग पधारकर इस उ सवका आन द ल’ ।। ९ ।। ु वा तु पा थवाः सव दमय याः वयंवरम् । अ भज मु ततो भीमं राजानो भीमशासनात् ।। १० ।। ह य रथघोषेण पूरय तो वसु धराम् । व च मा याभरणैबलै यैः वलंकृतैः ।। ११ ।। दमय तीका वयंवर होने जा रहा है, यह सुनकर सभी नरेश वदभराज भीमके आदे शसे हाथी, घोड़ तथा रथ क तुमुल व नसे पृ वीको गुँजाते ए उनक राजधानीम गये। उस समय उनके साथ व च माला एवं आभूषण से वभू षत ब त-से सै नक दे खे जा रहे थे ।। १०-११ ।। तेषां भीमो महाबा ः पा थवानां महा मनाम् । यथाहमकरोत् पूजां तेऽवसं त पू जताः ।। १२ ।। महाबा राजा भीमने वहाँ पधारे ए उन महामना नरेश का यथायो य पूजन कया। त प ात् वे उनसे पू जत हो वह रहने लगे ।। १२ ।। एत म ेव काले तु सुराणामृ षस मौ । अटमानौ महा माना व लोक मतो गतौ ।। १३ ।। नारदः पवत ैव महा ा ौ महा तौ । दे वराज य भवनं व वशाते सुपू जतौ ।। १४ ।। इसी समय दे व ष वर महान् तधारी महा ा नारद और पवत दोन महा मा इधरसे घूमते ए इ लोकम गये। वहाँ उ ह ने दे वराजके भवनम वेश कया। उस भवनम उनका वशेष आदर-स कार एवं पूजन कया गया ।। १३-१४ ।। तावच य वा मघवा ततः कुशलम यम् । प छानामयं चा प तयोः सवगतं वभुः ।। १५ ।। उन दोन क पूजा करके भगवान् इ ने उनसे उन दोन के तथा स पूण जगत्के कुशलमंगल एवं व थताका समाचार पूछा ।। १५ ।।

नारद उवाच ो





आवयोः कुशलं दे व सव गतमी र । लोके च मघवन् कृ ने नृपाः कुश लनो वभो ।। १६ ।। तब नारदजीने कहा— भो! दे वे र! हमलोग क सव लोकम भी राजालोग सकुशल ह ।। १६ ।।

कुशल है और सम त

बृहद उवाच नारद य वचः ु वा प छ बलवृ हा । धम ाः पृ थवीपाला य जी वतयो धनः ।। १७ ।। श ेण नधनं काले ये ग छ यपराङ् मुखाः । अयं लोकोऽ य तेषां यथैव मम कामधुक् ।। १८ ।। बृहद कहते ह—राजन्! नारदक बात सुनकर बल और वृ ासुरका वध करनेवाले इ ने उनसे पूछा—‘मुने! जो धम भूपाल अपने ाण का मोह छोड़कर यु करते ह और पीठ न दखाकर लड़ते समय कसी श के आघातसे मृ युको ा त होते ह, उनके लये हमारा यह वगलोक अ य हो जाता है और मेरी ही तरह उ ह भी यह मनोवां छत भोग दान करता है ।। १७-१८ ।। व नु ते याः शूरा न ह प या म तानहम् । आग छतो महीपालान् द यतान तथीन् मम ।। १९ ।। एवमु तु श े ण नारदः यभाषत । ‘वे शूरवीर य कहाँ ह? अपने उन य अ त थय को आजकल म यहाँ आते नह दे ख रहा ँ’ इ के ऐसा पूछनेपर नारदजीने उ र दया ।। १९ ।। नारद उवाच शृणु मे मघवन् येन न य ते मही तः ।। २० ।। वदभरा ो हता दमय ती त व ुता । पेण सम त ा ता पृ थ ां सवयो षतः ।। २१ ।। नारदजी बोले—मघवन्! म वह कारण बताता ँ, जससे राजालोग आजकल यहाँ नह दखायी दे ते, सु नये। वदभनरेश भीमके यहाँ दमय ती नामसे स एक क या उप ई है, जो मनोहर प-सौ दयम पृ वीक स पूण युव तय को लाँघ गयी है ।। २०-२१ ।। त याः वयंवरः श भ वता न चरा दव । त ग छ त राजानो राजपु ा सवशः ।। २२ ।। इ ! अब शी ही उसका वयंवर होनेवाला है, उसीम सब राजा तथा राजकुमार जा रहे ह ।। २२ ।। तां र नभूतां लोक य ाथय तो मही तः । काङ् त म वशेषेण बलवृ नषूदन ।। २३ ।। औ







बल और वृ ासुरके नाशक इ ! दमय ती स पूण जगत्का एक अ त र न है। इस लये सब राजा उसे पानेक वशेष अ भलाषा रखते ह ।। २३ ।। एत मन् कयमाने तु लोकपाला सा नकाः । आज मुदवराज य समीपममरो माः ।। २४ ।। यह बात हो ही रही थी क दे व े लोकपालगण अ नस हत दे वराजके समीप आये ।। २४ ।। तत ते शु ुवुः सव नारद य वचो महत् । ु वैव चा ुवन् ा ग छामो वयम युत ।। २५ ।। तदन तर उन सबने नारदजीक ये व श बात सुन । सुनते ही वे सब-के-सब हष लाससे प रपूण हो बोले—‘हमलोग भी उस वयंवरम चल’ ।। २५ ।। ततः सव महाराज सगणाः सहवाहनाः । वदभान भज मु ते यतः सव मही तः ।। २६ ।। महाराज! तदन तर वे सब दे वता अपने सेवकगण और वाहन के साथ वदभदे शम गये, जहाँ सम त भूपाल एक ए थे ।। २६ ।। नलोऽ प राजा कौ तेय ु वा रा ां समागमम् । अ यग छदद ना मा दमय तीमनु तः ।। २७ ।। कु तीन दन! उदार दय राजा नल भी वदभनगरम सम त राजा का समागम सुनकर दमय तीम अनुर हो वहाँ गये ।। २७ ।। अथ दे वाः प थ नलं द शुभूतले थतम् । सा ा दव थतं मू या म मथं पस पदा ।। २८ ।। उस समय दे वता ने पृ वीपर मागम खड़े ए राजा नलको दे खा। प-स प क से वे सा ात् मू तमान् कामदे व-से जान पड़ते थे ।। २८ ।। तं ् वा लोकपाला ते ाजमानं यथा र वम् । त थु वगतसंक पा व मता पस पदा ।। २९ ।। सूयके समान का शत होनेवाले महाराज नलको दे खकर वे लोकपाल उनके पवैभवसे च कत हो दमय तीको पानेका संक प छोड़ बैठे ।। २९ ।। ततोऽ त र े व य वमाना न दवौकसः । अ ुवन् नैषधं राज वतीय नभ तलात् ।। ३० ।। राजन्! तब उन दे वता ने अपने वमान को आकाशम रोक दया और वहाँसे नीचे उतरकर नषधनरेशसे कहा— ।। ३० ।। भो भो नषधराजे नल स य तो भवान् । अ माकं कु साहा यं तो भव नरो म ।। ३१ ।। ‘ नषधदे शके महाराज नर े नल! आप स य- ती ह, हमलोग क सहायता क जये। हमारे त बन जाइये’ ।। ३१ ।। ी







इत

ीमहाभारते वनपव ण नलोपा यानपव ण इ नारदसंवादे चतु प चाश मोऽ यायः ।। ५४ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत नलोपा यानपवम इ नारदसंवाद वषयक चौवनवाँ अ याय पूरा आ ।। ५४ ।।

प चप चाश मोऽ यायः नलका त बनकर राजमहलम जाना और दमय तीको दे वताका संदेश सुनाना बृहद उवाच ते यः त ाय नलः क र य इ त भारत । अथैतान् प रप छ कृता ल प थतः ।। १ ।। के वै भव तः क ासौ य याहं त ई सतः । क च तद् वो मया काय कथय वं यथातथम् ।। २ ।। बृहद मु न कहते ह—भारत! दे वता से उनक सहायता करनेक त ा करके राजा नलने हाथ जोड़ पास जाकर उनसे पूछा—‘आपलोग कौन ह? और वह कौन है, जसके पास जानेके लये आपने मुझे त बनानेक इ छा क है तथा आपलोग का वह कौन-सा काय है, जो मेरे ारा स प होनेयो य है, यह ठ क-ठ क बताइये’ ।। १-२ ।। एवमु ो नैषधेन मघवान यभाषत । अमरान् वै नबोधा मान् दमय यथमागतान् ।। ३ ।। नषधराज नलके इस कार पूछनेपर इ ने कहा—‘भूपाल! तुम हम दे वता समझो, हम दमय तीको ा त करनेके लये यहाँ आये ह’ ।। ३ ।। अह म ोऽयम न तथैवायमपां प तः । शरीरा तकरो नॄणां यमोऽयम प पा थव ।। ४ ।। वं वै समागतान मान् दमय यै नवेदय । लोकपाला महे ा ाः समाया त द वः ।। ५ ।। ‘म इ ँ, ये अ नदे व ह, ये जलके वामी व ण और ये ा णय के शरीरका नाश करनेवाले सा ात् यमराज ह। आप दमय तीके पास जाकर उसे हमारे आगमनक सूचना दे द जये और क हये—महे आ द लोकपाल तु ह दे खनेके लये आ रहे ह ।। ४-५ ।। ा तु म छ त दे वा वां श ोऽ नव णो यमः । तेषाम यतमं दे वं प त वे वरय व ह ।। ६ ।। ‘इ , अ न, व ण और यम—ये दे वतालोग तु ह ा त करना चाहते ह। तुम उनमसे कसी एक दे वताको प त पम चुन लो’ ।। ६ ।। एवमु ः स श े ण नलः ा लर वीत् । एकाथ समुपेतं मां न ेष यतुमहथ ।। ७ ।। इ के ऐसा कहनेपर नल हाथ जोड़कर बोले—‘दे वताओ! मेरा भी एकमा यही योजन है, जो आपलोग का है; अतः एक ही योजनके लये आये ए मुझे त बनाकर न भे जये’ ।। ७ ।। कथं तु जातसंक पः यमु सृजते पुमान् । ी



पराथमी शं व ुं तत् म तु महे राः ।। ८ ।। ‘दे वे रो! जसके मनम कसी ीको ा त करनेका संक प हो गया है, वह पु ष उसी ीको सरेके लये कैसे छोड़ सकता है? अतः आपलोग ऐसी बात कहनेके लये मुझे मा कर’ ।। ८ ।। दे वा ऊचुः क र य इ त सं ु य पूवम मासु नैषध । न क र य स क मात् वं ज नैषध मा चरम् ।। ९ ।। दे वताने कहा— नषधनरेश! तुम पहले हमलोग से हमारा काय स करनेके लये त ा कर चुके हो, फर तुम उस त ाका पालन कैसे नह करोगे? इस लये नषधराज! तुम शी जाओ; दे र न करो ।। ९ ।। बृहद उवाच एवमु ः स दे वै तैनषधः पुनर वीत् । सुर ता न वे मा न वे ु ं कथमु सहे ।। १० ।। बृहद मु न कहते ह—राजन्! उन दे वता के ऐसा कहनेपर नषधनरेशने पुनः उनसे पूछा—‘ वदभराजके सभी भवन (पहरेदार से) सुर त ह। म उनम कैसे वेश कर सकता ँ?’ ।। १० ।। वे यसी त तं श ः पुनरेवा यभाषत । जगाम स तथे यु वा दमय या नवेशनम् ।। ११ ।। तब इ ने पुनः उ र दया—‘तुम वहाँ वेश कर सकोगे।’ त प ात् राजा नल ‘तथा तु’ कहकर दमय तीके महलम गये ।। ११ ।। ददश त वैदभ सखीगणसमावृताम् । दे द यमानां वपुषा या च वरव णनीम् ।। १२ ।। वहाँ उ ह ने दे खा, सखय से घरी ई परम सु दरी वदभराजकुमारी दमय ती अपने सु दर शरीर और द का तसे अ य त उ ा सत हो रही है ।। १२ ।। अतीवसुकुमारा तनुम यां सुलोचनाम् । आ प ती मव भां श शनः वेन तेजसा ।। १३ ।। उसके अंग परम सुकुमार ह, क टके ऊपरका भाग अ य त पतला है और ने बड़े सु दर ह एवं वह अपने तेजसे च माक भाको भी तर कृत-सी कर रही है ।। १३ ।। त य ् वैव ववृधे काम तां चा हा सनीम् । स यं चक षमाण तु धारयामास छयम् ।। १४ ।। उस मनोहर मुसकानवाली राजकुमारीको दे खते ही नलके दयम कामा न व लत हो उठ ; तथा प अपनी त ाको स य करनेक इ छासे उ ह ने उस कामवेदनाको मनम ही रोक लया ।। १४ ।। तत ता नैषधं ् वा स ा ताः परमा नाः । आसने यः समु पेतु तेजसा त य ध षताः ।। १५ ।। ो ँ े े ी ी ँ ो औ

नषधराजको वहाँ आये दे ख अ तःपुरक सारी सु दरी याँ च कत हो गय और उनके तेजसे तर कृत हो अपने आसन से उठकर खड़ी हो गय ।। १५ ।। शशंसु सु ीता नलं ता व मया वताः । न चैनम यभाष त मनो भ व यपूजयन् ।। १६ ।। अ य त स और आ यच कत होकर उन सबने राजा नलके सौ दयक शंसा क । उ ह ने उनसे वातालाप नह कया; परंतु मन-ही-मन उनका बड़ा आदर कया ।। १६ ।। अहो पमहो का तरहो धैय महा मनः । कोऽयं दे वोऽथवा य ो ग धव वा भ व य त ।। १७ ।। वे सोचने लग —‘अहो! इनका प अ त है, का त बड़ी मनोहर है तथा इन महा माका धैय भी अनूठा है। न जाने ये ह कौन? स भव है, दे वता, य अथवा ग धव ह ’ ।। १७ ।। न ता तं श नुव त म ाहतुम प कचन । तेजसा ध षता त य ल जाव यो वरा ना ।। १८ ।। नलके तेजसे तहत ई वे लजीली सु द रयाँ उनसे कुछ बोल भी न सक ।। १८ ।। अथैनं मयमानं तु मतपूवा भभा षणी । दमय ती नलं वीरम यभाषत व मता ।। १९ ।। तब मुसकराकर बातचीत करनेवाली दमय तीने व मत होकर मुसकराते ए वीर नलसे इस कार पूछा— ।। १९ ।। क वं सवानव ा मम छयवधन । ा तोऽ यमरवद् वीर ातु म छा म तेऽनघ ।। २० ।। कथमागमनं चेह कथं चा स न ल तः । सुर तं ह मे वे म राजा चैवो शासनः ।। २१ ।। एवमु तु वैद या नल तां युवाच ह । ‘आप कौन ह? आपके स पूण अंग नद ष एवं परम सु दर ह। आप मेरे दयक कामा नको बढ़ा रहे ह। न पाप वीर! आप दे वता के समान यहाँ आ प ँचे ह। म आपका प रचय पाना चाहती ँ। आपका इस र नवासम आना कैसे स भव आ? आपको कसीने दे खा कैसे नह ? मेरा यह महल अ य त सुर त है और यहाँके राजाका शासन बड़ा कठोर है—वे अपरा धय को बड़ा कठोर द ड दे ते ह।’ वदभराजकुमारीके ऐसा पूछनेपर नलने इस कार उ र दया ।। २०-२१ ।। नल उवाच नलं मां व क या ण दे व त महागतम् ।। २२ ।। दे वा वां ा तु म छ त श ोऽ नव णो यमः । तेषाम यतमं दे वं प त वरय शोभने ।। २३ ।। नलने कहा—क या ण! तुम मुझे नल समझो। म दे वता का त बनकर यहाँ आया ँ। इ , अ न, व ण और यम दे वता तु ह ा त करना चाहते ह। शोभने! तुम उनमसे ी





कसी एकको अपना प त चुन लो ।। २२-२३ ।। तेषामेव भावेण व ोऽहमल तः । वश तं न मां क दप य ा यवारयत् ।। २४ ।। उ ह दे वता के भावसे म इस महलके भीतर आया ँ और मुझे कोई दे ख न सका है। भीतर वेश करते समय न तो कसीने मुझे दे खा है और न रोका ही है ।। २४ ।। एतदथमहं भ े े षतः सुरस मैः । एत छ वा शुभे बु कु व यथे छ स ।। २५ ।। भ े ! इसी लये े दे वता ने मुझे यहाँ भेजा है। शुभे! इसे सुनकर तु हारी जैसी इ छा हो, वैसा न य करो ।। २५ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण नलोपा यानपव ण नल य दे वदौ ये प चप चाश मोऽ यायः ।। ५५ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत नलोपा यानपवम नलके दे व त बनकर दमय तीके पास जानेसे स ब ध रखनेवाला पचपनवाँ अ याय पूरा आ ।। ५५ ।।

षट् प चाश मोऽ यायः नलका दमय तीसे वातालाप करना और लौटकर दे वताको उसका संदेश सुनाना बृहद उवाच सा नम कृ य दे वे यः ह य नलम वीत् । णय व यथा ं राजन् क करवा ण ते ।। १ ।। बृहद मु न कहते ह—राजन्! दमय तीने अपनी ाके अनुसार दे वता को नम कार करके नलसे हँसकर कहा—‘महाराज! आप ही मेरा पा ण हण क जये और बताइये, म आपक या सेवा क ँ ।। १ ।। अहं चैव ह य चा य ममा त वसु कचन । तत् सव तव व धं क ु णयमी र ।। २ ।। ‘नरे र! म तथा मेरा जो कुछ सरा धन है, वह सब आपका है। आप पूण व त होकर मेरे साथ ववाह क जये ।। २ ।। हंसानां वचनं यत् तु त मां दह त पा थव । व कृते ह मया वीर राजानः सं नपा तताः ।। ३ ।। ‘भूपाल! हंस क जो बात मने सुनी’ वह (मेरे दयम कामा न व लत करके सदा) मुझे द ध करती रहती है। वीर! आपहीको पानेके लये मने यहाँ सम त राजा का स मेलन कराया है ।। ३ ।। य द वं भजमानां मां या या य स मानद । वषम नं जलं र जुमा था ये तव कारणात् ।। ४ ।। ‘मानद! आपके चरण म भ रखनेवाली मुझ दासीको य द आप वीकार नह करगे तो म आपके ही कारण वष, अ न, जल अथवा फाँसीको न म बनाकर अपना ाण याग ँ गी’ ।। ४ ।। एवमु तु वैद या नल तां युवाच ह । त सु लोकपालेषु कथं मानुष म छ स ।। ५ ।। दमय तीके ऐसा कहनेपर राजा नलने उससे पूछा—‘(तु ह पानेके लये उ सुक) लोकपाल के होते ए तुम एक साधारण मनु यको कैसे प त बनाना चाहती हो? ।। ५ ।। येषामहं लोककृतामी राणां महा मनाम् । न पादरजसा तु यो मन ते तेषु वतताम् ।। ६ ।। ‘ जन लोक ा महामना ई र के चरण क धूलके समान भी म नह ँ, उ ह क ओर तु ह मन लगाना चा हये ।। ६ ।। व यं ाचरन् म य दे वानां मृ युमृ छ त । ा ह मामनव ा वरय व सुरो मान् ।। ७ ।। ‘

















‘ नद ष अंग वाली सु दरी! दे वता के व चे ा करनेवाला मानव मृ युको ा त हो जाता है; अतः तुम मुझे बचाओ और उन े दे वता का ही वरण करो ।। वरजां स च वासां स द ा ाः ज तथा । भूषणा न तु मु या न दे वान् ा य तु भुङ् व वै ।। ८ ।। ‘तथा दे वता को ही पाकर नमल व , द एवं व च पु पहार तथा मु य-मु य आभूषण का सुख भोगो ।। ८ ।। य इमां पृ थव कृ नां सं य सते पुनः । ताशमीशं दे वानां का तं न वरयेत् प तम् ।। ९ ।। ‘जो इस सारी पृ वीको सं त करके पुनः अपना ास बना लेते ह, उन दे वे र अ नको कौन नारी अपना प त न चुनेगी? ।। ९ ।। य य द डभयात् सव भूत ामाः समागताः । धममेवानु य त का तं न वरयेत् प तम् ।। १० ।। ‘ जनके द डके भयसे संसारम आये ए सम त ा णसमुदाय धमका ही पालन करते ह, उन यमराजको कौन अपना प त नह वरेगी? ।। १० ।। धमा मानं महा मानं दै यदानवमदनम् । महे ं सवदे वानां का तं न वरयेत् प तम् ।। ११ ।। ‘दै य और दानव का मदन करनेवाले धमा मा महामना सवदे वे र महे का कौन नारी प त पम वरण न करेगी? ।। ११ ।। यताम वशङ् केन मनसा य द म यसे । व णं लोकपालानां सु ा य मदं शृणु ।। १२ ।। ‘य द तुम ठ क समझती हो तो लोकपाल म स व णको नःशंक होकर अपना प त बनाओ। यह एक हतैषी सु द्का वचन है, इसे सुनो’ ।। १२ ।। नैषधेनैवमु ा सा दमय ती वचोऽ वीत् । समा लुता यां ने ा यां शोकजेनाथ वा रणा ।। १३ ।। तदन तर नषधराज नलके ऐसा कहनेपर दमय ती शोका ु से भरे ए ने ारा दे खती ई इस कार बोली— ।। १३ ।। दे वे योऽह नम कृ य सव यः पृ थवीपते । वृणे वामेव भतारं स यमेतद् वी म ते ।। १४ ।। ‘पृ वीपते! म स पूण दे वता को नम कार करके आपहीको अपना प त चुनती ँ। यह मने आपसे स ची बात कही है’ ।। १४ ।। तामुवाच ततो राजा वेपमानां कृता लम् । दौ येनाग य क या ण तथा भ े वधीयताम् ।। १५ ।। ऐसा कहकर दमय ती दोन हाथ जोड़े थर-थर काँपने लगी। उस अव थाम राजा नलने उससे कहा—‘क या ण! म इस समय तका काय करनेके लये आया ँ; अतः भ े ! इस समय वही करो जो मेरे व पके अनु प हो ।। १५ ।। कथं हं त ु य दे वतानां वशेषतः । ो े

पराथ य नमार य कथं वाथ महो सहे ।। १६ ।। ‘म दे वता के सामने त ा करके वशेषतः परोपकारके लये य न आर भ करके अब यहाँ वाथ-साधनके लये कैसे उ सा हत हो सकता ँ? ।। १६ ।। एष धम य द वाथ ममा प भ वता ततः । एवं वाथ क र या म तथा भ े वधीयताम् ।। १७ ।। ‘य द यह धम सुर त रहे तो उससे मेरे वाथक भी स हो सकती है। भ े ! तुम ऐसा य न करो, जससे म इस कार धमयु वाथक स क ँ ’ ।। १७ ।। ततो बा पाकुलां वाचं दमय ती शु च मता । याहर ती शनकैनलं राजानम वीत् ।। १८ ।। उपायोऽयं मया ो नरपायो नरे र । येन दोषो न भ वता तव राजन् कथंचन ।। १९ ।। यह सुनकर प व मुसकानवाली दमय ती राजा नलसे धीरे-धीरे अ ुगद्गदवाणीम बोली—‘नरे र! मने उस नद ष उपायको ढूँ ढ़ नकाला है, राजन्! जससे आपको कसी कार दोष नह लगेगा ।। १८-१९ ।। वं चैव ह नर े दे वा े पुरोगमाः । आया तु स हताः सव मम य वयंवरः ।। २० ।। ‘नर े ! आप और इ आ द सब दे वता एक ही साथ उस रंगम डपम पधार, जहाँ मेरा वयंवर होनेवाला है ।। २० ।। ततोऽहं लोकपालानां सं नधौ वां नरे र । वर य ये नर ा नैवं दोषो भ व य त ।। २१ ।। ‘नरे र! नर ा ! तदन तर म उन लोकपाल के समीप ही आपका वरण कर लूँगी। ऐसा करनेसे (आपको कोई) दोष नह लगेगा’ ।। २१ ।। एवमु तु वैद या नलो राजा वशा पते । आजगाम पुन त य दे वाः समागताः ।। २२ ।। यु ध र! वदभराजकुमारीके ऐसा कहनेपर राजा नल पुनः वह लौट आये, जहाँ दे वता से उनक भट ई थी ।। २२ ।। तमप यं तथाऽऽया तं लोकपाला महे राः । ् वा चैनं ततोऽपृ छन् वृ ा तं सवमेव तम् ।। २३ ।। महान् श शाली लोकपाल ने इस कार राजा नलको लौटते दे खा और उ ह दे खकर उनसे सारा वृ ा त पूछा— ।। २३ ।। क चद् ा वया राजन् दमय ती शु च मता । कम वी च नः सवान् वद भू मप तेऽनघ ।। २४ ।। ‘राजन्! या तुमने प व मुसकानवाली दमय तीको दे खा है? पापर हत भूपाल! हम सब लोग को उसने या संदेश दया, बताओ’ ।। २४ ।। नल उवाच ो



भव रहमा द ो दमय या नवेशनम् । व ः सुमहाक ं द ड भः थ वरैवृतम् ।। २५ ।। नलने कहा—दे वताओ! आपक आ ा पाकर म दमय तीके महलम गया। उसक ोढ़ वशाल थी और द डधारी बूढ़ े र क उसे घेरकर पहरा दे रहे थे ।। २५ ।। वश तं च मां त न क द् वान् नरः । ऋते तां पा थवसुतां भवतामेव तेजसा ।। २६ ।। आपलोग के भावसे उसम वेश करते समय मुझे वहाँ उस राजक या दमय तीके सवा सरे कसी मनु यने नह दे खा ।। २६ ।। स य ा या मया ा ता भ ा युपल तः । व मता ाभवन् सवा ् वा मां वबुधे राः ।। २७ ।। दमय तीक सखय को भी मने दे खा और उन सखय ने भी मुझे दे खा। दे वे रो! वे सब मुझे दे खकर आ यच कत हो गय ।। २७ ।। व यमानेषु च मया भव सु चरानना । मामेव गतसंक पा वृणीते सा सुरो माः ।। २८ ।। े दे वताओ! जब म आपलोग के भावका वणन करने लगा, उस समय सुमुखी दमय तीने मुझम ही अपना मान सक संक प रखकर मेरा ही वरण कया ।। २८ ।। अ वी चैव मां बाला आया तु स हताः सुराः । वया सह नर ा मम य वयंवरः ।। २९ ।। उस बालाने मुझसे यह भी कहा क ‘नर ा ! सब दे वता आपके साथ उस थानपर पधार, जहाँ मेरा वयंवर होनेवाला है ।। २९ ।। तेषामहं सं नधौ वां वर य या म नैषध । एवं तव महाबाहो दोषो न भ वते त ह ।। ३० ।। ‘ नषधराज! म उन दे वता के समीप ही आपका वरण कर लूँगी। महाबाहो! ऐसा होनेपर आपको दोष नह लगेगा’ ।। ३० ।। एतावदे व वबुधा यथावृ मुपा तम् । मयाऽशेषे माणं तु भव त दशे राः ।। ३१ ।। दे वताओ! दमय तीके महलका इतना ही वृ ा त है, जसे मने ठ क-ठ क नवेदन कर दया। दे वे रगण! अब इस स पूण वषयम आप सब दे वतालोग ही माण ह, अथात् आप ही सा ी ह ।। ३१ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण नलोपा यानपव ण नलकतृकदे वदौ ये षट् प चाश मोऽ यायः ।। ५६ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत नलोपा यानपवम नलकतृक दे वदौ य वषयक छ पनवाँ अ याय पूरा आ ।। ५६ ।।

स तप चाश मोऽ यायः वयंवरम दमय ती ारा नलका वरण, दे वता का नलको वर दे ना, दे वता और राजा का थान, नलदमय तीका ववाह एवं नलका य ानु ान और संतानो पादन बृहद उवाच अथ काले शुभे ा ते तथौ पु ये णे तथा । आजुहाव महीपालान् भीमो राजा वयंवरे ।। १ ।। बृहद मु न कहते ह—राजन्! तदन तर शुभ समय, उ म त थ तथा पु यदायक अवसर आनेपर राजा भीमने सम त भूपाल को वयंवरके लये बुलाया ।। १ ।। त छ वा पृ थवीपालाः सव छयपी डताः । व रताः समुपाज मुदमय तीमभी सवः ।। २ ।। यह सुनकर सब भूपाल कामपी ड़त हो दमय तीको पानेक इ छासे तुरंत चल दये ।। २ ।। कनक त भ चरं तोरणेन वरा जतम् । व वशु ते नृपा र ं महा सहा इवाचलम् ।। ३ ।। रंगम डप सोनेके ख भ से सुशो भत था। तोरणसे उसक शोभा और बढ़ गयी थी। जैसे बड़े-बड़े सह पवतक गुफाम वेश करते ह, उसी कार उन नरेश ने रंगम डपम वेश कया ।। ३ ।।

नलक पहचानके लये दमय तीक लोकपाल से ाथना त ासनेषु व वधे वासीनाः पृ थवी

तः ।

सुर भ धराः सव मृ म णकु डलाः ।। ४ ।। वहाँ सब भूपाल भ - भ आसन पर बैठ गये। सबने सुग धत फूल क माला धारण कर रखी थी और सबके कान म वशु म णमय कु डल झल मला रहे थे ।। ४ ।। तां राजस म त पु यां नागैभ गवती मव । स पूणा पु ष ा ै ा ै ग रगुहा मव ।। ५ ।। ा से भरी ई पवतक गुफा तथा नाग से सुशो भत भोगवती पुरीक भाँ त वह पु यमयी राजसभा नर े भूपाल से भरी दखायी दे ती थी ।। ५ ।। त म पीना य ते बाहवः प रघोपमाः । आकारवणसु णाः प चशीषा इवोरगाः ।। ६ ।। वहाँ भू मपाल क (पाँच अँगु लय से यु ) प रघ-जैसी मोट भुजाएँ आकार- कार और रंगम अ य त सु दर तथा पाँच म तकवाले सपके समान दखायी दे ती थ ।। ६ ।। सुकेशा ता न चा ण सुनासा ुवा ण च । मुखा न रा ां शोभ ते न ा ण यथा द व ।। ७ ।। जैसे आकाशम तारे का शत होते ह, उसी कार सु दर केशा तभागसे वभू षत एवं चर ना सका, ने और भ ह से यु राजा के मनोहर मुख सुशो भत हो रहे थे ।। ७ ।। दमय ती ततो र ं ववेश शुभानना । मु ण ती भया रा ां च ूं ष च मनां स च ।। ८ ।। तदन तर अपनी भासे राजा के नयन को लुभाती और च को चुराती ई सु दर मुखवाली दमय तीने रंगभू मम वेश कया ।। ८ ।। त या गा ेषु प तता तेषां महा मनाम् । त त ैव स ाऽभू चचाल च प यताम् ।। ९ ।। वहाँ आते ही दमय तीके अंग पर उन महामना नरेश क पड़ी। उसे दे खनेवाले राजा मसे जसक दमय तीके जस अंगपर पड़ी, वह लग गयी, वहाँसे हट न सक ।। ९ ।। ततः संक यमानेषु रा ां नामसु भारत । ददश भैमी पु षान् प चतु याकृती नह ।। १० ।। भारत! त प ात् राजा के नाम, प, यश और परा म आ दका प रचय दया जाने लगा। भीमकुमारी दमय तीने आगे बढ़कर दे खा, यहाँ तो एक जगह पाँच पु ष एक ही आकृ तके बैठे ए ह ।। १० ।। तान् समी य ततः सवान् न वशेषाकृतीन् थतान् । संदेहादथ वैदभ ना यजाना लं नृपम् ।। ११ ।। उन सबके प-रंग आ दम कोई अ तर नह था। वे पाँच नलके ही समान दखायी दे ते थे। उ ह एक जगह थत दे खकर संदेह उ प हो जानेसे वदभराजकुमारी वा त वक राजा नलको पहचान न सक ।। ११ ।। यं यं ह द शे तेषां तं तं मेने नलं नृपम् । सा च तय ती बु याथ तकयामास भा वनी ।। १२ ।। े ी ी ी ो े ी

वह उनमसे जस- जस पर डालती, उसी-उसीको राजा नल समझने लगती थी। वह भा वनी राजक या बु से सोच- वचारकर मन-ही-मन तक करने लगी ।। १२ ।। कथं ह दे वा ानीयां कथं व ां नलं नृपम् । एवं सं च तय ती सा वैदभ भृश ःखता ।। १३ ।। अहो! म कैसे दे वता को जानूँ और कस कार राजा नलको प हचानूँ।’ इस च ताम पड़कर वदभराजकुमारी दमय तीको बड़ा ःख आ ।। १३ ।। ुता न दे व ल ा न तकयामास भारत । दे वानां या न ल ा न थ वरे यः ुता न मे ।। १४ ।। तानीह त तां भूमावेक या प न ल ये । सा व न य ब धा वचाय च पुनः पुनः ।। १५ ।। शरणं त दे वानां ा तकालमम यत । भारत! उसने अपने सुने ए दे व च पर भी वचार कया। वह मन-ही-मन कहने लगी ‘मने बड़े-बूढ़े पु ष से दे वता क पहचान करानेवाले जो ल ण या च सुन रखे ह, उ ह यहाँ भू मपर बैठे ए इन पाँच पु ष मसे कसी एकम भी नह दे ख पाती ँ।’ उसने अनेक कारसे न य और बार-बार वचार करके दे वता क शरणम जाना ही समयो चत कत समझा ।। १४-१५ ।। वाचा च मनसा चैव नम कारं यु य सा ।। १६ ।। दे वे यः ा लभू वा वेपमानेदम वीत् । हंसानां वचनं ु वा यथा मे नैषधो वृतः । प त वे तेन स येन दे वा तं दश तु मे ।। १७ ।। त प ात् मन एवं वाणी ारा दे वता को नम कार करके दोन हाथ जोड़कर काँपती ई वह इस कार बोली—‘मने हंस क बात सुनकर नषधनरेश नलका प त पम वरण कर लया है। इस स यके भावसे दे वतालोग वयं ही मुझे राजा नलक पहचान करा द ।। मनसा वचसा चैव यथा ना भचरा यहम् । तेन स येन वबुधा तमेव दश तु मे ।। १८ ।। ‘य द म मन, वाणी एवं या ारा कभी सदाचारसे युत नह ई ँ तो उस स यके भावसे दे वतालोग मुझे राजा नलक ही ा त कराव ।। १८ ।। यथा दे वैः स मे भता व हतो नषधा धपः । तेन स येन मे दे वा तमेव दश तु मे ।। १९ ।। ‘य द दे वता ने उन नषधनरेश नलको ही मेरा प त न त कया हो तो उस स यके भावसे दे वता-लोग मुझे उ ह को बतला द ।। १९ ।। यथेदं तमारधं नल याराधने मया । तेन स येन मे दे वा तमेव दश तु मे ।। २० ।। ‘य द मने नलक आराधनाके लये ही यह त आर भ कया हो तो उस स यके भावसे दे वता मुझे उ ह को बतला द ।। २० ।। ै





वं चैव पं कुव तु लोकपाला महे राः । यथाहम भजानीयां पु य ोकं नरा धपम् ।। २१ ।। ‘महे र लोकपालगण अपना प कट कर द, जससे म पु य ोक महाराज नलको पहचान सकूँ’ ।। २१ ।। नश य दमय या तत् क णं तदे वतम् । न यं परमं तयमनुरागं च नैषधे ।। २२ ।। मनो वशु बु च भ रागं च नैषधे । यथो ं च रे दे वाः सामय ल धारणे ।। २३ ।। दमय तीका वह क ण वलाप सुनकर तथा उसके अ तम न य, नल वषयक वा त वक अनुराग, वशु दय, उ म बु तथा नलके त भ एवं ेम दे खकर दे वता ने दमय तीके भीतर वह यथाथ श उ प कर द , जससे उसे दे वसूचक ल ण का न य हो सके ।। २२-२३ ।। साप यद् वबुधान् सवान वेदान् तधलोचनान् । षत जोहीनान् थतान पृशतः तम् ।। २४ ।। अब दमय तीने दे खा—स पूण दे वता वेदर हत ह—उनके कसी अंगम पसीनेक बूँद नह दखायी दे ती, उनक आँख क पलक नह गरती ह। उ ह ने जो पु पमालाएँ पहन रखी ह, वे नूतन वकाससे यु ह—कु हलाती नह ह। उनपर धूल-कण नह पड़ रहे ह। वे सहासन पर बैठे ह, कतु अपने पैर से पृ वीतलका पश नह करते ह और उनक परछा नह पड़ती है ।। २४ ।।

छाया तीयो लान जः वेदसम वतः । भू म ो नैषध ैव नमेषेण च सू चतः ।। २५ ।। उन पाँच म एक पु ष ऐसे ह, जनक परछा पड़ रही है। उनके गलेक पु पमाला कु हला गयी है। उनके अंग म धूल-कण और पसीनेक बूँद भी दखायी पड़ती ह। वे पृ वीका पश कये बैठे ह और उनके ने क पलक गरती ह। इन ल ण से दमय तीने नषधराज नलको पहचान लया ।। २५ ।। सा समी य तु तान् दे वान् पु य ोकं च भारत । नैषधं वरयामास भैमी धमण पा डव ।। २६ ।। भरतकुलभूषण पा डु न दन! राजकुमारी दमय तीने उन दे वता तथा पु य ोक नलक ओर पुनः पात करके धमके अनुसार नषधराज नलका ही वरण कया ।। २६ ।। वल जमाना व ा तं ज ाहायतलोचना । क ध दे शेऽसृजत् त य जं परमशोभनाम् ।। २७ ।। वरयामास चैवैनं प त वे वरव णनी । वशाल ने वाली दमय तीने लजाते-लजाते नलके व का छोर पकड़ लया और उनके गलेम परम सु दर फूल का हार डाल दया। इस कार वरव णनी दमय तीने राजा नलका प त पम वरण कर लया ।। २७ ।। ततो हाहे त सहसा मु ः श दो नरा धपैः ।। २८ ।। ो











फर तो सरे राजा के मुखसे सहसा ‘हाहाकार’-का श द नकल पड़ा ।। २८ ।। दे वैमह ष भ त साधु सा व त भारत । व मतैरी रतः श दः शंस नलं नृपम् ।। २९ ।। भारत! दे वता और मह ष वहाँ साधुवाद दे ने लगे। सबने व मत होकर राजा नलक शंसा करते ए इनके सौभा यको सराहा ।। २९ ।। दमय त तु कौर वीरसेनसुतो नृपः । आ ासयद् वरारोहां ेना तरा मना ।। ३० ।। कु न दन! वीरसेनकुमार नलने उ ल सत दयसे सु दरी दमय तीको आ ासन दे ते ए कहा— ।। ३० ।। यत् वं भज स क या ण पुमांसं दे वसं नधौ । त मा मां व भतारमेवं ते वचने रतम् ।। ३१ ।। ‘क याणी! तुम दे वता के समीप जो मुझ-जैसे पु षका वरण कर रही हो, इस अलौ कक अनुरागके कारण अपने इस प तको तुम सदा अपनी येक आ ाके पालनम त पर समझो ।। ३१ ।। याव च मे ध र य त ाणा दे हे शु च मते । तावत् व य भ व या म स यमेतद् वी म ते ।। ३२ ।। ‘प व मुसकानवाली दे व! मेरे इस शरीरम जबतक ाण रहगे, तबतक तुमम मेरा अन य अनुराग बना रहेगा, यह म तुमसे स ची त ा करके कहता ँ’ ।। ३२ ।। दमय ती तथा वा भर भन कृता लः । तौ पर परतः ीतौ ् वा व नपुरोगमान् ।। ३३ ।। तानेव शरणं दे वा मतुमनसा तदा । इसी कार दमय तीने भी हाथ जोड़कर वनीत वचन ारा महाराज नलका अ भन दन कया। वे दोन एक- सरेको पाकर बड़े स ए। उ ह ने सामने अ न आ द दे वता को दे खकर मन-ही-मन उनक ही शरण ली ।। ३३ ।। वृते तु नैषधे भै या लोकपाला महौजसः ।। ३४ ।। मनसः सव नलाया ौ वरान् द ः । दमय तीने जब नलका वरण कर लया, तब उन सब महातेज वी लोकपाल ने स च होकर नलको आठ वरदान दये ।। ३४ ।। य दशनं य े ग त चानु मां शुभाम् ।। ३५ ।। नैषधाय ददौ श ः ीयमाणः शचीप तः । शचीप त इ ने स होकर नषधराज नलको यह वर दया क ‘म य म तु ह य दशन ँ गा और अ तम सव म शुभ ग त दान क ँ गा’ ।। ३५ ।।

अ नरा मभवं ादाद् य वा छ त नैषधः ।। ३६ ।। लोकाना म भां ैव ददौ त मै ताशनः । ह व यभो ा अ नदे वने नलको अपने ही समान तेज वी लोक दान कये और यह भी कहा क ‘राजा नल जहाँ चाहगे, वह म कट हो जाऊँगा’ ।। ३६ ।। यम व रसं ादाद् धम च परमां थ तम् ।। ३७ ।। यमराजने यह कहा क ‘राजा नलक बनायी ई रसोईम उ मो म रस एवं वाद उपल ध होगा और धमम इनक ढ़ न ा बनी रहेगी’ ।। ३७ ।। अपां प तरपां भावं य वा छ त नैषधः । ज ो मग धााः सव च मथुनं द ः ।। ३८ ।। जलके वामी व णने नलक इ छाके अनुसार जल कट होनेका वर दया और यह भी कहा क ‘तु हारी पु पमालाएँ सदा उ म ग धसे स प ह गी।’ इस कार सब दे वता ने दो-दो वर दये ।। ३८ ।। वरानेवं दाया य दे वा ते दवं गताः । पा थवा ानुभूया य ववाहं व मया वताः ।। ३९ ।। दमय या मु दताः तज मुयथागतम् ।





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इस कार राजा नलको वरदान दे कर वे दे वता-लोग वगलोकको चले गये। वयंवरम आये ए राजा भी व मय वमु ध हो नल और दमय तीके ववाहो सवका-सा अनुभव करते ए स तापूवक जैसे आये थे, वैसे लौट गये ।। ३९ ।। गतेषु पा थवे े षु भीमः ीतो महामनाः ।। ४० ।। ववाहं कारयामास दमय या नल य च । सब नरेश के वदा हो जानेपर महामना भीमने बड़ी स ताके साथ नल-दमय तीका शा व धके अनुसार ववाह कराया ।। ४० ।। उ य त यथाकामं नैषधो पदां वरः ।। ४१ ।। भीमेन समनु ातो जगाम नगरं वकम् । मनु य म े नषधनरेश नल अपनी इ छाके अनुसार कुछ दन तक ससुरालम रहे, फर वदभनरेश भीमक आ ा ले (दमय तीस हत) अपनी राजधानीको चले गये ।। ४१ ।। अवा य नारीर नं तु पु य ोकोऽ प पा थवः ।। ४२ ।। रेमे सह तया राज छ येव बलवृ हा । राजन्! पु य ोक महाराज नलने भी उस रमणीर नको पाकर उसके साथ उसी कार वहार कया, जैसे शचीके साथ इ करते ह ।। ४२ ।। अतीव मु दतो राजा ाजमान ऽशुमा नव ।। ४३ ।। अर यत् जा वीरो धमण प रपालयन् । राजा नल सूयके समान का शत होते थे। वीरवर नल अ य त स रहकर अपनी जाका धमपूवक पालन करते ए उसे स रखते थे ।। ४३ ।। ईजे चा य मेधेन यया त रव ना षः ।। ४४ ।। अ यै ब भध मान् तु भ ा तद णैः । उन बु मान् नरेशने न षन दन यया तक भाँ त अ मेध तथा पया त द णावाले सरे ब त-से य का भी अनु ान कया ।। ४४ ।। पुन रमणीयेषु वनेषूपवनेषु च ।। ४५ ।। दमय या सह नलो वजहारामरोपमः । तदन तर दे वतु य राजा नलने दमय तीके साथ रमणीय वन और उपवन म वहार कया ।। ४५ ।। जनयामास च ततो दमय यां महामनाः । इ सेनं सुतं चा प इ सेनां च क यकाम् ।। ४६ ।। महामना नलने दमय तीके गभसे इ सेन नामक एक पु और इ सेना नामवाली एक क याको ज म दया ।। ४६ ।। एवं स यजमान वहरं नरा धपः । रर वसुस पूणा वसुधां वसुधा धपः ।। ४७ ।। े



इस कार य का अनु ान तथा सुखपूवक वहार करते ए महाराज नलने धनधा यसे स प वसु धराका पालन कया ।। ४७ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण नलोपा यानपव ण दमय ती वयंवरे स तप चाश मोऽ यायः ।। ५७ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत दमय ती- वयंवर वषयक स ावनवाँ अ याय पूरा आ ।। ५७ ।।

अ प चाश मोऽ यायः दे वताक े ारा नलके गुण का गान और उनके नषेध करनेपर भी नलके व क लयुगका कोप बृहद उवाच वृते तु नैषधे भै या लोकपाला महौजसः । या तो द शुराया तं ापरं क लना सह ।। १ ।। बृहद मु न कहते ह—राजन्! भीमकुमारी दमय ती ारा नषधनरेश नलका वरण हो जानेपर जब महातेज वी लोकपालगण वगलोकको जा रहे थे, उस समय मागम उ ह ने दे खा क क लयुगके साथ ापर आ रहा है ।। १ ।। अथा वीत् क ल श ः स े य बलवृ हा । ापरेण सहायेन कले ू ह व या य स ।। २ ।। क लयुगको दे खकर बल और वृ ासुरका नाश करनेवाले इ ने पूछा—‘कले! बताओ तो सही ापरके साथ कहाँ जा रहे हो?’ ।। २ ।। ततोऽ वीत् क लः श ं दमय याः वयंवरम् । ग वा ह वर य ये तां मनो ह मम तां गतम् ।। ३ ।। तब क लने इ से कहा—‘दे वराज! म दमय तीके वयंवरम जाकर उसका वरण क ँ गा; य क मेरा मन उसके त आस हो गया है’ ।। ३ ।। तम वीत् ह ये ो नवृ ः स वयंवरः । वृत तया नलो राजा प तर म समीपतः ।। ४ ।। तब इ ने हँसकर कहा—‘वह वयंवर तो हो गया। हमारे समीप ही दमय तीने राजा नलको अपना प त चुन लया ।। ४ ।। एवमु तु श े ण क लः कोपसम वतः । दे वानाम य तान् सवानुवाचेद ं वच तदा ।। ५ ।। इ के ऐसा कहनेपर क लयुगको ोध चढ़ आया और उसी समय उसने उन सब दे वता को स बो धत करके यह बात कही— ।। ५ ।। दे वानां मानुषं म ये यत् सा प तम व दत । तत त या भवे या यं वपुलं द डधारणम् ।। ६ ।। ‘दमय तीने दे वता के बीचम मनु यका प त पम वरण कया है। अतः उसे बड़ा भारी द ड दे ना उ चत तीत होता है’ ।। ६ ।। एवमु े तु क लना यूचु ते दवौकसः । अ मा भः समनु ाते दमय या नलो वृतः ।। ७ ।। क लयुगके ऐसा कहनेपर दे वता ने उ र दया—‘दमय तीने हमारी आ ा लेकर नलका वरण कया है ।। ो े



का च सवगुणोपेतं ना येत नलं नृपम् । यो वेद धमानखलान् यथाव च रत तः ।। ८ ।। योऽधीते चतुरो वेदान् सवाना यानप चमान् । न यं तृ ता गृहे य य दे वा य ेषु धमतः । अ हसा नरतो य स यवाद ढ तः ।। ९ ।। य मन् दा यं धृ त ानं तपः शौचं दमः शमः । ुवा ण पु ष ा े लोकपालसमे नृपे ।। १० ।। एवं पं नलं यो वै कामये छ पतुं कले । आ मानं स शपे मूढो ह यादा मानमा मना ।। ११ ।। ‘राजा नल सवगुणस प ह। कौन ी उनका वरण नह करेगी? ज ह ने भलीभाँ त चय तका पालन करके चार वेद तथा पंचम वेद सम त इ तहास-पुराणका भी अ ययन कया है, जो सब धम को जानते ह, जनके घरपर पंचय म धमके अनुसार स पूण दे वता न य तृ त होते ह, जो अ हसा-परायण, स यवाद तथा ढ़तापूवक तका पालन करनेवाले ह, जन नर े लोकपाल-स श तेज वी नलम द ता, धैय, ान, तप, शौच, शम और दम आ द गुण न य नवास करते ह। कले! ऐसे राजा नलको जो मूढ़ शाप दे नेक इ छा रखता है, वह मानो अपनेको ही शाप दे ता है। अपने ारा अपना ही वनाश करता है ।। ८—११ ।। एवंगुणं नलं यो वै कामये छ पतुं कले । कृ े स नरके म जेदगाधे वपुले दे । एवमु वा क ल दे वा ापरं च दवं ययुः ।। १२ ।। ‘ऐसे सद्गुणस प महाराज नलको जो शाप दे नेक कामना करेगा, वह क से भरे ए अगाध एवं वशाल नरककु डम नम न होगा।’ क लयुग और ापरसे ऐसा कहकर दे वतालोग वगम चले गये ।। १२ ।। ततो गतेषु दे वेषु क ल ापरम वीत् । संहतु नो सहे कोपं नले व या म ापर ।। १३ ।। ंश य या म तं रा या भै या सह रं यते । वम य ान् समा व य साहा यं कतुमह स ।। १४ ।। तदन तर दे वता के चले जानेपर क लयुगने ापरसे कहा—‘ ापर! म अपने ोधका उपसंहार नह कर सकता। नलके भीतर नवास क ँ गा और उ ह रा यसे वं चत कर ँ गा। जससे वे दमय तीसे रमण नह कर सकगे। तु ह भी जूएके पास म वेश करके मेरी सहायता करनी चा हये’ ।। १३-१४ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण नलोपा यानपव ण क लदे वसंवादे अ प चाश मोऽ यायः ।। ५८ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत नलोपा यानपवम क ल-दे वता-संवाद वषयक अावनवाँ अ याय पूरा आ ।। ५८ ।।

एकोनष तमोऽ यायः नलम क लयुगका वेश एवं नल और पु करक ूत डा, जा और दमय तीके नवारण करनेपर भी राजाका त ू से नवृ नह होना बृहद उवाच एवं स समयं कृ वा ापरेण क लः सह । आजगाम तत त य राजा स नैषधः ।। १ ।। बृहद मु न कहते ह—राजन्! इस कार ापरके साथ संकेत करके क लयुग उस थानपर आया, जहाँ नषधराज नल रहते थे ।। १ ।। स न यम तर े सु नषधे ववस चरम् । अथा य ादशे वष ददश क लर तरम् ।। २ ।। वह त दन राजा नलका छ दे खता आ नषधदे शम द घकालतक टका रहा। बारह वष के बाद एक दन क लको एक छ दखायी दया ।। २ ।। कृ वा मू मुप पृ य सं याम वा त नैषधः । अकृ वा पादयोः शौचं त ैनं क लरा वशत् ।। ३ ।। राजा नल उस दन लघुशंका करके आये और हाथ-मुँह धोकर आचमन करनेके प ात् सं योपासना करने बैठ गये; पैर को नह धोया। यह छ दे खकर क लयुग उनके भीतर व हो गया ।। ३ ।। स समा व य च नलं समीपं पु कर य च । ग वा पु करमाहेदमे ह द नलेन वै ।। ४ ।। नलम आ व होकर क लयुगने सरा प धारण करके पु करके पास जाकर कहा —‘चलो, राजा नलके साथ जूआ खेलो ।। ४ ।। अ ूते नलं जेता भवान् ह स हतो मया । नषधान् तप व ज वा रा यं नलं नृपम् ।। ५ ।। मेरे साथ रहकर तुम जूएम अव य राजा नलको जीत लोगे। इस कार महाराज नलको उनके रा यस हत जीतकर नषधदे शको अपने अ धकारम कर लो’ ।। ५ ।। एवमु तु क लना पु करो नलम ययात् । क ल ैव वृषो भू वा गवां पु करम ययात् ।। ६ ।। क लके ऐसा कहनेपर पु कर राजा नलके पास गया। क ल भी साँड़ बनकर पु करके साथ हो लया ।। ६ ।। आसा तु नलं वीरं पु करः परवीरहा । द ावे य वीद् ाता वृषेणे त मु मु ः ।। ७ ।। ी





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श ुवीर का संहार करनेवाले पु करने वीरवर नलके पास जाकर उनसे बार-बार कहा —‘हम दोन धमपूवक जूआ खेल।’ पु कर राजा नलका भाई लगता था ।। ७ ।। न च मे ततो राजा समा ानं महामनाः । वैद याः े माणायाः पणकालमम यत ।। ८ ।। महामना राजा नल ूतके लये पु करके आ ानको न सह सके। वदभराजकुमारी दमय तीके दे खते-दे खते उसी ण जूआ खेलनेका उपयु अवसर समझ लया ।। ८ ।। हर य य सुवण य यानयु य य वाससाम् । आ व ः क लना ूते जीयते म नल तदा ।। ९ ।। तम मदस म ं सु दां न तु क न । नवारणेऽभव छ ो द मानमरदमम् ।। १० ।। तब क लयुगसे आ व होकर राजा नल हर य, सुवण, रथ आ द वाहन और ब मू य व दाँवपर लगाते तथा हार जाते थे। सु द म कोई भी ऐसा नह था, जो ूत डाके मदसे उ म श ुदमन नलको उस समय जूआ खेलनेसे रोक सके ।। ९-१० ।। ततः पौरजनाः सव म भः सह भारत । राजानं ु माग छन् नवार यतुमातुरम् ।। ११ ।। भारत! तदन तर सम त पुरवासी मनु य म य के साथ राजासे मलने तथा उन आतुर नरेशको ूत डासे रोकनेके लये वहाँ आये ।। ११ ।। ततः सूत उपाग य दमय यै यवेदयत् । एष पौरजनो दे व ा र त त कायवान् ।। १२ ।। इसी समय सार थने महलम जाकर महारानी दमय तीसे नवेदन कया—‘दे व! ये पुरवासीलोग कायवश राज ारपर खड़े ह ।। १२ ।। नवे तां नैषधाय सवाः कृतयः थताः । अमृ यमाणा सनं रा ो धमाथद शनः ।। १३ ।। ‘आप नषधराजसे नवेदन कर द। धम-अथका त व जाननेवाले महाराजके भावी संकटको सहन न कर सकनेके कारण म य स हत सारी जा ारपर खड़ी है’ ।। १३ ।। ततः सा बा पकलया वाचा ःखेन क शता । उवाच नैषधं भैमी शोकोपहतचेतना ।। १४ ।। यह सुनकर ःखसे बल ई दमय तीने शोकसे अचेत-सी होकर आँसू बहाते ए गद्गदवाणीम नषध-नरेशसे कहा— ।। १४ ।।

राजन् पौरजनो ा र वां द ुरव थतः । म भः स हतः सव राजभ पुर कृतः ।। १५ ।। तं ु महसी येवं पुनः पुनरभाषत । तं तथा चरापा वलप त तथा वधाम् ।। १६ ।। आ व ः क लना राजा ना यभाषत कचन । तत ते म णः सव ते चैव पुरवा सनः ।। १७ ।। नायम ती त ःखाता ी डता ज मुरालयान् । तथा तदभवद् ूतं पु कर य नल य च । यु ध र बन् मासान् पु य ोक वजीयत ।। १८ ।। ‘महाराज! पुरवासी जा राजभ पूवक आपसे मलनेके लये सम त म य के साथ ारपर खड़ी है। आप उ ह दशन द।’ दमय तीने इन वा य को बार-बार हराया। मनोहर नयन ा तवाली वदभ-कुमारी इस कार वलाप करती रह गयी, परंतु क लयुगसे आव ए राजाने उससे कोई बाततक न क । तब वे सब म ी और पुरवासी ःखसे आतुर और ल जत हो यह कहते ए अपने-अपने घर चले गये क ‘यह राजा नल अब रा यपर अ धक समयतक रहनेवाला नह है।’ यु ध र! पु कर और नलक वह ूत डा कई महीन तक चलती रही। पु य ोक महाराज नल उसम हारते ही जा रहे थे ।। १५— १८ ।। ी











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ीमहाभारते वनपव ण नलोपा यानपव ण नल ूते एकोनष तमोऽ यायः ।। ५९ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत नलोपा यानपवम नल ूत वषयक उनसठवाँ अ याय पूरा आ ।। ५९ ।।

ष तमोऽ यायः ः खत दमय तीका वा णयके ारा कुमार-कुमारीको कु डनपुर भेजना बृहद उवाच दमय ती ततो ् वा पु य ोकं नरा धपम् । उ म वदनु म ा दे वने गतचेतसम् ।। १ ।। भयशोकसमा व ा राजन् भीमसुता ततः । च तयामास तत् काय सुमहत् पा थवं त ।। २ ।। बृहद मु न कहते ह—राजन्! तदन तर दमय तीने दे खा क पु य ोक महाराज नल उ म क भाँ त ूत डाम आस ह। वह वयं सावधान थी। उनक वैसी अव था दे ख भीमकुमारी भय और शोकसे ाकुल हो गयी और महाराजके हतके लये कसी मह वपूण कायका च तन करने लगी ।। १-२ ।। सा शङ् कमाना तत् पापं चक ष ती च त यम् । नलं च तसव वमुपल येदम वीत् ।। ३ ।। उसके मनम यह आशंका हो गयी क राजापर ब त बड़ा क आनेवाला है। वह उनका य एवं हत करना चाहती थी। अतः महाराजके सव वका अपहरण होता जान धायको बुलाकर (इस कार बोली) ।। ३ ।। बृह सेनाम तयशां तां धा प रचा रकाम् । हतां सवाथकुशलामनुर ां सुभा षताम् ।। ४ ।। उसक धायका नाम बृह सेना था। वह अ य त यश वनी और प रचयाके कायम नपुण थी। सम त काय के साधनम कुशल, हतै षणी, अनुरा गणी और मधुरभा षणी थी ।। ४ ।। बृह सेने जामा यानाना य नलशासनात् । आच व यद्धृतं मव श ं च यद् वसु ।। ५ ।। (दमय तीने उससे कहा)—‘बृह सेने! तुम म य के पास जाओ तथा राजा नलक आ ासे उ ह बुला लाओ। फर उ ह यह बताओ क अमुक-अमुक हारा जा चुका है और अमुक धन अभी अव श है’ ।। ५ ।। तत ते म णः सव व ाय नलशासनम् । अ प नो भागधेयं या द यु वा नलमा जन् ।। ६ ।। तब वे सब म ी राजा नलका आदे श जानकर ‘हमारा अहोभा य है’, ऐसा कहते ए नलके पास आये ।। ता तु सवाः कृतयो तीयं समुप थताः । यवेदयद् भीमसुता न च तत् यन दत ।। ७ ।। े

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वे सारी (म ी आ द) कृ तयाँ सरी बार राज ारपर उप थत । दमय तीने इसक सूचना महाराज नलको द , पर तु उ ह ने इस बातका अ भन दन नह कया ।। ७ ।। वा यम तन द तं भतारम भवी य सा । दमय ती पुनव म ी डता ववेश ह ।। ८ ।। नश य सततं चा ान् पु य ोकपराङ् मुखान् । नलं च तसव वं धा पुन वाच ह ।। ९ ।। बृह सेने पुनग छ वा णयं नलशासनात् । सूतमानय क या ण महत् कायमुप थतम् ।। १० ।। प तको अपनी बातका स तापूवक उ र दे ते न दे ख दमय ती ल जत हो पुनः महलके भीतर चली गयी। वहाँ फर उसने सुना क सारे पासे लगातार पु य ोक राजा नलके वपरीत पड़ रहे ह और उनका सव व अप त हो रहा है। तब उसने पुनः धायसे कहा —‘बृह सेने! फर राजा नलक आ ासे जाओ और वा णय सूतको बुला लाओ। क या ण! एक ब त बड़ा काय उप थत आ है’ ।। ८—१० ।। बृह सेना तु सा ु वा दमय याः भा षतम् । वा णयमानयामास पु षैरा तका र भः ।। ११ ।। वा णयं तु ततो भैमी सा वय णया गरा । उवाच दे शकाल ा ा तकालम न दता ।। १२ ।। बृह सेनाने दमय तीक बात सुनकर व सनीय पु ष ारा वा णयको बुलाया। तब अन वभाववाली और दे श-कालको जाननेवाली भीमकुमारी दमय तीने वा णयको मधुर वाणीम सा वना दे ते ए यह समयो चत बात कही— ।। ११-१२ ।। जानीषे वं यथा राजा स यग् वृ ः सदा व य । त य वं वषम थ य साहा यं कतुमह स ।। १३ ।। ‘सूत! तुम जानते हो क महाराज तु हारे त कैसा अ छा बताव करते थे। आज वे वषम संकटम पड़ गये ह, अतः तु ह भी उनक सहायता करनी चा हये ।। १३ ।। यथा यथा ह नृप तः पु करेणैव जीयते । तथा तथा य वै ूते रागो भूयोऽ भवधते ।। १४ ।। ‘राजा जैसे-जैसे पु करसे परा जत हो रहे ह, वैसे-ही-वैसे जूएम उनक आस बढ़ती जा रही है ।। यथा च पु कर या ाः पत त वशव तनः । तथा वपयय ा प नल या ेषु यते ।। १५ ।। ‘जैसे पु करके पासे उसक इ छाके अनुसार पड़ रहे ह, वैसे ही नलके पासे वपरीत पड़ते दे खे जा रहे ह ।। १५ ।। सु वजनवा या न यथाव शृणो त च । ममा प च तथा वा यं ना भन द त मो हतः ।। १६ ।। नूनं म ये न दोषोऽ त नैषध य महा मनः । े ो

यत् तु मे वचनं राजा ना भन द त मो हतः ।। १७ ।। ‘वे सु द और वजन के वचन अ छ तरह नह सुनते ह। जूएने उ ह ऐसा मो हत कर रखा है क इस समय वे मेरी बातका भी आदर नह कर रहे ह। म इसम महामना नैषधका न य ही कोई दोष नह मानती। जूएसे मो हत होनेके कारण ही राजा मेरी बातका अ भन दन नह कर रहे ह ।। १६-१७ ।। शरणं वां प ा म सारथे कु म चः । न ह मे शु यते भावः कदा चत् वनशेद प ।। १८ ।। ‘सारथे! म तु हारी शरणम आयी ँ, मेरी बात मानो। मेरे मनम अशुभ वचार आते ह, इससे अनुमान होता है क राजा नलका रा यसे युत होना स भव है ।। १८ ।। नल य द यतान ान् योज य वा मनोजवान् । इदमारो य मथुनं कु डनं यातुमह स ।। १९ ।। ‘तुम महाराजके य, मनके समान वेगशाली अ को रथम जोतकर उसपर इन दोन ब च को बठा लो और कु डनपुरको चले जाओ’ ।। १९ ।। मम ा तषु न य दारकौ य दनं तथा । अ ां ेमान् यथाकामं वस वा य ग छ वा ।। २० ।। ‘वहाँ इन दोन बालक को, इस रथको और इन घोड़ को भी मेरे भाई-ब धु क दे खरेखम स पकर तु हारी इ छा हो तो वह रह जाना या अ य कह चले जाना’ ।। २० ।। दमय या तु तद् वा यं वा णयो नलसार थः । यवेदयदशेषेण नलामा येषु मु यशः ।। २१ ।। दमय तीक यह बात सुनकर नलके सार थ वा णयने नलके मु य-मु य म य से यह सारा वृ ा त नवे दत कया ।। २१ ।। तैः समे य व न य सोऽनु ातो महीपते । ययौ मथुनमारो य वदभा तेन वा हना ।। २२ ।। राजन्! उनसे मलकर इस वषयपर भलीभाँ त वचार करके उन म य क आ ा ले सार थ वा णयने दोन बालक को रथपर बैठाकर वदभ दे शको थान कया ।। २२ ।। हयां त व न य सूतो रथवरं च तम् । इ सेनां च तां क या म सेनं च बालकम् ।। २३ ।। आम य भीमं राजानमातः शोचन् नलं नृपम् । अटमान ततोऽयो यां जगाम नगर तदा ।। २४ ।। वहाँ प ँचकर उसने घोड़ को, उस े रथ-को तथा उस बा लका इ सेनाको एवं राजकुमार इ सेनको वह रख दया तथा राजा भीमसे वदा ले आतभावसे राजा नलक दशाके लये शोक करता आ घूमता-घामता अयो या नगरीम चला गया ।। २३-२४ ।। ऋतुपण स राजानमुपत थे सु ःखतः । भृ त चोपययौ त य सारयेन महीपते ।। २५ ।। यु ध र! वह अ य त ःखी हो राजा ऋतुपणक सेवाम उप थत आ और उनका सार थ बनकर जी वका चलाने लगा ।। २५ ।। ी े ो ो े

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ीमहाभारते वनपव ण नलोपा यानपव ण कु डनं त कुमारयोः थापने ष तमोऽ यायः ।। ६० ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत नलोपा यानपवम नलक क या और पु को कु डनपुर भेजनेसे स ब ध रखनेवाला साठवाँ अ याय पूरा आ ।। ६० ।।

एकष तमोऽ यायः नलका जूएम हारकर दमय तीके साथ वनको जाना और प य ारा आपद् त नलके व का अपहरण बृहद उवाच तत तु याते वा णये पु य ोक य द तः । पु करेण तं रा यं य चा यद् वसु कचन ।। १ ।। बृहद मु न कहते ह—यु ध र! तदन तर वा णयके चले जानेपर जूआ खेलनेवाले पु य ोक महाराज नलके सारे रा य और जो कुछ धन था, उन सबका जूएम पु करने अपहरण कर लया ।। १ ।। तरा यं नलं राजन् हसन् पु करोऽ वीत् । ूतं वततां भूयः तपाणोऽ त क तव ।। २ ।। राजन्! रा य हार जानेपर नलसे पु करने हँसते ए कहा क ‘ या फर जूआ आर भ हो? अब तु हारे पास दाँवपर लगानेके लये या है?’ ।। २ ।। श ा ते दमय येका सवम य जतं मया । दमय याः पणः साधु वततां य द म यसे ।। ३ ।। ‘तु हारे पास केवल दमय ती शेष रह गयी है और सब व तुएँ तो मने जीत ली ह, य द तु हारी राय हो तो दमय तीको दाँवपर रखकर एक बार फर जूआ खेला जाय’ ।। ३ ।। पु करेणैवमु य पु य ोक य म युना । द यतेव दयं न चैनं क चद वीत् ।। ४ ।। पु करके ऐसा कहनेपर पु य ोक महाराज नलका दय शोकसे वद ण-सा हो गया, परंतु उ ह ने उससे कुछ कहा नह ।। ४ ।। ततः पु करमालो य नलः परमम युमान् । उ सृ य सवगा े यो भूषणा न महायशाः ।। ५ ।। एकवासा संवीतः सु छोक ववधनः । न ाम ततो राजा य वा सु वपुलां यम् ।। ६ ।। तदन तर महायश वी नलने अ य त ःखत हो पु करक ओर दे खकर अपने सब अंग के आभूषण उतार दये और केवल एक अधोव धारण करके चादर ओढ़े बना ही अपनी वशाल स प को यागकर सु द का शोक बढ़ाते ए वे राजभवनसे नकल पड़े ।। ५-६ ।। दमय येकव ाथ ग छ तं पृ तोऽ वगात् । स तया बा तः साध रा ं नैषधोऽवसत् ।। ७ ।। दमय तीके शरीरपर भी एक ही व था। वह जाते ए राजा नलके पीछे हो ली। वे उसके साथ नगरसे बाहर तीन राततक टके रहे ।। ७ ।। ो





पु कर तु महाराज घोषयामास वै पुरे । नले यः स यगा त ेत् स ग छे द ् व यतां मम ।। ८ ।। महाराज! पु करने उस नगरम यह घोषणा करा द —डु गी पटवा द क ‘जो नलके साथ अ छा बताव करेगा, वह मेरा व य होगा’ ।। ८ ।। पु कर य तु वा येन त य व े षणेन च । पौरा न त य स कारं कृतव तो यु ध र ।। ९ ।। यु ध र! पु करके उस वचनसे और नलके त पु करका े ष होनेसे पुरवा सय ने राजा नलका कोई स कार नह कया ।। ९ ।। स तथा नगरा याशे स काराह न स कृतः । रा मु षतो राजा जलमा ेण वतयन् ।। १० ।। इस कार राजा नल अपने नगरके समीप तीन राततक केवल जलमा का आहार करके टके रहे। वे सवथा स कारके यो य थे तो भी उनका स कार नह कया गया ।। १० ।। पी मानः ुधा त फलमूला न कषयन् । ा त त ततो राजा दमय ती तम वगात् ।। ११ ।। वहाँ भूखसे पी ड़त हो फल-मूल आ द जुटाते ए राजा नल वहाँसे अ य चले गये। केवल दमय ती उनके पीछे -पीछे गयी ।। ११ ।। ुधया पी मान तु नलो ब तथेऽह न । अप य छकुनान् कां र यस श छदान् ।। १२ ।। इसी कार नल ब त दन तक ुधासे पी ड़त रहे। एक दन उ ह ने कुछ ऐसे प ी दे खे, जनक पाँख सोनेक -सी थ ।। १२ ।। स च तयामास तदा नषधा धप तबली । अ त भ यो ममा ायं वसु चेदं भ व य त ।। १३ ।। उ ह दे खकर ( ुधातुर और आप त होनेके कारण) बलवान् नषधनरेशके मनम यह बात आयी क ‘यह प य का समुदाय ही आज मेरा भ य हो सकता है और इनक ये पाँख मेरे लये धन हो जायँगी’ ।। १३ ।।

तत तान् प रधानेन वाससा स समावृणोत् । त य तद् व मादाय सव ज मु वहायसा ।। १४ ।। तदन तर उ ह ने अपने अधोव से उन प य को ढँ क दया। कतु वे सब प ी उनका वह व लेकर आकाशम उड़ गये ।। १४ ।। उ पत तः खगा वा यमेतदा ततो नलम् । ् वा द वाससं भूमौ थतं द नमधोमुखम् ।। १५ ।। उड़ते ए उन प य ने राजा नलको द नभावसे नीचे मुँह कये धरतीपर न न खड़ा दे ख उनसे कहा— ।। वयम ाः सु बु े तव वासो जहीषवः । आगता न ह नः ी तः सवास स गते व य ।। १६ ।। ‘ओ खोट बु वाले नरेश! हम (प ी नह ,) पासे ह और तु हारा व अपहरण करनेक इ छासे ही यहाँ आये थे। तुम व पहने ए ही वहाँसे चले आये थे, इससे हम स ता नह ई थी’ ।। १६ ।। तान् समीपगतान ाना मानं च ववाससम् । पु य ोक तदा राजन् दमय तीमथा वीत् ।। १७ ।। येषां कोपादै यात् युतोऽहम न दते । े

ाणया ां न व दे यं ःखतः ुधया वतः ।। १८ ।। येषां कृते न स कारमकुवन् म य नैषधाः । इमे ते शकुना भू वा वासो भी हर त मे ।। १९ ।। राजन्! उन पास को नजद कसे जाते दे ख और अपने-आपको न नाव थाम पाकर पु य ोक नलने उस समय दमय तीसे कहा—‘सती सा वी रानी! जनके ोधसे मेरा ऐ य छन गया, म ुधापी ड़त एवं ःखत होकर जीवन- नवाहके लये अ तक नह पा रहा ँ और जनके कारण नषधदे शक जाने मेरा स कार नह कया, भी ! वे ही ये पासे ह, जो प ी होकर मेरा व लये जा रहे ह ।। १७—१९ ।। वैष यं परमं ा तो ःखतो गतचेतनः । भता तेऽहं नबोधेदं वचनं हतमा मनः ।। २० ।। ‘म बड़ी वषम प र थ तम पड़ गया ँ। ःखके मारे मेरी चेतना लु त-सी हो रही है। म तु हारा प त ँ, अतः तु हारे हतक बात बता रहा ँ, इसे सुनो— ।। २० ।। एते ग छ त बहवः प थानो द णापथम् । अव तीमृ व तं च सम त य पवतम् ।। २१ ।। ‘ये ब त-से माग ह, जो द ण दशाक ओर जाते ह। यह माग ऋ वान् पवतको लाँघकर अव ती-दे शको जाता है ।। २१ ।। एष व यो महाशैलः पयो णी च समु गा । आ मा महष णां ब मूलफला वताः ।। २२ ।। एष प था वदभाणामसौ ग छ त कोसलान् । अतः परं च दे शोऽयं द णे द णापथः ।। २३ ।। ‘यह महान् पवत व य दखायी दे रहा है और यह समु गा मनी पयो णी नद है। यहाँ मह षय के ब त-से आ म ह, जहाँ चुर मा ाम फल-मूल उपल ध हो सकते ह। यह वदभदे शका माग है और वह कोसलदे शको जाता है। द ण दशाम इसके बादका दे श द णापथ कहलाता है’ ।। २२-२३ ।। एतद् वा यं नलो राजा दमय त समा हतः । उवाचासकृदात ह भैमीमु य भारत ।। २४ ।। भारत! राजा नलने एका च होकर बड़ी आतुरताके साथ दमय तीसे उपयु बात बार-बार कह ।। २४ ।। ततः सा बा पकलया वाचा ःखेन क शता । उवाच दमय ती तं नैषधं क णं वचः ।। २५ ।। तब दमय ती अ य त ःखसे बल हो ने से आँसू बहाती ई गद्गद वाणीम राजा नलसे यह क ण वचन बोली— ।। २५ ।। उ े जते मे दयं सीद य ा न सवशः । तव पा थव संक पं च तय याः पुनः पुनः ।। २६ ।। तरा यं त ं वव ं ु मा वतम् । कथमु सृ य ग छे यमहं वां नजने वने ।। २७ ।। ‘ ै ी ँ

‘महाराज! आपका मान सक संक प या है, इसपर जब म बार-बार वचार करती ँ, तब मेरा दय उ न हो उठता है और सारे अंग श थल हो उठते ह। आपका रा य छन गया। धन न हो गया। आपके शरीरपर व तक नह रह गया तथा आप भूख और प र मसे क पा रहे ह। ऐसी अव थाम इस नजन वनम आपको असहाय छोड़कर म कैसे जा सकती ँ? ।। ा त य ते ुधात य च तयान य तत् सुखम् । वने घोरे महाराज नाश य या यहं लमम् ।। २८ ।। ‘महाराज! जब आप भयंकर वनम थके-माँदे भूखसे पी ड़त हो अपने पूव सुखका च तन करते ए अ य त ःखी होने लगगे, उस समय म सा वना ारा आपके संतापका नवारण क ँ गी ।। २८ ।। न च भायासमं क चद् व ते भषजां मतम् । औषधं सव ःखेषु स यमेतद् वी म ते ।। २९ ।। ‘ च क सक का मत है क सम त ःख क शा तके लये प नीके समान सरी कोई औषध नह है; यह म आपसे स य कहती ँ’ ।। २९ ।। नल उवाच एवमेतद् यथाऽऽ थ वं दमय त सुम यमे । ना त भायासमं म ं नर यात य भेषजम् ।। ३० ।। नलने कहा—सुम यमा दमय ती! तुम जैसा कहती हो वह ठ क है। ःखी मनु यके लये प नीके समान सरा कोई म या औषध नह है ।। ३० ।। न चाहं य काम वां कमलं भी शङ् कसे । यजेयमहमा मानं न चैव वाम न दते ।। ३१ ।। भी ! म तु ह यागना नह चाहता, तुम इतनी अ धक शंका य करती हो? अ न दते! म अपने शरीरका याग कर सकता ँ, पर तु ह नह छोड़ सकता ।। ३१ ।। दमय युवाच य द मां वं महाराज न वहातु महे छ स । तत् कमथ वदभाणां प थाः समुप द यते ।। ३२ ।। दमय तीने कहा—महाराज! य द आप मुझे यागना नह चाहते तो वदभदे शका माग य बता रहे ह? ।। ३२ ।। अवै म चाहं नृपते न तु मां य ु मह स । चेतसा वपकृ ेन मां यजेथा महीपते ।। ३३ ।। राजन्! म जानती ँ क आप वयं मुझे नह याग सकते, परंतु महीपते! इस घोर आप ने आपके च को आक षत कर लया है, इस कारण आप मेरा याग भी कर सकते ह ।। ३३ ।। प थानं ह ममाभी णमा या स च नरो म । अतो न म ं शोकं मे वधय यमरोपम ।। ३४ ।। े ो े े े े ो

नर े ! आप बार-बार जो मुझे वदभदे शका माग बता रहे ह। दे वोपम आयपु ! इसके कारण आप मेरा शोक ही बढ़ा रहे ह ।। ३४ ।। य द चायम भ ाय तव ातीन् जे द त । स हतावेव ग छावो वदभान् य द म यसे ।। ३५ ।। य द आपका यह अ भ ाय हो क दमय ती अपने ब धु-बा धव के यहाँ चली जाय तो आपक स म त हो तो हम दोन साथ ही वदभदे शको चल ।। ३५ ।। वदभराज त वां पूज य य त मानद । तेन वं पू जतो राजन् सुखं व य स नो गृहे ।। ३६ ।। मानद! वहाँ वदभनरेश आपका पूरा आदर-स कार करगे। राजन्! उनसे पू जत होकर आप हमारे घरम सुखपूवक नवास क जयेगा ।। ३६ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण नलोपा यानपव ण नलवनया ायामेकष तमोऽ यायः ।। ६१ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत नलोपा यानपवम नलक वनया ा वषयक इकसठवाँ अ याय पूरा आ ।। ६१ ।।

ष तमोऽ यायः राजा नलक च ता और दमय तीको अकेली सोती छोड़ कर उनका अ य थान नल उवाच यथा रा यं तव पतु तथा मम न संशयः । न तु त ग म या म वषम थः कथंचन ।। १ ।। नलने कहा— ये! इसम संदेह नह क वदभरा य जैसे तु हारे पताका है, वैसे मेरा भी है, तथा प आप म पड़ा आ म कसी तरह वहाँ नह जाऊँगा ।। १ ।। कथं समृ ो ग वाहं तव हष ववधनः । प र युतो ग म या म तव शोक ववधनः ।। २ ।। एक दन म भी समृ शाली राजा था। उस अव थाम वहाँ जाकर मने तु हारे हषको बढ़ाया था और आज उस रा यसे वं चत होकर केवल तु हारे शोकक वृ कर रहा ँ, ऐसी दशाम वहाँ कैसे जाऊँगा? ।। २ ।। बृहद उवाच इ त ुवन् नलो राजा दमय त पुनः पुनः । सा वयामास क याण वाससोऽधन संवृताम् ।। ३ ।। तावेकव संवीतावटमाना वत ततः । ु पपासाप र ा तौ सभां कां च पेयतुः ।। ४ ।। बृहद मु न कहते ह—राजन्! आधे व से ढक ई क याणमयी दमय तीसे बारबार ऐसा कहकर राजा नलने उसे सा वना द ; य क वे दोन एक ही व से अपने अंग को ढककर इधर-उधर घूम रहे थे। भूख और याससे थके-माँदे वे दोन द प त कसी सभाभवन (धमशाला)-म जा प ँचे ।। ३-४ ।। तां सभामुपस ा य तदा स नषधा धपः । वैद या स हतो राजा नषसाद महीतले ।। ५ ।। तब उस धमशालाम प ँचकर नषधनरेश राजा नल वैदभ के साथ भूतलपर बैठे ।। ५ ।। स वै वव ो वकटो म लनः पांसुगु ठतः । दमय या सह ा तः सु वाप धरणीतले ।। ६ ।। वे व हीन, चटाई आ दसे र हत, म लन एवं धू ल-धूस रत हो रहे थे। दमय तीके साथ थककर भू मपर ही सो गये ।। ६ ।। दमय य प क याणी न याप ता ततः । सहसा ःखमासा सुकुमारी तप वनी ।। ७ ।। ी















सुकुमारी तप वनी क याणमयी दमय ती भी सहसा ःखम पड़ गयी थी। वहाँ आनेपर उसे भी न ाने घेर लया ।। ७ ।। सु तायां दमय यां तु नलो राजा वशा पते । शोको म थत च ा मा न म शेते तथा पुरा ।। ८ ।। राजन्! राजा नलका च शोकसे मथा जा रहा था। वे दमय तीके सो जानेपर भी वयं पहलेक भाँ त सो न सके ।। ८ ।। स तद् रा यापहरणं सु यागं च सवशः । वने च तं प र वंसं े य च तामुपे यवान् ।। ९ ।। रा यका अपहरण, सु द का याग और वनम ा त होनेवाले नाना कारके लेशपर वचार करते ए वे च ताको ा त हो गये ।। ९ ।। क नु मे या ददं कृ वा क नु मे यादकुवतः । क नु मे मरणं ेयः प र यागो जन य वा ।। १० ।। वे सोचने लगे ‘ऐसा करनेसे मेरा या होगा और यह काय न करनेसे भी या होगा। मेरा मर जाना अ छा है क अपनी आ मीया दमय तीको याग दे ना ।। १० ।। मा मयं नुर ै वं ःखमा ो त म कृते । म हीना वयं ग छे त् कदा चत् वजनं त ।। ११ ।। ‘यह मुझसे इस कार अनुर होकर मेरे ही लये ःख उठा रही है। य द मुझसे अलग हो जाय तो यह कदा चत् अपने वजन के पास जा सकती है ।। ११ ।। म य नःसंशयं ःख मयं ा य यनु ता । उ सग संशयः यात् तु व दे ता प सुखं व चत् ।। १२ ।। ‘मेरे पास रहकर तो यह प त ता नारी न य ही केवल ःख भोगेगी। य प इसे याग दे नेपर एक संशय बना रहेगा तो भी यह स भव है क इसे कभी सुख मल जाय’ ।। १२ ।। स व न य ब धा वचाय च पुनः पुनः । उ सग म यते ेयो दमय या नरा धप ।। १३ ।। राजन्! नल अनेक कारसे बार-बार वचार करके एक न यपर प ँच गये और दमय तीका प र याग कर दे नेम ही उसक भलाई मानने लगे ।। १३ ।। न चैषा तेजसा श या कै द् धष यतुं प थ । यश वनी महाभागा म े यं प त ता ।। १४ ।। ‘यह महाभागा यश वनी दमय ती मेरी भ और प त ता है। पा त त-तेजके कारण मागम कोई इसका सती व न नह कर सकता’ ।। १४ ।। एवं त य तदा बु दमय यां यवतत । क लना भावेन दमय या वसजने ।। १५ ।। ऐसा सोचकर उनक बु दमय तीको अपने साथ रखनेके वचारसे नवृ हो गयी। ब क वभाववाले क लयुगसे भा वत होनेके कारण दमय तीको याग दे नेम ही उनक बु वृ ई ।। १५ ।। ो े

सोऽव तामा मन त या ा येकव ताम् । च त य वा यगाद् राजा व ाध यावकतनम् ।। १६ ।। तदन तर राजाने अपनी व हीनता और दमय तीक एकव ताका वचार करके उसके आधे व को फाड़ लेना ही उ चत समझा ।। १६ ।। कथं वासो वकतयं न च बु येत मे या । व च यैवं नलो राजा सभां पयचर दा ।। १७ ।। फर यह सोचकर क ‘म कैसे व को काटूँ , जससे मेरी याक न द न टू टे।’ राजा नल धमशालाम (नंगे ही) इधर-उधर घूमने लगे ।। १७ ।। प रधाव थ नल इत ेत भारत । आससाद सभो े शे वकोशं खड् गमु मम् ।। १८ ।। भारत! इधर-उधर दौड़-धूप करनेपर राजा नलको उस सभाभवनम एक अ छ -सी नंगी तलवार मल गयी ।। १८ ।।

तेनाध वासस छ वा नव य च परंतपः । सु तामु सृ य वैदभ ा वद ् गतचेतनाम् ।। १९ ।। उसीसे दमय तीका आधा व काटकर परंतप नलने उसके ारा अपना शरीर ढँ क लया और अचेत सोती ई वदभराजकुमारी दमय तीको वह छोड़कर वे शी तासे चले गये ।। १९ ।। ततो नवृ दयः पुनराग य तां सभाम् । ो

दमय त तदा ् वा रोद नषधा धपः ।। २० ।। कुछ र जानेपर उनके दयका वचार पलट गया और वे पुनः उसी सभाभवनम लौट आये। वहाँ उस समय दमय तीको दे खकर नषधनरेश नल फूट-फूटकर रोने लगे ।। २० ।। यां न वायुन चा द यः पुरा प य त मे याम् । सेयम सभाम ये शेते भूमावनाथवत् ।। २१ ।। (वे वलाप करते ए कहने लगे—) ‘पहले जस मेरी यतमा दमय तीको वायु तथा सूय दे वता भी नह दे ख पाते थे, वही आज इस धमशालाम भू मपर अनाथक भाँ त सो रही है ।। २१ ।। इयं व ावकतन संवीता चा हा सनी । उ म ेव वरारोहा कथं बुद ् वा भ व य त ।। २२ ।। ‘यह मनोहर हा यवाली सु दरी व के आधे टु कड़ेसे लपट ई सो रही है। जब इसक न द खुलेगी, तब पगली-सी होकर न जाने यह कैसी दशाको प ँच जायगी ।। २२ ।। कथमेका सती भैमी मया वर हता शुभा । च र य त वने घोरे मृग ाल नषे वते ।। २३ ।। ‘यह भयंकर वन हसक पशु और सप से भरा है। मुझसे बछु ड़कर शुभल णा सती दमय ती अकेली इस वनम कैसे वचरण करेगी? ।। २३ ।। आ द या वसवो ा अ नौ सम णौ । र तु वां महाभागे धमणा स समावृता ।। २४ ।। ‘महाभागे! तुम धमसे आवृत हो, आ द य, वसु, , अ नीकुमार और म ण—ये सब दे वता तु हारी र ा कर’ ।। २४ ।। एवमु वा यां भाया पेणा तमां भु व । क लनाप त ानो नलः ा त तः ।। २५ ।। इस भूतलपर प-सौ दयम जसक समानता करनेवाली सरी कोई ी नह थी, उसी अपनी यारी प नी दमय तीके त इस कार कहकर राजा नल वहाँसे उठे और चल दये। उस समय क लने इनक ववेकश हर ली थी ।। २५ ।। ग वा ग वा नलो राजा पुनरे त सभां मु ः । आकृ यमाणः क लना सौ दे नावकृ यते ।। २६ ।। राजा नलको एक ओर क लयुग ख च रहा था और सरी ओर दमय तीका सौहाद। अतः वे बार-बार जाकर फर उस धमशालाम ही लौट आते थे ।। २६ ।। धेव दयं त य ःखत याभवत् तदा । दोलेव मु राया त या त चैव सभां त ।। २७ ।। उस समय ःखी राजा नलका दय मानो वधाम पड़ गया था। जैसे झूला बार-बार नीचे-ऊपर आता-जाता रहता है, उसी कार उनका दय कभी बाहर जाता, कभी सभाभवनम लौट आता था ।। २७ ।। अवकृ तु क लना मो हतः ा व लः ।

सु तामु सृ य तां भाया वल य क णं ब ।। २८ ।। अ तम क लयुगने बल आकषण कया, जससे मो हत होकर राजा नल ब त दे रतक क ण वलाप करके अपनी सोती ई प नीको छोड़कर शी तासे चले गये ।। २८ ।। न ा मा क लना पृ तत् तद् वगणयन् नृपः । जगामैकां वने शू ये भायामु सृ य ःखतः ।। २९ ।। क लयुगके पशसे उनक बु हो गयी थी; अतः वे अ य त ःखी हो व भ बात का वचार करते ए उस सूने वनम अपनी प नीको अकेली छोड़कर चल दये ।। २९ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण नलोपा यानपव ण दमय तीप र यागे ष तमोऽ यायः ।। ६२ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत नलोपा यानपवम दमय तीप र याग वषयक बासठवाँ अ याय पूरा आ ।। ६२ ।।

ष तमोऽ यायः दमय तीका वलाप तथा अजगर एवं ाधसे उसके ाण एवं सती वक र ा तथा दमय तीके पा त यधमके भावसे ाधका वनाश बृहद उवाच अप ा ते नले राजन् दमय ती गत लमा । अबु यत वरारोहा सं ता वजने वने ।। १ ।। अप यमाना भतारं शोक ःखसम वता । ा ोश चैः सं ता महाराजे त नैषधम् ।। २ ।। बृहद मु न कहते ह—राजन्! नलके चले जानेपर जब दमय तीक थकावट र हो गयी, तब उसक आँख खुली। उस नजन वनम अपने वामीको न दे खकर सु दरी दमय ती भयातुर और ःख-शोकसे ाकुल हो गयी। उसने भयभीत होकर नषधनरेश नलको ‘महाराज! आप कहाँ ह?’ यह कहकर बड़े जोरसे पुकारा ।। १-२ ।। हा नाथ हा महाराज हा वा मन् क जहा स माम् । हा हता म वन ा म भीता म वजने वने ।। ३ ।। ‘हा नाथ! हा महाराज! हा वा मन्! आप मुझे य याग रहे ह? हाय! म मारी गयी, न हो गयी, इस जनशू य वनम मुझे बड़ा भय लग रहा है ।। ३ ।। ननु नाम महाराज धम ः स यवाग स । कथमु वा तथा स यं सु तामु सृ य कानने ।। ४ ।। ‘महाराज! आप तो धम और स यवाद ह; फर वैसी स ची त ा करके आज आप इस जंगलम मुझे सोती छोड़कर कैसे चले गये? ।। ४ ।। कथमु सृ य ग ता स द ां भायामनु ताम् । वशेषतोऽनपकृते परेणापकृते स त ।। ५ ।। ‘म आपक सेवाम कुशल और अनुर भाया ँ। वशेषतः मेरे ारा आपका कोई अपराध भी नह आ है। य द कोई अपराध आ है, तो वह सरेके ही ारा, मुझसे नह ; तो भी आप मुझे यागकर य चले जा रहे ह? ।। ५ ।। श यसे ता गरः स यक् कतु म य नरे र । या तेषां लोकपालानां सं नधौ क थताः पुरा ।। ६ ।। ‘नरे र! आपने पहले वयंवरसभाम उन लोकपाल के नकट जो बात कह थ , या आप उ ह आज मेरे त स य स कर सकगे? ।। ६ ।। नाकाले व हतो मृ युम यानां पु षषभ । त का ता वयो सृ ा मुतम प जीव त ।। ७ ।। ‘





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‘पु ष शरोमणे! मनु य क मृ यु असमयम नह होती, तभी तो आपक यह यतमा आपसे प र य होकर दो घड़ी भी जी रही है ।। ७ ।। पया तः प रहासोऽयमेतावान् पु षषभ । भीताहम त धष दशया मानमी र ।। ८ ।। ‘पु ष े ! यहाँ इतना ही प रहास ब त है। अ य त धष वीर! म ब त डर गयी ँ। ाणे र! अब मुझे अपना दशन द जये ।। ८ ।। यसे यसे राज ेष ोऽ स नैषध । आवाय गु मैरा मानं क मां न तभाषसे ।। ९ ।। ‘राजन्! नषधनरेश! आप द ख रहे ह, द ख रहे ह, यह दखायी दये। लता ारा अपनेको छपाकर आप मुझसे बात य नह कर रहे ह? ।। ९ ।। नृशंसं बत राजे य मामेवंगता मह । वलप त समाग य ना ासय स पा थव ।। १० ।। ‘राजे ! म इस कार भय और च ताम पड़कर यहाँ वलाप कर रही ँ और आप आकर आ ासन भी नह दे ते! भूपाल! यह तो आपक बड़ी नदयता है ।। १० ।। न शोचा यहमा मानं न चा यद प कचन । कथं नु भ वता येक इ त वां नृप शो च म ।। ११ ।। ‘नरे र! म अपने लये शोक नह करती। मुझे सरी कसी बातका भी शोक नह है। म केवल आपके लये शोक कर रही ँ क आप अकेले कैसी शोचनीय दशाम पड़ जायँगे! ।। ११ ।। कथं नु राजं तृ षतः ु धतः मक षतः । साया े वृ मूलेषु मामप यन् भ व य स ।। १२ ।। ‘राजन्! आप भूखे- यासे और प र मसे थके-माँदे होकर जब सायंकाल कसी वृ के नीचे आकर व ाम करगे, उस समय मुझे अपने पास न दे खकर आपक कैसी दशा हो जायगी?’ ।। १२ ।। ततः सा ती शोकाता द तेव च म युना । इत ेत दती पयधावत ःखता ।। १३ ।। तदन तर च ड शोकसे पी ड़त हो ोधा नसे द ध होती ई-सी दमय ती अ य त ःखी हो रोने और इधर-उधर दौड़ने लगी ।। १३ ।। मु पतते बाला मु ः पत त व ला । मु रालीयते भीता मु ः ोश त रो द त ।। १४ ।। दमय ती बार-बार उठती और बार-बार व ल होकर गर पड़ती थी। वह कभी भयभीत होकर छपती और कभी जोर-जोरसे रोने- च लाने लगती थी ।। १४ ।। अतीव शोकसंत ता मु नः य व ला । उवाच भैमी नः य द यथ प त ता ।। १५ ।। अ य त शोकसंत त हो बार-बार लंबी साँस ख चती ई ाकुल प त ता दमय ती द घ नः ास लेकर रोती ई बोली— ।। १५ ।। ै

य या भशापाद् ःखात ःखं व द त नैषधः । त य भूत य नो ःखाद् ःखम य धकं भवेत् ।। १६ ।। ‘ जसके अ भशापसे नषधनरेश नल ःखसे पी ड़त हो लेश-पर- लेश उठाते जा रहे ह, उस ाणीको हमलोग के ःखसे भी अ धक ःख ा त हो ।। १६ ।। अपापचेतसं पापो य एवं कृतवान् नलम् । त माद् ःखतरं ा य जीव वसुखजी वकाम् ।। १७ ।। ‘ जस पापीने पु या मा राजा नलको इस दशाम प ँचाया है, वह उनसे भी भारी ःखम पड़कर ःखक ही जदगी बतावे’ ।। १७ ।। एवं तु वलप ती सा रा ो भाया महा मनः । अ वेषमाणा भतारं वने ापदसे वते ।। १८ ।। उ म वद् भीमसुता वलप ती इत ततः । हा हा राज त मु रत ेत धाव त ।। १९ ।। इस कार वलाप करती तथा ह ज तु से भरे ए वनम अपने प तको ढूँ ढ़ती ई महामना राजा नलक प नी भीमकुमारी दमय ती उ म ई रोती- बलखती और ‘हा राजन्! हा महाराज’ ऐसा बार-बार कहती ई इधर-उधर दौड़ने लगी ।। १८-१९ ।। तां दमानाम यथ कुररी मव वाशतीम् । क णं ब शोच त वलप त मु मु ः ।। २० ।। सहसा यागतां भैमीम याशप रव तनीम् । ज ाहाजगरो ाहो महाकायः ुधा वतः ।। २१ ।। वह कुररी प ीक भाँ त जोर-जोरसे क ण दन कर रही थी और अ य त शोक करती ई बार-बार वलाप कर रही थी। वहाँसे थोड़ी ही रपर एक वशालकाय भूखा अजगर बैठा था। उसने बार-बार च कर लगाती सहसा नकट आयी ई भीमकुमारी दमय तीको (पैर क ओरसे) नगलना आर भ कर दया ।। २०-२१ ।। सा यमाना ाहेण शोकेन च प र लुता । ना मानं शोच त तथा यथा शोच त नैषधम् ।। २२ ।। शोकम डू बी ई वैदभ को अजगर नगल रहा था, तो भी वह अपने लये उतना शोक नह कर रही थी, जतना शोक उसे नषधनरेश नलके लये था ।। २२ ।। हा नाथ मा मह वने यमानामनाथवत् । ाहेणानेन वजने कमथ नानुधाव स ।। २३ ।। (वह वलाप करती ई कहने लगी—) ‘हा नाथ! इस नजन वनम यह अजगर सप मुझे अनाथक भाँ त नगल रहा है। आप मेरी र ाके लये दौड़कर आते य नह ह? ।। २३ ।। कथं भ व य स पुनमामनु मृ य नैषध । कथं भवा गामा मामु सृ य वने भो ।। २४ ।। ‘ नषधनरेश! य द म मर गयी, तो मुझे बार-बार याद करके आपक कैसी दशा हो जायगी? भो! आज मुझे वनम छोड़कर आप य चले गये? ।। २४ ।। े ो

पापा मु ः पुनल वा बु चेतो धना न च । ा त य ते ुधात य प र लान य नैषध । कः मं राजशा ल नाश य य त तेऽनघ ।। २५ ।। ‘ न पाप नषधनरेश! इस संकटसे मु होनेपर जब आपको पुनः शु बु , चेतना और धन आ दक ा त होगी, उस समय मेरे बना आपक या दशा होगी? नृप वर! जब आप भूखसे पी ड़त हो थके-माँदे एवं अ य त ख ह गे, उस समय आपक उस थकावटको कौन र करेगा?’ ।। २५ ।। ततः क मृग ाधो वचरन् गहने वने । आ दमानां सं ु य जवेना भससार ह ।। २६ ।। इसी समय कोई ाध उस गहन वनम वचर रहा था। वह दमय तीका क ण दन सुनकर बड़े वेगसे उधर आया ।। २६ ।।

तां तु ् वा तथा तामुरगेणायते णाम् । वरमाणो मृग ाधः सम भ य वेगतः ।। २७ ।। मुखतः पाटयामास श ेण न शतेन च । न वचे ं भुज ं तं वश य मृगजीवनः ।। २८ ।। मो य वा स तां ाधः ा य स ललेन ह । समा ा य कृताहारामथ प छ भारत ।। २९ ।। ी

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उस वशाल नयन वाली युवतीको अजगरके ारा उस कार नगली जाती ई दे ख ाधने बड़ी उतावलीके साथ वेगसे दौड़कर तीखे श से शी ही उस अजगरका मुख फाड़ दया। वह अजगर छटपटाकर चे ार हत हो गया। मृग को मारकर जी वका चलानेवाले उस ाधने सपके टु कड़े-टु कड़े करके दमय तीको छु ड़ाया। फर जलसे उसके सप त शरीरको धोकर उसे आ ासन दे उसके लये भोजनक व था कर द । भारत! जब वह भोजन कर चुक , तब ाधने उससे पूछा— ।। २७—२९ ।। क य वं मृगशावा कथं चा यागता वनम् । कथं चेदं महत् कृ ं ा तव य स भा व न ।। ३० ।। ‘मृगलोचने! तुम कसक ी हो और कैसे वनम चली आयी हो? भा म न! कस कार तु ह यह महान् क ा त आ है?’ ।। ३० ।। दमय ती तथा तेन पृ माना वशा पते । सवमेतद् यथावृ माचच ेऽ य भारत ।। ३१ ।। भरतवंशी नरेश यु ध र! ाधके पूछनेपर दमय तीने उसे सारा वृ ा त यथाथ पसे कह सुनाया ।। ३१ ।। तामधव संवीतां पीन ो णपयोधराम् । सुकुमारानव ा पूणच नभाननाम् ।। ३२ ।। अरालप मनयनां तथा मधुरभा षणीम् । ल य वा मृग ाधः काम य वशमी यवान् ।। ३३ ।। थूल नत ब और तन वाली वदभकुमारीने आधे व से ही अपने अंग को ढँ क रखा था। पूण च माके समान मनोहर मुखवाली दमय तीका एक-एक अंग सुकुमार एवं नद ष था। उसक आँख तरछ बरौ नय से सुशो भत थ और वह बड़े मधुर वरम बोल रही थी। इन सब बात क ओर ल य करके वह ाध कामके अधीन हो गया ।। ३२-३३ ।। तामेवं णया वाचा लुधको मृ पूवया । सा वयामास कामात तदबु यत भा वनी ।। ३४ ।। वह मधुर एवं कोमल वाणीसे उसे अपने अनुकूल बनानेके लये भाँ त-भाँ तके आ ासन दे ने लगा। वह ाध उस समय कामवेदनासे पी ड़त हो रहा था। सती दमय तीने उसके षत मनोभावको समझ लया ।। ३४ ।। दमय य प तं मुपल य प त ता । ती रोषसमा व ा ज वालेव म युना ।। ३५ ।। प त ता दमय ती भी उसक ताको समझकर ती ोधके वशीभूत हो मानो रोषा नसे व लत हो उठ ।। ३५ ।।

सती दमय तीके तेजसे पापी स तु पापम तः

ु ः धष यतुमातुरः ।

ाधका वनाश

धषा तकयामास द ताम न शखा मव ।। ३६ ।। य प वह नीच पापा मा ाध उसपर बला कार करनेके लये ाकुल हो गया था, परंतु दमय ती अ न शखाक भाँ त उ त हो रही थी; अतः उसका पश करना उसको अ य त कर तीत आ ।। ३६ ।। दमय ती तु ःखाता प तरा य वनाकृता । अतीतवा पथे काले शशापैनं षा वता ।। ३७ ।। प त तथा रा य दोन से वं चत होनेके कारण दमय ती अ य त ःखसे आतुर हो रही थी। इधर ाधक कुचे ा वाणी ारा रोकनेपर क सके, ऐसी तीत नह होती थी। तब (उस ाधपर अ य त हो) उसने उसे शाप दे दया— ।। ३७ ।। य हं नैषधाद यं मनसा प न च तये । तथायं पततां ु ो परासुमृगजीवनः ।। ३८ ।। ‘य द म नषधराज नलके सवा सरे कसी पु षका मनसे भी च तन नह करती होऊँ, तो इसके भावसे यह तु छ ाध ाणशू य होकर गर पड़े’ ।। ३८ ।। उ मा े तु वचने तथा स मृगजीवनः । सुः पपात मे द याम नद ध इव मः ।। ३९ ।। दमय तीके इतना कहते ही वह ाध आगसे जले ए वृ क भाँ त ाणशू य होकर पृ वीपर गर पड़ा ।। ३९ ।।







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ीमहाभारते वनपव ण नलोपा यानपव ण अजगर तदमय तीमोचने ष तमोऽ यायः ।। ६३ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत नलोपा यानपवम अजगर तदमय तीमोचन वषयक तरसठवाँ अ याय पूरा आ ।। ६३ ।।

चतुःष तमोऽ यायः दमय तीका वलाप और लाप, तप वय ारा दमय तीको आ ासन तथा उसक ापा रय के दलसे भट बृहद उवाच सा नह य मृग ाधं त थे कमले णा । वनं तभयं शू यं झ लकागणना दतम् ।। १ ।। बृहद मु न कहते ह—राजन्! ाधका वनाश करके वह कमलनयनी राजकुमारी झ लय क झंकारसे गूँजते ए नजन एवं भयंकर वनम आगे बढ़ ।। १ ।। सह प ा म हष गणैयुतम् । नानाप गणाक ण ले छत करसे वतम् ।। २ ।। वह वन सह, चीत , मृग, ा , भस तथा रीछ आ द पशु से यु एवं भाँ तभाँ तके प -समुदायसे ा त था। वहाँ ले छ और त कर का नवास था ।। २ ।। शालवेणुधवा थ त केङ् गुद कशुकैः । अजुना र संछ ं य दनै सशा मलैः ।। ३ ।। ज वा लो ख दरसालवे समाकुलम् । पकामलक ल कद बो बरावृतम् ।। ४ ।। बदरी ब वसंछ ं य ोधै समाकुलम् । यालतालखजूरहरीतक बभीतकैः ।। ५ ।। शाल, वेणु, धव, पीपल, त क, इंगद ु , पलाश, अजुन, अ र , य दन ( त नश), सेमल, जामुन, आम, लोध, खैर, साखू, बत, प क, आँवला, पाकर, कद ब, गूलर, बेर, बेल, बरगद, याल, ताल, खजूर, हर तथा बहेड़े आ द वृ से वह वशाल वन प रपूण हो रहा था ।। नानाधातुशतैन ान् व वधान प चाचलान् । नकु ान् प रसंघु ान् दरी ा तदशनाः ।। ६ ।। दमय तीने वहाँ सैकड़ धातु से संयु नाना कारके पवत, प य के कलरव से गुंजायमान कतने ही नकुंज और अ त क दराएँ दे ख ।। ६ ।। नद ः सरां स वापी व वधां मृग जान् । सा बन् भीम पां पशाचोरगरा सान् ।। ७ ।। प वला न तडागा न ग रकूटा न सवशः । स रतो नझरा ैव ददशा तदशनान् ।। ८ ।। कतनी ही न दय , सरोवर , बाव लय तथा नाना कारके मृग और प य को दे खा। उसने ब त-से भयानक पवाले पशाच, नाग तथा रा स दे खे। कतने ही ग , पोखर और पवत शखर का अवलोकन कया। स रता और अ त झरन को दे खा ।। ७-८ ।। ो





यूथशो द शे चा वदभा धपन दनी । म हषां वराहां ऋ ां वनप गान् ।। ९ ।। तेजसा यशसा ल या थ या च परया युता । वैदभ वचर येका नलम वेषती तदा ।। १० ।। वदभराजन दनीने उस वनम झुंड-के-झुंड भसे, सूअर, रीछ और जंगली साँप दे खे। तेज, यश, शोभा और परम धैयसे यु वदभकुमारी उस समय अकेली वचरती और नलको ढूँ ढ़ती थी ।। ९-१० ।। ना ब यत् सा नृपसुता भैमी त ाथ क य चत् । दा णामटव ा य भतृ सनपी डता ।। ११ ।। वह प तके वरह पी संकटसे संत त थी। अतः राजकुमारी दमय ती उस भयंकर वनम वेश करके भी कसी जीव-ज तुसे भयभीत नह ई ।। ११ ।। वदभतनया राजन् वललाप सु ःखता । भतृशोकपरीता शलातलमथा ता ।। १२ ।। राजन्! वदभकुमारी दमय तीके अंग-अंगम प तके वयोगका शोक ा त हो गया था, इस लये वह अ य त ःखत हो एक शलाके नीचे भागम बैठकर ब त वलाप करने लगी— ।। १२ ।। दमय युवाच ूढोर क महाबाहो नैषधानां जना धप । व नु राजन् गतोऽ य वसृ य वजने वने ।। १३ ।। अ मेधा द भव र तु भभू रद णैः । कथ म ् वा नर ा म य मया वतसे ।। १४ ।। दमय ती बोली—चौड़ी छातीवाले महाबा नषधनरेश महाराज! आज इस नजन वनम (मुझ अकेलीको) छोड़कर आप कहाँ चले गये? नर े ! वीर शरोमणे! चुर द णावाले अ मेध आ द य का अनु ान करके भी आप मेरे साथ म या बताव य कर रहे ह? ।। १३-१४ ।। यत् वयो ं नर े तत् सम ं महा ुते । मतुमह स क याण वचनं पा थवषभ ।। १५ ।। महातेज वी क याणमय राजा म उ म नर े ! आपने मेरे सामने जो बात कही थी, अपनी उस बातका मरण करना उ चत है ।। १५ ।। य चो ं वहगैहसैः समीपे तव भू मप । म सम ं य ं च तदवे तुमह स ।। १६ ।। भू मपाल! आकाशचारी हंस ने आपके समीप तथा मेरे सामने जो बात कही थ , उनपर वचार क जये ।। १६ ।। च वार एकतो वेदाः सा ोपा ाः स व तराः । वधीता मनुज ा स यमेकं कलैकतः ।। १७ ।। ओ





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नर सह! एक ओर अंग और उपांग स हत व तारपूवक चार वेद का वा याय हो और सरी ओर केवल स यभाषण हो तो वह न य ही उससे बढ़कर है ।। १७ ।। त मादह स श ु न स यं कतु नरे र । उ वान स यद् वीर म सकाशे पुरा वचः ।। १८ ।। अतः श ुह ता नरे र! वीर! आपने पहले मेरे समीप जो बात कही ह, उ ह स य करना चा हये ।। १८ ।। हा वीर नल नामाहं न ा कल तवानघ । अ यामट ां घोरायां क मां न तभाषसे ।। १९ ।। हा न पाप वीर नल! आपक म दमय ती इस भयंकर वनम न हो रही ँ, आप मेरी बातका उ र य नह दे ते? ।। १९ ।। कषय येष मां रौ ो ा ा यो दा णाकृ तः । अर यराट् ुधा व ः क मां न ातुमह स ।। २० ।। यह भयानक आकृ तवाला ू र सह भूखसे पी ड़त हो मुँह बाये खड़ा है और मुझपर आ मण करना चाहता है, या आप मेरी र ा नह कर सकते? ।। २० ।। न मे वद या का च या ती य वीः सदा । तामृतां कु क याण पुरो ां भारत नृप ।। २१ ।। क याणमय नरेश! आप पहले जो सदा यह कहते थे क तु हारे सवा सरी कोई भी ी मुझे य नह है, अपनी उस बातको स य क जये ।। २१ ।। उ म ां वलप त मां भाया म ां नरा धप । ई सतामी सतोऽ स वं क मां न तभाषसे ।। २२ ।। महाराज! म आपक य प नी ँ और आप मेरे यतम प त ह, ऐसी दशाम भी म यहाँ उ म वलाप कर रही ँ तो भी आप मेरी बातका उ र य नह दे ते? ।। २२ ।। कृशां द नां ववणा च म लनां वसुधा धप । व ाध ावृतामेकां वलप तीमनाथवत् ।। २३ ।। यूथ ा मवैकां मां ह रण पृथुलोचन । न मानय स मामाय द तीम रकशन ।। २४ ।। पृ वीनाथ! म द न, बल, का तहीन और म लन होकर आधे व से अपने अंग को ढककर अकेली अनाथ-सी वलाप कर रही ँ। वशाल ने वाले श ुसूदन आय! मेरी दशा अपने झुंडसे बछु ड़ी ई ह रणीक -सी हो रही है। म यहाँ अकेली रो रही ँ। परंतु आप मेरा मान नह रखते ह ।। २३-२४ ।। महाराज महार ये अहमेका कनी सती । दमय य भभाषे वां क मां न तभाषसे ।। २५ ।। महाराज! इस महान् वनम म सती दमय ती अकेली आपको पुकार रही ँ, आप मुझे उ र य नह दे ते? ।। २५ ।। कुलशीलोपस प चा सवा शोभन । ना वां तप या म गराव मन् नरो म ।। २६ ।। े औ े ी े े

नर े ! आप उ म कुल और े शील वभावसे स प ह। आप अपने स पूण मनोहर अंग से सुशो भत होते ह। आज इस पवत शखरपर म आपको नह दे ख पाती ँ ।। २६ ।। वने चा मन् महाघोरे सह ा नषे वते । शयानमुप व ं वा थतं वा नषधा धप ।। २७ ।। नषधनरेश! इस महाभयंकर वनम, जहाँ सह- ा रहते ह, आप कह सोये ह, बैठे ह अथवा खड़े ह? ।। २७ ।। थतं वा नर े मम शोक ववधन । कं नु पृ छा म ःखाता वदथ शोकक शता ।। २८ ।। मेरे शोकको बढ़ानेवाले नर े ! आप यह ह या कह अ य चल दये, यह म कससे पूछूँ? आपके लये शोकसे बल होकर म अ य त ःखसे आतुर हो रही ँ ।। २८ ।। क चद् वयार ये संग येह नलो नृपः । को नु मे वाथ ो वनेऽ मन् थतं नलम् ।। २९ ।। ‘ या तुमने इस वनम राजा नलसे मलकर उ ह दे खा है?’ ऐसा अब म इस वनम थान करनेवाले नलके वषयम कससे क ँ ? ।। २९ ।। अ भ पं महा मानं पर ूह वनाशनम् । यम वेष स राजानं नलं प नभे णम् ।। ३० ।। अयं स इ त क या ो या म मधुरां गरम्। ‘श ु के ूहका नाश करनेवाले जन परम सु दर कमलनयन महा मा राजा नलको तू खोज रही है, वे यही तो ह, ऐसी मधुर वाणी आज म कसके मुखसे सुनूँगी?’ ।। ३० ।। अर यराडयं ीमां तुद ो महाहनुः ।। ३१ ।। शा लोऽ भमुखोऽ ये त जा येनमशङ् कता । भवान् मृगाणाम धप वम मन् कानने भुः ।। ३२ ।। वह वनका राजा का तमान् सह मेरे सामने चला आ रहा है, इसके चार दाढ़ और वशाल ठोड़ी है। म नःशंक होकर इसके सामने जा रही ँ और कहती ँ, ‘आप मृग के राजा और इस वनके वामी ह ।। ३१-३२ ।। वदभराजतनयां दमय ती त व माम् । नषधा धपतेभाया नल या म घा तनः ।। ३३ ।। ‘म वदभराजकुमारी दमय ती ँ। मुझे श ुघाती नषधनरेश नलक प नी सम झये ।। ३३ ।। प तम वेषतीमेकां कृपणां शोकक षताम् । आ ासय मृगे े ह य द वया नलः ।। ३४ ।। ‘मृगे ! म इस वनम अकेली प तक खोजम भटक रही ँ तथा शोकसे पी ड़त एवं द न हो रही ँ। य द आपने नलको यहाँ कह दे खा हो तो उनका कुशल-समाचार बताकर े



मुझे आ ासन द जये ।। ३४ ।। अथवा वं वनपते नलं य द न शंस स । मां खादय मृग े ःखाद माद् वमोचय ।। ३५ ।। ‘अथवा वनराज मृग े ! य द आप नलके वषयम कुछ नह बताते ह तो मुझे खा जायँ और इस ःखसे छु टकारा दे द’ ।। ३५ ।। ु वार ये वल पतं न मामा ासय ययम् । या येतां वा स ललामापगां सागरंगमाम् ।। ३६ ।। अहो! इस घोर वनम मेरा वलाप सुनकर भी यह सह मुझे सा वना नह दे ता। यह तो वा द जलसे भरी ई इस समु गा मनी नद क ओर जा रहा है ।। इमं शलो चयं पु यं शृ ै ब भ तैः । वराज रवानेकैनकवणमनोरमैः ।। ३७ ।। अ छा, इस प व पवतसे ही पूछती ँ। यह ब त-से ऊँचे-ऊँचे शोभाशाली ब रंगे एवं मनोरम शखर ारा सुशो भत है ।। ३७ ।। नानाधातुसमाक ण व वधोपलभू षतम् । अ यार य य महतः केतुभूत मवो थतम् ।। ३८ ।। अनेक कारके धातु से ा त और भाँ त-भाँ तके शला-ख ड से वभू षत है। यह पवत इस महान् वनक ऊपर उठ ई पताकाके समान जान पड़ता है ।। ३८ ।। सहशा लमात वराह मृगायुतम् । पत भब वधैः सम तादनुना दतम् ।। ३९ ।। यह सह, ा , हाथी, सूअर, रीछ और मृग से प रपूण है। इसके चार ओर अनेक कारके प ी कलरव कर रहे ह ।। ३९ ।। कशुकाशोकबकुलपु ागै पशो भतम् । क णकारधव ल ैः सुपु पै पशो भतम् ।। ४० ।। पलाश, अशोक, बकुल, पु ाग, कनेर, धव तथा ल आ द सु दर फूल वाले वृ से वह पवत सुशो भत हो रहा है ।। ४० ।। स र ः स वह ा भः शखरै समाकुलम् । ग रराज ममं तावत् पृ छा म नृप त त ।। ४१ ।। यह पवत अनेक स रता , सु दर प य और शखर से प रपूण है। अब म इसी ग रराजसे महाराज नलका समाचार पूछती ँ ।। ४१ ।। भगव चल े द दशन व ुत । शर य ब क याण नम तेऽ तु महीधर ।। ४२ ।। ‘भगवन्! अचल वर! द वाले! व यात! सबको शरण दे नेवाले परम क याणमय महीधर! आपको नम कार है ।। ४२ ।। णमा य भग याहं राजपु नबोध माम् । रा ः नुषां राजभाया दमय ती त व ुताम् ।। ४३ ।। ‘



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‘म नकट आकर आपके चरण म णाम करती ँ। आप मेरा प रचय इस कार जान, म राजाक पु ी, राजाक पु वधू तथा राजाक ही प नी ँ। मेरी ‘दमय ती’ नामसे स है ।। ४३ ।। राजा वदभा धप तः पता मम महारथः । भीमो नाम तप त ातुव य य र ता ।। ४४ ।। ‘ वदभदे शके वामी महारथी भीम नामक राजा मेरे पता ह। वे पृ वीके पालक तथा चार वण के र क ह ।। ४४ ।। राजसूया मेधानां तूनां द णावताम् । आहता पा थव े ः पृथुचाव चते णः ।। ४५ ।। ‘उ ह ने ( चुर) द णावाले राजसूय तथा अ मेध नामक य का अनु ान कया है। वे भू मपाल म े ह। उनके ने बड़े, चंचल और सु दर ह ।। ४५ ।। यः साधुवृ स यवागनसूयकः । शीलवान् वीयस प ः पृथु ीधम व छु चः ।। ४६ ।। ‘वे ा णभ , सदाचारी, स यवाद , कसीके दोषको न दे खनेवाले, शीलवान्, परा मी, चुर स प के वामी, धम तथा प व ह ।। ४६ ।। स यग् गो ता वदभाणां न जता रगणः भुः । त य मां व तनयां भगवं वामुप थताम् ।। ४७ ।। ‘वे वदभदे शक जनताका अ छ तरह पालन करनेवाले ह। उ ह ने सम त श ु को जीत लया है, वे बड़े श शाली ह। भगवन्! मुझे उ ह क पु ी जा नये। म आपक सेवाम (एक ज ासा लेकर) उप थत ई ँ ।। ४७ ।। नषधेषु महाराजः शुरो मे नरो मः । गृहीतनामा व यातो वीरसेन इ त म ह ।। ४८ ।। ‘ नषधदे शके महाराज मेरे शुर थे, वे ातः- मरणीय नर े वीरसेनके नामसे व यात थे ।। ४८ ।। त य रा ः सुतो वीरः ीमान् स यपरा मः । म ा तं पतुः वं यो रा यं समनुशा त ह ।। ४९ ।। ‘उ ह महाराज वीरसेनके एक वीर पु ह, जो बड़े ही सु दर और स यपरा मी ह। वे वंशपर परासे ा त अपने पताके रा यका पालन करते ह ।। ४९ ।। नलो नामा रहा यामः पु य ोक इ त ुतः । यो वेद वद् वा मी पु यकृत् सोमपोऽ नमान् ।। ५० ।। ‘उनका नाम नल है। श ुदमन, यामसु दर राजा नल पु य ोक कहे जाते ह। वे बड़े ा णभ , वेदवे ा, व ा, पु या मा, सोमपान करनेवाले और अ नहो ी ह ।। ५० ।। य ा दाता च यो ा च स यक् चैव शा सता । त य मामबलां े ां व भाया महागताम् ।। ५१ ।। य यं भतृहीनामनाथां सना वताम् । अ वेषमाणां भतारं वं मां पवतस म ।। ५२ ।। ‘ े े ी ो औ े े

‘वे एक अ छे य कता, उ म दाता, शूरवीर यो ा और े शासक ह, आप मुझे उ ह क े प नी समझ ली जये। म अबला नारी आपके नकट यहाँ उ ह क कुशल पूछनेके लये आयी ँ। ग रराज! (मेरे वामी मुझे छोड़कर कह चले गये ह।) म धनस प से वं चत, प तदे वसे र हत, अनाथ और संकट क मारी ई ँ। इस वनम अपने प तक ही खोज कर रही ँ ।। ५१-५२ ।। समु लख रेतै ह वया शृ शतैनृपः । क चद् ोऽचल े वनेऽ मन् दा णे नलः ।। ५३ ।। ‘पवत े ! या आपने इन सैकड़ गगनचु बी शखर ारा इस भयानक वनम कह राजा नलको दे खा है? ।। ५३ ।। गजे व मो धीमान् द घबा रमषणः । व ा तः स ववान् वीरो भता मम महायशाः ।। ५४ ।। नषधानाम धप तः क चद् वया नलः । वलपत कमेकां मां पवत े व लाम् ।। ५५ ।। गरा ना ासय य वां सुता मव ःखताम् । ‘मेरे महायश वी वामी नषधराज नल गजराजक -सी चालसे चलते ह। वे बड़े बु मान्, महाबा , अमषशील ( ःखको न सह सकनेवाले), परा मी, धैयवान् तथा वीर ह। या आपने कह उ ह दे खा है? ग र े ! म आपक पु ीके समान ँ और (प तके वयोगसे ब त ही) ःखी ँ। या आप ाकुल होकर अकेली वलाप करती ई मुझ अबलाको आज अपनी वाणी ारा आ ासन न दगे?’ ।। ५४-५५ ।। वीर व ा त धम स यसंध महीपते ।। ५६ ।। य य मन् वने राजन् दशया मानमा मना । वीर! धम ! स य त और परा मी महीपाल! य द आप इसी वनम ह तो राजन्! अपने-आपको कट करके मुझे दशन द जये ।। ५६ ।। कदा सु न धग भीरां जीमूत वनसं नभाम् ।। ५७ ।। ो या म नैषध याहं वाचं ताममृतोपमाम् । वैदभ येव व प ां शुभां रा ो महा मनः ।। ५८ ।। आ नायसा रणीमृ ां मम शोक वना शनीम् । म कब नषधराज नलक मेघ-गजनाके समान न ध, ग भीर, अमृतोपम वह मधुर वाणी सुनूँगी। उन महामना राजाके मुखसे ‘वैद भ!’ इस स बोधनसे यु शुभ, प , वेदके अनुकूल, सु दर पद और अथसे यु तथा मेरे शोकका वनाश करनेवाली वाणी मुझे कब सुनायी दे गी ।। ५७-५८ ।। भीतामा ासयत मां नृपते धमव सल ।। ५९ ।। धमव सल नरे र! मुझ भयभीत अबलाको आ ासन द जये ।। ५९ ।। इ त सा तं ग र े मु वा पा थवन दनी । दमय ती ततो भूयो जगाम दशमु राम् ।। ६० ।। े







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इस कार उस े पवतसे कहकर वह राजकुमारी दमय ती फर वहाँसे उ र दशाक ओर चल द ।। ६० ।। सा ग वा ीनहोरा ान् ददश परमा ना । तापसार यमतुलं द काननशो भतम् ।। ६१ ।। लगातार तीन दन और तीन रात चलनेके प ात् उस े नारीने तप वय से यु एक वन दे खा, जो अनुपम तथा द वनसे सुशो भत था ।। ६१ ।। व स भृ व समै तापसै पशो भतम् । नयतैः संयताहारैदमशैचसम वतैः ।। ६२ ।। तथा व स , भृगु और अ के समान नयम-परायण, मताहारी तथा (शम,) दम, शौच आ दसे स प तप वय से वह शोभायमान हो रहा था ।। ६२ ।। अभ ैवायुभ ै प ाहारै तथैव च । जते यैमहाभागैः वगमाग द ु भः ।। ६३ ।। वहाँ कुछ तप वीलोग केवल जल पीकर रहते थे और कुछ लोग वायु पीकर। कतने ही केवल प े चबाकर रहते थे। वे जते य महाभाग वगलोकके मागका दशन करना चाहते थे ।। ६३ ।। व कला जनसंवीतैमु न भः संयते यैः । तापसा यु षतं र यं ददशा मम डलम् ।। ६४ ।। व कल और मृगचम धारण करनेवाले उन जते य मु नय से से वत एक रमणीय आ मम डल दखायी दया, जसम ायः तप वीलोग ही नवास करते थे ।। ६४ ।। नानामृगगणैजु ं शाखामृगगणायुतम् । तापसैः समुपेतं च सा ् वैव समा सत् ।। ६५ ।। उस आ मम नाना कारके मृग और वानर के समुदाय भी वचरते रहते थे। तप वी महा मा से भरे ए उस आ मको दे खते ही दमय तीको बड़ी सा वना मली ।। ६५ ।। सु ूः सुकेशी सु ोणी सुकुचा सु जानना । वच वनी सु त ा व सतायतलोचना ।। ६६ ।। उसक भ ह बड़ी सु दर थ । केश मनोहर जान पड़ते थे। नत बभाग, तन, द तपं और मुख सभी सु दर थे। उसके मनोहर कजरारे ने वशाल थे। वह तेज वनी और त त थी ।। ६६ ।। सा ववेशा मपदं वीरसेनसुत या । यो ष नं महाभागा दमय ती तप वनी ।। ६७ ।। महाराज वीरसेनक पु वधू रमणी शरोम ण महाभागा तप वनी उस दमय तीने आ मके भीतर वेश कया ।। ६७ ।। सा भवा तपोवृ ान् वनयावनता थता । वागतं त इ त ो ा तैः सव तापसो मैः ।। ६८ ।। वहाँ तपोवृ महा मा को णाम करके वह उनके समीप वनीतभावसे खड़ी हो गयी। तब वहाँके सभी े तप वीजन ने उससे कहा—‘दे व! तु हारा वागत है’ ।। ६८ ।। ो

पूजां चा या यथा यायं कृ वा त तपोधनाः । आ यता म यथोचु ते ू ह क करवामहे ।। ६९ ।। तदन तर वहाँ दमय तीका यथो चत आदर-स कार करके उन तपोधन ने कहा—‘शुभे! बैठो, बताओ, हम तु हारा कौन-सा काय स कर’ ।। ६९ ।। तानुवाच वरारोहा क चद् भगवता मह । तपः व नषु धमषु मृगप षु चानघाः ।। ७० ।। कुशलं वो महाभागाः वधमाचरणेषु च । तै ा कुशलं भ े सव े त यश व न ।। ७१ ।। उस समय सु दर अंग वाली दमय तीने उनसे कहा—‘भगवन्! न पाप महाभागगण! यहाँ तप, अ नहो , धम, मृग और प य के पालन तथा अपने धमके आचरण आ द वषय म आपलोग सकुशल ह न?’ तब उन महा मा ने कहा—‘भ े ! यश व न! सव कुशल है ।। ७०-७१ ।। ू ह सवानव ा का वं क च चक ष स । ् वैव ते परं पं ु त च परमा मह ।। ७२ ।। व मयो नः समु प ः समा स ह मा शुचः । अ यार य य दे वी वमुताहोऽ य महीभृतः ।। ७३ ।। ‘सवागसु दरी! बताओ, तुम कौन हो और या करना चाहती हो? तु हारे उ म प और परम सु दर का तको यहाँ दे खकर हम बड़ा व मय हो रहा है। धैय धारण करो, शोक न करो। तुम इस वनक दे वी हो या इस पवतक अ धदे वता ।। ७२-७३ ।। अ या न ाः क या ण वद स यम न दते । सा वीत् तानृषीन् नाहमर य या य दे वता ।। ७४ ।। न चा य य गरे व ा नैव न ा दे वता । मानुष मां वजानीत यूयं सव तपोधनाः ।। ७५ ।। ‘अ न दते! क या ण! अथवा तुम इस नद क अ ध ा ी दे वी हो, सच-सच बताओ।’ दमय तीने उन ऋ षय से कहा—‘तप याके धनी ा णो! न तो म इस वनक दे वी ँ, न पवतक अ धदे वता और न इस नद क ही दे वी ँ। आप सब लोग मुझे मानवी समझ ।। ७४-७५ ।। व तरेणा भधा या म त मे शृणुत सवशः । वदभषु महीपालो भीमो नाम महीप तः ।। ७६ ।। ‘म व तारपूवक अपना प रचय दे रही ँ, आपलोग सुन। वदभदे शम भीम नामसे स एक भू मपाल ह ।। ७६ ।। त य मां तनयां सव जानीत जस माः । नषधा धप तध मान् नलो नाम महायशाः ।। ७७ ।। वीरः सं ाम जद् व ान् मम भता वशा प तः । दे वता यचनपरो जा तजनव सलः ।। ७८ ।। ‘



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‘ जवरो! आप सब महा मा जान ल, म उ ह महाराजक पु ी ँ। नषधदे शके वामी, सं ाम वजयी, वीर, व ान्, बु मान्, जापालक महायश वी राजा नल मेरे प त ह। वे दे वता के पूजनम संल न रहते ह और ा ण के त उनके दयम बड़ा नेह है ।। ७७-७८ ।। गो ता नषधवंश य महातेजा महाबलः । स यवान् धम वत् ा ः स यसंधोऽ रमदनः ।। ७९ ।। यो दै वतपरः ीमान् परपुरंजयः । नलो नाम नृप े ो दे वराजसम ु तः ।। ८० ।। मम भता वशाला ः पूण वदनोऽ रहा । आहता तुमु यानां वेदवेदा पारगः ।। ८१ ।। ‘वे नषधकुलके र क, महातेज वी, महाबली, स यवाद , धम , व ान्, स य त , श ुमदन, ा णभ , दे वोपासक, शोभा और स प से यु तथा श ु क राजधानीपर वजय पानेवाले ह। मेरे वामी नृप े नल दे वराज इ के समान तेज वी ह। उनके ने वशाल ह, उनका मुख पूण च माके समान सु दर है, वे श ु का संहार करनेवाले, बड़ेबड़े य के आयोजक और वेद-वेदांग के पारंगत व ान् ह ।। ७९—८१ ।। सप नानां मृधे ह ता र वसोमसम भः । स कै कृ त ैरनायरकृता म भः ।। ८२ ।। आय पृ थवीपालः स यधमपरायणः । दे वने कुशलै ज ै तं रा यं वसू न च ।। ८३ ।। ‘यु म उ ह ने कतने ही श ु का संहार कया है। वे सूय और च माके समान तेज वी और का तमान् ह। एक दन कुछ कपटकुशल, अ जते य, अनाय, कु टल तथा ूत नपुण जुआ र ने उन स य-धमपरायण महाराज नलको जूएके लये आवाहन करके उनके सारे रा य और धनका अपहरण कर लया ।। त य मामवग छ वं भाया राजषभ य वै । दमय ती त व यातां भतुदशनलालसाम् ।। ८४ ।। ‘आप दमय ती नामसे व यात मुझे उ ह नृप े नलक प नी जान। म अपने वामीके दशनके लये उ सुक हो रही ँ ।। ८४ ।। सा वना न गर ैव सरां स स रत तथा । प वला न च सवा ण तथार या न सवशः ।। ८५ ।। अ वेषमाणा भतारं नलं रण वशारदम् । महा मानं कृता ं च वचरामीह ःखता ।। ८६ ।। ‘मेरे प त महामना नल यु कलाम कुशल और स पूण अ -श के व ान् ह। म उ ह क खोज करती ई वन, पवत, सरोवर, नद , ग े और सभी जंगल म ःखी होकर घूमती ँ ।। ८५-८६ ।। क चद् भगवतां र यं तपोवन मदं नृपः । भवेत् ा तो नलो नाम नषधानां जना धपः ।। ८७ ।। े

य कृतेऽह मदं न् प ा भृशदा णम् । वनं तभयं घोरं शा लमृगसे वतम् ।। ८८ ।। ‘भगवन्! या आपके इस रमणीय तपोवनम नषधनरेश नल आये थे? न्! जनके लये म ा , सह आ द पशु से से वत अ य त दा ण, भयंकर, घोर वनम आयी ँ ।। ८७-८८ ।। य द कै दहोरा ैन या म नलं नृपम् । आ मानं ेयसा यो ये दे ह या य वमोचनात् ।। ८९ ।। ‘य द कुछ ही दन-रातम म राजा नलको नह दे खूँगी तो इस शरीरका प र याग करके आ माका क याण क ँ गी ।। ८९ ।। को नु मे जी वतेनाथ तमृते पु षषभम् । कथं भ व या य ाहं भतृशोका भपी डता ।। ९० ।। ‘उन पु षर न नलके बना जीवन धारण करनेसे मेरा या योजन है? अब म प तशोकसे पी ड़त होकर न जाने कैसी हो जाऊँगी?’ ।। ९० ।। तथा वलपतीमेकामर ये भीमन दनीम् । दमय तीमथोचु ते तापसाः स यद शनः ।। ९१ ।। इस कार वनम अकेली वलाप करती ई भीमन दनी दमय तीसे स यका दशन करनेवाले उन तप वय ने कहा— ।। ९१ ।। उदक तव क या ण क याणो भ वता शुभे । वयं प याम तपसा ं य स नैषधम् ।। ९२ ।। ‘क या ण! शुभे! हम अपने तपोबलसे दे ख रहे ह, तु हारा भ व य परम क याणमय होगा। तुम शी ही नषधनरेश नलका दशन ा त करोगी ।। ९२ ।। नषधानाम धप त नलं रपु नपा तनम् । भै म धमभृतां े ं यसे वगत वरम् ।। ९३ ।। ‘भीमकुमारी! तुम श ु का संहार करनेवाले नषधदे शके अ धप त और धमा मा म े राजा नलको सब कारक च ता से र हत दे खोगी ।। ९३ ।। वमु ं सवपापे यः सवर नसम वतम् । तदे व नगरं े ं शासतमरदमम् ।। ९४ ।। षतां भयकतारं सु दां शोकनाशनम् । प त य स क या ण क याणा भजनं नृपम् ।। ९५ ।। ‘तु हारे प त सब कारके पापज नत ख से मु और स पूण र न से स प ह गे। श ुदमन राजा नल फर उसी े नगरका शासन करगे। वे श ु के लये भयदायक और सु द के लये शोकका नाश करनेवाले ह गे। क या ण! इस कार स कुलम उ प अपने प तको तुम (नरेशके पदपर त त) दे खोगी’ ।। ९४-९५ ।। एवमु वा नल ये ां म हष पा थवा मजाम् । अ त हता तापसा ते सा नहो ा मा तथा ।। ९६ ।। ी



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नलक यतमा महारानी राजकुमारी दमय तीसे ऐसा कहकर वे सभी तप वी अ नहो और आ मस हत अ य हो गये ।। ९६ ।। सा ् वा महदा य व मता भवत् तदा । दमय यनव ा वीरसेननृप नुषा ।। ९७ ।। उस समय राजा वीरसेनक पु वधू सवागसु दरी दमय ती वह महान् आ यक बात दे खकर बड़े व मयम पड़ गयी ।। ९७ ।। क नु व ो मया ः कोऽयं व ध रहाभवत् । व नु ते तापसाः सव व तदा मम डलम् ।। ९८ ।। (उसने सोचा—) ‘ या मने कोई व दे खा है? यहाँ यह कैसी अ त घटना हो गयी? वे सब तप वी कहाँ चले गये और वह आ मम डल कहाँ है?’ ।। ९८ ।। व सा पु यजला र या नद ज नषे वता । व नु ते ह नगा ाः फलपु पोपशो भताः ।। ९९ ।। ‘वह पु यस लला रमणीय नद , जसपर प ी नवास कर रहे थे, कहाँ चली गयी? फल और फूल से सुशो भत वे मनोरम वृ कहाँ वलीन हो गये!’ ।। ९९ ।। या वा चरं भीमसुता दमय ती शु च मता । भतृशोकपरा द ना ववणवदनाभवत् ।। १०० ।। प व मुसकानवाली भीमपु ी दमय ती ब त दे रतक इन सब बात पर वचार करती रही। त प ात् वह प तशोकपरायण और द न हो गयी तथा उसके मुखपर उदासी छा गयी ।। १०० ।। सा ग वाथापरां भूम बा पसं द धया गरा । वललापा ुपूणा ी ् वाशोकत ं ततः ।। १०१ ।। उपग य त े मशोकं पु पतं वने । प लवापी डतं ं वह ै रनुना दतम् ।। १०२ ।। तदन तर वह सरे थानपर जाकर अ ुगद वाणीसे वलाप करने लगी। उसने आँसू भरे ने से दे खा, वहाँसे कुछ ही रपर एक अशोकका वृ था। दमय ती उसके पास गयी। वह त वर अशोक-फूल से भरा था। उस वनम प लव से लदा आ और प य के कलरव से गुंजायमान वह वृ बड़ा ही मनोरम जान पड़ता था ।। १०१-१०२ ।। अहो बतायमगमः ीमान मन् वना तरे । आपीडैब भभा त ीमान् पवतरा डव ।। १०३ ।। (उसे दे खकर वह मन-ही-मन कहने लगी—) ‘अहो! इस वनके भीतर यह अशोक बड़ा ही सु दर है। यह अनेक कारके फल, फूल आ द अलंकार से अलंकृत सु दर ग रराजक भाँ त सुशो भत हो रहा है’ ।। १०३ ।। वशोकां कु मां मशोक यदशन । वीतशोकभयाबाधं क चत् वं वान् नृपम् ।। १०४ ।। नलं नामा रदमनं दमय याः यं प तम् । नषधानाम धप त वान स मे यम् ।। १०५ ।। ( े ो े )‘ ो ी ी े ो

(अब उसने अशोकसे कहा—) ‘ यदशन अशोक! तुम शी ही मेरा शोक र कर दो। या तुमने शोक, भय और बाधासे र हत श ुदमन राजा नलको दे खा है? या मेरे यतम, दमय तीके ाणव लभ, नषधनरेश नलपर तु हारी पड़ी है? ।। १०४-१०५ ।। एकव ाधसंवीतं सुकुमारतनु वचम् । सनेना दतं वीरमर य मदमागतम् ।। १०६ ।। ‘उ ह ने एक साड़ीके आधे टु कड़ेसे अपने शरीरको ढँ क रखा है, उनके अंग क वचा बड़ी सुकुमार है। वे वीरवर नल भारी संकटसे पी ड़त होकर इस वनम आये ह ।। १०६ ।। यथा वशोका ग छे यमशोकनग तत् कु । स यनामा भवाशोक अशोकः शोकनाशनः ।। १०७ ।। ‘अशोकवृ ! तुम ऐसा करो, जससे म यहाँसे शोकर हत होकर जाऊँ। अशोक उसे कहते ह, जो शोकका नाश करनेवाला हो, अतः अशोक! तुम अपने नामको स य एवं साथक करो’ ।। १०७ ।। एवं साशोकवृ ं तमाता वै प रग य ह । जगाम दा णतरं दे शं भैमी वरा ना ।। १०८ ।। इस कार शोकात ई सु दरी दमय ती उस अशोकवृ क प र मा करके वहाँसे अ य त भयंकर थानक ओर गयी ।। १०८ ।। सा ददश नगान् नैकान् नैका स रत तथा । नैकां पवतान् र यान् नैकां मृगप णः ।। १०९ ।। क दरां नत बां नद ा तदशनाः । ददश तान् भीमसुता प तम वेषती तदा ।। ११० ।। ग वा कृ म वानं दमय ती शु च मता । ददशाथ महासाथ ह य रथसंकुलम् ।। १११ ।। उ र तं नद र यां स स ललां शुभाम् । सुशीततोयां व तीणा दन वेतसैवृताम् ।। ११२ ।। उसने अनेक कारके वृ , अनेकानेक स रता , ब सं यक रमणीय पवत , अनेक मृग-प य , पवतक क दरा तथा उनके म यभाग और अ त न दय को दे खा। प तका अ वेषण करनेवाली दमय तीने उस समय पूव सभी व तु को दे खा। इस तरह ब त रतकका माग तय कर लेनेके बाद प व मुसकानवाली दमय तीने एक ब त बड़े साथ ( ापा रय के दल)-को दे खा, जो हाथी, घोड़े तथा रथसे ा त था। वह ापा रय का समूह व छ जलसे सुशो भत एक सु दर रमणीय नद को पार कर रहा था। नद का जल ब त ठं डा था। उसका पाट चौड़ा था। उसम कई कु ड थे और वह कनारेपर उगे ए बतके वृ से आ छा दत हो रही थी ।। १०९—११२ ।। ोद्घु ां ौ चकुररै वाकोपकू जताम् । कूम ाहझषाक णा वपुल पशो भताम् ।। ११३ ।। े











उसके तटपर च, कुरर और च वाक आ द प ी कूज रहे थे। कछु ए, मगर और मछ लय से भरी ई वह नद व तृत टापूसे सुशो भत हो रही थी ।। ११३ ।। सा ् वैव महासाथ नलप नी यश वनी । उपस य वरारोहा जनम यं ववेश ह ।। ११४ ।। उस ब त बड़े समूहको दे खते ही यश वनी नलप नी सु दरी दमय ती उसके पास प ँच कर लोग क भीड़म घुस गयी ।। ११४ ।। उम पा शोकाता तथा व ाधसंवृता । कृशा ववणा म लना पांसु व त शरो हा ।। ११५ ।। उसका प उ म ीका-सा जान पड़ता था, वह शोकसे पी ड़त, बल, उदास और म लन हो रही थी। उसने आधे व से अपने शरीरको ढक रखा था और उसके केश पर धूल जम गयी थी ।। ११५ ।। तां ् वा त मनुजाः के चद् भीताः वुः । के च च तापरा ज मुः के चत् त वचु ु शुः ।। ११६ ।। वहाँ दमय तीको सहसा दे खकर कतने ही मनु य भयसे भाग खड़े ए। कोई-कोई भारी च ताम पड़ गये और कुछ लोग तो चीखने- च लाने लगे ।। ११६ ।। हस त म तां के चद यसूय त चापरे । अकुवत दयां के चत् प छु ा प भारत ।। ११७ ।। कुछ लोग उसक हँसी उड़ाते थे और कुछ उसम दोष दे ख रहे थे। भारत! उ ह म कुछ लोग ऐसे भी थे, ज ह उसपर दया आ गयी और उ ह ने उसका समाचार पूछा — ।। ११७ ।। का स क या स क या ण क वा मृगयसे वने । वां ् वा थताः मेह क चत् वम स मानुषी ।। ११८ ।। ‘क या ण! तुम कौन हो? कसक ी हो और इस वनम या खोज रही हो? तु ह दे खकर हम ब त ःखी ह। या तुम मानवी हो? ।। ११८ ।। वद स यं वन या य पवत याथवा दशः । दे वता वं ह क या ण वां वयं शरणं गताः ।। ११९ ।। ‘क या ण! सच बताओ, तुम इस वन, पवत अथवा दशाक अ ध ा ी दे वी तो नह हो? हम सब लोग तु हारी शरणम आये ह ।। ११९ ।। य ी वा रा सी वा वमुताहोऽ स वरा ना । सवथा कु नः व त र वा मान न दते ।। १२० ।। यथायं सवथा साथः ेमी शी मतो जेत् । तथा वध व क या ण यथा ेयो ह नो भवेत् ।। १२१ ।। ‘तुम य ी हो या रा सी अथवा कोई े दे वांगना हो? अ न दते! सवथा हमारा क याण एवं संर ण करो। क या ण! यह हमारा समूह शी कुशलपूवक यहाँसे चला जाय और हमलोग का सब कारसे भला हो, ऐसी कृपा करो’ ।। १२०-१२१ ।। तथो ा तेन साथन दमय ती नृपा मजा । ी ी

युवाच ततः सा वी भतृ सनपी डता ।। १२२ ।। उस या ीदलके ारा जब ऐसी बात कही गयी, तब प तके वयोगज नत ःखसे पी ड़त सा वी राजकुमारी दमय तीने उन सबको इस कार उ र दया— ।। १२२ ।। साथवाहं च साथ च जना ये चा केचन । युव थ वरबाला साथ य च पुरोगमाः ।। १२३ ।। मानुष मां वजानीत मनुजा धपतेः सुताम् । नृप नुषां राजभाया भतृदशनलालसाम् ।। १२४ ।। ‘इस जनसमुदायके जो सरदार ह , उनसे, इस जनसमूहसे तथा इसके (भीतर रहनेवाले और) आगे चलनेवाले जो बाल-वृ और युवक मनु य ह , उन सबसे मेरा यह कहना है क आप सब लोग मुझे मानवी समझ। म एक नरेशपु ी, महाराजक पु वधू तथा राजप नी ँ। अपने वामीके दशनक इ छासे इस वनम भटक रही ँ ।। १२३-१२४ ।। वदभरा मम पता भता राजा च नैषधः । नलो नाम महाभाग तं मृ या यपरा जतम् ।। १२५ ।। ‘ वदभराज भीम मेरे पता ह, नषधनरेश महाभाग राजा नल मेरे प त ह। म उ ह अपरा जत वीर नलक खोज कर रही ँ ।। १२५ ।। य द जानीत नृप त ं शंसत मे यम् । नलं पु षशा लम म गणसूदनम् ।। १२६ ।। ‘य द आपलोग श ुसमूहका संहार करनेवाले मेरे यतम पु ष सह महाराज नलके वषयम कुछ जानते ह तो शी बताव’ ।। १२६ ।। तामुवाचानव ा साथ य महतः भुः । साथवाहः शु चनाम शृणु क या ण म चः ।। १२७ ।। उस महान् समूहका मा लक और सम त या ीदलका संचालक (व णक्) शु चनामसे स था। उसने उस सु दरीसे कहा—‘क या ण! मेरी बात सुनो’— ।। १२७ ।। अहं साथ य नेता वै साथवाहः शु च मते । मनु यं नलनामानं न प या म यश व न ।। १२८ ।। ‘शु च मते! म इस दलका नेता और संचालक ँ। यश व न! मने नल नामधारी कसी मनु यको इस वनम नह दे खा है ।। १२८ ।। कु र पम हषशा ल मृगान प । प या य मन् वने कृ ने मनु य नषे वते ।। १२९ ।। ‘यह स पूण वन मनु येतर ा णय से भरा है। इसके भीतर हा थय , चीत , भस , सह , रीछ और मृग को ही म दे खता आ रहा ँ ।। १२९ ।। ऋते वां मानुष म य न प या म महावने । तथा नो य राड म णभ ः सीदतु ।। १३० ।। ‘तुम-जैसी मानव-क याके सवा और कसी मनु यको म इस वशाल वनम नह दे ख रहा ँ। इस लये य राज म णभ आज हमपर स ह ’ ।। १३० ।। सा वीद् व णजः सवान् साथवाहं च तं ततः । े

व नु या य त साथ ऽयमेतदा यातुमह स ।। १३१ ।। तब दमय तीने उन सब ापा रय तथा दलके संचालकसे कहा—‘आपका यह दल कहाँ जायगा? यह मुझे बताइये’ ।। १३१ ।। साथवाह उवाच साथ ऽयं चे दराज य सुबाहोः स यद शनः । ं जनपदं ग ता लाभाय मनुजा मजे ।। १३२ ।। साथवाहने कहा—राजकुमारी! हमारा यह दल शी ही स यदश चे दराज सुबा के जनपद (नगर)-म वशेष लाभके उ े यसे जायगा ।। १३२ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण नलोपा यानपव ण दमय तीसाथवाहसंगमे चतुःष तमोऽ यायः ।। ६४ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत नलोपा यानपवम दमय तीक साथवाहसे भट वषयक च सठवाँ अ याय पूरा आ ।। ६४ ।।

प चष तमोऽ यायः जंगली हा थय ारा ापा रय के दलका सवनाश तथा ः खत दमय तीका चे दराजके भवनम सुखपूवक नवास बृहद उवाच सा त छ वानव ा साथवाहवच तदा । जगाम सह तेनैव साथन प तलालसा ।। १ ।। बृहद मु न कहते ह—राजन्! दलके संचालकक वह बात सुनकर नद ष एवं सु दर अंग वाली दमय ती प तदे वके दशनके लये उ सुक हो ापा रय के उस दलके साथ ही या ा करने लगी ।। १ ।। अथ काले ब तथे वने मह त दा णे । तडागं सवतोभ ं पसौग धक ं महत् ।। २ ।। द शुव णजो र यं भूतयवसे धनम् । ब पु पफलोपेतं नानाप नषे वतम् ।। ३ ।। तदन तर ब त समयके बाद एक भयंकर वशाल वनम प ँचकर उन ापा रय ने एक महान् सरोवर दे खा, जसका नाम था, प सौग धक। वह सब ओरसे क याण द जान पड़ता था। उस रमणीय सरोवरके पास घास और धनक अ धकता थी, फूल और फल भी वहाँ चुर मा ाम उपल ध होते थे। उस तालाबपर ब त-से प ी नवास करते थे ।। २-३ ।। नमल वा स ललं मनोहा र सुशीतलम् । सुप र ा तवाहा ते नवेशाय मनो दधुः ।। ४ ।। सरोवरका जल व छ और वा था, वह दे खनेम बड़ा ही मनोहर और अ य त शीतल था। ापा रय के वाहन ब त थक गये थे। इस लये उ ह ने वह पड़ाव डालनेका न य कया ।। ४ ।। स मते साथवाह य व वशुवनमु मम् । उवास साथः सुमहान् वेलामासा प माम् ।। ५ ।। समूहके अ धप तसे अनुम त लेकर सब लोग ने उस उ म वनम वेश कया और वह महान् जनसमुदाय सरोवरके प म तटपर ठहर गया ।। ५ ।। अथाधरा समये नःश द त मते तदा । सु ते साथ प र ा ते ह तयूथमुपागमत् ।। ६ ।। पानीयाथ ग रनद मद वणा वलाम् । अथाप यत साथ तं साथजान् सुबन् गजान् ।। ७ ।। त प ात् आधी रातके समय जब कह से भी कोई श द सुनायी नह दे ता था और उस दलके सभी लोग थककर सो गये थे, उस समय गजराज के मदक धारासे म लन जलवाली ी

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पहाड़ी नद म पानी पीनेके लये (जंगली) हा थय का एक झुंड आ नकला। उस झुंडने ापा रय के सोये ए दलको और उसके साथ आये ए ब त-से हा थय को भी दे खा ।। ६-७ ।। ते तान् ा यगजान् ् वा सव वनगजा तदा । समा व त वेगेन जघांस तो मदो कटाः ।। ८ ।। तब वनम रहनेवाले उन सभी मदो म गज ने उन ामीण हा थय को दे खकर उ ह मार डालनेक इ छासे उनपर वेगपूवक आ मण कया ।। ८ ।। तेषामापततां वेगः क रणां ःसहोऽभवत् । नगा ा दव शीणानां शृ णां पततां तौ ।। ९ ।। पवतक चोट से टू टकर पृ वीपर गरनेवाले बड़े-बड़े शखर के समान उन आ मणकारी जंगली हा थय का वेग (उस या ीदलके लये) अ य त ःसह था ।। ९ ।। प दताम प नागानां मागा न ा वनो वाः । माग सं य संसु तं प याः साथमु मम् ।। १० ।। ामीण हा थय पर आ मण करनेक चे ावाले उन वनवासी गजराज के व य माग अव हो गये थे। सरोवरके तटपर ापा रय का महान् समुदाय उनका माग रोककर सो रहा था ।। १० ।। ते तं मम ः सहसा चे मानं महीतले । हाहाकारं मु च तः सा थकाः शरणा थनः ।। ११ ।। वनगु मां धाव तो न ा धा बहवोऽभवन् । के चद् द ैः करैः के चत् के चत् प यां हता गजैः ।। १२ ।। उन हा थय ने सहसा प ँचकर समूचे दलको कुचल दया। कतने ही मनु य धरतीपर पड़े-पड़े छटपटा रहे थे। उस दलके कतने ही पु ष हाहाकार करते ए बचावक जगह खोजते ए जंगलके पौध के समूहम भाग गये। ब त-से मनु य तो न दके मारे अ धे हो रहे थे। हा थय ने क ह को दाँत से, क ह को सूड़ से और कतन को पैर से घायल कर दया ।। ११-१२ ।।

नहतो ा ब लाः पदा तजनसंकुलाः । भयादाधावमाना पर परहता तदा ।। १३ ।। घोरान् नादान् वमु च तो नपेतुधरणीतले । वृ े वा संरधाः प तता वषमेषु च ।। १४ ।। उनके ब त-से ऊँट और घोड़े मारे गये और उस समुदायम ब त-से पैदल लोग भी थे। वे सब लोग उस समय भयसे चार ओर भागते ए एक- सरेसे टकराकर चोट खा जाते थे। घोर आतनाद करते ए सभी लोग धरतीपर गरने लगे। कुछ लोग बड़े वेगसे वृ पर चढ़ते ए नीचेक वषम भू मय पर गर पड़ते थे ।। १३-१४ ।। एवं कारैब भदवेना य ह त भः । राजन् व नहतं सव समृ ं साथम डलम् ।। १५ ।। राजन्! इस कार दै ववश ब तेरे जंगली हा थय ने आ मण करके ( ायः) उस स पूण समृ शाली ापा रय के समुदायको न कर दया ।। १५ ।। आरावः सुमहां ासीत् ैलो यभयकारकः । एषोऽ न थतः क ाय वं धावताधुना ।। १६ ।। र नरा श वशीण ऽयं गृ वं क धावत ।

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उस समय वहाँ तीन लोक को भयम डालनेवाला महान् आतनाद एवं ची कार हो रहा था। कोई कहता—‘अरे! इधर बड़े जोरक आग व लत हो उठ है। यह भारी संकट आ गया (अब) दौड़ो और बचाओ।’ सरा कहता—‘अरे! ये ढे र-के-ढे र र न बखरे पड़े ह, इ ह सँभालकर रखो। इधर-उधर भागते य हो?’ ।। १६ ।। सामा यमेतद् वणं न मयावचनं मम ।। १७ ।। तीसरा कहता था—‘भाई! इस धनपर सबका समान अ धकार है, मेरी यह बात झूठ नह है’ ।। १७ ।। एवमेवा भभाष तो व व त भयात् तदा । पुनरेवा भधा या म च तय वं सुकातराः ।। १८ ।। कोई कहता—‘ऐ कायरो! म फर तुमसे बात क ँ गा, अभी अपनी र ाक च ता करो।’ इस तरहक बात करते ए सब लोग भयसे भाग रहे थे ।। १८ ।। त मं तथा वतमाने दा णे जनसं ये । दमय ती च बुबुधे भयसं तमानसा ।। १९ ।। इस कार जब वहाँ भयानक नरसंहार हो रहा था, उसी समय दमय ती भी जाग उठ । उसका दय भयसे सं त हो उठा ।। १९ ।। अप यद् वैशसं त सवलोकभयंकरम् । अ पूव तद् ् वा बाला प नभे णा ।। २० ।। संस वदना ासा उ थौ भय व ला । ये तु त व नमु ाः साथात् के चद व ताः ।। २१ ।। तेऽ ुवन् स हताः सव क येदं कमणः फलम् । नूनं न पू जतोऽ मा भम णभ ो महायशाः ।। २२ ।। तथा य ा धपः ीमान् न वै वै वणः भुः । न पूजा व नकतॄणामथवा थमं कृता ।। २३ ।। शकुनानां फलं वाथ वपरीत मदं ुवम् । हा न वपरीता तु कम य ददमागतम् ।। २४ ।। वहाँ उसने वह महासंहार अपनी आँख दे खा, जो सब लोग के लये भयंकर था। उसने ऐसी घटना पहले कभी नह दे खी थी। यह सब दे खकर वह कमलनयनी बाला भयसे ाकुल हो उठ । उसको कह से कोई सा वना नह मल रही थी। वह इस कार त ध हो रही थी, मानो धरतीसे सट गयी हो। तदन तर वह कसी कार उठकर खड़ी ई। दलके जो लोग उस संकटसे मु हो आघातसे बचे ए थे, वे सब एक हो कहने लगे क ‘यह हमारे कस कमका फल है? न य ही हमने महायश वी म णभ का पूजन नह कया है। इसी कार हमने ीमान् य राज कुबेरक भी पूजा नह क है अथवा व नकता वनायक क भी पहले पूजा नह कर ली थी। अथवा हमने पहले जो-जो शकुन दे खे थे, उसका यह वपरीत फल है। य द हमारे ह वपरीत न होते तो और कस हेतुसे यह संकट हमारे ऊपर कैसे आ सकता था?’ ।। २०—२४ ।। े

अपरे व ुवन् द ना ा त वनाकृताः । यासाव महासाथ नारी म दशना ।। २५ ।। व ा वकृताकारा कृ वा पममानुषम् । तयेयं व हता पूव माया परमदा णा ।। २६ ।। सरे लोग जो अपने कुटु बीजन और धनके वनाशसे द न हो रहे थे, वे इस कार कहने लगे—‘आज हमारे वशाल जनसमूहके साथ वह जो उ म -जैसी दखायी दे नेवाली नारी आ गयी थी, वह वकराल आकारवाली रा सी थी तो भी अलौ कक सु दर प धारण करके हमारे दलम घुस गयी थी। उसीने पहलेसे ही यह अ य त भयंकर माया फैला रखी थी ।। २५-२६ ।। रा सी वा ुवं य ी पशाची वा भयंकरी । त याः सव मदं पापं ना काया वचारणा ।। २७ ।। प यामो य द तां पापां साथ न नैक ःखदाम् । लो भः पांसु भ ैव तृणैः का ै मु भः ।। २८ ।। अव यमेव ह यामः साथ य कल कृ यकाम् । ‘ न य ही वह रा सी, य ी अथवा भयंकर पशाची थी—इसम वचार करनेक कोई आव यकता नह क यह सारा पापपूण कृ य उसीका कया आ है। उसने हम अनेक कारका ःख दया और ायः सारे दलका वनाश कर डाला। वह पा पनी समूचे साथके लये अव य ही कृ या बनकर आयी थी। य द हम उसे दे ख लगे तो ढे ल से, धूल और तनक से, लक ड़य और मु क से भी अव य मार डालगे ।। २७-२८ ।। दमय ती तु त छ वा वा यं तेषां सुदा णम् ।। २९ ।। ीता भीता च सं व ना ा वद् य काननम् । आशङ् कमाना त पापमा मानं पयदे वयत् ।। ३० ।। ‘उनका वह अ य त भयंकर वचन सुनकर दमय ती ल जासे गड़ गयी और भयसे ाकुल हो उठ । उनके पापपूण संक पके संघ टत होनेक आशंका करके वह उसी ओर भाग गयी, जहाँ घना जंगल था। वहाँ जाकर अपनी इस प र थ तपर वचार करके वह वलाप करने लगी— ।। २९-३० ।। अहो ममोप र वधेः संर भो दा णो महान् । नानुब ना त कुशलं क येदं कमणः फलम् ।। ३१ ।। ‘अहो! मुझपर वधाताका अ य त भयानक और महान् कोप है, जससे मुझे कह भी कुशल- ेमक ा त नह होती। न जाने, यह हमारे कस कमका फल है? ।। ३१ ।। न मरा यशुभं क चत् कृतं क य चद व प । कमणा मनसा वाचा क येदं कमणः फलम् ।। ३२ ।। ‘मने मन, वाणी और या ारा कभी कसीका थोड़ा-सा भी अमंगल कया हो, इसक याद नह आती, फर यह मेरे कस कमका फल मल रहा है? ।। ३२ ।। नूनं ज मा तरकृतं पापमाप ततं महत् ।

अप मा ममां क ामापदं ा तव यहम् ।। ३३ ।। ‘ न य ही यह मेरे सरे ज म के कये ए पापका महान् फल ा त आ है, जससे म इस अन त क म पड़ गयी ँ ।। ३३ ।। भतृरा यापहरणं वजना च पराजयः । भ ा सह वयोग तनया यां च व यु तः ।। ३४ ।। ‘मेरे वामीके रा यका अपहरण आ, उ ह आ मीयजनसे ही परा जत होना पड़ा, मेरा अपने प तदे वसे वयोग आ और अपनी संतान के दशनसे भी वं चत हो गयी ँ ।। ३४ ।। ननाथता वने वासो ब ाल नषे वते । ‘इतना ही नह , असं य सप आ द ज तु से भरे ए इस वनम मुझे अनाथक -सी दशाम रहना पड़ता है’ ।। अथापरे ुः स ा ते हत श ा जना तदा ।। ३५ ।। दे शात् त माद् व न य शोच ते वैशसं कृतम् । ातरं पतरं पु ं सखायं च नरा धप ।। ३६ ।। तदन तर सरा दन ार भ होनेपर मरनेसे बचे ए लोग उस थानसे नकलकर उस वकट संहारके लये शोक करने लगे। राजन्! कोई भाईके लये ःखी था, कोई पताके लये; कसीको पु का शोक था और कसीको म का ।। ३५-३६ ।। अशोचत् त वैदभ क नु मे कृतं कृतम् । योऽ प मे नजनेऽर ये स ा तोऽयं जनाणवः ।। ३७ ।। स हतो ह तयूथेन म दभा या ममैव तत् । ा त ं सु चरं ःखं नूनम ा प वै मया ।। ३८ ।। वदभराजकुमारी दमय ती भी इसके लये शोक करने लगी क ‘मने कौन-सा पाप कया है, जससे इस नजन वनम मुझे जो यह समु के समान जनसमुदाय ा त हो गया था, वह भी मेरे ही भा यसे हा थय के झुंड ारा मारा गया। न य ही मुझे अभी द घकालतक ःख-ही- ःख भोगना है ।। ३७-३८ ।। ना ा तकालो यते ुतं वृ ानुशासनम् । या नाहम मृ दता ह तयूथेन ःखता ।। ३९ ।। ‘ जसक मृ युका समय नह आया है, वह इ छा होते ए भी मर नह सकता। वृ पु ष का यह जो उपदे श मने सुन रखा है, यह ठ क ही जान पड़ता है, तभी तो आज म ःखत होनेपर भी हा थय के झुंडसे कुचलकर मर न सक ।। ३९ ।। न दै वकृतं क च राणा मह व ते । न च मे बालभावेऽ प क चत् पापकृतं कृतम् ।। ४० ।। कमणा मनसा वाचा य ददं ःखमागतम् ।





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‘मनु य को इस जगत्म कोई भी सुख या ःख ऐसा नह मलता, जो वधाताका दया आ न हो। मने बचपनम भी मन, वाणी अथवा या ारा ऐसा पाप नह कया है, जससे मुझे यह ःख ा त होता ।। ४० ।। म ये वयंवरकृते लोकपालाः समागताः ।। ४१ ।। या याता मया त नल याथाय दे वताः । नूनं तेषां भावेण वयोगं ा तव यहम् ।। ४२ ।। एवमाद न ःखाता सा वल य वरा ना । लापा न तदा ता न दमय ती प त ता ।। ४३ ।। ‘म समझती ँ, वयंवरके लये जो लोकपाल दे वगण पधारे थे, नलके कारण मने उनका तर कार कर दया था। अव य उ ह दे वता के भावसे आज मुझे वयोगका क ा त आ है।’ इस कार ःखसे आतुर ई सु दरी प त ता दमय तीने उस समय अनेक कारसे वलाप एवं लाप कये ।। ४१—४३ ।। हतशेषैः सह तदा ा णैवदपारगैः । अग छद् राजशा ल च लेखेव शारद ।। ४४ ।। ग छ ती सा चराद् बाला पुरमासादय महत् । साया े चे दराज य सुबाहोः स यद शनः ।। ४५ ।। नृप े ! तदन तर मरनेसे बचे ए वेद के पारंगत व ान् ा ण के साथ या ा करती ई शर कालके च माक कलाके समान वह सु दरी युवती थोड़े ही समयम सं या होतेहोते स यदश चे दराज सुबा क राजधानीम जा प ँची ।। ४४-४५ ।। अथ व ाधसंवीता ववेश पुरो मम् । तं व लां कृशां द नां मु केशीममा जताम् ।। ४६ ।। शरीरम आधी साड़ीको लपेटे ए ही उसने उस उ म नगरम वेश कया। वह व ल, द न और बल हो रही थी। उसके सरके बाल खुले ए थे। उसने नान नह कया था ।। ४६ ।। उ म ा मव ग छ त द शः पुरवा सनः । वश त तु तां ् वा चे दराजपुर तदा ।। ४७ ।। अनुज मु त बाला ा मपु ाः कुतूहलात् । सा तैः प रवृताग छत् समीपं राजवे मनः ।। ४८ ।। पुरवा सय ने उसे उ म ाक भाँ त जाते दे खा। चे दनरेशक राजधानीम उसे वेश करते दे ख उस समय ब त-से ामीण बालक कौतूहलवश उसके साथ हो लये थे। उनसे घरी ई दमय ती राजमहलके समीप गयी ।। ४७-४८ ।। तां ासादगताप यद् राजमाता जनैवृताम् । धा ीमुवाच ग छै नामानयेह ममा तकम् ।। ४९ ।। उस समय राजमाताने उसे महलपरसे दे खा। वह जनसाधारणसे घरी ई थी। राजमाताने धायसे कहा—‘जाओ, इस युवतीको मेरे पास ले आओ ।। ४९ ।। े





जनेन ल यते बाला ःखता शरणा थनी । ता ग् पं च प या म व ोतय त मे गृहम् ।। ५० ।। ‘इसे लोग तंग कर रहे ह। यह ःखनी युवती कोई आ य चाहती है। मुझे इसका प ऐसा दखायी दे ता है, जो मेरे घरको का शत कर दे गा ।। ५० ।। उ म वेषा क याणी ी रवायतलोचना । सा जनं वार य वा तं ासादतलमु मम् ।। ५१ ।। आरो य व मता राजन् दमय तीमपृ छत । एवम यसुखा व ा बभ ष परमं वपुः ।। ५२ ।। ‘इसका वेष तो उ म के समान है, परंतु यह वशाल ने वाली युवती क याणमयी ल मीके समान जान पड़ती है।’ धाय उन सब लोग को हटाकर उसे उ म राजमहलक अ ा लकापर चढ़ा ले आयी। राजन्! त प ात् व मत होकर राजमाताने दमय तीसे पूछा —‘अहो! तुम इस कार ःखसे दबी होनेपर भी इतना सु दर प कैसे धारण करती हो? ।। ५१-५२ ।।

भा स व ु दवा ेषु शंस मे का स क य वा । न ह ते मानुषं पं भूषणैर प व जतम् ।। ५३ ।। असहाया नरे य नो ज यमर भे । ‘मेघमालाम का शत होनेवाली बजलीक भाँ त तुम इस ःखम भी कैसी तेज वनी दखायी दे ती हो। मुझसे बताओ, तुम कौन हो? कसक ी हो? य प तु हारे शरीरपर ोई

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कोई आभूषण नह है तो भी तु हारा यह प मानव-जगत्का नह जान पड़ता। दे वताक सी द का त धारण करनेवाली व से! तुम असहाय-अव थाम होकर भी लोग से डरती य नह हो?’ ।। त छ वा वचनं त या भैमी वचनम वीत् ।। ५४ ।। उसक वह बात सुनकर भीमकुमारीने कहा— ।। ५४ ।। मानुष मां वजानी ह भतारं समनु ताम् । सैर ीजा तस प ां भु ज यां कामवा सनीम् ।। ५५ ।। ‘माताजी! आप मुझे मानव-क या ही सम झये। म अपने प तके चरण म अनुराग रखनेवाली एक नारी ँ। मेरी अ तःपुरम काम करनेवाली सैर ी जा त है। म से वका ँ और जहाँ इ छा होती है, वह रहती ँ ।। फलमूलाशनामेकां य सायं त याम् । असं येयगुणो भता मां च न यमनु तः ।। ५६ ।। ‘म अकेली ँ, फल-मूल खाकर जीवन- नवाह करती ँ और जहाँ साँझ होती है, वह टक जाती ँ। मेरे वामीम असं य गुण ह, उनका मेरे त सदा अ य त अनुराग है ।। ५६ ।। भ ाहम प तं वीरं छायेवानुगता प थ । त य दै वात् स ोऽभूद तमा ं सुदेवने ।। ५७ ।। ‘जैसे छाया राह चलनेवाले प थकके पीछे -पीछे चलती है, उसी कार म भी अपने वीर प तदे वम भ भाव रखकर सदा उ ह का अनुसरण करती ँ। भा यवश एक दन मेरे प तदे व जूआ खेलनेम अ य त आस हो गये ।। ५७ ।। ूते स न जत ैव वनमेक उपे यवान् । तमेकवसनं वीरमु म मव व लम् ।। ५८ ।। आ ासय ती भतारमहम यगमं वनम् । स कदा चद् वने वीरः क मं त् कारणा तरे ।। ५९ ।। ‘और उसीम अपना सब कुछ हारकर वे अकेले ही वनक ओर चल दये। एक व धारण कये उ म और व ल ए अपने वीर वामीको सा वना दे ती ई म भी उनके साथ वनम चली आयी। एक दनक बात है, मेरे वीर वामी कसी कारणवश वनम गये ।। ५८-५९ ।। ु परीत तु वमना तद येकं सजयत् । तमेकवसना न नमु म वदचेतसम् ।। ६० ।। अनु ज ती ब ला न वपा म नशा तदा । ततो ब तथे काले सु तामु सृ य मां व चत् ।। ६१ ।। वाससोऽध प र छ य वान् मामनागसम् । तं मागमाणा भतारं द माना दवा नशम् ।। ६२ ।। ‘उस समय वे भूखसे पी ड़त और अनमने हो रहे थे। अतः उ ह ने अपने उस एक व को भी कह वनम ही छोड़ दया। मेरे शरीरपर भी एक ही व था। वे न न, उ म ै ेऔ े ो े े ी ी ई े

जैसे और अचेत हो रहे थे। उसी दशाम सदा उनका अनुसरण करती ई अनेक रा य तक कभी सो न सक । तदन तर ब त समयके प ात् एक दन जब म सो गयी थी, उ ह ने मेरी आधी साड़ी फाड़ ली और मुझ नरपरा धनी प नीको वह छोड़कर वे कह चल दये। म दन-रात वयोगा नम जलती ई नर तर उ ह प तदे वको ढूँ ढ़ती फरती ँ ।। ६०— ६२ ।। साहं कमलगभाभमप य ती द यम् । न व दा यमर यं यं ाणे रं भुम् ।। ६३ ।। ‘मेरे यतमक का त कमलके भीतरी भागके समान है। वे दे वता के समान तेज वी, मेरे ाण के वामी और श शाली ह। ब त खोजनेपर भी म अपने यको न तो दे ख सक ँ और न उनका पता ही पा रही ँ’ ।। ६३ ।। ताम ुप रपूणा वलप त तथा ब । राजमाता वीदाता भैमीमात वरां वयम् ।। ६४ ।। वस व म य क या ण ी तम परमा व य । मृग य य त ते भ े भतारं पु षा मम ।। ६५ ।। भीमकुमारी दमय तीके ने म आँसू भरे ए थे एवं वह आत वरसे ब त वलाप कर रही थी। राजमाता वयं भी उसके ःखसे ःखी हो बोली—‘क या ण! तुम मेरे पास रहो। तुमपर मेरा ब त ेम है। भ े ! मेरे सेवक तु हारे प तक खोज करगे ।। ६४-६५ ।। अ प वा वयमाग छे त् प रधाव त ततः । इहैव वसती भ े भतारमुपल यसे ।। ६६ ।। ‘अथवा यह भी स भव है, वे इधर-उधर भटकते ए वयं ही इधर आ नकल। भ े ! तुम यह रहकर अपने प तको ा त कर लोगी’ ।। ६६ ।। राजमातुवचः ु वा दमय ती वचोऽ वीत् । समयेनो सहे व तुं व य वीर जा य न ।। ६७ ।। राजमाताक यह बात सुनकर दमय तीने कहा—‘वीरमातः! म एक नयमके साथ आपके यहाँ रह सकती ँ ।। ६७ ।। उ छ ं नैव भु ीयां न कुया पादधावनम् । न चाहं पु षान यान् भाषेयं कथंचन ।। ६८ ।। ‘म कसीका जूठा नह खाऊँगी, कसीके पैर नह धोऊँगी और कसी भी सरे पु षसे कसी तरह भी वातालाप नह क ँ गी ।। ६८ ।। ाथयेद ् य द मां क द् द ते स पुमान् भवेत् । व य तेऽसकृ म द इ त मे तमा हतम् ।। ६९ ।। ‘य द कोई पु ष मुझे ा त करना चाहे तो वह आपके ारा द डनीय हो और बार-बार ऐसे अपराध करनेवाले मूढ़को आप ाणद ड भी द, यही मेरा न त त है ।। ६९ ।। भतुर वेषणाथ तु प येयं ा णानहम् । य ेव मह व या म व सकाशे न संशयः ।। ७० ।। ‘







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‘म अपने प तक खोजके लये केवल ा ण से मल सकती ँ। य द यहाँ ऐसी व था हो सके तो न य ही आपके नकट नवास क ँ गी। इसम संशय नह है ।। अतोऽ यथा न मे वासो वतते दये व चत् । तां ेन मनसा राजमातेदम वीत् ।। ७१ ।। ‘य द इसके वपरीत कोई बात हो तो कह भी रहनेका मेरे मनम संक प नह हो सकता।’ यह सुनकर राजमाता स च होकर उससे बोली— ।। ७१ ।। सवमेतत् क र या म द ा ते तमी शम् । एवमु वा ततो भैम राजमाता वशा पते ।। ७२ ।। उवाचेदं हतरं सुन दां नाम भारत । सैर ीम भजानी व सुन दे दे व पणीम् ।। ७३ ।। ‘बेट ! म यह सब क ँ गी। सौभा यक बात है क तु हारा त ऐसा उ म है।’ राजा यु ध र! दमय तीसे ऐसा कहकर राजमाता अपनी पु ी सुन दासे बोली—‘सुन दे ! इस सैर ीको तुम दे वी व पा समझो ।। ७२-७३ ।। वयसा तु यतां ा ता सखी तव भव वयम् । एतया सह मोद व न नमनाः सदा ।। ७४ ।। ‘यह अव थाम तु हारे समान है, अतः तु हारी सखी होकर रहे। तुम इसके साथ सदा स च एवं आन दम न रहो’ ।। ७४ ।। ततः परमसं ा सुन दा गृहमागमत् । दमय तीमुपादाय सखी भः प रवा रता ।। ७५ ।। तब सख य से घरी ई सुन दा अ य त हष लासम भरकर दमय तीको साथ ले अपने भवनम आयी ।। ७५ ।। स त पू यमाना वै दमय ती न दत । सवकामैः सु व हतै न े गावसत् तदा ।। ७६ ।। सुन दा दमय तीके इ छानुसार सब कारक व था करके उसे बड़े आदर-स कारके साथ रखने लगी। इससे दमय तीको बड़ी स ता ई और वह वहाँ उ े गर हत हो रहने लगी ।। ७६ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण नलोपा यानपव ण दमय तीचे दराजगृहवासे प चष तमोऽ यायः ।। ६५ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत नलोपा यानपवम दमय तीका चे दराजके भवनम नवास वषयक पसठवाँ अ याय पूरा आ ।। ६५ ।।

षट् ष तमोऽ यायः राजा नलके ारा दावानलसे कक टक नागक र ा तथा नाग ारा नलको आ ासन बृहद उवाच उ सृ य दमय त तु नलो राजा वशा पते । ददश दावं द तं, महा तं गहने वने ।। १ ।। बृहद मु न कहते ह—यु ध र! दमय तीको छोड़कर जब राजा नल आगे बढ़ गये, तब एक गहन वनम उ ह ने महान् दावानल व लत होते दे खा ।। १ ।। त शु ाव श दं वै म ये भूत य क य चत् । अ भधाव नले यु चैः पु य ोके त चासकृत् ।। २ ।। मा भै र त नल ो वा म यम नेः व य तम् । ददश नागराजानं शयानं कु डलीकृतम् ।। ३ ।। उसीके बीचम उ ह कसी ाणीका यह श द सुनायी पड़ा—‘पु य ोक महाराज नल! दौ ड़ये, मुझे बचाइये।’ उ च वरसे बार-बार हरायी गयी इस वाणीको सुनकर राजा नलने कहा—‘डरो मत’। इतना कहकर वे आगके भीतर घुस गये। वहाँ उ ह ने दे खा, एक नागराज कु डलाकार पड़ा आ सो रहा है ।। २-३ ।। स नागः ा लभू वा वेपमानो नलं तदा । उवाच मां व राजन् नागं कक टकं नृप ।। ४ ।। मया लधो षनारदः सुमहातपाः । तेन म युपरीतेन श तोऽ म मनुजा धप ।। ५ ।। त वं थावर इव यावदे व नलः व चत् । इतो नेता ह त वं शापा मो य स म कृतात् ।। ६ ।। उस नागने हाथ जोड़कर काँपते ए नलसे उस समय इस कार कहा—‘राजन्! मुझे कक टक नाग सम झये। नरे र! एक दन मेरे ारा महातप वी ष नारद ठगे गये, अतः मनुजे र! उ ह ने ोधसे आ व होकर मुझे शाप दे दया—‘तुम थावर वृ क भाँ त एक जगह पड़े रहो, जब कभी राजा नल आकर तु ह यहाँसे अ य ले जायँगे, तभी तुम मेरे शापसे छु टकारा पा सकोगे’ ।। त य शापा श ोऽ म पदाद् वच लतुं पदम् । उपदे या म ते ेय ातुमह त मां भवान् ।। ७ ।। ‘राजन्! नारदजीके उस शापसे म एक पग भी चल नह सकता; आप मुझे बचाइये, म आपको क याणकारी उपदे श ँ गा ।। ७ ।। सखा च ते भ व या म म समो ना त प गः । लघु ते भ व या म शी मादाय ग छ माम् ।। ८ ।। ‘







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‘साथ ही म आपका म हो जाऊँगा। सप म मेरे-जैसा भावशाली सरा कोई नह है। म आपके लये हलका हो जाऊँगा। आप शी मुझे लेकर यहाँसे चल द जये’ ।। ८ ।। एवमु वा स नागे ो बभूवाङ् गु मा कः । तं गृही वा नलः ायाद् दे शं दाव वव जतम् ।। ९ ।। इतना कहकर नागराज कक टक अँगठ ू े के बराबर हो गया। उसे लेकर राजा नल वनके उस दे शक ओर चले गये, जहाँ दावानल नह था ।। ९ ।। आकाशदे शमासा वमु ं कृ णव मना । उ ु कामं तं नागः पुनः कक टकोऽ वीत् ।। १० ।। अ नके भावसे र हत आकाश-दे शम प ँचनेपर जब नलने उस नागको छोड़नेका वचार कया, उस समय कक टकने फर कहा— ।। १० ।। पदा न गणयन् ग छ वा न नैषध का न चत् । त तेऽहं महाबाहो ेयो धा या म यत् परम् ।। ११ ।। ‘नैषध! आप अपने कुछ पग गनते ए च लये। महाबाहो! ऐसा करनेपर म आपके लये परम क याणका साधन क ँ गा’ ।। ११ ।। ततः सं यातुमारधमदशद ् दशमे पदे । त य द य तद् पं म तरधीयत ।। १२ ।। तब राजा नलने अपने पग गनने आर भ कये। पग गनते- गनते जब राजा नलने ‘दश’ कहा, तब नागने उ ह डँस लया। उसके डँसते ही उनका पहला प त काल अ त हत (होकर यामवण) हो गया ।। १२ ।। स ् वा व मत त थावा मानं वकृतं नलः । व पधा रणं नागं ददश स महीप तः ।। १३ ।। अपने पको इस कार वकृत (गौरवणसे यामवण) आ दे ख राजा नलको बड़ा व मय आ। उ ह ने अपने पूव व पको धारण करके खड़े ए कक टक नागको दे खा ।। १३ ।। ततः कक टको नागः सा वयन् नलम वीत् । मया तेऽ त हतं पं न वां व ुजना इ त ।। १४ ।। तब कक टक नागने राजा नलको सा वना दे ते ए कहा—‘राजन्! मने आपके पहले पको इस लये अ य कर दया है क लोग आपको पहचान न सक ।। १४ ।। य कृते चा स नकृतो ःखेन महता नल । वषेण स मद येन व य ःखं नव य त ।। १५ ।। ‘महाराज नल! जस क लयुगके कपटसे आपको महान् ःखका सामना करना पड़ा है, वह मेरे वषसे द ध होकर आपके भीतर बड़े क से नवास करेगा ।। १५ ।।

वषेण संवृतैगा ैयावत् वां न वमो य त । तावत् व य महाराज ःखं वै स नव य त ।। १६ ।। ‘क लयुगके सारे अंग मेरे वषसे ा त हो जायँगे। महाराज! वह जबतक आपको छोड़ नह दे गा, तबतक आपके भीतर बड़े ःखसे नवास करेगा ।। १६ ।। अनागा येन नकृत वमनह जना धप । ोधादसूय य वा तं र ा मे भवतः कृता ।। १७ ।। ‘नरे र! आप छल-कपट ारा सताये जानेयो य नह थे, तो भी जसने बना कसी अपराधके आपके साथ कपटका वहार कया है, उसीके त ोधसे दोष रखकर मने आपक र ा क है ।। १७ ।। न ते भयं नर ा दं यः श ुतोऽ प वा । व य भ वता म सादा रा धप ।। १८ ।। ‘नर ा महाराज! मेरे सादसे आपको दाढ़ वाले ज तु और श ु से तथा वेदवे ा के शाप आ दसे भी कभी भय नह होगा ।। १८ ।। राजन् वष न म ा च न ते पीडा भ व य त । सं ामेषु च राजे श जयमवा य स ।। १९ ।। ‘राजन्! आपको वषज नत पीड़ा कभी नह होगी। राजे ! आप यु म भी सदा वजय ा त करगे ।। १९ ।। ग छ राज तः सूतो बा कोऽह म त ुवन् । ी





समीपमृतुपण य स ह चैवा नैपुणः ।। २० ।। ‘राजन्! अब आप यहाँसे अपनेको बा क नामक सूत बताते ए राजा ऋतुपणके समीप जाइये। वे ूत व ाम बड़े नपुण ह ।। २० ।। अयो यां नगर र याम वै नषधे र । स तेऽ दयं दाता राजा दयेन वै ।। २१ ।। इ वाकुकुलजः ीमान् म ं चैव भ व य त । भ व य स यदा ः ेयसा यो यसे तदा ।। २२ ।। ‘ नषधे र! आप आज ही रमणीय अयो यापुरीको चले जाइये। इ वाकुकुलम उ प ीमान् राजा ऋतुपण आपसे अ व ाका रह य सीखकर बदलेम आपको ूत ड़ाका रह य बतलायगे और आपके म भी हो जायँगे। जब आप ूत व ाके ाता ह गे, तब पुनः क याणभागी हो जायँगे ।। २१-२२ ।। सममे य स दारै वं मा म शोके मनः कृथाः । रा येन तनया यां च स यमेतद् वी म ते ।। २३ ।। ‘म सच कहता ँ, आप एक ही साथ अपनी प नी, दोन संतान तथा रा यको ा त कर लगे; अतः अपने मनम च ता न क जये ।। २३ ।। वं पं च यदा ु म छे था वं नरा धप । सं मत तदा तेऽहं वास ेदं नवासयेः ।। २४ ।। ‘नरे र! जब आप अपने (पहलेवाले) पको दे खना चाह, उस समय मेरा मरण कर और इस कपड़ेको ओढ़ ल ।। २४ ।। अनेन वाससा छ ः वं पं तप यसे । इ यु वा ददौ त मै द ं वासोयुगं तदा ।। २५ ।। ‘इस व से आ छा दत होते ही आप अपना पहला प ा त कर लगे।’ ऐसा कहकर नागने उ ह दो द व दान कये ।। २५ ।। एवं नलं च सं द य वासो द वा च कौरव । नागराज ततो राजं त ैवा तरधीयत ।। २६ ।। कु न दन यु ध र! इस कार राजा नलको संदेश और व दे कर नागराज कक टक वह अ तधान हो गया ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण नलोपा यानपव ण नलकक टकसंवादे षट् ष तमोऽ यायः ।। ६६ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत नलोपा यानपवम नलकक टकसंवाद वषयक छाछठवाँ अ याय पूरा आ ।। ६६ ।।

स तष तमोऽ यायः राजा नलका ऋतुपणके यहाँ अ ा य के पदपर नयु होना और वहाँ दमय तीके लये नर तर च तत रहना तथा उनक जीवलसे बातचीत बृहद उवाच त म त हते नागे ययौ नैषधो नलः । ऋतुपण य नगरं ा वशद् दशमेऽह न ।। १ ।। बृहद मु न कहते ह—कक टक नागके अ तधान हो जानेपर नषधनरेश नलने दसव दन राजा ऋतुपणके नगरम वेश कया ।। १ ।। स राजानमुपा त द् बा कोऽह म त ुवन् । अ ानां वाहने यु ः पृ थ ां ना त म समः ।। २ ।। वे बा क नामसे अपना प रचय दे ते ए राजा ऋतुपणके यहाँ उप थत ए और बोले —‘घोड़ को हाँकनेक कलाम इस पृ वीपर मेरे समान सरा कोई नह है ।। २ ।। अथकृ े षु चैवाहं ो नैपुणेषु च । अ सं कारम प च जाना य यै वशेषतः ।। ३ ।। ‘म इन दन अथसंकटम ँ। आपको कसी भी कलाक नपुणताके वषयम सलाह लेनी हो तो मुझसे पूछ सकते ह। अ -सं कार (भाँ त-भाँ तक रसोई बनानेका काय) भी म सर क अपे ा वशेष जानता ँ ।। ३ ।। या न श पा न लोकेऽ मन् य चैवा यत् सु करम् । सव य त ये तत् कतुमृतुपण भर व माम् ।। ४ ।।

‘इस जगत्म जतनी भी श पकलाएँ ह तथा सरे भी जो अ य त क ठन काय ह, म उन सबको अ छ तरह करनेका य न कर सकता ँ। महाराज ऋतुपण! आप मेरा भरणपोषण क जये’ ।। ४ ।।

ऋतुपण उवाच वस बा क भ ं ते सवमेतत् क र य स । शी याने सदा बु यते मे वशेषतः ।। ५ ।। ऋतुपणने कहा—बा क! तु हारा भला हो। तुम मेरे यहाँ नवास करो। ये सब काय तु ह करने ह गे। मेरे मनम सदा यही वचार वशेषतः रहता है क म शी तापूवक कह भी प ँच सकूँ ।। ५ ।। स वमा त योगं तं येन शी ा हया मम । भवेयुर ा य ोऽ स वेतनं ते शतं शतम् ।। ६ ।। अतः तुम ऐसा उपाय करो, जससे मेरे घोड़े शी गामी हो जायँ। आजसे तुम हमारे अ ा य हो। दस हजार मु ाएँ तु हारा वा षक वेतन है ।। ६ ।। वामुप था यत ैव न यं वा णयजीवलौ । एता यां रं यसे साध वस वै म य बा क ।। ७ ।। वा णय और जीवल—ये दोन सार थ तु हारी सेवाम रहगे। बा क! इन दोन के साथ तुम बड़े सुखसे रहोगे। तुम मेरे यहाँ रहो ।। ७ ।।

बृहद उवाच एवमु ो नल तेन यवसत् त पू जतः । ऋतुपण य नगरे सहवा णयजीवलः ।। ८ ।। बृहद मु न कहते ह—राजन्! राजाके ऐसा कहनेपर नल वा णय और जीवलके साथ स मानपूवक ऋतुपणके नगरम नवास करने लगे ।। ८ ।। स वै त ावसद् राजा वैदभ मनु च तयन् । सायं सायं सदा चेमं ोकमेकं जगाद ह ।। ९ ।। वे दमय तीका नर तर च तन करते ए वहाँ रहने लगे। वे त दन सायंकाल इस एक ोकको पढ़ा करते थे— ।। ९ ।। व नु सा ु पपासाता ा ता शेते तप वनी । मर ती त य म द य कं वा सा ोप त त ।। १० ।। ‘भूख- याससे पी ड़त और थक -माँद वह तप वनी उस म दबु पु षका मरण करती ई कहाँ सोती होगी तथा अब वह कसके समीप रहती होगी?’ ।। १० ।। एवं ुव तं राजानं नशायां जीवलोऽ वीत् । कामेनां शोचसे न यं ोतु म छा म बा क ।। ११ ।। एक दन रा के समय जब राजा इस कार बोल रहे थे ‘जीवलने पूछा—बा क! तुम त दन कस ीके लये शोक करते हो, म सुनना चाहता ँ ।। ११ ।। आयु मन् क य वा नारी यामेवमनुशोच स । तमुवाच नलो राजा म द य क य चत् ।। १२ ।। आसीद् ब मता नारी त या ढतरं वचः । स वै केन चदथन तया म दो यु यत ।। १३ ।। ‘आयु मन्! वह कसक प नी है, जसके लये तुम इस कार नर तर शोकम न रहते हो।’ तब राजा नलने उससे कहा—‘ कसी अ पबु पु षके एक ी थी, जो उसके अ य त आदरक पा थी। कतु उस पु षक बात अ य त ढ़ नह थी। वह अपनी त ासे फसल गया। कसी वशेष योजनसे ववश होकर वह भा यहीन पु ष अपनी प नीसे बछु ड़ गया ।। १२-१३ ।। व यु ः स म दा मा म यसुखपी डतः । द मानः स शोकेन दवारा मत तः ।। १४ ।। ‘प नीसे वलग होकर वह म दबु मानव दन-रात शोका नसे द ध एवं ःखसे पी ड़त होकर आल यसे र हत हो इधर-उधर भटकता रहता है ।। १४ ।। नशाकाले मरं त याः ोकमेकं म गाय त । स व मन् मह सवा व चदासा कचन ।। १५ ।। वस यनह तद् ःखं भूय एवानुसं मरन् ।

















‘रातम उसीका मरण करके वह एक ोकको गाया करता है। सारी पृ वीका च कर लगाकर वह कभी कसी थानम प ँचा और वह नर तर उस यतमाका मरण करके ःख भोगता रहता है। य प वह उस ःखको भोगनेके यो य है नह ।। १५ ।। सा तु तं पु षं नारी कृ े ऽ यनुगता वने ।। १६ ।। य ा तेना पपु येन करं य द जीव त । एका बालान भ ा च मागाणामतथो चता ।। १७ ।। ‘वह नारी इतनी प त ता थी क संकटकालम भी उस पु षके पीछे -पीछे वनम चली गयी; कतु उस अ प पु यवाले पु षने उसे वनम ही याग दया। अब तो य द वह जी वत होगी तो बड़े क से उसके दन बीतते ह गे। वह ी अकेली थी। उसे मागका ान नह था। जस संकटम वह पड़ी थी, उसके यो य वह कदा प नह थी ।। १६-१७ ।। ु पपासापरीता करं य द जीव त । ापदाच रते न यं वने मह त दा णे ।। १८ ।। य ा तेना पभा येन म द ेन मा रष । इ येवं नैषधो राजा दमय तीमनु मरन् ।। अ ातवासं यवसद् रा त य नवेशने ।। १९ ।। ‘भूख और याससे उसके अंग ा त हो रहे थे। उस दशाम प र य होकर वह य द जी वत भी हो तो भी उसका जी वत रहना ब त क ठन है। आय जीवल! अ य त भयंकर वशाल वनम जहाँ न य- नर तर हसक ज तु वचरते रहते ह, उस म दबु एवं म दभा य पु षने उसका याग कर दया था।’ इस कार नषधनरेश राजा नल दमय तीका नर तर मरण करते ए राजा ऋतुपणके यहाँ अ ातवास कर रहे थे ।। १८-१९ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण नलोपा यानपव ण नल वलापे स तष तमोऽ यायः ।। ६७ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत नलोपा यानपवम नल वलाप वषयक सड़सठवाँ अ याय पूरा आ ।। ६७ ।।

अ ष तमोऽ यायः वदभराजका नल-दमय तीक खोजके लये ा ण को भेजना, सुदेव ा णका चे दराजके भवनम जाकर मनही-मन दमय तीके गुण का च तन और उससे भट करना बृहद उवाच तरा ये नले भीमः सभाय च वनं गते । जान् थापयामास नलदशनकाङ् या ।। १ ।। बृहद मु न कहते ह—राजन्! रा यका अपहरण हो जानेपर जब राजा नल प नीस हत वनम चले गये, तब वदभनरेश भीमने नलका पता लगानेके लये ब त-से ा ण को इधर-उधर भेजा ।। १ ।। सं ददे श च तान् भीमो वसु द वा च पु कलम् । मृगय वं नलं चैव दमय त च मे सुताम् ।। २ ।। राजा भीमने चुर धन दे कर ा ण को यह संदेश दया—‘आपलोग राजा नल और मेरी पु ी दमय तीक खोज कर ।। २ ।। अ मन् कम ण स प े व ाते नषधा धपे । गवां सह ं दा या म यो व तावान य य त ।। ३ ।। ‘ नषधनरेश नलका पता लग जानेपर जब यह काय स प हो जायगा, तब म आपलोग मसे जो भी नल-दमय तीको यहाँ ले आयेगा, उसे एक हजार गौएँ ँ गा ।। ३ ।। अ हारां दा या म ामं नगरस मतम् । न चे छ या वहानेतुं दमय ती नलोऽ प वा ।। ४ ।। ातमा ेऽ प दा या म गवां दशशतं धनम् । ‘साथ ही जी वकाके लये अ हार (करमु भू म) ँ गा और ऐसा गाँव दे ँ गा, जो आयम नगरके समान होगा। य द नल-दमय तीमसे कसी एकको या दोन को ही यहाँ ले आना स भव न हो सके तो केवल उनका पता लग जानेपर भी म एक हजार गोधन दान क ँ गा’ ।। ४ ।। इ यु ा ते ययु ा ा णाः सवतो दशम् ।। ५ ।। पुररा ा ण च व तो नैषधं सह भायया । नैव वा प प य त नलं वा भीमपु काम् ।। ६ ।। तत े दपुर र यां सुदेवो नाम वै जः । व च वानोऽथ वैदभ मप यद् राजवे म न ।। ७ ।। राजाके ऐसा कहनेपर वे सब ा ण बड़े स होकर सब दशा म चले गये और नगर तथा रा म प नीस हत नषधनरेश नलका अनुसंधान करने लगे; परंतु कह भी वे ी



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नल अथवा भीमकुमारी दमय तीको नह दे ख पाते थे। तदन तर सुदेव नामक ा णने पता लगाते ए रमणीय चे दनगरीम जाकर वहाँ राजमहलम वदभकुमारी दमय तीको दे खा ।। ५—७ ।। पु याहवाचने रा ः सुन दास हतां थताम् । म दं यायमानेन पेणा तमेन ताम् ।। ८ ।। नब ां धूमजालेन भा मव वभावसोः । तां समी य वशाला ीम धकं म लनां कृशाम् । तकयामास भैमी त कारणै पपादयन् ।। ९ ।। वह राजाके पु याहवाचनके समय सुन दाके साथ खड़ी थी। उसका अनुपम प (मैलसे आवृत होनेके कारण) म द-म द का शत हो रहा था, मानो अ नक भा धूमसमूहसे आवृत हो रही हो। वशाल ने वाली उस राजकुमारीको अ धक म लन और बल दे ख उपयु कारण से उसक पहचान करते ए सुदेवने न य कया क यह भीमकुमारी दमय ती ही है ।। ८-९ ।। सुदेव उवाच यथेयं मे पुरा ा तथा पेयम ना । कृताथ ऽ य ् वेमां लोकका ता मव यम् ।। १० ।। सुदेव मन-ही-मन बोले—मने पहले जस पम इस क याणमयी राजक याको दे खा है, वैसी ही यह आज भी है। लोककमनीय ल मीक भाँ त इस भीमकुमारीको दे खकर आज म कृताथ हो गया ँ ।। १० ।। पूणच नभां यामां चा वृ पयोधराम् । कुव त भया दे व सवा व त मरा दशः ।। ११ ।। यह यामा युवती पूण च माके समान का तमती है। इसके तन बड़े मनोहर ह। यह दे वी अपनी भासे स पूण दशा को आलो कत कर रही है ।। ११ ।। चा प वशाला म मथ य रती मव । इ सम तलोक य पूणच भा मव ।। १२ ।। उसके बड़े-बड़े ने मनोहर कमल क शोभाको ल जत कर रहे ह। यह कामदे वक र त-सी जान पड़ती है। पू णमाके च माक चाँदनीके समान यह सब लोग के लये य है ।। १२ ।। वदभसरस त माद् दै वदोषा दवो ताम् । मलपङ् कानु ल ता मृणाली मव चोद धृ ् ताम् ।। १३ ।। पौणमासी मव नशां रा त नशाकराम् । प तशोकाकुलां द नां शु क ोतां नद मव ।। १४ ।। वदभ पी सरोवरसे यह कम लनी मानो ार धके दोषसे नकाल ली गयी है। इसके म लन अंग क चड़ लपट ई न लनीके समान तीत होते ह। यह उस पू णमाक रजनीके समान जान पड़ती है, जसके च मापर मानो रा ने हण लगा रखा हो। प त-शोकसे औ

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ाकुल और द न होनेके कारण यह सूखे जल- वाहवाली स रताके समान तीत होती है ।। १३-१४ ।। व व तपणकमलां व ा सत वहंगमाम् । ह तह तपरामृ ां ाकुला मव प नीम् ।। १५ ।। इसक दशा उस पु क रणीके समान दखायी दे ती है, जसे हा थय ने अपने शु डद डसे मथ डाला हो तथा जो न ए प वाले कमलसे यु हो एवं जसके भीतर नवास करनेवाले प ी अ य त भयभीत हो रहे ह । यह ःखसे अ य त ाकुल-सी तीत हो रही है ।। १५ ।। सुकुमार सुजाता र नगभगृहो चताम् । द माना मवाकण मृणाली मव चोद्धृताम् ।। १६ ।। मनोहर अंग वाली यह सुकुमारी राजक या उन महल म रहनेयो य है, जनका भीतरी भाग र न का बना आ है। (इस समय ःखने इसे ऐसा बल कर दया है क) यह सरोवरसे नकाली और सूयक करण से जलायी ई कम लनीके समान तीत हो रही है ।। १६ ।। पौदायगुणोपेतां म डनाहामम डताम् । च लेखा मव नवां ो न नीला संवृताम् ।। १७ ।। यह प और उदारता आ द गुण से स प है। शृंगार धारण करनेके यो य होनेपर भी यह शृंगारशू य है, मानो आकाशम मेघ क काली घटासे आवृत नूतन च कला हो ।। १७ ।। कामभोगैः यैह नां हीनां ब धुजनेन च । दे हं संधारय त ह भतृदशनकाङ् या ।। १८ ।। यह राजक या य कामभोग से वं चत है। अपने ब धुजन से बछु ड़ी ई है और प तके दशनक इ छासे अपने (द न- बल) शरीरको धारण कर रही है ।। १८ ।। भता नाम परं नाया भूषणं भूषणै वना । एषा ह र हता तेन शोभमाना न शोभते ।। १९ ।। वा तवम प त ही नारीका सबसे े आभूषण है। उसके होनेसे वह बना आभूषण के सुशो भत होती है; परंतु यह प त प आभूषणसे र हत होनेके कारण शोभामयी होकर भी सुशो भत नह हो रही है ।। १९ ।। करं कु तेऽ य तं हीनो यदनया नलः । धारय या मनो दे हं न शोकेना प सीद त ।। २० ।। इससे वलग होकर राजा नल य द अपने शरीरको धारण करते ह और शोकसे श थल नह हो रहे ह तो यह समझना चा हये क वे अ य त कर कम कर रहे ह ।। २० ।। इमाम सतकेशा तां शतप ायते णाम् । सुखाहा ःखतां ् वा ममा प थते मनः ।। २१ ।। काले-काले केश और कमलके समान वशाल ने से सुशो भत इस राजक याको, जो सदा सुख भोगनेके ही यो य है, ःखत दे खकर मेरे मनम भी बड़ी था हो रही ै

है ।। २१ ।। कदा नु खलु ःख य पारं या य त वै शुभा । भतुः समागमात् सा वी रो हणी श शनो यथा ।। २२ ।। जैसे रो हणी च माके संयोगसे सुखी होती है, उसी कार यह शुभल णा सा वी राजकुमारी अपने प तके समागमसे (संतु हो) कब इस ःखके समु से पार हो सकेगी ।। २२ ।। अ या नूनं पुनलाभा ैषधः ी तमे य त । राजा रा यप र ः पुनल वा च मे दनीम् ।। २३ ।। जैसे कोई राजा एक बार अपने रा यसे युत होकर फर उसी रा यभू मको ा त कर लेनेपर अ य त आन दका अनुभव करता है, उसी कार पुनः इसके मल जानेपर नषधनरेश नलको न य ही बड़ी स ता होगी ।। २३ ।। तु यशीलवयोयु ां तु या भजनसंवृताम् । नैषधोऽह त वैदभ तं चेयम सते णा ।। २४ ।। वदभकुमारी दमय ती राजा नलके समान शील और अव थासे यु है, उ ह के तु य उ म कुलसे सुशो भत है। नषधनरेश नल वदभकुमारीके यो य ह और यह कजरारे ने वाली वैदभ नलके यो य है ।। २४ ।। यु ं त या मेय य वीयस ववतो मया । समा ास यतुं भाया प तदशनलालसाम् ।। २५ ।। राजा नलका परा म और धैय असीम है। उनक यह प नी प तदशनके लये लाला यत और उ क ठत है, अतः मुझे इससे मलकर इसे आ ासन दे ना चा हये ।। २५ ।। अहमा ासया येनां पूणच नभाननाम् । अ पूवा ःख य ःखाता यानत पराम् ।। २६ ।। इस पूणच मुखी राजकुमारीने पहले कभी ःखको नह दे खा था। इस समय ःखसे आतुर हो प तके यानम परायण है, अतः म इसे आ ासन दे नेका वचार कर रहा ँ ।। २६ ।। बृहद उवाच एवं वमृ य व वधैः कारणैल णै ताम् । उपाग य ततो भैम सुदेवो ा णोऽ वीत् ।। २७ ।। अहं सुदेवो वैद भ ातु ते द यतः सखा । भीम य वचनाद् रा वाम वे ु महागतः ।। २८ ।। बृहद मु न कहते ह—यु ध र! इस कार भाँ त-भाँ तके कारण और ल ण से दमय तीको पहचानकर और अपने कत के वषयम वचार करके सुदेव ा ण उसके समीप गये और इस कार बोले—‘ वदभराजकुमारी! म तु हारे भाईका य सखा सुदेव ँ। महाराज भीमक आ ासे तु हारी खोज करनेके लये यहाँ आया ँ ।। २७-२८ ।।

कुशली ते पता रा जननी ातर ते । आयु म तौ कुश लनौ त थौ दारकौ च तौ ।। २९ ।। ‘ नषधदे शक महारानी! तु हारे पता, माता और भाई सब सकुशल ह और कु डनपुरम जो तु हारे बालक ह, वे भी कुशलसे ह ।। २९ ।। व कृते ब धुवगा गतस वा इवासते । अ वे ारो ा णा म त शतशो महीम् ।। ३० ।। ‘तु हारे ब धु-बा धव तु हारी ही च तासे मृतक-तु य हो रहे ह। (तु हारी खोज करनेके लये) सैकड़ ा ण इस पृ वीपर घूम रहे ह’ ।। ३० ।।

बृहद उवाच अ भ ाय सुदेवं तं दमय ती यु ध र । पयपृ छत तान् सवान् मेण सु दः वकान् ।। ३१ ।। बृहद मु न कहते ह—यु ध र! सुदेवको पहचानकर दमय तीने मशः अपने सभी सगे-स ब धय का कुशल समाचार पूछा ।। ३१ ।। रोद च भृशं राजन् वैदभ शोकक शता । ् वा सुदेवं सहसा ातु र ं जो मम् ।। ३२ ।। दत तामथो ् वा सुन दा शोकक शता । सुदेवेन सहैका ते कथय त च भारत ।। ३३ ।। े

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राजन्! अपने भाईके य म ज े सुदेवको सहसा आया दे ख दमय ती शोकसे ाकुल हो फूट-फूटकर रोने लगी। भारत! तदन तर उसे सुदेवके साथ एका तम बात करती तथा रोती दे ख सुन दा शोकसे ाकुल हो उठ ।। ३२-३३ ।। ज नयै कथयामास सैर ी रो दती त च । ा णेन सहाग य तां वेद य द म यसे ।। ३४ ।। उसने अपनी मातासे जाकर कहा—‘माँ! सैर ी एक ा णसे मलकर ब त रो रही है। य द तुम ठ क समझो तो इसका कारण जाननेक चे ा करो’ ।। ३४ ।। अथ चे दपतेमाता रा ा तःपुरात् तदा । जगाम य सा बाला ा णेन सहाभवत् ।। ३५ ।। तदन तर चे दराजक माता उस समय अ तःपुरसे नकलकर उसी थानपर गय , जहाँ राजक या दमय ती ा णके साथ खड़ी थी ।। ३५ ।।

ततः सुदेवमाना य राजमाता वशा पते । प छ भाया क येयं सुता वा क य भा वनी ।। ३६ ।। कथं च न ा ा त यो भतुवा वामलोचना । वया च व दता व कथमेवंगता सती ।। ३७ ।। यु ध र! तब राजमाताने सुदेवको बुलाकर पूछा—‘ व वर! जान पड़ता है, तुम इसे जानते हो। बताओ, यह सु दरी युवती कसक प नी अथवा कसक पु ी है? यह सु दर े











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ने वाली सु दरी अपने भाई-ब धु अथवा प तसे कस कार वलग ई है? यह सतीसा वी नारी ऐसी रव थाम य पड़ गयी? ।। ३६-३७ ।। एत द छा यहं ोतुं व ः सवमशेषतः । त वेन ह ममाच व पृ छ या दे व पणीम् ।। ३८ ।। ‘ न्! इस दे व पणी नारीके वषयम यह सारा वृ ा त म पूण पसे सुनना चाहती ँ। म जो कुछ पूछती ँ, वह मुझे ठ क-ठ क बताओ’ ।। ३८ ।। एवमु तया राजन् सुदेवो जस मः । सुखोप व आच दमय या यथातथम् ।। ३९ ।। राजन्! राजमाताके इस कार पूछनेपर वे ज े सुदेव सुखपूवक बैठकर दमय तीका यथाथ वृ ा त बताने लगे ।। ३९ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण नलोपा यानपव ण दमय तीसुदेवसंवादे अ ष तमोऽ यायः ।। ६८ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत नलोपा यानपवम दमय ती-सुदेवसंवाद वषयक अरसठवाँ अ याय पूरा आ ।। ६८ ।।

एकोनस त ततमोऽ यायः दमय तीका अपने पताके यहाँ जाना और वहाँसे नलको ढूँ ढ़ नेके लये अपना संदेश दे कर ा ण को भेजना सुदेव उवाच वदभराजो धमा मा भीमो नाम महा ु तः । सुतेयं त य क याणी दमय ती त व ुता ।। १ ।। सुदेवने कहा—दे व! वदभदे शके राजा महा-तेज वी भीम बड़े धमा मा ह। यह उ ह क पु ी है। इस क याण व पा राजक याका नाम दमय ती है ।। १ ।। राजा तु नैषधो नाम वीरसेनसुतो नलः । भाययं त य क याणी पु य ोक य धीमतः ।। २ ।। वीरसेनपु नल नषधदे शके सु स राजा ह। उ ह (परम) बु मान् पु य ोक नलक यह क याणमयी प नी है ।। २ ।। स ूतेन जतो ा ा तरा यो महीप तः । दमय या गतः साध न ा ायत क य चत् ।। ३ ।। एक दन राजा नल अपने भाईके ारा जूएम हार गये। उसीम उनका सारा रा य चला गया। वे दमय तीके साथ वनम चले गये। तबसे अबतक कसीको उनका पता नह लगा ।। ३ ।। ते वयं दमय यथ चरामः पृ थवी ममाम् । सेयमासा दता बाला तव पु नवेशने ।। ४ ।। हम अनेक ा ण दमय तीको ढूँ ढ़नेके लये इस पृ वीपर वचर रहे ह। आज आपके पु के महलम मुझे यह राजकुमारी मली है ।। ४ ।। अ या पेण स शी मानुषी न ह व ते । अ या ेष ुवोम ये सहजः प लु मः ।। ५ ।। पम इसक समानता करनेवाली कोई भी मानवक या नह है। इसके दोन भ ह के बीच एक ज मजात उ म तलका च है ।। ५ ।। यामायाः पसंकाशो ल तोऽ त हतो मया । मलेन संवृतो या छ ोऽ ेणेव च माः ।। ६ ।। मने दे खा है, इस यामा राजकुमारीके ललाटम वह कमलके समान च छपा आ है। मेघमालासे ढँ के ए च माक भाँ त उसका वह च मैलसे ढक गया है ।। ६ ।। च भूतो वभू यथमयं धा ा व न मतः । तप कलुष ये दोलखा ना त वराजते ।। ७ ।। न चा या न यते पं वपुमलसमा चतम् । असं कृतम भ ं भा त का चनसं नभम् ।। ८ ।। े



अनेन वपुषा बाला प लुनानेन सू चता । ल तेयं मया दे वी नभृतोऽ न रवो मणा ।। ९ ।। वधाताके ारा नमत यह च इसके भावी ऐ यका सूचक है। इस समय यह तपदाक म लन च कलाके समान अ धक शोभा नह पा रही है। इसका सुवण-जैसा सु दर शरीर मैलसे ा त और सं कारशू य (माजन आ दसे र हत) होनेपर भी प पसे उ ा सत हो रहा है। इसका प-सौ दय न नह आ है। जैसे छपी ई आग अपनी गरमीसे पहचान ली जाती है, उसी कार य प दे वी दमय ती म लन शरीरसे यु है तो भी इस ललाटवत तलके च से ही मने इसे पहचान लया है ।। ७—९ ।। त छ वा वचनं त य सुदेव य वशा पते । सुन दा शोधयामास प लु छादनं मलम् ।। १० ।। यु ध र! सुदेवका यह वचन सुनकर सुन दाने दमय तीके ललाटवत च को ढँ कनेवाली मैल धो द ।। १० ।। स मलेनापकृ ेन प लु त या रोचत । दमय या यथा े नभसीव नशाकरः ।। ११ ।। मैल धुल जानेपर उसके ललाटका वह च उसी कार चमक उठा, जैसे बादलर हत आकाशम च मा का शत होता है ।। ११ ।। प लुं ् वा सुन दा च राजमाता च भारत । द यौ तां प र व य मुत मव त थतुः ।। १२ ।। भारत! उस च को दे खकर सुन दा और राजमाता दोन रोने लग और दमय तीको दयसे लगाये दो घड़ीतक त ध खड़ी रह ।। १२ ।। उ सृ य बा पं शनकै राजमातेदम वीत् । भ ग या हता मेऽ स प लुनानेन सू चता ।। १३ ।। त प ात् राजमाताने आँसू बहाते ए धीरेसे कहा—‘बेट ! तुम मेरी ब हनक पु ी हो। इस च के कारण मने भी तु ह पहचान लया ।। १३ ।। अहं च तव माता च रा त य महा मनः । सुते दशाणा धपतेः सुदा न ा दशने ।। १४ ।। ‘सु दरी! म और तु हारी माता दोन दशाणदे शके वामी महामना राजा सुदामाक पु याँ ह ।। १४ ।। भीम य रा ः सा द ा वीरबाहोरहं पुनः । वं तु जाता मया ा दशाणषु पतुगृहे ।। १५ ।। ‘तु हारी माँका याह राजा भीमके साथ आ और मेरा चे दराज वीरबा के साथ। तु हारा ज म दशाणदे शम मेरे पताके ही घरपर आ और मने अपनी आँख दे खा ।। १५ ।। यथैव ते पतुगहं तथैव मम भा म न । यथैव च ममै य दमय त तथा तव ।। १६ ।। ‘











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‘भा म न! तु हारे लये जैसा पताका घर है, वैसा ही मेरा घर है। दमय ती! यह सारा ऐ य जैसे मेरा है, उसी कार तु हारा भी है’ ।। १६ ।। तां ेन मनसा दमय ती वशा पते । ण य मातुभ गनी मदं वचनम वीत् ।। १७ ।। यु ध र! तब दमय तीने स दयसे अपनी मौसीको णाम करके कहा — ।। १७ ।। अ ायमाना प सती सुखम यु षता व य । सवकामैः सु व हता र यमाणा सदा वया ।। १८ ।। ‘माँ! य प तुम मुझे पहचानती नह थी, तब भी म तु हारे यहाँ बड़े सुखसे रही ँ। तुमने मेरी इ छानुसार सारी सु वधाएँ कर द और सदा तु हारे ारा मेरी र ा होती रही ।। १८ ।। सुखात् सुखतरो वासो भ व य त न संशयः । चर व ो षतां मातमामनु ातुमह स ।। १९ ।। ‘अब य द म यहाँ र ँ तो यह मेरे लये अ धक-से-अ धक सुखदायक होगा, इसम संशय नह है, कतु म ब त दन से वासम भटक रही ँ, अतः माताजी! मुझे वदभ जानेक आ ा द जये ।। १९ ।। दारकौ च ह मे नीतौ वसत त बालकौ । प ा वहीनौ शोकात मया चैव कथं नु तौ ।। २० ।। ‘मने अपने ब च को पहले ही कु डनपुर भेज दया था। वे वह रहते ह। पतासे तो उनका वयोग हो ही गया है; मुझसे भी वे बछु ड़ गये ह, ऐसी दशाम वे शोकात बालक कैसे रहते ह गे? ।। २० ।। य द चा प यं क च म य कतु महे छ स । वदभान् यातु म छा म शी ं मे यानमा दश ।। २१ ।। बाढ म येव तामु वा ा मातृ वसा नृप । गु तां बलेन महता पु यानुमते ततः ।। २२ ।। ा थापयद् राजमाता ीमत नरवा हना । यानेन भरत े व पानप र छदाम् ।। २३ ।। ‘माँ! य द तुम मेरा कुछ भी य करना चाहती हो तो मेरे लये शी कसी सवारीक व था कर दो। म वदभदे श जाना चाहती ँ।’ राजन्! तब ‘ब त अ छा’ कहकर दमय तीक मौसीने स तापूवक अपने पु क राय लेकर सु दरी दमय तीको पालक पर बठाकर वदा कया। उसक र ाके लये ब त बड़ी सेना दे द । भरत े ! राजमाताने दमय तीके साथ खाने-पीनेक तथा अ य आव यक साम य क अ छ व था कर द ।। २१—२३ ।। ततः सा न चरादे व वदभानगमत् पुनः । तां तु ब धुजनः सवः ः समपूजयत् ।। २४ ।। ँ े



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तदन तर वहाँसे वदा हो वह थोड़े ही दन म वदभदे शक राजधानीम जा प ँची। उसके आगमनसे माता- पता आ द सभी ब धु-बा धव बड़े स ए और सबने उसका वागत-स कार कया ।। २४ ।। सवान् कुश लनो ् वा बा धवान् दारकौ च तौ । मातरं पतरं चोभौ सव चैव सखीजनम् ।। २५ ।। दे वताः पूजयामास ा णां यश वनी । परेण व धना दे वी दमय ती वशा पते ।। २६ ।। राजन्! सम त ब धु-बा धव , दोन ब च , माता- पता और स पूण सखय को सकुशल दे खकर यश वनी दे वी दमय तीने उ म व धके साथ दे वता और ा ण का पूजन कया ।। २५-२६ ।। अतपयत् सुदेवं च गोसह ेण पा थवः । ीतो ् वैव तनयां ामेण वणेन च ।। २७ ।। राजा भीम अपनी पु ीको दे खकर अ य त स ए। उ ह ने एक हजार गौ, एक गाँव तथा धन दे कर सुदेव ा णको संतु कया ।। २७ ।। सा ु ा रजन त पतुव म न भा वनी । व ा ता मातरं राज दं वचनम वीत् ।। २८ ।। यु ध र! भा वनी दमय तीने उस रातम पताके घरम व ाम कया। सबेरा होनेपर उसने मातासे कहा— ।। २८ ।। दमय युवाच मां चे द छ स जीव त मातः स यं वी म ते । नल य नरवीर य यत वानयने पुनः ।। २९ ।। दमय ती बोली—माँ! य द मुझे जी वत दे खना चाहती हो तो म तुमसे सच कहती ँ, नरवीर महाराज नलक खोज करानेका पुनः य न करो ।। २९ ।। दमय या तथो ा तु सा दे वी भृश ःखता । बा पेणा प हता रा ी नो रं क चद वीत् ।। ३० ।। दमय तीके ऐसा कहनेपर महारानीक आँख आँसु से भर आय । वे अ य त ःखी हो गय और त काल उसे कोई उ र न दे सक ।। ३० ।। तदव थां तु तां ् वा सवम तःपुरं तदा । हाहाभूतमतीवासीद् भृशं च रोद ह ।। ३१ ।। तब महारानीक यह दयनीय अव था दे ख उस समय सारे अ तःपुरम हाहाकार मच गया। सब-के-सब फूट-फूटकर रोने लगे ।। ३१ ।। ततो भीमं महाराजं भाया वचनम वीत् । दमय ती तव सुता भतारमनुशोच त ।। ३२ ।। तदन तर महाराज भीमसे उनक प नीने कहा—‘ ाणनाथ! आपक पु ी दमय ती अपने प तके लये नर तर शोकम डू बी रहती है ।। ३२ ।। ी

अपकृ य च ल जां सा वयमु वती नृप । यत तां तव े याः पु य ोक य मागणे ।। ३३ ।। ‘नरे र! उसने लाज छोड़कर वयं अपने मुँहसे कहा है, अतः आपके सेवक पु य ोक महाराज नलका पता लगानेका य न कर’ ।। ३३ ।। तया दे शतो राजा ा णान् वशव तनः । ा थापयद् दशः सवा यत वं नलमागणे ।। ३४ ।। महारानीसे े रत हो राजा भीमने अपने अधीन थ ा ण को यह कहकर सब दशा म भेजा क ‘आपलोग नलको ढूँ ढ़नेक चे ा कर’ ।। ३४ ।। ततो वदभा धपते नयोगाद् ा णा तदा । दमय तीमथो सृ वा थताः मे यथा ुवन् ।। ३५ ।। त प ात् वदभनरेशक आ ासे ा णलोग थत हो दमय तीके पास जाकर बोले —‘राजकुमारी! हम सब नलका पता लगाने जा रहे ह ( या आपको कुछ कहना है?)’ ।। ३५ ।।

अथ तान वीद् भैमी सवरा े वदं वचः । ुव वं जनसंस सु त त पुनः पुनः ।। ३६ ।। तब भीमकुमारीने उन ा ण से कहा—‘सब रा म आपलोग बार-बार मेरी यह बात बोल— ।। ३६ ।। व नु वं कतव छ वा व ाध थतो मम । े

घूम-घूमकर जनसमुदायम

उ सृ य व पने सु तामनुर ां यां य ।। ३७ ।। ‘ओ जुआरी यतम! तुम वनम सोयी ई और अपने प तम अनुराग रखनेवाली मुझ यारी प नीको छोड़कर तथा मेरे आधे व को फाड़कर कहाँ चल दये? ।। ३७ ।। सा वै यथा वया ा तथाऽऽ ते व ती णी । द माना भृशं बाला व ाधना भसंवृता ।। ३८ ।। ‘उसे तुमने जस अव थाम दे खा था, उसी अव थाम वह आज भी है और तु हारे आगमनक ती ा कर रही है। आधे व से अपने शरीरको ढँ ककर वह युवती तु हारी वरहा नम नर तर जल रही है ।। ३८ ।। त या द याः सततं तेन शोकेन पा थव । सादं कु वै वीर तवा यं दद व च ।। ३९ ।। ‘वीर भू मपाल! सदा तु हारे शोकसे रोती ई अपनी उस यारी प नीपर पुनः कृपा करो और मुझे मेरी बातका उ र दो’ ।। ३९ ।। एवम य च व ं कृपां कुयाद् यथा म य । वायुना धूयमानो ह वनं दह त पावकः ।। ४० ।। ‘ ा णो! ये तथा और भी ब त-सी ऐसी बात आप कह, जससे वे मुझपर कृपा कर। वायुक सहायतासे व लत आग सारे वनको जला डालती है (इसी कार वरहक ाकुलता मुझे जला रही है) ।। ४० ।। भत ा र णीया च प नी प या ह सवदा । त मुभयं क माद् धम य सत तव ।। ४१ ।। ‘ ाणनाथ! प तको उ चत है क वह सदा अपनी प नीका भरण-पोषण एवं संर ण करे। आप धम और साधु पु ष ह, आपके ये दोन कत सहसा न कैसे हो गये? ।। ४१ ।। यातः ा ः कुलीन सानु ोशो भवान् सदा । संवृ ो नरनु ोशः शङ् के म ा यसं यात् ।। ४२ ।। ‘आप व यात व ान्, कुलीन और सदा सबके त दयाभाव रखनेवाले ह, परंतु मेरे दयम यह संदेह होने लगा है क आप मेरा भा य न होनेके कारण मेरे त नदय हो गये ह ।। ४२ ।। तत् कु व नर ा दयां म य नरषभ । आनृशं यं परो धम व एव ह मे ुतः ।। ४३ ।। ‘नर ा ! नरो म! मुझपर दया करो। मने तु हारे ही मुखसे सुन रखा है क दयालुता सबसे बड़ा धम है’ ।। ४३ ।। एवं ुवाणान् य द वः त ूयात् कथंचन । स नरः सवथा ेयः क ासौ व नु वतते ।। ४४ ।। ‘ ा णो! य द आपके ऐसी बात कहनेपर कोई कसी कार भी आपको उ र दे तो उस मनु यका सब कारसे प रचय ा त क जयेगा क वह कौन है और कहाँ रहता है, इ या द ।। ४४ ।। ै ो

य ैवं वचनं ु वा ूयात् तवचो नरः । तदादाय वच त य ममावे ं जो माः ।। ४५ ।। ‘ व वरो! आपके इन वचन को सुनकर जो कोई मनु य जैसा भी उ र दे , उसक वह बात याद रखकर आपलोग मुझे बताव ।। ४५ ।। यथा च वो न जानीयाद् ुवतो मम शासनात् । पुनरागमनं चैव तथा कायमत तैः ।। ४६ ।। ‘ कसीको भी यह नह मालूम होना चा हये क आपलोग मेरी आ ासे ये बात कह रहे ह। जब कोई उ र मल जाय, तब आप आल य छोड़कर पुनः यहाँ तुरंत लौट आव ।। ४६ ।। य द वासौ समृ ः याद् य द वा यधनो भवेत् । य द वा यसमथः या ेयम य चक षतम् ।। ४७ ।। ‘उ र दे नेवाला पु ष धनवान् हो या नधन, समथ हो या असमथ, वह या करना चाहता है, इस बातको जाननेका य न क जये’ ।। ४७ ।। एवमु ा वग छं ते ा णाः सवतो दशम् । नलं मृग यतुं राजं तदा स ननं तथा ।। ४८ ।। ते पुरा ण सरा ा ण ामान् घोषां तथाऽऽ मान् । अ वेष तो नलं राजन् ना धज मु जातयः ।। ४९ ।। राजन्! दमय तीके ऐसा कहनेपर वे ा ण संकटम पड़े ए राजा नलको ढूँ ढ़नेके लये सब दशा क ओर चले गये। यु ध र! उन ा ण ने नगर , रा , गाँव , गो तथा आ म म भी नलका अ वेषण कया; कतु उ ह कह भी उनका पता न लगा ।। ४८-४९ ।। त च वा यं तथा सव त त वशा पते । ावयांच रे व ा दमय या यथे रतम् ।। ५० ।। महाराज! दमय तीने जैसा बताया था, उस वा यको सभी ा ण भ - भ थान म जाकर लोग को सुनाया करते थे ।। ५० ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण नलोपा यानपव ण नला वेषणे एकोनस त ततमोऽ यायः ।। ६९ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत नलोपा यानपवम नलक खोज वषयक उनह रवाँ अ याय पूरा आ ।। ६९ ।।

स त ततमोऽ यायः पणादका दमय तीसे बा क पधारी नलका समाचार बताना और दमय तीका ऋतुपणके यहाँ सुदेव नामक ा णको वयंवरका संदेश दे कर भेजना बृहद उवाच अथ द घ य काल य पणादो नाम वै जः । ये य नगरं भैमी मदं वचनम वीत् ।। १ ।। बृहद मु न कहते ह—राजन्! तदन तर द घ-कालके प ात् पणाद नामक ा ण वदभदे शक राजधानीम लौटकर आये और दमय तीसे इस कार बोले— ।। १ ।। नैषधं मृगयानेन दमय त मया नलम् । अयो यां नगर ग वा भा ासु रमुप थतः ।। २ ।। ‘दमय ती! म नषधनरेश नलको ढूँ ढ़ता आ अयो या नगरीम गया और वहाँ राजा ऋतुपणके दरबारम उप थत आ ।। २ ।। ा वत मया वा यं वद यं स महाजने । ऋतुपण महाभागो यथो ं वरव ण न ।। ३ ।। त छ वा ना वीत् क च तुपण नरा धपः । न च पा रषदः क द् भा यमाणो मयासकृत् ।। ४ ।। ‘वहाँ ब त लोग क भीड़म मने तु हारा वा य महाभाग ऋतुपणको सुनाया। वरव ण न! उस बातको सुनकर राजा ऋतुपण कुछ न बोले। मेरे बार-बार कहनेपर भी उनका कोई सभासद् भी इसका उ र न दे सका ।। ३-४ ।। अनु ातं तु मां रा ा वजने क द वीत् । ऋतुपण य पु षो बा को नाम नामतः ।। ५ ।। ‘परंतु ऋतुपणके यहाँ बा क नामधारी एक पु ष है, उसने जब म राजासे वदा लेकर लौटने लगा, तब मुझसे एका तम आकर तु हारी बात का उ र दया ।। ५ ।। सूत त य नरे य व पो वबा कः । शी यानेषु कुशलो मृ कता च भोजने ।। ६ ।। ‘वह महाराज ऋतुपणका सार थ है। उसक भुजाएँ छोट ह तथा वह दे खनेम कु प भी है। वह घोड़ को शी हाँकनेम कुशल है और अपने बनाये ए भोजनम बड़ा मठास उ प कर दे ता है ।। ६ ।। स व नः य ब शो द वा च पुनः पुनः । कुशलं चैव मां पृ ् वा प ा ददमभाषत ।। ७ ।। ‘बा कने बार-बार लंबी साँस ख चकर अनेक बार रोदन कया और मुझसे कुशलसमाचार पूछकर फर वह इस कार कहने लगा— ।। ७ ।। ै ो

वैष यम प स ा ता गोपाय त कुल यः । आ मानमा मना स यो जतः वग न संशयः ।। ८ ।। ‘उ म कुलक याँ बड़े भारी संकटम पड़कर भी वयं अपनी र ा करती ह। ऐसा करके वे स य और वग दोन पर वजय पा लेती ह, इसम संशय नह है ।। ८ ।। र हता भतृ भ ैव न कु य त कदाचन । ाणां ा र कवचान् धारय त वर यः ।। ९ ।। ‘ े ना रयाँ अपने प तय से प र य होनेपर भी कभी ोध नह करत । वे सदाचार पी कवचसे आवृत ाण को धारण करती ह ।। ९ ।। वषम थेन मूढेन प र सुखेन च । यत् सा तेन प र य ा त न ोद्धुमह त ।। १० ।। ‘वह पु ष बड़े संकटम था, सुखके साधन से वं चत होकर ककत वमूढ हो गया था। ऐसी दशाम य द उसने अपनी प नीका प र याग कया है तो इसके लये प नीको उसपर ोध नह करना चा हये ।। १० ।। ाणया ां प र े सोः शकुनै तवाससः । आ ध भद मान य यामा न ोद्धुमह त ।। ११ ।। ‘जी वका पानेके लये चे ा करते समय प य ने जसके व का अपहरण कर लया था और जो अनेक कारक मान सक च ता से द ध हो रहा था, उस पु षपर यामाको ोध नह करना चा हये ।। ११ ।। स कृतास कृता वा प प त ् वा तथागतम् । रा यं या हीनं ु धतं सना लुतम् ।। १२ ।। ‘प तने उसका स कार कया हो या अस कार—उसे चा हये क प तको वैसे संकटम पड़ा दे खकर उसे मा कर दे ; य क वह रा य और ल मीसे वं चत हो भूखसे पी ड़त एवं वप के अथाह सागरम डू बा आ था’ ।। १२ ।। त य तद् वचनं ु वा व रतोऽह महागतः । ु वा माणं भवती रा ैव नवेदय ।। १३ ।। ‘बा कक वह बात सुनकर म तुरंत यहाँ चला आया। यह सब सुनकर अब कत ाकत के नणयम तु ह माण हो। (तु हारी इ छा हो तो) महाराजको भी ये बात सू चत कर दो’ ।। १३ ।। एत छ वा ुपूणा ी पणाद य वशा पते । दमय ती रहोऽ ये य मातरं यभाषत ।। १४ ।। यु ध र! पणादका यह कथन सुनकर दमय तीके ने म आँसू भर आया। उसने एका तम जाकर अपनी मातासे कहा— ।। १४ ।। अयमथ न संवे ो भीमे मातः कदाचन । व सं नधौ नयो येऽहं सुदेवं जस मम् ।। १५ ।। यथा न नृप तभ मः तप ेत मे मतम् । तथा वया कत ं मम चेत् य म छ स ।। १६ ।। ‘ ँ ी ो ो ी े े ी े

‘माँ! पताजीको यह बात कदा प मालूम न होनी चा हये। म तु हारे ही सामने व वर सुदेवको इस कायम लगाऊँगी। तुम ऐसी चे ा करो, जससे पताजीको मेरा वचार ात न हो। य द तुम मेरा य करना चाहती हो तो तु ह इसके लये सचे रहना होगा ।। १५-१६ ।। यथा चाहं समानीता सुदेवेनाशु बा धवान् । तेनैव म लेनाशु सुदेवो यातु मा चरम् ।। १७ ।। समानेतुं नलं मातरयो यां नगरी मतः । ‘जैसे सुदेवने मुझे यहाँ लाकर ब धु-बा धव से शी मला दया, उसी मंगलमय उ े यक स के लये सुदेव ा ण फर शी ही यहाँसे अयो या जायँ, दे र न कर। माँ! वहाँ जानेका उ े य है, महाराज नलको यहाँ ले आना’ ।। १७ ।। व ा तं तु ततः प ात् पणादं जस मम् ।। १८ ।। अचयामास वैदभ धनेनातीव भा वनी । नले चेहागते त भूयो दा या म ते वसु ।। १९ ।। इतनेहीम व वर पणाद जब व ाम कर चुके, तब वदभराजकुमारी दमय तीने ब त धन दे कर उनका स कार कया और यह भी कहा—‘महाराज नलके यहाँ पधारनेपर म आपको और भी धन ँ गी ।। १८-१९ ।। वया ह मे ब कृतं यद यो न क र य त । यद् भ ाहं समे या म शी मेव जो म ।। २० ।। ‘ व वर! आपने मेरा ब त बड़ा उपकार कया, जो सरा नह कर सकता; य क अब म अपने वामीसे शी ही मल सकूँगी’ ।। २० ।।

स एवमु ोऽथा ा य आशीवादै ः सुम लैः । गृहानुपययौ चा प कृताथः सुमहामनाः ।। २१ ।। दमय तीके ऐसा कहनेपर अ य त उदार दयवाले पणाद अपने परम मंगलमय आशीवाद ारा उसे आ ासन दे कृताथ हो अपने घर चले गये ।। २१ ।। ततः सुदेवमाभा य दमय ती यु ध र । अ वीत् सं नधौ मातु ःखशोकसम वता ।। २२ ।। यु ध र! तदन तर दमय तीने सुदेव ा णको बुलाकर अपनी माताके समीप ःखशोकसे पी ड़त होकर कहा— ।। २२ ।। ग वा सुदेव नगरीमयो यावा सनं नृपम् । ऋतुपण वचो ू ह स पत व कामगः ।। २३ ।। ‘सुदेवजी! आप इ छानुसार चलनेवाले तगामी प ीक भाँ त शी तापूवक अयो या नगरीम जाकर वहाँके नवासी राजा ऋतुपणसे क हये— ।। २३ ।। आ था य त पुनभमी दमय ती वयंवरम् । त ग छ त राजानो राजपु ा सवशः ।। २४ ।। ‘भीमकुमारी दमय ती पुनः वयंवर करेगी। वहाँ ब त-से राजा और राजकुमार सब ओरसे जा रहे ह ।। २४ ।। तथा च ग णतः कालः ोभूते स भ व य त । य द स भावनीयं ते ग छ शी मरदम ।। २५ ।। ‘













‘उसके लये समय नयत हो चुका है। कल ही वयंवर होगा। श ुदमन! य द आपका वहाँ प ँचना स भव हो तो शी जाइये ।। २५ ।। सूय दये तीयं सा भतारं वर य य त । न ह स ायते वीरो नलो जीव त वा न वा ।। २६ ।। ‘कल सूय दय होनेके बाद वह सरे प तका वरण कर लेगी; य क वीरवर नल जी वत ह या नह , इसका कुछ पता नह लगता है’ ।। २६ ।। एवं तया यथो ो वै ग वा राजानम वीत् । ऋतुपण महाराज सुदेवो ा ण तदा ।। २७ ।। महाराज! दमय तीके इस कार बतानेपर सुदेव ा णने राजा ऋतुपणके पास जाकर वही बात कही ।। २७ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण नलोपा यानपव ण दमय तीपुनः वयंवरकथने स त ततमोऽ यायः ।। ७० ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत नलोपा यानपवम दमय तीके पुनः वयंवरक चचासे स ब ध रखनेवाला स रवाँ अ याय पूरा आ ।। ७० ।।

एकस त ततमोऽ यायः राजा ऋतुपणका वदभदे शको थान, राजा नलके वषयम वा णयका वचार और बा कक अ त अ संचालन-कलासे वा णय और ऋतुपणका भा वत होना बृहद उवाच ु वा वचः सुदेव य ऋतुपण नरा धपः । सा ययन् णया वाचा बा कं यभाषत ।। १ ।। बृहद मु न कहते ह—यु ध र! सुदेवक वह बात सुनकर राजा ऋतुपणने मधुर वाणीसे सा वना दे ते ए बा कसे कहा— ।। १ ।। वदभान् यातु म छा म दमय याः वयंवरम् । एका ा हयत व म यसे य द बा क ।। २ ।। ‘बा क! तुम अ व ाके त व हो, य द मेरी बात मानो तो म दमय तीके वयंवरम स म लत होनेके लये एक ही दनम वदभदे शक राजधानीम प ँचना चाहता ँ’ ।। २ ।। एवमु य कौ तेय तेन रा ा नल य ह । द यत मनो ःखात् द यौ च महामनाः ।। ३ ।। कु तीन दन! राजा ऋतुपणके ऐसा कहनेपर राजा नलका मन अ य त ःखसे वद ण होने लगा। महामना नल ब त दे रतक कसी भारी च ताम नम न हो गये ।। ३ ।। दमय ती वदे देतत् कुयाद् ःखेन मो हता । अ मदथ भवेद ् वायमुपाय ततो महान् ।। ४ ।। वे सोचने लगे—‘ या दमय ती ऐसी बात कह सकती है? अथवा स भव है, ःखसे मो हत होकर वह ऐसा काय कर ले। कह ऐसा तो नह है क उसने मेरी ा तके लये यह महान् उपाय सोच नकाला हो? ।। ४ ।। नृशंसं बत वैदभ भतृकामा तप वनी । मया ु े ण नकृता कृपणा पापबु ना ।। ५ ।। ी वभाव लो लोके मम दोष दा णः । यादे वम प कुयात् सा ववासाद् गतसौ दा ।। ६ ।। ‘तप वनी एवं द न वदभराजकुमारीको मुझ नीच एवं पापबु पु षने धोखा दया है, इसी लये वह ऐसा न ु र काय करनेको उ त हो गयी। संसारम ीका चंचल वभाव स है। मेरा अपराध भी भयंकर है। स भव है मेरे वाससे उसका हादक नेह कम हो गया हो, अतः वह ऐसा भी कर ले ।। ५-६ ।। मम शोकेन सं व ना नैरा यात् तनुम यमा । ै



नैवं सा क ह चत् कुयात् साप या च वशेषतः ।। ७ ।। ‘ य क पतली कमरवाली वह युवती मेरे शोकसे अ य त उ न हो उठ होगी और मेरे मलनेक आशा न होनेके कारण उसने ऐसा वचार कर लया होगा, परंतु मेरा दय कहता है क वह कभी ऐसा नह कर सकती। वशेषतः वह संतानवती है। इस लये भी उससे ऐसी आशा नह क जा सकती ।। ७ ।। यद स यं वास यं ग वा वे या म न यम् । ऋतुपण य वै काममा माथ च करो यहम् ।। ८ ।। ‘इसम कतना स य या अस य है—इसे म वहाँ जाकर ही न त पसे जान सकूँगा, अतः म अपने लये ही ऋतुपणक इस कामनाको पूण क ँ गा’ ।। ८ ।। इ त न य मनसा बा को द नमानसः । कृता ल वाचेदमृतुपण जना धपम् ।। ९ ।। तजाना म ते वा यं ग म या म नरा धप । एका ा पु ष ा वदभनगर नृप ।। १० ।। मन-ही-मन ऐसा न य करके द न दय बा कने दोन हाथ जोड़कर राजा ऋतुपणसे इस कार कहा—‘नरे र! पु ष सह! मने आपक आ ा सुनी है, म त ापूवक कहता ँ क म एक ही दनम वदभदे शक राजधानीम आपके साथ जा प ँचूँगा’ ।। ९-१० ।। ततः परी ाम ानां च े राजन् स बा कः । अ शालामुपाग य भा ासु रनृपा या ।। ११ ।। यु ध र! तदन तर बा कने अ शालाम जाकर राजा ऋतुपणक आ ासे अ क परी ा क ।। ११ ।। स वयमाणो ब श ऋतुपणन बा कः । अ ा ासमानो वै वचाय च पुनः पुनः । अ यग छत् कृशान ान् समथान व न मान् ।। १२ ।। ऋतुपण बा कको बार-बार उ े जत करने लगे, अतः उसने अ छ तरह वचार करके अ क परी ा कर ली और ऐसे अ को चुना, जो दे खनेम बले होनेपर भी माग तय करनेम श शाली एवं समथ थे ।। १२ ।। तेजोबलसमायु ान् कुलशीलसम वतान् । व जताँ ल णैह नैः पृथु ोथान् महाहनून् ।। १३ ।। वे तेज और बलसे यु थे। वे अ छ जा तके और अ छे वभावके थे। उनम अशुभ ल ण का सवथा अभाव था। उनक नाक मोट और थूथन (ठोड़ी) चौड़ी थी ।। १३ ।। शू ान् दश भरावतः स धुजान् वातरंहसः । ् वा तान वीद् राजा क चत् कोपसम वतः ।। १४ ।। वे वायुके समान वेगशाली स धुदेशके घोड़े थे। वे दस आवत (भँव रय )-के च से यु होनेके कारण नद ष थे। उ ह दे खकर राजा ऋतुपणने कुछ कु पत होकर कहा — ।। १४ ।। क मदं ा थतं कतु लध ा न ते वयम् । ी े

कथम पबल ाणा व य तीमे हया मम । महद वानम प च ग त ं कथमी शैः ।। १५ ।। ‘ या तुमसे ऐसे ही घोड़े चुननेके लये कहा था, तुम मुझे धोखा तो नह दे रहे हो। ये अ प बल और श वाले घोड़े कैसे मेरा इतना बड़ा रा ता तय कर सकगे? ऐसे घोड़ से इतनी रतक रथ कैसे ले जाया जायगा?’ ।। १५ ।। बा क उवाच एको ललाटे ौ मू न ौ ौ पा पपा योः । ौ ौ व स व ेयौ याणे चैक एव तु ।। १६ ।। बा कने कहा—राजन्! ललाटम एक, म तकम दो, पा भागम दो, उपपा भागम भी दो, छातीम दोन ओर दो दो और पीठम एक—इस कार कुल बारह भँव रय को पहचानकर घोड़े रथम जोतने चा हये ।। १६ ।। एते हया ग म य त वदभान् ना संशयः । यान यान् म यसे राजन् ू ह तान् योजया म ते ।। १७ ।। ये मेरे चुने ए घोड़े अव य वदभदे शक राजधानीतक प ँचगे, इसम संशय नह है। महाराज! इ ह छोड़कर आप जनको ठ क समझ, उ ह को म रथम जोत ँ गा ।। १७ ।। ऋतुपण उवाच वमेव हयत व ः कुशलो स बा क । यान् म यसे समथा वं ं तानेव योजय ।। १८ ।। ऋतुपण बोले—बा क! तुम अ व ाके त व और कुशल हो, अतः तुम ज ह इस कायम समथ समझो, उ ह को शी जोतो ।। १८ ।। ततः सद ां तुरः कुलशीलसम वतान् । योजयामास कुशलो जवयु ान् रथे नलः ।। १९ ।। तब चतुर एवं कुशल राजा नलने अ छ जा त और उ म वभावके चार वेगशाली घोड़ को रथम जोता ।। १९ ।। ततो यु ं रथं राजा समारोहत् वरा वतः । अथ पयपतन् भूमौ जानु भ ते हयो माः ।। २० ।। जुते ए रथपर राजा ऋतुपण बड़ी उतावलीके साथ सवार ए। इस लये उनके चढ़ते ही वे उ म घोड़े घुटन के बल पृ वीपर गर पड़े ।। २० ।। ततो नरवरः ीमान् नलो राजा वशा पते । सा वयामास तान ां तेजोबलसम वतान् ।। २१ ।। यु ध र! तब नर े ीमान् राजा नलने तेज और बलसे स प उन घोड़ को पुचकारा ।। २१ ।। र म भ समु य नलो यातु मयेष सः । सूतमारो य वा णयं जवमा थाय वै परम् ।। २२ ।। ते चो माना व धवद् बा केन हयो माः । े ो

समु पेतुरथाकाशं र थनं मोहय व ।। २३ ।। फर अपने हाथम बागडोर ले उ ह काबूम करके रथको आगे बढ़ानेक इ छा क । वा णय सार थको रथपर बैठाकर अ य त वेगका आ य ले उ ह ने रथ हाँक दया। बा कके ारा व धपूवक हाँके जाते ए वे उ म अ रथीको मो हत—से करते ए इतने ती वेगसे चले, मानो आकाशम उड़ रहे ह ।। २२-२३ ।।

तथा तु ् वा तान ान् वहतो वातरंहसः । अयो या धप तः ीमान् व मयं परमं ययौ ।। २४ ।। उस कार वायुके समान वेगसे रथका वहन करनेवाले उन अ को दे खकर ीमान् अयो यानरेशको बड़ा व मय आ ।। २४ ।। रथघोषं तु तं ु वा हयसं हणं च तत् । वा णय तयामास बा क य हय ताम् ।। २५ ।। क नु या मात लरयं दे वराज य सार थः । तथा त ल णं वीरे बा के यते महत् ।। २६ ।। रथक आवाज सुनकर और घोड़ को काबूम करनेक वह कला दे खकर वा णयने बा कके अ - व ानपर सोचना आर भ कया। ‘ या यह दे वराज इ का सार थ मात ल है? इस वीर बा कम मात लका-सा ही महान् ल ण दे खा जाता है ।। २५-२६ ।। शा लहो ोऽथ क नु या यानां कुलत व वत् । ो ो

मानुषं समनु ा तो वपुः परमशोभनम् ।। २७ ।। ‘अथवा घोड़ क जा त और उनके वषयक ता वक बात जाननेवाले ये आचाय शा लहो तो नह ह, जो परम सु दर मानव शरीर धारण करके यहाँ आ प ँचे ह ।। २७ ।। उताहो वद् भवेद ् राजा नलः परपुरंजयः । सोऽयं नृप तरायात इ येवं सम च तयत् ।। २८ ।। ‘अथवा श ु क राजधानीपर वजय पानेवाले सा ात् राजा नल ही तो इस पम नह आ गये ह? अव य वे ही ह, इस कार वा णयने च तन करना ार भ कया ।। २८ ।। अथ चेह नलो व ां वे तामेव बा कः । तु यं ह ल ये ानं बा क य नल य च ।। २९ ।। ‘राजा नल इस जगत्म जस व ाको जानते ह, उसीको बा क भी जानता है। बा क और नल दोन का ान मुझे एक-सा दखायी दे ता है ।। २९ ।। अ प चेदं वय तु यं बा क य नल य च । नायं नलो महावीय त भ व य त ।। ३० ।। ‘इसी कार बा क और नलक अव था भी एक है। यह महापरा मी राजा नल नह है तो भी उनके ही समान व ान् कोई सरा महापु ष होगा ।। ३० ।। छ ा ह महा मान र त पृ थवी ममाम् । दै वेन व धना यु ाः शा ो ै न पणैः ।। ३१ ।। ‘ब त-से महा मा छ प धारण करके दे वो चत व ध तथा शा ो नयम से यु होकर इस पृ वीपर वचरते रहते ह ।। ३१ ।। भवे म तभेदो मे गा वै यतां त । माणात् प रहीन तु भवे द त म तमम ।। ३२ ।। ‘इसके शरीरक पहीनताको ल य करके मेरी बु म यह भेद नह पैदा होता क यह नल नह है, परंतु राजा नलक जो मोटाई है, उससे यह कुछ बला-पतला है। उससे मेरे मनम यह वचार होता है क स भव है, यह नल न हो ।। ३२ ।। वयः माणं त ु यं पेण तु वपययः । नलं सवगुणैयु ं म ये बा कम ततः ।। ३३ ।। ‘इसक अव थाका माण तो उ ह के समान है, परंतु पक से तो अ तर पड़ता है। फर भी अ ततः म इसी नणयपर प ँचता ँ क मेरी रायम बा क सवगुणस प राजा नल ही ह’ ।। ३३ ।। एवं वचाय ब शो वा णयः पय च तयत् । दयेन महाराज पु य ोक य सार थः ।। ३४ ।। महाराज यु ध र! इस कार पु य ोक नलके सार थ वा णयने बार-बार उपयु पसे वचार करते ए मन-ही-मन उ धारणा बना ली ।। ३४ ।। ऋतुपण राजे ो बा क य हय ताम् । च तयन् मुमुदे राजा सहवा णयसार थः ।। ३५ ।। ी े े

महाराज ऋतुपण भी बा कके अ संचालन- वषयक ानपर वचार करके वा णय सार थके साथ ब त स ए ।। ३५ ।। ऐका यं च तथो साहं हयसं हणं च तत् । परं य नं च स े य परां मुदमवाप ह ।। ३६ ।। उसक वह एका ता, वह उ साह, घोड़ को काबूम रखनेक वह कला और वह उ म य न दे खकर उ ह बड़ी स ता ा त ई ।। ३६ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण नलोपा यानपव ण ऋतुपण वदभगमने एकस त ततमोऽ यायः ।। ७१ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत नलोपा यानपवम ऋतुपणका वदभदे शम गमन वषयक इकह रवाँ अ याय पूरा आ ।। ७१ ।।

स त ततमोऽ यायः ऋतुपणके उ रीय व गरने और बहेड़ ेके वृ के फल को गननेके वषयम नलके साथ ऋतुपणक बातचीत, ऋतुपणसे नलको ूत व ाके रह यक ा त और उनके शरीरसे क लयुगका नकलना बृहद उवाच स नद ः पवतां ैव वना न च सरां स च । अ चरेणा तच ाम खेचरः खे चर व ।। १ ।। बृहद मु न कहते ह—यु ध र! जैसे प ी आकाशम उड़ता है, उसी कार बा क (बड़े वेगसे) शी तापूवक कतनी ही न दय , पवत , वन और सरोवर को लाँघता आ आगे बढ़ने लगा ।। १ ।। तथा याते तु रथे तदा भा ासु रनृपः । उ रीयमधोऽप यद् ं परपुरंजयः ।। २ ।। जब रथ इस कार ती ग तसे दौड़ रहा था, उसी समय श ु के नगर को जीतनेवाले राजा ऋतुपणने दे खा, उनका उ रीय व नीचे गर गया है ।। २ ।। ततः स वरमाण तु पटे नप तते तदा । ही यामी त तं राजा नलमाह महामनाः ।। ३ ।। नगृ व महाबु े हयानेतान् महाजवान् । वा णयो यावदे नं मे पटमानयता मह ।। ४ ।। उस समय व गर जानेपर उन महामना नरेशने बड़ी उतावलीके साथ नलसे कहा —‘महामते! इस वेगशाली घोड़ को (थोड़ी दे रके लये) रोक लो। म अपनी गरी ई चादर लूँगा। जबतक यह वा णय उतरकर मेरे उ रीय व को ला दे , तबतक रथको रोके रहो’ ।। ३-४ ।। नल तं युवाचाथ रे ः पट तव । योजनं सम त ा तो नाहतु श यते पुनः ।। ५ ।। यह सुनकर नलने उसे उ र दया—‘महाराज! आपका व ब त र गरा है। म उस थानसे चार कोस आगे आ गया ँ। अब फर वह नह लाया जा सकता’ ।। ५ ।। एवमु ो नलेनाथ तदा भा ासु रनृपः । आससाद वने राजन् फलव तं बभीतकम् ।। ६ ।। राजन्! नलके ऐसा कहनेपर राजा ऋतुपण चुप हो गये। अब वे एक वनम एक बहेड़ेके वृ के पास आ प ँचे, जसम ब त-से फल लगे थे ।। ६ ।। तं ् वा बा कं राजा वरमाणोऽ यभाषत । े

ममा प सूत प य वं सं याने परमं बलम् ।। ७ ।। उस वृ को दे खकर राजा ऋतुपणने तुरंत ही बा कसे कहा—‘सूत! तुम दे खो, मुझम भी गणना करने ( हसाब लगाने) क कतनी अ त श है ।। ७ ।। सवः सव न जाना त सव ो ना त क न । नैक प र न ा त ान य पु षे व चत् ।। ८ ।। ‘सब लोग सभी बात नह जानते। संसारम कोई भी सव नह है तथा एक ही पु षम स पूण ानक त ा नह है ।। ८ ।। वृ ेऽ मन् या न पणा न फला य प च बा क । प तता य प या य त ैकम धकं शतम् ।। ९ ।। एकप ा धकं चा फलमेकं च बा क । प चको ोऽथ प ाणां योर प च शाखयोः ।। १० ।। चनु य शाखे े या ा य याः शाखकाः । आ यां फलसह े े प चोनं शतमेव च ।। ११ ।। ‘बा क! इस वृ पर जतने प े और फल ह, उन सबको म बताता ँ। पेड़के नीचे जो प े और फल गरे ए ह, उनक सं या एक सौ अ धक है, इसके सवा एक प तथा एक फल और भी अ धक है; अथात् नीचे गरे ए प और फल क सं या वृ म लगे ए प और फल से एक सौ दो अ धक है। इस वृ क दोन शाखा म पाँच करोड़ प े ह। तु हारी इ छा हो तो इन दोन शाखा तथा इसक अ य शाखा (को काटकर उन)-के प े गन लो। इसी कार इन शाखा म दो हजार पंचानबे फल लगे ए ह ।। ततो रथमव था य राजानं बा कोऽ वीत् । परो मव मे राजन् क थसे श ुकशन ।। १२ ।। य मेतत् कता म शात य वा बभीतकम् । अथा ग णते राजन् व ते न परो ता ।। १३ ।। य ं ते महाराज शात य ये बभीतकम् । अहं ह ना भजाना म भवेदेवं न वे त वा ।। १४ ।। यह सुनकर बा कने रथ खड़ा करके राजासे कहा—‘श ुसूदन नरेश! आप जो कह रहे ह, वह सं या परो है। म इस बहेड़ेके वृ को काटकर उसके फल क सं याको य क ँ गा। महाराज! आपक आँख के सामने इस बहेड़ेको काटूँ गा। इस कार गणना कर लेनेपर वह सं या परो नह रह जायगी। बना ऐसा कये म तो नह समझ सकता क (फल क ) सं या इतनी है या नह ।। १२—१४ ।। सं या या म फला य य प यत ते जना धप । मुतम प वा णयो र मीन् य छतु वा जनाम् ।। १५ ।। ‘जने र! य द वा णय दो घड़ीतक भी इन घोड़ क लगाम सँभाले तो म आपके दे खते-दे खते इसके फल को गन लूँगा’ ।। १५ ।। तम वी ृपः सूतं नायं कालो वल बतुम् । बा क व वीदे नं परं य नं समा थतः ।। १६ ।। ी े

ती व मुत वमथवा वरते भवान् । एष या त शवः प था या ह वा णयसार थः ।। १७ ।। तब राजाने सार थसे कहा—‘यह वल ब करनेका समय नह है।’ बा क बोला—‘म य नपूवक शी ही गणना समा त कर ँ गा। आप दो ही घड़ीतक ती ा क जये। अथवा य द आपको बड़ी ज द हो तो यह वदभदे शका मंगलमय माग है, वा णयको सार थ बनाकर चले जाइये’ ।। १६-१७ ।। अ वी तुपण तु सा वयन् कु न दन । वमेव य ता ना योऽ त पृ थ ाम प बा क ।। १८ ।। कु न दन! तब ऋतुपणने उसे सा वना दे ते ए कहा—‘बा क! तु ह इन घोड़ को हाँक सकते हो। इस कलाम पृ वीपर तु हारे जैसा सरा कोई नह है ।। १८ ।। व कृते यातु म छा म वदभान् हयको वद । शरणं वां प ोऽ म न व नं कतुमह स ।। १९ ।। ‘घोड़ के रह यको जाननेवाले बा क! तु हारे ही य नसे म वदभदे शक राजधानीम प ँचना चाहता ँ। दे खो, तु हारी शरणम आया ँ। इस कायम व न न डालो ।। १९ ।। कामं च ते क र या म य मां व य स बा क । वदभान् य द या वा सूय दश यता स मे ।। २० ।। ‘बा क! य द आज वदभदे शम प ँचकर तुम मुझे सूयका दशन करा सको तो तुम जो कहोगे, तु हारी वही इ छा पूण क ँ गा’ ।। २० ।। अथा वीद् बा क तं सं याय च बभीतकम् । ततो वदभान् या या म कु वैवं वचो मम ।। २१ ।। यह सुनकर बा कने कहा—‘म बहेड़ेके फल को गनकर वदभदे शको चलूँगा। आप मेरी यह बात मान ली जये’ ।। २१ ।। अकाम इव तं राजा गणय वे युवाच ह । एकदे शं च शाखायाः समा द ं मयानघ ।। २२ ।। गणय वा त व तत वं ी तमावह । सोऽवतीय रथात् तूण शातयामास तं मम् ।। २३ ।। राजाने मानो अ न छासे कहा—‘अ छा, गन लो। अ व ाके त वको जाननेवाले न पाप बा क! मेरे बताये अनुसार तुम शाखाके एक ही भागको गनो। इससे तु ह बड़ी स ता होगी’। बा कने रथसे उतरकर तुरंत ही उस वृ को काट डाला ।। २२-२३ ।। ततः स व मया व ो राजान मदम वीत् । गण य वा यथो ा न ताव येव फला न तु ।। २४ ।। गननेसे उसे उतने ही फल मले। तब उसने व मत होकर राजा ऋतुपणसे कहा — ।। २४ ।। अ य त मदं राजन् वान म ते बलम् । ोतु म छा म तां व ां ययैत ायते नृप ।। २५ ।। तमुवाच ततो राजा व रतो गमने नृप । े

व य दय ं मां सं याने च वशारदम् ।। २६ ।। ‘राजन्! आपम ग णतक यह अ त श मने दे खी है। नरा धप! जस व ासे यह गनती जान ली जाती है, उसे म सुनना चाहता ँ।’ राजा तुरंत जानेके लये उ सुक थे, अतः उ ह ने बा कसे कहा—‘तुम मुझे ूत- व ाका मम और ग णतम अ य त नपुण समझो’ ।। २५-२६ ।। बा क तमुवाचाथ दे ह व ा ममां मम । म ोऽ प चा दयं गृहाण पु षषभ ।। २७ ।। बा कने कहा—‘पु ष े ! तुम यह व ा मुझे बतला दो और बदलेम मुझसे भी अ - व ाका रह य हण कर लो’ ।। २७ ।। ऋतुपण ततो राजा बा कं कायगौरवात् । हय ान य लोभा च तं तथे य वीद् वचः ।। २८ ।। तब राजा ऋतुपणने कायक गु ता और अ - व ानके लोभसे बा कको आ ासन दे ते ए कहा—‘तथा तु’ ।। २८ ।। यथो ं वं गृहाणेदम ाणां दयं परम् । न ेपो मेऽ दयं व य त तु बा क । एवमु वा ददौ व ामृतुपण नलाय वै ।। २९ ।। ‘बा क! तुम मुझसे ूत- व ाका गूढ़ रह य हण करो और अ व ानको मेरे लये अपने ही पास धरोहरके पम रहने दो।’ ऐसा कहकर ऋतुपणने नलको अपनी व ा दे द ।। २९ ।। त या दय य शरीरा ःसृतः क लः । कक टक वषं ती णं मुखात् सततमु मन् ।। ३० ।। कले त य तदात य शापा नः स व नःसृतः । स तेन क शतो राजा द घकालमना मवान् ।। ३१ ।। ूत- व ाका रह य जाननेके अन तर नलके शरीरसे क लयुग नकला। तब कक टक नागके तीखे वषको अपने मुखसे बार-बार उगल रहा था। उस समय क म पड़े ए क लयुगक वह शापा न भी र हो गयी। राजा नलको उसने द घकालतक क दया था और उसीके कारण वे ककत वमूढ हो रहे थे ।। ३०-३१ ।। ततो वष वमु ा मा वं पमकरोत् क लः । तं श तुमै छत् कु पतो नषधा धप तनलः ।। ३२ ।। तदन तर वषके भावसे मु होकर क लयुगने अपने व पको कट कया। उस समय नषधनरेश नलने कु पत हो क लयुगको शाप दे नेक इ छा क ।। ३२ ।। तमुवाच क लभ तो वेपमानः कृता लः । कोपं संय छ नृपते क त दा या म ते पराम् ।। ३३ ।। तब क लयुग भयभीत हो काँपता आ हाथ जोड़कर उनसे बोला—‘महाराज! अपने ोधको रो कये। म आपको उ म क त दान क ँ गा ।। ३३ ।। इ सेन य जननी कु पता माशपत् पुरा । ो ी

यदा वया प र य ा ततोऽहं भृशपी डतः ।। ३४ ।। ‘इ सेनक माता दमय तीने, पहले जब उसे आपने वनम याग दया था, कु पत होकर मुझे शाप दे दया। उससे म बड़ा क पाता रहा ँ ।। ३४ ।। अवसं व य राजे सु ःखमपरा जत । वषेण नागराज य द मानो दवा नशम् ।। ३५ ।। ‘ कसीसे परा जत न होनेवाले महाराज! म आपके शरीरम अ य त ःखत होकर रहता था। नागराज कक टकके वषसे म दन-रात झुलसता जा रहा था (इस कार मुझे अपने कयेका कठोर द ड मल गया है) ।। ३५ ।। शरणं वां प ोऽ म शृणु चेदं वचो मम । ये च वां मनुजा लोके क त य य यत ताः । म सूतं भयं तेषां न कदा चद् भ व य त ।। ३६ ।। भयात शरणं यातं य द मां वं न श यसे । एवमु ो नलो राजा यय छत् कोपमा मनः ।। ३७ ।। ‘अब म आपक शरणम ँ। आप मेरी यह बात सु नये। य द भयसे पी ड़त और शरणम आये ए मुझको आप शाप नह दगे तो संसारम जो मनु य आल यर हत हो आपक क त-कथाका क तन करगे, उ ह मुझसे कभी भय नह होगा।’ क लयुगके ऐसा कहनेपर राजा नलने अपने ोधको रोक लया ।। ३६-३७ ।। ततो भीतः क लः ं ववेश बभीतकम् । क ल व यै तदा यः कथयन् नैषधेन वै ।। ३८ ।। तदन तर क लयुग भयभीत हो तुरंत ही बहेड़ेके वृ म समा गया। वह जस समय नषधराज नलके साथ बात कर रहा था, उस समय सरे लोग उसे नह दे ख पाते थे ।। ३८ ।। ततो गत वरो राजा नैषधः परवीरहा । स ण े कलौ राजा सं याया य फला युत ।। ३९ ।। मुदा परमया यु तेजसाथ परेण वै । रथमा तेज वी ययौ जवनैहयैः ।। ४० ।। तदन तर क लयुगके अ य हो जानेपर श ुवीर का संहार करनेवाले नषधनरेश राजा नल सारी च ता से मु हो गये। बहेड़ेके फल को गनकर उ ह बड़ी स ता ई। वे उ म तेजसे यु ह तेज वी प धारण करके रथपर चढ़े और वेगशाली घोड़ को हाँकते ए वदभदे शको चल दये ।। ३९-४० ।। बभीतक ा श तः संवृ ः क लसं यात् । हयो मानु पततो जा नव पुनः पुनः ।। ४१ ।। नलः संचोदयामास ेना तरा मना । वदभा भमुखो राजा ययौ स महायशाः ।। ४२ ।। क लयुगके आ य लेनेसे बहेड़ेका वृ न दत हो गया। तदन तर राजा नलने स च से पुनः घोड़ को हाँकना आर भ कया। वे उ म अ प य क तरह बार-बार े े ी ो े े ी े ओ ( े े े

उड़ते ए-से तीत हो रहे थे। अब महायश वी राजा नल वदभदे शक ओर (बड़े वेगसे बढ़े ) जा रहे थे ।। ४१-४२ ।। नले तु सम त ा ते क लर यगमद् गृहम् । ततो गत वरो राजा नलोऽभूत् पृ थवीप तः । वमु ः क लना राजन् पमा वयो जतः ।। ४३ ।। नलके चले जानेपर क ल अपने घर चले गये। राजन्! क लसे मु हो भू मपाल राजा नल सारी च ता से छु टकारा पा गये; कतु अभीतक उ ह अपना पहला प नह ा त आ था। उनम केवल इतनी ही कमी रह गयी थी ।। ४३ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण नलोपा यानपव ण क ल नगमे स त ततमोऽ यायः ।। ७२ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत नलोपा यानपवम क लयुग नगमन वषयक बह रवाँ अ याय पूरा आ ।। ७२ ।।

स त ततमोऽ यायः ऋतुपणका कु डनपुरम वेश, दमय तीका वचार तथा भीमके ारा ऋतुपणका वागत बृहद उवाच ततो वदभान् स ा तं साया े स य व मम् । ऋतुपण जना रा े भीमाय यवेदयन् ।। १ ।। बृहद मु न कहते ह—यु ध र! तदन तर शाम होते-होते स यपरा मी राजा ऋतुपण वदभरा यम जा प ँचे। लोग ने राजा भीमको इस बातक सूचना द ।। १ ।। स भीमवचनाद् राजा कु डनं ा वशत् पुरम् । नादयन् रथघोषेण सवाः स व दशो दशः ।। २ ।। भीमके अनुरोधसे राजा ऋतुपणने अपने रथक घघराहट ारा स पूण दशाव दशा को त व नत करते ए कु डनपुरम वेश कया ।। २ ।। तत तं रथ नघ षं नला ा त शु ुवुः । ु वा तु सम य त पुरेव नलसं नधौ ।। ३ ।। नलके घोड़े वह रहते थे, उ ह ने रथका वह घोष सुना। सुनकर वे उतने ही स और उ सा हत ए, जतने क पहले नलके समीप रहा करते थे ।। ३ ।। दमय ती तु शु ाव रथघोषं नल य तम् । यथा मेघ य नदतो ग भीरं जलदागमे ।। ४ ।। दमय तीने भी नलके रथक वह घघराहट सुनी, मानो वषाकालम गरजते ए मेघ का ग भीर घोष सुनायी दे ता हो ।। ४ ।। परं व मयमाप ा ु वा नादं महा वनम् । नलेन संगृहीतेषु पुरेव नलवा जषु । स शं रथ नघ षं मेने भौमी तथा हयाः ।। ५ ।। वह महाभयंकर रथनाद सुनकर उसे बड़ा व मय आ। पूवकालम राजा नल जब घोड़ क बाग सँभालते थे, उन दन उनके रथसे जैसी ग भीर व न कट होती थी, वैसी ही उस समयके रथक घघराहट भी दमय ती और उसके घोड़ को जान पड़ी ।। ५ ।। ासाद था शखनः शाला था ैव वारणाः । हया शु ुवु त य रथघोषं महीपतेः ।। ६ ।। महलपर बैठे ए मयूर , गजशालाम बँधे ए गजराज और अ शालाके अ ने राजाके रथका वह अ त घोष सुना ।। ६ ।। त छ वा रथ नघ षं वारणाः शखन तथा । णे मुखा राजन् मेघनाद इवो सुकाः ।। ७ ।। ो

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राजन्! रथक उस आवाजको सुनकर हाथी और मयूर अपना मुँह ऊपर उठाकर उसी कार उ क ठापूवक अपनी बोली बोलने लगे, जैसे वे मेघ क गजना होनेपर बोला करते ह ।। ७ ।। दमय युवाच यथासौ रथ नघ षः पूरय व मे दनीम् । ममा ादयते चेतो नल एष महीप तः ।। ८ ।। (उस समय) दमय तीने (मन-ही-मन) कहा—अहो! रथक वह घघराहट इस पृ वीको गुँजाती ई जस कार मेरे मनको आ ाद दान कर रही है, उससे जान पड़ता है, ये महाराज नल ही पधारे ह ।। ८ ।। अ च ाभव ं तं न प या म नलं य द । असं येयगुणं वीरं वनङ् या म न संशयः ।। ९ ।। आज य द असं य गुण से वभू षत तथा च माके समान मुखवाले वीरवर नलको न दे खूँगी तो अपने इस जीवनका अ त कर ँ गी, इसम संशय नह है ।। ९ ।। य द वै त य वीर य बा ोना ाहम तरम् । वशा म सुख पश न भ व या यसंशयम् ।। १० ।। आज य द म उन वीर शरोम ण नलक दोन भुजा के म यभागम, जसका पश अ य त सुखद है, वेश न कर सक तो अव य जी वत न रह सकूँगी ।। १० ।। य द मां मेघ नघ षो नोपग छ त नैषधः । अ चामीकर यं वे या म ताशनम् ।। ११ ।। य द रथ ारा मेघके समान ग भीर गजना करनेवाले नषधदे शके वामी महाराज नल आज मेरे पास नह पधारगे तो म सुवणके समान दे द यमान दहकती ई आगम वेश कर जाऊँगी ।। ११ ।। य द मां सह व ा तो म वारण व मः । ना भग छ त राजे ो वनङ् या म न संशयः ।। १२ ।। य द सहके समान परा मी और मतवाले हाथीके समान म तानी चालसे चलनेवाले राजराजे र नल मेरे पास नह आयगे तो आज अपने जीवनको न कर ँ गी, इसम संशय नह है ।। १२ ।। न मरा यनृतं क च मरा यपकारताम् । न च पयु षतं वा यं वैरे व प कदाचन ।। १३ ।। मुझे याद नह क वे छापूवक अथात् हँसी-मजाकम भी म कभी झूठ बोली ँ, मरण नह क कभी कसीका मेरे ारा अपकार आ हो तथा यह भी मरण नह क मने त ा क ई बातका उ लंघन कया हो ।। १३ ।। भुः मावान् वीर दाता चा य धको नृपैः । रहोऽनीचानुवत च लीबव मम नैषधः ।। १४ ।। े े











मेरे नषधराज नल श शाली, माशील, वीर, दाता, सब राजा से े , एका तम भी नीच कमसे र रहनेवाले तथा परायी ीके लये नपुंसकतु य ह ।। गुणां त य मर या मे त पराया दवा नशम् । दयं द यत इदं शोकात् य वनाकृतम् ।। १५ ।। म (सदा) उ ह के गुण का मरण करती और दन-रात उ ह के परायण रहती ँ। यतम नलके बना मेरा यह दय उनके वरहशोकसे वद ण-सा होता रहता है ।। १५ ।। एवं वलपमाना सा न सं ेव भारत । आ रोह महद् वे म पु य ोक द या ।। १६ ।। भारत! इस कार वलाप करती ई दमय ती अचेत-सी हो गयी। वह पु य ोक नलके दशनक इ छासे ऊँचे महलक छतपर जा चढ़ ।। १६ ।। ततो म यमक ायां ददश रथमा थतम् । ऋतुपण महीपालं सहवा णयबा कम् ।। १७ ।। वहाँसे उसने दे खा, वा णय और बा कके साथ रथपर बैठे ए महाराज ऋतुपण म यम क ा (परकोटे )-म प ँच गये ह ।। १७ ।। ततोऽवतीय वा णयो बा क रथो मात् । हयां तानवमु याथ थापयामास वै रथम् ।। १८ ।। तदन तर वा णय और बा कने उस उ म रथसे उतरकर घोड़े खोल दये और रथको एक जगह खड़ा कर दया ।। १८ ।। सोऽवतीय रथोप था तुपण नरा धपः । उपत थे महाराजं भीमं भीमपरा मम् ।। १९ ।। इसके बाद राजा ऋतुपण रथके पछले भागसे उतरकर भयानक परा मी महाराज भीमसे मले ।। १९ ।। तं भीमः तज ाह पूजया परया ततः । स तेन पू जतो रा ा ऋतुपण नरा धपः ।। २० ।। तदन तर भीमने बड़े आदर-स कारके साथ उ ह अपनाया और राजा ऋतुपणका भलीभाँ त आदर-स कार कया ।। २० ।। स त कु डने र ये वसमानो महीप तः । न च क चत् तदाप यत् े माणो मु मु ः । स तु रा ा समाग य वदभप तना तदा ।। २१ ।। अक मात् सहसा ा तं ीम ं न म व द त । भूपाल ऋतुपण रमणीय कु डनपुरम ठहर गये। उ ह बार-बार दे खनेपर भी वहाँ ( वयंवर-जैसी) कोई चीज नह दखायी द । वे वदभनरेशसे मलकर सहसा इस बातको न जान सके क यह य क अक मात् गु त म णामा थी ।। २१ ।। क काय वागतं तेऽ तु रा ा पृ ः स भारत ।। २२ ।। े









भरतन दन यु ध र! वदभराजने वागत-पूवक ऋतुपणसे पूछा—‘आपके यहाँ पधारनेका या कारण है?’ ।। २२ ।। ना भज े स नृप त ह थ समागतम् । ऋतुपण ऽ प राजा स धीमान् स यपरा मः ।। २३ ।। राजा भीम यह नह जानते थे क दमय तीके लये ही इनका शुभागमन आ है। राजा ऋतुपण भी बड़े बु मान् और स यपरा मी थे ।। २३ ।। राजानं राजपु ं वा न म प य त कंचन । नैव वयंवरकथां न च व समागमम् ।। २४ ।। ततो गणयद् राजा मनसा कोसला धपः । आगतोऽ मी युवाचैनं भव तम भवादकः ।। २५ ।। उ ह ने वहाँ कसी भी राजा या राजकुमारको नह दे खा। ा ण का भी वहाँ समागम नह हो रहा था। वयंवरक तो कोई चचातक नह थी। तब कोशलनरेशने मन-ही-मन कुछ वचार कया और वदभराजसे कहा—‘राजन्! म आपका अ भवादन करनेके लये आया ँ’ ।। २४-२५ ।। राजा प च मयन् भीमो मनसा सम च तयन् । अ धकं योजनशतं त यागमनकारणम् ।। २६ ।। ामान् बन त य ना यग छद् यथातथम् । अ पकाय व न द ं त यागमनकारणम् ।। २७ ।। यह सुनकर राजा भीम भी मुसकरा दये और मन-ही-मन सोचने लगे—‘ये ब त-से गाँव को लाँघकर सौ योजनसे भी अ धक र चले आये ह, कतु काय इ ह ने ब त साधारण बतलाया है। फर इनके आगमनका या कारण है, इसे म ठ क-ठ क न जान सका ।। २६-२७ ।। प ा दक ा या म कारणं यद् भ व य त । नैतदे वं स नृप त तं स कृ य सजयत् ।। २८ ।। ‘अ छा, जो भी कारण होगा पीछे मालूम कर लूँगा। ये जो कारण बता रहे ह, इतना ही इनके आगमनका हेतु नह है।’ ऐसा वचारकर राजाने उ ह स कारपूवक व ामके लये वदा कया ।। २८ ।। व ा यता म युवाच ला तोऽसी त पुनः पुनः । स स कृतः ा मा ीतः ीतेन पा थवः ।। २९ ।। और कहा—‘आप ब त थक गये ह गे, अतः व ाम क जये।’ वदभनरेशके ारा स तापूवक आदर-स कार पाकर राजा ऋतुपणको बड़ी स ता ई ।। २९ ।। राज े यैरनुगतो द ं वे म समा वशत् । ऋतुपण गते राजन् वा णयस हते नृपे ।। ३० ।। बा को रथमादाय रथशालामुपागमत् । स मोच य वा तान ानुपचय च शा तः ।। ३१ ।। वयं चैतान् समा ा य रथोप थ उपा वशत् । े े े ेऔ े े े े

फर वे राजसेवक के साथ गये और बताये ए भवनम व ामके लये वेश कया। राजन्! वा णयस हत ऋतुपणके चले जानेपर बा क रथ लेकर रथशालाम गया। उसने उन घोड़ को खोल दया और अ शा क व धके अनुसार उनक प रचया करनेके बाद घोड़ को पुचकारकर उ ह धीरज दे नेके प ात् वह वयं भी रथके पछले भागम जा बैठा ।। ३०-३१ ।। दमय य प शोकाता ् वा भा ासुर नृपम् ।। ३२ ।। सूतपु ं च वा णयं बा कं च तथा वधम् । च तयामास वैदभ क यैष रथ नः वनः ।। ३३ ।। दमय ती भी शोकसे आतुर हो राजा ऋतुपण, सूतपु वा णय तथा पूव बा कको दे खकर सोचने लगी—‘यह कसके रथक घघराहट सुनायी पड़ती थी ।। ३२-३३ ।। नल येव महानासी च प या म नैषधम् । वा णयेन भवे ूनं व ा सैवोप श ता ।। ३४ ।। तेना रथ नघ षो नल येव महानभूत् । आहो व तुपण ऽ प यथा राजा नल तथा । यथायं रथ नघ षो नैषध येव ल यते ।। ३५ ।। ‘वह ग भीर घोष तो महाराज नलके रथ-जैसा था; परंतु इन आग तुक म मुझे नषधराज नल नह दखायी दे ते। वा पयने भी नलके समान ही अ व ा सीख ली हो, न य ही यह स भावना क जा सकती है। तभी आज रथक आवाज बड़े जोरसे सुनायी दे रही थी, जैसे नलके रथ हाँकते समय आ करती है। कह ऐसा तो नह है क राजा ऋतुपण भी वैसे ही अ व ाम नपुण ह , जैसे राजा नल ह; य क नलके ही समान इनके रथका भी ग भीर घोष ल त होता है’ ।। ३४-३५ ।। एवं सा तक य वा तु दमय ती वशा पते । त थापयामास नैषधा वेषणे शुभा ।। ३६ ।। यु ध र! इस कार वचार करके शुभल णा दमय तीने नलका पता लगानेके लये अपनी तीको भेजा ।। ३६ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण नलोपा यानपव ण ऋतुपण य भीमपुर वेशे स त ततमोऽ यायः ।। ७३ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत नलोपा यानपवम ऋतुपणका राजा भीमके नगरम वेश वषयक तह रवाँ अ याय पूरा आ ।। ७३ ।।

चतुःस त ततमोऽ यायः बा क-के शनी-संवाद दमय युवाच ग छ के श न जानी ह क एष रथवाहकः । उप व ो रथोप थे वकृतो वबा कः ।। १ ।। दमय ती बोली—के शनी! जाओ और पता लगाओ क यह छोट -छोट बाँह वाला कु प रथवाहक, जो रथके पछले भागम बैठा है, कौन है? ।। १ ।। अ ये य कुशलं भ े मृ पूव समा हता । पृ छे थाः पु षं ेनं यथात वम न दते ।। २ ।। भ े ! इसके नकट जाकर सावधानीके साथ मधुर वाणीम कुशल पूछना। अ न दते! साथ ही इस पु षके वषयम ठ क-ठ क बात जाननेक चे ा करना ।। २ ।। अ मे महती शङ् का भवेदेष नलो नृपः । यथा च मनस तु दय य च नवृ तः ।। ३ ।। इसके वषयम मुझे बड़ी भारी शंका है। स भव है, इस वेषम राजा नल ही ह । मेरे मनम जैसा संतोष है और दयम जैसी शा त है, इसे मेरी उ धारणा पु हो रही है ।। ३ ।। ूया ैनं कथा ते वं पणादवचनं यथा । तवा यं च सु ो ण बु येथा वम न दते ।। ४ ।। सु ो ण! तुम बातचीतके सल सलेम इसके सामने पणाद ा णवाली बात कहना और अ न दते! यह जो उ र दे , उसे अ छ तरह समझना ।। ४ ।। ततः समा हता ग वा ती बा कम वीत् । दमय य प क याणी ासाद था पै त ।। ५ ।। तब वह ती बड़ी सावधानीसे वहाँ जाकर बा कसे वातालाप करने लगी और क याणी दमय ती भी महलम उसके लौटनेक ती ाम बैठ रही ।। ५ ।। के श युवाच वागतं ते मनु ये कुशलं ते वी यहम् । दमय या वचः साधु नबोध पु षषभ ।। ६ ।। के शनीने कहा—नरे ! आपका वागत है! म आपका कुशल समाचार पूछती ँ। पु ष े ! दमय तीक कही ई ये उ म बात सु नये ।। ६ ।। कदा वै थता यूयं कमथ मह चागताः । तत् वं ू ह यथा यायं वैदभ ोतु म छ त ।। ७ ।। वदभराजकुमारी यह सुनना चाहती ह क आपलोग अयो यासे कब चले ह और कस लये यहाँ आये ह? आप यायके अनुसार ठ क-ठ क बताय ।। ७ ।।

बा क उवाच ुतः वयंवसे रा ा कोसलेन महा मना । तीयो दमय या वै भ वता इ त जात् ।। ८ ।। बा क बोला—महा मा कोसलराजने एक ा णके मुखसे सुना था क कल दमय तीका तीय वयंवर होनेवाला है ।। ८ ।। ु वैतत् थतो राजा शतयोजनया य भः । हयैवातजवैमु यैरहम य च सार थः ।। ९ ।। यह सुनकर राजा हवाके समान वेगवाले और सौ योजनतक दौड़नेवाले अ छे घोड़ से जुते ए रथपर सवार हो वदभदे शके लये थत हो गये। इस या ाम म ही इनका सार थ था ।। ९ ।। के श युवाच अथ योऽसौ तृतीयो वः स कुतः क य वा पुनः । वं च क य कथं चेदं व य कम समा हतम् ।। १० ।। के शनीने पूछा—आपलोग मसे जो तीसरा है, वह कहाँसे आया है अथवा कसका सेवक है? ऐसे ही आप कौन ह, कसके पु ह और आपपर इस कायका भार कैसे आया है? ।। १० ।। बा क उवाच पु य ोक य वै सूतो वा णय इ त व ुतः । स नले व ते भ े भा ासु रमुप थतः ।। ११ ।। बा क बोला—भ े ! उस तीसरे का नाम वा णय है। वह पु य ोक राजा नलका सार थ है। नलके वनम नकल जानेपर वह ऋतुपणक सेवाम चला गया है ।। ११ ।। अहम य कुशलः सूत वे च त तः । ऋतुपणन सारये भोजने च वृतः वयम् ।। १२ ।। म भी अ व ाम कुशल ँ और सार थके कायम भी नपुण ँ, इस लये राजा ऋतुपणने वयं ही मुझे वेतन दे कर सार थके पदपर नयु कर लया ।। १२ ।। के श युवाच अथ जाना त वा णयः व नु राजा नलो गतः । कथं च व य वा तेन क थतं यात् तु बा क ।। १३ ।। के शनीने पूछा—बा क! या वा णय यह जानता है क राजा नल कहाँ चले गये, उसने आपसे महाराजके स ब धम कैसी बात बतायी है? ।। १३ ।।

बा क उवाच इहैव पु ौ न य नल य शुभकमणः । गत ततो यथाकामं नैष जाना त नैषधम् ।। १४ ।। बा क बोला—भ े ! पु यकमा नलके दोन बालक को यह रखकर वा णय अपनी चके अनुसार अयो या चला गया था। यह नलके वषयम कुछ नह जानता है ।। १४ ।। न चा यः पु षः क लं वे यश व न । गूढ र त लोकेऽ मन् न पे महीप तः ।। १५ ।। यश व न! सरा कोई पु ष भी नलको नह जानता। राजा नलका पहला प अ य हो गया है। वे इस जगत्म गूढ़भावसे वचरते ह ।। १५ ।। आ मैव तु नलं वेद या चा य तदन तरा । न ह वै वा न ल ा न नलः शंस त क ह चत् ।। १६ ।। परमा मा ही नलको जानते ह तथा उसक जो अ तरा मा है, वह उ ह जानती है, सरा कोई नह ; य क राजा नल अपने ल ण या च को कभी सर के सामने नह कट करते ह ।। १६ ।। के श युवाच योऽसावयो यां थमं गतोऽसौ ा ण तदा । इमा न नारीवा या न कथयानः पुनः पुनः ।। १७ ।। े

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के शनीने कहा—पहली बार अयो याम जब वे ा णदे वता गये थे, तब उ ह ने य क सखायी ई न नां कत बात बार-बार कही थ — ।। १७ ।। व नु वं कतव छ वा व ाध थतो मम । उ सृ य व पने सु तामनुर ां यां य ।। १८ ।। ‘ओ जुआरी यतम! तुम अपने त अनुराग रखनेवाली वनम सोयी ई मुझ यारी प नीको छोड़कर तथा मेरे आधे व को फाड़कर कहाँ चल दये? ।। १८ ।। सा वै यथा समा द ा तथाऽऽ ते व ती णी । द माना दवा रा ौ व ाधना भसंवृता ।। १९ ।। ‘उसे तुमने जस अव थाम दे खा था, उसी अव थाम वह आज भी है और तु हारे आगमनक ती ा कर रही है। आधे व से अपने शरीरको ढककर वह युवती दन-रात तु हारी वरहा नम जल रही है ।। १९ ।। त या द याः सततं तेन ःखेन पा थव । सादं कु मे वीर तवा यं वद व च ।। २० ।। ‘वीर भू मपाल! सदा तु हारे शोकसे रोती ई अपनी उसी यारी प नीपर पुनः कृपा करो और मेरी बातका उ र दो’ ।। २० ।। त या तत् यमा यानं वद व महामते । तदे व वा यं वैदभ ोतु म छ य न दता ।। २१ ।। ‘महामते! इसके उ रम आप दमय तीको य लगनेवाली कोई बात क हये। सा वी वदभकुमारी आपक उसी बातको पुनः सुनना चाहती ह’ ।। २१ ।। एत छ वा तवच त य द ं वया कल । यत् पुरा तत् पुन व ो वैदभ ोतु म छ त ।। २२ ।। बा क! ा णके मुखसे यह वचन सुनकर पहले आपने जो उ र दया था, उसीको वैदभ आपके मुँहसे पुनः सुनना चाहती ह ।। २२ ।। बृहद उवाच एवमु य के श या नल य कु न दन । दयं थतं चासीद ुपूण च लोचने ।। २३ ।। बृहद मु न कहते ह—यु ध र! के शनीके ऐसा कहनेपर राजा नलके दयम बड़ी वेदना ई। उनक दोन आँख आँसु से भर गय ।। २३ ।। स नगृ ा मनो ःखं द मानो महीप तः । वा पसं द धया वाचा पुनरेवेदम वीत् ।। २४ ।। नषधनरेश शोका नसे द ध हो रहे थे, तो भी उ ह ने अपने ःखके वेगको रोककर अ ुगद्गद वाणीम पुनः य कहना आर भ कया ।। २४ ।।

बा क उवाच वैष यम प स ा ता गोपाय त कुल यः । आ मानमा मना स यो जतः वग न संशयः ।। २५ ।। ो ँ े ी





बा क बोला—उ म कुलक याँ बड़े भारी संकटम पड़कर भी वयं अपनी र ा करती ह। ऐसा करके वे वग और स य दोन पर वजय पा लेती ह, इसम संशय नह है ।। २५ ।। र हता भतृ भ ा प न ु य त कदाचन । ाणां ा र कवचान् धारय त वर यः ।। २६ ।। े ना रयाँ अपने प तय से प र य होनेपर भी कभी ोध नह करत । वे सदा सदाचार पी कवचसे आवृत ाण को धारण करती ह ।। २६ ।। वषम थेन मूढेन प र सुखेन च । यत् सा तेन प र य ा त न ोद्धुमह त ।। २७ ।। वह पु ष बड़े संकटम था तथा सुखके साधन से व चत होकर ककत वमूढ़ हो गया था। ऐसी दशाम य द उसने अपनी प नीका प र याग कया है, तो इसके लये प नीको उसपर ोध नह करना चा हये ।। २७ ।। ाणया ां प र े सोः शकुनै तवाससः । आ ध भद मान य यामा न ोद्धुमह त ।। २८ ।। जी वका पानेके लये चे ा करते समय प य ने जसके व का अपहरण कर लया था और जो अनेक कारक मान सक च ता से द ध हो रहा था, उस पु षपर यामाको ोध नह करना चा हये ।। २८ ।। स कृतास कृता वा प प त ् वा तथा वधम् । रा य ं या हीनं ु धतं सना लुतम् ।। २९ ।। प तने उसका स कार कया हो या अस कार; उसे चा हये क प तको वैसे संकटम पड़ा दे खकर उसे मा कर दे ; य क वह रा य और ल मीसे वं चत हो भूखसे पी ड़त एवं वप के अथाह सागरम डू बा आ था ।। २९ ।। एवं ुवाण तद् वा यं नलः परम मनाः । न वा पमशकत् सोढुं रोद च भारत ।। ३० ।। इस कार पूव बात कहते ए नलका मन अ य त उदास हो गया। भारत! वे अपने उमड़ते ए आँसु को रोक न सके तथा रोने लगे ।। ३० ।। ततः सा के शनी ग वा दमय यै यवेदयत् । तत् सव क थतं चैव वकारं त य चैव तम् ।। ३१ ।। तदन तर के शनीने भीतर जाकर दमय तीसे यह सब नवेदन कया। उसने बा कक कही ई सारी बात और उसके मनो वकार को भी यथावत् कह सुनाया ।। ३१ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण नलोपा यानपव ण नलके शनीसंवादे चतुःस त ततमोऽ यायः ।। ७४ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत नलोपा यानपवम नल-के शनीसंवाद वषयक चौह रवाँ अ याय पूरा आ ।। ७४ ।।

प चस त ततमोऽ यायः दमय तीके आदे शसे के शनी ारा बा कक परी ा तथा बा कका अपने लड़ के-लड़ कय को दे खकर उनसे ेम करना बृहद उवाच दमय ती तु त छ वा भृशं शोकपरायणा । शङ् कमाना नलं तं वै के शनी मदम वीत् ।। १ ।। बृहद मु न कहते ह—यु ध र! यह सब सुनकर दमय ती अ य त शोकम न हो गयी। उसके दयम न त पसे बा कके नल होनेका संदेह हो गया और वह के शनीसे इस कार बोली— ।। १ ।। ग छ के श न भूय वं परी ां कु बा के । अ ुवाणा समीप था च रता य य ल य ।। २ ।। ‘के श न! फर जाओ और बा कक परी ा करो। अबक बार तुम कुछ बोलना मत। नकट रहकर उसके च र पर रखना ।। २ ।। यदा च क चत् कुयात् स कारणं त भा म न । त संचे मान य ल य ती वचे तम् ।। ३ ।। ‘भा म न! जब वह कोई काम करे तो उस कायको करते समय उसक येक चे ा और उसके कारणपर ल य रखना ।। ३ ।। न चा य तब धेन दे योऽ नर प के श न । याचते न जलं दे यं सवथा वरमाणया ।। ४ ।। ‘के श न! वह आ ह करे तो भी उसे आग न दे ना और माँगनेपर भी कसी कार ज द म आकर पानी भी न दे ना ।। ४ ।। एतत् सव समी य वं च रतं मे नवेदय । न म ं यत् वया ं बा के दै वमानुषम् ।। ५ ।। य चा यद प प येथा त चा येयं वया मम । ‘बा कके इन सब च र क समी ा करके फर मुझे सब बात बताना। बा कम य द तु ह कोई द अथवा मानवो चत वशेषता दखायी दे तथा और भी जो कोई वशेषता गोचर हो तो उसपर भी रखना और मुझे आकर बताना’ ।। ५ ।। दमय यैवमु ा सा जगामाथ च के शनी ।। ६ ।। नश याथ हय य ल ा न पुनरागमत् । दमय तीके ऐसा कहनेपर के शनी पुनः वहाँ गयी और अ व ा वशारद बा कके ल ण का अवलोकन करके वह फर लौट आयी ।। ६ ।। ै



सा तत् सव यथावृ ं दमय यै यवेदयत् । न म ं यत् तया ं बा के दै वमानुषम् ।। ७ ।। उसने बा कम जो द अथवा मानवो चत वशेषताएँ दे ख , उनका यथावत् समाचार पूण पसे दमय तीको बताया ।। ७ ।। के श युवाच ढं शु युपचारोऽसौ न मया मानुषः व चत् । पूवः ुतो वा प दमय त तथा वधः ।। ८ ।। के शनीने कहा—दमय ती! उसका येक वहार अ य त प व है। ऐसा मनु य तो मने कह भी पहले न तो दे खा है और न सुना ही है ।। ८ ।। वमासा संचारं नासौ वनमते व चत् । तं तु ् वा यथाऽसंगमु सप त यथासुखम् ।। ९ ।। कसी छोटे -से-छोटे दरवाजेपर जाकर भी वह झुकता नह है। उसे दे खकर बड़ी आसानीके साथ दरवाजा ही इस कार ऊँचा हो जाता है क जससे म तकका उससे पश न हो ।। ९ ।। संकटे ऽ य य सुमहान् ववरो जायतेऽ धकः । ऋतुपण य चाथाय भोजनीयमनेकशः ।। १० ।। े षतं त रा ा तु मांसं चैव भूतवत् । त य ालनाथाय कु भा त ोपक पताः ।। ११ ।। संकु चत थानम भी उसके लये ब त बड़ा अवकाश बन जाता है। राजा भीमने ऋतुपणके लये अनेक कारके भो य पदाथ भेजे थे। उसम चुर मा ाम केला आ द फल का गूदा भी था,* उसको धोनेके लये वहाँ खाली घड़े रख दये थे ।। १०-११ ।। ते तेनावे ताः कु भाः पूणा एवाभवं ततः । ततः ालनं कृ वा सम ध य बा कः ।। १२ ।। तृणमु समादाय स वतु तं समादधत् । अथ व लत त सहसा ह वाहनः ।। १३ ।। परंतु बा कके दे खते ही वे सारे घड़े पानीसे भर गये। उससे खा पदाथ को धोकर बा कने चू हेपर चढ़ा दया। फर एक मु तनका लेकर सूयक करण से ही उसे उ त कया। फर तो दे खते-ही-दे खते सहसा उसम आग व लत हो गयी ।। १२-१३ ।। तद ततमं ् वा व मताह महागता । अ य च त मन् सुमहदा य ल तं मया ।। १४ ।। यह अ त बात दे खकर म आ यच कत होकर यहाँ आयी ँ। बा कम एक और भी बड़े आ यक बात दे खी है ।। १४ ।। यद नम प सं पृ य नैवासौ द ते शुभे । छ दे न चोदकं त य वह याव जतं तम् ।। १५ ।। े











शुभे! वह अ नका पश करके भी जलता नह है। पा म रखा आ थोड़ा-सा जल भी उसक इ छाके अनुसार तुरंत ही वा हत हो जाता है ।। १५ ।। अतीव चा यत् सुमहदा य व यहम् । यत् स पु पा युपादाय ह ता यां ममृदे शनैः ।। १६ ।। मृ माना न पा ण यां तेन पु पा ण ना यथा । भूय एव सुग धी न षता न भव त ह । एता य त ल ा न ् वाहं तमागता ।। १७ ।। एक और भी अ य त आ यजनक बात मुझे उसम दखायी द है। वह फूल लेकर उ ह हाथ से धीरे-धीरे मसलता था। हाथ से मसलनेपर भी वे फूल वकृत नह होते थे अ पतु और भी सुग धत और वक सत हो जाते थे। ये अ त ल ण दे खकर म शी तापूवक यहाँ आयी ँ ।। १६-१७ ।। बृहद उवाच दमय ती तु त छ वा पु य ोक य चे तम् । अम यत नलं ा तं कमचे ा भसू चतम् ।। १८ ।। बृहद मु न कहते ह—यु ध र! दमय तीने पु य ोक महाराज नलक -सी बा कक सारी चे ा को सुनकर मन-ही-मन यह न य कर लया क महाराज नल ही आये ह। अपने काय और चे ा ारा वे पहचान लये गये ह ।। १८ ।। सा शङ् कमाना भतारं बा कं पुन र तैः । के शन णया वाचा दती पुनर वीत् ।। १९ ।। पुनग छ म य बा क योपसं कृतम् । महानसाद् तं मांसमानय वेह भा व न ।। २० ।। सा ग वा बा क या े त मांसमपकृ य च । अ यु णमेव व रता त णात् यका रणी ।। २१ ।। चे ा ारा उसके मनम यह बल आशंका जम गयी क बा क मेरे प त ही ह। फर तो वह रोने लगी और मधुर वाणीम के शनीसे बोली—‘सख! एक बार फर जाओ और जब बा क असावधान हो तो उसके ारा वशेष व धसे उबालकर तैयार कया गया फल का गूदा रसोई घरमसे शी उठा लाओ।’ के शनी दमय तीक यका रणी सखी थी। वह तुरंत गयी और जब बा कका यान सरी ओर गया तब उसके उबाले ए गरम-गरम फल के गूदेमसे थोड़ा-सा नकालकर त काल ले आयी ।। १९—२१ ।। दमय यै ततः ादात् के शनी कु न दन । सो चता नल स य मांस य ब शः पुरा ।। २२ ।। कु न दन! के शनीने वह फल का गूदा दमय तीको दे दया। उसे पहले अनेक बार नलके ारा उबाले ए फल के गूदेके वादका अनुभव था ।। २२ ।। ा य म वा नलं सूंत ा ोशद् भृश ःखता । वै ल ं परमं ग वा ा य च मुखं ततः ।। २३ ।। े



मथुनं ेषयामास के श या सह भारत । इ सेनां सह ा ा सम भ ाय बा कः ।। २४ ।। अ भ य ततो राजा प र व याङ् कमानयत् । बा क तु समासा सुतौ सुरसुतोपमौ ।। २५ ।। भृशं ःखपरीता मा सु वरं रोद ह । नैषधो दश य वा तु वकारमसकृत् तदा । उ सृ य सहसो पु ौ के शनी मदम वीत् ।। २६ ।। उसे खाकर वह पूण पसे इस न यपर प ँच गयी क बा क सार थ वा तवम राजा नल ह। फर तो वह अ य त खी होकर वलाप करने लगी। उस समय उसक ाकुलता ब त बढ़ गयी। भारत! फर उसने मुँह धोकर के शनीके साथ अपने ब च को बा कके पास भेजा। बा क पी राजा नलने इ सेना और उसके भाई इ सेनको पहचान लया और दौड़कर दोन ब च को छातीसे लगाकर गोदम ले लया। दे वकुमार के समान उन दोन सु दर बालक को पाकर नषधराज नल अ य त ःखम न हो जोर-जोरसे रोने लगे। उ ह ने बार-बार अपने मनो वकार दखाये और सहसा दोन ब च को छोड़कर के शनीसे इस कार कहा— ।। २३—२६ ।।

इदं च स शं भ े मथुनं मम पु योः । अतो ् वैव सहसा बा पमु सृ वानहम् ।। २७ ।। ‘



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‘भ े ! ये दोन बालक मेरे पु और पु ीके समान ह, इसी लये इ ह दे खकर सहसा मेरे ने से आँसू बहने लगे ।। २७ ।। ब शः स पत त वां जनः संकेतदोषतः । वयं च दे शा तथयो ग छ भ े यथासुखम् ।। २८ ।। ‘भ े ! तुम बार-बार आती-जाती हो, लोग कसी दोषक आशंका कर लगे और हमलोग इस दे शके अ त थ ह; अतः तुम सुखपूवक महलम चली जाओ’ ।। २८ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण नलोपा यानपव ण क यापु दशने प चस त ततमोऽ यायः ।। ७५ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत नलोपा यानपवम नलका अपनी पु ी और पु के दे खनेसे स ब ध रखनेवाला पचह रवाँ अ याय पूरा आ ।। ७५ ।।

* ‘मांस’ श दका अथ ‘सं कृत-श दाथ-कौ तुभ’ म फलका गूदा कया गया है।

षट् स त ततमोऽ यायः दमय ती और बा कक बातचीत, नलका ाक नल-दमय ती- मलन

और

बृहद उवाच सव वकारं ् वा तु पु य ोक य धीमतः । आग य के शनी सव दमय यै यवेदयत् ।। १ ।। बृहद मु न कहते ह—यु ध र! परम बु मान् पु य ोक राजा नलके स पूण वकार को दे खकर के शनीने दमय तीको आकर बताया ।। १ ।। दमय ती ततो भूयः ेषयामास के शनीम् । मानुः सकाशं ःखाता नलदशनकाङ् या ।। २ ।। अब दमय ती नलके दशनक अ भलाषासे ःखातुर हो गयी। उसने के शनीको पुनः अपनी माँके पास भेजा ।। २ ।। परी तो मे ब शो बा को नलशङ् कया । पे मे संशय वेकः वय म छा म वे दतुम् ।। ३ ।। (और यह कहलाया—) ‘माँ! मेरे मनम बा कके ही नलके होनेका संदेह था, जसक मने बार-बार परी ा करा ली है और सब ल ण तो मल गये ह। केवल नलके पम संदेह रह गया है। इस संदेहका नवारण करनेके लये म वयं पता लगाना चाहती ँ ।। ३ ।। स वा वे यतां मातमा वानु ातुमह स । व दतं वाथवा ातं पतुम सं वधीयताम् ।। ४ ।। ‘माताजी! या तो बा कको महलम बुलाओ या मुझे ही बा कके नकट जानेक आ ा दो। तुम अपनी चके अनुसार पताजीसे सू चत करके अथवा उ ह इसक सूचना दये बना इसक व था कर सकती हो’ ।। ४ ।। एवमु ा तु वैद या सा दे वी भीमम वीत् । हतु तम भ ायम वजानात् स पा थवः ।। ५ ।। दमय तीके ऐसा कहनेपर महारानीने वदभनरेश भीमसे अपनी पु ीका यह अ भ ाय बताया। सब बात सुनकर महाराजने आ ा दे द ।। ५ ।। सा वै प ा यनु ाता मा ा च भरतषभ । नलं वेशयामास य त याः त यः ।। ६ ।। तां म ् वैव सहसा दमय त नलो नृपः । आ व ः शोक ःखा यां बभूवा ुप र लुतः ।। ७ ।। भरतकुलभूषण! पता और माताक आ ा ले दमय तीने नलको राजभवनके भीतर जहाँ वह वयं रहती थी, बुलवाया। दमय तीको सहसा सामने उप थत दे ख राजा नल शोक और ःखसे ा त हो ने से आँसू बहाने लगे ।। ६-७ ।। ी

तं तु ् वा तथायु ं दमय ती नलं तदा । ती शोकसमा व ा बभूव वरव णनी ।। ८ ।। उस समय नलको उस अव थाम दे खकर सु दरी दमय ती भी ती शोकसे ाकुल हो गयी ।। ८ ।। ततः काषायवसना ज टला मलपङ् कनी । दमय ती महाराज बा कं वा यम वीत् ।। ९ ।। महाराज! तदन तर म लन व पहने, जटा धारण कये, मैल और पंकसे म लन दमय तीने बा कसे पूछा— ।। ९ ।। पूव वया क द् धम ो नाम बा क । सु तामु सृ य व पने गतो यः पु षः यम् ।। १० ।। ‘बा क! तुमने पहले कसी ऐसे धम पु षको दे खा है, जो अपनी सोयी ई प नीको वनम अकेली छोड़कर चले गये थे ।। १० ।। अनागसं यां भाया वजने ममो हताम् । अपहाय तु को ग छे त् पु य ोकमृते नलम् ।। ११ ।। ‘पु य ोक महाराज नलके सवा सरा कौन होगा, जो एका तम थकावटके कारण अचेत सोयी ई अपनी नद ष यतमा प नीको छोड़कर जा सकता हो ।। ११ ।। कमु त य मया बा यादपरा ं महीपतेः । यो मामु सृ य व पने गतवान् न या दताम् ।। १२ ।। ‘न जाने उन महाराजका मने बचपनसे ही या अपराध कया था, जो न दक मारी ई मुझ असहाय अबलाको जंगलम छोड़कर चल दये ।। १२ ।। सा ाद् दे वानपाहाय वृतो यः स पुरा मया । अनु तां सा भकामां पु ण य वान् कथम् ।। १३ ।। ‘पहले वयंवरके समय सा ात् दे वता को छोड़कर मने उनका वरण कया था। म उनक अनुगत भ , नर तर उ ह चाहनेवाली और पु वती ँ, तो भी उ ह ने कैसे मुझे याग दया? ।। १३ ।। अ नौ पा ण गृही वा तु दे वानाम त तथा । भ व यामी त स यं तु त ु य व तद् गतम् ।। १४ ।। ‘अ नके समीप और दे वता के सम मेरा हाथ पकड़कर और ‘म तेरा ही अनुगत होकर र ँगा’ ऐसी त ा करके ज ह ने मुझे अपनाया था, उनका वह स य कहाँ चला गया?’ ।। १४ ।। दमय या ुव या तु सवमेतदरदम । शोकजं वा र ने ा यामसुखं ा वद् ब ।। १५ ।। श ुदमन यु ध र! दमय ती जब ये सब बात कह रही थी, उस समय नलके ने से शोकज नत ःखपूण आँसु क अज धारा बहती जा रही थी ।। १५ ।। अतीव कृ णसारा यां र ा ता यां जलं तु तत् । प र वन् नलो ् वा शोकाता मदम वीत् ।। १६ ।। ँ ँ ी औ े े े े े

उनक आँख क पुत लयाँ काली थ और ने के कनारे कुछ-कुछ लाल थे। उनसे नर तर अ ुधारा बहाते ए नलने दमय तीको शोकसे आतुर दे ख इस कार कहा — ।। १६ ।। मम रा यं ण ं य ाहं तत् कृतवान् वयम् । क लना तत् कृतं भी य च वामहम यजम् ।। १७ ।। ‘भी ! मेरा जो रा य न हो गया और मने जो तु ह याग दया, वह सब क लयुगक करतूत थी। मने वयं कुछ नह कया था ।। १७ ।। यत् वया धमकृ े तु शापेना भहतः पुरा । वन थया ःखतया शोच या मां दवा नशम् ।। १८ ।। स म छरीरे व छापाद् द मानोऽवसत् क लः । व छापद धः सततं सोऽ नाव न रवा हतः ।। १९ ।। ‘पहले जब तुम वनम खी होकर दन-रात मेरे लये शोक करती थी और उस समय धमसंकटम पड़नेपर तुमने जसे शाप दे दया था, वही क लयुग मेरे शरीरम तु हारी शाप नसे द ध होता आ नवास करता था, जैसे आगम रखी ई आग हो; उसी कार वह क ल तु हारे शापसे द ध हो सदा मेरे भीतर रहता था ।। १८-१९ ।। मम च वसायेन तपसा चैव न जतः । ःख या तेन चानेन भ वत ं ह नौ शुभे ।। २० ।। ‘शुभे! मेरे वसाय (उ ोग) तथा तप यासे क लयुग परा त हो चुका है। अतः अब हमारे ःख का अ त हो जाना चा हये ।। २० ।। वमु य मां गतः पाप ततोऽह मह चागतः । वदथ वपुल ो ण न ह मेऽ यत् योजनम् ।। २१ ।। ‘सु दरी! पापी क लयुग मुझे छोड़कर चला गया, इसीसे म तु हारी ा तका उ े य लेकर यहाँ आया ँ। इसके सवा, मेरे आगमनका सरा कोई योजन नह है ।। २१ ।। कथं नु नारी भतारमनुर मनु तम् । उ सृ य वरयेद यं यथा वं भी क ह चत् ।। २२ ।। ‘भी ! कोई भी ी कभी अपने अनुर एवं भ प तको यागकर सरे पु षका वरण कैसे कर सकती है? जैसा क तुम करने जा रही हो ।। २२ ।। ता र त पृ थव कृ नां नृप तशासनात् । भैमी कल म भतारं तीयं वर य य त ।। २३ ।। ‘ वदभनरेशक आ ासे सारी पृ वीपर त वचरते ह और यह घोषणा कर रहे ह क दमय ती तीय प तका वरण करेगी ।। २३ ।। वैरवृ ा यथाकाममनु प मवा मनः । ु वैव चैवं व रतो भा ासु र प थतः ।। २४ ।। ‘दमय ती वे छाचा रणी है और अपनी चके अनुसार कसी अनु प प तका वरण कर सकती है’, यह सुनकर ही राजा ऋतुपण बड़ी उतावलीके साथ यहाँ उप थत ए ह’ ।। २४ ।। ी े

दमय ती तु त छ वा नल य प रदे वतम् । ा लवपमाना च भीता वचनम वीत् ।। २५ ।। दमय ती नलका यह वलाप सुनकर काँप उठ और भयभीत हो हाथ जोड़कर यह वचन बोली ।। २५ ।। दमय युवाच न मामह स क याण दोषेण प रशङ् कतुम् । मया ह दे वानु सृ य वृत वं नषधा धप ।। २६ ।। दमय तीने कहा—क याणमय नषधनरेश! आपको मुझपर दोषारोपण करते ए मेरे च र पर संदेह नह करना चा हये। (आपके त अन य ेमके कारण ही) मने दे वता को छोड़कर आपका वरण कया है ।। २६ ।। तवा भगमनाथ तु सवतो ा णा गताः । वा या न मम गाथा भगायमाना दशो दश ।। २७ ।। आपका पता लगानेके लये ही चार ओर ा णलोग भेजे गये और वे मेरी कही ई बात को सब दशा म गाथाके पम गाते फरे ।। २७ ।। तत वां ा णो व ान् पणादो नाम पा थव । अ यग छत् कोसलायामृतुपण नवेशने ।। २८ ।। राजन्! इसी योजनाके अनुसार पणाद नामक व ान् ा ण अयो यापुरीम ऋतुपणके राजभवनम गये थे ।। तेन वा ये कृते स यक् तवा ये तथाऽऽ ते । उपायोऽयं मया ो नैषधानयने तव ।। २९ ।। उ ह ने वहाँ मेरी बात उप थत क और वहाँसे आपके ारा ा त आ ठ क-ठ क उ र वे ले आये। नषधराज! इसके बाद आपको यहाँ बुलानेके लये मुझे यह उपाय सूझा ( क एक ही दनके बाद होनेवाले वयंवरका समाचार दे कर ऋतुपणको बुलाया जाय) ।। २९ ।। वामृते न ह लोकेऽ य एका ा पृ थवीपते । समथ योजनशतं ग तुम ैनरा धप ।। ३० ।। नरे र! पृ वीनाथ! म यह अ छ तरह जानती ँ क इस जगत्म आपके सवा सरा कोई ऐसा पु ष नह है, जो एक ही दनम घोड़े जुते ए रथक सवारीसे सौ योजन रतक जानेम समथ हो ।। ३० ।। पृशेयं तेन स येन पादावेतौ महीपते । यथा नास कृतं क च मनसा प चरा यहम् ।। ३१ ।। महीपते! म मनसे भी कभी कोई असदाचरण नह करती ँ और इसी स यक शपथ खाकर आपके इन दोन चरण का पश करती ँ ।। ३१ ।। अयं चर त लोकेऽ मन् भूतसा ी सदाग तः । एष मे मु चतु ाणान् य द पापं चरा यहम् ।। ३२ ।। े











ये सदा ग तशील वायुदेवता इस जगत्म नर तर वचरते रहते ह, अतः ये स पूण भूत के सा ी ह। य द मने पाप कया है तो ये मेरे ाण का हरण कर ल ।। ३२ ।। यथा चर त त मांशुः परेण भुवनं सदा । स मु चतु मम ाणान् य द पापं चरा यहम् ।। ३३ ।। च ड करण वाले सूयदे व सम त भुवन के ऊपर वचरते ह, (अतः वे भी सबके शुभाशुभ कम दे खते रहते ह।) य द मने पाप कया है तो ये मेरे ाण का हरण कर ल ।। ३३ ।। च माः सवभूतानाम त र त सा वत् । स मु चतु मम ाणान् य द पापं चरा यहम् ।। ३४ ।। च के अ भमानी दे वता च मा सम त ा णय के अ तःकरणम सा ी पसे वचरते ह। य द मने पाप कया है तो वे मेरे ाण का हरण कर ल ।। ३४ ।। एते दे वा यः कृ नं ैलो यं धारय त वै । व ुव तु यथा स यमेतद् दे वा यज तु माम् ।। ३५ ।। ये पूव तीन दे वता स पूण लोक को धारण करते ह। मेरे कथनम कतनी सचाई है, इसे दे वतालोग वयं प कर। य द म झूठ बोलती ँ तो दे वता मेरा याग कर द ।। ३५ ।। एवमु तथा वायुर त र ादभाषत । नैषा कृतवती पापं नल स यं वी म ते ।। ३६ ।।

दमय तीके ऐसा कहनेपर अ त र लोकसे वायु-दे वताने कहा—‘नल! म तुमसे स य कहता ँ, इस दमय तीने कभी कोई पाप नह कया है ।। ३६ ।। राज छ ल न धः फ तो दमय या सुर तः । सा णो र ण ा या वयं ीन् प रव सरान् ।। ३७ ।। ‘राजन्! दमय तीने अपने शीलक उ वल न धको सदा सुर त रखा है। हमलोग तीन वष तक नर तर इसके र क और सा ी रहे ह ।। ३७ ।। उपायो व हत ायं वदथमतुलोऽनया । न ेका ा शतं ग ता वामृतेऽ यः पुमा नह ।। ३८ ।। ‘तु हारी ा तके लये दमय तीने यह अनुपम उपाय ढूँ ढ़ नकाला था; य क इस जगत्म तु हारे सवा सरा कोई पु ष नह है, जो एक दनम सौ योजन (रथ ारा) जा सके ।। ३८ ।। उपप ा वया भैमी वं च भै या महीपते । ना शङ् का वया काया संग छ सह भायया ।। ३९ ।। ‘राजन्! भीमकुमारी दमय ती तु हारे यो य है और तुम दमय तीके यो य हो। तु ह इसके च र के वषयम कोई शंका नह करनी चा हये। तुम अपनी प नीसे नःशंक होकर मलो’ ।। ३९ ।। तथा ुव त वायौ तु पु पवृ ः पपात ह । े

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दे व भयो ने ववौ च पवनः शवः ।। ४० ।। वायुदेवके ऐसा कहते समय आकाशसे फूल क वषा हो रही थी, दे वता क भयाँ बज रही थ और मंगलमय पवन चलने लगा ।। ४० ।। तद तमयं ् वा नलो राजाथ भारत । दमय यां वशङ् कां तामुपाकषदरदमः ।। ४१ ।। यु ध र! यह अ त य दे खकर श ुसूदन राजा नलने दमय तीके व होनेवाली शंकाको याग दया ।। ४१ ।। तत तद् व मजरं ावृणोद् वसुधा धपः । सं मृ य नागराजं तं ततो लेभे वकं वपुः ।। ४२ ।। तदन तर उन भूपालने नागराज कक टकका मरण करके उसके दये ए अजीण व को ओढ़ लया। उससे उ ह अपने पूव व पक ा त हो गयी ।। ४२ ।। व पणं तु भतारं ् वा भीमसुता तदा । ा ोश चैरा ल य पु य ोकम न दता ।। ४३ ।। अपने वा त वक पम कट ए अपने प तदे व पु य ोक महाराज नलको दे खकर सती सा वी दमय ती उनके दयसे लगकर उ च वरसे रोने लगी ।। ४३ ।। भैमीम प नलो राजा ाजमानो यथा पुरा । स वजे वसुतौ चा प यथावत् यन दत ।। ४४ ।। राजा नलका प पहलेक ही भाँ त ही का शत हो रहा था। उ ह ने भी दमय तीको छातीसे लगा लया और अपने दोन बालक को भी यार- लार करके स कया ।। ४४ ।। ततः वोर स व य य व ं त य शुभानना । परीता तेन ःखेन नःश ासायते णा ।। ४५ ।। त प ात् सु दर मुख और वशाल ने वाली दमय ती नलके मुखको अपने व ः थलपर रखकर ःखसे ाकुल हो लंबी साँसे ख चने लगी ।। ४५ ।। तथैव मल द धा प र व य शु च मताम् । सु चरं पु ष ा त थौ शोकप र लुतः ।। ४६ ।। इसी कार प व मुसकान तथा मैलसे भरे ए अंग वाली दमय तीको दयसे लगाकर पु ष सह नल ब त दे रतक शोकम न खड़े रहे ।। ४६ ।। ततः सव यथावृ ं दमय या नल य च । भीमायाकथयत् ी या वैद या जननी नृप ।। ४७ ।। ‘राजन्! तदन तर (दमय तीके ारा मालूम होनेपर) दमय तीक माताने अ य त स तापूवक राजा भीमसे नल-दमय तीका सारा वृ ा त यथावत् कह सुनाया’ ।। ४७ ।। ततोऽ वी महाराजः कृतशौचमहं नलम् । दमय या सहोपेतं क ये ा सुखो षतम् ।। ४८ ।। तब महाराज भीमने कहा—‘आज नलको सुखपूवक यह रहने दो। कल सबेरे नान आ दसे शु ए दमय तीस हत नलसे म मलूँगा’ ।। ४८ ।। ौ ौ ौ

तत तौ स हतौ रा कथय तौ पुरातनम् । वने वच रतं सवमूषतुमु दतौ नृप ।। ४९ ।। राजन्! त प ात् वे दोन द प त रातभर वनम रहनेक पुरानी घटना को एक- सरेसे कहते ए स तापूवक एक साथ रहे ।। ४९ ।। गृहे भीम य नृपतेः पर परसुखै षणौ । वसेतां संक पौ वैदभ च नल ह ।। ५० ।। एक- सरेको सुख दे नेक इ छा रखनेवाले दमय ती और नल राजा भीमके महलम स च होकर रहे ।। ५० ।। स चतुथ ततो वष संग य सह भायया । सवकामैः सु स ाथ लधवान् परमां मुदम् ।। ५१ ।। चौथे वषम अपनी यारी प नीसे मलकर स पूण कामना से सफलमनोरथ हो नल अ य त आन दम नम न हो गये ।। ५१ ।। दमय य प भतारमासा ा या यता भृशम् । अधसंजातस येव तोयं ा य वसुंधरा ।। ५२ ।। जैसे आधी जमी ई खेतीसे भरी वसुधा वषाका जल पाकर उ ल सत हो उठती है, उसी कार दमय ती भी अपने प तको पाकर ब त संतु ई ।। ५२ ।। सैवं समे य पनीय त ां शा त वरा हष ववृ स वा । रराज भैमी समवा तकामा शीतांशुना रा रवो दतेन ।। ५३ ।। जैसे च ोदयसे रा क शोभा बढ़ जाती है, उसी कार भीमकुमारी दमय ती प तसे मलकर आल यका याग करके न त और हष ल सत दयसे पूणकाम होकर अ य त शोभा पाने लगी ।। ५३ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण नलोपा यानपव ण नलदमय तीसमागमे षट् स त ततमोऽ यायः ।। ७६ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत नलोपा यानपवम नलदमय तीसमागम वषयक छह रवाँ अ याय पूरा आ ।। ७६ ।।

स तस त ततमोऽ यायः नलके कट होनेपर वदभनगरम महान् उ सवका आयोजन, ऋतुपणके साथ नलका वातालाप और ऋतुपणका नलसे अ व ा सीखकर अयो या जाना बृहद उवाच अथ तां ु षतो रा नलो राजा वलंकृतः । वैद या स हतः काले ददश वसुधा धपम् ।। १ ।। बृहद मु न कहते ह—यु ध र! तदन तर वह रात बीतनेपर राजा नल व ाभूषण से अलंकृत हो दमय तीके साथ यथासमय राजा भीमसे मले ।। १ ।। ततोऽ भवादयामास यतः शुरं नलः । ततोऽनु दमय ती च वव दे पतरं शुभा ।। २ ।। नाना दसे प व ए राजा नलने वनीतभावसे शुरको णाम कया। त प ात् शुभल णा दमय तीने भी पताक व दना क ।। २ ।। तं भीमः तज ाह पु वत् परया मुदा । यथाह पूज य वा च समा ासयत भुः ।। ३ ।। नलेन स हतां त दमय त प त ताम् । राजा भीमने बड़ी स ताके साथ नलको पु क भाँ त अपनाया और नलस हत प त ता दमय तीका यथायो य आदर-स कार करके उ ह आ ासन दया ।। ३ ।। तामहणां नलो राजा तगृ यथा व ध ।। ४ ।। प रचया वकां त मै यथावत् यवेदयत् । ततो बभूव नगरे सुमहान् हषजः वनः ।। ५ ।। जन य स य नलं ् वा तथाऽऽगतम् । राजा नलने उस पूजाको व धपूवक वीकार करके अपनी ओरसे भी शुरका सेवास कार कया। तदन तर वदभनगरम राजा नलको इस कार आया दे ख हष लासम भरी ई जनताका महान् आन दज नत कोलाहल होने लगा ।। ४-५ ।। अशोभय च नगरं पताका वजमा लनम् ।। ६ ।। स ाः सुमृ पु पाा राजमागाः वलंकृताः । ा र ा र च पौराणां पु पभ ः क पतः ।। ७ ।। वदभनरेशने वजा, पताका क पं य से कु डनपुरको अ त शोभासे स प कया। सड़क को खूब झाड़-बुहारकर उनपर छड़काव कया गया था। फूल से उ ह अ छ तरह सजाया गया था। पुरवा सय के ार- ारपर सुगंध फैलानेके लये रा श-रा श फूल बखेरे गये थे ।। ६-७ ।। े

अ चता न च सवा ण दे वतायतना न च । ऋतुपण ऽ प शु ाव बा क छ नं नलम् ।। ८ ।। दमय या समायु ं ज षे च नरा धपः । स पूण दे वम दर क सजावट और दे वमू तय क पूजा क गयी थी। राजा ऋतुपणने भी जब यह सुना क बा कके वेषम राजा नल ही थे और अब वे दमय तीसे मले ह, तब उ ह बड़ा हष आ ।। ८ ।। तमाना य नलं राजा मयामास पा थवम् ।। ९ ।। उ ह ने राजा नलको बुलवाकर उनसे मा माँगी ।। ९ ।। स च तं मयामास हेतु भबु स मतः । स स कृतो महीपालो नैषधं व मताननः ।। १० ।। उवाच वा यं त व ो नैषधं वदतां वरः । बु मान् नलने भी अनेक यु य ारा उनसे मा-याचना क । नलसे आदर-स कार पाकर व ा म े एवं त व राजा ऋतुपण मुसकराते ए मुखसे बोले— ।। १० ।। द ा समेतो दारैः वैभवा न य यन दत ।। ११ ।। ‘ नषधनरेश! यह बड़े सौभा यक बात है क आप अपनी बछु ड़ी ई प नीसे मले।’ ऐसा कहकर उ ह ने नलका अ भन दन कया ।। ११ ।। क चत् तु नापराधं ते कृतवान म नैषध । अ ातवासे वसतो मद्गृहे वसुधा धप ।। १२ ।। (और पुनः कहा—) ‘नैषध! भूपाल शरोमणे! आप मेरे घरपर जब अ ातवासक अव थाम रहते थे, उस समय मने आपका कोई अपराध तो नह कया है? ।। १२ ।। य द वाबु पूवा ण य द बु या प का न चत् । मया कृता यकाया ण ता न वं तुमह स ।। १३ ।। ‘उन दन य द मने बना जाने या जान-बूझकर आपके साथ अनु चत बताव कये ह तो उ ह आप मा कर द’ ।। १३ ।। नल उवाच न मेऽपराधं कृतवां वं व पम प पा थव । कृतेऽ प च न मे कोपः त ं ह मया तव ।। १४ ।। नलने कहा—‘राजन्! आपने मेरा कभी थोड़ासा भी अपराध नह कया है और य द कया भी हो तो उसके लये मेरे दयम ोध नह है। मुझे आपके येक बतावको मा ही करना चा हये’ ।। १४ ।।

पूव प सखा मेऽ स स ब धी च जना धप । अत ऊ व तु भूय वं ी तमाहतुमह स ।। १५ ।। जने र! आप पहले भी मेरे सखा और स ब धी थे और इसके बाद भी आपको मुझपर अ धक-से-अ धक ेम रखना चा हये ।। १५ ।। सवकामैः सु व हतैः सुखम यु षत व य । न तथा वगृहे राजन् यथा तव गृहे सदा ।। १६ ।। राजन्! मेरी सम त कामनाएँ वहाँ अ छ तरह पूण क गय और इसके कारण म सदा आपके यहाँ सुखी रहा। महाराज! आपके भवनम मुझे जैसा आराम मला, वैसा अपने घरम भी नह मला ।। १६ ।। इदं चैव हय ानं वद यं म य त त । त पाकतु म छा म म यसे य द पा थव । एवमु वा ददौ व ामृतुपणाय नैषधः ।। १७ ।। आपका अ व ान मेरे पास धरोहरके पम पड़ा है। राजन्! य द आप ठ क समझ तो म उसे आपको दे नेक इ छा रखता ँ। ऐसा कहकर नषधराज नलने ऋतुपणको अ व ा दान क ।। १७ ।। स च तां तज ाह व ध ेन कमणा । गृही वा चा दयं राजन् भा ासु रनृपः ।। १८ ।। नषधा धपते ा प द वा दयं नृपः । ौ



सूतम यमुपादाय ययौ वपुरमेव ह ।। १९ ।। यु ध र! ऋतुपणने भी शा ीय व धके अनुसार उनसे अ व ा हण क । अ का रह य हण करके और नषधनरेश नलको पुनः ूत व ाका रह य समझाकर सरा सार थ साथ ले राजा ऋतुपण अपने नगरको चले गये ।। १८-१९ ।। ऋतुपण गते राजन् नलो राजा वशा पते । नगरे कु डने कालं ना तद घ मवावसत् ।। २० ।। राजन्! ऋतुपणके चले जानेपर राजा नल कु डनपुरम कुछ समयतक रहे। वह काल उ ह थोड़े समयके समान ही तीत आ ।। २० ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण नलोपा यानपव ण ऋतुपण वदे शगमने स तस त ततमोऽ यायः ।। ७७ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत नलोपा यानपवम ऋतुपणका वदे शगमन वषयक सतह रवाँ अ याय पूरा आ ।। ७७ ।।

अ स त ततमोऽ यायः राजा नलका पु करको जूएम हराना और उसको राजधानीम भेजकर अपने नगरम वेश करना बृहद उवाच स मासमु य कौ तेय भीममाम य नैषधः । पुराद पपरीवारो जगाम नषधान् त ।। १ ।। बृहद मु न कहते ह—यु ध र! नषध-नरेश एक मासतक कु डनपुरम रहकर राजा भीमक आ ा ले थोड़े-से सेवक स हत वहाँसे नषधदे शक ओर थत ए ।। १ ।। रथेनैकेन शु ेण द त भः प रषोडशैः । प चाश हयै ैव षट् शतै पदा त भः ।। २ ।। उनके साथ चार ओरसे सोलह हा थय ारा घरा आ एक सु दर रथ, पचास घोड़े और छः सौ पैदल सै नक थे ।। २ ।। स क पय व मह वरमाणो महीप तः । ववेशाथ संरध तरसैव महामनाः ।। ३ ।। महामना राजा नलने इन सबके ारा पृ वीको क पत-सी करते ए बड़ी उतावलीके साथ रोषावेशम भरे वेगपूवक नषधदे शक राजधानीम वेश कया ।। ३ ।। ततः पु करमासा वीरसेनसुतो नलः । उवाच द ाव पुनब व ं मया जतम् ।। ४ ।। दमय ती च य चा य मम कचन व ते । एष वै मम सं यास तव रा यं तु पु कर ।। ५ ।। पुनः वततां ूत म त मे न ता म तः । एकपाणेन भ ं ते ाणयो पणावहे ।। ६ ।। तदन तर वीरसेनपु नलने पु करके पास जाकर कहा—‘अब हम दोन फरसे जूआ खेल। मने ब त धन ा त कया है। दमय ती तथा अ य जो कुछ भी मेरे पास है, यह सब मेरी ओरसे दाँवपर लगाया जायगा और पु कर! तु हारी ओरसे सारा रा य ही दाँवपर रखा जायगा। इस एक पणके साथ हम दोन म फर जूएका खेल ार भ हो, यह मेरा न त वचार है। तु हारा भला हो, य द ऐसा न कर सको तो हम दोन अपने ाण क बाजी लगाव ।। ४—६ ।। ज वा पर वमा य रा यं वा य द वा वसु । तपाणः दात ः परमो धम उ यते ।। ७ ।। ‘जूएके दाँवम सरेका रा य या धन जीतकर रख लया जाय तो उसे य द वह पुनः खेलना चाहे तो तपण (बदलेका दाव) दे ना चा हये, यह परम धम कहा गया है ।। ७ ।। न चेद ् वा छ स वं ूतं यु ूतं वतताम् । ै





ै रथेना तु वै शा त तव वा मम वा नृप ।। ८ ।। ‘य द तुम पास से जूआ खेलना न चाहो तो बाण ारा यु का जूआ ार भ होना चा हये। राजन्! ै रथयु के ारा तु हारी अथवा मेरी शा त हो जाय ।। ८ ।। वंशभो य मदं रा यम थत ं यथा तथा । येन केना युपायेन वृ ाना म त शासनम् ।। ९ ।। ‘यह रा य हमारी वंशपर पराके उपभोगम आनेवाला है। जस- कसी उपायसे भी जैसे-तैसे इसका उ ार करना चा हये; ऐसा वृ पु ष का उपदे श है ।। ९ ।। योरेकतरे बु ः यताम पु कर । कैतवेना व यां तु यु े वा ना ता यतां धनुः ।। १० ।। ‘पु कर! आज तुम दोमसे एकम मन लगाओ। छलपूवक जूआ खेलो अथवा यु के लये धनुषपर य चा चढ़ाओ’ ।। १० ।। नैषधेनैवमु तु पु करः हस व । ुवमा मजयं म वा याह पृ थवीप तम् ।। ११ ।। नषधराज नलके ऐसा कहनेपर पु करने अपनी वजयको अव य भावी मानकर हँसते ए उनसे कहा— ।। ११ ।। द ा वया जतं व ं तपाणाय नैषध । द ा च कृतं कम दमय याः यं गतम् ।। १२ ।। ‘नैषध! सौभा यक बात है क तुमने दाँवपर लगानेके लये धनका उपाजन कर लया है। यह भी आन दक बात है क दमय तीके कम का य हो गया ।। १२ ।। द ा च यसे राजन् सदारोऽ महाभुज । धनेनानेन वै भैमी जतेन समलंकृता ।। १३ ।। मामुप था य त ं द व श मवा सराः । न यशो ह मरा म वां ती ेऽ प च नैषध ।। १४ ।। ‘महाबा नरेश! सौभा यसे तुम प नीस हत अभी जी वत हो। इसी धनको जीत लेनेपर दमय ती शृंगार करके न य ही मेरी सेवाम उप थत होगी, ठ क उसी तरह, जैसे वगलोकक अ सरा दे वराज इ क सेवाम जाती है। नैषध! म त दन तु हारी याद करता ँ और तु हारी राह भी दे खा करता ँ ।। १३-१४ ।। दे वनेन मम ी तन भव यसु णैः । ज वा व वरारोहां दमय तीम न दताम् ।। १५ ।। कृतकृ यो भ व या म सा ह मे न यशो द । ‘श ु के साथ जूआ खेलनेसे मुझे कभी तृ त ही नह होती। आज े अंग वाली अन सु दरी दमय तीको जीतकर म कृताथ हो जाऊँगा; य क वह सदा मेरे दयम दरम नवास करती है’ ।। १५ ।। ु वा तु त य वा वाचो ब ब ला पनः ।। १६ ।। इयेष स शर छे ुं खड् गेन कु पतो नलः । ो



मयं तु रोषता ा तमुवाच नलो नृपः ।। १७ ।। इस कार ब त-से अस ब लाप करनेवाले पु करक ये बात सुनकर राजा नलको बड़ा ोध आ। उ ह ने तलवारसे उसका सर काट लेनेक इ छा क । रोषसे उनक आँख लाल हो गय तो भी राजा नलने हँसते ए उससे कहा— ।। १६-१७ ।। पणावः क ाहरसे जतो न ाह र य स । ततः ावतत ूतं पु कर य नल य च ।। १८ ।। एकपाणेन वीरेण नलेन स परा जतः । स र नकोश नचयैः ाणेन प णतोऽ प च ।। १९ ।। ‘अब हम दोन जूआ ार भ कर, तुम अभी थ बकवाद य करते हो? हार जानेपर ऐसी बात न कर सकोगे।’ तदन तर पु कर तथा राजा नलम एक ही दाँव लगानेक शत रखकर जूएका खेल ार भ आ। तब वीर नलने पु करको हरा दया। पु करने र न, खजाना तथा ाण तकक बाजी लगा द थी ।। १८-१९ ।। ज वा च पु करं राजा हस दम वीत् । मम सव मदं रा यम ं हतक टकम् ।। २० ।। वैदभ न वया श या राजापसद वी तुम् । त या वं सपरीवारो मूढ दास वमागतः ।। २१ ।। पु करको परा त करके राजा नलने हँसते ए उससे कहा—‘नृपाधम! अब यह शा त और अक टक सारा रा य मेरे अ धकारम आ गया। वदभकुमारी दमय तीक ओर तू आँख उठाकर दे ख भी नह सकता। मूख! आजसे तू प रवारस हत दमय तीका दास हो गया ।। २०-२१ ।। न वया तत् कृतं कम येनाहं व जतः पुरा । क लना तत् कृतं कम वं च मूढ न बु यसे ।। २२ ।। ‘पहले तेरे ारा जो म परा जत हो गया था, उसम तेरा कोई पु षाथ नह था। मूढ़! वह सब क लयुगक करतूत थी, जसे तू नह जानता है ।। २२ ।। नाहं परकृतं दोषं व याधा ये कथंचन । यथासुखं वै जीव वं ाणानवसृजा म ते ।। २३ ।। ‘ सरे (क लयुग)-के कये ए अपराधको म कसी तरह तेरे म थे नह मढूँ गा। तू सुखपूवक जी वत रह। म तेरे ाण तुझे वापस दे ता ँ ।। २३ ।। तथैव सवस भारं वमंशं वतरा म ते । तथैव च मम ी त व य वीर न संशयः ।। २४ ।। ‘तेरा सारा सामान और तेरे ह सेका धन भी तुझे लौटाये दे ता ँ। वीर! तेरे ऊपर मेरा पूववत् ेम बना रहेगा, इसम संशय नह है ।। २४ ।। सौहाद चा प मे व ो न कदा चत् हा य त । पु कर वं ह मे ाता संजीव शरदः शतम् ।। २५ ।। ‘तेरे त जो मेरा सौहाद रहा है, वह कभी मेरे दयसे र नह होगा। पु कर! तू मेरा भाई है, जा, सौ वष तक जी वत रह’ ।। २५ ।।

एवं नलः सा व य वा ातरं स य व मः । वपुरं ेषयामास प र व य पुनः पुनः ।। २६ ।। इस कार स यपरा मी राजा नलने अपने भाई पु करको सा वना दे बार-बार दयसे लगाकर उसक राजधानीको भेज दया ।। २६ ।। सा वतो नैषधेनैवं पु करः युवाच तम् । पु य ोकं तदा राज भवा कृता लः ।। २७ ।। क तर तु तवा या जीव वषशतं सुखी । यो मे वतर स ाणान ध ानं च पा थव ।। २८ ।। राजन्! नषधराजके इस कार सा वना दे नेपर पु करने पु य ोक नलको हाथ जोड़कर णाम कया और इस कार कहा—‘पृ वीनाथ! आप जो मुझे ाण और नवास थान भी वापस दे रहे ह, इससे आपक अ य क त बनी रहे। आप सौ वष तक जीय और सुखी रह’ ।। २७-२८ ।।

स तथा स कृतो रा ा मासमु य तदा नृप । ययौ पु करो ः वपुरं वजनावृतः ।। २९ ।। मह या सेनया साध वनीतैः प रचारकैः । ाजमान इवा द यो वपुषा पु षषभ ।। ३० ।। े े ँ

नर े यु ध र! राजा नलके ारा इस कार स कार पाकर पु कर एक मासतक वहाँ टका रहा और फर आ मीय जन के साथ स तापूवक अपनी राजधानीको चला गया। उसके साथ वशाल सेना और वनयशील सेवक भी थे। वह शरीरसे सूयक भाँ त का शत हो रहा था ।। २९-३० ।। था य पु करं राजा व व तमनामयम् । ववेश पुरं ीमान यथमुपशो भताम् ।। ३१ ।। पु करको धन— व के साथ सकुशल घर भेजकर ीमान् राजा नलने अपने अ य त शोभास प नगरम वेश कया ।। ३१ ।। व य सा वयामास पौरां नषधा धपः । पौरा जानपदा ा प स तनू हाः ।। ३२ ।। वेश करके नषधनरेशने पुरवा सय को सा वना द । नगर और जनपदके लोग बड़े स ए। उनके शरीरम रोमांच हो आया ।। ३२ ।। ऊचुः ा लयः सव सामा य मुखा जनाः । अ म नवृता राजन् पुरे जनपदे ऽ प च । उपा सतुं पुनः ा ता दे वा इव शत तुम् ।। ३३ ।। म ी आ द सब लोग ने हाथ जोड़कर कहा—‘महाराज! आज हम नगर और जनपदके नवासी संतोषसे साँस ले सके ह। जैसे दे वता दे वराज इ क सेवाम उप थत होते ह, उसी कार अब हम पुनः आपक उपासना करने—आपके पास बैठनेका शुभ अवसर ा त आ है’ ।। ३३ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण नलोपा यानपव ण पु करपराभवपूवकं रा य यानयने अ स त ततमोऽ यायः ।। ७८ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत नलोपा यानपवम पु करको हराकर राजा नलके अपने नगरम आनेसे स ब ध रखनेवाला अठह रवाँ अ याय पूरा आ ।। ७८ ।।

एकोनाशी ततमोऽ यायः राजा नलके आ यानके क तनका मह व, बृहद मु नका यु ध रको आ ासन दे ना तथा ूत व ा और अ व ाका रह य बताकर जाना बृहद उवाच शा ते तु पुरे े स वृ े महो सवे । मह या सेनया राजा दमय तीमुपानयत् ।। १ ।। बृहद मु न कहते ह—यु ध र! जब नगरम शा त छा गयी और सब लोग स हो गये, सव महान् उ सव होने लगा, उस समय राजा नल वशाल सेनाके साथ जाकर दमय तीको वदभदे शसे बुला लाये ।। १ ।। दमय तीम प पता स कृ य परवीरहा । ा थापयदमेया मा भीमो भीमपरा मः ।। २ ।। दमय तीके पता भयंकर परा मी भीम अ मेय आ मबलसे स प थे, श ुप के वीर का हनन करनेम समथ थे। उ ह ने अपनी पु ी दमय तीको बड़े स कारके साथ वदा कया ।। २ ।। आगतायां तु वैद या सपु ायां नलो नृपः । वतयामास मु दतो दे वरा डव न दने ।। ३ ।। तथा काशतां यातो ज बु पे स राजसु । पुनः शशास तद् रा यं या य महायशाः ।। ४ ।। पु और पु ीस हत दमय तीके आ जानेपर राजा नल सब बताव- वहार बड़े आन दसे स प करने लगे। जैसे न दनवनम दे वराज इ शोभा पाते ह, उसी कार वे ज बू पके सम त राजा म काशमान हो रहे थे। वे महायश वी नरेश अपने रा यको पुनः वापस लेकर उसका यायपूवक शासन करने लगे ।। ३-४ ।। ईजे च व वधैय ै व धव चा तद णैः । तथा वम प राजे ससु द् य यसेऽ चरात् ।। ५ ।। उ ह ने पया त द णासे यु व वध कारके य ारा व धपूवक भगवान्का यजन कया। राजे ! इसी कार तुम भी पुनः अपना रा य पाकर सु द स हत शी ही य का अनु ान करोगे ।। ५ ।। ःखमेता शं ा तो नलः परपुरंजयः । दे वनेन नर े सभाय भरतषभ ।। ६ ।। भरत े ! पु षो म! श ु क राजधानीपर वजय पानेवाले महाराज नल जूआ खेलनेके कारण अपनी प नीस हत इस कारके महान् संकटम पड़ गये थे ।। ६ ।। एका कनैव सुमह लेन पृ थवीपते । ो

ःखमासा दतं घोरं ा त ा युदयः पुनः ।। ७ ।। पृ वीपते! राजा नलने अकेले ही यह भयंकर और महान् ःख ा त कया था; उ ह पुनः अ युदयक ा त ई ।। ७ ।। वं पुन ातृस हतः कृ णया चैव पा डव । रमसेऽ मन् महार ये धममेवानु च तयन् ।। ८ ।। पा डु न दन! तुम तो अपने सभी भाइय और महारानी ौपद के साथ इस महान् वनम मण करते हो और नर तर धमके ही च तनम लगे रहते हो ।। ८ ।। ा णै महाभागैवदवेदा पारगैः । न यम वा यसे राजं त का प रदे वना ।। ९ ।। राजन्! महान् भा यशाली वेद-वेदांग के पारंगत व ान् ा ण सदा तु हारे साथ रहते ह; फर तु हारे लये इस प र थ तम शोकक या बात है? ।। ९ ।। कक टक य नाग य दमय या नल य च । ऋतुपण य राजषः क तनं क लनाशनम् ।। १० ।। कक टक नाग, दमय ती, नल तथा राज ष ऋतुपणक चचा क लयुगके दोषका नाश करनेवाली है ।। १० ।। इ तहास ममं चा प क लनाशनम युत । श यमा सतुं ु वा व धेन वशा पते ।। ११ ।। महाराज! तु हारे-जैसे लोग को यह क लनाशक इ तहास सुनकर आ ासन ा त हो सकता है ।। ११ ।। अ थर वं च सं च य पु षाथ य न यदा । त योदये ये चा प न च त यतुमह स ।। १२ ।। पु षको ा त होनेवाले सभी वषय सदा अ थर एवं वनाशशील ह। यह सोचकर उनके मलने या न होनेपर तु ह त नक भी च ता नह करनी चा हये ।। १२ ।। ु वे तहासं नृपते समा स ह मा शुचः । सने वं महाराज न वषी दतुमह स ।। १३ ।। नरेश! इस इ तहासको सुनकर तुम धैय धारण करो, शोक न करो, महाराज! तु ह संकटम पड़नेपर वषाद त नह होना चा हये ।। १३ ।। वषमाव थते दै वे पौ षेऽफलतां गते । वषादय त ना मानं स वोपा यणो नराः ।। १४ ।। जब दै व ( ार ध) तकूल हो और पु षाथ न फल हो जाय, उस समय भी स वगुणका आ य लेनेवाले मनु य अपने मनम वषाद नह लाते ।। १४ ।। ये चेदं कथ य य त नल य च रतं महत् । ो य त चा यभी णं वै नाल मी तान् भ ज य त ।। १५ ।। अथा त योपप य ते ध यतां च ग म य त । ो







जो राजा नलके इस महान् च र का वणन करगे अथवा नर तर सुनगे, उ ह द र ता नह ा त होगी। उनके सभी मनोरथ स ह गे और वे संसारम ध य हो जायँगे ।। १५ ।। इ तहास ममं ु वा पुराणं श मम् ।। १६ ।। पु ान् पौ ान् पशूं ा प लभते नृषु चायताम् । आरो य ी तमां ैव भ व य त न संशयः ।। १७ ।। इस ाचीन एवं उ म इ तहासका सदा ही वण करके मनु य पु , पौ , पशु तथा मानव म े ता ा त कर लेता है। साथ ही वह नीरोग और स होता है, इसम संशय नह है ।। १६-१७ ।। भयात् य स य च वमा य य त मां पुनः । अ इ त तत् तेऽहं नाश य या म पा थव ।। १८ ।। राजन्! तुम जो इस भयसे डर रहे हो क कोई ूत व ाका ाता मनु य पुनः मुझे जूएके लये बुलायेगा (उस दशाम पुनः पराजयका क दे खना पड़ेगा)। तु हारे उस भयको म र कर ँ गा ।। १८ ।। वेदा दयं कृ नमहं स यपरा म । उपप व कौ तेय स ोऽहं वी म ते ।। १९ ।। स यपरा मी कु तीन दन! म ूत व ाके स पूण दय (रह य)-को जानता ँ, तुम उसे हण कर लो। म स होकर तु ह बतलाता ँ ।। १९ ।। वैश पायन उवाच ततो मना राजा बृहद मुवाच ह । भगव दयं ातु म छा म त वतः ।। २० ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर राजा यु ध रने स च हो बृहद से कहा—‘भगवन्! म ूत व ाके रह यको यथाथ पसे जानना चाहता ँ’ ।। २० ।। ततोऽ दयं ादात् पा डवाय महा मने । द वा चा शरोऽग छ प ु ं महातपाः ।। २१ ।। तब महातप वी मु नने महा मा पा डु न दनको ूत व ाका रह य बताया और उ ह अ व ाका भी उपदे श दे कर वे नान आ द करनेके लये चले गये ।। बृहद े गते पाथम ौषीत् स सा चनम् । वतमानं तप यु े वायुभ ं मनी षणम् ।। २२ ।। ा णे य तप व यः स पत य तत ततः । तीथशैलवने य समेते यो ढ तः ।। २३ ।। इ त पाथ महाबा रापं तप आ थतः । न तथा पूव ऽ यः क तपा इ त ।। २४ ।। े















बृहद मु नके चले जानेपर ढ ती राजा यु ध रने इधर-उधरके तीथ , पवत और वन से आये ए तप वी ा ण के मुखसे स साची अजुनका यह समाचार सुना क ‘मनीषी अजुन वायुका आहार करके कठोर तप याम लगे ह। महाबा कु तीकुमार बड़ी कर तप याम थत ह। ऐसा कठोर तप वी आजसे पहले सरा कोई नह दे खा गया है ।। २२—२४ ।। यथा धनंजयः पाथ तप वी नयत तः । मु नरेकचरः ीमान् धम व हवा नव ।। २५ ।। ‘कु तीकुमार धनंजय जस कार नयम और तका पालन करते ए तप याम संल न ह, वह अ त है। वे मौनभावसे रहते और अकेले ही वचरते ह। ीमान् अजुन धमके मू तमान् व प जान पड़ते ह’ ।। तं ु वा पा डवो राजं त यमानं महावने । अ वशोचत कौ तेयः यं वै ातरं जयम् ।। २६ ।। राजन्! उस महान् वनम अपने य भाई अजुनको तप या करते सुनकर पा डु न दन यु ध र उनके लये बार-बार शोक करने लगे ।। २६ ।। द मानेन तु दा शरणाथ महावने । ा णान् व वध ानान् पयपृ छद् यु ध रः ।। २७ ।। अजुनके वयोगम संत त दयवाले वे यु ध र नभय आ यक इ छा रखते ए उस महान् वनम रहते थे और अनेक कारके ानसे स प ा ण से अपना मनोगत अ भ ाय पूछा करते थे ।। २७ ।। ( तगृ ा दयं क ु तीपु ो यु ध रः । आसीद्धृ मना राजन् भीमसेना द भयुतः ।। राजन्! ूत व ाका रह य जानकर कु तीन दन यु ध र भीमसेन आ दके साथ मनही-मन बड़े स ए ।। व ातॄन् स हतान् प यन् कु तीपु ो यु ध रः । अप य जुनं त बभूवा ुप र लुतः । संत यमानः कौ तेयो भीमसेनमुवाच ह ।। उ ह ने एक साथ बैठे ए सब भाइय क ओर दे खा, उस समय वहाँ अजुनको न दे खकर उनके ने म आँसू भर आये और वे अ य त संत त हो भीमसेनसे बोले ।। यु ध र उवाच कदा या म वै भीम पाथम तवानुजम् । म कृते ह कु े त यते रं तपः ।। यु ध रने कहा—भीमसेन! म तु हारे छोटे भाई अजुनको कब दे खूँगा? कु े अजुन मेरे ही लये अ य त कठोर तप या करते ह ।। त या दय ानमा या या म कदा वहम् । स ह ु वा दयं समुपा ं मया वभो ।। ो

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ः पु ष ा ो भ व य त न संशयः ।) म उ ह अ दय ( ूत व ाके रह य)-का ान कब कराऊँगा। भीम! मेरे ारा हण कये ए अ दयको सुनकर पु ष सह अजुन ब त स ह गे, इसम संशय नह है। इत

ीमहाभारते वनपव ण नलोपा यानपव ण बृहद गमने एकोनाशी ततमोऽ यायः ।। ७९ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत नलोपा यानपवम बृहद गमन वषयक उ यासीवाँ अ याय पूरा आ ।। ७९ ।। ( ा णा य अ धक पाठक े ५ ोक मलाकर कुल ३२ ोक ह) द

(त ीथया ापव) अशी ततमोऽ यायः अजुनके लये ौपद स हत पा डव क च ता जनमेजय उवाच भगवन् का यकात् पाथ गते मे पतामहे । वा डवाः कमकुव ते तमृते स सा चनम् ।। १ ।। जनमेजयने पूछा—भगवन्! मेरे पतामह अजुनके का यकवनसे चले जानेपर उनसे अलग रहते ए शेष पा डव ने कौन-सा काय कया? ।। १ ।। स ह तेषां महे वासो ग तरासीदनीक जत् । आ द यानां यथा व णु तथैव तभा त मे ।। २ ।। वे सै य वजयी, महान् धनुधर अजुन ही उन सबके आ य थे। जैसे आ द य म व णु ह, वैसे ही पा डव म मुझे धनंजय जान पड़ते ह ।। २ ।। तेने समवीयण सं ामे व नव तना । वनाभूता वने वीराः कथमासन् पतामहाः ।। ३ ।। वे सं ामसे कभी पीछे न हटनेवाले और इ के समान परा मी थे। उनके बना मेरे अ य वीर पतामह वनम कैसे रहते थे? ।। ३ ।। वैश पायन उवाच गते तु पा डवे तात का यकात् स य व मे । बभूवुः पा डवेया ते ःखशोकपरायणाः ।। ४ ।। वैश पायनजी कहते ह—तात! स यपरा मी पा डु कुमार अजुनके का यकवनसे चले जानेपर सभी पा डव उनके लये ःख और शोकम म न रहने लगे ।। ४ ।। आ तसू ा मणय छ प ा इव जाः । अ ीतमनसः सव बभूवुरथ पा डवाः ।। ५ ।। जैसे म णय क मालाका सूत टू ट जाय अथवा प य के पंख कट जायँ, वैसी दशाम उन म णय और प य क जो अव था होती है, वैसी ही अजुनके बना पा डव क थी। उन सबके मनम त नक भी स ता नह थी ।। ५ ।। वनं तु तदभूत् तेन हीनम ल कमणा । कुबेरेण यथा हीनं वनं चै रथं तथा ।। ६ ।। अनायास ही महान् कम करनेवाले अजुनके बना वह वन उसी कार शोभाशू य-सा हो गया, जैसे कुबेरके बना चै रथ वन ।। ६ ।। े े



तमृते ते नर ा ाः पा डवा जनमेजय । मुदम ा ुव तो वै का यके यवसं तदा ।। ७ ।। जनमेजय! अजुनके बना वे नर े पा डव आन दशू य हो का यकवनम रह रहे थे ।। ७ ।। ा णाथ परा ा ताः शु ै बाणैमहारथाः । न न तो भरत े मे यान् ब वधान् मृगान् ।। ८ ।। भरत े ! वे महारथी वीर शु बाण ारा ा ण के (बाघ बर आ दके) लये परा म करके नाना कारके प व * मृग को मारा करते थे ।। ८ ।। न यं ह पु ष ा ा व याहारमरदमाः । उपाकृ य उपा य ा णे यो यवेदयन् ।। ९ ।। वे नर े और श ुदमन पा डव त दन ा ण के लये जंगली फल-मूलका आहार संगह ृ ीत करके उ ह अ पत करते थे ।। ९ ।। सव सं यवसं त सो क ठाः पु षषभाः । अ मनसः सव गते राजन् धनंजये ।। १० ।। राजन्! धनंजयके चले जानेपर वे सभी नर े वहाँ ख च हो उ ह के लये उ क ठत होकर रहते थे ।। १० ।। वशेषत तु पा चाली मर ती म यमं प तम् । उ नं पा डव े मदं वचनम वीत् ।। ११ ।। वशेषतः पांचालराजकुमारी ौपद अपने मझले प त अजुनका मरण करती ई सदा उ न रहनेवाले पा डव शरोम ण यु ध रसे इस कार बोली— ।। ११ ।। योऽजुनेनाजुन तु यो बा ब बा ना । तमृते पा डव े वनं न तभा त मे ।। १२ ।। ‘पा डव े ! जो दो भुजावाले अजुन सहबा अजुनके समान परा मी ह, उनके बना यह वन मुझे अ छा नह लगता ।। १२ ।। शू या मव प या म त त मही ममाम् । ब ा य मदं चा प वनं कुसु मत मम् ।। १३ ।। न तथा रमणीयं वै तमृते स सा चनम् । नीला बुदसम यं म मात गा मनम् ।। १४ ।। तमृते पु डरीका ं का यकं ना तभा त मे । य य वा धनुषो घोषः ूयते चाश न वनः । न लभे शम वै राजन् मर ती स सा चनम् ।। १५ ।। ‘म य -त यहाँक जस- जस भू मपर डालती ँ, सबको सूनी-सी ही पाती ँ। यह अनेक आ यसे भरा आ और वक सत कुसुम से अलंकृत वृ वाला का यकवन भी स साची अजुनके बना पहले-जैसा रमणीय नह जान पड़ता है। नीलमेघके समान का त और मतवाले गजराजक -सी ग तवाले उन कमलनयन अजुनके बना यह े









का यकवन मुझे त नक भी नह भाता है। राजन्! जनके धनुषक टं कार बजलीक गड़गड़ाहटके समान सुनायी दे ती है, उन स साचीक याद करके मुझे त नक भी चैन नह मलता’ ।। १३—१५ ।। तथा लाल यमानां तां नश य परवीरहा । भीमसेनो महाराज ौपद मदम वीत् ।। १६ ।। महाराज! इस कार वलाप करती ई ौपद क बात सुनकर श ुवीर का संहार करनेवाले भीमसेनने उससे इस कार कहा ।। १६ ।। भीम उवाच मनः ी तकरं भ े यद् वी ष सुम यमे । त मे ीणा त दयममृत ाशनोपमम् ।। १७ ।। भीमसेन बोले—भ े ! सुम यमे! तुम जो कुछ कहती हो, वह मेरे मनको स करनेवाला है। तु हारी बात मेरे दयको अमृतपानके तु य तृ त दान करती है ।। १७ ।। य य द घ समौ पीनौ भुजौ प रघसं नभौ । मौव कृत कणौ वृ ौ खड् गायुधधनुधरौ ।। १८ ।। न का दकृतापीडौ प चशीषा ववोरगौ । तमृते पु ष ा ं न सूय मवा बरम् ।। १९ ।। जनक दोन भुजाएँ ल बी, मोट , बराबर-बराबर तथा प रघके समान सुशो भत होनेवाली ह, जनपर य चाक रगड़का च बन गया है, जो गोलाकार ह और जनम खड् ग एवं धनुष सुशो भत होते ह, सोनेके भुजब द से वभू षत होकर जो पाँच-पाँच फनवाले दो सप के समान तीत होती है उन पाँच अंगु लय से यु दोन भुजा से वभू षत नर े अजुनके बना आज यह वन सूयहीन आकाशके समान ीहीन दखलायी दे ता है ।। १८-१९ ।। यमा य महाबा ं पा चालाः कुरव तथा । सुराणाम प म ानां पृतनासु न ब य त ।। २० ।। य य बा समा य वयं सव महा मनः । म यामहे जतानाजौ परान् ा तां च मे दनीम् ।। २१ ।। तमृते फा गुनं वीरं न लभे का यके धृ तम् । प या म च दशः सवा त मरेणावृता इव । जन महाबा अजुनका आ य लेकर पा चाल और कु वंशके वीर यु के लये उ त दे वता क सेनाका सामना करनेसे भी भयभीत नह होते ह, जन महा माके बा बलके भरोसे हम सब लोग यु म अपने श ु को परा जत और इस पृ वीका रा य अपने अ धकारम आया आ मानते ह, उन वीरवर अजुनके बना हम का यकवनम धैय नह ा त हो रहा है। मुझे सारी दशाएँ अ धकारसे आ छ -सी दखायी दे ती ह ।। २०-२१ ।। ततोऽ वीत् सा ुक ठो नक ु लः पा डु न दनः ।। २२ ।। ी



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भीमसेनक यह बात सुनकर पा डु न दन नकुल अ ुगद्गदक ठसे बोले— ।। २२ ।। नकुल उवाच य मन् द ा न कमा ण कथय त रणा जरे । दे वा अ प युधां े ं तमृते का र तवने ।। २३ ।। नकुलने कहा— जन महावीर अजुनके वषयम रण ांगणके भीतर दे वता के ारा भी द कम का वणन कया जाता है, उन यो ा म े धनंजयके बना अब इस वनम हम या स ता है? ।। २३ ।। उद च यो दशं ग वा ज वा यु ध महाबलान् । ग धवमु या छतशो हयाँ लेभे महा ु तः ।। २४ ।। जन महातेज वीने उ र दशाम जाकर महाबली मु य-मु य ग धव को यु म परा त करके उनसे सैकड़ घोड़े ा त कये ।। २४ ।। रा े त रक माषा मतोऽ नलरंहसः । ादाद् ा े यः े णा राजसूये महा तौ ।। २५ ।। ज ह ने महाय राजसूयम अपने यारे भाई धमराज यु ध रको ेमपूवक वायुके समान वेगशाली त रक माष नामक सु दर घोड़े भट कये थे ।। २५ ।। तमृते भीमध वानं भीमादवरजं वने । कामये का यके वासं नेदानीममरोपमम् ।। २६ ।। भीमके छोटे भाई उन भयंकर धनुधर दे वोपम अजुनके बना इस समय मुझे इस का यकवनम रहनेक इ छा नह होती ।। २६ ।। सहदे व उवाच यो धना न च क या यु ध ज वा महारथः । आजहार पुरा रा े राजसूये महा तौ ।। २७ ।। यः समेतान् मृधे ज वा यादवान मत ु तः । सुभ ामाजहारैको वासुदेव य स मते ।। २८ ।। सहदे वने कहा— जन महारथी वीरने पहले राजसूय महाय के अवसरपर यु म जीतकर ब त धन और क याएँ महाराज यु ध रको भट क थ , जन अन त तेज वी धनंजयने भगवान् ीकृ णक स म तसे यु के लये एक ए सम त यादव को अकेले ही जीतकर सुभ ाका हरण कर लया था ।। २७-२८ ।। त य ज णोबृस ् वा शू या मव नवेशने । दयं मे महाराज न शा य त कदाचन ।। २९ ।। वनाद माद् ववासं तु रोचयेऽहमरदम । न ह न तमृते वीरं रमणीय मदं वनम् ।। ३० ।। महाराज! उ ह वजयी ाता धनंजयके आसनको अब अपनी कु टयाम सूना दे खकर मेरे दयको कभी शा त नह मलती। अतः श ुदमन! म इस वनसे अ य चलना पसंद करता ँ। वीरवर अजुनके बना अब यह वन रमणीय नह लगता ।। २९–३० ।। ी े ी ो े ी ो

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ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण अजुनानुशोचने अशी ततमोऽ यायः ।। ८० ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम अजुनके लये पा डव का अनुताप वषयक असीवाँ अ याय पूरा आ ।। ८० ।।

जनके मारनेपर मारनेवाला प व हो जाय, ऐसे हसक सह- ा ा द पशु

को प व मृग कहा जाता है।

एकाशी ततमोऽ यायः यु ध रके पास दे व ष नारदका आगमन और तीथया ाके फलके स ब धम पूछनेपर नारदजी ारा भी म-पुल यसंवादक तावना वैश पायन उवाच धनंजयो सुकानां तु ातॄणां कृ णया सह । ु वा वा या न वमना धमराजोऽ यजायत ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! धनंजयके लये उ सुक ौपद स हत सब भाइय के पूव वचन सुनकर धमराज यु ध रका भी मन ब त उदास हो गया ।। १ ।। अथाप य महा मानं दे व ष त नारदम् । द यमानं या ा या ता चष मवानलम् ।। २ ।। इतनेम ही उ ह ने दे खा, महा मा दे व ष नारद वहाँ उप थत ह, जो अपने ा तेजसे दे द यमान हो घीक आ तसे व लत ई अ नके समान का शत हो रहे ह ।। २ ।। तमागतम भ े य ातृ भः सह धमराट् । यु थाय यथा यायं पूजां च े महा मने ।। ३ ।। उ ह आया दे ख भाइय स हत धमराजने उठकर उन महा माका यथायो य स कार कया ।। ३ ।। स तैः प रवृतः ीमान् ातृ भः कु स मः । वबभाव तद तौजा दे वै रव शत तुः ।। ४ ।। अपने भाइय से घरे ए अ य त तेज वी कु े ीमान् यु ध र दे वता से घरे ए दे वराज इ क भाँ त सुशो भत हो रहे थे ।। ४ ।। यथा च वेदान् सा व ी या सेनी तथा पतीन् । न जहौ धमतः पाथान् मे मक भा यथा ।। ५ ।। जैसे गाय ी चार वेद का और सूयक भा मे पवतका याग नह करती, उसी कार या सेनी ौपद ने भी धमतः अपने प त कु तीकुमार का प र याग नह कया ।। ५ ।। तगृ च तां पूजां नारदो भगवानृ षः । आ ासयद् धमसुतं यु प मवानघ ।। ६ ।। न पाप जनमेजय! उनक वह पूजा हण करके दे व ष भगवान् नारदने धमपु यु ध रको उ चत सा वना द ।। ६ ।। उवाच च महा मानं धमराजं यु ध रम् । ू ह धमभृतां े केनाथः क ददा न ते ।। ७ ।। त प ात् वे महा मा धमराज यु ध रसे इस कार बोले—‘धमा मा म े नरेश! बोलो, तु ह कस व तुक आव यकता है? म तु ह या ँ ?’ ।। ७ ।। ो

अथ धमसुतो राजा ण य ातृ भः सह । उवाच ा लभू वा नारदं दे वस मतम् ।। ८ ।। तब भाइय स हत धमन दन राजा यु ध रने दे वतु य नारदजीको णाम करके हाथ जोड़कर कहा— ।। ८ ।। व य तु े महाभाग सवलोका भपू जते । कृत म येव म येऽहं सादात् तव सु त ।। ९ ।। ‘महाभाग! उ म तका पालन करनेवाले सहष! स पूण व के ारा पू जत आप महा माके संतु होनेपर म ऐसा समझता ँ क आपक कृपासे मेरा सब काय पूरा हो गया ।। ९ ।। य द वहमनु ा ो ातृ भः स हतोऽनघ । संदेहं मे मु न े त वत छे ुमह स ।। १० ।। ‘ न पाप मु न े ! य द भाइय स हत म आपक कृपाका पा होऊँ तो आप मेरे संदेहको स यक् कारसे न कर द जये’ ।। १० ।। द णां यः कु ते पृ थव तीथत परः । क फलं त य का यन त वान् व ु मह त ।। ११ ।। ‘जो मनु य तीथया ाम त पर होकर इस पृ वीक प र मा करता है, उसे या फल मलता है? यह आप पूण पसे बतानेक कृपा कर’ ।। ११ ।। नारद उवाच शृणु राज व हतो यथा भी मेण धीमता । पुल य य सकाशाद् वै सवमेत प ुतम् ।। १२ ।। नारदजीने कहा—राजन्! सावधान होकर सुनो, बु मान् भी मजीने मह ष पुल यके मुखसे ये सब बात जस कार सुनी थ , वह सब म तु ह बता रहा ँ ।। १२ ।। पुरा भागीरथीतीरे भी मो धमभृतां वरः । पयं तं समा थाय यवस मु न भः सह ।। १३ ।। शुभे दे शे तथा राजन् पु ये दे व षसे वते । ग ा ारे महाभाग दे वग धवसे वते ।। १४ ।। महाभाग! पहलेक बात है, दे वता और ग धव से से वत गंगा ार (ह र ार)-तीथम भागीरथीके प व , शुभ एवं दे व षसे वत तट- दे शम े धमा मा भी मजी पतृस ब धी ( ा , तपण आ द) तका आ य ले मह षय के साथ रहते थे ।। १३-१४ ।।

स पतॄं तपयामास दे वां परम ु तः । ऋष तपयामास व ध ेन कमणा ।। १५ ।। परम तेज वी भी मजीने वहाँ शा ीय व धके अनुसार दे वता , ऋ षय तथा पतर का तपण कया ।। १५ ।। क य चत् वथ काल य जप ेव महायशाः । ददशा तसंकाशं पुल यमृ षस मम् ।। १६ ।। कुछ समयके बाद जब महायश वी भी मजी जपम लगे ए थे, अपने पास ही उ ह ने अ त तेज वी मु न े पुल यजीको दे खा ।। १६ ।। स तं ् वो तपसं द यमान मव या । हषमतुलं लेभे व मयं परमं ययौ ।। १७ ।। वे उ तप वी मह ष तेजसे दे द यमान हो रहे थे। उ ह दे खकर भी मजीको अनुपम स ता ा त ई तथा वे बड़े आ यम पड़ गये ।। १७ ।। उप थतं महाभागं पूजयामास भारत । भी मो धमभृतां े ो व ध ेन कमणा ।। १८ ।। भारत! धमा मा म े भी मने वहाँ उप थत ए महाभाग मह षका शा ो व धसे पूजन कया ।। शरसा चा यमादाय शु चः यतमानसः । े

नाम संक तयामास त मन् षस मे ।। १९ ।। उ ह ने प व एवं एका च होकर (पुल यजीके दये ए) अ यको सरपर धारण करके उन ष े पुल यजीको अपने नामका इस कार प रचय दया— ।। १९ ।। भी मोऽहम म भ ं ते दासोऽ म तव सु त । तव संदशनादे व मु ोऽहं सव क बषैः ।। २० ।। ‘सु त! आपका भला हो, म आपका दास भी म ँ। आपके दशनमा से म सब पाप से मु हो गया’ ।। एवमु वा महाराज भी मो धमभृतां वरः । वा यतः ा लभू वा तू णीमासीद् यु ध र ।। २१ ।। महाराज यु ध र! धनुधा रय म े एवं वाणीको संयमम रखनेवाले भी म ऐसा कहकर हाथ जोड़े चुप हो गये ।। २१ ।। तं ् वा नयमेनाथ वा याया नायक शतम् । भी मं कु कुल े ं मु नः ीतमनाभवत् ।। २२ ।। कु कुल शरोम ण भी मको नयम, वा याय तथा वेदो कम के अनु ानसे बल आ दे ख पुल य मु न मन-ही-मन बड़े स ए ।। २२ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण पाथनारदसंवादे एकाशी ततमोऽ यायः ।। ८१ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम यु ध रनारदसंवाद वषयक इ यासीवाँ अ याय पूरा आ ।। ८१ ।।

यशी ततमोऽ यायः भी मजीके पूछनेपर पुल यजीका उ ह व भ तीथ क या ाका माहा य बताना पुल य उवाच अनेन तव धम येण दमेन च । स येन च महाभाग तु ोऽ म तव सु त ।। १ ।। पुल यजीने कहा—धम ! उ म तका पालन करनेवाले महाभाग! तु हारे इस वनय, इ यसंयम और स यपालनसे म ब त संतु ँ ।। १ ।। य ये श ते धम ऽयं पतृभ या तोऽनघ । तेन प य स मां पु ी त परमा व य ।। २ ।। न पाप व स! तु हारे ारा पतृभ के आ त जो ऐसे उ म धमका पालन हो रहा है, इसीके भावसे तुम मेरा दशन कर रहे हो और तुमपर मेरा ब त ेम हो गया है ।। २ ।। अमोघदश भी माहं ू ह क करवा ण ते । यद् व य स कु े त य दाता म तेऽनघ ।। ३ ।। न पाप कु े भी म! मेरा दशन अमोघ है। बोलो, म तु हारे कस मनोरथक पू त क ँ ? तुम जो माँगोगे, वही ँ गा ।। ३ ।। भी म उवाच ीते व य महाभाग सवलोका भपू जते । कृतमेतावता म ये यदहं वान् भुम् ।। ४ ।। भी मजीने कहा—महाभाग! आप स पूण लोक - ारा पू जत ह। आपके स हो जानेपर मुझे या नह मला? आप-जैसे श शाली मह षका मुझे दशन आ, इतनेहीसे म अपनेको कृतकृ य मानता ँ ।। ४ ।। य द वहमनु ा तव धमभृतां वर । संदेहं ते व या म त मे वं छे ुमह स ।। ५ ।। धमा मा म े महष! य द म आपक कृपाका पा ँ तो म आपके सामने अपना संशय रखता ँ। आप उसका नवारण कर ।। ५ ।। अ त मे दये क त् तीथ यो धमसंशयः । तमहं ोतु म छा म तद् भवान् व ु मह त ।। ६ ।। मेरे मनम तीथ से होनेवाले धमके वषयम कुछ संशय हो गया है, म उसीका समाधान सुनना चाहता ँ; आप बतानेक कृपा कर ।। ६ ।। द णां यः पृ थव करो यमरसं नभ । क फलं त य व ष त मे ू ह सु न तम् ।। ७ ।। े

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दे वतु य ष! जो (तीथ के उ े यसे) सारी पृ वीक प र मा करता है, उसे या फल मलता है? यह न त करके मुझे बताइये ।। ७ ।। पुल य उवाच ह त ते कथ य या म य षीणां परायणम् । तदे का मनाः पु शृणु तीथषु यत् फलम् ।। ८ ।। पुल यजीने कहा—व स! तीथया ा ऋ षय के लये ब त बड़ा आ य है। म इसके वषयम तु ह बताऊँगा। तीथ के सेवनसे जो फल होता है, उसे एका होकर सुनो ।। ८ ।। य य ह तौ च पादौ च मन ैव सुसंयतम् । व ा तप क त स तीथफलमुते ।। ९ ।। जसके हाथ, पैर और मन अपने काबूम ह तथा जो व ा, तप और क तसे स प हो, वही तीथसेवनका फल पाता है ।। ९ ।। त हादपावृ ः संतु ो येन केन चत् । अहंकार नवृ स तीथफलमुते ।। १० ।। जो त हसे र रहे तथा जो कुछ अपने पास हो, उसीसे संतु रहे और जसम अहंकारका अभाव हो, वही तीथका फल पाता है ।। १० ।। अक कको नरार भो ल वाहारो जते यः । वमु ः सवपापे य स तीथफलमुते ।। ११ ।। जो द भ आ द दोष से र, कतृ वके अहंकारसे शू य, अ पाहारी और जते य हो, वह सब पाप से वमु हो तीथके वा त वक फलका भागी होता है ।। ११ ।। अ ोधन राजे स यशीलो ढ तः । आ मोपम भूतेषु स तीथफलमुते ।। १२ ।। राजन्! जसम ोध न हो, जो स यवाद और ढ़तापूवक तका पालन करनेवाला हो तथा जो सब ा णय के त आ मभाव रखता हो, वही तीथके फलका भागी होता है ।। १२ ।। ऋ ष भः तवः ो ा दे वे वह यथा मम् । फलं चैव यथातयं े य चेह च सवशः ।। १३ ।। ऋ षय ने दे वता के उ े यसे यथायो य य बताये ह और उन य का यथावत् फल भी बताया है, जो इहलोक और परलोकम भी सवथा ा त होता है ।। १३ ।। न ते श या द र े ण य ाः ा तुं महीपते । बपकरणा य ा नानास भार व तराः ।। १४ ।। परंतु भूपाल! द र मनु य उन य का अनु ान नह कर सकते; य क उनम ब तसी साम य क आव यकता होती है। नाना कारके साधन का सं ह होनेसे उनम व तार ब त बढ़ जाता है ।। १४ ।। ा य ते पा थवैरेते समृ ै वा नरैः व चत् । नाथ यूनैनावगणैरेका म भरसाधनैः ।। १५ ।। ो





अतः राजालोग अथवा कह -कह कुछ समृ शाली मनु य ही य का अनु ान कर सकते ह। जनके पास धनक कमी और सहायक का अभाव है, जो अकेले और साधनशू य ह, उनके ारा य का अनु ान नह हो सकता ।। १५ ।। यो द र ै र प व धः श यः ा तुं नरे र । तु यो य फलैः पु यै तं नबोध युधां वर ।। १६ ।। यो ा म े नरे र! जो स कम द र लोग भी कर सक और जो अपने पु यो ारा य के समान फल द हो सके, उसे बताता ँ, सुनो ।। १६ ।। ऋषीणां परमं गु मदं भरतस म । तीथा भगमनं पु यं य ैर प व श यते ।। १७ ।। भरत े ! यह ऋ षय का परम गोपनीय रह य है। तीथया ा बड़ा प व स कम है। वह य से भी बढ़कर है ।। १७ ।। अनुपो य रा ा ण तीथा यन भग य च । अद वा का चनं गा द र ो नाम जायते ।। १८ ।। मनु य इसी लये द र होता है क वह (तीथ म) तीन राततक उपवास नह करता, तीथ क या ा नह करता और सुवणदान और गोदान नह करता ।। १८ ।। अ न ोमा द भय ै र ् वा वपुलद णैः । न तत् फलमवा ो त तीथा भगमनेन यत् ।। १९ ।। मनु य तीथया ासे जस फलको पाता है, उसे चुर द णावाले अ न ोम आ द य ारा यजन करके भी नह पा सकता ।। १९ ।। नृलोके दे वदे व य तीथ ैलो य व ुतम् । पु करं नाम व यातं महाभागः समा वशेत् ।। २० ।। मनु यलोकम दे वा धदे व ाजीका लोक- व यात तीथ है, जो ‘पु कर’ नामसे स है। उसम कोई बड़भागी मनु य ही वेश कर पाता है ।। २० ।। दशको टसह ा ण तीथानां वै महामते । सां न यं पु करे येषां सं यं कु न दन ।। २१ ।। महामते कु न दन! पु करम तीन समय दस सह को ट (दस अरब) तीथ का नवास रहता है ।। आ द या वसवो ाः सा या सम णाः । ग धवा सरस ैव न यं सं न हता वभो ।। २२ ।। वभो! वहाँ आ द य, वसु, , सा य, म द्गण, ग धव और अ सरा क भी न य सं न ध रहती है ।। य दे वा तप त वा दै या षय तथा । द योगा महाराज पु येन महता वताः ।। २३ ।। महाराज! वहाँ तप करके दे वता, दै य और ष महान् पु यसे स प द योगसे यु होते ह ।। २३ ।। मनसा य भकाम य पु करा ण मन वनः । े े े

पूय ते सवपापा न नाकपृ े च पू यते ।। २४ ।। जो मन वी पु ष मनसे भी पु कर तीथम जानेक इ छा करता है, उसके वगके तब धक सारे पाप मट जाते ह और वह वगलोकम पू जत होता है ।। त मं तीथ महाराज न यमेव पतामहः । उवास परम ीतो भगवान् कमलासनः ।। २५ ।। महाराज! उस तीथम कमलासन भगवान् ाजी न य ही बड़ी स ताके साथ नवास करते ह ।। २५ ।।

पु करेषु महाभाग दे वाः स षगणाः पुरा । स सम भस ा ताः पु येन महता वताः ।। २६ ।। महाभाग! पु करम पहले दे वता तथा ऋ ष महान् पु यसे स प हो स ा त कर चुके ह ।। २६ ।। त ा भषेकं यः कुयात् पतृदेवाचने रतः । अ मेधाद् दशगुणं फलं ा मनी षणः ।। २७ ।। जो वहाँ नान करता तथा दे वता और पतर क पूजाम संल न रहता है, उस पु षको अ मेधसे दस गुना फल ा त होता है; ऐसा मनीषीगण कहते ह ।। अ येकं भोजयेद ् व ं पु करार यमा तः । तेनासौ कमणा भी म े य चेह च मोदते ।। २८ ।। ी









भी म! पु करम जाकर कम-से-कम एक ा णको अव य भोजन कराये। उस पु यकमसे मनु य इहलोक और परलोकम भी आन दका भागी होता है ।। २८ ।। शाकैमूलैः फलैवा प येन वतयते वयम् । तद् वै द ाद् ा णाय ावाननसूयकः ।। २९ ।। मनु य साग, फल तथा मूल जसके ारा वयं ाणया ाका नवाह करता है, वही ाभावसे सर के दोष न दे खते ए ा णको दान करे ।। २९ ।। तेनैव ा ुयात् ा ो हयमेधफलं नरः । ा णाः या वै याः शू ा वा राजस म ।। ३० ।। न वै योनौ जायते नाता तीथ महा मनः । उसीसे व ान् पु ष अ मेधय का फल पाता है। नृप े ! ा ण, य, वै य अथवा शू जो कोई भी महा मा ाजीके तीथम नान कर लेते ह, वे फर कसी यो नम ज म नह लेते ह ।। ३० ।। का तक तु वशेषण योऽ भग छ त पु करम् ।। ३१ ।। ा ुयात् स नरो लोकान् णः सदनेऽ यान् । वशेषतः का तकमासक पू णमाको जो पु करतीथम नानके लये जाता है, वह मनु य धामम अ य लोक को ा त होता है ।। ३१ ।। सायं ातः मरेद ् य तु पु करा ण कृता लः ।। ३२ ।। उप पृ ं भवेत् तेन सवतीथषु भारत । भारत! जो सायंकाल और ातःकाल हाथ जोड़कर तीन पु कर का मरण करता है, उसने मानो सब तीथ म नान एवं आचमन कर लया ।। ३२ ।। ज म भृ त यत् पापं या वा पु षेण वा ।। ३३ ।। पु करे नातमा य सवमेव ण य त । ी अथवा पु षने ज मसे लेकर वतमान अव थातक जतने भी पाप कये ह, पु करतीथम नान करनेमा से वे सब पाप न हो जाते ह ।। ३३ ।। यथा सुराणां सवषामा द तु मधुसूदनः ।। ३४ ।। तथैव पु करं राजं तीथानामा द यते । राजन्! जैसे भगवान् मधुसूदन ( व णु) सब दे वता के आ द ह, वैसे ही पु कर सब तीथ का आ द कहा जाता है ।। ३४ ।। उ ् वा ादश वषा ण पु करे नयतः शु चः ।। ३५ ।। तून् सवानवा ो त लोकं स ग छ त । पु करम प व तापूवक संयम- नयमके साथ बारह वष तक नवास करके मानव स पूण य का फल पाता और लोकको जाता है ।। ३५ ।। य तु वषशतं पूणम नहो मुपासते ।। ३६ ।। का तक वा वसेद े कां पु करे सममेव तत् ।। ३७ ।। ो







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जो पूरे सौ वष तक अ नहो करता है और जो का तकक एक ही पू णमाको पु करम वास करता है, दोन का फल बराबर है ।। ३६-३७ ।। ी ण शृ ा ण शु ा ण ी ण वणा न च । पु करा या द स ा न न व त कारणम् ।। ३८ ।। तीन शु पवत शखर, तीन सोते और तीन पु कर—ये आ द स तीथ ह। ये कब कस कारणसे तीथ माने गये? इसका हम पता नह है ।। ३८ ।। करं पु करे ग तुं करं पु करे तपः । करं पु करे दानं व तुं चैव सु करम् ।। ३९ ।। पु करम जाना अ य त लभ है, पु करम तप अ य त लभ है, पु करम दान दे नेका सुयोग तो और भी लभ है और उसम नवासका सौभा य तो अ य त ही कर है ।। ३९ ।। उ य ादशरा ं तु नयतो नयताशनः । द णमुपावृ य ज बूमाग समा वशेत् ।। ४० ।। वहाँ इ यसंयम और नय मत आहार करते ए बारह रात रहकर तीथक प र मा करनेके प ात् ज बूमागको जाय ।। ४० ।। ज बूमाग समा व य दे व ष पतृसे वतम् । अ मेधमवा ो त सवकामसम वतः ।। ४१ ।। ज बूमाग दे वता , ऋ षय तथा पतर से से वत तीथ है। उसम जाकर मनु य सम त मनोवां छत भोग से स प हो अ मेधय का फल पाता है ।। ४१ ।। त ो य रजनीः प च पूता मा जायते नरः । न ग तमवा ो त स ा ो त चो माम् ।। ४२ ।। वहाँ पाँच रात नवास करनेसे मनु यका अ तःकरण प व हो जाता है। उसे कभी ग त नह ा त होती, वह उ म स पा लेता है ।। ४२ ।। ज बूमागा पावृ य ग छे त् त लका मम् । न ग तमवा ो त लोकं च ग छ त ।। ४३ ।। ज बूमागसे लौटकर मनु य त लका मको जाय। इससे वह ग तम नह पड़ता और अ तम लोकको चला जाता है ।। ४३ ।। आग यं सर आसा पतृदेवाचने रतः । रा ोपो षतो राज न ोमफलं लभेत् ।। ४४ ।। राजन्! जो अग यसरोवर जाकर दे वता और पतर के पूजनम त पर हो तीन रात उपवास करता है, वह अ न ोमय का फल पाता है ।। ४४ ।। शाकवृ ः फलैवा प कौमारं व दते परम् । क वा मं ततो ग छे जु ं लोकपू जतम् ।। ४५ ।। जो शाकाहार या फलाहार करके वहाँ रहता है, वह परम उ म कुमारलोक (का तकेयके लोक)-म जाता है। वहाँसे लोकपू जत क वके आ मम जाय, जो भगवती ल मीके ारा से वत है ।। ४५ ।।

धमार यं ह तत् पु यमा ं च भरतषभ । य व मा ो वै सवपापैः मु यते ।। ४६ ।। भरत े ! वह धमार य कहलाता है, उसे परम प व एवं आ दतीथ माना गया है। उसम वेश करनेमा से मनु य सब पाप से छु टकारा पा जाता है ।। अच य वा पतॄन् दे वान् नयतो नयताशनः । सवकामसमृ य य य फलमुते ।। ४७ ।। जो वहाँ नयमपूवक मताहारी होकर दे वता और पतर क पूजा करता है, वह स पूण कामना से स प य का फल पाता है ।। ४७ ।। द णं ततः कृ वा यया तपतनं जेत् । हयमेध य य य फलं ा ो त त वै ।। ४८ ।। तदन तर उस तीथक प र मा करके वहाँसे यया तपतन नामक तीथम जाय। वहाँ जानेसे या ीको अव य ही अ मेधय का फल मलता है ।। ४८ ।। महाकालं ततो ग छे यतो नयताशनः । को टतीथमुप पृ य हयमेधफलं लभेत् ।। ४९ ।। वहाँसे महाकालतीथको जाय। वहाँ नयम-पूवक रहकर नय मत भोजन करे। वहाँ को टतीथम आचमन (एवं नान) करनेसे अ मेधय का फल ा त होता है ।। ४९ ।। ततो ग छे त धम ः थाणो तीथमुमापतेः । ना ना भ वटं नाम षु लोकेषु व ुतम् ।। ५० ।। वहाँसे धम पु ष उमाव लभ भगवान् थाणु ( शव)-के उस तीथम जाय, जो तीन लोक म ‘भ वट’ के नामसे स है ।। ५० ।। त ा भग य चेशानं गोसह फलं लभेत् । महादे व सादा च गाणप यं च व द त ।। ५१ ।। समृ मसप नं च या यु ं नरो मः । वहाँ भगवान् शवका नकटसे दशन करके नर े या ी एक हजार गोदानका फल पाता है और महादे वजीके सादसे वह गण का आ धप य ा त कर लेता है, जो आ धप य भारी समृ और ल मीसे स प तथा श ुज नत बाधासे र हत होता है ।। ५१ ।। नमदां तु समासा नद ैलो य व ुताम् ।। ५२ ।। तप य वा पतॄन् दे वान न ोमफलं लभेत् । वहाँसे भुवन व यात नमदा नद के तटपर जाकर दे वता और पतर का तपण करनेसे अ न ोम-य का फल ा त होता है ।। ५२ ।। द णं स धुमासा चारी जते यः ।। ५३ ।। अ न ोममवा ो त वमानं चा धरोह त । इ य को काबूम रखकर चयका पालन करते ए द ण समु क या ा करनेसे मनु य अ न ोमय का फल और वमानपर बैठनेका सौभा य पाता है ।। ५३ ।। चम वत समासा नयतो नयताशनः । े





र तदे वा यनु ातम न ोमफलं लभेत् ।। ५४ ।। इ यसंयम या शौच-संतोष आ दके पालनपूवक नय मत आहारका सेवन करते ए चम वती (चंबल) नद म नान आ द करनेसे राजा र तदे व ारा अनुमो दत अ न ोमय का फल ा त होता है ।। ५४ ।। ततो ग छे त धम हमव सुतमबुदम् । पृ थ ां य वै छ ं पूवमासीद् यु ध र ।। ५५ ।। धम यु ध र* ! वहाँसे आगे हमालयपु अबुद (आबू)-क या ा करे, जहाँ पहले पृ वीम ववर था ।। ५५ ।। त ा मो व स य षु लोकेषु व ुतः । त ो य रजनीमेकां गोसह फलं लभेत् ।। ५६ ।। वहाँ मह ष व स का लोक व यात आ म है, जसम एक रात रहनेसे सह गोदानका फल मलता है ।। ५६ ।। प तीथमुप पृ य चारी जते यः । क पलानां नर े शत य फलमुते ।। ५७ ।। नर े ! पगतीथम नान एवं आचमन करके चारी एवं जते य मनु य सौ क पला के-दानका फल ा त कर लेता है ।। ५७ ।। ततो ग छे त राजे भासं तीथमु मम् । त सं न हत न यं वयमेव ताशनः ।। ५८ ।। दे वतानां मुखं वीर वलनोऽ नलसार थः । राजे ! तदन तर उ म भासतीथम जाय। वीर! उस तीथम दे वता के मुख व प भगवान् अ नदे व, जनके सार थ वायु ह, सदा नवास करते ह ।। ५८ ।। त मं तीथ नरः ना वा शु चः यतमानसः ।। ५९ ।। अ न ोमा तरा ा यां फलं ा ो त मानवः । उस तीथम नान करके शु एवं संयत च हो मानव अ तरा और अ न ोम य का फल पाता है ।। ५९ ।। ततो ग वा सर व याः सागर य च संगमे ।। ६० ।। गोसह फलं त य वगलोकं च व द त । भया द यते न यम नवद् भरतषभ ।। ६१ ।। तदन तर सर वती और समु के संगमम जाकर नान करनेसे मनु य सह गोदानका फल और वगलोक पाता है। भरत े ! वह पु या मा पु ष अपने तेजसे सदा अ नक भाँ त का शत होता है ।। ६०-६१ ।। तीथ स ललराज य ना वा यतमानसः । रा मु षतः नात तपयेत् पतृदेवताः ।। ६२ ।। मनु य शु च हो जल के वामी व णके तीथ (समु )-म नान करके वहाँ तीन रात रहे और त दन नहाकर दे वता तथा पतर का तपण करे ।। ६२ ।। े







भासते यथा सोमः सोऽ मेधं च व द त । वरदानं ततो ग छे त् तीथ भरतस म ।। ६३ ।। ऐसा करनेवाला या ी च माके समान का शत होता है। साथ ही उसे अ मेधय का फल मलता है। भरत े ! वहाँसे वरदानतीथम जाय ।। ६३ ।। व णो वाससा य वरो द ो यु ध र । वरदाने नरः ना वा गोसह फलं लभेत् ।। ६४ ।। यु ध र! यह वह थान है, जहाँ मु नवर वासाने ीकृ णको वरदान दया था। वरदानतीथम नान करनेसे मानव सह गोदानका फल पाता है ।। ततो ारवत ग छे यतो नयताशनः । प डारके नरः ना वा लभेद ् ब सुवणकम् ।। ६५ ।। वहाँसे तीथया ीको ारका जाना चा हये। वह नयमसे रहे और नय मत भोजन करे। प डारकतीथम नान करनेसे मनु यको अ धका धक सुवणक ा त होती है ।। ६५ ।। त मं तीथ महाभाग पल णल ताः । अ ा प मु ा य ते तद तमरदम ।। ६६ ।। महाभाग! उस तीथम आज भी कमलके च से च त सुवणमु ाएँ दे खी जाती ह। श ुदमन! यह एक अ त बात है ।। ६६ ।। शूलाङ् का न पा न य ते कु न दन । महादे व य सां न यं त वै पु षषभ ।। ६७ ।। पु षर न कु न दन! जहाँ शूलसे अं कत कमल गोचर होते ह। वह महादे वजीका नवास है ।। ६७ ।। सागर य च स धो संगमं ा य भारत । तीथ स ललराज य ना वा यतमानसः ।। ६८ ।। तप य वा पतॄन् दे वानृष भरतषभ । ा ो त वा णं लोकं द यमानं वतेजसा ।। ६९ ।। भारत! सतर और सधु नद के संगमम जाकर व णतीथम नान करके शु च हो दे वता , ऋ षय तथा पतर का तपण करे। भरतकुल तलक! ऐसा करनेसे मनु य द द तसे दे द यमान व णलोकको ा त होता है ।। ६८-६९ ।। शङ् कुकण रं दे वमच य वा यु ध र । अ मेधाद् दशगुणं वद त मनी षणः ।। ७० ।। यु ध र! वहाँ शंकुकण र शवक पूजा करनेसे मनीषी पु ष अ मेधसे दस गुने पु यफलक ा त बताते ह ।। ७० ।। द णमुपावृ य ग छे त भरतषभ । तीथ कु वर े षु लोकेषु व ुतम् ।। ७१ ।। दमी त ना ना व यातं सवपाप णाशनम् । त ादयो दे वा उपास ते महे रम् ।। ७२ ।। े





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भरतवंशावतंस कु े ! उनक प र मा करके भुवन- व यात ‘दमी’ नामक तीथम जाय, जो सब पाप का नाश करनेवाला है। वहाँ ा आ द दे वता भगवान् महे रक उपासना करते ह ।। ७१-७२ ।। त ना वा च पी वा च ं दे वगणैवृतम् । ज म भृ त यत् पापं तत् नात य ण य त ।। ७३ ।। वहाँ नान, जलपान और दे वता से घरे ए दे वका दशन-पूजन करनेसे नानकता पु षके ज मसे लेकर वतमान समयतकके सारे पाप न हो जाते ह ।। दमी चा नर े सवदे वैर भ ु तः । त ना वा नर ा हयमेधमवा ुयात् ।। ७४ ।। नर े ! भगवान् दमीका सभी दे वता तवन करते ह। पु ष सह! वहाँ नान करनेसे अ मेधय के फलक ा त होती है ।। ७४ ।। ग वा य महा ा व णुना भ व णुना । पुरा शौचं कृतं राजन् ह वा दै तेयदानवान् ।। ७५ ।। महा ा नरेश! सवश मान् भगवान् व णुने पहले दै य -दानव का वध करके इसी तीथम जाकर (लोकसं हके लये) शु क थी ।। ७५ ।। ततो ग छे त धम वसोधाराम भ ु ताम् । गमनादे व त यां ह हयमेधफलं लभेत् ।। ७६ ।। धम ! वहाँसे वसुधारातीथम जाय, जो सबके ारा शं सत है। वहाँ जानेमा से अ मेधय का फल मलता है ।। ७६ ।। ना वा कु वर े यता मा समा हतः । त य दे वान् पतॄं ैव व णुलोके महीयते ।। ७७ ।। कु े ! वहाँ नान करके शु और समा हत च होकर दे वता और पतर का तपण करनेसे मनु य व णुलोकम त त होता है ।। ७७ ।। तीथ चा सरः पु यं वसूनां भरतषभ । त ना वा च पी वा च वसूनां स मतो भवेत् ।। ७८ ।। स धू म म त यातं सवपाप णाशनम् । त ना वा नर े लभेद ् ब सुवणकम् ।। ७९ ।। भरत े ! उस तीथम वसु का प व सरोवर है। उसम नान और जलपान करनेसे मनु य वसु दे वता का य होता है। नर े ! वह स धू म नामसे स तीथ है, जो सब पाप का नाश करनेवाला है। उसम नान करनेसे चुर वणरा शक ा त होती है ।। ७८-७९ ।। भ तुङ्गं समासा शु चः शीलसम वतः । लोकमवा ो त ग त च परमां जेत् ।। ८० ।। भ तुंगतीथम जाकर प व एवं सुशील पु ष लोकम जाता और वहाँ उ म ग त पाता है ।। ८० ।। कुमा रकाणां श य तीथ स नषे वतम् । ो

त ना वा नरः ं वगलोकमवा ुयात् ।। ८१ ।। श कुमा रकातीथ स पु ष ारा से वत है। वहाँ नान करके मनु य शी ही वगलोक ा त कर लेता है ।। ८१ ।। रेणुकाया त ैव तीथ स नषे वतम् । त ना वा भवेद ् व ो नमल मा यथा ।। ८२ ।। वह स से वत रेणुकातीथ है, जसम नान करके ा ण च माके समान नमल होता है ।। ८२ ।। अथ प चनदं ग वा नयतो नयताशनः । प चय ानवा ो त मशो येऽनुक तताः ।। ८३ ।। तदन तर शौच-संतोष आ द नयम का पालन और नय मत भोजन करते ए पंचनदतीथम जाकर मनु य पंचमहाय का फल पाता है जो क शा म मशः बतलाये गये ह ।। ८३ ।। ततो ग छे त राजे भीमायाः थानमु मम् । त ना वा तु यो यां वै नरो भरतस म ।। ८४ ।। दे ाः पु ो भवेद ् राजं त तकु डल व हः । गवां शतसह य फलं ा ो त मानवः ।। ८५ ।। राजे ! वहाँसे भीमाके उ म थानक या ा करे! भरत े ! वहाँ यो नतीथम नान करके मनु य दे वीका पु होता है। उसक अंगका त तपाये ए सुवणकु डलके समान होती है। राजन्! उस तीथके सेवनसे मनु यको सह गोदानका फल मलता है ।। ८४-८५ ।। ीकु डं तु समासा षु लोकेषु व ुतम् । पतामहं नम कृ य गोसह फलं लभेत् ।। ८६ ।। भुवन व यात ीकु डम जाकर ाजीको नम कार करनेसे सह गोदानका फल ा त होता है ।। ततो ग छे त धम वमलं तीथमु मम् । अ ापय य ते म याः सौवणराजताः ।। ८७ ।। धम ! वहाँसे परम उ म वमलतीथक या ा करे, जहाँ आज भी सोने और चाँद के रंगक मछ लयाँ दखायी दे ती ह ।। ८७ ।। त ना वा नरः ं वासवं लोकमा ुयात् । सवपाप वशु ा मा ग छे त परमां ग तम् ।। ८८ ।। उसम नान करनेसे मनु य शी ही इ लोकको ा त होता है और सब पाप से शु हो परमग त ा त कर लेता है ।। ८८ ।। वत तां च समासा संत य पतृदेवताः । नरः फलमवा ो त वाजपेय य भारत ।। ८९ ।। भारत! वत तातीथ (झेलम)-म जाकर वहाँ दे वता और पतर का तपण करनेसे मनु यको वाजपेयय का फल ा त होता है ।। ८९ ।। ी े े

का मीरे वेव नाग य भवनं त क य च । वत ता य म त यातं सवपाप मोचनम् ।। ९० ।। का मीरम ही नागराज त कका वत ता नामसे स भवन है, जो सब पाप का नाश करनेवाला है ।। ९० ।। त ना वा नरो नूनं वाजपेयमवा ुयात् । सवपाप वशु ा मा ग छे च परमां ग तम् ।। ९१ ।। वहाँ नान करनेसे मनु य न य ही वाजपेयय का फल ा त करता है और सब पाप से शु हो उ म ग तका भागी होता है ।। ९१ ।। ततो ग छे त वडवां षु लोकेषु व ुताम् । प मायां तु सं यायामुप पृ य यथा व ध ।। ९२ ।। च ं स ता चषे राजन् यथाश नवेदयेत् । पतॄणाम यं दानं वद त मनी षणः ।। ९३ ।। वहाँसे भुवन व यात वडवातीथको जाय। वहाँ प म सं याके समय व धपूवक नान और आचमन करके अ नदे वको यथाश च नवेदन करे। वहाँ पतर के लये दया आ दान अ य होता है; ऐसा मनीषी पु ष कहते ह ।। ९२-९३ ।। ऋषयः पतरो दे वा ग धवा सरसां गणाः । गु काः क रा य ाः स ा व ाधरा नराः ।। ९४ ।। रा सा द तजा ा ा च मनुजा धप । नयतः परमां द ामा थाया दसह क म् ।। ९५ ।। व णोः सादनं कुव ं च पयं तथा । स त भः स त भ ैव ऋ भ तु ाव केशवम् ।। ९६ ।। राजन्! वहाँ दे वता, ऋ ष, पतर, ग धव, अ सरा, गु क, क र, य , स , व ाधर, मनु य, रा स, दै य, और ा—इन सबने नयमपूवक सह वष के लये उ म द ा हण करके भगवान् व णुक स ताके लये च अपण कया। ऋ वेदके सात-सात म ारा सबने च क सात-सात आ तयाँ द और भगवान् केशवको स कया ।। ९४ —९६ ।। ददाव गुणै य तेषां तु तु केशवः । यथा भल षतान यान् कामान् द वा महीपते ।। ९७ ।। त ैवा तदधे दे वो व ुद ेषु वै यथा । ना ना स तच ं तेन यातं लोकेषु भारत ।। ९८ ।। गवां शतसह ेण राजसूयशतेन च । अ मेधसह ेण ेयान् स ता चषे च ः ।। ९९ ।। ततो नवृ ो राजे ं पदमथा वशेत् । अच य वा महादे वम मेधफलं लभेत् ।। १०० ।। उनपर स होकर भगवान्ने उ ह अ गुण-ऐ य अथात् अ णमा आ द आठ स याँ दान क। महाराज! त प ात् उनक इ छाके अनुसार अ या य वर दे कर े ँ े ी ो े ै े े ी ो

भगवान् केशव वहाँसे उसी कार अ तधान हो गये, जैसे मेघ क घटाम बजली तरो हत हो जाती है। भारत! इसी लये वह तीथ तीन लोक म स तच के नामसे व यात है। वहाँ अ नके लये दया आ च एक लाख गोदान, सौ राजसूयय और सह अ मेधय से भी अ धक क याणकारी है। राजे ! वहाँसे लौटकर पद नामक तीथम जाय। वहाँ महादे वजीक पूजा करके तीथया ी पु ष अ मेधका फल पाता है ।। ९७—१०० ।। म णम तं समासा चारी समा हतः । एकरा ो षतो राज न ोमफलं लभेत् ।। १०१ ।। राजन्! एका च हो चय-पालनपूवक म णमान् तीथम जाय और वहाँ एक रात नवास करे। इससे अ न ोमय का फल ा त होता है ।। १०१ ।। अथ ग छे त राजे दे वकां लोक व ुताम् । सू तय व ाणां ूयते भरतषभ ।। १०२ ।। भरतवंश शरोमणे! राजे ! वहाँसे लोक व यात दे वकातीथक या ा करे, जहाँ ा ण क उ प सुनी जाती है ।। १०२ ।। शूलपाणेः थानं च षु लोकेषु व ुतम् । दे वकायां नरः ना वा सम य य महे रम् ।। १०३ ।। यथाश च ं त नवे भरतषभ । सवकामसमृ य य य लभते फलम् ।। १०४ ।। वहाँ शूलपा ण भगवान् शवका थान है, जसक तीन लोक म स है। दे वकाम नान करके भगवान् महे रका पूजन और उ ह यथाश च नवेदन करके स पूण कामना से समृ य के फलक ा त होती है ।। १०३-१०४ ।। कामा यं त य तीथ दे व नषे वतम् । त ना वा नरः ं स ा ो त भारत ।। १०५ ।। वहाँ भगवान् शंकरका दे वसे वत कामतीथ है। भारत! उसम नान करके मनु य शी मनोवा छत स ा त कर लेता है ।। १०५ ।। यजनं याजनं चैव तथैव बालुकाम् । पु पा भ उप पृ य न शोचे मरणं गतः ।। १०६ ।। वहाँ यजन, याजन तथा वेद का वा याय करके अथवा वहाँक बालू, पु प एवं जलका पश करके मृ युको ा त आ पु ष शोकसे पार हो जाता है ।। १०६ ।। अधयोजन व तारा प चयोजनमायता । एतावती वे दका तु पु या दे व षसे वता ।। १०७ ।। वहाँ पाँच योजन लंबी और आधा योजन चौड़ी प व वे दका है, जसका दे वता तथा ऋ ष-मु न भी सेवन करते ह ।। १०७ ।। ततो ग छे त धम द घस ं यथा मम् । त ादयो दे वाः स ा परमषयः ।। १०८ ।। धम ! वहाँसे मशः ‘द घस ’ नामक तीथम जाय। वहाँ ा आ द दे वता, स और मह ष रहते ह ।। े

द घस मुपास ते द ता नयत ताः ।। १०९ ।। वे नयमपूवक तका पालन करते ए द ा लेकर द घस क उपासना करते ह ।। १०९ ।। गमनादे व राजे द घस मरदम । राजसूया मेधा यां फलं ा ो त भारत ।। ११० ।। श ु का दमन करनेवाले भरतवंशी राजे ! वहाँक या ा करने मा से मनु य राजसूय और अ मेध य के समान फल पाता है ।। ११० ।। ततो वनशनं ग छे यतो नयताशनः । ग छ य त हता य मे पृ े सर वती ।। १११ ।। तदन तर शौच-संतोषा द नयम का पालन और नय मत आहार हण करते ए वनशनतीथम जाय, जहाँ मे पृ पर रहनेवाली सर वती अ य भावसे बहती है ।। चमसेऽथ शवो े दे नागो े दे च यते । ना वा तु चमसो े दे अ न ोमफलं लभेत् ।। ११२ ।। वहाँ चमसो े द, शवो े द और नागो े दतीथम सर वतीका दशन होता है। चमसो े दम नान करनेसे अ न ोमय का फल ा त होता है ।। ११२ ।। शवो े दे नरः ना वा गोसह फलं लभेत् । नागो े दे नरः ना वा नागलोकमवा ुयात् ।। ११३ ।। शवो े दम नान करके मनु य सह गोदानका फल पाता है। नागो े दतीथम नान करनेसे उसे नागलोकक ा त होती है ।। ११३ ।। शशयानं च राजे तीथमासा लभम् । शश प त छ ाः पु करा य भारत ।। ११४ ।। सर व यां महाराज अनुसंव सरं च ते । य ते भरत े वृ ां वै का तक सदा ।। ११५ ।। त ना वा नर ा ोतते श शवत् सदा । गोसह फलं चैव ा ुयाद् भरतषभ ।। ११६ ।। राजे ! शशयान नामक तीथ अ य त लभ है। उसम जाकर नान करे। महाराज भारत! वहाँ सर वती नद म तवष का तक पू णमाको शश (खरगोश)-के पम छपे ए पु करतीथ दे खे जाते ह। भरत े ! नर ा ! वहाँ नान करके मनु य सदा च माके समान का शत होता है। भरतकुल तलक! उसे सह गोदानका फल भी मलता है ।। ११४—११६ ।। कुमारको टमासा नयतः कु न दन । त ा भषेकं कुव त पतृदेवाचने रतः ।। ११७ ।। कु न दन! वहाँसे कुमारको टतीथम जाकर वहाँ नयमपूवक नान करे और दे वता तथा पतर के पूजनम त पर रहे ।। ११७ ।। गवामयुतमा ो त कुलं चैव समु रेत् । ततो ग छे त धम कोट समा हतः ।। ११८ ।। ो

पुरा य महाराज मु नको टः समागता । हषण महता व ा दशनकाङ् या ।। ११९ ।। अहं पूवमहं पूव या म वृषभ वजम् । एवं स थता राज ृषयः कल भारत ।। १२० ।। ऐसा करनेसे मनु य दस हजार गोदानका फल पाता है और अपने कुलका उ ार कर दे ता है। धम ! वहाँसे एका च हो को टतीथम जाय। महाराज! को ट वह थान है, जहाँ पूवकालम एक करोड़ मु न बड़े हषम भरकर भगवान् के दशनक अ भलाषासे आये थे। भारत! ‘भगवान् वृषभ वजका दशन पहले म क ँ गा, म क ँ गा’ ऐसा संक प करके वे मह ष वहाँके लये थत ए थे ।। ११८—१२० ।। ततो योगे रेणा प योगमा थाय भूपते । तेषां म यु णाशाथमृषीणां भा वता मनाम् ।। १२१ ।। सृ ा कोट त ाणामृषीणाम तः थता । मया पूवतरं इ त ते मे नरे पृथक् ।। १२२ ।। तेषां तु ो महादे वो मुनीनां भा वता मनाम् । भ या परमया राजन् वरं तेषां द वान् ।। १२३ ।। राजन्! तब योगे र भगवान् शवने भी योगका आ य ले, उन शु ा मा मह षय के शोकक शा तके लये करोड़ शव लग क सृ कर द , जो उन सभी ऋ षय के आगे उप थत थे; इससे उन सबने अलग-अलग भगवान्का दशन कया। राजन्! उन शु चेता मु नय क उ म भ से संतु हो महादे वजीने उ ह वर दया ।। १२१—१२३ ।। अ भृ त यु माकं धमवृ भ व य त । त ना वा नर ा को ां नरः शु चः ।। १२४ ।। अ मेधमवा ो त कुलं चैव समु रेत् । मह षयो! आजसे तु हारे धमक उ रो र वृ होती रहेगी। नर े ! उस को टम नान करके शु आ मनु य अ मेधय का फल पाता और अपने कुलका उ ार कर दे ता है ।। १२४ ।। ततो ग छे त राजे संगमं लोक व ुतम् ।। १२५ ।। सर व या महापु यं केशवं समुपासते । य ादयो दे वा ऋषय तपोधनाः ।। १२६ ।। राजे ! तदन तर परम पु यमय लोक व यात सर वतीसंगमतीथम जाय, जहाँ ा आ द दे वता और तप याके धनी मह ष भगवान् केशवक उपासना करते ह ।। अ भग छ त राजे चै शु लचतुदशीम् । त ना वा नर ा व दे द ् ब सुवणकम् । सवपाप वशु ा मा लोकं च ग छ त ।। १२७ ।। राजे ! वहाँ लोग चै शु ल चतुदशीको वशेष पसे जाते ह। पु ष सह! वहाँ नान करनेसे चुर सुवणरा शक ा त होती है और सब पाप से शु च होकर मनु य ो





लोकको जाता है ।। १२७ ।। ऋषीणां य स ा ण समा ता न नरा धप । त ावसानमासा गोसह फलं लभेत् ।। १२८ ।। नरे र! जहाँ ऋ षय के स समा त ए ह, वहाँ अवसानतीथम जाकर मनु य सह गोदानका फल पाता है ।। १२८ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण पुल यतीथया ायां यशी ततमोऽ यायः ।। ८२ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम पुल यक थततीथया ा वषयक बयासीवाँ अ याय पूरा आ ।। ८२ ।।

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य प यहाँ पुल यजी भी मजीको यह संग सुना रहे ह, तथा प इस संवादको नारदजीने यु ध रके सम उप थत कया है; अतः नारदजी यु ध रको स बो धत कर, इसम कोई अनुपप नह है।

यशी ततमोऽ यायः कु

े क सीमाम

थत अनेक तीथ क मह ाका वणन

पुल य उवाच ततो ग छे त राजे कु े म भ ु तम् । पापे यो य मु य ते दशनात् सवज तवः ।। १ ।। पुल यजी कहते ह—राजे ! तदन तर ऋ षय ारा शं सत कु े क या ा करे, जसके दशनमा से सब जीव पाप से मु हो जाते ह ।। १ ।। कु े ं ग म या म कु े े वसा यहम् । य एवं सततं ूयात् सवपापैः मु यते ।। २ ।। ‘म कु े म जाऊँगा, कु े म नवास क ँ गा।’ इस कार जो सदा कहा करता है, वह सब पाप से मु हो जाता है ।। २ ।। पांसवोऽ प कु े े वायुना समुद रताः । अ प कृतकमाणं नय त परमां ग तम् ।। ३ ।। वायु ारा उड़ाकर लायी ई कु े क धूल भी शरीरपर पड़ जाय, तो वह पापी मनु यको भी परमग तक ा त करा दे ती है ।। ३ ।। द णेन सर व या ष यु रेण च । ये वस त कु े े ते वस त व पे ।। ४ ।। जो सर वतीके द ण और ष तीके उ र कु े म वास करते ह, वे मानो वगलोकम ही रहते ह ।। ४ ।। त मासं वसेद ् धीरः सर व यां यु ध र । य ादयो दे वा ऋषयः स चारणाः ।। ५ ।। ग धवा सरसो य ाः प गा महीपते । े ं महापु यम भग छ त भारत ।। ६ ।। (नारदजी कहते ह—) यु ध र! वहाँ सर वतीके तटपर धीर पु ष एक मासतक नवास करे; य क महाराज! ा आ द दे वता, ऋ ष, स , चारण, ग धव, अ सरा, य और नाग भी उस परम पु यमय े को जाते ह ।। ५-६ ।। मनसा य भकाम य कु े ं यु ध र । पापा न व ण य त लोकं च ग छ त ।। ७ ।। यु ध र! जो मनसे भी कु े म जानेक इ छा करता है, उसके सब पाप न हो जाते ह और वह लोकको जाता है ।। ७ ।। ग वा ह या यु ः कु े ं कु ह। फलं ा ो त च तदा राजसूया मेधयोः ।। ८ ।। े











कु े ! ासे यु होकर कु े क या ा करनेपर मनु य राजसूय और अ मेधय का फल पाता है ।। ८ ।। ततो मच ु कं नाम ारपालं महाबलम् । य ं सम भवा ैव गोसह फलं लभेत् ।। ९ ।। तदन तर, वहाँ मच ु क नामवाले ारपाल महाबली य को नम कार करनेमा से सह गोदानका फल मल जाता है ।। ९ ।। ततो ग छे त धम व णोः थानमनु मम् । सततं नाम राजे य सं न हतो ह रः ।। १० ।। धम राजे ! त प ात् भगवान् व णुके परम उ म सतत नामक तीथ थानम जाय, जहाँ ीह र सदा नवास करते ह ।। १० ।। त ना वा च न वा च लोक भवं ह रम् । अ मेधमवा ो त व णुलोकं च ग छ त ।। ११ ।। ततः पा र लवं ग छे त् तीथ ैलो य व ुतम् । अ न ोमा तरा ा यां फलं ा ो त भारत ।। १२ ।। वहाँ नान और लोकभावन भगवान् ीह रको नम कार करनेसे मनु य अ मेधय का फल पाता और भगवान् व णुके लोकम जाता है। इसके बाद भुवन व यात पा र लव नामक तीथम जाय। भारत! वहाँ नान करनेसे अ न ोम और अ तरा य का फल ा त होता है ।। ११-१२ ।। पृ थवीतीथमासा गोसह फलं लभेत् । ततः शालू कन ग वा तीथसेवी नरा धप ।। १३ ।। दशा मेधे ना वा च तदे व फलमा ुयात् । सपदे व समासा नागानां तीथमु मम् ।। १४ ।। अ न ोममवा ो त नागलोकं च व द त । ततो ग छे त धम ारपालं तर तुकम् ।। १५ ।। त ो य रजनीमेकां गोसह फलं लभेत् । ततः प चनदं ग वा नयतो नयताशनः ।। १६ ।। को टतीथमुप पृ य हयमेधफलं लभेत् । अ नो तीथमासा पवान भजायते ।। १७ ।। महाराज! वहाँसे पृ थवीतीथम जाकर नान करनेसे सह गोदानका फल ा त होता है। राजन्! वहाँसे तीथसेवी मनु य शालू कनीम जाकर दशा मेधतीथम नान करनेसे उसी फलका भागी होता है। सपदे वीम जाकर उ म नागतीथका सेवन करनेसे मनु य अ न ोमका फल पाता और नागलोकम जाता है। धम ! वहाँसे तर तुक नामक ारपालके पास जाय। वहाँ एक रात नवास करनेसे सह गोदानका फल होता है। वहाँसे नयमपूवक नय मत भोजन करते ए पंचनदतीथम जाय और वहाँ को टतीथम नान करे। इससे अ मेधय का फल ा त होता है। अ नीतीथम जाकर नान करनेसे मनु य पवान् होता है ।। १३—१७ ।। ो े ी

ततो ग छे त धम वाराहं तीथमु मम् । व णुवाराह पेण पूव य थतोऽभवत् ।। १८ ।। त ना वा नर े अ न ोमफलं लभेत् । धम ! वहाँसे परम उ म वाराहतीथको जाय, जहाँ भगवान् व णु पहले वाराह पसे थत ए थे। नर े ! वहाँ नान करनेसे अ न ोमय का फल मलता है ।। १८ ।। ततो जय यां राजे सोमतीथ समा वशेत् ।। १९ ।। ना वा फलमवा ो त राजसूय य मानवः । राजे ! तदन तर जय तीम सोमतीथके नकट जाय, वहाँ नान करनेसे मनु य राजसूयय का फल पाता है ।। १९ ।। एकहंसे नरः ना वा गोसह फलं लभेत् ।। २० ।। कृतशौचं समासा तीथसेवी नरा धप । पु डरीकमवा ो त कृतशौचो भवे च सः ।। २१ ।। एकहंसतीथम नान करनेसे मनु य सह गोदानका फल पाता है। नरे र! कृतशौचतीथम जाकर तीथसेवी मनु य पु डरीकयागका फल पाता और शु हो जाता है ।। २०-२१ ।। ततो मु वटं नाम थाणोः थानं महा मनः । उपो य रजनीमेकां गाणप यमवा ुयात् ।। २२ ।। तदन तर महा मा थाणुके मुवट नामक थानम जाय। वहाँ एक रात रहनेसे मानव गणप तपद ा त करता है ।। २२ ।। त ैव च महाराज य ण लोक व ुताम् । ना वा भग य राजे सवान् कामानवा ुयात् ।। २३ ।। महाराज! वह लोक व यात य णीतीथ है। राजे ! उसम जानेसे और नान करनेसे स पूण कामना क पू त होती है ।। २३ ।। कु े य तद् ारं व ुतं भरतषभ । द णमुपावृ य तीथसेवी समा हतः ।। २४ ।। स मतं पु कराणां च ना वा य पतृदेवताः । जामद येन रामेण कृतं तत् सुमहा मना ।। २५ ।। कृतकृ यो भवेद ् राज मेधं च व द त । भरत े ! वह कु े का व यात ार है। उसक प र मा करके तीथया ी मनु य एका च हो पु करतीथके तु य उस तीथम नान करके दे वता और पतर क पूजा करे। राजन्! इससे तीथया ी कृतकृ य होता और अ मेधय का फल ा त करता है। उ म ेणीके महा मा जमद नन दन परशुरामने उस तीथका नमाण कया है ।। २४-२५ ।। ततो राम दान् ग छे त् तीथसेवी समा हतः ।। २६ ।। तदन तर तीथया ी एका च हो परशुराम-कु ड पर जाय ।। २६ ।। े





त रामेण राजे तरसा द ततेजसा । मु सा वीरेण दाः प च नवे शताः ।। २७ ।। राजे ! वहाँ उ त तेज वी वीरवर परशुरामने स पूण यकुलका वेगपूवक संहार करके पाँच कु ड था पत कये थे ।। २७ ।। पूर य वा नर ा धरेणे त व ुतम् । पतर त पताः सव तथैव पतामहाः ।। २८ ।। पु ष सह! उन कु ड को उ ह ने र से भर दया था, ऐसा सुना जाता है। उसी र से परशुरामजीने अपने पतर और पतामह का तपण कया ।। २८ ।। तत ते पतरः ीता राममूचुनरा धप । राजन्! तब वे पतर अ य त स हो परशुरामजीसे इस कार बोले— ।। २८ ।। पतर ऊचुः राम राम महाभाग ीताः म तव भागव ।। २९ ।। अनया पतृभ या च व मेण च ते वभो । वरं वृणी व भ ं ते क म छ स महा ुते ।। ३० ।। पतर ने कहा—महाभाग राम! परशुराम! भृगन ु दन! वभो! हम तु हारी इस पतृभ से और तु हारे परा मसे भी ब त स ए ह। महा ुते! तु हारा क याण हो। तुम कोई वर माँगो। बोलो, या चाहते हो? ।। २९-३० ।। एवमु ः स राजे रामः हरतां वरः । अ वीत् ा लवा यं पतॄन् स गगने थतान् ।। ३१ ।। भव तो य द मे ीता य नु ा ता म य । पतृ साद म छे यं तप आ यायनं पुनः ।। ३२ ।। राजे ! उनके ऐसा कहनेपर यो ा म े परशुरामने हाथ जोड़कर आकाशम खड़े ए उन पतर से कहा—‘ पतृगण! य द आपलोग मुझपर स ह और य द म आपका अनु हपा होऊँ तो म आपका कृपा- साद चाहता ँ। पुनः मेरी तप या पूरी हो जाय ।। ३१-३२ ।। य च रोषा भभूतेन मु सा दतं मया । तत पापा मु येयं यु माकं तेजसा यहम् ।। ३३ ।। दा तीथभूता मे भवेयुभु व व ुताः । ‘मने जो रोषके वशीभूत होकर सारे यकुलका संहार कर दया है, आपके भावसे म उस पापसे मु हो जाऊँ तथा मेरे ये कु ड भूम डलम व यात तीथ व प हो जायँ ।। ३३ ।। एत छ वा शुभं वा यं राम य पतर तदा ।। ३४ ।। यूचुः परम ीता रामं हषसम वताः । तप ते वधतां भूयः पतृभ या वशेषतः ।। ३५ ।। ी







परशुरामजीका यह शुभ वचन सुनकर उनके पतर बड़े स ए और हषम भरकर बोले—‘व स! तु हारी तप या इस वशेष पतृभ से पुनः बढ़ जाय ।। ३४-३५ ।। य च रोषा भभूतेन मु सा दतं वया । तत पापा मु वं प तता ते वकम भः ।। ३६ ।। ‘तुमने जो रोषम भरकर यकुलका संहार कया है, उस पापसे तुम मु हो गये। वे य अपने ही कमसे मरे ह ।। ३६ ।। दा तव तीथ वं ग म य त न संशयः । दे षु तेषु यः ना वा पतॄन् संतप य य त ।। ३७ ।। पतर त य वै ीता दा य त भु व लभम् । ई सतं च मनःकामं वगलोकं च शा तम् ।। ३८ ।। ‘तु हारे बनाये ए ये कु ड तीथ व प ह गे, इसम संशय नह है। जो इन कु ड म नहाकर पतर का तपण करगे, उ ह तृ त ए पतर ऐसा वर दगे, जो इस भूतलपर लभ है। वे उसके लये मनोवा छत कामना और सनातन वगलोक सुलभ कर दगे’ ।। ३७-३८ ।। एवं द वा वरान् राजन् राम य पतर तदा । आम य भागवं ी या त ैवा त हता ततः ।। ३९ ।। एवं राम दाः पु या भागव य महा मनः । ना वा दे षु राम य चारी शुभ तः ।। ४० ।। रामम य य राजे लभेद ् ब सुवणकम् । वंशमूलकमासा तीथसेवी कु ह ।। ४१ ।। ववंशमु रेद ् राजन् ना वा वै वंशमूलके । कायशोधनमासा तीथ भरतस म ।। ४२ ।। शरीरशु ः नात य त मं तीथ न संशयः । शु दे ह संया त शुभाँ लोकाननु मान् ।। ४३ ।। राजन्! इस कार वर दे कर परशुरामजीके पतर स तापूवक उनसे अनुम त ले वह अ तधान हो गये। इस कार भृगन ु दन महा मा परशुरामके वे कु ड बड़े पु यमय माने गये ह। राजन्! जो उ म त एवं चयका पालन करते ए परशुरामजीके उन कु ड के जलम नान करके उनक पूजा करता है, उसे चुर सुवणरा शक ा त होती है। कु े ! तदन तर तीथसेवी मनु य वंशमूलकतीथम जाय। राजन्! वंशमूलकम नान करके मनु य अपने कुलका उ ार कर दे ता है। भरत े ! कायशोधनतीथम जाकर नान करनेसे शरीरक शु होती है, इसम संशय नह । शरीर शु होनेपर मनु य परम उ म क याणमय लोक म जाता है ।। ३९—४३ ।। ततो ग छे त धम तीथ ैलो य व ुतम् । लोका य ो ताः पूव व णुना भ व णुना ।। ४४ ।। लोको ारं समासा तीथ ैलो यपू जतम् । ना वा तीथवरे राजँ लोकानु रते वकान् ।। ४५ ।। ो ो ी ो ी ो ै

धम ! तदन तर भुवन व यात लोको ारतीथम जाय, जो तीन लोक म पू जत है। वहाँ पूवकालम सवश मान् भगवान् व णुने कतने ही लोक का उ ार कया था। राजन्! लोको ारम जाकर उस उ म तीथम नान करनेसे मनु य आ मीय जन का उ ार करता है ।। ४४-४५ ।। ीतीथ च समासा ना वा नयतमानसः । अच य वा पतॄन् दे वान् व दते यमु माम् ।। ४६ ।। मनको वशम करके ीतीथम जाकर नान करके दे वता और पतर क पूजा करनेसे मनु य उ म स प ा त करता है ।। ४६ ।। क पलातीथमासा चारी समा हतः । त ना वाच य वा च पतॄन् वान् दै वता य प ।। ४७ ।। क पलानां सह य फलं व द त मानवः । क पला-तीथम जाकर चयके पालनपूवक एका च हो वहाँ नान और दे वतापतर का पूजन करके मानव सह क पला गौ के दानका फल ा त करता है ।। ४७ ।। सूयतीथ समासा ना वा नयतमानसः ।। ४८ ।। अच य वा पतॄन् दे वानुपवासपरायणः । अ न ोममवा ो त सूयलोकं च ग छ त ।। ४९ ।। मनको वशम करके सूयतीथम जाकर नान और दे वता- पतर का अचन करके उपवास करनेवाला मनु य अ न ोमय का फल पाता और सूयलोकम जाता है ।। ४८-४९ ।। गवां भवनमासा तीथसेवी यथा मम् । त ा भषेकं कुवाणो गोसह फलं लभेत् ।। ५० ।। तदन तर तीथसेवी मशः गोभवनतीथम जाकर वहाँ नान करे। इससे उसको सह गोदानका फल मलता है ।। ५० ।। शङ् खनीतीथमासा तीथसेवी कु ह। दे ा तीथ नरः ना वा लभते पमु मम् ।। ५१ ।। कु े ! तीथया ी पु ष शंखनीतीथम जाकर वहाँ दे वीतीथम नान करनेसे उ म प ा त करता है ।। ततो ग छे त राजे ारपालमर तुकम् । त च तीथ सर व यां य े य महा मनः ।। ५२ ।। त ना वा नरो राज न ोमफलं लभेत् । राजे ! तदन तर अर तुक नामक ारपालके पास जाय। महा मा य राज कुबेरका वह तीथ सर वती नद म है। राजन्! वहाँ नान करनेसे मनु यको अ न ोमय का फल ा त होता है ।। ५२ ।। ततो ग छे त राजे ावत नरो मः ।। ५३ ।। ो

ावत नरः ना वा लोकमवा ुयात् । राजे ! तदन तर े मानव ावततीथको जाय। ावतम नान करके मनु य लोकको ा त कर लेता है ।। ५३ ।। ततो ग छे त राजे सुतीथकमनु मम् ।। ५४ ।। त सं न हता न यं पतरो दै वतैः सह । त ा भषेकं कुव त पतृदेवाचने रतः ।। ५५ ।। अ मेधमवा ो त पतृलोकं च ग छ त । राजे ! वहाँसे परम उ म सुतीथम जाय। वहाँ दे वतालोग पतर के साथ सदा व मान रहते ह। वहाँ पतर और दे वता के पूजनम त पर हो नान करे। इससे तीथया ी अ मेधय का फल पाता और पतृलोकम जाता है ।। ५४-५५ ।। ततोऽ बुम यां धम सुतीथकमनु मम् ।। ५६ ।। धम ! वहाँसे अ बुमतीम, जो परम उ म तीथ है, जाय ।। ५६ ।। काशी र य तीथषु ना वा भरतस म । सव ा ध व नमु ो लोके महीयते ।। ५७ ।। भरत े ! काशी रके तीथ म नान करके मनु य सब रोग से मु हो जाता और लोकम त त होता है ।। ५७ ।। मातृतीथ च त ैव य नात य भारत । जा ववधते राज त व यमुते ।। ५८ ।। भरतवंशी महाराज! वह मातृतीथ है, जसम नान करनेवाले पु षक संत त बढती है और वह कभी ीण न होनेवाली स प का उपभोग करता है ।। ततः सीतवनं ग छे यतो नयताशनः । तीथ त महाराज महद य लभम् ।। ५९ ।। तदन तर नयमसे रहकर नय मत भोजन करते ए सीतवनम जाय। महाराज! वहाँ महान् तीथ है, जो अ य लभ है ।। ५९ ।। पुना त गमनादे व मेकं नरा धप । केशान यु य वै त मन् पूतो भव त भारत ।। ६० ।। नरे र! वह तीथ एक बार जाने या दशन करनेसे ही प व कर दे ता है। भारत! उसम केश को धो लेने मा से ही मनु य प व हो जाता है ।। ६० ।। तीथ त महाराज ा व लोमापहं मृतम् । य व ा नर ा व ांस तीथत पराः ।। ६१ ।। ी त ग छ त परमां ना वा भरतस म । ा व लोमापनयने तीथ भरतस म ।। ६२ ।। ाणायामै नहर त वलोमा न जो माः । पूता मान राजे या त परमां ग तम् ।। ६३ ।। ँ









महाराज! वहाँ ा व लोमापह नामक तीथ है। नर ा ! उसम तीथपरायण ए व ान् ा ण नान करके बड़े स होते ह। भरतस म! ा व लोमापनयनतीथम ाणायाम (योगक या) करनेसे े ज अपने रोएँ झाड़ दे ते ह तथा राजे ! वे शु च होकर परमग तको ा त होते ह ।। ६१—६३ ।। दशा मे धकं चैव त मं तीथ महीपते । त ना वा नर ा ग छे त परमां ग तम् ।। ६४ ।। भूपाल! वह दशा मे धकतीथ भी है। पु ष सह! उसम नान करके मनु य उ म ग त ा त करता है ।। ६४ ।। ततो ग छे त राजे मानुषं लोक व ुतम् । य कृ णमृगा राजन् ाधेन शरपी डताः ।। ६५ ।। वगा त मन् सर स मानुष वमुपागताः । त मं तीथ नरः ना वा चारी समा हतः ।। ६६ ।। सवपाप वशु ा मा वगलोके महीयते । राजे ! तदन तर लोक व यात मानुषतीथम जाय। राजन्! वहाँ ाधके बाण से पी डत ए कृ णमृग उस सरोवरम गोते लगाकर मनु य-शरीर पा गये थे, इसी लये उसका नाम मानुषतीथ है। चयपालन-पूवक एका च हो उस तीथम नान करनेवाला मानव सब पाप से मु हो वगलोकम त त होता है ।। ६५-६६ ।। मानुष य तु पूवण ोशमा े महीपते ।। ६७ ।। आपगा नाम व याता नद स नषे वता । यामाकं भोजने त यः य छ त मानवः ।। ६८ ।। दे वान् पतॄन् समु य त य धमफलं महत् । एक मन् भो जते व े को टभव त भो जता ।। ६९ ।। राजन्! मानुषतीथसे पूव एक कोसक रीपर आपगा नामसे व यात एक नद है, जो स पु ष से से वत है। जो मनु य वहाँ दे वता और पतर के उ े यसे भोजन कराते समय यामाक (साँवा) नामक अ दे ता है, उसे महान् धमफलक ा त होती है। वहाँ एक ा णको भोजन करानेपर एक करोड़ ा ण को भोजन करानेका फल मलता है ।। ६७ —६९ ।। त ना वाच य वा च पतॄन् वै दै वता न च । उ ष वा रजनीमेकाम न ोमफलं लभेत् ।। ७० ।। वहाँ नान करके दे वता और पतर के पूजनपूवक एक रात नवास करनेसे अ न ोमय का फल मलता है ।। ७० ।। ततो ग छे त राजे णः थानमु मम् । ो बर म येव काशं भु व भारत ।। ७१ ।। भरतवंशी राजे ! तदन तर ाजीके उ म थानम जाय, जो इस पृ वीपर ो बरतीथके नामसे स है ।। ७१ ।। े

त स त षकु डेषु नात य नरपु व । केदारे चैव राजे क पल य महा मनः ।। ७२ ।। ाणम धग याथ शु चः यतमानसः । सवपाप वशु ा मा लोकं प ते ।। ७३ ।। क पल य च केदारं समासा सु लभम् । अ तधानमवा ो त तपसा द ध क बषः ।। ७४ ।। वहाँ स त षकु ड है। नर े महाराज! उन कु ड म तथा महा मा क पलके केदारतीथम नान करनेसे पु षको महान् पु यक ा त होती है। वह मनु य ाजीके नकट जाकर उनका दशन करनेसे शु , प व च एवं सब पाप से र हत होकर लोकम जाता है। क पलका केदार भी अ य त लभ है। वहाँ जानेसे तप या ारा सब पाप न हो जानेके कारण मनु यको अ तधान व ाक ा त हो जाती है ।। ततो ग छे त राजे सरकं लोक व ुतम् । कृ णप े चतुद याम भग य वृष वजम् ।। ७५ ।। लभेत सवकामान् ह वगलोकं च ग छ त । राजे ! तदन तर लोक व यात सरकतीथम जाय। वहाँ कृ णप क चतुदशीको भगवान् शंकरका दशन करनेसे मनु य सब कामना को ा त कर लेता और वगलोकम जाता है ।। ७५ ।। त ः को तु तीथानां सरके कु न दन ।। ७६ ।। कु न दन! सरकम तीन करोड़ तीथ ह ।। ७६ ।। को ां तथा कूपे दे षु च महीपते । इला पदं च त ैव तीथ भरतस म ।। ७७ ।। त ना वाच य वा च दै वता न पतॄनथ । न ग तमवा ो त वाजपेयं च व द त ।। ७८ ।। राजन्! ये सब तीथ को टम, कूपम और कु ड म ह। भरत शरोमणे! वह इला पदतीथ है, जसम नान और दे वता- पतर का पूजन करनेसे मनु य कभी ग तम नह पड़ता और वाजपेयय का फल पाता है ।। ७७-७८ ।। कदाने च नरः ना वा कज ये च महीपते । अ मेयमवा ो त दानं ज यं च भारत ।। ७९ ।। महीपते! वहाँ कदान और कज य नामक तीथ भी ह। भारत! उनम नान करनेसे मनु य दान और जपका असीम फल पाता है ।। ७९ ।। कल यां वायुप पृ य धानो जते यः । अ न ोम य य य फलं ा ो त मानवः ।। ८० ।। कलशीतीथम जलका आचमन करके ालु और जते य मानव अ न ोमय का फल पाता है ।। सरक य तु पूवण नारद य महा मनः । ी





तीथ कु कुल े अ बाज मे त व ुतम् ।। ८१ ।। कु कुल े ! सरकतीथके पूवम महा मा नारदका तीथ है, जो अ बाज मके नामसे व यात है ।। ८१ ।। त तीथ नरः ना वा ाणानु सृ य भारत । नारदे ना यनु ातो लोकान् ा ो यनु मान् ।। ८२ ।। भारत! उस तीथम नान करके मनु य ाण यागके प ात् नारदजीक आ ाके अनुसार परम उ म लोक म जाता है ।। ८२ ।। शु लप े दश यां च पु डरीकं समा वशेत् । त ना वा नरो राजन् पु डरीकफलं लभेत् ।। ८३ ।। शु लप क दशमी त थको पु डरीकतीथम वेश करे। राजन्! वहाँ नान करनेसे मनु यको पु डरीकयागका फल ा त होता है ।। ८३ ।। तत व पं ग छे त् षु लोकेषु व ुतम् । त वैतरणी पु या नद पाप णा शनी ।। ८४ ।। तदन तर तीन लोक म व यात व पतीथम जाय। वहाँ वैतरणी नामक पु यमयी पापना शनी नद है ।। त ना वाच य वा च शूलपा ण वृष वजम् । सवपाप वशु ा मा ग छे त परमां ग तम् ।। ८५ ।। उसम नान करके शूलपा ण भगवान् शंकरक पूजा करनेसे मनु य सब पाप से शु च हो परम ग तको ा त होता है ।। ८५ ।। ततो ग छे त राजे फलक वनमु मम् । त दे वाः सदा राजन् फलक वनमा ताः ।। ८६ ।। तप र त वपुलं ब वषसह कम् । ष यां नरः ना वा तप य वा च दे वताः ।। ८७ ।। अ न ोमा तरा ा यां फलं व द त भारत । तीथ च सवदे वानां ना वा भरतस म ।। ८८ ।। गोसह य राजे फलं व द त मानवः । पा णखाते नरः ना वा तप य वा च दे वताः ।। ८९ ।। अ न ोमा तरा ा यां फलं व द त भारत । राजसूयमवा ो त ऋ षलोकं च व द त ।। ९० ।। राजे ! वहाँसे फलक वन नामक उ म तीथक या ा करे। राजन्! दे वतालोग फलक वनम सदा नवास करते ह और अनेक सह वष तक वहाँ भारी तप याम लगे रहते ह। भारत! ष तीम नान करके दे वता- पतर का तपण करनेसे मनु य अ न ोम और अ तरा य का फल पाता है। भरतस म राजे ! सवदे वतीथम नान करनेसे मानव सह गोदानका फल पाता है। भारत! पा णखाततीथम नान करके दे वता- पतर का तपण करनेसे मनु य अ न ोम और अ तरा य से मलनेवाले फलको ा त कर लेता है; साथ ही वह राजसूयय का फल पाता एवं ऋ षलोकम जाता है ।। ो े े ी

ततो ग छे त राजे म कं तीथमु मम् । त तीथा न राजे म ता न महा मना ।। ९१ ।। ासेन नृपशा ल जाथ म त नः ुतम् । सवतीथषु स ना त म के ना त यो नरः ।। ९२ ।। राजे ! त प ात् परम उ म म कतीथम जाय। महाराज! वहाँ महा मा ासने ज के लये सभी तीथ का स म ण कया है; यह बात मेरे सुननेम आयी है। जो मनु य म कतीथम नान करता है, उसका वह नान सभी तीथ म नान करनेके समान है ।। ९१-९२ ।। ततो ासवनं ग छे यतो नयताशनः । मनोजवे नरः ना वा गोसह फलं लभेत् ।। ९३ ।। त प ात् नयमपूवक रहते ए मताहारी होकर ासवनक या ा करे। वहाँ मनोजवतीथम नान करके मनु य सह गोदानका फल पाता है ।। ९३ ।। ग वा मधुवट चैव द े ा तीथ नरः शु चः । त ना वाच य वा च पतॄन् दे वां पू षः ।। ९४ ।। स दे ा समनु ातो गोसह फलं लभेत् । मधुवट म जाकर दे वीतीथम नान करके प व आ मानव वहाँ दे वता- पतर क पूजा करके दे वीक आ ाके अनुसार सह गोदानका फल पाता है ।। ९४ ।। कौ श याः संगमे य तु ष या भारत ।। ९५ ।। ना त वै नयताहारः सवपापैः मु यते । भारत! कौ शक और ष तीके संगमम जो नान करता है तथा नयमपालनपूवक संय मत भोजन करता है, वह सब पाप से मु हो जाता है ।। ९५ ।। ततो ास थली नाम य ासेन धीमता ।। ९६ ।। पु शोका भत तेन दे ह यागे कृता म तः । ततो दे वै तु राजे पुन था पत तदा ।। ९७ ।। अ भग वा थल त य गोसह फलं लभेत् । त प ात् ास थलीम जाय, जहाँ परम बु मान् ासने पु शोकसे संत त हो शरीर याग दे नेका वचार कया था। राजे ! उस समय उ ह दे वता ने पुनः उठाया था। उस थलम जानेसे सह गोदानका फल मलता है ।। ९६-९७ ।। कद ं कूपमासा तल थं दाय च ।। ९८ ।। ग छे त परमां स मृणैमु ः कु ह। वेद तीथ नरः ना वा गोसह फलं लभेत् ।। ९९ ।। कद नामक कूपके समीप जाकर एक थ अथात् सोलह मु तल दान करे। कु े ! ऐसा करनेसे मनु य तीन ऋण से मु हो परम स को ा त होता है। वेद तीथम नान करनेसे मनु य सह गोदानका फल पाता है ।। ९८-९९ ।। अह सु दनं चैव े तीथ लोक व ुते । ो



तयोः ना वा नर ा सूयलोकमवा ुयात् ।। १०० ।। अहन् और सु दन—ये दो लोक व यात तीथ ह। नर े ! उन दोन म नान करके मनु य सूयलोकम जाता है ।। १०० ।। मृगधूमं ततो ग छे त् षु लोकेषु व ुतम् । त ा भषेकं कुव त ग ायां नृपस म ।। १०१ ।। नृप े ! तदन तर तीन लोक म व यात मृगधूम-तीथम जाय और वहाँ गंगाजीम नान करे ।। १०१ ।। अच य वा महादे वम मेधफलं लभेत् । दे ा तीथ नरः ना वा गोसह फलं लभेत् ।। १०२ ।। वहाँ महादे वजीक पूजा करके मनु य अ मेध-य का फल पाता है। दे वीतीथम नान करनेसे मनु यको सह गोदानका फल मलता है ।। १०२ ।। ततो वामनकं ग छे त् षु लोकेषु व ुतम् । त व णुपदे ना वा अच य वा च वामनम् ।। १०३ ।। सवपाप वशु ा मा व णुलोकं स ग छ त । कुल पुने नरः ना वा पुना त वकुलं ततः ।। १०४ ।। त प ात् लोक व यात वामनतीथम जाय। वहाँ व णुपदम नान और वामनदे वताका पूजन करनेसे मनु य सब पाप से शु हो भगवान् व णुके लोकम जाता है। कुल पुनतीथम नान करके मानव अपने कुलको प व कर दे ता है ।। १०३-१०४ ।। पवन य दे ना वा म तां तीथमु मम् । त ना वा नर ा व णुलोके महीयते ।। १०५ ।। नर ा ! तदन तर पवनदम नान करे। वह म द्गण का उ म तीथ है। वहाँ नान करनेसे मानव व णुलोकम त त होता है ।। १०५ ।। अमराणां दे ना वा सम य यामरा धपम् । अमराणां भावेण वगलोके महीयते ।। १०६ ।। अमरदम नान करके अमरे र इ का पूजन करे। ऐसा करके मनु य अमर के भावसे वगलोकम त त होता है ।। १०६ ।। शा लहो य तीथ च शा लसूय यथा व ध । ना वा नरवर े गोसह फलं लभेत् ।। १०७ ।। नर े ! शा लहो के शा लसूय नामक तीथम व धपूवक नान करके मनु य सह गोदानका फल पाता है ।। १०७ ।। ीकु ं च सर व या तीथ भरतस म । त ना वा नर े अ न ोमफलं लभेत् ।। १०८ ।। भरतस म नर े ! ीकुंज नामक सर वतीतीथम नान करनेसे मानव अ न ोमय का फल ा त कर लेता है ।। १०८ ।। ततो नै मषकु ं च समासा कु ह। ऋषयः कल राजे नै मषेया तप वनः ।। १०९ ।। ी े

तीथया ां पुर कृ य कु े ं गताः पुरा । ततः कु ः सर व याः कृतो भरतस म ।। ११० ।। कु े ! त प ात् नै मषकुक या ा करे। राजे ! कहते ह, नै मषार यके नवासी तप वी ऋ ष पहले कभी तीथया ाके संगसे कु े म गये थे। भरत े ! उसी समय उ ह ने सर वतीकुंजका नमाण कया था (वही नै मषकुंज कहलाता है) ।। १०९-११० ।। ऋषीणामवकाशः याद् यथा तु करो महान् । त मन् कु े नरः ना वा अ न ोमफलं लभेत् ।। १११ ।। वह ऋ षय का थान है, जो उनके लये महान् संतोषजनक है। उस कुंजम नान करके मनु य अ न ोमय का फल पाता है ।। १११ ।। ततो ग छे त धम क यातीथमनु मम् । क यातीथ नरः ना वा गोसह फलं लभेत् ।। ११२ ।। धम ! तदन तर परम उ म क यातीथक या ा करे। क यातीथम नान करनेसे मानव सह गोदानका फल पाता है ।। ११२ ।। ततो ग छे त राजे ण तीथमु मम् । त वणावरः ना वा ा यं लभते नरः ।। ११३ ।। ा ण वशु ा मा ग छे त परमां ग तम् । राजे ! तदन तर परम उ म तीथम जाय। वहाँ नान करनेसे ा णेतर वणका मनु य भी ा ण व लाभ करता है। ा ण होनेपर शु च हो वह परम ग तको ा त कर लेता है ।। ११३ ।। ततो ग छे र े सोमतीथमनु मम् ।। ११४ ।। त ना वा नरो राजन् सोमलोकमवा ुयात् । नर े ! त प ात् उ म सोमतीथक या ा करे। राजन्! वहाँ नान करनेसे मानव सोमलोकको जाता है ।। ११४ ।। स तसार वतं तीथ ततो ग छे रा धप ।। ११५ ।। य मङ् कणकः स ो मह षल क व ुतः । पुरा मङ् कणको राजन् कुशा ेणे त नः ुतम् ।। ११६ ।। तः कल करे राजं त य शाकरसोऽ वत् । स वै शाकरसं ् वा हषा व ः नृ वान् ।। ११७ ।। नरे र! इसके बाद स तसार वत नामक तीथक या ा करे, जहाँ लोक व यात मह ष मंकणकको स ा त ई थी। राजन्! हमारे सुननेम आया है क पहले कभी मह ष मंकणकके हाथम कुशका अ भाग गड़ गया, जससे उनके हाथम घाव हो गया। महाराज! उस समय उस हाथसे शाकका रस चूने लगा। शाकका रस चूता दे ख मह ष हषावेशसे मतवाले हो नृ य करने लगे ।। ११५—११७ ।। तत त मन् नृ े तु थावरं जंगमं च यत् । नृ मुभयं वीर तेजसा त य मो हतम् ।। ११८ ।। ी









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वीर! उनके नृ य करते समय उनके तेजसे मो हत हो सारा चराचर जगत् नृ य करने लगा ।। ११८ ।। ा द भः सुरै राज ृ ष भ तपोधनैः । व तो वै महादे व ऋषेरथ नरा धप ।। ११९ ।। राजन्! नरे र! उस समय ा आ द दे वता तथा तपोधन मह षगण—सबने मंकणक मु नके वषयम महादे वजीसे नवेदन कया— ।। ११९ ।। नायं नृ येद ् यथा दे व तथा वं कतुमह स । तं नृ ं समासा हषा व ेन चेतसा । सुराणां हतकामाथमृ ष दे वोऽ यभाषत ।। १२० ।। ‘दे व! आप कोई ऐसा उपाय कर, जससे इनका यह नृ य बंद हो जाय।’ महादे वजी दे वता के हतक इ छासे हषावेशसे नाचते ए मु नके पास गये और इस कार बोले — ।। १२० ।। भो भो महष धम कमथ नृ यते भवान् । हष थानं कमथ वा तवा मु नपु व ।। १२१ ।। ‘धम महष! मु न वर! आप कस लये नृ य कर रहे ह? आज आपके इस हषा तरेकका या कारण है?’ ।। ऋ ष वाच तप वनो धमपथे थत य जस म । क न प य स मे न् करा छाकरसं ुतम् ।। १२२ ।। यं ् वा स नृ ोऽहं हषण महता वतः । ऋ षने कहा— ज े ! न्! म धमके मागपर थर रहनेवाला तप वी ँ। मेरे हाथसे यह शाकका रस चू रहा है। या आप इसे नह दे खते? इसीको दे खकर म महान् हषसे नाच रहा ँ ।। १२२ ।। तं ह या वीद् दे व ऋ ष रागेण मो हतम् ।। १२३ ।। मह ष रागसे मो हत हो रहे थे। महादे वजीने उनक बात सुनकर हँसते ए कह — ।। १२३ ।। अहं तु व मयं व न ग छामी त प य माम् । एवमु वा नर े महादे वेन धीमता ।। १२४ ।। अङ् गु य ेण राजे वावङ् गु ता डतोऽनघ । ततो भ म ताद् राजन् नगतं हमसं नभम् ।। १२५ ।। ‘ व वर! मुझे तो यह दे खकर कोई आ य नह हो रहा है। मेरी ओर दे खये।’ नर े ! न पाप राजे ! ऐसा कहकर परम बु मान् महादे वजीने अंगल ु ीके अ भागसे अपने अँगठ ू े को ठ का। राजन्! उनके चोट करनेपर उस अँगठ ू े से बफके समान सफेद भ म गरने लगा ।। १२४-१२५ ।। तद् ् वा ी डतो राजन् स मु नः पादयोगतः । े

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ना यद् दे वात् परं मेने ात् परतरं महत् ।। १२६ ।। महाराज! यह अ त बात दे खकर मु न ल जत हो महादे वजीके चरण म पड़ गये और उ ह ने सरे कसी दे वताको महादे वजीसे बढ़कर नह माननेका न य कया ।। १२६ ।। सुरासुर य जगतो ग त वम स शूलधृक् । वया सव मदं सृ ं ैलो यं सचराचरम् ।। १२७ ।। वे बोले—‘भगवन्! दे वता और असुर स हत स पूण जगत्के आ य आप ही ह। शूलधारी महे र! आपने ही चराचर जीव स हत स पूण लोक को उ प कया है ।। १२७ ।। वमेव सवान् स स पुनरेव युग ये । दे वैर प न श य वं प र ातुं कुतो मया ।। १२८ ।। ‘ फर लयकाल आनेपर आप ही सब जीव को अपना ास बना लेते ह। दे वता भी आपके व पको नह जान सकते, फर मेरी तो बात ही या? ।। १२८ ।। व य सव य ते सुरा ादयोऽनघ । सव वम स लोकानां कता कार यता च ह ।। १२९ ।।

भगवान् शंकरका मंकणक मु नको नृ य करनेसे रोकना ‘





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‘अनघ! ा आ द सब दे वता आपहीम दखायी दे ते ह। इस जगत्के करने और करानेवाले सब कुछ आप ही ह ।। १२९ ।। व सादात् सुराः सव मोद तीहाकुतोभयाः । एवं तु वा महादे वमृ षवचनम वीत् ।। १३० ।। ‘आपके सादसे सब दे वता यहाँ नभय और स रहते ह।’ इस कार तु त करके ऋ षने फर महादे वजीसे कहा— ।। १३० ।। व सादा महादे व तपो मे न रेत वै । ततो दे वः ा मा ष मदम वीत् ।। १३१ ।। ‘महादे व! आपक कृपासे मेरी तप या न न हो।’ तब महादे वजीने स च हो मह षसे कहा— ।। १३१ ।। तप ते वधतां व म सादात् सह धा । आ मे चेह व या म वया सह महामुने ।। १३२ ।। ‘ न्! मेरे सादसे आपक तप या हजारगुनी बढ़े । महामुने! म तु हारे साथ इस आ मम र ँगा ।। १३२ ।। स तसार वते ना वा अच य य त ये तु माम् । न तेषां लभं क च दहलोके पर च ।। १३३ ।। ‘जो स तसार वततीथम नान करके मेरी पूजा करगे, उनके लये इहलोक और परलोकम कोई भी व तु लभ नह होगी ।। १३३ ।। सार वतं च ते लोकं ग म य त न संशयः । एवमु वा महादे व त ैवा तरधीयत ।। १३४ ।। ‘इतना ही नह , वे सर वतीके लोकम जायँगे, इसम संशय नह है।’ ऐसा कहकर महादे वजी वह अ तधान हो गये ।। १३४ ।। तत वौशनसं ग छे त् षु लोकेषु व ुतम् । य ादयो दे वा ऋषय तपोधनाः ।। १३५ ।। तदन तर तीन लोक म व यात औशनसतीथक या ा करे, जहाँ ा आ द दे वता तथा तप वी ऋ ष रहते ह ।। १३५ ।। का तकेय भगवां सं यं कल भारत । सां न यमकरो यं भागव यका यया ।। १३६ ।। भारत! शु ाचायजीका य करनेके लये भगवान् का तकेय भी वहाँ सदा तीन सं या के समय उप थत रहते ह ।। १३६ ।। कपालमोचनं तीथ सवपाप मोचनम् । त ना वा नर ा सवपापैः मु यते ।। १३७ ।। कपालमोचनतीथ सब पाप से छु ड़ानेवाला है! नर े ! वहाँ नान करके मनु य सब पाप से मु हो जाता है ।। १३७ ।। अ नतीथ ततो ग छे त् त ना वा नरषभ । अ नलोकमवा ो त कुलं चैव समु रेत् ।। १३८ ।। े ँ े ी ो े े ो

नर े ! वहाँसे अ नतीथको जाय। उसम नान करनेसे मनु य अ नलोकम जाता और अपने कुलका उ ार कर दे ता है ।। १३८ ।। व ा म य त ैव तीथ भरतस म । त ना वा नर े ा यम धग छ त ।। १३९ ।। भरतस म! वह व ा म तीथ है। नर े ! वहाँ नान करनेसे ा ण वक ा त होती है ।। १३९ ।। यो न समासा शु चः यतमानसः । त ना वा नर ा लोकं प ते ।। १४० ।। पुना यास तमं चैव कुलं ना य संशयः । नर े ! ब यो नतीथम जाकर प व एवं जता मा पु ष वहाँ नान करनेसे लोक ा त कर लेता है। साथ ही अपने कुलक सात पी ढ़य तकको प व कर दे ता है, इसम संशय नह है ।। १४० ।। ततो ग छे त राजे तीथ ैलो य व ुतम् ।। १४१ ।। पृथूदक म त यातं का तकेय य वै नृप । त ा भषेकं कुव त पतृदेवाचने रतः ।। १४२ ।। राजे ! तदन तर का तकेयके भुवन व यात पृथूदकतीथक या ा करे और वहाँ नान करके दे वता तथा पतर क पूजाम संल न रहे ।। १४१-१४२ ।। अ ाना ानतो वा प या वा पु षेण वा । यत् क चदशुभं कम कृतं मानुषबु ना ।। १४३ ।। तत् सव न यते त नातमा य भारत । अ मेधफलं चा य वगलोकं च ग छ त ।। १४४ ।। भारत! ी हो या पु ष, उसने मानव-बु से अनजानम या जान-बूझकर जो कुछ भी पापकम कया है, वह सब पृथूदकतीथम नान करनेमा से न हो जाता है और तीथसेवी पु षको अ मेधय के फल एवं वगलोकक ा त होती है ।। १४३-१४४ ।। पु यमा ः कु े ं कु े ात् सर वती । सर व या तीथा न तीथ य पृथूदकम् ।। १४५ ।। कु े तीथको सबसे प व कहते ह, कु े से भी प व है सर वती नद , सर वतीसे भी प व ह उसके तीथ और उन तीथ से भी प व ह पृथूदक ।। १४५ ।। उ मं सवतीथानां य यजेदा मन तनुम् । पृथूदके ज यपरो नैव ो मरणं तपेत् ।। १४६ ।। वह सब तीथ म उ म है, जो पृथूदकतीथम जपपरायण होकर अपने शरीरका याग करता है, उसे पुनमृ युका भय नह होता ।। १४६ ।। गीतं सन कुमारेण ासेन च महा मना । एवं स नयतं राज भग छे त् पृथूदकम् ।। १४७ ।। े





यह बात भगवान् सन कुमार तथा महा मा ासने कही है। राजन्! इस कार तीथया ी नयमपूवक पृथूदकतीथक या ा करे ।। १४७ ।। पृथूदकात् तीथतमं ना यत् तीथ कु ह। त मे यं तत् प व ं च पावनं च न संशयः ।। १४८ ।। कु े ! पृथूदकसे े तम तीथ सरा कोई नह है। वही मे य, प व और पावन है, इसम संशय नह है ।। १४८ ।। त ना वा दवं या त येऽ प पापकृतो नराः । पृथूदके नर े एवमा मनी षणः ।। १४९ ।। नर े ! पापी मनु य भी वहाँ पृथूदकतीथम नान करनेसे वगलोकम चले जाते ह, ऐसा मनीषी पु ष कहते ह ।। १४९ ।। मधु वं च त ैव तीथ भरतस म । त ना वा नरो राजन् गोसह फलं लभेत् ।। १५० ।। भरत े ! वह मधुव तीथ है। राजन्! उसम नान करनेसे मनु यको सह गोदानका फल मलता है ।। १५० ।। ततो ग छे त राजे तीथ मे यं यथा मम् । सर व य णाया संगमं लोक व ुतम् ।। १५१ ।। राजे ! तदन तर मशः लोक व यात सर वती-अ णासंगम नामक प व तीथक या ा करे ।। १५१ ।। रा ोपो षतः ना वा मु यते ह यया । अ न ोमा तरा ा यां फलं व द त मानवः ।। १५२ ।। आस तमं कुलं चैव पुना त भरतषभ । वहाँ नान करके तीन रात उपवास करनेसे ह यासे छु टकारा मल जाता है। इतना ही नह , वह मनु य अ न ोम और अ तरा य से मलनेवाले फलको भी पा लेता है। भरत े ! वह अपने कुलक सात पी ढ़य को प व कर दे ता है ।। १५२ ।। अधक लं च त ैव तीथ कु कुलो ह ।। १५३ ।। व ाणामनुक पाथ द भणा न मतं पुरा । तोपनयना यां चा युपवासेन वा युत ।। १५४ ।। याम ै संयु ो ा णः या संशयः । याम वहीनोऽ प त ना वा नरषभ । चीण तो भवेद ् व ान् मेतत् पुरातनैः ।। १५५ ।। कु कुल शरोमणे! वह अधक ल नामक तीथ है, जसे पूवकालम दभ मु नने ा ण पर कृपा करनेके लये कट कया था। वहाँ त, उपनयन और उपवास करनेसे मनु य कमका ड और म का ाता ा ण होता है, इसम संशय नह है। नर े ! या वहीन और म हीन पु ष भी उसम नान करके तका पालन करनेसे व ान् होता है, यह बात ाचीन मह षय ने य दे खी है ।। १५३—१५५ ।। ी

समु ा ा प च वारः समानीता द भणा । तेषु नातो नर े न ग तमवा ुयात् ।। १५६ ।। फला न गोसह ाणां चतुणा व दते च सः । दभ मु न वहाँ चार समु को भी ले आये ह। नर े ! उनम नान करनेवाला मनु य कभी ग तम नह पड़ता और उसे चार हजार गोदानका भी फल मलता है ।। १५६ ।। ततो ग छे त धम तीथ शतसह कम् ।। १५७ ।। साह कं च त ैव े तीथ लोक व ुते । उभयो ह नरः ना वा गोसह फलं लभेत् ।। १५८ ।। दानं वा युपवासो वा सह गु णतं भवेत् । धम ! तदन तर वहाँसे शतसह और साहक-तीथ क या ा करे। वे दोन लोक व यात तीथ ह। उनम नान करनेसे मनु यको सह गोदानका फल ा त होता है। वहाँ कये ए दान अथवा उपवासका मह व अ य से सहग न ु ा अ धक है ।। १५७-१५८ ।। ततो ग छे त राजे रेणुकातीथमु मम् ।। १५९ ।। तीथा भषेकं कुव त पतृदेवाचने रतः । सवपाप वशु ा मा अ न ोमफलं लभेत् ।। १६० ।। राजे ! वहाँसे उ म रेणुकातीथक या ा करे। पहले उस तीथम नान करे; फर दे वता और पतर क पूजाम त पर हो जाय। उससे तीथया ी सब पाप से शु हो अ न ोमय का फल पाता है ।। १५९-१६० ।। वमोचनमुप पृ य जतम यु जते यः । त हकृतैद षैः सवः स प रमु यते ।। १६१ ।। वमोचनतीथम नान और आचमन करके ोध और इ य को काबूम रखनेवाला मनु य त हज नत सारे दोष से मु हो जाता है ।। १६१ ।। ततः प चवट ग वा चारी जते यः । पु येन महता यु ः सतां लोके महीयते ।। १६२ ।। तदन तर चारी एवं जते य पु ष पंचवट -तीथम जाकर महान् पु यसे यु हो स पु ष के लोकम त त होता है ।। १६२ ।। य योगे रः थाणुः वयमेव वृष वजः । तमच य वा दे वेशं गमनादे व स य त ।। १६३ ।। वहाँ योगे र एवं वृषभ वज वयं भगवान् शव नवास करते ह। उन दे वे रक पूजा करके मनु य वहाँ जानेमा से स हो जाता है ।। १६३ ।। तैजसं वा णं तीथ द यमानं वतेजसा । य ा द भदवैऋ ष भ तपोधनैः ।। १६४ ।। सैनाप येन दे वानाम भ ष ो गुह तदा । तैजस य तु पूवण कु तीथ कु ह ।। १६५ ।। ै



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वह तैजस नामक व णदे वतास ब धी तीथ है, जो अपने तेजसे का शत होता है। जहाँ ा आ द दे वता तथा तप वी ऋ षय ने का तकेयको दे वसेना-प तके पदपर अ भ ष कया था। कु े ! तैजसतीथके पूवभागम कु तीथ है ।। १६४-१६५ ।। कु तीथ नरः ना वा चारी जते यः । सवपाप वशु ा मा लोकं प ते ।। १६६ ।। जो मनु य चयपालन और इ यसंयमपूवक कु तीथम नान करता है, वह सब पाप से शु होकर लोकम जाता है ।। १६६ ।। वग ारं ततो ग छे यतो नयताशनः । वगलोकमवा ो त लोकं च ग छ त ।। १६७ ।। तदन तर नयमपरायण हो नय मत भोजन करते ए वग ारको जाय। उस तीथके सेवनसे मनु य वगलोक पाता और लोकम जाता है ।। १६७ ।। ततो ग छे दनरकं तीथसेवी नरा धप । त ना वा नरो राजन् न ग तमवा ुयात् ।। १६८ ।। त ा वयं न यं दे वैः सह महीपते । अ वा ते पु ष ा नारायणपुरोगमैः ।। १६९ ।। नरे र! तदन तर तीथसेवी पु ष अनरकतीथम जाय। राजन्! उसम नान करनेसे मनु य कभी ग तम नह पड़ता। महीपते! पु ष सह! वहाँ वयं ा नारायण आ द दे वता के साथ न य नवास करते ह ।। सां न यं त राजे प याः कु ह। अ भग य च तां दे व न ग तमवा ुयात् ।। १७० ।। कु े ! महाराज! वहाँ प नी गाजीका थान भी है। उस दे वीके नकट जानेसे मनु य कभी ग तम नह पड़ता ।। १७० ।। त ैव च महाराज व े रमुमाप तम् । अ भग य महादे वं मु यते सव क बषैः ।। १७१ ।। महाराज! वह व नाथ उमाव लभ महादे वजीका थान है। वहाँक या ा करके मनु य सब पाप से छू ट जाता है ।। १७१ ।। नारायणं चा भग य पनाभमरदम । राजमानो महाराज व णुलोकं च ग छ त ।। १७२ ।। तीथषु सवदे वानां नातः स पु षषभ । सव ःखैः प र य ो ोतते श शव रः ।। १७३ ।। श ुदमन महाराज! प नाभ भगवान् नारायणके नकट जाकर (उनका दशन करके) मनु य तेज वी प धारण करके भगवान् व णुके लोकम जाता है। पु षर न! सब दे वता के तीथ म नान करके मनु य सब ःख से मु हो च माके समान का शत होता है ।। १७२-१७३ ।। ततः व तपुरं ग छे त् तीथसेवी नरा धप । द णमुपावृ य गोसह फलं लभेत् ।। १७४ ।। े ी े ी े े

नरे र! तदन तर तीथसेवी पु ष व तपुरम जाय, उसक प र मा करनेसे सह गोदानका फल मलता है ।। १७४ ।। पावनं तीथमासा तपयेत् पतृदेवताः । अ न ोम य य य फलं ा ो त भारत ।। १७५ ।। त प ात् पावनतीथम जाकर दे वता और पतर का तपण करे। भारत! ऐसा करनेवाले पु षको अ न ोमय का फल मलता है ।। १७५ ।। ग ा द त ैव कूप भरतषभ । त ः को तु तीथानां त मन् कूपे महीपते ।। १७६ ।। भरत े ! वह गंगाद नामक कूप है। भूपाल! उस कूपम तीन करोड़ तीथ का वास है ।। १७६ ।। त ना वा नरो राजन् वगलोकं प ते । आपगायां नरः ना वा अच य वा महे रम् ।। १७७ ।। गाणप यमवा ो त कुलं चैव समु रेत् । राजन्! उसम नान करके मानव वगलोकम जाता है। जो मनु य आपगाम नान करके महादे वजीक पूजा करता है, वह गणप त-पद पाता और अपने कुलका उ ार कर दे ता है ।। १७७ ।। ततः थाणुवटं ग छे त् षु लोकेषु व ुतम् ।। १७८ ।। त ना वा थतो रा लोकमवा ुयात् । तदन तर भुवन व यात थाणुवटतीथम जाय, वहाँ नान करके रातभर नवास करनेवाला मनु य लोकम जाता है ।। १७८ ।। बदरीपाचनं ग छे द ् व स या मं ततः ।। १७९ ।। बदर भ येत् त रा ोपो षतो नरः । स यग् ादशवषा ण बदर भ येत् तु यः ।। १८० ।। रा ोपो षत तेन भवेत् तु यो नरा धप । माग समासा तीथसेवी नरा धप ।। १८१ ।। अहोरा ोपवासेन श लोके महीयते । तदन तर बदरीपाचन नामसे स व स के आ मपर जाय और वहाँ तीन रात उपवासपूवक रहकर बेरका फल खाय। जो मनु य वहाँ बारह वष तक भलीभाँ त रा ोपवासपूवक बेरका फल खाता है, वह उ ह व स के समान होता है। राजन्! नरे र! तीथसेवी मनु य मागम जाकर एक दन-रात उपवास करे। इससे वह इ लोकम त त होता है ।। १७९-१८१ ।। एकरा ं समासा एकरा ो षतो नरः ।। १८२ ।। नयतः स यवाद च लोके महीयते । तदन तर एकरा तीथम जाकर मनु य नयमपूवक और स यवाद होकर एक रात नवास करनेपर लोकम पू जत होता है ।। १८२ ।। ो







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ततो ग छे त राजे तीथ ैलो य व ुतम् ।। १८३ ।। आ द य या मो य तेजोराशेमहा मनः । त मं तीथ नरः ना वा पूज य वा वभावसुम् ।। १८४ ।। आ द यलोकं ज त कुलं चैव समु रेत् । राजे ! त प ात् उस ैलो य व यात तीथम जाय, जहाँ तेजोरा श महा मा सूयका आ म है। उसम नान करके सूयदे वक पूजा करनेसे मनु य सूयके लोकम जाता और अपने कुलका उ ार करता है ।। १८३-१८४ ।। सोमतीथ नरः ना वा तीथसेवी नरा धप ।। १८५ ।। सोमलोकमवा ो त नरो ना य संशयः । नरे र! सोमतीथम नान करके तीथसेवी मानव सोमलोकको ा त कर लेता है, इसम संशय नह है ।। १८५ ।। ततो ग छे त धम दधीच य महा मनः ।। १८६ ।। तीथ पु यतमं राजन् पावनं लोक व ुतम् । य सार वतो यातः सोऽ रा तपसो न धः ।। १८७ ।। धम राजन्! तदन तर महा मा दधीचके लोक- व यात परम पु यमय, पावन तीथक या ा करे। जहाँ तप याके भ डार सर वतीपु अं गराका ज म आ ।। १८६-१८७ ।। त मं तीथ नरः ना वा वा जमेधफलं लभेत् । सार वत ग त चैव लभते ना संशयः ।। १८८ ।। उस तीथम नान करनेसे मनु य अ मेधय का फल पाता है और सर वतीलोकको ा त होता है, इसम संशय नह है ।। १८८ ।। ततः क या मं ग छे यतो चयवान् । रा ोपो षतो राजन् नयतो नयताशनः ।। १८९ ।। लभेत् क याशतं द ं वगलोकं च ग छ त । तदन तर नयमपूवक रहकर चयका पालन करते ए क या मतीथम जाय। राजन्! वहाँ तीन रात उपवास करके नयमपालनपूवक नय मत भोजन करनेसे सौ द क या क ा त होती है और वह मनु य वगलोकम जाता है ।। १८९ ।। ततो ग छे त धम तीथ सं नहतीम प ।। १९० ।। धम ! तदन तर वहाँसे सं नहतीतीथक या ा करे ।। १९० ।। त ादयो दे वा ऋषय तपोधनाः । मा स मा स समाया त पु येन महता वताः ।। १९१ ।। उस तीथम ा आ द दे वता और तपोधन मह ष तमास महान् पु यसे स प होकर जाते ह ।। १९१ ।। सं नह यामुप पृ य रा ते दवाकरे । अ मेधशतं तेन त े ं शा तं भवेत् ।। १९२ ।। े



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सूय हणके समय सं नहतीम नान करनेसे सौ अ मेधय का अभी एवं शा त फल ा त होता है ।। १९२ ।। पृ थ ां या न तीथा न अ त र चरा ण च । न ो दा तडागा सव वणा न च ।। १९३ ।। उदपाना न वा य तीथा यायतना न च । नःसंशयममावा यां समे य त नरा धप ।। १९४ ।। मा स मा स नर ा सं नह यां न संशयः । तीथसं नहनादे व सं नह ये त व ुता ।। १९५ ।। पृ वीपर और आकाशम जतने तीथ, नद , द, तड़ाग, स पूण झरने, उदपान, बावली, तीथ और म दर ह, वे येक मासक अमाव याको सं नहतीम अव य पधारगे। तीथ का संघात या समूह होनेके कारण ही वह सं नहती नामसे व यात है ।। १९३—१९५ ।। त ना वा च पी वा च वगलोके महीयते । अमावा यां तु त ैव रा ते दवाकरे ।। १९६ ।। यः ा ं कु ते म य त य पु यफलं शृणु । अ मेधसह य स य ग य यत् फलम् ।। १९७ ।। नात एव समा ो त कृ वा ा ं च मानवः । यत् क चद् कृतं कम या वा पु षेण वा ।। १९८ ।। नातमा य तत् सव न यते ना संशयः । पवणन यानेन लोक ं प ते ।। १९९ ।। राजन्! उसम नान और जलपान करके मनु य वगलोकम त त होता है। जो सूय हणके समय अमावा याको वहाँ पतर का ा करता है, उसके पु यफलका वणन सुनो—। भलीभाँ त स प कये ए सह अ मेध य का जो फल होता है, उसे मनु य उस तीथम नानमा करके अथवा ा करके पा लेता है। ी या पु षने जो कुछ भी कम कया हो, वह सब वहाँ नान करनेमा से न हो जाता है; इसम संशय नह है। वह पु ष कमलके समान रंगवाले वमान ारा लोकम जाता है ।। १९६—१९९ ।। अ भवा ततो य ं ारपालं मच ु कम् । को टतीथमुप पृ य लभेद ् ब सुवणकम् ।। २०० ।। तदन तर मच ु क नामक ारपाल य को णाम करके को टतीथम नान करनेसे मनु यको चुर सुवण-रा शक ा त होती है ।। २०० ।। ग ा द त ैव तीथ भरतस म । त नायीत धम चारी समा हतः ।। २०१ ।। राजसूया मेधा यां फलं व द त मानवः । धम भरत े ! वह गंगाद नामक तीथ है, उसम चयपालनपूवक एका च हो नान करे, इससे मनु यको राजसूय और अ मेध य ारा मलनेवाले फलक ा त होती है ।। २०१ ।। ै





पृ थ ां नै मषं तीथम त र े च पु करम् ।। २०२ ।। याणाम प लोकानां कु े ं व श यते । पांसवोऽ प कु े ाद् वायुना समुद रताः ।। २०३ ।। अ प कृतकमाणं नय त परमां ग तम् । द णेन सर व या उ रेण ष तीम् ।। २०४ ।। ये वस त कु े े ते वस त व पे । भूम डलके नवा सय के लये नै मष, अ त र - नवा सय के लये पु कर और तीन लोक के नवा सय के लये कु े व श तीथ ह। कु े से वायु ारा उड़ायी ई धूल भी पापी-से-पापी मनु यपर भी पड़ जाय तो उसे परमग तको प ँचा दे ती है। सर वतीसे द ण, ष तीसे उ र कु े म जो लोग नवास करते ह, वे मानो वगलोकम बसते ह ।। २०२—२०४ ।। कु े े ग म या म कु े े वसा यहम् ।। २०५ ।। अ येकां वाचमु सृ य सवपापैः मु यते । ‘म कु े म जाऊँगा, कु े म नवास क ँ गा’ ऐसी बात एक बार मुँहसे कह दे नेपर भी मनु य सब पाप से मु हो जाता है ।। २०५ ।। वेद कु े ं पु यं षसे वतम् ।। २०६ ।। त मन् वस त ये म या न ते शो याः कथंचन ।। २०७ ।। कु े ाजीक वेद है, इस पु य े का षगण सेवन करते ह। जो मानव उसम नवास करते ह, वे कसी कार शोकजनक अव थाम नह पड़ते ।। २०६-२०७ ।। तर तुकार तुकयोयद तरं राम दानां च मच ु क य च । एतत् कु े सम तप चकं पतामह यो रवे द यते ।। २०८ ।। तर तुक और अर तुकके तथा रामद और मच ु कके बीचका जो भूभाग है, यही कु े एवं सम तप चक है। इसे ाजीक उ रवेद कहते ह ।। २०८ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण पुल यतीथया ायां यशी ततमोऽ यायः ।। ८३ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम पुल यतीथया ा वषयक तरासीवाँ अ याय पूरा आ ।। ८३ ।।

चतुरशी ततमोऽ यायः नाना कारके तीथ क म हमा पुल य उवाच ततो ग छे महाराज धमतीथमनु मम् । य धम महाभाग त तवानु मं तपः ।। १ ।। पुल यजी कहते ह—महाराज! तदन तर परम उ म धमतीथक या ा करे, जहाँ महाभाग धमने उ म तप या क थी ।। १ ।। तेन तीथ कृतं पु यं वेन ना ना च व ुतम् । त ना वा नरो राजन् धमशीलः समा हतः ।। २ ।। आस तमं कुलं चैव पुनीते ना संशयः । राजन्! उ ह ने ही अपने नामसे व यात पु य तीथक थापना क है। वहाँ नान करनेसे मनु य धमशील एवं एका च होता है और अपने कुलक सातव पीढ़ तकके लोग को प व कर दे ता है; इसम संशय नह है ।। २ ।। ततो ग छे त राजे ानपावनमु मम् ।। ३ ।। अ न ोममवा ो त मु नलोकं च ग छ त । राजे ! तदन तर उ म ानपावन तीथम जाय। वहाँ जानेसे मनु य अ न ोमय का फल पाता और मु नलोकम जाता है ।। ३ ।। सौग धकवनं राजं ततो ग छे त मानवः ।। ४ ।। राजन्! त प ात् मानव सौग धक वनम जाय ।। ४ ।। त ादयो दे वा ऋषय तपोधनाः । स चारणग धवाः कनरा महोरगाः ।। ५ ।। वहाँ ा आ द दे वता, तपोधन ऋ ष, स , चारण, ग धव, क र और बड़े-बड़े नाग नवास करते ह ।। तद् वनं वश ेव सवपापैः मु यते । तत ा प स र े ा नद नामु मा नद ।। ६ ।। ल ा े वी ुता राजन् महापु या सर वती । त ा भषेकं कुव त व मीका ःसृते जले ।। ७ ।। उस वनम वेश करते ही मानव सब पाप से मु हो जाता है। उससे आगे स रता म े और न दय म उ म नद परम पु यमयी सर वतीदे वीका उद्गम थान है, जहाँ वे ल (पकड़ी) नामक वृ क जड़से टपक रही ह। राजन्! वहाँ बाँबीसे नकले ए जलम नान करना चा हये ।। ६-७ ।। अच य वा पतॄन् दे वान मेधफलं लभेत् । ईशाना यु षतं नाम त तीथ सु लभम् ।। ८ ।। ँ े

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वहाँ दे वता तथा पतर क पूजा करनेसे मनु यको अ मेधय का फल मलता है। वह ईशाना यु षत नामक परम लभ तीथ है ।। ८ ।। षट् सु श या नपातेषु व मीका द त न यः । क पलानां सह ं च वा जमेधं च व द त ।। ९ ।। त ना वा नर ा मेतत् पुरातनैः । जहाँ बाँबीका जल है, वहाँसे इसक री छः श या नपात* है। यह न त माप बताया गया है। नर े ! उस तीथम नान करनेसे मनु यको सह क पलादान और अ मेधय का फल ा त होता है; इसे ाचीन ऋ षय ने य अनुभव कया है ।। ९ ।। सुग धां शतकु भां च प चय ां च भारत ।। १० ।। अ भग य नर े वगलोके महीयते । भारत! पु षर न! सुग धा, शतकु भा तथा पंचय ा तीथम जाकर मानव वगलोकम त त होता है ।। १० ।। शूलखातं त ैव तीथमासा भारत ।। ११ ।। त ा भषेकं कुव त पतृदेवाचने रतः । गाणप यं च लभते दे हं य वा न संशयः ।। १२ ।। भरतकुल तलक! वह शूलखात नामक तीथ है; वहाँ जाकर नान करे और दे वता तथा पतर क पूजाम लग जाय। ऐसा करनेवाला मनु य दे ह यागके अन तर गणप त-पद ा त कर लेता है, इसम संशय नह है ।। ११-१२ ।। ततो ग छे त राजे दे ाः थानं सु लभम् । शाक भरी त व याता षु लोकेषु व ुता ।। १३ ।। राजे ! वहाँसे परम लभ दे वी थानक या ा करे, वह दे वी तीन लोक म शाक भरीके नामसे व यात है ।। १३ ।। द ं वषसह ं ह शाकेन कल सु ता । आहारं सा कृतवती मा स मा स नरा धप ।। १४ ।। ऋषयोऽ यागता त दे ा भ या तपोधनाः । आ तयं च क ृ तं तेषां शाकेन कल भारत ।। १५ ।। नरे र! कहते ह उ म तका पालन करनेवाली उस दे वीने एक हजार द वष तक एक-एक महीनेपर केवल शाकका आहार कया था। दे वीक भ से भा वत होकर ब त-से तपोधन मह ष वहाँ आये। भारत! उस दे वीने उन मह षय का आ त य-स कार भी शाकके ही ारा कया ।। १४-१५ ।। ततः शाक भरी येव नाम त याः त तम् । शाक भर समासा चारी समा हतः ।। १६ ।। रा मु षतः शाकं भ य वा नरः शु चः । शाकाहार य यत् क चद् वष ादश भः कृतम् ।। १७ ।। तत् फलं त य भव त दे ा छ दे न भारत । े

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भारत! तबसे उस दे वीका ‘शाक भरी’ ही नाम स हो गया। शाक भरीके समीप जाकर मनु य चय पालनपूवक एका च और प व हो वहाँ तीन राततक शाक खाकर रहे तो बारह वष तक शाकाहारी मनु यको जो पु य ा त होता है, वह उसे दे वीक इ छासे (तीन ही दन म) मल जाता है ।। १६-१७ ।। ततो ग छे त् सुवणा यं षु लोकेषु व ुतम् ।। १८ ।। त व णुः सादाथ माराधयत् पुरा । वरां सुबँ लेभे दै वतेषु सु लभान् ।। १९ ।। तदन तर भुवन व यात सुवणतीथक या ा करे। वहाँ पूवकालम भगवान् व णुने दे वक स ताके लये उनक आराधना क और उनसे अनेक दे व लभ उ म वर ा त कये ।। १८-१९ ।। उ पुर नेन प रतु ेन भारत । अ प च वं यतरो लोके कृ ण भ व य स ।। २० ।। व मुखं च जगत् सव भ व य त न संशयः । त ा भग य राजे पूज य वा वृष वजम् ।। २१ ।। अ मेधमवा ो त गाणप यं च व द त । धूमावत ततो ग छे त् रा ोपो षतो नरः ।। २२ ।। मनसा ा थतान् कामाँ लभते ना संशयः । भारत! उस समय संतु च पुरा र शवने ी व णुसे कहा—‘ ीकृ ण! तुम मुझे लोकम अ य त य होओगे। संसारम सव तु हारी ही धानता होगी, इसम संशय नह है।’ राजे ! उस तीथम जाकर भगवान् शंकरक पूजा करनेसे मनु य अ मेधय का फल पाता और गणप तपद ा त कर लेता है। वहाँसे मनु य धूमावतीतीथको जार और तीन रात उपवास करे। इससे वह नःसंदेह मनोवा छत कामना को ा त कर लेता है ।। २०— २२ ।। दे ा तु द णाधन रथावत नरा धप ।। २३ ।। त ारोहेत धम धानो जते यः । महादे व सादा ग छे त परमां ग तम् ।। २४ ।। नरे र! दे वीसे द णाध भागम रथावत नामक तीथ है। धम ! जो ालु एवं जते य पु ष उस तीथक या ा करता है, वह महादे वजीके सादसे परम ग त ा त कर लेता है ।। २३-२४ ।। द णमुपावृ य ग छे त भरतषभ । धारां नाम महा ा ः सवपाप मोचनीम् ।। २५ ।। भरत े ! तदन तर महा ा पु ष उस तीथक प र मा करके धाराक या ा करे, जो सब पाप से छु ड़ानेवाली है ।। २५ ।। त ना वा नर ा न शोच त नरा धप । नर ा ! नरा धप! वहाँ नान करके मनु य कभी शोकम नह पड़ता ।। २५ ।। ो



ततो ग छे त धम नम कृ य महा ग रम् ।। २६ ।। वग ारेण यत् तु यं ग ा ारं न संशयः । त ा भषेकं कुव त को टतीथ समा हतः ।। २७ ।। धम ! वहाँसे महापवत हमालयको नम कार करके गंगा ार (ह र ार)-क या ा करे, जो वग ारके समान है; इसम संशय नह है। वहाँ एका च हो को टतीथम नान करे ।। २६-२७ ।। पु डरीकमवा ो त कुलं चैव समु रेत् । उ यैकां रजन त गोसह फलं लभेत् ।। २८ ।। ऐसा करनेवाला मनु य पु डरीकय का फल पाता और अपने कुलका उ ार कर दे ता है। वहाँ एक रात नवास करनेसे सह गोदानका फल मलता है ।। २८ ।। स तग े ग े च श ावत च तपयन् । दे वान् पतॄं व धवत् पु ये लोके महीयते ।। २९ ।। स तगंग, गंग और श ावततीथम व धपूवक दे वता तथा पतर का तपण करनेवाला मनु य पु य-लोकम त त होता है ।। २९ ।। ततः कनखले ना वा रा ोपो षतो नरः । अ मेधमवा ो त वगलोकं च ग छ त ।। ३० ।। तदन तर कनखलम नान करके तीन रात उपवास करनेवाला मनु य अ मेधय का फल पाता और वग-लोकम जाता है ।। ३० ।। क पलावटं ततो ग छे त् तीथसेवी नरा धप । उपो य रजन त गोसह फलं लभेत् ।। ३१ ।। नरे र! उसके बाद तीथसेवी मनु य क पलावट-तीथम जाय। वहाँ रातभर उपवास करनेसे उसे सह गोदानका फल मलता है ।। ३१ ।। नागराज य राजे क पल य महा मनः । तीथ कु वर े सवलोकेषु व ुतम् ।। ३२ ।। राजे ! कु े ! वह नागराज महा मा क पलका तीथ है, जो स पूण लोक म व यात है ।। ३२ ।। त ा भषेकं कुव त नागतीथ नरा धप । क पलानां सह य फलं व द त मानवः ।। ३३ ।। महाराज! वहाँ नागतीथम नान करना चा हये। इससे मनु यको सह क पलादानका फल ा त होता है ।। ३३ ।। ततो ल लतकं ग छे छा तनो तीथमु मम् । त ना वा नरो राजन् न ग तमवा ुयात् ।। ३४ ।। त प ात् शा तनुके उ म तीथ ल लतकम जाय। राजन्! वहाँ नान करनेसे मनु य कभी ग तम नह पड़ता ।। ३४ ।। ग ायमुनयोम ये ना त यः संगमे नरः । दशा मेधाना ो त कुलं चैव समु रेत् ।। ३५ ।। ो े ी ( ) ै े

जो मनु य गंगा-यमुनाके बीच संगम ( याग)-म नान करता है, उसे दस अ मेधय का फल मलता है और वह अपने कुलका उ ार कर दे ता है ।। ३५ ।। ततो ग छे त राजे सुग धां लोक व ुताम् । सवपाप वशु ा मा लोके महीयते ।। ३६ ।। राजे ! तदन तर लोक व यात सुग धातीथक या ा करे। इससे सब पाप से वशु च आ मानव लोकम पू जत होता है ।। ३६ ।। ावत ततो ग छे त् तीथसेवी नरा धप । त ना वा नरो राजन् वगलोकं च ग छ त ।। ३७ ।। नरे र! तदन तर तीथसेवी पु ष ावततीथम जाय। राजन्! वहाँ नान करके मनु य वगलोकम जाता है ।। ३७ ।। ग ाया नर े सर व या संगमे । ना वा मेधं ा ो त वगलोकं च ग छ त ।। ३८ ।। नर े ! गंगा और सर वतीके संगमम नान करनेसे मनु य अ मेधय का फल पाता और वग-लोकम जाता है ।। ३८ ।। भ कण रं ग वा दे वम य यथा व ध । न ग तमवा ो त नाकपृ े च पू यते ।। ३९ ।। भगवान् भ कण रके समीप जाकर व धपूवक उनक पूजा करनेवाला पु ष कभी ग तम नह पड़ता और वगलोकम पू जत होता है ।। ३९ ।। ततः कु जा कं ग छे त् तीथसेवी नरा धप । गोसह मवा ो त वगलोकं च ग छ त ।। ४० ।। नरे ! त प ात् तीथसेवी मानव कु जाक-तीथम जाय। वहाँ उसे सह गोदानका फल मलता है और अ तम वह वगलोकको जाता है ।। ४० ।। अ धतीवटं ग छे त् तीथसेवी नरा धप । सामु कमुप पृ य चारी समा हतः ।। ४१ ।। अ मेधमवा ो त रा ोपो षतो नरः । गोसह फलं व ात् कुलं चैव समु रेत् ।। ४२ ।। नरपते! त प ात् तीथसेवी अ धतीवटके समीप जाय और सामु कतीथम नान करके चयपालनपूवक एका च हो तीन रात उपवास करे। इससे मनु य अ मेधय और सह गोदानका फल पाता तथा अपने क ु लका उ ार कर दे ता है ।। ४१-४२ ।। ावत ततो ग छे द ् चारी समा हतः । अ मेधमवा ो त सोमलोकं च ग छ त ।। ४३ ।। तदन तर चयपालनपूवक च को एका करके ावततीथम जाय। इससे वह अ मेधय का फल पाता और सोमलोकको जाता है ।। ४३ ।। यमुना भवं ग वा समुप पृ य यामुनम् । अ मेधफलं ल वा वगलोके महीयते ।। ४४ ।। ी





यमुना भव नामक तीथम जाकर यमुनाजलम नान करके अ मेधय का फल पाकर मनु य वगलोकम त त होता है ।। ४४ ।। दव सं मणं ा य तीथ ैलो यपू जतम् । अ मेधमवा ो त वगलोकं च ग छ त ।। ४५ ।। दव सं मण नामक भुवनपू जत तीथम जानेसे तीथया ी अ मेधय का फल पाता और वगलोकम जाता है ।। ४५ ।। स धो भवं ग वा स ग धवसे वतम् । त ो य रजनीः प च व दे द ् ब सुवणकम् ।। ४६ ।। सधुके उद्गम थानम जो स -ग धव ारा से वत है, जाकर पाँच रात उपवास करनेसे चुर सुवणरा शक ा त होती है ।। ४६ ।। अथ वेद समासा नरः परम गमाम् । अ मेधमवा ो त वगलोकं च ग छ त ।। ४७ ।। तदन तर मनु य परम गम वेद तीथम जाकर अ मेधय का फल पाता और वगलोकम जाता है ।। ४७ ।। ऋ षकु यां समासा वा स ं चैव भारत । वा स सम त य सव वणा जातयः ।। ४८ ।। भरतन दन! ऋ षकु या एवं वा स तीथम जाकर नान आ द करके वा स ीको लाँघकर जानेवाले य आ द सभी वण के लोग जा त हो जाते ह ।। ४८ ।। ऋ षकु यां समासा नरः ना वा वक मषः । दे वान् पतॄं ाच य वा ऋ षलोकं प ते ।। ४९ ।। ऋ षकु याम जाकर नान करके पापर हत मानव दे वता और पतर क पूजा करके ऋ षलोकम जाता है ।। ४९ ।। य द त वसे मासं शाकाहारो नरा धप । भृगुतु ं समासा वा जमेधफलं लभेत् ।। ५० ।। नरे र! य द मनु य भृगत ु ुंगम जाकर शाकाहारी हो वहाँ एक मासतक नवास करे तो उसे अ मेध-य का फल ा त होता है ।। ५० ।। ग वा वीर मो ं च सवपापैः मु यते । कृ कामघयो ैव तीथमासा भारत ।। ५१ ।। अ न ोमा तरा ा यां फलमा ो त मानवः । त सं यां समासा व ातीथमनु मम् ।। ५२ ।। उप पृ य च वै व ां य त ोपप ते । महा मे वसेद ् रा सवपाप मोचने ।। ५३ ।। एककालं नराहारो लोकानावसते शुभान् ।











वीर मो तीथम जाकर मनु य सब पाप से छु टकारा पा जाता है। भारत! कृ का और मघाके तीथम जाकर मानव अ न ोम और अ तरा य का फल पाता है। वह ातः-सं याके समय परम उ म व ातीथम जाकर नान करनेसे मनु य जहाँ-कह भी व ा ा त कर लेता है। जो सब पाप से छु ड़ानेवाले महा मतीथम एक समय उपवास करके एक रात वह नवास करता है, उसे शुभ लोक क ा त होती है ।। ५१-५३ ।। ष कालोपवासेन मासमु य महालये ।। ५४ ।। सवपाप वशु ा मा व दे द ् ब सुवणकम् । दशापरान् दश पूवान् नरानु रते कुलम् ।। ५५ ।। जो छठे समय उपवासपूवक एक मासतक महालयतीथम नवास करता है, वह सब पाप से शु च हो चुर सुवणरा श ा त करता है। साथ ही दस पहलेक और दस बादक पी ढ़य का उ ार कर दे ता है ।। अथ वेत सकां ग वा पतामह नषे वताम् । अ मेधमवा ो त ग छे दौशनस ग तम् ।। ५६ ।। त प ात् ाजीके ारा से वत वेत सकातीथम जाकर मनु य अ मेधय का फल पाता और शु ाचायके लोकम जाता है ।। ५६ ।। अथ सु द रकातीथ ा य स नषे वतम् । प य भागी भव त मेतत् पुरातनैः ।। ५७ ।। तदन तर स से वत सु द रकातीथम जाकर मनु य पका भागी होता है, यह बात ाचीन ऋ षय ने दे खी है ।। ५७ ।। ततो वै ा ण ग वा चारी जते यः । पवणन यानेन लोक ं प ते ।। ५८ ।। इसके बाद इ यसंयम और चयके पालनपूवक ा णीतीथम जानेसे मनु य कमलके समान का तवाले वमान ारा लोकम जाता है ।। ५८ ।। तत तु नै मषं ग छे त् पु यं स नषे वतम् । त न यं नवस त ा दे वगणैः सह ।। ५९ ।। तदन तर स से वत पु यमय नै मष (नै मषार य)-तीथम जाय। वहाँ दे वता के साथ ाजी न य नवास करते ह ।। ५९ ।। नै मषं मृगयान य पाप याध ण य त । व मा तु नरः सवपापैः मु यते ।। ६० ।। नै मषक खोज करनेवाले पु षका आधा पाप उसी समय न हो जाता है और उसम वेश करते ही वह सारे पाप से छु टकारा पा जाता है ।। ६० ।। त मासं वसेद ् धीरो नै मषे तीथत परः । पृ थ ां या न तीथा न ता न तीथा न नै मषे ।। ६१ ।। धीर पु ष तीथसेवनम त पर हो एक मासतक नै मषम नवास करे। पृ वीम जतने तीथ ह, वे सभी नै मषम व मान ह ।। ६१ ।। े





कृता भषेक त ैव नयतो नयताशनः । गवां मेध य य य फलं ा ो त भारत ।। ६२ ।। भारत! जो वहाँ नान करके नयमपालनपूवक नय मत भोजन करता है, वह गोमेधय का फल पाता है ।। ६२ ।। पुना यास तमं चैव कुलं भरतस म । य यजे ै मषे ाणानुपवासपरायणः ।। ६३ ।। स मोदे त् सवलोकेषु एवमा मनी षणः । न यं मे यं च पु यं च नै मषं नृपस म ।। ६४ ।। भरत े ! अपने कुलक सात पी ढ़य का भी वह उ ार कर दे ता है। जो नै मषम उपवासपूवक ाण याग करता है, वह सब लोक म आन दका अनुभव करता है; ऐसा मनीषी पु ष का कथन है। नृप े ! नै मषतीथ न य, प व और पु यजनक है ।। ६३-६४ ।। ग ो े दं समासा रा ोपो षतो नरः । वाजपेयमवा ो त भूतो भवेत् सदा ।। ६५ ।। गंगो े दतीथम जाकर तीन रात उपवास करनेवाला मनु य वाजपेयय का फल पाता और सदाके लये ीभूत हो जाता है ।। ६५ ।। सर वत समासा तपयेत् पतृदेवताः । सार वतेषु लोकेषु मोदते ना संशयः ।। ६६ ।। सर वतीतीथम जाकर दे वता और पतर का तपण करे। इससे तीथया ी सार वतलोक म जाकर आन दका भागी होता है; इसम संशय नह है ।। ६६ ।। तत बा दां ग छे द ् चारी समा हतः । त ो य रजनीमेकां वगलोके महीयते ।। ६७ ।। दे वस य य य फलं ा ो त कौरव । तदन तर बा दातीथम जाय और चयपालनपूवक एका च हो वहाँ एक रात उपवास करे; इससे वह वगलोकम त त होता है। कु न दन! उसे दे वस य का भी फल ा त होता है ।। ६७ ।। ततः ीरवत ग छे त् पु यां पु यतरैवृताम् ।। ६८ ।। पतृदेवाचनपरो वाजपेयमवा ुयात् । वहाँसे ीरवती नामक पु यतीथम जाय, जो अ य त पु या मा पु ष से भरी ई है। वहाँ नान करके दे वता और पतर के पूजनम लगा आ मनु य वाजपेयय का फल पाता है ।। ६८ ।। वमलाशोकमासा चारी समा हतः ।। ६९ ।। त ो य रजनीमेकां वगलोके महीयते । वह वमलाशोक नामक उ म तीथ है, वहाँ जाकर चयपालनपूवक एका च हो एक रात नवास करनेसे मनु य वगलोकम त त होता है ।। ो







गो तारं ततो ग छे त् सर वा तीथमु मम् ।। ७० ।। य रामो गतः वग सभृ यबलवाहनः । स च वीरो महाराज त य तीथ य तेजसा ।। ७१ ।। वहाँसे सरयूके उ म तीथ गो तारम जाय। महाराज! वहाँ अपने सेवक , सै नक और वाहन के साथ गोते लगाकर उस तीथके भावसे वे वीर ीरामच जी अपने न यधामको पधारे थे ।। ७०-७१ ।। राम य च सादे न वसाया च भारत । त मं तीथ नरः ना वा गो तारे नरा धप ।। ७२ ।। सवपाप वशु ा मा वगलोके महीयते । भरतन दन! नरे र! उस सरयूके गो तारतीथम नान करके मनु य ीरामच जीक कृपा और उ ोगसे सब पाप से शु होकर वगलोकम स मा नत होता है ।। रामतीथ नरः ना वा गोम यां कु न दन ।। ७३ ।। अ मेधमवा ो त पुना त च कुलं नरः । कु न दन! गोमतीके रामतीथम नान करके मनु य अ मेधय का फल पाता और अपने कुलको प व कर दे ता है ।। ७३ ।। शतसाह कं तीथ त ैव भरतषभ ।। ७४ ।। त ोप पशनं कृ वा नयतो नयताशनः । गोसह फलं पु यं ा ो त भरतषभ ।। ७५ ।। भरतकुलभूषण! वह शतसाहकती थ है। उसम नान करके नयमपालनपूवक नय मत भोजन करते ए मनु य सह गोदानका पु यफल ा त करता है ।। ततो ग छे त राजे भतृ थानमनु मम् । अ मेध य य य फलं ा ो त मानवः ।। ७६ ।। राजे ! वहाँसे परम उ म भतृ थानको जाय। वहाँ जानेसे मनु यको अ मेधय का फल ा त होता है ।। ७६ ।। को टतीथ नरः ना वा अच य वा गुहं नृप । गोसह फलं व ात् तेज वी च भवे रः ।। ७७ ।। राजन्! मनु य को टतीथम नान करके का तकेयजीका पूजन करनेसे सह गोदानका फल पाता और तेज वी होता है ।। ७७ ।। ततो वाराणस ग वा अच य वा वृष वजम् । क पला दे नरः ना वा राजसूयमवा ुयात् ।। ७८ ।। तदन तर वाराणसी (काशी)-तीथम जाकर भगवान् शंकरक पूजा करे और क पलादम गोता लगाये; इससे मनु यको राजसूयय का फल ा त होता है ।। ७८ ।। अ वमु ं समासा तीथसेवी कु ह। दशनाद् दे वदे व य मु यते ह यया ।। ७९ ।। ाणानु सृ य त ैव मो ं ा ो त मानवः । े





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कु े ! अ वमु तीथम जाकर तीथसेवी मनु य दे वदे व महादे वजीका दशनमा करके ह यासे मु हो जाता है। वह ाणो सग करके मनु य मो ा त कर लेता है ।। ७९ ।। माक डेय य राजे तीथमासा लभम् ।। ८० ।। गोमतीग यो ैव संगमे लोक व ुते । अ न ोममवा ो त कुलं चैव समु रेत् ।। ८१ ।। राजे ! गोमती और गंगाके लोक व यात संगमके समीप माक डेयजीका लभ तीथ है। उसम जाकर मनु य अ न ोमय का फल पाता और अपने कुलका उ ार कर दे ता है ।। ८०-८१ ।। ततो गयां समासा चारी समा हतः । अ मेधमवा ो त कुलं चैव समु रेत् ।। ८२ ।। तदन तर गयातीथम जाकर चयपालनपूवक एका च हो मनु य अ मेधय का फल पाता और अपने कुलका उ ार कर दे ता है ।। ८२ ।। त ा यवटो नाम षु लोकेषु व ुतः । त द ं पतृ य तु भव य यमु यते ।। ८३ ।। वहाँ तीन लोक म व यात अ यवट है। उनके समीप पतर के लये दया आ सब कुछ अ य बताया जाता है ।। ८३ ।। महान ामुप पृ य तपयेत् पतृदेवताः । अ यान् ा ुया लोकान् कुलं चैव समु रेत् ।। ८४ ।। महानद म नान करके जो दे वता और पतर का तपण करता है, वह अ य लोक को ा त होता और अपने कुलका उ ार कर दे ता है ।। ८४ ।। ततो सरो ग वा धमार योपशो भतम् । लोकमवा ो त भातामेव शवरीम् ।। ८५ ।। तदन तर धमार यसे सुशो भत सरोवरक या ा करके वहाँ एक रात ातःकालतक नवास करनेसे मनु य लोकको ा त कर लेता है ।। ८५ ।। णा त सर स यूप े ः समु तः । यूपं द णं कृ वा वाजपेयफलं लभेत् ।। ८६ ।। ाजीने उस सरोवरम एक े यूपक थापना क थी। उसक प र मा करनेसे मानव वाजपेयय का फल पा लेता है ।। ८६ ।। ततो ग छे त राजे धेनुकं लोक व ुतम् । एकरा ो षतो राजन् य छे त् तलधेनुकाम् ।। ८७ ।। सवपाप वशु ा मा सोमलोकं जेद ् ुवम् । राजे ! वहाँसे लोक व यात धेनुतीथम जाय। महाराज! वहाँ एक रात रहकर तलक गौका दान करे।* इससे तीथया ी पु ष सब पाप से शु जाता है ।। ८७ ।।



हो न य ही सोमलोकम

त च ं महद् राज ा प सुमहद् भृशम् ।। ८८ ।। क पलायाः सव साया र याः पवते कृतम् । सव सायाः पदा न म य तेऽ ा प भारत ।। ८९ ।। राजन्! वहाँ एक पवतपर चरनेवाली बछड़ेस हत क पला गौका वशाल चरण च आज भी अं कत है। भरतन दन! बछड़ेस हत उस गौके चरण च आज भी वहाँ दे खे जाते ह ।। ८८-८९ ।। तेषूप पृ य राजे पदे षु नृपस म । यत् क चदशुभं कम तत् ण य त भारत ।। ९० ।। भारत! नृप े ! राजे ! उन चरण च का पश करके मनु यका जो कुछ भी अशुभ कम शेष रहता है, वह सब न हो जाता है ।। ९० ।। ततो गृ वटं ग छे त् थानं दे व य धीमतः । नायीत भ मना त अ भग य वृष वजम् ।। ९१ ।। तदन तर परम बु मान् महादे वजीके गृ वट नामक थानक या ा करे और वहाँ भगवान् शंकरके समीप जाकर भ मसे नान करे (अपने शरीरम भ म लगाये) ।। ९१ ।। ा णेन भवे चीण तं ादशवा षकम् । इतरेषां तु वणानां सवपापं ण य त ।। ९२ ।। वहाँ या ा करनेसे ा णको बारह वष तक तके पालन करनेका फल ा त होता है और अ य वणके लोग के सारे पाप न हो जाते ह ।। ९२ ।। उ तं च ततो ग छे त् पवतं गीतना दतम् । सा वया तु पदं त यते भरतषभ ।। ९३ ।। भरतकुलभूषण! तदन तर संगीतक व नसे गूँजते ए उदय ग रपर जाय। वहाँ सा व ीका चरण च आज भी दखायी दे ता है ।। ९३ ।। त सं यामुपासीत ा णः सं शत तः । तेन पा ता भव त सं या ादशवा षक ।। ९४ ।। उ म तका पालन करनेवाला ा ण वहाँ सं योपासना करे। इससे उसके ारा बारह वष तकक सं योपासना स प हो जाती है ।। ९४ ।। यो न ारं च त ैव व ुतं भरतषभ । त ा भग य मु येत पु षो यो नसंकटात् ।। ९५ ।। भरत े ! वह व यात यो न ारतीथ है, जहाँ जाकर मनु य यो नसंकटसे मु हो जाता है—उसका पुनज म नह होता ।। ९५ ।। कृ णशु लावुभौ प ौ गयायां यो वसे रः । पुना यास तमं राजन् कुलं ना य संशयः ।। ९६ ।। राजन्! जो मानव कृ ण और शु ल दोन प म गयातीथम नवास करता है, वह अपने कुलक सातव पीढ़ तकको प व कर दे ता है, इसम संशय नह है ।। ए ा बहवः पु ा य ेकोऽ प गयां जेत् । यजेत वा मेधेन नीलं वा वृषमु सृजेत् ।। ९७ ।। े े ै े ी े

ब त-से पु क इ छा करे। स भव है, उनमसे एक भी गयाम जाय या अ मेधय करे अथवा नील वृषका उ सग ही करे ।। ९७ ।। ततः फ गुं जेद ् राजं तीथसेवी नरा धप । अ मेधमवा ो त स च महत जेत् ।। ९८ ।। राजन्! नरे र! तदन तर तीथसेवी मानव फ गुतीथम जाय। वहाँ जानेसे उसे अ मेधय का फल मलता है और ब त बड़ी स ा त होती है ।। ९८ ।। ततो ग छे त राजे धम थं समा हतः । त धम महाराज न यमा ते यु ध र ।। ९९ ।। महाराज! तदन तर एका च हो मनु य धम थक या ा करे। यु ध र! वहाँ धमराजका न य नवास है ।। ९९ ।। त कूपोदकं कृ वा तेन नातः शु च तथा । पतॄन् दे वां तु संत य मु पापो दवं जेत् ।। १०० ।। वहाँ कुएँका जल लेकर उससे नान करके प व हो दे वता और पतर का तपण करनेसे मनु यके सारे पाप छू ट जाते ह और वह वगलोकम जाता है ।। १०० ।। मत या म त महषभा वता मनः । तं व या मं ीम मशोक वनाशनम् ।। १०१ ।। गवामयनय य फलं ा ो त मानवः । धम त ा भसं पृ य वा जमेधमवा ुयात् ।। १०२ ।। वह भा वता मा मह ष मतंगका आ म है। म और शोकका वनाश करनेवाले उस सु दर आ मम वेश करनेसे मनु य गवामयनय का फल पाता है। वहाँ धमके नकट जा उनके ी व हका दशन और पश करनेसे अ मेधय का फल ा त होता है ।। ततो ग छे त राजे थानमनु मम् । त ा भग य राजे ाणं पु षषभ ।। १०३ ।। राजसूया मेधा यां फलं व द त मानवः । राजे ! तदन तर परम उ म थानको जाय। महाराज! पु षो म! वहाँ ाजीके समीप जाकर मनु य राजसूय और अ मेधय का फल पाता है ।। १०३ ।। ततो राजगृहं ग छे त् तीथसेवी नरा धप ।। १०४ ।। उप पृ य तत त क ीवा नव मोदते । य या नै यकं त ाीत पु षः शु चः ।। १०५ ।। य या तु सादे न मु यते ह यया । नरे र! तदन तर तीथसेवी मनु य राजगृहको जाय। वहाँ नान करके वह क ीवान्के समान स होता है। उस तीथम प व होकर पु ष य णीदे वीका नैवे भ ण करे। य णीके सादसे वह ह यासे मु हो जाता है ।। १०४-१०५ ।। म णनागं ततो ग वा गोसह फलं लभेत् ।। १०६ ।। तदन तर म णनागतीथम जाकर तीथया ी सह गोदानका फल ा त करे ।। १०६ ।। ै



तै थकं भु ते य तु म णनाग य भारत । द याशी वषेणा प न त य मते वषम् ।। १०७ ।। त ो य जननीमेकां गोसह फलं लभेत् । भरतन दन! जो म णनागका तीथ साद (नैवे , चरणामृत आ द)-का भ ण करता है, उसे साँप काट ले तो भी उसपर वषका असर नह होता। वहाँ एक रात रहनेसे सह गोदानका फल मलता है ।। १०७ ।। ततो ग छे त षग तम य वनं यम् ।। १०८ ।। अह याया दे ना वा जेत परमां ग तम् । अ भग या मं राजन् व दते यमा मनः ।। १०९ ।। त प ात् ष गौतमके य वनक या ा करे। वहाँ अह याकु डम नान करनेसे मनु य परमग तको ा त होता है। राजन्! गौतमके आ मम जाकर मनु य अपने लये ल मी ा त कर लेता है ।। १०८-१०९ ।। त ोदपानं धम षु लोकेषु व ुतम् । त ा भषेकं कृ वा तु वा जमेधमवा ुयात् ।। ११० ।। धम ! वहाँ एक भुवन व यात कूप है, जसम नान करनेसे अ मेधय का फल ा त होता है ।। ११० ।। जनक य तु राजषः कूप दशपू जतः । त ा भषेकं कृ वा तु व णुलोकमवा ुयात् ।। १११ ।। राज ष जनकका एक कूप है, जसका दे वता भी स मान करते ह। वहाँ नान करनेसे मनु य व णुलोकम जाता है ।। १११ ।। ततो वनशनं ग छे त् सवपाप मोचनम् । वाजपेयमवा ो त सोमलोकं च ग छ त ।। ११२ ।। त प ात् सब पाप से छु ड़ानेवाले वनशनतीथको जाय, जससे मनु य वाजपेयय का फल पाता और सोमलोकको जाता है ।। ११२ ।। ग डक तु समासा सवतीथजलो वाम् । वाजपेयमवा ो त सूयलोकं च ग छ त ।। ११३ ।। ग डक नद सब तीथ के जलसे उ प ई है। वहाँ जाकर तीथया ी अ मेधय का फल पाता और सूयलोकम जाता है ।। ११३ ।। ततो वश यामासा नद ैलो य व ुताम् । अ न ोममवा ो त वगलोकं च ग छ त ।। ११४ ।। त प ात् लोक म व यात वश या नद के तटपर जाकर नान करे। इससे वह अ न ोमय का फल पाता और वगलोकम जाता है ।। ११४ ।। ततोऽ धव ं धम समा व य तपोवनम् । गु केषु महाराज मोदते ना संशयः ।। ११५ ।। े ी











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धम महाराज! तदन तर वंगदे शीय तपोवनम वेश करके तीथया ी इस शरीरके अ तम गु कलोकम जाकर नःसंदेह आन दका भागी होता है ।। ११५ ।। क पनां तु समासा नद स नषे वताम् । पु डरीकमवा ो त वगलोकं च ग छ त ।। ११६ ।। त प ात् स से वत क पना नद म प ँचकर मनु य पु डरीकय का फल पाता और वगलोकम जाता है ।। ११६ ।। अथ माहे र धारां समासा धरा धप । अ मेधमवा ो त कुलं चैव समु रेत् ।। ११७ ।। राजन्! त प ात् माहे री धाराक या ा करनेसे तीथया ीको अ मेधय का फल मलता है और वह अपने कुलका उ ार कर दे ता है ।। ११७ ।। दवौकसां पु क रण समासा नरा धप । न ग तमवा ो त वा जमेधं च व द त ।। ११८ ।। नरे र! फर दे वपु क रणीम जाकर मानव कभी ग तम नह पड़ता और अ मेधय का फल पाता है ।। ११८ ।। अथ सोमपदं ग छे द ् चारी समा हतः । माहे रपदे ना वा वा जमेधफलं लभेत् ।। ११९ ।। तदन तर चयपालनपूवक एका च हो सोमपदतीथम जाय। वहाँ माहे रपदम नान करनेसे अ मेधय का फल मलता है ।। ११९ ।। त को ट तु तीथानां व ुता भरतषभ । कूम पेण राजे सुरेण रा मना ।। १२० ।। यमाणा ता राजन् व णुना भ व णुना । त ा भषेकं कुव त तीथको ां यु ध र ।। १२१ ।। पु डरीकमवा ो त व णुलोकं च ग छ त । भरतकुल तलक! वहाँ तीथ क व यात ेणीको एक रा मा असुर कूम प धारण करके हरकर लये जाता था। राजन्! यह दे ख सवश मान् भगवान् व णुने उस तीथ ेणीका उ ार कया। यु ध र! वहाँ उस तीथको टम नान करना चा हये। ऐसा करनेवाले या ीको पु डरीकय का फल मलता है और वह व णुलोकको जाता है ।। १२०-१२१ ।। ततो ग छे त राजे थानं नारायण य च ।। १२२ ।। सदा सं न हतो य व णुवस त भारत । य ादयो दे वा ऋषय तपोधनाः ।। १२३ ।। आ द या वसवो ा जनादनमुपासते । शाल ाम इ त यातो व णुर तकमकः ।। १२४ ।। राजे ! तदन तर नारायण- थानको जाय। भरतन दन! वहाँ भगवान् व णु सदा नवास करते ह। ा आ द दे वता, तपोधन ऋ ष, आ द य, वसु तथा भी वहाँ रहकर े







जनादनक उपासना करते ह। उस तीथम अ तकमा भगवान् व णु शाल ामके नामसे स ह ।। अ भग य लोकेशं वरदं व णुम यम् । अ मेधमवा ो त व णुलोकं च ग छ त ।। १२५ ।। तीन लोक के वामी उन वरदायक अ वनाशी भगवान् व णुके समीप जाकर मनु य अ मेधय का फल पाता और व णुलोकम जाता है ।। १२५ ।। त ोदपानं धम सवपाप मोचनम् । समु ा त च वारः कूपे सं न हताः सदा ।। १२६ ।। धम ! वहाँ एक कूप है, जो सब पाप को र करनेवाला है। उसम सदा चार समु नवास करते ह ।। त ोप पृ य राजे न ग तमवा ुयात् । अ भग य महादे वं वरदं म यम् ।। १२७ ।। वराज त यथा सोमो मेघैमु ो नरा धप । जा त मरमुप पृ य शु चः यतमानसः ।। १२८ ।। राजे ! उसम नवास करनेसे मनु य कभी ग तम नह पड़ता। सबको वर दे नेवाले अ वनाशी महादे व के समीप जाकर मनु य मेघ के आवरणसे मु ए च माक भाँ त सुशो भत होता है। नरे र! वह जा त मरतीथ है; जसम नान करके मनु य प व एवं शु च हो जाता है। अथात् उसके शरीर और मनक शु हो जाती है ।। १२७-१२८ ।। जा त मर वमा ो त ना वा त न संशयः । माहे रपुरं ग वा अच य वा वृष वजम् ।। १२९ ।। ई सता लँभते कामानुपवासा संशयः । तत तु वामनं ग वा सवपाप मोचनम् ।। १३० ।। अ भग य हर द े वं न ग तमवा ुयात् । कु शक या मं ग छे त् सवपाप मोचनम् ।। १३१ ।। उस तीथम नान करनेसे पूवज मक बात का मरण करनेक श ा त हो जाती है, इसम संशय नह है। माहे रपुरम जाकर भगवान् शंकरक पूजा और उपवास करनेसे मनु य स पूण मनोवां छत कामना -को ा त कर लेता है, इसम त नक भी संदेह नह है। त प ात् सब पाप को र करनेवाले वामनतीथक या ा करके भगवान् ीह रके नकट जाय। उनका दशन करनेसे मनु य कभी ग तम नह पड़ता। इसके बाद सब पाप से छु ड़ानेवाले कु शका मक या ा करे ।। १२९—१३१ ।। कौ शक त ग छ े त महापाप णा शनीम् । राजसूय य य य फलं ा ो त मानवः ।। १३२ ।। वह बड़े-बड़े पाप का नाश करनेवाली कौ शक (कोशी) नद है। उसके तटपर जाकर नान करे। ऐसा करनेवाला मानव राजसूयय का फल पाता है ।। १३२ ।। ततो ग छे त राजे च पकार यमु मम् । त ो य रजनीमेकां गोसह फलं लभेत् ।। १३३ ।। े ( ) े ँ

राजे ! तदन तर उ म च पकार य (च पारन)-क या ा करे। वहाँ एक रात नवास करनेसे तीथया ीको सह गोदानका फल मलता है ।। १३३ ।। अथ ये लमासा तीथ परम लभम् । त ो य रजनीमेकां गोसह फलं लभेत् ।। १३४ ।। त प ात् परम लभ ये लतीथम जाकर एक रात नवास करनेसे मानव सह गोदानका फल पाता है ।। १३४ ।। त व े रं ् वा दे ा सह महा ु तम् । म ाव णयोल काना ो त पु षषभ ।। १३५ ।। रा ोपो षत त अ न ोमफलं लभेत् । पु षर न! वहाँ पावतीदे वीके साथ महातेज वी भगवान् व े रका दशन करनेसे तीथया ीको म और व ण-दे वताके लोक क ा त होती है, वहाँ तीन रात उपवास करनेसे अ न ोमय का फल मलता है ।। १३५ ।। क यासंवे मासा नयतो नयताशनः ।। १३६ ।। मनोः जापतेल काना ो त पु षषभ । क यायां ये य छ त दानम व प भारत ।। १३७ ।। तद य म त ा ऋषयः सं शत ताः । पु ष े ! इसके बाद नयमपूवक नय मत भोजन करते ए तीथया ीको क यासंवे नामक तीथम जाना चा हये। इससे वह जाप त मनुके लोक ा त कर लेता है। भरतन दन! जो लोग क यासंवे तीथम थोड़ा-सा भी दान दे ते ह, उनके उस दानको उ म तका पालन करनेवाले मह ष अ य बताते ह ।। न ीरां च समासा षु लोकेषु व ुताम् ।। १३८ ।। अ मेधमवा ो त व णुलोकं च ग छ त । ये तु दानं य छ त न ीरासंगमे नराः ।। १३९ ।। ते या त नरशा ल श लोकमनामयम् । त ा मो व स य षु लोकेषु व ुतः ।। १४० ।। तदन तर लोक व यात न ीरा नद क या ा करे। इससे अ मेधय का फल ा त होता है और तीथया ी पु ष भगवान् व णुके लोकम जाता है। नर े ! जो मानव न ीरासंगमम दान दे ते ह, वे रोग-शोकसे र हत इ लोकम जाते ह। वह तीन लोक म व यात व स -आ म है ।। १३८—१४० ।। त ा भषेकं कुवाणो वाजपेयमवा ुयात् । दे वकूटं समासा षगणसे वतम् ।। १४१ ।। अ मेधमवा ो त कुलं चैव समु रेत् । वहाँ नान करनेवाला मनु य वाजपेयय का फल पाता है। तदन तर षय से से वत दे वकूट-तीथम जाकर नान करे। ऐसा करनेवाला पु ष अ मेध-य का फल पाता और अपने कुलका उ ार कर दे ता है ।। १४१ ।। ो









ततो ग छे त राजे कौ शक य मुने दम् ।। १४२ ।। य स परां ा तो व ा म ोऽथ कौ शकः । त मासं वसेद ् वीर कौ श यां भरतषभ ।। १४३ ।। राजे ! त प ात् कौ शक मु नके कु डम नानके लये जाय, जहाँ कु शकन दन व ा म ने उ म स ा त क थी। वीर! भरतकुलभूषण! उस तीथम कौ शक नद के तटपर एक मासतक नवास करे ।। १४२-१४३ ।। अ मेध य यत् पु यं त मासेना धग छ त । सवतीथवरे चैव यो वसेत महा दे ।। १४४ ।। न ग तमवा ो त व दे द ् ब सुवणकम् । ऐसा करनेसे एक मासम ही अ मेधय का पु यफल ा त हो जाता है। जो सब तीथ म उ म महादम नान करता है वह कभी ग तको नह ा त होता और चुर सुवणरा श ा त कर लेता है ।। १४४ ।। कुमारम भग याथ वीरा म नवा सनम् ।। १४५ ।। अ मेधमवा ो त नरो ना य संशयः । तदन तर वीरा म नवासी कुमार का तकेयके नकट जाकर मनु य अ मेधय का फल ा त कर लेता है, इसम संशय नह है ।। १४५ ।। अ नधारां समासा षु लोकेषु व ुताम् ।। १४६ ।। त ा भषेकं कुवाणो न ोममवा ुयात् । अ नधारातीथ तीन लोक म व यात है। वहाँ जाकर नान करनेवाला पु ष अ न ोमय का फल पाता है ।। १४६ ।। अ धग य महादे वं वरदं व णुम यम् ।। १४७ ।। वहाँ वर दे नेवाले महान् दे वता अ वनाशी भगवान् व णुके नकट जाकर उनका दशन और पूजन करे ।। १४७ ।। पतामहसरो ग वा शैलराजसमीपतः । त ा भषेकं कुवाणो न ोममवा ुयात् ।। १४८ ।। ग रराज हमालयके नकट पतामहसरोवरम जाकर नान करनेवाले पु षको अ न ोमय का फल मलता है ।। १४८ ।। पतामह य सरसः ुता लोकपावनी । कुमारधारा त ैव षु लोकेषु व ुता ।। १४९ ।। पतामहसरोवरसे स पूण जगत्को प व करनेवाली एक धारा वा हत होती है, जो तीन लोक म कुमारधाराके नामसे व यात है ।। १४९ ।। य ना वा कृताथ ऽ मी या मानमवग छ त । ष कालोपवासेन मु यते ह यया ।। १५० ।। उसम नान करके मनु य अपने-आपको कृताथ मानने लगता है। वहाँ रहकर छठे समय उपवास करनेसे मनु य ह यासे छु टकारा पा जाता है ।। १५० ।। ो







ततो ग छे त धम तीथसेवनत परः । शखरं वै महादे ा गौया ैलो य व ुतम् ।। १५१ ।। धम ! तदन तर तीथसेवनम त पर मानव महादे वी गौरीके शखरपर जाय, जो तीन लोक म व यात है ।। १५१ ।। समा नर े तनकु डेषु सं वशेत् । तनकु डमुप पृ य वाजपेयफलं लभेत् ।। १५२ ।। नर े ! उस शखरपर चढ़कर मानव तनकु डम नान करे। तनकु डम अवगाहन करनेसे वाजपेयय का फल ा त होता है ।। १५२ ।। त ा भषेकं कुवाणः पतृदेवाचने रतः । हयमेधमवा ो त श लोकं च ग छ त ।। १५३ ।। उस तीथम नान करके दे वता और पतर क पूजा करनेवाला पु ष अ मेधय का फल पाता और इ लोकम पू जत होता है ।। १५३ ।। ता ा णं समासा चारी समा हतः । अ मेधमवा ो त लोकं च ग छ त ।। १५४ ।। तदन तर चयपालनपूवक एका च हो ताा णतीथक या ा करनेसे मनु य अ मेधय का फल पाता और लोकम जाता है ।। १५४ ।। न द यां च समासा कूपं दे व नषे वतम् । नरमेध य यत् पु यं तदा ो त नरा धप ।। १५५ ।। न दनीतीथम दे वता ारा से वत एक कूप है। नरे र! वहाँ जाकर नान करनेसे मानव नरमेधय का पु यफल ा त करता है ।। १५५ ।। का लकासंगमे ना वा कौ श य णयोगतः । रा ोपो षतो राजन् सवपापैः मु यते ।। १५६ ।। राजन्! कौ शक -अ णा-संगम और का लका-संगमम नान करके तीन रात उपवास करनेवाला मनु य सब पाप से मु हो जाता है ।। १५६ ।। उवशीतीथमासा ततः सोमा मं बुधः । कु भकणा मं ग वा पू यते भु व मानवः ।। १५७ ।। तदन तर उवशीतीथ, सोमा म और कु भ-कणा मक या ा करके मनु य इस भूतलपर पू जत होता है ।। १५७ ।। कोकामुखमुप पृ य चारी यत तः । जा त मर वमा ो त मेतत् पुरातनैः ।। १५८ ।। कोकामुखतीथम नान करके चय एवं संयम- नयमका पालन करनेवाला पु ष पूवज मक बात को मरण करनेक श ा त कर लेता है। यह बात ाचीन पु ष ने य दे खी है ।। १५८ ।। ाङ् नद च समासा कृ ता मा भव त जः । सवपाप वशु ा मा श लोकं च ग छ त ।। १५९ ।। ी

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ाङ् नद तीथम जानेसे ज कृताथ हो जाता है। वह सब पाप से शु च होकर इ लोकम जाता है ।। ऋषभ पमासा मे यं ौ च नषूदनम् । सर व यामुप पृ य वमान थो वराजते ।। १६० ।। तीथसेवी मनु य प व ऋषभ प और ौ च नषूदनतीथम जाकर सर वतीम नान करनेसे वमानपर वराजमान होता है ।। १६० ।। औ ालकं महाराज तीथ मु न नषे वतम् । त ा भषेकं कृ वा वै सवपापैः मु यते ।। १६१ ।। महाराज! मु नय से से वत औ ालकतीथम नान करके मनु य सब पाप से मु हो जाता है ।। १६१ ।। धमतीथ समासा पु यं षसे वतम् । वाजपेयमवा ो त वमान थ पू यते ।। १६२ ।। परम प व षसे वत धमतीथम जाकर नान करनेवाला मनु य वाजपेयय का फल पाता और वमानपर बैठकर पू जत होता है ।। १६२ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण पुल यतीथया ायां चतुरशी ततमोऽ यायः ।। ८४ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम पुल यक तीथया ासे स ब ध रखनेवाला चौरासीवाँ अ याय पूरा आ ।। ८४ ।।

* श याका अथ है डंडा। कोई बलवान् पु ष डंडेको खूब जोर लगाकर फके तो वह जहाँ गरे, उतनी रके थानको एक श या नपात कहते ह। ऐसे ही छः श या नपातक री समझ लेनी चा हये। * तल से गौक आकृ त बनाकर उसका दान करे।

प चाशी ततमोऽ यायः गंगासागर, अयो या, च कूट, याग आ द व भ तीथ क म हमाका वणन और गंगाका माहा य पुल य उवाच अथ सं यां समासा संवे ं तीथमु मम् । उप पृ य नरो व ां लभते ना संशयः ।। १ ।। पुल यजी कहते ह—भी म! तदन तर ातः-सं याके समय उ म संवे तीथम जाकर नान करनेसे मनु य व ालाभ करता है; इसम संशय नह है ।। १ ।। राम य च भावेण तीथ राजन् कृतं पुरा । त लौ ह यं समासा व ाद् ब सुवणकम् ।। २ ।। राजन्! पूवकालम ीरामके भावसे जो तीथ कट आ उसका नाम लौ ह यतीथ है। उसम जाकर नान करनेसे मनु यको ब त-सी सुवणरा श ा त होती है ।। २ ।। करतोयां समासा रा ोपो षतो नरः । अ मेधमवा ो त जाप तकृतो व धः ।। ३ ।। करतोयाम जाकर नान करके तीन रात उपवास करनेवाला मनु य अ मेधय का फल पाता है। यह ाजी ारा क ई व था है ।। ३ ।। ग ाया त राजे सागर य च संगमे । अ मेधं दशगुणं वद त मनी षणः ।। ४ ।। राजे ! वहाँ गंगासागरसंगमम नान करनेसे दस अ मेधय के फलक ा त होती है, ऐसा मनीषी पु ष कहते ह ।। ४ ।। ग ाया वपरं पारं ा य यः ना त मानवः । रा मु षतो राजन् सवपापैः मु यते ।। ५ ।। राजन्! जो मानव गंगासागरसंगमम गंगाके सरे पार प ँचकर नान करता है और तीन रात वहाँ नवास करता है, वह सब पाप से छू ट जाता है ।। ५ ।। ततो वैतरण ग छे त् सवपाप मोचनीम् । वरजं तीथमासा वराज त यथा शशी ।। ६ ।। तदन तर सब पाप से छु ड़ानेवाली वैतरणीक या ा करे। वहाँ वरजतीथम जाकर नान करनेसे मनु य च माके समान का शत होता है ।। ६ ।। तरे च कुलं पु यं सवपापं पोह त । गोसह फलं ल वा पुना त वकुलं नरः ।। ७ ।। उसका पु यमय कुल संसारसागरसे तर जाता है। वह अपने सब पाप का नाश कर दे ता है और सह गोदानका फल ा त करक े अपने कुलको प व कर दे ता है ।। ७ ।। शोण य यो तरयायाः संगमे नयतः शु चः । े





तप य वा पतॄन् दे वान न ोमफलं लभेत् ।। ८ ।। शोण और यो तर याके संगमम नान करके जते य एवं प व पु ष य द दे वता और पतर का तपण करे तो वह अ न ोमय का फल पाता है ।। ८ ।। शोण य नमदाया भवे कु न दन । वंशगु म उप पृ य वा जमेधफलं लभेत् ।। ९ ।। कु न दन! शोण और नमदाके उ प थान वंशगु मतीथम नान करके तीथया ी अ मेधय का फल पाता है ।। ९ ।। ऋषभं तीथमासा कोसलायां नरा धप । वाजपेयमवा ो त रा ोपो षतो नरः ।। १० ।। गोसह फलं व ात् कुलं चैव समु रेत् । नरे र! कोसला (अयो या)-म ऋषभतीथम जाकर नानपूवक तीन रात उपवास करनेवाला मानव वाजपेयय का फल पाता है। इतना ही नह , वह सह गोदानका फल पाता और अपने कुलका भी उ ार कर दे ता है ।। १० ।। कोसलां तु समासा कालतीथमुप पृशेत् ।। ११ ।। वृषभैकादशफलं लभते ना संशयः । पु पव यामुप पृ य रा ोपो षतो नरः ।। १२ ।। गोसह फलं ल वा पुना त वकुलं नृप । कोसला नगरी (अयो या)-म जाकर कालतीथम नान करे। ऐसा करनेसे यारह वृषभदानका फल मलता है, इसम संशय नह है। पु पवतीम नान करके तीन रात उपवास करनेवाला मनु य सह गोदानका फल पाता और अपने कुलको प व कर दे ता है ।। ११-१२ ।। ततो बद रकातीथ ना वा भरतस म ।। १३ ।। द घमायुरवा ो त वगलोकं च ग छ त । भरतकुलभूषण! तदन तर बद रकातीथम नान करके मनु य द घायु पाता और वगलोकम जाता है ।। अथ च पां समासा भागीरयां क ृ तोदकः ।। १४ ।। द डा यम भग यैव गोसह फलं लभेत् । त प ात् च पाम जाकर भागीरथीम तपण करे और द ड नामक तीथम जाकर सह गोदानका फल ा त करे ।। १४ ।। लपे टकां ततो ग छे त् पु यां पु योपशो भताम् ।। १५ ।। वाजपेयमवा ो त दे वैः सव पू यते । तदन तर पु यशो भता पु यमयी लपे टकाम जाकर नान करे। ऐसा करनेसे तीथया ी वाजपेयय का फल पाता और स पूण दे वता ारा पू जत होता है ।। १५ ।। ततो महे मासा जामद य नषे वतम् ।। १६ ।। रामतीथ नरः ना वा अ मेधफलं लभेत् । े





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इसके बाद परशुरामसे वत महे पवतपर जाकर वहाँके रामतीथम नान करनेसे मनु यको अ मेधय का फल मलता है ।। १६ ।। मत य तु केदार त ैव कु न दन ।। १७ ।। त ना वा कु े गोसह फलं लभेत् । कु े कु न दन! वह मतंगका केदार है, उसम नान करनेसे मनु यको सह गोदानका फल मलता है ।। १७ ।। ीपवतं समासा नद तीरमुप पृशेत् ।। १८ ।। अ मेधमवा ो त पूज य वा वृष वजम् । ीपवतपर जाकर वहाँक नद के तटपर नान करे। वहाँ भगवान् शंकरक पूजा करके मनु यको अ मेधय का फल ा त होता है ।। १८ ।। ीपवते महादे वो दे ा सह महा ु तः ।। १९ ।। यवसत् परम ीतो ा च दशैः सह । त दे व दे ना वा शु चः यतमानसः ।। २० ।। अ मेधमवा ो त परां स च ग छ त । ऋषभं पवतं ग वा पा े दै वतपू जतम् । वाजपेयमवा ो त नाकपृ े च मोदते ।। २१ ।। ीपवतपर दे वी पावतीके साथ महातेज वी महादे वजी बड़ी स ताके साथ नवास करते ह। दे वता के साथ ाजी भी वहाँ रहते ह। वहाँ दे वकु डम नान करके प व हो जता मा पु ष अ मेधय का फल पाता और परम स लाभ करता है। पाद े शम दे वपू जत ऋषभ पवतपर जाकर तीथया ी वाजपेयय का फल पाता और वगलोकम आन दत होता है ।। १९—२१ ।। ततो ग छे त कावेर वृताम सरसां गणैः । त ना वा नरो राजन् गोसह फलं लभेत् ।। २२ ।। राजन्! तदन तर अ सरा से आवृत कावेरी नद क या ा करे। वहाँ नान करनेसे मनु य सह गोदानका फल पाता है ।। २२ ।। तत तीरे समु य क यातीथमुप पृशेत् । त ोप पृ य राजे सवपापैः मु यते ।। २३ ।। राजे ! त प ात् समु के तटपर व मान क यातीथ (क याकुमारी)-म जाकर नान करे। उस तीथम नान करते ही मनु य सब पाप से मु हो जाता है ।। २३ ।। अथ गोकणमासा षु लोकेषु व ुतम् । समु म ये राजे सवलोकनम कृतम् ।। २४ ।। य ादयो दे वा ऋषय तपोधनाः । भूतय पशाचा कनराः समहोरगाः ।। २५ ।। स चारणग धवमानुषाः प गा तथा । स रतः सागराः शैला उपास त उमाप तम् ।। २६ ।। े





महाराज! इसके बाद समु के म यम व मान भुवन व यात अखल लोकव दत गोकणतीथम जाकर नान करे। जहाँ ा आ द दे वता, तपोधन मह ष, भूत, य , पशाच, क र, महानाग, स , चारण, ग धव, मनु य, सप, नद , समु और पवत—ये सभी उमाव लभ भगवान् शंकरक उपासना करते ह ।। २४—२६ ।। त ेशानं सम य य रा ोपो षतो नरः । अ मेधमवा ो त गाणप यं च व द त ।। २७ ।। वहाँ भगवान् शवक पूजा करके तीन रात उपवास करनेवाला मनु य अ मेधय का फल पाता और गणप तपद ा त कर लेता है ।। २७ ।। उ य ादशरा ं तु पूता मा च भवे रः । तत एव च गाययाः थानं ैलो यपू जतम् ।। २८ ।। वहाँ बारह रात नवास करनेसे मनु यका अ तःकरण प व हो जाता है। वह गाय ीका लोक-पू जत थान है ।। २८ ।। रा मु षत त गोसह फलं लभेत् । नदशनं च य ं ा णानां नरा धप ।। २९ ।। वहाँ तीन रात नवास करनेवाला पु ष सह गोदानका फल ा त करता है। नरे र! ा ण क पहचानके लये वहाँ य उदाहरण है ।। २९ ।। गाय पठते य तु यो नसंकरज तथा । गाथा च गा थका चा प त य स प ते नृप ।। ३० ।। राजन्! जो वणसंकर यो नम उ प आ है, वह य द गाय ीम का पाठ करता है तो उसके मुखसे वह गाथा या गीतक तरह वर और वण के नयमसे र हत होकर नकलती है; अथात् वह गाय ीका उ चारण ठ क नह कर सकता ।। ३० ।। अ ा ण य सा व पठत तु ण य त । जो सवथा ा ण नह है, ऐसा मनु य य द वहाँ गाय ीम का पाठ करे तो वहाँ वह म लु त हो जाता है; अथात् उसे भूल जाता है ।। ३० ।। संवत य तु व षवापीमासा लभाम् ।। ३१ ।। प य भागी भव त सुभग जापते । राजन्! वहाँ ष संवतक लभ बावली है। उसम नान करके मनु य सु दर पका भागी और सौभा यशाली होता है ।। ३१ ।। ततो वेणां समासा रा ोपो षतो नरः ।। ३२ ।। मयूरहंससंयु ं वमानं लभते नरः । तदन तर वेणा नद के तटपर जाकर तीन रात उपवास करनेवाला मनु य (मृ युके प ात्) मोर और हंस से जुता आ वमानको ा त करता है ।। ३२ ।। ततो गोदावर ा य न यं स नषे वताम् ।। ३३ ।। गवां मेधमवा ो त वासुकेल कमु मम् । वेणायाः संगमे ना वा वा जमेधफलं लभेत् ।। ३४ ।। े े



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त प ात् सदा स पु ष से से वत गोदावरीके तटपर जाकर नान करनेसे तीथया ी गोमेधय का फल पाता और वासु कके लोकम जाता है । वेणासंगमम नान करके मनु य अ मेधय के फलका भागी होता है ।। वरदासंगमे ना वा गोसह फलं लभेत् । थानं समासा रा ोपो षतो नरः ।। ३५ ।। गोसह फलं व ात् वगलोकं च ग छ त । वरदासंगमतीथम नान करनेसे सह गोदानका फल मलता है। थानम जाकर तीन रात उपवास करनेवाला मनु य सह गोदानका फल पाता और वगलोकम जाता है ।। ३५ ।। कुश लवनमासा चारी समा हतः ।। ३६ ।। रा मु षतः ना वा अ मेधफलं लभेत् । कुश लवनतीथम जाकर नान करके चयपालनपूवक एका च हो तीन रात नवास करनेवाला पु ष अ मेधय का फल पाता है ।। ३६ ।। ततो दे व दे ऽर ये कृ णवेणाजलो वे ।। ३७ ।। जा त मर दे ना वा भवे जा त मरो नरः । तदन तर कृ णवेणाके जलसे उ प ए रमणीय दे वकु डम, जसे जा त मर द कहते ह, नान करे। वहाँ नान करनेसे मनु य जा त मर (पूवज मक बात को मरण करनेक श वाला) होता है ।। ३७ ।। य तुशतै र ् वा दे वराजो दवं गतः ।। ३८ ।। अ न ोमफलं व ाद् गमनादे व भारत । सवदे व दे ना वा गोसह फलं लभेत् ।। ३९ ।। वह सौ य का अनु ान करके दे वराज इ वगके सहासनपर आसीन ए थे। भरतन दन! वहाँ जानेमा से या ी अ न ोमय का फल पा लेता है। त प ात् सवदे वदम नान करनेसे सह गोदानका फल मलता है ।। ३८-३९ ।। ततो वाप महापु यां पयो ण स रतां वराम् । पतृदेवाचनरतो गोसह फलं लभेत् ।। ४० ।। तदन तर परम पु यमयी वापी और स रता म े पयो णीम जाकर नान करे और दे वता तथा पतर के पूजनम त पर रहे, ऐसा करनेसे तीथसेवीको सह गोदानका फल मलता है ।। ४० ।। द डकार यमासा पु यं राज ुप पृशेत् । गोसह फलं त य नातमा य भारत ।। ४१ ।। राजन्! भरतन दन! जो द डकार यम जाकर नान करता है, उसे नान करनेमा से सह गोदानका फल ा त होता है ।। ४१ ।। शरभ ा मं ग वा शुक य च महा मनः । न ग तमवा ो त पुना त च कुलं नरः ।। ४२ ।। े

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शरभंग मु न तथा महा मा शुकके आ मपर जानेसे मनु य कभी ग तम नह पड़ता और अपने कुलको प व कर दे ता है ।। ४२ ।। ततः शूपारकं ग छे जामद य नषे वतम् । रामतीथ नरः ना वा व ाद् ब सुवणकम् ।। ४३ ।। तदन तर परशुरामसे वत शूपारकतीथक या ा करे। वहाँ रामतीथम नान करनेसे मनु यको चुर सुवणरा शक ा त होती है ।। ४३ ।। स तगोदावरे ना वा नयतो नयताशनः । महत् पु यमवा ो त दे वलोकं च ग छ त ।। ४४ ।। स तगोदावरतीथम नान करके नयमपालनपूवक नय मत भोजन करनेवाला पु ष महान् पु यलाभ करता और दे वलोकम जाता है ।। ४४ ।। ततो दे वपथं ग वा नयतो नयताशनः । दे वस य यत् पु यं तदे वा ो त मानवः ।। ४५ ।। त प ात् नयमपालनके साथ-साथ नय मत आहार हण करनेवाला मानव दे वपथम जाकर दे वस का जो पु य है, उसे पा लेता है ।। ४५ ।। तु कार यमासा चारी जते यः । वेदान यापयत् त ऋ षः सार वतः पुरा ।। ४६ ।। तुंगकार यम जाकर चयका पालन करते ए इ य को अपने वशम रखे। ाचीनकालम वहाँ सार वत ऋ षने अ य ऋ षय को वेद का अ ययन कराया था ।। ४६ ।। त वेदेषु न ेषु मुनेर रसः सुतः । ऋषीणामु रीयेषु सूप व ो यथासुखम् ।। ४७ ।। एक समय उन ऋ षय को सारा वेद भूल गया। इस कार वेद के न होने (भूल जाने)-पर अं गरा मु नका पु ऋ षय के उ रीय व (चादर )-म छपकर सुखपूवक बैठ गया (और व धपूवक ॐकारका उ चारण करने लगा) ।। ४७ ।। ओङ ् कारेण यथा यायं स यगु चा रतेन ह । येन यत् पूवम य तं तत् सव समुप थतम् ।। ४८ ।। नयमके अनुसार ॐकारका ठ क-ठ क उ चारण होनेपर, जसने पूवकालम जस वेदका अ ययन एवं अ यास कया था, उसे वह सब मरण हो आया ।। ४८ ।। ऋषय त दे वा व णोऽ नः जाप तः । ह रनारायण त महादे व तथैव च ।। ४९ ।। उस समय वहाँ ब त-से ऋ ष, दे वता, व ण, अ न, जाप त, भगवान् नारायण और महादे वजी भी उप थत ए ।। ४९ ।। पतामह भगवान् दे वैः सह महा ु तः । भृगुं नयोजयामास याजनाथ महा ु तम् ।। ५० ।। महातेज वी भगवान् ाने दे वता के साथ जाकर परम का तमान् भृगक ु ो य करानेके कामपर नयु कया ।। ५० ।। ततः स च े भगवानृषीणां व धवत् तदा । े

सवषां पुनराधानं व ध ेन कमणा ।। ५१ ।। आ यभागेन त ा नं तप य वा यथा व ध । दे वाः वभवनं याता ऋषय यथा मम् ।। ५२ ।। तदन तर भगवान् भृगन ु े वहाँ सब ऋ षय के यहाँ शा ीय व धके अनुसार पुनः भलीभाँ त अ न थापन कराया। उस समय आ यभागके ारा व धपूवक अ नको तृ त करके सब दे वता और ऋ ष मशः अपने-अपने थानको चले गये ।। ५१-५२ ।। तदर यं व य तु कं राजस म । पापं ण य यखलं यो वा पु ष य वा ।। ५३ ।। नृप े ! उस तुंगकार यम वेश करते ही ी या पु ष सबके पाप न हो जाते ह ।। ५३ ।। त मासं वसेद ् धीरो नयतो नयताशनः । लोकं जेद ् राजन् कुलं चैव समु रेत् ।। ५४ ।। धीर पु षको चा हये क वह नयमपालनपूवक नय मत भोजन करते ए एक मासतक वहाँ रहे। राजन् ऐसा करनेवाला तीथया ी लोकम जाता और अपने कुलका उ ार कर दे ता है ।। ५४ ।। मेधा वकं समासा पतॄन् दे वां तपयेत् । अ न ोममवा ो त मृ त मेधां च व द त ।। ५५ ।। त प ात् मेधा वकतीथम जाकर दे वता और पतर का तपण करे; ऐसा करनेवाला पु ष अ न ोमय का फल पाता और मृ त एवं बु को ा त कर लेता है ।। अ काल रं नाम पवतं लोक व ुतम् । त दे व दे ना वा गोसह फलं लभेत् ।। ५६ ।। इस तीथम कालंजर नामक लोक व यात पवत है, वहाँ दे वद नामक तीथम नान करनेसे सह गोदानका फल मलता है ।। ५६ ।। योः नातः साधयेत् त गरौ काल रे नृप । वगलोके महीयेत नरो ना य संशयः ।। ५७ ।। राजन्! जो कालंजर पवतपर नान करके वहाँ साधन करता है, वह मनु य वगलोकम त त होता है; इसम संशय नह है ।। ५७ ।। ततो ग रवर े े च कूटे वशा पते । म दा कन समासा सवपाप णा शनीम् ।। ५८ ।। त ा भषेकं कुवाणः पतृदेवाचने रतः । अ मेधमवा ो त ग त च परमां जेत् ।। ५९ ।। राजन्! तदन तर पवत े च कूटम सब पाप का नाश करनेवाली म दा कनीके तटपर प ँचकर उसम नान करे और दे वता तथा पतर क पूजाम लग जाय। इससे वह अ मेधय का फल पाता और परम ग तको ा त होता है ।। ५८-५९ ।। ततो ग छे त धम भतृ थानमनु मम् । य न यं महासेनो गुहः सं न हतो नृप ।। ६० ।। े े

त ग वा नृप े गमनादे व स य त । धम नरेश! त प ात् तीथया ी परम उ म भतृ थानक या ा करे, जहाँ महासेन का तकेयजी नवास करते ह। नृप े ! वहाँ जानेमा से स ा त होती है ।। ६० ।। को टतीथ नरः ना वा गोसह फलं लभेत् ।। ६१ ।। द णमुपावृ य ये थानं जे रः । अ भग य महादे वं वराज त यथा शशी ।। ६२ ।। को टतीथम नान करके मनु य सह गोदानका फल पाता है। उसक प र मा करके तीथया ी मानव ये थानको जाय। वहाँ महादे वजीका दशन-पूजन करनेसे वह च माके समान का शत होता है ।। त कूपे महाराज व ुता भरतषभ । समु ा त च वारो नवस त यु ध र ।। ६३ ।। भरतकुलभूषण महाराज यु ध र! वहाँ एक कूप है जसम चार समु नवास करते ह ।। ६३ ।। त ोप पृ य राजे पतृदेवाचने रतः । नयता मा नरः पूतो ग छे त परमां ग तम् ।। ६४ ।। राजे ! उसम नान करके दे वता और पतर के पूजनम त पर रहनेवाला जता मा पु ष प व हो परमग तको ा त होता है ।। ६४ ।। ततो ग छे त राजे शृ वेरपुरं महत् । य तीण महाराज रामो दाशर थः पुरा ।। ६५ ।। राजे ! वहाँसे महान् शृवेरपुरक या ा करे। महाराज! पूवकालम दशरथन दन ीरामच जीने वह गंगा पार क थी ।। ६५ ।। त मं तीथ महाबाहो ना वा पापैः मु यते । ग ायां तु नरः ना वा चारी समा हतः ।। ६६ ।। वधूतपा मा भव त वाजपेयं च व द त । महाबाहो! उस तीथम नान करके मनु य सब पाप से मु हो जाता है। चयपालनपूवक एका हो गंगाजीम नान करके मनु य पापर हत होता तथा वाजपेयय का फल पाता है ।। ६६ ।। ततो मु वटं ग छे त् थानं दे व य धीमतः ।। ६७ ।। अ भग य महादे वम भवा च भारत । द णमुपावृ य गाणप यमवा ुयात् ।। ६८ ।। त मं तीथ तु जा ां ना वा पापैः मु यते । तदन तर तीथया ी परम बु मान् महादे वजीके मुंजवट नामक तीथको जाय। भरतन दन उस तीथम महादे वजीके पास जाकर उ ह णाम करके प र मा करनेसे मनु य गणप तपद ा त कर लेता है। उ तीथम जाकर गंगाम नान करनेसे मनु य सब पाप से छु टकारा पा जाता है ।। ६७-६८ ।। ो





ततो ग छे त राजे यागमृ षसं तुतम् ।। ६९ ।। त ादयो दे वा दश स दगी राः । लोकपाला सा या पतरो लोकस मताः ।। ७० ।। सन कुमार मुखा तथैव परमषयः । अ रः मुखा ैव तथा षयोऽमलाः ।। ७१ ।। तथा नागाः सुपणा स ा चरा तथा । स रतः सागरा ैव ग धवा सरसोऽ प च ।। ७२ ।। ह र भगवाना ते जाप तपुर कृतः । त ी य नकु डा न येषां म येन जा वी ।। ७३ ।। वेगेन सम त ा ता सवतीथपुर कृता । तपन य सुता दे वी षु लोकेषु व ुता ।। ७४ ।। यमुना ग या साध संगता लोकपावनी । ग ायमुनयोम यं पृ थ ा जघनं मृतम् ।। ७५ ।। राजे ! त प ात् मह षय ारा शं सत यागतीथम जाय। जहाँ ा आ द दे वता, दशा, द पाल, लोकपाल, सा य, लोकस मा नत पतर, सन कुमार आ द मह ष, अं गरा आ द नमल ष, नाग, सुपण, स , सूय, नद , समु , ग धव, अ सरा तथा ाजीस हत भगवान् व णु नवास करते ह। वहाँ तीन अ नकु ड ह जनके बीचसे सब तीथ से स प गंगा वेगपूवक बहती ह। भुवन व यात सूयपु ी लोकपावनी यमुनादे वी वहाँ गंगाजीके साथ मली ह। गंगा और यमुनाका म यभाग पृ वीका जघन माना गया है ।। ६९—७५ ।। यागं जघन थानमुप थमृषयो व ः । यागं स त ानं क बला तरौ तथा ।। ७६ ।। तीथ भोगवती चैव वे दरेषा जापतेः । त वेदा य ा मू तम तो यु ध र ।। ७७ ।। जाप तमुपास ते ऋषय तपोधनाः । यज ते तु भदवा तथा च धरा नृपाः ।। ७८ ।। ततः पु यतमं नाम षु लोकेषु भारत । यागं सवतीथ यः वद य धकं वभो ।। ७९ ।। गमनात् त य तीथ य नामसंक तनाद प । मृ युकालभया चा प नरः पापात् मु यते ।। ८० ।। ऋ षय ने यागको जघन थानीय उप थ बताया है। त ानपुर (झूसी)-स हत याग, क बल और अ तर नाग तथा भोगवतीतीथ यह ाजीक वेद है। यु ध र! उस तीथम वेद और य मू तमान् होकर रहते ह और जाप तक उपासना करते ह। तपोधन ऋ ष, दे वता तथा च धर नृप तगण वहाँ य ारा भगवान्का यजन करते ह। भरतन दन! इसी लये तीन लोक म यागको सब तीथ क अपे ा े एवं पु यतम बताते ह। उस ी

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तीथम जानेसे अथवा उसका नाम लेनेमा से भी मनु य मृ युकालके भय और पापसे मु हो जाता है ।। ७६—८० ।। त ा भषेकं यः कुयात् संगमे लोक व ुते । पु यं स फलमा ो त राजसूया मेधयोः ।। ८१ ।। वहाँके व व यात संगमम जो नान करता है वह राजसूय और अ मेधय का पु यफल ा त कर लेता है ।। ८१ ।। एषा यजनभू म ह दे वानाम भसं कृता । त द ं सू मम प महद् भव त भारत ।। ८२ ।। भरतन दन! यह दे वता क सं कार क ई य भू म है। यहाँ दया आ थोड़ा-सा भी दान महान् होता है ।। ८२ ।। न वेदवचनात् तात न लोकवचनाद प । मत मणीया ते यागमरणं त ।। ८३ ।। तात! तु ह कसी वै दक वचनसे या लौ कक वचनसे भी यागम मरनेका वचार नह यागना चा हये ।। ८३ ।। दश तीथसह ा ण ष ः को तथापराः । येषां सां न यम ैव क ततं कु न दन ।। ८४ ।। चतु व े च यत् पु यं स यवा दषु चैव यत् । नात एव तदा ो त ग ायमुनसंगमे ।। ८५ ।। कु न दन! साठ करोड़ दस हजार तीथ का नवास केवल इस यागम ही बताया गया है। चार व ा के ानसे जो पु य होता है तथा स य बोलनेवाले य को जस पु यक ा त होती है वह सब गंगा-यमुनाके संगमम नान करनेमा से ा त हो जाता है ।। ८४-८५ ।। त भोगवती नाम वासुके तीथमु मम् । त ा भषेकं यः कुयात् सोऽ मेधफलं लभेत् ।। ८६ ।। यागम भोगवती नामसे स वासु क नागका उ म तीथ है। जो वहाँ नान करता है, उसे अ मेधय का फल मलता है ।। ८६ ।। त हंस पतनं तीथ ैलो य व ुतम् । दशा मे धकं चैव ग ायां कु न दन ।। ८७ ।। कु न दन! वह लोक व यात हंस पतन नामक तीथ है और गंगाके तटपर दशा मे धक तीथ है ।। ८७ ।। कु े समा ग ा य त ावगा हता । वशेषो वै कनखले यागे परमं महत् ।। ८८ ।। गंगाम जहाँ कह भी नान कया जाय वह कु े के समान पु यदा यनी है। कनखलम गंगाका नान वशेष माहा य रखता है और यागम गंगा- नानका माहा य सबक अपे ा ब त अ धक है ।। ८८ ।। य कायशतं कृ वा कृतं ग ा भषेचनम् । ो े

सव तत् त य ग ा भो दह य न रवे धनम् ।। ८९ ।। सव कृतयुगे पु यं ेतायां पु करं मृतम् । ापरेऽ प कु े ं ग ा क लयुगे मृता ।। ९० ।। पु करे तु तप त येद ् दानं द ा महालये । मलये व नमारोहेद ् भृगुतु े वनाशनम् ।। ९१ ।। जैसे अ न धनको जला दे ती है, उसी कार सैकड़ न ष कम करके भी य द गंगा नान कया जाय तो उसका जल उन सब पाप को भ म कर दे ता है। स ययुगम सभी तीथ पु यदायक होते ह। ेताम पु करका मह व है। ापरम कु े वशेष पु यदायक है और क लयुगम गंगाक अ धक म हमा बतायी गयी है। पु करम तप करे, महालयम दान दे , मलय पवतम अ नपर आ ढ हो और भृगत ु ुंगम उपवास करे ।। ८९—९१ ।। पु करे तु कु े े ग ायां म यमेषु च । ना वा तारयते ज तुः स तस तावरां तथा ।। ९२ ।। पु कर, कु े , गंगा तथा याग आ द म यवत तीथ म नान करके मनु य अपने आगे-पीछे क सात-सात पी ढ़य का उ ार कर दे ता है ।। ९२ ।। पुना त क तता पापं ा भ ं य छ त । अवगाढा च पीता च पुना यास तमं कुलम् ।। ९३ ।। गंगाजीका नाम लया जाय तो वह सारे पाप को धो-बहाकर प व कर दे ती है। दशन करनेपर क याण दान करती है तथा नान और जलपान करनेपर वह मनु यक सात पी ढ़य को पावन बना दे ती है ।। ९३ ।। यावद थ मनु य य ग ायाः पृशते जलम् । तावत् स पु षो राजन् वगलोके महीयते ।। ९४ ।। राजन्! मनु यक ही जबतक गंगाजलका पश करती है, तबतक वह पु ष वगलोकम पू जत होता है ।। ९४ ।। यथा पु या न तीथा न पु या यायतना न च । उपा य पु यं ल वा च भव यमरलोकभाक् ।। ९५ ।। जतने पु य तीथ ह और जतने पु य म दर ह, उन सबक उपासना (सेवन)-से पु यलाभ करके मनु य दे वलोकका भागी होता है ।। ९५ ।। न ग ास शं तीथ न दे वः केशवात् परः । ा णे यः परं ना त एवमाह पतामहः ।। ९६ ।। गंगाके समान कोई तीथ नह , भगवान् व णुसे बढ़कर कोई दे वता नह और ा ण से उ म कोई वण नह है; ऐसा ाजीका कथन है ।। ९६ ।। य ग ा महाराज स दे श तत् तपोवनम् । स े ं च त ेयं ग ातीरसमा तम् ।। ९७ ।। महाराज! जहाँ गंगा बहती ह वही उ म दे श है; और वही तपोवन है। गंगाके तटवत थानको स े समझना चा हये ।। ९७ ।। इदं स यं जातीनां साधूनामा मज य च । े

सु दां च जपेत् कण श य यानुगत य च ।। ९८ ।। इस स य स ा तको ा ण आ द ज , साधु पु ष , पु , सु द , श यवग तथा अपने अनुगत मनु य के कानम कहना चा हये ।। ९८ ।। इदं ध य मदं मे य मदं व यमनु मम् । इदं पु य मदं र यं पावनं ध यमु मम् ।। ९९ ।। यह गंगा-माहा य ध य, प व , वग द और परम उ म है। यह पु यदायक, रमणीय, पावन, उ म, धमसंगत और े है ।। ९९ ।। महष णा मदं गु ं सवपाप मोचनम् । अधी य जम ये च नमलः वगमा ुयात् ।। १०० ।। यह मह षय का गोपनीय रह य है। सब पाप का नाश करनेवाला है। जम डलीम इस गंगा-माहा यका पाठ करके मनु य नमल हो वगलोकम प ँच जाता है ।। १०० ।। ीमत् व य तथा पु यं सप नशमनं शवम् । मेधाजननम यं वै तीथवंशानुक तनम् ।। १०१ ।। यह तीथसमूह क म हमाका वणन परम उ म, स प दायक, वग द, पु यकारक, श ु का नवारण करनेवाला, क याणकारक तथा मेधाश को उ प करनेवाला है ।। १०१ ।। अपु ो लभते पु मधनो धनमा ुयात् । मह वजयते राजा वै यो धनमवा ुयात् ।। १०२ ।। इस तीथ-माहा यका पाठ करनेसे पु हीनको पु ा त होता है, धनहीनको धन मलता है, राजा इस पृ वीपर वजय पाता है और वै यको ापारम धन मलता है ।। १०२ ।। शू ो यथे सतान् कामान् ा णः पारगः पठन् । य ेदं शृणुया यं तीथपु यं नरः शु चः ।। १०३ ।। जातीः स मरते ब नाकपृ े च मोदते । ग या य प च तीथा न क तता यगमा न च ।। १०४ ।। शू मनोवां छत व तुएँ पाता है और ा ण इसका पाठ करे तो वह सम त शा का पारंगत व ान होता है। जो मनु य तीथ के इस पु य माहा यको त दन सुनता है वह प व हो पहलेके अनेक ज म क बात याद कर लेता है और दे ह यागके प ात् वगलोकम आन दका अनुभव करता है। भी म! मने यहाँ ग य और अग य सभी कारके तीथ का वणन कया है ।। मनसा ता न ग छे त सवतीथसमी या । एता न वसु भः सा यैरा द यैम द भः ।। १०५ ।। ऋ ष भदवक पै नाता न सुकृतै ष भः । एवं वम प कौर व धनानेन सु त ।। १०६ ।। ज तीथा न नयतः पु यं पु येन वधयन् । भा वतैः करणैः पूवमा त या छ तदशनात् ।। १०७ ।। े ी

ा य ते ता न तीथा न स ः शा ानुद श भः । ना ती नाकृता मा च नाशु चन च त करः ।। १०८ ।। ना त तीथषु कौर न च व म तनरः । वया तु स य वृ ेन न यं धमाथद शना ।। १०९ ।। पता पतामह ैव सव च पतामहाः । पतामहपुरोगा दे वाः स षगणा नृप ।। ११० ।। तव धमण धम न यमेवा भतो षताः । अवा य स वं लोकान् वै वसूनां वासवोपम । क त च महत भी म ा यसे भु व शा तीम् ।। १११ ।। स पूण तीथ के दशनक इ छा पूण करनेके लये मनु य जहाँ जाना स भव न हो उन अग य तीथ म मनसे या ा करे, अथात् मनसे उन तीथ का च तन करे। वसुगण, सा यगण, आ द यगण, म ण, दोन अ नीकुमार तथा दे वोपम मह षय ने भी पु य लाभक इ छासे उन तीथ म नान कया है। उ म तका पालन करनेवाले कु न दन! इसी कार तुम भी व धपूवक शौच-संतोषा द नयम का पालन करते और पु यसे पु यको बढ़ाते ए उन तीथ क या ा करो। आ तकता और वेद के अनुशीलनसे पहले अपने इ य को प व करके शा साधु पु ष ही उन तीथ को ा त करते ह। कु न दन! जो चय आ द त का पालन नह करता, जसने अपने च को वशम नह कया, जो अप व आचार- वचारवाला और चोर है, जसक बु व है, ऐसा मनु य ा न होनेके कारण तीथ म नान नह करता। तुम धम और अथके ाता तथा न य सदाचारम त पर रहनेवाले हो। धम ! तुमने पता- पतामह- पतामह, ा आ द दे वता तथा मह षगण इन सबको सदा वधमपालनसे संतु कया है, अतः इ के समान तेज वी नरेश! तुम वसु के लोकम जाओगे। भी म! तु ह इस पृ वीपर वशाल एवं अ य क त ा त होगी ।। १०५— १११ ।। नारद उवाच एवमु वा यनु ाय पुल यो भगवानृ षः । ीतः ीतेन मनसा त ैवा तरधीयत ।। ११२ ।। नारदजी कहते ह—यु ध र! ऐसा कहकर भी मजीक अनुम त ले संतु ए भगवान् पुल य मु न स मनसे वह अ तधान हो गये ।। ११२ ।। भी म कु शा ल शा त वाथद शवान् । पुल यवचना चैव पृ थव प रच मे ।। ११३ ।। कु े ! शा के ता वक अथको जाननेवाले भी मने मह ष पुल यके वचनसे (तीथया ाके लये) सारी पृ वीक प र मा क ।। ११३ ।। एवमेषा महाभाग त ाने त ता । तीथया ा महापु या सवपाप मोचनी ।। ११४ ।। ो









महाभाग! इस कार यह सब पाप को र करनेवाली महापु यमयी तीथया ा त ानपुर ( याग)-म त त है ।। ११४ ।। अनेन व धना य तु पृ थव संच र य त । अ मेधशत या यं फलं े य स भो य त ।। ११५ ।। जो इस व धसे (तीथया ाके उ े यसे) सारी पृ वीक प र मा करेगा, वह सौ अ मेधय से भी उ म पु यफल पाकर दे ह यागके प ात् उसका उपभोग करेगा ।। ११५ ।। तत ा गुणं पाथ ा यसे धममु मम् । भी मः कु णां वरो यथापूवमवा तवान् ।। ११६ ।। कु तीन दन! कु वर भी मने पहले जस कार तीथया ाज नत पु य ा त कया था, उससे भी आठगुने उ म धमक उपल ध तु ह होगी ।। ११६ ।। नेता च वमृषीन् य मात् तेन तेऽ गुणं फलम् । र ोगण वक णा न तीथा येता न भारत । न गता न मनु ये ै वामृते कु न दन ।। ११७ ।। तुम अपने साथ इन सब ऋ षय को ले जाओगे, इसी लये तु ह आठगुना पु यफल ा त होगा। भरतकुल-भूषण कु न दन! इन सभी तीथ म रा स के समुदाय फैले ए ह। तु हारे सवा, सरे नरेश ने वहाँक या ा नह क है ।। ११७ ।। इदं दे व षच रतं सवतीथा भसंवृतम् । यः पठ े त् क यमु थाय सवपापैः मु यते ।। ११८ ।। जो मनु य सबेरे उठकर दे व ष पुल य ारा व णत स पूण तीथ के माहा यसे संयु इस संगका पाठ करता है, वह सब पाप से मु हो जाता है ।। ऋ षमु याः सदा य वा मी क वथ क यपः । आ ेयः कु डजठरो व ा म ोऽथ गौतमः ।। ११९ ।। अ सतो दे वल ैव माक डेयोऽथ गालवः । भर ाजो व स मु न ालक तथा ।। १२० ।। शौनकः सह पु ेण ास तपतां वरः । वासा मु न े ो जाबा ल महातपाः ।। १२१ ।। एते ऋ षवराः सव व ती ा तपोधनाः । ए भः सह महाराज तीथा येता यनु ज ।। १२२ ।। महाराज! ऋ ष वर वा मी क, क यप, आ ेय, कु डजठर, व ा म , गौतम, अ सत, दे वल, माक डेय, गालव, भर ाज, व स , उ ालक मु न, शौनक तथा पु स हत तपोधन वर ास, मु न े वासा और महातप वी जाबा ल—ये सभी मह ष जो तप याके धनी ह, तु हारी ती ा कर रहे ह। इन सबके साथ उ तीथ म जाओ ।। ११९ —१२२ ।। एष ते लोमशो नाम मह षर मत ु तः । समे य त महाराज तेन साधमनु ज ।। १२३ ।। े े ी ो े े े े

महाराज! ये अ मततेज वी मह ष लोमश तु हारे पास आनेवाले ह, उ ह साथ लेकर या ा करो ।। १२३ ।। मया प सह धम तीथा येता यनु मात् । ा यसे महत क त यथा राजा महा भषः ।। १२४ ।। धम ! इस या ाम म भी तु हारा साथ ँ गा। ाचीन राजा महा भषके समान तुम भी मशः इन तीथ म मण करते ए महान् यश ा त करोगे ।। १२४ ।। यथा यया तधमा मा यथा राजा पु रवाः । तथा वं राजशा ल वेन धमण शोभसे ।। १२५ ।। यथा भगीरथो राजा यथा राम व ुतः । तथा वं सवराज यो ाजसे र मवा नव ।। १२६ ।। नृप े ! जैसे धमा मा यया त तथा राजा पु रवा थे वैसे ही तुम भी अपने धमसे सुशो भत हो रहे हो। जैसे राजा भगीरथ तथा व यात महाराज ीराम हो गये ह, उसी कार तुम भी सूयक भाँ त सब राजा से अ धक शोभा पा रहे हो ।। १२५-१२६ ।। यथा मनुयथे वाकुयथा पू महायशाः । यथा वै यो महाराज तथा वम प व ुतः ।। १२७ ।। यथा च वृ हा सवान् सप नान् नदहन् पुरा । ैलो यं पालयामास दे वराड् वगत वरः ।। १२८ ।। तथा श ु यं कृ वा वं जाः पाल य य स । वधम व जतामुव ा य राजीवलोचन ।। १२९ ।। या त या य स धमण कातवीयाजुनो यथा ।। १३० ।। महाराज! जैसे मनु, जैसे इ वाकु, जैसे महायश वी पू और जैसे वेनन दन पृथु हो गये ह वैसी ही तु हारी भी या त है। पूवकालम वृ ासुर वनाशक दे वराज इ ने जैसे सब श ु का संहार करते ए न त होकर तीन लोक का पालन कया था, उसी कार तुम भी श ु का नाश करके जाका पालन करोगे। कमलनयन नरेश! तुम अपने धमसे जीती ई पृ वीपर अ धकार ा त करके वधमपालन ारा कातवीय अजुनके समान व यात होओगे ।। १२७—१३० ।। वैश पायन उवाच एवमा ा य राजानं नारदो भगवानृ षः । अनु ा य महाराज त ैवा तरधीयत ।। १३१ ।। वैश पायनजी कहते ह—महाराज जनमेजय! दे व ष नारद इस कार राजा यु ध रको आ ासन दे कर उनक आ ा ले वह अ तधान हो गये ।। १३१ ।। यु ध रोऽ प धमा मा तमेवाथ व च तयन् । तीथया ा तं पु यमृषीणां यवेदयत् ।। १३२ ।। धमा मा यु ध रने भी इसी वषयका च तन करते ए अपने पास रहनेवाले मह षय से तीथया ास ब धी महान् पु यके वषयम नवेदन कया ।। १३२ ।। ी









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ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण पुल यतीथया ायां नारदवा ये प चाशी ततमोऽ यायः ।। ८५ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम मह ष पुल यक तीथया ाके स ब धम नारदवा य वषयक पचासीवाँ अ याय पूरा आ ।। ८५ ।।

षडशी ततमोऽ यायः यु ध रका धौ य मु नसे पु य तपोवन, आ म एवं नद आ दके वषयम पूछना वैश पायन उवाच ातॄणां मतमा ाय नारद य च धीमतः । पतामहसमं धौ यं ाह राजा यु ध रः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! अपने भाइय तथा परम बु मान् दे व ष नारदक स म त जानकर राजा यु ध रने पतामहके समान भावशाली पुरो हत धौ यजीसे कहा— ।। १ ।। मया स पु ष ा ो ज णुः स यपरा मः । अ हेतोमहाबा र मता मा ववा सतः ।। २ ।। ‘ न्! मने अ ा तके लये वजयी स य-परा मी, महामना एवं तापी पु ष सह महाबा अजुनको नवा सत कर रखा है ।। २ ।। स ह वीरोऽनुर समथ तपोधनः । कृती च भृशम य े वासुदेव इव भुः ।। ३ ।। ‘वह वीर मुझम अनुराग रखनेवाला, साम यशाली, तप याका धनी, पु या मा और अ -श के ानम भगवान् ीकृ णक भाँ त भावशाली है ।। ३ ।। अहं ेतावुभौ न् कृ णाव र वघा तनौ । अ भजाना म व ा तौ तथा ासः तापवान् ।। ४ ।। ‘ व वर! म इन दोन कृ णनामधारी वीर को श ु का संहार करनेम समथ और महापरा मी समझता ँ। महा तापी वेद ासजीक भी यही धारणा है ।। ४ ।। युगौ पु डरीका ौ वासुदेवधनंजयौ । नारदोऽ प तथा वेद योऽ यशंसत् सदा मम ।। ५ ।। ‘कमलके समान ने वाले भगवान् ीकृ ण और अजुन तीन युग से सदा साथ रहते आये ह। नारदजी भी इन दोन को इसी पम जानते ह; और सदा मुझसे इस बातक चचा करते रहते ह ।। ५ ।। तथाहम प जाना म नरनारायणावृषी । श ोऽय म यतो म वा मया स े षतोऽजुनः ।। ६ ।। इ ादनवरः श ं सुरसूनुः सुरा धपम् । ु म ा ण चादातु म ा द त ववा सतः ।। ७ ।। भी म ोणाव तरथौ कृपो ौ ण जयः । धृतरा य पु ेण वृता यु ध महारथाः ।। ८ ।। ‘

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‘म भी ऐसा ही समझता ँ क ीकृ ण और अजुन सु स नर-नारायण ऋ ष ह। अजुनको श शाली समझकर ही मने उसे द ा क ा तके लये भेजा है। दे वपु अजुन इ से कम नह ह। यह जानकर ही मने उसे दे वराज इ का दशन करने और उनसे द ा को ा त करनेके लये भेजा है। भी म और ोण अ तरथी वीर ह। कृपाचाय तथा अ थामाको भी जीतना क ठन है। धृतरापु य धनने इन सभी महार थय को यु के लये वरण कर लया है ।। ६—८ ।। सव वेद वदः शूराः सवा व ष तथा । यो कामा पाथन सततं ये महाबलाः । स च द ा वत् कणः सूतपु ो महारथः ।। ९ ।। ‘वे सब-के-सब वेद , शूरवीर, स पूण अ -श के ाता, महाबली और सदा अजुनके साथ यु क अ भलाषा रखनेवाले ह। वह सूतपु महारथी कण भी द ा का ाता है ।। ९ ।। योऽ वेगा नलबलः शरा च तल नः वनः । रजोधूमोऽ स पातो धातरा ा नलो तः ।। १० ।। नसृ इव कालेन युगा ते वलनो महान् । मम सै यमयं क ं ध य त न संशयः ।। ११ ।। ‘कालने उसे लयकालीन संवतक नामक महान् अ नके समान उ प कया है। अ का वेग ही उसका वायुतु य बल है। बाण ही उसक वाला ह। हथेलीसे होनेवाली आवाज ही उस दाहक अ नका श द है। यु म उठनेवाली धूल ही उस कण पी अ नका धूम है। अ क वषा ही उसक लपट का लगना है। धृतरा-पु पी वायुका सहारा पाकर वह और भी उ त एवं व लत हो उठा है। इसम संदेह नह क वह मेरी सेनाको सूखे तनक क रा शके समान भ म कर डालेगा ।। १०-११ ।। तं स कृ णा नलोद्धूतो द ा वलनो महान् । ेतवा जबलाकाभृद ् गा डीवे ायुधो बणः ।। १२ ।। संरधः शरधारा भः सुद तं कणपावकम् । अजुनोद रतो मेघः शम य य त संयुगे ।। १३ ।। स सा ादे व सवा ण श ात् परपुरंजयः । द ा य ा ण बीभ सु तत तप यते ।। १४ ।। ‘उस आगको यु म अजुन नामक महामेघ ही बुझा सकेगा। ीकृ ण पी वायुका सहारा पाकर ही वह मेघ उठे गा। द ा का काश ही उसम बजलीक चमक होगी। रथके ेत घोड़े ही उसके नकट उड़नेवाली बकपं य क भाँ त सुशो भत ह गे। गा डीव धनुष ही इ धनुषके समान ःसह य उप थत करनेवाला होगा। वह ोधम भरकर बाण पी जलक धारासे कण पी व लत अ नको न य ही शा त कर दे गा। श ु क राजधानीपर वजय पानेवाला अजुन सा ात् इ से सारे द ा ात करेगा ।। १२—१४ ।। अलं स तेषां सवषा म त मे धीयते म तः । े ी

ना त व तकृताथानां रणेऽरीणां त या ।। १५ ।। ‘धृतरा-प क े उ सभी महार थय को जीतनेके लये वह अकेला ही पया त होगा; ऐसा मेरा ढ़ व ास है। अ यथा अ य त कृताथताका अनुभव करनेवाले श ु को दबानेका और कोई उपाय नह है ।। ते वयं पा डवं सव गृहीता मरदमम् । ारो न ह बीभ सुभारमु य सीद त ।। १६ ।। ‘अतः हम श ुह ता पा डु न दन अजुनको अव य ही सब द ा का ान ा त करके आया आ दे खगे; य क वह वीर कसी काय-भारको उठाकर उसे पूण कये बना कभी ा त नह होता ।। १६ ।। वयं तु तमृते वीरं वनेऽ मन् पदां वर । अवधानं न ग छामः का यके सह कृ णया ।। १७ ।। ‘नर े ! इस का यकवनम वीर अजुनके बना ौपद स हत हम सब पा डव का मन बलकुल नह लग रहा है ।। १७ ।। भवान यद् वनं साधु ब ं फलव छु च । आ यातु रमणीयं च से वतं पु यकम भः ।। १८ ।। ‘इस लये आप हम कसी ऐसे रमणीय वनका पता बताय जो ब त अ छा, प व , चुर अ और फलसे स प तथा पु या मा पु ष ारा से वत हो ।। १८ ।। य कं चद् वयं कालं वस तः स य व मम् । ती ामोऽजुनं वीरं वृ कामा इवा बुदम् ।। १९ ।। ‘यहाँ हमलोग कुछ काल रहकर स यपरा मी वीर अजुनके आगमनक उसी कार ती ा कर, जैसे वृ क इ छा रखनेवाले कसान बादल क राह दे खते ह ।। १९ ।। व वधाना मान् कां द् जा त यः त ुतान् । सरां स स रत ैव रमणीयां पवतान् ।। २० ।। आच व न ह मे न् रोचते तमृतेऽजुनम् । वनेऽ मन् का यके वासो ग छामोऽ यां दशं त ।। २१ ।। ‘ न्! आप सरे ा ण से सुने ए नाना कारके क तपय आ म , सरोवर , स रता तथा रमणीय पवत का पता बताइये। अजुनके बना अब का यकवनम रहना हम अ छा नह लगता; इस लये अब सरी दशाको चलगे’ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण धौ यतीथया ायां षडशी ततमोऽ यायः ।। ८६ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम धौ यक तीथया ा वषयक छयासीवाँ अ याय पूरा आ ।। ८६ ।।

स ताशी ततमोऽ यायः धौ य ारा पूव दशाके तीथ का वणन वैश पायन उवाच तान् सवानु सुकान् ् वा पा डवान् द नचेतसः । आ ासयं तथा धौ यो बृह प तसमोऽ वीत् ।। १ ।। ा णानुमतान् पु याना मान् भरतषभ । दश तीथा न शैलां शृणु मे वदतोऽनघ ।। २ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! पा डव का च अजुनके लये अ य त द न हो रहा था। वे सब-के-सब उनसे मलनेको उ सुक थे। उनक ऐसी अव था दे खकर बृह प तके समान तेज वी मह ष धौ यने उ ह सा वना दे ते ए कहा—‘पापर हत भरतकुलभूषण! ा णलोग ज ह आदर दे ते ह, उन पु य आ म , दशा , तीथ और पवत का म वणन करता ँ, सुनो ।। या छ वा गदतो राजन् वशोको भ वता स ह । ौप ा चानया साध ातृ भ नरे र ।। ३ ।। ‘नरे र! राजन्! मेरे मुखसे उन सबका वणन सुनकर तुम ौपद तथा भाइय के साथ शोकर हत हो जाओगे ।। ३ ।। वणा चैव तेषां वं पु यमा य स पा डव । ग वा शतगुणं चैव ते य एव नरो म ।। ४ ।। ‘नर े पा डु न दन! उनका वण करनेमा से तु ह उनके सेवनका पु य ा त होगा; और वहाँ जानेसे सौगुने पु यक ा त होगी ।। ४ ।। पूव ाच दशं राजन् राज षगणसे वताम् । र यां ते कथ य या म यु ध र यथा मृ त ।। ५ ।। ‘महाराज यु ध र! म अपनी मरणश के अनुसार सबसे पहले राज षगण ारा से वत रमणीय ाची दशाका वणन क ँ गा ।। ५ ।। त यां दे व षजु ायां नै मषं नाम भारत । य तीथा न दे वानां पु या न च पृथक् पृथक् ।। ६ ।। ‘भरतन दन! दे व षसे वत ाची दशाम नै मष नामक तीथ है, जहाँ भ भ दे वता के अलग-अलग पु यतीथ ह ।। ६ ।। य सा गोमती पु या र या दे व षसे वता । य भू म दे वानां शा म ं च वव वतः ।। ७ ।। ‘जहाँ दे व षसे वत परम रमणीय पु यमयी गोमती नद है। दे वता क य भू म और सूयका य पा व मान है ।। ७ ।। त यां ग रवरः पु यो गयो राज षस कृतः । ो



शवं सरो य से वतं दश ष भः ।। ८ ।। ‘ ाची दशाम ही पु य पवत े गय है जो राज ष गयके ारा स मा नत आ है। वहाँ क याणमय सरोवर है जसका दे व षगण सेवन करते ह ।। ८ ।। यदथ पु ष ा क तय त पुरातनाः । ए ा बहवः पु ा य ेकोऽ प गयां जेत् ।। ९ ।। यजेत वा मेधेन नीलं वा वृषमु सृजेत् । उ ारय त संत या दशपूवान् दशावरान् ।। १० ।। ‘पु ष सह! उस गयाके वषयम ही ाचीनलोग यह कहा करते ह क ‘ब त-से पु क इ छा करनी चा हये; स भव है उनमसे एक भी गया जाय या अ मेधय करे अथवा नीलवृषका* उ सग करे। ऐसा पु ष अपनी संत त ारा दस पहलेक और दस बादक पी ढ़य का उ ार कर दे ता है’ ।। ९-१० ।। महानद च त ैव तथा गय शरो नृप । य ासौ क यते व ैर यकरणो वटः ।। ११ ।। ‘राजन्! वह महानद और गयशीषतीथ है, जहाँ ा ण ने अ यवटक थ त बतायी है जसके जड़ और शाखा आ द उपकरण कभी न नह होते ।। ११ ।। य द ं पतृ योऽ म यं भव त भो । सा च पु यजला त फ गुनाम महानद ।। १२ ।। ब मूलफला चा प कौ शक भरतषभ । व ा म ोऽ यगाद् य ा ण वं तपोधनः ।। १३ ।। ‘ भो! वहाँ पतर के लये दया आ अ अ य होता है। भरत े ! वह फ गु नामवाली पु यस लला महानद है और वह ब त-से फल-मूल वाली कौ शक नद वा हत होती है जहाँ तपोधन व ा म ा ण वको ा त ए थे ।। १२-१३ ।। ग ा य नद पु या य या तीरे भगीरथः । अयजत् त ब भः तु भभू रद णैः ।। १४ ।। ‘पूव दशाम ही पु यनद गा बहती है, जसके तटपर राजा भगीरथने चुर द णावाले ब त-से य का अनु ान कया था ।। १४ ।। प चालेषु च कौर कथय यु पलावनम् । व ा म ोऽयजद् य पु ेण सह कौ शकः ।। १५ ।। ‘कु न दन! पंचालदे शम ऋ षलोग उ पलावन बतलाते ह, जहाँ कु शकन दन व ा म ने अपने पु के साथ य कया था ।। १५ ।। य ानुवंशं भगवा ामद य तथा जगौ । व ा म य तां ् वा वभू तम तमानुषीम् ।। १६ ।। ‘









‘उसी य म व ा म का अलौ कक वैभव दे खकर जमद नन दन परशुरामने उनके वंशके अनु प यशका वणन कया था ।। १६ ।। का यकु जेऽ पबत् सोम म े ण सह कौ शकः । ततः ादपा ामद् ा णोऽ मी त चा वीत् ।। १७ ।। ‘ व ा म जीने का यकु जदे शम इ के साथ सोमपान कया; वह वे य वसे ऊपर उठ गये और ‘म ा ण ँ’ यह बात घो षत कर द ।। १७ ।। प व मृ ष भजु ं पु यं पावनमु मम् । ग ायमुनयोव र संगमं लोक व ुतम् ।। १८ ।। ‘वीरवर! गंगा और यमुनाका परम उ म पु यमय प व संगम स पूण जगत्म व यात है और बड़े-बड़े मह ष उसका सेवन करते ह ।। १८ ।। य ायजत भूता मा पूवमेव पतामहः । याग म त व यातं त माद् भरतस म ।। १९ ।। ‘जहाँ सम त ा णय के आ मा भगवान् ाजीने पहले ही य कया था। भरतकुलभूषण! ाजीके उस कृ यागसे ही उस थानका नाम ‘ याग’ हो गया ।। अग य य तु राजे त ा मवरो नृप । तत् तथा तापसार यं तापसै पशो भतम् ।। २० ।। ‘राजे ! वहाँ मह ष अग यका े आ म है। इसी कार तापसार य तप वीजन से सुशो भत है ।। २० ।। हर य ब ः क थतो गरौ काल रे महान् । आग यपवतो र यः पु यो ग रवरः शवः ।। २१ ।। ‘कालर पवतपर हर य ब नामसे स महान् तीथ बताया गया है। आग यपवत ब त ही रमणीय, प व , े एवं क याण व प है ।। २१ ।। महे ो नाम कौर भागव य महा मनः । अयजत् त कौ तेय पूवमेव पतामहः ।। २२ ।। ‘कु न दन! महा मा भागवका नवास थान महे -पवत है। कु तीन दन! वहाँ ाजीने पूवकालम य कया था ।। २२ ।। य भागीरथी पु या सर यासीद् यु ध र । य सा शाले त पु या याता वशा पते ।। २३ ।। धूतपा म भराक णा पु यं त या दशनम् । ‘यु ध र! जहाँ पु यस लला भागीरथी गंगा सरोवरम थत थी। महाराज! जहाँपर उ ह ‘ शाला’ यह प व नाम दया गया है। वह पु यतीथ न पाप मनु य से ा त है; उसका दशन पु यमय बताया गया है ।। प व ो म लीय यातो लोके महा मनः ।। २४ ।। केदार मत य महाना म उ मः । कु डोदः पवतो र यो ब मूलफलोदकः ।। २५ ।। ै ो

नैषध तृ षतो य जलं शम च लधवान् । ‘वह महा मा मतंगऋ षका महान् एवं उ म आ म केदारतीथ है। वह परम प व , मंगलकारी और लोकम व यात है। कु डोद नामक रमणीय पवत ब त फल-मूल और जलसे स प है, जहाँ यासे ए नषधनरेशको जल और शा तक उपल ध ई थी ।। य दे ववनं पु यं तापसै पशो भतम् ।। २६ ।। बा दा च नद य न दा च ग रमूध न । ‘वह तप वीजन से सुशो भत प व दे ववन नामक पु य े है, जहाँ पवतके शखरपर बा दा और न दा नद बहती ह ।। २६ ।। तीथा न स रतः शैलाः पु या यायतना न च ।। २७ ।। ा यां द श महाराज क तता न मया तव । तसृ व या न पु या न द ु तीथा न मे शृणु । स रतः पवतां ैव पु या यायतना न च ।। २८ ।। ‘महाराज! पूव दशाम जो ब त-से तीथ, न दयाँ, पवत और पु य म दर आ द ह, उनका मने तुमसे (सं ेपम) वणन कया है। अब शेष तीन दशा के स रता , पवत और पु य थान का वणन करता ँ, सुनो’ ।। २७-२८ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण धौ यतीथया ायां स ताशी ततमोऽ यायः ।। ८७ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम धौ यतीथया ा वषयक स ासीवाँ अ याय पूरा आ ।। ८७ ।।

* लो हतो य तु वणन पु छा ेण तु पा डु रः । ेतः खुर वषाणा यां स नीलो वृष उ यते ।। जसका रंग तो लाल हो पर पूँछका अ भाग सफेद हो एवं खुर और स ग भी सफेद ह , वह नील वृष कहा जाता है।

अ ाशी ततमोऽ यायः धौ यमु नके ारा द

ण दशावत तीथ का वणन

धौ य उवाच द ण यां तु पु या न शृणु तीथा न भारत । व तरेण यथाबु क यमाना न ता न वै ।। १ ।। धौ यजी कहते ह—भरतवंशी यु ध र! अब म अपनी बु के अनुसार द ण दशावत पु यतीथ का व तारपूवक वणन करता ँ, सुनो— ।। १ ।। य यामा यायते पु या द श गोदावरी नद । ब ारामा ब जला तापसाच रता शवा ।। २ ।। द णम पु यमयी गोदावरी नद ब त स है, जसके तटपर अनेक बगीचे सुशो भत ह। उसके भीतर अगाध जल भरा आ है। ब त-से तप वी उसका सेवन करते ह तथा वह सबके लये क याण- व पा है ।। २ ।। वेणा भीमरथी चैव न ौ पापभयापहे । मृग जसमाक ण तापसालयभू षते ।। ३ ।। वेणा और भीमरथी—ये दो न दयाँ भी द णम ही ह जो सम त पापभयका नाश करनेवाली ह। उसके दोन तट अनेक कारके पशु-प य से ा त और तप वीजन के आ म से वभू षत ह ।। ३ ।। राजष त य च स र ृग य भरतषभ । र यतीथा ब जला पयो णी जसे वता ।। ४ ।। भरतकुलभूषण! राजा नृगक नद पयो णी भी उधर ही है जो रमणीय तीथ और अगाध जलसे सुशो भत है। ज उसका सेवन करते ह ।। ४ ।। अ प चा महायोगी माक डेयो महायशाः । अनुवं यां जगौ गाथां नृग य धरणीपतेः ।। ५ ।। नृग य यजमान य य म त नः ुतम् । अमा द ः सोमेन द णा भ जातयः ।। ६ ।। पयो यां यजमान य वाराहे तीथ उ मे । उ तं भूतल थं वा वायुना समुद रतम् । पयो या हरते तोयं पापमामरणा तकम् ।। ७ ।। इस वषयम हमारे सुननेम आया है क महायोगी एवं महायश वी माक डेयने यजमान राजा नृगके सामने उनके वंशके यो य यशोगाथाका वणन इस कार कया था —‘पयो णीके तटपर उ म वाराहतीथम य करनेवाले राजा नृगके य म इ सोमपान करके म त हो गये थे और चुर द णा पाकर ा णलोग भी हष लाससे पूण हो गये थे।’ पयो णीका जल हाथसे उठाया गया हो या धरतीपर पड़ा हो अथवा वायुके वेगसे े











उछलकर अपने ऊपर पड़ गया हो तो वह ज मसे लेकर मृ युपय त कये ए सम त पाप को हर लेता है ।। ५—७ ।। वगा ु ममलं वषाणं य शू लनः । वमा म व हतं ् वा म यः शवपुरं जेत् ।। ८ ।। जहाँ भगवान् शंकरका वयं ही अपने लये बनाया आ शृंग नामक वा वशेष वगसे भी ऊँचा और नमल है, उसका दशन करके मरणधमा मानव शवधामम चला जाता है ।। ८ ।। एकतः स रतः सवा ग ा ाः स ललो चयाः । पयो णी चैकतः पु या तीथ यो ह मता मम ।। ९ ।। एक ओर अगाध जलरा शसे भरी ई गंगा आ द स पूण न दयाँ ह और सरी ओर केवल पु यस लला पयो णी नद हो तो वही अ य सब न दय क अपे ा े है; ऐसा मेरा वचार है ।। ९ ।। माठर य वनं पु यं ब मूलफलं शवम् । यूप भरत े व ण ोतसे गरौ ।। १० ।। भरत े ! द णम प व माठरवन है, जो चुर फलमूलसे स प और क याण व प है। वहाँ व ण-ोतस नामक पवतपर माठर (सूयके पा वत दे वता) का वजय- त भ सुशो भत होता है ।। १० ।। वे यु रमाग तु पु ये क वा मे तथा । तापसानामर या न क तता न यथा ु त ।। ११ ।। यह त भ वेणी नद के उ रवत मागम क वके पु यमय आ मम है। इस कार जैसा क मने सुन रखा था, तप वी महा मा के नवासयो य वन का वणन कया है ।। ११ ।। वेद शूपारके तात जमद नेमहा मनः । र या पाषाणतीथा च पुन ा च भारत ।। १२ ।। तात! शूपारक े म महा मा जमद नक वेद है। भारत! वह रमणीय पाषाणतीथा और पुन ा नामक तीथ- वशेष ह ।। १२ ।। अशोकतीथ त ैव कौ तेय ब ला मम् । अग यतीथ पा ेषु वा णं च यु ध र ।। १३ ।। कुमायः क थताः पु याः पा े वेव नरषभ । ता पण तु कौ तेय क त य या म तां शृणु ।। १४ ।। कु तीन दन! उसी े म अशोकतीथ है, जहाँ मह षय के ब त-से आ म ह। यु ध र! पा द े शम अग यतीथ और वा णतीथ है। नर े ! पा द े शके भीतर प व कुमारी क याएँ (क याकुमारी तीथ) कही गयी ह। कु तीकुमार! अब म तुमसे तापण नद क म हमाका वणन क ँ गा, सुनो ।। १३-१४ ।। य दे वै तप त तं मह द छ रा मे । गोकण इ त व यात षु लोकेषु भारत ।। १५ ।। ँ ो े े े े ी ी

भरतन दन! वहाँ मो पानेक इ छासे दे वता ने आ मम रहकर बड़ी भारी तप या क थी। वहाँका गोकणतीथ तीन लोक म व यात है ।। १५ ।। शीततोयो ब जलः पु य तात शवः शुभः । दः परम ापो मानुषैरकृता म भः ।। १६ ।। तात! गोकणतीथम शीतल जल भरा रहता है। उसक जलरा श अन त है। वह प व , क याणमय और शुभ है। जनका अ तःकरण शु नह है, ऐसे मनु य के लये गोकणतीथ अ य त लभ है ।। १६ ।। त वृ तृणा ै स प ः फलमूलवान् । आ मोऽग य श य य पु यो दे वसमो ग रः ।। १७ ।। वहाँ अग यके श यका पु यमय आ म है, जो वृ और तृण आ दसे स प एवं फल-मूल से प रपूण है। दे वसम नामक पवत ही वह आ म है ।। १७ ।। वै यपवत त ीमान् म णमयः शवः । अग य या म ैव ब मूलफलोदकः ।। १८ ।। वहाँ परम सु दर म णमय वै यपवत है जो शव व प है। उसीपर मह ष अग यका आ म है जो चुर फल-मूल और जलसे स प है ।। १८ ।। सुरा े व प व या म पु या यायतना न च । आ मान् स रत ैव सरां स च नरा धप ।। १९ ।। नरे र! अब म सुरा (सौरा)-द े शीय पु य- थान , म दर , आ म , स रता और सरोवर का वणन करता ँ ।। १९ ।। चमसो े दनं व ा त ा प कथय युत । भासं चोदधौ तीथ दशानां यु ध र ।। २० ।। व गण! वह चमसो े दतीथक चचा क जाती है। यु ध र! सुराम ही समु के तटपर भास े है जो दे वता का तीथ कहा गया है ।। २० ।। त प डारकं नाम तापसाच रतं शवम् । उ जय त शखरी ं स करो महान् ।। २१ ।। वह प डारक नामक तीथ है जो तप वी जन ारा से वत और क याण व प है। उधर ही उ जय त नामक महान् पवत है जो शी स दान करनेवाला है ।। २१ ।। त दे व षवयण नारदे नानुक ततः । पुराणः ूयते ोक तं नबोध यु ध र ।। २२ ।। यु ध र! उसके वषयम दे व ष वर ीनारदजीके ारा कहा आ एक ाचीन ोक सुना जाता है, उसको मुझसे सुनो ।। २२ ।। पु ये गरौ सुरा ेषु मृगप नषे वते । उ जय ते म त ता ो नाकपृ े महीयते ।। २३ ।। सुरा दे शम मृग और प य से से वत उ जय त नामक पु यपवतपर तप या करनेवाला पु ष वगलोकम पू जत होता है ।। २३ ।। पु या ारवती त य ासौ मधुसूदनः । े ो ौ

सा ाद् दे वः पुराणोऽसौ स ह धमः सनातनः ।। २४ ।। उ जय तके ही आस-पास पु यमयी ारकापुरी है जहाँ सा ात् पुराणपु ष भगवान् मधुसूदन नवास करते ह। वे ही सनातन धम व प ह ।। २४ ।। ये च वेद वदो व ा ये चा या म वदो जनाः । ते वद त महा मानं कृ णं धम सनातनम् ।। २५ ।। जो वेदवे ा और अ या मशा के व ान् ा ण ह, वे परमा मा ीकृ णको ही सनातन धम प बताते ह ।। ५४ ।। प व ाणां ह गो व दः प व ं परमु यते । पु यानाम प पु योऽसौ म लानां च म लम् । ैलो ये पु डरीका ो दे वदे वः सनातनः ।। २६ ।। अ या मा या मा च े ः परमे रः । आ ते ह रर च या मा त ैव मधुसूदनः ।। २७ ।। भगवान् गो व द प व को भी पावन करनेवाले परम प व कहे जाते ह। वे पु य के भी पु य और मंगल के भी मंगल ह। कमलनयन दे वा धदे व सनातन ीह र अ वनाशी परमा मा, या मा ( रपु ष), े और परमे र ह। वे अ च य व प भगवान् मधुसूदन वह ारकापुरीम वराजमान ह ।। २६-२७ ।। इ त ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण धौ यतीथया ायाम ाशी ततमोऽ यायः ।। ८८ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम धौ यतीथया ा वषयक अठासीवाँ अ याय पूरा आ ।। ८८ ।।

एकोननव ततमोऽ यायः धौ य ारा प

म दशाके तीथ का वणन

धौ य उवाच आनतषु ती यां वै क त य या म ते द श । या न त प व ा ण पु या यायतना न च ।। १ ।। धौ यजी कहते ह—यु ध र! अब म प म दशाके आनतदे शम जो-जो प व तीथ और पु य व प दे वालय ह, उन सबका वणन क ँ गा ।। १ ।। यङ् वा वणोपेता वानीरफलमा लनी । य ोता नद पु या नमदा त भारत ।। २ ।। भरतन दन! प म दशाम पु यमयी नमदा नद वा हत होती है, जसक धारा पूवसे प मक ओर है। उसके तटपर यंगु और आमके वृ का वन है। बत तथा फलवाले वृ क े णयाँ भी उसक शोभा बढ़ाती ह ।। २ ।। ैलो ये या न तीथा न पु या यायतना न च । स र ना न शैले ा दे वा स पतामहाः ।। ३ ।। नमदायां कु े सह स षचारणैः । नातुमाया त पु यौघैः सदा वा रषु भारत ।। ४ ।। भरतन दन कु े ! लोक म जो-जो पु यतीथ, म दर, नद , वन, पवत, ा आ द दे वता, स , ऋ ष, चारण एवं पु या मा के समूह ह, वे सब सदा नमदाके जलम नान करनेके लये आया करते ह ।। ३-४ ।। नकेतः ूयते पु यो य व वसो मुनेः । ज े धनप तय कुबेरो नरवाहनः ।। ५ ।। वह मु नवर व वाका प व आ म सुना जाता है, जहाँ नरवाहन धना य कुबेरका ज म आ था ।। ५ ।। वै य शखरो नाम पु यो ग रवरः शवः । न यपु पफला त पादपा ह रत छदाः ।। ६ ।। वै य शखर नामक मंगलमय प व पवत भी नमदा-तटपर है, वहाँ हरे-हरे प से सुशो भत सदा फल और फूल के भारसे लदे ए वृ शोभा पाते ह ।। त य शैल य शखरे सरः पु यं महीपते । फु लपं महाराज द े वग धवसे वतम् ।। ७ ।। राजन्! उस पवतके शखरपर एक पु य सरोवर है जसम सदा कमल खले रहते ह। महाराज! दे वता और ग धव भी उस पु यतीथका सेवन करते ह ।। ७ ।। ब ा य महाराज यते त पवते । पु ये वग पमे चैव दे व षगणसे वते ।। ८ ।। े











राजन्! दे व षगण से से वत वह पु यपवत वगके समान सु दर एवं सुखद है। वहाँ अनेक आ यक बात दे खी जाती ह ।। ८ ।। दनी पु यतीथा च राजष त वै स रत् । व ा म नद राजन् पु या परपुरंजय ।। ९ ।। य या तीरे सतां म ये यया तन षा मजः । पपात स पुनल काँ लेभे धमान् सनातनान् ।। १० ।। श ु क राजधानीपर वजय पानेवाले नरेश! वहाँ राज ष व ा म क तप यासे कट ई एक पु यमयी नद है, जो परम प व तीथ मानी गयी है। उसीके तटपर न षन दन राजा यया त वगसे साधु पु ष के बीचम गरे थे और पुनः सनातन धममय लोक म चले गये थे ।। ९-१० ।। त पु यो दः यातो मैनाक ैव पवतः । ब मूलफलोपेत व सतो नाम पवतः ।। ११ ।। वहाँ पु यसरोवर, व यात मैनाक पवत और चुर फलमूल से स प अ सत नामक पवत है ।। ११ ।। आ मः क सेन य पु य त यु ध र । यवन या म ैव व यात त पा डव ।। १२ ।। यु ध र! उसी पवतपर क छसेनका पु यदायक आ म है। पा डु न दन! मह ष यवनका सु व यात आ म भी वह है ।। १२ ।। त ा पेनैव स य त मानवा तपसा वभो । ज बूमाग महाराज ऋषीणां भा वता मनाम् ।। १३ ।। आ मः शा यतां े मृग ज नषे वतः । भो! वहाँ थोड़ी ही तप यासे मनु य स ा त कर लेते ह। महाराज! प म दशाम ही ज बूमाग है, जहाँ शु अ तःकरणवाले मह षय का आ म है। शा त पु ष म े यु ध र! वह आ म पशु-प य से से वत है ।। १३ ।। ततः पु यतमा राजन् सततं तापसैयुता ।। १४ ।। केतुमाला च मे या च ग ा ारं च भू मप । यातं च सै धवार यं पु यं ज नषे वतम् ।। १५ ।। राजन्! उधर ही सदा तप वीजन से भरे ए पु यतम तीथ—केतुमाला, मे या और गंगा ार (ह र ार) ह। भूपाल! ज से से वत सु स सै धवार य भी उधर ही है ।। पतामहसरः पु यं पु करं नाम नामतः । वैखानसानां स ानामृषीणामा मः यः ।। १६ ।। ाजीका पु यदायक सरोवर पु कर भी प म दशाम ही है, जो वान थ , स और मह षय का य आ म है ।। १६ ।। अ य सं याथाय जाप तरथो जगौ । पु करेषु कु े गाथां सुकृ तनां वर ।। १७ ।। े

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पु यवान म धान कु े ! पु करम नवास करनेके लये जाप त ाजीने एक गाथा गायी है, जो इस कार है ।। १७ ।। मनसा य भकाम य पु करा ण मन वनः । व ण य त पापा न नाकपृ े च मोदते ।। १८ ।। ‘जो मन वी पु ष मनसे भी पु करतीथम नवास करनेक इ छा करता है, उसके सारे पाप न हो जाते ह और वह वगलोकम आन द भोगता है’ ।। १८ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण धौ यतीथया ायां एकोननव ततमोऽ यायः ।। ८९ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम धौ यतीथया ा वषयक नवासीवाँ अ याय पूरा आ ।। ८९ ।।

नव ततमोऽ यायः धौ य ारा उ र दशाके तीथ का वणन धौ य उवाच उद यां राजशा ल द श पु या न या न वै । ता न ते क त य या म पु या यायतना न च ।। १ ।। शृणु वाव हतो भू वा मम म यतः भो । कथा त हो वीर ां जनयते शुभाम् ।। २ ।। धौ यजी कहते ह—नृप े ! उ र दशाम जो पु य द तीथ और दे वालय आ द ह, उनका तुमसे वणन करता ँ। भो! तुम सावधान होकर वह सब मेरे मुखसे सुनो। वीरवर! तीथ क कथाका संग उनके त मंगलमयी ा उ प करता है ।। १-२ ।। सर वती महापु या दनी तीथमा लनी । समु गा महावेगा यमुना य पा डव ।। ३ ।। तीथ क पं से सुशो भत सर वती नद बड़ी पु यदा यनी है। पा डु न दन! समु म मलनेवाली महावेगशा लनी यमुना भी उ र दशाम ही ह ।। ३ ।। य पु यतरं तीथ ल ावतरणं शुभम् । य सार वतै र ् वा ग छ यवभृथै जाः ।। ४ ।। उधर ही अ य त पु यमय ल ावतरण नामक मंगलकारक तीथ है; जहाँ ा णगण य करके सर वतीके जलसे अवभृथ नान करते और अपने थानको जाते ह ।। ४ ।। पु यं चा यायते द ं शवम न शरोऽनघ । सहदे वोऽयजद् य श या ेपेण भारत ।। ५ ।। उधर ही अ न शर नामक द , क याणमय, पु यतीथ बताया जाता है। न पाप भरतन दन! उसी तीथम सहदे वने शमीका डंडा फकवाकर, जतनी रीम वह डंडा पड़ा था उतनी रीम, म डप बनवाकर उसम य कया ।। ५ ।। एत म ेव चाथऽसा व गीता यु ध र । गाथा चर त लोकेऽ मन् गीयमाना जा त भः ।। ६ ।। यु ध र! इसी वषयम इ क गायी ई एक गाथा लोकम च लत है, जसे ा ण गाया करते ह ।। ६ ।। अ नयः सहदे वेन से वता यमुनामनु । ते त य कु शा ल सह शतद णाः ।। ७ ।। कु े ! सहदे वने यमुना-तटपर लाख वण-मु ा क द णा दे कर अ नक उपासना क थी* ।। ७ ।। त ैव भरतो राजा च वत महायशाः । वश तः स त चा ौ च हयमेधानुपाहरत् ।। ८ ।। ी े ी े

वह महायश वी च वत राजा भरतने पतीस अ मेधय का अनु ान कया ।। ८ ।। कामकृद् यो जातीनां ुत तात यथा पुरा । अ य तमा मः पु यः शरभंग य व ुतः ।। ९ ।। तात! ाचीनकालम राजा भरत ा ण क मनोवा छाको पूण करनेवाला राजा सुना गया है। उ राख डम ही मह ष शरभका अ य त पु यदायक आ म व यात है ।। ९ ।। सर वती नद स ः सततं पाथ पू जता । बालख यैमहाराज य े मृ ष भः पुरा ।। १० ।। कु तीन दन! साधु पु ष ने सर वती नद क सदा उपासना क है। महाराज! पूवकालम बालख य ऋ षय ने वहाँ य कया था ।। १० ।। ष ती महापु या य याता यु ध र । य ोधा य तु पु या यः पा चा यो पदां वर ।। ११ ।। दा यघोष दा य धरणी थो महा मनः । कौ तेयान तयशसः सु त या मतौजसः ।। १२ ।। आ मः यायते पु य षु लोकेषु व ुतः । यु ध र! परम पु यमयी ष ती नद भी उधर ही बतायी गयी है। मनु य म े यु ध र! वह य ोध, पु य, पा चा य, दा यघोष और दा य—ये पाँच आ म ह तथा अन तक त एवं अ मततेज वी महा मा सु तका पु य आ म भी उ राख डम ही बताया जाता है, जो पृ वीपर रहकर भी तीन लोक म व यात है ।। एतावणाववण च व ुतौ मनुजा धप ।। १३ ।। नरे र! उ राख डम ही व यात मु न नर और नारायण ह, जो एतावण ( यामवण— साकार) होते ए भी वा तवम अवण ( नराकार) ही ह ।। १३ ।। वेद ौ वेद व ांसौ वेद व ा वदावुभौ । ईजाते तु भमु यैः पु यैभरतस म ।। १४ ।। भरत े ! ये दोन मु न वेद , वेदके मम तथा वेद व ाके पूण जानकार ह। इ ह ने पु यदायक उ म य ारा शंकरका यजन कया है ।। १४ ।। समे य ब शो दे वाः से ाः सव णाः पुरा । वशाखयूपेऽत य त तेन पु यतम सः ।। १५ ।। पूवकालम इ , व ण आ द ब त-से दे वता ने मलकर वशाखयूप नामक थानम तप कया था, अतः वह अ य त पु य द थान है ।। १५ ।। ऋ षमहान् महाभागो जमद नमहायशाः । पलाशकेषु पु येषु र ये वयजत भुः ।। १६ ।। महाभाग, महायश वी और महा भावशाली मह ष जमद नने परम सु दर तथा पु य द पलाशवनम य कया था ।। १६ ।। य सवाः स र े ाः सा ात् तमृ षस मम् । वं वं तोयमुपादाय प रवाय पत थरे ।। १७ ।। े



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जसम सब े न दयाँ मू तमती हो अपना-अपना जल लेकर उन मु न े के पास आय और उ ह सब ओरसे घेरकर खड़ी ई थ ।। १७ ।। अ प चा महाराज वयं व ावसुजगौ । इमं ोकं तदा वीर े य द ां महा मनः ।। १८ ।। वीर महाराज! यहाँ महा मा जमद नक वह य द ा दे खकर वयं ग धवराज व ावसुने इस ोकका गान कया था ।। १८ ।। यजमान य वै दे वा मद नेमहा मनः । आग य स रतो व ान् मधुना समतपयन् ।। १९ ।। ‘महा मा जमद न जब य ारा दे वता का यजन कर रहे थे, उस समय उनके य म स रता ने आकर मधुसे ा ण को तृ त कया’ ।। १९ ।। ग धवय र ो भर सरो भ से वतम् । करात क रावासं शैलं शख रणां वरम् ।। २० ।। बभेद तरसा ग ा ग ा ारं यु ध र । पु यं तत् यायते राजन् षगणसे वतम् ।। २१ ।। यु ध र! ग र े हमालय करात और क र का नवास थान है। ग धव, य , रा स और अ सराएँ उसका सदा सेवन करती ह। गंगाजी अपने वेगसे उस शैलराजको फोड़कर जहाँ कट ई ह, वह पु य थान गंगा ार (ह र ार)-के नामसे व यात है। राजन्! उस तीथका षगण सदा सेवन करते ह ।। २०-२१ ।। सन कुमारः कौर पु यं कनखलं तथा । पवत पु नाम य यातः पु रवाः ।। २२ ।। कु न दन! पु यमय कनखलम पहले सन कुमारने या ा क थी। वह पु नामसे स पवत है, जहाँ पूवकालम पु रवाने या ा क थी ।। २२ ।। भृगुय तप तेपे मह षगणसे वते । राजन् स आ मः यातो भृगुतु ो महा ग रः ।। २३ ।। राजन्! मह षय से से वत जस महान् पवतपर भृगन ु े तप या क थी वह भृगत ु ुंग आ मके नामसे व यात है ।। २३ ।। यः स भूतं भ व य च भव च भरतषभ । नारायणः भु व णुः शा तः पु षो मः ।। २४ ।। त या तयशसः पु यां वशालां बदरीमनु । आ मः यायते पु य षु लोकेषु व ुतः ।। २५ ।। भरत े ! भूत, भ व य और वतमान जनका व प है, जो सवश मान्, सव ापी, सनातन एवं पु षो म नारायण ह उन अ य त यश वी ीह रक पु यमयी वशालापुरी बदरीवनके नकट है। वह नर-नारायणका आ म कहा गया है, वह पु य द बद रका म तीन लोक म व यात है ।। २४-२५ ।। उ णतोयवहा ग ा शीततोयवहा पुरा । सुवण सकता राजन् वशालां बदरीमनु ।। २६ ।। े ी ी े ी ी

राजन्! पूवकालसे ही वशाला बदरीके समीप गंगा कह गरम जल तथा कह शीतल जल वा हत करती ह। उनक बालू सुवणक भाँ त चमकती रहती है ।। २६ ।। ऋषयो य दे वा महाभागा महौजसः । ा य न यं नम य त दे वं नारायणं भुम् ।। २७ ।। य नारायणो दे वः परमा मा सनातनः । त कृ नं जगत् सव तीथा यायतना न च ।। २८ ।। वहाँ महाभाग एवं महातेज वी दे वता तथा मह ष त दन जाकर अ मत भावशाली भगवान् नारायणको नम कार करते ह। जहाँ सनातन परमा मा भगवान् नारायण वराजमान ह वहाँ स पूण जगत् है और सम त तीथ तथा दे वालय ह ।। २७-२८ ।। तत् पु यं परमं तत् तीथ तत् तपोवनम् । तत् परं परमं दे वं भूतानां परमे रम् ।। २९ ।। वह बद रका म पु य े और पर व प है। वही तीथ है, वही तपोवन है, वही स पूण भूत का परमदे व परमे र है ।। २९ ।। शा तं परमं चैव धातारं परमं पदम् । यं व द वा न शोच त व ांसः शा यः ।। ३० ।। त दे वषयः स ाः सव चैव तपोधनाः । वही सनातन परमधाता एवं परमपद है, जसे जान लेनेपर शा दश व ान् कभी शोक नह करते ह। वह दे व ष स और सम त तपोधन महा मा नवास करते ह ।। ३० ।। आ ददे वो महायोगी य ा ते मधुसूदनः ।। ३१ ।। पु यानाम प तत् पु यम ते संशयोऽ तु मा । एता न राजन् पु या न पृ थ ां पृ थवीपते ।। ३२ ।। क तता न नर े तीथा यायतना न च । एता न वसु भः सा यैरा द यैम द भः ।। ३३ ।। ऋ ष भदवक पै से वता न महा म भः । चर ेता न कौ तेय स हतो ा णषभैः । ातृ भ महाभागै क ठां वह र य स ।। ३४ ।। जहाँ महायोगी आ ददे व भगवान् मधुसूदन वराजमान ह वह थान पु य का भी पु य है। इस वषयम तु ह संशय नह होना चा हये। राजन्! पृ वीपते! नर े ! ये भूम डलके पु यतीथ और आ म आ द कहे गये वसु, सा य, आ द य, म ण, अ नीकुमार तथा दे वोपम महा मा मु न इन सब तीथ का सेवन करते ह। कु तीन दन! तुम े ा ण और महान् सौभा यशाली भाइय के साथ इन तीथ म वचरते रहोगे तो अजुनके लये तु हारी मलनेक उ कट इ छा अथात् वरह ाकुलता शा त हो जायगी ।। ३१—३४ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण धौ यतीथया ायां नव ततमोऽ यायः ।। ९० ।।











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इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम धौ यतीथया ा वषयक न बेवाँ अ याय पूरा आ ।। ९० ।।

* ये सहदे व सु स

राजा सृंजयके पु थे—‘सहदे वः सृंजयपु ः’ इ त नीलक ठ ।

एकनव ततमोऽ यायः मह ष लोमशका आगमन और यु ध रसे अजुनके पाशुपत आ द द ा क ा तका वणन तथा इ का संदेश सुनाना वैश पायन उवाच एवं स भाषमाणे तु धौ ये कौरवन दन । लोमशः स महातेजा ऋ ष त ाजगाम ह ।। १ ।। तं पा डवा जो राजा सगणो ा णा ते । उपा त महाभागं द व श मवामराः ।। २ ।। वैश पायनजी कहते ह—कौरवन दन! जब धौ य ऋ ष इस समय महातेज वी मह ष लोमश वहाँ आये। जैसे वगम इ के उठकर खड़े हो जाते ह, उसी कार ये पा डव राजा यु ध र, लोग तथा वे ा ण भी उन महाभाग लोमशको आया दे ख उनके खड़े हो गये ।। १-२ ।।

सम य य यथा यायं धमपु ो यु ध रः । े े े ो

कार कह रहे थे, उसी आनेपर सम त दे वता उनके समुदायके अ य वागतके लये उठकर

प छागमने हेतुमटने च योजनम् ।। ३ ।। धमन दन यु ध रने यथायो य उनका पूजन करके उ ह आसनपर बठाया और वहाँ आने तथा वनम घूमनेका योजन पूछा ।। ३ ।। स पृ ः पा डु पु ेण ीयमाणो महामनाः । उवाच णया वाचा हषय व पा डवान् ।। ४ ।। पा डु पु यु ध रके इस कार पूछनेपर महामना मह ष लोमश बड़े स ए और अपनी मधुर वाणी ारा पा डव का हष बढ़ाते ए-से बोले— ।। ४ ।। संचर म कौ तेय सवा लकान् य छया । गतः श य भवनं त ाप यं सुरे रम् ।। ५ ।। ‘कु तीन दन! म य ही इ छानुसार स पूण लोक म वचरण करता ँ। एक दन म इ के भवनम गया और वहाँ दे वराज इ से मला ।। ५ ।। तव च ातरं वीरमप यं स सा चनम् । श याधासनगतं त मे व मयो महान् ।। ६ ।। ‘वहाँ मने तु हारे वीर ाता स साची अजुनको भी दे खा, जो इ के आधे सहासनपर बैठे ए थे। वहाँ उ ह इस दशाम दे खकर मुझे बड़ा आ य आ ।। ६ ।। आसीत् पु षशा ल ् वा पाथ तथागतम् । आह मां त दे वेशो ग छ पा डु सुतान् त ।। ७ ।। ‘पु ष सह यु ध र! तु हारे भाई अजुनको इ के सहासनपर बैठा दे ख जब म आ यच कत हो रहा था, उसी समय दे वराज इ ने मुझसे कहा—‘मुने! तुम पा डव के पास जाओ’ ।। ७ ।। सोऽहम यागतः ं द ु वां सहानुजम् । वचनात् पु त य पाथ य च महा मनः ।। ८ ।। ‘उन इ के आदे शसे म भाइय स हत तु ह दे खनेके लये शी तापूवक यहाँ आया ँ। इसके लये इ ने तो मुझसे कहा ही था, महा मा अजुनने भी अनुरोध कया था ।। ८ ।। आ या ये ते यं तात महत् पा डवन दन । ऋ ष भः स हतो राजन् कृ णया चैव त छृ णु ।। ९ ।। यत् वयो ो महाबा र ाथ भरतषभ । तद मा तं पाथन ाद तमं वभो ।। १० ।। ‘तात! पा डव को आन दत करनेवाले यु ध र! म तु ह बड़ा य समाचार सुनाऊँगा। राजन्! तुम इन मह षय और ौपद के साथ मेरी बात सुनो। भरतकुलभूषण वभो! तुमने महाबा अजुनको द ा क ा तके लये जो आदे श दया था, उसके वषयम यह नवेदन करना है क अजुनने भगवान् शंकरसे उनका अनुपम अ (पाशुपत) ा त कर लया है ।। ९-१० ।। यत् तद् शरो नाम तपसा मागमत् । अमृता थतं रौ ं त लधं स सा चना ।। ११ ।। ‘ ो











‘जो शर नामक अ अमृतसे कट होकर तप याके भावसे भगवान् शंकरको मला था, वही पाशुपता स साची अजुनने ा त कर लया है ।। ११ ।। तत् सम ं ससंहारं स ाय म लम् । व म ा ण चा या न द डाद न यु ध र ।। १२ ।। ‘यु ध र! दे वताका वह वक े समान भ अ म , उपसंहार, ाय और मंगलस हत अजुनने पा लया है। साथ ही, द ड आ द अ य अ भी उ ह ने ह तगत कर लये ह ।। १२ ।। यमात् कुबेराद् व णा द ा च कु न दन । अ ा यधीतवान् पाथ द ा य मत व मः ।। १३ ।। ‘कु न दन! अ मत परा मी अजुनने यम, कुबेर, व ण और इ से द ा का अ ययन कया है ।। १३ ।। व ावसो तु तनयाद् गीतं नृ यं च साम च । वा द ं च यथा यायं य व दद् यथा व ध ।। १४ ।। ‘इतना ही नह , उ ह ने व ावसुके पु से नृ य, गीत, सामगान और वा कलाक भी व धपूवक यथो चत श ा ा त कर ली है ।। १४ ।। एवं कृता ः कौ तेयो गा धव वेदमा तवान् । सुखं वस त बीभ सुरनुज यानुज तव ।। १५ ।। ‘इस कार अ व ाम नपुणता ा त करके कु तीकुमारने गा धववेद (संगीत व ा) को भी ा त कर लया है। अब तु हारे छोटे भाई भीमसेनके छोटे भाई अजुन वहाँ बड़े सुखसे रह रहे ह ।। १५ ।। यदथ मां सुर े इदं वचनम वीत् । त च ते कथ य या म यु ध र नबोध मे ।। १६ ।। ‘यु ध र! दे व े इ ने मुझसे तु हारे लये जो संदेश कहा था, उसे अब तु ह बता रहा ँ, सुनो ।। १६ ।। भवान् मनु यलोकेऽ प ग म य त न संशयः । ूयाद् यु ध रं त वचना मे जो म ।। १७ ।। आग म य त ते ाता कृता ः मजुनः । सुरकाय महत् कृ वा यदश यं दवौकसाम् ।। १८ ।। तपसा प वमा मानं योजय ातृ भः सह । तपसो ह परं ना त तपसा व दते महत् ।। १९ ।। ‘उ ह ने मुझसे कहा— जो म! इसम संदेह नह क आप घूमते-घामते मनु यलोकम भी जायँगे; अतः मेरे अनुरोधसे आप राजा यु ध रके पास जाकर यह बात कह द जयेगा —‘राजन्! तु हारे भाई अजुन अ - व ाम नपुण हो चुके ह। अब वे दे वता का एक ब त बड़ा काय, जसे दे वता वयं नह कर सकते, स करके शी तु हारे पास आ जायँगे; तबतक तुम भी अपने भाइय के साथ वयंको तप याम लगाओ; य क तप यासे बढ़कर सरा कोई साधन नह है। तप यासे महान् फलक ा त होती है ।। १७—१९ ।।

अहं च कण जाना म यथावद् भरतषभ । स यसंधं महो साहं महावीय महाबलम् ।। २० ।। “भरत े ! म कणको अ छ तरह जानता ँ। वह स य त , अ य त उ साही, महापरा मी और महाबली है ।। २० ।। महाहवे व तमं महायु वशारदम् । महाधनुधरं वीरं महा ं वरव णनम् ।। २१ ।। महे रसुत यमा द यतनयं भुम् । तथाजुनम त क दं सहजो बणपौ षम् ।। २२ ।। न स पाथ य सं ामे कलामह त षोडशीम् । य चा प ते भयं कणा मन स थमरदम ।। २३ ।। त चा यपह र या म स सा च युपागते । य च ते मानसं वीर तीथया ा ममां त । स मह षल मश ते कथ य य यसंशयम् ।। २४ ।। “बड़ े-बड़े सं ाम म उसक समानता करनेवाला कोई नह है। वह महान् यु वशारद, महाधनुधर, अ -श का महान् ाता, े , सु दर महे रपु का तकेयके समान परा मी, सूयदे वताका पु और श शाली वीर है। इसी कार म अजुनको भी जानता ँ। वह का तकेयसे भी बढ़कर है, उसम वभावसे ही ःसह पु षाथ भरा आ है। यु म कण अजुनक सोलहव कलाके बराबर भी नह है। श ुदमन! तु हारे मनम जस बातको लेकर कणसे भय बना रहता है, म अजुनके लौटनेपर तु हारे उस भयको भी र कर ँ गा। वीरवर! तीथया ाके वषयम जो तु हारा मान सक संक प है, उसके वषयम मह ष लोमश न य ही तुमसे सब कुछ बतावगे ।। य च क चत् तपोयु ं फलं तीथषु भारत । षरेष ूयात् ते त े यं न चा यथा ।। २५ ।। “भरतन दन! तीथ म जो कुछ तप यायु फल ा त होता है, वह सब ये ष लोमश तु ह बतायगे, तु ह उसपर व ास करना चा हये। उसम अ यथाबु नह करनी चा हये” ।। २५ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशसंवादे एकनव ततमोऽ यायः ।। ९१ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम यु ध रलोमश-संवाद वषयक इ यानबेवाँ अ याय पूरा आ ।। ९१ ।।

नव ततमोऽ यायः मह ष लोमशके मुखसे इ और अजुनका संदेश सुनकर यु ध रका स होना और तीथया ाके लये उ त हो अपने अ धक सा थय को वदा करना लोमश उवाच धनंजयेन चा यु ं यत् त छृ णु यु ध र । यु ध रं ातरं मे योजयेध यया या ।। १ ।। वं ह धमान् परान् वे थ तपां स च तपोधन । ीमतां चा प जाना स धम रा ां सनातनम् ।। २ ।। लोमश मु न कहते ह—यु ध र! जब म आने लगा, तब अजुनने भी मुझसे जो बात कही थी, वह सुनो। वे बोले—‘तपोधन! आप मेरे बड़े भैया यु ध रको धमानुकूल राजल मीसे संयु क जये। आप उ कृ धम और तप या को जानते ह। ीस प राजा का जो सनातनधम है, उसका भी आपको पूण ान है ।। १-२ ।। स भवान् परमं वेद पावनं पु षं त । तेन संयोजयेथा वं तीथपु येन पा डवान् ।। ३ ।। ‘पु षको प व बनानेवाला जो उ म साधन है, उसे आप जानते ह। अतः आप पा डव को तीथया ा-ज नत पु यसे स प क जये ।। ३ ।। यथा तीथा न ग छे त गा द ात् स पा थवः । तथा सवा मना काय म त मामजुनोऽ वीत् ।। ४ ।। ‘महाराज यु ध र जस कार तीथ म जायँ और वहाँ गोदान कर, वैसा सब कारसे य न क जयेगा।’ यह बात अजुनने मुझसे कही थी ।। ४ ।। भवता चानुगु तोऽसौ चरेत् तीथा न सवशः । र ो यो र त गषु वषमेषु च ।। ५ ।। उ ह ने यह भी कहा—‘महाराज यु ध र आपसे सुर त रहकर सब तीथ म वचरण कर। गम थान और वषम अवसर म आप रा स से उनक र ा कर ।। दधीच इव दे वे ं यथा चा य रा र वम् । तथा र व कौ तेयान् रा से यो जो म ।। ६ ।। ‘ ज े ! जैसे दधीचने दे वराज इ क और मह ष अं गराने सूयक र ा क है, उसी कार आप रा स से कु तीकुमार क र ा क जये’ ।। ६ ।। यातुधाना ह बहवो रा साः पवतोपमाः । वया भगु तं कौ तेयं न ववतयुर तकम् ।। ७ ।। ‘ब त-से पशाच तथा रा स, जो पवत के समान वशालकाय ह, आपसे सुर त राजा यु ध रके पास नह आ सकगे’ ।। ७ ।। ो ो

सोऽह म य वचना योगादजुन य च । र माणो भये य वां च र या म वया सह ।। ८ ।। राजन्! इस कार म इ के कथन और अजुनके अनुरोधसे सब कारके भयसे तु हारी र ा करते ए तु हारे साथ-साथ तीथ म वचरण क ँ गा ।। ८ ।। तीथा न मया पूव ा न कु न दन । इदं तृतीयं या म ता येव भवता सह ।। ९ ।। कु न दन! पहले दो बार मने सब तीथ के दशन कर लये; अब तीसरी बार तु हारे साथ पुनः उनका दशन क ँ गा ।। ९ ।। इयं राज ष भयाता पु यकृ यु ध र । म वा द भमहाराज तीथया ा भयापहा ।। १० ।। महाराज यु ध र! यह तीथया ा सब कारके भयका नाश करनेवाली है। मनु आ द पु या मा राज षय ने इस तीथया ा पी धमका पालन कया है ।। १० ।। नानृजुनाकृता मा च ना व ो न च पापकृत् । ना त तीथषु कौर न च व म तनरः ।। ११ ।। कु न दन! जो सरल नह है, जसने अपने मन और इ य को वशम नह कया है, जो व ाहीन और पापा मा है तथा जसक बु कु टलतासे भरी ई है, ऐसा मनु य ( ा न होनेके कारण) तीथ म नान नह करता ।। ११ ।। वं तु धमम त न यं धम ः स यसंगरः । वमु ः सवस े यो भूय एव भ व य स ।। १२ ।। तुम तो सदा धमम मन लगाये रखनेवाले, धम , स य त और सब कारक आस य से शू य हो और आगे भी तुमम अ धका धक इन गुण का वकास होगा ।। यथा भगीरथो राजा राजान गयादयः । यथा यया तः कौ तेय तथा वम प पा डव ।। १३ ।। कु तीकुमार पा डु न दन! जैसे राजा भगीरथ हो गये ह, जैसे गय आ द राज ष हो चुके ह तथा जैसे महाराज यया त ए ह, वैसे ही तुम भी व यात हो ।। यु ध र उवाच न हषात् स प या म वा य या यो रं व चत् । मरे दे वराजो यं को नामा य धक ततः ।। १४ ।। यु ध र बोले—महष! आपके दशन और आपक बात के सुननेसे मुझे इतना अ धक हष आ है क मुझे इन वचन का कोई उ र नह सूझता। दे वराज इ जसका मरण करते ह उससे बढ़कर इस संसारम कौन है? ।। भवता संगमो य य ाता चैव धनंजयः । वासवः मरते य य को नामा य धक ततः ।। १५ ।। जसे आपका संग ा त हो, जसके अजुन-जैसा भाई हो और जसे इ याद करते ह , उससे बढ़कर सौभा यशाली और कौन है? ।। १५ ।। ी

य च मां भगवानाह तीथानां दशनं त । धौ य य वचनादे षा बु ः पूव कृतैव मे ।। १६ ।। भगवन्! आपने मुझे तीथ के दशनके लये जो उ साह दान कया है, वह ठ क है। मने पहलेसे ही धौ यजीके आदे शसे तीथ म जानेका वचार कर रखा है ।। तद् यदा म यसे न् गमनं तीथदशने । तदै व ग ता म तीथा येष मे न यः परः ।। १७ ।। अतः न्! आप जब ठ क समझ तभी म तीथ के दशनके लये चल ँ गा; यही मेरा अ तम न य है ।। १७ ।।

वैश पायन उवाच गमने कृतबु तु पा डवं लोमशोऽ वीत् । लघुभव महाराज लघुः वैरं ग म य स ।। १८ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तीथया ाके लये ज ह ने न त वचार कर लया था, उन पा डु -न दन यु ध रसे मह ष लोमशने कहा—‘महाराज! लोकसमूहसे आप हलके हो जाइये—थोड़े ही लोग को साथ रखये; य क थोड़े संगी-साथी होनेपर आप इ छानुसार सव जा सकगे ।। १८ ।। यु ध र उवाच भ ाभुजो नवत तां ा णा यतय ये । ु ृड व मायासशीता तमस ह णवः ।। १९ ।। यु ध र बोले—जो भ ाभोजी ा ण और सं यासी ह तथा जो भूख- यास, प र म-थकावट और सदक पीड़ा सहन न कर सक , उ ह लौट जाना चा हये ।। १९ ।। ते सव व नवत तां ये च म भुजो जाः । प वा ले पानानां मांसानां च वक पकाः ।। २० ।। जो ज म ा भोजी ह वे भी लौट जायँ। जो प वा , चटनी, पेय पदाथ और मांस आ द खानेवाले मनु य ह , वे भी लौट जायँ ।। २० ।। तेऽ प सव नवत तां ये च सूदानुया यनः । मया यथो चताजी ैः सं वभ ा वृ भः ।। २१ ।। जो लोग रसोइय क अपे ा रखनेवाले ह तथा ज ह मने अलग-अलग बाँटकर उ चतउ चत आजी वकाक व था कर द है, वे सब लोग घर लौट जायँ ।। २१ ।। ये चा यनुरताः पौरा राजभ पुरःसराः । धृतरा ं महाराजम भग छ तु ते च वै ।। २२ ।। स दा य त यथाकालमु चता य य या भृ तः । स चेद ् यथो चतां वृ न द ा मनुजे रः ।। २३ ।। अ म य हताथाय पा चा यो वः दा य त ।। २४ ।। जो पुरवासी राजभ वश मेरे पीछे -पीछे चले आये ह, वे अब महाराज धृतराक े पास चले जायँ। वे उनके लये यथासमय समु चत आजी वका दान करगे। य द राजा धृतरा ी ो े औ े े े

उ चत जी वकाक व था न कर तो पांचालनरेश पद हमारा य और हत करनेके लये अव य आपलोग को जी वका दगे ।। २२—२४ ।। वैश पायन उवाच ततो भू य शः पौरा गु भार पी डताः । व ा यतयो मु या ज मुनागपुरं त ।। २५ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तब ब त-से नाग रक, ा ण और य त मान सक ःखके भारी भारसे पी ड़त हो ह तनापुरको चले गये ।। २५ ।। तान् सवान् धमराज य े णा राजा बकासुतः । तज ाह व धवद् धनै समतपयत् ।। २६ ।। अ बकान दन राजा धृतराने धमराज यु ध रके नेहवश उन सबको व धपूवक अपनाया और उ ह धन दे कर तृ त कया ।। २६ ।। ततः कु तीसुतो राजा लघु भ ा णैः सह । लोमशेन च सु ीत रा ं का यकेऽवसत् ।। २७ ।। तदन तर कु तीन दन राजा यु ध र थोड़े-से ा ण और लोमशजीके साथ अ य त स तापूवक तीन राततक का यक वनम टके रहे ।। २७ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायां नव ततमोऽ यायः ।। ९२ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ा वषयक बानबेवाँ अ याय पूरा आ ।। ९२ ।।

नव ततमोऽ यायः ऋ षय को नम कार करके पा डव का तीथया ाके लये वदा होना वैश पायन उवाच ततः या तं कौ तेयं ा णा वनवा सनः । अ भग य तदा राज दं वचनम ुवन् ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! कु तीपु यु ध रको तीथया ाके लये उ त जान का य-कवनके नवासी ा ण उनके नकट आकर इस कार बोले— ।। १ ।। राजं तीथा न ग ता स पु या न ातृ भः सह । ऋ षणा चैव स हतो लोमशेन महा मना ।। २ ।। ‘महाराज! आप अपने भाइय तथा महा मा लोमश मु नके साथ पु यतीथ म जानेवाले ह ।। २ ।। अ मान प महाराज नेतुमह स पा डव । अ मा भ ह न श या न व ते ता न कौरव ।। ३ ।। ‘कु कुल तलक पा डु न दन! हम भी अपने साथ ले चल। महाराज! आपके बना हमलोग उन तीथ क या ा नह कर सकते ।। ३ ।। ापदै पसृ ा न गा ण वषमा ण च । अग या न नरैर पै तीथा न मनुजे र ।। ४ ।। ‘मनुजे र! वे सभी तीथ हसक ज तु से भरे पड़े ह। गम और वषम भी ह। थोड़ेसे मनु य वहाँक या ा नह कर सकते ।। ४ ।।

भवतो ातरः शूरा धनुधरवराः सदा । भव ः पा लताः शूरैग छामो वयम युत ।। ५ ।। ‘आपके भाई शूरवीर ह और सदा े धनुष धारण कये रहते ह। आप-जैसे शूरवीर से सुर त होकर हम भी उन तीथ क या ा पूरी कर लगे ।। ५ ।। भव सादा वयं ा ुयाम सुखं फलम् । तीथानां पृ थवीपाल वनानां च वशा पते ।। ६ ।। ‘भूपाल! जानाथ! आपके सादसे हमलोग भी उन तीथ और वन क या ाका फल अनायास ही पा लगे ।। ६ ।। तव वीयप र ाताः शु ा तीथप र लुताः । भवेम धूतपा मान तीथसंदशना ृप ।। ७ ।। ‘नरे र! आपके बल-परा मसे सुर त हो हम भी तीथ म नान करके शु हो जायँगे और उन तीथ के दशनसे हमारे सब पाप धुल जायँगे ।। ७ ।। भवान प नरे य कातवीय य भारत । अ क य च राजषल मपाद य चैव ह ।। ८ ।। भरत य च वीर य सावभौम य पा थव । ुवं ा य स ापाँ लोकां तीथप र लुतः ।। ९ ।। ‘

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‘भूपाल! भरतन दन! आप भी तीथ म नहाकर राजा कातवीय अजुन, राज ष अ क, लोमपाद और भूम डलम सव व दत साट ् वीरवर भरतको मलनेवाले लभ लोक को अव य ा त कर लगे ।। ८-९ ।। भासाद न तीथा न महे ाद पवतान् । ग ा ाः स रत ैव ल ाद वन पतीन् ।। १० ।। वया सह महीपाल ु म छामहे वयम् । य द ते ा णे व त का चत् ी तजना धप ।। ११ ।। कु ं वचोऽ माकं ततः ेयोऽ भप यसे । ‘महीपाल! भास आ द तीथ , महे आ द पवत , गंगा आ द न दय तथा ल आ द वृ का हम आपके साथ दशन करना चाहते ह। जने र! य द आपके मनम ा ण के त कुछ ेम है तो आप हमारी बात शी मान ली जये; इससे आपका क याण होगा ।। १०-११ ।। तीथा न ह महाबाहो तपो व नकरैः सदा ।। १२ ।। अनुक णा न र ो भ ते यो न ातुमह स । ‘महाबाहो! तप याम व न डालनेवाले ब त-से रा स उन तीथ म भरे पड़े ह, उनसे आप हमारी र ा करनेम समथ ह’ ।। १२ ।। तीथा यु ा न धौ येन नारदे न च धीमता ।। १३ ।। या युवाच च दे व षल मशः सुमहातपाः । व धवत् ता न सवा ण पयट व नरा धप ।। १४ ।। धूतपा मा सहा मा भल मशेना भपा लतः । ‘नरे र! आप पापर हत ह, धौ य मु न, परम बु मान् नारदजी तथा महातप वी दे व ष लोमशने जन- जन तीथ का वणन कया है, उन सबम आप मह ष लोमशजीसे सुर त हो हमारे साथ व धपूवक मण कर’ ।। १३-१४ ।। स राजा पू यमान तैहषाद ुप र लुतः ।। १५ ।। भीमसेना द भव रै ातृ भः प रवा रतः । बाढ म य वीत् सवा तानृषीन् पा डवषभः ।। १६ ।। लोमशं समनु ा य धौ यं चैव पुरो हतम् । पा डव े यु ध र अपने वीर ाता भीमसेन आ दसे घरकर खड़े थे। उन ा ण ारा इस कार स मा नत होनेपर उनके ने म हषके आँसू भर आये। उ ह ने दे व ष लोमश तथा पुरो हत धौ यजीक आ ा लेकर उन सब ऋ षय से ‘ब त अ छा’ कहकर उनका अनुरोध वीकार कर लया ।। १५-१६ ।। ततः स पा डव े ो ातृ भः स हतो वशी ।। १७ ।। ौप ा चानव ा या गमनाय मनो दधे । तदन तर मन-इ य को वशम रखनेवाले पा डव े यु ध रने भाइय तथा सु दर अंग वाली ौपद के साथ या ा करनेका मन-ही-मन न य कया ।। १७ ।। ो



अथ ासो महाभाग तथा पवतनारदौ ।। १८ ।। का यके पा डवं ु ं समाज मुमनी षणः । तेषां यु ध रो राजा पूजां च े यथा व ध । स कृता ते महाभाग यु ध रमथा ुवन् ।। १९ ।। इतनेहीम महाभाग ास, पवत और नारद आ द मनीषीजन का यकवनम पा डु न दन यु ध रसे मलनेके लये आये। राजा यु ध रने उनक व धपूवक पूजा क । उनसे स कार पाकर वे महाभाग मह ष महाराज यु ध रसे इस कार बोले ।। १८-१९ ।। ऋषय ऊचुः यु ध र यमौ भीम मनसा कु ताजवम् । मनसा कृतशौचा वै शु ा तीथा न या यथ ।। २० ।। ऋ षय ने कहा—यु ध र! भीमसेन! नकुल! और सहदे व! तुमलोग तीथ के त मनसे ापूवक सरलभाव रखो। मनसे शु का स पादन करके शु च होकर तीथ म जाओ ।। २० ।। शरीर नयमं ा ा णा मानुषं तम् । मनो वशु ां बु च द ै वमा तं जाः ।। २१ ।। ा णलोग शरीर-शु के नयमको ‘मानुष त’ बताते ह और मनके ारा शु क ई बु को ‘दै व त’ कहते ह ।। २१ ।। मनो ं शौचाय पया तं वै नरा धप । मै बु समा थाय शु ा तीथा न यथ ।। २२ ।। नरे र! य द मन राग- े षसे षत न हो तो वह शु के लये पया त माना गया है। सब ा णय के त मै ी-बु का आ य ले शु भावसे तीथ का दशन करो ।। २२ ।। ते यूयं मानसैः शु ाः शरीर नयम तैः । दै वं तं समा थाय यथो ं फलमा यथ ।। २३ ।। तुम मान सक और शारी रक नयम त से शु हो। दै व तका आ य ले या ा करोगे तो तीथ का तु ह यथावत् फल ा त होगा ।। २३ ।। ते तथे त त ाय कृ णया सह पा डवाः । कृत व ययनाः सव मु न भ द मानुषैः ।। २४ ।। मह षय के ऐसा कहनेपर ौपद स हत पा डव ने ‘ब त अ छा’ कहकर (उनक आ ाएँ शरोधाय क और उनके बताये ए नयम का पालन करनेक ) त ा क । त प ात् उन द और मानव मह षय ने उन सबके लये व तवाचन कया ।। २४ ।। लोमश योपसंगृ पादौ ै पायन य च । नारद य च राजे दे वषः पवत य च ।। २५ ।। धौ येन स हता वीरा तथा तैवनवा स भः । मागशी यामतीतायां पु येण ययु ततः ।। २६ ।। े











राजे ! तदन तर मह ष लोमश, ै पायन ास, दे व ष नारद और पवतके चरण का पश करके वनवासी ा ण , पुरो हत धौ य और लोमश आ दके साथ वीर पा डव तीथया ाके लये नकले। मागशीषक पू णमा तीत होनेपर जब पु य न आया तब उसी न म उ ह ने या ा ार भ क ।। २५-२६ ।। क ठना न समादाय चीरा जनजटाधराः । अभे ैः कवचैयु ा तीथा य वचरं ततः ।। २७ ।। उन सबने शरीरपर फटे -पुराने व या मृगचम धारण कर रखे थे। उनके म तकपर जटाएँ थ । उनके अंग अभे कवच से ढके ए थे। वे सूय द बटलोई आ द पा लेकर वहाँ तीथ म वचरण करने लगे ।। २७ ।। इ सेना द भभृ यै रथैः प रचतुदशैः । महानस ापृतै तथा यैः प रचारकैः ।। २८ ।। उनके साथ इ सेन आ द चौदहसे अ धक सेवक रथ लये पीछे -पीछे जा रहे थे। रसोईके कामम संल न रहनेवाले अ या य सेवक भी उनके साथ थे ।। २८ ।। सायुधा ब न ंशा तूणव तः समागणाः । ाङ् मुखाः ययुव राः पा डवा जनमेजय ।। २९ ।। जनमेजय! वीर पा डव आव यक अ -श ले कमरम तलवार बाँधकर पीठपर तरकस कसे ए हाथ म बाण लये पूव दशाक ओर मुँह करके वहाँसे थत ए ।। २९ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायां नव ततमोऽ यायः ।। ९३ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ा वषयक तरानबेवाँ अ याय पूरा आ ।। ९३ ।।

चतुनव ततमोऽ यायः दे वता और धमा मा राजा का उदाहरण दे कर मह ष लोमशका यु ध रको अधमसे हा न बताना और तीथया ाज नत पु यक म हमाका वणन करते ए आ ासन दे ना यु ध र उवाच न वै नगुणमा मानं म ये दे व षस म । तथा म ःखसंत तो यथा ना यो महीप तः ।। १ ।। यु ध र बोले—दे व ष वर लोमश! मेरी समझसे म अपनेको सा वक गुण से हीन नह मानता तो भी ःख से इतना संत त होता रहता ँ जतना सरा कोई राजा नह आ होगा ।। १ ।। परां नगुणान् म ये न च धमगतान प । ते च लोमश लोकेऽ म ृ य ते केन हेतुना ।। २ ।। इसके सवा, य धना द श ु को सा वक गुण से र हत समझता ँ। साथ ही यह भी जानता ँ क वे धम-परायण नह ह तो भी वे इस लोकम उ रो र समृ शाली होते जा रहे ह, इसका या कारण है? ।। २ ।। लोमश उवाच ना ःखं वया राजन् काय पाथ कथंचन । यदधमण वधयुरधम चयो जनाः ।। ३ ।। लोमशजीने कहा—राजन्! कु तीन दन! अधमम च रखनेवाले लोग य द उस अधमके ारा बढ़ रहे ह तो इसके लये तु ह कसी कार ःख नह मानना चा हये ।। ३ ।। वध यधमण नर ततो भ ा ण प य त । ततः सप ना य त समूल तु वन य त ।। ४ ।। पहले अधम ारा मनु य बढ़ सकता है, फर अपने मनोऽनुकूल सुख-स प प अ युदयको दे ख सकता है, त प ात् वह श ु पर वजय पा सकता है और अ तम जड़मूलस हत न हो जाता है ।। ४ ।। मया ह ा दै तेया दानवा महीपते । वधमाना धमण यं चोपगताः पुनः ।। ५ ।। महीपाल! मने दै य और दानव को अधमके ारा बढ़ते और पुनः न होते भी दे खा है ।। ५ ।। पुरा दे वयुगे चैव ं सव मया वभो । ो े

अरोचयन् सुरा धम धम त य जरेऽसुराः ।। ६ ।। भो! पहले दे वयुगम ही मने यह सब अपनी आँख दे खा है। दे वता ने धमके त अनुराग कया और असुर ने उसका प र याग कर दया ।। ६ ।। तीथा न दे वा व वशुना वशन् भारतासुराः । तानधमकृतो दपः पूवमेव समा वशत् ।। ७ ।। भरतन दन! दे वता ने नानके लये तीथ म वेश कया, परंतु असुर उनम नह गये। अधमज नत दप असुर म पहलेसे ही समा गया था ।। ७ ।। दपा मानः समभव मानात् ोधो जायत । ोधाद ी ततोऽल जा वृ ं तेषां ततोऽनशत् ।। ८ ।। दपसे मान आ और मानसे ोध उ प आ। ोधसे नल जता आयी और नल जताने उनके सदाचारको न कर दया ।। ८ ।। तानल जान् गत ीकान् हीनवृ ान् वृथा तान् । मा ल मीः वधम न चरात् ज ततः ।। ९ ।। ल मी तु दे वानगमदल मीरसुरान् नृप । तानल मीसमा व ान् दप पहतचेतसः ।। १० ।। दै तेयान् दानवां ैव क लर या वशत् ततः । तानल मीसमा व ान् दानवान् क लना हतान् ।। ११ ।। दपा भभूतान् कौ तेय याहीनानचेतसः । माना भभूतान चराद् वनाशः समप त ।। १२ ।। इस कार ल जा, संकोच और सदाचारसे हीन एवं न फल तका आचरण करनेवाले उन असुर को मा, ल मी और वधमने शी याग दया। राजन्! ल मी दे वता के पास चली गयी और अल मी असुर के यहाँ। अल मीके आवेशसे यु होनेपर उनका च दप और अ भमानसे षत हो गया। उस दशाम उन दै य और दानव म क लका भी वेश हो गया। जब वे दानव अल मीसे संयु , क लसे तर कृत और अ भमानसे अ भभूत हो स कम से शू य, ववेकर हत और मानसे उ म हो गये, तब शी ही उनका वनाश हो गया ।। ९—१२ ।। नयश का तथा दै याः कृ नशो वलयं गताः । दे वा तु सागरां ैव स रत सरां स च ।। १३ ।। अ यग छन् धमशीलाः पु या यायतना न च । तपो भः तु भदानैराशीवादै पा डव ।। १४ ।। ज ः सवपापा न ेय तपे दरे । एवमादानव त नरादाना सवशः ।। १५ ।। तीथा यग छन् वबुधा तेनापुभू तमु माम् । (य धमण वत ते राजानो राजस म । सवान् सप नान् बाध ते रा यं चैषां ववधते ।।) तथा वम प राजे ना वा तीथषु सानुजः ।। १६ ।। ी े

पुनव य स तां ल मीमेष प थाः सनातनः । यशोहीन दै य पूणतः वन हो गये, कतु धमशील दे वता ने प व समु , स रता , सरोवर और पु य द आ म क या ा क । पा डु न दन! वहाँ तप या, य और दान आ द करके महा मा के आशीवादसे वे सब पाप से मु हो क याणके भागी ए। इस कार उ म नयम हण करके कसीसे भी कोई त ह न लेकर दे वता ने तीथ म वचरण कया; इससे उ ह उ म ऐ यक ा त ई। नृप े ! जहाँ राजा धमके अनुसार बताव करते ह वहाँ वे सब श ु को न कर दे ते ह और उनका रा य भी बढ़ता रहता है। राजे ! इस लये तुम भी भाइय स हत तीथ म नान करके खोयी ई राजल मी ा त कर लोगे। यही सनातन माग है ।। १३—१६ ।। यथैव ह नृगो राजा श बरौशीनरो यथा ।। १७ ।। भगीरथो वसुमना गयः पू ः पु रवाः । चरमाणा तपो न यं पशनाद भस ते ।। १८ ।। तीथा भगमनात् पूता दशना च महा मनाम् । अलभ त यशः पु यं धना न च वशा पते ।। १९ ।। तथा वम प राजे लधा स वपुलां यम् । जैसे राजा नृग, उशीनरपु श ब, भगीरथ, वसुमना, गय, पू तथा पु रवा आ द नरेश ने सदा तप यापूवक तीथया ा करके वहाँके जलके पश और महा मा के दशनसे पावन यश और चुर धन ा त कये थे; उसी कार तुम भी तीथया ाके पु यसे वपुल सप ा त कर लोगे ।। १७—१९ ।। यथा चे वाकुरभवत् सपु जनबा धवः ।। २० ।। मुचुकु दोऽथ मा धाता म महीप तः । क त पु याम व द त यथा दे वा तपोबलात् ।। २१ ।। दे वषय का यन तथा वम प वे य स । धातरा ा वधमण मोहेन च वशीकृताः । न चराद् वै वनङ् य त दै या इव न संशयः ।। २२ ।। जैसे पु , सेवक तथा ब धु-बा धव स हत राजा इ वाकु, मुचुकु द, मा धाता तथा महाराज म ने पु यक त ा त क थी, जैसे दे वता और दे व षय ने तपोबलसे यश और ऐ य ा त कया था; उसी कार तुम भी पूण पसे यश और धन-स प ात करोगे। धृतराक े पु पाप और मोहके वशीभूत ह; अतः वे दै य क भाँ त शी न हो जायँगे; इसम संशय नह है ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायां चतुनव ततमोऽ यायः ।। ९४ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ा वषयक चौरानबेवाँ अ याय पूरा आ ।। ९४ ।। (दा णा य अ धक पाठका १ ोक मलाकर क ु ल २३ ोक ह)

प चनव ततमोऽ यायः पा डव का नै मषार य आ द तीथ म जाकर याग तथा गयातीथम जाना और गय राजाके महान् य क म हमा सुनना वैश पायन उवाच ते तथा स हता वीरा वस त त त ह । मेण पृ थवीपाल नै मषार यमागताः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! इस कार वे वीर पा डव व भ थान म नवास करते ए मशः नै मषार यतीथम आये ।। १ ।। तत तीथषु पु येषु गोम याः पा डवा नृप । कृता भषेकाः द गा व ं च भारत ।। २ ।। भरतन दन! नरे र! तदन तर गोमतीके पु य तीथ म नान करके पा डव ने वहाँ गोदान और धनदान कया* ।। २ ।। त दे वान् पतॄन् व ां तप य वा पुनः पुनः । क यातीथऽ तीथ च गवां तीथ च भारत । कालको ां वृष थे गरावु य च पा डवाः ।। ३ ।। बा दायां महीपाल च ु ः सवऽ भषेचनम् । यागे दे वयजने दे वानां पृ थवीपते ।। ४ ।। ऊषुरा लु य गा ा ण तप ात थु मम् । ग ायमुनयो ैव संगमे स यसंगराः ।। ५ ।। भारत! भूपाल! वहाँ दे वता , पतर तथा ा ण को बार-बार तृ त करके क यातीथ, अ तीथ, गोतीथ, कालको ट तथा वृष थ ग रम नवास करते ए उन सब पा डव ने बा दा नद म नान कया। पृ वीपते! तदन तर उ ह ने दे वता क य भू म यागम प ँचकर वहाँ गंगा-यमुनाके संगमम नान कया। स य त पा डव वहाँ नान करके कुछ दन तक उ म तप याम लगे रहे ।। ३—५ ।। वपा मानो महा मानो व े यः द वसु । तप वजनजु ां च ततो वेद जापतेः ।। ६ ।। ज मुः पा डु सुता राजन् ा णैः सह भारत । त ते यवसन् वीरा तप ात थु मम् ।। ७ ।। संतपय तः सततं व येन ह वषा जान् ।

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उन पापर हत महा मा ने ( वेणीतटपर) ा ण को धन दान कया। भरतन दन! त प ात् पा डव ा ण के साथ ाजीक वेद पर गये, जो तप वीजन से से वत है। वहाँ उन वीर ने उ म तप या करते ए नवास कया। वे सदा क द-मूल-फल आ द व य ह व य ारा ा ण को तृ त करते रहते थे ।। ६-७ ।। ततो महीधरं ज मुधम ेना भसं कृतम् ।। ८ ।। राज षणा पु यकृता गयेनानुपम ुते । अनुपम तेज वी जनमेजय! यागसे चलकर पा डव पु या मा एवं धम राज ष गयके ारा य करके शु कये ए उ म पवतसे उपल त गयातीथम गये ।। ८ ।। नगो गय शरो य पु या चैव महानद ।। ९ ।। वानीरमा लनी र या नद पु लनशो भता । जहाँ गय शर नामक पवत और बतक पं य से घरी ई रमणीय महानद है, जो अपने दोन तट से वशेष शोभा पाती है ।। ९ ।। द ं प व कूटं च प व ं धरणीधरम् ।। १० ।। ऋ षजु ं सुपु यं तत् तीथ सरो मम् । अग यो भगवान् य गतो वैव वतं त ।। ११ ।। वहाँ मह षय से से वत, पावन शखर वाला, द एवं प व सरा पवत भी है जो अ य त पु यदायक तीथ है। वह उ म सरोवर है जहाँ भगवान् अग यमु न वैव वत यमसे मलनेके लये पधारे थे ।। १०-११ ।। उवास च वयं त धमराजः सनातनः । सवासां स रतां चैव समुदभे ् दो वशा पते ।। १२ ।। य क सनातन धमराज वहाँ वयं नवास करते ह। राजन्! वहाँ स पूण न दय का ाक आ है ।। य सं न हतो न यं महादे वः पनाकधृक् । त ते पा डवा वीरा ातुमा यै तदे जरे ।। १३ ।। ऋ षय ेन महता य ा यवटो महान् । पनाकपा ण भगवान् महादे व उस तीथम न य नवास करते ह। वहाँ वीर पा डव ने उन दन चातुमा य त हण करके महान् ऋ षय अथात् वेदा द सत्शा के वा याय ारा भगवान्क आराधना क । वह महान् अ यवट है ।। १३ ।। अ ये दे वयजने अ यं य वै फलम् ।। १४ ।। दे वता क वह य भू म अ य है और वहाँ कये ए येक स कमका फल अ य होता है ।। १४ ।। ते तु त ोपवासां तु च ु न तमानसाः । ा णा त शतशः समाज मु तपोधनाः ।। १५ ।। अ वचल च वाले पा डव ने उस तीथम कई उपवास कये। उस समय वहाँ सैकड़ तप वी ा ण पधारे ।। १५ ।। े

चातुमा येनायज त आषण व धना तदा । त व ातपोवृ ा ा णा वेदपारगाः । कथां च रे पु यां सद स था महा मनाम् ।। १६ ।। उ ह ने शा ो व धपूवक चातुमा य य कया। वहाँ आये ए ा ण व ा और तप याम बढ़े -चढ़े तथा वेद के पारंगत व ान् थे। उ ह ने पर पर मलकर सभाम बैठकर महा मा पु ष क प व कथाएँ कह ।। १६ ।। त व ा त नातः कौमारं तमा थतः । शमठोऽकथयद ् राज ामूतरयसं गयम् ।। १७ ।। उनम शमठ नामक एक व ान् ा ण थे जो व ा ययनका त समा त करके नातक हो चुके थे। उ ह ने आजीवन चयपालनका त ले रखा था। राजन्! शमठने वहाँ अमूतरयाके पु महाराज गयक कथा इस कार कही ।। १७ ।। शमठ उवाच अमूतरयसः पु ो गयो राज षस मः । पु या न य य कमा ण ता न मे शृणु भारत ।। १८ ।। शमठ बोले—भरतन दन यु ध र! अमूतरयाके पु गय राज षय म े थे। उनके कम बड़े ही प व एवं पावन थे। म उनका वणन करता ँ, सुनो— ।। य य य ो बभूवेह ब ो ब द णः । य ा पवता राजन् शतशोऽथ सह शः ।। १९ ।। घृतकु या द न न ो ब शता तथा । नानां वाहा महाहाणां सह शः ।। २० ।। राजन्! यहाँ राजा गयने बड़ा भारी य कया था। उसम ब त अ खच आ था और असं य द णा बाँट गयी थी। उस य म अ के सैकड़ और हजार पवत लग गये थे। घीके कई सौ कु ड और दहीक न दयाँ बहती थ । सह कारके उ मो म न क बाढ़-सी आ गयी थी ।। १९-२० ।। अह यह न चा येवं याचतां स द यते । अ ये च ा णा राजन् भु तेऽ ं सुसं कृतम् ।। २१ ।। याचक को त दन इसी कार भोजन और दान दया जाता था। राजन्! अ या य ा ण भी वहाँ उ म री तसे तैयारक ई रसोई जीमते थे ।। २१ ।। त वै द णाकाले घोषो दवं गतः । नच ायते क चद् श दे न भारत ।। २२ ।। भरतन दन! उस य म द णा दे ते समय जो वेदम क व न होती थी वह वगलोकतक गूँज उठती थी। उस वेद व नके सामने सरा कोई श द नह सुनायी पड़ता था ।। २२ ।। पु येन चरता राजन् भू दशः खं नभ तथा । आपूणमासी छ दे न तद यासी महा तम् ।। २३ ।।

य म गाथा गाय त मनु या भरतषभ । अ पानैः शुभै तृ ता दे शे दे शे सुवचसः ।। २४ ।। राजन्! वहाँ सब ओर फैले ए पु यमय श दसे पृ वी, दशाएँ, वग और आकाश प रपूण हो गये। यह बड़ी ही अ त बात थी। भरत े ! उस य म सब मनु य यह गाथा गाते रहते थे क ‘इस य म दे श-दे शके अ य त तेज वी पु ष उ म अ पानसे तृ त हो रहे ह’ ।। २३-२४ ।। गय य य े के व ा णनो भो ु मी सवः । त भोजन श य पवताः प च वश तः ।। २५ ।। ‘गयके य म लोग यही पूछते फरते थे क ‘कौन-कौन ऐसे ाणी रह गये ह जो अभी भोजन करना चाहते ह?’ वहाँ खानेसे बचे ए अ के पचीस पवत शेष रह गये थे ।। २५ ।। न तत् पूव जना ु न क र य त चापरे । गयो यदकरोद् य े राज षर मत ु तः ।। २६ ।। ‘अ मततेज वी राज ष गयने अपने य म जो य कया था, वह पहलेके राजा ने भी नह कया था और भ व यम भी कोई सरे कर सकगे, ऐसा स भव नह है ।। कथं तु दे वा ह वषा गयेन प रत पताः । पुनः श य युपादातुम यैद ा न का न चत् ।। २७ ।। ‘गयने स पूण दे वता को ह व यसे भलीभाँ त तृ त कर दया है, अब वे सर के दये ए ह व यको कैसे हण कर सकगे? ।। २७ ।। सकता वा यथा लोके यथा वा द व तारकाः । यथा वा वषतो धारा असं येयाः म केन चत् । तथा गण यतुं श या गयय े न द णाः ।। २८ ।। ‘जैसे लोकम बालूके कण, आकाशके तारे और बरसते ए बादल क जलधाराएँ कसीके ारा भी गनी नह जा सकत , उसी कार गयके य म द ई द णा क भी कोई गणना नह कर सकता था ।। २८ ।। एवं वधाः सुबहव त य य ा महीपतेः । बभूवुर य सरसः समीपे कु न दन ।। २९ ।। कु न दन! महाराज गयके ऐसे ही ब त-से य इस सरोवरके समीप स प ए ह ।। २९ ।। ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायां गयय कथने प चनव ततमोऽ यायः ।। ९५ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमश-तीथया ाके संगम ‘गयके य का वणन’- वषयक पंचानबेवाँ अ याय पूरा आ ।। ९५ ।।

*

इत

* यहाँ पा डव के ारा गोदान और धनदान करनेके वषयम यह शंका होती है क इनके पास ये सब कहाँसे आये पर ऐसी शंका नह करनी चा हये; य क वनपवके बारहव अ यायम आता है क का यकवनम पा डव से मलनेके लये भगवान् ीकृ ण एवं भोजवंशी, वृ णवंशी और अ धककुलके राजागण तथा पद, धृ ु न, धृ केतु एवं केकय राजकुमार आये थे। उनका पा डव से मलकर अपने-अपने रा यम लौट जानेका भी वणन वनपवके बाईसव अ यायम आया है। इससे अनुमान होता है क इन राजा ने पा डव को भटम चुर धन दया होगा।

ष णव ततमोऽ यायः इ वल और वाता पका वणन, मह ष अग यका पतर के उ ारके लये ववाह करनेका वचार तथा वदभराजका मह ष अग यसे एक क या पाना वैश पायन उवाच ततः स थतो राजा कौ तेयो भू रद णः । अग या ममासा जयायामुवास ह ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर चुर द णा दे नेवाले कु तीन दन राजा यु ध रने गयासे थान कया और अग या मम जाकर जय म णमती नगरीम नवास कया ।। १ ।। त ैव लोमशं राजा प छ वदतां वरः । अग येनेह वाता पः कमथमुपशा मतः ।। २ ।। वह व ा म े राजा यु ध रने मह ष लोमशसे पूछा—‘ न्! अग यजीने यहाँ वाता पको कस लये न कया? ।। २ ।। आसी ा क भाव स दै यो मानवा तकः । कमथ चो दतो म युरग य य महा मनः ।। ३ ।। ‘मनु य का वनाश करनेवाले उस दै यका भाव कैसा था? और महा मा अग यजीके मनम ोधका उदय कैसे आ’? ।। ३ ।। लोमश उवाच इ वलो नाम दै तेय आसीत् कौरवन दन । म णम यां पु र पुरा वाता प त य चानुजः ।। ४ ।। लोमशजीने कहा—कौरवन दन! पूवकालक बात है, इस म णमती नगरीम इ वल नामक दै य रहता था। वाता प उसीका छोटा भाई था ।। ४ ।। स ा णं तपोयु मुवाच द तन दनः । पु ं मे भगवानेक म तु यं य छतु ।। ५ ।। त मै स ा णो नादात् पु ं वासवस मतम् । चु ोध सोऽसुर त य ा ण य ततो भृशम् ।। ६ ।। तदा भृ त राजे इ वलो हासुरः । म युमान् ातरं छागं मायावी करोत् ततः ।। ७ ।। मेष पी च वाता पः काम यभवत् णात् । सं कृ य च भोजय त ततो व ं जघांस त ।। ८ ।। े







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एक दन द तन दन इ वलने एक तप वी ा णसे कहा—‘भगवन्! आप मुझे ऐसा पु द, जो इ के समान परा मी हो।’ उन ा णदे वताने इ वलको इ के समान पु नह दया। इससे वह असुर उन ा णदे वतापर ब त कु पत हो उठा। राजन्! तभीसे इ वल दै य ोधम भरकर ा ण क ह या करने लगा। वह मायावी अपने भाई वाता पको मायासे बकरा बना दे ता था। वाता प भी इ छानुसार प धारण करनेम समथ था! अतः वह णभरम भेड़ा और बकरा बन जाता था। फर इ वल उस भेड़ या बकरेको पकाकर उसका मांस राँधता और कसी ा णको खला दे ता था। इसके बाद वह ा णको मारनेक इ छा करता था ।। ५—८ ।। स चा य त यं वाचा गतं वैव वत यम् । स पुनदहमा थाय जीवन् म य यत ।। ९ ।। इ वलम यह श थी क वह जस कसी भी यमलोकम गये ए ाणीको उसका नाम लेकर बुलाता वह पुनः शरीर धारण करके जी वत दखायी दे ने लगता था ।। ९ ।। ततो वाता पमसुरं छागं कृ वा सुसं कृतम् । तं ा णं भोज य वा पुनरेव समा यत् ।। १० ।। उस दन वाता प दै यको बकरा बनाकर इ वल उसके मांसका सं कार कया और उन ा णदे वको वह मांस खलाकर पुनः अपने भाईको पुकारा ।। १० ।। ता म वलेन महता वरेण वाचमी रताम् । ु वा तमायो बलवान् ं ा णक टकः ।। ११ ।। त य पा व न भ ा ण य महासुरः । वाता पः हसन् राजन् न ाम वशा पते ।। १२ ।। राजन्! इ वलके ारा उ च वरसे बोली ई वाणी सुनकर वह अ य त मायावी ा णश ु बलवान् महादै य वाता प उस ा णक पसलीको फाड़कर हँसता आ नकल आया ।। ११-१२ ।। एवं स ा णान् राजन् भोज य वा पुनः पुनः । हसयामास दै तेय इ वलो चेतनः ।। १३ ।। राजन्! इस कार दय इ वल दै य बार-बार ा ण को भोजन कराकर अपने भाई ारा उनक हसा करा दे ता था (इसी लये अग यमु नने वाता पको न कया था) ।। १३ ।। अग य ा प भगवानेत मन् काल एव तु । पतॄन् ददश गत वै ल बमानानधोमुखान् ।। १४ ।। इ ह दन भगवान् अग यमु न कह चले जा रहे थे। उ ह ने एक जगह अपने पतर को दे खा जो एक गड् ढे म नीचे मुँह कये लटक रहे थे ।। १४ ।।

सोऽपृ छ ल बमानां तान् भव त इव क पताः । ( कमथ वेह ल ब वं गत यूयमधोमुखाः ।) संतानहेतो र त ते यूचु वा दनः ।। १५ ।। तब उन लटकते ए पतर से अग यजीने पूछा—‘आपलोग यहाँ कस लये नीचे मुँह कये काँपते ए-से लटक रहे ह?’ यह सुनकर उन वेदवाद पतर ने उ र दया —‘संतानपर पराके लोपक स भावनाके कारण हमारी यह दशा हो रही है’ ।। १५ ।। ते त मै कथयामासुवयं ते पतरः वकाः । गतमेतमनु ा ता ल बामः सवा थनः ।। १६ ।। उ ह ने अग यके पूछनेपर बताया क ‘हम तु हारे ही पतर ह। संतानके इ छु क होकर इस गड् ढे म लटक रहे ह’ ।। १६ ।। य द नो जनयेथा वमग याप यमु मम् । या ोऽ मा रया मो वं च पु ा ुया ग तम् ।। १७ ।। ‘अग य! य द तुम हमारे लये उ म संतान उ प कर सको तो हम इस नरकसे छु टकारा पा सकते ह और बेटा! तु ह भी सद्ग त ा त होगी’ ।। १७ ।। स तानुवाच तेज वी स यधमपरायणः । क र ये पतरः कामं ेतु वो मानसो वरः ।। १८ ।। े











तब स यधमपरायण तेज वी अग यने उनसे कहा—‘ पतरो! म आपक इ छा पूण क ँ गा। आपक मान सक च ता र हो जानी चा हये’ ।। १८ ।। ततः सवसंतानं च तयन् भगवानृ षः । आ मनः सव याथ नाप यत् स श यम् ।। १९ ।। तब भगवान् मह ष अग यने संतानो पादनक च ता करते ए अपने अनु प संतानको गभम धारण करनेके लये यो य प नीका अनुसंधान कया, परंतु उ ह कोई यो य ी दखायी नह द ।। १९ ।। स त य त य स व य तत् तद मनु मम् । संगृ त समैर ै नममे यमु माम् ।। २० ।। तब उ ह ने एक-एक ज तुके उ मो म अंग का भावना ारा सं ह करके उन सबके ारा एक परम सु दर ीका नमाण कया ।। २० ।। स तां वदभराज य पु ाथ त यत तपः । न मतामा मनोऽथाय मु नः ादा महातपाः ।। २१ ।। उन दन वदभराज पु के लये तप या कर रहे थे। महातप वी अग यमु नने अपने लये नमत क ई वह ी राजाको द े द ।। २१ ।। सा त ज े सुभगा व ुत् सौदामनी यथा । व ाजमाना वपुषा वधत शुभानना ।। २२ ।। उस सु दरी क याका उस राजभवनम बजलीके समान ा भाव आ। वह शरीरसे काशमान हो रही थी। उसका मुख ब त सु दर था, वह राजक या वहाँ दनो दन बढ़ने लगी ।। २२ ।। जातमा ां च तां ् वा वैदभः पृ थवीप तः । हषण जा त यो यवेदयत भारत ।। २३ ।। भरतन दन! राजा वदभने उस क याके उ प होते ही हषम भरकर ा ण को यह शुभ संवाद सुनाया ।। अ यन द त तां सव ा णा वसुधा धप । लोपामु े त त या च रे नाम ते जाः ।। २४ ।। राजन्! उस समय सब ा ण ने राजाका अ भन दन कया और उस क याका नाम ‘लोपामु ा’ रख दया ।। २४ ।। ववृधे सा महाराज ब ती पमु मम् । अ ववो प लनी शी म ने रव शखा शुभा ।। २५ ।। महाराज! उ म प धारण करनेवाली वह राजकुमारी जलम कम लनी तथा य वेद पर व लत शु अ न शखाक भाँ त शी तापूवक बढ़ने लगी ।। २५ ।। तां यौवन थां राजे शतं क याः वलंकृताः । दा यः शतं च क याणीमुपात थुवशानुगाः ।। २६ ।। राजे ! जब उसने युवाव थाम पदापण कया, उस समय उस क याणी क याको व ाभूषण से वभू षत सौ सु दरी क याएँ और सौ दा सयाँ उसक आ ाके अधीन होकर े े औ े ी

घेरे रहत और उसक सेवा कया करती थ ।। २६ ।। सा म दासीशतवृता म ये क याशत य च । आ ते तेज वनी क या रो हणीव द व भा ।। २७ ।। सौ दा सय और सौ क या के बीचम वह तेज वनी क या आकाशम सूयक भा तथा न म रो हणीके समान सुशो भत होती थी ।। २७ ।। यौवन थाम प च तां शीलाचारसम वताम् । न व े पु षः क द् भयात् त य महा मनः ।। २८ ।। य प वह युवती और शील एवं सदाचारसे स प थी तो भी महा मा अग यके भयसे कसी राजकुमारने उसका वरण नह कया ।। २८ ।। सा तु स यवती क या पेणा सरसोऽ य त । तोषयामास पतरं शीलेन वजनं तथा ।। २९ ।। वह स यवती राजकुमारी पम अ सरा से भी बढ़कर थी। उसने अपने शीलवभावसे पता तथा वजन को संतु कर दया था ।। २९ ।। वैदभ तु तथायु ां युवत े य वै पता । मनसा च तयामास क मै द ा ममां सुताम् ।। ३० ।। पता वदभराजकुमारीको युवाव थाम व ई दे ख मन-ही-मन यह वचार करने लगे क ‘इस क याका कसके साथ ववाह क ँ ’ ।। ३० ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायां अग योपा याने ष णव ततमोऽ यायः ।। ९६ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम अग योपा यान वषयक छानबेवाँ अ याय पूरा आ ।। १६ ।। [दा णा य अ धक पाठका ोक मलाकर कुल ३० ोक ह]

स तनव ततमोऽ यायः मह ष अग यका लोपामु ासे ववाह, गंगा ारम तप या एवं प नीक इ छासे धनसं हके लये थान लोमश उवाच यदा वम यताग यो गाह ये तां मा म त । तदा भग य ोवाच वैदभ पृ थवीप तम् ।। १ ।। लोमशजी कहते ह—यु ध र! जब मु नवर अग यजीको यह मालूम हो गया क वदभराजकुमारी मेरी गृह थी चलानेके यो य हो गयी है, तब वे वदभ-नरेशके पास जाकर बोले— ।। १ ।। राजन् नवेशे बु म वतते पु कारणात् । वरये वां महीपाल लोपामु ां य छ मे ।। २ ।। ‘राजन्! पु ो प के लये मेरा ववाह करनेका वचार है। अतः महीपाल! म आपक क याका वरण करता ँ। आप लोपामु ाको मुझे दे द जये’ ।। २ ।। एवमु ः स मु नना महीपालो वचेतनः । या यानाय चाश ः दातुं चैव नै छत ।। ३ ।। मु नवर अग यके ऐसा कहनेपर वदभराजके होश उड़ गये। वे न तो अ वीकार कर सके और न उ ह ने अपनी क या दे नेक इ छा ही क ।। ३ ।। ततः स भायाम ये य ोवाच पृ थवीप तः । मह षव यवानेष ु ः शापा नना दहेत् ।। ४ ।। तब वदभनरेश अपनी प नीके पास जाकर बोले—‘ ये! ये मह ष अग य बड़े श शाली ह। य द कु पत ह तो हम शापक अ नसे भ म कर सकते ह’ ।। ४ ।। तं तथा ःखतं ् वा सभाय पृ थवीप तम् । लोपामु ा भग येदं काले वचनम वीत् ।। ५ ।। रानीस हत महाराजको इस कार ःखी दे ख लोपामु ा उनके पास गयी और समयके अनुसार इस कार बोली— ।। ५ ।। न म कृते महीपाल पीडाम येतुमह स । य छ मामग याय ा ा मानं मया पतः ।। ६ ।। ‘राजन्! आपको मेरे लये ःख नह मानना चा हये। पताजी! आप मुझे अग यजीक सेवाम दे द और मेरे ारा अपनी र ा कर’ ।। ६ ।। हतुवचनाद् राजा सोऽग याय महा मने । लोपामु ां ततः ादाद् व धपूव वशा पते ।। ७ ।। यु ध र! पु ीक यह बात सुनकर राजाने महा मा अग यमु नको व धपूवक अपनी क या लोपामु ा याह द ।। ७ ।। ो

ा य भायामग य तु लोपामु ामभाषत । महाहा यु सृजैता न वासां याभरणा न च ।। ८ ।। लोपामु ाको प नी पम पाकर मह ष अग यने उससे कहा—‘ये तु हारे व और आभूषण ब मू य ह। इ ह उतार दो’ ।। ८ ।। ततः सा दशनीया न महाहा ण तनू न च । समु ससज र भो वसना यायते णा ।। ९ ।। तत ीरा ण ज ाह व कला य जना न च । समान तचया च बभूवायतलोचना ।। १० ।। तब कदलीके समान जाँघ तथा वशाल ने वाली लोपामु ाने अपने ब मू य, महीन एवं दशनीय व उतार दये और फटे -पुराने व तथा व कल और मृगचम धारण कर लये। वह वशालनयनी बाला प तके समान ही त और आचारका पालन करनेवाली हो गयी ।। ९-१० ।। ग ा ारमथाग य भगवानृ षस मः । उ मा त त तपः सह प यानुकूलया ।। ११ ।। तदन तर मु न े भगवान् अग य अपनी अनुकूल प नीके साथ गंगा ार (ह र ार)म आकर घोर तप याम संल न हो गये ।। ११ ।। सा ीता ब माना च प त पयचरत् तदा । अग य परां ी त भायायामचरत् भुः ।। १२ ।। लोपामु ा बड़ी ही स ता और वशेष आदरके साथ प तदे वक सेवा करने लगी। श शाली मह ष अग यजी भी अपनी प नीपर बड़ा ेम रखते थे ।। १२ ।। ततो ब तथे काले लोपामु ां वशा पते । तपसा ो ततां नातां ददश भगवानृ षः ।। १३ ।। स त याः प रचारेण शौचेन च दमेन च । या पेण च ीतो मैथुनायाजुहाव ताम् ।। १४ ।। राजन्! जब इसी कार ब त समय तीत हो गया, तब एक दन भगवान् अग यमु नने ऋतु नानसे नवृ ई प नी लोपामु ाको दे खा। वह तप याके तेजसे का शत हो रही थी। मह षने अपनी प नीक सेवा, प व ता, इ यसंयम, शोभा तथा प-सौ दयसे स होकर उसे मैथुनके लये पास बुलाया ।। १३-१४ ।। ततः सा ा लभू वा ल जमानेव भा वनी । तदा स णयं वा यं भगव तमथा वीत् ।। १५ ।। तब अनुरा गणी लोपामु ा कुछ ल जत-सी हो हाथ जोड़कर बड़े ेमसे भगवान् अग यसे बोली— ।। १५ ।। असंशयं जाहेतोभाया प तर व दत । या तु व य मम ी त तामृषे कतुमह स ।। १६ ।। ‘महष! इसम संदेह नह क प तदे वने अपनी इस प नीको संतानके लये ही हण कया है, परंतु आपके त मेरे दयम जो ी त है, वह भी आपको सफल करनी े

चा हये ।। १६ ।। यथा पतुगृहे व ासादे शयनं मम । तथा वधे वं शयने मामुपैतु महाह स ।। १७ ।। ‘ न्! म अपने पताके घर उनके महलम जैसी शयापर सोया करती थी, वैसी ही शयापर आप मेरे साथ समागम कर ।। १७ ।। इ छा म वां वणं च भूषणै वभू षतम् । उपसतु यथाकामं द ाभरणभू षता ।। १८ ।। ‘म चाहती ँ क आप सु दर हार और आभूषण से वभू षत ह और म भी द अलंकार से अलंकृत हो इ छानुसार आपके साथ समागम-सुखका अनुभव क ँ ।। १८ ।।

अ यथा नोप त ेयं च रकाषायवा सनी । नैवाप व ो व ष भूषणोऽयं कथंचन ।। १९ ।। ‘अ यथा म यह जीण-शीण काषाय-व पहनकर आपके साथ समागम नह क ँ गी। ष! तप वीजन का यह प व आभूषण कसी कार स भोग आ दके ारा अप व नह होना चा हये’ ।। १९ ।। अग य उवाच न ते धना न व ते लोपामु े तथा मम । े

यथा वधा न क या ण पतु तव सुम यमे ।। २० ।। अग यजीने कहा—सु दर क ट दे शवाली क याणी लोपामु े ! तु हारे पताके घरम जैसे धन-वैभव ह, वे न तो तु हारे पास ह और न मेरे ही पास ( फर ऐसा कैसे हो सकता है?) ।। २० ।। लोपामु ोवाच ईशोऽ स तपसा सव समाहतु तपोधन । णेन जीवलोके यद् वसु कचन व ते ।। २१ ।। लोपामु ा बोली—तपोधन! इस जीव-जगत्म जो कुछ भी धन है, वह सब णभरम आप अपनी तप याके भावसे जुटा लेनेम समथ ह ।। २१ ।। अग य उवाच एवमेतद् यथाऽऽ थ वं तपो यकरं तु तत् । यथा तु मे न न येत तप त मां चोदय ।। २२ ।। अग यजीने कहा— ये! तु हारा कथन ठ क है। परंतु ऐसा करनेसे तप याका य होगा। मुझे ऐसा कोई उपाय बताओ, जससे मेरी तप या ीण न हो ।। २२ ।। लोपामु ोवाच अ पाव श ः कालोऽयमृतोमम तपोधन । न चा यथाह म छा म वामुपैतुं कथंचन ।। २३ ।। लोपामु ा बोली—तपोधन! मेरे ऋतुकालका थोड़ा ही समय शेष रह गया है। म जैसा बता चुक ँ, उसके सवा और कसी तरह आपसे समागम नह करना चाहती ।। २३ ।। न चा प धम म छा म वलो तुं ते कथंचन । एवं तु मे यथाकामं स पाद यतुमह स ।। २४ ।। साथ ही मेरी यह भी इ छा नह है क कसी कार आपके धमका लोप हो। इस कार अपने तप एवं धमक र ा करते ए जस तरह स भव हो उसी तरह आप मेरी इ छा पूण कर ।। २४ ।। अग य उवाच य ेष कामः सुभगे तव बु या व न तः । हतु ग छा यहं भ े चर काम मह थता ।। २५ ।। अग यजीने कहा—सुभगे! य द तुमने अपनी बु से यही मनोरथ पानेका न य कर लया है तो म धन लानेके लये जाता ँ, तुम यह रहकर इ छानुसार धमाचरण करो ।। २५ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायामग योपा याने स तनव ततमोऽ यायः ।। ९७ ।।













इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम अग योपा यान वषयक स ानबेवाँ अ याय पूरा आ ।। ९७ ।।

अ नव ततमोऽ यायः धन ा त करनेके लये अग यका ुतवा, सद यु आ दके पास जाना



और

लोमश उवाच ततो जगाम कौर सोऽग यो भ तुं वसु । ुतवाणं महीपालं यं वेदा य धकं नृपैः ।। १ ।। लोमशजी कहते ह—कु न दन! तदन तर अग यजी धन माँगनेके लये महाराज ुतवाके पास गये, ज ह वे सब राजा से अ धक वैभवस प समझते थे ।। १ ।। स व द वा तु नृप तः कु भयो नमुपागतम् । वषया ते सहामा यः यगृ ात् सुस कृतम् ।। २ ।। राजाको जब यह मालूम आ क मह ष अग य मेरे यहाँ आ रहे ह, तब वे म य के साथ अपने रा यक सीमापर चले आये और बड़े आदर-स कारसे उ ह अपने साथ लवा ले गये ।। २ ।। त मै चा य यथा यायमानीय पृ थवीप तः । ा लः यतो भू वा प छागमनेऽ थताम् ।। ३ ।। भूपाल ुतवाने उनके लये यथायो य अ य नवेदन करके वनीतभावसे हाथ जोड़कर उनके पधारनेका योजन पूछा ।। ३ ।। अग य उवाच व ा थनमनु ा तं व मां पृ थवीपते । यथाश य व ह या यान् सं वभागं य छ मे ।। ४ ।। तब अग यजीने कहा—पृ वीपते! आपको मालूम होना चा हये क म धन माँगनेके लये आपके यहाँ आया ँ। सरे ा णय को क न दे ते ए यथाश अपने धनका जतना अंश मुझे दे सक, दे द ।। ४ ।। लोमश उवाच तत आय यौ पूण त मै राजा यवेदयत् । अतो व ुपाद व यद वसु म यसे ।। ५ ।। लोमशजी कहते ह—यु ध र! तब राजा ुतवाने मह षके सामने अपने आययका पूरा योरा रख दया और कहा—‘ ानी महष! इस धनमसे जो आप ठ क समझ, वह ले ल’ ।। ५ ।। तत आय यौ ् वा समौ समम त जः । सवथा ा णनां पीडामुपादानादम यत ।। ६ ।। ी











ष अग यक बु सम थी। उ ह ने आय और य दोन को बराबर दे खकर यह वचार कया क इसमसे थोड़ा-सा भी धन लेनेपर सरे ा णय को सवथा क हो सकता है ।। ६ ।। स ुतवाणमादाय न मगमत् ततः । स च तौ वषय या ते यगृ ाद् यथा व ध ।। ७ ।। तब वे ुतवाको साथ लेकर राजा न के पास गये। उ ह ने भी अपने रा यक सीमापर आकर उन दोन स माननीय अ त थय क अगवानी क और व धपूवक उ ह अपनाया ।। ७ ।। तयोर य च पा ं च न ः यवेदयत् । अनु ा य च प छ योजनमुप मे ।। ८ ।। न ने उन दोन को अ य और पा नवेदन कये, फर उनक आ ा ले अपने यहाँ पधारनेका योजन पूछा ।। ८ ।। अग य उवाच व कामा वह ा तौ व यावां पृ थवीपते । यथाश य व ह या यान् सं वभागं य छ नौ ।। ९ ।। अग यजीने कहा—पृ वीपते! आपको व दत हो क हम दोन आपके यहाँ धनक इ छासे आये ह। सरे ा णय को क न दे ते ए जो धन आपके पास बचता हो, उसमसे यथाश कुछ भाग हम भी द जये ।। ९ ।। लोमश उवाच तत आय यौ पूण ता यां राजा यवेदयत् । अतो ा वा तु गृ तं यद त र यते ।। १० ।। लोमशजी कहते ह—यु ध र! तब राजा न ने भी उन दोन के सामने आय और यका पूरा ववरण रख दया और कहा—‘आप दोन को इसम जो धन अ धक जान पड़ता हो, वह ले ल’ ।। १० ।। तत आय यौ ् वा समौ समम त जः । सवथा ा णनां पीडामुपादानादम यत ।। ११ ।। तब समान बु वाले ष अग यने उस ववरणम आय और य बराबर दे खकर यह न य कया क इसमसे य द थोड़ा-सा भी धन लया जाय तो सरे ा णय को सवथा क हो सकता है ।। ११ ।। पौ कु सं ततो ज मु सद युं महाधनम् । अग य ुतवा च न महीप तः ।। १२ ।। तब अग य, ुतवा और न —तीन पु कु सन दन-महाधनी सद युके पास गये ।। १२ ।। सद यु तु तान् ् वा यगृ ाद् यथा व ध । अ भग य महाराज वषया ते महामनाः ।। १३ ।।

अच य वा यथा याय म वाकू राजस मः । सम तां ततोऽपृ छत् योजनमुप मे ।। १४ ।। महाराज! भूपाल म े इ वाकुवंशी महामना सद युने उ ह आते दे ख रा यक सीमापर प ँचकर व धपूवक उन सबका वागत-स कार कया और उन सबसे अपने यहाँ पधारनेका योजन पूछा ।। १३-१४ ।। अग य उवाच व कामा नह ा तान् व नः पृ थवीपते । यथाश य व ह या यान् सं वभागं य छ नः ।। १५ ।। अग यने कहा—पृ वीपते! आपको व दत हो क हम धनक कामनासे यहाँ आये ह। आप सरे ा णय को पीड़ा न दे ते ए यथाश अपने धनका कुछ भाग हम सबको द जये ।। १५ ।। लोमश उवाच तत आय यौ पूण तेषां राजा यवेदयत् । एत ा वा पाद वं यद त र यते ।। १६ ।। तत आय यौ ् वा समौ समम त जः । सवथा ा णनां पीडामुपादानादम यत ।। १७ ।। लोमशजी कहते ह—यु ध र! तब राजाने उ ह अपने आय- यका पूरा ववरण दे दया और कहा—‘इसे समझकर जो धन शेष बचता हो, वह आपलोग ले ल।’ समबु वाले मह ष अग यने वहाँ भी आय- यका लेखा बराबर दे खकर यही माना क इसमसे धन लया जाय तो सरे ा णय को सवथा क हो सकता है ।। १६-१७ ।। ततः सव समे याथ ते नृपा तं महामु नम् । इदमूचुमहाराज समवे य पर परम् ।। १८ ।। महाराज! तब वे सब राजा पर पर मलकर एक- सरेक ओर दे खते ए महामु न अग यसे इस कार बोले— ।। १८ ।। अयं वै दानवो वलो वसुमान् भु व । तम त य सवऽ वयं चाथामहे वसु ।। १९ ।। ‘ न्! यह इ वल दानव इस पृ वीपर सबसे अ धक धनी है। हम सब लोग उसीके पास चलकर आज धन माँग’ ।। १९ ।। लोमश उवाच तेषां तदासी चत म वल यैव भ णम् । तत ते स हता राज वलं समुपा वन् ।। २० ।। लोमशजी कहते ह—यु ध र! उस समय उन सबको इ वलके यहाँ याचना करना ही ठ क जान पड़ा, अतः वे एक साथ होकर इ वलके यहाँ शी तापूवक गये ।। २० ।। ी













इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायामग योपा याने अ नव ततमोऽ यायः ।। ९८ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम अग योपा यान वषयक अानबेवाँ अ याय पूरा आ ।। ९८ ।।

एकोनशततमोऽ यायः अग यजीका इ वलके यहाँ धनके लये जाना, वाता प तथा इ वलका वध, लोपामु ाको पु क ा त तथा ीरामके ारा हरे ए तेजक परशुरामजीको तीथ नान ारा पुनः ा त लोमश उवाच इ वल तान् व द वा तु मह षस हतान् नृपान् । उप थतान् सहामा यो वषया ते पूजयत् ।। १ ।। लोमशजी कहते ह—राजन्! इ वलने मह षस हत उन राजा को आता जान म य के साथ अपने रा यक सीमापर उप थत होकर उन सबका पूजन कया ।। तेषां ततोऽसुर े वा तयमकरोत् तदा । सुसं कृतेन कौर ा ा वाता पना यदा ।। २ ।। कु न दन! उस समय असुर े इ वलने अपने भाई वाता पका मांस राँधकर उसके ारा उन सबका आ त य कया ।। २ ।। ततो राजषयः सव वष णा गतचेतसः । वाता प सं कृतं ् वा मेषभूतं महासुरम् ।। ३ ।। भेड़के पम महान् दै य वाता पको ही राँधा गया दे ख उन सभी राज षय का मन ख हो गया और वे अचेतसे हो गये ।। ३ ।। अथा वीदग य तान् राजष नृ षस मः । वषादो वो न कत ो हं भो ये महासुरम् ।। ४ ।। धुयासनमथासा नषसाद महानृ षः । तं पयवेषद् दै ये इ वलः हस व ।। ५ ।। तब ऋ ष े अग यने उन राज षय से (आ ासन दे ते ए) कहा—‘तुमलोग को च ता नह करनी चा हये। म ही इस महादै यको खा जाऊँगा।’ ऐसा कहकर मह ष अग य धान आसनपर जा बैठे और दै यराज इ वलने हँसते ए-से उ ह वह मांस परोस दया ।। ४-५ ।। अग य एव कृ नं तु वाता प बुभुजे ततः । भु व यसुरोऽऽ ानमकरोत् त य चे वलः ।। ६ ।। अग यजी ही वाता पका सारा मांस खा गये; जब वे भोजन कर चुके, तब असुर इ वलने वाता पका नाम लेकर पुकारा ।। ६ ।। ततो वायुः ा रभूदध त य महा मनः । श दे न महता तात गज व यथा घनः ।। ७ ।। े











तात! उस समय महा मा अग यक गुदासे गजते ए मेघक भाँ त भारी आवाजके साथ अधोवायु नकली ।। ७ ।। वातापे न म वे त पुनः पुन वाच ह । तं ह या वीद् राज ग यो मु नस मः ।। ८ ।। इ वल बार-बार कहने लगा—‘वातापे! नकलो- नकलो।’ राजन्! तब मु न े अग यने उससे हँसकर कहा— ।। ८ ।। कुतो न मतुं श ो मया जीण तु सोऽसुरः । इ वल तु वष णोऽभूद ् ् वा जीण महासुरम् ।। ९ ।। ‘अब वह कैसे नकल सकता है, मने (लोक हतके लये) उस असुरको पचा लया है।’ महादै य वाता पको पच गया दे ख इ वलको बड़ा खेद आ ।। ९ ।। ा ल सहामा यै रदं वचनम वीत् । कमथमुपयाताः थ ूत क करवा ण वः ।। १० ।। उसने म य स हत हाथ जोड़कर उन अ त थय से यह बात पूछ —‘आपलोग कस योजनसे यहाँ पधारे ह, बताइये, म आपलोग क या सेवा क ँ ?’ ।। १० ।। युवाच ततोऽग यः हस वलं तदा । ईशं सुर व वां वयं सव धने रम् ।। ११ ।। तब मह ष अग यने हँसकर इ वलसे कहा—‘असुर! हम सब लोग तु ह श शाली शासक एवं धनका वामी समझते ह ।। ११ ।। एते च ना तध ननो धनाथ महान् मम । यथाश य व ह या यान् सं वभागं य छ नः ।। १२ ।। ‘ये नरेश अ धक धनवान् नह ह और मुझे ब त धनक आव यकता आ पड़ी है। अतः सरे जीव को क न दे ते ए अपने धनमसे यथाश कुछ भाग हम दो’ ।। १२ ।। ततोऽ भवा तमृ ष म वलो वा यम वीत् । द सतं य द वे स वं ततो दा या म ते वसु ।। १३ ।। तब इ वलने मह षको णाम करके कहा—‘म कतना धन दे ना चाहता ँ? यह बात य द आप जान ल तो म आपको धन ँ गा’ ।। १३ ।। अग य उवाच गवां दशसह ा ण रा ामेकैकशोऽसुर । तावदे व सुवण य द सतं ते महासुर ।। १४ ।। अग यजीने कहा—महान् असुर! तुम इनमसे एक-एक राजाको दस-दस हजार गौएँ तथा इतनी ही (दस-दस हजार) सुवणमु ाएँ दे ना चाहते हो ।। १४ ।। म ं ततो वै गुणं रथ ैव हर मयः । मनोजवौ वा जनौ च द सतं ते महासुर ।। १५ ।। इन राजा क अपे ा नी गौएँ और सुवण-मु ाएँ तुमने मेरे लये दे नेका वचार कया है। महादै य! इसके सवा एक वणमय रथ, जसम मनके समान ती गामी दो घोड़े जुते ेऔ



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ह , तुम मुझे और दे ना चाहते हो ।। १५ ।। (लोमश उवाच इ वल तु मु न ाह सवम त यथाऽऽ थ माम् । रथं तु यमवोचो मां नैनं वो हर मयम् ।। लोमशजी कहते ह—राजन्! इसपर इ वलने अग य मु नसे कहा क ‘आपने मुझसे जो कुछ कहा है, वह सब स य है; कतु आपने जो मुझसे रथक बात कही है, उस रथको हमलोग सुवणमय नह समझते ह’। अग य उवाच न मे वागनृता का च पूवा महासुर ।) ज ा यतां रथः स ो एष हर मयः । अग यजीने कहा—महादै य! मेरे मुँहसे पहले कभी कोई बात झूठ नह नकली है, अतः शी पता लगाओ, यह रथ न य ही सोनेका है ।। लोमश उवाच ज ा यमानः स रथः कौ तेयासी र मयः । ततः थतो दै यो ददाव य धकं वसु ।। १६ ।। लोमशजी कहते ह—कु तीन दन यु ध र! पता लगानेपर वह रथ सोनेका ही नकला, तब मनम (भाईक मृ युसे) थत ए उस दै यने मह षको ब त अ धक धन दया ।। १६ ।। वराव सुराव त मन् यु ौ रथे हयौ । ऊहतुः सवसूनाशु तावग या मं त ।। १७ ।। सवान् रा ः सहाग यान् नमेषा दव भारत । (इ वल वनुग यैनमग यं ह तुमै छत । भ म च े महातेजा ंकारेण महासुरम् ।। मुनेरा मम ौ तौ न यतुवातरंहसौ ।) अग येना यनु ाता ज मू राजषय तदा । कृतवां मु नः सव लोपामु ा चक षतम् ।। १८ ।। उस रथम वराव और सुराव नामक दो घोड़े जुते ए थे। वे धनस हत राजा तथा अग य मु नको शी ही मानो पलक मारते ही अग या मक ओर ले भागे। उस समय इ वल असुरने अग य मु नके पीछे जाकर उनको मारनेक इ छा क , परंतु महातेज वी अग यमु नने उस महादै य इ वलको ंकारसे ही भ म कर दया। तदन तर उन वायुके समान वेगवाले घोड़ ने उन सबको मु नके आ मपर प ँचा दया। भरतन दन! फर अग यजीक आ ा ले वे राज षगण अपनी-अपनी राजधानीको चले गये और मह षने लोपामु ाक सभी इ छाएँ पूण क ।। १७-१८ ।। लोपामु ोवाच

कृतवान स तत् सव भगवन् मम काङ् तम् । उ पादय सकृ म मप यं वीयव रम् ।। १९ ।। लोपामु ा बोली—भगवन्! मेरी जो-जो अ भलाषा थी, वह सब आपने पूण कर द । अब मुझसे एक अ य त श शाली पु उ प क जये ।। १९ ।। अग य उवाच तु ोऽहम म क या ण तव वृ ेन शोभने । वचारणामप ये तु तव व या म तां शृणु ।। २० ।। अग यजीने कहा—शोभामयी क याणी! तु हारे सद् वहारसे म ब त संतु ँ। पु के स ब धम तु हारे सामने एक वचार उप थत करता ँ, सुनो ।। २० ।। सह ं तेऽ तु पु ाणां शतं वा दशस मतम् । दश वा शततु याः युरेको वा प सह जत् ।। २१ ।। या तु हारे गभसे एक हजार या एक सौ पु उ प ह , जो दसके ही समान ह ? अथवा दस ही पु ह , जो सौ पु क समानता करनेवाले ह ? अथवा एक ही पु हो, जो हजार को जीतनेवाला हो? ।। २१ ।।

लोपामु ोवाच सह स मतः पु एकोऽ य तु तपोधन । ो े

एको ह ब भः ेयान् व ान् साधुरसाधु भः ।। २२ ।। लोपामु ा बोली—तपोधन! मुझे सह क समानता करनेवाला एक ही े पु ा त हो; य क ब त-से पु क अपे ा एक ही व ान् एवं े पु उ म माना गया है ।। २२ ।। लोमश उवाच स तथे त त ाय तया समभव मु नः । समये समशी ल या ावा धानया ।। २३ ।। लोमशजी कहते ह—राजन्! तब ‘तथा तु’ कहकर ालु महा मा अग यने समान शील- वभाववाली ालु प नी लोपामु ाके साथ यथासमय समागम कया ।। २३ ।। तत आधाय गभ तमगमद् वनमेव सः । त मन् वनगते गभ ववृधे स त शारदान् ।। २४ ।। गभाधान करके अग यजी फर वनम ही चले गये। उनके वनम चले जानेपर वह गभ सात वष तक माताके पेटम ही पलता और बढ़ता रहा ।। २४ ।। स तमेऽ दे गते चा प ा यवत् स महाक वः । वल व भावेण ढ युनाम भारत ।। २५ ।। भारत! सात वष बीतनेपर अपने तेज और भावसे व लत होता आ वह गभ उदरसे बाहर नकला। वही महा व ान् ढ युके नामसे व यात आ ।। २५ ।। सा ोप नषदान् वेदा प व महातपाः । त य पु ोऽभव षेः स तेज वी महा जः ।। २६ ।। मह षका वह महातप वी और तेज वी पु ज म-कालसे ही अंग और उप नषद स हत स पूण वेद का वा याय-सा करता जान पड़ा। ढ यु ा ण म महान् माने गये ।। २६ ।। स बाल एव तेज वी पतु त य नवेशने । इ मानां भारमाज े इ मवाह ततोऽभवत् ।। २७ ।। पताके घरम रहते ए तेज वी ढ यु बा य-कालसे ही इ म (स मधा)-का भार वहन करके लाने लगे; अतः ‘इ मवाह’ नामसे व यात हो गये ।। २७ ।। तथायु ं तु तं ् वा मुमुदे स मु न तदा । एवं स जनयामास भारताप यमु मम् ।। २८ ।। अपने पु को वा याय और स मधानयनके कायम संल न दे ख मह ष अग य उस समय ब त स ए। भारत! इस कार अग यजीने उ म संतान उ प क ।। २८ ।। ले भरे पतर ा य लोकान् राजन् यथे सतान् । तत ऊ वमयं यात वग य या मो भु व ।। २९ ।। राजन्! तदन तर उनके पतर ने मनोवां छत लोक ा त कर लये। उसके बादसे यह थान इस पृ वीपर अग या मके नामसे व यात हो गया ।। २९ ।। ा ा दरेवं वाता परग येनोपशा मतः । त यायमा मो राजन् रमणीयैगुणैयुतः ।। ३० ।। े





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वाता प ादके गो म उ प आ था, जसे अग यजीने इस कार शा त कर दया। राजन्! यह उ ह का रमणीय गुण से यु आ म है ।। ३० ।। एषा भागीरथी पु या दे वग धवसे वता । वाते रता पताकेव वराज त नभ तले ।। ३१ ।। इसके-समीप यह वही दे व-ग धवसे वत पु यस लला भागीरथी है, जो आकाशम वायुक ेरणासे फहरानेवाली ेत पताकाके समान सुशो भत हो रही है ।। ३१ ।। तायमाणा कूटे षु यथा न नेषु न यशः । शलातलेषु सं ता प गे वधू रव ।। ३२ ।। यह मशः नीचे-नीचेके शखर पर गरती ई सदा ती ग तसे बहती है और शलाख ड के नीचे इस कार समायी जाती है, मानो भयभीत स पणी बलम घुसी जा रही हो ।। ३२ ।। द णां वै दशं सवा लावय ती च मातृवत् । पूव श भोजटा ा समु म हषी या । अ यां न ां सुपु यायां यथे मवगा ताम् ।। ३३ ।। पहले भगवान् शंकरक जटासे गरकर वा हत होनेवाली समु क यतमा महारानी गंगा स पूण द ण दशाको इस कार आ ला वत कर रही है, मानो माता अपनी संतानको नहला रही हो। इस परम प व नद म तुम इ छानुसार नान करो ।। ३३ ।। यु ध र नबोधेदं षु लोकेषु व ुतम् । भृगो तीथ महाराज मह षगणसे वतम् ।। ३४ ।। महाराज यु ध र! इधर यान दो, यह मह ष-गणसे वत भृगत ु ीथ है, जो तीन लोक म व यात है ।। य ोप पृ वान् रामो तं तेज तदाऽऽ तवान् । अ वं ातृ भः साध कृ णया चैव पा डव ।। ३५ ।। य धन तं तेजः पुनरादातुमह स । कृतवैरेण रामेण यथा चोप तं पुनः ।। ३६ ।। जहाँ परशुरामजीने नान कया और उसी ण अपने खोये ए तेजको पुनः ा त कर लया। पा डु न दन! तुम अपने भाइय और ौपद के साथ इसम नान करके य धन ारा छ ने ए अपने तेजको पुनः ा त कर सकते हो। जैसे दशरथन दन ीरामसे वैर करनेपर उनके ारा अप त ए तेजको परशुरामने यहाँ नानके भावसे पुनः पा लया था ।। ३५-३६ ।।

वैश पायन उवाच सत ातृ भ ैव कृ णया चैव पा डवः । ना वा दे वान् पतॄं ैव तपयामास भारत ।। ३७ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तब राजा यु ध रने अपने भाइय और ौपद के साथ उस तीथम नान करके दे वता और पतर का तपण कया ।। ३७ ।। ी





त य तीथ य पं वै द ताद् द ततरं बभौ । अ धृ यतर ासी छा वाणां नरषभ ।। ३८ ।। नर े ! उस तीथम नान कर लेनेपर राजा यु ध रका प अ य त तेजोयु हो काशमान हो गया। अब वे श ु के लये परम धष हो गये ।। ३८ ।। अपृ छ चैव राजे लोमशं पा डु न दनः । भगवन् कमथ राम य तमासीद् वपुः भो । कथं या तं चैव एतदाच व पृ छतः ।। ३९ ।। राजे ! उस समय पा डु न दन यु ध रने मह ष लोमशसे पूछा—‘भगवन्! परशुरामजीके तेजका अपहरण कस लये कया गया था और भो! वह इ ह पुनः कस कार ा त हो गया? यह म जानना चाहता ँ। आप कृपा करके इस संगका वणन कर’ ।। ३९ ।। लोमश उवाच शृणु राम य राजे भागव य च धीमतः । जातो दशरथ यासीत् पु ो रामो महा मनः ।। ४० ।। व णुः वेन शरीरेण रावण य वधाय वै । प याम तमयो यायां जातं दाशर थ ततः ।। ४१ ।। लोमशजीने कहा—राजे ! तुम दशरथन दन ीराम तथा परम बु मान् भृगन ु दन परशुरामजीका च र सुनो। पूवकालम महा मा राजा दशरथके यहाँ सा ात् भगवान् व णु अपने ही स चदान दमय व हसे ीराम पम अवतीण ए थे। उनके अवतारका उ े य था—पापी रावणका वनाश। अयो याम कट ए दशरथन दन ीरामका हम लोग ायः दशन करते रहते थे ।। ४०-४१ ।। ऋचीकन दनो रामो भागवो रेणकासुतः । त य दाशरथेः ु वा राम या ल कमणः ।। ४२ ।। कौतूहला वतो राम वयो यामगमत् पुनः । धनुरादाय तद् द ं याणां नबहणम् ।। ४३ ।। अनायास ही महान् कम करनेवाले दशरथकुमार ीरामका भारी परा म सुनकर भृगु तथा ऋचीकके वंशज रेणुकान दन परशुराम उ ह दे खनेके लये उ सुक हो यसंहारक द धनुष लये अयो याम आये ।। ४२-४३ ।। ज ासमानो राम य वीय दाशरथे तदा । तं वै दशरथः ु वा वषया तमुपागतम् ।। ४४ ।। ेषयामास राम य रामं पु ं पुर कृतम् । स तम यागतं ् वा उ ता मव थतम् ।। ४५ ।। हस व कौ तेय रामो वचनम वीत् । कृतकालं ह राजे धनुरेत मया वभो ।। ४६ ।। समारोपय य नेन य द श नो ष पा थव । े









उनके शुभागमनका उ े य था दशरथन दन ीरामके बल-परा मक परी ा करना। महाराज दशरथने जब सुना क परशुरामजी हमारे रा यक सीमापर आ गये ह, तब उ ह ने मु नक अगवानीके लये अपने पु ीरामको भेजा। कु तीन दन! ीरामच जी धनुषबाण हाथम लये आकर खड़े ह, यह दे खकर परशुरामजीने हँसते ए कहा—‘राजे ! भो! भूपाल! य द तुमम श हो तो य नपूवक इस धनुषपर य चा चढ़ाओ। यह वह धनुष है जसके ारा मने य का संहार कया है’ ।। ४४-४६ ।। इ यु वाह भगवं वं ना ध े तुमह स ।। ४७ ।। उनके ऐसा कहनेपर ीरामच जीने कहा—‘भगवन्! आपको इस तरह आ ेप नह करना चा हये ।। नाहम यधमो धम याणां जा तषु । इ वाकूणां वशेषेण बा वीय न क थनम् ।। ४८ ।। ‘म भी सम त जा तय म यधमका पालन करनेम अधम नह ँ। वशेषतः इ वाकुवंशी य अपने बा बलक शंसा नह करते’ ।। ४८ ।। तमेवंवा दनं त रामो वचनम वीत् । अलं वै पदे शेन धनुराय छ राघव ।। ४९ ।। ीरामच जीके ऐसा कहनेपर परशुरामजी बोले—‘रघुन दन! बात बनानेक कोई आव यकता नह । यह धनुष लो और इसपर य चा चढ़ाओ’ ।। ४९ ।। ततो ज ाह रोषेण यषभसूदनम् । रामो दाशर थ द ं ह ताद् राम य कामुकम् ।। ५० ।। धनुरारोपयामास सलील इव भारत । याश दमकरो चैव मयमानः स वीयवान् ।। ५१ ।। तब दशरथन दन ीरामजीने रोषपूवक परशुरामका वह वीर य का संहारक द धनुष उनके हाथसे ले लया। भारत! उ ह ने लीलापूवक य चा चढ़ा द । त प ात् परा मी ीरामच जीने मुसकराते ए धनुषक टं कार फैलायी ।। ५०-५१ ।। त य श द य भूता न व स यशने रव । अथा वीत् तदा रामो रामं दाशर थ तदा ।। ५२ ।। इदमारो पतं न् कम यत् करवा ण ते । त य रामो ददौ द ं जामद यो महा मनः । शरमाकणदे शा तमयमाकृ यता म त ।। ५३ ।। बजलीक गड़गड़ाहटके समान उस टं कार- व नको सुनकर सब ाणी घबरा उठे । उस समय दशरथन दन ीरामने परशुरामजीसे कहा—‘ न्! यह धनुष तो मने चढ़ा दया अब और आपका कौन-सा काय क ँ ?’ तब जमद नन दन परशुरामने महा मा ीरामच जीको एक द बाण दे दया और कहा—‘इसे धनुषपर रखकर अपने कानके पासतक ख चये’ ।। लोमश उवाच ी

एत छ वा वीद् रामः द त इव म युना । ूयते यते चैव दपपूण ऽ स भागव ।। ५४ ।। लोमशजी कहते ह—राजन्! इतना सुनते ही ीरामच जी मानो ोधसे व लत हो उठे और बोले—‘भृगन ु दन! तुम बड़े घम डी हो। म तु हारी कठोर बात सुनता ँ फर मा कर लेता ँ ।। ५४ ।। वया धगतं तेजः ये यो वशेषतः । पतामह सादे न तेन मां प स ुवम् ।। ५५ ।। ‘तुमने अपने पतामह ऋचीकके भावसे य को जीतकर वशेष तेज ा त कया है, न य ही, इसी लये मुझपर आ ेप करते हो ।। ५५ ।। प य मां वेन पेण च ु ते वतरा यहम् । ततो रामशरीरे वै रामः प य त भागवः ।। ५६ ।। आ द यान् सवसून् ान् सा यां सम णान् । पतरो ताशन ैव न ा ण हा तथा ।। ५७ ।। ग धवा रा सा य ा न तीथा न या न च । ऋषयो बालख या भूताः सनातनाः ।। ५८ ।। दे वषय का यन समु ाः पवता तथा । वेदा सोप नषदो वषट् करैः सहा वरैः ।। ५९ ।। चेतोम त च सामा न धनुवद भारत । मेघवृ दा न वषा ण व ुत यु ध र ।। ६० ।। ‘लो! म तु ह द दे ता ँ। उसके ारा मेरे यथाथ व पका दशन करो।’ तब भृगव ु ंशी परशुरामजीने ीरामच जीके शरीरम बारह आ द य, आठ वसु, यारह , सा य दे वता, उनचास म द्गण, पतृगण, अ नदे व, न , ह, ग धव, रा स, य , न दयाँ, तीथ, सनातन भूत बालख य ऋ ष, दे व ष, स पूण समु , पवत, उप नषद स हत वेद, वषट् कार, य , साम और धनुवद, इन सभीको चेतन प धारण कये ए य दे खा। भरतन दन यु ध र! मेघ के समूह, वषा और व ुतका ् भी उनके भीतर दशन हो रहा था ।। ५६—६० ।। ततः स भगवान् व णु तं वै बाणं मुमोच ह । शु काश नसमाक ण महो का भ भारत ।। ६१ ।। पांसुवषण महता मेघवष भूतलम् । भू मक पै नघातैनादै वपुलैर प ।। ६२ ।। तदन तर भगवान् व णु प ीरामच जीने उस बाणको छोड़ा। भारत! उस समय सारी पृ वी बना बादलक बजली और बड़ी-बड़ी उ का से ा त-सी हो उठ । बड़े जोरक आँधी उठ और सब ओर धूलक वषा होने लगी। फर मेघ क घटा घर आयी और भूतलपर मूसलाधार वषा होने लगी। बार-बार भूक प होने लगा। मेघगजन तथा अ य भयानक उ पातसूचक श द गूँजने लगे ।। ६१-६२ ।। स रामं व लं कृ वा तेज ा य केवलम् । ो ो ो

आग छ व लतो बाणो रामबा चो दतः ।। ६३ ।। ीरामच जीक भुजा से े रत आ वह व लत बाण परशुरामजीको ाकुल करके केवल उनके तेजको छ नकर पुनः लौट आया ।। ६३ ।। स तु व लतां ग वा तल य च चेतनाम् । रामः यागत ाणः ाणमद् व णुतेजसम् ।। ६४ ।। व णुना सोऽ यनु ातो महे मगमत् पुनः । भीत तु त यवसद् ी डत तु महातपाः ।। ६५ ।। परशुरामजी एक बार मू छत होकर जब पुनः होशम आये तब मरकर जी उठे ए मनु यक भाँ त उ ह ने व णुतेज धारण करनेवाले भगवान् ीरामको नम कार कया। त प ात् भगवान् व णु ीरामक आ ा लेकर वे पुनः महे पवतपर चले गये। वहाँ भयभीत और ल जत हो महान् तप याम संल न होकर रहने लगे ।। ६४-६५ ।। ततः संव सरेऽतीते तौजसमव थतम् । नमदं ःखतं ् वा पतरो रामम ुवन् ।। ६६ ।। तदन तर एक वष तीत होनेपर तेजोहीन और अ भमानशू य होकर रहनेवाले परशुरामको ःखी दे खकर उनके पतर ने कहा ।। ६६ ।।

पतर ऊचुः न वै स य गदं पु व णुमासा वै कृतम् । स ह पू य मा य षु लोकेषु सवदा ।। ६७ ।। पतर बोले—तुमने भगवान् व णुके पास जाकर जो बताव कया है वह ठ क नह था। वे तीन लोक म सवदा पूजनीय और माननीय ह ।। ६७ ।। ग छ पु नद पु यां वधूसरकृ ता याम् । त ोप पृ य तीथषु पुनवपुरवा य स ।। ६८ ।। बेटा! अब तुम वधूसर नामक पु यमयी नद के तटपर जाओ। वहाँ तीथ म नान करके पूववत् अपना तेजोमय शरीर पुनः ा त कर लोगे ।। ६८ ।। द तोदं नाम तत् तीथ य ते पतामहः । भृगुदवयुगे राम त तवानु मं तपः ।। ६९ ।। राम! वह द तोदक नामक तीथ है, जहाँ दे वयुगम तु हारे पतामह भृगन ु े उ म तप या क थी ।। ६९ ।। तत् तथा कृतवान् रामः कौ तेय वचनात् पतुः । ा तवां पुन तेज तीथऽ मन् पा डु न दन ।। ७० ।। कु तीन दन यु ध र! पतर के कहनेसे परशुरामजीने वैसा ही कया। पा डु न दन! इस तीथम नहाकर पुनः उ ह ने अपना तेज ा त कर लया ।। ७० ।। एतद शकं तात रामेणा ल कमणा । ा तमासी महाराज व णुमासा वै पुरा ।। ७१ ।। ी





तात महाराज यु ध र! इस कार पूवकालम अनायास ही महान् कम करनेवाले परशुराम व णु व प ीरामच जीसे भड़कर इस दशाको ा त ए थे ।। ७१ ।। इ त ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायां जामद यतेजोहा नकथने एकोनशततमोऽ यायः ।। ९९ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम परशुरामके तेजक हा न वषयक न यानबेवाँ अ याय पूरा आ ।। ९९ ।। (दा णा य अ धक पाठक े ३ ोक मलाकर कुल ७४ ोक ह)

शततमोऽ यायः वृ ासुरसे

त दे वताक ो मह ष दधीचका अ थदान एवं व का नमाण

यु ध र उवाच भूय एवाह म छा म महष त य धीमतः । कमणां व तरं ोतुमग य य जो म ।। १ ।। यु ध रने कहा— ज े ! म पुनः बु मान् मह ष अग यजीके च र का व तारपूवक वणन सुनना चाहता ँ ।। १ ।। लोमश उवाच शृणु राजन् कथां द ाम ताम तमानुषीम् । अग य य महाराज भावम मतौजसः ।। २ ।। लोमशजीने कहा—महाराज! अ मततेज वी मह ष अग यक कथा द , अ त और अलौ कक है। उनका भाव महान् है। म उसका वणन करता ँ, सुनो ।। २ ।। आसन् कृतयुगे घोरा दानवा यु मदाः । कालकेया इ त याता गणाः परमदा णाः ।। ३ ।। स ययुगक बात है, दै य के ब त-से भयंकर दल थे जो कालकेय नामसे व यात थे। उनका वभाव अ य त नदय था। वे यु म उ म होकर लड़ते थे ।। ३ ।। ते तु वृ ं समा य नाना हरणो ताः । सम तात् पयधाव त महे मुखान् सुरान् ।। ४ ।। उन सबने एक दन वृ ासुरक शरण ले उसक अ य ताम नाना कारके आयुध से सुस जत हो महे आ द दे वता पर चार ओरसे आ मण कया ।। ४ ।। ततो वृ वधे य नमकुव दशाः पुरा । पुरंदरं पुर कृ य ाणमुपत थरे ।। ५ ।। तब सम त दे वता वृ ासुरके वधके य नम लग गये। वे दे वराज इ को आगे करके ाजीके पास गये ।। ५ ।। कृता ल तु तान् सवान् परमे ी युवाच ह । व दतं मे सुराः सव यद् वः काय चक षतम् ।। ६ ।। वहाँ प ँचकर सब दे वता हाथ जोड़कर खड़े हो गये। तब ाजीने उनसे कहा —‘दे वताओ! तुम जो काय स करना चाहते हो वह सब मुझे मालूम है ।। ६ ।। तमुपायं व या म यथा वृ ं व ध यथ । दधीच इ त व यातो महानृ ष दारधीः ।। ७ ।। तं ग वा स हताः सव वरं वै स याचत । ो

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स वो दा य त धमा मा सु ीतेना तरा मना ।। ८ ।। ‘म तु ह एक उपाय बता रहा ँ, जससे तुम वृ ासुरका वध कर सकोगे। दधीच नामसे व यात जो उदारचेता मह ष ह, उनके पास जाकर तुम सब लोग एक साथ एक ही वर माँगो। वे बड़े धमा मा ह। अ य त स मनसे तु ह मुँहमाँगी व तु दगे ।। ७-८ ।। स वा यः स हतैः सवभव जयकाङ् भः । वा य थी न य छे त ैलो य य हताय वै ।। ९ ।। ‘जब वे वर दे ना वीकार कर ल तब वजयक अ भलाषा रखनेवाले तुम सब लोग उनसे एक साथ य कहना—‘महा मन्! आप तीन लोक के हतके लये अपने शरीरक ह याँ दान कर’ ।। ९ ।। स शरीरं समु सृ य वा य थी न दा य त । त या थ भमहाघोरं व ं सं यतां ढम् ।। १० ।। ‘तु हारे माँगनेपर वे शरीर यागकर अपनी ह याँ दे दगे। उनक उन ह य ारा तुमलोग सु ढ़ एवं अ य त भयंकर वका नमाण करो ।। १० ।। मह छ ुहणं घोरं षड ं भीम नः वनम् । तेन व ेण वै वृ ं व ध य त शत तुः ।। ११ ।।

दे वता ारा वृ ासुरक े वधके लये दधी चसे उनक अ थय क याचना



दे वराज इ का व के हारसे वृ ासुरका वध करना ो े ो ी ो

‘उसक आकृ त षट् कोणके समान होगी। वह महान् एवं घोर श ुनाशक अ भयंकर गड़गड़ाहट पैदा करनेवाला होगा। उस वक े ारा इ न य ही वृ ासुरका वध कर डालगे ।। ११ ।। एतद् वः सवमा यातं त मा छ ं वधीयताम् । एवमु ा ततो दे वा अनु ा य पतामहम् ।। १२ ।। नारायणं पुर कृ य दधीच वा मं ययुः । सर व याः परे पारे नाना मलतावृतम् ।। १३ ।। ‘ये सब बात मने तु ह बता द ह। अतः अब शी ता करो।’ ाजीके ऐसा करनेपर सब दे वता उनक आ ा ले भगवान् नारायणको आगे करके दधीचके आ मपर गये। वह आ म सर वती नद के उस पार था। अनेक कारके वृ और लताएँ उसे घेरे ए थ ।। १२-१३ ।। षट् पदोद्गीत ननदै वघु ं सामगै रव । पुं को कलरवो म ं जीवं जीवकना दतम् ।। १४ ।। मर के गीत क व नसे वह थान इस कार गूँज रहा था, मानो सामगान करनेवाले ा ण ारा सामवेदका पाठ हो रहा हो। को कलके कलरव से कू जत और सरे ज तु (पशु-प य ) के श द से कोलाहलपूण बना आ वह आ म सजीव-सा जान पड़ता था ।। १४ ।। म हषै वराहै सृमरै मरैर प । त त ानुच रतं शा लभयव जतैः ।। १५ ।। भसे, सूअर, बालमृग और चवँरी गाय बाघ- सह के भयसे र हत हो उस आ मके आस-पास वचर रही थ ।। १५ ।। करेणु भवारणै भ करटामुखैः । सरोऽवगाढै ः ड ः सम तादनुना दतम् ।। १६ ।। अपने कपोल से मदक धारा बहानेवाले हाथी और ह थ नयाँ वहाँ सरोवरके जलम गोते लगाकर ड़ाएँ कर रहे थे, जससे आ मके चार ओर कोलाहल-सा हो रहा था ।। १६ ।। सह ा ैमहानादा द रनुना दतम् । अपरै ा प संलीनैगुहाक दरशा य भः ।। १७ ।। पवत क गुफा तथा क दरा म लेटे, झा ड़य म छपे और वनम वचरते ए जोरजोरसे दहाड़नेवाले सह और ा क गजनासे वह थान गूँज रहा था ।। तेषु ते ववकाशेषु शो भतं सुमनोरमम् । व पसम यं दधीचा ममागमन् ।। १८ ।। व भ थान म अ धक शोभा पानेवाला मह ष दधीचका वह मनोरम आ म वगके समान तीत होता था। दे वता लोग वहाँ आ प ँचे ।। १८ ।। त ाप यन् दधीचं ते दवाकरसम ु तम् । जा व यमानं वपुषा यथा ल या पतामहम् ।। १९ ।। े े ी े े े ो े े

उ ह ने दे खा, मह ष दधीच भगवान् सूयके समान तेजसे का शत हो रहे ह। अपने शरीरक द का तसे सा ात् ाजीके समान जान पड़ते ह ।। १९ ।।

त य पादौ सुरा राज भवा ण यच। अयाच त वरं सव यथो ं परमे ना ।। २० ।। राजन्! उस समय सब दे वता ने मह षके चरण म अ भवादन एवं णाम करके ाजीने जैसे कहा था, उसी कार उनसे वर माँगा ।। २० ।। ततो दधीचः परम तीतः सुरो मां ता नदम युवाच । करो म यद् वो हतम दे वाः वं चा प दे हं वयमु सृजा म ।। २१ ।। तब मह ष दधीचने अ य त स होकर उन े दे वता से इस कार कहा —‘दे वगण! आज म वही क ँ गा, जससे आपलोग का हत हो। अपने इस शरीरको म वयं ही याग दे ता ँ’ ।। २१ ।। स एवमु वा पदां व र ः ाणान् वशी वान् सहसो ससज । ततः सुरा ते जगृ ः परासोर थी न त याथ यथोपदे शम् ।। २२ ।। ऐ











ऐसा कहकर मनु य म े , जते य मह ष दधीचने सहसा अपने ाण का याग कर दया। तब दे वता ने ाजीके उपदे शके अनुसार मह षके नज व शरीरसे ह याँ ले ल ।। २२ ।। पा जयाय दे वाव ारमाग य तमथमूचुः । व ा तु तेषां वचनं नश य पः यतः य नात् ।। २३ ।। चकार व ं भृशमु पं कृ वा च श ं स उवाच ः । अनेन व वरेण दे व भ मीकु वा सुरा रमु म् ।। २४ ।। इसके बाद वे हष लाससे भरकर वजयक आशा लये व ा जाप तके पास आये और उनसे अपना योजन बताया। दे वता क बात सुनकर व ा जाप त बड़े स ए। उ ह ने एका च हो य नपूवक अ य त भयंकर वका नमाण कया। त प ात् वे हषम भरकर इ से बोले—‘दे व! इस उ म वसे आप आज ही भयंकर दे व ोही वृ ासुरको भ म कर डा लये ।। ततो हता रः सगणः सुखं वै शा ध कृ नं दवं द व ः । व ा तथो तु पुरंदर तद् व ं ः यतो गृ ात् ।। २५ ।। ‘इस कार श ुके मारे जानेपर आप दे वगण के साथ वगम रहकर सुखपूवक स पूण वगका शासन एवं पालन क जये।’ व ा जाप तके ऐसा कहनेपर इ को बड़ी स ता ई। उ ह ने शु च होकर उनके हाथसे वह व ले लया ।। २५ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायां व नमाणकथने शततमोऽ यायः ।। १०० ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम व नमाणकथन वषयक सौवाँ अ याय पूरा आ ।। १०० ।।

एका धकशततमोऽ यायः वृ ासुरका वध और असुर क भयंकर म णा लोमश उवाच ततः स व ी ब ल भदवतैर भर तः । आससाद ततो वृ ं थतमावृ य रोदसी ।। १ ।। लोमशजी कहते ह—राजन्! तदन तर वधारी इ बलवान् दे वता से सुर त हो वृ ासुरके पास गये। वह असुर भूलोक और आकाशको घेरकर खड़ा था ।। १ ।। कालकेयैमहाकायैः सम ताद भर तम् । समु त हरणैः सशृ ै रव पवतैः ।। २ ।। कालकेय नामवाले वशालकाय दै य, जो हाथ म ह थयार लये होनेके कारण शृंगयु पवत के समान जान पड़ते थे, चार ओरसे उसक र ा कर रहे थे ।। ततो यु ं समभवद् दे वानां दानवैः सह । मुत भरत े लोक ासकरं महत् ।। ३ ।। भरत े ! इ के आते ही दे वता का दानव के साथ दो घड़ीतक बड़ा भीषण यु आ जो तीन लोक को सा करनेवाला था ।। ३ ।। उ त त प ानां खड् गानां वीरबा भः । आसीत् सुतुमुलः श दः शरीरे व भपा यताम् ।। ४ ।। वीर क भुजा के साथ उठे ए खड् ग श ुके शरीर पर पड़ते और वप ी यो के घातक हार से टू टकर चूर-चूर हो जाते थे, उस समय उनका अ य त भयंकर श द सुन पड़ता था ।। ४ ।। शरो भः पत ा य त र ा महीतलम् । तालै रव महाराज वृ ताद् ैर यत ।। ५ ।। महाराज! अपने मूल थानसे टू टकर गरे ए ताल-फल के समान आकाशसे गरते ए यो ा के म तक - ारा वहाँक भू म आ छा दत दखायी दे ती थी ।। ५ ।। ते हेमकवचा भू वा कालेयाः प रघायुधाः । दशान यवत त दावद धा इवा यः ।। ६ ।। कालकेय ने सोनेके कवच धारण करके हाथ म प रघ लये दे वता पर धावा कया। उस समय वे दानव दावानलसे द ध ए पवत क भाँ त दखायी दे ते थे ।। तेषां वेगवतां वेगं सा भमानं धावताम् । न शेकु दशाः सोढुं ते भ नाः ा वन् भयात् ।। ७ ।। अ भमानपूवक आ मण करनेवाले उन वेगशाली दै य का वेग दे वता के लये अस हो गया। वे अपने दलसे बछु ड़कर भयसे भागने लगे ।। ७ ।। तान् ् वा वतो भीतान् सह ा ः पुरंदरः । े



वृ े ववधमाने च क मलं महदा वशत् ।। ८ ।। दे वता को डरकर भागते दे ख वृ ासुरक ग तका अनुमान करके सह ने वाले इ पर महान् मोह छा गया ।। ८ ।। कालेयभयसं तो दे वः सा ात् पुरंदरः । जगाम शरणं शी ं तं तु नारायणं भुम् ।। ९ ।। कालेय के भयसे त ए सा ात् इ दे वने सव-श मान् भगवान् नारायणक शी तापूवक शरण ली ।। तं श ं क मला व ं ् वा व णुः सनातनः । वतेजो दधा छ े बलम य ववधयन् ।। १० ।। इ को इस कार मोहा छ होते दे ख सनातन भगवान् व णुने उनका बल बढ़ाते ए उनम अपना तेज था पत कर दया ।। १० ।। व णुना गो पतं श ं ् वा दे वगणा ततः । सव तेजः समाद यु तथा षयोऽमलाः ।। ११ ।। दे वता ने दे खा इ भगवान् व णुके ारा सुर त हो गये ह, तब उन सबने तथा शु अ तःकरणवाले षय ने भी दे वराज इ म अपना-अपना तेज भर दया ।। ११ ।। स समा या यतः श ो व णुना दै वतैः सह । ऋ ष भ महाभागैबलवान् समप त ।। १२ ।। ा वा बल थं दशा धपं तु ननाद वृ ो महतो ननादान् । त य णादे न धरा दश खं ौनगा ा प चचाल सवम् ।। १३ ।। दे वता स हत ी व णु तथा महाभाग मह षय के तेजसे प रपूण हो दे वराज इ अ य त बलशाली हो गये। दे वे र इ को बलसे स प जान वृ ासुरने बड़ी वकट गजना क । उसके सहनादसे भूलोक, स पूण दशाएँ, आकाश, वगलोक तथा पवत सब-के-सब काँप उठे ।। १२-१३ ।। ततो महे ः परमा भत तः ु वा रवं घोर पं महा तम् । भये नम न व रतो मुमोच व ं महत् त य वधाय राजन् ।। १४ ।। राजन्! उस समय उस अ य त भयानक गजनाको सुनकर दे वराज इ ब त संत त हो उठे और भयभीत होकर उ ह ने बड़ी उतावलीके साथ वृ ासुरके वधके लये अपने महान् वका हार कया ।। १४ ।। स श व ा भहतः पपात महासुरः का चनमा यधारी । यथा महाशैलवरः पुर तात् स म दरो व णुकराद् वमु ः ।। १५ ।। े े ो ी

इ के व से आहत होकर सुवणमालाधारी वह महान् असुर पूवकालम भगवान् व णुके हाथसे छू टे ए महान् पवत म दरक भाँ त पृ वीपर गर पड़ा ।। १५ ।। त मन् हते दै यवरे भयातः श ः ाव सरः वे ु म् । व ं स मेने न कराद् वमु ं वृ ं भया चा प हतं न मेने ।। १६ ।। महादै य वृ के मारे जानेपर भी इ भयसे पी ड़त हो ( छपनेक इ छासे) तालाबम वेश करने दौड़े। उ ह भयके कारण यह व ास नह होता था क व मेरे हाथसे छू ट चुका है और वृ ासुर भी अव य मारा गया है ।। १६ ।। सव च दे वा मु दताः ा महषय े म भ ु व तः । सवा दै यां व रताः समे य ज नुः सुरा वृ वधा भत तान् ।। १७ ।। उस समय सब दे वता बड़े स ए। मह षगण भी हष लासम भरकर इ दे वक तु त करने लगे। त प ात् सब दे वता ने मलकर वृ ासुरके वधसे संत त ए सम त दै य को तुरंत मार भगाया ।। १७ ।। तै ा यमाना दशैः समेतैः समु मेवा व वशुभयाताः । व य चैवोद धम मेयं झषाकुलं न समाकुलं च ।। १८ ।। तदा म म ं स हताः च ु ैलो यनाशाथम भ मय तः । त म के च म त न य ातां तानुपायानुपवणय त ।। १९ ।। संग ठत दे वता ारा ास दये जानेपर वे सब दै य भयसे आतुर हो समु म ही वेश कर गये। म य और मगर से भरे ए उस अपार महासागरम व हो वे स पूण दानव तीन लोक का नाश करनेके लये बड़े गवसे एक साथ म णा करने लगे। उनमसे कुछ दै य जो अपनी बु के न यको प पसे जाननेवाले थे; (जगत्के वनाशके लये) उपयोगी व भ उपाय का वणन करने लगे ।। १८-१९ ।। तेषां तु त मकालयोगाद् घोरा म त तयतां बभूव । ये स त व ातपसोपप ातेषां वनाशः थमं तु कायः ।। २० ।। लोका ह सव तपसा य ते त मात् वर वं तपसः याय । ये स त के च च वसुंधरायां ो

तप वनो धम वद त ाः ।। २१ ।। तेषां वधः यतां मेव तेषु ण ेषु जगत् ण म् । एवं ह सव गतबु भावा जग नाशे परम ाः ।। २२ ।। ग समा य महो मम तं र नाकरं व ण यालयं म ।। २३ ।। वहाँ मशः द घकालतक उपाय च तनम लगे ए उन असुर ने यह घोर न य कया क जो लोग व ान् और तप वी ह , सबसे पहले उ ह का वनाश करना चा हये। स पूण लोग तपसे ही टके ए ह। अतः तुम सब लोग तप याके वनाशके लये शी तापूवक काय करो। भूम डलम जो कोई भी तप वी, धम एवं उ ह जानने-माननेवाले लोग ह , उन सबका तुरंत वध कर डालो। उनके न होनेपर सारा जगत् न हो जायगा। इस कार बु और वचारसे हीन वे सम त दै य संसारके वनाशक बात सोचकर अ य त हषका अनुभव करने लगे। उ ाल तरंग से भरे ए व णके नवास थान र नाकर समु प गका आ य लेकर वे उसम नभय होकर रहने लगे ।। २०—२३ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायां वृ वधोपा याने एका धकशततमोऽ यायः ।। १०१ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम वृ वधोपा यान वषयक एक सौ एकवाँ अ याय पूरा आ ।। १०१ ।।

य धकशततमोऽ यायः कालेय ारा तप वय , मु नय और चा रय आ दका संहार तथा दे वता ारा भगवान् व णुक तु त लोमश उवाच समु ं ते समा य वा णं न धम भसः । कालेयाः स वत त ैलो य य वनाशने ।। १ ।। लोमशजी कहते ह—राजन्! व णके नवास थान जल न ध समु का आ य लेकर कालेय नामक दै य तीन लोक के वनाश-कायम लग गये ।। १ ।। ते रा ौ सम भ ु ा भ य त सदा मुनीन् । आ मेषु च ये स त पु ये वायतनेषु च ।। २ ।। वे सदा रातम कु पत होकर आते और आ म तथा पु य- थान म जो नवास करते थे उन मु नय को खा जाते थे ।। २ ।। व स या मे व ा भ ता तै रा म भः । अशी तः शतम ौ च नव चा ये तप वनः ।। ३ ।। उन रा मा ने व स के आ मम नवास करनेवाले एक सौ अट् ठासी ा ण तथा नौ सरे तप वय को अपना आहार बना लया ।। ३ ।। यवन या मं ग वा पु यं ज नषे वतम् । फलमूलाशनानां ह मुनीनां भ तं शतम् ।। ४ ।। यवन मु नके प व आ मम, जहाँ ब त-से ज नवास करते थे, जाकर उन दै य ने फल-मूलका आहार करनेवाले सौ मु नय का भ ण कर लया ।। ४ ।। एवं रा ौ म कुव त व वशु ाणवं दवा । भर ाजा मे चैव नयता चा रणः ।। ५ ।। वा वाहारा बुभ ा वश तः सं नषू दताः । एवं मेण सवा ताना मान् दानवा तदा ।। ६ ।। नशायां प रबाध ते म ा भुजबला यात् । कालोपसृ ाः कालेया न तो जगणान् बन् ।। ७ ।। न चैनान वबु य त मनुजा मनुजो म । एवं वृ ान् दै यां तां तापसेषु तप वषु ।। ८ ।। इस कार वे रातम तप वी मु नय का संहार करते और दनम समु के जलम वेश कर जाते थे। भर ाज मु नके आ मम वायु और जल पीकर संयम- नयमके साथ रहनेवाले बीस चा रय को कालेय ने कालके गालम डाल दया। इस तरह मशः सभी आ म म जाकर अपने बा बलके भरोसे उ म रहनेवाले दानव रातम वहाँके नवा सय को सवथा क प ँचाया करते थे। नर े ! कालेय दानव कालके अधीन हो रहे थे; इसी लये वे े



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असं य ा ण क ह या करते चले जा रहे थे। मनु य को उनके इस षड् य का पता नह लगता था। इस कार वे तप याके धनी तापस के संहारम वृ हो रहे थे ।। ५—८ ।। भाते सम य त नयताहारक शताः । महीतल था मुनयः शरीरैगतजी वतैः ।। ९ ।। ातःकाल आनेपर नय मत आहारसे बल मु नगण अपने अ थमा ाव श न ाण शरीर से पृ वीपर पड़े दखायी दे ते थे ।। ९ ।। ीणमांसै व धरै वम जा ै वसं ध भः । आक णराबभौ भू मः शङ् खाना मव रा श भः ।। १० ।। रा स के ारा भ ण करनेके कारण उनके शरीर का मांस तथा र ीण हो चुका था। वे म जा, आँत और सं ध थान (घुटने आ द)-से र हत हो गये थे। इस तरह सब ओर फैली ई सफेद ह य क े कारण वहाँक भू म शंखरा शसे आ छा दत-सी तीत होती थी ।। १० ।। कलशै व व ै ुवैभ नै तथैव च । वक णर नहो ै भूबभूव समावृता ।। ११ ।। उलटे -पुलटे पड़े ए कलश , टू टे-फूटे ुव तथा बखरी पड़ी ई अ नहो क साम य से उन आ म क भू म आ छा दत हो रही थी ।। ११ ।। नः वा यायवषट् कारं न य ो सव यम् । जगदासी साहं कालेयभयपी डतम् ।। १२ ।। वा याय और वषट् कार बंद हो गये। य ो सव आ द काय न हो गये। कालेय के भयसे पी ड़त ए स पूण जगत्म कह कोई उ साह नह रह गया था ।। एवं सं ीयमाणा मानवा मनुजे र । आ म ाणपराभीताः ा व त दशो भयात् ।। १३ ।। नरे र! इस कार दन- दन न होनेवाले मनु य भयभीत हो अपनी र ाके लये चार दशा म भाग गये ।। १३ ।। के चद् गुहाः व वशु नझरां ापरे तथा । अपरे मरणो ना भयात् ाणान् समु सृजन् ।। १४ ।। कुछ लोग गुफा म जा छपे। कतने ही मानव झरन के आस-पास रहने लगे और कतने ही मनु य मृ युसे इतने घबरा गये क भयसे ही उनके ाण नकल गये ।। १४ ।। के चद महे वासाः शूराः परमह षताः । मागमाणाः परं य नं दानवानां च रे ।। १५ ।। इस भूतलपर कुछ महान् धनुधर शूरवीर भी थे, जो अ य त हष और उ साहसे यु हो दानव के थानका पता लगाते ए उनके दमनके लये भारी य न करने लगे ।। १५ ।। न चैतान धज मु ते समु ं समुपा तान् । मं ज मु परममाज मुः यमेव च ।। १६ ।। परंतु समु म छपे ए दानव को वे पकड़ नह पाते। उ ह ने ब त प र म कया और अ तम थककर वे पुनः अपने घरको ही लौट आये ।। १६ ।। े ो े

जग युपशमं याते न य ो सव ये । आज मुः परमामा त दशा मनुजे र ।। १७ ।। मनुजे र! य ो सव आ द काय के न हो जानेपर जब जगत्का वनाश होने लगा, तब दे वता को बड़ी पीड़ा ई ।। १७ ।। समे य समहे ा भया म ं च रे । शर यं शरणं दे वं नारायणमजं वभुम् ।। १८ ।। तेऽ भग य नम कृ य वैकु ठमपरा जतम् । ततो दे वाः सम ता ते तदोचुमधुसूदनम् ।। १९ ।। इ आ द सब दे वता ने मलकर भयसे मु होनेके लये म णा क । फर वे सम त दे वता सबको शरण दे नेवाले, शरणागतव सल, अज मा एवं सव ापी, अपरा जत वैकु ठनाथ भगवान् नारायणदे वक शरणम गये और नम कार करके उन मधुसूदनसे बोले — ।। वं नः ा च भता च हता च जगतः भो । वया सृ मदं व ं य चे ं य च ने त ।। २० ।। ‘ भो! आप ही हमारे ा और पालक ह। आप ही स पूण जगत्का संहार करनेवाले ह। इस थावर और जंगम स पूण जगत्क सृ आपने ही क है ।। वया भू मः पुरा न ा समु ात् पु करे ण । वाराहं वपुरा य जगदथ समु ता ।। २१ ।। ‘कमलनयन! पूवकालम आपने वाराह प धारण करके स पूण जगत्के हतके लये समु के जलसे इस खोयी ई पृ वीका उ ार कया था ।। २१ ।। आ ददै यो महावीय हर यक शपुः पुरा । नार सहं वपुः कृ वा सू दतः पु षो म ।। २२ ।। ‘पु षो म! ाचीनकालम आपने ही नृ सह-शरीर धारण करके महापरा मी आ ददै य हर यक शपुका वध कया था ।। २२ ।। अव यः सवभूतानां ब ल ा प महासुरः । वामनं वपुरा य ैलो याद् ं शत वया ।। २३ ।। ‘स पूण ा णय के लये अव य महादै य ब लको भी आपने ही वामन प धारण करके लोक के रा यसे वं चत कया ।। २३ ।। असुर महे वासो ज भ इ य भ व ुतः । य ोभकरः ू र वयैव व नपा ततः ।। २४ ।। ‘य का नाश करनेवाले ू रकमा महाधनुधर ज भ नामसे व यात असुरको भी आपने ही मार गराया था ।। २४ ।। एवमाद न कमा ण येषां सं या न व ते । अ माकं भयभीतानां वं ग तमधुसूदन ।। २५ ।। ‘ऐसे-ऐसे आपके अनेक कम ह, जनक कोई सं या नह है। मधुसूदन! हम भयभीत दे वता के एकमा आ य आप ही ह ।। २५ ।। े े े ो े

त मात् वां दे वदे वेश लोकाथ ापयामहे । र लोकां दे वां श ं च महतो भयात् ।। २६ ।। ‘दे वदे वे र! इसी लये लोक हतके उ े यसे हम यह नवेदन कर रहे ह क आप स पूण जगत्के ा णय , दे वता और इ क भी महान् भयसे र ा क जये’ ।। २६ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायां व णु तवे य धकशततमोऽ यायः ।। १०२ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम व णु तु त वषयक एक सौ दोवाँ अ याय पूरा आ ।। १०२ ।।

य धकशततमोऽ यायः भगवान् व णुके आदे शसे दे वता का मह ष अग यके आ मपर जाकर उनक तु त करना दे वा ऊचुः तव सादाद् वध ते जाः सवा तु वधाः । ता भा वता भावय त ह क ै दवौकसः ।। १ ।। दे वता कहते ह— भो! जरायुज, अ डज, वेदज और उ ज—इन चार भेद वाली स पूण जा आपक कृपासे ही वृ को ा त होती है। अ युदयशील होनेपर वे (मानव) जाएँ ही ह और क ारा दे वता का भरण-पोषण करती ह ।। १ ।। लोका ेवं ववध ते यो यं समुपा ताः । व सादा ना वयैव प रर ताः ।। २ ।। इदं च समनु ा तं लोकानां भयमु मम् । न च जानीम केनेमे रा ौ व य त ा णाः ।। ३ ।। इसी कार सब लोग एक- सरेके सहारे उ त करते ह। आपक ही कृपासे सब ाणी उ े गर हत जीवन बताते और आपके ारा ही सवथा सुर त रहते ह। भगवन्! मनु य के सम यह बड़ा भारी भय उप थत आ है। न जाने कौन रातम आकर इन ा ण का वध कर रहा है ।। २-३ ।। ीणेषु च ा णेषु पृ थवी यमे य त । ततः पृ थ ां ीणायां दवं यमे य त ।। ४ ।। ा ण के न होनेपर सारी पृ वी न हो जायगी और पृ वीका नाश होनेपर वग भी न हो जायगा ।। ४ ।। व सादा महाबाहो लोकाः सव जग पते । वनाशं ना धग छे यु वया वै प रर ताः ।। ५ ।। महाबाहो! जग पते! आप ऐसी कृपा कर, जससे आपके ारा सुर त होकर सब लोग वनाशको न ा त ह ।। ५ ।। व णु वाच व दतं मे सुराः सव जानां यकारणम् । भवतां चा प व या म शृणु वं वगत वराः ।। ६ ।। भगवान् व णु बोले—दे वताओ! जाके वनाशका जो कारण उप थत आ है वह सब मुझे ात है। म तुमलोग को भी बता रहा ँ; न त होकर सुनो ।। ६ ।। कालेय इ त व यातो गणः परमदा णः । तै वृ ं समा य जगत् सव मा थतम् ।। ७ ।। ै















दै य का एक अ य त भयंकर दल है जो कालेय नामसे व यात है। उन दै य ने वृ ासुरका सहारा लेकर सारे संसारम तहलका मचा दया था ।। ७ ।। ते वृ ं नहतं ् वा सह ा ेण धीमता । जी वतं प रर तः व ा व णालयम् ।। ८ ।।

परम बु मान् इ के ारा वृ ासुरको मारा गया दे ख वे अपने ाण बचानेके लये समु म जाकर छप गये ह ।। ८ ।। ते व योदध घोरं न ाहसमाकु लम् । उ सादनाथ लोकानां रा ौ न त ऋषी नह ।। ९ ।। नाक और ाह से भरे ए भयंकर समु म घुसकर वे स पूण जगत्का संहार करनेके लये रातम नकलते तथा यहाँ ऋ षय क ह या करते ह ।। ९ ।। न तु श याः यं नेतुं समु ा यगा ह ते । समु य ये बु भव ः स धायताम् ।। १० ।। उन दानव का संहार नह कया जा सकता; य क वे गम समु के आ यम रहते ह। अतः तुम-लोग को समु को सुखानेका वचार करना चा हये ।। १० ।। अग येन वना को ह श ोऽ योऽणवशोषणे । अ यथा ह न श या ते वना सागरशोषणम् ।। ११ ।। मह ष अग यके सवा सरा कौन है जो समु का शोषण करनेम समथ हो। समु को सुखाये बना वे दानव काबूम नह आ सकते ।। ११ ।। े

एत छ वा तदा दे वा व णुना समुदा तम् । परमे नमा ा य अग य या मं ययुः ।। १२ ।। भगवान् व णुक कही ई यह बात सुनकर दे वता ाजीक आ ा ले अग यके आ मपर गये ।। त ाप यन् महा मानं वा ण द ततेजसम् । उपा यमानमृ ष भदवै रव पतामहम् ।। १३ ।। वहाँ उ ह ने म ाव णके पु महा मा अग यजीको दे खा। उनका तेज उ ा सत हो रहा था। जैसे दे वतालोग ाजीके पास बैठते ह, उसी कार ब त-से ऋ ष-मु न उनके नकट बैठे थे ।। १३ ।। तेऽ भग य महा मानं मै ाव णम युतम् । आ म थं तपोरा श कम भः वैर भ ु वन् ।। १४ ।। अपनी म हमासे कभी युत न होनेवाले म ाव ण न दन तपोरा श महा मा अग य आ मम ही वराजमान थे। दे वता ने समीप जाकर उनके अ त कम का वणन करते ए तु त ार भ क ।। १४ ।।

दे वा ऊचुः न षेणा भत तानां वं लोकानां ग तः पुरा । ं शत सुरै यात् वल का लोकक टकः ।। १५ ।। दे वता बोले—भगवन्! पूवकालम राजा न षके अ यायसे संत त ए लोक क आपने ही र ा क थी। आपने ही उस लोकक टक नरेशको दे वे पद तथा वगसे नीचे गरा दया था ।। १५ ।। ोधात् वृ ः सहसा भा कर य नगो मः । वच तवान त ामन् व यः शैलो न वधते ।। १६ ।। पवत म े व य सूयदे वपर ोध करके जब सहसा बढ़ने लगा तब आपने ही उसे रोका था। आपक आ ाका उ लंघन न करते ए व य ग र आज भी बढ़ नह रहा है ।। १६ ।। तमसा चावृते लोके मृ युना य दताः जाः । वामेव नाथमासा नवृ त परमां गताः ।। १७ ।। व य ग रके बढ़नेसे जब सारे जगत्म अ धकार छा गया और सारी जा मृ युसे पी ड़त होने लगी। उस समय आपको ही अपना र क पाकर सबने अ य त हषका अनुभव कया था ।। १७ ।। अ माकं भयभीतानां न यशो भगवान् ग तः । तत वाताः याचामो वरं वां वरदो स ।। १८ ।। सदा आप ही हम भयभीत दे वता के लये आ य होते आये ह। अतः इस समय भी संकटम पड़कर हम आपसे वर माँग रहे ह; य क आप ही वर दे नेके यो य ह ।। १८ ।। ी





इ त ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायामग यमाहा यकथने य धकशततमोऽ यायः ।। १०३ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम अग यमाहा य-वणन वषयक एक सौ तीनवाँ अ याय पूरा आ ।। १०३ ।।

चतुर धकशततमोऽ यायः अग यजीका व यपवतको बढ़ नेसे रोकना और दे वताक े साथ सागर-तटपर जाना यु ध र उवाच कमथ सहसा व यः वृ ः ोधमू छतः । एत द छा यहं ोतुं व तरेण महामुने ।। १ ।। यु ध रने पूछा—महामुने! व यपवत कस लये ोधसे मूछ त हो सहसा बढ़ने लगा था? म इस संगको व तारपूवक सुनना चाहता ँ ।। १ ।। लोमश उवाच अ राजं महाशैलं मे ं कनकपवतम् । उदया तमने भानुः द णमवतत ।। २ ।। लोमशजीने कहा—राजन्! सूयदे व सुवणमय महान् पवत ग रराज मे क उदय और अ तके समय प र मा कया करते ह ।। २ ।। तं तु ् वा तथा व यः शैलः सूयमथा वीत् । यथा ह मे भवता न यशः प रग यते ।। ३ ।। द ण यते मामेवं कु भा कर । एवमु ततः सूयः शैले ं यभाषत ।। ४ ।। नाहमा मे छया शैलं करो येनं द णम् । एष मागः द ो मे यै रदं न मतं जगत् ।। ५ ।। उ ह ऐसा करते दे ख व य ग रने उनसे कहा—‘भा कर! जैसे आप मे क त दन प र मा करते ह, उसी तरह मेरी भी क जये।’ यह सुनकर भगवान् सूयने ग रराज व यसे कहा—‘ ग र े ! म अपनी इ छासे मे ग रक प र मा नह करता ँ। ज ह ने इस संसारक सृ क है, उन वधाताने मेरे लये यही माग न त कया है’ ।। ३—५ ।। एवमु ततः ोधात् वृ ः सहसाचलः । सूयाच मसोमाग रोद्धु म छन् परंतप ।। ६ ।। परंतप यु ध र! सूयदे वके ऐसा कहनेपर व य-पवत सहसा कु पत हो सूय और च माका माग रोक लेनेक इ छासे बढ़ने लगा ।। ६ ।। ततो दे वाः स हताः सव एव व यं समाग य महा राजम् । नवारयामासु पायत तं न च म तेषां वचनं चकार ।। ७ ।। े





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यह दे ख सब दे वता एक साथ मलकर महान् पवतराज व यके पास गये और अनेक उपाय ारा उसके ोधका नवारण करने लगे; परंतु उसने उनक बात नह मानी ।। ७ ।। अथा भज मुमु नमा म थं तप वनं धमभृतां व र म् । अग यम य तवीयव तं तं चाथमूचुः स हताः सुरा ते ।। ८ ।। तब वे सब दे वता मलकर अपने आ मपर वराजमान धमा मा म े तप वी अग य मु नके पास गये, जो अ त भावशाली थे। वहाँ जाकर उ ह ने अपना योजन कह सुनाया ।। ८ ।। दे वा ऊचुः सूयाच मसोमाग न ाणां ग त तथा । शैलराजो वृणो येष व यः ोधवशानुगः ।। ९ ।। तं नवार यतुं श ो ना यः क द् जो म । ऋते वां ह महाभाग त मादे नं नवारय ।। १० ।। दे वता बोले— ज े ! यह पवतराज व य ोधके वशीभूत होकर सूय और च माके माग तथा न क ग तको रोक रहा है। महाभाग! आपके सवा सरा कोई इसका नवारण नह कर सकता। अतः आप चलकर इसे रो कये ।। ९-१० ।। त छ वा वचनं व ः सुराणां शैलम यगात् । सोऽ भग या वीद् व यं सदारः समुप थतः ।। ११ ।। दे वता क यह बात सुनकर व वर अग य अपनी प नी लोपामु ाके साथ व यपवतके समीप गये और वहाँ उप थत हो उससे इस कार बोले— ।। ११ ।।

माग म छा यहं द ं भवता पवतो म । द णाम भग ता म दशं कायण केन चत् ।। १२ ।। ‘पवत े ! म कसी कायसे द ण दशाको जा रहा ँ, मेरी इ छा है, तुम मुझे माग दान करो ।। १२ ।। यावदागमनं म ं तावत् वं तपालय । नवृ े म य शैले ततो वध व कामतः ।। १३ ।। ‘जबतक म पुनः लौटकर न आऊँ तबतक मेरी ती ा करते रहो। शैलराज! मेरे लौट आनेपर तुम पुनः इ छानुसार बढ़ते रहना’ ।। १३ ।। एवं स समयं कृ वा व येना म कशन । अ ा प द णा े शाद् वा णन नवतते ।। १४ ।। श ुसूदन! व यके साथ ऐसा नयम करके म ाव णन दन अग यजी चले गये और आजतक द ण दे शसे नह लौटे ।। १४ ।। एतत् ते सवमा यातं यथा व यो न वधते । अग य य भावेण य मां वं प रपृ छ स ।। १५ ।। राजन्! तुम मुझसे जो बात पूछ रहे थे, वह सब संग मने कह दया। मह ष अग यके ही भावसे व यपवत बढ़ नह रहा है ।। १५ ।। कालेया तु यथा राजन् सुरैः सव नषू दताः । अग याद् वरमासा त मे नगदतः शृणु ।। १६ ।। े









राजन्! सब दे वता ने अग यसे वर पाकर जस कार कालेय नामक दै य का संहार कया, वह बता रहा ँ, सुनो— ।। १६ ।। दशानां वचः ु वा मै ाव णर वीत् । कमथम भयाताः थ वरं म ः क म छथ । एवमु ा तत तेन दे वता मु नम ुवन् ।। १७ ।। (सव ा लयो भू वा पुर दरपुरोगमाः ।) दे वता क बात सुनकर म ाव णन दन अग यने पूछा—‘दे वताओ! आपलोग कस लये यहाँ पधारे ह और मुझसे कौन-सा वर चाहते ह?’ उनके इस कार पूछनेपर इ को आगे करके सब दे वता ने हाथ जोड़कर मु नसे कहा— ।। १७ ।। एवं वये छाम कृतं ह काय महाणवं पीयमानं महा मन् । ततो व ध याम सहानुब धान् कालेयसं ान् सुर व ष तान् ।। १८ ।। ‘महा मन्! हम आपके ारा यह काय स प कराना चाहते ह क आप सारे महासागरके जलको पी जायँ। तदन तर हमलोग दे व ोही कालेय नामक दानव का उनके ब धु-बा धव स हत वध कर डालगे’ ।। १८ ।। दशानां वचः ु वा तथे त मु नर वीत् । क र ये भवतां कामं लोकानां च महत् सुखम् ।। १९ ।। दे वता का यह कथन सुनकर मह ष अग यने कहा—‘ब त अ छा’ म आपलोग का मनोरथ पूण क ँ गा। इससे स पूण लोक को महान् सुख ा त होगा ।। १९ ।। एवमु वा ततोऽग छत् समु ं स रतां प तम् । ऋ ष भ तपः स ै ः साध दे वै सु त ।। २० ।। सु त! ऐसा कहकर अग यजी दे वता तथा तपः स ऋ षय के साथ नद प त समु के तटपर गये ।। मनु योरगग धवय कपु षा तथा । अनुज मुमहा मानं ु कामा तद तम् ।। २१ ।। उस समय मनु य, नाग, ग धव, य और क र सभी उस अ त यको दे खनेके लये उन महा माके पीछे चल दये ।। २१ ।। ततोऽ यग छन् स हताः समु ं भीम नः वनम् । नृ य त मव चोम भव ग त मव वायुना ।। २२ ।। फर वे सब लोग एक साथ भयंकर गजना करनेवाले समु के समीप गये, जो अपने उ ाल तरंग ारा मानो नृ य कर रहा था; और वायुके ारा उछलता-कूदता-सा जान पड़ता था ।। २२ ।। हस त मव फेनौघैः खल तं क दरेषु च । नाना ाहसमाक ण नाना जगणा वतम् ।। २३ ।। े













वह फेन के समुदाय ारा मानो अपनी हा यछटा बखेर रहा था; और क दरा से टकराता-सा जान पड़ता था। उसम नाना कारके ाह आ द जलज तु भरे ए थे, तथा ब त-से प ी नवास करते थे ।। २३ ।। अग यस हता दे वाः सग धवमहोरगाः । ऋषय महाभागाः समासे महोद धम् ।। २४ ।। अग यजीके साथ दे वता, ग धव, बड़े-बड़े नाग और महाभाग ऋ षगण सभी महासागरके तटपर जा प ँचे ।। २४ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायामग योद धगमने चतुर धकशततमोऽ यायः ।। १०४ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम अग यका समु तटपर गमन वषयक एक सौ चारवाँ अ याय पूरा आ ।। १०४ ।। (दा णा य अ धक पाठका ोक मलाकर कुल २४ ोक ह)

प चा धकशततमोऽ यायः अग यजीके ारा समु पान और दे वता का कालेय दै य का वध करके ाजीसे समु को पुनः भरनेका उपाय पूछना लोमश उवाच समु ं स समासा वा णभगवानृ षः । उवाच स हतान् दे वानृष ैव समागतान् ।। १ ।। अहं लोक हताथ वै पबा म व णालयम् । भव यदनु ेयं त छ ं सं वधीयताम् ।। २ ।। लोमशजी कहते ह—राजन्! समु के तटपर जाकर म ाव ण-न दन भगवान् अग यमु न वहाँ एक ए दे वता तथा समागत ऋ षय से बोले—‘म लोक हतके लये समु का जल पी लेता ँ। फर आपलोग को जो काय करना हो उसे शी पूरा कर ल’ ।। १-२ ।। एताव वा वचनं मै ाव णर युतः । समु म पबत् ु ः सवलोक य प यतः ।। ३ ।। अपनी मयादासे कभी युत न होनेवाले म ा-व ण-कुमार अग यजी कु पत हो सब लोग के दे खते-दे खते समु को पीने लगे ।। ३ ।। पीयमानं समु ं तं ् वा से ा तदामराः । व मयं परमं ज मुः तु त भ ा यपूजयन् ।। ४ ।। उ ह समु -पान करते दे ख इ स हत स पूण दे वता बड़े व मत ए और तु तय ारा उनका समादर करने लगे ।। ४ ।।

वं न ाता वधाता च लोकानां लोकभावन । व सादात् समु छे दं न ग छे त् सामरं जगत् ।। ५ ।। ‘लोकभावन महष! आप हमारे र क तथा स पूण लोक के वधाता ह। आपक कृपासे अब दे वता स हत स पूण जगत् वनाशको नह ा त होगा’ ।। ५ ।। स पू यमान दशैमहा मा ग धवतूयषु नद सु सवशः । द ै पु पैरवक यमाणो महाणवं नःस ललं चकार ।। ६ ।। इस कार जब दे वता महा मा अग यक शंसा कर रहे थे, सब ओर ग धव के वा क व न फैल रही थी और अग यजी पर द फूल क बौछार हो रही थी, उसी समय अग यजीने स पूण महासागरको जलशू य कर दया ।। ६ ।। ् वा कृतं नःस ललं महाणवं सुराः सम ताः परम ाः । गृ द ा न वरायुधा न तान् दानवा नुरद नस वाः ।। ७ ।। ो











उस महासमु को नजल आ दे ख सब दे वता बड़े स ए। उ ह ने अपने द एवं े आयुध लेकर अ य त उ साहसे स प हो दानव पर आ मण कया ।। ७ ।। ते व यमाना दशैमहा म भमहाबलैव ग भ द ः । न से हरे वेगवतां महा मनां वेगं तदा धार यतुं दवौकसाम् ।। ८ ।। महान् बलवान् वेगशाली और महाबु मान् दे वता जब सहगजना करते ए दै य को मारने लगे उस समय वे उन वेगवान् महामना दे वता का वेग न सह सके ।। ८ ।। ते व यमाना दशैदानवा भीम नः वनाः । च ु ः सुतुमुलं यु ं मुत मव भारत ।। ९ ।। भरतन दन! दे वता क मार पड़नेपर दानव ने भी भयंकर गजना करते ए दो घड़ीतक उनके साथ घोर यु कया ।। ९ ।। ते पूव तपसा द धा मु न भभा वता म भः । यतमानाः परं श या दशै व नषू दताः ।। १० ।। उन दै य को शु अ तःकरणवाले मु नय ने अपनी तप या ारा पहलेसे ही द ध-सा कर रखा था, अतः पूरी श लगाकर अ धक-से-अ धक यास करनेपर भी दे वता ारा वे मार डाले गये ।। १० ।। ते हेम न काभरणाः कु डला दधा रणः । नहता ब शोभ त पु पता इव कशुकाः ।। ११ ।। सोनेक मोहर क माला से भू षत तथा कु डल एवं बाजूबंदधारी दै य वहाँ मारे जाकर खले ए पलाशके वृ क भाँ त अ धक शोभा पा रहे थे ।। ११ ।। हतशेषा ततः के चत् कालेया मनुजो म । वदाय वसुधां दे व पातालतलमा थताः ।। १२ ।। नर े ! मरनेसे बचे ए कुछ कालेय दै य वसु धरा दे वीको वद ण करके पातालम चले गये ।। १२ ।। नहतान् दानवान् ् वा दशा मु नपु वम् । तु ु वु व वधैवा यै रदं वचनम ुवन् ।। १३ ।। सब दानव को मारा गया दे ख दे वता ने नाना कारके वचन ारा मु नवर अग यजीका तवन कया और यह बात कही— ।। १३ ।। व सादा महाभाग लोकैः ा तं महत् सुखम् । व ेजसा च नहताः कालेयाः ू र व माः ।। १४ ।। ‘महाभाग! आपक कृपासे सम त लोक ने महान् सुख ा त कया है; य क ू रतापूण परा म दखानेवाले कालेय दै य आपके तेजसे द ध हो गये ।। १४ ।। पूरय व महाबाहो समु ं लोकभावन । यत् वया स ललं पीतं तद मन् पुन सृज ।। १५ ।। ‘









‘मुने! आपक बाँह बड़ी ह। आप नूतन संसारक सृ करनेम समथ ह। अब आप समु को फर भर द जये। आपने जो इसका जल पी लया है उसे फर इसीम छोड़ द जये’ ।। १५ ।। एवमु ः युवाच भगवान् मु नपु वः । (तां तदा स हतान् दे वानग यः सपुर दरान् ।) जीण त मया तोयमुपायोऽ यः च यताम् ।। १६ ।। पूरणाथ समु य भव य नमा थतैः । एत छ वा तु वचनं महषभा वता मनः ।। १७ ।। व मता वष णा बभूवुः स हताः सुराः । पर परमनु ा य ण य मु नपु वम् ।। १८ ।। उनके ऐसा कहनेपर मु न वर भगवान् अग यने वहाँ एक ए इ आ द सम त दे वता से उस समय य कहा—‘दे वगण! वह जल तो मने पचा लया, अतः समु को भरनेके लये सतत य नशील रहकर आपलोग कोई सरा ही उपाय सोच।’ शु अ तःकरणवाले मह षका यह वचन सुनकर सब दे वता बड़े व मत हो गये; उनके मनम वषाद छा गया। वे आपसम सलाह करके मु नवर अग यजीको णाम कर वहाँसे चल दये ।। १६—१८ ।। जाः सवा महाराज व ज मुयथागतम् । दशा व णुना साधमुपज मुः पतामहम् ।। १९ ।। महाराज! फर सारी जा जैसे आयी थी, वैसे ही लौट गयी। दे वतालोग भगवान् व णुके साथ ाजीके पास गये ।। १९ ।। पूरणाथ समु य म य वा पुनः पुनः । (ते धातारमुपाग य दशाः सह व णुना ।) ऊचुः ा लयः सव सागर या भपूरणम् ।। २० ।। समु को भरनेके उ े यसे बार-बार आपसम सलाह करके ी व णुस हत सब दे वता ाजीके नकट जा हाथ जोड़कर यह पूछने लगे क ‘समु को पुनः भरनेके लये या उपाय कया जाय’ ।। २० ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायामग योपा याने प चा धकशततमोऽ यायः ।। १०५ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम अग योपा यान वषयक एक सौ पाँचवाँ अ याय पूरा आ ।। १०५ ।। (दा णा य अ धक पाठका १ ोक मलाकर क ु ल २१ ोक ह)

षड धकशततमोऽ यायः राजा सगरका संतानके लये तप या करना और शवजीके ारा वरदान पाना लोमश उवाच तानुवाच समेतां तु ा लोक पतामहः । ग छ वं वबुधाः सव यथाकामं यथे सतम् ।। १ ।। लोमशजी कहते ह—राजन्! तब लोक पतामह ाजीने अपने पास आये ए सब दे वता से कहा—‘दे वगण! इस समय तुम सब लोग इ छानुसार अभी थानको चले जाओ ।। १ ।। महता कालयोगेन कृ त या यतेऽणवः । ात कारणं कृ वा महाराजो भगीरथः ।। २ ।। पूर य य त तोयौघैः समु ं न धम भसाम् । ‘अब द घकालके प ात् समु फर अपनी वाभा वक अव थाम आ जायगा। महाराज भगीरथ अपने कुटु बी जन ( पतामह )-के उ ारका उ े य लेकर जल न ध समु को पुनः अगाध जलरा शसे भर दगे’ ।। २ ।। पतामहवचः ु वा सव वबुधस माः । कालयोगं ती तो ज मु ा प यथागतम् ।। ३ ।। ाजीक यह बात सुनकर स पूण े दे वता अवसरक ती ा करते ए जैसे आये थे, वैसे ही चले गये ।। ३ ।। यु ध र उवाच कथं वै ातयो न् कारणं चा क मुने । कथं समु ः पूण भगीरथ त यात् ।। ४ ।। यु ध रने पूछा—‘ न्! भगीरथके कुटु बीजन समु क पू तम न म य कर बने? मुने! उनके न म बननेका कारण या है? और भगीरथके आ यसे कस कार समु क पू त ई? ।। ४ ।। एत द छा यहं ोतुं व तरेण तपोधन । कयमानं वया व रा ां च रतमु मम् ।। ५ ।। तपोधन! व वर! म यह संग, जसम राजा के उ म च र का वणन है, आपके मुखसे व तारपूवक सुनना चाहता ँ ।। ५ ।। वैश पायन उवाच एवमु तु व े ो धमरा ा महा मना । कथयामास माहा यं सगर य महा मनः ।। ६ ।। ै











वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! महा मा धमराजके इस कार पूछनेपर व वर लोमशने महा मा राजा सगरका माहा य बतलाया ।। ६ ।। लोमश उवाच इ वाकूणां कुले जातः सगरो नाम पा थवः । पस वबलोपेतः स चापु ः तापवान् ।। ७ ।। लोमशजी कहते ह—राजन्! इ वाकुवंशम सगर नामसे स एक राजा हो गये ह। वे प, धैय और बलसे स प तथा बड़े तापी थे, परंतु उनके कोई पु न था ।। ७ ।। स हैहयान् समु सा तालजङ् घां भारत । वशे च कृ वा राज यान् वरा यम वशासत ।। ८ ।। भारत! उ ह ने हैहय तथा तालजंघ नामक य का संहार करके सब राजा को अपने वशम कर लया और अपने रा यका शासन करने लगे ।। ८ ।। त य भाय वभवतां पयौवनद पते । वैदभ भरत े शै या च भरतषभ ।। ९ ।। भरत े ! राजा सगरके दो प नयाँ थ , वैदभ और शै या। उन दोन को ही अपने प और यौवनका बड़ा अ भमान था ।। ९ ।। स पु कामो नृप त त यते म मह पः । प नी यां सह राजे कैलासं ग रमा तः ।। १० ।। स त यमानः सुमहत् तपो योगसम वतः । आससाद महा मानं य ं पुरमद नम् ।। ११ ।। शंकरं भवमीशानं शूलपा ण पना कनम् । य बकं शवमु ेशं ब पमुमाप तम् ।। १२ ।। राजे ! राजा सगर अपनी दोन प नय के साथ कैलास पवतपर जाकर पु क इ छासे बड़ी भारी तप या करने लगे। योगयु होकर महान् तपम लगे ए महाराज सगरको पुरनाशक, ने धारी, शंकर, भव, ईशान, शूलपा ण, पनाक , य बक, उ ेश, ब प और उमाप त आ द नाम से स महा मा भगवान् शवका दशन आ ।। १०— १२ ।। स तं ् वैव वरदं प नी यां स हतो नृपः । णप य महाबा ः पु ाथ समयाचत ।। १३ ।। तं ी तमान् हरः ाह सभाय नृपस मम् । य मन् वृतो मुतऽहं वयेह नृपते वरम् ।। १४ ।। वरदायक भगवान् शवको दे खते ही महाबा राजा सगरने दोन प नय स हत णाम कया और पु के लये याचना क । तब भगवान् शवने स होकर प नीस हत नृप े सगरसे कहा—‘राजन्! तुमने यहाँ जस मु तम वर माँगा है, उसका प रणाम यह होगा ।। १३-१४ ।।

ष ः पु सह ा ण शूराः परमद पताः । एक यां स भ व य त प यां नरवरो म ।। १५ ।। ते चैव सव स हताः यं या य त पा थव । एको वंशधरः शूर एक यां स भ व य त ।। १६ ।। ‘नर े ! तु हारी एक प नीके गभसे अ य त अ भमानी साठ हजार शूरवीर पु ह गे, परंतु वे सब-के-सब एक ही साथ न हो जायँगे। भूपाल! तु हारी जो सरी प नी है, उसके गभसे एक ही शूरवीर वंशधर पु उ प होगा’ ।। १५-१६ ।। एवमु वा तु तं त ैवा तरधीयत । स चा प सगरो राजा जगाम वं नवेशनम् ।। १७ ।। प नी यां स हत त सोऽ त मना तदा । त य ते मनुज े भाय कमललोचने ।। १८ ।। वैदभ चैव शै या च ग भ यौ स बभूवतुः । ततः कालेन वैदभ गभालाबुं जायत ।। १९ ।। शै या च सुषुवे पु ं कुमारं दे व पणम् । तदालाबुं समु ु ं मन े स पा थवः ।। २० ।। ऐ







ऐसा कहकर भगवान् शंकर वह अ तधान हो गये। राजा सगर भी अ य त स च हो प नय स हत अपने नवास थानको चले गये। नर े ! तदन तर उनक वे दोन कमलनयनी प नयाँ वैदभ और शै या गभवती । फर समय आनेपर वैदभ ने अपने गभसे एक तूँबी उ प क और शै याने दे वताके समान सु दर पवाले एक पु को ज म दया। राजा सगरने उस तूंबीको फक दे नेका वचार कया ।। १७—२० ।। अथा त र ा छु ाव वाचं ग भीर नः वनाम् । राजन् मा साहसं काष ः पु ान् न य ु मह स ।। २१ ।। अलाबुम या कृ य बीजं य नेन गो यताम् । सोप वेदेषु पा ेषु घृतपूणषु भागशः ।। २२ ।। इसी समय आकाशसे एक ग भीर वाणी सुनायी द —‘राजन्! ऐसा ःसाहस न करो। अपने इन पु का याग करना तु हारे लये उ चत नह है। इस तूँबीम से एक-एक बीजको नकालकर घीसे भरे ए गरम घड़ म अलग-अलग र खो और य नपूवक इन सबक र ा करो ।। २१-२२ ।। ततः पु सह ा ण ष ा य स पा थव । महादे वेन द ं ते पु ज म नरा धप । अनेन मयोगेन मा ते बु रतोऽ यथा ।। २३ ।। ‘पृ वीपते! ऐसा करनेसे तु ह साठ हजार पु ा त ह गे। नर े ! महादे वजीने तु हारे लये इसी मसे पु ज म होनेका नदश कया है; अतः तु ह कोई अ यथा वचार नह होना चा हये ।। २३ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायां सगरसंत तकथने षड धकशततमोऽ यायः ।। १०६ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके सम सगरसंत तवणन वषयक एक सौ छठाँ अ याय पूरा आ ।। १०६ ।।

स ता धकशततमोऽ यायः सगरके पु क उ प , साठ हजार सगरपु का क पलक ोधा नसे भ म होना, असम सका प र याग, अंशुमान्के य नसे सगरके य क पू त, अंशुमान्से दलीपको और दलीपसे भगीरथको रा यक ा त लोमश उवाच एत छ वा त र ा च स राजा राजस मः । यथो ं त चकाराथ धद् भरतषभ ।। १ ।। लोमशजी कहते ह—भरत े ! यह आकाशवाणी सुनकर भूपाल शरोम ण राजा सगरने उसपर व ास करके उसके कथनानुसार सब काय कया ।। १ ।। एकैकश ततः कृ वा बीजं बीजं नरा धपः । घृतपूणषु कु भेषु तान् भागान् वदधे ततः ।। २ ।। नरेशने एक-एक बीजको अलग करके उन सबको घीसे भरे ए घड़ म रखा ।। २ ।। धा ी ैकैकशः ादात् पु र णत परः । ततः कालेन महता समु थुमहाबलाः ।। ३ ।। ष ः पु सह ा ण त या तमतेजसः । सादाद् राजषः समजाय त पा थव ।। ४ ।। फर पु क र ाके लये त पर हो सबके लये पृथक्-पृथक् धाय नयु कर द। तदन तर द घकालके प ात् उस अनुपम तेज वी नरेशके साठ हजार महाबली पु उन घड़ मसे नकल आये। यु ध र! राज ष सगरके वे सभी पु भगवान् शवक कृपासे ही उ प ए थे ।। ३-४ ।। ते घोराः ू रकमाण आकाशप रस पणः । ब वा चावजान तःसवा लोकान् सहामरान् ।। ५ ।। वे सब-के-सब भयंकर वभाववाले और ू रकमा थे। आकाशम भी सब ओर घूमफर सकते थे। उनक सं या अ धक होनेके कारण वे दे वता स हत स पूण लोक क अवहेलना करते थे ।। ५ ।। दशां ा यबाध त तथा ग धवरा सान् । सवा ण चैव भूता न शूराः समरशा लनः ।। ६ ।। समरभू मम शोभा पानेवाले वे शूरवीर राजकुमार दे वता , ग धव , रा स तथा स पूण ा णय को क दया करते थे ।। ६ ।। व यमाना ततो लोकाः सागरैम दबु भः । ाणं शरणं ज मुः स हताः सवदै वतैः ।। ७ ।। े









म दबु सगरपु ारा सताये ए सब लोग स पूण दे वता के साथ ाजीक शरणम गये ।। ७ ।। तानुवाच महाभागः सवलोक पतामहः । ग छ वं दशाः सव लोकैः साध यथागतम् ।। ८ ।। उस समय सवलोक पतामह महाभाग ाने उनसे कहा—‘दे वताओ! तुम सभी इन सब लोग के साथ जैसे आये हो, वैसे लौट जाओ ।। ८ ।। ना तद घण कालेन सागराणां यो महान् । भ व य त महाघोरः वकृतैः कम भः सुराः ।। ९ ।। ‘अब थोड़े ही दन म अपने ही कये ए अपराध ारा इन सगरपु का अ य त घोर और महान् संहार होगा’ ।। ९ ।। एवमु ा तु ते दे वा लोका मनुजे र । पतामहमनु ा य व ज मुयथागतम् ।। १० ।। नरे र! उनके ऐसा कहनेपर सब दे वता तथा अ य लोग ाजीक आ ा ले जैसे आये थे वैसे लौट गये ।। १० ।। ततः काले ब तथे तीते भरतषभ । द तः सगरो राजा हयमेधेन वीयवान् ।। ११ ।। भरत े ! तदन तर ब त समय बीत जानेपर परा मी राजा सगरने अ मेधय क द ा ली ।। ११ ।। त या ो चरद् भूम पु ैः स प रर तः । (सवरेव महो साहैः व छ द चरो नृप ।) समु ं स समासा न तोयं भीमदशनम् ।। १२ ।। र यमाणः य नेन त ैवा तरधीयत । तत ते सागरा तात तं म वा हयो मम् ।। १३ ।। आग य पतुराच युर यं तुरगं तम् । तेनो ा द ु सवासु सव मागत वा जनम् ।। १४ ।। (ससमु वन पां वचर तो वसु धराम् ।) राजन्! उनका य य अ उनके अ य त उ साही सभी पु ारा सुर त हो व छ दग तसे पृ वीपर वचरने लगा। जब वह अ भयंकर दखायी दे नेवाले जलशू य समु के तटपर आया, तब य नपूवक र त होनेपर भी वहाँ सहसा अ य हो गया। तात! तब उस उ म अ को अप त जानकर सगरपु ने पताके पास आकर कहा—‘हमारे य य अ को कसीने चुरा लया, अब वह दखायी नह दे ता।’ यह सुनकर राजा सगरने कहा—‘तुम सब लोग समु , वन और प स हत सारी पृ वीपर वचरते ए स पूण दशा म जाकर उस अ का पता लगाओ’ ।। १२—१४ ।। तत ते पतुरा ाय द ु सवासु तं हयम् । अमाग त महाराज सव च पृ थवीतलम् ।। १५ ।। तत ते सागराः सव समुपे य पर परम् । े

ना यग छ त तुरगम हतारमेव च ।। १६ ।। महाराज! तदन तर वे पताक आ ा ले इस स पूण भूतलम सभी दशा म अ क खोज करने लगे। खोजते-खोजते सभी सगरपु एक- सरेसे मले, परंतु वे अ तथा अ हताका पता न लगा सके ।। १५-१६ ।। आग य पतरं चोचु ततः ा लयोऽ तः । ससमु वन पा सनद नदक दरा ।। १७ ।। सपवतवनो े शा नखलेन मही नृप । अ मा भ व चता राज छासनात् तव पा थव ।। १८ ।। न चा म धग छामो ना हतारमेव च । ु वा तु वचनं तेषां स राजा ोधमू छतः ।। १९ ।। उवाच वचनं सवा तदा दै ववशा ृप । अनागमाय ग छ वं भूयो मागत वा जनम् ।। २० ।। य यं तं वना ं नाग त ं ह पु काः । तगृ तु संदेशं पतु ते सगरा मजाः ।। २१ ।। भूय एव मह कृ नां वचेतुमुपच मुः । अथाप य त ते वीराः पृ थवीमवदा रताम् ।। २२ ।। तब वे पताके पास आकर उनके आगे हाथ जोड़कर बोले—‘महाराज! हमने आपक आ ासे समु , वन, प, नद , नद, क दरा, पवत और व य दे श स हत सारी पृ वी खोज डाली, परंतु हम न तो अ मला न उसका चुरानेवाला ही।’ यु ध र! उनक यह बात सुनकर राजा सगर ोधसे मू छत हो उठे और उस समय दै ववश उन सबसे इस कार बोले—‘जाओ, लौटकर न आना। पुनः घोड़ेका पता लगाओ। पु ो! उस य के अ को लये बना वापस न आना।’ पताका वह संदेश शरोधाय करके सगरपु ने फर सारी पृ वीपर अ को ढूँ ढ़ना आर भ कया। तदन तर उन वीर ने एक थानपर पृ वीम दरार पड़ी ई दे खी ।। १७—२२ ।। समासा बलं त चा यखनन् सगरा मजाः । कु ालै षुकै ैव समु ं य नमा थताः ।। २३ ।। उस बलके पास प ँचकर सगरपु ने कुदाल और फावड़ से समु को य नपूवक खोदना आर भ कया ।। स ख यमानः स हतैः सागरैव णालयः । अग छत् परमामा त द यमाणः सम ततः ।। २४ ।। असुरोरगर ां स स वा न व वधा न च । आतनादमकुव त व यमाना न सागरैः ।। २५ ।। एक साथ लगे ए सगरकुमार के खोदनेपर सब ओरसे वद ण होनेवाले समु को बड़ी पीड़ाका अनुभव होता था। सगरपु के हाथ मारे जाते ए असुर, नाग, रा स और नाना कारके ज तु बड़े जोरसे आतनाद करते थे ।। २४-२५ ।। छ शीषा वदे हा भ वग थसंधयः । ो

ा णनः सम य त शतशोऽथ सह शः ।। २६ ।। सैकड़ और हजार ऐसे ाणी दखायी दे ने लगे जनके म तक कट गये थे, शरीर छ - भ हो गये थे, चमड़े छल गये थे तथा ह य क े जोड़ टू ट गये थे ।। २६ ।। एवं ह खनतां तेषां समु ं व णालयम् । तीतः सुमहान् कालो न चा ः सम यत ।। २७ ।। इस कार व णके नवासभूत समु क खुदाई करते-करते उनका ब त समय बीत गया, परंतु वह अ कह दखायी नह दया ।। २७ ।। ततः पूव रे दे शे समु य महीपते । वदाय पातालमथ सं ु ाः सगरा मजाः ।। २८ ।। अप य त हयं त वचर तं महीतले । क पलं च महा मानं तेजोरा शमनु मम् । तेजसा द यमानं तु वाला भ रव पावकम् ।। २९ ।। राजन्! तदन तर ोधम भरे ए सगरपु ने समु के पूव र दे शम पाताल फोड़कर वेश कया और वहाँ उस य य अ को पृ वीपर वचरते दे खा। वह तेजक परम उ म रा श महा मा क पल बैठे थे, जो अपने द तेजसे उसी कार उ ा सत हो रहे थे, जैसे लपट से अ न ।। २८-२९ ।। ते तं ् वा हयं राजन् स तनू हाः । अना य महा मानं क पलं कालचो दताः ।। ३० ।। सं ु ाः स धाव त अ हणकाङ् णः । ततः ु ो महाराज क पलो मु नस मः ।। ३१ ।। राजन्! उस अ को दे खकर उनके शरीरम हषज नत रोमा च हो आया। वे कालसे े रत हो ोधम भरकर महा मा क पलका अनादर करके उस अ को पकड़नेके, लये दौड़े। महाराज! तब मु न े क पल कु पत हो उठे ।। ३०-३१ ।।

मह ष क पलक

ोधा नम सगरपु का भ म होना

मह ष अग यका समु पान

वासुदेवे त यं ा ः क पलं मु नपु वम् । स च ु वकृतं कृ वा तेज तेषु समु सृजन् ।। ३२ ।। ददाह सुमहातेजा म दबु न् स सागरान् । मु न वर क पल वे ही भगवान् व णु ह ज ह वासुदेव कहते ह। उन महातेज वीने वकराल आँख करके अपना तेज उनपर छोड़ दया और म दबु सगरपु को जला दया ।। ३२ ।। तान् ् वा भ मसाद् भूतान् नारदः सुमहातपाः ।। ३३ ।। सगरा तकमाग छत् त च त मै यवेदयत् । स त छ वा वचो घोरं राजा मु नमुखोतम् ।। ३४ ।। मुत वमना भू वा थाणोवा यम च तयत् । (स पु नधनोद भू ् त ःखेन सम भ लुतः । आ मानमा मनाऽऽ ा य हयमेवा व च तयत् ।।) अंशुम तं समाय असम ःसुतं तदा ।। ३५ ।। पौ ं भरतशा ल इदं वचनम वीत् । ष ता न सह ा ण पु णाम मतौजसाम् ।। ३६ ।। का पलं तेज आसा म कृते नधनं गताः । तव चा प पता तात प र य ो मयानघ । े



धम संर माणेन पौरणां हत म छता ।। ३७ ।। उ ह भ म आ दे ख महातप वी नारदजी राजा सगरके समीप आये और उनसे सब समाचार नवे दत कया। मु नके मुखसे नकले ए इस घोर वचनको सुनकर राजा सगर दो घड़ीतक अनमने हो महादे वजीके कथनपर वचार करते रहे। पु क मृ युज नत वेदनासे अ य त खी हो वयं ही अपने-आपको सा वना दे उ ह ने अ को ही ढूँ ढ़नेका वचार कया। भरत े ! तदन तर असम सके पु अपने पौ अंशुमान्को बुलाकर यह बात कही—‘तात! मेरे अ मततेज वी साठ हजार पु मेरे ही लये मह ष क पलक ोधा नम पड़कर न हो गये। अनघ! पुरवा सय के हतक र ा रखकर धमक र ा करते ए मने तु हारे पताको भी याग दया है’ ।। ३३—३७ ।। यु ध र उवाच कमथ राजशा लः सगरः पु मा मजम् । य वान् यजं वीरं त मे ू ह तपोधन ।। ३८ ।। यु ध रने पूछा—तपोधन! नृप े सगरने कस लये अपने यज वीर पु का याग कया था, यह मुझे बताइये ।। ३८ ।। लोमश उवाच असम ा इ त यातः सगर य सुतो भूत् । यं शै या जनयामास पौराणां स ह दारकान् ।। ३९ ।। ( डतः सहसाऽऽसा त त महीपते ।) गलेषु ोशतो गृ न ां च ेप बलान् । ततः पौराः समाज मुभयशोकप र लुताः ।। ४० ।। सगरं चा यभाष त सव ा लयः थताः । वं न ाता महाराज परच ा द भभयात् ।। ४१ ।। लोमशजीने कहा—राजन्! सगरका वह पु जसे रानी शै याने उ प कया था, असमसक े नामसे व यात आ। वह जहाँ-तहाँ खेल-कूदम लगे ए पुरवा सय के बल बालक के समीप सहसा प ँच जाता और चीखते- च लाते रहनेपर भी उनका गला पकड़कर उ ह नद म फक दे ता था। तब सम त पुरवासी भय और शोकम म न हो राजा सगरके पास आये और हाथ जोड़े खड़े हो इस कार कहने लगे—‘महाराज! आप श ुसेना आ दके भयसे हमारी र ा करनेवाले ह ।। ३९—४१ ।। असम ोभयाद् घोरात् ततो न ातुमह स । पौराणां वचनं ु वा घोरं नृप तस मः ।। ४२ ।। मु त वमना भू वा स चवा नदम वीत् । असम ाः पुराद सुतो मे व वा यताम् ।। ४३ ।। ‘अतः असमंजसके घोर भयसे आप हमारी र ा कर!’ पुरवा सय का यह भयंकर वचन सुनकर नृप े सगर दो घड़ीतक अनमने होकर बैठे रहे। फर म य से इस कार बोले—‘आज मेरे पु असमंजसको मेरे घरसे बाहर नकाल दो’ ।। ४२-४३ ।। ो े ी

य द वो म यं कायमेत छ ं वधीयताम् । एवमु ा नरे े ण स चवा ते नरा धप ।। ४४ ।। यथो ं व रता ु यथाऽऽ ा पतवान् नृपः । एतत् ते सवमा यातं यथा पु ो महा मना ।। ४५ ।। पौराणां हतकामेन सगरेण ववा सतः । अंशुमां तु महे वासो य ः सगरेण ह । तत् ते सव व या म क यमानं नबोध मे ।। ४६ ।। ‘य द तु ह मेरा य काय करना है तो मेरी इस आ ाका शी पालन होना चा हये।’ राजन्! महाराज सगरके ऐसा कहनेपर म य ने शी वैसा ही कया, जैसा उनका आदे श था। यु ध र! पुरवा सय के हत चाहनेवाले महा मा सगरने जस कार अपने पु को नवा सत कया था, वह सब संग मने तुमसे कह सुनाया। अब महाधनुधर अंशुमान्से राजा सगरने जो कुछ कहा, वह सब तु ह बता रहा ँ, मेरे मुखसे सुनो ।। ४४—४६ ।। सगर उवाच पतु तेऽहं यागेन पु ाणां नधनेन च । अलाभेन तथा य प रत या म पु क ।। ४७ ।। सगर बोले—बेटा! तु हारे पताको याग दे नेसे, अ य पु क मृ यु हो जानेसे तथा य स ब धी अ के न मलनेसे म सवथा संत त हो रहा ँ ।। ४७ ।। त माद् ःखा भसंत तं य व ना च मो हतम् । हय यानयनात् पौ नरका मां समु र ।। ४८ ।। अतः पौ ! य म व न पड़ जानेसे म मो हत और ःखसे संत त ँ। तुम अ को ले आकर नरकसे मेरा उ ार करो ।। ४८ ।। अंशुमानेवमु तु सगरेण महा मना । जगाम ःखात् तं दे शं य वै दा रता मही ।। ४९ ।। महा मा सगरके ऐसा कहनेपर अंशुमान् बड़े ःखसे उस थानपर गये जहाँ पृ वी वद ण क गयी थी ।। ४९ ।। स तु तेनैव मागण समु ं ववेश ह । अप य च महा मानं क पलं तुरगं च तम् ।। ५० ।। उ ह ने उसी मागसे समु म वेश कया और महा मा क पल तथा य य अ को दे खा ।। ५० ।। स ् वा तेजसो रा श पुराणमृ षस मम् । ण य शरसा भूमौ कायम मै यवेदयत् ।। ५१ ।। तेजोरा श मु न वर पुराणपु ष क पलजीका दशन करके अंशुमान्ने धरतीपर माथा टे ककर णाम कया और उनसे अपना काय बताया ।। ५१ ।।

ततः ीतो महाराज क पल ऽशुमतोऽभवत् । उवाच चैनं धमा मा वरदोऽ मी त भारत ।। ५२ ।। भरतवंशी महाराज! इससे धमा मा क पलजी अंशुमान्पर स हो गये और बोले —‘म तु ह वर दे नेको उ त ँ’ ।। ५२ ।। स व े तुरगं त थमं य कारणात् । तीयं वरकं व े पतॄणां पावने छया ।। ५३ ।। अंशुमान्ने पहले तो य कायक स के लये वहाँ उस अ के लये ाथना क और सरा वर अपने पतर को प व करनेक इ छासे माँगा ।। ५३ ।। तमुवाच महातेजाः क पलो मु नपु वः । ददा न तव भ ं ते यद् यत् ाथयसेऽनघ ।। ५४ ।। व य मा च धम स यं चा प त तम् । वया कृताथः सगरः पु वां वया पता ।। ५५ ।। तब मु न े महातेज वी क पलने अंशुमान्से कहा—‘अनघ! तु हारा क याण हो। तुम जो कुछ माँगते हो वह सब तु ह ँ गा। तुमम मा, धम और स य सब कुछ त त है। तुम-जैसे पौ को पाकर राजा सगर कृताथ ह और तु हारे पता तु ह से व तुतः पु वान् ह ।। ५४-५५ ।। तव चैव भावेण वग या य त सागराः । (शलभ वं गता ेते मम ोध ताशने ।) पौ ते पथगां दवादान य य त ।। ५६ ।। ो े

पावनाथ सागराणां तोष य वा महे रम् । हयं नय व भ ं ते य यं नरपु व ।। ५७ ।। ‘तु हारे ही भावसे सगरके सारे पु जो मेरी ोधा नम शलभक भाँ त भ म हो गये ह, वगलोकम चले जायँगे। तु हारा पौ भगवान् शंकरको संतु करके सगरपु को प व करनेके लये वगलोकसे यहाँ गंगाजीको ले आयेगा। नर े ! तु हारा भला हो। तुम इस य य अ को ले जाओ ।। ५६-५७ ।। य ः समा यतां तात सगर य महा मनः । अंशुमानेवमु तु क पलेन महा मना ।। ५८ ।। आजगाम हयं गृ य वाटं महा मनः । सोऽ भवा ततः पादौ सगर य महा मनः ।। ५९ ।। मू न तेना युपा ात त मै सव यवेदयत् । यथा ं ुतं चा प सागराणां यं तथा ।। ६० ।। तं चा मै हयमाच य वाटमुपागतम् । त छ वा सगरो राजा पु जं ःखम यजत् ।। ६१ ।। ‘तात! महा मा सगरका य पूण करो।’ महा मा क पलके ऐसा कहनेपर अंशुमान् उस अ को लेकर महामना सगरके य म डपम आये और उनके चरण म णाम करके उनसे सब समाचार नवेदन कया। सगरने भी नेहसे अंशुमान्का म तक सूँघा। अंशुमान्ने सगरपु का वनाश जैसा दे खा और सुना था, वह सब बताया, साथ ही यह भी कहा क ‘य य अ य म डपम आ गया है।’ यह सुनकर राजा सगरने पु के मरनेका ःख याग दया ।। ५८—६१ ।। अंशुम तं च स पू य समापयत तं तुम् । समा तय ः सगरो दे वैः सवः सभा जतः ।। ६२ ।। और अंशुमान्क शंसा करते ए अपने उस य को पूण कया। य पूण हो जानेपर सब दे वता ने सगरका बड़ा स कार कया ।। ६२ ।। पु वे क पयामास समु ं व णालयम् । शा य सु चरं कालं रा यं राजीवलोचनः ।। ६३ ।। पौ े भारं समावे य जगाम दवं तदा । अंशुमान प धमा मा मह सागरमेखलाम् ।। ६४ ।। शशास महाराज यथैवा य पतामहः । त य पु ः समभवद् दलीपो नाम धम वत् ।। ६५ ।। कमलके समान ने वाले सगरने व णालय समु को अपना पु माना और द घकालतक रा यशासन करके अ तम अपने पौ अंशुमान्पर रा यका सारा भार रखकर वे वगलोकको चले गये। महाराज! धमा मा अंशुमान् भी अपने पतामहसगरके समान ही समु से घरी ई इस वसुधाका पालन करते रहे। उनके एक पु आ जसका नाम दलीप था। वह भी धमका ाता था ।। ६३—६५ ।। त मै रा यं समाधाय अंशुमान प सं थतः । ी

दलीप तु ततः ु वा पतॄणां नधनं महत् ।। ६६ ।। पयत यत ःखेन तेषां ग तम च तयत् । ग ावतरणे य नं सुमह चाकरो ृपः ।। ६७ ।। दलीपको रा य दे कर अंशुमान् भी परलोक-वासी ए। दलीपने जब अपने पतर के महान् संहारका समाचार सुना, तब वे ःखसे संत त हो उठे और उनक सद्ग तका उपाय सोचने लगे। राजा दलीपने गंगाजीको इस भूतलपर उतारनेके लये महान् य न कया ।। ६६-६७ ।। न चावतारयामास चे मानो यथाबलम् । त य पु ः समभव मान् धमपरायणः ।। ६८ ।। भगीरथ इ त यातः स यवागनसूयकः । अ भ ष य तु तं रा ये दलीपो वनमा तः ।। ६९ ।। (भगीरथं महा मानं स यधमपरायणम् ।) यथाश चे ा करनेपर भी वे गंगाको पृ वीपर उतार न सके। दलीपके भगीरथ नामसे व यात एक पु आ जो परम का तमान्, धमपरायण, स यवाद और अदोषदश था। स यधमपरायण महा मा भगीरथका रा या भषेक करके दलीप वनम चले गये ।। ६८-६९ ।। तपः स समायोगात् स राजा भरतषभ । वना जगाम दवं कालयोगेन भारत ।। ७० ।। भरत े ! राजा दलीप तप याजनक स से संयु हो अ तकाल आनेपर वनसे वगलोकको चले गये ।। ७० ।। इ त ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायामग यमाहा यकथने स ता धकशततमोऽ यायः ।। १०७ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम अग यमाहा यवणन वषयक एक सौ सातवाँ अ याय पूरा आ ।। १०७ ।। (दा णा य अ धक पाठक े ३ ोक मलाकर कुल ७३ ोक ह)

अ ा धकशततमोऽ यायः भगीरथका हमालयपर तप या ारा गंगा और महादे वजीको स करके उनसे वर ा त करना लोमश उवाच स तु राजा महे वास वत महारथः । बभूव सवलोक य मनोनयनन दनः ।। १ ।। लोमशजी कहते ह—राजन्! महान् धनुधर महारथी राजा भगीरथ च वत नरेश थे। वे सब लोग के मन और ने को आन द दान करनेवाले थे ।। १ ।। स सु ाव महाबा ः क पलेन महा मना । पतॄणां नधनं घोरम ा तं दव य च ।। २ ।। स रा यं स चवे य य दयेन व यता । जगाम हमव पा तप त तुं नरे र ।। ३ ।। नरे र! उन महाबा ने जब यह सुना क महा मा क पल ारा हमारे (साठ हजार) पतर क भयंकर मृ यु ई है और वे वग ा तसे वं चत रह गये ह तब उ ह ने थत दयसे अपना रा य म ीको स प दया और वयं हमालयके शखरपर तप या करनेके लये थान कया ।। २-३ ।। आ रराध यषुग ां तपसा द ध क बषः । सोऽप यत नर े हमव तं नगो मम् ।। ४ ।। शृ ै ब वधाकारैधातुम रलंकृतम् । पवनाल ब भमघैः प र ष ं सम ततः ।। ५ ।। नरे र! तप यासे सारा पाप न करके वे गंगाजीक आराधना करना चाहते थे। उ ह ने दे खा क ग रराज हमालय व वध धातु से वभू षत नाना कारके शखर से अलंकृत है। वायुके आधारपर उड़नेवाले मेघ चार ओरसे उसका अ भषेक कर रहे ह ।। ४-५ ।। नद कु नत बै ासादै पशो भतम् । गुहाक दरसंलीन सह ा नषे वतम् ।। ६ ।। अनेकानेक न दय , नकु , घा टय और ासाद (म दर )-से इसक बड़ी शोभा हो रही है। गुफा और क दरा म छपे ए सह तथा ा से यह पवत सदा से वत होता है ।। ६ ।। शकुनै व च ा ै ः कूज व वधा गरः । भृ राजै तथा हंसैदा यूहैजलकु कुटै ः ।। ७ ।। मयूरैः शतप ै जीवं जीवकको कलैः । चकोरैर सतापा ै तथा पु यैर प ।। ८ ।। ँ











भाँ त-भाँ तके कलरव करते ए व च अंग वाले प ी, भृंगराज, हंस, चातक, जलमुग, मोर, शतप नामक प ी, च वाक, को कल, चकोर, अ सतापांग और पु य आ द इस पवतक शोभा बढ़ाते ह ।। ७-८ ।। जल थानेषु र येषु प नी भ संक ु लम् । सारसानां च मधुरै ा तैः समलंकृतम् ।। ९ ।। क रैर सरो भ नषे वत शलातलम् । द वारण वषाणा ैः सम ताद् धृ पादपम् ।। १० ।। व ाधरानुच रतं नानार नसमाकुलम् । वषो बणभुजंगै द त ज ै नषे वतम् ।। ११ ।। व चत् कनकसंकाशं व चद् रजतसं नभम् । व चद नपु ाभं हमव तमुपागमत् ।। १२ ।। स तु त नर े तपो घोरं समा तः । फलमूला बुस भ ः सह प रव सरान् ।। १३ ।। संव सरसह े तु गते द े महानद । दशयामास तं ग ा तदा मू तमती वयम् ।। १४ ।। वहाँके रमणीय जलाशय म प समूह भरे ए ह। सारस के मधुर कलरव उस पवतीय दे शको सुशो भत कर रहे ह। हमालयक शला पर क र और अ सराएँ बैठ ह। वहाँके वृ पर चार ओरसे द गज के दाँत क रगड़ दखायी दे ती है। हमालयके इन शखर पर व ाधरगण वचर रहे ह। नाना कारके र न सब ओर ा त ह। व लत ज ावाले भयंकर वषधर सप इस ग र दे शका सेवन करते ह। यह शैलराज कह तो सुवणके समान उ ा सत होता है, कह चाँद के समान चमकता है और कह क जलरा शके समान काला दखायी दे ता है। नर े भगीरथ उस हमवान् पवतपर गये और घोर तप याम लग गये। उ ह ने सह वष तक फल, मूल और जलका आहार कया। एक हजार द वष बीत जानेपर महानद गंगाने वयं साकार होकर उ ह य दशन दया ।। ९—१४ ।। गोवाच क म छ स महाराज म ः क च ददा न ते । तद् वी ह नर े क र या म वच तव ।। १५ ।। गंगाजीने कहा—महाराज! तुम मुझसे या चाहते हो, म तु ह या ँ ? नर े ! बताओ, म तु हारी याचना पूण क ँ गी ।। १५ ।। एवमु ः युवाच राजा हैमवत तदा । (नद भगीरथो राजन् णप य कृता लः ।) पतामहा मे वरदे क पलेन महान द ।। १६ ।। अ वेषमाणा तुरगं नीता वैव वत यम् । ष ता न सह ा ण सागराणां महा मनाम् ।। १७ ।। े



क पलं दे वमासा णेन नधनं गताः । तेषामेवं वन ानां वग वासो न व ते ।। १८ ।। यावत् ता न शरीरा ण वं जलैना भ ष च स । तावत् तेषां ग तना त सागराणां महान द ।। १९ ।। वग नय महाभागे म पतॄन् सगरा मजान् । तेषामथन याचा म वामहं वै महान द ।। २० ।। राजन्! उनके ऐसा कहनेपर राजा भगीरथने हमालयन दनी गंगाको हाथ जोड़कर णाम कया और इस कार कहा—‘वरदा यनी महानद ! मेरे पतामह य स ब धी अ का पता लगाते ए क पलके कोपसे यमलोकको जा प ँचे ह। वे सब महा मा सगरके पु थे और उनक सं या साठ हजार थी। भगवान् क पलके नकट जाकर वे सब-के-सब णभरम भ म हो गये। इस कार मृ युसे मरनेके कारण उ ह वगम नवास नह ा त आ है। महानद ! जबतक तुम अपने जलसे उनके भ म ए शरीर को स च न दोगी तबतक उन सगरपु क सद्ग त नह हो सकती। महाभागे! मेरे पतामह सगरकुमार को वगम प ँचा दो। महानद ! म उ ह के उ ारके लये तुमसे याचना करता ँ’ ।। १६— २० ।।

लोमश उवाच एत छ वा वचो रा ो ग ा लोकनम कृता । ी



भगीरथ मदं वा यं सु ीता समभाषत ।। २१ ।। लोमशजी कहते ह—राजन्! राजा भगीरथक यह बात सुनकर व व दता गंगा अयत स और उनसे इस कार बोल — ।। २१ ।। क र या म महाराज वच ते ना संशयः । वेगं तु मम धाय पत या गगनाद् भुवम् ।। २२ ।। ‘महाराज! म तु हारी बात मानूँगी, इसम संशय नह है; परंतु आकाशसे पृ वीपर गरते समय मेरे वेगको रोकना ब त क ठन है ।। २२ ।। नश षु लोकेषु क द् धार यतुं नृप । अ य वबुध े ा ीलक ठा महे रात् ।। २३ ।। ‘राजन्! दे व े महे र नीलक ठको छोड़कर तीन लोक म कोई भी मेरा वेग धारण नह कर सकता ।। २३ ।। तं तोषय महाबाहो तपसा वरदं हरम् । स तु मां युतां दे वः शरसा धार य य त ।। २४ ।। ‘महाबाहो! तुम तप या ारा उ ह वरदायक भगवान् शवको संतु करो। वगसे गरते समय वे ही मुझे अपने म तकपर धारण करगे ।। २४ ।। स क र य त ते कामं पतॄणां हतका यया । (तपसाऽऽरा धतः श भुभगवाँ लोकभावनः ।) ‘ व भावन भगवान् शंकर तप या ारा आराधना करनेपर तु हारे पतर के हतक इ छासे अव य तु हारा मनोरथ पूण करगे’ ।। २४ ।। एत छ वा ततो राजन् महाराजो भगीरथः ।। २५ ।। कैलासं पवतं ग वा तोषयामास शंकरम् । तप ती मुपाग य कालयोगेन केन चत् ।। २६ ।। राजन्! यह सुनकर महाराज भगीरथ कैलासपवतपर गये और वहाँ उ ह ने ती तप या करके कुछ समयके बाद भगवान् शंकरको स कया ।। २५-२६ ।। अगृ ा च वरं त माद् ग ाया धारणे नृप । वग वासं समु य पतॄणां स नरो मः ।। २७ ।। नरे र! त प ात् गंगाजीक ेरणाके अनुसार नर े भगीरथने अपने पतर को वगलोकक ा त करानेके उ े यसे महादे वजीसे गंगाजीके वेगको धारण करनेके लये वरक याचना क ।। २७ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायामग योपा याने अ ा धकशततमोऽ यायः ।। १०८ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम अग योपा यान वषयक एक सौ आठवाँ अ याय पूरा आ ।। १०८ ।। (दा णा य अ धक पाठका १ ोक मलाकर क ु ल २८ ोक ह)

नवा धकशततमोऽ यायः पृ वीपर गंगाजीके उतरने और समु को जलसे भरनेका ववरण तथा सगरपु का उ ार लोमश उवाच भगीरथवचः ु वा याथ च दवौकसाम् । एवम व त राजानं भगवान् यभाषत ।। १ ।। धार य ये महाभाग गगनात् युतां शवाम् । द ां दे वनद पु यां व कृते नृपस म ।। २ ।। लोमशजी कहते ह—राजन्! राजा भगीरथक बात सुनकर दे वता का य करनेके लये भगवान् शवने कहा—‘एवम तु’ महाभाग! म तु हारे लये आकाशसे गरती ई क याणमयी पु य व पा द दे वनद गंगाको अव य धारण क ँ गा’ ।। १-२ ।। एवमु वा महाबाहो हमव तमुपागमत् । वृतः पा रषदै घ रैनाना हरणो तैः ।। ३ ।। महाबाहो! ऐसा कहकर भगवान् शव भाँ त-भाँ तके अ -श से सुस जत अपने भयंकर पाषद से घरे ए हमालयपर आये ।। ३ ।। त थ वा नर े ं भगीरथमुवाच ह । याच व महाबाहो शैलराजसुतां नद म् ।। ४ ।। ( पतॄणां पावनाथ ते तामहं मनुजा धप ।) पतमानां स र े ां धार य ये व पात् । वहाँ ठहरकर उ ह ने नर े भगीरथसे कहा—‘महाबाहो! ग रराजन दनी महानद गंगासे भूतलपर उतरनेके लये ाथना करो। नरे र! म तु हारे पतर को प व करनेके लये वगसे उतरती ई स रता म े गाको सरपर धारण क ँ गा’ ।। ४ ।। एत छ वा वचो राजा शवण समुदा तम् ।। ५ ।। यतः णतो भू वा ग ां समनु च तयत् । ततः पु यजला र या रा ा समनु च तता ।। ६ ।। ईशानं च थतं ् वा गगनात् सहसा युता । तां युतामथो ् वा दे वाः साध मह ष भः ।। ७ ।। ग धव रगय ा समाज मु द वः । ततः पपात गगनाद् ग ा हमवतः सुता ।। ८ ।। भगवान् शंकरक कही ई यह बात सुनकर राजा भगीरथने एका च हो णाम करके गंगाजीका च तन कया। राजाके च तन करनेपर भगवान् शंकरको खड़ा आ दे ख पु यस लला रमणीय नद गंगा सहसा आकाशसे नीचे गर । उ ह गरती दे ख दशनके लये ो









उ सुक हो मह षय स हत दे वता, ग धव, नाग और य वहाँ आ गये। तदन तर हमालयन दनी गंगा आकाशसे वहाँ आ गर ।। ५—८ ।। समुदधृ ् तमहावता मीन ाहसमाकुला । तां दधार हरो राजन् ग ां गगनमेखलाम् ।। ९ ।। ललाटदे शे प ततां मालां मु ामयी मव । उस समय उनके जलम बड़ी-बड़ी भँवर और तरंगे उठ रही थ । म य और ाह भरे ए थे। राजन्! आकाशक मेखला प गंगाको भगवान् शवने अपने ललाटदे शम पड़ी ई मो तय क मालाक भाँ त धारण कर लया ।। ९ ।। सा बभूव वसप ती धा राजन् समु गा ।। १० ।। फेनपु ाकुलजला हंसाना मव पङ् यः । व चदाभोगकु टला खल ती व चत् व चत् ।। ११ ।। सा फेनपटसंवीता म ेव मदा जत् । व चत् सा तोय ननदै नद ती नादमु मम् ।। १२ ।। एवं कारान् सुबन् क ु वती गगना युता । पृ थवीतलमासा भगीरथमथा वीत् ।। १३ ।। महाराज! नीचे गरती ई फेनपुसे ा त ए जलवाली समु गा मनी गंगा तीन धारा म बँटकर हंस क पं य के समान सुशो भत होने लगी। वह मतवाली ीक भाँ त इस कार आयी क कह तो सप-शरीरक भाँ त कु टल ग तसे बहती थी और कह -कह ऊँचेसे नीचे गरकर च ान से टकराती जाती थी एवं ेत व के समान तीत होनेवाले फेनपुंज उसे आ छा दत कये ए थे। कह -कह वह जलके कल-कल नादसे उ म संगीत-सा गा रही थी। इस कार अनेक प धारण करनेवाली गंगा आकाशसे गरी और भूतलपर प ँचकर राजा भगीरथसे बोली— ।। १०—१३ ।। दशय व महाराज माग केन जा यहम् । वदथमवतीणा म पृ थव पृ थवीपते ।। १४ ।। ‘महाराज! रा ता दखाओ म कस मागसे चलूँ? पृ वीपते! तु हारे लये ही म इस भूतलपर उतरी ँ’ ।। १४ ।। एत छ वा वचो राजा ा त त भगीरथः । य ता न शरीरा ण सागराणां महा मनाम् ।। १५ ।। लावनाथ नर े पु येन स ललेन च । यह सुनकर राजा भगीरथ जहाँ महा मा सगरपु के शरीर पड़े थे, वहाँ गंगाजीके पावन जलसे उन शरीर को ला वत करनेके लये उस थानसे थत ए ।। १५ ।। ग ाया धारणं कृ वा हरो लोकनम कृतः ।। १६ ।। कैलासं पवत े ं जगाम दशैः सह । समासा समु ं च ग या स हतो नृपः ।। १७ ।। पूरयामास वेगेन समु ं व णालयम् । े

हतृ वे च नृप तग ां समनुक पयत् ।। १८ ।। व व दत भगवान् शंकर गंगाजीको सरपर धारण करके दे वता के साथ पवत े कैलासको चले गये। राजा भगीरथने गंगाजीके साथ समु तटपर जाकर व णालय समु को बड़े वेगसे भर दया और गंगाजीको अपनी पु ी बना लया ।। १६—१८ ।। पतॄणां चोदकं त ददौ पूणमनोरथः । एतत् ते सवमा यातं ग ा पथगा यथा ।। १९ ।। त प ात् वहाँ उ ह ने पतर के लये जलदान कया और पतर का उ ार होनेसे वे सफल मनोरथ हो गये। यु ध र! जस कार गंगा पथगा ( वग, पाताल और पृ वीपर गमन करनेवाली) ई, वह सब संग मने तु ह सुना दया ।। १९ ।। पूरणाथ समु य पृ थवीमवता रता । (कालेया यथा राजं दशै व नपा तताः) समु यथा पीतः कारणाथ महा मना ।। २० ।। वाता प यथा नीतः यं स हा भो । अग येन महाराज य मां वं प रपृ छ स ।। २१ ।। महाराज! समु को भरनेके लये ही गंगा पृ वीपर उतारी गयी थी। राजन्! दे वता ने कालेय नामक दै य को जस कार मार गराया और कारणवश महा मा अग यने जस कार समु पी लया तथा उ ह ने ा ण क ह या करनेवाले वाता प नामक दै यको जस कार न कया, वह सब संग, जसके वषयम तुमने पूछा था, मने बता दया ।। २०-२१ ।। इ त ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायामग यमाहा यकथने नवा धकशततमोऽ यायः ।। १०९ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम अग यमाहा यकथन वषयक एक सौ नवाँ अ याय पूरा आ ।। १०९ ।। (दा णा य अ धक पाठका १ ोक मलाकर क ु ल २२ ोक ह)

दशा धकशततमोऽ यायः न दा तथा कौ शक का माहा य, ऋ य ृंग मु नका उपा यान और उनको अपने रा यम लानेके लये राजा लोमपादका य न वैश पायन उवाच ततः यातः कौ तेयः मेण भरतषभ । न दामपरन दां च न ौ पापभयापहे ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—भरत े ! तदन तर कु तीन दन यु ध र मशः आगे बढ़ने लगे। उ ह ने पाप और भयका नवारण करनेवाली न दा और अपरन दा—इन दो न दय क या ा क ।। १ ।। पवतं स समासा हेमकूटमनामयम् । अ च यान तान् भावान् ददश सुबन् नृपः ।। २ ।। त प ात् रोग-शोकसे र हत हेमकूट पवतपर प ँचकर राजा यु ध रने वहाँ ब त-सी अ च य एवं अ त बात दे ख ।। २ ।। वाताब ा भव मेघा उपला सह शः । नाश नुवं तमारोढुं वष णमनसो जनाः ।। ३ ।। वहाँ वायुका सहारा लये बना ही बादल उ प हो जाते और अपने-आप हजार प थर (ओले) पड़ने लगते थे। जनके मनम खेद भरा होता था ऐसे मनु य उस पवतपर चढ़ नह सकते थे ।। ३ ।। वायु न यं ववौ त न यं दे व वष त । वा यायघोष तथा ूयते न च यते ।। ४ ।। सायं ात भगवान् यते ह वाहनः । म का ादशं त तपसः तघा तकाः ।। ५ ।। नवदो जायते त गृहा ण मरते जनः । एवं ब वधान् भावान तान् वी य पा डवः । लोमशं पुनरेवाथ पयपृ छत् तद तम् ।। ६ ।। वहाँ त दन हवा चलती और रोज-रोज मेघ वषा करता था। वेद के वा यायक व न तो सुनायी पड़ती; परंतु वा याय करनेवालेका दशन नह होता था। सायंकाल और ातःकाल भगवान् अ नदे व व लत दखायी दे ते थे। तप याम व न डालनेवाली म खयाँ वहाँ लोग को डंक मारती रहती थ , अतः वहाँ वर होती और लोग घर क याद करने लगते थे। इस कार ब त-सी अ त बात दे खकर पा डु न दन यु ध रने लोमशजीसे पुनः इस अ त अव थाके वषयम पूछा ।। (

(यु ध र उवाच यदे तद् भगवं ं पवतेऽ मन् महौज स । एत मे सवमाच व व तरेण महा ुते ।।) यु ध रने कहा—महातेज वी भगवन्! इस परम तेजोमय पवतपर जो ये आ यजनक बात होती ह, इसका या रह य है? यह सब व तारपूवक मुझे बताइये। लोमश उवाच यथा ुत मदं पूवम मा भर रकशन । तदे का मना राजन् नबोध गदतो मम ।। ७ ।। तब लोमशजीने कहा—श ुसूदन! हमने पूवकालम जैसा सुन रखा है वैसा बताया जाता है। तुम एका च हो मेरे मुखसे इसका रह य सुनो ।। ७ ।। अ म ृषभकूटे ऽभू षभो नाम तापसः । अनेकशतवषायु तप वी कोपनो भृशम् ।। ८ ।। पहलेक बात है, इस ऋषभकूटपर ऋषभनामसे स एक तप वी रहते थे। उनक आयु कई सौ वष क थी। वे तप वी होनेके साथ ही बड़े ोधी थे ।। स वै स भा यमाणोऽ यैः कोपाद् ग रमुवाच ह । य इह ाहरेत् क पलानु सृजे तथा ।। ९ ।। वातं चाय मा श द म युवाच स तापसः । ाहरं ेह पु षो मेघश दे न वायते ।। १० ।। एवमेता न कमा ण राजं तेन मह षणा । कृता न का न चत् ोधात् त ष ा न का न चत् ।। ११ ।। उ ह ने सर के बुलानेपर कु पत होकर उस पवतसे कहा—‘जो कोई यहाँपर बातचीत करे उसपर तू ओले बरसा।’ इसी कार वायुको भी बुलाकर उन तप वी मु नने कहा —‘दे खो, यहाँ कसी कारका श द नह होना चा हये।’ तबसे जो कोई पु ष यहाँ बोलता है उसे मेघक गजना ारा रोका जाता है। राजन्! इस कार उन मह षने ही ये अ त काय कये ह। उ ह ने ोधवश कुछ काय का वधान और कुछ बात का नषेध कर दया है ।। ९ —११ ।। न दां व भगता दे वाः पुरा राज त ु तः । अ वप त सहसा पु षा दे वद शनः ।। १२ ।। राजन्! यह सुना जाता है क ाचीन कालम दे वतालोग न दाके तटपर आये थे, उस समय उनके दशनक इ छासे ब तेरे मनु य सहसा वहाँ आ प ँचे ।। १२ ।। ते दशनं व न छ तो दे वाः श पुरोगमाः । ग च ु रमं दे शं गर यूह पकम् ।। १३ ।। इ आ द दे वता उ ह दशन दे ना नह चाहते थे, अतः व न व प इस पवतीय दे शको उ ह ने जनसाधारणके लये गम बना दया ।। १३ ।। तदा भृ त कौ तेय नरा ग र ममं सदा । ो

नाश नुव भ ु ं कुत एवा धरो हतुम् ।। १४ ।। कु तीन दन! तभीसे साधारण मनु य इस पवतको दे ख भी नह सकते, चढ़ना तो रक बात है ।। १४ ।। नात ततपसा श यो ु मेष महा ग रः । आरोढुं वा प कौ तेय त मा यतवाग् भव ।। १५ ।। कु तीकुमार! जसने तप या नह क है वह मनु य इस महान् पवतको न तो दे ख सकता है और न चढ़ ही सकता है; अतः तुम मौन त धारण करो ।। १५ ।। इह दे वा तदा सव य ानाज मान् । तेषामेता न ल ा न य ते ा प भारत ।। १६ ।। उन दन स पूण दे वता ने यहाँ आकर उ म य का अनु ान कया था। भारत! उनके ये च आज भी य दे खे जाते ह ।। १६ ।। कुशाकारेव वयं सं तीणव च भू रयम् । यूप कारा बहवो वृ ा ेमे वशा पते ।। १७ ।। यह वा कुशके आकारक दखायी दे ती है और यह भू म ऐसी लगती है मानो इसपर कुश बछाये गये ह । महाराज! ये वृ भी य यूपके समान जान पड़ते ह ।। १७ ।। दे वा ऋषय ैव वस य ा प भारत । तेषां सायं तथा ात यते ह वाहनः ।। १८ ।। भारत! आज भी यहाँ दे वता तथा ऋ ष नवास करते ह। सायंकाल और ातःकाल यहाँ उनके ारा व लत क ई अ नका दशन होता है ।। १८ ।। इहा लुतानां कौ तेय स ः पा मा भह यते । कु े ा भषेकं वै त मात् कु सहानुजः ।। १९ ।। कु तीन दन! इस तीथम गोता लगानेवाले मानव का सारा पाप त काल न हो जाता है। अतः कु े ! तुम अपने भाइय के साथ यहाँ नान करो ।। १९ ।। ततो न दा लुता वं कौ शक म भया य स । व ा म ेण य ो ं तप त तमनु मम् ।। २० ।। न दाम गोता लगानेके प ात् तु ह कौ शक के तटपर चलना होगा जहाँ मह ष व ा म जीने उ म एवं उ तप या क थी ।। २० ।। वैश पायन उवाच तत त समा लु य गा ा ण सगणो नृपः । जगाम कौ शक पु यां र यां शीतजलां शुभाम् ।। २१ ।। वैश पायनजी कहते ह—तदन तर राजा यु ध र अपने दल-बलके साथ न दाम गोता लगाकर रमणीय एवं शीतल जलवाली शुभ पु यमयी कौ शक के तटपर गये ।। लोमश उवाच एषा दे वनद पु या कौ शक भरतषभ । व ा म ा मो र य एष चा काशते ।। २२ ।। ँ ो ी े े े ौ ै

वहाँ लोमशजीने कहा—भरत े ! यह दे वता क नद पु यस लला कौ शक है और यह व ा म का रमणीय आ म है, जो यहाँ का शत हो रहा है ।। २२ ।। आ म ैव पु या यः का यप य महा मनः । ऋ यशृ ः सुतो य य तप वी संयते यः ।। २३ ।। तपसो यः भावेण वषयामास वासवम् । अनावृ ां भयाद् य य ववष बलवृ हा ।। २४ ।। यह क यपगो ीय महा मा वभा डकका ‘पु य’ नामक आ म है। इ ह के तप वी एवं जते य पु महा मा ऋ यशृंग ह, ज ह ने अपनी तप याके भावसे इ ारा वषा करवायी थी। उन दन दे शम घोर अनावृ फैल रही थी, वैसे समयम ऋ यशृंग मु नके भयसे बल और वृ ासुरके वनाशक दे वराज इ ने उस दे शम वषा क थी ।। २३-२४ ।। मृ यां जातः स तेज वी का यप य सुतः भुः । वषये लोमपाद य य कारा तं महत् ।। २५ ।। वे तेज वी एवं श शाली मु न मृगीके पेटसे पैदा ए थे और क यपन दन वभा डकके पु थे। उ ह ने राजा लोमपादके रा यम अ य त अ त काय कया था ।। २५ ।। नव ततेषु स येषु य मै शा तां ददौ नृपः । लोमपादो हतरं सा व स वता यथा ।। २६ ।। जब वषासे खेती अ छ तरह लहलहा उठ तब राजा लोमपादने अपनी पु ी शा ता ऋ यशृंगको याह द ; ठ क उसी तरह, जैसे सूयदे वने अपनी बेट सा व ीका ाजीके साथ याह कया था ।। २६ ।। यु ध र उवाच ऋ यशृ ः कथं मृ यामु प ः का यपा मजः । व े यो नसंसग कथं च तपसा युतः ।। २७ ।। कमथ च भया छ त य बाल य धीमतः । अनावृ ां वृ ायां ववष बलवृ हा ।। २८ ।। यु ध रने पूछा—भगवन्! क यपन दन वभा डकके पु ऋ यशृंग मृगीके पेटसे कैसे उ प ए? मनु यका पशुयो नसे संसग करना तो शा और वहार दोन ही य से व है। ऐसे व यो न-संसगसे उ प आ बालक तप वी कैसे हो सका? उस बु मान् बालकके भयसे बल और वृ ासुरका वनाश करनेवाले दे वराज इ ने अनावृ के समय वषा कैसे क ? ।। २७-२८ ।। कथं पा च सा शा ता राजपु ी यत ता । लोभयामास या चेतो मृगभूत य त य वै ।। २९ ।। लोमपाद राज षयदा ूयत धा मकः । कथं वै वषये त य नावषत् पाकशासनः ।। ३० ।। औ









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नयम और तका पालन करनेवाली राजकुमारी शा ता भी कैसी थी, जसने मृग व प मु नका भी मन मोह लया। राज ष लोमपाद तो बड़े धमा मा सुने गये ह, फर उनके रा यम इ वषा य नह करते थे? ।। २९-३० ।। एत मे भगवन् सव व तरेण यथातथम् । व ु मह स शु ूषोऋ यशृ य चे तम् ।। ३१ ।। भगवन्! ये सब बात आप व तारपूवक यथाथ- पसे बताइये। म मह ष ऋ यशृंगके च र को सुनना चाहता ँ ।। ३१ ।। लोमश उवाच वभा डक य व ष तपसा भा वता मनः । अमोघवीय य सतः जाप तसम ुतेः ।। ३२ ।। शृणु पु ो यथा जात ऋ यशृ तापवान् । महाह य महातेजा बालः थ वरस मतः ।। ३३ ।। लोमशजीने कहा—राजन्! ष वभा डकका अ तःकरण तप यासे प व हो गया था। वे जाप तके समान तेज वी और अमोघवीय महा मा थे। उनके तापी पु ऋ यशृंगका ज म कैसे आ, यह बताता ँ, सुनो। जैसे वभा डक मु न परम पूजनीय थे, वैसे ही उनका पु भी बड़ा तेज वी आ। वह बा याव थाम भी वृ पु ष ारा स मा नत होता था ।। ३२-३३ ।। महा द समासा का यप तप स थतः । द घकालं प र ा त ऋ षः स दे वस मतः ।। ३४ ।। क यपगो ीय वभा डक मु न दे वता के समान सु दर थे। वे एक ब त बड़े कु डम व होकर तप या करने लगे। उ ह ने द घकालतक महान् लेश सहन कया ।। ३४ ।। त य रेतः च क द ् वा सरसमुवशीम् । अ सूप पृशतो राजन् मृगी त चा पबत् तदा ।। ३५ ।। सह तोयेन तृ षता ग भणी चाभवत् ततः । सा पुरो ा भगवता णा लोककतृणा ।। ३६ ।। दे वक या मृगी भू वा मु न सूय वमो यसे । अमोघ वाद् वधे ैव भा व वाद् दै व न मतात् ।। ३७ ।। त यां मृ यां समभवत् त य पु ो महानृ षः । ऋ यशृ तपो न यो वन एवा यवतत ।। ३८ ।। राजन्! एक दन जब वे जलम नान कर रहे थे, उवशी अ सराको दे खकर उनका वीय ख लत हो गया। उसी समय याससे ाकुल ई एक मृगी वहाँ आयी और पानीके साथ उस वीयको भी पी गयी। इससे उसके गभ रह गया। वह पूवज मम एक दे वक या थी। लोक ा भगवान् ाने उसे यह वचन दया था क तू मृगी होकर एक मु नको ज म दे नेके प ात् उस यो नसे मु हो जायगी। ाजीक वाणी अमोघ है और दै वके वधानको कोई टाल नह सकता, इस लये वभा डकके पु मह ष ऋ यशृंगका ज म ी े













मृगीके ही पेटसे थे ।। ३५-३८ ।।

आ। वे सदा तप याम संल न रहकर वनम ही नवास करते

त यषः शृ ं शर स राज ासी महा मनः । तेन यशृ इ येवं तदा स थतोऽभवत् ।। ३९ ।। राजन्! उन महा मा मु नके सरपर एक स ग था, इस लये उस समय उनका ऋ यशृंग नाम स आ ।। ३९ ।। न तेन पूव ऽ यः पतुर य मानुषः । त मात् त य मनो न यं चयऽभव ृप ।। ४० ।। नरे र! उ ह ने अपने पताके सवा सरे कसी मनु यको पहले कभी नह दे खा था, इस लये उनका मन सदा वभावसे ही चयम संल न रहता था ।। ४० ।। एत म ेव काले तु सखा दशरथ य वै । लोमपाद इ त यातो ानामी रोऽभवत् ।। ४१ ।। इ ह दन राजा दशरथके म लोमपाद अंगदे शके राजा ए ।। ४१ ।। तेन कामात् कृतं मया ा ण ये त नः ु तः । स ा णैः प र य ततो वै जगतः प तः ।। ४२ ।। पुरो हतापचारा च त य रा ो य छया । न ववष सह ा ततोऽपी त वै जाः ।। ४३ ।। े े े

उ ह ने जान-बूझकर एक ा णके साथ म या वहार कया—यह बात हमारे सुननेम आयी है। इसी अपराधके कारण ा ण ने राजा लोमपादको याग दया था। राजाने पुरो हतपर मनमाना दोषारोपण कया था, इस लये इ ने उनके रा यम वषा बंद कर द । इस अनावृ के कारण जाको बड़ा क होने लगा ।। ४२-४३ ।। स ा णान् पयपृ छत् तपोयु ान् मनी षणः । वषणे सुरे य समथान् पृ थवीपते ।। ४४ ।। यु ध र! तब राजाने तप वी, मेधावी और इ से वषा करवानेम समथ ा ण को बुलाकर इस संकटके नवारणका उपाय पूछा ।। ४४ ।। कथं वषत् पज य उपायः प र यताम् । तमूचु ो दता ते तु वमता न मनी षणः ।। ४५ ।। ‘ व गण! मेघ कैसे वषा करे—यह उपाय सो चये।’ उनके पूछनेपर मनीषी महा मा ने अपना-अपना वचार बताया ।। ४५ ।। त वेको मु नवर तं राजानमुवाच ह । कु पता तव राजे ा णा न कृ त चर ।। ४६ ।। उ ह ा ण म एक े मह ष भी थे। उ ह ने राजासे कहा—‘राजे ! तु हारे ऊपर ा ण कु पत ह; इसके लये तुम ाय करो’ ।। ४६ ।। ऋ यशृ ं मु नसुतमानय व च पा थव । वानेयमन भ ं च नारीणामाजवे रतम् ।। ४७ ।। स चेदवतरेद ् राजन् वषयं ते महातपाः । स ः वषत् पज य इ त मे ना संशयः ।। ४८ ।। ‘भूपाल! साथ ही हम तु ह यह सलाह दे ते ह क अपने रा यम मह ष वभा डकके पु वनवासी ऋ यशृंगको बुलाओ। वे य से सवथा अप र चत ह और सदा सरल वहारम ही त पर रहते ह। महाराज! वे महातप वी ऋ यशृ य द आपके रा यम पदापण कर तो त काल ही मेघ वषा करेगा इस वषयम मुझे त नक भी संदेह नह है’ ।। ४७-४८ ।। एत छ वा वचो राजन् कृ वा न कृ तमा मनः । स ग वा पुनराग छत् स ेषु जा तषु ।। ४९ ।। ‘राजन्! यह सुनकर राजा लोमपाद अपने अपराधका ाय करके ा ण के पास गये और जब वे स हो गये तब पुनः अपनी राजधानीको लौट आये’ ।। ४९ ।। राजानमागतं ु वा तसंज षुः जाः । ततोऽ प तराय स चवान् म को वदान् ।। ५० ।। ऋ यशृ ागमे य नमकरो म न ये । सोऽ यग छ पायं तु तैरमा यैः सहा युतः ।। ५१ ।। शा ैरलमथ ैन यां च प र न तैः । तत ानाययामास वारमु या महीप तः ।। ५२ ।। वे याः सव न णाता ता उवाच स पा थवः । े

ऋ यशृ मृषेः पु मानय वमुपायतः ।। ५३ ।। राजाका आगमन सुनकर जाजन को बड़ा हष आ। तदन तर अंगराज म कुशल म य को बुलाकर उनसे सलाह करके एक न यपर प ँच जानेके बाद मु नकुमार ऋ यशृंगको अपने यहाँ ले आनेके य नम लग गये। राजाके म ी शा , अथशा के व ान् और नी त नपुण थे। अपनी मयादासे कभी युत न होनेवाले नरेशने उन म य के साथ वचार करके एक उपाय जान लया। त प ात् भूपाल लोमपादने सर को लुभानेक सब कला म कुशल धान- धान वे या को बुलाया और कहा—‘तुमलोग कोई उपाय करके मु नकुमार ऋ यशृंगको यहाँ ले आओ ।। ५०—५३ ।। लोभ य वा भ व ा य वषयं मम शोभनाः । ता राजभयभीता शापभीता यो षतः ।। ५४ ।। अश यमूचु तत् काय ववणा गतचेतसः । त वेका जर ोषा राजान मदम वीत् ।। ५५ ।। ‘सु द रयो! तुम लुभाकर उ ह सब कारसे सुख-सु वधाका व ास दलाकर मेरे रा यम ले आना।’ महाराजक यह बात सुनते ही वे या का रंग फ का पड़ गया। वे अचेत-सी हो गय । एक ओर तो उ ह राजाका भय था और सरी ओर वे मु नके शापसे डरी ई थ ; अतः उ ह ने इस कायको अस भव बताया। उन सबम एक बूढ़ ी थी। उसने राजासे इस कार कहा— ।। ५४-५५ ।। य त ये महाराज तमानेतुं तपोधनम् । अ भ ेतां तु मे कामां वमनु ातुमह स ।। ५६ ।। ततः श या यान यतुमृ यशृ मृषेः सुतम् । त याः सवम भ ेतम वजानात् स पा थवः ।। ५७ ।। ‘महाराज! म उन तपोधन मु नकुमारको लानेका य न क ँ गी; परंतु आप यह आ ा द क म इसके लये मनचाही व था कर सकूँ। य द मेरी इ छा पूण ई तो म मु नपु ऋ यशृंगको यहाँ लानेम सफल हो सकूँगी।’ राजाने उसक इ छाके अनुसार व था करनेक आ ा दे द ।। ५६-५७ ।। धनं च ददौ भू र र ना न व वधा न च । ततो पेण स प ा वयसा च महीपते । य आदाय का त् सा जगाम वनम सा ।। ५८ ।। साथ ही उसे चुर धन और नाना कारके र न भी दये। यु ध र! तदन तर वह वे या प और यौवनसे स प कुछ सु दरी य को साथ लेकर शी तापूवक वनक ओर चल द ।। ५८ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायामृ यशृंगोपा याने दशा धकशततमोऽ यायः ।। ११० ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम ऋ यशृंगोपा यान वषयक एक सौ दसवाँ अ याय पूरा आ ।। ११० ।।

एकादशा धकशततमोऽ यायः वे याका ऋ यशृंगको लुभाना और वभा डक मु नका आ मपर आकर अपने पु क च ताका कारण पूछना लोमश उवाच सा तु ना ा मं च े राजकायाथ स ये । संदेशा चैव नृपतेः वबु या चैव भारत ।। १ ।। लोमशजी कहते ह—भरतन दन! उस वे याने राजाक आ ाके अनुसार और अपनी बु से भी उनका काय स करनेके लये नावपर एक सु दर आ म बनाया ।। १ ।। नानापु पफलैवृ ैः कृ मै पशो भतैः । नानागु मलतोपेतैः वा कामफल दै ः ।। २ ।। वह आ म भाँ त-भाँ तके पु प और फल से सुशो भत कृ म वृ से घरा आ था। उन वृ पर नाना कारके गु म और लतासमूह फैले ए थे और वे वृ वा द एवं वांछनीय फल दे नेवाले थे ।। २ ।। अतीव रमणीयं तदतीव च मनोहरम् । च े ना ा मं र यम तोपमदशनम् ।। ३ ।। उन वृ के कारण वह आ म अ य त रमणीय और परम मनोहर दखायी दे ता था। वे याने उस नावपर जस सु दर आ मका नमाण कया था, वह दे खनेम अ त-सा था ।। ३ ।। ततो नब य तां नावम रे का यपा मात् । चारयामास पु षै वहारं त य वै मुनेः ।। ४ ।। तदन तर उसने अपनी उस नावको का यप गो ीय वभा डक मु नके आ मसे थोड़ी ही रपर बाँध दया और गु तचर को भेजकर यह पता लगा लया क इस समय वभा डक मु न अपनी कु टयासे बाहर गये ह ।। ४ ।। ततो हतरं वे यां समाधाये तकायताम् । ् वा तरं का यप य ा हणोद् बु स मताम् ।। ५ ।। तदन तर वभा डक मु नको र गया दे ख उस वे याने अपनी परम बु मती पु ीको जो उसीक भाँ त वे यावृ त अपनाये ए थी, कत क श ा दे कर मु नके आ मपर भेजा ।। ५ ।। सा त ग वा कुशला तपो न य य सं नधौ । आ मं तं समासा ददश तमृषेः सुतम् ।। ६ ।। वह भी कायसाधनम कुशल थी। उसने वहाँ जाकर नर तर तप याम लगे रहनेवाले ऋ षकुमार ऋ यशृंगके समीप उस आ मम प ँचकर उनको दे खा ।। ६ ।। वे योवाच े

क च मुने कुशलं तापसानां क च च वो मूलफलं भूतम् । क चद् भवान् रमते चा मेऽ मंवां वै ु ं सा तमागतोऽ म ।। ७ ।। ‘तप ात्’ वे याने कहा— मुने! तप वीलोग कुशलसे तो ह न? आपलोग को पया त फल-मूल तो मल जाते ह न? आप इस आ मम स तो ह न? म इस समय आपके दशनके लये ही यहाँ आयी ँ ।। ७ ।। क चत् तपो वधते तापसानां पता च ते क चदहीनतेजाः । क चत् वया ीयते चैव व क चत् वा यायः यते च यशृ ।। ८ ।। या तप वीलोग क तप या उ रो र बढ़ रही है? आपके पताका तेज ीण तो नह हो रहा है? न्! आप मजेम ह न? ऋ यशृंगजी! आपके वा यायका म चल रहा है न? ।। ८ ।। ऋ यशृ उवाच ऋ या भवा यो त रव काशते म ये चाहं वाम भवादनीयम् । पा ं वै ते स दा या म कामाद् यथाधम फलमूला न चैव ।। ९ ।। ऋ यशृंग बोले— न्! आप अपनी समृ से यो तक भाँ त का शत हो रहे ह। म आपको अपने लये व दनीय मानता ँ और वे छासे धमके अनुसार आपके लये पा अ य एवं फल-मूल अपण करता ँ ।। ९ ।। कौ यां बृ यामा व यथोपजोषं कृ णा जनेनावृतायां सुखायाम् । व चा म तव क नाम चेदं तं ं र स ह दे ववत् वम् ।। १० ।। इस कुशासनपर आप सुखपूवक बैठ। इसपर काला मृगचम बछाया गया है, इस लये इसपर बैठनेम आराम रहेगा। आपका आ म कहाँ है? और आपका नाम या है? न्! आप दे वताके समान यह कस तका आचरण कर रहे ह? ।। १० ।। वे योवाच ममा मः का यपपु र ययोजनं शैल ममं परेण । त वधम ना भवादनं मे न चोदकं पा मुप पृशा म ।। ११ ।। े

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वे या बोली—का यपन दन! मेरा आ म बड़ा मनोहर है। वह इस पवतके उस पार तीन योजनक रीपर थत है। वहाँ मेरा जो अपना धम है उसके अनुसार आपको मेरा अ भवादन ( णाम) नह करना चा हये। म आपके दये ए अ य और पा का पश नह क ँ गी ।। ११ ।। भवता ना भवा ोऽहम भवा ो भवान् मया । तमेता शं न् प र व यो भवान् मया ।। १२ ।। म आपके लये व दनीय नह ँ। आप ही मेरे व दनीय ह। न्! मेरा यह नयम है, जसके अनुसार मुझे आपका आ लगन करना चा हये ।। १२ ।।

ऋ यशृ उवाच फला न प वा न ददा न तेऽहं भ लातका यामलका न चैव । क षकाणीङ् गुदध वना न प पलानां कामकारं कु व ।। १३ ।। ऋ यशृंगने कहा— न्! म तु ह पके फल दे रहा ँ। ये भलावा, आँवले, क षक (फालसा), इंगद ु ( हगोट), ध वन (धा मन) और पीपलके फल तुत ह—इन सबका इ छानुसार उपयोग क जये ।। १३ ।। लोमश उवाच सा ता न सवा ण ववज य वा भ या यनहा ण ददौ ततोऽ य । ता यृ यशृ य महारसा न भृशं सु पा ण च द ह ।। १४ ।। लोमशजी कहते ह—राजन्! तदन तर वे याने उन सब फल को छोड़कर वयं ऋ यशृंगको अ य त सु दर और अमू य भ य पदाथ (फल आ द) दये। उन परम सरस फल ने उनक चको बढ़ाया ।। १४ ।। ददौ च मा या न सुग धव त च ा ण वासां स च भानुम त । पेया न चा या ण ततो मुमोद च ड चैव जहास चैव ।। १५ ।। सा क केनारमता य मूले वभ यमाना फ लता लतेव । गा ै गा ा ण नषेवमाणा समा ष चासकृ यशृ म् ।। १६ ।। साथ ही सुग धत मालाएँ तथा व च एवं चमक ले व दान कये। इतना ही नह , उसने मु नकुमारको अ छ ेणीके पेय पलाये जससे वे ब त स ए। वे उसके साथ खेलने और जोर-जोरसे हँसने लगे। वे या ऋ यशृंगके पास ही गद खेलने लगी। वह अपने ो ो ी ई े े ँ ीऔ ो

अंग को मोड़ती ई फल के भारसे लद लताक भाँ त बार-बार अपने अंकम भर लेती थी। साथ ही अपने दबाती मानो उनके भीतर समा जायगी ।। १५-१६ ।। सजानशोकां तलकां वृ ान् सुपु पतानवना यावभ य । वल जमानेव मदा भभूता लोभयामास सुतं महषः ।। १७ ।। वहाँ शाल, अशोक और तलकके वृ खूब फूले वह मदो म वे या ल जाका ना -सा करती लगी ।। १७ ।।

झुक जाती और ऋ यशृंग मु नको अंग से उनके अंग को इस कार

ए थे। उनक डा लय को झुकाकर ई मह षके उस पु को लुभाने

अथ यशृ ं वकृतं समी य पुनः पुनः पी च कायम य । अवे यमाणा शनकैजगाम कृ वा नहो य तदापदे शम् ।। १८ ।। ऋ यशृंगक आकृ तम क चत् वकार दे खकर उसने बार-बार उनके शरीरको आ लगनके ारा दबाया और अ नहो का बहाना बनाकर वह उनके ारा दे खी जाती ई धीरे-धीरे वहाँसे चली गयी ।। १८ ।। त यां गतायां मदनेन म ो वचेतन ाभव यशृ ः । े े े े

तामेव भावेन गतेन शू ये व नः स ात पो बभूव ।। १९ ।। उसके चले जानेपर उसके अनुरागसे उ म मु नकुमार ऋ यशृंग अचेत-से हो गये। उस नजन थानम उनक मनोवृ त उसीक ओर लगी रही और वे लंबी साँस ख चते ए अ य त थत हो उठे ।। १९ ।। ततो मुता र प ला ः वे तो रोम भरानखा ात् । वा यायवान् वृ समा धयु ो वभा डकः का यपः ा रासीत् ।। २० ।। तदन तर दो घड़ीके बाद हरे-पीले ने वाले का यपन दन वभा डक मु न वहाँ आ प ँचे। वे सरसे लेकर पैर के नख तक रोमाव लय से भरे ए थे। महा मा वभा डक वा यायशील, सदाचारी तथा समा ध न मह ष थे ।। २० ।। सोऽप यदासीनमुपे य पु ं याय तमेकं वपरीत च म् । व नः स तं मु व वभा डकः पु मुवाच द नम् ।। २१ ।। न क य ते स मधः क नु तात क चद्धुतं चा नहो ं वया । सु न ण ं ु ुवं होमधेनुः क चत् सव सा कृता वया च ।। २२ ।। न वै यथापूव मवा स पु च तापर ा स वचेतन । द नोऽ तमा ं व महा क नु पृ छा म वां क इहा ागतोऽभूत् ।। २३ ।। नकट आनेपर उ ह ने अपने पु को अकेला उदासीन भावसे च ताम न होकर बैठा दे खा। उसके च क दशा वपरीत थी। वह बार-बार ऊपरक ओर कये उ छ् वास ले रहा था। इस दयनीय दशाम पु को दे खकर वभा डक मु नने पूछा—‘तात! आज तुम अ नकु डम स मधाएँ य नह रख रहे हो! या तुमने अ नहो कर लया? ुक ् और ुवा आ द य पा को भलीभाँ त शु करके रखा है न? कह ऐसा तो नह आ क तुमने हवनके लये ध दे नेवाली गायका बछड़ा खोल दया हो जससे वह सारा ध पी गया हो। बेटा! आज तुम पहले-जैसे दखायी नह दे ते। कसी भारी च ताम नम न हो, अपनी सुध-बुध खो बैठे हो। या कारण है जो आज तुम अ य त द न हो रहे हो। म तुमसे पूछता ँ, बताओ, आज यहाँ कौन आया था?’ ।। २१—२३ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायामृ यशृ ोपा याने एकादशा धकशततमोऽ याययः ।। १११ ।।













इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम ऋ यशृंगोपा यान वषयक एक सौ यारहवाँ अ याय पूरा आ ।। १११ ।।

ादशा धकशततमोऽ यायः ऋ यशृंगका पताको अपनी च ताका कारण बताते ए चारी पधारी वे याके व प और आचरणका वणन ऋ यशृ उवाच इहागतो ज टलो चारी न वै वो ना तद घ मन वी । सुवणवणः कमलायता ः वतः सुराणा मव शोभमानः ।। १ ।। ऋ यशृंगने कहा— पताजी! यहाँ एक जटाधारी चारी आया था। वह न तो छोटा था और न ब त बड़ा ही। उसका दय ब त उदार था। उसके शरीरक का त सुवणके समान थी और बड़ी-बड़ी आँख कमल के स श जान पड़ती थ । वह वयं दे वता के समान सुशो भत हो रहा था ।। १ ।। समृ पः स वतेव द तः सु णकृ णा रतीव गौरः । नीलः स ा जटाः सुग धा हर यर जु थताः सुद घाः ।। २ ।। उसका प बड़ा सु दर था। वह सूयदे वक भाँ त उ ा सत हो रहा था। उसके ने व छ, चकने एवं कजरारे थे। वह बड़ा गोरा दखाई दे ता था। उसक जटाएँ ब त ल बी, साफ-सुथरी और नीले रंगक थ । उनसे बड़ी मधुर ग ध फैल रही थी। वे सारी जटाएँ एक सुनहरी र सीसे गुँथी ई थ ।। २ ।। आ य पा पुनर य क ठ े व ाजते व ु दवा त र े । ौ चा य प डावधरेण क ठादजातरोमौ सुमनोहरौ च ।। ३ ।। उसके गलेम एक ऐसा आ यजनक आभूषण (क ठा) था, जो आकाशम बजलीक भाँ त चमक रहा था। उसके गलेसे नीचे (व ः थलपर) दो मांस प ड थे, जनपर रोएँ नह उगे थे। वे अ य त मनोहर जान पड़ते थे ।। ३ ।। वल नम य स ना भदे शे क ट त या तकृत माणा । तथा य चीरा तरतः भा त हर मयी मेखला मे यथेयम् ।। ४ ।। उस चारीके ना भदे शके समीप जो शरीरका म य भाग था, वह ब त पतला था और उसका नत बभाग अ य त थूल था। जैसे मेरे कौपीनके नीचे यह मूँजक मेखला ँ ी ै ी े े ी ो े े ( ी) ी ो े

बँधी है, इसी कार उसके क ट- दे शम भी एक सोनेक मेखला (करधनी) थी, जो उसके चीरके भीतरसे चमकती रहती थी ।। ४ ।। अ य च त या तदशनीयं वकू जतं पादयोः स भा त । पा यो त त् वनव ब ौ कलापकाव माला यथेयम् ।। ५ ।। उसक अ य सब बात भी अ त एवं दशनीय थ । पैर म (पायलक ) छम-छम व न बड़ी मधुर तीत होती थी। इसी कार हाथ क कलाइय म मेरी इस ा क मालाक भाँ त उसने दो कलापक (कंगन) बाँध रखे थे, उनसे भी बड़ी मधुर व न होती रहती थी ।। ५ ।। वचे मान य च त य ता न कूज त हंसाः सरसीव म ाः । चीरा ण त या तदशना न नेमा न त मम पव त ।। ६ ।। वह चारी जब त नक भी चलता- फरता या हलता-डु लता था, उस समय उसके आभूषण बड़ी मनोहर झनकार उ प करते थे, मानो सरोवरम मतवाले हंस कलरव कर रहे ह । उसके चीर भी अ त दखायी दे ते थे। मेरी कौपीनके ये व कलव वैसे सु दर नह ह ।। ६ ।। व ं च त या तदशनीयं ा तं ादयतीव चेतः । पुं को कल येव च त य वाणी तां शृ वतो मे थतोऽ तरा मा ।। ७ ।। उसका मुख भी दे खने ही यो य था। उसक अ त शोभा थी। चारीक एक-एक बात मनको आन द- स धुम नम न-सा कर दे ती थी। उसक वाणी को कलके समान थी, जसे एक बार सुन लेनेपर अब पुनः सुननेके लये मेरी अ तरा मा थत हो उठ है ।। ७ ।। यथा वनं माधवमा स म ये समी रतं सनेनेव भा त । तथा स भा यु मपु यग धी नषे माणः पवनेन तात ।। ८ ।। तात! जैसे माधवमास (वैशाख या वसंत ऋतु) म (सौरभयु मलय-) समीरसे से वत वन-उपवनक शोभा होती है, उसी कार पवनदे वसे से वत वह चारी उ म एवं प व ग धसे सुवा सत और सुशो भत हो रहा था ।। ८ ।। सुसंयता ा प जटा वष ा ै धीकृता ना तसमा ललाटे । कण च च ै रव च वाकैः ौ

समावृतौ त य सु पव ः ।। ९ ।। उसक जटा सट ई और अ छ कार बँधी ई थी, जो ललाट दे शम दो भाग म वभ थी; कतु बराबर नह थी। उसके कु डलम डत कान सु दर एवं व च च वाक से घरे ए-से जान पड़ते थे ।। ९ ।। तथा फलं वृ मथो व च ं समाहरत् पा णना द णेन । तद् भू ममासा पुनः पुन समु पत य त पमु चैः ।। १० ।। उसके पास एक व च गोलाकार फल (गद) था, जसपर वह अपने दा हने हाथसे आघात करता था। वह फल (गद) पृ वीपर जाकर बार-बार ऊँचेक ओर उछलता था; उस समय उसका प अ त दखायी दे ता था ।। १० ।। त चा भह य प रवततेऽसौ वाते रतो वृ इवावघूणन् । तं े तः पु मवामराणां ी तः परा तात र त जाता ।। ११ ।। उस फल (गद) को मारकर वह चार ओर घूमने लगता था, मानो वृ हवाका झ का खाकर झूम रहा हो। तात! दे वपु के समान उस चारीको दे खते समय मेरे दयम बड़ा ेम और आन द उमड़ रहा था और मेरी उसके त आस हो गयी है ।। ११ ।। स मे समा य पुनः शरीरं जटासु गृ ा यवना य व म् । व ेण व ं णधाय श दं चकार त मेऽजनयत् हषम् ।। १२ ।। वह बार-बार मेरे शरीरका आ लगन करके मेरी जटा पकड़ लेता और मेरे मुखको झुकाकर उसपर अपना मुख रख दे ता था, इस कार मुख-से-मुख मलाकर उससे एक ऐसा श द कया, जसने मेरे दयम अ य त आन द उ प कर दया ।। १२ ।। न चा प पा ं ब म यतेऽसौ फला न चेमा न मयाऽऽ ता न । एवं तोऽ मी त च मामवोचत् फला न चा या न समादद मे ।। १३ ।। मने जो पा अपण कया, उसको उसने ब त मह व नह दया। मेरे दये ए ये फल भी उसने वीकार नह कये और मुझसे कहा—‘मेरा ऐसा ही नयम है।’ साथ ही उसने मेरे लये सरे- सरे फल दये ।। १३ ।। मयोपयु ा न फला न या न नेमा न तु या न रसेन तेषाम् । न चा प तेषां व गयं यथैषां सारा ण नैषा मव स त तेषाम् ।। १४ ।। े े े ो ै े े

मने उसके दये ए जन फल का उपयोग कया है, उनके समान रस हमारे इन फल म नह है। उन फल के छलके भी ऐसे नह थे, जैसे इन जंगली फल के ह। इन फल के गूदे जैसे ह, वैसे उसके दये ए फल के नह थे (वे सवथा वल ण थे) ।। १४ ।। तोया न चैवा तरसा न म ं ादात् स वै पातुमुदार पः । पी वैव या य य धकः हष ममाभवद् भू लतेव चासीत् ।। १५ ।। उदारताके मू तमान् व प उस चारीने मुझे पीनेके लये अ य त वा द जल भी दया था। उस जलको पीते ही मेरे हषक सीमा न रही। मुझे यह धरती डोलती-सी जान पड़ने लगी ।। १५ ।। इमा न च ा ण च ग धव त मा या न त योद् थता न प ै ः । या न क यह गतः वमेव स आ मं तपसा ोतमानः ।। १६ ।। ये व च सुग धत मालाएँ उसीने रेशमी डोर से गूँथकर बनायी थ , ज ह यहाँ बखेरकर तप यासे का शत होनेवाला वह चारी अपने आ मको चला गया था ।। १६ ।। गतेन तेना म कृतो वचेता गा ं च मे स प रद तीव । इ छा म त या तकमाशु ग तुं तं चेह न यं प रवतमानम् ।। १७ ।। उसके चले जानेसे म अचेत हो गया ँ। मेरा शरीर जलता-सा जान पड़ता है। म चाहता ँ, शी उसके पास ही चला जाऊँ अथवा वही यहाँ न य मेरे पास रहे ।। १७ ।। ग छा म त या तकमेव तात का नाम सा चया च त य । इ छा यहं च रतुं तेन साध यथा तपः स चर यायधमा ।। १८ ।। पताजी! म उसीके पास जाता ँ, दे खूँ, उसक चयक साधना कैसी है? वह आयधमका पालन करनेवाला चारी जस कार तप करता है, उसके साथ रहकर म भी वैसी ही तप या करना चाहता ँ ।। १८ ।। चतु तथे छा दये ममा त नो त च ं य द तं न प ये ।। १९ ।। वैसा ही तप करनेक इ छा मेरे दयम भी है। य द उसे नह दे खूँगा तो मेरा यह च संत त होता रहेगा ।। १९ ।। ी













इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायामृ यशृ ोपा याने ादशा धकशततमोऽ यायः ।। ११२ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम ऋ यशृंगोपा यान वषयक एक सौ बारहवाँ अ याय पूरा आ ।। ११२ ।।

योदशा धकशततमोऽ यायः ऋ यशृंगका अंगराज लोमपादके यहाँ जाना, राजाका उ ह अपनी क या दे ना, राजा ारा वभा डक मु नका स कार तथा उनपर मु नका स होना वभा डक उवाच र ां स चैता न चर त पु पेण तेना तदशनेन । अतु यवीया य भ पव त व नं सदा तपस तय त ।। १ ।। वभा डकने कहा—बेटा! इस कार अ त दशनीय प धारण करके तो रा स ही इस वनम वचरा करते ह। ये अनुपम परा मी और मनोहर प धारण करनेवाले होते ह, तथा ऋ ष-मु नय क तप याम सदा व न डालनेका ही उपाय सोचते रहते ह ।। १ ।। सु प पा ण च ता न तात लोभय ते व वधै पायैः । सुखा च लोका च नपातय त ता यु पा ण मुनीन् वनेषु ।। २ ।। तात! वे मनोहर पधारी रा स नाना कारके उपाय ारा मु नलोग को लोभनम डालते रहते ह। फर वे ही भयानक प धारण करके वनम नवास करनेवाले मु नय को आन दमय लोक से नीचे गरा दे ते ह ।। २ ।। न ता न सेवेत मु नयता मा सतां लोकान् ाथयानः कथं चत् । कृ वा व नं तापसानां रम ते पापाचारा तापस तान् न प येत् ।। ३ ।। अतः जो साधु पु ष को मलनेवाले पु यलोक को पाना चाहता है, वह मु न मनको संयमम रखकर उन रा स का (जो मोहक प बनाकर धोखा दे नेके लये आते ह) कसी कार सवेन न करे। वे पापाचारी नशाचर तप वी मु नय के तपम व न डालकर स होते ह, अतः तप वीको चा हये क वह उनक ओर आँख उठाकर दे खे ही नह ।। ३ ।। अस जनेनाच रता न पु पापा यपेया न मधू न ता न । मा या न चैता न न वै मुनीनां मृता न च ो वलग धव त ।। ४ ।। व स! जसे तुम जल समझते थे, वह म था। वह पापजनक और अपेय है, उसे कभी नह पीना चा हये। पु ष उसका उपयोग करते ह तथा ये व च , उ वल और ँ ी े ो ी ी

सुग धत पु पमालाएँ भी मु नय के यो य नह बतायी गयी ह ।। ४ ।। र ां स तानी त नवाय पु ं वभा डक तां मृगया बभूव । नासादयामास यदा यहेण तदा स पयाववृतेऽऽ माय ।। ५ ।। ‘ऐसी व तुएँ लानेवाले रा स ही ह।’ ऐसा कहकर वभा डक मु नने पु को उससे मलने-जुलनेसे मना कर दया और वयं उस वे याक खोज करने लगे। तीन दन तक ढूँ ढ़नेपर भी जब वे उसका पता न लगा सके, तब आ मपर लौट आये ।। ५ ।। यदा पुनः का यपो वै जगाम फला याहतु व धनाऽऽ मात् सः । तदा पुनल भ यतुं जगाम सा वेशयोषा मु नमृ यशृ म् ।। ६ ।। जब का यपन दन वभा डक मु न आ मसे पुनः व धके अनुसार फल लानेके लये वनम गये, तब वह वे या ऋ यशृंग मु नको लुभानेके लये फर उनके आ मपर आयी ।। ६ ।। ् वैव तामृ यशृ ः ः स ा त पोऽ यपतत् तदानीम् । ोवाच चैनां भवतः माय ग छाव याव पता ममै त ।। ७ ।। उसे दे खते ही ऋ यशृंग मु न हष- वभोर हो उठे और घबराकर तुरंत उसके पास दौड़ गये। नकट जाकर उ ह ने कहा—‘ न्! मेरे पताजी जबतक लौटकर नह आते, तभीतक म और आप—दोन आपके आ मक ओर चल द’ ।। ७ ।। ततो राजन् का यप यैकपु ं वे य योगेन वमु य नावम् । मोदय यो व वधै पायैराज मुर ा धपतेः समीपम् ।। ८ ।। राजन्! तदन तर वभा डक मु नके इकलौते पु को यु से नावम ले जाकर वे याने नाव खोल द । फर सभी युव तयाँ भाँ त-भाँ तके उपाय ारा उनका मनोरंजन करती ई अंगराजके समीप आय ।। ८ ।। सं था य तामा मदशने तु संता रतां नावमथा तशु ाम् । नीरा पादाय तथैव च े ना ा मं नाम वनं व च म् ।। ९ ।। ना वक ारा संचा लत उस अ य त उ वल नौकाको जलसे बाहर नकालकर राजाने एक थानपर था पत कर दया और जतनी रीसे वह नौकागत आ म दखायी दे ता था, ी

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उतनी रीके व तृत मैदानम उ ह ने ऋ यशृंग मु नके आ म-जैसे ही एक व च वनका नमाण करा दया, जो ‘ना ा म’ के नामसे स आ ।। ९ ।। अ तःपुरे तं तु नवे य राजा वभा डक या मजमेकपु म् । ददश दे वं सहसा वृ मापूयमाणं च जग जलेन ।। १० ।। राजा लोमपादने वभा डक मु नके इकलौते पु को महलके भीतर र नवासम ठहरा दया और दे खा, सहसा उसी ण इ दे वने वषा आर भ कर द तथा सारा जगत् जलसे प रपूण हो गया ।। १० ।। स लोमपादः प रपूणकामः सुतां ददावृ यशृ ाय शा ताम् । ोध तीकारकरं च च े गा ैव मागषु च कषणा न ।। ११ ।। लोमपादक कामना पूरी ई। उ ह ने स होकर अपनी पु ी शा ता ऋ यशृंग मु नको याह द । फर वभा डक मु नके ोधके नवारणका भी उपाय कर दया। जस रा तेसे मह ष आनेवाले थे, उसम थान- थानपर ब त-से गाय-बैल रखवा दये और कसान ारा खेत क जुताई आर भ करा द ।। ११ ।। वभा डक या जतः स राजा पशून् भूतान् पशुपां वीरान् । समा दशत् पु गृ मह षवभा डकः प रपृ छे द ् यदा वः ।। १२ ।। सव ः ा ल भभव ः पु य ते पशवः कषणं च । क ते यं वै यतां महष दासाः म सव तव वा च ब ाः ।। १३ ।। राजाने वभा डक मु नके आगमन-पथम ब त-से पशु तथा वीर पशुर क भी नयु कर दये और सबको यह आदे श दे दया था क जब पु क अ भलाषा रखनेवाले मह ष वभा डक तुमसे पूछ तब हाथ जोड़कर उ ह इस कार उ र दे ना—‘ये सब आपके पु के ही पशु ह, ये खेत भी उ ह के जोते जा रहे ह। महष! आ ा द, हम आपका कौन-सा य काय कर। हम सब लोग आपके आ ापालक दास ह’ ।। १२-१३ ।। अथोपायात् स मु न डकोपः वमा मं मूलफलं गृही वा । अ वेषमाण न त पु ं ददश चु ोध ततो भृशं सः ।। १४ ।। इधर च ड कोपधारी महा मा वभा डक फल-मूल लेकर अपने आ मपर आये। वहाँ ब त खोज करनेपर भी जब अपना पु उ ह दखायी न दया, तब वे अ य त ोधम े

भर गये ।। १४ ।। ततः स कोपेन वद यमाण आशङ् कमानो नृपते वधानम् । जगाम च पां त ध यमाणतम राजं सपुरं सरा म् ।। १५ ।। कोपसे उनका दय वद ण-सा होने लगा। उनके मनम यह संदेह आ क कह राजा लोमपादक तो यह करतूत नह है। तब वे च पानगरीक ओर चल दये, मानो अंगराजको उनके रा और नगरस हत जला द े ना चाहते ह ।। १५ ।। स वै ा तः ु धतः का यप तान् घोषान् समासा दतवान् समृ ान् । गोपै तै व धवत् पू यमानो राजेव तां रा मुवास त ।। १६ ।। थककर भूखसे पी ड़त होनेपर वभा डक मु न सायंकालम उ ह समृ शाली गो म गये। गोपगण ने उनक व धपूवक पूजा क । वे राजाक भाँ त सुख-सु वधाके साथ वह रातभर रहे ।। १६ ।। अवा य स कारमतीव ते यः ोवाच क य थताः थ गोपाः । ऊचु तत तेऽ युपग य सव धनं तवेदं व हतं सुत य ।। १७ ।। गोपगण से अ य त स कार पाकर मु नने पूछा—‘तुम कसके गोपालक हो?’ तब उन सबने नकट आकर कहा—‘यह सारा धन आपके पु का ही है’ ।। दे शेषु दे शेषु स पू यमानतां ैव शृ वन् मधुरान् लापान् । शा तभू य रजाः ः समाससादा प त पुर थम् । १८ ।। दे श-दे शम स मा नत हो वे ही मधुर वचन सुनते-सुनते मु नका रजोगुणज नत अ य धक ोध बलकुल शा त हो गया। वे स तापूवक राजधानीम जाकर अंगराजसे मले ।। १८ ।। स पू जत तेन नरषभेण ददश पु ं द व दे वं यथे म् । शा तां नुषां चैव ददश त सौदामनीमु चर त यथैव ।। १९ ।।

नर े लोमपादसे पू जत हो मु नने अपने पु को उसी कार ऐ यस प दे खा, जैसे दे वराज इ वगलोकम दे खे जाते ह। पु के पास ही उ ह ने ब शा ताको भी दे खा, जो व ुतक ् े समान उ ा सत हो रही थी ।। १९ ।। ामां घोषां सुत य ् वा शा तां च शा तोऽ य परः स कोपः । चकार त यैव परं सादं वभा डको भू मपतेनरे ।। २० ।। अपने पु के अ धकारम आये ए ाम, घोष और ब शा ताको दे खकर उनका महान् कोप शा त हो गया। यु ध र! उस समय वभा डक मु नने राजा लोमपादपर बड़ी कृपा क ।। २० ।। स त न य सुतं मह षवाच सूया नसम भावः । जाते च पु े वनमेवा जेथा रा ः या य य सवा ण कृ वा ।। २१ ।। सूय और अ नके समान भावशाली मह षने अपने पु को वह छोड़ दया और कहा —‘बेटा! पु उ प हो जानेपर इन अंगराजके सारे य काय स करके फर वनम ही आ जाना’ ।। २१ ।। ो

स त चः कृतवानृ यशृ ो ययौ च य ा य पता बभूव । शा ता चैनं पयचर रे खे रो हणी सोम मवानुकूला ।। २२ ।। ऋ यशृंगने पताक आ ाका अ रशः पालन कया। अ तम वे पुनः उसी आ मम चले गये जहाँ उनके पता रहते थे। नरे ! शा ता उसी कार अनुकूल रहकर उनक सेवा करती थी जैसे आकाशम रो हणी च माक सेवा करती है ।। २२ ।। अ धती वा सुभगा व स ं लोपामु ा वा यथा ग यम् । नल य वै दमय ती यथाभूद ् यथा शची व धर य चैव ।। २३ ।। अथवा जैसे सौभा यशा लनी अ धती व स जीक , लोपामु ा अग यजीक , दमय ती नलक तथा शची वधारी इ क सेवा करती है ।। २३ ।। नारायणी चे सेना बभूव व या न यं मुल याजमीढ । (यथा सीता दाशरथेमहा मनो यथा तव ौपद पा डु पु ।) तथा शा ता ऋ यशृ ं वन थं ी या यु ा पयचर रे ।। २४ ।। यु ध र! जैसे नारायणी इ सेना सदा मह ष मुलक े अधीन रहती थी तथा पा डु न दन! जैसे सीता महा मा दशरथन दन ीरामके अधीन रही ह और ौपद सदा तु हारे वशम रहती आयी है, उसी कार शा ता भी सदा अधीन रहकर वनवासी ऋ यशृंगक स तापूवक सेवा करती थी ।। २४ ।। त या मः पु य एषोऽवभा त महा दं शोभयन् पु यक तः । अ नातः कृतकृ यो वशु तीथा य या यनुसंया ह राजन् ।। २५ ।। उनका यह पु यमय आ म, जो प व क तसे यु है, इस महान् कु डक शोभा बढ़ाता आ का शत हो रहा है, राजन्! यहाँ नान करके शु एवं कृतकृ य होकर अ य तीथ क या ा करो ।। २५ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायामृ यशृ ोपा याने योदशा धकशततमोऽ यायः ।। ११३ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम ऋ यशृंगोपा या0न वषयक एक सौ तेरहवाँ अ याय पूरा आ ।। ११३ ।। (दा णा य अ धक पाठका आधा ोक मलाकर क ु ल २५ ोक ह)

चतुदशा धकशततमोऽ यायः यु ध रका कौ शक , गंगासागर एवं वैतरणी नद होते ए महे पवतपर गमन वैश पायन उवाच ततः यातः कौ श याः पा डवो जनमेजय । आनुपू ण सवा ण जगामायतना यथ ।। १ ।। स सागरं समासा ग ायाः संगमे नृप । नद शतानां प चानां म ये च े समा लवम् ।। २ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर पा डु न दन यु ध रने कौ शक नद के तटवत सभी तीथ और म दर क मशः या ा क । राजन्! उ ह ने गंगासागरसंगमतीथम समु तटपर प ँचकर पाँच सौ न दय के जलम नान कया ।। १-२ ।। ततः समु तीरेण जगाम वसुधा धपः । ातृ भः स हतो वीरः क ल ान् त भारत ।। ३ ।। भारत! त प ात् वीर भूपाल यु ध र अपने भाइय के साथ क लगदे श (उड़ीसा) म गये ।। ३ ।। लोमश उवाच एते क ल ाः कौ तेय य वैतरणी नद । य ायजत धम ऽ प दे वा छरणमे य वै ।। ४ ।। तब लोमशजीने कहा—कु तीकुमार! यह क लग दे श है, जसम वैतरणी नद बहती है। जहाँ धमने भी दे वता क शरणम जाकर य कया था ।। ४ ।। ऋ ष भः समुपायु ं य यं ग रशो भतम् । उ रं तीरमेत सततं जसे वतम् ।। ५ ।। यह पवतमाला से सुशो भत वैतरणीका वही उ र तट है जहाँ य का आयोजन कया गया था। ब त-से ऋ ष तथा ा णलोग सदा इस उ र तटका सेवन करते आये ह ।। ५ ।। समानं दे वयानेन पथा वगमुपेयुषः । अ वै ऋषयोऽ येऽ प पुरा तु भरी जरे ।। ६ ।। वगलोकक ा त करनेवाले पु या मा मनु यके लये यह थान ‘दे वयान’ मागके समान है। ाचीन कालम ऋ षय तथा अ य लोग ने भी यहाँ ब त-से य का अनु ान कया था ।। ६ ।। अ ैव ो राजे पशुमाद वान् मखे । पशुमादाय राजे भागोऽय म त चा वीत् ।। ७ ।। े











राजे ! यह दे वने य म पशुको हण कर लया था। उस पशुको हण करके उ ह ने कहा—‘यह तो मेरा ह सा है’ ।। ७ ।। ते पशौ तदा दे वा तमूचुभरतषभ । मा पर वम भ ो धा मा धमान् सकलान् वशीः ।। ८ ।। भरत े ! पशुका अपहरण हो जानेपर दे वता ने उनसे कहा—‘आप सर के धनसे ोह न कर ( सर के ह सेको न ल) धमके साधनभूत सम त य भाग को लेनेक इ छा न कर’ ।। ८ ।। ततः क याण पा भवा भ ते म तुवन् । इ ा चैनं तप य वा मानयांच रे तदा ।। ९ ।। य कहकर उ ह ने क याणमय वचन ारा भगवान् का तवन कया और इ ारा उ ह तृ त करके उस समय उनका वशेष स मान कया ।। ९ ।। ततः स पशुमु सृ य दे वयानेन ज मवान् । त ानुवंशो य तं नबोध यु ध र ।। १० ।। तब वे उस पशुको वह छोड़कर दे वयान मागसे चले गये। यु ध र! य म भगवान् क भागपर पराका बोधक एक ोक है, उसे बताता ँ, सुनो— ।। १० ।। अयातयामं सव यो भागे यो भागमु मम् । दे वाः संक पयामासुभयाद् य शा तम् ।। ११ ।। ‘दे वता ने दे वके भयसे उनके लये शी ही सब भाग क अपे ा उ म एवं सनातन भाग दे नेका संक प कया’ ।। ११ ।। इमां गाथाम गाय पः मृश त यो नरः । दे वयानोऽ य प था च ुषा भ काशते ।। १२ ।। जो मनु य यहाँ इस गाथाका गान करते ए वैतरणीके जलका पश करता है उसक म दे वयान माग का शत हो जाता है ।। १२ ।। वैश पायन उवाच ततो वैतरण सव पा डवा ौपद तथा । अवतीय महाभागा तपयांच रे पतॄन् ।। १३ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! तदन तर महान् भा यशाली सम त पा डव और ौपद ने वैतरणीके जलम उतरकर अपने पतर का तपण कया ।। १३ ।। यु ध र उवाच उप पृ येह व धवद यां न ां तपोबलात् । मानुषाद म वषयादपेतः प य लोमश ।। १४ ।। उस समय यु ध र बोले—लोमशजी! दे खये, इस वैतरणी नद म व धपूवक नान करनेसे मुझे तपोबल ा त आ है, जसके भावसे म मानवीय वषय से र हो गया ँ ।। १४ ।। सवा लोकान् प या म सादात् तव सु त । ै े ो

वैखानसानां जपतामेष श दो महा मनाम् ।। १५ ।। सु त! आपक कृपासे इस समय मुझे स पूण लोक का दशन हो रहा है। यह जप और वा यायम लगे ए महा मा वैखानस ऋ षय का श द है ।। १५ ।। लोमश उवाच शतं वै सह ा ण योजनानां यु ध र । य व न शृणो येनं तू णीमा व वशा पते ।। १६ ।। लोमशजीने कहा—राजा यु ध र! जहाँसे आती ई इस व नको तुम सुन रहे हो वह थान यहाँसे तीन लाख योजन र है; अतः अब चुप रहो ।। १६ ।। एतत् वय भुवो राजन् वनं द ं काशते । य ायजत राजे व कमा तापवान् ।। १७ ।। राजन्! यह ाजीका द वन का शत हो रहा है; राजे ! यह तापी व कमाने य कया है ।। १७ ।। य मन् य े ह भूद ा क यपाय महा मने । सपवतवनो े शा द णाथ वय भुवा ।। १८ ।। उस य म ाजीने पवत और वन ा तस हत यह सारी पृ वी महा मा क यपको द णा पम दे द थी ।। १८ ।। अवासीद च कौ तेय द मा ा मही तदा । उवाच चा प कु पता लोके र मदं भुम् ।। १९ ।। न मां म याय भगवन् क मै चद् दातुमह स । दानं मोघमेतत् ते या या येषा रसातलम् ।। २० ।। कु तीकुमार! उनके ारा अपना दान होते ही पृ वी ब त ःखी हो गयी और कु पत हो लोकनाथ भु ासे इस कार बोली—‘भगवन्! आप मुझे कसी मनु यको न स प। य द मुझे मनु यको स पगे तो वह थ होगा, य क म अभी रसातलको चली जाऊँगी’ ।। १९-२० ।। वषीद त तु तां ् वा क यपो भगवानृ षः । सादया बभूवाथ ततो भूम वशा पते ।। २१ ।। राजन्! पृ वी दे वीको वषाद करती दे ख मह ष भगवान् क यपने ाथना ारा उ ह स कया ।। २१ ।। ततः स ा पृ थवी तपसा त य पा डव । पुन स ललाद् वेद पा थता बभौ ।। २२ ।। पा डु न दन! उनक तप यासे स ई पृ वी पुनः जलसे ऊपर उठकर वेद के पम थत हो गयी ।। सैषा काशते राजन् वेद सं थानल णा । आ ा महाराज वीयवान् वै भ व य स ।। २३ ।। ी े ी















राजन्! वह पृ वी दे वी ही यहाँ इस म क वेद के पम का शत हो रही है। महाराज! इसपर आ ढ़ होकर तुम बल-परा मसे स प हो जाओगे ।। २३ ।। सैषा सागरमासा राजन् वेद समा ता । एतामा भ ं ते वमेक तर सागरम् ।। २४ ।। यु ध र! वही यह वेद व पा पृ वी समु का आ य लेकर थत है; तु हारा क याण हो। तुम अकेले ही इसपर चढ़कर समु को पार करो ।। २४ ।। अहं च ते व ययनं यो ये यथा वमेनाम धरोहसेऽ । पृ ा ह म यन ततः समु मेषा वेद वश याजमीढ ।। २५ ।। म तु हारे लये व तवाचन क ँ गा, जससे तुम आज इस वेद पर चढ़ सको; अजमीढकुलन दन! नह तो मनु यके ारा पश हो जानेपर यह वेद समु म वेश कर जाती है ।। २५ ।। ॐ नमो व गु ताय नमो व पराय ते । सां न यं कु दे वेश सागरे लवणा भ स ।। २६ ।। (समु म नान करते समय उसक ाथनाके लये न नां कत म का उ चारण करना चा हये—) जनम यह स पूण व लीन होता है तथा जो सबसे े ह, उन भगवान् व णुको नम कार है। दे वे र! आप खारे समु म नवास कर ।। २६ ।। अ न म ो यो नरापोऽथ दे ो व णो रेत वममृत य ना भः । एवं ुवन् पा डव स यवा यं वेद ममां वं तरसा धरोह ।। २७ ।। ‘हे समु ! अ न, म (सूय) और द जल—ये सब तु हारी यो न (उ प -कारण) ह। तुम सव ापी परमा माके रेतस् (वीय या श ) हो और तु ह अमृतक उ प के थान हो।’ पा डु न दन! इस स य वा यका उ चारण करते ए तुम शी तापूवक इस वेद पर आ ढ़ हो जाओ ।। २७ ।। अ न ते यो न रडा च दे हो रेतोधा व णोरमृत य ना भः । एवं जपन् पा डव स यवा यं ततोऽवगाहेत प त नद नाम् ।। २८ ।। ‘हे महासागर! अ न तु हारी यो न (कारण) है और य शरीर है, तुम भगवान् व णुक श के आधार और मो के साधन हो।’ पा डु पु ! इस स य वचनको बोलते ए न दय के वामी समु म नान करना चा हये ।। २८ ।। अ यथा ह कु े दे वयो नरपां प तः । कुशा ेणा प कौ तेय न ो महोद धः ।। २९ ।। े











कु े ! जलका वामी समु दे वता का अ ध ान है। कु तीन दन! ऊपर बतायी ई री तके सवा सरे कसी कारसे इस महासागरका कुशके अ भाग ारा भी पश नह करना चा हये ।। २९ ।। वैश पायन उवाच ततः कृत व ययनो महा मा यु ध रः सागरम यग छत् । कृ वा च त छासनम य सव महे मासा नशामुवास ।। ३० ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर लोमशजीके व तवाचन करनेके प ात् महा मा राजा यु ध रने उनक बतायी ई सारी व धय का पालन करते ए समु म नान करनेके लये वेश कया। इसके बाद महे पवतपर जाकर रा बतायी ।। ३० ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायां महे ाचलगमने चतुदशा धकशततमोऽ यायः ।। ११४ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम महे ाचलगमन वषयक एक सौ चौदहवाँ अ याय पूरा आ ।। ११४ ।।

प चदशा धकशततमोऽ यायः अकृत णके ारा यु ध रसे परशुरामजीके उपा यानके संगम ऋचीक मु नका गा धक याके साथ ववाह और भृगुऋ षक कृपासे जमद नक उ प का वणन वैश पायन उवाच स त तामु ष वैकां रजन पृ थवीप तः । तापसानां परं च े स कारं ातृ भः सह ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! उस पवतपर एक रात नवास करके भाइय स हत राजा यु ध रने तप वी मु नय का ब त स कार कया ।। १ ।। लोमश त य तान् सवानाच यौ त तापसान् । भृगून रस ैव व स ानथ का यपान् ।। २ ।। लोमशजीने यु ध रसे उन सभी तप वी महा मा का प रचय कराया। उनम भृग,ु अं गरा, व स तथा क यपगो के अनेक संत महा मा थे ।। २ ।। तान् समे य स राज षर भवा कृता लः । राम यानुचरं वीरमपृ छदकृत णम् ।। ३ ।। कदा तु रामो भगवां तापसान् दश य य त । तेनैवाहं संगेन ु म छा म भागवम् ।। ४ ।। उन सबसे मलकर राज ष यु ध रने हाथ जोड़कर उ ह णाम कया और परशुरामजीके सेवक वीरवर अकृत णसे पूछा—‘भगवान् परशुरामजी इन तप वी महा मा को कब दशन दगे? उसी न म से म भी उन भगवान् भागवका दशन करना चाहता ँ’ ।। ३-४ ।। अकृत ण उवाच आयानेवा स व दतो राम य व दता मनः । ी त व य च राम य ं वां दश य य त ।। ५ ।। चतुदशीम म च रामं प य त तापसाः । अ यां रायां तीतायां भ व ी तुद शी ।। ६ ।। अकृत णने कहा—राजन्! आ म ानी परशुरामजीको पहले ही यह ात हो गया था क आप आ रहे ह। आपपर उनका ब त ेम है, अतः वे शी ही आपको दशन दगे। ये तप वीलोग येक चतुदशी और अ मीको परशुरामजीका दशन करते ह। आजक रात बीत जानेपर कल सबेरे चतुदशी हो जायगी ।। ५-६ ।। यु ध र उवाच भवाननुगतो रामं जामद यं महाबलम् ।

य दश सव य पूववृ य कमणः ।। ७ ।। यु ध रने पूछा—मुने! आप महाबली परशुरामजीके अनुगत भ ह। उ ह ने पहले जो-जो काय कये ह, उन सबको आपने य दे खा है ।। ७ ।। स भवान् कथय व यथा रामेण न जताः । आहवे याः सव कथं केन च हेतुना ।। ८ ।। अतः हम आपसे यह जानना चाहते ह क परशुरामजीने कस कार और कस कारणसे सम त य को यु म परा जत कया था। आप वह सब वृ ा त आज मुझे बताइये ।। ८ ।। अकृत ण उवाच ह त ते कथ य या म महदा यानमु मम् । भृगूणां राजशा ल वंशे जात य भारत ।। ९ ।। अकृत णने कहा—भरतकुलभूषण नृप े यु ध र! भृगव ु ंशी परशुरामजीक कथा ब त बड़ी और उ म है, म आपसे उसका वणन क ँ गा ।। ९ ।। राम य जामद य य च रतं दे वस मतम् । हैहया धपते ैव कातवीय य भारत ।। १० ।। भारत! जमद नकुमार परशुराम तथा हैहयराज कातवीयका च र दे वता के तु य है ।। १० ।। रामेण चाजुनो नाम हैहया धप तहतः । त य बा शता यासं ी ण स त च पा डव ।। ११ ।। पा डु न दन! परशुरामजीने अजुन नामसे स जस हैहयराज कातवीयका वध कया था, उसके एक हजार भुजाएँ थ ।। ११ ।। द ा ेय सादे न वमानं का चनं तथा । ऐ य सवभूतेषु पृ थ ां पृ थवीपते ।। १२ ।। पृ वीपते! ीद ा ेयजीक कृपासे उसे एक सोनेका वमान मला था और भूतलके सभी ा णय पर उसका भु व था ।। १२ ।। अ ाहतग त ैव रथ त य महा मनः । रथेन तेन तु सदा वरदानेन वीयवान् ।। १३ ।। ममद दे वान् य ां ऋष ैव सम ततः । भूतां ैव स सवा तु पीडयामास सवतः ।। १४ ।। महामना कातवीयके रथक ग तको कोई भी रोक नह सकता था। उस रथ और वरके भावसे श स प आ कातवीय अजुन सब ओर घूमकर सदा दे वता , य तथा ऋ षय को र दता फरता था और स पूण ा णय को भी सब कारसे पीड़ा दे ता था ।। १३-१४ ।। ततो दे वाः समे या ऋषय महा ताः । दे वदे वं सुरा र नं व णुं स यपरा मम् ।। १५ ।। ै



भगवन् भूतर ाथमजुनं ज ह वै भो । वमानेन च द ेन हैहया धप तः भुः ।। १६ ।। शचीसहायं ड तं धषयामास वासवम् । तत तु भगवान् दे वः श े ण स हत तदा । कातवीय वनाशाथ म यामास भारत ।। १७ ।। कातवीयका ऐसा अ याचार दे ख दे वता तथा महान् तका पालन करनेवाले ऋ ष मलकर दै य का वनाश करनेवाले स यपरा मी दे वा धदे व भगवान् व णुके पास जा इस कार बोले—‘भगवन्! आप सम त ा णय क र ाके लये कृतवीयकुमार अजुनका वध क जये।’ एक दन श शाली हैहयराजने द वमान ारा शचीके साथ ड़ा करते ए दे वराज इ पर आ मण कया। भारत! तब भगवान् व णुने कातवीय अजुनका नाश करनेके स ब धम इ के साथ वचार- व नमय कया ।। १५-१७ ।। यत् तद् भूत हतं काय सुरे े ण नवे दतम् । स त ु य तत् सव भगवाँ लोकपू जतः ।। १८ ।। जगाम बदर र यां वमेवा मम डलम् । सम त ा णय के हतके लये जो काय करना आव यक था उसे दे वे ने बताया। त प ात् व व दत भगवान् व णुने वह सब काय करनेक त ा करके अ य त रमणीय बदरीतीथक या ा क , जहाँ उनका अपना ही व तृत आ म था ।। १८ ।। एत म ेव काले तु पृ थ ां पृ थवीप तः ।। १९ ।। का यकु जे महानासीत् पा थवः सुमहाबलः । गाधी त व ुतो लोके वनवासं जगाम ह ।। २० ।। वने तु त य वसतः क या ज ेऽ सरःसमा । ऋचीको भागव तां च वरयामास भारत ।। २१ ।। इसी समय इस भूतलपर का यकु जदे शम एक महाबली महाराज शासन करते थे जो गा धके नामसे व यात थे। वे राजधानी छोड़कर वनम गये और वह रहने लगे। उनके वनवासकालम ही एक क या उ प ई जो अ सराके समान सु दरी थी। भारत! ववाहके यो य होनेपर भृगप ु ु ऋचीक मु नने उसका वरण कया ।। १९—२१ ।। तमुवाच ततो गा ध ा णं सं शत तम् । उ चतं नः कुले क चत् पूवयत् स व ततम् ।। २२ ।। एकतः यामकणानां पा डु राणां तर वनाम् । सह ं वा जनां शु क म त व जो म ।। २३ ।। उस समय राजा गा धने कठोर तका पालन करनेवाले ष ऋचीकसे कहा —‘ ज े ! हमारे कुलम पूवज ने जो कुछ शु क लेनेका नयम चला रखा है, उसका पालन करना हमलोग के लये भी उ चत है। अतः आप यह जान ल क इस क याके लये एक सह वेगशाली अ शु क पम दे ने पड़गे, जनके शरीरका रंग तो सफेद और पीला मला आ-सा और कान एक ओरसे काले रंगके ह ।। २२-२३ ।। ो

न चा प भगवान् वा यो द यता म त भागव । दे या मे हता चैव व धाय महा मने ।। २४ ।। ‘भृगन ु दन! आप कोई न दनीय तो ह नह , यह शु क चुका द जये, फर आप-जैसे महा माको म अव य अपनी क या याह ँ गा’ ।। २४ ।। ऋचीक उवाच एकतः यामकणाना पा डु राणां तर वनाम् । दा या य सह ं ते मम भाया सुता तु ते ।। २५ ।। ऋचीक बोले—राजन्! म आपको एक ओरसे याम कणवाले पा डु रंगके वेगशाली अ एक हजारक सं याम अ पत क ँ गा। आपक पु ी मेरी धमप नी बने ।। २५ ।। अकृत ण उवाच स तथे त त ाय राजन् व णम वीत् । एकतः यामकणानां पा डु राणां तर वनाम् ।। २६ ।। सह ं वा जनामेकं शु काथ मे द यताम् । त मै ादात् सह ं वै वा जनां व ण तदा ।। २७ ।। अकृत ण कहते ह—राजन्! इस कार शु क दे नेक त ा करके ऋचीक मु नने व णके पास जाकर कहा—‘दे व! मुझे शु कम दे नेके लये एक हजार ऐसे अ दान कर, जनके शरीरका रंग पा डु र और कान एक ओरसे याम ह । साथ ही वे सभी अ ती गामी होने चा हये।’ उस समय व णने उनक इ छाके अनुसार एक हजार यामकण घोड़े दे दये ।। तद तीथ व यातमु थता य ते हयाः । ग ायां का यकु जे वै ददौ स यवत तदा ।। २८ ।। ततो गा धः सुतां चा मै ज या ासन् सुरा तदा । ल वा हयसह ं तु तां द ् वा दवौकसः ।। २९ ।। जहाँ वे यामकण घोड़े कट ए थे, वह थान अ तीथके नामसे व यात आ। त प ात् राजा गा धने शु क पम एक हजार यामकण घोड़े ा त करके गंगातटपर का यकु ज नगरम ऋचीक मु नको अपनी पु ी स यवती याह द ! उस समय दे वता बराती बने थे। दे वता उन सबको दे खकर वहाँसे चले गये ।। २८-२९ ।। धमण ल वा तां भायामृचीको जस मः । यथाकामं यथाजोषं तया रेमे सुम यया ।। ३० ।। व वर ऋचीकने धमपूवक स यवतीको प नी पम ा त करके उस सु दरीके साथ अपनी इ छाके अनुसार सुखपूवक रमण कया ।। ३० ।। तं ववाहे कृते राजन् सभायमवलोककः । आजगाम भृगुः े ं पु ं ् वा नन द ह ।। ३१ ।। राजन्! ववाह करनेके प ात् प नीस हत ऋचीकको दे खनेके लये मह ष भृगु उनके आ मपर आये और अपने े पु को ववा हत दे खकर वे बड़े स ए ।। ३१ ।। ी ी

भायापती तमासीनं गु ं सुरगणा चतम् । अ च वा पयुपासीनौ ा ली त थतु तदा ।। ३२ ।। उन दोन प त-प नीने प व आसनपर वराजमान दे ववृ दव दत गु ( पता एवं शुर)-का पूजन कया और उनक उपासनाम संल न हो वे हाथ जोड़े खड़े रहे ।। ३२ ।। ततः नुषां स भगवान् ो भृगुर वीत् । वरं वृणी व सुभगे दाता म तवे सतम् ।। ३३ ।।

भगवान् भृगन ु े अ य त स होकर अपनी पु वधूसे कहा—‘सौभा यवती ब ! कोई वर माँगो, म तु हारी इ छाके अनु प वर दान क ँ गा’ ।। ३३ ।। सा वै सादयामास तं गु ं पु कारणात् । आ मन ैव मातु सादं च चकार सः ।। ३४ ।। स यवतीने शुरको अपने और अपनी माताके लये पु - ा तका उ े य रखकर स कया। तब भृगज ु ीने उसपर कृपा क ।। ३४ ।। भृगु वाच ऋतौ वं चैव माता च नाते पुंसवनाय वै । आ ल े तां पृथग् वृ ौ सा थं वमु बरम् ।। ३५ ।। भृगुजी बोले—ब ! ऋतुकालम नान करनेके प ात् तुम और तु हारी माता पु ा तके उ े यसे दो भ - भ वृ का आ लगन करो। तु हारी माता तो पीपलका और तुम गूलरका आ लगन करना ।। ३५ ।। े



च य मदं भ े जन या तवैव च । व मावत य वा तु मया य नेन सा धतम् ।। ३६ ।। भ े ! मने वराट् पु ष परमा माका च तन करके तु हारे और तु हारी माताके लये य नपूवक दो च तैयार कये ह ।। ३६ ।। ा शत ं य नेन चे यु वादशनं गतः । आ ल ने चरौ चैव च तु ते वपययम् ।। ३७ ।। तुम दोन य नपूवक अपने-अपने च का भ ण करना; ऐसा कहकर भृगज ु ी अ तधान हो गये। इधर स यवती और उसक माताने वृ के आ लगन और च -भ णम उलट-फेर कर दया ।। ३७ ।। ततः पुनः स भगवान् काले ब तथे गते । द ानाद् व द वा तु भगवानागतः पुनः ।। ३८ ।। तदन तर ब त दन बीतनेपर भगवान् भृगु अपनी द ानश से सब बात जानकर पुनः वहाँ आये ।। ३८ ।। अथोवाच महातेजा भृगुः स यवत नुषाम् । उपयु भ े वृ े चा ल नं कृतम् ।। ३९ ।। वपरीतेन ते सु ूमा ा चैवा स व चता । ा णः वृ व तव पु ो भ व य त ।। ४० ।। उस समय महातेज वी भृगु अपनी पु वधू स यवतीसे बोले—‘भ े ! तुमने जो च भ ण और वृ का आ लन कया है, उसम उलट-फेर करके तु हारी माताने तु ह ठग लया। सु ू! इस भूलके कारण तु हारा पु ा ण होकर भी यो चत आचारवचारवाला होगा’ ।। ३९-४० ।। यो ा णाचारो मातु तव सुतो महान् । भ व य त महावीयः साधूनां मागमा थतः ।। ४१ ।। ‘और तु हारी माताका पु य होकर भी ा णो चत आचार- वचारका पालन करनेवाला होगा। वह महापरा मी बालक साधु-महा मा के मागका अवल बन करेगा’ ।। ४१ ।। ततः सादयामास शुरं सा पुनः पुनः । न मे पु ो भवेद क् कामं पौ ो भवे द त ।। ४२ ।। तब स यवतीने बारंबार ाथना करके पुनः अपने शुरको स कया और कहा —‘भगवन्! मेरा पु ऐसा न हो। भले ही, पौ य वभावका हो जाय’ ।। ४२ ।। एवम व त सा तेन पा डव तन दता । जमद नं ततः पु ं ज े सा काल आगते ।। ४३ ।। पा डु न दन! तब ‘एवम तु’ कहकर भृगज ु ीने अपनी पु वधूका अ भन दन कया। त प ात् सवका समय आनेपर स यवतीने जमद ननामक पु को ज म दया ।। ४३ ।। तेजसा वचसा चैव यु ं भागवन दनम् । स वधमान तेज वी वेद या ययनेन च ।। ४४ ।। ी े े

बनृषीन् महातेजाः पा डवेया यवतत । भागवन दन जमद न तेज और ओज (बल) दोन से स प थे। यु ध र! बड़े होनेपर महातेज वी जमद न मु न वेदा ययन ारा अ य ब त-से ऋ षय से आगे बढ़ गये ।। ४४ ।। तं तु कृ नो धनुवदः यभाद् भरतषभ । चतु वधा न चा ा ण भा करोपमवचसम् ।। ४५ ।। भरत े ! सूयके समान तेज वी जमद नक बु म स पूण धनुवद और चार कारके अ वतः फु रत हो गये ।। ४५ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायां कातवीय पा याने प चदशा धकशततमोऽ यायः ।। ११५ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम कातवीय पा यान वषयक एक सौ प हवाँ अ याय पूरा आ ।। ११५ ।।

षोडशा धकशततमोऽ यायः पताक आ ासे परशुरामजीका अपनी माताका म तक काटना और उ ह के वरदानसे पुनः जलाना, परशुरामजी ारा कातवीय-अजुनका वध और उसके पु ारा जमद न मु नक ह या अकृत ण उवाच स वेदा ययने यु ो जमद नमहातपाः । तप तेपे ततो दे वान् नयमाद् वशमानयत् ।। १ ।। अकृत ण कहते ह—राजन्! महातप वी जमद नने वेदा ययनम त पर होकर तप या आ मभ क । तदन तर शौचसंतोषा द नयम का पालन करते ए उ ह ने स पूण दे वता को अपने वशम कर लया* ।। १ ।। स सेन जतं राज धग य नरा धपम् । रेणुकां वरयामास स च त मै ददौ नृपः ।। २ ।। यु ध र! फर राजा सेन जत्के पास जाकर जमद न मु नने उनक पु ी रेणुकाके लये याचना क और राजाने मु नको अपनी क या याह द ।। २ ।। रेणुकां वथ स ा य भाया भागवन दनः । आ म थ तया साध तप तेपेऽनुकूलया ।। ३ ।। भृगक ु ु लका आन द बढ़ानेवाले जमद न राजकुमारी रेणुकाको प नी पम पाकर आ मपर ही रहते ए उसके साथ तप या करने लगे। रेणुका सदा सब कारसे प तके अनुकूल चलनेवाली ी थी ।। ३ ।। त याः कुमारा वारो ज रे रामप चमाः । सवषामजघ य तु राम आसी जघ यजः ।। ४ ।। उसके गभसे मशः चार पु ए, फर पाँचव पु परशुरामजीका ज म आ। अव थाक से भाइय म छोटे होनेपर भी वे गुण म उन सबसे बढ़े -चढ़े थे ।। ४ ।। फलाहारेषु सवषु गते वथ सुतेषु वै । रेणुका नातुमगमत् कदा च यत ता ।। ५ ।। एक दन जब सब पु फल लानेके लये वनम चले गये तब नयमपूवक उ म तका पालन करनेवाली रेणुका नान करनेके लये नद -तटपर गयी ।। ५ ।। सा तु च रथं नाम मा तकावतकं नृपम् । ददश रेणुका राज ाग छ ती य छया ।। ६ ।। े

ड तं स लले ् वा सभाय पमा लनम् । ऋ म तं तत त य पृहयामास रेणुका ।। ७ ।। राजन्! जब वह नान करके लौटने लगी उस समय अक मात् उसक मा तकावत दे शके राजा च रथपर पड़ी, जो कमल क माला धारण करके अपनी प नीके साथ जलम ड़ा कर रहा था। उस समृ शाली नरेशको उस अव थाम दे खकर रेणुकाने उसक इ छा क ।। ६-७ ।। भचारा च त मात् सा ल ा भ स वचेतना । ववेशा मं ता तां वै भता वबु यत ।। ८ ।। उस समय इस मान सक वकारसे वत ई रेणुका जलम बेहोश-सी हो गयी। फर त होकर उसने आ मके भीतर वेश कया। परंतु प तदे व उसक सब बात जान गये ।। ८ ।। स तां ् वा युतां धैयाद् ा या ल या वव जताम् । ध छ दे न महातेजा गहयामास वीयवान् ।। ९ ।। उसे धैयसे युत और तेजसे वं चत ई दे ख उन महातेज वी श शाली मह षने ध कारपूण वचन ारा उसक न दा क ।। ९ ।। ततो ये ो जामद यो म वान् नाम नामतः । आजगाम सुषेण वसु व ावसु तथा ।। १० ।। इसी समय जमद नके ये पु म वान् वहाँ आ गये। फर मशः सुषेण, वसु और व ावसु भी आ प ँचे ।। १० ।। तानानुपू ाद् भगवान् वधे मातुरचोदयत् । न च ते जातसं नेहाः क च चु वचेतसः ।। ११ ।। भगवान् जमद नने बारी-बारीसे उन सभी पु को यह आ ा द क तुम अपनी माताका वध कर डालो, परंतु मातृ नेह उमड़ आनेसे वे कुछ भी बोल न सके—बेहोश-से खड़े रहे ।। ११ ।। ततः शशाप तान् ोधात् ते श ता ेतनां ज ः । मृगप सधमाणः मास डोपमाः ।। १२ ।। तब मह षने कु पत हो उन सब पु को शाप दे दया। शाप त होनेपर वे अपनी चेतना ( वचार-श ) खो बैठे और तुरंत मृग एवं प य के समान जडबु हो गये ।। १२ ।। ततो रामोऽ ययात् प ादा मं परवीरहा । तमुवाच महाबा जमद नमहातपाः ।। १३ ।। तदन तर श ुप के वीर का संहार करनेवाले परशुरामजी सबसे पीछे आ मपर आये। उस समय महातप वी महाबा जमद नने उनसे कहा — ।। १३ ।।

जहीमां मातरं पापां मा च पु थां कृथाः । तत आदाय परशुं रामो मातुः शरोऽहरत् ।। १४ ।। ‘बेटा! अपनी इस पा पनी माताको अभी मार डालो और इसके लये मनम कसी कारका खेद न करो।’ तब परशुरामजीने फरसा लेकर उसी ण माताका म तक काट डाला ।। १४ ।। तत त य महाराज जमद नेमहा मनः । कोपोऽ यग छत् सहसा स ा वी ददम् ।। १५ ।। महाराज! इससे महा मा जमद नका कोप सहसा शा त हो गया और उ ह ने स होकर कहा— ।। १५ ।। ममेदं वचनात् तात कृतं ते कम करम् । वृणी व कामान् धम यावतो वा छसे दा ।। १६ ।। स व े मातु थानम मृ त च वध य वै । पापेन तेन चा पश ातॄणां कृ त तथा ।। १७ ।। अ त तां यु े द घमायु भारत । ददौ च सवान् कामां ता मद नमहातपाः ।। १८ ।। ‘तात! तुमने मेरे कहनेसे यह काय कया है, जसे करना सर के लये ब त क ठन है। तुम धमके ाता हो। तु हारे मनम जो-जो कामनाएँ ह , उन सबको माँग लो।’ तब परशुरामजीने कहा—‘ पताजी! मेरी माता जी वत हो उठ, उ ह मेरे ारा मारे जानेक बात याद न रहे, वह मानस-पाप उनका पश न कर सके, े े ई ो ँ े े ोई ोऔ

मेरे चार भाई व थ हो जायँ, यु म मेरा सामना करनेवाला कोई न हो और म बड़ी आयु ा त क ँ ।’ भारत! महातप वी जमद नने वरदान दे कर उनक वे सभी कामनाएँ पूण कर द ।। १६—१८ ।। कदा चत् तु तथैवा य व न ा ताः सुताः भो । अथानूपप तव रः कातवीय ऽ यवतत ।। १९ ।। यु ध र! एक दन इसी तरह उनके सब पु बाहर गये ए थे। उसी समय अनूपदे शका वीर राजा कातवीय अजुन उधर आ नकला ।। १९ ।। तमा मपदं ा तमृषेभाया समाचयत् । स यु मदस म ो ना यन दत् तथाचनम् ।। २० ।। मय चा मात् त मा ोमधेनो तथा बलात् । जहार व सं ोश या बभ च महा मान् ।। २१ ।। आ मम आनेपर ऋ षप नी रेणुकाने उसका यथो चत आ त य-स कार कया। कातवीय अजुन यु के मदसे उ म हो रहा था। उसने उस स कारको आदरपूवक हण नह कया। उलटे मु नके आ मको तहस-नहस करके वहाँसे डकराती ई होमधेनुके बछड़ेको बलपूवक हर लया और आ मके बड़े-बड़े वृ को भी तोड़ डाला ।। २०-२१ ।। आगताय च रामाय तदाच पता वयम् । गां च रो दत ् वा कोपो रामं समा वशत् ।। २२ ।। जब परशुरामजी आ मम आये तब वयं जमद नने उनसे सारी बात कह । बारंबार डकराती ई होमक धेनुपर भी उनक पड़ी। इससे वे अ य त कु पत हो उठे ।। २२ ।।

स मृ युवशमाप ं कातवीयमुपा वत् । त याथ यु ध व य भागवः परवीरहा ।। २३ ।। च छे द न शतैभ लैबान् प रघसं नभान् । सह स मतान् राजन् गृ चरं धनुः ।। २४ ।। और कालके वशीभूत ए कातवीय अजनपर धावा बोल दया। श ुवीर का संहार करनेवाले भृगन ु दन परशुरामजीने अपना सु दर धनुष ले यु म महान् परा म दखाकर पैने बाण ारा उसक प रघस श सह भुजा को काट डाला ।। २३-२४ ।। अ भभूतः स रामेण संयु ः कालधमणा । अजुन याथ दायादा रामेण कृतम यवः ।। २५ ।। इस कार परशुरामजीसे परा त हो कातवीय अजुन कालके गालम चला गया। पताके मारे जानेसे अजनके पु परशुरामजीपर कु पत हो उठे ।। २५ ।। आ म थं वना रामं जमद नमुपा वन् । ते तं ज नुमहावीयमयु य तं तप वनम् ।। २६ ।। और एक दन परशुरामजीक अनुप थ तम जब आ मपर केवल जमद नजी ही रह गये थे, वे उ ह पर चढ़ आये। य प जमद नजी महान् श शाली थे तो भी तप वी ा ण होनेके कारण यु म वृ नह ए। इस दशाम भी कातवीयके पु उनपर हार करने लगे ।। २६ ।। असकृद् रामरामे त व ोश तमनाथवत् । कातवीय य पु ा तु जमद नं यु ध र ।। २७ ।। ी



पीड य वा शरैज मुयथागतमरदमाः । अप ा तेषु वै तेषु जमद नौ तथा गते ।। २८ ।। स म पा ण पाग छदा मं भृगुन दनः । स ा पतरं वीर तथा मृ युवशं गतम् । अनह तं तथाभूतं वललाप सु ःखतः ।। २९ ।। यु ध र! वे मह ष अनाथक भाँ त ‘राम! राम!!’ क रट लगा रहे थे, उसी अव थाम कातवीय अजुनके पु ने उ ह बाण से घायल करके मार डाला। इस कार मु नक ह या करके वे श ुसंहारक य जैसे आये थे, उसी कार लौट गये। जमद नके इस तरह मारे जानेके बाद जब वे कातवीय-पु भाग गये, तब भृगन ु दन परशुरामजी हाथ म स मधा लये आ मम आये। वहाँ अपने पताको इस कार दशापूवक मरा दे ख उ ह बड़ा ःख आ। उनके पता इस कार मारे जानेके यो य कदा प नह थे, परशुरामजी उ ह याद करके वलाप करने लगे ।। २७—२९ ।। इ त ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायां कातवीय पा याने जमद नवधे षोडशा धकशततमोऽ यायः ।। ११६ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम कातवीय पा यानम जमद नवध वषयक एक सौ सोलहवाँ अ याय पूरा आ ।। ११६ ।।

* यहाँ कुछ तय म ‘दे वान्’ क जगह ‘वेदान्’ पाठ मलता है। उस दशाम यह अथ होगा क ‘वेद को वशम कर लया।’ परंतु वेद को वशम करनेक बात असंगत-सी लगती है। दे वता को वशम करना ही सुसंगत जान पड़ता है, इस लये हमने ‘दे वान्’ यही पाठ रखा है। का मीरक दे वनागरी ल पवाली ह त लखत पु तकम यहाँ तीन ोक अ धक मलते ह। उनसे भी ‘दे वान्’ पाठका ही समथन होता है। वे ोक इस कार ह— तं त यमानं षमूचुदवाः सबा धवाः । कमथ त यसे न् कः कामः ा थत तव ।। एवमु ः युवाच दे वान् षस मः । वगहेतो तप त ये लोका युममा याः ।। त छ वा वचनं त य तदा दे वा तमू चरे । नासंततेभवे लोकः कृ वा धमशता य प ।। स ु वा वचनं तेषां दशानां कु ह ।। इन ोक ारा दे वता के कट होकर वरदान दे नेका संग सू चत होता है, अतः ‘..…… ततो दे वान् नयमाद् वशमानयत्’ यही पाठ ठ क है।

स तदशा धकशततमोऽ यायः परशुरामजीका पताके लये वलाप और पृ वीको इ क स बार नः य करना एवं महाराज यु ध रके ारा परशुरामजीका पूजन राम उवाच ममापराधात् तैः ु ै हत वं तात बा लशैः । कातवीय य दायादै वने मृग इवेषु भः ।। १ ।। परशुरामजी बोले—हा तात! मेरे अपराधका बदला लेनेके लये कातवीयके उन नीच और पामर पु ने वनम बाण ारा मारे जानेवाले मृगक भाँ त आपक ह या क है ।। १ ।। धम य कथं तात वतमान य स पथे । मृ युरेवं वधो यु ः सवभूते वनागसः ।। २ ।। पताजी! आप तो धम होनेके साथ ही स मागपर चलनेवाले थे, कभी कसी भी ाणीके त कोई अपराध नह करते थे, फर आपक ऐसी मृ यु कैसे उ चत हो सकती है? ।। २ ।। क नु तैन कृतं पापं यैभवां तप स थतः । अयु यमानो वृ ः सन् हतः शरशतैः शतैः ।। ३ ।। आप तप याम संल न, यु से वरत और वृ थे तो भी ज ह ने सैकड़ तीखे बाण ारा आपक ह या क है, उ ह ने कौन-सा पाप नह कया? ।। ३ ।।

क नु ते त व य त स चवेषु सु सु च । अयु यमानं धम मेकं ह वानप पाः ।। ४ ।। वे नल ज राजकुमार यु से र रहनेवाले आप-जैसे धम एवं असहाय पु षको मारकर अपने सु द और म य के सामने या कहगे? ।। ४ ।। वल यैवं सक णं ब नाना वधं नृप । ेतकाया ण सवा ण पतु े महातपाः ।। ५ ।। ददाह पतरं चा नौ रामः परपुरंजयः । तज े वधं चा प सव य भारत ।। ६ ।। राजन्! इस कार भाँ त-भाँ तसे अ य त क णा-जनक वलाप करके श ु क राजधानीपर वजय पानेवाले महातप वी परशुरामजीने अपने पताके सम त ेतकम कये। भारत! पहले तो उ ह ने व धपूवक अ नम पताका दाह-सं कार कया, त प ात् स पूण य के वधक त ा क ।। ५-६ ।। सं ु ोऽ तबलः सं ये श मादाय वीयवान् । ज नवान् कातवीय य सुतानेकोऽ तकोपमः ।। ७ ।। अ य त बलवान् एवं परा मी परशुरामजी ोधके आवेशम सा ात् यमराजके समान हो गये। उ ह ने यु म श लेकर अकेले ही कातवीयके सब पु को मार डाला ।। ७ ।। तेषां चानुगता ये च याः यषभ ।

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सवानवामृदन ् ाद् रामः हरतां वरः ।। ८ ।। य शरोमणे! उस समय जन- जन य ने उनका साथ दया, उन सबको भी यो ा म े परशुरामजीने म म मला दया ।। ८ ।। ःस तकृ वः पृ थव कृ वा नः यां भुः । सम तप चके प च चकार धर दान् ।। ९ ।। इस कार भगवान् परशुरामने इस पृ वीको इ क स बार य से सूनी करके उनके र से सम तप चक े म पाँच धर-कु ड भर दये ।। ९ ।। स तेषु तपयामास भृगून् भृगुकुलो हः । सा ाद् ददश चच कं स च रामं यवारयत् ।। १० ।। भृगक ु ु लभूषण रामने उन कु ड म भृगव ु ंशी पतर का तपण कया और उस समय सा ात् कट ए मह ष ऋचीकको दे खा। उ ह ने परशुरामको इस घोर कमसे रोका ।। १० ।। ततो य ेन महता जामद यः तापवान् । तपयामास दे वे मृ व यः ददौ महीम् ।। ११ ।। तदन तर तापी जमद नकुमारने एक महान् य करके दे वराज इ को तृ त कया तथा ऋ वज को द णा पम भू म द ।। ११ ।।







वेद चा यदद ै म क यपाय महा मने । दश ामायतां कृ वा नवो सेधां वशा पते ।। १२ ।। यु ध र! उ ह ने महा मा क यपको एक सोनेक वेद दान क , जसक ल बाईचौड़ाई दस-दस ाम (चालीस-चालीस हाथ)-क थी। ऊँचाईम भी वह वेद नौ ाम (छ ीस हाथ)-क थी ।। १२ ।। तां क यप यानुमते ा णाः ख डश तदा । भजं ते तदा राजन् याताः खा डवायनाः ।। १३ ।। राजन्! उस समय क यपजीक आ ासे ा ण ने उस वणवेद को ख ड-ख ड करके बाँट लया, अतः वे खा डवायन नामसे स ए ।। १३ ।। स दाय मह त मै क यपाय महा मने । अ मन् महे े शैले े वस य मत व मः ।। १४ ।। इस कार सारी पृ वी महा मा क यपको दे कर अ मत परा मी परशुरामजी इस पवतराज महे पर नवास करते ह ।। १४ ।। एवं वैरमभूत् त य यैल कवा स भः । पृ थवी चा प व जता रामेणा मततेजसा ।। १५ ।। इस तरह उनका स पूण जगत्के य के साथ वैर आ था और उसी समय अ मत तेज वी परशुरामजीने सारी पृ वी जीती थी ।। १५ ।। वैश पायन उवाच तत तुदश रामः समयेन महामनाः । दशयामास तान् व ान् धमराजं च सानुजम् ।। १६ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर चतुदशी त थको न त समयपर महामना परशुरामजीने उस पवतपर रहनेवाले उन ा ण तथा भाइय स हत यु ध रको दशन दया ।। १६ ।। स तमानच राजे ातृ भः स हतः भुः । जानां च परां पूजां च े नृप तस मः ।। १७ ।। राजे ! उस समय भावशाली नृप े यु ध रने भाइय के साथ ापूवक भगवान् परशुरामजीक पूजा क तथा अ य ा ण का भी ब त आदर-स कार कया ।। १७ ।। अ च वा जामद यं स पू जत तेन चो दतः । महे उ य तां रा ययौ द णामुखः ।। १८ ।। जमद नन दन परशुरामजीक पूजा करके वयं भी उनके ारा स मा नत हो वे उ ह क आ ासे उस रातको महे पवतपर ही रहे, फर सबेरे उठकर द ण दशाक ओर चल दये ।। १८ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायां कातवीय पा याने स तदशा धकशततमोऽ यायः ।। ११७ ।।













इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम कातवीय पा यान वषयक एक सौ स हवाँ अ याय पूरा आ ।। ११७ ।।

अ ादशा धकशततमोऽ यायः यु ध रका व भ तीथ म होते ए भास े म प ँचकर तप याम वृ होना और यादव का पा डव से मलना वैश पायन उवाच ग छन् स तीथा न महानुभावः पु या न र या ण ददश राजा । सवा ण व ै पशो भता न व चत् व चद् भारत सागर य ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! आगे जाते ए महानुभाव राजा यु ध रने समु तटके सम त पु य तीथ का दशन कया। वे सभी तीथ परम मनोहर थे। उनम कह कह ा णलोग नवास करते थे, जससे उन तीथ क बड़ी शोभा होती थी ।। १ ।। स वृ वां तेषु कृता भषेकः सहानुजः पा थवपु पौ ः । समु गां पु यतमां श तां जगाम पा र त पा डु पु ः ।। २ ।। परी तन दन! सदाचारी पा डु कुमार यु ध र क यपपु सूयदे वके पौ थे ( य क उनक उ प सूयकुमार धमसे ई थी)। वे भाइय स हत उन तीथ म नान करके समु गा मनी पु यमयी श ता नद के तटपर गये ।। २ ।। त ा प चा लु य महानुभावः संतपयामास पतॄन् सुरां । जा तमु येषु धनं वसृ य गोदावर सागरगामग छत् ।। ३ ।। महानुभाव यु ध रने वहाँ भी नान करके दे वता और पतर का तपण कया तथा े ा ण को धन दान करके सागरगा मनी गोदावरी नद क ओर थान कया ।। ३ ।। ततो वपा मा वडेषु राजन् समु मासा च लोकपु यम् । अग यतीथ च महाप व ं नारीतीथा यथ वीरो ददश ।। ४ ।। जनमेजय! गोदावरीम नान करके प व हो वे वहाँसे वड़दे शम घूमते ए संसारके पु यमय तीथ समु के तटपर गये। वहाँ नाना द करनेके प ात् वीर पा डु कुमारने आगे बढ़कर परम प व अग यतीथ तथा * नारीतीथ का दशन कया ।। ४ ।। त ाजुन या यधनुधर य नश य तत् कम नरैरश यम् । ै

स पू यमानः परम षसङ् घैः परां मुदं पा डु सुतः स लेभे ।। ५ ।। स तेषु तीथ व भ ष गा ः कृ णासहायः स हतोऽनुजै । स पूजयन् व ममजुन य रेमे महीपाल प तः पृ थ ाः ।। ६ ।। वहाँ े धनुधर अजुनके उस परा मको, जो सरे मनु य के लये अस भव था, सुनकर पा डु न दन यु ध रको बड़ी स ता ा त ई। उन तीथ म बड़े-बड़े ऋ षगण भी उनका स कार करते थे। जनमेजय! ौपद तथा भाइय के साथ राजा यु ध रने उन पाँच तीथ म नान करके अजुनके परा मक शंसा करते ए बड़े हषका अनुभव कया ।। ५-६ ।। ततः सह ा ण गवां दाय तीथषु ते व बुधरो म य । ः सह ातृ भरजुन य संक तयामास गवां दानम् ।। ७ ।। तदन तर समु तटवत उन सभी तीथ म सह गोदान करके भाइय स हत यु ध रने स तापूवक अजुनके ारा कये ए गोदानका बारंबार वणन कया ।। ७ ।। स ता न तीथा न च सागर य पु या न चा या न ब न राजन् । मेण ग छन् प रपूणकामः शूपारकं पु यतमं ददश ।। ८ ।। राजन्! समु स ब धी तथा अ य ब त-से पु य तीथ म मशः मण करते ए पूणकाम राजा यु ध रने अ य त पु यमय शूपारकतीथका दशन कया ।। ८ ।। त ोदधेः कं चदती य दे शं यातं पृ थ ां वनमाससाद । त तं सुरै त तपः पुर ताद ं तथा पु यपरैनरे ै ः ।। ९ ।। वहाँ समु के कुछ भागको लाँघकर वे एक ऐसे वनम आये जो भूम डलम सव व यात था। वहाँ पूवकालम दे वता ने तप या क थी और पु या मा नरेश ने य का अनु ान कया था ।। ९ ।। स त ताम यधनुधर य वेद ददशायतपीनबा ः । ऋचीकपु य तप वसङ् घैः समावृतां पु यकृदचनीयाम् ।। १० ।। ल बी और मोट भुजा वाले यु ध रने उस वनम धनुधर शरोम ण ऋचीकवंशी परशुरामजीक वेद दे खी, जो पु या मा पु ष के लये पूजनीय थी तथा तप वय के े े े े े

समुदाय उसे सदा घेरे रहते थे ।। १० ।। ततो वसूनां वसुधा धपः स म णानां च तथा नो । वैव वता द यधने राणाम य व णोः स वतु वभो ।। ११ ।। भव य च य दवाकर य पतेरपां सा यगण य चैव । धातुः पतॄणां च तथा महा मा य राजन् सगण य चैव ।। १२ ।। सर व याः स गण य चैव पु या ये चा यमरा तथा ये । पु या न चा यायतना न तेषां ददश राजा सुमनोहरा ण ।। १३ ।। राजन्! त प ात् उन महा मा नरेशने वसु, म ण, अ नीकुमार, यम, आ द य, कुबेर, इ , व णु, भगवान् स वता, शव, च मा, सूय, व ण, सा यगण, धाता, पतृगण, अपने गण स हत , सर वती, स समुदाय तथा अ य पु यमय दे वता के परम प व और मनोहर म दर के दशन कये ।। ११—१३ ।। तेषूपवासान् वबुधानुपो य द वा च र ना न महा त राजा । तीथषु सवषु प र लुता ः पुनः स शूपारकमाजगाम ।। १४ ।। उन तीथ के नकट नवास करनेवाले व ान् ा ण को व ाभूषण से आ छा दत एवं वभू षत करके उ ह ब मू य र न क भट दे वहाँके सभी तीथ म नान करके महाराज यु ध र पुनः शूपारक- े म लौट आये ।। १४ ।। स तेन तीथन तु सागर य पुनः यातः सह सोदरीयैः । जैः पृ थ ां थतं मह तीथ भासं समुपाजगाम ।। १५ ।। वहाँसे थत हो वे भाइय स हत सागरतटवत तीथ के मागसे होते ए फर भास े आये जो े ा ण के कारण भूम डलम अ धक स है ।। १५ ।। त ा भ ष ः पृथुलो हता ः सहानुजैदवगणान् पतॄं । संतपयामास तथैव कृ णा ते चा प व ाः सह लोमशेन ।। १६ ।। वहाँ भाइय स हत नान करके वशाल एवं लाल ने वाले राजा यु ध रने दे वता और पतर का तपण कया। इसी कार ौपद ने, साथ आये ए उन ा ण ने तथा मह ष ो े ी ँ े

लोमशने भी वहाँ नान एवं तपण कये ।। १६ ।। स ादशाहं जलवायुभ ः कुवन् पाहःसु तदा भषेकम् । सम ततोऽ नीनुपद प य वा तेपे तपो धमभृतां व र ः ।। १७ ।। धमा मा म े यु ध र वहाँ बारह दन तक केवल जल और वायु पीकर रहते ए दनम और रातम भी नान करते तथा अपने चार ओर आग जलाकर तप याम लगे रहते थे ।। १७ ।। तमु मा थाय तप र तं शु ाव राम जनादन । तौ सववृ ण वरौ ससै यौ यु ध रं ज मतुराजमीढम् ।। १८ ।। इसी समय वृ णवंश शरोम ण भगवान् ीकृ ण और बलरामने सुना क महाराज यु ध र भास े म उ तप या कर रहे ह; तब वे अपने सै नक स हत अजमीढकुलभूषण यु ध रसे मलनेके लये गये ।। १८ ।। ते वृ णयः पा डु सुतान् समी य भूमौ शयानान् मल द धगा ान् । अनहत ौपद चा प ् वा सु ःखता ु शुरातनादम् ।। १९ ।। वहाँ जाकर वृ णवं शय ने दे खा, पा डवलोग पृ वीपर सो रहे ह, उनके सारे अंग धूलसे सने ए ह तथा क सहनके अयो य ौपद भी भारी दशा भोग रही है। यह सब दे खकर वे बड़े ःखी ए और आत वरसे रोने लगे ।। १९ ।। ततः स रामं च जनादनं च का ण च सा बं च शने पौ म् । अ यां वृ णीनुपग य पूजां च े यथाधममहीनस वः ।। २० ।। (उस महान् संकटम भी) महाराज यु ध रने अपना धैय नह छोड़ा था। उ ह ने बलराम, ीकृ ण, ु न, सा ब, सा य क तथा अ या य वृ णवं शय के पास जा-जाकर धमानुसार उन सबका आदर-स कार कया ।। २० ।। ते चा प सवान् तपू य पाथातैः स कृताः पा डु सुतै तथैव । यु ध रं स प रवाय राजुपा वशन् दे वगणा यथे म् ।। २१ ।। राजन्! पा डु पु ारा स कृत होकर यादव ने भी उन सबका यथो चत स कार कया और फर दे वता जैसे इ के चार ओर बैठ जाते ह उसी कार वे धमराज यु ध रको सब ओरसे घेरकर बैठ गये ।। २१ ।। े े

तेषां स सव च रतं परेषां वने च वासं परम तीतः । अ ाथ म य गतं च पाथ नवेशनं मनाः शशंस ।। २२ ।। त प ात् राजा यु ध रने अ य त व त होकर यादव से श ु क सारी करतूत कह सुनाय और अपने वनवासका भी सब समाचार बताया। साथ ही बड़ी स ताके साथ यह भी सू चत कया क अजुन द ा क ा तके लये इ लोकम गये ह ।। २२ ।। ु वा तु ते त य वचः तीतातां ा प ् वा सुकृशानतीव । ने ो वं स मुमुचुमहाहा ःखा तजं वा र महानुभावाः ।। २३ ।। यु ध रका यह वचन सुनकर उ ह कुछ सा वना मली। परंतु पा डव को अ य त बल दे खकर वे परम पूजनीय महानुभाव यादव वीर ःख और वेदनासे पी ड़त हो आँसू बहाने लगे ।। २३ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायां भासे यादवपा डवसमागमे अ ादशा धकशततमोऽ यायः ।। ११८ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम भास े के भीतर यादव-पा डव-समागम वषयक एक सौ अठारहवाँ अ याय पूरा आ ।। ११८ ।।

* पाँच अ सरा

के तीथ।

भगवान् परशुराम ारा सह ाजुनका वध

भास े म पा डव क यादव से भट

एकोन वश य धकशततमोऽ यायः भासतीथम बलरामजीके पा डव के सहानुभू तसूचक ःखपूण उ ार



जनमेजय उवाच भासतीथमासा पा डवा वृ णय तथा । कमकुवन् कथा ैषां का त ासं तपोधन ।। १ ।। ते ह सव महा मानः सवशा वशारदाः । वृ णयः पा डवा ैव सु द पर परम् ।। २ ।। जनमेजयने पूछा—तपोधन! भासतीथम प ँचकर पा डव तथा वृ णवं शय ने या कया? वहाँ उनम कैसी बातचीत ई? वे सब महा मा यादव और पा डव स पूण शा के व ान् और एक- सरेका हत चाहनेवाले थे, (अतः उनम या बात ई? यह म जानना चाहता ँ) ।। १-२ ।। वैश पायन उवाच भासतीथ स ा य पु यं तीथ महोदधेः । वृ णयः पा डवान् वीराः प रवाय पत थरे ।। ३ ।। वैश पायनजीने कहा—राजन्! भास े समु -तटवत एक पु यमय तीथ है। वहाँ जाकर वृ णवंशी वीर पा डव को चार ओरसे घेरकर बैठ गये ।। ३ ।। ततो गो ीरकु दे मृणालरजत भः । वनमाली हली रामो बभाषे पु करे णम् ।। ४ ।। तदन तर गो ध, कु दकुसुम, च मा, मृणाल (कमलनाल) तथा चाँद क -सी का तवाले वनमाला- वभू षत हलधर बलरामने कमलनयन भगवान् ीकृ णसे कहा ।। ४ ।। बलदे व उवाच न कृ ण धम रतो भवाय ज तोरधम पराभवाय । यु ध रो य जट महा मा वना यः ल य त चीरवासाः ।। ५ ।। बलदे वजी बोले— ीकृ ण! जान पड़ता है आचरणम लाया आ धम भी ा णय के अ युदयका कारण नह होता; और उनका कया आ अधम भी पराजयक ा त करानेवाला नह होता, य क महा मा यु ध रको (जो सदा धमका ही पालन करते ह) जटाधारी होकर व कल व पहने वनम रहते ए महान् लेश भोगना पड़ रहा है ।। ५ ।। य धन ा प मह शा त

न चा य भू म ववरं ददा त । धमादधम रतो वरीयानतीव म येत नरोऽ पबु ः ।। ६ ।। य धने चा प ववधमाने यु ध रे चासुखमा रा ये । क व कत म त जा भः शङ् का मथः संज नता नराणाम् ।। ७ ।।

उधर, य धन (अधमपरायण होनेपर भी) पृ वीका शासन कर रहा है। उसके लये यह पृ वी भी नह फटती है। इससे तो म द बु वाले मनु य यही समझगे क धमाचरणक अपे ा अधमका आचरण ही े है। य धन नर तर उ त कर रहा है और यु ध र छलसे रा य छन जानेके कारण ःख उठा रहे ह। (यु ध र और य धनके ा तको सामने रखकर) मनु य म पर पर महान् संदेह खड़ा हो गया है। जा यह सोचने लगी है क हम या करना चा हये—हम धमका आ य लेना चा हये या अधमका? ।। ६-७ ।। अयं स धम भवो नरे ो धम धृतः स यधृ तः दाता । चले रा या च सुखा च पाथ े

धमादपेत तु कथं ववधत् ।। ८ ।। ये राजा यु ध र सा ात् धमके पु ह। धम ही इनका आधार है। ये सदा स यका आ य लेते और दान दे ते रहते ह। कु तीकुमार यु ध र रा य और सुख छोड़ सकते ह, (परंतु धमका याग नह कर सकते) भला, धमसे र होकर कोई कैसे अ युदयका भागी हो सकता है? ।। ८ ।। कथं नु भी म कृप व ो ोण राजा च कुल य वृ ः । ा य पाथान् सुखमा ुव त धक् पापबु न् भरत धानान् ।। ९ ।। पतामह भी म, ा ण कृपाचाय, ोण तथा कुलके बड़े-बूढ़े राजा धृतरा—ये कु तीके पु को रा यसे नकालकर कैसे सुख पाते ह? भरतकुलके इन धान य को ध कार है! य क इनक बु पापम लगी ई है ।। ९ ।। क नाम व य यव न धानः पतॄन् समाग य पर पापः । पु ेषु स यक् च रतं मये त पु ानपापान् परो य रा यात् ।। १० ।। पापी राजा धृतरा परलोकम पतर से मलनेपर उनके सामने कैसे यह कह सकेगा क ‘मने अपने और भाई पा डु के पु के साथ याययु बताव कया है।’ जब क उसने इन नद ष पु को रा यसे व चत कर दया है ।। १० ।। नासौ धया स त प य त म क नाम कृ वाहमच ुरेवम् । जातः पृ थ ा म त पा थवेषु ा य कौ तेय म त म रा यात् ।। ११ ।। वह अब भी अपने बु प ने से यह नह दे ख पाता क कौन-सा पाप करनेके कारण मुझे इस कार अ धा होना पड़ा है और आगे कु तीपु यु ध रको रा यसे नकालकर जब म भूतलके राजा म फरसे ज म लूँगा, तब मेरी दशा कैसी होगी? ।। ११ ।। नूनं समृ ान् पतृलोकभूमौ चामीकराभान् तजान् फु लान् । व च वीय य सुतः सपु ः कृ वा नृशंसं बत प य त म ।। १२ ।। व च वीयका पु धृतरा और उसके पु य धन आ द यह ू र कम करके ( व म) न य ही पतृलोकक भू मम सुवणके समान चमकनेवाले समृ शाली एवं पु पत वृ को दे ख रहे ह* ।। १२ ।। ूढो रांसान् पृथुलो हता ान् े



नेमान् म पृ छन् स शृणो त नूनम् । ा थापयद् यत् सवनं सशङ् को यु ध रं सानुजमा श म् ।। १३ ।। धृतरा सु ढ़ कंधे तथा वशाल एवं लाल ने वाले इन भी म आ दसे कोई बात पूछता तो है, परंतु न य ही उनक बात सुनकर मानता नह है, तभी तो भाइय स हत श धारी यु ध रके त भी मनम शंका रखकर इ ह उसने वनम भेज दया है ।। १३ ।। योऽयं परेषां पृतनां समृ ां नरायुधो द घभुजो नह यात् । ु वैव श दं ह वृकोदर य मु च त सै या न शकृत् समू म् ।। १४ ।। (भला! वे कौरव इन पा डव का सामना कैसे कर सकते ह?) ये बड़ी-बड़ी भुजा वाले भीमसेन बना अ -श के ही श ु क श शाली सेनाका संहार कर सकते ह। भीमका तो सहनाद सुनकर ही वरोधी दलके सै नक मल-मू करने लगते ह ।। १४ ।। स ु पपासा वकृश तर वी समे य नानायुधबाणपा णः । वने मरन् वास ममं सुघोरं शेषं न कुया द त न तं मे ।। १५ ।। वे ही वेगशाली भीम इन दन भूख- यास और रा ता चलनेक थकावटसे बल हो गये ह। इस भयंकर वनवासका मरण करते ए जब ये हाथ म अनेक कारके अ -श एवं धनुष-बाण लये श ु पर आ मण करगे, उस समय कसीको भी जीता न छोड़गे—यह मेरा न य है ।। १५ ।। न य वीयण बलेन क त् समः पृ थ ाम प व तेऽ यः । स शीतवातातपक शता ो न शेषमाजावसु सु कुयात् ।। १६ ।। इनके समान परा मी और बलवान् वीर इस पृ वीपर कोई नह है। इस समय सदगरमी और वायुके क से य प इनका शरीर बला हो गया है तो भी समरम श ु मसे कसीको भी ये शेष नह रहने दगे ।। १६ ।। ा यां नृपानेकरथेन ज वा वृकोदरः सानुचरान् रणेषु । व यागमद् योऽ तरथ तर वी सोऽयं वने ल य त चीरवासाः ।। १७ ।। यः स धुकूले जय ृदेवान् समागतान् दा णा यान् महीपान् । तं प यतेमं सहदे वम े

तर वनं तापसवेष पम् ।। १८ ।। जो पूव दशाम ( द वजयक या ाके समय) केवल एक रथ लेकर यु म ब त-से राजा को सेवक स हत परा त करके सकुशल लौट आये थे, वे ही अ तरथी और वेगशाली वीर वृकोदर आज वनम व कल व पहनकर क भोग रहे ह। जसने समु तटपर सामना करनेके लये आये ए द ण दशाके स पूण राजा पर वजय पायी थी, उसी वेगवान् वीर इस सहदे वको दे खो—यह आज तप वीक -सी वेषभूषा धारण कये ए ःख पा रहा है ।। १७-१८ ।। यः पा थवानेकरथेन ज ये दशं तीच त यु शौ डः । सोऽयं वने मूलफलेन जीवट चर य मला चता ः ।। १९ ।। जस यु कुशल नकुलने एकमा रथक सहायतासे प म दशाके सम त भूपाल को जीत लया था, वही आज वनम फल-मूलसे जीवन- नवाह करता आ सरपर जटा धारण कये म लन शरीरसे वचर रहा है ।। १९ ।। स े समृ े ऽ तरथ य रा ो वेद तला प तता सुता या । सेयं वने वास ममं सु ःखं कथं सह य सती सुखाहा ।। २० ।। जो अ तरथी राजा पदके समृ शाली य म वेद से कट ई थी, वही यह सुख भोगनेके यो य सती-सा वी ौपद वनवासके इस महान् ःखको कैसे सहन करती है? ।। २० ।। वगमु य य समीरण य दे वे र या यथवा नो । एषां सुराणां तनयाः कथं नु वनेऽचरन् तसुखाः सुखाहाः ।। २१ ।। धम, वायु, इ और अ नीकुमार -जैसे दे वता के ये पु सुख भोगनेके यो य होते ए भी आज सब कारके सुख से व चत हो वनम कैसे वचरण कर रहे ह? ।। २१ ।। जते ह धम य सुते सभाय स ातृके सानुचरे नर ते । य धने चा प ववधमाने कथं न सीद यव नः सशैला ।। २२ ।। प नीस हत धमराज यु ध र जूएम हार गये और भाइय एवं सेवक स हत रा यसे बाहर कर दये गये, उधर य धन (अनी तपरायण होकर भी दनो दन) बढ़ रहा है, ऐसी दशाम पवत स हत यह पृ वी य नह फट जाती? ।। २२ ।। ी











इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायां बलरामवा ये एकोन वश य धकशततमोऽ यायः ।। ११९ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम बलरामवा य वषयक एक सौ उ ीसवाँ अ याय पूरा आ ।। ११९ ।।

* इस कारके वृ को

य दे खना मृ युसूचक माना गया है।

वश य धकशततमोऽ यायः सा य कके शौयपूण उ ार तथा यु ध र ारा ीकृ णके वचन का अनुमोदन एवं पा डव का पयो णी नद के तटपर नवास सा य क वाच न राम कालः प रदे वनाय य रं व तदे व सव । समाचरामो नतीतकालं यु ध रो य प नाह क चत् ।। १ ।। सा य कने कहा—बलरामजी! यह समय बैठकर वलाप करनेका नह है। अब आगे जो कुछ करना है उसीको हम सब लोग मलकर कर। य प महाराज यु ध र हमसे कुछ नह कहते ह तो भी हम अब थ समय न बताकर कौरव को उ चत उ र दे ना चा हये ।। ये नाथव तोऽ भव त लोके ते ना मना कम समारभ ते । तेषां तु कायषु भव त नाथाः श यादयो राम यथा ययातेः ।। २ ।। इस संसारम जो लोग सनाथ ह— जनके ब त-से सहायक ह—वे वयं कोई काय आर भ नह करते ह। उनके सभी काय म वे सहायक एवं सु द् ही सहयोगी होते ह, जैसे यया तके उ ार-कायम श ब आ द उनके ना तय ने योगदान कया था ।। २ ।। येषां तथा राम समारभ ते काया ण नाथाः वमतेन लोके । ते नाथव तः पु ष वीरा नानाथवत् कृ मवा ुव त ।। ३ ।। बलरामजी! जगत्म जनके काय उनके सहायक अपने ही वचारसे ार भ करते ह, वे पु ष े सनाथ माने जाते ह। वे अनाथक भाँ त कभी क म नह पड़ते ।। ३ ।। क मा दमौ रामजनादनौ च ु नसा बौ च मया समेतौ । वस यर ये सहसोदरीयैैलो यनाथान भग य पाथाः ।। ४ ।। आप दोन भाई बलराम और ीकृ ण, मेरेस हत ये ु न और सा ब सब-के-सब मौजूद ह। इन भुवनप तय से मलकर भी ये कु तीके पु अभीतक अपने भाइय के साथ वनम य नवास करते ह? ।। ४ ।। नयातु सा व दशाहसेना

भूतनानायुध च वमा । यम यं ग छतु धातरा ः सबा धवो वृ णबला भभूतः ।। ५ ।। वं ेव कोपात् पृ थवीमपीमां संवे ये त तु शा ध वा । स धातरा ं ज ह सानुब धं वृ ं यथा दे वप तमहे ः ।। ६ ।। उ म तो यह है क आज ही य वं शय क सेना नाना कारके चुर अ -श और व च कवच धारण करके यु के लये थान करे। धृतरापु य धन वृ णवं शय के परा मसे परा जत हो ब धु-बा धव स हत यमलोक चला जाय। बलरामजी! भगवान् ीकृ ण अलग खड़े रह, केवल आप ही चाह तो इस समूची पृ वीको भी अपनी ोधा नक लपट म लपेट सकते ह। जैसे दे वराज इ ने वृ ासुरका वध कया था उसी कार आप भी य धनको उसके सगे-स ब धय -स हत मार डा लये ।। ५-६ ।। ाता च मे यः स सखा गु जनादन या मसम पाथः । यदथमै छन् मनुजाः सुपु ं श यं गु ा तकूलवादम् ।। ७ ।। जो मेरे भाई, सखा और गु ह, जो भगवान् ीकृ णके आ मतु य सु द् ह, वे कु तीकुमार अजुन भी अलग रह। मनु य जस उ े यसे अ छे पु क और गु तकूल न बोलनेवाले श यक कामना करते ह, उसे सफल करनेका समय आ गया है ।। ७ ।। यदथम यु तमु मं तत् करो त कमा यमपारणीयम् । त या वषा यहमु मा ैवह य सवा ण रणेऽ भभूय ।। ८ ।। जसके लये सुयो य श य या पु उ म अ -श उठाता है तथा यु म े एवं अपार परा म कर दखाता है, उसक पू तका यही अवसर है। म सं ामभू मम अपने उ म आयुध ारा श ु क सारी अ -वषाको न करके उनके सम त सै नक को परा त कर ँ गा ।। ८ ।। काया छरः सप वषा नक पैः शरो मै म थता म राम । खड् गेन चाहं न शतेन सं ये काया छर त य बलात् मय ।। ९ ।। बलरामजी! सप, वष एवं अ नके समान भयंकर उ म बाण ारा श ुके सरको धड़से अलग कर ँ गा, साथ ही उस समरांगणम श ुम डलीको म बलपूवक र दकर तीखी तलवार ारा उसका म तक उड़ा ँ गा ।। ९ ।। ततोऽ य सवाननुगान् ह न ये ँ

य धनं चा प कु ँ सवान् । आ ायुधं मा मह रौ हणेय प य तु भैमा यु ध जातहषाः ।। १० ।। तदन तर उसके सम त सेवक स हत य धन और सम त कौरव को भी मार डालूँगा। रो हणीन दन! यु म भयानक परा म दखानेवाले यो ा हष और उ साहम भरकर आज मुझे हाथम अ लये पूव परा म करते ए य दे ख ।। १० ।। न न तमेकं कु योधमु यान नं महाक मवा तकाले । ु नमु ान् न शतान् न श ाः सोढुं कृप ोण वकणकणाः ।। ११ ।। जैसे लयकालीन अ न सूखे घासक रा शको जलाकर भ म कर दे ती है, उसी कार म अकेला ही कौरवदलके धान वीर का संहार कर डालूँगा और ऐसा करते ए सब लोग मुझे य दे खगे। ु नके छोड़े ए तीखे बाण को सहन करनेक श कृपाचाय, ोणाचाय, वकण और कण— कसीम नह है ।। ११ ।। जाना म वीय च जया मज य का णभव येष यथा रण थः । सा बः ससूतं सरथं भुजा यां ःशासनं शा तु बलात् मय ।। १२ ।। म अजुनकुमार अ भम युके भी परा मको जानता ँ। वह समरभू मम खड़ा होनेपर सा ात् ीकृ णन दन ु नके ही समान जान पड़ता है। वीरवर सा ब बलपूवक श ुसेनाको मथकर अपनी दोन भुजा से रथ और सार थस हत ःशासनका दमन कर ।। १२ ।। न व ते जा बवतीसुत य रणे वष ं ह रणो कट य । एतेन बालेन ह श बर य दै य य सै यं सहसा णु म् ।। १३ ।। जा बवतीन दन सा ब रणभू मम बड़े च ड परा मशाली बन जाते ह। उस समय इनके लये कुछ भी अस नह है। इ ह ने बा याव थाम ही सहसा श बरासुरक सेनाको न कर दया था ।। १३ ।। वृ ो र यायतपीनबा रेतेन सं ये नहतोऽ च ः । को नाम सा ब य महारथ य रणे सम ं रथम युद यात् ।। १४ ।। इनक जाँघ गोल ह, भुजाएँ लंबी और मोट ह; इ ह ने यु म अ ारो हय क कतनी ही सेना का संहार कया है। भला, सं ामभू मम महारथी सा बके रथके स मुख कौन आ सकता है? ।। १४ ।।

यथा व या तरम तक य काले मनु यो न व न मेत । तथा व या तरम य सं ये को नाम जीवन् पुनरा जेत ।। १५ ।। जैसे अ तकाल आनेपर यमराजक भुजा म पड़ा आ मनु य कदा प वहाँसे नकल नह सकता, उसी कार रण े म वीरवर सा बके वशम आया आ कौन ऐसा यो ा होगा, जो पुनः जी वत लौट सके ।। १५ ।। ोणं च भी मं च महारथौ तौ सुतैवृतं चा यथ सोमद म् । सवा ण सै या न च वासुदेवः ध यते सायकव जालैः ।। १६ ।। वसुदेवन दन भगवान् ीकृ ण चाह तो अपने बाण पी अ नक लपट से ोण और भी म—इन दोन स महार थय को, पु स हत सोमद को तथा सारी कौरवसेनाको भी भ म कर डालगे ।। १६ ।। क नाम लोके व वष म त कृ ण य सवषु सदे वकेषु । आ ायुध यो मबाणपाणेायुध या तम य यु े ।। १७ ।। दे वता स हत स पूण लोक म कौन-सी ऐसी व तु है, जो हाथ म ह थयार, उ म बाण तथा च धारण करके यु म अनुपम परा म कट करनेवाले भगवान् ीकृ णके लये अस हो ।। १७ ।। ततोऽ न ोऽ य सचमपा णमही ममां धातरा ै वसं ैः । तो मा ै नहतैः करोतु क णा कुशैव द मवा वरेषु ।। १८ ।। गदो मुकौ बा कभानुनीथाः शूर सं ये नशठः क ु मारः । रणो कटौ सारणचा दे णौ कुलो चतं व थय तु कम ।। १९ ।। ढाल-तलवार लये ए वीरवर अ न भी, जैसे य म कुशा ारा य क वेद ढक द जाती है, उसी कार यु म सर कटाकर मरे और अचेत पड़े ए धृतरापु ारा इस भू मको ढक द। गद, उ मुक, बा क, भानु, नीथ, यु म शूरवीर कुमार नशठ तथा रणभू मम च ड परा मी सारण और चा दे ण—ये सब लोग अपने कुलके अनु प परा म कट कर ।। १८-१९ ।। सवृ णभोजा धकयोधमु या समागता सा वतशूरसेना । े ँ

ह वा रणे तान् धृतरा पु ाँलोके यशः फ तमुपाकरोतु ।। २० ।। य वं शय क शौयपूण सेना, जसम वृ ण, भोज और अ धकवंशी यो ा क धानता है, आ मण करके यु म धृतरापु को मार डाले और संसारम अपने उ वल यशका व तार करे ।। २० ।। ततोऽ भम युः पृ थव शा तु यावद् तं धमभृतां व र ः । यु ध रः पारयते महा मा ूते यथो ं कु स मेन ।। २१ ।। धमा मा म े महा मा यु ध र जबतक अपने उस तको, जसे इन कु कुलभूषणने जूएके समय त ापूवक वीकार कया था, पूण न कर ल, तबतक अ भम यु इस पृ वीका शासन करे ।। २१ ।। अ म मु ै व शखै जता रततो मह भो य त धमराजः । नधातरा ां हतसूतपु ामेत नः कृ यतमं यश यम् ।। २२ ।। तदन तर अपना त समा त करके हमारे ारा छोड़े ए बाण से ही श ु पर वजय पाकर धमराज यु ध र इस पृ वीका रा य भोगगे। उस समयतक यह पृ वी धृतराक े पु से र हत हो जायगी और सूतपु कण भी मर जायगा। य द ऐसा आ तो यह हमारे लये महान् यशोवधक काय होगा ।। २२ ।। वासुदेव उवाच असंशयं माधव स यमेतद् गृ म ते वा यमद नस व । वा यां भुजा याम जतां तु भूम ने छे त् कु णामृषभः कथं चत् ।। २३ ।। भगवान् ीकृ ण बोले—उदार दय मधुकुलभूषण सा यके! तु हारी यह बात स य है, इसम त नक भी संशय नह है। हम तु हारे इन वचन को वीकार करते ह; परंतु ये कु े यु ध र कसी भी ऐसी भू मको कसी तरह लेना नह चाहगे, जसे इ ह ने अपनी भुजा ारा न जीता हो ।। २३ ।। न ेष कामा भया लोभाद् यु ध रो जातु ज ात् वधमम् । भीमाजुनौ चा तरथौ यमौ च तथैव कृ णा पदा मजेयम् ।। २४ ।। कामना, भय अथवा लोभ कसी भी कारणसे यु ध र अपना धम कदा प नह छोड़ सकते। उसी तरह अ तरथी वीर भीम, अजुन, नकुल, सहदे व तथा यह पदकुमारी कृ णा ी





भी अपना धम नह छोड़ सकती ।। २४ ।। उभौ ह यु े ऽ तमौ पृ थ ां वृकोदर ैव धनंजय । क मा कृ नां पृ थव शासेमा सुता यां च पुर कृतोऽयम् ।। २५ ।। भीमसेन और अजन—ये दोन वीर यु म इस पृ वीपर अपना सानी नह रखते। इनसे और दोन मा कुमार से संयु होनेपर ये यु ध र सारी पृ वीका शासन कैसे नह कर सकते? ।। २५ ।। यदा तु प चालप तमहा मा सकेकय े दप तवयं च । यु येम व य रणे समेतातदै व सव रपवो ह न युः ।। २६ ।। जब महा मा पांचालराज, केकय, चे दराज और हम सब लोग एक साथ होकर रणम परा म दखायगे, उसी समय हमारे सारे श ु का अ त व मट जायगा ।। २६ ।। यु ध र उवाच नेदं च ं माधव यद् वी ष स यं तु मे र यतमं न रा यम् । कृ ण तु मां वेद यथावदे कः कृ णं च वेदाहमथो यथावत् ।। २७ ।। यु ध रने कहा—सा यके! तुम जो कुछ कह रहे हो वह तु हारे-जैसे वीरके लये कोई आ यक बात नह है, परंतु मेरे लये स यक र ा ही धान है, रा यक ा त नह । केवल ीकृ ण ही मुझे अ छ तरह जानते ह और म भी कृ णके व पको यथाथ- पसे जानता ँ ।। २७ ।। यदै व कालं पु ष वीरो वे य ययं माधव व म य । तदा रणे वं च श न वीर सुयोधनं जे य स केशव ।। २८ ।। श नवंशके धान वीर माधव! ये पु षर न ीकृ ण जभी परा म दखानेका अवसर आया समझगे, तभी तुम और भगवान् केशव मलकर यु म य धनको जीत सकोगे ।। २८ ।। त या व दशाहवीरा ोऽ म नाथैनरलोकनाथैः । धमऽ मादं कु ता मेया ा म भूयः सुखनः समेतान् ।। २९ ।। े

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अब ये य वंशी वीर ारकाको लौट जायँ। आपलोग मेरे नाथ या सहायक तो ह ही, स पूण मनु य-लोकके भी र क ह, आपलोग से मलना हो गया, यह बड़े आन दक बात है। अनुपम श शाली वीरो! आपलोग धमपालनक ओरसे सदा सावधानी रख। म पुनः आप सभी सुखी म को एक आ दे खूँगा ।। २९ ।। तेऽ यो यमाम य तथा भवा वृ ान् प र व य शशूं सवान् । य वीराः वगृहा ण ज मुते चा प तीथा यनुसं वचे ः ।। ३० ।। त प ात् वे यादव-पा डव वीर एक सरेक अनुम त ले, वृ को णाम करके, बालक को दयसे लगाकर तथा अ य सबसे यथायो य मलकर अपने अभी थानको चल दये। यादववीर अपने घर गये और पा डवलोग पूववत् तीथ म वचरने लगे ।। ३० ।। वसृ य कृ णं वथ धमराजो वदभराजोप चतां सुतीथाम् । जगाम पु यां स रतं पयो ण स ातृभृ यः सह लोमशेन ।। ३१ ।। ीकृ णको वदा करके धमराज यु ध र लोमशजी, भाइय और सेवक के साथ वदभनरेश ारा पू जत, उ म तीथ वाली पु य नद पयो णीके तटपर गये ।। ३१ ।। सुतेन सोमेन व म तोयां पयः पयो ण त सोऽ युवास । जा तमु यैमु दतैमहा मा सं तूयमानः तु त भवरा भः ।। ३२ ।। उसके जलम य स ब धी सोमरस मला आ था। पयो णीके तटपर जा उ ह ने उसका जल पीकर वहाँ नवास कया। उस समय स तासे भरे ए े ज उ म तु तय ारा उन महा मा नरेशक तु त कर रहे थे ।। ३२ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायां यादवगमने वश य धकशततमोऽ यायः ।। १२० ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ा संगम यादवगमन वषयक एक सौ बीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १२० ।।

एक वश य धकशततमोऽ यायः राजा गयके य क शंसा, पयो णी, वै य पवत और नमदाके माहा य तथा यवन-सुक याके च र का आर भ लोमश उवाच नृगेण यजमानेन सोमेनेह पुरंदरः । त पतः ूयते राजन् स तृ तो मुदम यगात् ।। १ ।। लोमशजी कहते ह—यु ध र! सुना जाता है क इस पयो णी नद के तटपर राजा नृगने य करके सोमरसके ारा दे वराज इ को तृ त कया था। उस समय इ पूणतः तृ त होकर आन दम न हो गये थे ।। १ ।। इह दे वैः सहे ै जाप त भरेव च । इ ं ब वधैय ैमह भू रद णैः ।। २ ।। यह इ स हत दे वता ने और जाप तय ने भी चुर द णासे यु अनेक कारके बड़े-बड़े य ारा भगवान्का यजन कया है ।। २ ।। आमूतरयस ेह राजा व धरं भुम् । तपयामास सोमेन हयमेधेषु स तसु ।। ३ ।। अमूतरयाके पु राजा गयने भी यहाँ सात अ मेधय का अनु ान करके उनम सोमरसके ारा वधारी इ को संतु कया था ।। ३ ।। त य स तसु य ेषु सवमासी र मयम् । वान प यं च भौमं च यद् ं नयतं मखे ।। ४ ।। य म जो व तुएँ नय मत पसे का और म क बनी ई होती ह, ये सब-क सब राजा गयके उ सात य म सुवणसे बनायी गयी थ ।। ४ ।। चषालयूपचमसाः था यः पायः ुचः ुवाः । ते वेव चा य य ेषु योगाः स त व ुताः ।। ५ ।। ायः य म १चषाल, २यूप, ३चमस, ४ थाली, ५पा ी, ६ुक ् और ७ुवा—ये सात साधन उपयोगम लाये जाते ह। राजा गयके पूव सात य म ये सभी उपकरण सुवणके ही थे, ऐसा सुना जाता है ।। ५ ।। स तैकैक य यूप य चषाला ोप र थताः । त य म यूपान् य ेषु ाजमानान् हर मयान् ।। ६ ।। वयमु थापयामासुदवाः से ा यु ध र । तेषु त य मखा येषु गय य पृ थवीपतेः ।। ७ ।। अमा द ः सोमेन द णा भ जातयः । सं यानानसं येयान् यगृ न् जातयः ।। ८ ।। े











सात यूप मसे येकके ऊपर सात-सात चषाल थे। यु ध र! उन य म जो चमकते ए सुवणमय यूप थे, उ ह इ आ द दे वता ने वयं खड़ा कया था। राजा गयके उन उ म य म इ सोमपान करके और ा ण ब त-सी द णा पाकर हष म हो गये थे। ा ण ने द णाम जो ब सं यक धनरा श ा त क थी, उसक गणना नह क जा सकती थी ।। ६—८ ।। सकता वा यथा लोके यथा वा द व तारकाः । यथा वा वषतो धारा असं येयाः म केन चत् ।। ९ ।। तथैव तदसं येयं धनं यत् ददौ गयः । सद ये यो महाराज तेषु य ेषु स तसु ।। १० ।। महाराज! राजा गयने सात य म सद य को, जो असं य धन दान कया था, उसक गणना उसी कार नह हो सकती थी, जैसे इस जगत्म कोई बालूके कण , आकाशके तार और वषाक धारा को नह गन सकता ।। ९-१० ।। भवेत् सं येयमेत यदे तत् प रक ततम् । न त य श याः सं यातुं द णा द णावतः ।। ११ ।। उपयु बालूके कण आ द कदा चत् गने भी जा सकते ह, परंतु द णा दे नेवाले राजा गयक द णाक गणना करना स भव नह है ।। ११ ।। हर मयी भग भ कृता भ व कमणा । ा णां तपयामास नाना द यः समागतान् ।। १२ ।। अ पावशेषा पृ थवी चै यैरासी महा मनः । गय य यजमान य त त वशा पते ।। १३ ।। उ ह ने व कमाक बनायी ई सुवणमयी गौएँ दे कर व भ दशा से आये ए ा ण को संतु कया था। यु ध र! भ - भ थान म य करनेवाले महामना राजा गयके रा यक थोड़ी ही भू म ऐसी बच गयी थी जहाँ य के म डप न ह ।। १२-१३ ।। स लोकान् ा तवानै ान् कमणा तेन भारत । सलोकतां त य ग छे त् पयो यां य उप पृशेत् ।। १४ ।। भारत! उस य कमके भावसे गयने इ ा द लोक को ा त कया। जो इस पयो णी नद म नान करता है वह भी राजा गयके समान पु यलोकका भागी होता है ।। १४ ।। त मात् वम राजे ातृ भः स हतोऽ युत । उप पृ य महीपाल धूतपा मा भ व य स ।। १५ ।। अतः राजे ! तुम भाइय स हत इसम ान करके सब पाप से मु हो जाओगे ।। १५ ।। वैश पायन उवाच स पयो यां नर े ः ना वा वै ातृ भः सह । वै यपवतं चैव नमदां च महानद म् ।। १६ ।। (उ य पा डव े ः स त थे महीप तः ।) े





समागमत तेज वी ातृ भः स हतोऽनघ । त ा य सवा याच यौ लोमशो भगवानृ षः ।। १७ ।। तीथा न रमणीया न पु या यायतना न च । यथायोगं यथा ी त ययौ ातृ भः सह । त त ाददाद् व ं ा णे यः सह शः ।। १८ ।। वैश पायनजी कहते ह— न पाप जनमेजय! पा डव वर नर े राजा यु ध र भाइय स हत पयो णी नद म नान करके वै यपवत और महानद नमदाके तटपर जानेका उ े य लेकर वहाँसे चल दये और वे तेज वी नरेश सब भाइय को साथ लये यथासमय अपने ग त थानपर प ँच गये। वहाँ भगवान् लोमश मु नने उनसे सम त रमणीय तीथ और प व दे व थान का प रचय कराया। त प ात् राजाने अपनी सु वधा और स ताके अनुसार सह ा ण को धनका दान कया और भाइय स हत उन सब थान क या ा क ।। १६—१८ ।।

लोमश उवाच दे वानामे त कौ तेय तथा रा ां सलोकताम् । वै यपवतं ् वा नमदामवतीय च ।। १९ ।। लोमशजीने कहा—कु तीन दन! वै यपवतका दशन करके नमदाम उतरनेसे मनु य दे वता तथा पु या मा राजा के समान प व लोक को ा त कर लेता है ।। १९ ।। सं धरेष नर े ेताया ापर य च । एनमासा कौ तेय सवपापैः मु यते ।। २० ।। नर े ! यह वै यपवत ेता और ापरक स धम कट आ है, इसके नकट जाकर मनु य सब पाप से मु हो जाता है ।। २० ।। एष शया तय य दे श तात काशते । सा ाद् य ा पबत् सोमम यां सह कौ शकः ।। २१ ।। तात! यह राजा शया तके य का थान का शत हो रहा है जहाँ सा ात् इ ने अ नीकुमार के साथ बैठकर सोमपान कया था ।। २१ ।। चुकोप भागव ा प महे य महातपाः । सं त भयामास च तं वासवं यवनः भुः । सुक यां चा प भाया स राजपु ीमवा तवान् ।। २२ ।। (नास यौ च महाभाग कृतवान् सोमपी थनौ ।) महाभाग! यह महातप वी भृगन ु दन भगवान् यवन दे वराज इ पर कु पत ए थे और यह उ ह ने इ को त भत भी कर दया था। इतना ही नह , मु नवर यवनने यह अ नीकुमार को य म सोमपानका अ धकारी बनाया था। और इसी थानपर राजकुमारी सुक या उ ह प नी पम ा त ई थी ।। २२ ।। यु ध र उवाच कथं व भत तेन भगवान् पाकशासनः । ो े

कमथ भागव ा प कोपं च े महातपाः ।। २३ ।। यु ध रने पूछा—मुने! महातप वी भृगप ु ु मह ष यवनने भगवान् इ का त भन कैसे कया? उ ह इ पर ोध कस लये आ? ।। २३ ।। नास यौ च कथं न् कृतवान् सोमपी थनौ । एतत् सव यथावृ मा यातु भगवान् मम ।। २४ ।। तथा न्! उ ह ने अ नीकुमार को य म सोमपानका अ धकारी कस कार बनाया? ये सब बात आप यथाथ पसे मुझे बताव ।। २४ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायां सौक ये एक वश य धकशततमोऽ यायः ।। १२१ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम सुक योपा यान वषयक एक सौ इ क सवाँ अ याय पूरा आ ।। १२१ ।। (दा णा य अ धक पाठका १ ोक मलाकर क ु ल २५ ोक ह)

१. यूपके ऊपरका गोलाकार का । २. यूप—य त भ। ३. चमस—सोमपानका पा । ४. बटलोई। ५. पक -पकायी रखनेका साम ी-पा । ६. ह व य अपण करनेका उपकरण। ७. घृत आ दक आ त डालनेका साधन।

ा वश य धकशततमोऽ यायः मह ष यवनको सुक याक

ा त

लोमश उवाच भृगोमहषः पु ोऽभू यवनो नाम भारत । समीपे सरस त य तप तेपे महा ु तः ।। १ ।। थाणुभूतो महातेजा वीर थानेन पा डव । अ त त चरं कालमेकदे शे वशा पते ।। २ ।। लोमशजी कहते ह—यु ध र! मह ष भृगक ु े पु यवन मु न ए, जो महान् तेज वी थे। उ ह ने उस सरोवरके समीप तप या आर भ क । पा डु न दन! परम तेज वी महा मा यवन वीरासनसे बैठकर ठूँ ठे काठके समान जान पड़ते थे। राजन्! वे एक ही थानपर द घकालतक अ वचलभावसे बैठे रहे ।। १-२ ।। स व मीकोऽभव षलता भ रव संवृतः । कालेन महता राजन् समाक णः पपी लकैः ।। ३ ।। धीरे-धीरे अ धक समय बीतनेपर उनका शरीर च टय से ा त हो गया। वे मह ष लता से आ छा दत हो गये और बाँबीके समान तीत होने लगे ।। ३ ।। तथा स संवृतो धीमान् मृ प ड इव सवशः । त यते म तपो घोरं व मीकेन समावृतः ।। ४ ।। इस कार लता-वेल से आ छा दत हो बु मान् यवन मु न सब ओरसे केवल म के ल दे के समान जान पड़ने लगे। द मक ारा जमा क ई म के ढे रसे ढके ए वे बड़ी भारी तप या कर रहे थे ।। ४ ।। अथ द घ य काल य शया तनाम पा थवः । आजगाम सरो र यं वहतु मदमु मम् ।। ५ ।। इस कार द घकाल तीत होनेपर राजा शया त इस उ म एवं रमणीय सरोवरके तटपर वहारके लये आये ।। ५ ।। त य ीणां सह ा ण च वायासन् प र हे । एकैव च सुता सु ूः सुक या नाम भारत ।। ६ ।। यु ध र! उनके अ तःपुरम चार हजार याँ थ , परंतु संतानके नामपर केवल एक ही सु दरी पु ी थी, जसका नाम सुक या था ।। ६ ।। सा सखी भः प रवृता द ाभरणभू षता । चं यमाणा व मीकं भागव य समासदत् ।। ७ ।। वह क या द व ाभूषण से वभू षत हो सखय से घरी ई वनम इधर-उधर घूमने लगी। घूमती-घामती वह भृगन ु दन यवनक बाँबीके पास जा प ँची ।। ७ ।। सा वै वसुमत त प य ती सुमनोरमाम् । ी





वन पतीन् व च व ती वजहार सखीवृता ।। ८ ।। वहाँक भू म उसे बड़ी मनोहर दखायी द । वह सखय के साथ वृ के फल-फूल तोड़ती ई चार ओर घूमने लगी ।। ८ ।। पेण वयसा चैव मदनेन मदे न च । बभ वनवृ ाणां शाखाः परमपु पताः ।। ९ ।। तां सखीर हतामेकामेकव ामलंकृताम् । ददश भागवो धीमां र ती मव व ुतम् ।। १० ।। सु दर प, नयी अव था, कामभावके उदय और यौवनके मदसे े रत हो सुक याने उ म फूल से भरी ई वन-वृ क ब त-सी शाखाएँ तोड़ ल । वह सखय का साथ छोड़कर अकेली टहलने लगी। उस समय उसके शरीरपर एक ही व था और वह भाँ तभाँ तके अलंकार से अलंकृत थी। बु मान् यवन मु नने उसे दे खा। वह चमकती ई व ुतक ् े समान चार ओर वचर रही थी ।। ९-१० ।। तां प यमानो वजने स रेमे परम ु तः । ामक ठ व ष तपोबलसम वतः ।। ११ ।। उसे एका तम दे खकर परम का तमान्, तपोबल-स प एवं बल क ठवाले ष यवनको बड़ी स ता ई ।। ११ ।। तामाबभाषे क याण सा चा य न शृणो त वै । ततः सुक या व मीके ् वा भागवच ुषी ।। १२ ।। कौतूहलात् क टकेन बु मोहबला कृता । क नु ख वद म यु वा न बभेदा य लोचने ।। १३ ।। अ ु यत् स तया व े ने े परमम युमान् । ततः शया तसै य य शकृ मू े समावृणोत् ।। १४ ।। ततो े शकृ मू े सै यमानाह ःखतम् । तथागतम भ े य पयपृ छत् स पा थवः ।। १५ ।। तपो न य य वृ य रोषण य वशेषतः । केनापकृतम ेह भागव य महा मनः ।। १६ ।। ातं वा य द वा ातं तद् तं ूत मा चरम् । तमूचुः सै नकाः सव न वोऽपक ृ तं वयम् ।। १७ ।। उ ह ने उस क याणमयी राजक याको पुकारा; परंतु वह ( षका क ठ बल होनेके कारण) उनक आवाज नह सुनती थी। उस बाँबीम मु नवर यवनक चमकती ई आँख को दे खकर उसे ब त कौतूहल आ। उसक बु पर मोह छा गया और उसने ववश होकर यह कहती ई क ‘दे खूँ यह या है?’ एक काँटेसे उ ह छे द दया। उसके ारा आँख बध जानेके कारण परम ोधी ष यवन अ य त कु पत हो उठे । फर तो उ ह ने शया तक सेनाके मल-मू बंद कर दये। मल-मू का ार बंद हो जानेसे मलावरोधके कारण सारी सेनाको ब त ःख होने लगा। सै नक क ऐसी अव था दे खकर राजाने सबसे पूछा—‘यहाँ न य- नर तर तप याम संल न रहनेवाले वयोवृ महामना यवन रहते ह। वे े ो ी े े ै

वभावतः बड़े ोधी ह। उनका जानकर या बना जाने आज कसने अपकार कया है? जन लोग ने भी षका अपराध कया हो, वे तुरंत सब कुछ बता द, वल ब न कर।’

तब स पूण सै नक ने उनसे कहा—‘महाराज! हम नह जानते क कसके ारा उनका अपराध आ है? ।। १२—१७ ।। सव पायैयथाकामं भवां तद धग छतु । ततः स पृ थवीपालः सा ना चो ेण च वयम् ।। १८ ।। पयपृ छत् सु ग पयजान चैव ते । आनाहात ततो ् वा त सै यमसुखा दतम् ।। १९ ।। पतरं ःखतं ् वा सुक येदमथा वीत् । मयाट येह व मीके ं स वम भ वलत् ।। २० ।। ख ोतवद भ ातं त मया व म तकात् । एत छ वा तु व मीकं शया त तूणम ययात् ।। २१ ।। त ाप यत् तपोवृ ं वयोवृ ं च भागवम् । अयाचदथ सै याथ ा लः पृ थवीप तः ।। २२ ।। ‘आप अपनी चके अनुसार सभी उपाय ारा इसका पता लगाव।’ तब राजा शया तने साम और उ नी तके ारा सभी सु द से पूछा; परंतु वे भी इसका पता न लगा सके। तदन तर सुक याने सारी सेनाको मलावरोधके कारण ःखसे पी ड़त और पताको भी च तत दे ख इस कार कहा—‘तात! मने इस वनम घूमते समय एक बाँबीके भीतर ोई ी े ी ो े ी ी े े

कोई चमक ली व तु दे खी, जो जुगनूके समान जान पड़ती थी। उसके नकट जाकर मने उसे काँटेसे ब ध दया।’ यह सुनकर शया त तुरंत ही बाँबीके पास गये। वहाँ उ ह ने तप याम बढ़े -चढ़े वयोवृ महा मा यवनको दे खा और हाथ जोड़कर अपने सै नक का क नवारण करनेके लये याचना क — ।। १८—२२ ।। अ ानाद् बालया यत् ते कृतं तत् तुमह स । ततोऽ वी महीपालं यवनो भागव तदा ।। २३ ।। अपमानादहं व ो नया दपपूणया । पौदायसमायु ां लोभमोहबला कृताम् ।। २४ ।। तामेव तगृ ाहं राजन् हतरं तव । ं यामी त महीपाल स यमेतद् वी म ते ।। २५ ।। ‘भगवन्! मेरी बा लकाने अ ानवश जो आपका अपराध कया है, उसे आप कृपापूवक मा कर।’ उनके ऐसा कहनेपर भृगन ु दन यवनने राजासे कहा—‘राजन्! तु हारी इस पु ीने अहंकारवश अपमानपूवक मेरी आँख फोड़ी ह, अतः प और उदारता आ द गुण से यु तथा लोभ और मोहके वशीभूत ई तु हारी इस क याको प नी पम ा त करके ही म इसका अपराध मा कर सकता ँ। भूपाल! यह म तुमसे स ची बात कहता ँ’ ।। २३—२५ ।। लोमश उवाच ऋषेवचनमा ाय शया तर वचारयन् । ददौ हतरं त मै यवनाय महा मने ।। २६ ।। लोमशजी कहते ह— यवन ऋ षका यह वचन सुनकर राजा शया तने बना कुछ वचार कये ही महा मा यवनको अपनी पु ी दे द ।। २६ ।। तगृ च तां क यां भगवान् ससाद ह । ा त सादो राजा वै ससै यः पुरमा जत् ।। २७ ।। उस राजक याको पाकर भगवान् यवन मु न स हो गये। त प ात् उनका कृपा साद ा त करके राजा शया त सेनास हत सकुशल अपनी राजधानीको लौट आये ।। २७ ।। सुक या प प त ल वा तप वनम न दता । न यं पयचरत् ी या तपसा नयमेन च ।। २८ ।। सुक या भी तप वी यवनको प त पम पाकर त दन ेमपूवक तप और नयमका पालन करती ई उनक प रचया करने लगी ।। २८ ।। अ नीनाम तथीनां च शु ूषुरनसू यका । समाराधयत ं यवनं सा शुभानना ।। २९ ।। सुमुखी सुक या कसीके गुण म दोष नह दे खती थी। वह वध अ नय और अ त थय क सेवाम त पर हो शी ही मह ष यवनक आराधनाम लग गयी ।। २९ ।। ी













इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायां सौक ये ा वश य धकशततमोऽ यायः ।। १२२ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम सुक योपा यान वषयक एक सौ बाईसवाँ अ याय पूरा आ ।। १२२ ।।

यो वश य धकशततमोऽ यायः अ

नीकुमार क कृपासे मह ष यवनको सु दर युवाव थाक ा त

प और

लोमश उवाच क य चत् वथ काल य दशाव नौ नृप । कृता भषेकां ववृतां सुक यां तामप यताम् ।। १ ।। तां ् वा दशनीया द े वराजसुता मव । ऊचतुः सम भ य नास याव ना वदम् ।। २ ।। लोमशजी कहते ह—यु ध र! तदन तर कुछ कालके बाद जब एक समय सुक या नान कर चुक थी, उस समय उसके सब अंग ढके ए नह थे। इसी अव थाम दोन अ नीकुमार दे वता ने उसे दे खा। सा ात् दे वराज इ क पु ीके समान दशनीय अंग वाली उस राजक याको दे खकर नास यसं क अ नीकुमार ने उसके पास जा यह बात कही— ।। १-२ ।। क य वम स वामो वनेऽ मन् क करो ष च । इ छाव भ े ातुं वां त वमा या ह शोभने ।। ३ ।। ‘वामो ! तुम कसक पु ी और कसक प नी हो? इस वनम या करती हो? भ े ! हम तु हारा प रचय ा त करना चाहते ह। शोभने! तुम सब बात ठ क-ठ क बताओ’ ।। ३ ।। ततः सुक या स ीडा तावुवाच सुरो मौ । शया ततनयां व ं भाया मां यवन य च ।। ४ ।। तब सुक याने ल जत होकर उन दोन े दे वता से कहा—‘दे वे रो! आपको व दत होना चा हये क म राजा शया तक पु ी और मह ष यवनक प नी ँ ।। ४ ।। (ना ना चाहं सुक या म नृलोकेऽ मन् त ता । साहं सवा मना न यं प त त सु न ता ।।) अथा नौ ह यैताम ूतां पुनरेव तु । कथं वम स क या ण प ा द ा गता वने ।। ५ ।। ाजसेऽ मन् वने भी व ु सौदामनी यथा । न दे वे व प तु यां ह वया प याव भा व न ।। ६ ।। ‘मेरा नाम इस जगत्म सुक या स है। म स पूण दयसे सदा अपने प तदे वके त न ा रखती ँ।’ यह सुनकर अ नीकुमार ने पुनः हँसते ए कहा—‘क या ण! तु हारे पताने इस अ य त बूढ़े पु षके साथ तु हारा ववाह कैसे कर दया? भी ! इस वनम तुम व ुतक ् भाँ त का शत हो रही हो। भा म न! दे वता के यहाँ भी तुम-जैसी सु दरीको हम नह दे ख पाते ह ।। ५-६ ।।

अनाभरणस प ा परमा बरव जता । शोभय य धकं भ े वनम यनलंकृता ।। ७ ।। ‘भ े ! तु हारे अंग पर आभूषण नह है। तुम उ म व से भी व चत हो और तुमने कोई शृंगार भी नह धारण कया है तो भी इस वनक अ धका धक शोभा बढ़ा रही हो ।। ७ ।। सवाभरणस प ा परमा बरधा रणी । शोभसे वनव ा न वेवं मलपङ् कनी ।। ८ ।। ‘ नद ष अंग वाली सु दरी! य द तुम सम त भूषण से भू षत हो जाओ और अ छे अ छे व पहन लो तो उस समय तु हारी जो शोभा होगी, वैसी इस मल और पंकसे यु म लन वेशम नह हो रही है ।। ८ ।। क मादे वं वधा भू वा जराजज रतं प तम् । वमुपा से ह क या ण कामभोगब ह कृतम् ।। ९ ।। ‘क या ण! तुम ऐसी अनुपम सु दरी होकर कामभोगसे शू य इस जरा-जजर बूढ़े प तक उपासना कैसे करती हो? ।। ९ ।। असमथ प र ाणे पोषणे तु शु च मते । सा वं यवनमु सृ य वरय वैकमावयोः ।। १० ।। ‘प व मुसकानवाली दे व! वह बूढ़ा तो तु हारी र ा और पालन-पोषणम भी समथ नह है। अतः तुम यवनको छोड़कर हम दोन मसे कसी एकको अपना प त चुन लो ।। १० ।। प यथ दे वगभाभे मा वृथा यौवनं कृथाः । एवमु ा सुक या प सुरौ ता वदम वीत् ।। ११ ।। ‘दे वक याके समान सु दरी राजकुमारी! बूढ़े प तके लये अपनी इस जवानीको थ न गँवाओ।’ उनके ऐसा कहनेपर सुक याने उन दोन दे वता से कहा— ।। ११ ।। रताहं यवने प यौ मैवं मां पयशङ् कतम् । ताव ूतां पुन वेनामावां दे व भष वरौ ।। १२ ।। युवानं पस प ं क र यावः प त तव । तत त यावयो ैव वृणी वा यतमं प तम् ।। १३ ।। एतेन समयेनैनमाम य प त शुभे । ‘दे वे रो! म अपने प तदे व यवनमु नम ही पूण अनुराग रखती ँ, अतः आप मेरे वषयम इस कारक अनु चत आशंका न कर।’ तब उन दोन ने पुनः सुक यासे कहा —‘शुभे! हम दे वता के े वै ह। तु हारे प तको त ण और मनोहर पसे स प बना दगे। तब तुम हम तीन मसे कसी एकको अपना प त बना लेना। इस शतके साथ तुम चाहो तो अपने प तको यहाँ बुला लो’ ।। १२-१३ ।। सा तयोवचनाद् राज ुपसंग य भागवम् ।। १४ ।। उवाच वा यं यत् ता यामु ं भृगुसुतं त । ो

त छ वा यवनो भायामुवाच यता म त ।। १५ ।। राजन्! उन दोन क यह बात सुनकर सुक या यवन मु नके पास गयी और अ नीकुमार ने जो कुछ कहा था, वह सब उ ह कह सुनाया। यह सुनकर यवनने अपनी प नीसे कहा—‘ ये! दे ववै ने जैसा कहा है, वैसा करो’ ।। १४-१५ ।। (सा भ ा समनु ाता यता म त चा वीत् । ु वा तद नौ वा यं त या तत् यता म त ।।) ऊचतू राजपु तां प त तव वश वपः । ततोऽ भयवनः शी ं पाथ ववेश ह ।। १६ ।। प तक यह आ ा पाकर सुक याने अ नीकुमार से कहा—‘आप मेरे प तको प और यौवनसे स प बना द।’ उसका यह कथन सुनकर अ नीकुमार ने राजकुमारी सुक यासे कहा—‘तु हारे प तदे व इस जलम वेश कर।’ तब यवन मु नने सु दर पक अ भलाषा लेकर शी तापूवक उस सरोवरके जलम वेश कया ।। १६ ।। अ नाव प तद् राजन् सरः ा वशतां तदा । ततो मुता ीणाः सव ते सरस तदा ।। १७ ।। द पधराः सव युवानो मृ कु डलाः । तु यवेषधरा ैव मनसः ी तवधनाः ।। १८ ।। राजन्! उनके साथ ही दोन अ नीकुमार भी उस सरोवरम वेश कर गये। तदन तर दो घड़ीके प ात् वे सब-के-सब द प धारण करके सरोवरसे बाहर नकले। उन सबक युवाव था थी। उ ह ने कान म चमक ले कु डल धारण कर रखे थे। वेष-भूषा भी उनक एक-सी ही थी और वे सभी मनक ी त बढ़ानेवाले थे ।। १७-१८ ।। तेऽ ुवन् स हताः सव वृणी वा यतमं शुभे । अ माकमी सतं भ े प त वे वरव ण न ।। १९ ।। सरोवरसे बाहर आकर उन सबने एक साथ कहा—‘शुभे! भ े ! वरव ण न! हममसे कसी एकको जो तु हारी चके अनुकूल हो, अपना प त बना लो ।। १९ ।। य वा य भकामा स तं वृणी व सुशोभने । सा समी य तु तान् सवा तु य पधरान् थतान् ।। २० ।। न य मनसा बु या दे वी व े वकं प तम् । ल वा तु यवनो भाया वयो पं च वा छतम् ।। २१ ।। ोऽ वी महातेजा तौ नास या वदं वचः । यथाहं पस प ो वयसा च सम वतः ।। २२ ।। कृतो भव यां वृ ः सन् भाया च ा तवा नमाम् । त माद् युवां क र या म ी याहं सोमपी थनौ । मषतो दे वराज य स यमेतद् वी म वाम् ।। २३ ।। ‘अथवा शोभने! जसको भी तुम मनसे चाहती होओ, उसीको प त बनाओ।’ दे वी सुक याने उन सबको एक-जैसा प धारण कये खड़े दे ख मन और बु से न य करके अपने प तको ही वीकार कया। महातेज वी यवन मु नने अनुकूल प नी, त ण अव था औ ो े औ ो ी े

और मनोवा छत प पाकर बड़े हषका अनुभव कया और दोन अ नीकुमार से कहा —‘आप दोन ने मुझ बूढ़ेको पवान् और त ण बना दया, साथ ही मुझे अपनी यह भाया भी मल गयी; इस लये म स होकर आप दोन को य म दे वराज इ के सामने ही सोमपानका अ धकारी बना ँ गा। यह म आपलोग से स य कहता ँ’ ।। २०—२३ ।।

त छ वा मनसौ दवं तौ तज मतुः । यवन सुक या च सुरा वव वज तुः ।। २४ ।। यह सुनकर दोन अ नीकुमार स च हो दे वलोकको लौट गये और यवन तथा सुक या दे वद प तक भाँ त वहार करने लगे ।। २४ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायां सौक ये यो वश य धकशततमोऽ यायः ।। १२३ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ा संगम सुक योपा यान वषयक एक सौ तेईसवाँ अ याय पूरा आ ।। १२३ ।। (दा णा य अ धक पाठक े २ ोक मलाकर कुल २६ ोक ह)

चतु वश य धकशततमोऽ यायः शया तके य म यवनका इ पर कोप करके व को त भत करना और उसे मारनेके लये मदासुरको उ प करना लोमश उवाच ततः शु ाव शया तवय थं यवनं कृतम् । सु ः सेनया साधमुपायाद् भागवा मम् ।। १ ।। लोमशजी कहते ह—यु ध र! तदन तर राजा शया तने सुना क मह ष यवन युवाव थाको ा त हो गये; इस समाचारसे उ ह बड़ी स ता ई। वे सेनाके साथ मह ष यवनके आ मपर आये ।। १ ।। यवनं च सुक यां च ् वा दे वसुता वव । रेमे सभायः शया तः कृ नां ा य मही मव ।। २ ।। ऋ षणा स कृत तेन सभायः पृ थवीप तः । उपोप व ः क याणीः कथा े मनोरमाः ।। ३ ।। यवन और सुक याको दे वकुमार के समान सुखी दे खकर प नीस हत शया तको महान् हष आ, मानो उ ह स पूण पृ वीका रा य मल गया हो। यवन ऋ षने रा नय स हत राजाका बड़ा आदर-स कार कया और उनके पास बैठकर मनको य लगनेवाली क याणमयी कथाएँ सुनाय ।। २-३ ।। अथैनं भागवो राज ुवाच प रसा वयन् । याज य या म राजं वां स भारानवक पय ।। ४ ।। यु ध र! त प ात् भृगन ु दन यवनने उ ह सा वना दे ते ए कहा—‘राजन्! म आपसे य कराऊँगा। आप साम ी जुटाइये’ ।। ४ ।। ततः परमसं ः शया तरवनीप तः । यवन य महाराज तद् वा यं यपूजयत् ।। ५ ।। महाराज! यह सुनकर राजा शया त बड़े स ए और उ ह ने यवन मु नके उस वचनक बड़ी सराहना क ।। ५ ।। श तेऽह न य ीये सवकामसमृ मत् । कारयामास शया तय ायतनमु मम् ।। ६ ।। तदन तर य के लये उपयोगी शुभ दन आनेपर शया तने एक उ म य म डप तैयार करवाया, जो स पूण मनोवा छत समृ य से स प था ।। ६ ।। त ैनं यवनो राजन् याजयामास भागवः । अ ता न च त ासन् या न ता न नबोध मे ।। ७ ।। े





राजन्! भृगप ु ु यवनने उस य म डपम राजासे य करवाया। उस य म जो अ त बात ई थ , उ ह मुझसे सुनो ।। ७ ।। अगृ ा यवनः सोमम नोदवयो तदा । त म ो वारयामास गृ ानं स तयो हम् ।। ८ ।। मह ष यवनने उस समय दोन अ नीकुमार -को दे नेके लये सोमरसका भाग हाथम लया। उन दोन के लये सोमका भाग हण करते समय इ ने मु नको मना कया ।। ८ ।। इ उवाच उभावेतौ न सोमाह नास या व त मे म तः । भषजौ द व दे वानां कमणा तेन नाहतः ।। ९ ।। इ बोले—मुने! मेरा यह स ा त है क ये दोन अ नीकुमार य म सोमपानके अ धकारी नह ह; य क ये ुलोक नवासी दे वता के वै ह और उस वै वृ के कारण ही इ ह य म सोमपानका अ धकार नह रह गया है ।। ९ ।। यवन उवाच महो साहौ महा मानौ प वणव रौ । यौ च तुमा मघवन् वृ दारक मवाजरम् ।। १० ।। ऋते वां वबुधां ा यान् कथं वै नाहतः सवम् । अ नाव प दे वे दे वौ व पुरंदर ।। ११ ।। यवनने कहा—मघवन्! ये दोन अ नीकुमार बड़े उ साही और महान् बु मान् ह। प-स प म भी सबसे बढ़-चढ़कर ह। इ ह ने ही मुझे दे वता के समान द पसे यु और अजर बनाया है। दे वराज! फर तु हारे या अ य दे वता के सवा इ ह य म सोमरसका भाग पानेका अ धकार य नह है? पुरंदर! इन अ नीकुमार को भी दे वता ही समझो ।। १०-११ ।। इ उवाच च क सकौ कमकरौ काम पसम वतौ । लोके चर तौ म यानां कथं सोम महाहतः ।। १२ ।। इ बोले—ये दोन च क सा-काय करते ह और मनमाना प धारण करके मृ युलोकम भी वचरते रहते ह, फर इ ह इस य म सोमपानका अ धकार कैसे ा त हो सकता है? ।। १२ ।। लोमश उवाच एतदे व यदा वा यमा ेडय त दे वराट् । अना य ततः श ं हं ज ाह भागवः ।। १३ ।। लोमशजी कहते ह—यु ध र! जब दे वराज इ बार-बार यही बात हराने लगे तब भृगन ु दन यवनने उनक अवहेलना करके अ नीकुमार को दे नेके लये सोमरसका भाग हण कया ।। १३ ।। ी ो ो

ही य तं तु तं सोमम नो मं तदा । समी य बल भद् दे व इदं वचनम वीत् ।। १४ ।। उस समय दे ववै के लये उ म सोमरस हण करते दे ख इ ने यवन मु नसे इस कार कहा— ।। आ यामथाय सोमं वं ही य स य द वयम् । व ं ते ह र या म घोर पमनु मम् ।। १५ ।। न्! य द तुम इन दोन के लये वयं सोमरस हण करोगे तो म तुमपर अपना परम उ म भयंकर व छोड़ ँ गा ।। १५ ।। एवमु ः मय म भवी य स भागवः । ज ाह व धवत् सोमम यामु मं हम् ।। १६ ।। उनके ऐसा कहनेपर यवन मु नने मुसकराते ए इ क ओर दे खकर अ नीकुमार के लये व धपूवक उ म सोमरस हाथम लया ।। १६ ।।

ततोऽ मै ाहरद् व ं घोर पं शचीप तः । त य हरतो बा ं त भयामास भागवः ।। १७ ।। तब शचीप त इ उनके ऊपर भयंकर व छोड़ने लगे, परंतु वे जैसे ही हार करने लगे, भृगन ु दन यवनने उनक भुजाको तं भत कर दया ।। १७ ।। तं त भ य वा यवनो जु वे म तोऽनलम् । कृ याथ सुमहातेजा दे वं ह सतुमु तः ।। १८ ।। े









इस कार उनक भुजा तं भत करके महातेज वी यवन ऋ षने म ो चारणपूवक अ नम आ त द । वे दे वराज इ को मार डालनेके लये उ त होकर कृ या उ प करना चाहते थे ।। १८ ।। ततः कृ याथ संज े मुने त य तपोबलात् । मदो नाम महावीय बृह कायो महासुरः ।। १९ ।। शरीरं य य नद ु मश यं तु सुरासुरैः । त या यमभवद् घोरं ती णा दशनं महत् ।। २० ।। हनुरेका थता व य भूमावेका दवं गता । चत ायता दं ा योजनानां शतं शतम् ।। २१ ।। यवन ऋ षके तपोबलसे वहाँ कृ या कट हो गयी। उस कृ याके पम महापरा मी वशालकाय महादै य मदका ा भाव आ। जसके शरीरका वणन दे वता तथा असुर भी नह कर सकते। उस असुरका वशाल मुख बड़ा भयंकर था। उसके आगेके दाँत बड़े तीखे दखायी दे ते थे। उसका ठोड़ीस हत नीचेका ओ धरतीपर टका आ था और सरा वगलोकतक प ँच गया था। उसक चार दाढ़ सौ-सौ योजनतक फैली ई थ ।। १९— २१ ।। इतरे त य दशना बभूवुदशयोजनाः । ासाद शखराकाराः शूला समदशनाः ।। २२ ।। उस दै यके सरे दाँत भी दस-दस योजन ल बे थे। उनक आकृ त महल के कँगूर के समान थी। उनका अ भाग शूलके समान तीखा दखलायी दे ता था ।। २२ ।। बा पवतसंकाशावायतावयुतं समौ । ने े र वश श ये व ं काला नसं नभम् ।। २३ ।। ले लह या व ं व ु चपललोलया । ा ाननो घोर स व जगद् बलात् ।। २४ ।। स भ य यन् सं ु ः शत तुमुपा वत् । महता घोर पेण लोका छ दे न नादयन् ।। २५ ।। दोन भुजाएँ दो पवत के समान तीत होती थ । दोन क लंबाई एक समान दस-दस हजार योजनक थी। उसके दोन ने च मा और सूयके समान व लत हो रहे थे। उसका मुख लयकालक अ नके समान जा व यमान जान पड़ता था। उसक लपलपाती ई च चल जीभ व ुतक ् े समान चमक रही थी और उसके ारा वह अपने जबड़ को चाट रहा था। उसका मुख खुला आ था और भयंकर थी; ऐसा जान पड़ता था, मानो वह सारे जगत्को बलपूवक नगल जायगा। वह दै य कु पत हो अपनी अ य त भयंकर गजनासे स पूण जगत्को गुँजाता आ इ को खा जानेके लये उनक ओर दौड़ा ।। २३—२५ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायां सौक ये चतु वश य धकशततमोऽ यायः ।। १२४ ।।













इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम सुक योपा यान वषयक एक सौ चौबीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १२४ ।।

प च वश य धकशततमोऽ यायः अ नीकुमार का य म भाग वीकार कर लेनेपर इ का संकट-मु होना तथा लोमशजीके ारा अ या य तीथ के मह वका वणन लोमश उवाच तं ् वा घोरवदनं मदं दे वः शत तुः । आया तं भ य य तं ा ानन मवा तकम् ।। १ ।। भयात् सं त भतभुजः सृ कणी ले लहन् मु ः । ततोऽ वीद् दे वराजयवनं भयपी डतः ।। २ ।। सोमाहाव नावेताव भृ त भागव । भ व यतः स यमेतद् वचो व ः सीद मे ।। ३ ।। लोमशजी कहते ह—यु ध र! मुँह बाये ए यमराजक भाँ त भयंकर मुखवाले उस मदासुरको नगलनेके लये आते दे ख दे वराज इ भयसे ाकुल हो गये। जनक भुजाएँ त ध हो गयी थ , वे इ मृ युके डरसे घबराकर बार-बार ओ ा त चाटने लगे। उसी अव थाम उ ह ने मह ष यवनसे कहा—‘भृगन ु दन! ये दोन अ नीकुमार आजसे सोमपानके अ धकारी ह गे। मेरी यह बात स य है, अतः आप मुझपर स ह ।। १—३ ।। न ते मया समार भो भव वेष परो व धः । जाना म चाहं व ष न मया वं क र य स ।। ४ ।। सोमाहाव नावेतौ यथा वा कृतौ वया । भूय एव तु ते वीय काशे द त भागव ।। ५ ।। सुक यायाः पतु ा य लोके क तः थे द त । अतो मयैतद् व हतं तव वीय काशनम् ।। ६ ।। त मात् सादं कु मे भव वेवं यथे छ स । ‘आपके ारा कया आ यह य का आयोजन म या न हो। आपने जो कर दया वही उ म वधान हो। ष! म जानता ँ, आप अपना संक प कभी म या न होने दगे। आज आपने इन अ नीकुमार को जैसे सोमपानका अ धकारी बनाया है उसी कार मेरा भी क याण क जये। भृगन ु दन! आपक अ धक-से-अ धक श काशम आवे तथा जगत्म सुक या और इसके पताक क तका व तार हो। इस उ े यसे मने यह आपके बल-वीयको का शत करनेवाला काय कया है। अतः आप स होकर मेरे ऊपर कृपा कर। आप जैसा चाहते ह, वैसा ही होगा’ ।। ४—६ ।। एवमु य श े ण भागव य महा मनः ।। ७ ।। स म यु गम छ ं मुमोच च पुरंदरम् । े





मदं च भजद् राजन् पाने ीषु च वीयवान् ।। ८ ।। अ ेषु मृगयायां च पूवसृ ं पुनः पुनः । तदा मदं व न य श ं संत य चे ना ।। ९ ।। अ यां स हतान् दे वान् याज य वा च तं नृपम् । व या य वीय लोकेषु सवषु वदतां वरः ।। १० ।। सुक यया सहार ये वजहारानुकूलया । त यैतद् जसंघु ं सरो राजन् काशते ।। ११ ।। इ के ऐसा कहनेपर भृगन ु दन महामना यवनका ोध शी शा त हो गया और उ ह ने दे वे को (उसी ण) स पूण ःख से, मु कर दया। राजन्! उन श शाली ऋ षने मदको, जसे पहले उ ह ने ही उ प कया था, म पान, ी, जूआ और मृगया ( शकार)—इन चार थान म पृथक्-पृथक् बाँट दया। इस कार मदको र हटाकर उ ह ने दे वराज इ और अ नीकुमार स हत स पूण दे वता को सोमरससे तृ त कया तथा राजा शया तका य पूण कराकर सम त लोक म अपनी अ त श को व यात करके व ा म े यवन ऋ ष अपनी मनोनुकूल प नी सुक याके साथ वनम वहार करने लगे। यु ध र! यह जो प य के कलरवसे गूँजता आ सरोवर सुशो भत हो रहा है, मह ष यवनका ही है ।। ७—११ ।। अ वं सह सोदयः पतॄन् दे वां तपय । एतद् ् वा महीपाल सकता ं च भारत ।। १२ ।। सै धवार यमासा कु यानां कु दशनम् । पु करेषु महाराज सवषु च जलं पृश ।। १३ ।। थाणोम ा ण च जपन् स ा य स भारत । सं ध योनर े ेताया ापर य च ।। १४ ।। तुम भाइय स हत इसम नान करके दे वता और पतर का तपण करो। भूपाल! भरतन दन! इस सरोवरका और सकता तीथका दशन करके सै धवार यम प ँचकर वहाँक छोट -छोट न दय के दशन करना। महाराज! यहाँके सभी तालाबम जाकर जलका पश करो। भारत! थाणु ( शव)-के म का जप करते ए उन तीथ म नान करनेसे तु ह स ा त होगी। नर े ! यह ेता और ापरक सं धके समय कट आ तीथ है ।। १२ —१४ ।। अयं ह यते पाथ सवपाप णाशनः । अ ोप पृ य चैव वं सवपाप णाशने ।। १५ ।। यु ध र! यह सब पाप का नाश करनेवाला तीथ दखायी दे ता है। इस सवपापनाशन तीथम नान करके तुम शु हो जाओगे ।। १५ ।। आच कपवत ैव नवासो वै मनी षणाम् । सदाफलः सदा ोतो म तां थानमु मम् ।। १६ ।। इसके आगे आच क पवत है, जहाँ मनीषी पु ष नवास करते ह। वहाँ सदा फल लगे रहते ह और नर तर पानीके झरने बहते ह। इस पवतपर अनेक दे वता के उ म थान

ह ।। १६ ।। चै या ैते ब वधा दशानां यु ध र । एत च मस तीथमृषयः पयुपासते । वैखानसा बालख याः पावका वायुभोजनाः ।। १७ ।। शृ ा ण ी ण पु या न ी ण वणा न च । सवा यनुप र य यथाकाममुप पृश ।। १८ ।। यु ध र! ये दे वता के अनेकानेक म दर दखायी दे ते ह, जो नाना कारके ह। यह च तीथ है, जसक ब त-से ऋ षलोग उपासना करते ह। यहाँ बालख य नामक वैखानस महा मा रहते ह जो वायुका आहार करनेवाले और परम पावन ह। यहाँ तीन प व शखर और तीन झरने ह। इन सबक इ छानुसार प र मा करके नान करो ।। १७-१८ ।। शा तनु ा राजे शुनक नरा धपः । नरनारायणौ चोभौ थानं ा ताः सनातनम् ।। १९ ।। राजे ! यहाँ राजा शा तनु, शुनक और नर-नारायण—ये सभी न य धामम गये ह ।। १९ ।। इह न यशया दे वाः पतर मह ष भः । आच कपवते तेपु तान् यज व यु ध र ।। २० ।। यु ध र! इस आच क पवतपर न य नवास करते ए मह षय स हत जन दे वता और पतर ने तप या क है, तुम उन सबक पूजा करो ।। २० ।। इह ते वै च न् ा ृषय वशा पते । यमुना चा य ोता कृ ण ेह तपोरतः ।। २१ ।। यमौ च भीमसेन कृ णा चा म कशन । सव चा ग म याम वयैव सह पा डव ।। २२ ।। एतत् वणं पु य म य मनुजे र । य धाता वधाता च व ण ो वमागताः ।। २३ ।। राजन्! यहाँ दे वता और ऋ षय ने च भोजन कया था। इसके पास ही अ य वाहवाली यमुना नद बहती है। यह भगवान् कृ णने भी तप या क है। श ुदमन! नकुल, सहदे व, भीमसेन, ौपद और हम सब लोग तु हारे साथ इसी थानपर चलगे। पा डु न दन! यह इ का प व झरना है। नरे र! यह वही थान है जहाँ धाता, वधाता और व ण ऊ वलोक गये ह ।। २१—२३ ।। इह तेऽ यवसन् राजन् ा ताः परमध मणः । मै ाणामृजुबु नामयं ग रवरः शुभः ।। २४ ।। राजन्! वे माशील और परम धमा मा पु ष यह रहते थे। सरल बु तथा सबके त मै ीभाव रखनेवाले स पु ष के लये यह े पवत शुभ आ य है ।। २४ ।। एषा सा यमुना राजन् मह षगणसे वता । नानाय चता राजन् पु या पापभयापहा ।। २५ ।। े ो

अ राजा महे वासो मा धातायजत वयम् । साहदे व कौ तेय सोमको ददतां वरः ।। २६ ।। राजन्! यही वह मह षगणसे वत पु यमयी यमुना है जसके तटपर अनेक य हो चुके ह। यह पापके भयको र भगानेवाली है। कु तीन दन! यह महान् धनुधर राजा मा धाताने वयं य कया था। दा न शरोम ण सहदे व-कुमार सोमकने भी इसीके तटपर य ानु ान कया ।। २५-२६ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायां सौक ये प च वश य धकशततमोऽ यायः ।। १२५ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम सुक योपा यान वषयक एक सौ पचीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १२५ ।।

षड् वश य धकशततमोऽ यायः राजा मा धाताक उ प

और सं

तचर

यु ध र उवाच मा धाता राजशा ल षु लोकेषु व ुतः । कथं जातो महा न् यौवना ो नृपो मः ।। १ ।। यु ध रने पूछा— ा ण े ! युवना के पु नृप े मा धाता तीन लोक म व यात थे। उनक उ प कस कार ई थी? ।। १ ।। कथं चैनां परां का ां ा तवान मत ु तः । य य लोका यो व या व णो रव महा मनः ।। २ ।। अ मत तेज वी मा धाताने यह सव च थ त कैसे ा त कर ली थी? सुना है, परमा मा व णुके समान महाराज मा धाताके वशम तीन लोक थे ।। २ ।। एत द छा यहं ोतुं च रतं त य धीमतः । (स यक त ह मा धातुः कयमानं वयानघ ।) यथा मा धातृश द त य श सम ुतेः । ज म चा तवीय य कुशलो स भा षतुम् ।। ३ ।। न पाप महष! म आपके मुखसे उन स यक त एवं बु मान् राजा मा धाताका वह सब च र सुनना चाहता ँ। इ के समान तेज वी और अनुपम परा मी उन नरेशका ‘मा धाता’ नाम कैसे आ? और उनके ज मका वृ ा त या है? बताइये; य क आप ये सब बात बतानेम कुशल ह ।। ३ ।। लोमश उवाच शृणु वाव हतो राजन् रा त य महा मनः । यथा मा धातृश दो वै लोकेषु प रगीयते ।। ४ ।। लोमशजीने कहा—राजन्! लोकम उन महामना नरेशका ‘मा धाता’ नाम कैसे च लत आ? यह बतलाता ँ, यान दे कर सुनो ।। ४ ।। इ वाकुवंश भवो युवना ो महीप तः । सोऽयजत् पृ थवीपालः तु भभू रद णैः ।। ५ ।। इ वाकुवंशम युवना नामसे स एक राजा हो गये ह। भूपाल युवना ने चुर द णावाले ब त-से य का अनु ान कया ।। ५ ।। अ मेधसह ं च ा य धमभृतां वरः । अ यै तु भमु यैरयजत् वा तद णैः ।। ६ ।। वे धमा मा म े थे। उ ह ने एक सह अ मेधय पूण करके ब त द णाके साथ सरे- सरे े य ारा भी भगवान्क आराधना क ।। ६ ।। अनप य तु राज षः स महा मा महा तः । ो

म वाधाय तद् रा यं वन न यो बभूव ह ।। ७ ।। शा ेन व धना संयो या मानमा मवान् । स कदा च ृपो राज ुपवासेन ःखतः ।। ८ ।। पपासाशु क दयः ववेशा मं भृगोः । तामेव रा राजे महा मा भृगुन दनः ।। ९ ।। इ चकार सौ ु नेमह षः पु कारणात् । स भृतो म पूतेन वा रणा कलशो महान् ।। १० ।। वे महामना राज ष महान् तका पालन करनेवाले थे तो भी उनके कोई संतान नह ई। तब वे मन वी नरेश रा यका भार म य पर रखकर शा ीय व धके अनुसार अपनेआपको परमा म- च तनम लगाकर सदा वनम ही रहने लगे। एक दनक बात है, राजा युवना उपवासके कारण ःखत हो गये। याससे उनका दय सूखने लगा। उ ह ने जल पीनेक इ छासे रातके समय मह ष भृगक ु े आ मम वेश कया। राजे ! उसी रातम महा मा भृगन ु दन मह ष यवनने सु ु नकुमार युवना को पु क ा त करानेके लये एक इ क थी। उस इ के समय मह षने म पूत जलसे एक ब त बड़े कलशको भरकर रख दया था ।। ७—१० ।। त ा त त राजे पूवमेव समा हतः । यत् ा य सवेत् त य प नी श समं सुतम् ।। ११ ।। महाराज! वह कलशका जल पहलेसे ही आ मके भीतर इस उ े यसे रखा गया था क उसे पीकर राजा युवना क रानी इ के समान श शाली पु को ज म दे सके ।। ११ ।। तं य य वे ां कलशं सुषुपु ते महषयः । रा जागरणा ा तान् सौ ु नः समती य तान् ।। १२ ।। उस कलशको वेद पर रखकर सभी मह ष सो गये थे। रातम दे रतक जागनेके कारण वे सब-के-सब थके ए थे। युवना उ ह लाँघकर आगे बढ़ गये ।। १२ ।। शु कक ठः पपासातः पानीयाथ भृशं नृपः । तं व या मं शा तः पानीयं सोऽ ययाचत ।। १३ ।। वे याससे पी ड़त थे। उनका क ठ सूख गया था। पानी पीनेक अ य त अ भलाषासे वे उस आ मके भीतर गये और शा तभावसे जलके लये याचना करने लगे ।। १३ ।। त य ा त य शु केण क ठ े न ोशत तदा । ना ौषीत् क न तदा शकुने रव वाशतः ।। १४ ।। राजा थककर सूखे क ठसे पानीके लये च ला रहे थे, परंतु उस समय च-च करनेवाले प ीक भाँ त उनक चीख-पुकार कोई भी न सुन सका ।। १४ ।। तत तं कलशं ् वा जलपूण स पा थवः । अ य वत वेगेन पी वा चा भो वासृजत् ।। १५ ।। तदन तर जलसे भरे ए पूव कलशपर उनक पड़ी। दे खते ही वे बड़े वेगसे उसक ओर दौड़े और (इ छानुसार) पीकर उ ह ने बचे ए जलको वह गरा

दया ।। १५ ।। स पी वा शीतलं तोयं पपासात महीप तः । नवाणमगमद् धीमान् सुसुखी चाभवत् तदा ।। १६ ।। राजा युवना याससे बड़ा क पा रहे थे। वह शीतल जल पीकर उ ह बड़ी शा त मली। वे बु मान् नरेश उस समय जल पीनेसे ब त सुखी ए ।। १६ ।। तत ते यबु य त मुनयः सतपोधनाः । न तोयं तं च कलशं द शुः सव एव ते ।। १७ ।। त प ात् तपोधन यवन मु नके स हत सब मु न जाग उठे । उन सबने उस कलशको जलसे शू य दे खा ।। क य कमद म त ते पयपृ छन् समागताः । युवना ो ममे येवं स यं सम भप त ।। १८ ।। फर तो वे सब एक हो गये और एक- सरेसे पूछने लगे—‘यह कसका कम है?’ युवना ने सामने आकर कहा—‘यह मेरा ही कम है।’ इस कार उ ह ने स यको वीकार कर लया ।। १८ ।। न यु म त तं ाह भगवान् भागव तदा । सुताथ था पता ाप तपसा चैव स भृताः ।। १९ ।। मया ा हतं तप आ थाय दा णम् । पु ाथ तव राजष महाबलपरा म ।। २० ।। तब भगवान् यवनने कहा—‘महान् बल और परा मसे स प राज ष युवना ! यह तुमने ठ क नह कया। इस कलशम मने तु ह ही पु दान करनेके लये तप यासे सं कारयु कया आ जल रखा था और कठोर तप या करके उसम तेजक थापना क थी ।। १९-२० ।। महाबलो महावीय तपोबलसम वतः । यः श म प वीयण गमयेद ् यमसादनम् ।। २१ ।। अनेन व धना राजन् मयैत पपा दतम् । अभ णं वया राजन् न यु ं कृतम वै ।। २२ ।। ‘राजन्! उ व धसे इस जलको मने ऐसा श स प कर दया था क इसको पीनेसे एक महाबली, महापरा मी और तपोबल स प पु उ प हो जो अपने बलपरा मसे दे वराज इ को भी यमलोक प ँचा सके। उसी जलको तुमने आज पी लया, यह अ छा नह कया ।। २१-२२ ।। न व श यम मा भरेतत् कतुमतोऽ यथा । नूनं दै वकृतं ेतद् यदे वं कृतवान स ।। २३ ।। ‘अब हमलोग इसके भावको टालने या बदलनेम असमथ ह। तुमने जो ऐसा काय कर डाला है, इसम न य ही दै वक ेरणा है ।। २३ ।। पपा सतेन याः पीता व धम पुर कृताः । आप वया महाराज म पोवीयस भृताः ।। २४ ।। ी

ता य वमा मना पु मी शं जन य य स । वधा यामो वयं त तवे परमा ताम् ।। २५ ।। यथा श समं पु ं जन य य स वीयवान् । गभधारणजं वा प न खेदं समवा य स ।। २६ ।। ‘महाराज! तुमने याससे ाकुल होकर जो मेरे तपोबलसे सं चत तथा व धपूवक म से अ भम त जलको पी लया है, उसके कारण तुम अपने ही पेटसे तथाक थत इ वजयी पु को ज म दोगे। इस उ े यक स के लये हम तु हारी इ छाके अनु प अ य त अ त य करायगे जससे तुम वयं भी श शाली रहकर इ के समान परा मी पु उ प कर सकोगे और गभधारणज नत क का भी तु ह अनुभव न होगा’ ।। २४— २६ ।। ततो वषशते पूण त य रा ो महा मनः । वामं पा व न भ सुतः सूय इव थतः ।। २७ ।। न ाम महातेजा न च तं मृ युरा वशत् । युवना ं नरप त तद त मवाभवत् ।। २८ ।। तदन तर पूरे सौ वष बीतनेपर उन महा मा राजा युवना क बाय कोख फाड़कर एक सूयके समान महातेज वी बालक बाहर नकला तथा राजाक मृ यु भी नह ई। यह एक अ त-सी बात ई ।। २७-२८ ।। ततः श ो महातेजा तं द ु पागमत् । ततो दे वा महे ं तमपृ छन् धा यती त कम् ।। २९ ।। त प ात् महातेज वी इ उस बालकको दे खनेके लये वहाँ आये। उस समय दे वता ने महे से पूछा—यह बालक या पीयेगा? ।। २९ ।।

दे शन ततोऽ या ये श ः सम भसंदधे । मामयं धा यती येवं भा षते चैव व णा ।। ३० ।। मा धाते त च नामा य च ु ः से ा दवौकसः ।। ३१ ।। दे शन श द ामा वा स शशु तदा । अवधत महातेजाः क कून् राजं योदश ।। ३२ ।। तब इ ने अपनी तजनी अंगल ु ी बालकके मुँहम डाल द और कहा—‘माम्अयं धाता ।’‘अथात् यह मुझे ही पीयेगा’ वधारी इ के ऐसा कहनेपर इ आ द सब दे वता ने मलकर उस बालकका नाम ‘मा धाता’ रख दया। राजन्! इ क द ई दे शनी (तजनी) अंगु लका रसा वादन करके वह महातेज वी शशु तेरह ब ा बढ़ गया ।। ३०—३२ ।। वेदा तं सधनुवदा द ा य ा ण चे रम् । उपत थुमहाराज यातमा य सवशः ।। ३३ ।। महाराज! उस समय श शाली मा धाताके च तन करनेमा से ही धनुवदस हत स पूण वेद और द अ (ई रक कृपासे) उप थत हो गये ।। ३३ ।। आजगवं नाम धनुः शतः शृ ो वा ये । अभे ं कवचं चैव स तमुप श युः ।। ३४ ।। आजगव नामक धनुष, स गके बने ए बाण और अभे कवच—सभी त काल उनक सेवाम आ गये ।। सोऽ भ ष ो मघवता वयं श े ण भारत । ो ी ै

धमण जय लोकां ीन् व णु रव व मैः ।। ३५ ।। भारत! सा ात् दे वराज इ ने मा धाताका रा या भषेक कया। भगवान् व णुने जैसे तीन पग ारा लोक को नाप लया था, उसी कार मा धाताने भी धमके ारा तीन लोक को जीत लया ।। ३५ ।। त या तहतं च ं ावतत महा मनः । र ना न चैव राज ष वयमेवोपत थरे ।। ३६ ।। उन महा मा नरेशका शासनच सव बेरोक-टोक चलने लगा। सारे र न राज ष मा धाताके यहाँ वयं उप थत हो जाते थे ।। ३६ ।। त यैवं वसुस पूणा वसुधा वसुधा धप । तेने ं व वधैय ैब भः वा तद णैः ।। ३७ ।। यु ध र! इस कार उनके लये यह सारी पृ वी धन-र न से प रपूण थी। उ ह ने पया त द णावाले नाना कारके ब सं यक य ारा भगवान्क समाराधना क ।। ३७ ।। चतचै यो महातेजा धमान् ा य च पु कलान् । श याधासनं राजँ लधवान मत ु तः ।। ३८ ।। राजन्! महातेज वी एवं परम का तमान् राजा मा धाताने य म डप का नमाण करके पया त धमका स पादन कया और उसीके फलसे वगलोकम इ का आधा सहासन ा त कर लया ।। ३८ ।। एकाहात् पृ थवी तेन धम न येन धीमता । व जता शासनादे व सर नाकरप ना ।। ३९ ।। उन धमपरायण बु मान् नरेशने केवल शासनमा से एक ही दनम समु , खान और नगर स हत सारी पृ वीपर वजय ा त कर ली ।। ३९ ।। त य चै यैमहाराज तूनां द णावताम् । चतुर ता मही ा ता नासीत् क चदनावृतम् ।। ४० ।। महाराज! उनके द णायु य के चै य (य म डप )-से चार ओरक पृ वी भर गयी थी, कह कोई भी थान ऐसा नह था जो उनके य म डप से घरा न हो ।। ४० ।। तेन पसह ा ण गवां दश महा मना । ा णानां महाराज द ानी त च ते ।। ४१ ।। महाराज! महा मा राजा मा धाताने दस हजार प गौएँ ा ण को दानम द थ , ऐसा जानकार-लोग कहते ह ।। ४१ ।। तेन ादशवा ष यामनावृ ् यां महा मना । वृ ं स य ववृ यथ मषतो व पा णनः ।। ४२ ।। उन महामना नरेशने बारह वष तक होनेवाली अनावृ के समय वधा री इ के दे खते-दे खते खेतीक उ तके लये वयं पानीक वषा क थी ।। ४२ ।। तेन सोमकुलो प ो गा धारा धप तमहान् । गज व महामेघः मय नहतः शरैः ।। ४३ ।। े े े े ी ी ो े

उ ह ने महामेघके समान गजते ए महापरा मी च वंशी गा धारराजको बाण से घायल करके मार डाला था ।। ४३ ।। जा तु वधा तेन ाता राजन् कृता मना । तेना मतपसा लोका ता पता ा ततेजसा ।। ४४ ।। यु ध र! वे अपने मनको वशम रखते थे। उ ह ने अपने तपोबलसे दे वता, मनु य, तयक् और थावर—चार कारक जाक र ा क थी; साथ ही अपने अ य त तेजसे स पूण लोक को संत त कर दया था ।। त यैतद् दे वयजनं थानमा द यवचसः । प य पु यतमे दे शे कु े य म यतः ।। ४५ ।। (तथा वम प राजे मा धातेव महीप तः । धम कृ वा मह र न् वगलोकमवा य स ।।) सूयके समान तेज वी उ ह महाराज मा धाताके दे वय का यह थान है जो कु े क सीमाके भीतर परम प व दे शम थत है, इसका दशन करो। राजे ! महाराज मा धाताक भाँ त तुम भी धमपूवक पृ वीक र ा करते रहनेपर अ य वगलोक ा त कर लोगे ।। एतत् ते सवमा यातं मा धातु रतं महत् । ज म चा यं महीपाल य मां वं प रपृ छ स ।। ४६ ।। भूपाल! तुम मुझसे जसके वषयम पूछ रहे थे, वह मा धाताका उ म ज मवृ ा त और उनका महान् च र सब कुछ तु ह सुना दया ।। ४६ ।।

वैश पायन उवाच एवमु ः स कौ तेयो लोमशेन मह षणा । प छान तरं भूयः सोमकं त भारत ।। ४७ ।। वैश पायनजी कहते ह—भारत! मह ष लोमशके ऐसा कहनेपर कु तीन दन यु ध रने पुनः सोमकके वषयम कया ।। ४७ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायां मा धातोपा याने षड् वश य धकशततमोऽ यायः ।। १२६ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम मा धातोपा यान वषयक एक सौ छ बीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १२६ ।। (दा णा य अ धक पाठक े १ ोक मलाकर कुल ४८ ोक ह)

स त वश य धकशततमोऽ यायः सोमक और ज तुका उपा यान यु ध र उवाच कथं वीयः स राजाभूत् सोमको वदतां वर । कमा य य भावं च ोतु म छा म त वतः ।। १ ।। यु ध रने पूछा—व ा म े महष! राजा सोमकका बल-परा म कैसा था? म उनके कम और भावका यथाथ वणन सुनना चाहता ँ ।। १ ।। लोमश उवाच यु ध रासी ृप तः सोमको नाम धा मकः । त य भायाशतं राजन् स शीनामभूत् तदा ।। २ ।। लोमशजीने कहा—यु ध र! सोमक नामसे स एक धमा मा राजा रा य करते थे। उनक सौ रा नयाँ थ । वे सभी प-अव था आ दम ायः एक समान थ ।। २ ।। स वै य नेन महता तासु पु ं महीप तः । कं च ासादयामास कालेन महता प ।। ३ ।। परंतु द घकालतक महान् य न करते रहनेपर भी वे अपनी उन रा नय के गभसे कोई पु न ा त कर सके ।। ३ ।। कदा चत् त य वृ य घटमान य य नतः । ज तुनाम सुत त मन् ीशते समजायत ।। ४ ।। राजा सोमक वृ ाव थाम भी इसके लये नर तर य नशील थे; अतः कसी समय उनक सौ य मसे कसी एकके गभसे एक पु उ प आ, जसका नाम था ज तु ।। ४ ।। तं जातं मातरः सवाः प रवाय समासत । सततं पृ तः कृ वा कामभोगान् वशा पते ।। ५ ।। राजन्! उसके ज म लेनेके प ात् सभी माताएँ काम-भोगक ओरसे मुँह मोड़कर सदा उसी ब चेके पास उसे सब ओरसे घेरकर बैठ रहती थ ।। ५ ।। ततः पपी लका ज तुं कदा चददशत् फ च । स द ो नद ादं तेन ःखेन बालकः ।। ६ ।। एक दन एक च ट ने ज तुके क टभागम डँस लया। च ट के काटनेपर उसक पीड़ासे वकल हो ज तु सहसा रोने लगा ।। ६ ।। तत ता मातरः सवाः ा ोशन् भृश ःखताः । वाय ज तुं सहसा स श द तुमुलोऽभवत् ।। ७ ।। इससे उसक सब माताएँ भी सहसा ज तुके शरीरसे च ट को हटाकर अ य त खी हो जोर-जोरसे रोने लग । उनके रोदनक वह स म लत व न बड़ी भयंकर तीत ई ।। ७ ।। ी

तमातनादं सहसा शु ाव स महीप तः । अमा यपषदो म ये उप व ः सह वजा ।। ८ ।। उस समय राजा सोमक पुरो हतके साथ म य क सभाम बैठे थे। उ ह ने अक मात् वह आतनाद सुना ।। ततः थापयामास कमेत द त पा थवः । त मै ा यथावृ माचच े सुतं त ।। ९ ।। सुनकर राजाने ‘यह या हो गया?’ इस बातका पता लगानेके लये ारपालको भेजा। ारपालने लौटकर राजकुमारसे स ब ध रखनेवाली पूव घटनाका यथावत् वृ ा त कह सुनाया ।। ९ ।। वरमाणः स चो थाय सोमकः सह म भः । व या तःपुरं पु मा ासयदरदमः ।। १० ।। तब श ुदमन राजा सोमकने म य स हत उठकर बड़ी उतावलीके साथ अ तःपुरम वेश कया और पु को आ ासन दया ।। १० ।। सा व य वा तु तं पु ं न या तःपुरा ृपः । ऋ वजा स हतो राजन् सहामा य उपा वशत् ।। ११ ।। बेटेको सा वना दे कर राजा अ तःपुरसे बाहर नकले और पुरो हत तथा म य के साथ पुनः म णा-गृहम जा बैठे ।। ११ ।। सोमक उवाच धग वहैकपु वमपु वं वरं भवेत् । न यातुर वाद् भूतानां शोक एवैकपु ता ।। १२ ।। उस समय सोमकने कहा—इस संसारम कसी पु षके एक ही पु का होना ध कारका वषय है। एक पु होनेक अपे ा तो पु हीन रह जाना ही अ छा है। एक ही संतान हो तो सब ाणी उसके लये सदा आकुल- ाकुल रहते ह, अतः एक पु का होना शोक ही है ।। इदं भायाशतं न् परी य स शं भो । पु ा थना मया वोढं न तासां व ते जा ।। १३ ।। न्! मने अ छ तरह जाँच-बूझकर पु क इ छासे अपने यो य सौ य के साथ ववाह कया, कतु उनके कोई संतान नह ई ।। १३ ।। एकः कथं च प ः पु ो ज तुरयं मम । यतमानासु सवासु क नु ःखमतः परम् ।। १४ ।। य प मेरी सभी रा नयाँ संतानके लये य नशील थ , तथा प कसी तरह मेरे यही एक पु उ प आ, जसका नाम ज तु है। इससे बढ़कर ःख और या हो सकता है? ।। १४ ।। वय समतीतं मे सभाय य जो म । आसां ाणाः समाय ा मम चा ैकपु के ।। १५ ।। े

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ज े ! मेरी तथा इन रा नय क अ धक अव था बीत गयी, कतु अभीतक मेरे और उन प नय के ाण केवल इस एक पु म ही बसते ह ।। १५ ।। या ु कम तथा यु ं येन पु शतं भवेत् । महता लघुना वा प कमणा करेण वा ।। १६ ।। या कोई ऐसा उपयोगी कम हो सकता है जससे मेरे सौ पु हो जायँ। भले ही वह कम महान् हो, लघु हो अथवा अ य त कर हो ।। १६ ।।

ऋ वगुवाच अ त चैता शं कम येन पु शतं भवेत् । य द श नो ष तत् कतुमथ व या म सोमक ।। १७ ।। पुरो हतने कहा—सोमक! ऐसा कम है जससे तु ह सौ पु हो सकते ह। य द तुम उसे कर सको तो बताऊँगा ।। १७ ।। सोमक उवाच काय वा य द वाकाय येन पु शतं भवेत् । कृतमेवे त तद् व भगवान् वीतु मे ।। १८ ।। सोमकने कहा—भगवन्! आप वह कम मुझे बताइये जससे सौ पु हो सकते ह। वह करनेयो य हो या न हो, मेरे ारा उसे कया आ ही जा नये ।। १८ ।। ऋ वगुवाच यज व ज तुना राजं वं मया वतते तौ । ततः पु शतं ीमद् भ व य य चरेण ते ।। १९ ।। पुरो हतने कहा—राजन्! म एक य आर भ करवाऊँगा, उसम तुम अपने पु ज तुक आ त दे कर यजन करो। इससे शी ही तु ह सौ परम सु दर पु ात ह गे ।। १९ ।। वपायां यमानायां धूममा ाय मातरः । तत ताः सुमहावीया न य य त ते सुतान् ।। २० ।। जस समय उसक चब क आ त द जायगी उस समय उसके धूएक ँ ो सूँघ लेनेपर सब माताएँ (गभवती हो) आपके लये अ य त परा मी पु को ज म दगी ।। २० ।। त यामेव तु ते ज तुभ वता पुनरा मजः । उ रे चा य सौवण ल म पा भ व य त ।। २१ ।। आपका पु ज तु पुनः अपनी माताके ही पेटसे उ प होगा। उस समय उसक बाय पसलीम एक सुनहरा च होगा ।। २१ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायां ज तूपा याने स त वश य धकशततमोऽ यायः ।। १२७ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम ज तूपा यान वषयक एक सौ स ाईसवाँ अ याय पूरा आ ।। १२७ ।।

अ ा वश य धकशततमोऽ यायः सोमकको सौ पु क ा त तथा सोमक और पुरो हतका समान पसे नरक और पु यलोक का उपभोग करना सोमक उवाच न् यद् यद् यथा काय तत् कु व तथा तथा । पु कामतया सव क र या म वच तव ।। १ ।। सोमकने कहा— न्! जो-जो काय जैसे-जैसे करना हो, वह उसी कार क जये। म पु क कामनासे आपक सम त आ ा का पालन क ँ गा ।। १ ।। लोमश उवाच ततः स याजयामास सोमकं तेन ज तुना । मातर तु बलात् पु मपाकषुः कृपा वताः ।। २ ।। हा हताः मे त वाश य ती शोकसमाहताः । द यः क णं वा प गृही वा द णे करे ।। ३ ।। स े पाणौ गृही वा तु याजकोऽ प म कष त । कुररीणा मवातानां समाकृ य तु तं सुतम् ।। ४ ।। वश य चैनं व धवद् वपाम य जुहाव सः । वपायां यमानायां ग धमा ाय मातरः ।। ५ ।। आता नपेतुः सहसा पृ थ ां कु न दन । सवा गभानलभं तत ताः परमा नाः ।। ६ ।। लोमशजी कहते ह—यु ध र! तब पुरो हतने राजा सोमकसे ज तुक ब ल दे कर कये जानेवाले य को ार भ करवाया। उस समय क णामयी माताएँ अ य त शोकसे ाकुल हो ‘हाय! हम मारी गय ’ ऐसा कहकर रोती ई अपने पु ज तुको बलपूवक अपनी ओर ख च रही थ । वे क ण वरम रोती ई बालकके दा हने हाथको पकड़कर ख चती थ और पुरो हतजी उसके बाय हाथको पकड़कर अपनी ओर ख च रहे थे। सब रा नयाँ शोकसे आतुर हो कुररी प ीक भाँ त वलाप कर रही थ और पुरो हतने उस बालकको छ नकर उसके टु कड़े-टु कड़े कर डाले तथा व धपूवक उसक च बय क आ त द । कु न दन! चब क आ तके समय बालकक माताएँ धूमक ग ध सूँघकर सहसा शोकपी डत हो पृ वीपर गर पड़ । तदन तर वे सब सु दरी रा नयाँ गभवती हो गय ।। २ —६ ।। ततो दशसु मासेषु सोमक य वशा पते । ज े पु शतं पूण तासु सवासु भारत ।। ७ ।। ी













यु ध र! तदन तर दस मास बीतनेपर उन सबके गभसे राजा सोमकके सौ पु ए ।। ७ ।। ज तु य ः समभव ज नयामेव पा थव । स तासा म एवासी तथा ते नजाः सुताः ।। ८ ।। राजन्! सोमकका ये पु ज तु अपनी माताके ही गभसे कट आ, वही उन सब रा नय को वशेष य था। उ ह अपने पु उतने यारे नह लगते थे ।। ८ ।। त च ल णम यासीत् सौवण पा उ रे । त मन् पु शते चा यः स बभूव गुणैर प ।। ९ ।। उसक दा हनी पसलीम पूव सुनहरा च प दखायी दे ता था। राजाके सौ पु म अव था और गुण क से भी वही े था ।। ९ ।। ततः स लोकमगमत् सोमक य गु ः परम् । अथ काले तीते तु सोमकोऽ यगमत् परम् ।। १० ।। अथ तं नरके घोरे प यमानं ददश सः । तमपृ छत् कमथ वं नरके प यसे ज ।। ११ ।। तदन तर कुछ कालके प ात् सोमकके पुरो हत परलोकवासी हो गये। थोड़े दन के बाद राजा सोमक भी परलोकवासी हो गये। यमलोकम जानेपर सोमकने दे खा, पुरो हतजी घोर नरकक आगम पकाये जा रहे ह। उ ह उस अव थाम दे खकर सोमकने पूछा —‘ न्! आप नरकक आगम कैसे पकाये जा रहे ह?’ ।। तम वीद् गु ः सोऽथ प यमानोऽ नना भृशम् । वं मया या जतो राजं त येदं कमणः फलम् ।। १२ ।। एत छ वा स राज षधमराजमथा वीत् । अहम वे या म मु यतां मम याजकः ।। १३ ।। म कृते ह महाभागः प यते नरका नना । (सोऽहमा मानमाधा ये नरका मु यतां गु ः ।) तब नरका नसे अ धक संत त होते ए पुरो हतने कहा—‘राजन्! मने तु ह जो (तु हारे पु क आ त दे कर) य करवाया था, उसी कमका यह फल है’ यह सुनकर राज ष सोमकने धमराजसे कहा—‘भगवन्! म इस नरकम वेश क ँ गा। आप मेरे पुरो हतको छोड़ द जये। वे महाभाग मेरे ही कारण नरका नम पक रहे ह। अतः म अपनेआपको नरकम रखूँगा, परंतु मेरे गु जीको उससे छु टकारा मल जाना चा हये’ ।। १२-१३ ।। धम उवाच ना यः कतुः फलं राज ुपभुङ् े कदाचन । इमा न तव य ते फला न वदतां वर ।। १४ ।। धमने कहा—राजन्! कताके सवा सरा कोई उसके कये ए कम का फल कभी नह भोगता है। व ा म े महाराज! तु ह अपने पु यकम के फल व प जो ये पु य ो

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लोक ा त ए ह,

दखायी दे ते ह ।। १४ ।। सोमक उवाच पु या कामये लोकानृतेऽहं वा दनम् । इ छा यहमनेनैव सह व तुं सुरालये ।। १५ ।। नरके वा धमराज कमणा य समो हम् । पु यापु यफलं दे व समम वावयो रदम् ।। १६ ।। सोमक बोले—धमराज! म अपने वेदवे ा पुरो हतके बना पु यलोक म जानेक इ छा नह रखता। वगलोक हो या नरक—म कह भी इ ह के साथ रहना चाहता ँ। दे व! मेरे पु यकम पर इनका मेरे समान ही अ धकार है। हम दोन को यह पु य और पापका फल समान पसे मलना चा हये ।। १५-१६ ।। धमराज उवाच य ेवमी सतं राजन् भुङ् वा य स हतः फलम् । तु यकालं सहानेन प ात् ा य स सद्ग तम् ।। १७ ।। धमराज बोले—राजन्! य द तु हारी ऐसी इ छा है तो इनके साथ रहकर उतने ही समयतक तुम भी पापकम का फल भोगो, इसके बाद तु ह उ म ग त ा त होगी ।। १७ ।। लोमश उवाच स चकार तथा सव राजा राजीवलोचनः । ीणपाप त मात् स वमु ो गु णा सह ।। १८ ।। लोमशजी कहते ह—यु ध र! तब कमलनयन राजा सोमकने धमराजके कथनानुसार सब काय कया और भोग ारा पाप न हो जानेपर वे पुरो हतके साथ ही नरकसे छू ट गये ।। १८ ।। लेभे कामा शुभान् राजन् कमणा न जतान् वयम् । सह तेनैव व ेण गु णा स गु यः ।। १९ ।। त प ात् उन गु ेमी नरेशने अपने गु के साथ ही पु यकम ारा वयं ा त कये ए पु य-लोकके शुभ भोग का उपभोग कया ।। १९ ।। एष त या मः पु यो य एषोऽ े वराजते । ा त उ या षा ं ा ो त सुग त नरः ।। २० ।। यह उ ह राजा सोमकका प व आ म है जो सामने ही सुशो भत हो रहा है। यहाँ माशील होकर छः रात नवास करनेसे मनु य उ म ग त ा त कर लेता है ।। एत म प राजे व यामो वगत वराः । षा ं नयता मानः स जीभव क ु ह ।। २१ ।। कु े ! हम सब लोग इस आ मम छः राततक मन और इ य पर संयम रखते ए न त होकर नवास करगे। तुम इसके लये तैयार हो जाओ ।। २१ ।। ी













इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायां ज तूपा याने अ ा वश य धकशततमोऽ यायः ।। १२८ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम ज तूपा यान वषयक एक सौ अाईसवाँ अ याय पूरा आ ।। १२८ ।। (दा णा य अ धक पाठका ोक मलाकर कुल २१ ोक ह)

एकोन शद धकशततमोऽ यायः कु

े के ारभूत ल वण नामक यमुनातीथ एवं सर वतीतीथक म हमा

लोमश उवाच अ मन् कल वयं राज वान् वै जाप तः । स म ीकृतं नाम पुरा वषसह कम् ।। १ ।। लोमशजी कहते ह—यु ध र! पूवकालम यहाँ सा ात् जाप तने इ ीकृत नामक स का एक सह वष तक चालू रहनेवाला अनु ान कया था ।। १ ।। अ बरीष नाभाग इ वान् यमुनामनु । य े ् वा दश पा न सद ये योऽ भसृ वान् ।। २ ।। य ै तपसा चैव परां स मवाप सः । यह यमुनाके तटपर नाभागपु अ बरीषने भी य कया था और य पूण होनेके प ात् सद य को दस प मु ाएँ दान क थ तथा य और तप या ारा परम स ात कर ली थ ।। २ ।। दे श ना ष यायं य वनः पु यकमणः ।। ३ ।। सावभौम य कौ तेय ययातेर मतौजसः । पधमान य श े ण त येदं य वा वह ।। ४ ।। कु तीन दन! यह न षकुमार यया तका दे श है, जो पु यकमा, या क, महातेज वी और सावभौम स ाट् थे। वे सदा इ के साथ ई या रखते थे। यहाँ यह उ ह क य भू म है ।। ३-४ ।। प य नाना वधाकारैर न भ न चतां महीम् । म ज ती मव चा ा तां ययातेय कम भः ।। ५ ।। दे खो, यहाँ अ नय से यु नाना कारक वे दयाँ ह, जनसे यह सारी भू म ा त हो रही है; मानो पृ वी यया तके य कम से आ ा त हो उनक पु य-धाराम डू बी जा रही है ।। ५ ।। एषा श येकप ा या सरकं चैत मम् । प य राम दानेतान् प य नारायणा मम् ।। ६ ।। यह एक प ेवाली शमीका अवशेष अंश है तथा यह उ म सरोवर है। दे खो, ये परशुरामजीके कु ड ह और यह नारायणा म है ।। ६ ।। एत चच कपु य योगै वचरतो महीम् । सपणं महीपाल रौ यायाम मतौजसः ।। ७ ।। महाराज! योगश से सारी पृ वीपर वचरनेवाले महातेज वी ऋचीकन दन जमद नका सपण (घूमने- फरनेका थान) तीथ है जो रौ या नामक नद के समीप ो



सुशो भत है ।। ७ ।। अ ानुवंशं पठतः शृणु मे क ु न दन । उलूखलैराभरणैः पशाची यदभाषत ।। ८ ।। कु न दन! इस तीथके वषयम एक पर परा- ा त कथाको सू चत करनेवाले कुछ ोक ह ज ह म पढ़ता ँ, तुम मेरे मुखसे सुनो—( ाचीनकालक बात है, कोई ी अपने पु के साथ इस तीथम नवास करनेके लये आयी थी, उससे) एक भयंकर पशाचीने, जसने ओखली-जैसे आभूषण पहन रखे थे, उन ोक को कहा था— ।। ८ ।। युग धरे द ध ा य उ ष वा चा युत थले । त द् भूतलये ना वा सपु ा व तुमह स ।। ९ ।। ोक (का भाव) इस कार है—‘अरी! तू युग धरम दही खाकर* अ युत थलम नवास करके१ और भूतलयम नहाकर२ यहाँ पु स हत नवास करनेक अ धका रणी कैसे हो सकती है? ।। ९ ।। एकरा मु ष वेह तीयं य द व य स । एतद् वै ते दवावृ ं रा ौ वृ मतोऽ यथा ।। १० ।। ‘(अ छा, आयी है तो एक रात रह ले,) य द एक रात यहाँ रह लेनेके प ात् सरी रातम भी रहेगी तो दनम तो तेरा यह हाल है (आज दनम तो तुमको यह क दया गया है) और रातम तेरे साथ अ यथा बताव होगा ( वशेष क दया जायगा)’ ।। १० ।। अ चा नव यामः पां भरतस म । ारमेतत् तु कौ तेय कु े य भारत ।। ११ ।। भरत े ! (इस कवद तीके अनुसार कसीको भी यहाँ एक ही रात रहना चा हये) अतः हमलोग केवल आजक रातम ही यहाँ नवास करगे। यु ध र! यह तीथ कु े का ार बताया गया है ।। ११ ।। अ ैव ना षो राजा राजन् तु भ र वान् । यया तब र नौघैय े ो मुदम यगात् ।। १२ ।। राजन्! न षन दन राजा यया तने यह चुर र नरा शक द णासे यु अनेक य ारा भगवान्का यजन कया था। उन य म इ को बड़ी स ता ई थी ।। १२ ।। एतत् ल ावतरणं यमुनातीथमु मम् । एतद् वै नाकपृ य ारमा मनी षणः ।। १३ ।। यह यमुनाजीका ल ावतरण नामक उ म तीथ है। मनीषी पु ष इसे वगलोकका ार बताते ह ।। १३ ।। अ सार वतैय ैरीजानाः परमषयः । यूपोलूख लका तात ग छ यवभृथ लवम् ।। १४ ।। यह यूप और ओखली आ द य -साधन का सं ह करनेवाले मह षय ने सार वत य का अनु ान करके अवभृथ नान कया था ।। १४ ।। अ वै भरतो राजा राजन् तु भ र वान् । े े





हयमेधेन य ेन मे यम मवासृजत् ।। १५ ।। असकृत् कृ णसार ं धमणा य च मे दनीम् । अ ैव पु ष ा म ः स मु मम् ।। १६ ।। ाप चैव षमु येन संवतना भपा लतः । अ ोप पृ य राजे सवा लकान् प य त । पूयते कृता चैव अ ा प समुप पृश ।। १७ ।। राजन्! राजा भरतने धमपूवक वसुधाका रा य पाकर यह ब त-से य कये थे और यह अ मेधय के उ े यसे उ ह ने अनेक बार कृ णमृगके समान रंगवाले य स ब धी यामकण अ को भूतलपर मणके लये छोड़ा था। नर े ! इसी तीथम ऋ ष वर संवतसे सुर त हो महाराज म ने उ म य का अनु ान कया। राजे ! यहाँ नान करके शु आ मनु य स पूण लोक को य दे खता है और पापसे मु हो प व हो जाता है; अतः तुम इसम भी नान करो ।। १५—१७ ।।

वैश पायन उवाच त स ातृकः ना वा तूयमानो मह ष भः । लोमशं पा डव े इदं वचनम वीत् ।। १८ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर भाइय स हत नान करके मह षय ारा शं सत हो पा डव े यु ध रने लोमशजीसे इस कार कहा— ।। १८ ।। सवा लकान् प या म तपसा स य व म । इह थः पा डव े ं प या म ेतवाहनम् ।। १९ ।। ‘मुनी र! तपोबलसे स प होनेके कारण व तुतः आप ही यथाथ परा मी ह। आपक कृपासे आज म इस ल ावतरणके जलम थत होकर सब लोक को य दे ख रहा ँ। यह से मुझे पा डव े ेतवाहन अजुन भी दखायी दे ते ह ।। १९ ।। लोमश उवाच एवमेत महाबाहो प य त परमषयः । (इह ना वा तपोयु ां ी लकान् सचराचरान्) सर वती ममां पु यां पु यैकशरणावृताम् ।। २० ।। लोमशजीने कहा—महाबाहो! तुम ठ क कहते हो। यहाँ नान करके तपःश स प े ऋ षगण इसी कार चराचर ा णय स हत तीन लोक का दशन करते ह। अब इस पु यस लला सर वतीका दशन करो जो एकमा पु यका ही आ य लेनेवाले पु ष से घरी ई है ।। २० ।। य ना वा नर े धूतपा मा भ व य स । इह सार वतैय ै र व तः सुरषयः । ऋषय ैव कौ तेय तथा राजषयोऽ प च ।। २१ ।। नर े ! इसम नान करनेसे तु हारे सारे पाप धुल जायँगे। कु तीन दन! यहाँ अनेक दे व ष, ष तथा राज षय ने सार वत य का अनु ान कया है ।। २१ ।। े े े ो

वेद जापतेरेषा सम तात् प चयोजना । कुरोव य शील य े मेत महा मनः ।। २२ ।। यह सब ओर पाँच योजन फैली ई जाप तक य वेद है। यही य परायण महा मा राजा कु का े है ।। २२ ।। इ त ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायामेकोन शद धकशततमोऽ यायः ।। १२९ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ा वषयक एक सौ उनतीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १२९ ।। (दा णा य अ धक पाठका ोक मलाकर कुल २२ ोक ह)

* युग धर एक पवत या दे शका नाम है, जहाँके लोग ऊँटनी और गदहीतकके धका दही जमा लेते ह। उस ीने कभी वहाँ जाकर दही खाया था। धमशा म ऊँट और एक खुरवाले पशु के धको म दराके तु य बताया गया है —‘औमेकशफ ं ीरं सुरातु यम् ।’ इ त। १. ाचीनकालम अ युत थल नामक गाँव वणसंकरजातीय अ यज एवं चा डाल का नवास थान था। उस ीने उस गाँवम कसी समय नवास कया था। धम-शा के अनुसार वणसंकर के संसगम आनेपर ाय पसे ाजाप य तका अनु ान करना चा हये—‘संसय ृ संकरैः साध ाजाप यं तं चरेत् ।’इ त। २. ‘भूतलय’ नामक गाँव चोर और डाकु का अ ा था। वहाँ एक नद थी, जसम मुद बहाये जाते थे। उस ीने उसी षत जलम नान कया था। धमशा के अनुसार उस गाँवम रहनेमा से ाजाप य त करनेक आव यकता है —‘ य ो भूतलये व ः ाजाप यं तं चरेत् ।’इ त ।। इन तीन दोष से यु होनेके कारण वह ी तीथवासक अ धका रणी नह रह गयी थी।

शद धकशततमोऽ यायः व भ तीथ क म हमा और राजा उशीनरक कथाका आर भ लोमश उवाच इह म या तनू य वा वग ग छ त भारत । मतुकामा नरा राज हाया त सह शः ।। १ ।। लोमशजी कहते ह—भारत! यहाँ शरीर छू ट जानेपर मनु य वगलोकम जाते ह; इस लये हजार इस तीथम मरनेके लये आकर नवास करते ह ।। १ ।। एवमाशीः यु ा ह द ेण यजता पुरा । इह ये वै म र य त ते वै वग जतो नराः ।। २ ।। एषा सर वती र या द ा चौघवती नद । एतद् वनशनं नाम सर व या वशा पते ।। ३ ।। ाचीनकालम जाप त द ने य करते समय यह आशीवाद दया था क जो मनु य यहाँ मरगे वे वगलोकपर अ धकार ा त कर लगे। यह रमणीय, द और ती वाहवाली सर वती नद है और यह सर वतीका वनशन नामक तीथ है ।। २-३ ।। ारं नषादरा य येषां दोषात् सर वती । व ा पृ थव वीर मा नषादा ह मां व ः ।। ४ ।। एष वै चमसो े दो य या सर वती । य ैनाम यवत त सवाः पु याः समु गाः ।। ५ ।। यह नषादराजका ार है। वीर यु ध र! उन नषाद के ही संसगदोषसे सर वती नद यहाँ इस लये पृ वीके भीतर व हो गयी क नषाद मुझे जान न सक। यह चमसो े दतीथ है; जहाँ सर वती पुनः कट हो गयी है। यहाँ समु म मलनेवाली स पूण प व न दयाँ इसके स मुख आयी ह ।। ४-५ ।। एतत् स धोमहत् तीथ य ाग यमरदम । लोपामु ा समाग य भतारमवृणीत वै ।। ६ ।। श ुदमन! यह स धुका महान् तीथ है; जहाँ जाकर लोपामु ाने अपने प त अग यमु नका वरण कया था ।। ६ ।। एतत् काशते तीथ भासं भा कर ुते । इ य द यतं पु यं प व ं पापनाशनम् ।। ७ ।। सूयके समान तेज वी नरेश! यह भासतीथ* का शत हो रहा है, जो इ को ब त य है। यह पु यमय े सब पाप का नाश करनेवाला और परम प व है ।। ७ ।। एतद् व णुपदं नाम यते तीथमु मम् । एषा र या वपाशा च नद परमपावनी ।। ८ ।। ै ो े ो

अ वै पु शोकेन व स ो भगवानृ षः । बद् वाऽऽ मानं नप ततो वपाशः पुन थतः ।। ९ ।। यह व णुपद नामवाला उ म तीथ दखायी दे ता है तथा यह परम पावन और मनोरम वपाशा ( ास) नद है। यह भगवान् व स मु न पु शोकसे पी ड़त हो अपने शरीरको पाश से बाँधकर कूद पड़े थे, परंतु पुनः वपाश (पाशमु ) होकर जलसे बाहर नकल आये ।। ८-९ ।। का मीरम डलं चैतत् सवपु यमरदम । मह ष भ ा यु षतं प येदं ातृ भः सह ।। १० ।। य ो राणां सवषामृषीणां ना ष य च । अ ने ैवा संवादः का यप य च भारत ।। ११ ।। श ुदमन! यह पु यमय का मीरम डल है, जहाँ ब त-से मह ष नवास करते ह। तुम भाइय स हत इसका दशन करो। भारत! यह वही थान है जहाँ उ रके सम त ऋ ष, न षकुमार यया त, अ न और का यपका संवाद आ था ।। १०-११ ।। एतद् ारं महाराज मानस य काशते । वषम य गरेम ये रामेण ीमता कृतम् ।। १२ ।। महाराज! यह मानससरोवरका ार का शत हो रहा है। इस पवतके म यभागम परशुरामजीने अपना आ म बनाया था ।। १२ ।। एष वा तकष डो वै यातः स य व मः । ना यवतत यद् ारं वदे हा रं च यः ।। १३ ।। यु ध र! परशुरामजी सव व यात ह। वे स यपरा मी ह। उनके इस आ मका ार वदे ह दे शसे उ र है। यह बवंडर (वायुका तूफान) भी उनके इस ारका कभी उ लंघन नह कर सकता है ( फर और क तो बात ही या है) ।। १३ ।। इदमा यमपरं दे शेऽ मन् पु षषभ । ीणे युगे तु कौ तेय शव य सह पाषदै ः ।। १४ ।। सहोमया च भव त दशनं काम पणः । अ मन् सर स स ैव चै े मा स पना कनम् ।। १५ ।। यज ते याजकाः स यक् प रवारं शुभा थनः । अ ोप पृ य सर स धानो जते यः ।। १६ ।। ीणपापः शुभा लकान् ा ुते ना संशयः । एष उ जानको नाम पाव कय शा तवान् । अ धतीसहाय व स ो भगवानृ षः ।। १७ ।। नर े ! इस दे शम सरी आ यक बात यह है क यहाँ नवास करनेवाले साधकको युगके अ तम पाषद तथा पावतीस हत इ छानुसार प धारण करनेवाले भगवान् शंकरका य दशन होता है। इस सरोवरके तटपर चै मासम क याणकामी याजक पु ष अनेक कारके य ारा प रवारस हत पनाकधारी भगवान् शवक आराधना करते ह। इस तालाबम ापूवक नान एवं आचमन करके पापमु आ जते य पु ष शुभ लोक म ै ै ो े ै ँ

जाता है; इसम संशय नह है। यह सरोवर उ जानक नामसे स है। यहाँ भगवान् क द तथा अ धतीस हत मह ष व स ने साधना करके स एवं शा त ा त क है ।। १४— १७ ।। द कुशवानेष य पं क ु शेशयम् । आ म ैव म या य ाशा यदकोपना ।। १८ ।। यह कुशवान् नामक द है, जसम कुशेशय नामवाले कमल खले रहते ह। यह मणीदे वीका आ म है जहाँ उ ह ने ोधको जीतकर शा तका लाभ कया था ।। समाधीनां समास तु पा डवेय ुत वया । तं य स महाराज भृगुतु ं महा ग रम् ।। १९ ।। पा डु न दन! महाराज! तुमने जसके वषयम यह सुन रखा है क वह योग स का सं त व प है— जसके दशनमा से समा ध प फलक ा त हो जाती है, उस भृगत ु ुंग नामक महान् पवतका अब तुम दशन करोगे ।। १९ ।। वत तां प य राजे सवपाप मोचनीम् । मह ष भ ा यु षतां शीततोयां सु नमलाम् ।। २० ।। राजे ! वत ता (झेलम) नद का दशन करो जो सब पाप से मु करनेवाली है। इसका जल ब त शीतल और अ य त नमल है। इसके तटपर ब त-से मह षगण नवास करते ह ।। २० ।। जलां चोपजलां चैव यमुनाम भतो नद म् । उशीनरो वै य े ् वा वासवाद य र यत ।। २१ ।। यमुना नद के दोन पा म जला और उपजला नामक दो न दय का दशन करो, जहाँ राजा उशीनरने य करके इ से भी ऊँचा थान ा त कया था ।। २१ ।। तां दे वस म त त य वासव वशा पते । अ याग छ ृपवरं ातुम न भारत ।। २२ ।। महाराज भरतन दन! नृप े उशीनरके मह वको समझनेके लये कसी समय इ और अ न उनक राजसभाम गये ।। २२ ।। ज ासमानौ वरदौ महा मानमुशीनरम् । इ ः येनः कपोतोऽ नभू वा य ेऽ भज मतुः ।। २३ ।। वे दोन वरदायक महा मा उस समय उशीनरक परी ा लेना चाहते थे; अतः इ ने बाज प ीका प धारण कया और अ नने कबूतरका। इस कार वे राजाके य म डपम गये ।। २३ ।। ऊ रा ः समासा कपोतः येनजाद् भयात् । शरणाथ तदा राजन् न ल ये भयपी डतः ।। २४ ।। अपनी र ाके लये आ य चाहनेवाला कबूतर बाजके भयसे डरकर राजाक गोद म जा छपा ।। २४ ।। ी











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ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायां येनकपोतीये शद धकशततमोऽ यायः ।। १३० ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम येनकपोतीयोपा यान वषयक एक सौ तीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १३० ।।

* ‘ भास’ क जगह ‘हाटक’ पाठभेद भी मलता है।

एक शद धकशततमोऽ यायः राजा उशीनर ारा बाजको अपने शरीरका मांस दे कर शरणम आये ए कबूतरके ाण क र ा करना येन उवाच धमा मानं वा रेकं सव राजन् मही तः । सवधम व ं वं क मात् कम चक ष स ।। १ ।। व हतं भ णं राजन् पी मान य मे ुधा । मा र ीधमलोभेन धममु सृ वान स ।। २ ।। तब बाजने कहा—राजन्! सम त भूपाल केवल आपको ही धमा मा बताते ह। फर आप यह स पूण धम से व कम कैसे करना चाहते ह। महाराज! म भूखसे क पा रहा ँ और कबूतर मेरा आहार नयत कया गया है। आप धमके लोभसे इसक र ा न कर। वा तवम इसे आ य दे कर आपने धमका प र याग ही कया है ।। १-२ ।। राजोवाच सं त प ाणाथ व ो भीतो महा ज । म सकाशमनु ा तः ाणगृ नुरयं जः ।। ३ ।। एवम यागत येह कपोत याभया थनः । अ दाने परं धम कथं येन न प य स ।। ४ ।। राजा बोले—प राज! यह कबूतर तुमसे डरकर घबराया आ है और अपने ाण बचानेक इ छासे मेरे समीप आया है। यह अपनी र ा चाहता है। बाज! इस कार अभय चाहनेवाले इस कबूतरको य द म तुमको नह स प रहा ँ, यह तो परम धम है। इसे तुम कैसे नह दे ख रहे हो? ।। ३-४ ।। प दमानः स ा तः कपोतः येन ल यते । म सकाशं जी वताथ त य यागो वग हतः ।। ५ ।। यो ह क द् जान् ह याद् गां वा लोक य मातरम् । शरणागतं च यजते तु यं तेषां ह पातकम् ।। ६ ।। बाज! दे खो तो यह बेचारा कबूतर कस कार भयसे ाकुल हो थर-थर काँप रहा है। इसने अपने ाण क र ाके लये ही मेरी शरण ली है। ऐसी दशाम इसे याग दे ना बड़ी ही न दाक बात है। जो मनु य ा ण क ह या करता है, जो जग माता गौका वध करता है तथा जो शरणम आये ए को याग दे ता है, इन तीन को समान पाप लगता है ।। ५-६ ।। येन उवाच आहारात् सवभूता न स भव त महीपते । आहारेण ववध ते तेन जीव त ज तवः ।। ७ ।। े



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बाजने कहा—महाराज! सब ाणी आहारसे ही उ प होते ह, आहारसे ही उनक वृ होती है और आहारसे ही जी वत रहते ह ।। ७ ।। श यते यजेऽ यथ चररा ाय जी वतुम् । न तु भोजनमु सृ य श यं वत यतुं चरम् ।। ८ ।। जसको यागना ब त क ठन है, उस अथके बना भी मनु य ब त दन तक जी वत रह सकता है, परंतु भोजन छोड़ दे नेपर कोई भी अ धक समयतक जीवन धारण नह कर सकता ।। ८ ।। भ याद् वयो जत या मम ाणा वशा पते । वसृ य कायमे य त प थानमकुतोभयम् ।। ९ ।। मृते म य धमा मन् पु दारा द नङ् य त । र माणः कपोतं वं बन् ाणान् न र स ।। १० ।। जानाथ! आज आपने मुझे भोजनसे वं चत कर दया है, इस लये मेरे ाण इस शरीरको छोड़कर अकुतोभय-पथ (मृ यु)-को ा त हो जायँगे। धमा मन्! इस कार मेरी मृ यु हो जानेपर मेरे ी-पु आ द भी (असहाय होनेके कारण) न हो जायँगे। इस तरह आप एक कबूतरक र ा करके ब त-से ा णय क र ा नह कर रहे ह ।। ९-१० ।। धम यो बाधते धम न स धमः कुधम तत् । अ वरोधात् तु यो धमः स धमः स य व म ।। ११ ।। स यपरा मी नरेश! जो धम सरे धमका बाधक हो वह धम नह , कुधम है। जो सरे कसी धमका वरोध न करके त त होता है वही वा त वक धम है ।। वरो धषु महीपाल न य गु लाघवम् । न बाधा व ते य तं धम समुपाचरेत् ।। १२ ।। पर पर व तीत होनेवाले धम म गौरव-लाघवका वचार करके, जसम सर के लये बाधा न हो उसी धमका आचरण करना चा हये ।। १२ ।। गु लाघवमादाय धमाधम व न ये । यतो भूयां ततो राजन् कु व धम न यम् ।। १३ ।। राजन्! धम और अधमका नणय करते समय पु य और पापके गौरव-लाघवपर ही रखकर वचार क जये तथा जसम अ धक पु य हो उसीको आचरणम लाने यो य धम ठहराइये ।। १३ ।। राजोवाच ब क याणसंयु ं भाषसे वहगो म । सुपणः प राट् क वं धम ा यसंशयम् ।। १४ ।। राजाने कहा—प े ! तु हारी बात अ य त क याणमय गुण से यु ह। तुम सा ात् प राज ग ड़ तो नह हो? इसम संदेह नह क तुम धमके ाता हो ।। १४ ।। तथा ह धमसंयु ं ब च ं च भाषसे । न तेऽ य व दतं क च द त वां ल या यहम् ।। १५ ।। ो

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तुम जो बात कह रहे हो वे बड़ी ही व च और धमसंगत ह। मुझे ल ण से ऐसा जान पड़ता है क ऐसी कोई बात नह है जो तु ह ात न हो ।। १५ ।। शरणै षप र यागं कथं सा व त म यसे । आहाराथ समार भ तव चायं वहंगम ।। १६ ।। तो भी तुम शरणागतके यागको कैसे अ छा मानते हो? यह मेरी समझम नह आता। वहंगम! वा तवम तु हारा यह उ ोग केवल भोजन ा त करनेके लये है ।। श य ा य यथा कतुमाहारोऽ य धक वया । गोवृषो वा वराहो वा मृगो वा म हषोऽ प वा । वदथम यतां य चा य दह काङ् स ।। १७ ।। परंतु तु हारे लये आहारका ब ध तो सरे कारसे भी कया जा सकता है और वह इस कबूतरक अपे ा अ धक हो सकता है। सूअर, हरन, भसा या कोई उ म पशु अथवा अ य जो कोई भी व तु तु ह अभी हो वह तु हारे लये तुत क जा सकती है ।। १७ ।।

येन उवाच न वराहं न चो ाणं न मृगान् व वधां तथा । भ या म महाराज क ममा येन केन चत् ।। १८ ।। बाज बोला—महाराज! म न सूअर खाऊँगा, न कोई उ म पशु और न भाँ त-भाँ तके मृग का ही आहार क ँ गा। सरी कसी व तुसे भी मुझे या लेना है? ।। य तु मे दे व व हतो भ ः यपु व । तमु सृज महीपाल कपोत मममेव मे ।। १९ ।। य शरोमणे! वधाताने मेरे लये जो भोजन नयत कया है वह तो यह कबूतर ही है; अतः भूपाल! इसीको मेरे लये छोड़ द जये ।। १९ ।। येनः कपोतान ी त थ तरेषा सनातनी । मा राजन् सारम ा वा कदली क धमा य ।। २० ।। यह सनातन कालसे चला आ रहा है क बाज कबूतर को खाता है। राजन्! धमके सारभूत त वको न जानकर आप केलेके ख भे (-जैसे सारहीन धम) का आ य न ली जये ।। २० ।। राजोवाच रा ं शबीनामृ ं वै ददा न तव खेचर । यं वा कामयसे कामं येन सव ददा न ते ।। २१ ।। राजाने कहा— वहंगम! म श बदे शका समृ शाली रा य तु ह स प ँ गा, और भी जस व तुक तु ह इ छा होगी वह सब दे सकता ँ ।। २१ ।। वनेमं प णं येन शरणा थनमागतम् । येनेमं वजयेथा वं कमणा प स म । तदाच व क र या म न ह दा ये कपोतकम् ।। २२ ।। े े





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कतु शरण लेनेक इ छासे आये ए इस प ीको नह याग सकता। प े येन! जस कामके करनेसे तुम इसे छोड़ सको, वह मुझे बताओ; म वही क ँ गा, कतु इस कबूतरको तो नह ँ गा ।। २२ ।। येन उवाच उशीनर कपोते ते य द नेहो नरा धप । आ मनो मांसमु कृ य कपोततुलया धृतम् ।। २३ ।। यदा समं कपोतेन तव मांसं नृपो म । तदा दे यं तु त म ं सा मे तु भ व य त ।। २४ ।। बाज बोला—महाराज उशीनर! य द आपका इस कबूतरपर नेह है तो इसीके बराबर अपना मांस काटकर तराजूम रखये। नृप े ! जब वह तौलम इस कबूतरके बराबर हो जाय तब वही मुझे दे द जयेगा, उससे मेरी तृ त हो जायगी ।। २३-२४ ।।

राजा श बका कबूतरक र ाके लये बाजको अपने शरीरका मांस काटकर दे ना े

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अनु ह ममं म ये येन य मा भयाचसे । त मात् तेऽ दा या म वमांसं तुलया धृतम् ।। २५ ।। राजाने कहा—बाज! तुम जो मेरा मांस माँग रहे हो इसे म अपने ऊपर तु हारी ब त बड़ी कृपा मानता ँ, अतः म अभी अपना मांस तराजूपर रखकर तु ह दये दे ता ँ ।। २५ ।। लोमश उवाच उ कृ य स वयं मांसं राजा परमधम वत् । तोलयामास कौ तेय कपोतेन समं वभो ।। २६ ।। लोमशजी कहते ह—कु तीन दन! त प ात् परम धम राजा उशीनरने वयं अपना मांस काटकर उस कबूतरके साथ तौलना आर भ कया ।। २६ ।।

यमाणः कपोत तु मांसेना य त र यते । पुन ो कृ य मांसा न राजा ादा शीनरः ।। २७ ।। न व ते यदा मांसं कपोतेन समं धृतम् । तत उ कृ मांसोऽसावा रोह वयं तुलाम् ।। २८ ।। कतु सरे पलड़ेम रखा आ कबूतर उस मांसक अपे ा अ धक भारी नकला, तब महाराज उशीनरने पुनः अपना मांस काटकर चढ़ाया। इस कार बार-बार करनेपर भी जब े

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वह मांस कबूतरके बराबर न आ, तब सारा मांस काट लेनेके प ात् वे वयं ही तराजूपर चढ़ गये ।। २७-२८ ।।

येन उवाच इ ोऽहम म धम कपोतो ह वाडयम् । ज ासमानौ धम वां य वाटमुपागतौ ।। २९ ।। बाज बोला—धम नरेश! म इ ँ और यह कबूतर सा ात् अ नदे व ह। हम दोन आपके धमक परी ा लेनेके लये इस य शालाम आपके नकट आये थे ।। यत् ते मांसा न गा े य उ कृ ा न वशा पते । एषा ते भा वती क तल कान भभ व य त ।। ३० ।। जानाथ! आपने अपने अंग से जो मांस काटकर चढ़ाये ह, उससे फैली ई आपक काशमान क त स पूण लोग से बढ़कर होगी ।। ३० ।। याव लोके मनु या वां कथ य य त पा थव । तावत् क त लोका था य त तव शा ताः ।। ३१ ।। राजन्! संसारके मनु य इस जगत्म जबतक आपक चचा करगे, तबतक आपक क त और सनातन लोक थर रहगे ।। ३१ ।। इ येवमु वा राजानमा रोह दवं पुनः । उशीनरोऽ प धमा मा धमणावृ य रोदसी ।। ३२ ।। व ाजमानो वपुषा या रोह व पम् । तदे तत् सदनं राजन् रा त य महा मनः ।। ३३ ।। प य वैत मया साध पु यं पाप मोचनम् । त वै सततं दे वा मुनय सनातनाः । य ते ा णै राजन् पु यवद् भमहा म भः ।। ३४ ।। राजासे ऐसा कहकर इ फर दे वलोकम चले गये तथा धमा मा राजा उशीनर भी अपने धमसे पृ वी और आकाशको ा त कर दे द यमान शरीर धारण करके वगलोकम चले गये। राजन्! यही उन महा मा राजा उशीनरका आ म है जो पु यजनक होनेके साथ ही सम त पाप से छु टकारा दलानेवाला है। तुम मेरे साथ इस प व आ मका दशन करो। महाराज! वहाँ पु या मा महा मा ा ण को सदा सनातन दे वता तथा मु नय का दशन होता रहता है ।। ३२-३४ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायां येनकपोतीये एक शद धकशततमोऽ यायः ।। १३१ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम येनकपोतीयोपा यान वषयक एक सौ इकतीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १३१ ।।

ा शद धकशततमोऽ यायः अ ाव के ज मका वृ ा त और उनका राजा जनकके दरबारम जाना लोमश उवाच यः कयते म वद धबु रौ ाल कः ेतकेतुः पृ थ ाम् । त या मं प य नरे पु यं सदाफलै पप ं महीजैः ।। १ ।। लोमशजी कहते ह—यु ध र! उ ालकके पु ेतकेतु हो गये ह, जो इस भूतलपर म -शा म अ य त नपुण कहे जाते थे, दे खो यह प व आ म उ ह का है। जो सदा फल दे नेवाले वृ से हरा-भरा दखायी दे ता है ।। १ ।। सा ाद ेतकेतुददश सर वत मानुषदे ह पाम् । वे या म वाणी म त स वृ ां सर वत ेतकेतुबभाषे ।। २ ।। इस आ मम ेतकेतुने मानव पधा रणी सर वती दे वीका य दशन कया था और अपने नकट आयी ई उन सर वतीसे यह कहा था क ‘म वाणी व पा आपके त वको यथाथ पसे जानना चाहता ँ’ ।। २ ।। त मन् युगे कृतां व र ावा तां मुनी मातुलभा गनेयौ । अ ाव ैव कहोडसूनुरौ ाल कः ेतकेतुः पृ थ ाम् ।। ३ ।। उस युगम कहोड मु नके पु अ ाव और उ ालकन दन ेतकेतु ये दोन मह ष सम त भूम डलके वेदवे ा म े थे। वे आपसम मामा और भानजा लगते थे (इनम ेतकेतु ही मामा था) ।। ३ ।। वदे हराज य महीपते तौ व ावुभौ मातुलभा गनेयौ । व य य ायतनं ववादे ब दं नज ाहतुर मेयौ ।। ४ ।। एक समय वे दोन मामा-भानजे वदे हराजके य म डपम गये। दोन ही ा ण अनुपम व ान् थे। वहाँ शा ाथ होनेपर उन दोन ने अपने ( वप ी) ब द को जीत लया ।। ४ ।। उपा व कौ तेय सहानुज वं

त या मं पु यतमं व य । अ ाव ं य य दौ ह मा य ऽसौ ब दं जनक याथ य े ।। ५ ।। वाद व ा यो बाल एवा भग य वादे भङ् वा म जयामास न ाम् ।। ६ ।। कु तीन दन! व शरोम ण अ ाव वाद- ववादम बड़े नपुण थे। उ ह ने बा याव थाम ही महाराज जनकके य म डपम पधारकर अपने तवाद ब द को परा जत करके नद म डलवा दया था। वे अ ाव मु न जन महा मा उ ालकके दौ ह (नाती) बताये जाते ह, उ ह का यह परम प व आ म है। तुम अपने भाइय स हत इसम वेश करके कुछ दे रतक उपासना (भगव च तन) करो ।। ५-६ ।। यु ध र उवाच कथं भावः स बभूव व तथाभूतं यो नज ाह ब दम् । अ ाव ः केन चासौ बभूव तत् सव मे लोमश शंस त वम् ।। ७ ।। यु ध रने पूछा—लोमशजी! उन षका कैसा भाव था, ज ह ने ब द -जैसे सु स व ान्को भी जीत लया। वे कस कारणसे अ ाव (आठ अ से ट े ढ़े-मेढ़े) हो गये। ये सब बात मुझे यथाथ पसे बताइये ।। ७ ।। लोमश उवाच उ ालक य नयतः श य एको ना ना कहोड इ त व ुतोऽभूत् । शु ूषुराचायवशानुवत द घ कालं सोऽ ययनं चकार ।। ८ ।। लोमशजीने कहा—राजन्! मह ष उ ालकका कहोड नामसे व यात एक श य था जो बड़े संयम- नयमसे रहकर आचायक सेवा कया करता था। उसने गु क आ ाके अंदर रहकर द घकालतक अ ययन कया ।। ८ ।। तं वै व ः पयचरत् स श यतां च ा वा प रचया गु ः सः । त मै ादात् स एव ुतं च भाया च वै हतरं वां सुजाताम् ।। ९ ।। व वर ‘कहोड’ एक वनीत श यक भाँ त उ ालक मु नक प रचयाम संल न रहते थे। गु ने श यक उस सेवाके मह वको समझकर शी ही उ ह स पूण वेद-शा का ान करा दया और अपनी पु ी सुजाताको भी उ ह प नी पसे सम पत कर दया ।। ९ ।।

त या गभः समभवद नक पः सोऽधीयानं पतरं चा युवाच । सवा रा म ययनं करो ष नेदं पतः स य गवोपवतते ।। १० ।।* कुछ कालके बाद सुजाता गभवती ई, उसका वह गभ अ नके समान तेज वी था। एक दन वा यायम लगे ए अपने पता कहोड मु नसे उस गभ थ बालकने कहा, ‘ पताजी! आप रातभर वेदपाठ करते ह तो भी आपका वह अ ययन अ छ कारसे शु उ चारणपूवक नह हो पाता’ ।। १० ।। उपालधः श यम ये मह षः स तं कोपा दर थं शशाप । य मात् कु ौ वतमानो वी ष त माद् व ो भ वता य कृ वः ।। ११ ।। श य के बीचम बैठे ए मह ष कहोड इस कार उलाहना सुनकर अपमानका अनुभव करते ए कु पत हो उठे और उस गभ थ बालकको शाप दे ते ए बोले, ‘अरे! तू अभी पेटम रहकर ऐसी टे ढ़ बात बोलता है, अतः तू आठ अंग से टे ढ़ा हो जायगा’ ।। ११ ।। स वै तथा व एवा यजायद ाव ः थतो वै मह षः । अ यासीद् वै मातुलः ेतकेतुः स तेन तु यो वयसा बभूव ।। १२ ।। उस शापके अनुसार वे मह ष आठ अंग से टे ढ़े होकर पैदा ए। इस लये अ ाव नामसे उनक स ई। ेतकेतु उनके मामा थे, परंतु अव थाम उ ह के बराबर थे ।। १२ ।। स पी माना तु तदा सुजाता सा वधमानेन सुतेन कु ौ । उवाच भतार मदं रहोगता सा हीनं वसुना धना थनी ।। १३ ।। जब पेटम गभ बढ़ रहा था, उस समय सुजाताने उससे पी ड़त होकर एका तम अपने नधन प तसे धनक इ छा रखकर कहा— ।। १३ ।। कथं क र या यधुना महष मास ायं दशमो वतते मे । नैवा त ते वसु क चत् जाता येनाहमेतामापदं न तरेयम् ।। १४ ।। ‘महष! यह मेरे गभका दसवाँ महीना चल रहा है। म धनहीन नारी खचक कैसे व था क ँ गी। आपके पास थोड़ा-सा भी धन नह है जससे म े





ँ’

सवकालके इस संकटसे पार हो सकूँ’ ।। १४ ।। उ वेवं भायया वै कहोडो व याथ जनकमथा यग छत् । स वै तदा वाद वदा नगृ नम जतो ब दनेहा सु व ः ।। १५ ।। प नीके ऐसा कहनेपर कहोड मु न धनके लये राजा जनकके दरबारम गये। उस समय शा ाथ प डत ब द ने उन षको ववादम हराकर जलम डु बो दया ।। १५ ।। उ ालक तं तु तदा नश य सूतेन वादे ऽ सु नम जतं तथा । उवाच तां त ततः सुजाताम ाव े गू हत ोऽयमथः ।। १६ ।। जब उ ालकको यह समाचार मला क ‘कहोड मु न शा ाथम परा जत होनेपर सूत (ब द )-के ारा जलम डु बो दये गये।’ तब उ ह ने सुजातासे सब कुछ बता दया और कहा, ‘बेट ! अपने ब चेसे इस वृ ा तको सदा ही गु त रखना’ ।। १६ ।। रर सा चा प तम य म ं जातोऽ यसौ नैव शु ाव व ः । उ ालकं पतृव चा प मेने तथा ाव ो ातृव छ् वेतकेतुम् ।। १७ ।। सुजाताने भी अपने पु से उस गोपनीय समाचारको गु त ही रखा। इसीसे ज म लेनेके बाद भी उस ा ण-बालकको इसके वषयम कुछ भी पता न लगा। अ ाव अपने नाना उ ालकको ही पताके समान मानते थे और ेतकेतुको अपने भाईके समान समझते थे ।। १७ ।। ततो वष ादशे ेतकेतुर ाव ं पतुरङ् के नष णम् । अपाकषद् गृ पाणौ द तं नायं तवाङ् कः पतु र यु वां ।। १८ ।। तदन तर एक दन, जब अ ाव क आयु बारह वषक थी और वे पतृतु य उ ालक मु नक गोदम बैठे ए थे, उसी समय ेतकेतु वहाँ आये और रोते ए अ ाव का हाथ पकड़कर उ ह र ख च ले गये। इस कार अ ाव को र हटाकर ेतकेतुने कहा—‘यह तेरे बापक गोद नह है’ ।। १८ ।। यत् तेनो ं ं तत् तदान द थतं त य सु ःखमासीत् । गृहं ग वा मातरं सोऽ भग य े ो े

प छे दं व नु तातो ममे त ।। १९ ।। ेतकेतुक उस कटू ने उस समय अ ाव के दयम गहरी चोट प ँचायी। इससे उ ह बड़ा ःख आ। उ ह ने घरम माताके पास जाकर पूछा —‘माँ! मेरे पताजी कहाँ ह?’ ।। १९ ।। ततः सुजाता परमात पा शापाद् भीता सवमेवाचच े । तद् वै त वं सवमा ाय रा ाव य वी छ् वेतकेतुं स व ः ।। २० ।। ग छाव य ं जनक य रा ो ब ा यः ूयते त य य ः । ो यावोऽ ा णानां ववादमथ चा यं त भो यावहे च ।। २१ ।। बालकके इस से सुजाताके मनम बड़ी था ई, उसने शापके भयसे घबराकर सब बात बता द । यह सब रह य जानकर उ ह ने रातम ेतकेतुसे इस कार कहा—‘हम दोन राजा जनकके य म चल। सुना जाता है, उस य म बड़े आ यक बात दे खनेम आती ह। हम दोन वहाँ व ान् ा ण का शा ाथ सुनगे और वह उ म पदाथ भोजन करगे ।। २०-२१ ।। वच ण वं च भ व यते नौ शव सौ य ह घोषः ।। २२ ।। ‘वहाँ जानेसे हमलोग क वचनश एवं जानकारी बढ़े गी और हम सुमधुर वरम वेद-म का क याणकारी घोष सुननेका अवसर मलेगा’ ।। २२ ।। तौ ज मतुमातुलभा गनेयौ य ं समृ ं जनक य रा ः । अ ाव ः प थ रा ा समे य ो सायमाणो वा य मदं जगाद ।। २३ ।। ऐसा न य करके वे दोन मामा-भानजे राजा जनकके समृ शाली य म गये। अ ाव क य -म डपके मागम ही राजासे भट हो गयी। उस समय राजसेवक उ ह रा तेसे र हटाने लगे, तब वे इस कार बोले ।। २३ ।। इ त ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायाम ाव ये ा शद धकशततमोऽ यायः ।। १३२ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम अ ाव योपा यान वषयक एक सौ ब ीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १३२ ।।

*

कसी- कसी पु तकम यहाँ एक ोक अ धक मलता है, जो इस कार है— वेदान् साान् सवशा ै पेतानधीतवान म तव सादात् । इहैव गभ तेन पत वी म नेदं व ः स य गवोपवतते ।।



ंशद धकशततमोऽ यायः

अ ाव का ारपाल तथा राजा जनकसे वातालाप अ ाव उवाच अ ध य प था ब धर य प थाः यः प था भारवाह य प थाः । रा ः प था ा णेनासमे य समे य तु ा ण यैव प थाः ।। १ ।। अ ाव बोले—राजन्! जबतक ा णसे सामना न हो तबतक अंधेका माग, बहरेका माग, ीका माग, बोझ ढोनेवालेका माग तथा राजाका माग उस-उसके जानेके लये छोड़ दे ना चा हये; परंतु य द ा ण सामने मल जाय तो सबसे पहले उसीको माग दे ना चा हये ।। १ ।। राजोवाच प था अयं तेऽ मया त द ो येने छ स तेन कामं ज व । न पावको व ते वै लघीयान ोऽ प न यं नमते ा णानाम् ।। २ ।। राजाने कहा— ा णकुमार! लो मने तु हारे लये आज यह माग दे दया है। तुम जससे जाना चाहो उसी मागसे इ छानुसार चले जाओ। आग कभी छोट नह होती। दे वराज इ भी सदा ा ण के आगे म तक झुकाते ह ।। २ ।। अ ाव उवाच ा तौ व य ं नृप सं द ू कौतूहलं नौ बलव रे । ा ता वहावाम तथी वेशं काङ् ावहे ारपते तवा ाम् ।। ३ ।। अ ाव बोले—राजन्! हम दोन आपका य दे खनेके लये आये ह। नरे ! इसके लये हम दोन के दयम बल उ क ठा है। हम दोन यहाँ अ त थके पम उप थत ह और इस य म वेश करनेके लये हम तु हारे ारपालक आ ा चाहते ह ।। ३ ।। ऐ ु ने य शा वहावां वव ू वै जनके ं द ू । तौ वै ोध ा धना द मानावयं च नौ ारपालो ण ।। ४ ।। ो





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इ ु नकुमार जनक! हम दोन यहाँ य दे खनेके लये आये ह और आप जनकराजसे मलना तथा बात करना चाहते ह, परंतु यह ारपाल हम रोकता है; अतः हम ोध प ा धसे द ध हो रहे ह ।। ४ ।। ारपाल उवाच ब दे ः समादे शकरा वयं म नबोध वा यं च मयेयमाणम् । न वै बालाः वश य व ा वृ ा वद धाः वश य व ाः ।। ५ ।। ारपाल बोला— ा णकुमार! सुनो, हम बंद के आ ापालक ह। आप हमारी कही ई बात सु नये। इस य शालाम बालक ा ण नह वेश करने पाते ह। जो बूढ़े और बु मान् ा ण ह, उ ह का यहाँ वेश होता है ।। अ ाव उवाच य

वृ े षु कृतः वेशो यु ं वे ु ं मम ारपाल । वयं ह वृ ा रत ता वेद भावेण सम वता ।। ६ ।। अ ाव बोले— ारपाल! य द यहाँ वृ ा ण के लये वेशका ार खुला है, तब तो हमारा वेश होना भी उ चत ही है; य क हमलोग वृ ही ह, हमने चय तका पालन कया है तथा हम वेदके भावसे भी स प ह ।। ६ ।। शु ूषव ा प जते या ानागमे चा प गताः म न ाम् । न बाल इ यवम त मा बालोऽ य नदह त पृ यमानः ।। ७ ।। साथ ही, हम गु जन के सेवक, जते य तथा ानशा म प र न त भी ह। अव थाम बालक होनेके कारण ही कसी ा णको अपमा नत करना उ चत नह बताया गया है; य क आगक छोट -सी चनगारी भी य द छू जाय तो वह जला डालती है ।। ७ ।। ारपाल उवाच सर वतीमीरय वेदजु ामेका रां ब पां वराजम् । अ ा मानं समवे व बालं क ाघसे लभो वै मनीषी ।। ८ ।। ारपालने कहा— ा णकुमार! तुम वेद- तपा दत, एका र का बोध करानेवाली, अनेक पवाली, सु दर वाणीका उ चारण करो और अपने-आपको बालक ही ो





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समझो, वयं ही अपनी शंसा य करते हो? इस जगत्म ानी लभ ह ।। ८ ।। अ ाव उवाच न ायते कायवृ या ववृ यथा ीला शा मलेः स वृ ा । वोऽ पकायः फ लतो ववृ ो य ाफल त य न वृ भावः ।। ९ ।। अ ाव बोले— ारपाल! केवल शरीर बढ़ जानेसे कसीक बढ़ती नह समझी जाती है। जैसे सेमलके फलक गाँठ बढ़नेपर भी सारहीन होनेके कारण वह थ ही है। छोटा और बला-पतला वृ भी य द फल के भारसे लदा है तो उसे ही वृ (बड़ा) जानना चा हये। जसम फल नह लगते, उस वृ का बढ़ना भी नह के बराबर है ।। ९ ।। ारपाल उवाच वृ े य एवेह म त म बाला गृ त कालेन भव त वृ ाः । न ह ानम पकालेन श यं क माद् बालः थ वर इव भाषसे ।। १० ।। ारपालने कहा—बालक बड़े-बूढ़ से ही ान ा त करते ह और समयानुसार वे भी वृ होते ह। थोड़े समयम ानक ा त अस भव है, अतः तुम बालक होकर भी य वृ क -सी बात करते हो? ।। १० ।। अ ाव उवाच न तेन थ वरो भव त येना य प लतं शरः । बालोऽ प यः जाना त तं दे वाः थ वरं व ः ।। ११ ।। अ ाव बोले—अमुक के सरके बाल पक गये ह, इतने ही मा से वह बूढ़ा नह होता है, अव थाम बालक होनेपर भी जो ानम बढ़ा-चढ़ा है, उसीको दे वगण वृ मानते ह ।। ११ ।। न हायनैन प लतैन व ेन न ब धु भः । ऋषय रे धम योऽनूचानः स नो महान् ।। १२ ।। अ धक वष क अव था होनेसे, बाल पकनेसे, धन बढ़ जानेसे और अ धक भाई-ब धु हो जानेसे भी कोई बड़ा हो नह सकता; ऋ षय ने ऐसा नयम बनाया है क हम ा ण म जो अंग स हत स पूण वेद का वा याय करनेवाला तथा व ा है, वही बड़ा है ।। १२ ।। द ुर म स ा तो ब दनं राजसंस द । नवेदय व मां ाः थ रा े पु करमा लने ।। १३ ।। ारपाल! म राजसभाम ब द से मलनेके लये आया ँ। तुम कमलपु पक माला धारण कये ए महाराज जनकको मेरे आगमनक सूचना दे दो ।। १३ ।। ा य वदतोऽ मान् ारपाल मनी ष भः । े



सह वादे ववृ े तु ब दनं चा प न जतम् ।। १४ ।। ारपाल! आज तुम हम व ान के साथ शा ाथ करते दे खोगे, साथ ही ववाद बढ़ जानेपर बंद को परा त आ पाओगे ।। १४ ।। प य तु व ाः प रपूण व ाः सहैव रा ा सपुरोधमु याः । उताहो वा यु चतां नीचतां वा तू ण भूते वेव सव वथा ।। १५ ।। आज स पूण सभासद् चुपचाप बैठे रह तथा राजा और उनके धान पुरो हत के साथ पूणतः व ान् ा ण मेरी लघुता अथवा े ताको य दे ख ।। १५ ।। ारपाल उवाच कथं य ं दशवष वशे वं वनीतानां व षां स वेशम् । उपायतः य त ये तवाहं वेशने कु य नं यथावत् ।। १६ ।। ारपालने कहा—जहाँ सु श त व ान का वेश होता है; उस य म डपम तुमजैसे दस वषके बालकका वेश होना कैसे स भव है। तथा प म कसी उपायसे तु ह उसके भीतर वेश करानेका य न क ँ गा, तुम भी भीतर जानेके लये यथो चत य न करो ।। १६ ।। (एष राजा सं वणे थत ते तु ेनं वं वचसा सं कृतेन । स चानु ां दा य त ी तयु ः वेशने य च क चत् तवे म् ।।) ये नरेश तु हारी बात सुन सक, इतनी ही रीपर य म डपम थत ह, तुम अपने शु वचन ारा इनक तु त करो। इससे ये स होकर तु ह वेश करनेक आ ा दे दगे तथा तु हारी और भी कोई कामना हो तो वे पूरी करगे ।। अ ाव उवाच भो भो राज नकानां व र वं वै स ाट् व य सव समृ म् । वं वा कता कमणां य यानां यया तरेको नृप तवा पुर तात् ।। १७ ।। अ ाव बोले—राजन्! आप जनकवंशके े पु ष ह, साट ् ह। आपके यहाँ सभी कारके ऐ य प रपूण ह, वतमान समयम केवल आप ही उ म य कम का अनु ान करनेवाले ह; अथवा पूवकालम एकमा राजा यया त ऐसे हो चुके ह ।। १७ ।। वृ ान् ब द वाद वदो नगृ वादे भ नान तशङ् कमानः । ै ै

वया भसृ ैः पु षैरा तकृ जले सवान् म जयती त नः ुतम् ।। १८ ।। हमने सुना है क आपके यहाँ ब द नामसे स कोई व ान् ह जो वाद- ववादके ममको जाननेवाले कतने ही वृ ा ण को शा ाथम हराकर वशम कर लेते ह और फर आपके ही दये ए व सनीय पु ष ारा उन सबको नःशंक होकर पानीम डु बवा दे ते ह ।। १८ ।। सोऽहं ु वा ा णानां सकाशाद् ा ै तं कथ यतुमागतोऽ म । वासौ ब द यावदे नं समे य न ाणीव स वता नाशया म ।। १९ ।। म ा ण के समीप यह समाचार सुनकर अ ै त के वषयम वणन करनेके लये यहाँ आया ँ। वे ब द कहाँ ह? म उनसे मलकर उनके तेजको उसी कार शा त कर ँ गा, जैसे सूय तारा क यो तको वलु त कर दे ते ह ।। १९ ।। राजोवाच आशंससे ब दनं वै वजेतुम व ाय वं वा यबलं पर य । व ातवीयः श यमेवं व ुं ासौ ा णैवदशीलैः ।। २० ।। राजा बोले— ा णकुमार! तुम अपने वप ीक वचन-श को जाने बना ही ब द को जीतनेक इ छा रखते हो। जो तवाद के बलको जानते ह वे ही ऐसी बात कह सकते ह। वेद का अनुशीलन करनेवाले ब त-से ा ण ब द का भाव दे ख चुके ह ।। २० ।। आशंससे वं ब दनं वै वजेतुम व ाय तु बलं ब दनोऽ य । समागता ा णा तेन पूव न शोभ ते भा करेणेव ताराः ।। २१ ।। तु ह इस ब द क श का कुछ भी ान नह है। इसी लये उसे जीतनेक इ छा कर रहे हो। आजसे पहले कतने ही व ान् ा ण ब द से मले ह और जैसे सूयके सामने तारा का काश फ का पड़ जाता है उसी कार वे ब द के सामने हत भ हो गये ह ।। २१ ।।

आशंस तो ब दनं जेतुकामात या तकं ा य वलु तशोभाः । व ानम ा नःसृता ैव तात कथं सद यैवचनं व तरेयुः ।। २२ ।। तात! कतने ही ानो म ा ण ब द को जीतनेक अ भलाषा रखकर शा ाथक घोषणा करते ए आये ह; कतु उनके नकट प ँचते ही उनका भाव न हो गया है। इतना ही नह , वे परा जत एवं तर कृत हो चुपचाप राजसभासे नकल गये ह। फर वे अ य सद य के साथ वातालाप ही कैसे कर सकते ह ।। २२ ।। अ ाव उवाच ववा दतोऽसौ न ह मा शै ह सहीकृत तेन वद यभीतः । समे य मां नहतः शे यतेऽ माग भ नं शकट मवाचला म् ।। २३ ।। अ ाव बोले—महाराज! अभी ब द को हम-जैस के साथ शा ाथ करनेका अवसर नह मला है, इसी लये वह सह बना आ है और नडर होकर बात करता है। आज मुझसे जब उसक भट होगी, उस समय वह परा जत होकर मुदक भाँ त सो ी

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जायगा। ठ क उसी तरह, जैसे रा तेम टू टा आ छकड़ा जहाँ-का-तहाँ पड़ा रह जाता है— उसका प हया एक पग भी आगे नह बढ़ता ।। २३ ।।

राजोवाच शक ादशांश य चतु वश तपवणः । य ष शतार य वेदाथ स परः क वः ।। २४ ।। तब राजाने परी ा लेनेके लये कहा—जो पु ष तीस अवयव, बारह अंश, चौबीस पव और तीन सौ साठ अर वाले पदाथको जानता है—उसके योजनको समझता है, वह उ चको टका ानी है ।। २४ ।। अ ाव उवाच चतु वश तपव वां ष ना भ ादश ध । तत् ष शतारं वै च ं पातु सदाग त ।। २५ ।। अ ाव बोले—राजन्! जसम बारह अमावा या और बारह पू णमा पी चौबीस पव, ऋतु प छः ना भ, मास प बारह अंश और दन प तीन सौ साठ अरे ह, वह नर तर घूमनेवाला संव सर प कालच आपक र ा करे ।। २५ ।। राजोवाच वडवे इव संयु े येनपाते दवौकसाम् । क तयोगभमाध े गभ सुषुवतु कम् ।। २६ ।। राजाने पूछा—जो दो घो ड़य क भाँ त संयु रहती ह; एवं जो बाज प ीक भाँ त हठात् गरनेवाली ह उन दोन के गभको दे वता मसे कौन धारण करता है तथा वे दोन कस गभको उ प करती ह? ।। २६ ।। अ ाव उवाच मा म ते ते गृहे राज छा वाणाम प ुवम् । वातसार थराग ता गभ सुषुवतु तम् ।। २७ ।। अ ाव बोले—राजन्! वे दोन तु हारे श ु के घरपर भी कभी न गर। वायु जसका सार थ है वह मेघ प दे व ही इन दोन के गभको धारण करनेवाला है और ये दोन उस मेघ प गभको उ प करनेवाले ह* ।। २७ ।। राजोवाच क वत् सु तं न न मष त क व जातं न चोप त । क य व दयं ना त क वद् वेगेन वधते ।। २८ ।। राजाने पूछा—सोते समय कौन ने नह मूँदता, ज म लेनेके बाद कसम ग त नह होती, कसके दय नह होता और कौन वेगसे बढ़ता है? ।। २८ ।। अ ाव उवाच ो



म यः सु तो न न मष य डं जातं न चोप त । अ मनो दयं ना त नद वेगेन वधते ।। २९ ।। अ ाव बोले—मछली सोते समय भी आँख नह मूँदती, अ डा उ प होनेपर चे ा नह करता, प थरके दय नह होता और नद वेगसे बढ़ती है ।। २९ ।। राजोवाच न वां म ये मानुषं दे वस वं न वं बालः थ वरः स मतो मे । न ते तु यो व ते वा लापे त मात् ारं वतरा येष ब द ।। ३० ।। राजाने कहा— न्! आपक श तो दे वता के समान है, म आपको मनु य नह मानता; आप बालक भी नह ह। म तो आपको वृ ही समझता ँ। वाद- ववाद करनेम आपके समान सरा कोई नह है, अतः आपको य -म डपम जानेके लये ार दान करता ँ। यही ब द ह ( जनसे आप मलना चाहते थे) ।। ३० ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायाम ाव ये य ंशद धकशततमोऽ यायः ।। १३३ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम अ ाव योपा यान वषयक एक सौ ततीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १३३ ।। (दा णा य अ धक पाठका १ ोक मलाकर क ु ल ३१ ोक ह)

चतु

ंशद धकशततमोऽ यायः

ब द और अ ाव का शा ाथ, ब द क पराजय तथा सम ाम नानसे अ ाव के अंग का सीधा होना अ ाव उवाच अ ो सेन स मतेषु राजन् समागते व तमेषु राजसु । नावै म ब दं वरम वा दनां महाजले हंस मवाददा म ।। १ ।। अ ाव बोले—भयंकर सेना से यु महाराज जनक! इस सभाम सब ओरसे अ तम भावशाली राजा आकर एक ए ह; परंतु म इन सबके बीचम वा दय म धान ब द को नह पहचान पाता ँ। य द पहचान लूँ तो अगाध जलम हंसक भाँ त उ ह अव य पकड़ लूँगा ।। १ ।। न मेऽ व य य तवा दमा नन् लहं प ः स रता मवागमः । ताशन येव स म तेजसः थरो भव वेह ममा ब दन् ।। २ ।। अपनेको अ तवाद माननेवाले ब द ! तुमने परा जत ए प डत को पानीम डु बवा दे नेका नयम कर रखा है, कतु आज मेरे सामने तु हारी बोली बंद हो जायगी। जैसे लयकालके व लत अ नके समीप न दय का वाह सूख जाता है, उसी कार मेरे सामने आनेपर तुम भी सूख जाओगे—तु हारी वादश न हो जायगी। ब द ! आज मेरे सामने थर होकर बैठो ।। २ ।। ब ुवाच ा ं शयानं त मा बोधय आशी वषं सृ कणी ले लहानम् । पदाहत येह शरोऽ भह य नाद ो वै मो यसे त बोध ।। ३ ।। ब द ने कहा—मुझे सोता आ सह समझकर न जगाओ (न छे ड़ो), अपने जबड़ को चाटता आ वषैला सप मानो। तुमने पैर से ठोकर मारकर मेरे म तकको कुचल दया है। अब जबतक तुम डँस लये नह जाते तबतक तु ह छु टकारा नह मल सकता, इस बातको अ छ तरह समझ लो ।। ३ ।। यो वै दपात् संहननोपप ः

सु बलः पवतमा वह त । त यैव पा णः सनखो वद यते न चैव शैल य ह यते णः ।। ४ ।। जो दे हधारी अ य त बल होकर भी अहंकारवश अपने हाथसे पवतपर चोट करता है, उसीके हाथ और नख वद ण हो जाते ह। उस चोटसे पवतम घाव होता नह दे खा जाता है ।। ४ ।। अ ाव उवाच सव रा ो मै थल य मैनाक येव पवताः । नकृ भूता राजानो व सा अनडु हो यथा ।। ५ ।। अ ाव बोले—जैसे सब पवत मैनाकसे छोटे ह, सारे बछड़े बैल से लघुतर ह, उसी कार भूम डलके सम त राजा म थलानरेश महाराज जनकक अपे ा न न ेणीम ह ।। ५ ।। यथा महे ः वरः सुराणां नद षु ग ा वरा यथैव । तथा नृपाणां वर वमेको ब दं सम यानय म सकाशम् ।। ६ ।। राजन्! जैसे दे वता म महे े ह और न दय म गंगा े ह, उसी कार सब राजा म एकमा आप ही उ म ह। अब ब द को मेरे नकट बुलवाइये ।। ६ ।। लोमश उवाच एवम ाव ः स मतौ ह गजन्जात ोधो ब दनमाह राजन् । उ े वा ये चो रं मे वी ह वा य य चा यु रं ते वी म ।। ७ ।। लोमशजी कहते ह—यु ध र! (ब द के सामने आ जानेपर) राजसभाम गजते ए अ ाव ने ब द से कु पत होकर इस कार कहा—‘मेरी पूछ ई बातका उ र तुम दो और तु हारी बातका उ र म दे ता ँ’ ।। ७ ।। ब ुवाच एक एवा नब धा स म यते एकः सूयः सव मदं वभा त । एको वीरो दे वराजोऽ रह ता यमः पतॄणामी र ैक एव ।। ८ ।। तब ब द ने कहा—अ ाव ! एक ही अ न अनेक कारसे का शत होती है, एक ही सूय इस स पूण जगत्को का शत करता है। श ु का नाश े



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करनेवाला दे वराज इ ही है ।। ८ ।।

एक ही वीर है तथा पतर का वामी यमराज भी एक

अ ाव उवाच ा व ा नी चरतो वै सखायौ ौ दे वष नारदपवतौ च । ाव नौ े रथ या प च े भायापती ौ व हतौ वधा ा ।। ९ ।। अ ाव बोले—जो दो म क भाँ त सदा साथ वचरते ह, वे इ और अ न दो दे वता ह। पर पर म भाव रखनेवाले दे व ष नारद और पवत भी दो ही ह। अ नीकुमार क भी सं या दो ही है, रथके प हये भी दो ही होते ह तथा वधाताने (एक- सरेके जीवनसंगी) प त और प नी भी दो ही बनाये ह ।। ९ ।।



ुवाच

ः सूयते कमणा वै जेयं यो यु ा वाजपेयं वह त । अ वयव सवना न त वते यो लोका ी ण योत ष चा ः ।। १० ।। ब द ने कहा—यह स पूण जा कमवश दे वता, मनु य और तयक् प तीन कारका ज म धारण करती है, ऋक्, साम, और यजु—ये तीन वेद ही पर पर संयु हो बाजपेय आ द य -कम का नवाह करते ह। अ वयुलोग भी औ









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ातःसवन, म या सवन और सायंसवनके भेदसे तीन सवन (य )-का ही अनु ान करते ह। (कमानुसार ा त होनेवाले भोग के लये) वग, मृ यु और नरक—ये लोक भी तीन ही बताये गये ह और मु नय ने सूय, च और अ न प तीन ही कारक यो तयाँ बतलायी ह ।। १० ।। अ ाव उवाच चतु यं ा णानां नकेतं च वारो वणा य ममं वह त । दश त ो वणचतु यं च चतु पदा गौर प श ा ।। ११ ।। अ ाव बोले— ा ण के लये आ म१ चार ह। वण२ भी चार ही ह जो इस य का भार वहन करते ह। मु य दशाएँ३ भी चार ही ह। वण४ भी चार ही ह तथा गो अथात् वाणी भी सदा चार ही चरण से५ यु बतायी गयी है ।। ११ ।। ब ुवाच प चा नयः प चपदा च पङ् य ाः प चैवा यथ प चे या ण । ा वेदे प चचूडा सरा लोके यातं प चनदं च पु यम् ।। १२ ।। ब द ने कहा—य क अ न गाहप य, द णा न, आहवनीय, स य और आवस यके भेदसे पाँच कारक कही गयी है। पं ६ छ द भी पाँच पाद से ही बनता है, य भी पाँच ही ह—दे वय , पतृय , ऋ षय , भूतय और मनु यय । इसी कार इ य क सं या भी पाँच ही ह७। वेदम पाँच वेणीवाली (पंचचूड़ा८) अ सराका वणन दे खा गया है तथा लोकम पाँच९ न दय से व श पु यमय प चनद दे श व यात है ।। १२ ।। अ ाव उवाच षडाधाने द णामा रेके षट् चैवेमे ऋतवः कालच म् । ष ड या युत षट् कृ का षट् सा काः सववेदेषु ाः ।। १३ ।। अ ाव बोले—कुछ व ान का मत है क अ नक थापनाके समय द णाम छः गौ ही दे नी चा हये। ये छः ऋतुएँ ही संव सर प कालच क स करती ह। मनस हत ाने याँ भी छः ही ह। कृ का क सं या छः ही है तथा स पूण वेद म सा क नामक य भी छः ही दे खे गये ह ।। १३ ।।

ब ुवाच स त ा याः पशवः स त व याः स त छ दां स तुमेकं वह त । स तषयः स त चा यहणा न स तत ी थता चैव वीणा ।। १४ ।। ब द ने कहा— ा य पशु सात ह ( जनके नाम इस कार ह)—गाय, भस, बकरी, भड़, घोड़ा, कु ा और गदहा। जंगली पशु भी सात ह (यथा— सह, बाघ, भे ड़या, हाथी, वानर, भालू और मृग१)। गाय ी, उ णक्, अनु ु प्, बृहती, पं , ु प् और जगती—ये सात ही छ द एक-एक य का नवाह करते ह। स त ष नामसे स ऋ षय क २ सं या भी सात ही है (यथा—मरी च, अ , पुलह, पुल य, तु, अं गरा और व स ), पूजनके सं त उपचार भी सात ह (यथा—ग ध, पु प, धूप, द प, नैवे , आचमन और ता बूल) तथा वीणाके भी सात ही तार व यात ह ।। १४ ।। अ ाव उवाच अ ौ शाणाः शतमानं वह त तथा पादः शरभः सहघाती । अ ौ वसू शु ुम दे वतासु यूप ा ा व हतः सवय े ।। १५ ।। अ ाव बोले—तराजूम लगी ई सनक डो रयाँ भी आठ ही होती ह, जो सैकड़ का मान (तौल) करती ह। सहको भी मार गरानेवाले शरभके आठ ही पैर होते ह। दे वता म वसु क ३ सं या भी आठ ही सुनी गयी है और स पूण य म आठ कोणके ही यूपका नमाण कया जाता है ।। १५ ।। ब ुवाच नवैवो ाः सा मधे यः पतॄणां तथा ा नवयोगं वसगम् । नवा रा बृहती स द ा नवयोगो गणनामे त श त् ।। १६ ।। ब द ने कहा— पतृय म स मधा दे कर अ नको उ त करनेके लये जो म पढ़े जाते ह उ ह सा मधेनी ऋचा कहते ह, उनक सं या नौ ही बतायी गयी है। यह जो नाना कारक सृ दखायी दे ती है, इसम कृ त, पु ष, मह व, अहंकार तथा प चत मा ा—इन नौ पदाथ का संयोग कारण है, ऐसा व पु ष का कथन है। बृहती-छ दके येक चरणम नौ अ र बताये गये ह और एकसे लेकर नौ अंक का योग ही सदा गणनाके उपयोगम आता है ।। १६ ।।

अ ाव उवाच दशो दशो ाः पु ष य लोके सह मा दशपूण शता न । दशैव मासान् ब त गभव यो दशैरका दश दाशा दशाहाः ।। १७ ।। अ ाव ने कहा—पु षके लये संसारम दस दशाएँ बतायी गयी ह। दस सौ मलकर ही पूरा एक सह कहा जाता है, गभवती याँ दस मासतक ही गभ धारण करती ह, न दक भी दस४ ही होते ह, शरीरक अव थाएँ भी दस५ ह तथा पूजनीय पु ष भी दस६ ही बताये गये ह ।। १७ ।। ब ुवाच एकादशैकाद शनः पशूनामेकादशैवा भव त यूपाः । एकादश ाणभृतां वकारा एकादशो ा द व दे वेषु ाः ।। १८ ।। ब द ने कहा— ाणधारी पशु (जीव )-के लये यारह वषय१ ह। उ ह का शत करनेवाली इ याँ भी यारह ही ह, य , याग आ दम यूप भी यारह ही होते ह, ा णय के वकार२ भी यारह ह, तथा वग य दे वता म जो ३ कहलाते ह; उनक सं या भी यारह ही है ।। १८ ।। अ ाव उवाच संव सरं ादशमासमा जग याः पादो ादशैवा रा ण । ादशाहः ाकृतो य उ ो ादशा द यान् कथय तीह धीराः ।। १९ ।। अ ाव बोले—एक संव सरम बारह महीने बताये गये ह, जगती छ दका येक पाद बारह अ र का होता है, ाकृत य बारह दन का माना गया है, ानी पु ष यहाँ बारह४ आ द य का वणन करते ह ।। १९ ।। ब ुवाच योदशी त थ ा श ता योदश पवती मही च । ब द ने कहा— योदशी त थ उ म बतायी गयी है तथा यह पृ वी तेरह प से यु है। लोमश उवाच

एताव

वा वरराम ब द ोक याध ाजहारा व ः । लोमशजी कहते ह—इतना कहकर ब द चुप हो गया। तब शेष आधे ोकक पू त अ ाव ने इस कार क । अ ाव उवाच योदशाहा न ससार केशी योदशाद य त छ दां स चा ः ।। २० ।। अ ाव बोले—केशी नामक दानवने भगवान् व णुके साथ तेरह५ दन तक यु कया था। वेदम जो अ तश द- व श छ द बताये गये ह, उनका एक-एक पाद तेरह आ द अ र से स प होता है (अथात् अ तजगती छ दका एक पाद तेरह अ र का, अ तश वरीका एक पाद प ह अ र का, अ य का येक पाद स ह अ र का तथा अ तधृ तका हर एक पाद उ ीस अ र का होता है) ।। २० ।। ततो महानुद त नादतू ण भूतं सूतपु ं नश य । अधोमुखं यानपरं तदानीम ाव ं चा युद य तमेव ।। २१ ।। लोमशजी कहते ह—इतना सुनते ही सूतपु ब द चुप हो गया और मुँह नीचा कये कसी भारी सोच- वचारम पड़ गया। इधर अ ाव बोलते ही रहे, यह सब दे ख दशक और ोता म महान् कोलाहल मच गया ।। २१ ।। त मं तथा संकुले वतमाने फ ते य े जनक योत रा ः । अ ाव ं पूजय तोऽ युपेयुव ाः सव ा लयः तीताः ।। २२ ।। महाराज जनकके उस समृ शाली य म जब क चार ओर कोलाहल ा त हो रहा था, सब ा ण हाथ जोड़े ए ापूवक अ ाव के समीप आये और उनका आदर-स कारपूवक पूजन कया ।। २२ ।।

अ ाव उवाच अनेनैव ा णाः शु ुवांसो वादे ज वा स लले म जताः ाक् । तानेव धमानयम ब द ा ोतु गृ ा सु नम जयैनम् ।। २३ ।। त प ात् अ ाव ने कहा—महाराज! इस ब द ने पहले ब त-से शा ( व ान्) ा ण को शा ाथम परा जत करके पानीम डु बवाया है, अतः इसक ी



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भी वही ग त होनी चा हये जो इसके ारा सर क शी पानीम डु बवा द जये ।। २३ ।।



ई। इस लये इसे पकड़कर

ुवाच

अहं पु ो व ण योत रा त ास स ं ादशवा षकं वै । स ेण ते जनक तु यकालं तदथ ते हता मे जा याः ।। २४ ।। ब द बोला—महाराज जनक! म राजा व णका पु ँ। मेरे पताके यहाँ भी आपके इस य के समान ही बारह वष म पूण होनेवाला य हो रहा था। उस य के अनु ानके लये ही (जलम डु बानेके बहाने) कुछ चुने ए े ा ण को मने व णलोकम भेज दया था ।। २४ ।। ते तु सव व ण योत य ं ु ं गता इह आया त भूयः । अ ाव ं पूजये पूजनीयं य य हेतोज नतारं समे ये ।। २५ ।। वे सब-के-सब व णका य दे खनेके लये गये ह और अब पुनः लौटकर आ रहे ह। म पूजनीय ा ण अ ाव जीका स कार करता ँ; जनके कारण मेरा अपने पताजीसे मलना होगा ।। २५ ।।

अ ाव उवाच व ाः समु ा भ स म जता ये वाचा जता मेधया वा वदानाः । तां मेधया वाचमथो जहार यथा वाचमव च व त स तः ।। २६ ।। अ ाव बोले—राजन्! ब द ने अपनी जस वाणी ( वचनपटु ता अथवा मेधा—बु बल)-से व ान् ा ण को भी परा त कया और समु के जलम डु बोया है, उसक उस वाक्श को मने अपनी बु से कस कार उखाड़ फका है, यह सब इस सभाम बैठे ए व ान् पु ष मेरी बात सुनकर ही जान गये ह गे ।। २६ ।। अ नदह ातवेदाः सतां गृहान् वसजयं तेजसा न म धा ीत् । बालेषु पु ेषु कृपणं वद सु तथा वाचमव च व त स तः ।। २७ ।। अ न वभावसे ही दहन करनेवाला है तो भी वह ेय वषयको त काल जाननेम समथ है। इस कारण परी ाके समय जो सदाचारी और स यवाद होते ह उनके घर को (शरीर को) छोड़ दे ता है, जलाता नह । वैसे ही संतलोग भी े ो े े े े ो औ

वनभावसे बोलनेवाले बालक पु के वचन मसे जो स य और हतकर बात होती है, उसे चुन लेते ह—(उसे मान लेते ह, उनक अवहेलना नह करते)। भाव यह क तुमको मेरे वचन का भाव समझकर उ ह हण करना चा हये ।। २७ ।। े मातक ीणवचाः शृणो ष उताहो वां तुतयो मादय त । ह तीव वं जनक वनु मानो न मा मकां वाच ममां शृणो ष ।। २८ ।। राजन्! जान पड़ता है, तुमने लसोड़ेके प पर भोजन कया है या उसका फल खा लया है, इसीसे तु हारा तेज ीण हो गया है; अतः तुम ब द क बात सुन रहे हो, अथवा इस ब द ारा क गयी तु तयाँ तु ह उ म कर रही ह। यही कारण है क अंकुशक मार खाकर भी न माननेवाले मतवाले हाथीक भाँ त तुम मेरी इन बात को नह सुन रहे हो ।। २८ ।। जनक उवाच शृणो म वाचं तव द पाममानुष द पोऽ स सा ात् । अजैषीयद् ब दनं वं ववादे नसृ एष तव कामोऽ ब द ।। २९ ।। जनकने कहा— न्! म आपक द एवं अलौ कक वाणी सुन रहा ँ, आप सा ात् द व प ह, आपने शा ाथम ब द को जीत लया है। आपक इ छा अभी पूरी क जा रही है। दे खये यह है आपके ारा जीता आ ब द ।। २९ ।।

अ ाव उवाच नानेन जीवता क दथ मे ब दना नृप । पता य य व णो म जयैनं जलाशये ।। ३० ।। अ ाव बोले—महाराज! इस ब द के जी वत रहनेसे मेरा कोई योजन नह है। य द इसके पता व णदे व ह तो उनके पास जानेके लये इसे न य ही जलाशयम डु बो द जये ।। ३० ।। ब ुवाच अहं पु ो व ण योत रा ो न मे भयं व ते म जत य । इमं मुत पतरं यतेऽयम ाव रन ं कहोडम् ।। ३१ ।। े



ब द ने कहा—राजन्! म वा तवम राजा व णका पु ँ, अतः जलम डु बाये जानेका मुझे कोई भय नह है। ये अ ाव द घकालसे न ए अपने पता कहोडको इसी समय दे खगे ।। ३१ ।।

लोमश उवाच तत ते पू जता व ा व णेन महा मना । उद त ं ततः सव जनक य समीपतः ।। ३२ ।। लोमशजी कहते ह—यु ध र! तदन तर महामना व ण ारा पू जत ए वे सम त ा ण (जो ब द ारा जलम डु बोये गये थे,) सहसा राजा जनकके समीप कट हो गये ।। ३२ ।। कहोड उवाच इ यथ म छ त सुता ना जनक कमणा । यदहं नाशकं कतु तत् पु ः कृतवान् मम ।। ३३ ।। उस समय कहोडने कहा—जनकराज! लोग इसी लये अ छे कम ारा पु पानेक इ छा रखते ह, य क जो काय म नह कर सका, उसे मेरे पु ने कर दखाया ।। ३३ ।। उताबल य बलवानुत बाल य प डतः । उत वा व षो व ान् पु ो जनक जायते ।। ३४ ।। जनकराज! कभी-कभी नबलके भी बलवान्, मूखके भी प डत तथा अ ानीके भी ानी पु उ प हो जाता है ।। ३४ ।। शतेन ते परशुना वयमेवा तको नृप । शरां यपाहर वाजौ रपूणां भ म तु ते ।। ३५ ।। राजन्! आपका क याण हो, यु म वयं ही यमराज तीखे फरसेसे आपके श ु के म तक काटते रह ।। ३५ ।। महदौ यं गीयते साम चा यं स यक् सोमः पीयते चा स े । शुचीन् भगान् तजगृ ाः सा ाद् दे वा जनक योत रा ः ।। ३६ ।। महाराज जनकके इस य म उ म एवं मह वपूण और औ य* सामका गान कया जाता है, व धपूवक सोमरसका पान हो रहा है, दे वगण य दशन दे कर बड़े हषके साथ अपने-अपने प व भाग हण कर रहे ह ।। ३६ ।। लोमश उवाच समु थते वथ सवषु राजन् व ेषु ते व धकं सु भेषु । अनु ातो जनकेनाथ रा ा े ो ो

ववेश तोयं सागर योत ब द ।। ३७ ।। लोमशजी कहते ह—राजन्! ब द ारा जलम डु बोये ए वे सभी ा ण जब वहाँ अ धक तेज वी पसे कट हो गये, तब राजाक आ ा लेकर ब द वयं ही समु के जलम समा गया ।। ३७ ।। अ ाव ः पतरं पूज य वा स पू जतो ा णै तैयथावत् । याजगामा ममेव चा यं ज वा सौ त स हतो मातुलेन ।। ३८ ।। अ ाव अपने पताक पूजा करके वयं भी सरे ा ण ारा यथो चत पसे स मा नत ए; और इस कार ब द पर वजय पाकर पता एवं मामाके साथ अपने े आ मपर ही लौट आये ।। ३८ ।। ततोऽ ाव मातुरथा तके पता नद सम ां शी ममां वश व । ोवाच चैनं स तथा ववेश समैर ै ा प बभूव स ः ।। ३९ ।। तदन तर पता कहोडने अ ाव क माता सुजाताके नकट पु अ ाव से कहा—‘बेटा! तुम शी ही इस ‘समंगा’ नद म नानके लये वेश करो।’ पताक आ ाके अनुसार उ ह ने उस नद म नानके लये वेश कया। उसके जलका पश होनेपर त काल ही उनके सब अंग सीधे हो गये ।। ३९ ।। नद सम ा च बभूव पु या य यां नातो मु यते क बषा । वम येनां नानपानावगाहैः स ातृकः सहभाय वश व ।। ४० ।। यु ध र! इसीसे समंगा नद पु यमयी हो गयी। इसम नान करनेवाला मनु य सब पाप से मु हो जाता है। तुम भी नान, पान (आचमन) और अवगाहनके लये अपनी प नी और भाइय के साथ इस नद म वेश करो ।। ४० ।। अ कौ तेय स हतो ातृ भ वं सुखो षतः सह व ैः तीतः । पु या य या न शु चकमकभ मया साध च रत याजमीढ ।। ४१ ।। अजमीढकुलभूषण कु तीन दन! तुम व ासपूवक अपने भाइय और ा ण के साथ यहाँ एक रात सुखसे रहकर कलसे पुनः मेरे साथ प व कम म अ वचल ा-भ रखते ए सरे- सरे पु यतीथ क या ा करना ।। ४१ ।। ी





इ त ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायाम ाव ये चतु ंशद धकशततमोऽ यायः ।। १३४ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम अ ाव योपा यान वषयक एक सौ च तीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १३४ ।।

* यहाँ अ ाव जीने परो पम ही का उ र दया है। भाव यह है क दो त व, जनको वै दक भाषाम र य और ाणके नामसे कहा है (दे खये ोप नषद् १।४) एवं अं ेजीम जनको पो ज टव (अनुलोम) और नगे टव ( तलोम) कहते ह, वभावसे ही संयु रहनेवाले ह। इनका ही प व ुत्-श है। उसे गभक भाँ त मेघ धारण कये रहता है। संघषसे वह कट होती है और आकषण होनेपर बाजक भाँ त गरती है। जहाँ गरती है वहाँ सबको भ म कर दे ती है; इस लये यह कहा गया क वह कभी आपके श ु के घरपर भी न पड़े। इन दो त व क संयु श से ही मेघक उ प होती है। इस लये यह कहा गया क उस मेघ प गभको ये उ प करते ह। १चय, गाह य, वान थ और सं यास। २- ा ण, य, वै य और शू । ३- पूव, द ण, प म तथा उ र। ४- व, द घ, लुत और हल्। ५- परा, प य ती म यमा और वैखरी—ये वाणीके चार पैर ह। ६- आठ-आठ अ रके पाँच पाद से पं छ दक स होती है। ७- वचा, ो , ने , रसना और ना सका—ये पाँच ाने याँ ह। ८- पंचचूड़ा अ सराका उ लेख महाभारतके अनुशासनपवम ३८व अ यायम भी आया है। ९- वपाशा ( ास), इरावती (रावी), वत ता (झेलम), च भागा ( चनाव) और शत ू (शतलज) ये ही प चनद दे शक पाँच न दयाँ ह। १- हरन, शूकर, खरगोश, गीदड़ आ द ज तु का हण मृग नामसे ही हो जाता है। २- स त ष ये ह— मरी चर रा ा ः पुल यः पुलहः तुः । व स इ त स तैते मानसा न मता ह ते ।। (महा० शा त० ३४०।६९) ‘(भगवान्ने वयं ाजीसे कहा है क) मरी च, अं गरा, अ , पुल य, पुलह, तु और व स —ये सात मह ष तु हारे ( ाजीके) ारा ही अपने मनसे रचे ए ह।’ ३- धरो ुव सोम अह ैवा नलोऽनलः । यूष भास वसवोऽ ौ क तताः ।। (महा० आ द० ६६।१८) ‘धर, ुव, सोम, अह, अ नल, अनल, यूष और भास—ये आठ वसु कहे गये ह।’ ४- यथा रोगी, द र , शोका , राजद डत, शठ, खल, वृ से वं चत, उ म , ई यापरायण और कामी —ये दस न दक होते ह। जैसा क न नां कत ोकसे स होता है—‘आमयी मतः शोक द डत शठः खलः । न वृ मद चे य कामी च दश न दकाः ।। ’(इ त नी तशा ो ः) ५- उन दस अव था के नाम इस कार ह—गभवास, ज म, बा य, कौमार, पौग ड, कैशोर, यौवन, ौढ़, वा य तथा मृ यु। ६- अ यापक, पता, ये ाता, राजा, मामा, शुर, नाना, दादा, अपनेसे बड़ी अव थावाले कुटु बी तथा पतृ (चाचा-ताऊ)—ये दस पूजनीय पु ष माने गये ह। जैसा क कूमपुराणका वचन है—उपा यायः पता ये ाता चैव महीप तः । मातुलः शुर ैव मातामह पतामहौ ।। ब धुज ः पतृ पुं येते गुरवो मताः ।। १- वा य बोलना, हण करना, चलना- फरना, मल याग करना और मैथुनज नत सुखका अनुभव करना—ये पाँच कम य के वषय ह। श द, पश, प, रस और ग ध—ये पाँच ाने य के वषय ह और इन सबका मनन—मनका वषय है। इस कार कुल मलाकर यारह वषय ह। २- काम- ोध, लोभ-मोह, मद-म सर, हष-शोक, राग- े ष और अहंकार—ये यारह वकार होते ह। ३- एकादश ये ह— मृग ाध सप नऋ त महायशाः । अजैकपाद हबु यः पनाक च परंतपः ।। दहनोऽथे र ैव कपाली च महा ु तः । थाणुभव भगवान् ा एकादश मृताः ।। (

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(महाभारत आ द० ६६।२-३) ‘मृग ाध, सप, महायश वी नऋ त, अजैकपाद, अ हबु य, श ु-संतापन पनाक , दहन, ई र, परमका तमान् कपाली, थाणु और भगवान् भव—ये यारह माने गये ह।’ ४- ादश आ द य ये ह— धाता म ोऽयमा श ो व ण वंश एव च । भगो वव वान् पूषा च स वता दशम तथा ।। एकादश तथा व ा ादशो व णु यते । (महा० आ द० ६५।१५-१६) ‘धाता, म , अयमा, इ , व ण, अंश, भग, वव वान्, पूषा, दसव स वता, यारहव व ा और बारहव व णु कहे गये ह।’ ५- नृ सहपुराणम यही बात कही गयी है—‘युयुधे वणुना साध योदश दना यसौ ।’ * उ थ नाम य वशेषम गाये जानेयो य सामको औ य कहते ह।

प च शद धकशततमोऽ यायः कद मल े आ द तीथ क म हमा, रै य एवं भर ाजपु यव त मु नक कथा तथा ऋ षय का अ न करनेके कारण मेधावीक मृ यु लोमश उवाच एषा मधु वला राजन् सम ा स काशते । एतत् कद मलं नाम भरत या भषेचनम् ।। १ ।। लोमशजी कहते ह—राजन्! यह मधु वला नद का शत हो रही है। इसीका सरा नाम समंगा है और यह कद मल नामक े है, जहाँ राजा भरतका अ भषेक कया गया था ।। १ ।। अल या कल संयु ो वृ ं ह वा शचीप तः । आ लुतः सवपापे यः सम ायां मु यत ।। २ ।। कहते ह, वृ ासुरका वध करके जब शचीप त इ ीहीन हो गये थे, उस समय उस समंगा नद म गोता लगाकर ही वे अपने सब पाप से छु टकारा पा सके थे ।। २ ।। एतद् वनशनं कु ौ मैनाक य नरषभ । अ द तय पु ाथ तद मपचत् पुरा ।। ३ ।। नर े ! मैनाक पवतके कु भागम यह वनशन नामक तीथ है, जहाँ पूवकालम अ द त दे वीने पु - ा तके लये सा य दे वता के उ े यसे अ * तैयार कया था ।। ३ ।। एनं पवतराजानमा भरतषभाः । अयश यामसंश ामल म पनो यथ ।। ४ ।। भरतवंशके े पु षो! इस पवतराज हमालयपर आ ढ़ होकर तुम सब अयश फैलानेवाली और नाम लेनेके अयो य अपनी ीहीनताको शी ही र भगा दोगे ।। ४ ।। एते कनखला राज ृषीणां द यता नगाः । एषा काशते ग ा यु ध र महानद ।। ५ ।। यु ध र! ये कनखलक पवत-मालाएँ ह जो ऋ षय को ब त य लगती ह। ये महानद गंगा सुशो भत हो रही ह ।। ५ ।। सन कुमारो भगवान स मगात् पुरा । आजमीढावगा ैनां सवपापैः मो यसे ।। ६ ।। यह पूवकालम भगवान् सन कुमारने स ा त क थी। अजमीढन दन! इस गंगाम नान करके तुम सब पाप से छु टकारा पा जाओगे ।। ६ ।। अपां दं च पु या यं भृगुतु ं च पवतम् । उ णीग े च कौ तेय सामा यः समुप पृश ।। ७ ।। ी













कु तीकुमार! जलके इस पु य सरोवर, भृगत ु ुंग पवतपर तथा ‘उ णीगंग’ नामक तीथम जाकर तुम अपने म य स हत नान और आचमन करो ।। ७ ।। आ मः थूल शरसो रमणीयः काशते । अ मानं च कौ तेय ोधं चैव ववजय ।। ८ ।। यह थूल शरा मु नका रमणीय आ म शोभा पा रहा है। कु तीन दन! यहाँ अहंकार और ोधको याग दो ।। ८ ।। एष रै या मः ीमान् पा डवेय काशते । भार ाजो य क वयव तो न यत ।। ९ ।। पा डु न दन! यह रै यका सु दर आ म का शत हो रहा है, जहाँ व ान् भर ाजपु यव त न हो गये थे ।। ९ ।। यु ध र उवाच कथं यु ोऽभव षभर ाजः तापवान् । कमथ च यव तः पु ोऽन यत वै मुनेः ।। १० ।। यु ध रने पूछा— न्! तापी भर ाज मु न कैसे योगयु ए थे और उनके पु यव त कस लये न हो गये थे? ।। १० ।। एतत् सव यथावृ ं ोतु म छा म त वतः । कम भदवक पानां क यमानैभृशं रमे ।। ११ ।। ये सब बात म यथाथ पसे ठ क-ठ क सुनना चाहता ँ। उन दे वोपम मु नय के च र का वणन सुनकर मेरे मनको बड़ा सुख मलता है ।। ११ ।। लोमश उवाच भर ाज रै य सखायौ स बभूवतुः । तावूषतु रहा य तं ीयमाणावन तरम् ।। १२ ।। लोमशजीने कहा—राजन्! भर ाज तथा रै य दोन एक- सरेके सखा थे और नर तर इसी आ मम बड़े ेमसे रहा करते थे ।। १२ ।। रै य य तु सुतावा तामवावसुपरावसू । आसीद् यव ः पु तु भर ाज य भारत ।। १३ ।। रै यके दो पु थे—अवावसु और परावसु। भारत! भर ाजके पु का नाम ‘यव ’ अथवा ‘यव त’ था ।। १३ ।। रै यो व ान् सहाप य तप वी चेतरोऽभवत् । तयो ा यतुला क तबा यात् भृ त भारत ।। १४ ।। भारत! पु स हत रै य बड़े व ान् थे, परंतु भर ाज केवल तप याम संल न रहते थे। यु ध र! बा याव थासे ही इन दोन महा मा क अनुपम क त सब ओर फैल रही थी ।। १४ ।। यव ः पतरं ् वा तप वनमस कृतम् । ् वा च स कृतं व ै रै यं पु ैः सहानघ ।। १५ ।। े े े े ी ो े

न पाप यु ध र! यव तने दे खा, मेरे तप वी पताका लोग स कार नह करते ह; परंतु पु स हत रै यका ा ण ारा बड़ा आदर होता है ।। १५ ।। पयत यत तेज वी म युना भप र लुतः । तप तेपे ततो घोरं वेद ानाय पा डव ।। १६ ।। यह दे ख तेज वी यव तको बड़ा संताप आ। पा डु न दन! वे ोधसे आ व हो वेद का ान ा त करनेके लये घोर तप याम लग गये ।। १६ ।। स स म े मह य नौ शरीरमुपतापयन् । जनयामास संताप म य सुमहातपाः ।। १७ ।। उन महातप वीने अ य त व लत अ नम अपने शरीरको तपाते ए इ के मनम संताप उ प कर दया ।। तत इ ो यव तमुपग य यु ध र । अ वीत् क य हेतो वमा थत तप उ मम् ।। १८ ।। यु ध र! तब इ यव तके पास आकर बोले—‘तुम कस लये यह उ चको टक तप या कर रहे हो?’ ।। १८ ।।

यव त उवाच जानामनधीता वै वेदाः सुरगणा चत । तभा व त त येऽह मदं परमकं तपः ।। १९ ।। यव तने कहा—दे ववृ दपू जत महे ! म यह उ चको टक तप या इस लये करता ँ क जा तय को बना पढ़े ही सब वेद का ान हो जाय ।। १९ ।। वा यायाथ समार भो ममायं पाकशासन । तपसा ातु म छा म सव ाना न कौ शक ।। २० ।। पाकशासन! मेरा यह आयोजन वा यायके लये ही है। कौ शक! म तप या ारा सब बात का ान ा त करना चाहता ँ ।। २० ।। कालेन महता वेदाः श या गु मुखाद् वभो । ा तुं त मादयं य नः परमो मे समा थतः ।। २१ ।। भो! गु के मुखसे द घकालके प ात् वेद का ान हो सकता है। अतः मेरा यह महान् य न शी ही स पूण वेद का ान ा त करनेके लये है ।। २१ ।। इ उवाच अमाग एष व ष येन वं यातु म छ स । क वघातेन ते व ग छाधी ह गुरोमुखात् ।। २२ ।। इ बोले— व ष! तुम जस राहसे जाना चाहते हो, वह अ ययनका माग नह है। वा यायके समु चत मागको न करनेसे तु ह या लाभ होगा? अतः जाओ गु के मुखसे ही अ ययन करो ।। २२ ।। लोमश उवाच ो

एवमु वा गतः श ो यव र प भारत । भूय एवाकरोद् य नं तप य मत व मः ।। २३ ।। लोमशजी कहते ह—यु ध र! ऐसा कहकर इ चले गये; तब अ य त परा मी यव तने भी पुनः तप याके लये ही घोर यास आर भ कर दया ।। २३ ।। घोरेण तपसा राजं त यमानो महत् तपः । संतापयामास भृशं दे वे म त नः ुतम् ।। २४ ।। राजन्! उसने घोर तप या ारा महान् तपका संचय करते ए दे वराज इ को अ य त संत त कर दया; यह बात हमारे सुननेम आयी है ।। २४ ।। तं तथा त यमानं तु तप ती ं महामु नम् । उपे य बल भद् दे वो वारयामास वै पुनः ।। २५ ।। अश योऽथः समारधो नैतद ् बु कृतं तव । तभा य त वै वेदा तव चैव पतु ते ।। २६ ।। महामु न यव तको इस कार तप या करते दे ख इ ने उनके पास जाकर पुनः मना कया और कहा—‘मुने! तुमने ऐसे कायका आर भ कया है जसक स होनी अस भव है। तु हारा यह ( जमा के लये बना पढ़े वेदका ान होनेका) आयोजन बु -संगत नह है; कतु केवल तुमको और तु हारे पताको ही वेद का ान होगा’ ।। २५-२६ ।। यव त उवाच न चैतदे वं यते दे वराज ममे सतम् । महता नयमेनाहं त ये घोरतरं तपः ।। २७ ।। यव तने कहा—दे वराज! य द इस कार आप मेरे इ मनोरथक स नह करते ह तो म और भी कठोर नयम लेकर अ य त भयंकर तप याम लग जाऊँगा ।। २७ ।। स म े ऽ नावुपकृ या म ं हो या म वा मघवं त बोध । य ेतदे वं न करो ष कामं ममे सतं दे वराजेह सवम् ।। २८ ।। दे वराज इ ! य द आप यहाँ मेरी सारी मनोवां छत कामना पूरी नह करते ह तो म व लत अ नम अपने एक-एक अंगको होम ँ गा। इस बातको आप अ छ तरह समझ ल ।। २८ ।।

लोमश उवाच न यं तम भ ाय मुने त य महा मनः । तवारणहे वथ बु या सं च य बु मान् ।। २९ ।। तत इ ोऽकरोद् पं ा ण य तप वनः । अनेकशतवष य बल य सय मणः ।। ३० ।। लोमशजी कहते ह—यु ध र! उन महामु नके उस न यको जानकर बु मान् इ ने उ ह रोकनेके लये बु पूवक कुछ वचार कया और एक ऐसे तप वी ा णका ई ौ ी ो ो ीऔ

प धारण कर लया जसक उ कई सौ वष क थी, तथा जो य माका रोगी और बल दखायी दे ता था ।। २९-३० ।। यव त य यत् तीथमु चतं शौचकम ण । भागीरयां त सेतुं वालुका भ कार सः ।। ३१ ।। गंगाके जस तीथम यव त मु न नान आ द कया करते थे, उसीम वे ा ण दे वता बालू ारा पुल बनाने लगे ।। ३१ ।। यदा य वदतो वा यं न स च े जो मः । वालुका भ ततः श ो ग ां सम भपूरयन् ।। ३२ ।। ज े यव तने जब इ का कहना नह माना, तब वे बालूसे गंगाजीको भरने लगे ।। ३२ ।। वालुकामु म नशं भागीरयां सजयत् । सेतुम यारभ छ ो यव तं नदशयन् ।। ३३ ।। वे नर तर एक-एक मु बालू गंगाजीम छोड़ते थे और इस कार उ ह ने यव तको दखाकर पुल बाँधनेका काय आर भ कर दया ।। ३३ ।। तं ददश यव तो य नव तं नब धने । हसं ा वीद् वा य मदं स मु नपु वः ।। ३४ ।। मु नवर यव तने दे खा, ा ण दे वता पुल बाँधनेके लये बड़े य नशील ह, तब उ ह ने हँसते ए इस कार कहा— ।। ३४ ।। क मदं वतते न् क च ते ह चक षतम् । अतीव ह महान् य नः यतेऽयं नरथकः ।। ३५ ।। ‘ न्! यह या है? आप या करना चाहते ह? आप य न तो महान् कर रहे ह, परंतु यह थ है’ ।। इ उवाच ब ध ये सेतुना ग ां सुखः प था भ व य त । ल यते ह जन तात तरमाणः पुनः पुनः ।। ३६ ।। इ बोले—तात! म गंगाजीपर पुल बाँधूँगा। इससे पार जानेके लये सुखद माग बन जायगा; य क पुलके न होनेसे इधर आने-जानेवाले लोग को बार-बार तैरनेका क उठाना पड़ता है ।। ३६ ।। यव त उवाच नायं श य वया ब ं महानोघ तपोधन । अश याद् व नवत व श यमथ समारभ ।। ३७ ।। यव तने कहा—तपोधन! यहाँ अगाध जलरा श भरी है; अतः तुम पुल बाँधनेम सफल नह हो सकोगे। इस लये इस अस भव कायसे मुँह मोड़ लो और ऐसे कायम हाथ डालो जो तुमसे हो सके ।। ३७ ।।

इ उवाच यथैव भवता चेदं तपो वेदाथमु तम् । अश यं त द मा भरयं भारः समा हतः ।। ३८ ।। इ बोले—मुने! जैसे आपने बना पढ़े वेद का ान ा त करनेके लये यह तप या ार भ क है जसक सफलता अस भव है, उसी कार मने भी यह पुल बाँधनेका भार उठाया है ।। ३८ ।। यव त उवाच यथा तव नरथ ऽयमार भ दशे र । तथा य द ममापीदं म यसे पाकशासन ।। ३९ ।। यतां यद् भवे छ यं वया सुरगणे र । वरां मे य छा यान् यैर यान् भ वता य त ।। ४० ।। यव तने कहा—दे वे र पाकशासन! जैसे आपका यह पुल बाँधनेका आयोजन थ है, उसी कार य द मेरी इस तप याको भी आप नरथक मानते ह तो वही काय क जये जो स भव हो, मुझे ऐसे उ म वर दान क जये, जनके ारा म सर से बढ़चढ़कर त ा ा त कर सकूँ ।। ३९-४० ।। लोमश उवाच त मै ादाद् वरा न उ वान् यान् महातपाः । तभा य त ते वेदाः प ा सह यथे सताः ।। ४१ ।। य चा यत् काङ् से कामं यव ग यता म त । स लधकामः पतरं समे याथेदम वीत् ।। ४२ ।। लोमशजी कहते ह—राजन्! तब इ ने महातप वी यव तके कथनानुसार उ ह वर दे ते ए कहा—‘यव त! तु हारे पतास हत तु ह वेद का यथे ान ा त हो जायगा। साथ ही और भी जो तु हारी कामना हो, वह पूण हो जायगी। अब तुम तप या छोड़कर अपने आ मको लौट जाओ।’ इस कार पूणकाम होकर, यव त अपने पताके पास गये और इस कार बोले ।। ४१-४२ ।। यव त उवाच तभा य त वै वेदा मम तात य चोभयोः । अ त चा यान् भ व यावो वरा लधा तदा मया ।। ४३ ।। यव तने कहा— पताजी! आपको और मुझे दोन को ही स पूण वेद का ान हो जायगा। साथ ही हम दोन सर से ऊँची थ तम हो जायँगे—ऐसा वर मने ा त कया है ।। ४३ ।। भर ाज उवाच दप ते भ वता तात वराँ ल वा यथे सतान् । े

स दपपूणः कृपणः मेव वनङ् य स ।। ४४ ।। भर ाज बोले—तात! इस तरह मनोवा छत वर ा त करनेके कारण तु हारे मनम अहंकार उ प हो जायगा और अहंकारसे यु होनेपर तुम कृपण होकर शी ही न हो जाओगे ।। ४४ ।। अ ा युदाहर तीमा गाथा दे वै दा ताः । मु नरासीत् पुरा पु बाल धनाम वीयवान् ।। ४५ ।। इस वषयम व जन दे वता क कही ई यह गाथा सुनाया करते ह— ाचीनकालम बाल ध नामसे स एक श शाली मु न थे ।। ४५ ।। स पु शोका न तप तेपे सु करम् । भवे मम सुतोऽम य इ त तं लधवां सः ।। ४६ ।। उ ह ने पु शोकसे संत त होकर अ य त कठोर तप या क । तप याका उ े य यह था क मुझे दे वोपम पु ा त हो। अपनी उस अ भलाषाके अनुसार बाल धको एक पु ा त आ ।। ४६ ।। त य सादो वै दे वैः कृतो न वमरैः समः । नाम य व ते म य न म ायुभ व य त ।। ४७ ।। दे वता ने उनपर कृपा अव य क , परंतु उनके पु को दे वतु य नह बनाया और वरदान दे ते ए यह कहा ‘ क मरणधमा मनु य कभी दे वताके समान अमर नह हो सकता। अतः उसक आयु न म (कारण)-के अधीन होगी’ ।। ४७ ।। बाल ध वाच यथेमे पवताः श त् त त सुरस माः । अ या त म ं मे सुत यायुभ व य त ।। ४८ ।। बाल ध बोले—दे ववरो! जैसे ये पवत सदा अ यभावसे खड़े रहते ह, वैसे ही मेरा पु भी सदा अ य बना रहे। ये पवत ही उसक आयुके न म ह गे अथात् जबतक ये पवत यहाँ बने रह तबतक मेरा पु भी जी वत रहे ।। ४८ ।।

भर ाज उवाच त य पु तदा ज े मेधावी ोधन तदा । स त छ वाकरोद् दपमृष ैवावम यत ।। ४९ ।। भर ाज कहते ह—यव त! तदन तर बाल धके पु का ज म आ, जो मेधायु होनेके कारण मेधावी नामसे व यात था। वह वभावका बड़ा ोधी था। अपनी आयुके वषयम दे वता के वरदानक बात सुनकर मेधावी घम डम भर गया और ऋ षय का अपमान करने लगा ।। ४९ ।। वकुवाणो मुनीनां च चरत् स मही ममाम् । आससाद महावीय धनुषा ं मनी षणम् ।। ५० ।। इतना ही नह , वह ऋ ष-मु नय को सतानेके उ े यसे ही इस पृ वीपर सब ओर वचरा करता था। एक दन मेधावी महान् श शाली एवं मनीषी धनुषा के पास जा ँ

प ँचा ।। ५० ।। त यापच े मेधावी तं शशाप स वीयवान् । भव भ मे त चो ः स न भ म समप त ।। ५१ ।। और उनका तर कार करने लगा। तब तपोबल-स प ऋ ष धनुषा ने उसे शाप दे ते ए कहा—‘अरे, तू जलकर भ म हो जा।’ परंतु उनके कहनेपर भी वह भ म नह आ ।। ५१ ।। धनुषा तु तं ् वा मेधा वनमनामयम् । न म म य म हषैभदयामास वीयवान् ।। ५२ ।। श शाली धनुषा ने यानम दे खा क मेधावी रोग एवं मृ युसे र हत है। तब उसक आयुके न म भूत पवत को उ ह ने भस ारा वद ण करा दया ।। ५२ ।। स न म े वन े तु ममार सहसा शशुः । तं मृतं पु मादाय वललाप ततः पता ।। ५३ ।। न म का नाश होते ही उस मु नकुमारक सहसा मृ यु हो गयी। तदन तर पता उस मरे ए पु को लेकर अ य त वलाप करने लगे ।। ५३ ।। लाल यमानं तं ् वा मुनयः परमातवत् । ऊचुवद वदः सव गाथां यां तां नबोध मे ।। ५४ ।। अ धक पी ड़त मनु य क भाँ त उ ह वलाप करते दे ख वहाँके सम त वेदवे ा मु नगण एक हो जस गाथाको गाने लगे, उसे बताता ँ, सुनो ।। ५४ ।। न द मथम येतुमीशो म यः कथंचन । म हषैभदयामास धनुषा ो महीधरान् ।। ५५ ।। ‘मरणधमा मनु य कसी तरह दै वके वधानका उ लंघन नह कर सकता, तभी तो धनुषा ने उस बालकक आयुके न म भूत पवत का भस ारा भेदन करा दया’ ।। ५५ ।। एवं ल वा वरान् बाला दपपूणा तप वनः । मेव वन य त यथा न यात् तथा भवान् ।। ५६ ।। इस कार बालक तप वी वर पाकर घम डम भर जाते ह और (अपने वहार के कारण) शी ही न हो जाते ह। तु हारी भी यही अव था न हो (इस लये सावधान कये दे ता ँ) ।। ५६ ।। एष रै यो महावीयः पु ौ चा य तथा वधौ । तं यथा पु ना ये ष तथा कुया वत तः ।। ५७ ।। ये रै यमु न महान् श शाली ह। इनके दोन पु भी इ ह के समान ह। बेटा! तुम उन रै यमु नके पास कदा प न जाना और आल य छोड़कर इसके लये सदा य नशील रहना ।। ५७ ।। स ह ु ः समथ वां पु पीड यतुं षा । रै य ा प तप वी च कोपन महानृ षः ।। ५८ ।। े













बेटा! तु ह सावधान करनेका कारण यह है क श शाली तप वी मह ष रै य बड़े ोधी ह। वे कु पत होकर रोषसे तु ह पीड़ा दे सकते ह ।। ५८ ।। यव त उवाच एवं क र ये मा तापं तात काष ः कथंचन । यथा ह मे भवान् मा य तथा रै यः पता मम ।। ५९ ।। यव त बोले— पताजी! म ऐसा ही क ँ गा, आप कसी तरह मनम संताप न कर। जैसे आप मेरे माननीय ह, वैसे रै यमु न मेरे लये पताके समान ह ।। ५९ ।। लोमश उवाच उ वा स पतरं णं यव रकुतोभयः । व कुवनृषीन यानतु यत् परया मुदा ।। ६० ।। लोमशजी कहते ह—यु ध र! पतासे यह मीठ बात कहकर यव त नभय वचरने लगे। सरे ऋ षय को सतानेम उ ह अ धक सुख मलता था। वैसा करके वे ब त संतु रहते थे ।। ६० ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायां यव तोपा याने प च शद धकशततमोऽ यायः ।। १३५ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम यव तोपा यान वषयक एक सौ पतीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १३५ ।।

* इस अ को

ौदन कहते ह, जैसा क ु तका कथन है—‘सा येयो दे वे यो

ौदनमपचत्’इ त।

षट् शद धकशततमोऽ यायः यव तका रै यमु नक पु वधूके साथ भचार और रै यमु नके ोधसे उ प रा सके ारा उसक मृ यु लोमश उवाच चङ् यमाणः स तदा यव रकुतोभयः । जगाम माधवे मा स रै या मपदं त ।। १ ।। लोमशजी कहते ह—यु ध र! उन दन यव त सवथा भयशू य होकर चार ओर च कर लगाता था। एक दन वैशाखमासम वह रै यमु नके आ मम गया ।। १ ।। स ददशा मे र ये पु पत मभू षते । वचर त नुषां त य क री मव भारत ।। २ ।। भारत! वह आ म खले ए वृ क े णय से सुशो भत हो अ य त रमणीय तीत होता था। उस आ मम रै यमु नक पु वधू क रीके समान वचर रही थी। यव तने उसे दे खा ।। २ ।। यव तामुवाचेदमुपा त व मा म त । नल जो ल जया यु ां कामेन तचेतनः ।। ३ ।। दे खते ही वह कामदे वके वशीभूत हो अपनी वचारश खो बैठा और लजाती ई उस मु न-वधूसे नल ज होकर बोला—‘सु दरी! तू मेरी सेवाम उप थत हो’ ।। ३ ।। सा त य शीलमा ाय त मा छापा च ब यती । तेज वतां च रै य य तथे यु वाऽऽजगाम ह ।। ४ ।। वह यव तके शील- वभावको जानकर भी उसके शापसे डरती थी। साथ ही उसे रै यमु नक तेज वताका भी मरण था। अतः ‘ब त अ छा’ कहकर उसके पास चली आयी ।। ४ ।। तत एका तमु ीय म जयामास भारत । आजगाम तदा रै यः वमा ममरदम ।। ५ ।। श ु वनाशन भारत! तब यव तने उसे एका तम ले जाकर पापके समु म डु बो दया। (उसके साथ रमण कया।) इतनेहीम रै यमु न अपने आ मम आ गये ।। ५ ।। दत च नुषां ् वा भायामाता परावसोः । सा वयन् णया वाचा पयपृ छद् यु ध र ।। ६ ।। सा त मै सवमाच यव भा षतं शुभा । यु ं च यव तं े ापूव तथाऽऽ मना ।। ७ ।। आकर उ ह ने दे खा क मेरी पु वधू एवं परावसुक प नी आतभावसे रो रही है। यु ध र! यह दे खकर रै यने मधुर वाणी ारा उसे सा वना द तथा रोनेका कारण पूछा। उस शुभल णा ब ने यव तक कही ई सारी बात शुरके सामने कह सुनाय एवं वयं े

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उसने भलीभाँ त सोच- वचारकर यव तक बात माननेसे जो अ वीकार कर दया था, वह सारा वृ ा त भी बता दया ।। ६-७ ।। शृ वान यैव रै य य यव त वचे तम् । दह व तदा चेतः ोधः समभव महान् ।। ८ ।। यव तक यह कुचे ा सुनते ही रै यके दयम ोधक च ड अ न व लत हो उठ , जो उनके अ तःकरणको मानो भ म कये दे रही थी ।। ८ ।। स तदा म युनाऽऽ व तप वी कोपनो भृशम् । अवलु य जटामेकां जुहावा नौ सुसं कृते ।। ९ ।। तप वी रै य वभावसे ही बड़े ोधी थे, तसपर भी उस समय उनके ऊपर ोधका आवेश छा रहा था। अतः उ ह ने अपनी एक जटा उखाड़कर सं कारपूवक था पत क ई अ नम होम द ।। ९ ।। ततः समभव ारी त या पेण स मता । अवलु यापरां चा प जुहावा नौ जटां पुनः ।। १० ।। उससे एक नारीके पम कृ या कट ई, जो पम उनक पु वधूके ही समान थी। त प ात् एक- सरी जटा उखाड़कर उ ह ने पुनः उसी अ नम डाल द ।। १० ।। ततः समभवद् र ो घोरा ं भीमदशनम् । अ ूतां तौ तदा रै यं क काय करवावहै ।। ११ ।। उससे एक रा स कट आ, जसक आँख बड़ी डरावनी थ । वह दे खनेम बड़ा भयानक तीत होता था। उस समय उन दोन ने रै य मु नसे पूछा—‘हम आपक कस आ ाका पालन कर?’ ।। ११ ।। ताव वी षः ु ो यव व यता म त । ज मतु तौ तथे यु वा यव त जघांसया ।। १२ ।। तब ोधम भरे ए मह षने कहा—‘यव तको मार डालो।’ उस समय ‘ब त अ छा’ कहकर वे दोन यव तके वधक इ छासे उसका पीछा करने लगे ।। १२ ।। तत तं समुपा थाय कृ या सृ ा महा मना । कम डलुं जहारा य मोह य वेव भारत ।। १३ ।। भारत! महामना रै यक रची ई कृ या प सु दरी नारीने पहले यव तके पास उप थत हो उसे मोहम डालकर उसका कम डलु हर लया ।। १३ ।। उ छ ं तु यव तमपकृ कम डलुम् । तत उ तशूलः स रा सः समुपा वत् ।। १४ ।। कम डलु खो जानेसे यव तका शरीर उ छ (जूठा या अप व ) रहने लगा। उस दशाम वह रा स हाथम शूल उठाये यव तक ओर दौड़ा ।। १४ ।। तमापत तं स े य शूलह तं जघांसया । यव ः सहसो थाय ा वद् येन वै सरः ।। १५ ।। रा स शूल हाथम लये मुझे मार डालनेक इ छासे मेरी और दौड़ा आ रहा है, यह दे खकर यव त सहसा उठे और उस मागसे भागे जो एक सरोवरक ओर जाता

था ।। १५ ।। जलहीनं सरो ् वा यव व रतः पुनः । जगाम स रतः सवा ता ा यासन् वशो षताः ।। १६ ।। इसके जाते ही सरोवरका पानी सूख गया। सरोवरको जलहीन आ दे ख यव त फर तुरंत ही सम त स रता के पास गया; परंतु इसके जानेपर वे सब भी सूख गय ।। १६ ।। स का यमानो घोरेण शूलह तेन र सा । अ नहो ं पतुभ तः सहसा ववेश ह ।। १७ ।। तब हाथम शूल लये उस भयानक रा सके खदे ड़नेपर यव त अ य त भयभीत हो सहसा अपने पताके अ नहो गृहम घुसने लगा ।। १७ ।। स वै वशमान तु शू े णा धेन र णा । नगृहीतो बलाद् ा र सोऽवा त त पा थव ।। १८ ।। राजन्! उस समय अ नहो गृहके अंदर एक शू -जातीय र क नयु था, जसक दोन आँख अंधी थ । उसने दरवाजेके भीतर घुसते ही यव तको बलपूवक पकड़ लया और यव त वह खड़ा हो गया ।। १८ ।। नगृहीतं तु शू े ण यव तं स रा सः । ताडयामास शूलेन स भ दयोऽपतत् ।। १९ ।। शू के ारा पकड़े गये यव तपर उस रा सने शूलसे हार कया। इससे उसक छाती फट गयी और वह ाणशू य होकर वह गर पड़ा ।। १९ ।। यव तं स ह वा तु रा सो रै यमागमत् । अनु ात तु रै येण तया नाया सहावसत् ।। २० ।। इस कार यव तको मारकर रा स रै यके पास लौट आया और उनक आ ा ले उस कृ या व पा रमणीके साथ उनक सेवाम रहने लगा ।। २० ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायां यव तोपा याने षट् शद धकशततमोऽ यायः ।। १३६ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम यव तोपा यान वषयक एक सौ छ ीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १३६ ।।

स त शद धकशततमोऽ यायः भर ाजका पु शोकसे वलाप करना, रै यमु नको शाप दे ना एवं वयं अ नम वेश करना लोमश उवाच भर ाज तु कौ तेय कृ वा वा यायमा कम् । स म कलापमादाय ववेश वमा मम् ।। १ ।। तं म ् वा पुरा सव यु त पावकाः । न वेनमुप त त हतपु ं तदा नयः ।। २ ।। लोमशजी कहते ह—कु तीन दन! भर ाज मु न त दनका वा याय पूरा करके ब त-सी स मधाएँ लये आ मम आये। उस दनसे पहले सभी अ नयाँ उनको दे खते ही उठकर वागत करती थ , परंतु उस समय उनका पु मारा गया था, इस लये अशौचयु होनेके कारण उनका अ नय ने पूववत् खड़े होकर वागत नह कया ।। १२ ।। वैकृतं व नहो े स ल य वा महातपाः । तम धं शू मासीनं गृहपालमथा वीत् ।। ३ ।। अ नहो गृहम यह वकृ त दे खकर उन महातप वी भर ाजने वहाँ बैठे ए अ धे गृहर क शू से पूछा— ।। क नु मे ना नयः शू तन द त दशनम् । वं चा प न यथापूव क चत् ेम महा मे ।। ४ ।। क च रै यं पु ो मे गतवान पचेतनः । एतदाच व मे शी ं न ह शु य त मे मनः ।। ५ ।। ‘दास! या कारण है क आज अ नयाँ पूववत् मेरा दशन करके स ता नह कट करती ह। इधर तुम भी पहले-जैसे समादरका भाव नह दखाते हो। इस आ मम कुशल तो है न? कह मेरा म दबु पु रै यके पास तो नह चला गया? यह बात मुझे शी बताओ; य क मेरा मन शा त नह हो रहा है’ ।। ५ ।। शू उवाच रै यं यातो नूनमयं पु ते म दचेतनः । तथा ह नहतः शेते रा सेन बलीयसा ।। ६ ।। शू बोला—भगवन्! अव य ही आपका यह म दम त पु रै यके यहाँ गया था। उसीका यह फल है क एक महाबली रा सके ारा मारा जाकर पृ वीपर पड़ा है ।। ६ ।। का यमान तेनायं शूलह तेन र सा । अ यागारं त ा र मया दो या नवा रतः ।। ७ ।। े







रा स अपने हाथम शूल लेकर इसका पीछा कर रहा था और यह अ नशालाम घुसा जा रहा था। उस समय मने दोन हाथ से पकड़कर इसे ारपर ही रोक लया ।। ७ ।। ततः स वहताशोऽ जलकामोऽशु च ुवम् । नहतः सोऽ तवेगेन शूलह तेन र सा ।। ८ ।। न य ही अप व होनेके कारण यह शु के लये जल लेनेक इ छा रखकर यहाँ आया था, परंतु मेरे रोक दे नेसे यह हताश हो गया। उस दशाम उस शूलधारी रा सने इसके ऊपर बड़े वेगसे हार करके इसे मार डाला ।। ८ ।। भर ाज तु त छ वा शू य व यं महत् । गतासुं पु मादाय वललाप सु ःखतः ।। ९ ।। शू का कहा आ यह अ य त अ य वचन सुनकर भर ाज बड़े खी हो गये और अपने ाणशू य पु को लेकर वलाप करने लगे ।। ९ ।। भर ाज उवाच ा णानां कलाथाय ननु वं त तवां तपः । जानामनधीता वै वेदाः स तभा व त ।। १० ।। भर ाजने कहा—बेटा! तुमने ा ण के हतके लये भारी तप या क थी। तु हारी तप याका यह उ े य था क ज को बना पढ़े ही सब वेद का ान हो जाय ।। १० ।। तथा क याणशील वं ा णेषु महा मसु । अनागाः सवभूतेषु ककश वमुपे यवान् ।। ११ ।। इस कार महा मा ा ण के त तु हारा वभाव अ य त क याणकारी था। कसी भी ाणीके त तुम कोई अपराध नह करते थे। फर भी तु हारा वभाव कुछ कठोर हो गया था ।। ११ ।। त ष ो मया तात रै यावसथदशनात् । गतवानेव तं ु ं काला तकयमोपमम् ।। १२ ।। यः स जानन् महातेजा वृ यैकं ममा मजम् । गतवानेव कोप य वशं परम म तः ।। १३ ।। तात! मने तु ह बार-बार मना कया था क तुम रै यके आ मक ओर न दे खना, परंतु तुम उसे दे खने चले ही गये और वह तु हारे लये काल, अ तक एवं यमराजके समान हो गया। महान् तेज वी होनेपर भी उसक बु बड़ी खोट है। वह जानता था क मुझ बूढ़ेके तुम एक ही पु हो तो भी वह ोधके वशीभूत हो ही गया ।। १२-१३ ।। पु शोकमनु ा त एष रै य य कमणा । य या म वामृते पु ाणा न तमान् भु व ।। १४ ।। बेटा! आज रै यके इस कठोर कमसे मुझे पु शोक ा त आ है। तु हारे बना म इस पृ वीपर अपने परम य ाण का भी प र याग कर ँ गा ।। १४ ।। यथाहं पु शोकेन दे हं य या म क बषी । तथा ये ः सुतो रै यं ह या छ मनागसम् ।। १५ ।। ै े





















जैसे म पापी अपने पु के शोकसे ाकुल हो अपने शरीरका याग कर रहा ँ, उसी कार रै यका ये पु अपने नरपराध पताक शी ह या कर डालेगा ।। १५ ।। सुखनो वै नरा येषां जा या पु ो न व ते । ते पु शोकम ा य वचर त यथासुखम् ।। १६ ।। संसारम वे मनु य सुखी ह, ज ह पु पैदा ही नह आ है; य क वे पु शोकका अनुभव न करके सदा सुखपूवक वचरते ह ।। १६ ।। ये तु पु कृता छोकाद् भृशं ाकुलचेतसः । शप ती ान् सखीनाता ते यः पापतरो नु कः ।। १७ ।। जो पु शोकसे मन-ही-मन ाकुल हो गहरी थाका अनुभव करते ए अपने य म को भी शाप दे डालते ह, उनसे बढ़कर महापापी सरा कौन हो सकता है? ।। १७ ।। परासु सुतो ः श त े ः सखा मया । ई शीमापद ं कोऽ तीयोऽनुभ व य त ।। १८ ।। मने अपने पु क मृ यु दे खी और य म को शाप दे दया। मेरे सवा संसारम सरा कौन-सा मनु य है जो ऐसी वप का अनुभव करेगा ।। १८ ।।

लोमश उवाच वल यैवं ब वधं भर ाजोऽदहत् सुतम् । सुस म ं ततः प ात् ववेश ताशनम् ।। १९ ।। लोमशजी कहते ह—यु ध र! इस तरह भाँ त-भाँ तके वलाप करके भर ाजने अपने पु का दाह-सं कार कया। त प ात् वयं भी वे जलती आगम वेश कर गये ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायां यव तोपा याने स त शद धकशततमोऽ यायः ।। १३७ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम यव तोपा यान वषयक एक सौ सतीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १३७ ।।

अ ा शद धकशततमोऽ यायः अवावसुक तप याके भावसे परावसुका ह यासे मु होना और रै य, भर ाज तथा यव त आ दका पुनज वत होना लोमश उवाच एत म ेव काले तु बृहद् ु नो महीप तः । स ं तेने महाभागो रै यया यः तापवान् ।। १ ।। लोमशजी कहते ह—यु ध र! इ ह दन महान् सौभा यशाली एवं तापी नरेश बृहद् ु नने एक य का अनु ान आर भ कया। वे रै यके यजमान थे ।। १ ।। तेन रै य य वै पु ाववावसुपरावसू । वृतौ सहायौ स ाथ बृहद् ु नेन धीमता ।। २ ।। बु मान् बृहद् ु नने य क पू तके लये रै यके दोन पु अवावसु तथा परावसुको सहयोगी बनाया ।। २ ।। त तौ समनु ातौ प ा कौ तेय ज मतुः । आ मे वभवद् रै यो भाया चैव परावसोः ।। ३ ।। अथावलोककोऽग छद् गृहानेकः परावसुः । कृ णा जनेन संवीतं ददश पतरं वने ।। ४ ।। कु तीन दन! पताक आ ा पाकर वे दोन भाई राजाके य म चले गये। आ मम केवल रै य मु न तथा उनके पु परावसुक प नी रह गयी। एक दन घरक दे ख-भाल करनेके लये परावसु अकेले ही आ मपर आये। उस समय उ ह ने काले मृगचमसे ढके ए अपने पताको वनम दे खा ।। ३-४ ।। जघ यरा े न ा धः सावशेषे तम य प । चर तं गहनेऽर ये मेने स पतरं मृगम् ।। ५ ।। रातका पछला पहर बीत रहा था और अभी अ धकार शेष था। परावसु न दसे अ धे हो रहे थे; अतः उ ह ने गहन वनम वचरते ए अपने पताको हसक पशु ही समझा ।। ५ ।। मृगं तु म यमानेन पता वै तेन ह सतः । अकामयानेन तदा शरीर ाण म छता ।। ६ ।। और उसे हसक पशु समझकर धोखेसे ही उ ह ने अपने पताक ह या कर डाली। य प वे ऐसा करना नह चाहते थे, तथा प हसक पशुसे अपने शरीरक र ाके लये उनके ारा यह ू रतापूण काय बन गया ।। ६ ।। त य स ेतकाया ण कृ वा सवा ण भारत । पुनराग य तत् स म वीद् ातरं वचः ।। ७ ।। ो े

इदं कम न श वं वोढु मेकः कथंचन । मया तु ह सत तातो म यमानेन तं मृगम् ।। ८ ।। सोऽ मदथ तं तात चर वं हसनम् । समथ ऽ यहमेकाक कम कतु मदं मुने ।। ९ ।। भारत! उसने पताके सम त ेतकम करके पुनः य म डपम आकर अपने भाई अवावसुसे कहा—‘भैया! वह य कम तुम अकेले कसी कार नभा नह सकते। इधर मने हसक पशु समझकर धोखेसे पताजीक ह या कर डाली है; इस लये तात! तुम तो मेरे लये ह या नवारणके हेतु त करो और म राजाका य कराऊँगा। मुने! म अकेला भी इस कायका स पादन करनेम समथ ँ’ ।। ७—९ ।। अवावसु वाच करोतु वै भवान् स ं बृहद् ु न य धीमतः । व यां च र येऽहं वदथ नयते यः ।। १० ।। अवावसु बोले—भाई! आप परम बु मान् राजा बृहद् ु नका य काय स प कर और म आपके लये इ यसंयमपूवक ह याका ाय क ँ गा ।। लोमश उवाच सत य व यायाः पारं ग वा यु ध र । अवावसु तदा स माजगाम पुनमु नः ।। ११ ।। ततः परावसु ् वा ातरं समुप थतम् । बृहद् ु नमुवाचेदं वचनं हषगद्गदम् ।। १२ ।। एष ते हा य ं मा ु ं वशे द त । हा े तेना प पीडयेत् वामसंशयम् ।। १३ ।। लोमशजी कहते ह—यु ध र! अवावसु मु न भाईके लये ह याका ाय पूरा करके पुनः उस य म आये। परावसुने अपने भाईको वहाँ उप थत दे खकर राजा बृहद् ु नसे हषगद्गद वाणीम कहा—‘राजन्! यह ह यारा है। अतः इसे आपका य दे खनेके लये इस म डपम वेश नह करना चा हये। घाती मनु य अपनी मा से भी आपको महान् क म डाल सकता है, इसम संशय नह है’ ।। ११—१३ ।। लोमश उवाच त छ वैव तदा राजा े यानाह स वट् पते । े यै सायमाण तु राज वावसु तदा ।। १४ ।। न मया ह येयं कृते याह पुनः पुनः । उ चमानोऽसकृ े यै ह त भारत ।। १५ ।। लोमशजी कहते ह— जानाथ! परावसुक यह बात सुनते ही राजाने अपने सेवक को यह आ ा द क ‘अवावसुको भीतर न आने दो।’ राजन्! उस समय सेवक ारा े









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हटाये जानेपर अवावसुने बार-बार यह कहा क ‘मने ह या नह क है।’ भारत! तो भी राजाके सेवक उ ह ह यारा कहकर ही स बो धत करते थे ।। १४-१५ ।। नैव म तजाना त व यां वयंकृताम् । मम ा ा कृत मदं मया स प रमो तः ।। १६ ।। अवावसु कसी तरह उस ह याको अपनी क ई वीकार नह करते थे। उ ह ने बार-बार यही बतानेक चे ा क क ‘मेरे भाईने ह या क है। मने तो ाय करके उ ह पापसे छु ड़ाया है’ ।। १६ ।। स तथा वदन् ोधात् तै े यैः भा षतः । तू ण जगाम षवनमेव महातपाः ।। १७ ।। उनके ऐसा कहनेपर भी राजाके सेवक ने उ ह ोधपूवक फटकार दया। तब वे महातप वी ष चुपचाप वनको ही चले गये ।। १७ ।। उ ं तपः समा थाय दवाकरमथा तः । रह यवेदं कृतवान् सूय य जस मः ।। १८ ।। मू तमां तं ददशाथ वयम भुग यः । वहाँ जाकर उ ह ने भगवान् सूयक शरण ली और बड़ी उ तप या करके उन ा ण शरोम णने सूयस ब धी रह यमय वै दक म का अनु ान कया। तदन तर अ भोजी एवं अ वनाशी सा ात् भगवान् सूयने साकार पम कट हो अवावसुको दशन दया ।। १८ ।। लोमश उवाच ीता त याभवन् दे वाः कमणावावसोनृप ।। १९ ।। तं ते वरयामासु नरासु परावसुम् । ततो दे वा वरं त मै द र नपुरोगमाः ।। २० ।। लोमशजी कहते ह—राजन्! अवावसुके उस कायसे सूय आ द सब दे वता उसपर स हो गये। उ ह ने अवावसुका य म वरण कराया एवं परावसुको नकलवा दया। त प ात् अ न-सूय आ द दे वता ने उ ह वर दे नेक इ छा कट क ।। १९-२० ।। स चा प वरयामास पतु थानमा मनः । अनाग वं ततो ातुः पतु ा मरणं वधे ।। २१ ।। तब अवावसुने यह वर माँगा क ‘मेरे पताजी जी वत हो जायँ। मेरे भाई नद ष ह और उ ह पताके वधक बात भूल जाय’ ।। २१ ।। भर ाज य चो थानं यव त य चोभयोः । त ां चा प वेद य सौर य जस मः । एवम व त तं दे वाः ोचु ा प वरान् द ः ।। २२ ।। साथ ही उ ह ने यह भी माँगा क ‘भर ाज तथा यव त दोन जी उठ और इस सूयदे वतास ब धी रह यमय वेदम क त ा हो।’ ज े अवावसुके इस कार वर माँगनेपर दे वता बोले—‘ऐसा ही हो।’ इस कार उ ह ने पूव सभी वर दे दये ।। २२ ।। े

ततः ा बभूवु ते सव एव यु ध र । अथा वीद् यव तो दे वान नपुरोगमान् ।। २३ ।। समधीतं मया ता न च रता न च । कथं च रै यः श ो मामधीयानं तप वनम् ।। २४ ।। तथायु े न व धना नह तुममरो माः । यु ध र! इसके बाद पूव सभी मु न जी वत हो गये। उस समय यव तने अ न आ द स पूण दे वता से पूछा—‘दे वे रो! मने वेदका अ ययन कया है, वेदो त का अनु ान भी कया है। म वा यायशील और तप वी भी ँ, तो भी रै यमु न इस कार अनु चत री तसे मेरा वध करनेम कैसे समथ हो सके’ ।। २३-२४ ।। दे वा ऊचुः मैवं कृथा यव त यथा वद स वै मुने । ऋते गु मधीता ह सुखं वेदा वया पुरा ।। २५ ।। अनेन तु गु न् ःखात् तोष य वाऽऽ मकमणा । कालेन महता लेशाद् ा धगतमु मम् ।। २६ ।। दे वताने कहा—मु न यव त! तुम जैसी बात कहते हो, वैसा न समझो। तुमने पूवकालम बना गु के ही सुखपूवक सब वेद पढ़े ह और इन रै यमु नने बड़े लेश उठाकर अपने वहारसे गु जन को संतु करके द घकालतक क सहनपूवक उ म वेद का ान ा त कया है ।। २५-२६ ।। लोमश उवाच यव तमथो वैवं दे वाः सा नपुरोगमाः । संजीव य वा तान् सवान् पुनज मु व पम् ।। २७ ।। लोमशजी कहते ह—राजन्! अ न आ द दे वता ने यव तसे ऐसा कहकर उन सबको नूतन जीवन दान करके पुनः वगलोकको थान कया ।। २७ ।। आ म त य पु योऽयं सदापु पफल मः । अ ो य राजशा ल सव पापं मो य स ।। २८ ।। नृप े ! यह उ ह रै यमु नका प व आ म है। यहाँके वृ सदा फूल और फल से लदे रहते ह। यहाँ एक रात नवास करके तुम सब पाप से छू ट जाओगे ।। २८ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायां यव तोपा याने अ ा शद धकशततमोऽ यायः ।। १३८ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम यव तोपा यान वषयक एक सौ अड़तीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १३८ ।।

एकोनच वा रशद धकशततमोऽ यायः पा डव क उ राख ड-या ा और लोमशजी ारा उसक गमताका कथन लोमश उवाच उशीरबीजं मैनाकं गर ेतं च भारत । समतीतोऽ स कौ तेय कालशैलं च पा थव ।। १ ।। लोमशजी कहते ह—भरतन दन यु ध र! अब तुम उशीरबीज, मैनाक, ेत और कालशैल नामक पहाड़ को लाँघकर आगे बढ़ आये ।। १ ।। एषा ग ा स त वधा राजते भरतषभ । थानं वरजसं पु यं य ा न न य म यते ।। २ ।। भरत े ! यह दे खो गंगाजी सात धारा से सुशो भत हो रही ह। यह रजोगुणर हत पु यतीथ है, जहाँ सदा अ नदे व व लत रहते ह ।। २ ।। एतद् वै मानुषेणा न श यं ु म तम् । समाध कु ता ा तीथा येता न यथ ।। ३ ।। यह अ त तीथ कोई मनु य नह दे ख सकता, अतः तुम सब लोग एका च हो जाओ। ताशू य दयसे तुम इन सब तीथ का दशन कर सकोगे ।। ३ ।। एतद् य स दे वानामा डं चरणाङ् कतम् । अ त ा तोऽ स कौ तेय कालशैलं च पवतम् ।। ४ ।। ेतं गर वे यामो म दरं चैव पवतम् । य मा णवरो य ः कुबेर ैव य राट् ।। ५ ।। यह दे वता क डा थली है, जो उनके चरण च से अं कत है। एका च होनेपर तु ह इसका भी दशन होगा। कु तीकुमार! अब तुम कालशैल पवतको लाँघकर आगे बढ़ आये। इसके बाद हम ेत ग र (कैलास) तथा म दराचल पवतम वेश करगे, जहाँ मा णवर य और य राज कुबेर नवास करते ह ।। अ ाशी तसह ा ण ग धवाः शी गा मनः । तथा कपु षा राजन् य ा ैव चतुगुणाः ।। ६ ।। अनेक पसं थाना नाना हरणा ते । य े ं मनुज े मा णभ मुपासते ।। ७ ।। राजन्! वहाँ ती ग तसे चलनेवाले अासी हजार ग धव और उनसे चौगुने क र तथा य रहते ह। उनके प एवं आकृ त अनेक कारक ह। वे भाँ त-भाँ तके अ -श धारण करते ह और य राज मा णभ क उपासनाम संल न रहते ह ।। ६-७ ।। तेषामृ रतीवा गतौ वायुसमा ते । थानात् यावयेयुय दे वराजम प ुवम् ।। ८ ।। ँ

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यहाँ उनक समृ अ तशय बढ़ ई है। ती ग तम वे वायुक समानता करते ह। वे चाह तो दे वराज इ को भी न य ही अपने थानसे हटा सकते ह ।। ८ ।। तै तात ब ल भगु ता यातुधानै र ताः । गमाः पवताः पाथ समाध परमं कु ।। ९ ।। तात यु ध र! उन बलवान् य और रा स से सुर त रहनेके कारण ये पवत बड़े गम ह। अतः तुम वशेष पसे एका च हो जाओ ।। ९ ।। कुबेरस चवा ा ये रौ ा मै ा रा साः । तैः समे याम कौ तेय संयतो व मेण च ।। १० ।। कुबेरके स चवगण तथा अ य रौ और मै नामक रा स का हम सामना करना पड़ेगा; अतः तुम परा मके लये तैयार रहो ।। १० ।। कैलासः पवतो राजन् ष ोजनसमु तः । य दे वा समाया त वशाला य भारत ।। ११ ।। राजन्! उधर छः योजन ऊँचा कैलासपवत दखायी दे ता है जहाँ दे वता आया करते ह। भारत! उसीके नकट वशालापुरी (बद रका मतीथ) है ।। ११ ।। असं येया तु कौ तेय य रा स क राः । नागाः सुपणा ग धवाः कुबेरसदनं त ।। १२ ।। कु तीन दन! कुबेरके भवनम अनेक य , रा स, क र, नाग, सुपण तथा ग धव नवास करते ह ।। १२ ।। तान् वगाह व पाथा तपसा च दमेन च । र यमाणो मया राजन् भीमसेनबलेन च ।। १३ ।। महाराज कु तीन दन! तुम भीमसेनके बल और मेरी तप यासे सुर त हो तप एवं इ यसंयमपूवक रहते ए आज उन तीथ म नान करो ।। १३ ।। व त ते व णो राजा यम स म तजयः । ग ा च यमुना चैव पवत दधातु ते ।। १४ ।। राजा व ण, यु वजयी यमराज, गंगा-यमुना तथा यह पवत तु ह क याण दान कर ।। १४ ।। म त सहा यां स रत सरां स च । व त दे वासुरे य वसु य महा ुते ।। १५ ।। महा ुते! म द्गण, अ नीकुमार, स रताएँ और सरोवर भी तु हारा मंगल कर। दे वता , असुर तथा वसु से भी तु ह क याणक ा त हो ।। १५ ।। इ य जा बूनदपवताद् वै शृणो म घोषं तव दे व ग े । गोपायैनं वं सुभगे ग र यः सवाजमीढाप चतं नरे म् ।। १६ ।। दे व गंगे! म इ के सुवणमय मे पवतसे तु हारा कलकलनाद सुन रहा ँ। सौभा यशा ल न! ये राजा यु ध र अजमीढवंशी य के लये आदरणीय ह। तुम े ओ

पवत से इनक र ा कराओ ।। १६ ।। दद व शम व व तोऽ य शैला नमा छै लसुते नृप य । उ वा तथा सागरगां स व ो य ो भव वे त शशास पाथम् ।। १७ ।। ‘शैलपु ! ये इन पवतमाला म वेश करना चाहते ह। तुम इ ह क याण दान करो।’ समु गा मनी गंगानद से ऐसा कहकर व वर लोमशने कु तीकुमार यु ध रको यह आदे श दया क ‘अब तुम एका च हो जाओ’ ।। १७ ।।

यु ध र उवाच अपूव ऽयं स मो लोमश य कृ णां च सव र त मा मादम् । दे शो यं गतमो मतोऽ य त मात् परं शौच महाचर वम् ।। १८ ।। यु ध र बोले—ब धुओ! आज मह ष लोमशको बड़ी घबराहट हो रही है। यह एक अभूतपूव घटना है। अतः तुम सब लोग सावधान होकर ौपद क र ा करो। माद न करना। लोमशजीका मत है क यह दे श अ य त गम है। अतः यहाँ अ य त शु आचार- वचारसे रहो ।। १८ ।। वैश पायन उवाच ततोऽ वीद् भीममुदारवीय कृ णां य ः पालय भीमसेन । शू येऽजुनेऽसं न हते च तात वामेव कृ णा भजते भयेषु ।। १९ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर राजा यु ध र महाबली भीमसे इस कार बोले—‘भैया भीमसेन! तुम सावधान रहकर ौपद क र ा करो। तात! कसी नजन दे शम जब क अजुन हमारे समीप नह ह भयका अवसर उप थत होनेपर ौपद तु हारा ही आ य लेती है’ ।। १९ ।। ततो महा मा स यमौ समे य मूध युपा ाय वमृ य गा े । उवाच तौ बा पकलं स राजा मा भै माग छतम म ौ ।। २० ।। त प ात् महा मा राजा यु ध रने नकुल-सहदे वके पास जाकर उनका म तक सूँघा और शरीरपर हाथ फेरा। फर ने से आँसू बहाते ए कहा—‘भैया! तुम दोन भय न करो और सावधान होकर आगे बढ़ो’ ।। २० ।। ी









इ त ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायां कैलासा द ग र वेशे एकोनच वारशद धकशततमोऽ यायः ।। १३९ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम पा डव का कैलास आ द पवतमाला म वेश वषयक एक सौ उनतालीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १३९ ।।

च वा रशद धकशततमोऽ यायः भीमसेनका उ साह तथा पा डव का कु ल दराज सुबा के रा यम होते ए ग धमादन और हमालय पवतको थान यु ध र उवाच अ त हता न भूता न बलव त महा त च । अ नना तपसा चैव श यं ग तुं वृकोदर ।। १ ।। यु ध र बोले—भीमसेन! यहाँ ब त-से बलवान् और वशालकाय रा स छपे रहते ह; अतः अ नहो एवं तप याके भावसे ही हमलोग यहाँसे आगे बढ़ सकते ह ।। १ ।। सं नवतय कौ तेय ु पपासे बला यात् । ततो बलं च दा यं च सं य व वृकोदर ।। २ ।। वृकोदर! तुम बलका आ य लेकर अपनी भूख- यास मटा दो। फर शारी रक श और चतुरताका सहारा लो ।। २ ।। ऋषे वया ुतं वा यं कैलासं पवतं त । बु या प य कौ तेय कथं कृ णा ग म य त ।। ३ ।। भैया! कैलास पवतके वषयम मह षने जो बात कही है, वह तुमने भी सुना ही है; अब वयं अपनी बु से वचार करके दे खो, ौपद इस गम दे शम कैसे चल सकेगी? ।। ३ ।। अथवा सहदे वेन धौ येन च समं वभो । सूतैः पौरोगवै ैव सव प रचारकैः ।। ४ ।। रथैर ै ये चा ये व ाः लेशासहाः प थ । सव वं स हतो भीम नवत वायते ण ।। ५ ।। अथवा वशालने वाले भीम! तुम सहदे व, धौ य, सार थ, रसोइये, सम त सेवकगण, रथ, घोड़े तथा मागके क को सहन न कर सकनेवाले जो अ य ा ण ह, उन सबके साथ यह से लौट जाओ ।। ४-५ ।। यो वयं ग म यामो ल वाहारा यत ताः । अहं च नकुल ैव लोमश महातपाः ।। ६ ।। ममागमनमाकाङ् न् ग ा ारे समा हतः । वसेह ौपद र न् यावदागमनं मम ।। ७ ।। केवल म, नकुल तथा महातप वी लोमशजी—ये तीन ही संयम और तका पालन करते ए यहाँसे आगेक या ा करगे। हम तीन ही व पाहारसे जीवन- नवाह करगे। तुम गंगा ार (ह र ार)-म एका च हो मेरे आगमनक ती ा करो और जबतक म लौटकर न आऊँ, तबतक ौपद क र ा करते ए वह नवास करो ।। ६-७ ।। भीम उवाच ी े ै

राजपु ी मेणाता ःखाता चैव भारत । ज येव ह क याणी ेतवाह द या ।। ८ ।। भीमसेनने कहा—भारत! राजकुमारी ौपद य प रा तेक थकावटसे और मान सक ःखसे भी पी ड़त है; तो भी यह क याणमयी दे वी अजुनको दे खनेक इ छासे उ साहपूवक हमारे साथ चल ही रही है ।। ८ ।। तव चा यर त ती ा वतते तमप यतः । गुडाकेशं महा मानं सं ामे वपला यनम् ।। ९ ।। सं ामम कभी पीठ न दखानेवाले न ा वजयी महा मा अजुनको न दे खनेके कारण आपके मनम भी अ य त ख ता हो रही है ।। ९ ।। क पुनः सहदे वं च मां च कृ णां च भारत । जाः कामं नवत तां सव च प रचारकाः ।। १० ।। सूताः पौरोगवा ैव यं च म येत नो भवान् । न हं हातु म छा म भव त मह क ह चत् ।। ११ ।। शैलेऽ मन् रा साक ण गषु वषमेषु च । इयं चा प महाभागा राजपु ी प त ता ।। १२ ।। वामृते पु ष ा नो सहेद ् व नव ततुम् । तथैव सहदे वोऽयं सततं वामनु तः ।। १३ ।। न जातु व नवतत मनो ो हम य वै । अ प चा महाराज स सा च द या ।। १४ ।। सव लालसभूताः म त माद् या यामहे सह । य श यो रथैग तुं शैलोऽयं ब क दरः ।। १५ ।। प रेव ग म यामो मा राजन् वमना भव । अहं व ह ये पा चाल य य न श य त ।। १६ ।। फर सहदे वके, मेरे तथा ौपद के लये तो कहना ही या है? भारत! ये ा णलोग चाह तो यहाँसे लौट सकते ह। सम त सेवक, सार थ, रसोइये तथा हममसे और जसजसको आप लौटाना उ चत समझ-वे सभी जा सकते ह। रा स से भरे ए इस पवतपर तथा ऊँचे-नीचे गम दे श म म आपको कदा प अकेला छोड़ना नह चाहता। नर े ! यह परम सौभा यवती प त ता राजकुमारी कृ णा भी आपको छोड़कर लौटनेको कभी तैयार न ह गी। इसी कार यह सहदे व भी आपम सदा अनुराग रखनेवाला है, आपको छोड़कर कभी नह लौटे गा। म इसके मनक बात जानता ँ। महाराज! स साची अजुनको दे खनेक इ छासे हम सभी लाला यत हो रहे ह; अतः सब साथ ही चलगे। राजन्! अनेक क दरा से यु इस पवतपर य द रथ के ारा या ा स भव न हो तो हम पैदल ही चलगे। आप इसके लये उदास न ह । जहाँ-जहाँ ौपद नह चल सकेगी वहाँ-वहाँ म वयं इसे कंधेपर चढ़ाकर ले जाऊँगा ।। १०—१६ ।। इ त मे वतते बु मा राजन् वमना भव । सुकुमारौ तथा वीरौ मा न दकरावुभौ । ौ

ग संतार य या म य ाश ौ भ व यतः ।। १७ ।। राजन्! मेरा ऐसा ही वचार है, आप उदास न ह । वीर मा कुमार नकुल और सहदे व दोन सुकुमार ह। जहाँ कह गम थानम ये असमथ हो जायँगे वहाँ म इ ह पार लगाऊँगा ।। १७ ।।

यु ध र उवाच एवं ते भाषमाण य बलं भीमा भवधताम् । यत् वमु सहसे वोढुं पा चाल च यश वनीम् ।। १८ ।। यमजौ चा प भ ं ते नैतद य व ते । बलं तव यश ैव धमः क त वधताम् ।। १९ ।। यत् वमु सहसे नेतुं ातरौ सह कृ णया । मा ते ला नमहाबाहो मा च तेऽ तु पराभवः ।। २० ।। यु ध र बोले—भीमसेन! इस कार (उ साहपूण) बात करते ए तु हारा बल बढ़े , य क तुम यश वनी ौपद तथा नकुल-सहदे वको भी वहन करके ले चलनेका उ साह रखते हो। तु हारा क याण हो। यह साहस तु हारे सवा और कसीम नह है। तु हारे बल, यश, धम और क तका व तार हो। महाबाहो! तुम ौपद स हत दोन भाई नकुलसहदे वको भी वयं ही ले चलनेक श रखते हो, इस लये कभी तु ह ला न न हो तथा कसीसे भी तु ह तर कृत न होना पड़े ।। १८—२० ।। वैश पायन उवाच ततः कृ णा वीद् वा यं हस ती मनोरमा । ग म या म न संतापः काय मां त भारत ।। २१ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तब सु दरी ौपद ने हँसते ए कहा—‘भारत! म आपके साथ ही चलूँगी; आप मेरे लये च ता न कर’ ।। २१ ।। लोमश उवाच तपसा श यते ग तुं पवतो ग धमादनः । तपसा चैव कौ तेय सव यो यामहे वयम् ।। २२ ।। नकुलः सहदे व भीमसेन पा थव । अहं च वं च कौ तेय यामः ेतवाहनम् ।। २३ ।। लोमशजीने कहा—कु तीन दन! ग धमादन पवतपर तप याके बलसे ही जाया जा सकता है। हम सब लोग को तपःश का संचय करना होगा। महाराज! नकुल, सहदे व, भीमसेन, म और तुम सभी लोग तपोबलसे ही अजुनको दे ख सकगे ।। २२-२३ ।। वैश पायन उवाच एवं स भाषमाणा ते सुबा वषयं महत् । द शुमु दता राजन् भूतगजवा जमत् ।। २४ ।। करातत णाक ण पु ल दशतसंकुलम् । ै

हमव यमरैजु ं ब ा यसमाकुलम् । सुबा ा प तान् ् वा पूजया यगृ त ।। २५ ।। वषया ते कु ल दानामी रः ी तपूवकम् । तत ते पू जता तेन सव एव सुखो षताः ।। २६ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! इस कार बातचीत करते ए वे सब लोग आगे बढ़े । कुछ र जानेपर उ ह कु ल दराज सुबा का वशाल रा य दखायी दया, जहाँ हाथीघोड़ क ब तायत थी, और सैकड़ करात, तंगण एवं कु ल द आ द जंगली जा तय के लोग नवास करते थे। वह दे वता से से वत दे श हमालयके अ य त समीप था। वहाँ अनेक कारक आ यजनक व तुएँ दखायी दे ती थ । सुबा का वह रा य दे खकर उन सबको बड़ी स ता ई। कु ल द के राजा सुबा को जब यह पता लगा क मेरे रा यम पा डव आये ह, तब उसने रा यक सीमापर जाकर बड़े आदर-स कारके साथ उ ह अपनाया। उसके ारा ेमसे पू जत होकर वे सब लोग बड़े सुखसे वहाँ रहे ।। २४—२६ ।। त थु वमले सूय हमव तं गर त । इ सेनमुखां ा प भृ यान् पौरोगवां तथा ।। २७ ।। सूदां पा रबहा ौप ाः सवशो नृप । रा ः कु ल दा धपतेः प रदाय महारथाः ।। २८ ।। प रेव महावीया ययुः कौरवन दनाः । ते शनैः ा वन् सव कृ णया सह पा डवाः । त माद् दे शात् सुसं ा ु कामा धनंजयम् ।। २९ ।। सरे दन नमल भातकालम सूय दय होनेपर उन सबने हमालय पवतक ओर थान कया। जनमेजय! इ सेन आ द सेवक , रसोइय और पाक-शालाके अ य को तथा ौपद के सारे सामान को कु ल दराज सुबा के यहाँ स पकर वे महापरा मी महारथी कु कुलन दन पा डव ौपद के साथ धीरे-धीरे पैदल ही चल दये। उनके मनम अजुनको दे खनेक बड़ी उ क ठा थी। अतः वे बड़े हष और उ लासके साथ उस दे शसे थत ए ।। २७—२९ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायां ग धमादन वेशे च वारशद धकशततमोऽ यायः ।। १४० ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम ग धमादन वेश वषयक एक सौ चालीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १४० ।।

एकच वा रशद धकशततमोऽ यायः यु ध रका भीमसेनसे अजुनको न दे खनेके कारण मान सक च ता कट करना एवं उनके गुण का मरण करते ए ग धमादन पवतपर जानेका ढ़ न य करना यु ध र उवाच भीमसेन यमौ चोभौ पा चा ल च नबोधत । ना त भूत य नाशो वै प यता मान् वनेचरान् ।। १ ।। यु ध र बोले—भीमसेन, नकुल-सहदे व और ौपद ! तुम सब लोग यान दे कर सुनो। यह न य है क पूवकृत कम का बना भोगे कभी नाश नह होता। दे खो, उ ह के कारण आज हम राजकुमार होकर भी वन-वनम भटक रहे ह ।। १ ।। बलाः ले शताः मे त यद् ुवामेतरेतरम् । अश येऽ प जामो यद् धनंजय द या ।। २ ।। य प हमलोग बल ह, लेशम पड़े ए ह, तथा प जो एक- सरेसे उ साहपूवक बात करते ह और जहाँ जाना स भव नह उस मागपर भी आगे बढ़ते जा रहे ह, उसम एक ही कारण है, हम सबके दयम अजुनको दे खनेके लये बल उ क ठा है ।। २ ।। त मे दह त गा ा ण तूलरा श मवानलः । य च वीरं न प या म धनंजयमुपा तकात् ।। ३ ।। इतना यास करनेपर भी म वीर धनंजयको जो अबतक अपने समीप नह दे ख पा रहा ँ, इसक च ता मेरे स पूण अंग को उसी कार द ध कर रही है, जैसे आग ईके ढे रको जलाती रहती है ।। ३ ।। त य दशनतृ णं मां सानुजं वनमा थतम् । या से याः परामशः स च वीर दह युत ।। ४ ।। उसीके दशनक यास लेकर म भाइय स हत इस वनम आया ँ। वीर भीमसेन! ःशासनने जो ौपद के केश पकड़ लये थे, वह घटना याद आकर मुझे और भी शोकसे द ध कर दे ती है ।। ४ ।। नकुलात् पूवजं पाथ न प या य मतौजसम् । अजेयमु ध वानं तेन त ये वृकोदर ।। ५ ।। वृकोदर! भयंकर धनुष धारण करनेवाले अजेय वीर अ मततेज वी अजुनको जो नकुलसे पहले उ प आ है, म अबतक नह दे ख रहा ँ, इसके कारण मुझे बड़ा संताप हो रहा है ।। ५ ।। तीथा न चैव र या ण वना न च सरां स च । चरा म सह यु मा भ त य दशनकाङ् या ।। ६ ।। ो े















अजुनको दे खनेक ही अ भलाषासे म तुमलोग के साथ व भ तीथ म, रमणीय वन म और सु दर सरोवर के तटपर वचर रहा ँ ।। ६ ।। प चवषा यहं वीरं स यसंधं धनंजयम् । य प या म बीभ सुं तेन त ये वृकोदर ।। ७ ।। भीमसेन! आज पाँच वष हो गये, म अपने वीर भाई स य त अजुनके दशनसे वं चत हो गया ँ। इसके कारण मुझे बड़ी च ता हो रही है ।। ७ ।। तं वै यामं गुडाकेशं सह व ा तगा मनम् । न प या म महाबा ं तेन त ये वृकोदर ।। ८ ।। वृकोदर! सहके समान म तानी चालसे चलनेवाले, न ा वजयी, यामवण, महाबा अजुनको नह दे ख पा रहा ँ, इस लये मेरे मनम बड़ा संताप हो रहा है ।। ८ ।। कृता ं नपुणं यु े ऽ तमानं धनु मताम् । न प या म कु े तेन त ये वृकोदर ।। ९ ।। कु े भीमसेन! अ व ाम वीण, यु कुशल और अनुपम धनुधर उस अजुनको नह दे खता ँ, इस कारण मुझे बड़ा क होता है ।। ९ ।। चर तम रसंघेषु काले ु मवा तकम् । भ मव मात ं सह क धं धनंजयम् ।। १० ।। जो यु के समय श ु के समूहम कु पत यमराजक भाँ त वचरता है, जसके कंधे सहके समान ह तथा जो मदक धारा बहानेवाले म गजराजके समान शोभा पाता है, उस वीर धनंजयसे अबतक भट न हो सक ; इसका मुझे बड़ा ःख है ।। १० ।। यः स श ादनवरो वीयण वणेन च । यमयोः पूवजः पाथः ेता ोऽ मत व मः ।। ११ ।। ःखेन महता व तं न प या म फा गुनम् । अजेयमु ध वानं तेन त ये वृकोदर ।। १२ ।। वृकोदर! जो परा म और स प म दे वराज इ से त नक भी कम नह है, जसके रथके घोड़े ेत रंगके ह, जो नकुल-सहदे वसे अव थाम बड़ा है, जसके परा मक कोई सीमा नह है तथा जो उ धनुधर एवं अजेय है, उस वीरवर अजुनके दशनसे म वं चत ँ; इसके लये मुझे महान क हो रहा है। म च ताक आगम जला जा रहा ँ ।। ११-१२ ।। सततं यः माशीलः यमाणोऽ यणीयसा । ऋजुमाग प य शमदाताभय य च ।। १३ ।। स तु ज वृ य मायया भ जघांसतः । अ प व धर या प भवेत् काल वषोपमः ।। १४ ।। जो छोटे लोग के आ ेप करनेपर भी सदा माशील होनेके कारण उस आ ेपको सह लेता है तथा सरल मागसे अपनी शरणम आनेवाले लोग को सुख प ँचाकर उ ह अभयदान दे ता है, वही अजुन, जब कोई कु टल मागका आ य ले छल-कपटसे उसपर आघात करना चाहता है तब वह वधारी इ ही य न हो, उसके लये काल और वषके समान भयंकर हो जाता है ।। १३-१४ ।। ो ो

श ोर प प य सोऽनृशंसः तापवान् । दाताभय य बीभ सुर मता मा महाबलः ।। १५ ।। सवषामा योऽ माकं रणेऽरीणां म दता । आहता सवर नानां सवषां नः सुखावहः ।। १६ ।। य द श ु भी शरणम आ जाय तो वह तापी वीर उसके त दयालु हो जाता और उसे नभय कर दे ता है। वह महाबली महामना अजुन ही हमलोग का सहारा है। वही समरांगणम हमारे श ु को र द डालनेक श रखता है। उसीने हमारे लये सब कारके र न लाकर सुलभ कये थे और वही हम सबको सदा सुख प ँचानेवाला है ।। १५-१६ ।। र ना न य य वीयण द ा यासन् पुरा मम । ब न ब जाती न या न ा तः सुयोधनः ।। १७ ।। जसके परा मसे हमारे पास पहले अनेक कारक असं य र नरा श सं चत हो गयी थी, जसे सुयोधनने ले लया ।। १७ ।। य य बा बलाद् वीर सभा चासीत् पुरा मम । सवर नमयी याता षु लोकेषु पा डव ।। १८ ।। वीर भीमसेन! जसके बा बलसे पहले मेरे अ धकारम स पूण र न क बनी ई भुवन व यात सभा थी ।। १८ ।। वासुदेवसमं वीय कातवीयसमं यु ध । अजेयम मतं यु े तं न प या म फा गुनम् ।। १९ ।। जो परा मम भगवान् ीकृ ण और यु म कातवीय अजुनके समान है; तथा जो समरभू मम एक होकर भी असं य-सा तीत होता है, उस अजेय वीर अजुनको म ब त दन से नह दे ख पाता ँ ।। १९ ।। संकषणं महावीय वां च भीमापरा जतम् । अनुयातः ववीयण वासुदेवं च श ुहा ।। २० ।। भीमसेन! श ुनाशक अजुन अपने परा मसे महाबली बलरामक , तुझ अपरा जत वीरक और वसुदेवन दन भगवान् ीकृ णक समानता कर सकता है ।। २० ।। य य बा बले तु यः भावे च पुरंदरः । जवे वायुमुखे सोमः ोधे मृ युः सनातनः ।। २१ ।। ते वयं तं नर ा ं सव वीर द वः । वे यामो महाबाहो पवतं ग धमादनम् ।। २२ ।। महाबाहो! जो बा बल और भावम दे वराज इ के समान है, जसके वेगम वायु, मुखम च मा और ोधम सनातन मृ युका नवास है, उसी नर े अजुनको दे खनेके लये उ सुक होकर हम सब लोग आज ग धमादन पवतक घा टय म वेश करगे ।। २१-२२ ।। वशाला बदरी य नरनारायणा मः । तं सदा यु षतं य ै यामो ग रमु मम् ।। २३ ।। कुबेरन लन र यां रा सैर भसे वताम् । प रेव ग म याम त यमाना महत् तपः ।। २४ ।। ी ै ँ ी औ ै

ग धमादन वही है, जहाँ वशाल बदरीका वृ और भगवान् नर-नारायणका आ म है; उस उ म पवतपर सदा य गण नवास करते ह; हमलोग उसका दशन करगे। इसके सवा, रा स ारा से वत कुबेरक सुर य पु क रणी भी है जहाँ हमलोग भारी तप या करते ए पैदल ही चलगे ।। २३-२४ ।। न च यानवता श यो ग तुं दे शो वृकोदर । न नृशंसेन लुधेन ना शा तेन भारत ।। २५ ।। भरतन दन! वृकोदर! उस दे शम कसी सवारीसे नह जाया जा सकता तथा जो ू र, लोभी और अशा त है, ऐसे मनु यके लये ाक कमीके कारण उस थानपर जाना अस भव है ।। २५ ।। त सव ग म यामो भीमाजुनगवे षणः । सायुधा ब न ंशाः साध व ैमहा तैः ।। २६ ।। भीमसेन! हम सब लोग अजुनक खोज करते ए तलवार बाँधकर अ -श से सुस जत हो इन महान् तधारी ा ण के साथ वहाँ चलगे ।। २६ ।। म कादं शमशकान् सहान् ा ान् सरीसृपान् । ा ो य नयतः पाथ नयत तान् न प य त ।। २७ ।। भीमसेन! जो अपने मन और इ य पर संयम नह रखता, ऐसे मनु यको वहाँ जानेपर म खी, डाँस, म छर, सह, ा और सप का सामना करना पड़ता है, परंतु जो संयमनयमसे रहनेवाला है, उसे उन ज तु का दशनतक नह होता ।। २७ ।। ते वयं नयता मानः पवतं ग धमादनम् । वे यामो मताहारा धनंजय द वः ।। २८ ।। अतः हमलोग भी अजुनको दे खनेक इ छासे अपने मनको संयमम रखकर व पाहार करते ए ग धमादनक पवतमाला म वेश करगे ।। २८ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायां ग धमादन वेशे एकच वारशद धकशततमोऽ यायः ।। १४१ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम ग धमादन वेश वषयक एक सौ इकलीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १४१ ।।

च वा रशद धकशततमोऽ यायः पा डव ारा गंगाजीक व दना, लोमशजीका नरकासुरके वध और भगवान् वाराह ारा वसुधाके उ ारक कथा कहना लोमश उवाच ारः पवताः सव न ः सपुरकाननाः । तीथा न चैव ीम त पृ ं च स ललं करैः ।। १ ।। लोमशजीने कहा—तीथदश पा डु कुमारो! तुमने सब पवत के दशन कर लये। नगर और वन स हत न दय का भी अवलोकन कया। शोभाशाली तीथ के भी दशन कये और उन सबके जलका अपने हाथ से पश भी कर लया ।। १ ।। पवतं म दरं द मेष प थाः या य त । समा हता न नाः सव भवत पा डवाः ।। २ ।। अयं दे व नवासो वै ग त ो वो भ व य त । ऋषीणां चैव द ानां नवासः पु यकमणाम् ।। ३ ।। पा डवो! यह माग द म दराचलक ओर जायगा। अब तुम सब लोग उ े गशू य और एका च हो जाओ। यह दे वता का नवास थान है, जसपर तु ह चलना होगा। यहाँ पु यकम करनेवाले द ऋ षय का भी नवास है ।। २-३ ।। एषा शवजला पु या या त सौ य महानद । बदरी भवा राजन् दे व षगणसे वता ।। ४ ।। सौ य वभाववाले नरेश! यह क याणमय जलसे भरी ई पु य व पा महानद अलकन दा (गंगा) वा हत होती है, जो दे व षय के समुदायसे से वत है। इसका ा भाव बद रका मसे ही आ है ।। ४ ।। एषा वैहायसै न यं बालख यैमहा म भः । अ चता चोपयाता च ग धव महा म भः ।। ५ ।। आकाशचारी महा मा बालख य तथा महामना ग धवगण भी न य इसके तटपर आते-जाते ह और इसक पूजा करते ह ।। ५ ।। अ साम म गाय त सामगाः पु य नः वनाः । मरी चः पुलह ैव भृगु ैवा रा तथा ।। ६ ।। सामगान करनेवाले व ान् वेदम क पु यमयी व न फैलाते ए यहाँ सामवेदक ऋचा का गान करते ह। मरी च, पुलह, भृगु तथा अं गरा भी यहाँ जप एवं वा याय करते ह ।। ६ ।। अ ा कं सुर े ो जपते सम द्गणः । सा या ैवा नौ चैव प रधाव त तं तदा ।। ७ ।। े े ी े ँ े

दे व े इ भी म द्गण के साथ यहाँ आकर त दन नयमपूवक जप करते ह। उस समय सा य तथा अ नीकुमार भी उनक प रचयाम रहते ह ।। ७ ।। च माः सह सूयण योत ष च हैः सह । अहोरा वभागेन नद मेनामनु जन् ।। ८ ।। च मा, सूय, ह और न भी दन-रातके वभागपूवक इस पु य नद क या ा करते ह ।। ८ ।। एत याः स ललं मू न वृषाङ् कः पयधारयत् । ग ा ारे महाभाग येन लोक थ तभवेत् ।। ९ ।। महाभाग! गंगा ार (ह र ार)-म सा ात् भगवान् शंकरने इसके पावन जलको अपने म तकपर धारण कया है, जससे जगत्क र ा हो ।। ९ ।। एतां भगवत दे व भव तः सव एव ह । यतेना मना तात तग या भवादत ।। १० ।। तात! तुम सब लोग मनको संयमम रखते ए इस ऐ यशा लनी द नद के तटपर चलकर इसे सादर णाम करो ।। १० ।। त य तद् वचनं ु वा लोमश य महा मनः । आकाशग ां यताः पा डवा तेऽ यवादयन् ।। ११ ।। महा मा लोमशका यह वचन सुनकर सब पा डव ने संयत च से भगवती आकाशगंगा (अलकन दा) को णाम कया ।। ११ ।। अ भवा च ते सव पा डवा धमचा रणः । पुनः याताः सं ाः सवऋ षगणैः सह ।। १२ ।। णाम करके धमका आचरण करनेवाले वे सम त पा डव पुनः स पूण ऋ ष-मु नय के साथ हषपूवक आगे बढ़े ।। १२ ।। ततो रात् काश तं पा डु रं मे सं नभम् । द शु ते नर े ा वक ण सवतो दशम् ।। १३ ।। तदन तर उन नर े पा डव ने एक ेत पवत-सा दे खा जो मे ग रके समान रसे ही का शत हो रहा था। वह स पूण दशा म बखरा जान पड़ता था ।। १३ ।। तान् ु कामान् व ाय पा डवान् स तु लोमशः । उवाच वा यं वा य ः शृणु वं पा डु न दनाः ।। १४ ।। लोमशजी ताड़ गये क पा डवलोग उस ेत पवताकार व तुके वषयम कुछ पूछना चाहते ह, तब वचनक कला जाननेवाले उन मह षने कहा—‘पा डवो! सुनो ।। १४ ।। एतद् वक ण सु ीमत् कैलास शखरोपमम् । यत् प य स नर े पवत तमं थतम् ।। १५ ।। एता य थी न दै य य नरक य महा मनः । पवत तमं भा त पवत तरा तम् ।। १६ ।। ‘नर े ! यह जो सब ओर बखरी ई कैलास शखरके समान सु दर काशयु पवताकार व तु दे ख रहे हो, ये सब वशालकाय नरकासुरक ह याँ ह। पवत और ो े े े ी े ी ी ो ी

शलाख ड पर थत होनेके कारण ये भी पवतके समान ही तीत होती ह ।। १५-१६ ।। पुरातनेन दे वेन व णुना परमा मना । दै यो व नहत तेन सुरराज हतै षणा ।। १७ ।। ‘पुरातन परमा मा ी व णुदेवने दे वराज इ का हत करनेक इ छासे उस दै यका वध कया था ।। १७ ।। दशवषसह ा ण तप त यन् महामनाः । ऐ ं ाथयते थानं तपः वा याय व मात् ।। १८ ।। ‘वह महामना दै य दस हजार वष तक कठोर तप या करके तप, वा याय और परा मसे इ का थान लेना चाहता था ।। १८ ।। तपोबलेन महता बा वेगबलेन च । न यमेव राधष धषयन् स दतेः सुतः ।। १९ ।। ‘अपने महान् तपोबल तथा वेगयु बा बलसे वह दे वता के लये सदा अजेय बना रहता था और वयं सब दे वता को सताया करता था ।। १९ ।। स तु त य बलं ा वा धम च च रत तम् । भया भभूतः सं व नः श आसीत् तदानघ ।। २० ।। ‘ न पाप यु ध र! नरकासुर बलवान् तो था ही, धमके लये भी उसने कतने ही उ म त का आचरण कया था, यह सब जानकर इ को बड़ा भय आ, वे घबरा उठे ।। २० ।। तेन सं च ततो दे वो मनसा व णुर यः । सव गः भुः ीमानागत थतो बभौ ।। २१ ।। ‘तब उ ह ने मन-ही-मन अ वनाशी भगवान् व णुका च तन कया, उनके मरण करते ही सव ापी भगवान् ीप त वहाँ उप थत हो का शत ए ।। २१ ।। ऋषय ा प तं सव तु ु वु दवौकसः । तं ् वा वलमान ीभगवान् ह वाहनः ।। २२ ।। न तेजाः समभवत् त य तेजोऽ भभ सतः । तं ् वा वरदं दे वं व णुं दे वगणे रम् ।। २३ ।। ा लः णतो भू वा नम कृ य च व भृत् । ाह वा यं तत त वं यत त य भयं भवेत् ।। २४ ।। ‘उस समय सभी दे वता तथा ऋ षय ने उनक तु त क । उ ह दे खते ही व लत का तसे सुशो भत भगवान् अ नदे वका तेज न -सा हो गया। वे ीह रके तेजसे तर कृत हो गये। सम त दे वसमुदायके वामी एवं वरदायक भगवान् व णुका दशन करके वधारी इ ने उ ह हाथ जोड़कर णाम कया और बार-बार म तक झुकाया। तदन तर वे सारी बात भगवान्से कह सुनाय , जनके कारण उ ह उस दै यसे भय हो रहा था’ ।। २२— २४ ।। व णु वाच जाना म ते भयं श दै ये ा रकात् ततः । ऐ







ं ाथयते थानं तपः स े न कमणा ।। २५ ।। तब भगवान् व णुने कहा—इ ! म जानता ँ, तु ह दै यराज नरकासुरसे भय ा त आ है। वह अपने तपः स कम ारा इ पदको लेना चाहता है ।। २५ ।। सोऽहमेनं तव ी या तपः स म प ुवम् । वयुन म दे हाद् दे वे मुत तपालय ।। २६ ।।

दे वे ! य प तप या ारा उसे स ा त हो चुक है तो भी म तु हारे ेमवश न य ही उस दै यको मार डालूँगा, तुम थोड़ी दे र और ती ा करो ।। २६ ।। त य व णुमहातेजाः पा णना चेतनां हरत् । स पपात ततो भूमौ ग रराज इवाहतः ।। २७ ।। ऐसा कहकर महातेज वी भगवान् व णुने हाथसे मारकर उस दै यके ाण हर लये और वह वक े मारे ए ग रराजक भाँ त पृ वीपर गर पड़ा ।। २७ ।। त यैतद थसंघातं माया व नहत य वै । इदं तीयमपरं व णोः कम काशते ।। २८ ।। इस कार माया ारा मारे गये उस दै यक ह य का यह समूह दखायी दे ता है। अब म भगवान् व णुका यह सरा परा म बता रहा ँ, जो सव काशमान है ।। २८ ।। न ा वसुमती कृ ना पाताले चैव म जता । पुन रता तेन वाराहेणैकशृ णा ।। २९ ।। एक समय सारी पृ वी एकाणवके जलम डू बकर अ य हो गयी, पातालम डू ब गयी। उस समय भगवान् व णुने पवत शखरके स श एक दाँतवाले वाराहका प धारण करके

पुनः इसका उ ार कया था ।। २९ ।।

यु ध र उवाच भगवन् व तरेणेमां कथां कथय त वतः । कथं तेन सुरेशेन न ा वसुमती तदा ।। ३० ।। योजनानां शतं न् पुन रता तदा । केन चैव कारेण जगतो धरणी ुवा ।। ३१ ।। यु ध रने पूछा—भगवन्! दे वे र भगवान् व णुने पातालम सैकड़ योजन नीचे डू बी ई इस पृ वीका पुन ार कस कार कया? आप इस कथाको यथाथ पसे और व तारपूवक क हये। जगत्का भार धारण करनेवाली इस अचला पृ वीका उ ार करनेके लये उ ह ने कस उपायका अवल बन कया? ।। ३०-३१ ।। शवा दे वी महाभागा सवस य रो हणी । क य चैव भावा योजनानां शतं गता ।। ३२ ।। स पूण श य का उ पादन करनेवाली यह क याणमयी महाभागा वसुधादे वी कसके भावसे सैकड़ योजन नीचे धँस गयी थी ।। ३२ ।। केन तद् वीयसव वं द शतं परमा मनः । एतत् सव यथात व म छा म जस म । ोतुं व तरशः सव वं ह त य त यः ।। ३३ ।। परमा माके उस अ त परा मका दशन ( ान) कसने कराया था? ज े ! यह सब म यथाथ पसे व तारपूवक सुनना चाहता ँ। आप इस वृ ा तके आ य ( ाता) ह ।। ३३ ।। लोमश उवाच यत् तेऽहं प रपृ ोऽ म कथामेतां यु ध र । तत् सवमखलेनेह ूयतां मम भाषतः ।। ३४ ।। लोमशजीने कहा—यु ध र! तुमने जसके वषयम मुझसे कया है, वह कथा —वह सारा वृ ा त म बता रहा ँ, सुनो ।। ३४ ।। पुरा कृतयुगे तात वतमाने भयंकरे । यम वं कारयामास आ ददे वः पुरातनः ।। ३५ ।। तात! इस क पके थम स ययुगक बात है, एक समय बड़ी भयंकर प र थ त उ प हो गयी थी। उस समय आ ददे व पुरातन पु ष भगवान् ीह र ही यमराजका भी काय स प करते थे ।। ३५ ।। यम वं कुवत त य दे वदे व य धीमतः । नत यते क जायते वा तथा युत ।। ३६ ।। यु ध र! परम बु मान् दे वदे व भगवान् ीह रके यमराजका काय सँभालते समय कसी भी ाणीक मृ यु नह होती थी; परंतु उ प का काय पूववत् चलता रहा ।। वध ते प संघा तथा पशुगवेडकम् । ै े

गवा ं च मृगा ैव सव ते प शताशनाः ।। ३७ ।। फर तो प य के समूह बढ़ने लगे। गाय, बैल, भेड़-बकरे आ द पशु, घोड़े, मृग तथा मांसाहारी जीव सभी बढ़ने लगे ।। ३७ ।। तथा पु षशा ल मानुषा परंतप । सह शो युतशो वध ते स ललं यथा ।। ३८ ।। श ु को संताप दे नेवाले नर े ! जैसे बरसातम पानी बढ़ता है, उसी कार मनु य भी हजार एवं दस हजार गुनी सं याम बढ़ने लगे ।। ३८ ।। एत मन् संकुले तात वतमाने भयंकरे । अ तभाराद् वसुमती योजनानां शतं गता ।। ३९ ।। तात! इस कार सब ा णय क वृ होनेसे जब बड़ी भयंकर अव था आ गयी तब अ य त भारसे दबकर यह पृ वी सैकड़ योजन नीचे चली गयी ।। ३९ ।। सा वै थतसवा भारेणा ा तचेतना । नारायणं वरं दे वं प ा शरणं गता ।। ४० ।। भारी भारके कारण पृ वी दे वीके स पूण अंग म बड़ी पीड़ा हो रही थी। उसक चेतना लु त होती जा रही थी। अतः वह सव े दे वता भगवान् नारायणक शरणम गयी ।। ४० ।। पृ थ ुवाच भगवं व सादा त ेयं सु चरं वह । भारेणा म समा ा ता न श नो म म व ततुम् ।। ४१ ।। पृवी बोली—भगवन्! आप ऐसी कृपा कर जससे म द घ कालतक यहाँ थर रह सकूँ। इस समय म भारसे इतनी दब गयी ँ क जीवन धारण नह कर सकती ।। ४१ ।। ममेमं भगवन् भारं पनेतुं वमह स । शरणागता म ते दे व सादं कु मे वभो ।। ४२ ।। भगवन्! मेरे इस भारको आप र करनेक कृपा कर। दे व! म आपक शरणम आयी ँ। वभो! मुझपर कृपा साद क जये ।। ४२ ।। त या तद् वचनं ु वा भगवान रः भुः । ोवाच वचनं ः ा रसमी रतम् ।। ४३ ।। पृ वीका यह वचन सुनकर अ वनाशी भगवान् नारायणने स होकर वणमधुर अ र से यु मीठ वाणीम कहा ।। ४३ ।। व णु वाच न ते म ह भयं काय भारात वसुधा र ण । अहमेवं तथा कु म यथा ल वी भ व य स ।। ४४ ।। भगवान् व णु बोले—वसुधे! तू भारसे पी ड़त है; कतु अब उसके लये भय न कर। म अभी ऐसा उपाय करता ँ जससे तू हलक हो जायगी ।। ४४ ।।



लोमश उवाच स तां वसज य वा तु वसुधां शैलकु डलाम् । ततो वराहः संवृ एकशृ ो महा ु तः ।। ४५ ।। लोमशजी कहते ह—यु ध र! पवत पी कु डल से वभू षत वसुधादे वीको वदा करके महातेज वी भगवान् व णुने वाराहका प धारण कर लया। उस समय उनके एक ही दाँत था, जो पवत- शखरके समान सुशो भत होता था ।। ४५ ।। र ा यां नयना यां तु भयमु पादय व । धूमं च वलयँ ल या त दे शे वधत ।। ४६ ।। वे अपने लाल-लाल ने से मानो भय उ प कर रहे थे और अपनी अंगका तसे धूम कट करते ए उस थानपर बढ़ने लगे ।। ४६ ।। स गृही वा वसुमत शृ े णैकेन भा वता । योजनानां शतं वीर समु र त सोऽ रः ।। ४७ ।। वीर यु ध र! अ वनाशी भगवान् व णुने अपने एक ही तेज वी दाँतके ारा पृ वीको थामकर उसे सौ योजन ऊपर उठा दया ।। ४७ ।। त यां चो ायमाणायां सं ोभः समजायत । दे वाः सं ु भताः सव ऋषय तपोधनाः ।। ४८ ।। पृ वीको उठाते समय सब ओर भारी हलचल मच गयी। स पूण दे वता तथा तप वी ऋ ष ु ध हो उठे ।। हाहाभूतमभूत् सव दवं ोम भू तथा । न पयव थतः क द् दे वो वा मानुषोऽ प वा ।। ४९ ।। ततो ाणमासीनं वलमान मव या । दे वाः स षगणा ैव उपत थुरनेकशः ।। ५० ।। वग, अ त र तथा भूलोक सबम अ य त हाहाकार मच गया। कोई भी दे वता या मनु य थर नह रह सका। तब अनेक दे वता और ऋ ष ाजीके समीप गये। उस समय वे अपने आसनपर बैठकर द का तसे का शत हो रहे थे ।। ४९-५० ।। उपस य च दे वेशं ाणं लोकसा कम् । भू वा ा लयः सव वा यमु चारयं तदा ।। ५१ ।। लोकसा ी दे वे र ाके नकट प ँचकर सबने हाथ जोड़कर णाम कया और कहा— ।। ५१ ।। लोकाः सं ु भताः सव ाकुलं च चराचरम् । समु ाणां च सं ोभ दशेश काशते ।। ५२ ।। ‘दे वे र! स पूण लोक म हलचल मच गयी है। चर और अचर सभी ाणी ाकुल ह। समु म बड़ा भारी ोभ दखायी दे रहा है ।। ५२ ।। सैषा वसुमती कृ ना योजनानां शतं गता । कमेतद् क भावेण येनेदं ाकुलं जगत् । ो





अ यातु नो भवान् शी ं वसं ाः मेह सवशः ।। ५३ ।। ‘यह सारी पृ वी सैकड़ योजन नीचे चली गयी थी, अब यह कसके भावसे कौन-सी अ त घटना घ टत हो रही है जससे सारा संसार ाकुल हो उठा है। आप शी हम इसका कारण बताइये। हम सब लोग अचेत-से हो रहे ह’ ।। ५३ ।। ोवाच असुरे यो भयं ना त यु माकं कु चत् व चत् । ूयतां य कृते वेष सं ोभो जायतेऽमराः ।। ५४ ।। योऽसौ सव गः ीमान रा मा व थतः। त य भावात् सं ोभ दव य काशते ।। ५५ ।। ाजीने कहा—दे वताओ! तु ह असुर से कभी और कोई भय नह है। यह जो चार ओर ोभ फैल रहा है, इसका या कारण है? वह सुनो। वे जो सव ापी अ र व प ीमान् भगवान् नारायण ह, उ ह के भावसे यह वगलोकम ोभ कट हो रहा है ।। ५४-५५ ।। यैषा वसुमती कृ ना योजनानां शतं गता । समुदधृ ् ता पुन तेन व णुना परमा मना ।। ५६ ।। यह सारी पृ वी, जो सैकड़ योजन नीचे चली गयी थी, इसे परमा मा ी व णुने पुनः ऊपर उठाया है ।। ५६ ।। त यामु ायमाणायां सं ोभः समजायत । एवं भव तो जान तु छ तां संशय वः ।। ५७ ।। इस पृ वीका उ ार करते समय ही सब ओर यह महान् ोभ कट आ है। इस कार तु ह इस व ापी हलचलका यथाथ कारण ात होना और तु हारा आ त रक संशय र हो जाना चा हये ।। ५७ ।। दे वा ऊचुः व तद् भूतं वसुमत समु र त वत् । तं दे शं भगवन् ू ह त या यामहे वयम् ।। ५८ ।। दे वता बोले—भगवन्! वे वाराह पधारी भगवान् स -से होकर कहाँ पृ वीका उ ार कर रहे ह, उस दे शका पता हम बताइये; हम सब लोग वहाँ जायँगे ।। ५८ ।। ोवाच ह त ग छत भ ं वो न दने प यत थतम् । एषोऽ भगवान् ीमान् सुपणः स काशते ।। ५९ ।। वाराहेणैव पेण भगवाँ लोकभावनः । कालानल इवाभा त पृ थवीतलमु रन् ।। ६० ।। ाजीने कहा—दे वताओ! बड़े हषक बात है, जाओ। तु हारा क याण हो। भगवान् न दनवनम वराजमान ह। वह उनका दशन करो। उस वनके नकट ये वणके ो







समान सु दर रोमवाले परम का तमान् व भावन भगवान् ी व णु वाराह पसे का शत हो रहे ह। भूतलका उ ार करते ए वे लयकालीन अ नके समान उ ा सत होते ह ।। ५९-६० ।। एत योर स सु ं ीव सम भराजते । प य वं वबुधाः सव भूतमेतदनामयम् ।। ६१ ।। इनके व ः थलम प पसे ीव स च का शत हो रहा है। दे वताओ! ये रोगशोकसे र हत सा ात् भगवान् ही वाराह पसे कट ए ह, तुम सब लोग इनका दशन करो ।। ६१ ।। लोमश उवाच ततो ् वा महा मानं ु वा चाम य चामराः । पतामहं पुर कृ य ज मुदवा यथागतम् ।। ६२ ।। लोमशजी कहते ह—यु ध र! तदन तर दे वता ने जाकर वाराह पधारी परमा मा ी व णुका दशन कया, उनक म हमा सुनी और उनक आ ा लेकर वे ाजीको आगे करके जैसे आये थे वैसे लौट गये ।। ६२ ।।

वैश पायन उवाच ु वा तु तां कथां सव पा डवा जनमेजय । लोमशादे शतेनाशु पथा ज मुः वत् ।। ६३ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! यह कथा सुनकर सब पा डव बड़े स और लोमशजीके बताये ए मागसे शी तापूवक आगे बढ़ गये ।। ६३ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायां ग धमादन वेशे च वारशद धकशततमोऽ यायः ।। १४२ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम ग धमादन वेश वषयक एक सौ बयालीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १४२ ।।



च वा रशद धकशततमोऽ यायः ग धमादनक या ाके समय पा डव का आँधी-पानीसे सामना वैश पायन उवाच ते शूरा ततध वान तूणव तः समागणाः । ब गोधाङ् गु ल ाणाः खड् गव तोऽ मतौजसः ।। १ ।। प रगृ ज े ा ये ाः सवधनु मताम् । पा चालीस हता राजन् ययुग धमा दनम् ।। २ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर स पूण धनुधर म अ गणय वे अ मततेज वी शूरवीर पा डव धनुष, बाण, तरकश, ढाल और तलवार लये, हाथ म गोहके चमड़ेके बने द ताने पहने और े ा ण को आगे कये ौपद के साथ ग धमादन पवतक ओर थत ए ।। १-२ ।। सरां स स रत ैव पवतां वना न च । वृ ां ब ल छायान् द शु ग रमूध न ।। ३ ।। पवतके शखरपर उ ह ने ब त-से सरोवर, स रताएँ, पवत, वन तथा घनी छायावाले वृ दे खे ।। ३ ।। न यपु पफलान् दे शान् दे व षगणसे वतान् । आ म या मानमाधाय वीरा मूलफला शनः ।। ४ ।। चे चावचाकारान् दे शान् वषमसंकटान् । प य तो मृगजाता न ब न व वधा न च ।। ५ ।। उ ह कतने ही ऐसे थान गोचर ए जहाँ सदा फूल और फल क ब तायत रहती थी। उन दे श म दे व षय के समुदाय नवास करते थे। वीर पा डव अपने मनको परमा माके च तनम लगाकर फल-मूलका आहार करते ए ऊँचे-नीचे वषम-संकटपूण थान म वचर रहे थे। मागम उ ह नाना कारके मृगसमूह दखायी दे ते थे जनक सं या ब त थी ।। ४-५ ।। ऋ ष स ामरयुतं ग धवा सरसां यम् । व वशु ते महा मानः क राच रतं ग रम् ।। ६ ।। इस कार उन महा मा पा डव ने ग धव और अ सरा क य भू म, क र क डा थली तथा ऋ षय , स और दे वता के नवास थान ग धमादन पवतक घाट म वेश कया ।। ६ ।। वश वथ वीरेषु पवतं ग धमादनम् । च डवातं महद् वष ा रासीद् वशा पते ।। ७ ।। ी



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राजन्! वीर पा डव के ग धमादन पवतपर पदापण करते ही च ड आँधीके साथ बड़े जोरक वषा होने लगी ।। ७ ।। ततो रेणुः समु तः सप ब लो महान् । पृ थव चा त र ं च ां चैव सहसाऽऽवृणोत् ।। ८ ।। फर धूल और प से भरा आ बड़ा भारी बवंडर (आँधी) उठा, जसने पृ वी, अ त र तथा वगको भी सहसा आ छा दत कर दया ।। ८ ।। न म ायते क चदावृते ो न रेणुना । न चा प शेकु तत् कतुम यो य या भभाषणम् ।। ९ ।। न चाप यं ततोऽ यो यं तमसावृतच ुषः । आकृ यमाणा वातेन सा मचूणन भारत ।। १० ।। धूलसे आकाशके ढक जानेसे कुछ भी सूझ नह पड़ता था; इसी लये वे एक- सरेसे बातचीत भी नह कर पाते थे। अ धकारने आँख पर पदा डाल दया था; जससे पा डवलोग एक- सरेके दशनसे भी व चत हो गये थे। भारत! प थर का चूण बखेरती ई वायु उ ह कह -से-कह ख च लये जाती थी ।। ९-१० ।। माणां वातभ नानां पततां भूतलेऽ नशम् । अ येषां च महीजानां श दः समभव महान् ।। ११ ।। च ड वायुके वेगसे टू टकर नर तर धरतीपर गरनेवाले वृ तथा अ य झाड़ का भयंकर श द सुनायी पड़ता था ।। ११ ।। ौः वत् पत त क भू मदयते पवतो नु कम् । इ त ते मे नरे सव पवनेना प मो हताः ।। १२ ।। हवाके झ केसे मो हत होकर वे सब-के-सब मन-ही-मन सोचने लगे क आकाश तो नह फट पड़ा है। पृ वी तो नह वद ण हो रही है अथवा कोई पवत तो नह फटा जा रहा है ।। १२ ।। ते पथान तरान् वृ ान् व मीकान् वषमा ण च । पा ण भः प रमाग तो भीता वायो न ल यरे ।। १३ ।। त प ात् वे रा तेके आस-पासके वृ , म के ढे र और ऊँचे-नीचे थान को हाथ से टटोलते ए हवासे डरकर य -त छपने लगे ।। १३ ।। ततः कामुकमादाय भीमसेनो महाबलः । कृ णामादाय संग य त थावा य पादपम् ।। १४ ।। उस समय महाबली भीमसेन हाथम धनुष लये ौपद को अपने साथ रखकर एक वृ के सहारे खड़े हो गये ।। १४ ।। धमराज धौ य न ल याते महावने । अ नहो ा युपादाय सहदे व तु पवते ।। १५ ।। धमराज यु ध र और पुरो हत धौ य अ नहो क साम ी लये उस महान् वनम कह जा छपे। सहदे व पवतपर ही (कह सुर त थानम) छप गये ।। १५ ।। नकुलो ा णा ा ये लोमश महातपाः । े

वृ ानासा सं ता त त न ल यरे ।। १६ ।। नकुल, अ या य ा णलोग तथा महातप वी लोमशजी भी भयभीत होकर जहाँ-तहाँ वृ क आड़ लेकर छपे रहे ।। १६ ।। म द भूते तु पवने त मन् रज स शा य त । मह जलधारौघैवषम याजगाम ह ।। १७ ।। भृशं चटचटाश दो व ाणां यता मव । तत ता चलाभास े र ेषु व ुतः ।। १८ ।। थोड़ी दे रम जब वायुका वेग कुछ कम आ और धूल उड़नी बंद हो गयी, उस समय बड़ी भारी जलधारा बरसने लगी। तदन तर वपातक े समान मेघ क गड़गड़ाहट होने लगी और मेघमाला म चार ओर चंचल चमकवाली बज लयाँ संचरण करने लग ।। १७-१८ ।। ततोऽ मस हता धाराः संवृ व यः सम ततः । पेतुर नशं त शी वातसमी रताः ।। १९ ।। त प ात् ती वायुसे े रत हो सम त दशा को आ छा दत करती ई ओल स हत जलक धाराएँ अ वराम ग तसे गरने लग ।। १९ ।। त सागरगा ापः क यमाणाः सम ततः । ा रासन् सकलुषाः फेनव यो वशा पते ।। २० ।। महाराज! वहाँ चार ओर बखरी ई जलरा श समु गा मनी न दय के पम कट हो गयी जो म मल जानेसे म लन द ख पड़ती थी। उसम झाग उठ रहे थे ।। २० ।। वह यो वा र ब लं फेनोडु पप र लुतम् । प रस ुमहाश दाः कष यो मही हान् ।। २१ ।। फेन पी नौकासे ा त अगाध जलसमूहको बहाती ई स रताएँ टू टकर गरे ए वृ को अपनी लहर से समेटकर जोर-जोरसे ‘हर-हर’ व न करती ई बह रही थ ।। २१ ।। त म ुपरते श दे वाते च समतां गते । गते भ स न ना न ा भूते दवाकरे ।। २२ ।। नज मु ते शनैः सव समाज मु भारत । त थरे पुनव राः पवतं ग धमादनम् ।। २३ ।। भारत! थोड़ी दे र बाद जब तूफानका कोलाहल शा त आ, वायुका वेग कम एवं सम हो गया, पवतका सारा जल बहकर नीचे चला गया और बादल का आवरण र हो जानेसे सूयदे व का शत हो उठे , उस समय वे सम त वीर पा डव धीरे-धीरे अपने थानसे नकले और ग धमादन पवतक ओर थत हो गये ।। २२-२३ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायां ग धमादन वेशे च वारशद धकशततमोऽ यायः ।। १४३ ।।













इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम ग धमादन वेश वषयक एक सौ ततालीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १४३ ।।

चतु

वा रशद धकशततमोऽ यायः

ौपद क मूछा, पा डव के उपचारसे उसका सचेत होना तथा भीमसेनके मरण करनेपर घटो कचका आगमन वैश पायन उवाच ोशमा ं यातेषु पा डवेषु महा मसु । प यामनु चता ग तुं ौपद समुपा वशत् ।। १ ।। ा ता ःखपरीता च वातवषण तेन च । सौकुमाया च पा चाली स मुमोह तप वनी ।। २ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! महा मा पा डव अभी कोसभर ही गये ह गे क पांचालराजकुमारी तप वनी ौपद सुकुमारताके कारण थककर बैठ गयी। वह पैदल चलनेयो य कदा प नह थी। उस भयानक वायु और वषासे पी ड़त हो ःखम न होकर वह मूछत होने लगी थी ।। १-२ ।। सा क पमाना मोहेन बा याम सते णा । वृ ा यामनु पा यामू समवल बत ।। ३ ।। घबराहटसे काँपती ई कजरारे ने वाली कृ णाने अपने गोल-गोल और सु दर हाथ से दोन जाँघ को थाम लया ।। ३ ।। आल बमाना स हतावू गजकरोपमौ । पपात सहसा भूमौ वेप ती कदली यथा ।। ४ ।। तां पत त वरारोहां भ यमानां लता मव । नकुलः सम भ य प रज ाह वीयवान् ।। ५ ।। हाथीक सूँड़के समान चढ़ाव-उतारवाली पर पर सट ई जाँघ का सहारा ले केलेके वृ क भाँ त काँपती ई वह सहसा पृ वीपर गर पड़ी। सु दर अंग वाली ौपद को टू ट ई लताक भाँ त गरती दे ख बलशाली नकुलने दौड़कर थाम लया ।। ४-५ ।। नकुल उवाच राजन् प चालराज य सुतेयम सते णा । ा ता नप तता भूमौ तामवे व भारत ।। ६ ।। त प ात् नकुलने कहा—भरतकुलभूषण महाराज! यह याम ने वाली पांचालराजकुमारी ौपद थककर धरतीपर गर पड़ी है, आप आकर इसे दे खये ।। ६ ।। अ ःखाहा परं ःखं ा तेयं मृ गा मनी । आ ासय महाराज ता ममां मक शताम् ।। ७ ।। राजन्! यह म दग तसे चलनेवाली दे वी ःख सहन करनेके यो य नह है; तो भी इसपर महान् ःख आ पड़ा है। रा तेके प र मसे यह बल हो गयी है। आप आकर इसे

सा वना द ।। ७ ।।

वैश पायन उवाच राजा तु वचनात् त य भृशं ःखसम वतः । भीम सहदे व सहसा समुपा वन् ।। ८ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! नकुलक यह बात सुनकर राजा यु ध र अ य त खी हो गये और भीम तथा सहदे वके साथ सहसा वहाँ दौड़े आये ।। ८ ।। तामवे य तु कौ तेयो ववणवदनां कृशाम् । अङ् कमानीय धमा मा पयदे वयदातुरः ।। ९ ।। धमा मा कु तीन दनने दे खा— ौपद के मुखक का त फ क पड़ गयी है और उसका शरीर कृश हो गया है। तब वे उसे अंकम लेकर शोकातुर हो वलाप करने लगे ।। ९ ।। यु ध र उवाच कथं वे मसु गु तेषु वा तीणशयनो चता । भूमौ नप तता शेते सुखाहा वरव णनी ।। १० ।। यु ध र बोले—अहो! जो सुर त सदन म सुस जत सुकोमल शयापर शयन करनेयो य है, वह सुख भोगनेक अ धका रणी परम सु दरी कृ णा आज पृ वीपर कैसे सो रही है? ।। १० ।।





सुकुमारौ कथं पादौ मुखं च कमल भम् । म कृतेऽ वराहायाः यामतां समुपागतम् ।। ११ ।। जो सुखके े साधन का उपभोग करनेयो य है, उसी ौपद के ये दोन सुकुमार चरण और कमलक का तसे सुशो भत मुख आज मेरे कारण कैसे काले पड़ गये ह? ।। ११ ।। क मदं ूतकामेन मया कृतमबु ना । आदाय कृ णां चरता वने मृगगणायुते ।। १२ ।। मुझ मूखने ूत ड़ाक कामनाम फँसकर यह या कर डाला? अहो! सह मृगसमूह से भरे ए इस भयानक वनम ौपद को साथ लेकर हम वचरना पड़ा है ।। १२ ।। सुखं ा य स क या ण पा डवान् ा य वै पतीन् । इ त पदराजेन प ा द ाऽऽयते णा ।। १३ ।। तत् सवमनवा येयं मशोका वक शता । शेते नप तता भूमौ पाप य मम कम भः ।। १४ ।। इसके पता राजा पदने इस वशाललोचना ौपद को यह कहकर हम दान कया था क ‘क या ण! तुम पा डव को प त पम पाकर सुखी होगी।’ परंतु मुझ पापीक करतूत से वह सब न पाकर यह प र म, शोक और मागके क से कृश होकर आज पृ वीपर पड़ी सो रही है ।। १३-१४ ।। वैश पायन उवाच तथा लाल यमाने तु धमराजे यु ध रे । धौ य भृतयः सव त ाज मु जो माः ।। १५ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! धमराज यु ध र जब इस कार वलाप कर रहे थे, उसी समय धौ य आ द सम त े ा ण भी वहाँ आ प ँचे ।। १५ ।। ते समा ासयामासुराशी भ ा यपूजयन् । र ो नां तथा म ा ेपु ु ते याः ।। १६ ।। उ ह ने महाराजको आ ासन दया और अनेक कारके आशीवाद दे कर उ ह स मा नत कया। त प ात् वे रा स का वनाश करनेवाले म का जप तथा शा तकम करने लगे ।। १६ ।। पमानेषु म ेषु शा यथ परम ष भः । पृ यमाना करैः शीतैः पा डवै मु मु ः ।। १७ ।। मह षय ारा शा तके लये म पाठ होते समय पा डव ने अपने शीतल हाथ से बारबार ौपद के अंग को सहलाया ।। १७ ।। से माना च शीतेन जल म ेण वायुना । पा चाली सुखमासा लेभे चेतः शनैः शनैः ।। १८ ।। जलका पश करके बहती ई शीतल वायुने भी उसे सुख प ँचाया। इस कार कुछ आराम मलनेपर पांचालराजकुमारी ौपद को धीरे-धीरे चेत आ ।। १८ ।। े

प रगृ च तां द नां कृ णाम जनसं तरे । पाथा व ामयामासुलधसं ां तप वनीम् ।। १९ ।। त या यमौ र तलौ पादौ पू जतल णौ । करा यां कणजाता यां शनकैः संववाहतुः ।। २० ।। होशम आनेपर द नाव थाम पड़ी ई तप वनी ौपद को पकड़कर पा डव ने मृगचमके ब तरपर सुलाया और उसे व ाम कराया। नकुल और सहदे वने धनुषक रगड़के च से सुशो भत दोन हाथ ारा उसके लाल तलव से यु और उ म ल ण से अलंकृत दोन चरण को धीरे-धीरे दबाया ।। १९-२० ।। पया ासयद येनां धमराजो यु ध रः । उवाच च कु े ो भीमसेन मदं वचः ।। २१ ।। फर कु े धमराज यु ध रने भी ौपद को ब त आ ासन दया और भीमसेनसे इस कार कहा— ।। बहवः पवता भीम वषमा हम गमाः । तेषु कृ णा महाबाहो कथं नु वच र य त ।। २२ ।। ‘महाबा भीम! यहाँ ब त-से ऊँचे-नीचे पवत ह, जनपर चलना बफके कारण अ य त क ठन है। उनपर ौपद कैसे जा सकेगी?’ ।। २२ ।। भीमसेन उवाच वां राजन् राजपु च यमौ च पु षषभ । वयं ने या म राजे मा वषादे मनः कृथाः ।। २३ ।। भीमसेनने कहा—पु षर न! महाराज! आप मनम खेद न कर। म वयं राजकुमारी ौपद , नकुल-सहदे व और आपको भी ले चलूँगा ।। २३ ।। है ड ब महावीय वहगो मलोपमः । वहेदनघ सवा ो वचनात् ते घटो कचः ।। २४ ।। ह ड बाका पु घटो कच भी महान् परा मी है। वह मेरे ही समान बलवान् है और आकाशम चल- फर सकता है। अनघ! आपक आ ा होनेपर वह हम सबको अपनी पीठपर बठाकर ले चलेगा ।। २४ ।। वैश पायन उवाच अनु ातो धमरा ा पु ं स मार रा सम् । घटो कच तु धमा मा मृतमा ः पतु तदा ।। २५ ।। कृता ल पा त द भवा ाथ पा डवान् । ा णां महाबा ः स च तैर भन दतः ।। २६ ।। उवाच भीमसेनं स पतरं भीम व मम् । मृतोऽ म भवता शी ं शु ूषुरहमागतः ।। २७ ।। आ ापय महाबाहो सव कता यसंशयम् । त छ वा भीमसेन तु रा सं प रष वजे ।। २८ ।। ै ी े ी े े े

वैश पायनजी कहते ह—राजन्! तदन तर धमराजक आ ा पाकर भीमसेनने अपने रा सपु का मरण कया। पताके मरण करते ही धमा मा घटो कच हाथ जोड़े ए वहाँ उप थत आ। उस महाबा वीरने पा डव तथा ा ण को णाम करके उनके ारा स मा नत हो अपने भयंकर परा मी पता भीमसेनसे कहा—‘महाबाहो! आपने मेरा मरण कया है और म शी ही सेवाक भावनासे आया ँ, आ ा क जये; म आपका सब काय अव य ही पूण क ँ गा।’ यह सुनकर भीमसेनने रा स घटो कचको दयसे लगा लया ।। २५—२८ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायां ग धमादन वेशे चतु वारशद धकशततमोऽ यायः ।। १४४ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम ग धमादन वेश वषयक एक सौ चौवालीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १४४ ।।

प चच वा रशद धकशततमोऽ यायः घटो कच और उसके सा थय क सहायतासे पा डव का ग धमादन पवत एवं बद रका मम वेश तथा बदरीवृ , नर-नारायणा म और गंगाका वणन यु ध र उवाच धम ो बलवान् शूरः स यो रा सपु वः । भ ोऽ मानौरसः पु ो भीम गृ ातु मा चरम् ।। १ ।। तव भीम सुतेनाहम तभीमपरा म । अ तः सह पा चा या ग छे यं ग धमादनम् ।। २ ।। यु ध र बोले—अ य त भयानक परा म दखानेवाले भीम! तु हारा औरस पु रा स े घटो कच धम , बलवान्, शूरवीर, स यवाद तथा हमलोग का भ है। यह हम शी उठा ले चले। जससे भीमसेन! तु हारे पु घटो कच ारा शरीरसे कसी कारक त उठाये बना ही म ौपद स हत ग धमादन पवतपर प ँच जाऊँ ।। १-२ ।। वैश पायन उवाच ातुवचनमा ाय भीमसेनो घटो कचम् । आ ददे श नर ा तनयं श ुकशनम् ।। ३ ।। वैश पायनजी कहते ह—राजन्! भाईक इस आ ाको शरोधाय करके नर े भीमसेनने अपने पु श ुसूदन घटो कचको इस कार आ ा द ।। ३ ।। भीमसेन उवाच है ड बेय प र ा ता तव मातापरा जत । वं च कामगम तात बलवान् वह तां खग ।। ४ ।। भीमसेन बोले—अपरा जत और आकाशचारी ह ड बान दन! तु हारी माता ौपद ब त थक गयी है। तुम बलवान् एवं इ छानुसार सव जानेम समथ हो; अतः इसे (आकाशमागसे) ले चलो ।। ४ ।। क धमारो य भ ं ते म येऽ माकं वहायसा । ग छ नी चकया ग या यथा चैनां न पीडयेः ।। ५ ।। बेटा! तु हारा क याण हो। इसे कंधेपर बैठाकर हम लोग के बीच रहते ए आकाशमागसे इस कार धीरे-धीरे ले चलो, जससे इसे त नक भी क न हो ।। ५ ।। घटो कच उवाच धमराजं च धौ यं च कृ णां च यमजौ तथा । एकोऽ यहमलं वोढुं कमुता सहायवान् ।। ६ ।। े

अ ये च शतशः शूरा वह ाः काम पणः । सवान् वो ा णैः साध व य त स हतानघ ।। ७ ।। घटो कच बोला—अनघ! म अकेला र ँ तो भी धमराज यु ध र, पुरो हत धौ य, माता ौपद और चाचा नकुल-सहदे वको भी वहन कर सकता ँ; फर आज तो मेरे और भी ब त-से संगी-साथी मौजूद ह। इस दशाम आप लोग को ले चलना कौन बड़ी बात है? मेरे सवा सरे भी सैकड़ शूरवीर, आकाशचारी और इ छानुसार प धारण करनेवाले रा स मेरे साथ ह। वे ा ण स हत आप सब लोग को एक साथ वहन करगे ।। ६-७ ।।

एवमु वा ततः कृ णामुवाह स घटो कचः । पा डू नां म यगो वीरः पा डवान प चापरे ।। ८ ।। ऐसा कहकर वीर घटो कच तो ौपद को लेकर पा डव के बीचम चलने लगा और सरे रा स पा डव को भी (अपने-अपने कंधेपर बठाकर) ले चले ।। ८ ।। लोमशः स मागण जगामानुपम ु तः । वेनैव स भावेण तीय इव भा करः ।। ९ ।। अनुपम तेज वी मह ष लोमश अपने ही भावसे सरे सूयक भाँ त स माग अथात् आकाशमागसे चलने लगे ।। ९ ।। ा णां ा प तान् सवान् समुपादाय रा साः । नयोगाद् रा से य ज मुभ मपरा माः ।। १० ।। ो













रा सराज घटो कचक आ ासे अ य सब ा ण को भी अपने-अपने कंधेपर चढ़ाकर वे भयंकर परा मी रा स साथ-साथ चलने लगे ।। १० ।। एवं सुरमणीया न वना युपवना न च । आलोकय त ते ज मु वशालां बदर त ।। ११ ।। इस कार अ य त रमणीय वन और उपवन का अवलोकन करते ए वे सब लोग वशाला बदरी (बद रका म तीथ)-क ओर थत ए ।। ११ ।। ते वाशुग त भव रा रा सै तैमहाजवैः । उ माना ययुः शी ं द घम वानम पवत् ।। १२ ।। उन महावेगशाली और ती ग तसे चलनेवाले रा स पर सवार हो वीर पा डव ने उस वशाल मागको इतनी शी तासे तय कर लया मानो वह ब त छोटा हो ।। १२ ।। दे शान् ले छजनाक णान् नानार नाकरायुतान् । द शु ग रपादां नानाधातुसमा चतान् ।। १३ ।। व ाधरसमाक णान् युतान् वानर क रैः । तथा कपु षै ैव ग धव सम ततः ।। १४ ।। उस या ाम उ ह ने ले छ से भरे ए ब त-से ऐसे दे श दे खे जो नाना कारक र न क खान से यु थे। वहाँ उ ह नाना कारके धातु से ा त कतने ही शाखापवत गोचर ए। उन पवतीय शखर पर ब त-से व ाधर, वानर, क र, क पु ष और ग धव चार ओर नवास करते थे ।। १३-१४ ।। मयूरै मरै ैव वानरै भ तथा । वराहैगवयै ैव म हषै समावृतान् ।। १५ ।। मोर, चमरी गाय, बंदर, मृग, सूअर, गवय* और भस आ द पशु वहाँ वचर रहे थे ।। १५ ।। नद जालसमाक णान् नानाप युतान् बन् । नाना वधमृगैजु ान् वानरै ोपशो भतान् ।। १६ ।। वहाँ सब ओर ब त-सी न दयाँ बह रही थ । अनेक कारके असं य प ी वचर रहे थे। वह थान नाना कारके मृग से से वत और वानर से सुशो भत था ।। १६ ।। समदै ा प वहगैः पादपैर वता तथा । तेऽवतीय ब न् दे शानु म छसम वतान् ।। १७ ।। द शु व वधा य कैलासं पवतो मम् । त या याशे तु द शुनरनारायणा मम् ।। १८ ।। उपेतं पादपै द ैः सदापु पफलोपगैः । द शु तां च बदर वृ क धां मनोरमाम् ।। १९ ।। न धाम वरल छायां या परमया युताम् । प ैः न धैर वरलै पेतां मृ भः शुभाम् ।। २० ।। ी











वह पवतीय दे श मतवाले वहंग और अग णत वृ से यु था। पा डव ने उ म समृ से स प ब त-से दे श को लाँघकर भाँ त-भाँ तके आ यजनक य से सुशो भत पवत े कैलासका दशन कया। उसीके नकट उ ह भगवान् नर-नारायणका आ म दखायी दया, जो न य फल-फूल दे नेवाले द वृ से अलंकृत था। वह वह वशाल एवं मनोरम बदरी भी दखायी द , जसका क ध (तना) गोल था। वह वृ ब त ही चकना, घनी छायासे यु और उ म शोभासे स प था। उस शुभ वृ के सघन कोमल प े भी ब त चकने थे ।। १७—२० ।। वशालशाखां व तीणाम त ु तसम वताम् । फलै प चतै द ैरा चतां वा भभृशम् ।। २१ ।। मधु वैः सदा द ां मह षगणसे वताम् । मद मु दतै न यं नाना जगणैयुताम् ।। २२ ।। उसक डा लयाँ ब त बड़ी और ब त रतक फैली ई थ । वह वृ अ य त का तसे स प था। उसम अ य त वा द द फल अ धक मा ाम लगे ए थे। उन फल से मधुक धारा बहती रहती थी। उस द वृ के नीचे मह षय का समुदाय नवास करता था। वह वृ सदा मदो म एवं आन द वभोर प य से प रपूण रहता था ।। २१-२२ ।। अदं शमशके दे शे ब मूलफलोदके । नीलशा लसं छ े दे वग धवसे वते ।। २३ ।। सुसमीकृतभूभागे वभाव व हते शुभे । जातां हममृ पश दे शेऽपहतक टके ।। २४ ।। उस दे शम डाँस और म छर का नाम नह था। फल-मूल और जलक ब तायत थी। वहाँक भू म हरी-हरी घाससे ढक ई थी। दे वता और ग धव वहाँ वास करते थे। उस दे शका भूभाग वभावतः समतल और मंगलमय था। उस हमा छा दत भू मका पश अ य त मृ था। उस दे शम काँट का कह नाम नह था। ऐसे पावन दे शम वह वशाल बदरी वृ उ प आ था ।। २३-२४ ।। तामुपे य महा मानः सह तै ा णषभैः । अवते ततः सव रा स क धतः शनैः ।। २५ ।। उसके पास प ँचकर ये सब महा मा पा डव उन े ा ण के साथ रा स के कंध से धीरे-धीरे उतरे ।। २५ ।। तत तमा मं र यं नरनारायणा तम् । द शुः पा डवा राजन् स हता जपु वैः ।। २६ ।। राजन्! तदन तर ा ण स हत पा डव ने एक साथ भगवान् नर-नारायणके उस रमणीय थानका दशन कया ।। २६ ।। तमसा र हतं पु यमनामृ ं रवेः करैः । ु ृट्शीतो णदोषै व जतं शोकनाशनम् ।। २७ ।। जो अ धकार एवं तमोगुणसे र हत तथा पु यमय था। (वृ क सघनताके कारण) सूयक करण उसका पश नह कर पाती थ । वह आ म भूख, यास, सद और गरमी ो े औ ो े

आ द दोष से र हत और स पूण शोक का नाश करनेवाला था ।। २७ ।। मह षगणस बाधं ा या ल या सम वतम् । वेशं महाराज नरैधमब ह कृतैः ।। २८ ।। महाराज! वह पावन तीथ मह षय के समुदायसे भरा आ और ा ी ीसे सुशो भत था। धमहीन मनु य का वहाँ वेश पाना अ य त क ठन था ।। २८ ।। ब लहोमा चतं द ं सुस मृ ानुलेपनम् । द पु पोपहारै सवतोऽ भ वरा जतम् ।। २९ ।। वह द आ म दे व-पूजा और होमसे अचत था। उसे झाड़-बुहारकर अ छ तरह लीपा गया था। द पु प के उपहार सब ओरसे उसक शोभा बढ़ा रहे थे ।। २९ ।। वशालैर नशरणैः ु भा डैरा चतं शुभैः । मह तोयकलशैः क ठनै ोपशो भतम् ।। ३० ।। वशाल अ नहो गृह और ुक ् , ुवा आ द सु दर य पा से ा त वह पावन आ म जलसे भरे ए बड़े-बड़े कलश और बतन से सुशो भत था ।। ३० ।। शर यं सवभूतानां घोष नना दतम् । द मा यणीयं तमा मं मनाशनम् ।। ३१ ।। वह सब ा णय के शरण लेनेयो य था। वहाँ वेदम क व न गूँजती रहती थी। वह द आ म सबके रहनेयो य और थकावटको र करनेवाला था ।। या युतम नद यं दे वचय पशो भतम् । फलमूलाशनैदा तै ा कृ णा जना बरैः ।। ३२ ।। सूयवै ानरसमै तपसा भा वता म भः । मह ष भम परैय त भ नयते यैः ।। ३३ ।। भूतैमहाभागै पेतं वा द भः । सोऽ यग छ महातेजा तानृषीन् यतः शु चः ।। ३४ ।। ातृ भः स हतो धीमान् धमपु ो यु ध रः । द ानोपप ा ते ् वा ा तं यु ध रम् ।। ३५ ।। अ यग छ त सु ीताः सव एव महषयः । आशीवादान् यु ानाः वा याय नरता भृशम् ।। ३६ ।। ीता ते त य स कारं व धना पावकोपमाः । उपाज स ललं पु पमूलफलं शु च ।। ३७ ।। वह शोभास प आ म अवणनीय था। दे वो चत काय का अनु ान उसक शोभा बढ़ाता था। उस आ मम फल-मूल खाकर रहनेवाले, कृ णमृगचमधारी, जते य, अ न तथा सूयके समान तेज वी और तपःपूत अ तःकरणवाले मह ष, मो परायण, इ यसंयमी सं यासी तथा महान् सौभा यशाली वाद भूत महा मा नवास करते थे। महातेज वी, बु मान् धमपु यु ध र प व और एका च होकर भाइय के साथ उन आ मवासी मह षय के पास गये। यु ध रको आ मम आया दे ख वे द ानस प सब मह ष अ य त स होकर उनसे मले और उ ह अनेक कारके आशीवाद दे ने लगे। सदा े े े े े ी े ो

वेद के वा यायम त पर रहनेवाले उन अ नतु य तेज वी महा मा ने स होकर यु ध रका व धपूवक स कार कया और उनके लये प व फल-मूल, पु प और जल आ द साम ी तुत क ।। ३२—३७ ।। स तैः ी याथ स कारमुपनीतं मह ष भः । यतः तगृ ाथ धमराजो यु ध रः ।। ३८ ।। मह षय ारा ेमपूवक तुत कये ए उस आ त य-स कारको शु दयसे हण करके धमराज यु ध र बड़े स ए ।। ३८ ।। तं श सदन यं द ग धं मनोरमम् । ीतः वग पमं पु यं पा डवः सह कृ णया ।। ३९ ।। ववेश शोभया यु ं ातृ भ सहानघ । ा णैवदवेदा पारगै सह शः ।। ४० ।। उ ह ने भाइय तथा ौपद के साथ इ भवनके समान मनोरम और द सुग धसे प रपूण उस वग-स श शोभाशाली पु यमय नर-नारायण आ मम वेश कया। अनघ! उनके साथ ही वेद-वेदांग के पारंगत व ान् सह ा ण भी व ए ।। ३९-४० ।। त ाप यत धमा मा दे वदे व षपू जतम् । नरनारायण थानं भागीरयोपशो भतम् ।। ४१ ।। धमा मा यु ध रने वहाँ भगवान् नर-नारायणका थान दे खा, जो दे वता और दे व षय से पू जत तथा भागीरथी* गंगासे सुशो भत था ।। ४१ ।। प य त ते नर ा ा रे मरे त पा डवाः । मधु वफलं द ं षगणसे वतम् ।। ४२ ।। त पे य महा मान तेऽवसन् ा णैः सह । मुदा यु ा महा मानो रे मरे त ते तदा ।। ४३ ।। नर े पा डव उस थानका दशन करते ए वहाँ सब ओर सुखपूवक घूमने- फरने लगे। षय - ारा से वत जो अपने फल से मधुक धारा बहानेवाला द वृ था, उसके नकट जाकर महा मा पा डव ा ण के साथ वहाँ नवास करने लगे। उस समय वे सब महा मा बड़ी स ताके साथ वहाँ सुखपूवक रहने लगे ।। ४२-४३ ।। आलोकय तो मैनाकं नाना जगणायुतम् । हर य शखरं चैव त च ब सरः शवम् ।। ४४ ।। त मन् वहरमाणा पा डवाः सह कृ णया । मनो े काननवरे सवतुकुसुमो वले ।। ४५ ।। वहाँ सुवणमय शखर से सुशो भत और अनेक कारके प य से यु मैनाक पवत था। वह शीतल जलसे सुशो भत ब सर नामक तालाब था। वह सब दे खते ए पा डव ौपद के साथ उस मनोहर उ म वनम वचरने लगे, जो सभी ऋतु के फूल से सुशो भत हो रहा था ।। ४४-४५ ।। पादपैः पु प वकचैः फलभारावना म भः । ो











शो भते सवतो र यैः पुं को कलगणायुतैः ।। ४६ ।। उस वनम सब ओर सुर य वृ दखायी दे ते थे, जो वक सत फूल से यु थे। उनक शाखाएँ फल के बोझसे झुक ई थ । को कल प य से यु ब सं यक वृ के कारण उस वनक बड़ी शोभा होती थी ।। ४६ ।। न धप ैर वरलैः शीत छायैमनोरमैः । सरां स च व च ा ण स स लला न च ।। ४७ ।। उपयु वृ के प े चकने और सघन थे। उनक छाया शीतल थी। वे मनको बड़े ही रमणीय लगते थे। उस वनम कतने ही व च सरोवर भी थे, जो व छ जलसे भरे ए थे ।। ४७ ।। कमलैः सो पलै ैव ाजमाना न सवशः । प य त ा पा ण रे मरे त पा डवाः ।। ४८ ।। खले ए उ पल और कमल सब ओरसे उनक शोभाका व तार करते थे। उन मनोहर सरोवर का दशन करते ए पा डव वहाँ सान द वचरने लगे ।। ४८ ।। पु यग धःसुख पश ववौ त समीरणः । ादयन् पा डवान् सवान् ौप ा स हतान् भो ।। ४९ ।। जनमेजय! ग धमादन पवतपर प व सुग धसे वा सत सुखदा यनी वायु चल रही थी, जो ौपद स हत पा डव को आन द- नम न कये दे ती थी ।। ४९ ।। भागीरथ सुतीथा च शीतां वमलपङ् कजाम् । म ण वाल तारां पादपै पशो भताम् ।। ५० ।। द पु पसमाक णा मनः ी त वव धनीम् । वी माणा महा मानो वशालां बदरीमनु ।। ५१ ।। त मन् दे व षच रते दे शे परम गमे । भागीरथीपु यजले तपयांच रे तदा ।। ५२ ।। दे वानृष कौ तेयाः परमं शौचमा थताः । त ते तपय त जप त कु हाः ।। ५३ ।। ा णैः स हता वीरा वसन् पु षषभाः । कृ णाया त प य तः डता यमर भाः । व च ा ण नर ा ा रे मरे त पा डवाः ।। ५४ ।। पूव वशाल बदरीवृ के समीप उ म तीथ से सुशो भत शीतल जलवाली भागीरथी गंगा बह रही थी, उसम सु दर कमल खले ए थे। उसके घाट म णय और मूँग से आब थे। अनेक कारके वृ उसके तट ा तक शोभा बढ़ा रहे थे। वह द पु प से आ छा दत हो दयके हष लासक वृ कर रही थी। उसका दशन करके महा मा पा डव ने उस अ य त गम दे व षसे वत दे शम भागीरथीके प व जलम थत हो परम प व ताके साथ दे वता , ऋ षय तथा पतर का तपण कया। इस कार त दन तपण और जप आ द करते ए वे पु ष े कु कुल- शरोम ण वीर पा डव वहाँ ा ण के साथ रहने े







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लगे। दे वता के समान का तमान् नर े पा डव वहाँ ौपद क व च ए सुखपूवक रमण करने लगे ।। ५०—५४ ।।

ड़ाएँ दे खते

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ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायां ग धमादन वेशे प चच वारशद धकशततमोऽ यायः ।। १४५ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम ग धमादन वेश वषयक एक सौ पतालीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १४५ ।।

* गौके समान एक कारका जंगली पशु, जसके गलकंबल नह होता। *

हमालयपर गरनेके बाद भागीरथी गंगा अनेक धारा म वभ होकर बहने लग । उनक सीधी धारा तो गंगो रीसे दे व याग होती ई ह र ार आयी है और अ य धाराएँ अ य माग से वा हत होकर पुनः गंगाम ही मल गयी ह। उ ह क जो धारा कैलास और बद रका मके मागसे बहती आयी है, उसका नाम अलकन दा है। वह दे व यागम आकर सीधी धाराम मल गयी है। इस कार य प नर-नारायणका थान अलकन दाके ही तटपर है, तथा प वह मूलतः भागीरथीसे अ भ ही है; इसी लये यहाँ मूलम ‘भागीरथी’ नामसे ही उसका उ लेख कया गया है।

षट् च वा रशद धकशततमोऽ यायः भीमसेनका सौग धक कमल लानेके लये जाना और कदलीवनम उनक हनुमान्जीसे भट वैश पायन उवाच त ते पु ष ा ाः परमं शौचमा थताः । षा मवसन् वीरा धनंजय द वः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! वे पु ष सह वीर पा डव अजुनके दशनके लये उ सुक हो वहाँ परम प व ताके साथ छः रात रहे ।। १ ।।

ौपद का भीमसेनको सौग धक पु प भट करके वैसे ही और पु प लानेका आ ह ततः पूव

रे वायुः लवमानो य छया ।

सह प मकाभं द ं पमुपाहरत् ।। २ ।। तदन तर ईशानकोणक ओरसे अक मात् वायु चली। उसने सूयके समान तेज वी एक द सहदल कमल लाकर वहाँ डाल दया ।। २ ।। तदवै त पा चाली द ग धं मनोरमम् । अ नलेना तं भूमौ प ततं जलजं शु च ।। ३ ।। त छु भा शुभमासा सौग धकमनु मम् । अतीव मु दता राजन् भीमसेनमथा वीत् ।। ४ ।। जनमेजय! वह कमल बड़ा मनोरम था, उससे द सुग ध फैल रही थी। शुभल णा ौपद ने उसे दे खा और वायुके ारा लाकर पृ वीपर डाले ए उस प व , शुभ एवं परम उ म सौग धक कमलके पास प ँचकर अ य त स हो भीमसेनसे इस कार कहा — ।। ३-४ ।। प य द ं सु चरं भीम पु पमनु मम् । ग धसं थानस प ं मनसो मम न दनम् ।। ५ ।। इदं च धमराजाय दा या म परंतप । हरेदं मम कामाय का यके पुनरा मे ।। ६ ।। ‘भीम! दे खो तो, यह द पु प कतना अ छा और कैसा सु दर है! मानो सुग ध ही इसका व प है। यह मेरे मनको आन द दान कर रहा है। परंतप! म इसे धमराजको भट क ँ गी। तुम मेरी इ छाक पू तके लये का यकवनके आ मम इसे ले चलो’ ।। ५-६ ।। य द तेऽहं या पाथ बनीमा युपाहर । ता यहं नेतु म छा म का यकं पुनरा मम् ।। ७ ।। ‘कु तीन दन! य द मेरे ऊपर तु हारा ( वशेष) ेम है, तो मेरे लये ऐसे ही ब त-से फूल ले आओ। म इ ह का यक वनम अपने आ मपर ले चलना चाहती ँ’ ।। ७ ।। एवमु वा शुभापा भीमसेनम न दता । जगाम पु पमादाय धमराजाय तत् तदा ।। ८ ।। उस समय मनोहर ने ा तवाली अ न सु दरी (सती-सा वी) ौपद भीमसेनसे ऐसा कहकर और वह पु प लेकर धमराज यु ध रको दे नेके लये चली गयी ।। ८ ।। अ भ ायं तु व ाय म ह याः पु षषभः । यायाः यकामः स ायाद् भीमो महाबलः ।। ९ ।। पु ष शरोम ण महाबली भीम अपनी यारी रानीके मनोभावको जानकर उसका य करनेक इ छासे वहाँसे चल दये ।। ९ ।।

वातं तमेवा भमुखो यत तत् पु पमागतम् । आ जहीषुजगामाशु स पु पा यपरा य प ।। १० ।। वे उसी तरहके और भी फूल ले आनेक अ भलाषासे तुरंत पूव वायुक ओर मुख करके उसी ईशान कोणम आगे बढ़े , जधरसे वह फूल आया था ।। १० ।। मपृ ं धनुगृ शरां ाशी वषोपमान् । मृगरा डव सं ु ः भ इव कु रः ।। ११ ।। उ ह ने हाथम वह अपना धनुष ले लया जसके पृ भागम सुवण जड़ा आ था। साथ ही वषधर सप के समान भयंकर बाण भी तरकसम रख लये। फर ोधम भरे ए सह तथा मदक धारा बहानेवाले मतवाले गजराजक भाँ त नभय होकर आगे बढ़े ।। ११ ।। द शुः सवभूता न महाबाणधनुधरम् । न ला नन च वै ल ं न भयं न च स मः ।। १२ ।। कदा च जुषते पाथमा मजं मात र नः । महान् धनुष-बाण लेकर जाते ए भीमसेनको उस समय सब ा णय ने दे खा। उन वायुपु कु ती-कुमारको कभी ला न, वकलता, भय अथवा घबराहट नह होती थी ।। १२ ।। ौप ाः यम व छन् स बा बलमा तः ।। १३ ।। पेतभयस मोहः शैलम यपतद् बली । स ते मलतागु म छ ं नील शलातलम् ।। १४ ।।

गर चचारा रहरः क राच रतं शुभम् । नानावणधरै ं धातु ममृगा डजैः ।। १५ ।। ौपद का य करनेक इ छासे अपने बा बलका भरोसा करके भय और मोहसे र हत बलवान् भीमसेन सामनेके शैल- शखरपर चढ़ गये। वह पवत वृ , लता और झा ड़य से आ छा दत था। उसक शलाएँ नीले रंगक थ । वहाँ क रलोग मण करते थे। श ुसंहारी भीमसेन उस सु दर पवतपर वचरने लगे। ब रंगे धातु , वृ , मृग और प य से उसक व च शोभा हो रही थी ।। १३—१५ ।। सवभूषणस पूण भूमेभुज मवो तम् । सव रमणीयेषु ग धमादनसानुषु ।। १६ ।। स च ुर भ ायान् दयेनानु च तयन् । पुं को कल ननादे षु षट् पदाच रतेषु च ।। १७ ।। ब ो मन ुजगामा मत व मः । वह दे खनेम ऐसा जान पड़ता था मानो पृ थवीके सम त आभूषण से वभू षत ऊँचे उठ ई भुजा हो। ग धमादनके शखर सब ओरसे रमणीय थे। वहाँ कोयल प य क श द व न हो रही थी और झुंड-के-झुंड भ रे मड़रा रहे थे। भीमसेन उ ह म आँख गड़ाये मन-ही-मन अ भल षत कायका च तन करते जाते थे। अ मतपरा मी भीमके कान, ने और मन उ ह शखर म अटके रहे अथात् उनके कान वहाँके व च श द को सुननेम लग गये; आँख वहाँके अ त य को नहारने लग और मन वहाँक अलौ कक वशेषताके वषयम सोचने लगा और वे अपने ग त थानक ओर अ सर होते चले गये ।। १६-१७ ।। आ ज न् स महातेजाः सवतुकुसुमो वम् ।। १८ ।। ग धमु तमु ामो वने म इव पः । वी यमानः सुपु येन नानाकुसुमग धना ।। १९ ।। पतुः सं पशशीतेन ग धमादनवायुना । यमाण मः प ा स तनू हः ।। २० ।। वे महातेज वी कु तीकुमार सभी ऋतु के फूल के उ कट सुग धका आ वादन करते ए वनम उ ामग तसे वचरनेवाले मदो म गजराजक भाँ त चले जा रहे थे। नाना कारके कुसुम से सुवा सत ग धमादनक परम प व वायु उ ह पंखा झल रही थी। जैसे पताको पु का पश शीतल एवं सुखद जान पड़ता है, वैसा ही सुख भीमसेनको उस पवतीय वायुके पशसे मल रहा था। उनके पता पवनदे व उनक सारी थकावट हर लेते थे। उस समय हषा तरेकसे भीमके शरीरम रोमांच हो रहा था ।। १८—२० ।। स य ग धवसुर षगणसे वतम् । वलोकयामास तदा पु पहेतोररदमः ।। २१ ।। श ुदमन भीमसेनने उस समय (पूव पु पक ा तके लये एक बार) य , ग धव, दे वता और षय से से वत उस वशाल पवतपर (सब ओर) पात कया ।। २१ ।। ै





वषम छदै र चतैरनु ल त इवाङ् गुलैः । व ल भधातु व छे दैः का चना नराजतैः । सप मव नृ य तं पा ल नैः पयोधरैः ।। २२ ।। उस समय अनेक धातु से रँगे ए स तपण ( छतवन) के प ारा उनके ललाटम व भ धातु के काले, पीले और सफेद रंग लग गये थे, जससे ऐसा जान पड़ता था मानो अँगु लय ारा पु च दन लगाया गया हो। उस पवत- शखरके उभय पा म लगे ए मेघ से उसक ऐसी शोभा हो रही थी मानो वह पुनः पंखधारी होकर नृ य कर रहा है ।। २२ ।। मु ाहारै रव चतं युतैः वणोदकैः । अ भरामदरीकु नझरोदकक दरम् ।। २३ ।। नर तर झरनेवाले झरन के जल उस पहाड़के क ठदे शम अवल बत मो तय के हारसे तीत हो रहे थे। उस पवतक गुफा, कुंज, नझर, स लल और क दराएँ सभी मनोहर थे ।। २३ ।। अ सरोनूपुररवैः नृ वरब हणम् । द वारण वषाणा ैघृ ोपल शलातलम् ।। २४ ।। वहाँ अ सरा के नूपुर क मधुर व नके साथ सु दर मोर नाच रहे थे। उस पवतके एक-एक र न और शलाख डपर द गज के दाँत क रगड़का च अं कत था ।। २४ ।। तांशुक मवा ो यै न नगा नःसृतैजलैः । सश पकवलैः व थैर रप रव त भः ।। २५ ।। भयान भ ैह रणैः कौतूहल नरी तः । चालय ु वेगेन लताजाला यनेकशः ।। २६ ।। आ डमानो ा मा ीमान् वायुसुतो ययौ । यामनोरथं कतुमु त ा लोचनः ।। २७ ।। न नगा मनी न दय से नकला आ ोभर हत जल नीचेक ओर इस कार बह रहा था, मानो उस पवतका व खसककर गरा जाता हो। भयसे अप र चत और व थ ह रण मुँहम हरे घासका कौर लये पास ही खड़े होकर भीमसेनक ओर कौतूहलभरी से दे ख रहे थे। उस समय मनोहर ने वाले शोभाशाली वायुपु भीम अपने महान् वेगसे अनेक लतासमूह को वच लत करते ए हषपूण दयसे खेल-सा करते जा रहे थे। वे अपनी या ौपद का य मनोरथ पूण करनेको सवथा उ त थे ।। २५—२७ ।। ांशुः कनकवणाभः सहसंहननो युवा । म वारण व ा तो म वारणवेगवान् ।। २८ ।। उनक कद ब त ऊँची थी। शरीरका रंग वण-सा दमक रहा था। उनके स पूण अंग सहके समान सु ढ़ थे। उ ह ने युवाव थाम पदापण कया था। वे मतवाले हाथीके समान म तानी चालसे चलते थे। उनका वेग मदो म गजराजके समान था ।। २८ ।। म वारणता ा ो म वारणवारणः । यपा प व ा भ ावृ ा भ वचे तैः ।। २९ ।। ो ी

य ग धवयोषा भर या भ नरी तः । नवावतारो प य व ड व पा डवः ।। ३० ।। चचार रमणीयेषु ग धमादनसानुषु । सं मरन् व वधान् लेशान् य धनकृतान् बन् ।। ३१ ।। ौप ा वनवा स याः यं कतु समु तः । सोऽ च तयद् गते वगमजुने म य चागते ।। ३२ ।। पु पहेतोः कथं वायः क र य त यु ध रः । नेहा रवरो नूनम व ासाद् बल य च ।। ३३ ।। नकुलं सहदे वं च न मो य त यु ध रः । कथं तु कुसुमावा तः या छ म त च तयन् ।। ३४ ।। त थे नरशा लः प रा डव वे गतः । स जमानमनो ः फु लेषु ग रसानुषु ।। ३५ ।। मतवाले हाथीके समान ही उनक लाल-लाल आँख थ । वे समरभू मम मदो म हा थय को भी पीछे हटानेम समथ थे। अपने यतमके पा भागम बैठ ई य और ग धव क युव तयाँ सब कारक चे ा से नवृ हो वयं अल त रहकर भीमसेनक ओर दे ख रही थ । वे उ ह सौ दयके नूतन अवतार-से तीत होते थे। इस कार पा डु न दन भीम ग धमादनके रमणीय शखर पर खेल-सा करते ए वचरने लगे। वे य धन ारा दये गये नाना कारके असं य लेश का मरण करते ए वनवा सनी ौपद का य करनेके लये उ त ए थे। उ ह ने मन-ही-मन सोचा—‘अजुन वगलोकम चले गये ह और म फूल लेनेके लये इधर चला आया ँ। ऐसी दशाम आय यु ध र कोई काय कैसे करगे? नर े महाराज यु ध र नकुल और सहदे वपर अ य त नेह रखते ह। उन दोन के बलपर उ ह व ास नह है। अतः वे न य ही उ ह नह छोड़गे, अथात् कह नह भेजगे। अब कैसे मुझे शी वह फूल ा त हो जाय—यह च ता करते ए नर े भीम प राज ग ड़के समान वेगसे आगे बढ़े । उनके मन और ने फूल से भरे ए पवतीय शखर पर लगे ए थे ।। २९—३५ ।। ौपद वा यपाथेयो भीमः शी तरं ययौ । क पयन् मे दन प यां नघात इव पवसु ।। ३६ ।। ासयन् गजयूथा न वातरंहा वृकोदरः । सह ा मृगां ैव मदयानो महाबलः ।। ३७ ।। उ मूलयन् महावृ ान् पोथयं तरसा बली । लताव ली वेगेन वकषन् पा डु न दनः । उपयुप र शैला मा ु रव पः ।। ३८ ।। ौपद का अनुरोधपूण वचन ही उनका पाथेय (मागका कलेवा) था, वे उसीको लेकर शी तापूवक चले जा रहे थे। वायुके समान वेगशाली वृकोदर पवकालम होनेवाले उ पात (भूक प और बजली गरने)-के समान अपने पैर क धमकसे पृ वीको क पत और हा थय के समूह को आतं कत करते ए चलने लगे। वे महाबली कु तीकुमार सह , ा औ ो े े े े े े ो े ेऔ े

और मृग को कुचलते तथा अपने वेगसे बड़े-बड़े वृ को जड़से उखाड़ते और वनाश करते ए आगे बढ़ने लगे। पा डु न दन भीम अपने वेगसे लता और ब ल रय को ख चे लये जाते थे। वे ऊपर-ऊपर जाते ए ऐसे तीत होते थे, मानो कोई गजराज पवतक सबसे ऊँची चोट पर चढ़ना चाहता हो ।। ३६—३८ ।। वनदमानोऽ तभृशं स व ु दव तोयदः । तेन श दे न महता भीम य तबो धताः ।। ३९ ।। गुहां संत यजु ा ा न ल युवनवा सनः । समु पेतुः खगा ता मृगयूथा न वुः ।। ४० ।। वे बज लय से सुशो भत मेघक भाँ त बड़े जोरसे गजना करने लगे। भीमसेनक उस भयंकर गजनासे जगे ए ा त अपनी गुफा छोड़कर भाग गये, वनवासी ाणी वनम ही छप गये, डरे ए प ी आकाशम उड़ गये और मृग के झुंड रतक भागते चले गये ।। ३९-४० ।। ऋ ा ो ससृजुवृ ां त यजुहरयो गुहाम् । जृ भ त महा सहा म हषा ावलोकयन् ।। ४१ ।। रीछ ने वृ का आ य छोड़ दया, सह ने गुफाएँ याग द, बड़े-बड़े सह जँभाई लेने लगे और जंगली भसे रसे ही उनक ओर दे खने लगे ।। ४१ ।। तेन व ा सता नागाः करेणुप रवा रताः । तद् वनं स प र य य ज मुर य महावनम् ।। ४२ ।। भीमसेनक उस गजनासे डरे ए हाथी उस वनको छोड़कर ह थ नय से घरे ए सरे वशाल वनम चले गये ।। ४२ ।। वराहमृगसंघा म हषा वनेचराः । ा गोमायुसंघा णे गवयैः सह ।। ४३ ।। रथा सा दा यूहा हंसकार डव लवाः । शुकाः पुं को कलाः ौ चा वसं ा भे जरे दशः ।। ४४ ।। सूअर, मृगसमूह, जंगली भसे, बाघ तथा गीदड़ के समुदाय और गवय—ये सब-केसब एक साथ ची कार करने लगे। च वाक, चातक, हंस, कार डव, लव, शुक, को कल और च आ द प य ने अचेत होकर भ - भ दशा क शरण ली ।। ४३-४४ ।। तथा ये द पता नागाः करेणुशरपी डताः । सह ा ा सं ु ा भीमसेनमथा वन् ।। ४५ ।। शकृ मू ं च मु चाना भय व ा तमानसाः । ा दता या महारौ ा नदन् भीषणान् रवान् ।। ४६ ।। तथा ह थ नय के कटा -बाणसे पी ड़त ए सरे बलो म गजराज, सह और ा ोधम भरकर भीमसेनपर टू ट पड़े। वे मल-मू छोड़ते ए मन-ही-मन भयसे घबरा रहे थे और मुँह बाये ए अ य त भयानक पसे भैरव-गजना कर रहे थे ।। ४५-४६ ।। ततो वायुसुतः ोधात् वबा बलमा तः । गजेना यान् गजा मान् सहं सहेन वा वभुः ।। ४७ ।। ै ो ी

तल हारैर यां हनत् पा डवो बली । ते व यमाना भीमेन सह ा तर वः ।। ४८ ।। भयाद् वससृजुभ मं शकृ मू ं च सु ुवुः । ववेश ततः ं तानपा य महाबलः ।। ४९ ।। वनं पा डु सुतः ीमा छ दे नापूरयन् दशः । तब अपने बा -बलका भरोसा रखनेवाले ीमान् वायुपु भीमने कु पत हो एक हाथीसे सरे हा थय को और एक सहसे सरे सह को मार भगाया तथा उन महाबली पा डु कुमारने कतन को तमाच के हारसे मार डाला। भीमसेनक मार खाकर सह, ा और चीते (बघेरे) भयसे उ ह छोड़कर भाग चले तथा घबराकर मल-मू करने लगे। तदन तर महान् श शाली पा डु न दन भीमसेनने शी उन सबको छोड़कर अपनी गजनासे स पूण दशा को गुँजाते ए एक वनम वेश कया ।। ४७—४९ ।। अथाप य महाबा ग धमादनसानुषु ।। ५० ।। सुर यं कदलीष डं ब योजन व तृतम् । तम यग छद् वेगेन ोभ य यन् महाबलः ।। ५१ ।। महागज इवा ावी भ न् व वधान् मान् । उ पा कदली त भान् ब तालसमु यान् ।। ५२ ।। च ेप तरसा भीमः सम ताद् ब लनां वरः । वनदन् सुमहातेजा नृ सह इव द पतः ।। ५३ ।। ततः स वा युपा ामद् ब न सुमहा त च । वानर सहां म हषां जलाशयान् ।। ५४ ।। तेन श दे न चैवाथ भीमसेनरवेण च । वना तरगता ा प व ेसुमृगप णः ।। ५५ ।। इसी समय ग धमादनके शखर पर महाबा भीमने एक परम सु दर केलेका बगीचा दे खा, जो कई योजन रतक फैला आ था। मदक धारा बहानेवाले महाबली गजराजक भाँ त उस कदलीवनम हलचल मचाते और भाँ त-भाँ तके वृ को तोड़ते ए वे बड़े वेगसे वहाँ गये। वहाँके केलेके वृ ख भ के समान मोटे थे। उनक ऊँचाई कई ताड़ के बराबर थी। बलवान म े भीमने बड़े वेगसे उ ह उखाड़-उखाड़कर सब ओर फकना आर भ कया। वे महान् तेज वी तो थे ही, अपने बल और परा मपर गव भी रखते थे; अतः भगवान् नृ सहक भाँ त वकट गजना करने लगे। त प ात् और भी ब त-से बड़े-बड़े ज तु पर आ मण कया। , वानर, सह, भसे तथा जल-ज तु पर भी धावा कया। उन पशु-प य के एवं भीमसेनके उस भयंकर श दसे सरे वनम रहनेवाले मृग और प ी भी थरा उठे ।। ५०—५५ ।। तं श दं सहसा ु वा मृगप समी रतम् । जला प ा वहगाः समु पेतुः सह शः ।। ५६ ।। औ







मृग और प य के उस भयसूचक श दको सहसा सुनकर सह प ी आकाशम उड़ने लगे। उन सबक पाँख जलसे भीगी ई थ ।। ५६ ।। तानौदकान् प गणान् नरी य भरतषभः । तानेवानुसरन् र यं ददश सुमहत् सरः ।। ५७ ।। भरत े भीमने यह दे खकर क ये तो जलके प ी ह, उ ह के पीछे चलने लगे और आगे जानेपर एक अ य त रमणीय वशाल सरोवर दे खा ।। ५७ ।। का चनैः कदलीष डैम दमा तक पतैः । वी यमान मवा ो यं तीरात् तीर वस प भः ।। ५८ ।। उस सरोवरके एक तीरसे लेकर सरे तीरतक फैले ए सुवणमय केलेके वृ म द वायुसे वक पत होकर मानो उस अगाध जलाशयको पंखा झल रहे थे ।। ५८ ।। तत् सरोऽथावतीयाशु भूतन लनो पलम् । महागज इवो ाम ड बलवद् बली ।। ५९ ।। उसम चुर कमल और उ पल ख ले ए थे। ब धनर हत महान् गजके समान बलवान म े भीमसेन सहसा उस सरोवरम उतरकर जल- ड़ा करने लगे ।। ५९ ।। व त मन् सु चरमु तारा मत ु तः । ततोऽ यग तुं वेगेन तद् वनं ब पादपम् ।। ६० ।। द घ कालतक उस सरोवरम ड़ा करनेके प ात् अ मत तेज वी भीम जलसे बाहर नकले और असं य वृ से सुशो भत उस कदलीवनम वेगपूवक जानेको उ त ए ।। ६० ।। द मौ च शङ् खं वनवत् सव ाणेन पा डवः । आ फोटय च बलवान् भीमः संनादयन् दशः ।। ६१ ।। त य शङ् ख य श दे न भीमसेनरवेण च । बा श दे न चो ेण नद तीव गरेगुहाः ।। ६२ ।। उस समय बलवान् पा डु न दन भीमने अपनी सारी श लगाकर बड़े जोरसे शंख बजाया और स पूण दशा को त व नत करते ए ताल ठ का। उस शंखक व न, भीमसेनक गजना और उनके ताल ठ कनेके भयंकर श दसे मानो पवत क क दराएँ गूँज उठ ।। ६१-६२ ।। तं व न पेषसममा फो टतमहारवम् । ु वा शैलगुहासु तैः सहैमु ो महा वनः ।। ६३ ।। पवत पर वपात होनेके कारण उस ताल ठ कनेके भयानक श दको सुनकर गुफा म सोये ए सह ने भी जोर-जोरसे दहाड़ना आर भ कया ।। ६३ ।। सहनादभय तैः कु रैर प भारत । मु ो वरावः सुमहान् पवतो येन पू रतः ।। ६४ ।। भारत! उन सह का दहाड़ना सुनकर भयसे डरे ए हाथी भी ची कार करने लगे, जससे वह वशाल पवत श दायमान हो उठा ।। ६४ ।। तं तु नादं ततः ु वा मु ं वारणपु वैः । ी े

ातरं भीमसेनं तु व ाय हनुमान् क पः ।। ६५ ।। बड़े-बड़े गजराज का वह ची कार सुनकर क प वर हनुमान्जी, जो उस समय कदलीवनम ही रहते थे, यह समझ गये क मेरे भाई भीमसेन इधर आये ह ।। ६५ ।। दवंगमं रोधाथ माग भीम य कारणात् । अनेन ह पथा मा वै ग छे द त वचाय सः ।। ६६ ।। आ त एकायने माग कदलीष डम डते । ातुभ म य र ाथ तं मागमव य वै ।। ६७ ।। तब उ ह ने भीमसेनके हतके लये वगक ओर जानेवाला माग रोक दया। हनुमान्जीने यह सोचकर क भीमसेन इसी मागसे वगलोकक ओर न चले जायँ, एक मनु यके आने-जाने यो य उस संकु चत मागपर बैठ गये। वह माग केलेके वृ से घरा होनेके कारण बड़ी शोभा पा रहा था। उ ह ने अपने भाई भीमक र ाके लये ही यह राह रोक थी ।। ६६-६७ ।। मा ा य त शापं वा धषणां वे त पा डवः । कदलीष डम य थो ेवं सं च य वानरः ।। ६८ ।। ाजृ भत महाकायो हनूमान् नाम वानरः । कदलीष डम य थो न ावशगत तदा ।। ६९ ।। जृ भमाणः सु वपुलं श वज मवो तम् । आ फोटय च ला ल म ाश नसम वनम् ।। ७० ।। कदलीवनम आय ए पा डु न दन भीमसेनको इस मागपर आनेके कारण कसीसे शाप या तर कार न ा त हो जाय, यह वचारकर ही क प वर हनुमान्जी उस वनके भीतर वगका रा ता रोककर सो गये। उस समय उ ह ने अपने शरीरको बड़ा कर लया था। न ाके वशीभूत होकर जब वे जँभाई लेते और इ क वजाके समान ऊँचे तथा वशाल लंगरू को फटकारते, उस समय वक गड़गड़ाहटके समान आवाज होती थी ।। ६८—७० ।। त य ला ल ननदं पवतः सुगुहामुखैः । उद्गार मव गौनद ु ससज सम ततः ।। ७१ ।। वह पवत उनक पूँछक फटकारके उस महान् श दको सु दर क दरा पी मुख ारा सब ओर त व नके पम हराता था, मानो कोई साँड़ जोर-जोरसे गजना कर रहा हो ।। ७१ ।। ला ला फोटश दा च च लतः स महा ग रः । वघूणमान शखरः सम तात् पयशीयत ।। ७२ ।। स ला लरव त य म वारण नः वनम् । अ तधाय व च ेषु चचार ग रसानुषु ।। ७३ ।। पूँछके फटकारनेक आवाजसे वह महान् पवत हल उठा। उसके शखर झूमते-से जान पड़े और वह सब ओरसे टू ट-फूटकर बखरने लगा। वह श द मतवाले हाथीके े









च घाड़नेक आवाजको भी दबाकर व च पवत- शखर पर चार ओर फैल गया ।। ७२-७३ ।। स भीमसेन त छ वा स तनू हः । श द भवम व छं चार कदलीवनम् ।। ७४ ।। उसे सुनकर भीमसेनके र गटे खड़े हो गये और उसके कारणको ढूँ ढ़नेके लये वे उस केलेके बगीचेम घूमने लगे ।। ७४ ।। कदलीवनम य थमथ पीने शलातले । ददश सुमहाबा वानरा धप त तदा ।। ७५ ।। उस समय वशाल भुजा वाले भीमसेनने कदलीवनके भीतर ही एक मोटे शलाख डपर लेटे ए वानरराज हनुमान्जीको दे खा ।। ७५ ।। व ु स पात े ं व ु स पात प लम् । व ु स पात ननदं व ु स पातच चलम् ।। ७६ ।। व ु पातके समान चकाच ध पैदा करनेके कारण उनक ओर दे खना अ य त क ठन हो रहा था। उनक अंगका त गरती ई बजलीके समान पगल-वणक थी। उनका गजन-तजन वपातक गड़गड़ाहटके समान था। वे व ु पातके स श च चल तीत होते थे ।। ७६ ।। बा व तक व य तपीन व शरोधरम् । क धभू य काय वात् तनुम यकट तटम् ।। ७७ ।। क च चाभु नशीषण द घरोमा चतेन च । ला लेनो वग तना वजेनेव वरा जतम् ।। ७८ ।। उनक कंधे चौड़े और पु थे। अतः उ ह ने बाँहके मूलभागको त कया बनाकर उसीपर अपनी मोट और छोट ीवाको रख छोड़ा था और उनके शरीरका म यभाग एवं क ट दे श पतला था। उनक लंबी पूँछका अ भाग कुछ मुड़ा आ था। उसक रोमाव ल घनी थी तथा वह पूँछ ऊपरक ओर उठकर फहराती ई वजा-सी सुशो भत होती थी ।। ७७-७८ ।। वौ ं ता ज ा यं र कण चलद् ुवम् । ववृ दं ादशनं शु लती णा शो भतम् ।। ७९ ।। अप यद् वदनं त य र मव त मवोडु पम् । वदना य तरगतैः शु लैद तैरलंकृतम् ।। ८० ।। उनके ओठ छोटे थे। जीभ और मुखका रंग ताँबेके समान था। कान भी लाल रंगके ही थे और भ ह च चल हो रही थ । उनके खुले ए मुखम ेत चमकते ए दाँत और दाढ़ अपने सफेद और तीखे अ भागके ारा अ य त शोभा पा रही थ । इन सबके कारण उनका मुख करण से का शत च माके समान दखायी दे ता था। मुखके भीतरक ेत द ताव ल उसक शोभा बढ़ानेके लये आभूषणका काम दे रही थी ।। ७९-८० ।। केसरो करस म मशोकाना मवो करम् । हर मयीनां म य थं कदलीनां महा ु तम् ।। ८१ ।। ी े ी े ी ीऐ े े े

सुवणमय कदली-वृ के बीच वराजमान महातेज वी हनुमान्जी ऐसे जान पड़ते थे मानो केसर क यारीम अशोकपु प का गु छ रख दया गया हो ।। ८१ ।। द यमानेन वपुषा व च म त मवानलम् । नरी तम म नं लोचनैमधु प लैः ।। ८२ ।। वे श ुसूदन वानरवीर अपने का तमान् शरीरसे व लत अ नके समान जान पड़ते थे और अपनी मधुके समान पीली आँख से इधर-उधर दे ख रहे थे ।।

तं वानरवरं धीमान तकायं महाबलम् । वगप थानमावृ य हमव त मव थतम् ।। ८३ ।। ् वा चैनं महाबा रेकं त मन् महावने । अथोपसृ य तरसा वभीभ म ततो बली ।। ८४ ।। सहनादं चकारो ं व ाश नसमं बली । तेन श दे न भीम य व ेसुमृगप णः ।। ८५ ।। परम बु मान् बलवान् महाबा भीमसेन उस महान् वनम वशालकाय महाबली वानरराज हनुमान्जीको अकेले ही वगका माग रोककर हमालयके समान थत दे ख नभय होकर वेगपूवक उनके पास गये और व-गजनाक े समान भयंकर सहनाद करने लगे। भीमसेनके उस सहनादसे वहाँके मृग और प ी थरा उठे ।। ८३—८५ ।। हनूमां महास व ईष मी य लोचने । ् वा तमथ साव ं लोचनैमधु प लैः । े ै ी

मतेन चैनमासा हनूमा नदम वीत् ।। ८६ ।। तब महान् धैयशाली हनुमान्जीने आँख कुछ खोलकर अपने मधु पगल ने ारा अवहेलनापूवक उनक ओर दे खा और उ ह नकट पाकर उनसे मुसकराते ए इस कार कहा ।। ८६ ।।

हनूमानुवाच कमथ स ज तेऽहं सुखसु तः बो धतः । ननु नाम वया काया दया भूतेषु जानता ।। ८७ ।। हनुमान्जी बोले—भाई! म तो रोगी ँ और यहाँ सुखसे सो रहा था। तुमने य मुझे जगा दया? तुम समझदार हो। तु ह सब ा णय पर दया करनी चा हये ।। ८७ ।। वयं धम न जानीम तय यो नमुपा ताः । नरा तु बु स प ा दयां कुव त ज तुषु ।। ८८ ।। हमलोग तो पशुयो नके ाणी ह, अतः धमक बात नह जानते; परंतु मनु य बु मान् होते ह, अतः वे सब जीव पर दया करते ह ।। ८८ ।। ू रेषु कमसु कथं दे हवा च षषु । धमघा तषु स ज ते बु म तो भव धाः ।। ८९ ।। कतु पता नह , तु हारे-जैसे बु मान्लोग धमका नाश करनेवाले तथा मन, वाणी और शरीरको भी षत कर दे नेवाले ू र कम म कैसे वृ होते ह? ।। ८९ ।। न वं धम वजाना स बुधा नोपा सता वया । अ पबु तया बा या सादय स य मृगान् ।। ९० ।। तु ह धमका बलकुल ान नह है। मालूम होता है, तुमने व ान क सेवा नह क है। म दबु होनेके कारण अ ानवश तुम यहाँके मृग को क प ँचाते हो ।। ९० ।। ू ह क वं कमथ वा क मदं वनमागतः । व जतं मानुषैभावै तथैव पु षैर प ।। ९१ ।। बोलो तो, तुम कौन हो? इस वनम तुम य और कस लये आये हो? यहाँ तो न कोई मानवीय भाव ह और न मनु य का ही वेश है ।। ९१ ।। व च वया ग त ं ू ह पु षषभ । अतः परमग योऽयं पवतः सु रा हः ।। ९२ ।। पु ष े ! ठ क-ठ क बतलाओ, तु ह आज इधर कहाँतक जाना है? यहाँसे आगे तो यह पवत अग य है। इसपर चढ़ना कसीके लये भी अ य त क ठन है ।। ९२ ।। वना स ग त वीर ग तर न व ते । दे वलोक य माग ऽयमग यो मानुषैः सदा ।। ९३ ।। वीर! स पु ष के सवा और कसीक यहाँ ग त नह है। यह दे वलोकका माग है, जो मनु य के लये सदा अग य है ।। ९३ ।। का यात् वामहं वीर वारया म नबोध मे । नातः परं वया श यं ग तुमा स ह भो ।। ९४ ।। ी





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वीरवर! म दयावश ही तु ह आगे जानेसे रोकता ँ। मेरी बात सुनो। भो! यहाँसे आगे तुम कसी कार जा नह सकते। इसपर व ास करो ।। ९४ ।। वागतं सवथैवेह तवा मनुजषभ । इमा यमृतक पा न मूला न च फला न च ।। ९५ ।। भ य वा नवत व मा वृथा ा यसे वधम् । ा ं य द वचो म ं हतं मनुजपु व ।। ९६ ।। मानव शरोमणे! आज यहाँ सब कारसे तु हारा वागत है। ये अमृतके समान मीठे फल-मूल खाकर यह से लौट जाओ, अ यथा थ ही तु हारे ाण संकटम पड़ जायँगे। नरपुंगव! य द मेरा कथन हतकर जान पड़े तो इसे अव य मानो ।। ९५-९६ ।। इ त ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायां भीमकदलीष ड वेशे षट् च वारशद धकशततमोऽ यायः ।। १४६ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम भीमसेनका कदलीवनम वेश वषयक एक सौ छयालीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १४६ ।।

स तच वा रशंद धकशततमोऽ यायः ीहनुमान् और भीमसेनका संवाद वैश पायन उवाच एत छ वा वच त य वानरे य धीमतः । भीमसेन तदा वीरः ोवाचा म कषणः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! उस समय परम बु मान् वानरराज हनुमान्जीका यह वचन सुनकर श ुसूदन वीरवर भीमसेनने इस कार कहा ।। १ ।। भीम उवाच को भवान् क न म ं वा वानरं वपुरा थतः । ा णान तरो वणः य वां तु पृ छ त ।। २ ।। भीमसेनने पूछा—आप कौन ह? और कस लये वानरका प धारण कर रखा है? म ा णके बादका वण— य ँ, और म आपसे आपका प रचय पूछता ँ ।। २ ।। कौरवः सोमवंशीयः कु या गभण धा रतः । पा डवो वायुतनयो भीमसेन इ त ुतः ।। ३ ।। मेरा प रचय इस कार है—म च वंशी य ँ। मेरा ज म कु कुलम आ है। माता कु तीने मुझे गभम धारण कया था। म वायुपु पा डव ँ। मेरा नाम भीमसेन है ।। ३ ।। स वा यं कु वीर य मतेन तगृ तत् । हनूमान् वायुतनयो वायुपु मभाषत ।। ४ ।। कु वीर भीमसेनका वह वचन म द मुसकानके साथ सुनकर वायुपु हनुमान्जीने वायुके ही पु भीमसेनसे इस कार कहा ।। ४ ।। हनूमानुवाच वानरोऽहं न ते माग दा या म यथे सतम् । साधु ग छ नवत व मा वं ा य स वैशसम् ।। ५ ।। हनुमान्जी बोले—भैया! म वानर ँ। तु ह तु हारी इ छाके अनुसार माग नह ँ गा। अ छा तो यह होगा क तुम यह से लौट जाओ, नह तो तु हारे ाण संकटम पड़ जायँगे ।। ५ ।। भीमसेन उवाच वैशसं वा तु य ा य वां पृ छा म वानर । य छ मागमु मा म ः ा यसे थाम् ।। ६ ।। भीमसेनने कहा—वानर! मेरे ाण संकटम पड़े या और कोई प रणाम भोगना पड़े, इसके वषयम तुमसे कुछ नह पूछता ँ। उठो और मुझे आगे जानेके लये रा ता दो। ऐसा होनेपर तुमको मेरे हाथ से कसी कारका क नह उठाना पड़ेगा ।। ६ ।।

हनूमानुवाच ना त श ममो थातुं ा धना ले शतो हम् । य व यं यात ं लङ् घ य वा या ह माम् ।। ७ ।। हनुमान्जी बोले—भाई! म रोगसे क पा रहा ँ। मुझम उठनेक श नह है। य द तु ह जाना अव य है तो मुझे लाँघकर चले जाओ ।। ७ ।। भीम उवाच नगुणः परमा मा तु दे हं ा याव त ते । तमहं ान व ेयं नावम ये न लङ् घये ।। ८ ।। भीमसेनने कहा— नगुण परमा मा सम त ा णय के शरीरम ा त होकर थत ह। वे ानसे ही जाननेम आते ह। म उनका अपमान या उ लंघन नह क ँ गा ।। ८ ।। य ागमैन व ां च तमहं भूतभावनम् । मेयं वां गर चैव हनूमा नव सागरम् ।। ९ ।। य द शा के ारा मुझे उन भूतभावन भगवान्के व पका ान न होता तो म तु ह को या इस पवतको भी उसी कार लाँघ जाता, जैसे हनुमान्जी समु को लाँघ गये थे ।। ९ ।। हनूमानुवाच क एष हनुमान् नाम सागरो येन लङ् घतः । पृ छा म वां नर े कयतां य द श यते ।। १० ।। हनुमान्जी बोले—नर े ! म तुमसे एक बात पूछता ँ, वह हनुमान् कौन था जो समु को लाँघ गया था? उसके वषयम य द तुम कुछ कह सको तो कहो ।। १० ।। भीम उवाच ाता मम गुण ा यो बु स वबला वतः । रामायणेऽ त व यातः ीमान् वानरपु वः ।। ११ ।। भीमसेनने कहा—वानर वर ीहनुमान्जी मेरे बड़े भाई ह। वे अपने सद्गुण के कारण सबके लये शंसनीय ह। वे बु , बल, धैय एवं उ साहसे यु ह। रामायणम उनक बड़ी या त है ।। ११ ।। रामप नीकृते येन शतयोजन व तृतः । सागरः लवगे े ण मेणैकेन लङ् घतः ।। १२ ।। वे वानर े हनुमान् ीरामच जीक प नी सीताजीक खोज करनेके लये सौ योजन व तृत समु को एक ही छलाँगम लाँघ गये थे ।। १२ ।। स मे ाता महावीय तु योऽहं त य तेजसा । बले परा मे यु े श ोऽहं तव न हे ।। १३ ।। वे महापरा मी वानरवीर मेरे भाई लगते ह। म भी उ ह के समान तेज वी, बलवान् और परा मी ँ तथा यु म तु ह परा त कर सकता ँ ।। १३ ।। े े े ौ

उ दे ह मे माग प य मे चा पौ षम् । म छासनमकुवाणं वां वा ने ये यम यम् ।। १४ ।। उठो और मुझे रा ता दो तथा आज मेरा परा म अपनी आँख दे ख लो। य द मेरी आ ा नह मानोगे तो तु ह यमलोक भेज ँ गा ।। १४ ।।

वैश पायन उवाच व ाय तं बलो म ं बा वीयण द पतम् । दयेनावह यैनं हनूमान् वा यम वीत् ।। १५ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! भीमसेनको बलके अ भमानसे उ म तथा अपनी भुजा के परा मसे घमंडम भरा आ जान हनुमान्जीने मन-ही-मन उनका उपहास करते ए उनसे इस कार कहा ।। १५ ।। हनूमानुवाच सीद ना त मे श थातुं जरयानघ । ममानुक पया वेतत् पु छमु साय ग यताम् ।। १६ ।। हनुमान्जी बोले—अनघ! मुझपर कृपा करो। बुढ़ापेके कारण मुझम उठनेक श नह रह गयी है। इस लये मेरे ऊपर दया करके इस पूँछको हटा दो और नकल जाओ ।। १६ ।। वैश पायन उवाच एवमु े हनुमता हीनवीयपरा मम् । मनसा च तयद् भीमः वबा बलद पतः ।। १७ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! हनुमान्जीके ऐसा कहनेपर अपने बा बलका घमंड रखनेवाले भीमने मन-ही-मन उ ह बल और परा मसे हीन समझा ।। १७ ।। पु छे गृ तरसा हीनवीयपरा मम् । सालो यम तक यैनं नया य ेह वानरम् ।। १८ ।। और भीतर-ही-भीतर यह संक प कया क ‘आज म इस बल और परा मसे शू य वानरको वेगपूवक इसक पूँछ पकड़कर यमराजके लोकम भेज दे ता ँ’ ।। १८ ।। साव मथ वामेन मय ाह पा णना । न चाशक चाल यतुं भीमः पु छं महाकपेः ।। १९ ।। ऐसा सोचकर उ ह ने बड़ी लापरवाही दखाते और मुसकराते ए अपने बाय हाथसे उस महाक पक पूँछ पकड़ी, कतु वे उसे हला-डु ला भी न सके ।। १९ ।। उ च ेप पुनद या म ायुध मवो तम् । नो तुमशकद् भीमो दो याम प महाबलः ।। २० ।। तब महाबली भीमसेनने उनक इ धनुषके समान ऊँची पूँछको दोन हाथ से उठानेका पुनः य न कया, परंतु दोन हाथ लगा दे नेपर भी वे उसे उठा न सके ।। उ त ू ववृ ा ः संहत ुकुट मुखः । ो

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व गा ोऽभवद् भीमो न चो तु शशाक तम् ।। २१ ।। फर तो उनक भ ह तन गय , आँख फट -सी रह गय , मुखम डलम ुकुट प दखायी दे ने लगी और उनके सारे अंग पसीनेसे तर हो गये। फर भी भीमसेन हनुमान्जीक पूँछको क चत् भी हला न सके ।। २१ ।। य नवान प तु ीमाँ ला लो रणो रः । कपेः पा गतो भीम त थौ ीडानताननः ।। २२ ।। णप य च कौ तेयः ा लवा यम वीत् । सीद क पशा ल ं यतां मम ।। २३ ।। य प ीमान् भीमसेन उस पूँछको उठानेम सवथा समथ थे और उसके लये उ ह ने ब त य न भी कया, तथा प सफल न हो सके। इससे उनका मुँह ल जासे झुक गया और वे कु तीकुमार भीम हनुमान्जीके पास जाकर उनके चरण म णाम करके हाथ जोड़े ए खड़े होकर बोले—‘क प वर! मने जो कठोर बात कही ह , उ ह मा क जये और मुझपर स होइये ।। स ो वा य द वा दे वो ग धव वाथ गु कः । पृ ः सन् का यया ू ह क वं वानर पधृक् ।। २४ ।। ‘आप कोई स ह या दे वता? ग धव ह या गु क? म प रचय जाननेक इ छासे पूछ रहा ँ। बतलाइये, इस कार वानरका प धारण करनेवाले आप कौन ह? ।। २४ ।। न चेद ् गु ं महाबाहो ोत ं चेद ् भवे मम । श यवत् वां तु पृ छा म उपप ोऽ म तेऽनघ ।। २५ ।। ‘महाबाहो! य द कोई गु त बात न हो और वह मेरे सुननेयो य हो, तो बताइये। अनघ! म आपक शरणम आया ँ और श यभावसे पूछता ँ। अतः अव य बतानेक कृपा कर’ ।। २५ ।। हनूमानुवाच यत् ते मम प र ाने कौतूहलमरदम । तत् सवमखलेन वं शृणु पा डवन दन ।। २६ ।। हनुमान्जी बोले—श ुदमन पा डु न दन! तु हारे मनम मेरा प रचय ा त करनेके लये जो कौतूहल हो रहा है उसक शा तके लये सब बात व तारपूवक सुनो ।। अहं केस रणः े े वायुना जगदायुषा । जातः कमलप ा हनूमान् नाम वानरः ।। २७ ।। कमलनयन भीम! म वानर े केसरीके े म जगत्के ाण व प वायुदेवसे उ प आ ँ। मेरा नाम हनुमान् वानर है ।। २७ ।। सूयपु ं च सु ीवं श पु ं च वा लनम् । सव वानरराजान तथा वानरयूथपाः ।। २८ ।। उपत थुमहावीया मम चा म कषण । सु ीवेणाभवत् ी तर नल या नना यथा ।। २९ ।। ी





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पूवकालम सभी वानरराज और वानरयूथप त, जो महान् परा मी थे, सूयन दन सु ीव तथा इ कुमार वालीक सेवाम उप थत रहते थे। श ुसूदन भीम! उन दन सु ीवके साथ मेरी वैसी ही ेमपूण म ता थी, जैसी वायुक अ नके साथ मानी गयी है ।। २८-२९ ।। नकृतः स ततो ा ा क मं त् कारणा तरे । ऋ यमूके मया साध सु ीवो यवस चरम् ।। ३० ।। कसी कारणा तरसे वालीने अपने भाई सु ीवको घरसे नकाल दया, तब ब त दन तक वे मेरे साथ ऋ यमूक पवतपर रहे ।। ३० ।। अथ दाशर थव रो रामो नाम महाबलः । व णुमानुष पेण चचार वसुधातलम् ।। ३१ ।। उस समय महाबली वीर दशरथन दन ीराम, जो सा ात् भगवान् व णु ही थे, मनु य प धारण करके इस भूतलपर वचर रहे थे ।। ३१ ।। स पतुः यम व छन् सहभायः सहानुजः । सधनुध वनां े ो द डकार यमा तः ।। ३२ ।। वे अपने पताक आ ा पालन करनेके लये प नी सीता और छोटे भाई ल मणके साथ द डकार यम चले आये। धनुधर म े रघुनाथजी सदा धनुष-बाण लये रहते थे ।। ३२ ।। त य भाया जन थाना छलेनाप ता बलात् । रा से े ण ब लना रावणेन रा मना ।। ३३ ।। सुवणर न च ेण मृग पेण र सा । व च य वा नर ा ं मारीचेन तदानघ ।। ३४ ।। अनघ! द डकार यम आकर वे जन थानम रहा करते थे। एक दन अ य त बलवान् रा मा रा सराज रावण मायासे सुवण-र नमय व च मृगका प धारण करनेवाले मारीच नामक रा सके ारा नर े ीरामको धोखेम डालकर उनक प नी सीताको छलबलपूवक हर ले गया ।। ३३-३४ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायां हनुम मसंवादे स तच वारशद धकशततमोऽ यायः ।। १४७ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम हनुमान्जी और भीमसेनका संवाद वषयक एक सौ सतालीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १४७ ।।

अ च वा रशद धकशततमोऽ यायः हनुमान्जीका भीमसेनको सं ेपसे

ीरामका च र सुनाना

हनूमानुवाच तदारः सह ा ा प न मागन् स राघवः । वान् शैल शखरे सु ीवं वानरषभम् ।। १ ।। हनुमान्जी कहते ह—भीमसेन! इस कार ीका अपहरण हो जानेपर अपने भाईके साथ उसक खोज करते ए ीरघुनाथजी जन थानसे आगे बढ़े । उ ह ने ऋ यमूकपवतके शखरपर रहनेवाले वानरराज सु ीवसे भट क ।। १ ।। तेन त याभवत् स यं राघव य महा मनः । स ह वा वा लनं रा ये सु ीवम भ ष वान् ।। २ ।। वहाँ सु ीवके साथ महा मा ीरघुनाथजीक म ता हो गयी। तब उ ह ने वालीको मारकर क क धाके रा यपर सु ीवका अ भषेक कर दया ।। २ ।। स रा यं ा य सु ीवः सीतायाः प रमागणे । वानरान् ेषयामास शतशोऽथ सह शः ।। ३ ।। रा य पाकर सु ीवने सीताजीक खोजके लये सौ-सौ तथा हजार-हजार वानर क टोली इधर-उधर भेजी ।। ३ ।। ततो वानरकोट भः स हतोऽहं नरषभ । सीतां मागन् महाबाहो यातो द णां दशम् ।। ४ ।। नर े ! महाबाहो! उस समय करोड़ वानर के साथ म भी सीताजीका पता लगाता आ द ण दशाक ओर गया ।। ४ ।। ततः वृ ः सीताया गृ ेण सुमहा मना । स पा तना समा याता रावण य नवेशने ।। ५ ।। तदन तर गृ जातीय महाबु मान् स पा तने सीताजीके स ब धम यह समाचार दया क वे रावणके नगरम व मान ह ।। ५ ।। ततोऽहं काय स यथ राम या ल कमणः । शतयोजन व तीणमणवं सहसाऽऽ लुतः ।। ६ ।। तब म अनायास ही महान् कम करनेवाले ीरघुनाथजीक काय स के लये सहसा सौ योजन व तृत समु को लाँघ गया ।। ६ ।। अहं ववीया ीय सागरं मकरालयम् । सुतां जनकराज य सीतां सुरसुतोपमाम् ।। ७ ।। वान् भरत े रावण य नवेशने । समे य तामहं दे व वैदेह राघव याम् ।। ८ ।। द वा लङ् कामशेषेण सा ाकारतोरणाम् । ै

यागत ा य पुननाम त का य वै ।। ९ ।। भरत े ! मगर और ाह आ दसे भरे ए उस समु को अपने परा मसे पार करके म रावणके नगरम दे वक याके समान तेज वनी जनकराजन दनी सीतासे मला। रघुनाथजीक यतमा वदे हराजकुमारी सीता-दे वीसे भट करके अ ा लका, चहार दवारी और नगर- ारस हत समूची लंकापुरीको जलाकर वहाँ ीराम-नामक घोषणा करके म पुनः लौट आया ।। ७—९ ।। म ा यं चावधायाशु रामो राजीवलोचनः । स बु पूव सै य य बद् वा सेतुं महोदधौ ।। १० ।। वृतो वानरकोट भः समु ीण महाणवम् । ततो रामेण वीरेण ह वा तान् सवरा सान् ।। ११ ।। रणे तु रा सगणं रावणं लोकरावणम् । नशाचरे ं ह वा तु स ातृसुतबा धवम् ।। १२ ।। मेरी बात मानकर कमलनयन भगवान् ीरामने बु पूवक वचार करके सै नक क सलाहसे महासागर-पर पुल बँधवाया और करोड़ वानर से घरे ए वे महासमु को पार करके लंकापर जा चढ़े । तदन तर वीरवर ीरामने उन सम त रा स को मारकर यु म सम त लोक को लानेवाले रा सराज रावणको भी भाई, पु और ब धु-बा धव स हत मार डाला ।। १०—१२ ।। रा येऽ भ ष य लङ् कायां रा से ं वभीषणम् । धा मकं भ म तं च भ ानुगतव सलम् ।। १३ ।। ततः या ता भाया न ा वेद ु तयथा । तयैव स हतः सा ा प या रामो महायशाः ।। १४ ।। ग वा ततोऽ त व रतः वां पुर रघुन दनः । अ यावसत् ततोऽयो यामयो यां षतां भुः ।। १५ ।। ततः त तो रा ये रामो नृप तस मः । वरं मया या चतोऽसौ रामो राजीवलोचनः ।। १६ ।। यावद् राम कथेयं ते भवे लोकेषु श ुहन् । ताव जीवेय म येवं तथा व त च सोऽ वीत् ।। १७ ।। त प ात् धमा मा, भ मान् तथा भ और सेवक पर नेह रखनेवाले रा सराज वभीषणको लंकाके रा यपर अ भ ष कया और खोयी ई वै दक ु तक भाँ त अपनी प नीका वहाँसे उ ार करके महायश वी रघुन दन ीराम अपनी उस सा वी प नीके साथ ही बड़ी उतावलीके साथ अपनी अयो यापुरीम लौट आये। इसके बाद श ु को भी वशम करनेवाले नृप े भगवान् ीराम अवधके रा य सहासनपर आसीन हो उस अजेय अयो यापुरीम रहने लगे। उस समय मने कमलनयन ीरामसे यह वर माँगा क ‘श ुसूदन! जबतक आपक यह कथा संसारम च लत रहे तबतक म अव य जी वत र ँ’। भगवान्ने ‘तथा तु’ कहकर मेरी यह ाथना वीकार कर ली ।। १३—१७ ।। सीता सादा च सदा मा मह थमरदम । ो ी े

उप त त द ा ह भोगा भीम यथे सताः ।। १८ ।। श ु का दमन करनेवाले भीमसेन! ीसीताजीक कृपासे यहाँ रहते ए ही मुझे इ छानुसार सदा द भोग ा त हो जाते ह ।। १८ ।। दशवषसह ा ण दशवषशता न च । रा यं का रतवान् राम ततः वभवनं गतः ।। १९ ।। ीरामजीने यारह हजार वष तक इस पृ वीपर रा य कया, फर वे अपने परमधामको चले गये ।। १९ ।। त दहा सरस तात ग धवा सदानघ । त य वीर य च रतं गाय तो रमय त माम् ।। २० ।। न पाप भीम! इस थानपर ग धव और अ सराएँ वीरवर रघुनाथजीके च र को गाकर मुझे आन दत करते रहते ह ।। २० ।। अयं च माग म यानामग यः कु न दन । ततोऽहं वान् माग तवेमं दे वसे वतम् ।। २१ ।। धषयेद ् वा शपेद ् वा प मा क द त भारत । द ो दे वपथो ेष ना ग छ त मानुषाः । यदथमागत ा स अत एव सर तत् ।। २२ ।। कु न दन! यह माग मनु य के लये अग य है। अतः इस दे वसे वत पथको मने इसी लये तु हारे लये रोक दया था क इस मागसे जानेपर कोई तु हारा तर कार न कर दे या शाप न दे दे ; य क यह द दे वमाग है। इसपर मनु य नह जाते ह। भारत! तुम जहाँ जानेके लये आये हो वह सरोवर तो यह है ।। २१-२२ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायां हनुम मसंवादे अ च वारशद धकशततमोऽ यायः ।। १४८ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम हनुमान्जी और भीमसेनका संवाद नामक एक सौ अड़तालीसवाँ अ याय पूरा आ ।। १४८ ।।

एकोनप चाशद धकशततमोऽ यायः हनुमान्जीके ारा चार युग के धम का वणन वैश पायन उवाच एवमु ो महाबा भ मसेनः तापवान् । णप य ततः ी या ातरं मानसः ।। १ ।। उवाच णया वाचा हनूम तं कपी रम् । मया ध यतरो ना त यदाय वानहम् ।। २ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! हनुमान्जीके ऐसा कहनेपर तापी वीर महाबा भीमसेनके मनम बड़ा हष आ। उ ह ने बड़े ेमसे अपने भाई वानरराज हनुमान्को णाम करके मधुर वाणीम कहा—‘अहा! आज मेरे समान बड़भागी सरा कोई नह है; य क आज मुझे अपने ये ाताका दशन आ है ।। १-२ ।। अनु हो मे सुमहां तृ त तव दशनात् । एकं तु कृत म छा म वया यमा मनः ।। ३ ।। ‘आय! आपने मुझपर बड़ी कृपा क है। आपके दशनसे मुझे बड़ा सुख मला है। अब म पुनः आपके ारा अपना एक और य काय पूण करना चाहता ँ ।। यत् ते तदाऽऽसीत् लवतः सागरं मकरालयम् । पम तमं वीर त द छा म नरी तुम् ।। ४ ।। एवं तु ो भ व या म ा या म च ते वचः । एवमु ः स तेज वी ह य ह रर वीत् ।। ५ ।। ‘वीरवर! मकरालय समु को लाँघते समय आपने जो अनुपम प धारण कया था, उसका दशन करनेक मुझे बड़ी इ छा हो रही है। उसे दे खनेसे मुझे संतोष तो होगा ही, आपक बातपर ा भी हो जायगी।’ भीमसेनके ऐसा कहनेपर महातेज वी हनुमान्जीने हँसकर कहा— ।। ४-५ ।। न त छ यं वया ु ं पं ना येन केन चत् । कालाव था तदा या वतते सा न सा तम् ।। ६ ।। ‘भैया! तुम उस व पको नह दे ख सकते, कोई सरा मनु य भी उसे नह दे ख सकता। उस समयक अव था कुछ और ही थी, अब वह नह है ।। ६ ।। अ यः कृतयुगे काल ेतायां ापरे परः । अयं वंसनः कालो ना तद् पम त मे ।। ७ ।। भू मन ो नगाः शैलाः स ा दे वा महषयः । कालं समनुवत ते यथा भावा युगे युगे ।। ८ ।। बलव म भावा ह हीय यु व त च । तदलं बत तद् पं ु ं कु कुलो ह । ो

युगं समनुवता म कालो ह र त मः ।। ९ ।। ‘स ययुगका समय सरा था तथा ेता और ापरका सरा ही है। यह काल सभी व तु को न करनेवाला है। अब मेरा वह प है ही नह । पृ वी, नद , वृ , पवत, स , दे वता और मह ष—ये सभी कालका अनुसरण करते ह। येक युगके अनुसार सभी व तु के शरीर, बल और भावम यूना धकता होती रहती है। अतः कु े ! तुम उस व पको दे खनेका आ ह न करो। म भी युगका अनुसरण करता ँ; य क कालका उ लंघन करना कसीके लये भी अ य त क ठन है’ ।। ७—९ ।। भीम उवाच युगसं यां समाच व आचारं च युगे युगे । धमकामाथभावां कमवीय भवाभवौ ।। १० ।। भीमसेनने कहा—क प वर! आप मुझे युग क सं या बताइये और येक युगम जो आचार, धम, अथ एवं कामके त व, शुभाशुभ कम, उन कम क श तथा उ प और वनाशा द भाव होते ह, उनका भी वणन क जये ।। १० ।। हनूमानुवाच कृतं नाम युगं तात य धमः सनातनः । कृतमेव न कत ं त मन् काले युगो मे ।। ११ ।। हनुमान्जी बोले—तात! सबसे पहला कृतयुग है। उसम सनातनधमक पूण थ त रहती है। उसका कृतयुग नाम इस लये पड़ा है क उस उ म युगके लोग अपना सब कत कम स प ही कर लेते थे। उनके लये कुछ करना शेष नह रहता था (अतः ‘क ृ तम् एव सव शुभं य मन् युगे’इस ु प के अनुसार वह ‘कृतयुग’ कहलाया) ।। ११ ।। न त धमाः सीद त ीय ते न च वै जाः । ततः कृतयुगं नाम कालेन गुणतां गतम् ।। १२ ।। उस समय धमका ास नह होता था। जाका अथात् (माता- पताके रहते ए) संतानका नाश नह होता था। तदन तर काल मसे उसम गौणता आ गयी ।। १२ ।। दे वदानवग धवय रा सप गाः । नासन् कृतयुगे तात तदा न य व यः ।। १३ ।। तात! कृतयुगम दे वता, दानव, ग धव, य , रा स और नाग नह थे, अथात् ये पर पर भेद-भाव नह रखते थे। उस समय य- व यका वहार भी नह था ।। १३ ।। न सामऋ यजुवणाः या नासी च मानवी । अ भ याय फलं त धमः सं यास एव च ।। १४ ।। ऋक्, साम और यजुवदके म वण का पृथक्-पृथक् वभाग नह था। कोई मानवी या (कृ ष आ द) भी नह होती थी। उस समय च तन करनेमा से सबको अभी फलक ा त हो जाती थी। स ययुगम एक ही धम था, वाथका याग ।। १४ ।। न त मन् युगसंसग ाधयो ने य यः । नासूया ना प दतं न दप ना प वैकृतम् ।। १५ ।। ी ी ो ी ी ी ी े ी ी ोई

उस युगम बीमारी नह होती थी। इ य म भी ीणता नह आने पाती थी। कोई कसीके गुण म दोष-दशन नह करता था। कसीको ःखसे रोना नह पड़ता था और न कसीम घमंड था; तथा न कोई अ य वकार ही होता था ।। १५ ।। न व हः कुत त न े षो न च पैशुनम् । न भयं ना प संतापो न चे या न च म सरः ।। १६ ।। कह लड़ाई-झगड़ा नह था, आलसी भी नह थे। े ष, चुगली, भय, संताप, ई या और मा सय भी नह था* ।। १६ ।। ततः परमकं सा ग तय गनां परा । आ मा च सवभूतानां शु लो नारायण तदा ।। १७ ।। उस समय यो गय के परम आ य और स पूण भूत क अ तरा मा पर व प भगवान् नारायणका वण शु ल था ।। १७ ।। ा णाः या वै याः शू ा कृतल णाः । कृते युगे समभवन् वकम नरताः जाः ।। १८ ।। ा ण, य, वै य और शू सभी शम-दम आ द वभाव स शुभ ल ण से स प थे। स ययुगम सम त जा अपने-अपने कत कम म त पर रहती थी ।। १८ ।। समा यं समाचारं सम ानं च केवलम् । तदा ह समकमाणो वणा धमानवा ुवन् ।। १९ ।। उस समय पर परमा मा ही सबके एकमा आ य थे। उ ह क ा तके लये सदाचारका पालन कया जाता था। सब लोग एक परमा माका ही ान ा त करते थे। सभी वण के मनु य पर परमा माके उ े यसे ही सम त स कम का अनु ान करते थे और इस कार उ ह उ म धम-फलक ा त होती थी ।। १९ ।। एकदे वसदायु ा एकम व ध याः । पृथ धमा वेकवेदा धममेकमनु ताः ।। २० ।। सब लोग सदा एक परमा मदे वम ही च लगाये रहते थे। सब लोग एक परमा माके ही नामका जप और उ ह क सेवा-पूजा कया करते थे। सबके वणा मानुसार पृथक्पृथक् धम होनेपर भी वे एकमा वेदको ही माननेवाले थे और एक ही सनातनधमके अनुयायी थे ।। चातुरा ययु े न कमणा कालयो गना । अकामफलसंयोगात् ा ुव त परां ग तम् ।। २१ ।। स ययुगके लोग समय-समयपर कये जानेवाले चार आ मस ब धी स कम का अनु ान करके कम-फलक कामना और आस न होनेके कारण परम ग त ा त कर लेते थे ।। २१ ।। आ मयोगसमायु ो धम ऽयं कृतल णः । कृते युगे चतु पाद ातुव य य शा तः ।। २२ ।। ो







च वृ य को परमा माम था पत करके उनके साथ एकताक ा त करानेवाला यह योग नामक धम स ययुगका सूचक है। स ययुगम चार वण का यह सनातन धम चार चरण से स प —स पूण पसे व मान था ।। २२ ।। एतत् कृतयुगं नाम ैगु यप रव जतम् ेताम प नबोध वं य मन् स ं वतते ।। २३ ।। यह तीन गुण से र हत स ययुगका वणन आ। अब ेताका वणन सुनो, जसम य कमका आर भ होता है ।। पादे न सते धम र तां या त चा युतः । स य वृ ा नराः याधमपरायणाः ।। २४ ।। उस समय धमके एक चरणका ास हो जाता है और भगवान् अ युतका व प लाल वणका हो जाता है। लोग स यम त पर रहते ह। शा ो य या तथा धमके पालनम परायण रहते ह ।। २४ ।। ततो य ाः वत ते धमा व वधाः याः । ेतायां भावसंक पाः यादानफलोपगाः ।। २५ ।। ेतायुगम ही य , धम तथा नाना कारके स कम आर भ होते ह। लोग को अपनी भावना तथा संक पके अनुसार वेदो कम तथा दान आ दके ारा अभी फलक ा त होती है ।। २५ ।। चल त न वै धमात् तपोदानपरायणाः । वधम थाः याव तो नरा ेतायुगेऽभवन् ।। २६ ।। ेतायुगके मनु य तप और दानम त पर रहकर अपने धमसे कभी वच लत नह होते थे। सभी वधमपरायण तथा यावान् थे ।। २६ ।। ापरे च युगे धम भागोनः वतते । व णुव पीततां या त चतुधा वेद एव च ।। २७ ।। ापरम हमारे धमके दो ही चरण रह जाते ह, उस समय भगवान् व णुका व प पीले वणका हो जाता है और वेद (ऋक्, यजुः, साम और अथव—इन) चार भाग म बँट जाता है ।। २७ ।। ततोऽ ये च चतुवदा वेदा तथापरे । वेदा ैकवेदा ा यनृच तथापरे ।। २८ ।। उस समय कुछ ज चार वेद के ाता, कुछ तीन वेद के व ान्, कुछ दो ही वेद के जानकार, कुछ एक ही वेदके प डत और कुछ वेदक ऋचा के ानसे सवथा शू य होते ह ।। २८ ।। एवं शा ेषु भ ेषु ब धा नीयते या । तपोदान वृ ा च राजसी भव त जा ।। २९ ।। इस कार भ - भ शा के होनेसे उनके बताये ए कम म भी अनेक भेद हो जाते ह तथा जा तप और दान—इन दो ही धम म वृत होकर राजसी हो जाती है ।। २९ ।। एकवेद य चा ानाद् वेदा ते बहवः कृताः । े े

स व य चेह व ंशात् स ये क दव थतः ।। ३० ।। ापरम स पूण एक वेदका भी ान न होनेसे वेदके ब त-से वभाग कर लये गये ह। इस युगम सा वक बु का य होनेसे कोई वरला ही स यम थत होता है ।। ३० ।। स यात् यवमानानां ाधयो बहवोऽभवन् । कामा ोप वा ैव तदा वै दै वका रताः ।। ३१ ।। स यसे होनेके कारण ापरके लोग म अनेक कारके रोग उ प हो जाते ह। उनके मनम अनेक कारक कामनाएँ पैदा होती ह और वे ब त-से दै वी उप व से भी पी ड़त हो जाते ह ।। ३१ ।। यैर मानाः सुभृशं तप त य त मानवाः । कामकामाः वगकामा य ां त व त चापरे ।। ३२ ।। उन सबसे अ य त पी ड़त होकर लोग तप करने लगते ह। कुछ लोग भोग और वगक कामनासे य का अनु ान करते ह ।। ३२ ।। एवं ापरमासा जाः ीय यधमतः । पादे नैकेन कौ तेय धमः क लयुगे थतः ।। ३३ ।। इस कार ापरयुगके आनेपर अधमके कारण जा ीण होने लगती है। (त प ात् क लयुगका आगमन होता है।) कु तीन दन! क लयुगम धम एक ही चरणसे थत होता है ।। ३३ ।। तामसं युगमासा कृ णो भव त केशवः । वेदाचाराः शा य त धमय या तथा ।। ३४ ।। इस तमोगुणी युगको पाकर भगवान् व णुके ी व हका रंग काला हो जाता है। वै दक सदाचार, धम तथा य -कम न हो जाते ह ।। ३४ ।। ईतयो ाधय त दोषाः ोधादय तथा । उप वाः वत ते आधयः ु यं तथा ।। ३५ ।। ई त, ा ध, आल य, ोध आ द दोष, मान सक रोग तथा भूख- यासका भय—ये सभी उप व बढ़ जाते ह ।। ३५ ।। युगे वावतमानेषु धम ावतते पुनः । धम ावतमाने तु लोको ावतते पुनः ।। ३६ ।। युग के प रवतन होनेपर आनेवाले युग के अनुसार धमका भी ास होता जाता है। इस कार धमके ीण होनेसे लोक (क सुख-सु वधा)-का भी य होने लगता है ।। ३६ ।। लोके ीणे यं या त भावा लोक वतकाः । युग यकृता धमाः ाथना न वकुवते ।। ३७ ।। लोकके ीण होनेपर उसके वतक भाव का भी य हो जाता है। युग- यज नत धम मनु यक अभी कामना के वपरीत फल दे ते ह ।। ३७ ।। एतत् क लयुगं नाम अ चराद् यत् वतते । युगानुवतनं वेतत् कुव त चरजी वनः ।। ३८ ।। ो









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यह क लयुगका वणन कया गया, जो शी ही आनेवाला है। चरजीवीलोग भी इस कार युगका अनुसरण करते ह ।। ३८ ।। य च ते म प र ाने कौतूहलमरदम । अनथकेषु को भावः पु ष य वजानतः ।। ३९ ।। श ुदमन! तु ह मेरे पुरातन व पको दे खने या जाननेके लये जो कौतूहल आ है, वह ठ क नह है। कसी भी समझदार मनु यका नरथक वषय के लये आ ह य होना चा हये? ।। ३९ ।। एतत् ते सवमा यातं य मां वं प रपृ छ स । युगसं यां महाबाहो व त ा ु ह ग यताम् ।। ४० ।। महाबाहो! तुमने युग क सं याके वषयम मुझसे जो कया है, उसके उ रम मने यह सब बात बतायी ह। तु हारा क याण हो, अब तुम लौट जाओ ।। ४० ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायां कदलीष डे हनुम मसंवादे एकोनप चाशद धकशततमोऽ यायः ।। १४९ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत लोमशतीथया ाके संगम कदलीवनके भीतर हनुमान्जी और भीमसेनका संवाद वषयक एक सौ उनचासवाँ अ याय पूरा आ ।। १४९ ।।

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स ययुगके मनु य आ द ा णय म दोष का अभाव बतलाया है, उसका यह अ भ ाय समझना चा हये क अ धकांशम उनम इन दोष का अभाव था।

प चाशद धकशततमोऽ यायः ीहनुमान्जीके ारा भीमसेनको अपने वशाल पका दशन और चार वण के धम का तपादन भीमसेन उवाच पूव पम ् वा ते न या या म कथंचन । य द तेऽहमनु ा ो दशया मानमा मना ।। १ ।। भीमसेनने कहा—क प वर! म आपका वह पूव प दे खे बना कसी कार नह जाऊँगा। य द म आपका कृपापा होऊँ, तो आप वयं ही अपने-आपको मेरे सामने कट कर द जये ।। १ ।। वैश पायन उवाच एवमु तु भीमेन मतं कृ वा लवंगमः । तद् पं दशयामास यद् वै सागरलङ् घने ।। २ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! भीमसेनके ऐसा कहनेपर हनुमान्जीने मुसकराकर उ ह अपना वह प दखाया, जो उ ह ने समु -लंघनके समय धारण कया था ।। २ ।। ातुः यमभी सन् वै चकार सुमहद् वपुः । दे ह त य ततोऽतीव वध यायाम व तरैः ।। ३ ।। स मं कदलीष डं छादय मत ु तः । गरे ो यमा य त थौ त च वानरः ।। ४ ।। उ ह ने अपने भाईका य करनेक इ छासे अ य त वशाल शरीर धारण कया। उनका शरीर लंबाई, चौड़ाई और ऊँचाईम ब त बड़ा हो गया। वे अ मत तेज वी वानरवीर वृ स हत समूचे कदलीवनको आ छा दत करते ए ग धमादन पवतक ऊँचाईको भी लाँघकर वहाँ खड़े हो गये ।। ३-४ ।। समु तमहाकायो तीय इव पवतः । ता े ण ती णदं ो भृकुट कु टलाननः ।। ५ ।। उनका वह उ त वशाल शरीर सरे पवतके समान तीत होता था। लाल आँख , तीखी दाढ़ और टे ढ़ भ ह से यु उनका मुख था ।। ५ ।।

द घला लमा व य दशो ा य थतः क पः । तद् पं महदाल य ातुः कौरवन दनः ।। ६ ।। व स मये तदा भीमो ज षे च पुनः पुनः । तमक मव तेजो भः सौवण मव पवतम् ।। ७ ।। द त मव चाकाशं ् वा भीमो यमीलयत् । आबभाषे च हनुमान् भीमसेनं मय व ।। ८ ।। वे वानरवीर अपनी वशाल पूँछको हलाते ए स पूण दशा को घेरकर खड़े थे। भाईके उस वराट् पको दे खकर कौरवन दन भीमको बड़ा आ य आ। उनके शरीरम बार-बार हषसे रोमांच होने लगा। हनुमान्जी तेजम सूयके समान दखायी दे ते थे। उनका शरीर सुवणमय मे पवतके समान था और उनक भासे सारा आकाशम डल व लतसा जान पड़ता था। उनक ओर दे खकर भीमसेनने दोन आँख बंद कर ल । तब हनुमान्जी उनसे मुसकराते ए-से बोले— ।। ६—८ ।। एताव दह श वं ु ं पं ममानघ । वधऽहं चा यतो भूयो याव मे मन स थतम् । भीमश ुषु चा यथ वधते मू तरोजसा ।। ९ ।। ‘अनघ! तुम यहाँ मेरे इतने ही बड़े पको दे ख सकते हो, परंतु म इससे भी बड़ा हो सकता ँ। मेरे मनम जतने बड़े व पक भावना होती है, उतना ही म बढ़ सकता ँ। भयानक श ु के समीप मेरी मू त अ य त ओजके साथ बढ़ती है’ ।। ९ ।।



वैश पायन उवाच तद तं महारौ ं व यपवतसं नभम् । ् वा हनूमतो व म स ा तः पवना मजः ।। १० ।। युवाच ततो भीमः स तनू हः । कृता लरद ना मा हनूम तमव थतम् ।। ११ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! हनुमान्जीका वह व य पवतके समान अ य त भयंकर और अ त शरीर दे खकर वायुपु भीमसेन घबरा गये। उनके शरीरम र गटे खड़े होने लगे। उस समय उदार- दय भीमने हाथ जोड़कर अपने सामने खड़े ए हनुमान्जीसे कहा— ।। १०-११ ।। ं माणं वपुलं शरीर या य ते वभो । संहर व महावीय वयमा मानमा मना ।। १२ ।। ‘ भो! आपके इस शरीरका वशाल माण य दे ख लया। महापरा मी वीर! अब आप वयं ही अपने शरीरको समेट ली जये ।। १२ ।। न ह श नो म वां ु ं दवाकर मवो दतम् । अ मेयमनाधृ यं मैनाक मव पवतम् ।। १३ ।। ‘आप तो सूयके समान उ दत हो रहे ह। म आपक ओर दे ख नह सकता। आप अ मेय तथा धष मैनाक पवतके समान खड़े ह ।। १३ ।। व मय ैव मे वीर सुमहान् मनसोऽ वै । यद् राम व य पा थे वयं रावणम यगात् ।। १४ ।। ‘वीर! आज मेरे मनम इस बातको लेकर बड़ा आ य हो रहा है क आपके नकट रहते ए भी भगवान् ीरामने वयं ही रावणका सामना कया ।। १४ ।। वमेव श तां लङ् कां सयोधां सहवाहनाम् । वबा बलमा य वनाश यतुम सा ।। १५ ।। ‘आप तो अकेले ही अपने बा बलका आ य लेकर यो ा और वाहन स हत समूची लंकाको अनायास न कर सकते थे ।। १५ ।। न ह ते क चद ा यं मा ता मज व ते । तव नैक य पया तो रावणः सगणो यु ध ।। १६ ।। ‘मा तन दन! आपके लये कुछ भी अस भव नह है। समरभू मम अपने सै नक स हत रावण अकेले आपका ही सामना करनेम समथ नह था’ ।। १६ ।। वैश पायन उवाच एवमु तु भीमेन हनूमान् लवगो मः । युवाच ततो वा यं न धग भीरया गरा ।। १७ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! भीमके ऐसा कहनेपर क प े हनुमान्जीने नेहयु ग भीर वाणीम इस कार उ र दया— ।। १७ ।। हनूमानुवाच े ो

एवमेत महाबाहो यथा वद स भारत । भीमसेन न पया तो ममासौ रा साधमः ।। १८ ।। हनुमान्जी बोले—भारत! महाबा भीमसेन! तुम जैसा कहते हो, ठ क ही है। वह अधम रा स वा तवम मेरा सामना नह कर सकता था ।। १८ ।। मया तु नहते त मन् रावणे लोकक टके । क तन येद ् राघव य तत एत पे तम् ।। १९ ।। कतु स पूण लोक को काँटेके समान क दे नेवाला रावण य द मेरे ही हाथ मारा जाता, तो भगवान् ीरामच जीक क त न हो जाती। इसी लये मने उसक उपे ा कर द ।। १९ ।। तेन वीरेण तं ह वा सगणं रा साधमम् । आनीता वपुरं सीता क त ा या पता नृषु ।। २० ।। वीरवर ीरामच जी सेनास हत उस अधम रा सका वध करके सीताजीको अपनी अयो यापुरीम ले आये। इससे मनु य म उनक क तका भी व तार आ ।। तद् ग छ वपुल ातुः य हते रतः । अ र ं ेमम वानं वायुना प रर तः ।। २१ ।। अ छा, महा ा ! अब तुम अपने भाईके य एवं हतम त पर रहकर वायुदेवतासे सुर त हो लेशर हत मागसे कुशलपूवक जाओ ।। २१ ।। एष प थाः कु े सौग धकवनाय ते । यसे धनदो ानं र तं य रा सैः ।। २२ ।। कु े ! यह माग सौग धक वनको जाता है। इससे जानेपर तु ह कुबेरका बगीचा दखायी दे गा, जो य तथा रा स से सुर त है ।। २२ ।। न च ते तरसा कायः कुसुमावचयः वयम् । दै वता न ह मा या न पु षेण वशेषतः ।। २३ ।। वहाँ जाकर तुम ज द से वयं ही उसके फूल न तोड़ने लगना। मनु य को तो वशेष पसे दे वता का स मान ही करना चा हये ।। २३ ।। ब लहोमनम कारैम ै भरतषभ । दै वता न सादं ह भ या कुव त भारत ।। २४ ।। भरत े ! पूजा, होम, नम कार, म जप तथा भ भावसे दे वता स होकर कृपा करते ह ।। २४ ।। मा तात साहसं काष ः वधम प रपालय । वधम थः परं धम बु य व गमय व च ।। २५ ।। तात! तुम ःसाहस न कर बैठना, अपने धमका पालन करना, वधमम थत रहकर तुम े धमको समझो और उसका पालन करो ।। २५ ।। न ह धमम व ाय वृ ाननुपसे च । धमाथ वे दतुं श यौ बृह प तसमैर प ।। २६ ।। ो









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य क धमको जाने बना और वृ पु ष क सेवा कये बना बृह प त-जैसे व ान के लये भी धम और अथके त वको समझना स भव नह है ।। २६ ।। अधम य धमा यो धम ाधमसं तः । स व ेयो वभागेन य मु यबु यः ।। २७ ।। कह अधम ही धम कहलाता है और कह धम भी अधम कहा जाता है। अतः धम और अधमके व पका पृथक्-पृथक् ान ा त करना चा हये। बु हीनलोग इसम मो हत हो जाते ह ।। २७ ।। आचारस भवो धम धम वेदाः त ताः । वेदैय ाः समु प ा य ैदवाः त ताः ।। २८ ।। आचारसे धमक उ प होती है। धमम वेद क त ा है। वेद से य कट ए ह और य से दे वता क थ त है ।। २८ ।। वेदाचार वधानो ै य ैधाय त दे वताः । बृह प युशनः ो ै नयैधाय त मानवाः ।। २९ ।। वेदो आचारके वधानसे बतलाये ए य ारा दे वता क आजी वका चलती है और बृह प त तथा शु ाचायक कही ई नी तयाँ मनु य के जीवन- नवाहक आधारभू म ह ।। २९ ।। प याकरव ण या भः कृ यागोजा वपोषणैः । व या धायते सव धमरेतै जा त भः ।। ३० ।। हाट-बाजार करना, कर (लगान या टै स) लेना, ापार, खेती, गोपालन, भेड़ और बकर का पोषण तथा व ा पढ़ना-पढ़ाना—इन धमानुकूल वृ य ारा जगण स पूण जगत्क र ा करते ह ।। ३० ।। यी वाता द डनी त त ो व ा वजानताम् । ता भः स यक् यु ा भल कया ा वधीयते ।। ३१ ।। वेद यी, वाता (कृ ष-वा ण य आ द) और द डनी त—ये तीन व ाएँ ह (इनम वेदा ययन ा णक , वाता वै यक और द डनी त यक जी वकावृ है)। व पु ष ारा इन वृ य का ठ क-ठ क योग होनेसे लोकया ाका नवाह होता है ।। ३१ ।। सा चेद ् धमकृता न यात् यीधममृते भु व । द डनी तमृते चा प नमयाद मदं भवेत् ।। ३२ ।। य द लोकया ा धमपूवक न चलायी जाय, इस पृ वीपर वेदो धमका पालन न हो और द डनी त भी उठा द जाय तो यह सारा जगत् मयादाहीन हो जाय ।। ३२ ।। वाताधम व त यो वन येयु रमाः जाः । सु वृ ै भ तैधम सूय त वै जाः ।। ३३ ।। य द यह जा वाता-धम (कृ ष, गोर ा और वा ण य) म वृ न हो तो न हो जायगी। इन तीन क स यक् वृ होनेसे जा धमका स पादन करती है ।। ३३ ।। जातीनामृतं धम ेक ैवैकल णः । य ा ययनदाना न यः साधारणाः मृताः ।। ३४ ।। ै ( )

जा तय का मु य धम है स य (स य-भाषण, स य- वहार, स ाव)। यह धमका एक धान ल ण है। य , वा याय और दान—ये तीन धम जमा के सामा य धम माने गये ह ।। ३४ ।। याजना यापनं व े धम ैव त हः । पालनं याणां वै वै यधम पोषणम् ।। ३५ ।। य कराना, वेद और शा को पढ़ाना तथा दान हण करना—यह ा णका ही आजी वका धान धम है। जा-पालन य का और पशु-पालन वै य का धम है ।। ३५ ।। शु ूषा च जातीनां शू ाणां धम उ यते । भै यहोम तैह ना तथैव गु वा सताः ।। ३६ ।। ा ण आ द तीन वण क सेवा करना शू का धम बताया गया है। तीन वण क सेवाम रहनेवाले शू के लये भ ा, होम और त मना है ।। ३६ ।। धम ऽ कौ तेय तव धम ऽ र णम् । वधम तप व वनीतो नयते यः ।। ३७ ।। कु तीन दन! सबक र ा करना यका धम है, अतः तु हारा धम भी यही है। अपने धमका पालन करो। वनयशील बने रहो और इ य को वशम रखो ।। ३७ ।। वृ ै ः स म य स बु म ः ुता वतैः । आ थतः शा त द डेन सनी प रभूयते ।। ३८ ।। वेद-शा के व ान्, बु मान् तथा बड़े-बूढ़े े पु ष से सलाह करके उनका कृपापा बना आ राजा ही द डनी तके ारा शासन कर सकता है। जो राजा सन म आस होता है, उसका पराभव हो जाता है ।। ३८ ।। न हानु हैः स यग् यदा राजा वतते । तदा भव त लोक य मयादाः सु व थताः ।। ३९ ।। जब राजा न ह और अनु हके ारा जावगके साथ यथो चत बताव करता है, तभी लोकक स पूण मयादाएँ सुर त होती ह ।। ३९ ।। त माद् दे शे च ग च श ु म बलेषु च । न यं चारेण बो ं थानं वृ ः य तथा ।। ४० ।। इस लये राजाको उ चत है क वह दे श और गम अपने श ु और म के सै नक क थ त, वृ और यका गु तचर ारा सदा पता लगाता रहे ।। ४० ।। रा ामुपाय ार बु म परा माः । न ह हौ चैव दा यं वै कायसाधकम् ।। ४१ ।। साम, दान, द ड, भेद—ये चार उपाय, गु तचर, उ म बु , सुर त म णा, परा म, न ह, अनु ह और चतुरता—ये राजा के लये काय- स के साधन ह ।। सा ना दानेन भेदेन द डेनोपे णेन च । साधनीया न कमा ण समास ासयोगतः ।। ४२ ।। े









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साम, दान, भेद, द ड और उपे ा—इन नी तय मसे एक-दोके ारा या सबके एक साथ योग ारा राजा को अपने काय स करने चा हये ।। ४२ ।। म मूला नयाः सव चारा भरतषभ । सुम तेन या स तां जैः सह म येत् ।। ४३ ।। भरत े ! सारी नी तय और गु तचर का मूल आधार है म णाको गु त रखना। उ म म णा या वचारसे जो स ा त होती है, उसके लये ज के साथ गु त परामश करना चा हये ।। ४३ ।। या मूढेन बालेन लुधेन लघुना प वा । न म यीत गु ा न येषु चो मादल णम् ।। ४४ ।। ी, मूख, बालक, लोभी और नीच पु ष के साथ तथा जसम उ मादका ल ण दखायी दे , उसके साथ भी गु त परामश न करे ।। ४४ ।। म येत् सह व ः श ै ः कमा ण कारयेत् । न धै नी त व यासान् मूखान् सव वजयेत् ।। ४५ ।। व ान के साथ ही गु त म णा करनी चा हये। जो श शाली ह , उ ह से काय कराने चा हये। जो नेही (सु द्) ह उ ह के ारा नी तके योगका काम कराना चा हये। मूख को तो सभी काय से अलग रखना चा हये ।। ४५ ।। धा मकान् धमकायषु अथकायषु प डतान् । ीषु लीबान् नयु ीत ू रान् ू रेषु कमसु ।। ४६ ।। राजाको चा हये क वह धमके काय म धामक पु ष को, अथस ब धी काय म अथशा के प डत को, य क दे ख-भालके लये नपुंसक को और कठोर काय म ू र वभावके मनु य को लगावे ।। ४६ ।। वे य ैव परे य कायाकायसमु वा । बु ः कमसु व ेया रपूणां च बलाबलम् ।। ४७ ।। ब त-से काय को आर भ करते समय अपने तथा श ुप के लोग से भी यह सलाह लेनी चा हये क अमुक काम करनेयो य है या नह । साथ ही, श ुक बलता और बलताको भी जाननेका य न करना चा हये ।। ४७ ।। बु या व तप ेषु कुयात् साधु वनु हम् । न हं चा य श ेषु नमयादे षु कारयेत् ।। ४८ ।। बु से सोच- वचारकर अपनी शरणम आये ए े कम करनेवाले पु ष पर अनु ह करना चा हये और मयादा भंग करनेवाले पु ष को द ड दे ना चा हये ।। ४८ ।। न हे हे स यग् यदा राजा वतते । तदा भव त लोक य मयादा सु व थता ।। ४९ ।। जब राजा न ह और अनु हम ठ क तौरसे वृ होता है, तभी लोकक मयादा सुर त रहती है ।। ४९ ।। एष तेऽ भ हतः पाथ घोरो धम र वयः । तं वधम वभागेन वनय थोऽनुपालय ।। ५० ।। ी े ो े ै े ो

कु तीन दन! यह मने तु ह कठोर रा य-धमका उपदे श दया है। इसके ममको समझना अ य त क ठन है। तुम अपने धमके वभागानुसार वनीतभावसे इसका पालन करो ।। ५० ।। तपोधमदमे या भ व ा या त यथा दवम् । दाना तय याधमया त वै या सद्ग तम् ।। ५१ ।। ं या त तथा वग भु व न हपालनैः । स यक् णीतद डा ह काम े ष वव जताः । अलुधा वगत ोधाः सतां या त सलोकताम् ।। ५२ ।। जैसे तप या, धम, इ य-संयम और य ानु ानके ारा ा ण उ म लोकम जाते ह तथा जस कार वै य दान और आ त य प धम से उ म ग त ा त कर लेते ह, उसी कार इस लोकम न ह और अनु हके यथो चत योगसे य वगलोकम जाता है। जनके ारा द डनी तका उ चत री तसे योग कया जाता है, जो राग- े षसे र हत, लोभशू य तथा ोधहीन ह; वे य स पु ष को ा त होनेवाले लोक म जाते ह ।। इ त ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायां हनुम मसेनसंवादे प चाशद धकशततमोऽ यायः ।। १५० ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम हनुमान्जी और भीमसेनका संवाद वषयक एक सौ पचासवाँ अ याय पूरा आ ।। १५० ।।

एकप चाशद धकशततमोऽ यायः ीहनुमान्जीका भीमसेनको आ ासन और वदा दे कर अ तधान होना वैश पायन उवाच ततः सं य वपुलं तद् वपुः कामतः कृतम् । भीमसेनं पुनद या पय वजत वानरः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर अपनी इ छासे बढ़ाये ए उस वशाल शरीरका उपसंहार कर वानरराज हनुमान्जीने अपनी दोन भुजा ारा भीमसेनको दयसे लगा लया ।। १ ।। प र व य त याशु ा ा भीम य भारत । मो नाशमुपाग छत् सव चासीत् द णम् ।। २ ।। भारत! भाईका आ लगन ा त होनेपर भीमसेनक सारी थकावट त काल न हो गयी और सब कुछ उ ह अनुकूल तीत होने लगा ।। २ ।। बलं चा तबलो मेने न मेऽ त स शो महान् । ततः पुनरथोवाच पय ुनयनो ह रः ।। ३ ।। भीममाभा य सौहादाद् बा पगद्गदया गरा । ग छ वीर वमावासं मत ोऽ म कथा तरे ।। ४ ।। अ य त बलशाली भीमसेनको यह अनुभव आ क मेरा बल ब त बढ़ गया। अब मेरे समान सरा कोई महान् नह है। फर हनुमान्जीने अपने ने म आँसू भरकर सौहादसे गद्गदवाणी ारा भीमसेनको स बो धत करके कहा—‘वीर! अब तुम अपने नवासथानपर जाओ। बातचीतके संगम कभी मेरा भी मरण करते रहना ।। ३-४ ।।

इह थ कु े न नवे ोऽ म क ह चत् । धनद यालया चा प वसृ ानां महाबल ।। ५ ।। दे शकाल इहायातुं दे वग धवयो षताम् । ममा प सफलं च ुः मा रत ा म राघवम् ।। ६ ।। रामा भधानं व णुं ह जगद्धृदयन दनम् । सीताव ार व दक दशा य वा तभा करम् ।। ७ ।। मानुषं गा सं पश ग वा भीम वया सह । तद म शनं वीर कौ तेयामोघम तु ते ।। ८ ।। ‘कु े ! म इस थानपर रहता ँ, यह बात कभी कसीसे न कहना। महाबली वीर! अब कुबेरके भवनसे भेजी ई दे वांगना तथा ग धव-सु द रय के यहाँ आनेका समय हो गया है। भीम! तु ह दे खकर मेरी भी आँख सफल हो गय । तु हारे साथ मलकर तु हारे मानवशरीरका पश करके मुझे उन भगवान् रामच जीका मरण हो आया है, जो ीरामनामसे स सा ात् व णु ह। जगत्के दयको आन द दान करनेवाले, म थलेशन दनी सीताके मुखार व दको वक सत करनेके लये सूयके समान तेज वी तथा दशमुख रावण पी अ धकाररा शको न करनेके लये सा ात् भुवन-भा कर प ह। वीर कु तीकुमार! तुमने जो मेरा दशन कया है, वह थ नह जाना चा हये ।। ५—८ ।। ातृ वं वं पुर कृ य वरं वरय भारत ।

य द ताव मया ु ा ग वा वारणसा यम् ।। ९ ।। धातरा ा नह त ा यावदे तत् करो यहम् । शलया नगरं वा प म दत ं मया य द ।। १० ।। बद् वा य धनं चा आनया म तवा तकम् । यावदे तत् करो य कामं तव महाबल ।। ११ ।। ‘भारत! तुम मुझे अपना बड़ा भाई समझकर कोई वर माँगो। य द तु हारी इ छा हो क म ह तनापुरम जाकर तु छ धृतरा-पु को मार डालूँ तो म यह भी कर सकता ँ अथवा य द तुम चाहो क म प थर क वषासे सारे नगरको र दकर धूलम मला ँ अथवा य धनको बाँधकर अभी तु हारे पास ला ँ तो यह भी कर सकता ँ। महाबली वीर! तु हारी जो इ छा हो, वही पूण कर ँ गा’ ।। ९—११ ।।

वैश पायन उवाच भीमसेन तु तद् वा यं ु वा त य महा मनः । युवाच हनूम तं ेना तरा मना ।। १२ ।। कृतमेव वया सव मम वानरपु व । व त तेऽ तु महाबाहो कामये वां सीद मे ।। १३ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! महा मा हनुमान्जीका यह वचन सुनकर भीमसेनने हष लासपूण दयसे हनुमान्जीको इस कार उ र दया—‘वानर शरोमणे! आपने मेरा यह सब काय कर दया। आपका क याण हो। महाबाहो! अब आपसे मेरी इतनी ही कामना है क आप मुझपर स र हये—मुझपर आपक कृपा बनी रहे ।। १२-१३ ।। सनाथाः पा डवाः सव वया नाथेन वीयवन् । तवैव तेजसा सवान् वजे यामो वयं परान् ।। १४ ।। ‘श शाली वीर! आप-जैसे नाथ (संर क) को पाकर सब पा डव सनाथ हो गये। आपके ही भावसे हमलोग अपने सब श ु को जीत लगे’ ।। १४ ।। एवमु तु हनुमान् भीमसेनमभाषत । ातृ वात् सौ दा चैव क र या म यं तव ।। १५ ।। भीमसेनके ऐसा कहनेपर हनुमान्जीने उनसे कहा—‘तुम मेरे भाई और सु द् हो, इस लये म तु हारा य अव य क ँ गा’ ।। १५ ।। चमूं वगा श ूणां शरश समाकुलाम् । यदा सहरवं वीर क र य स महाबल ।। १६ ।। तदाहं बृंह य या म वरवेण रवं तव । वजय य वज थ नादान् मो या म दा णान् ।। १७ ।। श ूणां ये ाणहराः सुखं येन ह न यथ । एवमाभा य हनुमां तदा पा डवन दनम् ।। १८ ।। मागमा याय भीमाय त ैवा तरधीयत ।। १९ ।। ‘

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‘महाबली वीर! जब तुम बाण और श के आघातसे ाकुल ई श ु क सेनाम घुसकर सहनाद करोगे, उस समय म अपनी गजनासे तु हारे उस सहनादको और बढ़ा ँ गा। उसके सवा अजुनक वजापर बैठकर म ऐसी भीषण गजना क ँ गा, जो श ु के ाण को हरनेवाली होगी, जससे तुमलोग उ ह सुगमतासे मार सकोगे।’ पा डव का आन द बढ़ानेवाले भीमसेनसे ऐसा कहकर हनुमान्जीने उ ह जानेके लये माग बता दया और वयं वह अ तधान हो गये ।। १६—१९ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायां ग धमादन वेशे हनुम मसंवादे एकप चाशद धकशततमोऽ यायः ।। १५१ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम ग धमादन पवतपर हनुमान्जी और भीमसेनका संवाद वषयक एक सौ इ यावनवाँ अ याय पूरा आ ।। १५१ ।।

प चाशद धकशततमोऽ यायः भीमसेनका सौग धक वनम प ँचना वैश पायन उवाच गते त मन् ह रवरे भीमोऽ प ब लनां वरः । तेन मागण वपुलं चरद् ग धमादनम् ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! उन क प वर हनुमान्जीके चले जानेपर बलवान म े भीमसेन भी उनके बताये ए मागसे वशाल ग धमादन पवतपर वचरने लगे ।। १ ।। अनु मरन् वपु त य यं चा तमां भु व । माहा यमनुभावं च मरन् दाशरथेययौ ।। २ ।। मागम वे हनुमान्जीके उस अ त वशाल व ह और अनुपम शोभाका तथा दशरथन दन ीरामच जीके अलौ कक माहा य एवं भावका बारंबार मरण करते जाते थे ।। २ ।। स ता न रमणीया न वना युपवना न च । वलोकयामास तदा सौग धकवने सया ।। ३ ।। फु ल म व च ा ण सरां स स रत तथा । नानाकुसुम च ा ण पु पता न वना न च ।। ४ ।। सौग धक वनको ा त करनेक इ छासे उ ह ने उस समय वहाँके सभी रमणीय वन और उपवन का अवलोकन कया। वक सत वृ के कारण व च शोभा धारण करनेवाले कतने ही सरोवर और स रता पर पात कया तथा अनेक कारके कुसुम से अ त तीत होनेवाले खले फू ल से यु कानन का भी नरी ण कया ।। ३-४ ।। म वारणयूथा न पङ् क ल ा न भारत । वषता मव मेघानां वृ दा न द शे तदा ।। ५ ।। भारत! उस समय बहते ए मदके पंकसे भीगे मतवाले गजराज के अनेकानेक यूथ वषा करनेवाले मेघ के समूहके समान दखलायी दे ते थे ।। ५ ।। ह रणै पलापा ै ह रणीस हतैवनम् । सश पकवलैः ीमान् प थ ् वा तं ययौ ।। ६ ।। शोभाशाली भीमसेन मुँहम हरी घासका कौर लये ए चंचल ने वाले ह रण और ह र णय से यु उस वनक शोभा दे खते ए बड़े वेगसे चले जा रहे थे ।। ६ ।। म हषै वराहै शा लै नषे वतम् । पेतभी गर शौयाद ् भीमसेनो गाहत ।। ७ ।। उ ह ने अपनी अ त शूरतासे नभय होकर भस , वराह और सह से से वत गहन वनम वेश कया ।। ७ ।। ै





कुसुमान तग धै ता प लवकोमलैः । या यमान इवार ये मैमा तक पतैः ।। ८ ।। फूल क अन त सुग धसे वा सत तथा लाल-लाल प लव के कारण कोमल तीत होनेवाले वृ हवाके वेगसे हल- हलकर मानो उस वनम भीमसेनसे याचना कर रहे थे ।। ८ ।। कृतपा लपुटा म षट ् पदसे वताः । यतीथवना माग प नीः सम त मन् ।। ९ ।। मागम उ ह अनेक ऐसी पु क र णय को लाँघना पड़ा, जनके घाट और वन दे खनेम ब त य लगते थे। मतवाले मर उनका सेवन करते थे तथा वे स पु टत कमलकोष से अलंकृत हो ऐसी जान पड़ती थ , मानो उ ह ने कमल क अंज ल बाँध रखी थी ।। ९ ।। म जमानमनो ः फु लेषु ग रसानुषु । ौपद वा यपाथेयो भीमः शी तरं ययौ ।। १० ।। भीमसेनका मन और उनके ने कुसुम से अलंकृत पवतीय शखर पर लगे थे। ौपद का अनुरोधपूण वचन ही उनके लये पाथेय था और इस अव थाम वे अ य त शी तापूवक चले जा रहे थे ।। १० ।। प रवृ ेऽह न ततः क णह रणे वने । का चनै वमलैः पद्मैददश वपुलां नद म् ।। ११ ।। दन बीतते-बीतते भीमसेनने एक वनम जहाँ चार ओर ब त-से ह रण वचर रहे थे, सु दर सुवणमय कमल से सुशो भत वशाल नद दे खी ।। ११ ।। हंसकार डवयुतां च वाकोपशो भताम् । र चता मव त या े मालां वमलपङ् कजाम् ।। १२ ।। उसम हंस और कार डव आ द जलप ी नवास करते थे। च वाक उसक शोभा बढ़ाते थे। वह नद या थी उस पवतके लये व छ सु दर कमल क माला-सी रची गयी थी ।। १२ ।। त यां न ां महास वः सौग धकवनं महत् । अप यत् ी तजननं बालाकस श ु त ।। १३ ।। महान् धैय और उ साहसे स प वीरवर भीमसेनने उसी नद म वशाल सौग धक वन दे खा, जो उनक स ताको बढ़ानेवाला था। उस वनम भातकालीन सूयक भाँ त भा फैल रही थी ।। १३ ।। तद् ् वा लधकामः स मनसा पा ड ु न दनः । वनवासप र ल ां जगाम मनसा याम् ।। १४ ।। उस वनको दे खकर पा डु न दन भीमने मन-ही-मन यह अनुभव कया क मेरा मनोरथ पूण हो गया। फर उ ह वनवासके लेश से पी ड़त अपनी यतमा ौपद क याद आ गयी ।। १४ ।। ी













इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायां सौग धकाहरणे प चाशद धकशततमोऽ यायः ।। १५२ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम सौग धक कमलको लानेसे स ब ध रखनेवाला एक सौ बावनवाँ अ याय पूरा आ ।। १५२ ।।

प चाशद धकशततमोऽ यायः ोधवश नामक रा स का भीमसेनसे सरोवरके नकट आनेका कारण पूछना वैश पायन उवाच स ग वा न लन र यां रा सैर भर ताम् । कैलास शखरा याशे ददश शुभकाननाम् ।। १ ।। कुबेरभवना याशे जातां पवत नझरैः । सुर यां वपुल छायां नाना मलताकुलाम् ।। २ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! इस कार आगे बढ़नेपर भीमसेनने कैलास पवतके नकट कुबेरभवनके समीप एक रमणीय सरोवर दे खा, जसके आस-पास सु दर वन थली शोभा पा रही थी। ब त-से रा स उसक र ाके लये नयु थे। वह सरोवर पवतीय झरन के जलसे भरा था। वह दे खनेम ब त ही सु दर, घनी छायासे सुशो भत तथा अनेक कारके वृ और लता से ा त था ।। १-२ ।। ह रता बुजसं छ ां द ां कनकपु कराम् । नानाप जनाक णा सूपतीथामकदमाम् ।। ३ ।। हरे रंगके कमल से वह द सरोवर ढका आ था। उसम सुवणमय कमल खले थे। वह नाना कारके प य से यु था। उसका कनारा ब त सु दर था और उसम क चड़ नह था। ।। ३ ।। अतीवर यां सुजलां जातां पवतसानुषु । व च भूतां लोक य शुभाम तदशनाम् ।। ४ ।। वह सरोवर अ य त रमणीय, सु दर जलसे प रपूण, पवतीय शखर के झरन से उ प , दे खनेम व च , लोकके लये मंगलकारक तथा अद्भुत यसे सुशो भत था ।। ४ ।। त ामृतरसं शीतं लघु कु तीसुतः शुभम् । ददश वमलं तोयं पबं ब पा डवः ।। ५ ।। उस सरोवरम कु तीकुमार पा डु पु भीमने अमृतके समान वा द , शीतल, हलका, शुभकारक और नमल जल दे खा तथा उसे भरपेट पीया ।। ५ ।। तां तु पु क रण र यां द सौग धकावृताम् । जात पमयैः पै छ ां परमग ध भः ।। ६ ।। वै यवरनालै ब च ैमनोरमैः । हंसकार डवोद्धूतैः सृज रमलं रजः ।। ७ ।। वह सरोवर द सौग धक कमल से आवृत तथा रमणीय था। परम सुग धत सुवणमय कमल उसे ढँ के ए थे। उन कमल क नाल उ म वै यम णमय थी। वे कमल े















दे खनेम अ य त व च और मनोरम थे। हंस और कार डव आ द प ी उन कमल को हलाते रहते थे, जससे वे नमल पराग कट कया करते थे ।। ६-७ ।। आ डं राजराज य कुबेर य महा मनः । ग धवर सरो भ दे वै परमा चताम् ।। ८ ।। वह सरोवर राजा धराज महाबु मान् कुबेरका डा थल था। ग धव, अ सरा और दे वता भी उसक बड़ी शंसा करते थे ।। ८ ।। से वतामृ ष भ द ैय ैः क पु षै तथा । रा सैः क रै ा प गु तां वै वणेन च ।। ९ ।। द ऋ ष-मु न, य , क पु ष, रा स और क र उसका सेवन करते थे तथा सा ात् कुबेरके ारा उसके संर णक व था क जाती थी ।। ९ ।। तां च ् वैव कौ तेयो भीमसेनो महाबलः । बभूव परम ीतो द ं स े य तत् सरः ।। १० ।। कु तीन दन महाबली भीमसेन उस द सरोवरको दे खते ही अ य त स हो गये ।। १० ।। त च ोधवशा नाम रा सा राजशासनात् । र त शतसाह ा ायुधप र छदाः ।। ११ ।। महाराज कुबेरके आदे शसे ोधवश नामक रा स, जनक सं या एक लाख थी, व च आयुध और वेशभूषासे सुस जत हो उसक र ा करते थे ।। ११ ।। ते तु ् वैव कौ तेयम जनैः तवा सतम् । मा दधरं वीरं भीमं भीमपरा मम् ।। १२ ।। सायुधं ब न ंशमशङ् कतमरदमम् । पु करे सुमुपाया तम यो यम भचु ु शुः ।। १३ ।। उस समय भयानक परा मी कु तीकुमार वीरवर भीम अपने अंग म मृगचम लपेटे ए थे। भुजा म सोनेके अंगद (बाजूबंद) पहन रखे थे। वे धनुष और गदा आ द आयुध से यु थे। उ ह ने कमरम तलवार बाँध रखी थी। वे श ु का दमन करनेम समथ और नभ क थे। उ ह कमल लेनेक इ छासे वहाँ आते दे ख वे पहरा दे नेवाले रा स आपसम कोलाहल करने लगे ।। अयं पु षशा लः सायुधोऽ जनसंवृतः । य चक षु रह ा त तत् स ु महाहथ ।। १४ ।। उनम पर पर इस कार बातचीत ई—‘दे खो, यह नर े मृगचमसे आ छा दत होनेपर भी हाथम आयुध लये ए है। यह यहाँ जस कायके लये आया है, उसे पूछो’ ।। १४ ।। ततः सव महाबा ं समासा वृकोदरम् । तेजोयु मपृ छ त क वमा यातुमह स ।। १५ ।। तब वे सब रा स परम तेज वी महाबा भीमसेनके पास आकर पूछने लगे—‘तुम कौन हो?’ यह बताओ ।। े ै ै े

मु नवेषधर ैव सायुध ैव ल यसे । यदथम भस ा त तदाच व महामते ।। १६ ।। ‘महामते! तुमने वेष तो मु नय का-सा धारण कर रखा है; परंतु आयुध से स प दखायी दे ते हो। तुम कस लये यहाँ आये हो?’ बताओ ।। १६ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायां सौग धकाहरणे प चाशद धकशततमोऽ यायः ।। १५३ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम सौग धकाहरण वषयक एक सौ तरपनवाँ अ याय पूरा आ ।। १५३ ।।

चतु प चाशद धकशततमोऽ यायः भीमसेनके ारा ोधवश नामक रा स क पराजय और ौपद के लये सौग धक कमल का सं ह करना भीम उवाच पा डवो भीमसेनोऽहं धमराजादन तरः । वशालां बदर ा तो ातृ भः सह रा साः ।। १ ।। अप यत् त पा चाली सौग धकमनु मम् । अ नलोढ मतो नूनं सा ब न परी स त ।। २ ।। भीमसेन बोले—रा सो! म धमराज यु ध रका छोटा भाई पा डु पु भीमसेन ँ और भाइय के वशाला बदरी नामक तीथम आकर ठहरा ँ। वहाँ पा चालराजकुमारी ौपद ने सौग धक नामक एक परम उ म कमल दे खा। उसे दे खकर वह उसी तरहके और भी ब त-से पु प ा त करना चाहती है, जो न य ही यह से हवाम उड़कर वहाँ प ँचा होगा ।। १-२ ।। त या मामनव ा या धमप याः ये थतम् । पु पाहार मह ा तं नबोधत नशाचराः ।। ३ ।। नशाचरो! तु ह मालूम होना चा हये क म उसी अ न सु दरी धमप नीका य मनोरथ पूण करनेके लये उ त हो ब त-से सौग धक पु प का अपहरण करनेके लये ही यहाँ आया ँ ।। ३ ।। रा सा ऊचुः आ डोऽयं कुबेर य द यतः पु षषभ । नेह श यं मनु येण वहतु म यधमणा ।। ४ ।। रा स ने कहा—नर े ! यह सरोवर कुबेरक परम य ड़ा थली है। इसम मरणधमा मनु य वहार नह कर सकता ।। ४ ।। दे वषय तथा य ा दे वा ा वृकोदर । आम य य वरं पब त रमय त च । ग धवा सरस ैव वहर य पा डव ।। ५ ।। वृकोदर! दे व ष, य तथा दे वता भी य राज कुबेरक अनुम त लेकर ही यहाँका जल पीते और इसम वहार करते ह। पा डु न दन! ग धव और अ सराएँ भी इसी नयमके अनुसार यहाँ वहार करती ह ।। ५ ।। अ यायेनेह यः क दवमा य धने रम् । वहतु म छे द ् वृ ः स वन ये संशयः ।। ६ ।। ो

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जो कोई राचारी पु ष धना य कुबेरक अवहेलना करके अ यायपूवक यहाँ वहार करना चाहेगा, वह न हो जायगा, इसम संशय नह है ।। ६ ।। तमना य पा न जहीष स बला तः । धमराज य चा मानं वी ष ातरं कथम् ।। ७ ।। भीमसेन! तुम अपने बलके घमंडम आकर कुबेरक अवहेलना करके यहाँसे कमलपु प का अपहरण करना चाहते हो। ऐसी दशाम अपने-आपको धमराजका भाई कैसे बता रहे हो? ।। ७ ।। आम य य राजं वै ततः पब हर व च । नातोऽ यथा वया श यं क चत् पु करमी तुम् ।। ८ ।। पहले य राजक आ ा ले लो, उसके बाद इस सरोवरका जल पीओ और यहाँसे कमलके फूल ले जाओ। ऐसा कये बना तुम यहाँके कसी कमलक ओर दे ख भी नह सकते ।। ८ ।। भीमसेन उवाच रा सा तं न प या म धने र महा तके । ् वा प च महाराजं नाहं या चतुमु सहे ।। ९ ।। न ह याच त राजान एष धमः सनातनः । न चाहं हातु म छा म ा धम कथंचन ।। १० ।। भीमसेन बोले—रा सो! थम तो म यहाँ आस-पास कह भी धना य कुबेरको दे ख नह रहा ँ, सरे य द म उन महाराजको दे ख भी लूँ तो भी उनसे याचना नह कर सकता, य क य कसीसे कुछ माँगते नह ह, यही उनका सनातन धम है। म कसी तरह ा -धमको छोड़ना नह चाहता ।। ९-१० ।। इयं च न लनी र या जाता पवत नझरे । नेयं भवनमासा कुबेर य महा मनः ।। ११ ।। यह रमणीय सरोवर पवतीय झरन से कट आ है, यह महामना कुबेरके घरम नह है ।। ११ ।। तु या ह सवभूताना मयं वै वण य च । एवं गतेषु ेषु कः कं या चतुमह त ।। १२ ।। अतः इसपर अ य सब ा णय का और कुबेरका भी समान अ धकार है। ऐसी सावज नक व तु के लये कौन कससे याचना करेगा? ।। १२ ।। वैश पायन उवाच इ यु वा रा सान् सवान् भीमसेनो मषणः । गाहत महाबा न लन तां महाबलः ।। १३ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! सभी रा स से ऐसा कहकर अमषम भरे ए महाबली महाबा भीमसेन उस सरोवरम वेश करने लगे ।। १३ ।। ततः स रा सैवाचा त ष ः तापवान् । ै ो ै

मा मैव म त स ोधैभ सय ः सम ततः ।। १४ ।। उस समय ोधम भरे रा स चार ओरसे तापी भीमको फटकारते ए वाणी ारा रोकने लगे—‘नह -नह , ऐसा न करो’ ।। १४ ।। कदथ कृ य तु स तान् रा सान् भीम व मः । गाहत महातेजा ते तं सव यवारयन् ।। १५ ।। परंतु भयंकर परा मी महातेज वी भीम उन सब रा स क अवहेलना करके उस जलाशयम उतर ही गये। यह दे ख सब रा स उ ह रोकनेक चे ा करते ए च ला उठे — ।। १५ ।। गृ त ब नीत वकततेमं पचाम खादाम च भीमसेनम् । ु ा ुव तोऽ भययु तं ते श ा ण चो य ववृ ने ाः ।। १६ ।। ‘अरे! इसे पकड़ो, बाँध लो, काट डालो, हम सब लोग इस भीमको पकायगे और खा जायँगे।’ ोधपूवक उपयु बात कहते और आँख फाड़-फाड़कर दे खते ए वे सभी रा स श उठाकर तुरंत उनक ओर दौड़े ।। १६ ।। ततः स गुव यमद डक पां महागदां का चनप न ाम् । गृ तान यपतत् तर वी ततोऽ वीत् त त त ते त ।। १७ ।। तब भीमसेनने यमद डके समान वशाल और भारी गदा उठा ली, जसपर सोनेका प मढ़ा आ था। उसे लेकर वे बड़े वेगसे उन रा स पर टू ट पड़े और ललकारते ए बोले —‘खड़े रहो, खड़े रहो’ ।। १७ ।।

ते तं तदा तोमरप शा ैा व श ैः सहसा नपेतुः । जघांसवः ोधवशाः सुभीमा भीमं सम तात् प रव ु ाः ।। १८ ।। वातेन कु यां बलवान् सुजातः शूर तर वी षतां नह ता । स ये च धम च रतः सदै व परा मे श ु भर धृ यः ।। १९ ।। यह दे ख वे भयंकर ोधवश नामक रा स भीमसेनको मार डालनेक इ छासे श ु के श को न कर दे नेवाले तोमर, प श आ द आयुध को लेकर सहसा उनक ओर दौड़े और उ ह चार ओरसे घेरकर खड़े हो गये। वे सब-के-सब बड़े उ वभावके थे। इधर भीमसेन कु तीदे वीके गभसे वायु दे वताके ारा उ प होनेके कारण बड़े बलवान्, शूरवीर, वेगशाली एवं श ु का वध करनेम समथ थे। वे सदा ही स य एवं धमम रत थे। परा मी तो वे ऐसे थे क अनेक श ु मलकर भी उ ह परा त नह कर सकते थे ।। १८-१९ ।। तेषां स मागान् व वधान् महा मा वह य श ा ण च शा वाणाम् । यथा वीरान् नजघान भीमः ी

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परं शतं पु क रणीसमीपे ।। २० ।। महामना भीमने श ु के भाँ त-भाँ तके पतर तथा अ -श को वफल करके उनके सौसे भी अ धक मुख वीर को उस सरोवरके समीप मार गराया ।। २० ।। ते त य वीय च बलं च ् वा व ाबलं बा बलं तथैव । अश नुव तः स हतं सम ताद् तं वीराः सहसा नवृ ाः ।। २१ ।। भीमसेनका परा म, शारी रक बल, व ाबल और बा बल दे खकर वे वीर रा स एक साथ संग ठत होकर भी उनका वेग सहनेम असमथ हो गये और सहसा सब ओरसे यु छोड़कर नवृ हो गये ।। २१ ।। वद यमाणा तत एव तूणमाकाशमा थाय वमूढसं ाः । कैलासशृ ा य भ वु ते भीमा दताः ोधवशाः भ नाः ।। २२ ।। भीमसेनक मारसे त- व त एवं पी ड़त हो वे ोधवश नामक रा स अपनी सुधबुध खो बैठे थे। अतः उनके पाँव उखड़ गये और वे तुरंत वहाँसे आकाशम उड़कर कैलासके शखर पर भाग गये ।। २२ ।। स श वद् दानवदै यसङ् घान् व य ज वा च रणेऽ रसङ् घान् । वगा तां पु क रण जता रः कामाय ज ाह ततोऽ बुजा न ।। २३ ।। श ु वजयी भीम इ क भाँ त परा म करके दानव और दै य के दलको यु म हराकर उस सरोवरम व हो इ छानुसार कमल का सं ह करने लगे ।। २३ ।। ततः स पी वामृतक पम भो भूयो बभूवो मवीयतेजाः । उ पा ज ाह च सोऽ बुजा न सौग धका यु मग धव त ।। २४ ।। तदन तर उस सरोवरका अमृतके समान मधुर जल पीकर वे पुनः उ म बल और तेजसे स प हो गये और े सुग धसे यु सौग धक कमल को उखाड़-उखाड़कर संगह ृ ीत करने लगे ।। २४ ।। तत तु ते ोधवशाः समे य धने रं भीमबल णु ाः । भीम य वीय च बलं च सं ये यथावदाच युरतीव भीताः ।। २५ ।। तब भीमसेनके बलसे पी ड़त और अ य त भयभीत ए ोधवश ने धना य कुबेरके पास जाकर यु म भीमके बल और परा मका यथावत् वृ ा त कह सुनाया ।। २५ ।। े े

तेषां वच तत् तु नश य दे वः ह य र ां स ततोऽ युवाच । गृ ातु भीमो जलजा न कामात् कृ णा न म ं व दतं ममैतत् ।। २६ ।। उनक बात सुनकर दे व वर कुबेरने हँसकर उन रा स से कहा—‘मुझे यह मालूम है। भीमसेनको ौपद के लये इ छानुसार कमल ले लेने दो’ ।। २६ ।। ततोऽ यनु ा य धने रं ते ज मुः कु णां वरं वरोषाः । भीमं च त यां द शुन ल यां यथोपजोषं वहर तमेकम् ।। २७ ।। तब धना य क आ ा पाकर वे रा स रोषर हत हो कु वर भीमके पास गये और उ ह अकेले ही उस सरोवरम इ छानुसार वहार करते दे खा ।। २७ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायां सौग धकाहरणे चतु प चाशद धकशततमोऽ यायः ।। १५४ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम सौग धकाहरण वषयक एक सौ चौवनवाँ अ याय पूरा आ ।। १५४ ।।

प चप चाशद धकशततमोऽ यायः भयंकर उ पात दे खकर यु ध र आ दक च ता और सबका ग धमादन-पवतपर सौग धकवनम भीमसेनके पास प ँचना वैश पायन उवाच तत ता न महाहा ण द ा न भरतषभ । ब न ब पा ण वरजां स समादद े ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—भरत े , तदन तर भीमसेनने अनेक कारके ब मू य, द और नमल ब त-से सौग धक कमल संगह ृ ीत कर लये ।। १ ।। ततो वायुमहान् शी ो नीचैः शकरकषणः । ा रासीत् खर पशः सं ामम भचोदयन् ।। २ ।। इसी समय ग धमादन पवतपर ती वेगसे बड़े जोरक आँधी उठ , जो नीचे कंकड़बालूक वषा करनेवाली थी। उसका पश ती ण था। वह कसी भारी सं ामक सूचना दे नेवाली थी ।। २ ।। पपात महती चो का स नघाता महाभया । न भ ाभवत् सूय छ र म तमोवृतः ।। ३ ।। वक गड़गड़ाहटके साथ अ य त भयदायक भारी उ कापात होने लगा। सूय अ धकारसे आवृत हो भाशू य हो गये। उनक करण आ छा दत हो गय ।। ३ ।। नघात ाभवद् भीमो भीमे व ममा थते । चचाल पृ थवी चा प पांसुवष पपात च ।। ४ ।। जस समय भीम रा स के साथ यु म भारी परा म दखा रहे थे, उस समय पृ वी हलने लगी, आकाशम भीषण गजना होने लगी और धूलक वषा आर भ हो गयी ।। ४ ।। सलो हता दश ासन् खरवाचो मृग जाः । तमोवृतमभूत् सव न ा ायत कचन ।। ५ ।। स पूण दशाएँ लाल हो गयी, मृग और प ी कठोर श द करने लगे, सारा जगत् अ धकारसे आ छ हो गया और कसीको कुछ भी सूझ नह पड़ता था ।। ५ ।। अ ये च बहवो भीमा उ पाता त ज रे । तद तम भ े य धमपु ो यु ध रः ।। ६ ।। उवाच वदतां े ः कोऽ मान भभ व य त । स जीभवत भ ं वः पा डवा यु मदाः ।। ७ ।। यथा पा ण प या म व य ो नः परा मः । एवमु वा ततो राजा वी ा च े सम ततः ।। ८ ।। े









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इसके सवा और भी ब त-से भयानक उ पात वहाँ कट होने लगे। यह अ त घटना दे खकर व ा म े धमपु यु ध रने कहा—‘कौन हम लोग को परा जत कर सकेगा? रणो म पा डवो! तु हारा भला हो, तुम यु के लये तैयार हो जाओ। म जैसे ल ण दे ख रहा ँ, उससे पता लगता है क हमारे लये परा म दखानेका समय अ य त नकट आ गया है।’ ऐसा कहकर राजा यु ध रने चार ओर पात कया ।। ६—८ ।। अप यमानो भीमं तु धमपु ो यु ध रः । ततः कृ णां यमौ चा प समीप थावरदमः ।। ९ ।। प छ ातरं भीमं भीमकमाणमाहवे । क चत् व भीमः पा चा ल क चत् कृ यं चक ष त ।। १० ।। जब भीम नह दखायी दये, तब श ुदमन धमन दन यु ध रने ौपद तथा पास ही बैठे ए नकुल-सहदे वसे अपने भाई भीमके स ब धम, जो रणभू मम भयानक कम करनेवाले थे, पूछा—‘पांचाल-राजकुमारी! भीमसेन कहाँ है? या वे कोई काम करना चाहते ह? ।। ९-१० ।। कृतवान प वा वीरः साहसं साहस यः । इमे क मा पाता महासमरदशनाः ।। ११ ।। ‘अथवा साहस ेमी वीरवर भीमने कोई साहसका काय तो नह कर डाला? यह अक मात् कट ए उ पात महान् यु के सूचक ह ।। ११ ।। दशय तो भयं ती ं ा भूताः सम ततः । तं तथावा दनं कृ णा युवाच मन वनी । या यं चक ष ती म हषी चा हा सनी ।। १२ ।। ‘ये चार ओर ती भयका दशन करते ए कट हो रहे ह।’ धमराज यु ध रको ऐसी बात करते दे ख मनोहर मुसकानवाली मन वनी महारानी प त या ौपद ने उनका य करनेक इ छासे इस कार उ र दया ।। ौप ुवाच यत् तत् सौग धकं राज ा तं मात र ना । त मया भीमसेन य ीतया ोपपा दतम् ।। १३ ।। अ प चो ो मया वीरो य द प येब य प । ता न सवा युपादाय शी माग यता म त ।। १४ ।। ौपद बोली—राजन्! आज जो सौग धक पु प वायु उड़ा लायी थी, उसे मने स तापूवक भीमसेनको दया और उन वीर शरोम णसे यह भी कहा क ‘य द इसी तरहके ब त-से पु प तु ह दखायी द, तो उन सबको लेकर शी यहाँ लौट आना’ ।। १३-१४ ।। स तु नूनं महाबा ः याथ मम पा डवः । ागुद च दशं राजं ता याहतु मतो गतः ।। १५ ।। ो





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महाराज! मालूम होता है क वे महाबा पा डु कुमार न य ही मेरा य करनेके लये उ ह फूल को लानेके न म यहाँसे पूव र दशाको गये ह ।। १५ ।। उ वेवं तया राजा यमा वदमथा वीत् । ग छाम स हता तूण येन यातो वृकोदरः ।। १६ ।। ौपद के ऐसा कहनेपर राजा यु ध रने नकुल-सहदे वसे इस कार कहा—‘अब हम लोग भी एक साथ शी ही उस मागपर चल’ जससे भीमसेन गये ह ।। १६ ।। वह तु रा सा व ान् यथा ा तान् यथाकृशान् । वम यमरसंकाश वह कृ णां घटो कच ।। १७ ।। ‘दे वता के समान तेज वी घटो कच! तु हारे साथी रा स लोग इन ा ण को, जो जैसे थके और बल ह , उसके अनुसार कंधेपर बठाकर ले चल और तुम भी ौपद को ले चलो ।। १७ ।। ं र मतो भीमः व इ त मे म तः । चरं च त य कालोऽयं स च वायुसमो जवे ।। १८ ।। तर वी वैनतेय य स शो भु व लंघने । उ पतेद प चाकाशं नपते च यथे छकम् ।। १९ ।। ‘यह प जान पड़ता है क भीमसेन यहाँसे ब त र चले गये ह, मेरा यही व ास है। य क उनको गये ब त समय हो गया है तथा वे वेगम वायुके समान ह और इस पृ वीको लाँघनेम ग ड़के समान शी गामी ह। वे आकाशम छलाँग मार सकते ह और इ छानुसार कह भी कूद सकते ह ।। १८-१९ ।। तम वयाम भवतां भावाद् रजनीचराः । पुरा स नापरा नो त स ानां वा दनाम् ।। २० ।। ‘ नशाचरो! भीमसेन वाद स का कुछ अपराध न कर पाव, इसके पहले ही तु हारे भावसे हम उ ह ढूँ ढ़ नकाल’ ।। २० ।। तथे यु वा तु ते सव है ड ब मुखा तदा । उ े श ाः कुबेर य न ल या भरतषभ ।। २१ ।। आदाय पा डवां ैव तां व ाननेकशः । लोमशेनैव स हताः ययुः ीतमानसाः ।। २२ ।। जनमेजय! तब कुबेरके उस सरोवरका पता जाननेवाले उन घटो कच आ द सब रा स ने ‘तथा तु’ कहकर पा डव तथा उन अनेकानेक ा ण को कंधेपर बैठाकर लोमशजीके साथ वहाँसे स तापूवक थान कया ।। २१-२२ ।। ते सव व रता ग वा द शुः शुभकाननाम् । पसौग धकवत न लन सुमनोरमाम् ।। २३ ।। उन सबने शी तापूवक जाकर सु दर वन थलीसे सुशो भत वह अ य त मनोरम सरोवर दे खा, जसम सौग धक कमल थे ।। २३ ।। तं च भीमं महा मानं त या तीरे मन वनम् । द शु नहतां ैव य ां वपुले णान् ।। २४ ।। ो

भ काया बा न् संचू णत शरोधरान् । तं च भीमं महा मानं त या तीरे व थतम् ।। २५ ।। उसके तटपर मन वी महामना भीमको तथा उनके ारा मारे गये बड़े-बड़े ने वाले य को भी दे खा— जनके शरीर, ने , भुजाएँ और जाँघ छ - भ हो गयी थ , गदन कुचल द गयी थी, महा मा भीम उस सरोवरके तटपर खड़े थे ।। २४-२५ ।। स ोधं तधनयनं संद दशन छदम् । उ य च गदां दो या नद तीरे वव थतम् ।। २६ ।। उनका ोध शा त नह आ था। उनक आँख त ध हो रही थ । वे दोन हाथ से गदा उठाये और दाँत से ओठ दबाये नद के तटपर खड़े थे ।। २६ ।। जासं ेपसमये द डह त मवा तकम् । तं ् वा धमराज तु प र व य पुनः पुनः ।। २७ ।। उ ह दे खकर ऐसा तीत होता था, मानो जाके संहारकालम द ड हाथम लये यमराज खड़े ह । भीमसेनको उस अव थाम दे खकर धमराजने उ ह बार-बार दयसे लगाया ।। २७ ।। उवाच णया वाचा कौ तेय क मदं कृतम् । साहसं बत भ ं ते दे वानामथ चा यम् ।। २८ ।। और मधुर वाणीम कहा—‘कु तीन दन! यह तुमने या कर डाला? तु हारा क याण हो। खेदके साथ कहना पड़ता है क तु हारा यह काय साहसपूण है और दे वता के लये अ य है ।। २८ ।। पुनरेवं न कत ं मम चे द छ स यम् । अनु श य तु कौ तेयं पा न प रगृ च ।। २९ ।। त यामेव न ल यां तु वजरमरोपमाः । एत म ेव काले तु गृहीत शलायुधाः ।। ३० ।। ा रासन् महाकाया त यो ान य र णः । ते ् वा धमराजानं मह ष चा प लोमशम् ।। ३१ ।। नकुलं सहदे वं च तथा यान् ा णषभान् । वनयेन नताः सव णप य च भारत ।। ३२ ।। सा वता धमराजेन से ः णदाचराः । व दता कुबेर य त ते कु पु वाः ।। ३३ ।। ऊषुना त चरं कालं रममाणाः कु हाः । ती माणा बीभ सुं ग धमादनसानुषु ।। ३४ ।। ‘य द मेरा य करना चाहते हो तो फर ऐसा काम न करना।’ भीमसेनको ऐसा उपदे श दे कर उ ह ने पूव सौग धक कमल ले लये और वे दे वोपम पा डव उसी सरोवरके तटपर इधर-उधर मण करने लगे। इसी समय शला को आयुध पम हण कये, ब त-से वशालकाय उ ानर क वहाँ कट हो गये। भारत! उ ह ने धमराज यु ध र, मह ष लोमश, नकुल-सहदे व तथा अ या य े ा ण को वनयपूवक ो े े े

नतम तक होकर णाम कया। फर धमराज यु ध रने उ ह सा वना द । इससे वे नशाचर (रा स) स हो गये। तदन तर वे कु वर पा डव धना य कुबेरक जानकारीम कुछ कालतक वहाँ आन दपूवक टके रहे और ग धमादन पवतके शखर पर अजुनके आगमनक ती ा करते रहे ।। २९—३४ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायां सौग धकाहरणे प चप चाशद धकशततमोऽ यायः ।। १५५ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम सौग धकाहरण वषयक एक सौ पचपनवाँ अ याय पूरा आ ।। १५५ ।।

षट् प चाशद धकशततमोऽ यायः पा डव का आकाशवाणीके आदे शसे पुनः नरनारायणा मम लौटना वैश पायन उवाच त मन् नवसमानोऽथ धमराजो यु ध रः । कृ णया स हतान् ातॄ न युवाच सह जान् ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! उस सौग धक सरोवरके तटपर नवास करते ए धमराज यु ध रने एक दन ा ण तथा ौपद स हत अपने भाइय से इस कार कहा — ।। १ ।। ा न तीथा य मा भः पु या न च शवा न च । मनसो ादनीया न वना न च पृथक् पृथक् ।। २ ।। ‘हम लोग ने अनेक पु यदायक एवं क याण- व प तीथ के दशन कये। मनको आ ाद दान करनेवाले भ - भ वन का भी अवलोकन कया ।। २ ।। दे वैः पूव वचीणा न मु न भ महा म भः । यथा म वशेषेण जैः स पू जता न च ।। ३ ।। ‘वे तीथ और वन ऐसे थे, जहाँ पूवकालम दे वता और महा मा, मु न वचरण कर चुके ह तथा मशः अनेक ज ने उनका समादर कया है ।। ३ ।। ऋषीणां पूवच रतं तथा कम वचे तम् । राजष णां च च रतं कथा व वधाः शुभाः ।। ४ ।। शृ वाना त त म आ मेषु शवेषु च । अ भषेकं जैः साध कृतव तो वशेषतः ।। ५ ।। ‘हमने ऋ षय के पूवच र , कम और चे ा क कथा सुनी है। राज षय के भी च र और भाँ त-भाँ तक शुभ कथाएँ सुनते ए मंगलमय आ म म वशेषतः ा ण के साथ तीथ नान कया है ।। ४-५ ।। अ चताः सततं दे वाः पु पैर ः सदा च वः । यथालधैमूलफलैः पतर ा प त पताः ।। ६ ।। ‘हमने सदा फूल और जलसे दे वता क पूजा क है और यथा ा त फल-मूलसे पतर को भी तृ त कया है ।। ६ ।। पवतेषु च र येषु सवषु च सर सु च । उदधौ च महापु ये सूप पृ ं महा म भः ।। ७ ।। ‘रमणीय पवत और सम त सरोवर म वशेषतः परम पु यमय समु के जलम इन महा मा के साथ भलीभाँ त नान एवं आचमन कया है ।। ७ ।। इला सर वती स धुयमुना नमदा तथा । ी





नानातीथषु र येषु सूप पृ ं सह जैः ।। ८ ।। ‘इला, सर वती, सधु, यमुना तथा नमदा आ द नाना रमणीय तीथ म भी ा ण के साथ व धवत् नान और आचमन कया है ।। ८ ।। ग ा ारम त य बहवः पवताः शुभाः । हमवान् पवत ैव नाना जगणायुतः ।। ९ ।। ‘गंगा ार (ह र ार)-को लाँघकर ब त-से मंगलमय पवत दे खे तथा ब सं यक ा ण से यु हमालय पवतका भी दशन कया ।। ९ ।। वशाला बदरी ा नरनारायणा मः । द ा पु क रणी ा स दे व षपू जता ।। १० ।। ‘ वशाल बदरीतीथ, भगवान् नर-नारायणके आ म तथा स और दे व षय से पू जत इस द सरोवरका भी दशन कया ।। १० ।। यथा म वशेषेण सवा यायतना न च । द शता न ज े ा लोमशेन महा मना ।। ११ ।। ‘ व वरो! महा मा लोमशजीने हम सभी पु य- थान के मशः दशन कराये ह ।। ११ ।। इमं वै वणावासं पु यं स नषे वतम् । कथं भीम ग म यामो ग तर तरधीयताम् ।। १२ ।। ‘भीमसेन! यह स से वत पु य दे श कुबेरका नवास थान है। अब हम कुबेरके भवनम कैसे वेश करगे? इसका उपाय सोचो’ ।। १२ ।। वैश पायन उवाच एवं ुव त राजे े वागुवाचाशरी रणी । न श यो गमो ग तु मतो वै वणा मात् ।। १३ ।। वैश पायनजी कहते ह—महाराज यु ध रके ऐसा कहते ही आकाशवाणी बोल उठ —‘कुबेरके इस आ मसे आगे जाना स भव नह है। यह माग अ य त गम है ।। १३ ।। अनेनैव पथा राजन् तग छ यथागतम् । नरनारायण थानं बदरी य भ व ुतम् ।। १४ ।। ‘राजन्! जससे तुम आये हो, उसी मागसे वशाला बदरीके नामसे व यात भगवान् नर-नारायणके थानको लौट जाओ ।। १४ ।। त माद् या य स कौ तेय स चारणसे वतम् । ब पु पफलं र यमा मं वृषपवणः ।। १५ ।। ‘कु तीकुमार! वहाँसे तुम चुर फल-फूलसे स प वृषपवाके रमणीय आ मपर जाओ, जहाँ स और चारण नवास करते ह ।। १५ ।। अ त य च तं पाथ वा षेणा मे वसेः । ततो य स कौ तेय नवेशं धनद य च ।। १६ ।। ‘













‘उस आ मको भी लाँघकर आ षेणके आ मपर जाना और वह नवास करना। तदन तर तु ह धनदाता कुबेरके नवास थानका दशन होगा’ ।। १६ ।। एत म तरे वायु द ग धवहः शु चः । सुख ादनः शीतः पु पवष ववष च ।। १७ ।। इसी समय द सुग धसे प रपूण प व वायु चलने लगी, जो शीतल तथा सुख और आ ाद दे नेवाली थी। साथ ही वहाँ फूल क वषा होने लगी ।। १७ ।। ु वा तु द ामाकाशाद् वाचं सव व स मयुः । ऋषीणां ा णानां च पा थवानां वशेषतः ।। १८ ।। वह द आकाशवाणी सुनकर सबको बड़ा व मय आ। ऋ षय , ा ण और वशेषतः राज षय को अ धक आ य आ ।। १८ ।। ु वा त महदा य जो धौ योऽ वीत् तदा । न श यमु रं व ु मेवं भवतु भारत ।। १९ ।। वह महान् आ यजनक बात सुनकर व ष धौ यने कहा—‘भारत! इसका तवाद नह कया जा सकता। ऐसा ही होना चा हये’ ।। १९ ।। ततो यु ध रो राजा तज ाह तद् वचः । याग य पुन तं तु नरनारायणा मम् ।। २० ।। भीमसेना द भः सव ातृ भः प रवा रतः । पा चा या ा णा ैव यवस त सुखं तदा ।। २१ ।। तदन तर राजा यु ध रने वह आकाशवाणी वीकार कर ली और पुनः नर-नारायणके आ मम लौटकर भीमसेन आ द सब भाइय और ौपद के साथ वह रहने लगे। उस समय साथ आये ए ा ण लोग भी वह सुखपूवक नवास करने लगे ।। २०-२१ ।। इ त ीमहाभारते वनपव ण तीथया ापव ण लोमशतीथया ायां पुननरनारायणा मागमने षट् प चाशद धकशततमोऽ यायः ।। १५६ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत तीथया ापवम लोमशतीथया ाके संगम पा डव का पुनः नर-नारायणके आ मम आगमन वषयक एक सौ छ पनवाँ अ याय पूरा आ ।। १५६ ।।

(ज टासुरवधपव) स तप चाशद धकशततमोऽ यायः जटासुरके ारा ौपद स हत यु ध र, नकुल, सहदे वका हरण तथा भीमसेन ारा जटासुरका वध वैश पायन उवाच तत तान् प र व तान् वसत त पा डवान् । पवते े जैः साध पाथागमनकाङ् या ।। १ ।। गतेषु तेषु र ःसु भीमसेना मजेऽ प च । र हतान् भीमसेनेन कदा चत् तान् य छया ।। २ ।। जहार धमराजानं यमौ कृ णां च रा सः । ा णो म कुशलः सवशा व मः ।। ३ ।। इ त ुवन् पा डवेयान् पयुपा ते म न यदा । परी समानः पाथानां कलापा न धनूं ष च ।। ४ ।। अ तरं स प र े सु प ा हरणं त । ा मा पापबु ः स ना ना यातो जटासुरः ।। ५ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर पवतराज ग धमादनपर सब पा डव अजुनके आनेक ती ा करते ए ा ण के साथ नःशंक रहने लगे। उ ह प ँचानेके लये आये ए रा स चले गये। भीमसेनका पु घटो कच भी वदा हो गया। त प ात् एक दनक बात है, भीमसेनक अनुप थ तम अक मात् एक रा सने धमराज यु ध र, नकुल, सहदे व तथा ौपद को हर लया। वह ा णके वेषम त दन उ ह के साथ रहता था और सब पा डव से कहता था क ‘म स पूण शा म े और म -कुशल ा ण ँ।’ वह कु तीकुमार के तरकस और धनुषको भी हर लेना चाहता था और ौपद का अपहरण करनेके लये सदा अवसर ढूँ ढ़ता रहता था। उस ा मा एवं पापबु रा सका नाम जटासुर था ।। पोषणं त य राजे च े पा डवन दनः । बुबुधे न च तं पापं भ म छ मवानलम् ।। ६ ।। जनमेजय! पा डव को आन द दान करनेवाले यु ध र अ य ा ण क तरह उसका भी पालन-पोषण करते थे। परंतु राखम छपी ई आगक भाँ त उस पापीके असली व पको वे नह जानते थे ।। ६ ।। स भीमसेने न ा ते मृगयाथम र दम । ो

घटो कचं सानुचरं ् वा व तं दशः ।। ७ ।। लोमश भृत तां तु महष समा हतान् । नातुं व नगतान् ् वा पु पाथ च तपोधनान् ।। ८ ।। पम यत् समा थाय वकृतं भैरवं महत् । गृही वा सवश ा ण ौपद प रगृ च ।। ९ ।। ा त त स ा मा ीन् गृही वा च पा डवान् । सहदे व तु य नेन ततोऽप य पा डवः ।। १० ।। व य कौ शकं खड् गं मो य वा हं रपोः । आ दद् भीमसेनं वै येन यातो महाबलः ।। ११ ।। श ुसूदन! हसक पशु को मारनेके लये भीमसेनके आ मसे बाहर चले जानेपर उस रा सने दे खा क घटो कच अपने सेवक स हत कसी अ ात दशाको चला गया, लोमश आ द मह ष यान लगाये बैठे ह तथा सरे तपोधन नान करने और फूल लानेके लये कु टयासे बाहर नकल गये ह, तब उस ा माने वशाल, वकराल एवं भयंकर सरा प धारण करके पा डव के स पूण अ -श , ौपद तथा तीन पा डव को भी लेकर वहाँसे थान कर दया। उस समय पा डु -कुमार सहदे व य न करके उस रा सक पकड़से छू ट गये और परा म करके यानसे नकली ई अपनी तलवारको भी उससे छु ड़ा लया। फर वे महाबली भीमसेन जस मागसे गये थे, उधर ही जाकर उ ह जोर-जोरसे पुकारने लगे ।। ७—११ ।।







तम वीद् धमराजो यमाणो यु ध रः । धम ते हीयते मूढ न त वं समवे से ।। १२ ।। इधर ज ह वह जटासुर हरकर लये जा रहा था ‘वे धमराज यु ध र उससे इस कार बोले—‘अरे मूख! इस कार ( व ासघात करनेसे) तो तेरे धमका ही नाश हो रहा है। कतु उधर तेरी नह जाती है ।। येऽ ये व च मनु येषु तय यो नगता ये । धम ते समवे ते र ां स च वशेषतः ।। १३ ।। ‘ सरे भी जहाँ कह मनु य अथवा पशु-प ीक यो नम थत ाणी ह, वे सभी धमपर रखते ह। रा स तो (पशु-प ीक अपे ा भी) वशेष पसे धमका वचार करते ह ।। १३ ।। धम य रा सा मूलं धम ते व मम् । एतत् परी य सव वं समीपे थातुमह स ।। १४ ।। दे वा ऋषयः स ाः पतर ा प रा स । ग धव रगर ां स वयां स पशव तथा ।। १५ ।। तय यो नगता ैव अ प क ट पपी लकाः । मनु यानुपजीव त तत वम प जीव स ।। १६ ।। ‘रा स धमके मूल ह। वे उ म धमका ान रखते ह। इन सब बात का वचार करके तुझे हमलोग के समीप ही रहना चा हये। रा स! दे वता, ऋ ष, स , पतर, ग धव, नाग, रा स, पशु, तय यो नके सभी ाणी और क ड़े-मकोड़े, च ट आ द भी मनु य के आ त हो जीवन- नवाह करते ह। इस से तू भी मनु य से ही जी वका चलाता है ।। १४— १६ ।। समृ या य लोक य लोको यु माकमृ य त । इमं च लोकं शोच तमनुशोच त दे वताः ।। १७ ।। ‘इस मनु यलोकक समृ से ही तुम सब लोग का लोक समृ शाली होता है। य द इस लोकक दशा शोचनीय हो तो दे वता भी शोकम पड़ जाते ह ।। १७ ।। पू यमाना वध ते ह क ैयथा व ध । वयं रा य गो तारो र तार रा स ।। १८ ।। ‘ य क मनु य ारा ह और क से व धपूवक पू जत होनेपर उनक वृ होती है। रा स! हमलोग राक े पालक और संर क ह ।। १८ ।। रा यार यमाण य कुतो भू तः कुतः सुखम् । न च राजावम त ो र सा जा वनाग स ।। १९ ।। ‘हमारे ारा र त न होनेपर राको कैसे समृ ा त होगी और कैसे उसे सुख मलेगा? रा सको भी उ चत है क वह बना अपराधके कभी कसी राजाका अपमान न करे ।। १९ ।। अणुर यपचार ना य माकं नराशन । वघसाशान् यथाश या कुमहे दे वता दषु ।। २० ।। ‘ ी े े ो ओ े ो ी ै

‘नरभ ी नशाचर! तेरे त हमलोग क ओरसे थोड़ा-सा भी अपराध नह आ है। हम दे वता आ दको सम पत करके बचे ए साद व प अ का यथाश गु जन और ा ण को भोजन कराते ह ।। २० ।। गु ं ा णां ैव णाम वणाः सदा । ो ध ं न च म ेषु न व तेषु क ह चत् ।। २१ ।। ‘गु जन तथा ा ण के स मुख हमारा म तक सदा झुका रहता है। कसी भी पु षको कभी अपने म और व ासी पु ष के साथ ोह नह करना चा हये ।। २१ ।। येषां चा ा न भु ीत य च यात् त यः । स वं त येऽ माकं पू यमानः सुखो षतः ।। २२ ।। ‘ जनका अ खाये और जहाँ अपनेको आ य मला हो, उनके साथ भी ोह या व ासघात करना उ चत नह है। तू हमारे आ यम हमलोग से स मा नत होकर सुखपूवक रहा है ।। २२ ।। भु वा चा ा न कथम मान् जहीष स । एवमेव वृथाचारो वृथावृ ो वृथाम तः ।। २३ ।। ‘खोट बु वाले रा स! तू हमारा अ खाकर हम ही हर ले जानेक इ छा कैसे करता है? इस कार तो अबतक तूने ा ण पसे जो आचार दखाया था, वह सब थ ही था। तेरा बढ़ना या वृ होना भी थ ही है। तेरी बु भी थ है ।। २३ ।। वृथामरणमह वृथा न भ व य स । अथ चेद ् बु वं सवधम वव जतः ।। २४ ।। दाय श ा य माकं यु े न ौपद हर । अथ चेत् वम व ाना ददं कम क र य स ।। २५ ।। अधम चा यक त च लोके ा य स केवलम् । एताम परामृ य यं रा स मानुषीम् ।। २६ ।। वषमेतत् समालो कु भेन ा शतं वया । ततो यु ध र त य गु कः समप त ।। २७ ।। ‘ऐसी दशाम तू थ मृ युका ही अ धकारी है और आज थ ही तु हारे ाण न हो जायँगे। य द तेरी बु तापर ही उतर आयी है और तू स पूण धम को भी छोड़ बैठा है, तो हम हमारे अ दे कर यु कर तथा उसम वजयी होनेपर ौपद को ले जा। य द तू अ ानवश यह व ासघात या अपहरण कम करेगा, तो संसारम तुझे केवल अधम और अक त ही ा त होगी। नशाचर! आज तूने इस मानवजा तक ीका पश करके जो पाप कया है, यह भयंकर वष है, जसे तूने घड़ेम घोलकर पी लया है।’ इतना कहकर यु ध र उसके लये ब त भारी हो गये ।। २४—२७ ।। स तु भारा भभूता मा न तथा शी गोऽभवत् । अथा वीद् ौपद च नकु लं च यु ध रः ।। २८ ।। भारसे उसका शरीर दबने लगा, इस लये अब वह पहलेक तरह शी तापूवक न चल सका। तब यु ध रने नकुल और ौपद से कहा— ।। २८ ।। ै

मा भै रा सा मूढाद् ग तर य मया ता । ना त रे महाबा भ वता पवना मजः ।। २९ ।। ‘तुमलोग इस मूढ़ रा ससे डरना मत। मने इसक ग त कु ठत कर द है। वायुपु महाबा भीमसेन यहाँसे अ धक र नह ह गे ।। २९ ।। अ मन् मु त स ा ते न भ व य त रा सः । सहदे व तु तं ् वा रा सं मूढचेतनम् ।। ३० ।। उवाच वचनं राजन् कु तीपु ं यु ध रम् । राजन् कनाम स कृ यं य या यतोऽ धकम् ।। ३१ ।। यद् यु े ऽ भमुखः ाणां यजे छ ुं जयेत वा । एष चा मान् वयं चैनं यु यमानाः परंतप ।। ३२ ।। सूदयेम महाबाहो दे शकालो यं नृप । धम य स ा तः कालः स यपरा मः ।। ३३ ।। ‘इस आगामी मु तके आते ही इस रा सके ाण नह रहगे।’ इधर सहदे वने उस मूढ़ रा सक ओर दे खते ए कु तीन दन यु ध रसे कहा—‘राजन्! यके लये इससे अ धक स कम या होगा क वह यु म श ुका सामना करते ए ाण का याग कर दे अथवा श ुको ही जीत ले। राजन्! इस कार यह हम अथवा हम इसे यु करते ए मार डाल। परंतप महाबा नरेश! यह य धमके अनुकूल दे श-काल ा त आ है। यह समय यथाथ परा म कट करनेके लये है ।। ३०—३३ ।। जय तो ह यमाना वा ा तुमहाम सद्ग तम् । रा से जीवमानेऽ र वर त मयाद् य द ।। ३४ ।। नाहं ूयां पुनजातु योऽ मी त भारत । भो भो रा स त व सहदे वोऽ म पा डवः ।। ३५ ।। ह वा वा मां नय वैनां हतो वा ेह व य स । तदा ुव त मा े ये भीमसेनो य छया ।। ३६ ।। य यद् गदाह तः सव इव वासवः । सोऽप यद् ातरौ त ौपद च यश वनीम् ।। ३७ ।। ‘भारत! हम वजयी ह या मारे जायँ, सभी दशा म उ म ग त ा त कर सकते ह। य द इस रा सके जीते-जी सूय डू ब गये, तो म फर कभी अपनेको य नह क ँगा। अरे ओ नशाचर! खड़ा रह, म पा डु कुमार सहदे व ँ, या तो तू मुझे मारकर ौपद को ले जा या वयं मेरे हाथ मारा जाकर आज यह सदाके लये सो जा।’ मा न दन सहदे व जब ऐसी बात कह रहे थे, उसी समय अक मात् गदा हाथम लये भीमसेन दखायी दये, मानो वधारी इ आ प ँचे ह । उ ह ने वहाँ (रा सके अ धकारम पड़े ए) अपने दोन भाइय तथा यश वनी ौपद को दे खा ।। ३४—३७ ।। त थं सहदे वं च प तं रा सं तदा । मागा च रा सं मूढं कालोपहतचेतसम् ।। ३८ ।। म तं त त ैव दे वेन व नवा रतम् । ो ौ

ातॄं तान् यतो ् वा ौपद च महाबलः ।। ३९ ।। ोधमाहारयद् भीमो रा सं चेदम वीत् । व ातोऽ स मया पूव पाप श परी णे ।। ४० ।। उस समय सहदे व धरतीपर खड़े होकर रा सपर आ ेप कर रहे थे और वह मूढ़ रा स मागसे होकर वह च कर काट रहा था। कालसे उसक बु मारी गयी थी। दै वने ही उसे वहाँ रोक रखा था। भाइय और ौपद का अपहरण होता दे ख महाबली भीमसेन कु पत हो उठे और जटासुरसे बोले—‘ओ पापी! पहले जब तू श क परी ा कर रहा था, तभी मने तुझे पहचान लया था ।। ३८—४० ।। आ था तु व य मे ना त यतोऽ स न हत तदा । प त छ ो न नो वद स चा यम् ।। ४१ ।। ‘तुझपर मेरा व ास नह रह गया था, तो भी तू ा णके पम अपने असली व पको छपाये ए था और हमलोग से कोई अ य बात नह कहता था। इसी लये मने तु ह त काल नह मार डाला ।। ४१ ।। येषु रममाणं वां न चैवा यका रणम् । अतथ पं च कथं ह यामनागसम् ।। ४२ ।। रा सं जानमानोऽ प यो ह या रकं जेत् । अप व य च कालेन वध तव न व ते ।। ४३ ।। ‘तू हमारे य काय म मन लगाता था। जो हम य न लगे, ऐसा काम नह करता था। ा ण अ त थके पम आया था और कभी कोई अपराध नह कया था। ऐसी दशाम म तुझे कैसे मारता? जो रा सको रा स जानते ए भी बना कसी अपराधके उसका वध करता है, वह नरकम जाता है। अभी तेरा समय पूरा नह आ था, इस लये भी आजसे पहले तेरा वध नह कया जा सकता था ।। ४२-४३ ।। नूनम ा स स प वो यथा ते म तरी शी । द ा कृ णापहरणे कालेना तकमणा ।। ४४ ।। ‘आज न य ही तेरी आयु पूरी हो चुक है, तभी तो अ त कम करनेवाले कालने तुझे इस कार ौपद के अपहरणक बु द है ।। ४४ ।। ब डशोऽयं वया तः कालसू ेण ल बतः । म योऽ भसीव यूता यः कथम भ व य स ।। ४५ ।। ‘काल पी डोरेसे लटकाया आ बंसीका काँटा तूने नगल लया है। तेरा मुँह जलक मछलीके समान उस काँटेम गुँथ गया है, अतः अब तू कैसे जीवन धारण करेगा? ।। ४५ ।। यं चा स थतो दे शं मनः पूव गतं च ते । न तं ग ता स ग ता स माग बक ह ड बयोः ।। ४६ ।। ‘ जस दे शक ओर तू थत आ है और जहाँ तेरा मन पहलेसे ही जा प ँचा है, वहाँ अब तू न जा सकेगा। तुझे तो बक और ह ड बके मागपर जाना है, ।। ४६ ।। एवमु तु भीमेन रा सः कालचो दतः । भीत उ सृ य तान् सवान् यु ाय समुप थतः ।। ४७ ।। ी े े ऐ े ी ो ो ो

भीमसेनके ऐसा कहनेपर वह रा स भयभीत हो उन सबको छोड़कर कालक ेरणासे यु के लये उ त हो गया ।। ४७ ।। अ वी च पुनभ मं रोषात् फु रताधरः । न मे मूढा दशः पाप वदथ मे वल बतम् ।। ४८ ।। उस समय रोषसे उसके ओठ फड़क रहे थे। उसने भीमसेनको उ र दे ते ए कहा —‘ओ पापी! मुझे द म नह आ था। मने तेरे ही लये वल ब कया था ।। ४८ ।। ुता मे रा सा ये ये वया व नहता रणे । तेषाम क र या म तवा ेणोदक याम् ।। ४९ ।। ‘तूने जन- जन रा स को यु म मारा है, उन सबके नाम मने सुने ह। आज तेरे र से ही म उनका तपण क ँ गा, ।। ४९ ।। एवमु ततो भीमः सृ कणी प रसं लहन् । मयमान इव ोधात् सा ात् काला तकोपमः ।। ५० ।। ( ुवन् वै त त े त ोधसंर लोचनः ।) बा संर भमेवै भ ाव रा सम् । रा सोऽ प तदा भीमं यु ा थनमव थतम् ।। ५१ ।। मु मु ाददानः सृ कणी प रसं लहन् । अ भ ाव संरधो ब लव धरं यथा ।। ५२ ।। रा सके ऐसा कहनेपर भीमसेन अपने मुखके दोन कोने चाटते ए कुछ मुसकराते-से तीत ए फर ोधसे सा ात् काल और यमराजके समान जान पड़ने लगे। रोषसे उनक आँख लाल हो गयी थ ‘खड़ा रह,’ खड़ा रह कहते ए ताल ठ ककर रा सक ओर गड़ाये उसपर टू ट पड़े। रा स भी उस समय भीमसेनको यु के लये उप थत दे ख बारबार मुँह फैलाकर मुँहके दोन कोने चाटने लगा और जैसे ब लराजा व धारी इ पर आ मण करता है, उसी कार कु पत हो उसने भीमसेनपर धावा कया ।। ५०—५२ ।। (भीमसेनोऽ यव धो नयु ायाभवत् थतः । रा सोऽ प च व धो बा यु मकाङ ् त ।। वतमाने तदा ता यां बा यु े सुदा णे । मा पु ाव त ु ावुभाव य यधावताम् ।। ५३ ।। भीमसेन भी थर होकर उससे यु के लये खड़े हो गये और वह रा स भी न त हो उनके साथ बा यु क इ छा करने लगा। उस समय उन दोन म बड़ा भयंकर बा यु होने लगा। यह दे ख मा पु नकुल और सहदे व अ य त ोधम भरकर उसक ओर दौड़े ।। ५३ ।। यवारयत् तौ हसन् कु तीपु ो वृकोदरः । श ोऽहं रा स ये त े व म त चा वीत् ।। ५४ ।। परंतु कु तीकुमार भीमसेनने हँसकर उन दोन को रोक दया और कहा—‘म अकेला ही इस रा सके लये पया त ँ। तुमलोग चुप-चाप दे खते रहो’ ।। ५४ ।। आ मना ातृ भ ैव धमण सुकृतेन च । े े

इ ेन च शपे राजन् सूद य या म रा सम् ।। ५५ ।। फर वे यु ध रसे बोले—‘महाराज! म अपनी, सब भाइय क , धमक , पु य कम क तथा य क शपथ खाकर कहता ँ, इस रा सको अव य मार डालूँगा ।। ५५ ।। इ येवमु वा तौ वीरौ पधमानौ पर परम् । बा यां समस जेतामुभौ र ोवृकोदरौ ।। ५६ ।। ऐसा कहकर वे दोन वीर रा स और भीम एक- सरेसे पधा रखते ए बाँह से बाँह मलाकर गुथ गये ।। ५६ ।। तयोरासीत् स हारः ु योभ मर सोः । अमृ यमाणयोः सङ् ये दे वदानवयो रव ।। ५७ ।। भीमसेन तथा रा स दोन म दे वता और दानव के समान यु होने लगा। दोन ही रोष और अमषम भरकर एक- सरेपर हार करने लगे ।। ५७ ।। आ या य तौ वृ ान यो यम भज नतुः । जीमूता वव गज तौ ननद तौ महाबलौ ।। ५८ ।। दोन का बल महान् था। वे गजते ए दो मेघ क भाँ त सहनाद करके वृ को तोड़तोड़कर पर पर चोट करते थे ।। ५८ ।। बभ तुमहावृ ानू भब लनां वरौ । अ यो येना भसंरधौ पर परवधै षणौ ।। ५९ ।। बलवान म े वे दोन वीर अपनी जाँघ के ध केसे बड़े-बड़े वृ को तोड़ डालते थे और पर पर कु पत हो एक- सरेको मार डालनेक इ छा रखते थे ।। ५९ ।। तद् वृ यु मभव मही ह वनाशनम् । बा लसु ीवयो ा ोः पुरा ीकाङ् णोयथा ।। ६० ।। जैसे पूवकालम ीक इ छावाले दो भाई बा ल और सु ीवम भयंकर सं ाम आ था, उसी कार भीमसेन और रा सम होने लगा। उन दोन का वह वृ यु उस वनके वृ समूह के लये महान् वनाशकारी स आ ।। ६० ।। आ व या व य तौ वृ ान् मुत मतरेतरम् । ताडयामासतु भौ वनद तौ मु मु ः ।। ६१ ।। वे दोन बड़े-बड़े वृ को हला- हलाकर बार-बार वकट गजना करते ए दो घड़ीतक एक- सरेपर हार करते रहे ।। ६१ ।। त मन् दे शे यदा वृ ाः सव एव नपा तताः । पु ीकृता शतशः पर परवधे सया ।। ६२ ।। ततः शलाः समादाय मुत मव भारत । महा ै रव शैले ौ युयुधाते महाबलौ ।। ६३ ।। शला भ पा भबृहती भः पर परम् । व ै रव महावेगैराज नतुरमषणौ ।। ६४ ।। भारत! जब उस दे शके सारे वृ गरा दये गये, तब एक- सरेका वध करनेक इ छासे उन महाबली वीर ने वहाँ ढे र-क -ढे र पड़ी ई सैकड़ शलाएँ लेकर दो घड़ीतक ो ो े े े े

इस कार यु कया, मानो दो पवतराज बड़े-बड़े मेघख ड ारा पर पर यु कर रहे ह । वहाँक शलाएँ वशाल और अ य त भयंकर थ । वे दे खनेम महान् वेगशाली व क े समान जान पड़ती थ । अमषम भरे ए वे दोन यो ा उ ह शला ारा एक- सरेको मारने लगे ।। ६२—६४ ।। अ भ य च भूय ताव यो यं बलद पतौ । भुजा यां प रगृ ाथ चकषाते गजा वव ।। ६५ ।। त प ात् अपने-अपने बलके घमंडम भरे ए वे दोन वीर एक सरेक ओर झपटकर पुनः अपनी भुजा से कसते ए वप ीको उसी कार ख चने लगे, जैसे दो गजराज पर पर भड़कर एक- सरेको ख च रहे ह ।। ६५ ।। मु भ महाघोरैर यो यम भज नतुः । ततः कटकटाश दो बभूव सुमहा मनोः ।। ६६ ।। अपने अ य त भयानक मु क ारा वे पर पर चोट करने लगे। तब उन दोन महाकाय वीर म जोर-जोरसे कटकटानेक आवाज होने लगी ।। ६६ ।। ततः सं य मु तु प चशीष मवोरगम् । वेगेना यहनद् भीमो रा स य शरोधराम् ।। ६७ ।। तदन तर भीमसेनने पाँच सरवाले सपक भाँ त अपने पाँच अंगु लय से यु हाथक मुट्ठ बाँधकर उसे रा सक गदनपर बड़े वेगसे दे मारा ।। ६७ ।। ततः ा तं तु तद् र ो भीमसेनभुजाहतम् । सुप र ा तमाल य भीमसेनोऽ यवतत ।। ६८ ।। भीमसेनक भुजा के आघातसे वह रा स थक गया था। तदन तर उसे अ धक थका आ दे ख भीमसेन आगे बढ़ते गये ।। ६८ ।। तत एनं महाबा बा याममरोपमः । समु य बलाद् भीमो व न प य महीतले ।। ६९ ।। त प ात् दे वता के समान तेज वी महाबा भीमसेनने उस रा सको दोन भुजा से बलपूवक उठा लया और उसे पृ वीपर पटककर पीस डाला ।। ६९ ।। त य गा ा ण सवा ण चूणयामास पा डवः । अर नना चा भह य शरः कायादपाहरत् ।। ७० ।। उस समय पा डु न दन भीमने उसके सारे अंग को दबाकर चूर-चूर कर दया और थ पड़ मारकर उसके सरको धड़से अलग कर दया ।। ७० ।। संद ौ ं ववृ ा ं फलं वृ ा दव युतम् । जटासुर य तु शरो भीमसेनबला तम् ।। ७१ ।। भीमसेनके बलसे कटकर अलग आ जटासुरका वह सर वृ से टू टकर गरे ए फलके समान जान पड़ता था। उसका ओठ दाँत से दबा आ था और आँख ब त फैली ई थ ।। ७१ ।। पपात धरा द धं संद दशन छदम् । तं नह य महे वासो यु ध रमुपागमत् । ो ै

तूयमानो जा यै तु म रव वासवः ।। ७२ ।। दाँत से दबे ए ओठवाला वह म तक खूनसे लथपथ होकर गर पड़ा था। इस कार जटासुरको मारकर महान् धनुधर भीमसेन यु ध रके पास आये। उस समय े ज उनक भू र-भू र शंसा कर रहे थे, मानो म द्गण दे वराज इ के गुण गा रहे ह ।। ७२ ।।

इत

ीमहाभारते वनपव ण जटासुरवधपव ण स तप चाशद धकशततमोऽ यायः ।। १५७ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत जटासुरवधपवम एक सौ स ावनवाँ अ याय पूरा आ ।। १५७ ।। ।। समा तं जटासुरवधपव ।।

(य

यु पव)

अ प चाशद धकशततमोऽ यायः नर-नारायण-आ मसे वृषपवाके यहाँ होते ए राज ष आ षेणके आ मपर जाना वैश पायन उवाच नहते रा से त मन् पुननारायणा मम् । अ ये य राजा कौ तेयो नवासमकरोत् भुः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—उस रा सके मारे जानेपर कु तीकुमार श शाली राजा यु ध र पुनः नर-नारायण-आ मम आकर रहने लगे ।। १ ।। स समानीय तान् सवान् ातॄ न य वीद् वचः । ौप ा स हतान् काले सं मरन् ातरं जयम् ।। २ ।। एक दन उ ह ने ौपद स हत सब भाइय को एक करके अपने यब धु अजुनका मरण करते ए कहा— ।। २ ।। समा त ोऽ भगताः शवेन चरतां वने । कृतो े शः स बीभ सुः प चमीम भतः समाम् ।। ३ ।। ‘हमलोग को कुशलपूवक वनम वचरते ए चार वष हो गये। अजुनने यह संकेत कया था क म पाँचव वषम लौट आऊँगा ।। ३ ।। ा य पवतराजानं ेतं शख रणां वरम् । पु पतै मष डै म को कलषट् पदै ः ।। ४ ।। मयूरै ातकै ा प न यो सव वभू षतम् । ा ैवराहैम हषैगवयैह रणै तथा ।। ५ ।। ापदै ाल पै भ नषे वतम् । फु लैः सह प ै शतप ै तथो पलैः ।। ६ ।। फु लैः कमलै ैव तथा नीलो पलैर प । महापु यं प व ं च सुरासुर नषे वतम् ।। ७ ।। ‘पवत म े ग रराज कैलासपर आकर अजुनसे मलनेके शुभ अवसरक ती ाम हमने यहाँ डेरा डाला है। ( य क वह मलनेका उनक ओरसे संकेत ा त आ था।) वह ेत कैलास- शखर पु पत वृ ाव लय से सुशो भत है। वहाँ मतवाले को कल क काकली, मर के गुंजारव तथा मोर और पपीह क मीठ वाणीसे न य उ सव-सा होता रहता है, जो उस पवतक शोभाको बढ़ा दे ता है। वहाँ ा , वराह, म हष, गवय, ह रण, हसक ज तु, े



सप तथा मृग नवास करते ह। ख ले ए सहदल, शतदल, उ पल, फु ल कमल तथा नीलो पल आ दसे उस पवतक रमणीयता और भी बढ़ गयी है। वह परम पु यमय और प व है। दे वता और असुर दोन ही उसका सेवन करते ह ।। ४—७ ।। त ा प च कृतो े शः समागम द ु भः । कृत समय तेन पाथना मततेजसा ।। ८ ।। प चवषा ण व या म व ाथ त पुरा म य । ‘अ मततेज वी अजुनने वहाँ भी अपना आगमन दे खनेके लये उ सुक ए हमलोग के साथ संकेतपूवक यह त ा क थी क म अ व ाका अ ययन करनेके लये पाँच वष तक दे वलोकम नवास क ँ गा ।। अ गा डीवध वानमवा ता म र दमम् ।। ९ ।। दे वलोका दमं लोकं यामः पुनरागतम् । इ यु वा ा णान् सवानाम यत पा डवः ।। १० ।। ‘श ु का दमन करनेवाले गा डीवधारी अजुन अ व ा ा त करके पुनः दे वलोकसे इस मनु यलोकम आनेवाले ह। हमलोग शी ही उनसे मलगे’ ऐसा कहकर पा डु न दन यु ध रने सब ा ण को आम त कया ।। ९-१० ।। कारणं चैव तत् तेषामाचच े तप वनाम् । तानु तपसः ीतान् कृ वा पाथाः द णाम् ।। ११ ।। और उन तप वय के सामने उ ह बुला भेजनेका कारण बताया। उन कठोर तप वय को स करके कु तीकुमार ने उनक प र मा क ।। ११ ।। ा णा तेऽ वमोद त शवेन कुशलेन च । सुखोदक ममं लेशम चराद् भरतषभ ।। १२ ।। तब उन ा ण ने कुशल-मंगलके साथ उन सबके अभी मनोरथक पू तका अनुमोदन कया और कहा—‘भरत े ! आजका यह लेश शी ही सुखद भ व यके पम प रणत हो जायगा ।। १२ ।। धमण धम ती वा गां पाल य य स । तत् तु राजा वच तेषां तगृ तप वनाम् ।। १३ ।। त थे सह व ै तै ातृ भ पर तपः । रा सैरनुयातो वै लोमशेना भर तः ।। १४ ।। ‘धम ! तुम यधमके अनुसार इस संकटसे पार होकर सारी पृ वीका पालन करोगे।’ राजा यु ध रने उन तप वी ा ण का यह आशीवाद शरोधाय कया और वे परंतप नरेश उन ा ण तथा भाइय के साथ वहाँसे थत ए। घटो कच आ द रा स भी उनक सेवाके लये पीछे -पीछे चले। राजा यु ध र मह ष लोमशके ारा सवथा सुर त थे ।। १३-१४ ।। व चत् प यां ततोऽग छद् रा सै ते व चत् । त त महातेजा ातृ भः सह सु तः ।। १५ ।। े













उ म तका पालन करनेवाले वे महातेज वी भूपाल कह तो भाइय स हत पैदल चलते और कह रा सलोग उ ह पीठपर बैठाकर ले जाते थे। इस कार वे अनेक थान म गये ।। १५ ।। ततो यु ध रो राजा बन् लेशान् व च तयन् । सह ा गजाक णामुद च ययौ दशम् ।। १६ ।। तदन तर राजा यु ध र अनेक लेश का च तन करते ए सह, ा और हा थय से भरी ई उ र- दशाक ओर चल दये ।। १६ ।। अवे माणः कैलासं मैनाकं चैव पवतम् । ग धमादनपादां ेतं चा प शलो चयम् ।। १७ ।। उपयुप र शैल य ब स रतः शवाः । पृ ं हमवतः पु यं ययौ स तदशेऽह न ।। १८ ।। कैलास, मैनाकपवत, ग धमादनक घा टय और ेत ( हमालय) पवतका दशन करते ए उ ह ने पवतमाला के ऊपर-ऊपर ब त-सी क याणमयी स रताएँ दे ख तथा स हव दन वे हमालयके एक पावन पृ भागपर जा प ँचे ।। १७-१८ ।। द शुः पा डवा राजन् ग धमादनम तकात् । पृ े हमवतः पु ये नाना मलतावृते ।। १९ ।। स ललावतसंजातैः पु पतै मही हैः । समावृतं पु यतममा मं वृषपवणः ।। २० ।। तमुपाग य राज ष धमा मानम र दमाः । पा डवा वृषपवाणमव द त गत लमाः ।। २१ ।। राजन्! वहाँ पा डव ने ग धमादन पवतका नकटसे दशन कया। हमालयका वह पावन पृ भाग नाना कारके वृ और लता से आवृत था। वहाँ जलके आवत से स चकर उ प ए फूलवाले वृ से घरा आ वृषपवाका परम प व आ म था। श ुदमन पा डव ने उन धमा मा राज ष वृषपवाके पास जाकर लेशर हत हो उ ह णाम कया ।। १९—२१ ।। अ यन दत् स राज षः पु वद् भरतषभान् । पू जता ावसं त स तरा म र दमाः ।। २२ ।। उन राज षने भरतकुलभूषण पा डव का पु के समान अ भन दन कया और उनसे स मा नत होकर वे श ुदमन पा डव वहाँ सात रात ठहरे रहे ।। २२ ।।

अ मेऽह न स ा ते तमृ ष लोक व ुतम् । आम य वृषपवाणं थानं यरोचयन् ।। २३ ।। आठव दन उन व व यात राज ष वृषपवाक आ ा ले उ ह ने वहाँसे थान करनेका वचार कया ।। २३ ।। एकैकश तान् व ान् नवे वृषपव ण । यासभूतान् यथाकालं ब धू नव सुस कृतान् ।। २४ ।। पा रबह च तं शेषं प रदाय महा मने । तत ते य पा ा ण र ना याभरणा न च ।। २५ ।। यदधुः पा डवा राज ा मे वृषपवणः । अपने साथ आये ए ा ण को उ ह ने एक-एक करके वृषपवाके यहाँ धरोहरक भाँ त स पा। उन सबका पा डव ने समय-समयपर सगे ब धुक भाँ त स कार कया था। ा ण को स पनेके प ात् पा डव ने अपनी शेष साम ी भी उ ह महामनाको दे द । तदन तर पा डु पु ने वृषपवाके ही आ मम अपने य पा तथा र नमय आभूषण भी रख दये ।। २४-२५ ।। अतीतानागते व ान् कुशलः सवधम वत् ।। २६ ।। अ वशासत् स धम ः पु वद् भरतषभान् । तेऽनु ाता महा मानः ययु दशमु राम् ।। २७ ।। औ









वृषपवा भूत और भ व यके ाता, कायकुशल और स पूण धम के मम थे। उन धम नरेशने भरत े पा डव को पु क भाँ त उपदे श दया। उनक आ ा पाकर महामना पा डव उ र दशाक ओर चले ।। २६-२७ ।। तान् थतान यग छद् वृषपवा महीप तः । उप य य महातेजा व े यः पा डवां तदा ।। २८ ।। अनुसंसाय कौ तेयानाशी भर भन च । वृषपवा नववृते प थानमुप द य च ।। २९ ।। उस समय उनके थान करनेपर महातेज वी राज ष वृषपवाने पा डव को (उस दे शके जानकार अ य) ा ण के सुपुद कर दया और कुछ र पीछे -पीछे जाकर उन कु तीकुमार को आशीवाद दे कर स कया। त प ात् उ ह रा ता बताकर वृषपवा लौट आये ।। २८-२९ ।। नानामृगगणैजु ं कौ तेयः स य व मः । पदा त ातृ भः साध ा त त यु ध रः ।। ३० ।। फर स यपरा मी कु तीन दन यु ध र अपने भाइय के साथ पैदल ही (वृषपवाके बताये ए मागपर) चले, जो अनेक जा तके मृग के झुंड से भरा आ था ।। ३० ।। नाना म नरोधेषु वस तः शैलसानुषु । पवतं व वशुः ेतं चतुथऽह न पा डवाः ।। ३१ ।। महा घनसंकाशं स ललोप हतं शुभम् । म णका चन य य शलानां च समु चयम् ।। ३२ ।। ( पं हमवतः थं ब क दर नझरम् । शला वभ वकटं लतापादपसंकुलम् ।।) ते समासा प थानं यथो ं वृषपवणा । अनुस ुयथो े शं प य तो व वधा गान् ।। ३३ ।। वे सभी पा डव नाना कारके वृ से हरे-भरे पवतीय शखर पर डेरा डालते ए चौथे दन ेत ( हमालय) पवतपर जा प ँचे, जो महामेघके समान शोभा पाता था। वह सु दर शैल शीतल स ललरा शसे स प था और म ण सुवण, रजत तथा शलाख ड का समुदाय प था। हमालयका वह रमणीय दे श अनेकानेक क दरा और नझर से सुशो भत शलाख ड के कारण गम तथा लता और वृ से ा त था। पा डव वृषपवाके बताये ए मागका आ य ले नाना कारके वृ का अवलोकन करते ए अपने अभी थानक ओर अ सर हो रहे थे ।। ३१—३३ ।। उपयुप र शैल य गुहाः परम गमाः । सु गमां ते सुबन् सुखेनैवा भच मुः ।। ३४ ।। धौ यः कृ णा च पाथा लोमश महानृ षः । अग छन् स हता त न क दवहीयते ।। ३५ ।। उस पवतके ऊपर ब त-सी अ य त गम गुफाएँ थ और अनेक ग य दे श थे। पा डव उन सबको सुखपूवक लाँघकर आगे बढ़ गये। पुरो हत धौ य, ौपद , चार पा डव ो े ो े े ोई ी े

तथा मह ष लोमश—ये सब लोग एक साथ चल रहे थे। कोई पीछे नह छू टता था ।। ते मृग जसंघु ं नाना मलतायुतम् । शाखामृगगणै ैव से वतं सुमनोरमम् ।। ३६ ।। पु यं पसरोयु ं सप वलमहावनम् । उपत थुमहाभागा मा यव तं महा ग रम् ।। ३७ ।। आगे बढ़ते ए वे महाभाग पा डव पु यमय मा यवान् नामक महान् पवतपर जा प ँचे, जो अनेक कारके वृ और लता से सुशो भत तथा अ य त मनोरम था। वहाँ मृग के झुंड वचरते और भाँ त-भाँ तके प ी कलरव कर रहे थे। ब त-से वानर भी उस पवतका सेवन करते थे। उसके शखरपर कमलम डत सरोवर, छोटे -छोटे जलकु ड और वशाल वन थे ।। ३६-३७ ।। ततः क पु षावासं स चारणसे वतम् । द शु रोमाणः पवतं ग धमादनम् ।। ३८ ।। वहाँसे उ ह ग धमादन पवत दखायी दया, जो क पु ष का नवास थान है। स और चारण उसका सेवन करते ह। उसे दे खकर पा डव का रोम-रोम हषसे खल उठा ।। ३८ ।। व ाधरानुच रतं क री भ तथैव च । गजसङ् घमावासं सह ा गणायुतम् ।। ३९ ।। उस पवतपर व ाधर वहार करते थे। क रयाँ ड़ा करती थ । झुंड-के-झुंड हाथी, सह और ा नवास करते थे ।। ३९ ।। शरभो ादसंघु ं नानामृग नषे वतम् । ते ग धमादनवनं त दनवनोपमम् ।। ४० ।। मु दताः पा डु तनया मनो दयन दनम् । व वशुः मशो वीराः शर यं शुभकाननम् ।। ४१ ।। शरभ के सहनादसे वह पवत गूँजता रहता था। नाना कारके मृग वहाँ नवास करते थे। ग धमादन पवतका वह वन न दनवनके समान मन और दयको आन द दे नेवाला था। वे वीर पा डु कुमार बड़े स होकर मशः उस सु दर काननम व ए, जो सबको शरण दे नेवाला था ।। ४०-४१ ।। ौपद स हता वीरा तै व ैमहा म भः । शृ व तः ी तजननान् व गून् मदकला छु भान् ।। ४२ ।। ो र यान् सुमधुरा छ दान् खगमुखे रतान् । सवतुफलभाराान् सवतुक ु सुमो वलान् ।। ४३ ।। प य तः पादपां ा प फलभारावना मतान् । आ ाना ातकान् भ ान् ना रकेलान् स त कान् ।। ४४ ।। मु ातकां तथा ीरान् दा डमान् बीजपूरकान् । पनसाँ लकुचान् मोचान् खजूरान लवेतसान् ।। ४५ ।। पारावतां तथा ौ ान् नीपां ा प मनोरमान् । ी ी

ब वान् क प था बूं का मरीबदरी तथा ।। ४६ ।। ल ानु बरबटान थान् ी रकां तथा । भ लातकानामलक हरीतक बभीतकान् ।। ४७ ।। इङ् गुदान् करमदा त कां महाफलान् । एतान यां व वधान् ग धमादनसानुषु ।। ४८ ।। फलैरमृतक पै ताना चतान् वा भ त न् । तथैव च पकाशोकान् केतकान् बकुलां तथा ।। ४९ ।। पु ागान् स तपणा क णकारान् सकेतकान् । पाटलान् कुटजान् र यान् म दारे द वरां तथा ।। ५० ।। पा रजातान् को वदारान् दे वदा मां तथा । शालां तालां तमालां प पलान् ह कां तथा ।। ५१ ।। शा मलीः कशुकाशोका छं शपाः सरलां तथा । उनके साथ ौपद तथा पूव महामना ा ण भी थे। वे सब लोग वहंग के मुखसे नकले ए अ य त मधुर सु दर, वण-सुखद मादक एवं मोदजनक शुभ श द सुनते ए तथा सभी ऋतु के पु प और फल से सुशो भत एवं उनके भारसे झुके वृ को दे खते ए आगे बढ़ रहे थे। आम, आमड़ा, भ ना रयल, त , मुंजातक, अंजीर, अनार, नीबू, कटहल, लकुच (बड़हर), मोच (केला), खजूर, अ लवत, पारावत, ौ , सु दर कद ब, बेल, कैथ, जामुन, ग भारी, बेर, पाकड़, गूलर, बरगद, पीपल, पड खजूर, भलावा, आँवला, हर, बहेड़ा, इंगद ु , कर दा तथा बड़े-बड़े फलवाले त क—ये और सरे भी नाना कारके वृ ग धमादनके शखर पर लहलहा रहे थे, जो अमृतके समान वा द फल से लदे ए थे। (इन सबको दे खते ए पा डवलोग आगे बढ़ने लगे।) इसी कार च पा, अशोक, केतक , बकुल (मौल शरी), पु ाग (सु ताना चंपा), स तपण ( छतवन), कनेर, केवड़ा, पाटल (पाड़ र या गुलाब), कुटज, सु दर म दार, इ द वर (नीलकमल), पा रजात, को वदार, दे वदा , शाल, ताल, तमाल, प पल, हगुक (ह गका वृ ), सेमल, पलाश, अशोक, शीशम तथा सरल आ द वृ को दे खते ए पा डवलोग अ सर हो रहे थे ।। ४२ —५२ ।। चकोरैः शतप ै भृ राजै तथा शुकैः ।। ५२ ।। को कलैः कल वङ् कै हा रतैज वजी वकैः । यकै ातकै ैव तथा यै व वधैः खगैः ।। ५३ ।। ो र यं सुमधुरं कूज ा य ध तान् । सरां स च मनो ा न सम ता जलचा र भः ।। ५४ ।। कुमुदैः पु डरीकै तथा कोकनदो पलैः । क ारैः कमलै ैव आ चता न सम ततः ।। ५५ ।। काद बै वाकै कुररैजलकु कुटै ः । कार डवैः लवैहसैबकैमद्गु भरेव च ।। ५६ ।। ै



एतै ा यै क णा न सम ता जलचा र भः । ै तथा तामरसरसासवमदालसैः ।। ५७ ।। इन वृ पर नवास करनेवाले चकोर, मोर, भृंगराज, तोते, कोयल, कल वक (गौरैयाच ड़या), हारीत (हा रल), चकवा, यक, चातक तथा सरे नाना कारके प ी, वणसुखद मधुर श द बोल रहे थे। वहाँ चार ओर जलचर ज तु से भरे ए मनोहर सरोवर गोचर होते थे। जनम कुमुद, पु डरीक, कोकनद, उ पल, क ार और कमल सब ओर ा त थे। काद ब, च वाक, कुरर, जलकु कुट, कार डव, लव, हंस, बक, मद्गु तथा अ य कतने ही जलचर प ी कमल के मकर दका पान करके मदसे मतवाले और हषसे मु ध ए उन सरोवर म सब ओर फैले थे ।। ५२—५७ ।। पोदर युतरजः कज का णर तैः । म ु वरैमधुकरै व तान् कमलाकरान् ।। ५८ ।। कमल से भरे ए तालाब म मीठे वरसे बोलनेवाले मर के श द गूँज रहे थे। वे मर कमलके भीतरसे नकली ई रज तथा केसर से लाल रंगम रँगे-से जान पड़ते थे ।। ५८ ।। अप यं ते नर ा ा ग धमादनसानुषु । तथैव पष ड ै म डतां सम ततः ।। ५९ ।। इस कार वे नर े ग धमादनके शखर पर पद्मष डम डत तालाब को सब ओर दे खते ए आगे बढ़ रहे थे ।। ५९ ।। शख डनी भः स हताँ लताम डलकेषु च । मेघतूयरवो ाममदनाकु लतान् भृशम् ।। ६० ।। कृ वैव केकामधुरं संगीतं मधुर वरम् । च ान् कलापान् व तीय स वलासान् मदालसान् ।। ६१ ।। मयूरान् द शु ान् नृ यतो वनलालसान् । कां त् या भःस हतान् रममाणान् कला पनः ।। ६२ ।। व लीलतासंकटे षु कुटजेषु थतां तथा । कां च कुटजानां तु वटपेषू कटा नव ।। ६३ ।। कलाप चराटोप न चतान् मुकुटा नव । ववरेषु त णां च चरान् द शु ते ।। ६४ ।। वहाँ लता-म डप म मो र नय के साथ नाचते ए मोर दखायी दे ते थे। जो मेघ क मृदंगतु य ग भीर गजना सुनकर उ ाम कामसे अ य त उ म हो रहे थे। वे अपनी मधुर केका व नका व तार करके मीठे वरम संगीतक रचना करते थे और अपनी व च पाँख फैलाकर वलासयु मदालसभावसे वन वहारके लये उ सुक हो स ताके साथ नाच रहे थे। कुछ मोर लताव ल रय से ा त कुटजवृ के कु म थत हो अपनी यारी मो र नय के साथ रमण करते थे और कुछ कुटज क डा लय पर मदम होकर बैठे थे तथा अपनी सु दर पाँख के घटाटोपसे यु हो मुकुटके समान जान पड़ते थे। कतने ही सु दर मोर वृ के कोटर म बैठे थे। पा डव ने उन सबको दे खा ।। ६०—६४ ।। स धुवारां तथोदारान् म मथ येव तोमरान् । ी े

सुवणवणकुसुमान् गरीणां शखरेषु च ।। ६५ ।। पवत के शखर पर अ धका धक सं याम सुनहरे कुसुम से सुशो भत सु दर शेफा लकाके* ‘पौधे दखायी दे ते थे, जो कामदे वके तोमर नामक बाण-से तीत होते थे ।। ६५ ।। क णकारान् वक सतान् कणपूरा नवो मान् । तथाप यन् कुरबकान् वनरा जषु पु यतान् ।। ६६ ।। कामव यौ सु यकतन् काम येव शरो करान् । तथैव वनराजीनामुदारान् र चता नव ।। ६७ ।। वराजमानां तेऽप यं तलकां तलका नव । तथान शराकारान् सहकारान् मनोरमान् ।। ६८ ।। अप यन् मरारावान् म री भ वरा जतान् । हर यस शैः पु पैदावा नस शैर प ।। ६९ ।। लो हतैर नाभै वै यस शैर प । अतीव वृ ा राज ते पु पताः शैलसानुषु ।। ७० ।। खले ए कनेरके फूल उ म कणपूरके समान तीत होते थे। इसी कार वने णय म वक सत कुरबक नामक वृ भी उ ह ने दे खे, जो कामास पु ष को उ क ठत करनेवाले कामदे वके बाणसमूह के समान जान पड़ते थे। इसी कार उ ह तलकके वृ गोचर ए, जो वन े णय के ललाटम र चत सु दर तलकके समान शोभा पा रहे थे। कह मनोहर मंज रय से वभू षत मनोरम आवृ द ख पड़ते थे, जो कामदे वके बाण क -सी आकृ त धारण करते थे। उनक डा लय पर भ र क भीड़ गूँजती रहती थी। उन पवत के शखर पर कतने ही ऐसे वृ थे, जनम सुवणके समान सु दर पु प खले थे। कुछ वृ के पु प दे खनेम दावानलका म उ प करते थे। क ह वृ के फूल लाल, काले तथा वै यम णके स श धू मल थे। इस कार पवतीय शखर पर व भ कारके पु प से वभू षत वृ बड़ी शोभा पा रहे थे ।। ६६—७० ।। तथा शालां तमालां पाटलान् बकुलान प । माला इव समास ाः शैलानां शखरेषु च ।। ७१ ।। इसी तरह शाल, तमाल, पाटल और बकुल आ द वृ उन शैल शखर पर धारण क ई मालाक भाँ त शोभा पा रहे थे ।। ७१ ।। वमल फा टकाभा न पा डु र छदनै जैः । कलहंसै पेता न सारसा भ ता न च ।। ७२ ।। सरां स ब शः पाथाः प य तः शैलसानुषु । पो पल व म ा ण सुखशीतजला न च ।। ७३ ।। पा डव ने पवतीय शखर पर ब त-से ऐसे सरोवर दे खे, जो नमल फ टकम णके समान सुशो भत थे। उनम सफेद पाँखवाले प ी कलहंस आ द वचरते तथा सारस कलरव े











करते थे। कमल और उ पल-पु प से संयु उन सरोवर म सुखद एवं शीतल जल भरा था ।। ७२-७३ ।। एवं मेण ते वीरा वी माणाः सम ततः । ग धव यथ मा या न रसव त फला न च ।। ७४ ।। सरां स च मनो ा न वृ ां ा तमनोरमान् । व वशुः पा डवाः सव व मयो फु ललोचनाः ।। ७५ ।। इस कार वे वीर पा डव चार ओर सुग धत पु पमालाएँ, सरस फल, मनोहर सरोवर और मनोरम वृ ाव लय को मशः दे खते ए ग धमादन पवतके वनम व ए। वहाँ प ँचनेपर उन सबक आँख आ यसे खल उठ ।। ७४-७५ ।। कमलो पलक ारपु डरीकसुग धना । से माना वने त मन् सुख पशन वायुना ।। ७६ ।। उस समय कमल, उ पल, क ार और पु डरीकक सु दर ग ध लये म द मधुर वायु उस वनम मानो उ ह जन डु लाती थी ।। ७६ ।। ततो यु ध रो भीममाहेदं ी तमद् वचः । अहो ीम ददं भीम ग धमादनकाननम् ।। ७७ ।। तदन तर यु ध रने भीमसेनसे स तापूण यह बात कही—‘भीम! यह ग धमादनकानन कतना सु दर और कैसा अ त है? ।। ७७ ।। वने मन् मनोर ये द ाः काननजा माः । लता व वधाकाराः प पु पफलोपगाः ।। ७८ ।। ‘इस मनोरम वनके वृ और नाना कारक लताएँ द ह। इन सबम प , पु प और फल क ब तायत है ।। ७८ ।। भा येते पु प वकचाः पुं को कलकुलाकुलाः । ना क ट कनः के च च व यपु पताः ।। ७९ ।। ‘ये सभी वृ फूल से लदे ह। को कल-कुलसे अलंकृत ह। इस वनम कोई भी वृ ऐसे नह ह, जनम काँटे ह और जो खले न ह ।। ७९ ।। न धप फला वृ ा ग धमादनसानुषु । मरारावमधुरा न लनीः फु लपङ् कजाः ।। ८० ।। ग धमादनके शखर पर जतने वृ ह, उन सबके प और फल चकने ह। सभी मर के मधुर गुंजारवसे मनोहर जान पड़ते ह। यहाँके सरोवर म कमल खले ए ह ।। ८० ।। वलोड् यमानाः प येमाः क र भः सकरेणु भः । प येमां न लन चा यां कमलो पलमा लनीम् ।। ८१ ।। धरां व हवत सा ा य मवापराम् । नानाकुसुमग धाढ् या त येमाः काननो मे ।। ८२ ।। उपगीयमाना मरै राज ते वनराजयः । प य भीम शुभान् दे शान् दे वा डान् सम ततः ।। ८३ ।। ‘ े ो ी े े औ ी

‘दे खो, ह थ नय स हत हाथी इन तालाब म घुसकर इ ह मथे डालते ह और इस सरी पु क रणीपर पात करो, जो कमल और उ पलक माला से अलंकृत है। यह कमलमालाधा रणी सा ात् सरी ल मीके समान मानो साकार व ह धारण करके कट ई है। ग धमादनके इस उ म वनम नाना कारके कुसुम क सुग धसे सुवा सत ये छोट छोट वन े णयाँ मर के गीत से मुख रत हो कैसी शोभा पा रही ह? भीमसेन! दे खो, यहाँके सु दर दे श म चार ओर दे वता क डा थली है ।। ८१—८३ ।। अमानुषग त ा ताः सं स ाः म वृकोदर । लता भः पु पता ा भः पु पताः पादपो माः ।। ८४ ।। सं ाः पाथ शोभ ते ग धमादनसानुषु । ‘वृकोदर! हमलोग ऐसे थानपर आ गये ह, जो मानव के लये अग य है। जान पड़ता है हम स हो गये ह। कु तीन दन! ग धमादनके शखर पर ये फूल से भरे ए उ म वृ इन पु पत लता से अलंकृत होकर कैसी शोभा पा रहे ह? ।। ८४ ।। शख डनी भ रतां स हतानां शख डनाम् ।। ८५ ।। नदतां शृणु नघ षं भीम पवतसानुषु । ‘भीम! इन पवत शखर पर मो र नय के साथ वचरते बोलते ए मोर का यह मधुर केकारव तो सुनो ।। ८५ ।। चकोराः शतप ा म को कलसा रकाः ।। ८६ ।। प णः पु पतानेतान् संपत त महा मान् । ‘ये चकोर, शतप , मदो म को कल और सा रका आ द प ी इन पु पम डत वशाल वृ क ओर कैसे उड़े जा रहे ह? ।। ८६ ।। र पीता णाः पाथ पादपा गताः खगाः ।। ८७ ।। पर परमुद ते बहवो जीवजीवकाः । ‘पाथ! वृ क ऊँची शखा पर बैठे ए लाल, गुलाबी और पीले रंगके चकोर प ी एक- सरेक ओर दे ख रहे ह ।। ८७ ।। ह रता णवणानां शा लानां समीपतः ।। ८८ ।। सारसाः त य ते शैल वणे व प । उधर हरी और लाल घास के समीप पवतीय झरन के पास सारस दखायी दे ते ह ।। ८८ ।। वद त मधुरा वाचः सवभूतमनोरमाः ।। ८९ ।। भृ राजोपच ा लोहपृ ाः पत णः । ‘भृंगराज, उपच (च वाक) और लोहपृ (कंक) नामक प ी ऐसी मीठ बोली बोलते ह, जो सम त ा णय के मनको मोह लेती है ।। ८९ ।। चतु वषाणाः पाभाः क ु राः सकरेणवः ।। ९० ।। एते वै यवणाभं ोभय त महत् सरः । ‘

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‘इधर दे खो, ये कमलके समान का तवाले गजराज, जनके चार दाँत शोभा पा रहे ह, ह थ नय के साथ आकर वै यम णके समान सुशो भत इस महान् सरोवरको मथे डालते ह ।। ९० ।। ब तालसमु सेधाः शैलशृ प र युताः ।। ९१ ।। नाना वणे य वा रधाराः पत त च । ‘अनेक झरन से जलक धाराएँ गर रही ह। जनक ऊँचाई कई ताड़के बराबर है और ये पवतके सव च शखरसे नीचे गरती ह ।। ९१ ।। भा कराभाः भा भ शारदा घनोपमाः ।। ९२ ।। शोभय त महाशैलं नानारजतधातवः । व चद नवणाभाः व चत् का चनस भाः ।। ९३ ।। ‘नाना कारके रजतमय धातु इस महान् पवतक शोभा बढ़ा रहे ह। इनमसे कुछ तो अपनी भा से भगवान् भा करके समान का शत होते ह और कुछ शरद्-ऋतुके ेत बादल के समान सुशो भत हो रहे ह। कह काजलके समान काले और सुवणके समान पीले रंगके धातु द ख पड़ते ह ।। ९२-९३ ।। धातवो ह रताल य व च लक य च । मनः शलागुहा ैव स या नकरोपमाः ।। ९४ ।। ‘कह ह रतालस ब धी धातु ह और कह हगुलस ब धी। कह मैन सलक गुफाएँ ह, जो सं याकालीन लाल बादल के समान जान पड़ती ह ।। ९४ ।। शशलो हतवणाभाः व चद्गै रकधातवः । सता सता तमा बालसूयसम भाः ।। ९५ ।। ‘कह गे नामक धातु ह, जनक का त लाल खरगोशके समान दखायी दे ती है। कोई धातु ेत बादल के समान ह, तो कोई काले मेघ के समान। कोई ातःकालके सूयक भाँ त लाल रंगके ह ।। ९५ ।। एते ब वधाः शैलं शोभय त महा भाः । ग धवाः सह का ता भयथो ं वृषपवणा ।। ९६ ।। य ते शैलशृ े षु पाथ क पु षैः सह । ‘ये नाना कारक परम का तमान् धातु समूचे शैलक शोभा बढाती ह। पाथ! जस कार वृषपवाने कहा था उसी कार इन पवतीय शखर पर अपनी ेयसी अ सरा तथा क पु ष के साथ ग धव गोचर होते ह ।। ९६ ।। गीतानां समतालानां तथा सा नां च नः वनः ।। ९७ ।। ूयते ब धा भीम सवभूतमनोहरः । महाग ामुद व पु यां दे वनद शुभाम् ।। ९८ ।। ‘भीमसेन! यहाँ सम तालसे गाते ए गीत तथा सामम का व वध वर सुनायी पड़ता है, जो स पूण भूत के च को आक षत करनेवाला है। यह परम प व एवं क याणमयी दे वनद महागंगा ह, इनका दशन करो ।। ै



कलहंसगणैजु ामृ ष क रसे वताम् । धातु भ स र क रैमृगप भः ।। ९९ ।। ग धवर सरो भ काननै मनोरमैः । ालै व वधाकारैः शतशीषः सम ततः ।। १०० ।। उपेतं प य कौ तेय शैलराजम र दम । ‘यहाँ हंस के समुदाय नवास करते ह तथा ऋ ष एवं क रगण सदा इन (गंगाजी)-का सेवन करते ह। श ुदमन भीम! भाँ त-भाँ तके धातु , न दय , क र , मृग , प य , ग धव , अ सरा , मनोरम कानन तथा सौ म तकवाले भाँ त-भाँ तके सप से स प इस पवतराजका दशन करो’ ।। ९९-१०० ।। वैश पायन उवाच ते ीतमनसः शूराः ा ता ग तमनु माम् ।। १०१ ।। वैश पायनजी कहते ह—इस कार वे शूरवीर पा डव हषपूण दयसे अपने परम उ म ल य थानको प ँच गये ।। १०१ ।। नातृ यन् पवते य दशनेन पर तपाः । उपेतमथ मा यै फलव पादपैः ।। १०२ ।। आ षेण य राजषरा मं द शु तदा । ग रराज ग धमादनका दशन करनेसे उ ह तृ त नह होती थी। तदन तर परंतप पा डव ने पु पमाला तथा फलवान् वृ से स प राज ष आ षेणका आ म दे खा ।। १०२ ।। तत ते त मतपसं कृशं धम नसंततम् । पारगं सवधमाणामा षेणमुपागमन् ।। १०३ ।। फर वे कठोर तप वी बलकाय तथा नस-ना ड़य से ही ा त राज ष आ षेणके समीप गये, जो स पूण धम के पारंगत व ान् थे ।। १०३ ।। इत

ीमहाभारते आर यके पव ण य यु पव ण ग धमादन वेशे अ प चाशद धकशततमोऽ यायः ।। १५८ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत य यु पवम ग धमादन वेश वषयक एक सौ अावनवाँ अ याय पूरा आ ।। १५८ ।।

*

स धुवार श दका अथ आचाय नीलक ठने कमल माना है। आधु नक कोषकार ने ‘ स धुवार’को शेफा लका या नगु डीका पयाय माना है। उसके फूल मंजरीके आकारम केस रया रंगके होते ह, अतः तोमरसे उनक उपमा ठ क बैठती है। इसी लये यहाँ शेफा लका अथ लया गया।

एकोनष क े

धकशततमोऽ यायः

पम आ षेणका यु ध रके

त उपदे श

वैश पायन उवाच यु ध र तमासा तपसा द ध क बषम् । अ यवादयत ीतः शरसा नाम क तयन् ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! राज ष आ षेणने तप या ारा अपने सारे पाप द ध कर दये थे। राजा यु ध रने उनके पास जाकर बड़ी स ताके साथ अपना नाम बताते ए उनके चरण म म तक रखकर णाम कया ।। १ ।। ततः कृ णा च भीम यमौ च सुतप वनौ । शरो भः ा य राज ष प रवाय पत थरे ।। २ ।। तदन तर ौपद , भीमसेन और परम तप वी नकुल-सहदे व—ये सभी म तक झुकाकर उन राज षको चार ओरसे घेरकर खड़े हो गये ।। २ ।। तथैव धौ यो धम ः पा डवानां पुरो हतः । यथा यायमुपा ा त तमृ ष सं शत तम् ।। ३ ।। उसी कार पा डव के पुरो हत धम धौ यजी कठोर तका पालन करनेवाले राज ष आ षेणके पास यथो चत श ाचारके साथ उप थत ए ।। ३ ।। अ वजानात् स धम ो मु न द ेन च ुषा । पा डोः पु ान् कु े ाना यता म त चा वीत् ।। ४ ।। उन धम मु न आ षेणने अपनी द से कु े पा डव को जान लया और कहा, ‘आप सब लोग बैठ’ ।। ४ ।। कु णामृषभं पाथ पूज य वा महातपाः । सह ातृ भरासीनं पयपृ छदनामयम् ।। ५ ।। महातप वी आ षेणने भाइय स हत कु े यु ध रका यथो चत आदर-स कार कया और जब वे बैठ गये, तब उनसे कुशल-समाचार पूछा— ।। ५ ।। नानृते कु षे भावं क चद् धम वतसे । माता प ो ते वृ ः क चत् पाथ न सीद त ।। ६ ।। ‘कु तीन दन! कभी झूठक ओर तो तु हारा मन नह जाता? तुम धमम लगे रहते हो न? माता- पताके त जो तु हारी सेवावृ होनी चा हये, वह है न? उसम श थलता तो नह आयी है? ।। ६ ।। क चत् ते गुरवः सव वृ ा वै ा पू जताः । क च कु षे भावं पाथ पापेषु कमसु ।। ७ ।। ‘ या तुमने सम त गु जन , बड़े-बूढ़ और व ान का सदा समादर कया है? पाथ! कभी पापकम म तो तु हारी च नह होती? ।। ७ ।।

सुकृतं तकतु च क च ातुं च कृतम् । यथा यायं कु े जाना स न वक थसे ।। ८ ।। ‘कु े ! या तुम अपने उपकारीको उसके उपकारका यथो चत बदला दे ना जानते हो? या तु ह अपना अपकार करनेवाले मनु यक उपे ा कर दे नेक कला का ान है? तुम अपनी बड़ाई तो नह करते? ।। ८ ।। यथाह मा नताः क चत् वया न द त साधवः । वने व प वसन् क चद् धममेवानुवतसे ।। ९ ।। ‘ या तुमसे यथायो य स मा नत होकर साधु पु ष तुमपर स रहते ह? या तुम वनम रहते ए भी सदा धमका ही अनुसरण करते हो? ।। ९ ।। क चद् धौ य वदाचारैन पाथ प रत यते । दानधमतपःशौचैराजवेन त त या ।। १० ।। पतृपैतामहं वृ ं क चत् पाथानुवतसे । क चद् राज षयातेन पथा ग छ स पा डव ।। ११ ।। ‘पाथ! तु हारे आचार- वहारसे पुरो हत धौ यजीको लेश तो नह प ँचता है? कु तीन दन! या तुम दान, धम, तप, शौच, सरलता और मा आ दके ारा अपने बापदाद के आचार- वहारका अनुसरण करते हो? पा डु न दन! ाचीन राज ष जस मागसे गये ह, उसीपर तुम भी चलते हो न? ।। १०-११ ।। वे वे कल कुले जाते पु े न त र वा पुनः । पतरः पतृलोक थाः शोच त च हस त च ।। १२ ।। क त य कृतेऽ मा भः स ा त ं भ व य त । क चा य सुकृतेऽ मा भः ा त म त शोभनम् ।। १३ ।। ‘कहते ह, जब-जब अपने-अपने कुलम पु अथवा नातीका ज म होता है, तब-तब पतृलोकम रहनेवाले पतर शोकम न होते ह और हँसते भी ह। शोक तो उ ह यह सोचकर होता है क ‘ या हम इसके पापम ह सा बँटाना पड़ेगा?’ और हँसते इस लये ह क ‘ या हम इसके पु यका कुछ भाग मलेगा? य द ऐसा हो तो बड़ी अ छ बात है’ ।। १२-१३ ।। पता माता तथैवा नगु रा मा च प चमः । य यैते पू जताः पाथ त या लोकावुभौ जतौ ।। १४ ।। ‘पाथ! जसके ारा पता, माता, अ न, गु और आ मा—इन पाँच का आदर होता है, वह यह लोक और परलोक दोन को जीत लेता है’ ।। १४ ।। यु ध र उवाच भगव ाय माहैतद् यथावद् धम न यम् । यथाश यथा यायं यते व धव मया ।। १५ ।। यु ध रने कहा—भगवन्! आयचरण! आपने मुझे यह धमका नचोड़ बताया है। म अपनी श के अनुसार यथो चत री तसे व धपूवक इसका पालन करता ँ ।। १५ ।। आ षेण उवाच

अभ ा वायुभ ा लवमाना वहायसा । जुष ते पवत े मृषयः पवसं धषु ।। १६ ।। आ षेण बोले—पाथ! पव क सं धवेलाम (पू णमा तथा तपदाक सं धम) ब तसे ऋ षगण आकाशमागसे उड़ते ए आते ह और इस े पवतका सेवन करते ह। उनमसे कतने तो केवल जल पीकर जीवन- नवाह करते ह और कतने केवल वायु पीकर रहते ह ।। १६ ।। का मनः सह का ता भः पर परमनु ताः । य ते शैलशृ था यथा क पु षा नृप ।। १७ ।। राजन्! कतने ही क पु ष-जा तके कामी अपनी का म नय के साथ पर पर अनुर भावसे यहाँ डाके लये आते ह और पवतके शखर पर घूमते दखायी दे ते ह ।। १७ ।। अरजां स च वासां स वसानाः कौ शका न च । य ते बहवः पाथ ग धवा सरसां गणाः ।। १८ ।। कु तीकुमार! ग धव और अ सरा के ब त-से गण यहाँ दे खनेम आते ह, उनमसे कतने ही व छ व धारण करते ह और कतने ही रेशमी व से सुशो भत होते ह ।। १८ ।। व ाधरगणा ैव वणः यदशनाः । महोरगगणां ैव सुपणा ोरगादयः ।। १९ ।। व ाधर के गण भी सु दर फूल के हार पहने अ य त मनोहर दखायी दे ते ह। इनके सवा बड़े-बड़े नागगण, सुपणजातीय प ी तथा सप आ द भी गोचर होते ह ।। १९ ।। अ य चोप र शैल य ूयते पवसं धषु । भेरीपणवशङ् खानां मृद ानां च नः वनः ।। २० ।। पव क सं ध-बेलाम इस पवतके ऊपर भेरी, पणव, शंख और मृदंग क व न सुनायी दे ती है ।। २० ।। इह थैरेव तत् सव ोत ं भरतषभाः । न काया वः कथं चत् यात् त ा भगमने म तः ।। २१ ।। भरतकुलभूषण पा डवो! तु ह यह रहकर वह सब कुछ दे खना या सुनना चा हये। वहाँ पवतके ऊपर जानेका वचार तु ह कसी कार भी नह करना चा हये ।। २१ ।। न चा यतः परं श यं ग तुं भरतस माः । वहारो दे वानाममानुषग त तु सा ।। २२ ।। भरत े ! इससे आगे जाना अस भव है। वहाँ दे वता क वहार थली है। वहाँ मनु य क ग त नह हो सकती ।। २२ ।। ईष चपलकमाणं मनु य मह भारत । ष त सवभूता न ताडय त च रा साः ।। २३ ।। भारत! यहाँ थोड़ी-सी भी चपलता करनेवाले मनु यसे सब ाणी े ष करते ह तथा रा सलोग उसपर हार कर बैठते ह ।। २३ ।। ै

अ या त य शखरं कैलास य यु ध र । ग तः परम स ानां दे वष णां काशते ।। २४ ।। यु ध र! इस कैलासके शखरको लाँघ जानेपर परम स दे व षय क ग त का शत होती है ।। २४ ।। चापला दह ग छ तं पाथ यान मतः परम् । अयःशूला द भ न त रा साः श ुसूदन ।। २५ ।। श ुसूदन पाथ! चपलतावश इससे आगेके मागपर जानेवाले मनु यको रा सगण लोहेके शूल आ दसे मारते ह ।। २५ ।। अ सरो भः प रवृतः समृ या नरवाहनः । इह वै वण तात पवसं धषु यते ।। २६ ।। तात! पव क सं धके समय यहाँ मनु य पर सवार होनेवाले कुबेर अ सरा से घरकर अपने अतुल वैभवके साथ दखायी दे ते ह ।। २६ ।। शखर थं समासीनम धपं य र साम् । े ते सवभूता न भानुम त मवो दतम् ।। २७ ।। य तथा रा स के अ धप त कुबेर जब इस कैलाश शखरपर वराजमान होते ह, उस समय उ दत ए सूयक भाँ त शोभा पाते ह। उस अवसरपर सब ाणी उनका दशन करते ह ।। २७ ।। दे वदानव स ानां तथा वै वण य च । गरेः शखरमू ान मदं भरतस म ।। २८ ।। भरत े ! पवतका यह शखर दे वता , दानव , स तथा कुबेरका ड़ा-कानन है ।। २८ ।। उपासीन य धनदं तु बुरोः पवसं धषु । गीतसाम वन तात ूयते ग धमादने ।। २९ ।। तात! पवसं धके समय ग धमादन पवतपर कुबेरक सेवाम उप थत ए तु बु ग धवके साम-गानका वर प सुनायी पड़ता है ।। २९ ।। एतदे वं वधं च मह तात यु ध र । े ते सवभूता न ब शः पवसं धषु ।। ३० ।। तात यु ध र! इस कार पवसं धकालम सब ाणी यहाँ अनेक बार ऐसे-ऐसे अ त य का दशन करते ह ।। भु ाना मु नभो या न रसव त फला न च । वस वं पा डव े ा यावदजुनदशनात् ।। ३१ ।। े पा डवो! जबतक तु हारी अजुनसे भट न हो, तबतक मु नय के भोजन करनेयो य सरस फल का उपभोग करते ए तुम सब लोग यहाँ (सान द) नवास करो ।। ३१ ।। न तात चपलैभा मह ा तैः कथंचन । उ ष वेह यथाकामं यथा ं व यच।

ततः श जतां तात पृ थव पाल य य स ।। ३२ ।। तात! यहाँ आनेवाले लोग को कसी कार चपल नह होना चा हये। तुम यहाँ अपनी इ छाके अनुसार रहकर और ाके अनुसार घूम- फरकर लौट जाओगे और श ारा जीती ई पृ वीका पालन करोगे ।। ३२ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण य यु पव ण आ षेणयु ध रसंवादे एकोनष धकशततमोऽ याय ।। १५९ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत य यु पवम आ षेण-यु ध रसंवाद वषयक एक सौ उनसठवाँ अ याय पूरा आ ।। १५९ ।।



धकशततमोऽ यायः

पा डव का आ षेणके आ मपर नवास, ौपद के अनुरोधसे भीमसेनका पवतके शखरपर जाना और य तथा रा स से यु करके म णमान्का वध करना जनमेजय उवाच आ षेणा मे त मन् मम पूव पतामहाः । पा डोः पु ा महा मानः सव द परा माः ।। १ ।। कय तं कालमवसन् पवते ग धमादने । क च च ु महावीयाः सवऽ तबलपौ षाः ।। २ ।। जनमेजयने पूछा— न्! ग धमादन पवतपर आ षेणके आ मम मेरे सम त पूव पतामह द परा मी महामना पा डव कतने समयतक रहे? वे सभी महान् परा मी और अ य त बल-पौ षसे स प थे। वहाँ रहकर उ ह ने या कया? ।। १-२ ।। का न चा यवहाया ण त तेषां महा मनाम् । वसतां लोकवीराणामासं तद् ू ह स म ।। ३ ।। साधु शरोमणे! वहाँ नवास करते समय व व यात वीर महामना पा डव के भो य पदाथ या थे? यह बतानेक कृपा कर ।। ३ ।। व तरेण च मे शंस भीमसेनपरा मम् । यत् य च े महाबा त मन् हैमवते गरौ ।। ४ ।। आप मुझसे भीमसेनका परा म व तारपूवक बताव। उन महाबा ने हमालय पवतके शखरपर रहते समय कौन-कौन-सा काय कया था? ।। ४ ।। न ख वासीत् पुनयु ं त य य ै जो म । क चत् समागम तेषामासीद् वै वण य च ।। ५ ।। ज े ! उनका य के साथ फर कोई यु आ था या नह । या कुबेरके साथ कभी उनक भट ई थी? ।। ५ ।। त ाया त धनद आ षेणो यथा वीत् । एत द छा यहं ोतुं व तरेण तपोधन ।। ६ ।। न ह मे शृ वत तृ तर त तेषां वचे तम् । य क आ षेणने जैसा बताया था, उसके अनुसार वहाँ कुबेर अव य आते रहे ह गे। तपोधन! म यह सब व तारके साथ सुनना चाहता ँ; य क पा डव का च र सुननेसे मुझे तृ त नह होती ।। ६ ।। वैश पायन उवाच एतदा म हतं ु वा त या तमतेजसः ।। ७ ।। ै

शासनं सततं च ु तथैव भरतषभाः । वैश पायनजीने कहा—राजन्! अ तम तेज वी आ षेणका यह अपने लये हतकर वचन सुनकर भरतकुल-भूषण पा डव ने सदा उनके आदे शका उसी कार पालन कया ।। ७ ।। भु ाना मु नभो या न रसव त फला न च ।। ८ ।। मे या न हमव पृ े मधू न व वधा न च । एवं ते यवसं त पा डवा भरतषभाः ।। ९ ।। वे हमालयके शखरपर नवास करते ए मु नय के खानेयो य सरस फल का और नाना कारके प व ( बना हसाके ा त) मधुका भी भोजन करते थे। इस कार भरत े पा डव वहाँ नवास करते थे ।। ८-९ ।। तथा नवसतां तेषां प चमं वषम यगात् । शृ वतां लोमशो ा न वा या न व वधा युत ।। १० ।। वहाँ नवास करते ए उनका पाँचवाँ वष बीत गया। उन दन वे लोमशजीक कही ई नाना कारक कथाएँ सुना करते थे ।। १० ।। कृ यकाल उप था य इ त चो वा घटो कचः । रा सैः सह सव पूवमेव गतः भो ।। ११ ।। राजन्! घटो कच यह कहकर क ‘म आव यकताके समय वयं उप थत हो जाऊँगा’ सब रा स के साथ पहले ही चला गया था ।। ११ ।। आ षेणा मे तेषां वसतां वै महा मनाम् । अग छन् बहवो मासाः प यतां महद तम् ।। १२ ।। आ षेणके आ मम रहकर अ य त अ त य का अवलोकन करते ए महामना पा डव के अनेक मास तीत हो गये ।। १२ ।। तै त वहर रममाणै पा डवैः । ी तम तो महाभागा मुनय ारणा तथा ।। १३ ।। वहाँ रहकर डा- वहार करते ए उन पा डव से महाभाग मु न और चारण ब त स थे ।। १३ ।। आज मुः पा डवान् ु ं शु ा मानो यत ताः । ते तैः सह कथां च ु द ां भरतस माः ।। १४ ।। उनका अ तःकरण शु था और वे संयम- नयमके साथ उ म तका पालन करनेवाले थे। एक दन वे सभी पा डव से मलनेके लये आये। भरत शरोम ण पा डव ने उनके साथ द चचाएँ क ।। १४ ।। ततः क तपयाह य महा द नवा सनम् । ऋ म तं महानागं सुपणः सहसाऽऽहरत् ।। १५ ।। तदन तर कुछ दन के बाद एक महान् जलाशयम नवास करनेवाले महानाग ऋ मान्को ग डने सहसा झपाटा मारकर पकड़ लया ।। १५ ।। ै

ाक पत महाशैलः ामृ त महा माः । द शुः सवभूता न पा डवा तद तम् ।। १६ ।। उस समय वह महान् पवत हलने लगा। बड़े-बड़े वृ म म मल गये। वहाँके सम त ा णय तथा पा डव ने उस अ त घटनाको य दे खा ।। १६ ।। ततः शैलो म या ात् पा डवान् त मा तः । अवहत् सवमा या न ग धव त शुभा न च ।। १७ ।। त प ात् उस उ म पवतके शखरसे पा डव क ओर हवाका एक झ का आया, जसने वहाँ सब कारके सुग धत पु प क बनी ई ब त-सी सु दर मालाएँ लाकर बखेर द ।। १७ ।। त पु पा ण द ा न सु ः सह पा डवाः । द शुः प चवणा न ौपद च यश वनी ।। १८ ।। पा डव ने अपने सु द के साथ जाकर उन माला म गूँथे ए द पु प दे खे, जो पाँच रंगके थे। यश वनी ौपद ने भी उन फूल को दे खा था ।। १८ ।। भीमसेनं ततः कृ णा काले वचनम वीत् । व व े पवतो े शे सुखासीनं महाभुजम् ।। १९ ।। तदन तर उसने समय पाकर पवतके एका त दे शम सुखपूवक बैठे ए महाबा भीमसेनसे कहाप— ।। १९ ।। सुपणा नलवेगेन सनेन महाचलात् । प चवणा न पा य ते पु पा ण भरतषभ ।। २० ।। य ं सवभूतानां नद म रथां त । खा डवे स यसंधेन ा ा तव महा मना ।। २१ ।। ग धव रगर ां स वासव नवा रतः । हता माया वन ो ा धनुः ा तं च गा डवम् ।। २२ ।। ‘भरत े ! ग डके पंखसे उठ ई वायुके वेगसे उस दन उस महान् पवतसे जो पाँच रंगके फूल अ रथा नद के तटपर गराये गये थे, उ ह सब ा णय ने य दे खा। मुझे याद है, खा डव वनम तु हारे महामना भाई स य त अजुनने ग धव , नाग , रा स तथा दे वराज इ को भी यु म आगे बढ़नेसे रोक दया था। ब त-से भयंकर मायावी रा स उनके हाथ मारे गये और उ ह ने गा डीव नामक धनुष भी ा त कर लया ।। २०-२२ ।। तवा प सुमहत् तेजो महद् बा बलं च ते । अ वष मनाधृ यं श तु यपरा म ।। २३ ।। ‘आयपु ! तु हारा परा म भी इ के ही समान है। तु हारा तेज और बा बल भी महान् है। वह सर के लये ःसह एवं धष है ।। २३ ।। वा बलवेगेन ा सताः सवरा साः । ह वा शैलं प तां भीमसेन दशो दश ।। २४ ।। ‘भीमसेन! म चाहती ँ क तु हारे बा बलके वेगसे थराकर स पूण रा स इस पवतको छोड़ द और दस दशा क शरण ल ।। २४ ।। ै ो

ततः शैलो म या ं च मा यधरं शवम् । पेतभयस मोहाः प य तु सु द तव ।। २५ ।। एवं ण हतं भीम चरात् भृ त मे मनः । ु म छा म शैला ं वा बलपा लता ।। २६ ।। ‘त प ात् व च मालाधारी एवं शव व प इस उ म शैल- शखरको तु हारे सब सु द् भय और मोहसे र हत होकर दे ख। भीम! द धकालसे म अपने मनम यही सोच ही रही ँ। म तु हारे बा बलसे सुर त हो इस शैल- शखरका दशन करना चाहती ँ’ ।। २५-२६ ।। ततः त मवा मानं ौप ा स परंतपः । नामृ यत महाबा ः हार मव स वः ।। २७ ।। ौपद क यह बात सुनकर परंतप महाबा भीमसेनने इसे अपने ऊपर आ ेप आ— सा समझा। जैसे अ छा बैल अपने ऊपर चाबुकक मार नह सह सकता, उसी कार यह आ ेप उनसे नह सहा गया ।। सहषभग तः ीमानुदारः कनक भः । मन वी बलवान् तो मानी शूर पा डवः ।। २८ ।। उनक चाल े सहके समान थी। वे सु दर, उदार और कनकके समान का तमान् थे। पा डु न दन भीम मन वी, बलवान्, अ भमानी, मानी और शूरवीर थे ।। २८ ।। लो हता ः पृथु ंसो म वारण व मः । सहदं ो बृह क धः शालपोत इवोतः ।। २९ ।। उनक आँख लाल थ । दोन कंधे -पु थे। उनका परा म मतवाले गजराजके समान था। दाँत सहक दाढ़ क समानता करते थे। कंधे वशाल थे। वे शालवृ क भाँ त ऊँचे जान पड़ते थे ।। २९ ।। महा मा चा सवा ः क बु ीवो महाभुजः । मपृ ं धनुः खड् गं तूणा ा प परामृशत् ।। ३० ।। उनका दय महान् था, सभी अंग मनोहर जान पड़ते थे, ीवा शंखके समान थी और भुजाएँ बड़ी-बड़ी थ । वे सुवणक पीठवाले धुनष, खड् ग तथा तरकसपर बार-बार हाथ फेरते थे ।। ३० ।। स केसरीव चो स ः भ इव वारणः । पेतभयस मोहः शैलम यपतद् बली ।। ३१ ।। बलवान् भीमसेन मदो म सह और मदक धारा बहानेवाले गजराजक भाँ त भय और मोहसे र हत हो उस पवतपर चढ़ने लगे ।। ३१ ।। तं मृगे मवाया तं भ मव वारणम् । द शुः सवभूता न बाणकामुकधा रणम् ।। ३२ ।। मदवष कुंजर और मृगराजक भाँ त आते ए धनुष-बाणधारी भीमसेनको उस समय सब भूत ने दे खा ।। ३२ ।। ौप ा वधयन् हष गदामादाय पा डवः । े ो ै

पेतभयस मोहः शैलराजं समा तः ।। ३३ ।। पा डु न दन भीम गदा हाथम लेकर ौपद का हष बढ़ाते ए भय और घबराहट छोड़कर उस पवतराजपर चढ़ गये ।। ३३ ।। न ला नन च कातय न वै ल ं न म सरः । कदा च जुषते पाथमा मजं मात र नः ।। ३४ ।। वायु-पु कु तीकुमार भीमसेनको कभी ला न, कातरता, ाकुलता और म सरता आ द भाव नह छू ते थे ।। ३४ ।। तदे कायनमासा वषमं भीमदशनम् । ब तालो यं शृ मा रोह महाबलः ।। ३५ ।। वह पवत ऊँची-नीची भू मय से यु और दे खनेम भयंकर था। उसक ऊँचाई कई ताड़ के बराबर थी और उसपर चढ़नेके लये एक ही माग था, तो भी महाबली भीमसेन उसके शखरपर चढ़ गये ।। ३५ ।। स क रमहानागमु नग धवरा सान् । हषयन् पवत या मा स महाबलः ।। ३६ ।। पवतके शखरपर आ ढ़ हो महाबली भीम क र, महानाग, मु न, ग धव तथा रा स का हष बढ़ाने लगे ।। ३६ ।। ततो वै वणावासं ददश भरतषभः । का चनैः फा टकै ैव वे म भः समलंकृतम् ।। ३७ ।। तदन तर भरत े भीमसेनने कुबेरका नवास थान दे खा, जो सुवण और फ टकम णके बने ए भवन से वभू षत था ।। ३७ ।। ाकारेण प र तं सौवणन सम ततः । सवर न ु तमता सव ानवता तथा ।। ३८ ।। शैलाद यु यवता चया ालकशो भना । ारतोरण न ूह वजसंवाहशो भना ।। ३९ ।। उसके चार ओर सोनेक चहारद वारी बनी थी। उसम सब कारके र न जड़े होनेसे उनक भा फैलती रहती थी। चहारद वारीके सब ओर सु दर बगीचे थे। उस चहारद वारीक ऊँचाई पवतसे भी अ धक थी। ब तसे भवन और अ ा लका से उसक बड़ी शोभा हो रही थी। ार, तोरण (गोपुर), बुज और वजसमुदाय उसक शोभा बढ़ा रहे थे ।। ३८-३९ ।। वला सनी भर यथ नृ य ती भः सम ततः । वायुना धूयमाना भः पताका भरलंकृतम् ।। ४० ।। उस भवनम सब ओर कतनी ही वला सनी अ सराएँ नृ य कर रही थ और हवासे फहराती ई पताकाएँ उस भवनका अलंकार बनी ई थ ।। ४० ।। धनु को टमव य व भावेन बा ना । प यमानः स खेदेन वणा धपतेः पुरम् ।। ४१ ।। ी















अपनी तरछ क ई बा से धनुषक नोकको थर करके भीमसेन उस धना य कुबेरके नगरको बड़े खेदके साथ दे ख रहे थे ।। ४१ ।। मोदयन् सवभूता न ग धमादनस भवः । सवग धवह त मा तः सुसुखो ववौ ।। ४२ ।। ग धमादनसे उठ ई वायु स पूण सुग धक रा श लेकर सम त ा णय को आन दत करती ई सुखद म द ग तसे बह रही थी ।। ४२ ।। च ा व वधवणाभा म रधा रणः । अ च या व वधा त माः परमशो भनः ।। ४३ ।। र नजालप र तं च मा य वभू षतम् । रा सा धपतेः थानं द शे भरतषभः ।। ४४ ।। वहाँके अ य त शोभाशाली व वध वृ नाना कारक का तसे का शत हो रहे थे। उनक म रयाँ व च दखायी दे ती थ । वे सब-के-सब अ त और अकथनीय जान पड़ते थे। भरत े भीमने रा सराज कुबेरके उस थानको र न के समुदायसे सुशो भत तथा व च माला से वभू षत दे खा ।। ४३-४४ ।। गदाखड् गधनु पा णः सम भ य जी वतः । भीमसेनो महाबा त थौ ग र रवाचलः ।। ४५ ।। ततः शङ् खमुपा मासीद् षतां लोमहषणम् । याघोषतलश दं च कृ वा भूता यमोहयत् ।। ४६ ।। उनके हाथम गदा, खड् ग और धनुष शोभा पा रहे थे। उ ह ने अपने जीवनका मोह सवथा छोड़ दया था। वे माहबा भीमसेन वहाँ पवतक भाँ त अ वचल-भावसे कुछ दे र खड़े रहे। त प ात् उ ह ने बड़े जोरसे शंख बजाया, जसक आवाज श ु के र गटे खड़े कर दे नेवाली थी। फर धनुषक टं कार करके सम त ा णय को मो हत कर दया ।। ४५-४६ ।। ततः रोमाण तं श दम भ वुः । य रा सग धवाः पा डव य समीपतः ।। ४७ ।। तब य , रा स और ग धव रोमा चत होकर उस श दको ल य करके पा डु न दन भीमसेनके समीप दौड़े आये ।। ४७ ।। गदाप रघ न ंशशूलश पर धाः । गृहीता रोच त य रा सबा भः ।। ४८ ।। उस समय गदा, प रघ, खड् ग, शूल, श और फरसे आ द अ -श उन य तथा रा स के हाथ म आकर बड़ी चमक पैदा कर रहे थे ।। ४८ ।। ततः ववृते यु ं तेषां त य च भारत । तैः यु ान् महामायैः शूलश पर धान् ।। ४९ ।। भ लैभ मः च छे द भीमवेगतरै ततः । अ त र गतानां च भू म ानां च गजताम् ।। ५० ।। शरै व ाध गा ा ण रा सानां महाबलः । ो

सा लो हतमहावृ र यवष महाबलम् ।। ५१ ।। गदाप रघपाणीनां र सां कायस भवाः । काये यः युता धारा रा सानां सम ततः ।। ५२ ।। भारत! तदन तर उन य और ग धव का भीमसेनके साथ यु ार भ हो गया। वे य और रा स बड़े मायावी थे। उनके चलाये ए शूल, श और फरस को भीमसेनने भयानक वेगशाली भ ल नामक बाण ारा काट गराया। वे रा स आकाशम उड़कर तथा भूतलपर खड़े होकर जोर-जोरसे गजना कर रहे थे। महाबली भीमने बाण क झड़ी लगाकर उनके शरीर को अ छ कार छे द डाला। गदा और प रघ हाथम लये ए रा स के शरीरसे महाबली भीमपर खूनक बड़ी भारी वषा होने लगी तथा चार ओर रा स के शरीरसे र क कतनी ही धाराएँ बह चल ।। ४९—५२ ।। भीमबा बलो सृ ैरायुधैय र साम् । व नकृ ा न य ते शरीरा ण शरां स च ।। ५३ ।। भीमके बा बलसे छू टे ए अ -श ारा य तथा रा स के शरीर और सर कटे दखायी दे रहे थे ।। छा मानं र ो भः पा डवं यदशनम् । द शुः सवभूता न सूयम गणै रव ।। ५४ ।। जैसे बादल सूयको ढक लेते ह, उसी कार यदशन पा डु पु भीमको रा स ढक लेते ह, यह सब ा णय ने य दे खा ।। ५४ ।। स र म भ रवा द यः शरैर र नघा त भः । सवाना छ महाबा बलवान् स य व मः ।। ५५ ।। तब स यपरा मी बलवान् महाबा भीमसेनने अपने श ुनाशक बाण ारा सम त श ु को उसी कार ढक लया, जैसे सूय अपनी करण से संसारको ढक लेते ह ।। ५५ ।। अ भतजयमाना व त महारवान् । न मोहं भीमसेन य द शुः सवरा साः ।। ५६ ।। सब ओरसे गजन-तजन करते ए तथा बड़ी भयानक आवाजसे च घाड़ते ए सब रा स ने भीमसेनके च म त नक भी घबराहट नह दे खी ।। ५६ ।। य ा वकृतसवा ा भीमसेनभया दताः । भीममात वरं च ु व क णमहायुधाः ।। ५७ ।। जनके सारे अंग वकृत एवं वकराल थे, वे य भीमसेनके भयसे पी ड़त हो अपने बड़े-बड़े आयुध को इधर-उधर फककर भयंकर आतनाद करने लगे ।। ५७ ।। उ सृ य ते गदाशूलान सश पर धान् । द णां दशमाज मु सता ढध वना ।। ५८ ।। सु ढ़ धनुषवाले भीमसेनसे आतं कत हो वे य -रा स आ द यो ा गदा, शूल, खड् ग, श तथा परशु आ द अ को वह छोड़कर द ण दशाक ओर भाग गये ।। ५८ ।। त शूलगदापा ण ूढोर को महाभुजः । ै ी

सखा वै वण यासी म णमा ाम रा सः ।। ५९ ।। वहाँ कुबेरके सखा रा स वर म णमान् भी मौजूद थे। उनके हाथ म शूल और गदा शोभा पा रही थी उनक छाती चौड़ी और बाँह वशाल थ ।। ५९ ।। अदशयदधीकारं पौ षं च महाबलः । स तान् ् वा परावृ ान् मयमान इवा वीत् ।। ६० ।। उन महाबली वीरने वहाँ अपने अ धकार और पौ ष दोन को कट कया। उस समय अपने सै नक को रणसे वमुख होते दे ख वे मुसकराते ए उनसे बोले— ।। ६० ।। एकेन बहवः सङ् ये मानुषेण परा जताः । ा य वै वणावासं क व यथ धने रम् ।। ६१ ।। ‘अरे! तुम ब त बड़ी सं याम होकर भी आज एक मनु य ारा यु म परा जत हो गये।’ कुबेरभवनम धना य के पास जाकर या कहोगे?’ ।। ६१ ।। एवमाभा य तान् सवान यवतत रा सः । श शूलगदापा णर यधावत् स पा डवम् ।। ६२ ।। ऐसा कहकर रा स म णमान्ने उन सबको लौटाया और हाथ म श , शूल तथा गदा लेकर भीमसेनपर धावा कया ।। ६२ ।। तमापत तं वेगेन भ मव वारणम् । व सद तै भः पा भीमसेनः समादयत् ।। ६३ ।। मदक धारा बहानेवाले गजराजक भाँ त म णमान्को बड़े वेगसे आता दे ख भीमसेनने व सद त नामक तीन बाण ारा उनक पसलीम हार कया ।। ६३ ।। म णमान प सं ु ः गृ महत गदाम् । ा हणोद् भीमसेनाय प रगृ महाबलः ।। ६४ ।। यह दे ख महाबली म णमान् भी रोषसे आगबबूला हो उठे और ब त बड़ी गदा लेकर उ ह ने भीमसेनपर चलायी ।। ६४ ।। व ु प ू ां महाघोरामाकाशे महत गदाम् । शरैब भर या छद् भीमसेनः शला शतैः ।। ६५ ।। वह वशाल एवं महा भयंकर गदा आकाशम व ुतक ् भाँ त चमक उठ । यह दे ख भीमसेनने प थर पर रगड़कर तेज कये ए ब त-से बाण ारा उसपर आघात कया ।। ६५ ।। यह य त ते सव गदामासा सायकाः । न वेगं धारयामासुगदावेग य वे गताः ।। ६६ ।। परंतु वे सभी बाण म णमान्क गदासे टकराकर न हो गये। य प वे बड़े वेगसे छू टे थे, तथा प गदा चलानेके अ यासी म णमान्क गदाके वेगको न सह सके ।। ६६ ।। गदायु समाचारं बु यमानः स वीयवान् । ंसयामास तं त य हारं भीम व मः ।। ६७ ।। भयंकर परा मी महाबली भीमसेन गदायु क कलको जानते थे। अतः उ ह ने श ुके उस हारको थ कर दया ।। ६७ ।। ो ी

ततः श महाघोरां मद डामय मयीम् । त म ेवा तरे धीमान् जहाराथ रा सः ।। ६८ ।। तदन तर बु मान् रा सने उसी समय वणमय द डसे वभू षत एवं लोहेक बनी ई बड़ी भयानक श का हार कया ।। ६८ ।। सा भुजं भीम न ादा भ वा भीम य द णम् । सा न वाला महारौ ा पपात सहसा भु व ।। ६९ ।। वह अ नक वालाके समान अ य त भयंकर श भयानक गड़गड़ाहटके साथ भीमक दा हनी भुजाको छे दकर सहसा पृ वीपर गर पड़ी ।। ६९ ।। सोऽ त व ो महे वासः श या मतपरा मः । गदां ज ाह कौ तेयः ोधपयाकुले णः ।। ७० ।। मप पन ां तां श ूणां भयव धनीम् । गृ ाथ नदन् भीमः शै यां सवायस गदाम् ।। ७१ ।। तरसा चा भ ाव म णम तं महाबलम् । श क गहरी चोट लगनेसे महान् धनुधर एवं अ य त परा मी कु तीकुमार भीमके ने ोधसे ाकुल हो उठे और उ ह ने एक ऐसी गदा हाथम ली जो श ु का भय बढ़ानेवाली थी। उसके ऊपर सोनेके प जड़े थे। वह सारी-क -सारी लोहेक बनी ई और श ु को न करनेम समथ थी। उसे लेकर भीमसेन वकट गजना करते ए बड़े वेगसे महाबली म णमान्क ओर दौड़े ।। ७०-७१ ।। द यमानं महाशूलं गृ म णमान प ।। ७२ ।। ा हणोद् भीमसेनाय वेगेन महता नदन् । उधर म णमान्ने भी सहनाद करते ए एक चमचमाता आ महान् शूल हाथम लया और बड़े वेगसे भीमसेनपर चलाया ।। ७२ ।। भङ् वा शूलं गदा ेण गदायु वशारदः ।। ७३ ।। अ भ ाव तं ह तुं ग मा नव प गम् । परंतु गदा-यु म कुशल भीमने गदाके अ भागसे उस शूलके टु कड़े-टु कड़े करके म णमान्को मारनेके लये उसी कार धावा कया, जैसे कसी सपके ाण लेनेके लये ग ड उसपर टू ट पड़ते ह ।। ७३ ।। सोऽ त र मव लु य वधूय सहसा गदाम् ।। ७४ ।। च ेप महाबा वन रणमूध न । से ाश न रवे े ण वसृ ा वातरंहसा ।। ७५ ।। महाबा भीमने यु के मुहानेपर गजना करते ए सहसा आकाशम उछलकर गदा घुमायी और उसे वायुके समान वेगसे म णमान्पर दे मारा, मानो दे वराज इ ने कसी दै यपर वका हार कया हो ।। ७४-७५ ।। ह वा र ः त ा य कृ येव नपपात ह । तं रा सं भीमबलं भीमसेनेन पा ततम् ।। ७६ ।। े े

द शुः सवभूता न सहेनेव गवां प तम् । तं े य नहतं भूमौ हतशेषा नशाचराः । भीममात वरं कृ वा ज मुः ाच दशं त ।। ७७ ।। वह गदा उस रा सके ाण लेकर भू मपर मू तमती कृ याके समान गर पड़ी। भीमसेनके ारा मारे गये उस भयानक श शाली रा सको सब ा णय ने य दे खा, मानो सहने कसी साँड़को मार गराया हो। उसे मरकर पृ वीपर गरा दे ख मरनेसे बचे ए नशाचर भयंकर आतनाद करते ए पूव दशाक ओर भाग चले ।। ७६-७७ ।।

इत

ीमहाभारते वनपव ण य यु पव ण म णम धे ष धकशततमोऽ यायः ।। १६० ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत य यु पवम म णमान्-वधसे स ब ध रखनेवाला एक सौ साठवाँ अ याय पूरा आ ।। १६० ।।

एकष

धकशततमोऽ यायः

कुबेरका ग धमादन पवतपर आगमन और यु ध रसे उनक भट वैश पायन उवाच ु वा ब वधैः श दै ना मानां गरेगुहाम् । अजातश ुः कौ तेयो मा पु ावुभाव प ।। १ ।। धौ यः कृ णा च व ा सव च सु द तथा । भीमसेनमप य तः सव वमनसोऽभवन् ।। २ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! उस समय उस पवतक गुफा नाना कारके श द से त व नत हो रही थी। वह त व न सुनकर अजातश ु कु तीकुमार यु ध र, दोन मा -पु नकुल-सहदे व, पुरो हत धौ य, ौपद और सम त ा ण तथा सु द्—ये सभी भीमसेनको न दे खनेके कारण ब त उदास हो गये ।। १-२ ।। ौपद मा षेणाय स धाय महारथाः । स हताः सायुधाः शूराः शैलमा तदा ।। ३ ।। तब वे महारथी शूर-वीर ौपद को आ षेणक दे ख-रेखम स पकर हाथ म अ -श लये एक साथ पवतपर चढ़ गये ।। ३ ।। ततः स ा य शैला ं वी माणा महारथाः । द शु ते महे वासा भीमसेनमरदमाः ।। ४ ।। तदन तर श ु का दमन करनेवाले वे महाधनुधर एवं महारथी वीर उस पवतके शखरपर प ँचकर जब इधर-उधर पात करने लगे, तब उ ह भीमसेन दखायी दये ।। ४ ।। फुरत महाकायान् गतस वां रा सान् । महाबलान् महास वान् भीमसेनेन पा ततान् ।। ५ ।। साथ ही उ ह ने भीमसेनके ारा मार गराये ए महान् श शाली तथा परम उ साही वशालकाय रा स भी दे खे, जनमसे कुछ छटपटा रहे थे और कुछ मरे पड़े थे ।। ५ ।।

शुशुभे स महाबा गदाखड् गधनुधरः । नह य समरे सवान् दानवान् मघवा नव ।। ६ ।। उस समय गदा, खड् ग और धनुष धारण कये महाबा भीमसेन समरभू मम स पूण दानव का संहार करके खड़े ए दे वराज इ के समान शोभा पा रहे थे ।। ६ ।। तत ते ातरं ् वा प र व य महारथाः । त ोप व वशुः पाथाः ा ता ग तमनु माम् ।। ७ ।। तब वे उ म आ यको ा त ए महारथी पा डव भाई भीमसेनको दयसे लगाकर उनके पास ही बैठ गये ।। ७ ।। तै तु भमहे वासै ग रशृ मशोभत । लोकपालैमहाभागै दवं दे ववरै रव ।। ८ ।। जैसे महान् भा यशाली दे व े इ आ द लोकपाल के ारा वगलोकक शोभा होती है, उसी कार उन चार महाधनुधर ब धु से उस समय वह पवत- शखर सुशो भत हो रहा था ।। ८ ।। कुबेरसदनं ् वा रा सां नपा ततान् । ाता ातरमासीनम वीत् पृ थवीप तः ।। ९ ।। राजा यु ध रने कुबेरका भवन दे खकर और मारे गये रा स क ओर पात करके अपने पास बैठे ए भाई भीमसेनसे कहा ।। ९ ।। यु ध र उवाच ो



साहसाद् य द वा मोहाद् भीम पाप मदं कृतम् । नैतत् ते स शं वीर मुने रव मृषा वधः ।। १० ।। यु ध र बोले—वीर भीमसेन! तुमने ःसाहसवश अथवा मोहके कारण जो यह पापकम कया है, वह मु नवृ से रहनेवाले तु हारे अनु प नह है। रा स का यह संहार थ ही कया गया है ।। १० ।। राज ं न कत म त धम वदो व ः । दशाना मदं ं भीमसेन वया कृतम् ।। ११ ।। भीमसेन! धम पु ष यह जानते और मानते ह क राज ोहका काय नह करना चा हये; पर तु तुमने तो न केवल राज ोहका अ पतु दे वता के भी ोहका काय कया है ।। ११ ।। अथधमावना य यः पापे कु ते मनः । कमणां पाथ पापानां स फलं व दते ुवम् । पुनरेवं न कत ं मम चे द छ स यम् ।। १२ ।। पाथ! जो अथ और धमका अनादर करके पापम मन लगाता है उसे पापकम का फल अव य ा त होता है। य द तुम वही काय करना चाहते हो जो मुझे य लगे तो आजसे फर कभी ऐसा काम तु ह नह करना चा हये ।। १२ ।।

वैश पायन उवाच एवमु वा स धमा मा ाता ातरम युतम् । अथत व वभाग ः कु तीपु ो यु ध रः ।। १३ ।। वरराम महातेजा तमेवाथ व च तयन् । वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! धमा मा भाई महातेज वी कु तीपु यु ध र अथत वके वभागको ठ क-ठ क जाननेवाले थे। वे धमसे कभी युत न होनेवाले अपने भाई भीमसेनसे उपयु बात कहकर चुप हो गये और उसी वषयपर बार-बार वचार करने लगे ।। १३ ।। तत ते हत श ा ये भीमसेनेन रा साः ।। १४ ।। स हताः यप त कुबेरसदनं त । उधर भीमसेनक मारसे बचे ए रा स एक साथ हो कुबेरके भवनम गये ।। १४ ।। ते जवेन महावेगाः ा य वै वणालयम् ।। १५ ।। भीममात वरं च ु भ मसेनभया दताः । य तश ायुधाः ला ताः शो णता तनु छदाः ।। १६ ।। वे महान् वेगशाली तो थे ही, ती ग तसे धना य के महलम प ँचकर भयंकर आतनाद करने लगे। भीमसेनका भय उस समय भी उ ह पीड़ा दे रहा था। वे अपने अ श छोड़ चुके थे एवं थके ए थे। उनके कवच खूनसे लथपथ हो गये थे ।। १५-१६ ।।

क णमूधजा राजन् य ा धप तम ुवन् । गदाप रघ न ंशतोमर ासयो धनः ।। १७ ।। रा सा नहताः सव तव दे व पुरःसराः । राजन्! अपने सरके बाल बखेरे ए वे रा स य राज कुबेरसे इस कार बोले —‘दे व! आपके भी सभी रा स, जो यु म सदा आगे रहते और गदा, प रघ, खड् ग, तोमर तथा ास आ दके यु म कुशल थे, मार डाले गये ।। १७ ।। मृ तरसा शैलं मानुषेण धने र ।। १८ ।। एकेन स हताः सङ् ये रणे ोधवशा गणाः । ‘धने र! एक मनु यने बलपूवक इस पवतको र द डाला है और यु म ोधवश नामक रा सगण को मार भगाया है ।। १८ ।। वरा रा से ाणां य ाणां च नरा धप ।। १९ ।। शेरते नहता दे व गतस वाः परासवः । लधशेषा वयं मु ा म णमां ते सखा हतः ।। २० ।। ‘नरे र! रा स और य म जो मुख वीर थे, वे आज उ साहशू य तथा न ाण होकर रणभू मम सो रहे ह। हमलोग उसके कृपा- सादसे छू ट गये ह; परंतु आपके सखा रा स म णमान् मार डाले गये ह ।। १९-२० ।। मानुषेण कृतं कम वध व यदन तरम् । स त छ वा तु सं ु ः सवय गणा धपः ।। २१ ।। ो



कोपसंर नयनः कथ म य वीद् वचः । ‘यह सब काय एक मनु यने कया है। इसके बाद जो करना उ चत हो, वह क जये।’ रा स क यह बात सुनकर सम त य गण के वामी कुबेर कु पत हो उठे , ोधसे उनक आँख लाल हो गय । वे सहसा बोल उठे । ‘यह कैसे स भव आ?’ ।। २१ ।। तीयमपरा य तं भीमं ु वा धने रः ।। २२ ।। चु ोध य ा धप तयु यता म त चा वीत् । भीमने यह सरा अपराध कया है, यह सुनकर धना य य राजके ोधक सीमा न रही। उ ह ने तुरंत आ ा द , ‘रथ जोतकर ले आओ’ ।। २२ ।। अथा घनसंकाशं ग रशृ मवो तम् ।। २३ ।। रथं संयोजयामासुग धवहममा ल भः । त य सवगुणोपेता वमला ा हयो माः ।। २४ ।। तेजोबलगुणोपेता नानार न वभू षताः । शोभमाना रथे यु ा त र य त इवाशुगाः ।। २५ ।। फर तो सेवक ने सुनहरे बादल क घटाके स श वशाल पवत शखरके समान ऊँचा रथ जोतकर तैयार कया। उसम सुवणमाला से वभू षत ग धवदे शीय घोड़े जुते ए थे। वे सवगुणस प उ म अ तेज वी, बलवान् और अ ो चत गुण से यु थे। उनक आँख नमल थ और उ ह नाना कारके र नमय आभूषण पहनाये गये थे। रथम जुते ए वे शोभाशाली अ शी गामी थे। उ ह दे खकर ऐसा जान पड़ता था, मानो वे अभी सब कुछ लाँघ जायँगे ।। २३—२५ ।। ेषयामासुर यो यं े षतै वजयावहैः । स तमा थाय भगवान् राजराजो महारथम् ।। २६ ।। ययौ दे वग धवः तूयमानो महा ु तः । उन अ के हन हनानेक आवाज वजयक सूचना दे नेवाली थी। उनमसे येक अ वयं हन हनाकर सरेको भी इसके लये ेरणा दे ता था। उस वशाल रथपर आ ढ़ हो महातेज वी राजा धराज भगवान् कुबेर दे वता और ग धव के मुखसे अपनी तु त सुनते ए चले ।। २६ ।। तं या तं महा मानं सव य ा धना धपम् ।। २७ ।। धना य महामना कुबेरके थान करनेपर सम त य भी उनके साथ चले ।। २७ ।। र ा ा हेमसंकाशा महाकाया महाबलाः । सायुधा ब न ंशा य ा दशशतावराः ।। २८ ।। उन सबके ने लाल थे। शरीरक का त सुवणके समान थी। वे सभी महाकाय और महाबली थे। वे सब तलवार बाँधे अ -श से सुस जत थे। उनक सं या एक हजारसे कम नह थी ।। २८ ।। ते जवेन महावेगाः लवमाना वहायसा । ग धमादनमाज मुः कष त इवा बरम् ।। २९ ।। े













वे महान् वेगशाली य आकाशम उड़ते ए ग धमादन पवतपर आये, मानो समूचे आकाशम डल-को ख चे ले रहे ह ।। २९ ।। तत् केस रमहाजालं धना धप तपा लतम् । कुबेरं च महा मानं य र ोगणावृतम् ।। ३० ।। द शु रोमाणः पा डवाः यदशनम् । कुबेर तु महास वान् पा डोः पु ान् महारथान् ।। ३१ ।। आ कामुक न ंशान् ् वा ीतोऽभवत् तदा । दे वकाय चक षन् स दयेन तुतोष ह ।। ३२ ।। धना य कुबेरके ारा पा लत घोड़ के उस महा समुदायको तथा य -रा स से घरे ए यदशन महामना कुबेरको भी पा डव ने दे खा। दे खकर उनके अंग म रोमा च हो आया। इधर कुबेर भी धनुष और तलवार लये श शाली महारथी पा डु पु को दे खकर बड़े स ए। कुबेर दे वता का काय स करना चाहते थे, इस लये मन-ही-मन पा डव से ब त संतु ए ।। ३०—३२ ।। ते प ण इवापेतु ग रशृ ं महाजवाः । त थु तेषां सम याशे धने रपुरःसराः ।। ३३ ।। वे कुबेर आ द ती वेगशाली य -रा स प ीक तरह उड़कर ग धमादन पवतके शखरपर आये और पा डव के समीप खड़े हो गये ।। ३३ ।। तत तं मनसं पा डवान् त भारत । समी य य ग धवा न वकारमव थताः ।। ३४ ।। जनमेजय! पा डव के त कुबेरका मन स दे खकर य और ग धव न वकारभावसे खड़े रहे ।। ३४ ।। पा डवा महा मानः ण य धनदं भुम् । नकुलः सहदे व धमपु धम वत् ।। ३५ ।। अपरा मवा मानं म यमाना महारथाः । त थुः ा लयः सव प रवाय धने रम् ।। ३६ ।। धम धमपु यु ध र, नकुल और सहदे व—ये महारथी महामना पा डव भगवान् कुबेरको णाम करके अपनेको अपराधी-सा मानते ए उ ह सब ओरसे घेरकर हाथ जोड़े खड़े रहे ।। ३५-३६ ।। स ासनवरं ीमत् पु पकं व कमणा । व हतं च पय तमा त त धना धपः ।। ३७ ।। धना य कुबेर व कमाके बनाये ए सु दर एवं े वमान पु पकपर वराजमान थे। वह वमान व च नमाणकौशलक पराका ा था ।। ३७ ।। तमासीनं महाकायाः शङ् कुकणा महाजवाः । उपोप व वशुय ा रा सा सह शः ।। ३८ ।। शतश ा प ग धवा तथैवा सरसां गणाः । प रवाय प त त यथा दे वाः शत तुम् ।। ३९ ।। ै े े े ै ी े ी े ी

वमानपर बैठे ए कुबेरके पास क ल-जैसी कानवाले ती वेगशाली वशालकाय सह य -रा स भी बैठे थे। जैसे दे वता इ को घेरकर खड़े होते ह, उसी कार सैकड़ ग धव और अ सरा के गण कुबेरको सब ओरसे घेरकर खड़े थे ।। ३८-३९ ।। का चन शरसा ब द् भीमसेनः जं शुभाम् । पाशखड् गधनु पा ण दै त धना धपम् ।। ४० ।। अपने म तकपर सुवणक सु दर माला धारण कये और हाथ म खड् ग, पाश तथा धनुष लये भीमसेन धना य कुबेरक ओर दे ख रहे थे ।। ४० ।। भीमसेन य न ला न व त या प रा सैः । आसीत् त यामव थायां कुबेरम प प यतः ।। ४१ ।। भीमसेनको रा स ने ब त घायल कर दया था। उस अव थाम भी कुबेरको दे खकर उनके मनम त नक भी ला न नह होती थी ।। ४१ ।। आददानं शतान् बाणान् यो काममव थतम् । ् वा भीमं धमसुतम वी रवाहनः ।। ४२ ।। भीमसेन हाथ म तीखे बाण लये उस समय भी यु के लये तैयार खड़े थे। यह दे ख नरवाहन कुबेरने धमपु यु ध रसे कहा— ।। ४२ ।। व वां सवभूता न पाथ भूत हते रतम् । नभय ा प शैला े वस वं ातृ भः सह ।। ४३ ।। ‘कु तीन दन! तुम सदा सब ा णय के हतम त पर रहते हो, यह बात सब ाणी जानते ह। अतः तुम अपने भाइय के साथ इस शैल- शखरपर नभय होकर रहो ।। ४३ ।। न च म यु वया काय भीमसेन य पा डव । कालेनैते हताः पूव न म मनुज तव ।। ४४ ।। ‘पा डु न दन! तु ह भीमसेनपर ोध नह करना चा हये। ये य और रा स कालके ारा पहले ही मारे गये थे। तु हारे भाई तो इसम न म मा ए ह ।। ४४ ।। ीडा चा न कत ा साहसं य ददं कृतम् । ा प सुरैः पूव वनाशो य र साम् ।। ४५ ।। ‘भीमसेनने जो यह ःसाहसका काय कया है, इसके लये तु ह ल जत नह होना चा हए; य क य तथा रा स का यह वनाश दे वता को पहले ही य हो चुका था ।। ४५ ।। न भीमसेने कोपो मे ीतोऽ म भरतषभ । कमणाः भीमसेन य मम तु रभूत् पुरा ।। ४६ ।। ‘भरत े ! भीमसेनपर मेरा ोध नह है। म इनपर स ँ। भीमसेनके कायसे मुझे पहले भी स ता ा त हो चुक है’ ।। ४६ ।। वैश पायन उवाच एवमु वा तु राजानं भीमसेनमभाषत । नैत मन स मे तात वतते कु स म ।। ४७ ।। ी

य ददं साहसं भीम कृ णाथ कृतवान स । मामना य दे वां वनाशं य र साम् ।। ४८ ।। वबा बलमा य तेनाहं ी तमां व य । शापाद व नमु ो घोराद म वृकोदर ।। ४९ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! राजा यु ध रसे ऐसा कहकर कुबेरने भीमसेनसे कहा—‘तात! कु े भीम! तुमने ौपद के लये जो यह साहसपूण काय कया है, इसके लये मेरे मनम कोई वचार नह है। तुमने मेरी तथा दे वता क अवहेलना करके अपने बा बलके भरोसे य तथा रा स का वनाश कया है, इससे तुमपर म ब त स ँ। वृकोदर! आज म एक भयंकर शापसे छू ट गया ँ ।। ४७—४९ ।। अहं पूवमग येन ु े न परम षणा । श तोऽपराधे क मं त् त यैषा न कृ तः कृता ।। ५० ।। ो ह मम सं लेशः पुरा पा डवन दन । न तवा ापराधोऽ त कथं चद प पा डव ।। ५१ ।। ‘पूवकालक बात है, मह ष अग यने कसी अपराधपर कु पत हो मुझे शाप दे दया था; उसका तु हारे ारा नराकरण आ। पा डव-न दन! मुझे पूवकालसे ही यह ःख दे खना बदा था। इसम तु हारा कसी तरह भी कोई अपराध नह है’ ।। ५०-५१ ।।

यु ध र उवाच कथं श तोऽ स भगव ग येन महा मना । ोतु म छा यहं दे व तवैत छापकारणम् ।। ५२ ।। यु ध रने पूछा—भगवन्! महा मा अग यने आपको कैसे शाप दे दया? दे व! आपको शाप मलनेका या कारण है? यह म सुनना चाहता ँ ।। ५२ ।। इदं चा यभूतं मे यत् ोधात् त य धीमतः । तदै व वं न नद धः सबलः सपदानुगः ।। ५३ ।। मुझे इस बातके लये बड़ा आ य होता है क उन बु मान् मह षके ोधसे आप उसी समय अपने सेवक और सै नक स हत जलकर भ म य नह हो गये? ।। ५३ ।। धने र उवाच दे वतानामभू म ः कुशव यां नरे र । वृत त ाहमगमं महापशतै भः ।। ५४ ।। कुबेर बोले—नरे र! ाचीन कालम कुशवतीम दे वता क म णा-सभा बैठ थी। उसम मुझे भी बुलाया गया था। म तीन सौ महाप य के साथ वहाँ गया ।। ५४ ।। य ाणां घोर पाणां व वधायुधधा रणाम् । अ व यहमथाप यमग यमृ षस मम् ।। ५५ ।। उ ं तप त यमानं यमुनातीरमा तम् । नानाप गणाक ण पु पत मशो भतम् ।। ५६ ।। े













वे भयानक य नाना कारके अ -श लये ए थे। रा तेम मुझे मु न े अग यजी दखायी दये, जो यमुनाके तटपर कठोर तप या कर रहे थे। वह दे श भाँ तभाँ तके प य से ा त और वक सत वृ ाव लय से सुशो भत था ।। ५५-५६ ।। तमू वबा ं ् वैव सूय या भमुखे थतम् । तेजोरा श द यमानं ताशन मवै धतम् ।। ५७ ।। मह ष अग य अपनी दोन बाँह ऊपर उठाये सूयक ओर मुँह करके खड़े थे। वे तेजोरा श महा मा व लत अ नके समान उ त हो रहे थे ।। ५७ ।। रा सा धप तः ीमान् म णमा ाम मे सखा । मौ याद ानभावा च दपा मोहा च पा थव ।। ५८ ।। य ीवदाकाशगतो महष त य मूध न । स कोपा मामुवाचेदं दशः सवा दह व ।। ५९ ।। राजन्! उ ह दे खकर ही मेरे एक म रा सराज ीम णमान्ने मूखता, अ ान, अ भमान एवं मोहके कारण आकाशसे उन मह षके म तकपर थूक दया। तब वे ोधसे मानो सारी दशा को द ध करते ए मुझसे इस कार बोले— ।। ५८—५९ ।। मामव ाय ा मा य मादे ष सखा तव । धषणां कृतवानेतां प यत ते धने र ।। ६० ।। त मात् सहै भः सै यै ते वधं ा य त मानुषात् । वं चा ये भहतैः सै यैः लेशं ा येह म तः । तमेव मानुषं ् वा क बषाद् व मो यसे ।। ६१ ।। ‘धने र! तु हारे इस ा मा सखाने मेरी अवहेलना करके तु हारे दे खते-दे खते जो मेरा इस कार तर कार कया है, उसके फल व प इन सम त सै नक के साथ यह एक मनु यके हाथसे मारा जायगा। तु हारी बु खोट हो गयी है, अतः इन सब सै नक के मारे जानेपर उनके लये ःख उठानेके प ात् तुम फर उसी मनु यका दशन करके मेरे शाप एवं पापसे छु टकारा पा सकोगे ।। सै यानां तु तवैतेषां पु पौ बला वतम् । न शापं ा यते घोरं तत् तवा ां क र य त ।। ६२ ।। ‘इन सै नक मसे जो तु हारी आ ाका पालन करेगा, वह पु , पौ तथा सेनापर लागू होनेवाले इस भयंकर शापके भावसे अलग रहेगा’ ।। ६२ ।। एष शापो मया ा तः ाक् त मा षस मात् । स भीमेन महाराज ा ा तव वमो तः ।। ६३ ।। महाराज यु ध र! पूव कालम उन मु न े अग यसे यही शाप मुझे ा त आ था, जससे तु हारे भाई भीमसेनने छु टकारा दलाया है ।। ६३ ।। इत



ीमहाभारते वनपव ण य यु पव ण कुबेरदशने एकष धकशततमोऽ यायः ।। १६१ ।।







इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत य यु पवम कुबेरदशन वषयक एक सौ इकसठवाँ अ याय पूरा आ ।। १६१ ।।



धकशततमोऽ यायः

कुबेरका यु ध र आ दको उपदे श और सा वना दे कर अपने भवनको थान धनद उवाच यु ध र धृ तदा यं दे शकालपरा माः । लोकत वधानानामेष प च वधो व धः ।। १ ।। कुबेर बोले—यु ध र! धैय, द ता, दे श, काल और परा म—ये पाँच लौ कक काय क स के हेतु ह ।। १ ।। धृ तम त द ा वे वे कम ण भारत । परा म वधान ा नरा कृतयुगेऽभवन् ।। २ ।। भारत! स ययुगम सब मनु य धैयवान्, अपने-अपने कायम कुशल तथा परा म व धके ाता थे ।। २ ।। धृ तमान् दे शकाल ः सवधम वधान वत् । यः य े शा त पृ थव चरम् ।। ३ ।। य े ! जो य धैयवान्, दे श-कालको समझनेवाला तथा स पूण धम के वधानका ाता है, वह द घकालतक इस पृ वीका शासन कर सकता है ।। ३ ।। य एवं वतते पाथ पु षः सवकमसु । स लोके लभते वीर यशः े य च स तम् ।। ४ ।। दे शकाला तर े सुः कृ वा श ः परा मम् । स ात दवे रा यं वृ हा वसु भः सह ।। ५ ।। वीर पाथ! जो पु ष इसी कार सब कम म वृ होता है, वह लोकम सुयश और परलोकम उ म ग त पाता है। दे श-कालके अ तरपर रखनेवाले वृ ासुर- वनाशक इ ने वसु स हत परा म करके वगका रा य ा त कया है ।। ४-५ ।। य तु केवलसंर भात् पातं न नरी ते । पापा मा पापबु यः पापमेवानुवतते ।। ६ ।। जो केवल ोधके वशीभूत हो अपने पतनको नह दे खता है, वह पापबु पापा मा पु ष पापका ही अनुसरण करता है ।। ६ ।। कमणाम वभाग ः े य चेह वन य त । अकाल ः सु मधाः कायाणाम वशेष वत् ।। ७ ।। जो कम के वभागको नह जानता, समयको नह पहचानता और काय के वै श को नह समझता है, वह खोट बु वाला मनु य इहलोक तथा परलोकम भी न ही होता है ।। ७ ।। वृथाऽऽचारसमार भः े य चेह वन य त । े



साहसे वतमानानां नकृतीनां रा मनाम् ।। ८ ।। साहसके काय म लगे ए ठग एवं रा मा पु ष के उ म कम का अनु ान इस लोक और परलोकम भी थ न ाय ही है ।। ८ ।। सवसामय ल सूनां पापो भव त न यः । अधम ोऽव ल त बालबु रमषणः ।। ९ ।। नभयो भीमसेनोऽयं तं शा ध पु षषभ । सब कारक (सांसा रक) साम यके इ छु क मनु य का न य पापपूण होता है। पु षर न यु ध र! ये भीमसेन धमको नह जानते, इ ह अपने बलका बड़ा अ भमान है, इनक बु अभी बालक क -सी है तथा ये अ य त ोधी और नभय ह, अतः तुम इ ह उपदे श दे कर काबूम रखो ।। ९ ।। आ षेण य राजषः ा य भूय वमा मम् ।। १० ।। ता म ं थमं प ं वीतशोकभयो वस । नरे र! अब पुनः तुम यहाँसे राज ष आ षेणके आ मपर जाकर कृ णप भर शोक और भयसे र हत होकर रहो ।। १० ।। अलकाः सह ग धवय ा सह क रैः ।। ११ ।। म यु ा मनु ये सव च ग रवा सनः । र य त महाबाहो स हतं जस मैः ।। १२ ।। महाबा नर े ! वहाँ अलका नवासी य तथा इस पवतपर रहनेवाले सभी ाणी मेरी आ ाके अनुसार ग धव और क र के साथ सदा इन े ा ण स हत तु हारी र ा करगे ।। ११-१२ ।। साहसादनुस ा तः तबु यः वृकोदरः । वायतां सा वयं राजं वया धमभृतां वर ।। १३ ।। धमा मा म े नरेश! भीमसेन यहाँ ःसाहस-पूवक आये ह, यह बात समझाकर इ ह अ छ तरह मना कर दो ( जससे ये पुनः कोई अपराध न कर बैठ) ।। १३ ।। अतः परं च वो राजन् य त वनगोचराः । उप था य त वो राजन् र य ते च वः सदा ।। १४ ।। राजन्! अबसे इस वनम रहनेवाले सब य तुमलोग क दे ख-भाल करगे, तु हारी सेवाम उप थत ह गे और सदा तुम सब लोग के संर णम त पर रहगे ।। १४ ।। तथैव चा पाना न वा न च ब न च । आह र य त म े याः सदा वः पु षषभाः ।। १५ ।। पु षर न पा डवो! इसी कार हमारे सेवक तु हारे लये वहाँ सदा वा द अ -पान चुर मा ाम तुत करते रहगे ।। १५ ।। यथा ज णुमहे य यथा वायोवृकोदरः । धम य वं यथा तात योगो प ो नजः सुतः ।। १६ ।। आ म ावा मस प ौ यमौ चोभौ यथा नोः । ी

र या त ममापीह यूयं सव यु ध र ।। १७ ।। तात यु ध र! जैसे अजुन दे वराज इ के, भीमसेन वायुदेवके और तुम धमराजके योगबलसे उ प कये ए नजी पु होनेके कारण उनके ारा र णीय हो तथा ये दोन आ मबलस प नकुल-सहदे व जैसे दोन अ नीकुमार से उ प होनेके कारण उनके पालनीय ह, उसी कार यहाँ मेरे लये भी तुम सब लोग र णीय हो ।। १६-१७ ।। अथत व वधान ः सवधम वधान वत् । भीमसेनादवरजः फा गुनः कुशली द व ।। १८ ।। अथत वक व धके ाता और स पूण धम के वधानम कुशल अजुन, जो भीमसेनसे छोटे ह, इस समय कुशलपूवक वगलोकम वराज रहे ह ।। १८ ।। याः का न मता लोके व याः परमस पदः । ज म भृ त ताः सवाः थता तात धनंजये ।। १९ ।। तात! संसारम जो कोई भी वग य े स प याँ मानी गयी ह, वे सब अजुनम ज मकालसे ही थत ह ।। १९ ।। दमो दानं बलं बु धृ त तेज उ मम् । एता य प महास वे थता य मततेज स ।। २० ।। अ मत तेज वी और महान् स वशाली अजुनम दम (इ य-संयम), दान, बल, बु , ल जा, धैय तथा उ म तेज—ये सभी सद्गुण व मान ह ।। २० ।। न मोहात् कु ते ज णुः कम पा डव ग हतम् । न पाथ य मृषो ा न कथय त नरा नृषु ।। २१ ।। पा डु न दन! तु हारे भाई अजुन कभी मोहवश न दत कम नह करते। मनु य आपसम कभी अजुनके म याभाषणक चचा नह करते ह ।। २१ ।। स दे व पतृग धवः कु णां क तवधनः । मा नतः कु तेऽ ा ण श स न भारत ।। २२ ।। भारत! कु कुलक क त बढ़ानेवाले अजुन इ भवनम दे वता , पतर तथा ग धव से स मा नत हो अ व ाका अ यास करते ह ।। २२ ।। योऽसौ सवान् महीपालान् धमण वशमानयत् । स शा तनुमहातेजाः पतु तव पतामहः ।। २३ ।। ीयते पाथ पाथन द व गा डीवध वना । स यक् चासौ महावीयः कुलधुयण पा थवः ।। २४ ।। पाथ! ज ह ने सब राजा को धमपूवक अपने अधीन कर लया था, वे महातेज वी, महापरा मी तथा सदाचारपरायण महाराज शा तनु, जो तु हारे पताके पतामह थे, वगलोकम कु कुलधुरीण गा डीवधारी अजुनसे ब त स रहते ह ।। २३-२४ ।। पतॄन् दे वानृषीन् व ान् पूज य वा महातपाः । स त मु यान् महामेधानाहरद् यमुनां त ।। २५ ।। अ धराजः स राजं वां शा तनुः पतामहः । वग ज छ लोक थः कुशलं प रपृ छ त ।। २६ ।। ी े े े

महातप वी शा तनुने दे वता , पतर , ऋ षय तथा ा ण क पूजा करके यमुनातटपर सात बड़े-बड़े अ मेधय का अनु ान कया था। राजन्! वे तु हारे पतामह राजा धराज शा तनु वगलोकको जीतकर उसीम नवास करते ह। उ ह ने मुझसे तु हारी कुशल पूछ थी ।। २५-२६ ।। वैश पायन उवाच एत छ वा तु वचनं धनदे न भा षतम् । पा डवा तत तेन वभूवुः स ह षताः ।। २७ ।। ततः श गदां खड् गं धनु भरतषभः । ा वं कृ वा नम े कुबेराय वृकोदरः ।। २८ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! कुबेरक कही ई ये बात सुनकर पा डव को बड़ी स ता ई। तदन तर भरतकुल-भूषण भीमसेनने उठायी ई श गदा, खड् ग और धनुषको नीचे करके कुबेरको नम कार कया ।। ततोऽ वीद् धना य ः शर यः शरणागतम् । मानहा भव श ूणां सु दां न दवधनः ।। २९ ।। तब शरण दे नेवाले धना य कुबेरने अपनी शरणम आये ए भीमसेनसे कहा —‘पा डु न दन! तुम श ु का मान मदन और सु द का आन द वधन करनेवाले बनो ।। २९ ।।







वेषु वे मसु र येषु वसता म तापनाः । कामा प रहा य त य ा वो भरतषभाः ।। ३० ।। ‘श ु को संताप दे नेवाले भरतकुलभूषण पा डवो! तुम सब लोग अपने रमणीय आ म म नवास करो। य लोग तु हारी अभी व तु क ा तम बाधा नह डालगे ।। ३० ।। शी मेव गुडाकेशः कृता ः पुनरे य त । सा ा मघवता सृ ः स ा य त धनंजयः ।। ३१ ।। ‘ न ा वजयी अजुन अ व ा सीखकर सा ात् इ के भेजनेपर शी ही यहाँ आवगे और तुम सब लोग से मलगे’ ।। ३१ ।। एवमु मकमाणमनु श य यु ध रम् । ेतं ग रवर े ं ययौ गु का धपः ।। ३२ ।। इस कार उ म कम करनेवाले यु ध रको उपदे श दे कर य राज कुबेर ग र े कैलासको चले गये ।। ३२ ।। तं प र तोमसंक णनानार न वभू षतैः । यानैरनुययुय ा रा सा सह शः ।। ३३ ।। उनके पीछे सह य और रा स भी अपने-अपने वाहन पर आ ढ़ हो चल दये। उनके वे वाहन नाना कारके र न से वभू षत थे और उनक पीठपर ब रंगे क बल आ द कसे ए थे ।। ३३ ।। प णा मव नघ षः कुबेरसदनं त । बभूव परमा ानामैरावतपथे यथा ।। ३४ ।। जैसे इ पुरीके मागपर चलनेवाले व वध वाहन का कोलाहल सुनायी पड़ता है, उसी कार कुबेरभवनके त या ा करनेवाले उ म अ का श द ऐसा जान पड़ता था, मानो प ी उड़ रहे ह ।। ३४ ।। ते ज मु तूणमाकाशं धना धप तवा जनः । कष त इवा ा ण पब त इव मा तम् ।। ३५ ।। धना य कुबेरके वे घोड़े अपने साथ बादल को ख चते और वायुको पीते ए-से ती ग तसे आकाशम उड़ चले ।। ३५ ।। तत ता न शरीरा ण गतस वा न र साम् । अपाकृ य त शैला ाद् धना धप तशासनात् ।। ३६ ।। तदन तर कुबेरक आ ासे रा स के वे नज व शरीर उस पवत शखरसे र हटा दये गये ।। ३६ ।। तेषां ह शापकालः स कृतोऽग येन धीमता । समरे नहता त मा छाप या तोऽभवत् तदा ।। ३७ ।। पा डवा महा मान तेषु वे मसु तां पाम् । सुखमूषुगतो े गाः पू जताः सवरा सैः ।। ३८ ।। े











बु मान् अग यने य के लये शापक वही अव ध न त क थी। जब वे यु म मारे गये तब उनके शापका अ त हो गया। महामना पा डव अपने उन आ म म स पूण रा स से पू जत एवं उ े गशू य होकर सुखसे रा तीत करने लगे ।। ३७-३८ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण य ष धकशततमोऽ इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत य बासठवाँ अ याय पूरा

यु पव ण कुबेरवा ये यायः ।। १६२ ।। यु पवम कुबेरवा य वषयक एक सौ आ ।। १६२ ।।



धकशततमोऽ यायः

धौ यका यु ध रको मे पवत तथा उसके शखर पर थत ा, व णु आ दके थान का ल य कराना और सूय-च माक ग त एवं भावका वणन वैश पायन उवाच ततः सूय दये धौ यः कृ वाऽऽ कमरदम । आ षेणेन स हतः पा डवान यवतत ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—श ुदमन नरेश! तदन तर सूय दय होनेपर आ षेणस हत धौ यजी न यकम पूरा करके पा डव के पास आये ।। १ ।। तेऽ भवा ा षेण य पादौ धौ य य चैव ह । ततः ा लयः सव ा णां तानपूजयन् ।। २ ।। तब सम त पा डव ने आ षेण तथा धौ यके चरण म णाम कया और हाथ जोड़कर सब ा ण का पूजन कया ।। २ ।। ततो यु ध रं धौ यो गृही वा द णे करे । ाच दशम भ े य मह ष रदम वीत् ।। ३ ।। तदन तर मह ष धौ यने यु ध रका दा हना हाथ पकड़कर पूव दशाक ओर दे खते ए कहा— ।। ३ ।। असौ सागरपय तां भू ममावृ य त त । शैलराजो महाराज म दरोऽ त वराजते ।। ४ ।। ‘महाराज! वह पवतराज म दराचल का शत हो रहा है, जो समु तकक भू मको घेरकर खड़ा है ।। ४ ।। इ वै वणावेतां दशं पा डव र तः । पवतै वना तै काननै ैव शो भताम् ।। ५ ।। ‘पा डु न दन! पवत , वना त दे श और कानन से सुशो भत इस पूव दशाक र ा इ और कुबेर करते ह ।। एतदा महे य रा ो वै वण य च । ऋषयः सवधम ाः स तात मनी षणः ।। ६ ।। अत ो तमा द यमुप त त वै जाः । ऋषय ा प धम ाः स ाः सा या दे वताः ।। ७ ।। ‘तात! सब धम के ाता मनीषी मह ष इस दशाको दे वराज इ तथा कुबेरका नवास थान कहते ह। इधरसे ही उ दत होनेवाले सूयदे वक सम त जा, धम ऋ ष, स महा मा तथा सा य दे वता उपासना करते ह ।। ६-७ ।। यम तु राजा धम ः सव ाणभृतां भुः । े े ो

े स वग त ेनां द णामा तो दशम् ।। ८ ।। त ‘सम त ा णय के ऊपर भु व रखनेवाले धम राजा यम इस द ण दशाका आ य लेकर रहते ह। इसम मरे ए ाणी ही जा सकते ह ।। ८ ।। एतत् संयमनं पु यमतीवा तदशनम् । ेतराज य भवनमृ या परमया युतम् ।। ९ ।। ‘ ेतराजका यह नवास थान अ य त समृ शाली परम प व तथा दे खनेम अ त है। राजन्! इसका नाम संयमन (या संयमनीपुरी) है ।। ९ ।। यं ा य स वता राजन् स येन त त त । अ तं पवतराजानमेतमा मनी षणः ।। १० ।। एतं पवतराजानं समु ं च महोद धम् । आवसन् व णो राजा भूता न प रर त ।। ११ ।। ‘राजन्! जहाँ जाकर भगवान् सूय स यसे त त होते ह, उस पवतराजको मनीषी पु ष अ ताचल कहते ह। ग रराज अ ताचल और महान् जलरा शसे भरे ए समु म रहकर राजा व ण सम त ा णय क र ा करते ह ।। १०-११ ।। उद च द पय ेष दशं त त वीयवान् । महामे महाभाग शवो वदां ग तः ।। १२ ।। ‘महाभाग!’ यह अ य त काशमान महामे पवत दखायी दे ता है, जो उ र दशाको उ ा सत करता आ खड़ा है। इस क याणकारी पवतपर वे ा क ही प ँच हो सकती है ।। १२ ।। य मन् सद ैव भूता मा चाव त ते । जाप तः सृजन् सव यत् क च ज मागमम् ।। १३ ।। ‘इसीपर ाजीक सभा है, जहाँ सम त ा णय के आ मा ा थावर-जंगम सम त ा णय क सृ करते ए न य नवास करते ह ।। १३ ।। याना णः पु ान् मानसात् द स तमान् । तेषाम प महामे ः शवं थानमनामयम् ।। १४ ।। ‘जह ाजीका मानसपु बताया जाता है और जनम द जाप तका थान सातवाँ है। उन सम त जाप तय का भी यह महामे पवत ही रोग-शोकसे र हत सुखद थान है ।। १४ ।। अ ैव त त त पुनरेवोदय त च । स त दे वषय तात व स मुखाः सदा ।। १५ ।। ‘तात! व स आ द सात दे व ष इ ह जाप तम लीन होते और पुनः इ ह से कट होते ह ।। १५ ।। दे शं वरजसं प य मेरोः शखरमु मम् । य ा मतृ तैर या ते दे वैः सह पतामहः ।। १६ ।। ‘यु ध र! मे का वह उ म शखर दे खो, जो रजोगुण र हत दे श है, वहाँ अपनेआपम तृ त रहनेवाले दे वता के साथ पतामह ा नवास करते ह ।। १६ ।। े

यमा ः सवभूतानां कृतेः कृ त ुवम् । अना द नधनं दे वं भुं नारायणं परम् ।। १७ ।। णः सदनात् त य परं थानं काशते । दे वा अ प न प य त सवतेजोमयं शुभम् ।। १८ ।। अ यकानलद तं तत् थानं व णोमहा मनः । वयैव भया राजन् े यं दे वदानवैः ।। १९ ।। ‘जो सम त ा णय क प चभूतमयी कृ तके अ य उपादान ह, ज ह ानी पु ष अना द अन त द - व प परम भु नारायण कहते ह, उनका उ म थान उस लोकसे भी ऊपर का शत हो रहा है। दे वता भी उन सवतेजोमय शुभ व प भगवान्का सहज ही दशन नह कर पाते। राजन्! परमा मा व णुका वह थान सूय और अ नसे भी अ धक तेज वी है और अपनी ही भासे का शत होता है। दे वता और दानव के लये उसका दशन अ य त क ठन है ।। १७—१९ ।। ा यां नारायण थानं मेराव त वराजते । य भूते र तात सव कृ तरा मभूः ।। २० ।। भासयन् सवभूता न सु या भ वराजते । ना षय तात कुत एव महषयः ।। २१ ।। ा ुव त ग त ेतां यतीनां भा वता मनाम् । न तं योत ष सवा ण ा य भास त पा डव ।। २२ ।। ‘तात! पूव दशाम मे पर ही भगवान् नारायणका थान सुशो भत हो रहा है, जहाँ स पूण भूत के वामी तथा सबके उपादान कारण वयंभू भगवान् व णु अपने उ कृ तेजसे स पूण भूत को का शत करते ए वराजमान होते ह। वहाँ य नशील ानी महा मा क ही प ँच हो सकती है। उस नारायणधामम षय क भी ग त नह है। फर मह ष तो वहाँ जा ही कैसे सकते ह। पा डु न दन! स पूण यो तमय पदाथ भगवान्के नकट जाकर अपना तेज खो बैठते ह—उनम पूववत् काश नह रह जाता ।। २०— २२ ।। वयं भुर च या मा त त वराजते । यतय त ग छ त भ या नारायणं ह रम् ।। २३ ।। ‘सा ात् अ च य व प भगवान् व णु ही वहाँ वरा जत होते ह। य नशील महा मा भ के भावसे वहाँ भगवान् नारायणको ा त होते ह ।। २३ ।। परेण तपसा यु ा भा वताः कम भः शुभैः । योग स ा महा मान तमोमोह वव जताः ।। २४ ।। त ग वा पुननमं लोकमाया त भारत । वय भुवं महा मानं दे वदे वं सनातनम् ।। २५ ।। ‘भारत! जो उ म तप यासे यु ह और पु यकम के अनु ानसे प व हो गये ह, वे अ ान और मोहसे र हत योग स महा मा उस नारायण-धामम जाकर फर इस संसारम ौ













नह लौटते ह। अ पतु वयंभू एवं सनातन परमा मा दे वदे व व णुम लीन हो जाते ह ।। २४-२५ ।। थानमेत महाभाग ुवम यम यम् । ई र य सदा ेतत् णमा यु ध र ।। २६ ।। ‘महाभाग यु ध र! यह परमे रका न य, अ वनाशी और अ वकारी थान है। तुम यह से इसको णाम करो ।। २६ ।। एनं वहरहम ं सूयाच मसौ ुवम् । द णमुपावृ य कु तः कु न दन ।। २७ ।। योत ष चा यशेषेण सवा यनघ सवतः । प रया त महाराज ग रराजं द णम् ।। २८ ।। ‘कु न दन! सूय और च मा त दन इस न ल मे ग रक द णा करते रहते ह। पापशू य महाराज! स पूण न भी ग रराज मे क सवतोभावेन प र मा करते ह ।। २७-२८ ।। एतं योत ष सवा ण कषन् भगवान प । कु ते वतम कमा आ द योऽ भ द णम् ।। २९ ।। ‘अ धकारका नवारण करना ही जनका मु य कम है, वे भगवान् सूय भी स पूण यो तय को अपनी ओर ख चते ए इस मे ग रक द णा करते ह ।। २९ ।। अ तं ा य ततः सं याम त य दवाकरः । उद च भजते का ां दशमेष वभावसुः ।। ३० ।। स मे मनुवृ ः सन् पुनग छ त पा डव । ाङ् मुखः स वता दे वः सवभूत हते रतः ।। ३१ ।। ‘तदन तर अ ताचलको प ँचकर सं याकालक सीमाको लाँघकर ये भगवान् सूय उ र दशाका आ य लेते ह। पा डु न दन! मे पवतका अनुसरण करके उ र दशाक सीमातक प ँचकर ये सम त ा णय के हतम त पर रहनेवाले भगवान् सूय पुनः पूवा भमुख होकर चलते ह ।। ३०-३१ ।। स मासान् वभजन् काले ब धा पवसं धषु । तथैव भगवान् सोमो न ैः सह ग छ त ।। ३२ ।। ‘उसी कार भगवान् च मा भी न के साथ मे पवतक प र मा करते ह और पवसं धके समय व भ मास का वभाग करते रहते ह ।। ३२ ।। एवमेतं व त य महामे मत तः । भावयन् सवभूता न पुनग छ त म दरम् ।। ३३ ।। तथा त म हा दे वो मयूखैभावय गत् । मागमेतदस बाधमा द यः प रवतते ।। ३४ ।। ‘इस तरह आल यर हत हो इस महामे का उ लंघन करके सम त ा णय का पोषण करते ए वे पुनः म दराचलको चले जाते ह। उसी कार अ धकारनाशक भगवान् सूय ी





अपनी करण से स पूण जगत्का पालन करते ए इस बाधार हत मागपर सदा च कर लगाते रहते ह ।। ३३-३४ ।। ससृ ुः श शरा येव द णां भजते दशम् । ततः सवा ण भूता न कालोऽ य छ त शै शरः ।। ३५ ।। थावराणां च भूतानां ज मानां च तेजसा । तेजां स समुपाद े नवृ ः स वभावसुः ।। ३६ ।। ततः वेद लमौ त ला न भजते नरान् । ा ण भः सततं व ो भी णं च नषे ते ।। ३७ ।। एवमेतद नद यं मागमावृ य भानुमान् । पुनः सृज त वषा ण भगवान् भावयन् जाः ।। ३८ ।। ‘शीतक सृ करनेक इ छासे ही सूयदे व द ण दशाका आ य लेते ह, इस लये सम त ा णय पर शीतकालका भाव पड़ने लगता है। द णायनसे नवृ होनेपर वे भगवान् सूय थावर-जंगम सभी ा णय का तेज अपने तेजसे हर लेते ह, यही कारण है क मनु य को पसीना, थकावट, आल य और ला नका अनुभव होता है तथा ाणी सदा न ाका ही बार-बार सेवन करते ह। इस कार इस अ त र मागको आवृत करके सम त जाक पु करते ए भगवान् सूय पुनः वषाक सृ करते ह ।। ३५—३८ ।। वृ मा तसंतापैः सुखैः थावरज मान् । वधयन् सुमहातेजाः पुनः त नवतते ।। ३९ ।। ‘महातेज वी सूयदे व वृ , वायु और ताप ारा सुखपूवक चराचर जीव क पु करते ए पुनः अपने थानपर लौट आते ह ।। ३९ ।। एवमेष चरन् पाथ कालच मत तः । कषन् सवभूता न स वता प रवतते ।। ४० ।। ‘कु तीन दन! इस कार ये भगवान् सूय सावधान हो सम त ा णय का आकषण और पोषण करते ए वचरते और कालच का संचालन करते ह ।। ४० ।। संतता ग तरेत य नैष त त पा डव । आदायैव तु भूतानां तेजो वसृजते पुनः ।। ४१ ।। वभजन् सवभूतानामायुः कम च भारत । अहोरा ं कलाः का ाः सृज येष सदा वभुः ।। ४२ ।। ‘यु ध र! यह सूयदे वक नर तर चलनेवाली ग त है। सूय कभी एक णके लये भी कते नह ह। वे स पूण भूत के रसमय तेजको हण करके पुनः उसे वषाकालम बरसा दे ते ह। भारत! ये भगवान् स वता स पूण भूत क आयु और कमका वभाग करते ए दन-रात, कला-का ा आ द समयक नर तर सृ करते रहते ह’ ।। ४१-४२ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण य यु पव ण मे दशने ।। १६३ ।।





ष ् य धकशततमोऽ यायः





इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत य यु पवम मे दशन वषयक एक सौ तरसठसाँ अ याय पूरा आ ।। १६३ ।।

चतुःष

धकशततमोऽ यायः

पा डव क अजुनके लये उ क ठ ा और अजुनका आगमन वैश पायन उवाच त मन् नगे े वसतां तु तेषां महा मनां सद् तमा थतानाम् । र तः मोद बभूव तेषामाकाङ् तां दशनमजुन य ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! उस पवतराज ग धमादनपर उ म तका आ य ले नवास करते ए अजुनके दशनक इ छा रखनेवाले महामना पा डव के मनम अ य त ेम और आन दका ा भाव आ ।। १ ।। तान् वीययु ान् सु वशु कामांतेज वनः स यधृ त धानान् । स ीयमाणा बहवोऽ भज मुग धवसङ् घा महषय ।। २ ।। वे सब-के-सब बड़े परा मी थे। उनक कामनाएँ अ य त वशु थ । वे तेज वी तो थे ही, स य और धैय उनके धान गुण थे; अतः ब तसे ग धव तथा मह षगण उनसे ेमपूवक मलने-जुलनेके लये आने लगे ।। २ ।। तं पादपैः पु पधरै पेतं नगो मं ा य महारथानाम् । मनः सादः परमो बभूव यथा दवं ा य म द्गणानाम् ।। ३ ।। वह े पवत वक सत वृ ाव लय से वभू षत था। वहाँ प ँच जानेसे महारथी पा डव के मनम बड़ी स ता रहने लगी। ठ क उसी तरह, जैसे म द्गण को वगलोकम प ँचनेपर स ता होती है ।। ३ ।। मयूरहंस वनना दता न पु पोपक णा न महाचल य । शृ ा ण सानू न च प यमाना गरेः परं हषमवा य त थुः ।। ४ ।। उस महान् पवतके शखर मयूर और हंस के कलनादसे गूँजते रहते थे। वहाँ सब ओर सु दर पु प ा त हो रहे थे। उन मनोहर शखर को दे खते ए पा डवलोग बड़े हषके साथ वहाँ रहने लगे ।। ४ ।। सा ात् कुबेरेण कृता त मन् ो





नगो मे संवृतकूलरोधसः । काद बकार डवहंसजु ाः पाक ु लाः पु क रणीरप यन् ।। ५ ।। उस े शैलपर सा ात् भगवान् कुबेरने अनेक सु दर सरोवर बनवाये थे, जो कमलसमूहसे आ छा दत रहते थे। उनके जल शैवाल आ दसे ढके होते थे और उन सबम हंस, कार डव आ द प ी सान द नवास करते थे। पा डव ने उन सरोवर को दे खा ।। ५ ।। डा दे शां समृ पान् सु च मा यावृतजातशोभान् । म ण क णा मनोरमां यथा भवेयुधनद य रा ः ।। ६ ।। धना य राजा कुबेरके लये जैसे होने चा हये, वैसे ही समृ शाली डा- दे श वहाँ बने ए थे। व च माला से समावृत होनेके कारण उनक शोभा ब त बढ़ गयी थी। उनको म ण तथा र न से अलंकृत कया गया था, जससे वे ड़ा- थल मनको मोहे लेते थे ।। अनेकवण सुग ध भ महा मैः संततम जालैः । तपः धानाः सततं चर तः शृ ं गरे त यतुं न शेकुः ।। ७ ।। अनेक वणवाले वशाल सुग धत वृ तथा मेघसमूह से ा त उस पवत शखरपर वचरते ए सदा तप याम ही संल न रहनेवाले पा डव उस पवतक मह ाका च तन नह कर पाते थे ।। ७ ।। वतेजसा त य नगो म य महौषधीनां च तथा भावात् । वभ भावो न बभूव क दहो नशानां पु ष वीर ।। ८ ।। वीरवर जनमेजय! पवतराज ग धमादनके अपने तेजसे तथा वहाँक तेज वनी महौष धय के भावसे वहाँ सदा काश ा त रहनेके कारण दन-रातका कोई वभाग नह हो पाता था ।। ८ ।। यमा थतः थावरज मा न वभावसुभावयतेऽ मतौजाः । त योदयं चा तमनं च वीरात थता ते द शुनृ सहाः ।। ९ ।। जन भगवान् सूयका आ य लेकर अ मत तेज वी अ नदे व स पूण थावर-जंगम ा णय का पोषण करते ह, उनके उदय और अ तक लीलाको पु ष सह वीर पा डव वहाँ रहकर प दे खते थे ।। ९ ।। रवे त म ागम नगमां ते ो ी

तथोदयं चा तमनं च वीराः । समावृताः े य तमोनुद य गभ तजालैः दशो दश ।। १० ।। वा यायव तः सतत या धम धाना शु च ता । स ये थता त य महारथ य स य त यागमन ती ाः ।। ११ ।। वे वीर पा डव वहाँसे अ धकारके आगमन और नगमनको अ धकार वनाशक भगवान् सूयके उदय और अ तक लीलाको तथा उनके करणसमूह से ा त ई स पूण दशा और व दशा को दे खकर वा यायम संल न रहते थे। सदा शुभकम के अनु ानम त पर रहकर धान पसे धमका ही आ य लेते थे। उनका आचार- वहार अ य त प व था। वे स यम थत होकर स य तपरायण महारथी अजुनके आगमनक ती ा करते थे ।। १०-११ ।। इहैव हष ऽ तु समागतानां ं कृता ेण धनंजयेन । इ त ुव तः परमा शष ते पाथा तपोयोगपरा बभूवुः ।। १२ ।। ‘इस पवतपर आये ए हम सब लोग को यह अ व ा सीखकर पधारे ए अजुनके दशनसे शी ही अ य त हषक ा त हो;’ इस कार पर पर शुभ-कामना कट करते ए वे सभी कु तीपु तप और योगके साधनम संल न रहते थे ।। १२ ।। ् वा व च ा ण गरौ वना न करी टनं च तयतामभी णम् । बभूव रा दवस तेषां संव सरेणैव समान पः ।। १३ ।। उस पवतपर व च वन-कुंज क शोभा दे खते और नर तर अजुनका च तन करते ए पा डव को एक दन-रातका समय एक वषके समान तीत होता था ।। १३ ।। यदै व धौ यानुमते महा मा कृ वा जटां जतः स ज णुः । तदै व तेषां न बभूव हषः कुतो र त ततमानसानाम् ।। १४ ।। जबसे धौ य मु नक आ ा लेकर महामना अजुन सरपर जटा धारण करके तप याके लये थत ए थे, तभीसे उन पा डव के मनम रंचमा भी हष नह रह गया था। उनका मन नर तर अजुनम ही लगा रहता था। ऐसी दशाम उ ह सुख कैसे ा त हो सकता था? ।। १४ ।। ातु नयोगात् तु यु ध र य वनादसौ वारणम गामी ।

यत् का यकात् जतः स ज णुतदै व ते शोकहता बभूवुः ।। १५ ।। गजराजके समान म तानी चालसे चलनेवाले वे अजुन जब बड़े भाई यु ध रक आ ा लेकर का यक वनसे थत ए थे, तभी सम त पा डव शोकसे पी ड़त हो गये थे ।। १५ ।। तथैव तं च तयतां सता म ा थनं वासवम युपेतम् । मासोऽथ कृ े ण तदा तीतत मन् नगे भारत भारतानाम् ।। १६ ।। जनमेजय! अ व ाक अ भलाषासे दे वराज इ के समीप गये ए ेतवाहन अजुनका च तन करनेवाले पा डव का एक मास उस पवतपर बड़ी क ठनाईसे तीत आ ।। १६ ।। उ ष वा प च वषा ण सह ा नवेशने । अवा य द ा य ा ण सवा ण वबुधे रात् ।। १७ ।। आ नेयं वा णं सौ यं वाय मथ वै णवम् । ऐ ं पाशुपतं ा ं पारमे ं जापतेः ।। १८ ।। यम य धातुः स वतु व ु व वण य च । ता न ा य सह ा ाद भवा शत तुम् ।। १९ ।। अनु ात तदा तेन कृ वा चा प द णम् । आग छदजुनः ीतः ो ग धमादनम् ।। २० ।। इधर अजुनने इ -भवनम पाँच वष रहकर दे वे र इ से स पूण द ा ा त कर लये। इस कार अ न, व ण, सोम, वायु, व णु, इ , पशुप त, ा, परमे ी, जाप त, यम, धाता, स वता, व ा तथा कुबेरस ब धी अ को भी दे वे से ही ा त करके उ ह णाम कया। तदन तर उनसे अपने भाइय के पास लौटनेक आ ा पाकर उनक प र मा करके अजुन बड़े स ए और हष लासम भरकर ग धमादनपर आये ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण य यु पव यजुना भगमने चतुःष धकशततमोऽ यायः ।। १६४ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत य यु पवम अजुना भगमन वषयक एक सौ च सठवाँ अ याय पूरा आ ।। १६४ ।।

( नवातकवचयु पव) प चष

धकशततमोऽ यायः

अजुनका ग धमादन पवतपर आकर अपने भाइय से मलना वैश पायन उवाच ततः कदा च रस यु ं महे वाहं सहसोपयातम् । व ु भं े य महारथानां हष ऽजुनं च तयतां बभूव ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर कसी समय हरे रंगके घोड़ से जुता आ दे वराज इ का रथ सहसा आकाशम कट आ, मानो बजली चमक उठ हो। उसे दे खकर अजुनका च तन करते ए महारथी पा डव को बड़ा हष आ ।। १ ।। स द यमानः सहसा त र ं काशयन् मात लसंगृहीतः । बभौ महो केव घना तर था शखेव चा ने व लता वधूमा ।। २ ।। उस रथका संचालन मात ल कर रहे थे। वह द तमान् रथ सहसा अ त र लोकको का शत करता आ इस कार सुशो भत होने लगा, मानो बादल के भीतर बड़ी भारी उ का कट ई हो अथवा अ नक धूमर हत वाला व लत हो उठ हो ।। २ ।। तमा थतः संद शे करीट वी नवा याभरणा न ब त् । धनंजयो व धर भावः या वलन् पवतमाजगाम ।। ३ ।। उस द रथपर बैठे ए करीटधारी अजुन प दखायी दे ने लगे। उनके क ठम द हार शोभा पा रहा था और उ ह ने वगलोकके नूतन आभूषण धारण कर रखे थे। उस समय धनंजयका भाव वधार ी इ के समान जान पड़ता था। वे अपनी द का तसे का शत होते ए ग धमादन पवतपर आ प ँचे ।। ३ ।। स शैलमासा करीटमाली महे वाहादव त मात् । धौ य य पादाव भवा धीमाो

नजातश ो तदन तरं च ।। ४ ।। वृकोदर या प च व पादौ मा सुता याम भवा दत । समे य कृ णां प रसा चैनां ोऽभवद् ातु प रे सः ।। ५ ।। पवतपर प ँचकर बु मान् करीटधारी अजुन दे वराज इ के उस द रथसे उतर पड़े। उस समय सबसे पहले उ ह ने मह ष धौ यके दोन चरण म म तक झुकाया। तदन तर अजातश ु यु ध र तथा भीमसेनके चरण म णाम कया। इसके बाद नकुल और सहदे वने आकर अजुनको णाम कया त प ात् ौपद से मलकर अजुनने उसे ब त आ ासन दया और अपने भाई यु ध रके समीप आकर वे वनीत भावसे खड़े हो गये ।। ४-५ ।।

वगसे लौटकर अजुन धमराजको णाम कर रहे ह बभूव तेषां परमः हषे े े

तेना मेयेण समागतानाम् । स चा प तान् े य करीटमाली नन द राजानम भ शंसन् ।। ६ ।। अ मेय वीर अजुनसे मलकर सब पा डव को बड़ा हष आ। अजुन भी उन सबसे मलकर बड़े स ए तथा राजा यु ध रक भू र-भू र शंसा करने लगे ।। ६ ।। यमा थतः स त जघान पूगान् दतेः सुतानां नमुचे नह ता । त म वाहं समुपे य पाथाः द णं च ु रद नस वाः ।। ७ ।। नमु चनाशक इ ने जसपर बैठकर दै य के सात यूथ का संहार कया था, उस इ रथके समीप जाकर उदार दयवाले कु तीपु ने उसक प र मा क ।। ७ ।। ते मातले ु रतीव ाः स कारम यं सुरराजतु यम् । सवान् यथाव च दवौकस ते प छु रेनं कु राजपु ाः ।। ८ ।। साथ ही, उ ह ने अ य त हषम भरकर मात लका दे वराज इ के समान सव म व धसे स कार कया। इसके बाद उन पा डव ने मात लसे स पूण दे वता का यथावत् कुशल-समाचार पूछा ।। ८ ।। तान यसौ मात लर यन दत् पतेव पु ाननु श य पाथान् । ययौ रथेना तम भेण पुनः सकाशं दवे र य ।। ९ ।। मात लने भी पा डव का अ भन दन कया और जैसे पता पु को उपदे श दे ता है, उसी कार पा डव को कत क श ा दे कर वे पुनः अपने अनुपम का तशाली रथके ारा वगलोकके वामी इ के समीप चले गये ।। गते तु त मन् नरदे ववयः श ा मजः श रपु माथी । (सा ात् सह ा इव तीतः ीमान् वदे हादवमु य ज णुः ।) श े ण द ा न ददौ महा मा महाधना यु म पव त ।। १० ।। दवाकराभा ण वभूषणा न यः यायै सुतसोममा े । मात लके चले जानेपर इ श ु का संहार करनेवाले दे वे कुमार नृप े महा मा ीमान् अजुनने, जो सा ात् सहलोचन इ के समान तीत होते थे, अपने शरीरसे े







उतारकर इ के दये ए ब मू य, उ म तथा सूयके समान दे द यमान द आभूषण अपनी यतमा सुतसोमक माता ौपद को सम पत कर दये ।। ततः स तेषां कु पु वानां तेषां च सूया नसम भाणाम् ।। ११ ।। व षभाणामुप व य म ये सव यथावत् कथयांबभूव । एवं मया ा युप श ता न श ा च वाता च शवा च सा ात् ।। १२ ।। तदन तर उन कु े पा डव तथा सूय और अ नके समान तेज वी षय के बीचम बैठकर अजुनने अपना सब समाचार यथावत् पसे कह सुनाया। ‘मने अमुक कारसे इ , वायु और सा ात् शवसे द ा क श ा ा त क है ।। ११-१२ ।। तथैव शीलेन समा धनाथ ीताः सुरा मे स हताः सहे ाः । सं ेपतो वै स वशु कमा ते यः समा याय द व वासम् ।। १३ ।। मा सुता यां स हतः करीट सु वाप तामावस त तीतः ।। १४ ।। ‘मेरे शील- वभाव तथा च क एका तासे इ स हत स पूण दे वता मुझपर ब त स रहते थे। नद ष कम करनेवाले अजुनने अपने वग य वासका सब समाचार उन सबको सं ेपसे बताकर नकुल-सहदे वके साथ न त होकर उस आ मम शयन कया ।। १३-१४ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण नवातकवचयु पव यजुनसमागमे प चष धकशततमोऽ यायः ।। १६५ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत नवातकवचयु पवम अजुनसमागम वषयक एक सौ पसठवाँ अ याय पूरा आ ।। १६५ ।। (दा णा य अ धक पाठका ोक मलाकर १४ ोक ह)

षट् ष

धकशततमोऽ यायः

इ का पा डव के पास आना और यु ध रको सा वना दे कर वगको लौटना वैश पायन उवाच ततो रज यां ु ायां धमराजं यु ध रम् । ातृ भः स हतः सवरव दत धनंजयः ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर रात बीतनेपर ातःकाल उठकर सम त भाइय स हत अजुनने धमराज यु ध रको णाम कया ।। १ ।। एत म ेव काले तु सववा द नः वनः । बभूव तुमुलः श द व त र े दवौकसाम् ।। २ ।। इसी समय अ त र म दे वता के स पूण वा क तुमुल व न गूँज उठ ।। २ ।। रथने म वन ैव घ टाश द भारत । पृथग् ालमृगाणां च प णा मव सवशः ।। ३ ।। भारत! रथके प हय क घघराहट, घंटानाद तथा सप, मृग एवं प य के कोलाहल सब ओर पृथक्-पृथक् सुनायी दे रहे थे ।। ३ ।। (रवो मुखा ते द शुः ीयमाणाः कु हाः । म र वतं श मापत तं वहायसा ।।) ते सम तादनुययुग धवा सरसां गणाः । वमानैः सूयसंकाशैदवराजमरदमम् ।। ४ ।। पा डव ने स तापूवक उस व नक ओर आँख उठाकर दे खा, तो उ ह दे वराज इ गोचर ए जो स पूण म द्गण आ द दे वता के साथ आकाशमागसे आ रहे थे। ग धव और अ सरा के समूह सूयके समान तेज वी वमान ारा श ुदमन दे वराजको चार ओरसे घेरकर उ ह के पथका अनुसरण कर रहे थे ।। ४ ।। ततः स ह र भयु ं जा बूनदप र कृतम् । मेघना दनमा या परमया वलन् ।। ५ ।। पाथान याजगामाथ दे वराजः पुरंदरः । थोड़ी ही दे रम हरे रंगके घोड़ से जुते ए, मेघ-गजनाके समान ग भीर घोष करनेवाले, जा बूनद नामक सुवणसे अलंकृत रथपर आ ढ़ दे वराज इ पा डव के पास आ प ँचे। उस समय वे अपनी उ कृ भासे अ य त उ ा सत हो रहे थे ।। ५ ।। आग य च सह ा ो रथादव रोह वै ।। ६ ।। तं ् वैव महा मानं धमराजो यु ध रः । ातृ भः स हतः ीमान् दे वराजमुपागमत् ।। ७ ।।

नकट आनेपर सहलोचन इ रथसे उतर गये। उन महामना दे वराजको दे खते ही भाइय स हत ीमान् धमराज यु ध र उनके पास गये ।। ६-७ ।। पूजयामास चैवाथ व धवद् भू रद णः । यथाहम मता मानं व ध ेन कमणा ।। ८ ।। य म चुर द णा दे नेवाले यु ध र शा व णत प तसे अ मतबु इ का व धवत् वागत-स कार कया ।। ८ ।। धनंजय तेज वी णप य पुरंदरम् । भृ यवत् णत त थौ दे वराजसमीपतः ।। ९ ।। तेज वी अजुन भी इ को णाम करके उनके समीप सेवकक भाँ त वनीतभावसे खड़े हो गये ।। ९ ।। आ यायत महातेजाः कु तीपु ो यु ध रः । धनंजयम भ े य वनीतं थतम तके ।। १० ।। ज टलं दे वराज य तपोयु मक मषम् । हषण महताऽऽ व ः फा गुन याथ दशनात् ।। ११ ।। महातेज वी कु तीपु यु ध र अजुनको दे वराजके समीप वनीतभावसे थत दे ख बड़े स ए। अजुनके सरपर जटा बँध गयी थी। वे दे वराजके आदे शके अनुसार तप याम लगे रहते थे; अतः सवथा न पाप हो गये थे। अजुनको दे खनेसे उ ह महान् हष आ था ।। १०-११ ।। ी ो े

वभूव परम ीतो दे वराजं च पूजयन् । तं तथाद नमनसं राजानं हषस लुतम् ।। १२ ।। उवाच वचनं धीमान् दे वराजः पुरंदरः । व ममां पृ थव राजन् शा स य स पा डव । व त ा ु ह कौ तेय का यकं पुनरा मम् ।। १३ ।। अतः दे वराजका पूजन करके वे बड़े स ए। उदार च राजा यु ध रको इस कार हषम म न दे खकर परम बु मान् दे वराज इ ने कहा—पा डु न दन! तुम इस पृ वीका शासन करोगे। कु तीकुमार! अब तुम पुनः का यक वनके क याणकारी आ मम चले जाओ ।। १२-१३ ।। अ ा ण लधा न च पा डवेन सवा ण म ः यतेन राजन् । कृत य ा म धनंजयेन जेतुं न श य भरेष लोकैः ।। १४ ।। ‘राजन्! पा डु न दन अजुनने एका च होकर मुझसे स पूण द ा ा त कर लये ह। साथ ही इ ह ने मेरा बड़ा य काय स प कया है। तीन लोक के सम त ाणी इ ह यु म परा त नह कर सकते’ ।। १४ ।। एकमु वा सह ा ः कु तीपु ं यु ध रम् । जगाम दवं ः तूयमानो मह ष भः ।। १५ ।। कु तीन दन यु ध रसे ऐसा कहकर इ मह षय के मुखसे अपनी तु त सुनते ए सान द वगलोकको चले गये ।। १५ ।। धने रगृह थानां पा डवानां समागमम् । श े ण य इदं व ानधीयीत समा हतः ।। १६ ।। संव सरं चारी नयतः सं शत तः । स जीवे नराबाधः स सुखी शरदां शतम् ।। १७ ।। धना य कुबेरके घरम टके ए पा डव का जो इ के साथ समागम आ था, उस संगको जो व ान् एका च होकर त दन पढ़ता है और संयम- नयमसे रहकर कठोर तका आ य ले एक वषतक चयका पालन करता है, वह सब कारक बाधा से र हत हो सौ वष तक सुखपूवक जीवन धारण करता है ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण नवातकचवयु पव ण इ ागमने षट् ष ् य धकशततमोऽ यायः ।। १६६ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत नवातकवचयु पवम इ ागमन वषयक एक सौ छाछठवाँ अ याय पूरा आ ।। १६६ ।। (दा णा य अ धक पाठका १ ोक मलाकर क ु ल १८ ोक ह)

स तष

धकशततमोऽ यायः

अजुनके ारा अपनी तप या-या ाके वृ ा तका वणन, भगवान् शवके साथ सं ाम और पाशुपता - ा तक कथा वैश पायन उवाच यथागतं गते श े ातृ भः सह स तः । कृ णया चैव बीभ सुधमपु मपूजयत् ।। १ ।। वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! दे वराज इ के चले जानेपर भाइय तथा ौपद के साथ मलकर अजुनने धमपु यु ध रको णाम कया ।। १ ।। अ भवादयमानं तं मू युपा ाय पा डवम् । हषगद्गदया वाचा ोऽजुनम वीत् ।। २ ।। पा डु न दन अजुनको णाम करते दे ख यु ध र बड़े स ए एवं उनका म तक सूँघकर हषगद्गद-वाणीम इस कार बोले— ।। २ ।। कथमजुन कालोऽयं वग तगत तव । कथं चा ा यवा ता न दे वराज तो षतः ।। ३ ।। ‘अजुन! वगम तु हारा यह समय कस कार बीता? कैसे तुमने द ा ा त कये और कैसे दे वराज इ को संतु कया? ।। ३ ।। स यग् वा ते गृहीता न क चद ा ण पा डव । क चत् सुरा धपः ीतो ो वा ा यदात् तव ।। ४ ।। ‘पा डु न दन! या तुमने सभी अ अ छ तरह सीख लये? या दे वराज इ अथवा भगवान् ने स होकर तु ह अ दान कये ह? ।। ४ ।। यथा ते श ो भगवान् वा पनाकधृक् । यथैवा ा यवा ता न यथैवारा धत ते ।। ५ ।। यथो वां वां भगवान् शत तुररदम । कृत य वया मी त त य ते क यं कृतम् ।। ६ ।। ‘श ुदमन! तुमने जस कार दे वराज इ का दशन कया है अथवा जैसे पनाकधारी भगवान् शवको दे खा है, जस कार तुमने सब अ क श ा ा त क है और जैसे तु हारे ारा दे वाराधनका काय स पा दत आ है, वह सब बताओ। भगवान् इ ने अभीअभी कहा था क ‘अजुनने मेरा अ य त य काय स प कया है’ सो वह उनका कौनसा य काय था, जसे तुमने स प कया है ।। ५-६ ।। एत द छा यहं ीतुं व तरेण महा ुते । यथा तु ो महादे वो दे वराज तथानघ ।। ७ ।। य चा प व पाणे तु यं कृतमरदम । े े

एतदा या ह मे सवमखलेन धनंजय ।। ८ ।। ‘महातेज वी वीर! म ये सब बात व तारपूवक सुनना चाहता ँ। श ु का दमन करनेवाले न पाप अजुन! जस कार तु हारे ऊपर महादे वजी तथा दे वराज इ संतु ए और वधारी इ का जो य काय तुमने स प कया है, वह सब पूण पसे बताओ’ ।। ७-८ ।। अजुन उवाच शृणु ह त महाराज व धना येन वान् । शत तुमहं दे वं भगव तं च शङ् करम् ।। ९ ।। व ामधी य तां राजं वयो ाम रमदन । भवता च समा द तपसे थतो वनम् ।। १० ।। अजुन बोले—महाराज! मने जस व धसे दे वराज इ तथा भगवान् शंकरका दशन कया था, वह सब बतलाता ँ, सु नये! श ु का मदन करनेवाले नरेश! आपक बतायी ई व ाको हण करके आपहीके आदे शसे म तप या करनेके लये वनक ओर थत आ ।। ९-१० ।। भृगुतु मथो ग वा का यकादा थत तपः । एकरा ो षतः क चदप यं ा णं प थ ।। ११ ।। का यक वनसे चलकर तप याम पूरी आशा रखकर म भृगत ु ुंग पवतपर प ँचा और वहाँ एक रात रहकर जब आगे बढ़ा, तब मागम कसी ा णदे वताका मुझे दशन आ ।। ११ ।। स मामपृ छत् कौ तेय वा स ग ता वी ह मे । त मा अ वतथं सवम ुवं कु न दन ।। १२ ।। उ ह ने मुझसे कहा—‘कु तीन दन! कहाँ जाते हो? मुझे ठ क-ठ क बताओ।’ तब मने उनसे सब कुछ सच-सच बता दया ।। १२ ।। स तयं मम त छ वा ा णो राजस म । अपूजयत मां राजन् ी तमां ाभव म य ।। १३ ।। नृप े ! ा णदे वताने मेरी यथाथ बात सुनकर मेरी शंसा क और मुझपर बड़े स ए ।। १३ ।। ततो माम वीत् ीत तप आ त भारत । तप वी न चरेण वं यसे वबुधा धपम् ।। १४ ।। त प ात् उ ह ने स तापूवक कहा—‘भारत! तुम तप याका आ य लो! तपम वृ होनेपर तु ह शी ही दे वराज इ का दशन होगा’ ।। १४ ।। ततोऽहं वचनात् त य ग रमा शै शरम् । तपोऽत यं महाराज मासं मूलफलाशनः ।। १५ ।। महाराज! उनके इस आदे शको मानकर म हमालय पवतपर आ ढ़ हो तप याम संल न हो गया और एक मासतक केवल फल-फूल खाकर रहा ।। १५ ।। ी







तीय ा प मे मासो जलं भ यतो गतः । नराहार तृतीयेऽथ मासे पा डवन दन ।। १६ ।। ऊ वबा तुथ तु मासम म थत तदा । न च मे हीयते ाण तद त मवाभवत् ।। १७ ।। इसी कार मने सरा महीना भी केवल जल पीकर बताया। पा डवन दन! तीसरे महीनेम म पूणतः नराहार रहा। चौथे महीनेम म ऊपरको हाथ उठाये खड़ा रहा। इतनेपर भी मेरा बल ीण नह आ, यह एक आ यक -सी बात ई ।। १६-१७ ।। प चमे वथ स ा ते थमे दवसे गते । वराहसं थतं भूतं म समीपं समागमत् ।। १८ ।। पाँचवाँ महीना ार भ होनेपर जब एक दन बीत गया तब सरे दन एक शूकर पधारी जीव मेरे नकट आया ।। १८ ।। न नन् ोथेन पृ थव व लखं रणैर प । स माज ठरेणोव ववत मु मु ः ।। १९ ।। वह अपनी थूथुनसे पृ वीपर चोट करता और पैर से धरती खोदता था। बार-बार लेटकर वह अपने पेटसे वहाँक भू मको ऐसा व छ कर दे ता था, मानो उसपर झाड़ दया गया हो ।। १९ ।। अनु त यापरं भूतं महत् कैरातसं थतम् । धनुबाणा समत् ा तं ीगणानुगतं तदा ।। २० ।। उसके पीछे करात-जैसी आकृ तम एक महान् पु षका दशन आ। उसने धनुष-बाण और खड् ग ले रखे थे। उसके साथ य का एक समुदाय भी था ।। २० ।। ततोऽहं धनुरादाय तथा ये महेषुधी । अताडयं शरेणाथ तद् भूतं लोमहषणम् ।। २१ ।। तब मने धनुष तथा अ य तरकस लेकर एक बाणके ारा उस रोमांचकारी सूकरपर आघात कया ।। युगपत् तं करात तु वकृ य बलवद् धनुः । अ याज ने ढतरं क पय व मे मनः ।। २२ ।। साथ ही करातने भी अपने सु ढ़ धनुषको ख चकर उसपर गहरी चोटक , जससे मेरा दय क पत-सा हो उठा ।। २२ ।। स तु माम वीद् राजन् मम पूवप र हः । मृगयाधममु सृ य कमथ ता डत वया ।। २३ ।। राजन्! फर वह करात मुझसे बोला—‘यह सूअर तो पहले मेरा नशाना बन चुका था, फर तुमने आखेटके नयमको छोड़कर उसपर हार य कया?’ ।। २३ ।। एष ते न शतैबाणैदप ह म थरो भव । स धनु मान् महाकाय ततो माम यभाषत ।। २४ ।। इतना ही नह उस वशालकाय एवं धनुधर करातने उस समय मुझसे यह भी कहा —‘अ छा, ठहर जाओ। म अपने पैने बाण से अभी तु हारा घमंड चूर-चूर कये दे ता ँ’

ँ’ ।। २४ ।। ततो ग र मवा यथमावृणो मां महाशरैः । तं चाहं शरवषण महता समवा करम् ।। २५ ।। ऐसा कहकर उस भीलने जैसे पवतपर वषा हो, उस कार महान् बाण क बौछार करके मुझे सब ओरसे ढक दया; तब मने भी भारी बाणवषा करके उसे सब ओरसे आ छा दत कर दया ।। २५ ।। ततः शरैद तमुखैय तैरनुम तैः । य व यमहं तं तु व ै रव शलो चयम् ।। २६ ।। तदन तर जैसे वसे पवतपर आघात कया जाय, उसी कार व लत मुखवाले अ भम त और खूब ख चकर छोड़े ए बाण ारा मने उसे बार-बार घायल कया ।। २६ ।। त य त छतधा पमभव च सह धा । ता न चा य शरीरा ण शरैरहमताडयम् ।। २७ ।। उस समय उसके सैकड़ और सह प कट ए और मने उसके सभी शरीर पर बाण से गहरी चोट प ँचायी ।। २७ ।। पुन ता न शरीरा ण एक भूता न भारत । अ य त महाराज ता यहं धमं पुनः ।। २८ ।। भारत! फर उसके वे सारे शरीर एक प दखायी दये। महाराज! उस एक पम भी मने उसे पुनः अ छ तरह घायल कया ।। २८ ।। अणुबृह छरा भू वा बृह चाणु शराः पुनः । एक भूत तदा राजन् सोऽ यवतत मां यु ध ।। २९ ।। यदा भभ वतुं बाणैन च श नो म तं रणे । ततो महा मा त ं वाय ं भरतषभ ।। ३० ।। कभी उसका शरीर तो ब त छोटा हो जाता, परंतु म तक ब त बड़ा दखायी दे ता था। फर वह वशाल शरीर धारण कर लेता और म तक ब त छोटा बना लेता था। राजन्! अ तम वह एक ही पम कट होकर यु म मेरा सामना करने लगा। भरतषभ! जब म बाण क वषा करके भी यु म उसे परा त न कर सका, तब मने महान् वाय ा का योग कया ।। २९-३० ।। न चैनमशकं ह तुं तद त मवाभवत् । त मन् तहते चा े व मयो मे महानभूत् ।। ३१ ।। कतु उससे भी उसका वध न कर सका। यह एक अ त-सी घटना ई। वाय ा के न फल हो जानेपर मुझे महान् आ य आ ।। ३१ ।। भूय एव महाराज स वशेषमहं ततः । अ पूगेन महता रणे भूतमवा करम् ।। ३२ ।। महाराज! तब मने पुनः वशेष य न करके रणभू मम करात पधारी उस अ त पु षपर महान् अ समूहक वषा क ।। ३२ ।। ो ो

थूणाकणमथो जालं शरवषमथो बणम् । शलभा म मवष समा थायाहम ययाम् ।। ३३ ।। थूणाकण१, वा णा २, भयंकर शरवषा ३, शलभा ४ तथा अ मवष५ इन अ का सहारा ले म उस करातपर टू ट पड़ा ।। ३३ ।। ज ास सभं ता न सवा य ा ण मे नृप । तेषु सवषु ज धेषु ा ं महदा दशम् ।। ३४ ।। राजन्! उसने मेरे उन सभी अ को बलपूवक अपना ास बना लया। उन सबके भ ण कर लये जानेपर मने महान् ा का योग कया ।। ३४ ।। ततः व लतैबाणैः सवतः सोपचीयते । उपचीयमान मया महा ेण वधत ।। ३५ ।। तब व लत बाण ारा वह अ सब ओर बढ़ने लगा। मेरे महान् अ से बढ़नेक ेरणा पाकर वह ा अ धक वेगसे बढ़ चला ।। ३५ ।। ततः संता पता लोका म सूतेन तेजसा । णेन ह दशः खं च सवतो ह वद पतम् ।। ३६ ।। तदन तर मेरे ारा कट कये ए ा के तेजसे वहाँके सब लोग संत त हो उठे । एक ही णम स पूण दशाएँ और आकाश सब ओरसे आगक लपट से उ त हो उठे ।। ३६ ।। तद य ं महातेजाः णेनैव शातयत् । ा े तु हते राजन् भयं मां महदा वशत् ।। ३७ ।। परंतु उस महान् तेज वी वीरने णभरम ही मेरे उस ा को भी शा त कर दया। राजन्! उस ा के न होनेपर मेरे मनम महान् भय समा गया ।। ततोऽहं धनुरादाय तथा ये महेषुधी । सहसा यहनं भूतं ता य य ा यभ यत् ।। ३८ ।। तब म धनुष और दोन अ य तरकस लेकर सहसा उस द पु षपर आघात करने लगा, कतु उसने उन सबको भी अपना आहार बना लया ।। ३८ ।। हते व ेषु सवषु भ ते वायुधेषु च । मम त य च भूत य बा यु मवतत ।। ३९ ।। जब मेरे सारे अ -श न होकर उसके आहार बन गये, तब मेरा उस अलौ कक ाणीके साथ म लयु ार भ हो गया ।। ३९ ।। ायामं मु भः कृ वा तलैर प समागतैः । अपारयं तद् भूतं न े मगमं महीम् ।। ४० ।। ततः ह य तद् भूतं त ैवा तरधीयत । सह ी भमहाराज प यतो मेऽ तोपमम् ।। ४१ ।। पहले मु क और थ पड़ से मने उससे ट कर लेनेक चे ाक , परंतु उसपर मेरा कोई वश नह चला और म न े होकर पृ वीपर गर पड़ा। महाराज! तब वह अलौ कक ाणी ँ

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हँसकर मेरे दे खते-दे खते य स हत वह अ तधान हो गया ।। ४०-४१ ।। एवं कृ वा स भगवां ततोऽ यद् पमा थतः । द मेव महाराज वसानोऽ तम बरम् ।। ४२ ।। ह वा करात पं च भगवां दशे रः । व पं द मा थाय त थौ त महे रः ।। ४३ ।। राजन्! वा तवम वे भगवान् शंकर थे। उ ह ने पूव बताव करके सरा प धारण कर लया। दे वता के वामी भगवान् महे र करात प छोड़कर द व पका आ य ले अलौ कक एवं अ त व धारण कये वहाँ खड़े हो गये ।। ४२-४३ ।। अ यत ततः सा ाद् भगवान् गोवृष वजः । उमासहायो ालधृग् ब पः पनाकधृक् ।। ४४ ।। स माम ये य समरे तथैवा भमुखं थतम् । शूलपा णरथोवाच तु ोऽ मी त परंतप ।। ४५ ।। इस कार उमास हत सा ात् भगवान् वृषभ- वजका दशन आ। उ ह ने अपने अंग म सप और हाथम पनाक धारण कर रखे थे। अनेक पधारी भगवान् शूलपा ण उस रणभू मम मेरे नकट आकर पूववत् सामने खड़े हो गये और बोले—‘परंतप! म तुमपर संतु ँ’ ।। ४४-४५ ।। तत तद् धनुरादाय तूणौ चा यसायकौ । ादा ममैव भगवान् धारय वे त चा वीत् ।। ४६ ।। तु ोऽ म तव कौ तेय ू ह क करवा ण ते । यत् ते मनोगतं वीर तद् ू ह वतरा यहम् ।। ४७ ।। अमर वमपाहाय ू ह यत् ते मनोगतम् । तदन तर मेरे धनुष और अ य बाण से भरे ए दोन तरकस लेकर भगवान् शवने मुझे ही दे दये और कहा—‘परंतप! ये अपने अ हण करो।’ कु तीकुमार! म तुमसे संतु ँ। बोलो, तु हारा कौन-सा काय स क ँ ? वीर! तु हारे मनम जो कामना हो, बताओ। म उसे पूण कर ँ गा। अमर वको छोड़कर और तु हारे मनम जो भी कामना हो, बताओ’ ।। ४६-४७ ।। ततः ा लरेवाहम ेषु गतमानसः ।। ४८ ।। ण य मनसा शव ततो वचनमाददे । भगवान् मे स ेद सतोऽयं वरो मम ।। ४९ ।। अ ाणी छा यहं ातुं या न दे वेषु का न चत् । ददानी येव भगवान वीत् य बक माम् ।। ५० ।। मेरा मन तो अ -श म लगा आ था। उस समय मने हाथ जोड़कर मन-ही-मन भगवान् शंकरको णाम कया और यह बात कही—‘य द मुझपर भगवान् स ह, तो मेरा मनोवां छत वर इस कार है—दे वता के पास जो कोई भी द ा ह, उ ह म ँ’







जानना चाहता ँ।’ यह सुनकर भगवान् शंकरने मुझसे कहा—‘पा डु न दन! म तु ह स पूण द ा क ा तका वर दे ता ँ ।। ४८—५० ।। रौ म ं मद यं वामुप था य त पा डव । ददौ च मम ीतः सोऽ ं पाशुपतं महत् ।। ५१ ।। ‘पा डु कुमार! मेरा रौ ा वयं तु ह ा त हो जायगा।’ यह कहकर भगवान् पशुप तने बड़ी स ताके साथ मुझे अपना महान् पाशुपता दान कया ।। ५१ ।। उवाच च महादे वो द वा मेऽ ं सनातनम् । न यो यं भवेदेत मानुषेषु कथ चन ।। ५२ ।। अपना सनातन अ मुझे दे कर महादे वजी फर बोले—‘तु ह मनु य पर कसी कार इस अ का योग नह करना चा हये ।। ५२ ।। जगद् व नदहेदेवम पतेज स पा ततम् । पीड् यमानेन बलवत् यो यं याद् धनंजय ।। ५३ ।। अ ाणां तघाते च सवथैव योजयेत् । ‘अपनेसे अ पश वाले वप ी पर य द इसका हार कया जाय तो यह स पूण व को द ध कर दे गा। धनंजय! जब श ुके ारा अपनेको ब त पीड़ा ा त होने लगे, उस दशाम आ मर ाके लये इसका योग करना चा हये। श ुके अ का वनाश करनेके लये सवथा इसका योग उ चत है’ ।। ५३ ।। तद तहतं द ं सवा तषेधनम् ।। ५४ ।। मू तम मे थतं पा स े गोवृष वजे । इस कार भगवान् वृषभ वजके स होनेपर स पूण अ का नवारण करनेवाला और कह भी कु ठत न होनेवाला द पाशुपता मू तमान् हो मेरे पास आकर खड़ा हो गया ।। ५४ ।। उ सादनम म ाणां परसेना नकतनम् ।। ५५ ।। रासदं सहं सुरदानवरा सैः । अनु ात वहं तेन त ैव समुपा वशम् ।। ५६ ।। े त ैव मे दे व त ैवा तरधीयत ।। ५७ ।। वह श ु का संहारक और वप य क सेनाका व वंसक है। उसक ा त ब त क ठन है। दे वता, दानव तथा रा स कसीके लये भी उसका वेग सहन करना अ य त क ठन है। फर भगवान् शवक आ ा होनेपर म वह बैठ गया और वे मेरे दे खते-दे खते अ तधान हो गये ।। ५५—५७ ।। इ त ीमहाभारते वनपव ण नवातकवचयु पव ण ग धमादनवासे यु ध राजुनसंवादे स तष धकशततमोऽ यायः ।। १६७ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत नवातकवचयु पवम ग धमादन नवासका लक यु ध र-अजुन-संवाद वषयक एक सौ सरसठवाँ अ याय पूरा आ ।। १६७ ।।

१. आचाय नीलक ठके मतसे थूणाकण नाम है शंकुकणका, जो भगवान् के एक अवतार ह। वे जस अ के दे वता है, उसका नाम भी थूणाकण है। २. मूलम जाल श द आया है, जसका अथ है, जालस ब धी। यह जलवषक अ क ही वा णा है। ३. जैसे बादल पानीक वषा करता है, उसी कार नर तर बाणवषा करनेवाला अ शरवष कहलाता है। ४. जैसे असं य ट याँ आकाशम मँडराती और पौध पर टू ट पड़ती ह, उसी कार जस अ से असं य बाण आकाशको आ छा दत करते और श ुको अपना ल य बनाते ह, उसीका नाम शलभा है। ५. प थर क वषा करनेवाले अ को अ मवष कहते ह।

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धकशततमोऽ यायः

अजुन ारा वगलोकम अपनी अ श ा और नवातकवच दानव के साथ यु क तैयारीका कथन अजुन उवाच तत तामवसं ीतो रजन त भारत । सादाद् दे वदे व य य बक य महा मनः ।। १ ।। अजुन कहते ह—भारत! दे वा धदे व परमा मा भगवान् लोचनके कृपा सादसे मने स तापूवक वह रात वह तीत क ।। १ ।। ु षतो रजन चाहं कृ वा पौवा क ः याः । अप यं तं ज े ं वान म यं पुरा ।। २ ।। सबेरा होनेपर पूवाकालक या पूरी करके मने पुनः उ ह े ा णको अपने सम पाया, जनका दशन मुझे पहले भी हो चुका था ।। २ ।। त मै चाहं यथावृ ं सवमेव यवेदयम् । भगव तं महादे वं समेतोऽ मी त भारत ।। ३ ।। भरतकुलभूषण! उनसे मने अपना सारा वृ ा त यथावत् कह सुनाया और बताया क ‘म भगवान् महादे वजीसे मल चुका ँ’ ।। ३ ।। स मामुवाच राजे ीयमाणो जो मः । वया महादे वो यथा ना येन केन चत् ।। ४ ।। राजे ! तब वे व वर बड़े स होकर मुझसे बोले—‘कु तीकुमार! जस कार तुमने महादे वजीका दशन कया है, वैसा दशन और कसीने नह कया है ।। ४ ।। समे य लोकपालै तु सववव वता द भः । ा यनघ दे वे ं स च तेऽ ा ण दा य त ।। ५ ।। ‘अनघ! अब तुम यम आ द लोकपाल के साथ दे वराज इ का दशन करोगे और वे भी तु ह अ दान करगे’ ।। ५ ।। एवमु वा स मां राज ा य च पुनः पुनः । अग छत् स यथाकामं ा णः सूयसं नभः ।। ६ ।। राजन्! ऐसा कहकर सूयके समान तेज वी ा ण दे वताने मुझे बार-बार दयसे लगाया और फर वे इ छानुसार अपने अभी थानको चले गये ।। ६ ।। अथापरा े त या ः ावात् पु यः समीरणः । पुननव ममं लोकं कुव व सप नहन् ।। ७ ।। द ा न चैव मा या न सुग धी न नवा न च । शै शर य गरेः पादे ा रासन् समीपतः ।। ८ ।। ी





श ु वजयी नरेश! तदन तर जब वह दन ढलने लगा, तब पुनः इस जगत्म नूतन जीवनका संचार-सा करती ई प व वायु चलने लगी और उस हमालयके पा वत दे शम द , नवीन और सुग धत पु प क वषा होने लगी ।। ७-८ ।। वा द ा ण च द ा न सुघोरा ण सम ततः । तुतय े संयु ा अ ूय त मनोहराः ।। ९ ।। चार ओर अ य त भयंकर तीत होनेवाले द वा और इ स ब धी तो के मनोहर श द सुनायी दे ने लगे ।। ९ ।। गणा ा सरसां त ग धवाणां तथैव च । पुर ताद् दे वदे व य जगुग ता न सवशः ।। १० ।। सब ग धव और अ सरा के समूह वहाँ दे वराज इ के आगे रहकर गीत गा रहे थे ।। १० ।। म तां च गणा त दे वयानै पागमन् । महे ानुचरा ये च ये च स नवा सनः ।। ११ ।। दे वता के अनेक गण भी द वमान पर बैठकर वहाँ आये थे। जो महे के सेवक थे और जो इ भवनम ही नवास करते थे, वे भी वहाँ पधारे ।। ११ ।। ततो म वान् ह र भयु ै वाहैः वलङ् कृतैः । शचीसहाय त ायात् सह सव तदामरैः ।। १२ ।। तदन तर थोड़ी ही दे रम व वध आभूषण से वभू षत हरे रंगके घोड़ से जुते ए एक सु दर रथके ारा शचीस हत इ ने स पूण दे वता के साथ वहाँ पदापण कया ।। १२ ।। एत म ेव काले तु कुबेरो नरवाहनः । दशयामास मां राजँ ल या परमया युतः ।। १३ ।। राजन्! इसी समय सव कृ ऐ य—ल मीसे स प नरवाहन कुबेरने भी मुझे दशन दया ।। १३ ।। द ण यां द श यमं यप यं व थतम् । व णं दे वराजं च यथा थानमव थतम् ।। १४ ।। द ण दशाक ओर पात करनेपर मुझे सा ात् यमराज खड़े दखायी दये। व ण और दे वराज इ भी मशः प म और पूव दशाम यथा थान खड़े हो गये ।। १४ ।। ते मामूचुमहाराज सा व य वा नरषभ । स सा चन् नरी ा माँ लोकपालानव थतान् ।। १५ ।। महाराज! नर े ! उन सब लोकपाल ने मुझे सा वना दे कर कहा—‘स साची अजुन! दे खो, हम सब लोकपाल यहाँ खड़े ह ।। १५ ।। सुरकायाथ स यथ वान स शङ् करम् । अ म ोऽ प गृहाण वम ाणी त सम ततः ।। १६ ।। ‘दे वता के कायक स के लये ही तु ह भगवान् शंकरका दशन ा त आ था। अब तुम चार ओर घूमकर हमलोग से भी द ा हण करो’ ।। १६ ।। ततोऽहं यतो भू वा णप य सुरषभान् । ो

यगृ ं तदा ा ण महा त व धवद् वभो ।। १७ ।। भो! तब मने एका च हो उन उ म दे वता को णाम करके उन सबसे व धपूवक महान् द ा ा त कये ।। १७ ।। गृहीता ततो दे वैरनु ातोऽ म भारत । अथ दे वा ययुः सव यथागतमरदम ।। १८ ।। भारत! जब म अ हण कर चुका तब दे वता ने मुझे जानेक आ ा द । श ुदमन! तदन तर सब दे वता जैसे आये थे, वैसे अपने-अपने थानको चले गये ।। १८ ।। मघवान प दे वेशो रथमा सु भम् । उवाच भगवान् वग ग त ं फा गुन वया ।। १९ ।। दे वे र भगवान् इ ने भी अपने अ य त काशपूण रथपर आ ढ़ हो मुझसे कहा —‘अजुन! तु ह वगलोकक या ा करनी होगी ।। १९ ।। पुरैवागमनाद माद् वेदाहं वां धनंजय । अतः परं वहं वै वां दशये भरतषभ ।। २० ।। ‘भरत े धनंजय! यहाँ आनेसे पहले ही मुझे तु हारे वषयम सब कुछ ात हो गया था। इसके बाद मने तु ह दशन दया है ।। २० ।। वया ह तीथषु पुरा समा लावः कृतोऽसकृत् । तप ेदं महत् त तं वग ग ता स पा डव ।। २१ ।। ‘पा डु न दन! तुमने पहले अनेक बार ब त-से तीथ म नान कया है और इस समय इस महान् तपका भी अनु ान कर लया है, अतः तुम वगलोकम सशरीर जानेके अ धकारी हो गये हो ।। २१ ।। भूय ैव च त त ं तप रणमु मम् । वग वव यं ग त ं वया श ु नषूदन ।। २२ ।। ‘श ुसूदन! अभी तु ह और भी उ म तप या करनी है और वगलोकम अव य पदापण करना है ।। २२ ।। मात लम योगात् वां दवं ाप य य त । व दत वं ह दे वानां मुनीनां च महा मनाम् ।। २३ ।। इह थः पा डव े तपः कुवन् सु करम् । ‘मेरी आ ासे मात ल तु ह वगम प ँचा दे गा। पा डव े ! यहाँ रहकर जो तुम अ य त कर तप कर रहे हो, इसके कारण दे वता तथा महा मा मु नय म तु हारी या त ब त बढ़ गयी है’ ।। २३ ।। ततोऽहम ुवं श ं सीद भगवन् मम । आचाय वरयेयं वाम ाथ दशे र ।। २४ ।। तब मने दे वराज इ से कहा—‘भगवन्! आप मुझपर स होइये। दे वे र! म अ व ाक ा तके लये आपको अपना आचाय बनाता ँ’ ।। २४ ।। इ उवाच

ू रकमा वत् तात भ व य स परंतप । यदथम ाणी सु वं तं कामं पा डवा ु ह ।। २५ ।। इ ने कहा—परंतप तात अजुन! द अ -श का ान ा त कर लेनेपर तुम भयंकर कम करने लगोगे। अतः पा डु न दन! मेरी इ छा है क तुम जसके लये अ क श ा ा त करना चाहते हो, तु हारा वह उ े य पूण हो ।। २५ ।। ततोऽहम ुवं नाहं द ा य ा ण श ुहन् । मानुषेषु यो या म वना तघातनात् ।। २६ ।। यह सुनकर मने उ र दया—‘श ुघाती दे वे र! म श ु ारा यु द ा का नवारण करनेके सवा अ य कसी अवसरपर मनु य के ऊपर द ा का योग नह क ँ गा ।। २६ ।। ता न द ा न मेऽ ा ण य छ वबुधा धप । लोकां ा जतान् प ा लभेयं सुरपु व ।। २७ ।। ‘दे वराज! सुर े ! आप मुझे वे द अ दान कर। अ व ा सीखनेके प ात् म उ ह अ के ारा जीते ए लोक पर अ धकार ा त करना चाहता ँ’ ।। २७ ।। इ उवाच परी ाथ मयैतत् ते वा यमु ं धनंजय । ममा मज य वचनं सूपप मदं तव ।। २८ ।। इ बोले—धनंजय! मने तु हारी परी ा लेनेके लये उपयु बात कही थी। तुमने जो अ व ाके त अ य त उ सुकता कट क है, वह तु हारे जैसे मेरे पु के अनु प ही है ।। २८ ।। श मे भवनं ग वा सवा य ा ण भारत । वायोर नेवसु योऽ प व णात् सम द्गणात् ।। २९ ।। सा यं पैतामहं चैव ग धव रगर साम् । वै णवा न च सवा ण नैऋता न तथैव च ।। ३० ।। मद्गता न च जानी ह सवा ा ण कु ह। एवमु वा तु मां श त ैवा तरधीयत ।। ३१ ।। भारत! तुम मेरे भवनम चलकर स पूण अ क श ा ा त करो। कु े ! वायु, अ न, वसु, व ण, म द्गण, सा यगण, ा, ग धवगण, नाग, रा स, व णु तथा नऋ तके और वयं मेरे भी स पूण अ का ान ा त करो, मुझसे ऐसा कहकर इ वह अ तधान हो गये ।। अथाप यं ह रयुजं रथमै मुप थतम् । द ं मायामयं पु यं य ं मात लना नृप ।। ३२ ।। तदन तर थोड़ी ही दे रम मुझे हरे रंगके घोड़ से जुता आ दे वराज इ का रथ वहाँ उप थत दखायी दया। राजन्! वह द मायामय प व रथ मात लके ारा नय त था ।। ३२ ।। ो





लोकपालेषु यातेषु मामुवाचाथ मात लः । ु म छतश वां दे वराजो महा ुते ।। ३३ ।। जब सभी लोकपाल चले गये, तब मात लने मुझसे कहा—‘महातेज वी वीर! दे वराज इ तुमसे मलना चाहते ह ।। ३३ ।। सं स य व महाबाहो कु कायमन तरम् । प य पु यकृताँ लोकान् सशरीरो दवं ज ।। ३४ ।। ‘महाबाहो! तुम उनसे मलकर कृताथ होओ और अब आव यक काय करो। इसी शरीरसे दे वलोकम चलो तथा पु या मा पु ष के लोक का दशन करो ।। ३४ ।। दे वराजः सह ा वां द त भारत । इ यु ोऽहं मात लना ग रमाम य शै शरम् ।। ३५ ।। द णमुपावृ य समारोहं रथो मम् । ‘भरतन दन! सह ने वाले दे वराज इ तु ह दे खना चाहते ह।’ मात लके ऐसा कहनेपर म हमालयसे आ ा ले रथक प र मा करके उस े रथम सवार आ ।। ३५ ।।

चोदयामास स हयान् मनोमा तरंहसः ।। ३६ ।। मात लहयत व ो यथावद् भू रद णः । मात ल अ संचालनक कलाके मम थे। सार थके कायम अ य त कुशल थे। उ ह ने मन तथा वायुके समान वेगशाली अ को यथो चत री तसे आगे बढ़ाया ।। ३६ ।। ै े

अवै त च मे व ं थत याथ स सार थः ।। ३७ ।। तथा ा ते रथे राजन् व मत ेदम वीत् । राजन्! उस समय दे वसार थ मात लने आकाशम च कर लगाते ए रथपर थरतापूवक बैठे ए मेरे मुखक ओर पात कया और आ यच कत होकर कहा — ।। ३७ ।। अ य त मदं व व च ं तभा त मे ।। ३८ ।। यदा थतो रथं द ं पदा च लतः पदम् । ‘भरत े ! आज मुझे यह बड़ी व च और अ त बात दखायी दे रही है क इस द रथपर बैठकर तुम अपने थानसे त नक भी हल-डु ल नह रहे हो ।। ३८ ।। दे वराजोऽ प ह मया न यम ोपल तः ।। ३९ ।। वचलन् थमो पाते हयानां भरतषभ । वं पुनः थत एवा रथे ा ते कु ह ।। ४० ।। ‘कु कुलभूषण भरत े ! जब घोड़े पहली बार उड़ान भरते ह’ उस समय मने सदा यह दे खा है क दे वराज इ भी वच लत ए बना नह रह पाते, परंतु तुम च कर काटते ए रथपर भी थरभावसे बैठे हो ।। ३९-४० ।। अ तश मदं सव तवे त तभा त मे । इ यु वाऽऽकाशमा व य मात ल वबुधालयान् ।। ४१ ।। दशयामास मे राजन् वमाना न च भारत । स रथो ह र भयु ो वमाच मे ततः ।। ४२ ।। ‘कु े ! तु हारी ये सब बात मुझे इ से भी बढ़कर तीत हो रही ह।’ भरतकुलभूषण नरेश! ऐसा कहकर मात लने अ त र लोकम व होकर मुझे दे वता के घर और वमान का दशन कराया, फर हरे रंगके घोड़ से जुता आ वह रथ वहाँसे भी ऊपरक ओर बढ़ चला ।। ४१-४२ ।। ऋषयो दे वता ैव पूजय त नरो म । ततः कामगमाँ लोकानप यं वै सुर षणाम् ।। ४३ ।। नर े ! ऋ ष और दे वता भी उस रथका समादर करते थे। तदन तर मने दे व षय के अनेक समुदाय का दशन कया, जो अपनी इ छाके अनुसार सव जानेक श रखते ह ।। ४३ ।। ग धवा सरसां चैव भावम मतौजसाम् । न दनाद न दे वानां वना युपवना न च ।। ४४ ।। दशयामास मे शी ं मात लः श सार थः । ततः श य भवनमप यममरावतीम् ।। ४५ ।। द ैः कामफलैवृ ै र नै समलङ् कृताम् । न त सूय तप त न शीतो णे न च लमः ।। ४६ ।। े











अ मत तेज वी ग धव और अ सरा का भाव भी मुझे य दखायी दया। फर इ सार थ मात लने मुझे शी ही दे वता के न दन आ द वन और उपवन दखाये। त प ात् मने अमरावतीपुरी तथा इ भवनका दशन कया। वह पुरी इ छानुसार फल दे नेवाले द वृ तथा र न से सुशो भत थी। वहाँ सूयका ताप नह होता, सद या गम का क नह रहता और न कसी-को थकावट ही होती है ।। ४४—४६ ।। न बाधते त रज त ा त न जरा नृप । न त शोको दै यं वा दौब यं चोपल यते ।। ४७ ।। नरे र! वहाँ रजोगुणज नत वकार नह सताते, बुढ़ापा नह आता; शोक, द नता और बलताका दशन नह होता ।। ४७ ।। दवौकसां महाराज न ला नर रमदन । न ोधलोभौ त ा तां सुराद नां वशा पते ।। ४८ ।। महाराज! श ुसूदन! वगवासी दे वता को कभी ला न नह होती। उनम ोध और लोभका भी अभाव होता है ।। ४८ ।। न यतु ा ते राजन् ा णनः सुरवे म न । न यपु पफला त पादपा ह रत छदाः ।। ४९ ।। राजन्! वगम नवास करनेवाले ाणी सदा संतु रहते ह। वहाँके वृ सवदा फलफूलसे स प और हरे प से सुशो भत रहते ह ।। ४९ ।। पु क र य व वधाः पसौग धकायुताः । शीत त ववौ वायुः सुग धी जीवनः शु चः ।। ५० ।। वहाँ सह सौग धक कमल से अलंकृत नाना कारके सरोवर शोभा पाते ह और शीतल, प व , सुग धत एवं नवजीवनदायक वायु सदा बहती रहती है ।। ५० ।। सवर न व च ा च भू मः पु प वभू षता । मृग जा बहवो चरा मधुर वराः ।। ५१ ।। वमानगा मन ा य ते बहवोऽ बरे । ततोऽप यं वसून् ान् सा यां सम द्गणान् ।। ५२ ।। आ द यान नौ चैव तान् सवान् यपूजयम् । ते मां वीयण यशसा तेजसा च बलेन च ।। ५३ ।। अ ै ा य वजान त सं ामे वजयेन च । वहाँक भू म सब कारके र न से व च शोभा धारण करती है और (सब ओर बखरे ए) पु प उस भू मके लये आभूषणका काम दे ते ह। वगलोकम ब त-से मनोहर पशु और प ी दे खे जाते ह, जनक बोली बड़ी मधुर तीत होती है। वहाँ अनेक दे वता आकाशम वमान पर वचरते दखायी दे ते ह। तदन तर मुझे वसु, , सा य, म द्गण, आ द य और अ नीकुमार के दशन ए। मने उन सबके आगे म तक झुकाकर उनका स मान कया। उन सबने मुझे परा मी, यश वी, तेज वी, बलवान्, अ वे ा और सं ाम- वजयी होनेका आशीवाद दया ।। ५१—५३ ।। े

व य तां पुर द ां दे वग धवपू जताम् ।। ५४ ।। दे वराजं सह ा मुपा त ं कृता लः । ददावधासनं ीतः श ो मे ददतां वरः ।। ५५ ।। त प ात् दे व-ग धवपू जत द अमरावतीपुरीम वेश करके मने हाथ जोड़कर सह ने वाले दे वराज इ को णाम कया। दाता म े दे वराज इ ने स होकर मुझे अपने आधे सहासनपर थान दया ।। ५४-५५ ।। ब माना च गा ा ण प पश मम वासवः । त ाहं दे वग धवः स हतो भू रद ण ।। ५६ ।। अ ाथमवसं वग श ाणोऽ ा ण भारत । व ावसो वै पु सेनोऽभवत् सखा ।। ५७ ।। इतना ही नह , उ ह ने बड़े आदरके साथ मेरे अंग पर हाथ फेरा। य म पूरी द णा दे नेवाले भरत े ! उस वगलोकम दे वता और ग धव के साथ अ व ाक ा तके लये रहने लगा और त दन अ का अ यास करने लगा। उस समय ग धवराज व ावसुके पु च सेनके साथ मेरी मै ी हो गयी थी ।। ५६-५७ ।। स च गा धवमखलं ाहयामास मां नृप । त ाहमवसं राजन् गृहीता ः सुपू जतः ।। ५८ ।। सुखं श य भवने सवकामसम वतः । शृ वन् वै गीतश दं च तूयश दं च पु कलम् । प यं ा सरसः े ा नृ य तीभरतषभ ।। ५९ ।। नरे र! उ ह ने मुझे स पूण गा धववेद (संगीत- व ा)-का अ ययन कराया। राजन्! वहाँ इ भवनम अ -श क श ा हण करते ए म बड़े स मान और सुखसे रहने लगा। वहाँ सभी मनोवां छत पदाथ मेरे लये सुलभ थे। भरत े ! म वहाँ कभी मनोहर गीत सुनता, कभी पया त पसे द वा का आन द लेता और कभी-कभी े अ सरा का नृ य भी दे ख लेता था ।। तत् सवमनव ाय तयं व ाय भारत । अ यथ तगृ ाहम े वेव व थतः ।। ६० ।। भारत! इन सम त सुख-सु वधा क अवहेलना न करते ए उ ह वीकार करके भी म इनके असली पको जानकर—इनक नःसारताको भलीभाँ त समझकर अ धकतर अ के अ यासम ही संल न रहता था। (गीत आ दम कभी आस नह आ) ।। ६० ।। ततोऽतु यत् सह ा तेन कामेन मे वभुः । एवं मे वसतो राज ेष कालो यगाद् द व ।। ६१ ।। अ व ाक ओर मेरी ऐसी अ भ च होनेसे सहसने धारी भगवान् इ मुझपर ब त संतु रहते थे। राजन्! इस कार वगम रहकर मेरा यह समय सुखपूवक बीतने लगा ।। ६१ ।। कृता म त व तमथ मां ह रवाहनः । सं पृ य मू न पा ण या मदं वचनम वीत् ।। ६२ ।। ी े ी े ो े ी ो

धीरे-धीरे म अ व ाम नपुण हो गया। मेरी व तापर सबको अ धक व ास था। एक दन भगवान् इ ने अपने दोन हाथ से मेरे म तकका पश करते ए मुझसे इस कार कहा— ।। ६२ ।। न वम युधा जेतुं श यः सुरगणैर प । क पुनमानुषे लोके मानुषैरकृता म भः ।। ६३ ।। ‘अजुन! अब तु ह यु म दे वता भी परा त नह कर सकते। फर म यलोकम रहनेवाले बेचारे असंयमी मनु य क तो बात ही या है? ।। ६३ ।। अ मेयोऽ धृ य यु े व तम तथा । अजेय वं ह सं ामे सवर प सुरासुरैः । अथा वीत् पुनदवः स तनू हः ।। ६४ ।। ‘तुम यु म अ मेय, अजेय और अनुपम हो। सं ामभू मम स पूण दे वता और असुर भी तु ह परा जत नह कर सकते।’ इतना कहते-कहते दे वराजके शरीरम रोमांच हो आया। तदन तर वे फर बोले— ।। ६४ ।। अ यु े समो वीर न ते क द् भ व य त । अ म ः सदा द ः स यवाद जते यः ।। ६५ ।। य ा व चा स शूर ा स कु ह। अ ा ण समवा ता न वया दश च प त च ।। ६६ ।। प च भ व ध भः पाथ व ते न वया समः । योगमुपसंहारमावृ च धनंजय ।। ६७ ।। ाय ं च वे थ वं तीघातं च सवशः । ततो गुवथकालोऽयं समु प ः परंतप ।। ६८ ।। ‘वीर! अ -यु म तु हारा सामना कर सके, ऐसा कोई यो ा नह होगा। कु े ! तुम सवदा सावधान रहते हो, येक कायम कुशल हो, जते य, स यवाद और ा णभ हो; तु ह अ -श का ान है और तुम अ त शौयसे स प हो। पाथ! तुमने पाँच व धय स हत पं ह अ ा त कये ह, अतः इस भूतलपर तु हारे-जैसा शूर १ और सरा कोई नह है। परंतप धनंजय! योग, उपसंहार, आवृ , ाय तघात२ —ये अ क पाँच व धयाँ ह; तुम इन सबका पूण ान ा त कर चुके हो। अतः अब गु द णा दे नेका समय आ गया है ।। ६५—६८ ।। तजानी व तं कतु ततो वे या यहं परम् । ततोऽहम ुवं राजन् दे वराज मदं वचः ।। ६९ ।। वष ं य मया कतु कृतमेव नबोध तत् । ततो माम वीद् राजन् हसन् बलवृ हा ।। ७० ।। ‘तुम उसे दे नेक त ा करो, तब म अपने महान् कायको तु ह बताऊँगा।’ राजन्! यह सुनकर मने दे वराजसे कहा—‘भगवन्! जो कुछ म कर सकता ँ, उसे कया आ ही

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सम झये।’ नरे र! तब बल और वृ ासुरके श ु इ ने मुझसे हँसते ए कहा — ।। ६९-७० ।। ना वष ं तवा ा त षु लोकेषु कचन । नवातकवचा नाम दानवा मम श वः ।। ७१ ।। ‘वीरवर! तीन लोक म ऐसा कोई काय नह है, जो तु हारे लये असा य हो। नवातकवच नामक दानव मेरे श ु ह ।। ७१ ।। समु कु मा य ग तवस युत । त ः को ः समा याता तु य पबल भाः ।। ७२ ।। तां त ज ह कौ तेय गुवथ ते भ व य त । ततो मात लसंयु ं मयूरसमरोम भः ।। ७३ ।। हयै पेतं ादा मे रथं द ं महा भम् । बब ध चैव मे मू न करीट मदमु मम् ।। ७४ ।। ‘वे समु के भीतर गम थानका आ य लेकर रहते ह। उनक सं या तीन करोड़ बतायी जाती है और उन सभीके प, बल और तेज एक समान ह। कु तीन दन! तुम उन दानव का संहार कर डालो। इतने से ही तु हारी गु -द णा पूरी हो जायगी।’ ऐसा कहकर इ ने मुझे एक अ य त का तमान् द रथ दान कया, जसे मात ल जोतकर लाये थे। उसम मयूर के समान रोमवाले घोड़े जुते ए थे। रथ आ जानेपर दे वराजने यह उ म करीट मेरे म तकपर बाँध दया ।। ७२—७४ ।। व पस शं चैव ादाद वभूषणम् । अभे ं कवचं चेदं पश पव मम् ।। ७५ ।। फर उ ह ने मेरे व पके अनु प येक अंगम आभूषण पहना दये। इसके बाद यह अभे उ म कवच धारण कराया, जसका पश तथा प मनोहर है ।। अजरां या ममां चा प गा डीवे समयोजयत् । ततः ायामहं तेन य दनेन वराजता ।। ७६ ।। येनाजयद् दे वप तब ल वैरोच न पुरा । ततो दे वाः सव एव तेन घोषेण बो धताः ।। ७७ ।। म वाना दे वराजं मां समाज मु वशा पते । ् वा च मामपृ छ त क क र य स फा गुन ।। ७८ ।। त प ात् मेरे गा डीव धनुषम उ ह ने यह अटू ट य चा जोड़ द । इस कार यु क साम य से स प होकर उस तेज वी रथके ारा म सं ामके लये थत आ, जसपर आ ढ़ होकर पूवकालम दे वराजने वरोचनकुमार ब लको परा त कया था। महाराज! तब उस रथक घघराहटसे सजग हो सब दे वता मुझे दे वराज समझकर मेरे पास आये और मुझे दे खकर पूछने लगे—‘अजुन! तुम या करनेक तैयारीम हो?’ ।। ७६—७८ ।।

तान ुवं यथाभूत मदं कता म संयुगे । नवातकवचानां तु थतं मां वधै षणम् ।। ७९ ।। नबोधत महाभागाः शवं चाशा त मेऽनघाः । ततो वा भः श ता भ दशाः पृ थवीपते । तु ु बुमा स ा ते यथा दे वं पुरंदरम् ।। ८० ।। तब मने उनसे सब बात बताकर कहा—‘म यु म यही करने जा रहा ँ। आपको यह ात होना चा हये क म नवातकवच नामक दानव के वधक इ छासे थत आ ँ। अतः न पाप एवं महाभाग दे वताओ! आप मुझे ऐसा आशीवाद द, जससे मेरा मंगल हो।’ राजन्! तब वे दे वतालोग स हो दे वराज इ क भाँ त े एवं मधुर वाणी ारा मेरी तु त करते ए बोले— ।। ७९-८० ।। रथेनानेन मघवा जतवान् श बरं यु ध । नमुच बलवृ ौ च ादनरकाव प ।। ८१ ।। इस रथके ारा इ ने यु म श बरासुरपर वजय पायी है। नमु च, बल, वृ , ाद और नरकासुरको परा त कया है ।। ८१ ।। ब न च सह ा ण यता यबुदा य प । रथेनानेन दै यानां जतवान् मघवा यु ध ।। ८२ ।। ‘इनके सवा अ य ब त-से दै य को भी इस रथके ारा परा जत कया है, जनक सं या सह , लाख और अरब तक पुहँच गयी है ।। ८२ ।। े ौ े े

वम यनेन कौ तेय नवातकवचान् रणे । वजेता यु ध व य पुरेव मघवा वशी ।। ८३ ।। ‘कु तीन दन! जैसे पूवकालम सबको वशम करनेवाले इ ने असुर पर वजय पायी थी, उसी कार तुम भी इस रथके ारा यु म परा म करके नवातकवच को परा त करोगे ।। ८३ ।। अयं च शंख वरो येन जेता स दानवान् । अनेन व जता लोकाः श े णा प महा मना ।। ८४ ।। ‘यह े शंख है, जसे बजानेसे तु ह दानव पर वजय ा त हो सकती है। महामना इ ने भी इसके ारा स पूण लोक पर वजय पायी है’ ।। ८४ ।। द यमानं दे वै तं दे वद ं जलो वम् । यगृ ं जयायैनं तूयमान तदामरैः ।। ८५ ।। स शङ् खी कवची बाणी गृहीतशरासनः । दानवालयम यु ं यातोऽ म युयु सया ।। ८६ ।। वही यह शंख है, जसे मने अपनी वजयके लये हण कया था। दे वता ने उसे दया था, इस लये इसका नाम दे वद है। शंख लेकर दे वता के मुखसे अपनी तु त सुनता आ म कवच, बाण तथा धनुषसे स जत हो यु क इ छासे अ य त भयंकर दानव के नगरक ओर चल दया ।। ८५-८६ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण नवातकवचयु पव यजुनवा ये अ ष धकशततमोऽ यायः ।। १६८ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत अजुनवा य वषयक एक सौ अड़सठवाँ अ याय पूरा आ ।। १६८ ।।

१. नद ष ाणीका वध हो जाय, तो उसे पुनः संजी वत करनेक व ाको ाय कहते ह। २. श ुके अ से पराभवको ा त ए अपने अ को पुनः श शाली बनाना तघात कहलाता है।

एकोनस त य धकशततमोऽ यायः अजुनका पातालम वेश और नवातकवच के साथ यु ार भ अजुन उवाच ततोऽहं तूयमान तु त त मह ष भः । अप यमुदध भीममपां प तमथा यम् ।। १ ।। फेनव यः क णा संहता समु थताः । ऊमय ा य ते व ग त इव पवताः ।। २ ।। अजुन बोले—राजन्! तदन तर मागम जहाँ-तहाँ मह षय के मुखसे अपनी तु त सुनते ए मने जलके वामी समु के पास प ँचकर उसका नरी ण कया। वह दे खनेम अ य त भयंकर था। उसका पानी कभी घटता-बढ़ता नह है। उसम फेनसे मली ई पहाड़ के समान ऊँची-ऊँची लहर उठकर नृ य करती-सी दखायी दे रही थ । वे कभी इधर-उधर फैल जाती और कभी आपसम टकरा जाती थ ।। १-२ ।। नावः सह श त र नपूणाः सम ततः । नभसीव वमाना न वचर यो वरे जरे । त म लाः क छपा तथा त म त म लाः ।। ३ ।। मकरा ा य ते जले म ना इवा यः । शङ् खानां च सह ा ण म ना य सु सम ततः ।। ४ ।। वहाँ सब ओर र न से भरी ई हजार नाव चल रही थ , जो आकाशम वचरते ए वमान क -सी शोभा पाती थ तथा तम गल १, त म तम गल २, कछु ए और मगर पानीम डू बे ए पवत के समान गोचर होते थे। सह शंख सब ओर जलम नम न थे ।। ३-४ ।। य ते म यथा रा ौ तारा त व संवृताः । तथा सह श त र नसङ् घाः लव युत ।। ५ ।। जैसे रातम झीने बादल के आवरणसे सह तारे चमकते दखायी दे ते ह, उसी कार समु के जलम थत हजार र नसमूह तैरते ए-से तीत हो रहे थे ।। ५ ।। वायु घूणते भीम तद त मवाभवत् । तमुद य महावेगं सवा भो न धमु मम् ।। ६ ।। अप यं दानवाक ण तद् दै यपुरम तकात् । त ैव मात ल तूण नप य पृ थवीतले ।। ७ ।। रथं तं तु समा य३ ा वद् रथयोग वत् । ासयन् रथघोषेण तत् पुरं समुपा वत् ।। ८ ।। औ

















और क तो बात ही या है, वहाँ भयानक वायु भी पथ- ा तक भाँ त भटकने लगती है। वायुका वह च कर काटना अ त-सा तीत हो रहा था। इस कार अ य त वेगशाली जलरा श महासागरको दे खकर उसके पास ही मने दानव से भरा आ वह दै यनगर भी दे खा। रथ-संचालनम कुशल सार थ मात ल तुरंत वहाँ प ँचकर पातालम उतरे तथा रथपर सावधानीसे बैठकर आगे बढ़े । उ ह ने रथक घघराहटसे सबको भयभीत करते ए उस दै यपुरक ओर धावा कया ।। ६-८ ।। रथघोषं तु तं ु वा तन य नो रवा बरे । म वाना दे वराजं मामा व ना दानवाभवन् ।। ९ ।। आकाशम होनेवाली मेघ-गजनाके समान उस रथका श द सुनकर दानवलोग मुझे दे वराज इ समझकर भयसे अ य त ाकुल हो उठे ।। ९ ।। सव स ा तमनसः शरचापधराः थताः । तथा सशूलपरशुगदामुसलपाणयः ।। १० ।। सभी मन-ही-मन घबरा गये। सभी अपने हाथ म धनुष-बाण, तलवार, शूल, फरसा, गदा और मुसल आ द अ -श लेकर खड़े हो गये ।। १० ।। ततो ारा ण पदधुदानवा तचेतसः । सं वधाय पुरे र ां न म क न यते ।। ११ ।। दानव के मनम आतंक छा गया था। इस लये उ ह ने नगरक र ाका ब ध करके सारे दरवाजे बंद कर लये। नगरके बाहर कोई भी दखायी नह दे ता था ।। ११ ।। ततः शङ् खमुपादाय दे वद ं महा वनम् । परमां मुदमा य ाधमं तं शनैरहम् ।। १२ ।। तब मने बड़ी भयंकर व न करनेवाले दे वद नामक शंखको हाथम लेकर अ य त स हो धीरे-धीरे उसे बजाया ।। १२ ।। स तु श दो दवं त वा तश दमजीजनत् । व ेसु न ल यु भूता न सुमहा य प ।। १३ ।। वह शंखनाद वगलोकसे टकराकर त व न उ प करने लगा। उसक आवाज सुनकर बड़े-बड़े ाणी भी भयभीत हो इधर-उधर छप गये ।। १३ ।। ततो नवातकवचाः सव एव वलंकृताः । दं शता व वधै ाणै व च ायुधपाणयः ।। १४ ।। आयसै महाशूलैगदा भमुसलैर प । प शैः करवालै रथच ै भारत ।। १५ ।। शत नी भभुशु डी भः खड् गै ैः वलंकृतैः । गृहीतै दतेः पु ाः ा रासन् सह शः ।। १६ ।। भारत! तदन तर नवातकवचनामक सभी दै य आभूषण से वभू षत हो भाँ तभाँ तके कवच धारण कये, हाथ म व च आयुध लये, लोहेके बने ए बड़े-बड़े शूल, गदा, मुसल, प श, करवाल, रथ-च , शत नी (तोप), भुशु ड (बं क) तथा र नज टत व च खड् ग आ द लेकर सह क सं याम नगरसे बाहर आये ।। १४—१६ ।। ो ो

ततो वचाय ब शो रथमागषु तान् हयान् । ाचोदयत् समे दे शो मात लभरतषभ ।। १७ ।। तेन तेषां णु ानामाशु वा छ गा मनाम् । ना वप यं तदा क चत् त मेऽ त मवाभवत् ।। १८ ।। भरत े ! उस समय मात लने ब त सोच- वचारकर समतल दे शम रथ जानेयो य माग पर अपने उन घोड़ को हाँका। उसके हाँकनेपर उन शी गामी अ क चाल इतनी तेज हो गयी क मुझे उस समय कुछ भी दखायी नह दे ता था। यह एक अ त बात थी ।। तत ते दानवा त वा द ा ण सह शः । वकृत वर पा ण भृशं सवा यनादयन् ।। १९ ।। तदन तर उन दानव ने वहाँ भीषण वर और वकराल आकृ तवाले व भ कारके सह बाजे जोर-जोरसे बजाने आर भ कये ।। १९ ।। तेन श दे न सहसा समु े पवतोपमाः । आ लव त गतैः स वैम याः शतसह शः ।। २० ।। वा क उस तुमुल- व नसे सहसा समु के लाख बड़े-बड़े पवताकार म य मर गये और उनक लाश पानीके ऊपर तैरने लग ।। २० ।। ततो वेगेन महता दानवा मामुपा वन् । वमु च तः शतान् बाणान् शतशोऽथ सह शः ।। २१ ।। त प ात् उन सब दानव ने सैकड़ और हजार तीखे बाण क वषा करते ए बड़े वेगसे मुझपर आ मण कया ।। २१ ।। स स हार तुमुल तेषां च मम भारत । अवतत महाघोरो नवातकवचा तकः ।। २२ ।। भारत! तब उन दानव का और मेरा महाभयंकर तुमुल सं ाम आर भ हो गया, जो नवातकवच के लये वनाशकारी स आ ।। २२ ।। ततो दे वषय ैव तथा ये च महषयः । षय स ा समाज मुमहामृधे ।। २३ ।। ते वै मामनु पा भमधुरा भजयै षणः । अ तुवन् मुनयो वा भयथे ं तारकामये ।। २४ ।। उस समय ब त-से दे व ष तथा अ य मह ष एवं ष और स गण उस महायु म (दे खनेके लये) आये। वे सब-के-सब मेरी वजय चाहते थे। अतः उ ह ने जैसे तारकामय सं ामके अवसरपर इ क तु त क थी, उसी कार अनुकूल एवं मधुर वचन ारा मेरा भी तवन कया ।। २३-२४ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण नवातकवचयु पव ण यु ार भे एकोनस त य धकशततमोऽ यायः ।। १६९ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत नवातकवचयु पवम यु ार भ वषयक एक सौ उनह रवाँ अ याय पूरा आ ।। १६९ ।।

१. एक वशेष कारके म यका नाम ‘ त म’ है, जो उसे नगल जाता है, उस महाम यको ‘ तम गल’ कहते ह। २. जो तमगलको भी नगल जाता है, उस महामहाम यका नाम ‘ त म तम गल’ है। ३. नीलक ठ ट काम लखा है क पृ वीम उतरकर न न थलम गये ए रथके च केको ढ़तापूवक पकड़कर ऊँचा कया।

स त य धकशततमोऽ यायः अजुन और नवातकवच का यु अजुन उवाच ततो नवातकवचाः सव वेगेन भारत । अ य वन् मां स हताः गृहीतायुधा रणे ।। १ ।। अजुन बोले—भारत! तदन तर सारे नवातकवच संग ठत हो हाथ म अ -श लये यु भू मम वेगपूवक मेरे ऊपर टू ट पड़े ।। १ ।। आ छा रथप थानमु ोश तो महारथाः । आवृ य सवत ते मां शरवषरवा करन् ।। २ ।। ततोऽपरे महावीयाः शूलप शपाणयः । शूला न च भुशु डी मुमुचुदानवा म य ।। ३ ।। उन महारथी दानव ने मेरे रथका माग रोककर भीषण गजना करते ए मुझे सब ओरसे घेर लया और मुझपर बाण क वषा आर भ कर द । फर कुछ अ य महापरा मी दानव शूल और प श आ द हाथ म लये मेरे सामने आये और मुझपर शूल तथा भुशु डय का हार करने लगे ।। २-३ ।। त छू लवष सुमहद् गदाश समाकुलम् । अ नशं सृ यमानं तैरपत म थोप र ।। ४ ।। अ ये माम यधाव त नवातकवचा यु ध । शतश ायुधा रौ ाः काल पाः हा रणः ।। ५ ।। दानव ारा क गयी वह शूल क बड़ी भारी वषा नर तर मेरे रथपर होने लगी। उसके साथ ही गदा और श य का भी हार हो रहा था। कुछ सरे नवातकवच हाथ म तीखे अ -श लये उस यु के मैदानम मेरी और दौड़े। वे हार करनेम कुशल थे। उनक आकृ त बड़ी भयंकर थी और दे खनेम वे काल प जान पड़ते थे ।। ४-५ ।। तानहं व वधैबाणैवगव र ज गैः । गा डीवमु ै र य नमेकैकं दश भमृधे ।। ६ ।। तब मने उनमसे एक-एकको यु म गा डीव धनुषसे छू टे ए सीधे जानेवाले व वध कारके दस-दस वेगवान् वाण ारा ब ध डाला ।। ६ ।। ते कृता वमुखाः सव म यु ै ः शला शतैः । ततो मात लना तूण हया ते स चो दताः ।। ७ ।। मेरे छोड़े ए बाण प थरपर तेज कये ए थे। उनक मार खाकर सभी दानव यु भू मसे भाग चले। तब मात ल उस रथके घोड़ को तुरंत ही ती वेगसे हाँका ।। ७ ।। मागान् ब वधां त वचे वातरंहसः । सुसंयता मात लना ामन त दतेः सुतान् ।। ८ ।। े े













सार थसे े रत होकर वे अ नाना कारक चाल दखाते ए वायुके समान वेगसे चलने लगे। मात लने उ ह अ छ तरह काबूम कर रखा था। उन सबने वहाँ द तके पु को र द डाला ।। ८ ।। शतं शता ते हरय त मन् यु ा महारथे । शा ता मात लना य ा चर पका इव ।। ९ ।। अजुनके उस वशाल रथम दस हजार घोड़े जुते ए थे, तो भी मात लने उ ह इस कार वशम कर रखा था क वे अ पसं यक अ क भाँ त शा तभावसे वचरते थे ।। ९ ।। तेषां चरणपातेन रथने म वनेन च । मम बाण नपातै हता ते शतशोऽसुराः ।। १० ।। उन घोड़ के पैर क मार पड़नेसे, रथके प हयेक घघराहट होनेसे तथा मेरे बाण क चोट खानेसे सैकड़ दै य मर गये ।। १० ।। गतासव तथैवा ये गृहीतशरासनाः । हतसारथय त कृ य त तुरंगमैः ।। ११ ।। इसी कार वहाँ सरे ब त-से असुर हाथम धनुष-बाण लये ाणर हत हो गये थे और उनके सार थ भी मारे गये थे, उस दशाम सार थशू य घोड़े उनके नज व शरीरको ख चे लये जाते थे ।। ११ ।। ते दशो व दशः सव त य हा रणः । अ य नन् व वधैः श ै ततो मे थतं मनः ।। १२ ।। तब वे सम त दानव सारी दशा और व दशा को रोककर भाँ त-भाँ तके अ शा ारा मुझपर घातक हार करने लगे। इससे मेरे मनम बड़ी था ई ।। १२ ।। ततोऽहं मातलेव यमप यं परमा तम् । अ ां तथा वेगवतो यदय नादधारयत् ।। १३ ।। उस समय मने मात लक अ य त अ त श दे खी। उ ह ने वैसे वेगशाली अ को बना कसी यासके ही काबूम कर लया ।। १३ ।। ततोऽहं लघु भ ैर ै तानसुरान् रणे । च छे द सायुधान् राजन् शतशोऽथ सह शः ।। १४ ।। एवं मे चरत त सवय नेन श ुहन् । ी तमानभवद् वीरो मात लः श सार थः ।। १५ ।। राजन्! तब मने उस रणभू मने अ -श धारी सैकड़ तथा सह असुर को व च एवं शी गामी बाण ारा मार गराया। श ुदमन नरेश! इस कार पूण य नपूवक यु म वचरते ए मेरे ऊपर इ सार थ वीरवर मात ल बड़े स ए ।। १४-१५ ।। ब यमाना तत तै तु हयै तेन रथेन च । अगमन् यं के च यवत त तथा परे ।। १६ ।। मेरे उन घोड़ तथा उस द रथसे कुचल जानेके कारण भी कतने ही दानव मारे गये और ब त-से यु छोड़कर भाग गये ।। १६ ।। े

पधमाना इवा मा भ नवातकवचा रणे । शरवषः शरात मां मह ः यवारयन् ।। १७ ।। ततोऽहं लघु भ ै ा प रम तैः । धमं सायकैराशु शतशोऽथ सह शः ।। १८ ।। नवातकवच ने सं ामम हमलोग से होड़-सी लगा रखी थी। म बाण के आघातसे पी ड़त था, तो भी उ ह ने बड़ी भारी बाणवषा करके मेरी ग तको रोकने-क चे ा क । तब मने अ त और शी गामी बाण को ा से अ भम त करके चलाया और उनके ारा शी ही सैकड़ तथा हजार दानव का संहार करने लगा ।। १७-१८ ।। ततः स पीड् यना ते ोधा व ा महारथाः । अपीडयन् मां स हताः शरशूला सवृ भः ।। १९ ।। तदन तर मेरे बाण से पी ड़त होकर वे महारथी दै य ोधसे आग-बबूला हो उठे और एक साथ संग ठत हो खड् ग, शूल तथा बाण क वषा ारा मुझे घायल करने लगे ।। १९ ।। ततोऽहम मा त ं परमं त मतैजसम् । द यतं दे वराज य माधवं नाम भारत ।। २० ।। भारत! यह दे ख मने दे वराज इ के परम य माधव नामक च ड तेज वी अ का आ य लया ।। २० ।। ततः खड् गां शूलां तोमरां सह शः । अ वीयण शतधा तैमु ानहम छदम् ।। २१ ।। तब उस अ के भावसे मने दै य के चलाये ए सह खड् ग, शूल और तोमर के सौ-सौ टु कड़े कर डाले ।। २१ ।। छ वा हरणा येषां तत तान प सवशः । य व यमहं रोषाद् दश भदश भः शरैः ।। २२ ।। त प ात् दानव के सम त अ -श का उ छे द करके मने रोषवश उन सबको भी दस-दस बाण से घायल करके बदला चुकाया ।। २२ ।। गा डीवा तदा सं ये यथा मरपङ् यः । न पत त महाबाणा त मात लरपूजयत् ।। २३ ।। उस समय मेरे गा डीव धनुषसे बड़े-बड़े बाण उस यु -भू मम इस कार छू टते थे, मानो वृ से झुंड-के-झुंड भ रे उड़ रहे ह । मात लने मेरे इस कायक बड़ी शंसा क ।। २३ ।। तेषाम प तु बाणा ते त मात लरपूजयत् । अवा करन् मां बलवत् तानहं धमं शरैः ।। २४ ।। तदन तर उन दानव के भी बाण मेरे ऊपर जोर-जोरसे गरने लगे। मात लने उनक उस बाण-वषाक भी सराहना क । फर मने अपने बाण ारा श ु के उन सब बाण को छ भ कर डाला ।। २४ ।। व यमाना तत ते तु नवातकवचाः पुनः । शरवषमह मा सम तात् पयवारयन् ।। २५ ।। ेऔ े े ी े ी े

इस कार मार खाते और मरते रहनेपर भी नवातकवच ने पुनः भारी बाण-वषाके ारा मुझे सब ओरसे घेर लया ।। २५ ।। शरवेगा ह याहम ैर वघा त भः । वल ः परमैः शी ै तान व यं सह शः ।। २६ ।। तब मने अ - वनाशक अ ारा उनक बाणवषाके वेगको शा त करके अ य त शी गामी एवं व लत बाण ारा सह द ै य को घायल कर दया ।। २६ ।। तेषां छ ा न गा ा ण वसृज त म शो णतम् । ावृषीवा भवृ ा न शृ ा यथ धराभृताम् ।। २७ ।। उनके कटे ए अंग उसी कार र क धारा बहाते थे, जैसे वषा-ऋतुम वृ के जलसे भीगे ए पवत के शखर (गे आ द धातु से म त) जलक धारा बहाते ह ।। २७ ।। इ ाश नसम पशवगव र ज गैः । मद्बाणैव यमाना ते समु नाः म दानवाः ।। २८ ।। मेरे बाण का पश इ के वक े समान था। वे बड़े वेगसे छू टते और सीधे जाकर श ुको अपना नशाना बनाते थे। उनक चोट खाकर वे सम त दानव भयसे ाकुल हो उठे ।। २८ ।। शतधा भ दे हा ते ीण हरणौजसः । ततो नवातकवचा मामयु य त मायया ।। २९ ।। उन दै य के शरीरके सौ-सौ टु कड़े हो गये थे। उनके अ -श कट गये और उ साह न हो गया था। ऐसी अव थाम नवातकवच ने मेरे साथ माया-यु आर भ कर दया ।। २९ ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण नवातकवचयु पव ण स त य धकशततमोऽ यायः ।। १७० ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत नवातकवचयु पवम एक सौ स रवाँ अ याय पूरा आ ।। १७० ।।

एकस त य धकशततमोऽ यायः दानव के मायामय यु का वणन अजुन उवाच ततोऽ मवष सुमहत् ा रासीत् सम ततः । नगमा ैः शलाख डै त मां ढमपीडयत् ।। १ ।। अजुन बोले—महाराज! तदन तर चार ओरसे प थर क बड़ी भारी वषा आर भ हो गयी। वृ के बराबर ऊँचे शलाख ड रणभू मम गरने लगे, इससे मुझे बड़ी पीड़ा ई ।। १ ।। तदहं व संकाशैमहे ा चो दतैः । अचूणयं वेगव ः शरजालैमहाहवे ।। २ ।। तब मने महे ा से अ भम त वतु य वेगवान् बाण ारा उस महासमरम गरनेवाले सम त शला-ख ड को चूर-चूर कर दया ।। २ ।। चू यमानेऽ मवष तु पावकः समजायत । त ा मचूणा यपतन् पावक करा इव ।। ३ ।। प थर क वषाके चूण होते ही सब ओर आग कट हो गयी। फर तो वहाँ आगक चनगा रय के समूहक भाँ त प थरका चूण पड़ने लगा ।। ३ ।। ततोऽ मवष वहते जलवष मह रम् । धारा भर मा ा भः ा रासी ममा तके ।। ४ ।। तदन तर मेरे बाण से वह प थर क वषा शा त होनेपर मह र जल-वृ आर भ हो गयी। मेरे पासही सप के* समान मोट जलधाराएँ गरने लग ।। ४ ।। नभसः युता धारा त मवीयाः सह शः । आवृ वन् सवतो ोम दश ोप दश तथा ।। ५ ।। आकाशसे च ड श शा लनी सह धाराएँ बरसने लग , ज ह ने न केवल आकाशको ही, अ पतु स पूण दशा और उप दशा को भी सब ओरसे ढक लया ।। ५ ।। धाराणां च नपातेन वायो व फू जतेन च । ग जतेन च दै यानां न ा ायत कचन ।। ६ ।। धारा क वषा, हवाके झकोर और दै य क गजनासे कुछ भी जान नह पड़ता था ।। ६ ।। धारा द व च स ब ा वसुधायां च सवशः । ामोहय त मां त नपत योऽ नशं भु व ।। ७ ।। वगसे लेकर पृ वीतक एक सू म आब -सी होकर पृ वीपर सब ओर जलक धाराएँ लगातार गर रही थ , ज ह ने वहाँ मुझे मोहम डाल दया था ।। ७ ।। ो





त ोप द म े ण द म ं वशोषणम् । द तं ा हणवं घोरमशु यत् तेन त जलम् ।। ८ ।। तब मने वहाँ दे वराज इ के ारा ा त ए द वशोषणा का योग कया, जो अ य त तेज वी और भयंकर था। उससे वषाका वह सारा जल सूख गया ।। ८ ।। हतेऽ मवष च मया जलवष च शो षते । मुमुचुदानवा मायाम नं वायुं च भारत ।। ९ ।। भारत! जब मने प थर क वषा शा त कर द और पानीक वषाको भी सोख लया, तब दानवलोग मुझपर मायामय अ न और वायुका योग करने लगे ।। ९ ।। ततोऽहम नं धमं स लला ेण सवशः । शैलेन च महा ेण वायोवगमधारयम् ।। १० ।। फर तो मने वा णा से वह सारी आग बुझा द और महान् शैला का योग करके मायामय वायुका वेग कु ठत कर दया ।। १० ।। त यां तहतायां ते दानवा यु मदाः । ाकुवन् व वधां मायां यौगप ेन भारत ।। ११ ।। भारत! उस मायाका नवारण हो जानेपर वे रणो म दानव एक ही समय अनेक कारक मायाका योग करने लगे ।। ११ ।। ततो वष ा रभूत् सुमह लोमहषणम् । अ ाणां घोर पाणाम नेवायो तथा मनाम् ।। १२ ।। फर तो भयानक अ क तथा अ न, वायु और प थर क बड़ी भारी वषा होने लगी जो र गटे खड़े कर दे नेवाली थी ।। १२ ।। सा तु मायामयी वृ ः पीडयामास मां यु ध । अथ घोरं तम ती ं ा रासीत् सम ततः ।। १३ ।। उस मायामयी वषाने यु म मुझे बड़ी पीड़ा द । तदन तर चार ओर महाभयानक अ धकार छा गया ।। १३ ।। तमसा संवृते लोके घोरेण प षेण च । हरयो वमुखा ासन् ा खल चा प मात लः ।। १४ ।। घोर एवं ःसह त मररा शसे स पूण लोक के आ छा दत हो जानेपर मेरे रथके घोड़े यु से वमुख हो गये और मात ल भी लड़खड़ाने लगे ।। १४ ।। ह ता र मय ा य तोदः ापतद् भु व । असकृ चाह मां भीतः यासी त भरतषभ ।। १५ ।। उनके हाथसे घोड़ के लगाम और चाबुक पृ वीपर गर पड़े और वे भयभीत होकर बार-बार मुझसे पूछने लगे—‘भरत े अजुन! तुम कहाँ हो?’ ।। १५ ।। मां च भीरा वशत् ती ा त मन् वगतचेत स । स च मां वगत ानः सं त मदम वीत् ।। १६ ।। मात लके बेसुध होनेपर मेरे मनम भी अ य त भय समा गया। तब सुध-बुध खोये ए मात लने मुझ भयभीत यो ासे इस कार कहा— ।। १६ ।।

सुराणामसुराणां च सं ामः सुमहानभूत् । अमृताथ पुरा पाथ स च ो मयानघ ।। १७ ।। ‘ न पाप कु तीकुमार! ाचीन कालम अमृतक ा तके लये दे वता और दै य म अ य त घोर सं ाम आ था, जसे मने अपनी आँख दे खा है ।। १७ ।। श बर य वधे घोरः सं ामः सुमहानभूत् । सारयं द े वराज य त ा प कृतवानहम् ।। १८ ।। ‘श बरासुरके वधके समय भी अ य त भयानक यु आ था। उसम भी मने दे वराज इ के सार थका काय सँभाला था ।। १८ ।। तथैव वृ य वधे संगृहीता हया मया । वैरोचनेमहायु ं ं चा प सुदा णम् ।। १९ ।। ‘इसी कार वृ ासुरके वधके समय भी मने ही घोड़ क बागडोर हाथम ली थी। वरोचनकुमार ब लका अ य त भयंकर महासं ाम भी मेरा दे खा आ है ।। १९ ।। एते मया महाघोराः सं ामाः पयुपा सताः । न चा प वगत ानोऽभूतपूव ऽ म पा डव ।। २० ।। ‘ये बड़े-बड़े भयानक यु मने दे खे ह, उनम भाग लया है, परंतु पा डु न दन! आजसे पहले कभी भी म इस कार अचेत नह आ था ।। २० ।। पतामहेन संहारः जानां व हतो ुवम् । न ह यु मदं यु म य जगतः यात् ।। २१ ।। ‘जान पड़ता है, वधाताने आज सम त जाका संहार न त कया है, अव य ऐसी ही बात है। जगत्के संहारके अ त र अ य समयम ऐसे भयानक यु का होना स भव नह है’ ।। २१ ।। त य तद् वचनं ु वा सं त या मानमा मना । मोह य यन् दानवानामहं मायाबलं महत् ।। २२ ।। अ ुवं मात ल भीतं प य मे भुजयोबलम् । अ ाणां च भावं वै धनुषो गा डव य च ।। २३ ।। अ ा माययैतेषां मायामेतां सुदा णाम् । व नह म तम ो ं मा भैः सूत थरो भव ।। २४ ।। मात लका यह वचन सुनकर मने वयं ही अपने-आपको सँभाला और दानव के उस महान् मायाबलका नवारण करते ए भयभीत मात लसे कहा—‘सूत! आप डर मत। थरतापूवक रथपर बैठे रह और दे ख, मेरी इन भुजा म कतना बल है? मेरे गा डीव धनुष तथा अ का कैसा भाव है? आज म अपने अ क मायासे इन दानव क इस भयंकर माया तथा घोर अ धकारका वनाश कये दे ता ँ’ ।। २२—२४ ।। एवमु वाहमसृजम मायां नरा धप । मोहन सवभूतानां हताय दवौकसाम् ।। २५ ।। नरे र! ऐसा कहकर मने दे वता के हतके लये अ स ब धनी मायाक सृ क , जो सम त ा णय को मोहम डालनेवाली थी ।। २५ ।। ी ो

पीड् यमानासु मायासु तासु ता वसुरो माः । पुनब वधा मायाः ाकुव मतौजसः ।। २६ ।। उससे असुर क वे सारी मायाएँ न हो गय । तब उन अ मत तेज वी दानवराजा ने पुनः नाना कारक मायाएँ कट क ।। २६ ।। पुनः काशमभवत् तमसा यते पुनः । भव यदशनो लोकः पुनर सु नम ज त ।। २७ ।। इससे कभी तो काश छा जाता था और कभी सब कुछ अ धकारम वलीन हो जाता था। कभी स पूण जगत् अ य हो जाता और कभी जलम डू ब जाता था ।। २७ ।। सुसंगृहीतैह र भः काशे स त मात लः । चरत् व दना येण सं ामे लोमहषणो ।। २८ ।। तदन तर काश होनेपर मात लने घोड़ को काबूम करके अपने े रथके ारा उस रोमांचकारी सं ामम वचरना ार भ कया ।। २८ ।। ततः पयपत ु ा नवातकवचा म य । तानहं ववरं ् वा ा ह यं यमसादनम् ।। २९ ।। तब भयानक नवातकवच चार ओरसे मेरे ऊपर टू ट पड़े। उस समय मने अवसर दे खदे खकर उन सबको यमलोक भेज दया ।। २९ ।। वतमाने तथा यु े नवातकवचा तके । नाप यं सहसा सवान् दानवान् माययाऽऽवृतान् ।। ३० ।। वह यु नवातकवच के लये वनाशकारी था। अभी यु हो ही रहा था क सहसा सारे दानव अ तधानी मायासे छप गये। अतः म कसीको भी दे ख न सका ।। ३० ।। इत

ीमहाभारते वनपव ण नवातकवचयु पव ण मायायु े एकस त य धकशततमोऽ यायः ।। १७१ ।। इस कार ीमहाभारत वनपवके अ तगत नवातकवचयु पवम मायायु वषयक एक सौ इकह रवाँ अ याय पूरा आ ।। १७१ ।।

* कोस म ‘अ ’ श दका अथ ‘सप’ भी मलता है।

स त य धकशततमोऽ यायः नवातकवच का संहार अजुन उवाच अ यमाना ते दै या योधय त म मायया । अ येना वीयण तान यहमयोधयम् ।। १ ।। अजुन बोले—राजन्! इस कार अ य रहकर ही वे दै य माया ारा यु करने लगे तथा म भी अपने अ क अ य श के ारा ही उनका सामना करने लगा ।। १ ।। गा डीवमु ा व शखाः स यग चो दताः । अ छ द ु मा ा न य य म तेऽभवन् ।। २ ।। मेरे गा डीव धनुषसे छू टे ए बाण व धवत् यु द ा से े रत हो जहाँ-जहाँ वे दै य थे, वह जाकर उनके सर काटने लगे ।। २ ।। ततो नवातकवचा व यमाना मया यु ध । सं य मायां सहसा ा वशन् पुरमा मनः ।। ३ ।। जब म इस कार यु े म उनका संहार करने लगा, तब वे नवातकवच दानव अपनी मायाको समेटकर सहसा नगरम घुस गये ।। ३ ।। पयातेषु दै येषु ा भूते च दशने । अप यं दानवां त हतान् शतसह शः ।। ४ ।। दै य के भाग जानेसे जब वहाँ सब कुछ प दखायी दे ने लगा, तब मने दे खा, लाख दानव वहाँ मरे पड़े थे ।। ४ ।। व न प ा न त ैषां श ा याभरणा न च । शतशः म य ते गा ा ण कवचा न च ।। ५ ।। हयानां ना तरं ासीत् पदाद् वच लतुं पदम् । उ प य सहसा त थुर त र गमा ततः ।। ६ ।। उनके अ -श और आभूषण भी पसकर चूण हो गये थे। दानव के शरीर और कवच के सौ-सौ टु कड़े दखायी दे ते थे। वहाँ दै य क इतनी लाश पड़ी थी क घोड़ के लये एकके बाद सरा पैर रखनेके लये कोई थान नह रह गया था। अतः वे अ त र चारी अ वहाँसे सहसा उछलकर आकाशम खड़े हो गये ।। ५-६ ।। ततो नवातकवचा ोम संछा केवलम् । अ या यवत त वसृज तः शलो चयान् ।। ७ ।। तदन तर नवातकवच ने अ य पसे ही आ मण कया और केवल आकाशको आ छा दत करके प थर क वषा आर भ कर द ।। ७ ।। अ तभू मगता ा ये हयानां चरणा यथ । गृ न् दानवा घोरा रथच े च भारत ।। ८ ।। े



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भरतन दन! कुछ भयंकर दानव ने, जो पृ वीके भीतर घुसे ए थे, मेरे घोड़ के पैर तथा रथके प हये पकड़ लये ।। ८ ।। व नगृ हरीन ान् रथं च मम यु यतः । सवतो माम व य त सरथं धरणीधरैः ।। ९ ।। इस कार यु करते समय मेरे हरे रंगके घोड़ तथा रथको पकड़कर उन दानव ने रथस हत मेरे ऊपर सब ओरसे शलाख ड ारा हार आर भ कया ।। ९ ।। पवतै पचीय ः पतमानै तथापरैः । स दे शो य वताम गुहेव समप त ।। १० ।। नीचे पवत के ढे र लग रहे थे और ऊपरसे नयी-नयी च ान पड़ रही थ । इससे वह दे श जहाँ हमलोग मौजूद थे, एक गुफाके समान बन गया ।। १० ।। पवतै छा मानोऽहं नगृहीतै वा ज भः । अग छं परमामा त मात ल तदल यत् ।। ११ ।। एक ओर तो म शलाख ड से आ छा दत हो रहा था, सरी ओर मेरे घोड़े पकड़ लये जानेसे रथक ग त कु ठत हो गयी थी। इस ववशताक दशाम मुझे बड़ी पीड़ा होने लगी, जसे मात लने जान लया ।। ११ ।। ल य वा च मां भीत मदं वचनम वीत् । अजुनाजुन मा भै वं व म मुद रय ।। १२ ।। इस कार मुझे भयभीत आ दे ख मात लने कहा—‘अजुन! अजुन! तुम डरो मत। इस समय वा का योग करो’ ।। १२ ।। ततोऽहं त य तद् वा यं ु वा व मुद रयम् । दे वराज य द यतं भीमम ं नरा धप ।। १३ ।। महाराज! मात लका वह वचन सुनकर मने दे वराजके परम य तथा भयंकर अ वका योग कया ।। १३ ।। अचलं थानमासा गा डीवमनुम य च । अमु चं व सं पशानायसान् न शतान् शरान् ।। १४ ।। अ वचल थानका आ य ले गा डीव धनुषको वा से अ भम त करके मने लोहेके तीखे बाण छोड़े, जनका पश वक े समान कठोर था ।। १४ ।। ततो माया ताः सवा नवातकवचां तान् । ते व चो दता बाणा व भूताः समा वशन् ।। १५ ।। तदन तर वा से े रत ए वे व व प बाण पूव सारी माया तथा नवातकवच दानव के भीतर घुस गये ।। १५ ।। ते व वेग वहता दानवाः पवतोपमाः । इतरेतरमा य यपतन् पृ थवीतले ।। १६ ।। फर तो वक े वेगसे मारे गये वे पवताकार दानव एक- सरेका आ लगन करते ए धराशायी हो गये ।। १६ ।। अ तभूमौ च येऽगृ न् दानवा रथवा जनः ।

अनु व य तान् बाणाः ा ह वन् यमसादनम् ।। १७ ।। पृ वीके भीतर घुसकर जन दानव ने मेरे रथके घोड़ को पकड़ रखा था, उनके शरीरम भी घुसकर मेरे बाण ने उन सबको यमलोक भेज दया ।। १७ ।। हतै नवातकवचै नर तैः पवतोपमैः । समा छा त दे शः स वक ण रव पवतैः ।। १८ ।। वहाँ मरकर गरे ए पवताकार नवातकवच इधर-उधर बखरे ए पवत के समान जान पड़ते थे। वहाँका सारा दे श उनक लाश से पट गया था ।। १८ ।। न हयानां तः का च रथ य न मातलेः । मम चा यत तदा तद त मवाभवत् ।। १९ ।। उस समयके यु म न तो घोड़ को कोई हा न प ँची, न रथका ही कोई सामान टू टा, न मात लको ही चोट लगी और न मेरे ही शरीरम कोई आघात दखायी दया, यह एक अ तसी बात थी ।। १९ ।। ततो मां हसन् राजन् मात लः यभाषत । नैतदजुन दे वेषु व य वीय यद यते ।। २० ।। तब मात लने हँसते ए मुझसे कहा—‘अजुन! तुमम जो परा म दखायी दे ता है, वह दे वता म भी नह है’ ।। २० ।। हते वसुरसंघेषु दारा तेषां तु सवशः । ा ोशन् नगरे त मन् यथा शर द सारसाः ।। २१ ।। उन असुरसमूह के मारे जानेपर उनक सारी याँ उस नगरम जोर-जोरसे क ण दन करने लग , मानो शर कालम सारस प ी बोल रहे ह ।। २१ ।। ततो मात लना साधमहं तत् पुरम ययाम् । ासयन् रथघोषेण नवातकवच यः ।। २२ ।। तब म मात लके साथ रथक घघराहटसे नवातकवच क य को भयभीत करता आ उस दै य-नगरम गया ।। २२ ।। तान् ् वा दशसाह ान् मयूरस शान् हयान् । रथं च र वसंकाशं ा वन् गणशः यः ।। २३ ।। मोरके समान सु दर उन दस हजार घोड़ को तथा सूयके समान तेज वी उस द रथको दे खते ही झुंड-क -झुंड दानव याँ इधर-उधर भाग चल ।। २३ ।। ता भराभरणैः श द ा सता भः समी रतः । शलाना मव शैलेषु पत तीनामभूत् तदा ।। २४ ।। उन डरी ई नशाच रय के आभूषण के ारा उ प आ श द पवत पर पड़ती ई शला के समान जान पड़ता था ।। २४ ।। व ता दै यनाय ताः वा न वे मा यथा वशन् । ब र न व च ा ण शातकु भमया न च ।। २५ ।। त प ात् वे भयभीत ई दै यना रयाँ अपने-अपने घर म घुस गय । उनके महल सोनेके बने ए थे और अनेक कारके र न से उनक व च शोभा होती थी ।। २५ ।।

तद ताकारमहं ् वा नगरमु मम् । व श ं दे वनगरादपृ छं मात ल ततः ।। २६ ।। वह उ म एवं अ त नगर दे वपुरीसे भ